ग अग्नि ३४८.४ ( गन्धर्व, विनायक,गीत व गायक हेतु ग के प्रयोग का उल्लेख ) ।
गगन योगवासिष्ठ ५.३१.५८( प्रह्लाद द्वारा शिर में गगन की धारणा का उल्लेख )
गङ्गा अग्नि ११० ( गङ्गा का संक्षिप्त माहात्म्य ), १५९ ( गङ्गा जल में अस्थि प्रक्षेपण से मृत व्यक्ति के अभ्युदय तथा हित का उल्लेख ), ३२३.३ (गङ्गा मन्त्र के जप द्वारा कर्म सिद्धि का कथन ), कूर्म १.३७.३० ( प्रयाग माहात्म्य के अन्तर्गत गङ्गा महिमा का वर्णन ), १.३७.३१ ( गङ्गा के त्रिपथा नाम के हेतु का कथन ), १.३७.३७ ( कृतयुग में नैमिष, त्रेता में पुष्कर, द्वापर में कुरुक्षेत्र तथा कलियुग में गङ्गा की विशिष्टता का उल्लेख ), १.४६ ( विष्णुपाद से नि:सृत गङ्गा के मेरुपर्वतस्थ ब्रह्मपुरी के चारों ओर गिरने पर चार भागों में विभक्त होने का उल्लेख ), गरुड ३.२२.२८(गङ्गा के १२ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), ३.२९.३(वरुण-भार्या, निरुक्ति, हरिपद से निःसृत गंगा की प्रशंसा), ३.२९.९(भागीरथी गङ्गा के ४ रूपों का कथन), गर्ग १.३.३८ ( श्री भगवान के वसुदेव व देवकी के पुत्र रूप में अवतार ग्रहण करने पर गङ्गा / जाह्नवी के मित्रविन्दा नाम धारण का उल्लेख ), २.२०.६ ( गङ्गा द्वारा राधा को मञ्जीर नामक दिव्य भूषण अर्पित करने का उल्लेख ), २.२०.२७ (कृष्ण द्वारा भूमि पर वेत्र ताडन से वेत्र गङ्गा की उत्पत्ति तथा वेत्रगङ्गा की महिमा का उल्लेख ), देवीभागवत २.३.१८ ( ब्रह्मसदन में आसीन राजा महाभिष व गङ्गा महानदी के परस्पर काममोहित होने पर ब्रह्मा द्वारा शाप दान का उल्लेख ), २.४ ( ब्रह्मा द्वारा प्रदत्त शाप के वशीभूत होकर महाभिष का राजा शन्तनु के रूप में तथा गङ्गा नदी का मानुषी रूप में जन्म लेना, शन्तनु व गङ्गा का विवाह, वसुओं के शाप मोक्षण हेतु गङ्गा द्वारा अपने वसु रूप सात पुत्रों का गङ्गा जल में प्रक्षेपण, अष्टम पुत्र को गाङ्गेय नाम से शन्तनु को प्रदान करने का वृत्तान्त ), ८.७.१३ ( विष्णु के वाम पाद के अङ्गुष्ठ से निर्मित ब्रह्माण्ड छिद्र से उत्पन्न होकर गङ्गा का स्वर्ग में प्रवेश, ब्रह्मलोक में गङ्गा के चार धाराओं में विभक्त होने का कथन ), ९.१.६० (प्रकृति की ५ प्रधान विद्यादेवियों में से एक गङ्गा देवी का माहात्म्य ), ९.११ ( भगीरथ की तपस्या से गङ्गा का भारत में आगमन, गङ्गा स्नान से पापों से मुक्ति, सहस्रों जनों के पापों से मलिन होने पर गङ्गा का कृष्ण से स्व उद्धार का उपाय पूछना, कृष्ण द्वारा उपाय का कथन, भिन्न भिन्न तिथियों में गङ्गा स्नान का फल, कलियुग के ५ सहस्र वर्ष पर्यन्त गङ्गा की भारत में स्थिति का वर्णन ), ९.१२ ( गङ्गा के कण्व शाखोक्त ध्यान व षोडश उपचार से अश्वमेध फल की प्राप्ति का कथन ), ९.१२.१८ ( गङ्गा स्तोत्र से भगीरथ द्वारा गङ्गा स्तुति, सगर- पुत्रों को गङ्गा के स्पर्श से वैकुण्ठ प्राप्ति, भगीरथ द्वारा लाए जाने से गङ्गा का भागीरथी नाम धारण करना ), ९.१३ ( कृष्ण के साथ गङ्गा के संग को देखकर राधा का रोष, रोष से भयभीत हुई गङ्गा का कृष्ण के चरणकमलों में छिपकर अदृश्य होना, अदृश्य होने पर गोलोक की शुष्कप्राय स्थिति, ब्रह्मादि की प्रार्थना पर गङ्गा का कृष्ण के चरण कमल से निर्गत होना तथा विष्णुपदी नाम धारण करने का वृत्तान्त ), ९.१४ ( कृष्ण द्वारा गङ्गा से गान्धर्व विवाह तथा गङ्गा का नारायण की प्रिया होने का कथन ), ९.१९.६६( गङ्गा द्वारा विष्णु की चामर द्वारा सेवा का उल्लेख ), नारद १.६.६४( गायत्री के प्रसन्न होने पर गङ्गा के भी प्रसन्न होने का कथन ), १.९.१९ ( सनक द्वारा गङ्गा के माहात्म्य का वर्णन ), १.९.४४( वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद राक्षस को गङ्गा के बिन्दुओं के अभिषेक से मुक्ति प्राप्ति का कथन ), १.९.११३( गर्ग विप्र द्वारा कल्माषपाद राक्षस का गङ्गा जल से सिंचन करने पर राक्षसी योनि से मुक्ति का वृत्तान्त ), १.११.१७९ ( वामन त्रिविक्रम द्वारा पाद क्रमण के समय पादाङ्गुष्ठ द्वारा ब्रह्माण्ड के भेदन से बाह्य सलिल का आगमन तथा गङ्गोत्पत्ति का कथन ), १.११६.११ ( जह्नु द्वारा क्रोधपूर्वक गङ्गा का पान तथा दक्षिण कर्ण छिद्र से निर्गमन का उल्लेख ), २.३८ ( वसु ब्राह्मण द्वारा मोहिनी को गङ्गा के माहात्म्य का वर्णन, तिथि अनुसार गङ्गा का पाताल, भूमि व स्वर्ग में वास तथा कलियुग में गङ्गा के वैशिष्ट्य का कथन ), २.३९ ( वसु द्वारा मोहिनी को गङ्गा स्नान के माहात्म्य का वर्णन ), २.४० ( कालविशेष तथा स्थल विशेष में गङ्गा स्नान के माहात्म्य तथा फल का कथन ), २.४१ ( गङ्गा तट पर तर्पण, पूजन व दान के माहात्म्य का वर्णन, गङ्गा का स्वरूप ), २.४२.३१ ( गङ्गा पूजा की विधि ), २.४३.६६ ( गङ्गा दशहरा स्तोत्र तथा गङ्गा माहात्म्य ), पद्म १.१४.१९०(उदङ्मुखी गङ्गा के पवित्र होने का कथन), १.६२.१( गङ्गा माहात्म्य का वर्णन ), १.६२.८४( गङ्गा की उत्पत्ति के संदर्भ में माया रूपी प्रकृति के ७ रूपों में से एक रूप के गङ्गा होने का वर्णन ), ३.४३.५१( गङ्गा के त्रिपथा नाम का कारण ), ६.८१.२४ (गङ्गा माहात्म्य का वर्णन ), ५.८५.४५(मानसिक, वाचिक व कायिक भक्तियों का कथन, गङ्गा माहात्म्य), ५.८५.४९ ( वैशाख शुक्ल सप्तमी में गङ्गा के अर्चन तथा माहात्म्य का कथन ), ६.२० ( भगीरथ द्वारा गङ्गा अवतारण की कथा ), ६.२२ (गङ्गा माहात्म्य व स्तोत्र ), ६.१११.२६ ( स्वरा के शाप वश ब्रह्मा का ककुद्मिनी गङ्गा रूप होने का उल्लेख ), ६.१२७.४८( काशी में गङ्गा के उत्तर वाहिनी व प्रयाग में पश्चिम् वाहिनी होने का उल्लेख ), ६.२४०.४२(ब्रह्मा द्वारा कमण्डलु जल से विष्णु के पाद प्रक्षालन करने पर गंगा की उत्पत्ति का कथन), ६.२४०.५४ ( बलि की कथा के अन्तर्गत गङ्गा उत्पत्ति का प्रसंग ), ७.३ ( गङ्गा के माहात्म्य का कथन : मनोभद्र - गृध्र संवाद ), ७.७ (गङ्गा के माहात्म्य का कथन : धर्मस्व ब्राह्मण कथा, गङ्गा स्तोत्र ), ७.८ ( गङ्गा के माहात्म्य का कथन : पद्मगन्धा की कथा ), ७.९ ( गङ्गा के माहात्म्य का कथन : भेक की कथा ), ब्रह्म १.६.७६ ( दिलीप - पुत्र भगीरथ द्वारा गङ्गा अवतारण का उल्लेख ), १.२२ ( आकाशगङ्गा : सूर्य द्वारा जल वितरण का वर्णन ), २.३.३६ ( शिव द्वारा लोकहितार्थ ब्रह्मा को भूमि रूपी कमण्डलु में पवित्र गङ्गा को प्रदान करने का कथन ), २.४.६३ ( विष्णु के चरण कमलों में अर्घ्यस्वरूप प्रदत्त जल का चार धाराओं में विभक्त होकर मेरु पर गिरना, दक्षिण धारा के महेश्वर की जटाओं में आगमन का निरूपण ), २.८.७७( विन्ध्य के दक्षिण में स्थित गङ्गा की गौतम द्वारा अवतारणा होने से गौतमी गङ्गा नाम से प्रसिद्धि तथा उत्तर भाग की भगीरथ द्वारा अवतारणा होने से भागीरथी नाम से प्रसिद्धि, भगीरथ द्वारा गङ्गा अवतारण तथा स्वपूर्वजों के उद्धार का वृत्तान्त ), २.१२(सप्तर्षि-पत्नियों द्वारा गङ्गा में गर्भस्राव करने का कथन), २.१५.१४( कण्व द्वारा क्षुधा रूपी भीषण गङ्गा की स्तुति ), २.३३( प्रियव्रत के यज्ञ में हिरण्यक नामक दानव के आगमन से भयभीत अग्नि के गङ्गा जल में शरण लेने का उल्लेख ), २.१०२( समुद्र से सङ्गम के लिए सप्तर्षियों के नाम से सप्तधा विभक्त होने का कथन ), २.१०३.३( ७ ऋषियों द्वारा गङ्गा के दक्षिण, उत्तर आदि सप्तधा विभाजन का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.६१ ( गङ्गा के प्रकृति देवी के प्रधानांशस्वरूपा होने का उल्लेख ), २.६.१२ ( पार्वती भय से गङ्गा का शिवजटा में अदृश्य होना, पार्वती द्वारा गङ्गा निष्कासन का उद्योग ), २.६( गङ्गा के सकामा होने पर सरस्वती का कोप, परस्पर कलह तथा शाप प्रदान, शाप के फलस्वरूप गङ्गा व सरस्वती के पृथ्वी पर नदी रूप में परिणत होने का वर्णन ), २.६( गौतम ब्राह्मण द्वारा शिव की स्तुति, गौतम के जटा सहित गङ्गा के एक भाग को लेकर ब्रह्मगिरि पर गमन का वृत्तान्त ), २.७.८( गौतम के वचनानुसार गङ्गा का ब्रह्मगिरि से ३ भागों में विभक्त होकर स्वर्गलोक, मर्त्यलोक तथा रसातल में प्रवहण, पुन: स्वर्ग में चार धाराओं से, मर्त्य में सात धाराओं से तथा रसातल में चार धाराओं से गङ्गा के प्रवहण का कथन ), २.१०.१६( गङ्गा को लाने हेतु भगीरथ द्वारा लक्ष वर्ष तक तप करने का कथन ), २.१०.२७( भिन्न - भिन्न दिवसों में गङ्गा के दर्शन व स्पर्श का माहात्म्य ), २.१०.६४( गङ्गा के प्रश्न करने पर कृष्ण द्वारा गङ्गा को पापियों के पाप से मुक्त होने के उपाय का कथन ), २.१०.९७( कौथुमी शाखोक्त, भगीरथ - कृत गङ्गा ध्यान का कथन ), २.१०.११४(कौथुमी शाखोक्त, भगीरथ - कृत गङ्गा स्तोत्र का कथन ), २.१०.११७(गङ्गा के विभिन्न लोकों में दैर्घ्य का कथन), २.११( कृष्ण व गङ्गा के परस्पर सकाम भाव को देखकर राधा का रोष, उपालम्भ, भयभीत गङ्गा के कृष्ण के चरणों में छिपने से चतुर्दिक् जलशून्यता, ब्रह्मा आदि द्वारा राधा को गङ्गा के कन्यात्व का कथन, भयमुक्त गङ्गा का बाहर आना, ब्रह्मा द्वारा कमण्डलु में तथा शिव द्वारा शिर के चन्द्रार्ध भाग में गङ्गा का स्वल्पांश धारण करने का वृत्तान्त ), २.१२( विष्णु के साथ गान्धर्व विवाह तथा गङ्गा के विष्णुपदी नाम के हेतु का कथन ), ४.३४.७( शिव संगीत से जन्म, देवनदी, गङ्गा, भागीरथी, जाह्नवी, भीष्मजननी, त्रिपथगामिनी आदि नामों के कारण का कथन तथा माहात्म्य का वर्णन ), ४.१२७( कलियुग में भारत में रहने का कृष्ण के आदेश का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.३५(मेना व हिमवान् – पुत्री), १.२.१८.२६( अन्तरिक्ष से अवतरित गङ्गा का शिव की जटाजूट में धारण, भगीरथ द्वारा गङ्गा अवतारण हेतु तप, तप से संतुष्ट महादेव द्वारा गङ्गा का मोचन, मुक्त गङ्गा का नलिनी, ह्रदिनी, पावनी, सीता, चक्षु, सिन्धु तथा भागीरथी नामक सात धाराओं में विभाजन का वर्णन ), २.३.५६.३८( भगीरथ द्वारा गङ्गा के अवतारण तथा स्वपूर्वजों सगर - पुत्रों के उद्धार का वर्णन ), भविष्य २.२.८.१२५( गङ्गा द्वार में महावैशाखी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), भागवत ४.१.१४( देवकुल्या - कन्या के ही देवनदी गङ्गा के रूप में प्रकट होने का उल्लेख ) , ५.१७( विष्णुपद से उत्पन्न होकर मेरुशिखर पर गिरते समय विष्णुपदी गङ्गा के सीता, अलकनन्दा, चक्षु तथा भद्रा नामक चार धाराओं में विभक्त होने का कथन ), ७.१४.२९( गङ्गा की स्थिति से भारत देश की परम पवित्रता का उल्लेख ), ८.४.२३( गङ्गा की भगवद् रूपता का उल्लेख ), ९.९( दिलीप - पुत्र भगीरथ द्वारा गङ्गा के अवतारण तथा पूर्वजों के स्वर्ग गमन का कथन ), ९.१५.३( जह्नु द्वारा गङ्गा पान का उल्लेख ), मत्स्य १३.३५( गङ्गा तीर्थ में मङ्गला नाम से सती देवी की स्थिति का उल्लेख ), १०६.५०( भूतल पर मनुष्यों, पाताल में नागों तथा स्वर्ग में देवों को तारने से गङ्गा का त्रिपथगा नाम, गङ्गा में अस्थिक्षेप से स्वर्ग लोक में स्थिति, गङ्गा की सर्वत्र सुलभता परन्तु गङ्गा द्वार, प्रयाग व गङ्गासागर सङ्गम में दुर्लभता आदि का कथन ), महाभारत शल्य ४४.४०(गङ्गा द्वारा नैगमेय नामक स्कन्दमूर्ति की पुत्र रूप में प्राप्ति का उल्लेख), ४५.५२(गङ्गा द्वारा स्कन्द को जय-महाजय गणद्वय प्रदान का उल्लेख), शान्ति ३४७.५०(हयग्रीव की श्रोणी/भ्रू के रूप में गङ्गा – सरस्वती का उल्लेख), मार्कण्डेय ५६( गङ्गावतार का वर्णन ), लिङ्ग १.५२.१२(आकाशगङ्गा से निर्गमन, गङ्गा नाम की निरुक्ति : अम्बर से गां /पृथिवी की ओर गता होने से गङ्गा नाम धारण का उल्लेख ), वराह ८२( अनेक शतसहस्र पर्वतों को तोडती हुई पृथ्वी पर गमन /गां - गता / करने से गङ्गा नाम धारण का उल्लेख ), १२५.२४( गङ्गा की निरुक्ति : मन्दाकिनी नदी का गौ को जाना / गां गता ), १३८.१५( मृत खञ्जरीट पक्षी का गङ्गाजल में प्रक्षेपण, गङ्गाजल के प्रभाव से पक्षी का ऐश्वर्य सम्पन्न वैश्य गृह में जन्म लेना ), १४५.८८( शालग्राम क्षेत्र माहात्म्य के अन्तर्गत श्वेत गङ्गा व त्रिशूलगङ्गा की स्थिति का उल्लेख ), वायु ४२( आकाशगङ्गा के मेरु के परितः अवतरण का वर्णन ), ४२.३९( हिमालय से निर्गता होने के कारण गं गा नाम धारण का उल्लेख ), ४७.२५( गौर पर्वत के पाददेश में स्थित बिन्दुसरोवर पर भगीरथ द्वारा गङ्गा अवतारण हेतु तप, तप से संतुष्ट महादेव द्वारा जटाजूट में निरुद्ध गङ्गा का मोचन, छूटने पर गङ्गा का सात धाराओं में विभक्त होना ), ७७.६८( गङ्गा में सर्वत्र श्राद्ध के अक्षय होने का उल्लेख ), ९१.५४( जह्नु द्वारा गङ्गा का पान, गङ्गा का जाह्नवी नाम धारण करने का कथन ), १०४.७७/२.४२.७७( गङ्गा-यमुना का सव्य-अपसव्य न्यास आदि ), विष्णु २.२.३३( विष्णुपाद से नि:सृत गङ्गा के ब्रह्मपुरी में गिरने पर सीता, अलकनन्दा, चक्षु तथा भद्रा नामक चार भागों में विभक्त होने तथा चार दिशाओं में प्रवहण का वर्णन ), २.८.१०८( विष्णु के तृतीय परमपद से निःसृत गङ्गा के माहात्म्य का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९( दिलीप - पुत्र भगीरथ का गङ्गा अवतारण हेतु तप, तप से संतुष्ट गङ्गा का दर्शन देना तथा स्ववेग को सहन करने में पृथ्वी की असमर्थता बतलाते हुए शिव के जटाजूट में अवतरित होने के लिए शिव को प्रसन्न करने के लिए कहना, भगीरथ द्वारा तप से शिव को प्रसन्न करना, जटाजूट में गङ्गा का अवतरण, भगीरथ हेतु गङ्गा का मोचन, सप्त धाराओं में विभक्त होकर गङ्गा का प्रवहण, सप्त धारा का भगीरथ का अनुकरण करते हुए सागर से मिलना तथा पाताल में पहुंचकर सगर - पुत्रों की भस्म को स्वजल से प्लावित करके उनका उद्धार करने का वृत्तान्त ), १.२०( भगीरथ का अनुसरण करते हुए गङ्गा द्वारा राजा जह्नु के यज्ञवाट का प्लावन, क्रुद्ध जह्नु द्वारा योगबल से गङ्गा का पान, मुनिजनों की प्रार्थना पर श्रवण रन्ध्र से गङ्गा का मोचन, दुहिता रूप से स्वीकार करने पर गङ्गा के जाह्नवी नाम धारण का कथन ), १.२१( विष्णु के अङ्गुष्ठाग्र से क्षत ब्रह्माण्ड छिद्र से प्रविष्ट जल के देवनदी रूप होकर विष्णुपदी नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), १.२२( ब्रह्माण्ड में प्रवेश करने पर गङ्गा की समस्त वर्षों व द्वीपों में विभिन्न नामों से व्याप्ति का कथन ), १.२९.२( शिव का अङ्गुष्ठ मात्र होकर गङ्गा जल के माध्यम से चन्द्रमा/विष्णु के लोक पहुंचने का कथन ), १.२१५.४४ ( मकर नामक वाहन पर आरूढ होकर गङ्गा द्वारा जनार्दन के अनुसरण का उल्लेख ), १.२२८ ( अग्नि द्वारा शिव वीर्य का गङ्गा में परित्याग तथा गङ्गा द्वारा भी श्वेत पर्वत पर परित्याग का उल्लेख ), १.२२९( वैशाख शुक्ल तृतीया को गङ्गा पूजा के महत्त्व का कथन ), ३.१२१.८( गङ्गा तट पर वासुदेव की पूजा का निर्देश ), शिव १.१२.१० ( गङ्गा शतमुखा का संक्षिप्त माहात्म्य, बृहस्पति-सिंह मिलन पर महत्व), ४.४ ( अनसूया के पातिव्रत्य तथा तप से सन्तुष्ट होकर गङ्गा के अत्रि आश्रम में वास का वृत्तान्त ), ४.२६.१९ ( गौतम के तप से संतुष्ट होकर शिव का आविर्भूत होना, गौतम का शिव से गङ्गा की याचना करना, गङ्गा के गौतमी नाम से तथा शिव के त्र्यम्बकेश्वर नाम से गौतम आश्रम में निवास का कथन ), ७.२.४०.६( हिमाचल से निकली गङ्गा के दक्षिणामुखी तथा वाराणसी में उत्तरामुखी होने का उल्लेख ), स्कन्द २.१.३२.४२ ( लोककल्याणार्थ नदी अवतारण हेतु अगस्त्य का तप, ब्रह्मा का आगमन, अगस्त्य की प्रार्थनानुसार ब्रह्मा द्वारा गङ्गा का आह्वान, ब्रह्मा के आदेशानुसार गङ्गा द्वारा स्वांश से नदी की उत्पत्ति, नदी का सुवर्णमुखरी नाम से प्रथित होने का वर्णन ), ३.१.२६ ( गङ्गा यमुना गया तीर्थ माहात्म्य का वर्णन : रैक्व ऋषि की रोग से मुक्ति, जानश्रुति राजा को ब्रह्मज्ञान प्राप्ति ), ३.२.१ ४.१.२७.१२ ( गङ्गा के माहात्म्य का वर्णन ), ४.१.२७.२९(जाह्नवी जल की नारिकेल जल से उपमा), ४.१.२७.१५६ ( गङ्गा स्तोत्र का कथन ), ४.१.२८ ( गङ्गा में अस्थि क्षेप के माहात्म्य के सन्दर्भ में वाहीक की कथा ), ४.१.२८.९(गङ्गा में देवों व पितरों की सर्वदा स्थिति के कारण आवाहन विसर्ग नहीं), ४.१.२९.१७ ( गङ्गा सहस्रनाम का कथन ), ४.१.४१.१७२( द्युनदी : षडङ्ग योग के देवताओं में से तृतीय ), ४.२.५१.१०१( वाराणसीस्थ गङ्गादित्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.५८.१७( काशी में असि नदी का गङ्गा से साम्य? ), ४.२.६१.१८० ( गङ्गा केशव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८४.६७ ( कालगङ्गा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.९१ ( काशीस्थ गङ्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ४.२.९२.६ ( गङ्गा ऋग्वेद का रूप, यमुना यजुर्वेद आदि ), ५.१.५४ ( पाप प्रक्षालन से मलिन तथा नील वर्ण गङ्गा का ब्रह्मा के परामर्श से महाकल वन में आकर पवित्र तथा शुक्ल बनना ), ५.२.४२ ( समुद्र से प्राप्त शाप की निवृत्ति हेतु गङ्गा द्वारा महाकालवन में लिङ्ग की आराधना, शाप से मुक्ति, गङ्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.२.४५.९१( शिव के सिर पर सर्प की मेखला का रूप ? ), ५.२.७१( त्रिपथगा गङ्गा का मानुषी रूप धारण कर शन्तनु की पत्नी बनना, सप्त वसु पुत्रों का गङ्गा में प्रक्षेपण, मनुष्य योनि से मुक्ति हेतु प्रयागेश्वर लिङ्ग पूजा का वर्णन ), ५.३.९.४५ ( गङ्गा, रेवा, सरस्वती में गङ्गा के वैष्णवी मूर्ति होने का उल्लेख ), ५.३.२१.५ ( गङ्गा के कनखल में पुण्या होने का उल्लेख, गंगा द्वरा सद्यः शुद्ध करने का कथन ), ५.३.२५ ( नीलगङ्गा सङ्गम का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.५६ ( ब्रह्मादि देवों की प्रार्थना पर शिव द्वारा जटाजूट से गङ्गा का मोचन ), ५.३.८३.१०८( गौ के प्रस्राव में गङ्गा की स्थिति का उल्लेख ), ५.३.९९.४ ( गङ्गा द्वारा गङ्गाजल का भक्षण कर रहे वासुकि नाग को शाप देने का वृत्तान्त ), ५.३.१७८.२४ ( गङ्गावहक तीर्थ का माहात्म्य : गङ्गा द्वारा स्नानार्थियों के पापों से मुक्ति हेतु तप, विष्णु के कर में स्थित शङ्ख का प्लावन करने पर गङ्गा द्वारा पापों से शम् प्राप्ति का वर्णन ), ५.३.१९४.७२ ( नारायण व श्री के विवाह यज्ञ के पश्चात् अवभृथ स्नान हेतु नारायण के पादपङ्कज से गङ्गा के प्रादुर्भाव का कथन ), ६.२ ( शिवलिङ्ग के उत्पाटन से भूतल व पाताल से गङ्गाजल के नि:सृत होने का उल्लेख ), ६.२४.१२ ( बलि निग्रह के समय वामन विष्णु के पादाग्र से ब्रह्माण्ड छिन्न होने पर गङ्गा की उत्पत्ति तथा विष्णुपदी नाम धारण का उल्लेख ), ६.५८ ( भीष्म द्वारा कूपिका में स्थापित गङ्गा में स्नान से पाप मुक्ति का उल्लेख ), ६.१३०.५० ( शिव मूर्धा पर स्थित गङ्गा से पार्वती के ईर्ष्या करने पर शिव द्वारा पार्वती को गङ्गा धारण के हेतु का कथन ), ७.१.११४.५ ( वामन विराट के पादाग्र से ब्रह्माण्ड के भेदन पर विष्णुपदी गङ्गा की उत्पत्ति का उल्लेख ), ७.१.२२९ ( गङ्गा का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.२५० ( गङ्गा द्वारा स्थापित गङ्गेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.२६७ ( गङ्गापथ में गङ्गेश्वर की पूजा तथा संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.२८९ ( पाताल गङ्गेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.३०४ (तपोरत ऋषियों की प्रसन्नता हेतु शिव द्वारा गङ्गा का आह्वान, गङ्गा में त्रिनेत्र मत्स्यों की स्थिति का कथन ), ७.२.१८.२७५ ( बलि निग्रह के वर्णन में विष्णु पद द्वारा ब्रह्माण्ड के भेदन से गङ्गा की उत्पत्ति का उल्लेख ), ७.३.३८ ( शिव गङ्गा कुण्ड की उत्पत्ति व माहात्म्य : गङ्गा द्वारा पार्वती से एक दिन के लिए शिव के साथ क्रीडा रूप वर की प्राप्ति ), ७.३.६१ ( गङ्गाधर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : शिव द्वारा नभ से पतित गङ्गा का धारण ), योगवासिष्ठ ६.१.७६.१५ ( भगीरथ द्वारा पृथ्वी पर गङ्गा अवतारण का उल्लेख ), वा.रामायण १.३७.७ ( आकाशगङ्गा द्वारा अग्नि से प्राप्त रुद्र वीर्य को धारण करना, पश्चात् वीर्य के तेज से संतप्त होने पर उसे हिमालय के पार्श्व में स्थापित करने का उल्लेख ),१.४३ ( शिव द्वारा गङ्गा का जटाओं में धारण, जटा से निर्गम के पश्चात् सात धाराओं में विभाजन, जह्नु द्वारा पान, पुन: उत्पत्ति तथा जाह्नवी, भागीरथी, त्रिपथगा नाम धारण की कथा ), हरिवंश २.८१.२६ ( गङ्गा व्रत विधि का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.८३.५८( गङ्गादित्य : काशी में दिवोदास के राज्य में स्थित १२ आदित्यों में से एक ), १.१०७.३२ ( गृह में गृहिणी के गङ्गा होने का उल्लेख ), १.१४६.८६ (विष्णु के पादाङ्गुष्ठ से ब्रह्माण्ड कटाह के भेदन से गङ्गा की उत्पत्ति, गङ्गा का मेरु शिखर पर पतन, पुन: शिव द्वारा जटाओं में धारण, भगीरथ तथा गौतम के प्रयास द्वारा पृथ्वी पर आगमन, भागीरथी व गौतमी नाम धारण करने का कथन ), १.२०७.२४ ( गन्धर्मादन पर्वत पर तपोरत गरुड द्वारा श्रीहरि की पूजार्थ गङ्गा का आवाहन, पञ्चमुखी गङ्गा का आविर्भाव, गङ्गा जल से गरुड द्वारा हरिपूजा का उल्लेख ), १.३३२.५ ( कृष्ण - पत्नियों गङ्गा व सरस्वती में रति निमित्तक कलह, परस्पर शापवश दोनों की सरित् रूपता का निरूपण ), २.१११.५९ ( अजनाभ में गङ्गा के गोलोक वास प्रदायिका होने का उल्लेख ), २.१६५.७८ ( श्रीहरि के केतुमाल में गमन पर गङ्गा के ६० पुत्र - पुत्रियों द्वारा श्रीहरि का स्वागत, वृकायनादि ऋषियों के गाङ्गेयों से मिलन का कथन ), २.१६६.५ (श्रीहरि द्वारा गङ्गा को २८ पुत्रियां, पुन: ५ कुमार, पुन: ४ कुमार, पुन: २० बालक, पुन: ३ अपत्य प्रदान करना, ६० गाङ्गेयों के नामों का कथन ), २.२३०.१६ ( भगीरथ द्वारा गङ्गा अवतारण की कथा का पाराक राजर्षि द्वारा आम्रजनी नदी के अवतारण से साम्य ), २.२९७.८६( गङ्गा द्वारा स्वगृह में कृष्ण के पाद संवाहन के विशिष्ट कार्य का उल्लेख ), ४.३१.२ ( गङ्गाजनी नामक शूद्री की सज्जनों के संयोग से मुक्ति की कथा ), ४.८०.१८( राजा नागविक्रम के यज्ञ में गाङ्गेय विप्रों के वेद व्याख्याकार होने का उल्लेख ), ४.१०१.८७ ( कृष्ण - पत्नी गङ्गा के पुत्र - पुत्री युगल का नामोल्लेख ), कथासरित् १२.७.१३१ ( मित्र वियोग से पीडित भीमभट के गङ्गा में कूदने हेतु उद्यत होने पर गङ्गा का साक्षात् प्रकट होना तथा मित्र मिलन के आश्वासन के साथ भीमभट को अनुलोम तथा प्रतिलोम विद्याएं प्रदान करने का कथन ); द्र. कृष्णगङ्गा, नीलगङ्गा, पातालगङ्गा, रत्नगङ्गा, त्रिशूलगङ्गा, बाणगङ्गा, श्वेतगङ्गा । gangaa/ganga
गङ्गाद्वार नारद २.६६ ( वसु - मोहिनी संवाद में गङ्गाद्वार / हरिद्वार तथा उसके अन्तर्गत तीर्थों के माहात्म्य का कथन ), पद्म ७.३.१४ ( गङ्गाद्वार में स्नान, दान तथा शरीर त्याग से परमपदप्राप्ति : गङ्गा जल में पतन पर शलभ पक्षियों को इन्द्रपुर प्राप्ति का कथन ), भागवत ६.२.३९ ( सत्सङ्ग से उत्पन्न हुए वैराग्य वाले अजामिल का गङ्गाद्वार / हरिद्वार गमन तथा आत्मस्वरूप में स्थिति का कथन ), मत्स्य २२.१० ( पितर श्राद्ध हेतु गङ्गाद्वार की प्रशस्तता का उल्लेख ), २४६.९२ ( शौनक से वामन माहात्म्य का श्रवण कर अर्जुन के गङ्गाद्वार / हरिद्वार गमन का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१९८.७५ (गङ्गाद्वार तीर्थ में उमा की रतिप्रिया नाम से स्थिति का उल्लेख ) । gangaadwaara
गंगा दशहरा गरुड १,२१३.५६( ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को दस पापों के हरण का कथन),
नारद १.११९.८ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी : दशहरा लग्न हेतु दश योग, दस पाप हरण से दशहरा नाम, जाह्नवी में स्नान का महत्त्व), २.४०.२१(गंगा अवतरण का काल), २.४३.४२ (गङ्गा दशहरा : ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, गङ्गा पूजा विधि), पद्म ५.८५.४( मानसिक, वाचिक व कायिक भक्तियों का कथन), स्कन्द ४.१.२७.१३५ (गङ्गा दशहरा स्तोत्र व माहात्म्य), ४.१.२७.१५६ ( गङ्गा दशहरा स्तोत्र का कथन ), ४.२.५२.९० (दशहरा तिथि को दशाश्वमेध तीर्थ में स्नान का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.२७५.५(ज्येष्ठ शुक्ल दशमी का गङ्गा दशहरा नाम ) । ganga duserra/dashahara/dussera
Comments on Ganga Dussera
गङ्गाधर स्कन्द ३.३.१२.२० ( गङ्गाधर से निशीथ में रक्षा की प्रार्थना का उल्लेख - पायान्निशादौ शशिशेखरो मां गंगाधरो रक्षतु मां निशीथे ।) ।
गङ्गालहरी कथासरित् १८.२.२७८ ( सिन्ध देश की कर्का गङ्गालहरी नामक घोडी समरसिंह को प्रदान करने का उल्लेख ) ।
गङ्गासागर भागवत १०.७९.११( बलराम का तीर्थयात्रा प्रसंग में गङ्गासागर सङ्गम पर जाने का उल्लेख ), मत्स्य २२.११( पितर श्राद्ध हेतु गङ्गासागर तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ), स्कन्द १.१.७.३२( गङ्गासागर सङ्गम पर द्राक्षारामेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ) ।
गङ्गेश्वर लक्ष्मीनारायण ३.१८१.३१ ( विराल नामक वैश्य का पूर्व जन्म में गङ्गेश्वर नामक विप्र होना, विप्र - कृत पंक्तिभेद रूप पाप से अग्रजन्म में विराल वैश्य को क्षयरोग प्राप्ति का कथन ) ।
गज अग्नि २६९.१४ ( गज प्रार्थना मन्त्र का कथन - पृष्ठतोऽनुगतस्त्वेष रक्षतु त्वां स देवराट् । अवाप्नुहि जयं युद्धे सुस्थश्चैव सदा व्रज ।। ), २८७ ( गजों के लक्षण तथा चिकित्सा का वर्णन ), २९१ ( गज शान्ति का कथन ), २९२.४४(पालकाप्य द्वारा अंगराज को गजायुर्वेद कथन का उल्लेख), गणेश १.२५.३२(गहनो नाम गृह्णातु मालां पुष्करनिर्मिताम् । समाजे यस्य कंठे तां निक्षिपेत्स नृपो भवेत् ॥), १.२६.१ ( गहन गज द्वारा कंठ में माला डालने से राजा के चुनाव का वृत्तान्त ), २.८५.२३ ( गजस्कन्ध गणेश से स्कन्धों की रक्षा की प्रार्थना ), गरुड १.२०१.३३ ( गज आयुर्वेद का निरूपण ), ३.२२.८१(गज में श्रीहरि की चक्रपाणि नाम से स्थिति), गर्ग ७.९.२१ ( शिशुपाल द्वारा अगस्त्य मुनि से सीखे हुए गजास्त्र का प्रद्युम्न की सेना पर चालन का उल्लेख ), देवीभागवत २.८.१७ ( ३६ वर्ष तक गज / हस्तिनापुर में राज्य करके पाण्डवों के हिमालय पर गमन का उल्लेख ), ८.१५.४ ( उत्तर मार्ग की तीन वीथियों में से रोहिणी, आर्द्रा तथा मृगशिरा नक्षत्रों के गजवीथि नाम का उल्लेख ), नारद १.९०.६९(पाटल पुष्प द्वारा देवी पूजा से गज सिद्धि का उल्लेख, अन्य पुष्पों से अन्य पशुओं की सिद्धि - किंशुकैर्भूषणावाप्तौ पाटलैर्गजसिद्धये । रक्तोत्पलैरश्वसिद्धौ कुमुदैश्चरसिद्धये ।। ), पद्म २.३७.३५( पुण्डरीक यज्ञ में गज हनन का विधान - पुंडरीके गजं हन्याद्गजमेधेऽथ कुंजरम् । ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.१५ ( गज दान से इन्द्र लोक की प्राप्ति ), २.३०.१३३ ( गजदंश नरक में गजदंश कुण्ड प्रापक दुष्कर्म ), ब्रह्माण्ड १.२.३५.४( वैण रथीतर के ४ शिष्यों में से एक ), २.३.७.३५०( गर्जन से गज की निरुक्ति ), भविष्य २.१.१७.१४(गजाग्नि के मन्दर नाम का उल्लेख), ३.३.१२.५९ (कालिय द्वारा पञ्चशब्द नामक गज पर आरूढ होकर युद्ध करने का उल्लेख ), ४.१८०.२२ ( दो गजों से युक्त रथ के दान की विधि ), भागवत ८.३ ( ग्राह द्वारा पकड लिए जाने पर गजेन्द्र द्वारा ईश शरणागत होकर भगवद् - स्तुति, भगवान् द्वारा गजेन्द्र मोक्ष का वृत्तान्त ), ८.४.११( पूर्व जन्म में गजेन्द्र का इन्द्रद्युम्न नामक राजा होना, अगस्त्य के शाप से गज योनि प्राप्ति का कथन ), ११.७.३३(दत्तात्रेय के २४ गुरुओं में से एक), ११.८.१३ ( गज से प्राप्त शिक्षा का कथन ), ११.१२.६ ( सत्संग के प्रभाव से परम पद प्राप्त करने वालों में गज का उल्लेख ), मत्स्य १५१.४ (विष्णु से युद्ध हेतु गजारूढ दैत्येन्द्र निमि का आगमन, गज की पादरक्षा में सत्ताईस हजार दानवों के नियुक्त होने का उल्लेख ), १५३.४९ ( तारक - सेनानी गजासुर का गज रूप में कपाली प्रभृति ११ रुद्रों से युद्ध, गजासुर की मृत्यु, कपाली रुद्र द्वारा गज चर्म से स्व वस्त्र निर्माण का कथन ), लिङ्ग १.५०.७ ( गज पर्वत पर दुर्गा आदि के निवास का उल्लेख ), २.४२ ( गज दान विधि का कथन), वराह ८१.४ ( गज पर्वत पर महाभूतों से आवृत्त भगवती देवी के वास का उल्लेख - गजपर्वते च महाभूतपरिवृता स्वयमेव भगवती तिष्ठति । ), वायु ३९.४७ ( गज शैल पर रुद्रों के वास का उल्लेख - गजशैले भगवतो नानाभूतगणावृताः । रुद्राः प्रमुदिता नित्यं सर्वभूतनमस्कृताः ।। ), ६९.२१० ( इरावती से ऐरावत गज की उत्पत्ति, गजों के वंश का वर्णन, भिन्न - भिन्न गजों का भिन्न भिन्न देवों का वाहन रूप होना, गजों के द्विरद, मातङ्ग आदि विभिन्न नामों की निरुक्ति तथा हेतु, गजों के वनों आदि का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२५१ (इरा व पुलह से गजों की उत्पत्ति, गजों के अष्ट कुलों व अष्ट वनों का वर्णन ), १.२५३ ( गज - वानर युद्ध, महेन्द्र द्वारा गजों के पक्षों का छेदन, युद्ध से निवृत्ति का कथन ), २.१०.१( गजों के शुभाशुभ लक्षण ), २.४८ ( गजों / कुञ्जरों की सेवा में उपयोगिता, उनके सम्यक् लालन - पालन तथा प्रशंसा का कथन ), २.४९ ( भिन्न - भिन्न रोगों में गज /हस्ति चिकित्सा का वर्णन ) , २.५० ( गजों के शान्तिकर्म विधान का वर्णन ), २.१६०.१३ ( हस्ति मन्त्र का कथन ), ३.३०१.३०( गज प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), स्कन्द १.२.१३.१७२ ( गजों द्वारा दन्तज लिङ्ग की रंहस नाम से पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग ), ३.१.२२.८५ (पशुमत वणिक् के पुत्र दुष्पण्य का मृत व शुष्क गज के शरीर में प्रवेश, अति वर्षा के जल प्रवाह से दुष्पण्य सहित गज का समुद्र में प्रवेश, दुष्पण्य की मृत्यु व पिशाचत्व प्राप्ति का वर्णन ), ३.१.३८.५७ ( विभावसु व सुप्रतीक भ्राताओं को परस्पर शापवश कूर्म व गज योनियों की प्राप्ति, गरुड द्वारा भक्षण ), ३.१.४९.३४ ( गज नामक वानर द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ४.१.५.३९ ( काशी में स्थित विनायक का नाम ), ४.२.५७.११० (गजकर्ण विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८३.६१ (गज तीर्थ का आपेक्षिक माहात्म्य ), ५.१.२६.२४ ( कायावरोहणेश्वर शिव को गज दान का उल्लेख ), ५.१.३६.६७ ( नरदीप तीर्थ में पश्चिम द्वार पर गज दान का निर्देश ), ५.२.४४.१४ ( पूर्व दिशा में गज नामक महामेघ के आधिपत्य का कथन ), ६.९०.२६ ( देवों को अग्नि का निवास बताने पर अग्नि द्वारा गज को विपरीत जिह्वा होने का शाप ), ६.९१.५ ( शापित गजादि के प्रार्थना करने पर देवों द्वारा उत्शाप दानपूर्वक सान्त्वना प्रदान करना ), ७.१.१४५ ( गज कुम्भोदर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.३०८.२४ ( शिव द्वारा कुबेराश्रम में धारित रूप ), ७.२.१ ( गज नामक राजा द्वारा भद्र ऋषि से तीर्थ के माहात्म्य का श्रवण , दामोदर नदी के तट पर आगमन का वर्णन ), ७.२.१४.५३(मरुत द्वारा गजारूढ होकर रण गमन), ७.३.४४( गज तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश २.६३.७ ( नरकासुर द्वारा गज रूप धारण कर त्वष्टा - पुत्री कशेरु के ग्रहण का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.२९.७६ ( अज्ञान गज को सिंह का भक्ष्य बनाने का निर्देश- त्वमज्ञानगजं भुक्त्वा सैंहीं वृत्तिमुपाश्रय ।। ), वा.रामायण ३.३१.४६ ( राम की हस्ती /गज से उपमा ), ४.६५.२ ( समुद्र लङ्घन हेतु वानर वीरों की गमन शक्ति के वर्णन के अन्तर्गत गज नामक वानर की गमन शक्ति का उल्लेख ), ६.३०.२६ ( गज, गवाक्ष, गवय, शरभ तथा गन्धमादन नामक पांच वानरों के वैवस्वत - पुत्र होने का उल्लेख ), ६.४१.४० ( गज, गवाक्ष प्रभृति वानरों के साथ अङ्गद द्वारा लङ्का के दक्षिण द्वार पर अधिकार ), ६.४३.९ ( गज नामक वानर के रावण - सेनानी तपन से युद्ध का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.८३.२५( गजाक्षा : ६४ योगिनियों में से एक ), १.४९५.१८ ( अग्नि का अन्वेषण करते हुए देवों द्वारा गज से अग्नि के विषय में पूछना, गज द्वारा बताए जाने पर अग्नि द्वारा गज को विपरीत जिह्वा होने का शाप देना- गजः प्राहाऽत्र संकीर्णे वंशस्तम्बे प्रवर्तते ।। गुप्तो भूत्वा प्रविष्टः स दग्धस्तेनाऽहमागतः । ), १.५१२.३७( अवभृथ स्नान के समय इन्द्र द्वारा गजारूढ होकर कृष्णाजिन फेंकने का कथन - स्नानं जले क्षणे तत्र ततस्त्वं गजमास्थितः । हस्ते वंशे कृष्णसारमृगं धृत्वा तदाऽम्बरे ।। ), १.५३९.७३( सप्त गज के अशुभत्व का उल्लेख - षडश्वं वा सप्तगजं तद्गृहे वसतिर्हि वः ।। ), १.५५०.६० ( गज नामक नृप द्वारा भद्र मुनि से मोक्षार्थ ज्ञान की याचना, भद्र द्वारा आत्मा रूपी तीर्थ के सेवन का उपदेश - भद्रो नाम मुनिस्तस्याऽऽजगाम पुरतः क्वचित् । तं गजः प्राह मोक्षार्थं ज्ञानं देहि मुने मम ।। ), २.१३६.१० ( देव प्रासाद आदि के निर्माण में हस्त माप की गज संज्ञा का उल्लेख - चतुर्विशत्यंगुलैश्च हस्तो वै परिकीर्तितः ।। हस्तोऽयं गजसंज्ञोऽस्ति देवप्रासादके तथा । ), २.१४०.६ (२५ प्रकार के प्रासादों में गज का उल्लेख ), २.१४०.१५( गज प्रासाद के लक्षण - पञ्चपादो गजाख्यश्च चतुष्पादो वृषाभिधः ।।), २.२७०.१०४ ( गज द्वारा कूप्यवाल नामक काष्ठहार पर आक्रमण, सनत्कुमार द्वारा गज को मोक्ष प्रदान ), ३.१६.४९ ( विष्णु के हस्त तल से उत्पन्न गज के इन्द्र का वाहन होने का उल्लेख - विष्णुहस्ततलोत्पन्नं श्वेतवर्णं महागजम् ।। चाऽधिरुह्य देवराजस्तत्र लक्ष्मि! समाययौ । ), ३.१६४.१५ (द्वितीय स्वारोचिष मन्वन्तर में श्रीहरि द्वारा गज नामक अवतार ग्रहण करना ), ३.२१६.३३ (गज की उन्मत्तता से गजासीन सञ्जय देव का गर्त्त में पतन, श्रीहरि द्वारा स्वभक्त सञ्जय देव का रक्षण ), कथासरित् ४.२.७६ ( गजमुक्ता प्राप्त्यर्थ गजों को मारने हेतु भिल्लराज का हिमालय गमन, सिंहारूढ कन्या के दर्शन), ९.१.१६० ( राजा पृथ्वीरूप के मङ्गलघट नामक गज पर आरूढ होकर विन्ध्याटवी द्वार पर पहुंचने तथा शत्रुमर्दन नामक गज पर आरूढ होकर विन्ध्याटवी में प्रविष्ट होने का उल्लेख ), ९.२.११९ ( पद्मकवल नामक गज द्वारा लोगों को रौंदना, खड्गधर नामक क्षत्रिय वीर द्वारा गज के वध का कथन ), ९.५.२१६ (राजा कनकवर्ष का विन्ध्यवासिनी के दर्शन हेतु गमन, गज द्वारा आक्रमण, गर्त्त में पतन से गज की मृत्यु ),१०.६.३० ( चतुर्दन्त नामक गजराज के पदों से शशों का चूर्णित होना, विजय नामक शश द्वारा युक्तिपूर्वक गजराज के आगमन के निवारण की कथा ), १२.७.७ ( वन्य गज का अन्ध प्रचण्डशक्ति से मनुष्यवत् व्यवहार, प्रचण्डशक्ति के पूछने पर गज द्वारा स्व वृत्तान्त के वर्णन में गज योनि प्राप्ति के हेतु का कथन ), १५.१.१७ ( नरवाहन दत्त द्वारा मत्त गजराज को वश में करने से महागज रूपी रत्न की सिद्धि होने का कथन ), १७.३.१० ( राक्षसों से युद्ध हेतु मुक्ताफलकेतु का जय नामक गज पर आरूढ होकर निष्क्रमण का उल्लेख ), १८.४.९६( गज के पृष्ठ का स्पर्श करने से चर्म/ढाल रूप में रूपान्तरित होना ) । gaja
गजकर्ण गणेश १.९२.१९ ( गुह्यकादि द्वारा गजकर्ण नाम से गणेश की आराधना ), २.८५.२९ ( गजकर्ण गणेश से वायव्य दिशा में रक्षा की प्रार्थना ), मत्स्य २२.३८ ( गजकर्ण नामक पितृतीर्थ में किए गए श्राद्ध की प्रशस्तता का उल्लेख ), वायु ५०.३१ ( चतुर्थ रसातल में गजकर्ण नामक दैत्य के नगर का उल्लेख ), १११.५५/२.४९.६५ (गयान्तर्गत गजकर्ण तीर्थ में तर्पण से पितरों के ब्रह्मलोक गमन का उल्लेख ) । gajakarna
गज - ग्राह गर्ग ६.११ ( कुबेर - मन्त्रियों पार्श्वमौलि व घण्टानाद को विप्र शाप से गज व ग्राह योनि की प्राप्ति, गोमती नदी में गज व ग्राह का युद्ध, विष्णु द्वारा उद्धार से स्व - स्वरूप की प्राप्ति का वृत्तान्त ), भागवत ८२+ ( ग्राह द्वारा गजेन्द्र का बन्धन, गजेन्द्र द्वारा भगवद् - स्तुति, श्रीहरि द्वारा ग्राह का वध , गज और ग्राह के पूर्व चरित्र तथा उद्धार का वर्णन ), वराह १४४.१४१ ( कर्दम - पुत्रों जय तथा विजय का परस्पर शापवश गज व ग्राह बनना, गज व ग्राह का परस्पर युद्ध, विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से ग्राह मुख को फाडना, त्रिवेणी क्षेत्र की महिमा का प्रसंग ), वामन ८४.१९ ( त्रिकूट गिरि पर स्थित सरोवर में ग्राह द्वारा गजेन्द्र का बन्धन, गजेन्द्र द्वारा विष्णु की स्तुति, गज - ग्राह के उद्धार का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९३ ( देवल मुनि के शाप से हाहा, हूहू गन्धर्वों को गज व नक्री योनि की प्राप्ति तथा शाप मोचन ), १.१९४ ( ग्राह द्वारा गज का बन्धन, गज द्वारा विष्णु की स्तुति, प्रसन्न विष्णु द्वारा गज का मोक्षण, ग्राह तथा गज द्वारा शाप मुक्त होकर गन्धर्व रूप की प्राप्ति करने का वर्णन ), स्कन्द २.४.२८.१२ ( जय - विजय का परस्पर शापवश गज - ग्राह बनना, गण्डकी में स्नान करते हुए गज का ग्राह द्वारा बन्धन, विष्णु चक्र से गज - ग्राह का उद्धार ), लक्ष्मीनारायण १.३४०.७७ ( श्रीहरि द्वारा गज - ग्राह की मुक्ति का उल्लेख ), १.३४१.२९ ( जय व विजय का परस्पर शापवश गज व ग्राह बनना, श्रीहरि द्वारा गज - ग्राह के मोक्ष की कथा ), १.३७३.१४२( जय - विजय का क्रमश: तृणबिन्दु - सुत व गज - ग्राह बनने का उल्लेख ) । gaja - graaha
Esoteric aspect of Gaja - Graaha
Arun Upadhyay on Gaja-Graaha
गजच्छाया मत्स्य १७.३ ( गजच्छाया नामक योग में श्राद्ध के अक्षय फलदायक होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.८५.८६ (गजच्छाया आदि काल में सङ्गम में स्नान की महिमा ), ५.३.९०.११५ (गजच्छाया / कुञ्जरछाया आदि काल में तिलधेनु दान का माहात्म्य ) ।
गजतुण्ड मत्स्य १८३.६३ ( अविमुक्त क्षेत्र में गजतुण्ड प्रभृति गणों के विराजमान होने का उल्लेख ) ।
गर्जन्त अग्नि ३४१.१८ ( संयुत कर के १३ प्रकारों में से एक ) ।
गजपति भविष्य ३.३.३२.९३ ( पृथ्वीराज - सेनापति गजपति का नेत्रसिंह से युद्ध ), कथासरित् ७.४.४ (पाटलिपुत्रस्थ विक्रमादित्य राजा के दो परमप्रिय मित्रों में से एक ) ।
गजमुक्ता भविष्य ३.३.१६४ ( अग्निदेव की कृपा से गजसेन विप्र को गजमुक्ता नामक कन्या की प्राप्ति, गजमुक्ता व बलखानि के विवाह का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.४८८.३९( गजमुक्ता के नाक का दुर्लभ आभूषण होने का उल्लेख ) ।
गजवक्त्र नारद १.६६.१२६( गजवक्त्र की शक्ति कामिनी का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६६ ( ५१ वर्णों के गणेश नामों में से एक ), वराह १७.६८ ( पृथिवी आदि गुणों के गजवक्त्र होने का उल्लेख ), २३.१८ ( रुद्र हास्य से गणपति की उत्पत्ति, गणपति के शोभन, मोहन रूप को देखकर गजवक्त्र होने का शाप प्रदान ) ।
गजशैल वायु ३९.४७ ( गजशैल पर्वत पर रुद्रों के निवास स्थान का उल्लेख ) ।
गजसा वा.रामायण ४.१४.८ ( बाली - सुग्रीव युद्ध से पूर्व लक्ष्मण द्वारा गजसा नामक लता को सुग्रीव के कण्ठ में डालने का उल्लेख ) ।
गजसाह्वय भागवत १.४.६ ( हस्तिनापुर का एक नाम ), मत्स्य ४९.४२ (बृहत्क्षत्र - पुत्र हस्ती द्वारा गजसाह्वय / हस्तिनापुर नगर को बसाने का उल्लेख ) ।
गजसेन भविष्य ३.३.१६.२ ( गजसेन द्वारा अग्नि की आराधना से गजमुक्ता कन्या की प्राप्ति, कन्या के बलखानि से विवाह का वृत्तान्त ) ।
गजाग्नि भविष्य २.१.१७.१४ ( गजाग्नि के मन्दर नाम का उल्लेख ) ।
गजानन गणेश २.१.२० ( द्वापर में गणेश का नाम, आखु वाहन ), २.१७.८ ( भ्रूशुण्डि मुनि द्वारा गजानन नामक गणेश की भक्ति का वृत्तान्त ), २.१७.२५ ( गजानन के स्वरूप का वर्णन ), २.७८.४२ ( द्वापर में आखु - आरूढ चतुर्बाहु गणेश का नाम ), २.८५.२० ( गजानन गणेश से ओष्ठ - द्वय की रक्षा की प्रार्थना ), २.१२९.१२ ( देवों द्वारा सिन्दूर दैत्य से उद्धार के लिए गजानन से जन्म लेने की प्रार्थना, गजानन का जन्म ), २.१३३.११ ( वरेण्य द्वारा बालक गजानन का जङ्गल में त्याग, पराशर मुनि द्वारा ग्रहण करना ), २.१३४.२७ ( गजानन द्वारा मूषक को पाशबद्ध करके वाहन बनाना ), २.१३७.२२ ( गजानन द्वारा सिन्दूर दैत्य का मर्दन द्वारा वध ), ब्रह्माण्ड २.३.४१.५४ ( शिव मन्दिर में प्रवेश से रोकने पर परशुराम द्वारा परशु क्षेपण, गजानन द्वारा ग्रहण करने का कथन ), २.३.४२.३५ ( गज - शिर से संयोजित होने पर गणेश के गजानन नाम धारण का उल्लेख ), २.३.४२.४४ ( गजानन की अग्रपूज्यता से सर्वकार्य सिद्धि का उल्लेख ), ३.४.२७.७२ ( ललिता द्वारा सृष्ट गजानन द्वारा भण्डासुर -निर्मित जयविघ्न महायन्त्र के नाश का कथन ), मत्स्य १५४.५०५( पार्वती के शरीर मल से उत्पत्ति, पितामह द्वारा विनायकाधिपत्य प्रदान करना ), वामन ५४.५८ ( शैल - पुत्री पार्वती द्वारा स्वेद - मल से गजानन को बनाने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.२७.५ ( पार्वती के उद्वर्तन मल से गजानन की उत्पत्ति, देवों की सहायता हेतु शिव द्वारा विघ्नकर्त्ता गजानन को देवों को प्रदान करना ), १.३.२२.४३ ( पाटल फल प्राप्ति हेतु गजानन द्वारा शोणाद्रि रूपी पिता की प्रदक्षिणा तथा स्कन्द द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा का उल्लेख ) । gajaanana/ gajanana
गजानना स्कन्द ४.१.४५.३४ ( ६४ योगिनियों में से एक ) ।
गजासुर ब्रह्माण्ड ३.४.२७.९८ ( गणेश द्वारा भण्डासुर - सेनानी गजासुर का वध ), मत्स्य (गजासुर विनाशक रूप में शिव का उल्लेख ),१५३.३५ ( गजासुर दानव द्वारा देव सेना का संहार, रुद्रों द्वारा गजासुर पर प्रहार, गजासुर के वध का वर्णन ), शिव २.५.५७ ( महिषासुर - पुत्र गजासुर द्वारा दारुण तप, ब्रह्मा द्वारा अवध्यता रूप वर प्रदान करना, शिव द्वारा कृत्ति ग्रहण तथा कृत्तिवासेश्वर नाम धारण का वर्णन ), स्कन्द ४.२.६८ ( महिषासुर - पुत्र, शिव से युद्ध, शिव द्वारा गजासुर के चर्म को धारण कर कृत्तिवासेश्वर बनने का वृत्तान्त ) । gajaasura
गजेन्द्र नारद १.६६.१२८( गजेन्द्र की शक्ति कामरूपिणी का उल्लेख ), मत्स्य २५१.३ ( समुद्र मन्थन से गजेन्द्र का प्राकट्य, सहस्राक्ष द्वारा ग्रहण का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६७ ( गजेन्द्रास्य : ५१ वर्णों के गणेश नामों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.९( अङ्ग देशों में गजेन्द्रमोक्ष देव की पूजा का निर्देश ) । gajendra
गण
गणेश
१.३८.१८
(
गृत्समद
द्वारा
स्वपुत्र
को
गणानां
त्वा
इत्यादि
मन्त्र
की
दीक्षा,
पुत्र
द्वारा
त्रिपुर
संज्ञा
प्राप्ति
-
त्रिपुरेति
च
ते
नाम
ख्यातिं
लोके
गमिष्यति
।।
),
१.९२.२३
(
पक्षियों
द्वारा
गणाधिप
नाम
से
गणेश
की
पूजा
-
सर्वैः
पक्षिगणैर्मूर्तिः
स्थापिता
रत्नकांचनी।
गणाधिपेति
नाम्ना
तैः
पूजिता
च
नमस्कृता
॥
),
१.९२.२५
(
जलाशयों
द्वारा
गणाध्यक्ष
नाम
से
गणेश
की
पूजा
-
सर्वैर्जलाशयैरेका
प्रतिमा
स्थापिता
शुभा।
गणाध्यक्षेति
नाम्ना
सा
पूजिता
परमोत्सवैः
॥
),
२.८५.२३
(
गणनाथ
गणेश
से
हृदय
की
रक्षा
की
प्रार्थना
-
हृदयं
गणनाथस्तु
हेरम्बो
जठरं
महान् ।
),
२.८५.२९
(
गणेश्वर
गण
से
नैर्ऋत्
दिशा
में
रक्षा
की
प्रार्थना
-
दक्षिणस्यामुमापुत्रो
नैर्ऋत्यां
तु
गणेश्वरः
।),
२.१०६.४२
(
शिव
गणों
द्वारा
गणेश
को
पकडने
में
असफलता,
गणेश
को
गणपति
पद
की
प्राप्ति
),
पद्म
६.१३८
(
बकुला
सङ्गम
तथा
चंदना
तट
पर
गण
तीर्थ
के
माहात्म्य
का
कथन
-
गणतीर्थे
नरः
स्नात्वा
कृष्णाष्टम्यामुपोषितः
।
बकुलासंगमे
स्नात्वा
स्वर्गं
गच्छति
मानवः
।
),
ब्रह्माण्ड
२.३.६३.१२७
(
हैहयों
द्वारा
यवन,
पारद,
काम्बोज,
पह्लव
तथा
शक
नामक
पांच
गणों
के
साथ
बाहु
राजा
के
राज्य
के
हरण
का
उल्लेख
-
हैहयैस्तालजङ्घैश्च
शकैः
सार्द्धं
समागतैः
॥
यवनाः
पारदाश्चैव
कांबोजाः
पह्लवास्तथा
।
),
२.३.७.२०
(
अप्सराओं
के
१४
गणों
का
उल्लेख
),
भागवत
१२.१०.१४
(
पार्वती
व
शिव
-
गणों
के
साथ
शिव
की
पूजा
का
उल्लेख
-
नेत्रे
उन्मील्य
ददृशे
सगणं
सोमयाऽऽगतम्
।
रुद्रं
त्रिलोकैकगुरुं
ननाम
शिरसा
मुनिः
॥
),
मत्स्य
६.४४
(
कश्यप
व
सुरभि
से
रुर
गण
की
उत्पत्ति,
कश्यप
व
मुनि
से
मुनि
गण
तथा
अप्सरा
गण
की
उत्पत्ति
का
उल्लेख
),
२२.७३
(
पितरों
के
श्राद्धार्थ
प्रशस्त
तीर्थों
में
से
एक
-
तथा
च
बदरी
तीर्थं
गणतीर्थं
तथैव
च।
),
५२.२१
(
वासुदेव
की
विभूतियों
में
११
गणाधिपों/रुद्रों
का
उल्लेख
-
अष्टौ
च
वसवस्तद्वदेकादशगणाधिपाः।),
शिव
२.४.१३+
( शिवा
द्वारा
स्व
-
पुत्र
गणेश
की
द्वारपाल
रूप
में
नियुक्ति,
गणेश
के
शिव
गणों
से
विवाद
का
वर्णन
),
२.५.९.४२
(
त्रिपुर
वध
हेतु
स्व
गणों
के
साथ
शिव
यात्रा
का
वर्णन
),
स्कन्द
१.२.१३.१६३(
शतरुद्रिय
प्रसंग
में
गणों
द्वारा
रुद्र
नाम
से
मूर्तिमय
लिङ्ग
की
अर्चना
का
उल्लेख
-
गणा
मूर्तिमयं
लिंगं
नाम
रुद्रेति
चाब्रुवन्॥),
४.२.९७.२३१
(
गणेश्वरेश्वर
लिङ्ग
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
-
गणेश्वरेश्वरं
लिंगं
सर्वसिद्धिकरं
परम्
।।
हत्वा
लंकेश्वरं
विप्र
रघुणाथ
प्रतिष्ठितम्
।।
),
योगवासिष्ठ
६.१.६४
(
जीवट
ब्राह्मणादि
को
गणत्व
प्राप्ति
का
वर्णन
),
लक्ष्मीनारायण
१.८५.३(
दिवोदास
के
राज्य
में
छिद्रान्वेषण
हेतु
शिव
द्वारा
गणों
का
प्रेषण
;
गणों
के
नाम
),
३.४५.२३
(गणिकाओं
द्वारा
गण
लोक
प्राप्ति
का
उल्लेख
-
गणिका
गणलोकाँश्च
प्रयान्ति
कर्मवेदिनाम्
।)
; द्र.
शिवगण
।
gana
गण आधुनिक ठोस अवस्था भौतिक विज्ञान के संदर्भ में, परमाणुओं के परित: इलेक्ट्रान कईं चक्र विशेषों में गति करते रहते हैं। इन चक्रों में सबसे बाहरी चक्र के इलेक्ट्रानों पर परमाणु की नाभि में स्थित कणों का आकर्षण सबसे कम होता है और यदि एक ठोस पदार्थ का निर्माण करने के लिए परमाणुओं को परस्पर निकट लाया जाए तो उनके सबसे बाहरी चक्र परस्पर अतिव्यापन करते हैं। इस अतिव्यापन का परिणाम यह होता है कि इस चक्र में स्थित इलेक्ट्रानों की कोई एक ऊर्जा विशेष नहीं होती, अपितु इनकी ऊर्जाओं का एक पट्ट या बैण्ड बन जाता है । इस पट्ट की तुलना चेतना के विज्ञान में गणों से की जा सकती है । वैदिक साहित्य में मरुद्गण प्रसिद्ध हैं जिनका जन्म दिति या खण्डित चेतना से होता है । जब व्यक्ति की चेतना समाहित होना आरम्भ करेगी, उस समय यह स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।
Remarks by Dr. Fatah Singh
गणक गणेश २.१८.१० ( गणेश द्वारा हेम गणक रूपधारी दैत्य का मुद्रिका क्षेपण से वध ), वराह १२८.७८ ( गणान्तिका / गणनात्मिका / माला की शुद्धि हेतु पालनीय नियमों का कथन ) ।
गणकाक्ष शिव २.५.३६.१२ ( शङ्खचूड - सेनानी, मङ्गल से युद्ध का उल्लेख ) ।
गणतन्त्र महाभारत शान्ति १०७
गणनाथ नारद १.६६.१२६( गणनाथ की शक्ति स्वाहा का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६७ ( ५१ वर्णों के गणेश नामों में से एक ), स्कन्द ६.२१४ ( पार्वती मल से गणनाथ की उत्पत्ति, माहात्म्य, विश्वामित्र द्वारा गणनाथ पूजा से ब्राह्मणत्व की प्राप्ति का वर्णन ), ७.१.३२४ ( गणनाथ का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।
गणनायक नारद १.६६.१२८( गणनायक की शक्ति सुरेशा का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६५ ( ५१ वर्णों के गणेश नामों में से एक ) ।
गणपति अग्नि ७१ ( गणपति पूजा विधि ), ३०१.३ ( गणपति हेतु बीज मन्त्र तथा पूजा विधि ), ३१३.१ ( गणपति पूजा विधि व मन्त्र का कथन ), ३१८.८ ( गणेश के विघ्नमर्द नामक मण्डल की रचना व पूजा विधि, गणेश नामों के दिक् - विन्यास का कथन ), गरुड १.१२९.१० ( गणपति चतुर्थी व्रत का निरूपण ), देवीभागवत ९.१.१०१( पुष्टि - पति), नारद १.५१.५८ ( रुद्र और ब्रह्मा द्वारा विघ्नेश विनायक का गणपति पद पर विनियोजन, विघ्नेश विनायक से आविष्ट पुरुष के स्वप्न लक्षणों का कथन ), १.५१.६३ ( गणपति शान्ति हेतु पूजा विधि ), १.६६.१२४ ( गणपति नामों के साथ गाणपत्य मातृका न्यास ), पद्म १.६३ ( गणपति की अग्रपूजा हेतु का कथन : मोदक प्राप्ति हेतु गणेश व स्कन्द में स्पर्धा, गणेश द्वारा मोदक प्राप्ति से अग्रपूज्यता, गणपति स्तोत्र का कथन ), ६.१६७.३ ( गाणपत्य तीर्थ में स्नान, दान व श्राद्ध का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.२७.१२३( त्रिकाल भस्म स्नान से गाणपत्य लोक प्राप्ति का उल्लेख ), ३.४.२७.८३( युद्ध में महागणपति के आगे चलने वाले ६ विनायकों के नाम ), भविष्य १.२९( गणपति कल्प का वर्णन ), १.५७.१८( गणपति गणाधिप हेतु दारु बलि का उल्लेख ), वराह २३( रुद्र हास्य से गणपति की उत्पत्ति, आकाश का रूप?, गजमुख होने के शाप का वर्णन ), वायु १०१.३५४( भवभक्त, जितेन्द्रिय तथा अमद्यपी शूद्र को गाणपत्य स्थान की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६१.५५( महाविद्या साधनार्थ विजय ब्राह्मण द्वारा गणपति मन्त्र/गणेश्वर विधान का वर्णन ), ६.१३१.५१( वररुचि द्वारा विद्या प्राप्ति हेतु स्थापित गणपति का महात्म्य ), ६.१४२( गणपतित्रय के माहात्म्य का वर्णन : मोक्ष, स्वर्ग व मृत्यु लोक प्रापक, पार्वती मल से उत्पत्ति, देवों द्वारा अभिषेक, ईशान, सत्य हेरम्ब, मर्त्य हेरम्ब नाम ), ७.१.७२ ( जलवास गणपति के माहात्म्य का वर्णन, कार्यसिद्धि हेतु वरुण द्वारा पूजित ), ७.१.२३० (गणपति माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.३४९ ( दुर्ग कूट गणपति के माहात्म्य का वर्णन, भीम द्वारा पूजित ), लक्ष्मीनारायण १.५३३.३९( गणपति के देह में आकाश/सुषिर रूप में विद्यमान होने का उल्लेख ) । ganapati
गणिका ब्रह्म २.१८.३२ ( यम के तप में विघ्न हेतु शक्र द्वारा गणिका अप्सरा का प्रेषण, यम की दृष्टि मात्र से गणिका का नदी बनना, गौतमी गङ्गा के प्रभाव से नदी रूप गणिका का स्वर्ग गमन ), लक्ष्मीनारायण २.७७.५३( ताम्र पुत्तलिका दान से गणिका सङ्गज दोष से निवृत्ति का उल्लेख ), २.१२४.८२( गणिका के लिए यज्ञ में वाब्षा~ व्याहृति का प्रयोग), ३.४५.२३ ( गणिकाओं द्वारा गण लोक प्राप्ति का उल्लेख ), ३.८२.३४(काशी में ऋषि के समागम से गणिकाओं की पापनाशपूर्वक मुक्ति प्राप्ति की कथा ), कथासरित् १०.५१.७० ( नाग - गरुड कथा के अन्तर्गत नाग का गरुड से रक्षा हेतु मनुष्य वेश में गणिका के गृह में वास, गरुड द्वारा भी मनुष्य वेश में आकर नाग का भक्षण ), १८.५.१७६ ( विप्र - सुता द्वारा सुमङ्गला नामक गणिका के रूप में छद्मवेश धारण, प्रतिज्ञानुसार स्व - पुत्र के माध्यम से पति को प्राप्त करने की कथा ) । ganikaa
गणित नारद १.५४.२ ( ज्योतिष नामक वेदाङ्ग के तीन स्कन्धों में से एक ), १.५४.१२ ( ज्योतिष के गणित स्कन्ध का वर्णन ) ।
गणेश अग्नि ७१( द्र. गणपति ), ९१.१५( गणेश के बीज मन्त्र क्षो गं का उल्लेख ), ३०१ ( द्र. गणपति ), गणेश १.८.२१ ( गणेश के कान्त प्रासाद के निर्माण से चोर का सोमकान्त नृप बनना ), १.९.३, १९ ( भृगु द्वारा सोमकान्त के कुष्ठ नाश हेतु गणेश पुराण सुनाना ),१.१३.३ ( प्रलय के पश्चात् गणेश के दर्शन पर देवों द्वारा गणेश की स्तुति ; स्तोत्र वर्णन ), १.२१.४० ( द्विपास्य / गणेश का मुद्गल से तादात्म्य ), १.३८.४१ ( त्रिपुर द्वारा तप के स्थान की गणेशपुर के नाम से ख्याति ), १.४१.६ ( गणेश द्वारा कलाधर विप्र का रूप धारण कर त्रिपुर के पास जाना ), १.४९.१ ( गणेश उपासना विधि का वर्णन ), १.५०.९ ( गणेश की १,२,३,४,५,६ आदि मूर्तियों की पूजा का फल ), १.५६.३१,१.५७.१ ( भ्रूशुण्डि मुनि द्वारा गणेश स्वरूपता प्राप्त करने का कारण ), १.६१.६ ( चन्द्रमा के हंसने पर गणेश द्वारा अदर्शनीयता का शाप ), १.६४.८ ( बाल गणेश द्वारा कालानल दैत्य का भक्षण कर लेने पर शीतलता हेतु देवों द्वारा भालचन्द्र, सिद्धि, बुद्धि आदि आदि प्रदान करना ), १.६५.५ ( नारद द्वारा जनक के दानाभिमान का गणेश से कथन, गणेश द्वारा जनक की परीक्षा, जनक के अन्न का भक्षण करके भी गणेश की तृप्ति न होना ), १.६६.११ ( द्विज द्वारा श्रद्धापूर्वक दिए गए एक दूर्वाङ्कुर से ही गणेश की तृप्ति ), १.६८.३ ( पुत्रेच्छा वाले राजा कृतवीर्य को गणेश द्वारा स्वप्न में पितर रूप में दर्शन व संकष्ट चतुर्थी व्रत का निर्देश आदि ), १.६९.८ ( गणेश पूजा विधि का वर्णन ), १.८२.१८ ( परशुराम द्वारा गणेश के षडक्षर मन्त्र का जप, गणेश द्वारा परशु प्रदान करना ), १.९२.१३ ( विभिन्न प्राणियों द्वारा विभिन्न नामों से गणेश की आराधना का वर्णन ), २.१.१८ ( चार युगों में गणेश के सिंह आदि वाहनों का कथन ), २.५०.५० ( स्वानन्द भवन में विनायक के शयन वैभव का वर्णन ), २.५२.५२ ( काशीराज द्वारा गणेश के लोक का दर्शन ), २.६०.३० ( महोत्कट गणेश द्वारा काशी में नरान्तक के वध का वृत्तान्त ), २.६७.१ ( गणेश द्वारा देवान्तक से युद्ध व वध का वर्णन ), २.६९.४२ ( देवान्तक वध के लिए गणेश द्वारा अर्धनर व अर्धगज रूप धारण ), २.७०.१ ( अर्धगज रूपी गणेश द्वारा दन्त से देवान्तक का वध ), २.७८.४१ ( गणेश के कृत आदि चार युगों में स्वरूपों का कथन ), २.७९.३२ ( तीन गुणों के प्रदाता के रूप में गुणेश / गणेश शब्द की व्याख्या ), २.८१.३३ ( सिन्धु वध हेतु षड्भुज गणेश का पार्वती - पुत्र रूप में अवतार ), २.८५.१८ ( मरीचि द्वारा प्रदत्त गणेश कवच का वर्णन ), २.९५.२ ( विश्वकर्मा द्वारा गणेश को सूर्य तेज से निर्मित परशु आदि भेंट करना ), २.१०६.४१ ( गणेश द्वारा गणपति पद प्राप्ति का वृत्तान्त ), २.१२८.५४ ( मयूरेश्वर गणेश का द्विज रूप धारण कर शिव से युद्ध को उद्धत सिन्दूर असुर को परामर्श ), नारद १.६६.१३६( गणेश की शक्ति भगिनी का उल्लेख ), १.६७.१०० ( गणेश के पार्षद वक्रतुण्ड का उच्छिष्ट भोजी रूप में उल्लेख ), १.६८ ( गणेश पूजा मन्त्र विधान का निरूपण ), १.६८.३७ ( गणेश पूजा में विभिन्न द्रव्यों के अर्पण के फल का कथन ), १.७६.११५( गणेश के तर्पणप्रिय होने का उल्लेख ), १.११३ ( बारह मासों की चतुर्थी तिथियों में वासुदेव, संकर्षण आदि विभिन्न स्वरूपों से गणेश पूजा विधि तथा फल का कथन ), पद्म १.४३.४३३ ( पार्वती उद्वर्त्तन से उत्पत्ति, गणेशों के प्रकार व रूपों का कथन ), १.६३(स्कन्द से मोदक प्राप्ति की स्पर्धा, माता - पिता की प्रदक्षिणा, गणेश स्तोत्र का वर्णन ), १.७४ ( गणेश द्वारा त्रिपुर - सुत के वध का वर्णन ), ६.१०१.८ ( गणेश के जालन्धर - सेनानी शुम्भ से युद्ध का उल्लेख ), ब्रह्म १.३७.७७ ( गणेश के क्रोध से उत्पन्न स्वेद बिन्दुओं के भूमि पर पतन से महान् अग्नि तथा भयंकर पुरुष की उत्पत्ति, दक्ष यज्ञ विध्वंस का कथन ), २.५ ( माता पार्वती के सपत्नी गङ्गा से प्राप्त दुःख के निवारण हेतु गणेश द्वारा उपाय का चिन्तन, गौतम आश्रम में गमन तथा महर्षि गौतम को शिवजटा में स्थित गङ्गा के अवतारण हेतु प्रेरित करने के उद्योग का वर्णन ), २.४४ ( देवसत्र के पूर्ण न होने पर देवों द्वारा कृत गणेश - स्तुति से देवसत्र की निर्विघ्न समाप्ति का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१ ( पांच प्रकृति देवियों में प्रथम गणेश - माता दुर्गा का उल्लेख ), २.१.१४ ( गणेश - माता दुर्गा के शिवप्रिया शिवरूपा होने का उल्लेख ), ३.८ ( भूमि पर पतित शिव वीर्य से गणेश की उत्पत्ति का प्रसंग ), ३.८.१ ( ब्राह्मण रूप धारी श्रीकृष्ण व शिव के वीर्य के मिलन से गणेश की उत्पत्ति का वर्णन ), ३.१२ ( शनि द्वारा दर्शन से गणेश के शिर का पतन, विष्णु द्वारा शिरोयोजन का वृत्तान्त ), ३.२० ( बालक गणेश के गजमुख योजन में हेतु का कथन ), ३.४३ ( परशुराम द्वारा गणेश के दन्तभङ्ग का वृत्तान्त ), ३.४४.८५ ( गणेश, एकदन्तादि आठ नामों की निरुक्ति, अर्थ, विष्णु प्रोक्त गणेश स्तोत्र ), ३.४६ ( गणेश पूजा के नैवेद्य में तुलसी निषेध के हेतु का कथन, गणेश - तुलसी संवाद ), ४.६.२६२( लम्बोदर के अतिरिक्त अन्य सभी देवों के अवतरण का उल्लेख ), ४.९९.५४ ( कृष्ण के उपनयन संस्कार पर वसुदेव द्वारा गणेश के अभिषेक तथा स्तुति का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.४१.५३, २.३.४२.२ ( गणेश द्वारा परशुराम को शिव मन्दिर में प्रवेश से रोकना, परशुराम का क्रोध, परशु प्रक्षेपण, गणेश द्वारा वाम दन्त से परशु का ग्रहण, दन्त पात का कथन ), ३.४.४४.७० ( ५१ वर्णों के गणेशों में से एक नाम ), भविष्य ३.४.१२.९० ( ब्रह्मा के रक्ताङ्ग से उत्पत्ति, गणों का ईश होने से गणेश नाम, शिव द्वारा गणेश स्तुति, गणेश के गजानन होने के हेतु का कथन ), ३.४.१९.५८(शब्द तन्मात्रा के अधिपति के रूप में गणेश का उल्लेख), ३.४.२०.१७ ( परा प्रकृति के देवों में से एक ), ३.४.२५.२२ ( अज/अव्यक्त के प्रधान उत्तर मुख से गणेश की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.३३.६ ( विनायक चतुर्थी व्रत - विधि के अन्तर्गत स्वर्ण निर्मित गणेश प्रतिमा विप्र को प्रदान करने का निर्देश ), लिङ्ग १.८१.३६( करवीर पुष्प पर गणाध्यक्ष की स्थिति का उल्लेख ), १.१०५ ( गणेश की विघ्नेश्वर रूप में उत्पत्ति का कथन ), वराह २३ ( रुद्र हास्य से उत्पन्न कुमार गणेश के मोहनीय रूप को देखकर रुद्र द्वारा गजमुख होने के शाप का कथन ), वामन ६८.३५ ( रुद्रगणों व दैत्यों के युद्ध में गणेश द्वारा प्रास से राहु नामक दैत्य पर प्रहार का उल्लेख ), वायु १११.५५ ( गयान्तर्गत गणेशपद तीर्थ में श्राद्ध से पितरों के रुद्रलोक गमन का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२५ ( त्रिपुर दाह के अन्त में शिव - कृत गणेश की स्तुति ), शिव २.४.१३+ ( शिवा के शरीर - मल से गणेश की उत्पत्ति, द्वारपाल रूप में नियुक्ति, शिवगणों से विवाद, युद्ध, शिव द्वारा गणेश के शिर का छेदन, पुन: गजमुख योजन, गणाधिप पदवी प्राप्ति, विवाह का वर्णन ), ४.२५.९ ( क्रुद्ध ऋषियों द्वारा गणेश का आवाहन, गौतम - विघ्नार्थ प्रार्थना का कथन ), स्कन्द ३.२.१२ ( पार्वती मल से गणेश की उत्पत्ति, महादेव द्वारा शिर छेदन, गजासुर दैत्य के शिर रोपण से गजानन नाम धारण, देवों द्वारा गणेश की स्तुति, विवाहादि में निर्विघ्नता हेतु गणेश के पूर्वाराधन का वर्णन ), ४.२.५६ ( दिवोदास को काशी के आधिपत्य से च्युत करने के लिए गणेश के ज्योतिषी रूप में काशी गमन का वर्णन ), ४.२.५७ ( शिव द्वारा गणेश स्तुति का वर्णन ), ५.१.२८.२१( गणेश / विघ्नेश के माहात्म्य का वर्णन ), ५.२.३७.८ ( गणेश द्वारा चिकित्सक / भिक्षु रूप धारण करके उज्जयिनी में गमन का वर्णन ), ५.२.३८.२२ ( वीरक के शरीरार्ध से गणेशत्व व अग्रभाग से लोकपालत्व प्राप्त करने का उल्लेख), ६.२५२.२१( चातुर्मास में अगुरु वृक्ष में गणनायक की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.८५.२८ ( शिव द्वारा पुत्र गणेश का काशी में प्रेषण, गणेश द्वारा स्वप्न शकुन उत्पातादि वर्णनपूर्वक प्रजा के काशी से निष्कासन का वर्णन ), १.९१.२५ ( समुद्र मन्थन के समय कालकूट विष के निर्गमन पर देवों का शिव की शरण में गमन, शिव द्वारा कार्य सिद्धि हेतु गणेश - पूजा का निर्देश, देवों द्वारा गणेश पूजन का वर्णन ), १.१०२ ( पार्वती के शरीर मल से गणेश की उत्पत्ति, पार्वती द्वारा स्नान काल में गणेश की गोपुर द्वार पर नियुक्ति का वर्णन ), १.१०३.१२ ( गणेश व शङ्कर का युद्ध, गणेश मस्तक का छेदन, तज्जन्य शोक का वर्णन ), १.१०४ ( आकाशवाणी के अनुसार गणेश की साक्षात् कृष्णरूपता, श्रीहरि द्वारा गज का मस्तक छेदन, गज के मस्तक पर अन्य मस्तक का योजन, गजमस्तक के गणेश के कबन्ध पर समायोजन का वृत्तान्त ), १.१०५ ( गणेश की विशेषाग्र पूजा, आशीर्वाद मन्त्र, कवच, स्तोत्रादि का वर्णन ), १.१०६ ( गणेश के शिरोनाश तथा गज मस्तक सन्धान के हेतु का कथन ), १.१०७ ( गणेश व कार्तिकेय के विवाह हेतु शिव - पार्वती द्वारा पृथ्वी प्रदक्षिणा रूप शर्त, गणेश द्वारा माता - पिता व गौ की प्रदक्षिणा कर पृथ्वी प्रदक्षिणा रूप शर्त को पूर्ण करने का वृत्तान्त ), १.१०८ ( प्रजापति द्वारा गणेश को सिद्धि व बुद्धि नामक कन्या - द्वय का समर्पण, गणेश को क्षेम व लाभ नामक पुत्रों की प्राप्ति का कथन ), १.२६९ ( वार्षिक चतुर्थी व्रतों में गणेशात्मक वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध व्रत का वर्णन ), १.३३३.४ ( लक्ष्मीस्वरूपा पद्मावती नदी द्वारा गणेश से पति हेतु अभ्यर्थना, गणेश द्वारा प्रथम असुर - पत्नी तथा पश्चात् वृक्षमयी होने के शाप प्रदान का वृत्तान्त ), १.४०७.३२( भृगु के शाप से कृष्ण के गणेश रूप में जन्म लेने के कारण का कथन ), १.४४१.८३ ( अगुरु वृक्ष रूप में गणाधिप के अवतरण का उल्लेख ), १.४५०.१२६ (गणेश की कृष्णस्वरूपता का उल्लेख ), १.४५८.१३२ ( परशुराम का कैलास गमन, गणेश द्वारा निरोध, परशुराम द्वारा दन्तछेदन, गणेश की एकदन्त नाम से प्रसिद्धि का कथन ), १.५३३.१२०( शब्दादि मात्राओं के गजवक्त्र बनने का उल्लेख ), २.१४१.८९ ( गणेश मूर्ति निर्माण में मान अनुमाप आदि का कथन ), २.२७९.३६ ( गणेश पूजन के फल का कथन ) । ganesha
गणेश्वर ब्रह्माण्ड २.३.३२.२३ ( शिव के वाम भाग में कार्तिकेय तथा दक्षिण भाग में गणेश्वर / गणेश की स्थिति का उल्लेख ), ३.४.२७.९९ ( भण्डासुर - सेनानी गजासुर के साथ युद्ध का उल्लेख ), ३.४.४४.७० ( ५१ वर्णों के गणेशों में से एक नाम ) ।
गण्ड ब्रह्म २.९५.२९ ( सूर्य - पुत्री विष्टि व विश्वरूप के ७ पुत्रों में से एक ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३७ ( पुण्यक व्रत में गण्ड सौन्दर्य हेतु लक्ष रत्नगेन्दुक दान का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण २.१९०.९० ( श्रीहरि का गण्ड नामक नृप की लीशवन नामक नगरी में गमन व सत्कार का कथन), ४.४९ ( यास्कवाद नामक चक्री की पत्नी गण्डवाता की हरिकथा श्रवण से मोक्ष की कथा ) । ganda
गण्डक पद्म ७.६.४ ( भीमनाद नामक गण्डक द्वारा प्रजा का क्षोभन, वीरवर द्वारा गण्डक का हनन, पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४७ ( कृतघ्न के गण्डक बनने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१६७.३१( गण्डक नामक नृप के ऋषि, कुटुम्ब व प्रजा के साथ यज्ञभूमि में आगमन का उल्लेख ) ।
गण्डकी गणेश २.७३.५ ( गण्डकी नगर में राजा चक्रपाणि का वृत्तान्त ), २.७७.११ ( सिन्धु द्वारा विष्णु से गण्डकी नगर में वास करने के वर की प्राप्ति ), २.११२.१० ( सिन्धु की गण्डकी पुरी में शिव गणों का युद्ध हेतु आगमन ), पद्म ५.२०.१२ ( गण्डकी नदी में उत्पन्न चक्र चिह्न से अङ्कित शिला / शालग्राम के माहात्म्य का वर्णन : पुल्कस जातीय शबर की शालग्राम स्पर्श से मुक्ति ), ६.७५ ( गण्डकी नदी के माहात्म्य का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१३.३ ( गण्डकी नदी के तीर पर गन्धर्व - पत्नियों द्वारा उपबर्हण गन्धर्व के दर्शन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२६ ( हिमवत्पाद से नि:सृत नदियों में से एक ), भागवत १०.७९.११ ( बलराम का तीर्थयात्रा प्रसंग में गण्डकी में स्नान का उल्लेख ), मत्स्य ११४.२२ ( गण्डकी नदी के हिमालय - पाद से नि:सृत होने का उल्लेख ), १३३.२३ (गङ्गा, सिन्धु प्रभृति नदियों के साथ गण्डकी नदी का त्रिपुरारि - रथ के वेणु स्थान पर नियुक्त होने का उल्लेख - वितस्ता च विपाशा च यमुना गण्डकी तथा।।....एताः सरिद्वराः सर्वा वेणुसंज्ञाः कृता रथे।। ), वराह १४४.३९ ( गण्डकी द्वारा तप, विष्णु द्वारा वर प्रदान, शालग्राम शिला रूप में विष्णु का गण्डकी के गर्भ में वास, गण्डकी के माहात्म्य का वर्णन - शालग्रामशिलारूपी तव गर्भगतः सदा ।। स्थास्यामि तव पुत्रत्वे भक्तानुग्रहकारणात।। ), १४४.१२२ ( गण्ड स्वेद से गण्डकी नदी की उत्पत्ति, गण्डकी क्षेत्र में गज-ग्राह की कथा ), वामन ५७.५९ ( गण्डकी नदी द्वारा स्कन्द को सुबाहु नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ४५.९६ ( हिमवत्पाद से नि:सृत नदियों में से एक ), १०८.७९ ( लोमश ऋषि द्वारा आवाहित नदियों में से एक, गण्डकी में स्नान कर पिण्ड दान से पितरों के स्वर्ग पहुंचाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४७( गण्डकी नदी द्वारा पुरुष नामक वाहन से विष्णु के अनुगमन का उल्लेख - देविका चैव हंसेन पुरुषेण च गण्डकी ।। महिषेण पयोष्णी च कावेरी वृषभेण तु ।। ), शिव २.५.४१.४४ ( विष्णुप्रिया तुलसी के गण्डकी नदी रूप में परिणत होने का उल्लेख - तवेयं तनुरुत्सृष्टा नदीरूपा भवेदिह । भारते पुण्यरूपा सा गण्डकीति च विश्रुता ।। ), स्कन्द २.४.२८.१८ ( जय - विजय का परस्पर शापवश गण्डकी तट पर गज - ग्राह बनना, कार्तिक में गण्डकी में स्नान हेतु जाने पर गज का ग्राह द्वारा बन्धन, विष्णु द्वारा चक्र से गज - ग्राह के उद्धार का वर्णन - ततस्तौ ग्राहमातंगावभूतां गंडकीतटे । जातिस्मरौ तु तद्योन्यामपि विष्णुव्रते स्थितौ ।। ), ६.२५१.२५ ( गण्डकी नदी के विमल जल में शालग्राम रूप विष्णु के निवास का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३३७.१०८ ( तुलसी के शाप से विष्णु के शालग्राम पाषाण होने तथा विष्णु के शाप से तुलसी के गण्डकी नदी होने का उल्लेख ), १.३३८.८५ ( शालग्राम युक्त गण्डकी के विष्णु - प्रिया होने का उल्लेख ), १.३४०.३६ ( तपोरत विष्णु के गण्डस्थल से प्रवाहित स्वेद जल से गण्डकी की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का वर्णन ), २.१०० ( गण्डकी तीर पर चक्रवाकी के स्वमाता से मिलन का कथन ) । gandaki/gandakee
गण्डगल्ल ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८२ ( भण्ड का एक पुत्र तथा सेनापति ) ।
गण्डान्तरति मार्कण्डेय ४८.३/ ५१.३, १८ ( दुःसह व निर्मार्ष्टि के आठ पुत्रों में से एक, गण्डान्तरति के कर्म व दोषशमन के उपाय का कथन ) ।
गण्डिका पद्म ६.७५ ( गण्डिका तीर्थ का माहात्म्य ), मत्स्य ११३.४८ ( अमरगण्डिक व पूर्वगण्डिक पर्वत का वर्णन ), वायु ४३.१ ( गन्धमादन पर्वत के पार्श्व में स्थित गण्डिका क्षेत्र की महिमा का वर्णन ) ।
गण्डूष ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५० ( शूर के दस पुत्रों में से एक ), २.३.७१.१९१ ( शूर - पुत्र गण्डूष के नि:सन्तान होने के कारण श्रीकृष्ण द्वारा स्वपुत्रों चारुदेष्ण व साम्ब को प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ९६.१४८, १८८ ( शूर के दस पुत्रों में से एक, वसुदेव - भ्राता, कृष्ण द्वारा चारुदेष्ण व साम्ब नामक पुत्रों को नि:सन्तान गण्डूष को प्रदान करने का उल्लेख ), विष्णु ४.१४.३० ( शूर व मारिषा के वसुदेव प्रमुख दस पुत्रों में से एक ) । ganduusha/ gandoosha/ gandusha
गतायु वायु ९१.५२ ( पुरूरवा के ६ पुत्रों में से एक ) ।
गति गणेश २.१४४.१ ( शुक्ल व कृष्ण गतियों का वर्णन ), गर्ग ५.११.१२(बलि - पुत्र मन्दगति का त्रित मुनि के शाप से कुवलयपीड हाथी बनना), देवीभागवत ८.१५(सूर्य रथ के मार्ग व गति का वर्णन), पद्म १.२०.१०८( सुगति व्रत की संक्षिप्त विधि व फल ), ६.१९८.१२१(शूद्र द्वारा गति प्राप्त करने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५५ ( पुण्यक व्रत में गति सौन्दर्य हेतु सहस्र स्वर्णनिर्मित खञ्जन पक्षियों के दान का निर्देश ), ३.४.५६( गति हेतु राजहंस व गज दान का निर्देश ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१७२( पाताल से द्युलोक तक पञ्चविध गति का उल्लेख ), १.२.३४.६५( याज्ञवल्क्य - शाकल्य वाद - विवाद में अध्यात्म की मुख्य गति के रूप में सांख्य, योग अथवा ध्यान मार्ग का प्रश्न ), भागवत ३.२४.२३, ४.१.३८ ( कर्दम - कन्या, पुलह -पत्नी, कर्मश्रेष्ठ वरीयान् व सहिष्णु - माता ), ७.१२.२६( पदों व गति को वयों/पक्षियों में लीन करने का निर्देश ), मत्स्य १००.२( राजा पुष्पवाहन द्वारा दिव्य स्वर्ण कमल रूपी यान से यथेष्ट विचरण का कथन ), १८२.२४( मणिकर्णिका में देह त्याग से इष्ट गति प्राप्त करने का उल्लेख ), वामन ७८.६० ( गतिभास : धुन्धु दैत्य को जीतने के लिए विष्णु का वामन रूपधारी ब्राह्मणकुमार बनना, ऋत्विजों के पूछने पर स्वयं को वरुणगोत्रीय प्रभास का पुत्र बतलाते हुए अपना नाम गतिभास बतलाना ), वायु ५७.७८( चक्रवर्ती की गजेन्द्र गतियों का उल्लेख ), ५७.११७( यज्ञ, तप, कर्म संन्यास आदि ५ गतियों का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२९ ( अभिनय में गतिप्रचार का वर्णन ), शिव २.५.८.१५(श्रद्धा : शिव रथ में गति का रूप), स्कन्द ५.२.४५.३२ ( कपोत द्वारा प्रडीन आदि ८ गतियों के नामों का उल्लेख ), ५.३.१०३.१४( पौत्र से परम गति के जय का उल्लेख ), ७.१.१२३.४( प्रभास में शिव क्षेत्र में रावण के पुष्पक विमान का निश्चल होना ), लक्ष्मीनारायण १.४७२.२९( पारावत - कथित प्रडीन आदि १६ गतियों के नाम ), १.४९८.४१( दमयन्ती द्वारा विप्र पत्नियों को आभूषण दान करने पर विप्रों का गति भ्रष्ट होना ),२.२५२.५५ ( पैत्री, आर्षी, शाम्भवी आदि गतियों का वर्णन ), ३.१०.९( तुङ्गभद्रिका द्वारा ग्रहों की गति को रोकना, ग्रहों द्वारा गति प्रदान हेतु प्रार्थना, तुङ्गभद्रिका द्वारा स्व - पुत्री के कृष्ण के साथ विवाहोपरान्त ग्रहों को गति प्रदान करना ), ३.११३.६३( नास्तिक वैवर्त राजा के प्रेत की गति रुद्ध होना ), ४.७२.१( देवगतीश्वर नामक अर्धज्योतिषी द्वारा रोगों से दुःख प्राप्ति तथा श्रीहरि की कृपा से स्वर्ग प्राप्ति का वृत्तान्त ), महाभारत वन १८१.८( स्वर्ग की ओर गति के संदर्भ में ३ गतियों का कथन ), शान्ति २१४.२४( शुक्र गति को जानने का निर्देश, भूतसंकरकारिका होने का उल्लेख ), २९८.२८( मर्त्य अर्णव में जन्तु की कर्म व विज्ञान द्वारा गति होने का कथन ), आश्वमेधिक १७.१६( मृत्युकाल में जन्तु की गति का वर्णन ) ; द्र. सुगति । gati
गद अग्नि ११४.२६ ( गद नामक असुर का विष्णु द्वारा वध तथा गद की अस्थियों से विश्वकर्मा द्वारा गदा निर्माण का उल्लेख ), गर्ग १.५.२५ ( राजा प्राचीनबर्हि के गद के रूप में प्रकट होने का उल्लेख ), ६.६.३० ( बलदेव - अनुज, कृष्ण व रुक्मिणी विवाह में गद के शाल्व आदि से युद्ध का कथन ), ७.१०.१( प्रद्युम्न की कोंकण विजय में गद द्वारा कोङ्कण - अधिपति मेधावी को पराजित करने का कथन ), ७.२०.३४ ( प्रद्युम्न - सेनानी गद के विदुर से युद्ध का उल्लेख ), ७.२४.३८ ( गद द्वारा कुबेर - सेनानी वीरभद्र को पराजित करने का कथन ), ७.२६.५७ ( गद द्वारा शृङ्गारतिलक राजा को पराजित करने का उल्लेख ), ७.४६.११ ( गद का गन्धर्वों तथा गन्धर्वराज पतङ्ग से युद्ध ), १०.२४.४८ ( अनिरुद्ध - सेनानी गद का अनुशाल्व दैत्य से युद्ध ), १०.३०.१७ ( गद का नद दैत्य से युद्ध व नद के वध का कथन ), १०.३७.१८ ( गद को जीतने के लिए शिव द्वारा वीरभद्र गण के प्रेषण का उल्लेख ), भागवत १.१४.२८ ( यादव वीरों में से एक ), २.३.१९, ४.२३.१२(तावन्न योगगतिभिर्यतिरप्रमत्तो यावद्गदाग्रजकथासु रतिं न कुर्यात् ॥), १०.४१.३२( रजकं कञ्चिदायान्तं रङ्गकारं गदाग्रजः । दृष्ट्वायाचत वासांसि धौतान्यत्युत्तमानि च ॥), १०.४७.४०(कच्चिद्गदाग्रजः सौम्य करोति पुरयोषिताम्।), १०.५२.४० ( श्रीकृष्ण का गद के अग्रज रूप में उल्लेख - आराधितो यदि गदाग्रज एत्य पाणिं। गृह्णातु मे न दमघोषसुतादयोऽन्ये। ), ९.२४.४६ ( वसुदेव व रोहिणी के अनेक पुत्रों में से एक ), ९.२४.५२ (वसुदेव व देवरक्षिता के ९ पुत्रों में से एक ), वामन ९०.३१( गोमती में विष्णु की छादितगद नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), विष्णु ४.१५.२४ ( वसुदेव व भद्रा - पुत्र ), हरिवंश २.३६.३ (गद के साथ शिशुपाल के युद्ध का उल्लेख - गदेन चेदिराजस्य दन्तवक्त्रस्य शङ्कुना । ), २.९४.५० ( यदुवीर गद के असुर - कन्या चन्द्रवती से विवाह का उल्लेख - चन्द्रवत्या गदः साम्बो गुणवत्या च कैशविः ।।), लक्ष्मीनारायण २.१७६.४६ ( ज्योतिष में एक योग ) । gada
गदवर्मा ब्रह्माण्ड २.३.७१.१३८ ( विदूरथ - सुत शूर के बारह पुत्रों में से एक ), वायु ९६.१३७ ( विदूरथ - सुत शूर के १२ पुत्रों में से एक ) ।
गदा अग्नि २५.१३ ( गदा पूजा हेतु बीज मन्त्र का उल्लेख - कं टं पं शं वैनतेयः खं ठं फं षं गदामनुः । ), ११४.२७ ( गद नामक असुर की अस्थियों से विश्वकर्मा द्वारा गदा का निर्माण, विष्णु द्वारा गदा से हेति आदि राक्षसों के वध का कथन - गदो नामासुरो दैत्यः स हतो विष्णुना पुरा ॥ तदस्थिनिर्मिता चाद्या गदा या विश्वकर्मणा । ), २५२.११ (आहत, विहृत, प्रभूत आदि गदा के कर्मों का कथन - आहतं विप्र गोमूत्रप्रभूतङ्कमलासनं । ततोर्द्धगात्रं नमितं वामदक्षिणमेव च ।।), २५२.१९( संत्याग, अवदंश आदि गदा युद्ध के कर्मों का कथन - सन्त्यागमवदंशश्च वराहोद्धूतकं तथा । हस्तावहस्तमालीनमेकहस्तावहस्तके ।। ), गरुड ३.१२.७९(वायु के अस्त्र गदा का उल्लेख), गर्ग ७.१६.१२ ( प्रद्युम्न द्वारा मिथिलापुरी के गृहों की दीवारों पर गदा, पद्म, शंख आदि का चित्राङ्कन तथा ललाटों पर ऊर्ध्वपुण्ड्र व गदा की मुद्राओं के चित्राङ्कन का दर्शन - गदां मुद्रां ललाटे च ऊर्ध्वं वा हरिनामतः ॥ चक्रं शङ्खं च कमलं कूर्मं मत्स्यं भुजद्वये ॥ ), देवीभागवत ५.९.२०( त्वष्टा द्वारा देवी को कौमोदकी गदा भेंट करने का उल्लेख ), नारद १.६६.९०( मातृका न्यास के संदर्भ में गदी विष्णु की शक्ति दुर्गा का उल्लेख ), २.४७.१ ( गदालोल तीर्थ : गया में स्थिति, हेति वध के पश्चात् विष्णु द्वारा गदा के प्रक्षालन स्थान की गदालोल तीर्थ रूप में प्रसिद्धि - इत्युक्तास्ते ततो देवा विष्णवे तां गदां ददुः ।। उपेंद्र त्वं जहीत्येव हेतिं प्रोचुरजादयः ।। ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.८४ ( दुर्योधन का बलभद्र से गदा सीखने का उल्लेख ), भागवत ६.८.२०( केशव से प्रात:काल गदा द्वारा रक्षा की प्रार्थना - मां केशवो गदया प्रातरव्याद्गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः। ), ६.८.२४ ( नारायण कवच के अन्तर्गत कौमोदकी गदा से अशनिस्पर्शन आदि से रक्षा की प्रार्थना ), १०.५७.२६ ( दुर्योधन द्वारा बलराम से गदायुद्ध की शिक्षा ग्रहण का उल्लेख ), १०.५९.४ ( कृष्ण द्वारा गदा प्रहार से मुर दैत्य - निर्मित पाशों, अद्रियों का ध्वंस तथा दैत्य के वध का कथन ), १२.११.१४(ओज, सह, बल युक्त मुख्य तत्त्व के गदा होने का उल्लेख- ओजःसहोबलयुतं मुख्यतत्त्वं गदां दधत्। अपां तत्त्वं दरवरं तेजस्तत्त्वं सुदर्शनम्॥), महाभारत द्रोण १४.१७(रणनदी की उपमा में चक्रों की कूर्मों व गदाओं की नक्रों से तुलना आदि), १५( भीम व शल्य का गदायुद्ध), ९५.५०, शल्य १२.३(भीम व शल्य में गदायुद्ध का वर्णन), २९.४४ (दुर्योधन द्वारा माया से ह्रद जल का स्तंभन करके जल में प्रवेश), ५८.४४.७(भीम द्वारा गदा से दुर्योधन की ऊरु का भेदन - प्रतिज्ञातं च भीमेन द्यूतकाले धनञ्जय। ऊरू भेत्स्यामि ते सङ्ख्ये गदयेति सुयोधनम्।। ), वराह ३१.१६(अधर्मगज घातार्थ गदा का उल्लेख), १४३.५० ( परम गुह्य मन्दार पर्वत के दक्षिण स्थान में चक्र तथा वाम स्थान में गदा की स्थिति का उल्लेख - दक्षिणे संस्थितं चक्रं वामे स्थाने च वै गदा ।। ), १४५.५३ ( गदा कुण्ड क्षेत्र का संक्षिप्त माहात्म्य :गदाकुण्ड में प्राणत्याग से विष्णुलोक की प्राप्ति - गदाकुण्डमिति ख्यातं तस्मिन्क्षेत्रे परं मम ।। यत्र वै कम्पते स्रोतो दक्षिणां दिशामाश्रि तम् ।। ), वायु १०९.१ /२.४७.११( गद असुर की अस्थियों से गदा का निर्माण, विष्णु द्वारा गदा से हेति असुर का वध - दधार तां गदामादौ देवैरुक्तो गदाधरः । गदया हेतिमाहत्य देवैः स त्रिदिवं ययौ ।। ), विष्णु ४.१३.१०६ ( दुर्योधन का बलराम से गदा सीखने का उल्लेख - यावच्च जनकराजगृहे बलभद्रो ऽवतस्थे तावद्धार्त्तराष्ट्रो दुर्योधनस्तत्सकाशाद्गदाशिक्षामशिक्षयत्। ), ५.३४.२० (वासुदेव द्वारा गदा तथा चक्र निपात आदि से वासुदेव रूप धारी पौण्ड्रक का वध ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०६.६६ ( गदा आवाहन मन्त्र - गायत्रीं देवजननीं कालरात्रीं भयङ्करीम् ।। एहि कौमोदकि गदे समस्तासुरनाशिनि ।। ), स्कन्द २.१.६.६४( भक्त हेतु ललाट में गदा धारण का निर्देश - भुजद्वये शंखचक्रे मूर्ध्नि शार्ङ्गशरौ तथा ।। ललाटे तु गदा धार्या हृदये खड्गमेव च ।। ),३.१.३६.९९(कौमोदकी गदा का कार्य – अपस्मारादि भूतों का नाश - गदा कौमोदकी नाम नारायणकरस्थिता ।। अपस्मारादिभूतानि नाशयत्येव सर्वदा ।।), ४.२.८४.१० ( गदा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य – संसारगदनाशन - गदातीर्थं तदग्रे तु संसारगदनाशनम् ।। तत्र श्राद्धादिकरणात्पश्येद्देवं गदाधरम् ।।), हरिवंश २.९०.१३ ( निकुम्भ द्वारा गदा से युद्ध का उल्लेख ), ३.५४.१६(युद्ध में प्रस्तारों की गदाओं से उपमा - इध्माः परिधयस्तत्र प्रस्तारा विपुला गदाः ।), लक्ष्मीनारायण २.५.८४ (संकर्षण की गदा द्वारा हिरण्यकूर्च असुर के वध पर उत्पन्न असुरों के नाम - ववल्गुर्ब्रह्मकूर्चं तं तदा संकर्षणाद्धि सः । गदया मृत्युमापन्नस्तस्य देहमलानि तु ।।) २.१५७.४० ( गदा हेतु जानु जङ्घा में नमस्कार का उल्लेख - शंखाय लिंगे वृषणे गदायै जानुजंघयोः ।। ), ३.६०.७८( श्रीहरि द्वारा स्वभक्ता चिदम्बरा को गदा प्रदान करने का कथन - चिदम्बरोक्तं श्रुत्वैव मया लक्ष्मि गदा मम । सर्वसंहारतेजोभिर्युक्ता तस्यै समर्पिता ।। ), ३.६१.१२ ( गोदल नगरी वासी चिदम्बरा नामक रानी की भगवद् गदा द्वारा राक्षसों से रक्षा का वर्णन - सस्मार तां गदां कौमुदकीं गदा द्रुतं पुरः । आगता च ततो राज्ञ्या त्वाज्ञप्ता रक्षणाय वै ।। ), कृष्णोपनिषद १.२३( गदा के कालिका होने का उल्लेख - गदा च काळिका साक्षात्सर्वशत्रुनिबर्हिणी । ), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद २.२.२६( गदा के आद्या विद्या होने का उल्लेख - आद्या माया भवेच्छार्ङ्गं पद्मं विश्वं करे स्थितम् । आद्या विद्या गदा वेद्या सर्वदा मे करे स्थिता ॥ ) । gadaa
गदाग्रज ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२० ( गदाग्रज से दन्तपंक्ति की रक्षा की प्रार्थना ), भागवत २.३.१९, ४.२३.१२, १०.४१.३२, १०.४७.४०, १०.५२.४० ( श्रीकृष्ण का गद के अग्रज रूप में उल्लेख ) ।
गदार्दनेश्वर लक्ष्मीनारायण ३.२२६.१ ( गदार्दनेश्वर नामक वैद्य को जीवहिंसा रूप पापों से दुःख प्राप्ति का वर्णन ) ।
गदाधर
अग्नि
११४.२८
(
गद
असुर
की
अस्थियों
से
निर्मित
आदिगदा
को
धारण
करके
हेति
प्रभृति
राक्षसों
का
वध
करने
से
विष्णु
के
आदि
-
गदाधर
नाम
का
उल्लेख
),
११६.३४
(
गया
में
श्राद्ध
-
विधि
के
अन्तर्गत
गदाधर
की
स्तुति
का
कथन
),
गरुड
१.८२.६
(
गय
असुर
पर
गदा
प्रहार
करने
से
विष्णु
के
गदाधर
नाम
का
उल्लेख
-
आनीय
कीकटे
देशे
शयनं
चाकरोद्वली
॥
विष्णुमायाविमूढोऽसौ
गदया
विष्णुना
हतः
॥
),
नारद
२.४७.१६
(
हेति
वध
हेतु
सङ्ग्राम
में
गदा
धारण
करने
के
कारण
विष्णु
को
देवों
द्वारा
प्रदत्त
नाम
-
), ब्रह्म
२.९४
(
तीर्थ,
कोटितीर्थ
उपनाम,
चिच्चिक
पक्षी
की
मुक्ति
),
मत्स्य
१.११
(पूर्वकाल
में
भगवान्
गदाधर
द्वारा
मत्स्य
पुराण
के
वर्णन
का
उल्लेख
),
१७६.३०
(
मय
दानव
द्वारा
सृष्ट
पार्वती
माया
से
भगवान्
गदाधर
के
अस्पृष्ट
तथा
अविचलित
होने
का
उल्लेख
),
१७८.२३
(
कालनेमि
दैत्य
द्वारा
वाक्
बाणों
से
गदाधर
पर
आक्षेप,
दोनों
का
युद्ध,
गदाधर
द्वारा
कालनेमि
के
वध
का
वर्णन
),
वराह
७.३१
(
रैभ्य
द्वारा
गदाधर
की
स्तुति,
गदाधर
-
स्तव
प्रभाव
से
विष्णु
का
प्रादुर्भाव,
रैभ्य
को
मुक्ति
प्राप्ति
का
कथन
),
वायु
१०६.६०
(
गदाधर
विष्णु
का
गय
के
ऊपर
स्थित
शिला
को
स्थिर
करने
का
उल्लेख
),
१०९
(
गदा
द्वारा
हेति
असुर
वध
के
कारण
विष्णु
द्वारा
अर्जित
नाम,
गया
में
शिला,
पर्वत,
नदी
आदि
रूपों
में
गदाधर
की
अभिव्यक्ति
का
कथन
),
१०९.२७
(
गय
असुर
की
निश्चलता
के
पश्चात्
ब्रह्मा
द्वारा
गदाधर
की
स्तुति
),
स्कन्द
२.२.३०.८०(
गदाधर
से
ऐशानी
दिशा
की
रक्षा
की
प्रार्थना
),
४.२.६६.६
(
गदाधर
लिङ्ग
की
महिमा
का
उल्लेख
-
पितामहेशान्नैर्ऋत्यां
पूजनीयं
प्रयत्नतः
।।
गदाधरेश्वरं
लिंगं
पितॄणां
परितृप्तिदम्
।।
),
६.२१३.९१
(
गदाधर
से
कटि
की
रक्षा
की
प्रार्थना
)
।
gadaadhara/
gadadhara
गदालोल नारद २.४६.५१(गयासुर के सिर को द्वेधा करने के पश्चात् गदा के प्रक्षालन का स्थान), २.४७.१० ( गदालोल तीर्थ : गया में स्थिति, हेति वध के पश्चात् विष्णु द्वारा गदा के प्रक्षालन स्थान की गदालोल तीर्थ रूप में प्रसिद्धि ),वायु १११.७५/२.४९.८८ ( श्रीहरि द्वारा गदा प्रक्षालन से गदालोल तीर्थ का निर्माण, तीर्थ के माहात्म्य का कथन ) ।
गदी नारद १.६६.९०( गदी विष्णु की शक्ति दुर्गा का उल्लेख ) ।
गन्तुप्रस्थ वायु ४५.९१ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ) ।
गन्ध अग्नि ५९.२( अनिरुद्ध के रसात्मक और ब्रह्मा के गन्धात्मक होने का उल्लेख ), ८४.२९( निवृत्ति कला/जाग्रत के आधीन गन्ध तन्मात्रा का कथन, निवृत्ति कला का विषय गन्ध होने तथा गन्ध आदि ५ गुण होने का उल्लेख), १९१.६( गन्धतोयाशी द्वारा श्रावण में शूलपाणि की पूजा का निर्देश ), गणेश २.११४.१३ ( सिन्धु व गणेश के युद्ध में गन्धासुर का षडानन से युद्ध ), गरुड २.२.६७(गन्ध हरण से छुछुन्दर योनि प्राप्ति का उल्लेख), नारद १.४२.८१( गन्ध के ९ भेद ), पद्म २.६४.७१( काया में गन्ध से रस और रस से गन्ध की सृष्टि का कथन ), ५.८०.५७( विष्णु के गन्धाष्टक के रूप में चन्दन, अगुरु, ह्रीबेर आदि द्रव्यों का उल्लेख ), ७.५.८९ ( गन्धिनी : गुणाकर - कन्या सुलोचना की प्राप्ति हेतु माधव का गन्धिनी के गृह में वास, गन्धिनी द्वारा माधव की सहायता, गन्धिनी द्वारा पुष्पों के मध्य में रख कर माधव के प्रेम पत्र के प्रेषण का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.१.५.२०( यज्ञवराह के आज्यगन्ध होने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१९.५५(गन्ध तन्मात्रा के अधिपति के रूप में विश्वकर्मा का उल्लेख), ४.८८ ( शरीर दुर्गन्ध - नाशक मन्दार - निम्बार्क - करवीर व्रत का वर्णन, गन्ध विनाशन व्रत के अन्तर्गत ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को मन्दार आदि की पूजा का कथन ), भागवत ५.५.३३( ऋषभदेव की पुरीष सुरभि युक्त होने का कथन ), मत्स्य ३.२७( पांच गुणों वाली गन्ध/भूमि के बुद्धि होने का उल्लेख ), १०.२४( गन्धर्वों द्वारा पृथ्वी से पद्म पत्र में गन्धों के दोहन का उल्लेख ), मार्कण्डेय ६.३३( सूत की हत्या से बलराम का लौहगन्धी होना, गन्ध अपनयन के लिए द्वादश वार्षिक व्रत के चारण का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.६९.३२( गन्ध में प्राण और पृथिवी आदि का योग?), वराह ११५.१८ ( विष्णु को गन्ध दान का मन्त्र ), १२३.२३ ( विष्णु को गन्धपत्र तथा गन्धपुष्प - समर्पण फल का कथन ), १२३.३६ ( गन्ध पत्र तथा गन्ध पुष्प - समर्पण - मन्त्र का कथन ), वामन ९०.१२( मलयाद्रि में विष्णु की सौगन्धि नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), ९०.१४( पुष्कर में विष्णु की अब्जगन्ध नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), वायु ६९.९२( दिति की गन्धशीला प्रकृति का उल्लेख ), १०२.७ ( सृष्टि के प्रत्याहार काल में पृथ्वी के गन्धात्मक गुण के जलराशि द्वारा ग्रसे जाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.८.२५( चतुर्गन्ध पुरुष के लक्षण ), २.६४.३२ ( गन्ध तेल तथा मुखवासक आदि निर्माण की विधि का कथन ), २.१२०.२३( शुभ गन्धों के हरण से छुछुन्दर योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३४१.१७३ ( गन्ध प्रदान से गन्धर्वत्व प्राप्ति का उल्लेख ), शिव १.१६.१६ ( पूजा में गन्ध अर्पण से पुण्य प्राप्ति का उल्लेख ), १.१७.८९(सूक्ष्म गन्ध स्वरूप १४ लोकों का उल्लेख), ७.२.३८.१९( पार्थिवांश से रहित गन्ध का पार्थिव सिद्धियों में उल्लेख ), स्कन्द २.२.३८.११६ ( मत्स्यावतार द्वारा दमनक दैत्य के हनन से उत्पत्ति ), ५.३.२६.११७ (नवमी को कात्यायनी को गन्ध धूप भेंट करने का माहात्म्य ), ५.३.१५९.२६ ( सुगन्धहृत् के दुर्गन्ध होने का उल्लेख ), महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ ७८४( यज्ञवराह के हविर्गन्ध होने का उल्लेख ), शान्ति १८४.२८( गन्ध के ८ भेदों का कथन ), २३३.५( प्रलयकाल में आप: द्वारा पृथिवी के गन्ध गुण को आत्मसात् करने का उल्लेख ), अनुशासन ९८.२७( इष्ट व अनिष्ट प्रकार से २ प्रकार की गन्धों का कथन ), ९८.३५( पुष्पों की गन्ध से देवों की तृप्ति आदि का कथन ), आश्वमेधिक ५०.४२( पार्थिव गन्ध के इष्ट, अनिष्ट आदि दशविध भेदों के नाम ) ; द्र. पद्मगन्धा, मत्स्यगन्धा, मलयगन्ध । gandha
Comments on Gandha
गन्धक गरुड २.३०.५१/२.४०.५१( मृतक की धातु में गन्धक देने का उल्लेख )
गन्धकाली ब्रह्माण्ड २.३.१३.७६ ( पितर - कन्या, व्यास - माता, मत्स्य योनि में जन्म का उल्लेख ), वायु ७७.७४ ( पितर - कन्या अच्छोदा के नदी के रूप में प्रादुर्भूत होने, पुन: गन्धकाली नाम से मत्स्य योनि में उत्पन्न होने तथा व्यास को उत्पन्न करने का उल्लेख ) । gandhakaali/ gandhakali
गन्धभोज विष्णु ४.१४.९ ( श्वफल्क - पुत्र उपमद्गु के अनेक पुत्रों में से एक ) ।
गन्धमाद ब्रह्माण्ड २.३.७१.११२ ( श्वफल्क व गान्दिनी के १२ पुत्रों में से एक ), भागवत ९.१०.१९ (लङ्का पर चढाई के समय राम के वीरों में गन्धमाद का उल्लेख ), ९.२४.१७ ( श्वफल्क व गान्दिनी के १२ पुत्रों में से एक ) ।
गन्धमादन गरुड २.३२.११२ ( ब्रह्माण्ड गुणों की शरीर में व्यवस्थिति के अन्तर्गत शरीर के दक्षिण में गन्धमादन पर्वत की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्म १.१६.३०( मेरु के दक्षिण में स्थित वन का नाम ), १.१६.३४( मेरु के पश्चिम् में स्थित केसराचलों में से एक ), १.८९.५ ( राजा मुचुकुन्द के तप हेतु गन्धमादन पर्वत पर गमन का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.७.१०९ (सरस्वती के तप का स्थान), ब्रह्माण्ड १.२.१४.५२ ( प्रियव्रत द्वारा नवें पुत्र केतुमाल को गन्धमादन वर्ष प्रदान करने का उल्लेख ), १.२.१५.५१ ( गन्धमादन पर्वत के पार्श्व में गण्डिका नामक स्थान पर शिवा की स्थिति का उल्लेख ), १.२.१७.१६ ( मेरु के पश्चिम भाग में गन्धमादन की स्थिति का उल्लेख ), भविष्य १.१५५.२४ ( शिव द्वारा गन्धमादन पर्वत पर सूर्याराधन, सूर्य द्वारा शिव को वरदान का कथन ), भागवत ४.१.५८ ( नर - नारायण के गन्धमादन पर्वत पर गमन का उल्लेख ), ५.१.८ ( ब्रह्मा का गन्धमादन की घाटी को प्रकाशित करते हुए प्रियव्रत के समीप गमन का उल्लेख ), ५.१६.१० ( केतुमाल तथा भद्राश्व नाम के वर्षों के मध्य स्थित एक पर्वत ), ५.१७.६ ( सीता नदी के गन्धमादन - शिखर पर पतन का उल्लेख ), १०.५२.३ ( मुचुकुन्द के गन्धमादन पर्वत पर गमन तथा तप करने का उल्लेख ), मत्स्य १३.२६ ( गन्धमादन पर्वत पर सती देवी की कामाक्षी नाम से स्थिति का उल्लेख ), २४.१९ ( काम द्वारा पुरूरवा को गन्धमादन पर्वतस्थ कुमारवन में उन्माद रूप शाप देने का उल्लेख ), ८३.२२, ३२ ( गोधूम /गेहूँ की राशि से गन्धमादन पर्वत की रचना तथा आवाहन प्रकार का कथन ), ११३.४५ ( मेरु के चारों ओर मन्दर, गन्धमादन, विपुल तथा सुपार्श्व नामक विष्कम्भ पर्वतों की स्थिति का उल्लेख ), १५४.४३४ (गन्धमादन पर्वत पर शङ्कर के विवाहोत्सव में देवगणों के सम्मिलित होने का उल्लेख ), महाभारत उद्योग ६४(गन्धमादन पर दीप्यमान ओषधिगण की तथा सर्पों से रक्षित मधु की विद्यमानता का कथन), वायु २३.१५९ ( १३वें द्वापर में गन्धमादन पर्वतस्थ बालखिल्याश्रम में शिव के बालि नाम से अवतार ग्रहण का उल्लेख ), ३३.४५ ( अग्नीध्र द्वारा नवें पुत्र केतुमाल को गन्धमादन देश प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ३४.३५, ३५.१६, ४२.२५, ४३.१, ४६.१७ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ), ९१.७ ( पुरूरवा व उर्वशी की क्रीडा भूमियों में गन्धमादन पर्वत का उल्लेख ), विष्णु २.१.२३ (आग्नीध्र द्वारा नवम पुत्र केतुमाल को गन्धमादन वर्ष प्रदान करने का उल्लेख ), २.२.१८ ( इलावृत के दक्षिण में गन्धमादन पर्वत की स्थिति का उल्लेख ), ५.२४.४ ( गन्धमादन पर्वत पर नर - नारायण के निवास का उल्लेख ), ५.३७.३४ ( कृष्ण के परामर्श पर उद्धव के गन्धमादनस्थ बदरिकाश्रम में तप करने का कथन ), स्कन्द ३.१.१० ( गन्धमादन पर्वत का माहात्म्य : दृढमति शूद्र का वृत्तान्त ), ३.१.४९.३९ ( गन्धमादन वानर द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ५.३.१९८.६४ ( गन्धमादन पर उमा देवी की कामुका नाम से स्थिति का उल्लेख ), ५.३.१९८.७४ (गन्धमादन पर्वत पर उमा की सुगन्धा नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.१०९.२१ ( गन्धमादन तीर्थ में महादेव की भूर्भुव नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.२७१.१४४ (इन्द्रद्युम्न का गन्धमादन पर स्थित गृध्र के समीप गमन, गृध्र द्वारा इन्द्रद्युम्न के विषय में अनभिज्ञता प्रदर्शन का वर्णन ), ६.२७१.४३३( गुड - निर्मित गन्धमादन दान से प्राकारवर्ण(प्राकारकर्ण) उलूक/घंटक की मुक्ति का कथन ), वा.रामायण १.१७.१२ ( देवों से वानर उत्पत्ति प्रसंग में कुबेर देव से गन्धमादन नामक वानर पुत्र की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.६५.६ ( समुद्र - लङ्घन हेतु वानरों की गमन शक्ति के प्रसंग में गन्धमादन वानर की गमन शक्ति का उल्लेख ), ६.२४.१६ ( राम द्वारा निर्देशित व्यूहबद्ध वानर सेना के वाम पार्श्व में गन्धमादन वानर की स्थिति का उल्लेख ), ६.३०.२६ ( गुप्तचर द्वारा रावण को वीर वानरों का परिचय देते हुए गज, गवाक्ष, गवय, शरभ तथा गन्धमादन का वैवस्वत - पुत्र के रूप में उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१४१.५६ ( गन्धमादन नामक मेरु मन्दिर / देवायतन के मान, अनुमाप का कथन ) । gandhamaadana/ gandhamadana
गन्धमाली कथासरित् १२.५.३३ ( विजयवती - पिता, वासुकि के शाप से नाग - स्वामी गन्धमाली का कालजिह्व नामक यक्ष का दास बनना, विजयवती द्वारा पिता की दासत्व से मुक्ति हेतु भगवती - आराधना, भगवती के कथनानुसार विनीतमति द्वारा यक्ष को पराजित कर गन्धमाली की दासत्व से मुक्ति, प्रसन्न गन्धमाली द्वारा स्व - पुत्री विजयवती को विनीतमति को सौंपने का वृत्तान्त ) । gandhamaali/ gandhamaalee/ gandhamali
गन्धर्व
अग्नि
८४.३२(
८
अमानुषी
योनियों
में
चतुर्थ
),
२१९.३४
(
राजा
के
अभिषेक
के
समय
चित्राङ्गद,
चित्ररथ
प्रभृति
प्रधान
गन्धर्वों
से
अभिषेक
कार्य
सम्पन्न
करने
की
प्रार्थना
-
.. हाहा
हूहूर्नारदश्च
विश्वावसुश्च
तुम्बुरुः
॥
एते
त्वामभिषिञ्चन्तु
गन्धर्वा
विजयाय
ते
।),
गणेश
२.६८.२९
(
गणेश
द्वारा
प्रयुक्त
खगास्त्र
से
गन्धर्वास्त्र
के
निवारण
का
कथन
),
२.८.२८
(
गन्धर्वराज
का
भृगु
शाप
से
नक्र
बनना
-
वैवाहिकानि
कार्याणि
कुर्वता
कुपितो
मुनिः
॥
शशाप
मां
नक्रवरो
भविष्यसि
सरोगतः
।
),
गरुड
१.९५.१८(
गन्धर्व
द्वारा
व्यभिचारिणी
को
शुभ
गिरा
दान
का
उल्लेख
),
३.२२.३०(देव
गन्धर्वों
के
६
लक्षणों
से
युक्त
होने
का
उल्लेख
-
षड्भिश्च
देवगन्धर्वाः
पञ्चभिस्तदनन्तराः
।),
३.२२.६६(मानुषात्मक
गन्धर्वों
के
७
लक्षणों
और
२५
दोषों
से
युक्त
होने
का
उल्लेख
-
सप्तलक्षणसंयुक्ता
गन्धर्वा
मानुषात्मकाः
।
यैस्तु
पञ्चविंशतिभिर्दोषैः
संयुक्ताः
प्रकीर्तिताः
॥),
गर्ग
७.४६
(
प्रद्युम्न
-
सेना
का
गन्धर्वों
से
युद्ध,
गन्धर्वराज
पतङ्ग
से
भेंट
प्राप्ति
का
वर्णन
),
देवीभागवत
१.२०.२२
(
चित्राङ्गद
नामक
गन्धर्व
तथा
शन्तनु
-
पुत्र
चित्राङ्गद
का
परस्पर
युद्ध,
गन्धर्व
द्वारा
शन्तनु
-
पुत्र
के
वध
का
उल्लेख
),
४.२२.१६
(
हिरण्यकशिपु
के
६
पुत्रों
द्वारा
ब्रह्मा
की
आराधना,
वर
प्राप्ति
के
रूप
में
देवों,
मानवों,
गन्धर्वों
आदि
से
अवध्यता
का
उल्लेख
),
९.२०
(
शिव
द्वारा
चित्ररथ
नामक
गन्धर्वेश्वर
को
दूत
बनाकर
शङ्खचूड
के
पास
प्रेषित
करने
का
उल्लेख
),
नारद
१.५०.५८
(
गन्धर्व
की
तीन
वर्णों
के
आधार
पर
निरुक्ति
:
ग
-
गेय,
ध
-
कारु
प्रवादन,
व
-
वाद्य
),
पद्म
२.३०.५३
(सुनीथा
द्वारा
तपस्या
-
निरत
गन्धर्व
-
पुत्र
सुशङ्ख
का
ताडन,
सुशङ्ख
द्वारा
सुनीथा
को
पापयुक्त
पुत्र
की
प्राप्ति
रूप
शाप
-
प्रदान
का
कथन
),
२.४६.१६
(
गीतनिपुण
गन्धर्व
द्वारा
वराह
रूप
धारणकर
पुलस्त्य
मुनि
के
तप
में
विघ्न,
मुनि
द्वारा
वराह
योनि
प्राप्ति
का
शाप,
इक्ष्वाकु
द्वारा
वध
होने
पर
पुन:
वराह
योनि
से
गन्धर्व
योनि
प्राप्ति
रूप
शाप
-
मोचन
का
वर्णन
),
ब्रह्म
२.३५
(
गन्धर्वों
द्वारा
सोम
पर
अधिकार,
देवों
द्वारा
सरस्वती
के
मूल्य
पर
स्त्री
-
कामुक
गन्धर्वों
से
सोम
क्रयण
का
कथन
),
२.३७.२२
(
राजा
ऋतध्वज
द्वारा
गन्धर्वराज
-
कन्या
सुश्यामा
के
दर्शन,
मोहन
तथा
रतिक्रीडा
का
उल्लेख
),
ब्रह्माण्ड
१.२.७.१६७
(
गन्धर्वलोक
:
सत्शूद्रों
का
स्थान
),
१.२.८.४०
(
गन्धर्व
शब्द
की
निरुक्ति
-
धयेति
धातुः
कविभिः
पानार्थे
परिपठ्यते
।
पिबतो
जज्ञिरे
वाचं
गन्धर्वास्तेन
ते
स्मृताः
॥
),
१.२.१७.३३(
हेमकूट
में
गन्धर्वों
-
अप्सराओं
के
वास
का
उल्लेख
),
१.२.२३.१
(
भिन्न
-
भिन्न
गन्धर्वों
के
दो
-
दो
मास
तक
सूर्य
-
रथ
पर
अधिष्ठान
का
कथन
),
२.३.३.७६
(
गान्धर्वी
:
गान्धर्वी
से
उच्चैःश्रवा
आदि
अश्व
पुत्रों
की
उत्पत्ति
का
उल्लेख
),
२.३.७.४
(१६
देव
गन्धर्वों
की
मौनेय
संज्ञा
का
उल्लेख
),
२.३.७.३६
(
एक
काद्रवेय
नाग
का
नाम
),
२.३.७.१६७
(
गन्धर्वों
के
देवों
से
तीन
पाद
हीन
ऐश्वर्य
होने
का
उल्लेख
),
२.३.८.१०
(
ब्रह्मा
द्वारा
गन्धर्वों
के
अधिपति
पद
पर
चित्ररथ
की
नियुक्ति
का
उल्लेख
),
२.३.४०.५६(
कार्त्तवीर्य
अर्जुन
के
गान्धर्व
अस्त्र
का
परशुराम
द्वारा
वायव्य
अस्त्र
से
खण्डन
का
उल्लेख
),
३.४.१५.५
(
गन्धर्व
विवाह
:
विवाह
के
८
प्रकारों
में
से
एक,
गन्धर्व
विवाह
से
विवाहित
भार्या
के
पितृदत्तका
होने
का
उल्लेख
-
गन्धर्वोद्वाहिता
युक्ता
भार्या
स्यात्पितृदत्तका
),
३.४.१६.१७
(
ललितादेवी
के
अश्वप्राय
सैन्य
दल
में
गान्धर्व
अश्वों
के
होने
का
उल्लेख
),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.१२
(
सन्तानहीन
गन्धर्वराज
द्वारा
पुत्र
प्राप्ति
हेतु
शिवाराधना,
शिव
कृपा
से
गन्धर्वराज
को
उपबर्हण
नामक
पुत्र
की
प्राप्ति
की
कथा
),
१.१३
(
उपबर्हण
गन्धर्व
का
ब्रह्मा
की
सभा
में
सम्मिलित
होना,
रम्भा
नामक
अप्सरा
को
देखकर
गन्धर्व
का
वीर्यपात,
ब्रह्मा
के
शाप
से
गन्धर्व
द्वारा
शरीर
त्याग,
गन्धर्व-
पत्नी
मालावती
के
शोक
का
वर्णन
),
१.१८.३७
(
श्रीहरि
द्वारा
उपबर्हण
गन्धर्व
को
जीवन
प्रदान
करने
का
उल्लेख
),
४.१६.३५
(
गन्धर्वेश
गन्धवाह
के
सुहोत्र,
सुदर्शन
तथा
सुपार्श्वक
नामक
तीन
वैष्णव
-पुत्रों
का
कमल
-
ग्रहण
के
अपराध
पर
शिव
शाप
से
क्रमश:
बक,
प्रलम्ब
तथा
केशी
नामक
असुर
बनना,
कृष्ण
द्वारा
वध
पर
तीनों
के
कृष्ण
-
पार्षद
बनने
का
वर्णन
),
ब्रह्माण्ड
१.२.७.१६७
(
शूद्रों
को
गान्धर्व
स्थान
प्राप्त
होने
का
उल्लेख
),
भविष्य
१.५७.१८(
गन्धर्वों
हेतु
आरग्वध
बलि
का
उल्लेख
),
३.३.३१.८४
(सुकल
नामक
गन्धर्व
की
केकयतनया
मदनावती
पर
आसक्ति,
विवाह
हेतु
युद्ध,
पराजय
का
कथन
),
४.१५६.१७
(
गौ
के
ककुद
में
गन्धर्वों
तथा
अप्सराओं
की
स्थिति
का
उल्लेख
),
भागवत
२.३.६
(
रूपकामी
को
गन्धर्वों
की
उपासना
का
निर्देश
),
३.३.३
(
कृष्ण
व
रुक्मिणी
के
गन्धर्व
विवाह
का
उल्लेख
),
३.१२.३८
(
ब्रह्मा
द्वारा
पश्चिम
मुख
से
गन्धर्ववेद
को
उत्पन्न
करने
का
उल्लेख
),
४.७.४३
(
दक्ष
यज्ञ
के
अवसर
पर
उपस्थित
श्रीहरि
की
गन्धर्वों
द्वारा
स्तुति
),
७.८.५०
(
गन्धर्वों
द्वारा
नृसिंह
भगवान्
की
स्तुति
),
९.११.१३
(
भरत
द्वारा
दिग्विजय
में
कोटि
गन्धर्वों
के
संहार
का
उल्लेख
),
९.२०.१६
(
दुष्यन्त
व
शकुन्तला
के
गन्धर्व
विवाह
का
उल्लेख
),
११.१६.३३
(
विभूति
योग
के
अन्तर्गत
कृष्ण
के
गन्धर्वाप्सरसों
में
विश्वावसु-पूर्वचित्ति
होने
का
उल्लेख
),
मत्स्य
६.४५
(
कश्यप
व
अरिष्टा
से
गन्धर्वों
की
उत्पत्ति
का
उल्लेख
),
८.६
(पृथु
के
राज्याभिषिक्त
होने
पर
ब्रह्मा
द्वारा
चित्ररथ
को
गन्धर्वों,
विद्याधरों
तथा
किन्नरों
का
अधिनायक
नियुक्त
करने
का
उल्लेख
),
१०.२४
(
गन्धर्वों
द्वारा
पृथ्वी
से
पद्मपत्र
में
गन्धों
के
दोहन
का
उल्लेख
),
११४.८
(
गन्धर्वद्वीप
:
बृहत्तर
भारतवर्ष
के
९
भेदों
में
से
एक
),
१२१.४८
(
गङ्गा
द्वारा
पवित्र
किए
जाने
वाले
देशों
में
गन्धर्वों
के
देश
का
उल्लेख
),
१७१.६०
(
दक्ष
की
१२
कन्याओं
में
से
एक
मुनि
के
गन्धर्व
-
जननी
होने
का
उल्लेख
),
मार्कण्डेय
१९/२१.२८
(
विश्वावसु
नामक
गन्धर्व
की
कन्या
मदालसा
के
पातालकेतु
दैत्य
द्वारा
हरण
का
उल्लेख
),
५८/६१.२१
(
हिमालय
के
प्रान्त
भाग
में
सिद्धों,
गन्धर्वों,
किन्नरों
के
विहार
का
उल्लेख
),
वराह
१४५.७२
(
शालग्राम
क्षेत्र
के
अन्तर्गत
गन्धर्व
क्षेत्र
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
),
वामन
८४.६४
(
हू
हू
नामक
गन्धर्व
का
देवल
के
शाप
से
ग्राह
बनना,
विष्णु
चक्र
से
विदीर्ण
होकर
स्वर्ग
गमन,
गज
-
ग्राह
का
वृत्तान्त
),
वायु
१.९.३६
(
ब्रह्मा
के
तेज
का
पान
करने
के
कारण
गन्धर्वों
की
उत्पत्ति,
गन्धर्व
शब्द
की
निरुक्ति
-
ध्यायतीत्येष
धातुर्वै
यात्रार्थे
परिपठ्यते।
पिबतो
जज्ञिरे
गास्तु
गंधर्वास्तेन
ते
स्मृताः
।
),
२१.३२
(
१४
वें
गन्धर्व
कल्प
में
गान्धार
स्वर
की
उत्पत्ति
का
उल्लेख
),
४५.७९
(
भारतवर्ष
के
९
भागों
में
से
एक
),
६१.७९
(
१८
विद्याओं
में
गन्धर्ववेद
का
उल्लेख
),
६२.१००
(
गन्धर्वों
द्वारा
पृथ्वी
रूपा
गौ
के
दोहन
का
उल्लेख
),
६९.१
(
१६
मौनेय
गन्धर्वों
का
नामोल्लेख
),
६९.७३
(
कद्रू
द्वारा
उत्पन्न
प्रधान
नागों
में
गन्धर्व
नामक
नाग
का
उल्लेख
),
१००.१५९
(
प्रलयकाल
में
संवर्तक
अग्नि
द्वारा
गन्धर्वादि
के
भस्मीभूत
होने
का
उल्लेख
),
१०१.३
(
१४
मनुओं
का
ऋषियों
,
देवों,
गन्धर्वों,
राक्षसों
के
साथ
प्रत्येक
मन्वन्तर
में
जन्म
ग्रहण
का
उल्लेख
),
१०१.२८
(
गन्धर्वों
के
स्वर्लोक
में
निवास
का
उल्लेख
),
१०६.५९
(
गयासुर
के
ऊपर
स्थित
शिलाखण्ड
पर
देवों
के
साथ
-
साथ
गन्धर्वों
की
स्थिति
का
उल्लेख
),
विष्णु
१.५.४६
(
गन्धर्व
पद
की
निरुक्ति
-
ध्यायतोंगात्समुत्पन्ना
गन्धर्वास्तस्य
तत्क्षणात्
।
पिबन्तो
जज्ञिरे
वाचं
गन्धर्वास्तेन
ते
द्विज॥
),
१.२१.२५
(
कश्यप
व
अरिष्टा
से
गन्धर्वों
की
उत्पत्ति
का
उल्लेख
),
२.३.७
(
भारतवर्ष
के
९
खण्डों
में
से
एक
),
४.३.४
(
मौनेय
नामक
गन्धर्वों
द्वारा
रसातल
के
नागों
को
परास्त
कर
रत्नादि
का
हरण,
नागों
द्वारा
शेषशायी
विष्णु
से
रक्षा
की
प्रार्थना,
विष्णु
के
कथनानुसार
मान्धाता
-
पुत्र
पुरुकुत्स
द्वारा
गन्धर्वों
के
संहार
का
वर्णन
),
४.४.१००
(
गन्धर्वविषय
/देश
को
जीतने
हेतु
भरत
द्वारा
संग्राम
में
तीन
कोटि
गन्धर्वों
को
मारने
का
उल्लेख
),
विष्णुधर्मोत्तर
१.८२.३७
(
ग्रह
अनुसार
गन्धर्वों
के
नाम
),
१.१२८.५
(
दिव्य
गन्धर्वों
-
अप्सराओं
चित्रसेन,
उग्रसेन
आदि
के
नाम
),
१.१३५.१
(
उग्रसेन
नामक
गन्धर्व
द्वारा
माया
से
उर्वशी
के
मेष
-
हरण
का
उल्लेख
),
१.१९३
(
देवल
मुनि
के
शाप
से
हा
हा,
हू
हू
गन्धर्वों
के
गज,
ग्राह
बनने
का
कथन
),
१.२०१
(
शैलूष
-
पुत्र
गन्धर्वों
की
अनुशासन
हीनता
से
चित्ररथ
नामक
गन्धर्वराज
द्वारा
शैलूष
-
पुत्रों
के
वध
का
शाप
),
१.२०२
(
शैलूष
-
पुत्र
गन्धर्वों
का
भरत
द्वारा
वध
का
कथन
),
१.२५८+(
शैलूष
-
पुत्र
गन्धर्वों
की
सेना
तथा
भरत
-
सेना
के
युद्ध
का
वर्णन,
शैलूष
गन्धर्वों
का
वध,
सिन्धु
-
तट
पर
भरत
द्वारा
नगर
निर्माण
),
३.३४१.१७३
(
गन्ध
प्रदान
से
गन्धर्वत्व
प्राप्ति
का
उल्लेख
),
३.४२.४
(
गन्धर्वों
के
रूप
निर्माण
में
उन्हें
मुकुट
रहित
दिखाने
का
निर्देश
),
शिव
५.१८.४
(
भारत
के
९
खण्डों
में
से
एक
),
स्कन्द
१.२.१३.१५५
(
गन्धर्वों
द्वारा
दारुज
लिङ्ग
की
सर्वश्रेष्ठ
नाम
से
पूजा
का
उल्लेख,
शतरुद्रिय
प्रसंग
-
गंधर्वा
दारुजं
लिंगं
सर्वश्रेष्ठेति
नाम
च॥
),
२.१.२४
(
सुन्दर
नामक
गन्धर्व
को
राक्षसत्व
प्राप्ति,
वसिष्ठोक्त
उपाय
से
राक्षसत्व
से
निवृत्ति
तथा
स्व
-
स्वरूप
प्राप्ति
का
वर्णन
),
२.७.१९.१८
(
भूतों
से
मनुष्य
तथा
गन्धर्वों
के
१००
गुणा
श्रेष्ठ
होने
का
उल्लेख
),
३.१.४९.७५
(
गन्धर्वों
द्वारा
रामेश्वर
-
स्तुति
का
कथन
-
रामनाथ
त्वमस्माकं
भजतां
भवसागरे
।।
अपारे
दुःखकल्लोले
न
त्वत्तोन्या
गतिर्हि
नः
।।
),
३.२.१०.२०
(
कामधेनु
के
क्षुरपृष्ठ
में
गन्धर्वों
तथा
चारों
वेदों
की
स्थिति
का
उल्लेख
),
३.१.२८.५५
(
उर्वशी
की
प्राप्ति
हेतु
पुरूरवा
द्वारा
गन्धर्वों
से
प्रार्थना,
सन्तुष्ट
गन्धर्वों
द्वारा
पुरूरवा
को
अग्नि
स्थाली
प्रदान
करना,
अग्नि
-
त्रय
से
यज्ञों
का
सम्पादन
तथा
गन्धर्वलोक
प्राप्ति
का
कथन
),
३.२.१०.२६
(
विश्वावसु
नामक
गन्धर्व
की
३०
सहस्र
कन्याओं
का
३०
सहस्र
गोजा/गोभुज
मनुष्य
अनुचरों
से
विवाह
,
गान्धर्व
विवाह
का
प्रचलन
आरम्भ
होना
),
३.३.७
(
प्रदोषव्रत
शिव
पूजा
माहात्म्य
प्रसंग
में
धर्मगुप्त
नामक
राजकुमार
तथा
द्रविक
नामक
गन्धर्व
की
कन्या
अंशुमती
का
परस्पर
प्रणय,
विवाह
तथा
सुखपूर्वक
राज्य
करने
का
वर्णन
),
४.१.८.२१
(
गन्धर्वलोक
वासी
गन्धर्वों
के
आचार
का
वर्णन
),
४.२.६६.२१
(
गन्धर्वेश्वर
लिङ्ग
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
),
५.३.२८.१२
(
बाण
के
त्रिपुर
नाश
हेतु
शिव
रथ
के
चक्र
के
अरों
में
गन्धर्वों
के
स्थित
होने
का
उल्लेख
),
५.३.८३.११०
(
गौ
के
खुराग्रों
में
गन्धर्वों
आदि
की
स्थिति
का
उल्लेख
-
गन्धर्वाप्सरसो
नागाः
खुराग्रेषु
व्यवस्थिताः
।),
५.३.२२५
(
अलिका
नामक
गन्धर्व
-
कन्या
द्वारा
स्वनाम
से
शिवलिङ्ग
की
स्थापना,
अलिकेश्वर
तीर्थ
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
६.१४४
(
रम्भा
व
जाबालि
-
कन्या
फलवती
का
चित्रसेन
गन्धर्व
द्वारा
हरण,
देवमन्दिर
में
स्वकन्या
व
गन्धर्व
को
देखकर
जाबालि
द्वारा
शाप
प्रदानादि
का
वर्णन
),
६.२५२.२१(
चातुर्मास
में
गन्धर्वों
की
मलय
वृक्ष
में
स्थिति
का
उल्लेख
),
७.१.२४
(
घनवाह
नामक
गन्धर्व
की
पुत्री
गन्धर्वसेना
को
शिखण्डि
गण
के
शाप
से
कुष्ठ
प्राप्ति,
सोमवार
व्रतादि
द्वारा
शिवपूजन
से
कुष्ठ
से
मुक्ति
का
वर्णन
),
७.१.२६
(
घनवाह
नामक
गन्धर्व
द्वारा
स्थापित
गन्धर्वसेनेश्वर
लिङ्ग
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
७.१.५४
(
घनवाह
गन्धर्व
द्वारा
स्थापित
गन्धर्वेश्वर
लिङ्ग
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
७.१.१२२
(
गन्धर्वपति
चित्राङ्गद
द्वारा
स्थापित
चित्राङ्गदेश्वर
लिङ्ग
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
७.१.३०२
(
गन्धर्वेश्वर
लिङ्ग
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
हरिवंश
३.७१.५२
(
वामन
के
विराट
रूप
में
गन्धर्वों
की
उदर
में
स्थिति
का
उल्लेख
उदरे
चास्य
गन्धर्वा
भुजगाश्च
महाबलाः
।।),
महाभारत
अनुशासन
९८.२९(
गन्धर्वों
हेतु
उपयुक्त
जलज
पुष्प
),
वा.रामायण
४.४१.४२
(
ऋषभ
पर्वत
पर
स्थित
चन्दन
वन
की
रोहित
नामक
गन्धर्वों
द्वारा
रक्षा,
शैलूष,
ग्रामणी,
शिक्ष,
शुक
व
बभ्रु
नामक
पांच
गन्धर्वराजों
के
ऋषभ
पर्वत
पर
निवास
का
उल्लेख
),
७.१००.११
(
सिन्धु
नदी
के
दोनों
पार्श्वों
पर
स्थित
गन्धर्व
देश
के
गन्धर्वराज
शैलूष
की
सन्तानों
द्वारा
रक्षित
होने
का
कथन
),
७.१०१
(
भरत
का
गन्धर्वों
पर
आक्रमण,
संहार
तथा
गन्धर्व
देश
में
तक्षशिला
व
पुष्कलावत
नगर
बसाने
का
कथन
),
लक्ष्मीनारायण
१.२००.४९
(
ब्रह्मा
के
मानस
-
पुत्र
नारद
द्वारा
सृष्टि
कर्म
का
निषेध,
क्रुद्ध
ब्रह्मा
द्वारा
नारद
को
गन्धर्व
होने
का
शाप,
गन्धर्वराज
के
गृह
में
उपबर्हण
नामक
गन्धर्व
के
रूप
में
नारद
का
जन्म,
चित्ररथ
गन्धर्व
की
५०
कन्याओं
से
उपबर्हण
का
विवाह,
ब्रह्मसभा
में
उपबर्हण
गन्धर्व
की
रम्भा
अप्सरा
में
आसक्ति,
ब्रह्मा
के
शाप
से
उपबर्हण
के
शूद्र
योनि
में
जन्म
का
वर्णन
),
१.३९०.२७
(
कृष्ण
जयन्ती
उत्सव
में
सलिलद्यु
नामक
गन्धर्व
तथा
सात्वत
-
कन्या
सुकन्या
का
परस्पर
शाप
प्रदान,
शापवश
सलिलद्यु
का
च्यवन
रूप
में
तथा
सुकन्या
का
शर्याति
नृप
की
कन्या
के
रूप
में
जन्म,
दोनों
का
विवाह
तथा
गार्हस्थ्यादि
का
वर्णन
),
१.४४१.८३
(
मलय
वृक्ष
रूप
में
गन्धर्वों
के
अवतरण
का
उल्लेख
),
१.४७१.५
(
शिव
प्रसाद
भक्षण
से
मण्डूकी
के
गान्धर्वी
रूप
में
जन्म
का
कथन
),
२.१५.२८
(
गौ
के
खुरमध्य
में
गन्धर्वों
की
स्थिति
का
उल्लेख
),
२.३४.१८
(
कृष्ण
के
पंचम
जन्मोत्सव
पर
देवगन्धर्वों,
मानवगन्धर्वों
तथा
दैत्य
गन्धर्वों
द्वारा
गायन,
देव,
मानव,
दैत्य
गन्धर्वों
के
नामों
का
कथन
),
२.१०४.२६
(
हिमालय
पर्वतस्थ
गान्धर्व
देश
में
चारण
प्रजा
होने
का
उल्लेख
),
२.१२४.८१(
गन्धर्वों,
किन्नरों
आदि
के
लिए
यज्ञ
में
श्रौषट्
व्याहृति
के
प्रयोग
का
उल्लेख
),
२.१५७.२४
(
मूर्ति
में
ओष्ठों
में
गन्धर्वों
के
न्यास
का
उल्लेख
-
गन्धर्वेभ्यश्चौष्ठयोश्च
स्कन्दाय
कटिपार्श्वके
।),
३.७५.७९
(
उपवास,
व्रतों
से
गन्धर्व
लोक
प्राप्ति
का
उल्लेख
),
३.१०१.७१
(
रत्नाढ्या
गौ
के
दान
से
गन्धर्वलोक
प्राप्ति
का
उल्लेख
),
४.४४.६२
(
विविध
प्रकार
के
बन्धनों
में
नाट्य
के
गान्धर्व
बन्धन
होने
तथा
उसके
त्याग
से
श्रीहरि
के
तुष्ट
होने
का
उल्लेख
),
४.७६.५२
(
श्री
हरिकथा
श्रवण
से
चित्रबर्ह
प्रभृति
गन्धर्वों
की
मुक्ति
का
कथन
),
कथासरित्
१२.१०.८९
(
कथा
समाप्ति
पर
शुक
का
शाप
मुक्त
होकर
चित्ररथ
नामक
गन्धर्व
बनकर
स्वर्ग
-
गमन
का
उल्लेख
),
१४.२.१
(
वीणादत्त
नामक
गन्धर्व
द्वारा
कूप
स्थित
नरवाहनदत्त
के
उद्धार
का
उल्लेख
),
भरतनाट्य
१३.२४(हेमकूट
पर
गन्धर्व-अप्सराओं
के
वास
का
उल्लेख),
वास्तुसूत्रोपनिषद
६.२५टीका(गन्धर्वों
द्वारा
देवनन्दार्थ
नृत्य
करने
का
उल्लेख)
; द्र.
गान्धर्व
gandharva
Comments on Gandharva
Vedic contexts on Gandharva
गन्धर्वविवाह विष्णु ३.१०.२४ ( ८ प्रकार के विवाहों में से एक ), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.५ ( विवाह के ८ प्रकारों में से एक, गन्धर्व विवाह से विवाहित भार्या के पितृदत्तका होने का उल्लेख ), भागवत ३.३.३ (कृष्ण व रुक्मिणी के गन्धर्व विवाह का उल्लेख ), ९.२०.१६ ( दुष्यन्त व शकुन्तला के गन्धर्व विवाह का उल्लेख ) ।
गन्धर्वसेना स्कन्द ७.१.२४, ७.१.५४ ( घनवाह गन्धर्व - पुत्री, शिखण्डि गण से कुष्ठ प्राप्ति, सोमवार व्रतादि द्वारा शिवपूजन से मुक्ति का वर्णन ) ।
गन्धर्वी/गान्धर्वी वायु २०.३ (गन्धर्वी : ओंकार में गान्धार स्वर से उत्पन्न गन्धर्वी मात्रा के भी लक्षित होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.११( गान्धर्वी शान्ति के प्रवाल वर्ण का उल्लेख ) ।
गन्धवती वायु ३४.८९ ( मेरु के छठे अन्तरतट पर वायु की गन्धवती नामक सभा की स्थिति का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.१३ ( वायु द्वारा अधिष्ठित गन्धवती पुरी में पूतात्मा द्वारा तप, पवमानेश्वर लिङ्ग की स्थापनादि का वर्णन ), ४.१.२९.४९ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.१.१६ ( कपाल जल से निर्मित गन्धवती नदी के माहात्म्य का वर्णन ) । gandhavati
गन्धवाह ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६.३५ ( गन्धर्वेश गन्धवाह के तीन परम वैष्णव पुत्रों का बक, प्रलम्ब तथा केशी नामक असुर बनना, कृष्ण द्वारा वध से तीनों को गोलोक प्राप्ति का वृत्तान्त ) ।
गभस्तल वायु ५०.१२ ( पृथ्वी के सात तलों में से चतुर्थ तल ) ।
गभस्ति ब्रह्माण्ड १.२.१९.९६ ( शाकद्वीप की सात नदियों में से एक ), मत्स्य १२२.३३ ( शाकद्वीप की सप्तमी गङ्गा के सुकृता व गभस्ती नामों का उल्लेख ), विष्णु २.४.६५ (शाकद्वीप की सात महानदियों में से एक ), शिव ५.१८.५५ ( शाक द्वीप की सात प्रमुख नदियों में से एक ), स्कन्द २.४.६.४४ ( कार्तिक मास में गभस्तीश्वर सन्निधि में शतरुद्रीय जप से मन्त्र सिद्धि का उल्लेख ), ४.१.३३.१५४ ( मार्कण्डेय द्वारा स्थापित गभस्तीश लिङ्ग का उल्लेख ), ४.१.४९.७७ ( सूर्य द्वारा स्थापित गभस्तीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.९७.१८३ ( गभस्तीश के उत्तर में दधिकल्पेश्वर तथा दक्षिण में मंगलादेवी के आलय का उल्लेख ), ५.३.१९१.१३ ( प्रलय काल में गभस्तिपति के याम्य दिशा में तपने का उल्लेख ) । gabhasti
गभस्तिनी ब्रह्म २.४०.३६( लोपामुद्रा - स्वसा, दधीचि - पत्नी, पिप्पलाद - माता, दधीचि द्वारा अस्थिदान पर गभस्तिनी द्वारा प्राण त्याग, अन्य नाम वडवा, प्रातिथेयी, अन्य कथाओं में सुवर्चा आदि ) । gabhastini
गभस्तिमान् ब्रह्माण्ड १.२.१६.९ ( भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), मत्स्य ११४.८ ( बृहत्तर भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), शिव ५.१८.४ ( भारत के ९ खण्डों में से एक ), विष्णु २.३.६ ( भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), २.५.२ ( गभस्तिमान् नामक चतुर्थ पाताल के पीली मिट्टी से युक्त तथा प्रासाद - मण्डित होने का उल्लेख ) । gabhastimaan
गभीर ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८६ ( विन्ध्यशक्ति - सुत प्रवीर के चार पुत्रों में से एक ) ।
गम्भीर गणेश १.१.२६ ( गम्भीरता में महोदधि की उच्चता का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.११४ ( भौत्य मनु के नौ पुत्रों में से एक ), विष्ण्णढ ३.२.४५ ( गम्भीर बुद्धि :१४वें भौम नामक मनु का एक पुत्र ), ब्रह्म २.७७.१२ ( गम्भीरातिगम्भीर नामक अप्सरा - द्वय द्वारा विश्वामित्र के तप में विघ्न, शाप से नदी बनना, गङ्गा सङ्गम से मुक्ति का कथन ) ।
गय अग्नि ११४ ( गय नामक असुर की तपस्या के फलस्वरूप उसे विष्णु द्वारा तीर्थों में पवित्रतम होने के वर की प्राप्ति, पृथ्वी तथा स्वर्ग की रिक्तता, ब्रह्मा द्वारा यज्ञ हेतु गयासुर से देह की याचना, गयासुर की देह पर शिला धारण तथा यज्ञ कर्म सम्पन्न होने की कथा ), गर्ग ७.६.२ ( मरुधन्व देश का राजा, कृष्ण - तनय दीप्तिमान् से युद्ध व पराजय, गय द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान का वर्णन ), गरुड १.८२ ( कीकट देश में गय असुर के शयन पर विष्णु द्वारा गदा से प्रहार का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६८ ( नक्त - पुत्र, नर - पिता ), २.३.६०.१८ ( सुद्युम्न के ३ पुत्रों में से एक, गय को गयापुरी का अधिपति बनाने का उल्लेख ), भागवत २.७.४४( परम पुरुष की योगमाया के ज्ञाता भगवद्भक्त राजर्षियों में गय का उल्लेख), ४.१३.१७ ( उल्मुक व पुष्करिणी के ६ पुत्रों में से एक ), ५.१५.६ (नक्त व द्रुति - पुत्र, विष्णु के अंश, गयन्ती से चित्ररथ, सुगति व अवरोधन नामक पुत्रों की प्राप्ति, गय महिमा का वर्णन ), ८.१९.२३ ( गय नामक नृपति के सप्त द्वीपाधिपति होने पर भी असन्तुष्ट रहने का उल्लेख ), ९.१.४१ ( सुद्युम्न के ३ पुत्रों में से एक गय के दक्षिणापथ के अधिपति होने का उल्लेख ), १०.६०.४१( विष्णु को पाने की इच्छा से राज्य का त्याग कर वन जाने वाले राजर्षियों में से एक ), मत्स्य ४.४३ ( ऊरु व आग्नेयी के ६ पुत्रों में से एक ), १२.१७ ( सुद्युम्न के तीन पुत्रों में से एक, गय को गया प्रदेश प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ३३.५७ (नक्त - पुत्र, नर - पिता, स्वायम्भुव वंश ), ८३.१४ ( सुद्युम्न के तीन पुत्रों में से एक), ९१.६०/२.२९.५८(बलाकाश्व – पुत्र, कुश-पिता, शील गुण का उल्लेख), १०६ ( गय असुर के स्वरूप, तप, ब्रह्मा द्वारा यज्ञ हेतु गय की देह की प्राप्ति की कथा, गय के ऊपर शिला स्थापन, देव अवस्थान आदि का वर्णन ), विष्णु २.१.३८ ( नक्त - पुत्र, नर - पिता ) । gaya
गय गय प्राण मनोमय से ऊपर विज्ञानमय कोश के हैं। गायत्री इन्हीं गय प्राणों का त्राण करती है । - फतहसिंह
Comments on Gaya
Remarks by Dr. Fatah Singh
गयत्राड स्कन्द १.२.६५.११८ ( गय असुर के निग्रह स्थान गयत्राड में गयत्राडा नामक देवी की अर्चना से सर्व उपद्रव शान्ति का उल्लेख ) ।
गया अग्नि ११४ ( गया माहात्म्य के अन्तर्गत गय असुर की कथा, गय के नाम से गयापुरी की प्रसिद्धि का कथन ), ११५ ( गया के अन्तर्गत विभिन्न तीर्थ स्थानों की यात्रा विधि तथा माहात्म्य का वर्णन ), गरुड १.८२.१७ ( गया माहात्म्य का आरम्भ, गया में श्राद्ध से पाप नाश का कथन ), १.८३ ( गया तीर्थ का माहात्म्य, तदन्तर्वर्ती तीर्थों का वर्णन ), देवीभागवत ७.३८.२४ ( गया क्षेत्र में मङ्गला देवी के वास का उल्लेख ), नारद २.४४ ( गया तीर्थ की महिमा : पिण्ड दान प्रसंग में पुत्रार्थी राजा विशाल द्वारा तथा प्रेतत्व से मुक्ति हेतु वणिक् द्वारा पिण्ड देने की कथा, गया के अन्तर्वर्ती तीर्थों की महिमा तथा फल का कथन ), २.४४.९० ( गया में मङ्गला नामक देवी के विराजित होने का उल्लेख ), २.४५ ( गया में प्रथम व द्वितीय दिवसों के कृत्य : प्रेतशिला आदि तीर्थों में पिण्डदान विधि का वर्णन ), २.४६ ( गया में तृतीय व चतुर्थ दिवसों के कृत्य : ब्रह्मयूप की परिक्रमा, गयाशीर्ष में पिण्डदान आदि का कथन ), २.४७ ( गया में पञ्चम दिवस के कृत्य : अक्षय वट के निकट पिण्डदान, गया के अन्तर्वर्ती तीर्थों में स्नान, पिण्डदान आदि के फल का कथन ), पद्म ३.३८ ( गया तीर्थ का माहात्म्य, गया के अन्तर्वर्ती तीर्थ ), ६.२२.४४ ( गया स्थित गदाधर स्तोत्र का कथन ), ६.३२.२१ ( गया गमन की प्रशंसा ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.१०४ ( गया में किए गए श्राद्ध के महाफलदायी होने का उल्लेख ), २.३.४७.१७ ( जामदग्नि / परशुराम द्वारा गया में श्राद्ध तथा पिण्डदानादि का कथन ), २.३.६०.१९ ( सुद्युम्न द्वारा गय नामक पुत्र को गया पुरी का राज्य प्रदान करने का उल्लेख ), भागवत १०.७९.११ ( बलराम द्वारा तीर्थयात्रा प्रसंग में गया में पितृपूजन का उल्लेख ), मत्स्य १२.१७ ( सुद्युम्न द्वारा स्वपुत्र गय को गया प्रदेश प्रदान करने का उल्लेख ), वराह ७ ( रैभ्य मुनि द्वारा गया में पिण्डदान तथा तप से सनकादि लोक की प्राप्ति का वर्णन ), ७.१४ ( विशाल राजा द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु गया में पितरों को तृप्त किए जाने का कथन ), ७.२१( गया में पिण्ड प्रदान से नरकाश्रित पितरों का संयोजित होना ), वामन २२.१९ ( ब्रह्मा की पांच वेदियों में से एक गयाशिर का पूर्ववेदी रूप में उल्लेख ), ७९.६४ ( प्रेतत्व से मुक्ति हेतु प्रेत द्वारा वणिक् को गया तीर्थ में पिण्डदान करने का कथन ), ९०.९ ( गया में विष्णु का गोपति व गदाधर नाम से वास ), वायु ७७.९७ ( गया में श्राद्ध के महान् फल का कथन ), ८०.४५ ( गया में हस्ती दान करने से श्राद्ध में शोक रहितता का उल्लेख ), ८५.१९( राजर्षि गय की पुरी के रूप में गया का उल्लेख ), वायु १०४.७७/२.४२.७७( मध्य में सरस्वती तथा आनन में गया क्षेत्र का न्यास आदि ), १०५+ ( गया माहात्म्य का वर्णन ), ११२ ( गय द्वारा गया में यज्ञ सम्पादन, गया में पिण्ड दानादि के माहात्म्य का वर्णन ), स्कन्द २.३.७ ( पापियों के पापदोषों से मलिनरूप प्रभास, पुष्कर, गया आदि पांच धाराओं का बदरिकाश्रम गमन से पापमुक्त होकर निर्मल रूप होने का कथन ), २.८.९ ( गया कूप तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ३.१.२६.३४ ( रैक्व महर्षि के आह्वान पर गङ्गा यमुना तथा गया नामक तीर्थ त्रय की गन्धमादन पर्वत पर उपस्थिति तथा सदा सन्निधान का कथन ), ३.१.२७.१(गङ्गा, यमुना व गया में स्नान का निर्देश, गया का सरस्वती से साम्य?), ५.१.५७ ( गया तीर्थ माहात्म्य के अन्तर्गत तुहुण्ड राक्षस से पीडित देवों का विष्णु की आज्ञा से महाकालवन में स्थित गया तीर्थ में गमन ), ५.१.५९ ( गया के अन्तर्वर्ती तीर्थों का वर्णन, गया तीर्थ की पहले अवन्ती में परन्तु बाद में कीकट में स्थिति ), ५.२.६०.२३(मतङ्ग द्वारा गया में अङ्गुष्ठ पर स्थित होकर तप), ५.३.४४.१७ ( नाभि में गया के पुण्या होने का उल्लेख, चक्रतीर्थ से साम्य ), ५.३.१९८.७२ ( गया में उमा की विमला नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.२०५ ( हाटकेश्वर क्षेत्र स्थित गया में किए गए श्राद्ध का माहात्म्य ), ७.१.१०.९(गया तीर्थ का वर्गीकरण – वायु), लक्ष्मीनारायण १.५२७.१ ( गया में पिण्डदान से रैभ्य व विशाल राजा के पितरों की तृप्ति तथा उद्धार का कथन ), २.३०.८१( प्राची वेदी के रूप में गया का उल्लेख ) । gayaa
गयाकूप कथासरित् १.२६.८८ ( राजा चन्द्रप्रभ द्वारा गयाकूप में पिण्ड देने के लिए उद्धत होने पर कूप से मनुष्य के तीन हाथों का बाहर आना, चन्द्रप्रभ की किंकर्त्तव्यविमूढता का उल्लेख ) ।
गयाशिर स्कन्द ५.३.५५.१८ ( गयाशिर तीर्थ की शूलभेद तीर्थ से तुलना ), ६.१७+( गयाशिर माहात्म्य के अन्तर्गत गयाशिर में श्राद्धादि से प्रेतत्व से मुक्ति का वर्णन ) ।
गयासुर वायु १०५.७ ( श्वेत वाराह कल्प में गयासुर द्वारा सम्पादित यज्ञाराधन वाले स्थान की गया नाम से प्रसिद्धि ), १०६ ( गयासुर की उत्पत्ति, स्वरूप, प्रभाव, तप, शारीरिक पवित्रता की प्राप्ति, ब्रह्मा के यज्ञ हेतु स्वशरीर का दान, गयासुर के शरीर पर गदाधर सहित समस्त देवताओं की स्थिति का वर्णन ) । gayaasura
गर पद्म ७.३.४२( मनोभद्र राजा के वीरभद्र तथा यशोभद्र नामक पुत्रों का जन्मान्तर में गर, सगर नामोल्लेख, गृध्र द्वारा राजपुत्रों के जन्मान्तर का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.९३ ( नरक में गर कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), ३.२३३.९७ ( श्री हरि की भक्ति व सेवा से गरद / विष - प्रदाता के भी पाप - नाश का उल्लेख ) ; द्र. सगर । gara
गरिमा ब्रह्माण्ड ३.४.१९.४ ( अष्ट सिद्धियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.२०० ( दिनमानार्क राजा की गरिमा खण्डान्तर्गत अपरानाविका पुरी में श्रीहरि का गमन, भ्रमण, पूजनादि का वर्णन ) ।
गरिष्ठ ब्रह्माण्ड २.३.६.१६ ( दनु - पुत्र वंशजों में से एक गरिष्ठ के मनुष्यों से अवध्य होने का उल्लेख ) ।
गरुड अग्नि २५.१३ ( गरुड आराधना हेतु बीज मन्त्र का उल्लेख ), गरुड ३.१८.४(गरुड का हरि का शयन बनने का कथन), गर्ग ७.४० ( श्रीकृष्ण से प्रेरित गरुड द्वारा शकुनि दैत्य के जीवन रूप शुक को नष्ट करने के उद्योग का वर्णन ), ७.२७.७ ( हरिवर्ष खण्ड निवासी गृध्रों द्वारा प्रद्युम्न - सेना पर आक्रमण करने पर प्रद्युम्न द्वारा गारुडास्त्र का प्रयोग, अस्त्र से नि:सृत गरुड के प्रहार से गृध्रों का पलायन ), गरुड १.२.४९ ( गरुड पुराण की उत्पत्ति का निरूपण ), १.१९७ ( अशेष नाग जाति वशंकर गारुड मन्त्र का निरूपण ), नारद १.१०८( गरुड पुराण के अन्तर्गत विषयों का कथन), पद्म १.६.६६ ( विनता - पुत्र ), १.४७.४१ ( क्षुधा शान्ति हेतु गरुड द्वारा म्लेच्छों का भक्षण, ब्राह्मण का वमन, गज व कूर्म का भक्षण, विष्णु भुजा के मांस का भक्षण, स्वर्ग से अमृत के हरण का वर्णन ), ६.८८.५ ( कल्प वृक्ष लाने हेतु कृष्ण का गरुड पर आरूढ होकर स्वर्ग में गमन ), ६.८८.१२ ( कल्पवृक्ष के परित्याग हेतु इन्द्र द्वारा गरुड के ताडन का उल्लेख ), ब्रह्म २.२० (शिव द्वारा मणिनाग को अभय देने पर गरुड का रोष, गरुड पर विष्णु द्वारा कराङ्गुलि निधान से गरुड के शिर का कुक्षि में धंसना, गौतमी गङ्गा में स्नान से गरुड को पूर्ववत् शक्ति की प्राप्ति, गारुड तीर्थ का वृत्तान्त ), २.८९ ( कद्रू- पुत्रों का गरुड के साथ सूर्य - दर्शन हेतु गमन, सूर्य ताप से कद्रू- पुत्रों का पीडित होना, गरुड द्वारा रसातल गङ्गा से लाए हुए जल के अभिषेक से पीडा शान्ति का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१९.११२ (गरुड के तेज से पराजित होकर कालिय नाग का आत्मरक्षार्थ यमुना कुण्ड में गमन, सौभरि मुनि के शाप से गरुड की यमुना कुण्ड में गमन की असमर्थता का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१२ ( सोमक पर्वत पर देवों द्वारा स्थापित अमृत का गरुड द्वारा हरण का उल्लेख ), २.३.७.२९ ( विनता - पुत्र ), २.३.७.४४८ (गरुड की भार्याओं तथा सन्तति का कथन ), २.३.८.११ ( ब्रह्मा द्वारा पक्षियों के अधिपति पद पर गरुड की नियुक्ति का उल्लेख ), भविष्य १.५७.१३( गरुड हेतु मत्स्य ओदन बलि का उल्लेख ), १.१३८.३७( विष्णु की गरुड ध्वज का उल्लेख ), १.१७३+ ( गरुड द्वारा अरुण से सौरधर्म विषयक उपदेश की प्राप्ति ), १.१७५+ ( शान्ति अभिषेक द्वारा गरुड को पुन: पङ्ख प्राप्ति का वर्णन ), ४.७०.४३( वैनतेय द्वारा विष्णु का नाभि से नीचे का भाग रक्षित होने का उल्लेख ), ४.१४१.९९ ( शान्ति हेतु गरुड अर्चना का निर्देश ), भागवत ४.७.१९ ( गरुड /तार्क्ष्य के बृहत् एवं रथन्तर नामक साम - स्तोत्र पङ्खों से युक्त होने का उल्लेख ), ५.२०.८ ( शाल्मलि वृक्ष पर गरुड के निवास का उल्लेख ), ६.६.२२ ( तार्क्ष्य / कश्यप व सुपर्णा / विनता - पुत्र ), १०.१६.६३ (कृष्ण के चरण - चिह्नों से अङ्कित होने पर गरुड द्वारा कालिय नाग के अभक्षण का उल्लेख ), १०.१७.११ (गरुड द्वारा यमुना कुण्ड पर मत्स्य का भक्षण, सौभरि मुनि द्वारा गरुड को शाप प्रदान का वृत्तान्त ), १२.११.१९ ( यज्ञपुरुष के वाहन गरुड की त्रिवेदरूपता का उल्लेख ), मत्स्य ६.३४ ( विनता - पुत्र, अरुण - भ्राता ), १२२.१५ ( सोमक पर्वत पर गरुड द्वारा देवों द्वारा संचित अमृत के अपहरण का उल्लेख ), १४६.२२ ( गरुड - प्रमुख पक्षियों के विनता - पुत्र होने का उल्लेख ), १५०.२१४ ( कालनेमि के आतङ्क से देवों को संक्षोभ, विष्णु का गरुड पर आरूढ होकर देव सहायतार्थ गमन ), १७१.५० ( धर्म व विश्वेशा से उत्पन्न विश्वेदेवों में गरुड का उल्लेख ), १७८.३३ ( कालनेमि दैत्य द्वारा विष्णु - वाहन गरुड पर प्रहार का कथन ), महाभारत उद्योग १०१, भीष्म ६.१४, अनुशासन १३दाक्षिणात्य पृ.५४६९, मार्कण्डेय २.१ ( अरिष्टनेमि - पुत्र, सम्पाति - पिता ), वराह ४.२२ ( कपिल व जैगीषव्य मुनियों का अश्वशिरा राजा के समीप गमन, राजा को गरुडस्थ जनार्दन के दर्शन कराने हेतु कपिल द्वारा जनार्दन का रूप तथा जैगीषव्य द्वारा गरुड का रूप धारण करना ), १६९.२१ ( गरुड द्वारा सभी मथुरावासियों में कृष्ण रूप के दर्शन, किंकर्त्तव्यविमूढ गरुड द्वारा कृष्ण की स्तुति, कृष्ण द्वारा मथुरावासियों के रूप में स्वरूप की स्थिति का कथन ), वामन ५५.७४ ( चण्ड - मुण्ड दानवों का पीछा करती हुई चण्डमारी देवी को देखकर भयार्त गरुड के पक्षों का गिरना, देवी द्वारा पक्षों से माला बनाने का कथन ), ९०.३९( भुवर्लोक में विष्णु की गरुड नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), ९०.४२( प्लक्ष द्वीप में विष्णु की गरुडवाहन नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), वायु ३९.५६ ( श्वेतोदर नामक महाशैल पर गरुड - पुत्र सुनाभ के पुर का उल्लेख ), ४०.३ ( देवकूट नामक मर्यादा पर्वत के शिखर पर पक्षिराज गरुड के प्रथम भवन होने तथा गरुड - वंशजों के निवास का उल्लेख ), ४९.१० ( सोमक पर्वत पर देवों द्वारा स्थापित अमृत के गरुड द्वारा हरण का उल्लेख ), ६९.६६ ( विनता के दो पुत्रों में से एक ), ६९.३२८ ( गरुड की भासी, क्रौञ्ची, शुकी, धृतराष्ट्री तथा भद्रा नामक पत्नियों से असंख्य पुत्र - पौत्रों की उत्पत्ति का कथन ), ७०.११ ( ब्रह्मा द्वारा गरुड को समस्त पक्षियों का आधिपत्य प्रदान करने का उल्लेख ), ९०.३९ ( भुवर्लोक में विष्णु का गरुड नाम ), ९०.४२ ( प्लक्ष द्वीप में विष्णु का गरुडवाहन नाम ), विष्णु १.२१.१८ ( विनता के दो पुत्रों में से एक, अरुण - भ्राता ), ५.७.७८ ( कृष्ण द्वारा कालिय नाग से यमुना छोडकर समुद्र में जाने तथा गरुड से भयरहित होने का कथन ), ५.३०.६६ ( पारिजात आहरण के समय गरुड के ऐरावत के साथ युद्ध का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.२१ ( विभूति वर्णनान्तर्गत श्रीहरि के पक्षियों में गरुड होने का उल्लेख ), १.२४८.२७ ( गरुडात्मजों के नामों का कथन ), ३.४७.७ ( मन का रूप ), ३.५४ ( गरुड रूप निर्माण का कथन ), ३.१०६.३३ ( गरुड आवाहन मन्त्र ), ३.३४३ ( विष्णु द्वारा सुमुख को वर प्रदान से गरुड का रोष, विष्णु - भुजा के भार वहन में गरुड की असमर्थता से गरुड का गर्व नाश, गरुड द्वारा विष्णु की स्तुति का वर्णन ), ३.३४६ ( उपरिचर वसु - प्रोक्त गरुड स्तोत्र का कथन ), स्कन्द १.२.४५.१०९ ( गरुड व कश्यप द्वारा सह्य पर्वत पर लिङ्ग स्थापित करने का उल्लेख ), २.३.४ ( हरि वाहन बनने हेतु गरुड द्वारा तप, हरि का आविर्भाव, गरुड द्वारा हरि की स्तुति, वर प्राप्ति, गरुड - शिला के माहात्म्य का वर्णन ), ३.१.३८ (गरुड द्वारा स्व - माता विनता को कद्रू की आधीनता से मुक्त करने का उद्योग, गज - कच्छप भक्षण, कद्रू को भर्तृ परिचर्या अनर्हता का शाप, विष्णु वाहन बनना स्वीकार करने का वृत्तान्त ),३.१.३८.९१(हरि के ऊपर गरुड की तथा गरुड के ऊपर हरि की स्थिति का कथन), ४.१.५०.८० ( माता विनता की दासीत्व से मुक्ति प्रसंग में अमृत हरण के समय में निषादों के साथ विप्र का भक्षण करने से गरुड को कण्ठ दाह होने का उल्लेख ), ४.१.५०.११३ ( गरुड के विष्णु - वाहन बनने का उल्लेख ), ४.२.५८.७४ ( काशी से दिवोदास का उच्चाटन करने के लिए गरुड द्वारा बौद्ध - शिष्य विनयकीर्ति बनने का उल्लेख ), ४.२.८३.९६, ४.२.८४.१३ ( गरुड तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.१८६ (गरुड द्वारा शिवाराधना से विष्णु के वाहन बनने तथा द्विजेन्द्रत्व प्राप्त करने का कथन ), ५.३.१८६.१६ ( गरुड द्वारा चामुण्डा - स्तुति तथा अजरता, अमरता, अजेयता की प्राप्ति ), ६.८०.८ ( बालखिल्यों द्वारा इन्द्र के विरुद्ध किए गए अभिमन्त्रित होम जल के विनता द्वारा पान से गरुड की उत्पत्ति का उल्लेख ), ६.८१(गरुड द्वारा विष्णु के निकट शाण्डिली वृद्धा का उपहास, वृद्धा - शाप से पक्ष - नाश, शाण्डिली की स्तुति, शिव आराधना से सुवर्णमय पक्ष प्राप्ति का वर्णन ), ७.१.१.१०५.४८ ( ३० कल्पों में से १४ वें कल्प का नाम ), ७.१.१५६ ( गरुड द्वारा स्थापित गरुडेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), हरिवंश २.४१.४९ ( गरुड का दैत्यों से विष्णु - किरीट को छीनकर कृष्ण को अर्पण करने का कथन ), २.५५.१०२ ( गरुड द्वारा कृष्ण के वास योग्य स्थान हेतु कुशस्थली की खोज तथा उसकी उत्तमता का कथन ), २.७३.८५ ( पारिजात हरण प्रसंग में गरुड के ऐरावत के साथ युद्ध का कथन ), २.१२२.१९ ( गरुड द्वारा शोणितपुर में आहवनीय अग्नि की शान्ति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ५.५३.३३ ( आत्मज्ञान रूप गरुड के आगमन पर तृष्णा रूप काली सर्पिणी के पलायन का उल्लेख ), वा.रामायण ३.३५.२९ ( वट वृक्ष की शाखा पर बैठकर गरुड द्वारा हाथी तथा कच्छप का भक्षण, भाराधिक्य से शाखा के टूट जाने पर गरुड द्वारा एक ही पंजे से शाखा को पकडे रख कर मुनियों की जीवन रक्षा करना, द्विगुणित पराक्रम से युक्त होकर गरुड द्वारा इन्द्रभवन से अमृतकलश के हरण का वृत्तान्त ), ४.६६.४ ( बल, विक्रम व वेग में हनुमान् का गरुड से साम्य ), ६.५०.३६ ( देवों के मुख से राम - लक्ष्मण के नागपाश - बन्धन का समाचार सुनकर विनता - पुत्र गरुड का आगमन तथा नागपाश - बन्धन से मुक्त करने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२०७.२ ( कश्यप व विनता - पुत्र गरुड द्वारा गन्धमादन पर्वत पर हरि के वाहन बनने की कामना से तप, श्रीहरि द्वारा दर्शन, गरुड द्वारा हरि - स्तुति, गरुड का वाहन रूप होना, गारुडी शिला की तीर्थ रूप से प्रसिद्धि का वर्णन ), १.३४९.५१ ( कृष्ण दर्शनाकांक्षी गरुड का मथुरा में गमन, कृष्ण की स्तुति, कृष्ण द्वारा दिव्य दर्शन का कथन ), १.४६३.९ ( विनता व कश्यप - पुत्र, क्षुधित गरुड द्वारा विप्र सहित निषादों का भक्षण, कण्ठ दाह होने पर उद्वमन, पुन: गज - कच्छप भक्षण, क्षुधार्त्त रहने पर विष्णु - भुजा का भक्षण, प्रत्युपकार रूप में विष्णु के वाहन बनने का वर्णन ), १.४७०.५९ ( सौभरि मुनि के शाप भय से गरुड का यमुना ह्रद में न आने का कथन ), १.४९२.१२४ ( ब्रह्मचारिणी शाण्डिली के ब्रह्मचर्यत्व में शङ्का करने पर गरुड के पक्षों का पतन, पुन: गरुड द्वारा शाण्डिली के प्रसादन से पक्षों से युक्त होने का कथन ), २.२८.७५ ( स्वस्तिक नाग के पातालराज - मन्त्री सुमधु से प्राप्त कष्ट का कृष्ण - प्रेषित गरुड द्वारा निवारण का वर्णन ),२.१४०.४० ( प्रासाद स्वरूप निरूपणान्तर्गत गरुड नामक प्रासाद के स्वरूप का निरूपण ), ३.६.७० ( गारुड : भूलोक के सर्पाक्रान्त होने पर सर्पसत्र का आयोजन, सर्पसत्र में गारुड नामक आथर्वण विप्र के होता बनने का उल्लेख ), ३.५९.७५ ( नारद का गानबन्धु नामक उलूक से गान शिक्षार्जन, उलूक को कल्पान्तर में नारद द्वारा भगवद् - वाहन गरुड बनने का वर ), कथासरित् २.१.४८ ( सहस्रानीक - पत्नी द्वारा लाल रस से पूर्ण वापी में स्नान, गरुड वंशीय पक्षी द्वारा मांसपिण्ड समझकर रानी के हरण का उल्लेख ), २.४.१३८ ( माता विनता की दासीत्व से मुक्ति हेतु गरुड का कश्यप के समीप गमन, कश्यप द्वारा गरुड को समुद्र के गज - कच्छप खाने का निर्देश, खाते हुए कल्पवृक्ष की शाखा का टूटना, बाल्यखिल्यादि मुनियों की रक्षा हेतु गरुड द्वारा शाखा का अन्यत्र स्थापन, शाखा की पीठ पर लङ्का नगरी के निर्माण की कथा ), ४.२.१८८ ( कद्रू- विनता कथान्तर्गत गरुड द्वारा माता विनता की दासीत्व से मुक्ति ), १८.२.२७७ ( गरुडवेग : दण्डाधिकारी द्वारा गरुडवेग नाम का घोडा सुबाहु राजा को प्रदान करने का उल्लेख ), कृष्णोपनिषद २४( गरुड के भाण्डीर वट होने का उल्लेख ) । garuda
गरुडध्वज अग्नि ८५.१६( प्रतिष्ठा कला में गरुडध्वज के कारण होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१३.७९ ( कृष्ण का नाम ), मत्स्य १५०.२११, १६३.१०६ ( विष्णु का एक नाम ), वामन ९०.४ ( वाराह तीर्थ में विष्णु का गरुडध्वज नाम से वास ), वायु २४.९० ( गरुडध्वज द्वारा शिव की स्तुति ), ९६.२३३ ( वृष्णिकुलोत्पन्न विष्णु का एक नाम, पत्नी तथा सन्तति का वर्णन ), स्कन्द २.२.३०.८१( गरुडध्वज से चैतन्य की रक्षा की प्रार्थना ) । garudadhwaja
गरुडपुराण विष्णु ३.६.२३ ( गारुड : १८ महापुराणों में से एक ) ।
गरुत्मत्हृदया मत्स्य १७९.७१ ( विष्णु के अङ्गों से सृष्ट ३२ मातृकाओं में से एक, नृसिंह विग्रहधारी विष्णु के गुह्यप्रदेश से प्रकट भवमलिनी नामक मातृका की आठ अनुचरियों में से एक ) ।
गर्ग गर्ग ०.१+ ( नारद का गर्ग मुनि को संहिता - निर्माण हेतु प्रेरित करना, गर्ग द्वारा गर्ग संहिता की रचना, संहिता का माहात्म्य तथा श्रवण - विधि ), १.५.१८ ( वसुदेव - प्रेषित गर्गाचार्य का नन्द भवन में आगमन, नन्द के कहने पर गर्गाचार्य द्वारा कृष्ण व बलराम का नामकरण संस्कार ), १.५.४० ( गर्ग का वृषभानु - पुरी में गमन, वृषभानु - पुत्री राधिका का कृष्ण के साथ पाणिग्रहण का कथन ), ७.२.२० ( प्रद्युम्न के विजयाभिषेक पर गर्ग मुनि द्वारा प्रद्युम्न को कृष्ण कवच तथा यन्त्र प्रदान करने का उल्लेख ), ८.१३ ( गर्ग द्वारा बलभद्र सहस्रनाम का कथन ), ९.१०.२३ ( गर्ग मुनि - प्रणीत गर्ग संहिता की फलश्रुति का वर्णन ), देवीभागवत ०.२.४७ ( वसुदेव व देवकी द्वारा यादवों के गुरु गर्ग से पुत्र हेतु प्रार्थना, गर्ग द्वारा देवी आराधना रूप उपाय का कथन ), नारद १.९.११३ ( कलिङ्ग देशोत्पन्न गर्ग नामक विप्र द्वारा गङ्गाजल से कल्माषपाद आदि राक्षसों के उद्धार का कथन ), पद्म १.३४.१९ ( ब्रह्मा के यज्ञ में अध्वर्यु बनने का उल्लेख ), ब्रह्म १.७६.१ ( गर्ग मुनि द्वारा गोकुल में प्रच्छन्न रूप में किए गए राम व कृष्ण के नामकरण संस्कार का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१३ ( कृष्ण के नामकरण व अन्नप्राशन संस्कार हेतु वसुदेव द्वारा महामुनि गर्ग को नन्द के गृह में भेजना, गर्ग द्वारा नन्द से स्व - आगमन का प्रयोजन कथन, बालक का कृष्ण नामकरण , गर्ग द्वारा बालरूप कृष्ण की स्तुति का वर्णन ), ४.९९ ( गर्ग का वसुदेव के पास गमन तथा उन्हें कृष्ण व बलभद्र के उपनयन संस्कार हेतु परामर्श ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०७ ( ३३ आङ्गिरस मन्त्रकर्त्ता ऋषियों में से एक ), २.३.२८.३९ ( हैहय - पुरोहित गर्ग द्वारा हैहयराज को जमदग्नि की गौ के हरण रूप कर्म की गर्हितता का निरूपण ), २.३.६७.६९ ( दिवोदास - सुत प्रतर्दन के दो पुत्रों में से एक ), भविष्य ३.४.२१.१४ ( कलियुग में कण्व - पौत्र के रूप में जन्म ), ४.१४५ ( गर्ग द्वारा नक्षत्र - व्याधि से मुक्ति का उपाय पूछने पर कौशिक द्वारा नक्षत्र - होम विधि का वर्णन ), भागवत १०.८ ( यदुवंशियों के कुल पुरोहित गर्ग द्वारा कृष्ण व बलराम के नामकरण संस्कार का वर्णन ), १०.४५.२९ ( गर्ग द्वारा कराए गए यज्ञोपवीत संस्कार से कृष्ण व बलराम को द्विजत्व प्राप्ति का कथन ), १०.७४.८ ( युधिष्ठिर द्वारा राजसूय यज्ञ में आमन्त्रित वेदवादी ब्राह्मणों में गर्ग का उल्लेख ), मत्स्य २०.३ ( कौशिक ऋषि के स्वसृप, क्रोधन आदि सात पुत्रों के गर्ग महर्षि के शिष्य होने का उल्लेख ), ४९.३६ ( भुवमन्यु के ४ पुत्रों में से एक, शिबि - पिता ), १४५.१०१ ( अङ्गिरा गोत्रीय ३३ मन्त्रकर्त्ता ऋषियों में से एक ), १९१.८२ (गर्गेश्वर तीर्थ में स्नान से स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), २५२.३ ( वास्तुशास्त्र के १८ उपदेशकों में से एक ), मार्कण्डेय १६/१८.१३० ( गर्ग मुनि द्वारा राज्य - विमुख कार्त्तवीर्य अर्जुन को राज्य करने के उपदेश का वर्णन ), ७२/७५.१३ ( पुत्र के कुव्यवहार से दग्ध - हृदय ऋतवाक् मुनि का गर्ग मुनि से पुत्र के दुर्व्यवहार का कारण पूछना, गर्ग द्वारा रेवती नक्षत्र में जन्म से पुत्र की दुर्व्यवहारता का कारण निरूपित करना ), वायु ९२.६५ ( दिवोदास - सुत प्रतर्दन के दो पुत्रों में से एक),१०६.३५ ( ब्रह्मा द्वारा गया में यज्ञ सम्पादन हेतु मानस - सृष्ट ऋत्विजों में से एक ), विष्णु २.५.२६ ( गर्ग ऋषि का शेषनाग से ज्योतिष शास्त्र सीखने का उल्लेख ), ४.१९.२१ ( मन्यु -पुत्र, शिनि - पिता ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३५+ ( गर्ग मुनि द्वारा नानाविध उत्पात तथा उत्पात - शान्ति का कथन ), शिव ३.४.३६ ( नवम द्वापर में ऋषभ नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर शिव के चार शिष्यों में से एक ), ३.५.४९ ( २८वें द्वापर में लकुली नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार शिष्यों में से एक ), स्कन्द १.१.११.३४ ( समुद्र मन्थन से चन्द्रमा के प्राकट्य पर गर्ग द्वारा मुहूर्त ज्योतिष का कथन ), १.१.२४.१ ( शिव विवाह में पुरोहित बनने का उल्लेख ), ३.३.१.५५ ( गर्ग द्वारा दाशार्हराज को शिव पञ्चाक्षरीमन्त्र की दीक्षा देने का कथन ), स्कन्द ४.२.७४.१२( गर्ग द्वारा दमन विप्र को काशी के माहात्म्य का वर्णन ), ५.१.२५.३ ( गर्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ६.५७ ( गर्ग मुनि के त्रिशङ्कु के यज्ञ में होता बनने का उल्लेख ), ६.१८०.३४ ( ब्रह्मा के यज्ञ में गर्ग के ब्राह्मणाच्छंसी बनने का उल्लेख ), ७.१.८.११ ( प्रभास में सोमेश्वर द्वारा रुद्र, विप्र, दान, चन्द्र, मन्थ, अवलोकक तथा सूर्यावलोकक नामक सात गार्गेयों की सिद्धि का कथन ), ७.१.२३.९६ ( चन्द्रमा के यज्ञ में सुब्रह्मण्य बनने का उल्लेख ), ७.१.१७३ ( गर्गेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), वा.रामायण ०.२.४९ ( कलिङ्ग देशोत्पन्न गर्ग मुनि द्वारा रामायण कथा वाचन से सोमदत्त / सुदास की राक्षसत्व से मुक्ति की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१ ( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.४४७.६५( दाशार्हराज द्वारा गर्ग से गुरुमन्त्र ग्रहण कर पापमुक्त होना ), १.५०९.२५( ब्रह्मा के सोमयाग में सत्रवीक्षक ) । garga
गर्ग गृ - विज्ञाने । गर्ग विज्ञानमय कोश के ऋषि हैं। यह ज्योतिष के ज्ञाता हैं। विज्ञानमय कोश की विशेषता यही है कि उसमें ज्योतिष स्वयं प्रस्फुúटित हो जाती है । विज्ञानमय कोश तक जिसका ध्यान पुष्ट हो गया हो वह गर्ग है । - फतहसिंह
Remarks by Dr. Fatah Singh
गर्जन पद्म ३.१७.३ ( नर्मदा कूल पर गर्जन तीर्थ की स्थिति, गर्जन तीर्थ के प्रभाव से मेघ को इन्द्रजित् नाम प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य १९०.३ ( गर्जन तीर्थ के प्रभाव से मेघनाद को इन्द्रजित् नाम प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.५.८७ ( ब्रह्मकूर्च नामक महासुर के करुण आक्रन्दन से गर्जन नामक पुत्र की उत्पत्ति का उल्लेख ) । garjana
गर्त्त पद्म २.२२.२५ ( संसार रूपी गर्त्त, उपमा ), ब्रह्माण्ड १.२.११.४१ ( वसिष्ठ व ऊर्जा के सात सप्तर्षि प्रथित पुत्रों में से एक ), मार्कण्डेय १९/२१.९ ( वराह रूप धारी दैत्य का पीछा करते हुए दैत्य के साथ ऋतध्वज का भी पृथ्वी में बने महागर्त्त में पतन, पाताल में प्रवेश, मदालसा के दर्शन, दैत्य वध का वृत्तान्त ), ११३/११६.११ ( विदूरथ द्वारा पृथ्वी में महान् गर्त्त का दर्शन, सुव्रत नामक तपस्वी द्वारा कुजृम्भ दैत्य निर्मित रसातल के द्वार रूप में गर्त्त के रहस्य का कथन ), स्कन्द ६.५३.९ ( भ्रूणगर्त तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन, शिवलिङ्ग पतन से गर्त्त बनने के रहस्य का कथन ), ७.३.१+ ( उत्तङ्क द्वारा कुण्डल - चोर तक्षक के अन्वेषणार्थ भूमि के खनन से गर्त की उत्पत्ति, नन्दिनी गौ का गर्त्त में पतन, सरस्वती जल से गर्त्त पूरण पर गौ का बहि: निस्सरण, पुन: अर्बुदाचल द्वारा पूरण करने का वृत्तान्त ), योगवासिष्ठ ६.१.९१.२१ ( खात की तप से उपमा ),वा. रामायण ७.५४(नृग द्वारा पुत्र वसु को राज्य देकर विशेष प्रकार से निर्मित गर्त्त में शाप भोगने का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.५३.४० ( रैवत द्वारा सौराष्ट्र नामक भूखण्ड से पृथिवी के विवर को पूरित करने का वर्णन ), १.२२२.५१ ( कृकलास योनि को प्राप्त राजा नृग का गर्त्त में वास, कृष्ण दर्शन से कृकलास योनि से मुक्ति, गर्त्त की नृगकूप तीर्थ नाम से प्रसिद्धि ), ४.८४.१६ ( नागविक्रम राजा के सेनापति कुवर द्वारा गर्त्तमन्त्र शस्त्र से शैलवज्र सेनापति के वध का कथन ), कथासरित् १२.६.१०७(कश्मीर में मय द्वारा निर्मित भूविवर का महत्त्व ) । garta
गर्दभ गर्ग २.११.३८ ( दुर्वासा के शाप से धेनुकासुर को गर्दभ रूप की प्राप्ति, बलराम द्वारा वध ), ७.३०.५ ( कलङ्क राक्षस के गर्दभ / खर वाहन का उल्लेख ), ७.३४.२२ ( वृक दैत्य का गर्दभ / खर पर आरूढ होकर अनिरुद्ध से युद्ध का कथन ), १०.३१.१ ( सिंह दैत्य का वाहन ), देवीभागवत ४.१४.५१ ( बलि द्वारा छिपने के लिए गर्दभ रूप धारण का उल्लेख ), ११.६.२१( गर्दभ द्वारा रुद्राक्षों का भार वहन करने के कारण शिव लोक जाने की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२२ ( तालवन की रक्षार्थ धेनुकासुर की गर्दभ / खर रूप में स्थिति, बलि - पुत्र साहसिक का दुर्वासा शाप से गर्दभ बनना, कृष्ण द्वारा धेनुक गर्दभ के वध का वर्णन ), ४.८५.११६ ( क्रोधयुक्त मनुष्य के गर्दभ बनने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१८.१८ ( गर्दभ नामक असुर का सविता से युद्ध, संज्ञा विवाह का प्रसंग ), ४.८२.१५ ( गर्दभेय : प्रेत योनि को प्राप्त हुए सीरभद्र नामक वैश्य के उद्धार हेतु विपीत नामक गर्दभेय ऋषि द्वारा सुकृत द्वादशी व्रत का कथन ), ४.९४.५३ ( अनन्त भगवान् की खोज करते हुए कौण्डिन्य मुनि द्वारा वृक्ष, गौ, वृष, गर्दभ आदि से प्रश्न, अनन्त भगवान् द्वारा गर्दभ के क्रोध रूप होने का कथन ), मार्कण्डेय १५.३ ( माता - पिता का अपमान करने से गर्दभ योनि प्राप्ति का उल्लेख ), वामन ९०.८३ ( वृषाकपि व माला के पुत्र का जन्मान्तर में गर्दभ योनि में उत्पन्न होने का उल्लेख ), वायु ६७.८३ ( गर्दभाक्ष : बलि के प्रधान ४ पुत्रों में से एक ), स्कन्द ५.२.६०.३ ( मतङ्ग - पुत्र द्वारा गर्दभ के ताडन पर गर्दभी द्वारा मतङ्ग - पुत्र को जन्म के रहस्य का कथन ), ५.३.१५९.२७ ( दैवज्ञ द्वारा गर्दभ योनि प्राप्त करने का उल्लेख ), कथासरित् १०.६.१८ ( धोबी के गधे का बाघ की खाल ओढकर बाघ बनकर चरने का आख्यान ), १०.७.१८७ ( गर्दभ से गौ की भांति दुग्ध प्राप्त न होने की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.४२४.५६ ( भिक्षु - पत्नी कलहा का पति ताडन दोष से मृत्यु पश्चात् गर्दभी बनने का उल्लेख ), १.५३९.७३( द्विगर्दभ के अशुभत्व का उल्लेख ), १.५६०.७० ( आत्रेय - पुत्र हरिकेश व अग्नि - पुत्री सुतेजा के हविर्धान ऋषि के शाप से गर्दभ - गर्दभी बनने का वृत्तान्त ), १.५६१.२५ ( हिरण्यबाहु राजा का ब्राह्मणों के शाप से खर बनने का वृत्तान्त ), ३.२२५ ( गर्दभ - पालक रत्नप्रभ की साधु - सेवा से मुक्ति प्राप्ति की कथा ), कथासरित् ८.५.५४ ( गर्दभरथ : विद्याधरों के ८ महारथियों में कुमुद पर्वत के राजा गर्दभरथ वराहस्वामी का उल्लेख ), १२.३.८९, १०८(धर्म - अधर्म रूपी वृष - गर्दभ का कथन), । gardabha
गर्दभी मत्स्य १७९.१८ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट अनेक मानस मातृकाओं में से एक ), १९९.१६ ( गर्दभीमुख : कश्यप वंशज एक गोत्रकार ऋषि ), लक्ष्मीनारायण ३.१३१.९ ( महाकल्पलता नामक दान विधि के अन्तर्गत याम्य दिशा में गर्दभी - स्थित नैर्ऋतिकी स्थापना का उल्लेख ) ।
गर्भ अग्नि ८२.९ ( समय दीक्षा के अन्तर्गत गर्भाधान, गर्भ स्थिति प्रभृति संस्कारों के अर्थ का कथन ), १४२.२ ( प्रश्न ज्योतिष द्वारा गर्भस्थ जातक के लिङ्ग व शरीर अवस्था के निर्णय का कथन ), १५३ ( गर्भाधान आदि संस्कारों का कथन ), १६५.८ ( असवर्ण द्वारा स्थापित गर्भ से स्त्री के अशुद्धा होने का उल्लेख ), १६६.१० ( ४८ संस्कारों में से प्रथम संस्कार के रूप में गर्भाधान का उल्लेख ), ३६९.१९ (गर्भ की उत्पत्ति तथा गर्भस्थ जीव का वर्णन ), गरुड २.३२.११ ( गर्भ धारण विधि, गर्भ विकास का वर्णन ), नारद १.५५.४१ ( गर्भ काल में ग्रहों की स्थिति के स्त्री पर प्रभाव का कथन ), १.५५.५० ( गर्भकाल में ग्रहों की स्थिति के जातक पर प्रभाव का कथन ), १.५६.३१८ ( गर्भाधान हेतु ज्योतिष काल विचार, अन्य गर्भाधानादि संस्कार विचार ), १.६३.८८( सब नाडियों में वियत् के गर्भ रूप में विद्यमान होने का उल्लेख ), पद्म २.८.१४ ( गर्भ का २५ अङ्गुल विकास होने पर माता को प्रसव पीडा होने का उल्लेख ), पद्म २.६६.२८ ( गर्भ में जीव के विकास तथा चेष्टादि का वर्णन ), ब्रह्म २.५४ (दिति - पुत्रों के क्षय होने पर दिति का पुन: गर्भ धारण, इन्द्र का दिति गर्भ में प्रवेश, गर्भ के टुकडे करने से ४९ मरुद्गणों की उत्पत्ति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.७२.४५ (रस, शोणित आदि उत्पत्ति क्रम में शुक्र से गर्भ की उत्पत्ति का उल्लेख ), भविष्य १.३ ( गर्भाधानादि संस्कारों का वर्णन ), २.१.१७.१० ( गर्भाधान में अग्नि के मरुत् नाम का उल्लेख ), ४.४ ( गर्भ का क्रमिक विकास, गर्भस्थ जीव की पुष्टि, गर्भवास - दुःख का वर्णन ), भागवत १.८.१४ ( उत्तरा के गर्भ में परीक्षित् की कृष्ण द्वारा रक्षा का उल्लेख ), ३.३१ ( गर्भ में जीव की अवस्था, गति का वर्णन ), १०.२ ( भगवान् का देवकी गर्भ में प्रवेश, देवताओं द्वारा गर्भ की स्तुति का वर्णन ), मत्स्य ७.३७ ( गर्भिणी स्त्री हेतु नियमों का कथन ), ३९.९ ( गर्भ धारण प्रक्रिया का कथन, ययति - अष्टक संवाद ), ४८.१ ( तुर्वसु - पुत्र, गोभानु - पिता, तुर्वसु वंश ), २६३.८( प्रासाद में लिङ्ग स्थापना के संदर्भ में गर्भ के नवधा विभाजन का कथन ), २६९ ( मन्दिर में गर्भगृह आदि निर्माण की विधि का कथन ), २७५ ( हिरण्यगर्भ दान विधि का वर्णन ), महाभारत स्त्री ४, मार्कण्डेय ११.९ ( गर्भ में जीव के क्रमिक विकास तथा स्थिति का वर्णन ), लिङ्ग १.८८.४७ (जीव की गर्भवासादि गति का वर्णन ), वराह १२१.२३ ( गर्भ अप्रापक कर्मों का कथन ), वायु १४.१८ ( गर्भ पोषण का वर्णन ), ९७.४६ ( गर्भ विकास का कथन ), विष्णु ४.४.६९ ( उत्पन्न न होने के कारण मदयन्ती द्वारा अश्म से गर्भ का ताडन, गर्भोत्पत्ति, अश्म ताडन से अश्मक नाम धारण, मूलक - पिता ), विष्णुधर्मोत्तर २.५२.३७ ( गर्भ धारण से पूर्व तथा पश्चात् सेवनीय औषधि का कथन ), २.८५ ( गर्भाधानादि संस्कार का वर्णन ), २.११२ ( गर्भ संक्रान्ति का कथन ), २.११३.२( मृत्यु - पश्चात् प्रेत बनने से पूर्व आतिवाहिक गर्भ रूप होने का कथन ), २.११४ ( गर्भ में जीव के क्रमिक विकास तथा स्थिति का कथन ), शिव १.१६.९५ ( गर्भ व भर्ग में सम्बन्ध का कथन ), ५.२२.१ ( गर्भ पाक का वर्णन : गर्भ पाक की अन्न पाक से तुलना ), स्कन्द १.२.४० ( माण्टि - पत्नी चटिका के गर्भ का संसार - भय से बाहर न निकलना, माण्टि द्वारा शिव प्रसादन से गर्भस्थ बालक के बहि:निष्क्रमण का कथन ), १.२.४९.४७ (उदर में गर्भ के विकास का कथन ), १.२.५६.१७ ( गर्भेश्वर लिङ्ग की महिमा का उल्लेख ), ५.३.१५९.३१ ( गर्भ के निर्माण की क्रमिक अवस्थाओं का वर्णन ), हरिवंश १.४०.१३ ( जनमेजय द्वारा स्वयं श्रीगर्भ कृष्ण के गर्भ में आने का रहस्य पूछना ), १.४०.२५ ( अदिति द्वारा वामन रूपी गर्भ का धारण तथा गर्भावसान पर वामन द्वारा इन्द्र को दैत्यों से मुक्त करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३६.५६ ( गर्भ धारण हेतु काल का विचार ), १.७४०.१४ ( गर्भ - धारण काल तथा गर्भ विकास का वर्णन ), १.५०४.१८ ( जाबालि - सुता, व्यास - भार्या चेटिका शुकी का गर्भ धारण, गर्भस्थ शिशु का बारह वर्षों तक बाहर न आना , व्यास द्वारा गर्भ से निष्क्रमण हेतु प्रार्थना, कृष्ण नारायण के साक्ष्य में गर्भ का बाहर आना, व्यास द्वारा बालक को शुक नाम प्रदान, शुक के व्यास के साथ वार्तालाप का वर्णन ), १.५७०.६२( भगवान् के प्रात: गर्भ रूप, सायं सृष्टि रूप तथा रात्रि में प्रलय रूप होने का उल्लेख ), कथासरित् ५.३.१८७ ( शक्तिदेव की द्वितीय भार्या बिन्दुरेखा द्वारा गर्भ धारण, पहली भार्या विन्दुमती द्वारा पति को प्रतिज्ञा अनुसार गर्भ फाडने का निर्देश ), ५.३.२२५ ( देवदत्त - भार्या विद्युत्प्रभा द्वारा पेट फाडकर गर्भ को देवदत्त को अर्पित करके शाप मुक्त होने का वर्णन ), ५.३.३५९ ( शक्तिदेव द्वारा बिन्दुरेखा के पेट को फाडकर गर्भ शिशु को कण्ठ से पकडना , आकाशवाणी के अनुसार शिशु का खङ्ग बनना तथा बिन्दुरेखा के अदृश्य होने का वर्णन ), १४.४.७४ ( विद्याधरी द्वारा गर्भ का प्रसव, विद्याधरी के कथनानुसार तापस द्वारा गर्भ को चावल के साथ पकाकर खाना, तत्प्रभाव से तापस का आकाश में उडकर विद्याधरी का अनुसरण करने का कथन ) ; द्र. प्राचीनगर्भ, मरीचिगर्भ, श्रीगर्भ, षड्गर्भ, हिरण्यगर्भ, हेमगर्भ । garbha
गर्भहा मार्कण्डेय ४८/५१.३ ( दुःसह व निर्मार्ष्टि के ८ पुत्रों में से एक, गर्भहा के गर्भनाश रूप कर्म तथा कर्म दोष शमन के उपाय का कथन ) ।
गर्व स्कन्द ५.३.१८१.१६ ( गर्व से स्त्री के नष्ट होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.४४.६७( गर्व के भौत नामक बन्धन होने का उल्लेख ), कृष्णोपनिषद १४( गर्व के बकासुर होने का उल्लेख ) ।garva
गर्वि ब्रह्माण्ड ३.४.१.६० ( बारह सुधर्मा देवों में से एक ) ।
गवय ब्रह्माण्ड २.३.७.२३२ ( प्रधान वानरों में से एक ), स्कन्द ३.१.४९.३७ ( गवय वानर द्वारा रामेश्वर - स्तुति का कथन ), ५.२.४४.१५ (गवय नामक मेघ द्वारा दक्षिण दिशा में आधिपत्य प्राप्ति का उल्लेख ), वा.रामायण ४.६५.५ (गवय का ऋषभ से तादात्म्य?), ६.२६.४५ ( वानर यूथपतियों के परिचय प्रसंग में सारण द्वारा रावण को गवय वानर का परिचय देना ), ६.३०.२६ ( शार्दूल नामक गुप्तचर द्वारा रावण को देवोत्पन्न वीर वानरों का परिचय देते हुए गवय का वैवस्वत / यम - पुत्र रूप में उल्लेख ), ६.४१.४० ( अङ्गद की सहायतार्थ लङ्का के दक्षिण द्वार पर गवय की स्थिति का उल्लेख ), ६.१२८.५५ ( राम अभिषेक हेतु गवय द्वारा पश्चिम समुद्र से जल लाने का उल्लेख ) । gavaya
गवल योगवासिष्ठ ५.४५.४८+ ( हस्ती द्वारा वरण करने पर श्वपच का गवल नामक राजा होना, प्रजा को गवल के श्वपच होने का ज्ञान होने पर गवल द्वारा प्राण त्याग आदि )
गवाक्ष ब्रह्माण्ड २.३.६.१६ ( दनु - पुत्र वंशजों में से एक गवाक्ष के मनुष्यों से अवध्य होने का उल्लेख ), २.३.७.२४३ ( प्रधान वानरों में से एक ), वायु ६७.८१ ( विरोचन - पुत्र शम्भु के ६ पुत्रों में से एक ), ६८.१६ ( दनु - पुत्र गवाक्ष के मनुष्यधर्मा होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.४९.३६ ( गवाक्ष वानर द्वारा रामेश्वर - स्तुति ), वा.रामायण ६.२७.३३ ( वानर यूथपतियों के परिचय प्रसंग में सारण द्वारा रावण को गवाक्ष वानर का परिचय देना ), ६.३०.२६ ( गुप्तचर द्वारा रावण को देवोत्पन्न वीर वानरों का परिचय देते हुए गवाक्ष का वैवस्वत - पुत्र रूप में उल्लेख ), ६.४१.४० ( अङ्गद की सहायतार्थ लङ्का के दक्षिण द्वार पर गवाक्ष की स्थिति का उल्लेख ) ; द्र. उरुगवाक्ष । gavaaksha
गवामयन महाभारत अनुशासन १०६.४६( उपवास द्वारा गवामयन फल प्राप्ति का कथन ), द्र. यज्ञ
गवांव्रत मत्स्य ५८.३६ ( सरोवर निर्माण के समय पश्चिम द्वार पर स्थित सामवेदी ब्राह्मण द्वारा गाए जाने वाले सूक्तों में गवां व्रत का उल्लेख ) ।
गविजात देवीभागवत २.८.२४ ( पिता के गले में सर्प डालने पर मुनि - पुत्र गविजात द्वारा परीक्षित् को शाप प्रदान का कथन ) ।
गविष्ठ ब्रह्माण्ड २.३.६.४ ( हिरण्यकशिपु की सभा के प्रमुख दानवों में से एक ), मत्स्य १६१.७९ (हिरण्यकशिपु की सभा का एक दैत्य ), १९६.२ ( सुरूपा व अङ्गिरा के दस पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.३९ ( सिंहिका - पुत्र साल्व का परिचर, गविष्ठ द्वारा साल्व से दु:स्वप्न का कथन ) ।
गविष्ठिर ब्रह्माण्ड १.२.३२.११३ ( आत्रेय, मन्त्रकृत ऋषियों में से एक ), मत्स्य १४५.१०७ ( अत्रि वंशोत्पन्न ६ मन्त्रकर्त्ता ऋषियों में से एक ), १९७.८ ( आत्रेय वंशोत्पन्न एक ऋषि - प्रवर ) ।
गविष्णु ब्रह्माण्ड १.२.२३.५७ ( चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक ) ।
गवेषण ब्रह्माण्ड २.३.७१.११४ ( चित्रक के १२ पुत्रों में से एक ), २.३.७१.१८४ ( वसुदेव व श्रद्धा देवी - पुत्र ), मत्स्य ४५.३२ ( अक्रूर व अश्विनी के १३ पुत्रों में से एक, अनमित्र वंश ), ४६.१९ ( वसुदेव व देवकी - पुत्र, वृष्णि वंश ), ४७.२२( भूरि व भूरीन्द्रसेन - पिता ), वायु ९६.११३ ( चित्रक के अनेक पुत्रों में से एक ), ९६.१८१ ( वसुदेव व देवकी - पुत्र ) ।
गवेष्ठि वायु ६७.७६ ( विरोचन के पांच पुत्रों में से एक, शुम्भ, निशुम्भ, विष्वक्सेन - पिता ), ६८.१६ ( दनु - पुत्र गवेष्ठि के मनुष्यधर्मा होने का उल्लेख ) ।
गव्यूति ब्रह्माण्ड ३.४.२.१२६(गव्यूति मान का कथन : धनु-सहस्र*२), मार्कण्डेय ४६ / ४९.४० ( परिमाण निरूपण हेतु नियत किए गए प्रमाणों में से एक, दो सहस्र धनु में एक गव्यूति तथा चार गव्यूति में एक योजन होने का उल्लेख ), वायु १०१.२६/२.३९.१२६( २ सहस्र धनुषों की दीर्घता का गव्यूति मान ), स्कन्द ५.३.१४६.५६ ( गया में ब्रह्मशिला तीर्थ की गव्यूति मात्र स्थिति का उल्लेख ), ७.१.३१४.१ ( देवकुल के आग्नेयी दिशा में गव्यूति से संस्थित ? ऋषि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३७१.५ ( नरक के कुण्डों के गव्यूति मानों का कथन ) । gavyuuti /gavyooti/ gavyuti
गहन ब्रह्माण्ड २.३.७.२३५ ( प्रधान वानरों में से एक ) ।
गह्वर कथासरित् १०.५.३९ ( गह्वर नामक मूर्ख द्वारा लवण - भक्षण की कथा ) ।
गाग्र वायु ९९.१५९ ( वितथ - पुत्र भुवमन्यु के चार पुत्रों में से एक ) ।
गाङ्ग वायु ६९.२६ ( एक गन्धर्व का नाम ) ।
गाङ्गेय स्कन्द ६.५७ ( शन्तनु - पुत्र, शन्तनु के निर्देशानुसार शर्मिष्ठा तीर्थ में स्नान, श्राद्धादि से गाङ्गेय भीष्म की पाप से मुक्ति, गाङ्गेय द्वारा देवचतुष्टय की स्थापना का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१६५+ ( गाङ्गेयों के उद्भव, नाम, केतुमाल में वास, श्रीहरि के केतुमाल में यज्ञ हेतु आगमन से हर्ष प्राप्ति का वर्णन ), २.१९९.४४ ( गाङ्गेय पुत्रियों द्वारा श्रीहरि से तीर्थरूपता प्राप्ति की प्रार्थना, श्रीहरि द्वारा एक साथ सभी नदियों के साथ जल में स्नान, तीर्थरूपता प्राप्ति ) । gangeya
गाणपत्य ब्रह्माण्ड १.२.२७.१२३ ( त्रिकाल भस्म स्नान से गाणपत्य लोक प्राप्ति का उल्लेख ), वायु १०१.३५४ ( भवभक्त, जितेन्द्रिय तथा अमद्यपी शूद्र को गाणपत्य स्थान की प्राप्ति का उल्लेख ) ।
गाण्डीव विष्णु ५.३८.२१ ( कृष्ण के स्वर्गारोहण के पश्चात् गाण्डीव धनुष के शिथिल होने का उल्लेख - चकार सज्यं कृच्छ्राच्च तच्चाभूच्छिथिलं पुनः॥ ), महाभारत उद्योग ९९.१९ (एष गाण्डीमयश्चापो लोकसंहारसंभृतः। रक्ष्यते दैवतैर्नित्यं यतस्तद्गाण्डिवं धनुः ।।) ।
गात्र गरुड २.३०.५३/२.४०.५३( मृतक के गात्र में मन:शिला देने का उल्लेख ), विष्णु ५.३२.४ ( गात्रवान् : कृष्ण व माद्री - पुत्र ), शिव ७.१.१७.३४( ऊर्जा व वसिष्ठ के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ७.१.२२३ ( गात्रोत्सर्ग तीर्थ का माहात्म्य : बलभद्र द्वारा गात्र प्रमोचन ) ।
गाथा महाभारत वन ८५.३०(गोकर्णतीर्थ में योनिसंकर द्वारा गायत्रीपाठ से गायत्री के गाथा रूप में सिद्ध होने का कथन), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२५टीका(यक्षों द्वारा गाथा गान का उल्लेख) gatha
गाधि गरुड ३.२८.२३(मन्त्रद्युम्न का अवतार, निरुक्ति), ३.२८.५५(काशिका - पति), ब्रह्म १.८.२७ ( कुशिक की तपस्या से देवेन्द्र का ही कुशिक - पुत्र रूप में जन्म लेकर गाधि नाम से प्रसिद्ध होना, सत्यवती - पिता ), ब्रह्माण्ड २.३.६६.३५ ( कुशिक - पुत्र, पौरुकुत्सी - पति, विश्वामित्र व सत्यवती - पिता, चरु विपर्यास का प्रसंग ), भागवत ९.१५.४ ( कुशाम्बु - पुत्र, सत्यवती - पिता, गाधि पत्नी द्वारा चरु - विपर्यास का प्रसंग ), ९.१६.२८ ( गाधि - पुत्र विश्वामित्र द्वारा तपोबल से क्षत्रियत्व का त्याग कर ब्रह्मतेज प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य १४५.१११ ( गाधेय : गाधेय विश्वामित्र के कौशिक वंशोत्पन्न होने का उल्लेख ), वायु ९१.६६ ( चरु विपर्यास प्रसंग, विश्वामित्र व जमदग्नि की उत्पत्ति ), वायु ९६.८०( गाधि – पुत्र राजा द्वारा बभ्रु के क्रतु की रक्षा का उल्लेख ) विष्णु ४.७.११ ( सत्यवती - पिता, चरु विपर्यास प्रसंग, चरु भक्षण से विश्वामित्र का जन्म ), स्कन्द ६.१६५.१२ ( ऋचीक मुनि का तीर्थयात्रा प्रसंग से गाधि नामक राजा के भोजकट नामक नगर में आगमन, गाधि- सुता के दर्शन, आसक्ति तथा गाधि राजा से गाधि - सुता की याचना का वृत्तान्त ), हरिवंश १.२७.१६ ( कुशिक व पौरुकुत्सी - पुत्र, इन्द्र का अंश, सत्यवती - पिता, चरु विपर्यास का प्रसंग ), १.२७.४२ ( ऋचीक - प्रदत्त चरु के उपयोग से गाधि को विश्वामित्र नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ५.४४+ ( गाधि नामक ब्राह्मण की श्रीहरि से संसारमाया दर्शन की इच्छा, श्रीहरि द्वारा गाधि को संसार माया का दर्शन, गाधि को ज्ञान प्राप्ति का वृत्तान्त ), वा.रामायण १.३४.५ ( कुशनाभ - पुत्र, विश्वामित्र - पिता ), लक्ष्मीनारायण १.५०६.५ (श्यामकर्ण अश्वों के विनिमय से गाधि - सुता का ऋचीक से विवाह, ऋचीक द्वारा पुत्रार्थ प्रदत्त चरु विपर्यास से गाधि को विश्वामित्र तथा ऋचीक को जमदग्नि नामक पुत्रों की प्राप्ति का वृत्तान्त ) । gaadhi/gadhi
गान नारद १.५०.४३ ( गान की रक्त , पूर्ण , अलंकृत आदि १० गुण वृत्तियों का वर्णन ), १.९०.७१( मधूक द्वारा देवी पूजा से गान सिद्धि का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६१.२८ ( ७ स्वर, ३ ग्राम, २१ मूर्च्छनाओं आदि का वर्णन ), हरिवंश २.८९.६७ ( कृष्ण व यादवों के समक्ष छालिक्य गान्धर्व गान का आयोजन ), २.८९.७६ ( छालिक्य गान्धर्व गान की श्रेष्ठता, महनीयता का निरूपण ), लक्ष्मीनारायण ३.५९.८ ( नारद का गानबन्धु नामक उलूक से गान - शिक्षण का वर्णन ) । gaana
गानबन्धु लिङ्ग २.३.७ ( आकाशवाणी के अनुसार नारद मुनि का गान शिक्षा हेतु गानबन्धु नामक उलूक के पास जाना, गानबन्धु उलूक द्वारा नारद को अपना पूर्वजन्म का वृत्तान्त बतलाना, गानबन्धु से नारद का गानशिक्षा ग्रहण करने का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण ३.५९.६ ( गानबन्धु नामक उलूक से नारद द्वारा गान- शिक्षण प्राप्त करने का वर्णन ) । gaanabandhu
गानसेन भविष्य ३.४.२२.२१ ( अकबर - सभासद गानसेन / तानसेन के पूर्वजन्म में मुकुन्द - शिष्य केशव होने का उल्लेख ) ।
गान्दिनी ब्रह्माण्ड २.३.७१.१०६ ( काशिराज - पुत्री, श्वफल्क - भार्या, प्रतिदिन गौ प्रदान से गान्दिनी नाम धारण, पुत्रों के नामों का कथन ), भागवत ९.२४.१५ (श्वफल्क व गान्दिनी से अक्रूर प्रभृति १२ पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), वायु ९६.१०५ ( काशिराज - पुत्री, श्वफल्क - भार्या, अक्रूर - माता, गान्दिनी नाम धारण के हेतु का कथन ), विष्णु ४.१३.१२४ ( काशिराज - पुत्री, श्वफल्क - भार्या, अक्रूर -माता, प्रतिदिन एक एक गाय प्रदान करने से गान्दिनी नाम धारण का कथन ), हरिवंश १.३४.७ ( काशिराज - कन्या, श्वफल्क - भार्या , अक्रूर - माता, प्रतिदिन गौ - दान से गान्दिनी नाम धारण ) । gaandini/ gandini
गान्धर्व ब्रह्माण्ड १.२.१६.९ ( भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), १.२.१८.६८ ( गान्धर्वी : विष्णुपद सरोवर से नि:सृत एक नदी ), २.३.६१.२८ ( सप्त स्वर, ३ ग्राम, २१ मूर्च्छनाओं आदि गान्धर्व विद्या का वर्णन ), वायु ४७.६५ ( गान्धर्वी : विष्णुपद सरोवर से नि:सृत एक नदी ), ६९.२० ( गान्धर्वी : गन्धर्वों की ५ पुत्रियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.४१३.१०८( वेश्याओं के क्षण गान्धर्व विवाह का कथन ), कथासरित् १०.७.१५७ ( गान्धर्विक : गान्धर्विक व धनी की कथा द्वारा धनी की कृपणता का कथन ), द्र. गन्धर्वgaandharva
गान्धार ब्रह्माण्ड १.२.१८.४७ ( सिन्धु द्वारा सिंचित जनपदों में से एक ), २.३.७३.९ ( अरुद्ध - पुत्र , धर्म - पिता, गान्धार के नाम पर गान्धार देश का नामकरण, गान्धार देशोत्पन्न अश्वों की श्रेष्ठता का कथन ), भागवत ९.२३.१५ ( आरब्ध - पुत्र, धर्म - पिता, द्रुह्यु वंश ), मत्स्य ४८.७ ( शरद्वान् - पुत्र गन्धार के नाम से गान्धार जनपद की ख्याति का उल्लेख ), ११४.४१ ( भारतवर्ष के पश्चिम दिशा के जनपदों में से एक ), १२१.४६( गान्धार देश में सिन्धु नदी के प्रवहण का उल्लेख ), महाभारत कर्ण ४०.३०, वायु २१.३२ ( गन्धर्व नामक १४वें कल्प में गान्धार स्वर की उत्पत्ति का उल्लेख ), ८६.३७ ( सप्त स्वरों में से एक ), ८८.१८९ ( भरत - पुत्रों तक्ष व पुष्कर की राजधानी गान्धार देश में होने का उल्लेख ), ९९.९ ( अरुद्ध - पुत्र, धर्म - पिता, गान्धार के नाम से गान्धार देश का नामकरण, गान्धार देशज अश्वों की श्रेष्ठता का कथन ), विष्णु ४.१७.४ ( आरब्ध - पुत्र, धर्म - पिता ), स्कन्द ३.३.४.३५ ( चतुर्थ जन्म में विमर्दन राजा के गान्धार का राजा होने तथा रानी कुमुद्वती के कलिङ्गराज - तनया होने का उल्लेख ), हरिवंश १.३२.८८ ( अङ्गार - पुत्र, पूरु वंश, गान्धार के नाम से गान्धार देश की प्रसिद्धि का उल्लेख ), महाभारत कर्ण ४०.३०( गान्धार निवासियों में शौच के नष्ट होने का उल्लेख ) । gaandhaara/ gandhara
Comments on Gaandhaara
गान्धारी अग्नि ८५.१४ ( गान्धारी नाडी के अन्तर्गत समान वायु की स्थिति आदि का कथन ), २१४.४ ( प्राणों का वहन करने वाली दस प्रमुख नाडियों में से एक ), ३७२.२५( ओंकार की चतुर्थ मात्रा का नाम ), ३७३.२५( गान्धारी के ओंकार की चतुर्थ मात्रा होने का उल्लेख ), गरुड १.१२५.२( दशमी मिश्रित एकादशी व्रत से गान्धारी के १०० पुत्रों के नष्ट होने का उल्लेख ), १.२२६.२५(ओँकार की अर्द्धमात्रा का नाम?), देवीभागवत ४.२२.४० ( अंशावतार वर्णन में गान्धारी के मति का अंश होने का उल्लेख ), १२.६.४० ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१८ ( धृष्टि - भार्या, सुमित्र - माता ), भागवत १.८.३ ( स्वजनों के तर्पण हेतु गङ्गा तट पर एकत्र शोकाकुल गान्धारी प्रभृति को कृष्ण द्वारा सान्त्वना प्रदान का उल्लेख ), ११३.२९ ( सुबल - पुत्री गान्धारी द्वारा हिमालय के लिए प्रस्थित स्व - पति के अनुसरण का उल्लेख ), ९.२२.२६ ( धृतराष्ट्र व गान्धारी से दुर्योधन प्रभृति १०० पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), मत्स्य ४५.१ ( वृष्णि - भार्या, सुमित्र व मित्रनन्दन - माता ), ४७.१३ ( कृष्ण की पत्नियों में से एक ), ५०.४७ ( धृतराष्ट्र व गान्धारी से दुर्योधन प्रमुख १०० पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), लिङ्ग १.९०.४७ ( ओंकार की चतुर्थ मात्रा का नाम ), वायु ६६.७१ ( कश्यप व सुरभि - कन्या ), ९९.१७ ( वृष्णि -भार्या, सुमित्र - माता ), ९९.२४२ ( धृतराष्ट्र - पत्नी, दुर्योधन प्रभृति सौ पुत्रों की माता ), विष्णु ४.२०.३९ ( धृतराष्ट्र व गान्धारी से दुर्योधन - प्रमुख सौ पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.२५(प्रकृति के सर्व विद्याओं में गान्धारी होने का उल्लेख), स्कन्द ४.१.२९.५१ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), हरिवंश १.३४.१ ( क्रोष्टा - भार्या, अनमित्र - माता, वृष्णि वंश ) । gaandhaari/gaandhaaree/ gandhari
गायत्र भविष्य ३.३.३१.१०८ ( गायत्र के कलांश से रविदत्त की उत्पत्ति का उल्लेख, सुवेला के विवाह का वृत्तान्त ), मत्स्य ५८.३५ ( सरोवर निर्माण के समय पश्चिम द्वार पर स्थित सामगों द्वारा पठित सामवेद सूक्तों में से एक ), विष्णु १.५.५३ ( ब्रह्मा के प्रथम मुख से गायत्र, त्रिवृत्सोम आदि की उत्पत्ति का उल्लेख ) । gaayatra
गायत्री अग्नि २१५ ( गायत्री माहात्म्य, जप विधि, गायत्री मन्त्र के अक्षरों का अङ्गों में न्यास, गायत्री मन्त्र से होमादि तथा सन्ध्या विधि का वर्णन ), २१६ ( गायत्री मन्त्र के तात्पर्यार्थ का वर्णन ), ३१८.७ ( सर्वसाधनी शिव गायत्री का कथन ), ३२९ ( गायत्री छन्द में आर्षी आदि भेदों का कथन ), गरुड १.३५ ( गायत्री न्यास का निरूपण ), १.३७ ( गायत्र कल्प का निरूपण ), देवीभागवत ०.५.५९ ( देवीभागवत पुराण - कथा - विधि के अन्तर्गत गायत्री सहस्रनाम के पाठ तथा गायत्री मन्त्र से होम का निर्देश ), ७.३०.८१ ( वेदवदन तीर्थ में गायत्री देवी के वास का उल्लेख ), ७.३८.२० ( पुष्कर क्षेत्र में गायत्री देवी की स्थिति का उल्लेख ), ९.१.४० ( पञ्चधा प्रकृतियों में से एक, ब्रह्मा - प्रिया सावित्री का नाम ), ९.२६.१४ ( गायत्री जप की भिन्न - भिन्न संख्याओं के अनुसार भिन्न - भिन्न फलों का कथन ), ११.१६.७७ ( गायत्री मन्त्र अक्षर न्यास का कथन ), ११.२१ ( गायत्री पुरश्चरण विधि ), १२.१+ ( २४ वर्णों के ऋषि, छन्द, देवता, शक्ति, रूप, मुद्राएं, न्यास, कवच, हृदय तथा स्तोत्र का वर्णन ), १२.६ ( गायत्री सहस्रनाम का कथन ), १२.९.१६ ( दुर्भिक्ष की स्थिति में सब ऋषियों का मिलकर गौतम आश्रम में गमन, गौतम द्वारा गायत्री देवी की स्तुति, गायत्री द्वारा गौतम को अक्षय पात्र प्रदान करने का वर्णन ), नारद १.६.६२ ( गायत्री का गङ्गा से तादात्म्य, गायत्री के प्रसन्न होने पर गङ्गा के प्रसन्न होने का कथन ), १.२७.४४ (सन्ध्योपासन विधि के अन्तर्गत प्रात:काल गायत्री देवी के आवाहन का उल्लेख ), १.२७.५५ (प्रात:काल करणीय गायत्री देवी के ध्यान के स्वरूप का कथन ), १.७१.२२७ ( नृसिंह गायत्री का निरूपण ), १.७३.१३१( राम गायत्री का निरूपण ), पद्म १.१६.८५ ( इन्द्र द्वारा गोपकन्या को लाना, ब्रह्मा द्वारा गोपकन्या रूप गायत्री को पत्नी बनाने का उल्लेख ), १.१७.२५३ ( ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री द्वारा देवों को शाप देने पर गायत्री के उत्शाप का कथन ), १.१७.३०२ ( रुद्र द्वारा गायत्री की स्तुति, गायत्री का स्वरूप), १.३४.६६ ( सावित्री व गायत्री का परस्पर स्नेह वचनात्मक वार्तालाप ), १.३४.७५( गायत्री के ब्रह्मा के वामाङ्ग में तथा सावित्री के दक्षिणाङ्ग में स्थित होकर कार्य करने का उल्लेख ), १.४३.७३ (ब्रह्मा द्वारा रात्रि देवी को सम्बोधित किए गए अनेक नामों में से एक ), १.४६.१३७ ( गायत्री माहात्म्य, जप विधि तथा जप फल का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०९.१७( कृष्ण - रुक्मिणी विवाह में पार्वती , गायत्री प्रभृति देवियों के हास्य का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.८.५० ( ब्रह्मा के प्रथम मुख से गायत्री की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.२.९.४( ३ अम्बिकाओं में से एक ), १.२.२२.७२ ( गायत्री, त्रिष्टुप आदि सप्त छन्दों के सूर्य रथ के सप्त अश्व रूप होने का उल्लेख ), भविष्य १.१७.७८(गायत्री मन्त्र का न्यास), ३.४.१३.९( गायत्री मन्त्र का रूपान्तर/व्याख्या ), भागवत ३.१२.४५ ( ब्रह्मा की त्वचा से गायत्री छन्द की उत्पत्ति का उल्लेख ), मत्स्य ३.३२ ( ब्रह्मा के स्त्री रूप शरीरार्ध के सावित्री, गायत्री, सरस्वती, ब्रह्माणी आदि नामों से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), ४.७ ( ब्रह्मा के अङ्ग से उत्पन्न गायत्री के ब्रह्मा से सतत् सामीप्य का उल्लेख ), ४.२४( शतरूपा का गायत्री स्वरूप ), ५३.२० ( भागवत पुराण में गायत्री का आश्रय लेकर धर्म विस्तारादि का उल्लेख ), १२५.४७ ( सूर्य रथ वर्णन में गायत्री, त्रिष्टुप प्रभृति सात छन्दों का सात अश्वों के रूप में रथ वहन का उल्लेख ), १७१.२४ ( ब्रह्मा द्वारा त्रिपदा गायत्री व गायत्री से उत्पन्न चारों वेदों की रचना का उल्लेख ), २८४.१५( ब्रह्मा के समक्ष पृथ्वी के गायत्री नाम का उल्लेख ), लिङ्ग २.४८.५ (प्रचोदना के संदर्भ से २२ गायत्री भेदों का कथन ), वायु २१.४२ ( १९वें कल्प में गायत्री द्वारा प्रजापति दधीचि की कामना, पुत्र स्वरूप स्निग्ध स्वर की उत्पत्ति का उल्लेख ), २३.५( गौ रूपी रौद्र गायत्री की उत्पत्ति तथा स्वरूप का वर्णन ), २३.६५, ६९ ( श्वेत कल्प में गौ स्वरूपिणी गायत्री के श्वेतवर्णीय तथा लोहित कल्प में लोहित वर्णीय होने का उल्लेख ), ३१.४७ ( गायत्री, त्रिष्टुप् व जगती छन्दों की त्र्यम्बका नाम से ख्याति तथा सवन - उत्पादिका होने का उल्लेख ), ५०.१६५ ( गायत्री से अभिमन्त्रित जल - प्रदान से मन्देह राक्षसों के भस्म होने तथा सूर्यदेव के प्रकाशित होने का कथन ), ५१.६४ ( गायत्री आदि सात छन्दों के सूर्य रथ में सात अश्व रूप होने का उल्लेख ), ५५.४२ ( शिव से प्रसूत देवों में से एक, अमावास्या का रूप?), ६९.६७/२.८.६४ ( गायत्र प्रभृति छन्दों के विनता से प्रादुर्भाव का उल्लेख ), १०६.५८ /२.४४.५८ ( गयासुर के ऊपर रखी शिला पर अधिष्ठित देवों में से एक ), १०९.२१/२.४७.२१ ( गया में भगवान् गदाधर के गायत्री आदि स्वरूपों से विराजित होने का उल्लेख? ), ११२.२१/ २.५०.२६ ( गया के अन्तर्गत गायत्री तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), विष्णु २.८.५ ( गायत्री प्रभृति सात छन्दों के सूर्य रथ के सात अश्व होने का उल्लेख ), ४.६.८९ ( वन में छोडी गई अग्निस्थाली के स्थान पर पुरूरवा को शमीगर्भ अश्वत्थ की प्राप्ति , शमीगर्भ से अरणि निर्माण तथा गायत्री पाठ से यज्ञादि करके पुरूरवा को गान्धर्व लोक प्राप्ति का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१६५.९ ( गायत्री नाम हेतु, जप विधि तथा माहात्म्य का वर्णन ), शिव ६.१३.५७ ( विचारपूर्वक गायत्र जप का कथन ), स्कन्द ३.१.४० ( गायत्री - सरस्वती तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन, स्वदुहिता के प्रति कामुक ब्रह्मा का शिव द्वारा हनन, पुन: संजीवन, गायत्री सरस्वती तीर्थ में स्नान से मुक्ति ), ४.१.९.५० ( गायत्री मन्त्र माहात्म्य का वर्णन ), ४.२.८८.६२ ( सती के रथ में गायत्री के धू: / युग पृष्ठ बनने का उल्लेख ), ५.२.५२.१० ( गायत्री के स्वरूप का कथन, सावित्री उपनाम ), ५.३.५.२४ ( ओंकारमय पुरुष द्वारा गायत्री के सृजन आदि का कथन ), ५.३.२८.१७ (बाण के त्रिपुरनाश हेतु शिव रथ में गायत्री व सावित्री का रश्मिबन्ध में स्थित होने का उल्लेख ), ५.३.१४२.९५ ( रुक्मिणी तीर्थ में गायत्री पाठ से वेद पठन के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१९८.८९ ( वेदवदन तीर्थ में उमा की गायत्री नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.१८१.७० (गौ के अपान से विनिर्गम की कथा), ६.१९२.६४ ( क्रुद्ध सावित्री का ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन तथा गायत्री को शाप प्रदान ), ६.१९२.६७(गायत्री की पञ्चभर्तृका संज्ञा), ६.१९३ ( सावित्री द्वारा देवों को शाप दे देने पर गायत्री द्वारा वर प्रदान का वर्णन ), ६.२७८.७ ( ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री की पूर्ति हेतु शक्र द्वारा गोपकन्या का शोधन, गोपकन्या को गायत्री नाम प्रदान, गायत्री के ब्रह्मा से विवाह का कथन ), ७.१.१०७.२९ ( गायत्री मन्त्र न्यास का कथन ), ७.१.१५४ ( गायत्रीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ७.१.१६५.१२५ ( ब्रह्मा के यज्ञ में गायत्री की पत्नी पद पर प्रतिष्ठा, देवों को सावित्री के शाप का उत्शाप प्रदान करने का वर्णन ), कथासरित् १४.१.३० ( गायत्री देवी का प्रकट होकर अश्रुता के सावित्री-विषयक भ्रम को दूर करने की कथा), लक्ष्मीनारायण १.२३.१२ ( गायत्री के प्रादुर्भाव तथा गायत्री जप के माहात्म्य का निरूपण ), १.३०९.१०६ ( पुरुषोत्तम मास में द्वितीया व्रतादि के प्रभाव से सर्वहुत राजा का ब्रह्मा तथा गोऋतम्भरा नामक रानी का गायत्री बनने का कथन ), १.५०९.५१ ( ब्रह्मा के यज्ञ हेतु इन्द्र द्वारा गोपकन्या को लाना, गो उदर से निष्क्रमण के कारण गोपकन्या को द्विजन्मता प्राप्ति, गोयन्त्र - निष्क्रमण से गायत्री नाम धारण, ब्रह्मा द्वारा गायत्री से पाणिग्रहण कर यज्ञानुष्ठान का कथन ), १.५०९.६९( सावित्री के गायत्री रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त), १.५१२ ( गायत्री के सापत्न्य से क्रुद्ध सावित्री द्वारा देवों को शाप प्रदान, गायत्री द्वारा शाप का निवारण ), २.१५७.५९ ( मूर्ति में गायत्री मन्त्र तत् सवितुर् इति के न्यास का कथन ), ३.३८.१ ( ब्रह्मा के एक वत्सर का नाम ), ३.६९.३८ ( द्वादश गायत्री का कथन ), ३.११७.८० ( भण्डासुर - नाश हेतु महालक्ष्मी देवी द्वारा प्रयुक्त अस्त्रों में से एक ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(गायत्री ज्ञानरूपा, सावित्री मेधारूपा, सरस्वती प्रज्ञारूपा) । gaayatri/ gayatri/ gaayatree
गायत्री पुराणों में ब्रह्मा की पत्नी सावित्री द्वारा यज्ञ में आने में विलम्ब करने पर इन्द्र ने तक्र बेचती हुई गोपकन्या को मेध्य बनाकर उसे ब्रह्मा की पत्नी बना दिया ।
वही गायत्री है । मनोमय के स्तर पर सावित्री नहीं आ सकती । यहां गायत्री ही काम देती है । मनोमय के स्तर पर सावित्री तभी आ सकती है जब पहले अन्य देवपत्नियां भी आ जाएं। - फतहसिंह
Remarks by Dr. Fatah Singh
गायन अग्नि ३४८.६ ( गायन हेतु गं प्रयोग का उल्लेख ) ।
गार्गी वायु ६६.५१ ( श्रवण, धनिष्ठा व शतभिषा की गार्गी वीथी का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१३.६३ ( यज्ञ में याज्ञवल्क्य द्वारा गार्गी को दुग्ध की नकुल से रक्षा करने का निर्देश ) ।
गार्ग्य गणेश २.१०८.४ ( गार्ग्य द्वारा रत्नमय मन्दिर में गणेश की अर्चना के समय व्याघ्र दैत्य के विघ्न का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.६७.७७ ( वेणहोत्र - पुत्र, गर्गभूमि - पिता, काश्यप वंश ), २.३.६८.२१( गार्ग्य द्वारा जनमेजय को शाप प्रदान का उल्लेख ), भागवत ९.२१.१९ ( शिनि -पुत्र गार्ग्य के क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण वंशारम्भ का उल्लेख ), मत्स्य १९६.४८ ( एक आङ्गिरस ऋषि ), वायु २३.१४४ ( ९वें द्वापर के शिव के अवतार ऋषभ के चार पुत्रों में से एक ), २३.२२३ (२८वें द्वापर के शिव के अवतार नकुली के चार पुत्रों में से एक ), ५९.९८ (३३ आङ्गिरसों में से एक मन्त्रकृत ऋषि ), ९९.२७३ ( वेणुहोत्र - पुत्र, गर्गभूमि - पिता ), विष्णु ३.४.२५ ( संहिताकर्त्ता बाष्कल के ३ शिष्यों में से एक ), ५.२३.१ ( नि:सन्तान होने के कारण श्याल द्वारा गार्ग्य द्विज का उपहास, गार्ग्य द्वारा तप, तप से तुष्ट महादेव के वरदानस्वरूप कालयवन नामक पुत्र की प्राप्ति का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२०९.६८ ( भरत व युधाजित् की स्वपुरोहित गार्ग्य से मन्त्रणा, गार्ग्य का दूत बनकर गन्धर्वों के समीप गमन तथा संदेश कथन ), शिव ५.३४.२४ ( चतुर्थ मन्वन्तर में सप्त ऋषियों में से एक ), स्कन्द ३.२.९.४० ( गार्ग्य गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवर व उनके गुण ), हरिवंश १.२१.६ ( विश्वामित्र के पुत्रों का गार्ग्य के शिष्य बनना, पितर श्राद्ध हेतु गुरु की कपिला गौ के वध का कथन ), १.३०.९ ( इन्द्रोत जनमेजय द्वारा गार्ग्य के पुत्र का वध, गार्ग्य के शाप से जनमेजय के रथ के अदृश्य हो जाने का उल्लेख ), १.३५.१३ ( गार्ग्य शैशिरायण द्वारा मनुष्य वेषधारी गोपाली नामक अप्सरा से कालयवन की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.५७.७ ( वृष्णि व अन्धकवंशी यादवों के गुरु, साले द्वारा गार्ग्य पर नपुंसकता का मिथ्या कलङ्क, शिवाराधन से पुत्र प्राप्ति रूप वर की प्राप्ति, गोपाली नामक अप्सरा से कालयवन नामक पुत्र के जन्म का वर्णन ), वा.रामायण ७.१००.२ ( केकयराज युधाजित् के स्वगुरु महर्षि गार्ग्य द्वारा राम के समीप संदेश प्रेषण का वर्णन ) । gaargya/ gargya
गार्ग्यायन मत्स्य १९५.२३ ( एक भार्गव गोत्रकार ऋषि ) ।
गारुड मत्स्य ५३.५२ ( गरुड पुराण के नाम हेतु का कथन ), २९०.६ ( १४वें कल्प का नाम ), वायु ३९.४० ( वैकङ्क नामक पर्वत शिखर पर सुग्रीव नामक गारुडि के निवास का उल्लेख ) ।
गार्हपत्य ब्रह्म २.९१.५७( विष्णु के आहवनीय पर श्वेत, दक्षिणाग्नि पर श्याम व गार्हपत्य पर पीत वर्ण होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.११ ( पवमान अग्नि का रूप, शंस्य व शुक - पिता ), भविष्य ४.६९.३६ ( गौ के जठर में गार्हपत्य, हृदय में दक्षिणाग्नि, कण्ठ में आहवनीय अग्नि तथा तालु में सभ्य अग्नि के वास का कथन ), वायु २९.१० ( छह प्रकार की अग्नियों में से एक, शंस्य व शुक्र - पिता ), १०४.८५ ( गार्हपत्य का मुखान्तर में न्यास ), १०६.४१ ( ब्रह्मा द्वारा यज्ञ हेतु सृष्ट मानस पुरोहितों में से एक अग्निशर्मा द्वारा स्वमुख से गार्हपत्य प्रभृति पांचों अग्नियों के निर्माण का उल्लेख ), १११.५० /२.४९.६०(गया के अन्तर्गत गार्हपत्यपद में श्राद्ध करने से वाजपेय फल प्राप्ति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.३७.५६( पिता के गार्हपत्य व माता के दक्षिणाग्नि होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.३.५९ ( वर्तुलाकार गार्हपत्य में ब्रह्मा की पूजा का निर्देश ), महाभारत शान्ति १०८.७( पिता के गार्हपत्य अग्नि होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक २१.८( शरीरभृत्/जीव के गार्हपत्य व मन के आहवनीय होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.११ ( निर्मथ्य - पुत्र, शंस्य व शुक - पिता ) । gaarhapatya
गाल स्कन्द २.२.२६ ( विष्णु भक्त गाल नामक राजा के इन्द्रद्युम्न से वार्तालाप का वर्णन ) ।
गालव नारद १.२३.३६ ( एकादशी व्रत के माहात्म्य के प्रसंग में गालव नामक मुनि तथा उनके भद्रशील नामक पुत्र का वृत्तान्त : पूर्वजन्म में एकादशी व्रत के प्रभाव से भद्रशील के समस्त पाप कर्मों का क्षय ), पद्म ४.१२ ( दीननाथ राजा द्वारा गालव मुनि से पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछने पर गालव द्वारा नरमेध यज्ञ का कथन ), ब्रह्म १.५.१०९ ( महर्षि विश्वामित्र के मध्यम पुत्र का गले में रस्सी रूप बन्धन पडने के कारण गालव नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), २.२२ ( गालव मुनि के परामर्श से ब्राह्मण पुत्र सनाज्जात तथा ब्राह्मण - पत्नी मही के गौतमी गङ्गा में स्नान करने पर पाप प्रक्षालन का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.८९ ( सत्यव्रत द्वारा गालव नाम प्राप्ति की कथा ), भागवत ८.१३.१५ ( आठवें सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), मत्स्य ९.३२ ( सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), १९५.२२, १९६.३१ ( भार्गव गोत्रकार तथा प्रवर प्रवर्तक ऋषि ), मार्कण्डेय १८/२०.४३ ( गालव मुनि द्वारा शत्रुजित् - पुत्र ऋतध्वज को आकाश से पतित कुवलय नामक अश्व प्रदान करने का उल्लेख ), १९/२१ ( ऋतध्वज का गालवाश्रम में रक्षा करते हुए वराह रूप धारी पातालकेतु दैत्य को देखना, वराह का अनुसरण करते हुए पाताल में प्रवेश, दैत्य - वध का वृत्तान्त ), वामन ५८.३७ ( पातालकेतु राक्षस का सूकर रूप में गालव ऋषि के आश्रम को नष्ट करने का उद्योग, बाण से विद्ध होकर वापस जाने का कथन ), ५९.६ ( पातालकेतु के विघ्न का प्रसंग ), ६५.२२ ( यक्ष व असुर कन्याओं के साथ पुष्कर तीर्थ में स्नान करते हुए गालव ऋषि द्वारा मत्स्यों के वार्तालाप श्रवण का उल्लेख ), वायु ८८.९० ( परिवार के भरण पोषणार्थ माता द्वारा गौ के क्रय हेतु गालव का विक्रय, गालव नाम धारण के हेतु का कथन ), १००.१०( ८वें सावर्णि मन्वन्तर के एक ऋषि ), विष्णु ३.२.१७( आठवें सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), स्कन्द १.१.१८.७८( गालव द्वारा बलि से दान में चिन्तामणि की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१.३.११ ( गालव मुनि द्वारा तप, विष्णु - स्तुति, विष्णु - प्रेषित सुदर्शन चक्र द्वारा राक्षस से गालव मुनि की रक्षा, गालव द्वारा सुदर्शन - स्तुति का वर्णन ), ३.१.८.८ ( सुदर्शन व सुकर्ण नामक विद्याधर कुमारों द्वारा गालव - पुत्री कान्तिमती को बलात् ग्रहण करने की चेष्टा पर गालव द्वारा विद्याधर - कुमारों को मनुष्य व वेताल होने का शाप ), ३.१.४९.६५ ( गालव द्वारा रामेश्वर - स्तुति ), ५.२.२१.१६ (रानी विशालाक्षी द्वारा गालव ऋषि से पति से सङ्गम न होने का कारण पूछना, गालव द्वारा कुक्कुट योनि वाले कौशिक राजा के पूर्वजन्म का कथन ), ५.२.८४.३९ ( आयु राजा द्वारा गालव मुनि के उपहास से दर्दुर / मण्डूक योनि की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ६.५.७ ( गालव द्वारा त्रिशङ्कु - यज्ञ में उन्नेता बनने का उल्लेख ), ६.५६ ( साम्बादित्य पूजा से गालव को वटेश्वर नामक पुत्र प्राप्ति ), ६.१८०.३३ ( ब्रह्मा के यज्ञ में गालव के ग्रावस्तुत बनने का उल्लेख ), ६.२४३.१७ ( गालव मुनि द्वारा पैजवन शूद्र को शालिग्राम शिला पूजन के माहात्म्य का वर्णन ), ६.२७१.९८ ( गालव मुनि द्वारा स्वशिष्य को बकत्व रूप शाप - प्रदान का वृत्तान्त ), ७.१.२३ ( गालव का चन्द्रमा के यज्ञ में प्रतिहर्ता बनने का उल्लेख ), ७.१.७४.८ ( शाकल्येश्वर लिङ्ग का द्वापर में गालव द्वारा पूजित होने से गालवेश्वर नाम से उल्लेख ), हरिवंश १.१२.२४ ( विश्वामित्र - पुत्र, गले में बंधन पडने के कारण गालव नाम प्राप्ति का उल्लेख ), १.२०.१३ ( योगाचार्य गालव का ब्रह्मदत्त - सखा रूप में उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१ ( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.३९२.२१ ( गालव ऋषि के आश्रम में दैत्य द्वारा उत्पात, दैत्य - विनाश हेतु गालव द्वारा शत्रुजित् राजा के समीप गमन, कुवलयाश्व प्रदान, शत्रुजित् - पुत्र ऋतध्वज द्वारा तुरगारूढ होकर दैत्य के विनाश का वृत्तान्त ), १.४३५.२ ( गालव ऋषि की कन्या कान्तिमती के सुदर्शन नामक विद्याधर द्वारा अपहरण का प्रयास, गालव द्वारा विद्याधर को मनुष्य जन्म तथा वेतालत्व प्राप्ति रूप शाप ), १.४४१.३९ ( गालव मुनि का हरि भक्ति परायण पैजवन के गृह में गमन, हरि भक्ति से मोक्ष की सुलभता का प्रतिपादन ), १.५०९.२३( ब्रह्मा के सोमयाग में अथर्वाक ), १.५६४.९४ ( गालव द्विज द्वारा अश्व दक्षिणा स्वीकार करने से वाजिता / अश्व योनि की प्राप्ति, रेवा जल के स्पर्श से वाजिता से मुक्ति, दिव्य लोक गमन ), २.८.५७ ( गालव ऋषि के आश्रम में स्थित विप्रों को दुष्कर्म फलस्वरूप राक्षस योनि की प्राप्ति, गालव ऋषि द्वारा मोक्षोपाय का कथन ), ४.५९.५१ ( त्रिगालव कुटुम्ब के अन्तर्गत भवायन नामक ऋषि द्वारा नाट्य प्रदर्शन, नाट्य से प्रसन्न सन्तों द्वारा भवायन को वरदान प्रदान का वर्णन ), कथासरित् ५.२.२८२ ( अशोकदत्त का पूर्वजन्म में विद्याधर होना, विद्याधर द्वारा गालवाश्रम में मुनि कन्याओं का दर्शन, बन्धुओं द्वारा मनुष्य योनि में जन्म होने का शाप तथा विद्याधर गुरु से विद्या प्राप्त करके शाप से मुक्ति ) । gaalava
गाव: ब्रह्माण्ड १.२.२४.२९ ( सूर्य की उष्णता सर्जक रश्मियों का एक समूह ), वायु ५३.२२ ( सूर्य की ताप - प्रदायक किरणों का एक समूह ) ।
गावल्गणि भागवत १.१३.३१ ( धृतराष्ट्र के मन्त्री व सारथी संजय का एक नाम ) ।
गिर वायु ९६.१६५ ( बलराम - भ्राता सारण के कईं पुत्रों में से एक ) ।
गिरा स्कन्द ५.१.४३.५७ (प्रियार्थी के गिरा में निवास का निर्देश ) ।
गिरि गर्ग ६.२.४५(जरासन्ध द्वारा प्रवर्षण गिरि को जलाने की कथा), ब्रह्माण्ड १.२.७.१२( गिरि की निरुक्ति : निगीर्ण करने वाले ), १.२.१९.१३७ ( गिरियों के अपर्वा तथा पर्वतों के पर्ववान् होने का उल्लेख ), २.३.७१.१६७ ( बलराम - भ्राता सारण के कईं पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२४.१६ ( श्वफल्क व गान्दिनी के १२ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १०.२५ ( पर्वतों द्वारा पृथ्वी दोहन का कथन ), ११४.४४( प्राच्य जनपदों के रूप में अन्तर्गिरि व बहिर्गिरि का उल्लेख ), वायु ४९.१३२ ( पर्व रहित पर्वत की गिरि संज्ञा का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४२.५३( शरीर की गिरि से तुलना - स्रोतांसि यस्य सततं प्रस्रवंति गिरेरिव ), १.२.४२.१६० ( तेज, अभयदान, अद्रोह, कौशल, अचापल्य, अक्रोध, तथा प्रियवाद नामक आध्यात्मिक ७ गिरियों का उल्लेख ), ५.३.१९४.३३ ( नारायण गिरि के सन्दर्भ में गिरि की निरुक्ति का कथन – दुरितों का गिरण ) ; द्र. जठरगिरि, नडागिरि । giri
गिरि गृ - विज्ञाने । विज्ञानमय कोश में जो आत्मा की शक्ति है , वह गिरा है । अत: विज्ञानमय कोश गिरि है । इस कोश में रहने वाले इन्द्र को गिरिशन्त या गिरीश कहा जाता है । इसी गृ धातु से गुरु बना है । विज्ञानमय कोश का आत्मा ही मनुष्य का वास्तविक गुरु है । - फतहसिंह
Remarks by Dr. Fatah Singh
गिरिक ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६७ ( बलराम - भ्राता सारण के कईं पुत्रों में से एक ), वायु ९६.१६५ ( बलराम - भ्राता सारण के कईं पुत्रों में से एक ) ।
गिरिकर्णिका मत्स्य २२.३९ ( पितर श्राद्ध हेतु गिरिकर्णिका तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ) ।
गिरिका देवीभागवत २.१.१२ ( उपरिचरवसु - भार्या ), मत्स्य ५०.२६ ( चैद्योपरिचर वसु व गिरिका से बृहद्रथ आदि सात पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), वायु ९९.२२१ ( विद्योपरिचर वसु - पत्नी, बृहद्रथ आदि की माता ) । girikaa
गिरिकेतु पद्म ६.१२.१७ ( जालन्धर - सेनानी, पुष्पदन्त से युद्ध का उल्लेख ) ।
गिरिक्ष वायु ९६.११० ( श्वफल्क व गान्दिनी के १२ पुत्रों में से एक ) ।
गिरिक्षित लक्ष्मीनारायण १.३१३.१३ ( गिरिक्षित व उसकी पत्नी अद्रिद्युति का देवद्रव्य की चोरी से सर्वस्व नाश, अधिकमास के द्वितीय पक्ष की षष्ठी व्रत के प्रभाव से जयन्त – जयन्ती पद प्राप्ति का निरूपण ) ।
गिरिग्राम योगवासिष्ठ ३.२८ ( गिरिग्राम की शोभा का वर्णन ) ।
गिर्यङ्गुष्ठ लक्ष्मीनारायण २.५.३५ ( गिर्यङ्गुष्ठ प्रभृति दैत्यों द्वारा छद्मरूप धारण कर बालप्रभु को मारने के उद्योग का वृत्तान्त ) ।
गिरिजा ब्रह्माण्ड ३.४.३८.७ ( गिरिजा मन्त्रों की आपेक्षिक श्रेष्ठता ), भागवत १.१५.१२ ( पार्वती का एक नाम ), स्कन्द २.७.१९.२०( गिरिजा के इन्द्र से श्रेष्ठ व शम्भु से अवर होने का उल्लेख ), ४.२.७२.५७ ( कवच में गिरिजा द्वारा नासा की रक्षा की प्रार्थना ) । girijaa
गिरिप्रजा वायु ९९.९३ ( गिरिप्रजा नामक स्थान पर कक्षीवान् द्वारा तप तथा ब्राह्मणत्व प्राप्ति का उल्लेख ) ।
गिरिभद्रा मार्कण्डेय ७३/७६.२८ ( अनमित्र व गिरिभद्रा से उत्पन्न पुत्र आनन्द के चाक्षुष मनु बनने का वृत्तान्त) ।
गिरिभानु ब्रह्मवैवर्त्त ४.१३.३८ ( गर्ग मुनि द्वारा यशोदा - पिता गिरिभानु की सूर्य से उपमा ) ।
गिरिभेदी वामन ५८.६० ( गिरिभेदी गण द्वारा तलाघात से ही असुरों को मारने का उल्लेख ) ।
गिरिव्रज गर्ग १०.२६.२९ ( गिरिव्रजपुर के राजा सहदेव द्वारा अनिरुद्ध की शरण ग्रहण का उल्लेख ), मत्स्य २७१.२० ( सहदेव - पुत्र सोमाधि के गिरिव्रज में ५८ वर्षों तक राज्य करने का उल्लेख ), २७२.६ (नन्दिवर्धन के पश्चात् शिशुनाग के गिरिव्रज में आश्रय लेने का उल्लेख ), वामन ९०.२६ ( गिरिव्रज में विष्णु का पशुपति नाम ), वायु ९९.२९६ ( मागधवंशीय सहदेव - पुत्र सोमाधि द्वारा गिरिव्रज में शासन करने का उल्लेख ) । girivraja
गिरिश ब्रह्माण्ड १.२.२७.६३ ( गिरीश : शिव का एक नाम ), वायु ६९.२८९ ( ब्रह्मा द्वारा गिरिश / शिव को पिशाच - अधिपति बनाने का उल्लेख ), शिव ३.४.३६ ( नवम द्वापर में शिव के अवतार रूप ऋषभ के ४ शिष्यों में से एक ), स्कन्द १.२.१३.१७७( शतरुद्रिय प्रसंग में मनुओं द्वारा अन्नज लिङ्ग की गिरीश नाम से पूजा का उल्लेख ) ।
गिरिशर्मा भविष्य ३.४.११.१२ ( शेष का अंश, शंकराचार्य - शिष्य ) ।
गीत मत्स्य ७.१४( मदनद्वादशी व्रत में गीतवाद्यादि के आयोजन का उल्लेख ), ६१.२३ ( तपोरत विष्णु के अप्सरादि - कृत गीत, वाद्यादि से अप्रभावित रहने का उल्लेख ), ८२.३० ( हरि के समक्ष नित्य भक्तिपूर्वक गीत वाद्यादि का आयोजन करने का निर्देश ), १०५.६ ( स्वर्गगत व्यक्ति के गीत वाद्यादि के घोष द्वारा नींद से उत्थित होने का उल्लेख ), वायु ५४.६ ( भगवद् प्रीत्यर्थ किया जाने वाला संगीत ), ६९.३७ ( किन्नरों के नृत्य - गीत निपुण होने का उल्लेख ), हरिवंश २.९३.२४ ( प्रद्युम्न आदि द्वारा गङ्गावतरण नामक गीत के गान से असुरों को संतोष प्रदान करने का उल्लेख ) ; द्र. गायन geeta
गीतयोगिनी ब्रह्माण्ड ३.४.१७.४८ ( ललिता देवी का एक नाम ) ।
गीता अग्नि ३८१( गीता सार का वर्णन ), ३८२ ( यम गीता : यम द्वारा नचिकेता को उपदेश ), कूर्म २.१+ ( ईश्वर गीता का वर्णन ), २.१२+ ( व्यास गीता का वर्णन ), गणेश २.१३७.५७ ( गणेश द्वारा राजा वरेण्य को गणेश गीता का उपदेश , गीता का आरम्भ ), गरुड १.२३९ ( ब्रह्म गीता - सार का वर्णन ), पद्म ६.१७५+ ( गीता के अध्यायों की शरीर के अङ्गों से उपमा, गीता अध्यायों के माहात्म्य का वर्णन ), भविष्य ३.४.२३.४० ( गीता के अठारह अध्यायों तथा सप्तशती के चरित्रों से पवित्र पिण्ड के त्रिशताब्द स्थित रहने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति १७७, १७८, २९०, २९९, आश्वमेधिक १३, १६, २०, वराह ५१ ( अगस्त्य गीता के अन्तर्गत परोक्ष ज्ञान द्वारा मोक्ष धर्म का निरूपण ), ७४+ ( रुद्रगीता के अन्तर्गत भुवन कोश का वर्णन ), विष्णु ३.७ ( यम गीता का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.५२+ ( परशुराम के प्रश्न के उत्तर में शिव प्रोक्त शङ्कर गीता का वर्णन ), ३.२२६+ ( मुनियों के अनुरोध पर हंस रूपी नारायण द्वारा हंस गीता रूप में ज्ञानोपदेश का वर्णन ), स्कन्द २.४.२.४९ ( कार्तिक मास में गीता पाठ से पाप मुक्ति का कथन ), २.४.२.४९ टीका (गीता के तृतीय अध्याय के माहात्म्य के प्रसंग में जड ब्राह्मण की मुक्ति की कथा ), २.४.६.१९ ( कार्तिक में गीता पाठ का निर्देश ), ५.३.११.४६ ( नन्दिगीता का वर्णन ), योगवासिष्ठ ५.८ ( सिद्ध गीता का वर्णन ), ६.२.३९+ ( वसिष्ठ गीता का वर्णन ), ६.२.१७३+ ( ब्रह्मगीता का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२०.१५ ( कुमारी रूपी महागीता की हरि से उत्पत्ति, माहात्म्य का वर्णन ), २.९२+ ( वासुदेव प्रोक्त गीता के अन्तर्गत आत्मा, जीव, मुक्ति, संसार, संसार - निमित्तक, मुक्ति साधन तथा विभूति निरूपण का वर्णन ), २.२४९+ ( लोमश गीता के अन्तर्गत अश्वपाटल नृपति द्वारा विविध प्रश्न, लोमश ऋषि द्वारा प्रदत्त उत्तरों का वर्णन ), ३.४०+ ( वधू गीता के अन्तर्गत स्त्रियों हेतु श्रीकृष्ण नारायण उपदिष्ट गृह - धर्म का निरूपण ), ४.९+ ( बालयोगिनी गीता के अन्तर्गत पुत्री रूपा बालयोगिनी द्वारा माता रूपा सुरेश्वरी को ब्रह्मभाव, भगवत्प्राप्ति, दास्य से नारायणी स्वरूपता प्राप्ति आदि का निरूपण ), ४.८६+ ( गृह गीता के अन्तर्गत कृष्ण नारायण द्वारा कर्मपरायण तथा कामधर्मपरायण गृहस्थों के भी कृष्णाज्ञा परायण होकर परम पद प्राप्ति का निरूपण ) ; द्र. ब्रह्मगीता, वसिष्ठगीता, सिद्धगीता । geetaa/gita
गीतिरथेन्द्र ब्रह्माण्ड ३.४.१९.७७ ( ललिता देवी के गीतिरथेन्द्र के पर्वों पर आश्रित सेविकाओं के नामों का कथन ) ।
गुग्गुल भविष्य १.५७.२०( विघ्नपति हेतु गुग्गुल बलि का उल्लेख - गुग्गुलं विघ्नपतये विश्वेभ्यो देयमोदनम् । ऋषिभ्यो ब्रह्मवृक्षं तु नागेभ्यो विषमुत्तमम् । । ), शिव ७.१.३३.४३ ( तत्पुरुष शिव हेतु हरिताल व गुग्गुल देने का निर्देश - पौरुषे गुग्गुलं सव्ये सौम्ये सौगंधिकं मुखे ॥ ईशाने ऽपि ह्युशीरादि देयाद्धूपं विशेषतः ॥ ), स्कन्द ६.२५२.३५ ( चातुर्मास में पिशिताशनों/पिशाचों द्वारा गुग्गुल वृक्ष के वरण का उल्लेख - विश्वेभिश्च मधूकश्च गुग्गुलः पिशिताशनैः ॥सूर्येणार्कः पवित्रेण सोमे नाथ त्रिपत्रकः ॥ ), योव १.१८.२५( देह गृह में गुल्फ गुग्गुल का उल्लेख - गुल्फगुग्गुलुविश्रान्तजानूर्ध्वस्तम्भमस्तकम् । दीघदोर्दारुसुदृढं नेष्टं देहगृहं मम ।। ) । guggula
गुञ्जा गरुड २.३०.५३/२.४०.५३(पुत्तलिका के स्तनों में गुञ्जा रखने का निर्देश)
गुटिका अग्नि १४०.११ ( निर्दिष्ट औषधियों से निर्मित गुटिका / गोली के सेवन से वशीकरण तथा उपचार का कथन ), भविष्य ३.२.१४.८ ( चामुण्डा बीज संयुक्त महामन्त्र की गुटिका के प्रभाव से सुदेव नामक विप्र के कन्या रूप तथा मूलदेव विप्र के वृद्ध रूप धारण करने का उल्लेख ) । gutikaa
गुड पद्म १.२०.५६ ( शिव व्रत के अन्तर्गत चातुर्मास्य निवृत्ति पर घी व गुड युक्त घट दान का निर्देश ), १.२१.६६ ( गुडधेनु आदि दस धेनुओं के दान, विधि तथा महत्त्व का कथन ), भविष्य ४.१९७ ( गुडाचल दान विधि का वर्णन, मरुत्त - पत्नी सुलभा की कथा ), मत्स्य ८१.२७ ( विशोक द्वादशी व्रत में गुड - धेनु सहित शय्या दान का उल्लेख ), ८२ ( गुड धेनु दान विधि व माहात्म्य का वर्णन ), ८३.५ ( दस पर्वत दानों में गुड पर्वत दान का उल्लेख ), ८५ ( गुड पर्वत दान की विधि व माहात्म्य का कथन ), शिव १.१५.४९ ( गुड दान से मधुराहार प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१३.१६७( शतरुद्रिय प्रसंग में काम द्वारा रतिद नाम से गुडलिङ्ग की पूजा का उल्लेख ), ५.१.८.६९ ( अप्सर कुण्ड तीर्थ में स्वयं को गुड से तोलने पर अङ्गों में पूर्णता प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.१४.२९ ( इक्षु समुद्र हेतु विप्र को गुड दान का उल्लेख ), ५.३.९२.२२ ( महिषी दान प्रसंग में आग्नेय दिशा में गुड पर्वत बनाने का उल्लेख ), ६.२७१.४३२( गुड - निर्मित गन्धमादन पर्वत दान से उलूक की मुक्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.१३२.३७ ( रत्नधेनु महादान विधि के अन्तर्गत गुड की गोमय रूपता का उल्लेख ) । guda
गुडक स्कन्द ७.१.८.९( सात कुत्सितों में से एक गुडकों को सोमनाथ लिङ्ग द्वारा सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख - पुराक्रमा ग्रहा मुण्डा गुडकाश्च सहेतुकाः ॥ विमला दंडिकाश्चैव सप्तैते कुत्सिकाः स्मृताः ॥ ) ।
गुडाकेश भागवत १.१७.३१ ( अर्जुन का एक नाम - न ते गुडाकेशयशोधराणां बद्धाञ्जलेर्वै भयमस्ति किञ्चित् । ), वराह १२९.२६ ( गुडाकेश नामक असुर का भगवत्कृपा से ताम्र धातु में रूपान्तरित होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५७५.८६ ( गुडाकेश नामक असुर की प्रार्थना पर श्रीहरि द्वारा चक्र से गुडाकेश का वध, वसा, असृक् आदि की ताम्र धातु में परिणति का कथन - मम चक्रहतस्यैतद्वसामांसादिकं च यत् । ताम्रं नाम भवेद् देव पवित्रीकरणं शुभम् ।। ), २.१७९.७३ ( गुडाकेशी नगरी के राजा हंकार द्वारा बालकृष्ण के स्वागत का वर्णन - गुडाकेशीं राजधानीं हंकारराजपालिताम् ।। ) । gudaakesha
गुण अग्नि ८८.४७( आत्मा के सर्वज्ञ, परितृप्त, अनादिबोध स्वतन्त्र, अलुप्तशक्ति, अनन्तशक्ति नामक ६ गुण ), १६६.१६ ( दया, क्षमा आदि आठ आत्म गुणों से युक्त होने पर परमधाम प्राप्ति का उल्लेख ), गर्ग ५.१८.८ ( रज तथा तमोगुण वृत्ति रूपा गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया का कथन ), देवीभागवत ३.८ ( सात्त्विक आदि गुणों के स्वरूप, स्थानादि का निरूपण ), नारद १.४४.५० ( प्राणियों में वर्तमान सत्त्व, रज तथा तमो गुणों के आश्रित भावों का कथन ), पद्म ५.१०८.४ ( भस्मोत्पत्ति प्रसंग में गुणत्रय का वर्णन ), भविष्य ३.४.१२.४०(पिनाकी धनुष में शेष के गुण बनने का उल्लेख), ३.४.२५.३०( ब्रह्माण्ड के सद्गुणों से चित्त रूपी स्वायम्भुव मनु की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ७.१.८( सत्त्व आदि ३ गुणों से ऋषियों आदि की वृद्धि का कथन ), ११.२०.२६, ११.२१.२ ( गुण की परिभाषा : अपने - अपने अधिकार में निष्ठा ? ), ११.२१.१९ ( विषयों में गुणों का आरोप करने से वस्तु के प्रति आसक्ति उत्पन्न होने का कथन ), ११.२४.२६( प्रलय काल में महान् के अपने गुणों में लीन होने का उल्लेख ), ११.२५ ( तीनों गुणों की वृत्तियों का निरूपण ), १२.४.१८( प्रलय काल में सत्त्वादि गुणों द्वारा महान् को ग्रसने का उल्लेख ), मत्स्य १४५.४२ ( सत्य, तप, यज्ञ, दया, शम आदि गुणों के लक्षणों का कथन ), महाभारत शान्ति २१२, २४७, २८०.३९, ३०१, ३१३, ३१४, ३२०, आश्वमेधिक ३७+, वायु २०.२( निर्गुणा : ओम् की ३ मात्राओं में से तीसरी ), १०२.१०५ ( अव्यक्तादि का ज्ञान होने पर प्राणी के गुणशरीर / गुणों के परिणामों से मुक्त होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४६.५७ ( प्रकृति में त्रिगुणों का वर्णन ), महाभारत शान्ति ३०५( गुणों से युक्त प्रकृति व पुरुष के संयोग से ऊपर उठकर निर्गुण, अलिङ्गी परम पुरुष का वर्णन ), ३०७.१५( गुण जाल को अव्यक्त आत्मा में लीन करने पर पञ्चविंश पुरुष के परमात्मा में लीन होने का कथन ), ३१५( ज्ञ पुरुष को अज्ञ प्रकृति के गुणों से पृथक् करने का निर्देश ) । guna
गुण - गणेश १.७.३१ ( गुणवर्धन विप्र का कामन्द नामक चोर द्वारा धर्षण, गुणवर्धन द्वारा चोर को शिक्षा का प्रयास, चोर द्वारा गुणवर्धन का वध ), भविष्य ३.२.८ ( राजा गुणाधिप व चिरंदेव की कथा में चिरंदेव के सत्य, धर्म की श्रेष्ठता का कथन ), ३.२.१० ( मन्त्री निर्भयानन्द द्वारा जैनधर्म की प्रशंसा, गुणशेखर राजा द्वारा जैनधर्म का ग्रहण ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४३.३ ( मातलि - कन्या गुणकाशी हेतु नागपुत्र सुमुख का वर रूप में चयन ), कथासरित् ३.४.७४ ( गुणवर्मा द्वारा स्वकन्या तेजस्वती को आदित्यसेन राजा को प्रदान करना ), ८.६.७ ( महासेन - मित्र गुणशर्मा ब्राह्मण द्वारा धैर्य धारण कर पूर्ण सफलता तथा सर्वोच्च राज्यलक्ष्मी को प्राप्त करने का वर्णन ), १८.४.१०५ ( राजा गुणसागर द्वारा स्वकन्या गुणवती को पाणिग्रहण हेतु विक्रमादित्य के पास प्रेषित करना ) ।
गुणनिधि देवीभागवत ११.६.४१ ( गिरिनाथ द्विज - पुत्र, गुणनिधि द्वारा गुरु सुधिषणा की हत्या, गुरुपत्नी मुक्तावली से विहार, रुद्राक्ष प्रभाव से सद्गति ), शिव २.१.१७ ( यज्ञदत्त - पुत्र गुणनिधि के दुश्चरित्र का वर्णन ), २.१.१८ ( शिवगणों द्वारा गुणनिधि की यमदूतों से रक्षा, अगले जन्मों में दम व कुबेर बनना, किंचिन्मात्र शिवभक्ति से सद्गति प्राप्ति का वर्णन ), स्कन्द ४.१.१३ ( यज्ञदत्त - पुत्र, दुष्ट चरित्र, दीपदान से जन्मान्तर में कलिङ्गराज व कुबेर बनने का वृत्तान्त ) । gunanidhi
गुणवती पद्म ६.८८.३७, ६.८९ ( देवशर्मा - पुत्री, चन्द्रशर्मा - भार्या, कार्तिक सेवन से जन्मान्तर में सत्याभामा बनने का वृत्तान्त ), स्कन्द २.४.१३.६ ( देवशर्मा - सुता, चन्द्र - भार्या, कार्तिक व्रत प्रभाव से गुणवती का कृष्ण - भार्या सत्यभामा बनना ), हरिवंश २.९४.५० ( सुनाभ - पुत्री, साम्ब से विवाह का उल्लेख ), कथासरित् १८.४.१०६ ( राजा गुणसागर द्वारा स्वकन्या गुणवती को पाणिग्रहण हेतु विक्रमादित्य के पास भेजना ) ।
गुणाकर गर्ग ७.२८.२ ( उत्तरकुरु - अधिपति, वीरधन्वा - पिता, गुणाकर द्वारा अश्वमेध अनुष्ठान तथा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान का वृत्तान्त ), पद्म ७.५.५८ ( प्लक्ष द्वीपान्तर्गत संज्ञापुरी - अधिपति, सुलोचना - पिता ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१८१ ( श्वेता के दस वीर वानर पुत्रों में से एक ), भविष्य ३.२.१७.३ (देवशर्मा - पुत्र, व्यसनी, यक्षिणी प्राप्ति के लिए मन्त्र जप, असफलता, वेताल के पूछने पर राजा द्वारा असफलता के हेतु का कथन ), कथासरित् १२.२.१९ ( मृगाङ्कदत्त के दस सचिवों में से एक ), १२.५.८ ( भिल्ल राजा के सेनापति द्वारा भगवती की बलि हेतु गुणाकर को लाना, मृगाङ्कदत्त द्वारा स्व सचिव गुणाकर को पहचानना, गुणाकर द्वारा स्ववृत्तान्त का वर्णन ) । gunaakara
गुणाढ्य कथासरित् १.१.६५ ( माल्यवान् नामक गण के सुप्रतिष्ठित नगर में गुणाढ्य नाम से उत्पन्न होने का उल्लेख ), १.५.१२९ ( माल्यवान् नामक गण के पार्वती - शाप से गुणाढ्य नाम से मानव योनि में उत्पन्न होने का उल्लेख ), १.६.७ ( काणभूति की प्रार्थना पर गुणाढ्य द्वारा स्वजीवन वृत्तान्त का कथन ),१.८ ( गुणाढ्य द्वारा पैशाची भाषा में बृहत्कथा का लेखन, राजा सातवाहन द्वारा बृहत्कथा के तिरस्कृत होने पर गुणाढ्य द्वारा बृहत्कथा के प्रथम ६ भागों का अग्नि में अर्पण, अन्तिम ७वें भाग का सातवाहन की प्रार्थना पर सातवाहन को समर्पण का वर्णन ) । gunaadhya
गुणेश गणेश २.८२.२५ ( सिन्धु असुर के वध हेतु पार्वती - पुत्र, षड्भुज गणेश का नाम ), २.९८.३६ ( गुणेश द्वारा मयूर को स्ववाहन बनाने का वृत्तान्त ) ।
गुण्डिका ब्रह्म १.६३ ( गुण्डिका यात्रा के माहात्म्य का निरूपण ) ।
गुण्डिचा नारद २.६१.४२ ( गुण्डिचा - मण्डप के लिए प्रस्थित कृष्ण, बलराम व सुभद्रा के दर्शन से वैकुण्ठ प्राप्ति का उल्लेख ) । gundichaa
गुदा स्कन्द ५.३.२१८.२४ ( जमदग्नि ऋषि की धेनु की गुदा से मागधों के प्रादुर्भाव का उल्लेख ), ६.२६२.५८(गुदा में राहु की स्थिति का उल्लेख), महाभारत वन २१३.१३(देह में गुदा के लक्षणों का कथन) । gudaa
गुप्त स्कन्द ७.१.३५४ ( गुप्तेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : सोम द्वारा क्षय से मुक्ति हेतु गुप्त रूप में तप ), लक्ष्मीनारायण ३.९२.८८ ( मार्जारी के गुप्तता धर्म का उल्लेख ) ; द्र. चन्द्रगुप्त, चित्रगुप्त, धर्मगुप्त, सिन्धुगुप्त, हर्षगुप्त, हिरण्यगुप्त । gupta
गुफा स्कन्द ७.१.२५३ ( गुफेश्वर लिङ्ग के दर्शन से कोटि हत्या से मुक्ति का उल्लेख ), ७.१.२६४ ( नन्दिनी गुफा के दर्शन से पापमुक्ति तथा चान्द्रायण फल प्राप्ति का उल्लेख ) ।
गुरु कूर्म २.१२.३८ ( गुरु वर्ग का कथन, गुरु वर्ग के मध्य में भी पांच गुरुओं के विशेष रूप से पूजनीय होने का कथन, गुरु - महिमा ), गरुड २.२.६२(गुरुतल्पग द्वारा तृण गुल्म लता योनि प्राप्ति का उल्लेख), २.२.६३(गुरु तल्पग के दुश्चर्मा होने का उल्लेख), ३.१.४१(वायु के गुरुओं में सर्वश्रेष्ठ होने का उल्लेख), नारद १.९.८५ ( सोमपाद ब्रह्मराक्षस व कल्माषपाद संवाद में ब्रह्मराक्षस द्वारा गुरुओं के प्रकार तथा पुराणवक्ता के श्रेष्ठतम गुरु होने का कथन ), २.२८.६३ ( गुरु -शिष्य के वधू - वर रूप होने का कारण ), पद्म २.८५.८ ( गुरु के माहात्म्य तथा गुरु की तीर्थरूपता का कथन ), २.८५+ ( गुरु माहात्म्यान्तर्गत च्यवन चरित्र तथा कुञ्जल शुक के प्रबोधन का वर्णन ), ४.११ ( गुरुवार व्रत माहात्म्य के अन्तर्गत भद्रश्रवा राजा की श्यामला नामक कन्या का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४४.६३ ( गुरु महिमा का वर्णन ), ४.५९.१३९ ( शची - कृत गुरु स्तोत्र ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.११४ ( भौत्य मनु के ९ पुत्रों में से एक ), ३.४.८.४( महागुरु की परिभाषा : ब्रह्मोपदेश से लेकर वेदान्त तक की शिक्षा देने वाला ), भविष्य २.१.६ ( माता, पिता, भ्राता आदि सम्बन्धियों की गुरु रूप में महिमा का वर्णन), मत्स्य २५.५७ ( गुरु शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या प्राप्त कर कच का उदर से बाहर आकर गुरु को जीवित करने का प्रसंग ), २६.७ ( देवयानी का कच से पाणिग्रहण का अनुरोध, गुरु - पुत्री होने के कारण कच की अस्वीकृति का वृत्तान्त ), ९३.१४ ( बृहस्पति का नाम ), २११.२६ ( गुरु के ब्रह्मा का रूप तथा आहवनीय अग्नि होने का उल्लेख ), लिङ्ग २.२०.१९ ( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति हेतु गुरु के माहात्म्य का कथन ), वराह ९९.१७ ( संसार - सागर से पार होने के लिए गुरु के प्रसादन का उल्लेख ), वामन ९०.३६ ( महातल में विष्णु का गुरु नाम से वास ), वायु ११०.५१ ( गुरु के वंश में मृत्यु को प्राप्त हुए अज्ञात व्यक्तियों को प्रदत्त पिण्ड के अक्षय तृप्तिकारक होने का प्रार्थना ), विष्णु ३.९.१ ( ब्रह्मचर्याश्रम में गुरु गृह में वास तथा गुरु आज्ञा पालन का निर्देश ), ५.२१.२४ ( सान्दीपनि गुरु द्वारा कृष्ण - बलराम से गुरुदक्षिणा के रूप में अपने मृत पुत्र की याचना , कृष्ण - बलराम द्वारा गुरु पुत्र - प्रदान करना ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२५६ ( गुरु - सेवा की प्रशंसा ), शिव ६.१८ ( पतियों के गुरुत्व का कारण , शिष्यकरण विधि का वर्णन ), ७.२.१५.२० ( गुरु के माहात्म्य का वर्णन ), ७.२.१५.४४( गुरु के वरण व त्याग हेतु अपेक्षित लक्षण ), स्कन्द १.२.१३.१४९ ( गुरु द्वारा पुष्पराग लिङ्ग का पूजन , शतरुद्रिय प्रसंग ), २.५.१६.२३ ( गुरु के लक्षणों का वर्णन ), २.७.१९.२०( गुरु की सूर्य व प्राण के बीच स्थिति, प्राण से श्रेष्ठ, सूर्य से अवर), ४.१.३६.७६ ( गुरु सेवा से स्व लोक पर विजय प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१५९.८ ( गुरु के आत्मवानों का शास्ता होने का उल्लेख ), ५.३.१५९.१३ ( गुरुतल्प से दुश्चर्मा होने का उल्लेख ), ५.३.१५९.२१ ( गुरुदार -अभिलाषी के चिरकाल तक कृकलास बनने का उल्लेख ), ६.२५२.३६( चातुर्मास में बृहस्पति की अश्वत्थ में स्थिति का उल्लेख ), ७.१.९१.६ ( गुरु नामक ऋषि द्वारा त्र्यम्बक मन्त्र जप से शिव की पूजा तथा दिव्य ऐश्वर्य की प्राप्ति ), महाभारत शान्ति १०८, आश्वमेधिक २६.२( केवल हृदय में स्थित गुरु के ही गुरु होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१९७ ( गुरु पूजा के माहात्म्यादि का निरूपण ), १.२०४.१ ( भाल में गुरु व ब्रह्मरन्ध्र में श्रीहरि के ध्यान का निर्देश ), १.२८३.३६ ( माता के गुरुओं में अनन्यतम होने का उल्लेख ), २.२४०.१२ ( अनेक प्रकार के गुरुओं में देहयात्रा - गुरु, ज्ञानप्रदाता गुरु तथा साक्षात् हरि रूप श्रेष्ठतम गुरु का वर्णन ), ३.३५.४९ ( ४६ वें वत्सर में महर्षियों को ब्रह्मविद्यादि प्रदानार्थ श्रीहरि का सुविद्याश्री सहित गुरु नारायण रूप में प्राकट्य ), ३.४९.५३ ( गुरु रूप तीर्थ का माहात्म्य ; गुरु व गुर्वी के अङ्गों में नारायण व लक्ष्मी का वास ), ३.४९.५८ ( गुरु की निरुक्ति : ग - अन्धकार, र - निरोध ), ३.५० ( गुरु तीर्थ का माहात्म्य : दिवोदास - कन्या दिव्या देवी का गुरुतीर्थ में मोक्ष ), ३.५३.२ ( गुरु व गुरु -पत्नी की सेवा तथा सम्मान करने का निर्देश ), ३.५५.७८ ( गुरु - महिमा ), ३.५५.८१( गुरुओं के गुरु अन्तरात्मा परमेश्वर का उल्लेख ), ३.६२.८८ ( गुरु रूपी उत्तम तीर्थ में श्रीहरि का सदा निवास, गुरु - सेवा से अभीष्ट प्राप्ति ), ३.६४.३४ ( गुरु - पूजा व गुरु - सेवा का माहात्म्य ), ३.६९.१० ( मन्त्रदीक्षा हेतु सद्गुरु के समीप गमन, सद्गुरु लक्षण, गुरु द्वारा दीक्षा प्रदान का वर्णन ), ३.१२१.२० ( गुरु की तीर्थ रूपता तथा माहात्म्य ), ४.५१.६२ ( गुरु की महिमा, गुरु के शरीराङ्गों में देवों, लोकों, तीर्थों की स्थिति, गुरु की देह में ब्रह्माण्ड का न्यास ) । guru
गुरु - ब्रह्माण्ड २.३.७.२३६ ( गुरुसेवी : प्रमुख वानरों में से एक ), भागवत १०.८०.३१ ( गुरुकुल : सुदामा के साथ श्रीकृष्ण द्वारा गुरुकुल वास की घटनाओं के स्मरण का वर्णन ), मत्स्य ४९.३७ ( गुरुधी : संकृति व सत्कृति के दो पुत्रों में से एक, वितथ वंश ), वायु ९९.१६० ( गुरुवीर्य : संकृति के दो पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१९.२२ ( गुरुप्रीति : संकृति के दो पुत्रों में से एक ), शिव ४.४०.४ ( गुरुद्रुह नामक व्याध की शिवरात्रि - व्रत प्रभाव से मुक्ति प्राप्ति की कथा ), ।
गुरुण्ड भविष्य ३.४.२२.७० ( नन्दिनी गौ के रुण्ड से गुरुण्ड की उत्पत्ति, विकट वानर वंश ) ।
गुर्जर गर्ग ७.७.२ ( गुर्जर देश के अधिपति ऋष्य द्वारा प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करने का उल्लेख ), नारद १.५६.७४३( गुर्जर देश के कूर्म का पादमण्डल होने का उल्लेख ), पद्म ६.१९० ( गीता के १६वें अध्याय के माहात्म्य में गुर्जर मण्डलान्तर्गत सौराष्ट्रिक पुरस्थ खङ्गबाहु राजा का वृत्तान्त ), भविष् ३.३.९.२२(वत्सराज द्वारा गुर्जर देश में मदालसा के पास जाने का उल्लेख), ३.४.२३.१११ ( गुर्जर देश में कलि के अंश राहु की उत्पत्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.८०.१७( राजा नागविक्रम के यज्ञ में गौर्जर विप्रों के पाचक होने का उल्लेख ) । gurjara
गुलिक नारद १.३७.१९ ( गुलिक नामक व्याध द्वारा उत्तङ्क मुनि की हत्या का प्रयास, उत्तङ्क मुनि के उपदेश से आत्मबोध का वर्णन ) । gulika
गुल्फ भागवत २.५.४१(गुल्फ में महातल की स्थिति का उल्लेख), हरिवंश २.८०.४३ ( पाद - गुल्फ के सौन्दर्य हेतु प्रत्येक षष्ठी तिथि में जल के साथ ओदन खाने का निर्देश ) ।
गुल्म वायु ९६.१६५ ( बलराम - भ्राता सारण के कईं पुत्रों में से एक ), स्कन्द ५.१.२६.१०१( ब्राह्मणों के परस्पर युद्ध करने पर क्रुद्ध ब्रह्मा द्वारा उदासीन गुल्म योद्धा आदि को वृत्तिहीन आदि होने के शाप प्रदान का कथन ), कथासरित् १.६.९ ( सोमशर्मा - पुत्र, वत्स व श्रुतार्था - भ्राता, गुणाढ्य के उत्पन्न होने पर गुल्म की शाप -मुक्ति ), ३.१.१४ ( शोक व चिन्ता से राजा महासेन के शरीर में गुल्म रोग की उत्पत्ति का उल्लेख ) । gulma
गुह ब्रह्माण्ड ३.४.३०.१०४ ( तारक वध से प्रसन्न इन्द्र द्वारा गुह को स्व - तनया देवसेना को प्रदान करने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.२०.१७ ( परा प्रकृति के देवों में से एक ), ३.४.२५.२४( ब्रह्मा की भालाक्षि से उत्पन्न वह्नि द्वारा गुह महाकल्प की रचना का उल्लेख ), भागवत ३.१.२२ ( युधिष्ठिर द्वारा सरस्वती तट पर गुह प्रभृति तीर्थों के सेवन का उल्लेख ), ३.१.३० ( पार्वती - पुत्र गुह के ही जाम्बवती - पुत्र साम्ब के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख ), ५.२०.१९ ( गुह कार्तिकेय के शस्त्र - प्रहार से क्रौञ्च द्वीप के कटि प्रदेश के क्षत - विक्षत होने का उल्लेख ), ८.१०.२८( देवासुर संग्राम में गुह के तारक के साथ युद्ध का उल्लेख ), १०.६३.७ ( कृष्ण व बाणासुर युद्ध में प्रद्युम्न के साथ गुह के युद्ध का उल्लेख ), लिङ्ग १.७४.८ ( भिन्न - भिन्न देवों द्वारा भिन्न - भिन्न धातुओं से निर्मित लिङ्ग पूजा के अन्तर्गत गुह द्वारा गोमय निर्मित लिङ्ग पूजा का उल्लेख ), वायु ३०.३१५ ( कार्तिकेय का नाम ), ३९.५५ ( विशाख पर्वत पर गुह / कार्तिकेय के निवास स्थान का उल्लेख ), ४१.४० ( हिमालय पर्वत पर ही गुह के अभिषेक तथा सेनापतित्व पद प्राप्ति का उल्लेख ), ९९.३८६ (गुह नामक राजा द्वारा कलिङ्ग, महिष, महेन्द्रनिलय प्रभृति जनपदों के परिपालन का उल्लेख ), विष्णु ५.३३.२६ (प्रद्युम्न के साथ युद्ध में गुह की पराजय का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६.३६ ( कलाप ग्राम में पहुंचने के लिए गुह से मार्ग निर्देश प्राप्त करना आवश्यक होने का कथन )ऋ १.२.५८.२९ ( समस्त तीर्थों का ब्रह्मा की सभा में आगमन, गुह द्वारा महीसागर संगम को तीर्थ - मुख्यत्व प्रदान करना ), वा.रामायण २.५०+ ( निषादराज गुह से राम की भेंट, गुह द्वारा सत्कार तथा उसकी सहायता से राम के गङ्गा पार करने का वृत्तान्त ), २.८४+ ( भरत का शृङ्गवेरपुर में आगमन तथा गुह से भेंट, भरत के पूछने पर गुह द्वारा राम के वृत्तान्त का निवेदन, गुह द्वारा भरत को सेना सहित गङ्गा पार उतारने का वर्णन ) । guha
गुहचन्द्र कथासरित् ३.३.७२ (गुहचन्द्र नामक वैश्य - पुत्र द्वारा सोमप्रभा नामक दिव्य कन्या के दर्शन, काममोहित होकर सोमप्रभा की प्राप्ति हेतु उद्योग, सोमप्रभा को प्राप्त करके भी गुहचन्द्र द्वारा दाम्पत्य - सुख प्राप्त न करना, ब्राह्मण द्वारा बताए गए मन्त्रोपाय के प्रभाव से सोमप्रभा व गुहचन्द्र को दाम्पत्य सुख की प्राप्ति का वृत्तान्त ) । guhachandra
गुहसेन कथासरित् ३.३.७५ ( गुहचन्द्र - पिता, सोमप्रभा को पुत्रवधू बनाने हेतु गुहसेन द्वारा उद्योग, सोमप्रभा की प्राप्ति, सोमप्रभा द्वारा कथित शर्त का पालन न करने पर गुहसेन का मरण ) ।
गुहा पद्म ६.३८.८१( मुर से युद्ध में थककर विष्णु के सिंहवती गुहा में शयन का कथन ), वायु १०४.६७ ( मेरु पर्वत की कुहरिणी गुहा में तपोरत व्यास मुनि द्वारा वेदों का स्मरण तथा वेदों का प्रादुर्भाव ), स्कन्द ५.२.२.३२ ( मङ्कणक ऋषि के हाथ से शाकरस का स्रवण, शिव द्वारा दर्प भङ्ग, मङ्कणक द्वारा महाकाल वनस्थ गुहा में लिङ्ग के दर्शन, लिङ्ग दर्शन से तप वृद्धि, गुहेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन ), ५.३.५१.१५ ( मार्कण्डेय द्वारा गुहा में प्रवेश करके मार्कण्डेयेश्वर लिङ्ग स्थापित करने का वर्णन ), ७.३.५६ ( गुहा - स्थित गुहेश्वर लिङ्ग के पूजन से अभीष्ट प्राप्ति का उल्लेख ), वा.रामायण ४.५०+ ( सीता अन्वेषण प्रसंग में हनुमान् आदि का ऋक्षबिल गुहा में प्रवेश, दिव्य वृक्ष आदि के दर्शन, स्वयंप्रभा तापसी से भेंट का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७८ ( दक्ष द्वारा विश्वेदेवों को प्रदत्त ८ कन्याओं में से एक ), कथासरित् १४.४.१९७ ( देवमाय नामक वीर से रक्षित त्रिशीर्ष नामक गुहा द्वारा मन्दरदेव के रक्षित होने का उल्लेख ), १७.१.६१ ( उपहासयुक्त हंसी हंसने के कारण क्रुद्ध पार्वती का पिङ्गेश्वर और गुहेश्वर नामक स्व गणों को मानव योनि में जन्म रूप शाप प्रदान ) । guhaa
गुहाक्ष ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८२ ( भण्ड का एक पुत्र तथा सेनापति ) ।
गुहावास वायु १०६.३९ ( ब्रह्मा द्वारा यज्ञ हेतु मानस - सृष्ट ऋत्विजों में से एक ), २३.१७५ ( गुहावासी : १७वें द्वापर में शिव के गुहावासी नाम से अवतार ग्रहण का उल्लेख ), शिव ३.५.१८ ( १७वें द्वापर में गुहावासी नाम से शिव के अवतार ग्रहण का उल्लेख ) ।
गुह्य देवीभागवत १२.४.९( गुह्य में अयनों का न्यास ), भविष्य ३.४.२५.४२( ब्रह्माण्ड गुह्य से उत्पन्न केतु द्वारा भौत मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.३५ (विष्णु की दिव्य विभूति के वर्णनान्तर्गत विष्णु के सर्वगुह्यों में मान होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.४५.१३ ( भूतल पर १४ गुह्य मुक्ति द्वार होने का उल्लेख ) । guhya
गुह्यक भागवत १.९.३ ( गुह्यकों से वेष्टित कुबेर के समान भाइयों से वेष्टित युधिष्ठिर की शोभा का उल्लेख ), ४.४.३४ ( दक्ष के यज्ञकुण्ड से प्रकट ऋभु देवों के आक्रमण से गुह्यकों व प्रमथों के पलायन का उल्लेख ), ४.५.२६ ( दक्षयज्ञ का विध्वंस कर वीरभद्र के गुह्यकालय / कैलास गमन का उल्लेख ), १०.३४.२८ ( शङ्खचूड नामक गुह्यक / यक्ष द्वारा गोपियों का हरण, कृष्ण - बलराम द्वारा गुह्यक का अनुसरण तथा वध ), महाभारत कर्ण ८७.४०, वामन ११.२५ ( देव, दैत्य, सिद्ध, गन्धर्व आदि १२ योनियों में से एक गुह्यक योनि के धर्मों का उल्लेख ), ६३.६५ ( आकाशचारी अञ्जन नामक गुह्यक द्वारा महावन में पडी हुई चित्राङ्गदा का दर्शन तथा पति से मिलन हेतु श्रीकण्ठ के दर्शन का परामर्श ), वायु ६९.१६२ ( देवजननी व मणिवर के पुत्रगणों की गुह्यक संज्ञा का उल्लेख ), १०१.२८ ( गुह्यकों के स्वर्लोक में निवास करने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१३.१५३ ( गुह्यकों द्वारा सीसज लिङ्ग पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग ), ४.१.८.१५ ( गुह्यकों के लोक में गुह्यकों के आचार का वर्णन ), ५.१.७.४५ ( महाकालवन में मृत्यु पर रुद्र के गुह्यक गण बनने का कथन ), ५.२.५६.२५ ( सूर्य - पुत्र रेवन्त द्वारा स्वर्ग में गुह्यक अधिपति पद की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.२५२.२२( चातुर्मास में गुह्यकों की पनस वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८४ ( पनस वृक्ष रूप में गुह्यकों के अवतरण का उल्लेख ), १.१७०.५८ ( कृष्ण के गुह्य देश से गुह्यकों की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.१५७.२३ ( मूर्ति में गुदा में गुह्यकों के न्यास का उल्लेख ), ३.७५.८३ ( अश्म / पत्थर से चरणों को भेदकर मृत व्यक्ति के गुह्यक बनने का उल्लेख ) । guhyaka
गूढसेन कथासरित् ६.२.११३ ( राजा गूढसेन के पुत्र की वैश्य - पुत्र से प्रगाढ मित्रता, वैश्य - पुत्र द्वारा राज - पुत्र की रक्षा ) ।
गृञ्जक गरुड २.३०.५४/२.४०.५४( मृतक के लिङ्ग में गृञ्जन देने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.३७.५७ ( गृञ्जक/ गांजा नामक असुर को श्रीहरि द्वारा धूम्रपानार्थक बनाने का उल्लेख ) ।
गृत्स ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०६ ( एक भार्गव मन्त्रकृत ऋषि ), मत्स्य १४५.१०० ( १९ भार्गव मन्त्रकृत ऋषियों में से एक ) ।
गृत्समद गणेश १.३६.१६ (( वाचक्नवि - पत्नी मुकुन्दा द्वारा इन्द्र के वीर्य से गृत्समद पुत्र को उत्पन्न करने की कथा ), १.३६.३९ ( गृत्समद द्वारा स्वजन्म का वृत्तान्त जानकर माता को शाप ), १.३७(गृत्समद द्वारा गणेश की आराधना से पुष्पक नगर व त्रैलोक्यविजयी त्रिपुर पुत्र प्राप्त करना), १.३८( गृत्समद – पुत्र त्रिपुर की उत्पत्ति), २.३३.३९ ( गृत्समद द्वारा प्रियव्रत - पुत्र क्षिप्रप्रसादन के विष निवारण के उपाय का कथन ) ब्रह्म १.९.३३ ( सुनहोत्र - पुत्र, शुनक - पिता, सोमवंश के अन्तर्गत वृद्धक्षत्र वंश ), १.११.६३ ( सुहोत्र - पुत्र, सोमवंश के अन्तर्गत ययाति वंश ), १.११.९९ ( अजमीढ - पिता, ययाति वंश ), ब्रह्माण्ड २.३.६६.८७ ( क्षत्रिय होते हुए भी तपस्या से ऋषित्व को प्राप्त राजाओं में से एक ), भागवत १.९.७ ( शरशय्यासीन भीष्म से मिलने आए ऋषियों में से एक ), ९.१७.३ ( सुहोत्र - पुत्र, शुनक - पिता ), मत्स्य १९५.४४ ( भृगुवंशीय आर्षेय प्रवर ऋषि ), वायु ९२.३ ( सुतहोत्र - पुत्र, शुनक - पिता ), विष्णु ४.८.२ ( सुहोत्र के तीन पुत्रों में से एक, शौनक - पिता ), शिव ५.३.६२ ( चाक्षुष मनु के पुत्र गृत्समद का वसिष्ठ के शाप से मृग होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.९२.११ ( वीतहव्य - पुत्र, द्विज व सुतेजा – पिता। गृत्समद - पिता वीतहव्य के क्षत्रिय से विप्र बनने का वृत्तान्त ) । महाभारत अनुशासन १८.१९(रथन्तर सामगान में त्रुटि पर वरिष्ठ द्वारा गृत्समद को मृग बनने का शाप), ३०.५८(वीतहव्य – पुत्र, दैत्यों द्वारा इन्द्र के भ्रम में बन्धन, सुचेता – पिता), gritsamada
गृध्र अग्नि ३१३.१५( ज्वालामालिनी देवी के गृध्रगण से परिवृत होने का उल्लेख ), गणेश २.८३.१९ ( गुणेश द्वारा सिन्धु असुर - प्रेषित गृध्रासुर का वध ), गर्ग ७.२७.२ ( वीरों के धनुष्टंकार से उद्विग्न होकर हरिवर्ष खण्ड / निषध पर्वत - निवासी गृध्रों द्वारा प्रद्युम्न की सेना पर आक्रमण, प्रद्युम्न द्वारा गारुडास्त्र का प्रयोग, अस्त्र से नि:सृत गरुड के प्रहार से गृध्रों का पलायन ), नारद २.४७.७६ ( गृध्रकूट : गया में शिला के दक्षिण पाद पर गृध्रकूट पर्वत की स्थिति, नाम हेतु का कथन, गृध्रकूट पर गृध्रेश्वर शिव के दर्शन से शिव लोक की प्राप्ति ), पद्म १.३७.६६ ( गृह के सम्बन्ध में गृध्र व उलूक का विवाद, राम द्वारा निर्णय, पूर्वजन्म में गौतम द्वारा ब्रह्मदत्त को शाप के फलस्वरूप गृध्र योनि की प्राप्ति, राम दर्शन से मुक्ति का वर्णन ), ६.१७९.१० ( भ्रष्ट पिङ्गल ब्राह्मण द्वारा गृध्र योनि की प्राप्ति, गीता के पञ्चम अध्याय के प्रभाव से मुक्ति ), ७.३.३५ ( गृध्र द्वारा मनोभद्र राजा से राजपुत्रों के पूर्वजन्म का कथन, गङ्गा माहात्म्य कथन से गृध्र की मुक्ति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.२४.३९ ( बलाहक असुर का संहारगुप्त नामक वाहन रूप गृध्र पर आरूढ होकर युद्ध करने का उल्लेख ), भागवत १०.६१.१६ ( कृष्ण व मित्रविन्दा के १० पुत्रों में से एक ), ११.१२.२३ ( कामनापूर्ण जीवों की गृध्र से उपमा ), मत्स्य ६.३० ( गृध्री : कश्यप व ताम्रा की ६ कन्याओं में से एक, गृध्रों की माता ), ९४.८ ( शनि व केतु का वाहन ), १४८.८७ ( राक्षसों की ध्वजाओं पर गृध्र चिह्न के अङ्कित होने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति १५३, मार्कण्डेय ४८/५१.६९ ( शकुनि के पांच पुत्रों में से एक, व्याधि द्वारा ग्रहण का उल्लेख ), वराह १३७.७४ ( सौकरव तीर्थ में मृत्यु से गृध्र के कलिङ्गराज - सुत बनने का उल्लेख ), वायु १०८.६२ ( गृध्रकूट पर्वत पर गृध्रेश्वर की स्थिति तथा उसके दर्शनादि से शम्भुलोक प्राप्ति का उल्लेख ), विष्णु ३.१८.७९ ( पाषण्ड के साथ वार्तालाप से शतधनु राजा को गृध्र योनि की प्राप्ति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.१३ ( आमश्राद्ध को खाने से जीव के गृध्र योनि में उत्पन्न होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.९.११ ( उलूक आदि के साथ इन्द्रद्युम्न का चिरजीवी गृध्र के समीप गमन, गृध्र का इन्द्रद्युम्न से संवाद - दोलाधिरूढमालोक्य लकुटैर्मां व्यताडयन्॥ दोलासंस्थित एवाहं प्रमीतः शिवमंदिरे॥ ), २.१.१.४२( पृथिवी को स्थिर करने वाले मुख्य पर्वतों में से एक ), २.४.७.५५ ( गृध्र द्वारा हरिमन्दिर में प्रदत्त व्योम दीप का हरण, मार्जार व गृध्र का युद्ध , दोनों का मरण, गृध्र का पूर्वजन्म में दुष्टचरित्र शर्याति होने तथा दीपदान व हरिकथा श्रवण से गृध्र योनि से मुक्ति का वृत्तान्त ), २.७.८.२( संतों का संग न करने से गृध्रत्व प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३.४.२७ ( मांसपिंड ग्रहण करने की इच्छा से गृध्र द्वारा कपोती का अनुसरण तथा मांसपिण्ड प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.५३.१८ ( राजा विदूरथ को ब्राह्मण वध जनित दोष से दसवें जन्म में गृध्र योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.११.३१ ( शूद्रान्न से पुष्ट होने पर काक, गृध्रादि बनने का उल्लेख ), ६.२७१.२०१ ( चिरजीवी गृध्र का इन्द्रद्युम्न से संवाद, पूर्वापर जन्मों की कथा, कुशध्वज का अग्निवेश्य के शाप से गृध्र बनने का वृत्तान्त - अकामा मांसपेशीव यथा गृध्रेण दुर्मते ॥ तस्माद्गृध्रो भवत्वाशु मम वाक्यादसंशयम् ॥ ), योगवासिष्ठ १.१८.१६ ( अहंकार का रूप ), लक्ष्मीनारायण १.८३.२५( गृध्रास्या : ६४ योगनियों में से एक ), १.३८६.४८ ( राजा शतधनु को पापों के फलस्वरूप शृगाल, वृक, गृध्र, काक व शिखी योनि की प्राप्ति, रानी शैब्या के पातिव्रत्य प्रभाव से पांच जन्मों की पांच दिनों में समाप्ति, राजपुत्र रूप में जन्म , वैकुण्ठ प्राप्ति का वर्णन ), १.५१९.६३ ( राजा इन्द्रद्युम्न का मार्कण्डेय, बक तथा उलूक के साथ गृध्र के समीप गमन, गृध्र की इन्द्रद्युम्न की कीर्ति विषयक अज्ञानता, गृध्र योनि प्राप्ति का हेतु तथा चिरजीविता का कथन ), १.५७७.१ ( गङ्गा जल में पतन रूप तीर्थ प्रभाव से गृध्र का राजगृह में जन्म ), २.२१५.५१ ( श्मशान स्थल पर मृत बालक के परिजनों को गृध्र व जम्बूक के पृथक् - पृथक् परामर्श प्रदान करने का वर्णन ), ३.८१.२ ( साधु संगति से गृध्रों की मुक्ति की कथा ), ३.९२.८९ ( मादा गृध्र पक्षियों में मार्गण / खोज धर्म की विशेष रूप से स्थिति का उल्लेख ), ३.९८.२४ ( गृध्र व श्वपच वार्तालाप में गृध्र योनि प्राप्ति के हेतु का कथन ), ४.६६ ( कथापारायण स्थल पर सज्जनों द्वारा त्यक्त उच्छिष्ट भोजन भक्षण से गृध्रों की मुक्ति का निरूपण ), कथासरित् ९.४.११४ ( गृध्र द्वारा राजा के हाथ से कण्ठहार हरण का उल्लेख ) । gridhra
गृध्रकूट नारद २.४७.७६ ( गया में शिला के दक्षिण पाद पर गृध्रकूट पर्वत की स्थिति, नाम हेतु का कथन, गृध्रकूट पर गृध्रेश्वर शिव के दर्शन से शिव लोक की प्राप्ति ), वायु १०८.६१ ( गृध्रकूट गिरि की गया में शिला के वाम हस्त पर स्थिति, माहात्म्य का वर्णन ) ।
गृध्रपत्र वामन ५७.८२ ( विमला नदी द्वारा कुमार को गृध्रपत्र नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ) ।
गृध्रिका ब्रह्माण्ड २.३.७.४४६ ( ताम्रा व कश्यप की ६ पुत्रियों में से एक, अरुण - पत्नी, सम्पाति व जटायु - माता ), मत्स्य ६.३० ( गृध्री : कश्यप व ताम्रा की ६ कन्याओं में से एक, गृध्रों की माता ), विष्णु १.२१.१६ ( कश्यप व ताम्रा की ६ पुत्रियों में से एक, गृध्र - माता ) ।
गृह अग्नि ६५ ( गृह प्रतिष्ठा व गृह प्रवेश विधि ), १०५.२३ ( गृह प्रकार / लक्षण : विभिन्न प्रयोजनों के लिए कक्षों के दिक् विन्यास का कथन ), १२१.३७ ( गृह आरम्भ हेतु नक्षत्र व मास का विचार ), १२१.४१ ( गृह प्रवेश हेतु नक्षत्र का विचार ), २४७ ( गृह निर्माण हेतु चतुर्वर्ण के लिए भूमि के गुण, वास्तुमण्डल तथा वृक्षारोपण का वर्णन ), नारद १.५६.५४० ( गृह निर्माण हेतु गन्ध, वर्ण, रस तथा आकृति आदि के द्वारा भूमि की परीक्षा, निर्माण विधि, द्वार स्थिति तथा फल का विचार ), १.५६.५८० ( गृह के ६ भेदों व १६ उपभेदों का वर्णन ), १.५६.५९२ ( गृह प्रमाण, उच्छ्राय का विचार ), १.५६.६०० (गृह प्रवेश हेतु वास्तु मण्डल पूजा विधि ), १.५६.७१३ ( गृह प्रवेश हेतु विहित मास व नक्षत्र, गृह प्रवेश विधि ), पद्म १.३७.५७ ( गृह के विषय में गृध्र व उलूक का विवाद, राम द्वारा निर्णय का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.३४ ( गृह दान के फल का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.७.७५ ( त्रेतायुग के प्रारम्भ में गृहसंज्ञक वृक्षों द्वारा उपभोज्य वस्तुओं की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.३५.७० ( शृङ्गारशाल के भीतर चिन्तामणि गृह की स्थिति का उल्लेख ), भविष्य ४.१६८ ( गृह दान विधि का वर्णन ), मत्स्य २५७ ( गृह निर्माण में उपयोगी तथा त्याज्य काष्ठ का वर्णन ), मार्कण्डेय ४६/४९.२७ ( त्रेतायुग के प्रारम्भ में गृहों में कल्पवृक्ष की उत्पत्ति तथा कल्पवृक्षों से समस्त भोग - प्राप्ति का उल्लेख ), लिङ्ग १.३९.२२ ( कृतयुग में गृह संज्ञक वृक्षों का प्रादुर्भाव, त्रेतायुग में लोप तथा पुन: प्रादुर्भाव का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.११( गृह प्रवेश कर्म में भोगिशय विभु की पूजा का निर्देश - गृहप्रवेशे च तथा देवं भोगिशयं विभुम् ।। ), ३.३०१.३५( गृह प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), स्कन्द १.१.१८.७९ ( बलि द्वारा कौण्डिन्य को गृह दान देना ), १.२.५.२३( नारद का ब्राह्मण से पंचपंचादि से अद्भुत गृह विषयक प्रश्न ), १.२.५.९२( ब्राह्मण द्वारा नारद को पंचपंचादि से अद्भुत देह रूपी गृह के ज्ञान से शिव प्राप्ति का कथन ), १.२.४.७८ ( गृह दान का उत्तम श्रेणी के दानों में वर्गीकरण ), ५.३.५०.२१ ( शूलभेद तीर्थ में गृह दान से काञ्चन भवन में वास का उल्लेख ), ५.३.५६.११९ ( गृह दान से रोग मुक्ति का उल्लेख ), ५.३.१८२.१५ ( श्री के कुञ्चिका अट्टाल नामक गृह पर श्री व भृगु में विवाद का वर्णन ), ५.३.१८२.२५ ( श्री द्वारा द्विजों के गृह द्विभौम / दुमञ्जिले न होने का शाप प्रदान ), योगवासिष्ठ १.१८.२१( शरीर की गृह से उपमा ), लक्ष्मीनारायण १.१७३.२३ ( सती की गृह निर्माणार्थ शिव से प्रार्थना, गृह योग्य पर्वतादि के नाम , हिमाद्रि पर कैलास पुरी का निर्माण ), १.५०४.४८ ( गर्भ से बाहर आते ही शुक का वन की ओर गमन, व्यास द्वारा गृह में निवास तथा गार्हस्थ्य धर्म निर्वाह हेतु प्रार्थना ), २.७७.४१ ( गृह दान से राजा के पापों का नाश परन्तु दान ग्रहीता के पाप युक्त होने का उल्लेख ), ३.१८.१२ ( सवृत्ति गृह दान के आरोग्य दान से श्रेष्ठ व पुण्य दान से अवर होने का उल्लेख ), ३.४०.४ ( गृह - स्त्री की कर्त्तव्यता का निरूपण ), ३.१११.२४ ( गृह - दान से सत्यलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.८६+ ( गृह गीता का वर्णन ), कथासरित् ६.२.१२७ ( कथा कहे विना राजपुत्र के सो जाने पर आकाशस्थ स्त्रियों में से तृतीया स्त्री द्वारा गृह पतन से राजपुत्र की मृत्यु का उल्लेख ), ६.२.१४० ( विवाह हेतु निर्मित गृह में प्रवेश करते हुए राजपुत्र को वैश्यपुत्र द्वारा रोकना, गृह के पतन का कथन ) । griha
गृहगोधा नारद २.१४.५ ( ब्राह्मणी का पतिद्रोह के कारण गृहगोधा /छिपकली बनना, रुक्माङ्गद राजा द्वारा एकादशी के पुण्य दान से गृहगोधा की मुक्ति की कथा ), मार्कण्डेय १५.२४ ( हविष्यान्न चुराने से गृहगोधा योनि प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३७८ ( पति वशीकरण दुष्प्रभाव से गृहगोधा योनि प्राप्ति का कथन ), ४.७०.१ ( कथा श्रवण, प्रसाद, भोजन, जल प्रोक्षण आदि से गृहगोधा की मुक्ति का वृत्तान्त ) । grihagodhaa
गृहपति वायु २.६/१.२.६( सत्र यज्ञ में तप के गृहपति होने का उल्लेख ), १.२३ (यज्ञ के ऋषियों तथा गृहपति द्वारा लोमहर्षण से पुराण सुनाने का अनुरोध ), २९.२४( अहिर्बुध्न अग्नि की गृहपति संज्ञा का उल्लेख ), शिव ३.१३+ ( विश्वानर व शुचिष्मती - पुत्र, शिव का अंश, गृहपति अवतार का वर्णन ), ३.१५ (गृहपति द्वारा आयु वर्धनार्थ तप, अग्नि पद प्राप्ति का वर्णन ), स्कन्द ४.१.१०.१३९, ४.१.११.२७ ( विश्वानर व शुचिष्मती द्वारा शिवकृपा से गृहपति पुत्र की प्राप्ति, नारद द्वारा गृहपति के सामुद्रिक लक्षणों का कथन, गृहपति द्वारा तप से अग्नि पद प्राप्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४५९.३० ( विश्वानर व शुचिष्मती - पुत्र, साक्षात् बाल रूप शिव का गृहपति रूप में जन्म, तप से चिरजीविता का कथन ) । grihapati
गृहबलि मार्कण्डेय २६/२९.१८ ( गृहबलि प्रदान विधि का कथन ) ।
गृहस्थ अग्नि १५२ ( गृहस्थ वृत्ति का कथन ), कूर्म २.१५ ( गृहस्थ धर्म का निरूपण ), २.१६ ( निषिद्ध कर्मों का कथन ), गरुड १.९६.७ ( गृहस्थ के कर्त्तव्यों - अकर्त्तव्यों का कथन ), देवीभागवत १.१४+ ( व्यास द्वारा शुक से गृहस्थाश्रम महिमा का कथन, शुक द्वारा वैराग्य का प्रतिपादन ), नारद १.४३.१०७ ( गृहस्थ धर्म का निरूपण ), १.२६.१९ ( गृहस्थोचित शिष्टाचार का वर्णन ), १.२७ ( गृहस्थ सम्बन्धी शौचाचार, स्नान, सन्ध्योपासनादि का वर्णन ), पद्म ३.५४ ( गृहस्थ धर्म का कथन ), ६.७४.८ ( गृहस्थाश्रम की श्रेष्ठता का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२४ ( ब्रह्मा का नारद को वेदोक्त गृहस्थ धर्म का कथन ), ४.८४ ( गृहस्थों के धर्म व अधर्म का कथन ), भविष्य १.६ ( गृहस्थ के लिए अर्थोपार्जन की अनिवार्यता का कथन ), ३.२.३०.२९ ( पितृशर्मा ब्राह्मण द्वारा कलियुग में गृहस्थ आश्रम की श्रेष्ठता का उल्लेख ), भागवत ५.१४.४ ( गृहस्थाश्रम में जीव की दुर्दशा का कथन ), ७.१४ ( गृहस्थ सम्बन्धी सदाचार का वर्णन ), ७.१५ ( गृहस्थ के लिए मोक्षधर्म का वर्णन ), ११.७.७४ ( कपोत के उपाख्यान द्वारा गृहस्थ में आसक्त व्यक्ति की आरूढच्युत संज्ञा का उल्लेख ), ११.१७.१४ (विराट पुरुष के ऊरुस्थल से गृहस्थाश्रम की उत्पत्ति का उल्लेख ), ११.१८.४२ ( गृहस्थ के मुख्य धर्म के रूप में प्राणियों की रक्षा तथा यज्ञ - याग का उल्लेख ), मत्स्य ४०.३ ( गृहस्थ धर्म के स्वरूप का कथन ), महाभारत शान्ति ११, १२, १९१, २४३, मार्कण्डेय २६/२९.१ ( मदालसा द्वारा अलर्क को गृहस्थ अनुशासन का कथन ), विष्णु ३.९.७ (गृहस्थ धर्म का निरूपण ), विष्णुधर्मोत्तर २.९५, ३.२२९ ( गृहस्थ धर्म का निरूपण ), स्कन्द ३.२.६( गृहस्थाश्रम हेतु सदाचार लक्षण का वर्णन : अतिथि सेवा आदि ), ४.१.४० ( गृहस्थ आश्रमियों के लिए विहित आचार निरूपण ), ६.२४२.२१( गृहस्थ के शूद्र? होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१०४.१ ( गृहस्थ धर्म का निरूपण ), ४.८८.१ ( गृहस्थाश्रम के माहात्म्य तथा गृहस्थ हेतु मोक्षोपाय का कथन ) । grihastha
गृहिणी ब्रह्मवैवर्त्त ४.८४.१४ ( गृहिणी स्त्रियों के सदाचार का कथन ) ।
गृहेषु वायु १००.८४ ( सावर्णि मनु के ८ पुत्रों में से एक ) ।
गृह्याग्नि भविष्य २.१.१७.१६ ( गृह्य अग्नि के धरणीपति नाम का उल्लेख ) ।
गेयिक कथासरित् ८.४.८५ ( विद्याधर - राज कालकंथन द्वारा युद्ध में मारे गए महारथियों में से एक ) ।
गो गरुड २.२.७९(गोहारक के सर्प बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३५.२( गोखल : शाकल्य देवमित्र के ५ शिष्यों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३( गोत्रय के अशुभत्व का उल्लेख ), द्र. गौ
गोऋतम्भरा लक्ष्मीनारायण १.३०९.३१ ( सर्वहुत राज - पत्नी, पुरुषोत्तम मास में द्वितीया व्रत के प्रभाव से सर्वहुत व गोऋतम्भरा को पारमेष्ठ्य पद की प्राप्ति, सर्वहुत के ब्रह्मा तथा गोऋतम्भरा के गायत्री बनने का वर्णन ) ।
गोअजक भविष्य २.१.१७.७ ( कन्यादान में अग्नि के गोअजक नाम का उल्लेख ) ।
गोकर्ण देवीभागवत ७.३८.२७ ( गोकर्ण क्षेत्र में भद्रकर्णी देवी के वास का उल्लेख ), ९.२२.४ ( शङ्खचूड - सेनानी, हुताशन अग्नि से युद्ध का उल्लेख ), नारद २.७४ ( गोकर्ण क्षेत्र का माहात्म्य तथा परशुराम द्वारा पुनरुद्धार ), पद्म ६.१९६( गौ से उत्पत्ति, आत्मदेव - पुत्र, गोकर्ण द्वारा पिता व धुन्धुकारी भ्राता की मुक्ति के उद्योग का वर्णन ), ६.२२२.२३ ( गोकर्ण तीर्थ का माहात्म्य : भिल्ल - भार्या जरा की मुक्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.७.९७ ( अनामिका अङ्गुलि से अङ्गुष्ठ तक के आयाम का नाम ? ), २.३.१३.१९( गोकर्ण तीर्थ में स्नान व दान से अश्वमेध फल प्राप्ति का उल्लेख ), २.३.१३.२१( गोकर्ण में नास्तिकों के निदर्शन का उल्लेख ), २.३.५६.७ ( गोकर्ण तीर्थ का माहात्म्य ), २.३.५७+ ( सगर - पुत्रों द्वारा पृथ्वी खनन के कारण गोकर्ण क्षेत्र का समुद्र में लीन होना, परशुराम द्वारा स्रुवा से उद्धार, शूर्पारक नाम धारण की कथा ), भागवत ०.४+ ( आत्मदेव व गौ - पुत्र, गोकर्ण द्वारा भागवत की सप्ताह कथा सुनाकर भ्राता धुन्धुकारी के प्रेत योनि से उद्धार करने का वर्णन ), मत्स्य २२.३८ ( पितर श्राद्ध हेतु गोकर्ण तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ), लिङ्ग १.२४.७३ ( १६वें द्वापर में श्रीहरि के गोकर्ण नाम से अवतार का उल्लेख ), वराह १७०+ ( गोकर्णेश्वर की कृपा से वसुकर्ण व सुशीला को पुत्र प्राप्ति, गोकर्ण नामकरण, गोकर्ण का शुक से वार्तालाप, दिव्य देवियों से वार्तालाप, मथुरा पुनरागमन का वृत्तान्त ), २१३ + ( गोकर्णेश्वर माहात्म्य का वर्णन ), २१५.१२१( शिव के शृङ्ग के त्रिधाभूत होने के स्थान की गोकर्णेश्वर संज्ञा ), २१६.२२( शिव के शृङ्गाग्र के कारण निर्मित दक्षिण गोकर्ण का कथन ), वामन ४६.१६(रावण द्वारा स्थापित गोकर्णेश्वर लिङ्ग के अर्चन से पाप - मुक्ति का कथन ), ९०.५ ( गोकर्ण तीर्थ में विष्णु का विश्वधारण नाम से वास ), ९०.२८ ( दक्षिण गोकर्ण में विष्णु का शर्व नाम से वास ), वायु २३.१७२ ( १६वें द्वापर में गोकर्ण नाम से शिव के अवतार ग्रहण का उल्लेख ), १०६.३९ ( गयासुर के शरीर पर यज्ञ करने वाले विप्रों में से एक ), शिव ०.३.३६ ( व्यभिचारिणी चञ्चुला नामक ब्राह्मणी का गोकर्ण तीर्थ में आगमन, शिव कथा श्रवण से वैराग्य प्राप्ति का कथन ), २.५.३६.८ ( देव - दानव युद्ध में हुताशन अग्नि का गोकर्ण के साथ युद्धोल्लेख ), ३.५.१५ ( १६वें द्वापर में योग प्रदान हेतु गोकर्ण नाम से शिव के अवतार ग्रहण का उल्लेख ), ४.८(गोकर्ण क्षेत्र में महाबलेश्वर शिव का माहात्म्य, चार दिशाओं में स्थित
देवों के नाम), ४.९(गोकर्ण क्षेत्र के माहात्म्य का वर्णन : चाण्डाल - कन्या को महाबल नामक शिवलिङ्ग पर पत्र - पतन से परमपद प्राप्ति), ४.१०(गोकर्ण में स्नान तथा महाबल लिङ्ग के अर्चन से मित्रसह राजा को परमपद की प्राप्ति ), स्कन्द ३.१.३५.७ ( दुर्विनीत द्विज का पिता की मृत्यु के उपरान्त माता के साथ गोकर्ण में निवास, मातृगमन दोष का प्रायश्चित्त), ३.३.३ (गोकर्णेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : चाण्डाली की मुक्ति का वृत्तान्त, गौतम व कल्माषपाद राजा का संवाद, गोकर्णेश्वर महादेव के दर्शन - पूजन से कल्माषपाद को शिवलोक प्राप्ति का वर्णन ), ३.३.२२.६६ ( बिन्दुला नामक ब्राह्मणी का गोकर्ण क्षेत्र में गमन, पुराण कथा श्रवण से दुराचारों से निवृत्ति, शिव भक्ति से मुक्ति की प्राप्ति का वर्णन ), ४.२.५३.६५ ( प्रमथगण - चतुष्टय में से एक, काशी में अन्तर्गेह के पश्चिम् में गोकर्णेश्वर लिङ्ग की स्थापना ), ४.२.७४.५१ ( गोकर्ण गण द्वारा काशी में पश्चिम द्वार की रक्षा का उल्लेख ), ५.३.१९८.६८ ( गोकर्ण तीर्थ में उमा की भद्रकर्णिका नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.२६ ( मथुरापुरी में गोकर्ण नामक दो ब्राह्मणों का निवास, यमदूतों का त्रुटि से दूसरे गोकर्ण को यम के समक्ष लाना, गोकर्ण के पूछने पर यम द्वारा नरक का वर्णन, यम के उपदेश से दोनों गोकर्ण ब्राह्मणों द्वारा हाटकेश्वर क्षेत्र में लिङ्ग स्थापना, शिवाराधना से मुक्ति का वर्णन ), ६.१०९.८ ( गोकर्ण तीर्थ में शिव की महाबल नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.१०.११(गोकर्ण तीर्थ का वर्गीकरण – आकाश), हरिवंश २.९०.२४ ( महादेव के तेज के कारण गोकर्ण पर्वत के अलंघ्य होने से निकुम्भ दैत्य का भानुमती के साथ गोकर्ण पर्वत को लांघते हुए पतन ), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४०( शिव व शङ्खचूड युद्ध में कृशानु का गोकर्ण के साथ युद्धोल्लेख ), १.३५०.१७ ( वसुभद्र नामक विप्र को गोकर्णेश्वर के दर्शनादि से पुत्र लाभ, पुत्र का गोकर्ण नाम, शत्रुञ्जिता नदी के तट पर गोकर्णेश्वर की स्थापना का वर्णन ), ३.९४.४ ( सगर - पुत्रों द्वारा भूमि खनन से गोकर्ण तीर्थ का सागर में निमज्जन, परशुराम के आश्रय तथा प्रताप से सिंहारण्यवासी ऋषियों को गोकर्ण तीर्थ की पुन: प्राप्ति ), कथासरित् ४.२.२१८ ( शङ्खचूड नाग द्वारा समुद्र तीरस्थ गोकर्णेश्वर शिव को प्रणाम करने जाने का उल्लेख ), ६.७.२५ ( गोकर्ण नगरस्थ राजा श्रुतसेन का विद्युत्द्योता से विवाह, पत्नी के मरने पर श्रुतसेन के भी मरण का वृत्तान्त ) । gokarna
गोकर्ण- १ ) एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ पूर्वकाल में भगवान् शेष ने तपस्या एवं एकान्तवास किया था ( आदि० ३६ ॥ ३) । यह भगवान् शिव का स्थान है, यहाँ तीर्थयात्रा के प्रसंग में अर्जुन का आगमन हुआ था ( आदि० २१६ ॥ ३४(२३७.३७) ) । यह समुद्र के मध्य में विद्यमान, त्रिभुवनविख्यात और अखिल लोकवन्दित तीर्थ है। यहाँ ब्रह्मा आदि देवता, तपोधन महर्षि और भूत-यक्ष आदि भगवान् शङ्कर की उपासना करते हैं। यहाँ भगवान् शिव की पूजा करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल पाता और गणपति-पद प्राप्त कर लेता है ( वन० ८५ ॥ २४-२७ ) । गोकर्ण तीर्थ तीनों लोकों में विख्यात है। वह पवित्र, कल्याणमय और शुभ है। अशुद्ध अन्तःकरणवालों के लिये यह तीर्थ अत्यन्त दुर्लभ है (वन ० ८८ ॥ १५-१६ ) । ( २) यह एक तपोवन है ( भीष्म ० ६ ॥ ५१ ) ।
गोकर्णा-कर्णके सर्पमुख बाण में प्रविष्ट अश्वसेन नाग की माता ( कर्ण० ९० ।। ४२ ) ।।
गोकर्णी-स्कन्द की अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ ॥ २५)।
गोकर्ण गोकर्ण क्षेत्र भ्रूमध्य से आरम्भ करके कानों तक जाता है । वास्तव में सिर का ऊपर का सारा भाग ही गोकर्ण क्षेत्र है । ध्यान में पहले ज्योति भ्रूमध्य से आरम्भ होकर कानों तक फैलती है । - फतहसिंह
Remarks by Dr. Fatah Singh
Comments on Gokarna and Dhundhukari
गोकरीष विष्णु ५.५.१३( पूतना वध के पश्चात् भय त्रस्त नन्दगोप द्वारा बालकृष्ण की रक्षार्थ गोकरीष / गोमय चूर्ण बालकृष्ण के मस्तक पर रख कर स्वस्तिवाचन का कथन ) ।
गोकर्णिका मत्स्य १७९.२४ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस - मातृकाओं में से एक ) ।
गोकामुख शिव २.५.३६.१३ ( शङ्खचूड - सेनानी, आदित्यों से युद्ध का उल्लेख ) ।
गोकुल देवीभागवत ४.१.६ ( वासुदेव / कृष्ण के कारागार में जन्म तथा गोकुल में प्रेषण का उल्लेख ), भागवत २.७.३१ ( श्रीकृष्ण द्वारा गोकुल के लोगों को वैकुण्ठ धाम ले जाने का उल्लेख ), विष्णु ५.१.७४ ( श्रीहरि द्वारा महामाया / योगनिद्रा को देवकी के सप्तम गर्भ को गोकुल में वसुदेव की अन्य पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित करने का आदेश ), ५.११.१३ ( श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण द्वारा अतिवर्षा से व्याकुल गोकुल की रक्षा ), लक्ष्मीनारायण १.४२६+ ( गोकुल में गोपकन्याओं द्वारा श्रीकृष्ण प्राप्ति हेतु पातिव्रत्य व्रत का पालन, पातिव्रत्य प्रभाव से कृष्ण प्राप्ति का वर्णन ), ३.१९८.९५ ( निम्बदेव भक्त के पुत्र गोकुलवर्धन के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्मों में निम्बदेव का भृत्य व वृषभ ) । gokula
गोखल ब्रह्माण्ड १.२.३५.२( शाकल्य देवमित्र के ५ शिष्यों में से एक ) ।
गोचपला ब्रह्माण्ड २.३.८.७५ ( भद्राश्व व घृताची - कन्या ), वायु ७०.६९ ( भद्राश्व व घृताची की अनेक पुत्रियों में से एक ) ।
गोचर्म पद्म ६.३२.९( गोचर्म की परिभाषा : वृष सहित सहस्र गायों के बैठने इत्यादि का स्थान ) ।
गोत्र ब्रह्म १.११.९२ ( विश्वामित्र गोत्र का कथन ), भविष्य २.२.९ ( भिन्न ऋषियों के प्रवर सन्तान आदि का वर्णन ), ३.४.२१.१२ ( कण्व के उपाध्याय, दीक्षित आदि दस पुत्रों से १६ - १६ गोत्रकार पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत २.६.९(अस्थि से गोत्र की उत्पत्ति का उल्लेख), महाभारत शान्ति २९६.१७(चार मूल गोत्रों अङ्गिरा, कश्यप आदि का कथन), वायु ६१.८१( ब्रह्मवादियों को उत्पन्न करने वाले वसिष्ठ आदि ५ गोत्रों के नाम ), ७०.२३/२.९.२३( कश्यप द्वारा गोत्रकार पुत्र उत्पन्न करने के लिए तप ), ११२.७/२.५०.७( द्विजों के १४ गोत्रों के नाम ), विष्णु १.१०.१३ ( वसिष्ठ व ऊर्जा के सात पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.१११ ( भृगु वंशोत्पन्न गोत्रकार ऋषियों का कथन ), १.११२ ( आङ्गिरस वंशोत्पन्न गोत्रकार ऋषियों का कथन ), १.११३ ( अत्रि वंशोत्पन्न गोत्रकार ऋषियों का वर्णन ), १.११४ ( विश्वामित्र वंशोत्पन्न गोत्रकार ऋषियों का वर्णन ), १.११५ ( कश्यप कुलोत्पन्न गोत्रकार ऋषियों का कथन ), १.११६ वसिष्ठ वंशोत्पन्न गोत्रकार ऋषियों का कथन ), १.११७ ( पराशर वंशोत्पन्न गोत्रकार - ऋषियों का कथन ), १.११८ (अगस्त्य वंशोत्पन्न गोत्रकार ऋषियों का कथन ), शिव २.३.४८.२७ ( शिव विवाह के संदर्भ में नाद के ही शिव का गोत्र व कुल होने का कथन ),स्कन्द १.१.२५.७० ( पार्वती के कन्यादान के अवसर पर ऋषियों का शिव से गोत्र तथा कुल विषयक प्रश्न, शिव महिमा का वर्णन करते हुए नारद द्वारा शिव को अगोत्र तथा अकुलीन बताना ), ३.२.९.२६ ( द्विजों के प्रमुख २४ गोत्रों तथा प्रवरों आदि का वर्णन, गोत्र कुलदेवियों के नाम ), ३.२.२१ ( धर्मारण्य निवासी ब्राह्मणों के गोत्र, प्रवर, देवता का वर्णन ), ३.२.३९ ( ब्राह्मणों के गोत्र, कुल, कुलदेवी आदि का वर्णन ), ५.३.८३.३० ( हनुमान के नामों में से एक गोत्र का उल्लेख ), ६.११५ ( चमत्कारपुर में नाग उपद्रव से ब्राह्मणों का नाश, शेष ब्राह्मणों के गोत्रों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४४०.९ ( विप्रों के २४ गोत्रों व प्रवरों का वर्णन ), १.४४०.५४ (गोत्रों की कुलदेवियों / गोत्रमाताओं के नाम ) । gotra
गोत्रप्रवर्धिनी स्कन्द ४.१.२९.५२ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) ।
गोत्रा देवीभागवत १२.६.४१ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ) ।
गोत्रभिद् वामन ७१.१८ ( इन्द्र का एक नाम तथा नाम हेतु का कथन ) ।
गोत्रवर्धन कथासरित् १०.९.९८ ( दुष्टा स्त्री के गोत्रवर्धन राजा के नगर में जाकर रानी की सेविका बनने का उल्लेख ) ।
गोदल लक्ष्मीनारायण ३.६०.३१ ( सौराष्ट्र में चिदम्बरा रानी द्वारा शासित एक देश ) ।
गोदा मत्स्य १३.३७ ( गोदाश्रम में त्रिसन्ध्या देवी के वास का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.५०.४३ ( नदियों के आपेक्षिक महत्त्व के संदर्भ में गोदा के तापी से अधिक पुण्यप्रद होने तथा रेवा के गोदा से १० गुना पुण्यप्रद होने का उल्लेख ), ५.३.१९८.७५ ( गोदाश्रम में उमा की त्रिसन्ध्या नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.५१.३३ ( रेवा, गोदा व पुष्कर तीर्थों का हंस रूप धारण कर गुरु तीर्थ में गमन तथा पाप प्रक्षालन ) । godaa
गोदावरी देवीभागवत ७.३०.६८ ( गोदावरी में त्रिसन्ध्या देवी के वास का उल्लेख - गोदावर्यां त्रिसन्ध्या तु गङ्गाद्वारे रतिप्रिया ॥ ), नारद १.१६ ( तप हेतु हिमालय पर जाते हुए राजा भगीरथ का गोदावरी तट पर स्थित भृगु ऋषि के आश्रम में गमन , भगीरथ के पूछने पर भृगु द्वारा मनुष्य के उद्धार के उपाय का कथन ), २.७२ ( अनावृष्टि काल में गौतम के तप के बल से गौतम आश्रम में गोदावरी गङ्गा का प्राकट्य, गोदावरी गङ्गा का माहात्म्य ), पद्म ६.१८० ( गोदावरी तीरवर्ती प्रतिष्ठानपुरस्थ ज्ञानश्रुति राजा व रैक्य महर्षि के गीता के षष्ठम् अध्याय के माहात्म्य विषयक वार्तालाप का वर्णन ), ब्रह्म २.७.१८ ( गौतम के पूछने पर शिव द्वारा गोदावरी में स्नान की विधि का कथन ), २.७.३५ ( गोदावरी के माहेश्वरी गङ्गा, गौतमी, वैष्णवी, ब्राह्मी, नन्दा, सुनन्दा प्रभृति नामों का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१३० ( पति द्वारा त्याग दिये जाने पर ब्राह्मणी स्त्री का योग द्वारा गोदावरी नामक नदी में परिणत होने का उल्लेख - विप्रो रोषेण तत्याज तं च पुत्रं स्वकामिनीम् ।। सरिद्बभूव योगेन सा च गोदावरी स्मृता ।। ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१५ ( हव्यवाहन अग्नि द्वारा प्रविभक्त १६ धिष्णियों में से एक - गोदावरीं वितस्तां च चन्द्रभागामिरावतीम्। विपाशां कौशिकीं चैव शतद्रूं सरयूं तथा ॥ ), १.२.१६.३४ (सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिणप्रवहा नदियों में से एक - गोदावरी भीमरथी कृष्णवेणाथ बंजुला ।। ...दक्षिणप्रवहा नद्यः सह्य पादाद्विनिःस्मृताः ।।), भागवत ५.१९.१८ (भारत की मुख्य नदियों में से एक ), वराह ७१.४५ ( मृत गौ के संजीवन हेतु गौतम द्वारा शिव जटा के साथ गङ्गा को लाना, गौतम - आनीत गङ्गा का गोदावरी नाम धारण का कथन - सिंहस्थे च गुरौ तत्र यो गच्छति समाहितः । स्नात्वा च विधिना तत्र पितॄंस्तर्पयते तथा ।। ), वामन ५७.७५ ( गोदावरी द्वारा स्कन्द को सिद्धयात्र नामक गण प्रदान करने का उल्लेख - गोदावर्याः सिद्धयात्रस्तमसायाद्रि कम्पकः ), ६५ ( इन्द्रद्युम्नादि राजाओं तथा ऋतध्वज आदि मुनियों का सप्तगोदावर तीर्थ में आगमन तथा चित्राङ्गदा प्रभृति कन्याओं से विवाह का वर्णन ), ९०.२३( सप्त गोदावर तीर्थ में विष्णु की हाटकेश्वर नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख - सप्तगोदावरे ब्रह्मन् विख्यातं हाटकेश्वरम्। तत्रैव च महाहंसं प्रयागेऽपि वटेश्वरम्।। ), वायु ४५.१०४ ( सह्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), विष्णु २.३.१२ ( सह्यपाद से नि:सृत नदियों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४५ ( गोदावरी नदी द्वारा खड्ग / गैंडे वाहन से विष्णु के अनुसरण का उल्लेख - गोदावरी च खड्गेन मयूरेण सरस्वती ।। ), शिव १.१२.१४ ( २१ मुखा गोदावरी नदी का संक्षिप्त माहात्म्य ), स्कन्द ५.३.८४.३० ( गोदावरी तीर्थ के फल सदृश कुम्भेश्वर तीर्थ के फल का कथन ), ६.१०९.१८ ( सप्तगोदावर तीर्थ में शिव की भीम नाम से स्थिति का उल्लेख - सप्तगोदावरे भीमं स्वयंभूर्निर्मलेश्वरे ॥ ), वा.रामायण ३.१६.२ ( राम का लक्ष्मण व सीता के साथ गोदावरी नदी में स्नान का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२३१( सर्व तीर्थों द्वारा गोदावरी में पाप प्रक्षालन से गोदावरी का पाप भार से युक्त होना, गोदावरी की पाप भार से मुक्ति हेतु चिन्ता, गौतम व नारद के परामर्शानुसार सभी तीर्थ देवों सहित गोदावरी का द्वारका में जाकर गोमती में पाप प्रक्षालन कर पाप मुक्त होने का वर्णन - शृणु लक्ष्मि! सिंहराशिगते बृहस्पतौ मुनिः । नारदो गौतमाश्रमं ययौ गोदावरीतटे ।। ), १.४५६.१७(विन्ध्याचल के नमन के पश्चात् अगस्त्य व लोपामुद्रा द्वारा गोदावरी तट पर महालक्ष्मी का दर्शन, लोपामुद्रा द्वारा महालक्ष्मी की स्तुति), २.२६४.२१ ( निन्दक, नास्तिक, शूद्र का गोदावरी तट पर मरण , तीर्थ प्रभाव से विप्र गृह में जन्म - गोदावर्यां देहदाहो निष्पादितश्च बान्धवैः । तेन पुण्यप्रतापेन पापाण्यस्य प्रजज्वलुः । ), कथासरित् १.६.७२ ( गुणाढ्य द्वारा गोदावरी के तट पर देवीकृति नामक सुन्दर उद्यान के दर्शन, उद्यानपाल से पूछने पर उद्यानपाल द्वारा उद्यान की उत्पत्ति का वर्णन ), ३.५.९७ ( सात धाराओं में विभक्त गोदावरी का जल पीने से उदयन के हाथियों द्वारा सात स्थानों से मद बहाने का उल्लेख - यत्तस्य सप्तधा भिन्नं पपुर्गोदावरीपयः । मातङ्गास्तन्मदव्याजात्सप्तधैवामुचन्निव ।। ), ९.५.११७ ( राजा कनकवर्ष का रानियों के साथ गोदावरी नदी में जलक्रीडा का उल्लेख ), १२.८.२१ ( गोदावरी तटस्थ प्रतिष्ठान नाम नगर के राजा त्रिविक्रमसेन की कथा ; द्र. सप्तगोदावर । godaavari/godaavaree/ godavari
गोदान भविष्य २.१.१७.७ ( गोदान में अग्नि के रुद्र नाम का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ ( ४९ तानों में से एक ) ।
गोधन वायु ४५.९१ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ), लक्ष्मीनारायण २.५९.३ ( गोधन नामक वैश्य का अरण्य में प्रेतों से संवाद, वैश्य - कृत श्राद्ध से प्रेतों की मुक्ति की कथा ) ।
गोधर्म ब्रह्माण्ड २.३.७४.५७ ( दीर्घतमा द्वारा सौरभेय वृषभ से गोधर्म ग्रहण तथा कनिष्ठ भ्राता - पत्नी पर प्रयोग का उल्लेख ), वायु ९९.४७ ( दर्श /श्राद्ध हेतु लाए गए कुशों का वृषभ द्वारा भक्षण, दीर्घतमा द्वारा ताडन करने पर वृषभ द्वारा गोधर्म का कथन ) ।
गोधा गरुड २.४६.१९(वस्त्र हरण पर गोधा बनने का उल्लेख), पद्म ६.२१३.५९( कुशल ब्राह्मण की पत्नी को दुश्चरित्रता के कारण गोधा योनि की प्राप्ति, पुत्र - कृत श्राद्ध से मुक्ति का वर्णन ), भविष्य १.१३८.३९( उमा देवी की गोधा ध्वज का उल्लेख ), स्कन्द २.१.१६.३०, २.७.६ ( श्रुतदेव - दत्त पुण्य से हेमाङ्ग राजा की गोधा योनि से मुक्ति की कथा ), ५.३.१५९.१९ ( वस्त्र हरण से गोधा योनि प्राप्ति का उल्लेख ) ; द्र. गृहगोधा । godhaa
गोधामुख देवीभागवत ९.२२.९ ( गोधामुख : शङ्खचूड - सेनानी, आदित्य से युद्ध का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.१३२ ( गोधामुख नरक प्रापक दुष्कर्मों का कथन ),
गोधूम भविष्य ४.५४.३१( उदरपूर्ति हेतु हृत गोधूमों का नरक में कृमि बनना ), शिव १.१८.४६( शालि, गोधूम आदि के पौरुष तथा षाष्टिक धान्य के प्राकृत होने का उल्लेख )
गोनाम वायु ६५.७५ ( सोमपा पितरों की मानसी कन्या, शुक्र -भार्या, त्वष्टा, वरूत्री, शण्ड, मर्क - माता ) ।
गोनिष्क्रमण वराह १४७ ( गोनिष्क्रमण तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : और्व शाप से तप्त रुद्रों के ताप शान्ति हेतु सुरभि गौओं का अवतरण, गौदुग्ध - सिंचन से रुद्रों के ताप की शान्ति ) ।
गोप नारद १.११७.८० ( गोपाष्टमी व्रत की विधि ), पद्म ६.१२१.३४ ( कार्तिक अमावस्या में केशव पूजा - दर्शन से गोप के राजराजेश्वर होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.४२ ( कृष्ण के लोमकूपों से गोपगण के आविर्भाव का उल्लेख ), भविष्य ३.४.२५.१६६ ( कृष्णाङ्ग से सात्विक, राजस, तामस तीस कोटि गोपों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.२५.१९६ ( गोप शब्द निरुक्ति ), लिङ्ग २.२७.२०३ ( गोप व्यूह का वर्णन ), वायु ६२.९ ( स्वारोचिष मन्वन्तर के १२ तुषित देवों में से एक तुषित देव ), शिव ४.१७.६९ ( श्रीकर नामक गोप कुमार की शिवभक्ति, भक्ति - प्रभाव का वर्णन ), स्कन्द ३.३.५ ( पञ्चहायन नामक गोप - सुत की शिव भक्ति का वृत्तान्त ), ५.१.३१.८ ( गोप तीर्थ में स्नान तथा गोपेश्वर शिव के दर्शन से शिवलोक प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१६२, ५.३.१७४ ( गोपेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२३१.२२ ( रेवा - सागर सङ्गम पर २ गोपेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.१८१, ७.१.१६५ ( ब्रह्मा के यज्ञ हेतु शक्र द्वारा गोप - कन्या को लाना, गोप - कन्या का पवित्रीकरण तथा ब्रह्मा से पाणिग्रहण ), लक्ष्मीनारायण १.१७०.४१ ( कृष्ण के रोमकूपों से गोपगण के आविर्भाव का उल्लेख ), कथासरित् ८.४.८० ( विद्याधरराज कालकम्पन द्वारा मारे गए महारथियों में गोपक का उल्लेख ) । gopa
गोपजला वायु ९९.१२६ ( रौद्राश्व व घृताची की १० पुत्रियों में से एक ) ।
गोपति ब्रह्माण्ड २.३.५९.६८ ( सूर्य का एक नाम ), भविष्य १.६१.२५( भ्रमण/व्रजन् करते समय गोपति सूर्य के स्मरण का निर्देश ), वामन ९०.१० ( गया में विष्णु का गोपति नाम से वास ), वायु १०८.५२ ( गया में विष्णु का एक नाम ) । gopati
गोपद ब्रह्माण्ड १.२.३६.१० ( स्वारोचिष मन्वन्तर के तुषित देवों में से एक ) ।
गोपायन वामन ६.८८ ( शक्ति - शिष्य, शैव सम्प्रदाय प्रचारक ) ।
गोपायी लिङ्ग २.२७.२०७ ( गोपायी व्यूह का वर्णन ) ।
गोपार स्कन्द ५.३.७३ ( कामधेनु के तपश्चरण में गोदेह से लिङ्ग की उत्पत्ति, गोपारेश्वर तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ) ।
गोपाल गरुड ३.९.४(१५ अजान देवों में से एक), ३.२९.५८(दध्यन्न भोजन काल में गोपाल के स्मरण का निर्देश), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३१.२७ ( गोपाल से गण्डों / कपोलों की रक्षा की प्रार्थना ), ४.१२.२४ ( गोपाल से पूर्व दिशा में रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्माण्ड २.३.३३.८ ( कृष्ण कवच में कृष्ण का एक नाम, गोपाल से गण्ड प्रदेश की रक्षा की प्रार्थना का उल्लेख ), वामन ९०.११ ( उत्तर तीर्थ में विष्णु का गोपाल नाम से वास ), विष्णु ५.२०.४९ ( कृष्ण का एक नाम ), स्कन्द ४.२.६१.२०८ ( विष्णु के १०८ गोपाल रूपों का उल्लेख ), ७.१.३११ ( गोपाल स्वामि हरि का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.२६१.१७ ( गोपाल शब्द की निरुक्ति ), २.२७२.३ ( गोपालकृष्ण द्वारा पुत्र हेतु तप, नर, नारायण, कृष्ण व हरि का चार पुत्रों के रूप में अवतरण ), ३.३८.४ ( ब्रह्मा के गायत्री वत्सर में गोपलकृष्ण तथा कम्भराश्री के गृह में श्रीहरि द्वारा जन्म ग्रहण का उल्लेख ), ४.२६.५३ ( गोपाल के शरणागत होने पर माया से रक्षा का उल्लेख ), कथासरित् १८.३.४ ( सिन्धुराज गोपाल प्रभृति राजाओं द्वारा विक्रमादित्य को प्रणाम करने का उल्लेख ) । gopaala
गोपालक कथासरित् ३.१.१०५ ( वासवदत्ता- भ्राता, वत्सराज- मन्त्री यौगन्धरायण द्वारा गोपालक को कौशाम्बी में बुलाना, राजा के अभ्युदय हेतु गोपालक आदि का मिलकर किसी योजना में सम्मिलित होने का वर्णन ), ३.४.३० ( देवसेन नामक गोपालक / ग्वाल द्वारा स्वयं को राजा घोषित करना, ब्राह्मण - पुत्र द्वारा आज्ञा का उल्लङ्घन करने पर पैर काटने का कथन ), ६.३.१५४ ( पुरुष वेषधारी कीर्त्तिसेना द्वारा जङ्गल में मिले हुए गोपाल / ग्वाले की सहायता से वसुदत्तपुर पहुंचना तथा रुग्ण राजा वसुदत्त को निरोग करने का वृत्तान्त ), १६.१.६४ ( गोपालक : चण्डमहासेन के मरने पर उनके ज्येष्ठ पुत्र गोपालक द्वारा राज्य भार वहन करने में अनिच्छा प्रदर्शित करना, गोपालक की इच्छा से वत्सराज द्वारा कनिष्ठ पुत्र पालक को उज्जयिनी में राज्याभिषिक्त करना ), १७.१.३ ( नरवाहनदत्त के मामा गोपालक का असित पर्वत पर कश्यप के आश्रम में तप करने का उल्लेख ) । gopaalaka/ gopalaka
गोपाली मत्स्य २०१.३३ ( गोपालि : ५ गौर पराशरों में से एक ), हरिवंश १.३५.१४, २.५७.१४ ( गोप वेष धारिणी गोपाली नामक अप्सरा से गार्ग्य द्वारा कालयवन की उत्पत्ति का उल्लेख ) ।
गोपी गर्ग १.४.३४ ( श्रुतियों का व्रजमण्डल में गोपियों के रूप में अवतरण ), २.१८ ( गोपदेवी : राधा के प्रेम की परीक्षा हेतु कृष्ण द्वारा गोपदेवी रूप धारण कर राधा से वार्तालाप का वर्णन ), ४.१ ( श्रुति रूपा गोपियों द्वारा दुर्वासा को भोजन प्रस्तुत करने की कथा ), ४.२ ( ऋषि रूपा गोपियों द्वारा कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने की कथा : पूर्वजन्म में दण्डकारण्य वासी ऋषि ), ४.३ ( कृष्ण द्वारा मैथिली रूपा गोपियों के वस्त्र हरण की कथा ), ४.४ ( कोसल प्रान्तीय स्त्रियों का व्रज में गोपी होकर केवल प्रेम से कृष्ण को प्राप्त करने का कथन ), ४.५ ( अयोध्यापुरवासिनी गोपियों का राजा विमल की कन्याएं बनकर कृष्ण को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), ४.८ ( यज्ञसीता स्वरूपा गोपियों का एकादशी व्रत अनुष्ठान से कृष्ण को प्राप्त करने का वर्णन ), ४.१० ( गोपी भाव को प्राप्त पुलिन्द - कन्याओं द्वारा कृष्ण प्राप्ति का वर्णन ), ४.११ ( गोपी भाव को प्राप्त लक्ष्मी - सखियों का वृषभानु - कन्याओं के रूप में कृष्ण को प्राप्त करना ), ४.१२ ( दिव्यादिव्य, त्रिगुणवृत्तिमयी गोपियों का ९ उपनन्द - कन्याओं के रूप में कृष्ण को प्राप्त करने का वर्णन ), ४.१३ ( देवाङ्गनाओं का दिवस्पति नन्द की कन्याओं के रूप में उत्पन्न होना, देवाङ्गना स्वरूपा गोपियों द्वारा प्रेम से कृष्ण की प्राप्ति ), ४.१४ ( जालन्धर की स्त्रियों द्वारा रङ्गोजि गोप की कन्याओं के रूप में जन्म लेकर कृष्ण की प्राप्ति ), ४.१५ ( पृथु से वर प्राप्त नारियों का शोणपुर के स्वामी नन्द की कन्याएं बनकर व कृष्ण पंचांग द्वारा यमुना पूजन से कृष्ण को प्राप्त करना ), ५.१७ ( गोपियों के विभिन्न गणों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रियाओं का वर्णन ), ६.१५.१४ ( गोपीभूमि माहात्म्य : गोपीचन्दन उपलब्धि का स्थान, दीर्घबाहु राजा की नरक से मुक्ति ), १०.४५ ( गोपियों द्वारा कृष्ण की स्तुति तथा उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर कृष्ण का आविर्भाव ), पद्म ५.७२(विभिन्न तापसों द्वारा तप से कृष्ण-प्रिया गोपियां बनना), ५.७३.३२( गोपियों के श्रुति व गोपकन्याओं के ऋचाएं होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.४० ( राधा के लोमकूपों से गोपिकाओं के आविर्भाव का उल्लेख ), ४.४.७४ ( गोलोक में राधा कृष्ण के साथ गोपियों के निवास का उल्लेख ), ४.४.१३० ( वृन्दावन नामक वन में कोटि - कोटि गोपियों तथा उनके आश्रमों की स्थिति का कथन ), भविष्य ३.४.२५.१६७ ( राधाङ्ग से सात्विक, राजस, तामस ३० कोटि गोपियों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.७३.६ ( गोपाली, पालिका, धन्या प्रभृति प्रधान गोपियों के नामों का उल्लेख ), भागवत १०.३४.२४ ( कृष्ण के राग का श्रवण कर गोपियों की मूर्छा, शंखचूड यक्ष द्वारा उनका हरण, कृष्ण द्वारा शङ्खचूड के वध तथा गोपियों की मुक्ति का वृत्तान्त ), १०.४७ ( उद्धव के साथ गोपियों का विरह संवाद, कृष्ण संदेश को सुनकर गोपियों की विरह व्यथा के शान्त होने का वृत्तान्त ), १०.८२.४० ( कुरुक्षेत्र में कृष्ण से गोपियों का मिलन, कृष्ण द्वारा गोपियों को अध्यात्म शिक्षा का शिक्षण ), ११.१२.६ ( सत्संग प्रभाव से व्रज - गोपियों द्वारा ईश प्राप्ति का उल्लेख ), विष्णु ५.१८.१२ ( कृष्ण के मथुरा गमन पर गोपी विरह का वर्णन ), शिव ४.१७.१८ ( गोपी के पञ्चवर्षीय कुमार द्वारा शिव पूजा का दर्शन, शिव पूजा में तन्मयता तथा शिव प्रभाव का वर्णन ), स्कन्द ७.१.११८ ( गोपियों द्वारा प्रभास में स्थापित गोपी आदित्यश्वर तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.११८.१० (लम्बिनी, चन्द्रिका प्रभृति १६ प्रमुख गोपियों का नामोल्लेख ), ७.१.१२० (गोपियों द्वारा स्थापित गोपीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.१७०.३९ ( राधा के रोमकूपों से गोपीगण के आविर्भाव का उल्लेख ), १.३०६.७०( नारायणी द्वारा पुरुषोत्तम की आराधना से गोपी बनने का उल्लेख ), १.४८८ ( रास मण्डल में गोपियों के साथ कृष्ण के चरित्र का वर्णन ) । gopee/gopi
गोपीगणेश ब्रह्माण्ड २.३.३३.१३ ( कृष्ण कवच में कृष्ण का एक नाम, गोपीगणेश से ग्रीवा की रक्षा की प्रार्थना ) ।
गोपीजनेश ब्रह्माण्ड २.३.३३.१९ ( कृष्णकवच में कृष्ण का एक नाम, गोपीजनेश से ऊरु की रक्षा की प्रार्थना ) ।
गोपीरमण ब्रह्मवैवर्त्त ३.३१.३६ ( गोपीरमण कृष्ण से नितम्बों की रक्षा की प्रार्थना ) ।
गोपीन्द्र स्कन्द ५.१.३१.७१ ( गौतम द्वारा शापित इन्द्र के सहस्र भगों का शिवाराधना से सहस्र गौ में रूपान्तरण होने पर उस स्थान की गोपीन्द्र तीर्थ नाम से प्रसिद्धि ) ।
गोपीश ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.३३ ( गोपीश कृष्ण से दक्षिण दिशा में रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्माण्ड २.३.३३.१० ( कृष्ण कवच में कृष्ण का एक नाम, गोपीश से दन्तपंक्ति की रक्षा की प्रार्थना ) ।
गोपेश ब्रह्मवैवर्त्त ३.३१.३२ ( गोपेश कृष्ण से स्कन्ध की रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्माण्ड २.३.३३.१३ ( कृष्ण कवच में कृष्ण का एक नाम , गोपेश से स्कन्ध की रक्षा की प्रार्थना ) ।
गोप्रचार भविष्य २.४.१७ ( गोप्रचार भूमि की प्रतिष्ठा विधि व माहात्म्य ), वामन ९०.१० ( गोप्रचार तीर्थ में विष्णु का कुशेशय नाम से वास? ), स्कन्द ७.४.१३.१४ ( गोपियों की प्रार्थना पर कृष्ण द्वारा मय सरोवर के निकट गोप्रचार सरोवर का निर्माण, गोप्रचार / गोपी सरोवर के माहात्म्य का वर्णन ) । goprachaara
गोप्रतार स्कन्द २.८.६.१७६ ( गोप्रतार तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ) ।
गोभानु ब्रह्माण्ड २.३.७४.१ ( वह्नि - पुत्र, त्रिसानु - पिता, तुर्वसु वंश ), मत्स्य ४८.१ ( गर्भ - पुत्र, त्रिसारि - पिता, तुर्वसु वंश ), वायु ९९.१ ( वह्नि - पुत्र, त्रिसानु - पिता, तुर्वसु वंश ) ।
गोभिल देवीभागवत ३.१०.२२ ( देवदत्त के पुत्रेष्टि यज्ञ में गोभिल का उद्गाता बनना, देवदत्त द्वारा अपमान पर गोभिल द्वारा मूर्ख पुत्र प्राप्ति का शाप, पुन: देवदत्त द्वारा अनुग्रह हेतु प्रार्थना किए जाने पर गोभिल द्वारा उत्शाप का वर्णन ), नारद २.२८.८० ( गोभिल राक्षस द्वारा काशिराज - पुत्री रत्नावली का हरण, कौण्डिन्य विप्र द्वारा राक्षस - वध की कथा ), पद्म २.४९+ ( गोभिल दैत्य द्वारा उग्रसेन का रूप धारण करके पद्मावती से समागम, कंस पुत्र की उत्पत्ति का वर्णन ), मत्स्य १९९.१६ ( काश्यप वंशज प्रवर प्रवर्तक ऋषि ), वायु १०६.३७ ( ब्रह्मा के यज्ञ में मानस - सृष्ट ऋत्विजों में से एक ), स्कन्द ४.२.९७.१८२ ( गोभिलेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ६.१८०.३५ ( ब्रह्मा के यज्ञ में गोभिल के उद्गाता बनने का उल्लेख ), हरिवंश २.२८( कंस के पिता गोभिल के बदले द्रुमिल का कथन )छण्स्ज्iठष्, लक्ष्मीनारायण १.५०९.२६( ब्रह्मा के सोमयाग में उद्गाता ), १.५०९.७५( पत्नीव्रत द्विज के गोभिल नाम से गायत्री - पिता बनने का कथन ), द्र. द्रुमिल ।gobhila
गोभुज स्कन्द ३.२.१०.३१ ( विश्वावसु गन्धर्व की कन्याओं से गोभुज वणिजों का विवाह तथा सन्तति का कथन ) ।
गोमती गर्ग ६.१०.६ ( श्रीहरि के अश्रुबिन्दुओं से गोमती महानदी की उत्पत्ति, चक्रांकित पाषाणों का स्थान, गोमती के माहात्म्य का कथन ), ६.१३ ( गोमती - सिन्धु सङ्गम तीर्थ का माहात्म्य : राजमार्गपति वैश्य के उद्धार की कथा ), देवीभागवत १२.६.४० ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), ब्रह्म १.६९ ( गोमती नदी के तट पर कण्डु मुनि के आश्रम का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२६ ( हिमवत्पाद से नि:सृत नदियों में से एक ), २.३.६७.२९ ( क्षेमक राक्षस से पीडित काशिराज के काशी नगरी का परित्याग कर गोमती तट पर स्थित नगरी में निवास का उल्लेख ), भागवत १०.७९.११ ( बलभद्र की तीर्थयात्रा प्रसंग में गोमती में स्नान का उल्लेख ), मत्स्य १३.२८ ( गोमन्त पर गोमती नाम से सती देवी के वास का उल्लेख ), २२.३१ ( पितर श्राद्ध हेतु गोमती नदी की प्रशस्तता का उल्लेख ), ११४.२२ ( हिमालय की उपत्यका से नि:सृत नदियों में से एक ), १६३.६३ ( हिरण्यकशिपु द्वारा प्रकम्पित नदियों में से एक ), वामन ९०.३१ ( गोमती में विष्णु का छादितगद नाम से वास ), वायु २.९ ( नैमिष क्षेत्र में प्रवाहित एक नदी ), ४५.९५ ( हिमवत्पाद से नि:सृत एक नदी ), ९२.२६ ( निकुम्भ द्वारा शापित वाराणसी का परित्याग कर राजा दिवोदास द्वारा गोमती - तट पर राजधानी बसाने का उल्लेख ), विष्णु ३.१४.१८ (गोमती में स्नान, अर्चनादि से पाप नाश का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४४ ( गोमती नदी द्वारा शिशुमार वाहन से श्रीहरि के अनुसरण का उल्लेख ), स्कन्द २.३.१.२८ ( गोमती में स्नान से मुक्ति प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.६२.१ ( गोमती कुण्ड का माहात्म्य : सान्दीपनी मुनि की सन्ध्या का स्थान, सान्दीपनी से गोमती महत्त्व जानकर कृष्ण द्वारा कुशस्थली/उज्जयिनी में गोमती की स्थापना का वर्णन ), ५.३.१९८.६५ ( गोमन्त तीर्थ में उमा की गोमती नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.४.५+ ( वसिष्ठ - सुता बनकर गोमती नदी के स्वर्ग से अवतरण, निरुक्ति व माहात्म्य का वर्णन ), ७.४.१४.४७( पञ्चनद तीर्थ में मरीचि के पावनार्थ गोमती नदी के आगमन का उल्लेख ), ७.४.२९.४४ ( गौतमी द्वारा नारद से पाप प्रक्षालनार्थ उपाय की पृच्छा, शिव के निर्देश पर द्वारका में गोमती में स्नान हेतु जाना ), वा.रामायण २.४९.१२ ( कोसल जनपद से निकलकर वेदश्रुति, गोमती एवं स्यन्दिका नदियों को पार करके राम का लक्ष्मणादि सहित शृङ्गवेरपुर पहुंचना ), लक्ष्मीनारायण १.२१९ ( गोमती नदी के प्रादुर्भाव का इतिहास, गोमती तीर्थ निर्माण तथा माहात्म्य ), ४.३८.९ ( गोमती नामक शूद्रा की कुटुम्ब सहित क्षय रोग ग्रस्तता, साधु सेवा से रोग मुक्ति का वर्णन ), ४.१०१.९२ ( कृष्ण - पत्नी गोमती के पुत्र - पुत्री युगल का नामोल्लेख ) । gomatee/gomati
गोमन्त मत्स्य १३.२८( गोमन्त में गोमती नाम से सती देवी के वास का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१९८.६५ (गोमन्त तीर्थ में उमा की गोमती नाम से स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश २.३९.६४ ( परशुराम द्वारा कृष्ण - बलराम को गोमन्त गिरि चलने का परामर्श ), २.४० ( कृष्ण - बलराम व परशुराम का गोमन्त गिरि पर आरोहण, गोमन्त की शोभा का वर्णन ), २.४२ ( जरासन्ध की सेना के पर्वत पर आक्रमण तथा जरासन्ध द्वारा गोमन्त - दाह का वर्णन ) । gomanta
गोमय देवीभागवत ११.११.३ ( गोमय से भस्म निर्माण का कथन ), ब्रह्म १.११०.४५(घर्म से गोमय के प्रादुर्भाव का उल्लेख), लिङ्ग १.७४.८ ( भिन्न - भिन्न देवों द्वारा भिन्न - भिन्न धातुओं से निर्मित लिङ्ग पूजा के अन्तर्गत गुह द्वारा गोमय निर्मित लिङ्ग पूजा का उल्लेख ), वराह १३९ ( गोमय लिम्पन का संक्षिप्त माहात्म्य ), विष्णु ५.५.१३( पूतना वध के पश्चात् भय त्रस्त नन्दगोप द्वारा बालकृष्ण की रक्षार्थ गोकरीष/गोमय चूर्ण बालकृष्ण के मस्तक पर रख कर स्वस्तिवाचन का कथन ), स्कन्द ५.३.८३.१०९ ( गौ के गोमय /गोबर में लक्ष्मी की स्थिति का उल्लेख ), ६.१७८.२९(गोमय-निर्मित गौरी के पूजन से गोलोक प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१५.३० ( गोमय में लक्ष्मी की स्थिति का उल्लेख ), ३.१३२.३७ ( रत्नधेनु महादान विधि के अन्तर्गत गुड की गोमय रूपता का उल्लेख ) । gomaya
गोमा ब्रह्माण्ड २.३.५.४० ( प्रह्लाद - पुत्र शम्भु के दो पुत्रों में से एक ), २.३.७.२ ( मौनेय नामक १६ देवगन्धर्वों में से एक ), वायु ६७.८१ ( प्रह्लाद - पुत्र शम्भु के दो पुत्रों में से एक ) ।
गोमायु मत्स्य १४८.४७ ( महिष दैत्य के ध्वज पर गोमायु चिह्न के अङ्कित होने का उल्लेख ), कथासरित् १०.७.१२५ ( कर्ण व हृदय से हीन गर्दभ की कथा में गोमायु / सियार की दुष्टता व चतुरता ) ।
गोमित्र वामन ९०.३४ ( वलभी में विष्णु का गोमित्र नाम से वास ) ।
गोमुख नारद १.६६.१०८( तिथीश की शक्ति गोमुखी का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.१३९ ( गोमुख नरक प्रापक दुष्कर्मों का कथन : तृषिता गौ का जल से वारण करने पर गोमुख नरक की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२२ ( द्वितीय पाण्डुभौम सुतल में निवास करने वाले राक्षसों में से एक ), वायु ५०.२१ ( द्वितीय पाण्डुभौम तल में गोमुख राक्षस के नगर का उल्लेख ), ६७.८१ ( प्रह्लाद - सुत शम्भु के अनेक पुत्रों में से एक ), विष्णु ३.४.२२ ( वेदमित्र के ५ शिष्यों में से एक ), स्कन्द १.२.६२.२८( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ६.९३ ( गोमुख तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन : अम्बरीष - पुत्र की गोमुख तीर्थ में स्नान से कुष्ठ से मुक्ति ), वा.रामायण ७.२८.१० ( मातलि - पुत्र, जयन्त - सारथी, मेघनाद द्वारा गोमुख पर बाण वर्षा का उल्लेख ), कथासरित् ४.३.५७ ( नित्योदित / इत्यक नामक द्वारपालाध्यक्ष का पुत्र, आकाशवाणी द्वारा गोमुख के वत्सराज - कुमार के भावी मन्त्री होने का उल्लेख ), ६.८.११५ ( नरवाहनदत्त का युवराज पद पर अभिषेक होने पर इत्यक - पुत्र गोमुख को प्रधान द्वारपाल बनाने का उल्लेख ), ६.८.२१६ ( कलिङ्गसेना द्वारा गोमुख से स्वसुता मदनमञ्चुका के विद्याधर द्वारा किए गए अपहरण के प्रयास का कथन ), १४.२.५९ ( नरवाहनदत्त के प्रिय मित्रों में से एक गोमुख के चतुर होने का उल्लेख ), १७.१.११ ( मानसवेग द्वारा रानी मदनमञ्चुका के हरण से दुखी हुए नरवाहनदत्त को गोमुख द्वारा सान्त्वना प्रदान का प्रसंग ) । gomukha
गोमूत्र भागवत ९.१०.३४( भरत द्वारा तप काल में गोमूत्र से संस्कृत यव भक्षण का उल्लेख )
गोमेदक ब्रह्माण्ड १.२.१९.७ ( प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, गोमेदक के नाम पर गोमेद वर्ष के नामकरण का उल्लेख ), मत्स्य १२३ ( गोमेदक द्वीप का वर्णन ), वायु ४९.६ ( प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों में से एक गोमेदक के नाम पर गोमेदक वर्ष के नामकरण का उल्लेख ), ४९.१३( गोमेदक वर्ष के दूसरे नाम शान्तभय का उल्लेख ), विष्णु २.४.७ ( गोमेद : प्लक्ष द्वीप के सात पर्वतों में से एक ) । gomedaka
गोमेध स्कन्द ६.२६३.१२ ( योगी द्वारा वाणी जय की गोमेध संज्ञा का उल्लेख ) ।
गोरक्षक वराह २१५.९६ ( गोरक्षक तीर्थ के दर्शन से गोसहस्र फल प्राप्ति का उल्लेख ) ।
गोरख भविष्य ३.३.२४.५८ ( कृष्णांश आदि द्वारा गोरख नामक योगी की आराधना हेतु नर्तन, प्रसन्न गोरख योगी द्वारा संजीवनी विद्या प्रदान करने का कथन ), ३.४.१२.४६ ( गोरख के गुरु रूप में मच्छन्द का उल्लेख ) । gorakha
गोरोचन स्कन्द १.२.१३.१९१( शतरुद्रिय प्रसंग में शेष द्वारा गोरोचनमय लिङ्ग की पशुपति नाम से पूजा का उल्लेख ) ।
गोल हरिवंश ३.१११.४( सुधर्मा सभा में कृष्ण की सात्यकि के साथ गोलक्रीडा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.९८ ( नरक में गोल कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) ।
गोलक ब्रह्माण्ड ३.४.१.१५६ ( संवर्तक अग्नि द्वारा ब्रह्माण्डगोलक के दहन का उल्लेख ), वराह १८९.२३ ( श्राद्ध में गोलक ब्राह्मण के आमन्त्रण का निषेध, मेधातिथि राजा का वृत्तान्त ), वायु ६०.६४ (शाकल्य के पांच शिष्यों में से एक ), १००.१५९ ( संवर्तक अग्नि द्वारा ब्रह्माण्डगोलक के दहन का उल्लेख ), स्कन्द ७.४.१७.३२ ( द्वारका के उत्तर द्वार पर गोलक राक्षस की स्थिति का उल्लेख ), ७.४.२०.८ ( गोलक प्रभृति दैत्यों द्वारा दुर्वासा के स्नान में विघ्न, संकर्षण द्वारा गोलक के वध का वर्णन ) ।
गोलभ स्कन्द ३.१.१२.१८ ( गोलभ राजा द्वारा मनोजव राजा से राज्य का हरण, ब्रह्मास्त्र से गोलभ की मृत्यु ), लक्ष्मीनारायण १.४३७.६ ( क्रूरकर्म विपाक से मनोजव नामक राजा की गोलभ नामक राजा से पराजय का उल्लेख ) । golabha
गोलाङ्गूल ब्रह्माण्ड २.३.७.२४४ ( प्रधान वानरों में से एक ), लिङ्ग २.५.७७ ( नारद तथा पर्वत मुनि का अम्बरीष - कन्या श्रीमती पर मोहित होना, कन्या प्राप्ति हेतु नारद का श्रीहरि के समीप गमन तथा पर्वत मुनि को गोलाङ्गूल / वानरवत् करने की अभ्यर्थना, पर्वत मुनि की भी श्रीहरि से नारद को वानरवत् करने की अभ्यर्थना, दोनों का हरि कृपा से गोलाङ्गूलवत् होकर श्रीमती को वरण करने से वंचित होने का वृत्तान्त ) । golaangoola/ golaanguula/ golangula
गोलोक गर्ग १.२.३२ ( गोलोक की शोभा का वर्णन ), ५.१७.२ ( कृष्ण विरह पर गोलोकवासिनी गोपियों द्वारा व्यक्त उद्गारों का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२.६ ( तीनों लोकों से ऊपर गोलोक की स्थिति, उसके ऐश्वर्य तथा नित्यता का कथन ), १.५ ( गोलोक में कृष्ण द्वारा गौ - गोपादि की सृष्टि का कथन ), १.२८.४० (कृष्ण - अधिष्ठित गोलोक के ऐश्वर्य का कथन ), २.४९.५७(गोलोक में कृष्ण के द्विभुज तथा वैकुण्ठ में चतुर्भुज होने का कथन), २.५४.५ ( गोलोक के ऐश्वर्य का वर्णन ), २.५४.१४९ (गोलोक का स्वरूप, सुयज्ञ राजा द्वारा गोलोक के दर्शन ), ३.४२.६२ ( गोलोक में ही प्रकृति के राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा व सरस्वती नामक पांच रूपों में परिणत होने का उल्लेख ), ३.४२.६९ ( वैकुण्ठ से ५० कोटि योजन पर गोलोक की स्थिति तथा गोलोक से परे किसी अन्य लोक के न होने का कथन ), ४.४.७८ ( ब्रह्मा, विष्णु व महेश के साथ पृथ्वी तथा देवों का गोलोक गमन, गोलोक के ऐश्वर्य का वर्णन ), ४.३५.५ ( कृष्ण के आदेश से ब्रह्मा के गोलोक जाने तथा प्रकृति की अंश स्वरूपा भारती को प्राप्त करने का उल्लेख ), ४.७३.१६ (गोलोक के ऐश्वर्य का वर्णन ), भागवत १०.२७.१ ( गोवर्धन धारण द्वारा व्रज की रक्षा करने पर गोलोक से कृष्ण के समीप सुरभि धेनु के आगमन का उल्लेख ), महाभारत अनुशासन ८१.१९, ८३, वायु १०४.५३ ( गोलोक में श्रीकृष्ण परब्रह्म के निवास का उल्लेख ), शिव ५.१९.४० ( शिवलोक के समीप गोलोक का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१२० ( कृष्ण के निवास स्थान गोलोक के वर्णनान्तर्गत विरजा नदी, शतशृङ्ग पर्वत, रासमण्डल, वृन्दावन, अक्षयवटादि का वर्णन ), १.१२१ ( गोलोक के प्राकार, प्रासाद, उद्यान, अन्त:पुर तथा १६ गोपुरादि का वर्णन ), १.१७० ( गोलोक में कृष्ण के अङ्गों से गोप, गोपी, गौ, गण, हंस, तुरग, सिंहादि के आविर्भाव का कथन ), १.१८४.१३ ( विधुर शिव द्वारा सती का स्मरण, अदृश्यरूपा सती द्वारा शिव को दुःख निरास हेतु गोलोक धाम गमन का परामर्श, शिव का गोलोक गमन, गोलोक में वृषभ रूप धारण कर गौओं के साथ विहरण, सती का अदृश्य रूपा होकर गौओं में निवास का कथन ), १.२१७ ( शर्याति - पुत्र आनर्त का कृष्ण के साथ गोलोक गमन, कृष्ण द्वारा आनर्त को गोलोक का एक दिव्य खण्ड प्रदान करना, गोलोक खण्ड की पश्चिम समुद्र तट पर स्थापना, कालान्तर में इसी खण्ड पर द्वारका के निर्माण का कथन ), १.२९९.७८ ( अधिक मास में पुरुषोत्तम पूजन तथा सप्तमी के एकभुक्त व्रत के प्रभाव से सिद्धि व बुद्धि का एक स्वरूप से कृष्ण के साथ गोलोक में वास तथा द्वितीय स्वरूप से गणपति के साथ विवाह ), १.३००.६८ ( अधिकमास में व्रत के प्रभाव से गोलोक धाम तथा गोलोकेश श्री राधाकृष्ण की प्राप्ति का उल्लेख ), १.३१५.६ ( गोलोक में कृष्ण द्वारा महोत्सव आयोजन का वर्णन ), १.३२४.१३ ( राधा से ईर्ष्या करने पर कृष्ण - पत्नी वृन्दा का गोलोक से पतन ), १.३३२ ( गोलोक में कृष्ण - पत्नियों गङ्गा, पद्मा व सरस्वती की परस्पर कलह, परस्पर शाप प्रदान तथा नदी रूपता का वृत्तान्त ), १.३७७ (गोलोकस्थ राधा द्वारा पुत्रियों हेतु कथित पतिव्रताचार धर्म पालन, माहात्म्यादि का निरूपण ), १.४२२.६४ ( राधा के रोष से ब्रह्मप्रिया व पम्पा का गोलोक से अवतरण, रामचन्द्र के योग से शबरी व पम्पा के पुन: गोलोक गमन का वर्णन ), १.४६८ ( कलावती नामक नर्तकी के सखियों सहित कृष्ण से विवाह तथा गोलोक गमन का वर्णन ), २.१४०.८ ( २५ प्रकार के प्रासादों में से एक गोलोक के ९९९ स्तम्भों से युक्त होने का उल्लेख ) । goloka
गोलोकनाथ ब्रह्मवैवर्त्त ३.३१.४० (गोलोकनाथ कृष्ण से आग्नेयी दिशा में रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्माण्ड २.३.३३.२२ ( कृष्ण कवच में कृष्ण का एक नाम, गोलोकनाथ से आग्नेयी दिशा में रक्षा की प्रार्थना का उल्लेख ) ।
गोवत्स नारद १.१२१.२७ ( गोवत्स द्वादशी व्रत की विधि ), भविष्य ४.६९ ( गोवत्स द्वादशी व्रत की विधि का वर्णन ), स्कन्द ३.२.२७ ( गोवत्सेश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का वर्णन ) । govatsa
गोवर्धन गर्ग १.२.३२ ( गोलोक में गोवर्धन नामक गिरिराज के विराजित होने का उल्लेख ), २.२ ( भारत से पश्चिम दिशा में शाल्मलि द्वीप में द्रोणाचल - पुत्र गोवर्धन पर्वत का जन्म, देवों द्वारा स्तुति, पुलस्त्य ऋषि का आगमन तथा गोवर्धन को काशी में ले जाने हेतु द्रोणाचल से याचना, शापभय से द्रोणाचल द्वारा स्वीकृति प्रदान, पुलस्त्य का हथेली पर रख कर गोवर्धन को काशी ले जाना, व्रजमण्डल में निवास की इच्छा से गोवर्धन का भारी होना, चकित पुलस्त्य द्वारा व्रज में गोवर्धन को रखना, प्रतिज्ञा अनुसार गोवर्धन का व्रज में ही रहना, क्रुद्ध पुलस्त्य द्वारा गोवर्धन को तिल-तिल क्षरित होते रहने के शाप का वृत्तान्त ), ३.१.११ (श्रीहरि के वक्ष:स्थल से गोवर्धन का प्राकट्य तथा पुलस्त्य ऋषि के प्रभाव से व्रजमण्डल में आगमन का उल्लेख ), ३.१.१५ ( कृष्ण द्वारा गोवर्धन पूजा विधि का कथन ), ३.२ ( गोपों द्वारा गिरिराज गोवर्धन पूजन महोत्सव का वर्णन ), ३.३ ( कृष्ण का गोवर्धन पर्वत को उठाकर इन्द्र द्वारा करायी गई घोर जलवृष्टि से गोपों की रक्षा का वृत्तान्त ), ३.७ ( गोवर्धन के अङ्गभूत तीर्थों, कुण्डों, मन्दिरों आदि का वर्णन, गोवर्धन पर वृक्षों के पत्ते द्रोणाकार होने का कथन ), ३.८ ( गोवर्धन के विभिन्न तीर्थों में गोवर्धन के अङ्गों की स्थिति का वर्णन ), ३.९.३९ ( राधा - कृष्ण के रास हेतु कृष्ण के तेज से गोवर्धन का निर्माण, अपर नाम शतशृङ्ग, शाल्मलि द्वीप में जन्म, पुलस्त्य द्वारा व्रजमण्डल में आनयन का कथन ), ३.१०+ ( गोवर्धन शिला के स्पर्श से राक्षस के उद्धार की कथा तथा गोवर्धन माहात्म्य का वर्णन ), ५.१७.८ ( गोवर्धन वासिनी गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया ), १०.४२.८ ( गोवर्धन गिरि के स्वरूप का उल्लेख -- शतचन्द्र ), नारद २.८०.८७ ( गोवर्धन नामक द्विज का तपोबल से विष्णु का दर्शन, वर प्रदान के रूप में विष्णु की गोवर्धन के पृष्ठ पर स्थिति, विष्णु का पर्वत रूप होना, कृष्णावतार में भगवान् का गोवर्धन द्विज को अन्नराशि , दुग्ध राशि, जलराशि आदि से तृप्त करने का कथन ), पद्म ६.१२२.२९ ( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का कथन, गोवर्धनपूजामन्त्र ), ब्रह्म १.७९.३३ (प्रलम्बासुर वध के पश्चात् कृष्ण के कहने पर व्रज गोपों द्वारा इन्द्र यज्ञ का परित्याग कर गोवर्धन गिरि यज्ञ का प्रवर्तन ), २.२१ ( गोवर्धन तीर्थ का माहात्म्य : गौ पर अत्याचार के कारण नन्दी द्वारा मनुष्य लोक से गौ का हरण, देवों की प्रार्थना पर गौतमी गङ्गा के पार्श्व में नन्दी द्वारा पुन: गौ का वर्धन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२१.८७ ( इन्द्रयाग के अवसर पर कृष्ण द्वारा वस्तुओं का अर्ध भाग गोवर्धन को प्रदान करने, गोवर्धन के पुण्यतम होने तथा शब्द निरुक्ति का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४४ ( गोदावरी तट पर राम द्वारा गोवर्धन नामक नगर की स्थापना का उल्लेख ), भविष्य ३.३.२१.६३ ( कलियुग में गोवर्धन के मकरन्द के रूप में अवतरण का उल्लेख ), ३.४.२५.१६५ ( मनस् प्रकृति से गोवर्धन पर्वत की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ५.१९.१६ ( भारतवर्ष के प्रमुख पर्वतों में से एक ), १०.२५+ ( इन्द्रयाग के स्थान पर गोवर्धन - पूजा, इन्द्र के वृष्टि प्रकोप से रक्षार्थ कृष्ण द्वारा गोवर्धन - धारण का वर्णन ), वराह १६४.१ ( मथुरा के पश्चिम् भाग में गोवर्धन क्षेत्र की स्थिति का उल्लेख ), वायु ४५.११३ ( गोदावरी तटस्थ गोवर्धन प्रदेश में भरद्वाज मुनि द्वारा राम की प्रसन्नता हेतु वृक्षारोपण का उल्लेख ), विष्णु ५.१०.३८ ( कृष्ण द्वारा व्रज में इन्द्र पूजा के स्थान पर गोवर्धन पूजा के औचित्य का कथन ), ५.११.१६ ( इन्द्र कोप से पीडित गोकुल की रक्षार्थ कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण द्वारा गोकुल की रक्षा का वर्णन ), ५.१२.४(गरुड का रूप?), स्कन्द २.४.१०.२२ (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा विधि का कथन ), २.६.२.३० ( गोवर्धन के समीप वृन्दारण्य में कृष्ण कीर्तनोत्सव का उल्लेख ), हरिवंश २.१६ ( कृष्ण द्वारा गिरियज्ञ / गोवर्धन पूजा प्रवर्तन का प्रस्ताव ), २.१७ ( गोपों द्वारा गिरियज्ञ का अनुष्ठान ), २.१८ ( अतिवर्षा से पीडित गौ व गोपों के रक्षार्थ कृष्ण द्वारा महीधर /गोवर्धन धारण ), ३.१२७ ( गोवर्धन पर्वत के समीप हंस और डिम्भक के साथ यादवों का युद्ध ), ३.१३० ( यशोदा व नन्द का गोप सहित गोवर्धन पर आकर कृष्ण व बलभद्र से मिलन ), लक्ष्मीनारायण १.३४८.१( मथुरा के पश्चिम में स्थित गोवर्धन तीर्थ की परिक्रमा आदि के माहात्म्य का कथन ) । govardhana
गोवाट कथासरित् ३.६.१३५ ( दस्यु भय से सुन्दरक के गोवाट / गोशाला में ठहरने का उल्लेख ) ।
गोविन्द
गरुड
३.२२.७८(वैष्णवों
में
श्रीहरि
की
गोविन्द
नाम
से
स्थिति),
३.२४.५६(गोविन्द
शब्द
में
गो
की
निरुक्ति
:
समस्त
वाच्य),
३.२९.५०(श्राद्ध
काल
में
अच्युतानन्त
गोविन्द
के
स्मरण
का
निर्देश),
३.२९.५६(भोजन
में
ग्रास-ग्रास
में
गोविन्द
रूप
विशुद्ध
अन्न
के
स्मरण
का
निर्देश),
ब्रह्म
१.८०.३५(गोवर्धनधारण
के
पश्चात्
इन्द्र
द्वारा
कृष्ण
का
गोविन्द
नाम
से
सम्बोधन--
स
त्वां
कृष्णाभिषेक्ष्यामि
गवां
वाक्यप्रचोदितः।
उपेन्द्रत्वे
गवामिन्द्रो
गोविन्दस्त्वं
भविष्यसि।),
२.५२.९७
(
इन्द्र
को
त्रिलोकी
का
राज्य
देने
पर
विष्णु
का
एक
नाम
),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.१९.३४
(गोविन्द
से
वारुणी
/
पश्चिम
दिशा
में
रक्षा
की
प्रार्थना
),
३.३१.२९
(
गोविन्द
से
दन्तपंक्तियों
की
रक्षा
की
प्रार्थना
),
३.३१.४२
(
गोविन्द
से
वायव्य
दिशा
में
रक्षा
की
प्रार्थना
),
४.१२.१९
(
गोविन्द
से
कपोल
की
रक्षा
की
प्रार्थना
),
ब्रह्माण्ड
२.३.३३.८
(
कृष्णकवच
में
कृष्ण
का
एक
नाम,
गोविन्द
से
नासिका
की
रक्षा
की
प्रार्थना
),
२.३.३३.२४
(
गोविन्द
से
वायव्य
दिशा
में
रक्षा
की
प्रार्थना
),
भविष्य
३.४.१४.९७
(गोविन्द
शब्द
की
निरुक्ति
– परा
गा
का
विन्दन
करने
वाला),
४.७०
(
गोविन्द/देव
शयन
उत्थापन
द्वादशी
व्रत
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
४.७८
(गोविन्द
द्वादशी
व्रत
का
वर्णन
),
भागवत
६.८.२०
(
गोविन्द
से
सङ्गव
काल
में
रक्षा
की
प्रार्थना
),
१०.२७.२३(गोवर्धन
धारण
व
अभिषेक
के
पश्चात्
कृष्ण
का
गोविन्द
सम्बोधन
-
इन्द्रः
सुरर्षिभिः
साकं
चोदितो
देवमातृभिः
। अभ्यसिञ्चत
दाशार्हं
गोविन्द
इति
चाभ्यधात् ),
महाभारत
शान्ति
३४२.७०/३५२.५(गोविन्द
शब्द
की
निरुक्ति
–
गुहागत
नष्ट
गौ
को
जानने
वाला),
वराह
१.२५
(
माधव
से
कटि,
गोविन्द
से
गुह्य
भाग
की
रक्षा
आदि
की
प्रार्थना
),
८८.२(क्रौञ्च
द्वीप
के
पर्वतों
में
से
एक,
अपर
नाम
द्विविन्द),
१६३.१८
(
मथुरा
रूपी
पद्म
के
उत्तर
दल
में
गोविन्द
की
स्थिति
का
उल्लेख
),
वामन
९०.२
(
हस्तिनापुर
में
विष्णु
का
गोविन्द
नाम
से
वास
),
वायु
९६.३२,
४५
(
कृष्ण
का
एक
नाम
),
विष्णु
१.४.४३
(पृथ्वी
के
समुद्धार
हेतु
गोविन्द
से
प्रार्थना
),
१.१४.१५
(
प्रजा
वृद्धि
हेतु
प्रचेताओं
को
गोविन्द
आराधना
का
निर्देश,
प्रचेताओं
द्वारा
गोविन्द
-
स्तुति
),
१.१९.३७
(
प्रह्लाद
द्वारा
गोविन्द
की
सर्वत्र
स्थिति
तथा
मित्र
अमित्र
भाव
की
व्यर्थता
का
उल्लेख
-
सर्वभूतात्मके
तात
जगन्नाथे
जगन्मये।
परमात्मनि
गोविन्दे
मित्रामित्रकथा
कुतः।।
),
५.५.१८
(
गोपनन्द
द्वारा
गोविन्द
से
बालकृष्ण
के
शिर
की
रक्षा
करने
की
प्रार्थना
),
५.१२.१२
(गोविन्द
शब्द
की
निरुक्ति
– गायों
का
इन्द्र),
५.१६.३
(
केशी
से
भयभीत
गोपों
का
गोविन्द
की
शरण
में
जाने
का
उल्लेख
),
५.२०.११
(
कुब्जा
द्वारा
गोविन्द
से
घर
चलने
का
आग्रह
),
५.२३.१३(
गोविन्द
द्वारा
महोदधि
से
द्वादश
योजन
भूमि
की
याचना
तथा
द्वारका
पुरी
के
निर्माण
का
उल्लेख
),
५.२९.२०
(
गोविन्द
द्वारा
प्राग्ज्योतिषपुर
में
नरकासुर
सैन्य
के
सहस्रों
दैत्यों
के
वध
का
उल्लेख
),
स्कन्द
२.२.३०.७८(
गोविन्द
से
पूर्व
दिशा
की
रक्षा
की
प्रार्थना
),
४.१.१९.११०
(
अत्रि
द्वारा
ध्रुव
को
गोविन्द
आराधना
का
निर्देश
),
४.२.६१.२२६
(
गोविन्द
मूर्ति
के
लक्षण
),
४.२.८४.२४
(
गोपी
-
गोविन्द
तीर्थ
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
),
५.१.२७.११९
(
अवन्ती
क्षेत्र
में
गोविन्द
के
लिए
गज
दान
का
उल्लेख
),
५.३.१०३.११३
(काष्ठ
भार
से
गोविन्द
नामक
कृषक
के
पुत्र
का
मरण,
कृमियों
का
उपद्रव,
ऐरण्डी
सङ्गम
स्नान
से
मुक्ति
का
वर्णन
),
५.३.१४९.९
(
लिङ्गेश्वर
तीर्थ
में
फाल्गुन
द्वादशी
को
गोविन्द
अर्चना
का
निर्देश
),
६.२१३.९०
(गोविन्द
से
शिर
की
रक्षा
की
प्रार्थना
),
हरिवंश
२.१९.४५(गोवर्धन
धारण
से
कृष्ण
द्वारा
गोविन्द
नाम
की
प्राप्ति,
गोविन्द
शब्द
की
निरुक्ति
– गायों
का
इन्द्र),
लक्ष्मीनारायण
१.२६५.९(
गोविन्द
की
पत्नी
चन्द्रा
का
उल्लेख
),
२.२६१.३३
(
गोविन्द
शब्द
की
निरुक्ति-
नष्ट
गौ/पृथिवी
का
विन्दन
करने
वाला),
कथासरित्
१.७.४२
(
गोविन्ददत्त
:
गोविन्ददत्त
नामक
ब्राह्मण
के
पुत्रों
द्वारा
किए
गए
आतिथ्य
से
वैश्वानर
ब्राह्मण
का
क्रुद्ध
होना,
गोविन्ददत्त
द्वारा
वैश्वानर
ब्राह्मण
को
सन्तुष्ट
करना
),
१.७.१०८
(
गोविन्ददत्त
-
पुत्र
सोमदत्त
के
माल्यवान्
नामक
शिवगण
होने
की
कथा
)
।
govinda
Vedic view of Govinda by Sukarm Pal Singh Tomar
Comments on Govinda
गोविन्दकूट कथासरित् ५.२.२९३ ( अशोकवेग व विजयवेग नामक विद्याधरों का गोविन्दकूट नामक स्वस्थान गमन का उल्लेख ), १४.४.९७ ( नरवाहनदत्त के शत्रु गौरिमुण्ड के नगर गोविन्दकूट पर आक्रमण हेतु सैनिक - प्रयाण के आदेश का उल्लेख ) ।
गोविन्दस्वामी स्कन्द ३.१.८.४७ ( गालव ऋषि के शाप से सुदर्शन तथा सुकर्ण नामक विद्याधरों का गोविन्दस्वामी ब्राह्मण के विजयदत्त व अशोकदत्त नामक पुत्रों के रूप में जन्म, विजयदत्त को शापवश वेतालत्व की प्राप्ति ), ५.२.७४ ( गोविन्दस्वामी ब्राह्मण के कनिष्ठ पुत्र विजयदत्त के राक्षसराज कपालस्फोटक बनने की कथा ) । govindaswaamee /govindaswaami
गोशृङ्ग स्कन्द ७.१.२४.१७१, ७.१.५४.३ ( शिखण्डिगण के वचनानुसार गन्धर्वसेना का पिता के साथ कुष्ठ निवृत्ति हेतु गोशृङ्ग मुनि के आश्रम में गमन, गोशृङ्ग - निर्दिष्ट सोमवार व्रत तथा शिवाराधना से कुष्ठ से मुक्ति का वर्णन ) । goshringa
गोष्ठ लक्ष्मीनारायण २.२१५.२१ ( विगोष्ठ : श्रीहरि का विगोष्ठ नामक नगरी में आगमन, पूजन, भ्रमण, उपदेश, भोजन तथा रात्रि में विश्रामादि का वर्णन ), शौ.अ.वे. ११.१०.३२(शरीर में स्थित देवों की गायों के गोष्ठ से तुलना); द्र. विगोष्ठिका । goshtha
गोष्पद भविष्य ४.१९ ( गोष्पद तृतीया व्रत के माहात्म्य का वर्णन ), स्कन्द ७.१.३३६ ( गोष्पद तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन, पृथु द्वारा गोष्पद में स्नान तथा श्राद्ध से पिता के पापों का क्षालन ), लक्ष्मीनारायण १.५४९.१० ( न्यङ्कुमती नदी के तट पर स्थित गोष्पद नाम तीर्थ में यज्ञ करके पृथु द्वारा वेन की मुक्ति की कथा ) । goshpada
गोसव ब्रह्म २.२१.९ ( गौ पर अत्याचार के कारण नन्दी द्वारा मर्त्य तथा स्वर्ग लोक से गौ का हरण, देवों की प्रार्थना पर नन्दी द्वारा गोसव यज्ञ करने का कथन, गोसव यज्ञ से मानुष तथा दिव्य गौ का वर्धन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ ( ४९ तानों में से एक ) । gosava
गौ अग्नि ६५.१५ ( गृह प्रवेश के समय गौ पूजा की विधि ), २१०.३० ( विभिन्न प्रकार की गौ दान की महिमा ), २१३( स्वर्ण निर्मित कामधेनु तथा कपिला गौ के दान का माहात्म्य ), २३२.२१ ( गौ द्वारा शुभाशुभ शकुन का ज्ञान ), २९२ ( गौ माहात्म्य तथा गौ - चिकित्सा / गवायुर्वेद ), ३०२.२९ ( गौ समुदाय के रक्षक मन्त्र का उल्लेख ), कूर्म १.७.५५ ( ब्रह्मा के उदर से गौ के प्राकट्य का उल्लेख ), १.१६.१०४ ( गौतम आश्रम में मायामयी कृष्णा गौ के मरण का उल्लेख ), २.२६.४५ ( गौ दान से बृध्न विष्टप स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), गणेश १.३.४० ( पङ्क से गौ की रक्षा का निर्देश ), गर्ग २.१० ( कृष्ण द्वारा वृन्दावन में गौ चारण तथा गौ शोभा का वर्णन ), ३.९.२१ ( कृष्ण के मन से गौ के प्राकट्य का उल्लेख ), गरुड २.४२ ( गौ दान की महिमा ), २.४७.३४(वैतरणी तरण हेतु गौ दान विधि), ३.१२.७५(अप्रसूता गौ को नमन न करने का निर्देश), ३.२८.२३(वेदोक्त मन्त्रों की गाः संज्ञा), ३.२९.४१(गौ कण्डूयन काल में गोवर्धन हरि के स्मरण का निर्देश), गर्ग ३.९.२१( कृष्ण के मन से गायों व वृषभों के प्राकट्य का उल्लेख ), देवीभागवत ११.११.७ ( चतुर्वर्ण अनुसार गौ विभाग ), नारद १.१२२.३३ ( भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी में करणीय गो त्रिरात्र व्रत की विधि व फल ), १.१२३.५४(गौ के वर्ग के अनुसार मूत्र, गोमय, क्षीर आदि का ग्रहण), १.१२४.१३ ( आषाढ पूर्णिमा में करणीय गोपद्म व्रत की विधि तथा फल ), पद्म १.३.१०५ ( ब्रह्मा के उदर से गौ की सृष्टि का उल्लेख ), १.९.४३( पितर - कन्या, साध्यों की पत्नी सुकन्या बनना ?), १.१८.२४४ ( पुष्कर में स्नान कर मन्त्रपूत गो दान से मोक्षप्रद लोकों की प्राप्ति का उल्लेख ), १.४८.१२५ ( ब्रह्मा के प्राक् तेज से वेद व वह्नि तथा परतेज से गौ व विप्र की उत्पत्ति, गौ - माहात्म्य, पूजा - विधि, कपिला आदि गोदान की विधि, दान फल का वर्णन ), ३.२६.४६ ( गौ भवन तीर्थ में अभिषेक से सहस्र गोदान फल प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२३.१२ ( कार्तिक शुक्ल द्वादशी को गोमूत्र, त्रयोदशी को क्षीर आदि सेवन का निर्देश ), ४.२४.६ ( गोचर्म मात्रभूमि दान का महत्त्व तथा गोचर्म के परिमाण का कथन ), ५.३०.२२ ( जाबालि द्वारा ऋतम्भर राजा को सन्तान प्राप्ति हेतु गौ -पूजा तथा गो - माहात्म्य का कथन ), ६.६.२२ ( बल असुर के एक अङ्ग के गो नग पर गिरने का उल्लेख ), ६.१४४ ( गो ह्रद में स्नानादि का फल ), ६.१६३ ( गो तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : गो तीर्थ में गायों द्वारा स्नान से शुक्लता प्राप्ति, मनुष्यों द्वारा स्नान से मातृ ऋण से मुक्ति ), ६.२०२+ ( दिलीप व सुदक्षिणा का पुत्र प्राप्ति हेतु वसिष्ठ आश्रम में गमन, वसिष्ठ द्वारा गो सेवा का उपदेश, गो सेवा से पुत्र प्राप्ति कारक वर प्राप्ति का वर्णन ), ६.६६.७० ( समुद्र मन्थन से ५ गायों की उत्पत्ति, नन्दिनी गौ की पूजा तथा अर्घ्य प्रदान विधि ), ब्रह्म २.५.५७ ( विनायक द्वारा प्रेरित करने पर पार्वती - सखी जया का गौ रूप धारण कर गौतम के आश्रम में गमन, मायामयी गौ का आश्रम में मरण, गौतम का दुःखी होना, उपाय रूप में महेश्वर के जटाजूट में स्थित जल से सिंचन की कथा ), २.२१ ( गौ पर अत्याचार के कारण नन्दी द्वारा मर्त्य लोक तथा स्वर्गलोक से गौ का हरण, देवों की प्रार्थना पर नन्दी द्वारा पुन: गौ का वर्धन ), २.६१.२६ ( दैत्यों द्वारा देव -गायों का हरण, विष्णु द्वारा बाण सन्धान पूर्वक दैत्यों का क्षय, गौ प्राप्ति स्थान की गो तीर्थ नाम से प्रसिद्धि ), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.४४ ( कृष्ण के लोमकूपों से गौ की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.२७.५५ ( गोदान के फल का कथन ), २.३०.१७२ ( गोहत्या पाप प्रापक कर्मों का वर्णन ), ४.२१.९३ ( कृष्ण द्वारा इन्द्र याग की अपेक्षा गौ के महत्त्व का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९८ ( गोरक्ष : पृथु से पूर्व सस्योत्पत्ति, गोरक्ष, कृषि आदि के अभाव का उल्लेख ), २.३.१.७७ ( सोमपा पितर - कन्या, शुक्र - पत्नी, शण्डार्क आदि की माता ), २.३.१३.१२९ ( गोगोष्ठ : श्राद्ध हेतु गोगोष्ठ की प्रशस्तता का उल्लेख ), २.३.२८.५७ ( कार्त्तवीर्य के मन्त्री चन्द्रगुप्त द्वारा जमदग्नि की गौ के हरण का परामर्श, जमदग्नि का वध तथा गौ हरण का वृत्तान्त ), २.३.७१.१०८( गान्दिनी कन्या द्वारा गर्भ से बाहर निकलने के लिए प्रतिदिन गौ दान की शर्त का कथन ), भविष्य १.१८७.४७ ( समुद्र मन्थन से नन्दा, सुभद्रा, सुरभी, सुमना तथा शोभनावती नामक ५ प्रकार की गायों की समुत्पत्ति, गौ का माहात्म्य ), २.३.२ ( गोचर भूमि के उत्सर्ग की महिमा ), २.३.१७ ( गोप्रचार प्रतिष्ठा विधि का वर्णन ), ३.४.२५.१९६ ( गौ के कर्म भूमि का प्रतीक होने का उल्लेख ), ४.१९ ( गोष्पद तृतीया व्रत के माहात्म्य का वर्णन ), ४.६९ ( गोवत्स द्वादशी व्रत के माहात्म्य का वर्णन ), ४.६९.२४ ( गौ में देव प्रतिष्ठा का वर्णन ), ४.९४.६३ ( अनन्त चर्तुदशी व्रत में गौ के निष्फल भूमि रूप होने का कथन ), ४.१४१.५४ ( शनि के लिए कृष्ण गौ के दान का उल्लेख ), ४.१५१+ ( गौ दान विधि का वर्णन, प्रत्यक्ष धेनु, तिल धेनु, जलधेनु, लवणधेनु, कांचन धेनु, रत्न धेनु, उभयमुखी धेनु दान का वर्णन ), ४.१५६.१६ ( गौ शरीर में देव विन्यास का कथन ), ४.१५९ ( सहस्र गौ प्रदान विधि का वर्णन ), ४.१६१ ( कपिला गौ दान के माहात्म्य का वर्णन ), भागवत ४.१७.१४ ( पृथु के क्रोध से डरकर पृथ्वी का गौ रूप धारण कर भागना, पृथु व देव, पितर आदि अन्यान्य योनियों द्वारा गौ दोहन का वर्णन ), मत्स्य १३.५८ ( गोदान के समय सती देवी के नामों के पाठ से ब्रह्मपद प्राप्ति का उल्लेख ), १०.१२ ( भयभीत पृथ्वी का गो रूप धारण कर पलायन, गो रूपा पृथ्वी के दोहन का वृत्तान्त ), १५.१० ( शुक व पीवरी - कन्या कृत्वी का एक नाम, ब्रह्मदत्त -माता ),१५.१५ ( पितर - कन्या, शुक्र - पत्नी ), २७८ ( गो सहस्र दान विधि का वर्णन ), लिङ्ग १.१३.५ ( पीतवासा कल्प में ध्यानस्थ ब्रह्मा के समक्ष माहेश्वरी गौ के प्रकट होने का वर्णन ), १.१६.१९ ( ब्रह्मा द्वारा शिव से विश्वरूपा गौ के विषय में पृच्छा ), २.३८ ( गौ सहस्र दान विधि ), वराह १६.११ ( देवों द्वारा गोमेध यज्ञ का प्रारम्भ, दैत्यों द्वारा गोमेध की गायों का अपहरण, दैत्य - सेना के निहत होने पर गायों के मोचन का वर्णन ), ७१.२४ ( गौतम आश्रम में मायामयी गौ के मरण का प्रसंग ), १४७.२९ ( और्व शाप से सन्तप्त शम्भु के ताप की शान्ति हेतु सुरभि गौओं का अवतारण, गौ दुग्ध सिंचन से ताप की शान्ति ), २०६.२९ ( गौ शरीर में देवों की स्थिति का कथन ), वायु २३.५( गौ रूपी रौद्र गायत्री की उत्पत्ति तथा स्वरूप का वर्णन ), २३.६४/१.२३.५९( श्वेत वर्णा गौ रूपी ब्रह्म गायत्री तथा लोहित वर्णा गौ रूपा गायत्री का कथन ), ५२.१२ ( शरद ऋतु में सूर्य रथ पर अधिष्ठित ऋषियों में से एक ), ७३.३६( कव्य पितरों की कन्या, शुक्र - पत्नी ), ९३.१४ ( गो : काकुत्स्थ - पुत्री, यति - पत्नी, चन्द्र वंश ), विष्णु १.५.४८ ( ब्रह्मा के उदर से गो की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.१.१४ ( सूर्य रश्मि का वाचक शब्द ), विष्णुधर्मोत्तर २.४२ ( गौ माहात्म्य का वर्णन ), २.४३ ( गौ चिकित्सा का वर्णन ), २.४४ ( गौ शान्ति कर्म का वर्णन ), ३.९९ ( प्रतिमा प्रतिष्ठा के अन्तर्गत पञ्चगव्य संस्कार का वर्णन ), ३.२९१( गौ माहात्म्य तथा शुश्रूषा का वर्णन ), ३.३०१.३१( गौ प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), ३.३०६ ( गौ दान के फल का निरूपण ), शिव ४.६ ( गौ व वत्स संवाद के अन्तर्गत वत्स के ताडन पर गौ को दुःख, प्रतिकार स्वरूप गौ द्वारा गृहस्वामी - पुत्र का ताडन, गृहस्वामी पुत्र - वध से प्राप्त कृष्णत्व के नर्मदा स्नान से निवारण का वर्णन ), ४.२५.२९ ( गणेश द्वारा गौ बनकर सस्य का भक्षण, गौतम ऋषि द्वारा गौ के निवारण पर मायामयी गौ के मरण का वृत्तान्त ), ७.२.३१.१८३ (शिव महास्तोत्र जप से गोहत्या रूप पाप से मुक्ति का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४.७८( गौ के दान का उत्तम कोटि के दानों में वर्गीकरण ), २.४.३.४१ ( रुद्र शाप के कारण गायों द्वारा विश्व भक्षण का उल्लेख ), २.४.३.४१टीका ( विष्णु व ब्रह्मा की स्पर्धा में मिथ्या साक्षी से गौ के अपवित्र मुख होने का कथन ), २.४.४.८० ( गोरज से वायव्य स्नान का उल्लेख ), ४.१.२.७७ ( गौ माहात्म्य, शृङ्गाग्र में सर्वतीर्थ व खुराग्र में सर्व पर्वतों की स्थिति का कथन ), ४.२.८३.७१ ( गोव्याघ्रेश्वर तीर्थ की महिमा का उल्लेख ), ४.२.८४.३६ ( गोप्रतारेश्वर तीर्थ की महिमा का उल्लेख ), ४.२.९७.९ ( गोप्रेक्ष लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.१९.५ ( प्रलय के पश्चात् एकार्णव में गौ द्वारा मार्कण्डेय ऋषि की रक्षा का वर्णन ), ५.३.३९.२८ ( गौ के शरीर में देवों की स्थिति का कथन ), ५.३.५१.५६ ( गर्भ मोचन से पूर्व गौ के पृथिवी रूप होने का कथन ), ५.३.५६.१२० ( गो दान से त्रिविष्टप की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.८३.१०३ ( गोदान महिमा तथा गौ के अङ्गों में देवों की स्थिति का वर्णन ), ५.३.१८१.१६ (गायों के दूर प्रचरण से नष्ट होने का उल्लेख ), ६.१४ ( अज्ञान भाव से की गई चमत्कारपुर की प्रदक्षिणा से गौ तथा गौरक्षक के जन्मान्तर में मन्त्री व राजा बनने तथा मुक्त होने का वृत्तान्त ), ६.१५२.२५ ( अर्जुन द्वारा तस्करों द्वारा अपहृत गायों को मुक्त कराने का उल्लेख ), ६.१८१.६६ ( ब्रह्मा के यज्ञ हेतु लाई गई गोपकन्या का गोमुख से प्रवेश व गो गुह्य से आकर्षण द्वारा पवित्रीकरण का कथन ), ६.२५९.४० ( गोलोक के गौ - समूह के नाम का कथन ), ७.१.३२.४४ ( दधीचि के त्यक्त कलेवर को मांसादि से मुक्त करने हेतु देवों द्वारा गोलोक से गौओं का आवाहन, नन्दा, सुभद्रा प्रभृति पांच गोमाताओं द्वारा कलेवर की शुद्धि का कथन ), ७.१.३३८.४१ ( आपस्तम्ब प्रोक्त गौ महिमा का वर्णन ), ७.३.२९ ( राजा सुप्रभ द्वारा मृगी का वध, मृगी द्वारा राजा को व्याघ्र बनने का शाप, कपिला गौ से वार्तालाप पर शाप से मुक्ति का वृत्तान्त ), हरिवंश १.१८.५८ ( सुकाल नामक पितरों की मानसी कन्या एकशृङ्गा के स्वर्ग में गौ नाम से विख्यात होने का उल्लेख ), १.५५.२१ ( कश्यप का यज्ञावसर पर वरुण से उनकी पयोदा गौएं मांगना, यज्ञ समाप्ति पर भी कश्यप के गौ पर बलाधिकार का कथन ), २.१२७.४८ (बाणासुर की गायों के दुग्धपान से वृद्धत्व के नाश तथा अजरता प्राप्ति का उल्लेख ; कृष्ण द्वारा बाणासुर की दिव्य गायों को प्राप्त करने के उद्योग में असफलता ), २.१४७.४४( सत्यभामा की कामना पूर्ति हेतु कृष्ण द्वारा बाणासुर की दिव्य गायों की प्राप्ति का प्रयत्न, वरुण की प्रतिज्ञा के कारण प्रयत्न का त्याग ), महाभारत वन २००.६९(द्विमुखी गौ की कल्पना), २००.२८(सूर्य - सुता होने का उल्लेख), द्रोण ९३.४३, कर्ण ३८.१०, ४२.४५, अनुशासन ५०, ६६, ५१.२२(नहुष द्वारा च्यवन को गौ के मूल्य पर क्रय करना, गौ की महिमा), ६९, ७६.११/७५.११(सौर्या व सौम्या गौ में अन्तर का कथन), ७८, १०२.४४, १२६, आश्वमेधिक २१.२२( गौ रूपी दिव्य व अदिव्य वाक् का प्रतिपादन ), वा.रामायण ७.२३.२१ ( वरुणालय में प्रवेश करने पर रावण द्वारा सुरभि गौ के दर्शन का उल्लेख ), ७.२३.२८ ( रावण - आगमन का समाचार सुनकर वरुण के पुत्र - पौत्रों के साथ गौ तथा पुष्कर नामक सेनाध्यक्षों के भी आने का उल्लेख ), कथासरित् ६.१.१११ ( दुर्भिक्ष से क्षुधित सात ब्राह्मण शिष्यों द्वारा गाय को मारकर क्षुधा शान्त करने की कथा ), १०.५.४४ ( मूर्ख गौदोहक द्वारा एक साथ बहुत सा दुग्ध प्राप्त करने की इच्छा से गोदोहन त्याग की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३२.६ ( गो महिमा का वर्णन ), १.२२२ ( राजा नृग द्वारा गौतम नामक विप्र को गौ का दान, गौ का पलायन कर पुन: राजा के गौगोष्ठ में गमन, राजा द्वारा पुन: उसी गौ को सोमशर्मा को दान, गौदान विपर्यास से विप्र शाप वश राजा को कृकलास योनि की प्राप्ति का वर्णन ), १.३६५.२९ ( मेरु पर गौ रक्षार्थ देवशुनी सरमा की नियुक्ति, असुरों द्वारा गौ का हरण, सरमा के पातिव्रत्य प्रभाव से दैत्यों का भस्मीभूत होना तथा गौ रक्षण का वृत्तान्त ), २.८.११ ( बाल कृष्ण द्वारा मङ्गला गौरी नामक कामधेनु का दुग्धपान, दिव्य गायों द्वारा कृष्ण को दुग्ध पिलाने हेतु प्रार्थना, कृष्ण द्वारा कोटि स्वरूप धारणकर कोटि गायों का दुग्ध - पान, राक्षस - पत्नियों का भी गौ रूप धारण कर कृष्ण को दुग्ध - पान, कृष्ण द्वारा दुग्ध के साथ -साथ प्राणों का भी पान, पुन: राक्षसियों के प्राणदान हेतु प्रार्थना करने पर कृष्ण द्वारा मुक्ति प्रदान करने का वर्णन ), २.१५.२६ ( गौ के अङ्गों में देवादि की स्थिति ), २.७७.३५ ( गोदान से राजा के पापों का नाश परन्तु गो गृहीता के पापयुक्त होने का उल्लेख ), ३.१८.१० ( गौदान के धन दान से ऊपर व कन्या दान से निम्नतर होने का उल्लेख ), ३.१०१ ( गोदान से प्रेत का उद्धार, गो माहात्म्य का वर्णन ), ३.१०२.२४( गायों द्वारा चञ्चला लक्ष्मी को शकृत में स्थान देने का वृत्तान्त ), ३.११२.४ ( गो धेनु दान हेतु पात्रता अपात्रता विचार, गो के अभाव में घृत धेनु आदि का दान, गोदान के माहात्म्य का वर्णन ), ३.१२७.५८ ( गोसहस्र महादान विधि का निरूपण ), ४.४५.३१ ( नारायण सरोवर के तट पर श्वेत लोहिता नामक दिव्या गौ का आगमन, गौ के प्रार्थना करने पर कृष्ण द्वारा सरस्वती धेनु सारस्वत तीर्थ के रूप में स्थापना का कथन ), ४.६७.१ ( गोवार नामक गोपालक द्वारा गौ दुग्ध की चोरी से मार्जार बनना, कृष्ण - प्रसाद - भोजन से गोवार की मुक्ति की कथा ), ४.९०.५ ( सर्वधर्मादि वर्जित गृहस्थ के लिए गोदान रूप मोक्ष साधन का वर्णन ), सामरहस्योपनिषद २७५पृ. ( गायों के २ भेदों संसिद्धा व साधनसिद्धा; व्रजमण्डल में संसिद्धा ), शौ.अ.वे. ११.१०.३२(शरीर में देवों की गायों के गोष्ठ से तुलना) ।gau/cow
Remarks by Dr. Fatah Singh
गौ चित्तवृत्तियों को गायों के रूप में कल्पित किया गया है । वे गाएं ज्ञान का उदक पीती हैं, क्रिया रूपी घास चरती हैं, भावना रूपी दूध देती हैं। अथवा, आत्मा परमात्मा से बंधने पर जो ज्ञान की शक्ति प्राप्त करता है , वह गौ है ।- फतहसिंह
Comments on Gau
Vedic contexts on Gau
गौड गणेश १.७६.१ ( गौड देश में वेश्यारत बुध की कथा ), नारद १.५६.७४२( गौड देश के कूर्म का पादमण्डल होने का उल्लेख ), पद्म ६.१८९ ( गीता के १५वें अध्याय के महात्म्य के अन्तर्गत गौड देशीय नरसिंह राजा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७२ ( गौडी : दक्ष द्वारा वरुण को अर्पित ५ कन्याओं में से एक ), कथासरित् ८.६.६९ ( गौड देश के राजा विक्रमशक्ति द्वारा महासेन पर आक्रमण का उल्लेख ), १८.३.३ (राजा विक्रमादित्य के सेनापति विक्रमशक्ति से अधिष्ठित राजाओं, सैनिकों में गौड देश के राजा शक्तिकुमार का उल्लेख ) । gauda
गौतम कूर्म १.१६.९९ ( अनावृष्टि होने पर पीडित मुनियों द्वारा गौतम आश्रम में शरण , मुनियों द्वारा निर्मित मायामयी गौ का गौतम आश्रम में मरण, गौतम द्वारा मुनियों को शाप प्रदान ), १.२०.४२ ( गौतम द्वारा वसुमना राजा की मुक्ति के उपाय का कथन ), २.११.१२८ ( पुलह प्रजापति द्वारा गौतम को ज्ञान प्रदान का उल्लेख ), गणेश १.३०.३ ( गौतम - अहल्या - इन्द्र की कथा ), १.५२.१२ ( गौतम द्वारा नल के पूर्व जन्म का वर्णन ), देवीभागवत १.३.३१ ( २०वें द्वापर में व्यास ), ६.१४.३५ ( वसिष्ठ की अनुपस्थिति में गौतम द्वारा निमि के यज्ञ को सम्पन्न कराने का उल्लेख ), १२.९ ( दुर्भिक्ष में ब्राह्मणों का आश्रयार्थ गौतम आश्रम में गमन, मायामयी गौ के मरण की कथा, गौतम द्वारा ब्राह्मणों को शाप, ब्राह्मणों की रक्षा हेतु गौतम द्वारा गायत्री की स्तुति ), नारद १.७९.५० ( स्वशिष्य शङ्करात्मा की मृत्यु पर गौतम की मृत्यु, शिव द्वारा पुनरुज्जीवन, गौतम आश्रम में विष्णु व शिव आदि की क्रीडा का वर्णन ), २.२८.४१ ( गौतम द्वारा वेद बाह्यार्थ संयुक्त करके वेदोपकार करने का उल्लेख ), २.७२ ( गौतम आश्रम में गोदावरी नदी के प्रकट होने की कथा ), पद्म १.१९.२५३ ( हेमपूर्ण उदुम्बर व मृणाल की चोरी पर गौतम ऋषि की प्रतिक्रिया का कथन ), १.३४.१३ ( ब्रह्मा के यज्ञ में गौतम के ब्राह्मणाच्छंसी होने का उल्लेख ), ५.११४.१०० ( गौतम के गृह में बाण आदि राक्षसों का आगमन, शिष्य शङ्करात्मा का वृषपर्वा द्वारा वध, शोक से गौतम आदि की मृत्यु, पुन: संजीवन का वृत्तान्त ), ५.११७.२४ (न्यायोपार्जित धन से शिवपूजन करने पर गौतम को ऐश्वर्य प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्म १.५६.८ ( कपाल गौतम नामक ऋषि के पुत्र का मरण, श्वेत नामक राजा द्वारा शिव की कृपा से पुनरुज्जीवन का उद्योग ), २.१.२८ ( तीर्थभेद के अन्तर्गत गौतम आदि ऋषियों से आवृत तीर्थों की ऋषि तीर्थ संज्ञा का उल्लेख ), २.५.३९+ ( गौतम आश्रम में मायामयी गौ की मृत्यु पर गौतम द्वारा गङ्गा - अवतरण के उद्योग की कथा ), २.१५ ( क्षुधा पीडित कण्व द्वारा गौतम आश्रम की समृद्धि का दर्शन कर गौतमी गङ्गा की स्तुति ), २.३७ ( विकृत रूप गौतम द्वारा गुफा में वृद्धा के दर्शन, वृद्धा द्वारा गौतम को स्वपति रूप में स्वीकार करना, वृद्धा द्वारा आराधित सरस्वती व अग्नि की कृपा से गौतम का रूपवान् होना, गौतम द्वारा आराधित गौतमी गङ्गा के प्रभाव से वृद्धा के भी रूपवती होने का वृत्तान्त ), २.१००.३ ( वृद्ध कौशिक - पुत्र गौतम द्वारा मणिकुण्डल नामक वैश्य सखा के धन का हरण, कर व चक्षु छेदन, राजा बनने पर भी धार्मिक मणिकुण्डल द्वारा पापी गौतम के हित साधन का कथन ), २.१०५.४४ ( गणेश का माता पार्वती के प्रति गौतम द्वारा गङ्गा - अवतरण - वृत्तान्त का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.३३ ( गौतम द्वारा सुयज्ञ नृप से कृतघ्नता पाप का कथन ), ४.४७.२० ( इन्द्र का गौतम - प्रिया अहल्या पर काममोहित होकर गौतम वेष में अहल्या का कामोपभोग, गौतम मुनि के क्रोध तथा इन्द्र व अहल्या को शाप प्रदान का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१२ ( आश्विन - कार्तिक में सूर्य रथ पर अधिष्ठित ऋषियों में से एक ), १.२.२७.२३ ( गौतम ऋषि द्वारा क्रोध से इन्द्र के शिश्न को पृथ्वी पर गिराने का उल्लेख ), १.२.३५.५२( कृत के अनेक शिष्यों में से एक ), १.२.३५.१२१( २०वें द्वापर के वेदव्यास ), १.२.३८.२८ ( वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), २.३.४७.४८ ( परशुराम के अश्वमेध यज्ञ में उद्गाता होने का उल्लेख ), २.३.६४.२ ( राजा निमि द्वारा गौतम आश्रम के निकट जयन्त नामक नगर बसाने का उल्लेख ), भविष्य २.२.५.१५ ( धान्य सूक्त के ऋषि ), ३.१.६.३६ ( काश्यप से उत्पन्न तथा हरि के अवतार गौतम द्वारा बौद्ध धर्म के संस्कार का उल्लेख ), ३.४.१३.३२ ( गौतम के शरीर से अञ्जना देवी की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.२१.१३ ( कलियुग में कण्व - पौत्र के रूप में जन्म ), ३.४.२१.३१( मय महासुर के अंश गौतम आचार्य द्वारा तीर्थों में मायामय यन्त्र की स्थापना, बौद्ध धर्म के प्रचार का कथन ), भागवत १.९.७ ( शरशय्यासीन भीष्म से मिलने गए ऋषिवृन्द में गौतम का उल्लेख ), १.१०.९ ( कृपाचार्य का एक नाम ), ८.१३.५ ( वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ९.२१.३४ ( अहल्या - पति, शतानन्द - पिता ), १०.७४.७ ( युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में ऋत्विजादि रूप में वरणीय ब्राह्मणों में गौतम का उल्लेख ), १२.११.३९ ( माघ मास में पूषा नामक सूर्य के रथ पर गौतम ऋषि की स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य ९.२७ ( वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), २२.६८( पितर श्राद्ध हेतु गौतमेश्वर तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ), ४८.८४ ( गौ द्वारा शरीर से अन्धकार के हटा दिए जाने पर दीर्घतमा की गौतम नाम से प्रसिद्धि ), ४८.८८ ( कक्षीवान् के पुत्रों का सामूहिक नाम ), १२६.१३ ( आश्विन व कार्तिक मास में भरद्वाज व गौतम ऋषि के सूर्य रथ पर अधिरोहण का उल्लेख ), १३३.६८ ( गौतम प्रभृति महर्षियों द्वारा त्रिपुर विध्वंसार्थ सज्जित रथ में विराजमान शिव की स्तुति करने का उल्लेख ), १७१.२७ ( ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न पुत्रभूत महर्षियों में गौतम का उल्लेख ), १९२.११( गौतम प्रभृति ऋषियों द्वारा शुक्ल तीर्थ के सेवन का उल्लेख ), १९३.६० ( गौतमेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), १९६.४ ( एक आङ्गिरस गोत्रकार ऋषि ), लिङ्ग १.२४.६४ ( १४वें द्वापर में शिव के गौतम नाम से अवतार ग्रहण का उल्लेख ), १.२४.९५ ( २०वें द्वापर में व्यास होने का उल्लेख ), वराह ७१ ( अनावृष्टि होने पर गौतम द्वारा विप्रों का पालन, मायामयी गौ का मरण, गौतम द्वारा गङ्गा अवतारण की कथा ), ७१.१२( गौतम द्विज द्वारा ब्रह्मा से वर रूप में धान्य प्राप्ति का कथन ), वायु २३.१६३ (१४वें द्वापर में अङ्गिरस वंश में गौतम नाम से विष्णु के अवतार ग्रहण का उल्लेख ), ६१.४५ (२४ संहिताओं के प्रणेता हिरण्यनाभ-शिष्य कृत के शिष्यों में से एक ), ६४.२६ ( वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक, अपर नाम शरद्वान् ), ६५.१०० ( आङ्गिरस अथर्वा व स्वराट् से गौतम की उत्पत्ति का उल्लेख ? ), विष्णु २.१०.११ ( आश्विन मास में गौतम के सूर्य रथ पर अधिष्ठित होने का उल्लेख ), ३.१.३२ ( वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), शिव ४.२४ ( गौतम ऋषि के प्रभाव का वर्णन, अनावृष्टि में गर्त से जल प्राप्ति, आश्रम से निष्कासन, गङ्गा के अवतारण का वृत्तान्त ), ३.५.१० ( १४वें द्वापर में गौतम नाम से शिव के अवतार ग्रहण का उल्लेख ), ३.५.२५ ( २०वें द्वापर के व्यास ), ३.५.२९ (२१वें द्वापर में दारुक नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार पुत्रों में से एक ), स्कन्द १.२.१३.१८२ ( गौतम द्वारा गोरज लिङ्ग पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग ), १.२.५२.२५(कोटि तीर्थ के अन्तर्गत गौतम मुनि द्वारा गौतमेश्वर लिङ्ग की स्थापना, महत्त्व का कथन ), १.२.५५.४ (गौतम द्वारा गुप्त क्षेत्र में योगसाधना, गौतमेश्वर लिंग की स्थापना), १.३.१.४.६५ ( शिव के कथनानुसार पार्वती का गौतम ऋषि के आश्रम में आगमन, पार्वती के आगमन से आश्रम की शोभा वृद्धि ), १.३.२.४.४६ (गौतम द्वारा अरुणाचल पर तप का उल्लेख), १.३.२.१८.४० ( गौतम आश्रम की शोभा का वर्णन, पार्वती द्वारा गौतम आश्रम के निकट स्वआश्रम का निर्माण व तप), २.४.२टीका ( गौतम द्वारा तीन शिष्यों को पुनर्जीवित करने की कथा ), ३.१.३२.३४ ( आश्रम के निकट विवस्त्र भ्रमण करने से गौतम द्वारा भद्र नामक यक्ष को सिंह रूप होने का शाप तथा शाप मुक्ति के उपाय का कथन ), ३.१.४९.६९ ( गौतम द्वारा रामेश्वर - स्तुति ), ३.२.९.८५ ( गौतम गोत्र में ऋषियों के ५ प्रवर व गुणों का कथन ), ३.२.२३.१० ( ब्रह्मा के सत्र में जमदग्नि व गौतम के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), ३.३.३ ( कल्माषपाद राजा द्वारा ब्रह्महत्या से मुक्ति का उपाय पूछने पर गौतम द्वारा गोकर्णेश्वर माहात्म्य का कथन ), ४.२.८३.१०५ (गौतम तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.७४ ( गौतमेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.१३६ ( इन्द्र द्वारा अहल्या से रमण, गौतम द्वारा इन्द्र तथा अहल्या को शाप, शाप से मुक्ति के उपाय का कथन ), ५.३.१७९ ( गौतमेश्वर तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ५.३.२३१.१७ ( रेवा - सागर सङ्गम पर ३ गौतमेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.५.५ ( त्रिशङ्कु के यज्ञ में गौतम के ब्रह्मा नामक ऋत्विज होने का उल्लेख ), ६.३२.७५ ( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर गौतम द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया का कथन-अविकादान ग्रहण आदि), ६.२०७.७ ( गौतम द्वारा इन्द्र के सहस्र भगों को स्पर्श द्वारा सहस्र नेत्रों में रूपान्तरित करना, मेष के वृषण जोडना, इन्द्र की पंचरात्र पूजा के विधान का वर्णन ), ६.२६८ ( गौतमेश्वर की सन्निधि में पृथ्वी दान से चक्रवर्तित्व प्राप्ति का कथन ), ७.१.८० (शल्य द्वारा पूजित गौतमेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.२१६ ( गौतमेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य, गौतम की गुरु हत्या पाप से मुक्ति ), ७.१.२२३.१७ ( गौतम ऋषि द्वारा लेखक, रोहक आदि पांच प्रेतों की मुक्ति हेतु श्राद्ध का वर्णन ), ७.१.२५५.३१ ( गौतम द्वारा हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस - चोरी पर प्रतिक्रिया ), ७.३.४७ ( गौतम आश्रम तीर्थ का माहात्म्य ), ७.४.३०.२ ( गौतमी नदी के ताप क्षालनार्थ गौतम के द्वारका गमन का उल्लेख ), वा.रामायण ०.२.३० ( सोमदत्त / सौदास - गुरु, गुरु गौतम की अवहेलना करने पर शिव के शापवश सोमदत्त को राक्षस योनि की प्राप्ति, गौतम द्वारा सोमदत्त को शाप से मुक्ति के उपाय का कथन ), १.४८.१६ ( गौतम आश्रम में राम व विश्वामित्र का आगमन, गौतम - अहल्या कथा ), ७.५५.१४ ( राजा निमि द्वारा प्रारम्भ किए गए यज्ञ में वसिष्ठ के स्थान पर गौतम ऋषि को पुरोहित रूप में वरण किए जाने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८१ ( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.४८६.१०३ ( इन्द्र द्वारा गौतम रूप धारण कर अहिल्या से रमण, गौतम द्वारा शाप ), १.५५१ ( अकाल पडने पर विप्रों का भोजनार्थ गौतम के आश्रम में गमन, गौतम तथा अहल्या द्वारा विप्रों को भोजन प्रदान, विप्रों के छल से गौतमाश्रम में मायामयी गौ का मरण, गौतम द्वारा गौतमी गङ्गा का अवतारण, गङ्गा जल से सिंचन से गौ का जीवित होना, गौतम द्वारा विप्रों को शाप का वृत्तान्त ), कथासरित् ३.३.१३७ ( इन्द्र द्वारा अहल्या से समागम पर गौतम ऋषि द्वारा इन्द्र व अहल्या को शाप प्रदान की कथा ) । gautama
गौतमी पद्म ५.१०५ ( राम के गौतमी तटवर्ती भरद्वाज के आश्रम में आगमन तथा श्राद्ध विषयक वार्तालाप का वर्णन ), ब्रह्म २.०++ ( गौतमी गङ्गा के माहात्म्य का प्रारम्भ ), २.६ ( गौतम के उद्योग से गौतमी गङ्गा के अवतरण की कथा ), २.७ ( गौतमी का त्रिलोकी में १५ रूपों में विभक्त होना, गौतमी में स्नान विधि तथा माहात्म्य का वर्णन ), २.१०५ ( गणेश द्वारा माता पार्वती के प्रति गौतमी - अवतरण के वृत्तान्त का वर्णन ), भविष्य १.११५.२ ( कौशल्या के अपूर्व सौन्दर्य के विषय में गौतमी ब्राह्मणी का प्रश्न, कौशल्या द्वारा सौन्दर्य के हेतु का कथन ), वामन ५७.७७ ( गौतमी नदी द्वारा स्कन्द को क्रथ व क्रौंच नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ९९.२०४ ( शन्तनु द्वारा पालित कृपी का दूसरा नाम, कृप - भगिनी ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.५१ ( गौतमी नदी द्वारा कुक्कुट वाहन से श्रीहरि के अनुसरण का उल्लेख ), शिव ३.४२.३ ( गौतमी तट पर शिव के त्र्यम्बकेश्वर नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), ४.२६.५० ( गौतम द्वारा शिव के जटाजूट से अवतारित गङ्गा के गौतमी नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.३६ ( गौतमी तीरस्थ दुराचार नामक ब्राह्मण की धनुष्कोटि तीर्थ के प्रभाव से मुक्ति का वर्णन ), ५.१.६८.२५ ( बृहस्पति के सिंहस्थ होने पर गौतमी तट पर तीन कोटि तीर्थों के आगमन का कथन ), ७.३.५ (नाग तीर्थ में स्नान मात्र से गौतमी द्वारा गर्भ धारण का कथन ), ७.४.२९.१५ ( गौतम द्वारा शंकर की आराधना से गौतमी गङ्गा को लाना, स्नानार्थियों के पापों से गौतमी की अशुद्धि, गोमती से मिलन पर शुद्धि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५५१.६० ( गौतम की शिव से गङ्गा की याचना, शिव द्वारा गङ्गा प्रदान, गौतम द्वारा अवतारण से गङ्गा का गौतमी नाम धारण करना ) । gautami/gautamee
गौर पद्म ५.७०.६३(पूर्व द्वार पर गौर विष्णु की द्वारपाल रूप में स्थिति का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१८.२४ ( कैलास के उत्तर में स्थित एक पर्वत ), १.२.३६.५७( विकुण्ठ गण के १४ देवताओं में से एक ), २.३.८.९३, २.३.१०.८१( शुक व पीवरी के ५ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १५.१० ( शुक व पीवरी के ५ पुत्रों में से एक ), १२१.२४ ( कैलास के उत्तर में स्थित हरिताल वृक्षों से युक्त एक पर्वत ), वामन ९०.२८ ( विन्ध्यशृङ्ग तीर्थ में विष्णु का महागौर नाम से वास ), वायु ४७.२३ ( कैलास के उत्तर में स्थित हरताल वृक्षों से युक्त एक पर्वत ), ७०.८५( शुक व पीवरी के ५ पुत्रों में से एक ) । gaura
गौरमुख देवीभागवत २.९.४३ ( राजा परीक्षित द्वारा क्षमायाचनार्थ गौरमुख मुनि के प्रेषण का उल्लेख ), भविष्य १.१३९.९ ( उग्रसेन - पुरोहित, साम्ब से महा द्विजोत्पत्ति का कथन ), वराह ११( राजा दुर्जय का गौरमुख मुनि के आश्रम में गमन, गौरमुख द्वारा चिन्तामणि की सहायता से राजा का आतिथ्य, राजा द्वारा चिन्तामणि की याचना, चिन्तामणि से नि:सृत सेना के साथ राजा की सेना का युद्ध, राजा - सेना के भस्म होने का वृत्तान्त ), १५( गौरमुख द्वारा दशावतारों की स्तुति, ब्रह्म में लय का कथन ), स्कन्द २.१.११.२०( शमीक ऋषि द्वारा स्वशिष्य गौरमुख को सन्देश वाहक के रूप में परीक्षित के पास भेजने का उल्लेख ), ३.१.४१.२० ( शमीक - शिष्य, शमीक - पुत्र शृङ्गी द्वारा राजा परीक्षित को शाप प्रदान, शमीक द्वारा स्वशिष्य गौरमुख का परीक्षित के समीप प्रेषण तथा पुत्र - प्रदत्त शाप का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५३२.१( राजा दुर्जय का गौरमुख मुनि के आश्रम में आगमन, कृष्ण - प्रदत्त मणि की सहायता से मुनि द्वारा राजा का सत्कार, दुर्जय द्वारा चिन्तामणि हरण की योजना, युद्ध, दुर्जय के सेना सहित विनाश का वर्णन ) । gauramukha
गौरव लक्ष्मीनारायण ४.४४.६७ ( गौरव के रौरव नामक बन्धन होने का उल्लेख ) ।
गौरिक वायु ८८.६६ ( युवनाश्व व गौरी - पुत्र, अपर नाम मान्धाता ) ।
गौरिमुण्ड कथासरित् १४.३.७० ( गौरिमुण्ड पर विजय प्राप्ति हेतु नरवाहनदत्त को सिद्धक्षेत्र जाकर ईश्वर आराधना का परामर्श ), १४.४.९७ ( नरवाहनदत्त द्वारा गौरिमुण्ड पर विजय हेतु सैनिकों को प्रयाण का आदेश ), १६.२.१८७ ( नरवाहनदत्त के पतन हेतु गौरिमुण्ड द्वारा स्वाश्रित मतङ्गदेव के प्रेषण का उल्लेख ) । gaurimunda
गौरी अग्नि ५२.१४ ( गौरी प्रतिमा का लक्षण ), ९८ ( गौरी - प्रतिष्ठा विधि का वर्णन ), ११३.४ ( गौरी का पर्वत पर श्रीदेवी रूप धारण करके तप, हरि से वर प्राप्ति, पर्वत की श्रीपर्वत रूप से प्रसिद्धि का कथन ), ३१३.१९ ( गौरी मन्त्र, ध्यान स्वरूप व मन्त्र महिमा का कथन ), ३२६.१ ( गौरी पूजा विधान ), गणेश २.१२८.२७ ( सिन्दूर दैत्य द्वारा गौरी का हरण , शिव व गणेश द्वारा मोचन का उद्योग ), नारद १.११३.८० ( माघ शुक्ल चतुर्थी में करणीय गौरी व्रत की विधि व माहात्म्य ), पद्म १.२०.५२ ( गौरी व्रत की संक्षिप्त विधि ), १.२२.६३ ( मास अनुसार गौरी पूजा की विधि का वर्णन ), ६.२०१.१०१( गौरी अर्चना का गौ सेवा से तादात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.११.१४ ( विरज - पत्नी, सुधामा - माता ), १.२.१६.३३( महागौरी : विन्ध्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), १.२.१९.७५ ( क्रौञ्च द्वीप की ७ प्रधान नदियों में से एक ), १.२.२५.१८ ( पार्वती का एक नाम ), २.३.६३.६७ ( युवनाश्व - पत्नी , मान्धाता - माता गौरी का पति शाप से बाहुदा नदी बनने का उल्लेख ), ३.४.४४.५८ ( वर्ण शक्तियों में से एक शक्ति ), मत्स्य १३.२९ ( कान्यकुब्ज में गौरी नाम से सती देवी की स्थिति का उल्लेख ), २२.३१( पितर श्राद्ध हेतु गौरी तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ), २२.७६ ( पितर श्राद्ध हेतु गौरी शिखर तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ), ४९.८ ( रन्तिनार व मनस्विनी - कन्या, मान्धाता - माता, पूरु वंश ), ६२.२२ ( भिन्न - भिन्न मासों में भिन्न - भिन्न पुष्पों तथा नैवेद्य से गौरी - पूजा के विधान का कथन ), १०१.८ ( गौरी व्रत की विधि व माहात्म्य ), १०१.१६ ( सौभाग्य व्रत के प्रभाव से गौरी लोक में वास का उल्लेख ), १२२.८८ ( क्रौञ्च द्वीप की सात गङ्गाओं मे से एक ), २९०.१० ( २८वें कल्प का नाम ), वराह २२ ( हिमालय - पुत्री के रूप में गौरी की उत्पत्ति, शिव से विवाह का प्रसंग ), वायु ४३.३८ ( पार्वती का एक नाम ), ४९.६९ ( क्रौञ्च द्वीप की सात प्रधान नदियों में से एक ), ८८.६५ ( युवनाश्व - पत्नी, मान्धाता - माता, शाप से गौरी के बाहुदा नदी बनने का उल्लेख ), ९९.१३० ( रन्तिनार व सरस्वती - पुत्री, मान्धाता - माता ), विष्णु २.४.५५ ( क्रौञ्च द्वीप की सात मुख्य नदियों में से एक ), ५.३२.१२ ( पार्वती का एक नाम ), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.५(वरुण पुरुष, गौरी प्रकृति), १.२०७.४३ ( गौरी नदी की शतद्रु नाम से ख्याति, गौरी महिमा का कथन ), शिव ५.३७.४३ ( प्रसेनजित् - भार्या, पति शाप से बाहुदा नदी बनने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.४९.५५ ( सूर्य द्वारा मङ्गलाष्टक स्तोत्र द्वारा मङ्गला गौरी की स्तुति ), ४.२.९७.१४७ ( गौरी कूप में स्नान से सम्पूर्ण जडता नाश का उल्लेख ), ५.३.१९८.६६ ( कान्यकुब्ज तीर्थ में उमा की गौरी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.१३०.३४ ( सौभाग्य प्राप्ति हेतु पञ्चपिण्डिका गौरी पूजा विधि, शाण्डिली द्वारा कात्यायनी को बोध, गौरी द्वारा शिव की प्रीति प्राप्ति हेतु तप का वर्णन ), ६.१७७ ( पञ्च पिण्डिका गौरी की पद्मावती द्वारा पूजा से सौभाग्य प्राप्ति की कथा ), ६.१७८.२९(गोमय-निर्मित गौरी के पूजन से गोलोक प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ७.१.६८ ( पार्वती द्वारा स्थापित गौरीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, काली का तप से गौरी बनने का वृत्तान्त ), ७.१.१०५.५१ ( २७वें कल्प का नाम ), ७.१.२०५.८३ ( कन्याओं के अनेक प्रकारों में अप्राप्त रजस तथा सप्तवर्षीया कन्या की गौरी संज्ञा का उल्लेख ), ७.१.३४८ ( मन्त्रविभूषणा गौरी के पूजन से दुःख नाश का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१८६.३२ ( शिव प्राप्ति हेतु गौरी शृङ्ग पर पार्वती द्वारा तप, ऋषियों के द्वारा निवारित किए जाने पर भी तप में स्थित गौरी की सप्तर्षियों द्वारा परीक्षा, आशीर्वाद प्रदान का वर्णन ), १.३३०.१८ ( जलन्धर व शिव के द्वन्द्व युद्ध में जलन्धर द्वारा मायामयी गौरी का निर्माण तथा मरण ), १.३३०.७८ ( वृन्दावन में धात्री वृक्ष के गौरी का अंश होने का उल्लेख ), १.५०८.१(पञ्च-पिण्डिका गौरी पूजन से अमा के लक्ष्मी बनने का वृत्तान्त), २.३३.४ ( गौरी व्रत के पश्चात् गौरी विसर्जन का वर्णन ), कथासरित् १४.३.१०५(गौरी विद्या का स्वरूप), १४.३.१३२ ( नरवाहनदत्त की तपस्या से संतुष्ट हुए शिव - गौरी द्वारा नरवाहनदत्त को गौरी नामक विद्या प्रदान करने का उल्लेख ) । gauri/gauree
ग्रन्थ कूर्म १.२५.४१( सावर्णि द्वारा महादेव की आराधना से ग्रन्थकारत्व प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१३१ ( कृष्ण - पत्नी चारणी के पुत्र - पुत्री युगल में ग्रन्थवित् का उल्लेख ) ।ggrantha
ग्रन्थि अग्नि ७८(पवित्रक की १० ग्रन्थियों की देवियों के नाम), भागवत ५.५.८ ( पुरुष और स्त्री के मिथुनीभाव के हृदय ग्रन्थि होने का कथन , हृदय ग्रन्थि काटने के उपाय का कथन ), स्कन्द ५.३.१४६.९१ ( अस्माहक तीर्थ में स्नान के पश्चात् दर्भ ग्रन्थि आदि बांधने का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण २.२४६.६२ ( हृदय ग्रन्थि शून्य करने पर ही ब्रह्म ग्रन्थि जानने का उल्लेख ) । granthi/granthee
ग्रसन मत्स्य १४८.३८ ( तारक - सेनानी ), १५०.१ ( ग्रसन दैत्य के साथ यम का युद्ध ), १५१.३६ ( विष्णु के चक्र से ग्रसन के छिन्न - मस्तक होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१६.७ ( तारक - सेनानी ग्रसन दैत्य का युद्धार्थ उपक्रम, ध्वज व वाहन का कथन ), १.२.१७.१७ ( देव - दानव युद्ध में यम व ग्रसन का द्वन्द्व युद्ध, यम की पराजय का वर्णन ) । grasana
ग्रह अग्नि ५१.११ ( ग्रहों की प्रतिमाओं के लक्षण ), १२०.६ ( ग्रहों की परस्पर दूरी का कथन ), १२०.३३ ( ग्रहों के रथों का वर्णन ), १२१.७८ ( ज्योतिष में ग्रहदशा का विचार ), १२३.२ ( क से ह तक वर्णों के ग्रह - स्वामियों का उल्लेख ), १२५.२९ ( ग्रहों के युद्ध पर प्रभाव का कथन ), १२५.३९ ( ग्रहों द्वारा वर्णमाला के अष्ट वर्गों के स्वामित्व तथा ग्रह - वाहनों का कथन ), १२७.३ ( जन्म राशि तथा लग्न से अन्य स्थानों में स्थित ग्रहों के शुभाशुभ का कथन ), १३३.६ ( ग्रह दशा अनुसार फल का विचार ), १६४ ( नवग्रह होम विधि ), १६७ ( ग्रह यज्ञ के अयुत, लक्ष व कोटि नामक तीन प्रकार तथा होम विधि का वर्णन ), २९९ ( शिशु पीडक ग्रह व चिकित्सा का वर्णन ), ३०० ( ग्रह बाधा से पीडित मनुष्य के लक्षण व रोगहारक मन्त्र तथा औषधि का वर्णन ), ३२१.२ ( ग्रह - पूजा से ग्रहों की एकादश स्थान में स्थिति का उल्लेख ), कूर्म १.४१ ( अन्तरिक्ष में ग्रहों की सापेक्ष स्थिति व विस्तार का कथन ), १.४३ ( ग्रह - पोषक सूर्य रश्मियों के नामों का कथन ), १.४३.४२ ( ग्रहों के रथों में अश्वों की संख्याओं का कथन ), गरुड १.१७.५ ( सूर्यार्चन विधि में ग्रहों के दिशा विन्यास का कथन ), १.१९.६ ( सर्पों के ग्रहों से तादात्म्य का कथन ), १.५९.२६ ( ग्रहों के तिथियों पर प्रभाव का कथन ), १.६० ( ग्रह दशा का निरूपण ), १.६१ ( जन्म राशि के अनुसार शुभ - अशुभ फल का कथन ), १.६२.१४ ( ग्रहों की चर, मृदु आदि प्रवृत्तियों तथा तदनुसार कार्य प्रवृत्ति का कथन ), १.१०१ ( ग्रह शान्ति का निरूपण ), २.३२.११७/२.२२.६८( शरीर में ग्रह मण्डल की स्थिति का कथन ), देवीभागवत ८.१६ ( चन्द्रादि ग्रहों की गति का वर्णन ), ८.१७ ( शिशुमार चक्र में ग्रहों के न्यास का वर्णन ), नारद १.१३.४६ ( विशेष ग्रह - नक्षत्र योग में दुग्ध, दधि, घृत और मधु से विष्णु के स्नान का फल ), १.५१.८० ( नव ग्रहों की पूजा विधि के अन्तर्गत प्रत्येक ग्रह की प्रतिमा का पृथक् - पृथक् धातुओं से निर्माण, ग्रह वर्ण के अनुसार पुष्प व वस्त्रार्पण, समन्त्रक चरु का होम, समिधा, आहुति व दक्षिणा आदि का वर्णन ), १.५५.१४ ( ग्रह ज्योतिष के वर्णनान्तर्गत ग्रहों के शील, गुण, स्वामी, धातु, वस्त्र, ऋतु, कालमान, मैत्री तथा बल आदि का निरूपण ), १.५५.९७ ( ग्रहों के स्वरूप व गुणों का वर्णन ), १.५६.२४७ ( ग्रहों के जन्म नक्षत्रों का कथन ), १.५६.२७० ( ग्रह - गोचर का कथन ),१.६९ ( ग्रह यन्त्र विधि, पूजा विधि, मन्त्र जप विधि का वर्णन ), १.८५.४२ ( ग्रह न्यास विधि का कथन ), पद्म १.३४.३०५ ( ग्रहों के सौम्यत्व करणोपाय - विधि का वर्णन ), १.८२ ( ग्रह पूजा विधि का वर्णन ), ३.३१.१८२(शाकुनि के ९ पुत्रों के नवग्रहों की भांति होने का उल्लेख), ब्रह्म १.२१ ( ग्रहों की परस्पर दूरी के परिमाण का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.५३( ग्रहों के रथों का वर्णन ), १.२.२४.६५ ( सूर्य की सुषुम्ना, हरिकेश प्रभृति ७ प्रमुख रश्मियों से ग्रहों की उत्पत्ति व पुष्टि का कथन ), १.२.२४.९३ ( ग्रहों के स्थानों का कथन ), १.२.२४.८८ ( सूर्य के अदिति - पुत्र, चन्द्रमा के धर्म - पुत्र, शुक्र के भृगु - पुत्र, बृहस्पति के अङ्गिरा - पुत्र, बुध के त्विषि - पुत्र आदि होने का उल्लेख ), १.२.२४.१३२ ( ग्रहों के उत्पत्ति नक्षत्रों के नामों का कथन ), ३.४.४४.७६ ( ग्रह न्यास का कथन ), भविष्य १.३४.२२ ( सर्पों की ग्रहों से सारूप्यता का उल्लेख ), १.५६.२१ ( ग्रह शान्ति कर्म की आवश्यकता, महिमा, ग्रह शान्ति कर्म के अन्तर्गत समिधा, दक्षिणा, भोजनादि का वर्णन ), १.१२५.४३ ( ग्रहों के सुतत्व :कश्यप -सुत सूर्य, धर्म - सुत सोम, प्रजापति - सुत शुक्र व बृहस्पति आदि का उल्लेख ),१.१७५.५० ( ग्रहों से ग्रह पीडा शान्ति हेतु प्रार्थना ), १.२०६.२८ ( ग्रहों के बीज, रूप, मुद्रा तथा वर्ण का कथन ), २.१.४.३६ ( ग्रहों की आपेक्षिक स्थिति का उल्लेख ), ३.४.१७.४८ ( पृथ्वी, जल आदि पांच तत्त्वों से मङ्गल, शुक्र आदि ५ ग्रहों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.२५.३४ ( ब्रह्माण्ड शरीर के अङ्गों से ग्रहों की उत्पत्ति ), ४.११३ ( वार, ग्रह, नक्षत्र योग के अनुसार ग्रह - नक्षत्र व्रत का वर्णन ), ४.१४१ ( नव ग्रह लक्ष होम विधि के वर्णनान्तर्गत ग्रहों के अधिदेवता, वर्ण, नैवेद्यादि का कथन ), ४.१४१.१२( ग्रहों का दिशाओं में विन्यास, ग्रहों हेतु देय द्रव्य ), भागवत ५.२२ ( विभिन्न ग्रहों की स्थिति व गति का वर्णन ), मत्स्य १७.५६ ( श्राद्ध क्रिया में ग्रहबलि का उल्लेख ), २४.४६ ( रजि - पुत्रों द्वारा इन्द्र के राज्य - च्युत होने पर बृहस्पति द्वारा ग्रह शान्ति विधान तथा पौष्टिक कर्म द्वारा इन्द्र को बल सम्पन्न बनाने का उल्लेख ), ९३.४ ( नवग्रह शान्ति होम विधि ), ९३.१९ ( नव ग्रह शान्ति हेतु ओदन विशेष का कथन ), ९३.२७ ( ग्रह शान्ति हेतु समिधा विशेष व मन्त्र विशेष का वर्णन ), ९४ ( नवग्रहों के स्वरूपों का वर्णन ), १२७ ( ग्रहों के रथों का वर्णन ), २३९ ( ग्रह यज्ञ विधान का वर्णन ), मार्कण्डेय ६८/७१.२६ ( उत्तम राजा द्वारा ऋषि से पत्नी के अप्रिय व्यवहार का कारण पूछना, ऋषि द्वारा पाणिग्रहण काल में ग्रहों की विपरीत स्थिति को अप्रिय व्यवहार का हेतु निरूपित करना ), लिङ्ग १.५७ ( ग्रहों के रथों तथा गमन का वर्णन ), १.६०.१९, २.१२.११ ( सूर्य की श्रेष्ठ रश्मियों के ग्रह योनि, ग्रह पोषक होने का कथन ), १.६१ ( ग्रहों के स्थान, वर्ण तथा उत्पत्ति आदि का कथन ), वायु ३०.१४६ ( दक्ष यज्ञ विध्वंस के समय ग्रह, नक्षत्र, तारकादि के प्रकाशहीन हो जाने का उल्लेख ), ५०.९९ ( अतिरिक्त ग्रह - पोषक रश्मि नामों का वर्णन ), ५२.५० ( ग्रहों के रथों का वर्णन ), ५३.२९ (ग्रहों की प्रकृति का कथन ), ५३.१०५ ( ग्रहों की अर्चि संख्या व उत्पत्ति नक्षत्रों के नामों का कथन ), १०१.१३१ ( ग्रहों की अन्तरिक्ष में सापेक्ष स्थिति का कथन ), विष्णु १.८.११ ( ग्रहों के रुद्र - सुत होने का उल्लेख ), २.७.५ ( ग्रहों के संस्थान तथा प्रमाण का निरूपण ), २.१२ ( नवग्रह रथ स्वरूप का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.८५ ( ग्रह - नक्षत्रादि से शुभ - अशुभ परिज्ञान का वर्णन ), १.९१ ( ग्रह पीडा विनाशक ग्रह - स्नान का कथन ), १.९५ ( ग्रह - आवाहन मन्त्र का कथन ), १.९६.३ ( पृथक् - पृथक् ग्रहों को पृथक् - पृथक् चन्दनादि प्रदान करने का उल्लेख ), १.९७+ ( पृथक् - पृथक् ग्रहों को पृथक् - पृथक् पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, पान, होमद्रव्य तथा होममन्त्र प्रदान करने का वर्णन ), १.१०३ ( ग्रहों को देय दक्षिणा का कथन ), १.१०४ ( पृथक् - पृथक् दिशा में पृथक् - पृथक् ग्रह द्वारा रक्षा की प्रार्थना ), १.१०५ ( ग्रह शान्ति कर्त्तव्यता का निरूपण ), १.१०६ ( ग्रह सम्भव / जन्म का वर्णन ), १.१०६.२४( ग्रहों की आपेक्षिक स्थिति का कथन ), १.२३० ( कुमार - नाश हेतु शक्र - प्रेरित ग्रहों की शान्ति हेतु स्कन्द द्वारा अन्य अनेक ग्रहों की सृष्टि का कथन ), १.२३१ (ग्रहाविष्ट पुरुषों के लक्षण ), १.२३२ ( ग्रह बाधा प्रतिषेध विधि ), २.१६९ ( ग्रह - गति का वर्णन ), ३.६९ ( भौमादि ग्रहों के रूप निर्माण का कथन ), ३.१०४.२२ ( ग्रह आवाहन मन्त्रों का वर्णन ), शिव ५.१९.१२ ( सप्त ग्रहों की स्व - स्व राशि में स्थिति का कथन ), स्कन्द १.२.३८ .२३( ग्रहों के रथ तथा मण्डल - परिमाण का वर्णन ), १.२.४२.२३०( बुद्धि, मन आदि १३ ग्रहों व बोद्धव्य, मन्तव्य आदि १३ महाग्रहों के नाम ), ३.१.७ .५७( सेतु निर्माण प्रसंग में राम द्वारा नवग्रह स्थापना, सेतु मूल के नव पाषाण रूप होने का उल्लेख ), ५.२.४४.३० ( क्रूर ग्रहों के फलों का कथन ), ६.२६२.५९ ( विष्णु के विराट शरीर के विभिन्न अङ्गों में ग्रहों की स्थिति ), ७.१.११.१८ ( कूर्म रूप से स्थित भारत के ऊपर नक्षत्र - ग्रह विन्यास ), ( ग्रहों का दिक् विन्यास, पूजा मन्त्र ), महाभारत भीष्म ३, १२, ४५, अनुशासन १४.७५( मन्दार असुर की ग्रह संज्ञा ), लक्ष्मीनारायण १.७४.४८ ( नेत्रों में सूर्य - चन्द्र, ओष्ठ में मङ्गल आदि रूप में शरीर में ग्रहों की स्थिति ), १.१५०.१२( ग्रहों की प्रकृति का कथन ), १.२८४( वार व्रतों के संदर्भ में ७ ग्रहों के स्वरूप ), १.४१६.६९ ( सूर्य चन्द्रादि ग्रहों द्वारा ज्योतिष्मती से पति रूप में वरण की प्रार्थना, ज्योतिष्मती के अस्वीकार करने पर ग्रहों द्वारा उपहास, ज्योतिष्मती द्वारा ग्रहों को स्त्री निमित्त से दुःख प्राप्ति रूप शाप प्रदान करने का वर्णन ), २.१५०.५९ ( नवग्रह पूजन विधि व मन्त्र ), २.१५२.६७ ( नव ग्रहों हेतु समिधाएं व ग्रह होम विधि ), २.१५६.१०२ ( ग्रह न्यास ), २.१५७.२३ ( मूर्ति में पत्तल में ग्रहों का न्यास ), २.१७५.६९ ( विभिन्न ग्रहों में नक्षत्रों की स्थिति का फल ), २.१७७ ( उच्च - नीच ग्रह फल, प्रतिष्ठान में लग्नकुण्डलीस्थ ग्रहों के फल ), ३.१०.९ ( तुङ्गभद्रिका द्वारा ग्रहों की गति को रोकना, ग्रहों द्वारा गति प्रदान हेतु प्रार्थना, तुङ्गभद्रिका द्वारा स्व - पुत्री के कृष्ण के साथ विवाहोपरान्त ग्रहों को गति प्रदान करना ), ३.३४.७१ ( नैश्किञ्चनी श्री का अग्रहा माता से जन्म ), ३.१३३.२२ ( ग्रह शान्ति, ग्रह यज्ञ, पूजादि विधि का वर्णन ), ३.१३४.१( लक्ष होम ग्रह यज्ञ की विधि व माहात्म्य ), ३.१३४.४९( ग्रहों का स्वरूप ), ३.१४२.११ ( ग्रहों की नागों से उपमा ) ;, ३.१४८.८०( विभिन्न दु:स्वप्नों की शान्ति हेतु ग्रहयज्ञ विधान ), द्र. प्रतिग्रह, पार्ष्णिग्रह, बालग्रह, शरीरग्रह, शूलग्रह । graha
ग्रहण अग्नि २१४.२० ( देहमध्य में प्राणवायु का आयाम सोमग्रहण व देहातितत्त्व का आयाम आदित्य ग्रहण होने का कथन ), पद्म ४.१०.२२ ( चन्द्र - सूर्य ग्रहण पर स्नान, दानादि का माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.१२ ( चन्द्र - सूर्य ग्रहण में भोजन से असंतुद नरक प्राप्ति का उल्लेख ), ४.७९ ( जमदग्नि के महारास रसोपभोग में विघ्न उपस्थित करने पर जमदग्नि द्वारा भास्कर को पापदृश्य व राहुग्रस्त होने का शाप, जमदग्नि - भास्कर आख्यान ), ४.८०.१७ ( भाद्रपद चतुर्थी में चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति - पत्नी तारा का बलात् हरण, क्रुद्ध तारा द्वारा चन्द्रमा को राहुग्रस्त तथा पापदृश्य होने का शाप ), भविष्य ४.१२५ ( चन्द्रादित्य ग्रहण स्नान विधि व माहात्म्य का वर्णन ), भागवत १०.८२ ( सूर्य ग्रहण पर कुरुक्षेत्र में यादवों व पाण्डवों द्वारा स्नानादि का कथन ), मत्स्य ६७ ( सूर्य व चन्द्र ग्रहण के समय स्नान की विधि व माहात्म्य का वर्णन ), वायु ६९.३३७/२.८.३३७( इरा के ग्रहणशीला होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.१३ ( चन्द्र व सूर्य ग्रहण में भोजन करने से मनुष्यों के कुञ्जर योनि प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.५१.५९ ( सूर्य व चन्द्र ग्रहण पर पृथिवी रूपा गौ दान का फल ), ५.३.६०.६९ ( सूर्य ग्रहण के समय नर्मदा तट पर रवि तीर्थ में जाने पर कुरुक्षेत्र के समान फल प्राप्ति का कथन ), ५.३.८५ ( सूर्यग्रहण पर सङ्गम में स्नान का माहात्म्य ), ५.३.१२१.१८ ( चन्द्रहास तीर्थ में चन्द्र व सूर्य ग्रहण में स्नान से पापों से मुक्ति का कथन ), ५.३.१३९.११ ( सोमतीर्थ में चन्द्र - सूर्य ग्रहणादि में योगी को भोजन देने का निर्देश ), ५.३.१४२.९७ ( रुक्मिणी तीर्थ में स्नान से चन्द्र व सूर्य ग्रहण काल में तीर्थों में स्नान के फल की प्राप्ति ), ५.३.१४६.१०६ ( अस्माहक तीर्थ में सूर्य ग्रहण आचरण से विष्णु लोक की प्राप्ति का कथन ), ५.३.१९०.२५ ( सूर्य व चन्द्र ग्रहण में चन्द्रहास तीर्थ में स्नान का माहात्म्य ), ७.१.१७.१८२ ( सूर्य ग्रहण के कारण का कथन, राहु द्वारा अमृत पान ), ७.३.२६ ( सूर्य ग्रहण पर कनखल तीर्थ में श्राद्ध का फल व माहात्म्य ), ७.३.५१ ( चन्द्रग्रहण पर चन्द्रोद्भेद तीर्थ में स्नान का माहात्म्य ) । grahana
ग्रही अग्नि २९९ ( शिशु जन्म से लेकर १७वें वर्ष तक बालकों को आक्रान्त करने वाली विविध ग्रही, ग्रही से गृहीत बालों की चेष्टा तथा ग्रही से मुक्ति के उपाय का वर्णन ) ।
ग्राम नारद १.५०.३२ ( संगीत में षड्ज, मध्यम व गान्धार नामक तीन ग्रामों तथा उनके स्थानों का कथन ), मत्स्य ४०.९( मुनि के लिए ग्राम व अरण्य में सम्बन्ध का कथन ), मार्कण्डेय ४६/४९.४७ ( शूद्रों व किसानों की वास भूमि की ग्राम संज्ञा का उल्लेख ), विष्णु १.६.२३( १७ ग्राम्य व १४ ग्राम्यारण्य ओषधियों के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर २.६१.२ ( राजधर्म वर्णनान्तर्गत ग्राम - व्यवस्था ), स्कन्द १.२.३९.१२६ ( भारत के ९ खण्डों में ग्रामों की लक्षमान संख्याओं का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५१४.७(इन्द्रिय ग्राम तृष्णा को ध्वंस करने वाले ३ ग्रामों के नाम), २.९७.७३ ( ग्रामायन द्वारा श्रीहरि से स्व रक्षा के वृत्तान्त का कथन ) ; द्र. इन्द्रग्राम, नन्दिग्राम, शालिग्राम । graama
ग्रामणी नारद १.६६.१३३( कामान्ध गणेश की शक्ति ग्रामणी का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१ ( ग्रामणी का सूर्य रथ पर अधिष्ठान ), १२.२३.२७ ( ग्रामणी द्वारा सूर्य रथ में अभीषु संग्रह कार्य का उल्लेख ), ३.४.४४.६९ ( ५१ वर्णों के गणेश नामों में से एक नाम ), मत्स्य १७१.६( ब्रह्मा के समस्त प्राणियों के ग्रामणी / नायक होने का उल्लेख ), १७४.३ ( इन्द्र के समस्त देवताओं के ग्रामणी / नायक होने का उल्लेख ), वायु ५२.१ ( छहों ऋतुओं में पृथक् - पृथक् ग्रामणी के सूर्य रथ पर अधिष्ठित होने का कथन ), विष्णु २.१०.२ ( सूर्य रथ पर ग्रामणी के अधिष्ठित होने का उल्लेख ), वा.रामायण ४.४१.४३ ( ऋषभ पर्वतस्थ चन्दनवन में शैलूष, ग्रामणी, शिक्ष, आदि पांच गन्धर्वराजों के निवास का उल्लेख ), ७.५.१( ग्रामणी नामक गन्धर्व द्वारा स्वकन्या देववती का हाथ राक्षस सुकेश के हाथ में सौंपने का उल्लेख ) । graamanee/ graamani
ग्रावस्तुत
पद्म
१.३४.१६(
पुष्कर
में
ब्रह्मा
के
यज्ञ
में
च्यवन
के
ग्रावस्तुत
होने
का
उल्लेख
-
अच्छावाकः
क्रतुः
प्रोक्तो
ग्रावस्तुच्च्यवनस्तथा।
पुलस्त्योद्ध्वर्युरेवासीत्प्रतिष्ठाता
च
वै
शिबिः॥
),
मत्स्य
१६७.१०
(
यज्ञ
के
१६
ऋत्विजों
में
से
एक
ग्रावस्तुत
की
नारायण
के
पाद
से
उत्पत्ति
का
उल्लेख),
स्कन्द
३.१.२३.२६(
ब्रह्मा
के
यज्ञ
में
पराशर
के
ग्रावस्तुत
बनने
का
उल्लेख
),
६.१८०.३३(
उत्तर
पुष्कर
में
ब्रह्मा
के
यज्ञ
में
गालव
के
ग्रावस्तुत
बनने
का
उल्लेख
),
७.१.२३.९८(
प्रभास
में
ब्रह्मा
/
चन्द्रमा
के
यज्ञ
में
क्रतु
के
ग्रावस्तुत
बनने
का
उल्लेख
)
।
graavastut
ग्रावस्तुत ग्रावस्तुत् यज्ञ के १६ मुख्य ऋत्विजों में से एक होता है जो माध्यन्दिन सवन हेतु सोम के सवन के समय ऋचाओं का पाठ करता है । ब्राह्मण ग्रन्थों में अर्बुद काद्रवेय सर्प के ग्रावस्तुत् बनने का आख्यान आता है । ग्रावस्तुत् को समझने के लिए अर्बुद शब्द पर टिप्पणी द्रष्टव्य है । कहा गया है कि जब अर्बुद काद्रवेय सर्प ऋचाओं का पाठ कर रहा था तो उसकी आंखों से विष निकलकर देवों को आक्रान्त करने लगा । तब देवों ने उसकी आंखों पर पट्टी बांध दी । इसी के प्रतीक स्वरूप जब ग्रावस्तुत् ऋचाओं का पाठ करता है तो उसकी आंखों को उष्णीष से बंद कर दिया जाता है। अर्बुद मन का प्रतीक है और विश: ग्रावाण: या सोम कूटने के पत्थर हैं। प्राण बहिर्मुखी होने पर विष बन जाते हैंऔर अन्तर्मुखी होने पर यह विश: बन सकते हैं। सारी बहिर्मुखी ऊर्जा को, प्राणों को अन्तर्मुखी करके सोम के सवन में लगाना है ।
Remarks by Dr. Fatah Singh
ग्रावा स्कन्द ६.२४३.६६(शालग्राम शिला के ग्रावा रूप का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३७०.१०५ ( नरक में तीक्ष्ण ग्रावा कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) ।
ग्रावा यज्ञ की भाषा में सोम पीसने - कूटने के पत्थर । वेद में गृ - विज्ञाने । विज्ञान की शक्तियां जो हमें विज्ञान के, विज्ञानमय कोश के विषय में बताती हैं। अन्तरात्मा की आवाज । - फतहसिंह
Remarks by Dr. Fatah Singh
ग्राह ब्रह्म १.३३.३३( ग्राह द्वारा बाल रूप शिव को ग्रसना, पार्वती द्वारा तप दान से मुक्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४१६ ( ऋषा - पुत्री आमीना से ४ प्रकार के ग्राहों की उत्पत्ति का उल्लेख ), वामन ७२.३३ ( स्वारोचिष मन्वन्तर में मरुत् उत्पत्ति प्रसंग में ग्राह - प्रमुख महाशङ्ख की पत्नी शङ्खिनी द्वारा क्रतुध्वज - पुत्रों के शुक्र का पान करने पर सात मरुतों की उत्पत्ति ), ८४.६४/ ८५.६५ ( देवल/देव के शाप से हूहू गन्धर्व के ग्राह बनने का उल्लेख ), वायु ६९.२९३ ( ऋषा - कन्या मीना से चार प्रकार के ग्राहों की उत्पत्ति का उल्लेख ), विष्णु ४.२.१२५ ( परिग्रह रूपी ग्राह द्वारा बुद्धि ग्रहण का उल्लेख ), शिव ३.३१.५७ ( सपत्नी द्वारा छल करने पर अगले जन्म में सपत्नी का ग्राह बनकर भक्षण करने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१.२६ ( ब्राह्मण के शाप से पांच अप्सराओं को ग्राह योनि की प्राप्ति, पांचों की पांच तीर्थों के सरोवरों में ग्राह रूप से स्थिति, अर्जुन द्वारा उद्धार का वर्णन ), १.२.५.९९ ( संसार - सागर में लोभ रूपी ग्राह का निवास, लोभ रूपी ग्राह को जीतकर संसार - सागर को पार करने का निर्देश ), ३.३.६.३०, ७१ ( सपत्नी को छद्मपूर्वक मारने के पाप से राजमहिषी का ग्राह द्वारा ग्रहण तथा मरण ), ७.३.१८.७ ( सरोवर में प्रविष्ट तृषार्त्त राजा चित्राङ्गद का ग्राह द्वारा भक्षण, दुष्कर्म स्वरूप नरक गमन, यमतीर्थ में मरण से मुक्ति ), महाभारत उद्योग ४०.२२(काम-क्रोध ग्राहवती, पञ्चेन्द्रियजलवती आत्मा नदी को धृतिमयी नाव द्वारा तरने का निर्देश), शान्ति ३०१.६५( दुःख रूपी जल में व्याधि, मृत्यु रूप ग्राह, तम: कूर्म व रजो मीन आदि को प्रज्ञा से तरने का कथन ), ३१९.९(कालसागर में जरा-मृत्यु महाग्राहों का उल्लेख), कथासरित् ६.७.२९ ( पञ्चतीर्थ में पांच अप्सराओं का ऋषि शाप से ग्राह बनकर निवास, अर्जुन द्वारा अप्सराओं के उद्धार का उल्लेख ), १४.३.१०४ ( गौरिमुण्ड की सेना के साथ हुए युद्ध में रक्त - नदियों में प्रवाहित कबन्धों की ग्राह से उपमा ) ; द्र. गजग्राह । graaha
ग्रीवा भागवत २.५.३९(ग्रीवा में जनलोक की स्थिति का उल्लेख), मत्स्य १७९.२४( महाग्रीवा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), महाभारत शान्ति ३१७.५(ग्रीवा से प्राणों के उत्क्रमण पर नर लोक की प्राप्ति का उल्लेख), ३४७.५३(हयग्रीव की ग्रीवा के रूप में कालरात्रि का उल्लेख), हरिवंश ३.७१.४९ ( वामन के विराट रूप में दिति के ग्रीवा स्थानीय होने का उल्लेख ) ; द्र. कम्बुग्रीव, कूर्मग्रीव, तलग्रीव, मणिग्रीव, रत्नग्रीव, सुग्रीव, हयग्रीव । greevaa/griva
ग्रीष्म विष्णुधर्मोत्तर १.२४१ ( अयोध्या में ग्रीष्म ऋतु का वर्णन ), स्कन्द ५.३.१०३.६३ ( रुद्र के ऋतुओं में ग्रीष्म आदि होने का उल्लेख ), वायु ५२.६ ( ग्रैष्मिक सूर्य रथ पर अधिष्ठित देव, आदित्य, गन्धर्व आदियों का उल्लेख ), ६३.१३ / २.२.१३ ( स्वायम्भुव मन्वन्तर में ग्रीष्म द्वारा पृथिवी का दोहन करने का कथन ) ; द्र. ऋतु । greeshma
घ अग्नि ३४८.५ ( घण्टा, किङ्किणीमुख हेतु घ प्रयोग का उल्लेख ) ।
घट अग्नि ९६.४ ( द्वार शाखाओं के मूलदेश में पूर्वादि क्रम से प्रशान्त, शिशिरादि २ - २ घटों की पूजा का विधान ), पद्म १.५८.५२ ( पाप क्षय हेतु धर्म घट दान का उल्लेख ), ६.१६५ ( घटेश्वर तीर्थ की महिमा ), भविष्य ४.१८३ ( महाभूत घट दान विधि का वर्णन ), मत्स्य १६१.८१ ( घटटस्य : हिरण्यकशिपु की सभा का एक दैत्य ), २८९ (महाभूत घट दान विधि का वर्णन ), वायु १.३०.२४९ ( शिव सहस्रनामों में से एक ), शिव २.५.३६.१० ( घटपृष्ठ : शङ्खचूड - सेनानी, बुध से युद्ध का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.२६.६० ( उज्जयिनी में मन्दाकिनी कुण्ड के परित: ४ घटों की स्थापना का उल्लेख ), ५.१.६३.१०३ ( विष्णु सहस्रनामों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.२२५.९४ ( बालकृष्ण द्वारा यज्ञ समाप्ति के पश्चात् पितरिकाओं को अक्षय घट प्रदान करने का उल्लेख ), २.२७१.५३ ( धन्येश्वरी नामक वणिक्पत्नी द्वारा चोरी से प्राप्त धन व रत्नों को घट में रखना, रत्न निकालने पर हाथ का स्तम्भन, आकाशवाणी के अनुसार मन्दिर निर्माण पर घट से हाथ की मुक्ति ), ३.३४.८४, १०४ ( पुण्यवती के शाप से ब्रह्मा की जडता तथा घटशाला का कम्पन, शाप निवृत्ति पर ब्रह्मा तथा घटशाला की चेतनाता ), ३.१३७.१ ( घट लक्ष्मी व्रत का निरूपण ), कथासरित् ६.३.१७३ ( राक्षसी से सुनी हुई आश्चर्यजनक युक्ति के प्रयोग से राजा के शिर में स्थित कर्णखर्जूरी के घट में आ जाने तथा राजा के रोगमुक्त होने की कथा ), ६.४.१३१ ( हरिशर्मा के ज्योतिष - ज्ञान की परीक्षा हेतु राजा द्वारा घट में मेंढक स्थापना की कथा ), १०.१.२५( यक्षों के भद्रघट की महिमा ), १०.८.४३ ( घट व कर्पर नामक चोरों की कथा : राजकुमारी के अपहरण से कर्पट को फांसी, घट द्वारा युक्तिपूर्वक कर्पर का अन्तिम संस्कार, राजकुमारी द्वारा घट का वध ) । ghata
घटिका वामन ९०.३३ ( घटि तीर्थ? में विष्णु का विश्वामित्र नाम से वास ), स्कन्द २.१.१.४२( पृथिवी को स्थिर करने वाले मुख्य पर्वतों में से एक ), ७.१.३६० (मृकण्डु द्वारा एक घटिका से स्थापित मार्कण्डेश्वर लिङ्ग के स्थान का घटिकास्थान से नामोल्लेख ), वामन ९०.३३( घटित में विष्णु की विश्वामित्र नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.२२०.१५ ( घट्ययन नामक यति द्वारा एक स्थान पर घटिका मात्र निवास के हेतु तथा लाभ का कथन ), ४.२२०.१५ ( घटिका मात्र ही स्थिर रहने वाले घट्यायन ऋषि का वृत्तान्त ) । ghatikaa
घटोत्कच मत्स्य ५०.५४ ( भीम व हिडिम्बा - पुत्र ), वायु ९९.२४७ ( भीमसेन व हिडिम्बा - पुत्र ), विष्णु ४.२०.२५ ( भीमसेन व हिडिम्बा - पुत्र ), स्कन्द १.२.५९+ ( कामकटंकटा से प्राग्ज्योतिषपुर में संवाद, युद्ध, विवाह, राज्य, बर्बरीक पुत्र की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), १.२.६०.४८ (कामाख्या देवी के कथनानुसार घटोत्कच का गुह्यकाधिपति कालनाभ का रूप होने का उल्लेख ), ७.४.१७.२७ ( द्वारका के पश्चिम द्वार पर स्थित राक्षस ) । ghatotkacha
घटोदर ब्रह्माण्ड २.३.४१.२७ (शिव - गणों में से एक ), ३.४.२१.८८ ( भण्ड - सेनापति ), मत्स्य १६१.८० ( हिरण्यकशिपु की सभा का एक दैत्य ), १७९.१५ ( घटोदरी : अन्धकासुर के रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट अनेक मानस मातृकाओं में से एक ), वामन ५४.७४ ( पुत्र विनायक हेतु शिव द्वारा घटोदर नामक श्रेष्ठ गण प्रदान करने का उल्लेख ), ६८.३५ ( रुद्रगणों व दैत्यों के युद्ध में घटोदर नामक रुद्रगण द्वारा गदा से राहु दैत्य पर प्रहार का उल्लेख ), ६९.५१ ( प्रमथ व दैत्य युद्ध में घटोदर नामक प्रमथ का ह्लाद दैत्य से युद्ध ), ९०.२८ ( कोशकार कथा में घटोदर राक्षस की पत्नी द्वारा कोशकार के पुत्र के हरण का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर १.२०७.२० ( भरत के पूछने पर घटोदर ब्राह्मण द्वारा कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत सन्नीति तीर्थ निर्माण के हेतु का कथन ), स्कन्द ७.४.१७.३० ( द्वारका के वायव्य द्वार पर स्थित द्वारपालों में से एक ) । ghatodara
घण्ट ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३४( घण्टेश्वर : मङ्गल व मेधा - पुत्र ), स्कन्द १.२.८.२५ (प्राकारकर्ण उलूक के पूर्वजन्म में वसिष्ठ कुलोत्पन्न घण्ट नामक द्विज होने का उल्लेख ), ६.२७१.१४० ( घण्टक : भृगु - कन्या सुदर्शना से बलात्कार के कारण घण्टक नाम विप्र का भृगु- शाप से उलूक बनने का वृत्तान्त ), कथासरित् १८.२.२२९ ( घण्ट - निघण्ट : प्रजापति के प्रजा - सृष्टि कार्य में विघ्न हेतु घण्ट - निघण्ट नामक दानवों के आगमन का उल्लेख ) । ghanta
घण्टा गणेश २.६३.२८ ( देवान्तक - सेनानी, प्राप्ति नामक सिद्धि से युद्ध ) २.६८.२५ ( गणेश द्वारा प्रयुक्त घण्टास्त्र से निद्रास्त्र का निवारण ), देवीभागवत १२.६.४४ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), भविष्य ४.६९.५४ ( ऋषियों द्वारा ब्रह्मा - प्रदत्त घण्टा बजाने से व्याघ्र द्वारा गौ को मुक्त करना ), वराह १५४.१६ ( घण्टाभरणक तीर्थ में स्नान से सूर्य लोक की प्राप्ति तथा प्राण त्याग से ब्रह्म लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ५.२६.४०, ४७ ( ९ प्रकार के नादों में चतुर्थ घण्टा नाद का उल्लेख, आकर्षण हेतु प्रयोग), स्कन्द २.५.६ ( पूजा में घण्टानाद के महत्त्व का वर्णन ), ५.१.३१.८१ ( घण्टेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.५७ ( घण्टा नामक शिवगण द्वारा शिव को त्याग कर ब्रह्मा के पास जाने पर शिव का शाप, शाप निवृत्ति हेतु महाकालवन में घण्टेश्वर लिङ्ग की स्थापना, घण्टेश्वर के माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.२५४ ( घण्टेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३००.१८ ( ब्रह्मा के घण्ट, घण्टा प्रभृति मानस पुत्र - पुत्रियों को अधिक मास में अष्टमी व्रत से गोलोकेश के दर्शन का वर्णन ), २.१५८.५३( मन्दिर में घण्टा के जिह्वा का प्रतीक होने का उल्लेख ), द्र. त्रिघण्ट । ghantaa
घण्टाकर्ण अग्नि ५०.४१ ( घण्टाकर्ण नामक देव की प्रतिमा का लक्षण तथा महिमा ), मत्स्य १८३.६५ ( घण्टाकर्ण प्रभृति शिव - गणों द्वारा अविमुक्त क्षेत्र की रक्षा का उल्लेख ), वामन ५७.६१ ( शंकर द्वारा गुह को प्रदत्त चार प्रमथों में से एक ), ६९.५० ( प्रमथ व दैत्य युद्ध में घण्टाकर्ण नामक प्रमथ के दुर्योधन के साथ युद्ध का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.५३.८ ( घण्टाकर्ण नामक शिव गण का दिवोदास - पालित काशी में विघ्न हेतु प्रेषण का उल्लेख ), ४.२.७४.५२ ( घण्टाकर्ण द्वारा काशी में उत्तर द्वार की रक्षा का उल्लेख ), ४.२.९७.१४५ ( घण्टाकर्ण ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य ), हरिवंश ३.८०.२३ ( घण्टाकर्ण व श्रीकृष्ण का परस्पर परिचय, घण्टाकर्ण द्वारा विष्णु का स्तवन एवं समाधि लाभ का वर्णन ) । ghantaakarna
घण्टाधारिणी ब्रह्माण्ड ३.४.४४.८६ ( एक शक्ति देवी का नाम ) ।
घण्टानाद गर्ग ६.१०.२२ ( कुबेर - कृत वैष्णव यज्ञ में कुबेर के सचिवों घण्टानाद तथा पार्श्वमौलि को दानाध्यक्ष बनाने का उल्लेख ), ६.१०.३९ ( वैष्णव यज्ञ में आए हुए दुर्वासा मुनि के शाप से घण्टानाद नामक कुबेर - सचिव के ग्राह बनने का उल्लेख ), ७.२३.३५ ( प्रद्युम्न - सेना से युद्ध हेतु कुबेर का घण्टानाद तथा पार्श्व मौलि मन्त्रियों के साथ निष्क्रमण का उल्लेख ), स्कन्द २.५.६ ( पूजा में घण्टानाद के माहात्म्य का वर्णन ) ।
घण्टामुख पद्म ५.११७.२३१ ( घण्टामुख गण के पूर्वजन्म में विभावसु वैश्य होने का उल्लेख ) ।
घण्टारव मत्स्य १७९.२३( अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट अनेक मानस मातृकाओं में से एक ) ।
घण्टाली अग्नि २९९.६ ( जन्म के तीसरे दिन शिशु के घण्टाली नामक ग्रही से गृहीत होने पर शिशु की चेष्टा तथा उपाय का कथन ) ।
घण्टेश्वर ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३४ ( मङ्गल व मेधा - पुत्र ), मत्स्य २२.७०( पितर श्राद्ध हेतु घण्टेश्वर तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ) ।
घनटंककरा स्कन्द ४.२.७०.५२ ( घनटंककरा देवी की महिमा का उल्लेख ) ।
घनवाह स्कन्द ७.१.२४.१४५( गन्धर्वसेना - पिता, कन्या द्वारा प्राप्त कुष्ठ के निवारणार्थ घनवाह गन्धर्व का गोशृङ्ग ऋषि के समीप गमन तथा सोमवार व्रत माहात्म्य के श्रवण का वर्णन ), ७.१.५४ (घनवाह गन्धर्व द्वारा घनवाहेश्वर लिङ्ग की स्थापना तथा लिङ्ग की महिमा ) । ghanavaaha
घर्घरवाक् स्कन्द ७.४.१७.१८ ( द्वारका के दक्षिण द्वार के रक्षकों में घर्घरवाक् का उल्लेख ) ।
घर्घरा पद्म ६.१२.४ ( जालन्धर - सेनानी, मदन से युद्ध का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१०.९(विप्र द्वारा स्पर्श मणि को घर्घरा में फेंकने की कथा), स्कन्द २.८.६.६८ ( घर्घरा व सरयू नदियों के सङ्गम पर स्नान व देवार्चन से सर्व कामनाओं तथा सिद्धियों की प्राप्ति का कथन ) ।
घर्म ब्रह्म १.११०.४५(घर्म से गोमय की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.४७ ( घर्म युक्त हाथ से देवद्रव्य का स्पर्श करने पर घर्मकुण्ड नामक नरक की प्राप्ति का कथन ), वायु ५१.६३( सूर्य रथ में घर्म के ध्वज होने का उल्लेख ), ९५.३९ ( घर्मात्मा : धृष्ट - पुत्र, क्रोष्टु वंश ), स्कन्द ४.१.२९.५४ ( घर्महन्त्री : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.७९ ( नरक में घर्म कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), २.२४५.२२ ( सोमयाग के अन्तर्गत महावीर नामक पात्रों में स्थित दुग्ध से होम की घर्म संज्ञा का उल्लेख ) । gharma
घस्मर लक्ष्मीनारायण १.३२५.२८ ( समुद्रमन्थन, राहु शिर छेदन तथा रत्नहरणादि का समाचार सुनकर क्रुद्ध जलन्धर नामक दैत्य द्वारा घस्मर नामक दूत का देवेन्द्र के समीप प्रेषण ) ।
घात लक्ष्णीनारायण ३.९०.४२ ( घातक मनुष्यों के लक्षण ), ३.९१.२१( घात के पाप के प्रायश्चित्त का कथन ), ४.८३.६३ ( घातवज्र : नन्दिभिल्ल - सेनापति, युद्ध में कुवर द्वारा वध का वर्णन ) ।
घुण योगवासिष्ठ १.१४.१८ ( आयु को नष्ट करने वाले दुःखों से उपमा ) ।
घुश्मा शिव ३.४२.५३ ( सरोवर में घुश्मा का आविर्भाव, घुश्मेश्वर रूप में प्रसिद्धि ), ४.३२.४० ( सुधर्मा - पत्नी, सुदेहा - स्वसा ), ४.३३ ( सुधर्मा की कनिष्ठ पत्नी घुश्मा के पुत्र का सुदेहा द्वारा वध, घुश्मा की शिव - पूजा के प्रभाव से पुत्र का पुनर्जीवन, घुश्मा द्वारा स्थापित शिवलिङ्ग की उसी के नाम से घुश्मेश्वर रूप में प्रसिद्धि का वर्णन ) । ghushmaa
घुश्मेश्वर ३.४२.४ ( शिव के ज्योतिर्लिङ्ग स्वरूप बारह अवतारों में से अन्तिम अवतार की शिवालय में घुश्मेश नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ३.४२.५२ ( शिव के १२ अवतारों में से १२वां अवतार, ज्योतिर्लिङ्ग रूप से स्थिति, महत्त्व ), ४.३३ ( घुश्मा द्वारा स्थापित शिवलिङ्ग की घुश्मेश्वर रूप से प्रसिद्धि ) ।
घूककर्ण लक्ष्मीनारायण १.५१४.३२ (घूककर्ण नामक चाण्डाल से विवाहित ब्राह्मण - कन्या की नागवती नदी में स्नान से शुद्धि तथा गोलोक गमन की कथा ) ।
घूर्ण ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७३ ( घूर्णितानना : एक शक्ति देवी का नाम ), मत्स्य २७.२४ ( देवयानी - अनुचरी घूर्णिका द्वारा शुक्राचार्य को देवयानी का संदेश देना ), स्कन्द ४.१.२९.५६ ( घूर्णितजला : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) । ghurna
घृणा स्कन्द ४.१.२९.५७ ( घृणावती : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.६६ ( घृणेषिक नामक शूद्र के रुद्राराधन से मृत्यु पश्चात् रुद्रसावर्णि नामक बारहवां मनु बनने का वृत्तान्त ) ।
घृणि भागवत १०.८५.५१( देवकी - पुत्र, षड्गर्भ में से एक , कृष्ण द्वारा षट्पुत्रों को सुतल से लाना, माता - पिता के दर्शन कर षट् पुत्रों का स्वर्ग गमन ), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.६६ ( घृणि शूद्र का रुद्र कृपा से जन्मान्तर में रुद्र - पुत्र व रुद्रसावर्णि मनु बनना ) ।
घृत गरुड १.१४ ( औषधि - सिद्ध घृत निर्माण की विधि ), २.२२.६१/२.३२.११५ ( घृत सागर की शरीर में मज्जा में स्थिति का उल्लेख - क्षारोदश्च तथा मूत्रे क्षारे क्षीरोदसागरः । सुरोदधिश्च श्लेष्मस्थः मज्जायां घृतसागरः ॥ ), २.३०.५५/२.४०.५५( मृतक की नाभि में घृत देने का निर्देश - घृतं नाभ्यां प्रदेयं स्यात्कौपीने च त्रपु स्मृतम् । ), नारद १.९०.७५( घृत द्वारा पूर्णायु प्राप्ति का उल्लेख, क्षौद्र से सौभाग्यप्राप्ति - घृतैः पूर्णायुषः सिद्ध्यै क्षौद्द्रैः सौभाग्यसिद्धये ।। ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.६३ ( कुश द्वीप का चारों ओर से घृतोद से घिरे होने का उल्लेख, घृतसमुद्र के क्रौञ्चद्वीप से संयुक्त होने का उल्लेख - घृतोदेन कुशद्वीपो बाह्यतः परिवारितः ।। ), भविष्य २.१.१७.२ ( घृत प्रदीपन में अग्नि के विष्णु नाम का उल्लेख - घृतप्रदीपके विष्णुस्तिलयागे वनस्पतिः ।। ), २.१.१७.१६ ( घृताग्नि के नल वायु नाम का उल्लेख - घृताग्निश्च नलो वायुः सूतिकाग्निश्च राक्षसः ।। ), ४.१५४ ( घृत धेनु दान विधि का वर्णन ), ४.२०१ ( घृताचल दान विधि का वर्णन ), मत्स्य ४८.८ ( धर्म - पुत्र, विदुष - पिता, द्रुह्यु वंश, पाठभेद धृत ), ८९ ( घृताचल दान विधि व माहात्म्य ), १०१.६८ ( घृत व्रत में घृतपूर्ण घट के दान से ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख - सप्तरात्रोषितो दद्याद्घृतकुम्भं द्विजातये। घृतव्रतमिदम्प्राहुर्ब्रह्मलोकफलप्रदम्।। ), महाभारत अनुशासन ६५.७(बृहस्पतेर्भगवतः पूष्णश्चैव भगस्य च। अश्विनोश्चैव वह्नेश्च प्रीतिर्भवति सर्पिषा।। ), वराह २०७.५२ ( घृत से तेज व सुकुमारिता व तैल से प्राणद्युती आदि की प्राप्ति - घृतेन तेजः सुकुमारतां च प्राणद्युतीः स्निग्धता चापि तैलैः ।। ), विष्णु ४.१७.४ ( धर्म - पुत्र, दुर्दम पिता, द्रुह्यु वंश ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०( घृत हरण से नकुल योनि प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.२९.५४ ( घृतवती : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.१.३१.५१( घृत तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), हरिवंश २.८०.५० ( शारीरिक सौन्दर्य हेतु ब्राह्मण को प्रतिदिन घृत व लवण दान का निर्देश - घृतं च नित्यं विप्रेभ्यो ददातु लवणं तथा । ), ३.३५.३७( भगवान् वराह द्वारा पश्चिम दिशा में घृतधारा नामक नदी की सृष्टि का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१५.२६ ( घृत से पावक की तुष्टि का उल्लेख - दध्ना हि त्रिदशाः सर्वे क्षीरेण च महेश्वरः ।। घृतेन पावको नित्यं पायसेन पितामहः ।), ३.१११.८ ( घृत दान की महिमा का उल्लेख - दद्याद् दाने पायसं च सर्पिर्दद्याद् विशेषतः । घृतदातुर्गृहं रक्षोयमाद्या धर्षयन्ति न ।। ), ३.१३२.३७ ( रत्नधेनु नामक महादान में घृत की मूत्र स्वरूपता का उल्लेख - जिह्वां च शर्करारूपां गुडं गोमयरूपिणम् । घृतं मूत्रस्वरूपं च दधिदुग्धे स्वरूपतः ।। ), जै.ब्रा. ३.३५०(ओषधीर घृतस्तोको, वनस्पतीर् मधुस्तोकः) । ghrita
घृतकम्बल विष्णुधर्मोत्तर २.१६१ ( घृतकम्बल नामक शान्ति का वर्णन ), स्कन्द ५.३.१५६.२० ( कार्तिक कृष्ण चर्तुदशी को घृत द्वारा घृतकम्बल पूर्ण करने का माहात्म्य : शिव लोक की प्राप्ति ), ६.२७१.६२ ( शिव लिङ्ग को घृत कम्बल प्रदान करने से घृत कम्बल शिव द्वारा बक को स्वगण बनाने का वृत्तान्त ), ७.१.४.११० ( घृत कम्बल के घटक द्रव्यों का उल्लेख ) । ghritakambala
घृतपृष्ठ देवीभागवत ८.४.५ ( प्रियव्रत व बर्हिष्मती के दस पुत्रों में से एक, क्रौञ्च द्वीप स्वामी - घृतपृष्ठश्च सवनो मेधातिथिरथाष्टमः । वीतिहोत्रः कविश्चेति दशैते वह्निनामकाः ॥ ), ८.१३.५ (घृतपृष्ठ द्वारा स्व द्वीप को ७ भागों में विभक्त करके ७ पुत्रों को प्रदान करने का उल्लेख - आमो मधुरुहश्चैव मेघपृष्ठः सुधामकः ॥ भ्राजिष्ठो लोहितार्णश्च वनस्पतिरितीव च । ), ९.२२.६ ( शङ्खचूड - सेनानी, बुध से युद्ध का उल्लेख - विकङ्कणेन वरुणश्चञ्चलेन समीरणः । बुधश्च घृतपृष्ठेन रक्ताक्षेण शनैश्चरः ॥ ), भागवत ५.१.२५ ( प्रियव्रत व बर्हिष्मती के दस पुत्रों में से एक ), ५.२०.२० ( क्रौञ्च द्वीप के अधिपति घृतपृष्ठ द्वारा द्वीप को सात वर्षों में विभक्त कर अपने सात पुत्रों को नियुक्त करने का उल्लेख -- तस्मिन्नपि प्रैयव्रतो घृतपृष्ठो नामाधिपतिः स्वे द्वीपे वर्षाणि सप्त विभज्य तेषु पुत्रनामसु सप्त रिक्थादान्वर्षपान्निवेश्य.... आमो मधुरुहो मेघपृष्ठः सुधामा भ्राजिष्ठो लोहितार्णो वनस्पतिरिति घृतपृष्ठसुताः), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४२ ( शिव व शङ्खचूड युद्ध में बुध का घृतपृष्ठ दानव से युद्धोल्लेख - चञ्चलेन पवनश्च घृतपृष्ठेन वै बुधः । रक्ताक्षेण शनिश्चैव वसवो वर्चसांगणैः ।। ) । ghritaprishtha
घृतस्थला वायु ६९.४९ ( एक अप्सरा का नाम ) ।
घृताची देवीभागवत १.१०.२९ ( पुत्र प्राप्ति हेतु चिन्तित कृष्ण द्वैपायन द्वारा अरणिमन्थनकाल में घृताची अप्सरा के दर्शन का कथन - एवं चिन्तयतस्तस्य घृताची दिव्यरूपिणी ॥ प्राप्ता दृष्टिपथं तत्र समीपे गगने स्थिता । ), १२.६.४६ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक - घनारिमण्डला घूर्णा घृताची घनवेगिनी । ), नारद १.५८.२१ ( व्यास से समागम हेतु घृताची अप्सरा द्वारा शुकी रूप धारण, शुकदेव के जन्म का प्रसंग - सा तु कृत्वा तदा व्यासं कामसंविग्नमानसम् ॥ शुकीभूया महारम्या घृताची समुपागमत् ॥ ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.२४ ( कामदेव के समीप जाती हुई घृताची नामक अप्सरा को देखकर विश्वकर्मा का काममोहित होना, प्रणय की याचना, घृताची द्वारा विश्वकर्मा को नीति का उपदेश, क्रुद्ध विश्वकर्मा द्वारा घृताची को भूतल पर शूद्र योनि में उत्पन्न होने का शाप, घृताची द्वारा भी विश्वकर्मा को स्वर्ग भ्रष्ट होकर पृथ्वी पर जन्म लेने का शाप, घृताची का प्रयाग में गोपकन्या होना तथा विश्वकर्मा का ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न होना, गङ्गा तट पर पुन: प्रणय याचना, घृताची गोपकन्या द्वारा नीति का उपदेश, विश्वकर्मा/ ब्राह्मणी - पुत्र द्वारा गोपकन्या में नौ पुत्रों को उत्पन्न करने का वृत्तान्त ), ४.६२.४३(घृताची के शाप से काम के शिव द्वारा भस्म होने का उल्लेख - कामो घृताचीशापेन बभूव भस्मसाच्छिवात् ।), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१३ ( आश्विन् व कार्तिक में सूर्य रथ पर विश्वाची व घृताची अप्सराओं के अधिष्ठित होने का उल्लेख - परावसुश्च गंधर्वस्तथैव सुरुचिश्च यः ।। विश्वाची च घृताची च उभे ते शुभलक्षणे ।। ), भागवत ९.२०.५ ( रौद्राश्व व घृताची से उत्पन्न दस पुत्रों का नामोल्लेख - दशैतेऽप्सरसः पुत्रा वनेयुश्चावमः स्मृतः । घृताच्यामिन्द्रियाणीव मुख्यस्य जगदात्मनः ॥ ), १२.११.३९ ( माघ मास में पूषा नामक सूर्य के रथ पर घृताची अप्सरा की स्थिति का उल्लेख- पूषा धनञ्जयो वातः सुषेणः सुरुचिस्तथा। घृताची गौतमश्चेति तपोमासं नयन्त्यमी।। ), मत्स्य ४९.४ ( भद्राश्व व घृता से दस पुत्रों की उत्पत्ति, नामोल्लेख - भद्राश्वस्य धृतायां(घृतायां) तु दशाप्सरसि सूनवः।। ), महाभारत आदि १२९.३५(घृताची के दर्शन से स्खलित हुए भरद्वाज मुनि के वीर्य से द्रोणाचार्य का जन्म - ददर्शाप्सरसं साक्षाद्धृताचीमाप्लुतामृषिः। रूपयौवनसंपन्नां मददृप्तां मदालसाम्।।), शल्य ४८.६४(घृताची के दर्शन से भरद्वाज मुनि के वीर्य का स्खलन, कर व पर्णपुट पर रेतः का ग्रहण और श्रुतावती कन्या की उत्पत्ति - भरद्वाजस्य विप्रर्षेः स्कन्नं रेतो महात्मनः। दृष्ट्वाऽप्सरसमायान्तीं घृताचीं पृथलोचनाम्।।), शान्ति ३२४.२(अरणि मन्थन पर घृताची अप्सरा का प्रकट होना, घृताची के दर्शन से व्यास के वीर्य का अरणी पर स्खलन, अरणि मन्थन से शुकदेव का जन्म - अथ रूपं परं राजन्बिभ्रतीं स्वेन तेजसा। घृताचीं नामाप्सरसमपश्यद्भगवानृषिः।।), ३४२.८५ (घृतार्चि : घृतं ममार्चिषो लोके जन्तूनां प्राणधारणम्। घृतार्चिरहमव्यग्रैर्वेदज्ञैः परिकीर्तितः।।), अनुशासन ३०.६४(प्रमिति व घृताची से रुरु पुत्र की उत्पत्ति का उल्लेख, गृत्समद वंश), वामन ६५.३० ( पर्जन्य नामक गन्धर्व तथा घृताची अप्सरा से वेदवती का जन्म - ततोऽभ्यागाद् वेदवती नाम्ना गन्धर्वकन्यका। पर्जन्यतनया साध्वी घृताचीर्गर्भसंभवा।। ), ६५.१५३ ( घृताची अप्सरा से कपि द्वारा नल नामक पुत्र के उत्पन्न होने पर विश्वकर्मा के कपित्व रूप शाप से मुक्त होने का उल्लेख ), वायु ५२.१३ ( शरद् ऋतु में विश्वाची व घृताची अप्सराओं के सूर्य रथ पर अधिष्ठित होने का उल्लेख - विश्वावसुश्च गन्धर्वास्तथैव सुरभिश्च यः। विश्वाची च घृताची च उभे ते शुभलक्षणे ।।), ६९.४९ ( एक स्वर्गीय अप्सरा का नाम ), ७०.६८ ( भद्राश्व व घृताची से उत्पन्न दस सन्ततियों का नामोल्लेख - भद्राश्वस्य घृताच्यां वै दशाप्सरसि सूनवः। भद्रा शूद्रा च मद्रा च शलदा मलदा तथा ।। ), विष्णु १.९.१०३ ( समुद्र मन्थन से उद्भूत श्री देवी के समक्ष घृताची - प्रमुख अप्सराओं द्वारा नृत्य करने का उल्लेख ), २.१०.११( आश्विन् मास में घृताची के सूर्य रथ पर अधिष्ठित होने का उल्लेख- पूषा च सुरुचिर्वातो गौतमोथ धनञ्जयः। सुषेणोऽन्यो घृताची च वसन्त्याश्वयुजे रवौ।। ), स्कन्द ३.१.३९.६६ ( अगस्त्य मुनि के शापवश घृताची अप्सरा का अंगारका राक्षसी बनना, अगस्त्य - शिष्य श्वेत मुनि द्वारा राक्षसी के ऊपर वायव्यास्त्र द्वारा शिला प्रहार से तथा कपितीर्थ में निमज्जन से राक्षसी के पुन: घृताची बनने का वर्णन - घृताची देववेश्या हि राक्षसीरूपमागता ।। साप्यत्र कपितीर्थाप्सु स्नानात्स्वं रूपमाययौ ।।) , ६.१९१.६ ( गौरी प्रभृति देवपत्नियों तथा घृताची प्रभृति अप्सराओं के साथ सावित्री का यज्ञमण्डप में प्रवेश - घृताची मेनका रंभा उर्वशी च तिलोत्तमा ॥ अप्सराणां गणाः सर्वे समाजग्मुर्द्विजोत्तमाः ॥ ), ७.१.२०.३९ ( भद्राश्व व घृताची से भद्रा, शूद्रा प्रभृति दस अप्सराओं की उत्पत्ति का उल्लेख - भद्राश्वस्य घृताच्यंता जज्ञिरे दश चाप्सराः ॥ भद्रा शूद्रा च मद्रा च नलदा जलदा तथा ॥ ), ७.४.१७.२७ ( द्वारका के पश्चिम् द्वार के रक्षकों में से एक ), वा.रामायण १.३२.११ ( कुश -पुत्र कुशनाभ द्वारा घृताची अप्सरा से १०० कन्याओं को जन्म देने व वायु द्वारा कन्याओं को कुब्जा करने की कथा - कुशनाभः तु राजर्षिः कन्या शतम् अनुत्तमम् । जनयामास धर्मात्मा घृताच्याम् रघु नंदन ॥ ) । ghritaachi/ghritaachee/ ghritachi
घृतायु ब्रह्माण्ड २.३.६६.२३ ( पुरूरवा व उर्वशी - पुत्र ) ।
घृतोद ब्रह्माण्ड १.२.१९.६३ ( कुश द्वीप का चारों ओर से घृतोद से घिरे होने का उल्लेख ), विष्णु २.४.४५ ( कुश द्वीप के घृतोद समुद्र से तथा घृतोद के क्रौञ्च द्वीप से संवृत होने का उल्लेख ) ।
घोंघा द्र. शम्बूक
घोण स्कन्द २.१.२६ ( घोण तीर्थ में स्नान के माहात्म्य का वर्णन, स्नान की अवहेलना करने पर तुम्बुरु गन्धर्व द्वारा स्वभार्या को मण्डूक होने का शाप, अगस्त्य दर्शन तथा घोण तीर्थ के माहात्म्य श्रवण से तुम्बुरु - भार्या की शाप से मुक्ति, घोण तीर्थ की तुम्बुरु तीर्थ के रूप में प्रसिद्धि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.५.३४( घोण प्रभृति दैत्यों द्वारा बालप्रभु को मारने का उद्योग ) । ghona
घोर ब्रह्माण्ड १.२.१३.१०( सह व सहस्य मासों की घोर संज्ञा ), मत्स्य २९०.९ ( २५ वें कल्प का नाम ), वायु १०१.१४८( महाघोर : नरकों में से एक ) ।
घोरखनक लक्ष्मीनारायण १.४८०.२६ ( घोरखनक नामक राक्षस के निवास से शापित भूमि पर विचरण करने से लक्ष्मण के मन के दूषित होने का वर्णन ) ।
घोष अग्नि २१४.१४( घोष में धनञ्जय वायु के हेतु होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.४१(गायों के घोष से वृष कूप से जल के स्वयं निकलने का श्लोक), मार्कण्डेय ४६/४९.५० ( गोसमूहों सहित गोपालों की निवास - भूमि की घोष संज्ञा का उल्लेख ), वायु ६९.३२/२.८.३२( महाघोष : किन्नरों के गण में से एक ), शिव ५.२६.४०, ४४ ( ९ प्रकार के नादों में प्रथम घोष नाद का उल्लेख तथा उसका लाभ ), स्कन्द २.८.७.१०८ ( घोष राजा द्वारा सूर्य - स्तुति से कुण्ड की घोषार्क कुण्ड नाम से प्रसिद्धि, घोषार्क कुण्ड के माहात्म्य का वर्णन ), २.८.७.११३ ( घोष नामक राजा द्वारा सरोवर में स्नान कर सूर्य की स्तुति, प्रसन्न सूर्य द्वारा वर प्रदान के रूप में सरोवर की घोषार्क कुण्ड के रूप में ख्याति का वर्णन ), हरिवंश २.७.२८, ३१, ३२( गोपों के निवास स्थान व्रज के लिए घोष शब्द का प्रयोग ), लक्ष्मीनारायण १.४०३.५५( सुघोष ब्राह्मण द्वारा विप्र को पृथिवी दान का उल्लेख ), ४.६३.१ ( दुरितघोष नामक पापी विप्र द्वारा हरि कथा श्रवण प्रभाव से त्यागि दीक्षा ग्रहण का वर्णन ) ; द्र. दमघोष, दुरितघोष, प्रघोष, मञ्जुघोष, सुघोष । ghosha
घोषा देवीभागवत १२.६.४५ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), कथासरित् २.४.१४ ( कल्पित यन्त्र हस्ती को सत्य हस्ती समझकर उसे पकडने के लोभ से उदयन का घोषवती वीणा को बजाते हुए विन्ध्यारण्य में प्रवेश ) ।
घ्राण अग्नि ८४.२८( घ्राण इन्द्रिय के प्राणापान वायुओं के आधीन होने का उल्लेख ), गरुड २.४.१४१(घ्राण में बालुका देने का उल्लेख), २.३०.५०/२.४०.५०( मृतक के घ्राण में वाह्लीक देने का उल्लेख ), ३.५.२७(घ्राण-अभिमानी देवों के नाम), भविष्य ३.४.२५.३७( ब्रह्माण्ड घ्राण से बुध की उत्पत्ति, बुध द्वारा ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख ), वामन ९०.२४ ( कुण्डिन तीर्थ में विष्णु का घ्राण तर्पण नाम से वास ), स्कन्द २.७.१९.४३( घ्राण में नासत्यौ की स्थिति का कथन ), हरिवंश ३.८०.६९( घ्राण का पृथिवी में न्यास ) । ghraana
ङ अग्नि ३४८.५ ( विषय, स्पृहा आदि हेतु ङ प्रयोग का उल्लेख ) ।