संस्कृत एवं नैतिकता
संस्कृत भाषा ही मानव में पावन भाव जगाती,
इसके छाया-स्पर्श मात्र से नैतिकता आ जाती । ०
धर्मभाव से इसका सारा जीवन ओत-प्रोत,
इसकी स्वर-लहरी से निर्गत भक्ति-भाव का स्रोत,
इसकी शिल्प-कला में अङ्कित मानव का कल्याण,
पंचशील ही इसकी शिक्षाओं के पंच प्राण,
यह मनुष्यता के उच्चासन पर नर को बिठलाती,
संस्कृत भाषा ही मानव में पावन भाव जगाती । १
कामशास्त्र भी इसका इन्द्रिय-जय ही है सिखलाता,
अर्थशास्त्र भी नहीं पाप से अर्थार्जन बतलाता,
राजनीति में भी इसके हैं धर्मनीति का स्थान,
रण में भी नैतिक नियमों का होता है सम्मान,
महाकष्ट में भी पापों से यह बचना सिखलाती,
संस्कृत भाषा ही मानव में पावन भाव जगाती । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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