भारतभू यशोगीतम्
हिमगिरि हीर किरीट तपोज्वल,
रत्नाकर जल धौत चरणतल,
विन्ध्य मेखला, सरित हार चल,
वन्दे भारतमातरम् !
दक्षिण भू मलयज रज सुरभित,
पश्चिम प्रचुर मधुर फल शोभित,
प्राची श्यामल शस्य भार स्मित,
वन्दे भारतमातरम !
मधुमें तुम कल कोकिल कुलमें वाणी,
शरत्पद्य दलमें लक्ष्मी कल्याणी,
तुम्हीं अपर्णा हिम दल स्रस्त वनानी,
सकल देवतामयी चतुर्दिक
वन्दे भारतमातरम् !
शैशव था जगका, तममें लिपटे जन,
वाणीहीन, मुदे थे मनके लोचन,
वेद गान रत रहते गङ्गा तटपर
उन्मेषित उर, ज्ञान नयन, ऋषि-मुनि गण !
वन्दे भारतमातरम् !
व्यास भणितिमें स्फुरित हुई, माँ, तेरी
निस्तल प्रज्ञाकी आभा अन्तःस्मित,
शङ्कर मतमें गहन गूढ अन्तस्की
तत्त्वग्रहण पटुता जगतीपर कीर्तित,
वन्दे भारतमातरम् !
निखिल भुवन गौरव श्रीकृष्ण चरितमें
चतुर्योगकी क्षमता अद्भुत विकसित,
रामराज्य आदर्श प्रमाण धरापर
उच्च नृपोचित मर्यादाका जीवित !
वन्दे भारतमारतम् !
जिन गुरु पाणि-कमलसे दया द्रवित हो
बहती शुभ्र अहिंसा-धारा पावन,
सौम्य सुगतकी शान्त दृष्टि बरसाती
करुणामृत, भव दुःखकर निखिल निवारण,
समताके श्री बशव देव चिर प्रतिनिधि,
महत् त्यागके गुरु गोविन्द निदर्शन
वन्दे भारतमातरम !
शिव दधीचि कर्णादि महापुरुषोम्में
मा, औदार्य नुम्हारा निश्चल मूर्तित,
हरिश्चन्द्रमें धर्म, सत्य रघुपतिमें,
ध्रुव प्रह्लाद मनस्वी सुत जन पूजित,
चिर अनन्त गुण गरिमासे तुम दीपित,
वन्दे भारतमातरम !
कन्दमूल ओषधियाँ सकल प्ररोहित,
शब्द-शब्दमें दिव्य' मन्त्र उद्गीरित,
निखिल उत्स सरिता गङ्गा-सी निर्मल,
जीवमात्र इस पुण्यधराके शिव समान अन्तःस्थित,-
वन्दे भारतमातरम् !
नील कलश मन्दिर विशाल भू गोलक,
मरकत मूर्ति तुम्हारी जहाँ प्रतिष्ठित,
परिक्रमा-सा करता तुमको घेरे
पश्चात्ताप ग्रसित शशि कल्मष अङ्कित -
वन्दे भारतमातरम् !
वज्रपात, विष, बह्नि, ध्वंससे तापित,
असुर सम्पदा पीडित अब यह भूतल,
तुम अनाथ जन-गणके हित बरसाती
दैवी सम्पद धन-सी जीवन मङ्गल !
वन्दे भारतमातरम् !
अणु विस्फोटोंसे मर्दित जड चेतन-
मृत्यु - भीत, आशङ्कित, जगतीके जन,
बाणविद्ध मृग-सी सुनती उत्सुक भू
विश्व-शान्ति सन्देश तुम्हारा मोहन !
वन्दे भारतमातरम् !
हृदय गगनमें बसे तुम्हारी प्रतिमा,
सद्भावोंसे हो अखण्ड जय कीर्तित,
स्तवन करे पश्यन्ती परा गिरा नित
अन्तर्योति करे अहरह नीराजन,
वन्दे भारतमातरम् !
देवि, तुम्हारी महिमा गानेमें रत
मेरी निःस्वर वाणी तुममें हो लय,
पान करें अपलक लोचन स्वर्गिक छवि,
चिन्तनमें निःस्पन्द हृदय हो तन्मय,
शीणं काय अर्पित हो तुमपर निर्भय
वन्दे भारतमातरं
शस्य हरित, स्वर्णारुण, नीचे ऊपर
चक्राङ्कित हिम धवल मध्य, दिग चुम्बित
नवल राष्ट्र केतन, त्रिपुण्ड-सा नूतन,
त्रिधा धर्म पथ करे प्रकाशित अविजित !
वन्दे भारतमातरम् !
-प्राध्यापक श्री श्रीधर भास्कर वर्णेकरकृत याः
संस्कृतकवितायाः श्री सुमित्रानन्दनपन्तकृतः अनुवादः ।
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