संस्कृत एवं राष्ट्रभक्ति को भावना
संस्कृत ही है राष्ट्र-भावना सच्ची जागृत करती
भारत के कण-कण में श्रद्धा-स्नेह भाव है भरती । ०
भूतल वन-गिरि-शैल-शिला में नद-नदियों के जल में
तरु-पल्लव-फल पुष्प लता में तुलसी-दूर्वादल में,
कीट-पतङ्ग तथा पशु-पक्षी सकल चराचर गण में,
इस आसेतु-हिमाचल भू के खण्ड-खण्ड अणु-अणु में,
यह पवित्र देवत्व भावना सबके मन में भरती,
संस्कृत ही राष्ट्रीय भावना सच्ची जागृत करती । १
जन्मभूमि को इसने ``स्वर्गादपि गरीयसी'' माना,
सबसे पहले इसने गाया राष्ट्रभक्ति का गाना,
प्रतिदिन प्रातः मातृभूमि का यह वन्दन सिखलाती,
इसकी रक्षा में मृतजन को सूर्यलोक पहुंचाती,
यहाँ जन्म के हेतु हृदय यह देवों का भी हरती
संस्कृत ही है राष्ट्र-भावना सच्ची जागृत करती । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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