संस्कृत अमरभाषा अथवा मृतभाषा?
संस्कृत को मृतभाषा कहना अपने ही मर जाना है,
अपने ही मुँह से अपने को महामूर्ख बतलाना है ।
उत्तर से दक्षिण तक अब भी होता है जिसका व्यवहार,
जिसमें ही जप-याग हमारा पूजा पाठ और संस्कार,
जिसमें ही हम लेते अब भी शब्दों का ऐच्छिक आदान,
जिसके उपदेशों से मिलती अव भी जीवन-शक्ति महान,
जो उत्साह अतुल साहस का अमर अनन्त खजाना है,
ऐसी भाषा को मृत कहना अपना मरण बताना है,
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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