संस्कृतज्ञानहीन हिन्दू?
हिन्दू होकर भी संस्कृत का जिसने कुछ भी ज्ञान न पाया,
उसने अपना, अपने कुल का भारत का भी नाम हँसाया । ०
जिसको अपने पूज्य पूर्वजों ऋषियों तक का ज्ञान नहीं है,
उनके अद्भुत त्याग-तपस्या का जिसको अभिमान नहीं है,
तिल भर भी आभास न पाया जिसने उनके दिव्य ज्ञान का,
दर्शन तक भी किया न जिसने उनकी कृतियों के निधान का,
वह निश्चय निर्लज्ज व्यक्ति है, कुलकलङ्क होकर वह आया
सब कुछ पढ़कर भी संस्कृत के बिना व्यर्थ ही जन्म गँवाया । १
किया मैक्समूलर ने वेदों के पढ़ने मैं जीवन-दान,
शोपेनहावर ने उपनिषदों से पाया सन्तोष महान,
शाकुन्तल पढ़कर गेटे ने वह आनन्द अलौकिक पाया,
शतशत अन्य विदेशी विद्वानों ने भी है लाभ उठाया,
फिर हिन्दू होकर भी जिसने संस्कृत का कुछ ज्ञान न पाया
उसने अपनी आर्य जाति का ऋषियों का भी नाम हँसाया । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
Proofread by Mandar Mali