चतुःषष्टिभैरवनामावलिः

चतुःषष्टिभैरवनामावलिः

असिताङ्गो विशालाक्षो मार्तण्डो मोदकप्रियः । स्वच्छन्दो विघ्नसन्तुष्टः खेचरः सचराचरः ॥ १॥ रुरुश्च क्रोड-दंष्ट्रश्च तथैव च जटाधरः । विश्वरूपो विरूपाक्षो नानारूपधरः परः ॥ २॥ वज्रहस्तो महाकायश्चण्डश्च प्रलयान्तकः । भूमिकम्पो नीलकण्ठो विष्णुश्च कुलपालकः ॥ ३॥ मुण्डमालः कामपालः क्रोधो वै पिङ्गलेक्षणः । उग्ररूपो धरापालः कुटिलो मन्त्रनायकः ॥ ४॥ रुद्रः पितामहाख्यश्च व्युन्मत्तो बटुनायकः । शङ्करो भूत-वेतालस्त्रिनेत्रस्त्रिपुरान्तकः ॥ ५॥ वरदः पर्वतावासः कपालः शशिभूषणः । हस्तिचर्माम्बरधरो योगीशो ब्रह्मराक्षसः ॥ ६॥ सर्वज्ञः सर्वदेवेशः सर्वभूतहृदि स्थितः । भीषणाख्यो भयहरः सर्वज्ञाख्यस्तथैव च ॥ ७॥ कालाग्निश्च महारोद्रौ दक्षिणो मुखरोऽस्थिरः । संहारश्चातिरिक्ताङ्ग कालाग्निश्च प्रियङ्करः ॥ ८॥ घोरनादो विशालाङ्गो योगीशो दक्षसंस्थितः । चतुःषष्टीरूपधृग्देवो भैरवः स सदाऽवतु ॥ ९॥ ``रुद्रयामल'' में चौसठ भैरवों का विशेष रूप से कथन हुआ है तथा इनकी चौसठ ही भैरवियां ६४ योगिनियों के रूप में दर्शित हैं । यहां पाठकों के ज्ञान के लिए ६४ भैरवों का नामावली-पाठ प्रस्तुत है- इस नामावली में ``कालाग्नि-प्रियङ्कर'' नाम एक साथ है । इसके आरम्भ में ``ओं ह्रीं'' तथा अन्त में ``ह्रीं ॐ'' लगाकर इसका पाठ करने से अथवा प्रत्येक नाम का चतुर्थी विभक्ति का एक वचनात्मक रूप बनाकर आदि में ``ओं ह्रीं'' तथा अन्त में ``नमः'' पद जोड़कर भी पाठ- पूजा आदि किए जा सकते हैं । इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे चतुःषष्टिभैरवनामावलिः समाप्ता । Proofread by Aruna Narayanan
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% Texttype              : stotra
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Proofread by          : Aruna Narayanan
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% Latest update         : December 24, 2021
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