भारतमातृगुणाष्टकम्

भारतमातृगुणाष्टकम्

केशेन्द्रवन्दितां दिव्यां मुनिवृन्दैर्निसेविताम् । पूजितां विप्रवृन्दैश्च वन्दे भारतमातरम् ॥ १॥ अनन्तैश्वर्यसम्पन्नां नानारत्नैश्च शोभिताम् । तप्तकाञ्चनदिव्याऽऽभां वन्दे भारतमातरम् ॥ २॥ तपस्वि-योगिभिर्नित्यं ध्येयां गेयां सुमञ्जुलाम् । धीरैर्वीरैर्वरैर्भव्यां वन्दे भारतमातरम् ॥ ३॥ श्रीरामकृष्ण-पादाब्ज-मकरन्दसुवासिताम् । विमलां विष्णुरूपाञ्च वन्दे भारतमातरम् ॥ ४॥ श्रीधरां श्रीयुतां श्रीदां शान्ति-कान्तिगुणाऽन्विताम् । श्रेयस्करीं सदा शुद्धां वन्दे भारतमातरम् ॥ ५॥ अमन्दाऽऽनन्ददां चारु कृष्णर्द्धि-सिद्धिसम्प्रदाम् । गो-विप्र-साधुभिर्हृद्यां वन्दे भारतमातरम् ॥ ६॥ श्रुतिशास्त्रगिरोद्गीतां नानाविद्या-कलाऽऽवृताम् । अध्यात्मदर्शनाऽऽधारां वन्दे भारतमातरम् ॥ ७॥ अतीवबृहदाकारां परितोऽखण्डमण्डलाम् । चमत्कृतीन्दिराऽऽगारां वन्दे भारतमातरम् ॥ ८॥ सुख-शान्तिकरं स्तोत्रं भारतमातुरष्टकम् । राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितम् ॥ ९॥

भारतमातृगुणाष्टक हिन्दी भाषानुवाद

मुनिवृन्द - ब्रह्मा, शिव, इन्द्रादि देवगणों द्वारा वन्दित, दिव्य स्वरूपा, अर्थात् ऋषि-महर्षियों द्वारा परिसेवित और विद्ववृन्दों द्वारा परिपूजित श्रीभारतमाता की हम वन्दना करते हैं ॥ १॥ अनन्ताइश्वर्यशालिनी मुक्ता-प्रवाल मणि-माणिक्यादि विविध रत्नों द्वारा परिशोभित अर्थात् जो रत्न गर्भा है और तपाये हुए स्वर्ण के समान दिव्य आभा (कान्ति )वाली ऐसी भारत माता की हम वन्दना करते हैं ॥ २॥ तपस्वी और योगीजनों द्वारा प्रतिदिन ध्यान और गान की जाने वाली, परम मनोहर तथा श्रेष्ठजन धीर-वीर पुरुषों से युक्त भारत माता की हम वन्दना करते हैं ॥ ३॥ भगवान् श्रीराम और श्रीकृष्ण के चरणारविन्द-मकरन्द से परम सुवासित अर्थात् अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायक सर्वेश्वर भगवान् श्रीराम-कृष्ण की यह परमपावन अवतरण स्थली है । अतीव निर्मल विष्णुस्वरूपा श्रीभारतमाता की हम वन्दना करते हैं ॥ ४॥ लक्ष्मी को धारण करने वाली, लक्ष्मी सम्पन्न, लक्ष्मी प्रदान करने वाली तथा शान्ति और कान्ति आदि गुणों से समायुक्त सदा सर्वदा कल्याणकारिणी शुद्धस्वरूपा श्रीभारत-माता की हम वन्दना करते हैं ॥ ५॥ अजस्र-अखण्ड-आनन्द प्रदान करने वाली अतिशय सुन्दर सर्वेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण की प्राप्ति कराने वाली ऋद्धि-सिद्धि प्रदायिनी गो-ब्राह्मण और साधु-सन्तजनों से अत्यन्त सुशोभित ऐसी भारत माता की हम वन्दना करते हैं ॥ ६॥ वेदादि शास्त्रों की मन्त्रमयी दिव्य वाणी द्वारा प्रगीयमान विविध प्रकार की विद्या एवं कलाओं से परिपूर्ण और अध्यात्म दर्शन की आधारभूता भारत माता की हम वन्दना करते हैं ॥ ७॥ वृहदाकार अर्थात् अति विस्तार स्वरूपा तथा अखण्डरूप मण्डलाकार (गोलाकार )आश्चर्यमयी अनन्त अक्षुण्ण लक्ष्मी का भण्डार ऐसी भारतमाता की हम वन्दना करते हैं ॥ ८॥ सुख शान्ति प्रदान करने वाले भारतमातृगुणाष्टक स्तोत्र की आचार्यचरण श्रीराधासर्वेश्वरशरणदेवाचार्यजी महाराज द्वारा रचना की गई, जो सर्वदा मननीय है ॥ ९॥ जयतु भारतं जयतु भारती प्रार्थना ॥ श्रीराधासर्वेश्वरो विजयते ॥ जयतु भारत-संस्कृतिः श्रीसर्वेश्वर प्रभु की जय हो भारतराष्ट्र की विजय हो संस्कृत भाषा का प्रचार हो श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय हो अध्यात्मविद्या का सञ्चार हो श्रुतिशास्त्रोक्तज्ञान का प्रसार हो मानवता का ज्ञान हो गङ्गाजल का नित्य पान हो गोमाता की जय हो देवस्थानों की सुरक्षा हो अविद्या का निवारण हो सदाचार का अवधारण हो अनुवाद - श्री गोविन्ददास
% Text title            : Bharata-Matri-Gunashtakam
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% Category              : misc, nimbArkAchArya, aShTaka
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% Sublocation           : misc
% Author                : shrIjI, Govindadasa
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Translated by         : Govindadasa
% Description-comments  : Bharat Bharati Vaibhavam book by Shriji Maharaj
% Indexextra            : (Scan)
% Latest update         : April 12, 2024
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% Site access           : https://sanskritdocuments.org

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