कन्याओं को संस्कृत शिक्षा
कन्याओं को भी अब हम सब संस्कृत खूब पढ़ावें,
भारतीय संस्कृति की घर-घर कीर्तिध्वजा फहरावें । ०
गार्गी-मैत्रेयी-आत्रेयी-सम विदुषी महिलायें,
हुईं यहीं जिनकी चर्चा से मुखरित सभी दिशायें,
शास्त्रनिपुण, संगीतविशारद, कला-कुशल, कवयित्री-
वनिताओं से कभी रही यह भूषित भव्य धरित्री,
उसी दृश्य को फिर हम अपने घर-घर में फैलावें,
कन्याओं को संस्कृत की हम विदुषी पुनः बनावें । १
किसी समय जल भरनेवाली भी दासी-वनितायें,
रचती थीं इस अमरभारती में सुललित कवितायें ।
कभी यहीं पर मालिन रमणी कविता मधुर सुनाती,
भोजराज की कविसंसद् में महिलायें भी आतीं ।
आज हमारी कन्यायें भी कवयित्री बन जावें,
संस्कृत का हम इतना उत्तम उनको ज्ञान करावें । २
अंग्रेजी शिक्षा जो पातीं स्कूलों में कन्यायें,
उनकी चर्चाओं से दुःखी सभी पिता-मातायें ।
आज दृश्य जो दीख रहा है घर-घर हृदय विदारण,
संस्कृत-शिक्षा ही उसका हो सकता है वारण,
कन्या संस्कृत विद्यालय भी अब हम लोग चलावें,
कम से कम प्रथमा की शिक्षा उन्हें अवश्य दिलावें । १
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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