श्रीसीतारामदशश्लोकी
जनकनन्दिनी रामवल्लभा व्रजति पावने दिव्यमञ्जुले ।
पथि च शोभने सौख्यदे शुभे सहचरी जनैर्भावभाविता ॥ १॥
भगवान् श्रीराम की परमप्रिया जनकनन्दिनी श्रीसीताजी अपनी सहचरी परिकर के साथ जो परम भावना से युक्त है । ऐसी परम पावन दिव्य मनोहर श्रीअयोध्या के मार्ग में जो सर्वदा आनन्द प्रदायक है । उसके पावन मार्ग में पधार रही हैं ॥ १॥
सुसरयूतटे पादपान्विते सुरगणैर्नुते विप्रपूजिते ।
विहरति प्रिया जानकी सदा शरणरक्षिका कञ्जलोचना ॥ २॥
विविध प्रकार के वृक्षों से समन्वित कलकल कल्लोलिनी सरयू सरिता के सुभग पुलिन पर जो देवगणों सद्विप्रों के द्वारा प्रपूजित है ऐसी शरणागतों की रक्षा करने वाली अरविन्दनयन श्रीजानकीप्रिया सदा सर्वदा अयोध्या की धरित्री पर पधार कर विहार करती हैं ॥ २॥
मधुरसुन्दरो रामराघवः स्वतुलवैभवः शस्त्रशोभितः ।
व्रजति सौभगः कञ्जलोचनो-विधि-शिवार्चितः सीतया युतः ॥ ३॥
जनकात्मजा श्रीसीताजी के सहित जो ब्रह्मा-शङ्कर आदि से प्रपूजित है ऐसे राजीवलोचन अतिमधुर और सुन्दरातिसुन्दर श्रीअयोध्या धामपुरी के महाराज श्रीरामचन्द्रजी पधार रहे हैं ॥ ३॥
प्रणतपोषकः शास्त्रचिन्तको भरतलक्ष्मणाजस्रसेवितः ।
सुरभिमल्लिका-पुष्पहस्तको व्रजति नित्यदा रामभद्रकः ॥ ४॥
विविध शास्त्रों के परमज्ञाता शरण में आये हुए भगवद्जनों की रक्षा करने वाले सुगन्धित मल्लिका जुही-मोगरा आदि पुष्पों को अपने हस्तकमल में धारण किये हुए अपने अनुज श्रीभरत, लक्ष्मण आदिकों के द्वारा निरन्तर सेवित हें । ऐसे भगवान् श्रीराम अयोध्यापुरी में पधार रहे हैं ॥ ४॥
निखिलनिर्जरैश्चारुचर्चितो नवल-पद्मगुच्छाच्छहस्तकः ।
दशरथात्मजः सद्भिरर्चितः चलति संसृतौ दिव्यदर्शनः ॥ ५॥
समस्त देवताओं के द्वारा जो परिसेवित है । नवीन कमल की कलियों को हाथ में लिए हुए सुशोभित सहचरीजनों से शोभायमान सन्त-महात्माओं के द्वारा परिपूजित महाराज दशरथ के आत्मज जिनके दिव्य दर्शन है ऐसे जगत् में सुशोभित रूप से पधार रहे हैं ॥ ५॥
श्रुतिगणैः स्तुतः तन्त्रवर्णितो-मुनिजनप्रियश्चापहस्तकः ।
अथ दयानिधी रावणान्तकः सुभगराघवो याति शोभनः ॥ ६॥
श्रुति-पुराण आदि शास्त्रों में जिनका वर्णन है । मुनिजनों के अत्यन्त प्रिय धनुर्धारी दया के सागर रावण कुम्भकरण आदि असुरों का अन्त करने वाले परम मनोहर भगवान् राघवेन्द्र श्रीराम अयोध्यापुरी में पधार रहे हैं ॥ ६॥
नलिनलोचनः शान्तिदायको-निखिलगायकैकीर्ति संस्तुतः ।
ललितभावुको रामराघवो वदति सुन्दरं दीनवल्लभः ॥ ७॥
राजीवलोचन शान्ति परमानन्द को प्रदान करने वाले उत्तमोत्तम गुणीजनों के मधुर सङ्गीत से जिनकी स्तुति की जाती के है । अति लावण्यरूप दीनवत्सल भगवान् श्रीरामचन्द्र अपने सुन्दर विचारों को अभिव्यक्त कर रहे हैं ॥ ७॥
शुभधनुर्धरो राम उत्तमो वनमहीरुहश्रेणिशोभितः ।
मुनिवरैः सहप्रीतिदायको व्रजति सुस्मितास्याभदर्शनम् ॥ ८॥
सुन्दर धनुष को धारण किये हुये कदम्ब-कदली-वकुल आदि वृक्षों के समूह में अति सुशोभित अपनी पराभक्ति प्रदान करने वाले मुनिजनों के साथ स्मितानन (हँसमुख) ऐसे के परम उत्तमस्वरूप भगवान् श्रीराम पधार रहे हैं ॥ ८॥
असुरताडकाशीघ्रनाशकः सुवरदायको हार्ददर्शकः ।
हनुमता सह प्राणिरक्षको विहरतीश्वरो ब्रह्मरूपकः ॥ ९॥
अपने दिव्य धनुष से आसुरी शक्ति सम्पन्ना ताडका का
संहार करने वाले इच्छित मनोरथ को प्रदान करने वाले अपने अन्तःकरण में जिनका दर्शन होता है । श्रीहनुमानजी के साथ समस्त प्राणियों की रक्षा करने वाले परब्रह्म सर्वेश्वर श्रीराम विहार करते हैं ॥ ९॥
नवलरूपकः शान्तिसम्प्रदः सततसत्यवाक्सर्वमोहनः ।
वदति सर्वदा साधुसङ्गमः शरणसाधको मङ्गलप्रदः ॥ १०॥
सदा नवनवायमान शान्तिप्रदायक सत्यवादी सबको प्रिय लगने वाले जिनकी सेवा में सदा सन्त-महात्मा रहते हैं ।
में शरणागतों की रक्षा करने वाले मङ्गलरूप भगवान् श्रीराम अपने सुन्दर विचारों को अभिव्यक्त कर रहे हैं ॥ १०॥
सीतारामदशश्लोकी रामभक्तिप्रदायिका ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मिता ॥ ११॥
भगवान् श्रीराम की पराभक्ति प्रदान करने वाली श्रीसीताराम दशश्लोकी जिसकी रचना भगवान् श्रीराम की
कृपाजन्य यहाँ प्रस्तुत है ॥ ११॥
इति श्रीसीतारामदशश्लोकी समाप्ता ।
Proofread by Mohan Chettoor