सर्व देवदेवी सद्भक्ति सुमगुच्छम्

सर्व देवदेवी सद्भक्ति सुमगुच्छम्

ॐ ॐकार नादानुरक्तं महागणपतिं सर्वाभीष्टप्रदायकं सर्व कार्यारम्भादि पूजितं उमाशङ्कर सुखकारकं गजकर्णकं गजमुखं गीतसुधाप्रियम् उपास्महे स्मरामहे भजामहे ॥

१ गणेशगीतम्

पार्वती नन्दनं विघ्नविनाशकं प्रथमार्चित चरणं उपास्महे ॥ पल्लवि॥ पाशाङ्कुशधरम् सर्व विघ्नहरं भवसञ्चित पाप तिमिरहरं भास्करं मूलाधार चक्र नीवासिनं सुरराजार्चितं स्मरामहे ॥ १॥ मूषिक वाहनं लम्बोदरं स्कन्दपूर्वजं वीतरागिणं जगत्पावन कारणं अजं परम शुभङ्करं भजामहे ॥ २॥

२ सरस्वती गीतम्

परमपद सोपानारोहण भाग्यं देहि मे वागीश्वरि निजभक्ति स्वादयुत आत्मबलं देहि मे योगेश्वरि ज्ञानेश्वरि ॥ पल्लवि॥ अम्बुजासन हृदयेश्वरि सप्तस्वर सम्पदेश्वरि रागलयभावाकरि तुम्बुरु नारद दिविजादि कीर्तिते परब्रह्म सेवाधुरन्धरि परानाद बिन्दु कलामन्दिर नाट्यमयूरि नटनरत किन्नरि श‍ृतिस्मृति गीतादि दिव्यग्रन्थरूपधरि सुगीतसुधाकरि ॥ १॥ महाविचित्र पद चदुरङ्ग विनोदिनि महोदये महाद्भुत वाच्यार्थ गूढार्थयुत भाषाश्रये विविधाक्षर पद भाव संयोजक प्रतिभा वीणावादनप्रिये भाषण गायन चिन्तन स्फुरण लेखन । यात्रीकोऽस्मि तव परितुष्टये ॥ २॥

३ गायत्री गीतम्

श्लोक ॥ ब्रह्मतेजो विवर्धिनि ब्रह्मास्त्ररूपिणि ब्रह्मलोक निवासिनि परब्रह्मरूपिणि पञ्चभूतरूपिणि पञ्चमुखि त्रिलोचनि पञ्चक्लेश हारिणि प्रणतार्तिविनाशिनि ॥ पल्लवि॥ जीवकोटिपावनि गायत्रि जननि सप्तकोटि महामन्त्ररूपिणि प्रातःसन्ध्यार्चिते हंसवाहनि अपराह्नोपासिते गरुडवाहनि सायं सन्ध्यार्चिते वृषभवाहनि सर्वकालपूजिते महायोगिनि ॥ १॥ दिव्यपथ सञ्चारिणि जयशालिनि दिव्यमोद दायिनि चारुहासिनि धीशक्ति प्रचोदिनि बन्धमोचनि दुरितविदूरिणि दीक्षारूपिणि ॥ २॥ इच्छाशक्तिप्रसादिनि कल्याणि ज्ञानशक्ति प्रकाशिनि ब्रह्माणि क्रियाशक्ति सञ्चालिनि देवि भवानि सर्वशक्तिदायिनि गीतसुधावनि ॥ ३॥

४ सरस्वती गीतम्

ज्ञानरत्नाकरि श्वेताम्बरि वीणा पुस्तक जपमालाधरि ॥ पल्लवि॥ वाङ्मानसगोचर लोकपावनि वाक्चक्ति दायिनि वैखरीचालिनि रससिद्धि प्राप्तिप्रिय सम्पोषिणि सरस विरसातीत सामरस्य बोधिनि ॥ १॥ चाञ्चल्य दोषापहारिणि हरिणि चापल्य कालुष्य दूरिणि जननि सकल कलापोषिणि गीतसुधावाहिनि अखिलानुभवसार रसवारुणि ॥ २॥ मोह प्रमादवश भक्तोद्धारिणि कामकामी मनोसंशुद्धिकारिणि प्रेमयोगनिरत दैन्यनिवारिणि ध्यानमौनव्रतान्ते दीप्तिवर्धिनि ॥ ३॥

५ लक्ष्मी गीतम्

रम्यवेणी रमा पल्लवपाणी आगच्छतु विष्णुना सह सौम्यनयनी ॥ पल्लवि॥ क्षीरसमुद्र राजकुमारी रक्षतु मां ज्ञानदीपाङ्कुरी ब्रह्माण्ड भाण्डोदरी दयासागरि रक्षतु मां कोल्लापुरीश्वरी ॥ १॥ जड निद्रालस्य वश श्रितोद्धारिणी जड चेतनमय भुवनैकपालिनी भोगापवर्ग प्रदायिनी लक्ष्मी रक्षतु मां सदा श्रीवरलक्ष्मी ॥ २॥ चिन्ताग्नी शमनकरी यशस्करी सत्वगुण वृद्धिकरी श्रेयस्करी चन्द्रसहोदरि अभयङ्करी रक्षतु मां वैकुण्ठाधीश्वरी ॥ ३॥

६ दुर्गा गीतम्

श्रीचक्रराज सिंहासनासीने त्वां स्मरामि भानुचन्द्र नयने ॥ पल्लवि॥ कदली वन सञ्चारिणि आधारादि षट्चक्र निवासिनि सदसद्विवेक शील सुज्ञानदे सर्वकरण निग्रह शील मोददे ॥ १॥ दैत्यमर्दिनि माते महोग्रवदने दया क्षमापूरिणि महोल्लासवदने कालि महाकालि नवदुर्गा रूपधरि दुरित क्षयकरि वरदे बिम्बाधरि ॥ २॥ नास्तिक वाद धुरीणापजयकारिणि आस्तिक महाशय भक्ति भुक्ति दायिनि विश्वरूप प्रदर्शिनि अष्टादशभुजे गीतसुधा स्वादिनि हृदयाब्जे विरजे ॥ ३॥

७ सरस्वती गीतम्

श‍ृङ्गेरि पुराधीश्वरि शुकधरि अक्ष मालिकाधरि हे अरुणाम्बरि ॥ पल्लवि॥ हे विद्यासागरि विरिञ्चि मनोहरि विश्वैक शुभकरि पालय मां स्वस्थमानसकरि स्वेच्छापहरि सुधा कुम्भधरि गीतसुधाकरि ॥ १॥ हे सर्वाक्षर मूल प्रणवप्रकाशकि सर्वशास्त्र ज्ञान सम्पत्प्रदायकि अनुपम गुणवर्धकि पालय मां अन्तरवलोकन पारवश्य दायकि ॥ २॥ हे शास्त्रशरीरिणि शास्त्रसंरक्षिणि शास्त्रकोविद स्तुत कोटितन्त्र स्वामिनि ऋषिहृदयवासिनि ब्रह्मतत्वसौधामिनि ऋषिस्फुरण प्रकटित नवभाव स्रोतरूपिणि ॥ ३॥

८ सरस्वती गीतम्

गीर्वाणि कलवाणि वीणापाणि गीतसुधावनि चतुरास्यभामिनि ॥ पल्लवि॥ बुधजनरञ्जनि रसिकसम्मोहिनि एङ्कार जपतोषिणि भक्तिज्ञान दायिनि । धूम्रलोचन सूदनि अभयदायिनि शुम्भासुर मर्दिनि शास्त्ररूपिणि सुमूर्तरूपिणि सुवासिनि सौभाग्यवर्धिनि सुहासिनि ॥ १॥ महाश्रये महापापनाशिनि महोदये महोत्साहकारिणि नवरस सुधाम्बुनिधि विहारिणि नवनवोन्मेष शालिनि जननि ॥ २॥

९ राजराजेश्वरि गीतम्

सहस्रार विन्द्याद्रि सदने गतिस्त्वं ह्रीङ्कार मन्त्रजप फलदे गतिस्त्वम् ॥ पल्लवि॥ त्वमेव माते कन्याकुमारि त्वमेव त्राते दुर्गापरमेश्वरि त्वमेव दाते राजराजेश्वरि त्वमेव ब्रह्माण्ड भाण्डोदरि ॥ १॥ ज्ञान सिंहासनासीने शुभदे सिंहवाहिनि सर्वकर्मफलदे रक्तवस्त्रधरि वरदाभयकरि असीम तेज वीर्य मोदसागरि ॥ २॥ युक्तायुक्त कर्माचरण प्रबोधिनि सत्यासत्य विवेचन प्रकाशिनि तारतम्य भेदसाम्य निर्देशिनि सुश्राव्य गीतसुधोल्लासिनि ॥ ३॥

१० लक्ष्मी गीतम्

श्रीकान्त भामिनि श्री महालक्ष्मि श्रीप्रदायिनि अवतु माम् ॥ पल्लवि॥ इन्दुभगिनि ईप्सितदायिनि इन्दुमुखि ईषणत्रयहारिणि श्रेयोकारिणि प्रेयोपालिनि अष्टैश्वर्य प्रदायिनि अवतु माम् ॥ १॥ जीवपावनि जीवबल वर्धिनि क्षीराब्धि नन्दिनि गीतसुधावनि आद्यन्तरहित वैभवशालिनि स्थैर्य सौख्यदायिनि अवतु माम् ॥ २॥

११ दुर्गादेवी गीतम्

विश्व मोहक लावण्ययुते देवि रक्ष मां आदिपराशक्ति राजर्षिनुते संरक्ष माम् ॥ पल्लवि॥ सप्तमातृका रूपधारिणि जगज्जननि तप्त नतजनावनि आश्रित भक्तपावनि ब्रह्म विष्णु शम्भु दिविजवृन्दस्थित शक्तियुते लोककण्टक महिषासुर मर्दिनि जगत्राते ॥ १॥ दुर्गा भवानि त्वं स्वर्गापवर्गप्रदे सर्गचक्र बन्धमोचनप्रिय भक्तिशक्तिप्रदे रक्तबीजासुर निपातिनि त्रिशूलिनि शुम्भनिशुम्भ मदहारिणि सिंहवाहनि ॥ २॥ घण्टिनि शङ्खिनि चक्रिणि गदिनि चन्द्रार्कलोचनि धनुर्धारिणि शरप्रयोगलीला विनोदिनि दिव्य शरीरधरि ह्रीङ्कार तरुमञ्जरि दिव्यमाल्याम्बरधरि गीतसुधासागरि । किणि किणि किङ्किणि घण्टानाद शङ्खनाद स्वरूपिणि मङ्गलं तन्त्रीनाद । तालनाद वेणुनाद मृदङ्गनाद स्वरूपिणि । मङ्गलं भेरीनाद मेघनाद मङ्गलम् दशनाद मङ्गलं परमात्म सान्निध्यमोदनाद मङ्गलं जय मङ्गलं सर्वमङ्गलम् ॥

१२ सरस्वती गीतम्

श्री वागीश्वरि ब्रह्मविद्यासागरि श्रद्धा मेधाङ्कुरि प्रज्ञाधारण गोचरि । रक्षय मां पालय माम् ॥ पल्लवि॥ हिमसदृश कान्तिवति श्री महासरस्वति दानकर्म वृद्धिरति चतुर्मुख प्रियसति त्वमेव गायत्रि धीप्रचोदयित्रि त्वमेव सावित्रि सद्विद्यादात्रि ॥ १॥ ऐङ्कार जप रागिणि पाशाङ्कुशधारिणि अक्षमाला पुस्तकधारिणि भवतारिणि ब्रह्ममानस सरोवर विहारिणि सर्वजनपावनि द्युलोकवासिनि ॥ २॥ सर्व वर्ण पद वाक्यार्थरूपिणि शुद्धचित्त दर्पण वाच्यार्थ बोधिनि रुद्रादित्यरूपिणि त्रिलोक नियन्त्रिणि आद्यन्तरहित तरङ्गिणि रञ्जनि ॥ ३॥ परा पश्यन्ती मध्यमा वैखरी- वाग्विराजिनि अन्तर्यामिनि आध्यात्मिक आधिभौतिक आधिदैविकरूपिणि समस्त विद्यालोके सञ्चारिणि ॥ ४॥ सुज्ञानैश्वर्य सम्प्रदायिनि दिव्य भावोद्दीपन मुदकारिणि सद्भक्तोद्यान कल्पतरुरूपिणि गीतसुधाहर्षिणि वीणापाणि ॥ ५॥

१३ लक्ष्मीदेवी गीतम्

पञ्चबाण जनकप्रिये विजये प्रसीद मम भक्ताश्रये ॥ पल्लवि॥ माधव पादसेवा तत्परे वेदवेत्त मोदप्रमोदाधारे शमदमादि षट्सम्पदकारिणि वैकुण्ठलोकेश्वर भामिनि ॥ १॥ सदाचार सम्पन्न संरक्षिणि व्यसनलोल जन परिवर्तिनि साधुसेवानिरत कृपासागरि यज्ञशेष प्रिय श्रिताभयकरि ॥ २॥ सद्धर्मपालक सुजन श्रेयस्करि सत्कर्म लीन दीनजन सम्पत्करि नित्यानन्दकरि त्रिभुवनसुन्दरि श्रीङ्कार बीजाक्षरि गीतसुधाकरि ॥ ३॥

१४ लक्ष्मी गीतम्

श्री विष्णुवल्लभे शुभे पालय मां भक्तसुलभे दिव्यप्रभे पोषय माम् ॥ पल्लवि॥ वैकुण्ठाधीश्वरि अरुणाम्बरि सौन्दर्यरत्नाकरि भुवनानन्दकरि सौभाग्यदायिनि गीतसुधास्वादिनि कृपावर्षिणि अष्टलक्ष्मिरूपिणि ॥ १॥ सरोरुहगन्धिनि सरोरुह लोचनि सर्वक्लेशदूरिणि कारुण्य पुष्करिणि शोकमोहनाशिनि नाकसृष्टिकारिणि दारिद्र्यध्वंसिनि पुण्यफलदायिनि ॥ २॥

१५ सरस्वती गीतम्

श्लोकम् श्री सरस्वतीं मयूरवाहिनीं श्वेतवस्त्रान्वितां श्वेतपद्मासनां जपमाला पुस्तकहस्तां गीतसुधानुतां अभयां अक्षयां अहर्निशं उपास्महे विद्यादायिनि शारदे चिरसुखकारिणि वरदे ॥ पल्लवि॥ कामरूपिणि पातक नाशिनि कमल लोचनि कमलज राणि कच्छपि वीणापाणि कल्याणि सङ्गीत साहित्य सुधावर्षिणि ॥ १॥ ज्ञानविज्ञान तृप्ति दायिनि अविद्या वारिधि तारिणि सकलशास्त्र विचार रत्नाकरि सकलकला रसिके ज्ञानेश्वरि ॥ २॥

१६ सरस्वती गीतम्

माणिक्य वीणा पाणि माधुर्य रसवाहिनी ॥ पल्लवि॥ सकल कलास्वादिनि कल्याणि सकल विद्यास्वामिनि गीर्वाणि सकल शास्त्र सञ्चारिणि रञ्जनि सकलान्तर्यामिनि निरञ्जनि ॥ १॥ सकल संवेदनाज्ञानरूपिणि विकलात्म पावनि गीतसुधा तोषिणि मलिन मनो वृत्ति निरोधिनि नलिनीदलमम्बुवत् संरक्षिणि ॥ २॥ सरिगम पदनि सप्तस्वररागिणि स्वर व्यञ्जन रत्नमाला शोभिनि प्रणवनाद वलयान्तर्व्यापिनि सर्वाक्षर दीप्तिप्रसारिणि ॥ ३॥

१७ वासवी गीतम्

श्री वासवीदेवि त्वमेव सृष्टिशक्तिः श्री देवदेवि त्वमेव पालनशक्तिः श्री परदेवि त्वमेव संहार शक्तिः नमस्ते नमस्ते नमस्ते ॥ पल्लवि॥ पेनुगोण्ड प्रतिष्ठित दिव्य वनितामणि पराशक्त्यवतारिणि वासवि कृपावीक्षणि विरूपाक्ष प्रियसोदरि भवतारिणि कुसुमाम्ब कुसुमाख्यनन्दिनि रञ्जनि ॥ १॥ धर्मरहस्य प्रदीपिनि जननि धर्मध्वजारोहण प्रोल्लासिनि सुगुण नवरत्न मालासंयोजनि सारस चरण सुशोभिनि पावनि ॥ २॥ अहिंसोद्यम सञ्चालिनि त्यागव्रत पालिनि आत्मबलिदान रत वैश्यकुल पथदर्शिनि । विराड्रूप प्रदर्शिनि गीतसुधा वाहिनि आर्द्रहृदय पुष्करिणि कविपुङ्गव वरदायिनि ॥ ३॥

१८ ललिता गीतम्

श्रीचक्र सिंहासनाधीश्वरि श्रीविद्योपासक शुभङ्करि ॥ पल्लवि॥ सुमेरूमध्य प्रासादस्थिते सुरतरु सुरधेनु सुरगणाश्रिते धीशक्ति मनोशक्ति तनुशक्ति वृद्धस्तुते धराधीश योगीश नुते श्रीललिते ॥ १॥ मन्त्र तन्त्र यन्त्र बलव्यापिनि । देव दैत्य कृत तपःसमदर्शिनि भक्त परिरक्षिणि गीतसुधा मोदिनि चराचर स्वामिनि सद्योमुक्तिदयिनि ॥ २॥

१९ वाणी गीतम्

हे ललितकला स्वाराज्य स्थापिनि हे लेखन वाचन नन्दन विहारिणि ॥ पल्लवि॥ सत्य प्रतिपादना पुष्करिणि वाणि समस्त जीवकुल भाषान्तर्यामिनि सर्व जीवकुल भावान्तर्वाहिनि नाद गगन सञ्चारिणि श्रद्धां भक्तिं देहि मे ॥ १॥ सत्यलोकवासिनि श्वेतहंसवाहिनि सर्व विध शास्त्र विराड्रूपिणि सर्व चित्तवृत्ति निरोधकारिणि शुभ्र वस्त्रधारिणि श्रद्धा भक्तिं देहि मे ॥ २॥ राजस तामस भाव कलुषनिवारिणि राग तान पल्लवि शिखरारोहिणि परामानस शास्त्र विभेदिनि गीतसुधा तोषिणि श्रद्धा भक्तिं देहि मे ॥ ३॥

२० वाग्देवी गीतम्

मधुर वाग्विलास रञ्जनीं मधुर भावमेघयान तोषिणीं स्मरामि सततं ध्यायामि अनवरतम् ॥ पल्लवि॥ सङ्गीत साम्राज्य पालनकरीं साहित्य स्वाराज्य स्पापनकरीं अन्यथा ग्रहणहरां श्वेताम्बरां अग्रहणापहरण चतुरां स्मरामि सततं ध्यायामि अनवरतम् ॥ १॥ सरसिजोद्भव सतीं सरस्वतीं सरसवतीं रसवतीं रतीं विद्याश्रयां सत्यालयां विक्षिप्त चित्त शुभोदयां स्मरामि सततं ध्यायामि अनवरतम् ॥ २॥

२१ पर्वती गीतम्

चतुर्वेद साम्राज्ञि रक्ष मां चतुर्दश भुवन जननि संरक्ष माम् ॥ पल्लवि॥ सच्चिदानन्दरूपिणि निरञ्जनि नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्तरूपिणि देव व्यूह रक्षिणि दैत्यगण ध्वंसिनि धैर्यस्थैर्य दायिनि गीतसुधारञ्जनि ॥ १॥ हिमगिरि नन्दिनि हरप्रियरमणि पण्डित पामर पूजा प्रमोदिनि केसरिवाहनि कलिमलविदूरिणी सत्कर्म सद्भाव सौशील्यतोषिणि ॥ २॥ भक्तिभाव माधुर्य प्रोल्लासिनि षोडशार्चनाकैङ्कर्य वरदायिनि कैलासवासिनि कुमतिहारिणि शिवगण नर्तन गायनाह्लादिनि ॥ ३॥

२२ दक्षिणामूर्ति गीतम्

राजयोग चक्रवर्ति कृपया मामव दक्षिणामूर्ति गुरुमूर्ति मामव ॥ पल्लवि॥ मातङ्ग चर्माम्बर हे शङ्कर भस्माङ्गरागधर त्रिशूलधर कैलासेश्वर गौरीमनोहर जटाजूटधर पापदहनकर ॥ १॥ अद्भुतगात्र हे परमपवित्र मदनान्तक हे ललाट नेत्र षण्मुख गजमुख लीलाविहार पन्नगहार शिष्योद्धार ॥ २॥ ब्रह्मतत्व प्रतिपादकोऽसि अद्वैतानुभव प्रसारकोऽसि सर्वत्र मां कुरु योगयुक्तं प्रसन्नात्मा कुरु मां निजभक्तम् ॥ ३॥

२३ लक्ष्मी गीतम्

वैकुण्ठ निलये वात्सल्यहृदये पाहि मां दुग्धसागर तनये ॥ पल्लवि॥ विष्णु मनोहरि चन्द्रसहोदरि सत्यानन्दकरि सदाभयकरि कमलकुसुमहस्ते रक्ताम्बरि कमलासनस्थिते विश्वम्भरि ॥ १॥ महिमातिशय रूप लावण्यवति कान्तिवति शान्तिमति रति सुमति लोकमाते गीतसुधाचन्द्रिके अभीष्टदाते अणुमहद्दीपिके ॥ २॥ जडलक्ष्मि रूपेण द्रव्यराशिव्यापिनि चेतनलक्ष्मि त्वं जीवकोटिजननि अष्टलक्ष्मिरूपिणि सर्वशक्तिप्रदे ऋषीन्द्र मुनीन्द्र पूज्ये मुक्तिप्रदे ॥ ३॥

२४ शिवगीतम्

समाधि वल्मीके शिव परमानन्द मां योगस्थं कुरु निजानन्द ॥ पल्लवि॥ नवभाव नयनाश्रु सङ्गमे त्वां हृदयाकाशे कथं पश्यामि बहुजन्म कृतयोग फलप्रद कुरु मां तपोप्रियं आचार्येन्द्र ॥ १॥ कारुण्य सागर त्यागि योगि विरागि हर ज्ञानगङ्गाधर प्रणव गीतसुधाकर ॐ नमश्शिवाय इति पञ्चाक्षराः तव दिव्यमन्त्राः तव यौगिक तन्त्राः ॥ २॥

२५ माधव गीतम्

देदीप्यमान ज्योतिस्वरूप ध्यानदर्शित सगुणस्वरूप ॥ पल्लवि॥ वेद सृष्टिकारण श्री माधव वेदमन्त्र शक्तिप्रद श्री केशव सम्यग्जीवन प्रद श्रीधर सम्यग्दर्शन कारण श्रीकर ॥ १॥ धर्मक्षेत्र परिरक्षणार्थं कर्मक्षेत्र संविधानार्थं युगयुगे त्वं मर्त्यलोके दिव्य मानुषीम् तनुमाश्रितः ॥ २॥ गीताचार्य हे जीवहितकर गीतामृत लोल वेणुगानचतुर हे विश्वगुरु शरणागतोद्धार प्रसीद प्रसीद कृपासागर ॥ ३॥

२६ मुरलीधर गीतम्

भुवनैक सम्मोहनाकारं शिरसा नमामि मुरलीधरम् ॥ पल्लवि॥ देवकी वसुदेव प्रिय किशोरं यशोदानन्द चित्तापहरं कालुष्यदूरम् विश्वाधारं कारुण्यपूरं विश्वाकारम् ॥ १॥ तुलसीमालाधरं जीवेश्वरं सखवृन्द नायकम् नवनीतचोरं रासलीलालोलं ज्ञानेश्वरं गीतसुधालोलं योगेश्वरम् ॥ २॥

२७ गोपाल गीतम्

गोवर्धन गिरिधर गोपाल त्राहि मां अष्टदिक्पालक पालक ॥ पल्लवि॥ नीलमेघश्याम वैकुण्ठधाम श्री विष्णुमूर्ति पुरुषोत्तम वारिरुह शङ्ख चक्र गधाधर शेषतल्प शयन पीताम्बरधर ॥ १॥ विश्व सृजन पालन लय कारण वैनतेय गमन श्रीदेवी रमण तत्त्वदर्शि निर्गुण सूक्ष्मदर्शि चिद्घन गुणदर्शि गुणातीत गीतसुधा रञ्जन ॥ २॥

२८ श्रीराम गीतम्

श्री रामचन्द्र वात्सल्यसान्द्र रघुकुल पीयूषसागर चन्द्र ॥ पल्लवि॥ धरासुता वल्ल्भ रविप्रभ सुगुणैश्वर्य भिक्षां देहि गम्भीरस्वभाव सर्वात्मभाव दशरथ प्राणप्रिय इनकुलोद्भव ॥ १॥ नित्यसमीपवर्ति मारुतीसेव्य सर्वं राममयमित्यनुभववेद्य नवविध भक्तोपास्य कोदण्डधर अयोध्या सार्वभौम लङ्काधीशहर ॥ २॥ जनकवचन परिपालकराम जनकनन्दिनी सौमित्री समेत विपिनवासे सुखदुःख समदर्शि गीतसुधाश्रय हे सत्यदर्शि ॥ ३॥

२९ श्रीधर गीतम्

क्षीराब्धि सुकुमारि मनोहर क्षीराम्बोनिधि मथनाधार ॥ पल्लवि॥ सर्वकरण सुन्दर शान्ताकार सर्वजीवेश्वर लोकोद्धार समस्त चराचर स्वरूपधर त्रिमूर्ति रूप सद्गुरु दामोदर ॥ १॥ धर्मक्षेत्र सञ्चार सुजनमन्दार वेदज्ञानसार श्रीधर मुदकर असुरसंहार गुणगम्भीर प्रणमाम्यहम् त्वां गीतसुधाकर ॥ २॥

३० वासुदेव गीतम्

दामोदरं रुक्मिणी मनोहरं भावयामि वसुदेव सुकुमारम् ॥ पल्लवि॥ सहस्राराद्रि योगिसद्दर्शितं चिद्गुहान्तर्निवासितम् स्मितं सहस्र कोटि भानुप्रकाशं साधुसन्त सद्भक्त हृदयेशम् ॥ १॥ यादवकुलेशं शुभदायकं वैकुण्ठधामेशं दीनोद्धारकं दैवशिखामणिं प्राज्ञचिन्तामणिं धर्मकर्म मर्मज्ञसुधीमणिम् ॥ २॥ श्यामल शरीरं मातुल कंसहरं व्याकुल चित्त पाण्डवोद्धारं गीतसुधाकरं वेणुगानचतुरं गीतामृत दोग्धां मोहापहरम् ॥ ३॥

३१ वरलक्ष्मी गीतम्

मल्लिका चम्पका सेवन्तिका मालिकालङ्कृता हरिपदसेविका ॥ पल्लवि॥ भक्तधेनुका कृपाचन्द्रिका संरक्षयतु मां भवतारका समृद्धिवाटिका सम्पोषिणी सर्वसिद्धिकारिणी गीतसुधावनी ॥ १॥ सुगन्धमय सरोरुहधारिणी सुकोमलारुण हस्तशोभिनी श्रीवरलक्ष्मी वैकुण्ठस्वामिनी क्षीराब्धिमथने जन्मधारिणी ॥ २॥ शुक शौनक तुम्बुरु नारदादि मुनि योगि गण सङ्कीर्तिता सिद्ध साध्य यक्ष किन्नर किंपरुष गन्धर्व देवासुर वृन्दसेविता ॥ ३॥

३२ गौरी गीतम्

चतुर्दश भुवन जननि नमस्ते कैलासवासिनि गौरि नमस्ते ॥ पल्लवि॥ ताण्डव प्रिय परशिवसहिते लास्यप्रिये जीवपात्रमुदिते प्रकृतिपुरुष सङ्गमबलेन त्वं विश्वपालिनि विश्वरक्षिणि ॥ १॥ गजवदन षड्वदन धीबल प्रहर्षिणि त्रिशूलधारिणि त्रिनेत्रभामिनि भृङ्गि नन्द्यादि शिवगणविनुते स्तोत्रसंप्रीते गीतसुधाश्रिते ॥ २॥

३३ केशव गीतम्

सनातन धर्मसारथिं स्मर क्षीरसागर राजसुतापतिं स्मर ॥ पल्लवि॥ करणव्यूहं संयम्य प्रतिदिनं कायरथे स्मर आत्मानं रथिनं सुदुष्कर मनोगतिं नियम्य केशव चरणाब्जे मन आधत्स्व ॥ २॥ शिष्टजन परिरक्षकं दुष्टजन शिक्षकं विशिष्ट योगार्थि परिवर्तकं जीवनियामकम् जगन्नियन्त्रकं जगदोद्धारकं स्मर गीतसुधारक्षकम् ॥ २॥

३४ विष्णु गीतम्

वन्देऽहं श्री महाविष्णुं जिष्णुं प्रभविष्णुं ग्रसिष्णुम् ॥ पल्लवि॥ वन्दे सरोरुहनाभं अन्तर्मुख सुलभं श्यामलप्रभं श्री सत्यनारायणं नलिनलोचनं हृदयाकर्षणं वन्दे नागकुलाधीश शयनम् ॥ १॥ महिमान्वित सुदर्शन चक्रधरं अतिशय बलपूर्ण गधाधरं गीतसुधापावनं सच्चरित भयहरणं ध्यान गान योग यात्रा तोषणम् ॥ २॥

३५ सरस्वती गीतम्

शारदे वरदे मां ज्योतिर्गमय श्वेतहंसगामिनी सुपथे गमय ॥ पल्लवि॥ नीरक्षीर विवेकं प्रयच्छ कलादेवि आत्मसुखं प्रयच्छ जपमाला पुस्तकधारिणि वाणि विद्यासम्पद्बलं मे यच्छ ॥ १॥ नादसुरङ्गे प्रज्ञां स्थापयसि स्वर तरङ्गे रसलोके विहरसि अक्षरान्तरङ्गे भावलास्यं करोषि । अक्षय गीतसुधासरिता प्रियोऽसि ॥ २॥

३६ दक्षिणामूर्ति गीतम्

हे दक्षिणा मूर्ति बोधय मां हे ज्ञानविज्ञान मूर्ति प्रेरय माम् ॥ पल्लवि॥ राजयोग विद्या रहस्यं विश्वादिगुरुमूर्ति त्वया ज्ञातं हे ज्ञानवृद्ध भवरोगवैद्य सर्वगुरुवन्द्य ऋषिमुनिवेद्य ॥ १॥ हे जीवाधार जीवनाधार वेदवेदान्त सार निगमगोचर जनन मरण तारणचतुर सर्वदा ध्यानस्थ योगभास्कर ॥ २॥

३७ श्रीकृष्ण गीतम्

अन्यथा शरणं नास्ति श्रीनिधि पयोनिधिवास कृपानिधि ॥ पल्लवि॥ अक्षयाम्बरप्रद यदुवंशतिलक पाण्डव रमणी मानसंरक्षक षोडश सहस्र गोपिकाविमोचक षोडश कलापूर्ण कुब्ज वनितोद्धारक ॥ १॥ देवकी वसुदेव त्यागयोगाश्रय राधा रुक्मिणी प्रेमयोगमोदाश्रय वेणुगानप्रिय अक्षयाव्यय गीताबोधक गीतसुधाप्रिय

३८ सरस्वती गीतम्

शुभङ्करि अभयङ्करि वीणापाणि सृष्टिकर्म संलग्न ब्रह्मरमणि ॥ पल्लवि॥ अज्ञात वास स्थित संस्कारान् सुज्ञात विधानेन नियन्त्रसि विधविध स्पन्दन विज्ञान चन्द्रिके त्वमेव ज्ञानप्रदे प्रज्ञादीपिके ॥ १॥ वाग्दोष वारिणि लोकमैत्रि रक्षिणि सर्वाक्षर मालिनि अभिव्यक्तिकारिणि सङ्घर्षसमये सुपथदर्शिनि संप्राप्ति समये यशोकीर्ति दायिनि ॥ २॥ सर्व स्पन्दन माधुर्य प्रहर्षिणि नृत्य गान साहित्य क्षेत्रपोषिणि चित्र शिल्प वैभव सौन्दर्यमयि जपमालाधारिणि गीतसुधामयि ॥ ३॥

३९ राजराजेश्वरी गीतम्

त्रिभुवनोल्लासिनि मां पाहि त्रिदेह सञ्चालिनि ज्ञानं देहि ॥ पल्लवि॥ श्रीराज राजेश्वरि भक्तिदे श्रीमत्सिंहासनासीने मुक्तिदे श्रीमाते जडचेतनात्मिके श्रीयुते सगुण निर्गुणात्मिके ॥ १॥ परापरा विद्याप्रकाशिनि गीतसुधावनि सिंहवाहनयुते श्रीहरि चतुरास्य गजास्यपित नुते रक्तबीजासुर्मर्दनमुदिते दैत्यमर्दिनि ॥ २॥

४० श्रीहरि गीतम्

लीलामानुष विग्रह श्रीहरि लक्ष्मीरमण प्रसीद मुरारि ॥ पल्लवि॥ विश्वस्वाम्यं तवैव सर्वदा जीवसाम्यं त्वय्यैव गोविन्द तव समक्षमतानुभवे मम प्रज्ञां प्रतिष्टापय सुखधाम ॥ १॥ सनक सनन्दनादि ऋषिसेवित धृव प्रह्लाद विभीषणाद्यर्चित सफल जपयोगध्येय गीतसुधाकर शङ्खचक्रधर धरणीप्रियकर ॥ २॥

४१ पार्वती गीतम्

भगवतीं बलवतीं पार्वतीं स्मराम्यहं धीमतीं श्रीमतीं शाश्वतीं भजाम्यहम् ॥ पल्लवि॥ धर्मवतीं दयावतीं हैमवतीं हंसवतीं सुमुख स्कन्ध सम्पूजित शिवसतीं स्मराम्यहम् ॥ १॥ नीतिमतीं कान्तिमतीं मानवतीं भानुमतीं अनुपम लावण्यवतीं ह्रीमतीं स्मराम्यहम् ॥ २॥ रसवतीं सरसवतीं मधुमतीं शान्तिवतीं गीतसुधाश्रितां रतीं गुणवतीं स्मराम्यहम् ॥ ३॥

४२ विघ्नराज गीतम्

विघ्नराजं सुमतिप्रदायकं प्रणमामि सदा मातङ्गमुखम् ॥ पल्लवि॥ नवरत्न किरीट विराजितं भुजग भुजकीर्ति शोभितं मूषकगमनं मोदकरं प्रणमामि दुरितराशिहरम् ॥ १॥ प्रथमाराधितं गिरिजाशिवसुतं ललाटे प्रणवतिलक राजितं सिद्धि बुद्धिप्रदं गीतसुधानुतं प्रणमामि कुमारक्रीडासहितम् ॥ २॥

४३ सरस्वती गीतम्

नादसागरे सप्तस्वर तरङ्गिणि भाषान्तर्गामिनी सर्वाक्षराकारिणि ॥ पल्लवि॥ विद्याप्रदे शारदे वरदे सर्वपदार्थ ज्ञानविज्ञानदे सृष्टिकर्त भामिनि ज्ञानं देहि सत्यलोक स्वामिनि मां परिपाहि ॥ १॥ जीवान्तरङ्गे शाश्वतवासिनि जीवनतरङ्गे तरतमविवेचनि मूढत्वदूरिणि भवभीति हारिणि गीतसुधावनि सत्यप्रकाशिनि ॥ २॥

४४ पार्वती गीतम्

अनुपम लावण्यपूर्णे गिरिसुते अपरिमित शक्तियुते स्कन्दमाते ॥ पल्लवि॥ सिद्धिशक्तिरूपिणि सर्वसिद्धिकारिणि तपस्विनि तेजस्विनि गीतसुधावनि अद्भुत दीक्षाव्रते दक्षनन्दिनि अर्धनारीश्वर परमप्रियरमणि ॥ १॥ स्वहस्तरूपित गजमुख जननि स्वधर्मनिष्ठ शीघ्रोद्धारिणि दैवासुर सङ्ग्रामे शिष्टरक्षिणि गङ्गानुबन्धे स्नेहरागहर्षिणि ॥ २॥

४५ लक्ष्मी गीतम्

सद्भक्ति मधुस्वादप्रिये सहृदये सिन्धूर तिलक शोभिते हरिप्रिये ॥ पल्लवि॥ सर्वभोग सत्ययोग प्रदायिनि सर्वकाल हासिनि सरोजलोचनि सम्पत्प्रदायिनि ह्रासदूरिणि महालक्ष्मि सदये गीतसुधामोदिनि ॥ १॥ सर्वाभरण सुन्दरि मोदकरि पावनकरि सौन्दर्य रत्नाकरि भुवनेश्वरि सञ्चित कर्मराशि दहनकरि संरक्ष मां सदा नित्याभयकरि ॥ २॥

४६ राजराजेश्वरी गीतम्

श्रीमाते राजराजेश्वरि श्री ललिते भुवनैकाधीश्वरि ॥ पल्लवि॥ सत्य शिव सुन्दररूपिणि पालय सत्य ज्ञानानन्तरूपिणि तारय इह पर सौख्यार्थमहं वारं वारं इक्षुचापधरि त्वां प्रणमाम्यहम् ॥ १॥ जन्म मृत्यु वृत्ते भ्रमति मम जीवः तन्मयकर विषयजाले बन्धितोऽस्मि अविद्या गुहे कथं पश्यामि प्रकाशं आराधक पावनि गीतसुधा तारिणि ॥ २॥

४७ श्री ललिता गीतम्

श्री विद्याराध्ये दिव्यशक्तीश्वरि श्री चक्रनिलये भव्य जगदीश्वरि ॥ पल्लवि॥ पराप्रकृतिरूपे ज्ञानप्रसादिनि अपरा प्रकृतिरूपे जीवभावदायिनि षड्विकारमय देहभावहारिणि सव्यपथ चालिनि मोक्षसुखदायिनि ॥ १॥ दिविज कार्य समुद्भूते श्री ललिते दीप्ति लावण्य समन्विते पाहि मां राजीव लोचनि गीतसुधावाहिनि पञ्चविषय साक्षिणि प्रज्ञाप्रबोदिनि ॥ २॥

४८ मारुती गीतम्

वन्दे सुधीवरं धीरवरं अञ्जनादेवी प्रियकुमारम् ॥ पल्लवि॥ जानकीराम सेवा निष्ठ दूतं गगनयान समर्थम् प्रणीतं योगसिद्धीश्वरं महासन्तं वानरेशं अपरिमित बलवन्तम् ॥ १॥ लङ्केश गर्वहरं भक्तिपूर्णं दिविजवृन्द गणदत्त दिव्यशक्तिपूर्णं सेतुनिर्माणे गीतसुधाश्रितं सर्वदा रामनाम स्मरणनिरतम् ॥ २॥

४९ नारायण गीतम्

मधुसूदन जगदोल्लास कारण पुनरपि पुनरप्याश्रयामि ॥ पल्लवि॥ श्रीमन्नारायण मोक्षसदन श्री लक्ष्मीरमण जीवप्रदान कमलपत्र नयन नलिनचरण श्रीरङ्गधामेश्वर शशिवदन ॥ १॥ मत्स्य कूर्म वराह नरसिंह वामन परशुराम राम कृष्ण बुद्ध कल्कि इत्याश्चर्यमय दशावतारेषु धर्मप्रभाकर हे गीतसुधाश्रित ॥ २॥

५० आञ्जनेय गीतम्

सुरुचिर भक्तिगान विद्याधर वायुदेवनन्दन भक्तिं देहि ॥ पल्लवि॥ सङ्कटमोचन भीतिहरण रामनामजपे विलीन प्राण देवेन्द्रादि दिविजगण सन्नुत अणिमा महिमा सिद्धिशक्ति संयुत ॥ १॥ शिवांश सम्भूत भक्ताग्रेसर गीतसुधानुत असुरभयङ्कर त्रिमूर्ति वरदान पात्र गुणवन्त वानरवीर दिव्यगात्र धीमन्त ॥ २॥

५१ आञ्जनेय गीतम्

भागवत शिरोमणि मां पाहि श्री आञ्जनेय सद्भक्तिं देहि ॥ पल्लवि॥ श्रीरामभक्त सार्वभौम श्रीमाता सीतान्वेषण चतुर सञ्जीविनी पर्वतधर शुभकर सम्यग्सेवा परायण धीवर ॥ १॥ बाल्यावस्थे बहुलीलाविनोद प्रौढावस्थे अतिमानुष प्रताप दिविजदैत्यातीत शक्तिसंयुक्त गीतसुधानिरत चिरञ्जीवि मुक्त ॥ २॥

५२ गशेश गीतम्

एकदन्तं प्रथमाराधितं भावयाम्यहं श्रीगणनाथम् ॥ पल्लवि॥ मूलाधारस्थितं विघ्नेशं मोदकहस्तं सुधीशं गुणेशं सहस्र भानुप्रकाशं विशेषं पाशाङ्कुशधरम् पातकनाशम् ॥ १॥ परा पश्यन्ती मध्यमा वैखरी चत्वारि वागात्मकं गजमुखं गीतसुधाकरं विद्याधीश्वरं शिवकुमारं कार्तिकेय सोदरम् ॥ २॥

५३ कार्तिकेय गीतम्

कार्तिकेय विघ्नराजप्रिय देवसैन्याधिप गङ्गातनय। ॥ पल्लवि॥ उमा महेशसुत दिव्यप्रभ वल्ली देवसेना प्रियवल्लभ तारकासुर संहारक सत्सन्तान वर प्रदायक ॥ १॥ गुरुमूर्ति स्वरूप सुन्दरमुख षण्मुख पलनी क्षेत्रेश कृत्तिकाराधक मयूरवाहन गीतसुधावन प्रज्ञापूर्ण देहि सुज्ञानम् ॥ २॥ बाल सुब्रह्मण्य विद्वत्पूर्ण वेलायुधधर तेजो पूर्ण मम सुप्रसन्नो भव ज्ञानपूर्ण व्याधिहर भवव्याधिहर परिपूर्ण ॥ ३॥

५४ श्रीराम गीतम्

निरतिशय गुणसागरचन्द्र वन्देऽहं श्रीरामचन्द ॥ पल्लवि॥ विष्णुमूर्ति विश्वादिदेव धर्ममूर्ति कारुण्यभाव मर्यादा पुरुषोत्तम राम सनातन सन्तप्रिय रघुराम ॥ १॥ अयोध्यानगर प्रजासुख कारण सुमित्रासुतानुक्षण सेवनकारण भरत शतृघ्नादि सोदरसम्पूज्य सीतामनोहर गीतसुधाराध्य ॥ २॥

५५ गौरी गीतम्

श्वेतशैलपति प्रियनन्दिनी शुक्लाम्बरधर गणेश जननी ॥ पल्लवि॥ कृत्तिका पोषित स्कन्द रञ्जिनी कैलासवासिनी गौरी अवतु मां षड्वैरि दमनी षड्चक्रवासिनी षडैश्वर्य शालिनी अवतु माम् ॥ १॥ सुवासिनि सम्पूज्य कुण्डलिनी सम्प्रीता भवतु गीतसुधावनी धर्मग्लानि कारक दैत्यमर्दिनि सत्कर्मरत संरक्षिणी अवतु माम् ॥ २॥

५६ गणेश गीतम्

मनसा स्मरामि पशुपतितनयं गणनाथं सदयं महिमातिशयम् ॥ पल्लवि॥ कोटिदिनकर प्रकाशं पावनचरणं भालचन्द्रं महोदरं गजाननं प्रथमार्चन मुदितं भवभीति हरणम् । भक्त्या करोमि मोदकनिवेदनम् ॥ १॥ वक्रतुण्डं लम्बोदरं धीशक्तिप्रदम् मङ्गलाकारं गजकर्णकं षण्मुखाग्रजं गीतसुधाकरं विघ्नराजम् ॥ २॥

५७ वासवि गीतम्

षोडशि वासवि अतिलोक कान्तिवति हृदयगुहान्तरे ध्यायामि भगवति ॥ पल्लवि॥ बाल्यक्रीडा लीला विलासिनि काव्य नाट्य सङ्गीत सम्मोदिनि रस भाव विचार संयोगध्येये प्रतिक्षणं भावयामि निर्माये ॥ १॥ प्रसन्न मनोदीप्तिम् प्रसारय मां सर्वदा सुमेधा ज्योतिर्गमय धैर्य स्थैर्यादि सम्पदान् प्रसादय कृत्वा मम सारथ्यम् अमृतं गमय ॥ २॥ सर्व शक्तिधारिणि ब्रह्मविष्णु शिवजननि सर्वजीव देहयात्रा विधायिनि सर्वभाव क्रिया निश्चय प्रवर्तिनि गीतसुधावनि विश्वरूप प्रदर्शिनि ॥ ३॥

५८ चन्द्रमौलेश्वर गीतम्

चन्द्रमौलेश्वर अर्धनारीश्वर जीवरहस्यम् प्रबोधय स्मरहर ॥ पल्लवि॥ समस्त ब्रह्माण्ड प्रभव स्थिति लय- कर्तारं त्वामैव निरन्तरं स्मरामि व्यष्टि रूपाकारे अणुरूपो त्वं समष्टि रूपाकारे महद्रूपो त्वम् ॥ १॥ मयाकृतान् शतशतापचारान् क्षमस्व कृपया कैलासेश्वर समाधियोगे परमानन्द आत्मरतिं प्रद गीतसुधानन्द ॥ २॥

५९ श्रीराम गीतम्

जानकीकान्त अद्भुतचरित त्वत्समो नास्ति धीर धीमन्त ॥ पल्लवि॥ अयोध्या साम्राट् महातेजस्वि वने वल्कलधारी असम तपस्वि असमान प्रेमनिधि निस्सङ्गमूर्ति निरुपम दयानिधि सुधर्ममूर्ति ॥ १॥ रघुवंश तिलक भानुकोटि तेज पितृवाक्य पालक कौसल्यात्मज धर्ममर्यादा पुरुषोत्तम सत्यभाषि सत्कीर्तित गीतसुधाश्रित मृदुभाषि ॥ २॥

६० नादोपासना पथम्

नादोपासना पथं सक्षात्कारकं न केवलं ज्ञापकं तु परिवर्तकम् ॥ पल्लवि॥ सत्यासत्य संशोधन प्रेरणदायकं नित्यानित्य विवेचन शक्ति वर्धकं धर्माधर्माचरण भेदबोधकं न्यायान्याय निर्णयबल प्रेरकम् ॥ १॥ समीर सुतागस्त्य नारदादि वेद्यं त्यागराज दीक्षित श्यामकृष्णाराध्यं वाल्मीकि लवकुशास्वादितं रागतानमुदितं गीतसुधासाधितम् ॥ २॥ काय करण मैत्रिसाधकं कलाराधनं करण प्राण सख्यसाधकं नादोपासनं इच्छाशक्ति ज्ञानशक्ति क्रियाशक्ति सम्मिलनं रसऋषि दर्शित पवित्रभावोद्दीपनं कलावन्दनम् ॥ ३॥ देहेन्द्रिय मनो बुद्धि वाद्यैः मधुर वादनं सुश्राव्य सप्तस्वर राग तान पल्लव्यालापनं सर्वाक्षर सशक्त बीजमन्त्र पठने देवदर्शनं सर्व देवनमन क्रियाचरणे द्वैतभाव दूरीकरणम् ॥ ४॥

६१ मारुती गीतम्

सुवीरं सुधीरं सुधीवरं शूरं भवतरण चतुरं स्मरामि ॥ पल्लवि॥ अघराशिहरं आजन्म बलशालिं अञ्जना केसरिकुमारं मनसा स्मरामि अपूर्व गुण बल स्थैर्यसंयुतं सीताराम पदकुमुद स्थितम् ॥ १॥ रामनाम वैभव महिमानिरतं अश्रु स्वेद कम्पनयुत गानरतं योगसिद्धीश्वरं भक्तिनिधीश्वरं गीतसुधाकरं कपीश्वरं मनसा स्मरामि ॥ २॥

६२ गौरी गीतम्

सुरुचिर विद्यां देहि मे गौरि मनोरथ प्रदे माहेश्वरि ॥ पल्लवि॥ अन्तर्याग निष्ठाराधिते ललिते अन्तर्यामिनि आद्यन्तरहिते अन्तस्सागर तरङ्ग साक्षिणि अन्तर्बोधिनि स्थिरचित्तपालिनि ॥ १॥ आत्म सिंहासनासीने स्मितवदने आत्मतत्व प्रकाशमय दयालोचने अर्पित चतुरन्तःकरण कान्तिमयि आर्जित बलरक्षिणि गीतसुधामयि ॥ २॥

६३ श्रीधर गीतम्

हे पुरुषोत्तम करुणाक्ष श्रीधर हे परमगुरो मम चक्षुरुन्मीलय ॥ पल्लवि॥ गुरुप्रवचने तु नव नव पाठं परिचित पदव्यूहे अपरिचित भावं अनुदिनाभ्यासे नवनवान्तरायाः साधकवत्सल तान् निवारय ॥ १॥ क्षणिक सुखरङ्गे न रमते ज्ञानी नित्यसुखान्वेषणे तुष्यति योगि तव पदकमले भृङ्गोऽस्मि केशव गीतसुधा प्रिय हे गोविन्द माधव ॥ २॥

६४ चिद्रूपिणी गीतम्

चिदग्नि समुद्भवे परशिवे चिन्तित फलप्रदे दयार्णवे ॥ पल्लवि॥ असक्ति योग गङ्गावाहिनि जननि अवीद्यारूपिणि जीवसम्मोहिनि समचित्तत्वं प्रसादय विश्वव्यापिनि शमदमौशक्तिं प्रयच्छ धीप्रकाशिनि ॥ १॥ अनुदिनं तव स्वादुनामार्चनं अर्पितभावे करिष्ये सङ्कीर्तनं समस्त दितितनुज समूहध्वंसिनि शर्वाणि कल्याणि गीतसुधामोदिनि ॥ २॥

६५ भारती गीतम्

भारतीं धीमतीं रससरस्वतीं भक्त्या भजामि चतुरास्यसतीम् ॥ पल्लवि॥ प्रतिभावे प्रतिस्पन्दने मम विकसने प्रति विचारे प्रतिक्रिये मम ग्रहणे तव कृपादृष्टिरेव यशस्करं तव नवसृष्टिरेव दीय्तिकरम् ॥ १॥ प्रतिभोद्दीपिनीं त्वां भजामि कला तरङ्गिणीं नवरसवर्षिणीं जीव शुद्धिकारिणीं भजामि जननीं ललित कलास्वादिनीम् विद्यासञ्जीविनीम् ॥ २॥ श्वेतवस्त्रधारिणीं संशयच्छेदिनीं कच्छपि वीणा वादनानुरञ्जिनीं हृदय पुस्तकाध्ययन गुरुकुले जीवभावत्यागार्थं त्वां भजामि ॥ ३॥

६६ त्रिपुरसुन्दरि गीतम्

श्रीमद्त्रिपुरसुन्दरि श्रीकरि श्रीमत्सिंहासनाधीश्वरि रक्ष माम् ॥ पल्लवि॥ ह्रीङ्कार तरुवल्लरि त्रिपुरेश्वरि लोकोत्तर सौन्दर्य रत्नाकरि इक्षु चाप पाशाङ्कुशधरि अभयङ्करि इन शशि नयन कान्तिधरि मोदकरि ॥ १॥ दशप्राण स्पन्दनकारिणि माहेश्वरि चराचरात्मिके सर्व रक्षाकरि धर्मकर्म निष्ठाव्रत वराभयकरि चारित्र्य रक्षाकरि गीतसुधाकरि ॥ २॥

६७ पञ्चायतन पूजा

पञ्चायतन पूजां कुरु हे गृहस्थि ! पाञ्चभौतिक त्रिदेहशुद्धिं कुरु ॥ पल्लवि॥ भास्करोपासनेन तनुस्वास्थ्यं विघ्नेश्वरार्चनेन सर्वकार्य सिद्धिः पराम्बिकाराधनेन इहपरफलप्राप्तिः शिवचरणसेव्या ज्ञानविरागलाभः ॥ १॥ केशवोपासनेन चतुर्विध पुरुषार्थ- सिद्धिर्भवति श्रेयोपथे गमयति अद्वैतदर्शि श्री शङ्कर गुरुबोधित विज्ञानमय ज्ञानं विद्धिं गीतसुधानुत ॥ २॥

६८ कमलाक्ष गीतम्

कमलाक्ष लोकरक्षण तत्पर कमलनाभ कलुषराशि दहनकर ॥ पल्लवि॥ कमलारमण भवपाशहरण कमनीयवदन शेषतल्प शयन क्षीराब्धिमथन कमठाकार धारण पितामह बन्धन मोचनप्रवीण ॥ १॥ प्रेमयोगेश्वर वसुदेवनन्दन दृपदसुताक्षय पात्रा लोला दृपदसुताक्षयाम्बर प्रदान पाहि मां कमलदललोचन ॥ २॥ परमप्रेमपूर्ण भक्त निवेदित कुसुम पत्र जल फल स्वीकारय्रिय साक्षात् श्रीदेवी सेवितचरण समस्त जीवाश्रित धरारमण ॥ ३॥

६९ माधव गीतम्

मा विस्मर मां हे कृपानिधि माधव मधुसूदन दयानिधि ॥ पल्लवि॥ हे सृष्टिकर्ता सर्वजीवभर्ता त्वत्कृपा मात्रेण धन्योऽस्मि त्राता दीर्घकालाविद्या कारागृहे बन्धितं मां कथं मुक्तं करोषि ॥ १॥ विषय विषयि विवेचनं दत्वा ध्यातृ ध्यान ध्येय भेदं बोधय ज्ञातृ किं ज्ञेयं किं वद निश्चित्य आत्मसुख प्राप्ति याने मां गमय ॥ २॥

७० वाणी गीतम्

भवसागरात् मां तारयतु वाणी वेदवाङ्मय जननी वीणापाणी ॥ पल्लवि॥ श‍ृति स्मृति सागरे नाविका भवतु बुद्धि व्यवसाये दीपिका भवतु द्वन्द्व समये तु स्थैर्यं ददातु अतिशयानुभवे आनन्दं ददातु ॥ १॥ परिवार मध्ये भावशुद्धिं ददातु ध्येयसाधने अनुकूलं ददातु अन्तर्मुख गमने प्रज्ञां स्थापयतु गीतसुधागाने रसवाहिनी भवतु ॥ २॥

७१ गणनाथ गीतम्

पराशरात्मज नुतं गणनाथं वन्दे महाभारत लिपिकर्तारम् ॥ पल्लवि॥ सुचित्र सुन्दर रूपाकारं महोदारं सुधीवरं मनोरथ पूरण चतुरं अनुत्तम बुद्धिप्रकाशकरं शुभकरं पाशाङ्कुशधरं महोदरम् ॥ १॥ सिद्धि बुद्धि शुद्धि तेजोदायकं सर्व विद्याधारं भवाब्धितारकं ऋषि मुनि दिविजादि प्रथमार्चितं गिरिजा सम्भवं गीतसुधानुतम् ॥ २॥

७१ केशव गीतम्

कन्दर्प जनक कौन्तेयाप्त सख केशव तव स्मरणे तुष्यामि ॥ पल्लवि॥ क्षीराब्धीश नन्दिनी रमण क्षीराब्धि सदन गीतसुधावन मन्दहासपूर्ण मनोहरवदन मर्त्यलोक जीविकोटि रक्षण ॥ १॥ त्रितापाग्नि शमन त्रिभुवन चालक त्रिगुण पोषक त्रिभुवन पालक अप्रमेय निरामय तन्मय स्वप्रकाश धराधीश चिन्मय ॥ २॥

७३ पुरुषोत्तम गीतम्

पुरुषोत्तम हे नारायण अक्षयानन्द सुनिकेतन ॥ पल्लवि॥ अवतार विशारद गोविन्द अवनी प्रियरमण प्रमोदप्रद भुवनकण्टक दैत्य गण मर्दन भवाम्बुनिधि मग्न समुद्धरण ॥ १॥ कमलदल लोचन दयार्द्र हृदय शङ्खचक्रधर ममाशु तारय त्वत्तः परतरं नास्तीति घोषितोऽसि त्वया विनाहमस्मि गीतसुधास्तुत ॥ २॥

७४ मुरलीलोल गीतम्

सर्वशक्ति मूल मुरलीलोल सर्वतन्त्र जाल यादवपाल ॥ पल्लवि॥ मातुल कंसद्वेष सङ्घर्ष देवकी वसुदेव हृदयसंस्पर्श शकट धेनुक पूतनी भञ्जन स्वीकुरु देव मम नीराजनम् ॥ १॥ राजयोगेश्वर गानविचक्षण राजविद्याधीश प्रपन्नाधीन नृत्य वाद्य स्वाद परमलीन सत्य नित्य मोदबोध गीतसुधावन ॥ २॥

७५ राघव गीतम्

अयोध्या साम्राज्य चक्रवर्ति लवकुशजनक रामचन्द्रमूर्ति ॥ पल्लवि॥ प्रजा स्नेह प्रेम मोदाधार धर्ममर्यादा रक्षण तत्पर जानकी प्राणेश श्रितपारिजात हनुमत्सेवित वानर वरदात ॥ १॥ पुत्रकामेष्ठि महायागसम्भव विश्वकल्याण प्रिय मृदुभाव सर्वदा स्मरामि मां न विस्मर सौमित्रि सोदर गीतसुधाकर ॥ २॥

७६ काञ्चि कामाक्षि गीतम्

त्वमेव श्रीमाते कञ्चि कामाक्षि त्वमेव वरदाते काशी विशालाक्षि ॥ पल्लवि॥ त्वमेव सुखदाते विश्वैक करुणाक्षि त्वमेव संप्रीते मधुरापुरि मीनाक्षि त्वमेव चतुर्दश भुवनैक जननि त्वमेव ज्ञान भक्ति कर्म दर्शिनि ॥ १॥ बहिरन्तर्व्यापिनि सर्वशक्ति चालिनि संवित्स्वरूपिणि श्रीविद्यारूपिणि कैवल्य दायिनि मनोरथ पूरणि शिवकामिनि रञ्जनी गीतसुधावनि ॥ २॥

७७ मुरलीधर गीतम्

आश्रयामि मुरलीधरं मोदकरं निगमागमसारम् ॥ पल्लवि॥ ज्ञानसागरं कारुण्यपूरं निजगल राजित नवरत्नहारं अद्भुतालङ्कार सुशोभितं तुलसी माला प्रिय तेजोयुतम् ॥ १॥ अलौकिक निरुपम सौन्दर्यमूर्तिं अगणित गुणपूर्णम् अवतारमूर्तिं कौस्तुभमणि कान्तिपूर्ण वक्षस्थलं गिरिधरं अघहरं हरं निर्मलम् ॥ २॥ तव दर्शनाय नेत्रशक्ति कुण्ठितं तव दर्शनाय मनोशक्तिरपर्याप्तं तव लीलाविलासाय धीबलमल्पं सदा स्मरामि गीतसुधास्तुतम् ॥ ३॥

७८ लम्बोदर गीतम्

कार्तिकेयाग्रज विघ्नराज स्थिरचित्तं प्रसादय भास्करतेज ॥ पल्लवि॥ प्रणवनादोपासक गणनायक प्रपञ्च मोहहर बुद्धिप्रदायक महाद्भुत गात्र अग्रपूजापात्र गिरिराज दौहित्र सूक्ष्मनेत्र ॥ १॥ वशीकृत मूषकासुर क्षराक्षर पाशाङ्कुशधर नागाभरणधर परशिवात्मज कालुष्यदूर मोदक प्रिय एकदन्त गीतसुधाकर ॥ २॥

७९ पाण्डुरङ्ग गीतम्

श्रीरङ्गनाथ कृपारक्षितोऽस्मि श्री पाण्डुरङ्ग पदाब्जे भृङ्गोऽस्मि ॥ पल्लवि॥ भुजगेन्द्र शयन पक्षिराज गमन भवपाश मोचन जीवजन्म पावन मन्दस्मित वदन रवि रजनी नयन पुनीतं कुरु मां सुविधेयावन ॥ १॥ शङ्खचक्र गधाधर विठ्ठलरूपधर मेधिनी रक्षाकर असुरसंहार श्रीरङ्गधामेश्वर गीतसुधाकर श्रीलक्ष्मी प्राणेश्वर मनोहर ॥ २॥

८० श्रीराम गीतम्

इनवंशसोम राम कोदण्डराम पट्टाभिराम राम पाहि श्रीराम पाहि ॥ पल्लवि॥ वैदेहीप्रिय महपुण्योदय राम पाहि श्रीराम पाहि मारुति सेवित मुनिजन संस्तुत राम पाहि श्रीराम पाहि ॥ १॥ त्रिजगत्कारण त्रिभुवन पोषण राम पाहि श्रीराम पाहि राजीव लोचन दीनजनावन राम पाहि श्री राम पाहि ॥ २॥ करुणासागर धीर धनुर्धर व्रतधर अघहर साकार भयहर नरवर शतृभयङ्कर गुणगम्भीर ओङ्कार ॥ ३॥ महिमासार वेदाधार श्रीकर शुभकर मन्दार परप परात्पर वीराग्रेसर क्षर अक्षर जगदाधार ॥ ४॥

८१ स्कन्दमाता गीतम्

महेश्वर भामिनि गिरिराज नन्दिनि सुविशेष सुकर्म रङ्गविहारिणि ॥ पल्लवि॥ मम चित्तसागर मथनं कुरु मे प्रयच्छ सद्भक्ति नवनीतं वात्सल्य पुष्करिणि हे स्कन्दमाते समाह्लाद दायिनि स्कन्दाग्रजनुते ॥ १॥ चिच्छक्ति संयुते जीवपावनव्रते इच्छा ज्ञान क्रिया शक्तित्रय सहिते शिवताण्डवेन सह लास्यरञ्जनि सर्वशक्ति तरङ्गिणि गीतसुधावाहिनि ॥ २॥

८२ गायत्री गीतम्

चित्त मन्थन तन्त्र प्रबोधय वेदजननि मम बुद्धिं प्रचोदय ॥ पल्लवि॥ सत्य ज्ञानानन्तरूपिणि सौधामिनि सत्यमोदकारिणि प्रोल्लासिनि सत्य मधुर वाग्वाहिनि भवतारिणि मेधाशक्ति संवर्धिनि जननि ॥ १॥ सवित्रिशक्तिधारिणि सावित्रि सुगीत सुधास्वदिनि गायत्रि विश्वामित्र ऋषि तपो प्रसादिनि वाद संवाद बाधा निवारिणि ॥ २॥

८३ देवकी नन्दन गीतम्

सान्दीपनी गुरुकुल संशोभित यादवेश नन्दन यशोदाप्रियसुत ॥ पल्लवि॥ ज्ञानसिंहासनाधीश्वर योगेश्वर निज योगीश्वर वसिष्ठ वामदेव गौतमादि ऋषिमुनि वेद्य गीतसुधासेव्य ॥ १॥ मत्स्य कूर्म वराह नृसिंह वामन परशुराम राम कृष्ण बुद्ध कल्कीति दशावताररूपधर शास्त्राचार्य गोपिकासुखवर्धन गीताचार्य ॥ २॥ राधा प्राणसख रुक्मिणी रमण यशोदा ममताधीन निरञ्जन कुचेलवत्सल विदुर भीष्माराध्य शिशुपालमर्दन गीतसुधाराध्य ॥ ३॥

८४ दुर्गा गीतम्

जीव शुभङ्करि दुर्गा माते लोक वशङ्करि हे जगत्राते ॥ पल्लवि॥ हरि हर ब्रह्म दत्त शक्तिरूपिणि दिविजवृन्द दत्तायुध धरिणि शुम्भनिशुम्भादि दैत्यमर्दिनि रक्तबीजासुर अक्षयरूपापोशिनि ॥ १॥ सच्छक्ति चन्द्रिके सप्तमातृके करुणाक्षी भव नव दुर्गात्मिके कराल रूपधरि दुर्जनभयङ्करि सौम्यरूपधरि सुजनभयापहारि ॥ २॥ नानायुधधरि नानाभूषणधरि गीतसुधाधरि नयन मनोहरि सौन्दर्य सागरि धर्म स्थापनकरि सच्चिदानन्दकरि जीवपावनकरि ॥ ३॥

८५ अनन्त पद्मनाभ गीतम्

अनन्तशयन पुरवास अच्युत अनन्त पद्मनाभ विश्वातीत ॥ पल्लवि॥ पूर्णकाम घनश्याम मोक्षधाम कुरु मां कृतकृत्यं अनन्तनाम अनुपम सौन्दर्य लावण्यमूर्ति निरुपम भवलीलानन्द मूर्ति ॥ १॥ सकल दिविजार्चित वैकुण्ठधाम सकल बल गुण युत गीतसुधाधाम ध्येयलीन चित्ते प्रकाशयसि गेय तल्लीन मोदे विहरसि ॥ २॥ विराट् स्वरूप जगदादिमूल विचित्र चराचर सृष्टिपूर्वकाल देश काल दिशातीत परब्रह्म रूप प्रतिजीव हृदये जीवब्रह्म रूप ॥ ३॥

८६ गोविन्द गीतम्

प्रणवोपास्य हरि गोविन्द प्रपञ्चाधार सच्चिदानन्द ॥ पल्लवि॥ त्वमेव दुर्विज्ञेय तत्त्वस्वरूप सन्निहितो भव विज्ञानप्रदीप मनोचाञ्चल्य दोषविदूर मनोहर हितकर पीताम्बरधर ॥ १॥ चतुर्बाहु सहित शङ्खगधाधर सुदर्शन चक्राम्बुजधर श्रीधर वैजयन्ति मालालङ्कृत वासुदेव गीतसुधाकर देवादिदेव ॥ २॥

८७ भुवनेश्वरि गीतम्

आत्मतत्व प्रकाशिनी त्वमेव भुवनेश्वरी जीव विकासिनी त्वमेव ॥ पल्लवि॥ समस्त चराचर चेतनरुपिणि संस्कृति प्रवर्धिनि प्रकृति संरक्षिणि सत्वशीलस्य धृत्युत्साह प्रदायिनि दुराचार वश विध्वंसिनी त्वमेव ॥ १॥ त्रिगुण गण वैलक्षण्य स्थापिनि त्रिजगद्व्यापिनि त्रिलोक सञ्चारिणि क्षण क्षण परिवर्तित जीवजगद्रक्षिणि गीतसुधा विनोदिनी त्वमेव ॥ २॥

८८ अयोध्यानाथ गीतम्

इक्ष्वाकु कुलजातं अयोध्यानाथं भवतारणं नमामि शिवनुतम् ॥ पल्लवि॥ सूर्यवंशतिलकं श्रीराम चन्द्रं सुविशेष सद्भाव सुगुणसान्द्रं चिरञ्जीवि पवनज वानरसिंह संसेव्यं चिदानन्दपूर्णं गीतसुधासंस्तुत्यम् ॥ १॥ अस्त्र शस्त्र विशारदं दशरथकुमारं विश्वमोहनरूपं सीताप्राणेश्वरं लङ्केश रावण कुम्भकर्ण गर्वहरं विभीषण धर्मध्वजारोहणकरम् ॥ २॥

८९ ललिता गीतम्

चिन्तामणि प्रासाद निवासिनि चित्त प्रसादं यच्छ दयानयनि ॥ पल्लवि॥ श्री ललिते हे त्रिपुरसुन्दरि श्रीमाते ह्रीङ्कार तरुवल्लरि कदम्ब विपिन सञ्चारिणि कोमल कर चरण शोभिनि ॥ १॥ क्षराक्षररूपिणि अक्षय सुखदे क्षमासनासीने कामित वरदे उपनिषत्सार सुधावर्षिणि उपासकोद्धारिणि गीतसुधावनि

९० कृष्ण गीतम्

सुन्दराति सुन्दरं वेणुलोलचरणं मधुराति मधुरं वेणुप्रिय वादनम् ॥ पल्लवि॥ षड्दर्शनकार योगीन्द्र ज्ञेयं षड्रिपु दमनम् गीतसुधाध्येयं ऋग्यजुस्सामाथर्वण वेद्यं ऋषि मुनि देव मानव गेयम् ॥ १॥ श्रीकृष्ण प्राणं वेणुस्पर्शसुखं श्रीकृष्ण स्नेहमूलं राधाह्वानं जन्म साफल्यधनं कृष्णसम्भाषणं नवविध भक्तिगानं ज्ञानोद्दीपनम् ॥ २॥

९१ पार्थसारथि गीतम्

वसुदेव सञ्जात श्रितपारिजात वेणुनादमुदित श‍ृणु मम गीतम् ॥ पल्लवि॥ धर्म संस्थापक अधर्मि नाशक नारीकुल मानजीवन संरक्षक कुरुसमरे त्वं पार्थसारथि प्रतिजीव देहरथे त्वमेव रथि ॥ १॥ निगम सारामृतास्वादक योगशास्त्र शिखर प्रतिष्ठित ध्वज ललितकला वारिधि रत्नशोधक गीतसुधालोल कस्तूरि तिलक ॥ २॥

९२ महाविष्णु गीतम्

श्रीमहाविष्णुं स्वयम्प्रकाशं वन्देहं जिष्णुं धीप्रकाशम् ॥ पल्लवि॥ वन्दे सिन्धुनन्दिनी रमणं वरदं चारु नलिनीपत्र नयनं सुखदं तं सच्चित्सुख प्रदानं सद्दर्शन सुदर्शन चक्रधारिणम् ॥ १॥ पङ्केरुह नाभं पङ्केरुह चरणं पङ्केरुह हस्तं सङ्कर्षणं दामोदरं वामनं प्रद्युम्नं गीतसुधानुतं श्रीरङ्गधामम् ॥ २॥

९३ त्रिजगन्मोहिनी गीतम्

विषकण्ठ रमणि हिमाद्रि तनये विघ्नराज स्कन्धजननि सदये ॥ पल्लवि॥ मम भावगीतं वहतु तव पद पद्मे मम स्पन्दन स्रोतं वहतु तव हृत्पद्मे अपूर्व मनोशक्ति संवर्धिनि अक्षय सृजनशक्ति प्रसादिनि ॥ १॥ त्रिशूलधारिणि केसरिवाहनि त्रिजगन्मोहिनि त्रिभुवनपालिनि अनन्य भक्तिरस प्रदायिनि आनन्दसागरि गीतसुधावनि ॥ २॥

९४ गङ्गा गीतम्

शिवजटावासिनि गङ्गाभवानि महेश्वर भामिनि मनुकुल पावनि ॥ पल्लवि॥ शतशतापचाराणि मया कृतानि दुरितक्षयं कुरु हिमाद्रिवासिनि करुणार्णवे भेधराहित्यं प्रद धारिणी स्नान प्रमोदिनि सुरुचिरे ॥ १॥ धर्मसम्पन्नं सुपुनीतं मां कुरु जीवकोटि प्राणाधारे मधुरे गौरीसोदरी क्षमस्व गम्भीरे गीतसुधामोदिनि अपूर्व नीरे ॥ २॥

९५ सरस्वती गीतम्

सरस्वती माते भव मदीयात्म सखी सर्वदा अहमस्मि लौकिके एकाकी ॥ पल्लवि॥ न जानामि मम जन्मकारणं न जानामि कौमार यौव्वनविधानं न शक्नोमि जरा स्वास्थ्यमर्मं कथं ज्ञेयं ध्येयं मरणरहस्यम् ॥ १॥ भक्षण समये शिक्षण समये च अहमस्मि एकाकी पुरुषार्थं ममैव तव गान ध्यान सृजन नाट्येऽपि च अहमस्मि एकाकी पुरुषार्थं ममैव ॥ २॥ स्वतन्त्र क्रिया भाव ज्ञानबलान् याचयामि त्वयि सहृदयस्वामिनि मम हृदयनन्दने हे वीणापाणि कच्छपि नादं कुरु गीतसुधावनि ॥ ३॥

९६ शारदा गीतम्

सप्त धातुर्मय शरीरे शारदे गुप्तगामिनि त्वमसि कथं वरदे ॥ पल्लवि॥ स रि ग म प द नि स्वरान्तर्यामिनि नवरस स्वादु सुधावर्षिणि अनन्त राग नन्दन सञ्चारिणि अक्षर नाद सम्मिलन तोषिणि ॥ १॥ षड्ज, रिषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम दैवत, निषादेति सप्त स्थान निवासिनि राग तान पल्लवि मेरु शिखर स्थापिनि वैखरी वाग्विलासे प्रोल्लासिनी ॥ २॥ प्रस्थानत्रय शास्त्र भाव प्रकाशिनि पुराणेतिहास नीतिबोधिनि ग्रन्थरचनकारस्य सृजनपूर्वे साक्षात्कारिणि गीतसुधावनि ॥ ३॥

९७ दाक्षायणी गीतम्

तव भक्तोऽहं त्वयि रक्तोऽहं तव समक्षमे सदाशक्तोऽहम् ॥ पल्लवि॥ हिमाद्रि सुकुमारि लोकशुभङ्करि महेश्वर प्रियकरि कैलासेश्वरि अधर्मशील राक्षस भयङ्करि वर त्रिशूलधरि गीतसुधाकरि ॥ १॥ सार्वकालिक सार्व देशिक जननि सर्वज्ञान सत्यस्वरूपिणि भवानि दाक्षायणि कात्यायनि शीलरक्षिणि नन्दि भृङ्गि शिवगण नाट्योल्लासिनि ॥ २॥

९८ आत्माराम गीतम्

मा शुचः रे मानव भुवनालये मधुरं न किञ्चित् सर्वं भ्रान्तिमयं आनन्दधामम् ॥ पल्लवि॥ आत्मारामं पुरुषोत्तमं सदा श्रीरामं स्मृत्वा च ध्यात्वा अमनस्कयोगे साफल्यं प्राप्स्यसि गीतसुधा संलग्नो भव मानव ॥ १॥ संस्कार क्रीडा रङ्गमिदं पश्य जयापजयानुभवान् प्रपश्य जाग्रत्स्वप्नमिदं मानुष जीवितम् जन्म मृत्यु चक्रमपि त्वया कल्पितम् ॥ २॥ सुकृतिनो बहवः सन्ति धर्मपथे दुष्कृतिनो बान्धवाः सन्ति कुपथे सुख दुःख श‍ृङ्खलैर्माशुच मानव सर्वत्र समत्वे सुखनन्दने विहर ॥ ३॥

९९ राजराजेश्वरि गीतम्

राजराजेश्वरि त्रिमूर्ति जननि आत्मतत्त्व प्रकाशिनि सनातनि ॥ पल्लवि॥ समस्त चराचर चैतन्य वाहिनि संस्कृति प्रवर्धिनि प्रकृतिसंरक्षिणि सत्वशीलस्य धृत्युत्साह प्रदायिनि दुराचार वश विध्वंसिनि ॥ १॥ त्रिगुण गण वैलक्षण्य स्थापिनि त्रिजगद्व्यापिनि त्रिदेह प्राणदायिनि क्षण क्षण परिवर्तित जीवजीवकणपालिनि स्पन्दनक्रीडा विनोदिनि गीतसुधामोदिनि ॥ २॥

१०० श्रीविद्या गीतम्

ओङ्कार बीजाक्षरि ह्रीङ्कार तरुमञ्जरि नीराजनम् । सर्वाक्षर मालाधरि सौन्दर्य निधीश्वरि नीराजनं पूर्णेन्दु वदने श्रीपद्मचरणे नीराजनं गीतसुधासेचने दयाभरणभूषणे नीराजनम् ॥ १॥ श्रीचक्र चिरनिलये ब्रह्माण्ड वलये नीराजनम् । श्रीविद्या समाश्रये सृष्टिखेलनप्रिये नीराजनं सर्व देवाधीश्वरि योगपीठाधीश्वरि नीराजनं सर्व भक्तवशङ्करि सर्वलोकशुभङ्करि नीराजनम् ॥ २॥ काम क्रोध दमनी मोह भ्रान्ति नाशिनि नीराजनं त्रितापविदूरिणि त्रिवर्गफल दायिनि नीराजनं अन्तरङ्गविहारिणि अन्तर्कलुषहारिणि नीराजनं सदसद्रूपधारिणि सकल विश्वपावनि नीराजनम् ॥ ३॥ त्यागगुण समर्चिते स्मरणमात्र हर्षिते नीराजनं नादबिन्दु कलातीते बुदवृन्द निषेविते नीराजनं सत्तगुण संवर्धिनि रजोगुण नियन्त्रिणि नीराजनं तमोपाश मोचनि गुणातीतरूपिणि नीराजनम् ॥ ४॥ सर्वक्लेश निवारिणि सर्वव्याधि प्रशमनि नीराजनं सर्व साधकोद्धारिणि सर्वशक्ति सञ्जीविनि नीराजनं परन्धामवासिनि परतत्व प्रबोधिनि नीराजनं आत्मानुभवकारिणि परब्रह्मरूपिणि नीराजनम् ॥ ५॥ इति श्रीमती राजेश्वरी गोविन्दराजविरचितं सर्वदेवदेवीसद्भक्तिसुमगुच्छं सम्पूर्णम् ।

अनुक्रमणिका

१ गणेशगीतम् २ सरस्वती गीतम् ३ गायत्री गीतम् ४ सरस्वती गीतम् ५ लक्ष्मी गीतम् ६ दुर्गा गीतम् ७ सरस्वती गीतम् ८ सरस्वती गीतम् ९ राजराजेश्वरि गीतम् १० लक्ष्मी गीतम् ११ दुर्गादेवी गीतम् १२ सरस्वती गीतम् १३ लक्ष्मीदेवी गीतम् १४ लक्ष्मी गीतम् १५ सरस्वती गीतम् १६ सरस्वती गीतम् १७ वासवी गीतम् १८ ललिता गीतम् १९ वाणी गीतम् २० वाग्देवी गीतम् २१ पर्वती गीतम् २२ दक्षिणामूर्ति गीतम् २३ लक्ष्मी गीतम् २४ शिवगीतम् २५ माधव गीतम् २६ मुरलीधर गीतम् २७ गोपाल गीतम् २८ श्रीराम गीतम् २९ श्रीधर गीतम् ३० वासुदेव गीतम् ३१ वरलक्ष्मी गीतम् ३२ गौरी गीतम् ३३ केशव गीतम् ३४ विष्णु गीतम् ३५ सरस्वती गीतम् ३६ दक्षिणामूर्ति गीतम् ३७ श्रीकृष्ण गीतम् ३८ सरस्वती गीतम् ३९ राजराजेश्वरी गीतम् ४० श्रीहरि गीतम् ४१ पार्वती गीतम् ४२ विघ्नराज गीतम् ४३ सरस्वती गीतम् ४४ पार्वती गीतम् ४५ लक्ष्मी गीतम् ४६ राजराजेश्वरी गीतम् ४७ श्री ललिता गीतम् ४८ मारुती गीतम् ४९ नारायण गीतम् ५० आञ्जनेय गीतम् ५१ आञ्जनेय गीतम् ५२ गशेश गीतम् ५३ कार्तिकेय गीतम् ५४ श्रीराम गीतम् ५५ गौरी गीतम् ५६ गणेश गीतम् ५७ वासवि गीतम् ५८ चन्द्रमौलेश्वर गीतम् ५९ श्रीराम गीतम् ६० नादोपासना पथम् ६१ मारुती गीतम् ६२ गौरी गीतम् ६३ श्रीधर गीतम् ६४ चिद्रूपिणी गीतम् ६५ भारती गीतम् ६६ त्रिपुरसुन्दरि गीतम् ६७ पञ्चायतन पूजा ६८ कमलाक्ष गीतम् ६९ माधव गीतम् ७० वाणी गीतम् ७१ गणनाथ गीतम् ७१ केशव गीतम् ७३ पुरुषोत्तम गीतम् ७४ मुरलीलोल गीतम् ७५ राघव गीतम् ७६ काञ्चि कामाक्षि गीतम् ७७ मुरलीधर गीतम् ७८ लम्बोदर गीतम् ७९ पाण्डुरङ्ग गीतम् ८० श्रीराम गीतम् ८१ स्कन्दमाता गीतम् ८२ गायत्री गीतम् ८३ देवकी नन्दन गीतम् ८४ दुर्गा गीतम् ८५ अनन्त पद्मनाभ गीतम् ८६ गोविन्द गीतम् ८७ भुवनेश्वरि गीतम् ८८ अयोध्यानाथ गीतम् ८९ ललिता गीतम् ९० कृष्ण गीतम् ९१ पार्थसारथि गीतम् ९२ महाविष्णु गीतम् ९३ त्रिजगन्मोहिनी गीतम् ९४ गङ्गा गीतम् ९५ सरस्वती गीतम् ९६ शारदा गीतम् ९७ दाक्षायणी गीतम् ९८ आत्माराम गीतम् ९९ राजराजेश्वरि गीतम् १०० श्रीविद्या गीतम् Composed by Rajeswari Govindraj Encoded and proofread by Rajeswari Govindraj
% Text title            : Sarva Deva Devi Sadbhakti Sumaguchcham
% File name             : sarvadevadevIsadbhaktisumaguchCham.itx
% itxtitle              : sarvadevadevIsadbhaktisumaguchCham
% engtitle              : sarva deva devI sadbhakti sumaguchCham
% Category              : devii, vishhnu, krishna, shiva, raama, gurudev, sarasvatI, sangraha, ganesha, shataka
% Location              : doc_devii
% Sublocation           : devii
% Author                : Smt. Rajeshwari Govindaraj
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Transliterated by     : Smt. Rajeshwari Govindaraj
% Proofread by          : Smt. Rajeshwari Govindaraj
% Latest update         : January 30, 2020
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% Site access           : https://sanskritdocuments.org

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