संस्कृतसेवा आवश्यक निवेदन भारत के शिक्षा विभाग से
भारत के शिक्षाविभाग में संस्कृत का है जैसा स्थान,
भारत की ही पूज्य भारती का वह है क्या समुचित मान ?
राज्यकोश में क्या संस्कृत का अब कुछ अंश नहीं अवशेष,
क्या इसमें कुछ धन देने से निर्धन हो जायेगा देश ? । १
संस्कृत के विद्वान नहीं है क्या कुछ खाते पीते,
क्या उनके परिवार नहीं हैं ? कैसे हैं वे जीते ।
कभी किसी मन्त्री ने आकर देखा है उनका संसार ?
जीर्ण सदन, अतिसीमित साधन, चिन्ताम्लानवदन परिवार ? । २
उनका तो बस दोष यही कि दुःख शान्ति से सहते हैं,
अहोरात्र पर इस भारत की निधि की रक्षा करते हैं ।
ऐसा कौन राष्ट्र का सेवक सच्चा होगा वीर महान,
जिनके अद्भुत त्याग-तपस्या का करते वैदेशिक गान । ३
उनकी ही दयनीय दशा यह क्या है गौरव की कुछ बात,
उनकी सेवा का प्रतिफल ही है क्या उन पर यह आघात ?
अरे आज भी तो कुछ उनके साथ चाहिये करना न्याय,
इस मानवता के युग में भी ऐसा यह भीषण अन्याय ? । ४
मत उनको अब आप दीजिये त्याग-तुष्टि की शिक्षा,
दया-दान की भी अब वे हैं नहीं माँगते भिक्षा
किन्तु राष्ट्र की सेवा में है यदि उनका भी कुछ अवदान,
तो उनके जीवन का भी तो करे राष्ट्र समुचित सम्मान । ५
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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