भारतभारतीस्तोत्रम्
जयतु भारतं दिव्यभारतं
जयति भारती दिव्यभारतिः ।
जयतु भारतं श्रीविभूषितं
जयति भारती भूतिभूषिता ॥ १॥
जयतु भारतं देववन्दितं
जयति भारती विश्वभाविता ।
जयतु भारतं वेदवर्णितं
जयति भारती साधुसेविता ॥ २॥
जयतु भारतं भव्य-विस्तृतं
जयति भारती धीरभाषिता ।
जयतु भारतं वित्तपूरितं
जयति भारती भावुकैः स्तुता ॥ ३॥
जयतु भारतं शास्त्रकीर्त्तितं
जयति भारती भक्तवर्णिता ।
जयतु भारतं भूसुराञ्चितं
जयति भारती मञ्जुशोभिता ॥ ४॥
जयतु भारतं भद्रसेवितं
जयति भारती भावनोदिता ।
जयतु भारतं ग्रन्थग्रन्थितं
जयति भारती विश्वविश्रुता ॥ ५॥
जयतु भारतं वैभवान्वितं
जयतु भारतं साधकै र्वृतं
जयति भारती धीमदादृता ।
जयति भारती श्रेष्ठसाधिता ॥ ६॥
जयतु भारतं पूर्णसंहतं
जयति भारती रत्नमण्डिता ।
जयतु भारतं धेनुभिस्ततं
जयति भारती भाग्यमोदिता ॥ ७॥
जयतु भारतं सद्गुणान्वितं
जयति भारती भावभाविता ।
जयतु भारतं भीहरं श्रुतं
जयति भारती शान्तिशोभिता ॥ ८॥
भारत-भारतीस्तोत्रं राष्ट्रभक्ति-विवेकदम् ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितम् ॥ ९॥
इति श्रीजीविरचितं भारतभारतीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
भारत-भारती-स्तोत्रम्
(हिन्दी भाषानुवाद )
दिव्य कान्ति से युक्त, परम शोभायमान भारतवर्ष की जय हो । असीम
ऐश्वर्य सम्पन्न महाशोभारूप सुरभारती सरस्वती की जय हो ॥ १॥
वेदों में जिसका वर्णन है, देव-समूह से सदा अभिवन्दित भारतवर्ष
की जय हो । सम्पूर्ण जगत् जिसकी उपासना करता है, उत्तम पुरुषों द्वारा
सर्वदा परिसेवित अर्थात् जिनके द्वारा निरन्तर जिसका अनुशीलन किया जाता
है ऐसी सरस्वती रूपा देववाणी संस्कृत की सदा ही जय हो ॥ २॥
अत्यन्त विशाल एवं जिसका महान् विस्तार है, नानाविध अनन्त सम्पदाओं
का जो महाभण्डार है ऐसे भारतवर्ष की निरन्तर जय हो । वेदादि
शास्त्रों के मर्मज्ञ धीर विद्वान् पुरुषों द्वारा जिसका गान किया जाता है,
भावुकजनों द्वारा जिसकी नित्य-स्तुति की जाती है ऐसी देवभाषा भारती
की सदा जय ॥ ३॥
समस्त शास्त्र जिसकी दिव्य धवल कीर्ति का गान करते हैं, सुयोग्य
वेदज्ञ विप्रजनों द्वारा सर्वदा प्रपूजित भारत देश की सदा सर्वदा
जय हो । श्रद्धालु भक्तों द्वारा जिसका विविध रूप से वर्णन किया जाता
है, सुन्दर सुशोभित सरस्वती रूपा सुरभारती की सतत जय हो ॥ ४॥
श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा परिसेवित, नानाविध ग्रन्थों में जिसकी असीम
महिमा का पर्याप्त उल्लेख है ऐसे सुरम्य भारतवर्ष की सर्वदा जय हो ।
यावन्मात्र समस्त विश्व में जिसकी असीम प्रतिष्ठा है, अपनी सात्विक
भावना से ही जिसकी उपलब्धि होती है ऐसी सरस्वती भारती की प्रतिक्षण
जय हो ॥ ५॥
दिव्यातिदिव्य वैभव से युक्त, सरस सात्विक साधक-समूह परिव्याप्त
भारत की अनवरत जय हो । उत्तम विद्वज्जनों द्वारा जिसका सदा ही समादर
किया जाता है, पुण्यश्लोक पुरुषों द्वारा जिसकी निरन्तर साधना की जावे
ऐसी भास्वती सरस्वती सुरभाषा भारती की प्रतिपल जय हो जय हो ॥ ६॥
सभी प्रकार से जो पूर्णतया सुसङ्घटित है, अपरिमित गोवृन्द जिसकी
पावन धरणी पर सतत विचरण करता हो ऐसे महावरिष्ठ भारतवर्ष
की पुनःपुनः जय हो । सुन्दरातिसुन्दर विविध रत्नों से सुशोभित, जिसकी
उपलब्धि कहीं बड़े भाग्य से ही हो सकती है ऐसी परम शोभायमान
भारती की सदा जय हो ॥ ७॥
अगणित श्रेष्ठ गुण-गणों से युक्त, आध्यात्मिक, आधिदैविक आधिभौतिक
इन त्रिविध तापों का हरण करने वाला परम प्रख्यात जो भारतवर्ष
उसकी सदा जय हो उत्तम भाव से ही जो प्रसन्न होती है, शान्त सुभग
स्वरूप से परम सुशोभित देव भारती की अहर्निश जय हो ॥ ८॥
स्वकीय राष्ट्र भारतवर्ष की अनन्त भक्ति एवं शास्त्रों का दिव्य ज्ञान
प्रदान करने वाला यह। ``भारत-भारती-स्तोत्र'' जिसकी रचना
आचार्यचरण द्वारा सम्पन्न हुई ॥ ९॥
अनुवाद - श्री गोविन्ददास