संस्कृत की ही सारी भाषायें सन्तान
संस्कृत-माता की ही सारी भाषायें सन्तान हैं
संस्कृत से ही यह सब पातीं अब भी जीवनदान हैं । ०
सिन्धी हिन्दी या आसामी उड़िया या बङ्गाली हो,
गुजराती गुरुमुखी मराठी कश्मीरी गोरखाली हो,
दक्षिण की या तमिल तेलगू कन्नड या मलयाली हो,
अपभ्रंश या प्राकृत भाषा अर्द्धमागधी पाली हो,
संस्कृत से ही मिला सभी को गौरव आज महान् है,
इससे ही यह सारी पातीं अब भी जीवनदान हैं । १
संस्कृत से ही ये भाषायें अपना रूप सजाती हैं,
इसके आभरणों से ही ये निज सौन्दर्य बढ़ाती हैं,
अपनी अच्छी बात इसी की वाणी में कह पाती हैं,
इसके ही पङ्खों पर चढ़कर दूर-दूर उड़ जाती हैं,
संस्कृत ही इन भाषाओं की शोभा-शक्ति-निधान हैं,
संस्कृत से ही यह सव पातीं अब भी जीवनदान हैं । २
आज राष्ट्रभाषा के पद पर आसीना जो हिन्दी है,
संस्कृत से ही उसे मिली यह राजतिलक की बिन्दी है,
इसका ही अब भी बल पाकर वह उन्नति कर सकती है,
तभी देश की आवश्यकतायें पूरी कर सकती है,
संस्कृत से ही आज मिला यह हिन्दी को वरदान है,
संस्कृत से ही यह सब पातीं अब भी जीवनदान हैं । ३
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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