देवादिकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम्
(देवादय ऊचुः)
जय जय लोकपाल भक्तरक्षक जय जय प्रणतवत्सल
जय जय भूतचरम जय जयाऽऽदिदेव बहुकारण
जय जय जयासुरसंहरण जय जय दिव्यमीन
जय जय त्रिदशवर जय जय जलधिशयन ॥ ४९(१)
जय जय योगिवर जय जय सूर्यनेत्र
जय जय देवराज जय जये कैटभारे
जय जय वेदवर जय जय कूर्मरूप
जय जय यज्ञवर जय जय कमलनाभ
जय जय शैलचर ॥ ४९(२)
जयजय योगशायिन् जय जय जय वेगधर
जय जय विश्वमूर्ते जय जय चक्रधर
जय जय भूतनाथ जय जय धरणीधर
जय जय शेषशायिन्जय जय पीतवासः
जय जय सोमकान्त ॥ ४९(३)
जय जय योगवास जय जय सुखनिवास
जय जय धर्मकेतो जय जय महीनिवास
जय जय गहनचरित्र जय जय योगिगम्य
जय जय मखनिवास ॥ ४९(४)
जय जय वेदवेद्य जय जय शान्तिकर
जय जय योगिचिन्त्य जय जय पुष्टिकर
जय जय ज्ञानमूर्ते जय जय कमलाकर ॥ ४९(५)
जय जय भवावेद्य जय जय मुक्तिकर
जय जय विमलदेह जय जय सत्त्वनिलय
जय जय गुणसमृद्ध जय जय यज्ञकर
जय जय गुणविहीन जय जय मोक्षकर
जय जय भूशरण्य ॥ ४९(६)
जय जय कान्तियुत जय जय लोकशरण्य
जय जय लक्ष्मीयुत जय जय पङ्कजाक्ष
जय जय सृष्टिकर जय जय योगयुत
जय जयातसीकुसुमश्यामदेह जय जय समुद्रविष्टदेह
जय जय लक्षमीपङ्कजषट्चरण ॥ ४९(७)
जय जय भक्तवश जय जय लोककान्त
जय जय परमशान्त जय जय परमसार
जय जय चक्रधर जय जय भोगियुत
जय जय नीलाम्बर जय चजय शान्तिकर
जय जय मोक्षकर जय जय कलुषहर ॥ ४९(८)।
जय कृष्ण जगन्नाथ जय सङ्कर्षणानुज ।
जय पद्मपलाशाक्ष जय वाञ्छाफलप्रद ॥ ५०॥
जय मालावृतोरस्क जय चक्रगदाधर ।
जय पद्मालयाकान्त जय विष्णो नमोऽस्तु ते ॥ ५१॥
ब्रह्मोवाच ।
एवं स्तुत्वा तदा देवाः शक्राद्या हृष्टमानसाः ।
सिद्धचारणसङ्घाश्च ये चान्ये स्वर्गवासिनः ॥ ५२॥
मुनयो वालखिल्याश्च कृष्णं रामेण सङ्गतम् ।
सुभद्रां च मुनिश्रेष्ठाः प्रणिपत्याम्बरे स्थिताः ॥ ५३॥
इति ब्रह्मपुराणे पञ्चषष्टितमाध्यायान्तर्गतं
देवदिकृतं कृष्णस्तोत्रं समाप्तम् ।
ब्रह्मपुराण । अध्याय ५९/३४-७२॥
brahmapurANa . adhyAya 59/34-72..
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