भारतमाता की प्रिय सन्तान
संस्कृत का कुछ ज्ञान नहीं है,
इसका कुछ भी ध्यान नहीं है,
तो वह फिर भारतमाता का प्रेमपात्र सन्तान नहीं है ।
संस्कृत ने ही तो भारत को भूतल में विख्यात किया है,
इसने ही तो भारतीयता को वह दीर्घायुष्य दिया है,
इसका ही साहित्यसुधा पी अब तक जीवित देश हमारा,
यह संस्कृत ही भारत की संस्कृति का केवल एक सहारा ।
इसका यदि अभिमान नहीं है,
रक्षा का कुछ ध्यान नहीं है,
तो वह फिर भारतमाता का प्रेमपात्र सन्तान नहीं है ।
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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