संस्कृत से ही अपनी पहचान
संस्कृत पढ़कर ही हम, भाई, अपने को पहचान सकेगें,
इसके द्वारा ही हम सचमुच अपना गौरव जान सकेगें । ०
कितना है प्राचीन हमारा विश्वविदित इतिहास महान,
कितनी है उत्कृष्ट सभ्यता संस्कृति और कला विज्ञान,
हिमगिरि से भी ऊँचा उज्ज्वल जीवन का कैसा आदर्श,
व्योम-समान विशाल हृदय का वह कैसा अनुपम उत्कर्ष,
संस्कृत की ही पुण्य पंक्तियों से हम यह सब जान सकेगें,
संस्कृत पढ़कर ही हम भाई अपने को पहचान सकेगें । १
कैसे हुए महान पुरुष हैं यहाँ एक से एक उदार,
ज्ञानी, बली, विजेता, धार्मिक, स्नेह भक्ति के सिन्धु अपार,
मेधावी, स्वाधीन-विचारक सत्य-पक्षपाती, प्रणवीर,
अतुल साहसी, अध्यवसायी, कष्ट-सहिष्णु महारण धीर,
ऐसे अपने पूज्य-पूर्वजों को हम कैसे जान सकेगें,
जब तक हम संस्कृत के चरणों का रजकण कुछ पा न सकेगें । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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