संस्कृत के बिना ज्ञान अपूर्ण
दुनिया भर की आप भले ही सब भाषायें जानें
किन्तु बिना संस्कृत के निज को अज्ञानी ही मानें । ०
हिन्दी या अंग्रेजी, उर्दू, फ्रेञ्च, जर्मनी भाषा,
सबमें आप निपुण हों मेरी यही परम अभिलाषा,
पर सबके पहले आवश्यक है संस्कृत का ज्ञान,
इसके बिना अधूरी शिक्षा और सुदुर्लभ मान,
अपनी इस विस्मृत सम्पद को अब से भी पहचानें,
इसके बिना आप अपने को अज्ञानी ही मानें । १
भारत का विद्वान न जाने वेदों का कुछ सार,
नहीं कण्ठ में जिनके संस्कृत-कविता-मुक्ताहार,
भारतीय दर्शन का जिनको मिला न कुछ आभास,
उनका देश-विदेशों में हो क्यों न भला उपहास ?
यह कलङ्क है बड़ा, आप अब आयें इसे मिटाने,
इससे रहना हीन नहीं है अच्छा, निश्चित मानें । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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