देवतासार्वभौमप्रोक्तं शिवस्तुतिः
(शिवरहस्यान्तर्गते उग्राख्ये)
देवतासार्वभौम -
भक्तार्तिभञ्जन करुणाकर शङ्करेश
शम्भो महेश भवभर्ग पिनाकपाणे ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ १/?१६०॥
गौरीपते पुरहरामित पुण्यमूर्ते
हे मुक्तिदायक यमान्तक विश्वमूर्ते ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ २/?१६१॥
विश्वाधिकाव्यय विशुद्धगुण स्वभाव
निर्द्वन्द्व नित्य निरुपाधिक निर्विकार ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ ३/?१६२॥
सोम त्रिणेत्र हरिनेत्र समर्चिताङ्गघ्रे
ब्रह्मेन्द्र मुख्य सुरवन्दित पादपद्म ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ ४/?१६३॥
निलिप्त पालय सुरासुर सर्गवर्ग-
सृष्टिस्थितिप्रलयकारण सर्वरूप ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ ५/?१६४॥
शार्दूलचर्मपरिवीत सुरासुरेश
कर्पूरगौर करुणाकर चन्द्रमौले ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ ६/?१६५॥
बिल्वार्चनप्रिय विभूति विभूषिताङ्ग
निःसङ्ग निर्गुण निरञ्जन निर्विकार ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ ७/?१६६॥
योगीन्द्र मानससरोरुह सन्निविष्ट
श्रेष्ठेष्टदायक निनिष्टजनेष्ट शूलिन् ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ ८/?१६७॥
शान्तान्तकान्तक मुमुक्षुजनाभिसेव्य
शैलाधिराजतनयायुतवामभाग ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ ९/?१६८॥
कल्याणरूप कनकाचलचारुचाप
विज्ञानरूप दुरवाप विहस्त पाप ।
संसारसागरमसारमघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ १०/?१६९॥
वेदान्तवेद्यविभवाव्यय शुद्ध वृत्ते
वृत्तिप्रदाभयद दक्षदयासमुद्र ।
संसार सागरं असारं अघोरमाप्तं
मामुद्धर त्रिपुरसूदन मन्मथारे ॥ ११/?१७०॥
॥ इति शिवरहस्यान्तर्गते देवतासार्वभौमप्रोक्तं शिवस्तुतिः सम्पूर्णा ॥
- ॥ श्रीशिवरहस्यम् । उग्राख्यः सप्तमांशः । अध्यायः २७ मध्यार्जुनमहिमानुवर्णनम् । ?१६०-?१७०॥
- .. shrIshivarahasyam . ugrAkhyaH saptamAMshaH . adhyAyaH 27 madhyArjunamahimAnuvarNanam . ?160-?170..
Notes:
Śloka numbers in the source text have duplication from 160-163 with many of them missing the numbering. The Śloka-s in this Stuti are hence marked as /?, and renumbering from 1-11 has also been done for readers' reference.
Proofread by Ruma Dewan