श्रीनिवासगद्यम्
॥ श्रीरस्तु ॥
श्रीवेङ्कटाद्रिनिलयः कमलाकामुकः पुमान् ।
अभङ्गुर विभूतिर्नस्तरङ्गयतु मङ्गलम्
श्रीमदखिल महीमण्डल मण्डन धरणिधर मण्डलाखण्डलस्य ॥ १॥
निखिल सुरासुर वन्दित वराह क्षेत्र विभूषणस्य ॥ २॥
शेषाचल गरुडाचल वृषभाचल नारायणाचलाञ्जनाचलादि शिखरि
मालाकुलस्य ॥ ३॥
नाथमुख बोधनिधि वीथिगुण साभरण सत्त्वनिधि तत्त्वनिधि
भक्तिगुणपूर्ण श्रीशैल पूर्ण गुणवशंवद परमपुरुष कृपापूर
विभ्रमदतुङ्गशृङ्ग गलद्गगन गङ्गासमालिङ्गितस्य ॥ ४॥
सीमातिगगुण रामानुज मुनि नामाङ्कित बहुभूमाश्रय सुरधामा लयवनरामा
यतवनसीमा परिवृत विशङ्कटतट निरन्तर विजृम्भित भक्तिरस
निर्झरानन्तार्याहार्य प्रस्रवण धारापूर विभ्रमद सलिलभर भरित
महा तटाकमण्डितस्य ॥ ५॥
कलिकर्दममलमर्दन कलितोद्यम विलसद्यमनियमादिम मुनिगण निषेव्यमाण
प्रत्यक्षीभवन्निजसलिल समज्जननमज्जन निखिल पापनाशन पापनाशन
तिर्थाध्यासितस्य ॥ ६॥
मुरारि सेवक जराधिपीडित निरार्तिजीवन निराशभूसुर वरातिसुन्दर
सुराङ्गना रतिकराङ्ग सौष्ठव कुमारताकृति कुमारतारक
समापनोदय दमानपातक महापदामय विहापनोदित सकल भुवन विदित
कुमारधाराभिधान तिर्थाधिष्ठितस्य ॥ ७॥
धरणि तलगत सकलहत कलिलशुभ सलिलगत बहुलविविध मलहति
चतुर रुचिरतर विलोकमात्रविदलित विविध महापातक स्वामिपुष्करिणी
समेतस्य ॥ ८॥
बहुसङ्कट नरकावट पतदुत्कट कलिकङ्कट कलुषोद्भट जनपातक
विनिपातक रुचिनाटक करहाटक कलशाहृत कमलारत शुभमज्जन
जलसज्जन भरित निजदुरित हतिनिरत जनसतत निरर्गलपेयीयमान
सलिल सम्भृत विशङ्कट कटाहतीर्थ भूषितस्य ॥ ९॥
एवमादिम भुरिमञ्जिम सर्वपातक गर्वहापक सिन्धुडम्बर
हारिशम्बर विविधविपुल पुण्यतीर्थ निवह निवासस्य ॥ १०॥
श्री वेङ्कटाचलस्य ॥ ११॥
शिखरशेखर महाकल्प शाखी ॥ १२॥
खर्वीभवदतिगर्वि कृतगुरुमेर्विश
गिरिमुखोर्वीधरकुलदर्वीकर दयितोर्वी धरशिखरोर्वी सतत
सदुर्वी कृतिचणनवघनगर्वचर्वणनिपुण तनुकिरण मसृणित
गिरिशिखरशेखर तरुनिकर तिमिरः ॥ १३॥
वाणीपति शर्वाणीदयितेन्द्राणीश्वरमुखनाणीयो रसवेणी निभ शुभवाणी
नुतमहिमाणी यस्तरकोणी भवदखिलभुवन भवनोदरः ॥ १४॥
वैमानिक गुरुभूमाधिक गुण रामानुज कृतधामाकर करधामारिदर
ललामाच्छ कनक दामायित निजरामालयनवकिसलयमय तोरण
मालायितवनमालाधरः ॥ १५॥
कालाम्बुद मालानिभ नीलालक जालावृत बालाब्ज सलीलामलफालाङ्क
समूलामृत धाराद्वयावधीरण धीरललिततर विशदतर घन
घनसारमयोर्ध्वपुण्ड्र रेखाद्वयरुचिरः ॥ १६॥
सुविकस्वरदलभास्वरकमलोदरगतमेदुरनवकेसरततिभासुरपरिपिञ्जर-
कनकाम्बरकलितादरललितोदरतदालम्बजम्भरिपुमणिस्तम्भ-
गम्भीरिमदम्भस्तम्भन समुज्जृम्भमाणपीवरोरुयुगल-
तदालम्बपृथुलकदलीमुकुलमदहरणजङ्घालजङ्घायुगलः ॥ १७॥
नव्यदल भव्यकल पीतमल शोणिमल सन्मृदुल सत्किसलयाश्रुजलकारि
बलशोणतल पत्कमलनिजाश्रय बलबन्दीकृत शरदिन्दुमण्डली
विभ्रमदादभ्रशुभ्र पुनर्भवाधिष्ठिताङ्गुली
गाढनिपीडित पद्मासनः ॥ १८॥
जानुतलावधिलम्भिविडम्बित वारणशुण्डा दण्डविजृम्भित नीलमणिमय
कल्पकशाखा विभ्रमदायि मृणाललतायत समुज्ज्वलतर कनक
वलयवेल्लितैकतर बाहुदण्डयुगलः ॥ १९॥
युगपदुदित कोटिखरकर हिमकर मण्डल जाज्ज्वल्यमान सुदर्शन
पाञ्चजन्य समुत्तुङ्गित शृङ्गापरबाहुयुगलः ॥ २०॥
अभिनवशाणा समुत्तेजित महामहानीलखण्ड मदखण्डननिपुण नवीन
परितप्त कार्तस्वरकवचित महनीय पृथुलसालग्राम परम्परागुम्फित
नाभिमण्डलपर्यन्त लम्बमानप्रालम्बदीप्ति
समालम्बित विशालवक्षस्थलः ॥ २१॥
गङ्गाझरतुङ्गाकृतिभङ्गावलिभङ्गावह सौधावलि बावह धारानिभ
हारावलि दूराहत गेहान्तरमोहावह महिम मसृणित महातिमिरः ॥ २२॥
पिङ्गाकृतिभृङ्गारुनिभाङ्गार दलाङ्गामल निष्कासित दुष्कार्यघ
निष्कावलि दीपप्रभ नीपऽच्छवि तापप्रद कनकमालिका
पिशङ्गितसर्वाङ्गः ॥ २३॥
नवदलित दलवलित मृदुललित कमलतति मदविहति चतुरतर
पृथुलतर सरसतर कनकसर मयरुचिर
कण्ठिका कमनीयकण्ठः ॥ २४॥
वाताशनाधिपतिशयन कमनपरिचरण रतिसमेताखिल फणधरतति
मतिकर कनकमय नागाभरण परिवीताखिलाङ्गावगमित शयन भूताहिराज
जातातिशयः ॥ २५॥
रविकोटी परिपाटी धरकोटिर वराटीकितवाटि रसधाटि धरमणिगण किरण
विसरण सततविधुत तिमिरमोहगर्भगेहः ॥ २६॥
अपरिमित विविधभुवनभरिताखण्ड ब्रह्माण्डमण्डल पिचण्डिलः ॥ २७॥
आर्यधुर्यानन्तार्य पवित्रखनित्रपात पात्रीकृत निजचुबुकगत व्रणकिण
विभूषणवहन सूचितश्रित जनवत्सलतातिशयः ॥ २८॥
मड्डुडिण्डिम डमरुझर्झर काहली पटहावली मृदुमर्दलालि मृदङ्ग
दुन्दुभि ढक्किकामुख हृद्यवाद्यक मधुरमङ्गल नादमेदुर विसृमर
सरसगान रसरुचिर सन्ततसन्तन्यमान नित्योत्सव पक्षोत्सव मासोत्सव
संवत्सरोत्सवादि विविधोत्सव कृतानन्दः ॥ २९॥
श्रीमदानन्दनिलयविमानवासः ॥ ३०॥
सततपद्मालयापदपद्मरेणुसञ्चित वक्षस्स्थलपटवासः ॥ ३१॥
श्रीश्रीनिवासस्सुप्रसन्नो विजयताम् ॥ ३२॥
श्रीरङ्गसूरिणेदं श्रीशैलानन्तसुरिवंश्येन ।
भक्त्या रचितं हृद्यम् गद्यम् गृह्णातु वेङ्कटेशानः ॥
॥ श्री श्रीनिवासगद्यं सम्पूर्णम् ॥
From a telugu book veNkaTeshakAvyakalApa
Encoded and proofread by Malleswara Rao Yellapragada
malleswararaoy at yahoo.com