ऋषिदधीचिप्रोक्तं शिवस्तोत्रम्
(शिवरहस्यान्तर्गते उग्राख्ये)
दधीचिरुवाच
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कृत्वैवं कवचं पूर्वं स्तोत्रमेतत्पठेन्नरः ।
स्तोत्रं चैतन्महेशेन तस्मा आख्यातमादरात् ॥ १६३॥
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हर हर मखहर पुरारे
नष्टसुरासुर पापारेऽधमारे ।
अधर्मारे भूतभयङ्कर
भवभय हर शङ्करसंसारे ॥ १/? ॥
सर्गस्थितिकारण पुराण-
विषमोक्षण पिनाकपाणे ।
त्रिशूलपाणे चन्द्ररेखाभरण
कारण कारण मृगपाणे ॥ २/? ॥
मणिगणमण्डित -फणगण-
फणिपतिभूषित निर्जितकाम ।
सम्पूर्णकाम विविधा-
नन्तकल्याणगुण ॥ ३/? ॥
गौरीमनोऽभिराम
योगिमनोऽभिराम ।
विविधनिर्मितसाम ।
विविध श्रुत्यऽभिहित
परमाद्भुतधाम ॥ ४/? ॥
स्मरशासन सुमेरु-
रत्नरुचिरवरशिखर ।
शिखरिवर कृतवास
कृत्तिसमलङ्कृत स्मरशासन ॥ ५/? ॥
संहत धात्रवलेपन
सन्दग्धासुरवरकानन ।
हिमगिरिनिभवृषभाधिप-
केतन गुरुतर करुणानिधान ॥ ६/? ॥
धिक्कृत सर्वामरजना-
नवरतानन्दतुन्दिलस्वान्त ।
शार्दूलचर्मवसन-
समधिष्ठत महामहाश्मशान ॥ ७/? ॥
भक्तभव भञ्जन सोम-
सूर्याग्निनयन कालकूटविषादन ।
जय जय महेश केशवेश
जय जयाम्बिकेश ॥ ८/? ॥
जय जय विश्वेश जय जय
गौरीश जयजय प्रहत गजाधीश ।
ज्वलज्ज्वालि महाज्वलन
संसारं हर संहरामरवर ॥ ९/? ॥
नाशय नाशय पातक-
मुन्मूलयोन्मूलय भूतभयम् ।
बोधय बोधय बोध-
माह्लादयाह्लादय मानसम् ॥ १०/? ॥
देहिदेहि मुक्तिमाप्त-
वरदाहिवन्द्य चन्द्रचूड ।
इन्द्रचन्द्रोपेन्द्रादि सकल-
सुररत्नकिरीटप्रभा भूषित ॥ ११/? ॥
दिव्यरत्न खचित
विविधमणिपादुक ।
लक्ष्मीपति नयनारविन्द पूजितपादपद्म
मुनिवरहृत्पद्मनिवास भुक्तिमुक्तिप्रद ॥ १२/? ॥
दलितामरवैरिनिकर राजितमृगशाबाङ्क-
चन्द्रावतंस समधिष्ठित काशीनगर ।
वरप्रद वरयोगिचित्तचिन्तित
चिन्तित जन मन्द(दा)र ॥ १३/? ॥
मन्दारकुसुमकरवन्दारु वृन्दारक पूजित
जितमन्मथ नन्दानन्दिकुलकुलाचल ।
रसातल तलातल सुतल वितलादि नानाभुवन नायक
नायकरत्न रत्ननपुरविलसत्पादपङ्कज ॥ १४/? ॥
जगदेकनायक जयजय महादेव । १५.१/?
॥ इति शिवरहस्यान्तर्गते ऋषिदधीचिप्रोक्तं शिवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
- ॥ श्रीशिवरहस्यम् । उग्राख्यः सप्तमांशः । अध्यायः २७ मध्यार्जुनमहिमानुवर्णनम् । १६३-?॥
- .. shrIshivarahasyam . ugrAkhyaH saptamAMshaH . adhyAyaH 27 madhyArjunamahimAnuvarNanam . 163-?..
Notes:
Ṛṣi Dadhīci ऋषि दधीचि conveys the related ŚivaStotram शिवस्तोत्रम् (to the King) and mentions about the ŚivaKavacam शिवकवचम्.
The latter can be accessed from one of the links given below.
Śloka numbering (after 163) in the source text seems missing (marked as /?) in most of this part. Renumbering from 1-15.1 has been done for readers’ reference.
Proofread by Ruma Dewan