चकाराक्ष ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८०( भण्ड असुर के पुत्र व सेनापतियों में से एक )


      चकोर ब्रह्माण्ड ३.४.२६.४७( चकोराक्ष : भण्ड असुर के ३० पुत्रों में से एक), भागवत १२.१.२६( सुनन्दन - पुत्र, शिवस्वाति आदि का पिता, कलियुगी राजाओं में से एक), मत्स्य २७३.११( अपर नाम स्वातिकर्ण, आन्ध्र का राजा, शिवस्वाति - पिता ) । chakora


      चक्र अग्नि १२५++ ( युद्ध जय सम्बन्धी अनेक प्रकार के चक्रों में नक्षत्र आदि न्यास द्वारा फल का विचार), १२५.३० ( पिङ्गला / पक्षी चक्र से शुभाशुभ का ज्ञान), १२५.३२ ( राहु चक्र से युद्ध में फल का विचार), १२८ ( कोट चक्र में नक्षत्र न्यास से युद्ध फल का विचार), १३१ ( घात, जय चक्र), १३५ ( नक्षत्र चक्र), १३६ ( नाडी चक्र), २५२.८ ( युद्ध में चक्र के छेदन, भेदन आदि ७ कर्म), ३१४.१३ ( अनुग्रह प्राप्ति चक्र का कथन), गर्ग ६.१० ( चक्र तीर्थ का माहात्म्य : घण्टानाद व पार्श्वमौलि का ग्राह व गज बनना, विष्णु चक्र से ग्राह के उद्धार पर पाषाणों का चक्राङ्कित होना), गरुड १.२३.३३ ( शरीरस्थ चक्रों में पञ्चवक्त्र शिव का न्यास), देवीभागवत ७.३५ ( शरीर में नाडी चक्रों का वर्णन), नारद १.६५.६७-९० ( शरीर के चक्रों का ध्यान व स्वरूप), १.६६.९० ( चक्री विष्णु की शक्ति जया का उल्लेख), पद्म १.१.७ ( चक्र की नेमि शीर्णता से नैमिषारण्य की उत्पत्ति का उल्लेख), ६.९.३१ ( शिव द्वारा जालन्धर वध हेतु चक्र का निर्माण), ६.२५१.२७ ( शिव द्वारा पौण्ड्रक को वरदान, कृष्ण के चक्र द्वारा पौण्ड्रक के चतुर्भुज रूप का नष्ट होना), ब्रह्म २.१८.२९/८६.२९ ( राम की रक्षार्थ विष्णु द्वारा चक्र प्रेषण से चक्र तीर्थ का उत्पन्न होना), २.३९ /१०९ ( चक्र तीर्थ : दक्ष यज्ञ में विष्णु के चक्र का वीरभद्र द्वारा निगरण, कालान्तर में विष्णु द्वारा शिव आराधना से पुन: चक्र की प्राप्ति), २.६४/१३४.१२( ऋषियों द्वारा विष्णु से प्राप्त चक्र से राक्षस - वध व चक्र तीर्थ में चक्र प्रक्षालन का प्रसंग), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.१०२ ( नरक में चक्र कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), ३.४.५२( नितम्ब सौन्दर्य हेतु रथचक्र दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड १.२.१८.७८( इन्द्र के भय से दक्षिण समुद्र में छिपने वाले ३ पर्वतों में से एक), २.३.४०.६६ ( दत्त - भक्त कार्त्तवीर्य का विष्णु के सुदर्शन चक्र में प्रवेश कर भस्म होने का उल्लेख), ३.४.१९ (चक्रराज नामक इन्द्र के रथ के पर्वों की शक्तियों का वर्णन), ३.४.२६.२० ( वह्नि प्राकार चक्र का द्वार दक्षिण की ओर करने का निर्देश), ३.४.३२.७ ( मतङ्ग के कालचक्र का वर्णन), ३.४.३२.४४ (वसन्त चक्र का वर्णन), ३.४.३४ ( षोडशावरण चक्र में स्थित रुद्रों के नाम ), ३.४.३६.६४ ( चिन्तामणि गृह में त्रैलोक्य मोहन चक्र तथा उसकी अधिष्ठात्री त्रिपुरा देवी का कथन), ३.४.३७ ( सर्वरोगहर नामक चक्र का वर्णन), भविष्य १.५७.१३( चक्री हेतु सप्तधान्य बलि का उल्लेख), १.१४८ ( कृष्ण द्वारा सूर्य से प्राप्त सुदर्शन चक्र का वर्णन), १.१४९ ( सूर्य चक्र के निर्माण व मन्त्र का वर्णन), १.१५६.३ ( कृष्ण द्वारा चक्राकार व्योम रूप सूर्य की उपासना का वर्णन), २.१.४.२४ ( ज्योतिष चक्र का वर्णन), ४.६.१०३ ( चक्र नरक में पापियों के तिलवत् पीडन का उल्लेख), ४.१९० ( विश्व चक्र दान की विधि), भागवत ५.७.१०( पुलह ऋषि के आश्रम पर चक्र नदी की स्थिति का कथन, अपर नाम गण्डकी?), ५.२०.१५( कुश द्वीप के पर्वतों में से एक), ६.५.१९( कालचक्र का कथन), ८.५.२८ ( जीव शरीर रूपी चक्र के धुरे परमात्मा होना - अजस्य चक्रं त्वजयेर्यमाणं मनोमयं पञ्चदशारमाशु । त्रिनाभि विद्युच्चलमष्टनेमि यदक्षमाहुस्तमृतं प्रपद्ये ॥ ), ८.१०.२१( चक्रदृक् : देवासुर सङ्ग्राम में बलि के सेनापतियों में से एक), ९.५ ( सुदर्शन चक्र द्वारा पीछा करने पर दुर्वासा का अम्बरीष की शरण में जाना, अम्बरीष द्वारा स्तुति), १०.५९.४ ( श्रीकृष्ण - भौमासुर युद्ध में चक्र द्वारा अग्नि,जल, वायु की बाधाएं नष्ट करना), मत्स्य ४७.१५( जाम्बवान् द्वारा कृष्ण के चक्र से मृत्यु प्राप्ति की इच्छा का कथन), ४७.१७( कृष्ण व सत्यभामा के पुत्रों में से एक), १२१.७४( चक्र पर्वत का इन्द्र के भय से लवण समुद्र में पश्चिम में छिपने का उल्लेख), ११९.५( महाचक्रि : कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), २८५ ( विश्वचक्र दान की विधि), महाभारत कर्ण ९०.१०३, सौप्तिक १२.३०, शान्ति २११, अनुशासन १४,७१, आश्वमेधिक ४५, मार्कण्डेय १०.२७ ( सुमति द्वारा संसार चक्र का वर्णन), वा.रामायण ७.७.४१ ( विष्णु द्वारा चक्र से राक्षसमाली का सिर काटना), वराह ११.१०७ ( गौरमुख मुनि की प्रार्थना पर विष्णु द्वारा चक्र से राजा दुर्जय को सेना सहित भस्म करने का कथन), १३७.१९ ( चक्र द्वारा प्रतिष्ठित चक्र तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), १४४.१५१ ( गज - ग्राह प्रसंग के अन्तर्गत विष्णु द्वारा चक्र से ग्राह को चीरने का उल्लेख), १४५.४१ ( चक्राङ्कित शिलाओं वाले स्थान पर भगवान् के चक्रस्वामी होने का उल्लेख), १४९.३ ( चक्रधारी भगवान् वराह द्वारा द्वारका का वर्णन), १६२ (चक्रतीर्थ का माहात्म्य : ब्राह्मण द्वारा कल्पग्राम की यात्रा का प्रसंग), वामन ५७.६६ ( त्वष्टा द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण), ८२.२३ ( शिव द्वारा विष्णु को सुदर्शन चक्र देना, चक्र के रूप व शक्ति का वर्णन), ८२.४२ (विष्णु का चक्र द्वारा श्रीदामा राक्षस को मारकर शिवाराधना करना, क्षीरसागर को प्रस्थान), ९०.१० ( चक्र तीर्थ में विष्णु का अर्धनारीश्वर नाम से वास), वायु ४३.२५( महाचक्रा : भद्राश्व देश की नदियों में से एक), ४८.१७( अङ्ग द्वीप के पर्वतों में से एक), ५०.९३( सूर्य द्वारा ज्योतिष चक्र को लेकर भ्रमण करने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०६.६३ ( चक्र आवाहन का मन्त्र), शिव १.१८.८( कर्म रज्जु द्वारा चक्र से बद्ध जीव की मुक्ति हेतु चक्रकर्ता की उपासना का निर्देश ; प्रकृति के चक्र तथा शिव के चक्रकर्ता होने का कथन), २.५.२४.२६( जलन्धर वध हेतु शिव द्वारा पदाङ्गुष्ठ से सुदर्शन चक्र की रचना का कथन), ७.१.३.५५ ( ब्रह्मा द्वारा मनोमय चक्र का निर्माण, विसर्जन के द्वारा चक्र की नेमि के शीर्ण होने के स्थान पर तप के लिए उपयुक्त नैमिषारण्य बनने का वर्णन), स्कन्द २.१.२३ ( चक्रतीर्थ के माहात्म्य के अन्तर्गत पद्मनाभ द्विज की चक्र द्वारा रक्षा का प्रसंग), २.१.२४ ( चक्र द्वारा सुन्दर राक्षस की मुक्ति का प्रसंग), २.२.२५.१०( चतुर्व्यूह में विष्णु के रथ के १६, बलराम के १४ व सुभद्रा के १२ चक्रों का उल्लेख), २.८.१.९५ ( विष्णुशर्मा की प्रार्थना से प्रसन्न श्रीहरि द्वारा चक्र से भूमि खोदने से पातालगङ्गा का आविर्भाव), ३.१.३.९७ ( चक्र तीर्थ : सेतुमूल नाम, गालव की सुदर्शन चक्र द्वारा रक्षा, गालव द्वारा स्तुति), ३.१.५.२९ ( ब्रह्म - शापित अलम्बुसा व विधूम की चक्र तीर्थ में स्नान से मुक्ति), ३.१.२३ ( चक्र तीर्थ का माहात्म्य : अहिर्बुध्न्य ब्राह्मण की सुदर्शन चक्र द्वारा रक्षा , सविता का हिरण्यपाणि होना), ४.१.२६.५२ ( काशी में चक्र पुष्करिणी का माहात्म्य), ४.२.८४.९ ( चक्र तीर्थ में स्नान से संसार चक्र से मुक्ति का उल्लेख), ४.२.९७.५१ ( चक्र ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य : शिव लोक की प्राप्ति), ५.३.२८.१२ ( त्रिपुर को मारने के लिए शिव द्वारा सूर्य व चन्द्रमा को रथ में चक्र बनाना), ५.३.३८.१९ ( मन्यु को चक्र से अधिक क्रूर बताना), ५.३.५६.११६ ( चक्र तीर्थ में दान का कथन), ५.३.९०( चक्र तीर्थ का माहात्म्य, तालमेघ दानव वध के पश्चात् विष्णु चक्र का नर्मदा जल में प्रक्षालन), ५.३.१०९.११ ( चक्र तीर्थ का माहात्म्य : महासेन के सेनापति - पदाभिषेक में एक दैत्य का विघ्न, चक्र से दैत्य का वध), ५.३.१४४.२ ( चक्र तीर्थ में किए गए जप, होम, दान, बलि के अक्षय होने का उल्लेख), ५.३.२३१.२९ ( अठ्ठाइस तीर्थों में से विष्णु द्वारा स्थापित चार चक्र तीर्थों का उल्लेख), ७.१.८१.३० ( चक्र तीर्थ का माहात्म्य : चक्र से दानवों को मारने से दैत्यसूदन नाम होने का वर्णन), ७.१.९९.२७ ( पौण्ड्रक वासुदेव के पुत्र द्वारा उत्पन्न कृत्या के नाश हेतु वासुदेव द्वारा चक्र को धारण करना, कृत्या का शिव की शरण में जाना, दण्डपाणि द्वारा रक्षा), ७.२.६.२(चक्र तीर्थ का उल्लेख), ७.३.२७ ( दैत्य वध के पश्चात् विष्णु द्वारा चक्र तीर्थ में चक्र के प्रक्षालन का उल्लेख), ७.४.७.२ ( पाषाणों पर चक्र का चिह्न ; चक्र तीर्थ का माहात्म्य), ७.४.८.५७( पाषाणों पर चक्रों की संख्या के अनुसार उनके निहितार्थ), ७.४.१८+ ( चक्र तीर्थ पर कुश दैत्य का शासन, दुर्वासा द्वारा गोमती में स्नान की चेष्टा पर दैत्यों द्वारा ताडन, कृष्ण व बलराम द्वारा दैत्यों का वध व कुश का निग्रह), ७.४.३७ ( चक्र तीर्थ का माहात्म्य : चक्राङ्कित पाषाणों में चक्रों की संख्या का महत्त्व), हरिवंश १.२०.५२ ( अधर्म के कारण उग्रायुध के प्रताप चक्र का निवृत्त होना), २.१२६.१०१ ( सुदर्शन चक्र : बाणासुर के वधार्थ शक्तियों का चक्र में समावेश), योगवासिष्ठ ६.१.२९.८ ( संसार चक्र की नाभि °चित्त° के निरोध का निर्देश), लक्ष्मीनारायण १.११४.१६ ( शरीर पर चक्र चिह्न धारण की महिमा), १.१७७.८०( दक्ष यज्ञ में विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से वीरभद्र के वध का प्रयास, आकाशवाणी द्वारा निषेध), १.२१९.११ ( सनकादि की तपस्या से प्रसन्न विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र भेजना, चक्र से पृथ्वी से जल निकलना, सनकादि द्वारा चक्र का पूजन), १.२३२.४२( द्वारका में पाषाणों पर चक्रों की संख्या के अनुसार उसके सुदर्शन चक्र, लक्ष्मी नारायण आदि प्रतीकों का कथन), १.३०४.१४ ( सावित्री द्वारा मूलाधार में स्थित चक्र को संयमपूर्वक आज्ञा चक्र में स्थित करने का वर्णन, विभिन्न चक्रों में विशिष्ट ध्यान), १.३४०.७७ ( चक्र से ग्राह को चीरकर गजोद्धार करने व शालग्राम क्षेत्र में शिलाओं पर चक्र अङ्कित होने का उल्लेख), १.३४७.५१ ( चक्र तीर्थ में स्नान करने व यज्ञ प्रसाद पाने से ब्राह्मण - पुत्री, जामाता व पुत्र की पाप - मुक्ति की कथा), १.३७०.१११ ( नरक में चक्र कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), १.४०४.३० (विष्णु द्वारा चक्र से पद्मनाभ द्विज की रक्षा व द्विज द्वारा चक्र की स्तुति), १.४११.५० ( विष्णु द्वारा राजा अम्बरीष को सुदर्शन चक्र प्रदान करना, सुदर्शन चक्र द्वारा अतिवृष्टि, तम आदि से राजा की रक्षा का वृत्तान्त), १.५६२.४५ (विष्ण्वावर्त, शिवावर्त आदि नाम वाले चक्र तीर्थ का माहात्म्य), २.२२.२१( रसातल में चक्रतीर्थ की श्रेष्ठता का उल्लेख), २.१५७.४० ( नाभि में चक्र का न्यास), २.२५३.४ ( देह रूपी शकट में शोक - मोह रूपी चक्र), ३.२६.४९ ( हल्लक राक्षस के कण्ठ में रस होने से श्रीहरि के चक्र का निष्फल होना), ३.३३.२६ ( चक्र धारी नारायण द्वारा ज्ञानविष्णु के पुत्र के रूप में जन्म लेकर राक्षसों का वध करने व धर्म को स्थापित करने की कथा), ३.१३० ( सुदर्शन चक्र, माला चक्र, अङ्गुलीयक,विश्व चक्र आदि चक्रों के दान का महत्त्व), ४.४९.११ ( चक्रिणी नामक लौहकार्य करने वाली स्त्री गण्डवाता द्वारा कृष्ण पूजा करने का वर्णन), ४.४९.७ ( यास्कवाद चक्र निर्माता की पत्नी गण्डवाता द्वारा विष्णु पूजा का वर्णन), कथासरित् ९.४.१६ ( स्वर्ण कमलों से अर्चित विष्णु की कृपा से मैनाक, वृषभ, चक्र, बलाहक नामक पर्वतों पर चार दिव्य पुरुषों का राज्य होने का कथन), ९.६.१४० ( माता - पिता की अवज्ञा करके व्यापार के लिए जाने वाले चक्र का धन नष्ट होने का वर्णन), १२.३.१०७ ( मृगाङ्कदत्त के मन्त्री द्वारा मायारूपिणी स्त्री द्वारा संसार चक्र घुमाने को देखने का वृत्तान्त), १२.२८.४ ( राजा पद्मनाभ की उपमा चक्रधारी विष्णु से करना), महाभारत कर्ण ९०.१०३ ( अर्जुन से युद्ध में कर्ण के रथ के चक्र के भूमि द्वारा ग्रसने और कर्ण द्वारा उद्धार का प्रयत्न करने का वर्णन), सौप्तिक १२.१५ ( अश्वत्थामा द्वारा श्रीकृष्ण से सुदर्शन चक्र ग्रहण करने के प्रयत्न का वृत्तान्त), शान्ति २११.८ ( अव्यक्त नाभि, व्यक्त अरों वाले संसार चक्र का कथन), अनुशासन १४.७६/४५.५८ ( शिव द्वारा तीक्ष्ण चक्र को सुदर्शन बनाकर विष्णु को प्रदान करने का कथन, मन्दार ग्रह के शरीर पर चक्र के निष्फल होने का उल्लेख ), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद २.२.२५( मन के चक्र होने का उल्लेख ) ; द्र. एकचक्रा, विचक्र, शकटचक्राक्ष, श्रीचक्र, सुचक्राक्ष । chakra


      चक्र - पद्म ५.२३.३ ( शत्रुघ्न द्वारा अश्व लेकर सुबाहु राजा की नगरी चक्राङ्का में जाने का वर्णन), ७.१६.६ ( हरिभक्त शबर चक्रिक द्वारा गला काट कर मुखस्थ भोजन विष्णु को अर्पण करने की कथा), ब्रह्माण्ड ३.४.१७.१९( चक्रेश्वरी : दण्डनाथा देवी के १२ नामों में से एक), ३.४.१८.१५( चक्रनाथा : ललिता देवी के २५ नामों में से एक), ३.४.१८.१५( चक्रेश्वरी : ललिता देवी के २५ नामों में से एक), भागवत १०.४३.२५( चक्रवात : तृणावर्त्त असुर का अपर नाम), मत्स्य १७९.६८( चक्रहृदया : नृसिंह द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वराह १४३.३६ (मन्दार के पश्चिम् भाग में चक्रावर्त नामक सरोवर में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य), १४५.४१ ( चक्राङ्कित शिलाओं से भरपूर क्षेत्र में विष्णु के चक्रस्वामी नाम का उल्लेख), वायु ६८.३२/२.७.३२( चक्रवर्मा : बलि/बल के २ पुत्रों में से एक), ६९.१६६/२.८.१६०( चक्राक्ष : खशा के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक), महाभारत कर्ण ४१.८२ ( शल्य द्वारा कर्ण को उपदेश के संदर्भ में काक के चक्राङ्ग की शरण में जाने का उल्लेख), कथासरित् ८.४.७१ ( विद्याधर राजा चक्रवाल का हर्षवर्मा से युद्ध), ९.४.१११ ( समुद्रशूर वैश्य द्वारा चोर के शव से चक्रसेना का हार प्राप्त करना, पुन: गृध्र के घोंसले से वही हार मिलने की कथा), १८.४.२१३ ( कन्दर्प ब्राह्मण को शरण देने वाली योगिनियों द्वारा चक्रपुर जाने का उल्लेख), १८.४.२१३ ( कन्दर्प ब्राह्मण को ग्राम में धनवान ब्राह्मण के घर रख योगिनियों द्वारा चक्रमेलक / झूमर नृत्य में भाग लेने जाने का उल्लेख ) ।


      चक्रधर वामन ९०.८ ( मधु नदी में विष्णु का चक्रधर नाम से वास), लक्ष्मीनारायण ३.१९४.२ ( चक्रधर की आज्ञा से मन्त्री देवविश्राम द्वारा काण्डिका योगिनी स्त्री की हत्या करने का प्रसंग), ३.२१९.३५ ( ऋषि पौतिमाष्य द्वारा चक्रधर नामक लुब्धक को मुक्ति हेतु उपदेश की कथा), कथासरित् ३.४.१३२ ( काने, कुबडे, स्पष्ट वक्ता ब्राह्मण चक्रधर द्वारा मठ के ब्राह्मणों को लडने से रोकने का उल्लेख ) । chakradhara


      चक्रपाणि गणेश २.७३.५ ( गण्डकी नगर में राजा चक्रपाणि को शौनक ऋषि द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु सौर व्रत का उपदेश), २.१२०.४४ ( चक्रपाणि द्वारा युद्ध -उन्मुख पुत्र सिन्धु को सदुपदेश, पुत्र द्वारा तिरस्कार), २.१२६ ( पुत्र सिन्धु की मृत्यु पर पिता चक्रपाणि द्वारा गण्डकी नगर में गुणेश को आमन्त्रित करना, गणेश की पञ्चायतन मूर्ति को स्थापित करना आदि), गरुड ३.२२.८१(गज में श्रीहरि की चक्रपाणि नाम से स्थिति), मत्स्य १८.१( चक्रपाणि प्रोक्त एकोद्दिष्ट श्राद्ध का कथन), वामन ९०.२९ ( त्रिकूट शिखर पर विष्णु का चक्रपाणि नाम से वास), ९०.३८ ( मेदिनी तीर्थ में विष्णु का चक्रपाणि नाम से वास), स्कन्द ६.१५२.३२ ( अर्जुन द्वारा ब्राह्मणों की गौ की रक्षा के पश्चात् तीर्थ में स्थापित चक्रपाणि लिङ्ग का माहात्म्य ) । chakrapaani


      चक्रवर्ती गरुड ३.१०.३०(चक्रवर्ती के ८ से कम लक्षण होने का उल्लेख - अष्टका ऋषयः प्रोक्तास्तदूनाश्चक्रवर्तिनः ।), ब्रह्माण्ड १.२.२९.७१ ( चक्रवर्ती के लक्षणों का वर्णन), १.२.३२.११०( ३३ मन्त्रकर्ता आङ्गिरस ऋषियों में से एक), ३.४.१८.१६( चक्रवर्तिनी : ललिता के नामों में से एक), वायु ५७.६६ ( चक्रवर्ती हेतु १४ रत्नों / लक्षणों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.३७.१० (चक्रवर्ती पुरुषों के नेत्रों के चापाकृति होने का उल्लेख), स्कन्द ६.२६८ ( चक्रवर्ती बनने के उपाय : भूमि दान का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५२.३ ( चक्रवर्ती नृप के लक्षणों का वर्णन), कथासरित् १४.४.१९८ (नरवाहनदत्त द्वारा चक्रवर्ती के रत्न सिद्ध करने का वर्णन ) । chakravarti/ chakravartee


      चक्रवाक् देवीभागवत ११.१८.४९ ( देवी मन्दिर की प्रदक्षिणा से चक्रवाक् का बृहद्रथ राजा बनना), ब्रह्माण्ड २.३.७.४५८( गरुड - पत्नी धृतराष्ट्री से उत्पन्न पक्षिगण में से एक), मत्स्य २१.९ ( मानसरोवर के सात चक्रवाकों का वर्णन), २२.४२( पितरों का प्रिय तीर्थस्थान), ११३.७६( उत्तरकुरु निवासियों की एकानुरक्तता की चक्रवाकों से उपमा), ११६.११( गङ्गा? के चक्रवाक रूपी अधरों का उल्लेख), मार्कण्डेय १५.२६ ( रेशम चुराने से चक्रवाक् की योनि प्राप्त करने का उल्लेख), हरिवंश १.२१.३० ( ब्रह्मदत्त राजा आदि के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), कथासरित् १२.५.४४ ( विद्युज्जिह्व यक्ष के कुबेर के शाप से चक्रवाक् बनने का कथन), १२.९.११ ( मन्दारवती से विवाह के इच्छुक ब्राह्मणकुमारों का चक्रवाक् व्रत लेना), महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ.६३२६ ( श्रान्त विप्रों को विश्रान्ति देने से चक्रवाक युक्त यान द्वारा यात्रा करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.९८.५१( उर्वशी को सनत्सुजात ब्राह्मण द्वारा चक्रवाक् रहित चक्रवाकी होने का शाप), २.१००.६९( कृष्ण दर्शन हेतु तीर्थ भ्रमण करने वाली चक्रवाकी रूप वाली उर्वशी का माता लक्ष्मी से मिलन), ३.९२.८८ ( चक्रवाकी के कलह धर्म का उल्लेख ) । chakravaak


      चक्रव्यूह अग्नि १२३.९ ( ग्रह चक्र का वर्णन), कथासरित् ८.५.३ ( श्रुतशर्मा - सेनापति दामोदर द्वारा चक्रव्यूह की रचना का उल्लेख ) । chakravyuuha


      चक्रा वायु ४३.२५( भद्राश्व देश की नदियों में से एक ) ।


      चक्रिणी ब्रह्माण्ड ३.४.१८.१५( चक्रिणी : ललिता देवी के २५ नामों में से एक),३.४.३६.९०( चक्रिणी : सर्वसंक्षोभ चक्र की देवियों में से एक ) ।


      चक्री भविष्य १.५७.१३( चक्री हेतु सप्तधान्य बलि का उल्लेख), मत्स्य १९६.२३( एक आर्षेय प्रवर चक्री का उल्लेख), विष्णु ४.१३.२५( चक्रधारी कृष्ण का एक नाम ) ।


      चक्षु गरुड ३.५.१९(चक्षु-अभिमानी ४ देवों के नाम), पद्म १.४० ( मरुत नाम), ब्रह्म २.१००.१ / १७० ( चक्षु तीर्थ में मणिकुण्डल वैश्य के चक्षुओं का गौतम विप्र द्वारा छेदन, पुन: प्राप्ति का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३२ ( पुण्यक व्रत में नेत्रदीप्ति के लिए दर्पण व चक्षुओं के रूप के लिए कृष्ण को नीलकमल अर्पण करने का विधान), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२७( हिमालय से नि:सृत नदियों में से एक), १.२.१८.४१ ( प्रतीची गङ्गा का चक्षु नामोल्लेख), २.३.३.१९( तुषित देवों में से एक), ३.४.३५.४७( चक्षुष्मती : मार्तण्ड भैरव की ३ शक्तियों में से एक), ३.४.३६.१५( चक्षुष्मती : चिन्तामणि गृह में स्थित शक्तियों में से एक), भविष्य ३.४.२५.२४( ब्रह्मा की प्रधान भालाक्षि से वह्नि की उत्पत्ति का कथन), भागवत ४.१३.१५ ( ध्रुव के वंशज चक्षु का उल्लेख), ५.१७.५( गङ्गा के चक्षु आदि चार धाराओं में विभाजन का उल्लेख ; चक्षु नदी के माल्यवान् शिखर से गिर कर पश्चिम समुद्र में मिलने का उल्लेख), ८.५.७( चाक्षुष मनु - पिता), ९.२३.१( अनु के ३ पुत्रों में से एक), मत्स्य ४.४०( रिपुञ्जय व वीरिणी - पुत्र, चाक्षुष मनु - पिता), १७१.५२( मरुत्वती के मरुद्गण पुत्रों में से एक), वामन ५७.७३ ( यक्षों द्वारा कुमार को चक्षु गण देने का उल्लेख), वायु ६६.१८( तुषित देव गण में से एक), विष्णु ४.१८.१( अनु के ३ पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.५१( चक्षु नदी के उरभ्र वाहन का उल्लेख), २.८.४१( षोडशाक्ष पुरुष के लक्षण, चतुर्दश विद्याओं को देखने वाले की षोडशाक्ष संज्ञा), शिव ५.१७.३१ ( चक्षु नदी का उल्लेख), स्कन्द ४.१.२.९६(श्रुति-स्मृति की चक्षुओं व पुराणों की हृदय से उपमा), ४.१.४२.१४ ( चक्षुओं में मातृमण्डल का स्थान, भ्रूमध्य में विष्णु-पद), ५.३.१.१५ ( विद्वानों के तीन चक्षुओं श्रुति, स्मृति व पुराण का उल्लेख ), ७.१.२०७.४५(अश्व के चक्षु होने का उल्लेख), वा.मा.सं २४.२९(चक्षुषे मशकान्), द्र. निर्वृतिचक्षु । chakshu


      चक्षुष ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०२( रिपु व बृहती के पुत्रों में से एक, वारुणी - पति, चाक्षुष मनु - पिता), २.३.७४.७१( बलि की दासी से उत्पन्न दीर्घतमा के २ पुत्रों में से एक), वायु ९९.७०/२.३७.७०( बलि की दासी से उत्पन्न दीर्घतमा के २ पुत्रों में से एक ) ; द्र. चाक्षुष chakshusha


      चङ्ग कथासरित् १२.१५.११(भोजनचङ्ग, नारीचङ्ग व तूलिकाचङ्ग का वृत्तान्त)


      चचाई स्कन्द ३.२.३९.६५ ( ब्राह्मण गोत्र की देवी चचाई का उल्लेख ) ।


      चञ्चल गणेश २.९३.३६ ( चञ्चल असुर का स्वरूप, गणेश द्वारा वध), देवीभागवत ९.२२.६ ( शङ्खचूड - सेनानी चञ्चल का समीरण से युद्ध), नारद १.६६.१३४( मत्तवाह गणेश की शक्ति चञ्चला का उल्लेख), मत्स्य ११४.२६( चञ्चला : ऋष्यवान् पर्वत की नदियों में से एक),शिव २.५.३६.१० ( शङ्खचूड - सेनानी, समीरण से युद्ध ) । chanchala


      चञ्चु ब्रह्म १.६.२६ ( हरित - पुत्र, विजय - पिता, हरिश्चन्द्र वंश), ब्रह्माण्ड २.३.६३.११७( हरित - पुत्र, विजय व सुदेव - पिता, त्रिशङ्कु वंश), वायु ८८.११९/२.२६.११९( हरित - पुत्र, विजय व सुदेव - पिता, त्रिशङ्कु वंश), विष्णु ४.३.२५( हरित - पुत्र, विजय व वसुदेव - पिता, त्रिशङ्कु वंश), शिव ०.३.२९ ( बिन्दुग व उसकी पत्नी चञ्चुला की दुष्टता का वर्णन ) । chanchu


      चटक देवीभागवत ६.२२.६ ( चटक /कलविङ्क : विश्वरूप के सुरापान वाले मुख से उत्पत्ति), वामन ५७.७०( अंशुमान द्वारा चटक नामक गण कुमार को देने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.८५.१०९ ( वृषायन ऋषि द्वारा चटका के बराबर अपना मांस श्येन को देने की कथा), ४.६८ ( प्रसाद के बिखरे अन्नकण खाने से चटका को सद्गति प्राप्त होने का वर्णन ) । chataka


      चटिका स्कन्द १.२.४०.८ ( माण्टि ऋषि की पत्नी चटिका द्वारा चार वर्ष तक कालभीति नामक पुत्र को गर्भ में धारण करने का वर्णन ) ।


      चण्ड अग्नि ७६.५ ( चण्ड पूजन विधान का प्रसंग), ९७.५५ ( मन्दिर के बाहर ईशान कोण में चण्ड पूजन का उल्लेख), गणेश २.७६.१४ ( विष्णु व सिन्धु के युद्ध में चण्ड का वह्नि से युद्ध), गरुड ३.२४.७७(श्रीनिवास के दक्षिण द्वार पर चण्ड - प्रचण्ड की स्थिति), गर्ग ७.२२.४२ ( अर्जुन द्वारा कालयवन - पुत्र चण्ड के युद्ध में वध का वर्णन), नारद १.६६.११०( चण्डेश की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), १.६७.१००( महेश्वर के उच्छिष्टभोजी के रूप में चण्डेश का नामोल्लेख), पद्म ६.१५४.२३ ( चण्ड नामक भिल्ल द्वारा शिव की अनायास पूजा, खड्गधार लिङ्ग की स्थापना का वर्णन), ६.१६७.२ ( चण्डेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ६.२२८.१३ ( चण्ड व प्रचण्ड की अयोध्या के पूर्व द्वार पर स्थिति), नारद १.६७.१०० ( उच्छिष्ट भोजी, सूर्य - पार्षद चूडांशु को इष्ट पूजनोपरान्त नैवेद्य देने का उल्लेख), १.९१.२०९ ( चण्डेश शिव के मन्त्र का विधान), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२६ ( प्रचण्ड सूर्य से गण्ड की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड ३.४.१७.४( दण्डनाथा देवी के सेनानियों में से एक), ३.४.१९.७८( गेय चक्र के ६ठे पर्व पर ८ भैरवों में से एक), ३.४.२५.२८ ( भण्ड - सेनापति चण्डबाहु राक्षस का उल्लेख), ३.४.२४.५० ( विकटानन नामक चण्ड / भयानक मुर्गे का कथन), मत्स्य २.८ ( ७ प्रलयकारक मेघों में से एक), १५३.१९( ११ रुद्रों में से एक), वामन ५७.९४ ( ब्रह्मयोनि द्वारा कार्तिकेय को चण्डशिला गण देने का उल्लेख), वायु ४१.७३ ( नागपति चण्ड के विष्णु चक्र से चिह्नित सौ सिर होने का उल्लेख), ६९.११३/२.८.१०९( २ पिशाचों में से एक, स्वकन्या यक्ष को प्रदान करना ), वा.रामायण ६.२६.२९ ( सारण द्वारा रावण को चण्ड नामक वानर का परिचय देना), शिव २.२.३७.१३ ( दक्ष यज्ञ विध्वंस के अन्तर्गत चण्ड द्वारा पूषा के दांत उखाडने का उल्लेख), ५.८.१२ ( यम द्वारा चण्ड नामक दूत को राजाओं को नरकाग्नि में डालने की आज्ञा देने का वर्णन), ७.२.२४.२१( ईशान दिशा में चण्ड को निर्माल्य अर्पण का निर्देश), ७.२.२६.२८( वही), स्कन्द १.१.५.८५ ( अज्ञान में हर नामोच्चारण के कारण इन्द्रसेन नृप का मृत्यु के पश्चात् चण्ड नामक शिव - गण बनना), १.१.१७.२४६( चण्ड की पीठिका की प्रदक्षिणा न करने से इन्द्र को वृत्र से भय की प्राप्ति का कथन), १.१.३३ ( चण्ड नामक किरात द्वारा अनायास शिवरात्रि व्रत चीर्णन का प्रसंग), ३.१.७.८ (देवी द्वारा चण्ड का वध), ४.२.५३.१२४ ( काशी में चण्डेश्वर लिङ्ग में पापमुक्ति का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७४.५३ ( चण्डगण द्वारा काशी में वायव्य कोण की रक्षा), ५.१.१९.२ ( चण्ड - प्रचण्ड द्वारा शिव - पार्वती की अक्ष क्रीडा में विघ्न, पार्वती द्वारा हनन), ५.१.२५.८ ( कृष्ण अष्टमी को चण्डीश्वर की अर्चना का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१९८ ( शिवचण्ड तीर्थ में सभानन्दा शक्ति का उल्लेख), ५.३.२९.४४ ( चण्डहस्त लिङ्ग की स्थापना का उल्लेख), ६.३२.५९ ( सप्तर्षियों तथा चण्ड द्वारा हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर प्रतिक्रिया), ६.९५.७० ( चण्ड की सूर्य से तुलना), ७.१.४२.३ ( चण्ड द्वारा स्थापित चण्डीश पूजन का संक्षिप्त माहात्म्य : पुन: जन्म न पाना), ७.१.९४.३ ( चण्ड नामक गण द्वारा पूजित भैरव रुद्र का संक्षिप्त माहात्म्य : दर्शन से पापों का नाश), ७.१.२५५.४२ ( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर चण्ड की प्रतिक्रिया), लक्ष्मीनारायण १.१७७.५२( दक्ष यज्ञ में नैर्ऋत के चण्ड से युद्ध का उल्लेख), १.५१६.७१( चण्ड - प्रचण्ड के ही लिङ्ग के प्रसाद/नैवेद्य भक्षण के अधिकारी होने का वृत्तान्त), कथासरित् १८.४.२५२ ( चण्डपुर नगर में देवस्वामी ब्राह्मण की कन्या कमललोचना का वर्णन ) ; द्र. नागचण्ड, प्रचण्ड । chanda


      चण्डक पद्म ६.२०६, ६.२०९, ६.२११ ( नापित चोर चण्डक द्वारा मुकुन्द विप्र की हत्या, मृत्यु पश्चात् सर्प बनना, सर्प की मुक्ति की कथा), स्कन्द ३.३.१७.२४ ( चण्डक शबर द्वारा शिवपूजा के लिए चिता भस्म न मिलने पर पत्नी द्वारा अग्नि प्रवेश करने की कथा ) । chandaka


      चण्ड - अग्नि ३२३.१० (चण्डकपालिनी मन्त्र का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.२३.५६( चण्डमना : चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक), ३.४.२१.७९( चण्डबाहु : भण्ड असुर के पुत्र सेनापतियों में से एक), ३.४.२१.८२( चण्डधर्म : भण्ड असुर के पुत्र व सेनापतियों में से एक), ३.४.२८.४२( चण्डकाली : चण्डकाली के कोलाट दैत्य से युद्ध का उल्लेख), मत्स्य १८३.६४( चण्डघण्ट : वाराणसी की रक्षा करने वाले गणेश्वरों में से एक), २७३.१५( चण्डश्री : विजय - पुत्र, शान्तिकर्ण - पिता, १९ आन्ध्र देशीय राजाओं में से एक), वामन ५५.६७ ( देवी की जटा से उत्पन्न चण्डमारी देवी द्वारा चण्ड - मुण्ड को पकड कर लाने का वर्णन), कथासरित् ५.३.१७९ ( चण्डविक्रम - कन्या बिन्दुरेखा का दैत्य द्वारा हरण), ८.३.१०९ ( मोहिनी विद्या को एक ही बार प्रयोग कर सकने के कारण वेणु - दण्ड के रक्षक चण्ड - दण्ड द्वारा प्रभास आदि से पराजय मान लेने का कथन), ८.४.८० ( सूर्यप्रभ - सेनानी चण्डदत्त की कालकम्पन से युद्ध में पराजय का उल्लेख), १२.१४.३ ( ताम्रलिप्ति - राजा चण्डसेन द्वारा सेवक की सहायता को ऋण मानकर चुकाने का वर्णन), १२.३४.१६२, १९३, २०६, ३७२ ( चण्डप्रभ : राजा महेन्द्रादित्य व राजपुत्र सुन्दरसेन के ४ मन्त्रियों में से एक), १६.२.२८( उज्जयिनी के राजा चण्डमहासेन द्वारा अङ्गारक राक्षस को मारने का उल्लेख ) । chanda


      चण्ड - मुण्ड देवीभागवत ५.२६( शुम्भ - सेनानी चण्ड - मुण्ड का कालिका देवी द्वारा वध), पद्म ६.१६.२९ ( शिव रूप धारी जालन्धर को चण्ड - मुण्ड द्वारा देवी की प्राप्ति के लिए लालायित करने का वर्णन), मार्कण्डेय ८२.४५/८५.४५ ( चण्ड - मुण्ड द्वारा शुम्भ - निशुम्भ को पार्वती प्राप्ति के लिए प्रेरित करने का वर्णन), ८३.१८ / ८६.१८ ( शुम्भ द्वारा चण्ड - मुण्ड को देवी को पकड लाने की आज्ञा का कथन), ८४.२५/८७.२५ ( चण्ड - मुण्ड का वध करने के कारण काली देवी के चामुण्डा नाम का कथन), वामन १९.१ ( चण्ड - मुण्ड द्वारा कात्यायनी देवी के सौन्दर्य दर्शन का वर्णन), ५५.८१ ( चामुण्डा द्वारा मस्तक पर चण्ड - मुण्ड के सिर का अलङ्कार पहनना), स्कन्द ५.३.९१.२ ( चण्ड - मुण्ड द्वारा सूर्य पूजा से वर प्राप्ति, चण्डादित्य तीर्थ का माहात्म्य : आधि - व्याधि रहित होना), लक्ष्मीनारायण १.१६६ ( शुम्भ की आज्ञा से देवी को लाने गए चण्ड - मुण्ड के वध का वर्णन ) । chanda - munda


      चण्डवेग भागवत ४.२७.१३ ( गन्धर्वराज चण्डवेग द्वारा पुरञ्जन पुरी पर आक्रमण का उल्लेख), मत्स्य २२.२८( चण्डवेगा : पितरों को प्रिय नदियों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.१६४ ( नयनसुन्दरी - पति चण्डवेग को तिल द्वादशी व्रत से राज्यत्व प्राप्ति ) ।


      चण्डशर्मा स्कन्द ६.२५.४३( विष्णुपदी गङ्गा में स्नान से चण्डशर्मा द्वारा सुरापान पाप से मुक्त होने का कथन), ६.१६२.२१ ( चण्डशर्मा द्वारा सप्तमी व्रत करने का उल्लेख ) ।


      चण्डसिंह कथासरित् १४.२.३८( विद्याधरों के स्वामी देवसिंह - पुत्र चण्डसिंह की माता द्वारा नरवाहनदत्त को साथ ले जाने का वर्णन), १४.३.३८ ( चण्डसिंह की माता धनवती द्वारा नरवाहनदत्त के साथ अपनी पुत्री अजिनावती का विवाह करना ) ।


      चण्डा नारद १.६६.९१( शङ्खी विष्णु की शक्ति चण्डा का उल्लेख), पद्म १.६.५४ ( वृषपर्वा - पुत्री, शर्मिष्ठा - भगिनी), मत्स्य १७९.१६( शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), स्कन्द ६.३२.५९, ७.१.२५५.४२( ऋषियों की भृत्या चण्डा द्वारा राजा से प्रतिग्रह के विषय में प्रतिक्रिया), लक्ष्मीनारायण १.५६४.३७ ( चण्डवेगा नदी में स्नान से चन्द्रशर्मा की चाण्डालत्व से मुक्ति का प्रसंग ) । chandaa


      चण्डाल अग्नि १५१.११ ( ब्राह्मणी स्त्री व शूद्र के संयोग से उत्पन्न सन्तान की चण्डाल संज्ञा होने का कथन), १५१.१४ ( चण्डाल द्वारा किए जाने वाले कार्यों का वर्णन), गरुड ३.२८.१३७(विवाह काल में चण्डाल देवी की पूजा की व्यर्थता का कथन), देवीभागवत ७.२३+ (हरिश्चन्द्र - विश्वामित्र की कथा), पद्म १.४८.१८ ( ब्राह्मणों को देवाग्नि न देने पर सैंकडों योनियों के पश्चात् चाण्डाल होने का उल्लेख), १.५०.२८० ( श्राद्ध में गोमांस भोजन कराने से चण्डालत्व का शाप प्राप्त करने वाले द्विजों का प्रसंग), २.१२ ( दुर्वासा के शाप से हरिश्चन्द्र के समय में धर्म के चाण्डाल रूप में अवतार का वर्णन), मार्कण्डेय ८.८१ ( हरिश्चन्द्र उपाख्यान के अन्तर्गत धर्म का चण्डाल रूप धारण करना), स्कन्द २.४.२७.९ ( विष्णुदास ब्राह्मण का चाण्डाल द्वारा अन्न हरण होने व साक्षात् विष्णु भगवान द्वारा दर्शन देने का वर्णन), योगवासिष्ठ ३.१०६.४६ ( इन्द्रजालोपाख्यान के अन्तर्गत राजा लवण द्वारा क्षुधा से व्याकुल होकर चाण्डाली से विवाह आदि का वर्णन), ३.१२० ( राजा लवण तथा सन्तान से वियोग पर चाण्डाली के विलाप का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२६१.१०३ ( चण्डाल द्वारा हरिमन्दिर में कीर्तन व एकादशी जागरण करने से मुक्ति का उपाय जानकर ब्रह्मराक्षस द्वारा भी व्रत, जागरण , कीर्तन करके मुक्त होने का वर्णन), १.५६४.३० ( शाण्डिल्य ऋषि की पत्नी को छूने से चन्द्रसेन राजा के चण्डाल होने का कथन), १.५१४.४७ ( घूककर्ण नामक चण्डाल - पुत्र द्वारा विवाहित विप्रकन्या की शुद्धि का वर्णन), ३.९१.१०२( क्रशाङ्ग व इन्द्र संवाद में चाण्डाल द्वारा अति तप से क्रमश: शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय व द्विज योनियों को प्राप्त करने का वृत्तान्त), कथासरित् ६.१.१२३ ( ब्राह्मण व चाण्डाल द्वारा साथ - साथ तपस्या करने पर शुद्ध - हृदय चण्डाल के राजगृह में जन्म होने का कथन), १०.५.२०४ ( मूर्खा चण्डाल - कन्या द्वारा अपनी जाति के चण्डाल को सबसे बडा मानकर पति बनाने की कथा ) । chandaala


      चण्डिक वायु ९९.१०४/२.३७.१०४ ( राजा लोमपाद/चित्ररथ द्वारा चण्डिक हस्ती को पृथिवी पर लाने का उल्लेख? ) ।


      चण्डिका अग्नि ५०.११ ( चण्डिका देवी की प्रतिमा के लक्षण), ५२.१६ ( चण्डिका देवी की प्रतिमा के लक्षण), ९१.१४( चण्डिका के बीज मन्त्र आं ह्रीं का उल्लेख), देवीभागवत २.२६.४८ ( नवरात्र में सात वर्षीया कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य व धन प्राप्ति का उल्लेख), ७.३०.७३ ( अमरकण्टक सिद्धपीठ में देवी का चण्डिका नाम होने का उल्लेख), ७.३८.१९ ( अमरेश में चण्डिका देवी की स्थिति का उल्लेख), पद्म ६.२०४ (पुत्रकामना से चण्डिका का पूजन करने वाले विष्णुशर्मा का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१८ ( चण्डिका देवी से वायव्य दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड ३.४.७.७२( चण्डिका आदि मातृकाओं के पूजन में मधु के प्रशस्त होने का उल्लेख), ३.४.४०.२५( पार्वती की सखियों में से एक), भविष्य १.५७.१५( चण्डिका हेतु सुचन्दन बलि का उल्लेख), ३.२.३.१४ ( मन्त्री वीरवर द्वारा चण्डिका को पुत्र की बलि देने पर राजा रूपसेन द्वारा अपनी बलि देना, देवी द्वारा सबको पुन: जीवित करने की कथा), भागवत ५.९.१४( चोरों द्वारा ब्राह्मण भरत को बांधकर चण्डिका के मन्दिर में लाने आदि का कथन), १०.२.१२( यशोदा के गर्भ से जन्म लेने वाली योगमाया के नामों में से एक), मत्स्य १३.४३( मकरन्द तीर्थ में उमा की चण्डिका नाम से स्थिति का उल्लेख), १५८.१६( उमा का पर्यायवाची नाम), मार्कण्डेय ८७.१३ ( चण्डिका द्वारा शुम्भ से युद्ध का वर्णन), ८८.२८ (देवताओं द्वारा चण्डिका की स्तुति), वामन ५६.२ ( चण्डिका से उत्पन्न मातृकाओं द्वारा दैत्य सेना से युद्ध, चण्डिका द्वारा रक्त बीज के वध का वर्णन), स्कन्द ५.१.२०.१२ ( सिद्धेश्वर तीर्थ में चण्डिका दर्शन से सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१९८.८० ( देवी के १०८ नामों में चण्डिका का उल्लेख), ६.९५.१८ ( राजा अजापाल द्वारा चण्डिका की आराधना करने व मन्त्र - अस्त्र प्राप्त करने का वर्णन), ७.१.१८९ ( चण्डिका के कर्ममोटी देवीपीठ का संक्षिप्त माहात्म्य : सब कार्य सिद्ध होना), ७.३.३६.१४ ( महिषासुर वधार्थ चण्डिका की उत्पत्ति का वर्णन), ७.४.१७.२० ( द्वारका में दक्षिण द्वार पर चण्डिका देवी की स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४२४.१८( क्षुद्र के नाश हेतु चण्डिका का उल्लेख), कथासरित् २.२.१४१ ( भिल्लराज द्वारा श्रीदत्त को चण्डिका की बलि चढाने की तैयारी), ५.३.१४५ ( चण्डिका मन्दिर में बंधे हुए शक्तिदेव द्वारा चण्डिका की स्तुति करना), १२.२.११३ ( राजा पुष्कराक्ष द्वारा चण्डिका की स्तुति करना), १२.११.६९ ( वीरवर द्वारा चण्डिका को पुत्र की बलि चढाने का वर्णन), १५.१.७० ( शंकर द्वारा कैलास गुफा के उत्तर द्वार पर कालरात्रि, चण्डिका व अपराजिता को स्थापित करना ) । chandikaa


      चण्डिल स्कन्द १.२.६४, १.२.६६ ( कौरव - पाण्डव युद्ध में अपने शर के आगे सिद्ध भस्म लेपन करने वाले तथा अकेले सारे शत्रुओं को मारने का दम्भ करने वाले चण्डिल का कृष्ण द्वारा शिरछेदन, बर्बरीक के शिर द्वारा युद्ध का दर्शन , केवल कृष्ण का दर्शन आदि ) । chandila


      चण्डी अग्नि ५०.१ ( चण्डी प्रतिमा के लक्षणों का वर्णन), पद्म ६.१३३.२१ ( अमरकण्टक में चाण्डिक तीर्थ का उल्लेख), शिव २.३.४०.३५ ( चण्डी द्वारा रुद्र की बहिन बनकर बारात में आगे चलने का उल्लेख), ४.१३.३७ ( दधीचि - पुत्र सुदर्शन की चण्डी पूजन से मुक्ति का वर्णन), ७.२.२४.२१ ( शिव पूजन के पश्चात् चण्डी पूजन का उल्लेख), स्कन्द ४.२.७०.७० (शिखीचण्डी दर्शन से समस्त व्याधि नाश होने का उल्लेख), ४.२.७२.५८ ( चण्डी से कपोल युगल की रक्षा की प्रार्थना), ५.१.२५.८ ( चण्डीश्वर तीर्थ में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रत करने से मुक्ति का उल्लेख), ५.१.३८.४ ( चण्डी द्वारा अन्धक का रक्त पीने से अन्धक का क्षय ), ६.८६.९ ( चन्द्रमा की २७ पत्नियों द्वारा पति प्राप्ति हेतु चण्डी की पूजा), ६.९५.१८ ( अजापाल राजा द्वारा चण्डी की आराधना, मन्त्र व अस्त्र प्राप्ति), ७.१.३४० ( चण्डीश्वर माहात्म्य : शिवलोक गमन), कथासरित् १०.५.१६०( व्यभिचारिणी पत्नी द्वारा ठगे गए ईर्ष्यालु नामक पुरुष द्वारा चण्डी की स्तुति करने व वरदान प्राप्त करने की कथा), १६.१.४५ ( विरह के कारण मृत शूरसेन व उसकी पत्नी को चण्डी द्वारा पुन: जीवित करने की कथा), १८.४.२४ ( कार्पटिक देवसेन की निर्भीकता पर चण्डी नामक यक्षिणी का प्रसन्न होकर लेप देने का वर्णन ) ; द्र. मङ्गलचण्डी, मूलचण्डीश । chandee/chandi


      चण्डीश ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५०( वर्णों के रुद्र देवताओं में से एक), भागवत ४.५.१७ ( दक्ष यज्ञ विध्वंस के वर्णन में शंकर पार्षद चण्डीश द्वारा पूषा को पकडने का उल्लेख), स्कन्द ७.१.३०८ ( मूलचण्डीश की कथा : ऋषि शाप से लिङ्ग पतन के पश्चात् लिङ्ग में शिव की स्थिति की कथा ) ।


      चण्डोदरी वा.रामायण ५.२४.३८ ( राक्षसी , अशोक वाटिका में सीता को भय दिखाना ) ।


      चतुरङ्ग मत्स्य ४८.९५( ऋष्यशृङ्ग की कृपा से दशरथ - पुत्र चतुरङ्ग के जन्म का उल्लेख, पृथुलाक्ष - पिता), विष्णु ४.१८.१८( रोमपाद - पुत्र, पृथुलाक्ष - पिता ) ।


      चतुरस्र नारद १.२८.३३( श्राद्ध में ब्राह्मण हेतु चतुरस्र मण्डल के निर्माण का निर्देश ) ।


      चतु:स्रोत वराह १४१.१७ ( हिमालय की चारों दिशाओं से धारा गिरने से चतु:स्रोत की प्रसिद्धि ) ।


      चतुरिका कथासरित् १६.५.३ ( वेदपाठी मूर्ख ब्राह्मण द्वारा सांसारिक व्यवहार ज्ञान हेतु चतुरिका वेश्या के पास जाने का प्रसंग ) ।


      चतु: - ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८०( चतुर्गुप्त, चतु:शिरा, चतुर्बाहु : भण्ड असुर के पुत्र सेनापतियों के नाम), ३.४.२६.४७, ७२( चतुर्बाहु, चतु:शिरा : भण्ड के ३० पुत्रों में प्रमुख), ३.४.४४.६७( चतुर्मूर्ति : ५१ वर्णों के गणेशों में से एक), भागवत २.७.५( चतु:सन द्वारा ऋषियों को आत्मा के विस्मृत ज्ञान का उपदेश देने का उल्लेख), ५.२०.१५( चतुश्शृङ्ग : कुश द्वीप के वर्ष पर्वतों में से एक), मत्स्य २५४.१( चतु:शाल गृह की रचना का वर्णन ) ।


      चतुर्थी अग्नि १७९.२ ( माघ शुक्ल चतुर्थी : गणेश पूजा का मन्त्र - गं स्वाहा मूलमन्त्रोऽयं गामाद्यं हृदयादिकं ॥), गणेश २.४८.१५ ( माघ चतुर्थी को ढुण्ढि गणेश की पूजा व स्तोत्र), २.८२.१४ ( भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को सिन्धु वध हेतु षड्भुज गणेश का अवतार), गरुड १.११६.५ ( चतुर्थी को चतुर्व्यूह की पूजा का उल्लेख), १.१२९.१० ( माघ चतुर्थी को गणेश व्रत का कथन), नारद १.११३ (विभिन्न मासों की चतुर्थी तिथियों को गणेश की विभिन्न नामों से पूजा व व्रतों का वर्णन), पद्म १.२४.४३ (अङ्गारक चतुर्थी पूजा विधि), ५.३६.३८( पौष शुक्ल चतुर्थी को राम व विभीषण के मिलन का उल्लेख), ६.२४९.३७ ( भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चन्द्र दर्शन से कृष्ण को स्यमन्तक मणि की चोरी का मिथ्या कलङ्क लगने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८०.८ ( भाद्रपद चतुर्थी को चन्द्रमा द्वारा तारा के दर्शन, चेतनाहीन होना आदि), भविष्य १.२२+ ( चतुर्थी व्रत का माहात्म्य : गणेश द्वारा विघ्न की कथा), १.२४(चतुर्थीकल्पे पुरुषलक्षणवर्णनम्), १.३१ ( शिवा, सुखा, शान्ता चतुर्थी का वर्णन), मत्स्य ७२.१७ ( अङ्गारक चतुर्थी व्रत की विधि), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.२८( चतुर्थी तिथि को पूजनीय देवताओं के नाम तथा फल), स्कन्द ५.१.३७.४४ ( अङ्गारक के महादेव - पुत्र होने की कथा, मङ्गलवार को चतुर्थी होने पर पुत्र प्राप्ति हेतु पूजा का उल्लेख), ५.३.२६.१०७ ( चतुर्थी के व्रत व विनायक पूजा से विघ्न न होने का उल्लेख - नक्तं कृत्वा चतुर्थ्यां वै दद्याद्विप्राय मोदकान् ॥ प्रीयतां मम देवेशो गणनाथो विनायकः ।), ६.१४२( माघ शुक्ल चतुर्थी को गणपति - त्रय पूजा का आख्यान, मर्त्यलोक में गणेश के कृत्य), ६.२१४ ( माघ शुक्ल चतुर्थी को गणनाथ पूजा का विधान), ७.१.३४१ ( भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को आशापूर विघ्नराज पूजा का उल्लेख), ७.१.३४९( फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी को महाविनायक पूजा का वर्णन), ७.३.३२.२४ ( माघ शुक्ल चतुर्थी को महाविनायक पूजा का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२०५.५३(सावित्री वेदमाता या ब्रह्मप्राणा चतुर्थिका ।) १.३११.६० ( पुरुषोत्तम मास की चतुर्थी के सब कामना पूरी करने वाली होने का कथन, समित्पीयूष नृप के चन्द्रमा तथा उसकी पत्नियों के चन्द्रमा- पत्नियां बनने का वर्णन), १.२६९ ( १२ मासों में शुक्ल व कृष्ण पक्ष की चतुर्थियों के व्रतों का वर्णन), २.२८७.२ ( चतुर्थी पूजा का वर्णन), ३.१०३.४ ( चतुर्थी के दान से गोधन प्राप्त करने के फल का उल्लेख ) । chaturthi/chaturthee


      चतुर्दन्त कथासरित् १०.६.३० ( हाथियों के झुण्ड के सरदार चतुर्दन्त का उल्लेख ) ।


      चतुर्दश शिव ५.४.१० ( ८ देवयोनि, मानुषी नवमी व ५ तिरश्चीन योनियों का कुल योग १४ ) ।


      चतुर्दशी अग्नि १९२ ( विभिन्न मासों में हरि पूजा, अनन्त चतुर्दशी व्रत), १९३ ( फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी : शिव रात्रि व्रत), कूर्म २.३९.६८ /२.४१.७१ ( वैशाख कृष्ण चतुर्दशी : शुक्ल तीर्थ में कपिला तीर्थ में स्नान आदि का कथन), २.३९.९४ / २.४१.१०० ( श्रावण कृष्ण चतुर्दशी : गणेश्वर तीर्थ में स्नान से रुद्रलोक में प्रतिष्ठित होने का उल्लेख), गरुड १.११६.७ ( चतुर्दशी को ब्रह्मा की पूजा), देवीभागवत ९.२६.४४ ( ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी : सावित्री पूजा), नारद १.८८.१९७(चतुर्दशी का स्वरूप), १.१२३ (चतुर्दशी तिथि के व्रतों का वर्णन), २.४९.१८ ( मास अनुसार शिव नाम व पूजा), पद्म १.१९.२१ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : ज्येष्ठ पुष्कर में सरस्वती में स्नान), ३.१८.१६ ( कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी :अगस्त्येश्वर लिङ्ग की पूजा), ३.१९.२४ ( कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी : शुक्ल तीर्थ में पूजा), ३.२५.३३ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : सरस्वती में स्नान), ४.२३.१२ ( कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को दधि सेवन का निर्देश), ५.३६.३१ ( मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी : हनुमान द्वारा लङ्का दहन), ६.१२२ ( कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी : यम चतुर्दशी के कृत्य, स्नान, दीप दान आदि), ६.१२८.११७ ( पौष चतुर्दशी : लोमश का अच्छोदा सर में स्नान, पिशाच - पिशाचिनियों की मुक्ति की कथा),६.१५४.१७ ( माघ शुक्ल चतुर्दशी : चण्ड द्वारा शिव लिङ्ग की अनायास पूजा), ६.१७४.२८ ( वैशाख शुक्ल चतुर्दशी : नृसिंह व्रत), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.९९ ( ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी को सावित्री पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.२६.३३( चतुर्दशी तिथिमयी : ज्वालामालिनी देवी का नाम), मत्स्य ९५.५+ ( मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी : माहेश्वर व्रत, मास अनुसार शिव नाम व पुष्प), १९३.५ ( ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को कपिला गौ दान करने का उल्लेख), १९३.१५( श्रावण कृष्ण चतुर्दशी को गङ्गेश्वर में स्नान से शिवलोक जाने का उल्लेख), १९३.६५ ( भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी : एरण्डी तीर्थ में स्नान), वराह ३३.२९ (ब्रह्मा द्वारा चतुर्दशी को रुद्र की तिथि नियत करने का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८५+ ( चतुर्दशी व्रत), ३.२२१.८५( चतुर्दशी को यक्ष, राक्षस, कुबेर, महादेव आदि की पूजा का निर्देश तथा फल), स्कन्द २.२.१६.६२ ( वैशाख चतुर्दशी : नृसिंह अवतार), २.२.२९.५० ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : दमनक पुष्पों द्वारा विष्णु पूजा), २.२.३८.११६( मधु शुक्ल चतुर्दशी को मत्स्यावतार द्वारा दमनक दैत्य का वध), २.४.३५ ( वैकुण्ठ चतुर्दशी), ४.२.५४.७७ ( मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी : पिशाचमोचन तीर्थ में स्नान), ४.२.६१.१०९ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : पशुपति तीर्थ की यात्रा), ४.२.६३.९ ( ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी : काशी में ज्येष्ठ स्थान की यात्रा), ( यम चतुर्दशी :दीप दान की महिमा), ५.२.२७.६१ ( आश्विन् चतुर्दशी :नरकेश्वर का माहात्म्य), ५.३.२६.१२५ ( चतुर्दशी को उपानह का दान), ५.३.६४.२ ( चतुर्दशी को उपानह, छत्र, घृत, कम्बल का दान), ५.३.७८.१७ ( भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी : शस्त्राहतों का श्राद्ध, छत्र दान), ५.३.१५०.४१ ( चैत्र चतुर्दशी को कुसुमेश्वर का माहात्म्य), ५.३.१५६.३ ( वैशाख कृष्ण चतुर्दशी : शुक्ल तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१५६.१८ ( कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को घृत, कम्बल, स्वर्ण दान), ५.३.१६७.१९ ( ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी : मार्कण्डेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१७५.१३ ( ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी : कपिलेश्वर तीर्थ में स्नान), ५.३.१७९.१० ( आश्विन् कृष्ण चतुर्दशी : गौमतेश्वर में स्नान, सौ दीपों का दान), ५.३.१८५.२ ( चतुर्दशी को एरण्डी तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२०३.३ ( भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी : कोटि तीर्थ में स्नान), ५.३.२०९.१७६ ( कार्तिक चतुर्दशी : उपवास, भारभूति तीर्थ का माहात्म्य), ६.१४३ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : जाबालि, जाबालि - कन्या फलवती व चित्राङ्गद की कथा), ६.१५५ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : एकादश रुद्रों की शतरुद्रिय द्वारा पूजा), ६.१६१ (चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : माहिका द्वारा स्थापित दुर्गा देवी की पूजा, माहिका की कथा), ६.१९८ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : ब्राह्मणी - शूद्री तीर्थ का माहात्म्य), ६.२०४.२६( नभस्य मास की चतुर्दशी को प्रेत आदि के श्राद्ध का कथन), ६.२०८ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : गौतमेश्वर लिङ्ग के दर्शन), ६.२७६ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : एकादश रुद्रों की पूजा), ६.१५५ (ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी : दीर्घिका नामक सरसी में स्नान), ६.२५४ ( आषाढ शुक्ल चतुर्दशी : शिव द्वारा ताण्डव नृत्य), ६.६९ ( भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी : परशुराम ह्रद में तर्पण), ६.२०४ ( भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी : प्रेत मुक्ति हेतु श्राद्ध), ६.१०३ ( आश्विन् शुक्ल चतुर्दशी : आनर्त तडाग का माहात्म्य), ६.११६ ( आश्विन् शुक्ल चतुर्दशी : रेवती द्वारा अम्बा देवी की पूजा), ६.१५४ ( आश्विन कृष्ण चतुर्दशी : २७ लिङ्गों की पूजा), ६.१९९.५१ ( आश्विन् कृष्ण चतुर्दशी : कूपिका तीर्थ में स्नान), ६.१०३.७८ ( कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी : श्वेत राजा द्वारा स्वदेह का भक्षण), ६.१८२.४४ ( कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी : कपालेश्वर लिङ्ग की पूजा), ६.९५ ( माघ शुक्ल चतुर्दशी : अजापाल द्वारा चण्डी पूजा की कथा), ६.१२८ ( माघ चतुर्दशी : अटेश्वर की पूजा), ६.१४५ ( माघ शुक्ल चतुर्दशी : अमरत्व के लिए अमरेश्वर लिङ्ग की पूजा), ६.२६६ ( माघ कृष्ण चतुर्दशी : शिवरात्रि, चोर द्वारा अनायास शिव पूजा से मुक्ति), ७.१.८० ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : गौतमेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.१.९१ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : त्र्यम्बक रुद्र की पूजा), ७.१.२४८ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : ब्रह्मेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.१.२६० (चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : सिद्धेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.३.१७ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : पङ्गु तीर्थ में स्नान), ७.३.२२ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : श्रीमाता देवी द्वारा कलिङ्ग दानव पर विजय), ७.१.१७३ ( वैशाख शुक्ल चतुर्दशी : कुशक आदि लिङ्गों का माहात्म्य), ७.१.१२१ ( ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी : जामदग्नि लिङ्ग की पूजा), ७.१.७६ ( भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी : लकुलीश लिङ्ग की पूजा), ७.१.९४ ( भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी : भैरव रुद्र की पूजा), ७.१.२७५ ( भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी : त्रिनेत्र लिङ्ग की पूजा), ७.१.२२५ ( अश्वयुज कृष्ण चतुर्दशी : देवशर्मा व यम का नरक सम्बन्धी संवाद), ७.१.२७३ (अश्वयुज कृष्ण चतुर्दशी :शण्ड तीर्थ में स्नान, कपाल मोचन तीर्थ में श्राद्ध), ७.१.३०१ ( अश्वयुज कृष्ण चतुर्दशी : सिद्धेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.३.३६ ( आश्विन् कृष्ण चतुर्दशी : चण्डिका आश्रम में पिण्ड दान), ७.१.३४० ( कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी : चण्डीश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.१.९० ( माघ कृष्ण चतुर्दशी :वृषणेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.१.११२ ( माघ कृष्ण चतुर्दशी : लक्ष्मणेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.१.१६८ ( माघ चतुर्दशी : शालकटङ्कटा देवी की पूजा), ७.१.१७९ ( माघ चतुर्दशी : माण्डव्येश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.१.३१९ ( माघ चतुर्दशी : स्थलेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.३.८ ( माघ कृष्ण चतुर्दशी : भद्रकर्ण ह्रद का माहात्म्य), ७.३.९ ( माघ कृष्ण चतुर्दशी : केदारेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.३.४७ ( माघ कृष्ण चतुर्दशी : गौतमेश्वर लिङ्ग के दर्शन), ७.३.३९ ( फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी : अचलेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.३.३५ ( फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी : मायु ह्रद में स्नान), महाभारत कर्ण ४४.२५( वाहीक देश में कृष्ण चतुर्दशी को राक्षसी के गान का कथन), लक्ष्मीनारायण १.२७९ ( वर्ष पर्यन्त चतुर्दशी के व्रतोत्सवों का वर्णन), १.३०६.७३ ( अधिक मास की चतुर्दशी को व्रत करने से प्राप्त फलों का वर्णन), १.३२१.१ (राजा चित्रधर्म के पुत्र दृढधन्वा द्वारा अधिक मास चतुर्दशी व्रत से मोक्ष प्राप्ति की कथा), २.९०.२२( कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को महामारी भैरवी द्वारा राक्षसियों को नष्ट करने का वृत्तान्त), २.१९५ २.२३७.२७ ( कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को की जाने वाली पूजा का वर्णन), ३.१०३.९ ( शुक्ल चतुर्दशी को दान से साम्राज्य प्राप्ति का उल्लेख ) chaturdashi /chaturdashee


      चतुर्भुज पद्म ५.१८ (किरातों द्वारा चतुर्भुज रूप प्राप्ति का प्रसंग), वामन ९०.२५ (सूर्पारक तीर्थ में विष्णु का चतुर्बाहु नाम से वास), ९०.४२ (जम्बू द्वीप में विष्णु का चतुर्बाहु नाम से वास), स्कन्द ५.३.१४२.१० (आकाशवाणी द्वारा भीष्मक - कन्या रुक्मिणी को चतुर्भुज को देने का निर्देश, चतुर्भुज शिशुपाल को कन्या देने का आयोजन, चतुर्भुज कृष्ण द्वारा कन्या का हरण),५.३.१४२.४७ (रुक्म को साक्षात् चतुर्भुज स्वरूप का दर्शन ) । chaturbhuja


      चतुर्मुख मत्स्य ४.७(चतुर्मुख के सर्व वेदों के अधिष्ठाता होने का उल्लेख), २३.२०(सोम के राजसूय यज्ञ में चतुर्मुख के उद्गाता होने का उल्लेख), १५४.४८३(शिव - पार्वती के विवाह में चतुर्मुख के होता बनने का उल्लेख), स्कन्द ४.२.५५.९ (चतुर्मुखेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) । chaturmukha


      चतुर्वक्त्र नारद १.६६.११२(चतुर्वक्त्र की शक्ति लम्बोदरी का उल्लेख), वराह ५३.३(पशुपाल द्वारा योगनिद्रा में चतुर्वक्त्र, चतुष्पाद पुत्र का सृजन, चतुर्वक्त्र के पुत्र स्वर का वृत्तान्त ) ।


      चतुर्वर्ण गणेश २१४८.२७ (ब्राह्मण आदि वर्णों के कर्मों का कथन), गरुड ३.२२.७८(ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि में श्रीहरि की नारायण, जनार्दन, प्रद्युम्न आदि नामों से स्थिति), २.३९.१५(क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र द्वारा ब्राह्मण को द्विगुण, त्रिगुण व चतुर्गुण धन देने का निर्देश), ब्रह्म १.११४ (चतुर्वर्ण का धर्म), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८३.५१(चतुर्वर्ण के कर्तव्यों का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.७.१६० (वर्ण अनुसार कर्मों का वर्णन), १.२.१३.६५(यज्ञ में रुद्र हेतु पृथक् भाग दिए जाने के कारण का कथन : देवों के चातुर्वर्ण द्वारा एकत्र भोजन करना), भविष्य ३.४.२३.९८ (चार वर्णों के अनुसार पितरों, देवों, यक्षों आदि की तृप्ति), भागवत ७.११ (चतुर्वर्ण के कर्तव्य), मार्कण्डेय २८.२ / २५.२ (मदालसा - अलर्क संवाद में वर्णाश्रम धर्म का वर्णन), वराह ११५.२३ (चतुर्वर्ण के भक्तियुक्त कर्मों का वर्णन), वामन ६.८६(विष्णु द्वारा शिव अर्चना हेतु शैव आदि ४ वर्णों की सृष्टि का कथन), वायु १००.४४/२.३८.४४(दक्ष - पुत्री सुव्रता व धर्म, भव, दक्ष, ब्रह्मा के मानसिक संयोग से उत्पन्न पुत्रों से चातुर्वर्ण के आरम्भ का कथन), स्कन्द ६.२४२ (चतुर्वर्ण की उत्पत्ति व कर्तव्य), महाभारत अनुशासन ६.१६ (ब्राह्मण द्वारा शौच से श्री की प्राप्ति, क्षत्रिय द्वारा पराक्रम से, वैश्य द्वारा पुरुषार्थ और शूद्र द्वारा शुश्रूषा से श्री की प्राप्ति का कथन), १४१.२८ (शिव - पार्वती संवाद में चतुर्वर्ण धर्म का निरूपण ) ; द्र. वर्ण, वर्णाश्रम chaturvarna


      चतुर्व्यूह अग्नि २५.१ (चतुर्व्यूह आराधना का मन्त्र), २५.३ (चतुर्व्यूह मन्त्रों का पवित्र अधिवासन में प्रयोग), ३४.९ (चतुर्व्यूह मन्त्रों का पञ्च गव्य निर्माण हेतु प्रयोग), ४८ (चतुर्व्यूह का १२ विग्रहों में विस्तार), ५९.७(वासुदेव आदि चतुर्व्यूह की शब्द, स्पर्श आदि के रूप में विवेचना), नारद १.११३.६ (वासुदेव, संकर्षण , प्रद्युम्न व अनिरुद्ध रूप चतुर्मूर्ति पूजा का कथन), पद्म ६.२२८+ (दिशाओं के सापेक्ष चतुर्व्यूह की स्थिति, चतुर्व्यूह का वर्णन), ब्रह्म १.७१.१८(सगुण व निर्गुण ब्रह्मा की शुद्ध वासुदेव, तामस शेष, राजस आदि मूर्तियों के विशिष्ट कार्यों का कथन), ब्रह्माण्ड १.१.४.२३ (नारायण के एकल, द्वैध, त्रिगुणात्मक व चतुर्व्यूहात्मक रूपों का कथन), भविष्य ३.४.१५.६० (शंख, चक्र, शेषनाग व विष्णु के चतुर्व्यूह का क्रमश: शत्रुघ्न, भरत, लक्ष्मण व राम तथा अनिरुद्ध, प्रद्युम्न आदि रूप में अवतार), भागवत ५.१७.१५ (इलावृत वर्ष में भगवान भव द्वारा चतुर्व्यूहात्मक मूर्तियों में से स्वयं के रूप संकर्षण की आराधना), १२.११.२१ (विश्व, तैजस, प्राज्ञ एवं तुरीय का चतुर्व्यूह स्वयं भगवान का होना), महाभारत शान्ति ३३९, ३४४, मार्कण्डेय ४.४४ (चतुर्व्यूहात्मक मूर्तियों के विशिष्ट कार्यों का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.१३६.३१ (आहवनीय, दक्षिण आदि अग्नियों का वासुदेव, संकर्षण आदि से तादात्म्य), १.१३९.२१ (पितरों के रूप में चतुर्व्यूह), २.१०८ (वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध का पादोदक स्नान, कलश स्थापना का वर्णन), ३.४७.८ (वासुदेव आदि का बल, ज्ञान, ऐश्वर्य व शक्ति से तादात्म्य ;चतुर्मूर्तियों के साकार रूप का कथन), ३.१०६.२ (चतुर्व्यूह आवाहन मन्त्र), ३.१४०+ (बल, ज्ञान, शक्ति, ऐश्वर्य की वासुदेव, संकर्षण, अनिरुद्ध, प्रद्युम्न रूप में पूजा करने का वर्णन), शिव ७.२.३५.३३(चार वेदों के जाग्रत, स्वप्न आदि स्वरूपों का कथन), स्कन्द २.७.२०.४४ (उन्मेष के आरम्भ में विष्णु का वासुदेव आदि चतुर्व्यूहात्मक रूप धारण करके सायुज्य आदि मुक्ति प्रदान करने का वर्णन), योगवासिष्ठ ४.१९(जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय स्वरूप विचार), ६.२.१३७ (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति आदि के चतुर्व्यूह का वर्णन), ६.२.१४५+ (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३०४.२५ (कण्ठ / विशुद्धि चक्र में वासुदेव आदि चतुर्व्यूह का ध्यान), २.९४ (बाल रूप में आए श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध व संकर्षण के चतुर्व्यूह को दिव्य दृष्टि से जानकर ऋषि लोमश द्वारा पूजा करने का वर्णन), ३.४७.२७ (अनिरुद्ध द्वारा जगत् के रूपवत् सृजन, प्रद्युम्न द्वारा पोषण व संकर्षण द्वारा विकर्षण का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३३९.४० (वासुदेव के क्षेत्रज्ञ निर्गुण, संकर्षण के जीव, प्रद्युम्न के मन, अनिरुद्ध के व्यक्त अहंकार होने का वर्णन), ३४४.१४(प्राणियों का शुद्ध होकर क्रमश: सूर्य, अनिरुद्ध, प्रद्युम्न, संकर्षण व वासुदेव में प्रवेश करने का वर्णन ) । chaturvyuuha


      चतुष्कोण स्कन्द ४.१.४१.११३(हृदय में चतुष्कोण में पृथिवी तत्त्व की धारणा का उल्लेख ), वास्तुसूत्रोपनिषद २.११(प्राजापत्य वृत्त के आपःभास से चतुरस्र होने का कथन)


      चतुष्पथ स्कन्द १.२.४०.२३५ (कलियुग में चतुष्पथ का शिव शूल बनना ) ।


      चतुष्पद नारद १.६३.१२(सनत्कुमार द्वारा चतुष्पाद महाभागवत तत्त्व का वर्णन- त्रिपदार्थं चतुष्पादं महातंत्रं प्रचक्षते । भोगमोक्षक्रियाचर्याह्वया पादाः प्रकीर्तिताः ।। ), वराह ५३.३(पशुपाल द्वारा योगनिद्रा में चतुर्वक्त्र, चतुष्पाद पुत्र का सृजन, चतुर्वक्त्र के पुत्र स्वर का वृत्तान्त - पशुपालात् समुत्पन्नो यश्चतुष्पाच्चतुर्मुखः ।। स गुरुः स कथायास्तु तस्याश्चैव प्रवर्त्तकः । तस्य पुत्रः स्वरो नाम सप्तमूर्तिंरसौ स्मृतः ।।  ), वायु २३.७३/१.२३.८१(चतुष्पदा सरस्वती के दर्शन से पशुओं के चतुष्पाद होने का कथन - यस्माच्चतुष्पदा ह्येषा त्वया दृष्टा सरस्वती। तस्माच्च पशवः सर्वे भविष्यन्ति चतुष्पदाः।), लक्ष्मीनारायण २.२४६.१५ (गुरु, व्रत, वेद तथा हरि स्वरूप ब्रह्म की चतुष्पदी द्वारा ब्रह्मारोहण करने का निर्देश - चतुष्पदी हि निःश्रेणी ब्रह्मारोहणसाधनी ।…गुरुर्ब्रह्म व्रतं ब्रह्म वेदो ब्रह्म हरिस्तथा ।। ), चरक संहिता सूत्र १०.२(भेषज के चतुष्पाद, षोडशकल होने का उल्लेख) ; द्र. द्विपद । chatushpada

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      चतुष्पात् अन्नमय, प्राणमय, मनोमय और विज्ञानमय कोश को लेकर चलने वाला हिरण्यय कोश चतुष्पाद कहलाता है । दूसरी ओर , अन्नमय और प्राणमय कोशों को लेकर चलने वाले मनोमय कोश द्विपात् , दो पैरों वाले कहलाता है ।



      चत्वर गरुड २.१५.३४(चत्वर पर खेचरों के लिए पिण्डदान का निर्देश), स्कन्द १.२.६२.३५(चत्वरों में दुरारोह क्षेत्रपालों की स्थिति का उल्लेख), ७.१.६२ (रौद्री देवी का रूप ; चत्वरा देवी का माहात्म्य ) ।


      चन्दन अग्नि १९१.३(चन्दनाशी द्वारा पौष में योगेश्वर की पूजा का निर्देश), गर्ग ६.१५.१६ (गोपीचन्दन का माहात्म्य), नारद १.११५.२९ (भाद्रपद / नभस्य शुक्ल षष्ठी को चन्दन षष्ठी व्रत में सूर्य पूजा का कथन), पद्म १.२८.२९(चन्दन वृक्ष का आरोपण पुण्यप्रद होने का उल्लेख), ६.२९ (गोपीचन्दन का माहात्म्य व लेपन विधि), ६.६७ (गोपीचन्दन के माहात्म्य का वर्णन), ६.१४९ (चन्दनेश्वर तीर्थ में तीर्थ प्रभाव से चन्दन वृक्ष का शिवलिङ्ग होना), ब्रह्माण्ड २.३.१३.२४(चन्दन वृक्षों से ताम्रपर्मी नदी के प्रादुर्भाव व महत्त्व का कथन), वायु ४५.९७(चन्दना : भारत की नदियों में से एक), १०८.७९/२.४६.८२(वही), विष्णुधर्मोत्तर १.९६ (ग्रह नक्षत्रों के लिए पृथक् - पृथक् चन्दन लेपों का कथन), शिव २.१.१२.३४ (मय द्वारा चान्दन लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), ७.१.३३.४१(वामदेव शिव हेतु चन्दन देने का निर्देश), स्कन्द २.५.६.३५ (पूजा में तुलसी काष्ठ चन्दन का महत्त्व), वा.रामायण ४.४१.४०(ऋषभ पर्वत पर उत्पन्न चन्दन वृक्षों के ३ प्रकारों का कथन, ऋषभ पर्वत पर उत्पन्न होने वाले चन्दनों के स्पर्श का निषेध), लक्ष्मीनारायण १.२२५.२० (गोपीचन्दन लगाने से मुक्ति का कथन), २.२७.१०६ (चन्दन की साध्य देवगण के हृदय से उत्पत्ति का उल्लेख), कथासरित् १२.१०.२० (धनदत्त द्वारा चन्दनपुर ग्राम जाने का वृत्तान्त), १४.४.१९८ (नरवाहनदत्त द्वारा चक्रवर्ती - रत्न चन्दन वृक्ष को सिद्ध करना ) । chandana


      चन्दनोदकदुन्दुभि ब्रह्माण्ड २.३.७१.११९(विलोमा - पुत्र, अपर नाम अन्धक, अभिजित् - पिता), वायु ९६.११८/२.३४.११७(रैवत - पुत्र, अभिजित् - पिता ) ।


      चन्दल भविष्य ३.४.२२.२६ (नर्तक चन्दल के पूर्वजन्म में मदन होने का उल्लेख ) ।


      चन्द्र देवीभागवत ५.३०.२५(निशुम्भ की अष्ट चन्द्र वाली चर्म का उल्लेख), पद्म १.१५.३१८(भार्या के चन्द्रलोक की ईश्वरी होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१८.७६(लवण समुद्र में उत्तर दिशा में डूबे पर्वतों में से एक), १.२.१९.८(प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों / वर्षों में से एक, अश्विनौ द्वारा ओषधि संभरण का स्थान), २.३.६.९(निचन्द्र : कश्यप व दनु के विप्रचित्ति - प्रमुख १०० पुत्रों में से एक), २.३.७.१२४(चन्द्रभ : मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक), २.३.६३.१८९(चन्द्रचक्रा : लक्ष्मण - पुत्र चन्द्रकेतु की राजधानी), ३.४.४.९५(चन्द्रपुष्कर : लिपि न्यास के अन्तर्गत चन्द्रपुष्कर पीठ का उल्लेख), ३.४.३५.५१(सूर्य बिम्ब शाला के अन्तर्गत चन्द्रबिम्बशाला के महत्त्व का कथन), भागवत २.१०.३०(विराट् पुरुष के हृदय से मन, मन से चन्द्र आदि की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.२८.३५(चन्द्रवशा : कुलाचल पर्वत से नि:सृत भारत की नदियों में से एक), ५.१९.१८(चन्द्रवसा/चन्द्रवंश्या : भारतवर्ष की नदियों में से एक), ५.१९.३०(चन्द्रशुक्ल : जम्बू द्वीप के ८ उपद्वीपों में से एक), ९.६.२०(विश्वरन्धि - पुत्र, युवनाश्व - पिता), १०.६१.१३(कृष्ण व सत्या के १० पुत्रों में से एक), १२.१.२७(चन्द्रविज्ञ : विजय - पुत्र, सलोमधि - भ्राता?), मत्स्य ६.११(बलि के पुत्रों में से एक), १२.५५(चन्द्रगिरि : तारापीड - पुत्र, इक्ष्वाकु वंश), १७९.२६(चन्द्रसेना : शिव द्वारा अन्धकासुर के रक्तपानार्थ सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), १९३.७५(नर्मदा में स्थित चन्द्रतीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), २६२.१८(अर्धचन्द्रा पीठिका के पुत्रप्रदा होने का उल्लेख), वायु ४५.५२(उत्तर कुरु के दक्षिण में स्थित चन्द्रद्वीप के महत्त्व का वर्णन), ४९.७(प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों / वर्षों में से एक, अश्विनौ द्वारा ओषधि संभरण का स्थान), ६८.८/२.७.८(दनु के पुत्रों में से एक), ६८.९/२.७.९(निचन्द्र : कश्यप व दनु के विप्रचित्ति - प्रमुख १०० पुत्रों में से एक), ६९.३५/२.८.३५(चन्द्रद्रुम : नरमुख किन्नरों में से एक), ६९.३६/ २.८.३६(चन्द्रवंश : नरमुख किन्नरों में से एक), ८८.१८८/ २.२६.१८७(चन्द्रवक्त्रा/चन्द्रवक्ता : लक्ष्मण - पुत्र चन्द्रकेतु की राजधानी), विष्णु २.४.७(प्लक्ष द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक), ४.१.४१(नर - पुत्र, केवल - पिता, मरुत्त वंश), ४.१.५१(हेमचन्द्र - पुत्र, धूम्राक्ष - पिता, मरुत्त/तृणबिन्दु वंश), शिव ७.२.३८.३४(चान्द्र ऐश्वर्य के अन्तर्गत सिद्धियों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.१५०.१८(विभिन्न भावों में चन्द्रमा का फल), ३.८.५२(सारङ्गवाहन नामक शतमूर्द्धा राजा द्वारा अर्धचन्द्र बाणों से विष्णु से युद्ध), कथासरित् ८.३.१८९ (विलासिनी द्वारा चन्द्रपाद पर्वत पर गुफा में रखी औषधियां सिद्ध करने का सूर्यप्रभ को निर्देश), १२.३१.२५ (चन्द्रसिंह / चण्डसिंह व उसके पुत्र सिंहपराक्रम द्वारा भार्याओं का चुनाव करने का वृत्तान्त ) ; द्र. गुहचन्द, चन्द्रमा, जयचन्द्र, परशुचन्द्र, सुचन्द्र, हरिश्चन्द्र । chandra


      चन्द्रकला पद्म ७.५.४१ (चन्द्रकला नामक सुन्दर स्त्री से माधव को परस्त्री गमन दोष से बचने व सुलोचना नामक सुन्दर कन्या को प्राप्त करने की प्रेरणा प्राप्त होने का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३२१.१०५ (चित्रबाहु नृप - भार्या, पूर्व जन्म की कथा ) । chandrakalaa


      चन्द्रकान्त मत्स्य १२१.७३(चन्द्रकान्त पर्वत का इन्द्र के भय से लवण समुद्र में उत्तर में छिपने का उल्लेख), वराह ८४.१० (चन्द्रद्वीप के मध्य में चन्द्रकान्त - सूर्यकान्त नामक दो पर्वतों का उल्लेख), वायु ४५.२५, ४३(उत्तरकुरु में चन्द्रकान्त व सूर्यकान्त पर्वतों के बीज भद्रसोमा नदी के प्रवाहित होने आदि का कथन), वा.रामायण ७.१०२.६ (लक्ष्मण / भरत? - पुत्र चन्द्रकेतु के लिए बनाए नगर चन्द्रकान्त का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.२.७७(राजा बदर द्वारा चन्द्रमा से प्राप्त चन्द्रकान्त मणि का जाल में प्रक्षेप करने से हिमालय की उत्पत्ति का वृत्तान्त ) । chandrakaanta


      चन्द्रकान्ता गर्ग ७.२९.२९ (चन्द्रकान्ता नदी का माहात्म्य : मनु - पुत्र प्रमेधा की चन्द्रकान्ता नदी में स्नान से कुष्ठ से मुक्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७५(५१ वर्णों के गणेशों की शक्तियों में से एक), भविष्य ३.३.२२.१८ (चन्द्रकान्ता वेश्या द्वारा जन्मान्तरों में बाण - पुत्री उषा, जम्बुक राजा की पुत्री विजयैषिणी व मयूरध्वज की पुत्री पुष्पवती बनने का कथन), वायु ४३.१९(भद्राश्व देश के जनपदों में से एक ) । chandrakaantaa


      चन्द्रकान्ति भविष्य ३.२.४.२९ (धूर्त्त मदपाल द्वारा अपनी पत्नी चन्द्रकान्ति की हत्या का वर्णन), ३.३.५.६ (राजा अनङ्गपाल की ज्येष्ठ कन्या चन्द्रकान्ति से जयचन्द्र नामक पुत्र होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.२.७७ (चन्द्रमा द्वारा राजा बदरी को चन्द्रकान्त मणि प्रदान करना, मणि के प्रभाव से हिमालय के निर्माण आदि का वर्णन, असुरों का नाश ) । chandrakaanti


      चन्द्रकुल कथासरित् ८.५.९२ (चन्द्रकुल गिरि का उल्लेख ) ।


      चन्द्रकेतु ब्रह्माण्ड २.३.६३.१८८(लक्ष्मण के २ पुत्रों में से एक, चन्द्रचक्रा पुरी - अधिपति), वायु ६९.२६/२.८.२६(गन्धर्वों में से एक का नाम), ८८.१८७/ २.२६.१८७(लक्ष्मण के २ पुत्रों में से एक, चन्दवक्त्रा पुरी - अधिपति), विष्णु ४.४.१०४(लक्ष्मण के २ पुत्रों में से एक), वा.रामायण ७.१०२.६ (लक्ष्मण / भरत? - पुत्र चन्द्रकेतु के मल्ल देश में चन्द्रकान्त नगर का राजा होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.८६.६८ (चित्रकेतु द्वारा साधु सेवा का वर्णन ) । chandraketu


      चन्द्रगुप्त ब्रह्माण्ड २.३.२८.३१ (मन्त्री चन्द्रगुप्त द्वारा राजा कार्त्तवीर्य को जमदग्नि की कामधेनु हरण का प्रस्ताव), ३.४.२५.९९ (भण्डासुर - सेनानी चन्द्रगुप्त का चित्रा देवी द्वारा वध होने का उल्लेख), भविष्य ३.२.३०.२० (ऋग~, यजु, साम और अथर्ववेद के निष्णात् विद्वान् व्याडि, मीमांसा, पाणिनी व वररुचि का राजा चन्द्रगुप्त से वार्तालाप), कथासरित् १.४.११६ (शकटाल द्वारा पूर्वनन्द - पुत्र चन्द्रगुप्त को राजा बनाये जाने का योगनन्द के भय का कथन), ८.५.९२ (चन्द्रमा से उत्पन्न विद्याधर चन्द्रगुप्त को श्रुतशर्मा द्वारा युद्ध के लिए भेजने का उल्लेख), ८.७.२२ (प्रज्ञाढ्य द्वारा चन्द्रगुप्त का वध करने का कथन ) । chandragupta


      चन्द्रचूड ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.५० (कवच के अन्तर्गत चन्द्रचूड से कण्ठ की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.२.२६.९ (सत्यनारायण कथा व व्रत के प्रभाव से चन्द्रचूड को पुन: राज्य प्राप्ति का वर्णन ) । chandrachooda/ chandrachuuda


      चन्द्रपुरुष मत्स्य ५७ (न्यास ) ।


      चन्द्रप्रभ पद्म १.८.१०९ (शर वन में जाने से इल व उसके वाहन चन्द्रप्रभ अश्व के स्त्री रूप हो जाने का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.१८.६८ (जम्बूनदी के निर्गम स्थान चन्द्रप्रभ गिरि का उल्लेख), मत्स्य १२.३ (इल के वाहन चन्द्रप्रभ अश्व द्वारा शिववन में प्रवेश पर अश्वी बनना), १२१.६(कैलास पर्वत के निकट चन्द्रप्रभ पर्वत की स्थिति का उल्लेख), वायु ४७.५ (मणिभद्र यक्ष के वास स्थान चन्द्रप्रभ गिरि का उल्लेख), ६९.१५५/२.८.१५०(मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ६.१९९.१३४ (चन्द्रप्रभ नामक ब्राह्मण रूपधारी कुम्भक चण्डाल की कथा), कथासरित् ३.६.२०३ (राजा आदित्यप्रभ द्वारा अपने पुत्र चन्द्रप्रभ का मांस खाने का वृत्तान्त), ८.१.१७(मयासुर द्वारा चन्द्रप्रभ - पुत्र सूर्यप्रभ को विद्याधर – चक्रवर्ती पद प्राप्ति कारक विद्याएं सिद्ध कराना), ८.२.७९ (मयासुर द्वारा चन्द्रप्रभ को परकाय - प्रवेश का उपदेश देकर राक्षस शरीर में प्रवेश हेतु बाध्य करना), ८.३.३१ (चन्द्रप्रभ के दूसरे पुत्र रत्नप्रभ को राज्य सौंपकर सूर्यप्रभ का विद्याधरों से युद्ध हेतु प्रस्थान), १२.२५.१३ (चन्द्रप्रभ के मन्त्री - पुत्र चन्द्रस्वामी का वृत्तान्त ) । chandraprabha


      चन्द्रप्रभा स्कन्द ५.२.७८.३ (चित्रसेन व चन्द्रप्रभा - पुत्री लावण्यवती के पूर्वजन्म की कथा), लक्ष्मीनारायण ३.२२३.१ (चन्द्रप्रभा नदी के निकट श्री सम्पन्न अजपाल की कथा), कथासरित् ३.३.६५ (धर्मगुप्त वैश्य - पत्नी चन्द्रप्रभा द्वारा उत्पन्न सोमप्रभा का वृत्तान्त), ५.३.४० (शक्तिदेव द्वारा कनकपुरी में चन्द्रप्रभा विद्याधरी से मिलना), १२.१०.७ (राजकुमारी चन्द्रप्रभा की सारिका /

      मैना द्वारा पुरुष को दुष्ट व कृतघ्न बताना), १२.२२.४ (यश:केतु - पत्नी चन्द्रप्रभा की पुत्री शशिप्रभा की कथा ) । chandraprabhaa


      चन्द्रभट्ट भविष्य ३.३.६.९ (चन्द्रभट्ट द्वारा संयोगिनी स्वयंवर में पृथ्वीराज की सोने की मूर्ति लगवाना), ३.३.३०.३३ (पृथ्वीराज को उसके मन्त्री चन्द्रभट्ट द्वारा भावी आक्रमण की सूचना देना), ३.३.३२.२४६ (चन्द्रभट्ट द्वारा बन्धनग्रस्त पृथ्वीराज की आज्ञा से उनका वध करना ) । chandrabhatta


      चन्द्रभागा गर्ग ७.४३.११ (चन्द्रभागा - पति शोभन का उल्लेख), देवीभागवत ७.३०.७९(चन्द्रभागा तट पर कला देवी का वास), पद्म ३.१८.६४ (चन्द्रभागा में स्नान से चन्द्रलोक प्राप्ति का उल्लेख), ६.६० (मुचुकुन्द - पुत्री, नदी का अवतार , चन्द्रभागा - पति शोभन द्वारा रमा एकादशी व्रत से मरण व इन्द्रलोक प्राप्ति का वर्णन), ६.६९.४४ (चन्द्रमा - पुत्री, शीतल जल वाली चन्द्रभागा के सूर्य - कन्या, उष्ण जल वाली तापी से सङ्गम का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.१७.१ (शिव द्वारा चन्द्रभागा के तट पर स्थित होकर शंखचूड को दूत भेजना), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१५(आहवनीय अग्नि की १६ नदी रूपी धिष्णी पत्नियों में से एक), १.२.१६.२५(हिमालय से नि:सृत नदियों में से एक), भविष्य १.७४.२२ (चन्द्रभागा तट पर भानु की मित्र नामक १२वीं मूर्ति की स्थिति ; साम्ब द्वारा कुष्ठ नाश हेतु चन्द्रभागा तट पर सूर्य की आराधना), ४.७५.५० (चन्द्रमा - पुत्री शीतल जल वाली चन्द्रभागा नदी का सूर्यकन्या उष्ण जल वाली तोषा नदी के साथ संगम का वर्णन), भागवत ५.१९.१८(भारत की नदियों में से एक), १२.१.३९(कलियुग में चन्द्रभागा तट आदि प्रदेशों पर शूद्रों आदि के राज्य करने का उल्लेख), मत्स्य ५१.१३(हव्यवाहन अग्नि की १६ पत्नियों में से एक), ११४.२१(हिमवान के पार्श्व से नि:सृत नदियों में से एक), १३३.२३(शिव के रथ में चन्द्रभागा आदि नदियों के वेणु रूप होने का उल्लेख), १९१.६४(नर्मदा तट पर स्थित चन्द्रभागा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : चन्द्रलोक की प्राप्ति), वायु २९.१३(आहवनीय अग्नि की १६ नदी रूपी धिष्णी पत्नियों में से एक), ४५.४९(हिमालय से नि:सृत नदियों में से एक), विष्णु २.३.१०(हिमालय से नि:सृत नदियों में से एक), ४.२४.६९(कलियुग में चन्द्रभागा तट आदि प्रदेशों पर शूद्रों आदि के राज्य करने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४६ (चन्द्रभागा नदी द्वारा सिंह पर चढकर विष्णु की देवयात्रा दर्शन हेतु जाने का उल्लेख), शिव २.२.५.३३ (सन्ध्या का कामुक शरीर के त्याग हेतु चन्द्रभागा नदी तट पर स्थित चन्द्रभाग पर्वत पर जाना, चन्द्रभाग पर्वत से चन्द्रभागा नदी के उद्भव आदि का कथन), स्कन्द ५.३.१९८.८६ ( चन्द्रभागा में देवी के काला नाम का उल्लेख), ७.४.१४.४८(पञ्चनद तीर्थ में अङ्गिरस के पावनार्थ चन्द्रभागा नदी के आगमन का उल्लेख), ७.४.१६.९ (चन्द्रभागा तीर्थ का माहात्म्य : चन्द्रमा द्वारा यशोदा-कन्या की अर्चना, वाजपेय फल की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.२२६.७७(चन्द्रभागा के स्वरूप का कथन ; कृष्ण व बलराम की भगिनी), १.२६०.३४ (चन्द्रभागा - पति शशिसेन द्वारा चन्द्रभागा - पिता मुचुकुन्द के भय से ज्वर पीडित होने पर एकादशी व्रत करने व व्रत में मरने से स्वर्ग प्राप्त करने की कथा), १.३१४.६२ (वसिष्ठ द्वारा सन्ध्या को चन्द्रभाग गिरि पर स्थित बृहल्लोहित सरोवर पर तप करने का निर्देश ; स्थान की महिमा का वर्णन ; चन्द्रभाग पर्वत से चन्द्रभागा नदी का उद्भव ) । chandrabhaagaa


      चन्द्रभानु गर्ग ७.१५.७ (कृष्ण - पुत्र, प्रद्युम्न - सेनानी चन्द्रभानु द्वारा वीरधन्वा राजा पर विजय पाना), ७.२४.३ (सत्यभामा - पुत्र चन्द्रभानु का कुबेर - पुत्र मणिग्रीव से युद्ध), ब्रह्मवैवर्त्त (देवताओं द्वारा द्वितीय द्वार के रक्षक चन्द्रभानु से भेंट का कथन ) । chandrabhaanu


      चन्द्रमा अग्नि १२१.५८ (जन्मकुण्डली में चन्द्र बल का विचार), १२४.९ (ओङ्कार में अर्धचन्द्र इ का प्रतीक होने का उल्लेख ; मोक्ष मार्ग बोधक), गणेश २.७६.१४ (विष्णु व सिन्धु के युद्ध में सोम का मुण्ड से युद्ध ) २.१०६.२ (मयूरेश / गणेश द्वारा शिव के भालचन्द्र को ग्रहण करने पर शिव की व्याकुलता का वर्णन), गरुड १.६१ (ज्योतिष में चन्द्रमा की १२ अवस्थाएं व उनका फल), ३.७.२८(चन्द्रमा के दिशाभिमानी होने का उल्लेख), ३.२२.२४(चन्द्रमा के २५ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), देवीभागवत १.११ (चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति - भार्या तारा का उपभोग, बुध उत्पत्ति का प्रसंग), ८.१६.२२ (सूर्य व चन्द्र की गति, पक्ष व कलाओं का वर्णन), ९.२२.४ (चन्द्रमा द्वारा शङ्खचूड - सेनानी दम्भ से युद्ध), ११.२३ (चान्द्रायण व्रत विधि), नारद १.५०.३६ (पितरों की सात मूर्च्छनाओं में से एक चन्द्रमा का उल्लेख), १.६५.२८ (चन्द्रमा की १६ कलाओं के नाम), पद्म १.१२.२२ (अत्रि के तेज से चन्द्रमा की उत्पत्ति, चन्द्रमा द्वारा राजसूय यज्ञ, दक्ष पुत्रियों से विवाह, तारा हरण व बुध के जन्म की कथा), १.२०.१२२ (चन्द्र व्रत माहात्म्य व विधि), ३.३.१९ (भूगोल के संदर्भ में भूमि के अवकाश के शश और पिप्पल भागों का उल्लेख), ५.६५.२७(पायस में चन्द्रबिम्ब का भ्रम), ६.८८.३७ (मायापुरी के देवशर्मा ब्राह्मण द्वारा चन्द्र नामक शिष्य को अपनी कन्या देना, राक्षस द्वारा उन दोनों का वध), ६.१५६ (चन्द्रेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : चन्द्रमा द्वारा चन्द्रभागा तट पर चन्द्रेश्वर नाम से शिव की आराधना, धर्म - अर्थ प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्म १.७ /९ (अत्रि के तेज व दिशाओं से उत्पन्न चन्द्रमा द्वारा राजसूय का अनुष्ठान, ताराहरण, बुध की उत्पत्ति की कथा), १.११०.९/२१९ (स्वकन्या कोका पर पितरों की आसक्ति से क्रुद्ध चन्द्रमा द्वारा पितरों को शाप देने की कथा), २.८२ /१५२ (बृहस्पति – शिष्य चन्द्र द्वारा तारा/रोहिणी हरण), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.५५ (दक्ष द्वारा चन्द्रमा को यक्ष्मा होने का शाप देना), १.९.९४ (दक्ष द्वारा शिव से चन्द्रमा की याचना, कृष्ण द्वारा चन्द्रमा का दान), १.१०.४०(चन्द्रमा से शृङ्गार शिल्प प्राप्ति का उल्लेख), २.५८ (चन्द्रमा द्वारा ताराहरण करने पर शुक्र द्वारा शाप देने का वर्णन), ४.८० (चन्द्रमा द्वारा ताराहरण का वृत्तान्त, तारा द्वारा चन्द्रमा को शाप आदि), ब्रह्माण्ड १.२.१०.५९ (रुद्र के अष्टम नाम महादेव का मनोमय शरीर चन्द्रमा बनने का कथन, अमावास्या को ओषधि में सूर्य और चन्द्र के एक साथ आने का कथन), १.२.१०.८३ (चन्द्रमा शरीर वाले महादेव की पत्नी रोहिणी व पुत्र बुध होने का उल्लेख), ३.४.१५.२१ (चन्द्र व सूर्य द्वारा ललिता देवी को ताटङ्क / कुण्डल भेंट करने का उल्लेख), ३.४.११.१० (शिव द्वारा सायुज्य मोक्ष प्राप्त अजगर ब्राह्मण को ब्रह्मा द्वारा चन्द्रमा में स्थापित करने का प्रसंग), ४.२०६.३ (रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत), भागवत २.१०.३०(हृदय से मन, चन्द्र आदि की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.२.८ (मीनों द्वारा उडुप / चन्द्रमा को न पहचानने का उल्लेख), ४.१.३३(ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न पुत्र अत्रि के पुत्र रूप में सोम का उल्लेख), ५.२२.८(सूर्य की किरणों से ऊपर स्थित चन्द्रमा की क्षिप्र गति का वर्णन), ९.१४(अत्रि से उत्पन्न चन्द्रमा द्वारा तारा हरण का वर्णन), ११.७.३३ (चन्द्रमा द्वारा दत्तात्रेय को शिक्षा), मत्स्य २३ (अत्रि से चन्द्रमा की उत्पत्ति, दक्ष कन्याओं से विवाह, राजसूय अनुष्ठान, ताराहरण आदि का वर्णन), ५७ (रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत की विधि), १०१.७५ (चन्द्र व्रत का उल्लेख), १२४.६९ (सूर्य की गति के वर्णन के अन्तर्गत चन्द्रमा की गति का उल्लेख), १२६.४७ (चक्षु:श्रवा नामक अश्व से युक्त चन्द्र रथ का वर्णन), १२६.६३ (चन्द्रमा की घटने - बढने वाली कलाओं का वर्णन), १४१.२७ (सूर्य की सुषुम्ना किरण द्वारा चन्द्रमा की परिपूर्णता का वर्णन), १५४.४३५ (विवाह के समय शिव जटा में ब्रह्मा द्वारा चन्द्रखण्ड बांधने का उल्लेख), वराह १४.४९ (श्राद्ध कल्प निरूपण के अन्तर्गत पितृगणों के आधार चन्द्रमा का उल्लेख), ३५.३ (रोहिणी में आसक्त चन्द्रमा को दक्ष से शाप प्राप्ति का उल्लेख), ५७ (चन्द्र कान्त व्रत), वामन २.१४ (दक्ष द्वारा चन्द्रमा को निमन्त्रित कर कोषाध्यक्ष बनाना), ९.२० (चन्द्रमा के रथ में अर्ध सहस्र हंसों के वाहक होने का उल्लेख), २२.४०(चन्द्र नामक यक्ष द्वारा कुरुक्षेत्र की रक्षा का उल्लेख), ५७.६४ (चन्द्रमा द्वारा स्कन्द को गणों की भेंट), वायु ४७.७७(चन्द्रमा की कृष्ण शशाकृति के भारत के ९ वर्ष होने का कथन), ५१.२० (शीतल जल स्रवण करने वाले चन्द्रमा व उष्ण जल स्रवण करने वाले सूर्य द्वारा जगत् की प्रतिष्ठा का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.७(चन्द्रमा की प्रकृति ज्योत्स्ना का उल्लेख), १.१३७.३० (अमावास्या को चन्द्र व सूर्य के एक राशि में आने पर सूर्य व चन्द्र द्वारा पूरूरवा को देखने आने तथा चन्द्रमा द्वारा अपने पौत्र के लिए सुधारस स्रवित करने का उल्लेख), १.२४९.४ (ब्रह्मा द्वारा चन्द्रमा को ओषधि, नक्षत्र, यज्ञ, तप आदि के राजा के पद पर अभिषिक्त करने का उल्लेख), ३.६८ (चन्द्रमा की मूर्ति के रूप का वर्णन), ३.१९१ (चन्द्र व्रत के अन्तर्गत अमावास्या को चन्द्र की षोडश कमल आदि से अर्चना करने का वर्णन), ३.१९२ (मासर्क्षपौर्णमासी व्रत के अन्तर्गत विभिन्न मासों की पूर्णिमा को चन्द्रमा की २ नक्षत्रों सहित पूजा का वर्णन), ३.१९४ (मार्गशीर्ष मास से चन्द्र व्रत के आरम्भ तथा फल का कथन), शिव २.२.२८.८ (चन्द्रमा द्वारा दक्ष यज्ञ में जाने का उल्लेख), ४.१४.१८ (चन्द्रमा द्वारा रोहिणी में आसक्ति से दक्ष से शाप की प्राप्ति, शिवार्चन से यक्ष्मा निवारण, वृद्धि - क्षय प्रापक पक्षों का होना, सोमेश्वर लिङ्ग का वर्णन), ७.२.८.३० (शिव के सूर्य व पार्वती के चन्द्रमा होने का कथन), स्कन्द १.१.८.२२(चन्द्रमा द्वारा मुक्तामय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), १.१.१३.१५( चन्द्रमा के मृग वाहन का उल्लेख), १.२.१३.१४८ (शतरुद्रिय प्रसंग में चन्द्रमा द्वारा मौक्तिक लिङ्ग की जगत्पति नाम से पूजा का उल्लेख), २.४.१३.७ (चन्द्र : देवशर्मा - शिष्य, देवशर्मा द्वारा पुत्री गुणवती का विवाह चन्द्रशर्मा से करना, राक्षस द्वारा देवशर्मा व चन्द्र का वध, जन्मांतर में चन्द्र का अक्रूर रूप में जन्म), २.८.३.४१ (अयोध्या में चन्द्रहरि चन्द्रसहस्र व्रत विधि), (अत्रि तेज से ओषधि व चन्द्रमा की उत्पत्ति की कथा, अमावास्या व पूर्णिमा को चन्द्रेश्वर लिङ्ग की पूजा), ४.१.१५ (चन्द्रमा द्वारा दक्ष की २७ कन्याओं से विवाह, ताराहरण व बुध की उत्पत्ति का प्रसंग), ४.१.३३.१७१ (शिव शरीर में हृदय का रूप), ४.१.४१.१०३(चन्द्रमा के ऊर्ध्व और सूर्य के निम्न होने की सामान्य स्थिति को विपरीत करने का निर्देश), ४.२.८४.७६ (चन्द्र तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२८.५६ (राजसूय यज्ञ, ताराहरण व बुध के जन्म की कथा), ५.१.३१.७१ (पत्तनेश्वर तीर्थ में किया गया दान चन्द्र - सूर्य के होने तक अक्षय रहने का उल्लेख), ५.२.२६.५२ (चन्द्रमा द्वारा कान्ति, दीप्ति, मूर्ति व रूप प्राप्ति हेतु शिवाराधना करने का प्रसंग), ५.२.७२.२३ (शम्बर से भयभीत चन्द्रमा द्वारा जगन्नाथ की स्तुति करने का वर्णन), ५.३.३९.२९ (कपिला गाय के नेत्र सूर्य व चन्द्रमा होने का उल्लेख), ६.८६.१७ (दक्ष की २७ कन्याओं द्वारा चण्डी पूजन, चन्द्रमा को दक्ष का शाप, नारायण की प्रार्थना से शाप से मुक्ति, घटने - बढने वाली कलाओं का वर्णन), ६.८७.१६(चन्द्रमा हेतु प्रासाद निर्माण में निहित कठिनाईयों का कथन), ७.१.१८.१६ (शिव द्वारा चन्द्रमा को सिर पर धारण करने का कथन), ७.१.१९.३ (शिव द्वारा अपूर्ण चन्द्रमा को धारण करने का प्रश्न ; चन्द्रमा की तिथिरूपिणी १६ कलाओं का रहस्य), ७.१.१९.३० (चन्द्र शब्द की निरुक्ति ; चन्द्रमा के शश लांछन के कारण का प्रश्न ) ७.१.१९.५२ (वर्तमान वाराह कल्प में सातवें चन्द्रमा का अस्तित्व), ७.१.१९.६९ (वाराह कल्प से पूर्व चन्द्रमाओं की संख्या), ७.१.१८.१६ (देवों द्वारा विषपान करने वाले शिव को चन्द्रमा भूषणरूप में भेंट) , ७.१.२१+(चन्द्रमा द्वारा दक्ष से शाप प्राप्ति, क्षय निवारण हेतु कृतस्मर पर्वत पर तप, शिव से वर प्राप्ति, लिङ्ग की स्थापना, यज्ञ का अनुष्ठान), ७.१.२२.३० (चन्द्रमा द्वारा शिवाराधना से यक्ष्मा का निवारण), ७.१.९८ (पृथ्वी द्वारा स्थापित चन्द्रेश्वर का माहात्म्य : पृथ्वी पर पतित चन्द्र द्वारा आकाश में स्थित होने के लिए पूजा), ७.१.२९५ (चन्द्रोदक तीर्थ का माहात्म्य : चन्द्रमा की कला के साथ वृद्धि - क्षय, इन्द्र की अहल्या प्रसंग पाप से मुक्ति), ७.१.३४२ (चन्द्रेश्वर का माहात्म्य : अमृत कुण्ड /कला कुण्ड की स्थिति), ७.३.२० (चन्द्र प्रभास तीर्थ का माहात्म्य : चन्द्रमा द्वारा तप से दक्ष के यक्ष्मा शाप से मुक्ति), ७.३.५१ (चन्द्रोद्भेद तीर्थ का माहात्म्य : चन्द्रमा की राहु ग्रहण भय से मुक्ति), हरिवंश १.२५ (अत्रि तेज से चन्द्रमा की उत्पत्ति व राजसूय यज्ञ का प्रसंग), १.४६ (देवासुर सङ्ग्राम में इन्द्र द्वारा चन्द्रमा की प्रशंसा, चन्द्रमा द्वारा हिमवर्षा से दैत्य सेना को त्रस्त करना, मय दानव द्वारा पार्वती माया से चन्द्रमा की माया को शान्त करना), ३.५५.१४९(देवासुर सङ्ग्राम में चन्द्रमा द्वारा शीतास्त्र से असुरों को नष्ट करना, चन्द्र व सूर्य दैत्यों द्वारा चन्द्रमा का प्रतिरोध), लक्ष्मीनारायण १.४३+(सूर्य तेज की शान्ति हेतु नारायण से चन्द्रमा की उत्पत्ति, रोहिणी में आसक्ति का वर्णन, दक्ष की शिक्षा व शाप, सोमनाथ की स्थापना से शिव द्वारा शाप से मुक्ति), १.१५०.१८(विभिन्न भावों में चन्द्रमा का फल), १.१५२.५३ (चान्द्रायण व्रत विधि का कथन), १.३११.४८ (पीयूष राजा की सत्ताइस पत्नियों में से एक विद्युल्लेखा का पुनर्जन्म चन्द्र - पत्नी रोहिणी के रूप में होने का कथन), १.४४१.८९ (पलाश वृक्ष के चन्द्रमा का रूप होने का उल्लेख),१.४४५ (चन्द्रमा द्वारा ताराहरण, शाप देने को उद्यत तारा का आकाशवाणी सुनना, गर्भ धारण आदि), १.५७३.१५ (राजा रविचन्द्र के यज्ञ में ब्राह्मणों की श्वान योनि से मुक्ति की कथा), २.१७५.४२ (द्वादश भावों में गोचर फल का कथन), ३.४.४७ (धूम्र राक्षस को मारकर चन्द्रमा की रक्षा करने वाली कन्या कौमुदी का वर्णन), ३.४१.८८ (गृहवधू द्वारा माता - पिता को चन्द्रमा मानकर सेवा करने का कथन), ३.६४.६ (पञ्चमी तिथि को अन्न व अमृत प्रदान करने वाले चन्द्रमा की पूजा ), ३.७५.८६ (पेयदान से चन्द्रलोक जाने का उल्लेख), ४.३२.४० (सुनारिणी व रणस्तम्ब कुम्हार के चन्द्रांश से उत्पन्न पुत्र चन्द्रस्तम्ब का वर्णन), ४.४०.६२ (द्यूत क्रीडा में सर्वस्व हारने वाले राजा रायहरि की पत्नी भाणवाणी दिनेश्वरी को शाप देने वाली कोटिराम - पत्नी चन्द्रेश्वरी का वर्णन), कथासरित् ८.५.७१ (चन्द्रमा के क्षेत्र में उत्पन्न विद्याधर विक्रमशक्ति द्वारा प्रभास से युद्ध), ८.७.२३ (श्रुतशर्मा व सूर्यप्रभ के युद्ध में पुत्र चन्द्रगुप्त के मरण पर चन्द्रमा द्वारा प्रज्ञाढ्य से युद्ध ), शौ.अ.(५.२४.१०(चन्द्रमा नक्षत्राणामधिपतिः) । chandramaa


      चन्द्रमुखी ब्रह्मवैवर्त्त ४.९४.२६ (राधा - उद्धव संवाद के अन्तर्गत सखी चन्द्रमुखी द्वारा राधा को सान्त्वना देने का कथन), भविष्य ४.४६.१५ (नहुष - पत्नी चन्द्रमुखी द्वारा व्रतभङ्ग से मर्कटी होने का वर्णन ) । chandramukhee


      चन्द्ररेखा कथासरित् ५.३.५४ ( विद्याधर शशिधर की चन्द्ररेखा आदि तीन कन्याओं को उग्रतपा ऋषि द्वारा मर्त्यलोक में उत्पन्न होने के शाप का कथन), ५.३.२७५ (वर्द्धमान नगर की कनकरेखा राजकुमारी के चन्द्ररेखा होने का कथन ) । chandrarekhaa


      चन्द्रलेखा कथासरित् ८.६.१७१ (उत्तम यक्षिणियों में से एक चन्द्रलेखा का उल्लेख), (चन्द्रलेखा व मणिपुष्पेश्वर को कामपूर्वक निहारते देख विरहाकुल पार्वती द्वारा शाप देने का वर्णन), १६.३.१८ (चन्द्रावलोक व चन्द्रलेखा के पुत्र तारावलोक का वर्णन ) । chandralekhaa


      चन्द्रवती भविष्य ३.२.४.१६ (राजा रूपवर्मा व मगधराज - पुत्री चन्द्रवती के विवाह का वर्णन), मत्स्य ४.५०(मारिषा व प्रचेता - कन्या, प्राचेतस दक्ष - भगिनी), हरिवंश २.९४.३४, ५० (सुनाभ की २ पुत्रियों में से एक, विद्या के प्रभाव से गद से विवाह का कथन ) । chandravatee


      चन्द्रशर्मा पद्म २.९१.२३ (गुरु घाती, तीर्थों में स्नान से मुक्ति), ५.९४.२७ (गुरु घाती, मुनिशर्मा द्वारा मुक्ति), ६.८९.२३ (देवशर्मा - शिष्य, जन्मान्तर में अक्रूर), ६.१८३.३६ (चन्द्रशर्मा राजा द्वारा कालपुरुष का ब्राह्मण को दान, कालपुरुष से उत्पन्न चण्डाल व चण्डाली से गीता के नवम अध्याय के जप से रक्षा का वर्णन), स्कन्द २.४.७ (चन्द्रशर्मा द्वारा कार्तिक में आकाशदीप दान करना), ७.४.२३.९८ (शिव भक्त ब्राह्मण, पितरों के अनुरोध पर कृष्ण भक्त बनना, पितरों की मुक्ति, मोक्ष प्राप्ति ) । chandrasharmaa


      चन्द्रशेखर भविष्य ३.१.१६(राजा, श्यामला - पति, गौ पीडक शार्दूल का वध, शार्दूल का रूपान्तरण, राजा की सेनापति - पत्नी पर आसक्ति, मरण), कथासरित् १८.४.११४ (चन्द्रशेखर द्वारा पुत्री चन्द्रावती को विक्रमादित्य को भेंट करने का वृत्तान्त ) । chandrashekhara


      चन्द्रश्री विष्णु ४.२४.४८(चन्द्रश्री : द्वियज्ञ - पुत्र, पुलोमा - पिता, कलियुगी राजाओं में से एक), कथासरित् १०.२.५८ (बलवर्मा वैश्य की पत्नी चन्द्रश्री के व्यभिचारिणी व सती दोनों होने का कथन ) । chandrashree


      चन्द्रसर कथासरित् १०.६.२९ (खरहों के निवास स्थान चन्द्रसर सरोवर का वर्णन), ११.१.३७ (कुसुमकार वैश्य का पुत्र चन्द्रसार ) ।


      चन्द्रसेन देवीभागवत ५.१७ (सिंहल देश के राजा चन्द्रसेन के मन्दोदरी का पिता होने का कथन), वराह १८०.३७ (राजा चन्द्रसेन द्वारा त्रिकालज्ञ मुनि के अनुसार दासी पुत्री से पितर श्राद्ध कराने का वर्णन), शिव ४.१७ (उज्जयिनी के राजा चन्द्रसेन को मणिभद्र द्वारा चिन्तामणि भेंट करने पर ईर्ष्यालु राजाओं द्वारा आक्रमण करना, महाकाल में अटूट विश्वास से शत्रु का नाश), स्कन्द ३.३.५.१२ (चन्द्रसेन द्वारा प्राप्त चिन्तामणि का हरण करने के इच्छुक राजाओं के नाश की कथा), लक्ष्मीनारायण १.२५८.६४ (राजा इन्द्रसेन द्वारा एकादशी व्रत के पुण्य से पिता चन्द्रसेन द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वर्णन), १.३५४ (राजा चन्द्रसेन की दासी प्रभावती के पुत्र द्वारा पिण्डदान करने की कथा), १.५६४.२३ (कामी राजा चन्द्रसेन द्वारा शाण्डिल्य - पत्नी को बलपूर्वक स्पर्श करने से चण्डाल होने का वर्णन ) । chandrasena


      चन्द्रस्वामी कथासरित् ७.३.९७ (वाराणसी के चन्द्रस्वामी के पुत्र सोमस्वामी के वानर बनने की कथा), ९.६.७ (कमलपुर नगर में चन्द्रस्वामी ब्राह्मण), ९.६.१२६ (चन्द्रस्वामी द्वारा पुत्र को पहचान कर विषहीन करने का वर्णन), १२.२५.१४ (द्यूतक्रीडा में हारकर पिटे चन्द्रस्वामी का तपस्वी की सिद्ध विद्या द्वारा सत्कार करने व दुविधा के कारण चन्द्रस्वामी द्वारा सिद्ध विद्या न सीख पाने का वर्णन), १८.४.५५ (चन्द्रस्वामी को चिरजीवित्व प्राप्त होना ) । chandraswaami/chandraswaamee/ chandraswami


      चन्द्रहरि स्कन्द २.८.३.४४ (ज्येष्ठ पूर्णिमा को होने वाले चंद्रहरि व्रत व उद्यापन का वर्णन ) ।


      चन्द्रहास गर्ग १०.५१.४१ (अश्वकौन्तल नगर में केरलाधिपति - पुत्र, कुलिन्द - पालित चन्द्रहास वैष्णव का वर्णन), वा.रामायण ७.१६.४४ (रावण द्वारा शिव से चन्द्रहास खड्ग की प्राप्ति), स्कन्द ५.३.१२१.१८ (चन्द्रहास तीर्थ में स्नान से सब पापों के नाश का कथन), ५.३.१९०.३१ (चन्द्रहास तीर्थ का वर्णन ) । chandrahaasa


      चन्द्रा ब्रह्माण्ड १.२.१९.४६(शाल्मलि द्वीप की नदियों में से एक), मत्स्य ६.२२(वृषपर्वा की ३ पुत्रियों में से एक), वायु ४९.४२(शाल्मलि द्वीप की नदियों में से एक), विष्णु २.४.२८(शाल्मलि द्वीप की नदियों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.२६५.९(गोविन्द की पत्नी चन्द्रा का उल्लेख), १.३११.४५(समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण के हाथ में सुवर्ण निर्मित पद्म देना ) । chandraa


      चन्द्रांशु ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८१(सदाचन्द्र के पश्चात् नागकुल का एक राजा), मत्स्य६.११(चन्द्रांशुतापन : बलि के १०० पुत्रों में से एक ) ।

      चन्द्राङ्गद शिव ३.२७.५(चन्द्राङ्गद व सीमन्तिनी - कन्या कीर्तिमालिनी के पति भद्रायु की शिव - पार्वती द्वारा परीक्षा लेने का वर्णन), ३.२७.६४ (कीर्तिमालिनी द्वारा शिव - पार्वती से चन्द्राङ्गद व सीमन्तिनी हेतु वर मांगना), स्कन्द ३.३.८.४० (सीमन्तिनी से विवाहोपरान्त चन्द्राङ्गद का मरण, सोमवार व्रत के प्रभाव से तक्षकपुरी से पुनरागमन की कथा), ३.३.१३.६१ (चन्द्राङ्गद - कन्या कीर्तिमालिनी का वज्रबाहु - पुत्र भद्रायुष से विवाह), लक्ष्मीनारायण १.४४८.७७ (सीमन्तिनी द्वारा सोमवार व्रत करने से तक्षक का चित्राङ्गद को वापस भेजना ) । chandraangada


      चन्द्रादित्य स्कन्द ५.२.७२ (शम्बर पराजय हेतु सूर्य व चन्द्रमा द्वारा शिवलिङ्ग पूजा का वर्णन, चन्द्रादित्येश्वर के माहात्म्य का कथन), कथासरित् १२.७.२६० (चन्द्रादित्य द्वारा राज्य व कन्या भीमभट को देकर वन जाने का कथन ) । chandraaditya


      चन्द्रानना गर्ग २.२०.४७ (शङ्खचूड वध के उपरान्त कृष्ण द्वारा चन्द्रानना गोपी को मणि भेंट करने का उल्लेख), १०.४६.६ (चन्द्रानना गोपी द्वारा राधा का प्रबोधन ) ।


      चन्द्रापीड कथासरित् १०.५.२१९ (कान्यकुब्ज के राजा चन्द्रापीड का उल्लेख ) ।


      चन्द्रार्क ब्रह्माण्ड २.३.७.१३४(खशा के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक), वायु ६९.१६६/२.८.१६०(खशा के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक ) ।


      चन्द्रावती गर्ग ७.३२.१३ (दैत्यों की पुरी चन्द्रावती), पद्म ६.३१.२१ (राजा इन्द्रद्युम्न की पुत्री चन्द्रावती का उल्लेख), ६.३८.६९ (मुर का वास स्थान चन्द्रावती पुरी), वराह ८३ (कुलाचल जनपद की नदियों में चन्द्रावती नदी का उल्लेख), वायु ४४.१९(केतुमाल देश की नदियों में से एक), कथासरित् ७.८.२०१ (पद्मसेन का वरण करने वाली विद्याधर - कन्या चन्द्रावती का उल्लेख), १२.३१.६ (राजा धर्म की स्त्री चन्द्रावती ) । chandraavatee / chandraavati


      चन्द्रावर्त्ता वायु ४५.५६(चन्द्र द्वीप की नदियों में से एक ) ।


      चन्द्रावली नारद १.८८.८(राधा की २ प्रमुख सखियों में से एक, मालावती आदि ८ सखियों की ईश्वरी), भविष्य ३.२.१४.३० (सुविचार नृप व चन्द्रप्रभा - पुत्री चन्द्रावली की सुदेव पर आसक्ति व भोग, शशी से विवाह, वेताल द्वारा प्रश्न), ३.३.२२.४१ (रानी मलना द्वारा पुत्री चन्द्रावली को याद करने पर कृष्णांश द्वारा कामसेन - पत्नी व स्वभगिनी चन्द्रावली के पास जाने का वर्णन), वामन ९०.९८ (निशाकर के पूर्वजन्म के प्रसंग में चन्द्रावली द्वारा शुक को पापभावना से पकडना), स्कन्द २.६.२.१३ (कृष्ण - पत्नी कालिन्दी द्वारा कृष्ण की वंशी को चन्द्रावली नाम देने का कथन ) । chandraavali /chandraavalee/chandravali


      चन्द्रावलोक मत्स्य १२.५४(सहस्राश्व - पुत्र, तारापीड - पिता, सगर वंश), कथासरित् १२.२७.५ (चित्रकूट के राजा चन्द्रावलोक द्वारा कण्व के आश्रम में इन्दीवरप्रभा की भार्या रूप में प्राप्ति, अश्वत्थ वृक्ष के नीचे रमण करने पर ब्रह्मराक्षस का प्राकट्य, ब्राह्मण - बालक को पुरुष - पशु के रूप में अर्पित करने की कथा), १६.३.१७ (राजा चन्द्रावलोक व चन्द्रलेखा - पुत्र तारावलोक की कथा ) । chandraavaloka


      चन्द्राश्व विष्णु ४.२.४२(दुन्दु असुर की मुखाग्नि से जीवित बचे धुन्धुमार के ३ पुत्रों में से एक ) ।


      चन्द्रिका नारद १.६५.२९(चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक), पद्म ६.१२८ (अग्निप मुनि के शाप से पिशाची बनी सुप्रभ गन्धर्व - पुत्री चन्द्रिका की माघ स्नान से मुक्ति व लोमश - पुत्र से विवाह की कथा), ब्रह्म २.१४.६ / ८४ (केसरी - पत्नी अद्रिका का दूसरा नाम चन्द्रिका), मत्स्य १३.४०(हरिश्चन्द्र तीर्थ में सती की चन्द्रिका नाम से स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.७०.६२ (युवती चन्द्रिका के प्रति शुक की कामभावना होना), ३.७८.१ (कृष्णभक्त गोप के मरणोपरान्त सुचन्द्रिका गोपी को गर्भ रक्षा हेतु मरने से रोकना), कथासरित् ८.१.४३ (अपरान्त के राजा सुभट की कन्या चन्द्रिकावती द्वारा सूर्यप्रभ का वरण करने का उल्लेख ) । chandrikaa


      चपल गणेश २.५५.३० (नरान्तक - दूतों शूर व चपल का गणेश वध हेतु काशी में आगमन, गणेश द्वारा जीवन दान), २.११४.१६ (गणेश व सिन्धु के युद्ध में चपल का शार्दूल से युद्ध), २.११५.१६ (सिन्धु असुर द्वारा गणेश - सेनानी चपल के हनु पर आघात का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.३३३(मृग श्याम हस्ती के ८ पुत्रों में से एक), ३.४.४४.७५(चपला : ५१ वर्णों के गणेशों की शक्तियों में से एक), स्कन्द ५.३.२८.१४१ (भृगुतुङ्ग पर स्थित चपलेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : यात्रा फल प्राप्ति ) । chapala


      चपहानि भविष्य ३.१.६.४६ (चपहानि चौहान : कृष्ण यजुर्वेदी, यज्ञकुण्ड से उत्पन्न चार क्षत्रियों में से एक), ३.१.७.२ (राजपुत्र / राजपूताने का राजा, अजमेर नगर का राजा होने का भी उल्लेख ) ।


      चमत्कार स्कन्द ६.१० (नृप, मृगी शाप से कुष्ठ प्राप्ति, शङ्ख तीर्थ में स्नान से मुक्ति), ६.१४.११ (चमत्कारपुर की प्रदक्षिणा का माहात्म्य : गोपाल व गौ को शुभ योनि की प्राप्ति), ६.६४ (चमत्कार नृप द्वारा चमत्कारी देवी की स्थापना, दुर्गा का माहात्म्य, चित्ररथ राजा द्वारा पूजा), ६.११४.८ (त्रिजात ब्राह्मण द्वारा चमत्कार पुर को नागों के भय से रहित करने के वर की प्राप्ति), ६.१५७.६ (

      चमत्कार पुर में याज्ञवल्क्य द्वारा स्थापित सूर्य की पूजा का उल्लेख), ६.२७४.६३ (निम्बशुच द्वारा वृद्धावस्था में चमत्कारपुर में शिवलिङ्ग के दर्शन व दुर्वासा से भेंट का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४५२.१ (चमत्कारपुर में विधवा भक्तिपरायणा शारदा का वर्णन), १.४८९.१ (चमत्कारपुरी में राजा कलश को दुर्वासा द्वारा शाप देना), १.४९१+ (चमत्कारपुर में नागमती नदी में स्नान से शर नामक ब्राह्मण द्वारा कुष्ठरोग से मुक्ति प्राप्ति का वर्णन), १.४९८.५ (ब्राह्मण - पत्नियों द्वारा चमत्कार नृप - पत्नी दमयन्ती से वस्त्राभूषण दान में लेने से ब्राह्मणों के तप के क्षय होने का वर्णन), १.४९८.४४(चमत्कार पुरी के नृप व महिषी द्वारा मकरसंक्रान्ति को दान से विप्रों से शाप प्राप्ति आदि), १.५१३.२६(चमत्कारपुरी के राजा की कन्या व उसकी सखी द्वारा विवाह मण्डप में श्रीकृष्ण को पति मानना व सिंहिनी रूप धरने का वर्णन), १.५५०.४(तुण्डी ऋषि द्वारा योग से किए गए चमत्कारों का वर्णन), १.५५१.१३ (चमत्कारपुरी में श्रीहरि द्वारा ६८ देवियों का पूजन करने का उल्लेख ) । chamatkaara


      चमरवाल कथासरित् ९.४.१४५(हस्तिनापुर के राजा चमरवाल से उसके गोत्र में उत्पन्न पांच राजाओं का ईर्ष्यालु होना ) ।


      चमस गरुड १.५५.१६ (उत्तर - पश्चिम में चमस देश), पद्म ३.२५.१९ (चमसोद्भेद में स्नान से अग्निष्टोम फल प्राप्ति का उल्लेख), भागवत ५.४.११ (ऋषभ व जयन्ती - पुत्र चमस का उल्लेख), ११.५.२ (चमस द्वारा भक्तिहीन पुरुषों की गति का वर्णन निमि से करना), मत्स्य २३.२२(सोम के राजसूय में १० विश्वेदेवों द्वारा चमसाध्वर्यु का कार्य करने का उल्लेख), स्कन्द ७.१.२६८ (चमस द्वारा ब्रह्मा के सत्र में सोमपान करने से चमसोद्भेद नाम होना), लक्ष्मीनारायण २.२४१.१६ (पतञ्जलि द्वारा चमस को अष्टाङ्ग योग की श्रीहरि की भक्ति के रूप में व्याख्या ) । chamasa


      चम्प अग्नि १४६.१८(चम्पा : ऐन्द्री कुल में उत्पन्न देवियों में से एक), भागवत ९.८.१(हरित -पुत्र, चम्पापुर का अधिपति, सुदेव - पिता), मत्स्य ४८.९७(पृथुलाक्ष - पुत्र, हर्यङ्ग पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख), वायु ९९/२.३७.१०५ (पृथुलाश्व - पुत्र, हर्यङ्ग - पिता चम्प द्वारा राज्य करने का कथन), विष्णु ४.१८.२०(पृथुलाक्ष - पुत्र, हर्यङ्ग - पिता ) । champa


      चम्पक अग्नि ८१.५० (लक्ष्मी प्राप्ति हेतु होमद्रव्य), देवीभागवत ६.२० (मदनालसा - पति चम्पक विद्याधर द्वारा पृथ्वी पर बालक प्राप्ति व पुन: इन्द्र के निर्देश पर पृथ्वी पर छोड देने की कथा), नारद १.१२.६२ (गौड देश के राजा वीरभद्रक की पत्नी चम्पकमञ्जरी का उल्लेख), २.४०.४३ (उत्तरवाहिनी गङ्गा पर चम्पक तीर्थ का उल्लेख), पद्म १.२८.३०(चम्पक पुष्प : सौभाग्यदायक), ५.५१ (सुरथ - पुत्र चम्पक द्वारा राम के अश्व का बन्धन, पुष्कल का बन्धन, हनुमान से पराजय), ७.१०.४९(चम्पक पुष्प से नारायण पूजा करने से राजा के मुक्त होने का वर्णन), भविष्य ३.२.७.७ (राजा चम्पकेश - कन्या त्रिलोकसुन्दरी के स्वयंवर का वर्णन), वामन ६.९८(शिव के क्रोध से काम के धनुष के मुष्टिबन्ध वाले रुक्मपृष्ठ का चम्पक तरु बनने का उल्लेख), वायु ३७.१६(विकङ्क तथा मणिशैल पर्वतों के बीच स्थित चम्पक वन की शोभा का वर्णन ; कश्यप प्रजापति के आश्रम का स्थान), विष्णुधर्मोत्तर १.१३२.२ (रम्भा द्वारा क्रीडावन में चम्पक पुष्प को उर्वशी के शरीर के रङ्ग के सदृश बताना), स्कन्द २.१.१०.४५ (लक्ष्मी के निवास स्थान चम्पक वृक्ष का उल्लेख), ५.२.४६.४६ (चम्पकावती नगरी), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९३ (कृष्ण दर्शनार्थ कार्तिक द्वारा चम्पक वृक्ष होना ) । champaka


      चम्पा गर्ग २.१७.३१(कृष्ण द्वारा चम्पक पुष्प से कटिप्रदेश का अलंकरण), ४.७.८ (चम्पापुरी के राजा विमल द्वारा स्वकन्याओं को कृष्ण को अर्पित करना व सपत्नीक सारूप्य मोक्ष प्राप्ति का कथन), पद्म ३.३८.७२ (तीर्थयात्रा प्रसंग में चम्पा तीर्थ में आकर भागीरथी में कृतोदक होने का निर्देश), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१९७(देवरक्षितों द्वारा भोगे जाने वाले जनपदों व पुरियों में से एक), भागवत ९.८.१(चम्प द्वारा स्थापित चम्पा नगरी का उल्लेख), मत्स्य ४८.९७(प्राचीन मालिनी पुरी का नया नाम?), लक्ष्मीनारायण ३.३५.२१(गवेन्द्र राजा व रुक्मचम्पा रानी से लक्ष्मी के जन्म का उल्लेख ) । champaa


      चम्पावती गर्ग ७.१२.६ (उशीनर देश की राजधानी चम्पावती का हेमाङ्गद राजा), १०.१६.७ (चम्पावती के राजा हेमाङ्गद का अनिरुद्ध - सेना से युद्ध), पद्म ६.४०.१६ (चम्पावती के राजा माहिष्मत के पुत्र का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१९४(चम्पावती के ९ नागों (राजाओं? ) द्वारा भोगी जाने का उल्लेख), वायु ४४.२०(केतुमाल देश की नदियों में से एक ) । champaavatee/ champaavati/ champavati


      चम्बावती लक्ष्मीनारायण ३.२३१.२ (चम्बावती नगरी में तारकादर्शक जल्लाद की मोक्ष प्राप्ति की कथा ) ।


      चयन लक्ष्मीनारायण २.११०.८७ (विभिन्न देशों की गुरु व्यवस्था वर्णन के अन्तर्गत प्राक्चयन प्रदेशों के गुरु चयनर्षि होने का उल्लेख),३.९२.८९(पिपीलिकाओं के चयन धर्म का उल्लेख) । chayana

      चर नारद १.९०.७०(कुमुदों द्वारा देवी पूजा से चर सिद्धि, रक्तोत्पल से अश्वसिद्धि), ब्रह्माण्ड २.३.७.१२८(देवजनी व मणिभद्र यक्ष के पुत्रों में से एक), वायु ९२.५/२.३०.५(चरन्त : आर्ष्टिषेण - पुत्र), लक्ष्मीनारायण २.१७६.५१ (सूर्य के पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में तथा अन्य ग्रहों के अन्य नक्षत्रों में होने पर चर योग का कथन ; चर योग में कार्य की हानि का उल्लेख ) । chara


      चरक ब्रह्माण्ड १.२.३३.१४ (चरकाध्वर्युओं के नामों का उल्लेख), १.२.३५.१४ (चरकाध्वर्यु : वैशम्पायन - शिष्यों द्वारा गुरु की ब्रह्महत्या निवारण के उद्योग से प्राप्त नाम), १.२.३६.४८(तामस मनु के समय के सप्तर्षियों में से एक), भागवत १२.६.६१(वैशम्पायन के शिष्यों की चरकाध्वर्यु संज्ञा के कारण का उल्लेख), वायु ६१.१० (वैशम्पायन - शिष्यों द्वारा चरक नाम प्राप्ति का कारण), स्कन्द १.२.४० (माण्टि ऋषि की भार्या, कालभीति - माता ) । charaka


      चरकी अग्नि ९३.२७ (वास्तु मण्डल में देवता), १०५.१३ (वास्तु चक्र में पूजित बालग्रह चरकी का उल्लेख ) ।


      चरण गर्ग २.२१.२५/२.१८.२१(कृष्ण व राधा के चरणों में चिह्न), २.२२.२१ (आसुरी मुनि व महादेव द्वारा कृष्ण के चरणों में प्रणाम करना), पद्म ५.७२.१३ (गोपकन्या सुभद्रा के पृष्ठतल में व्यजन चिह्न अङ्कित होने का उल्लेख), ५.८०.१४ (कृष्ण नाम महिमा, चरणों में चिह्नों का उल्लेख), ६.९३.२६ (विप्रों के दक्षिण पाद में तीर्थों की स्थिति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.३९.८(परशुराम द्वारा मागध राजा को चरणाघात से मारने का उल्लेख), भविष्य १.२४.१६(शुभ व अशुभ चरणों के आकारों का कथन), भागवत ३.२६.६७ (विराट् पुरुष को उठाने हेतु विष्णु द्वारा चरणों में प्रवेश का उल्लेख), ५.२.१० (पूर्वचित्ति अप्सरा के चरण पञ्जरों में तित्तिरि के कैद होने की उपमा), १०.१६.१८(कृष्ण के चरणों में कमल, यव, अंकुश आदि चिह्नों का उल्लेख), मत्स्य २४१.११(अङ्ग स्पन्दन के संदर्भ में पाद तल स्पन्दन से लाभ सहित अध्वगमन का उल्लेख), वामन ९०.३७(तल में विष्णु की सहस्रचरण आदि नामों से प्रतिष्ठा का उल्लेख), शिव ५.३५.१७ (सूर्य - संज्ञा आख्यान में छाया द्वारा अपने पुत्र को अधिक स्नेह करने से यम का कुपित होकर पदाघात करने व छाया द्वारा यम के पैर गिरने का शाप देने का वर्णन), स्कन्द १.२.१३.१८८(शतरुद्रिय प्रसंग में पृथु द्वारा तार्क्ष्य लिङ्ग की सहस्रचरण नाम से अर्चना का उल्लेख), ५.२.८२.३९ (दक्ष यज्ञ विध्वंस प्रसंग में भद्रकाली द्वारा भास्कर के चरण तोडने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ५.३१.५८(प्रह्लाद द्वारा मही में चरणों की धारणा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.११०.९२ (विष्णु चरणों में अङ्कित चिह्नों का वर्णन), कथासरित् १२.३१.२७ (सिंहपराक्रम द्वारा छोटे पैर वाली को अपनी व बडे पैर वाली को पिता की स्त्री मान लेने से माता चन्द्रवती से स्वयं व बेटी लावण्यवती से पिता का विवाह करने का वर्णन ) । charana


      चरणदास भविष्य ३.४.२२.३७ (पूर्वजन्म में वर्द्धन, रैदास मार्गी चरणदास द्वारा ज्ञानमाला ग्रन्थ रचना का उल्लेख ) ।


      चरित्र मत्स्य १७१.५४(चारित्र : मरुत्वती व कश्यप के २४? मरुत् पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.९२.८८ (मूषिका के चरित्र धर्म का उल्लेख ) ; द्र. सुचरित ।


      चरिष्णु ब्रह्माण्ड १.२.११.२१(कीर्तिमान् व धेनुका के २ पुत्रों में से एक), मत्स्य ९.३३(सावर्णि मनु के १० पुत्रों में से एक), वायु २६.३७(१४ मुखी ब्रह्मा के ५वें मुख से ऊकार व चरिष्णु मनु की उत्पत्ति का उल्लेख), २८.१७(कीर्तिमान् व धेनुका के पुत्रों के रूप में वरिष्ठ व धृतिमान् का उल्लेख), ६२.४४/२.१.४५(पांचवें मनु चरिष्णु के काल के देवगण, सप्तर्षि, मनु - पुत्रों के नाम), ६७.४०/ २.६.४०(हरय देवगण का पञ्चम मनु चरिष्णु व वैकुण्ठा से जन्म लेकर वैकुण्ठ देव गण बनने का कथन), १००.२२/२.३८.२२(सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ) । charishnu


      चरु अग्नि ८१.५८ (होम हेतु चरु पाक विधि का वर्णन), नारद १.५१.२६ (यज्ञ में ६ अङगुल की चरु स्थाली होने का विधान), ब्रह्माण्ड २.३.१.९६(भृगु के रौद्र व वैष्णव चरु विपर्यास से जमदग्नि व परशुराम के जन्म का कथन), भागवत ६.१४.२७(अङ्गिरा द्वारा त्वाष्ट्र चरु प्रदान करने का उल्लेख), वायु ९६.२३७(चरुभद्र : कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), हरिवंश १.२७.१८ (ऋचीक द्वारा सत्यवती को प्रदत्त चरु के विपर्यास की सार्वत्रिक घटना), लक्ष्मीनारायण १.५६१.४(रेवा - चरु संगम का माहात्म्य : स्नान से खर की मुक्ति आदि), १.५६२.६० (नर्मदा तट पर शाकल्य के आश्रम में यज्ञ के पर्वत, चरु की नदी होने का उल्लेख ) । charu

      Vedic contexts on Charu


      चर्चिका अग्नि ५०.३१ (रुद्र चर्चिका देवी की प्रतिमा के लक्षण), वराह १६०.२८(मथुरा में कदम्ब खण्ड में कृष्ण रक्षार्थ स्थित चर्चिका योगिनी का उल्लेख), वामन ५६.६७ (अन्धकासुर के वध हेतु शंकर के मुख से स्वेद जल से उत्पन्न चर्चिका देवी का कथन), ७०.४६ (रक्त से लथपथ होने के कारण शिव द्वारा चर्चिका नाम दी गई देवी का वर्णन), स्कन्द १.२.४७.४९ (चन्द्रमा द्वारा पूजी गई, सोमलोक से आई, पश्चिम दिशा में स्थित चर्चिका देवी का वर्णन), २.२.११.९१(मुण्डमाला से सुशोभित चर्चिका देवी का राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा स्तवन), ४.२.९७.१९० (रेवतेश्वर लिङ्ग से पहले चर्चिका देवी के दर्शन का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.५८.७८(शिव के ललाट फलक से हिङ्गुलाद्रि निवासिनी चर्चिका की उत्पत्ति का उल्लेख ) ; द्र. स्वर्णचर्चिका । charchikaa


      चर्पटा स्कन्द ५.१.७०.४४ (६४ मातृकाओं में से एक चर्पटा का उल्लेख ) ।


      चर्म देवीभागवत १.१८.५४ (राजा शशबिन्दु द्वारा यज्ञों में प्रयुक्त चर्मों से बने पर्वत से चर्मण्वती नदी के प्रादुर्भाव का उल्लेख), पद्म ४.२४.५ (गोचर्म मात्रभूमि दान के महत्त्व तथा गोचर्म के परिमाण का कथन), भागवत २.१०.३१(त्वक्, चर्म आदि ७ धातुओं की भूमि, आप: व तेज से उत्पत्ति का उल्लेख), ६.८.२६ (चर्म /ढाल से शत्रुओं के चक्षु बन्द करने की प्रार्थना), मत्स्य २२.४२(चर्मकोट : पितरों के श्राद्ध के लिए पवित्र तीर्थस्थानों में से एक), वायु ९६.११४/ २.३४.११४( चर्मवर्मभृत् /वर्मचर्मभृत् : चित्रक के पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर २.१६०.२९ (चर्म - वर्म / ढाल का मन्त्र), ३.१०६.७२ (सर्व देव आवाहन वर्णन के अन्तर्गत चर्म / ढाल आवाहन मन्त्र), स्कन्द ५.३.१५९.१३ (गुरुतल्पग के त्वचा रोगी होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.३४.७६ (कृष्ण द्वारा ऋषियों के सिंह चर्म से जीवित सिंह उत्पन्न करना), २.७७.५७ (कृष्ण चर्म का दान करने से राजा का मृगया जनित पाप समाप्त होने तथा प्रतिग्रही को पाप प्राप्त होने का उल्लेख), कथासरित् ९.३.१२ (चर्मखण्ड से शरीर को ढंकने वाले कार्पटिक द्वारा राजा को आर्या सुनाना, राजा द्वारा नीम्बू के अन्दर छिपा कर रत्न दान देने की कथा), १०.६.१९८ (मूर्ख सेवकों द्वारा चर्म से ढंकी पेटियों के अन्दर रखे वस्त्र नष्ट कर देने का वर्णन), १८.४.९६(गज के पृष्ठ का स्पर्श करने से चर्म/ढाल में रूपान्तरित होना ), द्र. व्याघ्रचर्म । charma

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      चर्म साधारण भाषा में त्वचा । वेद की भाषा में चरम - अन्तिम सीमा । ऋभुओं ने चर्म में से गाय को निकाला(ऋ.३.६०.२) - इसका अर्थ है कि चेतना रूपी गौ को चरम स्थान से नीचे के स्तरों पर लाया जाता है ।




      चर्मकार स्कन्द ७.१.१२९.१९ (चर्मावकर्ति / चर्मकार का अन्न ग्रहण करने से यश के क्षय का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२१३.१ (मङ्गलदेव नामक चर्मकार द्वारा अशुद्ध चर्मकृत् देह की शुद्धि के लिए सत्कर्म करने का वर्णन), ३.१८७.२२ (मृतादन नामक चर्मकार द्वारा गौ रक्षा करने पर गौ द्वारा सब पाप नष्ट होने का आशीर्वाद मिलने का वर्णन ; साधु द्वारा चर्मकार की व्याख्या में सारे जगत को चर्मकार कहना ) । charmakaara


      चर्मण्वती देवीभागवत १.१८.५४ (शशबिन्दु राजा के यज्ञ से उत्पन्न मेघों से चर्मण्वती नदी बनने का उल्लेख), पद्म ३.२४.३ (चर्मण्वती नदी पर उपवास से अग्निष्टोम फल प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२८(पारियात्र पर्वत के आश्रित नदियों में से एक), भागवत ५.१९.१८(भारत की नदियों में से एक), वायु ४५.९८(पारियात्र पर्वत के आश्रित नदियों में से एक), १०८.८१/ २.४६.८१ (लोमहर्षण द्वारा साहस से आहूत २ नदियों में से एक), महाभारत शान्ति २९.१२३ (राजा रन्तिदेव के यज्ञ में चर्मों की राशि से चर्मण्वती नदी के सृजन का उल्लेख ) । charmanvatee/charmanvati


      चर्ममुण्डा स्कन्द ४.२.७०.८५ (चर्ममुण्डा देवी का स्वरूप व माहात्म्य), ६.५४ (चर्ममुण्डा का माहात्म्य : नल द्वारा स्थापना व स्तुति ) ।


      चर्या गरुड १.२२३.३७/१.२१५.३७(द्वापर में परिचर्या के महत्त्व का उल्लेख), नारद १.६३.१३(चतुष्पाद तन्त्र के चार पादों के रूप में भोग, मोक्ष, क्रिया व चर्या का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३७.२९(चर्य : ४ में से एक योगनाथ), शिव ७.२.१०.३० (धर्म के चार पादों ज्ञान, क्रिया, चर्या व योग का वर्णन ; चर्या के अर्थ का कथन ) । charyaa


      चर्षणी भागवत ६.६.४२ (मातृका व अर्यमा - पुत्र चर्षणियों द्वारा ब्रह्मा द्वारा मानुषी जाति का कल्पन - अर्यम्णो मातृका पत्नी तयोश्चर्षणयः सुताः । यत्र वै मानुषी जातिर्ब्रह्मणा चोपकल्पिता ।), ६.१८.४ (वरुण - पत्नी, भृगु - माता चर्षणी का उल्लेख - चर्षणी वरुणस्यासीद्यस्यां जातो भृगुः पुनः ।। ) ।


      चल मत्स्य १७९.११(चलच्छिखा : शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), १७९.३२(चलज्ज्वाला : मातृकाओं में से एक), १९५.२७(चलकुण्डल : भार्गव? गोत्रकारों में से एक), १९५.३७(चलि : भार्गवों? के एक आर्षेय प्रवर), वायु ९६.१६९/२.३४.१६९(मदिरा व सुदेव के पुत्रों में से एक), विष्णु १.७.२८(चला : दक्ष - पुत्री लक्ष्मी का अपर नाम, धर्म की पत्नियों में से एक, दर्प - माता), लक्ष्मीनारायण ३.७.१५ (तपस्या के फलस्वरूप राजा चलवर्मा द्वारा अचल भक्ति का वरदान प्राप्त करने का वर्णन), महाभारत शान्ति ३१८.४२ (प्रकृति के चल व पुरुष के अचल होने आदि का वर्णन ) । chala


      चाक्षुष कूर्म १.१४.७(रिपु व पुष्करिणी - पुत्र चक्षुष के १० पुत्रों के नामों का उल्लेख), गरुड १.८७.२१ (चाक्षुष मनु के १० पुत्रों का नामोल्लेख), गर्ग ८.३.७ (चक्षु के पुत्र चाक्षुष मनु की कन्या ज्योतिष्मती की कथा), देवीभागवत १०.९.९ (अङ्ग - पुत्र चाक्षुष द्वारा पुलह के परामर्श से सरस्वती बीज मन्त्र के जप का कथन), पद्म १.४० (एक विश्वेदेव का नाम), ब्रह्म १.१.७२ / २.१५ (रिपु व बृहती - पुत्र चक्षुष~ द्वारा वैरिणी पुष्करिणी से चाक्षुष मनु के जन्म का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३६.८० (चाक्षुष मनु के वर्णन के अन्तर्गत नड्वला पत्नी से उत्पन्न १० पुत्रों के नाम), १.२.३६.१०२ (रिपु व बृहती - पुत्र चक्षुष~ द्वारा वारिणी पुष्करिणी से चाक्षुष के जन्म का वर्णन), १.२.३६.२०२ (वैन्य द्वारा चाक्षुष मनु को वत्स बनाकर पृथ्वी दोहन का वर्णन), १.२.३७.४६(चाक्षुष मन्वन्तर में प्राचेतस दक्ष की कन्याओं से सृष्टि का कथन), ३.२.१(६ठे चाक्षुष मन्वन्तर में दक्ष द्वारा सृष्टि का वर्णन), ३.४.१.१०७ (पांच देवगणों में से एक चाक्षुष का उल्लेख : निषादादि स्वरों के रूप), भविष्य ३.४.२५.३४(ब्रह्माण्ड देह से चाक्षुष मनु की उत्पत्ति का उल्लेख), भागवत १.३.१५(१०वें चाक्षुष मन्वन्तर में मत्स्यावतार का उल्लेख), ६.६.१५(विश्वकर्मा व कृती - पुत्र, विश्वेदेव व साध्यगण - पिता), ८.५.७(चक्षु - पुत्र, पूरु, पूरुष व सुद्युम्न - प्रमुख पुत्रों के नाम ; चाक्षुष मन्वन्तर के इन्द्र, सप्तर्षियों, विष्णु अवतार आदि के नाम), ९.२.२४(सनि - पुत्र, विविंशति - पिता, दिष्ट वंश), मत्स्य ४.४०(मैथुनी सृष्टि के अन्तर्गत रिपुञ्जय व वारुणी - पुत्र चाक्षुष मनु का उल्लेख), ४८.१०(अनु के पुत्रों में से एक), १७१.४८(विश्वेश के पुत्रों में से एक), मार्कण्डेय ७३(चाक्षुष मनु द्वारा तपस्या करने पर ब्रह्मा द्वारा चाक्षुष नाम देना व छठे मनु होने की आज्ञा देना), वायु ३०.३७(स्वायम्भुव दक्ष का त्र्यम्बक के शाप से प्रचेतस व मारिषा - पुत्र के रूप में उत्पन्न होने का वृत्तान्त), ६२.३/२.१.३(६ अतीत मन्वन्तरों में अन्तिम), ६२.८८/२.१.८८(बृहती व रिपु - पुत्र, वारुणी/पुष्करिणी - पिता, चाक्षुष मनु - पिता), ६२.१७७(पृथ्वी दोहन में चाक्षुष मनु का वत्स बनना), १०१.३३/२.३९.३३(शुक्र से लेकर चाक्षुष तक के अतीत के भुव: लोक के आश्रित होने का उल्लेख), विष्णु १.१३.५(रिपु व वारुणी - पुत्र, नड्वला - पति, कुरु आदि १० पुत्रों के नाम), ३.१.६(६ अतीत मन्वन्तरों में अन्तिम ); द्र. मन्वन्तर, वंश ध्रुव chaakshusha


      चाटुहास वायु १०६.३८/२.४४.३८(गयासुर के शरीर पर किए गए ब्रह्मा के यज्ञ के ऋत्विजों में से एक )


      चाणक्य मत्स्य १९२.१४(राजर्षि, नर्मदा के शुक्लतीर्थ में सिद्धि प्राप्ति), स्कन्द ५.३.१५५ (शुद्धोदन - पुत्र चाणक्य द्वारा वायसों के माध्यम से स्वमृत्यु व शुक्ल तीर्थ का ज्ञान प्राप्त करने का वर्णन), कथासरित् १.५.१०९ (ब्राह्मण चाणक्य द्वारा कुशा उन्मूलन का प्रसंग, शकटाल मन्त्री द्वारा चाणक्य का दर्शन, राजा योगानन्द द्वारा अपमान पर राजा के वध की प्रतिज्ञा ) । chaanakya


      चाणूर गर्ग ५.७.४२ (कंस - सहायक चाणूर का कृष्ण द्वारा मल्ल युद्ध में वध), ५.१२.१ (पूर्वकाल में उतथ्य - पुत्र, पिता के शाप से चाणूर मल्ल बनना), देवीभागवत ४.२२.४५ (वाराह दैत्यांश के चाणूर मल्ल होने का उल्लेख), ब्रह्म १.८५.६२ / १९३ (कृष्ण द्वारा चाणूर से मल्लयुद्ध का वर्णन), भागवत १०.४४.२२ (चाणूर मल्ल का कृष्ण द्वारा वध), विष्णु ५.२०.६५ (कृष्ण द्वारा चाणूर का वध), हरिवंश १.५४.७६ (कंस के अखाडे के मल्ल चाणूर का वर्णन), २.२८.१७ (कंस द्वारा चाणूर को कृष्ण वध का आदेश), २.३० (कृष्ण द्वारा चाणूर वध का वर्णन ) । chaanoora/chaanuura/ chanura


      चाण्डाल नारद १.६७.१०० (दुर्गा की पार्षद उच्छिष्ट चाण्डाली), २.१३.३ (चाण्डाल के कुमारीसंभव, सगोत्र आदि ३ प्रकारों का कथन), ब्रह्म १.१२० / २२८ (एकादशी व्रत करने वाले चाण्डाल द्वारा गीत दान से राक्षस के मुक्त होने की कथा), महाभारत शान्ति १३८.११६, वराह १३९.३६ (चाण्डाल द्वारा मन्दिर में गायन का फल अर्पण करने से ब्रह्मराक्षस की मुक्ति की कथा), स्कन्द ५.३.१५९.२५ (कर्मों के अनुसार चाण्डाल योनि प्राप्ति का उल्लेख ; देवलक / पुजारी द्वारा चाण्डाल योनि प्राप्ति का उल्लेख), योगवासिष्ठ ३.१०६.६४ (चाण्डाली विवाह), लक्ष्मीनारायण २.२३५.२६ (तामसाक्षि नामक भक्त चाण्डाल की पत्नी, पुत्र व पुत्री की स्वयम् श्री हरि द्वारा रक्षा करने का वर्णन ) । chaandaala/ chandala


      चातक गरुड १.२१७.३१ (तोयहरण से चातक योनि प्राप्ति का उल्लेख), पद्म ६.१३२.६(चातक द्वारा माधव की अभीप्सा का उल्लेख), मत्स्य १९५.२३(चातकि : एक भार्गव?गोत्रकार ऋषि), मार्कण्डेय १५.२६ (रेशमी वस्त्र की चोरी से चातक योनि प्राप्ति का उल्लेख ) । chaataka

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      चातक चातक केवल स्वाती नक्षत्र में हुई वर्षा का पानी पीता है, ऐसा साहित्य में प्रसिद्ध है । चातक का अर्थ है चातना करने वाला , तन- मन के सब रोगों को चाट जाने वाला । जीवात्मा जब स्वाती नक्षत्र का पानी पी लेता है , तब चातक बनता है । स्वाती का अर्थ है स्व, स्वयं के अस्तित्व का अतिक्रमण करके स्व के परे की अनुभूति । अन्नमय, प्राणमय और मनोमय कोशों का अतिक्रमण कर लेने पर परे की अनुभूति हो सकती है ।


      चातुर्मास अग्नि २६८.२ (चातुर्मास में हरि पूजन का निर्देश), गरुड १.१२१ (चातुर्मास व्रत की विधि), नारद २.२२.६७ (चातुर्मास के नियम, व्रत व उद्यापन : रुक्माङ्गद - मोहिनी संवाद), पद्म १.२०.४९ (चातुर्मास में अभ्यङ्गवर्जन का उल्लेख), ६.६५ (चातुर्मास व्रत उद्यापन विधि), भविष्य ४.७० (चातुर्मास में हरिशयन, वर्जित भोजन कृत्यों का वर्णन), भागवत ६.१८.१(चातुर्मास्य : पृश्नि व सविता के ८ पुत्रों में से एक), वराह ५९.३ (चातुर्मास में अविघ्नव्रत का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.१५३ (चातुर्मास के कृत्य), स्कन्द २.२.३६.१ (चातुर्मास के व्रत, नियम से श्वेत राजा पर भगवत्कृपा), २.७.१०.७ (चातुर्मास में हरिशयन, विष्णु का स्वरूप, अशून्यशयनव्रत), ५.१.६९ (चातुर्मास के संदर्भ में कर्कराजतीर्थ का माहात्म्य, चातुर्मास में स्नानदान, विष्णु शयन आदि का वर्णन), ६.२२८.१ (चातुर्मास में बिलशायी विष्णु की पूजा से मुक्ति का कथन), ६.२२९.५ (चातुर्मास के संदर्भ में वृक असुर की कथा का आरम्भ), ६.२३१.४४ (ब्रह्मा के वरदान से वृक का चातुर्मास में पाद युक्त होना, शेष आठ मासों में पङ्गु होना, चातुर्मास में देवों को दुःख देना), ६.२३१.७५ (देवों को निर्भय करने के लिए विष्णु का चातुर्मास में वृक के ऊपर शयन), ६.२३२ - २४३ (चातुर्मास के माहात्म्य का वर्णन), ६.२३९.१३(चातुर्मास में विष्णु का ध्येय स्वरूप), लक्ष्मीनारायण १.२५३.३९ (चातुर्मास की अवधि व विधि का वर्णन), ), २.१६.५७ (आषाढ मास में शत्रुञ्जय पर्वत पर सौराष्ट्र के कङ्कताल नामक दैत्यों द्वारा श्रीहरि पर आक्रमण, श्रीहरि द्वारा गरुड पर आरूढ होकर विराट रूप धारण कर सुदर्शन चक्र आदि से दैत्यों का वध आदि), २.१७.३ (श्रावण मास में कङ्कताल दैत्यों की पत्नियों का श्रीहरि पर वृक्ष की शाखाओं से आक्रमण, श्रीहरि द्वारा काललक्ष्मी रूप धारण कर दैत्य - पत्नियों का निग्रह), २.४३.१९ (राजा रणङ्गम - कृत चातुर्मास यज्ञ की शोभा का वर्णन), २.६०.३ (चातुर्मास व्रत में उदय राजा द्वारा कृष्ण के दर्शन, अतिवृष्टि में कृष्ण द्वारा उदय की नाव की रक्षा), २.१५७.३४ (चातुर्मास का वाम बाहु में न्यास, अन्य यज्ञों का अन्य अंगों में), ३.३५.६१ (राजा बृहद्धर्मा द्वारा ओजस्वती नगरी में चातुर्मास अनुष्ठान कराने का वर्णन), ३.९३.१३ (महर्षि देवशर्मा द्वारा पत्नी रुचि की रक्षा इन्द्र से करने हेतु विपुल नामक शिष्य को नियुक्त कर स्वयं चातुर्मास व्रत के लिए जाने का वर्णन ) । chaaturmaasa

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      चातुर्मास मास अर्थात् प्रकाश । चार प्रकार के प्रकाश का अन्नमय, प्राणमय, मनोमय और विज्ञानमय कोशों में आना ।


      चातुर्होत्र वायु ६०.१७(द्वैपायन द्वारा एक यजुर्वेद को ४ भागों में विभाजित कर चतुर्होत्र करने का उल्लेख), विष्णु ३.४.११(वही) Chaturhotra ।


      चात्वाल लक्ष्मीनारायण २.१६४.३ (महर्षि वृकायन द्वारा स्तुति करने पर श्रीकृष्ण द्वारा नीलकर्ण नामक चात्वाल की अतिवृष्टि से रक्षा करने की कथा), ४.५१.२८(शिष्य सुरप्रसाद द्वारा गुरु भर्गचात्वाल की हत्या का वृत्तान्त ) । chaatvaala


      चान्द्र विष्णु ४.२.३६(चान्द्रयुवनाश्व : विष्टराश्व - पुत्र, शावस्त - पिता), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०० (चान्द्री व श्रीबद्रीश से धवल नामक पुत्र व पायसभासुरी नामक पुत्री होने का उल्लेख ) ।


      चान्द्रायण ब्रह्माण्ड ३.४.६९.७९(द्विज द्वारा मद्यपान पर कृच्छ्र चान्द्रायण व्रत का निर्देश), मत्स्य ७.४(पुत्र नाश शोक के निवारण हेतु दिति द्वारा कृच्छ्र चान्द्रायण व्रत के चीर्णन का उल्लेख), १८९.१८(कावेरी - नर्मदा सङ्गम के जल पान से चान्द्रायण फल की प्राप्ति का उल्लेख), १९१.९६(सोमतीर्थ में चान्द्रायण व्रत करने का माहात्म्य : सोम लोक की प्राप्ति), २२७.४६(कूप, वापी के जल आदि के हरण पर चान्द्रायण द्वारा शुद्धि का निर्देश), वायु १६.१६(योगियों के लिए चान्द्रायण की श्रेष्ठता का कथन), १८.१३(भिक्षु द्वारा मृगादि की हिंसा पर चान्द्रायण का निर्देश), स्कन्द ५.१.२२.११ (कोटितीर्थ में स्नान का फल सहस्र चान्द्रायण व्रत के समान होने का उल्लेख ) । chaandraayana


      चाप पद्म २.११०.१९(वायु द्वारा नहुष को चाप देने का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.१९(ब्रह्मा द्वारा ललिता को इक्षुचाप भेंट करने का उल्लेख), ३.४.१७.४४ (ललिता द्वारा ग्रहण किए गए चित्रजीव नामक चाप का कथन), ३.४.१८.५४(चापिनी : ललिता के २५ नामों में से एक), भविष्य ४.१३८.७२ (चाप मन्त्र), विष्णुधर्मोत्तर ३.३७.१० (चाप प्रतिमा का लक्षण), महाभारत भीष्म १४.१०(भीष्म के मुख की चाप से उपमा), कथासरित् ९.२.२४८ (चापलेखा : स्नान करती हुई चापलेखा को देख कामान्ध विकटवदन का वर्णन ) । chaapa


      चाण्डाल द्र. चण्डाल ।


      चामर अग्नि २४५ (चामर लक्षणों का वर्णन), देवीभागवत ९.१९.६६(गङ्गा द्वारा विष्णु की श्वेत चामर द्वारा सेवा करने का उल्लेख), ब्रह्म १.१२०.१०५ / २२८ (उर्वशी द्वारा इन्द्र को चामर डुलाने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३३ (केश सौन्दर्य हेतु पुण्यक व्रत में श्वेत चामर दान देने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.१२.८(भण्ड असुर द्वारा धारित चामर की विशेषता का कथन), ३.४.१५.२३ (गङ्गा - यमुना द्वारा ललिता को चामर भेंट करने का उल्लेख), ३.४.२०.२६(क्रोधिनी व स्तम्भिनी द्वारा चामर वीजन का उल्लेख), भविष्य ४.१३८.७४ (चामर मन्त्र), मार्कण्डेय ७९.४० / ८२ (चामर असुर द्वारा देवी से युद्ध का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१२.५ (चामर निर्माण का उल्लेख), स्कन्द २.१.८(सरस्वती द्वारा श्रीनिवास को चंवर डुलाने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३११.४३ (सुषुम्ना व पिङ्गला द्वारा कृष्ण पर श्वेत चामर धारण का उल्लेख), २.१८.२५(शैल - कन्याओं द्वारा कृष्ण को समर्पित चामर - द्वय के स्वरूप का कथन), २.२४९.८१(अहंपद के चिन्तन के चामर होने का उल्लेख ?), महाभारत आश्वमेधिक ९२ दाक्षिणात्य पृ.६३८२(श्रीकृष्ण के द्वारका प्रस्थान पर नकुल व सहदेव द्वारा श्वेत चामर व्यजन डुलाने का उल्लेख ), कृष्णोपनिषद २०(जयन्ती संभव वायु चमर ) ।chaamara


      चामीकर लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०४ (कृष्ण - पत्नी काञ्चन के पुत्र चामीकर का उल्लेख ) ।


      चामुण्ड भविष्य ३.३.९.२० (देवकी - पुत्र चामुण्ड को त्याग देने का प्रस्ताव), ३.३.९.३०(देवकी - पुत्र चामुण्ड का माता द्वारा कालिन्दी में त्याग, पृथ्वीराज - पुरोहित सामन्त द्वारा पालन), ३.३.२४.७६ (रक्तबीज का अवतार, पृथ्वीराज - सेनानी चामुण्ड द्वारा बलखानि व सुखखानि से युद्ध, पराजित होकर बन्धनग्रस्त चामुण्ड का बलखानि द्वारा अपमान), ३.३.२५.५३ (चामुण्ड द्वारा गर्त पार कर रहे बलखानि का वध), ३.३.२७.५१ (तालन से चामुण्ड का युद्ध), ३.३.२७.७२ (कृष्णांश द्वारा शारदा से प्राप्त खड्ग द्वारा चामुण्ड का बन्धन), ३.३.३२.१९६ (चामुण्ड द्वारा युद्ध में कृष्णांश का वध), ३.३.३२.२०५ (आह्लाद से युद्ध में चामुण्ड की मृत्यु ) । chaamunda


      चामुण्डा अग्नि ५०.३४ (सिद्ध चामुण्डा प्रतिमा के लक्षण), १३५ (चामुण्डा का स्वरूप, संग्राम विजय विद्या मन्त्र), १४६.२६ (चामुण्डा देवी की ८ शक्तियां), गरुड १.३८ (चामुण्डा पूजा का वर्णन), देवीभागवत ३.१९.३७ (चामुण्डा से चत्वरों में रक्षा की प्रार्थना का उल्लेख), पद्म १.४६.७९(अन्धक के रक्तपान हेतु शिव द्वारा चामुण्डा आदि मातृकाओं का सृजन), मत्स्य १५४.४३६ (शिव विवाह में चामुण्डा द्वारा तारक कुल संहारक पुत्र उत्पन्न करने की प्रार्थना का कथन), १७९.१०(शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), २६१.३७ (चामुण्डा - प्रतिमा का रूप), मार्कण्डेय ८५ / ८८.५८ (चामुण्डा द्वारा रक्तबीज के शोणित पान का कथन), लिङ्ग १.७४.६ (चामुण्डा द्वारा शिव के सिकता लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), स्कन्द ५.१.३८ (चामुण्डा द्वारा अन्धक का रक्त पीना, अन्धक द्वारा शिव की स्तुति, चामुण्डा का शिवा होना), ५.१.४३.३७ (देवों द्वारा चामुण्डा की पूजा, शिव को त्रिपुर वधार्थ पाशुपत अस्त्र प्रदान करना), ५.३.१८६.११ (अजरता - अमरता प्राप्ति के लिए गरुड द्वारा चामुण्डा की आराधना व स्तुति), लक्ष्मीनारायण १.१६६.८४ (मृत चण्ड - मुण्ड के सिरों को काली द्वारा सिर पर धारण करने से चामुण्डा होने का कथन), कथासरित् १८.२.८९ (ठिण्ठाकराल द्वारा जूए में जीत ली जाने वाली मातृकाओं का चामुण्डा के परामर्श से छुटकारा पाने का कथन ) । chaamundaa


      चारण भागवत ७.८.३८, ५१ (हिरण्यकशिपु के वध पर चारणों द्वारा नृसिंह की स्तुति), लक्ष्मीनारायण २.१०४.२६ (चारणों के प्रदेश गान्धर्व देश का उल्लेख), २.१२४.८२(चारण के लिए यज्ञ में वषट् व्याहृति का प्रयोग), २.२७१.२८ (पशुचारणी सती के चोरों द्वारा धर्षण व देवी द्वारा रक्षा का वृत्तान्त), ३.१९.३० (चारण भक्त रक्षालय की सती पत्नी सन्तयोगिनी द्वारा वैमानिक देवों को भस्म करने का वृत्तान्त ) । chaarana


      चारायण स्कन्द ४.२.७६.१३८ (चारायण - कन्या का वृत्तान्त), ६.२७८ (याज्ञवल्क्य - पिता ) । chaaraayana


      चारित्र पद्म १.४०.८८ (चारित्र मरुत का नामोल्लेख ) ; द्र. चरित्र ।


      चारु - अग्नि २०० (राजा चारुधर्म की पत्नी द्वारा दीपदान का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३७(चारुरूप व चारुहासवान् : प्रधान वानरों में चारुरूप व चारुहासवान् का नामोल्लेख), २.३.७१.२४६(कृष्ण व रुक्मिणी के चारु, चारुभद्र आदि पुत्रों के नामों का उल्लेख), भागवत ९.२०.२(चारुपद : नमस्यु - पुत्र, सुद्यु - पिता, पूरु वंश), १०.६१.८(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों के रूप में चारुदेष्ण, चारुदेह, सुचारु, चारुगुप्त, भद्रचारु, चारुचन्द्र, विचारु व चारु का उल्लेख), १०.६१.९(कृष्ण व रुक्मिणी के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१६(चारुभद्र व चारुहास : कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से दो), १६१.७५(चारुकेशी : हिरण्यकशिपु की सभा में उपस्थित अप्सराओं में से एक चारुकेशी का उल्लेख), मार्कण्डेय १३३.९(चारुवर्मा : दशार्णाधिपति चारुवर्मा द्वारा कन्या सुमना का स्वयंवर करने का वृत्तान्त), वामन ५७.८२ (चारुवक्त्र : मनोहरा नदी द्वारा कुमार को प्रदत्त चारुवक्त्र गण का उल्लेख), वायु ६९.१०/२.८.१०(चारुमुखी : गन्धर्वों की एक पुत्री का नाम), ९६.२३७/२.३४.२३७(कृष्ण व रुक्मिणी के चारु, चारुभद्र, भद्रचारु, चारुविन्ध्य आदि पुत्रों का नामोल्लेख), विष्णु ५.२८.२(कृष्ण व रुक्मिणी के चारु, चारुभद्र, चारुविन्द, चारुदेह आदि पुत्रों का नामोल्लेख), ५.३७.४७ (चारुक व चारुवर्मा : प्रभास में यादवों के संघर्ष में चारुक व चारुवर्मा की मृत्यु का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२०९.२६ (चारुलाष ऋषि के साथ रायवाकक्षक नृप द्वारा श्रीहरि को तूर्यपदापुरी चलने की प्रार्थना का उल्लेख), कथासरित् १२.५.२३८ (शुक राजा हेमप्रभ का प्रतिहार चारुमति ) । chaaru


      चारुगुप्त भागवत १०.६१.८(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१६(वही), विष्णु ५.२८.१(वही) ।


      चारुदेष्ण गरुड ३.९.३(१५ अजान देवों में से एक), देवीभागवत ५.१८.८ (मद्र देश का राजा, दुराचारी, मन्दोदरी से विवाह), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१९१(कृष्ण द्वारा अनपत्य गण्डूष को प्रदत्त २ पुत्रों में से एक), २.३.७१.२४५(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), भागवत ३.१.३५(सत्यभामा - पुत्र), १०.६१.८(कृष्ण व रुक्मिणी के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य ४६.२६(कृष्ण व जाम्बवती? के पुत्रों में से एक), ४७.१५(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), वायु ९६.१८८/२.३४.१८८(कृष्ण द्वारा स्वपुत्र चारुदेष्ण को अनपत्य गण्डूष को देने का उल्लेख), ९६.२३७/२.३४/२३७(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१५.३७(कृष्ण के १३ प्रधान पुत्रों में से एक), ५.२८.१(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), हरिवंश १.३४.३४ (रुक्मिणी व कृष्ण - पुत्र, चारुदेष्ण के चारुदेष्ण नाम प्राप्ति का कारण ) । chaarudeshna


      चारुधि गर्ग ७.३०.२३ (अरुधि पर्वत की नै:श्रेयस वन में स्थिति का उल्लेख ) ।


      चारुमती ब्रह्माण्ड २.३.७१.२४६(कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्री, बली - पत्नी), भागवत १०.६१.२४(कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्री, बली - पत्नी), मत्स्य ४७.१६(कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्री), वायु ९६.२३८/२.३६.२३८(कृष्ण व रुक्मिणी - पुत्री), विष्णु ५.२८.२(वही) । chaarumatee/chaarumati/ charumati


      चारुहास ब्रह्माण्ड २.३.७.२३८(चारुहासवान् : प्रधान वानरों में से एक), मत्स्य ४७.१६(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), विष्णु ५.२८.५(चारुहासिनी : कृष्ण की प्रधान पत्नियों में से एक ) । chaaruhaasa


      चाष पद्म ६.८८.१४ (सत्यभामा के घर कृष्ण द्वारा कल्पवृक्ष लगाने के संदर्भ में गरुड के भूमि पर गिरे पंख से चाष / नीलकंठ पक्षी आदि के उत्पन्न होने का कथन), वामन ५७.८८ (पृथूदक तीर्थ द्वारा स्कन्द को चाषवक्त्र नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ) । chaasha


      चिकित्वान् ब्रह्माण्ड १.२.३६.११(१२ तुषित देवों में से एक, तुषिता व क्रतु - पुत्र )


      चिकित्सक स्कन्द ७.१.१२९.२१ (चिकित्सक का अन्न पूय समान होने का उल्लेख ) ।


      चिकित्सा गरुड १.१६८+ (चिकित्सा शास्त्र का वर्णन),१.२०१ (हय चिकित्सा का वर्णन), १.२०१.३३ (गज चिकित्सा का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.५२(स्त्री चिकित्सा का वर्णन ) । chikitsaa


      चिक्लीत लक्ष्मीनारायण ३.२५.४ (चिक्लीत सहित पांच भक्तों द्वारा प्रसविष्णु असुर को दान में लक्ष्मी देने का वर्णन, भविष्य के ५ इन्द्रों में से एक ) । chikleeta


      चिक्षुर देवीभागवत ५.५.३१ (महिषासुर - सेनानी चिक्षुर द्वारा इन्द्र से युद्ध व पराजय का कथन), ५.१४ (देवी द्वारा चिक्षुर से युद्ध व वध का वर्णन), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.७६(चिक्षुभ : भण्ड असुर के असुरास्त्र से उत्पन्न दानवों में से एक), मार्कण्डेय ८२ (महिषासुर - सेनानी चिक्षुर), वामन २०.२३ (चिक्षुर द्वारा कात्यायनी से युद्ध व मरण), ३१.६१ (बलियज्ञ में विष्णु द्वारा चिक्षुर का वध ) chikshura


      चिच्चिक ब्रह्म २.९४.३ / १६४ (भेरुण्ड उपनाम वाले चिच्चिक पक्षी द्वारा पवमान नृप से संवाद, गदाधर तीर्थ में गौतमी स्नान से मुक्ति ), chichchika


      चिञ्चा लक्ष्मीनारायण २.२१४.९ (श्रीकृष्ण के साथ वायुशृङ्ग ऋषि द्वारा चिञ्चापुरी उद्यान में जाने का कथन), कथासरित् १.३.९ (चिञ्चिनी नगरी में भोजिक नामक ब्राह्मण के दौहित्र पुत्रक द्वारा पाटलीपुत्र की रचना का वर्णन ) chinchaa


      चित् गणेश १.७.८ (चिद्रूप वैश्य के दुष्ट पुत्र कामन्द का वृत्तान्त : पुत्र को शिक्षा देने पर पुत्र द्वारा चिद्रूप की हत्या), ब्रह्माण्ड ३.४.३९.९(चित्परा : काञ्ची में कामाक्षी देवी का आद्य नाम, द्वितीय नाम शुद्धपरा), शिव ६.१६.५४ (पराशक्ति से चित् व चित् से आनन्द शक्तियों का उद्भव), योगवासिष्ठ ३.६२.८ (ब्राह्मी चित् शक्ति द्वारा नियति कहलाने वाली चिति शक्ति में स्पन्दन उत्पन्न करने का वर्णन), ३.६५.९ (चित् - उन्मुखता से चित्त तथा चित्त से जीवत्व कल्पन का उल्लेख), ४.४२.९(चित् शक्ति का वर्णन), ५.१३.८७(मन द्वारा चित् शक्ति व स्पन्द/प्राण शक्ति के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का कथन), ६.१.७८.२५ (जीव रूपी बालक के चिद्रूप द्वारा जीवित रहने का कथन), ६.१.७८.३२ (महाचित् की व्याख्या), ६.२.६२ (चिदैक्य नामक सर्ग : साकार द्रष्टा द्वारा स्वप्न और निराकार चिद्व्योम द्रष्टा द्वारा सर्ग स्वप्न देखने का कथन ) । chit


      चिता गरुड २.१५.३७(चिता पर पिण्डदान का निहितार्थ), स्कन्द ३.३.१७.२८ (चण्डक नामक शबर को शिवपूजन हेतु चिता भस्म न मिलने पर पत्नी द्वारा अग्नि प्रवेश का कथन), ७.१.२३७.९५ (यादवों की गव्यूति मात्र चिता का वर्णन), महाभारत स्त्री २३.३८(द्रोणाचार्य की चिता का कथन), कथासरित् १८.५.८ (कापालिक द्वारा चिता से स्त्री को जीवित करने आदि का वर्णन ) chitaa


      चिति ब्रह्माण्ड २.३.४.२(चित व सुचिति : ब्रह्मा के मुख से सृष्ट जयदेवों में से दो), लिङ्ग १.७०.२२ (चिति शब्द की निरुक्ति), वायु ४.३७ /१.४.३५(चिति शब्द की निरुक्ति, मन का नाम चिति), २१.५३ (ब्रह्मा द्वारा ध्यान करते समय उत्पन्न होने के कारण प्रजापति की कन्या का चिति व पुत्र का चिन्तक नाम होने का उल्लेख), विष्णु १.८.२१ (सर्वव्यापक भगवान व लक्ष्मी को यूप व चिति रूप बताकर उनके नित्य होने का वर्णन), स्कन्द ४.१.२९.५८ (चितिरूपा : गङ्गा सहस्रनाम), योगवासिष्ठ ३.१४.७२(जगत के चित् होने के परिणामों का कथन), ४.१८.४५ (चित् की सिद्धि पर जीव के चिति होने का उल्लेख), ६.२.८४.७ (चिदाकाश रूप शिव की इच्छा शक्ति व क्रिया शक्ति चिति का वर्णन), ६.२.८५.२ (क्रिया रूप चिति शक्ति के आयुधों का कथन), ६.२.८५.२५(चिति द्वारा परम पुरुष के दर्शन तक भ्रमण करते रहने का कथन), हरिवंश ३.३४.३४(यज्ञवराह के चितिमुख होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२२(विष्णु के यूप व लक्ष्मी के चिति होने का उल्लेख), ४.९५.४(चिति व विचित्ति : जय नामक देवगण के देवों में से दो ) । chiti


      चित्त पद्म ५.९९.३८ (जन्तु के चित्त की शिशु से उपमा), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.१९( चित्तकर्षणिका : चन्द्रमा की १६ कला रूपी शक्तियों में से एक), ३.४.३६.७०(चित्तकर्षिका : चन्द्रमा की कर्षण वाली १६ कलाओं में से एक), ३.४.४४.११९(चित्तकर्षिका : १६ नित्या कलाओं में से एक), भविष्य ३.४.२५.३०(ब्रह्माण्ड के सद्गुणों से चित्त रूपी स्वायम्भुव मनु तथा चित्त से त्रैलोक्य की उत्पत्ति का उल्लेख), भागवत ११.१३.१७ (मुक्तिपद प्राप्ति हेतु चित्त और गुणों को अलग करने के प्रश्न को कृष्ण द्वारा निरर्थक बताना), मत्स्य १७९.२८(चित्ता व चित्तजला : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से दो), महाभारत आश्वमेधिक २१.६(चित्त के स्रुवा होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१६ (चित्त दोषों का वर्णन), १.१८.१२(चित्त की मर्कट से उपमा), ३.६३ (चित्त विकार), ३.६४.२६ (चित्त के स्वभाव से स्फुúरित होने और कर्म से बंधने का कथन), ३.६५.९ (चित् से चित्त व चित्त से जीवत्व के कल्पन का कथन), ३.६५.१२ (जीव व चित्त में भेद न होने के अनुरूप देह व कर्म में भेद न होने का कथन), ३.८४.३९(चित्त के चिद् और जड भाग के विषय में कथन), ३.९८+ (चित्त के निरोध से शोक का अन्त होने के संदर्भ में महा अटवी में स्वयं पर प्रहार करते हुए भीमकाय पुरुषों का आख्यान), ३.९९.५ (भीमकाय पुरुषों के मन होने का उल्लेख), ३.९९.१२ (कदली कानन, करञ्जवन आदि में भ्रमण करने वाले चित्तों की प्रकृति का कथन), ३.९९.३१(विवेक द्वारा चित्त को बलात् ग्रहण करने का निर्देश व आख्यान), ३.११०(चिकित्सापूर्वक चित्त का वर्णन), ३.१११ (चित्त चिकित्सा), ३.१२१ (चित्त के अभाव का प्रतिपादन), ५.११ (जनक द्वारा चित्त का अनुशासन), ५.१४.५८ (स्वचित्तनिरूपण के अन्तर्गत चित्त की शान्ति का प्रतिपादन), ५.२४.१७ (चित्त पर विजय की युक्ति), ५.८०.२६(चित्त की वेताल संज्ञा), ६.१.२९.८ (संसार चक्र की नाभि चित्त के निरोध का निर्देश), ६.१.२९.४३ (चित्त की वेताल संज्ञा), ६.१.४४ (चित्त सत्ता का वर्णन), ६.१.५६ (चित्त द्वारा चित्र का चित्रण किए जाने के कारण ही जगत की चित्रता दिखाई देने का वर्णन), ६.१.९०.१५ (चित्त और चिन्ता में तादात्म्य का कथन), ६.१.९३.३२ (चित्त की सर्व संज्ञा का वर्णन), ६.१.९४.५ (वासना के चित्त का पर्याय होने का कथन), ६.१.९४.१४ (चित्त वृक्ष का वर्णन), ६.१.१००.१७ (अज्ञान भ्रान्ति का चित्त नाम होने का कथन), ६.१.१०१.२१ (द्वित्त्व की भांति बोध कराने वाले चित्त के अज्ञान होने का कथन), ६.२.१०१.२७ (जीवन्मुक्तों में चित्त के अभाव का कथन ; मूढों के चित्त और सत्त्व में तुलना), ६.१.१०१.४९ (स्पन्दरहित चित्त होने का निर्देश), ६.१.१०३.२८ (चित्त स्पन्द के सारे जगत की स्थिति का कारण होने का उल्लेख), ६.१.११६ (चित्त से अहंकार के गलने के लक्षणों का कथन), ६.२.४४.५(चित्त भूमि में समाधि बीज द्वारा कृषि का वर्णन), ६.२.५९.१३ (समाधि में क्रमश: चित्ताकाश व चिदाकाश अवस्थाएं प्राप्त करने का वर्णन), ६.२.१३८ (चित्त की सर्वात्मकता प्रतिपादन नामक सर्ग), ६.२.१६९ (विश्रान्त चित्त वर्णन नामक सर्ग), लक्ष्मीनारायण ३.५३.९१ (पांच चित्तों का उल्लेख ) । chitta

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      चित्ति भागवत ४.१.४२ (अथर्वा - पत्नी , दध्यङ्ग अश्वशिरा / दधीचि - माता चित्ति का उल्लेख), वायु ६६.६/२.५.६(चित्ति व विचित्ति : ब्रह्मा के मुख से सृष्ट जयदेवों में से २), ६६.१६/२.५.१६(१२ साध्य देवगण में से एक ) ; द्र. पूर्वचित्ति, विप्रचित्ति । chitti

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      चित्र गरुड २.१६.२१(६ मास में प्रेत द्वारा चित्र नगर की प्राप्ति का उल्लेख), ३.१६.९१(चित्र रूप वायु की भार्या भुजा का उल्लेख), नारद १.११९.६०(१४ यमों में से एक), पद्म ६.१२९ (द्रविड देश के नृप चित्र द्वारा अधर्माचार से पिशाच बनना, देवद्युति से माघ स्नान माहात्म्य श्रवण से मुक्ति प्राप्ति का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१७२(चित्र व उपचित्र : वसुदेव व मदिरा के पुत्रों में से दो), २.३.७१.२५७(चित्र व चित्रसेन : अगावह के ४ पुत्रों में से २, चित्रवती - भ्राता), विष्णुधर्मोत्तर ३.३५+ (चित्र में अङ्गों व भावों का उल्लेख), शिव ५.३४.६१ (देवताओं के तीन गणों में से एक चित्र का उल्लेख), स्कन्द १.२.५.२४ ( संसार में चित्रकथा बंध कौन जानता है? - नारद का प्रश्न), १.२.५.९८(मुनियों व देवताओं द्वारा न माना गया वचन चित्रकथा बन्ध है - सुतनु का उत्तर), ४.१.२९.५९ (चित्रकृत् : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.७०.३८ (चित्र कूप में स्नान व चित्रगुप्तेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य : चित्रगुप्त द्वारा पापों का लेखा न करना), ६.३६.४७ (अगस्त्य द्वारा स्थापित चित्रेश्वरी पीठ में सिद्धियों की सुलभता का वर्णन), ६.१५४.१७ (चित्रेश्वरी पीठ में मांस विक्रय से सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख), ६.३५.५५ (देवों द्वारा वरदान से अगस्त्य द्वारा स्थापित कामनापूरक चित्रेश्वर पीठ की महिमा का वर्णन), ७.१.१३९ (मित्र - पुत्र चित्र द्वारा स्थापित चित्रादित्य का संक्षिप्त माहात्म्य : सात जन्म पर्यन्त दारिद्र्य दुःख न होना, चित्र द्वारा सशरीर यमलोक जाकर चित्रगुप्त होने का प्रसंग), ७.१.१४२ (चित्रेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य : पट स्थित पापों का मार्जन), योगवासिष्ठ ४.१८.६९ (चित्रामृत, चित्रानल व चित्राङ्गना के अमृत, अनल व अङ्गना न होने का उल्लेख), कथासरित् १२.२४.८३ (हंसावली के भवन में कमलाकर द्वारा चित्र बनाने का वर्णन ) ; द्र. विचित्र । chitra


      चित्र - देवीभागवत ६.१९ (शिव द्वारा विष्णु को चित्ररूप नामक दूत भेजने का उल्लेख), पद्म ५.७२.४४ (चित्रगन्धा : पूर्व जन्म में जाबालि द्वारा रसिक कृष्ण की आराधना, जन्मान्तर में गोकुल में प्रचण्ड गोप की कन्या चित्रगन्धा बनना), ५.७२.११७ (चित्रध्वज : वीरध्वज - कन्या व कृष्ण - पत्नी चित्रकला का पूर्वजन्म में चित्रध्वज मुनि होने का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.५.९२(चित्रज्योति : मरुतों के ७ गणों में प्रथम गण के मरुत का नाम), ३.४.१७.४१ (ललिता द्वारा धनुर्वेद से गृहीत चित्रजीव कोदण्ड का कथन), भागवत १०.६१.१३(चित्रगु : कृष्ण व नाग्नजिती सत्या के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य १२.२१(चित्रनाथ : धृत के ३ पुत्रों में से एक), वामन ५७.७९ (चित्रदेव : महानदी द्वारा कुमार को प्रदत्त गण का नाम), वायु ९६.२४८/२.३५.२४८(चित्रवर : अवगाह के पुत्रों में से एक), स्कन्द ४.२.५७.११० (वायव्य दिशा में चित्रघण्टा गणपति की सेवा का निर्देश), ७.१.१४० (मित्र - पुत्री व चित्रगुप्त - भगिनी चित्रपथा द्वारा स्वभ्राता के अन्वेषणार्थ चित्रपथा नदी बनने का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३२१.४ (चित्रधर्म नृप के पुत्र दृढधन्वा द्वारा शुकदेव नामक पुत्र की प्राप्ति की कथा), १.३२१.१०४ (चित्रबाहु नृप के पूर्व जन्म की कथा : पूर्व जन्म में नास्तिक मणिग्रीव शूद्र , अधिमास में दीप दान से नृप बनना ) ३.१९५.७ (चित्रपल्लवा के पुत्र को विमाता द्वारा विष देने व हरि द्वारा जीवित करने की कथा), ३.२२४.१ (चित्रोर्ध्व ग्राम के दीर्घरम्भ नामक उष्ट्रपालक के मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) कथासरित् १२.६.३९ (हिमालय की चोटी चित्रस्थल का उल्लेख ) । chitra


      चित्रक ब्रह्माण्ड २.३.७१.१०२(वृष्णि - पुत्र, श्वफल्क - भ्राता), वायु ९६.१०१/२.३४.१०१(पृश्नि के २ पुत्रों में से एक), ९६.११४/२.३४.११३(चित्रक के पुत्रों के नाम), विष्णु ४.१४.६(वृष्णि - पुत्र, श्वफल्क - भ्राता), ४.१४.११(चित्रक के पृथु, विपृथु प्रमुख बहुत से पुत्रों का उल्लेख ) chitraka


      चित्रकर्मा ब्रह्माण्ड ३.४.११.३० (शिव के गण चित्रकर्मा द्वारा कामदेव की भस्म को चित्राकार करने व शिव द्वारा भण्डासुर निर्माण का वर्णन ) । chitrakarmaa


      चित्रकार लक्ष्मीनारायण २.२१७.१ (सम्भवदेव चित्रकार की भक्ति व मोक्ष का वर्णन), कथासरित् १८.३.२० (नगरस्वामी चित्रकार द्वारा विक्रमादित्य को अनुपम सुन्दरी का चित्र भेंट करने की कथा)।


      चित्रकूट देवीभागवत ७.३०.६६ (त्रिकूट पीठ में रुद्र सुन्दरी देवी का वास), ७.३०.७० (चित्रकूट में सीता देवी का वास), भविष्य ३.१.७.१ (पर्वतीय देश चित्रकूट के राजा परिहार का उल्लेख), भागवत ५.२०.१५(कुश द्वीप के ७ पर्वतों में से एक), मत्स्य १३.३९(चित्रकूट में सती की सीता नाम से स्थिति का उल्लेख), वराह १०.२० (राजा सुप्रतीक द्वारा चित्रकूट पर्वत पर ऋषि दुर्वासा की सेवा से दुर्जय नामक पुत्र पाने का वरदान प्राप्त करने का वर्णन), १२.२ (सुप्रतीक द्वारा चित्रकूट पर्वत पर जगत्पति श्रीराम की स्तुति करने का वर्णन), वा.रामायण २.५४.२९ (भरद्वाज द्वारा चित्रकूट गमन हेतु राम का मार्गदर्शन करने का उल्लेख), २.९३.८ (भरत की चित्रकूट यात्रा का वर्णन ; राम व सीता का दर्शन), ५.३८.१२ (हनुमान के पहचान मांगने पर सीता द्वारा चित्रकूट का वर्णन), स्कन्द ५.३.१९८.७७ (माण्डव्य के अनुरोध पर देवी का चित्रकूट में सीता नाम से वास का उल्लेख), ५.३.१९८.९१ (शूलेश्वरी देवी का चित्र में ब्रह्मकला नाम का उल्लेख), कथासरित् ६.२.५१ (चित्रकूट पर्वत पर युवा नृप सुषेण का रम्भा से मिलन, कन्या जन्मोपरान्त विरह), ६.२.५१ (चित्रकूटाचलस्थ राजा सुषेण और सुलोचना की कथा), ७.१.३२ (चित्रकूट नगर में सत्त्वशील द्वारा निधि प्राप्ति, दान देने व धन प्राप्त करने का वर्णन), ९.६.६३ (पुत्र - पुत्री की खोज करने चित्रकूट गए चन्द्रस्वामी द्वारा नारायणी से आशीर्वाद प्राप्ति का वर्णन), १०.१.५४ (चित्रकूट नगर के धनी वैश्य रत्नवर्मा के पुत्र ईश्वरवर्मा का वेश्या द्वारा धनाहरण व पुन: धन प्राप्ति की कथा), १२.२७.४ (चित्रकूट नगर के राजा चन्द्रावलोक का कण्व - पुत्री इन्दीवरप्रभा से विवाह, ब्रह्मराक्षस को सात वर्षीय बालक की भेंट चढाने की कथा ) । chitrakoota /chitrakuuta/ chitrakuta


      चित्रकूटा ब्रह्माण्ड १.२.१६.३०(ऋक्ष पर्वत की नदियों में से एक), मत्स्य ११४.२२(वही), वायु ४५.९९(वही)


      चित्रकेतु भागवत ४.१.४०(वसिष्ठ व ऊर्जा के ७ पुत्रों में से एक), ६.१५+ (शूरसेन के राजा व विद्याधर - पति चित्रकेतु का अङ्गिरा से संवाद व पुत्र प्राप्ति, पुत्र का मरण, वैराग्य प्राप्ति, नारद से विद्या प्राप्ति), ६.१७ (चित्रकेतु द्वारा शिव - पार्वती पर आक्षेप, शाप प्राप्ति, वृत्र बनना), ६.१७.३८(त्वष्टा की दक्षिणाग्नि से वृत्र के जन्म का उल्लेख), ९.११.१२(लक्ष्मण - पुत्र, अङ्गद - भ्राता), वायु ६९.२०/२.८.२०(वालेय गन्धर्वों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.८६.५३ (चित्रकेतु की साधुसेवा व ईश्वरभक्ति का वर्णन ) । chitraketu


      चित्रगुप्त गरुड २.३३.२९(चित्रगुप्त के आलय के परितः व्याधियों की स्थिति), नारद १.११९.६०(१४ यमों में से एक), मत्स्य ९३.१५(चित्रगुप्त के केतु ग्रह का अधिदेवता होने का उल्लेख), २६१.१४(यम की प्रतिमा में चित्रगुप्त आदि को दिखाने का निर्देश), वराह १९८.२६ (नचिकेता का यमाज्ञा से चित्रगुप्त के पास जाने का वर्णन), २०२ (संसारचक्र में नारकिदण्ड कर्मविपाक वर्णन में चित्रगुप्त व यम के बीच संवाद का वर्णन),स्कन्द ५.३.१५५.६० (काकों द्वारा चित्रगुप्त से मिलने की कथा), ७.१.१३९.४० (अग्नि तीर्थ में स्नान के फलस्वरूप चित्र को यमदूतों द्वारा सशरीर ले जाकर विश्वचरित्र - लेखक चित्रगुप्त बनाने का वर्णन), ७.१.२०२ लक्ष्मीनारायण १.६४.१३ (चित्रगुप्त के भवन के चारों ओर व्याधियों के भवनों का उल्लेख), १.१५३.५५ (चित्रगुप्त द्वारा स्थापित चित्रगुप्तेश्वर तीर्थ का उल्लेख), १.३५९.१३ (यमराज द्वारा दूतों के साथ भेजे गए नचिकेता का चित्रगुप्त द्वारा स्वागत व प्रेतनिवास का दर्शन कराने का वर्णन), कथासरित् १२.५.३२५ (चित्रगुप्त द्वारा सिंहविक्रम चोर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे नरक से बचाने की कथा ) । chitragupta


      चित्रध्वज पद्म ५.७२.९६ (चन्द्रप्रभ - पुत्र चित्रध्वज का तप से जन्मान्तर में कृष्ण - पत्नी चित्रकला बनना), लक्ष्मीनारायण ३.१८२.९५ (विष्णु द्वारा राजा पृथ्वीधर की तपस्या से प्रसन्न होकर जन्मान्ध पुत्र चित्रध्वज को नेत्र प्रदान करने का वर्णन ) ।


      चित्रपट स्कन्द ४.१.३३.९६ (चित्रपटी दर्शन से माल्यकेतु - पत्नी कलावती को पूर्वजन्म में दृष्ट मणिकर्णिका व ज्ञानवापी का स्मरण), कथासरित् ९.५.७८ (राजा कनकवर्ष को मदनसुन्दरी का चित्रपट पर बना चित्र दिखाने का कथन), १२.३४.७४ (तापसी द्वारा कन्या मन्दारवती का चित्र चित्रपट पर बनाकर सुन्दरसेन को दिखाना आदि ) । chitrapata


      चित्रबर्ह विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.३१ (गरुड के पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण ४.७६.६१ (चित्रबर्ह आदि गन्धर्वों द्वारा ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को लोमश से कृष्ण कथा सुनना )


      चित्रभानु गर्ग ७.२०.३१ (हरि -पुत्र व प्रद्युम्न -सेनानी चित्रभानु द्वारा सोमदत्त से युद्ध), ब्रह्माण्ड २.३.६९.४० (चित्रभानु / सूर्य द्वारा भिक्षा में प्राप्त सात द्वीप व कार्त्तवीर्य के शैल वन जला देने का कथन ), स्कन्द २.४.७.१०७टीका (हेलिक - पुत्र व दुष्ट - चरित्र चित्रभानु द्वारा भ्राता का कल्याण करने की कथा) । chitrabhaanu


      चित्रयुद्ध ब्रह्माण्ड २.३.७१.१८४(देवकी - पुत्र? गवेषण के चित्रयोधी होने का उल्लेख), ३.४.२२.७४(भण्ड - सेनापति कुरण्ड के चित्रयुद्ध विद्या में दक्ष होने का उल्लेख), मत्स्य १५०.२०१(अश्विनौ के चित्रयोधी होने का उल्लेख), १५२.३(जनार्दन के चित्रयोधी होने का उल्लेख), १५२.२७(शुम्भ दैत्य के चित्रयोधी विशेषण का उल्लेख ) chitrayuddha


      चित्ररथ गरुड ३.९.३(१५ अजान देवों में से एक), देवीभागवत ९.२०.३ (गन्धर्वराज चित्ररथ द्वारा शङ्खचूड के नगर में जाने का उल्लेख), पद्म १.६५.१०६ (चित्ररथ द्वारा कालकेय वध का प्रसंग), ब्रह्मवैवर्त्त १.१३.४ (उपबर्हण पर आसक्त ५० कन्याओं द्वारा शरीर त्यागने व चित्ररथ के घर पुनर्जन्म लेकर उपबर्हण से विवाह करने का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.७.३( मौनेय गन्धर्वों में से एक), २.३.७०.१८(रुशेकु द्वारा पुत्रेष्टि से चित्ररथ पुत्र प्राप्त करने का उल्लेख), २.३.७१.२५७(अगावह के पुत्रों में से एक), भागवत ५.१५.१४ (गय व गयन्ती - पुत्र, ऊर्णा - पति, सम्राट - पिता चित्ररथ का उल्लेख), ६.८.३८(नारायण कवच के प्रभाव से चित्ररथ गन्धर्व के विमान से गिरने का कथन), ९.१३.२३(सुपार्श्वक - पुत्र, क्षेमधि - पिता, निमि वंश), ९.२२.४०(नेमिचक्र - पुत्र, कविरथ - पिता, जनमेजय वंश), ९.२३.७(धर्मरथ - पुत्र, अपर नाम रोमपाद, दशरथ - पुत्री शान्ता को गोद लेने व वर्षा न होने आदि का कथन), ९.२३.३१(रुशेकु - पुत्र, शशबिन्दु - पिता, यदु वंश), ९.२४.१५(वृष्णि - पुत्र, श्वफल्क - भ्राता), मत्स्य ८.६(चित्ररथ के गन्धर्वों का ईश बनने का उल्लेख), ४४.१७(रुषङ्गु -पुत्र, शशबिन्दु - पिता), ४८.९४(धर्मरथ - पुत्र, सत्यरथ - पिता, दशरथ - पितामह), ५०.८०(भूरि - पुत्र, शुचिद्रव - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), वायु ६९.२/२.८.२(१६ मौनेय गन्धर्वों में से एक), ७०.९/२.९.९(चित्ररथ के गन्धर्वों के अधिपति बनने का उल्लेख), ९५.१७/२.३३.१७(रशादु द्वारा पुत्रेष्टि से चित्ररथ पुत्र की प्राप्ति, अपर नाम शशबिन्दु), ९९.२७२/२.३७.२६८(उष्ण - पुत्र, शुचिद्रथ - पिता, भविष्य के राजाओं का संदर्भ), वा.रामायण २.३२.१७ (सूत व सचिव चित्ररथ को वनगमन से पूर्व राम द्वारा भेंट देने का कथन), विष्णु ४.१२.२(रुशङ्कु - पुत्र, शशबिन्दु - पिता), ४.१८.१६(धर्मरथ - पुत्र, अपर नाम रोमपाद, दशरथ - पुत्री शान्ता को गोद लेने व वर्षा न होने आदि का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.१६७ (चित्ररथ - कन्या ललिता द्वारा दीपदान का वर्णन), १.२०१.३ (गन्धर्वराज चित्ररथ द्वारा शैलूष - पुत्रों को नष्ट होने का शाप देने का कथन), वायु ९९.२७२/ २.३७.२६८ (भविष्य कालीन नृपों में से एक, उष्ण - पुत्र, शुचिद्रथ - पिता), शिव २.५.३२.२ (शिव द्वारा चित्ररथ / पुष्पदन्त को दूत रूप में शङ्खचूड असुर के पास भेजना), स्कन्द ४.२.८३.१०० (चित्ररथेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य- चित्रगुप्त के दर्शन न होना), ६.६४.१२ (पूर्व जन्म में शुक चित्ररथ का चमत्कारी देवी की प्रदक्षिणा से राजा होना), हरिवंश १.६.३८ (गन्धर्वों व अप्सराओं द्वारा पृथ्वी दोहन में चित्ररथ के वत्स बनने का उल्लेख), कथासरित् १२.१०.८९ (शुक का इन्द्र के शाप से मुक्त होकर चित्ररथ गन्धर्व बनना ) । chitraratha


      चित्ररश्मि पद्म १.४०.९७(मरुत नाम), मत्स्य १७१.५३(मरुत्वती व कश्यप से उत्पन्न ४९ मरुतों में से एक ) ।


      चित्ररेखा भविष्य ३.३.२३.८ (बाह्लीक - सुता चित्ररेखा द्वारा स्वयंवर से इन्दुल के हरण का प्रसंग), ३.३.२३.३६ (चित्ररेखा द्वारा दिन में शुक व रात में पुरुष बनाकर रखे गए इन्दुल की मुक्ति हेतु प्रयास का वर्णन), विष्णु ५.३२.१७(कुम्भाण्ड - पुत्री, अपर नाम चित्रलेखा, सखी उषा को चित्रपट में अनिरुद्ध के दर्शन कराने का कथन), ५.३३.५(चित्रलेखा द्वारा योगविद्या से अनिरुद्ध को लाने का उल्लेख ) । chitrarekhaa


      चित्रलेखा नारद १.५६.६९१(कुबेर-पत्नी), ब्रह्म १.९६.१९ / २०५ (चित्रलेखा के बनाए चित्र से उषा द्वारा प्रद्युम्न - तनय को पहचानना), ब्रह्मवैवर्त्त ४.११४.६५ (अनिरुद्ध - उषा आख्यान), भविष्य ३.४.१८.२ (विश्वकर्मा द्वारा चित्रलेखा - निर्मित श्री को देखकर ईर्ष्या करना व चित्रलेखा के गर्भ से महामाया देवी द्वारा संज्ञा रूप में जन्म लेना), ४.८ (शत्रुञ्जय - पत्नी चित्रलेखा द्वारा तिलक से पति व पुत्र की रक्षा करना), भागवत १०.६२.१४ (अनिरुद्ध- उषा आख्यान के अन्तर्गत योगिनी चित्रलेखा का कथन), मत्स्य २४.२३ (पुरूरवा द्वारा उर्वशी व चित्रलेखा को राक्षस केशि से छुडाने का वृत्तान्त), विष्णु ५.३२.१७(चित्ररेखा/चित्रलेखा : कुम्भाण्ड - पुत्री, अनिरुद्ध - उषा आख्यान), ५.३३.५(चित्रलेखा द्वारा योगविद्या बल से अनिरुद्ध को लाने का उल्लेख), कथासरित् ६.५.१५ (योगेश्वरी चित्रलेखा द्वारा उषा - अनिरुद्ध को मिलाने का वर्णन), हरिवंश २.११७.६ (चित्रलेखा द्वारा पार्वती रूप धारण करके शिव को प्रसन्न करने का उल्लेख), २.११८.२६ (कुम्भाण्ड - पुत्री, उषा - सखी चित्रलेखा द्वारा उषा को शोकरहित करने का वर्णन), २.११९ (चित्रलेखा द्वारा द्वारका में नारद का दर्शन, अनिरुद्ध का शोणितपुर वहन कर उषा से भेंट कराने का वर्णन), स्कन्द १.२.३९.१७९ (पार्वती द्वारा कुमारी के चित्रलेखा नामकरण का वर्णन), ४.२.६७.९० (चित्रलेखा द्वारा पातालवासियों के लेखा लेखन का उल्लेख), ४.२.६७.१०२ (गन्धर्व -कन्या रत्नमाला की सखी चित्रलेखा द्वारा रत्नमाला के भावी पति का चित्र बनाने का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४२३ (गोलोक - दासी चित्रलेखा के राधा के कोप का भाजन होने व अजामुखी होने की कथा ) । chitralekhaa


      चित्रवती ब्रह्माण्ड २.३.७१.२५७(अगावह - पुत्री), वायु ९६.२४८/ २.३५.२४८ (अवगाह - पुत्री ) ।


      चित्रवर्मा वायु ६९.२०/२.८.२०(वालेय गन्धर्वों में से एक), स्कन्द ३.३.८.१३ (बाल्यावस्था में वैधव्य को प्राप्त चित्रवर्मा - कन्या सीमन्तिनी द्वारा सोमवार व्रत करने से पति के तक्षक गृह से पुनरागमन का वर्णन ) ।


      चित्रशर्मा स्कन्द ६.१०७.१५ (चमत्कारपुर के राजा चित्रशर्मा द्वारा तप से हाटक लिङ्ग की स्वराज्य में स्थापना, ६८ स्वगोत्रानुसार ६८ लिङ्गों की स्थापना का वर्णन ) ।


      चित्रसानु ब्रह्माण्ड १.२.१९.११०(पुष्कर द्वीप पर पूर्व में स्थित चित्रसानु पर्वत के उच्छ्राय आदि का कथन), मत्स्य १२३.१३(पुष्कर द्वीप के पूर्वीय भाग में स्थित चित्रसानु पर्वत के पुष्कर द्वारा आवृत होने का उल्लेख), वायु ४९.१०७(पुष्कर द्वीप पर पूर्व दिशा में स्थित चित्रसानु पर्वत के उच्छ्राय आदि का कथन ) । chitrasaanu


      चित्रसूत्र विष्णुधर्मोत्तर ३.३५.१++ (नृत्त शास्त्र के अनुसार संसार के स्थावर व जङ्गम रूपों के चित्र सूत्रों का वर्णन), ३.३९ (चित्रसूत्र की क्षय व वृद्धि), ३.४१ (चित्रसूत्र का वर्णन), ३.४५ (चित्रसूत्र के भाव का कथन ) । chitrasuutra / chitrasootra/chitrasutra


      चित्रसेन गरुड ३.९.४(१५ अजान देवों में से एक), पद्म ४.१३.६९ (सदा पाप कर्मों में रत राजा चित्रसेन द्वारा जन्माष्टमी व्रत करने से हरिगृह जाने का कथन), ६.४३.१२ (चित्रसेन - पुत्री पुष्पदन्ती व माल्यवान् द्वारा इन्द्र शाप से पिशाच योनि में पडने व जया एकादशी व्रत से शापोद्धार होने का वर्णन), ब्रह्म २.१०१.२० / १७१ (विश्वावसु गन्धर्व - पुत्र चित्रसेन द्वारा अक्षक्रीडा में पराजित राजा प्रमति का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१७ (चित्रसेन गन्धर्व की सूर्य रथ में स्थिति का उल्लेख), २.३.७१.२५७(अगावह के पुत्रों में से एक), ३.४.१.९४(१२वें मनु के पुत्रों में से एक), ३.४.१.१०४(तेरहवें रौच्य मनु के १० पुत्रों में से एक), भागवत ८.१३.३०(१३वें मनु देवसावर्णि के पुत्रों में से एक), ९.२.१९(नरिष्यन्त - पुत्र, ऋक्ष - पिता, वैवस्वत मनु वंश), वायु ५२.१७(चित्रसेन गन्धर्व की हेमन्त में सूर्य रथ के साथ स्थिति का उल्लेख), ९६.२४८/२.३५.२४८(अवगाह के पुत्रों में से एक), १००.१०८/२.३८.१०८(१३वें रौच्य मनु के पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.४१(१३वें मनु रुचि के पुत्रों में से एक), स्कन्द ५.२.५७.३ (चित्रसेन गन्धर्व द्वारा गीत गायन से जगत्पति ब्रह्मा की आराधना करने का उल्लेख), ५.२.७८.२ (राजा चित्रसेन की जातिस्मरा कन्या लावण्यवती का पूर्वजन्म का वृत्तान्त), ५.३.३२.३ (इन्द्र के दौहित्र चित्रसेन के पुत्र राजा पत्रेश्वर द्वारा शाप निवृत्ति हेतु शिवाराधना का वर्णन), ५.३.५४ (काशिराज चित्रसेन द्वारा दीर्घतपा - पुत्र ऋक्षशृङ्ग की हत्या पर दीर्घतपा परिवार के मरण का प्रसंग, शूलभेद तीर्थ में अस्थिक्षेप से मुक्ति), ५.३.२२५.२ (चित्रसेन - दौहित्री अलिका द्वारा पति विद्यानन्द को मारने का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४८५.७ (काशिराज चित्रसेन द्वारा मृगभ्रम से ऋक्षशृङ्ग ऋषि को बाण मारना, मृत ऋषि के पिता दीर्घतपा के सपरिवार शरीर त्यागने का वर्णन ) । chitrasena


      चित्रा नारद १.५०.३५ (गान के अन्तर्गत देवों की सात मूर्च्छनाओं में चित्रा, चित्रवती आदि नामों का उल्लेख), १.८८.२१९ (राधा की १६ वीं कला चित्रा का स्वरूप), पद्म २.८६ (वेश्या चरित्र से नरकगामिनी सुवीर - पत्नी चित्रा द्वारा साधु सेवा से जन्मान्तर में दिव्या देवी होने व पतियों के मरने वाली होने का वर्णन), ५.९२.६२ (चित्रा वेश्या द्वारा वैशाख स्नान से जन्मान्तर में दिव्या देवी होने का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.६१.९५ (घृताची व कुबेर - कन्या चित्रा व बुध से चैत्र के जन्म का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१८.७(चित्रा नक्षत्र में पितृ अर्चन से रूपवान् सुतों की प्राप्ति का उल्लेख), २.३.७१.१६५(वसुदेव व रोहिणी - पुत्री), ३.४.२५.९९ (ललिता - सहचरी चित्रा द्वारा चन्द्रगुप्त का वध), भागवत १२.८.१७(मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम के समीप चित्रा नामक शिला का उल्लेख), मत्स्य १७९.२६(महाचित्रा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वामन ५७.७९ (चित्रा द्वारा स्कन्द को गण प्रदान करना), ७२.१५(राजा के वीर्य का पान कर मरुतों को जन्म देने वाली ७ मुनि - पत्नियों में से एक), वायु ६६.४९/२.५.४९(गोवीथि में स्थित नक्षत्रों में से एक), ८२.८/२.२०.८(चित्रा नक्षत्र में श्राद्ध से रूपवान् पुत्रों की प्राप्ति का उल्लेख), ९६.१६३/२.३४.१६३(वसुदेव व रोहिणी - पुत्री), ९६.१७०/२.३४.१७०(सुदेव व मदिरा की पुत्रियों में से एक), स्कन्द ७.१.१४० (चित्र की भगिनी चित्रा द्वारा नदी बनकर भ्राता को खोजने का कथन), हरिवंश १.३५.६ (रोहिणी व वसुदेव - पुत्री सुभद्रा के रूप में चित्रा के पुनर्जन्म का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५३९.१९ (मित्र नामक कायस्थ की कन्या चित्रा द्वारा तप से धर्मराज की गृहिणी व यम - पत्नी होने का कथन ) । chitraa


      चित्राङ्ग पद्म ५.२५.२१ (सुबाहुराज - पुत्र चित्राङ्ग की क्रौञ्च व्यूह के कण्ठ में स्थिति का उल्लेख), ५.२७ (पुष्कल द्वारा चित्राङ्ग के वध का वर्णन), ६.१४८ (चित्राङ्गवदन नामक मालार्क सूर्य की स्थिति व माहात्म्य का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.१२.१३(चित्राङ्गी : भण्ड की ४ रानियों में से एक ) । chitraanga


      चित्राङ्गद देवीभागवत १.२०.१९(शन्तनु व सत्यवती के ज्येष्ठ पुत्र चित्रांगद का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.१०.७०(सत्यवती व शन्तनु के २ पुत्रों में से एक), भागवत ९.२२.२०(सत्यवती व शन्तनु - पुत्र, चित्राङ्गद गन्धर्व द्वारा हत्या), मत्स्य १४.१७(सत्यवती व शन्तनु के २ पुत्रों में से एक), वामन ४६.३३ (चित्राङ्गद व रम्भा द्वारा महादेव पूजा व स्थापना का वृत्तान्त), वायु ६९.१९/२.८.१९(वालेय गन्धर्वों में से एक),७३.१९/२.११.६३(सत्यवती व शन्तनु के २ पुत्रों में से एक), विष्णु ४.२०.३४(सत्यवती व शन्तनु - पुत्र चित्राङ्गद के चित्राङ्गद गन्धर्व द्वारा हत होने का उल्लेख), स्कन्द ४.२.७७.६७ (चित्राङ्गदेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : नित्य स्वर्गभोग की प्राप्ति), ५.१.८.४९ (चित्राङ्गद द्वारा उर्वशी को नृत्य, गीत की शिक्षा देने का उल्लेख), ६.१४३+ (जाबालि द्वारा अपनी कन्या फलवती व उस के साथ रति करने वाले चित्राङ्गद को शाप देने का वर्णन), ७.१.९३.१३ (चित्राङ्गद गण द्वारा सहस्रों वर्षों तक महाकालेश्वर की आराधना करने से महाकालेश्वर का चित्राङ्गदेश्वर नाम विख्यात होने का उल्लेख), ७.१.१२२ (चित्राङ्गदेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : गन्धर्व लोक की प्राप्ति आदि), ७.३.१८ (दुष्ट चरित्र चित्राङ्गद द्वारा यम तीर्थ में स्नान से स्वर्ग गमन का कथन), ७.४.१७.२१ (भगवान के परिचारक चित्राङ्गद का उल्लेख), हरिवंश २.५०.४४ (चित्राङ्गद द्वारा देवों व राजाओं को कृष्ण के अभिषेक का आदेश), लक्ष्मीनारायण १.५०३.२९ (जाबालि ऋषि द्वारा अपनी पुत्री फलवती व चित्राङ्गद गन्धर्व को शाप देने का वर्णन), २.२११.१०३ (चित्राङ्गदधर कबूतर द्वारा शरणागत व्याध की सेवा हेतु अपना शरीर देने का वर्णन), कथासरित् ४.२.१३६ (नारद मुनि के शाप से सिंह बने चित्राङ्गद गन्धर्व की कन्या मनोवती का विवाह होने पर शाप मुक्ति का वर्णन), १०.५.१२२ (चित्राङ्गद नामक हिरण से कौए, कछुए व चूहे की मित्रता का वर्णन), १४.४.१३१ (मन्दरदेव के वचनों से चित्राङ्गद के क्रोध का उल्लेख ) । chitraangada


      चित्राङ्गदा गरुड ३.२८.५३(अपर नाम पिशङ्गदा, बभ्रुवाहन – माता, शची व तारा से तादात्म्य), वामन ६३.३८ (विश्वकर्मा - पुत्री चित्राङ्गदा पर सुरथ की आसक्ति व शाप प्राप्ति का वर्णन), ६५.१६० (चित्राङ्गदा द्वारा सुरथ से विवाह), लक्ष्मीनारायण २.५०.९० (राजा सुरथ को अर्पित होने वाली चित्राङ्गदा द्वारा पिता के शाप से दुःखी हो सरस्वती में गिरने व पिता विश्वकर्मा को शाखामृग होने का शाप देने का वर्णन ) । chitraangadaa/ chitrangada


      चित्रायुध महाभारत उद्योग १६०.१२३(दुर्योधन द्वारा कौरवसेना में चित्रायुध को मकर के समान बताना ) ।


      चित्रिणी भविष्य ३.४.७.४१(मित्रशर्मा व चित्रिणी द्वारा परस्पर आसक्ति व सूर्य पूजा करने का वृत्तान्त ) ।


      चित्रोत्पला ब्रह्माण्ड १.२.१६.३१(ऋक्षवान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), मत्स्य ११४.२५(ऋष्य पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक ) ।


      चिदम्बर लक्ष्मीनारायण २.२२६.७२(शील के चिदम्बर होने का उल्लेख), ३.६०.३१ (रानी चिदम्बरा की भक्ति से प्रसन्न श्रीहरि द्वारा चिदम्बरा की परीक्षा लेने व साक्षात् दर्शन देने का वर्णन ) ।


      चिदाकाश योगवासिष्ठ ३.१४.३८ (जगत में चिदाकाश के रूप का वर्णन), ३.९७.१४ (चिदाकाश, चित्ताकाश व भूताकाश की परिभाषा), ६.२.२०४.१७ (आत्मा में आकर अनेक रूप धारण करने वाले चिदाकाश की एकता प्रतिपादित करने के लिए भूमि, जल, अग्नि, वायु के उदाहरण), स्कन्द ४.१.२९.६१ (चिदाकाशवहा : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) । chidaakaasha


      चिदानन्द लक्ष्मीनारायण ३.१७०.५५ (मानस मुनि द्वारा चिदानन्द योगी से ज्ञान प्राप्ति का वर्णन ) ।


      चिदि ब्रह्माण्ड २.३.७०.३९(कौशिक - पुत्र, चैद्य नृपों का आदि नृप), वायु ९५.३८/२.३३.२८(कौशिक - पुत्र, चैद्य नृपों का आदि नृप ) ।


      चिन्तक वायु २१.५३ (ब्रह्मा के चिन्तन करते समय उत्पन्न प्रजापति के पुत्र चिन्तक से तेइसवें कल्प का नाम चिन्तक होने का उल्लेख ) ।


      चिन्ता योगवासिष्ठ १.१७.४ (चिन्ता की चणक मञ्जरी से उपमा), १.१७.२६ (चिन्ता की चपल बर्हिणी / मयूरी से उपमा), १.१८.२६(देह गृह में चिन्ता के दुहिता होने का उल्लेख), ५.३५ (ब्रह्मात्म चिन्ता नामक अध्याय), ६.१.९०.१५ (चित्त और चिन्ता में तादात्म्य का कथन), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४ (चिन्ता के पिशाची का रूप होने का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.६० (यक्ष के प्रश्न के उत्तर में युधिष्ठिर द्वारा चिन्ता को तृण से बहुतरी / असंख्य बताना ) । chintaa


      चिन्तामणि गणेश २.९६.३४ (इन्द्र द्वारा प्रयुक्त गणेश का नाम), देवीभागवत १२.१२.११ ( चिन्तामणि गृह का वर्णन), पद्म ५.८१.१३(पञ्च पदात्मक चिन्तामणि मन्त्र की महिमा का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.३१.८६(ललिता देवी के चिन्तामणि गृह के अन्य देवियों के गृहों से आवृत होने का कथन), ३.४.३६.६(चिन्तामणि गृह की विभिन्न दिशाओं में स्थित देवियों के भवनों आदि का कथन), योगवासिष्ठ ५.१२.३४ (प्रज्ञा का चिन्तामणि के रूप में उल्लेख), ६.१.८८ (साधक द्वारा चिन्तामणि प्राप्त कर लेने पर भी चिन्तामणि को न पहिचान पाने का कारण त्यागने की कथा), ६.१.९०.५ (सर्व त्याग के चिन्तामणि होने का कथन), ६.२.१.१२ (विचार रूपी चिन्तामणि), ६.२.१९६.२४ (शास्त्र की सार्थकता या निरर्थकता के संदर्भ में काष्ठ / दारु विक्रय से जीवन यापन करने वाले काष्ठहारकों द्वारा चिन्तामणि प्राप्त करने का दृष्टान्त), स्कन्द ३.३.५.१५ (चन्द्रसेन राजा को मणिभद्र से चिन्तामणि की प्राप्ति), ४.२.५७.९३ (चिन्तामणि विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.१४१ (चिन्तामणि के समान सब कार्य सिद्ध करने वाले कपर्दी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.५३२ (गौरमुख ऋषि द्वारा नारायण से प्राप्त चिन्तामणि से दुर्जय राजा का सत्कार करने का वर्णन, दुर्जय द्वारा चिन्तामणि की मुनि से याचना, न मिलने पर युद्ध, कृष्ण द्वारा दुर्जय के संहार आदि की कथा), ३.११९.६ (चिन्तामणि गृह में सर्वसिद्धियों व देवियों की उपासना का वर्णन), ३.१८१.८३ (साधुसेवा के माहात्म्य के अन्तर्गत चिन्तामणि का उल्लेख), ३.१८९.४ (चिन्तामणि : हरिमूर्ति के चिन्तन से महानन्द व मोक्ष प्राप्ति का वर्णन), कथासरित् ७.९.६४ (चिन्तामणि नगर ) । chintaamani


      चिपिटा स्कन्द ५.१.३१.९ (चिपिटा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : तिर्यक् योनि में न पडना ) ।


      चिबुक विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२२(चिबुक में अरुन्धती की स्थिति का उल्लेख ) ।


      चिबुणिका ब्रह्माण्ड ३.४.३२.२९(वर्षा ऋतु की अम्बा, दुला आदि १२ शक्तियों में से एक ) ।


      चिरकारी स्कन्द १.२.६.८१(मेधातिथि गौतम - पुत्र चिरकारी द्वारा माता वध के उद्योग का प्रसंग ) ।


      चिरञ्जीव ब्रह्मवैवर्त्त २.५४.६७ (सुतपा - सुयज्ञ संवाद में सात चिरञ्जीवियों का वर्णन), ४.९६.३५ (हरि भावना से शुद्ध हुए हनुमान आदि नौ चिरजीवियों का उल्लेख), स्कन्द ६.२७१.१२६ (चिरजीव उलूक द्वारा इन्द्रद्युम्न आदि को अपने चिरजीवित्व व उलूकत्व के कारण का वर्णन : गालव - पुत्री का रात्रि में हरण करने से उलूक होना), योगवासिष्ठ ६.१.२१+ (काकभुशुण्डि द्वारा वसिष्ठ को अपनी दीर्घायु का वर्णन), ६.१.२६ (काकभुशुण्डि द्वारा अपनी चिरजीविता के हेतुओं / कारणों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२०६.७१ (नारद व सप्तर्षियों द्वारा मार्कण्डेय को चिरजीवी करने के उपायों का वर्णन), १.५२४.८२ (मार्कण्डेय, गृध्र, उलूक आदि चिरञ्जीवियों के वास स्थान का उल्लेख), कथासरित् ७.७.९ (राजा चिरायु के मन्त्री नागार्जुन द्वारा विज्ञान से अपने को व राजा को चिरञ्जीवी बनाने का वर्णन), १०.६.१८ (काकराज - मन्त्री चिरजीवी द्वारा उलूक और काक में वैर की कथा सुनाना), १०.६.१४१ (चिरजीवी काक द्वारा उलूकों को जला कर मार देने का वर्णन ) । chiranjeeva


      चिरन्देव भविष्य ३.२.८ (गुणाधिप राजा के सेवक चिरन्देव द्वारा पुष्पदा देवी के भोग का वृत्तान्त ) ।


      चिरपुर कथासरित् ९.५.१३ (चिरपुर नगर के राजा द्वारा सेवकों को असमय धन देने की कथा ) ।


      चिरव ब्रह्माण्ड २.३.७.२३४(प्रमुख वानर नायकों में से एक ) ।


      चिल लक्ष्मीनारायण २.८३.९४ (जयध्वज आदि के द्वारा चिल सरोवर जाने का उल्लेख ) ।


      चिल्ली वराह १२२.२५ (कोकामुख क्षेत्र में प्राण निकलने से उतम योनि प्राप्त करने वाली चील का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.१४.३२ (कन्याओं व राक्षसियों के युद्ध में गरुत्मती द्वारा चिल्लिकास्त्र छोडने का उल्लेख), २.२२०.८१(अन्त:प्राग~ नगरी की रानी की पुत्रियों के चिल्लियां होने का कथन ) । chillee


      चिह्न भविष्य ३.४.२१.५३ (भक्तों द्वारा मय के यन्त्र को विलोम करने व वैष्णव चिह्न स्थापित करने का वर्णन), स्कन्द ५.३.१५९.१०(यम लोक में यातना न भोगने पर मर्त्य लोक में जीव के उत्पन्न होने पर पाप चिह्नों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२८.४३ (कन्या के लक्ष्मी सदृश चिह्नों का कथन), १.२९.१५ (शरीर के चिह्नों से लक्ष्मी व नारायण के पृथ्वी पर अवतार को जान सकने का वर्णन), १.५२.३ (चक्रवर्ती राजा की देह के चिह्नों का वर्णन), १.६७, १.६८.३ (शरीर पर चिह्नों से उदार प्रकृति का परिचय), १.६९ (शरीर के चिह्नों से लक्ष्मी अवतार का परिचय), १.३२५.८३(पुरुष के दिव्य लक्षणों का कथन), १.३९८.९२ (नारद द्वारा पृथिवी - पुत्री के लक्ष्मी - समान चिह्नों का वर्णन), १.४६१ (स्त्री शरीर के शुभ - अशुभ चिह्नों का वर्णन), २.२०.७६ (बालकृष्ण की देह पर स्थित चिह्नों का वर्णन), २.२९.२४(चक्रवर्ती पुत्र प्राप्ति हेतु महाकाली को अर्पित किए जाने वाले बालक के शरीर के चिह्नों का कथन), २.६७.११५ (नारद द्वारा परिपूर्ण कृष्ण के अङ्गों पर दिव्य चिह्नों की संख्याओं का वर्णन), २.७९.२९ (बालकृष्ण की देह में विराजने वाले चिह्नों का वर्णन), २.१००.३२ (चक्रवाकी रूप धारी उर्वशी के शरीर में दिव्य चिह्नों का वर्णन), २.११०.९२ (श्रीहरि की देह पर दिव्य चिह्नों का वर्णन), २.१३३.७४ (हस्त पर स्थित सात चिह्नों के विशिष्ट कार्यों अथवा लाभों का कथन), २.२७४.३९ (शिव - कन्या की देह पर स्थित दिव्य चिह्नों का वर्णन), ३.६०.४२ (चिदम्बरा भक्ता द्वारा श्रीहरि से स्वप्न में भागवत चिह्न प्राप्त करने का कथन), ३.६९.७० (शङ्ख, चक्र आदि चिह्न धारण कर श्रीहरि का पूजन करने का निर्देश), ३.१०७.२(चिह्न योगी द्वारा देवानीक नृप व रानी सहजा श्री की परीक्षा का वृत्तान्त व वरदान), ३.१५४.२० (शरीर चिह्न दोषयुक्ता सरोजिनी नामक कुम्भकार - पुत्री की कथा), ३.२१७.२५ (संभरदेव चित्रकार द्वारा श्रीहरि के माथे पर तिल के चिह्न का उल्लेख), ४.७५.८३ (चिह्नराय नामक वस्त्र व्यापारी द्वारा हरिसेवा से हरिलोक प्राप्ति का कथन ) । chihna


      चीन देवीभागवत ७.३८.१३ (चीन देश में नील सरस्वती देवी के वास का उल्लेख), नारद १.५६.७४३(चीन देश के कूर्म का पाद मण्डल होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१८.४६(सीता व चक्षु नदियों द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), १.२.३१.८३(कल्कि अवतार द्वारा हत जनपदों में से एक), कथासरित् ८.१.४६ (सूर्यप्रभ की पांचवी पत्नी विद्युन्माला के चीन देश के राजा सुरोह की कन्या होने का उल्लेख ) । cheena/ china


      चीर वामन ८९.४६(अङ्गिरा द्वारा वामन को कौश चीर देने का उल्लेख), द्र. वस्त्र


      चुडकी स्कन्द २.८.८.२९ (चुडकी तीर्थ का उल्लेख ) ।


      चुम्बन ब्रह्मवैवर्त्त ४.१४.३३ (नलकूबर व रम्भा के संदर्भ में ६ प्रकार के चुम्बनों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३११.४६ (समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक विद्युल्लेखा द्वारा कृष्ण को चुम्बन अर्पित करने से परमात्मा की सर्वाधिक प्रेमपात्र होना ) । chumbana


      चुल्ली अग्नि ७७.१० (चुल्लिका / चूल्हा पूजा विधि), मत्स्य २५४.१२ (भवन प्रकारों में से एक ) । chulli/chullee


      चूडा नारद १.५६.३३५ (चूडाकरण संस्कार के काल का विचार), भविष्य २.१.१७.१२(चूडाकर्म में अग्नि के षडानन नाम के उच्चारण का उल्लेख), वामन ५७.९३ (एकचूडा : नागतीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), ५७.९६ (एकचूडा : केदारतीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.२८(चूडतुण्डक : गरुड के पुत्रों में से एक ) ; द्र. चन्द्रचूड, पञ्चचूडा, पुष्पचूड, शङ्खचूड । choodaa/ chuudaa/ chuda


      चूडामणि गरुड १.१९९(शुभाशुभ विशुद्धि हेतु भैरव – प्रोक्त चूडामणि), गर्ग ५.१६.१९ (गोपी द्वारा उद्धव को चूडामणि भेंट करने का कथन), पद्म १.५०.२३३(सूर्य वार में सूर्य ग्रहण व चन्द्रवार में चन्द्र ग्रहण की चूडामणि संज्ञा : चूडामणि काल में गङ्गा स्नान आदि के महत्त्व का कथन), ५.७०.५७(सब कैशोर मन्त्रों का हेतु चूडामणि मन्त्र होने का कथन), भविष्य ३.२.४.२(चूडामणि नामक शुक द्वारा मित्र रूपवर्मा के विवाह में सहयोग का वर्णन, सारिका / मैना से विवाह से इन्कार), ३.२.१२.१ (चूडापुर में राजा चूडामणि के पुत्र की कथा), स्कन्द ३.१.२.२७(सीता द्वारा हनुमान को चूडामणि देने का उल्लेख), ५.१.२५.७ (चूडामणि का संक्षिप्त माहात्म्य : धर्मबुद्धि होना), ५.१.३६.७ (पांचवें कल्प में उज्जयिनी का नाम चूडामणि पुरी होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२०(कृष्ण व कनका की पुत्री चूडामणि का उल्लेख), कथासरित् १७.४.१२२ (राजकुमार मुक्ताफलकेतु द्वारा प्रेयसी पद्मावती के लिए चूडामणि देने का प्रसंग), १७.६.२७(राजा मेरुध्वज को स्वयम्प्रभा द्वारा प्रदत्त चूडारत्न ) । choodaamani /chuudaamani/ chudamani


      चूडाला योगवासिष्ठ ६.१.७७.३५ (सुराष्ट्र नृप - कन्या, शिखिध्वज - भार्या), ६.१.७८ (चूडाला द्वारा आत्मनिरीक्षण : मन, बुद्धि, अहंकार आदि की जडता का बोध), ६.१.७९.२१ (चूडाला द्वारा स्वयं की श्रीमती स्थिति के कारण को स्पष्ट करना), ६.१.८०.१३ (चूडाला द्वारा आकाश में विचरण के लिए योगाभ्यास), ६.१.८५.५५ (चूडाला द्वारा द्विज - पुत्र रूप धारण कर वन में तपोरत पति के समक्ष प्रकट होना तथा जीव के सुख - दुःख से क्षुभित होने के कारण की व्याख्या), ६.१.८६.२२ (चूडाला द्वारा नारद मुनि से स्वयं की उत्पत्ति बताकर स्वयं का नाम कुम्भ बताना), ६.१.८८ (चूडाला द्वारा चिन्तामणि व कांच मणि में भेद न कर पाने वाले साधक के आख्यान का वर्णन), ६.१.८९ (द्विज - पुत्र रूप धारी चूडाला द्वारा शिखिध्वज को रिपु के प्रति दयादृष्टि दिखाने वाले गज के बन्धनग्रस्त होने के आख्यान का वर्णन), ६.१.९७ (चूडाला द्वारा चिन्तामणि व कांच मणि के रहस्य की व्याख्या), ६.१.९१ (चूडाला द्वारा महावत द्वारा हस्ती को दुःख होने देने के आख्यान की व्याख्या), ६.१.९२ (चूडाला द्वारा शिखिध्वज को सर्वत्याग के लिए प्रबोधन), ६.१.१०१ (चूडाला द्वारा चित्त रूपी अज्ञान को त्यागने, स्पन्द रहित करने तथा चित्त की स्पन्दास्पन्द स्थिति प्राप्त करने का निर्देश), ६.१.१०२ (द्विज - पुत्र कुम्भ रूप धारी चूडाला का शिखिध्वज का प्रबोधन करके अदृश्य होना), ६.१.१०३ (चूडाला का पुन: कुम्भ रूप में प्रकट होकर शिखिध्वज को निर्विकल्प समाधि से जगाने का प्रयत्न करना), ६.१.१०४.३९ (कुम्भ द्वारा जीवन्मुक्त के जीवन में व्यवहार का प्रतिपादन), ६.१.१०५ (कुम्भ द्वारा दुर्वासा के शाप के कारण रात्रि में स्त्री बनने का वर्णन), ६.१.१०६.३६ (चूडाला का मदनिका नाम से शिखिध्वज की पत्नी बनने का वृत्तान्त), ६.१.१०७.१७ (राजा को भोगों में वासनारहित मानकर चूडाला द्वारा राजा को अप्सराओं सहित इन्द्र के दर्शन कराना), ६.१.१०८.३६ (चूडाला द्वारा राजा के समक्ष अपना पूर्व रूप प्रकट करना ) । choodaalaa/ chuudaalaa/ chudala


      चूत गणेश १.९.१७ (पापपुरुष से स्पर्श से चूत / आम्र वृक्ष का भस्म होना, सोमकान्त द्वारा सम्पादित पुण्यों से चूत वृक्ष का पुन: अङ्कुरित होना), भविष्य ४.९४.६२(चूत वृक्ष के विद्या गर्वित विद्वान होने का उल्लेख), स्कन्द ६.२५२.२०(चातुर्मास में प्रजापतियों की चूत वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.३.१०.२ (सरस्वती के केदार पर्वत पर चूत वृक्ष से निर्गत होने का उल्लेख ); द्र. आम्र । chuuta


      चूर्ण देवीभागवत ९.२२.९ (शङ्खचूड - सेनानी चूर्ण द्वारा आदित्यों से युद्ध का उल्लेख), ब्रह्म २.३१.२७ (कुलटा द्वारा देहचूर्णक नरक प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.९९ (नरक में चूर्णकुण्ड प्रापक दुष्कर्मों का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.६.९ (चूर्णनाभ : दनु वंश के प्रधान दानवों में से एक), शिव २.५.३६.१३ (शङ्खचूड - सेनानी चूर्ण द्वारा आदित्यों से युद्ध का कथन), स्कन्द ५.१.६०.५८ (चूर्णक दान से अग्नि के प्रसन्न होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३७०.१०९ (नरक में चूर्ण कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) । chuurna/ churna


      चूली देवीभागवत १२.६.४८ (चूलिका : गायत्री सहस्रनामों में से एक), वा.रामायण १.३३.११ (ब्रह्मचारी चूली द्वारा सोमदा नामक गन्धर्व - कन्या से ब्रह्मदत्त पुत्र की उत्पत्ति ) । chuulee/ chuli


      चेकितान पद्म ५.११७.२२३ (चेकितानिर ब्राह्मण द्वारा स्वेदयुक्त द्रव्यों से शिवलिङ्ग पूजा से स्वेदिल गण बनना), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५७(संतर्दन? व श्रुतकीर्ति के पुत्रों में से एक), लिङ्ग १.६५.१२५ (शिव सहस्रनामों में से एक), वायु ९६.१५६/२.३४.१५६(सन्तर्दन व श्रुतकीर्ति के २ पुत्रों में से एक ) । chekitaana


      चेतना/चेतना वायु ६५.८८/२.४.८९(चेतना : च्यवन का एक नाम?), ६७.१२८/२.६.१२८(चेतस : मरुद्गण में से एक), विष्णु ६.७.४६(प्राणायाम, प्रत्याहार आदि के पश्चात् चेतना के शुभाश्रय का वर्णन), योगवासिष्ठ ३.१४.३८ (चेतना के जगत में रूप का वर्णन ), ३.९६.७१(चेतना पुरुष से जड प्रकृति उत्पन्न होने की व्याख्या ) ।chetanaa


      चेदि गर्ग ७.७+ (चेदिदेश - अधिपति दमघोष - पुत्र शिशुपाल के प्रद्युम्न से युद्ध व प्रद्युम्न की विजय का वर्णन), देवीभागवत २.१.९ (चेदि देश के उपरिचर नामक वसु राजा का वटपत्र पर रखा वीर्य मत्स्यजीवन वाली अद्रिका अप्सरा द्वारा धारण करने आदि की कथा), भागवत ९.२२.६(चेदि देश के बृहद्रथ, चेदिप आदि राजाओं के नामोल्लेख), ९.२४.२(उशिक - पुत्र, चैद्य आदि के पिता, विदर्भ वंश), ९.२४.३९(चेदिदेश के राजाओं में दमघोष व शिशुपाल का उल्लेख), वायु ९३.२६/२.३१.२६(चेदिपति के दिव्य रथ का उल्लेख), विष्णु ४.१२.३९(कैशिक - पुत्र, चैद्य राजाओं के आदि राजा), कथासरित् ६.८.१० (चेदि देश के नृप इन्द्रदत्त की वणिक् भार्या पर आसक्ति तथा मरण की संक्षिप्त कथा ) । chedi


      चेल पद्म १.५०.२४(नरोत्तम ब्राह्मण के स्नान चेलों / वस्त्रों के आकाश में सूखने व अहंकार आने पर चेलों के आकाश में न जाने का कथन), विष्णु ४.१९.८१(कुचेल : उपरिचर वसु के ७ पुत्रों में से एक ), द्र. चैल, वस्त्रchela


      चेष्टा ब्रह्माण्ड २.३.७.९९(चेष्टाऽपहारिणी : ब्रह्मराक्षसी, ब्रह्मधाना की सन्तानों में से एक ) ।


      चैतन्य भविष्य ३.४.१०.३२ (ब्राह्मण रूपी इन्द्र व शची द्वारा चैतन्य कृष्ण को पुत्र रूप में उत्पन्न करने की कथा), ३.४.१९.४ (विष्णु - अंश चैतन्य का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.५५.६४, ३.५५.८८ (अपने काम को वानप्रस्थ की भांति सुखदायक मानने वाली सुमर - पत्नी रक्षा द्वारा योगी चैतन्यशील के दर्शन व सेवा से गुरुतीर्थ में मोक्ष प्राप्त करने का वर्णन), ३.२३५.९७ (चैतन्यायन : दुर्भिक्षग्रस्त जीर्णोद्भव कृषक द्वारा चैतन्यायन से प्राप्त मन्त्र जपने से पुन: अन्न प्राप्ति का वर्णन ) । chaitanya


      चैत्य ब्रह्माण्ड २.३.५.९२(मरुतों के प्रथम गण का एक मरुत), विष्णु ३.१२.१३(रात्रि में चैत्य तरु आदि के वर्जन का निर्देश), लक्ष्मीनारायण २.२७१.७३ (निकृष्ट कर्म करने वाले चैत्यब्रह्म द्वारा यमदूतों के भय से लोमश ऋषि की प्रार्थना करने व शालिग्राम पूजन करने का वर्णन ) । chaitya


      चैत्र ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९(स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक), १.२.३६.४८(पौलस्त्य, तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), भविष्य २.२.८.१२६(शालग्राम में महाचैत्री पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख), ३.४.७.३० (चैत्र मास के सूर्य का माहात्म्य), मत्स्य ७.१०(चैत्र शुक्ल मदन द्वादशी व्रत का वर्णन), १७.६(चैत्र तृतीया : मन्वन्तरादि तिथियों में से एक), ४४.३२(चैत्रा : ज्यामघ - पत्नी, विदर्भ - माता, पुत्र उत्पन्न करने का वृत्तान्त), ५४.८(चैत्र मास में नक्षत्रपुरुष व्रत का वर्णन), ५६.३(चैत्र कृष्ण अष्टमी में शिव की स्थाणु नाम से अर्चना का निर्देश), ६०.३३(चैत्र मास में गो शृङ्गोदक सेवन का निर्देश), ११०.२(चैत्रक : प्रयाग में स्थित तीर्थों में से एक), २४०.५(यात्रा काल विधान में नृप द्वारा चैत्री को यात्रा करने का निर्देश), मार्कण्डेय ७३.२९ (जातहारिणी द्वारा बोध के घर पहुंचाए हुए हैमिनी - पुत्र चैत्र का वर्णन), वामन ६.५२(चैत्र मास में पाञ्चालिक की अर्चना आदि करने का महत्त्व), वायु ६३.१४/२.२.१४(स्वारोचिष मन्वन्तर में चैत्र द्वारा पृथिवी दोहन का कथन), विष्णु ३.१.१२(स्वारोचिष मनु के पुत्रों में से एक), ३.१.१८(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), स्कन्द ५.३.१५०.४१ (चैत्र चतुर्दशी को कुसुमेश्वर तीर्थ में स्नान व पिण्डदान का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण ४.९७.४९ (श्री नारायण द्वारा चैत्रमास में रसातल में बलिगृह में निवास करने का कथन ) ; द्र. मास । chaitra


      चैत्ररथ ब्रह्म १.१६.३०(मेरु के पूर्व में स्थित वन का नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१८.७(कैलास पर्वत पर स्वच्छोदा नदी तट पर चैत्ररथ वन की स्थिति का उल्लेख), भागवत ५.१६.१४(मेरुमन्दर? पर्वत पर स्थित चैत्ररथ वन का उल्लेख), मत्स्य १०.२४ (गन्धर्वों द्वारा पृथ्वी दोहन में चैत्ररथ को वत्स बनाना), १३.२८ (चैत्ररथ वन में देवी के मदोत्कटा नाम का उल्लेख), ८३.३१(मन्दर पर्वत पर चैत्ररथ वन की स्थिति का उल्लेख), १२१.८ (कैलास के पूर्व में अच्छोदा नदी तट पर चैत्ररथ नामक वन का उल्लेख), वायु ३६.११(मेरु? की पूर्व दिशा में चैत्ररथ वन की स्थिति का उल्लेख), ४७.६(अच्छोदा नदी तट पर चैत्ररथ वन की स्थिति का उल्लेख), विष्णु २.२.२५(मेरु की पूर्व दिशा में चैत्ररथ वन की स्थिति, अन्य दिशाओं में अन्य वनों की स्थिति का कथन), स्कन्द ५.३.१९८.६६ (चैत्ररथ में देवी का मदोत्कटा नाम ) । chaitraratha


      चैत्ररथी वायु ८८.७०/२.२६.७०(शशबिन्दु - पुत्री, अपर नाम बिन्दुमती?, मान्धाता - भार्या, ३ पुत्रों के नाम), हरिवंश १.१२.७ (बिन्दुमती उपनाम वाली शशबिन्दु - पुत्री व मान्धाता - भार्या चैत्ररथी का कथन ) ।


      चैद्य भागवत ३.२.१९(चैद्य द्वारा कृष्ण से द्वेष करने पर भी सिद्धि प्राप्त करने का उल्लेख), ७.१.३०(भक्ति के मार्गों में चैद्य द्वारा द्वेष से कृष्ण को प्राप्त करने का उल्लेख), ७.१०.४०( चैद्य आदि नृपों के हरि के चिन्तन द्वारा हरि का सात्म्य प्राप्त करने का उल्लेख), मत्स्य ४६.६(श्रुतश्रवा - पति, सुनीथ - पिता), ५०.१४(चैद्यवर : मैत्रेय - पुत्र, सुदास - पिता, दिवोदास वंश ) । chaidya


      चैल वायु ६१.४०(सामवेद के संहिताकारी में से एक ) ; द्र. चेल ।


      चोडकर्ण कथासरित् १२.२.१६४ (रूपवती द्वारा चोडकर्ण ब्राह्मण से अपना वृत्तान्त कहना ) ।


      चोर अग्नि १४२.१ (अंक ज्योतिष द्वारा चोर के निर्णय का उल्लेख), ३४८.८ (एकाक्षर कोश के अन्तर्गत चोर का उल्लेख), भविष्य ३.२.४.३६ (चन्द्रकान्ति व धूर्त्त महीपाल की कथा के अन्तर्गत चोर द्वारा धन हरण होने का उल्लेख), ३.२.९.१८ (चोर द्वारा पतिव्रता कामालसा का सहर्ष त्याग करना), ३.२.१३.६ (वाशर राक्षस की सहायता से यातुभक्त चोर द्वारा चोरी करने व सुखभाविनी कन्या की पकडे हुए चोर पर आसक्ति आदि का वर्णन), ३.२.१८.३५ (न्यायशर्मा नामक ब्राह्मण धन चोर को यमलोक में पत्नी से उत्पन्न पुत्र द्वारा पिण्ड प्राप्ति की कथा), ३.२.२९.५(धर्म व मख के हन्ता की चोर संज्ञा), ३.४.९.४८ (चोरों द्वारा जयदेव ब्राह्मण के हाथ - पैर काटने व राजा को ठगने की कथा), स्कन्द १.२.६.१४ (महीसागर सङ्गम पर चोरों के प्रकोप का कथन : काम - क्रोधादि चोरों द्वारा तप रूपी धन हरण का वर्णन), ३.१.४९.४३(व्याधि की चोर रूप में कल्पना), ४.२.८३.६७ (चौर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य:सुवर्ण चोरी के पाप का क्षय), ५.२.८१.७६ (चोरी के अपराध में वेश्या द्वारा मुक्त कराए गए ब्राह्मण की कथा), ७.१.२०.१३ (राजा कार्त्तवीर्य द्वारा योग से चोरों को देखने का उल्लेख ; कार्त्तवीर्य के स्मरण से प्रणष्ट द्रव्यता न होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५४५.२४(एकादशी और द्वादशी तिथियों द्वारा चोरों के नाश की कथा), २.७३.८६ (चोरों द्वारा सर्वस्व हर लिए गए सुधना भक्त द्वारा श्रीकृष्ण की शरण लेना, चोरों द्वारा कभी चोरी न करने की प्रतिज्ञा करने का वर्णन), ३.१०४.३३ (तस्कर नरशाय द्वारा चक्रभास नामक साधु के सान्निध्य से चौरकर्म त्याग कर भजन करने का वर्णन), कथासरित् १०.६.८५ (चोर के भय से वृद्ध वणिक् की युवती पत्नी द्वारा पति का आलिङ्गन करना), १०.८.४३ (घट - कर्पर नामक दो चोरों की कथा : कर्पर द्वारा राजकुमारी के साथ रमण, राजा द्वारा कर्पर का वध, घट द्वारा कर्पर की देह का संस्कार करने की कथा, राजकुमारी द्वारा विष से घट की हत्या आदि), १२.५.३१९ (प्रज्ञापारमिता के अन्तर्गत सिंहविक्रम चोर का वृत्तान्त : चोर द्वारा पाप क्षय के लिए चित्रगुप्त को प्रसन्न करना, चित्रगुप्त की कृपा आदि), १८.४.४० (चोरों द्वारा राजा विक्रमादित्य का घेराव करने पर वेताल द्वारा पांच सौ चोरों के भक्षण का वर्णन), १८.५.१२५(मृत चोर के मुख में स्त्री की नाक मिलने की कथा ) । chora


      चोरी अग्नि २५८.५५ (चोरी पर दण्ड विधान का कथन), ३२३.८ (चोरी के पाप से मुक्ति हेतु चण्डकपालिनी मन्त्र का उल्लेख), नारद १.१५.३५ (सुवर्ण चोरी का व्यापक अर्थ), १.३०.३४ (सुवर्ण चोरी का प्रायश्चित्त विधान), पद्म ६.३२.४५ (ब्राह्मण धन की चोरी से रौरव नरक प्राप्ति का उल्लेख), ६.२०९.९ (चण्डक नापित द्वारा धन - चोरी के पाप की कथा), ब्रह्माण्ड ३.४.७.२६ (वज्र द्वारा चोरी किए गए धन को किरात द्वारा पुन: चोरी करने व सत्कार्यों में लगाने का वर्णन), मार्कण्डेय १५ (चौर कर्म के कारण प्राप्त नाना योनियों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर २.१२१ (चौर कर्म के कारण मिलने वाली योनियों का वर्णन), ३.३२८.६८ (चोरी होने पर तण्डुल - परीक्षा का वर्णन ) । chori/choree


      चोल पद्म २.९४.३४ (चोल देश के राजा सुबाहु का वर्णन), ६.१०८.५ (चोलराज द्वारा विष्णुदास ब्राह्मण से विष्णु- भक्ति की स्पर्द्धा, विष्णु - पार्षद सुशील बनने का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.७४.६(आण्डीर के ४ पुत्रों में से एक, ययाति वंश, चोल के चोल जनपद के स्वामी होने का उल्लेख), वायु ९९.६/२.३७.६(जनापीड के ४ पुत्रों में से एक, चोल जनपद का राजा),स्कन्द २.४.८.६ (तुलसी माहात्म्य वर्णन के अन्तर्गत तुलसीदल से विष्णु पूजा करने वाले विष्णुदास को चोलराज से पहले मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख), २.४.२६+ (चोल नामक राजा द्वारा ब्राह्मण से विष्णु - पूजा की स्पर्द्धा, दोनों को सारूप्य मोक्ष प्राप्ति का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४२५.८३ (उत्तम पूजा करने से अहंकार युक्त चोलराज का यज्ञ छोडकर देवताओं द्वारा निष्काम भक्त विष्णुदास को दर्शन देने आए भगवान विष्णु के दर्शन हेतु आ जाने का वर्णन), ३.५१.६३ (अन्न - जल को सुलभ जानकर दान में न देने वाले सुबाहु नामक चोलराज द्वारा स्वदेह - मांस भक्षण का वर्णन ) chola


      चौड स्कन्द १.२.४८ (चौड देशीय ऊर्जयन्त व प्रालेय द्वारा शिवलिङ्ग स्थापना का वर्णन ) ।


      चौल लक्ष्मीनारायण २.२४.२(बालकृष्ण के चौल संस्कार का वर्णन, चौल की निरुक्ति ) ।


      च्यवन गणेश १.५.२९ (भृगु - पुत्र च्यवन द्वारा कुष्ठ ग्रस्त राजा सोमकान्त को देखकर द्रवित होना, पिता भृगु से राजा की दशा का वर्णन), देवीभागवत २.८.४२ (च्यवन - पौत्र रुरु द्वारा प्रियतमा को जीवित करने का वर्णन), ४.८ ( रेवा में स्नान करते हुए च्यवन को सर्प द्वारा पाताल ले जाने पर प्रह्लाद से वार्तालाप), ७.२.२५ (शर्याति - कन्या द्वारा अन्धे च्यवन के साथ विवाह का कारण), ७.३ (च्यवन - सुकन्या - शर्याति कथा), पद्म १.३४.१६ (ब्रह्मा के यज्ञ में च्यवन के ग्रावस्तुत होने का उल्लेख), १.१९.२०९ (स्वगन्धी च्यवन द्वारा पुष्कर में सप्तर्षि आश्रम जाने का कथन), २.१४ (च्यवन - पुत्री सुमना द्वारा जन्म - मृत्यु का वर्णन), २.८५.१६ (ज्ञान सम्पन्न होने की इच्छा से च्यवन द्वारा तीर्थयात्रा, च्यवन द्वारा कुञ्जल शुक के चार पुत्रों के साथ संवाद को सुनना), ५.१४.४५ (माता के गर्भ के च्यवन से भृगु - पुत्र च्यवन की उत्पत्ति, दमन राक्षस को भस्म करने व तप करने का वर्णन, सुकन्या द्वारा च्यवन की आँख फोडने व विवाह करने की कथा), ५.१५.६ (सुकन्या द्वारा च्यवन सेवा व अश्विनी कुमारों की पूजा करने से अन्धत्व समाप्ति का वर्णन), ६.४६.१६ (च्यवन के आश्रम में मेधावी मुनि पर मञ्जुघोषा की आसक्ति, मेधावी के पुण्यों का क्षय व पापमोचिनी एकादशी से पापक्षय होने का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.१० (जातिसम्बन्ध निर्णय के अन्तर्गत च्यवन के भृगु - पुत्र होने का कथन), १.१६.१९ (च्यवन द्वारा जीवदान ग्रन्थ की रचना का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२८(तृतीय तल में च्यवन राक्षस के भवन का उल्लेख), १.२.३२.९८(तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक), २.३.१.९२(च्यवन के पौलोमी से जन्म तथा सन्तति का कथन), २.३.८.३१ (च्यवन व सुकन्या से सुमेधा के जन्म का उल्लेख), २.३.६१.२(पृषध्र द्वारा गुरु की गौ की हत्या पर च्यवन के शाप से शूद्र होने का उल्लेख), भविष्य १.१९ (सुकन्या व अश्विनी कुमारों की कथा), भागवत ९.३.२ (च्यवन द्वारा सुकन्या की प्राप्ति, अश्विनी कुमारों को सोमभाग देने पर इन्द्र के कोप का वर्णन), ९.२२.१(मित्रेय - पुत्र, सुदास - पिता), ९.२२.५(सुहोत्र - पुत्र, कृती - पिता), मत्स्य ५०.२४ (सुधन्वा - पुत्र च्यवन के वंश का वर्णन), ६८.९(च्यवन के शाप से राजा कार्त्तवीर्य के नष्ट होने का उल्लेख), १४५.९२ (तप द्वारा च्यवन को ऋषिता की प्राप्ति का उल्लेख), १९५.१५(भृगु व पौलोमी - पुत्र, आप्नुवान - भ्राता), महाभारत अनुशासन ५०(तुलनीय : स्कन्द पुराण में आपस्तम्ब ऋषि के जालबद्ध होने की कथा), वामन ७ (सर्प द्वारा च्यवन का अपहरण व प्रह्लाद से संवाद का प्रसंग), वायु २३.१७३/१.२३.१६२(१६वें द्वापर में गोकर्ण अवतार के पुत्रों में से एक), ५०.२७(तृतीय तल में च्यवन राक्षस के भवन का उल्लेख), २.४.८९ /६५.८९ (गर्भ च्यवन के कारण च्यवन नाम होने, प्रचेतस में चेतना होने का उल्लेख ; च्यवन व सुकन्या के २ पुत्रों आत्मवान् व दधीचि का उल्लेख), ७०.२६/२.९.२६(सुमेधा - पिता), ८६.२/२.२४.२(मनु - पुत्र पृषध्र द्वारा गुरु की गौ की हिंसा से च्यवन के शाप से शूद्र बनने का उल्लेख), ९९.२०४/२.३७.२०२(मित्रयु - पुत्र?, प्रतिरथ व सुदास - पिता?), ९९.२१७/ २.३७.२१४ (सुहोत्र - पुत्र, कृत - पिता, कुरु वंश), ९९.२३७/ २.३७.२३२ (देवापि - पुत्र), विष्णु ४.१९.७०(मित्रायु - पुत्र, सुदास - पिता, दिवोदास वंश), ४.१९.७९(सुहोत्र - पुत्र, कृतक - पिता, कुरु वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.१७.१७ (च्यवन द्वारा शिक्षित सगर का राज्य वापस मिलने पर च्यवन की बार - बार पूजा करने का उल्लेख), १.३४ (राजा कुशिक की सेवा से प्रसन्न होकर च्यवन द्वारा कुशिक वंश के ब्राह्मण वंश होने का वरदान देने का वर्णन), १.१७० (पुत्र प्राप्ति हेतु युवनाश्व द्वारा च्यवन पूजा करने व कलश का जल पी लेने से कुक्षि में पुत्र उत्पन्न होने की कथा), १.१९९.११ (पुलोमा से च्यवन के जन्म का वर्णन), १.२४२.८ (च्यवन द्वारा राम को लवण वध की प्रेरणा देना ), स्कन्द ५.२.३०.३६ (च्यवनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : च्यवन - सुकन्या - शर्याति कथा, अश्विनौ को यज्ञ भाग देने पर शक्र के वज्र प्रहार के भय से मुक्ति), ६.५.६ (त्रिशङ्कु के यज्ञ में च्यवन के आग्नीध्र होने का उल्लेख), ६.१८०.३२ (ब्रह्मा के यज्ञ में च्यवन के मैत्रावरुण होने का कथन), ७.१.२७९ (च्यवनादित्य में १०८ नामों से रवि पूजा करने से शुद्ध होने का उल्लेख), ७.१.२८०+ (भृगु - पुत्र च्यवन - शर्याति - सुकन्या की कथा, रूप प्राप्ति, अश्विनौ को यज्ञ में भाग देने पर इन्द्र का वज्र क्षेपण, च्यवन द्वारा मद दैत्य की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८० (दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक), १.२०२.७ (१६ चिकित्सकों में से एक), १.३९०.२७ (कृष्ण - शाप से सलिलद्यु गन्धर्व का च्यवन होना, सुकन्या - च्यवन आख्यान), १.५०९.२३(ब्रह्मा के सोमयाग में मैत्रावरुण), १.५४४.४१ (च्यवन द्वारा सूर्य - पूजा, सुकन्या - च्यवन आख्यान), २.२२.४ (च्यवन द्वारा पाताल जाने पर प्रह्लाद को पृथ्वी के तीर्थ बताना), ३.५१.११ (धनुर्धर लुब्धक, भिल्ली तथा चार हंसों द्वारा सपत्नीक च्यवन का चरणामृत पीकर उद्धार का कथन), ३.५२.१२१ (च्यवन द्वारा शुक को सपरिवार कृष्ण मन्त्र देना ) । chyavana

      श्री श्रीनिवास शर्मा ने नेल्लोर से सूचित किया है कि सोमयाग में अश्विनौ को धारा ग्रह द्वारा सोम की आहुति नहीं दी जाती, जबकि अन्य देवों के लिए धारा ग्रह का विधान है । यह तथ्य च्यवन की प्रकृति को स्पष्ट करता है । लोक में शिव की मूर्ति पर जल का सिंचन धारा के रूप में दिखाया जाता है । जिस साधक को केवल कभी - कभी ऐसे सिंचन का, शिर में शीतलता का अनुभव होता हो, उसे च्यवन कह सकते हैं। यह च्यवन भेषज है । सभी रोगों को दूर करता है ।


      छगल नारद १.६६.११६(छगलण्ड की शक्ति कपर्दिनी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.३७६( पिशाचों के १६ वर्गों में से एक), मत्स्य १३.४३(छागलाण्ड तीर्थ में सती देवी की प्रचण्डा नाम से स्थिति का उल्लेख), २२.७२(छागलाण्ड : श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), वायु २३.११६/१.२३.१०८(वाराह कल्प में छागल पर्वत पर श्वेत अवतार के ४ पुत्रों के जन्म का कथन), २३.२११/१.२३.१९९(२५वें द्वापर में मुण्डीश्वर अवतार के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ७.१.१०.५(छागलाण्ड तीर्थ का पृथिवी तत्त्व वाले ८ तीर्थों में वर्गीकरण) ।


      छत्र अग्नि २४५ (राजा के छत्र निर्माण हेतु प्रशस्त द्रव्यों का वर्णन), २६९.१ (छत्र प्रार्थना), गरुड १.५१.२६ (छत्र व उपानह दान से असिपत्रवन के मार्ग व तीक्ष्ण आतप को तरने का उल्लेख), गर्ग ५.२.१८(कुमुद अनुचर द्वारा छत्रभ्रमि धारण का उल्लेख), देवीभागवत १२.१०.५ (छत्र के समान तीनों लोकों का संताप दूर रखने वाले मणिद्वीप का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.१० (छत्र दान से वरुण लोक प्राप्ति का उल्लेख), ४.९३.६० (राधा द्वारा उद्धव को प्रदत्त छत्र की विशिष्टता का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.२१.१९(भू आदि ७ लोकों के छत्र की भांति एक के ऊपर एक स्थित होने का उल्लेख), ३.४.१५.२३ (विष्णु द्वारा ललिता को छत्र भेंट करने का उल्लेख), ३.४.४४.८७(छत्रिका : हृदय चक्र की १२ शक्तियों में से एक), भविष्य १.५३.२० (हिमाचल द्वारा छत्र बनकर सूर्य के रथ में साथ रहने का कथन), ४.१३८.४३ (छत्र मन्त्र), ४.१३९.३ (देवासुर युद्ध में देवताओं द्वारा देवी की छत्र से पूजा का उल्लेख), भागवत १२.११.१९ (आतपत्र को विष्णु द्वारा वैकुण्ठ रूप में धारण करने का उल्लेख), मत्स्य २५१.४ (समुद्र मन्थन से उत्पन्न छत्र को वरुण द्वारा ग्रहण करने का उल्लेख), वामन ७९.५३ (प्रेत द्वारा दान किए छत्र के शमी वृक्ष बनने का उल्लेख), ८९.४७(द्युराज द्वारा वामन को छत्र प्रदान करने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१३.७ (छत्र निर्माण में प्रयुक्त सामग्री का वर्णन), २.१६०.३ (छत्र मन्त्र), ३.३०१.३४(छत्र प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि), शिव २.५.८.२५ (शिव रथ में ॐकार का छत्र लगाने का उल्लेख), स्कन्द २.७.२.१७ (वैशाख मास में छत्र दान का उल्लेख), २.७.१०.५८ (हेमकान्त द्वारा त्रित मुनि को छत्र देने का प्रसंग), ३.२.१६.७ (छत्रजा देवी की मातृका रूप में स्थापना से भय नाश का कथन), ३.२.३९.३१ (छत्रोटा नामक गोत्र देवी का उल्लेख), ४.१.२९.६३ (छत्रीकृता :गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.८८.६१ (पार्वती रथ में सूर्य - चन्द्र रूपी छत्र का उल्लेख), महाभारत उद्योग ९८.२३(वरुण के छत्र से सोम जैसे निर्मल सलिल वर्षण का उल्लेख), वा.रामायण २.४४.२०(छत्र की वाजपेय याग से उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१८.२०(अर्यमादि सूर्य - कन्याओं द्वारा कृष्ण को अर्पित छत्र के स्वरूप का कथन), २.१७६.२३ (ज्योतिष में छत्र योग), २.२२५.९४(देवों को स्वर्णछत्र दान का उल्लेख), ४.७८.३१(नक्षत्र मण्डल से प्रकाशित छत्र का उल्लेख), महाभारत उद्योग ९८.२४ (वरुणलोक में शीतल जल की वर्षा करने वाले वरुण के छत्र का कथन), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ.६३८२ (श्रीकृष्ण के द्वारका प्रस्थान पर भीम द्वारा कृष्ण पर शतशलाक छत्र धारण करने का उल्लेख ) ; द्र. अहिच्छत्रा । chhatra


      छन्द अग्नि ३२८ (छन्द गण व गुरु - लघु की व्यवस्था), ३२९ (गायत्री छन्द के आर्षी आदि भेद - यजुषां षडर्णा गायत्री साम्नां स्याद्द्वादशाक्षरा । ऋचामष्टादशार्णा स्यात्साम्नां वर्धेत च द्वयं ॥), ३३० (गायत्री आदि छन्द भेद, देवता, स्वर, वर्ण, गोत्र का वर्णन), ३३१ (उत्कृति आदि छन्द भेद, गण - छन्द व मात्रा - छन्दों का निरूपण), ३३२+ (सम, अर्धसम व विषम वृत्त का वर्णन), ३३५ (छन्द प्रस्तार का निरूपण - छन्दोऽत्र सिद्धं गाथा स्यात् पादे सर्व्वगुरौ तथा । प्रस्तार आद्यगाथोनः परतुल्योऽथ पूर्व्वगः ।। ), कूर्म १.७.५८ (ब्रह्मा के मुखों से छन्दों का प्राकट्य - गायत्रं च ऋचश्चैव त्रिवृत्‌स्तोंम रथन्तरम् । अग्निष्टोमं च यज्ञानां निर्ममे प्रथमान्मुखात् ।।), देवीभागवत ११.२२.३४(गायत्री आदि छन्दों का प्राणादि वायुओं से सम्बन्ध का कथन - उष्णिक्छन्दस्तथापानाय स्वाहेत्यपि कीर्तयेत् । सोमायेदं च न ममेत्यत्रोहः परिकीर्तितः ॥), नारद १.५७ (छन्द शास्त्र का संक्षिप्त परिचय - वैदिकं लौकिकं चापि छन्दो द्विविधमुच्यते ।। मात्रावर्णविभेदेन तच्चापि द्विविधं पुनः ।।), १.८३+ (दश महाविद्याओं की आराधना हेतु छन्द - ऋषिर्नारायणश्चास्य छन्दो हि जगती तथा ।। देवता तु महालक्ष्मीर्द्विद्विवर्णैः षडंगकम् ।।), ब्रह्माण्ड १.२.९.५ (तीन छन्दों का पुरोडाश में एकीकृत होना - ताभिरेकत्वभूताभिस्त्रिविधाभिः स्ववीर्यतः ॥ त्रिसाधनः पुरोडाशस्त्रिकपालस्ततः स्मृतः ।), १.२.१३.९१(स्वायम्भुव मन्वन्तर में ३३ छन्दज होने का उल्लेख- तेषां यतो गणा ह्येते देवानां तु त्रयः स्मृताः ।। छंदजास्तु त्रयस्त्रिंशत्सर्गे स्वायंभुवस्य ह ।।), २.३.७.३०(गायत्री आदि छन्दों के सौपर्ण पक्षी होने का उल्लेख - गायत्र्यादीनि छन्दांसि सौपर्णेयानि पक्षिणाः । व्यवहार्याणि सर्वाणि ऋजुसन्निहितानि च ॥), भविष्य २.१.८.३७ (कुल अक्षरों की संख्यानुसार मन्त्रों के देवताओं का कथन - अष्टादशाक्षरो मंत्रः पुराणात्मक एव च ।। ऊनविंशश्चंद्रमाः स्याद्विंशो नारायणो वपुः ।।), भागवत ३.१२.४५ (ब्रह्मा के शरीर से छन्द की सृष्टि), १०.४५.४८(गुरु सान्दीपनी द्वारा कृष्ण व बलराम को छन्दों/विद्या के नष्ट न होने का आशीर्वाद - छन्दांस्ययातयामानि भवन्त्विह परत्र च ), वायु ३१.४७ (गायत्री, त्रिष्टुप, जगती छन्दों का कथन - गायत्री चैव त्रिष्टुप् च जगती चैव या स्मृता। त्र्यम्बका नामतः प्रोक्ता योनयः सवनस्य ताः ।।), ६२.१७६/२.१.१७६(ऋषियों द्वारा वसुधा दोहन में छन्द: पात्र होने का उल्लेख - पात्रमासीत्तु छन्दांसि गायत्र्यादीनि सर्वशः । क्षीरमासीत्तदा तेषां तपो ब्रह्म च शाश्वतम् ॥), विष्णुधर्मोत्तर ३.३ (विभिन्न प्रकार के छन्दों का वर्णन - षडक्षरेण पादेन गायत्रं छन्द उच्यते ।। उष्णिक् सप्ताक्षरं चैव अष्टाक्षरमनुष्टुभम् ।।), स्कन्द ५.३.२८.१३ (त्रिपुर वधार्थ शिव के रथ में छन्दों के रश्मियां बनने का उल्लेख - यन्तारं च सुरज्येष्ठं वेदान्कृत्वा हयोत्तमान् ।खलीनादिषु चाङ्गानि रश्मींश्छन्दांसि चाकरोत् ॥), हरिवंश ३.७१.५१ (वामन के विराट रूप में सम्पूर्ण छन्दों के दन्त होने का उल्लेख - पृष्ठेऽस्य वसवो देवा मरुतः पादसंधिषु ।। सर्वच्छन्दांसि दशना ज्योतींषि विमलाः प्रभाः ।।), महाभारत उद्योग ४३.५(छन्दों द्वारा पापों से रक्षा न करने का कथन - न च्छन्दांसि वृजिनात्तारयन्ति मायाविनं मायया सर्वमानम्। नीडं शकुन्ता इव जातपक्षाश्छन्दांस्येनं प्रजहत्यन्तकाले ।।), ४३.५० (छन्दों / वेदों के स्वच्छन्द रूप से परमात्मा में स्थित होने का कथन - छन्दांसि नाम द्विपदां वरिष्ठ स्वच्छन्दयोगेन भवन्ति तत्र। छन्दोविदस्ते न च तानधीत्य गता न वेदस्य न वेद्यमार्याः ।। ), भरतनाट्य १४.४१(१ से लेकर २६ अक्षरों वाले शब्दों की छन्द संज्ञाएं), शौ.अ. ५.२६.५(छन्दांसि यज्ञे मरुतः स्वाहा) ; द्र. मधुच्छन्दा । chhanda

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      Dr. Madhusudan Mishra on Chhanda


      छन्दोग भागवत १२.६.५३(व्यास द्वारा छन्दोग संहिता शिष्य जैमिनि को देने का उल्लेख), मत्स्य ९३.१३३(कोटिहोम में छन्दोग द्वारा पश्चिम् में जपनीय सूक्तों के नाम), २६५.२८(मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में छन्दोग द्वारा जपनीय सूक्तों के नाम), वायु ३१.५ (३३ देवों के स्वायम्भुव मनु के छन्दोग होने का उल्लेख), ८३.५४/२.२१.२५(श्रेष्ठ छन्दोग के लक्षणों का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५१३.२(छान्दोiग्य विप्र की कन्या के नृप - कन्या से सखीत्व का वृत्तान्त ) ।


      छाग देवीभागवत ७.३०.७३ (छगलण्ड तीर्थ में प्रचण्डा देवी के वास का उल्लेख), भविष्य ४.१४१.५५ (केतु के लिए छाग दान का उल्लेख), मत्स्य ९३.७२ (यज्ञों के अङ्ग व अग्नि के वाहन छाग से शान्ति प्रार्थना का विधान), स्कन्द ४.२.५३.१२८ (काशी में छागलेश्वर लिङ्ग दर्शन से पाप प्रकृति न होने का उल्लेख), ४.२.७०.७४ (छागवक्त्रेश्वरी देवी की महाष्टमी को पूजा का कथन), ४.२.७४.५२ (छागवक्त्र गण द्वारा काशी में ईशान कोण की रक्षा), ५.१.३४.७१ (स्कन्द को अग्नि द्वारा छाग देने का उल्लेख), ५.३.१९८.८० (छाग लिङ्ग में प्रचण्डा देवी का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३(एक छाग के अशुभत्व का उल्लेख), कथासरित् ७.५.७ (श्रुतवर्धन वैद्य द्वारा वीरभुज से पुत्रोत्पत्ति हेतु छगलक मंगवाना), १७.१.१०० (यज्ञ के लिए रखे गए छाग को व्याघ्र द्वारा खा जाना), १८.२.१३२ (ठिण्ठाकराल द्वारा छाग की आकृति वाले दिव्य भाण्ड का नृत्य देखना ) । chhaaga


      छाया अग्नि २३३.८ (वार अनुसार छाया मान), गणेश २.९३.२५ (गणेश द्वारा छायारूप असुर का वध), देवीभागवत १.१९.५७(पुत्र शोक से पीडित व्यास द्वारा शिव के वरदान से पुत्र की छाया के दर्शन का उल्लेख), ९.१६.३१ (सीता से उत्पन्न छाया का द्रौपदी बनने का उल्लेख), ९.१९.२४(छाया से आहृत केयूर - युग्म की तुलसी को प्राप्ति), १२.६.५३ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), १२.१०.५ (मणिद्वीप के त्रिजगत के छत्रीभूत होने के कारण ब्रह्माण्ड की छाया रूप होने का उल्लेख), पद्म १.८.४० (सूर्य तेज के असह्य होने से संज्ञा द्वारा अपनी छाया उत्पन्न करने, छाया द्वारा अपने पुत्र को अधिक स्नेह करने पर यम के क्रोध आदि का वर्णन), ब्रह्म १.४ (सूर्य - संज्ञा - छाया आख्यान), १.३०/३२.५२ (संज्ञा - छाया आख्यान), २.१९.९/९०.१९ (सूर्य - पत्नी), ब्रह्मवैवर्त्त २.१४.४९ (वास्तविक सीता की अग्नि से वापसी पर सीता की छाया द्वारा तप करने व द्रौपदी का अवतार लेने का वर्णन), २.१६.१३५(छाया के केयूर युग्म के हरण का उल्लेख), ४.८६.१३७ (श्रीदामा के शाप व श्रीहरि के वरदान से वृन्दा का राधा की छाया होने का वर्णन), ४.९६.७३ (श्रवणा द्वारा क्रोध से अपनी छाया चन्द्रमा को देकर पितृ गृह जाने का वर्णन), ४.११५.७९(मायावती के रति की छाया होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२१.५३ (अग्नि व आप: की शुक्ल छाया व मेदिनी की कृष्ण छाया होने का उल्लेख), १.२.३६.९६ (सृष्टि द्वारा अपनी छाया से नारी का निर्माण, सृष्टि - पत्नी छाया के ५ पुत्रों के नाम), ३.४.३५.४७ (मार्तण्ड भैरव की ३ शक्तियों में से एक), भविष्य १.४७.८ (संज्ञा द्वारा छाया की उत्पत्ति कर स्वयं तपस्या के लिए चले जाना), भागवत ३.१२.२७ (ब्रह्मा की छाया से कर्दम की उत्पत्ति का उल्लेख), ८.५.४० (पुरुष/परमात्मा की छाया से पितरों की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य १५४.१७१ (नारद द्वारा पार्वती के चरण अपनी छाया से युक्त होने से व्यभिचारी होने का कथन), १५४.१९० (नारद द्वारा स्वच्छाया से युक्त चरणों के कथन की व्याख्या : पद्म समान चरण, स्वच्छ नख आदि), मार्कण्डेय ७७/७४ (संज्ञा - छाया आख्यान, छाया द्वारा यम को शाप आदि), वायु ६.२२(यज्ञवराह की पत्नी छाया का उल्लेख), ८४.४० (संज्ञा - छाया आख्यान), १०४.८२/२.४२.८२ (छायाओं में बौद्ध के न्यास का उल्लेख), योगवासिष्ठ ३.४.९ (वसिष्ठ - राम संवाद श्रवण काल में छाया का दीर्घ होना), ६.२.८०.१८, ६.२.८१.५ (प्रलयकाल में नर्तनरत भैरव रुद्र की सूर्य के अभाव में भी छाया कालरात्रि का वर्णन), वा.रामायण ४.४०.३७ (सुग्रीव द्वारा छाया पकडकर खींचने वाले राक्षसों के विषय में बताना), ४.४१.२६ (छाया पकडकर प्राणियों को खाने वाली राक्षसी अङ्गारका का उल्लेख), ५.१.१९० (हनुमान द्वारा छायाग्राही राक्षसी सिंहिका को पहचानने का वर्णन), ५.५८.३५ (सिंहिका द्वारा हनुमान की छाया ग्रहण का वर्णन), शिव २.१.१२.१५ (छाया द्वारा पिष्टमय लिङ्ग की पूजा), २.१.१२.३५ (छाया द्वारा पिष्टमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), ५.१२.१९ (वृक्ष के पुष्प, फल व छाया से सर्वजन लाभ का कथन), ५.२८.३ (पुरुष द्वारा स्व छाया का निरीक्षण कर भविष्य ज्ञान करने का वर्णन), ५.३५ (संज्ञा - सूर्य - छाया आख्यान), स्कन्द २.७२.२७(वैशाख मास में छत्र दान न करने से छायाहीन पिशाच बनने का उल्लेख), ३.२.१३ (सूर्य - संज्ञा - छाया कथा), ४.१.१७.७७ (त्वष्टा प्रजापति की कन्या संज्ञा द्वारा अपनी छाया तैयार कर स्वयं पितृ गृह जाना, छाया द्वारा संज्ञा - तनय यम की अवहेलना आदि का वर्णन), ४.१.४२.२९(छाया दर्शन से मृत्यु के ज्ञान का कथन), ७.१.२६३ (छाया लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : पापमुक्त होना), ७.२.१५.१०(दिव्य छाया वृक्षों का लक्षण - उदयास्त पर छाया न होना), लक्ष्मीनारायण १.६२ (सूर्य -संज्ञा - छाया कथा), १.३३४.५३ (सीता की छाया द्वारा द्रौपदी का अवतार लेने का कथन), २.२४६.३३ (स्व छाया आदि द्वारा अधिक्षिप्त को सहने व प्रतिक्षेप न करने का निर्देश ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(सूर्य सविता की अवलम्बिनी शक्ति) ; द्र. सुच्छाया । chhaayaa


      छालिक्य हरिवंश २.८९.६७(छालिक्य गान का वर्णन तथा महत्त्व )


      छिक्का लक्ष्मीनारायण २.५.३२ (बाल कृष्ण का घात करने को उत्सुक दैत्यों में से एक ) ।


      छिद्र वायु ४९.१७३ (पृथिवी आदि ३ भूतों के परिच्छिन्न होने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.११ (विराट् पुरुष के नासाछिद्रों में वासरों की स्थिति का उल्लेख), शिव ५.४१.३८ (भारद्वाज के ७ पुत्रों के जन्मान्तर में चक्रवाक बनने पर पञ्चम पुत्र का छिद्रदर्शी नाम), स्कन्द १.२.३३.६५ (शक्तिच्छिद्रेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : स्कन्द द्वारा तारक हेतु उदक कर्म का स्थान आदि), ५.२.२८.११ (ब्रह्म छिद्र, जप छिद्र आदि हेतु प्रायश्चित्त मन्त्र का कथन ) । chhidra


      छिन्नकर्ण स्कन्द २.७.१४.३७ (दुर्वासा - शिष्य द्वारा धर्मच्युत होने पर छिन्नकर्ण नामक पिशाच होने का वर्णन ) ।


      छिन्नमस्तक नारद १.८७.४ (छिन्नमस्ता : दुर्गा - अवतार, मन्त्र विधान का कथन), शिव ३.१७.७ (शङ्कर के दस नामों में से एक छिन्नमस्तक ) ।


      छुछुन्दर गरुड १.२१७.२९ (गन्ध हरण से छुछुन्दर की योनि प्राप्ति का उल्लेख), २.२.६७(गन्ध हरण से छुछुन्दर योनि प्राप्ति का उल्लेख), मार्कण्डेय १५.३० (गन्ध की चोरी के फलस्वरूप छुछुन्दर होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२३ (शुभ गन्धों के हरण से छुच्छुन्दर योनि प्राप्ति का उल्लेख ) ।


      छुरिका भविष्य ४.१३८.७७ (छुरिका मन्त्र), स्कन्द ६.१२०.१६ (वायु के अस्त्र छुरिका का उल्लेख ) ; द्र. क्षुरिका ।


      छेदन अग्नि ३४८.६ (एकाक्षर कोश के अन्तर्गत छेदन द्वारा छ अक्षर का निरूपण ) ।


      जगत गर्ग ७.१२.१३ (जगत के मिथ्यात्व का अगस्त्य द्वारा प्रद्युम्न को उत्तर देना), ब्रह्माण्ड २.३.७२.५०(जगत् के अग्नीषोमात्मक होने का कथन ; जगत् की देह में स्थिति का वर्णन), वायु ९७.५१/२.३५.५१(वही), विष्णु १.१.३१ (जगत् की विष्णु से उद्भूति, स्थिति का उल्लेख), योगवासिष्ठ ३.१४.७२(जगत के चित् होने के परिणामों का कथन), ३.१८.२८ (जगत भ्रान्ति), ३.८७.९ (दस ब्राह्मण - पुत्रों द्वारा ब्रह्मा की धारणा करके मनोव्योम में १० संसारों की सृष्टि करने का वर्णन), ५.८४ (मनोजगत), ६.१.२९.१३५ (स्वयं स्पन्दित होने से जगत नाम होने का कथन), ६.१.४१.५१ (जगत के मिथ्यात्व का प्रतिपादन), ६.२.७.१२ (जगत वृक्ष का वर्णन), ६.२.५५.१९ (चिद्व्योम रूपी जगत के परमार्थमयत्व का वर्णन), ६.२.५९+ (चिदाकाश में स्थित होकर जगत जाल के दर्शन का वर्णन), ६.२.६१.४ (जगत के परमार्थघन चिन्मात्र ब्रह्म का हृदय होने का कथन ; जगदाकाशैक बोध नामक अध्याय), ६.२.६२.४० (सर्ग स्वप्न में जगदुद्भव दर्शन के लिए चिद्व्योम रूपी द्रष्टा की आवश्यकता का वर्णन), ६.२.६३.३३ (मोक्ष रहित मृत्यु प्राप्त करने वाले जीवों को धारण करने वाले प्रतिजगत का कथन), ६.२.८६, ६.२.८७(जगत की अनन्तता), ६.२.९०.९(जल धारणा द्वारा जगत की अनुभूति का वर्णन), ६.२.९१ (तैजस धारणा द्वारा जगत की अनुभूति का वर्णन), ६.२.९२ (वायु धारणा द्वारा जगत की अनुभूति का वर्णन), ६.२.९४ (जगत का ब्रह्म से एक्य), ६.२.१०४ (जगत की असत्ता का प्रतिपादन नामक अध्याय), ६.२.१३९.२४ (प्रलय काल में जगत नाश वर्णन नामक अध्याय), ६.२.१७२ (जगत के ब्रह्मत्व का प्रतिपादन नामक अध्याय) । jagata


      जगती ब्रह्माण्ड १.२.९.४(गायत्र्यादि ३ अम्बिकाओं में से एक, त्रिकपालपुराडाश निर्माण का कथन), मत्स्य १९२.१६(शुक्ल तीर्थ में जगती दर्शन से भ्रूणहत्या पाप से मुक्ति का उल्लेख), २६२.२(पीठिका उच्छ्राय के १६ भागों में से ४ जगती भाग होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.८५.८९ (सोमनाथ की जगती की प्रदक्षिणा से सात द्वीपों वाली वसुन्धरा की प्रदक्षिणा फल की प्राप्ति आदि का कथन), लक्ष्मीनारायण १.३११.४१ (समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण को फल व ताम्बूल अर्पित करना ) । jagatee/jagati

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      सविता के आनन्दमय और विज्ञानमय कोश से मनोमय कोश में अवतरण से पूर्व पांच कर्मेन्द्रियों एवं पांच ज्ञानेन्द्रियों सहित अहं बुद्धि एवं मन की द्वादशी जगती की तूती बोलती है ।


      जगदम्बा देवीभागवत १.५ (शिरविहीन विष्णु को शिरयुक्त करने हेतु देवों द्वारा जगदम्बा की स्तुति), १.१२.४० (सुद्युम्न / इला द्वारा जगदम्बा की स्तुति, सायुज्य मुक्ति प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ४.२.७२.६१ (जगदीश्वरी देवी द्वारा उदरदरी की रक्षा की प्रार्थना का उल्लेख ) । jagadambaa


      जगन्नाथ नारद २.५२.८० (जगन्नाथपुरी में गुप्त प्रतिमाओं की स्थापना का वर्णन), पद्म ७.१८.२३ (जगन्नाथ प्रसाद की महिमा), भविष्य ३.४.२०+ (विष्णु रूप जगन्नाथ का यज्ञांश देव से संवाद), स्कन्द २.२.० (जगन्नाथ क्षेत्र का वर्णन), २.२.१ (जगन्नाथ क्षेत्र का माहात्म्य), (विद्यापति द्वारा जगन्नाथ रूप का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५८३ (पुरी में जगन्नाथ का वर्णन ) । jagannaatha


      जगन्नायक भविष्य ३.३.३२.५५ (भगदत्त - अंश जगन्नायक का उल्लेख), ३.३.३२.१०३ (परिमल - सेनानी, जगन्नायक के मायावर्मा से युद्ध का वर्णन), ३.३.३२.१७६ (लक्षण से युद्ध में भगदत्त/जगन्नायक की मृत्यु ) ।


      जघन मत्स्य ११०.६ (गङ्गा - यमुना के मध्य पृथ्वी का जघन स्थल प्रयाग तीर्थ), महाभारत शान्ति ३१७.३(जघन से प्राणों के उत्क्रमण पर पृथिवी लोक की प्राप्ति का उल्लेख), शिव ५.२९.२२(प्रधान पुरुष की जघन से असुरों की उत्पत्ति का उल्लेख), ५.४५.७५ (विष्णु द्वारा अपनी जघन पर मधु - कैटभ का वध करने का वर्णन ) । jaghana


      जङ्गम गरुड २.१६.११(यमपुर में राजा जङ्गम का उल्लेख), पद्म २.१२३.५५(जङ्गम तीर्थ का माहात्म्य ?), महाभारत आदि १२७.५७(जङ्गम विष द्वारा स्थावर विष के नाश का कथन), आश्वमेधिक २१.१६(मन के स्थावर व जङ्गम प्रकारों का कथन), २१.२६(स्थावरत्व की दृष्टि से मन और जङ्गमत्व की दृष्टि से वाक् के श्रेष्ठ होने का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.१८६.३१(स्थावर व जङ्गम तीर्थों के संदर्भ में जङ्गम तीर्थों के रूप में माता, पिता आदि जङ्गम तीर्थों के नाम ) jangama


      जङ्गल पद्म २.५३.९९ (जङ्गली नामक नेत्र कृमि का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.४४.२० (नेत्र में स्थित २ कृमियों में से एक),३.२०४.१ (जङ्गलदेव नामक भक्त काष्ठहार की कथा ) ।


      जङ्घा देवीभागवत १२.४.९(जङ्घाओं में कौशिक का न्यास), महाभारत शान्ति ३१७.२(जङ्घा से प्राणों के उत्क्रमण पर वसुओं के लोक की प्राप्ति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१८(जङ्घाओं में धृति देवी की स्थिति), स्कन्द १.२.६२.२८(जङ्घाल : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), द्र. जानुजङ्घ, तालजङ्घ, दीर्घजङ्घ, नाडीजङ्घ, प्रजङ्घ, लोहजङ्घ ।janghaa


      जटा पद्म १.१५.११९(जटामुकुट का उल्लेख), १.४३.४०८(विवाह के समय शिव जटा में ब्रह्मा द्वारा चन्द्रखण्ड बांधने का उल्लेख), १.४६.१८(शिव की जटासटा के साथ सर्प शिखामणि का उल्लेख), २.२४.५ (कश्यप द्वारा एक अवलुंचित जटा का शुचि अग्नि में होम करके पुत्र उत्पन करने का कथन), ५.११६.९९(मृदुसूक्ष्म स्निग्ध जटाभिर्विरचित कपर्दं), ६.१०.३१ (वासुकि के श्वास - नि:श्वास से शिव की जटाओं पर स्थित चन्द्रलेखा के द्रवीभूत होने से गङ्गा का आविर्भाव, जटाओं से कीर्तिमुख गण के आविर्भाव की कथा), ६.१७.७५(यावद्रुद्रो जटाजूटं बबंध भुजगैर्दृढम्), ६.१३५.१२(जटामेकां परित्यज्य दत्ता गंगा तदा मया), ब्रह्म २.४.६३ ( विष्णु के चरण कमलों में अर्घ्यस्वरूप प्रदत्त जल का चार धाराओं में विभक्त होकर मेरु पर गिरना, दक्षिण धारा के महेश्वर की जटाओं में आगमन का निरूपण ), ब्रह्मवैवर्त्त २.५ ( पार्वती भय से गङ्गा का शिवजटा में अदृश्य होना, पार्वती द्वारा गङ्गा निष्कासन का उद्योग ), २.६( गौतम ब्राह्मण द्वारा शिव की स्तुति, गौतम के जटा सहित गङ्गा के एक भाग को लेकर ब्रह्मगिरि पर गमन का वृत्तान्त ), ४.५०.६ (दुर्वासा द्वारा सिर से जटा निकाल कर भूतल पर स्थापित कर राजा अम्बरीष को शाप देने हेतु उद्यत होने का प्रसंग), भागवत १०.८७.३९(यदि न समुद्धरन्ति यतयो हृदि कामजटा दुरधिगमोऽसतां हृदि गतोऽस्मृतकण्ठमणिः), मत्स्य १५४.४३५ (विवाह के समय शिव जटा में ब्रह्मा द्वारा चन्द्रखण्ड बांधने का उल्लेख), वराह १५०.४९ (जटा कुण्ड का वृत्तान्त), वामन ५५.६७ ( देवी की जटा से उत्पन्न चण्डमारी देवी द्वारा चण्ड - मुण्ड को पकड कर लाने का वर्णन), ६४.६९ (ऋतध्वज - पुत्र जाबालि के जटाओं से बंधने व मुक्त होने का वृत्तान्त), शिव २.२.३२.२५ (रुषा पर्वत पर शिव की जटा गिरने से दो भाग होना, वीरभद्र व महाकाली का प्रादुर्भाव), स्कन्द १.२.६२.२९(जटाल व अजटाल : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से २), २.८.९.५५ (जटाकुण्ड में पिण्डदान के पितृ तुष्टिकारक होने का कथन), ३.१.२० (जटा तीर्थ का माहात्म्य : राम द्वारा जटाशोधन का स्थान, अज्ञान नाश हेतु शुक, भृगु , दुर्वासा, दत्तात्रेय द्वारा मन शुद्धि प्राप्ति का वर्णन), ५.१.३१.४ (जटा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : स्नान व जटेश्वर दर्शन से मातृ व पितृकुल का उद्धार ), ५.१.६१.७ (जटेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : सब यज्ञों के फल की प्राप्ति), ५.२.२८ (जटेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : वीरधन्वा के जटीभूत पापों की निवृत्ति की कथा), ५.२.३५.५ (प्रजापति त्वष्टा द्वारा जटा की आहुति से इन्द्रशत्रु वृत्र के उत्पन्न होने की कथा), लक्ष्मीनारायण १.१७६.८९(सती के नाश पर शिव द्वारा दक्ष के नाश हेतु स्व जटा के ताडन, मार्जन आदि से कालिकादि गणों की सृष्टि), १.५७२.९ (तपोरत मातङ्ग ऋषि की जटाओं से यक्षिणियों का निकलना, यक्षिणियों द्वारा नर्मदा जल में स्नान से मुक्ति), २.२४७.२८ (चटका द्वारा ऋषि जटिलायन की जटा में घोंसला बनाकर अण्डे रखने की कथा), महाभारत आदि २०१.२८(सुन्द-निसुन्द द्वारा वर पाने के पश्चात् जटा त्याग कर मौलि /मुकुट धारण करने का उल्लेख), वन ३९.२७(तपस्याकाल में सदःस्पर्शन के कारण अर्जुन की जटाएं विद्युत् अम्भःरुहा के समान होने का श्लोक), १३६.९ (रैभ्य ऋषि द्वारा यवक्रीत वध हेतु जटा-द्वय होम से कृत्याएं उत्पन्न करने का कथन), १५७.२८(जटासुर द्वारा हरण पर युधिष्ठिर द्वारा अपने भार में वृद्धि से राक्षस की गति का हरण), शान्ति ३४२.२६ (शिव के नीलकण्ठ होने के संदर्भ में शुक्राचार्य द्वारा उखाडी गई शिर की जटाओं के सर्प बनकर शिव के दंशन का उल्लेख), अनुशासन १००.१६ (नहुष के स्वर्ग से पतन के संदर्भ में भृगु का अगस्त्य की जटाओं में प्रवेश करके नहुष को शाप देना ) ; द्र. एकजटा, त्रिजटा, हरिजटा । jataa


      जटाधर ब्रह्म २.३०.३२ (जटाधर तीर्थ तक कश्यप - कद्रू का तीर्थ स्थल), वामन ४.५४(दक्ष यज्ञ में स्थित शिव का नाम ) ।


      जटामांसी गर्ग ४.१९.५६ (यमुना सहस्रनामों में से एक ) ।


      जटामाली लिङ्ग १.२४.९१ (१९ वें द्वापर में मुनि), वायु २३.१८६/१.२३.१७६ (१९वें द्वापर में विष्णु अवतार, ४ पुत्रों के नाम ) ।


      जटायु गणेश २.९७.१३ (विनता के निर्देश पर जटायु द्वारा कद्रू का अपमान, सर्पों द्वारा जटायु का बन्धन, गरुड द्वारा मोचन), २.१००.३३ (गुणेश द्वारा जटायु आदि को सर्पों के बन्धन से मुक्त कराना), पद्म १.६.६६(सम्पाती – पुत्रों वभ्रु व शीघ्रग तथा जटायु – पुत्रों कर्णिकार व शतगामी का उल्लेख), ६.७१.२२१(जटायुषोऽग्निगतिदो), ब्रह्म २.९६.४ / १६६.४ (अरुण - पुत्र जटायु के पक्ष दग्ध होने व गङ्गा स्नान से ताप शान्ति का प्रसंग), मत्स्य ६.३५ (अरुण - पुत्र जटायु के पुत्रों का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.९२ (जटायु नामक पर्वत), वराह १७१.२८ (जटायु पक्षियों द्वारा गोकर्ण की सहायता का वर्णन), वायु ६९.३१७ / २.८.३१७(श्येनी व अरुण के २ पुत्रों में से एक, सम्पाती - भ्राता), २.३.७.४४७(अरुण व गृध्री के २ पुत्रों में से एक, जटायु के कंक, गृध्र आदि पुत्रों का उल्लेख), वा.रामायण ३.१४.३३ (अरुण व श्येनी - पुत्र, सम्पाती - भ्राता जटायु द्वारा पञ्चवटी में राम से भेंट), ३.५० (जटायु द्वारा रावण को सीताहरण न करने का परामर्श, युद्ध), ३.६७ (घायल जटायु की राम से भेंट, प्राण त्याग, राम द्वारा दाह संस्कार ) । jataayu/ jatayu


      जटिला लक्ष्मीनारायण २.२४७.२८ (चटका द्वारा ऋषि जटिलायन की जटा में घोंसला बनाकर अण्डे रखने की कथा), ३.१००.१३४ (विश्वकर्मा व जटिला से सूर्य के पुत्र रूप में उत्पन्न होने की कथा ) । jatilaa


      जटी नारद १.६६.१३४(जटी गणेश की शक्ति दीप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१४.४०(नास्तिकों का एक वर्ग), ३.४.४४.७०(५१ वर्णों के गणेशों में से एक), शिव ३.१.३६ (ईशान द्वारा जटी, मुण्डी आदि बालकों का सृजन करके योग का उपदेश देने का उल्लेख), स्कन्द ६.१०९.१४ (वामेश्वर तीर्थ में जटि लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ) । jatee


      जटोदका शिव ३.७.१८ (जटोदका आदि पांच नदियों का शिव जटा से बहने का उल्लेख ) ।


      जठर गर्ग ७.३२.१३ (जठर पर्वत के नीचे दैत्यों की पुरी का उल्लेख), ब्रह्म १.१६.४६(मेरु के दक्षिणोत्तर मर्यादा पर्वतों में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.१२.३४ (हृच्छय नामक जाठराग्नि : पावक - पुत्र, मृत्युमान् - पिता), १.२.२४.१२(जाठराग्नि के वैद्युत अग्नि होने का कथन), मत्स्य ५१.२८ (हृदय अग्नि - पुत्र जठराग्नि का कथन, मन्युमान उपनाम), वायु ५३.२(जाठराग्नि के वैद्युत अग्नि होने के कारण का कथन), योगवासिष्ठ ३.३७.३८ (जठर देश के वासियों का श्वेत काक देश व भद्र देश वासियों से युद्ध), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१८(मन्युमान् - पिता ) ; द्र. कुण्डजठर । jathara


      जड अग्नि ३३९.२८ (कर्तव्य की प्रतिभा के अभाव का जडता होने का कथन- आवेशश्च प्रतीकारः शयो वैधुर्य्यमात्मनः । कर्त्तव्ये प्रतिभाभ्रंशो जड़तेत्यभिधीयते ।।), गणेश २.३६.१० (सावित्री द्वारा देवों को जड होने का शाप , देवों का नद - नदी होना - शशाप सा देवमुनीन्जडा यूयं भविष्यथ ॥ नियुक्त्वाऽनधिकारां तां गायत्रीं सर्व एव यत् । ), पद्म ६.१७७ (भ्रष्ट ब्राह्मण जड द्वारा मृत्यु पश्चात् प्रेत बनकर गीता के तृतीय अध्याय श्रवण से मुक्त होना - जनस्थाने जडो नाम द्विजन्मा कौशिकान्वयी । हित्वा जात्युचितं धर्मं वणिग्वृत्त्यां मनो दधे ।), मार्कण्डेय १०.१० (महामति ब्राह्मण द्वारा जडरूपी पुत्र सुमति को वेदाध्ययन के लिए प्रेरित करना, जड पुत्र द्वारा पिता को संसार सागर से पार करने वाले उपायों को करने का उपदेश - ब्राह्मणो भार्गवः कश्चित् सुतमाह महामतिः । कृतोपनयनं शान्तं सुमतिं जडरूपिणम्॥), २०.१८ / १८.१८ (जड द्वारा ऋतध्वज - मदालसा आख्यान का वर्णन), २२.९३ / २१.९३ , २४.३७ / २२.३७, ३६.१ /३३.१ (वही), वराह १४४.१५७ (मृग देहान्त पर भरत का जड भरत होना ; जड भरत द्वारा स्थापित जलेश्वर तीर्थ का कथन), स्कन्द २.४.२.५१टीका (एक अध्याय गीता पाठ से जड ब्राह्मण के नरक से छूटने का वर्णन), ४.२.५९.९५ (धूतपापा कन्या द्वारा कामुक धर्म को जड होने के कारण जलधारा बनने का शाप - ततः शशाप तं बाला प्रबला तपसो बलात् ।। जडोसि नितरां यस्माज्जलाधारो नदो भव ।। ), योगवासिष्ठ ३.९६.७१(चेतन पुरुष से जड प्रकृति उत्पन्न होने के प्रश्न की व्याख्या), ६.१.७८.२० (मन, बुद्धि, अहंकार की जडता की व्याख्या), ६.१.८१.१०१(जड व चैतन्य की सन्धि से भूतों की उत्पत्ति का कथन), ६.२.१००.३७(काल से असत्ता क्षणिकत्व व देश से असत्ता जाड्य होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४०७.२४(देवों द्वारा असुरों के नाश पर शुक्र - पत्नी ख्याति द्वारा महेन्द्र को जड करना, विष्णु द्वारा महेन्द्र को स्वयं में लीन करके रक्षा करना), ३.१५६.२६ (जड विप्र का तप से जन्मान्तर में ब्रह्मसावर्णि मनु बनना ) । jada


      जडभरत अग्नि ३८०.३ (जड भरत का लोक में जडवत् रहने का वर्णन), वराह १४४.१५७ (जड भरत द्वारा स्थापित जलेश्वर ) । jadabharata


      जतु वायु ६२.१८३/२.१.१८१(जतुनाभ : विराज गौ के दोहन में यक्षों की ओर से जतुनाभ के दोग्धा होने का उल्लेख ; मणिवर - पिता), विष्णु ४.१३.७०(जतुगृह : जतुगृह में पाण्डवों के दग्ध होने के समाचार पर कृष्ण के वारणावत जाने का उल्लेख), ४.१९.८२(सुधन्वा - पुत्र, मागध भूपालों में से एक ) । jatu


      जन पद्म ३.१३.११ (जनेश्वर तीर्थ में पिण्डदान का विधान), ब्रह्माण्ड १.१.६.२८(प्रलय काल में देवों आदि के मह से जन, सत्य आदि लोकों को जाने का कथन), १.२.२१.२२(जन आदि लोकों की छत्राकार स्थिति का उल्लेख), भागवत २.१.२८(भगवान् के विराट् का मुख होने का उल्लेख, तपो लोक ललाट), २.५.४५(ग्रीवा में जनलोक की स्थिति का उल्लेख), ८.२०.३४(विराट् विष्णु के द्वितीय पग के मह, जन, तप आदि से ऊपर सत्य लोक में पंहुचने का उल्लेख), वामन ९०.३९ (जन लोक में विष्णु का कपिल नाम से वास), वायु ७.२९/१.७.२५(देवों के मह से जन, जन से तप आदि को क्रमण करने का कथन), २३.८४/१.२३.७९ (मह लोक से ऊपर के लोकों के केवल योगियों के लिए गम्य होने का उल्लेख ; नीचे के लोकों के चतुष्पाद होने का कथन), २४.३(देवों के मह से जन, जन से तप आदि लोकों को क्रमण करने का कथन), ६१.१२९(जनलोक से आवर्तन होकर जन्म चक्र में पडने तथा जनलोक से ऊपर के लोकों से आवर्तन न होने का कथन), ६५.१७/२.४.१७(स्वायम्भुव मन्वन्तर के सप्तर्षियों के तपो लोक प्राप्त न कर जन लोक के चक्र में पडने का प्रश्न व उत्तर), १०१.२४/२.३९.२४ (जनलोक के जन नाम के कारण का कथन), विष्णु ६.३.२९(प्रलय काल में लोक निवासियों के क्रमश: मह व जन लोकों को जाने का कथन), लक्ष्मीनारायण ४.९५.१(जनलोक के साध्य देवों, जय पितरों, वैकुण्ठ देवों, विश्वेदेवों आदि द्वारा श्रीहरि के स्वागत का वर्णन ), द्र. पञ्चजन, पुण्यजनी, पुरञ्जनी, सप्तजन, सर्वजनि । jana


      जनक अग्नि ३८२.६(जनक के मत में परम श्रेय – आध्यात्मिक आदि दुःखों की प्रतिक्रिया), गणेश १.६५.७ (नारद द्वारा जनक के दानाभिमान का गणेश से वर्णन, गणेश द्वारा कुष्ठी रूप में जनक की परीक्षा, जनक के अन्न का भक्षण करने पर भी तृप्ति न होना), गर्ग १.१+ (जनक / बहुलाश्व द्वारा नारद से कृष्ण अवतार सम्बन्धी वार्तालाप), ७.१६.१८ (धृति / जनक द्वारा प्रद्युम्न से संवाद व प्रद्युम्न के दिव्य रूप के दर्शन), देवीभागवत १.१६.४५ (व्यास - पुत्र शुकदेव द्वारा ज्ञान प्राप्ति हेतु जनक के पास जाने का वर्णन), १.१८+ (जनक द्वारा शुकदेव को प्रवृत्ति मार्ग का उपदेश), ६.१५.२७ (जनक निमि की देह के अरणि मन्थन से पुत्र जनक की उत्पत्ति का वर्णन), नारद १.४५ (जनदेव / जनक को पञ्चशिख मुनि द्वारा मोक्ष / सांख्य का उपदेश), १.५९ (जनक द्वारा शुकदेव को मोक्ष विषयक ज्ञान दान), पद्म ५.३०.५१ (जनक द्वारा नरक दर्शन का वर्णन , राम नाम पुण्यदान से नरकवासियों की मुक्ति), ब्रह्म १.१३३.६ / २४१ (कराल जनक का वसिष्ठ से क्षर - अक्षर विषयक संवाद), २.१७/ ८८(जनक द्वारा याज्ञवल्क्य से भुक्ति से मुक्ति का उपाय पूछना), ब्रह्माण्ड १.२.३४.३७ (जनक द्वारा ब्राह्मण - श्रेष्ठ को धन देने का प्रस्ताव, याज्ञवल्क्य द्वारा धन ग्रहण), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.१९ (जनक द्वारा वैद्य सन्देह भञ्जनम् ग्रन्थ की रचना का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३४.३३(जनक के अश्वमेध यज्ञ में शाकल्य देवमित्र के विनाश का वृत्तान्त), २.३.६४.२(निमि से जनक व जनक से उदावसु आदि निमि वंश का वर्णन), भागवत ६.३.२०(भागवत धर्म को जानने वाले १२ व्यक्तियों में से एक), ९.१३.१३(निमि से जनक की उत्पत्ति का प्रसंग), ११.२.१४ (विदेह निमि और योगीश्वरों का संवाद : विदेह निमि का जनक से साम्य ?), वराह ३६.७ (सोम के जनक रूप में विख्यात होने का उल्लेख), वायु ८९.२/२.२७.२(विदेह निमि का अपर नाम, उदावसु - पिता, वंश वर्णन), वा.रामायण १.७१ (जनक द्वारा वसिष्ठ को अपने कुल का परिचय देना), ७.५७.२० (जनक के जन्म का उल्लेख), विष्णु ३.१८.८७ (शतधनु का जनक - पुत्र रूप में पुनर्जन्म), ४.५.२२(निमि के शरीर के मन्थन से जनक की उत्पत्ति व नाम निरुक्ति का कथन), ४.१३.१०३ (बलभद्र द्वारा कृष्ण से कुपित हो द्वारका त्याग करने पर जनक का आतिथ्य ग्रहण करना), ४.२४.५(विशाखयूप - पुत्र, नन्दिवर्धन - पिता, ५ प्रद्योत राजाओं में से एक), शिव २.३.२.३२ (शाप के कारण सीता के जनक - पुत्री होने का वृत्तान्त), २.७.६ + (श्रुतदेव से वैशाख मास दान - माहात्म्य सम्बन्धी वार्तालाप), ४.२.६८.७० (जनकेश लिङ्ग दर्शन से ब्रह्मज्ञान प्राप्ति का उल्लेख), योगवासिष्ठ ५.८ (जनक द्वारा सिद्ध गीता रूपी सिद्धों के संवाद का श्रवण), ५.९ (जनक द्वारा संसार के भोग, दुःख - सुखों आदि की नश्वरता के विषय में वितर्क), ५.१० (जनक द्वारा क्रियाशीलता अथवा निष्क्रियता के मध्य निष्काम मन से कर्म करने का निश्चय), ५.११ (जनक द्वारा चित्त का अनुशासन), ५.१२ (जनक द्वारा प्राप्त प्रज्ञा का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.२०२.७ (१६ चिकित्सकों में से एक), १.५४३.७५ (जनका : दक्ष द्वारा रुद्र को प्रदत्त १० कन्याओं में से एक ) । janaka


      जनदेव नारद १.४५ (जनदेव नामक जनक को पञ्चशिख मुनि द्वारा सांख्य / मोक्ष विषयक उपदेश ) ।


      जनधार मत्स्य १२२.२०(उदय वर्ष का अपर नाम )


      जननायक भविष्य ३.३.२७.१५ (कमलापति व परिमला - पुत्र जननायक की पृथ्वीराज से पराजय पर कच्छप देश का त्याग, चामुण्ड को पराजित करने तथा अश्व का हरण होने का वर्णन ) ।


      जनपद पद्म ३.६.३३ (विभिन्न जनपदों का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२४ (भारत के अन्तर्गत जनपदों के दिशा अनुसार नाम), मार्कण्डेय ५७.४४ / ५४.४४ (भारतवर्ष के जनपदों, पर्वतों, नदियों आदि का वर्णन), वामन १३.४६ (भुवनकोष वर्णन के अन्तर्गत जम्बू द्वीप स्थित जनपदों के नामों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.९ (जनपदों के नाम), स्कन्द १.२.४०.२३५ (कलियुग में जनपदों का अट्ट शूल बनना ; द्र. अट्टशूल पर टीका), योगवासिष्ठ ३.३६.२१ (सिन्धुराज विदूरथ के अनुकूल व प्रतिकूल जनपदों के नाम ) । janapada


      जनमेजय गरुड १.१४० (जनमेजय के वंश का वर्णन), देवीभागवत २.११ (वपुष्टमा - पति जनमेजय द्वारा सर्पयज्ञ के आयोजन व समाप्ति का वर्णन), ब्रह्म १.११.१७ / १३.१७ (पुरञ्जय - पुत्र जनमेजय का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१४.४१ (देवल मुनि के शापवश रम्भा का जनमेजय की पत्नी बनने व अश्वरूप धारी इन्द्र से सम्भोग करने का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.६८.२२ (गार्ग्य - सुत की हत्या से जनमेजय को लौहगन्धि नाम प्राप्ति , हयमेध का अनुष्ठान), भागवत १.१६.२(परीक्षित् व इरावती के ४ पुत्रों में से एक), ९.२२.३५(परीक्षित् के ४ पुत्रों में से एक), १२.६.१६ (जनमेजय के सर्पसत्र में इन्द्र व बृहस्पति द्वारा तक्षक की रक्षा), मत्स्य ४८.१०२(बृहद्रथ - पुत्र, अङ्ग - पिता), ४९.५९ (उग्रायुध द्वारा भल्लाट - पुत्र जनमेजय की नीपवंशियों से रक्षा का वर्णन), ५०.१५८ (जनमेजय द्वारा वाजसनेयी संहिता को यज्ञ में स्थान देने पर वैशम्पायन द्वारा शाप, पुत्र शतानीक को राज्य सौंप कर तप करना), वराह १९३ (जनमेजय द्वारा वैशम्पायन से नरक प्रापक - अप्रापक कर्म - फल पर वार्तालाप), वायु ९३.२२ / २.३१.२२ (गार्ग्य - सुत की हत्या पर जनमेजय को लोहगन्ध होने के शाप की प्राप्ति का कथन), ९९.११२/२.३७.११६(पूरु - पुत्र, अविद्ध - पिता), विष्णु ४.२०.१(परीक्षित् के ४ पुत्रों में से एक), हरिवंश १.३० (गार्ग्य के शाप से जनमेजय द्वारा ययाति के दिव्य रथ को खोने व लोहगन्धी होने का वर्णन), ३.१ (वपुष्टमा - पति, वंश का वर्णन), कथासरित् २.१.६ (जनमेजय - पुत्र शतानीक का देवासुर संग्राम में मरण), ६.४.४१ (जनमेजय - पौत्र उदयन के जन्म का वर्णन), ८.१.४८ (जनमेजय - कन्या परिपुष्टा द्वारा सूर्यप्रभ का वरण करने का उल्लेख ) । janamejaya


      जनस्तम्भ ब्रह्माण्ड २.३.७१.१८०(शान्तिदेवा व वसुदेव - पुत्र), वायु ९६.२४९/२.३४.२४९(जनस्तम्ब : तुम्ब के २ पुत्रों में से एक ) ।


      जनस्थान ब्रह्म ८८.२३ / २.१७.२३ (जनस्थान तीर्थ : जनक द्वारा वरुण से भुक्ति से मुक्ति का उपाय पूछना, वरुण द्वारा दण्डक वन / जनस्थान में यज्ञ का परामर्श), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१९५(राम द्वारा जनस्थान में वास कर देवों का कार्य सिद्ध करने का उल्लेख -जनस्थाने वसन्कार्यं त्रिदशानां चकार सः ॥ ), वायु ८८.१९४/२.२६.१९३(वही -जनस्थाने वसन् कार्यं त्रिदशानाञ्चकार सः ।।  ), वा.रामायण ७.८१.२० (तपस्वियों द्वारा दण्डकारण्य में रहने से वहां का जनस्थान नाम होने का उल्लेख - ततः प्रभृति काकुत्स्थ दण्डकारण्यमुच्यते । तपस्विनः स्थिता ह्यत्र जनस्थानमतो ऽभवत् ।।  ) । janasthaana


      जनापीड वायु ९९.५/२.३७.५(शरूथ - पुत्र, पाण्ड~य आदि ४ पुत्रों के नाम ) ।


      जनार्दन गरुड ३.२२.८०(क्षत्रिय में जनार्दन की स्थिति का उल्लेख), नारद १.६६.९५(जनार्दन की शक्ति उमा का उल्लेख), ब्रह्म १६३.२९/२.९३.२९ (जनार्दन से शिर की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२१ (जनार्दन से नाभि की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड ३.४.५.१४ (जनार्दन द्वारा हयग्रीव को मुक्ति का उपाय बताना), भविष्य २.१.१७.८ (दीक्षा में अग्नि का जनार्दन नाम होने का उल्लेख), भागवत ६.८.२२ (असि धारी जनार्दन से प्रत्यूष काल में रक्षा की प्रार्थना), वायु ५४.५९(समुद्र मन्थन से उत्पन्न विष से रक्तगौराङ्ग जनार्दन के कृतकृष्ण होने का उल्लेख), ९६.५१/२.३४.५१(वासुदेव कृष्ण का एक नाम, मणि चोरी के मिथ्या अभिशाप से मुक्त होने का उल्लेख), १०८.८५/२.४६.८८(गया में जनार्दन के हस्त पर पिण्ड दान का कथन, गया में जनार्दन के पितृ रूप में स्थित होने का उल्लेख), विष्णु १.२.६६(जनार्दन के सृष्टि, स्थिति व अन्तकारी रूप धारण करने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.३ ( जनार्दन से हृदय की रक्षा की प्रार्थना), स्कन्द २.२.३०.८२(जनार्दन त्रिगुणात्मा से बुद्धि अहंकार की रक्षा की प्रार्थना), ४.२.६१.२२५ (जनार्दन की मूर्ति के लक्षणों का उल्लेख), ७.१.१०.२(आपः गुण वाले तीर्थों में जनार्दन की स्थिति का उल्लेख), हरिवंश ३.१०५+ (मित्रसह - पुत्र, हंस व डिम्भक - सखा जनार्दन का वर्णन : संन्यास आश्रम की प्रशंसा, दुर्वासा से वर प्राप्ति आदि), ३.११४+ (जनार्दन द्वारा हंस व डिम्भक के दूत के रूप में कृष्ण दर्शन की उत्कण्ठा से द्वारका जाने का प्रसंग), लक्ष्मीनारायण १.१६०.२९ (जनार्दन के हस्त पर पिण्ड दान का माहात्म्य : सर्वतृप्ति), १.२५६.१४ (भाद्रपद कृष्ण एकादशी को जनार्दन पूजा), १.२६५.१३(जनार्दन की शक्ति सुन्दरी का उल्लेख ) । janaardana


      जन्तु ब्रह्म १.१३.१०० / १.११.१०० (अजमीढ - पुत्र सोमक के पुत्र के जन्तु होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.४२१(मनुष्य के स्वेद से उत्पन्न जन्तुओं के नाम), मत्स्य ४४.४५ (पुरुद्वान् व भद्रसेनी - पुत्र), मार्कण्डेय १०.२ (जैमिनि द्वारा पक्षियों से जन्तु के गर्भ में जन्म व वर्धन होने आदि के विषय में पृच्छा), ११.१ (सुमति द्वारा पिता को जन्तु के गर्भ में जन्म लेने, वर्धन करने आदि का वर्णन), वराह १८०.२५ (ध्रुवतीर्थ में श्राद्ध से मशकों से आवेष्टित जन्तु रूपी पितर के उद्धार का वर्णन), वायु ६९.११३/२.८.१०९(जन्तु/जनु व चण्ड का उल्लेख?),९९.२०९/ २.३७.२०५ (सोमक - पुत्र जन्तु की मृत्यु पर सोमक के १०० पुत्रों के जन्म का कथन), स्कन्द ५.३.१४६.३३ (संसार में जन्तु / प्राणी के आवागमन का कथन), हरिवंश १.३२.४० (पुरु वंश के अन्तर्गत सोमक - पुत्र जन्तु का कथन), योगवासिष्ठ ६.२.१३७.१०(प्राणों को जन्तु के प्राणों से एक करके हृदय में प्रवेश करने का वर्णन), ६.२.१३७.२२ (जन्तु के हृदय में प्रवेश करके तेज व ओज धातुओं में प्रवेश करना), कथासरित् २.५.५७ (पुत्रेष्टि यज्ञ से उत्पन्न पुत्र जन्तु की बलि चढाकर राजा द्वारा एक सौ पांच पुत्र प्राप्त करने का कथन), महाभारत शान्ति २९८.२८ (मर्त्य अर्णव में जन्तु की कर्म व विज्ञान द्वारा गति होने का कथन), २९८.३० (जन्तु द्वारा स्वयंकृत कर्मों के फल भोगने का उल्लेख), आश्वमेधिक १७.१६ (मृत्युकाल में जन्तु की गति का वर्णन ) । jantu


      जन्तुधना ब्रह्माण्ड २.३.७.८६ (अज पिशाच - पुत्री, राक्षस - पत्नी, यातुधान - माता), वायु ६९/२.८.१२४ (सर्वाङ्गकेशी, अज पिशाच - पुत्री जन्तुधना का कथन ) । jantudhanaa


      जन्म अग्नि १५३ (जातकर्म संस्कार का कथन), १५५.३०(जन्म नक्षत्र पर सोम की पूजा तथा विप्र देवादि पूजन का निर्देश), २६८.१ (राजाओं को जन्म नक्षत्र का पूजन करने का निर्देश), ३०३.१(चन्द्रमा के जन्म नक्षत्र पर होने पर आयु की परीक्षा), गरुड २.२९.१४(ताम्र व लौह मिश्रण से जन्म होने का उल्लेख), नारद (पापी का स्थावर व जङ्गम आदि योनियों में जन्म व कष्ट भोग), १.१२१.७६ (सुजन्म द्वादशी व्रत की विधि), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१०.३३ (गणेश जन्म के समय देवों के आशीर्वाद), भागवत १०.३ (कृष्ण जन्म के समय पृथ्वी पर मङ्गल स्थिति का वर्णन), १०.५ (कृष्ण जन्म पर गोकुल में उत्सव का वर्णन), मार्कण्डेय १५ (कर्मानुसार पुनर्जन्म का वर्णन ), वराह १२१ (जन्माभाव नामक अध्याय में पुनर्जन्म न होने में सहायक सद्गुणों का वर्णन), विष्णु ३.१०.४ (पुत्र जन्म पर करणीय संस्कारों का कथन), ६.५.९ (जन्म समय व अनन्तर क्लेश का वर्णन), शिव १.१६.८३ (जन्मदिन / नक्षत्र पर शिव पूजा का कथन), २.३.६.३६ (पार्वती के जन्म का वर्णन), स्कन्द १.२.२२.११ (जन्म - मरण के बन्धन से मुक्त हो ब्रह्मा में प्राणियों के लीन हो जाने का श्लोक), २.३०.१(श्रीपति के जन्म स्नान की विधि का प्रश्न), ५.३.१५९.१६ (शिवभक्ति से जन्म सफल होने का कथन), ७.१.२०८.३(४ वृथा जन्मों का उल्लेख), योगवासिष्ठ ३.११६ (साधक जन्म अवतार नामक सर्ग : संकल्प के अनुसार तन्मात्राओं में क्रमिक अवतरण ), ४.६१ (जन्म - मरण), लक्ष्मीनारायण १.६७ (कर्म विपाक अनुसार पुनर्जन्म प्राप्ति), १.२६६+ (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सरस्वती , वैशाख शुक्ल प्रतिपदा को विष्णु के जन्मादि का वर्णन), २.५.८५ (मृत ब्रह्मकूर्च दैत्य के वीर्य से जन्म नामक असुर का जन्म , संकर्षण द्वारा जन्म असुर के भोजन का प्रबन्ध), । janma


      जन्मतिथि लक्ष्मीनारायण १.२६६(सरस्वती, ब्रह्मा व विष्णु की जन्मतिथियों पर व्रत - पूजा विधान ) ।


      जन्मभूमि ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०४.५२ (जन्मभूमि पर श्राद्ध कर्म का महत्त्व), ४.१०४.५० (राजा उग्रसेन द्वारा पैतृक जन्मभूमि की प्रशंसा ) । janmabhoomi / janmabhuumi/ janmabhumi


      जन्माष्टमी अग्नि १८३(जयन्ती नामक भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि का वर्णन), १८४ (१२ मासों की कृष्ण अष्टमियों में विशेष भोजन व शिव के विशेष नामों का कथन), नारद १.११७.२७ (जन्माष्टमी व्रत का विधान व माहात्म्य : सायुज्य मोक्ष प्राप्ति), पद्म ४.७ (राधा जन्माष्टमी का वर्णन, लीलावती वेश्या को वैकुण्ठ प्राप्ति), ४.१३ (कृष्ण जन्माष्टमी का वर्णन), ६.३१ (जन्माष्टमी व्रत विधि : हरिश्चन्द्र - सनत्कुमार संवाद), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८ (कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का वर्णन), भविष्य ४.५५ (कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन), मत्स्य ५६ (कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथियों में शिव - पूजा का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५३५.९२ (कार्तिक कृष्ण अष्टमी को कृष्ण जन्म अष्टमी उत्सव व कृष्ण के अभिषेक का वर्णन), २.१९+ (कार्तिक कृष्ण अष्टमी को गोपाल कृष्ण के जन्मोत्सव का वर्णन), २.२१ (कार्तिक कृष्ण अष्टमी को कृष्ण के द्वितीय जन्मोत्सव का वर्णन), २.२७, २.२८.७(श्रीकृष्ण के चतुर्थ जन्माष्टमी उत्सव पर स्वस्तिक नाग के कल्याण का वृत्तान्त), २.३४ (कृष्ण के पञ्चम जन्मदिन के उत्सव का वर्णन), २.३९.१५ (श्रीकृष्ण के षष्ठम् जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन), २.४३.८४ (श्रीकृष्ण के सप्तम् जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन), २.६२.७ (श्रीकृष्ण के अष्टम् जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन : रोगियों का नीरोगी होना), २.७४.९४ (कार्तिक कृष्ण अष्टमी को कृष्ण जन्मोत्सव का उल्लेख), २.८९.७८ (श्रीकृष्ण के एकदश जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन), २.१०६.७२ (श्रीकृष्ण के १२ वें जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन), २.११६.१ (श्रीकृष्ण के १३वें जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन), २.११८.३६ (बालकृष्ण द्वारा चौदहवें जन्माष्टमी महोत्सव पर निमन्त्रण), २.२३४.९ (कार्तिक कृष्ण अष्टमी को कृष्ण के १५वें जयन्ती उत्सव का वर्णन), २.२९९.४७ (श्रीकृष्ण के १६वें जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन), ३.२३५.११६ (जन्माष्टमी को देह अवयवों की सुन्दरता प्राप्ति के लिए देय दानों का वर्णन), ३.२३६.१(श्रीकृष्ण के १७वें जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन), ४.१७.४१ (कृष्ण जन्माष्टमी पर देवता, ऋषियों आदि सबका आना), ४.४१.८२ (कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव का वर्णन), ४.४३.१ (कार्तिक में कृष्ण जन्मदिन का उल्लेख), ४.४४.११ (जन्माष्टमी उत्सव में कृष्ण का शृङ्गार करना), ४.९२.५ (कार्तिक अष्टमी को कृष्ण का जन्म), ४.११९.२३ (भगवान् कृष्ण द्वारा जन्माष्टमी पर दान देने का वर्णन ) । janmaashtami / janmaashtamee/ janmashtami


      जप अग्नि २९३.२६(जप का महत्त्व व विधि - उच्चैर्जपाद्विशिष्टः स्यादुपांशुर्दशभिर्गुणैः । जिह्वाजपे शतगुणः सहस्रो मानसः स्मृतः ॥), कूर्म २.१८.६६ (स्नान काल में वैदिक मन्त्र जप का वर्णन), २.४३.१७ (नन्दी के जप - स्थान जप्येश्वर तीर्थ का वर्णन), देवीभागवत ७.३८.२२ (जप्येश्वर क्षेत्र में त्रिशूला देवी का उल्लेख - जप्येश्वरे त्रिशूला स्यात्सूक्ष्मा चाम्रातकेश्वरे ॥), नारद १.३३.९२ (तीन प्रकार के जप का निरूपण - जपस्तु त्रिविधः प्रोक्तो वाचिकोपांशुमानसः ।। त्रिविधेऽपि च विप्रेन्द्र पूर्वात्पूर्वात्परो वरः ।।), पद्म ३.२६.७५ (किंजप तीर्थ में अप्रमेयत्व प्राप्ति का उल्लेख - किंदाने च नरः स्नात्वा किंजपे च महीपते । अप्रमेयमवाप्नोति दानं यज्ञं तथैव च ।), ब्रह्माण्ड ३.४.३८.३३ (जप की विधि व फल का कथन - लक्षमात्रं जपित्वा तु मनुष्यान्वशमानयेत् ॥
      लक्षद्वितयजाप्येन नारीः सर्वा वशं नयेत् ।..), ३.४.४४ (जप से पूर्व न्यास, मुद्रा आदि का वर्णन), वायु ५७.५०(द्विजों के लिए जप यज्ञ का विधान - आरम्भयज्ञा क्षत्रस्य हविर्यज्ञा विशाम्पतेः। परिचार यज्ञाः शूद्रास्तु जपयज्ञा द्विजोत्तमाः ।। ), ५९.४१(तप के ४ लक्षणों में से एक - ब्रह्मचर्यं जपो मौनं निराहारत्वमेव च। इत्येतत् तपसो मूलं सुघोरं तद्दुरासदम् ।। ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२३.५ (कार्य अनुसार जप करने का कथन - नेत्रबाधासु सर्वासु हृषीकेशं तथैव च ।। अच्युतं चामृतं चैव जपेदौषधकर्मणि ।।), ३.१२४ (मास, तिथि, काल अनुसार देव नाम जप का कथन), ३.१२५ (स्थान, देश अनुसार देव नाम का उल्लेख), ३.२७८ (जप महिमा का वर्णन - दार्वासने सुखासीनस्त्वथ वापि कुशासने ।। जप्यं समाहितः कुर्यादथ वापि समुत्थितः ।।), शिव ७.२.२२.४९ (जप, तप, ज्ञान, ध्यान व कर्म से शिवोपासना का वर्णन - कर्मयज्ञस्तपोयज्ञो जपयज्ञस्तदुत्तरः ॥ ध्यानयज्ञो ज्ञानयज्ञः पञ्च यज्ञाः प्रकीर्तिताः ॥), स्कन्द ४.२.९७.१७३ (शातातपेश लिङ्ग की आराधना से महाजप फल प्राप्ति का उल्लेख - शातातपेशस्तद्याम्यां महाजपफलप्रदः ।।), ५.२.२८.११ (धर्म - निष्णात ब्राह्मण - वाक्य से जप आदि के छिद्रों के नाश का उल्लेख - ब्रह्मच्छिद्रं जपच्छिद्रं यच्छिद्रं यज्ञकर्मणि ।। अच्छिद्रं जायते सर्वं ब्राह्मणैरुपपादितम् ।। ), ५.३.१५७.१३ (पूजा से रुद्र, जप - होम से दिवाकर व प्रणिपात से विष्णु के तुष्ट होने का उल्लेख - पूजायां प्रीयते रुद्रो जपहोमैर्दिवाकरः । शङ्खचक्रगदापाणिः प्रणिपातेन तुष्यति ॥ ), ५.३.१६८.३९ (जप का सर्वाधिक फल होने का उल्लेख - होमाद्दशगुणं प्रोक्तं फलं जाप्ये ततोऽधिकम् ॥ त्रिगुणं चोपवासेन स्नानेन च चतुर्गुणम् ।), लक्ष्मीनारायण ३.१८८.२३ (अपजापक : जापक नामक कोषाध्यक्ष की चोरी करने से मुक्ति पाने तक की दीर्घ कथा), ४.८०.१६(नागविक्रम राजा के सर्वमेध यज्ञ में अर्बुदी विप्रों के जापक होने का उल्लेख - जापकाश्चार्बुदा विप्राः पौष्करा हवनार्थिनः । यामुनेया द्विजाश्चासन् दिक्पाला वैष्णवोत्तमाः ।।), कथासरित् ८.२.८३ (काल नामक जापक द्विज द्वारा पुष्कर में जप सिद्धि का वृत्तान्त, इक्ष्वाकु राजा द्वारा वर प्राप्ति आदि), महाभारत शान्ति १९६.१२ (जप रूप निवर्तक यज्ञ का आश्रय लेकर ध्यान, समाधि आदि अवस्थाओं को प्राप्त करने का वर्णन - जपमावर्तयन्नित्यं जपन्वै ब्रह्मचारिकम्। तदर्थबुद्ध्या संयाति मनसा जापकः परम्।।), १९७ (जापक के दोषों के कारण नरक प्राप्त होने का वर्णन - अथैश्वर्यप्रसक्तः सञ्जापको यत्र रज्यते। स एव निरयस्तस्य नासौ तस्मात्प्रमुच्यते।।), १९८ (आत्मकैवल्य के अतिरिक्त अन्य लोकों के जापक के लिए नरक तुल्य होने का वर्णन), १९९ (जप के फल के संदर्भ में अर्थसहित संहिता जप करने वाले ब्राह्मण व राजा इक्ष्वाकु की कथा), २०० (जप के फल के संदर्भ में जापक ब्राह्मण व राजा इक्ष्वाकु द्वारा योग से प्राप्त होने वाले ब्रह्म सायुज्य को प्राप्त करने का वर्णन ) । japa


      जपा नारद १.६७.६०(जपा पुष्प को विष्णु व शिव को अर्पित करने का निषेध - जपाक्षतार्कधत्तूरान्विष्णौ नैवार्पयेत्क्वचित् ।। केतकीं कुटजं कुंदं बंधूकं केसरं जपाम् ।। मालतीपुष्पक चैव नार्पयेत्तु महेश्वरे ।। ), स्कन्द ६.२५२.३४ (चातुर्मास में जपा वृक्ष का आदित्यों द्वारा वरण - वसुभिः स्वीकृतो नित्यं प्रियालश्च महानगः ॥ आदित्यैस्तु जपावृक्षो ह्यश्विभ्यां मदनस्तथा ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८८ (आदित्यों के रूप जपा वृक्ष का उल्लेख ) । japaa


      जमदग्नि कूर्म १.१९.३७ (जमदग्नि द्वारा वसुमना राजा को तपस्या का सुझाव), २.४०.३३ (जमदग्नि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : स्नान से अश्वमेध फल से तिगुने पुण्य की प्राप्ति), गणेश १.७७.३ (जमदग्नि द्वारा कामधेनु की सहायता से राजा कार्त्तवीर्य का सत्कार करने की कथा), १.७९.३६ (कार्तवीर्य द्वारा जमदग्नि का वध), पद्म १.१९.२६१ (हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर जमदग्नि की प्रतिक्रिया), १.१९.३५७ (मृणाल चोरी पर जमदग्नि की प्रतिक्रिया), ३.२१.३५ (जमदग्नि नामक नर्मदा - उदधि सङ्गम तीर्थ का माहात्म्य : इन्द्र को राज्य की प्राप्ति आदि), ६.२४१ (जमदग्नि को इन्द्र पूजा से प्राप्त सुरभि गौ की प्राप्ति हेतु हैहय नरेश द्वारा जमदग्नि का वध, परशुराम की प्रतिज्ञा का वर्णन), ब्रह्म १०.४९ / १.८.४९ (सत्यवती - पुत्र जमदग्नि द्वारा रेणुका से परशुराम की उत्पत्ति का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२४+ (कपिला गौ की प्राप्ति हेतु कार्त्तवीर्य का जमदग्नि से युद्ध), ३.२७ (कार्त्तवीर्य से युद्ध में जमदग्नि का मरण), ४.७९ (जमदग्नि द्वारा सूर्य को राहुग्रस्त होने व शम्भु से पराजित होने का शाप, सूर्य द्वारा जमदग्नि को क्षत्रिय से मृत्यु का शाप), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०५(१९ मन्त्रवादी भार्गव ऋषियों में से एक), १.२.३८.२७(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), २.३.१.९७(वैष्णव अग्नि के जमन से जमदग्नि के जन्म का कथन), भविष्य ३.४.२१.१३ (कण्व - पौत्र के रूप में जमदग्नि के पुनर्जन्म का उल्लेख), भागवत ८.१३.५(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ९.१५+ (चरु बदलने के प्रसंग के अनन्तर सत्यवती - पुत्र जमदग्नि द्वारा हैहय नरेश का स्वागत, कामधेनु हरण प्रसंग, जमदग्नि मरण की विस्तृत कथा), ९.१५.१३(जमदग्नि व रेणुका के ज्येष्ठ पुत्र वसुमान् व कनिष्ठ पुत्र परशुराम का उल्लेख), ९.१६.५(जमदग्नि द्वारा पुत्र परशुराम को माता रेणुका के वध का निर्देश व पुत्र को वरदान आदि), ९.१६.११(सहस्रबाहु के पुत्रों द्वारा जमदग्नि की हत्या),

      ९.१६.२४(परशुराम द्वारा अवभृथ स्नान के पश्चात् जमदग्नि को संज्ञान रूपी देह प्राप्ति का उल्लेख), मत्स्य ९.२८(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), १२६.२१(शिशिर ऋतु में सूर्य रथ के साथ जमदग्नि व विश्वामित्र ऋषियों की स्थिति का उल्लेख), १४५.९९(१९ मन्त्रकार ऋषियों में से एक), १९५.१५, २९(और्व - पुत्र, आप्नुवान - पौत्र, भार्गव गोत्रकारों में से एक), वायु ५२.२०(शैशिर मासों में सूर्य रथ के साथ जमदग्नि व विश्वामित्र की स्थिति का उल्लेख), ६४.२५/२.४.२५(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ६५.९३/२.४.९३(रौद्र व वैष्णव चरु विपर्यय तथा वैष्णव अग्नि के जमन से ऋचीक व सत्यवती - पुत्र जमदग्नि के जन्म का कथन), ६५.९५/२.४.९५(और्व के १०० पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र जमदग्नि का उल्लेख), ९१.६७/२.२९.६४(चरु विपर्यास से जमदग्नि के जन्म का आख्यान ), ९१/२.२९.९० (कामली/रेणुका के जमदग्नि की भार्या बनने का कथन, ऋचीक - पुत्र जमदग्नि द्वारा रेणुका से परशुराम की उत्पत्ति का उल्लेख), विष्णु २.१०.१६(माघ मास में जमदग्नि की सूर्य रथ के साथ स्थिति का उल्लेख), ३.१.३२(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ४.७.३६(चरु विपर्यास से माता सत्यवती से जमदग्नि के जन्म व जमदग्नि व रेणुका से परशुराम के जन्म का आख्यान), विष्णुधर्मोत्तर १.३२ (चरु विपर्यास से जमदग्नि की उत्पत्ति का प्रसंग), १.३५ (जमदग्नि की सत्यवती से उत्पत्ति, जमदग्नि के शराभ्यास करने पर सूर्यताप से रेणुका के पदों के जलने की कथा), स्कन्द ३.१.५.१५०(जमदग्नि द्वारा सहस्रानीक - भार्या मृगावती का पालन), ३.२.९.३१ (जमदग्नि गोत्र के ऋषियों के पांच प्रवर नाम व गुण), ३.२.२३.१० (ब्रह्मा के सत्र में अध्वर्यु), ५.२.६१.३९ (जमदग्नि द्वारा राजा अश्ववाहन को त्यक्त रानी मदनमञ्जरी के महाकालवन गमन का उल्लेख), ५.३.२१८ (जमदग्नि नाम वाले नर्मदा - उदधि संगम तीर्थ का माहात्म्य : परशुराम द्वारा क्षत्रियों के वध के पाप प्रक्षालन हेतु स्थापना), ६.३२ (हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर जमदग्नि की प्रतिक्रिया), ६.६६+ (सहस्रार्जुन द्वारा जमदग्नि की कामधेनु के हरण का प्रसंग), ७.१.१९७ (जामदग्न्येश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.१२१ (जमदग्नि - पुत्र परशुराम द्वारा माता की हत्या कर पितृ आज्ञा का पालन व शिवलिङ्ग स्थापना का वृत्तान्त), ७.१.२५५ (हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर जमदग्नि की प्रतिक्रिया), हरिवंश १.२७.३६ (चरु विपर्यास से जमदग्नि का जन्म, सत्यवती - पुत्र, रेणुका - पति), लक्ष्मीनारायण १.२४४.१९ (जमदग्नि की निरुक्ति), १.३८१ (जमदग्नि द्वारा कार्त्तवीर्य का स्वागत, कामधेनु न देने पर मरण, भृगु द्वारा मृतसंजीवनी विद्या से पुनर्जीवन, स्वर्ग गमन का वर्णन), १.४३४.६६ (सहस्रानीक - भार्या को जमदग्नि द्वारा पोषण व आश्वासन देने का कथन), १.४५७ (कार्त्तवीर्य द्वारा जमदग्नि को मार कर कामधेनु हरण करने का उल्लेख), १.५०६.४९ (ऋचीक द्वारा पत्नी को प्रदत्त चरु बदलने से जमदग्नि के जन्म का प्रसंग), १.५५७.९२ (जमदग्नि आश्रम का वर्णन), कथासरित् २.१.६३ (जमदग्नि द्वारा मृगावती को शरण व आश्वासन देना), २.१.८२ (जमदग्नि आश्रम में उदयन का वर्णन), २.२.२०३ (जमदग्नि द्वारा सहस्रानीक को पुत्र सहित भार्या मृगावती सौंपने का उल्लेख), ६.४.४८ (जमदग्नि द्वारा मृगावती को आश्रय देने का कथन ) । jamadagni

      जमदग्नि-एक ब्रह्मर्षि; जो सत्यवती और ऋचीक ऋषि के पुत्र, और्व के पौत्र तथा महर्षि च्यवन के प्रपौत्र थे; ये ऋचीक के सौ पुत्रों में बड़े थे। इनके भी चार पुत्र थे, जिनमें सबसे छोटे परशुराम जी थे ( आदि० ६६ ॥ ४५-४९ ) । जमदग्नि जी अर्जुन के जन्मोत्सव में पधारे थे ( आदि० १२२ ॥ ५१(३३) ) । ये ब्रह्माजी की सभा में विराजते हैं (सभा० ११ ॥ २२ ) । इनके सत्यवती के गर्भ से जन्म की कथा( वन० ११५ ॥ ४३ ) । इनकी राजा प्रसेनजित् से रेणुका की माँग और उसके साथ विवाह ( वन ० ११६ ॥ २ ) । इनको अपनी पत्नी रेणुका के गर्भसे पाँच पुत्रों की प्राति ( वन ० ११६ ॥ ४ ) । इनका रेणुका का वध करने के लिये पुत्रों को आदेश ( वन ० ११६ ॥ ११ ) । माता का वध कर देने पर परशुराम को इनका वरदान (वन० ११६ ॥ १८ ) । कार्तवीर्य के पुत्रों द्वारा इनका वध (वन० ११६ ॥ २८; शान्ति० ४९ ॥ ५०) । द्रोणाचार्य के पास आकर इनका उनसे युद्ध बंद करने को कहना (द्रोण० १९० ॥ ३५-४० ) । इनके जन्म का प्रसंग ( शान्ति० ४९ ॥ २९ ) । इनसे परशुराम का जन्म ( शान्ति० ४९ ॥ ३१-३२ ) । इनका वृषादर्भि से प्रतिग्रह के दोष बताना (अनु० ९३ ॥ ४४ ) । अरुन्धती से अपने मोटे न होने का कारण बताना ( अनु० ९३ ॥ ६४ ) || यातुधानी से अपने नाम की व्याख्या बताना ( अनु० ९३ । ९४(१४२.३७) ) । मृणाल की चोरी के विषयमें शपथ खाना ( अनु० ९३ ॥ १२०-१२१(१४२.६४) ) । अगस्त्यजी के कमलों की चोरी होने पर शपथ खाना ( अनु० ९४ ॥ २५(१४३.२५) ) । रेणुका के पैर और मस्तक के संतप्त होने से सूर्य पर कोप करना ( अनु० ९५ ॥ १८(१४४.१८) ) । इनका शरणागत सूर्य को अभयदान देना ( अनु० ९६ ॥ ८-१२(१४५.८) ) । इनके द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन ( अनु० १२७ ॥ १७-१९ ) । ये उत्तर दिशा के ऋषि हैं ( अनु० १६५ ॥ ४४(२७१.४४) ) । धर्म द्वारा जमदग्नि के क्रोध की परीक्षा, जमदग्नि का क्रोध पर विजय ( आश्व० ९२ ॥ ४१-४६(९५.३) ) ।

      महाभारत में आये हुए जमदग्नि के नाम-आर्चीक; भार्गवः, भार्गवनन्दनः, भृगुशार्दूलः, भृगुश्रेष्ठः, भृगूत्तमः, ऋचीकपुत्र, ऋचीकतनय आदि ।




      जम्बीर नारद १.९०.७१(जम्बीर द्वारा देवी पूजा से महिष सिद्धि का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६३(पुत्र प्राप्ति हेतु श्री हरि को जम्बीर फल आदि अर्पित करने का निर्देश ) ।


      जम्बुक गरुड २.४६.२३(द्विजों को अर्थ दान की प्रतिज्ञा कर न देने पर जम्बुक बनने का उल्लेख), पद्म १.२८ (जम्बुकी वृक्ष : कन्या - दाता), भविष्य ३.३.८.२३ , ३.३.९.२६ (जम्बुक द्वारा महावती नगरी पर विजय प्राप्ति का कथन), ३.३.१२.१२४ (पूर्व जन्म में शृगाल राजा), ३.३.१२.१२५ (कृष्णांश की माता देवकी द्वारा जम्बुक का वध), वराह १३६.९ (जम्बुक योनि प्राप्ति के कारण का उल्लेख), १३७ (पूर्व जन्म में शृगाली व गृध्र द्वारा मनुष्य शरीर प्राप्ति की कथा), स्कन्द ४.२.९७.१५९ (तिर्यक् योनि निवारक जम्बुकेश लिङ्ग का उल्लेख), ५.२.५३.१७ (राजा विश्वेश के १२ पूर्व जन्मों के वृत्तान्त के अन्तर्गत ९वें जन्म में जम्बुक होने आदि का कथन), महाभारत शान्ति १५३.६५(जम्बुक द्वारा मृत बालक के जीवित होने की संभावना व्यक्त करना), लक्ष्मीनारायण २.२१५.६१(मृत बालक के शव को श्मशान में त्यागने के सम्बन्ध में जम्बुक और गृध्र के विरोधी कथनों का वर्णन), ३.२२७.४९ (अहंकार का प्रतीक), ४.६७.६३ (प्रसाद खाकर जम्बुक द्वारा दिव्य पुरुष हो जाने का कथन), कथासरित् ७.६.२८ (इन्द्र द्वारा जम्बुक / सियार रूप धारण करने का उल्लेख), १०.४.१९ (करटक व दमनक नामक दो जम्बूकों का कथन ) । jambuka


      जम्बुकाक्ष ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२९ (विषङ्ग - सेनापति जम्बुकाक्ष का उल्लेख), ३.४.२५.९८ (भण्डासुर - सेनापति जम्बुकाक्ष का नीलपताका देवी द्वारा वध ) ।


      जम्बुमाली वा.रामायण ५.४४.१ (प्रमदावन में हनुमान द्वारा प्रहस्त - पुत्र जम्बुमाली के वध का वर्णन ) ।


      जम्बू कूर्म १.४३.१६/१.४५.१८ (जम्बू वृक्ष से बनी जम्बू नदी व जाम्बूनद सुवर्ण का कथन), १.४५ (जम्बू द्वीप के अन्तर्गत भुवनकोश विन्यास का वर्णन, मेरु व मेरु के परित: पर्वतों व वर्षों का दिशा अनुसार विन्यास), गरुड २.२२.५९/२.३२.११३ (जम्बू द्वीप की अस्थियों में स्थिति - अस्थिस्थाने स्थितो जम्बूः शाको मज्जासु संस्थितः ।), देवीभागवत ८.५ (जम्बू द्वीप का वर्णन, जम्बू द्वीप के अन्तर्गत वर्ष, पर्वत आदि), ८.६ (जम्बू वृक्ष की मेरु मन्दर पर्वत पर स्थिति व महिमा - एवं जम्बूफलानां च तुङ्गदेशनिपातनात् ॥विशीर्यतामनस्थीनां कुञ्जराङ्गप्रमाणिनाम् । रसेन च नदी जम्बूनाम्नी मेर्वाख्यमन्दरात् ॥), नारद १.५६.२०४ (जम्बू वृक्ष की रोहिणी नक्षत्र से उत्पत्ति - उडुंबरश्चाग्निधिष्ण्ये रोहिण्यां जंबुकस्तरुः ॥ ), पद्म ३.३.३० (मेरु के परित: स्थित भद्राश्व, केतुमाल आदि चार द्वीपों में से एक), ३.४.१९ (सुदर्शन नामक महान् सनातन जम्बू वृक्ष के कारण जम्बू द्वीप के प्रख्यात होने का कथन - दक्षिणेन तु नीलस्य निषधस्योत्तरेण तु। सुदर्शनो नाम महान्जंबूवृक्षः सनातनः), ३.८.४ (जम्बू पर्वत के विष्कम्भ / व्यास के परिमाण का कथन ; लवण समुद्र का विष्कम्भ जम्बू द्वीप से २ गुना होने का कथन), ६.१३३ (जम्बू द्वीप के विभिन्न तीर्थों तथा उनके स्थानों के नाम), ब्रह्म १.१७.१९ (जम्बू द्वीप में भारत की प्रशस्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१४.४३ (जम्बू द्वीप के जनपद व वर्षों के नाम, आग्नीध का जम्बू द्वीप का राजा अभिषिक्त होना), १.२.१७.२२ (सुदर्शन नामक जम्बू वृक्ष से नि:सृत जम्बू रसवती नदी का कथन), १.२.१८.६९(चन्द्रप्रभ ह्रद से नि:सृत जम्बू नदी का उल्लेख), भविष्य ३.४.२४.७९ (जम्बू द्वीप की द्वापर के चतुर्थ चरण में स्थिति), मत्स्य ११४.७५ (सुदर्शन नामक जम्बू / जामुन वृक्ष का वर्णन), १२१.६७ (जम्बू नदी का कथन), मार्कण्डेय ५४ (जम्बू द्वीप के पर्वतों, नदियों आदि का वर्णन), लिङ्ग १.४३.४७ (जाम्बू नद का प्रादुर्भाव), वराह ७५.९(जम्बू द्वीप का विस्तृत वर्णन ), ७७.२२ (अमृत तुल्य जम्बू फल के रस की जम्बू नदी से जम्बू द्वीप होने का वर्णन - पपुस्तदमृतप्रख्यं मधु जम्बूफलस्रवम् ।। सा केतुर्दक्षिणे वर्षे जम्बूर्लोकेषु विश्रुता ।), ८५.६ (जम्बू द्वीप का भोगौलिक वर्णन), ९०.४२(जम्बू द्वीप में विष्णु की चतुर्बाहु नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ३४+ (जम्बू द्वीप का वर्णन), ४६.२४ (इलावृत वर्ष में सुदर्शन नामक जम्बू वृक्ष व जम्बू नदी की महिमा), वामन १३ (जम्बू द्वीप का वर्णन, सुकेशि - ऋषि संवाद), ९०.४२ (जम्बू द्वीप में विष्णु का चतुर्बाहु नाम से वास), विष्णु २.२.७ (जम्बू द्वीप व जम्बू वृक्ष की महिमा), विष्णुधर्मोत्तर १.७.२४ (जम्बू वृक्ष, जम्बू नदी, पर्वत व वर्षों का वर्णन - तत्फलेभ्यः प्रभवति रम्या जांबूनदी शुभा । मेरोः प्रदक्षिणं कृत्वा स्वमूले सा च नश्यति ।।), शिव ५.१७.१५ (जम्बू द्वीप में विशाल जम्बू वृक्ष व जम्बू नदी का कथन), स्कन्द ५.२.४५.६९ (जम्बू मार्ग में मरण से कपोत दम्पत्ति को जन्मान्तर में उच्च कुल की प्राप्ति), ६.२५२.२६(चातुर्मास में जम्बू वृक्ष में मेघों की स्थिति तथा जम्बू वृक्ष व फल के महत्त्व का कथन - जंबूर्मेघैः परिवृतः कृष्णवर्णोऽघनाशनः ॥ कृष्णस्य सदृशो वर्णस्तेन जंबू नगोत्तमः ॥ ), ७.१.११ (जम्बू द्वीप का वर्णन, वर्ष विभाग), ७.३.६० (जम्बू तीर्थ का प्रभाव : जम्बू द्वीप के समस्त तीर्थों का लोमश द्वारा एकत्रीकरण), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८७ (वृक्ष रूप कृष्ण के दर्शन हेतु मेघों का जम्बू वृक्ष बनने आदि का उल्लेख- जम्बूवृक्षास्तदा मेघा अशोका विद्युतोऽभवन् ।।), १.४६३.५२ (गरुड द्वारा गज व कच्छप को ग्रहण कर भक्षण के लिए मेरु पर स्थित जम्बू वृक्ष की शाखा पर बैठना, शाखा का भङ्ग होना आदि - मेरौ दृष्ट्वा जम्बुशाखां निषसाद महत्तमाम् । भग्नां शाखां गजकूर्मौ गृहीत्वोड्डीय चाम्बरे ।।), कथासरित् १२.२.९९ (जम्बू वृक्ष से गिरे फल से दिव्य कन्या के निकलने का वर्णन - तस्य चान्तः फलस्यात्र कालयोगेन कन्यका । समभून्नहि दिव्यानां वीर्यं भजति मोघताम् ।। कदाचित्फलमूलार्थं विजिताश्वाभिधो मुनिः।), १८.४.५९ (चन्द्रस्वामी द्वारा जम्बू वृक्ष पर फंसी बन्दरी को मुक्त करना, बन्दर से प्राप्त अलौकिक फल खाकर जरा रोग से मुक्त होने का वर्णन ) । jambu/jamboo/jambuu

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      जम्बूक वामन ५७.८० (धूतपापा नदी द्वारा कुमार को प्रदत्त गण), ५७.८८ (पृथूदक तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण ) ।


      जम्बूमार्ग ब्रह्माण्ड २.३.१३.३८(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), मत्स्य २२.२१(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), विष्णु २.१३.३३(भरत की जम्बूमार्ग महारण्य में मृग रूप में उत्पत्ति का उल्लेख ) ।


      जम्बूलमालिका हरिवंश २.१२७.२१ (अनिरुद्ध - उषा विवाह में जम्बूलमालिका स्त्रियों के द्वारा विवाह के समय गालियां देना ) ।


      जम्भ अग्नि १०५.१३ (वास्तु चक्र में पूजनीय बालग्रह जम्भ का उल्लेख), नारद १.६६.१३१(शूर गणेश की शक्ति जम्भिनी का उल्लेख), पद्म ६.५.९२ (जालन्धर - सेनानी, विश्वेदेवों से युद्ध), ६.१२.५ (जालन्धर - सेनानी जम्भ का विनायक से युद्ध), ब्रह्माण्ड २.३.५.३८(जम्भ के पुत्र शतदुन्दुभि का उल्लेख), ३.४.१.६० ( मेरु सावर्णि - पुत्र, सुधर्मा गण), भविष्य ४.५८.६ (इन्द्र के साथ जम्भ के युद्ध का वर्णन), भागवत ६.१८.१२(हिरण्यकशिपु- भार्या कयाधु का पिता - हिरण्यकशिपोर्भार्या कयाधुर्नाम दानवी
      जम्भस्य तनया सा तु सुषुवे चतुरः सुतान् ॥), ८.१०.३२ ( जम्भ का वृषाकपि से युद्ध - वृषाकपिस्तु जम्भेन महिषेण विभावसुः।), ८.११.१८ (बलि - सेनानी जम्भ का इन्द्र द्वारा वध - इन्द्रो जम्भस्य सङ्क्रुद्धो वज्रेणापाहरच्छिरः ॥ जम्भं श्रुत्वा हतं तस्य ज्ञातयो नारदादृषेः।), मत्स्य १४८.५१ (जम्भ के रथ में सिंह वाहन आदि का उल्लेख - शतेनापि च सिंहानां रथो जम्भस्य दुर्जयः ॥ कुजम्भस्य रथो युक्तः पिशाचवदनैः खरैः।), १५०.१२ (तारक - सेनानी जम्भ का कुबेर से युद्ध), १५३.७० (जम्भ द्वारा इन्द्र से युद्ध, विभिन्न अस्त्रों का प्रयोग, विभिन्न रूप धारण, ब्रह्मास्त्र से मृत्यु), महाभारत कर्ण १३.३०(यथा देवासुरे युद्धे जम्भशक्रौ महाबलौ।।), मार्कण्डेय १८.१४७/१६.१४७ (देवताओं द्वारा जम्भ आदि दानवों के नाश के लिए दत्तात्रेय से प्रार्थना करने का प्रसंग), वामन ९.२८ (जम्भ राक्षस का वाहन दिव्य रथ होने का उल्लेख - विरोचनस्य च गजः कुजम्भस्य तुरंगमः। जम्भस्य तु रथो दिव्यो हयैः काञ्जनसन्निभैः।), ६९.११९ (देवासुर संग्राम में इन्द्र के जम्भ से युद्ध का वर्णन), वायु २.६.७६/६७.७६ (विरोचन - पुत्र, शतदुन्दुभि आदि ३ पुत्रों के नाम), ५०.२०(सुतल में महाजम्भ राक्षस के भवन का उल्लेख), ६९.६९/२.८.६६(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), स्कन्द १.२.१६.१७ (जम्भ का ध्वज व वाहन), १.२.१८ (कुबेर का जम्भ से युद्ध), १.२.२१.१२(दुर्वासा द्वारा जम्भ को सहस्राक्ष के हाथों मृत्यु के शाप का उल्लेख), १.२.२१.१५३(इन्द्र द्वारा अघोर मन्त्रास्त्र से जम्भ का वध), ५.२.५१.२ (इन्द्र के साथ जम्भ का युद्ध, दैत्यों की विजय का उल्लेख), ५.२.६३.२९ (देवासुर युद्ध में इन्द्र द्वारा शिव धनुष से जम्भ को मारने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१००.२० (छठें युद्ध में विष्णु द्वारा जम्भ राक्षस को मारने का उल्लेख ) । jambha


      जम्भक अग्नि ९३.२९ (वास्तुमण्डल में देवता - जम्भकाय च वारुण्यामामिषं रुधिरान्वितं ।।), पद्म ६.१८७.५९ (जृम्भका देवी के शिव के अन्त:पुर की रक्षिका होने का उल्लेख - यत्रास्ते जृंभकादेवी शिवस्यांतः पुरेश्वरी। तत्रापश्यद्द्विजन्मानं वासुदेवाभिधं शुचिम्। ), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२९ (ललिता पर विजय पाने हेतु विषङ्ग के जम्भक आदि सेनापति), मत्स्य १४८.५४ (जम्भक के रथ का कथन - जम्भकः किङ्किणीजाल मालमुष्ट्रं समास्थितः ॥), स्कन्द १.२.१६.१४ (तारक - सेनापति जम्भक का उल्लेख), ४.२.७२.९८ (६४ वेतालों में से एक - जंभको जृंभणमुखो ज्वालानेत्रो वृकोदरः ।), कथासरित् ८.५.७० (जम्भक की पत्नी से उत्पन्न मङ्गल के पुत्र नियन्त्रक का कथन - जातो भद्रंकरो नाम द्वितीयश्च नियन्त्रकः ।। उत्पन्नो जम्भकक्षेत्रे भौमादग्निनिभप्रभः । ) । jambhaka


      जय अग्नि १३१.१३ (जय चक्र में अक्षर व अंक न्यास से फल का विचार), गरुड १.४४.१० (प्रत्याहार जय का उल्लेख), गर्ग ४.२.११ (जय नामक मथुरा के गोप से नन्दराज का वैभव सुनकर दीनमङ्गल की कन्याओं का नन्दराज के महल में जाने का वर्णन), नारद १.९०.७२(जय प्राप्ति हेतु शतपत्र पुष्पों द्वारा देवी पूजा का निर्देश), ब्रह्माण्ड १.२.२०.३७(पञ्चम तल निवासी नागों आदि में से एक), २.३.४.१ (ब्रह्मा के मुख से निकले देवगण जय का ब्रह्मशाप से मन्वन्तरों में जन्म होने व १२ नामों का उल्लेख), २.३.७.३०२(जाम्बवान् के पुत्रों में से एक), २.३.५९.७(कलि के पुत्र - द्वय जय व विजय का उल्लेख, वरुण - पौत्र), २.३.६४.२२(सुश्रुत - पुत्र, विजय - पिता), २.३.६८.९(सृंजय - पुत्र, विजय - पिता), भविष्य १.८६.१५ (दक्षिणायन में पञ्चतारा नक्षत्र की उपस्थिति में रविवार होने पर जय नामक पुत्रप्रद वार होने का कथन), ३.२.२११ (जयपुर में वर्धमान राजा की कथा), ४.९९.२(पूर्णिमा को सोम व बुध? के बीच जय नामक सङ्ग्राम का उल्लेख), भागवत ४.१३.१२(वत्सर व स्वर्वीथि के ६ पुत्रों में से एक), ८.१३.२२(१०वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ८.२१.१६(विष्णु के अनुचरों में से एक), ९.१३.२५(श्रुत - पुत्र, विजय - पिता, निमि वंश), पुरूरवा व उर्वशी के ६ पुत्रों में से एक), ९.१६.३६(विश्वामित्र के पुत्रों में से एक), ९.१७.१६(सञ्जय - पुत्र, कृत - पिता, क्षत्रवृद्ध वंश), ९.१७.१८(संकृति - पुत्र, क्षत्रवृद्ध वंश में अन्तिम), ९.२१.१(मन्यु के ५ पुत्रों में से एक), ९.२४.१४(सात्यकि - पुत्र, कुणि - पिता, वृष्णि वंश), ९.२४.४४(कङ्क व कर्णिका के २ पुत्रों में से एक), १०.६१.१७(कृष्ण व भद्रा के पुत्रों में से एक), मार्कण्डेय १००.३८/९७.३८(रुद्रसावर्णि मन्वन्तर के श्रवण से जय प्राप्ति का उल्लेख), ?५०.३(भद्राश्व के पाञ्चाल संज्ञक ५ पुत्रों में से एक), वामन ५७.६८(नागों द्वारा कुमार को प्रदत्त जय नामक गण), ९०.४(भद्रकर्ण तीर्थ में विष्णु का जयेश नाम से वास), वायु ४७.७०(जय नामक ह्रद का उल्लेख), २.५.५/६६.५(ब्रह्मा के मुख से जय नामक देवगणों की उत्पत्ति, विभिन्न मन्वन्तरों में विभिन्न गण नामों से जन्म), २.६.१७/६७.१७(देवगणों के संन्यास लेने पर ब्रह्मा द्वारा शापित जय नामक देवगणों द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करने का वर्णन), ६९.१५९/२.८.१५४(महाजय : देवजननी व मणिवर के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक), ८९.२१/२.२७.२१(सुश्रुत - पुत्र, विजय - पिता, जनक वंश), ९३.८/२.३१.८(सञ्जय - पुत्र, विजय - पिता), ९३.९/२.३१.९(विजय - पुत्र, हर्यन्द - पिता), विष्णु ३.३.१५(१६वें द्वापर में धनञ्जय, १७वें में क्रतुञ्जय व १८वें में जय के व्यास होने का उल्लेख), ४.५.३१(सुश्रुत - पुत्र, विजय - पिता, जनक वंश), ४.९.२६(सञ्जय - पुत्र, विजय - पिता, क्षत्रवृद्ध वंश), विष्णुधर्मोत्तर ३.२.१३(जय प्राप्ति व्रत का वर्णन), स्कन्द १.२.४९.४(जयादित्य तीर्थ का माहात्म्य : रोगमुक्ति), ५.१.२८.२९ (जयेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : रोगमुक्ति), ५.१.२८.२९ (जयेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : शिवलिङ्ग दर्शन से जयी होना), ५.२.६६(जल्प द्वारा जय - विजय आदि ५ पुत्रों को अलग - अलग राज्य देने का उल्लेख), ५.३.१८९.१५ (जय क्षेत्र में शिव पूजा का कथन), महाभारत सभा १५.१३(कृष्ण में नय, अर्जुन में जय तथा भीम में बल होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२५१.९८ (चित्तवृत्तियों के ऊपर जय प्राप्त करने का वर्णन), ३.५३.९९ (५ आकूतियों, ५ चित्तों, मन, बुद्धि, अहंकार आदि १३ माया - पुत्रों के जय नामक सुरगण आदि से तादात्म्य का कथन), ४.७३ (जय नामक नगर में जयमान नामक बन्दी द्वारा स्तुति करने से राजा को वैराग्य होने की कथा), कथासरित् २.३.३३ (जयसेन - पुत्र महासेन के चण्डमहासेन होने का वृत्तान्त), ८.५.६४ (जयपुर पर्वत के विभावसु विद्याधर का प्रभास से युद्ध), १७.३.१० (देवासुर युद्ध में मुक्ताफलकेतु का वाहन जय हाथी ) ; द्र. क्रतुञ्जय, रिपुञ्जय, विजय, वैजयन्त, शत्रुञ्जय, शिवजय । jaya


      जय - ब्रह्माण्ड २.३.७.१२८(जयवाह : देवयानी व मणिवर के यक्ष पुत्रों में से एक), भविष्य ३.२.४.४५ (सोमदत्त - पुत्री, श्रीदत्त - पत्नी जयलक्ष्मी की होमदत्त पर आसक्ति, प्रेत द्वारा नासा - कर्तन की कथा), लक्ष्मीनारायण २.१७९.५७(उष्ट्राल, हंकारक व जयकाष्ठ द्वारा कृष्ण के स्वागत की कथा), २.१८५.९८(श्री हरि का राजा जयकृष्ण की वरणा नगरी में आगमन व प्रजा को उपदेश का वर्णन), ४.७३ (जयमान द्वारा राजा वज्रविक्रम को विवेक प्राप्त कराने का वर्णन), कथासरित् १८.२.२७६ (राजा विक्रमादित्य के दण्डाधिकारी द्वारा जयवर्धन को अञ्जनगिरि हाथी देने का उल्लेख), १८.२.२७७ (विक्रमादित्य द्वारा पवनजव नामक अश्व जयकेतु को देने का उल्लेख ) ।


      जय – विजय गरुड ३.२४.७७(श्रीनिवास के पूर्व द्वार पर जय-विजय की स्थिति), पद्म ६.११०.२३ (कर्दम व देवहूति - पुत्र, मरुत्त यज्ञ के ब्रह्मा व याज, कलह के कारण गज - ग्राह बनना), ६.२२८.१४ (जय - विजय की अयोध्या में पश्चिम द्वार पर स्थिति), ६.२३७.७(जय - विजय के ७ जन्मों तक दासत्व तथा ३ जन्मों में अमित्रता का उल्लेख), भागवत ३.१५+(वैकुण्ठ की सातवीं सीढी पर द्वारपाल, सनकादि को रोकना, शाप प्राप्ति), ७.१.४५ (जय - विजय का जन्मान्तरों में हिरण्यकशिपु, रावण, शिशुपाल आदि बनना), वराह १४४.१३३ (मरुत यज्ञ में कलह करने से कर्दम - पुत्र जय - विजय के गज - ग्राह बनने व शापमुक्त होने का वर्णन), वायु २.६.९९ / ६७.९९ (जय - विजय की अभिलाषा से युक्त दिति के गर्भ को इन्द्र द्वारा काटना व मरुद्गण बनाने की कथा), २.२२.७ / ८४.७ (कलि के जय - विजय नामक पुत्रों का उल्लेख), स्कन्द २.४.२८ (कर्दम व देवहूति - पुत्र, गज - ग्राह बनना), ५.१.५२ (जय - विजय द्वारा सनकादि को विष्णु मिलन से रोकना, शाप प्राप्ति, जन्मान्तरों में नाम), लक्ष्मीनारायण १.१३३.५९ (जय - विजय द्वारा सनकादि के अपमान का वृत्तान्त, तीन जन्मों में आसुरी योनि के शाप की प्राप्ति), १.३७३.१४२(राधा के शाप से जय -विजय का तृणबिन्दु - सुत तथा गज - ग्राह बनने का उल्लेख ) । jaya – vijaya

      Comments on Jaya - Vijaya


      जयचन्द्र भविष्य ३.३.५.६ (कान्यकुब्ज - अधिपति चन्द्रकान्ति का पुत्र, जयशर्मा द्विज का जन्मान्तर में रूप), ३.३.६.४ (कान्यकुब्ज का राजा, संयोगिनी कन्या के स्वयंवर में कन्या के पृथ्वीराज से विवाह की अस्वीकृति, पृथ्वीराज से युद्ध), ३.३.३२.२४३ (जयचन्द्र की पुत्र शोक में मृत्यु ) । jayachandra


      जयत्सेन ब्रह्माण्ड २.३.६८.१०(अहिन - पुत्र, संकृति - पिता, क्षत्रधर्म वंश), मत्स्य ५०.३६(सार्वभौम - पुत्र, रुचिर - पिता, कुरु वंश), वायु ९९.२२१/२.३७.२२६(सार्वभौम - पुत्र, आराधित - पिता, परिक्षित् वंश), विष्णु ४.९.२७(अहीन - पुत्र, संकृति - पिता, क्षत्रवृद्ध वंश), ४.२०.४(सार्वभौम - पुत्र, आराधित - पिता, जह्नु वंश ) । jayatsena


      जयदत्त स्कन्द १.२.११.१९ (शिवालय निर्माण से जयदत्त नृप को अजरता - अमरता की प्राप्ति, दुष्ट कर्मों के कारण शिव शाप से दीर्घजीवी कूर्म बनना), कथासरित् ४.१.५४ (जयदत्त - पुत्र देवदत्त द्वारा धैर्यपूर्वक राज्य प्राप्त करने की कथा), १८.४.२३५ (जयदत्त -पुत्री सुमना के मछली के उदर से निकलने का वर्णन ) । jayadatta


      जयदेव भविष्य ३.४.९ (चोरों द्वारा कन्दुकी ब्राह्मण - पुत्र, सूर्य - अंश, पद्मावती - पति, निरुक्तकार जयदेव के हाथ - पैर काटने की कथा), ३.४.२०.४६ (बौद्ध मतावलम्बी ब्राह्मण जयदेव द्वारा यज्ञांश देव से जगन्नाथ महिमा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्ति का वर्णन ) । jayadeva


      जयद्रथ देवीभागवत ३.१६.२६ (जयद्रथ द्वारा द्रौपदी हरण का प्रयास करने का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.१.७२(द्वितीय सावर्णि मनु के १० पुत्रों में से एक), भागवत ९.२१.२२(बृहत्काय - पुत्र, विशद - पिता, वितथ वंश), ९.२३.११(बृहन्मना - पुत्र, विजय - पिता, संभूति - पति, अङ्ग वंश), मत्स्य ४८.१०१(बृहद्भानु - पुत्र, बृहद्रथ - पिता, अङ्ग वंश), ४९.४९(बृहदिषु - पुत्र, दु:शला - पति, अश्वजित् - पिता, वितथ वंश), वायु ९९.१११/२.३७.१११ (बृहन्मना व यशोदेवी के पुत्र जयद्रथ के वंश का कथन ; ब्रह्मक्षत्रान्तर होने का उल्लेख), विष्णु ४.१८.२२(बृहन्मना - पुत्र, संभूति - पति, विजय - पिता, अङ्ग वंश), ४.१९.३४(बृहत्कर्मा - पुत्र, विश्वजित् - पिता, वितथ/भरत वंश), महाभारत उद्योग १६०.१२३ (जयद्रथ के कौरव सेना रूपी समुद्र का पर्वत होने का उल्लेख ) । jayadratha


      जयध्वज कूर्म १.२१.२२ (कार्त्तवीर्य अर्जुन - पुत्र जयध्वज द्वारा शूरसेन आदि भ्राताओं से इष्टदेव विषयक विवाद, विदेह दानव से युद्ध, विश्वामित्र द्वारा नारायण अर्चना विधि का कथन), १.२२ (जयध्वज के वंश का वर्णन), नारद १.३९.२३ (राजा जयध्वज द्वारा हरिमन्दिर में झाडू लगाने, दीप जलाने का कथन, पूर्व जन्म का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.४१.१३(कार्त्तवीर्य अर्जुन के परशुराम से युद्ध में पलायन करने वाले ५ पुत्रों में से एक), २.३.६९.५०(अवन्ती में वंशकर्ता के रूप में जयध्वज का उल्लेख ; तालजङ्घ - पिता), भागवत ९.२३.२७ (कार्त्तवीर्य अर्जुन के परशुराम द्वारा हनन से बचे ५ पुत्रों में से एक, तालजङ्घ - पिता), मत्स्य ४३.४६ (कार्त्तवीर्य अर्जुन के ५ महारथी पुत्रों में से एक, तालजङ्घ - पिता), वायु ९४.५०/२.३२.५०(कार्तवीर्य के १०० पुत्रों में जयध्वज आदि ५ पुत्रों के अवन्ती के अधिपति होने का उल्लेख, तालजङ्घ - पिता), विष्णु ४.११.२१(कार्त्तवीर्य के ५ प्रधान पुत्रों में से एक, तालजङ्घ - पिता), लक्ष्मीनारायण २.८२ (जयध्वज द्वारा भाइयों से इष्ट देव विषयक विवाद, विदेह दानव से युद्ध आदि की कथा), कथासरित् १८.३.३ (विक्रमादित्य द्वारा कर्णाट देश के राजा जयध्वज का सम्मान करने का उल्लेख ) । jayadhwaja


      जयन्त अग्नि ३०५.३ (हस्तिनापुर में विष्णु के जयन्त नाम का उल्लेख), गणेश १.४३.४ (त्रिपुर- शिव युद्ध में जयन्त का बलि से युद्ध - दैत्यपुत्रेण बलिना जयन्तो युद्धदुर्मदः ।), देवीभागवत ९.२२.७ (शङ्खचूड - सेनानी रत्नसार से जयन्त के युद्ध का उल्लेख), पद्म ६.६.९ (इन्द्र - पुत्र जयन्त द्वारा जालन्धर - सेनानी संह्लाद से युद्ध का कथन - धृत्वा जयंतं संह्रादः परिघाघातमूर्च्छितम् । ऐरावतं समारुह्य ययौ जालंधरं प्रति।।), ब्रह्माण्ड २.३.६.२४ (शची - पुत्र), २.३.७.३०२(जाम्बवान् के पुत्रों में से एक - तथान्ये ऋक्षराजस्य सुता जाता महाबलाः । जयन्तोऽथ च सर्वज्ञो मृगराट्संकृतिर्जयः ॥), २.३.६४.१(निमि द्वारा गौतम आश्रम के निकट जयन्तपुर स्थापित करने का उल्लेख), भविष्य १.८७.१ (उत्तरायण में रविवार को पंचतारा नक्षत्र होने पर पुत्रप्रद जयन्त वार का माहात्म्य), ३.२.२३.१५ (जयन्त नामक ब्राह्मण का भर्तृहरि राजा से स्वर्णमुद्रा प्राप्ति? का कथन), ३.३.१४.१ (जानकी शाप से जयन्त का कलियुग में आह्लाद - व स्वर्णवती - पुत्र इन्दुल बनना - जयन्तः शक्रपुत्रश्च जानकीशापमोहितः । कलौ जन्मत्वमापन्नः स्वर्णवत्युदरेऽवसत् ।।), ३.३.१९.१४ (इन्द्र - पुत्र जयन्त द्वारा उदयसिंह की सेना का विध्वंस, पुन: जीवित करने का वर्णन), ३.३.२१.१०१ (दिव्यास्त्रों द्वारा मकरन्द को पराजित करने वाले जयन्त का उल्लेख), भागवत १.१४.२८(यादव वीरों में से एक जयन्त का उल्लेख), ६.६.८(मरुत्वती व धर्म के २ पुत्रों में से एक ; अपर नाम उपेन्द्र ; वासुदेवांश), ६.१८.७ (जयन्त के इन्द्र - पत्नी शची का पुत्र होने का उल्लेख), ८.२१.१७(विष्णु के अनुचरों में से एक), ११.५.२६(विष्णु के नामों में से एक), मत्स्य २३.२५ (चन्द्रावलोकन हेतु कीर्ति द्वारा जयन्त को छोडकर आने का उल्लेख), ४५.२६(जयन्ती व वृषभ - पुत्र, अक्रूर - पिता), १८३.६३(वाराणसी की रक्षा करने वाले विनायकों में से एक), २५३.२३(वास्तुपद के बाह्य ३२ देवताओं में से एक), २५३.४०(वास्तुपद में श्रोत्र स्थान में अदिति व जयन्त के न्यास का निर्देश - नेत्रयोदितिपर्जन्यौ श्रोत्रेऽदितिजयन्तकौ ।।), वायु ४४.४(केतुमाल देश के ४ कुलपवतों में से एक), ६८.२४/२.७.२४(शची - पुत्र), ८९.२/२.२७.२(निमि द्वारा गौतम आश्रम के निकट जयन्तपुर स्थापित करने का उल्लेख), वा.रामायण १.७.३ (दशरथ के ८ मन्त्रियों में एक जयन्त का उल्लेख), ७.२८.१९ (मेघनाथ से जयन्त का युद्ध, पुलोमा द्वारा बन्धन - दैत्येन्द्रस्तेन सङ्गृह्य शचीपुत्रो ऽपवाहितः ।। सङ्गृह्य तं तु दौहित्रं प्रविष्टः सागरं तदा ।), शिव २.५.३६.११ ( जयन्त द्वारा शङ्खचूड - सेनानी रत्नसार से युद्ध - जयन्तो रत्नसारेण वसवो वर्चसां गणैः ।।), स्कन्द १.२.४८ (ऊर्जयन्त व प्रालेय विप्रों द्वारा तीर्थयात्रा अनुभव का वर्णन), २.७.१९.३७(पादों से जयन्त के निष्क्रमण पर भी देह पात न होने का कथन - निश्चक्राम जयंताह्वः पादात्पूर्वं सुरेश्वरः ।। तदा पंगुममुं प्राहुर्न देहः पतितस्तदा ।।), २.७.१९.५१ (मृत जीव की देह को पुनर्जीवित करने की स्पर्द्धा में जयन्त द्वारा पादों में प्रवेश करने पर भी कलेवर के उत्थान न होने का उल्लेख - जयंतः प्राविशत्पादौ नोत्तस्थौ तत्कलेवरम् ।।), २.७.२१.८(जयन्त द्विज द्वारा वैशाख मास कथा का वाचन), ३.१.२३.२५ (असुरविनाशक यज्ञ में जयन्त के मैत्रावरुण होने का उल्लेख - तस्मिन्कर्मणि होतासीत्स्वयमेव बृहस्पतिः ।। बभूव मैत्रावरुणो जयंतः पाकशासनिः ।।), ३.२.१९.३४ (पुत्र जयन्त सहित इन्द्र द्वारा शिव पूजा करने का वर्णन), ५.३.१३.४३ (इक्कीस कल्पों में से एक जयन्त का कथन), ७.४.१७.३८ (ऐशानी दिशा के स्वामी, नागराजों द्वारा घिरे जयन्त की पूजा का कथन - जयन्तादेशमादाय ते दुष्टान्घातयन्ति च ॥ नागस्थलस्थितः स्वामी जयन्तः पालकः सदा ॥), ७.४.१७.६ (द्वारका के पूर्व द्वार पर स्थिति, अनुचरों के नाम - जयंतः प्रथमं पूज्यः सर्वपापहरः शुभः ॥ स्थापितो देवराजेन पूजार्थं केशवस्य हि ॥), हरिवंश २.७३.२५ (पारिजात हरण प्रसंग में प्रद्युम्न से युद्ध - जयन्तो जयतां श्रेष्ठो रौक्मिणेयमथेषुभिः ।
      सर्वगात्रेषु विहसन्नाजघान रथे स्थितः ।।), लक्ष्मीनारायण १.२२७.२३(पदतल की रक्षा करने वाले नागों में जयन्त के सर्वमूर्धन्य होने का उल्लेख - जयन्तः सर्वमूर्धन्यो नागो रक्षति पत्तलम् ।), १.३१३.१०३ (देवद्रव्य चुराने से दरिद्र बने गिरिक्षित द्वारा इन्द्र - पुत्र जयन्त रूप में जन्म प्राप्ति का वर्णन - गिरिक्षितो बभूवेन्द्रपुत्रो जयन्तनामकः ॥), १.३३७.४३(जयन्त का शङ्खचूड - सेनानी रत्नसार से युद्ध - जयन्तो रत्नसारेणाऽश्विनौ दीप्तिमता सह । ) । jayanta

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      जयन्त जीवात्मा का प्रतीक है जो मूल प्रकृति रूपी सीता के साथ यदि तोडफोड करता है तो उसका परिणाम उसे भुगतना पीता है । जयन्त को दण्ड के रूप में एक आँख फोडने का अर्थ है कि भोग की आँख फूट गई , ज्ञान की आँख बची रही । तभी जीवात्मा रूपी जयन्त का मृत्यु भय, जिसके कारण वह ब्रह्माण्ड में चक्कर लगाता हुआ भागा था, समाप्त होता है ।


      जयन्ती गरुड ३.१६.१२(वृषभ-भार्या), गर्ग ५.१५.२७ (उद्धव - राधा संवाद में वामन उरुक्रम की शक्ति / पत्नी जयन्ती का उल्लेख), देवीभागवत ४.१२.३० (जयन्ती द्वारा धूम्रपान - रत शुक्र की सेवा व उनके साथ विवाह का वर्णन), ७.३०.५८ (हस्तिनापुर में जयन्ती देवी की पीठ का उल्लेख), १२.६.५६ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.१२१.१०९ (जयन्ती द्वादशी तिथि का अर्थ व महत्त्व), पद्म १.१३.९८ (ऋषभ - पुत्र जयन्त की पत्नी व अक्रूर - माता जयन्ती का उल्लेख), ४.४.३ (पुण्यशाली ६ जयन्ती तिथियों को व्रत करने के माहात्म्य का वर्णन), ६.३१.२१ (जयन्ती अष्टमी के दिन पुष्पों से हरि अर्चना का वर्णन), ७.६.१४२ (सुषेण राज - पुत्री जयन्ती द्वारा वीरवर नामक पुरुष वेष धारी स्त्री से विवाह, पुन: माधव से विवाह), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७.६५(जयन्ती योग में कृष्ण के जन्म का उल्लेख), ४.८.५२(जयन्ती की निरुक्ति : जय करने वाली), ब्रह्माण्ड २.३.१.८६(शुक्र व जयन्ती - पुत्री देवयानी का उल्लेख), २.३.७१.२०५(जयन्ती नामक शर्वरी में कृष्ण के जन्म का उल्लेख), २.३.७२.१५३ (इन्द्र - पुत्री जयन्ती द्वारा भृगु - पुत्र की सेवा का वर्णन), २.३.७३.३(शिव से वरदान प्राप्ति के पश्चात् शुक्राचार्य के अनुचरी जयन्ती के साथ अदृश्य रूप में विहार का कथन), भविष्य ३.४.७.७६ (जयन्ती - पति अरुण के तेज से प्रभावित ऋषियों द्वारा निम्बादित्य नाम देने की कथा), भागवत ५.४.८ (इन्द्र - कन्या, ऋषभ - पत्नी जयन्ती के भरत आदि १०० पुत्र), मत्स्य १३.२८ (हस्तिनापुर में सती देवी की जयन्ती देवी के नाम से स्थिति का उल्लेख), ४५.२६(काशिराज - पुत्री, वृषभराज - पत्नी, जयन्त - माता), ४७.११५ (जयन्ती द्वारा शुक्राचार्य की सेवा का वर्णन), १७९.१३(शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वामन ४.४ (गौतम व अहल्या - पुत्री जयन्ती का उल्लेख), वायु ६५.८४/२.४.८४ (यजनी /जयन्ती से शुक्र - पुत्री देवयानी की उत्पत्ति का उल्लेख), ९६.२०१/२.३६.२०१(कृष्ण जन्म के संदर्भ में जयन्ती नामक शर्वरी का उल्लेख), ९७.१४९/२.३५.१४९(स्वपिता इन्द्र के निर्देश पर जयन्ती का तपोरत शुक्र की सेवा में संलग्न होना), ९८.३/२.३६.३(तप पूर्ण होने पर शुक्र का जयन्ती के साथ अदृश्य रूप में १० वर्षों तक वास), स्कन्द ४.१.२९.६७ (गङ्गा सहस्रनामों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.२४.३८ (जयन्ती एकादशी का माहात्म्य : सर्वश्रेष्ठ मुक्तिदायिनी होने का वर्णन), १.३८९.४७(इन्द्र द्वारा स्वकन्या जयन्ती को राजा ऋषभ को प्रदान करने व उनसे १०० पुत्र उत्पन्न होने आदि का कथन), १.२६७.३५ (इन्द्र पूजा में इन्द्र - पुत्री जयन्ती की मूर्ति आदि बनाने का निर्देश), १.४०७ (शुक्र व उनकी पत्नी ख्याति के भय से शुक्र की तपस्या भङ्ग करने हेतु इन्द्र द्वारा जयन्ती को शुक्र की सेवा में अर्पित करने व जयन्ती द्वारा शुक्र की सेवा की कथा), ३.१००.७५ (जयन्ती व शुक्र की कथा ) ; द्र. ऊर्जस्वती, देवयानी । jayantee/jayanti


      जयमङ्गल स्कन्द ४.२.७२.५८ (जयमङ्गला देवी से चिबुक की रक्षा की प्रार्थना), कथासरित् ९.१.१९४ (राजा पृथ्वीराज द्वारा जयमङ्गल हाथी पर बैठकर अपने राज्य में लौटने का कथन ) । jayamangala


      जयशर्मा पद्म ६.६२.१६ (शिवशर्मा - पुत्र जयशर्मा का दुष्ट चरित्र होना व एकादशी व्रत से उद्धार), भविष्य ३.३.५.५ (हिमालय में तपस्या - रत जयशर्मा ब्राह्मण के पुनर्जन्म में जयचन्द्र होने का वर्णन ) ।


      जयश्री भविष्य ४.९५.११ (नहुष - पत्नी जयश्री को अरुन्धती द्वारा श्रावणिका व्रत के उपदेश का वर्णन), वामन ७५.२७ (विष्णु - सृजित चार युवतियों में से रक्तवर्णा का जयश्री नाम ) ।


      जयसेन गर्ग ७.६.२४ (मालव नरेश, राजाधिदेवी - पति, विन्द व अनुविन्द - पिता जयसेन द्वारा प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करना), भागवत ९.१७.१७(हीन - पुत्र, संकृति - पिता, क्षत्रवृद्ध वंश), ९.२२.१०(सार्वभौम - पुत्र, राधिक - पिता, कुरु वंश), ९.२४.३९(राजाधिदेवी - पति, विन्द व अनुविन्द - पिता ) । jayasena


      जया अग्नि ४१.२५ (भार्गव - पुत्री, महिमा, पृथ्वी का नाम), ६५.१७ (सभागृह स्थापना में भार्गव - पुत्री जया का पूजन), गरुड ३.१६.६(संकर्षण-भार्या), देवीभागवत ७.३०.६२ (वराह पीठ में देवी के जया नाम का उल्लेख), नारद १.६६.९० (चक्री विष्णु की शक्ति जया का उल्लेख), १.६६.११७(महाबल की शक्ति जया का उल्लेख), १.११४.५३ (कार्तिक शुक्ल पञ्चमी को जया व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य), १.१२०.७१ (जया एकादशी व्रत की विधि), १.१२१.१०५ (जया द्वादशी तिथि का अर्थ व महत्त्व), पद्म ३.२६.२१ (कुरुक्षेत्र में जया लोक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.४३.४२ (जया एकादशी व्रत से पुष्पदन्त व माल्यवान की मुक्ति की कथा), ब्रह्म २.५.१५ / ७४.१५ (गङ्गा के शिव जटा में होने पर उमा द्वारा जया से मन्त्रणा), ब्रह्माण्ड ३.४.४०.३० (जया व विजया : पार्वती की सखी - द्वय), ३.४.४४.६०(वर्ण शक्तियों में से एक), भविष्य ४.२८.७ (पार्वती - सखी जया द्वारा पार्वती पूजन के विधान का वर्णन), ४.८२.४६ (जया एकादशी का वर्णन), मत्स्य १३.३२ (वराह पर्वत पर जया नाम से पार्वती का स्मरण करने का उल्लेख), १२१.७०(कुरु देश में जय नामक ह्रदों से शान्ति व मध्वी नामक नदी - द्वय के निर्गमन का उल्लेख), १७९.१३(जया व विजया : शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से २), वामन ६९.८५ (पार्वती द्वारा महादेव के शरीर में छिपे अन्धक को पहचानने का अपनी सखी जया से कथन), वा.रामायण १.२१.१५ (दक्ष - पुत्री जया के कृशाश्व मुनि की पत्नी व ५० अस्त्रों की माता होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(कर में जया की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ४.२.७२.५७ (जया देवी से ओष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), ५.३.१९८.६९ (वराह पर्वत पर देवी का जया नाम), ६.२५०.६ (पार्वती - सखी जया द्वारा स्वेदबिन्दुज / बिल्ववृक्ष का निरूपण), योगवासिष्ठ १.९.१७ (दक्ष - कन्या जया से कृशाश्व मुनि के अस्त्र रूप पुत्रों की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.३०५.७(ब्रह्मा द्वारा सनक - पत्नी हेतु जया की सृष्टि, सनक द्वारा अस्वीकृति), १.३८५.३६(कृष्ण-पत्नी जया का कार्य – रसयुक्त रति देना), ३.१२२.१०७ (पुत्री व्रत करने से सदाशिव द्वारा जया नाम की पुत्री प्राप्ति का उल्लेख), ४.१०१.६७ (कृष्ण की आठ पत्नियों में से एक सदाशिव - पुत्री जया के पुत्र विजय व पुत्री विजयेशी का उल्लेख), कथासरित् १.१.५३ (पुष्पदन्त - पत्नी, पार्वती - सखी जया द्वारा सात विद्याधरों की कथा सुनाने का वृत्तान्त), १.७.१०६ (शिवभक्त देव भक्त व राजकन्या के पुष्पदन्त व जया रूप में पुनर्जन्म का वर्णन), ८.७.१२३ (पार्वती की प्रतिहारी जया द्वारा सुमेरु - कन्या के सूर्यप्रभ से विवाह का प्रस्ताव), १७.१.६० (विरहाकुल पार्वती द्वारा दासी जया की पुत्री चन्द्रकला को शाप देने का वर्णन ) । jayaa


      जयादित्य स्कन्द १.२.४९.४ (जयादित्य तीर्थ का माहात्म्य : कमठ व सूर्य का वार्तालाप), १.२.५६.१७ (जयादित्य कूप में स्नान से जन्म - मृत्यु रहित होने का उल्लेख ) ।


      जयालक्ष्मी लक्ष्मीनारायण ३.१२.८५ (देवव्रत - पुत्री जयालक्ष्मी का नारायण हरि के साथ पाणिग्रहण का प्रसंग ) ।


      जयेन्द्रसेना कथासरित् ११.१.२३ (रुचिरदेव - भगिनी जयेन्द्रसेना के दर्शन से नरवाहनदत्त की प्रेमाकुलता का वर्णन ) ।


      जर ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५ (शाक्त देवगण), २.३.७१.२४७(जरन्धर व जरन्धरा : कृष्ण व सत्यभामा के पुत्र व पुत्रियों में से दो), भविष्य १.१३९.४३ (अग्नि और सूर्य द्वारा निक्षुभा कन्या के सेवन के संदर्भ में जरशब्द नामक पुत्र उत्पन्न होने का उल्लेख), वायु ९६.२३९/२.३४.२३९(जरन्धम : सत्यभामा व कृष्ण के पुत्रों में से एक), ९६.२४०/२.३४.२४०(जरन्धमा : सत्यभामा व कृष्ण की पुत्रियों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.१६७.२८ (स्वेष्टजर ऋषि के साथ जयकृष्ण नृप के यज्ञभूमि में आने का उल्लेख ) । jara


      जरत्कारु देवीभागवत २.१२ (जरत्कारु मुनि के जरत्कारु नामक कन्या से विवाह व आस्तीक नामक पुत्र प्राप्ति की कथा), ९.१.७७ (जरत्कारु मुनि की पत्नी की षष्ठी देवी के रूप में पूजा का वर्णन), ९.४८.५९ (मनसा द्वारा पति जरत्कारु को जगाने पर जरत्कारु द्वारा पुत्रोत्पत्ति एवं मनसा के त्याग का वर्णन), पद्म १.३१.२३६ (वासुकि द्वारा जरत्कारु - पुत्र आस्तीक द्वारा सर्परक्षा के उद्देश्य से भगिनी जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से कराने का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.४३ (जरत्कारु के कश्यप - पुत्री मनसा का पति होने का उल्लेख), २.१.७८ (जरत्कारु - पत्नी मनसा की षष्ठी देवी के रूप में पूजा करने का वर्णन), २.४५.१ (जरत्कारु / मनसा देवी की महिमा व स्तोत्र ; जरत्कारु ऋषि द्वारा त्यागने व आस्तीक के जन्म की कथा), २.५१.५८ (सुयज्ञ नृप को शिक्षा के संदर्भ में जरत्कारु द्वारा वृष को वाहन बनाने पर नरक प्राप्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४३६ (कश्यप - पुत्री जरद्गौरी का जरत्कारु से विवाह, त्याग व ब्रह्मा के आदेश से पुत्र प्राप्ति की कथा ) । jaratkaaru

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      वासुकि नाग की बहिन जरत्कारु मानुषी त्रिलोकी का और ऋषि जरत्कारु दैवी त्रिलोकी का प्रतीक हैं। जब मानुषी त्रिलोकी और दैवी त्रिलोकी दोनों में जरत्कारु का सहस्रवण होगा तभी आस्तीक पुत्र रूपी आस्तिक्य बुद्धि (परब्रह्म के अस्तित्त्व वाली ) उत्पन्न होगी ।


      जरद्गव पद्म ६.२२०.३७ (मोहिनी वेश्या की सखी जरद्गवा द्वारा मोहिनी को शुश्रूषा से रोग मुक्त करना), स्कन्द ७.१.३४४ (जरद्गव लिङ्ग का माहात्म्य ; कृतयुग में सिद्धोदक नाम ) ।


      जरा पद्म २.७७.३ (काम द्वारा नाटक के माध्यम से ययाति को मोहित करना, ययाति का जराग्रस्त होना), २.७७.६८ (काम से वियोग पर रति के अश्रुओं से जरा की उत्पत्ति का उल्लेख), ६.२२२.३४ (कर्कट भिल्ल - भार्या जरा द्वारा गोकर्ण में मृत्यु से मुक्ति प्राप्ति का प्रसंग), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.३७ (जरा - व्याधि नाश हेतु उपयुक्त कर्मों का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१८७(वसुदेव के पुत्रों में से एक, निषाद, प्रथम धनुर्धर होने का उल्लेख), ३.४.३५.९४(ब्रह्मा की कलाओं में से एक), भागवत ९.२२.८(जरा राक्षसी द्वारा जरासन्ध को जीवित करने का वृत्तान्त), १०.७२.४२(जरा राक्षसी द्वारा जरासन्ध को जीवित करने के रहस्य का उल्लेख), ११.१०.३९ (जरा नामक व्याध की कथा), ११.३०.३८(जरा व्याध द्वारा कृष्ण के वेधन का वृत्तान्त), मत्स्य ४६.२२ ( जरा निषाद : वसुदेव की पत्नियों सुतनु व रथराजी के पुत्रों में से एक ?), ५०.३१ (दो टुकडों में उत्पन्न बृहद्रथ के पुत्र को जरा राक्षसी द्वारा जोडने का उल्लेख), वायु ९६.२३९/२.३४.२३९(कृष्ण व सत्यभामा के पुत्रों में से एक), विष्णु ५.३७.६८ (जरा व्याध द्वारा कृष्ण का मुसलखण्ड से वेधन, स्वर्ग जाने का वृत्तान्त), स्कन्द ३.१.२९.४३ (महादेव द्वारा सुचरित मुनि को जरामुक्त करने का वर्णन), ४.१.४१.१०५(सूर्य को ऊर्ध्व और चन्द्रमा को निम्न स्थिति में करने पर निर्जर होने का कथन), ४.२.५१.३६ (वृद्ध हारीत द्वारा आदित्य आराधना से जरा से मुक्ति), ६.४४.२० (मेनका का प्रणय अनुरोध अस्वीकार करने से विश्वामित्र को जरा प्राप्ति के शाप - प्रतिशाप का वर्णन), ७.१.३०५ (साम्ब द्वारा नारद को जराग्रस्त होने का शाप), हरिवंश २.१०३.२७ (वसुदेव की चतुर्थ वर्ण वाली पत्नी तुर्या से उत्पन्न पुत्र, निषाद - स्वामी जरा का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.२२ (जरा जुगुप्सा का वर्णन : जीवन में जरावस्था की विकृतियों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४८६.८७ (विश्वामित्र द्वारा मेनका का प्रणय अनुरोध अस्वीकार करने पर मेनका द्वारा विश्वामित्र को जरा ग्रस्त होने का शाप, विश्वामित्र द्वारा भी मेनका को जराग्रस्त होने का शाप, नागवती नदी में स्नान से दोनों की जरा से मुक्ति), २.१७७.६४ (श्रीहरि का कृपास्थलाद्रि के नृपति पृथु के अनुरोध पर राजधानी जरस्थली में जाने व प्रजा को उपदेश देने का वर्णन), महाभारत उद्योग ३९.७७ (देहधारियों की जरा अध्वा, पर्वतों की जरा जल, स्त्रियों की असम्भोग, तथा मन की वाक्शल्य होने का उल्लेख), शान्ति ३०१.६५ (चिन्ता - शोक के महाहृद में जरा दुर्ग का उल्लेख), ३१९ (जरा - मृत्यु का अतिक्रमण करने हेतु उपाय का प्रश्न : जनक व पञ्चशिख का संवाद ), द्र. अजर ।jaraa

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      समाधि में जब सभी इन्द्रियां शिथिल हो जाती हैं तो एक दूसरी जरा (जृ - स्तुति के अर्थ में ) उत्पन्न होती है जो अपने जार (लोक में यार ) परमात्मा से प्रेम करती है । वेद में इसका नाम जराबोध साम है । अन्यथा जरा की व्युत्पत्ति जृ - जरणे धातु से होती है ।



      जरामौन लक्ष्मीनारायण २.१६७.३५ (बललीन नृप के जरामौन ऋषि के साथ यज्ञ मण्डप में आने का उल्लेख), २.१९२.१०२ (राजा बललीन द्वारा जरामौन ऋषि के साथ श्रीकृष्ण के राजधानी में आगमन पर स्वागत ) ।


      जरायुज स्कन्द १.२.५.८३(अनुस्वार की जरायुज संज्ञा)


      जरासन्ध गरुड ३.१२.८५(जरासन्ध का विप्रचित्ति से तादात्म्य), गर्ग ६.१.४८ (स्वकन्याओं अस्ति व प्राप्ति के विधवा होने पर जरासन्ध द्वारा मथुरा पर आक्रमण, बलराम से पराजय), ७.१७.६४ (मगध - राजा जरासन्ध द्वारा प्रद्युम्न से युद्ध), देवीभागवत ४.२२.४२ (व्यास द्वारा जरासन्ध को विप्रचित्ति का अंश बताना), पद्म ६.२५२.११ (भीम द्वारा जरासन्ध के वध का कथन), ब्रह्म १.८७/१९५ (अस्ति - प्राप्ति कन्याओं के पति कंस के वध पर जरासन्ध द्वारा कृष्ण से युद्ध का वर्णन), भविष्य ३.३.१२.१२३ (कलियुग में कालिय राजपुत्र रूप में जरासन्ध के जन्म का उल्लेख), भागवत १०.५०.३२ (जरासन्ध द्वारा कृष्ण व बलराम से युद्ध), १०.५२.११ (मथुरा पर जरासन्ध के अन्तिम आक्रमण में कृष्ण व बलराम का पीछा करने व प्रवर्षण पर्वत को आग लगाने का वर्णन), १०.७०.२९ (जरासन्ध रूप कर्म पाश से मुक्ति की प्रार्थना), १०.७१.७(भीमसेन द्वारा ब्राह्मण भक्त जरासन्ध से द्वैरथ युद्ध की भिक्षा मांगने का वर्णन), १०.७२ (भीम से गदा युद्ध में मृत्यु, बन्दी राजाओं की मुक्ति का वर्णन), स्कन्द ४.२.८३.१०३ (जरासन्धेश तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : संसार ज्वर पीडा से मुक्ति), हरिवंश २.३४.१० (कंस - पत्नियों तथा स्वपुत्रियों से प्रेरित होकर जरासन्ध द्वारा मथुरा पर युद्ध की तैयारी का वर्णन ) । jaraasandha / jarasandha

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      जल अग्नि ६४.७(समुद्र, नदी, वर्षा आदि के जलों की प्रतिष्ठा हेतु विशिष्ट मन्त्र), २४७.२६ (वृक्ष सिंचन हेतु उपयुक्त जल का उल्लेख), २५५.४३ (जल द्वारा दिव्यता / सत्यानृत परीक्षा का उल्लेख), गणेश २.३६.१० (सावित्री द्वारा देवों को जड होने का शाप देने पर देवों का जल रूप होना), गरुड १.८१.२३ (ज्ञान ह्रद में ध्यान जल), नारद १.४२.२९(तम के अन्त में जल, जल के अन्त में अग्नि होने का उल्लेख ; सलिल के अन्त में पन्नगाधिपों की स्थिति का उल्लेख), पद्म १.५७.१० (जल रहित प्रदेश में जलाशय बनवाने का महत्त्व), ६.२७ (वापी - कूप - तालाब बनवाने से पाप नष्ट होने का उल्लेख, जल दान की महिमा का वर्णन), ६.४९.२१ (प्रात:काल जल की क्रमश: अमृत, मधु, क्षीर, लोहित आदि संज्ञाओं का कथन), ६.८५.१ (श्रीहरि के जलशयन उत्सव का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.५६.४७(राधा कवच द्वारा दुर्योधन द्वारा जल व वह्नि स्तम्भन), भविष्य १.५७.८(सूर्य हेतु जल की बलि का उल्लेख), २.१.१७.१५ (तोयाग्नि के वरुण नाम का उल्लेख), भागवत ६.९.१० (जल द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या के चतुर्थांश को ग्रहण करने का कथन), ११.७.३३ (दत्तात्रेय द्वारा जल से शिक्षा लेना), मत्स्य २०८.७९( सूर्य द्वारा राजा मिथि/जनक व उसकी पत्नी रूपवती को जलभाजन, उपानह व छत्र देने का वृत्तान्त), २१५ (गोकर्ण व जलेश्वर तीर्थ का वर्णन), मत्स्य २६५.३५(भव रुद्र द्वारा जल भूत की रक्षा का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.११५.७२(देह में १६ जलों का कथन), २.१२०.२०(जल हरण से प्लव योनि प्राप्ति का उल्लेख), ३.३०१.३६(जल स्थान प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि), शिव ५.१२.१ (जल दान की श्रेष्ठता का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१३२ (जल द्वारा सत्य परीक्षा की विधि), १.२.४४.८१ (दो प्रकार से जलदिव्य परीक्षा का कथन), २.७.६+ (जल दान का माहात्म्य : हेमाङ्ग राजा व गोधिका की कथा), ३.१.४९.४०(जन्म – मृत्यु की जल रूप में कल्पना), ४.२.६९.१६१ (जलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.२५.१७ (मुक्ति ब्राह्मण द्वारा जल में तप करना, व्याध व व्याघ्र की मुक्ति का वर्णन), ५.२.६५.२९ (विष्णु द्वारा महाकालवन में कुण्डेश्वर के जल से पुलोमा को मारने का वर्णन), ५.३.१५९.२० (जल की चोरी करने से वातक? योनि प्राप्त होने का उल्लेख), ५.३.१९८.७१ (देवी द्वारा शिवलिङ्ग में जलप्रिया नाम से सिद्धिदा होने का उल्लेख), ७.१.११.६४ (द्यौ द्वारा जल को गर्भ रूप में धारण करने का प्रसंग), ७.१.७२.१ (जलवास गणपति की वरुण द्वारा पूजा का कथन), हरिवंश २.८८.२२ (कृष्ण द्वारा समुद्र के जल में विश्वरूप विधि से क्रीडा का वर्णन), योगवासिष्ठ ६.२.९० (जल धारणा द्वारा अनुभूत जल जगत का वर्णन), ६.२.११७.१६(बाह्य जल व अन्तर्जल के जल की तुलना करते हुए पद्म, भ्रमर व हंस का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.१४.१०७ (जलमानव रूप धारण कर विष्णु द्वारा माकर राक्षसों का वध करने की कथा), कथासरित् ९.६.५१ (चन्द्रस्वामी द्वारा बालकों की खोज में जलपुर नगर जाना), १०.५.२३७ (जलभीत नदी का पूरा पानी न पी सकने से प्यासे जलभीत मूर्ख की कथा), महाभारत अनुशासन ६७.११ (जल दान का महत्त्व), ६८, आश्वमेधिक ५५.१३(उत्तङ्क को मरु देश में जल प्राप्ति का वरदान प्राप्त होने का वर्णन ) । jala


      जल - ब्रह्माण्ड १.२.३३.१७(जलापा : ब्रह्मवादिनी ऋषि पुत्रियों में से एक), भविष्य ३.३.२०.१ (पाञ्चाल देश के राजा बलवर्द्धन की पत्नी विशालाक्षी जलदेवी का उल्लेख), ३.३.३२.१७ (कौरवांश से उत्पन्न लहर के सोलह पुत्रों में से एक जलसन्ध का उल्लेख), भागवत ९.२०.४(जलेयु : रुद्राश्व व घृताची के १० पुत्रों में से एक, पूरु वंश), वायु ९९.१२४/२.३७.१२०(जलेयु : रौद्राश्व व घृताची के १० पुत्रों में से एक), विष्णु १.१०.१५(जलाशी : स्वाहा के ३ पुत्रों में से एक, शुचि अग्नि का अपर नाम), ४.१९.२(रौद्राश्व के १० पुत्रों में से एक, पूरु वंश), लक्ष्मीनारायण ३.१६.५१ (जलधि : ब्रह्मकर्णमल से उत्पन्न शिशुमार का नाम, वरुण का वाहन ) । jala


      जलद ब्रह्माण्ड १.२.१४.१७(हव्य के ७ पुत्रों में से एक, शाक द्वीप के जलद वर्ष का अधिपति), १.२.१९.९१(दिशाओं के सापेक्ष? उदय पर्वत से प्रथम वर्ष के रूप में जलद वर्ष का उल्लेख), मत्स्य १९७.४(आत्रेय गोत्रकार ऋषियों में से एक), वायु ३३.१७(शाकद्वीपाधिपति हव्य के ७ पुत्रों में से एक, जलद वर्ष का अधिपति), ४९.८५(उदय पर्वत के जलद वर्ष नाम होने का उल्लेख), विष्णु २.४.६०(शाकद्वीप के अधिपति भव्य के ७ पुत्रों में से एक ) । jalada


      जलधार ब्रह्माण्ड १.२.१९.८५(उदय पर्वत से अगले पर्वत जलधार का उल्लेख ; वासव के जल ग्रहण करने का स्थान), मत्स्य १२२.९(अपर नाम चन्द्र ; महिमा का कथन), १२२.२१(द्विनामा वर्ष पर्वतों में से एक, अपर नाम सुकुमार व शैशिर), वायु ४९.७९(जलधार पर्वत की महिमा का कथन), ४९.८५(जलधार पर्वत के सुकुमार वर्ष का उल्लेख), विष्णु २.४.६२(शाक द्वीप के ७ पर्वतों में से एक ) ।


      जलशायी मत्स्य २८५.५(८ नेमि वाले विश्वचक्र के द्वितीय आवरण में जलशायी विष्णु की अर्चना का कथन), स्कन्द ५.३.९०.१ (जलशायी तीर्थ का माहात्म्य), ६.२२८ (चातुर्मास में जलशायी की पूजा, माहात्म्य, सांकृति मुनि व वृक की कथा, जलशायि विष्णु का वृक के ऊपर शयन ) ।


      जलाधार द्र. जलधार ।


      जलाशय भविष्य २.३.४.३० (जलाशय प्रतिष्ठा की विधि), मत्स्य २३४ (जलाशय जनित उत्पात व शान्ति ) ।


      जलेश्वर मत्स्य १८१.२८(वाराणसी में शिव के ८ पवित्र स्थानों में से एक), १८६.१५(जलेश्वर पर्वत पर स्नान व पिण्ड दान आदि के माहात्म्य का कथन), १८७+ (जलेश्वर तीर्थ की उत्पत्ति के संदर्भ में शिव द्वारा बाणासुर के त्रिपुर को नष्ट करने का वर्णन), १८८.७६(दग्ध त्रिपुर के अमरकण्टक पर गिरने से अमरकण्टक की ज्वालेश्वर/जलेश्वर नाम से प्रसिद्धि का कथन ) । jaleshwara


      जलोद्भव वामन ८१ (जलोद्भव द्वारा ब्रह्मा से अवध्यत्व का वर, विष्णु व शिव द्वारा वध ) ।


      जलौका लक्ष्मीनारायण १.१५५.५४ (अलक्ष्मी की जलौका सदृश अङ्गुलियों का उल्लेख ) ।


      जल्प मत्स्य ९.१६(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), स्कन्द ५.२.६६ (जल्पेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, जल्प राजा द्वारा पांच पुत्रों के मरण पर जल्पेश्वर लिङ्ग की पूजा, मुक्ति ), ७.१.१०.६(जल्पेश तीर्थ का वर्गीकरण – जल), jalpa ।


      जव अग्नि १८.३८(पुरोजव : अनिल वसु - पुत्र), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५ (स्वायम्भुव मन्वन्तर में शुक्रवर्ग के १२ देवों में से एक), मत्स्य १९५.२०(जवी : भार्गव गोत्रकार ऋषियों में से एक), वा.रामायण ३.३.५ (जव - पुत्र विराध राक्षस के साथ राम के युद्ध का वर्णन ), कथासरित् ११.१.६(रुचिर देव की हस्तिनी तथा पोतक के अश्व द्वय में जव के निर्णय हेतु नरवाहनदत्त का वैशाखपुर गमन, रुचिरदेव की भगिनी जयेन्द्रसेना से विवाह), ; द्र. मनोजव ।


      जहु भागवत ९.२२.७(पुष्पवान् - पुत्र, बृहद्रथ वंश ) ।


      जह्नु नारद १.११६.११ (जह्नु द्वारा जाह्नवी पान व कर्णरन्ध्र से निकालने का उल्लेख), ब्रह्म १.८.१९ /१०.१९ (गङ्गा, कावेरी, जह्नु आख्यान), १.११.८४ / १३.८४ (अजमीढ व केशिनी - पुत्र, गङ्गा का पान, कावेरी का आह्वान), भागवत ९.१५.३(होत्र - पुत्र, पूरु - पिता, गङ्गा पान का उल्लेख), ९.२२.४(कुरु के ४ पुत्रों में से एक), वायु ९१.५४ / २.२९.५४ (जह्नु द्वारा गङ्गा का पान, पुन: जन्म देने के लिए कावेरी को पत्नी बनाना), ९९.२१७/२.३७.२१२(कुरु के २ पुत्रों में से एक), ९९.२३०/२.३७.२२५(सुरथ - पिता, वंश वर्णन), वा.रामायण १.४३.३८ ( जह्नु द्वारा गङ्गा के पान व श्रोत्रों से पुन: प्रकट करने का कथन), विष्णु ४.७.३ (पुरूरवा के वंशज जह्नु द्वारा गङ्गा को पीने का वर्णन), ४.१९.७८(कुरु के ३ प्रमुख पुत्रों में से एक जह्नु का उल्लेख), ४.२०.२(सुरथ - पिता, वंश वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.२० (जह्नु द्वारा गङ्गा का पान, पुन: निस्सारण), हरिवंश १.२७.४ ( सुहोत्र व केशिनी - पुत्र, गङ्गा पान का प्रसंग, कावेरी - पति होने का वर्णन ) । jahnu


      जागरण नारद १.१२४.५२ (कोजागर व्रत विधि : लक्ष्मी पूजा), पद्म ६.३७ (एकादशी जागरण का माहात्म्य), स्कन्द २.५.१३ (द्वादशी जागरण, दानादि की विधि), ५.३.१४३.१० (योजनेश्वर तीर्थ में जागरण से पापमुक्ति का कथन), ६.२७१.६५ (जागर लिङ्ग का माहात्म्य : बालक बक द्वारा लिङ्ग का घृत कुम्भ में क्षेपण, दीर्घजीवियों द्वारा अर्चना), ७.१.३९ (राजा शशबिन्दु द्वारा शिवरात्रि जागरण की कथा), ७.४.२६.१४ (द्वादशी तिथि में जागरण का माहात्म्य), ७.४.३८.१८ (वैशाख में जागरण व कृष्ण भक्ति का माहात्म्य), १.३४५.७८(सुधना वैश्य द्वारा विभिन्न कालों तक जागरण के महत्त्व का कथन, जागरण फल के दान से ब्रह्मराक्षस की मुक्ति ) । jaagarana


      जाग्रत अग्नि ८४.३४ (निवृत्तिकला का जाग्रदवस्था से सम्बन्ध), ८५.१६ (प्रतिष्ठाकला का स्वप्नावस्था से सम्बन्ध), ८६.१०(विद्याकला का सुषुप्ति से सम्बन्ध), स्कन्द ३.१.४९.३३(जाग्रत, स्वप्न आदि से रहित रामेश्वर की पनस द्वारा स्तुति), योगवासिष्ठ ३.११७.१२ (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति आदि अज्ञान की भूमिकाओं का वर्णन), ४.१९ (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय स्वरूप विचार नामक अध्याय : व्याध - मुनि संवाद), ६.२.१०५ ( जाग्रत व स्वप्न के एक्य का प्रतिपादन नामक अध्याय), ६.२.१३७ (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय वर्णन नामक सर्ग), ६.२.१४५ (व्याध - मुनि संवाद के अन्तर्गत स्वप्न, सुषुप्ति वर्णन नामक सर्ग), ६.२.१६५ (जाग्रत - स्वप्न एक्य उपदेश नामक सर्ग), ६.२.१६७ (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति अभाव प्रतिपादन नामक सर्ग), लक्ष्मीनारायण २.१२.६० (जागृताण्ड द्वारा कन्या हरण करने को उद्यत राजा दमनक को समझाने के प्रयास का कथन ) । jaagrata


      जाङ्गल स्कन्द ३.१.४८.५४ (शाकल्य - पुत्र, पिता की मृत्यु पर श्राद्ध, स्वप्न में मुक्त माता - पिता का दर्शन ) ।


      जाङ्घलामख लक्ष्मीनारायण ३.१०५.१४ (पत्नी के प्रति अधर्म के कारण जाङ्घलामख का मरण व कुन्दधर्मा नामक पत्नी द्वारा विष्णु से सबके जीवन का वरदान पाने का वर्णन ) ।


      जाजलि गर्ग २.५.४० (जाजलि के शाप से उत्कल के बकासुर रूप धारण करने व मुक्ति का वर्णन), पद्म ५.१०.३८ (राम के अश्वमेध में पश्चिम द्वार पर जाजलि ऋषि की स्थिति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२० (जाजलि द्वारा वेदाङ्गसार की रचना का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३३.२(ऋग्वेदी ५.५९(अथर्ववेदाचार्य पथ्य के ३ शिष्यों में से एक), २.३.३६.५(पाताल में अनन्त के समक्ष स्थित सिद्धों में से एक), भागवत ४.३१.२ (जाजलि मुनि द्वारा सिद्धि प्राप्ति के स्थान पश्चिम समुद्र तट पर प्रचेताओं द्वारा ज्ञान प्राप्ति), १२.७.२(अथर्ववेदी पथ्य के ३ शिष्यों में से एक), वायु ६१.५२(अथर्ववेदाचार्य पथ्य के ३ शिष्यों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.२०२.७ (१६ चिकित्सकों में से एक ) । jaajali

      जाजलि जिसने जायमान विचारों आदि को जला दिया है । - फतहसिंह


      जाटिक लक्ष्मीनारायण २.१०९.८५ (दैत्यों के नाश हेतु ब्रह्मा द्वारा अथर्व मन्त्रों से जाटिकों को उत्पन्न करने का उल्लेख ) ।


      जाड्यमघ लक्ष्मीनारायण २.७० (जाड्यमघ का राक्षसी काकाक्षी द्वारा हरण, मूर्ख होने से पिता द्वारा ताडन, भय से कूप में गिरने व आमलकी से जीवन - निर्वाह, पूर्व जन्म की लोलुपता के कारण अन्धत्व व जडत्व होने का वर्णन ) ।


      जातक नारद १.५५ (जातक ज्योतिष का वर्णन ) ।


      जातकर्म ब्रह्माण्ड २.३.५०.२४(पुत्र जन्म पर जातकर्म क्रिया को उत्सुक पितरों के गृह में आने का उल्लेख), २.३.६३.१३३(और्व द्वारा सगर के जन्म पर जातकर्मादि कर्म करने का उल्लेख), विष्णु ३.१३.२(पुत्र जन्म पर पिता द्वारा सचैल स्नान व नान्दीमुख श्राद्ध आदि करने का निर्देश ) ।


      जातरूप हरिवंश ३.३४.८ (ब्रह्माण्ड रचना में स्खलित द्रव पदार्थ का जातरूप / सुवर्ण होना), कथासरित् ९.३.५९ (राजा से प्राप्त रत्नयुक्त निम्बू देकर जातरूप / स्वर्ण प्राप्त करने वाले कार्पटिक की कथा ) । jaataroopa


      जातवेद ब्रह्म २.२८.५ / ९८.५ (भ्राता जातवेदस की मधु दैत्य द्वारा हत्या से अग्नि द्वारा गङ्गा में प्रवेश कर जाने की कथा), ब्रह्माण्ड २.३.१३.४३ (जातवेद शिला पर किए गए दान, श्राद्धादि के अक्षय होने का कथन), भविष्य २.१.१७.१४ (रथाग्नि के जातवेदस नाम का उल्लेख), भागवत ५.२०.१६(कुश द्वीप के वासियों द्वारा जातवेदस् अग्नि के यजन का कथन), ९.१४.४६(पुरूरवा द्वारा अरणि मन्थन से पुत्र रूप जातवेदा अग्नि के प्रकट होने का कथन), मत्स्य ५८.३४(तडागादि की प्रतिष्ठा में यजुर्वेदी ऋत्विजों द्वारा पठित सूक्तों में से एक), वायु ७७.४३/२.१५.४३ (जातवेद शिला : देविका पीठ में जातवेद शिला के महत्त्व का कथन), स्कन्द ५.३.१५५.११५ (जातवेदा से धन की इच्छा करने का निर्देश), हरिवंश २.१२२.३० (कल्माष, कुसुम, दहन, शोषण व तपन की जातवेदा संज्ञा, बाणासुर प्रसंग में जातवेदा अग्नि के वासुदेव के साथ युद्ध का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२५.४ (जातवेद आदि ५ विप्रों द्वारा प्रसविष्णु राक्षस को भिक्षा में लक्ष्मी, रति - काम आदि देने की कथा, भविष्य के ५ इन्द्रों में से एक ) । jaataveda

      Contexts on Jaataveda


      जातहारिणी मार्कण्डेय ७६.२८/ ७३.२८ (जातहारिणी द्वारा अनमित्र - पुत्र को हैमिनी के घर रखने की कथा), स्कन्द ५.२.३३.३० (जातहारिणी द्वारा अनमित्र - पुत्र को हैमिनी के घर, हैमिनी - पुत्र चैत्र को बोध ब्राह्मण के घर ले जाने का प्रसंग ) ।


      जाति गरुड २.२.६ (अन्त्यज जाति के नामों का उल्लेख), पद्म ३.३८.४६ (शालग्राम क्षेत्र में स्नान से प्रयत्नशील मनुष्य द्वारा जातिस्मर होने का उल्लेख), ३.३८.६७ (कोकामुख में स्नान से ब्रह्मचारियों द्वारा जातिस्मर / पूर्वजन्म - स्मृति होने का उल्लेख), ६.२०१.१७ (इन्द्रप्रस्थ तीर्थ में स्नान से शिवशर्मा को जाति ज्ञान होने का कथन ; पूर्व जन्म का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.११(जातिस्मर : चन्द्रमा व स्मृति - पुत्र), १.१० (जाति आविर्भाव का वर्णन), भविष्य १.४०.८ (संस्कारित, शिक्षित ब्राह्मण जाति का कथन), २.१.५.८७ (४ विप्र जातियों में सूर्य विप्र की श्रेष्ठता का उल्लेख), ४.१३ (जातिस्मरत्व प्राप्ति के लिए ४ भद्र व्रतों का वर्णन ; नारद द्वारा सञ्जय को जातिस्मर, स्वर्णष्ठीवी पुत्र प्राप्ति के वरदान की कथा), मत्स्य १२३.३ (जात्यञ्जन : गोमेदक द्वीप में सुमना पर्वत का विशेषण), विष्णु ३.७.९(जातिस्मर कालिङ्गक ब्राह्मण द्वारा भीष्म को यम - अनुचर संवाद सुनाना), विष्णुधर्मोत्तर १.८७.११ (ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि जात्याश्रित नक्षत्रों का कथन), ३.२००.४ (इष्ट जाति व्रत : यथेष्ट जाति प्राप्ति हेतु हरि पूजा का कथन), शिव ७.२.५.१६ (शिव के जाति - व्यक्ति स्वरूप होने का विवेचन ; जाति व व्यक्ति तथा जाति व पिण्ड में सम्बन्ध का कथन), ७.२.१६.४४ (समयाचार दीक्षा के अन्तर्गत जाति से क्षत्रिय को ब्राह्मण की भांति बनाने एवं रुद्रत्व स्थापना का वर्णन), ७.२.१८.११(देवों की ८, तिरश्चीनों की ५ तथा मनुष्यों की १ जाति का उल्लेख), स्कन्द २.१.१६.१९(विप्र के पादोदक से सिञ्चन पर गृहगोधा द्वारा जातिस्मरत्व की प्राप्ति), ५.१.५८.२८(७ पितरों का श्राद्ध करने से भरद्वाज - पुत्रों के जातिस्मर होने का कथन), ५.२.६९.३९ (सुबाहु राजा द्वारा सङ्गमेश्वर लिङ्ग दर्शन से जातिस्मर होकर शिरोवेदना के कारण का वर्णन करना), ५.२.७८.१६ (चित्रसेन कन्या लावण्यवती द्वारा पूर्वजन्म में पिप्पलादेश्वर के दर्शन से जातिस्मरा होने का वर्णन), ५.३.५५.३९ (तीर्थ माहात्म्य के लेखन से जातिस्मर होने का उल्लेख), ५.३.१५९.१७ (मात्सर्य के फलस्वरूप जातिअन्ध होने का उल्लेख), ५.३.१९६.४ (हंस तीर्थ में स्नान व दान का संक्षिप्त माहात्म्य : जातिस्मर होना), महाभारत शान्ति २९६.३१(पराशर गीता के अन्तर्गत जाति या कर्म से दूषित होने का प्रश्न), लक्ष्मीनारायण २.२४६.३० (ज्ञाति के वैश्वदेव लोकेश्वरी होने और ज्ञाति से भेद न करने का निर्देश), ३.९१.८४ (कृशाङ्ग चाण्डाल द्वारा जाति परिवर्तन हेतु तपस्या करने का वर्णन ) ; द्र. प्रजाति jaati


      जातिपुष्प अग्नि १९१.५(जातीफलाशी द्वारा वैशाख में महारूप के यजन का निर्देश), वामन ६.१०१ (कामदेव के धनुष का ऊपरी भाग जातिपुष्प बनने का कथन), स्कन्द २.२.४४.४ (जाति पुष्प से हरि अर्चना का उल्लेख), २.५.७.२७ (विष्णुपूजा में जाति पुष्प की श्रेष्ठता का कथन), ७.१.२४.४७ (जाति पुष्प की अन्य पुष्पों से तुलना), ७.१.२४.४९ (जाति - मुक्त पुष्प का शिव पूजा में निषेध), हरिवंश २.८०.२६ (जाति / चमेली के पुष्प जैसे सुन्दर दांतों का उल्लेख), २.८०.३४ (सौन्दर्य प्राप्ति हेतु किए गए दान में जातिपुष्प लता के दान का उल्लेख ) ।


      जातुकर्ण्य देवीभागवत १.३.३३ (२७ वें द्वापर में जातुकर्ण्य के व्यास होने का उल्लेख), पद्म ५.१०.३८ (राम के अश्वमेध में जातुकर्ण्य की पश्चिम द्वार पर स्थिति), ५.९२.६० (जातुकर्ण्य द्वारा दिव्या देवी को पूर्व जन्म का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१.१०(जातूकर्ण द्वारा पराशर से ब्रह्माण्ड पुराण का श्रवण कर द्वैपायन व्यास को सुनाने का उल्लेख), १.२.३५.१२४ (२८ द्वापरों के व्यासों के वर्णन में २७वें द्वापर के व्यास के रूप में जातुकर्ण्य का उल्लेख), २.३.७३.९३(कृष्ण द्वैपायन व्यास से पूर्व जातूकर्ण के व्यास होने का उल्लेख), भविष्य ४.८८.३ (शारीरिक दुर्गन्ध नाश हेतु जातुकर्ण्य मुनि द्वारा सूर्य पूजा का कथन), भागवत ९.२.२१ (देवदत्त - पुत्र अग्निवेश्य का जातुकर्ण्य उपनाम, नरिष्यन्त – वंश - ततोऽग्निवेश्यो भगवान् अग्निः स्वयं अभूत्सुतः ।  कानीन इति विख्यातो जातूकर्ण्यो महान् ऋषिः ॥), मत्स्य ४७.२४६ (वेदव्यास अवतार के समय यज्ञ के पुरोहित जातुकर्ण्य का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.१२१ (२७वें द्वापर में जातुकर्ण्य के व्यास होने का उल्लेख), वायु २३.२१४/१.२३.२०२(२७वें द्वापर में जातूकर्ण व्यास के समय शिव अवतार व उनके पुत्रों का कथन), ९८.९३/२.३६.९२(जातूकर्ण के पश्चात्? २८वें द्वापर में वेदव्यास के रूप में विष्णु के अवतार का उल्लेख), १०३.६६(वायु पुराण के वक्ताओं व श्रोताओं के संदर्भ में जातुकर्ण द्वारा पराशर से सुनकर द्वैपायन को सुनाने का उल्लेख), विष्णु ३.३.१९(२७वें द्वापर के वेदव्यास के रूप में जातुकर्ण का उल्लेख), शिव ३.५.४१ (२७वें द्वापर में जातुकर्ण्य के व्यास बनने पर शिव के सोमशर्मा रूप में अवतार तथा उनके शिष्यों आदि का कथन ) । jaatukarnya


      जातुच्छ वराह ८१.७ (जातुच्छ पर्वत की स्थिति का उल्लेख ) ।


      जानकी देवीभागवत १२.६.५७ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२२ (जानकीश से जानुयुग्म की रक्षा की प्रार्थना), स्कन्द ७.१.११३ (जानकी द्वारा स्थापित जानकीश लिङ्ग का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१०३.३६ (माण्डव्यपुर के राजा की पुत्री व शिवराज - पत्नी जानकी द्वारा नारायण भजन किए जाने का कथन ) । jaanakee/jaanaki


      जानन्ति नारद १.३५.३८ (जानन्ति मुनि द्वारा वेदमालि ब्राह्मण को विष्णु भक्ति विषयक उपदेश ) ।


      जानश्रुति पद्म ६.१८०.२७ (जानश्रुति को हंसों द्वारा बोध एवं रैक्व ऋषि से गीता के षष्ठम अध्याय का अभ्यास), स्कन्द ३.१.२६.३८ (पुत्र? नामक राजर्षि के पौत्र जानश्रुति को हंसों द्वारा बोध कराने व रैक्व ऋषि से ब्रह्मज्ञान प्राप्ति का वर्णन ) । jaanashruti


      जानु महाभारत शान्ति ३१७.२(जानु से प्राणों के उत्क्रमण पर साध्यों के लोक की प्राप्ति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१९(जानुओं में घटन्ति की स्थिति ) ।


      जानुजङ्घ ब्रह्माण्ड १.२.३६.४९(तामस मनु के १२ पुत्रों में से एक), विष्णु ३.१.१९(तामस मनु के पुत्रों में से एक ) ।


      जानुधि ब्रह्म १.१६.३४(मेरु के पश्चिम् में स्थित केसराचलों में से एक )


      जाबाल ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२० (चन्द्र - पुत्र जाबाल द्वारा तन्त्रसार की रचना का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३५.२९(याज्ञवल्क्य के १५ वाजिन् शिष्यों में से एक), मत्स्य १९५.३८(आर्षेय प्रवरों में से एक), १९८.४(विश्वामित्र वंश के गोत्रों में से एक), शिव ४.३८.१० (जाबाल द्वारा दस शिव व्रतों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२०२.७ (१६ चिकित्सकों में से एक ) । jaabaala


      जाबाला ब्रह्म २.६६.१३६(जाबाला द्वारा पति मौद्गल्य को दारिद्र्य नाश के लिए प्रेरित करना ) । jaabaalaa


      जाबालि पद्म ५.३०.१८ (जाबालि द्वारा ऋतम्भर राजा को पुत्र प्राप्ति हेतु गौ के माहात्म्य का कथन), ५.७२.२१ (जाबालि मुनि का तप से जन्मान्तर में कृष्ण - पत्नी चित्रगन्धा बनना), ५.१०९.८३ (जाबालि द्वारा इक्ष्वाकु ब्राह्मण को शिव अर्चना का उपदेश), ब्रह्म २.२१.२ / ९१.२ (जाबालि कृषक द्वारा गौ पर अत्याचार, नन्दी द्वारा मृत्यु लोक से गौ का हरण), वामन ६४.२९ (ऋतध्वज - पुत्र जाबालि का वानर द्वारा वृक्ष से बन्धन व मुक्ति का प्रसंग), वा.रामायण २.१०८ (जाबालि द्वारा नास्तिक मत का अवलम्बन करके राम को वन से अयोध्या गमन की प्रेरणा, राम द्वारा नास्तिक मत का खण्डन), स्कन्द २.१.२५ (जाबालि तीर्थ का माहात्म्य : दुराचार द्विज की पाप से मुक्ति, श्राद्ध का वर्णन), ४.२.६५.५ (जाबालीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१५३.१४ (जाबालि ब्राह्मण द्वारा भार्या को ऋतुदान न देने पर कुष्ठ प्राप्ति, आदित्य उपासना से मुक्ति), ५.३.२२२.६ (जाबालि द्वारा तिलादेश्वर देव की स्थापना व सालोक्य मुक्ति प्राप्ति का वर्णन), ६.१४३ (जाबालि द्वारा रम्भा से रमण से फलवती नामक कन्या की उत्पत्ति, कन्या का चित्राङ्गद गन्धर्व के साथ विहार, जाबालि का कन्या व चित्राङ्गद को शाप, कन्या से संवाद), लक्ष्मीनारायण १.४०४.५४ (जाबालि मुनि के आश्रम में स्नान के समय वेताल द्वारा दुराचार ब्राह्मण को मुक्त करने का कथन), १.४८४.३१ (अपर नाम सुपर्ण, पुरुहूता - पति, पत्नी द्वारा पर्व पर ऋतुदान की इच्छा का वर्णन), १.५०३ (जाबाला नाम की ऋषि - दासी के पुत्र जाबालि का रम्भा द्वारा तप भङ्ग, जाबालि - कन्या फलवती द्वारा चित्राङ्गद गन्धर्व से रमण आदि की कथा), १.५०४.१८ (जाबालि - सुता चेटिका नाम की शुकी का व्यास से विवाह, गर्भ धारण करने पर मोक्ष प्राप्ति की इच्छा वाले गर्भस्थ प्राणी द्वारा वेदाध्ययन रत होकर बाहर न आने का वर्णन ) । jaabaali

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      जाबालि ऋषि उपनिषदों में सत्यकाम है जो जबाला का पुत्र है । जबाला के ज का अर्थ है वह सत्य जो जायमान है, जन्म ले सकता है । बाला का अर्थ है जिसने जायमान सत्य को बल दिया हो , उसे प्रज्वलित कर दिया हो । सत्यकाम से गुरु ने पूछा कि वह किसका पुत्र है ? उसने उत्तर दिया कि मेरी माता कहती है कि उसने बहुत से ऋषियों की सेवा की है । पता नहीं वह किसका पुत्र है । ऋषि का अर्थ है ज्ञानवृत्ति । जबाला ने सत्य को , ज्ञान को विभिन्न ऋषियों से एकत्र किया है । तभी सत्य उत्पन्न हो सकता है । उसी का पुत्र सत्यकाम है । वह जाबालि ऋषि है, वही ऋतम्भर को सत्य बता सकता है । ऋत् और सत्य का परस्पर सम्बन्ध है ।


      जामलजा वायु ९९.१२५/२.३७.१२१(रुद्राश्व व घृताची की १० पुत्रियों में से एक ) ।


      जामाता पद्म १.१५.३१५ (अप्सरा लोक का स्वामी, जामाता के प्रति गृहस्थ के कर्तव्य का निरूपण), ६.१६.३२(विष्णु द्वारा जालन्धर - पत्नी वृन्दा के साथ छल के संदर्भ में जामाता को गृह में न रखने का जालन्धर का भाव), लक्ष्मीनारायण १.२९८.१८(विष्णु को पति या पुत्र रूप में प्राप्त करने की अपेक्षा जामाता रूप में प्राप्त करने के लाभों का कथन), १.२९८.९५(सुखद जामाता प्राप्ति हेतु अधिक मास व्रत का निर्देश ; पितरों की कन्याओं मेना, धन्या व कलावती का वृत्तान्त ) । jaamaataa


      जामि ब्रह्माण्ड २.३.३.२(जामा : दक्ष की ६० पुत्रियों व धर्म की १० पत्नियों में से एक), २.३.३.३३(जामा के पुत्रों के रूप में नव वीथियों का उल्लेख), भागवत ६.६.६ (दक्ष -कन्या जामि द्वारा धर्म से स्वर्ग नामक पुत्र की उत्पत्ति), वायु ६६.३४/२.५.३४(जामि के पुत्रों के रूप में नागवीथियों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२४६.३० (जामि के अप्सरा लोक का स्वामी होने का उल्लेख, जामि से विवाद न करने का निर्देश , ज्ञाति के वैश्वदेव लोकेश्वरी होने का उल्लेख) । jaami


      जाम्बवती गरुड ३.२३.१(सोम - पुत्री जाम्बवती द्वारा कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त -सोमस्य पुत्री पूर्वसर्गे बभूव भार्या मदीया जाम्बवती मम प्रिया । तासां मध्ये ह्यधिका वीन्द्र किञ्चिद्रुद्रादिभ्यः पञ्चगुणैर्विहीना ॥), ३.२३.३३(जाम्बवती द्वारा पिता सहित वेंकटेश गिरि की यात्रा, श्रीनिवास के दर्शन), ३.२७.३४(सोम-कन्या जाम्बवती का जाम्बवान-कन्या बनकर कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने का कथन), गर्ग १.३.३६(पार्वती का अवतार - श्री साक्षाद्‌रुक्मिणी भैष्मी शिवा जांबवती तथा ।), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१३२(विष्णु द्वारा कार्तिकेय को जाम्बवती के गर्भ से जन्म लेने का आशीर्वाद), ४.६.१४६(दुर्गा का अवतार - अर्द्धांशेन शैलपुत्री यातु जांबवतो गृहम् ।।), भागवत ३.१.३०(जाम्बवती द्वारा साम्ब पुत्र के रूप में गुह कार्तिकेय को जन्म देने का उल्लेख), १०.५६.३२(स्यमन्तक मणि की कथा, जाम्बवती का कृष्ण से विवाह), १०.६१.१२(जाम्बवती के साम्ब आदि १० पुत्रों के नाम), १०.८३.१०(जाम्बवती द्वारा द्रौपदी से स्वयं के कृष्ण द्वारा पाणिग्रहण का वर्णन), मत्स्य ४६.२६(जाम्बवती के पुत्रों के रूप में चारुदेष्ण व साम्ब का उल्लेख), ४७.१४(जाम्बवती के पुत्र व पुत्री के नाम), वायु ९६.२४१/ २.३४.२४१(जाम्बवती व कृष्ण के पुत्रों व पुत्रियों के नाम), विष्णु ५.२८.४(जाम्बवती व अन्य पटराज्ञियों के नाम), ५.३२.२(जाम्बवती के साम्ब आदि पुत्र होने का उल्लेख), स्कन्द ४.२.९७.४४ (जाम्बवतीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - महाबुद्धिप्रद), ७.१.२३१ (जाम्बवती नदी का माहात्म्य : कृष्ण के परलोकधाम गमन पर जाम्बवती का नदी बनना), ७.४.१४.४८(पञ्चनद तीर्थ में क्रतु ऋषि के पावनार्थ जाम्बवती नदी के आगमन का उल्लेख), हरिवंश २.८१.४१ (जाम्बवती व अन्यों द्वारा चीर्णित उमाव्रतों में अन्तर : जाम्बवती द्वारा रत्न वृक्ष का दान - तथा जाम्बवती चक्रे पुरोमाव्रतकं तथा ।ददावभ्यधिकं सा तु रत्नवृक्षं मनोहरम् ।। ), २.१०३.९ (कृष्ण -भार्या, जाम्बवती - पुत्रों के नाम ) । jaambavatee/jaambavati/jambavati


      जाम्बवान् गणेश १.६२.४ (जाम्ब नगरी में सुलभ क्षत्रिय का वृत्तान्त), गर्ग ६.२१.६ (जाम्बवान् द्वारा पश्चिम द्वार पर रक्षा करने का उल्लेख - तं प्रेक्ष्य भगवद्भक्तं जांबवंतं महाबलम् ।चिरजीवी हरेर्भक्तो भवतीह च मानवः ।।), देवीभागवत ०.२.१३ (पुत्री के क्रीडनार्थ जाम्बवान् द्वारा स्यमन्तक मणि प्राप्त करना), पद्म ५.११६.३ (शिव द्वारा जाम्बवान् के साथ राम को गौतमी नदी में जाने के लिए कहना), ६.१५० (जम्बू तीर्थ में जाम्बवान् द्वारा स्थापित जाम्बवत तीर्थ में स्नान से बल प्राप्ति व शिवलोक जाने का कथन), ६.२४३.१२ (जाम्बवान् द्वारा राम को पुष्पमाला की भेंट - जाम्बवांश्च महातेजाः पुष्पमालां मनोहराम्), ब्रह्म १.१४.४१ (कृष्ण द्वारा जाम्बवान् को पराजित कर स्यमन्तक मणि व जाम्बवती प्राप्ति की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१७४(हिमालय का अवतार - हिमालयांशो भल्लूको जांबवान्नाम किंकरः ।।), ४.९६.३६ (जाम्बवान् ऋक्ष का हरिकृपा से शुद्ध जीवन होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.३०० (रक्षा व प्रजापति - पुत्र, व्याघ्रा - पति, पुत्रों के नाम), २.३.७१.३५(ऋक्षराज जाम्बवान् द्वारा सिंह का हनन करके स्यमन्तक मणि प्राप्त करना, कृष्ण से युद्ध व सुता जाम्बवती को कृष्ण को प्रदान करने का वृत्तान्त), भागवत ८.२१.८(जाम्बवान् द्वारा वामन विष्णु की बलि पर विजय की घोषणा का उल्लेख), १०.५६.१४(ऋक्षराज जाम्बवान् द्वारा सिंह का हनन करके स्यमन्तक मणि प्राप्त करना, कृष्ण से युद्ध व सुता जाम्बवती को कृष्ण को प्रदान करने का वृत्तान्त), मत्स्य ४५.७ (ऋक्ष, प्रसेन का वध, कृष्ण द्वारा जाम्बवान का चक्र से उद्धार- ततः स जाम्बवन्तं तं हत्वा चक्रेण वै प्रभुः। कृतकर्मा महाबाहुः सकन्यं मणिमाहरत्।।), वायु ९६.३४/२.३४.३४(ऋक्षराज जाम्बवान् द्वारा सिंह का हनन करके स्यमन्तक मणि प्राप्त करना, कृष्ण से युद्ध व सुता जाम्बवती को कृष्ण को प्रदान करने का वृत्तान्त), वा.रामायण १.१७.७ (ब्रह्मा की जृम्भा /जम्भाई से जाम्बवान की सृष्टि - पूर्वम् एव मया सृष्टो जांबवान् ऋक्ष पुङ्गवः । जृंभमाणस्य सहसा मम वक्रात् अजायत ॥), ४.६५.१४ (जाम्बवान ऋक्ष द्वारा गमन विषयक विचार व्यक्त करना), ६.२७.११(धूम्र – अनुज, सारण द्वारा रावण को जाम्बवान का परिचय), ६.३०.२० (ऋक्षरजा व गद्गद – पुत्र - अथ ऋक्ष रजसः पुत्रो युधि राजन् सुदुर्जयः । गद्गदस्य अथ पुत्रो अत्र जाम्बवान् इति विश्रुतः ॥), ६.३७.३२ (लङ्का के मध्य में विरूपाक्ष से युद्ध), ६.७४.३५ (जाम्बवान् द्वारा हनुमान को मृतसञ्जीवनी आदि ४ औषधियों का वर्णन), ६.१२८.५४ (जाम्बवान् द्वारा राम अभिषेक हेतु समुद्र से जल लाना - जाम्बवांश्च हनूमांश्च वेगदर्शी च वानरः । ऋषभश्चैव कलशाञ्जलपूर्णानथानयन्), विष्णु ४.१३.५५ (जाम्बवान् द्वारा कृष्ण को कन्या जाम्बवती व स्यमन्तक मणि देने की कथा), स्कन्द ३.१.४९.२९ (जाम्बवान् द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ५.३.८९.२ (जाम्बवान् द्वारा पूतिकेश्वर तीर्थ की स्थापना ) । jaambavaan


      जार पद्म ४.२०.११ (जार - प्रिय कलिप्रिया नामक स्त्री के जार के सिंह द्वारा भक्षण आदि की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.९६ (जार दोष से भ्रष्ट कुलों में जन्म का वर्णन), १.१०.१६८ (जार / उपपति के निन्दित, अवैदिक एवं विश्वामित्र द्वारा निर्मित होने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१२८.६७ (जार नामक राजा द्वारा कृष्ण का स्वागत कर कृतार्थ होने व अपनी सौ पुत्रियों को कृष्ण को अर्पित करने का वर्णन), ४.८१.४ (परभोगेच्छु होने के कारण राजा की जार संज्ञा का कथन ) ; द्र. वीरजार, शूरजार । jaara


      जारद्गव वायु २.५.४७ / ६६.४७ (ज्योतिष में ग्रहों के मध्य स्थान वाले जारद्गव का उल्लेख ) । jaaradgava


      जारुधि गर्ग ७.४१ (शकुनि दैत्य द्वारा जारुधि पर्वत को कृष्ण पर फेंकना), ब्रह्म १.१६.५०(मेरु के उत्तर में स्थित मर्यादा पर्वतों में से एक), वायु ३६.३२(मन्दर के उत्तर में स्थित पर्वतों में से एक), ४१.६६(जारुधि पर्वत की महिमा का वर्णन), विष्णु २.२.२९( मेरु के पश्चिम में स्थित पर्वतों में से एक), २.२.४३(मेरु के उत्तर में स्थित वर्ष पर्वतों में से एक ) । jaarudhi


      जाल पद्म ३.१३.३५ (जालेश्वर तीर्थ मे पिण्डदान का माहात्म्य : दस वर्ष तक पितरों की तृप्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.२७ (वेश्या द्वारा जालबन्ध नरक प्राप्ति का उल्लेख), वराह ५.२९ (निष्ठुर व्याध की कथा में अग्नि द्वारा जाल को पार करना), वायु ९६.२३४/२.३६.२३४(जालवासिनी : कृष्ण की पटरानियों में से एक), स्कन्द १.२.४६.१११ (ब्राह्मण बालक द्वारा पूर्व जन्म में अपने जाल जालिक होने का वर्णन), ५.२.६.५३ (स्वर्ण जालेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ५.३.२६ (बाणासुर के अन्त:पुर का दहन), ५.३.१८७.१ (जालेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ७.१.३३८.७३ (जालेश्वर का माहात्म्य : धीवरों द्वारा आपस्तम्ब ऋषि को जाल द्वारा जल से बाहर निकालना, नाभाग राजा द्वारा गौ रूप मूल्य प्रदान की कथा), ७.२.१६.८५ (वस्त्रापथ क्षेत्र में जालिमध्य में भव का लिङ्ग होने का उल्लेख - सहितैस्तत्र गंतव्यं पूजयिष्ये भवं स्वयम् ॥ जालिमध्ये तथा लिंगं दर्शयस्व च लुब्धक ॥), ७.४.१६.२९ (जालेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : दुर्वासा द्वारा यदुकुमारों को शाप का स्थान), योगवासिष्ठ ३.१०४ (इन्द्र जाल के अन्तर्गत राजा लवण की विस्तृत कथा), ६.२.५९+ (जगत जाल), लक्ष्मीनारायण २.२४२.९६ (जालकील : पङ्किल द्वारा शिष्य जालकील को वामनदेव की प्रतिमा की सेवार्थ नियुक्त करना), २.२५२.७० (लोमश द्वारा अश्वपाटल नृप को वासना, मोह जाल व जाल निधान, दोनों को त्यागने आदि का उपदेश ) ३.७८.१ (जालक पुरी की सुचन्द्रिका गोपी का वर्णन), ३.२२२.१ (जालकार संगरयादस्क को शुक्लायन साधु द्वारा जालकर्म निवृत्ति की प्रेरणा का वर्णन), कथासरित् ८.४.८० (कालकम्पन से युद्ध करने वाले जालिक का उल्लेख), १०.१.१७१ (ईश्वरवर्मा का धन प्राप्त करने के लिए वेश्या सुन्दरी का जाल लगे कुएं में गिरकर मरने का झूठा प्रयत्न करना), १२.३.९१ (मृगाङ्कदत्त के मन्त्री को शिव द्वारा माया के चक्र व जाल में फंसे प्राणियों को दिखाने का वृत्तान्त ) ; द्र. धर्मजालिक, मूलजालिक । jaala


      जालन्धर गर्ग ५.१७.३६ (जालन्धरी गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), देवीभागवत ७.३०.७६ (जालन्धर पर्वत पर विश्वमुखी देवी का वास), पद्म ६.३ (जालन्धर की उत्पत्ति आदि का आख्यान), ६.९६+ (शिव के क्रोध से जालन्धर की उत्पत्ति व शेष कथा), मत्स्य १३.४६(जालन्धर पीठ में सती की विश्वमुखी नाम से स्थिति का उल्लेख), लिङ्ग १.९७ (शिव द्वारा जालन्धर का वध), वायु १०४.८० (जालन्धर पीठ की स्तन देश में स्थिति), शिव २.५.१४+ (जालन्धर के जन्म, नामकरण, विवाह, समुद्रमन्थन से क्रोधित होने पर देवताओं से युद्ध का वर्णन), ३.३०.३८ (शिव की क्रोधाग्नि द्वारा जालन्धर की उत्पत्ति की कथा, वध का उल्लेख), स्कन्द २.४.१४+ (जालन्धर की उत्पत्ति की कथा, दिग्विजय, विष्णु से युद्ध, पार्वती प्राप्ति का उद्योग, राहु दूत का प्रेषण, शिव से युद्ध, मायामय गौरी - शिव की रचना, मृत्यु आदि), ४.१.४१.१८० (योग में जालन्धर बन्ध का कथन : विश्वेश्वर के स्नान जल का मूर्द्धा में धारण), ५.३.१९८.८४ (जालन्धर में देवी के विश्वमुखी नाम का कथन), लक्ष्मीनारायण १.३२४.७८ (शिव - तेज से जालन्धर की उत्पत्ति, नामकरण व वृन्दा से विवाह का वर्णन), ३.५४.२ (जालन्धर देश में विष्णुदास खश की कन्या का वर्णन ) । jaalandhara

      जालन्धर जालन्धर शब्द का प्रत्यक्ष रूप ज्वालन्धर प्रतीत होता है । जालन्धर की उत्पत्ति शिव के क्रोध की ज्वाला से हुई है । पुराणों में ज्वाला और जाल शब्द समानार्थक प्रतीत होते हैं। योग के जालन्धर बन्ध को समझने में जालन्धर किस प्रकार उपयोगी हो सकता है, यह अन्वेषणीय है ।


      जालपाद वराह १३५.५९ (जालपाद भक्षण अपराध शोधन का वर्णन), कथासरित् ५.३.१९८ (सिद्धि प्राप्ति के लिए अधर्मी जालपाद द्वारा देवदत्त को विद्युत्प्रभा से मिलाने का वर्णन ) ।


      जालेश्वर पद्म ३.१३.३५ (जालेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य : दस वर्ष तक पितर तृप्त रहने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.२८.१०९ (अमरकण्टक पर्वत पर जलते त्रिपुर का अंश गिरने से ज्वालेश्वर की उत्पत्ति का प्रसंग), लक्ष्मीनारायण १.५४९.५४ (देविका के तट पर जल में तपस्यारत आपस्तम्ब ऋषि का धीवर के जाल में फंसना, उपदेश देना व विष्णु - शंकर की स्थापना कर जालस्थल की जालेश्वर तीर्थ संज्ञा होने की कथा), १.५६१.१ (ज्वालेश्वर तीर्थ में बलि - पुत्र त्रिपुर का शङ्कर द्वारा वध होने का कथन ) । jaaleshwara


      जाल्म लक्ष्मीनारायण १.५०९.६१(ब्रह्मा के यज्ञ में जाल्मरूपधारी शिव के प्रवेश व क्रोध का वर्णन ) ।


      जाह्नवी पद्म ६.३४ (जाह्नवी द्वारा पापों से प्राप्त मलिनता क्षालनार्थ त्रिस्पृशा एकादशी व्रत का अनुष्ठान), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४५.१६ (जाह्नवी द्वारा शिव विवाह में हास्योक्ति का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.५६.४८(गङ्गा द्वारा जाह्नवी नाम धारण के आख्यान का कथन), २.३.६६.२८(गङ्गा द्वारा जाह्नवी नाम धारण के आख्यान का कथन), वायु ९१.५८/२.२९.५१(जह्नु द्वारा गङ्गा पान का आख्यान ) । jaahnavee /jaahnavi


      जित भागवत ४.२४.८(जितव्रत : हविर्धान व हविर्धानी के ६ पुत्रों में से एक), वामन ९० (जिता : निशाकर द्वारा पूर्वजन्म में व्याघ्र होने व जिता नामक सुन्दरी पर आसक्त होने की कथा), वायु ५९.४८(जितात्मा के लक्षण), ९४.२(यदु के पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.४४(१४वें मनु के युग के सप्तर्षियों में से एक ) । jita


      जिन भविष्य ३.२.१०.१० (मद, मोहादि ६ शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर जिन / जैन बनने का वर्णन), ३.४.२१.२३ (कश्यप व अदिति - पुत्र, जयना - पति, आदित्य - पिता जिन का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१८२.७६ (राजा जिनवृद्धि द्वारा राक्षस को मारकर पीडित पर्वतीय प्रजा की रक्षा की कथा), कथासरित् ९.१.२०५ (यौगन्धरायण द्वारा सररस्वती, स्कन्द व जिन / प्रेतात्मा को काममुक्त बताने का उल्लेख ) । jina


      जिष्णु भविष्य ३.३.३१.५(ब्रह्मानन्द के जिष्णु का अंश होने का उल्लेख), वामन ५७.८३ (ओघवती नदी द्वारा जिष्णु नामक गण कार्तिकेय को देने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.१५.१६ (विष्णु के विष्णु व जिष्णु नामक दो रूपों से मधुकैटभ के युद्ध का उल्लेख), ३.१८.१ (सङ्गीत में १४ षड्ज ग्रामिकों में विष्णु - जिष्णु का उल्लेख), शिव ५.३३.१७ (अरिष्टपुरुषो वीरः कृष्णो जिष्णुः प्रजापतिः), स्कन्द ५.१.४१.१९ (तीनों लोकों को जीतकर धारण करने पर विष्णु का जिष्णु नाम होना), लक्ष्मीनारायण ३.६०.३१ (राजा जिष्णु के मरणोपरान्त रानी चिदम्बरा की विष्णुभक्ति का वर्णन), ४.१०१.१२९ (कृष्ण - पत्नी मालिनी के पुत्र जिष्णुदेव का उल्लेख ) । jishnu


      जिह्म ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.५० (व्रतोपवासहीनता से जिह्म बनने का उल्लेख ) ।


      जिह्वा गरुड २.४.१४०(जिह्वा में कदली देने का उल्लेख), २.३०.४९/२.४०.४९(मृतक की जिह्वा में कदली फल देने का निर्देश), ३.५.२०(जिह्वा इन्द्रियात्मक के रूप में वरुण का उल्लेख), देवीभागवत १२.६.५७ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.१३०(आमोद गणेश की शक्ति मदजिह्वा का उल्लेख), पद्म ६.६.२६ (बल असुर की जिह्वा से प्रवाल की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.१३४(बृहद् जिह्वा : खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), भविष्य २.२.१५.२ (हिरण्या देवी की अग्निजिह्वा का उल्लेख), मत्स्य १८७.२२(बाणासुर की रशना रत्नाढ्या होने का उल्लेख), १९५.२७ (नैकजिह्व : भार्गव गोत्रकार ऋषियों में से एक), २४८.६८(यज्ञवराह के अग्निजिह्व होने का उल्लेख), वायु १०४.८२/ २.४२.८२(जिह्वाग्र में शाक्तपीठ, हृदय में वैष्णव आदि के न्यास का उल्लेख), शिव ५.१०.१ (मिथ्या भाषण से नरक में जिह्वा की यातना का उल्लेख), ५.२२.४१ (शरीरयन्त्र की अर्गला जिह्वा का उल्लेख), ७.२.२७.२५ (हवन में ७ जिह्वाओं के ७ बीजमन्त्रों का कथन), स्कन्द १.२.५.८३(जिह्वामूलीय वर्णों की स्वेदज संज्ञा?), १.२.६३.९ (बर्बरीक द्वारा महाजिह्वा राक्षसी को वश में करने का कथन), ४.१.४२.१४ (अरुन्धती के जिह्वा होने का उल्लेख), ४.१.४५.३६ (ललज्जिह्वा : ६४ योगिनियों में से एक), ५.१.५२.४३ (यज्ञ वराह की अग्नि जिह्वा व आहुति तालुका होने आदि का उल्लेख), ५.३.३९.२८ (कपिला गौ की जिह्वा में सरस्वती के वास का उल्लेख), ५.३.८३.१०५ (गौ की जिह्वा में सरस्वती होने का उल्लेख), ५.३.२००.६ (शूद्र की जिह्वा द्वारा वेदोच्चारण न करने का कथन), ६.९०.२९ (अग्नि के शाप से गज, शुक व मण्डूक का विकृत जिह्व होना), कथासरित् ६.४.११६ (हरिशर्मा द्वारा अपनी जिह्वा की निन्दा करने पर चोरिणी जिह्वा चेटी द्वारा अपना अपराध स्वीकार करने की कथा), महाभारत भीष्म १४.१०(भीष्म की जिह्वा की असि से उपमा), आश्वमेधिक २०.१९(वैश्वानर अग्नि की ७ जिह्वाओं घ्राण, जिह्वा, चक्षु आदि का कथन), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५४ (अलक्ष्मी की दर्दुर सदृश जिह्वा का उल्लेख), २.१५८.५३(मन्दिर में घण्टा के जिह्वा का प्रतीक होने का उल्लेख ), द्र. इध्मजिह्व, ऋग्जिह्व, दीर्घजिह्व, लोलजिह्व, विद्युज्जिह्व, सुजिह्व, स्तम्बजिह्व । jihvaa/jihwaa


      जीमूत गरुड १.५५.१५ (दक्षिण में जीमूत देश का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१४.३२(शाल्मलि द्वीप के नरेश वपुष्मान के ७ पुत्रों व उनके ७ देशों में से एक), १.२.१९.४४(बलाहक पर्वत के जीमूत वर्ष का उल्लेख), १.२.२२.३६ (जीमूत नामक मेघों का वर्णन), २.३.७.४१(व्योम - पुत्र, विकृति - पिता, ज्यामघ वंश), २.३.७.२४०(प्रधान वानरों में से एक), भागवत ९.२४.४(व्योम - पुत्र, विकृति - पिता, ज्यामघ वंश), मत्स्य ४४.४० (ज्यामघ की वंश परम्परा के अन्तर्गत व्योम - पुत्र जीमूत का उल्लेख), १२१.७५(इन्द्र के भय से लवण समुद्र में दक्षिण में छिपने वाले पर्वतों में से एक), १२२.६६ (बलाहक पर्वत के जीमूत नामक वर्ष का उल्लेख), १२५.९ (जीव उत्पत्तिकारक मेघ जीमूत का कथन), लिङ्ग १.५४.४४(विभिन्न प्रकार के धूमों से उत्पन्न विभिन्न जीमूतों/मेघों का कथन), वायु ३३.२८(शाल्मलि द्वीप के नरेश वपुष्मान् के ७ पुत्रों व उनके ७ देशों में से एक), ५१.३१ (जीव उत्पत्तिकारक जीमूत नामक मेघ का वर्णन), ९५.४०/२.३३.४०(व्योम - पुत्र, विकृति - पिता, ज्यामघ वंश), विष्णु २.४.२३(शाल्मलि द्वीप के नरेश वपुष्मान् के ७ पुत्रों व उनके ७ देशों में से एक), ४.१२.४१(व्योम - पुत्र, विकृति - पिता, ज्यामघ वंश), शिव ७.२.२९.२४(शिव के दक्षिण मुख के नील जीमूत सदृश होने का उल्लेख ) । jeemoota /jeemuuta/ jimuta


      जीमूतकेतु भविष्य ३.२.१५ (जीमूतकेतु -पुत्र, कमलाक्षी - पति जीमूतवाहन द्वारा गरुड को स्वशरीर अर्पण कर वर प्राप्त करने की कथा), वामन १.३० (मेघमण्डल के ऊपर चढने से शिव के जीमूतकेतु नाम होने का वर्णन), कथासरित् ४.२.१७ (विद्याधर - राजा जीमूतकेतु - पुत्र जीमूतवाहन का वर्णन), १२.२३.६ (विद्याधरों के स्वामी जीमूतकेतु को कल्पवृक्ष से पुत्र जीमूतवाहन मिलने की कथा ) । jeemootaketu/ jeemuutaketu


      जीमूतवाहन भविष्य ३.२.१५ (जीमूतकेतु - पुत्र, कमलाक्षी - पति, पूर्व जन्म में शूरसेन राजा, गरुड को स्वशररीर का अर्पण), स्कन्द ४.२.९७.१८२ (जीमूतवाहनेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : विद्याधर पद की प्राप्ति), कथासरित् १६.३.७ (जीमूतवाहन द्वारा अपने पुण्य का वर्णन करने से पदच्युत होने का उल्लेख ) ; द्र. जीमूतकेतु । jeemuutavaahana/ jeemootavaahana


      जीर लक्ष्मीनारायण ३.२२६.२ (वैद्य गदार्दनेश्वर द्वारा जीरदुर्ग में रहने व रोगी की चिकित्सा का वर्णन ) ।


      जीरक मत्स्य २७७.८ (कल्पवृक्ष दान विधि के अन्तर्गत जीरक के ऊपर पारिजात वृक्ष की स्थापना का उल्लेख ) ।


      जीर्ण अग्नि ६७ (जीर्णोद्धार विधि का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.२३५ (कृषक जीर्णोद्भव की विष्णु पूजा का वर्णन ) ।


      जीव अग्नि २५.३१ (जीव, बुद्धि, अहंकार आदि नवात्मा के क्रमश: अङ्गुष्ठ - द्वय आदि में न्यास का निर्देश), ५९.१०(जीव की व्याहृति संज्ञा), ५९.१६(मकार के जीवभूत होने का उल्लेख), गरुड ३.२.१२(जीव-विष्णु के संदर्भ में बिम्ब-प्रतिबिम्ब का निरूपण), ३.२.४४(वायु के जीवाभिमानी होने का उल्लेख), नारद १.४२+(शरीर में जीव के अस्तित्व पर भरद्वाज की शङ्का, भृगु द्वारा समाधान), १.४३.४९(शरीर में मानस अग्नि की जीव संज्ञा का उल्लेख), पद्म २.६४.६३ (जरा, व्याधि द्वारा व्याकुल जीव को आत्मा द्वारा त्यागने का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२४.५७(कन्दली शरीर भस्म होने पर जीव द्वारा स्तुति), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९(नभ - नभस्य मासों की जीव संज्ञा), ३.४.४३.५४ (पाशबद्ध के जीव व पाशमुक्त के महेश्वर होने का उल्लेख), भविष्य ३.४.२५.३८ (जीव/गुरु की ब्रह्माण्ड वक्त्र से उत्पत्ति, दक्ष सावणि मन्वन्तर की रचना), भागवत २.५.३४(अण्ड से जीव की उत्पत्ति का कथन), ३.३१ (जीव द्वारा गर्भ में स्थित होने पर भगवद् स्तुति का वर्णन), ५.१३ (जड भरत द्वारा जीव की उपमा व्यापारी समूह से देना), १०.१.४३ (जीव द्वारा देह बदलने का प्रसंग), ११.१०.१७ (जीव की शरीर से स्वतन्त्रता पर उद्धव - कृष्ण का वार्तालाप), ११.२२.१९ (परमात्मा को साक्षी जीव और साक्ष्य जगत का अधिष्ठान बताना), ११.२४.२७ (जीव की परमात्मा में लीनता का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०२ (जीव आवाहन मन्त्र), हरिवंश ३.१६.३४ (परमात्मा का अंश होने पर भी जीवात्मा के देहबन्धन का वर्णन), शिव ७.२.५.१+ (पशुरूप जीव द्वारा शिव को जानने में असमर्थता के कारणों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.२०६.३१ (सात जीव मातृकाओं के पूजन का उल्लेख), २.२४५.५१ (योगी भक्त के जीवरथ के अवयवों वरूथ , कूबर, युग आदि के प्रतीकों का कथन), २.२५२.३० (सृष्टि व्यवस्था में ब्रह्मलोक मस्तक, हरिलोक हृदय व जीवलोक के चरण होने का उल्लेख), २.२५२.५० (लोमश द्वारा सृष्टि में मुख्य रूप से दस जीवों का वर्णन), ३.१२०.१०८ (देहरूपी मन्दिर में जीव द्वारा कृष्ण सेवा का कथन ) , योगवासिष्ठ ३.१४.१८(जीव या जीवराशि की सत्ता का खण्डन करके एकमात्र अमल ब्रह्म की सत्ता का प्रतिपादन), ३.६५.१२(चिदात्म व जीव में अभेद के अनुरूप जीव व चित्त में भेद न होने का कथन), ४.१८.४५ (चित् की सिद्धि पर जीव के चिति बनने का उल्लेख), ४.१८.६२ (रम्भा/कदली दलवत् जीव के अन्दर जीव के अन्दर जीवक होने का कथन), ४.४२.२६ (वासना ग्रस्त होने पर जीव के अहंकार, अहंकार के बुद्धि, बुद्धि के मन व मन के इन्द्रिय बनने का कथन), ४.६० (जीव की मृत्यु के पश्चात् पुन: जन्म लेने की प्रक्रिया का वर्णन), ६.१.५५ (अर्जुन - कृष्ण संवाद में जीव तत्त्व विचार नामक सर्ग), ६.१.७८.२३ (जीव की बालक से उपमा का कारण), ६.२.५० (स्वप्न, जागर आदि जीव सप्तक की व्याख्या), ६.२.१३७.२५ (कुसुम में आमोद की भांति जीव के काया में सर्वगत होने का कथन ; ओज धातु में जीव की विशेष रूप से स्थिति का कथन), ६.२.१८७ (जीव की संसृति), कथासरित् ७.७.२९ (राजा चिरायु के पुत्र जीवहर की अनार्यता की कथा), महाभारत स्त्री ४.३ (जीव के गर्भ में आकर दुःख भोगने का कथन), आश्वमेधिक १७.१६ (मृत्यु काल में जीव की गति का वर्णन), १८.७ (गर्भ में प्रवेश करने वाले जीव की मूल बीज रूपी अवस्था का कथन), शान्ति १८६ (भरद्वाज द्वारा जन्तु व जीव की नश्वरता का प्रतिपादन), १८७ (भृगु द्वारा भरद्वाज हेतु जीव की अनश्वरता का प्रतिपादन), २११, २३९, २५३, २७५, २९८.३०, ३०३, ३०४, ३०८, ३१८, ३३९.३६ (जीव के शेष संकर्षण होने का कथन ) ; द्र. चिरञ्जीव, बन्धुजीव । jeeva


      जीवट योगवासिष्ठ ६.१.६२+ (स्वप्न शतरुद्रिय के अन्तर्गत समाधि अभ्यासरत भिक्षु द्वारा स्वप्न में स्वयं को जीवट, विप्र, सामन्त, राजा आदि के रूप में देखने का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.८१.२७ (जीवट कीट को साधु कृपा से मनुष्य योनि प्राप्त होने का वर्णन ) ।


      जीवदत्त कथासरित् ९.२.१०४ (मृत स्त्री को जीवित करने की विद्या जानने वाले जीवदत्त ब्राह्मण का कथन), ९.२.१३४ (कुरूप ब्राह्मण जीवदत्त के विवाह प्रस्ताव को अनङ्गरति द्वारा न मानने का उल्लेख), ९.२.१६८ (जीवदत्त द्वारा विद्याधरी को प्राप्त करने के अभिप्राय से विन्ध्यवासिनी देवी की उपासना करना), १२.१६.२९ (मृत प्राणियों को जीवित करने में कुशल जीवदत्त द्वारा अनङ्गरति के विवाह के लिए प्रस्ताव रखने का कथन ) । jeevadatta


      जीवन विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ (गायन में षड्ज ग्राम की १४ तानों में से एक जीवन का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५७४.६५ (जीवन तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य : सिद्धि प्राप्ति), २.२३२.२३ (नवजीवन राक्षस द्वारा राजकन्या विद्युन्मणि का हरण, श्रीकृष्ण द्वारा दैत्यनाश व दैत्य - पत्नियों से पाणिग्रहण की कथा), ३.२२६.१ (आजीवनी नदी के तट पर सौराष्ट्र के गदार्दनेश्वर वैद्य की कथा), ४.५४.७० (जीवन - मरण को विधि - लिखित मानकर राजा युद्धराज द्वारा दासी व रानी के पुत्र - पुत्री को विष देने की कथा), ४.५४.७३ (दासी व रानी के मृत पुत्र - पुत्री को जीवनायन साधु द्वारा जीवित करने का वर्णन ) । jeevana/ jivana


      जीवन्ती पद्म ७.१५.११ (परशु वैश्य की जीवन्ती नामक वेश्यावृत्ति - परा भार्या की रामनाम श्रवण से मुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.४३०.१२ (निर्भयवर्मा नृप की कन्या जीवन्ती का उल्लेख ) । jeevanti/jeevantee


      जुगुप्सा भागवत ११.१९.४० (मानव गुणों के अन्तर्गत जुगुप्सा की परिभाषा : अकरणीय कर्मों में लज्जा / ह्री), योगवासिष्ठ १.१५ (अहंकार जुगुप्सा नामक सर्ग), १.१८ (राम द्वारा व्यक्त काय जुगुप्सा), १.१९(राम द्वारा व्यक्त बाल्य जुगुप्सा), १.२० (राम द्वारा व्यक्त यौवन गर्हणा ) १.२१ (राम द्वारा व्यक्त स्त्री जुगुप्सा), १.२२(राम द्वारा व्यक्त जरा जुगुप्सा ) । jugupsaa


      जुमासेम्ला लक्ष्मीनारायण २.५०.३१ (अब्रिक्त देश के राक्षस राजा जुमासेम्ला का वर्णन), २.५४.३९ (सनत्कुमार द्वारा राजा जुमासेम्ला को दानव भाव से मुक्ति हेतु उपदेश का प्रसंग), २.५६.७४ (जुमासेम्ला के जन्म व पराक्रम की कथा ) ।


      जुष्ट लक्ष्मीनारायण ३.१८१.१(मांजुष्टा ग्राम के निवासी विराल वैश्य का वृत्तान्त), द्र. जोष्ट्री, देवजुष्टा ।


      जुहू ब्रह्माण्ड १.१.५.१६(यज्ञवराह के जुहूमुख होने का उल्लेख ) juhu/juhoo


      जृम्भ अग्नि २१४.१६(अधिक मास के विजृम्भिका होने का उल्लेख - ऊनरात्रं भवेद्धिक्का अधिमासो विजृम्भिका ।), गणेश २.१४.४२ (जृम्भा : धूम्र राक्षस - पत्नी, महोत्कट गणेश को विषयुक्त तैल का मर्दन, गणेश द्वारा वध - ममर्द जृम्भती जृम्भा लोकास्तां साधु मेनिरे ।), २.१२७.१६ (ब्रह्मा की जृम्भा से भयानक पुरुष सिन्दूर की उत्पत्ति – जृम्भायास्ते समुत्पन्नं कथं मां नावबुध्यसे।....रक्तं वपुर्यतस्तेऽस्ति सिन्दूराख्यो भविष्यसि।), देवीभागवत ६.४.३६ (इन्द्र की मुक्ति हेतु देवों द्वारा वृत्र मुख से जृम्भिका के सृजन का कथन - असृजन्त महासत्त्वां जृम्भिकां रिपुनाशिनीम् । ततो विजृम्भमाणः स व्यावृतास्यो बभूव ह ॥ ), १२.६.६० (गायत्री सहस्रनामों में जृम्भा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९८ (भण्डासुर - सेनानी जृम्भण का विजया देवी द्वारा वध), स्कन्द ३.२.९.१०२ (जृम्भक यक्ष द्वारा देवों व द्विजों को त्रास - जृंभकोनाम यक्षोऽभूद्धर्म्मारण्यसमीपतः ।। उद्वेजयति नित्यं स धर्मारण्यनिवासिनः ।।), ४.२.७२.९८ (६४ वेतालों में से जृम्भण का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४०.४६ (जृम्भक द्वारा धर्मारण्य निवासियों को त्रास, श्रीकृष्ण द्वारा धर्मारण्य में गोपियों आदि का प्रेषण), २.१४६.१४६ (वास्तुशास्त्र में पश्चिम में जृम्भक की पूजा का कथन - पश्चिमे जृंभकं नौम्यावाहयामि स्मरामि च । हिंकृते प्रोथते शयानाय स्वाहा च वल्गते ।। ) । jrimbha


      जेता ब्रह्माण्ड ३.४.१.१६(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० अमिताभ देव गण में से एक), वायु १००.१६/२.३८.१६(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० अमिताभ देव गण में से एक ) । jetaa


      जैगीषव्य अग्नि ३८२.८(जैगीषव्य के मत में परम श्रेय – ऋक्, यजु, साम के अनुसार कर्म), कूर्म २.११.१२९ (जैगीषव्य द्वारा कपिल से ज्ञान प्राप्ति का उल्लेख), गणेश २.३९.३३ (दुरासद असुर के काशी में आगमन पर जैगीषव्य को छोडकर शेष ऋषियों का पलायन), गरुड ३.२३.४८+(कपिल तीर्थ में जैगीषव्य द्वारा जाम्बवती को वेंकटेश का माहात्म्य सुनाना), देवीभागवत ९.१८.१४ (शङ्खचूड द्वारा जैगीषव्य से कृष्ण मन्त्र की प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.५२.१३ (जैगीषव्य द्वारा कृतघ्नता का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.१०.२० (शतशलाक - पुत्र, एकपाटला - पति, शङ्ख व लिखित - पिता जैगीषव्य का उल्लेख), भागवत ९.२१.२६(विश्वक्सेन द्वारा जैगीषव्य के उपदेश से योगतन्त्र की रचना का उल्लेख), मत्स्य १३.९ (जैगीषव्य द्वारा मेना व हिमवान - पुत्री एकपर्णा की पत्नी रूप में प्राप्ति का उल्लेख), १८०.५८ (जैगीषव्य द्वारा वाराणसी के प्रभाव से सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.३७ (सातवें परिकल्प में जैगीषव्य मुनि का उल्लेख), वराह ४ (जैगीषव्य द्वारा राजा अश्वशिरा को विष्णु के दर्शन कराना व परमात्मा की सर्वत्र व्याप्ति का बोध कराना), वायु २३.१३८ (सप्तम द्वापर में शिव अवतार से जैगीषव्य के होने का कथन), ७२.१८ /२.११.१८ (शतशिलाक - पुत्र, एकपाटला - पति, शङ्ख व लिखित - पिता जैगीषव्य का उल्लेख), शिव २.५.२८.१ (जैगीषव्य द्वारा उपदेशित शङ्खचूड का वर्णन), ३.४.२७ (सातवें परिवर्त में भक्तों के उद्धार हेतु शिव के जैगीषव्य होने का कथन), स्कन्द १.२.१३.१५४ (जैगीषव्य द्वारा ब्रह्मरन्ध्र रूपी लिङ्ग की पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग), ४.२.६३.३१ (जैगीषव्य द्वारा शिव दर्शनार्थ तप, स्तुति का वर्णन), ४.२.९७.१७० (जैगीषव्य गुफा में तीन रात व्रत से शिवलिङ्ग आह्वान का उल्लेख), ५.२.५९ (राजा अश्वशिरा से भेंट होने पर जैगीषव्य द्वारा सिद्धि से गरुड रूप धारण करने का प्रसंग), ७.१.१४.८ (शतकलाक - पुत्र जैगीषव्य द्वारा शिव स्तुति व तप करने से शिव से वर प्राप्ति का वर्णन), हरिवंश १.१८.२४ (हिमाचल व मेना की तीसरी पुत्री एकपाटला के जैगीषव्य से विवाह का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२३९.५८ (जैगीषव्य द्वारा सुबाहु नृप के पितरों के उद्धार का उपाय बताना), १.५२५.७१ (राजा अश्वशिरा को ईश्वर की सर्वत्र व्याप्ति का विश्वास कराने वाली जैगीषव्य की कथा ) । jaigeeshavya


      जैत्र भागवत १०.७१.१२(कृष्ण द्वारा दारुक, जैत्र आदि भृत्यों से विदा लेकर गरुडध्वज रथ पर आरूढ होने का उल्लेख), विष्णु ५.३७.५१(कृष्ण के जैत्र रथ के समुद्र से प्रकट होने का उल्लेख ) । jaitra


      जैन पद्म १.१३.३५० (बृहस्पति द्वारा असुरों को जैन धर्म की दीक्षा का वर्णन), २.३७.२१ (पातक द्वारा वेन को जैन धर्म का वर्णन), भविष्य ३.२.१० (जैन धर्म की वैदिक धर्म से हीनता का वर्णन), विष्णु ३.१८.२ (देवताओं से पराजित होने हेतु मायामोह द्वारा दैत्यों को जैन - बौद्ध धर्म की दीक्षा देने व वैदिक धर्म से च्युत करने का वर्णन), शिव २.५.४, २.५.१२ (त्रिपुर मोहनार्थ विष्णु द्वारा उत्पत्ति, त्रिपुर दाह के अनन्तर कलियुग में जैनों द्वारा त्रिपुर मत का प्रचार), स्कन्द ३.२.३६.४३(राजा आम के जामाता कुमारपाल द्वारा जैन धर्म की स्थापना व ब्राह्मणों से विवाद ) । jaina


      जैमिनि/जैमिनी कूर्म १.२९ (जैमिनी द्वारा व्यास से मोक्ष उपाय की पृच्छा, वाराणसी माहात्म्य का श्रवण), नारद २.७३.२८ (जैमिनी द्वारा शिव के ताण्डव नृत्य का दर्शन व स्तुति करना), पद्म २.९५ (सुबाहु - पुरोहित जैमिनी द्वारा कुबाहु को दान विषयक उपदेश), ७.१.२६ (जैमिनी द्वारा व्यास से कलिकाल में मोक्ष विषयक पृच्छा), भागवत १.४.२१(व्यास से सामवेद ग्रहण करने वाले शिष्य जैमिनि का उल्लेख), ९.१२.३(जैमिनि के योगाचार्य शिष्य हिरण्यनाभ का उल्लेख), १०.७४.८(युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में से एक), १२.६.५३(जैमिनि द्वारा व्यास से छन्दोग संहिता प्राप्त करने का उल्लेख), १२.६.७५(जैमिनि द्वारा स्वपुत्र सुमन्तु व पौत्र सुन्वान् को साम संहिताएं प्रदान करने का उल्लेख), मार्कण्डेय १.४ (वेदव्यास -शिष्य जैमिनी द्वारा मार्कण्डेय से वार्तालाप), ४.२ (जैमिनी द्वारा विन्ध्य पर्वत की कन्दरा में जाकर पक्षियों से वार्तालाप), ४५.१५९/४२.१५९ (जैमिनी द्वारा पक्षियों से सृष्टि - प्रलय विषयक वार्तालाप), वायु ६०.१३(शिष्य जैमिनि द्वारा व्यास से सामवेद ग्रहण करने का उल्लेख), ६१.२६(जैमिनि द्वारा स्वपुत्र सुमन्तु के अध्यापन का उल्लेख), ६१.४२(संहिता ज्ञान प्राप्त करने वाले लाङ्गलि के ६ शिष्यों में से एक), विष्णु ३.४.९(शिष्य जैमिनि द्वारा व्यास से सामवेद ग्रहण करने का उल्लेख), स्कन्द २.१.१३.५२ (जैमिनी द्वारा उन्मत्त धर्मगुप्त को स्वामिपुष्करिणी में स्नान का परामर्श), २.२.१ (जैमिनी द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र का वर्णन), २.२.६(जैमिनी द्वारा ऋषियों से उत्कल तीर्थ का वर्णन करना), २.२.२५.२३(जैमिनि द्वारा रथ प्रतिष्ठा विधि का वर्णन), ३.१.३२.५३ (जैमिनी द्वारा धर्मगुप्त की उन्माद से मुक्ति हेतु नन्द को परामर्श का वर्णन), ४.२.९७.१९४ (जैमिनीश लिङ्ग के दर्शन से राक्षस भय न होने का उल्लेख), ६.५.६ (त्रिशङ्कु के यज्ञ में प्रतिहर्ता के रूप में जैमिनी का उल्लेख), ६.१८.७९ (राजा विदूरथ द्वारा जैमिनी आश्रम पहुंचने की कथा), ७.४.१०.११ (नृग द्वारा जैमिनी को गौ दान, पुन: दान से जैमिनी द्वारा शाप देने का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५०१.९६ (शाण्डिल्य - पुत्री माधवी द्वारा तप से जैमिनी को पतिरूप में प्राप्त करने की कथा), ३.५१.६५ (चोलराज सुबाहु को पुरोहित जैमिनी द्वारा स्वर्ग प्राप्ति हेतु अन्न दान का परामर्श ) । jaimini/ jaiminee


      जोष्ट्री लक्ष्मीनारायण १.३१९.३२ (जोष्ट्री द्वारा बारह पुत्रियों को सेवा कार्यरत करने का वर्णन), ४.१०१.११२ (जोष्ट्री के पुत्र स्वप्रकाशक व पुत्री विवेकिनी का उल्लेख ) । joshtree


      ज्ञान अग्नि ५९.६(वासुदेवात्मक चतुर्व्यूह में अव्याकृत को ज्ञान रूप वासुदेव में धारण करने का निर्देश), ३७७ (आत्मा का परमात्मा से एक्य : ज्ञान - अज्ञान का वर्णन), ३८१.३६ (सत्त्व से ज्ञान, रज से लोभ आदि की उत्पत्ति का कथन), कूर्म २.४५.९(ज्ञान से आत्यन्तिक प्रलय प्राप्ति का कथन), २.४६.४७(ज्ञान के निर्बीज योग होने का उल्लेख), गरुड १.२२८ /१.२३६(आत्मज्ञान की महिमा का कथन), ३.१२.४१(परोक्ष-अपरोक्ष ज्ञान का विवेचन), देवीभागवत ९.१.११४ (बुद्धि, मेधा व धृति - पति ज्ञान का उल्लेख), पद्म १.६२.९९(उमा देवी के ज्ञान माता होने का कथन), २.७.२४ (ज्ञान द्वारा आत्मा को पञ्च तत्त्वों से मैत्री न करने का सत्परामर्श), २.८(ज्ञान द्वारा गर्भ स्थित आत्मा को ध्यानरत रहने का परामर्श), २.५५.२ (सुकला सती के संदर्भ में धर्म चाप व ज्ञान बाण का उल्लेख), २.१२३.१ (सिद्ध द्वारा धर्मशर्मा को ज्ञान की महिमा का वर्णन), २.१२३ (ज्ञान के विदेह रूप व सर्वव्यापी होने का वर्णन), ६.३६.१०(एकादशी को ऊरु में ज्ञानगम्य व कटि में ज्ञानप्रद विष्णु का न्यास), ६.१९४.८ (भक्ति - पुत्र ज्ञान को नारद द्वारा बोध कराना, भागवत से बल प्राप्ति का वर्णन - मुक्तिदासीं ददौ तुभ्यं ज्ञानवैराग्य आत्मजौ), ब्रह्म १.१२६.५८/२३४.५८ (शास्त्रजन्य, विवेकजन्य ज्ञान का निरूपण), १.१२९.३५ /२३७.३५ (ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.११ (चन्द्रमा व मति - पुत्र), २.१.१२० (ज्ञान की तीन भार्याओं बुद्धि, मेधा व स्मृति का उल्लेख), २.६.४ (सरस्वती जल के ज्ञानरूप होने का उल्लेख), ३.७.७४ (नारायण आत्मा, मन ब्रह्मा, ज्ञान शिव आदि का कथन), ४.७८ (कृष्ण द्वारा जनक को आध्यात्मिक ज्ञान देने का वर्णन), ४.९४.१०८(शम्भु के ज्ञानस्वरूप होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.७.५९ (कृतयुग में ज्ञान व त्रेता में यज्ञ की प्रधानता का उल्लेख), ३.४.१.८५(ज्ञानी : १२वें मन्वन्तर में रोहित गण के १० देवों में से एक), ३.४.३.३५ (ज्ञान व अज्ञान के लक्षणों का निरूपण), ३.४.५.२७ (आत्मैक्य से प्राप्त ज्ञान के सर्वसिद्धि प्रदायक होने का उल्लेख), ३.४.३५.९९(ज्ञानामृता : चिन्तामणि गृह में १६ शक्ति देवियों में से एक), भविष्य २.१.९.२(ज्ञानसाध्य कर्म की अन्तर्वेदी संज्ञा का उल्लेख), ३.४.७.२७ (ज्ञान से सायुज्य मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख), भागवत ०.१ (भक्ति - पुत्र ज्ञान की कलियुग में दुर्दशा, नारद द्वारा उद्धार), २.५.२३(ज्ञान, क्रिया, भावना की अपेक्षा द्रव्य, ज्ञान व क्रियात्मक तम का कथन - तमःप्रधानस्त्वभवद् द्रव्यज्ञानक्रियात्मकः ॥), ११.१९.४ (तत्त्वज्ञान की श्रेष्ठता का कथन), ११.२०.७ (ज्ञान, कर्म व भक्ति योग का कथन - योगास्त्रयो मया प्रोक्ता नृणां श्रेयोविधित्सया ।  ज्ञानं कर्म च भक्तिश्च नोपायोऽन्योऽस्ति कुत्रचित् ॥ ), मत्स्य ५२.५(कर्म योग के ज्ञान योग से सम्बन्ध का कथन ), मार्कण्डेय १००.३६/९७.३६(तामस मन्वन्तर को सुनने से ज्ञान प्राप्ति का उल्लेख), लिङ्ग १.३९.६८(विचार से वैराग्य, वैराग्य से दोष दर्शन, दोष दर्शन से ज्ञान की उत्पत्ति का कथन), वराह ५.४ (कर्म या ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति का प्रश्न : राजा अश्वशिरा - कपिल संवाद), ५.४३ (निष्ठुरक नामक व्याध को अपना कार्य करते समय ज्ञान प्राप्त होने की कथा), वायु ५८.२१(द्वापर में दोष दर्शन से ज्ञान उत्पन्न होने का कथन), ५९.५४(अविज्ञान ? के ज्ञान होने का उल्लेख), ९१.११४/२.२९.११०(ज्ञान के संन्यास से श्रेष्ठ होने आदि का कथन), १०२.६२ / २४०.६२ (ज्ञान का निरूपण व महिमा), विष्णु १.२२.४६ (योगीजन हेतु चार प्रकार के ज्ञान का कथन), ६.५.६१ (दो प्रकार के ज्ञान का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२५४ (ज्ञान - महिमा का वर्णन), शिव १.१७.६८(माहेश्वर लोक से ऊपर ज्ञान योग व नीचे कर्म भोगों सम्बन्धी कथन), २.१.१२.७२ (ज्ञान के मूल में भक्ति का वर्णन), ४.४३ (शङ्कर कृपा से ज्ञान प्राप्ति का वर्णन), ५.५१.७ (कर्म, भक्ति व ज्ञान से मुक्ति प्राप्ति का कथन ; चित्त व आत्मा के संयोग का नाम ज्ञान - ज्ञानयोगः क्रियायोगो भक्तियोगस्तथैव च ।।
      त्रयो मार्गास्समाख्याताः श्रीमातुर्मुक्तिमुक्तिदा ।। ), ७.१.९.९(प्रकृति के अचेतन व पुरुष के अज्ञ होने का कथन), ७.१.३१.९८(परोक्ष व अपरोक्ष ज्ञान का कथन), ७.२.१०.३१ (ज्ञान, क्रिया, चर्या व योग नामक सनातन धर्म के चार पादों का कथन ; पशु, पाश व पति का ज्ञान ज्ञान होने का कथन), ७.२.२२.४६ (ज्ञान यज्ञ की विशिष्टता का वर्णन), ७.२.२९.९(शैवों के ज्ञान यज्ञ में रत होने तथा माहेश्वरों के कर्म यज्ञ में रत होने का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१६०(बलि द्वारा शिव के उञ्छज लिङ्ग की ज्ञानात्मा नाम से आराधना का उल्लेख), १.२.१३.१९०(शतरुद्रिय प्रसंग में ऋषियों द्वारा चिरस्थान नाम से ज्ञान लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), ४.१.१३.१८(शिव के ज्ञान शक्ति, उमा के इच्छा शक्ति होने का कथन - ज्ञानशक्तिर्भवानीश इच्छाशक्तिरुमा स्मृता ।। क्रियाशक्तिरिदं विश्वमस्य त्वं कारणं ततः ।।), ४.१.३३.३३ (ईशान रुद्र द्वारा विश्वेश्वर शिव के अभिषेक जल से ज्ञानवापी की उत्पत्ति का वर्णन), ४.२.५७.११३ (ज्ञानविनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७९.७५ (काशी में ज्ञान मण्डप में ज्ञान प्राप्ति का उल्लेख - मत्प्रासादैंद्रदिग्भागे ज्ञानमंडपमस्ति यत् ।। ज्ञानं दिशामि सततं तत्र मां ध्यायतां सताम् ।।), ४.२.६१.२७ (ज्ञान माधव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - ज्ञानवाप्याः पुरोभागे विद्धि मां ज्ञानमाधवम् ।।तत्र मां भक्तितोभ्यर्च्य ज्ञानं प्राप्नोति शाश्वतम् ।।), ४.२.६१.१४० (ज्ञान तीर्थ का माहात्म्य), ४.२.८१.४७ (ज्ञानेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : सबको ज्ञान प्राप्ति), ४.२.८४.५७ (ज्ञान ह्रद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.६.६ (तपस्वियों द्वारा सकल तथा ज्ञानियों द्वारा निष्कल परम के दर्शन का उल्लेख), ५.३.५१.३५ (ईश्वर पूजा में सातवें पुष्प ज्ञान का कथन), ५.३.१५५.११६ (ईशान से ज्ञान प्राप्ति की कामना करने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१.४ (ज्ञान का मोक्ष प्राप्ति में उपयोग : सुतीक्ष्ण - अगस्त्य संवाद), २.१०.२१ (ब्रह्मा द्वारा वसिष्ठ को क्रिया काण्ड में रत विरक्तचित्त पुरुषों को ज्ञान का उपदेश करने का निर्देश), २.११.३ (ब्रह्मा द्वारा लोक में ज्ञान के प्रसार की आवश्यकता का प्रश्न : कृतयुग के अन्त में क्रिया काण्ड का क्षीण होना आदि), ३.६ (ज्ञान से आत्म ज्ञान की प्राप्ति, कर्मों से नहीं), ३.११८ (अज्ञान की सात भूमियों के वर्णन के पश्चात् शुभेच्छा आदि ज्ञान की सात भूमियों का वर्णन), ५.७ (गुरु से क्रमश: ज्ञान प्राप्ति की अपेक्षा आशु ज्ञान प्राप्ति के संदर्भ में जनक द्वारा सिद्धों के संवाद श्रवण से वैराग्य उत्पन्न होने का वृत्तात), ५.७९ (सम्यक् ज्ञान लक्षण निरूपण : जगत और आत्मा में भेद न रहना), ६.१.१३ (वसिष्ठ द्वारा संसार सागर से पार होने के लिए योग मार्ग की अपेक्षा ज्ञान मार्ग को सरल बताना, काकभुशुण्डि आख्यान का आरम्भ), ६.१.५४ (श्रीहरि द्वारा युद्ध से विमुख अर्जुन को आत्मज्ञानोपदेश नामक सर्ग), ६.१.६९.३४(मन द्वारा ज्ञान प्राप्त किए बिना प्राणों को न त्यागने का कथन), ६.१.८७.१५ (ज्ञान व क्रिया में श्रेष्ठता के प्रश्न का उत्तर )६.२.२१ (ज्ञानी व ज्ञानबन्धु में अन्तर का विवेचन), महाभारत उद्योग ४३.८(तप से ज्ञान की प्राप्ति व ज्ञान से आत्मा की प्राप्ति का कथन), शान्ति ७९.२०(यज्ञ कर्म में ज्ञान के पवित्र होने का उल्लेख), २३६.११ (जीव रथ में ज्ञान के सारथि होने का उल्लेख), २५०.२० (आत्म ज्ञान कराने वाले उपदेश का वर्णन), २७०.३८ (कर्म द्वारा कषायों के पक जाने पर रस ज्ञान के उत्पन्न होने का उल्लेख), २७४.१२(बुद्धि को ज्ञान चक्षु द्वारा व ज्ञान को आत्मबोध द्वारा वश में करने का निर्देश), ३०१.६५ (दुःख के संसार सागर में ज्ञान के दीप की भांति होने का उल्लेख), ३२०.३४(कपाल में बीज को तपाकर अङ्कुरणरहित करने की भांति ज्ञान को विषयों में अङ्कुरित न होने देने के लिए अबीज करने का निर्देश), ३२९, लक्ष्मीनारायण १.२०५.२५(ज्ञानियों व योगियों के लिए ज्ञान के पुत्र रूप होने का उल्लेख), १.२८३.३७(ज्ञान के लाभों में अनन्यतम होने का उल्लेख), १.४२५.१२(ज्ञान के कर्म से श्रेष्ठ व ध्यान से हीन होने का उल्लेख), १.४६०.१८ (महेश्वर द्वारा ज्ञानतीर्थ में व्याप्त होने का कथन), २.८३.५५ (ज्ञान द्वारा कर्मों के तथा भक्ति द्वारा कर्मफलों के दहन आदि का कथन), २.२४५.५० (जीवरथ के वर्णन में ज्ञान के नाभि होने का उल्लेख), २.२४६.७८ (ज्ञान का उपनिषत् शान्ति, शान्ति का सुख आदि होने का उल्लेख), २.२५०.५७ (ज्ञान, कर्म आदि के पाक का फल : ज्ञान पाक से निरीहता प्राप्ति आदि का कथन), ३.७.७९ (थुरानन्द के शासन काल में कृष्ण द्वारा सम्प्रज्ञान द्विज के घर अवतार लेने का कथन), ३.१८.१४ (ज्ञान दान के धर्म कर्म प्रदान से श्रेष्ठ व भक्ति दान से अवर होने का उल्लेख), ३.३३.१५ (धर्म का लोप होने पर कृष्ण द्वारा ज्ञान विष्णु के पुत्र के रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ) । jnaana


      ज्ञानगम्य गणेश १.१.२९ (राजा सोमकान्त के मन्त्रियों में से एक), १.५.१२ (कुष्ठ -ग्रस्त राजा सोमकान्त का ज्ञानगम्य व सुबल मन्त्रियों के साथ अरण्य में प्रवेश ) ।


      ज्ञानभद्र पद्म ७.२५.५१ (ज्ञानभद्र नामक योगी की अतिथि सेवा से मुक्ति ) ।


      ज्ञानश्रुति पद्म ६.१८०.२७ (हंसों द्वारा ज्ञानश्रुति की अपेक्षा रैक्य के तेज को प्रबल बताना, ज्ञानश्रुति का रैक्य से मिलन, गीता के षष्ठम् अध्याय के माहात्म्य का प्रसंग ); द्र. जानश्रुति ।


      ज्ञानसिद्धि कथासरित् ९.४.१८ (ज्ञानसिद्धि नामक दिव्य पुरुष से नरवाहन दत्त की भेंट ) ।


      ज्या महाभारत सौप्तिक १८.७(शिव द्वारा यज्ञों से धनुष और वषट्कार से धनुष की ज्या बनाने का वर्णन - वषट्कारोऽभवज्ज्या तु धनुषस्तस्य भारत । यज्ञाङ्गानि च चत्वारि तस्य संहननेऽभवन् ॥ ) । jyaa

      ब्राह्मण ग्रन्थों में प्राय: वर्णन आता है कि विष्णु धनुष की ज्या पर अपना सिर रख कर सो रहे थे । देवताओं ने अपना कार्य साधने के लिए वम्रियों / दीमकों को भेजा कि वह धनुष की ज्या को काट डालें । धनुष की ज्या कटने पर विष्णु का सिर भी कट कर अलग हो गया । यह एक पहेली बनी हुई है कि इस सार्वत्रिक आख्यान का क्या तात्पर्य हो सकता है । वम्रियों के बारे में एक आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य यह है कि वे सेलूलोज या रेशे को भी पचा सकती हैं, सेलूलोज को उसकी मूलभूत इकाई शर्करा या ग्लूकोज में विभाजित कर उसका उपयोग भोजन के लिए कर सकती हैं। यह क्षमता प्राय: अन्य प्राणियों में नहीं पायी जाती । योगी पुरुष किस प्रकार इस क्षमता का विकास कर सकता है, यह अन्वेषणीय है ।

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      ज्यामघ ब्रह्म १.१३/१५ (ज्यामघ द्वारा युद्ध में विजय के साथ प्राप्त कन्या को पुत्रवधू रूप में पत्नी शैब्या को देना, विदर्भ नामक पुत्र प्राप्ति की कथा), २.३.७०.२९(रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, शैब्या - पति, भ्राताओं से पराजित होना, पुत्र व पुत्रवधू प्राप्त करने का वृत्तान्त), भागवत ९.२३.३५ (रुचक - पुत्र ज्यामघ द्वारा भोज्या - कन्या को पुत्र विदर्भ की भार्या बनाने का वर्णन), मत्स्य ४४.३२ (रुक्मकवच - पुत्र ज्यामघ की कथा), वामन ९४.४० (पितरों की गाथा सुनकर ज्यामघ द्वारा हरिमन्दिर का निर्माण), वायु ९५.२९ (ज्यामघ - चरित्र का वर्णन), विष्णु ४.१२.१३ (शैब्या - पति ज्यामघ के चरित्र का वर्णन, पुत्रवधू प्राप्ति की कथा), हरिवंश १.३६.१३ (रुक्मकवच - पुत्र पराजित् के पुत्र ज्यामघ को भाइयों द्वारा राज्य से निकालने, ज्यामघ के पुन: बलपूर्वक राजा बनने तथा शैब्या से विवाह का कथन), लक्ष्मीनारायण २.७०.९२ (पूर्व जन्मों में कामुक जाड्यमघ द्वारा तप करने से ज्यामघ के रूप में पुनर्जन्म का वर्णन), २.७१ (ज्यामघ द्वारा भगवान द्वारा निरूपित भक्ति का राजा इन्द्रद्युम्न से वर्णन करना ) । jyaamagha


      ज्येष्ठ देवीभागवत ९.२६.४४ ( ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी : सावित्री पूजा), नारद १.१७.५२(ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को त्रिविक्रम पूजा विधि), १.११०.१४( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को करवीर वृक्ष की पूजा ), १.१११.८(ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया को चतुर्वक्त्र भास्कर की पूजा), १.११२.१६(ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को रम्भा व्रत), १.११३.५(ज्येष्ठ चतुर्थी को प्रद्युम्न पूजा), १.११४.६(ज्येष्ठ पञ्चमी को पितृ पूजा), १.११५.४(ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी को दिवाकर पूजा), १.११७.७(ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी को त्रिलोचन पूजा), १.११७.८(ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को देवी पूजा), १.११८.१(ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को उमा व्रत), १.११९.८ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी : दशहरा लग्न हेतु दश योग, दस पाप हरण से दशहरा नाम, जाह्नवी में स्नान का महत्त्व), १.१२०.१२(ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी को त्रिविक्रम पूजा), १.१२०.१४(ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी व्रत विधि), १.१२१.१७(ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को त्रिविक्रम पूजा), १.१२१.१८(ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को दौर्भाग्यशमन व्रत विधि), २.४३.४२ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी :गङ्गा पूजन विधि, दशहरा ), २.४९.१८(ज्येष्ठ चतुर्दशी को शिव पूजा का निर्देश), २.५०.६०(ज्येष्ठ स्थान में पार्वती द्वारा उत्पल – विदल के वध का कथन), २.५५.४ (ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी : पुरुषोत्तम के दर्शन), २.५६.२३( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पुरुषोत्तम तीर्थ की यात्रा के फल का कथन ), २.६०.८( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पुरुषोत्तम क्षेत्र की यात्रा, कृष्ण, बलराम व सुभद्रा का अभिषेक उत्सव ), २.६०.१३(ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को दशहरा विधि का कथन), २.६१.४६( ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी : जगन्नाथ क्षेत्र में पुरुषोत्तम की पूजा ), पद्म १.७.८( दिति द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु चीर्णित ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा व्रत की विधि का वर्णन ), १.१९.२१ ( चैत्र शुक्ल चतुर्दशी : ज्येष्ठ पुष्कर में सरस्वती में स्नान), १.२२.१२१( ज्येष्ठ मास में पानीय वर्जन का उल्लेख), १.७८.२५(ज्येष्ठ मास में इन्द्र नामक सूर्य के तपने का उल्लेख), ६.५० ( ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी : अपरा नाम, माहात्म्य ), ६.५१( ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी : निर्जला नाम, भीम द्वारा चीर्णन ), ब्रह्म १.४८.६४(ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को पुरुषोत्तम के दर्शन का निर्देश), १.५७.१२ (ज्येष्ठ पूर्णिमा को ज्येष्ठा नक्षत्र में पांच तीर्थों के महत्त्व का कथन), २.५६( अग्नि और आप: में ज्येष्ठता निर्णय के लिए ऋषियों का तप, सरस्वती वाक् द्वारा आप: की ज्येष्ठता का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.९९ ( ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी को सावित्री पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.३२.५५ (ज्येष्ठ, मध्यम, कनिष्ठ तीन प्रकार के दानों का कथन), ३.४.३४.३१(२४ रुद्रों में ज्येष्ठ आदि नाम), भविष्य ३.४.७.६१ (धनार्थी अर्यमा विप्र द्वारा ज्येष्ठ मास में सूर्य - पूजा का वृत्तान्त), ४.१०( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को करवीर व्रत ), भागवत १२.११.३५( शुक्र/ज्येष्ठ मास में सूर्य के रथ पर पौरुषेय राक्षस की स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १७.८(ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा - मन्वन्तर आदि तिथियों में एक), ५३.१५( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पद्म पुराण के दान का निर्देश ), ६३.१६(ज्येष्ठ मास में पानक का निषेध), १९३.५ ( ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को कपिला गौ दान करने का उल्लेख), २६९.५३(ज्येष्ठ लिंग पर मेरु आदि ७, मध्य पर श्रीवृक्ष आदि ८ तथा कनिष्ठ पर हंसादि ५ शुभ होने का कथन), २७०.२(मण्डपों का ज्येष्ठ, मध्य, कनीय में वर्गीकरण), लिङ्ग १.१०.२१(दान का ज्येष्ठ आदि में वर्गीकरण), वराह २१.६२(दक्ष यज्ञ विध्वंस के संदर्भ में रुद्र भाग के ज्येष्ठ भाग होने का उल्लेख), ४५.१(ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी के प्रभाव से दशरथ द्वारा राम पुत्र प्राप्ति का कथन), वामन ३५.५५?( न अक्षर, ज्येष्ठ मास व वृष का मुख पर न्यास), वायु १.१५.९(आत्मा के प्राण रूपी रुद्र के ज्येष्ठ होने का उल्लेख), १.५९.५०(दान के तीन प्रकारों में एक), १००.१७/२.३८.१७(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० अमिताभ देवगण में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ (गीत लक्षण के अन्तर्गत षडज् ग्राम की १४ तानों में से एक ज्येष्ठ का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१९०(शतरुद्रिय प्रसंग में ब्राह्मणों द्वारा ब्रह्मलिङ्ग की ज्येष्ठ नाम से पूजा का उल्लेख), २.२.१६.५६(ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी में नरसिंह मूर्ति की स्थापना), २.२.३०+ (ज्येष्ठ मास में करणीय पूजा, स्नान आदि का वर्णन), २.८.३.४४ (ज्येष्ठ पूर्णिमा को होने वाले चंद्रहरि व्रत व उद्यापन का वर्णन ), ४.१.२७.१७९ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी : गङ्गा दशहरा स्तोत्र), ४.१.३३.१७० (ज्येष्ठेश्वर : शिव शरीर में नितम्ब का रूप), ४.२.५२.८७( ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को दशाश्वमेध तीर्थ में स्नान ), ४.२.५७.१०२ (ज्येष्ठ विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६३.१० (काशी में ज्येष्ठ लिङ्ग का माहात्म्य), ५.३.१०६.९(ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया में पंचाग्निसाधन का कथन), ५.३.१६७.१९ ( ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी : मार्कण्डेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१७५.१३ ( ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी : कपिलेश्वर तीर्थ में स्नान), ५.३.१८९.३६ ( ज्येष्ठ एकादशी को विष्णु के वराह रूप द्वारा पृथिवी के उद्धार का कथन ), ६.६६.१५(वृष राशिस्थ सूर्य के समय में सहस्रबाहु अर्जुन के जमदग्नि आश्रम में आगमन का वृत्तान्त), ६.१३५ (ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी : दीर्घिका नामक सरसी में स्नान का महत्त्व), ६.२१७.५७(ज्येष्ठ पूर्णिमा – मन्वादि पांच पूर्णिमाओं में एक), ७.१.७.१७(सुरज्येष्ठ नाम ब्रह्मा के काल में रुद्र का कृत्तिवास नाम), ७.१.१०.११(ज्येष्ठेश्वर तीर्थ का वर्गीकरण – आकाश), ७.१.१२१ ( ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी : जामदग्नि लिङ्ग की पूजा), ७.१.१५४.४(ज्येष्ठ पूर्णिमा को गायत्रीश्वर का माहात्म्य), ७.१.१६५.१७१( ज्येष्ठ पूर्णिमा : सावित्री स्थल के निकट ब्रह्मसूक्त पठन का निर्देश ), ७.१.१६६.४५(ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी से सावित्री व्रत का आरम्भ), ७.१.१६६.७१( ज्येष्ठ पूर्णिमा को सावित्री द्वारा चीर्णित व्रत की विधि का वर्णन ), ७.१.२३२.१९( ज्येष्ठ पूर्णिमा : पाण्डव कूप में स्नान, श्राद्ध आदि के माहात्म्य का कथन ), ७.२.१.५५(ज्येष्ठ पूर्णिमा को त्रितकूप में श्राद्ध का महत्त्व), योगवासिष्ठ ३.२६.४३ (ज्येष्ठशर्मा : लीला के पूर्व जन्म का पुत्र), महाभारत शान्ति ३४८.४६ (ज्येष्ठ साम व्रती ब्राह्मण का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२५० ( ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी व्रत माहात्म्य : अधोक्षज कृष्ण की पूजा, शलभा यतिनी की वानर गमन दोष से मुक्ति ), १.२५१ ( ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी व्रत का माहात्म्य : क्रतु ऋषि की क्षुधा शान्ति का वर्णन ), १.२७५.५(ज्येष्ठ शुक्ल दशमी का गङ्गा दशहरा नाम ), २.१५ ( ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी माहात्म्य : ९ कन्याओं द्वारा कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करना ), २.५२.८८(ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया को रुद्र सरोवर में स्नान), ४.७६.६१ (चित्रबर्ह आदि गन्धर्वों द्वारा ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को लोमश से कृष्ण कथा सुनना ) । jyeshtha


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      ज्येष्ठ पूर्णिमा पद्म १.७.८( दिति द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु चीर्णित ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा व्रत की विधि का वर्णन ), ब्रह्म १.५७.१२ (ज्येष्ठ पूर्णिमा को ज्येष्ठा नक्षत्र में पांच तीर्थों के महत्त्व का कथन), मत्स्य १७.८(ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा - मन्वन्तर आदि तिथियों में एक), ५३.१५( ज्येष्ठ पूर्णिमा को पद्म पुराण के दान का निर्देश ), स्कन्द २.८.३.४४ (ज्येष्ठ पूर्णिमा को होने वाले चंद्रहरि व्रत व उद्यापन का वर्णन ), ६.२१७.५७(ज्येष्ठ पूर्णिमा – मन्वादि पांच पूर्णिमाओं में एक), ७.१.१५४.४(ज्येष्ठ पूर्णिमा को गायत्रीश्वर का माहात्म्य), ७.१.१६५.१७१( ज्येष्ठ पूर्णिमा : सावित्री स्थल के निकट ब्रह्मसूक्त पठन का निर्देश ), ७.१.१६६.७१( ज्येष्ठ पूर्णिमा को सावित्री द्वारा चीर्णित व्रत की विधि का वर्णन ), स्कन्द ७.१.२३२.१९( ज्येष्ठ पूर्णिमा : पाण्डव कूप में स्नान, श्राद्ध आदि के माहात्म्य का कथन ), स्कन्द ७.२.१.५५(ज्येष्ठ पूर्णिमा को त्रितकूप में श्राद्ध का महत्त्व),



      ज्येष्ठपुष्कर पद्म १.१८.१०४(सरोवर में मुखदर्शन से ऋषियों के सुरूप होने पर ज्येष्ठ पुष्कर नामकरण), स्कन्द ६.४५.२९(ज्येष्ठ पुष्कर में पद्मों के ऊर्ध्वमुख होने का कथन), ६.१७९.५८(कार्तिक में पूर्व पुष्कर में तथा वैशाख में द्वितीय पुष्कर में यज्ञ करने का उल्लेख), ७.१.१३४.१०(पुष्करावर्त नदी में तीन आवर्तों के जनन का कथन),


      ज्येष्ठसाम मत्स्य १७.३८(श्राद्ध भोजन के समय पठित सामों में से एक), ५८.३५(तडागादि की प्रतिष्ठा पर सामवेदी द्वारा पठित सामों में से एक), ९५.३०(वृषभ का दान ग्रहण करने योग्य पात्रों में ज्येष्ठसामविद् का उल्लेख), २६५.२७(मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में गाये जाने वाले सामों में से एक), वायु ८३.५५/२.२१.२५(ज्येष्ठसामग : श्राद्ध में भोजन पाने योग्य ब्राह्मणों में से एक), विष्णु ३.१५.२(श्राद्ध में भोजन पाने योग्य ब्राह्मणों में से एक ) jyeshthasaama


      ज्येष्ठा नारद १.११७.५३ (ज्येष्ठा अष्टमी को महालक्ष्मी की पूजा का वर्णन), पद्म ६.११६ (ज्येष्ठा - उद्दालक - अश्वत्थ कथा), लिङ्ग २.६ (दुःसह - पत्नी ज्येष्ठा की समुद्र मन्थन से उत्पत्ति होने पर मार्कण्डेय द्वारा ज्येष्ठा के वास स्थान का निर्धारण), स्कन्द २.४.३टीका (उद्दालक - भार्या ज्येष्ठा की अश्वत्थ के नीचे स्थिति की कथा), ४.२.९७.१६८ (ज्येष्ठा देवी की चतु:समुद्र कूप पर स्थिति), महाभारत आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४८(कपिला गौ की नासिका में ज्येष्ठा देवी की स्थिति का उल्लेख), समुद्र मन्थन से उत्पन्न ज्येष्ठा/अलक्ष्मी के रौद्र देह स्वरूप का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.१५५.४८(समुद्र मन्थन से उत्पन्न ज्येष्ठा/अलक्ष्मी के रौद्र देह स्वरूप का वर्णन ) । jyeshthaa


      ज्योति नारद १.४२.८८(ज्योतिरूप के १६ भेद), पद्म १.४०.१६० (मरुत नाम), ३.३९.८ (ज्योतिरथ्या व शोण सङ्गम का संक्षिप्त माहात्म्य : अग्निष्टोम फल की प्राप्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४६(शाल्मलि द्वीप की ७ प्रधान नदियों में से एक), १.२.३६.३०(उत्तम मन्वन्तर के वंशवर्ती देवगण में से एक), १.२.३६.५३(प्रज्योति : अमिताभ संज्ञक देवगण में से एक), २.३.७.११(ज्योतिष्टम : रिष्टा के गन्धर्व पुत्रों में से एक), मत्स्य ९.९(द्वितीय मन्वन्तर में वसिष्ठ के ७ पुत्रों में से एक), १७१.५२(धर्म व मरुत्वती से उत्पन्न मरुतों में से एक), वामन ५७.६५ (अग्नि / हुताशन द्वारा स्कन्द को प्रदत्त ज्योति नामक गण का उल्लेख), वायु ६७.१२३/ २.६.१२३( मरुतों के प्रथम गण में सत्त्वज्योति, सत्यज्योति आदि ज्योति प्रत्ययों वाले ७ मरुतों के नाम), १००.१४/२.३८.१४(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० सुतपा देवों में से एक), वा.रामायण ६.३०.३२ (सूर्य - पुत्र ज्योतिर्मुख वानर का उल्लेख), शिव ५.२७.१९ (योगी द्वारा ईश्वरीय ज्योति के दर्शन का कथन), स्कन्द ४.२.९४.३१ (काशी में चक्रपुष्करिणी तीर पर ज्योतिरूपेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का कथन), हरिवंश २.१२२.३३ (ज्योतिष्टोम नामक अग्नि द्वारा कृष्ण से युद्ध का उल्लेख), कथासरित् १०.३.५९ (ज्योतिष्प्रभ : रत्नाकर नगर में ज्योतिष्प्रभ राजा के पुत्र सोमदत्त का वर्णन), १२.६.४०३ (ज्योतिलेखा : दीप्तशिख यक्ष द्वारा ज्योतिलेखा व धूमलेखा पत्नियों सहित मर्त्यलोक में जन्म लेने की कथा), महाभारत शान्ति १८४.३२(ज्योति के शब्द, स्पर्श व रूप नामक तीन गुणों का उल्लेख, ज्योतिरूप के १२ गुण), ३३९.२९ (आप: के ज्योति में व ज्योति के वायु में लीन होने का उल्लेख), आश्वमेधिक २७.१९(यश, वर्च आदि सूर्य की ७ ज्योतियों के नाम ), द्र. एकज्योति, विश्वज्योति ।jyoti


      ज्योतिर्धामा ब्रह्माण्ड १.२.३६.४७(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), भागवत ८.१.२८(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), विष्णु ३.१.१८(तामस मन्वन्तर से सप्तर्षियों में से एक ) ।


      ज्योतिष अग्नि ९५ (शिवलिङ्ग प्रतिष्ठा हेतु ज्योतिष गणना का वर्णन), १२१.१ (चार लक्ष श्लोक वाले ज्योतिष शास्त्र का संक्षिप्त वर्णन), १२४ (ज्योतिष शास्त्र के युद्ध - जय सम्बन्धी चक्रों का वर्णन), १२७.३ (जन्म कुण्डली विचार), १४२ (ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की स्थिति का वर्णन), गरुड १.५९ (नक्षत्र अधिपति, सिद्धियोग आदि), १.६० (ज्योतिष के अनुसार ग्रह दशा का विचार, नक्षत्र / रवि चक्र से फल का कथन), १.६७ (स्वरोदय ज्ञान), १.१९९ (प्रश्नाङ्क चूडामणि, शुभाशुभ कथन), नारद १.५४ (ज्योतिष गणित का वर्णन), १.५५ (जातक स्कन्ध), १.५५.१७० (ज्योतिष योग फल का कथन), १.५६ (संहिता प्रकरण : ग्रहचार से प्राकृतिक उत्पात, तिथि विचार), भविष्य १.२२ (सामुद्रिक शास्त्र की कार्तिकेय व समुद्र से उत्पत्ति), १.२४(सामुद्रिक लक्षणों के अनुसार स्त्री - पुरुषों के गुण), २.१४.३२ ( ज्योतिष चक्र का वर्णन : ग्रहों की आपेक्षिक ऊर्ध्वता, ग्रहों की बाल्य, वृद्धावस्था का ब्राह्मण आदि वर्णों के अनुसार वर्णन), ३.४.१८.४७ (इडस्पति व पिङ्गलस्पति नामक अश्विनी - द्वय के जन्म कुण्डली में क्रमश: शनि व सावर्णि के शान्तिकारक होने आदि का वर्णन), ४.११७ (ज्योतिष शास्त्र में भद्रा की उपस्थिति व शान्ति का वर्णन), विष्णु २.८.१० (ज्योतिष चक्र के अनुसार सूर्य की गति का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.८२(१२ खण्डयुगेश्वरों व ६० अब्दों के नाम, चारवश बृहस्पति के १२ नक्षत्र युगलों में विचरण का फल, ग्रहों के विशिष्ट नागों, गन्धर्वों व निशाचरों के नाम), १.८३ (मासों के देवताओं के नाम, ग्रहों के पर्यायवाची नाम, नक्षत्रों के देवता, तिथीश्वरों के नाम, करणों के नाम तथा काल आदि आदि), १.८४(१२ लग्न, १२ राशियों के देवताओं इत्यादि के नाम), १.८५ (गज आदि नक्षत्रवीथियों के नाम, ग्रहों की विभिन्न नक्षत्रों में स्थिति का फल), १.८६ (देश अनुसार नक्षत्रों के नाम व फल), १.८७ (द्वादश भावों में ग्रहों के शुभाशुभ फल), १.८८ (नक्षत्रों में तारों की संख्या, ग्रहों व नक्षत्रों के मण्डलों के वर्ण का कथन), १.८९ (जन्मादि विभिन्न प्रकार के नक्षत्रों की पीडा समाप्ति के उपायों का कथन), १.९१ (ग्रह व नक्षत्रों की पीडा समाप्ति हेतु स्नान के विभिन्न द्रव्यों का वर्णन), १.९४.९ (१२ राशियों के वर्ण व राशियों में नक्षत्रों के पादों का वर्णन), १.९४ (ग्रहों व नक्षत्रों के आवाहन मन्त्रों का वर्णन), १.९६ (ग्रहों व नक्षत्रों के लिए देय कर्पूर, कुङ्कुम आदि द्रव्यों का वर्णन), १.९७ (ग्रह व नक्षत्रों के लिए देय पुष्पों के नाम), १.१०१ (ग्रहों व नक्षत्रों के लिए होम द्रव्यों का कथन), १.१०३ (ग्रहों व नक्षत्रों के लिए देय दक्षिणा द्रव्यों का वर्णन), २.१६६ (ग्रहों के विभिन्न नक्षत्रों में चार के फलों का वर्णन), २.१६७ (१२ राशियों व नवग्रहों के गुणों का वर्णन), २.१७०(ज्योतिष गणित), २.१७१ (छाया ज्योतिष), २.१७२ (लग्न ज्योतिष), २.१७३ (ग्रह, नक्षत्र उदयास्त ज्योतिष), २.१७४ (पितामह सिद्धान्त), २.१७५ (यात्राकाल का विचार), ३.९६ (प्रतिमा प्रतिष्ठा काल का विचार), स्कन्द ५.२.६१.३०(पति - पत्नी में वैमनस्य के रूप में क्रूर ग्रहों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१५० (प्रस्थान, यात्रा आदि में शुभ - अशुभ ग्रह, नक्षत्र, वार, योगिनी, शकुन आदि का वर्णन), २.१७५(विभिन्न गृहकर्मों के लिए उपयुक्त कालों का वर्णन), २.१७६ (विभिन्न योगों आदि का वर्णन), २.१७७ (उच्च - नीच ग्रह फल, लग्न कुण्डलीस्थ ग्रहों का फल, चन्द्र फल, आपीडा योग, युति दोष, लग्न बल आदि का वर्णन), ३.१५३ (नक्षत्रयोग व तिथियोग का ज्योतिष गणित अनुसार वर्णन), ४.७२ (देवगतीश्वर नामक अर्धज्योतिषी की कथा), स्कन्द २.२.२५.१४(हस्त तल में नित्य दर्पण की स्थिति होने से ताल होने का कथन), कथासरित् १०.५.२५३ (पुत्र - हत्या से धन कमाने वाले मूर्ख ज्योतिषी की कथा ) ; द्र. प्राग्ज्योतिष । jyotisha


      ज्योतिष्टोम हरिवंश २.१२२.३३(वषट्कार आश्रित २ अग्नियों में से एक ) jyotishtoma


      ज्योतिष्मती गर्ग ८.४ (चाक्षुष मनु के यज्ञ से ज्योतिष्मती का प्राकट्य, पति प्राप्ति हेतु तप, देवों को शाप, रेवत - कन्या रेवती बनना), ब्रह्माण्ड १.२.१८.६६(हेमकूट पर्वत पर वर्चोवान् से निकली २ नदियों में से एक), मत्स्य १२१.६५(हेमकूट पर्वत पर सर्पों के सरोवर से नि:सृत २ नदियों में से एक), वायु ४७.६३(हेमकूट पर्वत के सायन सरोवर से नि:सृत २ नदियों में से एक), स्कन्द ४.१.१० (ज्योतिष्मती पुरी में विश्वानर मुनि का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४१६.७ (यज्ञ से उत्पन्न चाक्षुष मनु की कन्या ज्योतिष्मती द्वारा पति प्राप्ति हेतु तप करने का वर्णन ) । jyotishmatee/jyotishmati


      ज्योतिष्मन्त ब्रह्माण्ड २.३.१.५२(पितरों के ३ गणों में से एक), मत्स्य ५.२०(वसुओं का विशेषण ) ।


      ज्योतिष्मान् अग्नि ११९.११ (कुशद्वीप के स्वामी ज्योतिष्मान् के सात पुत्रों का उल्लेख), कूर्म १.४०.२२/१.३९.२२/१.३८.२१ (कुश द्वीप के स्वामी ज्योतिष्मान् व उनके ७ पुत्रों का नामोल्लेख), गरुड १.५६.८ (कुश द्वीप के स्वामी ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों का उल्लेख), पद्म ३.३१.१८३ (शकुनि ऋषि के ज्योतिष्मान् सहित पांच अग्निहोता पुत्रों का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१०४ (स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), १.२.१४.९(प्रियव्रत व कर्दम - पुत्री के १० पुत्रों में से एक, कुश द्वीप अधिपति), १.२.१४.२७(कुश द्वीप में ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों के नाम), २.३.५.९२ (इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ छेदन पर ज्योतिष्मान् आदि ७ मरुतों के प्रादुर्भाव का वर्णन), ३.४.१.६३(रोहित कल्प के ७ ऋषियों में से एक?), भागवत ५.२०.४(प्लक्ष द्वीप के ७ सेतु पर्वतों में से एक), मत्स्य ९.५(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), वामन ७२.४२ (वपुष्मान् - पुत्र, मरुतों के पिता ज्योतिष्मान् का वर्णन), वायु ३१.१८(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), ३३.९(प्रियव्रत के १० पुत्रों में से एक, स्वायम्भुव मनु - पौत्र, कुश द्वीप - अधिपति), ६७.१२३/२.६.१२३(सात मरुद्गणों में प्रथम गण के मरुतों में से एक), विष्णु २.१.८(प्रियव्रत के पुत्रों में से एक,), २.१.१३(कुश द्वीप का अधिपति), २.४.३६(कुश द्वीप के अधिपति ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों के नाम), ३.२.२३(नवम दक्षसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) । jyotishmaan


      ज्योत्स्ना कूर्म १.७.४९ (ब्रह्मा के त्यक्त तनु से ज्योत्स्ना की उत्पत्ति का उल्लेख), नारद १.६५.२९(चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.८.२१(प्रजापति के रजोगुणात्मक त्यक्त तनु से ज्योत्स्ना की उत्पत्ति का कथन), १.२.१८.७१ (श्वेत पर्वत पर मानस व सरयू से नि:सृत २ नदियों में से एक), ३.४.३२.११(ज्योत्स्नी : कालचक्र के षोडश पत्राब्ज पर स्थित शक्तियों में से एक), ३.४.३५.९२(चन्द्रमा की कलाओं में से एक), मत्स्य २८४.१५(चन्द्र के समक्ष पृथ्वी के ज्योत्स्ना नाम का उल्लेख), वायु ९.२०(प्रजापति के रजोगुणात्मक त्यक्त तनु से ज्योत्स्ना की उत्पत्ति का कथन), ४७.६८(श्वेत पर्वत पर उत्तर मानस सरोवर से नि:सृत २ नदियों में से एक), विष्णु १.५.३८(ब्रह्मा के त्यक्त शरीर से ज्योत्स्ना की उत्पत्ति, ज्योत्स्ना आगमन पर मनुष्यों व पितरों के बली होने का उल्लेख), १.८.३० (प्रदीप - पत्नी), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.७(ज्योत्स्ना प्रकृति, चन्द्रमा पुरुष), १.४२.२२(कपोलों में ज्योत्स्ना की स्थिति का उल्लेख), १.२२३.८ (वरुण - पुत्र, बलि - जामाता पुष्कर को वरण करने वाली ज्योत्स्ना का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.७.८४ (थुरानन्द - पुत्री ज्योत्स्ना के स्वयंवर का वर्णन), ४.१०१.१०१ (कृष्ण - पत्नी ज्योत्स्ना के पुत्र भूमा व पुत्री विश्वज्योति का उल्लेख ) । jyotsnaa


      ज्योष्ट्री लक्ष्मीनारायण १.३८५.४(कृष्ण-पत्नी ज्योष्ट्री का कार्य), २.२१६.८ (सानुज्योष्ट्री नगर के राजा द्वारा भगवान के स्वागत का वर्णन ) ।


      ज्वर गरुड १.१४७ (ज्वर निदान), १.१७० (ज्वर चिकित्सा), नारद १.९१.८० (वामदेव शिव की तेरहवीं कला ज्वरा का कथन), ब्रह्म १.३७.८७ / ३९.८७ (यज्ञ का पीछा करते गणेश के स्वेद से ज्वर की उत्पत्ति का वर्णन), १.३८.११२ / ४०.११२ (शिव द्वारा ज्वर के विभाजन का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२७ (ज्वर नामक व्याधि का वर्णन), भविष्य ४.७१.२३ (राजा अजपाल द्वारा ज्वर को लङ्का - नरेश रावण के पास भेज कर शान्ति स्थापित करने का वर्णन), भागवत ४.२७.३०(प्रज्वार : यवनराज - भ्राता प्रज्वार का उल्लेख), ४.२८.११(प्रज्वार द्वारा पुरञ्जन की पुरी में आग लगाने का उल्लेख), ४.२९.२३(प्रज्वार के २ प्रकार का ज्वर - शीत व उष्ण होने का उल्लेख), १०.६३.२२(वैष्णव - माहेश्वर ज्वरों के परस्पर युद्ध का वर्णन), वराह २०१.४२ (चित्रगुप्त द्वारा प्रकट किए गए राक्षसों का ज्वर की शरण में जाने का वर्णन), वायु ३०.२९८ (दक्ष यज्ञ विध्वंस हेतु उत्पन्न ज्वर का प्राणियों में विभाजन), ६६.६९/२.५.६९(सुरभि व कश्यप के ११ रुद्र पुत्रों में से एक), विष्णु ५.३३.१४, १८(कृष्ण व बाणासुर युद्ध प्रसंग में वैष्णव ज्वर द्वारा माहेश्वर ज्वर की शान्ति का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.४० (ज्वर की मूर्ति तीन पैर, तीन नेत्र व तीन मुखों वाली बनाने का निर्देश), शिव २.२.३२ (दक्ष यज्ञ में रुद्र के कोप/नि:श्वास से ज्वर की उत्पत्ति का उल्लेख), हरिवंश २.१२२.९० (शोणितपुर में कृष्ण आदि से युद्ध में ज्वर की पराजय), २.१२३.७ (वैष्णव ज्वर की कृष्ण द्वारा सृष्टि व निवास स्थान का निर्धारण), योगवासिष्ठ ३.५३.३२(अविवेक ज्वर की उष्णता रहने तक विवेक चन्द्रमा के उदित न होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१७६.९१(दक्ष यज्ञ विनाश के संदर्भ में शिव द्वारा जटा के ताडन से ज्वरा शक्ति की उत्पत्ति), कथासरित् १२.४.२०७ (हंसावली को ज्वरनाशन की सिद्धि होने तथा कनकमञ्जरी द्वारा ज्वर चेटक की साधना करने की क्रूर योजना का वर्णन ) । jwara


      ज्वलत्केश स्कन्द ४.२.७२.९९ (६४ वेतालों में से एक ) ।


      ज्वलना नारद १.६५.२५(ज्वलिनी : अग्नि की १० कलाओं में से एक), १.६५.२७(ज्वालिनी : रवि की १२ कलाओं में से एक), मत्स्य ४९.६ (तक्षक - कन्या, औचेय - पत्नी, रन्तिनार - माता), वायु ९९.१२८/ २.३७.१२४ (तक्षक - पुत्री, रिवेयु -भार्या, रन्तिनार - माता ) ; द्र. उज्ज्वल, विज्वलन, समुज्वलन । jwalanaa


      ज्वार – भाटा विष्णु २.४.९०(ज्वार – भाटा में स्वादूदक समुद्र में आपः की वृद्धि – क्षय के परिमाण का कथन), शिव ५.१८.७१ (चन्द्रमा के घटने - बढने के साथ समुद्र में ज्वार - भाटा / जल के घटने - बढने का उल्लेख )ञ्ब्ष्ष्दष् ।


      ज्वाला गरुड १.२१.७ (ईशान की कलाओं में से एक), नारद १.६६.१२७(शङ्कुकर्ण की शक्ति ज्वालिनी का उल्लेख), पद्म ३.१५.३१ (बाण के त्रिपुर दहन से ज्वालेश्वर तीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग), ५.१०७.५(शोकर पर्वत पर स्थित ज्वाला द्वारा देवों व मुनियों को भस्म करना, वीरभद्र द्वारा ज्वाला का पान), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.३६ (ज्वालामुख नरक प्रापक पापों का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.७.३७७(ज्वाला व अङ्गारक : पिशाचों के १६ युग्मों में से एक), ३.४.२.१५७(महाज्वाल नरक को प्राप्त होने वालों के अपेक्षित कर्मों का कथन), ३.४.४४.७२(ज्वालिनी : ५१ वर्णों के गणेशों की शक्तियों में से एक), स्कन्द ५.३.२८.१०९(त्रिपुर के ज्वलित भाग के अमरकण्टक पर्वत पर पतन से ज्वालेश्वर नाम होने का कथन ; अमरकण्टक से पतन की महिमा व विधि का वर्णन), ५.३.२३१.२३ (ज्वालेश्वर तीर्थ), ७.१.२७१ (ज्वालेश्वर : शिव के पाशुपत अस्त्र के गिरने से ज्वालेश्वर तीर्थ की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३७०.११४ (नरक में ज्वाला कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), २.२१६.८ (श्रीहरि के वन ज्वाला देश जाने का उल्लेख), ३.२८.५ (अरुणाचल पर्वत की ज्वाला से दग्ध स्वामिनगर की प्रजा की रक्षा के लिए नारायण के प्रकट होने का वर्णन), ३.२३२.१०३ (ज्वाला प्रसाद द्वारा तन - मन - धन से साधु सेवा के फलस्वरूप सपत्नीक संसार सागर से पार उतरने का वर्णन ) ; द्र. वज्रज्वाला, वनज्वाला । jwaalaa


      ज्वालामालिनी अग्नि ३१३.१५ (ज्वालामालिनी मन्त्र का कथन), नारद १.८८.२१२ (राधा की १५वीं कला ज्वालामालिनी का स्वरूप), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.५९ (भण्डासुर पर विजय हेतु १५ अक्षर देवियों में से एक), ३.४.२५.९८ (ललिता - सहचरी ज्वालामालिनी द्वारा त्रिकर्ण का वध करने का उल्लेख), ३.४.२६.२८ (ललिता - सहचरी ज्वालामालिनी का सौ योजन तक वह्नि ज्वाला बनकर फैल जाने का वर्णन), ३.४.३७.३५(ललिता की सहचरी १५ नित्या देवियों में से एक ) । jwaalaamaalini/ jwaalaamaalinee


      ज्वालामाली स्कन्द ४.२.६१.१९४ (ज्वालामाली नृसिंह का संक्षिप्त माहात्म्य), कथासरित् ८.५.१०९ (सूर्यप्रभ व श्रुतशर्मा के युद्ध में ज्वालामाली व महायु की मृत्यु का उल्लेख ) ।


      ज्वालामुख गणेश २.१५.१५ (काशी में ज्वालामुख का उपद्रव, ज्वालामुख दैत्य का महोत्कट गणेश द्वारा वध), नारद १.६६.१०९(सद्य की शक्ति ज्वालामुखी का उल्लेख), मत्स्य १७९.३२(ज्वालामुखी : शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वामन ५८.५२ (कार्तिकेय - गण ज्वालामुख द्वारा राक्षसों के संहार का उल्लेख), स्कन्द ७.४.१७.१५ (ज्वालामुख की द्वारका में पूर्वद्वार पर स्थिति), कथासरित् १२.२७.७१ (ज्वालामुख नामक ब्रह्मराक्षस द्वारा राजा चन्द्रावलोक का तिरस्कार करने व छ: वर्षीय बालक की बलि देकर राजा की रक्षा होने की रोचक कथा ) । jwaalaamukha


      झञ्झकामर्दन स्कन्द ७.४.१७.३० (दिशाओं के रक्षकों में झञ्झकामर्दन का उल्लेख ) ।


      झल्लरी स्कन्द ४.१.२९.६८ (गङ्गा सहस्रनामों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.३००.१८ (ब्रह्मा की तीन मानस पुत्रियों में से एक झल्लरी का उल्लेख ) ।


      झष विष्णुधर्मोत्तर १.५६.३४ (झषों में मकर की श्रेष्ठता का उल्लेख - झषाणां मकरश्चैव द्यूतं छलयतां तथा ।।), ३.१०६.३६(झषमावाहयिष्यामि कामकेतुं वरप्रदम् ।। एहि मे मकराग्र्येह समस्तभुवनेश्वर ।।), स्कन्द ३.१.४९.४२(तापत्रय की झष रूप से कल्पना-व्याधिनक्रसमुद्विग्नं तापत्रयझषार्तिदम् ।। मां रक्ष गिरिजानाथ रामनाथ नमोऽस्तु ते ।।), कथासरित् १०.४.८६ (झष / मकर द्वारा ठग बगुले का गला काटकर अपनी व मछलियों की जान बचाने की कथा ) ; द्र. मकर jhasha

      इत्येवं झषमकरोर्मिसंकुलं तं गम्भीरं विकसितमम्बरप्रकाशम् । पातालज्वलनशिखाविदीपितं तं पश्यन्त्यौ द्रुतमभिपेततुस्तदानीम् ॥1.5.19.17

      तं विक्षोभयमाणं तु सरो बहुझषाकुलम् । कूर्मोऽप्यभ्युद्यतशिरा युद्धायाभ्येति वीर्यवान् ॥1.5.25.23

      भूतसंघसहस्राश्च दीनाश्चक्रुर्महास्वनम् । रुरुवुर्वारणाश्चैव तथैव मृगपक्षिणः । तेन शब्देन वित्रेसुर्गङ्गोदधिचरा झषाः ॥1.19.219.28

      प्रोद्घुष्टां क्रौञ्चकुररैश्चक्रवाकोपकूजिताम् । कूर्मग्राहझषाकीर्णां पुलिनद्वीपशोभिताम् ॥3.32.358.108

      ते वध्यमानास्त्रिदशैस्तदानीं समुद्रमेवाविविशुर्भयार्ताः । प्रविश्य चैवोदधिमप्रमेयं झषाकुलं रत्नसमाकुलं च ॥3.33.396.17

      गुह्यकानां च संग्रामे नैरृतानां तथैव च । झषाणां गजवक्त्राणामुलूकानां तथैव च ॥3.35.467.45

      अनेकशतविस्तीर्णं योजनानां महोदधिम् । तिमिनक्रझषावासं चिन्तयन्तः सुदुःखिताः ॥3.42.563.44

      क्षुद्राक्षेणेव जालेन झषावपिहितावुभौ । कामश्च राजन्क्रोधश्च तौ प्रज्ञानं विलुम्पतः ॥5.51.697.63

      क्षुद्राक्षेणेव जालेन झषावपिहितावुभौ । कामक्रोधौ शरीरस्थौ प्रज्ञानं तौ विलुम्पतः ॥5.54.790.30

      शारद्वतमहीमानं विविंशतिझषाकुलम् । बृहद्बलसमुच्चालं सौमदत्तितिमिंगिलम् ॥5.58.821.38

      पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम् । झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥6.32.31

      उत्तमाङ्गोपलतलां निस्त्रिंशझषसेविताम् । रथनागह्रदोपेतां नानाभरणनीरजाम् ॥7.13.13

      चक्रकूर्मां गदानक्रां शरक्षुद्रझषाकुलाम् । बडगृध्रसृगालानां घोरसंघैर्निषेविताम् ॥ ७.१३.१६

      ततस्तद्विततं जालं हस्त्यश्वरथपत्तिमत् । झषः क्रुद्ध इवाभिन्ददभिमन्युर्महायशाः ॥7.40.7

      विमुक्तौ ज्वलनस्पर्शान्मकरास्याज्झषाविव । व्यक्षोभयेतां सेनां तौ समुद्रं मकराविव ॥7.76.9

      द्रोणानीकं विशाम्येष क्रुद्धो झष इवार्णवम् । तत्र यास्यामि यत्रासौ राजन्राजा जयद्रथः ॥7.87.10

      योधाक्षय्यजलं भीमं वाहनोर्मितरङ्गिणम् । क्षेपण्यसिगदाशक्तिशरप्रासझषाकुलम् ॥7.89.12

      कङ्कगृध्रमहाग्राहां नैकायुधझषाकुलाम् । रथक्षिप्तमहावप्रां पताकारुचिरद्रुमाम् ॥7.131.120

      सर्वाम्भोनिलयं भीममूर्मिमन्तं झषायुतम् । चन्द्रोदये विवर्तन्तमप्लवः संतितीर्षसि ॥8.27.41

      महाझषस्येव मुखं प्रपन्नाः; प्रभद्रकाः कर्णमभि द्रवन्ति । मृत्योरास्यं व्यात्तमिवान्वपद्य;न्प्रभद्रकाः कर्णमासाद्य राजन् ॥8.47.10

      उदराक्षो झषाक्षश्च वज्रनाभो वसुप्रभः । समुद्रवेगो राजेन्द्र शैलकम्पी तथैव च ॥9.44.58

      बहुनक्रझषग्राहां तिमिंगिलगणायुताम् । काकेन बडिशेनेमामतार्षं त्वामहं नदीम् ॥12.83.38

      एवं प्राप्ततमं कालं यो मोहान्नावबुध्यते । स विनश्यति वै क्षिप्रं दीर्घसूत्रो यथा झषः ॥१२.१३७.१७

      प्रसक्तबुद्धिर्विषयेषु यो नरो; यो बुध्यते ह्यात्महितं कदा च न । स सर्वभावानुगतेन चेतसा; नृपामिषेणेव झषो विकृष्यते ॥12,287.15

      बलहीनाश्च कौन्तेय यथा जालं गता झषाः। अन्तं गच्छन्ति राजेन्द्र योगास्तद्वत्सुदुर्बलाः।। शान्ति ३०६.१६

      बलहीनाश्च कौन्तेय यथा जालगता झषाः । अन्तं गच्छन्ति राजेन्द्र तथा योगाः सुदुर्बलाः ॥12.289.16

      ४५३ झष आदान संवरणयोः – पा.धातुपाठः

      ४५४ झष हिंसार्थे

      इन्द्रियझषसंजीवं तरंगान्तर्विलोलितम् ।। २ ।।
      भूतनौकाकृतमार्गं विषयाऽऽशानुसन्धितम् ।
      तन्मात्राहारमत्स्याढ्यं शोकहर्षादिमारुतम् ।। ३ ।।
      कामक्रोधादिमकरं मोहभ्रमादिदिग्भ्रमम् । - लन ३.१७५.४



      झाञ्झीवर लक्ष्मीनारायण २.४५.७८ (समुद्री राक्षस झा़ञ्झीवर की पत्नी कृष्ण भक्ति परायणा माँअजा द्वारा पुत्र को शिक्षा देने का वर्णन ) ।


      झाडू तैत्तिरीय ब्राह्मण ३.७.६.४; द्र. वेद


      झार्झर पद्म २.४५.३० (झार्झर नामक लुब्धक, शूकरी व लुब्धक द्वारा एक दूसरे के वध की कथा ) ।


      झिण्टीश नारद १.६६.१०९(झिण्टीश की शक्ति ऊर्ध्वकेशी का उल्लेख ) ।


      ट गरुड ३.२५.३७(ट के चित्तवाची होने का उल्लेख)


      टङ्कपाणि स्कन्द १.२.६२.२९(क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक )


      टिट्टिभ विष्णुधर्मोत्तर १.१८८.६(मयूर रूपी विष्णु द्वारा शक्र - पीडक टिट्टिभ के वध का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.८३(१३वें देवसावर्णि मन्वन्तर में टिट्टिभ नाम दैत्य के नाश हेतु श्रीहरि द्वारा मयूर अवतार ग्रहण का कथन), कथासरित् ९.१.७८(टीटिभ : वाल्मीकि आश्रम में सीता की शुद्धि परीक्षा हेतु मुनियों का आग्रह, टीटिभ - सर नामक तीर्थ में सीता की शुद्धि परीक्षा का कथन), १०.४.१२७ (मन्दविसर्पिणी नामक जूं तथा टीटिभ नामक खटमल की कथा), १०.४.१६४(टिट्टिभ पक्षी दम्पत्ति की कथा ) । tittibha


      ठठ्ठोल लक्ष्मीनारायण ४.६७.४२(ठठ्ठोल नामक वणिक् को चौर्य कर्म के फलस्वरूप जम्बुक योनि की प्राप्ति, जम्बुक योनि में उच्छिष्ट प्रसाद के भक्षण से पापों से मुक्ति तथा देवरूप होकर स्वर्ग गमन की कथा )।


      ठिण्ठाकराल कथासरित् १८.२.७२(उज्जयिनी निवासी ठिण्ठाकराल नामक द्यूतकार की वञ्चना की कथा )।


      ठं स्कन्द १.२.६२.३०(ठंठंकण : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक )


      डफ्फर लक्ष्मीनारायण २.३७.६८(डफ्फरजातीय म्लेच्छों द्वारा सौराष्ट्र निवासियों का पीडन, पीडित सौराष्ट्र वासियों द्वारा रक्षार्थ श्रीहरि की प्रार्थना, हरि - प्रेरित सैन्य द्वारा डफ्फरजातीय म्लेच्छों के वध का वर्णन ) ।


      डमरु स्कन्द ५.१.२०.९(डमरुकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.४(डमरुकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, शिव डमरु द्वारा वज्र दैत्य के वध की कथा), लक्ष्मीनारायण ४.७५.७०(डमरुक : डमरूक नामक वाद्यकार की भगवद्भक्ति से मोक्ष प्राप्ति की कथा ) । damaru


      डाकिनी देवीभागवत १२.६.६३(गायत्री सहस्रनामों में से एक), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.७५(भगवान् कृष्ण के नासिका छिद्रों से डाकिनियों के आविर्भाव का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२०.१२(किरिचक्र रथ के चौथे पर्व पर की ७ शक्ति देवियों में से एक), शिव ३.४२.३(डाकिनी में शिव के भीमशङ्कर अवतार का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१७६(शतरुद्रिय प्रसंग में डाकिनियों द्वारा मांस लिङ्ग की पूजा), लक्ष्मीनारायण १.३४९.६९(मरु नृपति की पत्नियों द्वारा डाकिनी शाकिनी रूप प्रेत योनि ग्रहण, पत्नीव्रत नामक ब्राह्मण द्वारा यमुना जल प्रोक्षण से डाकिनी आदि के प्रेत योनि से उद्धार का कथन), कथासरित् ३.६.१०४(डाकिनी मन्त्रों से सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख), ६.६.१५९(स्व स्त्री को डाकिनी बताकर नापित द्वारा राजा की दुश्चरित्रता से मुक्ति प्राप्ति का वृत्तान्त), १८.२.३३(डाकिनेय नामक कितव के छल की कथा ) । daakini/kaakinee


      डाण्डिक लक्ष्मीनारायण २.२८.२४(डाण्डिक जाति के नागों के वृद्धसम्मत होने का उल्लेख ) ।


      डिण्डि स्कन्द ७.१.३०८.६(शिव द्वारा डिण्डि रूप धारण कर दारुक वन में विचरण करने पर ऋषि - पत्नियों में क्षोभ, क्रुद्ध ऋषियों द्वारा शाप दान का वर्णन ) ।


      डिण्डिभ गर्ग ७.२९.१७(डिण्डिभ देश में हस्ती - मुख मनुष्यों के वास तथा प्रद्युम्न सेना के आगमन का उल्लेख ) ।


      डिण्डिम स्कन्द ५.३.२१२(शिव द्वारा डिण्डिम वादन करते हुए एकशाल ग्राम में भिक्षा याचना, अदृश्य होने पर ग्राम वासियों द्वारा शिव की स्तुति, शिव का डिण्डि रूप धारण कर प्रत्यक्ष होना, डिण्डिमेश्वर नाम से प्रसिद्धि का कथन ) । dindima


      डिण्डिमाली कथासरित् ८.५.६३(प्रभास से युद्ध हेतु श्रुतशर्मा द्वारा प्रेषित महारथियों में पञ्चक पर्वत निवासी डिण्डिमाली नामक विद्याधरराज का उल्लेख ) ।


      डिम्भ देवीभागवत ९.२.४७(प्रकृति देवी द्वारा कृष्ण गर्भ का डिम्भ रूप में सृजन), ९.३.१(डिम्भ के कृष्ण - कृपा से विराट् बनने का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त २.५४.११४(राधा से महाविराट् रूपी डिम्भ की उत्पत्ति का कथन) dimbha


      डिम्भक गरुड ३.१२.८७(हंस व हिडम्ब का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.१२२(भण्डासुर के राजास्त्र से उत्पन्न राजाओं में से एक), हरिवंश ३.१०३+ (ब्रह्मदत्त - पुत्र, हंस - भ्राता, हंस व डिम्भक द्वारा तपस्या, वर प्राप्ति का वर्णन), ३.१०७+ (हंस व डिम्भक द्वारा कश्यप के वैष्णव सत्र का दर्शन, दुर्वासा आदि के प्रति अश्रद्धा का प्रदर्शन, संन्यास की निन्दा, दुर्वासा का रोष, हंस व डिम्भक को शाप प्रदान का वर्णन), ३.११२+ (श्रीकृष्ण द्वारा हंस व डिम्भक के वध की प्रतिज्ञा), ३.१२५+ (सात्यकि व डिम्भक का युद्ध, हंस का वध, डिम्भक द्वारा आत्महत्या का वर्णन ) । dimbhaka


      डीवी कथासरित् १०.६.८(उड्डीवी, आडीवी, संडीवी, प्रडीवी, चिरजीवी : काकराज मेघवर्ण के उपर्युक्त मन्त्रियों द्वारा उलूकराज के प्रतीकार के विषय में स्व स्व मन्तव्य का कथन ) ।


      डुण्डुभ देवीभागवत २.११.२८(डुण्डुभ सर्प का रुरु से वार्तालाप, पूर्व जन्म में मित्र खगम को सर्प भय से पीडित करने पर सर्प योनि की प्राप्ति), कथासरित् २.६.८३(डुण्डुभ द्वारा क्रुद्ध रुरु नामक मुनिकुमार से डुण्डुभों की निर्विषता का कथन ) । dundubha


      ढक्का भविष्य ३.३.१३.१७(नेत्रसिंह द्वारा इन्द्र से दिव्य ढक्कामृत की प्राप्ति का कथन ) ।


      ढुण्ढा भविष्य ४.६९.५५(व्याघ्र से सवत्सा गौ की रक्षार्थ मुनियों द्वारा भीमनाद घण्टा वादन, व्याघ्र का पलायन, विप्रों द्वारा उसके ढुण्ढागिरि नामकरण का वर्णन ) । dhundhaa


      ढुण्ढि गणेश २.४३.५(ढुण्ढि धातु के गवेषणा के अर्थ में प्रयोग का उल्लेख), २.४६.१(शिव द्वारा दिवोदास - पालित काशी में रन्ध्र दर्शन के लिए ढुण्ढि को भेजना, ढुण्ढि द्वारा ज्योतिषी का रूप धारण कर प्रजा का मोहन), २.४८.४(ढुण्ढि द्वारा काशी से दिवोदास का निष्कासन व शिव आगमन पर शिव द्वारा ढुण्ढि की स्तुति), २.७२.३०(काशी से गणेश के निर्गमन पर प्रजा द्वारा गणेश की ढुण्ढिराज नाम से आराधना), नारद १.११३.८७(फाल्गुन मास की चतुर्थी में करणीय ढुण्ढिराज व्रत विधि), भविष्य ३.४.१२.१०२(ढुण्ढिराज : गणेश - अंश, जातकाभरणम् नामक ज्योति:शास्त्र के रचयिता), स्कन्द ४.१.२९.७१ (ढुण्ढिविघ्नेश जननी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.१.४१.१७२(षडङ्ग योग के देवताओं में पञ्चम), ४.२.५७.३३(गणेश द्वारा ढुण्ढि नाम प्राप्ति का कारण, ढुण्ढि का माहात्म्य), ४.२.५७.४३(ढुण्ढि - स्तुति तथा माहात्म्य), ५.१.२०.७(ढुण्ढेश्वर : ढुण्ढेश्वर शिव के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख), ५.२.३(ढुण्ढ नामक गण द्वारा रम्भा नृत्य में विघ्न, इन्द्र द्वारा शाप, ढुण्ढ द्वारा शिवाराधना, शिव द्वारा वर प्रदान, लिङ्ग की ढुण्ढेश्वर नाम से प्रसिद्धि, ढुण्ढेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन ) । dhundhi


      ढौण्ढा भविष्य ४.१३२.१३(माली राक्षस की पुत्री ढौण्ढा द्वारा राजा रघु के नगरवासी बालकों को त्रास प्रदान, वसिष्ठ - प्रोक्त उपाय से राक्षसी का नाश), स्कन्द ५.३.२०५.३(कुर्कुरी नामक तीर्थ में ढौण्ढेश नामक क्षेत्रपाल का वास, उसके आराधन से दौर्भाग्य नाश का कथन ) । dhaundhaa