पद्यमय आदर्श संस्कृतवाक्यानि
संस्कृत की सभाओं एवं शिक्षासंस्थाओं में पोस्टर के
रूप में लगाने योग्य तथा संस्कृत-सभाओं की
शोभायात्रा में उद्घोष वाक्य के रूप में कहने योग्य
दो-दो पंक्तियों के कुछ छोटे-छोटे पद्य -
संस्कृत-गौरव-गानम्
देश-जाति-उत्त्थानम् । १
देव-वाणी ही हमारे देश का सम्मान है,
देव-वाणी ही हमारे राष्ट्र का अभिमान है । २
संस्कृत भाषा वह गंगा की पावन निर्मल धारा,
जिसके स्पर्शमात्र से होता जीवन धन्य हमारा । ३
संस्कृत पढ़िये। आगे बढ़िये । ४
संस्कृत भाषा का अभ्यास ।
करता बौद्धिक-शक्ति-विकास । ५
जब घर-घर संस्कृत-प्रचार हो ।
तब सबका उत्तम विचार हो । ६
भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रभाषा है संस्कृत ।
भारतीय एकत्व-साधिका आशा संस्कृत । ७
भारतीय संस्कृति का संस्कृत मेरुदण्ड है ।
भारतीयता की रक्षा का गढ़ प्रचण्ड है । ८
संस्कृत है सब से आसान ।
दो दिन में बस इसका ज्ञान । ९
सुरभारती का अज्ञान ही सबसे बड़ा दौर्भाग्य है ।
सुरभारती-ज्ञान ही सबसे बड़ा सौभाग्य है । १०
संस्कृत हमारी भारती,
इसकी उतारें आरती । ११
जब तक ऋषिवाणी का फिर से घर-घर में संचार न होगा ।
तब तक भारत का निश्चित ही ऋषिऋण से उद्धार न होगा । १२
संस्कृत रक्षा । संस्कृति रक्षा । १३
संस्कृत भाषा पठनम् । देश जाति संगठनम् । १४
संस्कृत भाषा अति कठोर है ।
यह कहना अज्ञान घोर है । १५
अब भी तो संस्कृत शिक्षा पर ध्यान दीजिये ।
इसकी रक्षाहेतु आप कुछ काम कीजिये । १६
जिनको भारत और यहाँ की संस्कृत का है कुछ भी मान ।
उनको संस्कृत की रक्षा पर देना है आवश्यक ध्यान । १७
हिन्दी के विद्वान हमारे जब संस्कृति के ज्ञाता होंगे,
तभी वस्तुतः वे हिन्दी के भी सौभाग्य-विधाता होंगे । १८
भारतीय सब भाषाओं का तब तक ज्ञान अधूरा होगा,
पाठकगण को संकृत का भी जब तक ज्ञान न पूरा होगा । १९
संस्कृत की उन्नति में निश्चित भारत का उत्कर्ष,
संस्कृत की अवनति में निश्चित भारत का अपकर्ष । २०
मातायें, बहनें, कन्यायें भी अब संस्कृत पढ़ें प्रेम से,
कम से कम गीता का भी तो पाठ करें कुछ नित्य नेम से । २१
जीवन के अन्तिम क्षण में भी तो संस्कृत कुछ आप जान ले । २२
बिना संस्कृत पढ़े कोई नहीं विद्वान हो सकता ।
बिना इसके कहीं पर भी नहीं सम्मान हो सकता । २३
संस्कृत ग्रन्थों में जो अङ्कित जीवन के आदर्श,
उनसे ही निश्चित हो सकता मानव का उत्कर्ष । २४
जिसने किया न अच्छा अर्जित संस्कृत का है ज्ञान,
वह अपने को कह सकता क्या भाषा का विद्वान ? । २५
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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