सुन्दरकृता शिवस्तुतिः
(शिवरहस्यान्तर्गते सदाशिवाख्ये)
सुन्दरः उवाच ।
नाकनायक विनायकस्तुत गरलभक्षक हारतक्षक
कुक्षिसंस्थितलोकरक्षक वीक्षणक्षण(क्षत मन्मथान्तक ।
पाकमुनिसुतजीवदायक हस्तशस्तविरिञ्चिमस्तक
पाहि मामखिलपातकान्तक देव देव भवाम्बुधेः ॥ ३७॥
सुखतारकाव मदुन्मुखप्रभ पार्श्वषण्मुख
दुःखभर्जक सर्गसर्जक तर्जितासुर गर्जनोर्जित
वर्जिताखिलपाप तापनिवारकाव मखोन्मुखो-
त्सुक लेखशिक्षक गाङ्गतुङ्गजटोत्तमाङ्ग-
सुसङ्ग बालकुरङ्ग किणधरलिङ्गसङ्ग भस्मधूसरिताङ्गा-
हस्करारुणितेक्षण क्षतपापस्मर तस्करोत्तम
धनप्रभूत्तम कन्धरेश्वर भूरथस्थित चन्द्रखण्डशिरोमणे ॥ ३८॥
गजचर्मवर्म चराचरास्थित विष्णुचक्रविदायक
पञ्चवक्त्र चतुर्मुखस्तुत छन्द साङ्गणदायक छादिता-
खिलविश्व जगज्जन्मस्थितिविनाशनाव जञ्जपूक वरप्रदायक ॥ ३९॥
झणझण इव(नव) नूपुरोत्तमपादपङ्कज टङ्ककर हर
देवतटिनीजूट जठरीलोक कुण्ठितपापवृन्द विकुण्डपूजितपाद
मृड हर डमरुध्वाननदित भुवनडम्बर कुण्डलीश्वर कुण्डलप्रिय
चण्डभानुसुतार्तिदायक मण्डलीकृतपर्वताधिप चण्डदण्डित-
वैरिपुरवरखण्डनोद्धतकाण्ड गुरुतरमुण्डषण्डविराजितेश्वर
खाण्डवाशनलोचन ॥ ४०॥
पुण्डरीकत्वचाविभूषित वेतण्डवरशुण्डगुरुरम्यभुजदण्ड धारितवर-
कोदण्ड पण्डितोत्तम भण्डजन हर कर्मकाण्डनिषूदन भक्ति-
दृढतरमुक्तिदायक (दृढतरभक्तिमुक्तिदायक) गूढपाद्वर, मूढजनता-
गाढहृत्तमोभेदकार्क ॥ ४१॥
विभूषणीकृतपन्नगेश्वर नगोत्तमवास गुणगणनन्दितानन ताम्यमान
भवस्थितावन, ताम्रसंस्थित, तस्कराधिप, दीनसदयसनाथनाथित
मन्मथान्तक दन्दशूकफणामणिद्युतिरञ्जिताङ्ग दारिद्र(दारिद्र्य)-
नाशक, देव देव दयानिधे ॥ ४२॥
मानवाद्य (मामवाद्य) धनाधिपप्रिय धेनुपुत्र रथप्रियाध्वरशिक्षकावन-
नायकाव विनायकप्रियवाहपूजिताम्बुजपाद नानताखिलमुक्तिदायक
पापभयहर पन्नगप्रिय पत्ररथवर पूज्यमानपदाम्बुज फाणिताखिल
वेदजाल फणीश्वरोत्तमबन्धमोचन बन्धुरालक बिल्वपूजित
बाणलिङ्गविहारशङ्कर ॥ ४३॥
भद्रदायक भस्मभूषित भक्तिदायक भीम भूम महेश्वरेश्वर
मन्मथान्तक विश्वसृग्वर हस्तशस्तकमस्तक यक्षपक्ष
विवर्जितक्षण यक्ष्मरोगविनाशक राजराजकलाविराजितमस्तक
सर्वदेवललाम सोम भवहर भीमलोचन लालितोत्तम हस्तशूल-
सलीलकीलितविश्वक ॥ ४४॥
षण्मुखस्तुत षड्जमध्यग पापपण्डविशोषण सर्वमुनिगण-
हृत्पाथोजविहारभृङ्गवरोत्तम । सामजप्रिय कृत्तिधारण
सामसंस्तुत देव भवहर हारभूतविषोल्बण सत्फणी(णि) गण-
शोभित ॥ ४५॥
हावभावविलासवैभव हारिताखिलविष्टपत्रय क्षत्रियान्तकरामपूजित
दक्षयज्ञविनाशनाव माम् । लोकशिक्षक भिक्षिताखिलमौनिपक्षग
त्र्यक्ष जगदध्यक्ष मामव पाहि माम् । पाहिमामखिलार्तिनाशन हे
महेश्वर किङ्करस्तव शङ्करोऽपि भवेद्वरदयेक्षणात् ॥ ४६॥
रक्ष मां शिव त्र्यक्ष रक्षक पक्षपातदृशा पाहि मां तवापराधिनं
भवमूढं धाष्टर्यपरायणम् । या तवाप्यधिवक्तृता शिव महेश्वर पाहि
मामवाङ्मनोविषयानतेः स्तुतिरियं श्रुतिमौलिजैः । भक्तितः
शशिशेखर महेश्वरेश्वर पाहि माम् ॥ ४७॥
॥ इति शिवरहस्यान्तर्गते सुन्दरकृता शिवस्तुतिः सम्पूर्णा ॥
- ॥ श्रीशिवरहस्यम् । सदाशिवाख्यः नवमांशः । अध्यायः १८ सुन्दरस्यशापः । ३७-४७॥
- .. shrIshivarahasyam . sadAshivAkhyaH navamAMshaH . adhyAyaH 18 sundarasyashApaH . 37-47..
Notes:
Sundara सुन्दर; one of the sixty-three Nāyanāra-s, prays to Śiva शिव and also seeks pardon for his error caused while being in service of Śiva शिव in Kailāsa कैलास .
Proofread by Ruma Dewan