गीर्वाणगिरो गरीयस्त्वम् सार्थम्

गीर्वाणगिरो गरीयस्त्वम् सार्थम्

(Importance of Sanskrit संस्कृत का महत्व) ज्ञानराशिस्तत्त्वसारः पुण्यसीमा पापहृत् । देववाणी राजतामस्मन्मुखे हृदि सर्वदा ॥ १॥ संस्कृतभाषा, जो ज्ञान का अक्षय भण्डार है, जिसमें तत्त्व और वास्तविकता प्रचुर परिमाण में उपलब्ध हैं, जिसके अध्ययन से महान् पुण्य प्राप्त होता है और पापों का क्षय होता है, सदैव हमारे मुखों में और हृदयों में विराजमान रहे । १ कालिदासो भारविर्भवभूतियास्कौ पाणिनिः । देववाणीमन्तरा ते नोपलभ्यन्ते क्वचित् ॥ २॥ कालिदास, भारवि, भवभूति, यास्क, पाणिनि, तथा ऐसे अन्य अनेक विद्वानों का साक्षात्कार केवल संस्कृत में ही हो सकता है, अन्यत्र कहीं नहीं । २ याः समस्याः पीडयन्त्यखिलं जगत् किल साम्प्रतम् । साम्प्रतं तासां प्रतीकारं लभध्वं संस्कृतात् ॥ ३॥ आज संसार जिन बड़ी बड़ी समस्याओं में परेशान हो रहा है, उन सब समस्याओं का ठीक ठीक समाधान संस्कृत के ग्रन्थों में ही पहिले से लिखा हुआ है । जो चाहो कि वह समस्याएं हल हो जावें तो उपाय संस्कृत के ग्रन्थों में ढूंढो । ३ दर्शनं पातञ्जलं वैयासिकी वाग् ज्यौतिषम् । ज्ञान विज्ञानञ्च सर्वं संस्कृतादधिगम्यताम् ॥ ४॥ महर्षि पतञ्जलि कृत योगशास्त्र, महर्षि व्यास कृत महाभारत आदि ग्रन्थरत्न, ज्योतिष, सम्पूर्ण ज्ञान, सम्पूर्ण विज्ञान, संस्कृत साहित्य को पढ़कर प्राप्त करो । ४ यत्पुरा वैदेशिके राज्ये तिरस्करणं महत् । लब्धमासीद् देववाण्या साम्प्रतं तदसाम्प्रतम् ॥ ५॥ विदेशियों के राज्य में संस्कृत ने चिरकाल तक घोर अपमान पाया है, यह बड़े खेद की बात है । अब स्वतन्त्र भारत में वही अपमान होना ठीक नहीं । ५ देवभाषे त्वां वयं वन्दामहे सेवामहे । ते प्रसादात् शाश्वतं ज्ञानं लभेमहि दुर्लभम् ॥ ६॥ हे परमपूज्य संस्कृत देववाणी, हम तुझे प्रणाम करते हैं, हम तेरी सेवा करते हैं, तेरी ही कृपा से हम दुर्लभ ज्ञान को पावें जो सत्य है और नित्य है । ६ यच्च माधुर्यं मधुद्राक्षासुधाद्यतिशायि ते । देवभाषेऽन्यत्र तत्कुत्रापि नोपलभामहे ॥ ७॥ हे देववाणी संस्कृत, तुम्हारी जो अनुपम लोकोत्तर मिठास है वह शहद, अंगूर, अमृत, आदि सब प्रसिद्ध मीठी वस्तुओं से भी अधिक है, तुम्हारे अतिरिक्त वह मिठास अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकती । ७ देववाण्याः पाठनं पठनं यथा च लभेमहि । नस्तथा सौभाग्यमीशो जन्मजन्मनि दापयेत् ॥ ८॥ हे ईश्वर, हे जगदीश्वर, तुम कृपया जन्म जन्मान्तरों में भी हमें ऐसा सौभाग्य प्रदान करना कि हमें संस्कृत का पढ़ना पढ़ाना सदा उपलब्ध होता रहे । ८ ``हे दयामय हम सबों को शुद्धताई दीजिए'' इति हिन्दी छन्दोरीत्या गातव्येयं गीतिः । Composed and translated by Janamejaya Vidyalankar Encoded and proofread by Nikhil Kancharlawar
% Text title            : Girvanagiro Gariyastvam Importance of Sanskrit saMskRita kA mahatva
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% itxtitle              : gIrvANagiro garIyastvam sArtham (janamejayaH vidyAla.nkAraH virachitam)
% engtitle              : gIrvANagiro garIyastvam with Hindi meaning
% Category              : misc, sanskritgeet
% Location              : doc_z_misc_general
% Sublocation           : misc
% Author                : Janamejaya Vidyalankar
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Transliterated by     : Nikhil Kancharlawar
% Proofread by          : Nikhil Kancharlawar, NA
% Translated by         : Janamejaya Vidyalankar 
% Indexextra            : (Scan, Hindi, he dayAmaya audio 1, 2)
% Latest update         : May 19, 2025
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