संस्कृत शिक्षा, क्या बेकार है?
संस्कृत को बेकार समझना बेसमझी है सबसे भारी,
यह तो प्राणों से भी बढ़कर दिव्य जीवनी-शक्ति हमारी ।
यद्यपि हुई बहुत यह वृद्धा फिर भी नवयुवती माता सी,
अब भी करती स्तन्यपान से लालन-पालन पुष्टि हमारी । १
हमें नये शब्दों की भी है जब जब आवश्यकता पड़ती,
लक्ष-लक्ष शब्दों को देकर यह साहाय्य हमारा करती ।
जब-जब शब्द विदेशी हमको अपनेपन से दूर भगाते,
शब्द इसी के आकर हममें अपने शुभ संस्कार जगाते । २
भारतीय सब भाषाओं को यदि हम शीघ्र सीखना चाहें,
यह साहाय्य हमारा करने स्वयं दौड़ फैलाती बाहें ।
भारत के इतिहास सभ्यता संस्कृति की जब चर्चा आती,
यही हमें उनके स्वरूप का परिचय भी वास्तव बतलाती । ३
रूप-रंग भाषा-भूषा के नानाविध भेदों से सारे,
जब प्रतीत होने लगते हैं छिन्न-भिन्न से प्रान्त हमारे ।
तब अपनी मधुमय वाणी से यह सबमें बन्धुत्व जगाती,
यही एकता के आसन पर सबको है लाकर बिठलाती । ४
जब गाण्डीव हमारे हाथों से कुछ कभी खिसक जाता है,
हृदय-गगन में जब विषाद का बादल कुछ घिर सा आता है ।
पांचजन्य लेकर यह पौरुष का पावन सन्देश सुनाती,
कर्म-योग का पाठ पढ़ाकर हमें युद्ध में विजय दिलाती । ५
जब नर को आकुल कर देतीं प्रिय-वियोग की करुण-कथायें,
और शोक नैराश्य-पराभव-असफलता की विषम व्यथायें ।
तब अमोघ मधुमय उपदेशों से यह क्लेश सकल हर लेती,
शत-शत सूक्ति-सुधा-सिंचन से म्लान हृदय हर्षित कर देती । ६
आज जगत में सत्य-अहिंसा की जो दी जाती है शिक्षा,
वह भी इसके ही निधि से हैं मिली हुई मानव को भिक्षा ।
विश्व-बन्धुता सर्वोदय का भी जो कुछ फैला प्रकाश है,
उपनिषदों के ब्रह्मवाद की कणिका का केवल विलास है । ७
भूत और अध्यात्म अलग जब एक दूसरे से हो जाते,
घोर मोहवश आपस में ही जब वे हैं बैरी बन जाते ।
यही बीच में पड़कर दोनों का सारा दुर्भाव मिटाती,
एक दूसरे का पूरक बन दोनों को रहना सिखलाती । ८
अर्थ काम की जब असीम लिप्सा-वश होकर भीषण दानव-
आत्मनाश के गहन गर्त में गिरने लग जाता है मानव,
यही धर्म के अवलम्बन से जीवन की रक्षा है करती,
जिनके कारण ही अब तक है टिकी हुई अम्बर में धरती । ९
कथा सत्यनारायण की है घर-घर में यह नित्य सुनाती,
शान्तिपाठ के मन्त्रों से यह विश्वशान्ति के भाव जगाती ।
सदा स्वस्तिवाचन से करती ऋद्धि-सिद्धि कल्याण हमारा,
नित्य पर्व-उत्सब से रखती यह आनन्दित जीवन सारा । १०
स्वामी दयानन्द को इसने ही जागृति का पाठ पढ़ाया,
तिलक और गांधी में इसकी गीता ने ही जोश बढ़ाया ।
आज विनोबा भी इसकी ही शिक्षा के सन्देश सुनाते-
और जवाहर-जयप्रकाश भी इसकी शिक्षा से बल पाते । ११
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह प्रकाश अद्भुत फैलाती,
एक-एक वाणी में हमको यह अजेय साहस दे जाती ।
ऐसी उपकारक भाषा को भी जो है बेकार बताता,
नहीं देश के हित से उसका और बुद्धि से कोई नाता । १२
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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