त वायु १०४.७२/२.४२.७२(वेदों के वाम पादों के त वर्ग से निर्मित होने का उल्लेख ) ।
तंसु ब्रह्म १.११.५३(ब्रह्मवादिनी इला - पति, धर्मनेत्र - पिता, पुरु वंश ) ।
तक्ष गरुड १.१९७.१३(आग्नेय में कुलिक, तक्ष व महाब्ज की स्थिति का उल्लेख - कर्कोटः पद्मनाभश्च वारुणे तौ व्यवस्थितौ ॥ आग्नेये चापि कुलिकस्तक्षश्चैव महाब्जकौ ।), देवीभागवत ६.२.११(इन्द्र द्वारा तक्ष को मृत त्रिशिरा मुनि के शिर छेदन का आदेश, तक्ष के मना करने पर इन्द्र द्वारा यज्ञों में भाग प्राप्ति का प्रलोभन, तक्ष द्वारा शिर छेदन का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१९०(भरत - पुत्र, तक्षशिला नगरी का स्वामी), भागवत ९.२४.४३(वृक व दुर्वाक्षी के पुत्रों में से एक, विदर्भ वंश - तक्षपुष्करशालादीन्दुर्वाक्ष्यां वृक आदधे), वायु ८८.१८९/२.२६.१८९(भरत - पुत्र तक्ष की तक्षशिला पुरी का उल्लेख - तक्षस्य दिक्षु विख्याता रम्या तक्षशिला पुरी। पुष्करस्यापि वीरस्य विख्याता पुष्करावती ।।), विष्णुधर्मोत्तर १.२६१.७(तक्ष के वीरबाहु से युद्ध का उल्लेख - तक्षश्च भारतिः श्रीमान्युयुधे वीरबाहुना ।।), वा.रामायण ७.१०१.११(भरत द्वारा स्व - पुत्र तक्ष को तक्षशिला का राजा बनाने का उल्लेख - तक्षं तक्षशिलायां तु पुष्कलं पुष्कलावते । ) । taksha
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तक्षक अग्नि ५१.१३(प्रतिमा लक्षण के अन्तर्गत अनन्त, तक्षक प्रभृति प्रमुख नागगणों के सूत्रधारी व फणवक्त्र होने का उल्लेख - अनन्तस्तक्षकः कर्क्कः पद्मो महाब्जः शङ्खकः। कुलिकः सूत्रिणः सर्वे फणवक्त्रा महाप्रभाः ।।), गरुड १.१९७.१२(आग्नेये चापि कुलिकस्तक्षश्चैव महाब्जकौ । वायुमण्डलसंस्थौ च पञ्च भूतानि विन्यसेत् ॥), देवीभागवत २.१०(तक्षक नाग द्वारा कृमि रूप होकर परीक्षित् के दंशन का प्रसंग), २.११.५४(जनमेजय के सर्पसत्र से भयभीत तक्षक नाग का इन्द्र की शरण में गमन, आस्तीक मुनि की प्रार्थना पर जनमेजय के सर्पसत्र से विराम का कथन - तमिन्द्रशरणं ज्ञात्वा मुनिर्दत्ताभयं तथा ॥ उत्तङ्कोऽह्वयदुद्विग्नः सेन्द्रं कृत्वा निमन्त्रणम् ।), पद्म १.३४.१५५(कुंडवाप्यां शुभांगस्तु सारण्यां तक्षकस्तथा।) ३.२५.२(तक्षक नाग के भवन की वितस्ता नाम से प्रसिद्धि, संक्षिप्त माहात्म्य - काश्मीरेष्वेव नागस्य भवनं तक्षकस्य च । वितस्ताख्यमिति ख्यातं सर्वपापप्रमोचनम्॥), ब्रह्मवैवर्त्त ४.५१.५(धन्वन्तरि - शिष्य दम्भी द्वारा मन्त्र बल से तक्षक नाग का जृम्भन, मणि का हरण, तक्षक की निश्चेष्टता का कथन - दम्भी धन्वन्तरेः शिष्यो धृत्वा तक्षकमुल्बणम् ।। मंत्रेण जृंभितं कृत्वा निर्विषं तं चकार ह ।। ..), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३४(तक्षक आदि सब नागों के निषध पर निवास का उल्लेख), १.२.२०.२४(सुतल नामक द्वितीय तल में तक्षक नाग के पुर की स्थिति का उल्लेख), १.२.२५.८८(शिव के कण्ठ में स्थित विष के तक्षक नाग की भांति दृष्टिगोचर होने का उल्लेख - तं दृष्ट्वोत्पलपत्राभं कंठसक्तमिवोरगम् ।। तक्षकं नागराजानं लेलिहानमिवोत्थितम् ।।), २.३.७.३२(कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), भविष्य १.३४.२२(तक्षक नाग का भूमिपुत्र/मङ्गल ग्रह से तादात्म्य - अनन्तं भास्करं विद्यात्सोमं विद्यात्तु वासुकिम् । तक्षकं भूमिपुत्रं तु कर्कोटं च बुधं विदुः । ।), १.३६.४७(अनंतस्य दिशा पूर्वा वासुकेस्तु हुताशनी ।। दक्षिणा तक्षकस्योक्ता कर्कोटस्य तु नैर्ऋती ।।), ३.३.३१.९७(पुण्ड्र देशीय नागवर्मा का अपर नाम?, नागवती - पति, सुवेला – पिता - पुंड्रदेशे महाराजो नागवर्मा महाबलः ।। बभूव तक्षकपरो धर्मवाञ्जगतीतले ।।..), ४.३४(विष्णु देह में सर्पों का न्यास - अनंतायेति पादौ तु धृतराष्ट्राय वै कटिम् ।। उदरं तक्षकायेति उरः कर्कोटकाय च ।।..), ४.९४.३(अनन्त का पर्याय तक्षक, शेष - कृष्ण कोऽयं त्वयाख्यातो ह्यनंत इति विश्रुतः ।। किं शेषनाग आहोस्विदनंतस्तक्षकः स्मृतः ।।), भागवत ४.१८.२२(सर्पों, नागों द्वारा तक्षक को वत्स बनाकर बिलपात्र में विष रूप दुग्ध के दोहन का उल्लेख - तथाहयो दन्दशूकाः सर्पा नागाश्च तक्षकम् । विधाय वत्सं दुदुहुः बिलपात्रे विषं पयः ॥ ), ५.२४.२९(महातल में तक्षक आदि क्रोधवश गण के नागों के निवास का उल्लेख), ९.१२.८(प्रसेनजित् - पुत्र, बृहद्बल - पिता, इक्ष्वाकु/कुश वंश - ततः प्रसेनजित् तस्मात् तक्षको भविता पुनः । ततो बृहद्बलो यस्तु पित्रा ते समरे हतः ॥), १२.६(परीक्षित के दंशन का प्रसंग, जनमेजय के सर्पसत्र में शक्र द्वारा तक्षक की रक्षा - तं गोपायति राजेन्द्र शक्रः शरणमागतम्। तेन संस्तम्भितः सर्पस्तस्मान्नाग्नौ पतत्यसौ॥), मत्स्य ६.३९(कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), ८.७(वासुकि के नागाधिप व तक्षक के सर्पाधिप बनने का उल्लेख - नागाधिपं वासुकिमुग्रवीर्यं सर्पाधिपं तक्षकमादिदेश।), १०.१९(नागों द्वारा पृथिवी दोहन में नागराज तक्षक के वत्स बनने का उल्लेख - अलावुपात्रं नागानां तक्षको वत्सकोऽभवत्।। विषं क्षीरं ततो दोग्धा धृतराष्ट्रोऽभवत्पुनः।), ४९.६(घृताची के पुत्र औचेयु की भार्या ज्वलना के तक्षक - कन्या होने का उल्लेख - औचेयोर्ज्वलना नाम भार्या वै तक्षकात्मजा।। तस्यां स जनयामास रन्तिनारं महीपतिम्।), ५०.२३(तक्षक के पुर के द्वितीय तल में होने का उल्लेख), ५४.९१(विषपान से शिव का कण्ठ तक्षक नाग की भांति होने का उल्लेख), १५४.४४४(शिव द्वारा वासुकि व तक्षक को कर्णाभूषण बनाने का उल्लेख - विहायोदग्रसर्पेन्द्र कटकेन स्वपाणिना। कर्णोत्तंसञ्चकारेशो वासुकिन्तक्षकं स्वयम् ।।), लिङ्ग १.५०.१५(तक्षक पर्वत पर ब्रह्मा, विष्णु आदि के वास का उल्लेख - तक्षके चैव शैलेन्द्रे चत्वार्यायतनानि च।। ब्रह्मेन्द्रविष्णुरुद्राणां गुहस्य च महात्मनः।।), वराह २४.६(तक्षक का कम्बल से साम्य? - अनन्तं वासुकिं चैव कम्बलं च महाबलम् । कर्कोटकं च राजेन्द्र पद्मं चान्यं सरीसृपम् ।। ), वामन ४६.८(स्थाणु वट के उत्तर पार्श्व में तक्षक महात्मा द्वारा सर्वकामप्रद महालिङ्ग की स्थापना का उल्लेख - वटस्य उत्तरे पार्श्वे तक्षकेण महात्मना । प्रतिष्ठितं महालिङ्गं सर्वकामप्रदायकम्॥), वायु ३९.५४(ताम्राभ पर्वत पर तक्षक के पुर की स्थिति का उल्लेख - ताम्राभे काद्रवेयस्य तक्षकस्य पुरोत्तमम् ।।), ६९.३२४/२.८.३१५(सुरसा द्वारा उत्पन्न एक सौ शिरोमृत सर्पों में तक्षक का सर्पराज रूप में उल्लेख - सर्पाणां तक्षको राजा नागानाञ्चापि वासुकिः ।), ९९.१२८/ २.३७.१२४(तक्षक - पुत्री ज्वलना के रिवेयु की भार्या होने का उल्लेख), विष्णु १.२१.८१(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), शिव ५.३९.३१(प्रसेनजित - पुत्र, बृहद्बल - पिता, इक्ष्वाकु वंश - विश्वसाह्वस्सुतस्तस्य तत्सुतोऽ भूत्प्रसेनजित् ।। तक्षकस्तस्य तनयस्तत्सुतो हि बृहद्बलः ।। ), स्कन्द १.२.१३.१९२(शतरुद्रिय प्रसंग में तक्षक द्वारा कालकूट लिङ्ग की पूजा - तक्षकः कालकूटाख्यं बहुरूपेति नाम च॥ हालाहलं च कर्कोट एकाक्ष इति नाम च॥ ), १.२.६३.६३(शेष द्वारा प्रतिष्ठित लिङ्ग के परितः नागों द्वारा चार मार्गों का निर्माण ; तक्षक द्वारा उत्तर दिशा के मार्ग का निर्माण ; बर्बरीक विजय प्रसंग - उत्तरेण च मार्गोयं येन यातुं भवान्स्थितः।।.. विहितस्तक्षकेणासौ यातुं तत्र महात्मना ।।), २.१.११.१५(राजा परीक्षित् द्वारा समाधिनिष्ठ शमीक ऋषि के स्कन्ध पर मृत सर्प का स्थापन, ऋषि - पुत्र शृङ्गी द्वारा राजा को तक्षक अहि द्वारा दंशन का शाप, कृमि रूप तक्षक द्वारा राजा के दंशन तथा मरण का वृत्तान्त - मत्ताते शवसर्पं यो न्यस्तवान्मूढचेतनः ।। स सप्तरात्रान्म्रियतां संदष्टस्तक्षकाहिना ।।), ३.१.४१.१५(वही), ३.३.८.६४(राजकुमार चन्द्राङ्गद का यमुना में निमज्जन, पाताल में पन्नग - स्त्रियों के साथ तक्षक के पुर में प्रवेश, तक्षक द्वारा राजकुमार का सत्कार, परस्पर वार्तालाप, तक्षक द्वारा रक्षकादि के साथ चन्द्राङ्गद के भूर्लोक पर प्रेषण का वर्णन - तत्रापश्यत्सभा मध्ये निषण्णं रत्नविष्टरे ।। तक्षकं पन्नगाधीशं फणानेकशतोज्ज्वलम् ।।), ४.१.४१.११०(नित्य सोम कला से शरीर के पूर्ण होने पर तक्षक के विष का भी प्रभाव न होने का उल्लेख - नित्यं सोमकलापूर्णं शरीरं यस्य योगिनः ।। तक्षकेणापि दष्टस्य विषं तस्य न सर्पति।।), ४.२.६६.११(तक्षकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - तत्कुण्डात्पश्चिमे भागे लिंगं वै तक्षकेश्वरम्।। पूजनीयं प्रयत्नेन भक्तानां सर्वसिद्धिदम् ।।), ६.११६.४०(तक्षक नाग का जन्मान्तर में द्विजशाप वश रैवत राजा बनना, रैवत व क्षेमङ्करी से रेवती के जन्म का कथन - तक्षकाख्यस्तथा नागो द्विजशाप वशाच्छुभे ॥ सौराष्ट्रविषये राजा रैवताख्यो भविष्यति ॥), ६.११७.७(तक्षक व वासुकि नाग का द्विज रूप धारण करके भट्टिका नामक ब्राह्मणी का गीत सुनने के लिए पाताल से पृथ्वी पर आगमन, तक्षक की भट्टिका पर कामासक्ति, भट्टिका का हरण, भट्टिका द्वारा तक्षक को मनुष्य योनि प्राप्ति का शाप, तक्षक का शापवश रैवत राजा बनने का वृत्तान्त), ७.१.१०७.१०१( शाल्मलि तीर्थ में ब्रह्मा का नाम - पूर्णगिर्यां सुभोगश्च शाल्मल्यां तक्षकस्तथा ॥), ७.३.२.३८(उत्तङ्क द्वारा कृष्णाजिन में बद्ध कुण्डलों का तक्षक नाग द्वारा हरण, अश्वरूप अग्नि के साहाय्य से कुण्डलों की पुन: प्राप्ति, गुरु - पुत्नी को प्रदान करने का वृत्तान्त - एतस्मिन्नेव काले तु तक्षकः पन्नगोत्तमः ॥ गृहीत्वा कुण्डले तूर्णमगमद्दक्षिणामुखः ॥), ७.४.१७.११(कृष्ण मन्दिर के पूर्व द्वार के पालकों में नागराज तक्षक का उल्लेख - तरुणार्कश्च वै सूर्यो देव्यो वै सहमातरः ॥ ईश्वरश्चापि दुर्वासा नागराजस्तु तक्षकः ॥), लक्ष्मीनारायण १.४९९.११(तक्षक सर्प के सौराष्ट्र में रैवत राजा होने का उल्लेख - किन्तु सर्पस्तक्षको वै सौराष्ट्रे रैवतो नृपः । आनर्तविषये भावी तस्य क्षेमंकरी प्रिया ।। ), २.२८.१६(तक्षक जाति के नागों का नागर बनना - वासुकेर्जातिमन्तश्च मन्त्रिणस्ते भवन्ति च । तक्षकस्य च जातीया राजमान्या हि नागराः ।।), ३.१४२.११(तक्षक सर्प का मङ्गल ग्रह से सम्बन्ध, सम्बन्धित ग्रह में सर्पदंश से मृत्यु का कथन - शेषोऽर्कः फणिपश्चन्द्रस्तक्षको भौम ईरितः ।। ), महाभारत आदि ३.१४०(उत्तङ्क द्वारा तक्षक की स्तुति - अहमैरावतज्येष्ठभ्रातृभ्योऽकरवं नमः। यस्य वासः कुरुक्षेत्रे खाण्डवे चाभवत्पुरा।। ), तक्षक-एक श्रेष्ठ नाग, जो कश्यप द्वारा कद्रू के गर्भ से उत्पन्न हुआ ( आदि० ३५ । ५)। इसके द्वारा क्षपणक का रूप धारण करके उत्तङ्क मुनि के कुण्डलों का अपहरण (आदि० ३ । १२७; आश्व० ५८ । २५-२६ )। राजा परीक्षित् को डसने के लिये जाते हुए इसकी मार्ग में काश्यप नामक ब्राह्मण से भेंट और धन देकर इसका उन्हें लौटा देना - तक्षकः पन्नगश्रेष्ठो नेष्यते यमसादनम्। तं दष्टं पन्नगेन्द्रेण करिष्येऽहमपज्वरम्। ( आदि० ४२ । ३६ से ४३ । २०); तमब्रवीत्पन्नगेन्द्रः काश्यपं त्वरितं द्विजम्। क्व भवांस्त्वरितो याति किं च कार्यं चिकीर्षति।।(आदि० ५० । १८-२७ ) । तपस्वी नागों द्वारा फल आदि भेजकर उस फल के साथ ही इसका छलपूर्वक परीक्षित् के पास पहुँचना और उन्हें डंस लेना ( आदि० ४३ । २२-३६, आदि० ५०।२९)। इसका इन्द्र की शरण में जाना और इन्द्र द्वारा इसे आश्वासन प्राप्त होना - तमिन्द्रः प्राह सुप्रीतो न तवास्तीह तक्षक। भयं नागेन्द्र तस्माद्वै सर्पसत्रात्कदाचन।। (आदि० ५३ । १४-१७)। आस्तीक की कृपा से जनमेजय के यज्ञ में इसकी रक्षा (आदि० ५८ । ३-७)। यह इन्द्र का मित्र था और सपरिवार खाण्डववन में रहता था; अतः इसी के लिये इन्द्र सदा खाण्डववन की रक्षा करते थे। उनके जल बरसा देने के कारण अग्नि उस वन को जला नहीं पाती थी - वसत्यत्र सखा तस्य तक्षकः पन्नगः सदा। सगणस्तत्कृते दावं परिरक्षति वज्रभृत्।। ( आदि० २२२ । ७) । खाण्डववनदाह के अवसर पर इसका कुरुक्षेत्र में निवास और अर्जुन द्वारा इसकी पत्नी का वध - न शशाक स निर्गन्तुं निरुद्धोऽर्जुनपत्रिभिः। मोक्षयामास तं माता निगीर्य भुजगात्मजा। ( आदि० २२६ । ४-८)। तक्षक-पुत्र अश्वसेन की खाण्डवदाह से माता द्वारा रक्षा - तस्य पूर्वं शिरो ग्रस्तं पुच्छमस्य निगीर्यते। निगीर्य सोर्ध्वमक्रामत्सुतं नागी मुमुक्षया।।), यह वरुण की सभा का सदस्य है ( सभा० ९ । ८)। नागों द्वारा पृथ्वी-दोहन के समय यह बछड़ा बना था - अलाबुपात्रे च तथा विषं दुग्धा वसुन्धरा। धृतराष्ट्रोऽभवद्दोग्धा तेषां वत्सस्तु तक्षकः।। (द्रोण ६९ । २२ )। बलरामजी के शेषरूप से अपने लोक में पधारते समय यह प्रभासक्षेत्र के समुद्र में उनके स्वागत के लिये आया था ( मौसल० ४ । १५)।
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तक्षशिला ब्रह्माण्ड २.३.६३.१९१(भरत - पुत्र तक्ष की पुरी तक्षशिला का उल्लेख), वा.रामायण ७.१०१.११(गन्धर्व देश में तक्षशिला नामक नगरी का निर्माण कर भरत द्वारा तक्ष को राजा बनाने का उल्लेख - तक्षं तक्षशिलायां तु पुष्कलं पुष्कलावते ।), लक्ष्मीनारायण ३.२२१(तक्षशिला - निवासी शिवजय नामक प्रासादकार की वृषपर्व ऋषि के योग से मोक्ष प्राप्ति की कथा), कथासरित् ६.१.१०(तक्षशिला - निवासी राजा कलिङ्गदत्त द्वारा वैश्यपुत्र को आत्मतत्त्व तथा मोक्षोपदेश का वर्णन), ६.२.१(तक्षशिला - निवासी राजा कलिङ्गदत्त की रानी तारादत्ता से कन्या - जन्म का कथन), ६.३.६३(कलिङ्गदत्त की कन्या कलिङ्गसेना द्वारा स्वयंप्रभा - प्रदत्त फलों का भक्षण, सखी सोमप्रभा के साथ उद्यान भ्रमण के पश्चात् तक्षशिला आगमन का कथन - कलिङ्गसेनामारोप्य यन्त्रे भूयो विहायसा ।सोमप्रभा तक्षशिलामानिनाय स्वमन्दिरम् ।।), ६.५.५५(तक्षशिला - पति कलिङ्गदत्त की कन्या कलिङ्गसेना द्वारा वत्सराज से प्रणय निवेदन का कथन), १२.२.७७(तक्षशिला - भूपति भद्राक्ष के पुत्र पुष्कराक्ष की कथा - हृत्पुष्करप्रसादेन जातोऽयमिति तं च सः । पुष्कराक्षं नृपश्चक्रे नाम्ना पुत्रं सुलक्षणम् ।। ) । takshashilaa
तक्षशिला-एक नगरी, जिसे जनमेजय ने जीता था ( और जहाँ सर्पसत्र का अनुष्ठान एवं महाभारत-कथा का श्रवण किया था ) ( आदि० ३ । २०)। सर्पसत्र और महाभारत-कथा की समाप्ति होने पर ब्राह्मणों को दक्षिणा दे विदा करके जनमेजय तक्षशिला से हस्तिनापुर को चले आये (स्वर्गा० ५ । ३१-३५)।
तक्षा महाभारत अनुशासन ४८.१३(तक्षा की उत्पत्ति का कथन - शूद्रादायोगवश्चापि वैश्यायां ग्राम्यधर्मिणः। ब्राह्मणैरप्रतिग्राह्यस्तक्षा स्वधनजीवनः।। ), कथासरित् ७.९.२२(काञ्ची नगरी - वासी प्राणधर तथा राज्यधर नामक तक्षा/बढई भ्राताओं की कथा), ७.९.२२१(प्राणधर नामक तक्षा के कुशल यन्त्र विमान - निर्माता होने का उल्लेख), १०.६.१०४(भार्या की झूठी सान्त्वना से मूर्ख तक्षा/बढई के प्रसन्न होने की कथा ) । takshaa
तगर नारद १.६७.६२(तगर को रवि को अर्पण का निषेध), १.९०.७०(तगर द्वारा देवी पूजा से पशु सिद्धि का उल्लेख )
तडाग नारद १.१२.५४(तडाग निर्माण का फल, राजा वीरभद्र व मन्त्री बुद्धिसागर का दृष्टान्त), पद्म १.२७(तटाक : तटाक - प्रतिष्ठा विधि का वर्णन), ६.३८.२५(कूप आदि में स्नान की अपेक्षा तडाग में स्नान के उत्तम होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.९.११(तडाग तोडकर मार्ग निर्माण अथवा कृषिकर्म से नरकवास का उल्लेख), २.९.१७(तडाग से पङ्क उत्सारण पर ब्रह्मलोक में वास का उल्लेख), मत्स्य ५८(तडाग प्रतिष्ठा विधि का वर्णन ) । tadaaga
तडित् पद्म ५.७२.७७(तडित्प्रभा : कृष्ण - पत्नी), स्कन्द १.२.६२.३०(तडिद्रुचि : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ) । tadit
तण्डी लिङ्ग १.६५.४६(त्रिधन्वा - गुरु तण्डी - कथित रुद्र सहस्रनाम का वर्णन), स्कन्द ७.१.३३९.२(कूप में पतित मृग की हुंकार द्वारा शुष्क कूप का जल से पूरित होना, कूप जल में स्नान तथा पितृ तर्पणादि से तण्डी ऋषि को मुक्ति प्राप्ति का वर्णन ) । tandee/tandi
तण्डुल स्कन्द १.२.४४.७३(तण्डुल द्वारा दिव्यता परीक्षा), कथासरित् १०.७.१८१(मूर्ख द्वारा तण्डुल भक्षण की कथा ) । tandula
तति ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२३(ततज : २८ वेदव्यासों में से एक), ३.४.३५.९४ (ततिकामिका : श्रीहरि की कलाओं में से एक ) ।
तत्त्व अग्नि ८६.२(विद्या विशोधन विधान के अन्तर्गत राग, शुद्धविद्या आदि ७ तत्त्वों के नाम), ८९(एक तत्त्व दीक्षा विधि का वर्णन), कूर्म २.७.२१(मन, बुद्धि, श्रोत्र, त्वक् आदि २४ तत्त्वों का कथन), नारद १.४२.२९(पृथिवी, जल, अग्नि आदि के अन्तों का कथन), १.४२.७५(शरीर में पृथिवी, जल, वायु, आप: व आकाश से उत्पन्न अवयवों का कथन), पद्म ६.२२६.२५(क, च, ट वर्ग आदि के रूप में २५ तत्त्वों का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.२०.११(तत्त्वल : प्रथम तल का नाम), २.३.१९.६४(२४ तत्त्व पारग के ही वास्तविक पारग होने का उल्लेख), ३.४.८.३३ (मदन कृत प्रवृत्ति से मुक्ति हेतु २६ तत्त्वों के मन्थन के रहस्य का कथन), भागवत २.५.२२(कर्म से महत् आदि तत्त्वों के क्रमिक जन्म का वर्णन), ३.२१.३२(देवहूति - पुत्र कपिल द्वारा तत्त्वसंहिता/सांख्य शास्त्र की रचना का उल्लेख), ३.२६(महदादि भिन्न - भिन्न तत्त्वों की उत्पत्ति का वर्णन), ३.२६.११ (२४ तत्त्वों की गणना), ११.२२(तत्त्वों की संख्या के विषय में मतभेद, उद्धव - कृष्ण संवाद), मत्स्य ३.२९(सांख्य दृष्टि से २६ तत्त्वात्मक शरीर का वर्णन), १२३.४९(आप: के भूमि से १० गुना, अग्नि के आप: से १० गुना, वायु के अग्नि से १० गुना, आकाश के वायु से १० गुना होने आदि का कथन, एक तत्त्व द्वारा दूसरे को धारण करना), योगवासिष्ठ २.१२.२०(आत्मतत्त्व के ज्ञान से जगत् - भ्रमण के रमणीय होने का कथन), लिङ्ग २.२४.४(पृथ्वी आदि पञ्च तत्त्वों की शुद्धि विधि), विष्णु १.२.३४(चौबीस तत्त्वों से जगत् की सृष्टि का वर्णन), शिव २.१.६.२ (ब्रह्मा द्वारा नारद को शिव तत्त्व का वर्णन), २.१.६.५८(प्रकृति से २४ तत्त्वों के प्रादुर्भाव का कथन), ६.१७(सात्विकादि गुणों से बुद्धि, बुद्धि से अहंकार, अहंकार से उनसे आगे अन्य तत्त्वों का वर्णन), ७.१.२९(समस्त पुरुषों में तत्त्वों के कलाओं द्वारा व्याप्त होने का कथन ; मन्त्राध्वा आदि क्रमिक अध्वों में तत्त्वाध्वा का कथन), ७.२.५.१९(२३ तत्त्वों की व्यक्त संज्ञा का उल्लेख), ७.२.१५.३६(तत्त्वविद् की प्रशंसा), स्कन्द २.७.१९.१९(तत्त्वाभिमानी देवों की आपेक्षिक श्रेष्ठता का कथन; भूतों - मनुष्यों व सप्तर्षियों के बीच स्थिति), ३.१.४९.८३(मरुतों द्वारा तत्त्वों में परतत्त्व का अन्वेषण), ६.२७०.७(पाप - पिण्ड प्रदान विधि के अन्तर्गत पाप पिण्ड की पृथिवी आदि २४ तत्त्वों के नामों से पूजा), ७.१.९.५३(ब्रह्मा, विष्णु, शिव के २४, २५, २६ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख), ७.२.१८.१२(२४ तत्त्वों का कथन), महाभारत शान्ति ३०६.४०(२४ तत्त्वों से युक्त प्रकृति व परमपुरुष रूप २५वें तत्त्व का विचार), ३०८.६(२६वें तत्त्व परमात्मा द्वारा पञ्चविंश पुरुष व चतुर्विंश प्रकृति को जानने का कथन), ३१०.१२(अव्यक्त आदि ८ प्रकृतियों व श्रोत्र, त्वक् आदि १६ विकारों का कथन), ३१८.७०-७२(२५वें व २६वें तत्त्वों को देखने अथवा न देखने का विचार), ३३९.४३(भगवान वासुदेव के निष्क्रिय २५वां तत्त्व होने का कथन), लक्ष्मीनारायण १.१३९.४४(२४ तत्त्वों में २५वें स्व रूपी आत्मा की खोज करके २६वें परमेश्वर को समर्पित करने का उल्लेख ) । tattva/ tatva
तत्त्वदर्शी ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०२(पौलह तत्त्वदर्शी : १३वें रौच्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), भागवत ८.१३.३१(तत्त्वदर्श : १३वें मनु देवसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), मत्स्य ९.२१(रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक), २१.३(ब्रह्मदत्त के प्रसंग में सुदरिद्र ब्राह्मण के ७ पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.४०(१३वें मनु देवसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) । tattvadarshee/ tattvadarshi
तत्पुरुष अग्नि ३०४.२५(तत्पुरुष शिव का स्वरूप : श्वेत - पूर्व्वे तत्पुरुषः श्वेतो अघोरोऽष्टभुजोऽसितः ।), गरुड १.२१.५(तत्पुरुष शिव की कलाओं के नाम - ॐ हैं तत्पुरुषायैव (षाय) निवृत्तिश्च प्रतिष्ठा च विद्या शान्तिर्न केवला ।।), नारद १.९१.६७(तत्पुरुष शिव की ४ कलाओं का कथन - आद्या तत्पुरुषायेति विद्महे शांतिरीरिता ।। महादेवाय शब्दांते धीमहि स्यात्ततः परम् ।।), लिङ्ग २.१४.७(शिव नाम, प्रकृति का रूप - स्थाणोस्तत्पुरुषाख्या च द्वितीया मूर्तिरुच्यते।। प्रकृतिः सा हि विज्ञेया परमात्मगुहात्मिका।।), २.१४.१२(त्वगिन्द्रियात्मक - स्थितस्तत्पुरुषो देवः शरीरेषु शरीरिणाम्।। त्वगिंद्रियात्मकत्वेन तत्त्वविद्भिरुदाहृतः।।), २.१४.१७ (पाणीन्द्रियात्मक - पाणींद्रियात्मकत्वेन स्थितस्तत्पुरुषो बुधैः।।), २.१४.२२(स्पर्श तन्मात्रात्मक, समीर जनक - प्राहुस्तत्पुरुषं देवं स्पर्शतन्मात्रकात्मकम्।। समीरजनकं प्राहुर्भगवंतं मुनीश्वराः।।), शिव ३.१.१९(शिव के पांच अवतारों में से एक तत्पुरुष का पीतवासा नामक २१वें कल्प में अवतरण, अधिष्ठान तथा स्वामित्व का वर्णन), ६.३.२८(तत्पुरुष शिव की चार कलाओं की प्रणव बिन्दु में स्थिति), ६.६.७० (तत्पुरुष शिव के चार मुखों में चार कलाओं का न्यास), ६.१२.१७ (पञ्चवक्त्र शिव के संदर्भ में ईशान मुकुट, तत्पुरुष मुख, अघोर हृदय, वामदेव गुह्य व सद्योजात पाद होने का उल्लेख), ६.१४.४१(तत्पुरुष शिव में प्रकृति, त्वक्, पाणि, स्पर्श व वायु की स्थिति), ६.१६.५९(तत्पुरुष शिव से शान्ति कला की उत्पत्ति), ७.१.३३.४१(तत्पुरुष शिव हेतु हरिताल व गुग्गुल देने का निर्देश), ७.२.३.७(तत्पुरुष शिव की मूर्ति में गुणाश्रयात्मक अव्यक्त की स्थिति, ईशान भोक्ता, तत्पुरुष भोग्य - स्थाणोस्तत्पुरुषाख्या या मूर्तिर्मूर्तिमतः प्रभोः ॥ गुणाश्रयात्मकं भोग्यमव्यक्तमधितिष्ठति ॥), स्कन्द ३.३.१२.९(शिव कवच के अन्तर्गत तत्पुरुष से प्राची दिशा में रक्षा की प्रार्थना ) । tatpurusha
तथोक्ति मार्कण्डेय ५१.३/४८.३(दुःसह व निर्मार्ष्टि की १६ सन्तानों में से एक ) ।
तथ्य मत्स्य ४७.२४३(तथ्य ऋषि के काल के पश्चात् मान्धाता रूप में विष्णु के अवतार का उल्लेख), वायु ९८.९०/२.३६.८९(तथ्य ऋषि के काल के पश्चात् मान्धाता रूप में विष्णु के अवतार का उल्लेख ) । tathya
तनय वायु ४३.२१(तनय/तनपा : भद्र देश के जनपदों में से एक ) ।
तनु ब्रह्माण्ड १.२.८.२१(ब्रह्मा के त्यक्त तनुओं से सन्ध्या, ज्योत्स्ना आदि की उत्पत्ति का कथन), भागवत ६.४.४६(तनु के विद्या होने का उल्लेख), वायु १.७.५१/७.५६(अम्भ: की तनव: संज्ञा के कारण का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७(ब्रह्मा द्वारा सृष्टि उपरान्त तनु त्याग), शिव २.१.८(शब्दब्रह्म तनु नामक अध्याय के अन्तर्गत वर्णमाला के अक्षरों का शरीर के अङ्गों से साम्य), स्कन्द १.२.१३.१८९(शतरुद्रिय प्रसंग में पृथिवी द्वारा मेरु लिङ्ग की द्वितनु नाम से अर्चना का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२१०.५४(तनु ऋषि द्वारा ऋषभ को शान्ति प्राप्ति हेतु आशा त्याग का उपदेश), ३.१४१.६४(तनु नामक ऋषि का बदरिका वन में निवास, लोमश के पूछने पर तनु द्वारा बदरिका के कुंकुमवापिका गमन का कथन ) ; द्र. देह, भद्रतनु, शरीर, सुतनु । tanu
तन्ति मत्स्य ४६.२७(नन्दन के २ पुत्रों में से एक, सोम वंश), २०१.३८(५ धूम्र पराशरों में से एक), वायु ९६.१८९/२.३४.१८९(तन्तिज : वसुदेव द्वारा तन्तिज व तन्तिमाल पुत्रों को कनक? को देने का उल्लेख ), द्र. तति ।tanti
तन्तिपाल मत्स्य ४६.२७(नन्दन के २ पुत्रों में से एक), वायु ९६.१८९/ २.३४.१८९(तन्तिमाल : वसुदेव द्वारा तन्तिज व तन्तिमाल पुत्रों को कनक? को देने का उल्लेख ) । tantipaala
तन्तु गरुड ३.२२.१०(उदर के तन्तु रूप होने का विष्णु का १०वां लक्षण), लक्ष्मीनारायण ४.५९.५२(मूलतन्तुक पत्तन के ऋषि भवायन का वृत्तान्त ), द्र. फेनतन्तुtantu
तन्त्र अग्नि ३९.३(आदित्यशीर्ष तन्त्र, त्रैलोक्यमोहन तन्त्र प्रभृति २५ तन्त्रों का नामोल्लेख, तदनुसार देव - प्रतिष्ठा विधान का वर्णन), २९९(बाल - ग्रहों को शान्त करने वाले बालतन्त्र का वर्णन), नारद १.६३.९(सनत्कुमार द्वारा नारद को चतुष्पाद महाभागवत तन्त्र का वर्णन), १.६३.१२(सनत्कुमार द्वारा चतुष्पाद महाभागवत तन्त्र का वर्णन : पशु, पाश, दीक्षा आदि), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१०८ (अपर? ब्रह्म के तान्त्रिक होने का उल्लेख), ३.४.१७.४६(तन्त्रिणी : सङ्गीतयोगिनी की शुक व वीणा लिए २ अनुचरियों में से एक), भविष्य ३.२.१४.११(मूलदेव व सुदेव द्वारा नृप के समक्ष अपने को तान्त्रिक नगर का बताना), भागवत १.३.८(नारद रूपी विष्णु द्वारा सात्वत तन्त्र के उपदेश का उल्लेख), ११.३.४७(हृदय ग्रन्थि विमोचन के लिए वैदिक व तन्त्रोक्त पद्धतियों से उपासना का निर्देश), ११.५.२८(द्वापर में कृष्ण की वेदों व तन्त्रों द्वारा उपासना का कथन), ११.५.३१(कलियुग में कृष्ण की नाना तन्त्र विधान से अर्चना का कथन), ११.२७.२६(उभय सिद्धि के लिए वेद व तन्त्र दोनों से परमेश्वर की अर्चना का निर्देश), १२.११.२(विष्णु की तान्त्रिक परिचर्या में विष्णु के अङ्ग उपाङ्ग, आयुधों आदि के प्रतीकार्थों का वर्णन), १२.११.४(वेद व तन्त्रों के आचार्यों द्वारा प्रोक्त वैष्णवी विभूति का वर्णन), १२.११.२९(अविद्या से निर्मित लोकतन्त्र के वर्णन में १२ मासों में सूर्य के रथ का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.९२(समस्त अग्नि कर्मों का प्राक् तन्त्र तथा उत्तर तन्त्र का वर्णन), २.१२५(वैदिक तन्त्र विधान), ३.५(निरुक्त आदि), ३.६(युक्तियां - अधिकरण, योग आदि), लक्ष्मीनारायण २.१५७.१५ (तन्त्र का ओष्ठों में न्यास ) । tantra
तन्तुकच्छ कथासरित् ८.२.२२४(प्रह्लाद द्वारा भोज हेतु निमन्त्रित दैत्यराजों में से एक), ८.२.३३९ (सप्तम पाताल के राजा तन्तुकच्छ द्वारा स्वकन्या मनोवती को सूर्यप्रभ को प्रदान करने का उल्लेख ) ।
तन्तुधृक् लक्ष्मीनारायण ४.१०१.११५(कृष्ण - पत्नी मालती का पुत्र ) ।
तन्दुल स्कन्द १.२.४४.७३(तन्दुल द्वारा दिव्यता परीक्षा ) । tandula
तन्द्रा ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९६(शंकर की ११ कलाओं में से एक), महाभारत आश्वमेधिक ३१.२(३ तामस गुणों में से एक ) । tandraa
तन्मात्रा अग्नि १७.४(तामस अहंकार से शब्द आदि तन्मात्राओं की क्रमिक सृष्टि), २७.५२(शब्द, स्पर्श आदि तन्मात्राओं के बीज मन्त्र), ५९.१९(पञ्च तन्मात्राओं के बोधक बीजमन्त्रों के न्यास का कथन), ८४+(निवृत्ति आदि कलाओं में गन्ध, रस आदि का प्राधान्य), देवीभागवत ३.७.२८(तामस अहंकार की द्रव्य शक्ति से शब्द, स्पर्शादि तन्मात्राओं का उद्भव), ७.३२.२७(तन्मात्राओं का क्रमश: प्रस्फुटन, परमेश्वरी - हिमालय संवाद), नारद १.४२.८१(शब्द, स्पर्श, रूप आदि के उपविभागों का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.५(परम पुरुष के दक्षिण पार्श्व से आविर्भूत तीन गुणों से महत् तत्त्व, अहंकार तथा पञ्च तन्मात्राओं की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.३.७(प्रलय के समय तन्मात्राओं के क्रमिक लय का कथन), भविष्य ३.४.१९.५४(शब्द मात्रा में गणेश, स्पर्श मात्रा में यम, रूप मात्रा में कुमार, रसमात्रा में यक्षराज तथा गन्ध मात्रा में विश्वकर्मा की स्थिति), भागवत २.५.२५(तामस अहंकार में विकार से शब्द आदि पञ्च तन्मात्राओं की उत्पत्ति), ३.२६.३२(तामस अहंकार में विकार से शब्द, स्पर्श आदि पञ्च तन्मात्राओं की उत्पत्ति तथा उनके लक्षणों का कथन), ५.७.२(तामस अहंकार से भूत तन्मात्राओं की उत्पत्ति के समान भरत व पञ्चजनी से पांच पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य ३.१८ (शब्द आदि तन्मात्राओं की उत्पत्ति का वर्णन), मार्कण्डेय ४५.३९(तामस अहंकार से शब्द स्पर्शादि तन्मात्राओं की सृष्टि), योगवासिष्ठ ३.१२.१३(पञ्च तन्मात्राओं का वर्णन), लिङ्ग १.७०.३०(तामस अहंकार से तन्मात्र सृष्टि का वर्णन), २.१४.२१(शब्दादि पांच तन्मात्राओं में शिव के ईशानादि ५ रूपों का कथन), वराह ३४.२(उत्पत्ति, पितरों का रूप), वायु ४.५०(तामस अहंकार से तन्मात्राओं तथा भूतसृष्टि का वर्णन), विष्णु १.२.३७ (तामस अहंकार से तन्मात्राओं तथा तन्मात्राओं से जगत् की सृष्टि का वर्णन), १.२.४४(तन्मात्रा की निरुक्ति : तस्मिन् तस्मिंस्तु तन्मात्रं), ६.४.१५(प्राकृत प्रलय होने पर गन्ध, रस आदि तन्मात्राओं के क्रमश: क्षय होने का वर्णन), स्कन्द १.२.३७.९(तामस अहंकार से पांच तन्मात्राओं तथा तन्मात्राओं से पञ्चभूतों की उत्पत्ति), महाभारत वन १८१.१६(शब्द, स्पर्श, रूप आदि के अधिष्ठान का प्रश्न), शान्ति १८४.२८(गन्ध के ९, रस के ६, ज्योति रूप के १६ भेदों का कथन आदि), आश्वमेधिक ४१+ (अहंकार व अहंकार से उत्पन्न पञ्च महाभूतों, अध्यात्म, अधिभूत और अधिदैव का वर्णन ) । tanmaatraa/tanmatra
तन्वर्तु लक्ष्मीनारायण २.२१४.२७(एक ऋषि का नाम ) ।
तप
अग्नि ३८१.४४(शारीरिक,
वाङ्मय,
सात्त्विक,
राजसिक
व तामसिक तपों के लक्षणों का
कथन -
श्रद्धामन्त्रादिविध्युक्तं
तपः शारीरमुच्यते । देवादिपूजाऽहिंसादि
वाङ्मयं तप उच्यते ।। ),
३८२.१४(अनशन
के परम तप होने का उल्लेख),
गणेश
२.१४८.१(कायिक,
वाचिक,
मानसिक
तप के लक्षणों का वर्णन
-
ऋजुतार्जवशौचाश्च
ब्रह्मचर्यमहिंसनम् ॥
गुरुविज्ञद्विजातीनां पूजनं
चासुरद्विषाम् । स्वधर्मपालनं
नित्यं कायिकं तप ईदृशम्॥),
गरुड
१.१२७.६(विस्मय
से तप के नष्ट होने का उल्लेख
-
हिमं
यथोष्णमाहन्यादनर्थं चार्थसंचयः
। यथा प्रकीर्तनाद्दानं तपो
वै विस्मयाद्यथा ॥),
३.२१.३(तप
की परिभाषा :
पूर्वार्जित
पापों का अनुतापन -
तप
आलोचनं प्रोक्तं तत्त्वानां
च विनिर्णयः । पूर्वार्जितानां
पापानामनुतापस्तपः स्मृतम्
॥ ),
देवीभागवत
११.२३.४२(सान्तपन
व्रत विधि
-
प्राजापत्यस्य
कृच्छ्रस्य तथा सान्तपनस्य
च । पराकस्य च कृच्छ्रस्य
विधिश्चान्द्रायणस्य च ॥),
नारद
१.४३.७२(तप
की मत्सर से रक्षा का निर्देश
-
नित्यक्रोधाच्छ्रियं
रक्षेत्तपो रक्षेत्तु मत्सरात्
।।),
पद्म
१.३५.४९(द्वापर
में तप के वैश्य में तथा कलियुग
में तप के शूद्र योनि में प्रवेश
का कथन--तस्मिन्द्वापरसंज्ञे
तु तपो वैश्यं समाविशत्।....भविता
शूद्रयोन्यां तु तपश्चर्या
कलौ युगे।),
१.८२.३९(कृतयुग
में तप,
त्रेता
में ज्ञान,
द्वापर
में यज्ञ व कलियुग में दान का
महत्त्व
-
तपः
कृते प्रशंसंति त्रेतायां
ज्ञानमेव च॥ द्वापरे
यज्ञमित्याहुर्दानमेकं कलौ
युगे।),
२.१३.६(तप
का स्वरूप
-
आचारेण
प्रवर्तेत कामक्रोधविवर्जितः।
प्राणिनामुपकाराय संस्थितउद्यमावृतः॥),
६.२७.३२(तप
की महिमा
-
सर्वेषां
चैव वर्णानां ब्राह्मणानां
तपोबलम्।....),
६.५७.३०(कृतयुग
में वृषल द्वारा तप करने से
वृष्टि न होने का उल्लेख
-
अस्मिन्युगे
तपोयुक्ता ब्राह्मणा नेतरा
जनाः। विषये तव राजेंद्र
वृषलोऽयं तपस्यति॥),
ब्रह्म
२.५६(तप
तीर्थ का माहात्म्य :
अग्नि
व जल में श्रेष्ठत्व के निर्णय
की कथा
-
तस्माज्ज्यैष्ठ्यमपामेव
जनन्योऽग्नेर्विशेषतः।।....तपस्तीर्थं
तु तत्प्रोक्तं सत्रतीर्थं
तदुच्यते।।),
२.५८.७६(गौतमी
के दक्षिण तट पर तपोवन तीर्थ
की स्थिति
-
भक्ताभीष्टप्रदा
नित्यमलंकृत्योभयं तटम्।
तपस्तेपे यत्र चाग्निस्तत्तींर्थं
तु तपोवनम्।।),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.१.७६(तपस्वियों
की प्रिय प्रकृति देवी षष्ठी/
मनसा
का कथन -
तपःस्वरूपा
तपसां फलदात्री तपस्विनी ।।
दिव्यं त्रिलक्षवर्षं च
तपस्तप्तं यया हरेः ।।),
२.१४.४९(वास्तविक
सीता की अग्नि से वापसी पर
सीता की छाया द्वारा तप करने
व द्रौपदी का अवतार लेने का
वर्णन
-
त्वं
गच्छ तपसे देवि पुष्करं च
सुपुण्यदम् ।। कृत्वा तपस्यां
तत्रैव स्वर्गलक्ष्मीर्भविष्यसि
।।),
३.३५.७४(ब्राह्मणों
के लिए तप धन,
तप
कल्पतरु,
तपस्या
कामधेनु होने का कथन,
क्षत्रियों
की तप में स्पृहा की अप्रशंसा
-
तपोधनं
ब्राह्मणानां तपः कल्पतरुर्यथा
।।
तपस्या
कामधेनुश्च सन्ततं तपसि स्पृहा
।।),
ब्रह्माण्ड
१.२.३२.९८(तप
से ऋषिता प्राप्त करने वाले
ऋषियों के नाम -
काव्यो
बृहस्पतिश्चैव कश्यपश्व्यवनस्तथा
।। उतथ्यो वामदेवश्च अपा
स्यश्चोशिजस्तथा ।।),
३.४.१.१४(२०
सुतपा देव गण में से एक),
३.४.१.१९(२०
सुख देवों में से एक),
३.४.१.८५(रोहित
गण के १० देवों में से एक),
भविष्य
३.४.७.२६(तप
से सालोक्य
मोक्ष की प्राप्ति
-
मोक्षश्चतुर्विधो
विप्र सालोक्यं तपसोद्भवम्
।। सामीप्यं भक्तितो जातं
सारूप्यं ध्यानसंभवम् ।। ),
भागवत
२.१.२८(विराट्
पुरुष के रराट्/ललाट
के तपो लोक होने का उल्लेख -
उरःस्थलं
ज्योतिरनीकमस्य ग्रीवा
महर्वदनं वै जनोऽस्य । तपो
रराटीं विदुरादिपुंसः सत्यं
तु शीर्षाणि सहस्रशीर्ष्णः
॥ ),
२.५.३९(स्तनों
में तपोलोक की स्थिति का उल्लेख
-
ग्रीवायां
जनलोकोऽस्य तपोलोकः स्तनद्वयात्
। मूर्धभिः सत्यलोकस्तु
ब्रह्मलोकः सनातनः ॥),
६.४.४६(तप
के भगवान् का हृदय होने का
उल्लेख -
तपो
मे हृदयं ब्रह्मंस्तनुर्विद्या
क्रियाकृतिः। अङ्गानि क्रतवो
जाता धर्म आत्मासवः सुराः॥),
८.२०.३४(वामन
विराट् के द्वितीय पग के तपोलोक
से भी परे पहुंचने का उल्लेख
-
उरुक्रमस्याङ्घ्रिरुपर्युपर्यथो
महर्जनाभ्यां तपसः
परं गतः ॥ ),
११.१८.४२(वानप्रस्थी
के मुख्य धर्म के रूप में तप
व ईक्षा/भगवद्भाव
का उल्लेख
-
भिक्षोः
धर्मः शमोऽहिंसा तप ईक्षा
वनौकसः ।),
११.१९.३७(तप
की परिभाषा :
कामनाओं
का त्याग
-
दण्डन्यासः
परं दानं कामत्यागस्तपः
स्मृतम्),
१२.११.३९
(तप/माघ
मास में पूषा नामक सूर्य के
रथ पर स्थित गणों के नाम
-
पूषा
धनञ्जयो वातः सुषेणः सुरुचिस्तथा।
घृताची गौतमश्चेति तपोमासं
नयन्त्यमी॥),
मत्स्य
४.२५(मनु
व शतरूपा के ७ पुत्रों में से
एक),
९.१७(तामस
मनु के तपोमूल,
तपोधन,
तपोरति,
तपस्य,
तपोद्युति,
तपोभोगी,
तपोयोगी
नामक पुत्रों का उल्लेख -
अकल्मषस्तथा
धन्वी तपोमूलस्तपोधनः। तपोरति
तपस्यश्च तपोद्युति परन्तपौ।। ),
१४५.४३(तप
के लक्षण -
ब्रह्मचर्य्यं
तपो मौनं निराहारत्वमेव च।
इत्येतत् तपसो रूपं सुघोरन्तु
दुरासदम्।।),
वामन
९०.४०(तपोलोक
में विष्णु का असित वाङ्मय
नाम -
तपोलोकेऽखिलं
ब्रह्मन् वाङ्मयं सत्यसंयुतम्।),
९०.४१(निराकार
में विष्णु का नाम तपोमय -
अप्रतर्क्यं
निरालम्बे निराकाशे तपोमयम्।।),
वायु
१.२.६/२.६
(यज्ञ
सत्र में तप के गृहपति होने
का उल्लेख -
तपो
गृहपतिर्यत्र ब्रह्मा
ब्रह्माऽभवत् स्वयम्। इलाया
यत्र पत्नीत्वं शामित्रं
यत्र बुद्धिमान्।),
२१.२९/१.२१.२७(तृतीय
कल्प का नाम),
३०.९(तप
व तपस्य मासों की घोर व शिशिर
प्रकृति का उल्लेख -
सहश्चैव
सहस्यश्च मन्युमन्तौ तु तौ
स्मृतौ।
तपश्चैव
तपस्यश्च घोरावेतौ तु शैशिरौ
।।),
५०.२०२(तप
व तपस्य मासों के उत्तरायण
में होने का उल्लेख),
५९.४१(तप
के लक्षण -
ब्रह्मचर्यं
जपो मौनं निराहारत्वमेव च।
इत्येतत् तपसो मूलं सुघोरं
तद्दुरासदम् ।।),
६९.३३६/२.८.३३६(सुरभि
के तप:शीला
होने का उल्लेख -
अदितिर्धर्मशीला
तु बलशीला दितिः स्मृता।
तपःशीला तु सुरभिर्मायाशीला
दनुः स्मृता ॥),
९६.१९०/
२.३४.१९०(वस्तावन
के दत्तक पुत्रों में से एक,
वसुदेव
-
पुत्र?),
१००.१४/२.३८.१४(२०
सुतपा देवों में से एक),
१००.१०८/२.३८.१०८(१३वें
मन्वन्तर में रौच्य मनु के
१० पुत्रों में से एक),
१०१.१७/२.३९.१७(७
लोकों के संदर्भ में ६ठे तपो
लोक का उल्लेख -
स्वस्तृतीयस्तु
विज्ञेयश्चतुर्थो वै महः
स्मृतः। जनस्तु पञ्चमो लोकस्तपः
षष्ठो विभाव्यते ।।),
१०१.३७/२.३९.३८(योग,
तप
व सत्य के धारण से पुनर्जन्म
से रहित सत्य लोक की प्राप्ति
का उल्लेख -
योगं
तपश्च सत्यञ्च समाधाय तदात्मनि।
षष्ठे काले निवर्त्तन्ते
तत्तदाह विपर्यये ।।),
१०१.१७८/
२.३९.१७८(भूमि
के नीचे ७ नरकों में द्वितीय
नरक शीत तप का उल्लेख
-
अस्याधः
पुनरप्यन्यः शीतस्तप इति
स्मृतः। तृतीयः कालसूत्रः
स्यान्महाहविविधिः स्मृतः
।।),
१०१.२०८/२.३९.२०७(तप
नरक?
के
शीतात्मा होने का उल्लेख
-
उष्णस्तु
रौरवो ज्ञेयस्तेजो घोररसात्मकः
।। ततो घनात्मिकश्चापि शीतात्मा
सततं तपः।),
१०१.२०८/
२.३९.२११(क्रियाशील
मनुष्यों द्वारा व्यक्त को
तप आदि से देखने का निर्देश
-
व्यक्तं
तर्केण पश्यन्ति योगात्प्रत्यक्षदर्शिनः।
प्रत्याहारेण ध्यानेन तपसा
च क्रियात्मनः ।। ),
विष्णु
२.७.१४(तपोलोक
में दाह वर्जित वैराज देवों
की स्थिति का उल्लेख
-
चतुर्गणोत्तरे
चोर्ध्वं जनलोकात्तपः स्थितः।
वैराजा यत्र ते देवाः स्थिता
दाहविर्जिताः॥ ),
विष्णुधर्मोत्तर
३.११९.१०(तप
के समारम्भ में नर -
नारायण
की पूजा का उल्लेख
-
शिल्प
कर्मसमारम्भे विश्वरूपं
समर्चयेत् ।। तपसश्च समारम्भे
नरनारायणावुभौ ।।),
३.२६६(तप
की प्रशंसा का वर्णन
-
तपसा
प्राप्यते स्वर्गस्तपसा
प्राप्यते यशः ।। आयुःप्रकर्षं
भोगांस्तु तपसा विन्दते महत्
।। ...),
शिव
१.१७.१११(तप
रूपी वृषभ/
नन्दी
का उल्लेख
-
राजसं
मंडपं तत्र नंदीसंस्थानमुत्तमम्।
तपोरूपश्च वृषभस्तत्रैव
परिदृश्यते॥ ),
५.१२.३७(तप
के माहात्म्य तथा फल का वर्णन
-
तपो
हि परमं प्रोक्तं तपसा विद्यते
फलम् ।। तपोरता हि ये नित्यं
मोदंते सह दैवतैः ।।),
५.१९.१४(सात
महालोकों में से एक तपोलोक
में वैराज देवों की स्थिति ;
जनलोक
तथा सत्यलोक का मध्यवर्ती
लोक
-
चतुर्गुणोत्तरे
चार्द्धे जनलोकात्तपः स्मृतम्
।।
वैराजा
यत्र देवा वै स्थिता दाहविवर्जिताः
।।),
५.२०.४(तप
का माहात्म्य तथा सात्त्विक,
राजस,
तामस
भेद से तप के ३ प्रकार
-
सात्त्विकं
दैवतानां हि यतीनामूर्द्ध्वरेतसाम्
।।
राजसं
दानवानां हि मनुष्याणां तथैव
च ।।...),
७.२.२२.४४(कर्मयज्ञ,
तपोयज्ञ,
जपयज्ञ,
ध्यानयज्ञ
तथा ज्ञानयज्ञ नामक पञ्चयज्ञों
में उत्तरोत्तर की श्रेष्ठता
-
कर्मयज्ञस्तपोयज्ञो
जपयज्ञस्तदुत्तरः ॥ ध्यानयज्ञो
ज्ञानयज्ञः पञ्च यज्ञाः
प्रकीर्तिताः ॥),
स्कन्द
१.१.३१.१३(शङ्कर
की तुष्टि तप से,
ब्रह्मा
की कर्म से व विष्णु की यज्ञ,
उपवास,
व्रत
से होने का कथन
-
तपसा
परमेणैव तुष्टिं प्राप्तोसि
शंकर॥ कर्मणा परमेणैव ब्रह्मा
लोकपितामहः॥),
१.२.५.१८(केवल
विद्या या तप की अपेक्षा दोनों
की उपस्थिति होने पर दान
प्रतिग्रह की पात्रता होने
का कथन
-
न
विद्यया केवलया तपसा वापि
पात्रता॥ यत्र वृत्तिमिमे
चोभे तद्वि पात्रं प्रचक्षते॥),
४.१.१४.१७(अत्रि
द्वारा अनुत्तर नामक तप से
रेतः का सोम में परिवर्तित
होना -
अनुत्तरं
नाम तपो येन तप्तं हि तत्पुरा
।।....ऊर्ध्वमाचक्रमे
तस्य रेतः सोमत्वमीयिवत्
।।),
५.१.६.६
(तपस्वियों
द्वारा सकल तथा ज्ञानियों
द्वारा निष्कल परम के दर्शन
का कथन
-
सकलं
निष्कलं चापि देवाः पश्यंति
योगिनः ।। तपस्विनस्तु सकलं
ज्ञानिनो निष्कलं परम् ।।
),
५.२.८३.१५(बिल्व
व कपिल नामक मित्रों में परस्पर
वार्तालाप में बिल्व द्वारा
दान तथा तीर्थ का प्राधान्य
और कपिल द्वारा ब्रह्म व तप
के प्राधान्य का प्रतिपादन
-
दानं
प्रधानं तीर्थं तु बिल्वेनोक्तं
पुनःपुनः ।। ब्रह्म श्रेष्ठं
तपः श्रेष्ठमित्युक्तं कपिलेन
तु।।),
५.३.५१.३५(देव
को अर्पण करने योग्य ८ शास्त्रोक्त
मानस पुष्पों में से एक
-
तृतीयं
तु दया पुष्पं क्षमा पुष्पं
चतुर्थकम् । ध्यानपुष्पं तपः
पुष्पं ज्ञानपुष्पं तु सप्तमम्
॥),
५.३.१०३.४५(अनसूया
को तपाचरण के फलस्वरूप विप्र
रूप में रुद्र,
विष्णु
व ब्रह्मा के दर्शन,
अनसूया
द्वारा तप की प्रशंसा
-
तपसा
सिध्यते स्वर्गस्तपसा परमा
गतिः ।
तपसा
चार्थकामौ च तपसा गुणवान्सुतः
।),
५.३.१८१.१६(क्रोध
से तप के नष्ट होने का उल्लेख
-
स्त्री
विनश्यति गर्वेण तपः क्रोधेन
नश्यति । गावो दूरप्रचारेण
शूद्रान्नेन द्विजोत्तमाः
॥),
६.२७१.१०८(तपस्वियों
का रूप क्षमा होने का उल्लेख
-
कोकिलानां
स्वरो रूपं नारीरूपं पतिव्रता॥
विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा
रूपं तपस्विनाम्॥),
योगवासिष्ठ
३.७२+(कर्कटी
सूची के तप का वर्णन),
६.१.९०.१९(तप
की कांच मणि से उपमा -
सर्वत्यागमणावेवं
गते कमललोचन । तपःकाचमणिर्दृष्टस्त्वया
संकल्पचक्षुषा ।। ),
लक्ष्मीनारायण
१.१०९.४३(नर
-
नारायण
के तप के संदर्भ में तप के अर्थ
का कथन :
घ्राण
आदि से अन्य का घ्रातव्य न
होना आदि -
घ्राणेनाऽन्यन्न
घ्रातव्यमित्येतत्तप उच्यते
। ततोऽपि च त्वचा चान्यन्न
स्प्रष्टव्यं विशिष्यते ।।),
१.२८३.३६(अनशन
के तपों में अनन्यतम होने का
उल्लेख -
नास्ति
गंगासमं तीर्थं नास्ति मातृसमो
गुरुः । नास्ति विष्णुसमो
देवस्तपो नाऽनशनात्परम् ।।),
१.४८९.७१(सत्ययुग
में तप की श्रेष्ठता का उल्लेख
-
धेनुः
प्राह तपः सत्ये,
त्रेतायां
ध्यानमेव तु ।। द्वापरे यज्ञदानं
च,
दानमेकं
कलौ शुभम् ।),
२.२२७.५९(
शारीर,
मानस,
बुद्धि
आदि स्तरों पर तपों का कथन -
ब्रह्मचर्यमहिंसा
च शारीरं तप तन्मतम् ।
मत्स्मृतिर्मनसो
रोधो मानसं तप एव तत् ।।),
२.२४५.५७(सत्ययुगी
जनों के तपोधर्मपर होने का
उल्लेख -
तपोधर्मपराः
प्रोक्ताः सत्ययुगिन एव ह ।
यज्ञधर्मपराः प्रोक्तास्त्रेतायुगिन
एव ह ।),
३.२१.६५(तप
व भक्ति में श्रेष्ठता का
प्रश्न :
भक्ति
विना आत्यन्तिक श्रेय प्राप्त
न होने का कथन -
तपसा
न भवेच्छ्रेय आत्यन्तिकं
तपोधनाः ।।….भक्त्या
चात्यन्तिकं श्रेयश्चात्यन्तिकमवाप्स्यथ
।),
३.१०९.६(मूर्धन्य
कर्म के तप होने का उल्लेख ;
मौन
व्रत,
ब्रह्मचर्य
व्रत,
अहिंसा
व्रत आदि तपों व उनके फलों का
वर्णन -
तपः
कर्म हि मूर्धन्यं कर्मणां
भवते सदा । स्वर्गः श्रेष्ठो
हि तपसा लभ्यते कीर्तिसंभृतः
।।),
३.११३.१(विभिन्न
तपों के फलों का वर्णन -
औदार्यं
परमं प्रोक्तं तपो व्ययात्मकं
सदा । धनं दद्याद् वनं दद्याद्
गृहं दद्याच्छुभाश्रयम् ।।),
४.९४(श्रीहरि
का पित्रादि देवगणों के वास
स्थान तपोलोक में गमन,
पूजन
का वर्णन -
तपोलोकं
प्राजगाम तापसानां निवासनम्
।। अर्यमादिकपितॄणां पुण्यस्थानं
परं दिवम् ।),
कथासरित्
७.६.१३(तपोदत्त
ब्राह्मण द्वारा विद्या
प्राप्ति हेतु तप,
इन्द्र
द्वारा ब्राह्मण वेश में सिकता
-
सेतु
के उद्धरण द्वारा विद्या
प्राप्ति हेतु अध्ययन की
अनिवार्यता तथा तप की व्यर्थता
का प्रतिपादन -
स
विद्यासिद्धये तप्तुं तपो
गङ्गातटं ययौ ।।
तत्राश्रितोग्रतपसस्तस्य
तं वीक्ष्य विस्मितः ।),
१७.४.१२५(तपोधन
नामक मुनि का शिष्य के साथ
गौरी वन में आगमन,
भवितव्यतावश
शिष्य द्वारा मुक्ताफलकेतु
को शाप देना,
तपोधन
द्वारा भविष्य का कथन -
अत्रान्तरे
मुनिर्दैवात्तद्गौरीवनमागमत्
।
दृढव्रतेन
शिष्येण सह नाम्ना तपोधनः
।।),
महाभारत
उद्योग ४३.८(तप
की व्याख्या,
केवल
प्रकार के तप की परिभाषा,
तप
के कल्मष ),
४३.११(धृतराष्ट्र
-
सनत्सुजात
संवाद में समृद्ध व असमृद्ध
आदि केवल तप का वर्णन -
निष्कल्मषं
तपस्त्वेतत्केवलं परिचक्षते।
एतत्समृद्धमप्यृद्धं तपो
भवति केवलम् ।।),
शल्य
४८(भरद्वाज
-
पुत्री
श्रुतावती के तप का वृत्तान्त),
शान्ति
११.२१(पक्षी
रूप धारी इन्द्र द्वारा तप
की व्याख्या -
तपः
श्रेष्ठं प्रजानां हि मूलमेतन्न
संशयः। कुटुम्बविधिनाऽनेन
यस्मिन्सर्वं प्रतिष्ठितम्।।),
१४.१४(तप
युक्त ब्राह्मण तथा दण्ड युक्त
क्षत्रिय के शोभा पाने का
श्लोक),
७९.१७(तप
के यज्ञ से भी श्रेष्ठ होने
का उल्लेख ;
तप
के अहिंसा आदि लक्षणों का कथन
-
अहिंसा
सत्यवचनमानृशंस्यं दमो घृणा।
एतत्तपो विदुर्धीरा न शरीरस्य
शोषणम्।।),
१६१(तप
की महिमा ;
अनशन,
संन्यास
आदि के परम तप होने का कथन -
अहिंसा
सत्यवचनं दानमिन्द्रियनिग्रहः।
एतेभ्यो हि महाराज तपो
नानशनात्परम्।। ),
२१७.१७(शारीरिक
व मानसिक तप की परिभाषा -
ब्रह्मचर्यमहिंसा
च शारीरं तप उच्यते । वाङ्मनोनियमः
साम्यं मानसं तप उच्यते ॥),
२२१.३(भीष्म
द्वारा युधिष्ठिर हेतु तप के
वास्तविक स्वरूप का प्रतिपादन
-
त्यागश्च
सन्नतिश्चैव शिष्यते तप
उत्तमम्। सदोपवासी स भवेद्ब्रह्मचारी
सदा भवेत्।।),
२५१.११(दान
का उपनिषत्/सार
तप व तप का त्याग होने का उल्लेख
-
दमस्योपनिषद्दानं
दानस्योपनिषत्तपः।।
तपसोपनिषत्त्यागस्त्यागस्योपनिषत्सुखम्।),
२३२.३१(द्विजातियों
के लिए तप के ही यज्ञ होने का
उल्लेख ),
२७१.३७(तपोरत
ब्राह्मण को दिव्य सिद्धियों
की प्राप्ति -
ततः
प्रहृष्टवदनो भूय आरब्धवांस्तपः।
भूयश्चाचिन्तयत्सिद्धो
यत्परं सोऽभिमन्यते।। ),
२९५.१२(पराशर
गीता के अन्तर्गत तप की प्रशंसा
-
शास्त्रार्थदर्शनाद्राजसंस्तप
एवानुपश्यति।।…),
३०१.६३(तप
दण्ड का उल्लेख -
पुण्यांश्च
सात्विकान्गन्धान्स्पर्शजान्देहसंश्रितान्।
छित्त्वाऽऽशु ज्ञानशस्त्रेण
तपो दण्डेन भारत।।),
३१८.४१(तप
के प्रकृति व अतपा के निष्कल
होने का कथन -
तपास्तु
प्रकृतिं प्राहुरतपा निष्कलः
स्मृतः।। सूर्यमव्यक्तमित्युक्तमतिसूर्यस्तु
निष्कलः।),
३२९.११(तप
की क्रोध से रक्षा करने का
निर्देश -
नित्यं
क्रोधात्तपो रक्षेच्छ्रियं
रक्षेच्च मत्सरात्। विद्यां
मानावमानाभ्यामात्मानं तु
प्रमादतः।।),
अनुशासन
५७.१०(अहिंसा,
दीक्षा,
फलमूल
अशन आदि विभिन्न तपों से प्राप्त
विभिन्न फलों का कथन -
सौभाग्यं
चैव तपसा प्राप्यते भरतर्षभ।।
धनं प्राप्नोति तपसा मौनं
ज्ञानं प्रयच्छति।),
१२१.७(ब्राह्मणत्व
के ३ कारणों में से एक -
तपः
श्रुतं च योनिश्चाप्येतद्ब्राह्मण्यकारणम्।
त्रिभिर्गुणैः समुदितः स्नातो
भवति वै द्विजः।।),
१२२.५(व्यास
-
मैत्रेय
संवाद में तप की प्रशंसा -
अहं
दानं प्रशंसामि भवानपि
तपःश्रुतेः। तपः पवित्रं
वेदस्य तपः स्वर्गस्य साधनम्।।
)
;
द्र.
दीर्घतपा,
प्रतपन,
सत्यतपा,
सुतपा,
सूर्यतपा
। tapa
Comments on Tapa
तप - ब्रह्माण्ड ३.४.१.९२(तपोरति : पौलह, चौथे सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), मत्स्य ९.८(तपोभोगी : तामस मनु के १० पुत्रों में से एक), ९.१७ (तपोद्युति : तामस मनु के १० पुत्रों में से एक), २१.३(तपोत्सुक : ब्रह्मदत्त के प्रसंग में सुदरिद्र ब्राह्मण के ७ पुत्रों में से एक), वायु १००.९०/२.३८.९(तपोजनि : १२वें मन्वन्तर में रोहित वर्ग के १० देवों में से एक), मत्स्य ९.१७(तामस मनु के १० पुत्रों में तपोमूल, तपोधन, तपोरति, तपस्य, तपोद्युति, तप आदि का उल्लेख - अकल्मषस्तथा धन्वी तपोमूलस्तपोधनः। तपोरति तपस्यश्च तपोद्युति परन्तपौ।। तपोभागी तपोयोगी धर्माचाररताः सदा।), ९.१८(तपोयोगी : तामस मनु के १० पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.३५(१२वें मन्वन्तर में तपस्वी, सुतपा, तपोमूर्ति, तपोरति आदि सप्तर्षियों का उल्लेख - तपस्वी सुतपाश्चैव तपोमूर्तिस्तपोरतिः । तपोधृतिर्द्युतिश्चान्यः सप्तमस्तु तपोधनः ।), लक्ष्मीनारायण १.४३१.९२(दुर्वासा - शिष्य तपोव्रत द्वारा तप की अपेक्षा कथा श्रवण का तिरस्कार करने पर पिशाच बनने व सत्यव्रत द्वारा कथा के पुण्य दान से पिशाचत्व से मुक्ति का वृत्तान्त ) । tapa
तपती भविष्य १.७९.७४(सूर्य - पुत्री, संवरण - पत्नी), भागवत ६.६.३९(छाया व सूर्य की ३ सन्ततियों में से एक, संवरण - पत्नी), ८.१३.१०(छाया व सूर्य की ३ सन्ततियों में से एक, संवरण - पत्नी), ९.२२.४(संवरण - पत्नी, कुरु - माता), मत्स्य ११.९(सूर्य व छाया - कन्या, सावर्णि, शनि व विष्टि - भगिनी), ११.३९(सूर्य व छाया - कन्या तपती की नदी रूप में परिणति), वामन २१.३९(ऋक्ष - पुत्र संवरण का सूर्य - पुत्री तपती को देखकर कामासक्त होना, वसिष्ठ द्वारा सूर्य से संवरण हेतु तपती की याचना, सूर्य - प्रदत्त तपती का संवरण से पाणिग्रहण), विष्णु ३.२.४(छाया व सूर्य की ३ सन्तानों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.७५(सूर्य - पुत्री तपती के तट पर स्नानार्थ गए हुए गुरुकुलस्थ बालकों की सन्तापन दैत्य द्वारा हरण की कथा), २.७७.६(तपती तट पर बृहद्वर्चा राजा द्वारा विप्रादि को दान, दान दोष से विप्रादि को कृष्णत्व तथा कद्रूपता प्राप्ति का वृत्तान्त ) । tapati/tapatee
तपन नारद १.६५.२७(तपिनी : रवि की १२ कलाओं में से एक), वा.रामायण ६.४३.९(रावण - सेनानी, गज से युद्ध), कथासरित् ४.३.५६(तपन्तक : वत्सराज - मन्त्री वसन्तक का पुत्र), ६.८.११५(वत्सराज द्वारा नरवाहनदत्त का यौवराज्याभिषेक, वसन्तक - पुत्र तपन्तक को विनोद - मन्त्री बनाने का उल्लेख), १०.२.६७(तपन्तक द्वारा नरवाहनदत्त से चन्द्रश्री व शीलहर वैश्य की कथा द्वारा स्त्री स्वभाव की दुर्गमता का प्रतिपादन ) । tapana
तपस्य ब्रह्माण्ड १.२.१३.११(तप व तपस्य मासों की मन्युमन्त व शैशिर प्रकृति का उल्लेख), भागवत १२.११.४०(तपस्य/फाल्गुन मास में पर्जन्य नामक सूर्य के रथ पर स्थित गणों के नाम), मत्स्य ९.१७(तामस मनु के १० पुत्रों में से एक ) । tapasya
तपस्वी ब्रह्माण्ड १.२.३६.७९(चाक्षुष मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक), १.२.३६.१०६(वही), ३.४.१.९२(तपस्वी काश्यप : १२वें सावर्णि मन्वन्तर के ऋषियों में से एक), भागवत ८.१३.२८(१२वें रुद्रसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), मत्स्य ४.४१(चाक्षुष मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक), विष्णु १.१३.५(मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक), ३.२.३५(१२वें रुद्रसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.४५०.२६(तपस्वियों में वृक्ष की श्रेष्ठता का उल्लेख ), द्र. वंश ध्रुवtapasvi/tapasvee
तपोद्युति द्र. मन्वन्तर ।
तपोधन ब्रह्माण्ड ३.४.१.९२(पौलस्त्य, १२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), मत्स्य ९.१७(तामस मनु के पुत्रों में से एक), वायु २३.१४९/१.२३.१३८(१०वें द्वापर में शिव अवतार भृगु के पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.३५(१२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) । tapodhana
तपोधृति ब्रह्माण्ड ३.४.१.९३(१२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), विष्णु ३.२.३५(भार्गव, १२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) ।
तपोनिष्ठ स्कन्द २.४.३०.४९टीका(तपोनिष्ठ नामक दम्भी ब्राह्मण की कथा), २.७.१४.६(दुर्वासा - शिष्य, कर्म में निष्ठा, पिशाच योनि की प्राप्ति, सत्यनिष्ठ द्वारा उद्धार ) ।
तपोमूर्ति ब्रह्माण्ड ३.४.१.९२(आङ्गिरस, १२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), भागवत ८.१३.२८(१२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), विष्णु ३.२.२७(१०वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ३.२.३५(१२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) ; द्र. मन्वन्तर । tapomoorti/tapomuurti/ tapomurti
तपोरति ब्रह्माण्ड ३.४.१.९२(पौलह, चौथे सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), मत्स्य ९.१७(तामस मनु के १० पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.३५(१२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) ।
तपोलोक भागवत २.५.३९(तपोलोक का विराट् पुरुष के स्तनद्वय में न्यास), वायु ७.३०/१.७.२५(देवों के जन लोक से आकर तपोलोक में स्थित होने व पश्चात् सत्य लोक को जाने के क्रम का कथन), २४.३(वही), ६१.१३२(तपोलोक के अनिवर्तनीय होने का उल्लेख ) । tapoloka
तप्त गरुड २.७.१०२(संतप्तक ब्राह्मण के विष्वक्सेन गण बनने का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१४७(तप्तकुम्भ : नरकों में से एक), ३.४.२.१५६ (तप्तकुम्भ प्रापक कर्मों का कथन), विष्णु २.६.२.१५६(तप्त कुम्भ नरक प्रापक कर्मों का कथन), विष्णु २.६.२(नरकों में से एक), २.६.९(तप्तकुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३७०.४७(नरक में तप्त कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) ।
तम गरुड ३.२४.९४(तमोभिमानी दुर्गा का उल्लेख), गर्ग ५.१८.१०(उद्धव के प्रति कृष्ण - प्रेम विह्वला तमोगुणवृत्तिरूपा गोपियों के उद्गार), नारद १.४२.२९(समुद्र के अन्त में तम व तम के अन्त में जल होने का उल्लेख), १.४४.५३(तम के लक्षण), ब्रह्म २.५२(तम नामक असुर द्वारा प्रमदा रूप धारण कर धन्वन्तरि नृप का तप भङ्ग करना), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१५०(नरकों में से एक), ३.४.३.३३(जन्तु के तम से अभिभूत होने के परिणामों का कथन), ३.४.२४.७५(तिरस्करिणी देवी के वाहन तमोलिप्त विमान का उल्लेख), भविष्य ३.४.२५.२९(ब्रह्माण्ड तम से विभीषण की उत्पत्ति का उल्लेख), भागवत २.५.२३(द्रव्य, ज्ञान व क्रियात्मक तम की उत्पत्ति का कथन), ७.१.८(तम से यक्षों व राक्षसों की वृद्धि का उल्लेख), मत्स्य ४४.८३(तमोजा : असामञ्ज - पुत्र), लिङ्ग २.५.१३५(श्रीमती कन्या की प्राप्ति न होने पर नारद व पर्वत द्वारा अम्बरीष को तम से अभिभूत होने का शाप, विष्णु के सुदर्शन चक्र द्वारा अम्बरीष की तम से रक्षा का वृत्तान्त), वायु १०१.१४९(नरकों में एक तम का नामोल्लेख), १०१.१७९(भूमि के नीचे ७ नरकों में सप्तम तम नरक का उल्लेख), स्कन्द ४.२.७२.६०(तमोघ्नी देवी द्वारा कक्षान्तर की रक्षा), ५.३.१६०.५(मोक्ष तीर्थ में तमहा नदी के पतन से सङ्गम तीर्थ का निर्माण, तमहा के माहात्म्य का कथन), लक्ष्मीनारायण ४.२६.६०(ईश्वराणी - पति, हरिप्रिया - पति आदि की शरण से तम से मुक्ति का कथन ) ; द्र. दीर्घतमा । tama
तमसा देवीभागवत ३.१०.१९(तमसा नदी तट पर देवदत्त द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ), ६.१८(तमसा - यमुना सङ्गम पर लक्ष्मी द्वारा अश्वा रूप में तप, हैहय पुत्र की प्राप्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१३.३०(ऋक्षवान् पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), मत्स्य ११४.२५(ऋक्षवान् पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), वामन ५७.७५(तमसा द्वारा स्कन्द को अद्रिकम्पक नामक गण प्रदान करने का उल्लेख), वायु ४५.१००(ऋक्षवान् पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.७ (तमसा तीर पर वाल्मीकि की पूजा का निर्देश), शिव १.१२.१३(तमसा नदी के द्वादशमुखा होने का उल्लेख), स्कन्द २.८.९.१९(तमसा नदी के तट पर माण्डव्यादि मुनियों के आश्रमों की स्थिति, तमसा में स्नान, दान तथा श्राद्धादि का महत्त्व), वा.रामायण १.२.३(नारद से रामचरित्र का श्रवण कर वाल्मीकि का स्नानार्थ तमसा नदी के तट पर गमन), २.४६(वन गमन के समय राम द्वारा तमसा नदी के तट पर विश्राम ) । tamasaa
तमाल लक्ष्मीनारायण २.३७.५७(श्रीहरि द्वारा वन में धूम्रपानार्थक गृञ्जक व तमाल का सृजन), कथासरित् १२.६.३०(दक्षिण दिक् प्रान्त में तमाल वन वीथिका के होने का उल्लेख ) ।
तम्बु वायु ९६.१७७/२.३४.१७७(शार्ङ्गदेवा व वसुदेव - पुत्र ) ।
तर शिव १.१७.८४(अधर्म महिषारूढ कालचक्र को तरने का कथन), वायु ६८.३९/२.७.३९(तरण्य : प्रवाही के १० देव गन्धर्व पुत्रों में से एक ) ।
तरक्षु लिङ्ग १.२४.६३(१४वें द्वापर में व्यास ) ।
तरङ्ग स्कन्द ५.३.१९८.८३(भारताश्रम में देवी की तरङा नाम से स्थिति), कथासरित् १२.५.३३६(तरङ्गिणी नामक एक नदी ) । taranga
तरन्तुक - अरन्तुक वामन २२.५९(तरन्तुक व अरन्तुक नामक स्थानों के मध्य भाग के समन्तपञ्चक/कुरुक्षेत्र नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ) ।
तरल लक्ष्मीनारायण २.११८.९(सन्तारण द्विज की कन्या तरलिका द्वारा प्रतिदिन नैवेद्य बनाकर श्री विष्णु को अर्पण करना), ४.१०१.११९(कृष्ण - पत्नी तरला की युगलात्मक प्रजा का उल्लेख ) ।
तरस्वी वायु ९६.२५२(सुचारु? व साम्बा - पुत्र ) ।
तरु गरुड २.१०.६२(स्नान वस्त्रों से पतित अम्बु से तरुता प्राप्त पितरों की तृप्ति का कथन)
तरुण कथासरित् ७.६.४६(अजर नृप की वृद्धावस्था दूर करने के व्याज से कुटिल तरुणचन्द्र नामक वैद्य द्वारा नृप के विनाश की कथा ) ।
तर्क भागवत ८.२१.२(शास्त्रों में से एक तर्क का उल्लेख), वामन ९०.४१(निरालम्ब लोक में विष्णु की अप्रतर्क्य नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२१६.२(कुतर्कपुर के निवासी सञ्जयदेव नामक शिल्पकार की भगवान् द्वारा गज से रक्षा की कथा ) । tarka
तर्जनी नारद १.६६.११५(मेषेश की शक्ति तर्जनी का उल्लेख ) ।
तर्पण अग्नि ७२.३९(तर्पण विधि का वर्णन), गरुड १.२१५/२०७(देव, पितर आदि की तुष्टि हेतु तर्पण मन्त्र), नारद १.७६.११५(गणेश के तर्पणप्रिय होने का उल्लेख), १.८०.१२६(तर्पण में उपयोगी १६ द्रव्य, विविध प्रकार के तर्पण तथा फलों का कथन), पद्म १.२०.५५(तर्पण विधि का वर्णन), १.४९.२८(पितृ तर्पण की महिमा), मत्स्य १०२.१४(तर्पण विधि का वर्णन), शिव ५.१२.१(सब जीवों का तर्पण करने से जल के जीवन होने का उल्लेख), स्कन्द ३.१.५१.३८(तर्पण विधि), लक्ष्मीनारायण १.१६०(पत्नीव्रत व दामोदर द्विज द्वारा समस्त सृष्टि के तर्पण का वर्णन ) । tarpana
Short remark on tarpana by Dr. Fatah Singh
ऊपर से आने वाले शुद्ध आप:, प्राणों से ही हम तृप्त होते हैं। उसे ही तर्पण कहते हैं।
तल गरुड २.३२.१०७ / २.२२ (ब्रह्माण्ड में स्थित गुणों की पिण्ड में स्थिति के अन्तर्गत पाद के अधोभाग में तल, पादोर्ध्व में वितल, जानुओं में सुतल, सक्थि देश में महातल, ऊरुओं में तलातल, गुह्यदेश में रसातल तथा कटिप्रदेश में पाताल की स्थिति), ३.२३.३८(श्रीनिवास देह का तलातल आदि लोकों में विभाजन), देवीभागवत ८.१८+(अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल तथा पाताल नामक सात तलों की महिमा का वर्णन), ब्रह्म १.१९(अतल, वितल, नितल, सुतल, तलातल, रसातल और पाताल नामक सात तलों के निवासियों तथा ऐश्वर्यादि का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.२०.११ (तत्वल, सुतल, तलातल, अतल, तल, रसातल तथा पाताल नामक सप्त तल तथा उनके निवासियों आदि का वर्णन), लिङ्ग १.४५.९ (सप्त तलों व उनके निवासियों का वर्णन), वामन ९०.३७ (विभिन्न तलों में विष्णु के नाम, तल में विष्णु का सहस्रचरण नाम), वायु ५०.११ (पृथिवी के सात तलों अतल, सुतल, वितल, गभस्तल, महातल, श्रीतल तथा पाताल के निवासियों आदि का वर्णन), ९९.१२६/२.३७.१२२(तला : रौद्राश्व व घृताची की १० पुत्रियों में से एक), स्कन्द १.२.५० (पाताल आदि सात तलों की शरीर के अङ्गों में स्थिति - पादमूल पाताल व नाभि महीतल), २.२.२५.१४(हस्त तल में नित्य दर्पण की स्थिति होने से ताल होने का कथन), ७.१.३३० (तलस्वामी का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.३३४ (तल की शिव ज्वाला से उत्पत्ति, तल द्वारा महेन्द्र दानव का वध, तल के नृत्य से ब्रह्माण्ड के पीडित होने पर विष्णु द्वारा मल्ल युद्ध में तल का पातन), लक्ष्मीनारायण २.७.५९ (तल राक्षस की पुत्री तलाजा का कपटपूर्ण हृदय से बाल हरि के समीप आगमन, बाल हरि का अपहरण, हरि के स्वरूप पर मोहन, हरि द्वारा तलाजा की मुक्ति का वर्णन), २.१०.२२ (पृथिवी देवी की प्रतिमा में पादों में पाताल, जङ्घा में रसातल, जानु में महातल, सक्थियों में तलातल, सक्थिमूल में सुतल, श्रोणियों में वितल, जघन में अतल तथा गर्भ में भूतल का निर्माण), ३.७.२ (अतल, वितल तथा सुतल के राजा चलवर्मा को तप के फलस्वरूप श्रीहरि की अचला भक्ति की प्राप्ति का वर्णन), ३.७.४९ (सत्यादि लोकों से थुरानन्द का निष्कासन, तप हेतु अतल लोक में गमन, शिव से वर प्राप्ति), ३.८.४९ (सुतल के राजा कपालहेतुक का युद्ध हेतु आगमन, हरि द्वारा सहस्रबाहुओं का कर्तन, कपालहेतुक का हरि - भक्त होकर स्वगृह गमन ) ; द्र. पणितल, पाताल, महातल, । tala
तलक ब्रह्माण्ड १.२.३५.५१(कृत के सामग शिष्यों में से एक), २.३.६६.७० (तलकायन : कौशिक गोत्र के ऋषियों में से एक), भागवत १२.१.२५(हालेय - पुत्र, पुरीष भीरु - पिता, कलियुगी राजाओं का प्रसंग ) ।
तलातल ब्रह्माण्ड १.२.२०.२५(तलातल नामक तृतीय तल में स्थित पुरों के स्वामियों के नामोल्लेख), भागवत २.१.२६(तलातल के विराट् पुरुष की जङ्घा होने का उल्लेख ) ।
तल्प गणेश २.८८.९ (तल्पासुर द्वारा मञ्चक पर सुप्त पार्वती व गणेश का हरण, गणेश द्वारा तल्पासुर का वध ) ।
तस्कर स्कन्द ५.३.१५९.२४ (राज्ञी - गमन से दुष्ट तस्कर बनने का उल्लेख ) ।
ताटका विष्णु ४.४.८८(राम द्वारा विश्वामित्र के याग की रक्षा हेतु ताटका के वध और मारीच को समुद्र में फेंकने का उल्लेख), वा.रामायण १.२४.२६ (मलद व करूष जनपद में ताटका नामक यक्षिणी की स्थिति, सुन्द - पत्नी, मारीच - माता ताटका द्वारा मलद व करूष जनपदों का उत्सादन /उजाडना), १.२५.६ (सुकेतु नामक यक्ष की पुत्री, ब्रह्मा के वरस्वरूप बल प्राप्ति, अगस्त्य मुनि के शाप से यक्षत्व से राक्षसत्व की प्राप्ति), १.२६ (राम द्वारा ताटका का वध ) ; द्र. ताडका । taatakaa/ tatakaa
ताटङ्क ब्रह्माण्ड ३.४.१५.२१ (ललिता को सूर्य व चन्द्रमा द्वारा ताटङ्क की भेंट ) ।
ताड गरुड २.३०.५३/२.४०.५३(मृतक के कर्णों में ताडपत्र देने का उल्लेख ), द्र. तालtaada
ताडका ब्रह्माण्ड २.३.५.३५ (राम द्वारा सुन्द - भार्या व मारीच - माता ताडका के वध का उल्लेख), वायु ६७.७२ (सुन्द - भार्या, ब्रह्मघ्न, मूक व मारीच - माता, राम द्वारा ताडका का वध), हरिवंश १.३.१०२(सुन्द - भार्या, मारीच - माता ) ; द्र. ताटका । taadakaa/ tadakaa
ताडन अग्नि ३४८.५ (एकाक्षराभिधान के अन्तर्गत ताडन अर्थ में क्ष अक्षर के प्रयुक्त होने का उल्लेख ) ।
ताण्डव गरुड ३.२९.५८(हैयंगवीन भक्षण काल में ताण्डव हरि के ध्यान का निर्देश), लिङ्ग १.१०६ (शिव के ताण्डव नृत्य के हेतु का कथन), स्कन्द ६.२५४ (शिव के ताण्डव नर्तन का वर्णन ) । taandava/ tandava
ताप पद्म ६.२२६.७(ताप का अर्थ : चक्र द्वारा विधिपूर्वक तप्त - तापं पुंड्रं तथा नाम कृत्वा वै विधिना गुरुः।..चक्रेण विधिना तप्तं ताप इत्यभिधीयते), ब्रह्म १.१२६.१ (आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक नामक त्रिविध तापों का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.३५.२९(तापनीय : याज्ञवल्क्य के १५ वाजिन् शिष्यों में से एक), वायु ६८.८/२.७.८(तापिन : दनु के १०० पुत्रों में से एक), विष्णु ६.५.१ (आध्यात्मिक आदि त्रिविध तापों का वर्णन), स्कन्द ५.३.१४१(तापेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ; व्याध भीति से हरिणी का जल में मरण, व्याध का अनुताप), लक्ष्मीनारायण १.८३.३२(तापिनी : ६४ योगिनियों में से एक ) । taapa
तापस पद्म ३.१८.१०१ (तापसेश्वर तीर्थ का माहात्म्य - ततो गच्छेत्तु राजेंद्र तापसेश्वरमुत्तमम्। अमोहकमिति ख्यातं पितॄन्यस्तत्र तर्पयेत्॥ ), मत्स्य ११४.४९(दक्षिण के जनपदों में में से एक), १९१.१०२(तापसेश्वर : नर्मदा तटवर्ती तापसेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : मृगी का व्याध के भय से जल में गिरना, स्वर्ग प्राप्ति), वायु ४५.१२९(पश्चिम दिशा के जनपदों में से एक), योगवासिष्ठ ६.२.१८०+ (कुन्ददत्त ब्राह्मण व तापस मुनि का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण ३.५.१ (ब्रह्मा के षष्ठ तापस वत्सर में रुद्र शासनार्थ नारायण के प्राकट्य का निरूपण), ३.४५.२० (तापसों को बदरी नामक लोक की प्राप्ति का उल्लेख ) । taapasa
तापी ब्रह्माण्ड १.२.१६.३२(विन्ध्य पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), मत्स्य ११४.२७(विन्ध्य पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), विष्णु २.३.११(ऋक्ष पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), स्कन्द ५.१.५०.४३ (तापी नदी : शिप्रा माहात्म्य के अन्तर्गत नदियों की उत्तरोत्तर श्रेष्ठता का कथन ) । taapee/ tapi
तामरसा ब्रह्माण्ड २.३.८.७६(भद्राश्व व घृताची की १० अप्सरा पुत्रियों में से एक, अत्रि - पत्नी ) ।
तामस गरुड १.८७.१३ (चतुर्थ तामस मनु के पुत्र, सप्तर्षि, देवगण, भगवदवतार तथा दैत्य नाश आदि का वर्णन), देवीभागवत ८.४.८ (प्रियव्रत - पुत्र, मन्वन्तर अधिपति होने का उल्लेख), १०.८.१७ (चतुर्थ मनु, प्रियव्रत - पुत्र, मन्त्र जप व देवी आराधना से राज्य प्राप्ति), ब्रह्माण्ड १.२.३६.४९ (तामस मनु के पुत्रों के नाम), भागवत ५.१.२८(प्रियव्रत - पुत्र, मन्वन्तर अधिपति प्रियव्रत की अन्य पत्नी से उत्पन्न ३ पुत्रों में से एक - अन्यस्यामपि जायायां त्रयः पुत्रा आसन्नुत्तमस्तामसो रैवत इति मन्वन्तराधिपतयः), ८.१.२७ (चतुर्थ मनु तामस के काल के इन्द्र, सप्तर्षि, देवताओं आदि के नामों का कथन), ८.५.२ (पञ्चम मनु रैवत के तामस के सहोदर होने का उल्लेख), मार्कण्डेय ७१ / ७४.४८ (तामसी योनि को प्राप्त माता से उत्पन्न होने के कारण लोल द्वारा तामस नाम प्राप्ति, मनु बनना, तामस मन्वन्तर के देवता, ऋषि, पुत्रादि का वर्णन), वायु २६.३६(१४ मुखों वाले ओङ्कार के उ स्वर वाले मुख से तामस मनु की उत्पत्ति का उल्लेख - चतुर्थात्तु मुखात्तस्य उकारः स्वर उच्यते। वर्णतस्तु स्मृतस्ताम्रः स मनुस्तामसः स्मृतः ।।), ४५.१३६(पर्वताश्रयी देशों में से एक), ६२.३(६ अतीत मनुओं में से चतुर्थ), १०२.५४/२.४०.५४(सात्त्विक, राजसिक व तामसी वृत्तियों से गुण मात्राओं के प्रवर्तन का वर्णन), विष्णु ३.१.६(६ अतीत मनुओं में चतुर्थ), ३.१.१६(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों, देवों, मनु - पुत्रों आदि का कथन), ३.१.२४(प्रियव्रत द्वारा विष्णु की आराधना से मन्वन्तराधिपति तामस आदि ४ पुत्रों की प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२३५.२६ (बालकृष्ण द्वारा भक्त तामसाक्षि चाण्डाल व उसके परिवार की जल से रक्षा तथा अन्न प्रदान करने का वृत्तान्त), ३.१५५.५९ (चतुर्थ मनु तामस के स्वराष्ट्र व उत्पलावती से जन्म का वृत्तान्त ) । taamasa
तामसी ब्रह्माण्ड ३.४.४४.८८(योगिनी न्यास के अन्तर्गत नाभि चक्र की १० शक्तियों में से एक), भविष्य ३.२.२२.१९ (यज्ञ में हिंसा न करने पर तामसी देवी का नगर में प्रकोप, मोहन द्वारा अष्टक से तुष्टि), वायु २०.२(ओङ्कार की ३ मात्राओं में द्वितीय मात्रा), ४४.१७(केतुमाल देश की नदियों में से एक), ६६.८५/२.५.८६(ब्रह्मा के सात्त्विक, राजसिक व तामसी तनुओं में अन्तर का वर्णन), ८४.१२/२.२२.१२(तामसी पूतना : कलि - पुत्र सद्रम की पत्नी), हरिवंश २.११९.१९ (नारद द्वारा चित्रलेखा को लोकप्रमोहिनी तामसी विद्या प्रदान ; तामसी विद्या ग्रहण कर चित्रलेखा का अनिरुद्ध को द्वारका से शोणित पुर ले जाना), वा.रामायण ७.२५.१० (माहेश्वर यज्ञ के अनुष्ठान के उपरान्त मेघनाद को तामसी नामक माया की प्राप्ति ) । taamasee/ tamasi
तामिस्र ब्रह्माण्ड ३.४.३२.११(तमिस्रा : कालचक्र के षोडश पत्राब्ज पर की शक्तियों में से एक), भागवत ५.२६.७(२८ नरकों में प्रथम तामिस्र का नामोल्लेख), लिङ्ग २.९.३३(द्वेष की तामिस्र व अन्धतामिस्र संज्ञा का उल्लेख ; तामिस्र के १८ व अन्धतामिस्र के १८ भेद होने का उल्लेख), विष्णु १.६.४१(वेदों व यज्ञों की निन्दा करने वालों द्वारा प्राप्त नरकों में से एक), ३.११.१०४(सन्ध्या हेतु न बैठने वालों द्वारा तामिस्र नरक की प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द २.१.१२.१० (२८ नरकों में से एक ; वित्त, अपत्य व कलत्र हर्त्ता को तामिस्र नरक की प्राप्ति), ५.३.१५५.८८ (भार्या त्याग से तामिस्र नरक प्राप्ति का उल्लेख ) । taamisra
ताम्बूल गरुड ३.२९.६३(ताम्बूल काल में प्रद्युम्न के ध्यान का निर्देश), पद्म ४.६.३१(देवालय में ताम्बूल भक्षण आदि से गणिका द्वारा स्वर्ग लोक प्राप्ति का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.४३.१३(त्रिपुरा सुन्दरी आदि के पूजा द्रव्यों में ताम्बूल का उल्लेख), भागवत ८.१६.४१(विष्णु की अर्चना में नैवेद्य के पश्चात् ताम्बूल अर्पण का उल्लेख), १०.४२.१३(मथुरा के व्यापारियों द्वारा कृष्ण व बलराम की ताम्बूल आदि से अर्चना का उल्लेख), १०.४८.५(कृष्ण मिलन से पूर्व त्रिवक्रा द्वारा ताम्बूल के व्यवहार का उल्लेख), १०.५३.४८(रुक्मिणी द्वारा विवाह से पूर्व विप्र-स्त्रियों की ताम्बूल आदि से पूजा करने का उल्लेख), १०.८०.२२(कृष्ण द्वारा दरिद्र ब्राह्मण सखा को ताम्बूल प्रस्तुत करने का उल्लेख), १०.८५.३७(बलि द्वारा कृष्ण व बलराम की अर्चना हेतु प्रयुक्त पूजा द्रव्यों में से एक), शिव १.१६.१७ (पूजा में ताम्बूल अर्पण से भोग प्राप्ति का कथन), ५.२०.२३ (पांच राजैश्वर्य विभूतियों में नारी, शय्या, पान, वस्त्रधूपविलेपन तथा ताम्बूल भक्षण की गणना), स्कन्द ३.१.५.१३६(ललिता द्वारा उदयन को ताम्बूली स्रज देने का उल्लेख), ५.१.३०.४३ (सर्पों द्वारा भुक्त भोगों में सात प्रकार के ताम्बूल का उल्लेख), ५.१.६०.५८ (ताम्बूल दान का माहात्म्य), ६.२१० (ऐरावत द्वारा अमृत कमण्डलु भञ्जन से ताम्बूल की उत्पत्ति, वाणी वत्सरक नृप द्वारा ताम्बूल भक्षण व पृथिवी पर ताम्बूल की स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.३३ (ताम्बूल चर्वण से लक्ष्मी में मद के आविर्भाव की कथा), २.२९७.८५(कृष्ण द्वारा कुशला पत्नी के गृह में ताम्बूल भक्षण का विशिष्ट कार्य), कथासरित् २.१.८१ (वसुनेमि नाग द्वारा उदयन को ताम्बूली पान लता व माला आदि प्रदान करने का उल्लेख ) । taamboola/taambuula/ tambula
ताम्र गरुड २.१८.२१(ताम्र उदपात्र दान से प्रपासहस्र दान फल प्राप्ति का उल्लेख - मृतोद्देशेन यो दद्यादुदपात्रं तु ताम्रजम् । प्रपादानसहस्रस्य तत्फलं सोऽश्नुते ध्रुवम् ॥), २.२९.१४(ताम्र व लोह मिश्रण से जन्म होने का उल्लेख - मिश्रितं लोहताम्रं तु तथैव जन्म जायते । तस्मैवं वायुभूतस्य न श्राद्धं नोदक क्रिया ॥), देवीभागवत ५.३.३ (महिषासुर का कोषाध्यक्ष - धनाध्यक्षस्तथा ताम्रः सेनायुतसमावृतः ॥), ५.५.५१ (ताम्र का यम व वरुण से युद्ध- दण्डेन निहतस्ताम्रो यमहस्तोद्यतेन च । न चचाल महाबाहुः संग्रामाङ्गणतस्तदा ॥), ५.११.३१ (देवी के सम्बन्ध में ताम्र द्वारा महिषासुर को परामर्श, अपशकुन का कथन), ५.१४.३५ (ताम्र का देवी से युद्ध, देवी द्वारा वध - ताम्रो मुसलमादाय लोहजं दारुणं दृढम् । जघान मस्तके सिंहं जहास च ननर्द च ॥), पद्म ६.६.२७ (बल असुर के मूत्रज? के ताम्र बनने का उल्लेख - कांस्यं पुरीषं रजतं वीर्यं ताम्रं च मूत्रजम्।), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.४४ (नरक में ताम्र कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), २.३०.८८ (ताम्र व लौह चोरी पर वज्र कुण्ड नरक प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३४(प्रधान वानरों में से एक), २.३.७१.२४७(कृष्ण व सत्यभामा की सन्तानों में से एक), भागवत १०.६१.१८ (ताम्रतप्त/ताम्रपत्र : कृष्ण व रोहिणी के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१७(कृष्ण व सत्यभामा के पुत्रों में से एक), ५८.१८(तडाग आदि निर्माण में ताम्र निर्मित कुलीर, मण्डूक, वायस दान का निर्देश - ताम्रौ कुलीर मण्डूका वायसः शिंशुमारकः।), लिङ्ग १.५०.१० (ताम्राभ पर्वत पर कद्रू- पुत्रों / सर्पों का वास - ताम्राभे काद्रवायाणां विशाखे तु गुहस्य वै।। ), वराह १२९.२१ (ताम्र धातु की भगवत्प्रियता, ताम्र धातु की उत्पत्ति के प्रसंग में गुडाकेश असुर का भगवत्कृपा से ताम्र में रूपान्तरित होना - ततः प्रभृति ताम्रात्मा गुडाकेशो व्यवस्थितः ।।), १८४(ताम्र प्रतिमा प्रतिष्ठापन विधि), वायु २६.३६(१४ मुखों वाले ओङ्कार के उ स्वर वाले मुख से तामस मनु की उत्पत्ति का उल्लेख - चतुर्थात्तु मुखात्तस्य उकारः स्वर उच्यते। वर्णतस्तु स्मृतस्ताम्रः स मनुस्तामसः स्मृतः ।।), ९९.१२६/२.३७.१२२(ताम्ररसा : रौद्राश्व व घृताची की १० पुत्रियों में से एक, आत्रेय प्रभाकर - पत्नी), विष्णु ५.३२.२(ताम्रपक्ष : कृष्ण व रोहिणी के पुत्रों में से एक), शिव २.१.१२.३३ (आदित्यों द्वारा ताम्रमय लिङ्ग की पूजा - लक्ष्मीश्च स्फाटिकं देवी ह्यादित्यास्ताम्रनिर्मितम् ।।), स्कन्द १.१.८.२३(भानु द्वारा ताम्रमय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), ४.२.६१.२०२ (ताम्र वराह का संक्षिप्त माहात्म्य - दक्षिणे भवतीर्थाच्च ताम्रद्वीपादिहागतः ।। नाम्ना ताम्रवराहोस्मि भक्तानां चिंतितार्थदः ।। ), ४.२.८४.६६ (ताम्र वराह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ततस्ताम्रवराहाख्यं तीर्थं चैवातिपावनम् ।। यत्र स्नानेन दानेन न मज्जेदघसागरे ।। ), ४.२.९७.५८ (ताम्र कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य - तदग्रे ताम्रकुंडं च तत्र स्नातो न गर्भभाक् ।।), ५.३.९२.२२ (महिषी दान के अन्तर्गत आयस के खुर तथा ताम्र के पृष्ठाभूषण बनाने का उल्लेख - आयसस्य खुराः कार्यास्ताम्रपृष्ठाः सुभूषिताः ।), लक्ष्मीनारायण १.३७०.७७ (नरक में ताम्र कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), १.५७५.८५ (विष्णु पूजन में ताम्र पात्र की प्रशस्यता, गुडाकेश नामक असुर की वसा, मांसादि की ताम्र स्वरूपता - मम चक्रहतस्यैतद्वसामांसादिकं च यत् । ताम्रं नाम भवेद् देव पवित्रीकरणं शुभम् ।।), ४.८३.५४ (नागविक्रम राजा के ताम्रास्त्र से विद्युदस्त्र का शमन - नागो मुमोच ताम्रास्त्रं विद्युत्तत्र लयं गता ।।), कथासरित् ७.१.८२ (दत्तशर्मा नामक ब्राह्मण का राजा से ताम्र धातु से स्वर्ण निर्माण की युक्ति का निवेदन ) । taamra/ tamra
ताम्र - ब्रह्माण्ड ३.४.३१.६६(ताम्रशाला : ललिता देवी की पुरी में स्थित शालाओं में से एक ताम्रशाला के महत्त्व का कथन), वायु ९६.२३९/२.३४.२३९(ताम्रवक्षा : सत्यभामा व कृष्ण के पुत्रों में से एक ) । taamra
ताम्रचूड अग्नि ३४१.१६ (हस्ताभिनय के अन्तर्गत असंयुत हस्त के २४ भेदों में से एक), स्कन्द ५.२.२१.२७ (कुक्कुटों के राजा ताम्रचूड द्वारा कुक्कुट भक्षी विदूरथ - पुत्र कौशिक को शाप, तदनुसार कौशिक को रात्रि में कुक्कुट योनि की प्राप्ति, कुक्कुटेश्वर लिङ्गार्चन से शाप से मुक्ति का वृत्तान्त - ताम्रचूडोऽथ संक्रुद्धो ददौ शापं दुरात्मने ।।
कौशिकाय क्षयो रोगो भविष्यति भयावहः ।। ), भरतनाट्य ९.१२२(हस्त की ताम्रचूड मुद्रा का लक्षण - मध्यमाङ्गुष्ठसन्दंशो वक्रा चैव प्रदेशिनी । शेषे तलस्थे कर्तव्ये ताम्रचूलकरेऽङ्गुली ॥) । taamrachooda/ taamrachuuda/ tamrachuda
ताम्रपर्ण ब्रह्माण्ड २.३.७.३३७(पुष्पदन्त हस्ती के ताम्रपर्ण ? होने आदि का उल्लेख - पुष्पदन्तो बृहत्साम्नः षड्दन्तः पद्मपुच्छवान् । ताम्र पर्णश्च तत्पुत्राः संघचारिविषाणिनः ॥), मत्स्य ११४.८(भारत के ९ भेदों में से एक), विष्णु २.३.६(भारतवर्ष के ९ भेदों में से एक ) । taamraparna
ताम्रपर्णी गरुड १.६९.२३ (शुक्ति से उत्पन्न मोती के सैंहलिक आदि आठ आकरों में ताम्रपर्ण का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३६(मलय पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), २.३.१३.२४ (ताम्रपर्णी नदी के जल से शङ्ख, मुक्ता आदि की उत्पत्ति), २.३.७१.२४८(कृष्ण व सत्यभामा की पुत्रियों में से एक), ३.४.३३.५२ (इन्द्रनील शाला के अन्दर स्थित नदियों में से एक), भागवत ४.२८.३५(मलय पर्वत की ३ नदियों में से एक), ५.१९.१८(भारत की प्रमुख नदियों में से एक), मत्स्य ११४.३०(महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), वायु ७७.२५ (ताम्रपर्णी नदी के जल से शङ्ख, मुक्ता आदि की उत्पत्ति), ९६.२४०/ २.३५.२४०(कृष्ण व सत्यभामा की पुत्रियों में से एक), विष्णु २.३.१३(मलय पर्वत से प्रसूत मुख्य नदियों में से एक), शिव १.१२.३३ (ताम्रपर्णी सङ्गम का संक्षिप्त माहात्म्य), स्कन्द २.४.२६.७ ( चोल राजा कृत यज्ञों से ताम्रपर्णी नदी के दोनों तटों के शोभायुक्त होने का उल्लेख ) ; द्र. भूगोल । taamraparnee/ tamraparni
ताम्रलिप्त ब्रह्माण्ड १.२.१८.५१(गङ्गा द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), २.३.७४.१९७(कलियुग में देवरक्षित राजाओं द्वारा भोगे जाने वाले जनपदों में से एक), मत्स्य ११४.४५(प्राच्य जनपदों में से एक), १२१.५०(गङ्गा द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), वायु ४५.१२३(प्राच्य जनपदों में से एक), ९९.३८५/२.३७.३७९(देवरक्षित राजाओं द्वारा भोगे जाने वाले जनपदों में से एक), विष्णु ४.२४.६४(देवरक्षितों द्वारा रक्षणीय प्रान्तों में से एक ) । taamralipta
ताम्रलिप्ति कथासरित् २.५.५४ (ताम्रलिप्ति नगरी निवासी गुहसेन व देवस्मिता की कथा), ७.२.३७ (ताम्रलिप्ति नगरी निवासी शीलवती नामक पतिव्रता पत्नी के कर स्पर्श से हाथी के जीवित हो जाने का कथन), ८.१.४२ (सूर्यप्रभ द्वारा ताम्रलिप्ति नगरी निवासी वीरभट नृप की कन्या मदनसेना के वरण का उल्लेख), १२.२.१२५ (ताम्रलिप्ति नगरी वासी धर्मसेन नामक वणिक् तथा तत्पत्नी विद्युल्लेखा का मरते समय राजहंस युगल के दर्शन से राजहंस युगल के रूप में जन्म लेने का कथन), १२.४.३ (ताम्रलिप्ति नगरी वासी राजा चण्डसेन तथा तद् राज्याश्रित सत्त्वशील की कथा), १२.१०.५१ (ताम्रलिप्ति नगरी वासी समुद्रदत्त नामक वणिक् - पुत्र का वसुदत्ता से विवाह तथा वसुदत्ता द्वारा पतिवंचना की कथा), १२.२६.७ (ताम्रलिप्ति नगरी वासी धनपाल वणिक् की पुत्री धनवती से उत्पन्न पुत्र चन्द्रप्रभ की कथा), १२.२८.७ (ताम्रलिप्ति निवासी वणिक् - पुत्र मणिवर्मा तथा अनङ्गमञ्जरी की कथा ) । taamralipti/ tamralipti
ताम्रवर्ण ब्रह्माण्ड १.२.१६.९(भारत के ९ वर्षों में से एक), वायु ३८.८(ताम्रवर्ण व पतङ्ग शैलों के बीच स्थित सरोवर का कथन), ४५.७९(भारत के ९ वर्षों में से एक), ४५.१०५(ताम्रवर्णा : मलय पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), ६९.२२१/२.८.२१५(पुष्पदन्त दिग्गज - पुत्र?) taamravarna
ताम्रा
ब्रह्माण्ड २.३.३.५६(दक्ष
-
पुत्रियों
में से एक,
कश्यप
-
पत्नी),
२.३.७.४४५
(ताम्रा
सर्ग /वंश
वर्णन),
२.३.७.४४५(पुलह
-
पुत्री?
ताम्रा
से उत्पन्न पुत्रियों की प्रजा
का वर्णन
-
षट्कन्यास्त्वभिविख्यातास्ताम्रायाश्च
विजज्ञिरे ॥ गृध्री भासी शुकी
क्रौञ्ची श्येनी च धृतराष्ट्रिका
।),२.३.७.४६८
(ताम्रा
की घातशीला प्रकृति का उल्लेख
-
वाहशीला
तु विनता ताम्रा वै घातशीलिनी
।),
भागवत
६.६.२६(कश्यप
-
पत्नियों
में से एक,
श्येन,
गृध्र
आदि की माता
-
ताम्रायाः
श्येनगृध्राद्या मुनेरप्सरसां
गणाः।),
मत्स्य
६.२(कश्यप
की १३ पत्नियों में से एक),
६.३०
(मारीच
कश्यप व ताम्रा की शुकी आदि
६ कन्याओं के नाम
-
षट्कन्या
जनयामास
ताम्रा
मारीचबीजतः।
शुकी
श्येनी
च
भासी
च
सुग्रीवी
गृध्रिका
शुचिः।।),
४६.१६
(आनकदुन्दुभि
-
भार्या,
सहदेव
– माता
-
सहदेवस्तु
ताम्रायां जज्ञे शौरिकुलोद्वहः।),
१७१.२९
(दक्ष
प्रजापति की १२ कन्याओं में
से एक,
कश्यप
-
भार्या),
१७१.६०(ताम्रा
के पुण्या अप्सराओं की माता
होने का उल्लेख
-
ताम्रा
त्वप्सरसां माता पुण्यानां
भारतोद्भव!
।।),
वायु
६६.५४/२.५.५५(दक्ष
-
पुत्री,
कश्यप
-
पत्नी),
६९.३२५/२.८.३१६(पुलह
-
पुत्री
ताम्रा से उत्पन्न सर्ग का
वर्णन :
श्येनी,
भासी,
क्रौञ्ची,
धृतराष्ट्री
तथा शुकी की सृष्टि आदि
-
बह्वन्यास्त्वभिविख्यातास्ताम्रायाश्च
विजज्ञिरे
॥
श्येनी
भासी
तथा
क्रौञ्ची
धृतराष्ट्री
शुकी
तथा।),
विष्णु
१.१५.१२५(काश्यप
-
भार्याओं
में से एक),
१.२१.१५
(कश्यप
-
भार्या,
पुत्रियों
के वंश का वर्णन )
।
taamraa
ताम्राभ वायु ३६.२३(दक्षिण के पर्वतों में से एक), ३९.५४(ताम्राभ पर्वत पर काद्रवेय तक्षक के पुर होने का उल्लेख - ताम्राभे काद्रवेयस्य तक्षकस्य पुरोत्तमम् ।।) ।
तार पद्म ३.३१.१८३ (शाकुनि व रेवती के ९ पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.१.४४.१९(तार के खर्वट से युद्ध का उल्लेख), वा.रामायण १.१७.११ (वानर, बृहस्पति का अंश), ६.५८.२३ (राक्षस - वानर युद्ध में तार नामक वानर द्वारा प्रहस्त - सचिव कुम्भहनु का वध), ७.३४.४ (वाली - मन्त्री ) ; द्र. सुतार । taara
तारक गणेश १.८३.६ (शिव के वरदान से अवध्य बने तारक के वध हेतु देवों के उद्योग का वर्णन), देवीभागवत ७.३१.९ (ब्रह्मा के वर के फलस्वरूप तारक नामक असुर की मात्र शिव - पुत्र द्वारा ही वध्यता का उल्लेख), पद्म १.४०- १.४२ (वज्राङ्ग व वराकी - पुत्र, देवों से युद्ध, तारक द्वारा देवों की पराजय), १.६९ (स्कन्द द्वारा तारक / तारेय का वध), ब्रह्म २.२.४ (तारक नामक असुर से त्रस्त देवों का विष्णु के समीप गमन, विष्णु सहित देवों की पुन: शिव से तारक के त्रास से उद्धार हेतु प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.१.५.३९(तारकादि ८ शक्तिवधों का कथन), १.२.२०.२६(तीसरे तल में तारक के भवन का उल्लेख), २.३.६.७(दनु के प्रधान पुत्रों में से एक), ३.४.११.७ (तारक दानव द्वारा देवों का पीडन, देवों द्वारा तारक वध हेतु उपाय), ३.४.३०.३९ (भण्डासुर - मित्र, कुमार द्वारा वध), ३.४.३०.१०३(गुह द्वारा तारक वध पर इन्द्र द्वारा स्वपुत्री देवसेना को गुह को प्रदान करने का कथन), भविष्य ३.३.१.२९ (कर्ण का अवतार), ३.३.१७.४ (कर्ण का अंश, पृथ्वीराज - पुत्र), ३.३.२६.९७ (कर्णांश, तारक द्वारा रणजित् का वध), ३.३.३१.६० (कितव दैत्य द्वारा तारक का हरण, सुखखानि द्वारा कितव का वध), ३.३.३२.२०६ (ब्रह्मानन्द रूप धारी वेला द्वारा तारक का वध), ४.६२.१ (उल्का नवमी का तारक - आर्ति नाशक रूप में उल्लेख), ४.६५ (तारक द्वादशी व्रत का माहात्म्य : कुशध्वज का ब्रह्महत्या के कारण क्षुद्र योनियों में जन्म, व्रत से मुक्ति), ४.९३.३ (तारक असुर द्वारा देवों का पीडन, देवों के पूछने पर ब्रह्मा द्वारा शिव - पुत्र द्वारा तारक के वध का कथन), मत्स्य ६.१९(दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक), ६१.४(अग्नि व वायु से सङ्ग्राम में पलायन करके समुद्र में छिपने वाले असुरों में से एक), १२८.३४, ५६(सूर्य की रश्मियों के तारक आदि होने का उल्लेख), १२९.५(मय के साथ तप करने वाले ३ दैत्यों में से एक), १३०.७ (तारक द्वारा त्रिपुर के लौहमय भाग की रक्षा का उल्लेख), १३१.२२(तारक की मय के पार्श्व में स्थिति का उल्लेख), १३६.३५ (त्रिपुर ध्वंस प्रकरण में नन्दि व तारक का युद्ध), १३६.६७(तारक द्वारा शिव के रथ के सारथी ब्रह्मा पर प्रहार का कथन), १३८.३५ (नन्दी द्वारा तारक का वध), १४६+ (वज्राङ्ग व वराङ्गी से तारक की उत्पत्ति, तप, ब्रह्मा से वर प्राप्ति, देवों से युद्ध, वध आदि), १५३.१५९ (तारक का देवगणों से युद्ध, तारक द्वारा देवों का बन्धन व मुक्ति), १६० (तारक का कुमार से युद्ध व मृत्यु), १७३.९ (तारक के रथ का वर्णन), लिङ्ग १.७१.८ (विद्युन्माली, तारकाक्ष व कमलाक्ष - पिता), वायु ५०.२६(तृतीय तल में तारक असुर के पुर का उल्लेख), ६८.७/२.७.७(दनु के प्रधान पुत्रों में से एक), ९१.९८/२.२९.९४ (कौशिक गोत्र के ऋषियों में से एक), १०८.३७/२.४६.४०(गया में तारक ब्रह्म के माहात्म्य का कथन), विष्णु १.२१.५(दनु के प्रधान पुत्रों में से एक), शिव २.३.१५+ ( वज्राङ्ग व वराकी - पुत्र, तारक उत्पत्ति के समय अनर्थ सूचक उत्पात, तारक के तप से देवों को भय प्राप्ति, ब्रह्मा से वर प्राप्ति के फलस्वरूप तारक की केवल शिव - पुत्र द्वारा वध्यता, भयत्रस्त देवों द्वारा तारक को स्व स्व ऐश्वर्य प्रदान करना, त्रस्त देवों का ब्रह्मा से स्वदुःख निवेदन, ब्रह्मा कृत सान्त्वना तथा तारक वध के उपाय का वर्णन), २.४.१+ (तारकासुर वध हेतु कुमार का जन्म, कुमार की अध्यक्षता में देवसेना का युद्धार्थ प्रस्थान, महीसागर सङ्गम पर देव- दानवों का युद्ध, वीरभद्र व हरि से तारक का युद्ध, ब्रह्मा की आज्ञा से कुमार का तारक से युद्ध, कुमार द्वारा तारक के वध का वर्णन), स्कन्द १.१.२० (नमुचि - पुत्र, वर प्राप्ति), १.१.२८ (तारक वध हेतु कार्तिकेय की उत्पत्ति, नारद द्वारा देवों की विजय तथा दैत्यों की पराजय रूप भविष्य का कथन), १.२.१५ (वज्राङ्ग व वराङ्गी - पुत्र, माता को इन्द्र द्वारा दिए गए त्रास का प्रतिशोध लेने के लिए तारक की उत्पत्ति), ३.३.२० (अमात्य - पुत्र, रुद्राक्ष में रुचि, पूर्वजन्म में वैश्या के आधीन कुक्कुट), ४.२.५३.१९ (तारकेश्वर लिङ्ग की महिमा), ४.२.५३.२१ (काशी में तारकेश्वर लिङ्ग की स्थापना व संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६९.१५३ (तारकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.१८.९ (तारक नामक दैत्येन्द्र द्वारा देवों को त्रास, तारक वधार्थ शिव - पुत्र की उत्पत्ति), ६.७० (हिरण्यकशिपु- पुत्र, तारक वधार्थ स्कन्द के जन्म की कथा), ७.१.१२५.६ (शिव - सुत षण्मुख द्वारा तारक - वध का कथन), हरिवंश १.२५.३५ (बृहस्पति - भार्या तारा का चन्द्रमा द्वारा बलात् अपहरण होने पर देव - दानव संग्राम की तारकामय संग्राम नाम से प्रसिद्धि), १.४२ (तारकामय संग्राम के अन्तर्गत देव – दानवों का युद्ध, दानवों का नाश, विष्णु द्वारा देवों को अभय प्रदान का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.९९ (तारक का कार्तिकेय से युद्ध व मृत्यु), १.१०० (वज्राङ्ग व वराङ्गी से तारक की उत्पत्ति, तप), १.३०५.२५(पुत्र व ज्ञान की तारक संज्ञा), २.८०.२० ( तारकायन नामक महर्षि द्वारा भागवती राजा बलेशवर्मा को ईश्वर दर्शन हेतु ईश मन्त्र प्रदान करना), ३.१६४.७२ (१२वें रुद्रसावर्णि मन्वन्तर में तारक नामक असुर के वध हेतु श्रीहरि द्वारा नपुंसक अवतार ग्रहण करना), ३.२३१ (तारकादर्श नामक शूलीप्रद / जल्लाद की श्रीहरि भक्ति से अभ्युदय व मोक्ष की कथा), ४.१०१.८७ (श्रीकृष्ण - पत्नी गङ्गा के युगलापत्य में पुत्र का नाम ) । taaraka/ taraka
तारका देवीभागवत १२.६.७१ (गायत्री सहस्रनामों में से एक ) ।
तारकाक्ष शिव २.५.१.८ (तारकासुर के तीन पुत्रों में से ज्योष्ठ पुत्र, मय द्वारा तारकाक्ष हेतु स्वर्णमय नगर का निर्माण ) ।
तारकामय ब्रह्माण्ड २.३.५.३२(तारकामय सङ्ग्राम में हिरण्याक्ष - पुत्रों के हत होने का कथन), भागवत ९.१४.४(तारा हरण के कारण घटित तारकामय सङ्ग्राम का वृत्तान्त), मत्स्य ४७.४३(१२ देवासुर सङ्ग्रामों में पञ्चम), १२९.१६ (तारकामय सङ्ग्राम में हत, ताडित असुरों द्वारा सुरक्षा हेतु त्रिपुर दुर्ग बनाना), १७२.१०(तारकामय सङ्ग्राम में देवों के हारने पर विष्णु द्वारा दैत्यों के नाश का वर्णन), वायु ६७.६९/२.६.६९(हिरण्याक्ष - पुत्रों के तारकामय सङ्ग्राम में हत होने का उल्लेख), ७०.८१/२.९.८१(तारकामय सङ्ग्राम में लोक के अनावृष्टि से हत होने पर वसिष्ठ द्वारा तप से प्रजा को धारण करने का कथन), ९०.३३/ २.२८.३३(चन्द्रमा द्वारा तारा हरण के कारण देव - दानव तारका मय सङ्ग्राम का कथन), विष्णु ४.६.१६(तारा हरण के कारण तारकासुर सङ्ग्राम का कथन ) । taarakaamaya
तारा अग्नि १२१.५९ (जन्मकुण्डली में तारा विचार), १३२.१४ (तारा चक्र / नक्षत्र द्वारा फल विचार), १४६.१६(वैष्णवी कुल में उत्पन्न देवियों में से एक), गरुड ३.८.४(तारा द्वारा हरि स्तुति), ३.२८.५१(शची का अवतार, वालि व सुग्रीव – भार्या, चित्राङ्गदा से तादात्म्य), देवीभागवत १.११.५ (बृहस्पति - भार्या, चन्द्रमा द्वारा तारा का उपभोग, बुध उत्पत्ति प्रसंग), ७.३०.७६ (किष्किन्धा पर्वत पर देवी की तारा नाम से स्थिति), नारद १.८५.३५ (सरस्वती - अवतार, तारा मन्त्र व विधान का वर्णन), पद्म १.१२ (चन्द्र द्वारा बृहस्पति - पत्नी तारा का हरण, तारा से बुध की उत्पत्ति का प्रसंग), ब्रह्म १.७.२० (चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति की पत्नी तारा के हरण का प्रसंग), २.८२ (चन्द्रमा के बन्धन से मुक्ति पर तारा द्वारा शुद्धि हेतु गौतमी में स्नान), ब्रह्मवैवर्त्त २.५८ (चन्द्रमा की तारा पर आसक्ति, अपहरण तथा रमण का वर्णन), २.६१ (बृहस्पति - शिष्यों द्वारा तारा का अन्वेषण, ब्रह्मा का शुक्र गृह गमन, बृहस्पति को तारा की प्राप्ति, तारा से बुध नामक कुमार का जन्म), ४.८०+ (तारा द्वारा हरणकर्त्ता चन्द्रमा को यक्ष्मा का शाप, चन्द्र - तारा आख्यान), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१८(ब्रह्मवादिनी अप्सराओं में से एक तारा का उल्लेख), २.३.७.२१९ (सुषेण - पुत्री, वाली - भार्या, अङ्गद - माता), २.३.६५.२९(राजसूय के पश्चात् सोम द्वारा तारा हरण के कारण तारकामय देवासुर सङ्ग्राम का वृत्तान्त), ३.४.१.८५ (१२वें मन्वन्तर में हरितगण के १० देवों में से एक), ३.४.३५.१२ (मन:शाला में तरणि/नौका शक्ति तारा व उसकी परिचारिकाओं के महत्त्व का वर्णन), भविष्य ४.९९.५ (प्रजापति - कन्या, वृत्र - अनुजा, बृहस्पति - भार्या, चन्द्रमा द्वारा हरण का वृत्तान्त), भागवत ९.१४.४ (बृहस्पति - पत्नी, चन्द्रमा द्वारा हरण, ब्रह्मा के आदेश से तारा का पुन: बृहस्पति के पास आगमन, बुध का जन्म), मत्स्य १२.५४(तारापीड : चन्द्रावलोक - पुत्र), १३.४६(किष्किन्धा पर्वत पर सती की तारा नाम से स्थिति का उल्लेख), २३.३०(राजसूय के पश्चात् सोम द्वारा तारा हरण के कारण तारकामय देवासुर सङ्ग्राम का वृत्तान्त), २४.२ (तारा से बुध की उत्पत्ति), लिङ्ग २.१३.१६(रोहिणी : सोम रूपी शिव की पत्नी, बुध - माता), वराह ३२.१० (चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति - भार्या तारा को ग्रहण करने की इच्छा, धर्म की उद्विग्नता का वर्णन), वायु २७.५६(महादेव की अष्टम मूर्ति चन्द्रमा व उसकी पत्नी रोहिणी से बुध पुत्र का उल्लेख), ९०.२८ (बृहस्पति - पत्नी, चन्द्रमा द्वारा हरण, चन्द्रमा व तारा से बुध का जन्म), १००.८९/२.३८.८९(१२वें मन्वन्तर में हरित वर्ग के १० देवों में से एक), विष्णु ४.६.१०(सोम द्वारा तारा के हरण के कारण तारकामय सङ्ग्राम का वृत्तान्त , सोम व तारा - पुत्र बुध का वृत्तान्त), शिव ५.४७.१५(उग्रतारा : गौरी के शरीर से नि:सृत कुमारी के कौशिकी, उग्रतारा, महोग्रतारा, मातङ्गी प्रभृति अनेक नाम), स्कन्द ४.१.१५.६२(तारा का रोहिणी से साम्य?), हरिवंश १.२५.३० (बृहस्पति - भार्या, चन्द्रमा द्वारा हरण, बुध नामक पुत्र की उत्पत्ति), स्कन्द ४.१.१५ (तारा से बुध की उत्पत्ति का आख्यान), ४.१.२७.१६७ (गङ्गा का एक नाम), ४.१.२९.७३ (गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.५८.६१ (तारागण : शिव रथ में कील बनना), ५.३.१९८.८४ (किष्किन्ध पर्वत पर देवी की तारा नाम से स्थिति), वा.रामायण ४१५.६ (वाली - पत्नी, पति को सुग्रीव से युद्ध न करने का परामर्श), ४.१९+ (सुषेण - पुत्री, वाली की मृत्यु पर विलाप), ४.३३+ (तारा द्वारा लक्ष्मण के क्रोध की शान्ति का उद्योग), लक्ष्मीनारायण १.७९.१८ (सोम द्वारा बृहस्पति - पत्नी तारा का हरण, तारा से बुध की उत्पत्ति), १.४४५ (चन्द्र द्वारा बृहस्पति - पत्नी तारा का हरण, तारा का शाप प्रदान हेतु तत्पर होना, आकाशवाणी द्वारा तारा की शाप - प्रदान से निवृत्ति, चन्द्र व तारा का शुक्राचार्य की शरण में गमन, तारा प्राप्ति हेतु बृहस्पति की मन्त्रणा का वर्णन), १.४४५.३१(श्व दम्पत्ति के मिथुन में विघ्न से प्राप्त शाप के परिणाम स्वरूप तारा के चन्द्रमा से संयोग का कथन), १.४४६.४४(चन्द्रमा द्वारा तारा हरण के संदर्भ में सत्य तारा के सूर्य में तिरोहित होने तथा छाया तारा के चन्द्रमा को प्राप्त होने का कथन ) ।
संदर्भ : प्रजापतिर् उषसं स्वां दुहितरं बृहस्पतये प्रायच्छत्। तस्या एतत् सहस्रम् आश्विनं वहतुम् अन्वाकरोत्। - जै.ब्रा. १.२१३ Taaraa/tara
ताराक्ष स्कन्द ४.१.१२ (ताराक्ष भिल्ल द्वारा तीर्थयात्रियों को लूटना ) ।
तारादत्ता कथासरित् ६.१.५५ (कलिङ्गदत्त नृप की पत्नी), ६.१.२११ (कलिङ्गदत्त - पत्नी तारादत्ता के गर्भ धारण का उल्लेख), ६.३.३३ (कलिङ्गसेना द्वारा माता तारादत्ता व पिता कलिङ्गदत्त से सखी सोमप्रभा का परिचय कराने का उल्लेख ) । taaraadattaa/ taradattaa
तारावली कथासरित् ८.१.५६ (सूर्यप्रभ द्वारा वज्रसार नगरी निवासी राजा रम्भ की तारावली नामक कन्या के अपहरण का उल्लेख), १२.२.९० (तारावली नामक विद्याधर - कन्या की रङ्कुमाली नामक विद्याधर - कुमार पर अनुरक्ति, विवाहादि का कथन), १२.१८.४ (धर्मध्वज नृप की तीन रानियों में से एक, चन्द्रकिरणों के स्पर्श से तारावली के शरीर में दाह की उत्पत्ति होने का कथन), १८.४.८२ (विक्रमादित्य द्वारा गन्धर्वराज - कन्या तारावली के वरण का उल्लेख ) । taaraavalee/ taravali
तारावलोक कथासरित् १६.३.११(मनुष्य होते हुए भी तारावलोक द्वारा विद्याधरों के चक्रवर्ती पद प्राप्त करने का वृत्तान्त ) ।
तारेय पद्म १.६९ (स्कन्द द्वारा तारेय का वध ) ।
तार्क्षी मार्कण्डेय २.३१ (कन्धर व मदनिका - सुता, द्रोण - भार्या, कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में तार्क्षी की मृत्यु , तार्क्षी - सन्तति रूप में चटकोत्पत्ति का प्रसंग ) । taarkshee
तार्क्ष्य अग्नि १३३.१९ (तार्क्ष्य मन्त्र चक्र द्वारा बाधा नाश, तार्क्ष्य का स्वरूप), २९५ (सर्प दंश चिकित्सा हेतु तार्क्ष्य मन्त्र व तार्क्ष्य ध्यान का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१८ (तार्क्ष्य सेनानी व अरिष्टनेमि ग्रामणी की सूर्य रथ में स्थिति), भागवत ६.६.२२(तार्क्ष्य/कश्यप की विनता आदि ४ पत्नियों से उत्पन्न पुत्रों का कथन), १२.११.४१(सह/मार्गशीर्ष मास में सूर्य रथ पर तार्क्ष्य यक्ष की स्थिति का उल्लेख, पुष्य में अरिष्टनेमि), वायु ५२.१८(हेमन्त में सूर्य रथ के साथ उपस्थित सेनानी तार्क्ष्य का उल्लेख), विष्णु २.१०.१३(मार्गशीर्ष मास में सूर्य रथ पर तार्क्ष्य यक्ष की स्थिति का उल्लेख), शिव २.१.१६.२७(दक्ष द्वारा पररूप तार्क्ष्य को ४ कन्याएं पत्नी रूप में देने का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१६६ (शतरुद्रिय प्रसंग में तार्क्ष्य द्वारा ओदन लिङ्ग की हर्यक्ष नाम से उपासना), १.२.१३.१८८ (शतरुद्रिय प्रसंग में तार्क्ष्य द्वारा पृथु लिङ्ग की सहस्रचरण नाम से अर्चना), ४.२.५८.४४ (तार्क्ष्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), कथासरित् १०.४.१९४ (तार्क्ष्य /गरुड के निवेदन पर श्रीहरि द्वारा समुद्र को सुखाकर टिट्टिभ - दम्पत्ति को अण्डे लौटाने की कथा ) । taarkshya
तार्क्ष्योपरि टिप्पणी
ताल
गर्ग २.८/२.११
(तालवन
में बलराम द्वारा धेनुकासुर
के उद्धार की कथा),
पद्म
१.२८.३०
(ताल
वृक्ष :
अपत्य
नाशक),
४.२१.२६
(कार्तिक
व्रत में ताल भोजन से शरीर नाश
का उल्लेख),
६.१८२
(भ्रष्ट
ब्राह्मण भावशर्मा का मृत्यु
पश्चात् ताल वृक्ष बनना,
गीता
के अष्टम अध्याय श्रवण से
मुक्ति-
किं
तद्ब्रह्म
किमध्यात्मं
किं
कर्म
पुरुषोत्तम
।
अधिभूतं
च
किं
प्रोक्तमधिदैवं
किमुच्यते
॥),
ब्रह्माण्ड
१.२.७.९७
(अङ्गुष्ठ
से मध्यमा अङ्गुलि तक के प्रदेश
का ताल नाम?),
१.२.१६.५०(तालशाल
:
भारत
के उत्तर के राज्यों में से
एक),
१.२.१८.८६(चक्षु
नदी द्वारा प्लावित जनपदों
में से एक),
३.४.२.१४६(नरकों
में से एक),
भागवत
१०.१५.२२(कृष्ण
व बलराम द्वारा तालवन में
धेनुकासुर के वध का वृत्तान्त),
मत्स्य
२५८.१६(विष्णु
की मूर्ति की पीठिका में नव
ताल प्रमाण के देव,
दानव,
किन्नर
बनाने का निर्देश),
लिङ्ग
१.४९.६०
(तालवन
में इन्द्र,
उपेन्द्र
तथा मुख्य सर्पों की स्थिति
का उल्लेख),
वराह
७९.२०(महानील
व ककुभ नामक पर्वतों के मध्य
स्थित तालवन का वर्णन),
वायु
८.१०३/१.८.९८(अङ्गुष्ठ
से मध्यमा अङ्गुलि तक के दैर्घ्य
के ताल नाम का उल्लेख),
१०१.१४६/२.३९.१४६(नरकों
में से एक),
१०१.१५३/२.३९.१५३(ताल
नरक प्रापक कर्मों का कथन),
विष्णु
२.६.२(नरकों
में से एक ताल का उल्लेख),
५.८.१(कृष्ण
व बलराम द्वारा तालवन में
धेनुकासुर के वध का वृत्तान्त),
विष्णुधर्मोत्तर
३.१०६.३५
(ताल
:
संकर्षण
का केतु ,
आवाहन
मन्त्र
-
तालमावाहयिष्यामि
केतुं
संकर्षणस्य
तु
।।
एहि
मे
भगवँस्ताल
समस्तभुवनेश्वर
।।),
स्कन्द
२.२.२५.१४(हस्त
तल में नित्य दर्पण की स्थिति
होने से ताल होने का कथन
-
पश्येच्चराचरं
विश्वं
ज्ञानादश(थ?)
सुनिर्मले
।।
स्थितो
हस्ततले
नित्यं
निर्मलस्तस्य
दर्पणः
।।),
४.२.७०.७७
(ताल
जङ्घेश्वरी देवी का संक्षिप्त
माहात्म्य
-
संगमेश्वर
लिंगस्य
दक्षिणे
विकटाननाम्
।।
तालजंघेश्वरीं
नत्वा
न
विघ्नैरभिभूयते
।।),
६.२५२.२५(चातुर्मास
में सप्तर्षियों की महाताल
वृक्ष में स्थिति का उल्लेख
-
सप्तर्षीणां
महाताला
बहुलश्चामरैर्वृतः
॥),
हरिवंश
२.१३.३
(तालवन
:
बलराम
द्वारा तालवन में धेनुकासुर
का वध),
वा.रामायण
४.४०.५३(पूर्व
दिशा में शेषनाग की ताल के
चिह्न से युक्त तीन शिरों वाली
काञ्चन केतु /ध्वज
का कथन
-
त्रिशिराः
काञ्चनः
केतुस्तालस्तस्य
महात्मनः ),
लक्ष्मीनारायण
१.४४१.८७
(वृक्षरूप
धारी कृष्ण के दर्शन हेतु
सप्तर्षियों के महाताल वृक्ष
होने का उल्लेख),
२.१६.५७
(शत्रुञ्जय
पर्वत पर सौराष्ट्र के कङ्कताल
नामक दैत्यों द्वारा श्रीहरि
पर आक्रमण,
श्रीहरि
द्वारा गरुड पर आरूढ होकर
विराट रूप धारण कर सुदर्शन
चक्र आदि से दैत्यों का वध
आदि),
२.१७.३
(कङ्कताल
दैत्यों की पत्नियों का श्रीहरि
पर वृक्ष की शाखाओं से आक्रमण,
श्रीहरि
द्वारा काललक्ष्मी रूप धारण
कर दैत्य -
पत्नियों
का निग्रह),
३.१४३.७९(चार
युगों में मनुष्यों के ताल
मानों का कथन
-
अष्टताला
मानवा
वै
सत्ये
भवन्ति
चोच्छ्रिताः
।
त्रेतायां
ते
षट्टालोर्ध्वा
द्वापरं
चतुरूर्ध्वकाः
।।),
कथासरित्
१.५.२०
(सरस्वती
के आदेशानुसार शकटाल का तालवृक्ष
पर बैठकर राक्षसी व बच्चों
के परस्पर वार्तालाप द्वारा
मृत मत्स्य के हास्य का कारण
जानने का प्रसंग )
।
taala
Comments on Taala
ताल - ब्रह्माण्ड ३.४.२२.२२(भण्डासुर द्वारा शून्यक नामक पुर की ४ दिशाओं में द्वारों पर तालुजङ्घक, तालभुज, तालग्रीव व तालकेतु की नियुक्ति का कथन), मत्स्य १९६.२२(तालकृत् : आर्षेय प्रवरों के संदर्भ में तालकृत् ऋषि का उल्लेख), वायु ६१.४४(तालक : कृत के २४ सामग शिष्यों में से एक ) । taala
तालकेतु ब्रह्माण्ड ३.४.२२.२५ (भण्डासुर - सेनानी, उत्तर द्वार का रक्षक), मार्कण्डेय २० / २२.६ (पातालकेतु - अनुज, ऋतध्वज का तालकेतु दानव के मायावी आश्रम में आगमन, मुनि वेषधारी तालकेतु द्वारा दक्षिणा प्रदान हेतु ऋतध्वज के कण्ठहार का ग्रहण, तालकेतु द्वारा ऋतध्वज की मृत्यु का मिथ्या समाचार प्रसारित करना), वायु ६८.१६ (दनु के मनुष्यधर्मा पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१.९५(बलराम की तालकेतु संज्ञा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३९२.९० (ऋतध्वज द्वारा यमुना तट पर मुनि वेषधारी कपटी तालकेतु दैत्य का दर्शन, तालकेतु द्वारा वंचन ) । taalaketu
तालग्रीव ब्रह्माण्ड ३.४.२२.२४ (भण्डासुर - सेनानी, प्रतीची द्वार का रक्षक ) ।
तालजङ्घ कूर्म १.२३ (जयध्वज - पुत्र, १०० तालजङ्घों का पिता), गणेश २.६३.२७ (देवान्तक असुर - सेनानी तालजङ्घ का प्रथिमा / अणिमा सिद्धि से युद्ध), नारद १.७.३२(हैहयों व तालजङ्घों द्वारा अहंकारी बाहु नृप को पराजित करने का कथन), १.१२.१३४ (जयध्वज - पुत्र, १०० तालजङ्घों का पिता), पद्म ६.३८.६७(तालजङ्घ - पुत्र मुर का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड २.३.४७.६६ (जयध्वज - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पौत्र, वीतिहोत्र आदि तालजङ्घा: संज्ञा वाले पुत्रों के पिता, परशुराम के बाण से हत होने, राजा बाहु को पदच्युत करने आदि का वर्णन), २.३.४८.२३(सगर द्वारा हैहय, तालजङ्घों आदि पर विजय का वर्णन), २.३.६३.१२०(हैहयों व तालजङ्घों द्वारा राजा बाहु को राज्य से च्युत करने का कथन), २.३.६९.५१(जयध्वज - पुत्र तालजङ्घ के पुत्रों की तालजङ्घा: संज्ञा का उल्लेख ; हैहयों के ५ गणों में से एक), ३.४.२२.२२ (तालजङ्घक : भण्डासुर - सेनानी, पूर्व द्वार का रक्षक), भविष्य ३.४.१२.५० (चाक्षुष मन्वन्तर के १२वें द्वापर में तालजङ्घ वंशीय क्षत्रियों द्वारा भृगुवंशीय ब्राह्मणों के विनाश का उल्लेख), ३.४.१६.३० (ब्रह्म कल्प में मुर नामक दैत्य की तालजङ्घ वंश में उत्पत्ति), भागवत ९.२३.२८(जयध्वज - पुत्र तालजङ्घ के १०० पुत्रों में वीतिहोत्र का ज्येष्ठ पुत्र के रूप में उल्लेख ; सगर द्वारा तालजङ्घों का हनन), मत्स्य ४३.४७ (जयध्वज - पुत्र तालजङ्घ के तालजङ्घा: संज्ञक १०० पुत्रों के ५ कुलों में विभाजन का कथन), वायु ८८.१२२/२.२६.१२२(तालजङ्घ आदि द्वारा राजा बाहु को सत्ता से च्युत करने व बाहु - पुत्र सगर द्वारा तालजङ्घों का वध करने का कथन), ९४.५०/२.३२.५०(जयध्वज - पुत्र तालजङ्घ के तालजङ्गा: संज्ञक १०० पुत्रों का उल्लेख ; हैहयों के ५ गणों में से एक तालजङ्घ गण का उल्लेख), शिव ७.२.३१.१५१ (शिव महास्तोत्र के अन्तर्गत शिव से तालजङ्घ आदि से रक्षा की प्रार्थना), हरिवंश १.३३.५० (जयध्वज - पुत्र), लक्ष्मीनारायण २.१३.७ (तालजङ्घा : दैत्य - पत्नियों में से एक, पति की मृत्यु पर शोक), कथासरित् १४.४.९० (हरिशिख के अग्नि - प्रवेश हेतु उद्धत होने पर तालजङ्घ नामक भूत - अधिपति द्वारा वारण तथा स्वामी से मिलन का आश्वासन), महाभारत अनुशासन ३४.१७(भृगुओं द्वारा तालजङ्घों पर विजय प्राप्त करने का उल्लेख - भृगवस्तालजङ्घांश्च नीपानाङ्गिरसोऽजयन्। भरद्वाजो वैतहव्यानैलांश्च भरतर्षभ।। ) । taalajangha/ taljangha
तालध्वज देवीभागवत ६.२९ (तालध्वज नामक राजा द्वारा स्त्री रूपी नारद से विवाह, स्त्री से वियोग पर विष्णु द्वारा सान्त्वना का वर्णन), भविष्य ४.३.६२ (विष्णु की माया के प्रभाव से नारद का स्नानोपरान्त स्त्री रूप धारण, राजा तालध्वज द्वारा दर्शन, विवाह ) । taaladhwaja/ taldhwaja
तालन भविष्य ३.३.४.२९ (वीरण - पुत्र, भीमसेन का अंश, तालन नाम हेतु का कथन), ३.३.१२.१९ (उदयसिंह - सेनानी), ३.३.१२.३२ (देवी को प्रसन्न करने के लिए तालन द्वारा वीणा धारण), ३.३.२६.२०, ३.३.३२.५३ (भीमसेन का अंश), ३.३.३२.२१४ (पृथ्वीराज द्वारा तालन का वध ) । taalana
तालनेमि देवीभागवत ४.२२.४३ (तालनेमि के कंस रूप में अवतरण का उल्लेख ) ।
तालभुज ब्रह्माण्ड ३.४.२२.२३ (भण्डासुर - सेनानी, अवाचीन / दक्षिण द्वार का रक्षक ) ।
तालमेघ स्कन्द ५.३.९० (दैत्य, विष्णु द्वारा चक्र से वध, चक्र का नर्मदा जल में प्रक्षालन ) ।
तालवन भागवत १०.१५.२२(कृष्ण व बलराम द्वारा तालवन में धेनुकासुर के वध का वृत्तान्त), विष्णु ५.८.१(कृष्ण व बलराम द्वारा तालवन में धेनुकासुर के वध का वृत्तान्त ) ; द्र. ताल । taalavana
तालु अग्नि १४६.१७(तालुजिह्वा : वाराही कुलोत्पन्न देवियों में से एक), २१४.३१ (तालुमध्य में रुद्र की स्थिति का उल्लेख), गरुड २.४.१४०(तालु में तुम्ब देने का उल्लेख), २.३०.४९/२.४०.४९(वही), भविष्य ४.६९.३६ (गौ के तालु में सभ्य अग्नि की स्थिति), स्कन्द ४.१.४१.१०३(तालु देश में स्थित चन्द्रमा द्वारा अमृत के स्राव का कथन), ५.१.५२.४३ (हिरण्याक्ष वध हेतु श्रीविष्णु द्वारा यज्ञमय वाराह शरीर धारण, शरीरगत तालु की यज्ञाहुति से उपमा), हरिवंश ३.७१.४९ (वामन द्वारा विराट सर्वदेवमय रूप धारण करने पर दीप्तिमान् सूर्य के तालु बनने का उल्लेख ) । taalu
तिग्म भागवत ४.१३.१२ (तिग्मकेतु : वत्सर व स्वर्वीथी के ६ पुत्रों में से एक ; पुष्पार्ण, इष, ऊर्ज, वसु व जय - भ्राता), मत्स्य ५०.८५(तिग्मात्मा : उर्व - पुत्र, बृहद्रथ - पिता, कलियुगी राजाओं का प्रसंग), विष्णु ४.२१.१३(उर्व - पुत्र, बृहद्रथ - पिता, जनमेजय वंश ), द्र. वंश ध्रुव ।tigma
तिङ्गिनी स्कन्द ६.२०८.७ (स्त्री की गात्रशुद्धि हेतु तिङ्गिनी रूपी साधन, तिङ्गिनी - स्वरूप का कथन ) ।
तितिक्षा ब्रह्माण्ड १.२.३२.४९ (तितिक्षा की क्षमा संज्ञा - आक्रुष्टो निहतो वापि नाक्रोशेद्यो न हंति च ।। वाङ्मनःकर्मभिर्वेत्ति तितिक्षैषा क्षमा स्मृता ।।), भागवत ४.१.४९ (दक्ष प्रजापति व प्रसूति की १३ कन्याओं में से एक, धर्म - पत्नी), ४.१.५१ (दक्ष - पुत्री, धर्म - पत्नी, क्षेम - माता), ११.१६.३१ (विभूति वर्णन के अन्तर्गत हरि के तितिक्षुओं की तितिक्षा होने का उल्लेख - तितिक्षास्मि तितिक्षूणां सत्त्वं सत्त्ववतामहम्), ११.१९.२८( तितिक्षा के विषय में उद्धव का प्रश्न - कः शमः को दमः कृष्ण का तितिक्षा धृतिः प्रभो।। ), ११.१९.३६(तितिक्षा दुःखसम्मर्षो जिह्वोपस्थजयो धृतिः ) ११.२३ (तितिक्षा / न्याय से प्राप्त दुःख को सहन करने के स्पष्टीकरण हेतु कृपण ब्राह्मण का दृष्टान्त), मत्स्य १४५.४५( तितिक्षा के लक्षण - आक्रुष्टोऽभिहतो यस्तु नाक्रोशेत्प्रहरेदपि। अदुष्टो वाङ्मनः कायैस्तितिक्षुः सा क्षमा स्मृता।।), महाभारत आदि ८७.१४(अक्रोधनः क्रोधनेभ्यो विशिष्टस्तथा तितिक्षुरतितिक्षोर्विशिष्टः ॥), लक्ष्मीनारायण १.३२३.५१(दक्ष व असिक्नी - कन्या, धर्म - पत्नी, विराम - माता), ३.३०.४७ (सुख के ३ साधनों में से एक - धर्मः क्षमा तितिक्षा च त्रेधा सुखस्य साधनम् ।। ) । titikshaa
तितिक्षु ब्रह्माण्ड २.३.७४.१७(महामना के २ पुत्रों में से एक, उशीनर - भ्राता), २.३.७४.२४(पूर्व दिशा का राजा, उशद्रथ? - पिता), भागवत ९.२३.२(महामना - पुत्र, रुशद्रथ - पिता, उशीनर - भ्राता), मत्स्य ४४.२४ (उशना - पुत्र, मरुत्त - पिता, क्रोष्टु वंश), ४८.२२ (महामना- पुत्र, पूर्व दिशा का राजा, वृषद्रथ - पिता, अनु वंश), वायु ९९.१८/२.३७.१८(महामना - पुत्र, उशीनर - भ्राता), ९९.२४(पूर्व दिशा का राजा, उशद्रथ - पिता), विष्णु ४.१८.८(महामना - पुत्र, उशीनर - भ्राता), ४.१८.११(रुशद्रथ - पिता ) । titikshu
तित्तिर देवीभागवत ६.२.२५ (त्रिशिरस मुनि का इन्द्र द्वारा वध, मुनि के दिशा निरीक्षक मुख से तित्तिरों की उत्पत्ति), १२.६.७२ (तित्तिरी : गायत्री सहस्रनामों में से एक), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.१० (कुलटागामी द्वारा तित्तिर योनि प्राप्ति का उल्लेख), भागवत ५.२.१० (पूर्वचित्ति अप्सरा के चरण पञ्जरों में तित्तिर बंद होने का उल्लेख), मत्स्य १९६.४८(तित्तिरि : त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), मार्कण्डेय १५.२४ (आसव की चोरी से तित्तिर योनि प्राप्ति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२२(कौशेय वस्त्र हरण से तित्तिर योनि प्राप्ति का उल्लेख ), द्र. तैत्तिर । tittira
तिथि अग्नि ३३.३ (तिथियों के देवताओं का कथन), ११७.४८ (तिथि अनुसार श्राद्ध - फल का कथन), १३१.१ (घात नामक चक्र में तिथि व स्वरादि विन्यास से फल का ज्ञान), १७६+ (प्रतिपदा आदि तिथियों के व्रतों का वर्णन), २९३ (प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी पर्यन्त तिथियों के देवताओं का उल्लेख), कालिका ५८.३९(तिथियों के देवताओं का कथन), कूर्म २.२०.१७ (तिथि अनुसार श्राद्ध के फल की प्राप्ति), गरुड १.५९.२५ (विभिन्न ग्रहों व राशियों में तिथियों के उत्कर्ष व अपकर्ष का वर्णन), देवीभागवत ८.२४.६ (तिथि अनुसार देवी की पूजा में नैवेद्य अर्पण तथा फल प्राप्ति), नारद १.२५.४६ (अनध्याय हेतु तिथि का कथन), १.२९ (व्रत, दान और श्राद्ध आदि के लिए तिथियों का निर्णय), १.५६.१३३ (तिथियों के स्वामी, तिथियों की नन्दा, भद्रा आदि संज्ञाएं, तिथियों में त्याज्य पदार्थ, युगादि तथा मन्वादि तिथियों का वर्णन), १.६६.१०८(तिथीश की शक्ति गोमुखी का उल्लेख), १.८८.२५८(दशमी आदि तिथियों (कलाओं) का स्वरूप), १.११०+ (बारह मासों की प्रतिपदा, द्वितीया प्रभृति पृथक् - पृथक् तिथियों में करणीय पृथक् - पृथक् व्रतों का वर्णन), २.२ (उपवास, श्राद्ध, पूजा आदि कर्मों के लिए दशमी व द्वादशी / त्रयोदशी से विद्ध एकादशी का निर्णय), पद्म ६.८६.१५(तिथियों के देवता धनद आदि ), ब्रह्म १.१११.१५ (प्रतिपदा प्रभृति तिथियों में श्राद्ध के फल का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त १.२७.२९ (प्रतिपदा प्रभृति भिन्न - भिन्न तिथियों में भक्ष्य - अभक्ष्य विचार), ब्रह्माण्ड २.३.१७ (तिथि अनुसार श्राद्ध अनुष्ठान का फल), भविष्य १.१६.१८ (तिथि व्रत के अन्तर्गत पृथक् - पृथक् तिथियों में ग्रहण करने योग्य पृथक् - पृथक् भक्ष्य), १.१६.४४ (प्रतिपदा तिथि के नाम के हेतु का कथन), १.१७+ (प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया प्रभृति तिथियों में करणीय भिन्न - भिन्न देवों की पूजा तथा व्रत विधानादि का वर्णन), १.१०२.१९ (तिथि - स्वामियों का कथन), २.२.७ (वर्ष में तिथि अनुसार करणीय कृत्य), ४.१४ (यम द्वितीया व्रत के माहात्म्य का वर्णन), ४.१६+ (तृतीया तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.३१+ (चतुर्थी तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.३४+ (पञ्चमी तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.३८+ (षष्ठी तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.४३+ (सप्तमी तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.५४+ (अष्टमी तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.६०+ (नवमी तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.६४ (दशमी तिथि में करणीय आशा व्रत के माहात्म्य का वर्णन), ४.६५+ (द्वादशी तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.८९+ (त्रयोदशी तिथि में करणीय व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.९३+ (चतुर्दशी तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों के माहात्म्यों का वर्णन), ४.९९+ (पूर्णमासी तिथि में करणीय व्रतों का वर्णन), ४.१०१ (युगादि तिथियों में करणीय व्रतों का वर्णन), ४.१९३ (तिथि दान का माहात्म्य, तिथि अनुसार दान द्रव्य का कथन), मत्स्य १७ (श्राद्ध योग्य तिथियां), १९५.३८(त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), मार्कण्डेय १३.१८(पर्वकाल में पितरों व तिथिकाल में देवों के आगमन का उल्लेख), ३०/३३.१ (प्रतिपदा आदि तिथियों में श्राद्ध के फल का कथन), वराह १९ (प्रतिपदा तिथि में अग्नि पूजा का विधान तथा माहात्म्य), २०.३५ (द्वितीया तिथि के अश्विनीकुमारों से सम्बन्धित होने से रूप प्राप्ति हेतु द्वितीया व्रत का विधान), २२.५१ (तृतीया तिथि के गौरी देवी से सम्बन्धित होने से सौभाग्य प्राप्ति हेतु तृतीया व्रत का विधान), २३.३६ (गणेश से सम्बन्धित होने से चतुर्थी तिथि के श्रेष्ठत्व का कथन), २४.३२ (पञ्चमी तिथि की नागों से सम्बद्धता), २५.४९ (षष्ठी तिथि की कार्तिकेय से सम्बद्धता), (सप्तमी तिथि की सूर्य से सम्बद्धता), २७.४२ (अष्टमी तिथि की मातृकाओं से सम्बद्धता तथा मातृका - पूजन विधान), २८.४२ (नवमी तिथि की दुर्गा देवी से सम्बद्धता), २९.१४ (दशमी तिथि की दिशाओं से सम्बद्धता), ३०.६ (ब्रह्मा द्वारा कुबेर को एकादशी तिथि का अधिष्ठाता बनाने का उल्लेख), ३१.१९ (द्वादशी तिथि की विष्णु से सम्बद्धता का उल्लेख), ३२.३१ (त्रयोदशी तिथि के धर्म से सम्बन्धित होने का उल्लेख), ३३.२९ (चतुर्दशी तिथि की रुद्र से सम्बद्धता तथा माहात्म्य), ३४.८ (अमावास्या तिथि की पितरों से सम्बद्धता), ३५.१४ (ब्रह्मा द्वारा चन्द्रमा को पौर्णमासी तिथि प्रदान करना), ५६ (अगहन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि में करणीय धन्यव्रत का वर्णन), ५७ (कार्तिक शुक्ल द्वितीया में करणीय कान्त व्रत का वर्णन), ५८ (फाल्गुनशुक्ल तृतीया में करणीय सौभाग्य व्रत का वर्णन), ५९ (फाल्गुन चतुर्थी में करणीय अविघ्न व्रत का वर्णन), ६० (कार्तिक शुक्ल पञ्चमी में करणीय शान्ति व्रत का वर्णन), ६१ (पौष शुक्ल षष्ठी में करणीय काम व्रत का वर्णन), ६२ (सप्तमी तिथि में करणीय आरोग्य व्रत का वर्णन), ६३ (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी में करणीय पुत्र प्राप्ति व्रत का वर्णन), ६४ (आश्विन शुक्ल नवमी में करणीय शौर्य व्रत का वर्णन), ६५ (कार्तिक शुक्ल दशमी में करणीय सार्वभौम व्रत का वर्णन), वामन १६.६ (भिन्न -भिन्न तिथियों में भिन्न - भिन्न देवों का शयन), ५०.२(चन्द्रमा, सूर्य एवं बृहस्पति के मृगशिरा नक्षत्र में स्थित होने पर तिथि के अक्षया होने का उल्लेख), वायु ८१.१०/ २.१९.१० (विभिन्न तिथियों में श्राद्ध का फल), विष्णुधर्मोत्तर ३.९६ (प्रतिमा प्रतिष्ठार्थ तिथि का निर्देश), ३.२२१ (तिथि अनुसार विशिष्ट देवताओं का पूजन व फल), ३.३१७.२७ (भिन्न - भिन्न तिथियों में भिन्न - भिन्न द्रव्यों के दान का कथन), स्कन्द १.२.५.१२१ (युगादि तिथि का कथन), १.२.५.१२८ (मन्वन्तरादि तिथि का कथन), २.७.२३ (अक्षय तृतीया तिथि के श्रेष्ठत्व का कथन), ३.१.३६.३९(विभिन्न तिथियों में महालय श्राद्ध का फल), ३.२.३०.२२(रामायण की घटनाओं की तिथियां), ४.१.२१.३९ (तिथियों में कुहू की श्रेष्ठता का उल्लेख), ४.२.७३.६३ (तिथि अनुसार पूजनीय लिङ्गों के नाम), ६.२१९ (विभिन्न तिथियों में श्राद्ध से प्राप्त कामनाओं का फल), ७.१.२८.२०७(विभिन्न तिथियों में प्रभास तीर्थ में देय दान), ७.१.२०५.३६ (मन्वन्तर आरम्भ तिथि), लक्ष्मीनारायण १.११९.९ ?(अक्षरधाम में तिथियों के स्वरूप का वर्णन), १.१५०.२२(विभिन्न ग्रहों के अनुसार तिथियों की श्रेष्ठता), १.२६६ (प्रतिपदा~ तिथि में करणीय वार्षिक व्रतों का निरूपण), १.२९२.४४ (व्रत हेतु विद्धा तिथियों का निषेध, शुद्धा तिथि में व्रत की सार्थकता), १.५४३ (१५ तिथियों के देवताओं का सहेतुक वर्णन), २.१७५.६९ (विभिन्न तिथियों में ग्रहों व नक्षत्रों के योग का फल), ३.६४.२ (सर्व तिथियों में हरि के भिन्न - भिन्न रूपों की पूजा), ३.१०३.२(शुक्ल पक्ष की विभिन्न तिथियों में दानों के फलों का कथन), ३.१३३.७ (प्रतिपदा आदि ३० तिथियों के श्वेतकल्प आदि ३० नामों का उल्लेख), ३.१४२.१३ (तिथियों में शरीर के भिन्न - भिन्न अङ्गों का आरोप, तत्तद् तिथि में शरीर के तत्तद् अङ्ग में दंशन होने पर मनुष्य के जीवित न रहने का कथन ) ; द्र. जन्मतिथि, मेधातिथि, शयनतिथि । tithi
तिन्तिडी पद्म १.२८.२९ (वृक्ष, दास वर्ग को प्रिय ) ।
तिन्दुक वराह १५२.४२ (तिन्दुक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : तिन्दुक नामक नापित का मथुरा में निवास तथा यमुना - स्नान से जन्मान्तर में जातिस्मर ब्राह्मण बनना ) । tinduka
तिमि पद्म ३.२४.२२ (तिमि तीर्थ का माहात्म्य), भागवत ६.६.२६(दक्ष - पुत्री, कश्यप - पत्नी, यादोगण/जलचरों की माता), ९.२२.४३(दुर्व - पुत्र, बृहद्रथ - पिता, जनमेजय वंश), हरिवंश २.३३.१२ (पञ्चजन दैत्य द्वारा तिमि नामक मत्स्य रूप धारण कर सान्दीपनि के पुत्र का हरण, कृष्ण द्वारा वध), योगवासिष्ठ ६.२.९९.८(त्रसरेणु प्रमाण के तिमि कीट की गमन व्यग्रता का उल्लेख ) । timi
तिमिङ्गल नारद २.६७.४८ (तिमिङ्गल तीर्थ का माहात्म्य : बदरी तीर्थ में मत्स्य रूपी विष्णु द्वारा हयग्रीव असुर का वध कर वेदों की रक्षा), लक्ष्मीनारायण ३.१४.४५ (तिमिङ्गल दैत्य द्वारा लोक पीडन, तिमिङ्गल के वध हेतु श्रीहरि का जलनारायण रूप में प्राकट्य ) । timingala
तिमिरलिङ्ग भविष्य ३.४.६.४४ (म्लेच्छ राजा तिमिरलिङ्ग द्वारा आर्य देश के निवासी मूर्ति - पूजकों का वध ) ।
तिमिरा कथासरित् ३.३.३३(तिमिरा नगरी के निवासी राजा विहितसेन व रानी तेजोवती की कथा ) ।
तिरः स्कन्द ६.२५२.१०(चातुर्मास में विभिन्न देवों द्वारा विभिन्न वृक्षों में स्थित होना), लक्ष्मीनारायण १.४४१.७०(कृष्ण द्वारा अश्वत्थ वृक्ष का रूप धारण करने पर देवों द्वारा विभिन्न वृक्षों में अवतरित होना),
तिरश्चायन लक्ष्मीनारायण ४.२९.१०१ (कुथली - पुत्र, माता की रोग - निवृत्ति हेतु लोमश ऋषि से कृष्णमन्त्रादि का ग्रहण ) ।
तिरस्करिणी ब्रह्माण्ड ३.४.२४.८२ (ललिता देवी की सहचरी तिरस्करिणी देवी द्वारा बलाहक आदि दैत्यों के चक्षुओं का नाश व वध ) ।
तिर्यक् ब्रह्माण्ड १.१.५.६१(तिर्यक् योनियों में ब्रह्मा के शक्ति द्वारा स्थित होने का उल्लेख), २.३.७.१७२(तिर्या : क्रोधा की १२ पुत्रियों में से एक, पुलह - पत्नी), २.३.७.४२१ (तिर्यक् योनि में उत्पन्न जन्तुओं का वर्णन), वायु १.६.३९(तमोप्रधान सर्ग की सृष्टि के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा २८ विधात्मिका तिर्यकस्रोता सृष्टि का कथन), ६८.१२३/२.७.१२३(तिर्यग्ज्योति : प्रथम मरुद्गण में से एक ) । tiryak
तिल अग्नि ८१.५३ (तिल के होम से वृद्धि का उल्लेख - मृत्युञ्जयो मृत्युजित्स्याद्वृद्धिः स्यात्तिलहोमतः ।), १९१.६(तिलोदाशी द्वारा आषाढ में उमा - भर्त्ता की पूजा का निर्देश), गरुड १.५१.२२ (तिल दान से इष्ट प्रजा की प्राप्ति का उल्लेख - तिलप्रदः प्रजामिष्टां दीपदश्चक्षुरुत्तमम् ॥ ), २.२.१९(तिलों की स्वेद से उत्पत्ति का उल्लेख, तिल प्रशंसा - दर्भा रोमसमुद्भूतास्तिलाः स्वेदेषु नान्यथा ।), २.२९.१५ (विष्णु के स्वेद से तिलों की उत्पत्ति, और्ध्वदैहिक क्रिया में तिल का प्रयोग तथा तिल दान की महिमा - मम स्वेदसमुद्भूतास्तिलास्तार्क्ष्य पवित्रकाः । असुरा दानवा दैत्यास्तृप्यन्ति तिलदानतः ॥), २.३०.१५(लोह से यम व तिल दान से धर्मराज की तृप्ति का उल्लेख - लोहदानाद्यमस्तुष्येद्धर्म राजस्तिलार्पणात् ।), २.३०.५३/२.४०.५३ (मृतक की सन्धियों में तिलकल्क देने का उल्लेख), नारद १.१२०.६७ (षट्-तिला एकादशी व्रत की विधि), पद्म १.४९.३७ (तिल तथा तिलोदक से पितृ तर्पण का माहात्म्य), ६.४२ (षट्-तिला एकादशी का माहात्म्य), ब्रह्म १.५७ /६०.५७ (कायस्थ? तिलों से पितृ तर्पण करने पर पाप प्राप्ति का उल्लेख), १.११०.४१ (वराह द्वारा पितृतर्पण हेतु स्व रोमों से कुशों और स्वेद से तिलों की उत्पत्ति करके उल्मुक बनाने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.३८९, ४०९(तिलभक्षी पिशाचों के स्वरूप का कथन), ३.४.२.१६४(तिल आदि के विक्रय से नरक प्राप्ति का उल्लेख), भविष्य १.५७.११(त्र्यम्बक हेतु तिल बलि का उल्लेख - आज्यं च ब्रह्मणे दद्यात्त्र्यम्बकाय तिलांस्तथा ।।), १.१८५.२०(श्राद्ध में ३ पवित्र द्रव्यों में से एक - त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि दौहित्रः कुतुपास्तिलाः ।। त्रीणि चात्र प्रशंसंति शौचमक्रोधमत्वरम् ।। ), २.१.१७.२ (अग्नि के नामों के अन्तर्गत तिलयाग में अग्नि का वनस्पति नाम - घृतप्रदीपके विष्णुस्तिलयागे वनस्पतिः ।। ), ४.८१ (तिल द्वादशी व्रत की विधि व माहात्म्य), ४.१५२ (तिलधेनु दान की विधि), ४.१९९ (तिलाचल दान की विधि, विष्णु के श्रम जनित स्वेद से तिलों की उत्पत्ति), मत्स्य ८७ (तिल शैल दान की विधि), लिङ्ग २.३०+ (तिल पर्वत दान की विधि), २.३७ (तिल धेनु दान की विधि), वराह २३.३५ (चतुर्थी तिथि को तिलों का आहार तथा गणपति आराधना का निर्देश), ९९.९१ (तिलधेनु दान के विधान का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.१३९.१२ (श्रीहरि के स्वेद से तिल की उत्पत्ति का उल्लेख - प्रस्वेदाच्च तिलान्कृत्वा दर्भान्रोमभ्य एव च ।।), १.१६३ (तिल द्वादशी विधि व माहात्म्य), स्कन्द १.२.१३.१८१(शतरुद्रिय प्रसंग में पितरों द्वारा तिलान्नज लिङ्ग की वृषपति नाम से पूजा का उल्लेख - तिलान्नजं च पितरो नाम वृषपतिस्तथा॥ ), १.२.४०.१६९(पितरों को तिलसहित दान का कारण), २.८.५.१९ (तिलोदकी नदी का सरयू से सङ्गम व माहात्म्य), ३.२.६.९७(तिल दान से सुप्रज होने का उल्लेख - स्वर्णदाता च दीर्घायुस्तिलदः स्याच्च सुप्रजः ।।), ४.२.५३.१२२ (तिलपर्णेश्वर लिङ्ग की महिमा), ५.१.८.६८ (अप्सरस तीर्थ में स्वयं को तिलों से तोलने पर सर्वाङ्ग शोभा प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.२६.१०९ (पञ्चमी तिथि में ब्राह्मण को तिल दान से स्त्री को रूप प्राप्ति का उल्लेख - पञ्चमीं तु ततः प्राप्य ब्राह्मणे तिलदा तु या ॥सा भवेद्रूपसम्पन्ना यथा चैव तिलोत्तमा ।), ५.३.५६.११८ (तिल दान से राजा को इष्ट प्रजा प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.२०९.१३७ (तिलों की पापहारिता तथा तिलद्रोण - प्रदान से संसार छेदन का उल्लेख), ५.३.२२२ (तिलादेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : जाबालि को तिल प्राशन से शुद्धि प्राप्ति), ६.२५२.१६ (चातुर्मास में तिल में सावित्री की स्थिति तथा तिल दान का माहात्म्य), ६.२७१.४३३(तिल - निर्मित सुवेल पर्वत दान से कच्छप की मुक्ति का कथन), ७.१.२०७.४५(तिल के प्रजा होने का उल्लेख), हरिवंश २.८०.१६ (सुन्दर नासिका , रोगरहितता तथा सौन्दर्य प्राप्ति हेतु तिल गुल्म सिञ्चन रूप व्रत का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८२ (तिलगुल्म की सावित्री रूपता - सावित्री तिलगुल्माख्या सतिला संबभूव ह ।), ३.१११.१२ (तिल दान की महिमा : पितरों की तृप्ति - तिलदानं प्रकर्तव्यं पितृभोज्याः शुभास्तिलाः ।।), ३.२१७.२५ (कृष्ण के अङ्गों में तिल चिह्नों का वर्णन), महाभारत अनुशासन ६६.६(भीष्म - युधिष्ठिर संवाद में तिल दान के महत्त्व का वर्णन), ६८.१६(यमराज द्वारा शर्मी ब्राह्मण को तिल दान के महत्त्व का वर्णन ) । tila
Comments on Tila
तिलक अग्नि १२३.२६ (वशीकरण हेतु तिलक के लिए प्रशस्त ओषधियां), कूर्म १.२.१०० (तिलक धारण की महिमा), नारद १.६६.५४ (तिलक धारण की विधि), पद्म ५.७९ (तिलक धारण की विधियां), भविष्य ४.८ (तिलक व्रत का माहात्म्य : चित्रलेखा के पति व पुत्र की तिलक से रक्षा), लक्ष्मीनारायण २.७१.१०२ (तिलक धारण से भाल की उज्ज्वलता), २.१४०.२४ (प्रासाद स्वरूप निरूपण के अन्तर्गत तलभाग, तिलक तथा अण्डकों की भिन्नता के अनुसार प्रासादों की भिन्नता का वर्णन), २.१४०.४३(तिलक संज्ञक प्रासादों के लक्षण), २.१४०.५९(तिलकाक्ष प्रासाद के लक्षण), २.२८३.५४(कम्भरा लक्ष्मी द्वारा बालकृष्ण को तिलक देने के विशिष्ट कृत्य का उल्लेख), ३.२०६ (तिलकरङ्ग नामक शूद्र वनपाल की नारायण उपासना से मुक्ति प्राप्ति की कथा ) ; द्र. शृङ्गारतिलक, सप्ताश्वतिलक । tilaka
तिलङ्गा वायु ४५.१११(भारत के मध्यदेशीय जनपदों में से एक ) ।
तिलधेनु स्कन्द ५.३.२६.९७ (तिलधेनु दान से स्त्री के यम से अपसर्पण का उल्लेख), ५.३.५०.२२ (सवत्सा तिलधेनु दान से प्रलयपर्यन्त स्वर्ग में निवास का उल्लेख), ५.३.९०.९० (तिलधेनु दान की विधि तथा माहात्म्य का वर्णन ) । tiladhenu
तिलोत्तमा देवीभागवत ४.६.७ (रम्भा, तिलोत्तमा प्रभृति अप्सराओं का बदरिकाश्रम में आगमन व गान आदि), ७.३०.८३ (देवी के रामाओं में तिलोत्तमा होने का उल्लेख), पद्म ६.१२६ (कुब्जिका का माघ स्नान से तिलोत्तमा बनना, तिलोत्तमा की ब्रह्मा से उत्पत्ति, सुन्द - उपसुन्द की तिलोत्तमा पर आसक्ति व परस्पर युद्ध से मरण, पूर्व जन्म में कुब्जिका), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२३.१४८(तिलोत्तमा का बलि - पुत्र साहसिक के साथ वार्तालाप, प्रणय, दुर्वासा के शाप से बाणासुर की पुत्री उषा के रूप में जन्म ग्रहण), ब्रह्माण्ड १.२.२३.२२ (तिलोत्तमा की सूर्य रथ में स्थिति), वायु ६९.५९/२.८.५८(ब्रह्मा के अग्नि कुण्ड से तिलोत्तमा की उत्पत्ति का उल्लेख), विष्णु २.१०.१६(तिलोत्तमा अप्सरा की माघ मास में सूर्य रथ के साथ स्थिति का उल्लेख), ५.३८.७३, ७७(रम्भा, तिलोत्तमा आदि अप्सराओं द्वारा अष्टावक्र मुनि से वर व शाप प्राप्ति का वृत्तान्त), विष्णुधर्मोत्तर १.१२८.२७ (तिलोत्तमा अप्सरा की महिमा, अहल्या रूप में जन्म), स्कन्द ३.१.५.९७ (तिलोत्तमा द्वारा सहस्रानीक राजा को पत्नी वियोग का शाप), ५.३.१९८.९० (रामाओं में देवी की तिलोत्तमा नाम से स्थिति), ६.१५३ (ब्रह्मा द्वारा देवों के तिल-तिल से तिलोत्तमा की सृष्टि, तिलोत्तमा द्वारा शिव की प्रदक्षिणा में शिव का क्षुब्ध होना, पार्वती द्वारा तिलोत्तमा को कुरूपता का शाप व मुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.३५२.१९ (वरपत्तन निवासी पाञ्चाल विप्र की पत्नी तिलोत्तमा का भ्राता के साथ सुरत व्यापार, पञ्चतीर्थ, कृष्णगङ्गा तीर्थ के प्रभाव से मुक्ति की कथा), १.५०५ (तिलोत्तमा अप्सरा के कारण शिव की पञ्चमुखता, पार्वती द्वारा तिलोत्तमा को कुरूप होने का शाप, नागवती में स्नान से तिलोत्तमा के शाप की निवृत्ति का निरूपण ) । tilottamaa
Remarks on Tilottamaa b Dr. Fatah Singh
ध्यान की स्थिति में जब आँख का तिल उच्चतम स्थिति में पहुंच जाता है , उस समय उत्पन्न सौन्दर्य भावना । तिलोत्तमा पर मोहित होकर सुन्द (हमारा मन ) और उपसुन्द (हमारा शरीर ) उसके सौन्दर्य को वासना द्वारा भोगना चाहते हैं। लेकिन तिलोत्तमा के आने पर सुन्द और उपसुन्द की वासनामय सौन्दर्य दृष्टि उन्हें ही नष्ट कर देती है ।
तिलोदक स्कन्द २.८.५ (तिलोदकी नदी का सरयू से सङ्गम व माहात्म्य), ५.३.२२२ (तिलोदेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : जाबालि द्वारा तिल प्राशन से शुद्धि प्राप्ति ) ।
तिष्य ब्रह्माण्ड १.२.१६.६९(भारत के कृत आदि ४ युगों में से एक), १.२.३१.३०(तिष्य युग में धर्म की स्थिति का कथन), भागवत १२.२.२४ (सत्ययुग के आरम्भ के समय चन्द्रमा, सूर्य व तिष्य बृहस्पति के एकराशि में प्रवेश का उल्लेख), महाभारत वन १९०.९०(यदा सूर्यश्च चन्द्रश्च तथा तिष्यबृहस्पती। एकराशौ समेष्यन्ति प्रपत्स्यति तदा कृतम् ।।), वायु ५८.३०(तिष्य/कलियुग में धर्म की दुर्दशा का वर्णन), ८२.५/२.२०.५(तुष्टिकामी के लिए तिष्य नक्षत्र में श्राद्ध का निर्देश), विष्णु २.४.५३ (क्रौञ्च द्वीप के शूद्र निवासियों की तिष्य संज्ञा का उल्लेख - पुष्कराः पुष्कला धन्यास्तिष्याख्याश्च महामुने ।), लक्ष्मीनारायण ३.३६.७१ (नारद नामक ५०वें वत्सर में भूमि पर तिष्य / कलियुग होने पर धर्म की स्थापना हेतु श्रीनाथ नारायण व धेनुमती श्री के प्राकट्य का वर्णन ) । tishya
तीक्ष्ण ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२९, ९८ (तीक्ष्णशृङ्ग : ललिता देवी के बन्धन हेतु भण्डासुर द्वारा प्रेषित सेनानियों में से एक , सर्वमङ्गलिका नित्या देवी द्वारा तीक्ष्णशृङ्ग के वध का उल्लेख), ३.४.३५.९४(तीक्ष्णा : शिव की ११ कलाओं में से एक), स्कन्द १.१.१७.१३९ (इन्द्र - वृत्रासुर युद्ध में अग्नि के तीक्ष्णकोप से युद्ध का उल्लेख ) ; द्र. सुतीक्ष्ण । teekshna
तीराण लक्ष्मीनारायण २.१७९.११२ (वल्गुराय प्रदेशों का राजा), २.१८० (श्रीहरि का तीराण नृप की राजधानी में गमन, भ्रमण तथा पूजनादि का वर्णन ) ।
तीर्थ अग्नि १०९ (तीर्थों के नाम व संक्षिप्त माहात्म्य), ३०५ (तीर्थ अनुसार विष्णु के ५५ नाम), कूर्म १.३५/१.३३ (व्यास द्वारा तीर्थ यात्रा, तीर्थों के नामों का कथन), १.३४+ (प्रयाग तथा तदन्तर्गत तीर्थों का माहात्म्य), २.३५+ (विभिन्न तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), २.४४/२.४२ (विविध तीर्थों का माहात्म्य), गरुड १.८१ (तीर्थों के नाम व माहात्म्य), १.८१.२३ (ब्रह्म ध्यान, इन्द्रिय - निग्रह, दम तथा भाव शुद्धि नामक आध्यात्मिक तीर्थों में स्नान से परम गति की प्राप्ति), १.१०९.५४ (अर्थ से भ्रष्ट पुरुष हेतु तीर्थ यात्रा का निर्देश), २.३८.१२/२.२८.१२ (मानस तीर्थ में स्नान से पापों से अलिप्तता का उल्लेख), नारद २.६२ (तीर्थ यात्रा के माहात्म्य तथा विधि का वर्णन), पद्म १.९ (श्राद्ध योग्य तीर्थ), १.३४.१३१ (तीर्थों में ब्रह्मा के नाम), २.९०.११ (इन्द्र के आह्वान पर समस्त तीर्थों का आगमन तथा प्रयागादि चार महा तीर्थों की श्रेष्ठता का कथन), ३.१०+ (दिलीप का वसिष्ठ से तीर्थ विषयक संवाद), ६.१३३ (जम्बू द्वीप में तीर्थों के नाम), ब्रह्म १.२३/२५.८ (तीर्थों के नाम), २.१.१६ (स्वर्ग, मर्त्य व रसातल में दैव, आसुर, आर्षेय व मानुष नामक चार प्रकार के तीर्थों की स्थिति), ब्रह्माण्ड २.३.१३.३ (श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थ का वर्णन), भविष्य १.३.६२ (दक्षिण हस्त पर देवतीर्थ आदि ५ तीर्थों की स्थिति), भागवत २.६.३(कर्णों से तीर्थ की उत्पत्ति का उल्लेख), ५.२०.२१(तीर्थवती : क्रौञ्च द्वीप की नदियों में से एक), मत्स्य १३ (तीर्थों में सती के १०८ नाम), २२ (श्राद्ध योग्य तीर्थ), १९१ (नर्मदा तटवर्ती तीर्थों का माहात्म्य), १९२ (शुक्ल तीर्थ का माहात्म्य), १९३ (भृगु तीर्थ का माहात्म्य), १९४ (नर्मदा तटवर्ती तीर्थों का माहात्म्य), वराह १२६ (कुब्जाम्रक तथा तदन्तर्वर्ती तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), वामन ३५, ३६ (कुरुक्षेत्र के तीर्थों के क्रम व माहात्म्य का वर्णन), वायु ५९.११० (वायु द्वारा स्थापित तीर्थ), ७७ (श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थ), १०४.७५ (शरीर में व्यास दृष्ट विभिन्न तीर्थों की स्थिति), १११.१/२.४९.१(गया में उत्तरमानस आदि ५ तीर्थों का माहात्म्य), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.९ (तीर्थ यात्रा आरम्भ में हंस की पूजा का उल्लेख), ३.२७३ (तीर्थ यात्रा के माहात्म्य तथा फल का वर्णन), ३.३२१.७ (तीर्थ यात्रा से प्रचेताओं के लोक की प्राप्ति), स्कन्द १.२.६४.२६(तीर्थ में फल प्राप्ति हेतु अपेक्षित क्रियाएं), १.३.६ (अरुणाचलस्थ विविध तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), २.३.७ (पञ्चधारादि तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), २.८.७.७ (अयोध्या में क्षीरोदक तीर्थ का माहात्म्य : राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि से पत्नियों हेतु क्षीर प्राप्ति का स्थान), २.८.७.३२ (धनयक्ष तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन : विश्वामित्र द्वारा राजा हरिश्चन्द्र से प्राप्त धन की यक्ष द्वारा रक्षा का स्थान), २.८.८.३३ (अयोध्या में महारत्न तीर्थ के माहात्म्य का कथन), २.८.८.३८ (अयोध्या में महाभर तीर्थ में स्नान व शिव पूजा के माहात्म्य का कथन), २.८.८.३८ (अयोध्या में दुर्भर तीर्थ के माहात्म्य का कथन : स्नान व शिव पूजा आदि), २.८.८.५० (अयोध्या में महाविद्या तीर्थ के माहात्म्य का उल्लेख), ३.१.१+ (राम द्वारा स्थापित सेतु तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), ३.१.३.७४ (धर्मपुष्करिणी तीर्थ में चक्र तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन : सुदर्शन चक्र द्वारा तपोरत गालव की राक्षस से रक्षा), ३.१.४.१ (चक्र तीर्थ में गालव के तप में बाधा उत्पन्न करने वाले दुर्द्दम नामक राक्षस के चक्र द्वारा उद्धार का वर्णन), ३.१.१०.२३ (सेतु रूप गन्धमादन पर्वत पर स्थित पापविनाशन तीर्थ का माहात्म्य : शूद्र को शिक्षा देने वाले विप्र तथा शूद्र की जन्मान्तर में पापों से मुक्ति), ३.१.११+ (सीतासरोवर, मङ्गल अमृतवापी तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), ४.२.६९ (६८ तीर्थों के लिङ्गों का काशी में आगमन), ४.१.६.२६ (मानस / आध्यात्मिक तीर्थों का वर्णन), ४.१.२२.५८ (तीर्थों में प्रयाग की श्रेष्ठता), ४.२.८४ (तीर्थों के नाम), ५.१.१+ (अवन्ती क्षेत्र के अन्तर्गत तीर्थों का वर्णन), ५.२.८३.१५ (बिल्व व कपिल के परस्पर वाद में बिल्व द्वारा दान व तीर्थ के प्राधान्य तथा कपिल द्वारा ब्रह्म व तप के प्राधान्य का प्रतिपादन), ५.३.२+ (नर्मदा / रेवा आश्रित तीर्थों का वर्णन), ५.३.१९५ (देवतीर्थ में श्रीपति के अर्चन तथा माहात्म्य का वर्णन), ५.३.२२८ (परार्थ तीर्थयात्रा के फल का कथन), ६.१०६ (पृथिवी से लुप्त तीर्थों के नाम), ६.१०८ (६८ तीर्थों के नाम), ७.१.३ (तीर्थ नाम, माहात्म्य, प्रभास तीर्थ का माहात्म्य), ७.१.१० (पांच महाभूतों के अनुसार तीर्थों का विभाजन), ७.१.१०७ (तीर्थ अनुसार ब्रह्मा के नाम), ७.१.१३९ (तीर्थों में आदित्य के नाम), महाभारत वन ८२.९+ (तीर्थयात्रा के फल की प्राप्ति हेतु अपेक्षित गुणों का कथन, पुष्कर आदि तीर्थों की महिमा), ८७+(धौम्य द्वारा ४ दिशाओं के तीर्थों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.१०७.३२ (गणेश द्वारा प्रदक्षिणा के संदर्भ में गृह में माता - पिता के तीर्थ होने का कथन ; पत्नी के लिए पति तीर्थ होने का उल्लेख), १.१४३ (रैवत पर्वत पर वस्त्रापथ क्षेत्र के तीर्थ), १.१५१ (तीर्थयात्रा विधि, सारस्वत विप्र तथा भोजराज का संवाद), १.१५२ (तीर्थ में पालनीय नियमों का वर्णन), १.२०६, २०७, २०८, २०९ (विविध तीर्थों का वर्णन), १.२१८ (द्वारका तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), १.२१९ (गोमती तीर्थ व चक्रतीर्थ का माहात्म्य), १.२२१+ (गोमती सागर सङ्गम, लक्ष्मी सप्त हृद, नृगकूप, रुक्मिणी, गोपीतडाग तीर्थों का वर्णन), १.३४१+ (विविध तीर्थों का वर्णन), १.४०४+ (विविध तीर्थों का वर्णन), १.४५६.४५ (भौतिक, मानसिक व आध्यात्मिक भेद से तीर्थों की विविधता, तीर्थ प्रशंसा), १.४९७ (भूतल पर स्थित विविध तीर्थक्षेत्रों तथा आध्यात्मिक तीर्थों का निरूपण), १.५१४.८(३ महत्त्वपूर्ण तीर्थों के नाम), १.५३८+ (विविध तीर्थों का वर्णन), २.८३.११ (राजा जयध्वज द्वारा पर्वतों को दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के तीर्थों का वर्णन : स्थावर व जङ्गम तीर्थों की दिव्ययोग से दिव्य - रूपता ; आत्मा, साधु, गुरु, माता - पिता आदि सभी की तीर्थरूपता का वर्णन), ३.१९.८७ (तीर्थ पावनार्थ श्रीहरि के तीर्थ नारायण रूप में प्राकट्य का वर्णन), ३.४५.१३ (तीर्थयात्रा के पुण्य से तैर्थिकों को वह्निलोक की प्राप्ति), ३.८०.६६ (तीन प्रकार के तीर्थ, स्थूल भू तीर्थ की अपेक्षा सूक्ष्म मानस तथा दिव्य आत्म तीर्थ की प्राधान्यता का प्रतिपादन), ३.१८६.२१ (स्थावर व जङ्गम दो प्रकार के तीर्थों में जङ्गम तीर्थों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), महाभारत अनुशासन २५(भीष्म - युधिष्ठिर संवाद में विभिन्न तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन), १०८(भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को मानसिक तथा पार्थिव तीर्थों के महत्त्व का वर्णन ) ; द्र. आदित्यतीर्थ, देवीनाम, पृथूदक, शुक्लतीर्थ । teertha/ tirtha
तीव्रा ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७२(५१ वर्णों के गणेशों की शक्तियों में से एक ) ।
तुं शिव ५.२६.४१ (घोष, कांस्य प्रभृति नव शब्दों का परित्याग कर तुंकार के अभ्यास तथा ध्यान से योगी की पुण्य पाप से अलिप्तता ) ।
तुङ्ग गणेश २.२०.३ (तुङ्ग आदि दैत्यों द्वारा गणेश के वध का यत्न, पक्षी रूपी गणेश द्वारा तुङ्ग का वध), पद्म ३.३९.४४( तुङ्गकारण्य का माहात्म्य - तुंगकारण्यमासाद्य ब्रह्मचारी जितेंद्रियः । वेदानध्यापयत्तत्र मुनीन्सारस्वतः पुरा ।..), वराह १४०.२९ (कोकामुख तीर्थ के अन्तर्गत तुङ्गकूट तीर्थ का माहात्म्य - तुंगकूटेतिविख्यातं कोकायां मम मण्डले ।। चतुर्धाराः पतन्त्यत्र पर्वतादुच्छ्रयं श्रिताः ।।.. ) ; द्र. भृगुतुङ्ग, विक्रमतुङ्ग । tunga
तुङ्गभद्रा पद्म ६.१८७ (गीता के त्रयोदश अध्याय के माहात्म्य के वर्णन के अन्तर्गत तुङ्गभद्रा नदी तीरवर्ती हरिदीक्षित ब्राह्मण की पत्नी के दुराचार का वृत्तान्त), ६.१९६.१८ (तुङ्गभद्रा नदी तीरवर्ती आत्मदेव ब्राह्मण व धुंधुली का पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त - गोकर्णः पंडितो ज्ञानी धुंधुकारी महाखलः ॥), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३५(दक्षिणापथ की सह्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), भागवत ५.१९.१८(भारत की नदियों में से एक), मत्स्य ११४.२९(दक्षिणापथ की सह्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), वायु ४५.१०४(दक्षिणापथ की सह्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), शिव १.१२.१६ (दशमुखा तुङ्गभद्रा नदी का संक्षिप्त माहात्म्य - तुंगभद्रा दशमुखा ब्रह्मलोकप्रदायिनी । सुवर्णमुखरी पुण्या प्रोक्ता नवमुखा तथा ॥), लक्ष्मीनारायण २.८०.७६ (बलेश्वर राज की तीन कन्याओं में से एक, वनेचर रूप धारी श्रीहरि के प्रति समर्पण का वृत्तान्त), २.८१.५० (हरि कृपा से बलेश्वरराज - कन्या तुङ्गभद्रा की नदी स्वरूपता, तुङ्गभद्रा तट पर तुङ्गभद्रानाथ की विराजमानता), ३.९.६५ (ध्यान वत्सर में तुङ्गभद्रासना नामक योगिनी द्वारा सूर्यादि ग्रह - नक्षत्रों की गति का निरोध, व्याकुल देव मानव मण्डल द्वारा श्रीहरि की स्तुति ) । tungabhadraa
तुण्ड ब्रह्माण्ड २.३.७.१३५(तुण्डकोश : खशा के प्रधान पुत्रों में से एक), वायु ६.१७ (वराह के तुण्ड का स्रुवा से साम्य), ६९.१६७/२.८.१६१(तुण्डिकेश : खशा के प्रधान पुत्रों में से एक), स्कन्द २.१.३६.६(यज्ञवराह के तुण्ड के स्रुक रूप होने का उल्लेख), ४.२.५७.१०१ (द्वितुण्ड विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.५५०.५ (तुण्डीश्वर तीर्थ : तुण्डी ऋषि के योगबल से कूप में पतित हरिणों का जीवित होना, कूप का जल - पूरित होना ) । tunda
तुण्डिकेर ब्रह्माण्ड १.२.१६.६५(तुण्डिकेर : हैहय वंश की ५ शाखाओं में से एक, विन्ध्य पृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), २.३.६९.५३(हैहय वंश की ५ शाखाओं में से एक, विन्ध्यपृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), वायु ९४.५२/२.३२.५२(वही) । tundikera
तुन्द ब्रह्माण्ड २.३.७.३८०(पिशाचों के १६ युगल गणों में नितुन्द व नितुन्दी, प्रतुन्द आदि का उल्लेख), भविष्य ३.३.१२.१२२ (जम्बुक राजा के पुत्र तुन्दिल का बलखानि द्वारा वध, पूर्व जन्म में तुन्दिल का त्रिशिरा होना ) । tunda
तुन्नवाय लक्ष्मीनारायण २.११.१९(सूची के तुन्नवाय - पुत्र दोरक की पत्नी होने का उल्लेख), २.१९८.१० (काष्ठयान नृप की तुन्नवाया नगरी में श्रीहरि के गमन, भ्रमण, पूजन, उपदेशादि का वर्णन ) ।
तुम्ब गरुड २.४.१४०(तालु में तुम्ब देने का उल्लेख), पद्म ४.२१.२६ (कार्तिक व्रत में तुम्बी भोजन के गोमांस तुल्य होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७१.२५८(तुम्ब - पुत्र, तुम्बवर्चा - भ्राता), वायु ९६.२४९/२.३४.२४९(तुम्ब व तुम्बबाण : जनस्तम्ब के पुत्र द्वय), स्कन्द २.१.१.६९ (तुम्ब तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), कथासरित् ८.६.१७५ (तुम्ब नामक स्थान पर सुलोचना की सिद्धि के मन्त्रवेत्ता विष्णुगुप्त नामक भदन्त का निवास ) । tumba
तुम्बर ब्रह्माण्ड १.२.३६.१४५(विन्ध्य पर्वत निवासी तम्बुर, तुबुर आदि जातियों की वेन कल्मष से उत्पत्ति का कथन), २.३.७३.१०८(कल्कि द्वारा तुबुर आदि के नाश का उल्लेख), मत्स्य ११४.५३(तुमुर व तुम्बर : विन्ध्य पृष्ठ निवासियों के जनपदों में से दो), वायु ४५.१३३(तुमुर, तुम्बुर आदि : विन्ध्य पृष्ठ के निवासी जनपदों में से दो), ६२.१२४/२.१.१२४(विन्ध्य निवासी तुबर, तुम्बर आदि जातियों की वेन कल्मष से उत्पत्ति का उल्लेख ) । tumbara
तुम्बुरु गरुड १.७०.१६ (तुम्बुरु देश : स्फटिक रत्न के उद्भव का स्थान), ३.२७.२१(तुम्बुरुका नदी का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.२३.४(मधु व माधव मासों में सूर्य रथ के साथ तुम्बुरु व नारद की स्थिति का उल्लेख), भविष्य ३.४.७.८(विवाह के लिए तुम्बुरु की आराधना), भागवत १.१३.३७(तुम्बुरु का पर्वत से साम्य?), ५.२५.८(नारद व तुम्बुरु कृत अनन्त की स्तुति का वर्णन), १२.११.३३(मधु मास में तुम्बुरु की सूर्य रथ के साथ स्थिति), मार्कण्डेय १२४/१२७.१३ (गन्धर्वों के पुरोहित तुम्बुरु द्वारा अवीक्षित व भामिनी के पाणिग्रहण अवसर पर होमकार्य का संपादन), १२४/१२७.२६,३० (तुम्बुरु द्वारा अवीक्षित व भामिनी - पुत्र मरुत्त के जातकर्मादि संस्कार व स्वस्त्ययन का सम्पादन), लिङ्ग २.१.७२ (हरि गान से तुम्बरु के पूजित होने पर नारद को शोक प्राप्ति), वायु ५२.३(मधु - माधव मासों में सूर्य रथ के साथ तुम्बुरु व नारद की स्थिति का उल्लेख), ६९.४७/२.८.४७(७ गन्धर्वों में षष्ठम् , मनोवती व सुकेशी पुत्रियों के पिता), ६९.१५९/२.८.१५४(कुस्तुम्बुरु : देवजननी व मणिभद्र? के पुत्रों में से एक), ९६.११७/२.३४.११७(चन्दनोदक दुन्दुभि के तुम्बुरु सखा होने का उल्लेख), विष्णु २.१०.३(मधु मास में सूर्य रथ के साथ स्थित गणों में से एक), ४.१४.१३ (अनु - मित्र), विष्णुधर्मोत्तर १.१५१.१४(तुम्बुरु व उदुम्बर शब्दों का एक साथ उल्लेख), ३.६६ (तुम्बुरु की मूर्ति में रूप निर्माण), शिव ७.२.४० (नारद की गानकुशल तुम्बुरु नामक गन्धर्व से स्पर्धा, पश्चात् तुम्बुरु से शिक्षण प्राप्त कर मैत्रीभाव की प्राप्ति), स्कन्द २.१.२६ (तुम्बुरु - पत्नी के द्वारा माघ स्नान आदेश की अवहेलना, मण्डूकी बनने का शाप), ३.१.२८.७६ (इन्द्र सभा में पुरूरवा व उर्वशी के हास से नाट्याचार्य तुम्बुरु द्वारा पुरुरवा व उर्वशी को वियोग प्राप्ति रूप शाप प्रदान), ३.३.२२ (पिशाच योनि ग्रस्त बिन्दुला - पति को शिव कथा सुनाने से तुम्बुरु की मुक्ति), ७.४.१७.२७ (भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत प्रतीची दिशा के रक्षकों में से एक), वा.रामायण ३.४.१६ (कुबेर के शाप से तुम्बुरु नामक गन्धर्व का विराध नामक राक्षस बनना, राम द्वारा वध से विराध की शाप - मुक्ति तथा स्वर्गलोक गमन), लक्ष्मीनारायण १.३९२.५६ (मदालसा के कुलगुरु, शत्रुजित् की आज्ञा पाकर मदालसा को ऋतध्वज को अर्पित करना), १.४०४.६६ (गन्धर्व, पत्नी को मण्डूकी होने का शाप, अगस्त्य द्वारा कथित घोणतीर्थ माहात्म्य श्रवण से शाप से मुक्ति, पुन: पति की प्राप्ति), ३.५८.८६ (गायन में नारद की तुम्बुरु से न्यूनता, तुम्बुरु से शिक्षण), कथासरित् ३.३.२० (रम्भा के नृत्य पर पुरूरवा के हास्य से तुम्बुरु द्वारा पुरूरवा को उर्वशी से वियोग रूप शाप प्रदान), ८.२.१७७ (गन्धर्वराज, मङ्गलावती - पिता), महाभारत द्रोण २३.१९(तुम्बुरु द्वारा शिखण्डी को आम पात्र वर्ण वाले दिव्य अश्व प्रदान का उल्लेख ) । tumburu
तुर भागवत ९.२२.३७(कवष - पुत्र, जनमेजय के अश्वमेध यज्ञ में पुरोहित), ४५.१२९(तुरसित : पश्चिम दिशा में स्थित जनपदों में से एक), वायु ५२.५३(तुरण्य : चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक ) ।
तुरङ्गकन्धर वामन ६८.५८ (अन्धक - सेनानी, नन्दिषेण से युद्ध ) ।
तुरीय ब्रह्माण्ड १.२.१३.९४(१२ अजित देवों में से एक), भागवत ११.१५.१६ (तुरीय नामक नारायण में मन को लगाने से वशिता सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख), वायु ३१.८ (१२ अजित? देवों में से एक), योगवासिष्ठ ६.१.१२४.२३ (तुरीय अवस्था का कथन ) ; द्र. विषतुरीय । tureeya/ turiya
तुरी लक्ष्मीनारायण २.१६१.१४ (धनमेद धीवर द्वारा तुरी देवी का अर्चन, देवी के आशीर्वाद से धनमेद द्वारा कुङ्कुमवापी में मत्स्यावतार का दर्शन, मुक्ति का वर्णन), २.२०९.३१ (तुर्यपद :श्रीहरि का रायवाकक्षक नृप की तुर्यपद नगरी में आगमन, पूजन, उपदेशादि का वर्णन ) । turee
तुरु पद्म २.७८ (ययाति - पुत्र, पिता से जरा ग्रहण की अनिच्छा पर शाप प्राप्ति), वराह ३६.५ (सत्ययुगीन सुद्युम्न नामक राजा की त्रेतायुग में तुरु नाम से उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.७३.६६ (ययाति - पुत्र, ययाति द्वारा तुरु से यौवन की याचना, असमर्थता व्यक्त करने पर तुरु को शाप प्रदान ) । turu
तुरुष्क पद्म १.४७.७२(वायव्य दिशा में निवास करने वाले तुरुष्क नामक म्लेच्छों के आचार का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.११.६९(पूजा द्रव्यों में तुरुष्क धूप व गुग्गुल के श्रेष्ठ होने का उल्लेख), भागवत १२.१.३०(कलियुग में १४ तुरुष्क राजाओं द्वारा राज्य का उल्लेख), विष्णु ४.२४.५३(कलियुग में १४ तुरुष्क राजाओं द्वारा राज्य का उल्लेख ) । turushka
तुर्वसु अग्नि २७७.१ (तुर्वसु वंश का वर्णन), देवीभागवत ६.१९.५१ (ययाति - वंशज, हरिवर्मा उपनाम, विष्णु से हैहय पुत्र की प्राप्ति), ब्रह्माण्ड २.३.६८.४१ (तुर्वसु की ययाति से जरा प्राप्ति हेतु अस्वीकृति, शाप प्राप्ति), २.३.७३.१२६(वह्नि - पिता, वंश वर्णन), २.३.७४.१ (तुर्वसु के वंश का वर्णन), भागवत ९.१८.३३, ४१(ययाति व देवयानी के २ पुत्रों में से एक), मत्स्य २४.५३(ययाति व देवयानी के ३ पुत्रों में से एक), ३३.११ (ययाति व देवयानी - पुत्र, पिता से जरा ग्रहण की अस्वीकृति, शाप प्राप्ति), ४८ (तुर्वसु के वंश का वर्णन), वायु ९३.४१ (तुर्वसु द्वारा पिता ययाति की जरा ग्रहण के लिए अस्वीकृति, ययाति से शाप प्राप्ति), ९९.१ (तुर्वसु वंश का वर्णन), विष्णु ४.१६ (तुर्वसु / दुर्वसु वंश का वर्णन), स्कन्द ४.१.२४.६० (विप्र, कन्या का नैध्रुव से विवाह), हरिवंश १.३२.७९ (ययाति - पुत्र, वह्नि - पिता, वंश वर्णन ) । turvasu
Short remarks on Turvasu by Dr. Fatah Singh
तुर्वसु कर्म में प्रवृत्त जीवात्मा, तुर्वसु - तुर + वसु - जल्दी भावना में डूबने वाला, भक्ति के मार्ग पर चलने वाला । ऐसा प्रतीत होता है कि वेद का तुर्वसु पुराणों में दुर्वासा ऋषि के माध्यम से चित्रित किया गया है ।
यदु और तुर्वसु दोनों ययाति के पुत्र हैं जिन्हें ययाति ने शाप दे दिया था । यह सरयू नदी के उस पार रहते हैं और स्नान नहीं करते । हमारी कर्मेन्द्रियों में काम आने वाले प्राण यादवा: हैं और ज्ञानशक्ति के प्राण जो भावनाशक्ति के साथ मिलकर खेल किया करते हैं, तुर्वशा: कहलाते हैं। हठ योग साधना में हठ द्वारा प्राणों का संयमन करके इन दोनों का विकास किया जाता है । निघण्टु में मनुष्य नामानि में परिगणित होने के कारण इनका ययाति - पुत्रों के रूप में उपलब्ध वर्णन महत्त्वपूर्ण है ।
तुलसी गरुड २.२.२३(तुलसी आदि के निर्माल्यता को प्राप्त न होने का उल्लेख - विप्रा मन्त्राः कुशा वह्निस्तुलसी च खगेश्वर ॥ २,२.२२ ॥ नैते निर्माल्यतां यान्ति क्रियमाणाः पुनः पुनः ।), २.३८.११(रोपण, पालन, सेक, ध्यान, स्पर्श, कीर्तन से तुलसी द्वारा पापों के दहन का उल्लेख), ३.१४.२९(तुलसी के सर्वदा सारा होने का कथन), ३.२९.६५(तुलसी छेदन काल में राम के ध्यान का निर्देश), गर्ग २.१६ (तुलसी माहात्म्य : राधा द्वारा तुलसी - सेवन व्रत का अनुष्ठान), ७.२६.२२ (समुद्र मन्थन से उद्भूत अमृतकलश में विष्णु के नेत्र से पतित हर्ष बिन्दु से तुलसी नामक वृक्ष का उद्भव), देवीभागवत ९.१.६५ (तुलसी की महिमा), ९.६.४८ (लक्ष्मी, गङ्गा व सरस्वती में परस्पर कलह, लक्ष्मी का शाप से तुलसी होना), ९.१७+ (तुलसी का धर्मध्वज व माधवी की कन्या के रूप में प्राकट्य, तप, शङ्खचूड से विवाह आदि), ९.२५ (नारायण द्वारा तुलसी की पूजा), पद्म १.६० (तुलसी माहात्म्य), १.६१ (शतानन्द प्रोक्त तुलसी स्तोत्र), २.११९.१५ (समुद्र मन्थन से उत्पन्न कामोदा का रूप), ४.२२ (तुलसी का माहात्म्य), ६.१५.४४ (वृन्दा के स्वेद से तुलसी की उत्पत्ति), ६.१८.१५३ (तुलसी का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.२३ (तुलसी का माहात्म्य), ६.२५ (तुलसी त्रिरात्र व्रत की विधि), ६.९५.३ (कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को कार्तिक व्रत के उद्यापन में तुलसी के ऊपर मण्डपिका तथा तुलसी मूल में सर्वतोभद्र लिखने का निर्देश आदि), ६.९६.१ (कार्तिक व्रत में तुलसी मूल में विष्णु पूजा के कारण के संदर्भ में जालन्धर आख्यान का आरम्भ), ६.१०५.१ (गौरी - प्रदत्त बीजों से तुलसी की उत्पत्ति, रजोगुणात्मक ?, तुलसी की महिमा), ७.२४ (तुलसी वृक्ष का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.६६ (प्रकृति देवी की प्रधान अंश स्वरूपा), २.६ (सरस्वती द्वारा तुलसी को वृक्ष बनने का शाप ), २.१५ (माधवी व धर्मध्वज - पुत्री, पति प्राप्ति के लिए तप), २.१६ (तुलसी का शङ्खचूड से विवाह), २.२१ (तुलसी की वृक्ष रूप में उत्पत्ति), २.२२ (तुलसी का ध्यान, स्तवन, पूजा विधान), ३.४६ (तुलसी व गणेश का संवाद, परस्पर शाप प्रदान), ४.६.१४२ (गङ्गा का अर्धांश भाग से तुलसी व राजकन्या लक्ष्मणा होकर जन्म ग्रहण का उल्लेख), ४.१७.२०९ (कुशध्वज - पुत्री, दुर्वासा शाप से शङ्खचूड - पत्नी, हरि शाप से वृक्ष रूप), ४.४५.३५ (शिव विवाह में तुलसी की हास्योक्ति), ४.९४.१०६ (तुलसी द्वारा राधा को सान्त्वना), भविष्य २.३.१५ (तुलसी प्रतिष्ठा की विधि), ३.४.२२.२८ (तुलसीशर्मा : अपर नाम तुलसीदास, अकबर कालीन, पूर्व जन्म में श्रीधर), भागवत ५.३.६(भगवान् के पूजा द्रव्यों में से एक), १०.३०.७ (विरहाकुल गोपियों द्वारा तुलसी की प्रशंसा), ११.३०.४१(दारुक द्वारा तुलसी की गन्ध से कृष्ण का पता लगाने का उल्लेख), शिव २.५.२८.७ (शङ्खचूड को ब्रह्मा द्वारा धर्मध्वज - सुता तुलसी से विवाह का आदेश, तुलसी से गान्धर्व विवाह), २.५.४०.२० (शङ्खचूड रूप से विष्णु का तुलसी के समीप गमन, तुलसी का शीलभङ्ग), ५.५१.४८ (देवी की अर्चना में तुलसी का वर्जन), स्कन्द २.१.१६.३३ (तुलसी को छोडकर बृहती की पूजा न करने का निर्देश), २.४.८ (तुलसी का कार्तिक में आरोपण, माहात्म्य), २.४.२३.९ (तुलसी माहात्म्य), २.४.३१ (तुलसी विवाह की विधि), २.५.८ (पूजा में तुलसी का महत्त्व -- अकृष्णाऽप्यथवा कृष्णा तुलसी मम वल्लभा ।। सिता वाऽप्यसिता वापि द्वादशी वल्लभा यथा ।।। १४ ।।), ६.२४?(श्री का रूप), ६.२४३.५५ (शालिग्राम के ऊपर तुलसी माला अर्पण व तुलसी का माहात्म्य), ६.२४७.१(तुलसी में श्री के वास का कथन), ६.२४९ (तुलसी माहात्म्य, तुलसी के प्रत्येक अङ्ग में श्री का विभिन्न नामों से वास), लक्ष्मीनारायण १.१५५ (समुद्र मन्थन से हरिप्रिया तुलसी का प्रादुर्भाव), १.३२९.५९ (वृन्दा की चिता की भस्म से श्यामल तुलसी वन तथा स्वेद से हरित तुलसी वन की उत्पत्ति), १.३३१.१०३ (विष्णु के कहने से वृन्दा की वृन्दावन में तुलसी रूप से स्थिति), १.३३२.२३ (लक्ष्मी, सरस्वती व गङ्गा का परस्पर कलह होने पर विष्णु शापवश लक्ष्मी का धर्मध्वज - पुत्री तथा शङ्खचूड - पत्नी तुलसी बनना), १.३३३.४४ (तुलसी माहात्म्य का वर्णन), १.३८५.५५(कृष्ण-पत्नी तुलसी का कार्य : स्तम्भन रस प्रदान), ३.५२.९१ (समुद्र मन्थन से उत्पन्न कामोदा का तुलसी बनकर विष्णु प्रिया होना), ४.१०१.९० (कृष्ण - पत्नी ) । tulasee/ tulasi
तुला अग्नि २५५.३४ (तुला द्वारा सत्यानृत परीक्षा), पद्म १.५०.६८ (तुलाधार : सत्य और समभाव की प्रशंसा में तुलाधार नामक वैश्य का आख्यान), ६.८८.१६ (सत्यभामा द्वारा तुलापुरुष दान का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.१३.७५ (ब्रह्मतुण्ड ह्रद में तुला की स्थिति -- तुला तु दृश्यते तत्र धर्मान्धर्मनिदर्शिनी । यथा वै तोलितं विप्रैस्तीर्थानां फलमुत्तमम् ॥ २,१३.७५ ॥), भविष्य २.१.१७.७ (तुलापुरुष दान में अग्नि का धाता नाम), ३.४.१२.९७ (शनि के दर्शन मात्र से बाल गणेश का शिर रहित होना, सूर्य के तुला राशिस्थ होने पर चन्द्रमण्डल में स्थित शिर का २७ दिनों तक भूतल पर प्रकाशित होना), ४.१७५ (तुला दान विधि, तुलापुरुष दान -- यदेतद्द्रविणं नाम प्राणाश्चैते बहिश्चराः ।। १९ ।।तस्माद्बहिश्चरैः प्राणैरात्मा योज्यः सदा बुधैः ।।), मत्स्य १९६.६(तौलेय : आङ्गिरस? गोत्रकारों में से एक), २७४ (तुला दान विधि -- मां तोलयन्ती संसारादुद्धरस्व नमोऽस्तुते।योऽसौ तत्वाधिपो देवः पुरुषः पञ्चविंशकः ।। २७४.६२, धर्मराजमथादाय हैमं सूर्य्येण संयुतम्। कराभ्यां बद्धमुष्टिभ्यामास्ते पश्यन् हरेर्मुखम्।। २७४.६६), लिङ्ग २.२८.१५ (तुला पुरुष दान विधि), विष्णुधर्मोत्तर ३.३२८.३३ (तुला द्वारा दिव्यता परीक्षा), शिव ५.१४.२५ (तुला पुरुष दान, तुलादान का माहात्म्य), स्कन्द १.२.४४.३२ (तुला द्वारा दिव्यता परीक्षा), ५.१.८.६७ (अप्सरस तीर्थ में तिल, लवण, शर्करा, गुड तथा मधु से स्वयं का तुलन करने पर भिन्न - भिन्न फलों की प्राप्ति का कथन -- लवणेन स्वरूपाढ्यस्तिलैः सर्वांगशोभनः ।। ६८ ।। द्रव्यवृद्धिः शर्करया गुडेनांगेषु पूर्णता ।। मधुना चैव सौभाग्यं तीर्थस्यास्य प्रभावतः ।। ६९ ।।), ५.३.१५५.८९ (तुलाकूट : मानकूट, तुलाकूट व कूटक कहने से अन्धतामिस्र नरक की प्राप्ति), ६.२६७ (तुला पुरुष दान का माहात्म्य - ब्रह्मणो दुहिता नित्यं सत्यं परममाश्रिता॥ काश्यपी गोत्रतश्चैव नामतो विश्रुता तुला॥24॥ त्वं तुले सत्यनामासि स्वभीष्टं चात्मनः शुभम्॥ करिष्यामि प्रसादं मे सांनिध्यं कुरु सांप्रतम्॥25॥ ), लक्ष्मीनारायण २.१२१.९९ (तुलायन :मेषायन, वृष आदि द्वादश महर्षियों में से एक, रुद्र - पुत्र, ब्रह्मा द्वारा र, त वर्ण प्रदान), ३.१२५.६७ (तुलापुरुष दान विधि का निरूपण ; तुला व लूता में सम्बन्ध का कथन), कथासरित् १०.४.२३७ (लौह तुला (तराजू ) व वैश्यपुत्र की कथा ) । tulaa
तुवर वायु ६२.१२४(तुम्बर, तुवर आदि जातियों की वेन कल्मष से उत्पत्ति का उल्लेख ) ।
तुषार ब्रह्माण्ड २.३.७४.१७२(कलियुग में १४ तुषार राजाओं द्वारा राज्य का उल्लेख), मत्स्य १२१.४५(चक्षु नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), १४४.५७(प्रमति अवतार द्वारा हत जनपदों के वासियों में से एक), २७३.१९(कलियुग में १४ तुषार राजाओं का उल्लेख), वायु ४५.११८(उत्तर के देशों में से एक), ४७.४४(चक्षु नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), ५८.८३(प्रमति अवतार द्वारा हत जनपद वासियों में से एक), ९८.१०८/२.३६.१०८(कल्कि अवतार द्वारा हत जनपदों के वासियों में से एक), ९९.३६०/२.३७.३५४(कलियुग में १४ तुषार राजाओं के राज्य करने का उल्लेख ) । tushaara
तुषित
पद्म १.७.८८
(स्वारोचिष
मन्वन्तर के देवगण-
तदा
देवाश्च
तुषिताः
स्मृता
स्वारोचिषेंतरे।),
ब्रह्माण्ड
२.३.३.२०
(स्वायंभुव
मन्वन्तर के साध्य देवों का
स्वारोचिष मन्वन्तर में तुषित
देवगण बनना -
प्राणापानावुदानश्च
समानो
व्यान
एव
च
।
चक्षुः
श्रोत्रं
रसो
घ्राणं
स्पर्शो
बुद्धिर्मनस्तथा
॥
नामान्येतानि
वै
पूर्वं
तुषितानां
स्मृतानि
च
।),
भागवत
४.१.८
(स्वायम्भुव
मन्वन्तर में यज्ञपुरुष व
दक्षिणा से उत्पन्न बारह
पुत्रों के तुषित नामक देव
होने का उल्लेख
-
तुष्टायां
तोषमापन्नोऽ
जनयद्
द्वादशात्मजान्
॥
तोषः
प्रतोषः
सन्तोषो
भद्रः
शान्तिरिडस्पतिः
।
इध्मः
कविर्विभुः
स्वह्नः
सुदेवो
रोचनो
द्विषट्
॥
तुषिता
नाम
ते
देवा
आसन्
स्वायम्भुवान्तरे
।),
८.१.२०
(स्वारोचिष
मन्वन्तर के प्रधान देवगण
-
तत्रेन्द्रो
रोचनस्त्वासीद्देवाश्च
तुषितादयः),
८.१.२१
(स्वारोचिष
मन्वन्तर में वेदशिरा नामक
ऋषि की पत्नी तुषिता के गर्भ
से भगवान् द्वारा विभु रूप
में अवतार ग्रहण
-
ऋषेस्तु
वेदशिरसस्तुषिता
नाम
पत्न्यभूत्।
तस्यां
जज्ञे
ततो
देवो
विभुरित्यभिविश्रुतः।।),
मत्स्य
६.३
(तुषित
देवगण का वैवस्वत मन्वन्तर
में द्वादश आदित्य बनना -
तुषिता
नाम
ये
देवाश्चाक्षुषस्यान्तरे
मनोः।
वैवस्वतेऽन्तरे
चैते
आदित्या
द्वादश
स्मृताः।। ),
वायु
६६.१७
(
देवगण
;
प्राण,
अपान,
चक्षु,
श्रोत्र
आदि नाम -
प्राणोऽपानस्तथोदानः
समानो
व्यान
एव
च।
चक्षुः
श्रोत्रं
तथा
प्राणः
स्पर्शो
बुद्धिर्मनस्तथा
।।
प्राणापानावुदानश्च
समानो
व्यान
एव
च।
नामान्येतानि
पूर्वन्तु
तुषितानां
स्मृतानि
ह
।। ),
विष्णु
१.१५.१२६
(चाक्षुष
मन्वन्तर के तुषित नामक १२
देवगणों की वैवस्वत मन्वन्तर
में १२ आदित्यों के रूप में
प्रसिद्धि -
पूर्वमन्वन्तरे
श्रेष्ठा
द्वादशासन्सुरोत्तमाः
।
तुषिता
नाम
तेऽन्योन्यमूचुर्वैवस्वतेन्तरे
॥),
स्कन्द
५.२.८२.३५(दक्ष
के यज्ञ में भद्रकाली आदि
देवियों से युद्ध में तुषित
देवों का विदेह होना,
कायावरोहण
लिङ्ग पूजा से पुन:
देह
प्राप्ति -
इति
मातृगणं
क्रुद्धं
मर्दयंतं
सुरास्तदा
।
दृष्ट्वाभ्युपगता
देवास्तुषिता
युद्धलालसा
।।),
हरिवंश
१.३.६२
(चाक्षुष
मन्वन्तर के तुषित देवों के
ही वैवस्वत मन्वन्तर में
द्वादश आदित्य होने का उल्लेख
-
चाक्षुषस्यान्तरे
पूर्वमासन्
ये
तुषिताः
सुराः
।
वैवस्वतेऽन्तरे
ते
वै
आदित्या
द्वादश
स्मृताः
।। ),
लक्ष्मीनारायण
१.७९.२२(तारा
हेतु देवासुर सङ्ग्राम में
तुषित देवों की उत्पत्ति?
- सुराऽसुरविनाशोऽभूत्सर्वेषां
कदनं
महत्
।संजातं
च
तदा
दैवास्तुषितानामकाश्च
वै
।।),
२.१८१.३२
(तुषित
नामक देव को कन्या -
शाप
से राक्षसत्व प्राप्ति,
श्रीहरि
के स्पर्श से शाप से मुक्ति-
तुषितो
नाम
देवोऽहं
पृथ्व्यामत्र
यदृच्छया
।
भ्रमितुं
त्वागतस्त्वत्र
मया
दृष्टाऽत्र
सुन्दरी
।।),
३.५३.१००
(जय
नामक देवों की तुषित संज्ञा
होने का कथन -
जया
नाम
सुरास्ते
वै
सर्वे
भिन्नप्रवृत्तयः
।।
त
एव
तुषिता
बोध्याः
सत्यास्त
एव
सन्ति
च
।
)
।
tushita
तुषिता ब्रह्माण्ड १.२.३६.८(स्वारोचिष मन्वन्तर में क्रतु व तुषिता के तुषित गण संज्ञक १२ देवों के नाम - पारावताश्च विद्वांसो द्वावेव तु गणौ स्मृतौ । तुषितायां समुत्पन्नाः क्रतोः पुत्राः स्वरोचिषः ।। पारावताश्च वासिष्ठा द्वादश द्वौ गणौ स्मृतौ । छंदजाश्च चतुर्विंशद्देवास्ते वै तदा स्मृताः ।।), २.३.३.११(स्वारोचिष मन्वन्तर के तुषित देवगण का चाक्षुष मन्वन्तर में साध्य देवगण के रूप में जन्म लेना - स्वारोचिषेंऽतरेऽतीता देवा ये वै महौजसः । तुषिता नाम तेऽन्योन्यमूचुर्वै चाक्षुषेंऽतरे ॥), २.३.३.११४ (स्वारोचिष मन्वन्तर में श्रीहरि की तुषिता में अजित नाम से समुत्पत्ति - ततः पुनः स वै देवः प्राप्ते स्वारोचिषेऽन्तरे ॥ तुषितायां समुत्पन्नो ह्यजितस्तुषितैः सह ।), वायु ६२.८/२.१.८(स्वारोचिष मन्वन्तर में क्रतु व तुषिता के तुषित देव पुत्रों के नाम), ६७.३५/२.६.३५(स्वारोचिष मन्वन्तर के तुषिता से उत्पन्न देवगण के पूर्व और अपर मन्वन्तरों में जन्मों का कथन), विष्णु ३.१.३७(स्वारोचिष मन्वन्तर में तुषिता से उत्पन्न तुषित देवगण के पूर्व व अपर मन्वन्तरों में जन्मों का वृत्तान्त ) । tushitaa
तुष्क लक्ष्मीनारायण २.५७.७५ (कालकर्ण द्वारा तुष्क दैत्य का वध ) ।
तुष्ट ब्रह्माण्ड १.२.१९.४६(तुष्टा : शाल्मलि द्वीप की ७ प्रधान नदियों में से एक), वायु ९६.१३२/२.३४.१३२(युद्धतुष्ट : उग्रसेन के कंस - प्रधान ९ पुत्रों में से एक ) । tushta
तुष्टि देवीभागवत ७.३०.७७ (विश्वेश्वर क्षेत्र में देवी की तुष्टि नाम से स्थिति), ९.१.२० (परमात्म - भक्ति के तुष्टि, पुष्टि आदि होने का उल्लेख), ९.१.१०२ (अनन्त - पत्नी), नारद १.६५.२८(चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक), १.६६.८७ (मातृका न्यास के अन्तर्गत तुष्टि के साथ माधव के न्यास का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.१०(दक्ष व प्रसूति - कन्या, चन्द्रमा - भार्या, हर्ष व दर्प - माता), २.१.१०६ (अनन्त - पत्नी, तुष्टि के विना समस्त लोक की असन्तुष्टता का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.१.९.४९(दक्ष व प्रसूता - पुत्री, धर्म की पत्नियों में से एक), १.१.९.५९(सन्तोष - माता), २.३.७१.१३३(उग्रसेन के कंस - प्रधान ९ पुत्रों में से एक), २.३.७१.१७२(वसुदेव व मदिरा के पुत्रों में से एक), ३.४.१९.७१(गेय चक्र के चतुर्थ पर्व पर की शक्तियों में से एक), ३.४.३५.९२(चन्द्रमा की कलाओं में से एक), ३.४.४४.७१(५१ वर्णों के गणेशों की शक्तियों में से एक), भागवत ४.१.७(तुषित देवगण के अन्तर्गत तोष, प्रतोष, संतोष आदि नामों का उल्लेख, तुष्टि - पुत्र), ४.१.४९(दक्ष - पुत्री, धर्म - पत्नी, मुद - माता), ९.२४.२४ (तुष्टिमान् : उग्रसेन के ९ पुत्रों में से एक), मत्स्य २३.२४(तुष्टि द्वारा पति धाता को त्याग सोम की शरण में जाने का उल्लेख), वायु १०.२५(दक्ष व प्रसूता - पुत्री, धर्म की पत्नियों में से एक), १०.३४(लाभ - माता), विष्णु १.७.२३ (दक्ष व प्रसूति की २४ कन्याओं में से एक, सन्तोष - माता), १.८.१९ (श्रीविष्णु व लक्ष्मी की अभिन्नता प्रदर्शक उपमाओं में विष्णु को सन्तोष तथा लक्ष्मी को तुष्टि कहना), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२०(विष्णु के संतोष व लक्ष्मी के तुष्टि होने का उल्लेख), १.३८२.१८२(मरीचि की ४ कन्याओं में से एक), २.१४०.८३(मानस तुष्टि प्रासाद के लक्षण) । tushti
तुहिन पद्म ६.६.२२ (वल असुर के एक अङ्ग के तुहिनाद्रि पर गिरने का उल्लेख )
तुहुण्ड वामन ६८.२५ (अन्धक - सेनानी, गणेश से युद्ध), स्कन्द ५.१.५७ (तुहुण्ड दानव की शान्ति हेतु देवों का महाकाल वन में शिप्रा तट पर जाना), ५.२.१६ (मुण्ड - पुत्र, देवों पर विजय ) ।
तूणीर विष्णुधर्मोत्तर १.६६.१०(शिव द्वारा परशुराम को अक्षय सायकों वाले तूण प्रदान करने का कथन ; परशुराम द्वारा कार्यसिद्धि के पश्चात् अगस्त्य को तूण प्रदान), कथासरित् ८.३.७७ (भुजङ्ग की तूणीर रूपता, सूर्यप्रभ को तूणरत्न की सिद्धि ) । tuuneera /tooneera/ tunira
तूबरक महाभारत कर्ण ६९.७३(तूबरक/ दाढी - मूंछ रहित कहने पर भीमसेन के कुपित होने का उल्लेख ) ।
तूल लक्ष्मीनारायण ३.२०३ (तूलवायि नामक सूत्रवायक द्वारा हरि भक्ति से मोक्ष प्राप्ति की कथा), कथासरित् १०.५.२८ (मूर्ख तूलिक / रुई विक्रेता की कथा ) । toola /tuula
तृण मत्स्य १९६.१३(तृणकर्णि : त्र्यार्षेय प्रवरों के सन्दर्भ में एक ऋषि तृणकर्णि का उल्लेख), शिव ७.२.२.५० (दैत्यजित् होने के सम्बन्ध में देवों के परस्पर विवाद करने पर यक्ष रूप धारी शिव द्वारा तृण की सहायता से समाधान), स्कन्द २.२.४४.६ (तृणराज : विष्णु की १२ मूर्तियों की क्रमश: १२ मासों में पूजा हेतु निर्धारित १२ फलों में से एक), २.२.४५ (दमनक नामक तृण की उत्पत्ति की कथा), ४.१.२१.४० (तृणों में कुश की श्रेष्ठता), हरिवंश २.८०.३० (तृणराज /ताड फल सदृश पीन स्तनों की प्राप्ति हेतु व्रत का कथन), कथासरित् १.६.६३ (चतुरिका वेश्या का सामवादी ब्राह्मण को सुवर्णतृण / अत्यल्प स्वर्ण लौटाना ) । trina
तृणञ्जय ब्रह्माण्ड ३.४.४.६३(तृणञ्जय द्वारा कृतञ्जय से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर भरद्वाज को सुनाने का उल्लेख), वायु १०३.६३/२.४२.६३(तृणञ्जय द्वारा कृतञ्जय से वायु पुराण सुनकर भरद्वाज को सुनाने का उल्लेख ) । trinanjaya
तृणबिन्दु देवीभागवत १.३.३२ (२४वें द्वापर में व्यास), पद्म २.३९.४ (रेवा तट पर तृणबिन्दु ऋषि के आश्रम में वेन द्वारा तप), ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२३(२३वें द्वापर में वेदव्यास के रूप में तृणबिन्दु का उल्लेख), २.३.८.३७(११वें मन्वन्तर में बुध - पुत्र, अलम्बुषा - पति, इडविडा - पिता), ३.४.४.६४(तृणबिन्दु द्वारा सोमशुष्म से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर दक्ष को सुनाने का उल्लेख), भागवत ९.२.३० (बन्धु - पुत्र, अलम्बुषा - पति , इडविडा - पिता, दिष्ट वंश), मत्स्य १९३.१३ (शापदग्ध तृणबिन्दु ऋषि की तीर्थ प्रभाव से शाप से मुक्ति), लिङ्ग १.२४.१०७ (२३वें द्वापर में व्यास), वायु २३.२०३/१.२३.१९१(२३वें द्वापर में तृणबिन्दु नामक व्यास के काल के शिव अवतार व अवतार - पुत्रों के नाम), ७०.३० (राजर्षि तृणबिन्दु द्वारा स्वकन्या इडविला को पुलस्त्य को देना, इडविला व पुलस्त्य से विश्रवा की उत्पत्ति), १०३.६४/२.४२.६४(वायु पुराण के श्रोता - वक्ता की शृङ्खला में तृणबिन्दु का उल्लेख), विष्णु ३.३.१७(२३वें द्वापर में व्यास के रूप में तृणबिन्दु का उल्लेख), ४.१.४६(बुध - पुत्र, दिष्ट वंश, इलविला - पिता, पत्नी अलम्बुषा से प्रचलित वंश का वर्णन), शिव ३.५.३३ (२३वें द्वापर में व्यास), स्कन्द ७.१.१३८ (तृणबिन्दु लिङ्ग का माहात्म्य), वा.रामायण ७.२.७ (तृणबिन्दु के आश्रम में पुलस्त्य मुनि का तप, मुनि के दृष्टिपथ में आगमन से तृणबिन्दु - कन्या द्वारा गर्भधारण, तृणबिन्दु द्वारा कन्या मुनि को प्रदान, कन्या से विश्रवा के जन्म का वर्णन), महाभारत शल्य ६१.४६(पाण्डवों के मृगया हेतु तृणबिन्दु के आश्रम को जाने पर जयद्रथ द्वारा द्रौपदी को क्लेश पहुंचाने का उल्लेख ) । trinabindu
तृणावर्त गर्ग १.१४ (कृष्ण द्वारा तृणावर्त का उद्धार, पूर्व जन्म में राजा सहस्राक्ष होने का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त ४.११ (कृष्ण द्वारा तृणावर्त का मोक्ष), भागवत १०.७.२० (कंस के सेवक तृणावर्त नामक दैत्य द्वारा बवंडर रूप से कृष्ण को उडाना, तृणावर्त के उद्धार की कथा ) । trinaavarta
तृतीया अग्नि १७८.२ (चैत्र शुक्ल तृतीया में करणीय गौरी - शंकर पूजन व न्यासादि का वर्णन), १७८.२७ (चैत्र में दमनक तृतीया तथा मार्गशीर्ष में आत्म तृतीया व्रत का कथन - दमनकतृतीयाकृत्चैत्रे दमनकैर्यजेत् । आत्मतृतीया मार्गस्य प्रार्च्येच्छाभोजनादिना ॥), कूर्म २.४२.२२/२.४०.१५ (शुक्ल पक्ष की तृतीया में कन्या तीर्थ में स्नान का उल्लेख), गरुड १.११६.४ (तृतीया तिथि में त्रिदेव, गौरी - विघ्नेश - शंकर पूजा - तृतीयायां त्रिदेवाश्च गौरीविघ्नेशशङ्कराः ॥), १.१२० (रम्भा तृतीया व्रत का वर्णन), १.१२९.४ (विभिन्न मासों में तृतीयाव्रतविधि का कथन), देवीभागवत ८.२४.३७ (द्वादश मासों की शुक्ल तृतीया तिथियों में देवी को नैवेद्य अर्पण का विधान), नारद १.११२ (तृतीया तिथि के व्रतों का वर्णन : गौरी पूजा, रम्भा व्रत, अक्षय तृतीया, विष्णु गौरी व्रत आदि), १.११२.४५(आश्विन् शुक्ल तृतीया को बृहद् गौरी तृतीया व्रत की विधि), २.२३.७० (तृतीया को लवण का वर्जन - लवणे तु तृतीयायां सप्तम्यां पिशिते शुभे ।।), पद्म १.२२.१०६ (माघ शुक्ल तृतीया में करणीय रस कल्याणिनी व्रत का विधान), १.२९.३२ (चैत्र शुक्ल तृतीया में सौभाग्य शयन व्रत, गौरी - शंकर न्यास), ५.३६.७१ (वैशाख शुक्ल तृतीया में सीता की शुद्धि परीक्षा), भविष्य १.२१ (विभिन्न मासों में गौरी तृतीया व्रत विधि का वर्णन), ४.२५.२५(चैत्र तृतीया को सौभाग्याष्टकव्रत की विधि), ४.२५+ (विभिन्न तृतीया व्रतों का माहात्म्य), मत्स्य ६०.३३ (चैत्र शुक्ल तृतीया : सौभाग्यशयनव्रत में सती - शिव की आराधना व न्यास), ६२ (अनन्त तृतीया व्रत : ललिता न्यास, मास अनुसार पुष्प द्वारा पूजा), ६३ (रस कल्याणिनी तृतीया व्रत : ललिता न्यास, मासों में भक्ष्याभक्ष्य), ६४ (आर्द्रानन्दकरी तृतीया : शिव - पार्वती न्यास), ६५ (वैशाख शुक्ल तृतीया : अक्षय तृतीया व्रत, विष्णु पूजा), विष्णुधर्मोत्तर १.२२९.४ (वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.२२१.१८(तृतीया तिथि को पूजनीय देवताओं के नाम तथा फल), शिव ५.५१.५४ (विभिन्न मासों की तृतीया तिथि में करणीय व्रत तथा उनका माहात्म्य), स्कन्द २.१.२९.५१ (वैशाख शुक्ल तृतीया : विष्णु को गन्ध लेपन), ३.२.१८.११७ (माघ कृष्ण तृतीया : श्यामला द्वारा कर्णाटक दैत्य का वध), ४.१.४९.८१ (चैत्र शुक्ल तृतीया : मङ्गला गौरी की पूजा), ४.२.७०.६ (भाद्रपद कृष्ण तृतीया : विशालाक्षी देवी के समक्ष जागरण), ४.२.७०.४१ (चैत्र शुक्ल तृतीया : चित्रघण्टा आदि की पूजा), ४.२.७५.६७ (राध तृतीया को त्रिलोचन लिङ्ग की पूजा - शुक्लराधतृतीयायां स्नात्वा पैलिपिले ह्रदे ।), ४.२.८०.८ (मनोरथ तृतीया को विश्वभुजा देवी की पूजा, शची द्वारा मनोरथ तृतीया व्रत का चीर्णन), ४.२.८२.१३७+ (अभीष्ट तृतीया व्रत की विधि व माहात्म्य, मित्रजित् - पत्नी मलयगन्धिनी द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का चीर्णन), ४.२.९०.२२ (चैत्र शुक्ल तृतीया : पार्वतीश लिङ्ग की अर्चना), ५.२.४६.१२८ (मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया में करणीय अभीष्ट तृतीया व्रत का वर्णन), ५.३.२६.१०५ (तृतीया तिथि में लवण प्रदान से पति तथा सौभाग्य प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.२६.१३४ (चैत्र शुक्ल तृतीया में करणीय दुःख व दौर्भाग्य नाशक मधूकतृतीयाव्रत विधि का वर्णन), ५.३.१०६.९ (कामद तीर्थ में ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया में पञ्चाग्नि सेवन से सम्पूर्ण पापों के नाश का उल्लेख), ६.४२+ (चैत्र शुक्ल तृतीया : विश्वामित्र व मेनका का आख्यान), ६.१३० (मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया :शाण्डिली द्वारा याज्ञवल्क्य - पत्नी कात्यायनी को बोध, पंचपिण्डा गौरी की पूजा), ६.१३०.३५ (गौरी द्वारा स्थापित पञ्च पिण्ड पूजा), ६.१५३.४८(चैत्र शुक्ल तृतीया : रूप तीर्थ का माहात्म्य, तिलोत्तमा की कथा), ६.१७८ (श्रावण कृष्ण तृतीया : पद्मावती द्वारा उमा - महेश्वर पूजा से विष्णु - पत्नी लक्ष्मी बनना), ७.१.५७ (माघ तृतीया : सौभाग्य प्राप्ति हेतु गौरी व्रत), ७.१.९८.१८( भाद्रपद कृष्ण तृतीया को धरित्री लिङ्ग पूजा से अश्वमेधफल प्राप्ति), ७.१.११६ (माघ तृतीया : शङ्खोदक तीर्थ में कुण्डेश्वरी की पूजा), ७.१.१२० (चैत्र शुक्ल तृतीया : गोपीश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.१.१२४ ( माघ शुक्ल तृतीया : सौभाग्य प्रदायक गौरी की पूजा), ७.१.१५७ (माघ तृतीया : सत्यभामेश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.१.१८५ (माघ तृतीया : वडवा विग्रह रूप में सरस्वती पूजा), ७.१.२६१ (वैशाख शुक्ल तृतीया :न्यङ्कुमती नदी में स्नान), ७.१.२६५ (चैत्र शुक्ल तृतीया : कनकनन्दा देवी की पूजा), ७.१.२८७ (अजापालेश्वरी देवी की पूजा), ७.१.२९१ (चैत्र तृतीया : भद्रकाली की पूजा), ७.१.३४८ (श्रावण शुक्ल तृतीया : मन्त्र विभूषणा गौरी की पूजा), ७.३.१२.४(माघ शुक्ल तृतीया : रूप तीर्थ में स्नान), लक्ष्मीनारायण १.२०५.५३(वागधिष्ठातृदेवी या सरस्वती तृतीयका ।), १.२६८ (१२ मासों की तृतीया तिथि में करणीय विभिन्न व्रतों का वर्णन), १.३१० (पुरुषोत्तम मास में द्वितीय पक्ष की तृतीया तिथि में किए गए व्रत के प्रभाव से राजा व रानी को दिव्य शरीर की प्राप्ति), १.४८६.३ (चैत्र शुक्ल तृतीया : मध्याह्न सूर्यवार के प्रभाव से जल में प्राण त्याग करने पर मृगी के मेनका नामक अप्सरा बनने का उल्लेख), १.५००.५८ (माघ शुक्ल तृतीया :शनिवार के प्रभाव से कर्णोत्पला को नदी में स्नान से दिव्य रूप की प्राप्ति), १.५०१.११५ (वैशाख तृतीया में कात्यायन द्वारा वास्तु पूजा, वास्तु पूजा से दोष शान्ति), २.१२३.३० (ओबीरात्रीश नदी के सङ्गम पर तृतीय यज्ञ का आयोजन, पौष कृष्ण तृतीया तिथि में समारम्भ तथा नवमी में समापन का उल्लेख), २.२२१.५६ (आश्विन कृष्ण तृतीया को श्रीहरि के बाल्यरज नृप की राजधानी में गमन आदि का वर्णन), २.२४०.८ (सहस्ररूपधारी वीतिहोत्र महायोगी का मार्गशीर्ष तृतीया में हरि दर्शनार्थ अश्वपट्ट सरोवर पर आगमन), ३.१०३.३ (तृतीया तिथि में स्वर्ण , गो आदि के दान से श्रेष्ठ वाजि प्राप्ति का उल्लेख - तृतीयायां तथा दत्वा लभते श्रेष्ठवाजिनः ।।), ४.६१.६६ (चैत्र शुक्ल तृतीया में सारहास मण्डलवर्ती लोगों को मुक्ति प्राप्ति), ४.७०.१८ (वैशाख शुक्ल तृतीया में लोमश ऋषि का आगमन व संहिता पूजन ) । triteeyaa/ tritiya
तृप्ति वायु ३१.५ (देवों के अनेक गणों में से एक तृप्तिमान् गण), लक्ष्मीनारायण २.१७१.१०५ (अवभृथ स्नान से अवभृथात्मक कुमार व तृप्ति रूप कुमारी का प्राकट्य, श्रीहरि द्वारा कुमारी के लिए कुमार का दान), २.२४६.७८ (ज्ञान से शान्ति, शान्ति से सुख, सुख से तृप्ति, तृप्ति से त्याग, त्याग से हरि में स्थिति ) । tripti
तृषा नारद १.९१.७४ (तत्पुरुष शिव की अष्टमी कला), ब्रह्माण्ड ३.४.२८.५० (विशुक्र द्वारा तृषास्त्र के प्रयोग से ललिता की सेना में तृषा की उत्पत्ति, सुधा वर्षण से शान्ति), लक्ष्मीनारायण २.१०५.५४ (रमा व उर्वशी का शिखर पर जल हेतु उग्र तप, दोनों के तृषा योग से श्रीहरि की तृषा का वर्धन, विश्व का तृषा से पीडन, शिखर पर जल प्रापण से तृषा शान्ति का वर्णन), २.२५३.४ (क्षुधा व तृषा की शरीर रूपी शकट के वृषभों से उपमा ) । trishaa
तृष्णा गरुड १.२१.४ (वामदेव की १३ कलाओं में से एक), देवीभागवत १२.६.७२ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद २.२८.७२ (तृष्णा की वैतरणी नदी से उपमा), पद्म १.१९.२५०, २५२ (तृष्णा के दोष), विष्णु १.८.३३ (विष्णु व लक्ष्मी की अभिन्नता प्रदर्शक उपमाओं में विष्णु का लोभ तथा लक्ष्मी का तृष्णा रूप से कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.४८.१८ (महादेव - रूप - निर्माण के अन्तर्गत तृष्णा, विशाला, चित्रा के व्याघ्रचर्म होने का उल्लेख ?), महाभारत आश्वमेधिक ३१.२(३ राजस गुणों में से एक), योगवासिष्ठ १.१५.१२, १३, १६ (तृष्णा की कुटजमञ्जरी, तडिल्लता तथा तन्तु से उपमा), १.१७ (तृष्णा के दोषों का वर्णन), १.१८.१३(तृष्णा की भुजङ्गमी से उपमा), ५.१५ (अनर्थ की बीजभूत तृष्णा का वर्णन), ५.२१.५, १७, २७ (तृष्णा - त्याग की आवश्यकता तथा त्याग से लाभ), ५.३५.५२ (तृष्णा करञ्ज कुञ्जों का उल्लेख), ६.१.७८.४(वर्षा में तृष्णा के दीर्घ होने तथा तृष्णा रूपी गृध्र के मांस पर टूट पडने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४ (तृष्णा रूपी यक्षिणी, एषणा रूपी राक्षसी तथा चिन्ता रूपी पिशाची के निरयात्मिका होने का उल्लेख), ३.३०.४६(वितृष्णा के तीन साधनों विद्या, वृत्ति, वशित्व का उल्लेख), ४.२६.५६ (नारायण व राधाकान्त की शरण से तृष्णा से मुक्ति का कथन), महाभारत शान्ति १७७(मङ्कि गीता के अन्तर्गत धन आदि की तृष्णा त्याग का उपदेश), २७६(तृष्णा के परित्याग के विषय में माण्डव्य मुनि व जनक का संवाद ) ; द्र. वितृष्णा । trishnaa
तेज अग्नि ५१.१०(तेज के स्वरूप का कथन : चण्ड, महावक्त्र आदि), गरुड १.८७.३२ (तेजस्वी : वैवस्वत मन्वन्तर में इन्द्र), देवीभागवत ५.८.३३ (देवों के शरीर से नि:सृत तेज से महिषासुर वधार्थ देवी की उत्पत्ति), ९.१.१२०(प्रभा व दाहिका - पति), १०.१२.८ (देवों के तेज से महिषासुर मर्दिनी देवी का प्राकट्य), पद्म १.३६.४३(ब्रह्मा द्वारा लोकपालों व देवों के तेज से नृप/राजा के निर्माण का कथन), ५.३० (शत्रुघ्न का अश्व सहित तेज:पुर नामक नगर में आगमन), ६.९.१९ (देवों की प्रार्थना पर शंकर द्वारा सर्व देवों के तेज से चक्र का निर्माण), ६.१८०.२४ (हंसों द्वारा राजा ज्ञानश्रुति के तेज की अपेक्षा रैक्य मुनि के तेज को प्रबल बताना, ज्ञानश्रुति का रैक्य से मिलन), ६.१८०.१००(गीता के छठें अध्याय के पाठ से रैक्य ऋषि की तेजोराशि में वृद्धि का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.११.५२(शोभा गोपी की देह से जनित स्निग्ध तेज का विश्व में विभाजन), २.११.५९(प्रभा गोपी की देह से जनित तीक्ष्ण तेज का विश्व में विभाजन), ब्रह्माण्ड १.२.११.४(बल - पुत्र, नारायण - पौत्र), १.२.१४.६४(तेजस : सुमति - पुत्र, इन्द्रद्युम्न - पिता, नाभि वंश), २.३.३२.३७(वैष्णव तेज के दुर्लङ्घ्य होने का उल्लेख), ३.४.१.१४(तेजोरश्मि : २० सुतपा देवों में से एक), भविष्य १.१२३.७८ (सूर्य के छांटे हुए तेज से ब्रह्मा द्वारा देवों, यक्षों, विद्याधरों के शस्त्रास्त्रों का निर्माण, सूर्य के पास तेज का षोडश भाग शेष रहने का कथन), १.१५३.२९ (ब्रह्मादि देवों के अहंकार से वशीभूत होने पर अहंकार मार्जन हेतु सूर्य तेज का प्राकट्य, देवों द्वारा सूर्य की स्तुति), मत्स्य ३.२४(स्पर्श तन्मात्रा से तेज व तेज विकार से वारि की उत्पत्ति का उल्लेख ; तेज के त्रिगुण होने का उल्लेख), २२६.९(नृप हेतु इन्द्र, अर्क, वात आदि के तेजोव्रत चीर्णन का निर्देश ), मार्कण्डेय ७९/८२.९ (देवों के शरीर से नि:सृत तेज से देवी के विभिन्न अङ्गों का प्राकट्य), वायु ३४.८४(अग्नि के एकतेज विभु होने का उल्लेख), १००.१५/२.३८.१५(तेजोरश्मि : प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० सुतपा देव गण में से एक), १००.१५०/२.३८.१५०(प्रलय काल में अग्नि के तेज से चतुर्लोक के दहन तथा अतिवृष्टि का वर्णन), १०२.१०/२.४०.१०(प्रत्याहार काल में रसों के तेज में तथा तेज के वायु में लीन होने का कथन), विष्णु २.१.३६(तेजस : सुमति - पुत्र, इन्द्रद्युम्न - पिता), विष्णुधर्मोत्तर १.१७२.३० (समस्त तेजस्वियों में वैष्णव तेज की स्थिति का कथन), शिव ५.४९.८ (गर्वोन्मत्त देवों के समक्ष तेज का प्रकट होना व देवों के गर्व को खण्डित करना, तेज का उमा देवी में रूपान्तरित होना), ७.१.२८.३ (तेज, अमृत व रस में भेद का वर्णन ; तेज के सूर्यात्मक व अनलात्मक होने तथा विद्युन्मय होने का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१७१ (शतरुद्रिय प्रसंग में ऋक्षों द्वारा तेजमय लिङ्ग की भग नाम से पूजा का उल्लेख), ३.१.६.३६(देवों के तेज से दिव्य नारी के विभिन्न अंगों का निर्माण), ५.१.४.४३ (तेज में अकार अग्नि की स्थिति), ५.३.३५.८ (तेजोवती : मय दानव की भार्या, मन्दोदरी - माता), ७.१.११.१४२ (सूर्य तेज का भ्रमि पर कर्तन, अस्त्रों व द्यौ आदि की उत्पत्ति), योगवासिष्ठ ६.२.९१ (तेजस धारणा द्वारा तैजस जगत का वर्णन), ६.२.१३७.२३ (ह्रदन्तर में तेजोधातु में जीव की स्थिति का कथन ; जन्तु के ह्रदय में प्रवेश करके तेज धातु में प्रवेश का कथन), वा.रामायण ७.८५.९ (विष्णु के तेज का वृत्र वध हेतु त्रेधा विभक्त होना), महाभारत वन २९.१७(उत्पन्न क्रोध को प्रज्ञा से बाधित करने वाले की तेजस्वी संज्ञा), २९.२०(तेज के गुण : दक्षता, अमर्ष, शौर्य, शीघ्रत्व), आश्वमेधिक ५०.४६ (तेज के शुक्ल, कृष्ण आदि १२ रूपों के नाम), लक्ष्मीनारायण २.२४५.८० (ध्यान से तेज के वर्धन का कथन), २.२८३.५८( अम्बा द्वारा बालकृष्ण को तेजोमणि देने का उल्लेख), कथासरित् ३.३.३४(राजा विहितसेन की पत्नी तेजोवती द्वारा उपायपूर्वक विहितसेन के जीर्ण ज्वर का उपचार), ३.४.७९ (तेजस्वती : गुणवर्मा की कन्या , आदित्यसेन द्वारा पाणिग्रहण), ६.४.७२ (राजा विक्रमसेन की कन्या तेजस्वती की कथा), ८.२.१७७ (कुबेर - कन्या, सुनीथ - पत्नी), ८.४८५ (विद्याधरराज कालकम्पन द्वारा तेजिक का वध), ८.५.२२ (तेज:प्रभ : श्रुतशर्मा - सेनानी, सूर्यप्रभ के सेनानी कालकम्पन के साथ द्वन्द्व युद्ध), ८.७.३८ (प्रकम्पन द्वारा तेज:प्रभ का वध ), वास्तुसूत्रोपनिषद २.९(शिल्प में तेजों के सरल रेखाएं होने का उल्लेख), २.११(प्राजापत्य वृत्त के द्वारा तेज को दर्शाने आदि का कथन) ; द्र. अग्नितेज, शततेजा, वृकतेज । teja
Vedic References on Tejas
तेजस/तैजस पद्म ३.२७.५४ (तैजस तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य – तैजस तीर्थ में गुह का अभिषेक), वायु ६.५६/१.६.५२(तैजस सर्ग : ब्रह्मा के चतुर्थ अर्वाक् स्रोत अपर नाम वाले मनुष्य साधकों में व्याप्त तेजस सर्ग के गुणों का कथन), ३३.५४(सुमति - पुत्र, इन्द्रद्युम्न - पिता), ६५.३३/ २.४.३३(ब्रह्मा के अर्वाक् तेजस का तम, रज आदि गुणों को प्राप्त करने व तम में स्थित तेज से सब भूतों की उत्पत्ति का कथन), शिव ७.२.३८.२६(तैजस ऐश्वर्य के अन्तर्गत २४ सिद्धियों के नाम), योगवासिष्ठ ६.२.९१ (वसिष्ठ द्वारा तैजस तत्त्व की धारणा से अनुभूत तैजस जगत का वर्णन ) । tejasa/taijasa
तेजोवती नारद १.६६.१२९(विरोचन गणेश की शक्ति तेजोवती का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७३(५१ वर्णों के गणेशों की शक्ति देवियों में से एक), वायु ३४.८१(अग्नि की तेजोवती सभा का उल्लेख ) ।
तैत्तिर पद्म १.४६.७८ (तैत्तिरी : अन्धकासुर के रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.३५.७५(तैत्तिरीयों के खिलों का परक्षुद्र नाम से उल्लेख), भविष्य ३.४.६.५० (तिमिरलिङ्ग नामक म्लेच्छ राजा का तैत्तिर देश में दुर्ग निर्माण, इन्द्र द्वारा नाश), भागवत १२.६.६४(याज्ञवल्क्य द्वारा छर्दि से विसृष्ट यजुओं को वैशम्पायन - शिष्यों द्वारा तित्तिर बन कर ग्रहण करने का उल्लेख ) मत्स्य ४४.६२ (तैत्तिरि : कपोतरोमा - पुत्र, सर्प - पिता, बभ्रु वंश), ११४.४९(तैत्तिरिक : अपरान्त/पश्चिम के जनपदों में से एक), वायु ६१.६६(तैत्तिरीयों के खिलों का परक्षुद्र नाम होने का उल्लेख), विष्णु ३.५.१३(याज्ञवल्क्य द्वारा छर्दि से विसृष्ट यजुओं को वैशम्पायन - शिष्यों द्वारा तित्तिर बन कर ग्रहण करने का उल्लेख),हरिवंश १.३७.१८ (तैत्तिरि : कपोतरोमा - पुत्र, पुनर्वसु - पिता, बभ्रु वंश), लक्ष्मीनारायण १.५०४.७७ (भरद्वाज - पुत्र, कपिञ्जल - पौत्र, कृष्णद्वैपायन व्यास व शुकी - प्रपौत्र, तैत्तिर द्वारा कामाक्षी देवी की आराधना का वृत्तान्त ) । taittira
तैल गरुड १.१७४ (ओषधि - सिद्ध तैल के निर्माण की विधि), नारद २.२३.६९ (षष्ठी तिथि में तैल के व्यवहार से पाप होने का उल्लेख), पद्म २.८६.६९ (अग्नि के संयोग से वर्तिका द्वारा दीपक में स्थित तैल के शोषण के समान कर्म रूपी तैल के शोषण का उल्लेख, काया वर्ति, कर्म तैल), ६.१२२.८ (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रात: काल स्नान के संदर्भ में तैल में लक्ष्मी व जल में गङ्गा की उपस्थिति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.५५ (प्रतप्त तैल कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), भविष्य १.१९७.१७ (घृत, कटुतैल व मधूक तैल युक्त दीपदान का फल), मत्स्य १९७.४(तैलप : आत्रेय गोत्रकार ऋषियों में से एक), २०१.३८(तैलेय : ५ धूम्र पराशरों में से एक), वराह २०७.५२ (घृत से तेज व तैल से प्राणद्युति आदि की प्राप्ति का उल्लेख), शिव १.१६.४९ (तैलदान से कुष्ठ से मुक्ति), स्कन्द २.४.९.३२ (कार्तिक चतुर्दशी को तैल में लक्ष्मी के निवास का उल्लेख), ५.१.२१.२५ (हनुमत्केश्वर तीर्थ में तैलाभिषेक से रोगनाश तथा ग्रहपीडा की अनुत्पत्ति का उल्लेख), ५.१.३५.३ (स्वर्णक्षुर तीर्थ में बलि को तैल अभिधान प्रदान से सिद्धि प्राप्ति तथा शिवपुर गमन का उल्लेख), ५.३.४४.२९ (शूलभेद तीर्थ में तैलबिन्दु के असर्पण? का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.२.४.४३(अहं की दु:तैल से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८४ (नरक में प्रतप्त तैल कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), कथासरित् ६.१.४३ (वैश्यपुत्र को प्रदत्त तैल पात्र में तल्लीनता के समान मुक्ति हेतु आत्मा में तल्लीनता का कथन), १०.५.१८८ (तैल मूर्ख की कथा ) । taila
तैलङ्ग गर्ग ७.१०.२० (तैलङ्ग देश के अधिपति विशालाक्ष द्वारा प्रद्युम्न को भेंट )
तोटक मत्स्य १८८.६६(बाण द्वारा तोटक छन्द में महादेव की स्तुति ) ।
तोण्डमान स्कन्द २.१.९ (सुवीर व नन्दिनी - पुत्र, पद्मा - पति, पञ्चरङ्गी शुक का पीछा, शुक मुनि से उपदेश प्राप्ति), २.१.१० (ब्राह्मण द्वारा तोण्डमान के पास धरोहर रखी पत्नी की मृत्यु व संञ्जीवन, कुम्भकार से भेंट, मोक्ष), लक्ष्मीनारायण १.४०१.६९ (रङ्गदास का जन्मान्तर में तोण्डमान नामक नृप बनना, नृप द्वारा श्रीवाराह भूमिका में प्राकार व पत्तन का निर्माण ) । tondamaana
तोतला नारद १.८८.१४१(तोतला देवी के ध्यान का कथन, त्वरिता देवी का अपर नाम? ) ।
तोतादरी भविष्य ३.२.३२.१ (तोतादरी निवासी बोपदेव द्विज के प्रति श्रीहरि द्वारा भागवत माहात्म्य का कथन ) ।
तोमर अग्नि २५२.१० (तोमर अस्त्र के कर्म), महाभारत आदि १२३.३१दाक्षिणात्य पृष्ठ ३६९(युधिष्ठिर द्वारा शुक से तोमर अस्त्र विद्या की प्राप्ति का उल्लेख )
तोय/तोया ब्रह्माण्ड १.२.१६.३३(विन्ध्य से प्रसूत नदियों में से एक), मत्स्य ११४.२८(विन्ध्य से प्रसूत नदियों में से एक), वायु ४५.१०३(विन्ध्य से प्रसूत नदियों में से एक), ४९.४२(शाल्मलि द्वीप की नदियों में से एक), स्कन्द ३.२.६.९६(तोय दान से सुरूप होने का उल्लेख), ५.३.५०.२४ (तोय दान से यमलोक के अदर्शन का उल्लेख ) । toya
तोरण विष्णुधर्मोत्तर ३.९८ (प्रासाद प्रतिष्ठा के संदर्भ में तोरणों के ४ दिशाओं में कृतादि ४ युग होने का कथन), ३.११६ (तोरण उद्धार की विधि का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.१४९.४(मण्डप की विभिन्न दिशाओं में तोरण पूजन विधि का वर्णन), ४.१०१.९५ (कृष्ण - पत्नी दोला के युगलापत्य में पुत्र का नाम ) torana
तोशल गर्ग ५.१२.१ (उतथ्य - पुत्र, पिता के शाप से मल्ल बनना), भागवत १०.३६.२१(कंस द्वारा तोशल आदि मल्लों को कृष्ण के हनन का निर्देश), १०.४४.२७(कृष्ण द्वारा शल व तोशल के वध का कथन), वायु ४५.१३३(विन्ध्य पृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), विष्णु ५.२०.७९(कृष्ण द्वारा वाम मुष्टि प्रहार से तोशल मल्ल का हनन करने का उल्लेख), हरिवंश २.३०.५० (मल्ल, कृष्ण द्वारा वध ) । toshala
तोष/तोषा भविष्य ४.७५ (सूर्य - कन्या, नदी, चन्द्रभागा से सङ्गम), भागवत ४.१.७(दक्षिणा व यज्ञपुरुष से उत्पन्न तोष, प्रतोष आदि १२ पुत्रों के स्वायम्भुव मन्वन्तर में तुषित देव गण बनने का कथन ) ।
त्याग पद्म ५.९९.१८(त्याग के कङ्कण रूप होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३.४५(ज्ञान से त्याग व त्याग से बुद्धि के विरजा होने का कथन), मत्स्य १९५.१३(भृगु व पुलोमा से उत्पन्न १२ भृगु देवों में से एक), वायु ५९.५३(कुशलों व अकुशलों के प्रगण के त्याग होने का उल्लेख), महाभारत उद्योग ४३.२६(६ प्रकार के त्यागों का कथन), शान्ति २५१.१२(तप का उपनिषत् त्याग व त्याग का सुख होने का उल्लेख), ३१९.१७(द्रव्य, भोग व सुख त्याग का निरूपण), योगवासिष्ठ ६.१.९०.५ (सर्वत्याग की चिन्तामणि से उपमा), ६.१.९२ (चूडाला द्वारा शिखिध्वज को सर्वत्याग के लिए प्रबोधन), ६.१.११५.३३(महात्यागी के लक्षण), लक्ष्मीनारायण २.१२४.८३(त्यागिनियों के लिए यज्ञ में श्रौषट् व्याहृति का प्रयोग), २.२४६.७९ (त्यागी पुरुष को हरि की प्राप्ति, अनन्त सुख की उपलब्धि), २.२५०.६ (हरि में सर्वस्व अर्पण रूप त्याग की श्रेष्ठता ), कथासरित् १२.१७.६३ (वणिक् सुता के पति, प्रेमी व चोर में से त्यागी होने का प्रश्न), महाभारत शान्ति १७६(धन आदि त्याग की महिमा के विषय में शम्पाक ब्राह्मण का भीष्म को उपदेश ) । tyaaga
त्रपा ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९४(शङ्कर की ११ कलाओं में से एक )
त्रपु गरुड २.३०.५५/२.४०.५५(मृतक की कौपीन में त्रपु देने का उल्लेख), वा.रामायण १.३७.२० (गङ्गा द्वारा धारित रुद्र - तेज रूप गर्भ के मल से त्रपु / रांगा धातु की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.३५९.१०९ (नरक में तप्त त्रपु प्रवाहिका यक्ष नदी का उल्लेख ) । trapu
त्रयी ब्रह्माण्ड १.२.१९.१२२(पुष्कर द्वीप में त्रयी विद्या आदि का अस्तित्व न होने का उल्लेख), १.२.३२.४०(शिष्टों व मनुओं द्वारा त्रयी वार्त्ता आदि के आचरण का उल्लेख), भागवत ३.१२.४४(ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न विद्याओं में से एक, द्र. टीका), ९.१४.४८(त्रेतायुग के आरम्भ में पुरूरवा के लिए वेद, नारायण व अग्नि के त्रयी होने का कथन), वायु ४९.११८(महावीत तथा धातकीखण्ड में त्रयी विद्या के होने तथा पुष्कर द्वीप में न होने का उल्लेख), विष्णु २.४.८३(पुष्कर द्वीप की महिमा के संदर्भ में पुष्कर द्वीप के त्रयी वार्ता आदि से रहित होने का कथन), ५.१०.२७(त्रयी वार्त्ता के अन्तर्गत ३ प्रकार की आजीविकाओं का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३(गोत्रय की अशुभता का उल्लेख ) । trayee
त्रयीसानु विष्णु ४.१६.३(भानु - पुत्र, करन्दम - पिता, दुर्वसु वंश ) ।
त्रयोदशी अग्नि १९१ (त्रयोदशी तिथि में कामदेव की मासानुसार भिन्न - भिन्न नामों से पूजा), कूर्म २.४१.४४ / २.३९.४३ (अहल्या तीर्थ में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को अहल्या पूजा का माहात्म्य), गरुड १.११७ (अनङ्ग त्रयोदशी व्रत का वर्णन), देवीभागवत ९.४४.२० (शरत् कृष्ण त्रयोदशी में मघा में स्वधा की पूजा का महत्त्व), नारद १.८८.१८४(त्रयोदशी का स्वरूप), १.१२२ (त्रयोदशी तिथि के व्रतों का वर्णन), पद्म ३.१८.९१ (अहल्या तीर्थ के माहात्म्य के अन्तर्गत चैत्र शुक्ल त्रयोदशी में अहल्या पूजा का कथन), ४.२३.१२ (विष्णु पञ्चक व्रत के संदर्भ में कार्तिक शुक्ल द्वादशी को गोमूत्र, त्रयोदशी को क्षीर, चतुर्दशी को दधि भक्षण का निर्देश), ब्रह्मवैवर्त्त २.४१.२१(शरत्कृष्ण त्रयोदशी को स्वधा का पूजन करके श्राद्ध करने का निर्देश), ३.४.१७ (पुण्यक नामक व्रतारम्भ के लिए माघ शुक्ल त्रयोदशी का शुभ मुहूर्त के रूप में उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३२.१५(षोडशपत्राब्ज की निवासिनी शक्तियों में से एक), वराह ३२ (त्रयोदशी तिथि के माहात्म्य के प्रसंग में धर्म की उत्पत्ति का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८३+ (शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में करणीय काम व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), स्कन्द २.२.४५.४ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी में करणीय दमनक भञ्जन व्रत की विधि का वर्णन), २.३.६.४६ (प्रतिमास शुक्ल त्रयोदशी में द्रवधारा तीर्थ में स्नानादि का माहात्म्य), ५.३.२६.१२४ (त्रयोदशी में स्त्री द्वारा पादाभ्यङ्ग तथा शिरोभ्यङ्ग प्रदान से प्रत्येक योनि में पति से वियोग न होने का उल्लेख), ५.३.६८.२ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी में धनद तीर्थ में धनद का पूजन, तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), ५.३.१०२.१० (मन्मथेश्वर तीर्थ में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी में गोदान करने का उल्लेख), ५.३.२०१.३ (देवतीर्थ में भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी में स्नान, दान, जप, होम आदि का महत्त्व), ६.७७ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी :शिव - पार्वती विवाह), ६.२०६ (माघ शुक्ल त्रयोदशी : इन्द्र द्वारा दिति के तप स्थान में लिङ्ग की स्थापना), ७.१.९६ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी : काम रुद्र पूजा), ७.१.१८४ (माघ त्रयोदशी : मङ्कीश्वर लिङ्ग की पूजा), ७.३.१८ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी : यम तीर्थ में श्राद्ध), ७.३.३८ (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी : शिव व गङ्गा का मिलन), हरिवंश २.८०.३७ (उत्तम नितम्ब की प्राप्ति हेतु त्रयोदशी तिथि में एक बार अयाचित भोजन रूप व्रत का निर्देश), लक्ष्मीनारायण १.३३.२५ (धन त्रयोदशी तिथि को लक्ष्मी से धन पुत्र की उत्पत्ति), १.२७८ (चैत्रादि १२ मासों की त्रयोदशी तिथि में करणीय व्रतों का निरूपण), १.३०५ (ब्रह्मपुत्रियों जया, ललिता, पारवती व प्रभा को पुरुषोत्तम मास की त्रयोदशी व्रत के प्रभाव से कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति), १.३२०.९३ (कृष्ण - पुत्री सुदुघा का जन्मान्तर में याज्ञसेनी होकर पुरुषोत्तम मास में त्रयोदशी व्रत के प्रभाव से पुरुषोत्तम का दर्शन प्राप्त करना), २.१९४.९२ (त्रयोदशी को श्रीहरि के रायगामल राष्ट्र में गमन आदि का वर्णन), २.२१४ (श्रीहरि का त्रयोदशी में रायनवार्क नृप के राष्ट्र में गमन), ३.६४.१४ (त्रयोदशी में कामदेव की पूजा का उल्लेख), ३.१०३.८ (त्रयोदशी तिथि में स्वर्ण, गो आदि के दान से लोकराजा होने का उल्लेख), ४.५९.३४ (द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी में भांडों को श्रीहरि का दर्शन, पश्चात् मुक्ति की प्राप्ति ) । trayodashee/ trayodashi
त्रय्यारुण देवीभागवत १.३.३० (१५वें द्वापर में व्यास), ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२० (त्रैय्यारुणि : १५वें द्वापर में व्यास), २.३.६३.७६ (त्रिधन्वा - पुत्र, सत्वव्रत - पिता, इक्ष्वाकु वंश), भागवत ९.२१.१९(त्रय्यारुणि : दुरितक्षय के ३ पुत्रों में से एक, तीनों के ब्राह्मणत्व प्राप्त करने का उल्लेख), १२.७.५(६ पौराणिकों में से एक), मत्स्य १२.३७(त्रिधन्वा - पुत्र, सत्यव्रत - पिता, इक्ष्वाकु वंश), लिङ्ग १.२४.६७ (१५वें द्वापर में व्यास), वायु ९९.१६३/२.३७.१५९(उभक्षय व विशाला के ३ पुत्रों में से एक, भरत वंश), १०३.६२/२.४१.६२(त्रय्यारुण द्वारा वर्षी से वायु पुराण श्रवण कर धनञ्जय को सुनाने का उल्लेख), विष्णु ३.३.१५(१५वें द्वापर में व्यास), ४.३.२० (त्रय्यारुणि : त्रिधन्वा - पुत्र, सत्यव्रत / त्रिशङ्कु - पिता, पुरुकुत्स वंश), ४.१९.२५(दुरुक्षय के ३ पुत्रों में से एक), शिव ३.५.१२ (त्र्यारुणि : पन्द्रहवें द्वापर के व्यास), ५.३७.४७ (पुरुकुत्स - पुत्र, सत्यव्रत - पिता), हरिवंश १.१२.११( त्रिधन्वा - पुत्र, सत्यव्रत - पिता, धुन्धुमार वंश), लक्ष्मीनारायण ३.९४.८३ (सत्यव्रत - पिता, धर्म विरुद्ध आचरण करने पर त्रय्यारुण द्वारा पुत्र सत्यव्रत का त्याग ) । trayyaaruna
त्रसदश्व वायु ८८.७६/२.२६.७६(अनरण्य - पुत्र, हर्यश्व - पिता ) । trasadashva
त्रसदस्यु /त्रसद्दस्यु देवीभागवत ७.१०.२ (मान्धाता द्वारा अर्जित नाम), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०८(३३ मन्त्रकृत् अङ्गिरस ऋषियों में से एक), २.३.१०.९८ (नर्मदा - पुत्र), भागवत ९.६.३३ (त्रसद्दस्यु: युवनाश्व - पुत्र मान्धाता द्वारा अर्जित नाम, नाम हेतु का कथन), ९.७.४ (पुरुकुत्स - पुत्र, अनरण्य - पिता, मान्धाता वंश), वायु ५९.९९/१.५९.१००(३३ मन्त्रकृत् अङ्गिरस ऋषियों में से एक), ७३.४९ (सुकाल नामक पितरगण की मानसी कन्या नर्मदा व पुरुकुत्स का पुत्र), ८८.७४/२.२६.७४(पुरुकुत्स - पुत्र, नर्मदा - पति, सम्भूत - पिता), विष्णु ४.३.१६ (त्रसद्दस्यु: पुरुकुत्स व नर्मदा - पुत्र, अनरण्य - पिता), हरिवंश १.१२.९ (त्रसद्दस्यु: पुरुकुत्स - पुत्र, नर्मदा - पति, सम्भूत - पिता, धुन्धुमार वंश ) । trasadasyu/ trasaddasyu
त्रसु वायु ९९.१२८/२.३७.१२५(रन्तिनार व सरस्वती के ३ पुत्रों में से एक), ९९.१३३/२.३७.१२८(त्रसु के ४ पुत्रों के नाम ) । trasu
त्रास गरुड १.२१.४ (त्रासनी : वामदेव की १३ कलाओं में से एक), वायु ६९.१९१/२.८.१८५(त्रासक : बालग्रहों में से एक त्रासक का उल्लेख), स्कन्द ७.४.१७.१६ (त्रासन : भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत आग्नेय दिशा के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.२३२.५९ (त्रासमान : श्रीहरि का त्रासमान द्वीप में आगमन, पूजादि का कथन ) । traasa
त्रि भविष्य ४.१३.५१(जाति स्मरत्व हेतु त्रिपुष्प, त्रिराम, त्रिरङ्ग नामक भद्र व्रतों का कथन ) ।
त्रिककुद् ब्रह्माण्ड २.३.११.६७(त्रैककुद अञ्जन के श्रेष्ठ होने का उल्लेख), २.३.१३.५८(श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक), भागवत ९.१७.११(शुचि - पुत्र, धर्मसारथि? - पिता), मत्स्य १२१.१५(ककुद्मान् पर्वत के त्रैककुद अञ्जन पर्वत तक विस्तृत होने का उल्लेख), वायु ४७.१३(त्रिककुद् पर्वत का उल्लेख), ७७.५७/२.१५.५६(त्रिककुद आदि पर्वतों पर दृष्ट अद्भुतों के अश्रद्धावान् को न दिखाई देने का उल्लेख ) । trikakuda
त्रिकण्टक ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२९ (भण्डासुर के प्रधान १५ सेनानियों में से एक, ललिता देवी के बन्धन हेतु प्रेषण), ३.४.२५.९८(ज्वालामालिनिका? द्वारा त्रिकण्टक का वध ) । trikantaka
त्रिकर्ण ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९८ (भण्डासुर - सेनानी, ज्वालामालिनी द्वारा वध ) ।
त्रिकालज्ञ वराह १८० (त्रिकालज्ञ ऋषि द्वारा ध्रुव तीर्थ में तृप्त व अतृप्त पितरों के दर्शन, अतृप्त पितरों की तृप्ति हेतु त्रिकालज्ञ द्वारा उपाय रूप में श्राद्ध सम्बन्धी वर्णन ) ।
त्रिकूट पद्म ६.१३३.१५(त्रिकूट पर विष्णु मन्दिर नामक तीर्थ की स्थिति का उल्लेख), ब्रह्म १.१६.३३(मेरु के दक्षिण में स्थित केसराचलों में से एक), २.९०.११(त्रिकूट पर्वत असुरों के अधिकार में होने का उल्लेख), भविष्य ३.४.१२.५७(त्रिकूट के नीचे सागर में ब्रह्मा द्वारा घोर ऊरु तेज की स्थापना), भागवत ५.१६.२६(मेरु के परित: स्थित २० पर्वतों में से एक), ५.१९.१६(भारत के पर्वतों में से एक), ८.२.१(त्रिकूट पर्वत की द्रोणी में गज - ग्राह का वृत्तान्त), लिङ्ग १.४९.२०(त्रिशृङ्ग पर्वत के मयूरबर्ह वर्ण शातकुम्भ होने का उल्लेख), वराह ८१.६ (त्रिकूट पर्वत पर अग्निदेव व ब्रह्मा के निवास का उल्लेख ), वामन ८४.४/८५.४ (गज - ग्राह की कथा के संदर्भ में त्रिकूट पर्वत के तीन शृङ्गों व शोभा का वर्णन), ९०.२९ (त्रिकूट शिखर पर विष्णु का चक्रपाणि नाम), स्कन्द ५.३.४.४७ (त्रिकूटा : नर्मदा के १५ नामों में से एक), ५.३.५.९, ५.३.६.१६ (त्रिकूटा : नर्मदा का नाम व कारण), ५.३.१९८.७३ (त्रिकूट पर्वत पर देवी की भद्रसुन्दरी नाम से स्थिति), ५.१.५५.१९ (त्रिकूट द्वार पर अगस्ति ऋषि की स्थिति तक विन्ध्य गिरि के अविचलत्व का उल्लेख), हरिवंश ३.४५.३२(नृसिंह की तीन शिखाओं वाली भृकुटि की त्रिकूटस्थ त्रिपथा गङ्गा से उपमा), वा.रामायण ६.२.१० (त्रिकूट पर्वत शिखर पर लङ्का की स्थिति का उल्लेख), ७.३.२६ (विश्रवा द्वारा दक्षिण समुद्र तटवर्ती त्रिकूट पर्वतस्थ लङ्कापुरी में वैश्रवण /कुबेर को निवास का निर्देश), ७.५.२३ (विश्वकर्मा द्वारा त्रिकूट पर्वत पर लङ्कापुरी का निर्माण, माल्यवान् , सुमाली और माली के निवास का कथन), कथासरित् ८.३.१५३ (त्रिकूट पर्वतस्थ त्रिकूट पताका नगरी में श्रुतशर्मा का निवास), ८.३.१५५ (त्रिकूटसेन : श्रुतशर्मा - पिता), ८.७.१६४ (त्रिकूटनाथ : एक विद्याधरराज, सूर्यप्रभ के समीप अभिषेक के शुभ काल के सूचन हेतु दूत प्रेषण ) । trikoota/ trikuuta/ trikuta
त्रिकोण गरुड २.३२.१११(त्रिकोण में पर्वतों की स्थिति), नारद १.२८.३३(श्राद्ध में क्षत्रिय हेतु त्रिकोण मण्डल निर्माण का निर्देश), मत्स्य २६२.७(त्रिकोणा : देव प्रतिमा हेतु १० पीठिकाओं में से एक), २६२.१२(त्रिकोणा पीठिका के त्रिशूल सदृश होने का उल्लेख), २६२.१८(त्रिकोणा पीठिका के शत्रुनाशक होने का उल्लेख), स्कन्द २.३.७(बदरी क्षेत्र में स्थित सत्यपद तीर्थ में त्रिकोण की स्थिति ), ४.१.४१.११५(तालु में त्रिकोण में तेज तत्त्व की धारणा का उल्लेख ) । trikona
त्रिखण्डिका ब्रह्माण्ड ३.४.१९.१५(भण्डासुर के संहार हेतु रक्त रथ में स्थित १० मुद्रा शक्तियों में से एक), ३.४.४२.२(त्रिखण्डिका मुद्रा की विरचना का कथन), ३.४.४४.११५(षोढा न्यास के अन्तर्गत मुद्रा न्यास हेतु मुद्राओं में से एक ) । trikhandikaa
त्रिगर्त मत्स्य ११४.५६(पर्वताश्रयी जनों के देशों में से एक), वायु ४५.१३६(पर्वताश्रयी जनों के देशों में से एक), कथासरित् १२.६.२१ (त्रिगर्ता नगरी निवासी पवित्रधर ब्राह्मण व सौदामिनी की कथा ) । trigarta
त्रिगुण शिव २.१.१६.४०(सुरा देवी राजसी, सती देवी सत्त्वरूपा व लक्ष्मी देवी तमो रूपा होने का उल्लेख ) ।
त्रिघण्ट कथासरित् ५.२.१९५ (हिमालय के शिखर पर स्थित एक नगर ) ।
त्रिजट मत्स्य १७९.१७(त्रिजटी : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वा.रामायण २.३२.२९ (गर्ग गोत्री त्रिजट नामक तपस्वी निर्धन ब्राह्मण को राम से दान प्राप्ति का वर्णन ) । trijata
त्रिजटा देवीभागवत १२.६.७२ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), वराह १८०.७२ (राम द्वारा त्रिजटा को अविधि श्राद्ध का फल प्रदान), वा.रामायण ५.२७.४ (त्रिजटा राक्षसी द्वारा सीता को स्वप्न के आधार पर राक्षसों के विनाश तथा राम विजय रूप शुभ सूचना का कथन ) । trijataa
त्रिजात स्कन्द ६.११४.६०(त्रिजात विप्र द्वारा शिव से नागों के क्षय वर की प्राप्ति का वृत्तान्त), ६.११५ (त्रिजात ब्राह्मण द्वारा स्थापित लिङ्ग), लक्ष्मीनारायण १.४९८.८५ (त्रिजात ब्राह्मण के स्पर्श से होम द्रव्य का क्रूरúफलप्रद होना, त्रिजात द्वारा शिव की आराधना से त्रिजात दोष का निष्कासन कर नगर मन्त्र प्राप्त करना ) । trijaata
त्रिणाचिकेत वामन ९०.२० (ब्रह्मर्षि तीर्थ में विष्णु का त्रिणाचिकेत नाम से वास ), द्र. नचिकेता । trinaachiketa
त्रित गर्ग ५.११.१६ (त्रित मुनि द्वारा बलि - पुत्र मन्दगति को शाप से कुवलयपीड हाथी बनाना), ६.१२ (त्रित द्वारा स्वशिष्य कक्षीवान् को शङ्ख होने का शाप देना), नारद १.९१.२०९ (त्रित मुनि द्वारा चण्डेश शिव की आराधना), भागवत १.९.७(शरशय्या पर पडे भीष्म के पास आने वाले ऋषियों में से एक), ३.१.२२(विदुर द्वारा सेवित ११ तीर्थों में से एक, प्रतीची सरस्वती के तीर्थों में से एक), ४.१३.१६ (चाक्षुष मनु व नड्वला के १२ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश), १०.८४.५(कृष्ण व बलराम के दर्शन हेतु आए ऋषियों में एकत, द्वित व त्रित का उल्लेख), मत्स्य १४५.१०१(३३ आङ्गिरस मन्त्रकृत ऋषियों में से एक), वामन ९०.२१(त्रितय में विष्णु की ध्रुव नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), स्कन्द २.७.१०.५४ (हेमकान्त द्वारा त्रित मुनि को छत्रादि प्रदान करने से ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति का वर्णन), ७.१.२५७ (त्रित कूप का माहात्म्य : आत्रेय - पुत्र त्रित का भ्राताओं एकत व द्वित द्वारा कूप में पातन, त्रित द्वारा देवों का आह्वान), लक्ष्मीनारायण १.४३०.३५ (दानक नृपति द्वारा सिंह रूप धारी ऋषि का वध, त्रित मुनि की सेवा से ब्रह्महत्या से मुक्ति), १.५४१.५४ (आत्रेय नामक विप्र के तीन पुत्रों में कनिष्ठतम, ज्येष्ठ पुत्रों द्वारा त्रित का कूप में प्रक्षेपण, त्रित द्वारा कूप में भावयज्ञ, देवों द्वारा नि:सारण, त्रित का द्रव्ययज्ञ सम्पन्न करके पुन: कूप में आगमन, कूप की त्रितकूप नाम से प्रसिद्धि), महाभारत शान्ति ३४१.४७(पृश्निगर्भ का कीर्तन करने से त्रित की कूप से मुक्ति का उल्लेख ) । trita
त्रित- धर्मपरायण प्रजापति गौतमके तीन पुत्रों में से एक, उनके दूसरे दो भाई एकत और द्वित थे। तीनों ही मुनि और ब्रह्मवादी थे। इन सबने तपस्या द्वारा ब्रह्मलोक पर विजय पायी थी ( शल्य० ३६ । ७-९) । त्रित मुनि के कूप में गिरने, वहाँ यज्ञ करने और अपने भाइयों को शाप देनेकी कथा ( शल्य० ३६ अध्याय )। ये उपरिचरवसु के यज्ञ में सदस्य थे ( शान्ति० ३३६ । ६)। भीष्मजीके महाप्रयाणके समय उन्हें देखने आये हुए महर्षियों में ये भी थे ( अनु० २६ । ६ )। वरुण के सात ऋत्विजों में से एक ये भी हैं। ये पश्चिम दिशा में निवास करने वाले ऋषि हैं ( अनु० १५० । ३६-३७ )।
Vedic concept of Trita(by Dr. Tomar)
त्रितल योगवासिष्ठ ६.१.७४.१९(राजा भगीरथ का गुरु त्रितल से संवाद )
त्रिदण्डी ब्रह्माण्ड २.३.११.५(श्राद्ध कर्म में त्रिदण्डी योगी के श्रेष्ठ होने का कथन), २.३.१५.६४(श्राद्ध प्राप्त करने योग्य पात्रों में से एक), भागवत १०.८६.३(सुभद्रा की प्राप्ति हेतु अर्जुन द्वारा त्रिदण्डी यति होकर द्वारका आगमन का उल्लेख), वायु १७.६(वाक्, कर्म व मन दण्डों के नियमन से त्रिदण्डी होने का उल्लेख ) । tridandee
त्रिदशज्योति मत्स्य १९४.११(नर्मदा तट पर त्रिदशज्योति तीर्थ का माहात्म्य : ऋषि - कन्याओं द्वारा तप द्वारा शिव की पति रूप में प्राप्ति ) ।
त्रिदिव लक्ष्मीनारायण ४.२.९ (राजा बदर के त्रिदिव नामक विमान का कथन ) ।
त्रिदिवा ब्रह्माण्ड १.२.१६.२६(हिमालय के पाद से नि:सृत नदियों में से एक), १.२.१६.३१(ऋक्षवान् पर्वत से निकली नदियों में से एक), १.२.१६.३७ (त्रिदिवाबला : महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), १.२.१९.१९(प्लक्ष द्वीप की नदियों में से एक), मत्स्य ११४.३१(त्रिदिवाचला : महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), विष्णु २.४.१२(प्लक्ष द्वीप की ७ नदियों में से एक ) । tridivaa
त्रिदेव गरुड २.३०.३२(देह का त्रिदेवों में विभाजन), पद्म ६.२५५ (त्रिदेवों में विष्णु की श्रेष्ठता का वर्णन), भागवत १०.८९ (ऋषि - मुनियों के आग्रह पर भृगु द्वारा श्रेष्ठता निर्णय हेतु त्रिदेवों - ब्रह्मा, विष्णु व महेश की परीक्षा, विष्णु के श्रेष्ठत्व का वर्णन), लिङ्ग २.४४ (त्रिदेव - ब्रह्मा, विष्णु व शिव दान विधि), वायु ५.१४(त्रिदेवों के रूप में सत्त्व, रज व तमो रूप विष्णु, ब्रह्मा व अग्नि का कथन), ९९.१६०/२.३७.१५६(सांकृति के २ पुत्रों में से एक, भरद्वाज/भरत वंश), स्कन्द ७.१.१०५ (त्रिदेवों का सृष्टि में प्रतीक रूप में प्राकट्य, स्वरूप), लक्ष्मीनारायण १.३६४.३०(नारद द्वारा सावित्री के शरीर व ह्रदय आदि में त्रिदेवों के दर्शन ) । trideva
त्रिधन्वा कूर्म १.२१/१.१९.२९/ १.२० (वसुमना - पुत्र, त्रय्यारुण - पिता, इक्ष्वाकु वंश), ब्रह्माण्ड २.३.६३.७६(सुमति - पुत्र, त्रय्यारुणि - पिता), मत्स्य १२.३६ (सम्भूति - पुत्र, त्रय्यारुण - पिता, इक्ष्वाकु वंश), लिङ्ग १.६५.४५ (वसुमना नृप - पुत्र, तण्डी - शिष्य, रुद्र सहस्रनाम जप से गणैश्वर्य की प्राप्ति), १.६६ (त्रिधन्वा वंश का वर्णन), वायु ८८.७७/२.२६.७७(वसुमत - पुत्र, त्रय्यां रण - पिता), विष्णु ४.३.२० (सुमना - पुत्र, त्रय्यारुणि - पिता, पुरुकुत्स वंश), हरिवंश १.१२.११ (सुधन्वा - पुत्र, त्रय्यारुण - पिता, धुन्धुमार वंश ) । tridhanvaa
त्रिधामा देवीभागवत १.३.२८ (दशम द्वापर में व्यास), ब्रह्माण्ड १.२.३५.११९(१०वें द्वापर में व्यास का नाम), ३.४.४.६१(त्रिधामा द्वारा सारस्वत से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर शरद्वान को सुनाने का उल्लेख), वायु २३.१४७/१.२३.१३६(त्रिधामा नामक दशम व्यास के काल में भृगु अवतार व उनके पुत्रों के नाम), १०३.६१/२.४१.६१(त्रिधामा द्वारा सारस्वत से वायु पुराण सुनकर शरद्वान को सुनाने का उल्लेख), विष्णु ३.३.१३(दशम द्वापर में त्रिधामा के व्यास होने का उल्लेख), शिव ३.५.१ (दशम द्वापर में व्यास ), द्र. धाम । tridhaamaa
त्रिनया लक्ष्मीनारायण २.१९६ (श्रीहरि का तन्तु नृप की त्रिनया नामक नगरी में आगमन, पूजन, उपदेशादि ), द्र. नय ।
त्रिनाभ ब्रह्माण्ड २.३.७.१३५(खशा से उत्पन्न कईं राक्षसों में से एक ) ।
त्रिनेत्र देवीभागवत ५.१८.३१ (महिषासुर - सेनानी, देवी द्वारा वध), वामन ९०.१९ (माहिष्मती में विष्णु का त्रिनयन तथा हुताशन नाम से वास), स्कन्द ७.१.२७५ (त्रिनेत्रेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), योगवासिष्ठ ६.२.८०.२८(रुद्र के त्रिनेत्रों के त्रिगुण, त्रिकाल, प्रणव के ३ वर्ण आदि का प्रतीक होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५४८.२७ (त्रिनेत्र तीर्थ का वर्णन : शिव के वरदान स्वरूप ऋषियों को तृतीय दिव्य नेत्र की प्राप्ति, मत्स्यों को भी त्रिनेत्रता की प्राप्ति ) । trinetra
त्रिपथ मत्स्य १२६.५२(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक ) ।
त्रिपथगा पद्म ३.४३.५१(गङ्गा के त्रिपथा नाम का कारण), ब्रह्माण्ड १.२.१८.२७(सोम पाद से प्रसूत त्रिपथगा देवी के सप्तधा विभाजित होने तथा नक्षत्रमण्डल के अनुदिश दृश्यमान भास्वर पथ के त्रिपथगा देवी होने का कथन), २.३.१३.११८(विष्णु पाद से च्युत त्रिपथगा गङ्गा के आकाश में सूर्य सदृश तोरण की भांति दिखाई देने आदि का कथन), २.३.२५.११(त्रिपथगा फेन भासि : शिव की संज्ञाओं में से एक), मत्स्य १०६.५१(त्रिपथगा गङ्गा के त्रिपथगा नाम का कारण), १२१.२८(सोम पाद से प्रसूत त्रिपथगा के सर्वप्रथम बिन्दुसर में प्रतिष्ठित होने का कथन ; रात्रि में दृश्यमान आकाश गङ्गा के ही त्रिपथगा होने का उल्लेख), वायु ७७.१११/२.१५.१११(सोम पाद से प्रसूत त्रिपथगा के आकाश में सूर्य के तोरण के सदृश दिखाई पडने का उल्लेख ) । tripathagaa
त्रिपाद लिङ्ग १.२४.४८ (१०वें द्वापर में व्यास ) ।
त्रिपुण्ड्र देवीभागवत ११.९+ (त्रिपुण्ड्र धारण का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.३८.२२(भाल पर धारणीय ४ पुण्ड्रों में से एक), शिव १.२४ (भस्म धारण के अन्तर्गत त्रिपुण्ड्र की महिमा, त्रिपुण्ड्र धारण की विधि, देवता तथा स्थान आदि का प्रतिपादन), स्कन्द २.५.३ (त्रिविध पुण्ड्र धारण का माहात्म्य), ३.३.१६ (सनत्कुमार - रुद्र संवाद के अन्तर्गत त्रिपुण्ड्र धारण की विधि), लक्ष्मीनारायण २.७१.१०५ (त्रिपुण्ड्रक में अधोरेखा, मध्यरेखा तथा ऊर्ध्वरेखा के ब्रह्मा, विष्णु, शिवात्मक होने का कथन ) । tripundra
त्रिपुर गणेश १.३८.४३ (गृत्समद - पुत्र द्वारा तप करके गणेश से त्रिपुर नाम की प्राप्ति), १.३९.२७ (त्रिपुर का इन्द्र से युद्ध), देवीभागवत ९.४७.७ (शिव द्वारा मङ्गलचण्डी की सहायता से त्रिपुर दैत्य का वध), पद्म १.७४ (त्रिपुर - पुत्र त्रैपुर का गणेश द्वारा वध), ३.१४.८+ (शिव द्वारा बाणासुर के त्रिपुर दहन का प्रसंग, ज्वालेश्वर तीर्थ की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२७(तीसरे तल में त्रिपुर के पुर का उल्लेख), ३.४.४३.१५ (त्रिपुराम्बिका को त्रिपुरसुन्दरी, त्रिपुरवासिनी, त्रिपुरश्री, त्रिपुरमालिनी, त्रिपुरसिद्ध, त्रिपुराम्ब प्रभृति नामों से पुष्पाञ्जलि प्रदान), भविष्य ३.४.१२.४२ (मय के पुत्र मायी द्वारा पालित त्रिपुर का शिव द्वारा दाह), भागवत ७.१०.५४ (मय दानव द्वारा स्वर्ण, रजत व लौह से तीन पुरों का निर्माण, शिव द्वारा त्रिपुर दाह की कथा), मत्स्य २२.४३(पितरों के श्राद्ध हेतु विशिष्ट तीर्थों में से एक), १२९+ (मय द्वारा त्रिपुर के निर्माण का वर्णन), १३०.६(आयसीपुर का अधिपति तारक, राजत का विद्युन्माली व सौवर्ण का मय अधिपति होने का उल्लेख), १३३+ (शिव द्वारा त्रिपुर ध्वंस की कथा), १८७.७ (नारद द्वारा बाणासुर के वास स्थान त्रिपुर के ध्वंस का उद्योग), १८८ (बाणासुर के त्रिपुर का शिव द्वारा दहन), २५९.११(त्रिपुर दाह के समय शिव का स्वरूप - षोडशबाहु), लिङ्ग १.७१ (मय द्वारा स्वर्ण, रजत एवं लौहमय पुरों का निर्माण, दैत्यों द्वारा देवों का पराभव, त्रिपुर विनाश हेतु विष्णुमाया द्वारा दैत्यों के धर्म का विनाश), १.७२ (त्रिपुर दाह हेतु शिव रथ का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.१९५ (त्रिपुर वध से पूर्व शिव की रक्षा के लिए ब्रह्मा द्वारा पठित विष्णु पञ्जर स्तोत्र का वर्णन), १.२२५.११ (शिव द्वारा त्रिपुर दाह का उल्लेख), शिव २.५.१+ (त्रिपुर निर्माण, शिव से युद्ध , त्रिपुर दाह का वर्णन), २.५.९.३४ (त्रिपुर वधार्थ शिव रथ का अनुसरण करने वाले शिव गणों के नाम), स्कन्द २.४.३५.३४ (त्रिपुर दैत्य द्वारा वर प्राप्ति, शिव द्वारा वध), ३.३.१२.२३ (त्रिपुरारि शिव से दुर्गों में रक्षा की प्रार्थना), ४.२.७२.५५ (त्रिपुरतापिनी देवी द्वारा प्रत्यक् दिशा की रक्षा), ५.१.४३.२६ (त्रिपुर दैत्य द्वारा देवों को त्रास, त्रिपुर के वध हेतु उपाय), ५.३.२६.२७ (नारद द्वारा बाणासुर के त्रिपुर में बाणासुर की स्त्रियों के माध्यम से क्षोभ उत्पन्न करना), ७.१.२७२ (विद्युन्माली, तारक व कपोल द्वारा स्थापित त्रिपुर - त्रय लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश ३.१३३ (त्रिपुर की शोभा तथा शिव द्वारा त्रिपुर के दग्ध होने का प्रसंग), लक्ष्मीनारायण १.५३८.२३(शिव द्वारा त्रिपुर विनाशार्थ स्वनेत्र के अश्रु से भौम/मङ्गल को उत्पन्न करना ) । tripura
त्रिपुरभैरवी नारद १.८७.४४ (दुर्गा - अवतार, मन्त्र विधान का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.२०.९१(ललिता देवी के रथ की ६ सारथियों में से एक ) ।
त्रिपुरसुन्दरी देवीभागवत ७.३८.१५ (त्रिपुरसुन्दरी देवी की कामरूप में स्थिति), पद्म ५.७४.१८ (त्रिपुरसुन्दरी देवी :गोपी - कृष्ण स्वरूप दर्शन के लिए अर्जुन द्वारा त्रिपुरसुन्दरी देवी के दर्शन, उपासनादि का वर्णन), ३.४.१८.१४(ललिता देवी के २५ नामों में से एक), ३.४.४०.१(कामाक्षी देवी की त्रिपुरसुन्दरी संज्ञा), भविष्य २.२.२.३१ (व्याघ्र के त्रिपुरसुन्दरी का रूप होने तथा प्रतिदिन दर्शन से ग्रहदोष की अनुत्पत्ति का उल्लेख ) । tripurasundari/ tripurasundaree
त्रिपुरा अग्नि ३१३.७ (त्रिपुरा भैरवी पूजा विधि व मन्त्र का वर्णन), गरुड १.१९८ (त्रिपुरा मन्त्र का कथन), देवीभागवत १२.६.६७ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.८६.३ (महालक्ष्मी- अवतार, मन्त्र विधान का कथन ) । tripuraa
त्रिपुरुष स्कन्द ५.३.१८२.२४(त्रिपौरुषा भवेद्विद्या त्रिपुरुषं न भवेद्धनम् ।)
त्रिपुष्कर स्कन्द ५.३.१९५.४(अन्तरिक्ष में त्रिपुष्कर के परम तीर्थ होने का उल्लेख ) ।
त्रिप्लक्ष ब्रह्माण्ड २.३.१३.६९(अक्षय श्राद्ध हेतु उपयुक्त तीर्थों में से एक ) ।
त्रिबन्धन भागवत ९.७.४(अरुण - पुत्र, सत्यव्रत/त्रिशङ्कु - पिता ) ।
त्रिभागा मत्स्य ११४.३१(महेन्द्र पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ) ।
त्रिभुवन स्कन्द ४.२.८३.७० (त्रिभुवन तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.१४०.५३ (३६ तिलक, २८ तलभाग तथा ६५ अण्डकों से युक्त प्रासाद का एक प्रकार), कथासरित् ९.६.२१२ (त्रिभुवनपुर निवासी राजा त्रिभुवन को खड्ग प्राप्ति के साथ ही दिव्य प्रभाव प्राप्ति का वृत्तान्त), १७.५.१०९ (त्रिभुवनप्रभा : त्रैलोक्यमाली - कन्या, पति के कल्याण हेतु तप ) । tribhuvana
त्रिमधु विष्णु ३.१५.२(श्राद्ध में आमन्त्रण योग्य ब्राह्मण हेतु जानने योग्य सूक्तों में से एक ) ।
त्रिमना वायु ५२.५३(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक ) ।
त्रिमात्रा वायु २०.१ (प्रणव की वैद्युतादि ३ मात्राओं का कथन ) ।
त्रिलोकसुन्दरी भविष्य ३.२.७.३ (चम्पकेश व सुलोचना - पुत्री, स्वयंवर में वर के वरण की कथा), स्कन्द ४.२.७०.६० (त्रिलोकसुन्दरी गौरी का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।
त्रिलोकी अन्नमय कोश, प्राणमय कोश और मनोमय कोशों को मिला कर मानुषी त्रिलोकी कही जाती है । ब्रह्माण्ड के सदृश ही, अन्नमय कोश पृथिवी का तथा मनोमय कोश आकाश का प्रतीक है जबकि प्राणमय कोश अन्तरिक्ष का । आनन्दमय कोश, विज्ञानमय कोश और मनोमय कोश मिलकर दैवी त्रिलोकी कहे जाते हैं। जब मन ऊर्ध्वमुखी होकर विज्ञानमय कोश से जुड जाता है तो दैवी त्रिलोकी का रास्ता खुल जाता है । तब इसका नाम हो जाता है पराशक्ति । तब अद्भुत चमत्कार होते हैं। मानुषी और दैवी त्रिलोकी मिलकर एकजुट हो जाते हैं। - फतहसिंह
त्रिलोचन नारद १.११६.६१ (त्रिलोचन जयन्ती : माघ शुक्ल सप्तमी में करणीय अचला व्रत का अपर नाम), भविष्य ३.४.१५.६५ (धरदत्त वैश्य - पुत्र, कुबेर का अंश, रामभक्ति से राम का त्रिलोचन के गृह व ह्रदय में निवास), स्कन्द ४.२.७५.२६ (त्रिलोचनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.७६.२ (त्रिलोचनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : पारावत की कथा), ५.२.४५ (त्रिलोचनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : कलरवी कपोती व सुमेधा कपोत के जन्मान्तरों की कथा), ५.३.८५.२८ (शम्बर -- पुत्र, कण्व - पिता, सोमनाथ तीर्थ माहात्म्य का प्रसंग), ५.३.११७ (त्रिलोचन तीर्थ का माहात्म्य ) । trilochana
त्रिवक्र स्कन्द ३.१.११ (राक्षस, सुशीला - पति ) ।
त्रिवर्ग भागवत ७.६.२६(स्वात्मार्पण में सहायक होने पर ही धर्म, अर्थ, काम से युक्त त्रिवर्ग आदि के सार्थक होने का कथन), ७.१४.१०(गृहमेधी द्वारा त्रिवर्ग हेतु अति कष्ट उठाने का निषेध), ८.१६.११(त्रिवर्ग के साधन हेतु गृहमेधी का गृह ही परम क्षेत्र होने का उल्लेख ) । trivarga
त्रिवर्चा ब्रह्माण्ड १.२.३५.११९(११वें द्वापर के वेदव्यास ) ।
त्रिवर्त लक्ष्मीनारायण २.१०४.२५ (हिमालय पर्वत का एक प्रदेश, त्रिदेवजा प्रजा का स्थान ) ।
त्रिविक्रम अग्नि ३०५.६ (यमुना तीर्थ में विष्णु का नाम), गरुड ३.२२.८२(अन्तरिक्ष में त्रिविक्रम की स्थिति का उल्लेख), ३.२९.४०(शौचकाल में त्रिविक्रम के स्मरण का निर्देश), नारद १.६६.१८८(त्रिविक्रम की शक्ति क्रिया का उल्लेख), पद्म १.३०.६ (त्रिविक्रम के तपोलोक में वास का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.३.११८ (विष्णु का एक नाम, नाम हेतु का कथन), भविष्य ३.२.२.२० (त्रिविक्रम द्वारा सञ्जीवनी मन्त्र से मधुमती को जीवित करना), भागवत ६.८.१३ (नारायण कवच के अन्तर्गत त्रिविक्रम विष्णु से आकाश में रक्षा की प्रार्थना), वराह १.२६ (त्रिविक्रम से उर की रक्षा की प्रार्थना), वामन ७८.९(बलि व धुन्धु असुरों के संदर्भ में २ वामन त्रिविक्रमों का उल्लेख), ७८.८१(वामन त्रिविक्रम द्वारा धुन्धु असुर के पराभव का वृत्तान्त), ९०.३ (कालिन्दी में विष्णु का त्रिविक्रम नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.१२ (त्रिविक्रम से समस्त पाशों को गिराने की प्रार्थना), ३.११९.३ (यात्राकाल में त्रिविक्रम की पूजा का उल्लेख), ३.१२०.१०(२७ नक्षत्रों में पूजनीय देवताओं में से एक), ३.१२१.३(शालिग्राम क्षेत्र में त्रिविक्रम की पूजा का निर्देश), स्कन्द २.२.३०.८० (त्रिविक्रम से ऊर्ध्व दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ४.२.६१.२२७ (त्रिविक्रम की मूर्ति के लक्षण), ५.३.१४९.१० (ज्येष्ठ मास में त्रिविक्रम देव की पूजा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१०(त्रिविक्रम की पत्नी पद्माक्षा का उल्लेख), ४.११०.४३(नागविक्रम राजा द्वारा साधना के अन्त में त्रिविक्रम नाम से वैष्णव दीक्षा लेना), कथासरित् १२.८.२२ (भिक्षु क्षान्तिशील के आग्रह पर राजा त्रिविक्रमसेन का श्मशान में गमन तथा वेताल सहित शव का कन्धे पर स्थापन), १२.३२.१ (राजा त्रिविक्रमसेन का वेताल व शव सहित क्षान्तिशील के समीप आगमन, क्षान्तिशील के शिर भेदन का वर्णन ) । trivikrama
त्रिविष्ट ब्रह्माण्ड ३.४.४.६१(त्रिविष्ट द्वारा शरद्वान् से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर अन्तरिक्ष को सुनाने का उल्लेख), वायु १०३.६१/२.४१.६१(त्रिविष्ट द्वारा शरद्वान् से वायु पुराण सुनकर अन्तरिक्ष को सुनाने का उल्लेख ) । trivishta
त्रिविष्टप अग्नि १०४.११(प्रासाद का एक प्रकार), पद्म ३.२६.७९ (त्रिविष्टप तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१३८ (चन्दना नदी तट पर त्रिविष्टप / गण तीर्थ का माहात्म्य), वामन ३६.४१ (कुरुक्षेत्र के अनेक तीर्थों में से एक, संक्षिप्त माहात्म्य), ५७.९४ (त्रिविष्टप द्वारा स्कन्द को भद्रकाली गण प्रदान करने का उल्लेख), ९०.३२ (त्रिविष्टप में विष्णु का वीरभद्र नाम), स्कन्द ४.२.७३.६ (त्रिविष्टप लिङ्ग व तीर्थ का माहात्म्य), ४.२.७५.४ (त्रिविष्टप लिङ्ग का माहात्म्य), ५.२.७ (त्रिविष्टप लिङ्ग का माहात्म्य, इन्द्र सहित देवों का महाकालवन में जाना, लिङ्ग की स्थापना), ५.३.५६.१२० (गो - प्रदाता को त्रिविष्टप प्राप्ति का उल्लेख ) । trivishtapa
त्रिवृत् देवीभागवत १.३.२९ (त्रिवृष : एकादश द्वापर में व्यास), ब्रह्माण्ड १.२.८.५०(त्रिवृत् स्तोम की ब्रह्मा के प्रथम मुख से उत्पत्ति), लिङ्ग १.२४.५२ (त्रिव्रत : ११वें द्वापर में व्यास), वायु ९.४८(ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से त्रिवृत स्तोम आदि की उत्पत्ति का उल्लेख), २३.१५१/१.२३.१४०(एकादश द्वापर में त्रिवृत् नामक व्यास के काल में शिव अवतार के पुत्रों के नाम), विष्णु १.५.५३(त्रिवृत्स्तोम की ब्रह्मा के प्रथम मुख से उत्पत्ति), शिव ३.५.३ (ग्यारहवें द्वापर के व्यास ) । trivrit
त्रिवृष देवीभागवत १.३.२९ (एकादश द्वापर में व्यास ) ।
त्रिवेणी वराह १४४.९५ (गण्डकी - त्रिवेणी के माहात्म्य का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४२१.१(भरद्वाज - पत्नी त्रिवेणी द्वारा पातिव्रत्य के प्रभाव से राजा भरत के स्वागतार्थ प्रयाग में नवीन स्वर्ग की सृष्टि का वर्णन ) । trivenee/ triveni
त्रिशक्ति वराह ९०+ (त्रिशक्ति माहात्म्य के अन्तर्गत सृष्टि, वैष्णवी तथा रौद्री शक्तियों का वर्णन ) ।
त्रिशङ्कु देवीभागवत ७.१०.५६ (वसिष्ठ के शाप से सत्यव्रत द्वारा अर्जित नाम), १०.१३.३ (वैवस्वत मनु के ६ पुत्रों में से एक, भ्रामरी देवी की उपासना से विष्णुसावर्णि मनु बनना), ब्रह्म १.६/८.१९ (सत्यव्रत द्वारा अर्जित त्रिशङ्कु नाम के हेतु का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.१४.३१(श्राद्ध हेतु त्रिशङ्कु देशों के वर्जन का निर्देश ; त्रिशङ्कु देशों की सीमाओं का कथन), २.३.६३.१०८ (सत्यव्रत द्वारा त्रिशङ्कु नाम की प्राप्ति, नाम - हेतु, विश्वामित्र द्वारा सशरीर स्वर्ग प्रेषण), २.३.६३.११६ (हरिश्चन्द्र - पिता), भविष्य ४.१३०.९ (त्रिशङ्कु की सशरीर स्वर्ग गमन की इच्छा, वसिष्ठ शाप से चण्डालत्व प्राप्ति), भागवत ९.७.५ (त्रिबन्धन के पुत्र सत्यव्रत का अपर नाम, गुरु के शाप से चाण्डालत्व प्राप्ति, विश्वामित्र द्वारा सशरीर स्वर्ग - प्रेषण, देवों द्वारा स्वर्ग से पातन, विश्वामित्र द्वारा स्तम्भन), मत्स्य १६.१६(श्राद्ध हेतु त्रिशङ्कु देश के निवासियों के आमन्त्रण का निषेध), वायु ७८.२१ (श्राद्ध कार्य हेतु वर्जित देश), ८८.११५/२.२६.११५(त्रिशङ्कु द्वारा विश्वामित्र की भार्याओं के पालन व विश्वामित्र द्वारा त्रिशङ्कु को आकाश में त्रिशङ्कु ग्रह के रूप में प्रतिष्ठित करने का वर्णन ; त्रिशङ्कु - पुत्र हरिश्चन्द्र का उल्लेख), विष्णु ४.३.२१ (त्रय्यारुणि के पुत्र सत्यव्रत का अपर नाम, हरिश्चन्द्र - पिता), शिव ५.३८.१५ (त्रिशङ्कु का चरित्र, नाम धारण के हेतु का कथन), स्कन्द ६.२ (त्रिशङ्कु का वसिष्ठ व वसिष्ठ - पुत्रों से यज्ञ कराने का अनुरोध, वसिष्ठों द्वारा अस्वीकृति, त्रिशङ्कु द्वारा चाण्डालत्व शाप की प्राप्ति), ६.४ (विश्वामित्र द्वारा स्वर्ग प्रापक यज्ञ अनुष्ठान का वचन, तीर्थयात्रा, हाटक क्षेत्र में गङ्गास्नान से चण्डालत्व से मुक्ति, यज्ञ का अनुष्ठान), हरिवंश १.१३ (सत्यव्रत द्वारा त्रिशकु नाम प्राप्ति, चरित्र, विश्वामित्र द्वारा सदेह स्वर्ग - प्रेषण का वर्णन), वा.रामायण १.५०+ (सशरीर स्वर्गगमन के लिए यज्ञ का उद्योग, वसिष्ठ शाप से चाण्डालत्व प्राप्ति, विश्वामित्र द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान, सशरीर स्वर्गगमन व पतन, नूतन स्वर्ग की सृष्टि आदि), १.७०.२४(पृथु - पुत्र, धुन्धुमार - पिता, इक्ष्वाकु वंश), लक्ष्मीनारायण १.४११ (पद्मावती - पति, अम्बरीष - पिता, विष्णुभक्ति से अम्बरीष नामक वासुदेव परायण पुत्र की प्राप्ति), ३.९४.९५ (सत्यव्रत द्वारा तीन पापों को करने से वसिष्ठ द्वारा प्रदत्त नाम ) । trishanku
Remarks on Trishanku by Dr. Fatah Singh
त्रिशंकु जीवात्मा जो अन्नमय, प्राणमय और मनोमय कोश में ही विचरण करता है , त्रिशंकु है । उसमें तीन कोशों वाली तीन कीलें (शंकु ) गडी हैं। वह सशरीर स्वर्ग जाना चाहता है क्योंकि इन तीन कोशों में रहने वाले में शरीर का अहं विद्यमान है । त्रिशंकु तब तक बीच में लटकता रहेगा जब तक वह आन्तरिक साधना नहीं करेगा । आन्तरिक साधना के बिना मोक्ष नहीं मिलता ।
त्रिशाल मत्स्य २५४.४(शालाओं के प्रकारों में से एक ) ।
त्रिशिख भागवत ८.१.२८ (चतुर्थ तामस मन्वन्तर में इन्द्र का नाम), विष्णु ३.३.१४(११वें द्वापर के व्यास ) ।
त्रिशिरा गणेश १.६५.४४ (विरोचना व त्रिशिरा के गृह में एक दूर्वाङ्कुर से ही गणेश की तृप्ति की कथा), देवीभागवत ६.१.३० (त्वष्टा - पुत्र त्रिशिरा द्वारा तप, तप से भयभीत इन्द्र द्वारा त्रिशिरा का वध), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२६(तीसरे तल में स्थित पुरों में त्रिशिरा के पुर का उल्लेख), २.३.१.८६(त्रिशिरा विश्वरूप की माता के रूप में यशोधरा वैरोचनी तथा पिता आदि का उल्लेख), २.३.७.१३५(खशा के राक्षस पुत्रों में से एक), २.३.८.५६(विश्रवा व वाका के ३ पुत्रों में से एक), २.३.५९.१९(त्रिशिरा विश्वरूप के पिता त्वष्टा तथा माता विरोचना का उल्लेख), भविष्य ३.३.१२.१२४ (त्रिशिरा का जम्बुक - पुत्र तुन्दिल के रूप में जन्म), वामन ६९.५४ (अन्धक - सेनानी, वरुण से युद्ध), वायु ५०.२६(तृतीय तल में स्थित पुरों में त्रिशिरा राक्षस के पुर की स्थिति का उल्लेख), ६५.८५/२.४.८५(त्रिशिरा विश्वरूप : त्वष्टा - पुत्र, विश्वकर्मा - अग्रज), ६९.१६७/२.८.१६१(खशा के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक), ७०.५० (वाका - पुत्र), ८४.१९ (विरोचना - पुत्र), स्कन्द १.१.१५.५ (बृहस्पति की अनुपस्थिति में इन्द्र के पुरोहित बने त्रिशिरा विश्वरूप द्वारा देवों, असुरों तथा मनुष्यों को यज्ञभाग देना, इन्द्र द्वारा त्रिशिरा के तीनों शिर काटना, शिरों से पक्षियों का निकलना, त्रिशिरा वध से उत्पन्न ब्रह्महत्या द्वारा इन्द्र का पीछा करना), हरिवंश २.१२२.७१ (बाणासुर की सेना के पराजित होने पर त्रिशिरा नामक ज्वर द्वारा बलराम व कृष्ण पर आक्रमण), २.१२३ (त्रिशिरा ज्वर की कृष्ण से पराजय, शरण ग्रहण, वर प्राप्ति का वर्णन), वा.रामायण ३.२३.३३ (खर - सेनानियों में से एक), ३.२७ (खर - सेनानी, राम द्वारा वध), ६.५९.१९ (रावण - सेनानी, स्वरूप कथन), ६.६९ (कुम्भकर्ण की मृत्यु पर त्रिशिरा द्वारा रावण को सान्त्वना), ६.६९.२२ (रावण - सेनानी, रथ का वर्णन), ६.७० (हनुमान द्वारा त्रिशिरा का वध), लक्ष्मीनारायण २.८६.४२(विश्रवा व वाका के पुत्रों में से एक), कथासरित् ८.२.३७७ (देवों द्वारा वधित त्रिशिरा नामक असुर के सिद्धार्थ नाम से पृथिवी पर अवतीर्ण होकर मय का मन्त्री बनने का उल्लेख), १४.४.१९७ (त्रिशीर्ष : देवमाय नामक वीर द्वारा रक्षित एक गुहा ) । trishiraa
त्रिशूल देवीभागवत ७.३८.२२ (त्रिशूला देवी की जप्येश्वर क्षेत्र में स्थिति), पद्म ३.२८.१२ (त्रिशूलपात्र तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), भविष्य १.१५५.६७ (शिव त्रिशूल के व्योम रूप होने का उल्लेख), मत्स्य ५.३१(एकादश रुद्रों द्वारा त्रिशूल धारण का उल्लेख), ११.२९(त्वष्टा द्वारा सूर्य के कर्तित तेज से त्रिशूल आदि के निर्माण का उल्लेख), २६२.१२(त्रिकोणा पीठिका के त्रिशूल सदृश होने का उल्लेख), वराह १४५.९० (त्रिशूलगङ्गा नामक नदी के शिव - शरीर से नि:सृत होने का उल्लेख), विष्णु ३.२.११(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज के कर्तन से शिव के त्रिशूल आदि के निर्माण का कथन), शिव २.२.३९.२३(दधीचि द्वारा कुशमुष्टि का वज्रास्थि से संयोग करके त्रिशूल बनाना), २.५.३९.३१ (शिव द्वारा शङ्खचूड पर त्रिशूल का प्रहार करने से शङ्खचूड के भिन्न ह्रदय से पुरुष के निकलने का कथन), २.५.४४.४१ (त्रिशूली : शिव का नाम), स्कन्द ४.२.८२ (कङ्कालकेतु राक्षस द्वारा केवल स्व त्रिशूल से मरने के वर की प्राप्ति), ५.१.३ (शिव द्वारा त्रिशूल से विष्णु भुजा पर ताडन, कपाल का रक्त से पूरण), ५.२.४६.४९ (कङ्कालकेतु दानव की उसी के त्रिशूल के आघात से मृत्यु का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.४.१० (धूम्र असुर द्वारा शिव से प्राप्त त्रिशूल से ब्रह्माण्ड की जय, कन्या रूप धारी लक्ष्मी पर मोहित होने व चन्द्रमा को त्रिशूल प्राप्त होने की कथा), महाभारत शान्ति ३४२.११०/३५२.४५(दक्ष यज्ञ के विनाश हेतु रुद्र द्वारा शूल का सृजन, शूल द्वारा दक्ष यज्ञ का विनाश व नारायण के उर पर आघात, शूल के आघात से नारायण का मुञ्जकेश होना आदि ) । trishoola/ trishuula/ trishula
त्रिशृङ्ग गर्ग ७.२९.१८ (प्रद्युम्न का सैन्य सहित त्रिशृङ्ग पर्वत के देशों में गमन, शृङ्गधारी मनुष्यों तथा त्रिशृङ्ग के पार्श्व में स्वर्ण चर्चिका नगरी के दर्शन), ब्रह्म १.१६.५०(मेरु के उत्तरी मर्यादा पर्वतों में से एक), भागवत ५.१६.२७(मेरु के उत्तर में स्थित २ पर्वतों में से एक), मत्स्य २००.१५(त्रैशृङ्गायण : त्र्यार्षेय प्रवर के संदर्भ में एक ऋषि का नाम), वायु ३६.२९(मानसरोवर/मेरु? के पश्चिम में स्थित पर्वतों में से एक), विष्णु २.२.४४(मेरु की उत्तर दिशा के २ वर्ष पर्वतों में से एक ) । trishringa
त्रिष्टुप् ब्रह्माण्ड १.२.८.५१(ब्रह्मा के दक्षिण मुख से त्रिष्टुप् छन्द की सृष्टि का उल्लेख), १.२.९.४(३ अम्बिकाओं में से एक), वायु ९.४९(ब्रह्मा के दक्षिण मुख से त्रिष्टुप् छन्द आदि की उत्पत्ति का उल्लेख), ३१.४७(गायत्री, त्रिष्टुप् व जगती छन्दों के त्र्यम्बक व सवन योनि होने आदि का कथन), ५१.६४(सूर्य के छन्द रूप ७ अश्वों में से एक), विष्णु १.५.५४(त्रिष्टुप् छन्द आदि की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से सृष्टि का उल्लेख), २.८.५(सूर्य के छन्द रूप ७ अश्वों में से एक ) । trishtup
Remarks on Trishtup by Dr. Fatah Singh
त्रिष्टुप् से संकेत मिलता है कि मनोमय से लेकर अन्नमय कोश तक की त्रिविधता से आच्छादित जीव की चर्चा है । सविता के मनोमय कोश में अवतरण के पश्चात् मनोमय कोश भी एक द्यौ , प्रकाशमान् व्योम बन जाता है । ऐसी स्थिति में गायत्री के ऊपर स्तूप रूप में रहने वाले और त्रिष्टुप् (त्रि + स्तुप ) कहे जाने वाले इन्द्रिय वीर्य या क्षत्र बल की प्राप्ति तो हो ही जाती है ।
त्रिसन्ध्या गणेश २.७९.१ (सिन्धु असुर के भय से शिव का त्रिसन्ध्य मन्त्र में वास), देवीभागवत ७.३०.६८ (गोदावरी में देवी का नाम), ७.३८.२९ (त्रिसन्ध्या देवी की कुरण्डल क्षेत्र में स्थिति), पद्म ६.१३३.१७(कुब्जाम्रक में त्रिसन्ध्य तीर्थ की स्थिति का उल्लेख), मत्स्य १३.३७ (सती देवी का गोदाश्रम तीर्थ में त्रिसन्ध्या नाम से निवास ) । trisandhyaa
त्रिसानु ब्रह्माण्ड २.३.७४.१(गोभानु - पुत्र, करन्धम - पिता), वायु ९९.१/२.३७.१(वही) ।
त्रिसामा ब्रह्माण्ड १.२.१६.३७(महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), भागवत ५.१९.१८(भारत की नदियों में से एक), वायु ४५.१०६(महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), विष्णु २.३.१३(महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक ) । trisaamaa
त्रिसारि मत्स्य ४८.१(गोभानु - पुत्र, करन्धम - पिता ) ।
त्रिसुपर्ण मत्स्य १६.७(पार्वण श्राद्ध हेतु आमन्त्रण योग्य जनों में त्रिसुपर्णज्ञ का उल्लेख), वामन ९०.१९(अर्बुद में विष्णु की त्रिसौपर्ण नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ८३.५३(श्राद्ध आदि कर्मों में ब्राह्मण से त्रिसुपर्ण सूक्त आदि जानने की अपेक्षा का उल्लेख), विष्णु ३.१५.२(श्राद्ध प्राप्त करने योग्य सामवेदी द्वारा त्रिसुपर्ण सूक्त आदि जानने की अपेक्षा का उल्लेख ) । trisuparna
त्रिस्तन स्कन्द 6.199.118(राजा द्वारा त्रिस्तना कन्या का विवाह अन्ध से करना, त्रिस्तना की खञ्ज पुरुष पर आसक्ति, अन्ध पति द्वारा दण्ड की कथा)
त्रिस्रोता शिव ३.७ (पांच नदियों में से एक, पञ्चनद - माहात्म्य ) ।
त्रिस्पृशा नारद १.१२१.९६ (८ महाद्वादशी तिथियों में से एक, लक्षण व फल का कथन), पद्म ६.३४ (त्रिस्पृशा एकादशी व्रत का विधान, लक्षण कथन ) ।
त्रिहायणी देवीभागवत ९.१६.५१(द्रौपदी के त्रिहायणी नाम के कारण का कथन ) ।
त्रीत लक्ष्मीनारायण २.११०.७० (प्राग्ज्योतिषादि देशों की ऋषि व्यवस्था के अन्तर्गत लाशहास्य प्रदेश त्रीत ऋषि को प्रदान, त्रीतवित्त नाम से राज्य की प्रसिद्धि), २.११०.८४ (लाशहा प्रदेश का गुरु ) ।
त्रेता गणेश २.७३+ (त्रेता युग में मयूरेश्वर गणेश के वर्णन का आरम्भ : सिन्धु असुर का वध आदि), ब्रह्माण्ड १.२.७.५९(त्रेतायुग में यज्ञ की प्रतिष्ठा होने का उल्लेख, अन्य युगों में अन्य गुणों की प्रतिष्ठा), भविष्य ४.१२२.१ (कृत का ब्रह्मयुग, त्रेता का क्षत्रिययुग, द्वापर का वैश्ययुग तथा कलियुग का शूद्रयुग रूप में उल्लेख), भागवत ५.१७.१२(भारतवर्ष में सर्वदा त्रेतायुग के समान काल होने का उल्लेख), ९.१४.४३(त्रेता की संप्रवृत्ति पर पुरूरवा के मन में वेद त्रयी के प्राकट्य का कथन), ११.५.२४(चार युगों के मनुष्यों के गुणों के संदर्भ में त्रेता में विष्णु व मनुष्यों के स्वरूप का कथन), ११.१७.१२(त्रेता के आरम्भ होने पर भगवान के ह्रदय में विद्यात्रयी के प्राकट्य का कथन), १२.३.२०(त्रेतायुग में धर्म की स्थिति का कथन), मत्स्य १४२.१७(त्रेता आदि में वर्षों व सन्ध्याओं के परिमाण का कथन), १६५.६(त्रेतायुग के वर्ष परिमाण व धर्म - अधर्म के पादों का कथन), वायु ८.६५/१.८.७५(त्रेता युग में धर्म की स्थिति का वर्णन), ८.१४६/ १.८.१४०(त्रेता में पृथिवी द्वारा ओषधियों को ग्रस लेने पर पृथिवी के दोहन का वर्णन), ५७.३९ (त्रेतायुग में धर्म की स्थिति का वर्णन), स्कन्द ७.१.१३.९ (त्रेता में सूर्य का सविता नाम), ७.१.७४.८ (शाकल्येश्वर तीर्थ का ही त्रेता में सावर्णिकेश्वर नाम), लक्ष्मीनारायण २.२१९.१०७ (श्रीहरि का त्रेताकर्कश राजर्षि आदि के साथ फान्कलाशी पुरी में गमन), २.२२०.६(बालावित्तक राष्ट्र का राजा), ३.११०.११(शिष्यों, सुता, दारा आदि को भोजन प्रदान से त्रेताग्नि के प्रीणन का उल्लेख ) । tretaa
त्रेता- कृतयुग या सत्ययुगके बाद द्वितीय युग । हनुमान जी द्वारा इसके धर्म का वर्णन – त्रेता में यज्ञकर्म का आरम्भ होता है, धर्म के एक पाद का ह्रास हो जाता है और भगवान् विष्णु का वर्ण लाल हो जाता है ( वन० १४९ । २३-२६ )। मार्कण्डेयजी द्वारा त्रेता का वर्णन । त्रेतायुग तीन हजार दिव्य वर्षों का है, इसकी संध्या और संध्यांश के भी उतने ही सौ दिव्य वर्ष होते हैं । इस प्रकार यह युग छत्तीस सौ दिव्य वर्ष का होता है। ( वन० १८८ । २३ ) ।
त्रैपुर मत्स्य ४७.४४(१२ देवासुर सङ्ग्रामों में सप्तम त्रैपुर सङ्ग्राम में त्र्यम्बक द्वारा त्रिलोकी में दानवों के वध का कथन), वायु ९७.७५/२.३५.७५(१२ देवासुर सङ्ग्रामों में सातवें त्रैपुर सङ्ग्राम का उल्लेख ) । traipura
त्रैलोक्य - अग्नि १३४ (सर्वयन्त्रविमर्दिनी त्रैलोक्यविजया विद्या का वर्णन), नारद १.६६.१११(त्रैलोक्यविद्या : एकरुद्र की शक्ति त्रैलोक्यविद्या का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.३२.५६(शिव द्वारा परशुराम को त्रैलोक्यविजय कवच प्रदान करने का उल्लेख), २.३.३३.१(शिव द्वारा परशुराम को प्रदत्त त्रैलोक्यविजय कवच का वर्णन), ३.४.४४.५८(त्रैलोक्यविद्या : ३३ वर्णों की शक्तियों में से एक), मत्स्य १७९.६७(त्रैलोक्यमोहिनी : नृसिंह द्वारा शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं के शमनार्थ सृष्ट ३२ मातृकाओं में से एक), लक्ष्मीनारायण २.१४०.९३ (त्रैलोक्यभूषण : प्रासाद का एक रूप, ४१ अण्ड से युक्त), कथासरित् १७.५.८० (दैत्यराज त्रैलोक्यमाली का मुक्ताफलध्वज के साथ युद्ध), १७.५.१०९ ( त्रैलोक्यप्रभा : त्रैलोक्यमाली - कन्या, पिता के कल्याण हेतु तप ) । trailokya
त्र्यक्षकुल शिव ३.१९.३(अत्रि के तप का स्थान )
त्र्यम्बक नारद २.४९.७ (कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग का सत्ययुग में त्र्यम्बक नाम- कृते तु त्र्यंबकं पूर्वं त्रेतायां कृत्तिवाससम् ।। महेश्वरं तु देवस्य द्वापरे नाम गीयते ।।), २.७२.२४ (गौतम के तप से संतुष्ट त्र्यम्बक / शिव द्वारा गौतम को वर प्रदान, वर प्राप्ति रूप में गौतमाश्रम के निकट पर्वत पर त्र्यम्बक का निवास, पर्वत की त्र्यम्बक नाम से प्रसिद्धि), पद्म १.२०.११८ (त्र्यम्बक व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य व विधि), ब्रह्माण्ड १.२.९.६ (पुरोडाश की संज्ञा, कारण - त्रिसाधनः पुरोडाशस्त्रिकपालस्ततः स्मृतः । त्र्यंबकः स पुरोडाशस्तेनेह त्र्यंबकः स्मृतः ॥ ), १.२.१३.१४४ (भगवान् के त्र्यम्बक नाम हेतु का कथन - त्रिभिरेव कपालैश्च त्रयंबकैरौषधिक्षये ।। इज्यते भगवान् यस्मात्तस्मात्त्र्यंबक उच्यते ।।), १.२.१३.१४५ (गायत्री, त्रिष्टुप् व जगती का त्र्यम्बका नाम), ३.४.८.५७ (शिव का नाम), भविष्य १.५७.११(त्र्यम्बक के लिए तिल बलि का उल्लेख - आज्यं च ब्रह्मणे दद्यात्त्र्यम्बकाय तिलांस्तथा । ), मत्स्य ५.२९(११ रुद्रों में से एक), ४७.५०(सातवें त्रैपुर नामक देवासुर सङ्ग्राम में त्र्यम्बक द्वारा त्रिलोकी के दानवों के वध का उल्लेख), १०१.६७ (त्र्यम्बक व्रत का विधान), १९१.१२०(त्र्यम्बक तोय से पकाए चरु से पितरों की तृप्ति का उल्लेख), वायु ३१.४६ (त्र्यम्बक नाम का निरूपण - त्रिभिरेव कपालैस्तु अम्बकैरोषधिक्षये। इज्यते भगवान् यस्मात्तस्मात्त्र्यम्बक उच्यते ।।), ६९.१७३/२.८.१६७(नैर्ऋत् राक्षस गण के त्र्यम्बक अनुचर होने का उल्लेख), विष्णु १.१५.१२२(११ रुद्रों में से एक), शिव २.२.३८.२१(शुक्र द्वारा दधीचि को त्र्यम्बकं यजामहे मन्त्र का उपदेश), ४.२४.१०+ (त्र्यम्बकेश्वर माहात्म्य के आरम्भ में गौतम द्वारा वरुण से जलराशि की प्राप्ति, अन्य ऋषियों द्वारा जलराशि का उपयोग व गौतम को बहिष्कृत करना, गौतम द्वारा शिव को प्रसन्न करके गङ्गा की प्राप्ति), ४.२६.५४ (गौतम द्वारा स्थापित लिङ्ग के त्र्यम्बक नामक लिङ्ग होने का कथन), स्कन्द १.१.७.३२(ब्रह्मगिरि पर त्र्यम्बक लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ३.३.१२.१९ (त्र्यम्बक से दिन के तृतीय भाग में रक्षा की प्रार्थना- महेश्वरः पातु दिनादियामे मां मध्ययामेऽवतु वामदेवः ।। त्रियंबकः पातु तृतीययामे वृषध्वजः पातु दिनांत्ययामे ।।), ४.१.१३.३४ (विश्रवा - पुत्र वैश्रवण द्वारा त्र्यम्बक की आराधना से अलकापुरी के आधिपत्य की प्राप्ति), ४.२.९७.७४ (त्र्यम्बक सिद्ध द्वारा विमलेश कुण्ड पर सिद्धि प्राप्ति), ६.१०९.१५ (त्रिसन्ध्या तीर्थ में लिङ्ग), ६.१५३.२८ (पार्वती द्वारा शिव के दोनों नेत्रों का निरोध करने पर तीसरे नेत्र की सृष्टि, त्र्यम्बक नाम प्राप्ति), ७.१.९१ (त्र्यम्बक रुद्र का माहात्म्य, युगान्तरों में नाम, शिखण्डी रुद्र से तादात्म्य ), अन्त्येष्टिदीपिका पृ. २०(त्र्यम्बक का कपर्दी से साम्य?) । tryambaka
त्र्यष्टकारु लक्ष्मीनारायण २.७४.१७ (श्री हरि की भक्ति से त्र्यष्टकारु नामक अन्त्यज को स्त्री सहित मुक्ति की प्राप्ति ) ।
त्र्युषण मत्स्य ४९.३९(उरुक्षव व विशाला के ३ पुत्रों में से एक, जनमेजय वंश ) ।
त्वचा अग्नि ८७.६(त्वचा के कृकल व कूर्म वायु के आधीन होने का कथन), गरुड २.३०.५२/२.४०.५२(मृतक की त्वचा में मृगत्वचा देने का उल्लेख), भागवत २.१०.३१(त्वक्, चर्म आदि ७ धातुओं की भूमि, आप: व तेज से उत्पत्ति का उल्लेख), ३.१२.२३(भृगु की ब्रह्मा की त्वचा से उत्पत्ति का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.१.१२८.८(त्वचा में विद्युत के न्यास का उल्लेख ), वामन ८७.२५(वनस्पति के ब्राह्मण मूल, क्षत्रिय स्कन्ध, वैश्य शाखा और शूद्र त्वचा होने का कथन), ; द्र. चर्म । tvachaa
त्वरिता अग्नि १४७.४ (त्वरिता देवी के मन्त्र का कथन), ३०९ (त्वरिता विद्या पूजा व ध्यान की विधि), ३१० (त्वरिता देवी का स्वरूप व मन्त्र), ३११ (त्वरिता मन्त्र दीक्षा विधि), ३१२ (त्वरिता विद्या से प्राप्त होने वाली सिद्धियों का वर्णन), ३१४.१ (त्वरिता मन्त्र प्रयोग की महिमा), नारद १.८८.१२८ (राधा की नवम कला, स्वरूप), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.५८(आनन्द महापीठ में रथ के मध्यम पर्व पर स्थित १५ तिथिनित्या देवियों में से एक), ३.४.२५.९७ (ललिता - सहचरी, पुण्ड्रकेतु का वध), ३.४.३७.३४(नित्यान्तर धिष्ण्य पर स्थित १५ नित्या देवियों में से एक), मत्स्य ५०.३६(त्वरितायु : भौम - पुत्र, अक्रोधन - पिता, कुरु वंश ) । twaritaa/tvaritaa
त्वष्टा अग्नि १०७(मनस्यु - पुत्र, विरज - पिता, स्वायम्भुव वंश), देवीभागवत ५.९.२० (त्वष्टा द्वारा देवी को कौमोदकी गदा भेंट), ६.१.२९ (प्रजापति, विश्वरूप त्रिशिरा – पिता, त्रिशिरा के देवविरुद्ध कार्यों का कथन ), ब्रह्म १.२९/३१.१७ (द्वादश आदित्यों में से एक, फाल्गुन मास में तपना, ११०० किरणों से दीप्त होने का कथन), १.३०.४८/३२.८० (संज्ञा - पिता, सूर्य - श्वसुर ; त्वष्टा द्वारा सूर्य - तेज शातन का वृत्तान्त), २.९८.१९/१६८.१९ (त्वष्टा द्वारा अभिष्टुत राजा के हयमेध की असुरों से रक्षा का उद्योग), ब्रह्माण्ड १.२.१४.७०(भौवन - पुत्र, विरज - पिता, नाभि वंश), १.२.२४.३६(कार्तिक मास में त्वष्टा सूर्य के तपने का उल्लेख ; त्वष्टा सूर्य के अष्ट सहस्र रश्मियों द्वारा तपने का उल्लेख), २.३.१.७८ (शुक्र व गौ के ४ पुत्रों में से एक ), २.३.१४.६(त्वष्ट्रा यजमान के सोम का पान करते हुए इन्द्र के सोम के अंश के भूमि पर गिरने पर श्यामाक के उत्पन्न होने का उल्लेख), २.३.५९.१७(अष्टम वसु प्रभास व वरस्त्री से उत्पन्न विश्वकर्मा के रूपों का त्वष्टा होने का कथन), २.३.५९.३३(त्वाष्ट्री संज्ञा व सूर्य का वृत्तान्त, सूर्य के तेज को सहन करने में असमर्थ संज्ञा का पिता त्वष्टा के पास जाना आदि), २.३.५९.६५(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज के कर्तन का वृत्तान्त), भविष्य ३.४.९.३३(माघ मास में त्वष्टा नामक सूर्य के कलियुग में जयदेव रूप में अवतरण का वृत्तान्त), भागवत ३.६.१५(विराट् पुरुष में अक्षियां प्रकट होने पर रूपों के ज्ञान हेतु त्वष्टा के प्रवेश का कथन), ४.१५.१७(त्वष्टा द्वारा राजा पृथु को रूपाश्रय रथ प्रदान का उल्लेख), ५.१५.१५ (भौवन व दूषणा - पुत्र, विरोचना - पति, विरज - पिता, प्रियव्रत वंश), ६.६.३९(१२ आदित्यों में से एक, कश्यप व अदिति - पुत्र), ६.६.४४(रचना/चरमा - पति, संनिवेश व विश्वरूप - पिता), ६.१४.२७(अङ्गिरा द्वारा चित्रकेतु को पुत्र हेतु त्वाष्ट्र चरु प्रदान का उल्लेख), ६.१७.३८(त्वष्टा की दक्षिणाग्नि से चित्रकेतु के वृत्र रूप में जन्म का उल्लेख), ८.१०.२९ (देवासुर संग्राम में त्वष्टा के शम्बरासुर के साथ द्वन्द्व युद्ध का उल्लेख), ११.१५.२० (सूर्य का एक नाम), १२.११.४३(इष/आश्विन् मास में त्वष्टा नामक सूर्य के रथ के साथ स्थित गणों के नाम), मत्स्य ६.४(चाक्षुष मन्वन्तर के तुषित नामक देवों का वैवस्वत मन्वन्तर में इन्द्र, धाता, भग, त्वष्टा आदि १२ आदित्यों के रूप में जन्म का उल्लेख), ११.२७(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज के कर्तन का वृत्तान्त), १५९.१०(त्वष्टा द्वारा कुमार कार्तिकेय को क्रीडा हेतु कुक्कुट प्रदान करने का उल्लेख), १७१.५६(कश्यप व अदिति के १२ आदित्य पुत्रों में से एक), १७३.१८(तारकामय सङ्ग्राम के प्रसंग में त्वष्टा असुर के अष्टगज वाले घोर यान का उल्लेख), मार्कण्डेय ५.१ (प्रजापति, त्रिशिरा - पिता, इन्द्र द्वारा त्रिशिरा का वध कर देने पर क्रुद्ध त्वष्टा के तेज से वृत्रासुर की उत्पत्ति), वराह २०.६ (त्वष्टा द्वारा स्व - कन्या संज्ञा को मार्तण्ड को प्रदान करना), वामन ५७.६६ (त्वष्टा द्वारा स्कन्द को चक्र तथा अनुचक्र नामक गण भेंट करने का उल्लेख), वायु ३३.५९(भौवन - पुत्र, अरिज - पिता, नाभि वंश), ५२.२०(शिशिर ऋतु में त्वष्टा सूर्य के रथ पर स्थित गणों के नाम), ६५.७७/२.४.७७ (शुक्र व अङ्गी के ४ पुत्रों में से एक- त्वष्टा, वरूत्री, शण्ड, अमर्क), ६५.८५/२.४.८५(त्वष्टा के पुत्रों त्रिशिरा विश्वरूप व विश्वकर्मा यम का उल्लेख), ६६.६६/२.५.६७(१२ आदित्यों में ११वें आदित्य त्वष्टा का उल्लेख, आदित्यो के पूर्व जन्मों का कथन), ८४.१७ /२.२२.१७ (धर्म - पौत्र, प्रभास व वरस्त्री – पुत्र, देवों के शिल्पी, विरोचना - पति, मय – पिता, पुत्री संज्ञा का कथन), विष्णु १.१५.१२१(रुद्रों में एक?, विश्वरूप - पिता), १.१५.१३०(वैवस्वत मन्वन्तर में कश्यप व अदिति से उत्पन्न १२ आदित्यों में से एक), २.१.४०(मनस्यु - पुत्र, विरज - पिता), २.१०.१६(माघ मास में त्वष्टा सूर्य के रथ के साथ स्थित गणों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.३ (१२ खण्डयुगेश्वरों में से एक), २.१३२.१० (२१ आथर्वण शान्तियों में से एक त्वाष्ट्री शान्ति के शुक्ल वर्णा होने का उल्लेख), स्कन्द १.१.१६.४९ (इन्द्र द्वारा त्रिशिरा विश्वरूप की हत्या करने तथा ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति पाने पर त्वष्टा द्वारा वृत्र को उत्पन्न करने का उद्योग, इन्द्र द्वारा वृत्र वध का उद्योग), ५.२.३५.२ (प्रजापति, पुत्र कुशध्वज का स्वर्ग से निष्कासन करने पर त्वष्टा द्वारा जटा होम से वृत्र की उत्पत्ति), ५.३.१९१.१३ (प्रलयकाल में १२ आदित्यों में से एक त्वष्टा के नैर्ऋत दिशा में तपने का उल्लेख), हरिवंश १.४३.१७ (तारकामय संग्राम में दैत्य सेना का एक महारथी, यान में १८ हय), ३.५५.२५ (देवासुर संग्राम में देवों के विश्वकर्मा त्वष्टा का दैत्यों के विश्वकर्मा मय से युद्ध, त्वष्टा की पराजय), लक्ष्मीनारायण १.४७७.३ (प्रजापति, विश्वकर्मा - पिता), कथासरित् ८.५.९६ (त्वष्टा की महौघ नाम से पृथिवी पर अवतीर्णता, श्रुतशर्मा - सेनानी ) । tvashtaa/twashtaa
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त्वाष्ट्री वायु ८४.९/२.२२.९(कलि - भार्या त्वाष्ट्री हिंसा के अपर नामों व ४ पुत्रों के नाम ) ।
त्विषा / त्विषि ब्रह्माण्ड १.२.११.१२(त्विषा : मरीचि व सम्भूति की ४ पुत्रियों में से एक), भागवत ८.१८.२, १०.३.१०, १०.६.५, १०.१८.२७, १०.४६.४५(कर्ण कुण्डल की दीप्ति अर्थ में त्विषि शब्द का प्राकट्य), वायु २८.९(त्विषा : मरीचि व सम्भूति की ४ पुत्रियों में से एक), ५३.८१(बुध के त्विषि – पुत्र होने का उल्लेख), ५३.८५(त्विषि : सूर्य के त्वेष के स्थान व गृह का कथन ) । tvishaa/twishi
त्विषिमान् ब्रह्माण्ड १.२.२४.८८(त्विषिनामा? : धर्म - पुत्र सोम वसु की संज्ञा), वायु ३१.१० (स्वायम्भुव मन्वन्तर में एक देवगण), ५३.८०(धर्म - पुत्र सोम वसु की संज्ञा), ५३.१०५(चाक्षुष मन्वन्तर में धर्म - पुत्र त्विषिमान् /सोम की कृत्तिका नक्षत्र में उत्पत्ति का उल्लेख ) । tvishimaan
त्विष्ट गरुड १.८७.५५ (दिवस्पति इन्द्र - शत्रु , मयूर रूपी हरि द्वारा वध ) ।
थर्कूट लक्ष्मीनारायण २.१२२.८(कर्कर्षि द्वारा थर्कूटस्थ राजा को हरि नाम ग्रहण का उपदेश, देवायतन ऋषि का थर्कूटस्थ राजा के पास गमन, मन्त्रादि प्रदान), २.१२३.२१(थर्कूटस्थ राजा के राज्य में द्वितीय यज्ञ के आयोजन हेतु विचार), २.१२६(थर्कूटस्थ द्वारा द्विकला सरोवर तट पर द्वितीय विष्णु यज्ञ करना), २.१२७.२१(बालकृष्ण द्वारा थर्कूटस्थ राजा को राजनीति और सद्धर्म का उपदेश ) । tharkoota/tharkuuta
थुक्लस ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२८ (भण्डासुर के १५ सेनानायकों में से एक ) ।
थुरानन्द लक्ष्मीनारायण २.१२७.७६(श्रीहरि द्वारा थर्कूट राजा को थुरानन्दमय होने का उपदेश), ३.७.४०(प्राणायाम नामक वत्सर में दृढध्रुव - पुत्र थुरानन्द द्वारा ब्रह्मा से अवध्यत्व वर की प्राप्ति, केवल असुरों द्वारा थुरानन्द का स्वागत करना, लक्ष्मी का थुरानन्द - कन्या ज्योत्स्ना के रूप में जन्म लेना), ३.८.१(स्वयंवर में थुरानन्द - कन्या ज्योत्स्ना द्वारा विष्णु का वरण, युद्ध में विष्णु द्वारा थुरानन्द का पाशों से बन्धन व मोक्षण ) । thuraananda