संस्कृत से डर क्यों?
संस्कृत को कुछ कठिन समझकर जो पढ़ने से डरते हैं,
वे फिर और कौन-सा भारी कठिन काम कर सकते हैं ?
फिर संस्कृत तो बहुत सरल है इसे कठिन बतलाना,
अपनी नासमझी है भारी या यह एक बहाना । १
जब यूरोप-निवासी संस्कृत के पण्डित हो जाते,
संस्कृत में पढ़ते-लिखते हैं, कविता भी कर पाते,
काबुल, कन्धाहार, अरब को जब संस्कृत आ जाती,
रूस कनाडा को जब संस्कृत कभी नहीं डेरवाती- । २
तो भारतवासी होकर फिर आप भला क्यों डरते ?
क्यों कठिनाई का कलंक हैं इसके शिर पर मढ़ते ?
नहीं कठिन यह, बहुत सरल है, बहुत शीघ्र है आती,
प्रेमी जन को देख दौड़कर आ जाती मुसकाती । ३
संस्कृत के जब शब्द हजारों प्रतिदिन बोले जाते,
अव्यय, संज्ञा, धातु, विशेषण सभी समझ में आते ।
तो भारतवासी को संस्कृत आने में क्या भय है,
बस-दो-तीन महीनों का ही काफी बहुत समय हैं । ४
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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