श्रीशिवाष्टकम्
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
सदा निर्विकल्पं सदा चित्स्वरूपं
सदा सत्स्वरूपं सदाऽनन्दरूपम् ।
सदा पूर्णरूपं सदा नित्यरूपं
सदैकस्वरूपं शिवं त्वां नमामि ॥ १॥
सदा निर्गुणं सद्गुणं वा सदैव
सदाऽनन्तरूपं च एकं सदैव ।
सदा शान्तरूपं च शुभ्रं सदैव
सदैकस्वरूपं शिवं त्वां नमामि ॥ २॥
सदा ज्ञानिनां ज्ञानरूपं त्वमेव
सदा योगिनां ध्यानगम्यं त्वमेव ।
सदा प्राणिनां प्राणरूपं त्वमेव
सदैकस्वरूपं शिवं त्वां नमामि ॥ ३॥
सदा ब्रह्मणा प्रार्थनीयस्वरूपं
सदा विष्णुना वन्दनीयस्वरूपम् ।
सदा धामतत् चिद्घानानन्दरूपं
सदैकस्वरूपं शिवं त्वां नमामि ॥ ४॥
सदा वेदशास्त्रेण स्तुत्यं महेशं
सदा देवदेवादिदेवं महेशम् ।
सदा ब्रह्मसूत्रादिमृग्यं महेशं
सदैकस्वरूपं शिवं त्वां नमामि ॥ ५॥
सदा सृष्टिनां सर्जकं तं महेशं
सदा सृष्टिनां पालकं तं महेशम् ।
सदा सृष्टिनां नाशकं तं महेशं
सदैकस्वरूपं शिवं त्वां नमामि ॥ ६॥
सदा सर्वदा चिन्तनीयं महेशं
सदा सर्वदा वन्दनीयं महेशम् ।
सदा सर्वदा कीर्तनीयं महेशं
सदैकस्वरूपं शिवं त्वां नमामि ॥ ७॥
सदा शुद्ध बुद्धं सदा मुक्तरूपं
सदाऽनन्तमेकं सदा चित्स्वरूपम् ।
सदा सर्वदा निर्मलं नित्यरूपं
सदैकस्वरूपं शिवं त्वां नमामि ॥ ८॥
इदं शिवाष्टकं स्तोत्रं भक्ति श्रद्धासमन्वितः
निवेदयाम्यहं शम्भो प्रसन्नो भव सर्वदा ॥ ९॥
इति गायत्रीस्वरूप ब्रह्मचारीविरचितं श्रीशिवाष्टकं सम्पूर्णम् ।
भगवत् समर्चना
प्राक्कथन
चौरासी लक्षयोनियों में मनुष्य योनि सर्व श्रेष्ठ
है । प्रभूत पुण्य द्योतक इस मानव शरीर को पाकर
कर्तव्याकर्तव्य में हमें शास्त्र प्रमाण ही मानना चाहिए ।
आगे चलकर यही शास्त्र हमारे लिए सच्चिदानन्द प्रभु की
प्राप्ति को ही मानव जीवन की सफलता का बोध कराते हैं ।
शास्त्रोक्त उपासना पद्धतियों में साधक को साध्य की सिद्धि
में भक्ति ही एकमात्र सरलतम साधन है । भक्त एवं
भक्ति दोनों की महिमा भगवत् प्रतिपादित ही है । भक्ति
सूत्रोपनद्ध श्रीहरि अपने लोक का सर्वथा त्याग कर
भक्त के हृदय में निवास करते हैं । इसी विश्वास के
साथ प्रार्थना स्तुति एवं आरती रूपी प्रसून सर्वान्तर्यामी
प्रभु के चरणों में अर्पित कर रहा हूँ । मात्र हमारी
यही लोकेषणा है कि प्रभु के चरणों में सबका प्रेम बना
रहे । त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।
विनीत - गायत्रीस्वरूप ब्रह्मचारी
श्रीमुमुक्षु भवन अस्सी, वाराणसी-५
भाद्रपद शुक्ल अनन्त चतुर्दशी संवत् २०२८
मूल्य भगवद्भक्ति
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