किंशुक नारद १.९०.६९( किंशुक द्वारा भूषण प्राप्ति का उल्लेख ), लिङ्ग १.४९.६२ ( किंशुक वन में सूर्य तथा रुद्रगण के वास का उल्लेख ), वायु ३८.२७-३२ ( वसुधारा और रत्न धारा पर्वतों के मध्य स्थित तीस योजन चौडे और सौ योजन लम्बे किंशुकवन में सूर्य मन्दिर की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.२३३.७१( किंशुकायन साधु द्वारा लबादन विप्र व शान्तेश्वर नृप आदि को हरि भक्ति विषयक उपदेश ) । kimshuka/ kinshuka
किंदम कथासरित् ४.१.२३ ( मृगरूपधारी किंदम मुनि की राजा के बाण से मृत्यु, किंदम द्वारा राजा को शाप ) ।
किंदेव भागवत ११.१४.६ ( किंदेव आदि द्वारा भृगु प्रभृति ब्रह्मर्षियों से वेदवाणी ग्रहण करने का उल्लेख ) ।
किङ्कण ब्रह्माण्ड २.३.७१.४ ( भजमान व बाह्यका के तीन पुत्रो में से एक ), भागवत ९.२४.७ ( किंकिण : भजमान - पुत्र, सात्वत वंश ) ।
किङ्कर वराह २०१( चित्रगुप्त के भूतादि किंकरों व मन्देहा राक्षसों के युद्ध का वर्णन ), वा.रामायण ५.४२.२४ ( रावण द्वारा प्रमदावन में हनुमान के निग्रह हेतु किंकर नामक राक्षसों का प्रेषण ), ५.४२.४२ ( हनुमान द्वारा किंकर राक्षसों का संहार ) । kimkara/ kinkara
किङ्किण पद्म ५.७०.२१(किङ्किणी पार्षद की दक्षिण में स्थिति?), भागवत ९.२४.७ ( भजमान - पुत्र, सात्वत वंश ), स्कन्द ७.४.१७.३७ ( किङ्किणीक : द्वारका के ईशान दिशा के द्वार पर स्थित द्वारपालों में से एक ) ।
किट स्कन्द ४.२.६१.२०६(अहं कोकावराहोस्मि किटीश्वरसमीपतः ।। तत्र मां पूजयन्मर्त्यो लभते चिंतितफलम् ।।)
कितव भविष्य ३.३.३१.४७ ( कितव दैत्य द्वारा मायावर्मा राजा की पुत्री सुनाम्ना की प्राप्ति, तारक, बलखानि व सुखखानि से युद्ध तथा सुखखानि द्वारा कितव के वध का वृत्तान्त ), भागवत ११.१६.३१( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के कितवों में छलग्रह ? होने का उल्लेख ), स्कन्द१.१.१८.५३ ( शिव पूजा से कितव को इन्द्र पद की प्राप्ति और बलि रूप में जन्म होने का वृत्तान्त ), महाभारत अनुशासन ४२.२५( विपुल द्वारा जुआ खेलते ६ पुरुषों का दर्शन ), कथासरित् १२.६.७६(कितव हेतु पवित्र व्यवहार का कथन), १२.६.२६३(कितव के वीर होने का कारण), १८.२.३३ (डाकिनेय नामक कितव के कूप में गिरने व कूप से उद्धार का वृत्तान्त ), १८.२.७२ ( ठिण्ठाकराल नामक कितव द्वारा देवताओं को छल कर उनसे धन प्राप्त करने का वृत्तान्त ; ठिण्ठाकराल द्वारा कलावती अप्सरा की प्राप्ति, इन्द्रसभा में कलावती का नृत्य देखने और कलावती को इन्द्र के शाप से मुक्त कराने का वृत्तान्त ), १८.२.१८८ ( कुट्टिनीकपट नामक कितव द्वारा स्थायी रूप से इन्द्रपदप्राप्ति का वृत्तान्त ) । kitava
किन्नर अग्नि ५१.१७ ( किन्नर मूर्तियों द्वारा हाथ में वीणा धारण करने का उल्लेख ), कूर्म १.२२.४४ ( पार्वती के किन्नरों की आराध्या देवी होने का उल्लेख ), पद्म २.१०९.२३( विद्वर नामक किन्नर का स्वरूप ), ब्रह्माण्ड १.२.२५.२८ ( शिव - पार्वती के अप्सराओं और किन्नरों से उपशोभित होने का उल्लेख ),२.३.७.१७६ ( क्रोधवशा की कन्या हरि से किन्नरों की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.३.८.७१ (पुलह की क्रोधवशा सन्ततियों में किन्नरों का उल्लेख ), भविष्य ३.३.३२.४४ (रूप देश - अधिपति मङ्कण नामक किन्नर के युद्धार्थ कुरुक्षेत्र गमन का उल्लेख ), ३.४.२४.६३, ६७ ( कलियुग के तृतीय चरण के आने पर किन्नरों का पृथ्वी पर क्षय को प्राप्त होना, भृङ्ग ऋषि की पत्नी सौरभी का किन्नर भक्षकों को जन्म देना, किन्नरों का वामन के अंश भोगसिंह व केलिसिंह की शरण में जाना ), भागवत ३.२०.४५ ( ब्रह्मा द्वारा आत्मा में आत्माभास द्वारा किन्नरों को उत्पन्न करने का कथन ), ४.६.९ ( किन्नरों के कैलास पर्वत पर निवास का उल्लेख ), ७.८.३८ ( हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात् किन्नर प्रभृति विष्णु पार्षदों के नृसिंह भगवान के समीप आगमन का उल्लेख ), ७.८.५५ ( किन्नरों द्वारा नृसिंह भगवान की स्तुति का कथन ), मत्स्य ६.४५ ( अरिष्टा व कश्यप - पुत्र ), लिङ्ग १.५०.१२ ( कुमुद पर्वत पर किन्नरों के वास का उल्लेख ), वराह ८१.२ ( महानील पर्वत पर किन्नरों के १५ हजार नगरों की स्थिति का उल्लेख ), वामन ९.२१ ( देवादिकों के वाहन वर्णन के प्रसंग में किन्नरों के सर्प वाहन का उल्लेख ), वायु ६९.३१ ( विक्रान्त से उत्पन्न अश्वमुख किन्नरों के नामों का कथन ), ६९.३४ ( विक्रान्त से उत्पन्न नरमुख किन्नरों के नामों का कथन ), ६९.२०८ ( क्रोधवशा की कन्या हरि से किन्नरों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ७०.६५ ( पुलह की सन्ततियों में किन्नरों का उल्लेख ), ९९.२८५ ( किंनर : सुनक्षत्र - पुत्र, अन्तरिक्ष - पिता, तुर्वसु वंश ), विष्णु ४.२२.४ ( सुनक्षत्र - पुत्र, अन्तरिक्ष - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), विष्णुधर्मोत्तर१.५६.२४ ( किन्नरों में कंबर की प्रधानता का उल्लेख ), ३.१८.१ ( किन्नरप्रिय : १५ गान्धार ग्रामों में से एक ), ३.४२.१३ ( नृवक्त्र व हय विग्रह नामक दो प्रकार के किन्नरों का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१३.१७१ ( किन्नरों द्वारा धातु लिङ्ग पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग ), ३.१.५.१३२ ( राजा उदयन का किन्नर नामक नाग के साथ पाताल में गमन तथा किन्नर नाग की भगिनी ललिता से विवाह ), ३.१.४९.७६ ( किन्नरों द्वारा रामेश्वर की स्तुति : भवव्याधि नाश की प्रार्थना), ५.१.६३.३३ (किन्नरोत्तम :बलि आदि द्वारा किन्नरोत्तम नारद की वन्दना ), ६.२५२.२२( चातुर्मास में किन्नरों की मरिच वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८४ ( वृक्ष रूप श्री हरि के दर्शनार्थ किन्नरों के मरिच वृक्ष बनने आदि का वर्णन ), २.१२४.८१( गन्धर्वों, किन्नरों आदि के लिए श्रौषट् व्याहृति के प्रयोग का उल्लेख ), २.२०१.१२ ( रायकिन्नर आदि नृपों द्वारा बालकृण्ण के स्वागत का वर्णन ) । kinnara
किन्नरी भविष्य ३.३.२९.११ ( मुनि - पुत्री, मकरन्द - भार्या, शिव के वरदान से स्वराष्ट्र मध्यदेश में निवास का उल्लेख ), ३.३.३१.१५७ ( कुबेर द्वारा मङ्कण की कन्या किन्नरी को वर्धन को देने का निर्देश )
किम लक्ष्मीनारायण २.७४.११( किम नदी तट पर स्थित कुशाम्बा नगरी में कौशिकाम्ब ऋषि द्वारा अन्त्यज के उद्धार का वर्णन ) ।
किम्पुन: स्कन्द ५.१.३१.५५ ( किम्पुन: तीर्थ में स्नान से विश्वावसु की ब्रह्महत्या से मुक्ति का उल्लेख ) ।
किम्पुरुष देवीभागवत ८.१०.१३ ( किम्पुरुष वर्ष में हनुमान द्वारा राम की स्तुति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.४५ ( आग्नीध्र के ९ पुत्रों में द्वितीय पुत्र ), १.२.१४.४८ (आग्नीध्र द्वारा हेमकूट नामक वर्ष किम्पुरुष को प्रदान करने का उल्लेख ), १.२.१७.२ ( किम्पुरुष वर्ष का वर्णन : निवासियों की प्रकृति तथा मधुवाही वृक्ष की स्थिति आदि ), १.२.३६.१९ ( स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक ), २.३.७.१७६ ( क्रोधवशा की कन्या हरि के पुत्रों में किम्पुरुषों का उल्लेख ), २.३.८.७१ ( पुलह के पुत्रों में किम्पुरुषों का उल्लेख ), २.३.४१.३० (भार्गव द्वारा शिव द्वार पर यक्षों, किंपुरुषों आदि के दर्शन का उल्लेख ), ३.४.३०.९ ( भण्डासुर वध के पश्चात् सिंहासनस्थ महेश्वरी की स्तुति हेतु आए हुए ब्रह्माण्ड निवासियों में किम्पुरुषों का उल्लेख ), ३.४.३३.२७ ( ललिता देवी के हीरक स्थल में किंपुरुषों के आगमन का उल्लेख ), भागवत ३.२०.४५ ( ब्रह्मा द्वारा आत्मा में आत्माभास द्वारा किम्पुरुषों को उत्पन्न करने का उल्लेख ), ४.६.३१ ( देवगणों द्वारा सौगन्धिक वन की शोभा का अवलोकन करते हुए वहां किम्पुरुषों की उपस्थिति का उल्लेख ), ५.२.१९,२३ ( आग्नीध्र व पूर्वचित्ति के नौ पुत्रों में से एक, प्रतिरूपा - पति ), ५.१६.९ ( हेमकूट पर्वत द्वारा किम्पुरुष वर्ष की सीमा निर्धारण का उल्लेख ), ५.१९.१ ( किम्पुरुष वर्ष में हनुमान द्वारा राम की स्तुति का कथन ), ७.८.३८ ( हिरण्यकशिपु के वधोपरान्त किम्पुरुष प्रभृति विष्णु - पार्षदों का नृसिंह भगवान के समीप आगमन का उल्लेख ), ७.८.५३ ( किम्पुरुषों द्वारा नृसिंह भगवान की स्तुति का कथन ), ११.२६.२९ ( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के किम्पुरुषों में हनुमान होने का उल्लेख ), मत्स्य १२.१० ( इक्ष्वाकु - कृत अश्वमेध यज्ञ का फल पार्वती परमेश्वर को समर्पित करने से राजा इल के किम्पुरुष /किन्नर होने का भविष्य कथन ), १२.१६ ( किम्पुरुष योनि में रहते हुए राजा इल की सुद्युम्न नाम से प्रसिद्धि तथा सुद्युम्न के उत्कल, गय व हरिताश्व नामक पुत्रों का उल्लेख ), ११३.२९ ( हिमवान् के पश्चात् हेमकूट तक के प्रदेश का किम्पुरुष वर्ष के रूप में उल्लेख ), ११४.६३ ( किम्पुरुष वर्ष का वर्णन : किम्पुरुष वर्ष में मधुमय प्लक्ष आदि की स्थिति ), १२१.४९ ( गङ्गा द्वारा किम्पुरुष प्रभृति आर्य देशों को पवित्र करने का उल्लेख ), महाभारत वन २७५.३३ (कुबेर का लङ्का त्याग कर गन्धर्व, यक्ष, किम्पुरुषों के साथ गन्धमादन पर्वत पर निवास करने का उल्लेख ), वामन ११.२० ( किम्पुरुषों के गान्धर्व विद्या, शिल्प आदि धर्मों का कथन ), वायु ३३.३८ ( अग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, स्वायंभुव वंश ), ३३.४१ ( अग्नीध्र द्वारा द्वितीय पुत्र किम्पुरुष को हेमकूट नामक वर्ष प्रदान करने का उल्लेख ), ३४.२८ ( जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारत आदि वर्षों में से एक ), ४६.४ ( किम्पुरुष वर्ष का वर्णन : निवासियों की प्रकृति, मधुवाही प्लक्ष की स्थिति आदि ), ४७.७१ ( किम्पुरुष आदि देशों में वृष्टि न होने का उल्लेख ), ७०.६५ ( पुलह की मृग, वानर प्रभृति सन्ततियों में किम्पुरुषों का उल्लेख ), विष्णु २.२.१३ (जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारत आदि वर्षों में से एक ), २.१.१६ ( आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, आग्नीध्र द्वारा किम्पुरुष को हेमकूट नामक वर्ष प्रदान करने का उल्लेख ), ३.१.१२ ( स्वारोचिष मनु के पुत्रों में किम्पुरुष का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.४९.७९ ( किम्पुरुषों द्वारा रामेश्वर की स्तुति : विभिन्न योनियों में जन्म - मरण के चक्र से मुक्ति की प्रार्थना ), वा.रामायण ७.८८.२२ ( बुध द्वारा इला की सहचरी स्त्रियों को किम्पुरुषी बनाने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१२४.८१( किम्पुरुष आदि के लिए श्रौषट् व्याहृति के प्रयोग का उल्लेख ), २.२९७.९६ ( द्यौ द्वारा किम्पुरुषीय पत्नियों के गृहों में संगीतमग्न कृष्ण के दर्शन का उल्लेख ) । kimpurusha
किरण स्कन्द ४.१.३३.१५५ ( किरणेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.५९.१०८ ( किरणा : मयूखादित्य के तपोजनित स्वेद से उत्पन्न किरणा नदी का माहात्म्य ), योगवासिष्ठ ६.१.६९.३३( सूर्य की त्विषि की प्राण व मन के संयोग से उपमा ) ।
किराट योगवासिष्ठ ६.१.८३.१६ ( किराट द्वारा कपर्दिका की खोज करते हुए चिन्तामणि की प्राप्ति का उपाख्यान ) ।
किरात नारद १.५६.७४१( किरात देश के कूर्म की बाहु रूप होने का उल्लेख ), पद्म ६.१५१.२३ ( किरात द्वारा धवलेश्वर शिव की विचित्र पूजा से मुख्य पार्षद बनने व नन्दी वैश्य का उद्धार करने का वृत्तान्त ), ६.२१३.८ ( किरात नगर में कुशल ब्राह्मण और उसकी कुलटा पत्नी का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड २.३.४८.४९ ( राजा सगर से परास्त होकर शक, यवन, किरात आदि का पर्वत कन्दरा में आश्रय लेने का उल्लेख ), ३.४.७.१३ ( वीरदत्त नामक किरात द्वारा वज्र नामक चोर से अपहृत धन का पुण्य कार्यों में नियोग करके स्वर्ग प्राप्ति का वृत्तान्त ), मत्स्य ११४.११-३५ ( भारत द्वीप की पूर्व दिशा में किरातों के निवास करने का उल्लेख ), ११४.३५ ( किरात प्रभृति देशों का मध्य देश के जनपद के रूप में उल्लेख ), महाभारत वन ३९.२ ( किरात - अर्जुन युद्ध में शंकर के ही किरात वेष में आने का उल्लेख ), द्रोण ११२.६२(सात्यकि द्वारा कैलातक मधु पान के प्रभाव का कथन), शिव १.२.१५ ( किरात नगर निवासी देवराज नामक दुष्ट ब्राह्मण की शिव कथा के श्रवण से मुक्ति का वृत्तान्त ), ५.१८.६ ( भारत के पूर्व में किरातों के वास का उल्लेख ), स्कन्द १.१.५.११८ ( किरात द्वारा शिव की विचित्र भक्ति से शिव पार्षद बनने और नन्दी वैश्य का उद्धार करने का वृत्तान्त ), ३.३.४.५ ( किरात देशस्थ विमर्दन राजा का वृत्तान्त ), ४.२.५५.८ ( किरातेश लिङ्ग का उल्लेख ), ४.२.६९.१५७ ( किरातेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य :गर्भवास से मुक्ति ), ५.३.२१८.२४ (जमदग्नि की धेनु के नासापुट के रोमों से किरातों की उत्पत्ति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.७६.१५+ ( किरात राज्य की समृद्धि, कर्कटी का भोजन हेतु किरात राज्य में आगमन ), लक्ष्मीनारायण १.१५५.४९ ( अलक्ष्मी के रूप की किराती से उपमा ), कथासरित् १२.३.१९ ( किरातराज शक्तिरक्षित के राजा मृगाङ्कदत्त के बालसखा होने का उल्लेख ) । kiraata
किरिचक्र ब्रह्माण्ड ३.४.२० ( ललिता देवी के किरिचक्र रथ के पांच पर्वों में देवताओं के न्यास का निरूपण ), ३.४.२८.१५ ( ललिता देवी की आज्ञा से मन्त्रिणी और दण्डनायक का किरिचक्र रथ पर आरूढ होकर युद्ध हेतु निर्गमन का उल्लेख ), ३.४.२९.३९ ( भण्डासुर से युद्ध हेतु प्रस्थित देवी के चक्रराज रथ के अग्रभाग में गेयचक्र तथा पृष्ठ भाग में किरिचक्र की स्थिति का उल्लेख ), ३.४.३६.१३ ( चक्रराज रथ, गेयचक्ररथ तथा किरिचक्र रथ की समान ज्ञेयता का उल्लेख ?) ।
किरीट नारद १.७०.२८ ( विष्णु के अलंकारों के न्यास के संदर्भ में किरीट का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१२.७ ( पूर्व में ब्रह्मा द्वारा हिरण्य को प्रदत्त सजीव , अविनाशी किरीट के भण्डासुर द्वारा धारण किये जाने का उल्लेख, किरीट की विशेषता का कथन ), ३.४.१५.२१ ( अग्नि द्वारा ललिता को किरीट भेंट करने का उल्लेख ), महाभारत कर्ण ९०.३२ ( अर्जुन व कर्ण के घोर युद्ध में कर्ण द्वारा चलाए हुए सर्पमुख बाण से अर्जुन के इन्द्र - प्रदत्त दिव्य किरीट के बलपूर्वक हरण का वर्णन ), शल्य ४५.७१ ( किरीटी : स्कन्द के अनेक सैनिकों में से एक ), वामन ५७.७३ ( किरीटी : यक्षों द्वारा कार्तिकेय को किरीटी गण प्रदान करने का उल्लेख ), विष्णु ४.१५.१३ ( विष्णु के किरीट, केयूर आदि से शोभित होने का उल्लेख ), ५.२०.८६ ( कृष्ण द्वारा केश खींचने से कंस के किरीट के पृथ्वीतल पर गिर जाने का उल्लेख ), हरिवंश २.४१.३९ ( ग्राह रूप धारी दैत्य द्वारा विष्णु के किरीट के हरण और गरुड द्वारा उसकी पुन: प्राप्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.२२५.९१ ( श्रीहरि द्वारा सर्व अवतारों हेतु किरीट दान का उल्लेख ), ३.११२.१०२ ( ब्रह्मसती योगिनी द्वारा किरीट नामक योगी से प्रायश्चित्त की पृच्छा व किरीट का पति व गुरु रूप में वरण ), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद १७( कूटस्थ स्वरूप किरीट- कूटस्थं सत्त्वरूपं च किरीटं प्रवदन्ति माम् ) । kireeta/ kirita
किर्मीर ब्रह्माण्ड १.२.२०.३७ ( पांचवें तल में रहने वाले किर्मीर नाग का उल्लेख ), महाभारत वन ११( बक नामक राक्षस का भ्राता, वनवास के समय पाण्डवों का नरघाती राक्षसों से परिपूर्ण काम्यक वन में आगमन, किर्मीर राक्षस द्वारा रास्ता रोकना, भीम का किर्मीर से मल्लयुद्ध तथा किर्मीर वध का वृत्तान्त ) ।
किलकिला भविष्य ३.४.२३.४ ( पुण्डरीक नाग द्वारा निर्मित और नागवंश द्वारा शासित किलकिला नगरी का उल्लेख ), भागवत १२.१.३२ ( किलिकिला नगरी का भूतनन्द आदि राजाओं की राजधानी के रूप में उल्लेख ) ।
किलात महाभारत द्रोण ११२.६२( सात्यकि द्वारा कैलातक मधु पान के प्रभाव का कथन ), द्र. किरात
किशोर गरुड ३.९.३(१५ अजान देवों में से एक), देवीभागवत ४.२२.४५ ( किशोर नामकर दैत्य के मुष्टिक नामक मल्ल के रूप में अंशावतरण का उल्लेख ), पद्म ५.७०.५७( चूडामणि मन्त्र के सब कैशोर मन्त्रों का हेतु होने का कथन ), ५.७७.५२( कृष्ण के संदर्भ में बाल्य, पौगण्ड, किशोर व युवावस्था का निरूपण ), मत्स्य १७३.२१,१७७.७ ( तारकासुर सेनानियों में किशोर का उल्लेख ), हरिवंश १.५४.७६ ( किशोर नामक दानव के मुष्टिक नाम से उत्पन्न होने तथा कंस के अखाडे का प्रमुख मल्ल बनने का उल्लेख ) । kishora
किष्किण्डी वायु ४४.१३ ( केतुमाल के विविध देशों में किष्किण्डी का उल्लेख) ।
किष्किन्धा अग्नि ३०५.७ ( किष्किन्धा में विष्णु के रैवतक देव के नाम से विराजित होने का उल्लेख ), देवीभागवत ७.३०.७६ (देवी पीठ वर्णन के अन्तर्गत किष्किन्धा पर्वत पर तारा देवी के वास का उल्लेख ), पद्म १.३८.३४ ( विभीषण को शिक्षा देने हेतु लङ्का की ओर गमन करते हुए राम द्वारा भरत को वालि पालित किष्किन्धा को दिखलाने का उल्लेख ), ब्रह्म २.८७ ( किष्किन्धा तीर्थ का वर्णन : रावण वध के पश्चात् राम का किष्किन्धा वासी वानरों तथा विभीषण आदि के साथ गौतमी गंगा के तट पर निवास, लिङ्गों की पूजा, लिङ्गों के निश्चल हो जाने से विसर्जन में असमर्थता, राम द्वारा पुन: लिङ्गों का पूजन कर किष्किन्धा तीर्थ का निर्माण, तीर्थ में स्नान से महापापों का नाश ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.६४ ( किष्किंधक : विन्ध्य का एक जनपद ), २.३.७.२४७ ( किष्किन्धा वासी वानरराज वालि के चरित्र का वर्णन ), मत्स्य १३.४६ ( किष्किन्धा पर्वत पर सती देवी की तारा नाम से स्थिति का उल्लेख ), ११४.५३ ( किष्किन्धक : विन्ध्य पर्वत की उपत्यका में स्थित प्रदेशों में किष्किन्धक का उल्लेख ), वामन ९०.१७ ( किष्किन्धा में विष्णु का वनमाली नाम से वास ), वायु ४५.१३२ ( किष्किन्धक : विन्ध्याचल के पृष्ठ देश में अवस्थित देशों में एक ), ५४.११६ ( किष्किन्ध गुहा : पुण्य कथा का निवेदन कर शिव का उमा के साथ किष्किन्ध गुहा में चले जाने का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१९८.८४ ( किष्किन्धा पर्वत पर उमा की तारा नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.१००.५७ ( राम का पुष्पक विमान से किष्किन्धा नगरी में गमन, वानरों द्वारा अर्घ्य आदि से राम के सत्कार का उल्लेख ) । kishkindhaa
किष्किन्धा किं किं दधाति इति । न जाने इसमें क्या - क्या भरा पडा है । हमारा यह व्यक्तित्व । - फतहसिंह
कीकट गरुड १.८२.५ ( कीकट देश में गयासुर का शयन, विष्णु द्वारा गदा से प्रहार का उल्लेख ), देवीभागवत ११.६.२१( कीकट में गर्दभ द्वारा रुद्राक्ष ढोने से शिव लोक प्राप्ति का कथन ), पद्म १.११.६४( कीकट देश में पुण्य स्थानों के नाम, गया नामक पुण्या नगरी की स्थिति का उल्लेख ), भागवत १.३.२४ ( कलियुग आ जाने पर कीकट / मगध देश में अजन के पुत्र रूप में भगवान के बुद्धावतार होने का उल्लेख ), ५.४.१० ( ऋषभ व जयन्ती के सौ पुत्रों में से एक ), ६.६.६ ( संकट - पुत्र, धर्म व ककुभ् - पौत्र, पृथ्वी के सम्पूर्ण दुर्गों के अभिमानी देवता का पिता ), ७.१०.१९ ( ईश भक्त, प्रशान्त, समदर्शी और सदाचारी होने पर कीकटों के भी पवित्र हो जाने का उल्लेख ), ११.२१.८ ( कीकट देश के असंस्कृत / अपवित्र होने का उल्लेख ), वायु १०८.७३ (कीकट /मगध प्रदेश में गया नगरी के पुण्या होने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.९८.७६ ( महानन्द विप्र का कीकट देश में कुक्कुट बनने का वृत्तान्त ), ५.१.५ ( कीकट देश निवासी दमन नामक दुष्ट राजा के शरीर मांस के शिप्रा जल में गिरने से दमन को शिवत्व प्राप्ति का वृत्तान्त ) । keekata/kikata
कीकसा ब्रह्माण्ड ३.४.२४.६ ( भण्डासुर के बलाहक प्रभृति सप्त सेनानियों की माता ), ३.४.२४.११ ( भण्डासुर द्वारा कीकसा - पुत्रों के ललिता देवी से युद्धार्थ प्रेषण का उल्लेख ) ।
कीचक गरुड ३.१२.९५(बाणासुर का कीचक से तादात्म्य), महाभारत विराट दाक्षिणात्य पृष्ठ १८९३(केकय व मालवी से उत्पन्न पुत्रों की कीचक संज्ञा, कालेय दैत्यों के अंश), स्कन्द २.१.५.५० ( नारायणपुरी के वाटिका वृक्षों में कीचक वृक्ष का उल्लेख ), कथासरित् ८.३.९८ ( कीचकवेणु : सुमेरु द्वारा कीचकवेणु / बांस के दिव्य वन से बांसों को काटकर सरोवर में फेंकने पर दिव्य धनुषों की उत्पत्ति का उल्लेख ) । keechaka/ kichaka
कीट पद्म १.१५.२१ ( ब्रह्मभक्त की वृत्ति के वर्णन के अन्तर्गत ब्रह्मभक्त के कीट, कण्टक, पाषाण युक्त भूमि पर शयन का उल्लेख ), ३.३१.१४३ ( शालग्राम के समीप मरने पर कीट को भी वैकुण्ठ प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३३.१९ ( अविमुक्त क्षेत्र में मृत्यु प्राप्त होने पर कीटों को भी परम गति की प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४२३ ( तिर्या से कीट, कृमि आदि की उत्पत्ति का उल्लेख ), मार्कण्डेय १५.३१ ( काष्ठ हरण पर घुणकीट योनि की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४६.११८ ( धर्मजालिक विप्र द्वारा कीटयोनि की प्राप्ति व कीट का व्यास मुनि से समागम होने पर ब्राह्मण योनि प्राप्ति का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.९३ ( नरक में वज्रकीट कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), ३.८१.२७ ( जीवट कीट का लोमश ऋषि की कृपा से पहले राजा रूप में तथा पश्चात् विप्र रूप में जन्म ग्रहण कर मोक्षपद प्राप्ति का वृत्तान्त ) । keeta/ kita
कीर पद्म २.१२३.२० ( च्यवन ऋषि के पूछने पर कुञ्जल द्वारा कीर योनि प्राप्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१२२.२६ ( श्रीहरि का कीरगर्जन राजा के देश में गमन, प्रजा द्वारा श्री हरि के सत्कार का उल्लेख ) । द्र. शुक keera
कीर्तन पद्म ५.११४ , ६.२२४.२५ ( संसार बन्धन से मुक्ति हेतु १६ प्रकार की भक्ति में कीर्तन का उल्लेख ), ६.२२९.१५४ ( प्रभु प्राप्ति हेतु नाम कीर्तन का उल्लेख ), स्कन्द २.५.१५.४७ ( कृष्ण कीर्तन के माहात्म्य का वर्णन : कृष्ण कीर्तन से समस्त पापों से मुक्ति तथा उत्तम गति की प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण ३.१४१.९ ( श्रीकृष्ण के नाम कीर्तन से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख ) । keertana/ kirtana
कीर्ति अग्नि २७४.५ ( जयन्त की पत्नी कीर्ति का जयन्त को छोडकर सोम की सेवा में संलग्न होने का उल्लेख ), गणेश २.३२.१३ ( प्रियव्रत - भार्या, सपत्ना द्वारा अपमान पर गणेश की आराधना ), २.३३ ( कीर्ति द्वारा दूर्वाङ्कुर के अभाव में शमीपत्र द्वारा गणेश की पूजा , वर प्राप्ति ), २.४८.२६ ( गृत्समद के उपदेश से कीर्ति द्वारा काशी में जाकर ढुण्ढि गणेश की आराधना , ढुण्ढि गणेश से वर प्राप्ति - ढुण्ढेरायतनं याता नानानारीनरैर्युतम् । महोत्सवं प्रकुर्वद्भिर्दृष्ट्वा कीर्तिर्ननाम तम् ॥ ), गर्ग १.३.४१ ( सुचन्द्र तथा कलावती का ही जन्मान्तर में वृषभानु व कीर्ति के रूप में उत्पन्न होना तथा वृषभानु व कीर्ति के घर में श्रीराधिका जी के प्राकट्य का उल्लेख ), १.८.२७ ( कलावती व सुचन्द्र के कीर्ति व वृषभानु रूप में जन्म का कथन, भलन्दन के यज्ञकुण्ड से उत्पत्ति - कलावती कान्यकुब्जे भलन्दननृपस्य च । जातिस्मरा ह्यभूद्दिव्या यज्ञकुण्डसमुद्भवा ॥ ), देवीभागवत १.१९.४२ ( शुक व पीवरी - कन्या, अणुह - भार्या, ब्रह्मदत्त - माता ), ९.१.१०८ ( सुकर्म की पत्नी कीर्ति के अभाव में सम्पूर्ण जगत् के यशहीन होने का उल्लेख - सुकर्मपत्नी संसिद्धा कीर्तिर्धन्यैश्च पूजिता ॥ यया विना जगत्सर्वं यशोहीनं मृतं यथा । ), नारद १.६६.८६( केशव मातृका की शक्ति कीर्ति का उल्लेख ), पद्म १.२०.६९ ( कीर्तिव्रत का संक्षिप्त माहात्म्य : कीर्तिव्रत से भूति - कीर्ति रूप फल की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५० ( दक्ष व प्रसूति - कन्या, धर्म की १३ पत्नियों में से एक), १.२.९.६२( यश – माता), १.२.१३.८० (विष्णु की शक्ति कीर्ति का उल्लेख ), १.२.२६.४५ ( कीर्ति आदि देवियों के शिव से उत्पन्न होने का उल्लेख ), २.३.६५.२६ ( चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में चन्द्रमा की सेवा करने वाली नौ देवियों में कीर्ति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.११४ ( प्रकृति की कलाओं के अन्तर्गत कीर्ति का सुकर्म की पत्नी के रूप में निरूपण ), २.१६.७१ ( सृष्टा द्वारा सृष्ट उत्तम स्त्री रूपों में कीर्ति का उल्लेख ), भागवत ६.१८.८ ( उरुक्रम/वामन - पत्नी तथा बृहच्छ्लोक - माता के रूप में कीर्ति का उल्लेख ), मत्स्य २३.२५ ( जयन्त - पत्नी कीर्ति का चन्द्रमा की सेवा में नियुक्त होने का उल्लेख ), १०१.२४ ( कीर्तिव्रत : कीर्तिव्रत का संक्षिप्त माहात्म्य ), २६२.१७( मण्डला रूपा पीठिका का फल : कीर्ति -- गोप्रदा च भवेद्यक्षी वेदी संपत् प्रदा भवेत्। मण्डलायां भवेत्कीर्तिर्वरदा पूर्णचन्द्रिका ।। ), वायु ३०.७३(विष्णु की शक्ति कीर्ति का उल्लेख ), ५५.४३ ( शिव की स्तुति करते हुए ब्रह्मा व विष्णु द्वारा कीर्ति के शिव से उत्पन्न होने का उल्लेख ), ७०.३३( बृहत्कीर्ति : बृहस्पति - पुत्र बृहत्कीर्ति की कन्या देववर्णिनी का संदर्भ ), ९०.२५ ( चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में चन्द्रमा की सेवा करने वाली नौ देवियों में कीर्ति का उल्लेख ), ९४.५ ( धर्मतन्त्र - पुत्र, संज्ञेय - पिता, यदु वंश ), विष्णु १.७.२३ ( दक्ष व प्रसूति की २४ कन्याओं में से एक, धर्म द्वारा पत्नी रूप में ग्रहण करने का उल्लेख ), १.७.३१ ( धर्म व कीर्ति से यश रूप पुत्र की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.१९.४४ ( शुक - कन्या, अणुह - पत्नी, ब्रह्मदत्त - माता ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२६० ( कीर्ति की प्रशंसा करते हुए कीर्तियुक्त पुरुष के स्वर्ग में निवास करने तथा अकीर्ति - युक्त पुरुष के नरक गमन का कथन ), स्कन्द १.२.७.१६ ( ब्रह्मा द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न को कीर्ति नाश हो जाने पर पुन: पृथ्वीतल पर जाने के आदेश- तव कीर्तिसमुच्छेदः सांप्रतं वसुधातले॥ संजातश्चिरकालेन गत्वा तां कुरु नूतनाम्॥), २.५.१५.२ (सहमास में कीर्तियुक्त केशव की पूजा का निर्देश), ६.२७१.२९( पृथिवी से राजा इन्द्रद्युम्न की कीर्ति का समुच्छेद होने पर राजा का ब्रह्मलोक से पृथिवी पर पतन - तव कीर्तिसमुच्छेदः संजातोऽद्य धरातले॥ यावत्कीर्तिर्धरापृष्ठे तावत्स्वर्गे वसेन्नरः॥ ), लक्ष्मीनारायण १.२८३.३७ ( कीर्ति के धनों में अनन्यतम होने का उल्लेख ), ३.२५.४ ( कीर्ति आदि ५ विप्रों द्वारा प्रसविष्णु असुर को लक्ष्मी व कामादि प्रदान करने का वृत्तान्त, भविष्य के ५ इन्द्रों में से एक ), ४.४४.६२ ( कीर्ति को सौम्य बन्धन बताते हुए उस बन्धन के त्याग से श्रीहरि के तुष्ट होने का उल्लेख ); द्र. धर्मकीर्ति, श्रुतकीर्ति, सोमकीर्ति । keerti/ kirti
कीर्तिमती ब्रह्माण्ड २.३.८.९४ ( शुक व पीवरी - कन्या, ब्रह्मदत्त - माता, अणुह - पत्नी ), २.३.१०.८२ ( वही), मत्स्य १३.२९ ( एकाम्रक/एकाम्भक तीर्थ में सती देवी के कीर्तिमती नाम से वास करने का उल्लेख ), वायु ७०.८६ ( शुक व पीवरी - कन्या, ब्रह्मदत्त - माता, सात्त्वगुह - पत्नी ), ७३.३० ( शुक व पीवरी - कन्या, अणुह - पत्नी, ब्रह्मदत्त - माता ), स्कन्द ५.३.१९८.६७ ( एकाम्रक तीर्थ में उमा की कीर्तिमती नाम से स्थिति का उल्लेख ), कथासरित् ८.१.१९ ( राजा चन्द्रप्रभ - पत्नी, सूर्यप्रभ - माता ) । keertimati/ kirtimati
कीर्तिमान् ब्रह्माण्ड १.२.११.१८,२० ( स्मृति व अङ्गिरस - पुत्र, धेनुका - पति, चरिष्णु व धृतिमान् - पिता ), १.२.३६.८९ ( उत्तानपाद व सूनृता के ४ पुत्रों में से एक ), २.३.७१.१७० ( शठ - पुत्र, वसुदेव व रोहिणी - पौत्र ), २.३.७१.१७४ ( वसुदेव व देवकी - पुत्र ), भागवत ९.२४.५४ ( वसुदेव व देवकी के अष्ट पुत्रों में प्रथम ), १०.१.५७ ( वसुदेव द्वारा प्रथम पुत्र कीर्तिमान् को कंस को अर्पित करने का उल्लेख ), मत्स्य ४.३५ ( उत्तानपाद व सूनृता के चार पुत्रों में से एक ), ४६.१३ ( वसुदेव व देवकी - पुत्र, कंस द्वारा वध का उल्लेख ), वायु २८.१५,१७ ( अङ्गिरा व स्मृति - पुत्र, धेनुका - पति, वरिष्ठ व धृतिमान् - पिता ), ६२.७६ ( उत्तानपाद व सूनृता के चार पुत्रों में से एक ), ९६.१६८ ( वसुदेव व रोहिणी - पौत्र ), ९६.१७२ ( वसुदेव व देवकी - पुत्र ), विष्णु ४.१५.२६ ( वसुदेव व देवकी के ६ पुत्रों में से एक, कंस द्वारा वध का उल्लेख ), स्कन्द २.७.११.१३ ( नृग - पुत्र कीर्तिमान् के प्रश्न करने पर वसिष्ठ द्वारा वैशाख धर्म के माहात्म्य का वर्णन ) । keertimaan/ kirtiman
कीर्तिमाला भविष्य ४.११.३ ( शत्रुघ्न - पत्नी, कीर्तिमाला - कृत कोकिला व्रत द्वारा सौभाग्य प्राप्ति का कथन ) ।
कीर्तिमालिनी शिव ३.४.४६ ( भद्रायु - पत्नी ), ३.२७.५ ( चन्द्रांगद व सीमन्तिनी - कन्या, भद्रायु - पत्नी ), ३.२७.६३ ( कीर्तिमालिनी द्वारा स्वपिता चन्द्रांगद व माता सीमन्तिनी हेतु शिव सन्निधि रूप वर याचना का उल्लेख ), स्कन्द ३.३.१३.६४ ( चित्रांगद व सीमन्तिनी - कन्या, भद्रायु से विवाह का उल्लेख ) ।
कीर्तिमुख पद्म ६.१०.३७ ( शिव के जटाजूट से नि:सृत कीर्तिमुख नामक भयंकर गण के साहस और भक्ति से प्रसन्न होकर शिव द्वारा कीर्तिमुख को अपने प्रासाद में रखने का उल्लेख ), ६.९९.३१( शिव के भ्रूमध्य से नि:सृत भयंकर पुरुष द्वारा स्वांगों का भक्षण कर शिर मात्र शेष रह जाने पर प्रसन्न शिव द्वारा पुरुष को कीर्तिमुख नाम देकर द्वाररक्षक नियुक्त करने का कथन ), स्कन्द २.४.१७.३० ( जलन्धर द्वारा प्रेषित दूत के वाक्य सुनकर क्रुद्ध शिव के भ्रूमध्य से उत्पन्न पुरुष को शिव द्वारा कीर्तिमुख नाम से द्वाररक्षक गण नियुक्त करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३२७.३७ ( शिव की क्रोधाग्नि से उत्पन्न भयंकर गण की आज्ञापालनता से प्रसन्न होकर शिव द्वारा गण को कीर्तिमुख नाम देकर सदैव शिवगृह के द्वार पर स्थित होने तथा पूजनीय होने का कथन ) । keertimukha/ kirtimukha
कीर्तिमुखोपरि डा. कल्याणरमणस्य लेखः
कीर्तिरथ ब्रह्माण्ड २.३.६४.११ ( प्रतिम्बक - पुत्र, देवमीढ पिता, निमि वंश ), वायु ८९.११ ( प्रतित्वक - पुत्र, देवमीढ - पिता , निमि वंश ) ।
कीर्तिरात ब्रह्माण्ड २.३.६४.१३ ( महाधृति - पुत्र, महारोम - पिता, निमि वंश ), वायु ८९.१३ ( कीर्तिराज : वही) ।
कीर्तिवर्मा कथासरित् १८.२.२७८ ( राजा विक्रमादित्य के दण्डाधिकारी द्वारा राजा कीर्तिवर्मा को कुवलयमाला नामक घोडी प्रदान करने का उल्लेख) ।
कीर्तिसेन कथासरित् १.६.१३ ( नागराज वासुकि के भ्राता - पुत्र कीर्तिसेन का श्रुतार्था को गान्धर्व विवाह द्वारा भार्या बनाने का उल्लेख ) ।
कीर्तिसेना कथासरित् ६.३.७० ( धनपालित नामक वणिक् द्वारा स्वपुत्री कीर्तिसेना को देवसेन को प्रदान करने का उल्लेख ) ।
कीर्तिसोम कथासरित् १०.५.३०० ( यज्ञसोम - अनुज कीर्तिसोम द्वारा स्वधन के वर्धन का उल्लेख ) ।
कील पद्म ७.२३.१५७ ( नरक में पापी के कीलों और पाद के आघातों से ताडित होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.२८.११ ( बाण के त्रिपुर नाश हेतु शिव के रथ में कुबेर के अग्रकील बनने का उल्लेख ) ।
कीलक भविष्य ३.४.२२.३२ ( मुकुन्द नामक ब्रह्मचारी के बीस शिष्यों में से एक मधुव्रती के अगले जन्म में कीलक नाम से उत्पन्न होने तथा रामानन्द मत में स्थित होने का उल्लेख ) ।
कीश लक्ष्मीनारायण ३.१८४.५५ ( कीशभिक्षुक : कीशभिक्षुक द्वारा पालित वानर का पादभंग करने से जन्मान्तर में वृक्ण बनने का वृत्तान्त ), ३.२२७ ( कीशपालक देश्यावन नामक योगी की सुधाऽमर नामक साधु के उपदेश से मोक्ष प्राप्ति की कथा ), ३.१०७.२ ( कीशादन : कीशादन पुर में देवानीक राजा पर श्री चिह्न योगी की कृपा का वृत्तान्त ) ।
कु अग्नि ३४८.४ ( कुत्सित अर्थ में कु एकाक्षर के प्रयोग का उल्लेख ) ।
कुकर्दम पद्म ६.१३९.९ ( कुकर्दम नामक राजा को पापकर्मों के फलस्वरूप प्रेत योनि की प्राप्ति, कहोड विप्र द्वारा निर्दिष्ट अग्निपालेश्वर तीर्थ में स्नान, दान से मुक्ति प्राप्ति का वृत्तान्त ) ।
कुकर्म पद्म ६.६२.१२ ( शिवशर्मा ब्राह्मण के कनिष्ठ पुत्र जयशर्मा का कुकर्म के प्रभाव से दोषयुक्त उत्पन्न होना, पिता द्वारा त्याग, कमला एकादशी व्रत के प्रभाव से जयशर्मा के पापमुक्त होने का कथन ) ।
कुकुपाद ब्रह्माण्ड १.२.२०.२३ ( द्वितीय पाण्डुभौमतल में कुकुपाद राक्षस के पुर का उल्लेख ), वायु ५०.२२ ( द्वितीय पाण्डुभौमतल में कुकुपाद राक्षस के पुर का उल्लेख ) ।
कुकुर पद्म १.१३.४५ ( भोज - पुत्र, वृष्टि - पिता, वृष्णि वंश ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.११६ ( सत्यक व काशि दुहिता के चार पुत्रों में से एक, वृष्णि - पिता ), भागवत ९.२४.१९ ( अन्धक के चार पुत्रों में से एक, वह्नि - पिता, वृष्णि वंश ), मत्स्य ४४.६१ ( बभ्रु व कंककन्या के चार पुत्रों में से एक, वृष्णि - पिता, क्रोष्टु वंश ), २४५.३२ ( बलि के अनुगामी दैत्यों में से एक ), वायु ९६.१३४ ( उग्रसेन के कुकुरवंशीय राजा होने का उल्लेख ), विष्णु ४.१४.१२ ( अन्धक के ४ पुत्रों में से एक, धृष्ट - पिता ), शिव ५.३२.२४ ( हिरण्याक्ष के पांच पुत्रों में से एक ) । kukura
कुकुरान्धक ब्रह्माण्ड २.३.७१.९० ( अनावृष्टि से राष्ट्र विनाश उपस्थित होने पर कुकुरों तथा अन्धकों द्वारा अक्रूर को प्रसन्न करने का उल्लेख ), वायु ९६.८९ ( वही) ।
कुक्कुट गरुड १.१९.१९ ( विष हरण में कुक्कुट विग्रह रूप मन्त्र उपाय का कथन ), नारद २.४९.५० ( काशी के अन्तर्गत रुचिर नामक स्थान पर कुक्कुट शब्द श्रवण से शिवलिङ्ग का परित्याग कर राक्षसों के पलायन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४५५( भासी के पुत्रों में कुक्कुटों का उल्लेख ), २.३.१०.४७ ( विष्णु द्वारा स्कन्द को मयूर व कुक्कुट प्रदान करने का उल्लेख ), २.३.१२.३४ ( सुकुमारता प्राप्ति हेतु कुक्कुटों को पिण्ड दान का निर्देश ), २.३.१४.४८ ( कुक्कुट के दर्शन से श्राद्ध के नष्ट हो जाने का उल्लेख ), २.३.१९.४४ ( कुक्कुट द्वारा पंखों के फडफडाने से श्राद्ध फल को नष्ट करने का उल्लेख ), ३.४.२.१६५ ( कुक्कुट बंधक के पण्यवह नरक में जाने का उल्लेख ), ३.४.२४.५० ( भण्डासुर - सेनानी विकाटनन के कुक्कुट वाहन पर आरूढ होकर युद्ध में प्रस्थित होने का उल्लेख ), भागवत १०.७०.१ ( प्रात:काल होने तथा कुक्कुटों के कूजन पर कृष्ण विरह की आशंका से कृष्ण - पत्नियों द्वारा कुक्कुटों को कोसने का उल्लेख ), मत्स्य १५९.१० ( त्वष्टा द्वारा स्कन्द को स्वेच्छानुसार रूप धारण करने वाले कुक्कुट को प्रदान करने का उल्लेख ), २३७.५ ( प्रदोष काल में कुक्कुट के बांग देने पर भय के आगमन का उल्लेख ), २६०.५० ( स्कन्द की दो भुजाओं की मूर्तियों के निर्माण में दाएं हाथ के कुक्कुट पर न्यस्त रहने का उल्लेख ), महाभारत अनुशासन ८४.४८ ( कुक्कुट तथा वराह के राक्षस अंश होने का उल्लेख ), वायु ७२.४६/२.११.४६( वायु द्वारा स्कन्द को मयूर, कुक्कुट व पताका भेंट करने का उल्लेख ), १०१.१६३ ( कुक्कुट घातक को पण्यवह नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ३.३.२०.३८ ( वेश्या द्वारा पालित कुक्कुट व मर्कट को रुद्राक्ष से विभूषित करने का उल्लेख ), ३.३.२०.८७ ( रुद्राक्ष प्रभाव से कुक्कुट का जन्मान्तर में अमात्य - पुत्र तारक होने का उल्लेख ), ४.२.५३.५९ ( कुक्कुटेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : गर्भवास से मुक्ति ), ४२.९८.३८ ( कुक्कुट मण्डप : द्वापर में कैवल्य मण्डप का कुक्कुट मण्डप नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), ४.२.९८.७६ ( चाण्डाल से प्रतिग्रह प्राप्ति के कारण महानन्द विप्र का कीकट देश में कुक्कुट बनने का उल्लेख ), ५.१.३४.७१ ( समुद्र द्वारा स्कन्द को कुक्कुट प्रदान करने का उल्लेख ), ५.२.२१( कुक्कुटेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : कुक्कुट भक्षण से कौशिक नृप को प्रतिरात्र कुक्कुट योनि की प्राप्ति, कुक्कुटेश्वर लिङ्ग के दर्शन से कुक्कुट योनि से मुक्ति की कथा ), ६.१०९.१४ ( कुक्कुटेश्वर तीर्थ में सौम्य नाम से शिव कीर्तन का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३७५.९०(अहल्या धर्षण के संदर्भ में चन्द्रमा द्वारा कुक्कुट रूप धारण कर इन्द्र की सहायता करना), २.२६.९० ( सभागतों में पक्षपात करने वाले व्यक्ति को कुक्कुट नाम से अभिहित करना तथा उस व्यक्ति के जल, अन्न को ग्रहण न करने का उल्लेख ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.१८टीका(सविताराधन कुक्कुटासन में करने का निर्देश) । kukkuta
कुक्कुटी भविष्य ४.४६.१६ ( कुक्कुटी - मर्कटी व्रत : व्रत भङ्ग से मानमानिका नामक पुरोहित पत्नी के कुक्कुटी बनने का कथन ), मत्स्य १७९.१७ ( अन्धकासुर संग्राम में अन्धक रक्त पान हेतु महादेव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ) ।
कुक्कुर गरुड २.४६.१६(विप्र को पर्युषित अन्न दाता के कुक्कुर बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२१.७९ ( भण्ड दानव के सेनापति - पुत्रों में से एक ), ३.४.२५.९७ ( कुलसुन्दरिका द्वारा कुक्कुर के वध का उल्लेख ) ।
कुक्षि भागवत २.१.३२, ८.७.२८ ( भगवान् के ब्रह्माण्ड रूप स्थूल शरीर में समुद्रों का कुक्षि रूप में उल्लेख ), ३.३१.४ ( छठे मास में जीव के झिल्ली से लिपटकर माता की दक्षिण कुक्षि में घूमने का उल्लेख ), ९.६.३० ( युवनाश्व की दक्षिण कुक्षि को भेदकर मान्धाता के उत्पन्न होने का उल्लेख ), १०.४०.१३ ( वही), १२.६.७९ ( सामशाखा प्रवर्तक पौष्यंजि के शिष्यों में से एक, १०० साम संहिताओं का पाठक ), मत्स्य ६.११ ( कुक्षिभीम : बलि के सौ पुत्रों में से एक ), १६७.१४ ( एकार्णवशायी विष्णु की कुक्षि में मार्कण्डेय के प्रवेश का वर्णन ), स्कन्द ४.१.४५.३९ ( बृहत्कुक्षि : ६४ योगिनियों में से एक ), योगवासिष्ठ ५.३१.५८( प्रह्लाद द्वारा कुक्षियों में दिशाओं की धारणा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.२१५.६३ ( देह में कुक्षि की ब्रह्माण्ड में अब्धि से समता ); द्र. विकुक्षि । kukshi
कुक्षिमित्र ब्रह्माण्ड २.३.७१.१७१ ( वसुदेव व मदिरा के १० पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), वायु ९६.१६९ ( वसुदेव व मदिरा की ९ सन्ततियों में से एक, वृष्णि वंश ) ।
कुक्षी ब्रह्माण्ड १.२.१४.८ ( प्रियव्रत व काम्या - पुत्री ), वायु ३३.८ ( प्रियव्रत - पुत्री ), विष्णु २.१.५ ( वही) ।
कुक्षेयु भागवत ९.२०.४ ( रौद्राश्व व घृताची अप्सरा के दस पुत्रों में से एक, पूरु वंश ) ।
कुखण्डिका ब्रह्माण्ड २.३.७३ (कूष्माण्ड कुलोत्पन्न १६ पिशाच दम्पत्तियों में कुखण्ड व कुखण्डिका दम्पत्ति का उल्लेख ), वायु ६९.२६४ ( वही) ।
कुङ्कुम गरुड २.३०.५५/२.४०.५५( मृतक की मूर्द्धा में कुङ्कुम लेप देने का उल्लेख ), पद्म १.२४.४६ ( अङ्गारक चतुर्थी व्रत विधि में कुङ्कुम से अष्टदल कमल के निर्माण / लेखन का उल्लेख ), ५.१०.४३ ( राम के अश्वमेध यज्ञ के अश्व के चंदन चर्चित तथा कुङ्कुमादि की गन्ध से सुशोभित भाल पर स्वर्णपत्र बांधने का उल्लेख ), ६.१२३.१७ ( मासोपवास व्रत विधि वर्णन में जनार्दन भगवान् के कुङ्कुम, उशीर, कर्पूर तथा चन्दन से लेपन का उल्लेख ), भागवत ११.२७.३० ( क्रियायोग के वर्णन में कुङ्कुम आदि से सुवासित जल से भगवान् को स्नान कराने का कथन ), स्कन्द ५.३.२६.१४८ ( पौष शुक्ल तृतीया को कुङ्कुम दान का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५६.२६ ( तपश्चर्या से प्रसन्न होकर लक्ष्मीनारायण द्वारा खट्वाङ्गद नृप को प्रत्यक्ष दर्शन देने तथा नृप के मस्तक पर कुङ्कुम से तिलक करने का उल्लेख ), २.२७१.८ ( कुङ्कुम ब्राह्मण द्वारा शिवपूजा से शिव के दर्शन, शिव प्रदत्त मन्त्र का जप करते हुए कुङ्कुमेश्वर तीर्थ की स्थापना तथा कुङ्कुम ब्राह्मण द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ), २.२७१.२१( कुङ्कुमेश्वर : कुंकुम ब्राह्मण द्वारा कुङ्कुमेश्वर महादेव की स्थापना करके कुङ्कुमेश्वर तीर्थ का निर्माण करने का कथन ) । kumkuma
कुङ्कुमवापी लक्ष्मीनारायण १.५६.२९ ( लक्ष्मी द्वारा खट्वाङ्गद राजा को कुङ्कुम से तिलक करते समय कुङ्कुम की बूंदें सरोवर में गिरने से सरोवर की कुङ्कुमवापी नाम से प्रसिद्धि का कथन ), १.५२०.३९ ( कच्छप द्वारा कम्भराकृष्ण के मन्दिर से युक्त कुङ्कुमवापी तीर्थ में वास का उल्लेख ), १.५३४ ( शंकर द्वारा पार्वती के प्रति सौराष्ट्र स्थित कुङ्कुमवापी तीर्थ क्षेत्र की महिमा का वर्णन ), १.५३५ ( शंकर से श्रीकृष्ण के निवासस्थल कुङ्कुमवापी तीर्थ की महिमा का श्रवण कर पार्वती की तीर्थ दर्शन की अभिलाषा, समस्त गणों सहित शिव पार्वती का कुङ्कुमवापी क्षेत्र में गमन तथा श्रीकृष्ण के दर्शन का वर्णन ), २.७९.५५, २.७९.८८ ( सुरतायन आदि विप्रों द्वारा श्री हरि से कुङ्कुमवापी क्षेत्र के दर्शन की प्रार्थना, श्री हरि द्वारा तीर्थ क्षेत्र के दर्शन कराने का उल्लेख ), ३.१४१ ( कुङ्कुमवापी तीर्थ क्षेत्र के माहात्म्य का कथन ), ४.३२.५५ ( फणा ग्रामस्थ चन्द्रस्तम्बादि द्वारा कुङ्कुमवापी तीर्थ क्षेत्र की यात्रा तथा मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) । kumkumavaapi
कुच भागवत ५.२.११ ( आग्नीध्र के कुचों की शृङ्गों से उपमा ), वायु ४४.११ ( केतुमाल का एक जनपद ) ।
कुचेल विष्णु ४.१९.८१ ( कृत -पुत्र वसु के सात पुत्रों में से एक, मगधराज ),लक्ष्मीनारायण २.५.३४ ( कुचेलक प्रभृति दैत्यों द्वारा बाल प्रभु को मारने का उद्योग ) ।
कुचैल भागवत १०.८०.७ ( जीर्णशीर्ण वस्त्रधारी कुचैल सुदामा नामक ब्राह्मण का पत्नी की प्रेरणा से कृष्ण के पास गमन तथा कृष्ण की कुचैल सुदामा पर कृपा का वृत्तान्त ) ।
कुज भविष्य २.२.८.१२८( कुज तीर्थ? में महाभाद्री पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), भागवत २.७.३४ (कृष्ण की विविध लीलाओं के अन्तर्गत कुज / भौमासुर के मरणोपरान्त कृष्ण धाम गमन का उल्लेख ), वामन ७०.४२,४८ ( शिव के स्वेद कणों से उत्पन्न कुज नामक बालक को शिव द्वारा ग्रहों का स्वामी होने के वर प्रदान का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१३.१६६ ( शतरुद्रिय प्रसंग में कुज द्वारा करालक नाम जप के साथ नवनीत लिङ्ग की पूजा का उल्लेख ) । kuja
कुजनी नारद १.६६.११६( शिखीश की शक्ति कुजनी का उल्लेख ) ।
कुजम्भ मत्स्य १४७.२८( कुजम्भ तथा महिष प्रभृति असुरों द्वारा तारक को सम्राट् पद पर अभिषिक्त करने का उल्लेख ), १४८.४२ ( तारक के दस सेनानायकों में से एक ), १४८.५० ( कुजम्भ के रथ के पिशाच सदृश मुख वाले गधों से युक्त होने का उल्लेख ), १५०.१०९ ( तारक - सेनानी कुजम्भ के राक्षसेश्वर निर्ऋति से युद्ध का उल्लेख ), २४५.१२ ( प्रह्लाद द्वारा भगवान के भीतर कुजम्भ प्रभृति समस्त असुरगणों तथा सातों लोकों के दर्शन का उल्लेख ), मार्कण्डेय ११६.१६ ( कुजृम्भ : कुजृम्भ दानव के वत्सप्री द्वारा वध का वृत्तान्त ), वामन ९.२८ ( युद्ध हेतु कुजम्भ दानव के अश्वारूढ होने का उल्लेख ), ६९.५२ ( अन्धक - सेनानी कुजम्भ का विष्णु से युद्ध ), ६९.१५७ ( विष्णु चक्र द्वारा कुजम्भ के वध का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१६.१८ ( सैन्य सज्जा प्रसंग में तारक - सेनानी कुजम्भ के खर युक्त ध्वज व वाहन का उल्लेख ), १.२.१८.११ ( कुजम्भ का कुबेर से युद्ध, कुबेर की पराजय का वर्णन ), ५.२.६३.७ ( कुजम्भ दैत्य द्वारा विदूरथ - पुत्री मुदावती का हरण, मार्कण्डेय मुनि के कथनानुसार विदूरथ द्वारा महाकालवन में स्थित लिङ्ग की आराधना, लिङ्ग आराधना से धनुष की प्राप्ति, कुजम्भ का वध, धनुष प्राप्ति होने से लिङ्ग की धनुसाहस्र नाम से प्रसिद्धि का वृत्तान्त ), हरिवंश ३.५१.१३ ( युद्ध हेतु प्रस्थित विरोचन - अनुज कुजम्भ के ऐश्वर्य का वर्णन ), ३.५३.१४ ( हिरण्यकशिपु- पौत्र, देव – दानवों के द्वन्द्व युद्ध में कुजम्भ का अंश से युद्ध ) ; द्र. जम्भ । kujambha
कुजिलाश्व ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८५ ( भण्ड दानव के सेनापति पुत्रों में से एक ) ।
कुजृम्भ मार्कण्डेय ११६.१६/११३.१६( कुजृम्भ की निरुक्ति : पृथिवी का जृम्भण करने वाले ) ।
कुञ्चि ब्रह्माण्ड २.३.५.४३ ( बलि के सौ पुत्रों में से एक ) ।
कुञ्ज गर्ग ५.१७.९ ( कृष्ण विरह पर कुञ्ज विधायिका गोपियों के उद्गारों का कथन ), ५.१७.१० ( कृष्ण विरह पर निकुञ्जवासिनी गोपियों के उद्गारों का कथन ), पद्म ३.२६.१०३ ( श्री कुञ्ज तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : तीर्थ में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य १९४.९ ( कुञ्ज तीर्थ में स्नान से पापों के नाश तथा कामना पूर्ण होने का कथन ) । kunja
कुञ्जर गणेश २.१४.१८ ( महोत्कट गणेश द्वारा मदोन्मत्त कुञ्जर का वध ), नारद १.५०.६२ ( कुञ्जर द्वारा निषाद स्वर के वादन का उल्लेख ), पद्म ५.२५.१७ ( मदोन्मत्त कुञ्जर आदि से सुशोभित सेना के साथ राजा सुबाहु के युद्ध हेतु निर्गमन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२२३ (अञ्जना - पिता, हनुमान - मातामह ), २.३.७.२३३ ( वानरराज वालि की सेना का एक वानर ), २.३.७.३५० ( कुञ्जों में विचरण करने के कारण हाथी द्वारा कुञ्जर नाम धारण करने का उल्लेख ), ३.४.४४.५६ ( कुञ्जरी : विविध स्वरशक्तियों में से एक स्वरशक्ति ), भविष्य ४.९४.५३ ( कौण्डिन्य द्वारा कुञ्जर से अनन्त देव के दर्शन के विषय में प्रश्न करने पर कुञ्जर द्वारा अनन्त देव के अदर्शन का उल्लेख ), ४.९४.६४ ( कुञ्जर के धर्मदूषक होने का उल्लेख ), मत्स्य १४८.४२ (दैत्यराज तारक के दस सेनानायकों में से एक ), १६३.७९ ( अगस्त्य ऋषि के आश्रम से युक्त कुञ्जर पर्वत को हिरण्यकशिपु द्वारा कम्पित करने का उल्लेख ), वराह ८१.३ (कुञ्जर पर्वत पर पशुपति की व्यवस्थिति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.११ ( परधन अपहरण के फलस्वरूप पापियों को कुञ्जर प्रभृति योनियों की प्राप्ति का उल्लेख ), २.१२०.१३ ( चन्द्र व सूर्य ग्रहण काल में भोजन करने से मनुष्यों को कुञ्जर योनि प्राप्ति का उल्लेख ), हरिवंश ३.३५.१९ ( यज्ञ वाराह द्वारा निर्मित कुञ्जर पर्वत के स्वरूप का कथन ), वा.रामायण ४.६६.१० ( हनुमान की माता अञ्जना के वानरराज कुञ्जर की पुत्री होने का उल्लेख ), कथासरित् ८.५.१० ( कुञ्जरकुमार : सूर्यप्रभ के १५ महारथियों में से एक ), ८.५.२७ ( कुञ्जरकुमार के आरोहण के साथ द्वन्द्व युद्ध का उल्लेख ), १८.२.२७६ ( विक्रमादित्य द्वारा जयवर्धन को अञ्जरगिरि नामक कुञ्जर / हाथी प्रदान करने का उल्लेख ), १८.४.८९ ( विक्रमादित्य द्वारा वन्य कुञ्जर / हाथी का वध करने तथा वेताल द्वारा उसका पेट चीरने पर उससे दिव्य पुरुष के निकलने, दिव्य पुरुष द्वारा स्वयं के देवकुमार होने तथा कण्व ऋषि के शाप वश कुञ्जर बनने का कथन ) । kunjara
कुञ्जल पद्म २.८५.३०+( कुञ्जल नामक शुक का पत्नी तथा पुत्रों के साथ वट वृक्ष पर सुखपूर्वक निवास, कुञ्जल के पूछने पर ज्येष्ठ पुत्र उज्ज्वल द्वारा दिवोदास - कन्या दिव्या देवी के अद्भुत वृत्तान्त का निवेदन, दुःख से मुक्ति हेतु कुञ्जल द्वारा व्रत, स्तोत्र, ज्ञान, ध्यान रूप उपाय का कथन ), २.१२२, २.१२३ ( च्यवन ऋषि के पूछने पर कुञ्जल शुक द्वारा अपने पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन, मृत्यु समय में शुक पक्षी के मोह से पीडित होने के कारण पक्षी योनि प्राप्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.५०.१८ ( कुञ्जल नामक शुक द्वारा स्वपुत्र उज्ज्वल से अपूर्व वृत्तान्त के विषय में प्रश्न करने पर उज्ज्वल द्वारा दिवोदास - कन्या दिव्या देवी के वृत्तान्त का कथन, कुञ्जल द्वारा दिव्या देवी के दुःख का हेतु तथा दुःख से मुक्ति के उपाय का कथन ) । kunjala
कुटक भागवत ५.६.७ ( ऋषभदेव के कुटक आदि देशों में गमन का उल्लेख, कुटक देश के राजा अर्हत् द्वारा पाखण्ड मत के प्रचार का वर्णन ), ५.६.९ ( कुटक आदि देशों के मन्दमति राजा अर्हत् द्वारा पाखण्डपूर्ण कुमार्ग का प्रचार करने का उल्लेख ) ।
कुटज नारद १.६७.६१( कुटज को शिव को अर्पण का निषेध ), मत्स्य ९६.७ ( सर्वफलत्याग व्रत विधान में रजत - निर्मित १६ फलों में से एक ), योगवासिष्ठ ४.३३.३० ( कुटजमञ्जरी : हृदय में अहंकार रूपी मेघ के विजृम्भण पर तृष्णा रूपी कुटजमञ्जरी के विकसित होने का उल्लेख ) । kutaja
कुटभी मत्स्य १७९.१६ ( अन्धक के रक्त पानार्थ महादेव - सृष्ट मातृकाओं में से एक ) ।
कुट्टिनीकपट कथासरित् १८.२.१८८ ( कुट्टिनीकपट नामक कितव द्वारा चतुराई से स्थायी इन्द्र पद प्राप्त करने का वृत्तान्त ) ।
कुटिला वामन ५१.३ ( हिमालय व मेना की तीन कन्याओं में से एक ), ५१.६ ( तपस्या निरत कुटिला को आदित्य व वसुगणों द्वारा ब्रह्मलोक में ले जाना, कुटिला द्वारा शिव के तेज को धारण करने का सामर्थ्य व्यक्त करने पर कुपित ब्रह्मा द्वारा जलमयी होने के शाप का वृत्तान्त ), ५७.७ ( शिव के शुक्र को धारण करने में असमर्थ होने पर अग्नि द्वारा महानदी कुटिला के जल में शुक्र का परित्याग, पश्चात् ब्रह्मा की सम्मति से कुटिला द्वारा सरपत वन में शिव शुक्र के परित्याग का कथन, उत्पन्न बालक की कुटिला - पुत्र शाख / कुमार नाम से ख्याति ), ५७.८४ ( कुटिला द्वारा स्वपुत्र स्कन्द को १० गण प्रदान करने का उल्लेख ), ५७.१०३( कुटिला द्वारा स्वपुत्र कार्तिकेय को कमण्डलु देने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१७९.६६,७५ ( हिमालय व मेना की तीन पुत्रियों में मध्यमा पुत्री कुटिला का ब्रह्मलोक में ब्रह्मनदी रूप से वास ) । kutilaa
कुटिलाक्ष ब्रह्माण्ड ३.४.२१.९५ ( भण्डासुर द्वारा ललिता से युद्ध हेतु सेनापति कुटिलाक्ष के प्रेषण का उल्लेख ), ३.४.२२.२८ ( कुटिलाक्ष द्वारा भण्डासुर की आज्ञा के पालन का कथन ), ३.४.२७.१० ( पुत्र वध पर कुटिलाक्ष प्रभृति मन्त्रियों द्वारा भण्डासुर को आश्वासन देने का उल्लेख ), ३.४.२९.८ ( भ्रातृवध पर कुटिलाक्ष द्वारा भण्डासुर को आश्वासन, क्रुद्ध भण्ड द्वारा कुटिलाक्ष को सैन्य सज्जा के आदेश का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.११६.७० ( ललिता - सैन्य विनाशार्थ भण्ड द्वारा कुटिलाक्ष सेनापति को युद्ध हेतु प्रेरित करने का उल्लेख ) । kutilaaksha
कुटीचक भागवत ३.१२.४३ ( संन्यासियों के चार प्रकारों में से प्रथम ) ।
कुटुम्ब गणेश १.७.१२ ( कुटुम्बिनी : वैश्य - पुत्र कामन्द की सती भार्या, दुष्ट प्रकृति कामन्द का वृत्तान्त ), मत्स्य १७९.३० ( कुटुम्बिका : अन्धक - रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक ), स्कन्द ५.१.१० ( कुटुम्बिकेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : भिन्न - भिन्न तिथियों में तीर्थ में किए गए व्रत, दान आदि से शिवलोक की प्राप्ति ), ५.१.६७ ( कुटुम्बेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : तीर्थ में स्नान से मनुष्य के कुटुम्ब युक्त होने तथा तीर्थ में समस्त देवों की स्थिति का कथन ), ५.२.१४ ( कुटुम्बेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : कालकूट विषलिङ्ग का कुटुम्ब वृद्धिकारक लकुलीश लिङ्ग में परिवर्तन ) । kutumba
कुठार भागवत ११.१२.२४ ( विद्या रूपी तीक्ष्ण कुठार से जीवभाव के कर्त्तन का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ५.३१.५५( विष्णु की नन्दक नामक कुठार का उल्लेख ; प्रह्लाद द्वारा स्ववह्नि में नन्दक कुठार की धारणा ) ।
कुणि ब्रह्माण्ड २.३.८.९७ ( वसिष्ठ व घृताची - पुत्र, वसु - पिता, अपर नाम इन्द्रप्रमति ), भागवत ९.२४.१४ ( जय - पुत्र, युगन्धर - पिता, वृष्णि वंश ), वायु २३.१६९ ( १५ वें द्वापर के अवतार वेदशिरा के चार पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१४.३ ( सञ्जय - पुत्र, युगन्धर -पिता, वृष्णि वंश ), शिव ३.५.१४ ( १५वें द्वापर में शिव के अवतार वेदशिरा के चार पुत्रों में से एक ), ७.२.९.१५ ( शिव के योगी शिष्यों में से एक ) । kuni
कुणिबाहु वायु २३.१६९ ( १५वें द्वापर के अवतार वेदशिरा के चार पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.१४ ( १५वें द्वापर में शिव के अवतार वेदशिरा के चार पुत्रों में से एक ), ७.२.९.१५ ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ) ।
कुण्ठा लक्ष्मीनारायण १.३१७.४७( विकुण्ठा की निरुक्ति : वृत्तियों को कुण्ठित करने वाली ), द्र. विकुण्ठा,
कुण्ड अग्नि २४ ( अग्नि कुण्ड निर्माण विधि का कथन ), ३४.३४ ( होम कुण्ड में कुण्ड लक्ष्मी के ध्यान का कथन ), ९५.२० ( लिङ्ग प्रतिष्ठा हेतु होम में कुण्ड निर्माण विधि का कथन ), कूर्म १.२४.३१ ( अन्धक द्वारा कुण्ड व गोलादि ब्राह्मणों से सुने गए शास्त्र के प्रवर्तन का उल्लेख ), गणेश २.१५.८ ( महोत्कट गणेश द्वारा गजरूप धारी कुण्ड दैत्य के वध का उल्लेख ), देवीभागवत २.६.४७( अंशज, पुत्रिकापुत्र, क्षेत्रज, गोलक, कुण्ड, सहोढ, कानीन आदि पुत्र प्रकारों में उत्तरोत्तर की निकृष्टता का उल्लेख ), ९.३२.५ ( नरक के ८६ कुण्डों के नाम व वर्णन ), पद्म १.१८.२०७ ( पुष्कर स्थित ज्येष्ठ,मध्यम तथा कनिष्ठ कुण्ड में स्नान व दान के फल का कथन ), १.३४.५५ ( कुण्डवापी में शुभांग नाम से ब्रह्मा के निवास का उल्लेख ), २.२७.१३ ( ब्रह्मा द्वारा नदी, तडाग, वापी, कुण्ड तथा कूप आदि के राज्य पर सागर के अभिसिंचन का उल्लेख ), ६.१३६.३ ( नन्दि कुण्ड का परम पवित्र तीर्थ के रूप में उल्लेख ), ६.२१५.३३ ( मुनि - पुत्र द्वारा बुध को स्वैरिणी - पुत्र कुण्ड कहने पर बुध द्वारा मुनिपुत्र को कुण्ड होने का शाप, पिता के प्रार्थना करने पर बुध द्वारा कुण्डत्व रूप शाप से मुक्ति के उपाय का कथन ), ब्रह्म २.८४ ( सहस्र कुण्ड तीर्थ का माहात्म्य : गौतमी में स्नान से राम के सन्ताप का शमन, इसी स्थान के सहस्र कुण्ड तीर्थ रूप से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२९.६ ( नरक में स्थित ८६ कुण्डों का नामोल्लेख ), २.३० ( भिन्न - भिन्न पापकर्मों द्वारा भिन्न - भिन्न नरककुण्डों की प्राप्ति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२४१( किष्किन्धा स्थित वालि के प्रधान वानर सेनापतियों में से एक ), भविष्य २.१.१३ ( यज्ञ कुण्ड के प्रकार व निर्माण की विधि का वर्णन ), २.१.१५ ( यज्ञ कुण्डों के १८ संस्कारों का वर्णन ), २.२.४ ( विविध कुण्ड निर्माण में दक्षिणा का कथन ), ३.३.३२.४० ( मद्रकेश के कौरवों के अंश १० पुत्रों में से एक ), मत्स्य २६४ ( कुण्ड निर्माण ), लिङ्ग २.२२.६७ ( होमकुण्ड निर्माण विधि का कथन ), वराह १४१.४ ( बदरिकाश्रम - स्थित ब्रह्म कुण्ड में स्नान के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), १४१.२४ ( बदरिकाश्रम - स्थित द्वादशादित्य कुण्ड में स्नान के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), १४१.५२ ( बदरिकाश्रम - स्थित उर्वशी कुण्ड में स्नान से पापमुक्त होने तथा उर्वशी लोक प्राप्त करने का कथन ), १४३.१५ ( मन्दार तीर्थ में स्थित मन्दार कुण्ड में स्नान से विष्णुलोक की प्राप्ति का कथन ), १४३.१८ ( मन्दार तीर्थ में स्थित स्नान कुण्ड में स्नान के माहात्म्य का कथन ), १४५.५३ ( शालग्राम क्षेत्र में स्थित गदा कुण्ड में स्नान की महिमा का वर्णन ), १४८.४९ ( स्तुतस्वामी तीर्थ में स्थित भृगु कुण्ड में स्नान के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), १४८.५३ ( स्तुतस्वामी तीर्थ में स्थित मणि कुण्ड में स्नान के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), १४९.४७ ( द्वारका तीर्थ में स्थित हंस कुण्ड के माहात्म्य का कथन ), १५१.३५, ३८, ४१, ४७, ५०, ५३, ५६, ५९, ६३, ६६, ६९, ७३ ( लोहार्गल तीर्थ में स्थित पञ्चसर कुण्ड, नारद कुण्ड, वसिष्ठ कुण्ड, सप्तर्षि कुण्ड, शरभंग कुण्ड, अग्निसर कुण्ड, बृहस्पति कुण्ड, वैश्वानर कुण्ड , कार्तिकेय कुण्ड, उमा कुण्ड, महेश्वर कुण्ड तथा ब्रह्म कुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), १६४.१९, २०, २८, २९, ३६ ( पुण्डरीक कुण्ड, अप्सरस कुण्ड, कदम्बखण्ड कुण्ड, देवगिरि कुण्ड तथा राधा कुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), १६६ ( असि कुण्ड के निर्माण के हेतु का कथन तथा प्रभाव का वर्णन ), १८९.२३( श्राद्ध कर्म में कुण्ड व गोलक ब्राह्मणों के आमन्त्रण का निषेध, मेधातिथि राजा के पितरों का दृष्टान्त ), २१५.१०० ( उमास्तव कुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), शिव ७.२.२७.३ ( अग्नि कार्य हेतु कुण्ड निर्माण की विधि ), स्कन्द २.८.२ ( अयोध्या के अन्तर्गत ब्रह्मा द्वारा निर्मित ब्रह्मकुण्ड के माहात्म्य का कथन ), २.८.६ ( सीताकुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), २.८.७.९ ( बृहस्पति कुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), २.८.७.२० ( रुक्मिणी कुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), २.८.७.६९ (वसिष्ठ कुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), २.८.७.७७ (सागर कुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), २.८.७.८५ ( उर्वशी कुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), २.८.७.१०८ ( घोषार्क कुण्ड के माहात्म्य का कथन ), २.८.८ ( रतिकुण्ड तथा कुसुमायुध कुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), २.८.८.६८ ( क्षीरकुण्ड की सीताकुण्ड के नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), २.८.८.७७ (सीताकुण्ड की प्रत्यक् दिशा में हनुमत्कुण्ड की स्थिति का उल्लेख ), २.८.९ ( सीता, भैरव व जरा कुण्ड ), ३.१.१४ ( ब्रह्म कुण्ड ), ३.१.१५ ( हनुमत् कुण्ड के माहात्म्य का कथन : धर्मसखा राजा को कुण्ड के प्रभाव से पुत्र की प्राप्ति ), ३.१.१८ ( राम कुण्ड ), ३.२.१३.५८ ( रविकुण्ड के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), ४.१.४७ ( उत्तरार्क कुण्ड के माहात्म्य तथा अर्क कुण्ड की बर्करी कुण्ड नाम से भी प्रसिद्धि का कथन ), स्कन्द ४.२.९७.१०५ ( कुण्डेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.२८.४१ ( रूपकुण्ड में स्नान से सुरूपता की प्राप्ति ), ५.१.२८.४२ ( अनङ्ग कुण्ड में स्नान आदि से अभीष्ट काम की प्राप्ति ), ५.१.२८.४४ ( करी कुण्ड में स्नान से पाप से मुक्ति ), ५.१.२८.४५ ( अजागन्ध कुण्ड में स्नान से पाप नाश ), ५.१.२८.४६ ( चक्रतीर्थ कुण्ड में स्नान से चक्रवर्तित्व की प्राप्ति ), ५.१.३१.७ ( कुण्डेश्वर के दर्शन से शिव दीक्षा फल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.६२ ( गोमती कुण्ड उत्पत्ति की कथा तथा माहात्म्य का कथन ), ५.२.४० ( कुण्डेश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति की कथा तथा माहात्म्य का कथन ), ६.४२ ( विश्वामित्र कुण्ड की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का कथन ), ७.१.२३ ( चन्द्रमा के यज्ञ में सहस्र कुण्डों के निर्माण का उल्लेख ), ७.१.२३.१०५(विभिन्न दिशाओं में कुण्ड की आकृतियां), ७.१.१४७ ( ब्रह्मा द्वारा निर्मित ब्रह्म कुण्ड के माहात्म्य का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.२५ ( नरक में स्थित ८६ विभिन्न कुण्ड व पाप अनुसार कुण्ड प्राप्ति का वर्णन ), २.१४२.५२ ( कुण्ड परिमाण तथा निर्माण विधि का वर्णन ), २.१५० ( यज्ञ कर्म में कुण्ड पूजा विधि का वर्णन ), २.१६७.५५ ( विश्वकर्मा द्वारा यज्ञ हेतु ९ प्रकार के २८ कुण्डों के निर्माण का कथन ) । kunda
कुण्डक ब्रह्माण्ड १.२.३३.१० ( एक श्रुतर्षि ), विष्णु ४.२२.९ ( क्षुद्रक - पुत्र, सुरथ - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ।
कुण्डकर्ण शिव ३.५.३८ ( पच्चीसवें द्वापर में दण्डीमुण्डीश्वर नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार शिष्यों में से एक ) ।
कुण्डजठर वामन ५७.८६ ( कृत्तिकाओं द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त पांच अनुचरों में से एक ), ६९.५१ ( दानव - प्रमथगण युद्ध में हस्ती के कुण्डजठर से युद्ध का उल्लेख ) ।
कुण्डधार भविष्य ३.३.३२.४० ( मद्रकेश के कौरवांश १० पुत्रों में से एक ), मत्स्य ४७.८४ ( शुक्राचार्य के धूम्रपान हेतु महादेव द्वारा धूम्रकर्त्ता कुण्डधार यक्ष की सृष्टि का कथन ), ४७.११९ ( भीषण तप के अनुष्ठान में रत शुक्राचार्य द्वारा कुण्डधार यक्ष द्वारा पातित कणधूम के सेवन का उल्लेख ) ।
कुण्डपायी ब्रह्माण्ड २.३.८.३१ ( निध्रुव तथा सुमेधा के पुत्रों का कुण्डपायी नाम से उल्लेख ), वायु ७०.२७ ( वही) ।
कुण्डल देवीभागवत २.६.३० ( कुन्ती द्वारा कवच व कुण्डलों से युक्त पुत्रोत्पत्ति का उल्लेख - गुप्तः सद्मनि पुत्रस्तु जातश्चातिमनोहरः । कवचेनातिरम्येण कुण्डलाभ्यां समन्वितः ॥ ), पद्म १.१६.१४५ (परमसुन्दरी बाला को देखकर इन्द्र द्वारा कर्णों में धारण किए गए कुण्डलों की अनावश्यकता का कथन ), १.२७.१६ (तटाक प्रतिष्ठा विधि वर्णन में स्वर्ण निर्मित कुण्डल आदि आभूषणों के दान का उल्लेख ), २.६१.४७ (कुण्डल नामक ब्राह्मण के सुकर्मा नामक पुत्र की मातृ - पितृ भक्ति का वृत्तान्त ), ५.४९.५ ( राम के अश्वमेध यज्ञ के अश्व का अङ्ग, वङ्ग, कलिङ्ग प्रभृति स्थानों पर भ्रमण करते हुए राजा सुरथ की कुण्डल नामक नगरी में पहुंचने का उल्लेख ), ५.९९.१८ ( जड आभूषणों की उपेक्षा करके सत्य व धर्म रूप कुण्डलों को धारण करने का उल्लेख - विनयो रत्नमुकुटः सत्यधर्मौ च कुंडले। त्यागश्च कंकणो येषां किं तेषां जडमंडनैः ), ब्रह्म १.१९.१६( शेषनाग के एक कुण्डल होने का उल्लेख - मदाघूर्णितनेत्रोऽसौ यः सदैवैककुण्डलः॥ ), १.९३.२२ ( नरकासुर का वध होने पर भूमि द्वारा अदिति के कुण्डलों को कृष्ण को समर्पित करने का उल्लेख - हते तु नरके भूमिर्गृहीत्वाऽदितिकुण्डले। उपतस्थे जगन्नाथं वाक्यं चेदमथाब्रवीत्।।), २.१०० ( मणिकुण्डल नामक वैश्य तथा गौतम ब्राह्मण की कथा द्वारा धर्म की महिमा का निरूपण ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.१५०(लक्ष्मी द्वारा सरस्वती को मकर कुण्डल देने का उल्लेख), २.१६.१३५(रोहिणी के कुण्डल हरण का उल्लेख), भागवत ५.२५.७( अनन्त के एक - कुण्डल होने का उल्लेख ), १२.११.१२ ( कृष्ण द्वारा सांख्य योग रूप मकराकृति कुण्डल धारण करने का उल्लेख - बिभर्ति साङ्ख्यं योगं च देवो मकरकुण्डले। ), महाभारत आश्वमेधिक ५७.१२ ( उत्तङ्क मुनि का राजा सौदास से उनकी रानी के मणिमय कुण्डल मांगना, सौदास की आज्ञानुसार उत्तंक का कुण्डल हेतु महारानी के समीप गमन, महारानी द्वारा कुण्डलों के वैभव का कथन ), योगवासिष्ठ ३.८६.४१(इदं भूमण्डलं चैव त्रिलोकीकर्णकुण्डलम् ।। ), विष्णुधर्मोत्तर १.२३८.२२ ( बलि द्वारा अविचल कुण्डलों के माध्यम से रावण के दर्प भङ्ग का कथन --एते मे कुण्डले दिव्ये महारत्नोपशोभिते । अनयोरेकमानीय चात्रोपविश मा चिरम् ।। ), स्कन्द ५.३.४१.१४ ( वैश्रवण व ईश्वरी - पुत्र कुण्डल द्वारा तप से महादेव के दर्शन, कुण्डलेश्वर की स्थापना का कथन ), ५.३.१५०.३५ ( काम द्वारा नर्मदा तट पर कुण्डलेश्वर शिव की अर्चना का कथन ), ६.२६३.१४( पञ्चेन्द्रिय रूपी पशुओं का हनन करके शीर्ष रूपी अग्निरहित कुण्ड में होम? का निर्देश ), ७.१.१४८ ( कुण्डल कूप माहात्म्य का कथन : शिवरात्रि में चोर द्वारा वणिक - भार्या का कर्णछेदन करके कुण्ड में लीन होना, सैनिकों द्वारा चोर का कपाल छेदन, जन्मान्तर में चोर का कूप प्रभाव से सुदर्शन राजा बनना ), ७.३.२.१८ ( गौतम - शिष्य उत्तङ्क द्वारा गुरु दक्षिणा हेतु मदयन्ती से कुण्डल प्राप्ति, तक्षक द्वारा चोरी, पुन: प्राप्त कर कुण्डलों को गौतम -पत्नी अहल्या को समर्पित करने का वृत्तान्त ), हरिवंश २.६४.५६ ( नरकासुर के वध के पश्चात् अदितिनन्दन इन्द्र द्वारा माता अदिति को कृष्ण - प्रदत्त कुण्डलों को प्रदान करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.२२९.५५ ( आयस कुण्डल नामक दैत्य द्वारा रुटाणकी तथा आभीरी भक्त का धर्षण, कृष्ण द्वारा दैत्य के वध का कथन ); द्र. कनककुण्डल, विकुण्डल, श्रीकुण्डल, हेमकुण्डल । kundala
कुण्डला मार्कण्डेय २१.३४ ( मदालसा - सखी, पुष्करनाली - पत्नी, विन्ध्यवान् - पुत्री ), लक्ष्मीनारायण १.३९२.६२ ( मदालसा - माता, ऋतध्वज से विवाह करके मदालसा का कुण्डला माता से पति - गृह जाने की आज्ञा मांगने का उल्लेख ) ।
कुण्डलिनी देवीभागवत ११.८ ( कुण्डली जागरण विधि का वर्णन ), नारद १.६५.७० ( कुण्डलिनी ध्यान व जागरण विधि ), वामन ५६.५( चण्डिका से सिंहनाद से त्रिनेत्रा माहेश्वरी कुण्डलिनी आदि की उत्पत्ति का कथन ), शिव ५.२६.१५ ( कुण्डलिनी शक्ति का वर्णन ), ५.२८.१४( सर्पीकृत कुण्डली के खेचरी रूप की महिमा का कथन ),योगवासिष्ठ ६.१.८०.४२ ( सौ नाडियों की आश्रय आन्त्रवेष्टनिका नाडी के ही कुण्डलाकार वाहिनी होने से कुण्डलिनी नाम धारण तथा शरीर में कुण्डलिनी नाडी की स्थिति व शक्ति का कथन - या परा शक्तिः स्फुरति वीणावेगलसद्गतिः ।। सा चोक्ता कुण्डलीनाम्ना कुण्डलाकारवाहिनी । ), ६.१.८१.४३ ( आमोद की मञ्जरी कुण्डलिनी को पूरक अभ्यास द्वारा पूर्ण करने के लाभों का वर्णन ), ६.१.८२.७ ( कुण्डलिनी शक्ति को जगाने के लिए हृच्चक्र में स्थित अग्नि कण को उद्दीपित करने की आवश्यता, कुण्डली द्वारा सब आकार ग्रहण करना ), लक्ष्मीनारायण २.२४१.६२ ( वैवस्वत मनु द्वारा निर्मित पतंजलि मुनि के मन्दिर में पार्श्वभाग में शेष - प्रिया कुण्डलिनी सिद्धि तथा योग नामक पुत्र की स्थापना का उल्लेख ) । kundalini
कुण्डा पद्म ६.२२२.१३ ( श्रवण ब्राह्मण की पत्नी कुण्डा का दुष्कर्म फलस्वरूप शिंशपा वृक्ष बनने का उल्लेख ) ।
कुण्डिन गर्ग ६.४.२४ ( श्रीकृष्ण का रुक्मिणी हरण हेतु कुण्डिनपुर गमन, कुण्डिनपुर के उपवन में बैठकर पुरी की शोभा का दर्शन), भागवत १०.५३.७ (कुण्डिन -पति भीष्मक द्वारा शिशुपाल को स्वकन्या प्रदान करने हेतु विवाहोत्सव की तैयारियां कराने का उल्लेख ), १०.५३.१५ ( चेदिनरेश दमघोष का स्वपुत्र शिशुपाल के विवाह हेतु कुण्डिनपुर पहुंचने का उल्लेख ), १०.५३.२१ ( रुक्मिणी हरण हेतु श्रीकृष्ण के चले जाने पर बलराम का सेना के साथ कुण्डिनपुर की ओर प्रस्थान करने का उल्लेख ), १०.५४.२०,५२ ( श्रीकृष्ण को मार न पाने तथा रुक्मिणी को न लौटा पाने की स्थिति में रुक्मी द्वारा राजधानी कुण्डिनपुर में प्रवेश न करने की प्रतिज्ञा का उल्लेख ), वामन ९०.२४ ( कुण्डिन में विष्णु का प्राणतर्पण नाम ), विष्णु ५.२६.१( कुण्डिन में विदर्भराज भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी का कृष्ण द्वारा हरण, क्रुद्ध रुक्मी का युद्ध में कृष्ण को मारकर ही कुण्डिन में प्रवेश करने की प्रतिज्ञा का कथन ), हरिवंश २.४७.४० ( श्रीकृष्ण का गरुड तथा महारथी यादवों के साथ कैशिक की राजधानी कुण्डिनपुरी में गमन का उल्लेख ), कथासरित् ६.१.१०९ ( स्वल्प धर्म के महान् फल को बतलाने हेतु कुण्डिनपुर वासी सात ब्राह्मण पुत्रों की कथा ), ९.५.५६ ( विदर्भ देश में स्थित कुण्डिन नाम की नगरी में राजा देवशक्ति के वास का उल्लेख ), ९.५.२३४ ( राजा कनकवर्ष का पत्नी व पुत्र सहित विदर्भ देश स्थित कुण्डिनपुर नगरी में श्वसुर - गृह पहुंचने का उल्लेख ) । kundina
कुण्डी वामन ९०.२४( कुण्डिन में विष्णु की घ्राणतर्पण नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), वायु ७०.९० ( मित्रावरुण के वंश में उत्पन्न होने वाले वंशधरों की कुण्डी नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ) ।
कुण्डोदर नारद १.६६.१०८( धर की शक्ति कुण्डोदरी का उल्लेख ), वामन ६८.३४ ( विनायक का राहु - कृत बंधन देखकर कुण्डोदर नामक गणेश्वर द्वारा राहु पर प्रहार का कथन ), स्कन्द ४.२.५३.६५ (शिव द्वारा दिवोदास -पालित काशी में कुण्डोदर प्रभृति ४ प्रमथगणों का प्रेषण, कुण्डोदरेश्वर लिङ्ग की स्थापना का कथन ), ४.२.७४.५६ ( कुण्डोदर गण द्वारा काशी में पश्चिम द्वार की रक्षा का उल्लेख ) ।
कुण्ठा द्र. विकुण्ठा, वैकुण्ठ ।
कुण्ढी लक्ष्मीनारायण १.१६५.२८ ( कात्यायनी देवी द्वारा महिषासुर का वध करने पर महिषासुर - पत्नी कुण्ढी द्वारा कात्यायनी देवी को शाप दान का उल्लेख ) ।
कुतुक भविष्य ३.३.२३.३४ ( केसरिणी के योग से विविध रूप धारण करने वाले गुरु के रूप में कुतुक का उल्लेख ) ।
कुतुप गरुड २.१०.३३(कुतुप श्राद्ध काल में सीता द्वारा पितरों का दर्शन), पद्म १.११.८६( कुतुप काल की परिभाषा ), १.३४.१८ (ब्रह्मा के यज्ञ में कुतप के त्रिसामाध्वर्यु बनने का उल्लेख ), १.५०.२७०( श्राद्ध हेतु कुतप काल का निर्धारण ), ६.१३५.७५ ( कुतुप : दिन के १५ मुहूर्तों में अष्टम मुहूर्त का कुतुप काल के नाम से उल्लेख ), भविष्य १.१८५.२०( श्राद्ध में पवित्र ३ वस्तुओं में से एक ), स्कन्द ६.११.४४(कुतप काल में स्नान से हस्तहीन शंख का हस्तयुक्त होना), ६.१९०.६०(कुतप काल के व्यतीत होने पर मृगचर्म क्षेपण पर विजयी होने का कथन) ६.२७१.३७८ (संवर्त्त की पहचान – कुतप काल में भिक्षा ग्रहण), ७.१.२०५.६,१३ ( श्राद्ध प्रसंग में कुतप काल व कुतप कुश विशेष की पवित्रता का उल्लेख ), ७.१.२०६.९८(कुतप व रौहिण मुहूर्त्तों में सम्बन्ध का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५४०.१९( कुतुप काल का निर्धारण, ८ प्रकार के कुतुपों का कथन, कुतुप शब्द की निरुक्ति ), नाट्यशास्त्र २८.६(नाट्य में कुतप का अर्थ – सपरिग्रह गायन, संघात) । kutupa
कुत्स ब्रह्म १.१.७५/२.१८ ( नड्वला व विराज प्रजापति के दस पुत्रों में से एक ), भागवत ४.१३.१६ ( चक्षु मनु व नड्वला के १२ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १९५.२२ ( भृगु के गोत्र - प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), १९६.३७ ( कुत्स गोत्र के ३ प्रवरों का उल्लेख तथा कुत्स गोत्र में परस्पर विवाह का निषेध ), स्कन्द २.४.७.१२ ( कुत्स ब्राह्मण द्वारा दुष्टा ब्राह्मणी को कार्तिक मास में स्नान, दान, व्रतादि के उपदेश का कथन ), २.८.४.५४ ( कौत्स : कौत्स मुनि द्वारा राजा रघु से चौदह करोड स्वर्ण मुद्राओं की याचना, रघु द्वारा कौत्स को स्वर्णखनि प्रदान करना, कौत्स द्वारा रघु को सत्पुत्र प्राप्ति का वरदान देने का वृत्तान्त ), २.८.५.११ ( कौत्स मुनि द्वारा राजा रघु से १४ कोटि सुवर्ण मुद्राओं के मांगने के हेतु का कथन ), ३.१.४९.७२ ( कुत्स ऋषि द्वारा रामेश्वर स्तुति का कथन ), ७.१.८.९( पुराक्रमा, ग्रहा, मुण्डा आदि ७ कुत्सिकों का उल्लेख ) ; द्र. पुरुकुत्स । kutsa
कुथन वायु ६९.१६५ ( खशा के राक्षस पुत्रों में से एक ) ।
कुथली लक्ष्मीनारायण ४.२९( अनाथ कुथली कन्या द्वारा पालक विप्र दम्पत्ति की अवहेलना कर सागरी बनने का वृत्तान्त )
कुथुमि वायु २३.१८७ ( उन्नीसवें द्वापर के अवतार जटामाली के चार पुत्रों में से एक ), ६१.३६ (सामग आचार्य पौष्यञ्जि के चार प्रधान शिष्यों में से एक ), शिव ७.२.९.१७ ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ) ।
कुदर्श लक्ष्मीनारायण २.५.३४ ( कुदर्श प्रभृति दैत्यों द्वारा बाल प्रभु को मारने का उद्योग ) ।
कुनन्दन गर्ग १०.३३.१७ ( बल्वल दैत्य - पुत्र कुनन्दन की कृष्ण कृपा से जीवन रक्षा की कथा ), १०.३६ ( कृष्ण - पुत्र सुनन्दन का बल्वल - पुत्र कुनन्दन के साथ युद्ध, सुनन्दन द्वारा कुनन्दन के वध का वृत्तान्त ) ।
कुनेत्रक वायु २३.१६९ (१५वें द्वापर के अवतार वेदशिरा के चार पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.१४ ( पन्द्रहवें द्वापर में शिव के अवतार रूप वेदशिरा के चार पुत्रों में से एक ) ।
कुन्तल ब्रह्माण्ड १.२.१६.४१ ( मध्य देश के जनपदों में से एक ), १.२.१८.४४ ( सीता नदी द्वारा सिंचित जनपदों में कुन्तल का उल्लेख ), मत्स्य ४४.७९( निकुन्त : शोणाश्व के ५ पुत्रों में से एक ), २७३.८ ( आन्ध्रवंशी राजाओं में कुन्तल स्वातिकर्ण के आठ वर्षों तक राज्य करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८६ ( नरक में कुन्त कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) ।
कुन्ति ब्रह्माण्ड २.३.६९.५ ( धर्मनेत्र - पुत्र, संज्ञेय - पिता, यदु वंश ), भागवत ९.२३.२२ ( धर्मनेत्र - पुत्र, सोहञ्जि - पिता, यदुवंश ), ९.२४.३ ( क्रथ - पुत्र, धृष्टि - पिता, विदर्भ वंश ), १०.६१.१३ ( श्रीकृष्ण व नाग्नजिती सत्या के दस पुत्रों में से एक ), मत्स्य ४३.९ ( धर्मनेत्र - पुत्र, संहत - पिता, यदुवंश ), ४४.३८ ( क्रथ - पुत्र, धृष्ट - पिता, विदर्भ वंश ), वायु ९५.३८ ( क्रथ - पुत्र, धृष्ट - पिता, बभ्रु वंश ), विष्णु ४.११.८ ( धर्मनेत्र - पुत्र, सहजित् - पिता, यदु वंश ), ४.१२.४० ( क्रथ - पुत्र, धृष्टि - पिता, बभ्रु वंश ) । kunti
कुन्तिभोज ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५१( नि:सन्तान कुन्तिभोज द्वारा शूरसेन की औरसी पुत्री पृथा को गोद लेने तथा पृथा के कुन्ति नाम से प्रसिद्ध होने का कथन ), भविष्य ३.३.३२.५३ ( कुन्तिभोज के लल्लसिंह रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), भागवत ९.२४.३१ ( शूरसेन द्वारा स्वपुत्री पृथा को मित्र कुन्तिभोज को प्रदान करने का उल्लेख ), १०.८२.२५ ( सूर्य ग्रहण के समय समन्तपञ्चक तीर्थ में एकत्रित कुन्तिभोज प्रभृति राजाओं द्वारा कृष्ण दर्शन का उल्लेख ), मत्स्य ४६.७ ( शूरसेन द्वारा स्वमित्र कुन्तिभोज को स्वपुत्री पृथा को प्रदान करने तथा पृथा के कुन्ती नाम से प्रसिद्ध होने का कथन ), वायु ९६.१५० ( शूरसेन द्वारा पृथा को नि:सन्तान कुन्तिभोज को प्रदान करना, पृथा का कुन्ति नाम से प्रसिद्ध होना, पाण्डु की भार्या बनकर कुन्ती द्वारा युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन को उत्पन्न करने का कथन ), विष्णु ४.१४.३२ ( शूरसेन द्वारा स्वपुत्री पृथा को मित्र कुन्ति को प्रदान करने का उल्लेख ), कथासरित् ३.२.३६ ( राजा कुन्तिभोज के गृह में दुर्वासा ऋषि का आगमन तथा राजा द्वारा स्वपुत्री कुन्ती को ऋषि की सेवा हेतु नियुक्त करने का कथन ) । kuntibhoja
कुन्ती देवीभागवत २.६ ( शूरसेन - सुता पृथा का कुन्तीभोज की पुत्री होने पर कुन्ती नाम धारण, दुर्वासा मुनि की सेवा से प्राप्त मन्त्र से कर्ण का जन्म, पाण्डु से विवाह, देवों के अंश से युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन की पुत्र रूप में प्राप्ति की कथा ), ४.२२.४० ( सिद्धि के अंशावतार रूप में कुन्ती का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५२ ( कुन्तिभोज की पुत्री बनने पर पृथा के कुन्ती नाम से प्रसिद्ध होने, पाण्डु की भार्या बनकर कुन्ती द्वारा युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन नामक पुत्रों को उत्पन्न करने का कथन ), भागवत १.८.१८ ( कुन्ती द्वारा कृष्ण की स्तुति ), ९.२२.२७ ( पाण्डु - पत्नी कुन्ती से धर्म, वायु तथा इन्द्र के द्वारा क्रमश: युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन की उत्पत्ति का उल्लेख ), ९.२३.१३ ( कुन्ती द्वारा मञ्जूषा में बन्द कर गङ्गा में प्रवाहित किए गए शिशु को अधिरथ द्वारा स्वपुत्र रूप में ग्रहण करने का उल्लेख ), १०.८२.१८ ( सूर्यग्रहण के अवसर पर समन्तपञ्चक तीर्थ में एकत्र हुए स्वजनों से कुन्ती के मिलन का उल्लेख ), १०.८४.५७ ( वसुदेव द्वारा किए गए यज्ञ की समाप्ति पर कुन्ती प्रभृति स्वजनों के स्व- स्व देश गमन का उल्लेख ), मत्स्य ४६.७ ( शूरसेन - सुता व वसुदेव - भगिनी पृथा का ही कुन्तिभोज की पुत्री बनने पर कुन्ती नाम से प्रसिद्ध होना, पाण्डु की पत्नी कुन्ती से युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन की उत्पत्ति का कथन ), ५०.४८ ( पाण्डु - पत्नी, युधिष्ठिर, भीम व अर्जुन की माता ), ११४.२४ ( पारियात्र पर्वत से नि:सृत अनेक नदियों में से एक ), विष्णु ५.१२.२४( कृष्ण का इन्द्र के समक्ष महाभारत युद्ध की निवृत्ति पर अर्जुन हेतु अविक्षत युधिष्ठिर आदि को कुन्ती को प्रदान करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.९७.१८ ( वरणा नदी के पूर्व तट पर स्थापित कुन्तीश्वर लिङ्ग के पूजन से श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति का उल्लेख ), ७.१.१७४ ( कुन्ती द्वारा स्थापित कुन्तीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), कथासरित् ३.२.३७ ( राजा कुन्तिभोज द्वारा स्वपुत्री कुन्ती को दुर्वासा ऋषि की सेवा में नियुक्त करना, कुन्ती की सेवा से प्रसन्न ऋषि द्वारा कुन्ती को वर प्रदान करने का कथन ) । kuntee/ kunti
कुन्द नारद १.६७.६१( कुन्द को शिव को अर्पण का निषेध - केतकीं कुटजं कुंदं बंधूकं केसरं जपाम् । मालतीपुष्पकं चैव नार्पयेत्तु महेश्वरे ।। ), पद्म १.२२.८७ ( माघ मास में कुन्द व कुमुद पुष्पों से देवी की पूजा का उल्लेख - कुंदैः कुमुदपुष्पैश्च देवीं माघेपि पूजयेत्। ), १.२८.२८ ( कुन्द वृक्ष में गन्धर्वों की प्रीति का उल्लेख - शिंशपायामप्सरसः कुंदे गंधर्वसत्तमाः ), भागवत ५.२०.१० ( शाल्मलि द्वीप के सात पर्वतों में से एक ), वराह १५३.३५ ( मथुरा पुरी के अन्तर्गत द्वादश तीर्थों में कुन्दवन नामक तीर्थ के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), वामन १७.६ ( देवाङ्गों से तरुओं की उत्पत्ति के प्रसंग में गिरिजा / पार्वती के करतल पर कुन्द लता की उत्पत्ति का उल्लेख - गिरिजायाः करतले कुन्दगुल्मस्त्वजायत। ), ५७.६५ ( धाता द्वारा स्कन्द को प्रदत्त तीन अनुचरों में से एक ), ९०.३४ ( शक्र? में विष्णु का कुन्दमाली नाम? ), वायु ५४.२५( वसिष्ठ द्वारा स्कन्द से कण्ठ में कुन्द इन्दु सम चिह्न का कारण पूछना, स्कन्द द्वारा शिव के नीलकण्ठत्व के कारण का वर्णन - यदेतद्दृश्यते वर्णं शुभं शुभ्राञ्जनप्रभम्। तत्किमर्थं समुत्पन्नं कण्ठे कुन्देन्दुसंप्रभे ।। ), ६९.२६३३/२.८.२५७( प्रकुन्दक : पिशाचों के १६ कुलों में से एक ), स्कन्द २.२.४४.५ ( माघ आदि मासों में कुन्द आदि पुष्पों से श्री हरि की अर्चना का निर्देश - उत्पलं चैव वासंती कुंदं पुन्नागकं तथा। एतानि क्रमशो दद्यात्कुसुमानि हरेर्मुदा ।। ), योगवासिष्ठ ६.२.१३.२५ ( संकल्प निर्मित त्रिलोकी में देवराज पद पर प्रतिष्ठित इन्द्र को कुन्द नामक पुत्र की प्राप्ति तथा इन्द्र के मोक्ष पद को प्राप्त होने पर कुन्द के त्रिलोकी के राजा होने का कथन ), ६.२.१८५ ( कुन्ददन्त नामक द्विज को वसिष्ठोक्त संहिता श्रवण से बोध प्राप्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२७.१०२ ( गिरिजा / पार्वती के करतल में कुन्द नामक गुल्म की उत्पत्ति होने से गिरिजा के पूजन में कुन्द के प्रीतिवर्धक होने का उल्लेख - गिरिजायाः करतले कुन्दगुल्मस्त्वजायत ।। ), ३.१०५.२६ ( कुन्दधर्मा नामक बाला द्वारा अधर्माचरण करने वाले जांघलामख नामक स्वपति को धर्माचारी बनाने का वर्णन ) । kunda
कुन्दन लक्ष्मीनारायण ३.१९३.२ ( राजीव नृप की भार्या कुन्दनदेवी नामक भक्तिनी द्वारा पापग्रस्त पति के उद्धार का वृत्तान्त ), ३.२१२.९१ ( भगवद्भक्ति से नालीकर नामक लोहकार के पत्नी कुन्दनिका सहित परमधाम गमन का वृत्तान्त ) । kundana
कुबेर अग्नि ३०५.१४ ( प्रत्येक वट वृक्ष पर विष्णु के वैश्रवण कुबेर नाम के स्मरण से भोग - मोक्ष की प्राप्ति का उल्लेख ), गणेश २.१०.२५ ( कुबेर द्वारा महोत्कट गणेश का सुरानन्द नामकरण ), २.७७.३ ( सिन्धु असुर द्वारा कुबेर के भाल देश पर आघात ), गरुड १.११६.३( प्रतिपदा को कुबेर की पूजा ), १.१५.२४ ( कुबेरपति : विष्णु सहस्रनामों में से एक ), १.१५.५४ ( कुबेर कारण : विष्णु सहस्रनामों में से एक ), ३.२२.२७(धनप के २४?/१४ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), गर्ग १.५.२४ ( कुबेर के व्रज में हृदीक नाम से अवतरण का उल्लेख ), ७.२३.१५ ( अलकापुरी - अधिपति कुबेर का प्रद्युम्न को भेंट न देना, प्रद्युम्न व कुबेर सेना के युद्ध का वर्णन ), ७.२५.२४ ( युद्ध में पराजित होने पर राजराज कुबेर द्वारा प्रद्युम्न को प्रभूत भेंट प्रदान करना, कुबेर द्वारा प्रद्युम्न की स्तुति, प्रद्युम्न द्वारा कुबेर को अभय प्रदान करने का वर्णन ), देवीभागवत ९.२२.५ ( देव - दानव युद्ध में शंखचूड - सेनानी कालकेय से कुबेर के युद्ध का उल्लेख ), नारद १.५६.६९३(कुबेर का संक्षिप्त स्वरूप), १.११९.४०(कुबेर का सोम से तादात्म्य), पद्म ३.१६.४ ( कावेरी संगम पर किए गए तप के प्रभाव से कुबेर के यक्षाधिपति बनने का कथन ), ५.६.१९ ( विश्रवा व मन्दाकिनी - पुत्र धनद /कुबेर के लोकपाल होने का उल्लेख ), ६.११३ (धनेश्वर विप्र द्वारा मृत्यु पश्चात् नरक की प्राप्ति , कार्तिक व्रती जनों के पुण्य से धनद का अनुचर धनयक्ष बनना ),६.२०४.११३( निगमोद्बोध तीर्थ के जलपान आदि से पथिक व शिबिका वाहकों द्वारा कुबेर के लोक की प्राप्ति का कथन ), ६.५२.८ ( अलकापुरी - अधिपति, शिव पूजार्थ पुष्प लाने में विलम्ब करने से कुबेर द्वारा हेममाली को शाप, योगिनी एकादशी व्रत से शाप से मुक्ति की कथा ), ब्रह्म २.२७ ( रावण द्वारा वैभव रहित किए जाने पर धनद / कुबेर द्वारा गौतमी गङ्गा के तट पर तप, तप द्वारा धनद पद प्राप्ति, गौतमी तीर्थ का पौलस्त्य धनद / वैश्रवण नाम से प्रसिद्ध होने का कथन ), २.९३.३१ ( शाकल्य द्वारा वित्तेश से श्रोत्रों की रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.९ ( उतथ्य द्वारा कुबेर से गुरु दक्षिणा हेतु कोटि स्वर्ण मुद्राओं की याचना, कुबेर की धन प्रदान में विरसता, क्रुद्ध उतथ्य का कुबेर को भस्म करना, पुनर्जन्म में कुबेर के विश्रवस - पुत्र रूप होने का कथन ), ४.१६.१० (बकासुर द्वारा भगवान् को उदरस्थ करने पर भयभीत देवों द्वारा अस्त्रों से प्रहार, कुबेर के अर्धचन्द्र बाण से बकासुर के छिन्नपाद होने का उल्लेख ), ४.६२.४२ (मेना के शाप से कुबेर के रूपहीन होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.८.४४ ( कुबेर शब्द की निरुक्तियां, ऋद्धि - पति, नलकूबर - पिता - कुत्सायां क्विति शब्दोऽयं शरीरं बेरमुच्यते ॥ कुबेरः कुशरीरत्वान्नाम्ना वै तेन सोंऽकितः ।), २.३.१३.८० ( कुबेरतुङ्ग में श्राद्ध के अनन्त फलदायी तथा पाप नाश कारक होने का उल्लेख ), ३.४.१५.२२ (कुबेर द्वारा ललिता देवी को चिन्तामणिमय माला प्रदान करने का उल्लेख ), भविष्य १.५७.१७( कुबेर हेतु बिल्व बलि का उल्लेख ), १.१२४.२७ ( सूर्य के उत्तर में कुबेर की स्थिति, अन्य नाम धनद, कुशरीर के कारण कुबेर नाम धारण का कथन - कुत्सया कुप्यता शप्तं कुशरीरमजायत । कुबेरः कुशरीरत्वात्स नाम्ना धनदः स्मृतः ।।), ३.३.३०.७३ ( कुबेर - सेनापति मणिदेव के यक्ष युद्ध में भीमसेन द्वारा मारे जाने का उल्लेख ), ३.४.१५ ( विश्रवा व इल्वला - पुत्र कुबेर का पूर्व जन्म में शिवभक्त राजराज नामक राजा होना, ब्रह्मा द्वारा कुबेर को लङ्कापुरी का स्वामी बनाना, रावण द्वारा लङ्का के अधिगृहीत कर लेने पर कुबेर को अलकापुरी देना, कुबेर की यक्षराट् रूप से प्रसिद्धि, त्रिलोचन वैश्य के रूप में कुबेर के जन्म का वर्णन ), ३.४.१५.१३(कुबेर शब्द की वेला पर आधारित निरुक्ति), ३.४.१८.५ ( कुबेर आदि २६ यक्षाधीशों के विश्वकर्मा व चित्रा - पुत्री संज्ञा के स्वयंवर में गमन का उल्लेख ), ३.४.१९.५५(रस तन्मात्रा के अधिपति के रूप में यक्षराज का उल्लेख - रूपमात्रा कुमारो वै रसमात्रा च यक्षराट् । गन्धमात्रा विश्वकर्मा श्रवणं भगवाञ्छनिः । ।), ३.४.२०.१७ ( परा प्रकृति के देवों में से एक ), ३.४.२५.१३१( मत्स्य कल्प में पुराण पुरुषासन पर भगवान् कुबेर की स्थिति का उल्लेख, रजः से कुबेर की व कुबेर से मत्स्य की उत्पत्ति - रजोभूताच्च तस्माच्च कुबेरस्य समुद्भवः । कुबेरादुद्भवन्मत्स्यो वेदमूर्तिश्च सद्गुणः । । ), भागवत ४.१.३७ (विश्रवा व इडविडा - पुत्र, रावण, कुम्भकर्ण तथा विभीषण का सौतेला भाई ), ४.१२.८ (इडविडा - पुत्र कुबेर द्वारा ध्रुव को भगवत्स्मृति रूप वर प्रदान का उल्लेख ), ४.१५.१४ ( महाराज पृथु के राज्याभिषेक पर धनद / कुबेर द्वारा स्वर्णनिर्मित सिंहासन प्रदान करने का उल्लेख ), मत्स्य ६७.१४ ( नवनिधिपति धनद / कुबेर से चन्द्रग्रहण - जन्य - पीडा को विनष्ट करने हेतु प्रार्थना का उल्लेख ), १२१.२ ( कैलास पर्वत पर कुबेर देव के गुह्यकों के साथ निवास करने का उल्लेख ), १३३.६४ (त्रिपुर - विध्वंसार्थ शिव के प्रस्थान के समय द्रविणाधिपति कुबेर के व्याल / सर्प पर आरूढ होकर गमन करने का उल्लेख ), १३७.३२ ( दानवों के त्रिपुर में प्रविष्ट हो जाने पर शिव द्वारा इन्द्र को कुबेर, यम आदि के साथ दानवों का संहार करने के निर्देश का कथन ), १३८.२५ (पाशधारी वित्ताधिपति / कुबेर द्वारा त्रिपुर के पश्चिम द्वार को निरुद्ध करने का उल्लेख ), १४०.४१ ( मय द्वारा कुबेर के विद्ध होने का उल्लेख ), १४८.९३ ( कुबेर ध्वजा पर पद्मराग मणि तथा विटपाकृति अंकित करने का उल्लेख ), १५०.१२ ( कुबेर के जम्भ से युद्ध का उल्लेख ), १७४.१७ ( देवों के युद्धार्थ अभियान में धनद / कुबेर के पुष्पक विमान पर आरूढ होने का उल्लेख ), १८९.४ ( कावेरी - नर्मदा सङ्गम माहात्म्य : सङ्गम पर कुबेर द्वारा तप, तप से प्रसन्न शिव से कुबेर को यक्षाधिपतित्व की प्राप्ति ), १९१.८५ ( नर्मदा तटवर्ती तीर्थों के अन्तर्गत कुबेर भवन में कुबेर के वास तथा कालेश्वर तीर्थ में स्नान से सर्वसम्पद् प्राप्ति का कथन ), २६१.२० ( कुबेर की प्रतिमा के स्वरूप का कथन ), महाभारत अनुशासन १५०.३८(धनेश्वर के गुरु रूप में उत्तर दिशा में स्थित सात ऋषियों के नाम), वराह १७.२५,४७ ( धनपति नाम से प्रसिद्ध एक देव ), १७.७१( कारणान्त पर वायु के धनेश बनने का उल्लेख ), ३०.१ ( वायु के धनद बनने का कथन ), वामन ६.९१ ( कापालिक या भैरव सम्प्रदाय के आचार्य, कर्णोदर - गुरु ), ९.१८ ( अम्बिका के चरणों से उत्पन्न पर्वताकार नरोत्तम का कुबेर वाहन के रूप में उल्लेख ), वायु ३९.५७ ( भुवन विन्यास के अन्तर्गत पिशाच नामक पर्वत पर कुबेर भवन की स्थिति का उल्लेख ), ४०.८ ( आग्नेय नामक गन्धर्व गणों के कुबेर - अनुचर होने का उल्लेख ), ४१.४( कैलास पर्वत पर धनाध्यक्ष कुबेर के नगर में कुबेर के वाहन पुष्पक विमान की स्थिति का उल्लेख ), ४७.१ ( कैलास पर्वत पर कुबेर के निवास का उल्लेख ), ६९.१९६/२.८.१९० ( पौलस्त्य तथा अगस्त्य नामक यक्षों, राक्षसों के राजा के रूप में कुबेर का उल्लेख, यक्षों आदि की आपेक्षिक पदस्थिति ), ७०.३९ ( विश्रवा व देववर्णिनी - पुत्र, ऋद्धि - पति, नलकूबर - पिता, कुबेर शब्द की निरुक्ति का कथन ), ७७.७८ ( कुबेरतुङ्ग में श्राद्धदान के अक्षय फलदायी होने का उल्लेख ), ९७.२ ( देवात्माओं में कुबेर का उल्लेख ), विष्णु ५.३६.१२ ( नन्दनवन में कुबेर के समान रैवत उद्यान में बलभद्र के रमण का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६.५६( उशना/शुक्र द्वारा कुबेर के धन का अपहरण करने और कुबेर व शुक्र में मैत्री होने की कथा ), १.२१९ ( विश्रवा व देववर्णिनी - पुत्र वैश्रवण / कुबेर को यक्षाधिपतित्व, धनाधिपतित्व, लोकपालाधिपतित्व तथा पुष्पक विमान की प्राप्ति, लङ्का पर कुबेर के राज्य का कथन ), १.२२२.४ ( रावण द्वारा धनद / कुबेर से पुष्पक विमान के अपहरण का उल्लेख ), २.१३२.९,१४ ( कौबेरी शान्ति के पद्मवर्णीय तथा पृथ्वी पर संस्थित होने का उल्लेख ), शिव २.१.१९ ( यज्ञदत्त - पुत्र गुणनिधि का ही अनजाने में किए हुए शिवाराधना से विश्रवा - पुत्र कुबेर बनना, कुबेर द्वारा तप, तप से प्रसन्न शिव द्वारा कुबेर को निधीश्वर, गुह्यकेश्वर, यक्षेश्वर तथा किन्नरेश्वर होने का वर प्रदान, असूयापूर्वक उमा के पुन:- पुन: दर्शन से उमा द्वारा वैश्रवण को वाम नेत्र में विकार द्वारा कुवेर नाम प्रदान करने का वृत्तान्त ), २.५.३६.९ ( देव - दानव युद्ध में कुबेर के कालकेय से युद्ध का उल्लेख ), ५.३३.२१( राजाओं के अधिपति के रूप में वैश्रवण का उल्लेख ), स्कन्द १.१.८.२३( कुबेर द्वारा रौक्म लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख ), १.२.१८ ( देवासुर संग्राम में धनाध्यक्ष कुबेर के साथ जम्भ - कुजम्भ दैत्यों के युद्ध का वर्णन ), ३.१.११.२७ ( देव - राक्षस युद्ध में कुबेर द्वारा रुधिराक्ष के वध का उल्लेख ), ३.१.२३.२७ (असुर विनाशक माहेश्वर यज्ञ में कुबेर के उन्नेता बनने का उल्लेख ), ३.१.४४.४३(कुबेर द्वारा प्रदत्त अम्भः से अन्तर्हित भूतों के दर्शन का कथन), ३.१.४९.५३ ( कुबेर द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ४.१.१३.३१ ( पूर्वजन्म में दुष्ट चरित्र गुणनिधि का दीपदान के प्रभाव से जन्मान्तर में कलिङ्गराज दम व अलकाधिपति कुबेर बनने का वृत्तान्त ), ५.३.२८.११( बाण के त्रिपुर नाश हेतु शिवरथ में धनाधिप कुबेर के अग्रकील बनने का उल्लेख ), ५.३.२९.७ ( कावेरी - नर्मदा सङ्गम के माहात्म्य वर्णन में कुबेर नामक यक्ष के तीर्थ प्रभाव से यक्षाधिप बनने का वृत्तान्त ), ५.३.१३३.११,१७ ( कुबेर की महादेव से यक्षेश्वर रूप वर प्राप्ति की प्रार्थना, कुबेर द्वारा कुबेरेश्वर तीर्थ की स्थापना, तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल प्राप्ति का कथन ), ५.३.१६८.११( विश्रवा - पुत्र वैश्रवण / कुबेर के परम तप से संतुष्ट होकर महादेव द्वारा वैश्रवण को यम आदि देवों में चतुर्थ स्थान प्रदान करने का कथन ), ५.३.२३१.१४ ( रेवा - सागर संगम पर ५ धनदेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ७.१.२०.२४ (विश्रवा व वेदवर्णिनी - पुत्र, वृद्धि- पति, नलकूबर - पिता, वैश्रवण द्वारा कुत्सित शरीर होने से कुबेर नाम धारण करने का उल्लेख ), ७.१.२९० ( न्यंकुमती नदी के तट पर सोमनाथ लिङ्ग पूजन से कुबेर को सख्यत्व, दिक्पालत्व तथा धनाधिपत्य रूप तीन वरों की प्राप्ति, उस स्थान की कुबेर नगर के रूप से प्रसिद्धि होने का कथन ), ७.१.२९३ ( कुबेर पूजन से निधि प्राप्ति का कथन ), हरिवंश १.६.३३ ( पृथ्वी दोहन में यक्षों द्वारा वैश्रवण कुबेर को वत्स/बछडा बनाने का उल्लेख ), ३.५३.२३ ( देवों तथा असुरों के द्वन्द्व युद्ध में कुबेर का अनुह्राद से युद्ध ), ३.६० ( कुबेर व अनुह्राद के युद्ध का वर्णन ), वा.रामायण १.१७.१२ ( कुबेर के पुत्र रूप में तेजस्वी वानर गन्धमादन का उल्लेख ), ३.४.१६ ( वैश्रवण कुबेर के शाप से तुम्बुरु नामक गन्धर्व के विराध नामक राक्षस होने का कथन ), ७.१८.५ ( राजा मरुत्त के यज्ञ में रावण भय से देवताओं के तिर्यक् योनि में प्रवेश करने पर धनाध्यक्ष कुबेर के कृकलास बनने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२६३.१०८ ( शाकटायन विप्र से प्राप्त मणि को पुलस्त्य द्वारा कुबेर को अर्पित करना, पश्चात् रावण का कुबेर से मणि छीनकर स्वर्णलङ्का के निर्माण का कथन ), १.३८२.२६( विष्णु के कुबेर व लक्ष्मी के ऋद्धि होने का उल्लेख ), १.५३३.१२२( शरीर की धनञ्जय वायु के दिव्य रूप में कुबेर बनने का उल्लेख ), १.५४३.७३ ( दक्ष द्वारा कुबेर को अर्पित ५ कन्याओं के नाम ), १.५४५.५१ ( दीपदान तथा शिवपूजन के फलस्वरूप दुर्मुख नामक राजा का विश्रवा - पुत्र कुबेर बनना, जातिस्मर होने से कुबेर का प्रभास क्षेत्र में आकर न्यङ्कुमती के तट पर शिव मन्दिर का निर्माण, शिव मन्दिर की कुबेरशंकर तीर्थ के रूप में प्रसिद्धि, प्रसन्न शिव द्वारा कुबेर को सस्यत्व, धनाधिपत्य, तथा दिक्पालत्व रूप तीन वर प्रदान करना, कुबेरेश तीर्थ में जाकर पूजन करने वाले के गृह में सात पीढियों तक लक्ष्मी के निवास का कथन ), २.१८.२२( कुबेर - कन्याओं द्वारा कृष्ण को पादपीठ समर्पित करने का कथन ), २.१६०.७१ ( कुबेर के लिए प्रियङ्गु ओदन के अर्पण का विधान ), ३.६४.२ (प्रतिपदा तिथि को श्री हरि के कुबेर रूप की पूजा का उल्लेख ), ३.१०१.६८ ( हिरण्यवर्णा पिङ्गाक्षी गौ के दान से कुबेर लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), कथासरित् १.२.१९ ( धनद / कुबेर द्वारा काणभूति नामक यक्ष को शाप प्रदान, दीर्घजङ्घ के प्रार्थना करने पर कुबेर द्वारा शाप मोचन के उपाय का कथन ), २.२.४२ ( कुबेर के शाप से यक्ष के सिंह रूप होने का उल्लेख), २.२.७६ ( धनाधिपति / कुबेर द्वारा कौशिक मुनि की तपस्या में विघ्न हेतु राक्षसी के प्रेषण का उल्लेख ), ६.८.७५ ( ब्रह्महत्या के अपराध में धनद / कुबेर द्वारा विरूपाक्ष नामक यक्ष को मनुष्य योनि में उत्पन्न होने का शाप ), ७.४.६९ ( प्रपञ्चबुद्धि नामक भिक्षु को मारने पर धनाधिप द्वारा राजा को वर प्रदान का उल्लेख ), ८.२.१७७ ( कुबेर - कन्या तेजस्विनी का सुनीथ - पत्नी होने का उल्लेख ), ८.५.१८, २४ ( कुबेरदत्त : दामोदर की सहायतार्थ आए हुए १४ महारथियों में से एक, कुबेरदत्त के साथ प्रमथन के द्वन्द्व युद्ध का उल्लेख ), ८.७.३८ ( कुबेरदत्त : महामाय दानव द्वारा कुबेरदत्त नामक विद्याधर के वध का उल्लेख ), ९.१.९७ ( पाप शान्ति हेतु मुनि वाल्मीकि द्वारा लव को कुबेर सरोवर से स्वर्णकमल लाकर शिवलिङ्ग पूजा का आदेश ), १२.५.३९ (वैश्रवण / कुबेर के मन में मानसरोवरस्थ दिव्य सहस्रदलकमल को लेने की इच्छा तथा उनके द्वारा शिवाराधना का कथन ), १८.२.३ ( मदनमञ्जरी के धनद - भ्राता मणिभद्र की पत्नी तथा यक्षराज दुन्दुभी की सुता होने का उल्लेख ) । kubera
कुब्ज विष्णुधर्मोत्तर ३.४२.१२( पिशाचों के कुब्ज होने का उल्लेख )
कुब्जा गर्ग ४.१९.४० ( यमुना सहस्रनामों में से एक ), ५.६.११ ( कंस - दासी कुब्जा द्वारा कृष्ण व बलराम को स्निग्ध चन्दन का अनुलेप प्रस्तुत करना , कृष्ण कृपा से कुब्जा की कुब्जत्व से मुक्ति का वर्णन ), ५.९.४९ ( कृष्ण के कुब्जा गृह में आगमन व निवास का कथन ), ५.११.१० ( पूर्वजन्म में कुब्जा का शूर्पणखा होना, तप से प्राप्त शिव वर से कृष्ण काल में कृष्ण - प्रिया कुब्जा बनने का कथन ), ५.१७.१५ ( मथुरा की कुब्जा की अयोध्या की कुब्जा मन्थरा से तुलना ), नारद २.८०.३८ ( वृन्दा द्वारा नारद को कुब्जा की महिमा बतलाते हुए अङ्गराग अर्पण के पुण्य से कुब्जा को उत्तम संकेत की प्राप्ति का कथन ), पद्म २.९२.२० ( कुब्जा - रेवा संगम का संक्षिप्त माहात्म्य : तीर्थों द्वारा स्नान मात्र से शुक्लत्व प्राप्ति की कथा ), ब्रह्म १.८५.१( मथुरा में कंस - दासी कुब्जा पर कृष्ण की कृपा का प्रसंग ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६२.५४ ( ब्रह्मा के वरदान से शूर्पणखा का ही अगले जन्म में कुब्जा बनकर कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने का उल्लेख ), ४.७२.१५ ( मथुरा जाते हुए कृष्ण द्वारा कुब्जा को रूप यौवन प्रदान कर स्वभार्या बनाना तथा कुब्जा के उद्धार का वृत्तान्त ), ४.११५.९४ ( अनिरुद्ध का बाण के समक्ष कृष्ण - महिमा के अन्तर्गत कुब्जा उद्धार का कथन ; पूर्व जन्म में रावण - भगिनी शूर्पणखा ), भविष्य ३.४.२५.१६८ (राधाङ्ग से ललितादि सात्विक, कुब्जादि राजसिक तथा पूतनादि तामसिक गोपियों के उद्भव का उल्लेख ), भागवत १०.४२. ( कंस - दासी , मथुरा में त्रिवक्रा नाम, कुब्जा द्वारा कृष्ण व बलराम को अङ्गराग भेंट, कृष्ण कृपा से कुब्जत्व से मुक्ति की कथा ), १०.४८.१ ( कुब्जा के घर कृष्ण का आगमन , कृष्ण व कुब्जा के मिलन का वर्णन ), ११.१२.६ ( सत्संग के प्रभाव से भगवान् को प्राप्त करने वाले जनों में कुब्जा का उल्लेख ), विष्णु ५.२० ( कुब्जा पर कृष्ण की कृपा का प्रसंग ), स्कन्द ४.१.४५.३५ ( ६४ योगिनियों में से एक ), हरिवंश २.२७.२५ ( कृष्ण द्वारा कुब्जा पर कृपा का प्रसंग ), वा.रामायण १.३२.२६ ( राजा कुशनाभ की १०० सुन्दरी कन्याओं का वायु के शाप से कुब्जा होने का उल्लेख ), २.७ ( राम के अभिषेक का समाचार पाकर कैकेयी - दासी कुब्जा/मन्थरा के खिन्न होने तथा कैकेयी को उकसाने का वृत्तान्त ), २.८ ( कुब्जा /मन्थरा का राम राज्याभिषेक को कैकेयी के लिए अनिष्टकारी बताकर कैकेयी को पुन: भडकाना ), २.९ ( कुब्जा के कुचक्र से कैकेयी का कोपभवन में प्रवेश ), लक्ष्मीनारायण १.८३.२७( ६४ योगिनियों में से एक ),१.३७६.९०( शूर्पणखा का तप के फलस्वरूप जन्मान्तर में कुब्जा रूप में उत्पन्न होकर श्री कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने का उल्लेख ), १.५५९ .५९( बिल्वाम्रक तीर्थ के अन्तर्गत कुब्जा - रेवा संङ्गम में स्नान तथा शिव विष्णु के पूजन अर्चन से हरिकेश नामक ब्राह्मण की ब्रह्मराक्षसत्व से मुक्ति का कथन ) । kubjaa
कुब्जाम्रक अग्नि ३०५.४ ( कुब्जाम्रक तीर्थ में हृषीकेश नाम से श्री विष्णु के स्मरण का उल्लेख ), पद्म ६.१३३.९ ( जम्बू द्वीप के तीर्थों में से एक ), ६.१३३.१७ ( कुब्जाम्रक क्षेत्र में त्रिसन्ध्य तीर्थ का उल्लेख ), मत्स्य २२.६६ ( पितर श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक ), वराह ५५.४५ ( राजा के समक्ष श्री हरि का कुब्ज रूप में आगमन, हरि आगमन से विशाल आम्र वृक्ष का कुब्ज रूप होना, उस स्थान की कुब्जाम्रक तीर्थ रूप से प्रसिद्धि का कथन ), १२६.५ (कुब्जाम्रक तीर्थ की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का कथन ), वामन ९०.३ ( कुब्जाम्र तीर्थ में विष्णु का कृष्णमूर्द्धा नाम ), लक्ष्मीनारायण १.५७०.९२( कुब्जाम्रक तीर्थ में सोमशर्मा ब्राह्मण द्वारा निषादी रूप में जन्म लेकर माया दर्शन का वृत्तान्त ), १.५७१.१५ ( विशाल आम्र वृक्ष के कुब्ज भाव को प्राप्त होने तथा कुब्ज रूप धारी श्री हरि के आगमन से गङ्गातीर की कुब्जाम्रक तीर्थ के रूप में प्रसिद्धि, कुब्जाम्रक तीर्थ में श्री हरि के पुण्डरीकाक्ष नाम से निवास का कथन ) । kubjaamraka
कुब्जिका अग्नि १४३ (कुब्जिका शक्ति देवी सम्बन्धी न्यास एवं पूजन विधि का वर्णन ), १४४.१ ( कुब्जिका मन्त्र से कुब्जिका की पूजा का कथन ), १४७.१( गुह्य कुब्जिका मन्त्र का कथन ), ३१६.६ ( कुब्जिका विद्या का कथन ), गरुड १.२६.३ ( कुब्जिका सम्बन्धी न्यास का कथन ), पद्म ६.१२६.४२ ( कुब्जिका नामक विधवा ब्राह्मणी का माघ स्नान के प्रभाव से तिलोत्तमा अप्सरा बनने का कथन ) । kubjikaa
कुमार गरुड १.२०५.६६( कुमार के सत्य/सभ्य? अग्नि का रूप होने का उल्लेख ), पद्म १.१९.२२६ ( अनावृष्टि काल में ऋषियों द्वारा मृत कुमार को पकाने का कथन ), ३.२५.२३ ( कुमार कोटि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्म २.११ ( गौतमी तीर्थ की ही कुमार तथा कार्तिकेय नाम से प्रसिद्धि, नाम हेतु तथा माहात्म्य का कथन ), ब्रह्माण्ड १.१.५.५८( ५ प्राकृत व ३ वैकृत सर्गों से निर्मित ९वें कौमार सर्ग का कथन ), १.२.१४.१७ ( शाकद्वीपेश्वर हव्य के सात पुत्रों में से एक, कुमार के नाम पर कौमार वर्ष के नामकरण का उल्लेख ), १.२.१८.५५ ( आह्लादिनी धारा द्वारा कालोदरी, कुमारी आदि को प्लावित करते हुए पूर्वी समुद्र में विलीन होने का उल्लेख ), १.२.२३.८५ ( ग्रहों के रथ वर्णन में कुमार रथ के ऋजु व वक्र गति वाले असंगलोहित अश्वों से युक्त होने का उल्लेख ), २.३.१.५४ ( प्रजापतियों में कुमार का उल्लेख ), २.३.३.२५ ( अष्ट वसुओं में से एक अग्नि के पुत्र रूप में कुमार का उल्लेख ), २.३.१०.३५ ( कुमार के उत्पन्न होने पर आकाश में देवों, यक्षों, गन्धर्वों का एकत्र होना तथा उत्सव मनाना, कुमार के षण्मुख, स्कन्द तथा कार्तिकेय नामों के हेतु का कथन ), २.३.१२.३४ ( सुकुमारता प्राप्ति हेतु कुक्कुटों को पिण्डदान का निर्देश ), ३.४.३०.३९ ( शिव व पार्वती - पुत्र कुमार द्वारा तारक नामक असुर के वध का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१९.५८(रूप तन्मात्रा के अधिपति रूप में कुमार का उल्लेख), भागवत ३.१०.२६( कौमार सर्ग के उभयात्मक/प्राकृत - वैकृत होने का उल्लेख ), ६.३.२१( भागवत धर्म को जानने वाले १२ जनों में से एक ), ११.१६.२५ ( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के ब्रह्मचारियों में कुमार / सनत्कुमार होने का उल्लेख ), मत्स्य ५.२६ ( अग्नि - पुत्र कुमार की शरस्तम्ब में उत्पत्ति तथा शाख, विशाख, नैगमेय का कुमार के अनुजों के रूप में उल्लेख ), १२२.२०( जलधार वर्ष के अपर नाम सुकुमार का उल्लेख ), १२२.२२( नारद वर्ष के अपर नाम कौमार का उल्लेख ), १६०.४ (कुमार व तारकासुर का भीषण युद्ध, कुमार द्वारा तारक के वध का वर्णन ), २०३.६ ( अनल / अग्नि - पुत्र, धर्म वंश ), २२५.१८ ( दण्ड प्रशंसा के अन्तर्गत दण्डभय से कुमार को सेनापतित्व प्रदान करने का उल्लेख ), २५२.३ ( वास्तुशास्त्र के १८ उपदेष्टाओं में से एक ), वराह २३.१४ ( देवों की प्रार्थना पर परमेष्ठी ब्रह्मा के हास्य से कुमार गणेश की उत्पत्ति का कथन ), वायु २२.१० ( श्वेतलोहित नामक २० वें कल्प में ब्रह्मा के ध्यान करने पर महेश्वर रूप श्वेत विग्रह कुमार की उत्पत्ति का कथन ), २२.२३ ( रक्त नामक ३० वें कल्प में ब्रह्मा के ध्यान करने पर महेश्वर रूप रक्त विग्रह कुमार की उत्पत्ति का कथन ), २६.८ ( सृष्टि के इच्छुक ब्रह्मा के चिन्ता करने पर दिव्यगन्ध, सुधापेक्षी कुमार के प्रादुर्भाव का उल्लेख ), २७.४ ( कल्प के आदि में ब्रह्मा द्वारा आत्मतुल्य पुत्र का ध्यान करने पर नीललोहित कुमार का प्राकट्य, कुमार का रुदन, रुदन का हेतु पूछने पर कुमार द्वारा नाम प्रदान की कामना, ब्रह्मा द्वारा कुमार को क्रमश: ८ बार रुदन करने पर रुद्र, भव, शिव,पशुपति, ईश, भीम, उग्र तथा महादेव नामों से अभिहित करने का कथन ), ३३.१६( प्रियव्रत - पुत्र तथा शाकद्वीप के शासक हव्य के सात पुत्रों में से एक कुमार के नाम पर कौमार वर्ष के नामकरण का उल्लेख ), ४७.५२( भुवन - विन्यास के अन्तर्गत आह्लादिनी धारा के केरलों , किरातों, कालोदरी तथा कुमारी आदि को प्लावित करते हुए समुद्र में विलीन होने का उल्लेख ), ६५.५३ ( एक प्रजापति के रूप में कुमार का उल्लेख ), ६६.२४ (आठ वसुगणों में से एक अग्नि के कुमार नामक पुत्र का शरस्तम्ब में जन्म, अपर नाम स्कन्द ), ६९.७१ ( कद्रू के शेष, वासुकि आदि प्रधान नाग पुत्रों में कुमार का उल्लेख ), ७२.३४ (जाह्नवी - सुत कुमार के उत्पन्न होने पर आकाशमण्डल में देवों, यक्षों, विद्याधरों, गन्धर्वों, किन्नरों आदि के एकत्र होने तथा उत्सव मनाने का उल्लेख ), विष्णु १.१५.११५ ( अष्ट वसुओं में से एक अग्नि के पुत्र रूप में कुमार का उल्लेख ), २.४.६० (शाकद्वीपेश्वर के सात पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.७१.३ (देवमूर्ति निर्माण प्रसंग में कुमार मूर्ति के रूप का निरूपण ), शिव २.४.३.३३ ( कृत्तिकाओं द्वारा स्तनपानादि से कुमार का पालन, कुमार की नाना लीलाओं से देवताओं को विस्मय प्राप्ति का उल्लेख ), २.४.१० ( कुमार द्वारा तारकासुर के वध का वर्णन ), २.४.११ ( कुमार द्वारा क्रौंच नामक पर्वत की प्रार्थना पर बाणासुर तथा शेष - पुत्र कुमुद नाग की प्रार्थना पर प्रलम्बासुर के वध का कथन ), ५.१९.३५ ( ब्रह्मलोक व वैकुण्ठ लोक से ऊपर कौमार लोक में शिव - सुत कुमार के विराजमान होने का उल्लेख ), स्कन्द १.१.२७ (कुमार की उत्पत्ति का प्रसंग ), १.१.२८ ( कुमार के सेनापतित्व में देवसेना तथा तारक के साथ असुरसैन्य के युद्ध हेतु प्रयाण का वर्णन ), १.१.२९.६० ( विष्णु तथा नारद द्वारा शिव - सुत कुमार को तारक वध हेतु प्रेरित करना ), १.१.३० ( तारक और कुमार का द्वन्द्व युद्ध, कुमार द्वारा तारक का वध तथा कुमार विजयोत्सव का वर्णन ), १.१.३१ ( कुमार - प्रोक्त शिवलिङ्ग माहात्म्य का वर्णन ), १.२.२९ ( कुमार जन्म का प्रसंग ), १.२.३० ( देवों द्वारा कुमार का अभिषेक व भेंट प्रदान करने का वर्णन ), १.२.३१ ( सैन्य सहित कुमार के तारकासुर नगर के प्रति गमन का वर्णन ), १.२.३२ ( तारक वध तथा बाणसहित क्रौञ्च पर्वत को भस्म करने का वृत्तान्त ), १.२.३३ (कुमार द्वारा स्थापित प्रतिज्ञेश्वर, कपालेश्वर तथा शक्तिछिद्रेश्वर लिङ्गों का संक्षिप्त माहात्म्य ), १.२.३४ (कुमार द्वारा स्थापित कुमारेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन ), २.१.१.६४ ( कुमार धारा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३२२.२९ ( नर्मदा - पुत्र कुमार अग्नि के असुरों के शस्त्र से शल्य युक्त होने पर कपिला नदी में स्नान से शल्य रहित होने का कथन ), ५.३.६३ ( कुमारेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.७३ ( कुमारेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.२१५ ( कुमारेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : परदारा अपहरण तथा पितृवध के पाप से मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.७३.१२( शिखा वपन के पश्चात् बालक की कुमार संज्ञा का उल्लेख ), ३.१११.२२ ( कुमार दान से भूम लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१२२.५६( केतुमाल में कुमार दान से पति प्राप्ति फल का उल्लेख ),कथासरित् ३.६.८७ ( षण्मुख कुमार की उत्पत्ति का प्रसंग, इन्द्र द्वारा कुमार का सेनापति पद पर अभिषेक ) । kumaara/kumar
कुमारकोशल वायु ७७.३७ ( पालपञ्जर पर्वत पर स्थित कुमारकोशल तीर्थ की श्राद्ध हेतु प्रशस्तता का उल्लेख ) ।
कुमारधारा वामन ९०.१६ ( कुमारधार तीर्थ में विष्णु का वाह्लीश नाम से वास ), कथासरित् ९.५.१५३ ( स्वामी कार्तिकेय की आराधना में विघ्न हेतु आराधनकर्त्ता के सिर पर कुमारधारा के पतन का कथन ) ।
कुमारपाल स्कन्द ३.२.३६.५३ ( राजा कुमारपाल - शासित धर्मारण्य सत्र में वैष्णव धर्म का परित्याग तथा बौद्ध धर्म के प्रसार का वृत्तान्त ) ।
कुमार्या स्कन्द ७.१.१७२.८ ( राजा भरत द्वारा स्वपुत्री कुमार्या के नाम से कुमार्या द्वीप के नामकरण का उल्लेख ) ।
कुमारवंश विष्णु ४.१२.४२ ( मधु -पुत्र, अनु- पिता, ज्यामघ वंश ) ।
कुमारवत् लक्ष्मीनारायण ३.१७०.१७ ( कृष्ण के २७ वें धाम का नाम ) ।
कुमारवन मत्स्य २४.१९ ( काम द्वारा पुरूरवा को गन्धमादन पर्वत पर स्थित कुमारवन में उर्वशी - जन्य वियोग से उन्माद होने रूप शाप प्रदान का उल्लेख ) ।
कुमारसचिव कथासरित् १.४.३० ( उपकोशा द्वारा काम पीडित कुमारसचिव की दुर्गति की कथा ) ।
कुमारा विष्णु २.३.१४ ( शुक्तिमान् पर्वत से नि:सृत एक नदी ) ।
कुमारिका पद्म ३.२४.३१ (कुमारिका तीर्थ में स्नान से इन्द्रलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द १.२.३९.६८ ( भरत - पौत्री तथा शतशृङ्ग - पुत्री कुमारिका को बर्करी मुख की प्राप्ति, बर्करीमुखत्व का कारण तथा महीसागर संगम के प्रभाव से बर्करीमुखत्व से मुक्ति का वृत्तान्त ) ।
कुमारिल वामन ९०.७ ( वितस्ता में विष्णु का कुमारिल नाम से वास )
कुमारी ब्रह्माण्ड १.२.१६.३८ ( शुक्तिमान् पर्वत से नि:सृत एक नदी ), १.२.१९.९६ ( शाकद्वीप की एक नदी ), २.३.१३.२८ ( श्राद्धादि हेतु कुमारी तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ), ३.४.२६.७४ ( नववर्षीया ललिता - पुत्री कुमारी द्वारा भण्डासुर - पुत्रों के वध का वृत्तान्त ), भागवत ११.७.३४,३५ ( दत्तात्रेय के चौबीस गुरुओं में कुमारी कन्या का उल्लेख ), ११.९.५ ( धान कूटती कुमारी कन्या के कङ्कण से दत्तात्रेय के शिक्षा ग्रहण करने का वर्णन ), मत्स्य १३.३४ ( मायापुरी में सती देवी के कुमारी नाम से पूजित होने का उल्लेख ), १६३.८६ ( हिरण्यकशिपु द्वारा प्रकम्पित नदियों में कुमारी का उल्लेख ), वराह ९२.३ ( तप करती हुई वैष्णवी देवी के क्षुभित मन से कुमारियों की उत्पत्ति का कथन ), वायु ४९.९२ ( शाकद्वीप की सात महागङ्गाओं में से एक, अपर नाम सिद्धा ), शिव ५.१८.५५ ( शाकद्वीप की सात प्रमुख नदियों में कुमारी का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१९८.७१ ( मायापुरी में उमा की कुमारी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.२४२ ( कुमारी माहात्म्य का वर्णन : देवों के स्वेद से उत्पन्न कुमारी देवी द्वारा रुरु असुर का वध ), लक्ष्मीनारायण २.४७.२२ ( कुमारी शब्द की निरुक्ति ), कथासरित् ९.१.१२३ (कुमारीदत्त :राजा पृथ्वीरूप द्वारा अपने कुशल चित्रकार कुमारीदत्त को स्वचित्र बनाने का आदेश ) । kumaaree/kumari
कुमुञ्ज वायु ३६.१८ ( मन्दर के पूर्व में स्थित तथा सिद्धों के आवास से युक्त अनेक पर्वतों में कुमुञ्ज का उल्लेख ), ३७.१ ( शीतान्त और कुमुञ्ज पर्वतों के मध्य स्थित द्रोणी / घाटी में श्रीसर सरोवर का उल्लेख ), ३९.२८ ( कुमुञ्ज पर्वत के धातु - चित्रित शिखरों पर दानवों के आठ नगरों की स्थिति का उल्लेख ) । kumunja
कुमुथि वायु १०६.२४ ( गयासुर के शरीर पर सम्पन्न ब्रह्मा के यज्ञ के अनेक मानस पुरोहितों में से एक )
कुमुद अग्नि ५६.१३ ( आठ ध्वज - देवताओं में से एक ), ९६.१० ( आठ ध्वज - देवताओं में से एक कुमुद के पूजन सम्बन्धी मन्त्र का उल्लेख ), २०७ ( कौमुद व्रत का वर्णन ), गरुड ३.२४.७८(श्रीनिवास के उत्तर द्वार पर कुमुद – कुमुदाक्ष की स्थिति), गर्ग ५.२.१८ ( इन्द्र के अनुचर कुमुद द्वारा अश्वमेध के अश्व की चोरी करने पर इन्द्र के शाप से अश्वाकृति केशी असुर बनने का उल्लेख ), देवीभागवत ८.६.१८ ( सुमेरु पर्वत के एक स्तम्भ कुमुद पर्वत पर शतबल नामक वट वृक्ष की स्थिति का उल्लेख .), नारद १.६८.३७ ( कुमुद की समिधा से मन्त्रियों को वश में करने का उल्लेख ), १.९०.७०( कुमुद द्वारा देवी पूजा से चर सिद्धि का उल्लेख ), पद्म ६.१२२.६२ ( कुमुद शब्द की निरुक्ति, बलि पूजा में कुमुद पुष्पों के अर्पण से कौमुदी उत्सव के कौमुदी नाम धारण करने का कथन ), ६.१३३.३० ( कुमुद पर्वत पर सत्यवादन तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४४( कुमुद पर्वत के श्वेत वर्ष का उल्लेख), २.३.७.२४२ ( राम - रावण युद्ध का एक वानर योद्धा ), २.३.७.२९२ ( इरावती के चार पुत्रों में से एक ), २.३.७.३४५ ( चन्द्रसाम हस्ती द्वारा पिङ्गला हस्तिनी से कुमुद नामक पुत्र की उत्पत्ति ), भविष्य ३.४.१७.५२ ( ८ दिग्गजों में से एक ), ४.१८०.२९ ( वही), भागवत ५.१६.११, २४ ( कुमुद पर्वत पर शतवल्श नामक वट वृक्ष की स्थिति का उल्लेख ), ७.८.३९ ( विष्णु - पार्षदों में कुमुद का उल्लेख ), ८.२१.१६ ( विष्णु - पार्षद, विष्णु पार्षदों द्वारा असुर सेना पर आक्रमण का उल्लेख ), ११.२७.२८ ( नन्द, सुनन्द, कुमुद आदि आठ पार्षदों की आठ दिशाओं में स्थापना करके पूजन का उल्लेख ), १२.७.३( अथर्ववेदाचार्य पथ्य के तीन शिष्यों में से एक ), मत्स्य २०.१८ ( कौशिक के सात पुत्रों का मानसरोवर में चक्रवाक योनि में जन्म लेने पर सुमना, कुमुद, शुद्ध, आदि नाम धारण करने का उल्लेख ), १२२.५२ ( कुशद्वीप का एक पर्वत, अन्य नाम विद्रुमोच्चय ), १२३.३ ( गोमेदक द्वीप का सर्वौषधि समन्वित एक पर्वत ), १३३.१० ( दानवों द्वारा कुमुद , अञ्जन आदि दिग्गजों के अपहरण का उल्लेख ), मार्कण्डेय ७५.२२ ( महर्षि ऋतवाक् द्वारा शाप से कुमुद पर्वत पर रेवती को गिराना, रेवती नक्षत्र के पतन से कुमुद की रैवतक नाम से प्रसिद्धि ), लिङ्ग १.४९.६३ ( कुमुद वन में विष्णु -प्रमुख देवों के वास का उल्लेख ), १.५०.१२ ( कुमुद पर्वत पर किन्नरों के वास का उल्लेख ), वराह ७८.१८ ( कैलास के उत्तरस्थ पर्वतों में से एक ), १२६.२८ ( कुब्जाम्रक तीर्थ क्षेत्र में स्थित कुमुदाकार तीर्थ में स्नान मात्र से स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), वामन ५७.७३ ( यक्षों द्वारा कुमार को प्रदत्त १५ गणों में से एक ), वायु ३६.२८ ( शीतोद नामक सरोवर के पश्चिम में स्थित पर्वतों में से एक ), ३८.४५ ( कुमुद व अञ्जनाचल पर्वतों के मध्य केसरद्रोणी की स्थिति का उल्लेख ), ३९.५९ ( कुमुद पर्वत पर किन्नरों के आवास का उल्लेख ), ४१.१० ( कुबेर की पद्म, महापद्म आदि आठ निधियों में से एक ), वायु ४७.२(कैलास के पाद से कुमुदों के मन्द नामक जल से मन्दाकिनी नदी की उत्पत्ति का उल्लेख), ४८.३४ ( कुमुद द्वीप में महादेव - भगिनी कुमुदा के दर्शन से चित्त - दोषों के नष्ट होने का उल्लेख ), ४९.३२ ( शाल्मलि द्वीप के सात पर्वतों में से एक ), ६९.१६० ( मणिवर व देवजननी के अनेक पुत्रों में से एक ), ९६.२४७ ( सुनथ व बृहती के तीन पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.३१ ( गरुड के पुत्रों में से एक ), शिव २.४.११.२१( प्रलम्बासुर से पीडित शेष - पुत्र कुमुद का कुमार की शरण में जाना, प्रलम्ब वध से कुमुद को अभय प्राप्ति ), स्कन्द १.२.३६.११( शेषनाग - पुत्र कुमुद द्वारा प्रलम्ब दैत्य के पाताल में आगमन को सूचित करने का उल्लेख ), ३.१.४४.३४(कुमुद द्वारा अकम्पन का वध), ३.१.४९.३२ (कुमुद वानर द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ५.३.१९८.८८ ( कुमुद तीर्थ में उमा की सत्यवादिनी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.२.१७.१०१ ( कुमुद पर्वत पर हरि व हर की उपस्थिति, रेवती नक्षत्र के पतन से कुमुद का रैवतक पर्वत बनना, ऋतवाक् मुनि की कथा ), हरिवंश २.७९.५२ ( कौमुदी : कौमुदी / कार्तिक पूर्णिमा को सुवर्णसूत्र दान का निर्देश ), महाभारत ११५.५४( कौमुद/शरद ऋतु में मधु मांस का वर्जन ), योगवासिष्ठ ३.३९.९ ( कुमुद पुष्पों की तारागणों से उपमा ), वा.रामायण ६.२६.२७ ( सारण द्वारा रावण को वानर यूथपतियों का परिचय देने के प्रसंग में कुमुद नामक वानर यूथपति का परिचय ), लक्ष्मीनारायण १.१५४.३ ( कुमुद पर्वत के रैवत पर्वत पर स्थित होने का कथन ), १.१५४.७( मेरु शृङ्ग पर स्थित कुमुद पर्वत पर विष्णु के निवास का कथन ), १.१५४.३२( मन्दर व कुमुद पर्वतों का रैवत पर्वत पर तैजस रूप में स्थित होने का वर्णन ), १.४८४.१६ ( कुमुदा : दक्ष - पुत्री, चन्द्रमा - पत्नी, अमृत - माता कुमुदा द्वारा पातिव्रत्य बल से चन्द्रमा को दैत्यों के बन्धन से मुक्त कराना ), २.२७.३७ (कमलों के विकास से सूर्योदय तथा कुमुदों के विकास से चन्द्रोदय का कथन ), २.२८.२३ ( कुमुद जाति के नागों के दास होने का उल्लेख ), ४.२.१० ( राजा बदर के कौमुदक नामक विमान का कथन ), कथासरित् ८.५.५४ ( प्रभास से युद्ध हेतु श्रुतशर्मा द्वारा प्रेषित आठ महारथी विद्याधरों में सातवें कुमुद पर्वत के राजा गर्दभरथ वराहस्वामी का उल्लेख ), १०.२.१ ( कुमुदिका : राजा नरवाहनदत्त को वेश्या चरित्र से अवगत कराने हेतु गोमुख द्वारा विक्रमसिंह व कुमुदिका वेश्या की कथा का वर्णन ) । द्र. कौमुदी, कौमौदकी। kumuda
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कुमुदद्युति ब्रह्माण्ड २.३.७.३४५ ( चान्द्रमस साम से उत्पन्न दो गजों में से एक, महापद्म व ऊर्मिमाली - पिता ) ।
कुमुदमाली वामन ५७.६१ ( शंकर द्वारा सेनापति पद पर अभिषिक्त गुह को प्रदत्त चार प्रमथों में से एक ) ।
कुमुदा गर्ग ४.१९.४० ( यमुना सहस्रनामों में से एक ), देवीभागवत ७.३०.५६ ( मानसरोवर में कुमुदा देवी के वास का उल्लेख ), भागवत १०.२.१२ ( योगमाया के १४ नामों में से एक ), मत्स्य १३.२७ ( मानसरोवर तीर्थ में सती देवी के कुमुदा नाम से विराजित होने का उल्लेख ), वायु ४८.३५ ( कुमुद द्वीप में स्थित महादेव - भगिनी कुमुदा के दर्शन से चित्त दोषों के दूर होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१९८.६५ ( मानस तीर्थ में उमा देवी की कुमुदा नाम से स्थिति ), लक्ष्मीनारायण १.४८४.१६ ( दक्ष - कन्या, सोम - पत्नी, अमृत - माता, दैत्यों का अमृत हेतु सोम के समीप आगमन, अमृत प्राप्त न होने पर दैत्यों द्वारा सोम को पृथ्वी पर गिराना, सोम - पत्नी कुमुदा द्वारा पातिव्रत्य बल से दैत्यों को भस्म करना तथा सोम को अम्बर में स्थापित करने का वर्णन ), २.११८.१२ ( सन्तारण ब्राह्मण की कन्या कुमुदा द्वारा हरि अर्चन हेतु नित्य गोदोहन करके दुग्ध प्रदान करने का उल्लेख ), ४.१०१.११८ ( श्रीकृष्णनारायण -पत्नी, प्रमोदिनी व प्रमोदकृत् - माता ) । kumudaa
कुमुदाक्ष अग्नि ५६.१३ ( आठ ध्वज देवताओं में से एक ), ९६.१० ( आठ ध्वज देवताओं में से एक कुमुदाक्ष के पूजन सम्बन्धी मन्त्र का उल्लेख ), गरुड ३.२४.७८(श्रीनिवास के उत्तर दिशा में कुमुदाक्ष-कुमुदन्त द्वारपालों का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.१२९ ( देवजनी व मणिवर के अनेक यक्ष पुत्रों में से एक ), भागवत ८.२१.१६ ( विष्णु - पार्षदों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.२४३.३० ( कुमुदाक्षी : हेमकलिङ्ग नृप तथा नृपपत्नी कुमुदाक्षी की हरिभक्ति का वर्णन ) । kumudaaksha
कुमुदादि ब्रह्माण्ड १.२.३५.५९ ( अथर्ववेद शाखा प्रवर्तक पथ्य की शिष्य परम्परा का एक ऋषि ), वायु ६१.५२ ( पथ्य के तीन शिष्यों में से एक ), विष्णु ३.६.११ ( पथ्य के तीन शिष्यों में से एक ) ।
कुमुदाभ वायु ४४.१२ ( केतुमाल देश का एक जनपद ) ।
कुमुदिनी ब्रह्माण्ड ३.४.१२.१३ ( भण्ड की चार रानियों में से एक ), योगवासिष्ठ ३.१५.२० ( कुमुदिनी पुष्प से कान्ता की तुलना ), कथासरित् १२.६.१५० ( राजा भूनन्दन का दैत्य - कन्या कुमुदिनी के समीप पहुंचना, पुन: विलग होना, मुनि के आदेश से बारह वर्ष के तप के पश्चात् भूनन्दन द्वारा कुमुदिनी को प्राप्त करने का वृत्तान्त ) । kumudini
कुमुद्वती ब्रह्माण्ड १.२.१६.३३ ( विन्ध्य पाद से नि:सृत अनेक नदियों में से एक ), १.२.१९.७५ ( क्रौंच द्वीप की सात प्रधान नदियों में से एक ), मत्स्य ११४.२७ ( विन्ध्याचल की उपत्यकाओं से नि:सृत नदियों में से एक ), १२२.८८ ( क्रौंच द्वीप की सात नदियों में से एक ), वायु ४७.२ ( कुमुद्वान् सरोवर से दिव्य मन्दाकिनी नदी के उद्गम का उल्लेख ), ४९.६९ ( विन्ध्याचल की उपत्यकाओं से नि:सृत नदियों में से एक ), विष्णु २.४.५५( क्रौंचद्वीप की सात प्रधान नदियों में से एक ), स्कन्द ३.३.४.१० ( राजा विमर्दन का स्वपत्नी कुमुद्वती से शिव माहात्म्य का वर्णन : कुमुद्वती का पूर्व जन्म में कपोती होना, शिवमन्दिर में मरण से राजमहिषी बनना ), ५.१.४५ ( कुमुद्वतीपुरी का पद्मापुरी से तादात्म्य, श्राद्ध हेतु कुमुद्वती नगरी की प्रशस्तता तथा प्रभाव का वर्णन ), ५.१.५९.२ ( कुमुद्वती में गया तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), ५.१.६३(वामन कुण्ड की महिमा, वामन कुण्ड की कुमुद्वती/अवन्ती में स्थिति, वामन - बलि की कथा), ५.१.७०.३० ( कुमुद्वती में ४ नदियों, ८४ ईश्वरों आदि की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२६४.५१ ( पुण्डरीक नृप की पत्नी कुमुद्वती के धामदा एकादशी व्रत के प्रभाव से ब्रह्मधाम गमन का वर्णन ), कथासरित् ८.२.३२६ ( कुमुदावती : पञ्चम रसातल के असुरराज दुरारोह द्वारा कुमुदावती को सूर्यप्रभ को प्रदान करने का उल्लेख ) । kumudvati
कुम्भ अग्नि ५६.१६ ( कुम्भ स्थापना विधि ), ५७ ( कुम्भ अधिवासन विधि का वर्णन ), ९६.२४ ( प्रतिष्ठा कर्म में कुम्भ स्थापना विधि का कथन ), १२६.४ ( कुम्भ चक्र में नक्षत्र न्यास से फल का विचार ), गरुड २.२७.५२ ( प्रेतत्व निवृत्ति हेतु उदक घट दान तथा दुग्धघृत घट दान का कथन ), पद्म १.३४.२७७( मण्डल में विभिन्न दिशाओं में विन्यस्त ८ कुम्भों के जलों से स्नान के विशिष्ट फलों का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१४४ ( कुम्भ नामक दैत्य द्वारा कापिलेय नामक दैत्य राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ९.१०.१८ ( वानरसेना द्वारा लङ्का के ध्वस्त किए जाने पर रावण द्वारा कुम्भ, निकुम्भ आदि अपने अनुचरों को युद्धार्थ भेजने का उल्लेख ), मत्स्य १४८.९६ (अश्विनीकुमारों की ध्वजाओं पर कुम्भ आकृति के अंकित होने का उल्लेख ), २६९.३७ ( कुम्भ नामक प्रासाद के आकृति में कुम्भ की भांति तथा ऊंचाई में नौ खण्ड वाले होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.१०५.९ ( दुर्वासा द्वारा कुम्भ को रात्रि में स्त्री होने का शाप ), ६.१.१०६.३६(कुम्भ रूप धारी चूडाला का मदनिका नाम से शिखिध्वज की पत्नी बनना ), वायु २३.२११ ( २५वें द्वापर में विष्णु के अवतार मुण्डीश्वर के ४ पुत्रों में से एक ), ६९.१७६/ २.८.१७० ( कुम्भ नामक दैत्यराज से कापिलेय नामक दैत्यों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ७७.४७ ( कुम्भ तीर्थ में किए गए श्राद्ध के अक्षय फलदायी होने का उल्लेख ), विष्णु ४ .६.१४ ( तारकामय युद्ध में जम्भ, कुम्भ आदि दैत्यों द्वारा सोम की सहायता का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२२.१८( रावण द्वारा शिव के शातकुम्भमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६२.२६( आपकुम्भ : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ५.३.२०.७६ ( ४ कुम्भों का ४ समुद्रों से तादात्म्य ), ५.३.१०३.१९० ( पुत्र प्राप्ति हेतु ऐरण्डी - नर्मदा संगम पर औषधि, चन्दन आदि मिश्रित जलकुम्भ से दम्पत्ति के अभिषेक का कथन ), स्कन्द १.१.१३.२८( बलि - सेनानी, वरुण से युद्ध का उल्लेख ), ५.३.१६८.१७ ( कुम्भकर्ण के दो पुत्रों में से एक, अङ्कूर - पिता ), हरिवंश २.८८.२९ ( श्रीकृष्ण - पत्नियों के स्तनों की कुम्भों से उपमा ), महाभारत वन ७५.१२( बाहुक रूप धारी नल द्वारा दर्शन से खाली कुम्भों के पूर्ण हो जाने का उल्लेख ), अनुशासन १११.१०१( पिष्टमय पूप के हरण से कुम्भोलूक योनि प्राप्ति का उल्लेख ), वा.रामायण ६.५९.२० ( विभीषण द्वारा राम को रावण के कुम्भ आदि वीर योद्धाओं का परिचय देना ), ६.७६.८१ ( कुम्भकर्ण - पुत्र, सुग्रीव के साथ युद्ध करते हुए कुम्भ की मृत्यु का वर्णन ) ; द्र. निकुम्भ, वेदकुम्भ ।
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Vedic contexts on Kumbha
कुम्भक गरुड २.२.१९.६९( कव्यवाह - पुत्री का कुम्भक के गृह में नीला नाम से उत्पन्न होकर विष्णु पत्नी होने का कथन ), ३.१९.६९(कुम्भक-पुत्री नीला के कृष्ण-भार्या होने का उल्लेख), ३.१९.७४(नीला – पिता), स्कन्द ६.१९९.११३ ( कुम्भक नामक चाण्डाल का ब्राह्मण वेश में चन्द्रप्रभ नाम से सुभद्र ब्राह्मण की कन्या से विवाह, पहिचान लिए जाने पर शुद्धि परीक्षा के भय से पलायन का वर्णन ) । kumbhaka
कुम्भकर्ण ब्रह्माण्ड २.३.८.४७ (विश्रवा व कैकसी - पुत्र, रावण, विभीषण व शूर्पणखा - भ्राता ), ३.४.२९.११६ ( ललिता देवी के वामहस्त की तर्जनी के नख से उद्भूत राम द्वारा कुम्भकर्ण के वध का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१३.२७ ( विश्रवा व कैकसी का कनिष्ठ पुत्र, रावण - भ्राता, पितृभक्त, तप से ब्रह्मा को प्रसन्न करके वर प्राप्ति का कथन ), भागवत ४.१.३७ ( विश्रवा व केशिनी - पुत्र, रावण व विभीषण - भ्राता ), ७.१.४३, ७.१०.३६ ( हिरयकशिपु और हिरण्याक्ष नामक दैत्यों के ही रावण व कुम्भकर्ण के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख ), ९.१०.१८ ( वानरसेना द्वारा लङ्का के ध्वस्त किए जाने पर रावण का अनुचरों, पुत्रों के साथ- साथ भ्राता कुम्भकर्ण को भी युद्धार्थ प्रेषित करने का उल्लेख), वायु ७०.४१ ( विश्रवा व कैकसी - पुत्र, रावण, विभीषण, शूर्पणखा - भ्राता ), शिव ४.२०.५ ( कर्कटी - पति, भीम - पिता, रावण - अनुज ), स्कन्द १(२.६६.१०५ ( राम बाण द्वारा कुम्भकर्ण की मृत्यु का उल्लेख ), ५.३.१६८.१६ ( विश्रवा व कैकसी - पुत्र, रावण व विभीषण - भ्राता, कुम्भ व निकुम्भ पिता ), वा.रामायण ६.६०.१३ ( पराजय से दुःखी हुए रावण की आज्ञा से राक्षसों का कुम्भकर्ण को जगाना, कुम्भकर्ण का राक्षसों से जगाने का हेतु पूछना ), ६.६१.९ ( विभीषण का राम को कुम्भकर्ण का परिचय देते हुए ब्रह्मा द्वारा प्रदत्त सुषुप्ति रूप शाप का कथन ), ६.६५ ( कुम्भकर्ण के युद्ध हेतु प्रस्थान करने पर भय से वानर सेना का पलायन, अङ्गद द्वारा प्रोत्साहन ), ६.६७ ( वानर सेनानियों की पराजय, राम द्वारा कुम्भकर्ण के वध का वर्णन ), ७.९.३४ ( कैकसी - पुत्र, रावण, विभीषण तथा शूर्पणखा - भ्राता ), ७.१२.२३ ( वज्रज्वाला - पति ) । kumbhakarna
कुम्भकर्णी अग्नि २९९.३० ( नवम मास में बालक को पीडित करने वाली कुम्भकर्णी ग्रही के शमनार्थ उपाय का उल्लेख ), मत्स्य १७९.२२ (अन्धक के रक्तपान हेतु महादेव द्वारा सृष्ट अनेक मानस मातृकाओं में से एक ) ।
कुम्भकर्षाश्य वायु २३.२११ ( २५वें द्वापर में विष्णु के अवतार मुण्डीश्वर के ४ पुत्रों में से एक ) ।
कुम्भकार स्कन्द २.१.१०.८७+ ( कुलाल, कुर्व ग्राम निवासी भीम नामक कुम्भकार का आख्यान : भक्ति से भीम को मुक्ति की प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण ३.३०.११ ( हरिप्रथ नामक भगवद्भक्त कुम्भकार के शाप से मनु का मृत होना, मनु उज्जीवनार्थ परमेश्वर का स्वयं को असमर्थ बतलाते हुए स्वभक्त हरिप्रथ के प्रसादन से ही श्रेय प्राप्ति का कथन ), ३.१५४ ( पूर्वजन्मार्जित पापों के प्रभाव से सरोजिनी नामक कुम्भकार - पुत्री के ४ पतियों का मरण, सरोजिनी द्वारा वैराग्य ग्रहण आदि का वृत्तान्त ), ४.४६.४३ ( नरराज नामक कुम्भकार को कुटुम्ब सहित श्री हरि के भजन, हरिकथा श्रवण तथा सेवादि सत्कर्म प्रभाव से मुक्ति प्राप्ति की कथा ), कथासरित् ४.१.१३४ ( पांच पुत्रों के साथ राजभवन में आई हुई कुम्भकारिन को देखकर सन्तानरहित रानी वासवदत्ता द्वारा पिंजलिका से कुम्भकारिन के पुण्यवती होने का कथन ) । kumbhakaara
कुम्भकारी वायु ४४.२२ ( केतुमाल द्वीप की एक नदी ) ।
कुम्भगर्तोदय ब्रह्माण्ड २.३.५.४३ ( बलि के ४ महाबली पुत्रों में से एक ) ।
कुम्भग्रीव ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८८ ( भण्ड - पुत्र व सेनापति ) ।
कुम्भज ब्रह्माण्ड २.३.३५.४२ ( परशुराम का कुम्भज ऋषि के आश्रम में आगमन तथा मृगोक्त वृत्त के विषय में प्रश्न ), ३.४.१७.३५ ( हयग्रीव का कुम्भज / अगस्त्य से सचिवेशानी देवी के १६ नामों का कथन ), ३.४.३०.४ ( हयग्रीव का कुम्भज से भण्ड दानव के वधोपरान्त ललिता देवी द्वारा आचरित कर्म का वर्णन ) । kumbhaja
कुम्भध्वज वामन ६९.४८ ( असुर - देव संग्राम में बलि के कुम्भध्वज नामक गणेश्वर के साथ युद्ध का उल्लेख ) ।
कुम्भनाभ वायु ६७.८३ ( बलि के चार प्रधान पुत्रों में से एक ), ६८.१० ( दनु - पुत्र ) ।
कुम्भनास ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८८( भण्ड - पुत्र व सेनापति ) ।
कुम्भपात्र ब्रह्माण्ड २.३.७.३७८ ( १६ पिशाच युग्मों में से एक युग्म का कुम्भपात्र व कुम्भी नाम से उल्लेख ), वायु ६९.२६० ( पिशाच दम्पत्तियों के १६ गणों में से एक कुम्भपात्र व कुम्भी का उल्लेख), ६९.२७४( कुम्भपात्र नामक पिशाच गणों की प्रकृति का कथन) ।
कुम्भमान ब्रह्माण्ड २.३.६.१० ( कश्यप व दनु के सहस्रों पुत्रों में से एक ) ।
कुम्भयोनि भागवत १.१९.१० ( गङ्गा तट पर ध्यानस्थ राजा परीक्षित के निकट अत्रि, वसिष्ठ, कुम्भयोनि /अगस्त्य प्रभृति ब्रह्मर्षियों , देवर्षियों के शुभागमन का कथन ) ।
कुम्भसंभव ब्रह्माण्ड ३.४.१७.३२ ( हयग्रीव द्वारा कुम्भसंभव / अगस्त्य को सचिवेशानी देवी के १६ नामों का कथन ), ३.४.२९.५८ ( हयग्रीव द्वारा कुम्भसंभव को ललितादेवी व भण्ड दैत्य के युद्ध का वर्णन ) ।
कुम्भवक्त्र वामन ५७.८७ ( ऋषियों द्वारा स्कन्द को प्रदत्त ५ अनुचरों में से एक ) ।
कुम्भश्रुति गर्ग १०.३२.१ ( बल्वल दैत्य का अनुज ) ।
कुम्भहनु वा.रामायण ६.५८.२३ ( रावण - सेनानी, प्रहस्त - सचिव, तार नामक वानर द्वारा वध का कथन ) ।
कुम्भाण्ड ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८९ ( भण्ड दैत्य के अनेक पुत्रों में से एक ), भागवत १०.६२.१४ ( बाणासुर - मन्त्री , चित्रलेखा - पिता ), १०.६३.८ ( कृष्ण व बाणासुर युद्ध में बाणासुर के मन्त्रियों कुम्भाण्ड व कूपकर्ण के बलराम के साथ युद्ध का उल्लेख ), विष्णु ५.३२.१७ ( बाणासुर - मन्त्री, चित्ररेखा - पिता ), शिव ३.५.३८ (२५वें द्वापर में दण्डी - मुण्डीश्वर शिव अवतार के शिष्यों में से एक ), हरिवंश २.११६.३८ ( बाणासुर - मन्त्री, बाणासुर को शिव से युद्ध रूपी वर की प्राप्ति होने पर कुम्भाण्ड के चिन्तायुक्त होने का कथन ), २.१२७.३४ ( बाणासुर की गायों को वरुण से मुक्त कराने हेतु कुम्भाण्ड की कृष्ण से प्रार्थना का उल्लेख ) । kumbhaanda
कुम्भायन लक्ष्मीनारायण २.१२१.१०१ ( कुम्भायन ऋषि द्वारा ब्रह्मा से ग, श वर्णों की प्राप्ति का उल्लेख ) ।
कुम्भिका लक्ष्मीनारायण १.३१९.१०( जोष्ट्री - पुत्री, माता द्वारा जल वासियों को देना ), १.३१९.११६( श्रीहरि की पत्नी बनने पर कुम्भिका की निरुक्ति ), २.३०.९५ ( लक्ष्मी के कुम्भिका नाम से हरिप्रथ नामक भक्त कुम्भकार के गृह में निवास का कथन ) । kumbhikaa
कुम्भिल ब्रह्माण्ड १.२.२०.२८ ( तृतीय तल में कुम्भिल राक्षस के नगर का उल्लेख ), वायु ५०.२७ ( तृतीय पीतभौम नामक तल में कुम्भिल राक्षस के पुर का उल्लेख ), ६८.३२ ( दनायुषा - पौत्र, बलि - पुत्र ) । kumbhila
कुम्भी ब्रह्माण्ड २.३.७.३७८ ( १६ पिशाच युग्मों में से एक युग्म की स्त्री ), वायु ८३.८९ (कुम्भीक : कर्मच्युत जनों को कुम्भीक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.२६६ ( कुम्भीश्वर के दर्शन से पाप मुक्ति का उल्लेख ) । kumbhee/ kumbhi
कुम्भीनसी मत्स्य १८७.४१( बलि व विन्ध्यावली - कन्या, अनौपम्या - ननद ), वायु ७०.४९ ( विश्रवा व पुष्पोत्कटा - कन्या, खर आदि की भगिनी ), विष्णुधर्मोत्तर १.२००.५ ( राक्षसी, मधु नामक राक्षस द्वारा माली की पुत्री तथा रावण की भगिनी कुम्भीनसी का हरण, लवण - माता ), वा.रामायण ७.५.४२ (सुमाली व केतुमती की चार कन्याओं में से एक ), ७.२५.२२-२६ ( माल्यवान् - पौत्री, अनला - कन्या, मधु राक्षस द्वारा हरण का कथन ), ७.६१.१६ ( विश्वावसु व अनला -पुत्री, मधु - पत्नी, लवण - माता ), लक्ष्मीनारायण २.८६.४२( विश्रवा व पुष्पोत्कटा - कन्या ) । kumbheenasee/ kumbheenasi/ kumbhinasi
कुम्भीपाक ब्रह्मवैवर्त २.३०.१४५ ( कुम्भीपाक नरक प्राप्ति के हेतुओं /पापों का कथन ), २.३०.२११ ( कुम्भीपाक नरक प्राप्ति के हेतु पापों का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.२८.८३ ( आश्रम धर्म से भ्रष्ट होने पर कुम्भीपाक प्रभृति नरकों में पतन का उल्लेख ), २.३.१९.६१ ( योगेश्वरी की निन्दा श्रवण से कुम्भीपाक आदि नरकों में पतन का कथन ), भागवत ५.२६.७,१३ ( अठ्ठाईस नरकों में से एक, उदरपूर्ति हेतु पशु अथवा पक्षी को पकाने वाले को कुम्भीपाक नरक प्राप्ति का उल्लेख ), १०.६४.३८ ( ब्राह्मण दाय का अपहरण करने वाले राजाओं को अपने वंशजों सहित कुम्भीपाक नरक के दुःखों की प्राप्ति का कथन ), मत्स्य १४१.७० (जीव के स्वकर्मानुसार कुम्भीपाक प्रभृति नरकों में गिराए जाने का उल्लेख ) । kumbheepaaka/ kumbhipaka
कुम्भीपाल स्कन्द ३.२.३६.४३ (ब्रह्मावर्त - अधिपति तथा रत्नगङ्गा - पति कुम्भीपाल की जैन धर्म परायणता का कथन, अपर नाम कुमारपाल ) ।
कुम्भीर कथासरित् ८.१.४४ ( काञ्ची के राजा कुम्भीर की राजकुमारी वरुणसेना द्वारा सूर्यप्रभ को वरण करने का उल्लेख ), ८.१.९८ ( काञ्चीराज कुम्भीर का स्वभ्राता रम्भ के पास दूत भेजकर सूर्यप्रभ से मैत्री की इच्छा व्यक्त करने का उल्लेख ) ।
कुम्भोत्कच ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८८ ( भण्ड - पुत्र व सेनापति ) ।
कुम्भोदर पद्म ६.२०३.२० ( कुम्भोदर नामक शिवगण का सिंह रूप में दिलीप से संवाद, कपिला गौ द्वारा दिलीप की परीक्षा की कथा ) ।
कुर्कुरी स्कन्द ५.३.२०५ ( कुर्कुरी तीर्थ के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन : कुर्कुरी तीर्थ में ढौण्ढेश नामक क्षेत्रपाल का निवास तथा कुर्कुरी देवी से अभीप्सित की प्राप्ति ) ।
कुरज मत्स्य २०३.१३ ( धर्म व विश्वा के दस विश्वेदेव पुत्रों में से एक ) ।
कुरङ्ग भागवत ५.१६.२६ ( मेरु के मूलदेश में स्थित २० पर्वतों में से एक ), कथासरित् १६.२.१०६ ( कुरङ्गी : राजा प्रसेनजित् द्वारा स्व कन्या कुरङ्गी को अग्नि - पुत्र को प्रदान करने का उल्लेख ) ।
कुरण्टक पद्म ६.२२२.१२ ( कुरण्टक ब्राह्मण का श्रुति, स्मृति तथा देवता निन्दक होने से मृत्यु पश्चात् सर्प बनना, कूपमग्ना गौ के उद्धार रूप सत्कर्म के प्रभाव से सर्प को मृत्यु पश्चात् वैकुण्ठ की प्राप्ति का कथन ) ।
कुरण्ड ब्रह्माण्ड ३.४.२१.७७, ३.४.२२.१०३ ( भण्डासुर - सेनानी कुरण्ड के अश्वारूढा देवी द्वारा वध का कथन ), कथासरित् ८.५.६३ ( कुरण्डक : प्रभास से युद्ध हेतु श्रुतशर्मा द्वारा प्रेषित चार महारथियों में कुरण्डक पर्वत के स्वामी काचरक नामक विद्याधर का उल्लेख ) । kuranda
कुरर भागवत ५.१६.२६ ( मेरु के मूलदेश में स्थित २० पर्वतों में से एक ), ११.७.३४, ११.९.२ ( दत्तात्रेय के चौबीस गुरुओं में से एक, कुरर पक्षी से अपरिग्रह की शिक्षा के ग्रहण का कथन ), विष्णु २.२.२७ ( कुररी : मेरु की तलहटी में स्थित २० पर्वतों में से एक ), २.४.१७ ( कुररा : प्लक्षादि पांच द्वीपों के अन्तर्गत रहने वाले चार वर्णों में से एक ), स्कन्द ६.१८५ ( अतिथि द्वारा कुरर पक्षी से आमिष / धन त्याग की शिक्षा ग्रहण करने का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५१०.४२ ( कुरर पक्षी के उद्धरण द्वारा धन - त्याग की शिक्षा का कथन ) । kurara
कुरव स्कन्द १.२.६२.३५( पर्वतों पर कुरव जाति के क्षेत्रपालों की स्थिति का उल्लेख )
कुरु
गर्ग
७.१९+
( प्रद्युम्न
का
सेना
सहित
कुरुदेश
में
गमन,
कुरुदेश
की
शोभा
व
प्रद्युम्न
के
कौरवों
से
युद्ध
का
वर्णन
),
देवीभागवत
७.३०.८०
(
उत्तरकुरु
प्रदेश
में
औषधि
देवी
के
वास
का
उल्लेख
),
नारद
१.५६.७४४(
कुरु
देश
के
कूर्म
के
पाणि
मण्डल
होने
का
उल्लेख
),
ब्रह्म
१.१६.४५(
लोकशैल
/
मेरु
के
४
पत्रों
में
से
एक
),
ब्रह्माण्ड
१.२.१४.४७
(
आग्नीध्र
के
९
पुत्रों
में
से
एक,
शृङ्गवान्
के
उत्तर
में
स्थित
वर्ष
कुरु
को
प्रदान
करने
का
उल्लेख
),
२.३.७.१९
(
अप्सराओं
के
१४
गणों
में
से
सोम
के
तेज
से
उत्पन्न
एक
गण
),
भागवत
५.२.१९
(
आग्नीध्र
व
पूर्वचित्ति
के
कुरु
आदि
नौ
पुत्रों
का
उल्लेख,
नारी
-
पति
),
९.२२.४
(
संवरण
व
तपती
-
पुत्र
कुरु
द्वारा
कुरुक्षेत्र
की
स्थापना,
परीक्षितादि
-
पिता
),
१०.५४.५८
(
रुक्मिणी
व
कृष्ण
के
विवाह
के
आनन्दोत्सव
में
सम्मिलित
राजवंशों
में
कुरुवंश
का
उल्लेख
),
१०.८२.१३
(
सूर्य
ग्रहण
के
अवसर
पर
कुरुक्षेत्र
में
एकत्र
हुए
विभिन्न
देशों
के
नरपतियों
में
कुरुदेश
के
नरपतियों
का
उल्लेख
),
१०.८४.५५
(
वसुदेव
के
यज्ञोत्सव
में
कुरुदेशीय
राजाओं
के
सम्मिलित
होने
तथा
वसुदेव
द्वारा
सम्मानित
होने
का
उल्लेख
),
मत्स्य
५०.२०
(
संवरण
-
पुत्र,
सुधन्वा
,
जह्नु,
परीक्षित्
तथा
प्रजन
-
पिता,
कुरु
द्वारा
कुरुक्षेत्र
का
कर्षण,
कुरुवंशजों
के
कौरव
नाम
से
प्रसिद्ध
होने
का
कथन
),
११४.३४
(
मध्यदेश
के
जनपदों
में
कुरु
जनपद
का
उल्लेख
),
१२१.४९
(
गङ्गा
द्वारा
सिंचित
आर्य
देशों
में
कुरु
देश
का
उल्लेख
),
मार्कण्डेय
५६.१८/५९.१८
(
उत्तर
कुरु
वर्ष
का
वर्णन
),
वामन
२२.३
(
संवरण
व
तपती
-
पुत्र
कुरु
का
सौदामिनी
से
परिणय,
द्वैतवन
में
कुरु
द्वारा
अष्टाङ्ग
धर्म
की
कृषि
करने
पर
उस
स्थान
की
कुरुक्षेत्र
नाम
से
प्रसिद्ध,
विष्णु
के
वरदान
स्वरूप
कुरुक्षेत्र
के
धर्मक्षेत्र
होने
का
वृत्तान्त
-
राजाऽब्रवीत्
सुरवरं
तपः
सत्यं
क्षमां
दयाम्।
कृषामि
शौचं
दानं
च
योगं
च
ब्रह्मचारिताम्।।
),
वायु
३३.४०
(
आग्नीध्र
व
पूर्वचित्ति
-
पुत्र
),
३३.४४
(
उत्तर
में
स्थित
शृङ्गवद्
वर्ष
के
अधिपति
के
रूप
में
कुरु
का
उल्लेख
),
४५.११(
कुरु
वर्ष
की
शोभा
का
वर्णन
),
४५.२१
(
शैलराज
जारुधि
के
उत्तरस्थ
उत्तर
कुरु
का
वर्णन
),
४५.१०९
(
मध्यदेश
के
जनपदों
में
से
एक
),
६९.५५
(
अप्सराओं
के
१४
गणों
में
से
सोम
के
तेज
से
उत्पन्न
एक
गण
),
८४.२३
,
४८
(
हिमालय
के
उत्तर
में
उत्तरकुरु
तथा
दक्षिण
में
दक्षिण
कुरु
का
उल्लेख
),
९९.२१४
(
संवरण
व
तपती
-
पुत्र
कुरु
द्वारा
प्रयाग
का
अतिक्रमण
करके
कुरुक्षेत्र
की
स्थापना,
कुरु
द्वारा
कृष्ट
होने
से
कुरुक्षेत्र
नाम
धारण,
सुधन्वा,
जह्नु,
परीक्षित
व
अरिमर्दन
-
पिता,
कुरु
के
वंशजों
की
कौरव
नाम
से
प्रसिद्धि
-
यः
प्रयागं
पदाक्रम्य
कुरुक्षेत्रञ्चकार
ह।
कृष्ट्वैनं
सुमहातेजा
वर्षाणि
सुबहून्यथ
।।
),
विष्णु
१.१३.५
(
नड्वला
व
मनु
-
पुत्र,
आग्नेयी
-
पति,
अङ्ग
आदि
६
पुत्रों
के
पिता
),
२.१.१७
(
जम्बूद्वीपेश्वर
आग्नीध्र
के
९
पुत्रों
में
से
एक,
कुरु
को
शृङ्गवत्
वर्ष
प्राप्त
होने
का
उल्लेख
),
स्कन्द
७.१.३५.५
(
कुरु
का
ऊरु
से
तादात्म्य
-
कालांतरे
ततो
भित्त्वा
कुरुदेशं
महाप्रभः
॥
निर्गतोत्तंभितशिरा
ज्वलदास्योतिभीषणः
॥),
लक्ष्मीनारायण
३.७३.७६
(
शर्मिष्ठा
व
ययाति
-
पुत्र
कुरु
का
पिता
से
जरा
प्राप्ति
को
अस्वीकार
करके
हिमालय
जाकर
तप
करना,
कृषि
द्वारा
प्राप्त
अन्न
से
आतिथ्य
सत्कार,
प्रसन्न
विष्णु
द्वारा
कुरु
को
मोक्ष
पद
प्रदान
तथा
कुरु
द्वारा
कृष्ट
क्षेत्र
को
कुरुक्षेत्र
नाम
से
अभिहित
करने
का
वर्णन
-
तुरुं
यदुं
कुरुं
पुरुं
स्पष्टमाह
नृपस्तदा
।।
)
।
द्र.
उत्तरकुरु
kuru
Comments on Kuru
कुरुकुल्ला नारद १.८९.४३ ( ललिता सहस्रनाम के अन्तर्गत एक नाम ), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.३८ ( नौकेश्वरी देवी का अपर नाम ) ।
कुरुक्षेत्र
अग्नि
११५.६(
कुरुक्षेत्र
में
वास/वस्त्र
दान
की
प्रशंसा
का
उल्लेख
),
कूर्म
१.३७.३७
(
द्वापर
में
कुरुक्षेत्र
तीर्थ
की
विशिष्टता
का
उल्लेख
-
कृते
तु
नैमिषं
तीर्थं
त्रेतायां
पुष्करं
परम्
।
द्वापरे
तु
कुरुक्षेत्रं
कलौ
गङ्गां
विशिष्यते
।।
),
देवीभागवत
७.३८.२४
(
कुरुक्षेत्र
में
स्थाणु
प्रिया
नाम
से
देवी
के
वास
का
उल्लेख
),
नारद
२.६४
(
कुरु
द्वारा
कृष्ट
होने
पर
ही
ब्रह्मसर,
रामहृद
रूप
से
प्रसिद्ध
स्थान
का
कुरुक्षेत्र
नाम
से
प्रथित
होना,
कुरुक्षेत्र
तीर्थ
के
माहात्म्य
का
कथन
-
पंचयोजनविस्तारं
दयासत्यक्षमोद्गमम्
।।
स्यमंतपंचकं
तावत्कुरुक्षेत्रमुदाहृतम्
।।
),
२.६५
(
कुरुक्षेत्र
के
अन्तर्गत
वन,
नदी,
विभिन्न
तीर्थों
का
वर्णन,
यात्रा
विधि
का
निरूपण
),
पद्म
३.२६.१
(
कुरुक्षेत्र
तीर्थ
के
माहात्म्य
का
कथन
),
ब्रह्माण्ड
२.३.४७.२
(
जमदग्नि
-
पुत्र
परशुराम
का
कुरुक्षेत्र
में
जाकर
पांच
सरोवरों
का
निर्माण,
रक्तपूरित
सरोवरों
में
स्नान
कर
पितरों
का
तर्पण,
स्यमन्तपञ्चक
तीर्थ
का
निर्माण
तथा
तीर्थ
में
स्नान
से
मनुष्य
के
कृतकृत्य
होने
का
कथन
),
भागवत
३.३.१२
(
सैन्य
सहित
राजाओं
के
कुरुक्षेत्र
में
पहुंचने
पर
कुरुक्षेत्र
की
भूमि
के
कम्पित
होने
का
उल्लेख
),
७.१४.३०
(
धर्मादि
श्रेय
प्रापक
पवित्र
स्थानों
में
कुरुक्षेत्र
का
उल्लेख
),
९.१४.३३
(
पुरूरवा
द्वारा
कुरुक्षेत्र
में
सरस्वती
नदी
के
तट
पर
उर्वशी
के
दर्शन
का
उल्लेख
-
स
तां
वीक्ष्य
कुरुक्षेत्रे
सरस्वत्यां
च
तत्सखीः
। पञ्च
प्रहृष्टवदनाः
प्राह
सूक्तं
पुरूरवाः
॥
),
मत्स्य
२२.१८
(
श्राद्धादि
हेतु
कुरुक्षेत्र
की
प्रशस्तता
का
उल्लेख
),
५०.६७
(
शतानीक
-
पुत्र
अधिसीमकृष्ण
के
शासन
काल
में
कुरुक्षेत्र
में
यज्ञ
अनुष्ठान
के
दो
वर्षों
में
सम्पन्न
होने
का
उल्लेख
),
वामन
२२
(राजर्षि
कुरु
द्वारा
समन्तपञ्चक
क्षेत्र
में
अष्टाङ्ग
धर्मों
की
कृषि
करने
से
उस
क्षेत्र
की
कुरुक्षेत्र
रूप
से
प्रसिद्धि
),
३२.२४
(
कुरु
ऋषि
द्वारा
कृष्ट
होने
से
ब्रह्मसर
अथवा
रामह्रद
की
ही
कुरुक्षेत्र
नाम
से
प्रसिद्धि
का
उल्लेख
),
३३.६
(
कुरुक्षेत्र
तीर्थ
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
५७.९३
(
कुरुक्षेत्र
द्वारा
स्कन्द
को
पलासदा
नामक
गण
प्रदान
करने
का
उल्लेख
),
९०.५
(
कुरुक्षेत्र
में
विष्णु
का
कृतध्वज
नाम
से
वास
),
वायु
७७.६४
(
कुरुक्षेत्र
में
तिलदान
से
पितरों
की
अक्षय
तृप्ति
का
उल्लेख
),
९१.३१
(
उर्वशी
का
अन्वेषण
करते
हुए
राजा
पुरूरवा
द्वारा
कुरुक्षेत्र
में
उर्वशी
के
दर्शन
करने
का
उल्लेख
),
९९.२१५
(
संवरण
-
पुत्र
कुरु
द्वारा
प्रयाग
का
अतिक्रमण
करके
कुरुक्षेत्र
की
स्थापना,
अनेक
वर्षों
तक
कृष्ट
करने
से
इन्द्र
द्वारा
वर
प्रदान
करने
का
उल्लेख
),
९९.२१५
(
शतानीक
-
पुत्र
अधिसामकृष्ण
द्वारा
दो
वर्ष
तक
कुरुक्षेत्र
में
यज्ञ
करने
का
उल्लेख
),
विष्णु
४.१९.७७
(
संवरण
-
पुत्र
कुरु
द्वारा
धर्मक्षेत्र
कुरुक्षेत्र
की
स्थापना
का
उल्लेख
),
स्कन्द
२.३.७.१
(
पञ्चधारा
तीर्थ
के
संक्षिप्त
माहात्म्य
का
कथन
:
प्रभास,
पुष्कर,
गया
,
नैमिष
तथा
कुरुक्षेत्र
नामक
पांच
धाराओं
का
स्नान
से
उत्पन्न
मलिनता
की
निवृत्ति
हेतु
ब्रह्मा
के
समीप
गमन,
ब्रह्मा
के
आदेशानुसार
बदरिकाश्रम
में
प्रवेश
मात्र
से
पंच
धाराओं
का
निर्मल
होकर
स्व
-
स्व
स्थान
को
गमन
का
वर्णन
),
३.१.२८.४३
(
उर्वशी
की
खोज
करते
हुए
पुरूरवा
का
कुरुक्षेत्र
पहुंचना
और
कमलयुक्त
सरोवर
पर
क्रीडा
करती
हुई
उर्वशी
को
देखना,
पुरूरवा
-
उर्वशी
वृत्तान्त
-
कुरुक्षेत्रं
गतो
राजा
तटाके
पद्मसंकुले
।।
चतुर्भिरप्सरस्त्रीभिः
क्रीडमाना
ददर्श
ताम्।।
),
५.३.२१.५
(
गङ्गा
के
कनखल
में
,
सरस्वती
के
कुरुक्षेत्र
में
तथा
नर्मदा
के
सर्वत्र
पुण्या
होने
का
उल्लेख
-
गङ्गा
कनखले
पुण्या
कुरुक्षेत्रे
सरस्वती
।
ग्रामे
वा
यदि
वारण्ये
पुण्या
सर्वत्र
नर्मदा
॥),
५.३.६०.७०
(
सूर्य
ग्रहण
के
समय
नर्मदा
तटस्थ
रवि
तीर्थ
तथा
कुरुक्षेत्र
तीर्थ
गमन
से
समान
फल
प्राप्ति
का
कथन
),
५.३.१३९.१०
(
इन्द्रिय
ग्राम
के
निरोधपूर्वक
सोमतीर्थ
में
वास
से
उस
-
उस
स्थान
के
कुरुक्षेत्र,
नैमिष
तथा
पुष्कर
तीर्थ
हो
जाने
का
उल्लेख
-
संनिरुध्येन्द्रियग्रामं
यत्रयत्र
वसेन्मुनिः
।
तत्रतत्र
कुरुक्षेत्रं
नैमिषं
पुष्कराणि
च
॥
),
५.३.१९५.४
(
तीर्थों
की
आपेक्षिक
श्रेष्ठता
के
संदर्भ
में
भुव/
भूमि
पर
कुरुक्षेत्र
के
परमोत्कृष्ट
होने
का
उल्लेख
),
स्कन्द
६.८.८
(
विश्वामित्र
का
कुरुक्षेत्र
का
परित्याग
करके
हाटकेश्वर
तीर्थ
में
निवास
का
उल्लेख
),
६.१९०.१२
(
पृथ्वी
पर
नैमिष,
अन्तरिक्ष
में
पुष्कर
तथा
त्रिलोकी
में
कुरुक्षेत्र
तीर्थ
की
विशेष
रूप
से
व्यवस्थिति
का
उल्लेख
-
पृथिव्यां
नैमिषं
तीर्थमन्तरिक्षे
च
पुष्करम्॥
त्रैलोक्ये
तु
कुरुक्षेत्रं
विशेषेण
व्यवस्थितम्॥
),
७.१.१०.९(कुरुक्षेत्र
तीर्थ
का
वर्गीकरण
– वायु
-
गया
चैव
कुरुक्षेत्रं
तीर्थं
कनखलं
तथा
॥
..गुह्याद्गुह्यतरं
ह्येतत्प्रोक्तं
वाय्वष्टकं
तव
॥),
लक्ष्मीनारायण
३.७३.८२
(विष्णु
का
कुरु
द्वारा
कृष्ट
क्षेत्र
को
कुरुक्षेत्र
नाम
से
अभिहित
करना
तथा
कुरुक्षेत्र
के
रम्य,
पापतापनाशक
व
मोक्षप्रदायक
होने
का
उल्लेख
),
कथासरित्
१२.५.२१८
(
कुरुक्षेत्र-निवासी
राजा
मलयप्रभ
के
पुत्र
इन्दुप्रभ
द्वारा
तप
से
कल्पवृक्ष
बनकर
प्रजा
को
सन्तुष्ट
रखने
की
कथा
)
।
kurukshetra
कुरुजाङ्गल ब्रह्माण्ड २३.१३.१०० ( श्राद्ध हेतु कुरुजाङ्गल की प्रशस्तता का उल्लेख ), भागवत १.१०.३४ ( द्वारका जाते हुए श्रीकृष्ण का कुरुजाङ्गल प्रभृति देशों से होते हुए पश्चिम आनर्त्त देश में पहुंचने का उल्लेख ), १.१६.१० ( राजा परीक्षित् के कुरुजाङ्गल देश में सम्राट् के रूप में निवास करते हुए कलियुग के प्रवेश का उल्लेख ), ३.१.२४ ( विदुर द्वारा कुरुजाङ्गल आदि प्रदेशों का अतिक्रमण करके यमुना तट पर उद्धव का दर्शन करने का उल्लेख ), मत्स्य २१.९, २८ ( कुरुक्षेत्र हेतु प्रयुक्त शब्द ), वामन ९०.१७ ( कुरुजाङ्गल तीर्थ में विष्णु का स्थाणु नाम से वास ), वायु ७७.९३ ( श्राद्ध हेतु कुरुजाङ्गल की प्रशस्तता का उल्लेख ) । kurujaangala/ kurujangala
कुरुजित् विष्णु ४.५.३१ ( कृति - पौत्र, अञ्जन - पुत्र, अरिष्टनेमि - पिता, मैथिल वंश ) ।
कुरुपाञ्चाल महाभारत कर्ण ४५.३५( कुरुपाञ्चाल निवासियों की अर्थोक्त विशेषता का उल्लेख )
कुर्व स्कन्द २.१.१०.८६ ( कुर्व ग्रामस्थ भीम नामक कुलाल को भगवद् भक्ति से वैकुण्ठ प्राप्ति का कथन ) ।
कुल अग्नि ३२५.४ ( गोचर का अपर नाम, कुल के शिव, शिखा, ज्योति तथा सवित्र नामक चार भेदों में प्रत्येक भेद के ४ -४ उपभेदों का कथन ), पद्म १.१९.३२५ ( शील गुण द्वारा कुल को धारण किए जाने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१४.४१ ( कुलधर्म का अतिक्रमण करने वालों द्वारा प्रदत्त श्राद्ध दानवों को प्राप्त होने का उल्लेख ), वराह ८३.१ ( नैषध के पश्चिम में विशाखादि सप्त कुलपर्वतों का नामोल्लेख ), स्कन्द ७.१.१६२ (अष्टकुलेश्वर लिङ्ग के संक्षिप्त माहात्म्य का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.७४ (स्वकुल : प्रासादों के वर्णनान्तर्गत स्वकुल नामक प्रासाद के स्वरूप का निरूपण ), कथासरित् १०.४.३ ( कुलधर : विपत्तियों से कभी बाधित न होने वाली सन्तुलित बुद्धि को दर्शाने हेतु राजा कुलधर के सेवक शूरवर्मा की कथा ) ; द्र. गोकुल । kula
कुल - पद्म ७.१९.७४( कुलभद्र ब्राह्मण द्वारा भूमि पर बिखेरे गए नैवेद्य के पक्षी द्वारा भक्षण का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९७ ( ललिता - सहचरी कुलसुन्दरी द्वारा चण्डबाहु कुक्कुर के वध का उल्लेख ), भागवत १०.५२.४२ ( कृष्ण को भेजे गए संदेश में रुक्मिणी का विवाह से पहले दिन कुलदेवी के दर्शन हेतु गिरिजा देवी के मन्दिर में जाने का कथन ), मत्स्य ११४.१७ ( भारतवर्ष में महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान् , ऋक्षवान्, विन्ध्याचल व पारियात्र नामक सप्त कुलपर्वतों का उल्लेख ), वा.रामायण ७.५९ प्रक्षिप्त सर्ग २.३८ ( कुलपति : कुत्ते को चोट पहुंचाने के फलस्वरूप राम द्वारा कुत्ते की इच्छानुसार सर्वार्थसिद्ध नामक भिक्षुक को कालञ्जर के मठ का कुलपति बनाने का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.२१५.१३ ( कुलम्बायन राष्ट्र में विगोष्ठा नगरी - पति कालीमण्डलीन द्वारा श्री हरि की पूजा का उल्लेख ) ।
कुलक भागवत ५.२०.१६ ( कुश द्वीपवासी कुशल, कोविद, अभियुक्त और कुलक वर्ण के पुरुषों द्वारा अग्निस्वरूप भगवान् के पूजन का उल्लेख ), मत्स्य २७१.१३ ( क्षुद्रक - पुत्र, सुरथ - पिता, कलियुगीय इक्ष्वाकुवंशीय बृहद्बल वंश ) ।
कुलट ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४ ( वेश्या के कुलटा आदि प्रकारों का कथन ), २.३१.२७ ( कुलटा द्वारा देहचूर्णक नरक प्राप्ति का उल्लेख ), भविष्य ३.२.२१.३ ( विष्णुशर्मा ब्राह्मण के चार पुत्रों में से एक , शिव की आराधना से संजीवनी विद्या की प्राप्ति, विद्या प्रयोग से पञ्जर मात्र व्याघ्र को जीवित करना, व्याघ्र द्वारा विप्रों के भक्षण का वृत्तान्त ) ।
कुलाचल भागवत ३.१३.४१ ( शिखरों पर व्याप्त मेघमाला से कुलाचल / कुलपर्वत की शोभा के समान दांत पर रखी हुई पृथ्वी के साथ वराह विग्रह की शोभा का उल्लेख ), ३.२३.३९( कर्दम का देवहूति के साथ कुलाचलेन्द्र / मेरुपर्वत की घाटियों में विहार करने का उल्लेख ), ४.२८.३३ ( राजर्षि मलयध्वज का कृष्णोपासना हेतु कुलाचल / मलयपर्वत पर गमन का उल्लेख ), ८.४.८ ( राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा कुलाचल / मलयपर्वत पर भगवद् आराधना करने का उल्लेख ) । kulaachala
कुलालचक्र गरुड ३.२८.१२९(कुलाल देव पूजा की व्यर्थता), मत्स्य १२४.६९ ( सूर्य व चन्द्रमा की गतियों के निदर्शन हेतु कुलालचक्र / कुम्हार के चाक से साम्य ), १२५.५२ ( सूर्य रथ के मण्डलाकार भ्रमण में कुलालचक्र से साम्य ),वायु १४.३८ ( जीव के कुलालचक्र सदृश संसार में भ्रमण का उल्लेख ), ५०.१४१, १४४, १५० ( सूर्य गति के निदर्शन हेतु कुलाल चक्र से साम्य ), विष्णु २.८.२९ ( सूर्य गति में कुलालचक्र से साम्य का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.४६.४३ ( कथा श्रवण, सेवा तथा भक्ति आदि के प्रभाव से नरराज नामक कुलाल / कुम्भकार को कुटुम्ब सहित मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) । kulaalachakra
कुलिक गरुड १.१९७.१३ ( अग्नि मण्डल में कुलिक सर्प की स्थिति का उल्लेख ), भविष्य १.३४.२३( कुलिक नाग का शनि ग्रह से तादात्म्य ), भागवत ५.२४.३१( वासुकि आदि महानागों में से एक कुलिक के पाताल में निवास का उल्लेख ), शिव ७.२.९.२० ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ), स्कन्द ५.३.३४.५ ( कुलिक कुल के ब्राह्मण द्वारा रवि तीर्थ में रवि की उपासना, प्रसन्न रवि द्वारा ब्राह्मण को वर प्रदान तथा तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१७६.९२ ( शुभ कर्म में कुलिक योग रूप मुहूर्तों को त्यागने का उल्लेख ), ३.१४२.१२ ( कुलिक ग्रह होने पर कुलिक जाति के सर्पदंशन से मृत्यु का उल्लेख ) । kulika
कुलिन्द गर्ग १०.५१.४१ (माता -पिता के बाल्यावस्था में ही परलोकवासी होने से कुलिन्द द्वारा कुन्तलपुर के राजा तथा केरल नरेश - पुत्र चन्द्रहास के लालन पालन का उल्लेख ), महाभारत कर्ण ८५ ।
कुलिश नारद २.५२.१९ ( शस्त्रों में कुलिश की श्रेष्ठता के समान तीर्थों में पुरुषोत्तम तीर्थ की श्रेष्ठता का कथन - अरुंधती यथा स्त्रीणां शस्त्राणां कुलिशं यथा ।।(तथा समस्ततीर्थानां वरिष्ठं पुरुषोत्तमम् ।।) ), मत्स्य २५३.२४ ( वास्तु निर्माण में पूजित बत्तीस बाह्य देवताओं में कुलिशायुध इन्द्र का उल्लेख - शिखीचैवाथपर्जन्यो जयन्तः कुलिशायुधः। ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.४( पार्वती के मध्य भाग की कुलिश से उपमा - घनमाभोगि जघनं मध्यं कुलिशसन्निभम् ।। ), स्कन्द ४.१.११.१३८ ( कुलिश नामक आयुध धारण करने वाले इन्द्र का मुनिकुमार को वर देने हेतु उपस्थित होना, मुनिकुमार के इन्द्र से वर ग्रहण हेतु मना करने पर इन्द्र के क्रुद्ध होने तथा कुलिश आयुध उठाकर बालक को भयभीत करने का कथन - उद्यम्य कुलिशं घोरं भीषयामास बालकम् ।। ) । kulisha
कुलूत महाभारत द्रोण १०४.६, कर्ण १२.३५
कुलोत्तीर्णा ब्रह्माण्ड ३.४.१९.३५ ( ललिता देवी के चक्रराज रथेन्द्र के पांचवें पर्व पर कुलोत्तीर्णा नाम से प्रथित देवियों के स्थित होने का उल्लेख ) ।
कुल्य ब्रह्माण्ड २.३.७४.६ ( भाण्डीर के ४ पुत्रों में से एक कुल्य के नाम पर कुल्य देश के नामकरण का उल्लेख ), भागवत १२.६.७९ ( पौष्यंजि के ५ शिष्यों में से एक ), वायु ९९.६ ( जनापीड के ४ पुत्रों में से एक कुल्य के नाम पर कुल्य देश के नामकरण का उल्लेख ) ; द्र. आर्यकुल्या, देवकुल्या, द्रुमकुल्या ।
कुवलय वामन ५७.८० ( कुहू द्वारा कुमार को कुवलय नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), ९०.१८ ( कुवलय तीर्थ में विष्णु का वीर नाम से वास? ), विष्णु ४.८.१५ ( कुवलय नामक अश्व को प्राप्त करने के कारण राजा ऋतध्वज के कुवलयाश्व नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), कथासरित् ३.६.४९ (कुवलयावली : राजा आदित्यप्रभ द्वारा देवपूजा में संलग्न दिगम्बरा रानी कुवलयावली के दर्शन का उल्लेख ), ३.६.१८६ ( रानी कुवलयावली का राजा आदित्यप्रभ से डाकिनी मन्त्रों से प्राप्त सिद्धियों का वर्णन ), १८.२.२७८ ( विक्रमादित्य द्वारा कोंकण प्रदेश की श्याम वर्णा घोडी कुवलयमाला को राजा कीर्तिवर्मा को प्रदान करने का उल्लेख ) । kuvalaya
कुवलयपीड गर्ग ५.७.१७ ( कृष्ण द्वारा कुवलयापीड हस्ती के वध का वर्णन ), ५.११.१२+ ( बलि - पुत्र मन्दगति दैत्य का त्रित मुनि के शाप से कुवलयपीड हस्ती बनना , श्रीकृष्ण द्वारा वध से मुक्ति का वृत्तान्त ), देवीभागवत ४.२२.४६ ( कुवलय नामक हस्ती के रूप में दिति - पुत्र अरिष्ट के अंशावतरण का उल्लेख ), ब्रह्म १.८५.३० ( कुवलयपीड नामक हस्ती का वध करके गजदन्तों को शस्त्र रूप से हाथ में धारण किए हुए कृष्ण - बलराम के रङ्गशाला में प्रवेश का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.७३.१०० ( वृष्णि कुल में उत्पन्न विष्णु द्वारा कुवलयापीड हस्ती के वध का उल्लेख ), भविष्य ३.३.२४.३५ ( जयचन्द्र द्वारा त्यक्त कुवलयापीड गजों का उदयसिंह व आह्लाद वीरों द्वारा लीला पूर्वक वध का उल्लेख ), भागवत १०.३६.२५ ( कंस द्वारा महामात्र/ महावत को कृष्ण - बलराम के वध हेतु रङ्गशाला के द्वार पर कुवलयापीड हस्ती को रखने का आदेश ), १०.४३.२( श्रीकृष्ण द्वारा कुवलयापीड के उद्धार का वृत्तान्त ), वायु ९८.१०१ ( वृष्णिकुलोत्पन्न विष्णु द्वारा कुवलयापीड हस्ती के वध का उल्लेख ), विष्णु ५.१५.११,१७ ( कुवलयापीड हस्ती के द्वारा कृष्ण - बलराम के वध हेतु कंस की योजना का उल्लेख ), ५.२०.३२ ( बलराम के रङ्गद्वार पर उपस्थित होने पर वहां स्थित कुवलयापीड नामक हाथी का महावत द्वारा प्रेरित होने पर कृष्ण - बलराम को मारने हेतु दौडना , कृष्ण द्वारा कुवलयापीड के वध का वृत्तान्त ), हरिवंश २.२९.१७ ( कंस द्वारा कुवलयापीड नामक हस्ती को रङ्गशाला के द्वार पर स्थित रहने का आदेश, हस्ति का कृष्ण - बलराम के रङ्गशाला में आगमन को अवरुद्ध करना, कृष्ण द्वारा कुवलयापीड के वध का वृत्तान्त ), कथासरित् १६.३.१९ ( शिबि - वंशीय चन्द्रावलोक नामक राजा के पास शत्रुसेनाविर्मदक कुवलयापीड नामक हस्ती के होने का उल्लेख ), कृष्णोपनिषद १.१४( दर्प के कुवलयपीड होने का उल्लेख ) । kuvalayapeeda
कुवलयाश्व देवीभागवत ७.९.३५ (बृहदश्व - पुत्र, दृढाश्व - पिता, धुन्धु नामक दैत्य के वध से कुवलयाश्व के धुन्धुमार नाम से विख्यात होने का उल्लेख ), ब्रह्म १.५.७१ ( उत्तङ्क ऋषि की प्रार्थना पर बृहदश्व - पुत्र कुवलाश्व द्वारा पुत्रों सहित धुन्धु दैत्य का अन्वेषण तथा वध, उत्तङ्क द्वारा कुवलाश्व को अपराजेयता , धर्मरति, स्वर्गवास तथा मृत पुत्रों को अक्षय लोकों की प्राप्ति रूप वर प्रदान ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.२९ ( बृहदश्व - पुत्र कुवलाश्व द्वारा धुन्धु राक्षस के वध का वृत्तान्त ), भागवत ९.६.२१ ( बृहदश्व - पुत्र कुवलयाश्व द्वारा उत्तङ्क ऋषि के प्रियार्थ धुन्धु दैत्य का वध तथा धुन्धुमार नाम धारण ), मत्स्य १२.३१ ( इक्ष्वाकुवंशीय बृहदश्व - पुत्र, दृढाश्व, दण्ड और कपिलाश्व - पिता, धुन्धु दैत्य का वध करने से कुवलाश्व की धुन्धुमार नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), मार्कण्डेय २०.५१/ १८.५१ ( गालव ऋषि द्वारा आकाश से अनायास पतित कुवलयाश्व अश्व को शत्रुजित् नामक राजा को प्रदान करना, राजपुत्र ऋतध्वज द्वारा कुवलयाश्व की सहायता से दानव के वध का कथन ), वामन ५९.११( पातालकेतु नामक दैत्य के वध तथा मदालसा नामक स्वपुत्री की दैत्य से मुक्ति हेतु विश्वावसु नामक गन्धर्व द्वारा ऋतध्वज - पुत्र कुवलयाश्व को अश्व अर्पित करने का कथन ), वायु ६८.३१ ( उत्तङ्क के वचनानुसार कुवलाश्व द्वारा अरूरु के पुत्र तथा दनायुषा के पौत्र धुन्धु महासुर के वध का उल्लेख ), ८८.२८ ( बृहदश्व - पुत्र कुवलाश्व द्वारा धुन्धु वध से धुन्धुमार नाम प्राप्ति का वृत्तान्त ), विष्णु ४.२.३९ ( बृहदश्व - पुत्र, उदक महर्षि को पीडित करने वाले दुन्दु राक्षस के वध से दुन्दुमार नाम धारण , दुन्दु से युद्ध में कुवलयाश्व के केवल तीन पुत्रों के जीवित रहने तथा सहस्र पुत्रों के दुन्दु के मुख की नि:श्वासाग्नि से भस्म हो जाने का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१६.१० ( बृहदश्व - पुत्र, उत्तङ्क की प्रेरणा से कुवलाश्व द्वारा धुन्धु दैत्य का वध, धुन्धुमार उपनाम का कथन ), हरिवंश १.११.२३ ( बृहदश्व - पुत्र, उत्तङ्क ऋषि के कहने पर राजा बृहदश्व का धुन्धु दैत्य के वध हेतु स्वपुत्र कुवलाश्व को ऋषि की सेवा में अर्पित करना, कुवलाश्व द्वारा दैत्य वध होने पर धुन्धुमार नाम धारण करने तथा उत्तङ्क द्वारा वर प्रदान करने का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५६९.६ ( कुवलयाश्व : कुरुक्षेत्र की अपेक्षा नर्मदा के माहात्म्य को प्रदर्शित करने हेतु राजा कुवलयाश्व व राजा मुचुकुन्द की कथा ; नर्मदा में स्नान, तप व दान से राजा मुचुकुन्द को कुवलयाश्व की अपेक्षा उच्चतर लोक की प्राप्ति ), ३.९४.६५ ( इक्ष्वाकु वंश के राजा कुवलाश्व द्वारा धुन्धु राक्षस के वध का वृत्तान्त ) । kuvalayaashva
कुश अग्नि ११९.११ (कुशद्वीप - अधिपति ज्योतिष्मान् के पुत्रों तथा पर्वतों का नामोल्लेख ), कूर्म १.४९.२० ( कुशद्वीप के पर्वतों , नदियों तथा निवासियों का कथन ), गणेश २.१०९.२८ ( मुनि - पुत्रों द्वारा अभिमन्त्रित कुशों से दैत्यों का वध ), गरुड १.५६.८ ( ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों से अधिष्ठित कुशद्वीप के पर्वतों तथा नदियों का नामोल्लेख ), २.२९.२०(दर्भ का कुश से तादात्म्य - अपसव्यादितो ब्रह्मा दर्भमध्ये तु केशवः । दर्भाग्रे शङ्करं विद्यात्त्रयो देवाः कुशे स्थिताः ॥), २.२९.२२(पिण्डों में कुश के निर्माल्य बनने का उल्लेख - कुशाः पिण्डेषु निर्माल्याः ब्राह्मणाः प्रेतभोजने ।), २.३२.११३/२.२२.५९ (कुशद्वीप की शरीर के मांस में स्थिति का उल्लेख - कुशद्वीपः स्थितो मांसे क्रौञ्चद्वीपः शिरास्थितः ॥ ), ३.२८.२६(कुश नाम का कारण - वाल्मीकिऋषिणा यस्मात्कुशेनैव विनिर्मितः । अतः कुश इति प्रोक्तो जानकीनन्दनः प्रभुः ॥ ), ३.२८.५५(कान्तिमती – पति), देवीभागवत ८.४.२३ (घृतोदक से उपवेष्टित कुशद्वीप के स्वामी के रूप में प्रियव्रत - पुत्र हिरण्यरेता का उल्लेख ), नारद १.६६.९२( मातृका न्यास के संदर्भ में कुशी विष्णु की शक्ति विश्वा का उल्लेख ), २.१८.५५ ( ब्रह्मा के लिए कुशकेतु शब्द का प्रयोग ), २.६२.४३ ( तीर्थ श्राद्ध में कुश की प्रतिमा बनाकर जल में निमज्जन से विशेष तीर्थ फल लाभ का कथन ), पद्म १.४९.३२ ( कुश के ७ प्रकारों व महिमा का कथन ), ५.६३.१९, ५.६४ ( जानकी - पुत्र कुश का शत्रुघ्न से युद्ध, हनुमान व सुग्रीव का बन्धन तथा सीता के समक्ष प्रदर्शन, माता के कहने पर कपीशों की मुक्ति, रामाश्वमेध हय का वृत्तान्त ), ब्रह्म १.११०.४१ ( केशव द्वारा स्वरोमों से उत्पन्न कुशों द्वारा पितरों के तर्पण आदि का वर्णन ), २.८४.१६ ( राम के अश्वमेध यज्ञ के अवसर पर राम - पुत्रों लव व कुश द्वारा राम चरित्र के सस्वर गायन का उल्लेख ), २.९१.६३ ( ब्रह्मा द्वारा प्रणीता पात्र का सम्मार्जन करने पर कुशों के गिरने के स्थान पर कुशतर्पण तीर्थ के निर्माण का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.२७ (कुशद्वीप में ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों के नाम से ७ वर्षों के नामकरण का उल्लेख ), १.२.१९.५२ (घृतोदक से परिवेष्टित कुशद्वीप के पर्वतों, नदियों तथा निवासियों का कथन ), २.३.६३.१९८, २०१ ( राम - पुत्र, अतिथि - पिता, कुश के कोशला राज्य तथा कुशस्थली नामक राजधानी का उल्लेख ), २.३.६६.३१ ( बलाकाश्व - पुत्र, कुशाम्ब, कुशनाभ, अमृतरयसोवसु तथा कुशिक नामक चार पुत्रों के पिता ), भविष्य १.१३८.४१( ब्रह्मर्षियों की कुश ध्वज का उल्लेख ), भागवत ३.२२.३० (वराह भगवान् के झडे हुए रोमों का ही कुश तथा काश रूप होना तथा इन्हीं कुशादि से मुनियों द्वारा यज्ञ - विध्वंसक दैत्यों का तिरस्कार कर यज्ञपुरुष के आराधना का कथन - न्यपतन्यत्र रोमाणि यज्ञस्याङ्गं विधुन्वतः ॥ कुशाः काशास्त एवासन् शश्वद्धरितवर्चसः ।), ५.१.३२ ( जम्बू आदि सप्त द्वीपों में से एक कुशद्वीप के घृत समुद्र से घिरे होने का उल्लेख ), ५.२०.१३ ( कुश द्वीपाधिपति प्रियव्रत - पुत्र हिरण्यरेता द्वारा द्वीप के सात विभाग करके अपने सात पुत्रों को प्रदान करना, सात पर्वतों तथा नदियों का कथन - घृतोदेन यथापूर्वः कुशद्वीपो यस्मिन्कुशस्तम्बो देवकृतः ), ९.११.११ ( सीता द्वारा कुश व लव की उत्पत्ति तथा वाल्मीकि द्वारा उनके संस्कार करने का उल्लेख ), ९.१२.१ ( अतिथि – पिता -- कुशस्य चातिथिस्तस्मात् निषधस्तत्सुतो नभः । ), ९.१५.४ ( बलाक - पौत्र, अजक - पुत्र, कुशाम्बु , तनाय, वसु तथा कुनाभ - पिता, पुरु वंश - ततः कुशः कुशस्यापि कुशाम्बुस्तनयो वसुः । ) , ९.१७.३, १६ ( सुहोत्र - पुत्र, प्रति - पिता, क्षत्रवृद्ध वंश ), ९.२४.१ ( ज्यामघ व शैब्या - पुत्र विदर्भ के तीन पुत्रों में से एक ), १०.७८.२८( बलराम द्वारा कुशाग्र से रोमहर्षण का वध - भावित्वात्तं कुशाग्रेण करस्थेनाहनत्प्रभुः।। ), मत्स्य १२.५१ ( राम - पुत्र, अतिथि - पिता, सूर्य वंश - अतिथिस्तु कुशाज्जज्ञे निषधस्तस्य चात्मजः। ), ५०.२७ ( चैद्योपरिचर व गिरिका के सात पुत्रों में से एक, पूरु वंश ), १२२.४५ ( कुश द्वीप वर्णनान्तर्गत दो नामों वाले सप्त पर्वतों, पर्वत वर्षों तथा नदियों का कथन ), महाभारत सभा ८०.८(धौम्यो रौद्राणि सामानि याम्यानि च विशाम्पते। गायन्गच्छति मार्गेषु कुशानादाय पाणिना।।), ८०.२२(पाण्डवों के वन गमन के समय धौम्य द्वारा कुशों को लेकर यात्रा करने का कारण - कृत्वा तु नैर्ऋतान्दर्भान्धीरो धौम्यः पुरोहितः। सामानि गायन्याम्यानि पुरतो याति भारत।।), लिङ्ग १.५३.७ ( कुशद्वीप के सात पर्वतों का नामोल्लेख ), वराह ८७ ( कुशद्वीप के विस्तार, द्विनामा पर्वतों, वर्षों तथा नदियों का कथन ), १५७.१७ (मलयार्जुन तीर्थ के अन्तर्गत कुशस्थल नामक स्थान पर स्नान से ब्रह्मलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), वामन ९०.३० ( विदेह तीर्थ में विष्णु का कुशप्रिय नाम से वास ), ९०.४२ ( कुश द्वीप में विष्णु का कुशेशय नाम से वास ), वायु ३३.१२ ( प्रियव्रत द्वारा ज्योतिष्मान् को कुशद्वीप का अधिपति बनाने का उल्लेख ), ४९.४६ (कुशद्वीप के पर्वतों, वर्षों, निवासियों व नदियों का कथन ), ६३.२४/२.२.२४( प्राचीनबर्हि नाम की निरुक्ति : प्राचीनाग्र कुश वाले ), ८८.१९९ ( राम - पुत्र, अतिथि - पिता, कुश के कोशला राज्य की कुशस्थली राजधानी होने का उल्लेख ), ९९.२२० ( विद्योपरिचर व गिरिका के सात पुत्रों में से एक ), विष्णु १.८.२१ ( लक्ष्मी के इध्मा तथा विष्णु के कुश होने का उल्लेख - चितिर्लक्ष्मीर्हरिर्यूप इध्मा श्रीर्भगवान्कुशः ॥ ), २.४.३५ ( कुशद्वीप के वर्णनान्तर्गत ज्योतिष्मान् के सात पुत्रों, निवासियों, वर्णाश्रमों, पर्वतों, नदियों आदि का कथन ), ४.७.८ (अजक - पौत्र, बलकाश्व - पुत्र, कुशाम्ब, कुशनाभ, धूर्तरजस व वसु - पिता ), शिव ५.२.१२ ( विद्युत्प्रभ द्वारा शिवकृपा से कुश द्वीप का राज्य प्राप्त करने का उल्लेख ), ५.१८.३९ ( कुश द्वीप के वर्णनान्तर्गत वहां के निवासियों , पर्वतों तथा नदियों का कथन ), स्कन्द ४.१.२१.४० ( ध्रुव द्वारा हरि स्तुति में श्रीहरि के तृणों में कुश होने का कथन ), ५.२.८३.३८ ( कपिल ऋषि द्वारा विष्णु से युद्ध में कुश - मुष्टि का आयुध के रूप में प्रयोग करने का उल्लेख ), ५.३.१४६.१११ ( मन्वादि तिथियों आदि में पितरों को कुशमिश्रित तिलोदक देने के फल का कथन ), ५.३.१८१.११ ( तपोरत भृगु द्वारा प्रतिमास कुशाग्र से जल बिन्दु पान का उल्लेख - दिव्यं वर्षसहस्रं तु मम ध्यानपरायणः ॥ जलबिन्दु कुशाग्रेण मासे मासे पिबेच्च सः । ), ५.३.१९८.८७ ( कुश द्वीप में उमा की कुशोदका नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.१०४.५ ( राक्षसों से त्रस्त ब्राह्मणों द्वारा राम - पुत्र कुश से भय का निवेदन, कुश का विभीषण के पास दूत प्रेषण, विभीषण द्वारा राक्षसों का ताडन तथा राक्षसों के आतङ्क से रक्षा का वर्णन ), ७.१.२४.४६ ( शिवार्चन में कुश पुष्प की आपेक्षिक महिमा का कथन - अपामार्गसहस्रेभ्यः कुशपुष्पं विशिष्यते ॥ कुशपुष्प सहस्रेभ्यः शमीपुष्पं विशिष्यते ॥ ), ७.४.२०.२१ ( चक्र तीर्थ का शासक दैत्य, दुर्वासा के स्नान में विघ्न पर कृष्ण द्वारा चक्र से वध, शिव कृपा से पुन: संजीवन, युद्ध, कृष्ण द्वारा गर्त में गिरे हुए कुश के ऊपर शिव लिङ्ग की स्थापना का वर्णन ), हरिवंश १.२७.११ ( बलकाश्व - पुत्र, कुशिक, कुशनाभ, कुशसाम्ब व मूर्तिमान् - पिता, पुरूरवा वंश ), वा.रामायण १.३२.१ (ब्रह्मा - पुत्र, कुशाम्ब आदि चार पुत्रों के पिता - ब्रह्मयोनिर्महानासीत्कुशो नाम महातपाः। वैदर्भ्यां जनयामास चतुरः सदृशान् सुतान्), ७.१०७.७ ( भरत द्वारा राम से कुश तथा लव के राज्याभिषेक तथा कुश को दक्षिण कोशल का राज्य प्रदान करने की प्रार्थना ), ७.१०८.४ ( राम द्वारा स्वपुत्रों कुश तथा लव हेतु क्रमश: कुशावती व श्रावस्ती नगरी के निर्माण का उल्लेख - कुशस्य नगरी रम्या विन्ध्यपर्वतरोधसि । कुशावतीति नाम्ना सा कृता रामेण धीमता । श्रावस्तीति पुरी रम्या श्राविता च लवस्य ह ।। ), लक्ष्मीनारायण १.२२७.७ (द्वारका के आग्नेय दिशा के रक्षकों में कुश का उल्लेख ), १.२२७.५२ ( कृष्ण द्वारा कुश नामक दैत्य का शिर - छेदन कर कुश को गर्त में फेंकना, पाषाण से आच्छादित करके उसके ऊपर शिवलिङ्ग का निर्माण, कुश की इच्छा के अनुसार उस स्थान की कुशेश तीर्थ नाम से प्रसिद्धि का वर्णन ), १.३८२.२२( विष्णु के कुश व लक्ष्मी के इध्मा होने का उल्लेख ), १.५५९.२७( राजा रन्तिदेव द्वारा यज्ञ की दानवों से रक्षा हेतु चार दिशाओं में कुशों पर विष्णु चक्र स्थापित करके दुर्गों के निर्माण का कथन ), कथासरित् ४.२.१९६ ( गरुड द्वारा लाए हुए अमृत कलश को कुश - आसन पर रखवाकर नागों द्वारा गरुड की माता विनता को छोडने का उल्लेख - तथेत्युक्ते च तैर्नागैः स पवित्रे कुशास्तरे । सुधाकलशमाधत्त ते चास्य जननीं जहुः ।। ), ९.१.८९(वाल्मीकि द्वारा कुशों से कृत्रिम लव का निर्माण करने के कारण कुश की उत्पत्ति का वृत्तान्त - इति ध्यात्वा कुशैः कृत्वा पवित्रं निर्ममेऽर्भकम् ।। लवस्य सदृशं तं च स तथास्थापयन्मुनिः ।) । kusha
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Vedic contexts on Kusha
कुशक स्कन्द ७.१.१७३.२ (कुशकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य :समस्त पापों से मुक्त होकर शिवलोक की प्राप्ति ) ।
कुशध्वज देवीभागवत ९.१६.२ ( रथध्वज - पुत्र, धर्मध्वज - भ्राता, मालावती - पति, वेदवती - पिता ), ब्रह्माण्ड २.३.६४.१९ (मैथिल भानुमान् के भ्राता तथा काशीराज के रूप में कुशध्वज का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.२०९ ( वेदवती और तुलसी नामक कन्याओं के पिता के रूप में कुशध्वज का उल्लेख ), भविष्य ४.६५.३ ( विदर्भराज कुशध्वज को ब्राह्मण हत्या से बारह दुष्ट योनियों की प्राप्ति, पूर्वकृत तारक द्वादशी व्रत से मुक्ति का वर्णन ), भागवत ९.१३.१०( सीरध्वज - पुत्र, धर्मध्वज - पिता, निमि वंश ), वायु ८९.१८ ( मैथिल भानुमान के भ्राता तथा काशी के राजा के रूप में कुशध्वज का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.२० ( बृहस्पति - पुत्र, वेदवती - पिता, दैत्येश्वर शम्भु का कुशध्वज से वेदवती को मांगना, कुशध्वज के मना करने पर शम्भु द्वारा कुशध्वज का वध ), स्कन्द १.२.९.२८ ( राजा इन्द्रद्युम्न से अपने पूर्व जन्मों का वर्णन करते हुए गृध्र द्वारा एक जन्म में राजगृह में काशीश्वर - पुत्र कुशध्वज के रूप में जन्म धारण करने का कथन ), स्कन्द ५.२.३५.२ ( इन्द्र द्वारा प्रजापति त्वष्टा के पुत्र कुशध्वज के वध का उल्लेख ), ६.२७१.२१३ ( राजा इन्द्रद्युम्न से अपने पूर्व जन्मों का वर्णन करते हुए गृध्र द्वारा एक जन्म में राजगृह में कोटीश्वर - पुत्र कुशध्वज नाम से जन्म धारण करने का कथन ), वा.रामायण १.७०.२ ( जनक - भ्राता कुशध्वज का सांकाश्या नगरी में वास, सीता - राम विवाह में कुशध्वज का आगमन ), १.७२.४ ( विश्वामित्र द्वारा भरत व शत्रुघ्न हेतु कुशध्वज की कन्याओं का वरण ), ७.१७.८ ( बृहस्पति- पुत्र, वेदवती - पिता, शम्भु दैत्य द्वारा कुशध्वज का वध ), लक्ष्मीनारायण १.३३४.१८ ( वृषध्वज - पुत्र, धर्मध्वज - भ्राता, वेदवती - पिता ) । kushadhwaja
कुशनाभ पद्म १.८.७६ ( वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.६६.३२ ( अजक - सुत कुश के चार पुत्रों में से एक ), भागवत ९.१५.४ ( वही), मत्स्य ११.४१ ( वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से एक ), वायु ९१.६२ ( अजक - सुत कुश के चार पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.७.८ ( बलाकाश्व - सुत कुश के चार पुत्रों में से एक ), हरिवंश १.२७.१२ ( कुश के चार पुत्रों में से एक, पुरु वंश ), वा.रामायण १.३२.३ ( महाराज कुश के चार पुत्रों में से एक कुशनाभ द्वारा महोदय नामक नगर का निर्माण, कुशनाभ तथा घृताची नामक अप्सरा से १०० कन्याओं की उत्पत्ति ), कथासरित् १२.१९.७१ ( तापस वेश धारी राजा द्वारा मार्ग में कुशनाभ मुनि के दर्शन, मुनि द्वारा राजा को अभीप्सित कन्या की प्राप्ति का आश्वासन ) । kushanaabha
कुशप्लवन ब्रह्माण्ड २.३.५.५५ ( इन्द्रहन्ता पुत्र की प्राप्ति हेतु दिति द्वारा कुशप्लवन में तप का उल्लेख ), वा.रामायण १.४६.८ ( इन्द्रहन्ता पुत्र की प्राप्ति हेतु दिति द्वारा कुशप्लव नामक तपोवन में तप का उल्लेख ) ।
कुशरीर वायु २३.१६९ ( १५ वें द्वापर के विष्णु के अवतार वेदशिरा के चार पुत्रों में से एक ) ।
कुशल पद्म ६.२१३.८, ६.२१४.२९ ( स्व - पत्नी दुराचारा के दुराचरण से पीडित होकर कुशल नामक ब्राह्मण द्वारा विषपान, मृत्यु, राक्षस योनि की प्राप्ति, पुत्र द्वारा किए गए श्राद्ध से राक्षस योनि से मुक्त होकर देवत्व प्राप्ति का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.२२ ( क्रौंच द्वीपाधिपति द्युतिमान् के सात पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र कुशल के नाम पर कौशल देश के नामकरण का उल्लेख ), १.२.३२.२८( कुशल - अकुशल कर्म के अनुसार धर्म - अधर्म की परिभाषा ), भागवत ५.२०.१६ ( कुशद्वीप के ४ प्रकार के निवासियों में से एक ), वराह ८८.३(क्रौञ्च द्वीप के वर्षों में से एक, अपर नाम माधव), वायु ६७.९४ ( इन्द्रहन्ता पुत्र की प्राप्ति हेतु दिति द्वारा कुशल नामक वन में दारुण तप का उल्लेख ), विष्णु २.४.४८ ( क्रौंच द्वीपाधिपति द्युतिमान् के सात पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.१.४०.६४ ( ब्राह्मण आदि ४ वर्णों से कुशलता पृच्छा का विधान ) । kushala
कुशला वायु ३३.२१( क्रौंच द्वीपाधिपति द्युतिमान् के सात पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.२५७.३४, २.२५८ ( आनर्त नामक राजा तथा कुशला नामक योगिनी के संवाद द्वारा गृहस्थ की मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ), २.२५८.९६ ( ब्रह्मा द्वारा सोम के यज्ञ से कुशला को उत्पन्न करने का उल्लेख ), २.२९७.८५( कृष्ण द्वारा कुशला पत्नी के गृह में ताम्बूल भक्षण के विशिष्ट कार्य का उल्लेख ) । kushalaa
कुशलीमुख वायु ६७.७९ ( बाष्कल के चार पुत्रों में से एक ) ।
कुशवती ब्रह्माण्ड २.३.७.२२ ( अप्सराओं के १४ गणों में से बर्हि नामक अप्सरा गण के कुशवती में उत्पन्न होने का उल्लेख ) ।
कुशस्तम्ब वायु ९१.६२ ( कुश - पुत्र, गाधि- पिता ) ।
कुशस्थली गर्ग ८.४.३० ( ज्योतिष्मती द्वारा आनर्त देश में कुशस्थली के राजा रेवत की भार्या से रेवती नाम से जन्म धारण करने का कथन ), पद्म १.४६.१६ ( अन्धक वध हेतु शिव का कैलास से कुशस्थली आगमन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६१.२० ( आनर्त - पुत्र रेव की राजधानी के रूप में कुशस्थली पुरी का उल्लेख ), भागवत १.१०.२७ ( श्रीकृष्ण के निवास से कुशस्थली / द्वारका की पवित्रता तथा महानता का उल्लेख ), वायु ८८.१९९ (राम - आत्मज कुश द्वारा विन्ध्य पर्वत के शिखर पर कुशस्थली नामक राजधानी निर्मित करने का उल्लेख ), विष्णु ४.१.९१ ( राजा रैवत की नगरी के रूप में कुशस्थली का उल्लेख ), स्कन्द २.२.१३.२ ( शिव - कृत आराधना से कण्टकाकीर्ण कुशस्थली का वृन्दावन सदृश मनोरम बनने का कथन ), ५.१.५.५ ( कुशस्थली की शोभा का वर्णन, कपालपाणि शिव का कुशस्थली वन में प्रवेश, वृक्षों द्वारा शिव को पुष्प निवेदन, प्रसन्न शिव द्वारा वर प्रदान, वृक्षों द्वारा शिव के नित्य निवास रूप वर की प्राप्ति ), ५.१.२४.३५ ( वाल्मीकि द्वारा कुशस्थली में आकर शिव की आराधना, आराधना से कवित्व प्राप्ति तथा रामायण महाकाव्य की रचना का कथन ), ५.१.३१.१७ ( अवन्ती क्षेत्रान्तर्गत कुशस्थली नगरी में राम द्वारा रामेश्वर देव की स्थापना, कुशस्थली माहात्म्य का कथन, अपर नाम उज्जयिनी ), ५.१.४१.२९ ( ब्रह्मा द्वारा विष्णु को कुश आसन प्रस्तुति से कुशस्थली नाम हेतु का कथन ), ५.१.६२.२५ ( कुशस्थली में कृष्ण द्वारा गोमती की आराधना से गोमती का आगमन तथा गोमती कुण्ड की स्थापना ), हरिवंश २.५५.१०२ (गरुड द्वारा कृष्ण के निवास योग्य स्थल के निरीक्षण हेतु कुशस्थली जाना तथा पुरी निर्माण हेतु उस स्थान की उपयुक्तता का वर्णन ) । kushasthali
कुशाग्र भागवत ९.२२.६ ( बृहद्रथ -पुत्र, ऋषभ -पिता ), मत्स्य ५०.२८ ( बृहद्रथ -पुत्र, वृषभ - पिता, पूरु वंश ), वायु ९९.२२३ ( बृहद्रथ - पुत्र, ऋषभ - पिता ), विष्णु ४.१९.८२ ( बृहद्रथ - पुत्र, वृषभ - पिता ) । kushaagra
कुशाम्ब गर्ग ७.२२.२१ ( कौशाम्बी - अधिपति कुशाम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान न करना, प्रद्युम्न सेना से युद्ध में पराजय होने पर कुशाम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान करना ), १०.२८( बल्वल दैत्य के चार मन्त्रियों में से एक ), १०.३१.१३ ( बल्वल दैत्य के मन्त्री व सेनानी कुशाम्ब का साम्ब सेना से युद्ध , साम्ब द्वारा कुशाम्ब के वध का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.६६.३२ ( कुश के चार पुत्रों में से एक ), भागवत ९.१५.४ ( कुशाम्बु : अजक -सुत कुश के चार पुत्रों में से एक, गाधि - पिता ), ९.२२.६ ( उपरिचर वसु के कुशाम्ब आदि पुत्रों का चेदि देश का राजा होने का उल्लेख ), विष्णु ४.१९.८१ ( वसु - पुत्र, मागध नरेश ), ४.७.८ ( कुश के चार पुत्रों में से एक, गाधि - पिता ), हरिवंश १.२७.१२ ( कुश के चार पुत्रों में से एक, पुरूरवा वंश ), वा.रामायण १.३२.३, ६ ( महाराज कुश के चार पुत्रों में से एक कुशाम्ब द्वारा कौशाम्बी नगरी के निर्माण का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.७४.१२ ( किम नदी के तट पर स्थित कुशाम्बा नगरी वासी कौशिकाम्ब ऋषि के योगोपदेश से अन्त्यज का स्त्री सहित मुक्ति प्राप्ति का वृत्तान्त ) । kushaamba
कुशावती वायु ४४.१८ ( केतुमाल देश की अनेक नदियों में से एक ), स्कन्द ७.४.१४.४८( पञ्चनद तीर्थ में पुलह के पावनार्थ कुशावती नदी के आगमन का उल्लेख ), वा.रामायण ७.१०८.४ ( राम द्वारा कुश के लिए कुशावती नामक नगरी के निर्माण का उल्लेख ) ।
कुशावर्त भागवत ५.४.१० ( ऋषभदेव के भरत - प्रधान सौ पुत्रों में से एक ), मत्स्य २२.६९ ( पितर श्राद्ध हेतु कुशावर्त की प्रशस्तता का उल्लेख ) ।
कुशाश्व वायु ९१.६२ ( कुश के ४ पुत्रों में से एक ), वा.रामायण १.४७.१५ ( सृंजय - पौत्र, सहदेव - पुत्र, सोमदत्त - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ।
कुशि वायु ९१.६२ ( विरोचन - पुत्र बलि के १०० पुत्रों में प्रधान ४ पुत्रों में से एक ) ।
कुशिक ब्रह्माण्ड २.३.६६.३३ ( कुश के चार पुत्रों में से एक कुशिक को तप के फलस्वरूप इन्द्र के अंशरूप कौशिक / गाधि नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), वायु १.१५७ ( एक विप्रर्षि ), २१.३२ ( १३ वें कल्प का नाम ), २३.२२३ ( २८ वें द्वापर में विष्णु के अवतार नकुली के चार पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.४९ ( अठ्ठाइसवें द्वापर में लकुली नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार शिष्यों में से एक ), स्कन्द ३.२.९.५५ ( कुशिक गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवरों से युक्त होने का उल्लेख, गुण ), हरिवंश १.२७.१२ ( कुश के चार पुत्रों में से एक कुशिक को तप के फलस्वरूप इन्द्र के अंशरूप कौशिक / गाधि नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख, पुरूरवा वंश ) । kushika
कुशिक पुराण कथा के अनुसार कुशिक ने तपस्या करके इन्द्र को अपने पुत्र कौशिक (गाधि ) के रूप में प्राप्त किया । जब मनुष्य का व्यक्तित्व एकीकृत हो जाता है तो दैवी त्रिलोकी स्तर का प्राण कुशिक कहलाता है । उससे निचले स्तर पर यह बहुत से, कुशिका: हो जाते हैं। मानुषी त्रिलोकी के स्तर पर आने पर यह कुशिकास: कहलाते हैं। यह प्राण शरीर की प्रत्येक कोशिका में सोए पडे हैं। इन्हें जगाने के लिए विश्वामित्र बनना पडेगा ।- फतहसिंह
कुशिकंधर वायु २३.१९३ (२० वें द्वापर में विष्णु के अट्टहास नाम से अवतार ग्रहण करने पर चार पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.२७ ( बीसवें द्वापर में अट्टहास नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार शिष्यों में से एक ) ।
कुशीतक ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६५ ( वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक ), वायु ९६.१६३ (वही) ।
कुशीद ब्रह्माण्ड १.२.३५.४० ( कुशीदि : पौष्यंजि के ४ शिष्यों में से एक ), भागवत १२.६.७९ ( पौष्यंजि के ५ शिष्यों में से एक, १०० संहिताओं के अध्ययनकर्त्ता ), द्र. कुसीद ।
कुशीबल पद्म ६.१८२.८ ( कुमति के पति कुशीबल नामक ब्राह्मण का मृत्यु पश्चात् ब्रह्मराक्षस बनना, गीता के अष्टम अध्याय श्रवण से मुक्ति ) ।
कुशूर ब्रह्माण्ड ३.४.२८.४० ( ललिता देवी की सेनानी लघुश्यामा नामक शक्ति द्वारा कुशूर असुर के साथ युद्ध का उल्लेख ) ।
कुशेशय ब्रह्माण्ड १.२.१९.५५ ( कुशद्वीप के सात पर्वतों में से पंचम, कुशेशय पर्वत के धृतिमान् वर्ष का कथन ), मत्स्य २२.७६ ( पितर श्राद्ध हेतु कुशेशय तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ), १२२.५८ ( कुशद्वीप के सात पर्वतों में से पंचम पर्वत कंक का द्वितीय नाम ), वामन ९०.१० ( गोप्रचार तीर्थ में विष्णु का कुशेशय नाम से वास? ), वायु ४९.५० ( कुशद्वीप के सप्त पर्वतों में से एक ), विष्णु २.४.४१ ( वही) ।
कुशोदका मत्स्य १३.५० ( कुशद्वीप में सती देवी के कुशोदका नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ) ।
कुषण्ड ब्रह्माण्ड २.३.७.३७९ (पिशाचों के सोलह युग्मों में से एक युग्म का पुरुष पिशाच ), २.३.७.३७९ ( कुषण्डिका : सोलह पिशाच युग्मों में से एक युग्म की स्त्री ) ।
कुष्टि वायु २८.९ ( संभूति व प्रजापति मरीचि की चार पुत्रियों में से एक ) ।
कुष्ठ गणेश १.२.१ ( राजा सोमकान्त का कुष्ठ ग्रस्त होना ), १.२८.१७ ( मुकुन्दा के शाप से राजा रुक्माङ्गद का कुष्ठग्रस्त होना ), १.२९.१३ ( कदम्ब प्रासाद के समक्ष गणेश कुण्ड में स्नान से कुष्ठ से मुक्ति ), १.७५.४१ ( कुष्ठी के कारण राजा शूरसेन के विमान की ऊर्ध्व गति का रोधन , कुष्ठी के पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), १.७६.५४ ( सुलभा द्वारा बलात्कारी बुध को कुष्ठ ग्रस्त होने का शाप ), गरुड १.१६४ ( कुष्ठ रोग के प्रकार व लक्षणों का निरूपण ), २.२.७९(अग्नि उत्सादी के कुष्ठी बनने का उल्लेख), पद्म १.४८.२७ ( द्विजों को विरुद्ध, परुष वाक्य कहने पर आठ प्रकार के कुष्ठों के प्राप्त होने का कथन ), १.५१.८ ( सेव्या नामक पतिव्रता द्वारा कुष्ठी पति की सेवा, माण्डव्य ऋषि द्वारा कुष्ठी को मृत्यु प्राप्ति का शाप, पातिव्रत्य प्रभाव से सेव्या द्वारा पति - रक्षा तथा कुष्ठ से मुक्ति का वृत्तान्त ), ६.५२.१५ ( हेममाली यक्ष के १८ कुष्ठों से ग्रस्त होने व एकादशी व्रत से मुक्त होने की कथा ), भविष्य १.७२, १.७३ ( कृष्ण - पुत्र साम्ब को दुर्वासा मुनि के शाप से कुष्ठ रोग की प्राप्ति , सूर्याराधन से कुष्ठ से मुक्ति का वृत्तान्त ), मार्कण्डेय १६.१४ ( कौशिक ब्राह्मण को कुष्ठ रोग की प्राप्ति, पत्नी के पातिव्रत्य प्रभाव से रोग से मुक्ति का वृत्तान्त ), वराह ६२ ( मानस सरोवर स्थित ब्रह्मपद्म को प्राप्त करने की इच्छा से राजा अनरण्य को कुष्ठ रोग प्राप्ति, वसिष्ठ द्वारा बताए गए आरोग्य व्रतोपचार से रोग से निवृत्ति का वर्णन ), स्कन्द १.२.४६.१३ ( कुष्ठी बालक द्वारा मरणोत्सुक नन्दभद्र वैश्य को उपदेश ), ४.१.४८.३७ ( कृष्ण के शाप से साम्ब को कुष्ठत्व प्राप्ति, वाराणसी में सूर्याराधन से कुष्ठ से मुक्ति ), स्कन्द ५.२.४१.१७ ( लुम्प राजा द्वारा विप्रहत्या से कुष्ठ रोग प्राप्ति, महाकालवन में शिवलिङ्ग के दर्शन से कुष्ठ से मुक्ति का वर्णन ), ५.३.८६.८ ( शिव के रेतस के कारण अग्नि का कुष्ठी होना, रेवाजल में स्नान से कुष्ठ से मुक्ति ), ५.३.१५३.२१( जाबालि ब्राह्मण द्वारा भ्रूण हत्या से कुष्ठ प्राप्ति व आदित्य उपासना से मुक्ति का वृत्तान्त ), ५.३.१५९.१२ ( ब्रह्महत्या से कुष्ठ प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१७६.२७ ( कुष्ठों के १०० प्रकार के होने का उल्लेख ), ५.३.२११.२ ( श्राद्ध काल में शिव द्वारा कुष्ठी होकर कृपण द्विजों से भिक्षा मांगना, कुष्ठी रूप अतिथि के तिरस्कार से श्राद्ध के विनष्ट होने का वृत्तान्त ), ५.३.२२६.६ ( विमलेश्वर तीर्थ के प्रभाव से भानु की कुष्ठ रोग से मुक्ति का उल्लेख ), ६.२१३ ( नन्दिनी माता से किए गए कामाचार से कृष्ण - पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग प्राप्ति, कुहरवासा तीर्थ में देवार्चन से कुष्ठ से मुक्ति का वर्णन ), ७.१.२५.२२( सोमवार व्रत से १८ कुष्ठों के नष्ट होने का उल्लेख ), ७.१.२५६.४ ( मानस स्थित पद्म का हरण करने की कामना से राजा नन्द को कुष्ठ रोग प्राप्ति, वसिष्ठ द्वारा निर्दिष्ट सूर्याराधना से कुष्ठ से मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.३५३.२६ ( कृष्ण - पुत्र साम्ब को शापवश कुष्ठ रोग प्राप्ति, नारद द्वारा कुष्ठ रोग शान्ति हेतु सूर्याराधना का परामर्श, सूर्योपासना से कुष्ठ से मुक्ति का वर्णन ), १.४९१.२( शर नामक कुष्ठी द्विज द्वारा पत्नी सहित नागमती नदी में मुण्डीरस्वामी सूर्य उपासना से कुष्ठ से मुक्ति का वृत्तान्त ), २.२१८.८२( पारूप राष्ट्र के कुष्ठक ऋषि का उल्लेख ), कथासरित् १०.८.१३२( देशान्तर से लौटे हुए शशी द्वारा गृहद्वार पर कुष्ठी को देखना, कुष्ठी द्वारा गृहस्वामिनी के साथ रमण के स्ववृत्तान्त का निवेदन ) । kushtha
कुष्ठ अथर्ववेद के कुष्ठ सूक्त में कहा गया है कि यह कुष्ठ (कु - दुर्गम स्थान, स्थ - स्थित होना, आत्मा का वह स्वरूप जो दुर्गम स्थान में स्थित है , जहां परमात्मा से नित्य सम्बन्ध है ; साधारण अर्थ में कूठ नामक ओषधि ) कहां से आया है ? यह देवताओं के अमृत चखने से उत्पन्न हुआ है । यह तीन शाम्बों से आया है । शाम्ब / शम्ब शाम्भवी मुद्रा से सम्बद्ध प्रतीत होता है जिसके लिए वराहोपनिषद ५.५३ आदि द्रष्टव्य हैं। लक्ष्य पर अन्दर - बाहर दृष्टि, निमेष - उन्मेष से रहित अवस्था शाम्भवी मुद्रा होती है । - फतहसिंह
कुसीद भविष्य १.२.१२३( वणिक् की कुसीद वृत्ति होने का उल्लेख ), स्कन्द २.७.२१.५ ( वाल्मीकि के जन्म कथन प्रसंग में एक जन्म में कुसीद मुनि - पुत्र रोचन होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५२६.५७( कुसीद आदि व्यवहार चान्द्र वर्ष के अनुसार होने का उल्लेख ), ऋ. ८.८१-८३ कुसीदी काण्वः द्र. कुशीद ।
कुसुम पद्म ३.१८.१०९ ( कुसुमेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अनङ्ग काम का तप:स्थान ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१३२ ( शिशुनाग वंशीय राजा उदयी द्वारा गङ्गा के दक्षिण तट पर कुसुम नगरी की स्थापना का उल्लेख ), २.३.७.२३१( वानरराज वालि के प्रधान वानरों में कुसुम का उल्लेख ), ३.४.३६.७६ (कुसुमा : ललिता देवी की आठ सेविका शक्ति देवियों में से एक ), भविष्य २.२.८.२८ ( फूल, चैत्र मास की अष्टमी में अशोक के फूलों से देवी की पूजा का कथन ), मत्स्य १२२.२४( कुसुमोत्कर : सोमक वर्ष का अपर नाम ), वामन ५७.६५ ( धाता द्वारा स्कन्द को कुन्द , मुकुन्द तथा कुसुम नामक अनुचरों को प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ९९.३१९ ( बिंबिसार - पौत्र तथा दर्शक - पुत्र उदायी द्वारा गङ्गा के दक्षिण तट पर कुसुम नामक पुर की स्थापना का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.२८.२८ ( कुसुमेश के श्रद्धापूर्वक पूजन से शिवलोक प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.३८ ( कुसुमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : कुसुम - भूषित वीरक का शिव कृपा से कुसुमेश्वर रूप से प्रसिद्ध होना ), ५.३.१५० ( शिव द्वारा कामदहन, काम का पुन संजीवन, काम द्वारा तप, कुसुमेश्वर लिङ्ग की स्थापना व माहात्म्य ), ७.२४.४३ ( शिवार्चन में कुसुमार्पण का कोटि स्वर्गदान सदृश फल तथा शिव हेतु स्वीकृत व त्याज्य कुसुमों का वर्णन ), हरिवंश २.१२२.३० ( स्वाहाकार नामक ५ अग्नियों में से एक ), योगवासिष्ठ १.२२.१६ ( जरा रूपी कुसुम से कुसुमित देह वृक्ष पर मरण मर्कट के वेगपूर्वक आगमन का उल्लेख ), कथासरित् ५.१.२०६ ( कुसुमपुर : गङ्गा तट पर स्थित कुसुमपुर नगरवासी हरस्वामी नामक तपस्वी की कथा ), ११.१.३६ (कुसुमसार :लम्पा नगरी वासी कुसुमसार वैश्य के पुत्र चन्द्रसार व शिखर नामक वैश्य की पुत्री वेला की कथा ), १२.२९.३ ( राजा धरणीवराह द्वारा शासित एक नगर ) । kusuma
कुसुमामोदिनी मत्स्य १५६ ( पार्वती - माता मेना की सखी तथा पर्वतराज हिमाचल की अधिकारिणी देवी द्वारा पार्वती की प्रार्थना पर पर्वत की रक्षा ), स्कन्द १.२.२९.१ ( पार्वती - माता मेना की सखी ) ।
कुसुमायुध ब्रह्माण्ड ३.४.३५.६२ ( ललिता देवी की शृङ्गारशाला में शृङ्गार शक्तियों द्वारा कुसुमायुध की सेवा का उल्लेख ), मत्स्य ३.१० ( ब्रह्मा के हृदय से कुसुमायुध की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.११ ( सावित्री पर कुदृष्टि डालने से ब्रह्मा के लज्जाभिभूत होने तथा कुसुमायुध को रुद्र द्वारा भस्म होने के शाप का कथन ), ४.२१( ब्रह्मा द्वारा प्रदत्त शाप और कृपा से संयुक्त कुसुमायुध के शोक तथा आनन्द से अभिभूत होने का कथन ), १४.५ ( कुसुमायुध सदृश सौन्दर्यशाली पितरों में अमावसु नामक पितर को देखकर अच्छोदा के कुसुमायुध पीडित होने का उल्लेख ), स्कन्द २.८.८.२ ( कुसुमायुध कुण्ड में स्नान तथा दान से परम सौन्दर्य तथा सौख्य की प्राप्ति का कथन ), कथासरित् १८.४.२५३ ( देवस्वामी ब्राह्मण की कन्या कमललोचना का देवस्वामी के शिष्य कुसुमायुध से अनुराग, दोनों के वियोग तथा मिलन का वृत्तान्त ) । kusumaayudha
कुसुमोत्तर ब्रह्माण्ड १.२.१४.१७ ( प्रियव्रत - पुत्र हव्य के सात पुत्रों में से एक कुसुमोत्तर के नाम पर कुसुमोत्तर वर्ष के नामकरण का उल्लेख ), १.२.१९.९२ ( शाकद्वीपान्तर्गत अस्त पर्वत के निकटस्थ प्रदेश का कुसुमोत्तर नामोल्लेख ), वायु ४९.८७ (शाकद्वीप के अन्तर्गत अस्त पर्वत के वर्ष का कुसुमोत्तर नामोल्लेख ) ।
कुसुमोद विष्णु २.४.६० ( शाकद्वीपेश्वर भव्य के सात पुत्रों में से एक ) ।
कुसुम्भ मत्स्य ६०.९,२७ ( इक्षु, निष्पाव, राजधान्य, गोक्षीर आदि आठ सौभाग्य द्रव्यों में से एक ) ।
कुस्तुम्बुरु वायु ६९.१५९ ( देवजननी व मणिवर के पूर्णभद्र आदि अनेक पुत्रों में से एक ) ।
कुहक भागवत ५.२४.२९ (महातल में कद्रू से उत्पन्न क्रोधवश वर्ग के नागों में से एक प्रधान नाग ), लक्ष्मीनारायण १.५७.२९ ( राजा बर्हिषाङ्गद द्वारा ऋषि के कण्ठ में मृत सर्प के प्रक्षेपण से क्रुद्ध ऋषि - पुत्र का राजा को कुहक सर्प के दंशन से मृत्यु प्राप्ति का शाप ), २.२८.१८ ( कुहक जाति के नागों के व्यापारी होने का उल्लेख ) । kuhaka
कुहर वायु १०४.६१ ( मेरु पर्वतोपरि कुहरिणी नामक स्थान पर व्यास द्वारा संशयापनोदनार्थ तपस्या करने का उल्लेख ), शिव ५.३२.४७ ( कश्यप व सुरसा के अनेक सर्पपुत्रों में से एक ), स्कन्द ६.२१३.११ ( सूर्याराधना से कुष्ठ मुक्त होने पर ब्राह्मण द्वारा कुहरवासा संज्ञक सूर्य तीर्थ की स्थापना, कुहरवासी देव की भक्तिपूर्वक उपासना से कृष्ण - पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग से मुक्ति प्राप्ति का वर्णन ) । kuhara
कुहू अग्नि ८८.४( शान्त्यतीत कला/तुर्यातीता की २ नाडियों में से एक, कुहू नाडी में देवदत्त वायु की स्थिति का उल्लेख ), २७४.५ ( सोम के राजसूय यज्ञ की समाप्ति पर कुहू का पति हविष्मान् को त्याग कर सोम के पास गमन का उल्लेख ), देवीभागवत ८.१२.२४ ( शाल्मलि द्वीप की एक नदी ), १२.६.३६ (गायत्री सहस्रनाम में से एक ), पद्म१.६.५४ ( मय - कन्या, उपदानवी तथा मन्दोदरी - भगिनी ), ब्रह्माण्ड १.२.११.१८ ( स्मृति व अंगिरस की ४ कन्याओं में से एक ), १.२.२६.४४ ( शिव स्तुति के अन्तर्गत कुहू प्रभृति शक्तियों की शिव से उत्पत्ति का उल्लेख ), १.२.२८.११ ( पुरूरवा द्वारा कुहूमात्र काल वाली कुहू नामक अमावस्या की उपासना का उल्लेख ), १.२.२८.५९ ( कोकिल के कुहू उच्चारण के काल सदृश परिमाण वाली होने से अमावस्या की कुहू संज्ञा का उल्लेख ), २.३.६५.२६ ( सोम की नौ अनुचरी देवियों में से एक ), ३.४.३२.१३ ( षोडशपत्र वाले अब्ज / कमल की सोलह शक्तिदेवियों में से एक ), भागवत ४.१.३४ ( अङ्गिरा व श्रद्धा की चार कन्याओं में से एक ), ५.२०.१० ( शाल्मलि द्वीप की सात नदियों में से एक ), ६.१८.३ ( धाता की चार पत्नियों में से एक, सायं - माता ), १०.५४.४७ ( कुहू अमावस्या में चन्द्रकलाओं के क्षय का उल्लेख ), मत्स्य ६.२१( मय की तीन कन्याओं में से एक ), २३.२५ ( सोम के अवभृथ स्नान की समाप्ति पर कुहू देवी का पति हविष्मान् को छोडकर सोम की सेवा में नियुक्त होने का उल्लेख ), ११४.२१ ( हिमालय से नि:सृत अनेक नदियों में से एक ), १२१.४६ ( कुहू नामक राज्य में सिन्धु नदी के प्रवहण का उल्लेख ), १२२.३२ ( शाकद्वीप की सात गङ्गाओं में से पांचवीं गंगा इक्षु के कुहू नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), १४१.९, ४४, ४९, ५१ ( कुहू काल में पुरूरवा द्वारा पितरों के उद्देश्य से कुहू की उपासना, प्रतिपदा युक्त दो लवकाल अमावस्या की कुहू संज्ञा, कोयल के कुहू शब्द के उच्चारण काल के परिमाण वाले होने से दो लवकाल के कुहू नाम से प्रथित होने का कथन ), वामन ५७.८० ( कुहू नदी द्वारा स्कन्द को कुवलय नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), वायु २८.१५ ( स्मृति व अङ्गिरा की चार कन्याओं में से एक ), ४५.९५ ( हिमालय से नि:सृत एक नदी ), ५०.२०१ ( अमावस्या का कुहू नाम से उल्लेख ), ५६.९ ( पुरूरवा द्वारा सिनीवाली / चर्तुदशीयुक्त अमावस्या तथा कुहू / प्रतिपदा युक्त अमावस्या की उपासना का उल्लेख ), ५६.५३ ( अमावस्या के कुहू नाम के हेतु का कथन ), ९०.२५ ( सोम की ९ अनुचरी देवियों में से एक ), विष्णु १.१०.७ ( स्मृति व आंगिरस की चार कन्याओं में से एक ), शिव ५.३४.५४ ( तृतीय सावर्णि मनु के ९ पौत्रों में से एक ), स्कन्द ४.१.२१.३९ ( श्री हरि के तिथियों में कुहू अमावस्या तिथि होने का उल्लेख ) । kuhuu/kuhu
कूट गणेश २.१५.७ ( महोत्कट गणेश द्वारा पाषाण रूप कूट दैत्य के वध का उल्लेख ), २.९१.२ ( गणेश द्वारा कूट दैत्य का वध ), गर्ग ५.१२.११( ब्राह्मणोचित कर्म का परित्याग कर क्षत्रियोचित कर्म मल्ल विद्या में संलग्न होने से उतथ्य मुनि का स्व - पुत्रों को पृथ्वी पर मल्ल रूप में उत्पन्न होने का शाप, शापवश उतथ्य - पुत्रों का मथुरापुरी में चाणूर , मुष्टिक , कूट, शल्ल तथा तोशल नाम से उत्पन्न होना, कृष्ण के स्पर्श मात्र से मोक्ष प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.५८( महाकूट : श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक ), भागवत १०.४२.३७, १०.४४.२६ ( कंस के प्रधान मल्लों में से एक कूट मल्ल के बलराम द्वारा मारे जाने का उल्लेख ), वायु १.३९.५३( पञ्चकूट पर्वत पर दानवों के वास का उल्लेख ), ७७.५७/२.१५.५६( महाकूट : श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक ), स्कन्द ३.२.२०.११( पार्वती के अनुरोध पर शिव द्वारा कूट मन्त्रों के बीजों का कथन; पांच कूटों की उत्पत्ति), ५.३.१५५.८९( मानकूट, तुलाकूट , कूट आदि कथन से अन्धतामिस्र नामक नरक प्राप्ति का उल्लेख ); द्र. अन्नकूट, कालकूट, गोविन्दकूट, चित्रकूट, तुङ्गकूट, त्रिकूट, देवकूट, मणिकूट, रत्नकूट, विकूट, हेमकूट । koota/ kuuta/ kuta
कूटयुद्ध ब्रह्माण्ड ३.४.२२.७४ (भण्ड - सेनापति कुरण्ड के कूट युद्ध में निपुण होने का उल्लेख ), ३.४.२५.४६ ( भण्ड - सेनानियों का कूट युद्ध द्वारा महेश्वरी को जीतने हेतु प्रस्थान ) ।
कूटशाल्मलि मत्स्य ९६.१०( सर्वफलत्याग व्रत के विधान में कूटशाल्मलि प्रभृति १६ फलों को ताम्र से निर्मित कराने का निर्देश ) ।
कूतनाकूतना ब्रह्माण्ड १.२.२४.२७ ( सहस्ररश्मि सूर्य की ४०० वृष्टिकारक रश्मियों के चित्रमूर्ति, चन्दन , साध्य, कूतनाकूतना तथा अमृत नामों का उल्लेख ) ।
कूति ब्रह्माण्ड २.३.३.६, २.३.४.२ (ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न दर्श, पौर्णमास आदि १२ जयादेवों में से एक ), वायु ६६.६ ( ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न तथा मन्त्रमय शरीर से युक्त दर्श, पौर्णमास आदि १२ जयादेवों में से एक ) ।
कूप अग्नि ६४ ( कूप, वापी, तडाग आदि की प्रतिष्ठा विधि का वर्णन ), गणेश २.१९.१ ( कूप व कन्दर दैत्यों द्वारा क्रमश: मण्डूक व बालक बनकर महोत्कट गणेश के वध का यत्न, परस्पर युद्ध से मृत्यु ), नारद २.६५.८७(किंदुशूक कूप का संक्षिप्त माहात्म्य), पद्म ३.१६.७३ ( कूप तीर्थ में स्नान तथा अर्चन से वाजपेय फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.३८.२४( कूप के स्नान के आपेक्षिक रूप से अधम होने का कथन ), ६.१३४.२ ( वृत्र - निर्मित कूप से वेत्रवती नदी की उत्पत्ति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.८.१४(लोम की कूप से उपमा), २.३१.२२ ( शूद्र - भोग्या ब्राह्मणी द्वारा अन्धकूप नरक प्राप्ति का उल्लेख ), ४.९३.७६ ( सौ कूपों से वापी के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.३७ ( पाण्डुकूप नामक तीर्थ में श्राद्ध करने से अनन्त फल की प्राप्ति का उल्लेख ), २.३.१३.४१ ( वृष नामक कूप पर श्राद्ध करने से श्राद्ध के अक्षय फलदायी होने का कथन ), भविष्य २.१.११.२ ( कूप प्रतिष्ठा का वृक्षयाग आदि में मेल का निषेध आदि ), भागवत ७.९.२८ ( संसार रूपी कूप में काल रूपी सर्प के दंशन हेतु तैयार रहने का उल्लेख ), मत्स्य ५८.१, ५१ ( कूप प्रतिष्ठा विधान का वर्णन ), महाभारत स्त्री ५.१३(कूपमध्य में महानाग के दर्शन का उल्लेख) , ६.७( संसार रूपी वन के रूपक में देहधारियों के शरीर का ही कूप रूप में उल्लेख ), वामन ९०.४८ ( कोशकार मुनि द्वारा स्वपुत्र निशाकर की जडता से क्रुद्ध होकर पुत्र को जलरहित कूप में फेंकना, माता द्वारा दस वर्ष उपरान्त कूप से पुत्र की प्राप्ति, पुत्र द्वारा मातापिता को अपनी जडता , मूकता आदि के हेतु का वर्णन ), वराह १६५.२९ ( मथुरा स्थित चतु:सामुद्रिक नामक कूप में पिण्डदान से प्रेत की मुक्ति की कथा ), शिव ४.२४.१५( गौतम द्वारा प्राणियों के उपकार हेतु जल प्राप्ति के लिए वरुण से प्रार्थना, वरुण के निर्देशानुसार हस्त प्रमाण गर्त /कूप के निर्माण पर जल प्राप्ति , अन्य मुनियों द्वारा आश्रम से गौतम के निष्कासन का वर्णन ), स्कन्द १.२.४.७८ (उत्तम कोटि के दानों में कूपदान का उल्लेख ), १.२.३६.१९ ( पातालगत प्रलम्ब नामक दानव के वध हेतु स्कन्द द्वारा शक्ति मोचन, शक्ति गमन से भू विवर का निर्माण, पातालगङ्गा के जल से भू विवर का आपूरित होना, स्कन्द द्वारा जलपूर्ण भू विवर को सिद्धकूप नाम से अभिहित करना, सिद्ध कूप में स्नान से समस्त पापों से मुक्ति का कथन ), १.२.३५.१२ ( स्तम्भेश्वर लिङ्ग के पश्चिम में गुह निर्मित कूप में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य ), १.२.३९.१०० ( बर्करेश लिङ्ग की ईशा - दिशा में स्वस्तिक कूप के बनने के कारण का कथन ), १.२.४७.३०( कोलम्बा देवी की कूप प्रियता का कथन ), १.२.५६.१४ ( मोक्षेश्वर कूप में स्नान से प्रेतबाधा से मुक्ति का उल्लेख ), १.२.५६.१७ ( जयादित्य कूप में स्नान से गर्भवास से मुक्ति का उल्लेख ), २.७.३.३४ ( ७ सन्तानों में कूप का उल्लेख ), २.७.२२.५६ ( पितृलोक का भ्रमण करते हुए धर्मवर्ण द्वारा अन्धकूप में पतित पितरों के दर्शन, पितरों द्वारा धर्मवर्ण से उद्धार हेतु प्रार्थना ), २.८.९ ( गया कूप ), ३.१.४९.४४(बाल्य यौवन वृद्ध आदि की अन्धकूप रूप में कल्पना), ४.२.६६.२ ( सौभाग्योदक कूप में स्नान कर अप्सरेश्वर लिङ्ग के दर्शन से सौभाग्य प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२.८१.२७ ( धर्म तीर्थ के अन्तर्गत धर्म कूप में स्नान से इन्द्र की ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा ), ४.२.९७.९२ ( श्राद्ध पिंडों को पितृकूप में फेंकने से रुद्रलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२.९७.१२५ ( कालोद कूप के जलपान से जन्म - बन्धन आदि के भय से मुक्ति का उल्लेख ), ४.२.९७.१४१ ( भैरवेश तथा व्यासेश कूप का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.९७.१४७ (समस्त जडता के विनाशक के रूप में गौरीकूप का उल्लेख ), ४.२.९७.१६३ ( सिद्ध कूप पर सिद्धों के निवास का उल्लेख ), ४.२.९७.१६८ ( चतु:समुद्र कूप में स्नान से सागर स्नान के पुण्य की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२.९७.१९१ ( पञ्चनदेश्वर लिङ्ग के पश्चिम भाग में मंगलोद कूप की स्थिति का उल्लेख ), ५.३.४४.१८ ( धर्मारण्य में कूप की शूलभेद से तुलना ), ७.१.१४८( कुण्डल कूप के माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.२३२ ( पाण्डव कूप के माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.२५७ ( त्रित कूप के माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.२५८ ( शशापान कूप के माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.३३९ ( हुंकार कूप के माहात्म्य का वर्णन ), योगवासिष्ठ ६.२.६.५८ ( इन्द्रियों की कूप से उपमा ), लक्ष्मीनारायण १.७०.१७ ( कौशिक - पुत्र जाड्यमघ के कूप में पतन व रक्षण का उल्लेख ), १.५५०.२ ( तुण्डी ऋषि द्वारा निर्मित मुक्तिदायक कूप का कथन ), कथासरित् १.४.१२० ( जीवित ब्राह्मण को जलवा देने के आरोप में योगनन्द द्वारा मन्त्री शकटाल को पुत्रों सहित अन्धकूप में फिंकवा देने का उल्लेख ), १०.१.१०१ ( ईश्वरवर्मा नामक वैश्यपुत्र की वंचना हेतु मकरकरी नामक वेश्या द्वारा गुप्त कूप में जाल बंधवाने आदि की कथा ), १०.४.१०२ ( शश द्वारा सिंह को द्वितीय सिंह दिखलाने के लिए कूप पर ले जाने की कथा ), १८.२.३६ ( कितवों द्वारा डाकिनेय नामक कितव को अन्धकूप में फेंकने का प्रसंग ) ; द्र. गयाकूप, शशपानकूप, हिंकारकूप, सप्तसामुद्रकूप । koopa/kuupa/kupa
कूपक ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८२ ( भण्ड के सेनानी पुत्रों में से एक ) ।
कूपकर्ण भागवत १०.६३.८ ( शोणितपुर में बाणासुर के योद्धा कूपकर्ण के साथ बलराम के युद्ध का उल्लेख ) ।
कूपलोचन ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८२ ( भण्ड के पुत्रों में से एक ) ।
कूप्यवाल लक्ष्मीनारायण २.२७०.८८ ( कूप्यवाल नामक काष्ठहारक की सनत्कुमार द्वारा हस्ति से रक्षा, काष्ठहारक द्वारा सनत्कुमार तीर्थ के निर्माण का वर्णन ) ।
कूपेश लक्ष्मीनारायण २.२१४.१०२ ( रायकूपेश : हवाना नगरी के राजा रायकूपेश द्वारा श्रीहरि का सत्कार ) ।
कूबर पद्म १.४०.१५१(विष्णु का दिव्य रथ - अनंतरश्मिसंयुक्ते दुर्दर्शे मेरुकूबरे॥) भागवत ४.२९.१९( मनोरश्मिर्बुद्धिसूतो हृन्नीडो द्वन्द्वकूबरः । पञ्चेन्द्रियार्थप्रक्षेपः सप्तधातुवरूथकः ॥), महाभारत वन १७५.५ (गिरिकूबरपादाक्षं शुभवेणु त्रिवेणुमत्। पार्थिवं रथमास्थाय शोभमानो धनंजयः ।।), विराट ६३.४८(स पीडितो महाबाहुर्गृहीत्वा रथकूबरम् । गोङ्गेयो युधि दुर्धर्षस्तस्थौ दीप इवातुरः ।।), द्रोण १८८.१४ (गदया भीमसेनस्तु कर्णस्य रथकूबरम्।बिभेद शतधा राजंस्तदद्भुतमिवाभवत्।।), कर्ण ३४.६ (अस्तंगिरिमधिष्ठानं नानाद्विजगणायुतम्। चकार भगवांस्त्वष्टा उदयं रथकूबरम्।।), ५१.४३ (गदया च महाराज कर्णस्य रथकूबरम्। पोथयामास सङ्क्रुद्धः समरे शत्रुतापनः।।), शिव २.५.८.१० ( शिव रथ में उदय व अस्त अद्रियों के कूबर बनने का उल्लेख - अस्ताद्रिरुद(दद्र?)याद्रिस्तु तावुभौ कूबरौ स्मृतौ । अधिष्ठानं महामेरुराश्रयाः केशराचलाः ।। ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.४९ ( जीवरथ में धर्म व वैराग्य को कूबर बनाने का निर्देश - यज्ञासनं ह्रीवरूथं धर्मवैराग्यकूबरम् । प्राणयुगं विचाराक्षं प्रज्ञामार्गं कृतोदरम् ।। ) ; द्र. नलकूबर ।
कूर्दिनी ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६८ ( ३६ वर्ण शक्ति देवियों में से एक ) ।
कूर्म अग्नि ३ ( समुद्र - मन्थन में मन्दराचल को आधार प्रदान करने हेतु श्री हरि द्वारा कूर्म रूप धारण ), ८७.५( शान्ति कला/तुर्यावस्था के २ प्राणों में से एक, अलम्बुषा नाडी में स्थित कूर्म वायु की प्रकृति का कथन ), २१४.१३( कूर्म वायु के उन्मीलन का हेतु होने का उल्लेख ), कूर्म २.४५.२३( प्रलयाग्नि से वृक्षादि के नष्ट हो जाने पर भूमि के कूर्मपृष्ठ सदृश प्रतीत होने का उल्लेख ),२.४६.५४ (ऋषियों द्वारा कूर्म रूप परमात्मा की स्तुति ), गरुड १.८७.१७ ( तामस मन्वन्तर में कूर्म रूप श्रीहरि द्वारा भीमरथ नामक असुर के वध का उल्लेख ), ३.२४.८९(वायु कूर्म द्वय तथा शेष कूर्म द्वय का उल्लेख), नारद १.६६.११२( कूर्मेश की शक्ति कमठी का उल्लेख ), १.५६.७३९ ( पूर्वाभिमुख कूर्म के नाभि, मुख, बाहु, पाद आदि ९ मण्डलों में देशों का विन्यास ), पद्म ४.९.२ ( समुद्र - मन्थन प्रसंग में श्रीहरि द्वारा कूर्म रूप से मन्दराचल को धारण करने का उल्लेख ), ६.१२०.६३( कूर्म से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ६.२३२.२ ( वही), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.१०९ ( नरक - भोग वर्णन के अन्तर्गत कूर्ममांस के भक्षक ब्राह्मण का कूर्मकुण्ड में वास, कूर्मों द्वारा भक्षण तथा कूर्म योनि प्राप्ति ), भविष्य ३.४.२५.८७ ( रैवत मन्वन्तर में कर्क राशि में स्थित होने पर पुराणपुरुष की कूर्म रूप से उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.२५.१३६ ( कूर्म कल्प में महामत्स्य से कूर्म की, कूर्म से विष्णु की, विष्णु से ब्रह्मा की तथा ब्रह्मा से विराट् की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.८३.११८ ( वंश भरण हेतु ईश्वर के कूर्म रूप की पूजा का निर्देश ), भागवत ५.१८.२९ ( हिरण्मय वर्ष में भगवान के कूर्म रूप धारण करने का उल्लेख, अर्यमा आदि द्वारा कूर्म की स्तुति ), ६.८.१७( नारायण कवच में कूर्म भगवान से सभी निरयों से रक्षा करने की प्रार्थना ), ११.४.१८ ( कूर्मावतार में भगवान द्वारा अमृत मन्थन हेतु स्वपृष्ठ पर मन्दराचल धारण करने का उल्लेख ), मत्स्य १७.३३ ( श्राद्ध के लिए प्रशस्त कूर्म मांस से पितरों की ११ मास तक तृप्ति होने का उल्लेख ), ५३.४५ ( कूर्मकल्प के वृत्तान्त का आश्रय लेकर वामनपुराण की रचना का उल्लेख, अयन काल में कूर्म पुराण तथा कूर्म दान के महत्त्व का कथन ), ५८.१८( तडाग आदि निर्माण में सुवर्ण - निर्मित कूर्म आदि दान का निर्देश ), २४९.१६, २८ ( अमृतमन्थन हेतु देवों द्वारा पाताल स्थित कूर्म रूप भगवान् विष्णु से प्रार्थना, कूर्म भगवान् द्वारा मन्दर धारण की स्वीकृति ), २६६.५ ( कूर्मशिला : मूर्ति स्थापना हेतु मूर्ति के नीचे कूर्मशिला की स्थापना का निर्देश ), २९०.६( १५वें पौर्णमासी कल्प के कौर्म नाम का उल्लेख ), महाभारत आदि ६५.४१( कूर्म, कुलिक आदि नागों के कद्रू- पुत्र होने का उल्लेख ), शान्ति ३०१.६५ ( संसार रूपी घोर सागर में तमोगुण रूपी कूर्मों तथा रजोगुण रूपी मीनों की स्थिति का उल्लेख - तमःकूर्मं रजोमीनं प्रज्ञया संतरन्त्युत), ३१२.६( प्रलय काल में भूमि के कूर्म पृष्ठ रूप हो जाने का उल्लेख ), मार्कण्डेय १५.१८ ( कृतघ्न द्वारा मत्स्य, वायस, कूर्म प्रभृति योनियों की प्राप्ति का उल्लेख ), ५८/५५( भारतवर्ष को आक्रान्त करके पूर्वाभिमुख स्थित कूर्म रूपी जनार्दन के सन्निवेश का वर्णन, कूर्म के अङ्गों में नक्षत्रों व देशों का विन्यास ), वराह ४० ( पौषमास की शुक्ल द्वादशी में करणीय कूर्म द्वादशी व्रत का वर्णन ), वामन ९०.२ ( सन्निधान तीर्थ/कौशिकी? में विष्णु का कूर्म नाम से निवास ), ९०.३६ ( सुतल तीर्थ में विष्णु का कूर्म अचल नाम से वास ), विष्णु १.४.८ ( विष्णु भगवान द्वारा मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों को ग्रहण करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१७९.८ ( चतुर्थ तामस मन्वन्तर में कूर्म रूपी विष्णु द्वारा पाताल जल में ले जाकर भीमरथ दैत्य का वध ), ३.११९.८ ( ओषधि समारम्भ काल में कूर्म रूप भगवान की पूजा का निर्देश ), ३.१२०.९( २७ नक्षत्रों में पूजनीय देवताओं में से एक ), स्कन्द १.२.१०.४ ( ब्रह्मलोक से पतन पर राजा इन्द्रद्युम्न का चिरजीवियों मुनि, गृध्र, बक तथा उलूक के साथ मानसरोवर वासी मन्थरक नामक कूर्म के समीप गमन, कूर्म द्वारा राजा से पृष्ठदाह तथा चिरजीविता हेतु का वर्णन ), ४.१.२९.४३ ( कूर्मयाना : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ४.२.७०.६९ ( काशीस्थ देवियों में से एक कौर्मी शक्ति के पूजन व स्तुति से क्षेत्र सिद्धि प्राप्ति का कथन ), ५.३.१३.४४ ( कूर्म कल्प का १६वें कल्प के रूप में उल्लेख ), ६.२७१.२४५ ( ब्रह्मलोक से पतन पर राजा इन्द्रद्युम्न का चिरजीवी मार्कण्डेयादि के साथ मानसरोवर वासी मन्थरक नामक कूर्म के समीप गमन, कूर्म द्वारा इन्द्रद्युम्न के यज्ञ में पृष्ठदाह के वृत्तान्त का कथन, इन्द्रद्युम्न के पूछने पर कूर्म द्वारा चिरजीविता के हेतु का वर्णन ), ७.१.११.१८ ( कूर्मरूप से संस्थित भारत में नक्षत्र - ग्रह विन्यास का कथन ), ७.१.१०५.४८ ( १५वें कल्प तथा प्रजापति की पूर्णिमा के रूप में कूर्म कल्प का उल्लेख ), ७.४.२०.८ ( कूर्मपृष्ठ आदि दैत्यों द्वारा दुर्वासा के स्नान में विघ्न, कृष्ण द्वारा दैत्यों के हनन का वृत्तान्त ), हरिवंश २.८०.४६ ( रजत - निर्मित कूर्म - द्वय को घृत में स्थापित करके ब्राह्मण को दान देने का निर्देश ), २.११०.३४(वीणा की आकृति की कूर्म से तुलना), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५४ ( अलक्ष्मी के कूर्म पृष्ठ सदृश नखों का उल्लेख ), १.२०९.३९( कूर्मोद्धार : बदरीवन के अनेक तीर्थों में से एक ), १.३७०.११३ ( नरक में कूर्म कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.४९५.३३ ( अभक्ष्य भक्षण से भयभीत अग्नि का गुप्त स्थानों पर छिपना, देवों द्वारा कुंकुमवापी सरोवर पर स्थित कूर्म से अग्नि के आगमन के विषय में पूछना, कूर्म के बतलाने पर अग्नि द्वारा कूर्म को वंश अवृद्धि का शाप देने का वर्णन ), २.११०.७२ (श्रीहरि द्वारा कूर्म ऋषि को कारुराज्य प्रदान करने का उल्लेख ), २.११०.८२ ( कूर्म ऋषि को कर्वरीजलपान देश का गुरु बनाने का उल्लेख ), २.११८.९२ ( नौकाविहार करते हुए सन्तारण प्रभृति हरि भक्तों का जल में निमग्न होना, श्रीहरि द्वारा कूर्म रूप धारण कर स्वभक्तों के उद्धार का वृत्तान्त ), २.१५८.७१ ( कूर्मशिला अर्चन विधि का कथन ), ३.१६४.२८ ( चतुर्थ तामस मन्वन्तर में समुद्रतल स्थित भीमरथ नामक दैत्य के वध हेतु श्री हरि द्वारा कूर्म रूप धारण करने का कथन ), ३.१७०.१४ ( श्रीहरि के विविध धामों में १३वां धाम ), कथासरित् १०.४.१६८ ( कूर्म - हंस कथा में कम्बुग्रीव नामक कूर्म को उसी के मित्र हंसों द्वारा अन्य सरोवर पर ले जाना, बोलने से लकडी के छूट जाने पर कूर्म का गिरना और मृत्यु को प्राप्त होना ), १०.५.७९ ( साधनहीन और वित्तहीन होने पर भी बुद्धिमान मित्रों द्वारा कार्यसिद्धि को दर्शाने वाली काक - कूर्म - मृग -आखु कथा में मन्थर नामक कूर्म का संदर्भ ), १२.१५.६ ( विष्णुस्वामी ब्राह्मण के पुत्रों का यज्ञ हेतु कूर्म लाने के लिए समुद्र तट पर वास ) । kuurma/koorma/kurma
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कूर्मग्रीव वामन ५७.८६ (कृत्तिकाओं द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त पांच गणों में से एक ), ५८.६३ ( कार्तिकेय - गण कूर्मग्रीव द्वारा दैत्यों के संहार का उल्लेख ) ।
कूर्मपुराण नारद १.१०६ ( कूर्म पुराण के अन्तर्गत विषयों का कथन ), भागवत १२.७.२४ ( अठ्ठारह पुराणों में से एक ), मत्स्य ५३.४८ ( कूर्म रूपी जनार्दन द्वारा वर्णित धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के माहात्म्य से युक्त कूर्मपुराण को स्वर्ण निर्मित कूर्म के साथ दान करने से एक सहस्र गोदान के फल की प्राप्ति का कथन ), वायु १०४.९ ( १८ महापुराणों में से एक कूर्मपुराण के १७ हजार शलोकों से युक्त होने का उल्लेख ), विष्णु ३.६.२३ ( १८ महापुराणों में १५वें महापुराण के रूप में कूर्म का उल्लेख ) ।
कूर्मपृष्ठ स्कन्द ७.४.१७.३४ ( द्वारका के उत्तर द्वार पर स्थित दानव का नाम ) ।
कूष्माण्ड
पद्म ४.२१.२४
(
कार्तिक
व्रत में कूष्माण्ड भोजन से
धन हानि का उल्लेख
-
कूष्मांडे
धनहानिः स्यात्बृहत्यां न
स्मरेद्धरिम् ।
),
६.१२.४
(
जालन्धर
-
सेनानी
सर्परोमा का कूष्माण्ड गण के
साथ युद्ध का उल्लेख ),
ब्रह्मवैवर्त्त
३.४.६३
(
पुण्यक
व्रत विधान के अन्तर्गत पुत्र
प्राप्ति हेतु कूष्माण्ड,
नारिकेल
प्रभृति फलों को श्रीहरि को
समर्पित करने का उल्लेख ),
ब्रह्माण्ड
२.३.७.७४
(
अज
व शण्ड नामक कूष्माण्डों
द्वारा ब्रह्मधना व जंतुधना
नामक कन्याओं का राक्षस से
विवाह करने का वर्णन-
आससाद
पिशाचौ वै त्वजः शण्ढश्च
तावुभौ । कपिपुत्रौ महावीर्यौं
कूष्माण्डौ
पूर्वजावुभौ ॥
),
२.३.७.३७४,
३८४
(कपिशा
के पुत्रों कूष्माण्डों के
१६ गणों के
नाम
-
छगलश्छगला
चैव वक्रो वक्रमुखी तथा ॥
दुष्पूरः पूरणा चैव सूची
सूचीमुखस्तथा ।
विपादश्च
विपादी च ज्वाला चाङ्गारकस्तथा
॥
),
२.३.४१.२९
(
शिव
मन्दिर में प्रवेश से पूर्व
परशुराम द्वारा शिव द्वार पर
यक्षों,
विद्याधरों,
भूत
-
प्रेतों,
कूष्माण्डों
आदि के दर्शन का उल्लेख ),
२.३.७४.९९
(
कूष्माण्ड
गौतम :
कक्षीवान
के सहस्र पुत्रों का नाम
-
ब्राह्मण्यं
प्राप्य कक्षीवान्सहस्रमसृजत्सुतान्
॥
कूष्माण्डा
गौतमास्ते वै स्मृताः कक्षीवतः
सुताः ।
),
भविष्य
१.२३.२३
(मितश्च
सम्मितश्चैव
तथा
च
शालकंटकः
।
कूष्माण्डो
राजश्रेष्ठास्तेऽग्नयः
स्वाहासमन्विताः
।। ),
भागवत
६.८.२४
(
नारायण
कवच में श्रीकृष्ण की कौमोद
की गदा से कूष्माण्ड,
यक्ष,
राक्षसादि
ग्रहों को कुचल डालने की
प्रार्थना ),
१०.६.२७
(
भगवान्
विष्णु के नामोच्चारण से
हाकिनी,
राक्षसी
और कूष्माण्डों आदि बालग्रहों
के भयभीत होकर नष्ट हो जाने
का उल्लेख ),
मत्स्य
५८.३४
(
कूप,
तडाग
आदि प्रतिष्ठा विधान के अन्तर्गत
दक्षिण द्वार पर स्थित यजुर्वेदी
विद्वान् द्वारा रुद्र,
सोम,
कूष्माण्ड
सम्बन्धी सूक्तों के जप का
निर्देश ),
९६.५
(
सर्वफलत्याग
व्रत के विधान में कूष्माण्ड
प्रभृति १६ फलों को स्वर्ण
से निर्मित कराने का निर्देश
-
कूष्माण्डं
मातुलिङ्गञ्च वार्ताकम्पनसं
तथा।......कालधौतानि
षोडश॥
),१८३.६३
(
अविमुक्त
क्षेत्र में महादेव के साथ
कूष्माण्ड,
जयन्त
तथा गजतुण्ड प्रभृति गणों के
विराजमान होने का उल्लेख ),
वराह
१९७.४२
(
यमकिङ्करों
में कूष्माण्डों का उल्लेख
),
वायु
६९.२५७
(
कूष्माण्डी
:
पुलह
व कपिशा -
पुत्री
कूष्माण्डी से १६ पिशाच युग्मों
के उत्पन्न होने का उल्लेख
),
६९.२६५/२.८.२५९
(
कूष्माण्डों
के १६ गणों के नाम,
स्वभाव
तथा वेषादि का वर्णन
-
अजामुखा
वक्रमुखाः पूरिणः
स्कन्दिनस्तथा।विपादाङ्गारिकाश्चैव
कुम्भपात्राः प्रकुन्दकाः
॥.....),
विष्णु
१.१२.१३
(
विविध
रूपधारी कूष्माण्डों तथा
स्वयं इन्द्र द्वारा ध्रुव
की समाधि भङ्ग करने का प्रयास
-
कूष्माण्डा
विविधै रूपैर्महेन्द्रेण
महामुने ।
समाधिभङ्गमत्यन्तमारब्धाः
कर्तुमातुराः ॥
),
शिव
१.१५.५०
(
कूष्माण्ड
दान से पुष्टि व सर्व -
समृद्धि
प्राप्ति का उल्लेख
-
सर्वं
सर्वसमृद्ध्यर्थं कूष्मांडं
पुष्टिदं विदुः।
प्राप्तिदं
सर्वभोगानामिह चाऽमुत्र च
द्विजाः
),
स्कन्द
२.४.३१.२
(
कार्तिक
शुक्ल नवमी में विष्णु द्वारा
कूष्माण्ड दैत्य का वध,
कूष्माण्ड
वल्ली की दैत्य रोमों से
उत्पत्ति,
कूष्माण्ड
दान से फल प्राप्ति का कथन ),
४.२.५७.७२
(
महोत्पात
प्रशान्ति हेतु कूष्माण्ड
नामक विनायक की पूजा का निर्देश
-
प्राच्या
देहलिविघ्नेशात्कूश्मांडाख्यो
विनायकः ।।
पूजनीयः
सदा भक्तेर्महोत्पात प्रशांतये
।।
),
६.३६.३४
(
वशीकरण
हेतु कूष्माण्डी जपने का
निर्देश
-
वशीकरणहेतोर्यः
कूष्मांडीः प्रजपेन्नरः
॥
शत्रवोऽपि
वशे तस्य किं पुनः प्रमदादयः
॥
),६.२०६.११२
(
विश्वेदेवों
के अश्रुओं से कूष्माण्डों
की उत्पत्ति,
कूष्माण्ड
शब्द की निरुक्ति,
ब्रह्मा
द्वारा कूष्माण्डों की भोजन
व्यवस्था का निरूपण
-
कुशब्देन
स्मृता भूमिः संसिक्ता चाश्रुणा
यतः ॥
ततोंऽडानि
च जातानि तेभ्यो जाता अमी घनाः
॥
कूष्मांडा
इति विख्याता भविष्यंति
जगत्त्रये ॥ ततस्तांश्च त्रिधा
कृत्वा क्रमेणैवार्पयत्तदा
॥
),
लक्ष्मीनारायण
१.५३७.६३
(
कूष्माण्ड
मुनि के स्थान कूष्माण्डेश्वर
में कृष्ण नारायण का आगमन तथा
मुनि द्वारा सत्कार ),
२.१२.२४,३५
(
दमनक
दैत्य द्वारा कूष्माण्ड
प्रभृति सेनानायकों को लोमश
आश्रम से बालकृष्ण व कन्याओं
के हरण का आदेश,
कूष्माण्ड
का बालकृष्ण के परमात्मत्व
का वर्णन करते हुए कन्या हरण
से विरत होने की प्रार्थना
),
३.२२.८९
(
अश्वमेध
में अश्व की बलि के स्थान पर
कूष्माण्ड फल की बलि देने का
निर्देश -
अश्वो
योऽर्पित एवाऽपि देवाय देवतायनः
।।
कुष्माण्डाख्यं
फलं देयं वह्नये देवताजुषे
।)
।
kooshmaanda/
kuushmaanda/ kushmanda