चित्रमालामन्त्रम्
श्रीशिव उवाच ।
चित्रमालां प्रवक्ष्यामि शीघ्रसिद्धिप्रदायिनीम् ।
सर्वसौभाग्यदां तुर्यां चतुर्वर्गफलप्रदाम् ॥ १॥
आकाशभैरवस्यास्य मन्त्रस्यानन्दभैरवः ।
ऋषिः छन्दस्तु गायत्री देवताकाशभैरवः ॥ २॥
ह्रीङ्कारं बीजमित्युक्तं हुङ्कारं शक्तिरुच्यते ।
सर्वाभीष्टार्थसिध्यर्थे विनियोगस्तु मायया ॥ ३॥
कराङ्गन्यासजालानि क्रमात्कृत्वाथः भावयेत् ।
सहस्त्रपाणिपद्वक्त्रं सहस्रत्रयलोचनम् ॥
सर्वाभीष्टप्रदं देवं स्मरेदाकाशभैरवम् ॥ ४॥
ॐ नमो भगवते आकाशभैरवाय निखिललोकप्रियाय
प्रणतजनपरितापविमोचनाय सकलभूतनिवारणाय
सर्वाभीष्टप्रदाय नित्यायसच्चिदानन्दविग्रहाय
सहस्रबाहवे सहस्रमुखाय सहस्रत्रिलोचनाय सहस्रचरणाय करालाय
अखिलरिपुसंहारकारणाय अनेककोटिब्रह्म
कपालमालालङ्कृताय नररुधिरमांसभक्षणाय
महाबलपराक्रमाय महदन्तराय विषमोचनाय
परमन्त्रयन्त्रतन्त्रविद्याविछेदनाय प्रसन्नवदनाम्बुजाय
एह्येहि आगच्छागच्छ ममाभीष्टमाकर्षयाकर्षय आवेशयावेशय
मोहय मोहय भ्रामय भ्रामय द्रावय द्रावय तापय तापय सिद्धय सिद्धय
बन्धय बन्धय भाषय भाषय क्षोभय क्षोभय
भूतप्रेतादिपिशाचान्मर्दय भूतप्रेतादिपिशाचान्मर्दय
(भूतप्रेतादिपिशाचान् मर्दय मर्दय)
कुर्दय कुर्दय पाटय पाटय मोटय मोटय गुम्फय गुम्फय
कम्पय कम्पय ताडय ताडय त्रोटय त्रोटय
भेदय भेदय छेदय छेदय
चण्डवातातिवेगाय सन्ततगम्भीरविजृम्भणाय
सङ्कर्षय सङ्कर्षय सङ्क्रामय सङ्क्रामय
प्रवेशय प्रवेशय स्तोभय स्तोभय
स्तम्भय स्तम्भय तोदय तोदय खेदय खेदय
तर्जय तर्जय गर्जय गर्जय नादय नादय
रोदय रोदय घातय घातय वेतय वेतय
सकलरिपुजनान्छिन्धि सकलरिपुजनान्छिन्धि
(सकलरिपुजनान् छिन्धि छिन्धि)
भिन्दय भिन्दय अन्धय अन्धय रुन्धय रुन्धय
नर्दय नर्दय बन्दय बन्दय
श्रीं ह्रीं क्लीं कल्याणकारणाय श्मशानानन्दमहाभोगप्रियाय
देवदत्तं आनय आनय दूनय दूनय केलय केलय मेलय मेलय
प्रपन्न वत्सलाय प्रतिवदनदहनामृतकिरणनयनाय
सहस्रकोटिवेतालपरिवृत्ताय मम रिपूनुच्चाटयोच्चाटय
नेपय नेपय तापय तापय सेचय सेचय
मोचय मोचय लोटय लोटय स्फोटय स्फोटय ग्रहण ग्रहण
अनन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटक-
पद्म-महापद्म-शङ्ख-गुलिक-महानाग-भूषणाय
स्थावरजङ्गमानां विषं नाशय नाशय प्राशय प्राशय
भस्मीकुरु भस्मीकुरु (भस्मी कुरु कुरु)
भक्तजनवल्लभाय सर्गस्थितिसंहारकारणाय कथय कथय
सर्वशत्रून् उद्रेकय उद्रेकय विद्वेषय विद्वेषय
उत्सादय उत्सादय उत्पाटय उत्पाटय
बाधय बाधय साधय साधय
दह दह पच पच
शोषय शोषय पोषय पोषय
दूरय दूरय मारय मारय
भक्षय भक्षय शिक्षय शिक्षय
समस्तभूतं शिक्षय शिक्षय
श्रीं ह्रीं क्लीं क्ष्म्र्यैं
अनवरतताण्डवाय आपदुद्धारणाय साधुजनान्
तोषय तोषय भूषय भूषय पालय पालय शीलय शीलय
काम-क्रोध-लोभ-मोह-मद-मात्सर्य
शमय शमय दमय दमय
त्रासय त्रासय शासय शासय
क्षिति-जल-दहन-मारुत-गगन-तरणि सोमात्मशरीराय
शम-दमोपरति तितिक्षा समाधान श्रद्धां
दापय दापय प्रापय प्रापय
विघ्न विच्छेदनं कुरु कुरु
रक्ष रक्ष क्ष्म्र्यैं क्लीं ह्रीं श्रीं ब्रह्मणे स्वाहा ।
इति गोप्यं महामन्त्रं परमाकाशभैरवम् ।
यस्य स्मरणमात्रेण नन्दन्त्यखिलदेवताः ॥
शतवारमिमं मन्त्रं जपेत्सर्वार्थसिद्धये ।
त्रिवारं कार्यसिध्यर्थं जपेदेकाग्रमानसः ॥
प्रथमं तु त्रिधा मृश्य गुरुं स्वेष्टं यदा स्मरेत् ।
तत्काम्यसिद्धये शक्तौ जुहुयात्स्वात्मपावके ॥
॥ इति श्री आकाशभैरवकल्पे प्रत्यक्षसिद्धिप्रदे
उमामहेश्वरसंवादे चित्रमालामन्त्रम् ॥
॥ आकाशभैरवकल्पम् । षष्ठोऽध्यायः ॥
Proofread by Ruma Dewan