नकुल कूर्म २.४२.१२/२.४४.१२ (नकुलीश्वर तीर्थ का माहात्म्य), गरुड १.२१७.२५ (घृत का हरण करने से नकुल योनि की प्राप्ति), देवीभागवत ७.३८ (नाकुल क्षेत्र में नकुलेश्वरी देवी का वास), पद्म ६.८८.१४ (इन्द्र के वज्र प्रहार के कारण गिरे गरुड के पक्ष से मयूर, नकुल व चाष / नीलकण्ठ की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.१७ (चिकित्सा शास्त्र की रचना करने वाले १६ चिकित्सकों में से एक), २.३१.४७ (मित्र द्रोही के नकुल बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१८.६८(नाकुली : निषध पर्वत पर स्थित विष्णुपद से निकली २ नदियों में से एक), ३.४.२३.५२ (नकुली देवी का ललिता देवी के तालु से प्राकट्य, सर्पिणी माया का नाश करना, करङ्क का वध), ३.४.२८.३९ (नकुली देवी का विष से युद्ध), भविष्य ३.३.१ (नकुल का कलियुग में लक्षण रूप में अवतरण), ३.३.५९ (कलियुग में नकुल का वीरवती व रत्नभानु - पुत्र लक्षण के रूप में जन्म का उल्लेख), मत्स्य १५.२१ (घृत हरण के फलस्वरूप प्राप्त योनि), १९५.२५(नाकुलि : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक ), वराह १२६ (नकुल का सर्पिणी से युद्ध, मरण, जन्मान्तर में राजपुत्र बनने की कथा), वामन ४६.१३ (स्थाणु लिङ्ग के पश्चिम् में नकुलीश गण की स्थिति का उल्लेख), वायु २३.२२१ (नकुली : २८वें द्वापर में शिव का अवतार), विष्णु ३.७ (नकुल द्वारा भीष्म से यमलोक अपवर्जक कर्मों के बारे में पृच्छा), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०(घृत हरण से नकुल योनि प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.६२ (यज्ञ में याज्ञवल्क्य द्वारा मुनि को नकुल कहकर पुकारने पर नकुल द्वारा याज्ञवल्क्य को नकुल होने का शाप, याज्ञवल्क्य का दुष्ट विप्र के पुत्र रूप में जन्म, नकुलेश्वर लिङ्ग के दर्शन से दुष्ट जन्मता से मुक्ति), ४.२.६९.११६ (नकुलीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१०९.१७ (कारोहण तीर्थ में नकुलीश लिङ्ग), लक्ष्मीनारायण १.२०२.७ (१६ चिकित्सकों में से एक), १.२७४.१९ (श्रावण शुक्ल नकुल नवमी व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), १.५७१.२६ (माघ शुक्ल द्वादशी को कुब्जाम्रक तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में नकुल व सर्पिणी की कुब्जाम्रक तीर्थ में मृत्यु पश्चात् राजपुत्र व राजकन्या बनने की कथा), ४.७१.१ (यज्ञ में उत्कर में प्रसाद मिश्रित उच्छिष्ट के भक्षण से नकुल का मुक्त होकर देव बनना, देव रूप नकुल द्वारा वैष्णव मन्त्र जप से नकुल का सकुल, कुलवान बनना), कथासरित् ६.७.१०७ (नकुल और उलूक के भय से मुक्ति के लिए मूषक द्वारा आपद~ग्रस्त मार्जार से क्षणिक मैत्री करने की कथा), १०.४.२३५ (बक द्वारा सर्प से मुक्ति पाने के लिए नकुल के बिल से लेकर सर्प के बिल तक मांस खण्ड बिखेरने की लघु कथा), १०.८.८ (बालक की सर्प से रक्षा करने वाले नकुल की ब्राह्मण द्वारा भ्रम से हत्या की लघु कथा), महाभारत शान्ति १३८.३१(मूषक द्वारा मार्जार से मित्रता करके हरिण नामक नकुल व उलूक के भय से स्वयं को मुक्त करने की कथा), आश्वमेधिक ९०.५(नकुल द्वारा राजा युधिष्ठिर के अश्वमेध की निन्दा करते हुए ब्राह्मण द्वारा अतिथि को दान किए गए सक्तू के महत्त्व का वर्णन करना), ९०.११०(सक्तु कणों आदि से नकुल के शिर के स्वर्णिम होने का कथन), ९२.४०(नकुल के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : धर्म का क्रोध रूप धारण कर पितरों के तर्पण हेतु पय: में प्रवेश करना, पितरों के शाप से नकुल बनना ) nakula


      नक्त अग्नि १०७.१५ (पृथु - पुत्र, गय - पिता), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६८(पृथु - पुत्र, गय - पिता), भविष्य १.८२.१५ (नक्षत्र दर्शन से नक्त होने का उल्लेख ; आदित्य वार को नक्त व्रत का महत्त्व), ४.९६ (नक्त व्रत की विधि), ४.११५ (आदित्य वार को नक्त व्रत की विधि व माहात्म्य), भागवत ५.१५.६ (पृथुषेण व आकूति - पुत्र, द्रुति - पति, गय - पिता, भरत वंश), स्कन्द २.५.१२.२३ (दिन के अष्टम भाग में दिवाकर के मन्द होने का समय ), द्र. वंश भरत nakta


      नक्र गणेश २.८.२१ (महोत्कट गणेश द्वारा नक्र का वध, नक्र के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.८१ (नक्र की हत्या पर नरक में नक्रकुण्ड प्राप्ति का कथन), २.३०.१३५ (सामान्य द्रव्य चोरी से नक्रमुख नरक की प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ३.१.४९.४२(व्याधि की नक्र रूप में कल्पना), लक्ष्मीनारायण १.३७०.९९ (नरक में नक्र कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) nakra


      नक्षत्र अग्नि १२५.२०(विभिन्न तिथियों में ग्रहों व नक्षत्रों के योग के शुभाशुभ फल का कथन - कृत्तिका प्रतिपद्भौम आत्मनो लाभदः स्मृतः ॥ षष्ठी भौमो मघा पीडा आर्द्रा चैकादशी कुजः ।), १२६.१ (नक्षत्र पिण्ड से शुभाशुभ का ज्ञान), १२६.१३ (नक्षत्रों की स्थिर, क्षिप्र आदि प्रकृति एवं करणीय कृत्यों का वर्णन - रोहिणी चोत्तरास्तिस्रो मृगः पञ्च स्थिराणि हि । अश्विनी रेवती स्वाती धनिष्ठा शततारका ॥), १२६.३३ (गण्डान्त का निरूपण), १३० (नक्षत्रों का आग्नेय आदि मण्डलों में विभाजन, मण्डल प्रकोप का देश व निवासियों पर प्रभाव), १३६ (त्रिनाडी नक्षत्र चक्र से फल का विचार), १७५.३५ (सूर्यास्त वाले नक्षत्र में उपवास का निर्देश - उपोषितव्यं नक्षत्रं येनास्तं याति भास्करः । ), १९६ (नक्षत्र व्रत : हरि का नक्षत्र - न्यास), २९३.३२ (मन्त्रों के संदर्भ में २७ नक्षत्रों के देवताओं के नाम - दस्रो यमोऽनलो धाता शशी रुद्रो गुरुर्दितिः।..), कूर्म २.२०.९ (कामना अनुसार विभिन्न नक्षत्रों में श्राद्ध - स्वर्गं च लभते कृत्वा कृत्तिकासु द्विजोत्तमः । अपत्यमथ रोहिण्यां सौम्ये तु ब्रह्मवर्चसम् ।।), गरुड १.५९.२ (नक्षत्र स्वामी - कृत्तिकास्त्वग्निदेवत्या रोहिण्यो ब्रह्मणः स्मृताः ॥ इल्वलाः सोमदेवत्या रौद्रं चार्द्रमुदाहृतम् ॥ ), १.५९.१५( नक्षत्र का स्वरूप, नक्षत्रों में करणीय कृत्य - अश्विनीमैत्ररेवत्यो मृगमूलपुनर्वसु ॥ पुष्या हस्ता तथा ज्येष्ठा प्रस्थाने श्रेष्ठमुच्यते ॥), १.५९.३५(वार अनुसार नक्षत्र की श्रेष्ठता - विशाखात्रयमादित्ये पूर्वाषाढात्रये शशी ॥धनिष्ठात्रितयं भौमे बुधे वै रेवतीत्रयम् ॥), १.६० (नक्षत्र / रवि चक्र से फल का कथन), १.१२८.१० (नक्षत्र दर्शन से नक्त होने का उल्लेख - नक्षत्रदर्शनान्नक्तमनक्तं निशि भोजनम् ।), गरुड २.४.१७५(नक्षत्र पञ्चक में मृत्यु पर दाह विधि), २.३५.१७(मृतक के संस्कार के अयोग्य ५ नक्षत्र), देवीभागवत ८.१७.१७ (शिशुमार चक्र में नक्षत्रों का न्यास- पुनर्वसुश्च पुष्यश्च श्रोण्यौ दक्षिणवामयोः ॥ आर्द्राश्लेषे पश्चिमयोः पादयोर्दक्षवामयोः ।), ८.२४.३९ (मास अनुसार देवी को नैवेद्य अर्पण - वैशाखमासे नैवेद्यं गुडयुक्तं च नारद ॥ ज्येष्ठमासे मधु प्रोक्तं देवीप्रीत्यर्थमेव तु ।), नारद १.१३.४६ (विष्णु के स्नान हेतु ग्रहों व नक्षत्रों के विशिष्ट योगों के नाम - अर्द्धोदये च सूर्यस्य पुष्यार्के रोहिणीबुधे।
      तथैव शनिरोहिण्यां भौमाश्विन्यां तथैव च॥  ), १.५१.२ (५ कल्पों में से एक नक्षत्र कल्प का उल्लेख), १.५६.१७१ (नक्षत्र अनुसार कार्य का विचार - पूर्वात्रयं मघाह्यग्निविशाखायममूलभम्। अधोमुखं तु नवकं भानौ तत्रविधीयते॥), १.५६.२०४ (नक्षत्रों से वृक्षों की उत्पत्ति - उडुंबरश्चाग्निधिष्ण्ये रोहिण्यां जंबुकस्तरुः।), पद्म १.२५ (नक्षत्र अनुसार सूर्य / शिव के विभिन्न अङ्गों की विभिन्न नामों से पूजा - हस्तेन सूर्याय नमोस्तुपादावर्काय चित्रासु च गुल्फदेशं।स्वातीषु जंघे पुरुषोत्तमाय धात्रे विशाखासु च जानुदेशम्॥), ब्रह्म १.१११.३३ (विभिन्न नक्षत्रों में पितरों की अर्चना से विभिन्न फलों की प्राप्ति का कथन - कृत्तिकासु पितॄनर्च्य स्वर्गमाप्नोति मानवः।। अपत्यकामो रोहिण्यां सौम्ये तेजस्वितां लभेत्।), ब्रह्मवैवर्त्त २.६५.२ (देवी के बोधन, प्रवेश, अर्चन व विसर्जन हेतु उपयुक्त नक्षत्रों का कथन - आर्द्रायां बोधयेद्देवीं मूलेनैव प्रवेशयेत् ।।
      उत्तरेणार्च्चयित्वा तां श्रवणायां विसर्जयेत् ।।), ४.९६.७६ (श्रवण नक्षत्र की छाया से अभिजित् नक्षत्र की उत्पत्ति का कथन - ततः पितरमादाय सा चक्रे च विभागकम् । बभूव तेन नक्षत्रमभिजिन्नामकं पुरा ।। ), ब्रह्माण्ड १.२.२४.१३२ (ग्रह उत्पत्ति जनक नक्षत्र - ग्रहश्चांगिरसः पुत्रो द्वादशार्चिर्बृहस्पतिः । फाल्गुनीषु समुत्पन्नः पूर्वासु च जगद्गुरुः ।। ), २.३.१८ (नक्षत्र अनुसार श्राद्ध अनुष्ठान का फल - अपत्यकामो रोहिण्यां सौम्ये तेजस्विना भवेत् । प्रायशः क्रूरकर्माणि आर्द्रायां श्राद्धमाचरन् ॥), भविष्य १.३४ (नक्षत्र अनुसार सर्प दंष्ट का फल), १.१०२.४६ (नक्षत्र देवता व नक्षत्र पूजा का कथन - अश्विन्यामश्विनाविष्ट्वा दीर्घायुर्जायते नरः । व्याधिभिर्मुच्यते क्षिप्रमत्यर्थं व्याधिपीडितः ।), ४.१०७ (मास नक्षत्र के अनुसार नक्षत्र व्रत, अच्युत पूजा, साम्भरायणि - इन्द्र संवाद, शङ्कुकर्ण दैत्य का हनन - आदितः कृत्तिकां कृत्वा कार्त्तिके नृपसत्तम । कृशरामत्र नैवेद्यं पूर्वं मास चतुष्टयम् ।।), ४.१०८.२० (वैष्णव नक्षत्र पुरुष व्रत - मूले पादौ तथा जंघे रोहिण्यामर्चयेच्छुभे ।।जानुनी चाश्विनीयोगे आषाढे चोरुसंज्ञिते ।।), ४.१०९ (शिव नक्षत्र पुरुष व्रत का वर्णन - शिवायेति च हस्तेन पादौ पूज्यतमौ स्मृतौ ।। शंकराय नमो गुल्फौ पूज्यौ चित्रासु पांडव ।।), ४.११३ (ग्रह - नक्षत्र व्रत नामक अध्याय के अन्तर्गत ग्रहों की सौम्यता प्राप्ति हेतु नक्षत्र विशेष में ग्रह विशेष की पूजा का वर्णन - विशाखासु बुधं गृह्य सप्त नक्तान्यथाचरेत् । बुधं हेममयं कृत्वा स्थापितं कांस्यभाजने ।।), ४.१४५ (नक्षत्रों के कारण उत्पन्न व्याधि की शान्ति हेतु नक्षत्र होम विधि - कृत्तिकासु यदा कश्चिद्व्याधिं संप्रतिपद्यते । नवरात्रं भवेत्पीडा त्रिरात्रं रोहिणीषु च ।।), ४.१९२ (नक्षत्र दान विधि, दान द्रव्य - कृत्तिकासु महाभाग पायसेन ससर्पिषा ।
      संतर्प्य ब्राह्मणान्साधूँल्लोकान्प्राप्नोत्यनुत्तमान् ।।), भागवत ५.२३.६ (शिशुमार के अङ्गों में नक्षत्रों का कल्पन - पुनर्वसुपुष्यौ दक्षिणवामयोः श्रोण्योरार्द्राश्लेषे
      च दक्षिणवामयोः पश्चिमयोः पादयोरभिजित् ), मत्स्य ५४.७ (नक्षत्र पुरुष व्रत विधि व माहात्म्य, विभिन्न नक्षत्रों में नारायण के विभिन्न अङ्गों की विभिन्न नामों से पूजा - मूले नमो विश्वधराय पादौ गुल्फावनन्ताय च रोहिणीषु। जङ्घेऽभिपूज्ये वरदाय चैव द्वे जानुनी वाश्विकुमारऋक्षे ), ५५.७ (आदित्य शयन व्रत के अन्तर्गत विभिन्न नक्षत्रों में सूर्य के विभिन्न अङ्गों की विभिन्न नामों से पूजा का वर्णन - हस्ते च सूर्याय नमोऽस्तु पादावर्काय चित्रासु च गुल्फदेशम्। स्वातीषु जङ्घे पुरुषोत्तमाय धात्रे विशाखासु च जानुदेशम् ॥), मार्कण्डेय ३३.९ (नक्षत्रों में श्राद्ध का फल - कृत्तिकासु पितॄनर्च्य स्वर्गमाप्रोति मानवः॥ अपत्यकामो रोहिण्यां सौम्ये चौजस्वितां लभेत् ।), ५८/५५ (कूर्म के विभिन्न अङ्गों में जनपदों की स्थिति और जनपदों पर नक्षत्रों के प्रभावों का वर्णन), लिङ्ग १.६१.४१ (ग्रहों के जनक नक्षत्रों के नाम - विशाखासु समुत्पन्नो ग्रहाणां प्रथमो ग्रहः।। त्विषिमान् धर्मपुत्रस्तु सोमो देवो वसुस्तु सः।। ), वराह १८१ (प्रतिमा के द्रव्य के अनुसार नक्षत्रों में प्रतिमा प्रतिष्ठा), वामन ५.३१ (काल की देह में नक्षत्र न्यास - यत्राश्विनी च भरणी कृत्तिकायास्तथांशकः। मेषो राशिः कुजक्षेत्रं तच्छिरः कालरूपिणः।। ), ५० (आषाढ अमावास्या को मृगशिरा नक्षत्र में बृहस्पति के प्रवेश का महत्व), ८० (नक्षत्र पुरुष का रूप ;पूजा विधान - मूलर्क्षं चरणौ विष्णोर्जङ्घे द्वे रोहिणी स्मृते। द्वे जानुनी तथाश्विन्यौ संस्थिते रूपधारिणः), वायु ६६.४६ (नक्षत्रों का वीथियों में विन्यास - अश्विनी कृत्तिका याम्या नागवीथिरिति स्मृता । पुष्योऽश्लेषा पुनर्वसू वीथिरैरावती मता।), ८२ (नक्षत्रों में श्राद्ध का फल), विष्णुधर्मोत्तर १.८५ (नक्षत्र वीथियों तथा नक्षत्रों में ग्रहों के चार से शुभाशुभ फल का ज्ञान - कृत्तिका याम्यवायव्ये नागवीथ्युत्तरोत्तरे । गजवीथीह्युदङ्मध्ये प्राजापत्यादयस्त्रयः ।।), १.८६ (प्रदेश पीडा वर्णन में देश अनुसार नक्षत्रों का कथन - कृत्तिकां रोहिणीं सौम्यं मध्यदेशस्य निर्दिशेत् । पीडिते त्रितयेऽतस्मिन्मध्यदेशः प्रपीड्यते ।।), १.८७.७ (जन्म नक्षत्र से आरम्भ कर चौथे, दशम, आदि नक्षत्रों के गुणों का कथन - यस्मिन्हि जननं यस्य जन्मर्क्षं तस्य तत्स्मृतम् । चतुर्थं मानसं तस्माद्दशमं कर्मसंज्ञितम् ।। ), १.८७.११ (ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि जात्याश्रित नक्षत्रों का कथन - पूर्वात्रयमथाग्नेयं ब्राह्मणानां प्रकीर्तितम् ।। उत्तरात्रितयं पुष्यं क्षत्त्रियाणां प्रकीर्त्तितम् ।।), १.८८ (नक्षत्रों में तारकाओं की संख्या तथा नक्षत्रों के रक्त, पीत आदि वर्णों का कथन - रौद्रं पुष्यं तथा त्वाष्ट्रं वायव्यं वारुणं तथा । पौष्णं च पार्थिवश्रेष्ठ कथितं त्वेकतारकम्।।), १.८९ (जन्म, कर्म आदि नक्षत्र पीडा के अनुसार स्नान - सिद्धार्थकान्प्रियङ्गुं च शतपुष्पां शतावरीम् ।
      स्नातव्यमम्भसि क्षिप्त्वा कर्मर्क्षे नृप पीडिते ।।), १.९१ (विभिन्न नक्षत्रों में स्नान हेतु विभिन्न ओषधियों से युक्त जल - वटाश्वत्थशिरीषाणां पत्राणि तु तिलैस्सह ।
      सर्वगन्धोपपन्नानि कृत्तिकासु विधीयते ।।), १.९४.२२ (नक्षत्रों की राशियों में स्थिति - अश्विनी भरणी चैव कृत्तिकांशं चतुर्थकम् । मेषराशौ विनिर्दिष्टं नित्यं पार्थिवसत्तम ।।), १.९५.५४ (नक्षत्र आवाहन मन्त्र - आवाहयिष्यामि शुभां कृत्तिकां देवपूजिताम् ।
      एहि साधारणे देवि ज्येष्ठदक्षसुते शुभे ।।), १.९६.७ (नक्षत्रों हेतु उपयुक्त चन्दन - कुङ्कुमं कृत्तिकानां तु रोहिणीनां मृगोद्भवम् । इल्वलानां च कर्पूरं रौद्रे नागमदं तथा ।।), १.९७.६ (नक्षत्रों हेतु देय पुष्प, धूपादि, नैवैद्य, पान, होमद्रव्य, मन्त्र - कृत्तिकासु च देयानि राजन्रक्तोत्पलानि च । चम्पकानि च रोहिण्या इल्विलायाः सितोत्पलम् ।।), १.१७४ (कृत्तिका नक्षत्र से आरम्भ होने वाले प्रतिमास नक्षत्र पूजन व्रत की विधि - नैवेद्यं कृसरं पूर्वमत्र मासचतुष्टयम् । यावकेन तथा कार्यं मध्यमं च चतुष्टयम् ।।), १.१९१.६ (शाम्बरायणि द्वारा प्रति मास मास - नक्षत्र पूजा से स्वर्ग प्राप्ति का कथन), २.९६ (कृत्तिका स्नान की विधि), २.९९ (विभिन्न नक्षत्रों में स्नान की विधि व काम्य फल का वर्णन), २.१५२.१ (प्रति मास जन्म नक्षत्र में जन्म क्षालन करने का निर्देश - राजा तु जन्मनक्षत्रे प्रति मासं समाचरेत् । जन्मनः क्षालनं कर्म यत्तत्पूर्वं मयेरितम् ।।), २.१६६ (मङ्गल के उदय नक्षत्र से लेकर नक्षत्रों की अग्निमुख, अश्वमुख आदि संज्ञाएं तथा उनके फल - अथ यस्मिन्नक्षत्रे भौम उदयं प्रतिपद्यते तस्मात्सप्ताष्टनवमर्क्षे पूष्णोमुखं नाम वक्त्रं करोति ), २.१६६ (विभिन्न नक्षत्रों में ग्रहों के चार के फल), ३.९६.३(विभिन्न नक्षत्रों में प्रतिमा प्रतिष्ठा के फलों का कथन), ३.९६.२७(विभिन्न नक्षत्रों में प्रतिमा प्रतिष्ठा के फलों का कथन - तेजस्विनी कृत्तिकासु भूतनिग्रहकारिणी। किञ्चिद्भूता ततः काले पुनर्दह्यति वह्निना ।।), ३.१०४.५७ (नक्षत्र आवाहन मन्त्र - आवाहयिष्यामि शुभां कृत्तिकां देवपूजिताम् । एहि साधारणे देवि ज्येष्ठे दक्षसुते शुभे।।), ३.३१७.२० (नक्षत्रों हेतु दान द्रव्य - कृत्तिकासु सुवर्णस्य दानं बहुफलं स्मृतम् । रक्तवस्त्रस्य रोहिण्यां सौम्यभे लवणस्य च।॥), ३.३१८ (नक्षत्रों हेतु दान द्रव्य - कृत्तिकासु महाभागाः पायसेन स सर्पिषा ।संतर्प्य ब्राह्मणान्साधूँल्लोकान्प्राप्नोत्यनुत्तमान् ।।), ३.२१४ (मास नक्षत्र व्रत - कृत्तिकास्वर्चयेद्देवं कार्तिकीप्रभृतिक्रमात् । यावत्स्यात्कार्तिकं भूयो नरसिंहमुपोषितः ।।), स्कन्द १.३.२.७.२२ (विभिन्न तिथियों, नक्षत्रों व राशियों में अरुणाचलेश के लिए देय द्रव्यों का कथन), ४.१.१५.१२ (नक्षत्र शब्द की निरुक्ति – न क्षांतं हि तपोत्युग्रम् ; दक्ष की ६० कन्याओं द्वारा पति प्राप्ति हेतु तप, कन्याओं द्वारा पुंस्त्व प्राप्ति तथा सोम को पति रूप में प्राप्त करना), ४.१.२१.३९ (नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र की श्रेष्ठता का उल्लेख - पुष्योसि नक्षत्रगणे संक्रमः सर्वपर्वसु ।।), ७.१.११.२० (कूर्म रूपी भारत में नक्षत्रों का विन्यास - कृत्तिका रोहिणी सौम्यं तृतीयं कूर्मपृष्ठिगम् ॥ रौद्रं पुनर्वसुः पुष्यं नक्षत्रत्रितयं मुखे ॥), ७.१.२०.७३ (दक्ष द्वारा चन्द्रमा को २७ नक्षत्र संज्ञक कन्याओं को देने का उल्लेख), ७.१.२१.३६ (दक्ष की २७ कन्याओं में से चन्द्रमा की रोहिणी पर आसक्ति का सार्वत्रिक आख्यान - अथ याः कन्यका दत्ताः सप्तविंशतिरिंदवे ॥तासां मध्ये महादेवि प्रिया तस्य च रोहिणी ॥), ७.२.१७.१३३ (गण्डान्त में जन्म का फल), वा.रामायण १.७२.१३ (विवाह के लिए उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र की प्रशंसा - उत्तरे दिवसे ब्रह्मन् फल्गुनीभ्याम् मनीषिणः । वैवाहिकम् प्रशंसन्ति भगो यत्र प्रजापतिः ॥), ६.४.५ (उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में राम की सेना का लङ्का को प्रस्थान), ६.४.५१ (मूल नक्षत्र : राम की सेना के प्रस्थान के समय मूल नक्षत्र को धूमकेतु से पीडा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१५०.२६(ग्रहों की स्थिति के अनुसार नक्षत्रों की श्रेष्ठता - मूलेऽर्कः श्रवणे चन्द्रः प्रोष्ठपद्युऽत्तरे कुजः ।। कृत्तिकासु बुधश्चैव गुरौ चाथ पुनर्वसुः ।), १.१५८.२८ (नक्षत्र अनुसार श्राद्ध का फल - अपत्यकामो रोहिण्यां तेजस्कामो मृगोत्तमे ।। क्रूरकर्मा तथाऽऽर्द्रायां धनकामः पुनर्वसौ ।), १.३११ (समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों द्वारा कृष्ण की अर्चना से २७ नक्षत्र बनने का वृत्तान्त), १.५२६.५३(ऋक्षज वर्ष का कथन- चान्द्रमेकादशोनं तु त्रिंशद्धीनं तु ऋक्षजम् । शीतातपौ तथा वृष्टिर्मानवाब्देन जायते ।।), २.१५६.१०४ (देवायतन स्थापना के संदर्भ में शरीर के अङ्गों में नक्षत्रों, ग्रहों , अक्षरों आदि के न्यासों का वर्णन - रोहिणीभ्योऽपि हृदये मृगशिरसे मस्तके । आर्द्रायै चापि केशेषु पुनर्वसवे भालके ।। ), २.१७५.१ (विभिन्न नक्षत्रों में विभिन्न कृत्यों के सम्पादन का निर्देश - रोहिणी चोत्तरास्तिस्त्रो ध्रुवासंज्ञा मता यतः ।तासु देवालयं ग्रामखातं नृपाभिषेचनम् ।।), २.१७५.६९ (विभिन्न ग्रहों में नक्षत्रों की स्थिति का फल - रवौ हस्तो मृगश्चन्द्रे गुरौ पुष्यं कुजेऽश्विनौ । अनुराधा बुधे शुक्रे रेवती रोहिणी शनौ ।।), ३.१०३.११ (विभिन्न नक्षत्रों में दान के फलों का वर्णन - कृत्तिकायां प्रदानेन भवेद्वै विगतज्वरः ।। रोहिण्यां सम्प्रदानेन चापत्यवान् भवेज्जनः ।), ३.१५३.३५ (नक्षत्रों के वारों के साथ योगों के अनुसार औत्पातिक, अमृतयोगों, विषयोगों आदि का कथन - धनिष्ठात्रितयं भौमे बुधे तु रेवतीत्रयम् । रोहिण्यादित्रयं गुरौ शुक्रे पुष्यत्रयं रमे! ।।), ३.१५३.७८ (यात्रा, वेष धारण, कन्यादान आदि हेतु शुभ नक्षत्रों का कथन - कृत्तिकादौ पूर्वयात्रां सप्तर्क्षाणि तु संव्रजेत् ।। मघादौ दक्षिणे गच्छेदनुराधादौ पश्चिमे ।), महाभारत भीष्म ३.१२(व्यास द्वारा महाभारत युद्ध से पूर्व नक्षत्रों में ग्रहों की स्थिति का कथन - श्वेतो ग्रहस्तथा चित्रां समतिक्रम्य तिष्ठति । अभावं हि विशेषेण कुरूणां तत्र पश्यति ।।), अनुशासन ६४(विभिन्न नक्षत्रों के योग में भिन्न - भिन्न वस्तुओं के दान का माहात्म्य - कृत्तिकासु महाभागे पायसेन ससर्पिषा। सन्तर्प्य ब्राह्मणान्साधूँल्लोकानाप्नोत्यनुत्तमान्।।), ११०(अङ्गों में रूप प्राप्ति के लिए चन्द्र व्रत के संदर्भ में शरीर के विभिन्न अङ्गों में नक्षत्रों का न्यास - मार्गशीर्षस्य मासस्य चन्द्रे मूलेन संयुते। पादौ मूलेन राजेन्द्रि जङ्घायामथ रोहिणीम्।। ), शौ.अ. ५.२४.१०(चन्द्रमा नक्षत्राणां अधिपतिः), nakshatra


      नक्षत्रकल्प नारद १.५१.२(५ कल्पों में से एक नक्षत्र कल्प का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३५.६१(सैन्धव द्वारा विभक्त अथर्ववेद के कल्पों में से एक), भागवत १२.७.४(अथर्ववेद के कल्पों में से एक), वायु ६१.५४(सैन्धव द्वारा विभक्त अथर्ववेद के कल्पों में से एक), विष्णु ३.६.१३(शौनक - शिष्य सैन्धव द्वारा विभक्त अथर्ववेद के कल्पों में से एक )


      नख गरुड २.२२.६० (नख में पुष्कर द्वीप की स्थिति), देवीभागवत ३.४ (त्रिदेवों द्वारा भुवनेश्वरी देवी के चरण नख में ब्रह्माण्ड के दर्शन), १२.४.९(नखों में मुहूर्तों का न्यास), पद्म ६.६.२९ (बल असुर के नखों से कनक की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४७ (नखों के सौन्दर्य हेतु मुनीन्द्रनाथ को मणीन्द्रसार दान का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८१(नखवान् : वैदिश के नागकुल के राजाओं में से एक), ३.४.२४.१२६(नरकासुर आदि के वध हेतु विष्णु के देवी के नख से प्राकट्य का कथन), भागवत २.१.३५(भगवान् के विराट् रूप में अश्व, उष्ट्र आदि के नख रूप होने का उल्लेख), वायु ९९.३६७/२.३७.३६१(वैदिश के नागकुल के राजाओं में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.२३८.२८ (नृसिंह द्वारा कर के नखों द्वारा हिरण्यकशिपु के विदारण का उल्लेख), १.२३९.४ (रावण द्वारा दृष्ट विराट् पुरुष के नखों में पिशाचों की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द १.२.६०.४० (घटोत्कच द्वारा कामकटंकटा के समक्ष अङ्गुष्ठ व कनिष्ठिका अङ्गुलि के नखों के वादन से राक्षसों को उत्पन्न करना), ४.२.७२.६० (नखों की विरजा देवी द्वारा रक्षा), ५.१.४.९० (शिव द्वारा दक्षिण अङ्गुलि के नख में अग्नि को धारण करना), ५.३.४२.५४ (पिप्पलाद द्वारा छोडी गई कृत्या के कोप से बचने के लिए याज्ञवल्क्य के शिव के नख मांसान्तर में छिपने का उल्लेख), ५.३.१५९.१३ (स्वर्ण हरण से जन्मान्तर में कुनखी होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१८.२९ (नख की ऊर्णनाभि से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५४ (अलक्ष्मी के कूर्मपृष्ठ सदृश नखों का उल्लेख), १.३७०.७३ (नरक में नख कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), २.७९.३८(कृष्ण के नख पूर्णिमा के चन्द्र की भांति होने का उल्लेख), ३.११५.८२ (देवी के नख यम - नियम के प्रतीक होने का उल्लेख), ३.१६३.७९ (बल असुर के नखों का वायु के बल से समिद्ध होकर कर्केतन मणि के बीज रूपों में परिवर्तित होने का कथन), महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ ७८४(यज्ञवराह के प्रायश्चित्त नख होने का उल्लेख), स्त्री १५.३०(क्रोध युक्त गान्धारी द्वारा दर्शन से युधिष्ठिर के कुनखी होने का उल्लेख ); द्र. शूर्पणखा nakha


      नग ब्रह्माण्ड ३.४.१.७९(तृतीय सावर्णि मनु के समय के सप्तर्षियों में से एक), वायु ६.३७(तम से आवृत्त बुद्धि आदि करणों की नग संज्ञा?), १०४.२८/२.४६.२८(नग की निरुक्ति ) naga


      नगर अग्नि १०६ (नगर वास्तु का वर्णन, नगर निवासियों के वर्ण व उनके कर्म अनुसार नगर में उनका दिक् - विन्यास), भागवत ४.२५+ (पुरञ्जन के नगर का वर्णन व तात्पर्य), वायु ८१.१४ (प्रशस्त व अप्रशस्त नगर के लक्षण), स्कन्द ६.११४.७७ (सर्पों से रक्षा हेतु नगर मन्त्र का कथन), ६.१४४.७७ (नगर की उत्पत्ति, निरुत्ति, सर्प भय से मुक्ति), योगवासिष्ठ ६.२.१३.२१ ((अन्तर्मुखी होने पर शक्र द्वारा दिव्य नगर व जनपदों का दर्शन), लक्ष्मीनारायण १.४९८.८८५(त्रिजात विप्र द्वारा क्रूर स्पर्श का निष्कासन कर शिव से नगर मन्त्र प्राप्त करना), कथासरित् १८.३.२० (नगरस्वामी नामक चित्रकार द्वारा प्रस्तुत कन्या के चित्र पर राजा के मुग्ध होने व सदृश कन्या के अन्वेषण करने का वृत्तान्त ) nagara


      नगरङ्गम कथासरित् ८.५.९३ (श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानी, प्रभास से युद्ध में मृत्यु )


      नगाश्रय विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ (गीत लक्षणों में २० मध्यम ग्रामिकों में से एक )


      नगृहू ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०१(सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक), मत्स्य १४५.९५(नग्नहू : सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक), वायु ५९.९२(नग्रहू : सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक )


      नग्न पद्म २.८.३१ (दुःख से पीडित आत्मा द्वारा नग्न वैराग्य का दर्शन, वैराग्य से संवाद), ब्रह्माण्ड १.२.२७.१०५ (इन्द्रियों के अजित होने पर वस्त्र होते हुए भी नग्न संज्ञा होने का कथन), २.३.१४.३५(वेद त्रयी से रहित होकर तप करने वालों की नग्न संज्ञा का कथन), भागवत १०.१०.६(विवस्त्र यक्ष कुमारों नलकूबर व मणिग्रीव द्वारा नारद को देखकर भी वस्त्र धारण न करने पर शाप से अर्जुन वृक्ष बनना), १०.६३.२०(बाणासुर की माता कोटरा द्वारा पुत्र प्राणों के रक्षार्थ कृष्ण के समक्ष नग्न प्राकट्य का उल्लेख),मत्स्य १४५.९५ (नग्नहू : सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्त करने वालों में से एक), वायु ७८.२६ (नग्नता निरूपण व नग्नता की निन्दा), विष्णु ३.१७.५ (वेदत्रयी आवरण से रहित व्यक्ति, शतधनु - शैब्या दृष्टान्त), ३.१८.४८(स्वधर्म से विमुख ब्राह्मणादि वर्णों की नग्न संज्ञा का उल्लेख), स्कन्द ७.१.३१९.४७ (नग्नहर नगर का माहात्म्य : उन्नत लिङ्ग के स्थान पर विश्वकर्मा द्वारा नग्नहर नगर का निर्माण), हरिवंश २.१२६.२३(कार्तिकेय की रक्षा हेतु कोटवी देवी के कृष्ण व कार्तिकेय के मध्य नग्न प्राकट्य का उल्लेख), २.१२६.११२(बाणासुर की रक्षा हेतु कोटवी देवी के कृष्ण के समक्ष नग्न प्राकट्य का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४२४.१९(नग्न के नाश हेतु योगिनी का उल्लेख), २.२६.९३ (वेद, कथा व व्रत से रहित पुरुषों की नग्न संज्ञा), २.११५.१५(नग्न नामक पर्वतों के बीच साम/आसाम देश का वर्णन), ४.१५.५३ (नागमुखी नामक चारणी द्वारा साधुसेवा से नाग्नकैसरी नाम से मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ) nagna


      नग्नजित् गरुड २.२.१९.७२(राजा नाग्निजित् के पूर्व जन्म में कव्यवाह होने का उल्लेख), ३.१९.७१(नाग्निजित् : कव्यवाह का अवतरण, नीला-पिता, कृष्ण द्वारा नीला की प्राप्ति), गर्ग ७.१८.५ (कोसल - राजा नग्नजित् द्वारा प्रद्युम्न की पूजा), देवीभागवत ९.४३.३१( स्वाहा का तप से नग्नजित् - कन्या / सत्या बनकर कृष्ण को प्राप्त करने का कथन), भागवत ३.३.४(कृष्ण द्वारा वृषों का दमन कर नाग्नजिती से विवाह का उल्लेख), १०.५८.५२(कृष्ण द्वारा राजा नग्नजित् के ७ गोवृषों का दमन कर कन्या सत्या से विवाह का वृत्तान्त), मत्स्य २५२.२(स्थापत्य कला के १८ प्रवर्त्तकों में से एक ) ; द्र. नाग्नजिती nagnajit


      नग्रभङ्ग लक्ष्मीनारायण ३.११४.३७ (नग्रभङ्ग चोर द्वारा साधुसमागम से भागवतायन नामक भक्त बन कर मोक्ष प्राप्त करने का वृत्तान्त )


      नचिकेता अग्नि ३८२ (नचिकेता द्वारा यम से यम गीता रूपी उपदेश की प्राप्ति), वराह १९३+ (उद्दालक - पुत्र, नचिकेता के यमपुरी गमन का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३५७+ (उद्दालक - पौत्र व नचिकेता - पुत्र नाचिकेता द्वारा पितृशाप से यमलोक जाकर यम से आत्म ज्ञान की प्राप्ति, यम लोक दर्शन, दुष्कर्मों के फलस्वरूप यातना भोगियों के दर्शन, सत्कर्मों के फलस्वरूप यमलोक का लङ्घन करते हुए पुण्यात्माओं के दर्शन आदि ), द्र. त्रिणाचिकेत nachiketaa


      नट नारद १.६६.१२७(नटी : कपर्दी की शक्ति नटी का उल्लेख), हरिवंश २.९१ (भद्रनामा नामक नट का वृत्तान्त), २.९२ (प्रद्युम्न, साम्ब आदि द्वारा वज्रपुर में प्रवेश के लिए नट रूप धारण), लक्ष्मीनारायण २.३५ (नट नाट्य तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन : अर्धनारीश्वर के नेतृत्व में नटों द्वारा विविध प्रदर्शन, सिंह द्वारा रुद्र के शिर का भक्षण कर लेने पर कृष्ण द्वारा रुद्र को जीवन दान, रुद्र द्वारा अर्धनारीश्वर रूप का प्रदर्शन आदि), ३.२२७ (देश्यावन नामक वानर, नकुल पालक द्वारा वानर, जम्बुक आदि के खेल दिखाकर जीवन यापन करना ) nata



      नटराज मत्स्य २५९.१० (नटराज शिव की मूर्ति का आकार), शिव २.३.३० (शिव द्वारा नर्तक भिक्षु के रूप में मेना से भिक्षा में मेना - पुत्री की याचना), लक्ष्मीनारायण १.१८८.२० (शिव का नर्तक वेश धारण कर हिमालय के गृह में आकर नृत्य करना व पार्वती को भिक्षा में मांगना, हिमालय की अस्वीकृति ) nataraaja


      नड- मत्स्य १९५.१७(नडायन : गोत्रकार ऋषियों में से एक), कथासरित् २.३.४२ (राजा चण्डमहासेन के रत्न समान हस्ती नडागिरि का उल्लेख), २.५.६ (नडागिरि हाथी की भद्रवती हथिनी से मित्रता का उल्लेख), २.५.२९ (वत्सराज व पालक राजपुत्र के युद्ध के संदर्भ में नडागिरि द्वारा भद्रवती हथिनी से न लडने का उल्लेख ) nada


      नड्वला अग्नि १८.८ (मनु व नड्वला के ऊरु आदि १० पुत्रों के नाम), ब्रह्म १.१.७४ (वैराज प्रजापति की कन्या, मनु - भार्या, कुत्स आदि १० पुत्रों के नाम), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०५ (विरज प्रजापति की पत्नी नड्वला के ऊरु आदि १० पुत्रों के नाम), भागवत ४.१३.१५ (चाक्षुष मनु की पत्नी, १२ पुत्रों के नाम), मत्स्य ४.४० (चाक्षुष मनु की पत्नी, अतिरात्र आदि की माता), वामन ७९.५१ (इरावती - नड्वला सङ्गम का उल्लेख - ब्रह्मक्षत्र), शिव २.५.८.१४ (नडवल : शिव रथ में वृद्धि का रूप? ), हरिवंश १.२.१७ (अरण्य - पुत्री, मनु - भार्या, दस पुत्रों की माता ) nadvalaa


      नति नारद १.७६.११५(मार्तण्ड के नतिप्रिय होने का उल्लेख), वा.रामायण ३.१४.२०(नता : शुकी - पुत्री, विनता - माता ) ; द्र. विनत


      नद गर्ग १०.२८.४५(बल्वल के ४ मन्त्रियों में से एक नद द्वारा यादव सेना से युद्ध का प्रस्ताव), १०.३०.१७ (बल्वल - सेनानी, गद से युद्ध व मृत्यु), भागवत ५.१६.२४ (कुमुद पर्वत पर शतवल्शा वट से नि:सृत कामदुघा नदों की विशेषताओं का कथन ) ; द्र. पञ्चनद nada


      नदी गर्ग ५.२१.३(ऋभु मुनि के मृत शरीर के नदी में परिणत होने का कथन), ६.१.२६ (युद्ध में रक्त रूपी नदी की उपमा), नारद १.५०.३५ (देवों की सात मूर्च्छनाओं में से एक), २.६०.२८ (महाज्यैष्ठी पञ्चदशी? को कृष्ण के दर्शन के गङ्गा, सरस्वती आदि नदियों में स्नान फल के तुल्य होने का कथन, नदियों के नाम), पद्म १.९ (श्राद्ध कर्म के योग्य नदियां), ३.६.१० (भारत के अन्तर्गत अनेकों - अनेकों नदियों के नाम), ६.६.२३ (बल असुर के एक अङ्ग के देवनदी में गिरने का उल्लेख), ६.७० (नदी त्रिरात्र व्रत की विधि), ६.१११.१६ (सावित्री व गायत्री द्वारा परस्पर शाप दान से देवों के निम्नगा / नदियां बनने का वर्णन), ब्रह्म २.३२.८(सावित्री, गायत्री आदि पांच ब्रह्मसुताओं का ब्रह्मा की कामुकता के भय से नदी होकर गङ्गा में मिलने का आख्यान), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१४ (शंस्य / आहवनीय अग्नि द्वारा कावेरी आदि १६ नदियों से १६ धिष्ण्य पुत्रों की प्राप्ति), १.२.१६.२८ (हिमालय आदि पर्वतों से नि:सृत नदियों के नाम), ३.४.२.२७८ (जन्म - मृत्यु रूपी उदक वाली नदी का उल्लेख), भविष्य ४.५८ (दत्तात्रेय - भार्या, लक्ष्मी का रूप, असुरों द्वारा नदी को सिर पर उठाना), भागवत २.१.३३(विराट् पुरुष की नाडियों के रूप में नदियों का उल्लेख), ५.१७.५(विष्णु के पादाङ्गुष्ठ से नि:सृत गङ्गा के चार दिशाओं में सीता आदि ४ धाराओं में विभक्त होने का वर्णन), ५.१९.१८(भारत की मुख्य नदियों के नाम), ५.१९.२४ (वैकुण्ठ कथा सुधा रूपी नदी का उल्लेख), ५.२०.४ (प्लक्ष द्वीप की ७ महानदियों के नाम), ५.२०.१० (शाल्मलि द्वीप की ७ नदियों के नाम), ५.२०.१५ (कुश द्वीप की ७ नदियों के नाम), ५.२०.२१ (क्रौञ्च द्वीप की ७ नदियों के नाम), ५.२०.२६ (शाक द्वीप की ७ नदियों के नाम), ६.५.७ (आगे - पीछे बहने वाली नदी का उल्लेख), ६.५.१६ (माया के उभयतो वाहा नदी होने का कथन), १०.५० (जरासन्ध की सेना से निर्मित युद्ध रूपी नदी), मत्स्य ११४.२५ (भारत में स्थित नदियों के विभिन्न पर्वतों से उद्गम), मार्कण्डेय ५७.१६/५४.१६ (भारत के विभिन्न पर्वतों से नि:सृत नदियों का वर्णन), वराह ८२ (आकाशगङ्गा से नदियों की उत्पत्ति), ८५ (भारत की नदियों के नाम), वामन ९ (युद्ध रूपी नदी), १३ (जम्बू द्वीप में स्थित नदियों के नाम), ४३.२४ (आत्मा रूपी नदी), ५७.७५ (कालिन्दी आदि विभिन्न नदियों द्वारा कार्तिकेय को भेंट किए गए गणों के नाम), वायु ४२.१ (सोम रूपी आकाश जल से निःसृत नदी के आकाश में बहने तथा विभिन्न शैलकूटों पर पतन करते हुए बहने का वर्णन), विष्णु २.३.१० (भारत की नदियों के उद्गम पर्वतों का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.१० (सप्त गिरियों से उद्भूत नदियों के नाम), १.११ (हिमालय से प्रसूत नदियों के नाम), १.२१५ (नदियों के वाहन), ३.१६३ (नदी व्रत), ३.११९.२ (नदी उत्तारण कर्म में वराह की पूजा का निर्देश), शिव १.१२.९ (सिन्धु, सरस्वती, गङ्गा, नर्मदा आदि नदियों के मुखों की संख्याओं का कथन ; विभिन्न राशियों व ग्रहों के योगों में नदियों में स्नान के फल का कथन), ३.७.१६ (शिव द्वारा जटाओं के जल से नन्दी का प्रोक्षण करने पर पांच नदियों के प्रादुर्भाव का कथन), स्कन्द १.२.४२.१६३ (सात आध्यात्मिक नदियों के नाम), २.३.१.१९ (गङ्गा, गोदावरी आदि अनेक मुक्तिप्रदायक पुण्य नदियों के नाम), २.४.४.९ (कार्तिक में गङ्गा, कावेरी आदि नदियों में स्नान की विधि व माहात्म्य ; किरणा, धूतपापा आदि ५ नदियों को अर्घ्य प्रदान करने का निर्देश), २.४.४.२२ (कार्तिक में कूप, तडाग, नदी, तीर्थ आदि में स्नानों के आपेक्षिक पुण्यों का कथन, नदियों के नाम), २.४.४.४७ (पञ्च गङ्गा / पञ्चनद तीर्थ में स्नान के माहात्म्य का कथन), ४.२.५९.९४ (धूतपापा कन्या के शाप से कामुक धर्म के धर्मनद में परिवर्तित होने का वर्णन), ४.२.५९.१३५ (पञ्चनद तीर्थ का माहात्म्य, विभिन्न युगों में पञ्चनद तीर्थ के नाम), ५.३.२२ (१६ नदियों का धिष्णि नामों से अग्नि की भार्याएं बनना), हरिवंश २.१०५.६० (युद्ध रूपी नदी), ३.१७.२४ (नदी की निरुक्ति), ३.२७ (मधुवाहिनी नदी), ३.३५ (विभिन्न दिशाओं में यज्ञ वराह द्वारा नदियों का निर्माण), ३.५९.८८(देवासुर सङ्ग्राम में उत्पन्न लोहित नदी का कथन), योगवासिष्ठ १.१७.६ (शरीर रूपी पर्वत पर तृष्णा रूपी नदी), वा.रामायण ४.३०.५५(नदी मुख की वधू मुख से उपमा का कथन), ६.९३.११ (युद्ध से उत्पन्न शोणित रूपी नदी का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५५६.११ (हिमालय, पारियात्र, ऋक्ष, मलय आदि पर्वतों से नि:सृत नदियों के नाम), २.२३०.१६ (भगीरथ द्वारा गङ्गा अवतारण की कथा की पाराक द्वारा आम्रजनी अवतारण की कथा से साम्य), ३.५१.३४ (गङ्गा, ब्रह्मपुत्रिका, सरस्वती, कावेरी नामक चार नदियों द्वारा मानवों के पाप प्रक्षालन के कारण कृष्ण वर्णा हंसियां होकर पाप प्रक्षालन का प्रयत्न करना, गुरु तीर्थ में पापों का नाश होना), ३.२१५.६२ (मानव देह की नाडियों के ब्रह्माण्ड में नदियां होने का उल्लेख), कथासरित् १४.३.१०४ (विद्याधरों व नरवाहनदत्त की सेनाओं में युद्ध से उत्पन्न रुधिर की नदी में कबन्धरूपी ग्राहों व आयुध रूपी सर्पों का उल्लेख), महाभारत उद्योग ४०.२१(आत्मा रूपी नदी में सत्य उदक, धृति कूल, दया ऊर्मि आदि होने का कथन), ४६.७(सनत्सुजात द्वारा संसार रूपी घोर नदी का कथन), भीष्म ५९.१२(भीष्म के युद्ध से प्रवर्तित रुधिरवाहिनी नदी का कथन), १०३.३३(भीष्म के युद्ध से प्रवर्तित रक्त आदि की नदी का वर्णन), ११२.२९(द्रोणाचार्य द्वारा अश्वत्थामा को सङ्ग्राम नदी का कथन ; अर्जुन द्वारा रथ से सङ्ग्राम नदी को पार करने का उल्लेख), द्रोण १४.८(युद्ध में द्रोण द्वारा प्रवृत्त रक्त की नदी का वर्णन), १६.४३(युद्ध में अर्जुन द्वारा प्रवृत्त रक्त की नदी का कथन), २१.३८(द्रोण के युद्ध से प्रवर्तित रक्त की नदी का वर्णन), ५०.११(१३ दिन के युद्ध की समाप्ति पर रक्त रूपी नदी का कथन), १४६.३१(जयद्रथ वध के संदर्भ में अर्जुन द्वारा युद्ध में प्रवृत्त शोणित की नदी का वर्णन), १५६.१७३(घटोत्कच से युद्ध में अश्वत्थामा द्वारा प्रवृत्त रक्त की नदी का वर्णन), १८७.१६(वीरों द्वारा युद्ध में प्रवृत्त रक्त की नदी का कथन), शान्ति ९८.३१(योद्धा के अवभृथ स्नान के लिए उपयुक्त युद्ध की नदी का वर्णन), २३५.१४(काल रूपी नदी का वर्णन), २५०.१२(संसार रूपी घोर नदी का कथन), ३२९.३८(संसार रूपी नदी को पार करने के लिए नौका का कथन), कर्ण ४९.८२(कौरव - पाण्डवों के युद्ध में प्रवृत्त रक्त की नदी का कथन), ७७.४५(भीमसेन द्वारा युद्ध में प्रवृत्त रक्त की नदी का वर्णन), शल्य ९.२९(कौरव - पाण्डव युद्ध में रक्त की नदी का कथन ) ; द्र. पुण्यनदी, सिन्धु nadee/ nadi


      ननानी स्कन्द २.४.७टीका (भिल्ल - कन्या ननानी के द्विज - पुत्रों से संसर्ग की कथा )


      नन्द गणेश १.५७.२ (नन्दु : दण्डकारण्य में नन्दु नगर में दुष्ट कैवर्तक की कथा), गरुड ३.२४.७८(श्रीनिवास के पश्चिम द्वार पर नन्द-सुनन्द की स्थिति), गर्ग १.३.४१ (नन्द के द्रोण वसु का अंश होने का उल्लेख), १.४.४ (गौ पालक की उपाधि व नन्द के लक्षण), १.१८ (९ नन्दों व ९ उपनन्दों के नाम, पूर्व जन्म में निकुञ्ज में द्वारपाल व गोपालक), २.१+ (सन्नन्द : वृद्ध गोप, गोकुल में उपद्रव होने पर गोपों को व्रज मण्डल में स्थान्तरण का परामर्श, व्रज मण्डल की महिमा का वर्णन), ४.१२ (९ उपनन्दों के नाम, उपनन्द - कन्याओं द्वारा कृष्ण की प्राप्ति), ४.२२ (वरुण अनुचरों द्वारा नन्द के हरण पर कृष्ण द्वारा वरुण लोक से नन्द को लाना), ४.२३ (अजगर द्वारा गृहीत होने पर कृष्ण द्वारा नन्द की रक्षा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९.१९ (धरा व द्रोण का तप से यशोदा व नन्द रूप में जन्म लेकर कृष्ण को पुत्र रूप में प्राप्त करना), ४.७३.५२ (कृष्ण द्वारा नन्द को विभूति योग का वर्णन : वृक्षों में कल्पवृक्ष, सरिताओं में गङ्गा आदि), ४.७४+ (नन्द के कृष्ण से संवाद का आरम्भ), ४.१०४.९२ (नन्द द्वारा उग्रसेन के राज्याभिषेक के समय सुरभि व कामधेनु भेंट करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१४.३६(मेधातिथि के ७ पुत्रों में से एक, प्लक्ष द्वीपेश्वर, पुत्रों के वर्षों के नाम), २.३.७.२३४(वाली के प्रधान वानरों में से एक), २.३.७१.१७१(वसुदेव व मदिरा के १० पुत्रों में से एक), भविष्य १.८२.९ (१२ आदित्य वारों में से एक ; माघ शुक्ल षष्ठी / सप्तमी को नन्द व्रत की विधि ), भागवत ४.१२.२२ (विष्णु - पार्षदों सुनन्द व नन्द द्वारा विमान द्वारा ध्रुव को आकाश में स्थापित करना), १०.८.४८ (जन्मान्तर में द्रोण वसु, यशोदा पत्नी धरा का रूप), १०.२८ (नन्द द्वारा यमुना में स्नान, वरुण अनुचर द्वारा हरण , कृष्ण द्वारा मुक्ति), १२.१.९(कलियुग के राजाओं में से एक, महानन्दि -- पुत्र; शूद्र राजा के विषय में कथन), १२.२.२६(परीक्षित् के काल से लेकर नन्द राजा के अभिषेक तक १११५ वर्ष का समय व्यतीत होने का उल्लेख), १२.२.३२(सप्तर्षियों के मघा से पूर्वाषाढा पर जाने पर नन्द से लेकर कलियुग की वृद्धि होने का कथन), मत्स्य ४६.३(शूर व भोजा के १० पुत्रों में से एक), लिङ्ग २.२७.२११ (नन्द व्यूह का वर्णन), वामन ५७.७६ (मन्दाकिनी नदी द्वारा कुमार को प्रदत्त गण का नाम), वायु ५०.२८(वितल नामक तृतीय तल में उरगपति नन्द के मन्दिर की स्थिति का उल्लेख), ६१.३(नन्दायनीय : रथीतर के ३ शिष्यों में से एक), ६७.३४/२.६.३४(रुचि व अजिता से उत्पन्न १२ अजित देव पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.१.३२.२ (नन्द - पुत्र राजा धर्मगुप्त - ऋक्ष व सिंह की सार्वत्रिक कथा), ७.१.२५६ (नन्दादित्य का माहात्म्य : नन्द राजा द्वारा पद्म ग्रहण की चेष्टा पर कुष्ठ प्राप्ति, आदित्य उपासना से कुष्ठ से मुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.५४१.१ (राजा नन्द द्वारा मानस सरोवर में स्थित दिव्य कमल को ग्रहण करने की चेष्टा पर कृष्ण वर्ण होने तथा प्रभास में स्वर्णकमल आदि की उपासना से शुक्लता प्राप्ति की कथा), ३.१५१.८८ (नन्द निधि के आश्रित पुरुष के गुणों का कथन), कथासरित् १.२.३५ (विद्वान वररुचि के पिता के मित्र नन्द नट का उल्लेख), १.२.४५ (नन्द भूपति के पाटलि नामक पुर में वर्ष विप्र का वृत्तान्त), १.४.९४ (वर्ष के तीन शिष्यों इन्द्रदत्त आदि का राजा नन्द से धन मांगने के लिए जाना, अकस्मात् राजा की मृत्यु पर इन्द्रदत्त का राजा की देह में प्रवेश करके योगनन्द नामक राजा बनना, योगनन्द का वृत्तान्त ) ; द्र. महानन्द, मायानन्द, विश्वनन्दी, सुनन्द nanda


      नन्दक ब्रह्माण्ड २.२०.३०(वितल नामक तृतीय तल में नन्दक नामक नाग के मन्दिर की स्थिति का उल्लेख), मत्स्य ४६.१८(नन्दक / नन्दन : वृकदेवी व वसुदेव के एक पुत्र का नाम), वायु २२.१६(ध्यानरत ब्रह्मा के पार्श्व से सुनन्द, नन्दक, विश्वनन्द आदि ४ शिष्यों के उत्पन्न होने का कथन ) nandaka


      नन्दन नारद २.२८.७१ (धर्म के कामदुघा धेनु व संतोष के नन्दन वन होने का उल्लेख), ब्रह्म १.१६.३०(मेरु के उत्तर में स्थित वन का नाम), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.३३ (नन्दनन्दन कृष्ण से नैर्ऋत्य दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड २.३.७.१२२(पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ पुत्रों में से एक), २.३.७०.४६(राजा मधु का एक पुत्र), २.३.७१.१४९(शूर व भोजा के १० पुत्रों में से एक), ३.४.२९.११३(भण्डासुर द्वारा हुंकार से उत्पन्न पुत्रों में से एक), मत्स्य ३४४.१८(ययाति का स्वर्ग के नन्दन नामक उपवन में वास व वहां से भ्रष्ट होने का कथन), लिङ्ग १.११.७ (तपोरत ब्रह्मा से श्वेत वर्ण सुनन्द, नन्दन, विश्वनन्द आदि की उत्पत्ति का कथन), वायु २२.१६(ध्यानस्थ ब्रह्मा के पार्श्व से सुनन्द, नन्दक, विश्वनन्द व नन्दन नामक ४ शिष्यों के उत्पन्न होने का कथन), ९६.१४८/२.३४.१४८(शूर व भोजा के १० पुत्रों में से एक, वसुदेव -- भ्राता), विष्णु ४.२४.५६(वंग - पुत्र, सुनन्दी - पिता), शिव ३.१.१० (श्वेत लोहित कल्प में सद्योजात शिव (?) के सुनन्द, नन्दन, विश्वनन्द व उपनन्द नामक ४ शिष्यों के प्रादुर्भाव का कथन), ५.२.६ (हिरण्यकशिपु- पुत्र नन्दन के अङ्गों पर वज्र आदि का प्रभाव न होने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१४०.९० (नन्दन व श्रीनन्दन नामक प्रासादों में अण्डों की संख्या का कथन), ३.५१.११८ (अन्न दान न करने से स्वर्गलोक में भी तृषित राजा सुबाहु द्वारा नन्दन वन के नन्दन सरोवर में स्नान करके स्वशव भक्षण करने का कथन ) ; द्र. कुनन्दन, भनन्दन nandana


      नन्दभद्र स्कन्द १.२.४५ (नन्दभद्र वैश्य द्वारा कपिलेश्वर की अर्चना, नास्तिक के मत का खण्डन), १.२.४६ (कुष्ठी ब्राह्मण - पुत्र द्वारा नन्दभद्र को ज्ञानोपदेश, नन्दभद्र द्वारा गुरु नामक बालादित्य की स्थापना )


      नन्दयन्ती वामन ६३.८० (अञ्जन गुह्यक - पुत्री), ६४.४१ (अञ्जन व प्रम्लोचा - पुत्री), ६५ (नन्दयन्ती का शकुनि से विवाह), कथासरित् १२.२१.६ (नन्दयन्ती व रत्नदत्त वणिक् - पुत्री रत्नवती के चोर पर आसक्त होने की कथा )


      नन्दसावर्णि लक्ष्मीनारायण १.३८८ (नन्दसावर्णि राजा की भक्ति से वराह द्वारा स्वभार्या धरणि को कुमारी रूप में राजा को प्रदान करना, धरणि द्वारा वराह से दिव्य दन्तास्थि की प्राप्ति, नन्दसावर्णि द्वारा दन्तास्थि की सहायता से प्राप्त धन को समुद्र में छिपाना, धरणि के निधनोपरान्त नारद द्वारा राजा की सपत्ना उपला को भ्रमित करके दन्तास्थि को नष्ट कराना, राजा की मृत्यु आदि ) nandasaavarni


      नन्दा अग्नि ६५.१९ (सभादि स्थापना के संदर्भ में नन्दा / श्री से प्रतिष्ठित होने की प्रार्थना), नारद १.६६.९३(सुनन्दा : नन्दन विष्णु की शक्ति सुनन्दा का उल्लेख), १.६६.१२८(वृषध्वज की शक्ति नन्दा का उल्लेख), १.११८.१६ (नन्दा नवमी को दुर्गा पूजा), पद्म १.१८ (नन्दा गौ का व्याघ्र रूपी प्रभञ्जन राजा से संवाद, स्वर्ग गमन, सरस्वती का नन्दा नामकरण), ब्रह्माण्ड २.३.१३.८२(नन्दा तीर्थ में श्राद्ध के माहात्म्य का कथन), ३.४.४४.७२(५१ वर्णों की शक्ति देवियों में से एक), भागवत ४.६.२४४(अलकापुरी के बाहर अलकनन्दा व नन्दा नदियों की स्थिति व महत्त्व का कथन), ५.२०.१०(शाल्मलि द्वीप की ७ नदियों में से एक), मत्स्य १३.३ (हिमवान् पर सती देवी की नन्दा नाम से स्थिति का उल्लेख), २२.१०(श्राद्ध के लिए प्रशस्त तीर्थों में से एक), १२२.३१(शाक द्वीप की एक नदी, अन्य नाम पावनी), १७९.१२(मातृनन्दा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), मार्कण्डेय ७१(नागराज कपोतक की पुत्री, नागराज द्वारा मूक होने का शाप), वायु ४१.१८(कैलास पर्वत के पूर्व कूट की एक नदी), स्कन्द २.४.४.८५ (नन्दा द्वारा व्याघ्र को उपदेश, सरस्वती नदी का रूप), ५.३.१४० (नन्दा ह्रद तीर्थ का माहात्म्य, नन्दा देवी द्वारा महिषासुर वध के पश्चात् स्नान), ५.३.१९८.६८ (हिमालय पर देवी की नन्दा नाम से ख्याति का उल्लेख), ७.१.२६५ (कनकनन्दा देवी का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१२ (पुरुषोत्तम की शक्ति नन्दा का उल्लेख), ४.१०१.१०३ (कृष्ण - पत्नी नन्दा के नन्दन सुत व नन्दिनी सुता का उल्लेख), १.२७४.१९ (भाद्रपद शुक्ल नवमी को नन्दा व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), १.२७४.३८ (माघ शुक्ल नवमी को महानन्दा देवी की पूजा का निर्देश ) ; द्र. कनकनन्दा nandaa


      नन्दिकुण्ड पद्म ६.१३६.१ (नन्दिकुण्ड से विनिःसृत साभ्रमती नदी द्वारा पवित्र किए गए देशों का वर्णन )


      नन्दिग्राम पद्म ५.१.२८ (राम द्वारा वन से अयोध्या लौटने पर भरत के तपोस्थल नन्दिग्राम में तपोरत भरत के दर्शन व हनुमान का प्रेषण), स्कन्द ३.३.२०.२९ (नन्दिग्राम में महानन्दा वेश्या व वैश्य की कथा), वा.रामायण ६.१२७ (भरत के राम से मिलन का स्थान ) nandigraama


      नन्दिनी देवीभागवत ३.१७.१० (विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ की नन्दिनी धेनु का बलात् हरण, नन्दिनी द्वारा दैत्यों की सृष्टि करके स्वयं को मुक्त कराना), ७.३० (देविका नदी तट पर देवी का नाम), नारद १.११८.२७ (नन्दिनी नवमी को जगदम्बा की पूजा), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.८४(विशुद्धि चक्र की षोडश शक्ति देवियों में से एक), मत्स्य १३.३८ (सती की देविका तट पर नन्दिनी नाम से स्थिति का उल्लेख), १७९.१४, २५(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), मार्कण्डेय ११९.१४ / ११६.१४ (वीर? - पत्नी, विविंश - माता), वामन ५७.९१ (प्रभास द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), वायु ४४.२०(केतुमाल देश की एक नदी), स्कन्द ५.३.१९८.७५ (देविका तट पर उमा देवी की नन्दिनी नाम से ख्याति का उल्लेख), ६.५० (नन्दिनी गौ द्वारा बाण लिङ्ग का अभिषेक, व्याघ्र रूप धारी कलश नृप से संवाद, दोनों की मुक्ति), ६.१६७.२५(विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ की नन्दिनी गौ की प्राप्ति के प्रयास की कथा), ६.२१३ (कृष्ण - पत्नी, साम्ब - भार्या के रूप में साम्ब से रति), ७.१.७ (पञ्चम कल्प में पार्वती का नाम), ७.१.२६४ (नन्दिनी गुफा का माहात्म्य : चान्द्रायण फल की प्राप्ति ), ७.३.१ (वसिष्ठ की कामधेनु नन्दिनी के गर्त में पतन पर सरस्वती द्वारा बाहर निकालना, गर्त के निर्माण की कथा), लक्ष्मीनारायण १.२७४.३६ (मार्गशीर्ष शुक्ल नन्दिनी नवमी व्रत की संक्षिप्त विधि), १.४८९.१३ (शिव लिङ्ग पर दुग्ध स्राव करती नन्दिनी धेनु का व्याघ्र रूप धारी कलश नृप द्वारा धर्षण, नन्दिनी द्वारा स्व वत्स को दुग्ध पान कराने के पश्चात् व्याघ्र के पास पुन: आगमन और व्याघ्र की मुक्ति की कथा), ४.१०१.९३ (कृष्ण - पत्नी नन्दिनी के आषुतोष पुत्र व विरामिणी सुता का उल्लेख ) nandinee/nandini


      नन्दियशा ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८२(कलियुगी राजाओं के वर्णन के संदर्भ में राजा भूतनन्दी का अनुज एक राजा), विष्णु ४.२४.५६(नन्दन - पुत्र, सुनन्दी -- भ्राता, कैंकला यवन वंश? )


      नन्दिवर्धन ब्रह्माण्ड २.३.६४.७(उदावसु - पुत्र, सुकेतु - पिता, निमि वंश), २.३.७४.१२६(अजय - पुत्र, महानन्दी - पिता, शिशुनाग वंश), २.३.७४.१३३ (नन्दिवर्धन द्वारा ४० वर्ष राज्य करने का उल्लेख), भागवत ९.१३.१४(उदावसु -- पुत्र, सुकेतु - पिता, निमि वंश), १२.१.४(राजक - पुत्र, ५ प्रद्योत राजाओं में अन्तिम), १२.१.७(अजय - पुत्र, महानन्दी - पिता, शिशुनाग वंश), वायु ६९.१५८/२.८.१५३(मणिवर व देवजनी के पुत्रों में से एक यक्ष), विष्णु ४.२४.१७(उदयन - पुत्र, महानन्दी -- पिता, शिशुनाभ वंश), स्कन्द ४.१.२३.४ (नन्दिवर्धन नगरी में शिवशर्मा का राज्य, नन्दिवर्धन राज्य की प्रजा के गुणों का वर्णन), ४.१.२४ (नन्दिवर्धन नगर की महिमा का कथन, शिवशर्मा का जन्मान्तर में नन्दिवर्धन नगर का राजा होना), ६.९.१० (हिमालय के तीन पुत्रों में से एक, वसिष्ठ आश्रम में रन्ध्र को पूरित करने का उल्लेख ), ७.३.३ (हिमवान् - पुत्र, नन्दिवर्धन पर्वत द्वारा उत्तङ्क द्वारा निर्मित गर्त का पूरण, अर्बुदाचल नाम होना), लक्ष्मीनारायण २.१४१.६९ (नन्दिवर्धन नामक प्रासाद में तिलकों, अण्डकों व तलों की संख्या का कथन ) nandivardhana


      नन्दिसेन वामन ५७.६१ (शिव द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त ४ गणों में से एक), स्कन्द ४.२.७४.५७ (नन्दिसेन गण की काशी में वरणा तट पर स्थिति )


      नन्दी अग्नि ५०.३९ (नन्दी की प्रतिमा का लक्षण – साक्षमाली, त्रिशूली), १२५.१६(वर्णों के नन्दिकेश्वर सूत्र का रूपान्तर), कूर्म २.४३.१७ (शिलाद से नन्दी की उत्पत्ति की कथा, भूमि कर्षण से नन्दी का प्रादुर्भाव, मृत्यु जय हेतु नन्दी द्वारा कोटि रुद्र जप), गणेश १.४३.१ (त्रिपुर - शिव युद्ध में नन्दी का चण्ड से युद्ध), २.१११.१३ (नन्दी के सुरभि गौ - पुत्र होने का उल्लेख), २.१११.२१ (सिन्धु दैत्य के पास भेजने में नन्दी दूत की उपयुक्तता का कथन), २.११४.१४ (सिन्धु - गणेश युद्ध में नन्दी का वीरराज से युद्ध), २.११८.१८ (नन्दी का कल व विकल से युद्ध), गरुड १.५३.९ (नन्दी निधि की प्रकृति का कथन—बहुभार्यायुक्त आदि), गर्ग १०.३७.१८ (शिव द्वारा अनिरुद्ध - सेनानी सुनन्दन के वध के लिए नन्दी का प्रेषण), १०.३८.३ (नन्दी द्वारा सुनन्दन का वध), पद्म ६.११.५२ (शिव द्वारा नन्दी को जालन्धर से युद्ध का निर्देश ; नन्दी के काकतुण्ड रथ का उल्लेख), ६.१२.२ (नन्दी द्वारा जालन्धर - सेनानी शुम्भ से व महाकाल का निशुम्भ से युद्ध), ६.१०१ (नन्दी का जालन्धर - सेनानी कालनेमि से युद्ध), ६.१३६.१ (साभ्रमती नदी के नन्दी कुण्ड से उद्भूत होने का कथन), ६.१५१.२० (नन्दी वैश्य द्वारा धवलेश्वर लिङ्ग पूजा, किरात द्वारा नन्दी की पूजा पर आपत्ति, किरात व नन्दी का शिव के द्वारपाल-द्वय महाकाल व नन्दी बनना), ब्रह्म २.८२.४२ (गौतमी तट पर नन्दी तट का माहात्म्य : चन्द्रमा से अपूत तारा व बृहस्पति द्वारा स्नान से पवित्र होना, नन्दी की गौतमी तट पर स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१५.१२ (नन्दी द्वारा कार्तिकेय को उसके शिव से जन्म के रहस्य आदि का वर्णन), भविष्य ३.४.८.९० (शिव वाहन, १८ अङ्गों वाली अहंकार तन्मात्रा का प्रतीक, स्वरूप), भागवत ४.२ (नन्दी द्वारा दक्ष को तत्त्व ज्ञान विमुखता का शाप), ४.५.१७ (दक्ष यज्ञ में नन्दी द्वारा भग को पकडने का उल्लेख), ६.६.६(स्वर्ग - पुत्र, धर्म व जामि - पौत्र), १०.६३.६(कृष्ण - बाणासुर युद्ध में शिव द्वारा नन्दी वृषभ पर आरूढ होकर कृष्ण आदि से युद्ध का उल्लेख), मत्स्य २३.२६ (धृति द्वारा स्वपति नन्दी को त्याग सोम की सेवा में जाने का उल्लेख), १४०.१८ ( त्रिपुर ध्वंस प्रकरण में नन्दी द्वारा विद्युन्माली का वध), २५२.३(नन्दीश : स्थापत्य व गृहनिर्माण शास्त्र के १८ विशेषज्ञों में से एक), लिङ्ग १.४२+ (शिव का नन्दी रूप में शिलाद - पुत्र बनना, शिलाद द्वारा नन्दी की स्तुति, शिव द्वारा नन्दी का अभिषेक), १.४३.३(दीर्घायु हेतु नन्दी द्वारा त्र्यम्बक की आराधना, दीर्घायु होना, शिव से प्राप्त माला से त्र्यक्ष व दशभुज बनना), वराह १४५.२५ (सालङ्कायन ऋषि द्वारा नन्दिकेश्वर की पुत्र रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त), २१३.३० (त्रेतायुग में नन्दी द्वारा मुञ्जवान् शिखर पर तप, शिव से साम्य की प्राप्ति), वामन ५७.६४ (अश्विनौ द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण का नाम), ६७.५ (अन्धक से युद्ध हेतु आहूत गणों का नन्दी द्वारा शिव को परिचय कराना), ६८.४२ (नन्दी का अन्धक - सेनानियों से युद्ध), ६९.१५ (नन्दी द्वारा शुक्राचार्य का हरण करके शिव को प्रस्तुत करना), ६९.८० (सुन्द असुर द्वारा नन्दी का तथा अन्धक द्वारा रुद्र का रूप धारण करने की कथा), वायु ७७.६३/२.१५.६२(दुराचारी को नन्दीश्वर की मूर्ति दिखाई न पडने का उल्लेख), विष्णु ४.२४.७(नन्दिवर्धन - पुत्र, प्रद्योत वंश का अन्तिम राजा), विष्णुधर्मोत्तर १.२२२.५ (रावण द्वारा वानराकृति नन्दी का उपहास, नन्दी द्वारा रावण को शाप), ३.७३.१५ (नन्दी की मूर्ति का रूप – त्रिनेत्र, चतुर्बाहु आदि), शिव १.१७.८६ (शिव लोक के अग्रतः स्थित वृषभ के आध्यात्मिक रूप का कथन : क्षमा शृङ्ग , शम श्रोत्र आदि), १.१७.१११ (पञ्चम आवरण के बाहर नन्दी संस्थान में तपोरूप वृषभ का उल्लेख), २.२.२६.२० (दक्ष द्वारा शिव को शाप देने पर नन्दी द्वारा आपत्ति, दक्ष द्वारा नन्दी को शाप, नन्दी द्वारा उपस्थित ब्राह्मणों व दक्ष को शाप, शिव द्वारा नन्दी का क्रोध शान्त करना), २.५.४७.४५ (शिव आज्ञा से नन्दी द्वारा शुक्र का हरण कर शिव को सौंपना), २.५.४८.३२ (नन्दी व सोमनन्दी का उल्लेख), ३.६ (शिलाद विप्र द्वारा मृत्युहीन पुत्र प्राप्ति के लिए तप, शिव का चतुर्भुज नन्दी रूप में शिलाद - पुत्र बनना, चतुर्भुज नन्दी का द्विभुज नन्दी में रूपान्तरण, नन्दी द्वारा अल्पायु के वंचन हेतु तप), ३.७ (शिव द्वारा जटाओं के जल से नन्दी का अभिषेक व गणाध्यक्ष बनाना, मरुतों की पुत्री सुयशा से नन्दी का विवाह), ७.१.२७.२८ (तपोरत पार्वती की रक्षा करने वाले व्याघ्र का सोमनन्दी गण बनना), ७.२.२४.१५ (शिव पूजा के संदर्भ में द्वार के दक्षिण पार्श्व में चतुर्भुज नन्दी व उत्तर पार्श्व में नन्दी - पत्नी सुयशा की अर्चना का निर्देश, नन्दी के रूप का कथन), ७.२.३१.५३ (नन्दी की स्तुति के संदर्भ में नन्दी के गुणों का कथन), ७.२.४०.४० (सनत्कुमार द्वारा शिव की उपेक्षा करने पर नन्दी द्वारा सनत्कुमार को उष्ट्र बनाना व उष्ट्रता का निवारण करना), ७.२.४१.२१ (शिवाज्ञा से नन्दी द्वारा सनत्कुमार के पाशों का छेदन व शैव धर्म का उपदेश), स्कन्द १.१.१ (नन्दी द्वारा ब्राह्मणों को दरिद्रता का शाप), १.१.५.१११ (वैश्य, लिङ्गपूजा में किरात से स्पर्द्धा, शिव के महाकाल व नन्दी नामक द्वारपाल बनना), १.१.७ (लिङ्ग महिमा प्रशंसक एक आचार्य), १.१.८.७८(नन्दी द्वारा शिव से सालोक्य मुक्ति की अपेक्षा वानरमुख की याचना का उल्लेख), १.१.८.१०० (हनुमान के नन्दी व एकादशरुद्र रूप होने का उल्लेख?), १.१.३१ (शिव लिङ्ग पूजा के सम्बन्ध में नन्दी का कुमार से संवाद), १.२.२९.३५(पार्वती द्वारा वीरक को शिला-पुत्र होने का शाप) १.२.२९.६७ (तपोरत पार्वती द्वारा द्वारपाल पुत्र वीरक को शाप देने के पश्चात् शिलाद - पुत्र नन्दी बनने का वरदान), १.२.४० (महाकाल का रूप), १.३.२.१ (नन्दी द्वारा मार्कण्डेय को शिव धर्म का उपदेश), ४.१.१६.३३ (प्रमथेश्वर नन्दी द्वारा शिवाज्ञा से शुक्राचार्य को दैत्य सेना के मध्य से हरण करके शिव को देना), ५.२.२०.१८ (अग्नि द्वारा हंस बनकर रतिमग्न शिव के समीप आगमन पर शिव द्वारा नन्दी को भूलोक में जाने का शाप, नन्दी द्वारा महाकालेश्वर की आराधना), ५.३.११.४६ (नन्दी - प्रोक्त नन्दी गीता के श्रवण की फलश्रुति), ५.३.५५.१४ (राजा चित्रसेन द्वारा शूलभेद तीर्थ में अस्थि प्रक्षेप से गणाधिप नन्दी बनने का वर प्राप्त करना), ५.३.८० (नन्दीश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.९४ (नन्दिकेश्वर तीर्थ के माहात्म्य का कथन), ५.३.१८१.१९ (वृष / नन्दी? द्वारा तपोरत भृगु को पीडित करने की कथा), ५.३.२३१.२० (नर्मदा तट पर २ नन्दी तीर्थ होने का उल्लेख), ५.३.२३१.२२ (नर्मदा तट पर २ नन्दिकेश्वर तीर्थ होने का उल्लेख), ७.१.९५ (नन्दी द्वारा मृत्युञ्जय रुद्र की आराधना से गणेशत्व की प्राप्ति आदि), वा.रामायण ७.१६.८ (पुष्पक विमान में आरूढ रावण द्वारा विकृत रूप नन्दी का दर्शन, रावण द्वारा नन्दी का उपहास, नन्दी द्वारा रावण को वानरों से पराजय का शाप), लक्ष्मीनारायण १.१९५.७२ ( गौरी द्वारा सिंह को सोमनन्दी नाम से स्ववाहन बनाने का कथन), १.३२८.६(नन्दी के जलन्धर - सेनानी कालनेमि से युद्ध का उल्लेख), १.४४१.९६ (वृक्ष रूप धारी श्रीकृष्ण के दर्शन हेतु नन्दी के धवल द्रुम बनने का उल्लेख), १.४८५.४२ (काशी के राजा चित्रसेन के मृत्यु पश्चात् नन्दी गण बनने का उल्लेख), २.१४०.२२ (नन्दी नामक शाला में तलों व अण्डकों की संख्या का कथन), ४.८१.१०+ (नन्दिभिल्ल राजा : दिलावरी - पति, अश्वमेध यज्ञ में दीक्षित राजा नागविक्रम से युद्ध में मृत्यु का विस्तृत वर्णन, नन्दिभिल्ल - पत्नी सती दिलावरी का अग्नि में जलना), कथासरित् १०.९.१८५ (मूर्ख मठाधीश द्वारा वृष / नन्दी की पूंछ पकड कर स्वर्ग में जाना व मोदकों का भक्षण करना, पुन: पृथिवी पर आकर अन्य मित्रों के साथ उसी प्रकार स्वर्ग जाना, मार्ग में वृष की पुच्छ को छोड देने से भूमि पर पतन का वृत्तान्त), १४.३.१२६ (नरवाहनदत्त द्वारा कैलास पर पहुंच कर सर्वप्रथम विनायक की आज्ञा लेकर शिव के आश्रम में द्वार पर स्थित नन्दी से निर्देश प्राप्त करने का कथन), १७.२.१४८ (विद्युद्ध्वज असुर द्वारा जल में क्रीडारत नन्दी वृष व ऐरावत हस्ती को पकडने की आज्ञा, नन्दी व ऐरावत द्वारा असुरों का संहार ) nandee/nandi


      नपुंसक लक्ष्मीनारायण ३.१७०.१९ (३४वें धाम के रूप में नपुंसक धाम का उल्लेख ) ; द्र. क्लीब


      नभ अग्नि ८८.५(शान्त्यतीत कला में नभ विषय के अन्तर्गत वायु तथा नाडी के नाम), भागवत ४.२४.५ (नभस्वती : अन्तर्धान - पत्नी, हविर्धान - माता), ९.१२.१(अतिथि - पौत्र, निषध - पुत्र, पुण्डरीक - पिता, कुश वंश), १०.५९.१२ (नभस्वान् : मुर के ७ पुत्रों में से एक, कृष्ण से युद्ध में मृत्यु), १२.११.३७ (नभ/श्रावण मास में इन्द्र नामक सूर्य से साथ ऋषि, अप्सरा, गन्धर्व आदि का कथन), मत्स्य ९.७(स्वारोचिष मनु के ४ पुत्रों में से एक), ९.१२(औत्तम मनु के इष, ऊर्ज आदि मास संज्ञक १० पुत्रों में से एक), १९९.१५(प्रवर प्रवर्त्तक कश्यप? कुल के ऋषि का नाम), वायु ५९.९७(१९ मन्त्रवादी ऋषियों में से एक), विष्णु १.२१.११(विप्रचित्ति व सिंहिका के १२ पुत्रों में से एक), स्कन्द ४.२.७४.५५ (नभ गण की काशी में असि नदी के पार स्थिति), योगवासिष्ठ ५.३४.८८ (निष्कलङ्कता के नाभसी शक्ति होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३०१.१५(नभ के ५ गुणों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.३८.६५ (नभस्पति ऋषि द्वारा कामुक भिक्षु रूप धारी शिव का पाषाण से ताडन करने पर पार्वती के शाप से दारुवन में कृष्ण शैल रूपी राक्षस बनना, सौराष्ट्र में आने पर मुक्ति ) ; द्र. वंश दनु nabha

      Vedic concept of Nabha(by Dr. Tomar)


      नभग ब्रह्माण्ड २.३.६३.५(नाभाग - पिता, अम्बरीष - पितामह), भागवत ८.१३.२(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक, नाभाग - पिता), ९.१.१२(श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक), ९.४.१(नभग - पुत्र नाभाग की कथा), वायु ८८.५(नाभाग - पिता, अम्बरीष - पितामह), शिव ३.२९ (मनु - पुत्र, नाभग - पिता, नभग द्वारा यज्ञशेष ग्रहण करने को तत्पर होना, शिव के कृष्ण दर्शन अवतार द्वारा रोकना ) nabhaga


      नभस्य ब्रह्माण्ड १.२.१३.९(नभ व नभस्य मासों की जीव नामक विशिष्ट संज्ञा का उल्लेख), भागवत १२.११.३८(नभस्य / भाद्रपद मास के विवस्वान् सूर्य के रथ के साथ ऋषि, गन्धर्व, अप्सरा आदि का कथन), मत्स्य ९.१२(औत्तम मनु के मासों की संज्ञा वाले १० पुत्रों में से एक ) nabhasya


      नमर वामन १७.६६ (महिष रूप दैत्य के सरोवर में गिरने पर नमर की उत्पत्ति का कथन), २०.१३ (कात्यायनी के सिंह द्वारा नमर का वध )


      नमस्यु भागवत ९.२०.२(प्रवीर - पुत्र, चारुपद - पिता, पूरु वंश )


      नमुचि गरुड ३.१२.९३(नमुचि की असुरों में आपेक्षिक प्रतिष्ठा, पाक व इल्वल से तुलना - द्वापारख्यो महाहासो बाणासुरसमः स्मृतः । तस्माद्दशगुणैर्हीनो नमुचिर्दैत्यसत्तमः ॥ नमुचेस्तु समौ ज्ञेयौ पाक इल्वल इत्युभौ ।), पद्म १.६७.४२ (नमुचि द्वारा इन्द्र के गज पर गदाप्रहार), १.६८.१( नमुचि के अनुज मुचि का उल्लेख - बलं च निहतं दृष्ट्वा नमुचिं च स्वकाग्रजम्। मुचिस्तत्राब्रवीद्वाक्यं ज्येष्ठो मे सूदितस्त्वया), १.७१( नमुचि का इन्द्र से युद्ध, इन्द्र द्वारा असि से नमुचि का वध), ब्रह्म २.५४.३२ (नमुचि - भ्राता मय की इन्द्र से मित्रता के कारण का वर्णन), २.९०.८(नमुचि के पूषा से युद्ध का उल्लेख?), भागवत ८.१०.३० (नमुचि का अपराजित से युद्ध), ८.११.४० (इन्द्र द्वारा नमुचि का वध), मत्स्य ६.२६ (विप्रचित्ति व सिंहिका - पुत्र), वराह २८ (नमुचि के जन्मान्तर में सिन्धुद्वीप होने का उल्लेख), वामन ५५ (दनु - पुत्र, सूर्य रथ में प्रवेश, समुद्रफेन से मृत्यु), वायु ५०.१५ (प्रथम अतल नामक रसातल में नमुचि आदि के भवन का उल्लेख), विष्णु १.२१.१२(सिंहिका व विप्रचित्ति के पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.२(नमुचि की कल्लोल उपमा - तथा नमुचिकल्लोलं ह्रादसंह्रादशब्दवत् ।।), स्कन्द १.१.१३.२७ (नमुचि का यम से युद्ध), ७.३.८.६ (भद्रकर्ण गण द्वारा नमुचि का वध), हरिवंश ३.४९.३७ (बलि - सेनानी, नमुचि के रथ का वर्णन), ३.५३.८ (नमुचि का धर वसु से युद्ध), ३.५५.१ (नमुचि से युद्ध में धर वसु की पराजय), कथासरित् ८.३.२२१(नमुचि द्वारा समुद्र मन्थन से प्राप्त उच्चैःश्रवा अश्व की प्राप्ति, इन्द्र द्वारा उच्चैःश्रवा को नमुचि से दान में प्राप्त करना, इन्द्र द्वारा नमुचि का वध, नमुचि के अवतारों प्रबल व प्रभास का वर्णन), ८.७.४६ (नमुचि के प्रबल व प्रभास अवतारों का उल्लेख ) ; द्र. वंश दनु namuchi


      नमेरु स्कन्द ४.१.१.१९टीका (नमेरु / रुद्राक्ष वृक्ष का उल्लेख), ४.१.१.५४ (नमेरु के स्वर्णपूर्णत्व अथवा रत्न सानु के कारण प्रसिद्ध होने का उल्लेख )


      नमः शिव १.१७.८०(ऊर्ध्व लोक में नमस्कार की स्थिति का कथन - नमस्कारस्तदूर्ध्वं हि मदाहंकारनाशनः), ७.२.१३.४६(नमः शिवाय मन्त्र का वर्णन - नकारश्शिर उच्येत मकारस्तु शिखोच्यते ॥ शिकारः कवचं तद्वद्वकारो नेत्रमुच्यते ॥...), स्कन्द ३.१.५१.२१ (सेतु माहात्म्य के संदर्भ में नमस्कार मन्त्र - नमस्ते विश्वगुप्ताय नमो विष्णो ह्यपांपते । नमो हिरण्यशृंगाय नदीनां पतये नमः ।।...)


      नय अग्नि २५३ (नीति / व्यवहार शास्त्र का वर्णन), गरुड १.५५.१३ (दक्षिण में देश), ब्रह्माण्ड १.२.३६.३९(औत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक), ३.४.१.१०४(रौच्य मनु के १० पुत्रों में से एक), ३.४.३४.२६(श्वनय : षोडशावरण चक्र के १०वें आवरण के रुद्रों में से एक), मत्स्य २२३.१६(नय शास्त्रविदों द्वारा रिपुओं में भेद उत्पन्न करने का निर्देश), मार्कण्डेय ५०.२६ (क्रिया - पुत्र), वराह ७०.४२ (वेदशास्त्र निर्मुक्तों के मोक्षार्थ पशु को नियन्त्रित करने वाले नय शास्त्र रूपी पाश की रचना का उल्लेख, नय से विपरीत पाशुपत शास्त्र - ये वेदमार्गनिर्मुक्तास्तेषां मोहार्थमेव च । नयसिद्धान्तसंज्ञाभिर्मया शास्त्रं तु दर्शितम् ।।..), वायु १०.३५(धर्म व क्रिया - पुत्र), ६६.१६/२.५.१६(साध्य देवों में से एक), ९१.९६/२.२९.९२(विश्वामित्र के ९ पुत्रों में से एक), १००.१७(२० अमिताभ देवों में से एक), विष्णु १.८.१८(विष्णु की विभूतियों के संदर्भ में नय विष्णु, नीति लक्ष्मी होने का उल्लेख - अर्थो विष्णुरियं वाणी नीतिरेषा नयो हरिः । बोधो विष्णुरियं बुद्धिर्धर्मोऽसौ सत्क्रिया त्वियम् ॥), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(नया का विष्णु के करों में वास), शिव ७.१.१७.३४(ऊर्जा व वसिष्ठ के ७ पुत्रों में से एक), महाभारत सभा १५.१३(कृष्ण में नय, अर्जुन में जय तथा भीम में बल होने का उल्लेख कृष्णे नयो मयि बलं जयः पार्थे धनञ्जये।
      मागधं साधयिष्याम इष्टिं त्रय इवाग्नयः।।), उद्योग ३९.३०(केवल भार्गव/शुक्राचार्य द्वारा ही नय को जानने का उल्लेख), वा.रामायण ६.१७.४७(मैन्द वानर का नय - अपनय कोविद विशेषण), लक्ष्मीनारायण १.३२३.५१(धर्म व क्रिया के ३ पुत्रों में से एक), १.३८२.१९(विष्णु के नय व लक्ष्मी के नीति होने का उल्लेख), २.१९५.९६ (बाल कृष्ण का फेनतन्तु नृप की त्रिनय नगरी में आगमन, प्रजा को नय का उपदेश, काक विद्या जानने वाले शाकुनक का आख्यान), ४.१०१.८८ (कृष्ण की कृता पत्नी के सूद्योग पुत्र व नयराजती पुत्री का उल्लेख ) ; द्र. अभिनय, त्रिनय, पात्र गोनय, सुनय naya


      नयन द्र. नेत्र, सहस्रनयन


      नर अग्नि १०७.१६ (गय - पुत्र, विराट् - पिता, ऋषभ वंश), १३१.८ (नर चक्र में नक्षत्र न्यास से ज्योतिष फल विचार), नारद १.६६.९३(नर विष्णु की शक्ति वृद्धि का उल्लेख), पद्म १.१४ (ब्रह्मा के स्वेद व विष्णु के रक्त से उत्पन्न नरों में युद्ध, नरों का क्रमश: कर्ण व अर्जुन बनना), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.१२१(नरघात पर प्राप्त यम यातनाओं का कथन), ब्रह्माण्ड १.१.५.१३५ (नर की निरुक्ति : न शीर्णा आप:), १.२.६.५७(आप: के संदर्भ में नर की निरुक्ति : न शीघ्रा:), १.२.१४.६८(गय - पुत्र, विराट् - पिता, परमेष्ठी कुल), १.२.२३.५६(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक), १.२.३६.४९(तामस मनु के १० पुत्रों में से एक), २.३.३.१६(१२ साध्य देवों में से एक), २.३.७.२४३(नरदेव : वानर नायकों में से एक), २.३.८.३५(सुधृति - पुत्र, केवल - पिता, मरुत्त वंश), भविष्य १.२.१२९(भूतों में प्राणी, प्राणियों में बुद्धिमान, बुद्धिमानों में नर व नरों में ब्राह्मण के श्रेष्ठ होने आदि का उल्लेख), १.८ (स्त्री के विषय में नर के कर्तव्यों / वृत्त का वर्णन), १.१३८.३८(सोम की नर ध्वज का उल्लेख), भागवत १.३.२२(नरदेव : राम के रूप में विष्णु के अट्ठारहवें अवतार का उल्लेख), ६.८.१६ (नर से हास / गर्व से रक्षा की प्रार्थना, नारायण द्वारा प्रमादादि से ), ८.१.२७(तामस मनु के १० पुत्रों में से एक), ९.२.२९(सुधृति - पुत्र, केवल - पिता, मरुत्त वंश), ९.२१.१(मन्यु के ५ पुत्रों में से एक, संकृति - पिता), मत्स्य ४९.३६(भुवमन्यु के ४ पुत्रों में से एक, संकृति - पिता), १२६.५१(चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक), २०३.११(१२ साध्य देवों में से एक), २६१.१५ (नैर्ऋत दिशा के लोकपाल के नर युक्त विमान पर आरूढ होने/नर वाहन होने का कथन), वामन २.५० (ब्रह्मा व शिव के नरों में युद्ध), वायु ७.५७/१.७.५२ (नर की निरुक्ति : आपो न अरा:, न शीघ्रा: इत्यादि), ६६.१५/२.५.१५(१२ साध्य देवों में से एक), विष्णु २.१.३८(गय - पुत्र, विराट् - पिता, परमेष्ठी कुल), ४.१.४०(सुधृति - पुत्र, चन्द्र - पिता, केवल - पितामह, मरुत्त वंश), स्कन्द २.७.१९.१७ (नर से लेकर विष्णु तक विभिन्न योनियों की उत्तरोत्तर श्रेष्ठता का वर्णन), ५.१.३ (ब्रह्मा के स्वेद व विष्णु के रक्त से नरों की उत्पत्ति, परस्पर युद्ध, युगान्तर में वाली - सुग्रीव व अर्जुन - कर्ण बनना, नारायण सखा बनना), ५.१.३६.४१ (नरादित्य द्वारा नर रूप में प्रकट होकर अदृश्य हुए अन्धक असुर को प्रकट करने आदि का वर्णन), ५.३.१९२.१० (धर्म व साध्या के ४ पुत्रों में से एक, नर - नारायण द्वारा तप व तप में इन्द्र द्वारा विघ्न आदि), लक्ष्मीनारायण १.७.३१(बदरिकाश्रम में आक्षर प्रदेश द्वारा नर - नारायण की सेवा हेतु नर रूप धारण का कथन), १.३७६.३०(नरार्क का लक्ष्मण से साम्य), ३.१६.५२ (धनद / कुबेर के नरवाहन की विशेषताओं - शकट चक्राक्ष, सपक्ष, अम्बिका पज्ज आदि का कथन), ४.४६.४३ (ऊर्ज एकादशी को नरराज नामक कुलाल की परिवार सहित मुक्ति का वृत्तान्त ) ; द्र. विश्वानर nara


      नरक अग्नि २०३ (पाप अनुसार नरकों के नाम), ३७१.१३ (नरक की २८ कोटियों के नाम), गरुड १.५७ (नरकों के नाम), देवीभागवत ८.२१+ (नरक नामावली व उनका वर्णन), ९.३२ (नरक कुण्डों के नाम व वर्णन), ९.३५ (नरक प्रापक कर्मों का वर्णन), नारद १.१५.१ (नरक की यातनाओं का वर्णन), १.१५.५४ (प्रायश्चित्त विहीन पापों से प्राप्त नरकों का वर्णन), पद्म १.४८.३४(ब्रह्मस्व आदि हरण से अक्षय नरक प्राप्ति का उल्लेख), २.७० (नरक यातनाओं का संक्षिप्त वर्णन), २.९६ (नरक प्रापक कर्म), ५.३०.५७ (जनक की उपस्थिति से नरक के प्राणियों को सुख मिलना, नरक प्रापक कर्मों का कथन, जनक द्वारा पुण्य दान से नरक वासियों की मुक्ति), ५.१०१ (महीधर नृप द्वारा नरक दर्शन का वृत्तान्त), ६.११९ (नरक यातनाओं का वर्णन), ७.२३ (सुप्राज्ञा द्वारा शौरि को नरक के दुःखों का वर्णन), ब्रह्म १.२० (पाप अनुसार नरक की प्राप्ति), १.१०५ (नरकों के नाम व यातनाएं), ब्रह्मवैवर्त्त २.९ (भूमि से सम्बन्धित पापों के लिए नरकों की प्राप्ति का वर्णन), २.२९ (नरक के कुण्डों के नामों का वर्णन), २.३० (पाप अनुसार नरक के कुण्डों की प्राप्ति का वर्णन), २.३१ (विभिन्न नरक प्रापक कर्मों का वर्णन), २.३२ (नरक से बचाने वाले कर्मों का वर्णन), २.३३ (नरक यातनाओं का वर्णन), ४.८५.४७ (कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त नरकों व नरक यातनाओं का वर्णन), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१४५(पाप के फलस्वरूप प्राप्त नरक यातनाओं का वर्णन), ३.४.२.१७७ (विभिन्न नरकों के नाम व शीत उष्ण आदि गुणों का कथन), भविष्य ३.४.१६.६१(एकादशी देवी द्वारा मुर व मुर - अनुज नरकासुर का वध, नरकासुर के तेज का अन्न में प्रवेश), ४.६ (नरक की यातनाओं का वर्णन), भागवत ३.३०.१९ (यमदूतों द्वारा प्रदत्त यातनाओं का वर्णन ; नरक की यातनाओं के इसी लोक में प्राप्त होने का उल्लेख), ५.२६.७ (२८ नरकों के नाम, उन नरकों को ले जाने वाले विभिन्न कर्मों तथा उन नरकों की यातनाओं का वर्णन), ११.१९.४३ (तम की वृद्धि के नरक होने का उल्लेख), मत्स्य ३९.४(पुण्य क्षीण होने पर स्वर्ग से भौम नरक में पतन का कथन ; भौम नरक में प्राप्त होने वाली पीडाओं का कथन), ४१.६ (ययाति का स्वर्ग से भौम नरक में प्रवेश), मार्कण्डेय १२+ (नरक और कर्मानुसार उनकी यातनाओं का वर्णन), लिङ्ग १.५३.४४ (सात तलों के नीचे नरकों की २८ कोटियों का कथन), वराह १९८.३८(नरक यातनाओं का वर्णन), १९९+ (पाप के अनुसार नरक यातनाओं का वर्णन), २०२+ (कर्म अनुसार नरक यातनाओं का वर्णन), २०७.१९ (नरक से रोकने वाले कर्मों का वर्णन), वामन ११.४६ (सुकेशि व ऋषि संवाद के अन्तर्गत पुष्कर द्वीप में स्थित नरकों के प्रकार व लक्षणों का वर्णन), १२ (कर्मों के अनुसार प्राप्त होने वाले विभिन्न नरकों व नरक यातनाओं का वर्णन), ६१.१ (कर्मों के अनुसार १६ प्रकार के नरकों का वर्गीकरण, नरक को ले जाने वाले २१? पापों का कथन), ६९.५८(नरकासुर के अश्विनौ से युद्ध का उल्लेख), वायु १०१.१४६ (नरकों के नाम व पाप अनुसार नरक विशेष की प्राप्ति), विष्णु २.६ (नरकों के नाम व पाप अनुसार नरक यातनाओं का वर्णन), ५.२९.२३(यज्ञवराह द्वारा पृथिवी के स्पर्श से नरकासुर की उत्पत्ति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.१८७ (शक्र पीडक नरक असुर का क्लीब रूपी विष्णु द्वारा वध), २.११९ (नरक यातनाओं का वर्णन), शिव ५.६.१८ (नरक प्रापक विभिन्न कर्मों का वर्णन), ५.७.६ (पाप कर्मों से यमलोक को जाने वाले प्राणियों को मार्ग में प्राप्त यातनाओं का वर्णन), ५.८.१७ (नरक की २८ कोटियों व प्रत्येक कोटि के ५ - ५ नायकों के नाम), ५.९.१(नरक की यातनाओं का वर्णन), ५.१०.१(कर्मों के अनुसार नरक की यातनाओं का वर्णन), ५.१६.१ (पातालों की मूर्द्धा पर स्थित नरकों के नाम ; पाप कर्मानुसार प्राप्त नरकों का वर्णन), स्कन्द १.५.८+ (नरकों के भेद, यातना व दुःख), १.२.३९.९ (सप्तम पाताल के नीचे स्थित नरकों का वर्णन), २.१.१२ (पाप और उनके फलों से स्वामितीर्थ में स्नान से मुक्ति), २.४.९.३३ (दीपावली की चतुर्दशी को स्नान के मध्य अपामार्ग आदि का भ्रामण करने से नरक के क्षय का कथन), २.४.९.४२ (दीपावली की चतुर्दशी को तर्पण कृत्य में नरक हेतु दीप दान का निर्देश), ३.१.१.४७ (सेतु तीर्थ में स्नान से नरकों के दर्शन न करने का वर्णन), ५.१.२९ (अनरक तीर्थ का माहात्म्य, नरक के भेदों का वर्णन), ५.२.२७ (अनरकेश्वर लिङ्ग : निमि द्वारा नरक दर्शन, अनरकेश्वर लिङ्ग की स्थापना से मुक्ति), ५.३.१५५.६९ (वायसों द्वारा कथित विभिन्न नरक प्रापक कर्म), ५.३.१५९ (नरक वंचना हेतु अनरकेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, नरक वर्णन), ६.२६ (गोकर्ण ब्राह्मण - द्वय की नरक से मुक्ति का वृत्तान्त :यम द्वारा गोकर्ण ब्राह्मण को नरकों के १८ प्रकारों का वर्णन , नरक मुक्ति कारक कर्म का अनुष्ठान), ६.२२६ (नरकों के २१ प्रकारों का वर्णन, नरक यातना निरसन उपाय), ७.१.२२५ (अनरकेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, देवशर्मा का यम से नरक विषयक संवाद), ७.३.१८ (अर्बुदाचल पर यम तीर्थ का माहात्म्य : नरक से मुक्ति के संदर्भ में राजा चित्राङ्गद की कथा), योगवासिष्ठ ६.२.१६०.४३ (सिद्धों द्वारा दृष्ट जीवों की नरक यातनाओं का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.६५.३४ (२८ मुख्य नरकों के नाम), १.६६ (पाप कर्म के अनुसार ४० नरक यातनाओं का वर्णन), १.३५९.१५ (नचिकेता द्वारा द्रष्ट नरकों व नरक यातनाओं का वर्णन), १.३६० (चित्रगुप्त की आज्ञा से नरक में मन्देहा आदि राक्षसों द्वारा दी गई पीडाओं का वर्णन), १.३७०.२५ (यम - सावित्री आख्यान में ८६ नरक कुण्डों के नाम व उनको प्राप्त करने के लिए अपेक्षित कर्मों का वर्णन), १.३७१.१ (नरक में ८६ कुण्डों के क्रोश आदि परिमाणों का वर्णन), २.४७.२७ (अपत्यहीनता की स्थिति में पुं नामक नरकों का वर्णन), २.२२४.११ (विषय, इन्द्रिय, मन, वासना आदि १८ निरयों का उल्लेख), ३.८९ (जीवन में प्रत्यक्ष अनुभूत नरकों का वर्णन), ४.७२.४३ ( जीवन में देह रोग, अन्न अभाव, दुष्ट भार्या व पति आदि १६ व्यावहारिक नरकों के नाम), महाभारत अनुशासन १४५ दाक्षिणात्य ५९८२(नरकों व उनमें मिलने वाली पीडाओं का वर्णन ) ; द्र. अनरक, वंश दनु naraka


      नरकजित् नारद १.६६.९४(नरकजित् विष्णु की शक्ति समृद्धि का उल्लेख )


      नरकासुर पद्म ६.२४९ (कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध व वरदान), ब्रह्म १.९३ (कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध), १.९३.२३(यज्ञवराह द्वारा पृथिवी के स्पर्श से नरकासुर की उत्पत्ति का उल्लेख), १.११०.११४ (कोका व वराह रूपी विष्णु का पुत्र), भविष्य ३.४.१६.४१(एकादशी देवी द्वारा मुर - अनुज नरकासुर का वध, नरकासुर के तेज के अन्न में प्रवेश का उल्लेख), भागवत ८.१०.३३ (नरकासुर का शनि से युद्ध), १०.३६.३६(नरकासुर की कंस से मैत्री का उल्लेख), १०.५९.१४(कृष्ण द्वारा नरकासुर से युद्ध व वध), १०.५९.३२(कृष्ण द्वारा भौमासुर द्वारा आहृत १६००० कन्याओं को मुक्त करना), १०.६७.२(बलराम द्वारा नरकासुर - सखा द्विविद के वध का वृत्तान्त), वामन ६९.५८(नरकासुर के अश्विनौ से युद्ध का उल्लेख), विष्णु ५.२९.२० (कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध की कथा, यज्ञवराह द्वारा पृथिवी के स्पर्श से नरकासुर की उत्पत्ति का उल्लेख), हरिवंश २.६३ (प्राग्ज्योतिषपुर का राजा, नरकासुर द्वारा गज रूप में त्वष्टा - पुत्री कशेरु का हरण, कृष्ण द्वारा वध ) narakaasura


      नरदीप स्कन्द ५.१.३६ (अदृश्य हुए अन्धक को प्रकाशित करने के कारण नरादित्य का नाम, रथ यात्रा का वर्णन )


      नर-नारायण गर्ग १.१६.२४(नर - नारायण की शक्ति शान्ति का उल्लेख), ५.१५.२५(नर - नारायण की शक्ति शान्ति का उल्लेख), देवीभागवत ४.५.१२ (धर्म - पुत्र, बदरिकाश्रम में तप पर इन्द्र द्वारा तप में विघ्न का प्रयास), ४.६ (धर्म के पुत्र, काम द्वारा सम्मोहन की चेष्टा पर नर - नारायण द्वारा उर्वशी को उत्पन्न करना), ४.७ (नर-नारायण के प्रह्लाद से युद्ध का प्रसंग), नारद २.६७.३० (बदरी पर्वत पर युग अनुसार नर - नारायण की दृश्यता - अदृश्यता का कथन), भागवत २.७.६(विभिन्न अवतारों के वर्णन के संदर्भ में धर्म व मूर्ति से नर - नारायण के अवतार का कथन), ४.१.५९(नर - नारायण का कृष्णौ/कृष्ण व अर्जुन के रूप में अवतार का उल्लेख), ११.४.६(धर्म व मूर्ति - पुत्रों नर - नारायण द्वारा इन्द्र - प्रेषित कामदेव तथा अप्सराओं का स्वागत तथा स्वयं दिव्य स्त्रियों की सृष्टि करना), वराह ४८ (नर - नारायण द्वारा तपोरत विशाल राजा को वरदान), वामन ६.२ (धर्म व मूर्ति से नर - नारायण की उत्पत्ति, तप), ७ (नारायण की ऊरु से ऊर्वशी की उत्पत्ति, नर - नारायण का प्रह्लाद से संवाद व युद्ध), विष्णु ५.२४.५(मुचुकुन्द द्वारा जागने पर तप हेतु नर - नारायण के स्थान गन्धमादन को जाने का उल्लेख), ५.३७.३४(कृष्ण द्वारा उद्धव को गन्धमादन पर्वत पर नर - नारायण के स्थान बदर्याश्रम में तप करने का निर्देश), विष्णुधर्मोत्तर १.१२९ (नर - नारायण के तप में मौनेया अप्सराओं द्वारा विघ्न पर नारायण द्वारा उर्वशी को उत्पन्न करने की कथा), ३.७६ (नर - नारायण की मूर्ति का रूप), स्कन्द २.३.७.५६ (नर - नारायण का आश्रम, उर्वशी की उत्पत्ति की कथा), ४.२.८४.२१ (नर - नारायण तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य- गर्भवास से मुक्ति), ५.३.३९.३० (नर - नारायण की कपिला गौ के शृङ्गों में स्थिति), ५.३.९५ (नर्मदा तट पर स्थित नर - नारायण तीर्थ में वास, शिव - स्नान, पिण्ड दान आदि का माहात्म्य), ५.३.१९२+ (नर - नारायण द्वारा काम व अप्सराओं को विराट रूप दिखाना, उर्वशी के त्रेताग्निभूत होने का उल्लेख), ७.१.३६.२० (नर - नारायण रूप अर्जुन व कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र में प्राची सरस्वती में स्नान द्वारा बान्धवों की हत्या रूपी दोष से मुक्ति), योगवासिष्ठ ६.१.५२.२७(नर - नारायण के अंशावतारों वासुदेव व अर्जुन का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१०९.३५(श्रीहरि द्वारा ब्रह्मा की प्रजा के रक्षण हेतु नर - नारायण रूप में अवतार लेने का आश्वासन ; नारायण के परब्रह्म व नर के अक्षर ब्रह्म होने का उल्लेख ; नर - नारायण द्वारा ब्रह्मचर्य रूप तप से प्रजा की रक्षा का वचन, ब्रह्मचर्य का वर्णन), १.११० (धर्म व मूर्ति से उत्पन्न नर व नारायण के रूप का वर्णन , नर में स्तनों के अभाव का कथन, नर - नारायण द्वारा माता - पिता की सेवा रूप धर्म का प्रतिपादन), १.१११ (पिता धर्म द्वारा नर - नारायण को ब्रह्मचर्य रूप तप में स्थित होने का आदेश, ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन), १.११२.२३ (नर - नारायण मन्त्र के ब्रह्मगतिप्रद होने का उल्लेख), १.२९४ (पूर्णमास पर नर - नारायण दर्शन के लिए ऋषियों, मुनियों, युगों, मासों आदि का आगमन, मल मास का तिरस्कार होने पर मल का वैकुण्ठ गमन, वहां से नारायण सहित गोलोक गमन आदि), १.३०३.१४० (श्री हरि द्वारा धर्म - पत्नी मूर्ति के गर्भ से नर, नारायण, हरि व कृष्ण नाम से जन्म लेने का कथन), २.२२.३३ (प्रह्लाद द्वारा तपोरत नर - नारायण के समीप गणों को देखकर तापसों पर अश्रद्धा करना व नर - नारायण से युद्ध करना, युद्ध द्वारा नर - नारायण को जीतने में असफल होने पर भक्ति द्वारा जीतना), २.२७२.२ (गोपालकृष्ण द्वारा नर - नारायण को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए तप, नर, नारायण, कृष्ण व हरि का गोपाल कृष्ण का मानस पुत्र बनना), ३.३९.१ (ऋषियों आदि का विशाला में नर - नारायण के दर्शन के लिए एकत्र होना, नारायण से आत्मा, मुक्ति, संसार व पर ब्रह्म के विषय में पृच्छा), ४.३.८५ (हेमानल असुर के हनन हेतु माणिक्य श्री का बदरी वृक्ष बनना, कृष्ण का धर्म - पुत्र नर व नारायण बनकर बदरी वृक्ष की छाया में तपोरत होना), ४.३.१०५ (नर का बदर फल में बीज रूप होने का उल्लेख ) nara naaraayana


      नरमेध पद्म ४.१२ (गालव द्वारा राजा को पुत्र प्राप्ति हेतु नरमेध का परामर्श, नरमेध हेतु उपयुक्त नर के लक्षणों का कथन, विश्वामित्र की कृपा से बलि हेतु विप्र बालक के प्राणों की रक्षा), ब्रह्म २.३४(हरिश्चन्द्र - पुत्र रोहित व अजीगर्ति - पुत्र शुन: शेप की नरबलि का आख्यान), वायु १०४.८४/२.४२.८४ (नरमेध यज्ञ का उदर में न्यास), स्कन्द ६.२६३.१४ (नित्य देह उत्सर्ग से नरयज्ञ फल की प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३० (नरमेध का भाल में न्यास), ३.२२ (नरमेध में श्रीहरि के वृषणों का शालग्राम शिला बनकर उपद्रव प्रस्तुत करना, नरमेध में अहिंसा की प्रतिष्ठा तथा शालग्राम की सम्यक् प्रतिष्ठा पर शान्ति होने का वर्णन ) naramedha


      नरवाहनदत्त कथासरित् १.८.२० (गुणाढ्य द्वारा एक - एक लाख श्लोकों वाली छह कथाओं के अग्नि में होम कर देने के पश्चात् एक लाख श्लोक वाली नरवाहनदत्त की कथा शेष रहने का कथन), ४.३.७३ (आकाशवाणी द्वारा वत्सराज उदयन व वासवदत्ता के पुत्र नरवाहनदत्त के जन्म पर पुत्र को कामदेव का अवतार घोषित करना), ५.१.७ (शिव द्वारा नरवाहनदत्त की रक्षा के लिए स्तम्भक नामक गणेश की नियुक्ति करने का उल्लेख), ५.१.१२ (शक्तिवेग विद्याधर का भावी चक्रवर्ती के दर्शन के लिए आगमन), ६.८.४१(शिव द्वारा कलिङ्गसेना की अयोनिजा कन्या रति के अयोनिज काम / नरवाहनदत्त की भार्या बनने का कथन ; रति के कलिङ्गसेना की पुत्री बनने का वृत्तान्त), ६.८.१०७ (नरवाहनदत्त के युवराज पद पर अभिषेक का वर्णन), ६.८.२३० (नरवाहनदत्त का भावी पत्नी मदनमञ्चुका को देखना), ६.८.२५५ (नरवाहनदत्त के मदनमञ्चुका के साथ विधिवत् विवाह का वर्णन), ७.१.१८ (नरवाहनदत्त का आकाश से अवतीर्ण कन्या से वार्तालाप, कन्या रत्नप्रभा के जन्म पर आकाशवाणी द्वारा नरवाहनदत्त की भार्या बनने का कथन), ७.१.१५४ (रत्नप्रभा का नरवाहनदत्त से विधिवत् विवाह), ७.२+ (नरवाहनदत्त द्वारा सचिवों से स्त्री - चरित्र के सम्बन्ध में कथाएं सुनना), ७.८.१०(नरवाहनदत्त का कर्पूरिका कन्या की प्राप्ति के लिए समुद्र पार कर्पूर द्वीप की यात्रा का वर्णन), ७.९.९(नरवाहनदत्त का काष्ठ यन्त्रों से युक्त पुरी में प्रवेश , पुरी के स्वामी राज्यधर तक्षा से वार्तालाप आदि, तक्षा द्वारा प्रदत्त यन्त्र विमान से कर्पूर पुरी में पहुंचना), ७.९.१७६ (कर्पूरिका से विवाह के लिए नरवाहनदत्त द्वारा पूर्व जन्म में उसका पति हंस होने का मिथ्या गल्प सुनाना), ७.९.२०१ (नरवाहनदत्त का कर्पूरिका से विवाह), ८.१.१०(वज्रप्रभ विद्याधर द्वारा नरवाहनदत्त के उभयवेदी अर्धचक्रवर्ती होने की भविष्यवाणी करना तथा दक्षिण वेदी के चक्रवर्ती सूर्यप्रभ व उत्तरवेदी के चक्रवर्ती श्रुतशर्मा के बीच युद्ध के विस्तृत वृत्तान्त का वर्णन करना), ९.४.११ (नरवाहनदत्त द्वारा सरोवर पर चार दिव्य पुरुषों के दर्शन, दिव्य पुरुषों द्वारा नरवाहनदत्त को विष्णु के दर्शन कराना, विष्णु द्वारा नरवाहनदत्त को अप्सराएं प्रदान करना), ९.१.४६, ९.१.२१७ (नरवाहनदत्त का अलङ्कारशील व काञ्चनप्रभा - पुत्री अलङ्कारवती से विवाह), १०.३.११ (स्फटिकयशा विद्याधर व हेमप्रभा - पुत्री शक्तियशा के साथ नरवाहनदत्त के भावी विवाह का कथन), १०.१०.१९१ (नरवाहनदत्त द्वारा शक्तियशा की प्राप्ति), ११.१.६(रुचिर देव की हस्तिनी तथा पोतक के अश्व द्वय में जव के निर्णय हेतु नरवाहनदत्त का वैशाखपुर गमन, रुचिरदेव की भगिनी जयेन्द्रसेना से विवाह), १२.१.६९(नरवाहनदत्त द्वारा वामदत्त विद्याधर व कान्तिमती - पुत्री ललितलोचना की भार्या रूप में प्राप्ति), १४.१.६ (नरवाहनदत्त की प्रिय भार्या मदनमञ्चुका का विद्याधर द्वारा अपहरण, मदनमञ्चुका का रूप धारण करने वाली विद्याधरी वेगवती से नरवाहनदत्त का विवाह आदि), १४.२.२९(वीणावादन के कौशल्य से नरवाहनदत्त का गन्धर्वदत्ता नामक गन्धर्व - कन्या से विवाह), १४.२.८३ (प्रभावती विद्याधरी द्वारा नरवाहनदत्त का मदनमञ्चुका से मिलन कराना, नरवाहनदत्त का मदनमञ्चुका का हरण करने वाले विद्याधर मानसवेग से युद्ध), १४.३.३२ (नरवाहनदत्त का अजिनावती नामक विद्याधरी से विवाह), १४.३.१०९ (मानसवेग - सेनानी गौरिमुण्ड द्वारा नरवाहनदत्त को अग्नि पर्वत पर फेंकना, नरवाहनदत्त का अग्नि पर्वत से कैलास को जाना व शिव से गौरी विद्या आदि प्राप्त करना, वक्रपुर में सुलोचना को प्राप्त करना), १४.४.१०८ (नरवाहनदत्त द्वारा मानसवेग व गौरिमुण्ड के वध का वर्णन ), १४.४.२०३ (नरवाहनदत्त द्वारा चन्दन वृक्ष को सिद्ध करना), १५.१.१०३ (नरवाहनदत्त द्वारा कालरात्रि को प्रसन्न करके मन्दरदेव पर विजय प्राप्त करना), १५.२.४६ (ऋषभ पर्वत पर मदनमञ्चुका रानी सहित नरवाहनदत्त के अभिषेक का वर्णन ) naravaahanadatta/ naravahandatta


      नरशाय लक्ष्मीनारायण ३.१०४.३३ (नरशाय चोर द्वारा चक्रभास नामक साधु की संगति करने से कल्याण प्राप्ति का वृत्तान्त )


      नरश्री भविष्य ३.४.१७ (भक्त नरसी मेहता, ध्रुव का अंश )


      नरसिंह गरुड ३.२९.६१(सुपान पान काल में नरसिंह के ध्यान का निर्देश - सुपानकस्यैव च पानकाले सम्यक्स्मरेन्नारसिंहाख्यविष्णुम् ।), पद्म ६.१२०.६०(नरसिंह से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन - कपिलो नरसिंहश्च पृथुचक्रः सुशोभितः ।
      ब्रह्मचर्येण पूज्योसावन्यथा विघ्नदो भवेत् ।), ६.१८९ (राजा, विष्णुशर्मा ब्राह्मण से भेंट, गीता के १५वें अध्याय के प्रभाव से अश्व रूपी सेनापति व स्वयं की मुक्ति), ब्रह्म २.७९ (हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात् नृसिंह द्वारा गौतमी के उत्तर तट पर अम्बर्य? दैत्य का वध ; नरसिंह तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड २.३.७२.७३(नारसिंह :१२ देवासुर सङ्ग्रामों में से प्रथम), मत्स्य ४७.४२(नारसिंह : १२ देवासुर सङ्ग्रामों में से प्रथम), १७९.११(नारसिंही : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १७९.६३ (विष्णु का रूप, शिव से उत्पन्न मातृकाओं के शमनार्थ नरसिंह द्वारा शरीर से मातृकाओं की सृष्टि), २९०.७(नारसिंह : ३० कल्पों में १६वें कल्प का नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.८ (नरसिंह से अटवी में रक्षा की प्रार्थना - अटव्यां नरसिंहस्तु सर्वतः पातु केशवः ।।), स्कन्द २.२.३०.७९(नरसिंह से आग्नेयी दिशा की रक्षा की प्रार्थना - आग्नेय्यां नरसिंहस्तु नैर्ऋत्यां मधुसूदनः ।। ), लक्ष्मीनारायण ३.२२५.१४ (नरसिंह स्वामी साधु द्वारा खर पालक आदि को कृष्ण भक्ति का उपदेश ; खर की नारायण से रहित नर से उपमा), कथासरित् ७.४.५ (चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य द्वारा प्रतिष्ठानपुर के राजा नरसिंह को बल द्वारा जीतने में असफलता पर प्रज्ञा द्वारा जीतने का निश्चय ; प्रतिष्ठानपुर में वेश्या मदनमाला को अपने वश में करना, वेश्या के गृह में विक्रमादित्य व नरसिंह में मैत्री स्थापित होने का वृत्तान्त), १८.२.१४५ (इन्द्र द्वारा अप्सरा - कन्या कलावती को नरसिंह राजा के नागपुर में देवालय में स्तम्भ बनने का शाप, कलावती के पति कितव ठिण्ठाकराल द्वारा राजा को युक्तिपूर्वक वश में करके देवालय को ध्वस्त कराकर कलावती को शाप से मुक्त कराना );द्र. नारसिंही narasimha


      नरहरि स्कन्द २.८.२.३६ (नरहरि द्विज द्वारा अयोध्या में पापमोचन तीर्थ में स्नान से पाप नष्ट होने का कथन )


      नरा ब्रह्माण्ड २.३.७१.८७(भङ्गकार - पत्नी, शत्रुघ्न व बन्धुमान् की माता), वायु ९६.८६/२.३४.८६(श्वफल्क - कन्या, भङ्गकार - पत्नी, शत्रुघ्न व बन्धुमान् की माता )


      नरादित्य स्कन्द ५.१.३२ (नरादित्य का माहात्म्य, अर्जुन व कृष्ण द्वारा उज्जयिनी में नरादित्य की स्थापना, अर्जुन द्वारा इन्द्र से मूर्ति द्वय प्राप्ति की कथा), ५.१.३६ (अदृश्य हुए अन्धक को प्रकट करने के लिए नरादित्य द्वारा प्रकाश करना, नरदीप नाम प्राप्ति), ६.६० (नरादित्येश्वर का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.३१६.८७ (नर - नारायण का नरादित्य व रामादित्य नाम से शतमख राजा के पुत्र बनना ), १.३७६.८९(शूर्पणखा के संदर्भ में लक्ष्मण का नरादित्य नाम), naraaditya


      नरान्तक गणेश २.१.३७+ (रौद्रकेतु व शारदा - पुत्र, शिव से अवध्यता वर की प्राप्ति), २.३.५ (नरान्तक द्वारा पाताल विजय), २.४.३ (नरान्तक द्वारा पृथिवी व नागलोक की विजय), २.१२.३६ (नरान्तक द्वारा महोत्कट गणेश के वध की आज्ञा), २.५६.३४ (नरान्तक का गणेश वध हेतु सेना सहित काशी को प्रस्थान), २.५८.४० (गणेश द्वारा सृष्ट कालपुरुष के कोप से बचने के लिए नरान्तक द्वारा विभिन्न लोकों में भागना, कालपुरुष द्वारा नरान्तक को पकड कर गणेश के समक्ष उपस्थित करना), २.६०.३०(गणेश द्वारा नरान्तक के वध का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड ३.५.३९(कालनेमि के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ५.१.२७.५२ (यमदूत नरान्तक द्वारा कृष्ण व बलराम को नरक में प्रवेश से रोकना, बलराम द्वारा नरान्तक का वध), वा.रामायण ६.५७ , ६.५८.२० (प्रहस्त - सचिव, रावण सेनानी, द्विविद द्वारा नरान्तक का वध), ६.५९.२२ (नरान्तक का स्वरूप), ६.६९.२९ (रावण - सेनानी, अश्व वाहन, अङ्गद द्वारा नरान्तक का वध ) naraantaka


      नरिष्यन्त ब्रह्माण्ड १.२.३८.३१(स्वायम्भुव मनु के ९ पुत्रों में से एक), २.३.८.३५(मरुत्त - पुत्र, दम - पिता), २.३.६०.३(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), २.३.६१.७(मरुत्त - पुत्र, दम - पिता), भागवत ८.१३.२ (वैवस्वत/ श्राद्धदेव मनु के १० पुत्रों में से एक), ९.१.१२(श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य ११.४० (वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), १२.२० (वैवस्वत मनु - पुत्र, शुच - पिता), मार्कण्डेय १३२/१२३ (मरुत्त के ज्येष्ठ पुत्र नरिष्यन्त द्वारा यज्ञ करने और ऋत्विजों को दक्षिणा देने का वर्णन), १३३.२/१३०.२(इन्द्रसेना - पति, दम - पिता), १३४.१८/१३१.१८(वपुष्मान् द्वारा शत्रु दम के तपोरत पिता नरिष्यन्त का वध), वायु ८६.१२/२.२४.१२(मरुत्त - पुत्र, दम - पिता), विष्णु ४.१.३४(मरुत्त - पुत्र, दम - पिता, दिष्ट वंश), हरिवंश १.१०.३१ (दम - पिता), १.१०.२८ (शकों का पिता ) narishyanta


      नरोत्तम पद्म १.५० (नरोत्तम ब्राह्मण द्वारा चाण्डाल, पतिव्रता, तुलाधार आदि से माता - पिता की सेवा की शिक्षा )


      नर्तन वराह १४४.७३ (रावण के नृत्य से नर्तनाचल की उत्पत्ति का कथन )


      नर्मदा अग्नि ११३ (नर्मदा का माहात्म्य), कूर्म २.४० (नर्मदा का माहात्म्य), २.४१ (नर्मदा के उत्तर व दक्षिण तटों पर तीर्थों का वर्णन), गणेश २.१३२.२६ (सिन्दूर दैत्य द्वारा गजानन को नर्मदा में फेंकना , बालक के रक्त से गणेशों का उत्पन्न होना), नारद २.७७ (नर्मदा के तटवर्ती तीर्थों का माहात्म्य, वसु - मोहिनी संवाद का प्रसंग), पद्म १.८.१४१ (नर्मदा - पति के रूप में दुस्सह का उल्लेख), १.९.५५ (सोमपा पितरों की कन्या), २.८५.२५ (तीर्थयात्रा प्रसङ्ग में च्यवन द्वारा नर्मदा के दक्षिण तट पर स्थित तीर्थों में भ्रमण व ओङ्कार तीर्थ में शुकों के वार्तालाप का श्रवण), २.८९.३० (नर्मदा के उत्तर तट पर सङ्गम में स्नान - पान से व्याध का दिव्य देह होना), २.९२.१९ (रेवा के उत्तर तीर पर स्नान से हंस रूपी तीर्थों की कालिमा का नाश), ३.१३ (नर्मदेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, अन्तर्वर्ती तीर्थ), ३.१७+ (नर्मदा तटवर्ती तीर्थों का वर्णन), ३.२२ (लोमश द्वारा नर्मदा स्नान से गन्धर्व कन्याओं की पिशाचत्व से मुक्ति), ५.३८.१० (राम के अश्वमेधीय हय का नर्मदा जल में प्रवेश, शत्रुघ्न आदि द्वारा मोचन का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड २.३.१०.९७ (सुकाली पितरों की कन्या, दक्षिणापथगामिनी, त्रसद्दस्यु- माता, पुरुकुत्स - पत्नी), २.३.२६.१०(कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा नर्मदा तीर पर मुनियों की दिनचर्या का दर्शन), २.३.६३.७३(युवनाश्व - पत्नी, सम्भूत - माता), मत्स्य १५.२५(सोमप पितर गण की कन्या, दक्षिणापथ की नदी), ४३.३१(कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा अपनी सहस्रबाहुओं द्वारा नर्मदा का प्रवाह बदल देने का कथन), ५१.१३(हव्यवाहन/आहवनीय अग्नि की १६ नदी पत्नियों में से एक), १८६ (नर्मदा माहात्म्य के अन्तर्गत अन्तर्वर्ती अमरकण्टक पर्वत आदि का माहात्म्य), १८८.१ (महादेव द्वारा नर्मदा तट पर स्थित होकर बाणासुर के त्रिपुर विनाश का उद्योग), १८८.७९ (नर्मदा के उद्गम स्थान अमरकण्टक पर्वत आदि का माहात्म्य), १८९.६ (नर्मदा - कावेरी सङ्गम का माहात्म्य, कुबेर का तप से यक्षाधिपति बनना), १९०.१ (नर्मदा के उत्तर तटवर्ती तीर्थों का माहात्म्य), १९१.१ (नर्मदा के उत्तर तटवर्ती शूलभेद आदि तीर्थों का माहात्म्य), १९१.२० (नर्मदा के दक्षिण तटवर्ती तीर्थों का माहात्म्य), १९१.७६ (नर्मदा के उत्तर तटवर्ती तीर्थों का माहात्म्य), १९२ (नर्मदा के अन्तर्गत शुक्ल तीर्थ का माहात्म्य), १९३+ (नर्मदा तटवर्ती तीर्थों का माहात्म्य), वामन ५७.७५ (नर्मदा द्वारा स्कन्द को गण प्रदान करना), ९०.१८ (नर्मदा तीर्थ में विष्णु का श्रीपति नाम से वास), वायु ७३.४८/२.११.९० (सुकाली पितरों की कन्या, पुरुकुत्स - पत्नी, त्रसद्दस्यु- माता), ७७.८/२.१५.८(अमरकण्टक पर्वत पर दक्षिण नर्मदा के जल का पान करने वाले कुशों के महत्त्व का कथन), विष्णु ४.३.८ (पुरुकुत्स - भार्या, महिमा), ४.११.१९(कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा नर्मदा में जलक्रीडा आदि करते समय रावण का बन्धन करने का कथन), ६.८.४५(नर्मदा द्वारा पुरुकुत्स से विष्णु पुराण सुनकर धृतराष्ट्र नाग व आपूरण को सुनाने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५ (नर्मदा का सारङ्ग वाहन), शिव १.१२.१२ (२४ मुखी नर्मदा का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.६ (नर्मदा में स्नान से गौ के ब्रह्महत्या रूपी कृष्णत्व का नाश), स्कन्द १.१.७.३१ (नर्मदा में ओंकार व महाकाल लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), १.१.३१.१०३ (रेवा नदी के जल में स्थित दृषदों के लिङ्ग रूप होने का कथन), ३.१.३२.४५ (रेवा तीर स्थित नन्द नृप के पुत्र धर्मगुप्त के उन्मत्त होने की कथा), ४.१.२.८४ (नर्मदा की गोमूत्र में स्थिति), ४.२.८८.६० (सती के रथ में नर्मदा के ईषादण्ड होने का उल्लेख), ४.२.९२.६ (सामवेद की मूर्ति का रूप , नर्मदा द्वारा गङ्गा समान होने के लिए तप, असफलता, नर्मदा द्वारा शिव लिङ्ग स्थापना), ५.३.३ (प्रलय काल में नर्मदा द्वारा मनु को नौका प्रदान करना), ५.३.४ (नर्मदा की रुद्र के स्वेद से उत्पत्ति, नर्मदा के १५ नाम), ५.३.५.३० (हर्ष के कारण उमा के स्वेद से नर्मदा की उत्पत्ति, देवों व असुरों द्वारा नर्मदा की प्राप्ति की चेष्टा, नर्मदा शब्द की निरुक्ति), ५.३.६ (शूलाग्र से गिरे बिन्दुओं से नर्मदा की उत्पत्ति, शोण नाम), ५.३.९ (नर्मदा की प्रकृति), ५.३.१२ (ऋषियों द्वारा नर्मदा की स्तुति), ५.३.१९ (संहार काल में मार्कण्डेय के कल्याण हेतु गौ रूप धारण, मार्कण्डेय द्वारा नर्मदा की स्तुति), ५.३.२०.७९ (नर्मदा शब्द की निरुक्ति : न मृता), ५.३.२१ (नर्मदा तट पर स्थित तीर्थ), ५.३.३३.६ (कृतयुग के राजा दुर्योधन की नर्मदा नामक राजकन्या पर आसक्ति, नर्मदा - पुत्री सुदर्शना का वृत्तान्त), ५.३.६० (नर्मदा के तटवर्ती रवि तीर्थ का माहात्म्य : पांच पुरुषों की पापों से मुक्ति), ५.३.६०.२३ (ऋषियों द्वारा नर्मदा की स्तुति), ५.३.९७.७९ (व्यास द्वारा रुद्र देहोद्भव नर्मदा तट पर तप करके रुद्र को प्रत्यक्ष करना), ५.३.९७.१०० (नर्मदा के उत्तर तट पर ऋषियों के आतिथ्य हेतु व्यास द्वारा नर्मदा को प्रसन्न करने का वृत्तान्त), ५.३.९७.१०२ (व्यास - प्रोक्त नर्मदा स्तोत्र), ५.३.१२४ (नर्मदेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१५५.१ (नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित शुक्ल तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), ५.३.२३१.१२ (रेवा तीर पर तीर्थों की संख्याओं के संदर्भ में ८ नर्मदेश्वर तीर्थों का उल्लेख), हरिवंश १.१८.६९ (सोमपा पितरों की कन्या, पुरुकुत्स - पत्नी, त्रसद्दस्यु- माता), ३.३५.२६ (यज्ञवराह द्वारा दक्षिण दिशा में पयोधारा / नर्मदा ? की सृष्टि करने का कथन), वा.रामायण ७.५.३१ (नर्मदा गन्धर्वी की तीन कन्याओं ह्री, श्री व कीर्ति के सुकेशि - पुत्रों के साथ विवाह का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४८२.८५ (व्यास के अनुरोध पर दक्षिणाभिमुख नर्मदा के उत्तरकूला होने का वृत्तान्त), १.४८४.३(चन्द्रमा - पत्नी रोहिणी द्वारा नर्मदा तट पर तप से चन्द्रमा की सर्वप्रिया पत्नी होने आदि का वर्णन), १.४८४.२८ (नर्मदा - चतू नदी सङ्गम पर जाबालि - पुरुहूता का पर्व काल में ऋतुदान के संदर्भ में आख्यान), १.४८५.३० (नर्मदा के दक्षिण कूल पर शूलभेद तीर्थ का माहात्म्य : ऋष्यशृङ्ग ऋषि आदि की अस्थियों के शूलभेद तीर्थ में प्रक्षेप से दिव्य रूप प्राप्ति आदि), १.५५६.४३ (राजा हिरण्यतेजा द्वारा शिव को प्रसन्न करके नर्मदा का पृथिवी पर उदयाचल पर्वत पर अवतरण कराना ; पुरूरवा द्वारा पितरों के उद्धार हेतु ऋक्ष पर्वत पर नर्मदा का अवतरण कराने का उद्योग ; कलियुग में पुरुकुत्स द्वारा नर्मदा का पर्यङ्क पर्वत पर अवतरण कराने का उद्योग), १.५७२ (नर्मदा तटवर्ती तीर्थों के माहात्म्यों का वर्णन : मतङ्ग द्वारा अशोकवनिका में तप द्वारा मुक्ति की प्राप्ति, मृगवन में व्याध का उद्धार, अमरेश्वर में कपिला - नर्मदा सङ्गम का माहात्म्य आदि), १.५८०.१३ (नर्मदा - नाग सङ्गम के माहात्म्य के संदर्भ में ब्रह्महत्या द्वारा राजा कण्ठ का अनुगमन, नर्मदा - नाग सङ्गम पर ब्रह्महत्या द्वारा कण्ठ का मोचन), १.५८०.२६ (नर्मदा के उत्तर तटवर्ती वैष्णव तीर्थ का माहात्म्य : नलमेघ दैत्य को मारकर जलशायी विष्णु का नर्मदा में शयन), १.५८०.५३ (नर्मदा शब्द की निरुक्ति : विष्णु को नर्म, हास्य देने वाली ; नृ - नराणां, म - मोक्षं, दा - ददामि), कथासरित् १.६.७६ (नर्मदा तटवर्ती भरुकच्छ में उत्पन्न आलसी विप्र द्वारा विन्ध्यवासिनी देवी को प्रसन्न करके दिव्य उद्यान का निर्माण करने का वृत्तान्त ,), १८.४.१५९, १७०, १९१ (केसट नामक द्विज द्वारा नर्मदा तट पर वृद्ध द्विज से भेंट, सुन्दर केसट द्वारा वृद्ध के कुरूप पुत्र के लिए सुन्दर भार्या प्राप्त करने में वृद्ध की सहायता करना, वृद्ध द्वारा केसट को नर्मदा जल में डुबाने का प्रयास ) narmadaa


      नल अग्नि ८८.१७(शान्त्यतीत कला शोधन के प्रसंग में तिरोधान व पाश वियोजन हेतु नल शक्ति? का उल्लेख), गणेश १.५२.२ (नल द्वारा गौतम ऋषि से वैभव का कारण पूछने पर गौतम द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन), गरुड ३.२०.१(नल - पुत्री भद्रा द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति हेतु तप का वृत्तान्त), पद्म १.६.५८ (विप्रचित्ति व सिंहिका के ९ पुत्रों में से एक?), १.८.१५७ (निषध - पुत्र, नभ - पिता), १.८.१६१ (वीरसेन - पुत्र तथा निषध - पुत्र के रूप में २ नलों के होने का उल्लेख), ब्रह्म १.६.८९ (निषध - पुत्र, नभ - पिता, इक्ष्वाकु वंश), १.६.९२ (वज्रनाभ - पुत्र, २ नलों का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३० (वानर, अग्नि व कनकबिन्दु का पुत्र), भविष्य २.१.१७.१६ (नल वायु : घृताग्नि का नाम), ३.४.१६.७३ (ब्राह्मण, नल नृप का रूप धारण करके दमयन्ती पर आसक्ति, अनल नाम प्राप्ति), ४.६४ (आशा दशमी व्रत के चीर्णन से दमयन्ती द्वारा नल को पुन: प्राप्त करना), ४.११४.३८ (नल द्वारा शनि की स्तुति), भागवत ९.२३.२०(यदु के ४ पुत्रों में से एक), मत्स्य ६.२६(सिंहिका व विप्रचित्ति के १३ पुत्रों में से एक), १२.५२ (निषध - पुत्र, नभ - पिता, इक्ष्वाकु वंश), १२.५६ (वीरसेन - पुत्र नल व निषध - पुत्र नल के रूप में २ नलों का उल्लेख), ४४.६३ (तैत्तिरि - पुत्र, नदन्नोदर दुन्दुभि वसर्प? अपर नाम, अश्वमेध द्वारा पुनर्वसु की पुत्र रूप में प्राप्ति), मार्कण्डेय ११४.२५ (धूम्राश्व - पुत्र, प्रमति की पत्नी को पकडना), वराह ११.१००(सुनल : गौरमुख मुनि व दुर्जय राजा के युद्ध के संदर्भ में सुनल के दुर्जय - सेनानियों वायु व शक्र से युद्ध का उल्लेख), ४४.१७ (वीरसेन द्वारा जामदग्न्य द्वादशी व्रत से नल पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त), विष्णु ४.११.५(यदु के ४ पुत्रों में से एक), शिव ३.२८.२९ (आहुक भिल्ल व आहुकी भिल्ली द्वारा यति का सत्कार करने से जन्मान्तर में नल व दमयन्ती बनने का वृत्तान्त ; यति का हंस बनना), स्कन्द ३.१.७.५२ (नल द्वारा राम हेतु सिंहासन के निर्माण का उल्लेख ; वानरों द्वारा लायी गई सामग्री से नल द्वारा सेतु का निर्माण), ३.१.३६.१८६(नल के पुत्र रूप में इन्द्रसेन का उल्लेख), ३.१.४२.४० (नल तीर्थ का माहात्म्य), ३.१.४४.१९(नल के पौण्ड्र से युद्ध का उल्लेख), ३.१.४४.३४ (नल द्वारा वज्रदंष्ट्र के वध का उल्लेख), ३.१.४९.३१ (नल वानर द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.१.५१.२४(नल का दक्षिण दिशा में स्मरण), ६.५४ (दमयन्ती - त्याग पर वीरसेन - पुत्र नल द्वारा उसके कल्याण के लिए चर्ममुण्डा देवी की स्तुति), ६.५५ (नलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.३४५(नलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश १.१५.२८ (निषध - पुत्र, नभ - पिता, सगर वंश), १.१५.३५ (दो नलों का उल्लेख), वा.रामायण १.१७.१२ (वानर , विश्वकर्मा - पुत्र), ६.२२.४५ (नल द्वारा समुद्र पर सेतु निर्माण), ६.२६.२१ (सारण द्वारा रावण को नल वानर का परिचय), ६.४३.१३ (नल का रावण - सेनानी प्रतपन से युद्ध), लक्ष्मीनारायण १.४४८.२८ (नल - पुत्र चन्द्राङ्गद के यमुना जल में मग्न होने तथा नागकन्याओं द्वारा नागलोक ले जाने आदि की कथा), कथासरित् ९.६.२३७(पति विरह में व्याकुल बन्धुमती को विप्र द्वारा नल - दमयन्ती के वियोग व मिलन की कथा सुनाना ) nala

      Remarks on Nala

      नल नल का शाब्दिक अर्थ है बांधना । यह जीवात्मा इस शरीर में माया से बंधा है । सामान्य जीवन में नल शब्द का बहुत उपयोग होता है जैसे नाडा, नल (पानी देने वाले), नाला, अंग्रेजी का नांट आदि । नल - दमयन्ती की कथा के संदर्भ में , जीवात्मा को भी कभी - कभी श्वेत हंस रूपी सद्विचार आते हैं जो उस शम - दम रूपी दमयन्ती से मिला देते हैं। इसका लाभ उसे तत्काल यह होता है कि परमात्मा रूपी लोकपालों से आठ वर प्राप्त हो जाते हैं जिनका वह चाहे तो उपयोग कर सकता है । अक्ष - क्रीडा का तात्पर्य इन्द्रियों के दुरुपयोग से है । अक्षों में कलि प्रविष्ट होकर नल का सर्वस्व हरण करता जा रहा है । नल रूपी साधक अपने वासना रूपी वस्त्र से मन रूपी शकुन को पकड कर खा जाना चाहता है । दूसरे शब्दों में , मन को अपने वश में करने के लिए अपनी एकमात्र वासना की बलि चढा देता है । तब मन रूपी शकुन ऊर्ध्वमुखी हो जाते हैं। तब नल दमयन्ती का आधा वस्त्र ओढ लेता है । इसका अर्थ है कि साधक अभी भी वासनाओं से पूर्णत: मुक्त नहीं हुआ है ।

      सोमयाग आदि में सदोमण्डप, आग्नीध्र मण्डप और हविर्धान मण्डप नामक तीन मण्डप होते हैं। आग्नीध्र ऋत्विज सदोमण्डप में जाकर अन्य ऋत्विजों के धिष्ण्य खरों की अग्नियों को प्रज्वलित करता है । आग्नीध्र मण्डप में आग्नीध्र खर से अग्नि का वहन वह दो प्रकार से करता है । एक तो आग्नीध्र मण्डप से सीधा सदोमण्डप में जाता है । दूसरा मार्ग है पूरी वेदी का चक्कर लगा कर । चक्कर लगाकर वह केवल मैत्रावरुण नामक ऋत्विज के धिष्ण्य खर को प्रज्वलित करता है । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उसके यह दो मार्ग नल के संदर्भ में अक्ष विद्या और अश्व विद्या के तुल्य हैं। गङ्गाखेड में गवामयन यज्ञ के अध्वर्यु श्री श्रीनिवास शर्मा का कहना है कि ऐसा इस कारण से है कि वेदी क्षेत्र के मध्य में एक विषुवत् रेखा की कल्पना की गई है जिसे लांघा नहीं जा सकता । चूंकि मैत्रावरुण ऋत्विज की धिष्ण्य विषुवत् रेखा के उस पार होती है , अत: उसे प्रज्वलित करने के लिए पूरी बहिर्वेदी का चक्कर लगाना पडता है । आग्नीध्र ऋत्विज की नल से कितनी समानता है, यह अन्वेषणीय है ।


      नलकूबर गर्ग १.१९.२७ (नलकूबर का देवल के शाप से अर्जुन वृक्ष बनना , कृष्ण द्वारा यमलार्जुन रूपी नलकूबर व मणिग्रीव के उद्धार की कथा), ७.२४.१३ (नलकूबर की प्रद्युम्न - सेनानी कृतवर्मा से पराजय), देवीभागवत ९.२२.७ (नलकूबर का शङ्खचूड - सेनानी धूम्र से युद्ध), पद्म २.२७.२३ (उत्तर दिशा के दिक्पाल का नाम), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१४ (वृक्ष का रूप , कृष्ण द्वारा मोक्ष, रम्भा के साथ रमण, मुनि द्वारा वृक्षत्व का शाप), ब्रह्माण्ड २.३.८.४६(कुबेर व ऋद्धि - पुत्र), भविष्य ३.४.१५.६४ (कुबेर द्वारा स्वमुख से उत्पन्न स्व अंश के त्रिलोचन वैश्य बनने की कथा), भागवत १०.९.२२ (कुबेर - पुत्र, शाप से अर्जुन वृक्ष बनना), वायु ७०.४१/२.९.४१ (कुबेर व ऋद्धि - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर १.१३३.५० (रम्भा - पति के रूप में नलकूबर का उल्लेख), ३.७३ (नलकूबर की मूर्ति का रूप), ३.२२१.४०(पञ्चमी को नलकूबर की पूजा का निर्देश), शिव २.५.३६.११ (शिव व शङ्खचूड के युद्ध के संदर्भ में नलकूबर का शङ्खचूड - सेनानी धूम्र से युद्ध), स्कन्द ३.२.११.१३ (इन्द्र के दूत के रूप में नलकूबर द्वारा इन्द्र को श्रीमाता व लोलजिह्व राक्षस के युद्ध का समाचार देना), ४.२.८३.२ (कुबेर व ऋद्धि - पुत्र), हरिवंश २.९३.२९ (प्रद्युम्न द्वारा नलकूबर का रूप धारण करना), वा.रामायण ७.२६.३३ (रम्भा - पति, रावण द्वारा रम्भा से बलात्कार पर नलकूबर द्वारा रावण को शाप), कथासरित् ६.३.१६ (कुबेर -पुत्र नलकूबर की पत्नी सोमप्रभा का वृत्तान्त), १२.६.४० (नलकूबर द्वारा यक्ष - पुत्र अट्टहास को शाप देने का वृत्तान्त ) nalakoobara/nalakuubara/ nalkubar


      नलनाभ मार्कण्डेय ६३.४०/६०.४० (इन्दीवर विद्याधर का पिता )


      नलमेघ लक्ष्मीनारायण १.५८०.२७ (विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से नलमेघ दैत्य के वध का कथन )


      नलव लक्ष्मीनारायण ३.२९.३ (नलव देश के राजा अंशुक्रमथ की भक्ति से श्रीहरि का साधु नारायण रूप में प्राकट्य )


      नलिनी ब्रह्माण्ड १.२.१८.४० (प्राची गङ्गा का नाम, तटवर्ती जनपदों के नाम), १.२.१९.९६(शाक द्वीप की सात मुख्य गङ्गाओं में से एक), भविष्य २.३.५ (नलिनी, वापी, ह्रद आदि की प्रतिष्ठा की विधि), भागवत ४.२५.४८(पुरञ्जन की पुरी के ५ पूर्वी द्वारों में से एक, सौरभ देश में प्रवेश का द्वार), ४.२९.११(गन्ध का अनुभव करने वाले नासिका के द्वारों का प्रतीक), मत्स्य १०२.६(गङ्गा के १५ पुण्य नामों में से एक), १२१.४०(३ प्राची गङ्गाओं में से एक), वामन ७२.१५(राजा के वीर्य का पान कर मरुतों को जन्म देने वाली ७ मुनि - पत्नियों में से एक), वायु ४७.३८(३ प्राची गङ्गाओं में से एक), विष्णु २.४.६५(शाक द्वीप की सात मुख्य गङ्गाओं में से एक), शिव ५.१८.५५ (शाकद्वीप की ७ मुख्य नदियों में से एक), स्कन्द ५.२.७५.२६ (मणिभद्र - पुत्र वडल द्वारा कुबेर - पत्नी सदृश नलिनी / पुष्करिणी के बलात् सेवन से शाप प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२० (श्रीकृष्ण की नलिनी भार्या की भ्रामरी पुत्री व षडङ्गवैद्युत पुत्र का उल्लेख ) nalinee/ nalini


      नव ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९(स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक), २.३.७४.१९ (उशीनर व नवा - पुत्र, नवराष्ट्र का राजा, अनु वंश), मत्स्य ४८.१८(उशीनर व नवा - पुत्र, नवराष्ट्र का राजा, अनु वंश), वायु ९९.२०/२.३७.२०(उशीनर व नवा - पुत्र, नवराष्ट्र का राजा, अनु वंश), विष्णु ४.१८.९(उशीनर के ५ पुत्रों में से एक, अनु वंश ) nava


      नव- ब्रह्माण्ड २.३.७.२४०(नवाक्ष : प्रधान वानर नायकों में से एक), २.३.७.२४४(नवचन्द्र : बाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), भविष्य ३.४.२२ (नवरङ्ग : औरङ्गजेब का नाम, अन्धक का अंश), वराह १५३.१ (नवक : शिव तीर्थ के उत्तर में तीर्थों के नवक का माहात्म्य), वामन ९०.३० (नवराष्ट्र में विष्णु का यशोधर नाम), वायु ९३.३७/२.३१.३७(ययाति द्वारा पुत्र यदु को नवदेशिक कहने का उल्लेख), स्कन्द १.२.४७.२३(नवदुर्गा), लक्ष्मीनारायण २.२१४.२ (मिश्रसुरा राष्ट्र के नृप रायनवार्क के राज्य में श्रीहरि के आगमन व राजा द्वारा स्वागत का वर्णन), २.२३२.६ (नवजीवन दैत्य द्वारा शिव के विमान व राजा रायनृप की कन्या विद्युन्मणि का हरण, शिव द्वारा वध ) nava


      नवग्रह मत्स्य ९३.६(नवग्रह होम की विधि का वर्णन )


      नवदुर्गा स्कन्द १.२.४७.२३(त्रिपुरा, कोलम्बा आदि नवदुर्गाओं की स्थापना का कथन )


      नवनीत भविष्य १.५७.१६(सरस्वती हेतु नवनीत बलि का उल्लेख), वराह १०७.१(नवनीतमयी धेनु दान विधि ; नवनीत के समुद्र मन्थन से उत्पन्न होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.२६.१०४ (द्वितीया तिथि को नवनीत दान से सुकुमार तनु होने का उल्लेख), ५.३.९२.२३(महिषी दान के संदर्भ में महिषी की नैर्ऋत दिशा में नवनीताचल बनाने का निर्देश ) navaneeta/ navnita


      नवमी अग्नि १८५.१ (आश्विन शुक्ल नवमी को गौरी नवमी व्रत, दुर्गा, नवदुर्गा आदि की पूजा), गरुड १.११६.६ (नवमी को दिशाओं की पूजा), १.१३३ (चैत्र शुक्ल अष्टमी, महानवमी व्रत, दुर्गा पूजा), १.१३५.१ (वीर नवमी नामक आश्विन शुक्ल नवमी), १.१३५.२ (दमन नवमी नामक चैत्र शुक्ल नवमी), नारद १.११८ (नवमी तिथि के व्रत : रामनवमी, चण्डिका पूजन, उमा व्रत, इन्द्राणी पूजन, अक्षय नवमी, नन्दिनी नवमी, आनन्दा नवमी आदि), पद्म ५.३६.६३ (चैत्र शुक्ल नवमी को लक्ष्मण का शक्ति भेदन), ५.३६.२७(मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी को सम्पाती व वानर का मिलन), ५.३६.४८ ( माघ शुक्ल नवमी को मेघनाद द्वारा राम व लक्ष्मण का बन्धन), ६.२५ (कार्तिक शुक्ल नवमी को तुलसी त्रिरात्र व्रत का अनुष्ठान), ६.१९८.७१ (शुचि / भाद्रपद शुक्ल नवमी को गोकर्ण द्वारा भागवत कथा का वाचन, शुक द्वारा परीक्षित् को भागवत कथा का वाचन), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.८० (राम नवमी का संक्षिप्त माहात्म्य), भविष्य ३.४.२६.१२ (कार्तिक शुक्ल नवमी को सत्ययुग की उत्पत्ति, धात्री वृक्ष की महिमा), ४.१३८ (आश्विन शुक्ल नवमी को महानवमी व्रत, चामुण्डा पूजा, लोह दैत्य की कथा), वराह २८ (नवमी को दुर्गा की उत्पत्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.६९(नवमी तिथि को पूजनीय देवी - देवताओं के नाम), शिव ५.४९.२२ (चैत्र शुक्ल नवमी को उमा देवी के प्राकट्य का वर्णन), स्कन्द २.४.३१.१ (कार्तिक शुक्ल कूष्माण्ड नवमी की विधि व माहात्म्य का वर्णन), ५.३.२६.११८ (नवमी को कात्यायनी हेतु गन्ध धूप दान के फल का उल्लेख), ५.३.६६.५ (नवमी को नर्मदा के दक्षिणी तट पर मातृ तीर्थ में मातृ पूजा के महत्त्व का कथन), ५.३.१७४.५ (कार्तिक शुक्ल नवमी को नर्मदा के उत्तर तटवर्ती गोपेश्वर तीर्थ में दीप दान का महत्त्व), ५.३.१८४.१८ (अश्वयुक् शुक्ल नवमी को विधूतपाप तीर्थ में वेद आदि पठन के महत्त्व का कथन), ६.८६.१५ (आश्विन शुक्ल नवमी को चन्द्रमा की पत्नियों द्वारा चण्डी पूजा), ६.१६४ (आश्विन शुक्ल नवमी को सरस्वती तट पर स्थित दुर्गा देवी की पूजा की फलश्रुति), ६.१६४.४५ ( आश्विन् शुक्ल नवमी को चण्डशर्मा – पत्नी शाकम्भरी द्वारा दुर्गा देवी की पूजा ), ७.१.१०२ (आश्विन शुक्ल नवमी), ७.१.१३३ (अश्वयुज शुक्ल नवमी को महाकाली की पूजा), ७.१.१८२ (आश्विन शुक्ल नवमी को मातृगण की पूजा), हरिवंश २.२.३५(नवमी तिथि को एकानंशा के यशोदा के गर्भ से जन्म लेने का कथन), २.२.५२ (नवमी तिथि को विन्ध्यवासिनी? देवी को बलि प्रदान करने का निर्देश), २.३.९ (एकानंशा/आर्या देवी के कृष्ण पक्ष की नवमी व शुक्ल पक्ष की एकादशी होने का उल्लेख), २.८०.२२ (सुन्दर ओष्ठों के लिए नवमी को अयाचित भोजन करने का कथन), वा.रामायण १.१८.८ (चैत्र शुक्ल नवमी को राम का जन्म), लक्ष्मीनारायण १.२७४ (१२ मासों के शुक्ल पक्षों में रामनवमी आदि व्रतों का वर्णन), १.३०१.३२ (अधिक मास की नवमी व्रत से अग्नि व सुवर्ण द्वारा प्रतिष्ठा प्राप्ति का वर्णन), १.३१६.३६ (राजा शतमख व रानी द्युवर्णा द्वारा अधिक मास कृष्ण नवमी व्रत से नर - नारायण की पुत्र - द्वय रूप में प्राप्ति का वर्णन), २.२१०.२७ (भाद्र शुक्ल नवमी को श्रीहरि द्वारा ऋद्धीशा नगरी में आशा त्याग का उपदेश), २.२४५.३८ (मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी को सोमयाग के द्वितीय दिवसीय कृत्यों का वर्णन), ३.६४.१० (कृष्ण पक्ष की तिथियों के कृत्यों के संदर्भ में नवमी को माताओं के पूजन का निर्देश), ३.१०३.६ (शुक्ल पक्ष की तिथियों में दान फल के संदर्भ में नवमी को दान से हस्ती, उष्ट्र, अश्व आदि प्राप्ति का उल्लेख ) navamee/ navami


      नवरथ कूर्म १.२४.१२ (वृष्णि - पुत्र, सरस्वती द्वारा नवरथ की दुर्योधन राक्षस से रक्षा), ब्रह्माण्ड २.३.७०.४३(भीमरथ - पुत्र, दशरथ - पिता, क्रोष्टा वंश), भागवत ९.२४.४(भीमरथ - पुत्र, दशरथ - पिता), मत्स्य ४४.४१(भीमरथ - पुत्र, दृढरथ - पिता, क्रोष्टा वंश), वायु ९५.४२/२.३३.४२(भीमरथ - पुत्र, दशरथ - पिता, क्रोष्टा वंश), विष्णु ४.१२.४१(भीमरथ - पुत्र, दशरथ - पिता, क्रोष्टा वंश ) navaratha


      नवरात्र देवीभागवत ०.३ (आश्विन शुक्ल नवरात्र : सुद्युम्न द्वारा देवीभागवत श्रवण से स्थायी रूप से पुरुष बनना), ३.२६ (नवरात्र में देवी पूजन की विधि), नारद १.११०.३० (नवरात्र व्रत की संक्षिप्त विधि), शिव ५.५१.७३ (आश्विन शुक्ल पक्ष में नवरात्र व्रत के प्रभाव का कथन : सुरथ व सुदर्शन द्वारा हृत राज्य की प्राप्ति ) navaraatra/navratra/navaratra


      नवा ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८(उशीनर की पांच रानियों में से एक, नव - माता), मत्स्य ४८.१६(वही), वायु ९९.१९/२.३.१९(वही)


      नहुष देवीभागवत ६.७+ (इन्द्र की अनुपस्थिति में नहुष द्वारा इन्द्र पद प्राप्ति, शची पर आसक्ति, ऋषियों के शाप से पतन), पद्म २.६४.३ (नहुष की प्रशंसा व नहुष - पुत्र ययाति का वृत्तान्त), २.१०२.७२ (कल्प वृक्ष से उत्पन्न अशोकसुन्दरी कन्या को पार्वती द्वारा नहुष पति प्राप्ति का वरदान), २.१०४+ (आयु व इन्दुमती - पुत्र, हुण्ड दैत्य द्वारा हरण, वसिष्ठ द्वारा पालन, नहुष द्वारा हुण्ड का वध व अशोकसुन्दरी से विवाह), २.१०७.५८(नहुष की निरुक्ति), २.११० (देवों द्वारा नहुष को आयुध प्रदान करना), ब्रह्म १.१०.१ (नहुष के यति आदि ६ पुत्रों के नाम व ययाति पुत्र का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त ४.५९+ (नहुष द्वारा इन्द्र पद प्राप्ति का उपाख्यान), ब्रह्माण्ड १.२.३.६८ (नहुष वंश का वर्णन), भविष्य ४.४६.७ (नहुष - पत्नी चन्द्रमुखी द्वारा हाथ में स्वर्णसूत्रमय डोरा बांधने की कथा), ४.९५.११ (नहुष - पत्नी जयश्री द्वारा श्रावणिका व्रत पूर्ण किए जाने पर ही प्राण त्यागने की कथा), भागवत ९.१८ (आयु - पुत्र, नहुष वंश का वर्णन, स्वर्ग से भ्रष्टता), मत्स्य १५.२३ (आज्यप पितर - कन्या, नहुष - पत्नी व ययाति - माता विरजा का उल्लेख), २४.४९ (नहुष के यति आदि ७ पुत्रों का वृत्तान्त), वायु ६९.७४/ २.८.७१ (कद्रू द्वारा उत्पन्न प्रधान नागों में से एक का नाम), ७३.४५/ २.११.८८ (आज्यपा पितर - कन्या, नहुष - पत्नी व ययाति - माता विरजा का उल्लेख), ८५.४/२.२३.४(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), विष्णु ४.११.५(यदु के पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.२४ (नहुष द्वारा इन्द्र पद प्राप्ति तथा अगस्त्य के शाप से पतन, सर्प बनना व सर्पत्व से मोक्ष की कथा), स्कन्द १.१.१५ (नहुष की शची पर आसक्ति व पतन का प्रसंग), हरिवंश १.१८.६६ (सुस्वधा पितरों की कन्या विरजा के नहुष - पत्नी होने का कथन), १.२८.२ (आयु व प्रभा - पुत्र), १.३०.१ (विरजा - पति, यति, ययाति आदि ६ पुत्रों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.३७४ (इन्द्र के कमल नाल में छिपने पर नहुष द्वारा इन्द्र पद की प्राप्ति, नहुष द्वारा शची की कामना, शची को प्राप्त करने के लिए नहुष द्वारा सप्तर्षियों को शिबिका वाहक बनाना, दुर्वासा द्वारा नहुष को अजगर बनने का शाप), १.४१२.२३(नहुष द्वारा इन्द्र पद ग्रहण करने के पश्चात् दरिद्रता से पीडित शची को द्रव्य दान व शची को भोगने की कामना, नहुष का पतन), ३.५२.१९ (आयु व इन्दुमती - पुत्र नहुष का हुण्ड दैत्य द्वारा हरण व विनाश की चेष्टा, वसिष्ठ द्वारा बाल नहुष का पालन, नहुष द्वारा हुण्ड का वध व अशोक सुन्दरी से विवाह आदि ), महाभारत उद्योग १६.२६(तेजोहरं दृष्टिविषं सुघोरं
      मा त्वं पश्येर्नहुषं वै कदाचित्। देवाश्च सर्वे नहुषं भृशार्ता न पश्यन्ते गूढरूपाश्चरन्तः ।।), अनुशासन ५१(तुलनीय : स्कन्द पुराण ७.१.३३८ में नाभाग ) nahusha

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      नाक ब्रह्माण्ड २.३.५९.१३ (कलि - पुत्र, अशरीरी, शकुनि - पति), वायु ३४.९४(नाकपृष्ठ : स्वर्ग का एक पर्यायवाची नाम), ८४.१०/२.२२.१० (कलि व हिंसा के ४ पुत्रों में से एक, शकुनि - पति, अशरीरवान्), स्कन्द २.४.३०.२३ (पुण्य कर्मफल नाक व पाप कर्म फल नरक होने का कथन), ४.१.२९.१०३ (नाक नदी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.१००.१३६(नाक : अर्कांश नाक शिल्पी के दिगंशा ककुप् से विवाह व उनकी सन्तानों का कथन ) naaka


      नाकुलि द्र.नकुल


      नाग अग्नि ८६.८(सुषुप्ति/विद्या कला के २ प्राणों में से एक, हस्तिजिह्वा? नाडी में स्थित नाग वायु की प्रकृति का कथन - पूषा च हस्तिजिह्वा च व्याननागौ प्रभञ्जनौ ।।

      विषयो रूपमेवैकमिन्द्रिये पादचक्षुषी।), १४४.३२ (कुब्जिका देवी के आभूषणों के रूप में कर्कोटक आदि नागों का कथन), १८० (पञ्चमी व्रतों में वासुकि आदि ८ नागों की पूजा का निर्देश), २१४.१३(उद्गार नाग वायु के आधीन होने का उल्लेख - उद्गारे नाग इत्युक्तः कूर्मश्चोन्मीलने स्थितः । कृकरो भक्षणे चैव देवदत्तो विजृम्भिते ॥), २९४ (नागों के लक्षण, जातियां, सर्प दंश में नक्षत्र व तिथि विचार, दूत चेष्टा से विष का विचार), ३०९.८ (त्वरिता देवी के आभूषण रूपी नाग), गणेश १.५३.२३ (नागकन्याओं की राजा चन्द्राङ्गद पर आसक्ति, बन्धन व मोचन), १.६४.१५ (गणेश की उदराग्नि की शान्ति हेतु गिरिश द्वारा नाग प्रदान करना, गणेश का व्याल बद्ध उदर होना - सहस्रफणिनं नागं गिरिशोऽस्मै ददावथ ॥ तेन बद्धोदरो यस्माद् व्यालबद्धोदरोऽभवत् ।), २.४.१० (नरान्तक द्वारा नागलोक की विजय), गरुड १.१२९.२७ (नाग पञ्चमी व्रत - श्रावणे चाश्विने भाद्रे पञ्चम्यां कात्तिक शुभे ॥ वासुकिस्तक्षकश्चैव कालीयो मणिभद्रकः ।), २.४४.२४(पञ्चमी तिथियों को नाग पूजा विधि - पक्षयोरुभयोर्नागं पञ्चमीषु प्रपूजयेत् ॥ कुर्यात्पिष्टमयीं लेखां नागानामाकृतिं भुवि ।), देवीभागवत ८.२० (नागों का पाताल लोक में वास), नारद १.५६.२०६ (नाग वृक्ष की आश्लेषा नक्षत्र से उत्पत्ति का उल्लेख), १.११३.५१ (ऊर्ज शुक्ल चतुर्थी को नाग व्रत की विधि व माहात्म्य), १.११४.३३ (भाद्र कृष्ण पञ्चमी को नागों के तर्पण से नागों से अभय प्राप्ति का उल्लेख), पद्म १.३१ (ब्रह्मा द्वारा नागों को जनमेजय के सत्र में दाह का शाप, आस्तीक द्वारा रक्षा का उत्शाप), ३.२५.२ (काश्मीर में तक्षक नाग के वितस्ता नामक भवन का उल्लेख), ५.९३.६ (नागों का पापों से साम्य - तेजसा वैनतेयस्य पन्नगा इव पातकाः।विद्रवंति च वैशाखस्नानेनोषसि निश्चितम्), ६.४७.६ (चैत्र शुक्ल एकादशी माहात्म्य के संदर्भ में पुण्डरीक नागराज द्वारा ललित गन्धर्व को शाप देने आदि की कथा), ब्रह्म २.२०.२ (गरुड द्वारा शेष - पुत्र मणि नाग को मुक्त न करने पर विष्णु द्वारा गरुड का गर्व भङ्ग करना ), २.४१ (शूरसेन - पुत्र, भोगवती से विवाह, पूर्व जन्म में शेष - पुत्र, शिव से शाप प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.५८ (नागवेष्ट नरक प्रापक कर्मों का उल्लेख), ४.१९ (कृष्ण द्वारा कालिय नाग के दमन का वृत्तान्त), ४.१९.९७ (कालिय - पठित स्तोत्र से नागभय न होने का कथन), ४.१९.११२ (कार्तिक पूर्णिमा को नागों द्वारा गरुडार्चन करने व कालिय नाग द्वारा उसमें विघ्न का वृत्तान्त), ४.५१(नागों द्वारा धन्वन्तरि - शिष्यों का हनन, धन्वन्तरि द्वारा नागों का दमन, मनसा देवी द्वारा नागों की सहायता का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.१६.९(नाग द्वीप : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक), १.२.१७.३४(निषध में नागों के वास का उल्लेख), २.३.७.३२ (नागों के नाम), २.३.३२.१९(नागों का शिव के यज्ञोपवीत रूप में उल्लेख - विभूतिभूषिताङ्गं च नागयज्ञोपवीतिनम् ॥), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८०(नाग वंश के नृपों में शेषनाग - पुत्र भोगी का उल्लेख), भविष्य १.३२ (नाग पञ्चमी उत्सव की विधि व महत्त्व : कद्रू का नागों को जलने का शाप, आस्तीक द्वारा नागों की रक्षा, १२ मासों की पञ्चमियों में १२ नागों के नाम), १.५७.१०(नागों के लिए क्षीर बलि का उल्लेख), १.५७.२०(नागों हेतु विष बलि का उल्लेख), १.१७९.३१ (अनन्त, तक्षक, कर्कोटक आदि नागों के लक्षणों के कथन सहित उनसे शान्ति की प्रार्थना), २.१.१७.६ (प्रपा कर्म में अग्नि का नाम), २.२.२१.६८ (आठ दिशाओं में स्थित ८ नागों के स्वरूप का वर्णन), ३.४.२३ (नाग राजाओं के वंश का वर्णन), ४.३४ (कार्तिक शुक्ल पञ्चमी को शान्ति व्रत के संदर्भ में नागों का अङ्गन्यास), ४.३६ (नाग पञ्चमी : मास अनुसार व्रत के नाम, उच्चैःश्रवा - कद्रू- विनता की कथा, आस्तीक की कथा), ४.६४.३६ (अधो दिशा के सर्पों के आठ कुलों व पत्नियों द्वारा सेवित होने का कथन), ४.१५६ (गौ के आन्त्रदेश में नागों की स्थिति), भागवत ५.२४.३१ (वासुकि प्रधान नाग, पाताल में निवास), ७.८.४७ (नृसिंह द्वारा हिण्यकशिपु के वध पर नागों की प्रतिक्रिया - येन पापेन रत्नानि स्त्रीरत्नानि हृतानि नः
      तद्वक्षःपाटनेनासां दत्तानन्द नमोऽस्तु ते॥), ९.७.२( पुरुकुत्स द्वारा नागों की कन्या नर्मदा से विवाह, रसातल में गन्धर्वों का वध, नागों से वर प्राप्ति ),मत्स्य २.१८ (प्रलय काल में मनु की नौका को भुजङ्ग रूपी रज्जु से मत्स्य शृङ्ग से बांधने का उल्लेख – भुजङ्गो रज्जुरूपेण मनोः पार्श्वमुपागमत्।...भुजङ्गरज्वा मत्स्यस्य श्रृङ्गे नावमयोजयत्।), ११४.८(नाग द्वीप : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक), मार्कण्डेय ७१.१७/६८.१७ (पाताल में नागराज कपोतक द्वारा स्वकन्या नन्दा को मूक होने के शाप का वृत्तान्त - यदा तु याचिता नन्दा न ददाति नृपोत्तरम् ।
      मूका भविष्यसीत्याह तदा तां तनयां पिता॥), १३० (नागों द्वारा मरुत्त - माता से रक्षा की प्रार्थना), १३१ (नागों द्वारा दंश से मृत विप्रों को पुन: जीवित करना), वराह २४.६ (मारीच काश्यप व कद्रू से उत्पन्न प्रधान नागों के नाम, नागों द्वारा मनुष्यों को त्रास देने के कारण ब्रह्मा द्वारा नागों को शाप आदि), ८०.१० (कपिञ्जल व नाग शैलों के मध्य स्थित रमणीय स्थली का कथन), १५४.१५(मथुरा में नाग तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वामन ५७.८८ (पृथूदक तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को नागजिह्व नामक गण प्रदान करने का उल्लेख), वायु २४.३९(नागों का शिव के यज्ञोपवीत रूप में उल्लेख), ३६.३१(मेरु के उत्तर दिशा के केसर पर्वतों में से एक), १.३९.३६(सुनाग पर्वत पर दैत्यों के वास का उल्लेख), ४५.७९(नागद्वीप : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक), ६९.६८/२.८.६५ (कद्रू द्वारा उत्पन्न शेष, वासुकि आदि प्रधान नागों के नाम), ११२.२२, ४२/२.४९.२७(नागकूट : गया के फल्गुतीर्थ के संदर्भ में नागकूट का उल्लेख), विष्णु २.२.३०(मेरु के उत्तर दिशा के केसर पर्वतों में से एक), २.३.७(नागद्वीप : भारतवर्ष के ९ भेदों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.३७ (सूर्य आदि विभिन्न ग्रहों से सम्बद्ध नागों, गन्धर्वों, निशाचरों आदि के नाम), १.१२८ (कद्रू- पुत्र नागों के नाम), १.२४८.२८(सुपर्ण की सन्ततियों में से एक), शिव २.१.१२.३४ (नागों द्वारा प्रवाल लिङ्ग की पूजा), ४.३०.३२ (दारुका राक्षसी के उपद्रव वर्णन के संदर्भ में वीरसेन द्वारा पूजित नागेश्वर शिवलिङ्ग का वर्णन), स्कन्द १.२.१३.१५७ (शतरुद्रिय प्रसंग में नागों द्वारा विद्रुम लिङ्ग की पूजा), १.२.३९.६९ (शतशृङ्ग के ८ पुत्रों में से एक), १.२.३९.९९ (स्वस्तिक नाग के भूमि पर आगमन से बने स्वस्तिक कूप का कथन), १.२.६३.५६ (शेष द्वारा स्थापित लिङ्ग के परित: चार दिशाओं में एलापत्र, कर्कोटक आदि नागों द्वारा मार्गों के निर्माण का कथन ), ३.१.५.१३२ (किन्नर नाग द्वारा स्वभगिनी ललिता को उदयन को प्रदान करने का वृत्तान्त), ३.१.३८ (अमृत भ्रम में कुशों के लेहन से नागों का द्विजिह्व होना), ३.१.४९.७८ (नागों द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ४.२.५७.१०६ (नागेश गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८४.४४ (नाग तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३०.३७ (नागों द्वारा दीप दान से पाताल में दिव्य प्रकाश आदि प्राप्ति का वर्णन), ५.१.५१(नागों द्वारा भोगवती में शिव को भिक्षा न देने पर शिव द्वारा तृतीय नेत्र से २१ अमृत कुण्डों का पान, शिप्रा के जल से अमृत रूपी कुण्डों के पूरण करने का वृत्तान्त), ५.१.६५ (कुशस्थली के अन्तर्गत नाग तीर्थ, आस्तीक द्वारा नागों की रक्षा का प्रसंग, बक दाल्भ्य का नाग तीर्थ में तप), ५.२.१९ (८४ लिङ्गों में से एक नाग चण्ड लिङ्ग का माहात्म्य), ५.३.८३.११० (गौ के खुराग्रों में गन्धर्वों, अप्सराओं व नागों की स्थिति का उल्लेख), ५.३.९९ (नागेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : वासुकि द्वारा गङ्गा शाप से मुक्ति हेतु तीर्थ में तप), ५.३.१३१ (नाग तीर्थ का माहात्म्य : कद्रू- विनता कथा में कद्रू द्वारा नागों को शाप, नागों द्वारा तप से अभय प्राप्ति), ५.३.१६३ (नाग तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२३१.१३ (रेवा नदी के दोनों तटों पर ७ नागेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख), ६.८.२४(देवों द्वारा पाताल में हाटकेश्वर क्षेत्र को मिट्टी से भरना, कालान्तर में नागबिल का निर्माण, इन्द्र का नागबिल से हाटकेश्वर में आना व देवों द्वारा नागबिल का गिरि से पूरण), ६.३१ (प्रेत रूप धारी इन्द्रसेन की नाग तीर्थ में श्राद्ध से मुक्ति), ६.११४.१३ (क्रथ द्विज द्वारा अनन्त - पुत्र रुद्रमाल की हत्या पर नागों का चमत्कार पुर में उपद्रव, त्रिजात विप्र द्वारा शान्ति के उपाय का वर्णन), ६.१८३ (नाग तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य), ६.२५२.२२(चातुर्मास में नागों की नाग वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.१८६ (नाग स्थान का माहात्म्य : बलराम का अनन्त धाम गमन), ७.३.५.७ (नाग तीर्थ का माहात्म्य : गौतमी द्वारा स्नान मात्र से गर्भ धारण), ७.३.३७ (नाग उद्भव तीर्थ का माहात्म्य : कद्रू के शाप से मुक्ति के लिए नागों का तप, देवी द्वारा वरदान), महाभारत उद्योग १०३.१(नागलोक के नागों के रूप व नामों का वर्णन ; मातलि - कन्या का नागकुमार सुमुख से साथ विवाह), द्रोण ८१.११(अर्जुन द्वारा स्वप्न में पाशुपत अस्त्र प्राप्ति के संदर्भ में सरोवर में नाग - द्वय का धनुष व बाण के रूप में परिवर्तित होने का कथन - ततस्तौ रुद्रमाहात्म्याद्धित्वा रूपं महोरगौ। धनुर्बाणश्च शत्रुघ्नं तद्द्वन्द्वं समपद्यत।।), शान्ति ३५५+ (नागपुर में स्थित नागराज पद्म की प्रशंसा), ३५८(नागराज पद्म के दर्शन के लिए ब्राह्मण का निराहार तप), ३६२(नागराज द्वारा सूर्यमण्डल की आश्चर्यजनक घटनाओं का वर्णन ), अनुशासन ९८.२९(नागों हेतु उपयुक्त पुष्प), लक्ष्मीनारायण १.८३.३० (नागास्या : ६४ योगिनियों में से एक), १.२२७.२३(पदतल की रक्षा करने वाले नागों में जयन्त के सर्वमूर्धन्य होने का उल्लेख), १.४४१.८४ (वृक्ष रूपी श्रीहरि के दर्शनार्थ नागों का वृक्ष रूप में अवतरण), १४४८ , १.४७० (कृष्ण द्वारा कालिय नाग का निग्रह, कालिय नाग की मुख्य पत्नी सुरसा का गोलोक गमन व छाया रूप में कालिय की पत्नी रहना आदि), १.४८७ (धन्वन्तरि व उनके शिष्यों द्वारा मन्त्र बल से तक्षक व अन्य सर्पों को निर्विष करना, वासुकि व अन्य नागों द्वारा तक्षक की सहायता हेतु आने पर धन्वन्तरि द्वारा उन्हें भी मन्त्र से शक्तिरहित करना, वासुकि द्वारा मनसा देवी का सहायतार्थ आह्वान करना, धन्वन्तरि का गर्व भङ्ग होना - धन्वन्तरिर्मन्त्रामृतैर्जीवयामास सेवकान् ।। चकार जृम्भितं मन्त्रैः सर्पसंघं रुषा ज्वलन् ।), १.४९९ (सती विधवा भद्रिका द्वारा नागमाता रेवती को वंश नाश का शाप, रेवती का तक्षक - पुत्री बनकर बलराम - पत्नी बनना, तक्षक द्वारा भद्रिका का हरण करने से भद्रिका द्वारा तक्षक को मनुष्य राजा रैवत बनने का शाप - तापसी भद्रिकानाम्नी शशाप नागिनीं तदा ।।नागमाता रेवती त्वं सवंशं नाशमाप्नुहि ।), १.५१०.२३ (ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ के द्वितीय दिवस पर यज्ञ में नागों को निमन्त्रण, सनातन वंश के सर्पों के लक्षणों का वर्णन आदि), १.५५१.८६(उत्तङ्क द्वारा राजा सौदास से मणिमाला की प्राप्ति के संदर्भ में अर्बुद नाग /पर्वत द्वारा भूविवर को पूरित करने का उल्लेख), १.५८०.१३ (नाग - नर्मदा संगम क्षेत्र में ब्रह्महत्या के प्रवेश के निषेध के संदर्भ में राजा कण्ठ की कथा), २.२८.१५ (नागों की ब्राह्मण आदि जातियों का वर्णन तथा उनके विशिष्ट कार्य, कृष्ण द्वारा ब्राह्मण जातीय स्वस्तिक नाग की विंशति कन्याओं की रक्षा का वृत्तान्त), ३.६.१ (अष्टाङ्ग योग में नियम वत्सर में नागों के शासनार्थ गरुत्मन्नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.५२.३७(नाग पुर के राजा आयु व रानी इन्दुमती से नहुष के जन्म का वृत्तान्त), ३.७५.७९ (मण्डूकवत् जलशायी द्वारा नागलोक प्राप्ति का उल्लेख), ४.६१.२ (नागाद नामक नागखेलकर की कथा श्रवण से सपरिवार मुक्ति का वर्णन), ४.८०- ८५(नागविक्रम नृप के सर्वमेध यज्ञ का बालकृष्ण द्वारा सम्पादन, नागविक्रम के नन्दिभिल्ल से युद्ध का वर्णन), ४.१०९.२७ (नागों का राज्य वासुकि और सर्पों का राज्य तक्षक को प्राप्त होने का उल्लेख - नागराज्यं वासुकये ददौ तामसयामकम् ।। सर्पाणां च महाराज्यं तक्षकाय ददौ तदा ।), ४.१०९.४० + (अजनाभ : नागपुर व दिलावरी के राजा नागविक्रम द्वारा तीर्थयात्रा, समाधि सदृश स्थिति की प्राप्ति, त्रिविक्रम नाम से वैष्णव दीक्षा ग्रहण करना आदि), कथासरित् ४.२.१९०(गरुड द्वारा नागों के लिए लाए गए अमृत कलश का इन्द्र द्वारा हरण, नागों द्वारा कुश को चाटने से द्विजिह्व होना, गरुड के कोप से बचने के लिए वासुकि नाग द्वारा गरुड भक्षण के लिए एक नाग प्रतिदिन भेजना, जीमूतवाहन विद्याधर द्वारा शङ्खचूड नाग के बदले स्वयं को गरुड के भक्षण हेतु प्रस्तुत करना, गरुड द्वारा नागों को अभय प्रदान करना), ८.३.६३(सूर्यप्रभ के तूणरत्न, धनुष तथा गुण के नागों से बने होने का वृत्तान्त - स्तिमितास्यो गृहीतश्च कृष्टश्चाजगरो बिलात् ।। तत्क्षणं प्रतिपेदे स भुजगस्तूणरत्नताम् ।), ९.५.१४६ (वासुकि नाग - भगिनी रत्नप्रभा द्वारा भतीजे कनकवर्ष को तप हेतु शक्ति प्रदान करने का वृत्तान्त - पुत्र मां विद्धि तनयां नागराजस्य वासुकेः । त्वत्पितुर्भगिनीं ज्येष्ठां नाम्ना रत्नप्रभामिमाम् ।।), ९.६.३४४ (नल द्वारा कर्कोटक नाग की अग्नि से रक्षा व नाग द्वारा नल का दंशन करके विरूप बनाने का वृत्तान्त - नलं स्कन्धस्थितो नागो ललाटान्ते ददंश सः । तेन ह्रस्वभुजः कृष्णो विरूपः सोऽभवन्नृपः ।।), १०.५.१७० (स्त्रियों के स्वभाव के कारण ५०० हस्ती देने वाले नाग के नष्ट होने का वृत्तान्त - तत्र प्रासादपृष्ठस्थं नागं तमवलोक्य सः । प्रकाश्यात्मानमुत्प्लुत्य जघान च जघास च ।।), १०.८.१५६ (नाग द्वारा नागकन्या व पथिक को भस्म करने का कथन), १२.३.५८ (मृगाङ्कदत्त द्वारा तापस की सहायता से पारावत नाग के दिव्य खङ्ग की प्राप्ति का प्रयत्न, प्रयत्न निष्फल होने के कारण नाग से शाप की प्राप्ति), १२.५.५५ (विनीतमति द्वारा गन्धमाली नाग को कालजिह्व यक्ष की दासता से मुक्त कराने तथा गन्धमाली - कन्या विजयवती से विवाह का वृत्तान्त), १३.१.८५ (साधु द्वारा शङ्खपाल नागराज के शङ्खह्रद की महिमा का कथन), १८.५.२२० (अद्भुत वाक् के संदर्भ में नागों के वाहन मेघ होने का कथन - नागानां वाहना मेघाः सूकरप्रेयसी क्षितिः ।।), ; द्र. मणिनाग naaga

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      नाग - ब्रह्माण्ड १.२.१६.९(नागद्वीप : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक), ३.४.१५.२०(नागपाश : कामेश्वर शिव के ललिता से विवाह में वरुण द्वारा उपहार स्वरूप नागपाश देने का उल्लेख), भविष्य १.११८.४ (नागशर्मा द्विज के विचक्षण पुत्र भद्र का वृत्तान्त), ३.३.३२.११८ ( नागवर्मा : पृथ्वीराज - सेनापति, वीरसेन से युद्ध में मृत्यु), मत्स्य ११४.८(नागद्वीप : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक), वायु ४३.२८(नागपदी : भद्राश्व देश की नदियों में से एक), ४५.७९(नागद्वीप : भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक), स्कन्द २.२.४४.७ (नागरङ्ग : श्रीहरि की विष्णु आदि १२ मूर्तियों को प्रतिमास क्रमश: अर्पित किए जाने वाले फलों में से एक), ६.२१०.४९ (नागवल्ली : ऐरावत द्वारा अमृत कमण्डलु भञ्जन से ताम्बूल की उत्पत्ति, वाणी वत्सरक नृप द्वारा भक्षण व पृथ्वी पर रोपण - तत्प्रभावैः प्रभिन्नः स पीयूषस्य कमंडलुः ॥ ततो वल्ली समुत्पन्ना तस्माच्चैव कमण्डलोः ॥), लक्ष्मीनारायण १.४१६ (अनन्त - पत्नी नागलक्ष्मी के अन्य जन्मों का वृत्तान्त : अन्य जन्मों में चाक्षुष मनु - पुत्री ज्योतिष्मती द्वारा तप करके अनन्त - पत्नी व बलराम - पत्नी रेवती बनना), १.५१४.१६ (कृष्ण - दासी नागलीला का राधा के शापवश आभीरी - कन्या व नागवती नदी बनने का वृत्तान्त, नागवती नदी का माहात्म्य), ३.२०५.२ (नागशालायन ग्राम निवासी वैश्य भक्त वात्सल्यधीर का वृत्तान्त), ४.१५.५३ (नागमुखी चारणी द्वारा साधुसेवा से नाग्नकैसरी नाम से मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त), कथासरित् ६.७.१५१ (ब्राह्मण द्वारा नागबला के मूल में निक्षिप्त धन की चोरी होने व राजा द्वारा पुन: प्राप्त करने की कथा), १२.५.१९१ (नागशूर के सोमशूर नामक चोर पुत्र का वृत्तान्त), १६.२.१३७ (नागस्थल ग्राम के बलधर ब्राह्मण द्वारा द्यु नदी तट पर अनशन तथा क्षुधा से मत्स्य भक्षण के विचार आदि का वृत्तान्त ) naaga


      नागकन्या गर्ग ५.१८.३ (कृष्ण से विरह पर नागेन्द्र कन्याओं द्वारा प्रकट उद्गार का कथन - अथेच्छतीमेनमहो वरं हरिः     समागतां शूर्पणखां महावने ।..), लक्ष्मीनारायण १.४४८.३८ (नागकन्याओं द्वारा यमुना जल में डूबे राजपुत्र चन्द्राङ्गद को पाताल में ले जाने तथा कुछ समय पश्चात् पुन: यमुना तट पर पंहुचाने का वृत्तान्त), कथासरित् १०.८.१५६(नाग द्वारा दुष्चरित्रा नागकन्या व पथिक को भस्म करने का कथन ) naagakanyaa


      नागचूड स्कन्द ५.२.८४.३६ (पाताल में नागचूड नागराज की उपस्थिति का उल्लेख )


      नागपुर पद्म २.११७.२ (नहुष का अशोकसुन्दरी व रम्भा सहित स्वपुर नागपुर में आगमन ), कथासरित् १८.२.१४५(इन्द्र द्वारा कलावती अप्सरा को नागपुर में देवालय के स्तम्भ में सालभञ्जिका होने का शाप, कितव ठिण्ठाकराल द्वारा कलावती को मुक्त कराने का वृत्तान्त ) naagapura



      नागमती लक्ष्मीनारायण १.४८६.९० (विश्वामित्र व मेनका द्वारा एक दूसरे को जराग्रस्त होने का शाप, नागमती नदी में स्नान से दोनों की जरा से मुक्ति), १.४९१ (चमत्कार पुर में नागमती तट पर मुण्डीरस्वामी तीर्थ में कुष्ठ से मुक्ति के संदर्भ में शर ब्राह्मण का वृत्तान्त), १.५०५.५१ (पार्वती के शाप से तिलोत्तमा का कुरूप होना, नागमती नदी में स्नान से रूप प्राप्ति), ३.२१०.३५(पुष्कस द्वारा नागमती तट पर नागनाथ तीर्थ में ब्रह्मायन साधु से प्राप्त उपदेश का वर्णन ) naagamatee/ naagamati


      नागर नारद १.६६.११३(नागरी : सर्वेश की शक्ति नागरी का उल्लेख), स्कन्द ६.११४.७९ (नागर विप्रों द्वारा सर्पों से रक्षा हेतु नगर मन्त्र सीखने का वर्णन), ६.२०० (ब्राह्मण, भर्तृयज्ञ / याज्ञवल्क्य प्रोक्त शुद्धि विधि), ७.१.२३९.१ (नागरादित्य का माहात्म्य : सत्राजित् द्वारा सूर्य की आराधना से स्यमन्तक मणि की प्राप्ति आदि ) naagara


      नागवती भविष्य ३.३.३१.९८ (नागवर्मा - पत्नी, पूर्व जन्म में तक्षक - पुत्री, सुवेला - माता), लक्ष्मीनारायण १.५१४.१६ (राधिका - सखी नागलीला का राधा के शाप से नागवती नदी बनने का वृत्तान्त, नागवती नदी में स्नान से द्विज रूप धारी अन्त्यज से विवाहित द्विज - कन्या के शुद्ध होने की कथा), १.५१५.५१ (ब्रह्मा द्वारा नागवती में स्नान करके स्वपुत्री मोहिनी द्वारा शप्त शरीर को त्यागना, त्यक्त शरीर से नपुंसक वृन्दलों ? का उत्पन्न होना, नागवती नदी का महत्त्व), १.५४२.८ (आरुणि ऋषि द्वारा नाग नदी तट पर तप, व्याध द्वारा ऋषि की हत्या का विचार व ऋषि का शिष्य बनना, दुर्वासा के पाद प्रक्षालनार्थ नाग नदी का आवाहन आदि ) naagavatee/ naagavati


      नागविक्रम लक्ष्मीनारायण ४.५२ (नागविक्रम क्षत्रिय का युद्धों में हारने के पश्चात् नास्तिक होना, कारागार में यातनाएं भोगने के पश्चात् आस्तिक होना, कथा श्रवण आदि से मोक्ष), ४.८० (राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ की व्यवस्था का वर्णन), ४.८१ (नागविक्रम पर विजय प्राप्ति हेतु राजा नन्दिभिल्ल का आगमन, नागविक्रम का सेना सहित युद्धार्थ प्रयाण, शकुन - अपशकुन व स्वप्न आदि), ४.८५ (नन्दिभिल्ल के धर्मवज्र आदि सेनापतियों का नागविक्रम की शरण में आना , नागविक्रम द्वारा नन्दिभिल्ल का वध आदि ) naagavikrama


      नागवीथि मत्स्य ५.१८ (धर्म व यामी – पुत्र - लम्बायां घोषनामानो नागवीथी तु यामिजा।।), वायु ६६.४८/२.५.४८ (अश्विनी, कृत्तिका व याम्या से नागवीथि के निर्माण का उल्लेख - अश्विनी कृत्तिका याम्या नागवीथिरिति स्मृता ।पुष्योऽश्लेषा पुनर्वसू वीथिरैरावती मता। तिस्रस्तु वीथयो ह्येता उत्तरे मार्ग उच्यते ।।), विष्णु १.१५.१०७(जामि व धर्म – पुत्री – लङ्घा(लम्बा)याश्चैव घोषोथ नागवीथी तु जामिता ॥ )


      नागार्जुन कथासरित् ७.७.१०(चिरायु राजा के दानी मन्त्री नागार्जुन द्वारा पुत्र के संजीवन हेतु अमृत का सन्धान, इन्द्र द्वारा वर्जन, राजा के पुत्र जीवहर द्वारा नागार्जुन के शिर का छेदन करने का वृत्तान्त ) naagaarjuna


      नाग्नजिती गरुड ३.१९.७१(नाग्निजित्- पूर्व जन्म में कव्यवाह, नीला-पिता), देवीभागवत ९.४३.३१(स्वाहा का तप से जन्मान्तर में नाग्नजिती -कन्या सत्या बनने का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१४३(सावित्री का अंशावतार), हरिवंश २.१०३.११(कृष्ण - भार्या, नाग्नजिती के पुत्रों के नाम ) ; द्र. नग्नजित् , नीला naagnajitee/ naagnajiti


      नाटक अग्नि ३३८ (नाटक निरूपण के अन्तर्गत नाटक के अङ्गों का कथन : रूपक के २७ भेद), पद्म २.७६ .२४(काम द्वारा ययाति के समक्ष नाटक का प्रदर्शन, जरा का ययाति शरीर में प्रवेश), मत्स्य १०.२५(धेनु रूपी पृथिवी के दोग्धा वररुचि गन्धर्व के नाट्य वेद में पारंगत होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.२०+ (नाटक के लक्षण), हरिवंश २.९३ (प्रद्युम्न आदि द्वारा वज्रपुर में नाटक का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.२२७ (देश्यावन नामक कीश - व नकुल - पालक द्वारा दर्शकों को वानर, जम्बुक, नकुल आदि के हास्यनाटक दिखाकर जीवन यापन करना, वानर, जम्बुक आदि के निहितार्थ), ४.१७.२ (बाहुलक व लीलावती युगल के नाटक में प्रवीण होने तथा कृष्ण भक्त बनने का वृत्तान्त), ४.४४.६२ (नाट्य के गान्धर्व बन्धन होने का उल्लेख), ४.४६.७७(भक्ति पूर्वक संहिता पूजन आदि से नाट्यकार रञ्जनकोविद के मोक्ष का कथन ) naataka


      नाडायन ब्रह्माण्ड १.२.३५.४१(नाडायनीय : लौगाक्षि का एक शिष्य), विष्णुधर्मोत्तर १.२१२ (नाडायन का शैलूष से संवाद, भरत से मैत्री का परामर्श )


      नाडी अग्नि ८४ (इडा, पिङ्गला आदि नाडियों का दीक्षा में कलाओं के अन्तर्गत विभाजन), १०५.२(वास्तु पूजा के संदर्भ में पूर्व में १० तथा उत्तर में १२ नाडियों के नाम), १३६ (त्रिनाडी चक्र में नक्षत्र विन्यास द्वारा फल विचार), २१४ (शरीर में स्थित नाडी चक्र का वर्णन), कूर्म १.४३ (वर्षण, शोषण आदि करने वाली सूर्य नाडियों / रश्मियों के नाम), गरुड १.२३.३३ (शरीरस्थ नाडियों का न्यास), भागवत २.१.३३(विराट् पुरुष की नाडियों के रूप में नदियों का उल्लेख), लिङ्ग १.८६.८० (शरीर की १४ नाडियों के नाम), स्कन्द ५.३.१५९.४५ (शरीर में हिता नाम वाली ७२००० नाडियां), लक्ष्मीनारायण ३.२१५.६२(देह में नाडियों के ब्रह्माण्ड में नदियां होने का कथन), कथासरित् ६.२.१७५ (पिशाच द्वारा विप्र के नाडीव्रण के रोपण व द्विज - पुत्री द्वारा पिशाच के वंचन का वृत्तान्त ) naadee/ nadi

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      नाडीजङ्घ ब्रह्मवैवर्त्त २.५४.७६ (दीर्घजीवी नाडीजङ्घ बक का उल्लेख - नाडीजंघो बकश्चैव सर्वे नष्टाश्च तत्र वै ।), वामन ५७.७१ (यम द्वारा कुमार को नाडीजङ्घ नामक गण भेंट करने का उल्लेख - यमः प्रमाथमुन्माथं कालसेनं महामुखम्। तालपत्रं नाडिजङ्घं षडेवानुचरान् ददौ ), ५८.६१ (नाडीजङ्घ द्वारा मुष्टि से असुर संहार - नाडीजङ्घोऽङ्घ्रिपातैश्च मुष्टिभिर्जानुनाऽसुरान्। कीलभिर्वज्रतुल्याभिर्जघान बलवान् मुने।।), स्कन्द १.२.७ (दीर्घजीवी नाडीजङ्घ बक का इन्द्रद्युम्न से वार्तालाप), ६.२७१ (नाडीजङ्घ बक का इन्द्रद्युम्न से संवाद, पूर्व जन्म का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.२३४.२ (तालजङ्घ कुलोत्पन्न नाडीजङ्घ के पुत्र मुरजङ्घ का वृत्तान्त ) nadeejangha/ nadijangha


      नाथ अग्नि १४४.५ (पांच नाथ गुरुओं के नाम व पूजा), ब्रह्माण्ड १.२.३६.५७(१४ वैकुण्ठ देवताओं में से एक), भविष्य ३.४.१२.४६ (नाथशर्मा : मच्छन्द व रम्भा - पुत्र, पिनाकी शिव का अंश), वायु ६४.१९(१४ वैकुण्ठ देवताओं में से एक ; नाथ की निरुक्ति), लक्ष्मीनारायण ३.३६.९३ (ब्रह्मा के ५०वें वत्सर में कलियुग में धर्म की रक्षा हेतु श्रीहरि के नाथ नारायण नाम से प्राकट्य का कथन ) ; द्र. रोहिणीनाथ, विश्वनाथ, वेदनाथ, वैद्यनाथ, सोमनाथ naatha/ natha


      नाद पद्म ६.६.२८ (बल असुर के नाद से वैदूर्य की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३६.५३(१४ अमिताभ देवों में से एक), ३.४.४३.७६(बिन्दु व नाद के युगल का उल्लेख), ३.४.४४.८७(नादात्मिका : अनाहत? चक्र की १२ शक्ति देवियों में से एक), ३.४.४४.८९(नादिनी : मणिपूर ? चक्र की १० शक्ति देवियों में से एक), मत्स्य ९.२२(चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ५१.३८ (शुचि अग्नि का पुत्र), शिव १.१६.८७(शिव के नाद व शक्ति के बिन्दु होने का कथन), १.१७.७९(बिन्दु रूप के अर्वाक् व नाद रूप के उत्तर होने का उल्लेख), २.३.४८.२७ (शिव विवाह के संदर्भ में नाद के ही शिव के गोत्र व कुल होने का कथन), ५.२६.३९ (सिद्धि के संदर्भ में घोष, कांस्य आदि शब्दों तथा उनके प्रभावों का वर्णन), स्कन्द २.५.६.१ (विष्णु द्वारा ब्रह्मा को स्नानादि के समय घण्टानाद के महत्त्व का वर्णन),४.२.६९.२२ (महानादेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७३.१५६ (नादेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.७९ (नादेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) ; द्र. घण्टानाद, पञ्चनाद, भीमनाद, महानाद, मेघनाद, सन्नादन naada/ nada


      नानक भविष्य ३.४.१७ (मार्गपाल वैश्य - पुत्र, प्रत्यूष वसु का अंश )


      नानोल विष्णुधर्मोत्तर १.१८३ (शक्र पीडक नानोल का विष्णु द्वारा वध )


      नान्यादृक ब्रह्माण्ड २.३.५.९७(मरुतों के आठ गणों में से एक )


      नापित पद्म ६.२०९+ (चण्डक नामक नापित चोर द्वारा मुकुन्द ब्राह्मण की हत्या के कारण मृत्यु पश्चात् सर्प बनना, सर्प की मुक्ति की कथा), वराह १५२.४५ (काम्पिल्य नगरीवासी तिन्दुक नापित का मथुरा क्षेत्र के प्रभाव से जन्मान्तर में ब्राह्मण बनना), हरिवंश १.२९ (कण्डुक नामक नापित द्वारा वाराणसी में निकुम्भ की प्रतिष्ठा), लक्ष्मीनारायण ३.२२८ (हर्षधर्म नामक नापित व निगमिका नामक नापिती द्वारा राजा व रानी की सेवा का वर्णन, नापिती के अनुपस्थित होने पर लक्ष्मी द्वारा नापिती का रूप धारण कर रानी की सेवा आदि करने का वृत्तान्त ) कथासरित् ६.६.१३५ (नापित द्वारा युक्तिपूर्वक स्वभार्या को राजा से मुक्त कराने तथा महारानी को सपत्ना से मुक्त कराने का वृत्तान्त), महाभारत अनुशासन २७.१४ (गर्दभी द्वारा मतङ्ग ब्राह्मण पर आक्षेप : मत्त ब्राह्मणी व नापित से उत्पत्ति ) naapita


      नाभ भागवत ९.९.१६(श्रुत - पुत्र, सिन्धुद्वीप - पिता), मत्स्य ४४.८२(हृदीक के १० पुत्रों में से एक, क्रोष्टा वंश )


      नाभाग अग्नि २७३.५ (वैवस्वत मनु के ८ पुत्रों में से एक), २७३.१७ (नाभाग के २ वैश्य पुत्रों द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्त करने का उल्लेख), २७३.३० (भगीरथ - पुत्र, अम्बरीष - पिता), देवीभागवत ७.२.१७ (वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक, अम्बरीष - पिता), १०.१३ (वैवस्वत मनु के ६ पुत्रों में से एक, भ्रामरी देवी की उपासना से सूर्य सावर्णि मनु बनना), ब्रह्माण्ड २.३.६०.३(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), २.३.६३.५(नभग - पुत्र, अम्बरीष - पिता), २.३.६३.१७०(श्रुत - पुत्र, अम्बरीष - पिता), ३.४.१.७०(द्वितीय सावर्ण मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), भागवत ८.१३.२(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), ९.२.२३(दिष्ट - पुत्र, भलन्दन - पिता, कर्म से वैश्यता प्राप्ति का उल्लेख), ९.४ (नभग - पुत्र, यज्ञ में धन प्राप्ति, रुद्र का प्राकट्य व नाभाग से संवाद), मत्स्य ११.४१ (वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), १२.४५ (भगीरथ - पुत्र, अम्बरीष - पिता, इक्ष्वाकु वंश), मार्कण्डेय ११३.२/११०.२+ (दिष्ट - पुत्र, वैश्य कन्या से विवाह पर क्षत्र धर्म से च्युत होकर वैश्य बनना व कृषि, वाणिज्य आदि कर्म करना , भलन्दन - पिता), ११४/१११ (नाभाग - पत्नी द्वारा स्वयं के क्षत्रिय होने तथा शाप वश वैश्यत्व प्राप्त करने के वृत्तान्त का वर्णन), वायु ६४.२९/२.३.२९(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), ८६.३/२.२४.३ (नाभाग वंश का वर्णन), ८८.५/२.२६.५(नभग - पुत्र, अम्बरीष - पिता), ८८.१७०/२.२६.१६९(श्रुत - पुत्र, अम्बरीष - पिता), विष्णु ३.१.३३ (वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), ३.२.२७(दसवें मनु/ब्रह्म सावर्णि मनु के युग के सप्तर्षियों में से एक), ४.१.७(मनु के १० पुत्रों में से एक), ४.१.१९(दिष्ट - पुत्र, मनु - पौत्र, बलंधन – पिता, वैश्यता को प्राप्त होने का उल्लेख), ४.२.५(नाभाग/नभग?- पुत्र, अम्बरीष - पिता), ४.४.३६(श्रुत - पुत्र, अम्बरीष - पिता), शिव ३.२९.२ (नाभग - पिता नभग द्वारा यज्ञ शेष ग्रहण करने पर कृष्ण दर्शन शिव द्वारा रोकने का वृत्तान्त), ५.३६.४८ (दिष्ट - पुत्र, ब्राह्मणत्व प्राप्ति?), स्कन्द ७.१.३३८ (नाभाग द्वारा गौ रूपी मूल्य देकर आपस्तम्ब ऋषि को जाल से मुक्त कराने की कथा), लक्ष्मीनारायण १.५४९.८० (नाभाग द्वारा गौ के मूल्य से जालबद्ध आपस्तम्ब ऋषि को क्रय करने की कथा ) naabhaaga/ nabhaga


      नाभि अग्नि १०७ (आग्नीध्र - पुत्र, मेरुदेवी - पति, ऋषभ - पिता, नाभि के वंश का वर्णन), २४९.२४ (धनुष का नाभि में तथा शर का नितम्ब में न्यास?), कूर्म १.४०.३७ (मेरु देवी - पति, हिमवर्ष - अधिपति, वंश का वर्णन), गरुड २.३०.५४/२.४०.५४(मृतक की नाभि में कमल देने का उल्लेख), २.३०.५५/२.४०.५५(मृतक की नाभि में घृत देने का उल्लेख), नारद १.६६.८९( पद्मनाभ की शक्ति श्रद्धा का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५१ (नाभि सौन्दर्य हेतु रत्नसार निर्मित सहस्र नाभियां देने का निर्देश - सद्रत्नसाररचितं नाभीनां च सहस्रकम् । प्रदेयं पद्मनाभाय नाभिसौन्दर्य्यहेतवे ।।), ब्रह्माण्ड १.२.३५.४३(सामगाचार्य कुशुमि के ३ शिष्यों में से एक, अन्य २ वित्त व तेजस्वी), भागवत २.७.१० (नाभि व सुदेवी से ऋषभ के जन्म का कथन), ३.१२.२४(ब्रह्मा की नाभि से पुलह की उत्पत्ति का उल्लेख), ५.३ (आग्नीध्र - पुत्र, मेरुदेवी - पति, पुत्रेष्टि द्वारा ऋषभदेव पुत्र की प्राप्ति), ५.१६.७(मेरु पर्वत के इलावृत संज्ञक भूमिपद्म के नाभि रूप होने का कथन), ५.२०.१४(नाभिगुप्त : हिरण्यरेता के ७ पुत्रों में से एक, कुश द्वीप के ७ भागों में से एक के अधिपति), लिङ्ग १.२०.३० (ब्रह्मा द्वारा विष्णु उदर से निर्गम हेतु नाभि द्वार की खोज), वराह ७४.८(शाकद्वीपाधिपति मेधातिथि के ७ पुत्रों में से एक, मेरुदेवी - पति, ऋषभ - पिता, नाभि वंश का वर्णन), वायु ३३.५० (नाभि वंश का वर्णन), ५१.६० (सूर्य रथ में अह रूपी नाभि का उल्लेख), ६९.१४३ (वसुरुचि गन्धर्व रूप धारी यक्ष व क्रतुस्थली - पुत्र), १०८.६६/२.४६.६९(गया नाभि के सुषुम्ना होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.४४.१७ (नाभियों में गया के पुण्या होने का उल्लेख), ५.३.१६९.२९ (स्त्री के लक्षणों में निम्न नाभि की श्रेष्ठता का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.१.२९.८ (संसार चक्र की नाभि चित्त के निरोध का निर्देश), लक्ष्मीनारायण १.२००.७ (ब्रह्मा की नाभि से विश्वकर्मा की उत्पत्ति का उल्लेख), १.३८९ (नाभि - पत्नी मेरुदेवी द्वारा पति की नारायण भाव से पूजा आदि से ऋषभ पुत्र की प्राप्ति का वर्णन), २.२४५.५० (जीवरथ के वर्णन में ज्ञान के नाभि होने का उल्लेख), ३.२१.३९ (पिण्ड ग्रहण करते पितरों के नाभ्यूर्ध्व देह वाले होने का कथन ) ; द्र. ऊर्णनाभि, कालनाभि, कुशनाभि, नलनाभि, पद्मनाभि, परशुनाभि, महानाभि, रजतनाभि, वज्रनाभि, वत्सनाभि, सुनाभि naabhi/ nabhi

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      तीन नाभियां हैं- स्थूल शरीर की नाभि सिर में है । सूक्ष्म शरीर की नाभि मन है । कारण शरीर की नाभि हिरण्यय कोश है ।


      नाम अग्नि ३०५ (विष्णु के नाम), नारद १.५६.३२६(नामकरण संस्कार काल का विचार - सूतकांते नामकर्म विधेयं तत्कुलोचितम् । नामपूर्वं प्रशस्तं स्यान्मंगलैः सुसमीक्षितैः ।।), पद्म ४.२५.३ (भगवन्नाम माहात्म्य), ५.८०(कलियुग में नाम का माहात्म्य), ५.११२ (शिव नाम माहात्म्य नामक अध्याय?), ६.७१ (नाम उच्चारण का माहात्म्य), ६.७१.११९(विष्णु सहस्रनाम), ६.२५४ (राम के १०८ नाम), ७.१५ (राम नाम का माहात्म्य : जीवन्ती वेश्या का उद्धार), ७.१७ (दान्त - प्रोक्त विष्णु के १०८ नाम), ब्रह्म १.३१ (सूर्य के १०८ नाम), ब्रह्माण्ड ३.४.१७.१७ (ललिता के नाम), ३.४.१८.१४(ललिता के २५ नाम), ३.४.१९.१९ (नामाकर्षिणी : चन्द्रमा की १६ गुप्त कलाओं में से एक), ३.४.३४ (१६ आवरणों में स्थित रुद्रों के नाम), ३.४.१९.३२(शक्ति के नाम), ३.४.३६.७० (त्रैलोक्यमोहन चक्र के संदर्भ में चन्द्रमा की १६ गुप्त कलाओं में से एक नामाकर्षिणी का उल्लेख), भविष्य १.३.६(नामकरण संस्कार की विधि का कथन - नामधेयं दशम्यां तु केचिदिच्छन्ति पार्थिव। द्वादश्यामपरे राजन्मासि पूर्णे तथा परे । अष्टादशेऽहनि तथाऽन्ये वदन्ति मनीषिणः ।), १.७१ (सूर्य के नाम),१.१६४.८६ (मास अनुसार सूर्य के नाम), १.२०९ (मास अनुसार सूर्य के नाम), भागवत २.२.२(मायामय वासना से आवृत्त होने के कारण शब्द ब्रह्म का नाम द्वारा ध्यान करने पर भी अर्थ न जानने का कथन), मत्स्य १३.२६ (पार्वती के नाम), वराह १७४(त्रिवेणी : महानाम ब्राह्मण व पांच प्रेतों के संवाद की कथा), विष्णु २.६.३९(पाप करने से उत्पन्न अनुताप के प्रायश्चित्त के लिए कृष्ण के स्मरण आदि का कथन), ३.१०.८(बालक के नामकरण हेतु नियम), शिव १.२३ (शिव नाम व माहात्म्य), ६.९ (शिव अष्टक, अर्थ सहित), स्कन्द १.३.१.९ (शोणाद्रीश्वर के नाम), ५.१.२३.२७9 (महाकाल की यात्रा में विधीश लिङ्ग के समक्ष नाम, स्थान व गोत्र कीर्तन का निर्देश), लक्ष्मीनारायण १.५४४.४३ (सौराष्ट्र में सूर्य के १०८ नाम), २.६.३ (श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार में कृष्ण के विभिन्न नामकरणों की व्याख्या, व्याघ्र रूप धारी साण असुर का उपद्रव , कृष्ण द्वारा सुदर्शन से साण का वध), ३.१२१.१(ललिता नामक महालक्ष्मी के १०८ नामों का उल्लेख ) ; द्र. अतिनामा, भद्रनामा, महानाम, हिरण्यनामा naama/ nama


      नामदेव भविष्य ३.४.१६ (रामानन्द - शिष्य, वरुण का अंश )


      नार ब्रह्माण्ड १.२.६.५७ (नार शब्द की निरुक्ति ) ; द्र. रन्तिनार


      नारद गणेश १.२९.१० (नारद द्वारा रुक्माङ्गद को कुष्ठ से मुक्ति के उपाय का कथन), १.५४.१३ (पति शोक से पीडित इन्दुमती के पास नारद का आगमन - क्वापि तिष्ठति ते भर्ता न तं शोचितुमर्हसि ।), गरुड ३.७.३२(नारद द्वारा हरि स्तुति - यज्जिह्वाग्रे हरिनामैव नास्ति स ब्राह्मणो नैव स एव गोखरः ।), गर्ग १.१.१६+ (नारद द्वारा बहुलाश्व जनक को कृष्ण अवतार सम्बन्धी उपदेश - अंशांशोंऽशस्तथावेशः कलापूर्णः प्रकथ्यते ।….अंशांशस्तु मरीच्यादिरंशा ब्रह्मादयस्तथा । कलाः कपिलकूर्माद्या आवेशा भार्गवादयः ॥), ५.२१ (नारद -राधा संवाद में दोनों की देह का द्रवीभूत होना, नारद के दासी - पुत्र व ब्रह्मा - पुत्र बनने का प्रसंग, वेद नगर में रागों का अङ्ग भङ्ग देखकर सरस्वती से संगीत शिक्षा प्राप्ति हेतु तप), देवीभागवत ६.२६+ (सञ्जय - पुत्री दमयन्ती पर आसक्ति से पर्वत मुनि के शाप से नारद का वानर मुख होना, पर्वत मुनि को प्रतिशाप, पुन: सुन्दर मुख की प्राप्ति), ६.२८ (माया दर्शन हेतु नारद का स्त्री बनना, तालध्वज की पत्नी रूप में परिवार मरण का दर्शन, पुन: पुरुष बनना, विष्णु द्वारा महामाया के महत्त्व का वर्णन), ७.१ (ब्रह्मा - पुत्र, दक्ष शाप से वीरिणी - पुत्र बनना), ८.१.७+ + (नारद द्वारा नारायण से जगत्तत्त्व, माया नाश, प्रकाश के उदय आदि के विषय में पृच्छा), ८.११ (नारद द्वारा भारतवर्ष में आदि पुरुष की आराधना, नारद द्वारा नारायण हेतु पठित स्तोत्र), ९.१++ (नारद द्वारा नारायण से दुर्गा, राधा, लक्ष्मी आदि पञ्चविध प्रकृति के आविर्भाव व लक्षणों आदि के बारे में पृच्छा), १०.१++ (नारद द्वारा नारायण से मन्वन्तरों में देवी के स्वरूपों के विषय में पृच्छा), ११.१++ (नारद द्वारा भक्तों द्वारा देवी को प्रसन्न करने तथा देवी द्वारा भक्तों को प्रसन्न करने के उपाय के विषय में पृच्छा, नारायण द्वारा सदाचार का वर्णन), १२.१++ (नारद द्वारा कठिन सदाचार मार्ग के अतिरिक्त गायत्री न्यास द्वारा देवी प्रसाद प्राप्त करने के विषय में पृच्छा), नारद २.८० (नारद का वृन्दावन में वृन्दा से संवाद, कुब्जा व वृन्दावन माहात्म्य श्रवण), पद्म १.४.११४ (नारद द्वारा पुरुष सूक्त के पौराणिक रूप से ब्रह्मा की स्तुति, ब्रह्मा द्वारा नारद को वरदान), १.१६.९८ (ब्रह्मा के यज्ञ में नारद के ब्रह्मा ऋत्विज होने का उल्लेख - तत्रोद्गाता मरीचिस्तु ब्रह्मा वै नारदः कृतः), १.३४.१३ (ब्रह्मा के यज्ञ में ब्रह्मा ऋत्विज होने का उल्लेख- ब्रह्माणं नारदं चक्रे ब्राह्मणाच्छंसि गौतमम्), ४.२५.१४ (सनत्कुमार द्वारा नारद को भगवन्नाम से नष्ट होने वाले तथा न होने वाले पापों का वर्णन), ५.७५ (नारद द्वारा स्त्री बनकर वृन्दावन रहस्य का ज्ञान प्राप्त करना), ६.३+ (नारद द्वारा युधिष्ठिर को जालन्धर उपाख्यान का वर्णन), ६.८०.१५ (नारद द्वारा पुण्डरीक को आगम का उपदेश), ६.८८.१४ (जन्म - जन्म में कल्पवृक्ष की प्राप्ति हेतु नारद द्वारा सत्यभामा को तुलापुरुष दान का परामर्श), ६.९०.५+ (नारद द्वारा पृथु को मासों में कार्तिक मास की श्रेष्ठता के सम्बन्ध में शङ्ख असुर द्वारा वेदों के हरण की कथा का वर्णन), ६.९२+ (नारद द्वारा पृथु को कार्तिक स्नान विधि, नियम व उद्यापन आदि का वर्णन), ६.१९३+(भक्ति द्वारा नारद को स्वव्यथा का वर्णन, नारद द्वारा ज्ञान व वैराग्य के उद्धार का उद्योग), ६.१९९.४ (नारद द्वारा राजा शिबि को खाण्डव वन में यूपों की उपस्थिति का कारण बताना), ब्रह्म १.२८.४६ (नारद का मित्र नामक आदित्य से ब्रह्म ध्यान विषयक संवाद), १.१२१ (नारद द्वारा माया दर्शन की इच्छा, सुशीला कन्या बनना, कुल नाश देखना), ब्रह्मवैवर्त्त १.८ (नारद द्वारा पिता ब्रह्मा को शाप), १.१२ (गन्धर्वराज की भार्या से नारद का जन्म), १.१३ (नारद का उपबर्हण नाम व चरित्र वर्णन), १.२० (नारद की ब्रह्मा के कण्ठ से उत्पत्ति), १.२०.१३ (द्रुमिल गोप - पत्नी कलावती द्वारा नारद के वीर्य से पुत्र को जन्म देने का वृत्तान्त), १.२१.७ (कलावती - पुत्र नारद के नाम की निरुक्ति - ददाति नारं ज्ञानं च बालकेभ्यश्च बालकः ।। जातिस्मरो महाज्ञानी तेनायं नारदाभिधः ।….), १.२१ (वृषली - पुत्र), १.२२.२ (ब्रह्मा के कण्ठ से नारद की उत्पत्ति का उल्लेख), १.२३ (ब्रह्मा द्वारा नारद को सृष्टि की आज्ञा, नारद द्वारा भार्या की निन्दा), २.५२.८ (नारद द्वारा सुयज्ञ नृप से कृतघ्नता दोष का निरूपण - हन्ति यः परकीर्त्तिं च स्वकीर्त्तिं वा नराधमः।। स कृतघ्न इति ख्यातस्तत्फलं च निशामय ।।...), ३.०+ ( नारद का नारायण से संवाद), ४.१२.८ (नारद का सृंजय - कन्या पर मोहित होना, सनत्कुमार द्वारा प्रबोधन), ब्रह्माण्ड १.२.१९.९(प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, नारद व पर्वत की उत्पत्ति का स्थान), १.२.१९.१५(नारद पर्वत के सुखोदय वर्ष का उल्लेख), २.३.७.४(१६ मौनेय देव गन्धर्वों में अन्तिम गन्धर्व - कलिः पञ्चदशस्तेषां नारदश्चैव षोडशः। इत्येते देवगन्धर्वा मौनेयाः परिकीर्त्तिताः ॥), २.३.५४.५ (नारद द्वारा सगर को उसके षष्टि सहस्र पुत्रों के नष्ट होने का समाचार देना), ३.४.४४.९१(नारदा : मूलाधार? की ४ शक्तियों में से एक - नारदा श्रीस्तथा षण्ढाशश्वत्यपि च शक्तयः ।), भविष्य १.७३ (नारद के द्वारका आगमन पर साम्ब द्वारा अविनय प्रदर्शित करना, नारद द्वारा कृष्ण को उनकी स्त्रियों की साम्ब में कामासक्ति का प्रदर्शन कराना), ३.४.९ (नारद की भानुमती से विवाह की इच्छा, रोग प्राप्ति), ४.३ (माया दर्शन के लिए नारद द्वारा स्त्री रूप धारण, विष्णु द्वारा बोध), ४.१३ (नारद द्वारा संजय नृप की पुत्री से विवाह व संजय को सुवर्णष्ठीवी पुत्र प्राप्त करने का वरदान, पर्वत के शाप से सुवर्णष्ठीवी पुत्र की मृत्यु पर नारद द्वारा यमलोक से सुवर्णष्ठीवी को वापस लाना, नारद व पर्वत का परस्पर शाप दान), भागवत ०.१ (नारद का कलियुग ग्रस्त भक्ति से संवाद), १.५ (दासी - पुत्र, ईश्वर स्वरूप के दर्शन), ४.८ (नारद द्वारा ध्रुव को ध्यान विधि की शिक्षा), ४.२५ (नारद द्वारा प्राचीनबर्हि से पुरञ्जनोपाख्यान का कथन), ४.३१.३ (नारद द्वारा प्रचेताओं को भगवद्भक्ति विषयक उपदेश), ६.५ (नारद द्वारा हर्यश्वों व शबलाश्वों को वैराग्य का उपदेश, दक्ष द्वारा शाप), ६.८.१७ (नारद से सेवापराधों से रक्षा की प्रार्थना - देवर्षिवर्यः पुरुषार्चनान्तरात्कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ), ६.१५.२७ (पुत्र की मृत्यु के शोक से पीडित राजा चित्रकेतु को नारद द्वारा मन्त्रोपनिषद प्रदान करने का कथन), ६.१६.१ (नारद द्वारा चित्रकेतु के मृत पुत्र की जीवात्मा का आवाहन), ६.१६.१८ (नारद द्वारा चित्रकेतु को हरि विद्या का उपदेश), ७.१ (नारद द्वारा युधिष्ठिर को उपदेश), ७.७.१६(नारद द्वारा गर्भस्थ प्रह्लाद को दिए गए उपदेश का वर्णन), ७.१५.६९ (पूर्व जन्म में उपबर्हण गन्धर्व, शाप से शूद्र बनना), १०.१० (नारद द्वारा कुबेर - पुत्रों को यमलार्जुन होने का शाप), १०.६९ (नारद द्वारा कृष्ण के विभिन्न रूप एक साथ देखना), ११.२ (नारद द्वारा वसुदेव को जनक व नौ योगीश्वरों के संवाद का कथन), १२.११.३४(वैशाख मास में नारद गन्धर्व की सूर्य रथ के साथ स्थिति - नारदः कच्छनीरश्च नयन्त्येते स्म माधवम् ), मत्स्य १२२.११ (शाक द्वीप में नारद दुर्ग शैल का उल्लेख), १२२.२२(नारद वर्ष के अपर नाम कौमार व सुखोदय का उल्लेख), १५४ (नारद द्वारा हिमालय से पार्वती के लक्षण व चिह्नों का कथन), २५२.२(वास्तु शास्त्र के उपदेशक १८ आचार्यों में से एक), लिङ्ग २.३ (नारद द्वारा गानबन्धु उलूक से संगीतशिक्षा की प्राप्ति पर भी तुम्बुरु के समकक्ष न होना, द्वापर में जाम्बवती, सत्या, रुक्मिणी व कृष्ण से गान विद्या की शिक्षा प्राप्त करना), २.५ (नारद द्वारा अम्बरीष - कन्या श्रीमती को प्राप्त करने की चेष्टा, वानर मुख की प्राप्ति), वराह २.४४ (ब्रह्मा द्वारा सृष्ट मरीचि आदि १० ऋषियों में से एक ; मरीचि आदि प्रवृत्ति मार्गी ऋषियों के विपरीत नारद के निवृत्ति मार्गी होने का उल्लेख), २.५९ (नारद द्वारा वेदमाता सावित्री के दर्शन), ३.१ (पूर्व जन्म में सारस्वत नाम, ब्रह्मपार स्तोत्र का जप), ३.२३ (नारद के नाम की निरुक्ति - नारं पानीयमित्युक्तं तं पितॄणां सदा भवान् । ददाति तेन ते नाम नारदेति भविष्यति ।। ), ६६ (नारद द्वारा विष्णु के आश्चर्यमय स्वरूप का वर्णन), १७७.२(नारद द्वारा कृष्ण को उनकी १६००० नारियों की साम्ब पर आसक्ति का समाचार देना), १७७.३२ (नारद द्वारा कुष्ठ नाश के उपाय के रूप में साम्ब को मथुरा में आदित्याराधना का निर्देश), १८७.५८ (नारद द्वारा पुत्र शोक से पीडित निमि को पितरों की शरण में जाने का निर्देश), २०७.४ (नारद - यम संवाद के आरम्भ में यम द्वारा अमरत्व प्राप्ति व नरक से मुक्त करने वाले व्रत, नियम, दान, धर्म, कर्मों का वर्णन), २०८.४+ (नारद द्वारा यम से पतिव्रता माहात्म्य का श्रवण), २१०.२४ (यम द्वारा नारद को कर्मों या पापों के क्षय के उपाय का वर्णन), वामन १+(नारद द्वारा पुलस्त्य से वामन सम्बन्धी प्रश्न), वायु ४९.८(प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, नारद व पर्वत के जन्म का स्थान), ६५.१४१ (नारद द्वारा हर्यश्वों को प्रजा सृजन से निरत करने पर नारद की दक्ष - सुता व परमेष्ठी से उत्पत्ति का वृत्तान्त - ततो दक्षः सुतां प्रादात् प्रियां वै परमेष्ठिने । तस्मात् स नारदो जज्ञे भूयः शान्तो भयादृषिः ।।), ६९.६४ (प्रजापति के स्खलित वीर्य से नारद की उत्पत्ति), ७०.७९/२.९.७९ (कश्यप से नारद, पर्वत व अरुन्धती के जन्म का उल्लेख - कश्यपान्नारदश्चैव पर्वतोऽरुन्धती तथा।), ८६.४८/२.२४.४८(नारदप्रिय : गान्धार ग्रामों में से एक), १०५.१/२.४३.१+ (नारद - सनत्कुमार संवाद के रूप में गया माहात्म्य का आरम्भ), विष्णुधर्मोत्तर १.११० (नारद का दक्ष शाप से कश्यप - पुत्र बनना), ३.३४३.४ (नारद व मातलि द्वारा इन्द्र से सुमुख नाग के लिए तार्क्ष्य से अभय प्राप्ति का वर प्राप्त करने का कथन), ३.३४९.५५ (नारद का श्वेत द्वीप गमन), ३.३५३ (नारद द्वारा विश्वरूप के दर्शन), शिव २.३.८ (नारद द्वारा हिमालय व मेना - पुत्री काली / पार्वती के हस्त से भविष्य का कथन), २.४.६.२(नारद विप्र के अजमेध में अज का लोप, नारद द्वारा स्कन्द की सहायता से अज की पुन: प्राप्ति), ७.२.४०.१६ (ब्रह्मा की सभा में नारद व तुम्बुरु की गान स्पर्द्धा, नारद द्वारा तुम्बुरु की समता प्राप्त करने पर स्पर्द्धा की समाप्ति), स्कन्द १.१.२१(नारद का रति से संवाद, शम्बर को रति हरण का परामर्श), १.२.२ (नारद का अर्जुन से संवाद), १.२.४(नारद द्वारा धर्मवर्म को दान भेद का कथन), १.२.१३.१४ (इन्द्रद्युम्न आदि चिरजीवियों द्वारा नारद से भारत में सफला भूमि के विषय में प्रश्न, नारद द्वारा चिरजीवियों को संवर्त्त के पास भेजना, नारद का अग्नि में प्रवेश कर सुरक्षित लौटना), १.२.१३.१४७ (शतरुद्रिय प्रसंग में नारद द्वारा अन्तरिक्ष लिङ्ग की पूजा), १.२.४२ (नारद द्वारा वृद्ध वासुदेव तीर्थ की स्थापना), १.२.५४ (नारद मूर्ति स्थापना, कृष्ण द्वारा प्रशंसा, स्तुति, पूजा, माहात्म्य), २.१.४.५ (नारद द्वारा आकाशराज - सुता पद्मिनी के लक्ष्मी सदृश सामुद्रिक लक्षणों का कथन ), २.२.१० (नारद द्वारा इन्द्रद्युम्न को विष्णु भक्ति का वर्णन), २.२.१६ (नारद द्वारा नृसिंह मूर्ति की स्थापना), २.२.२१ (नारद द्वारा जगन्नाथ मूर्ति प्रतिष्ठार्थ ब्रह्मा को निमन्त्रण, इन्द्रद्युम्न कथा प्रसंग), २.३.३.२० (अग्नि तीर्थ में ५ शिलाओं में से नारद शिला का माहात्म्य : नारद द्वारा तप करके विष्णु का साक्षात्कार व वर प्राप्ति आदि ), ३.२.२३ (नारद का ब्रह्मा के सत्र में नोदक होने का उल्लेख), ४.१.४८.१० (कृष्ण मिलन को उत्सुक नारद को साम्ब द्वारा अभिवादन न करने पर नारद द्वारा कृष्ण से साम्ब की कुचेष्टाओं का कथन, कृष्ण द्वारा साम्ब को शाप आदि), ४.२.८४.१४ (नारद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : ब्रह्म विद्या की प्राप्ति - ततो नारदतीर्थं च ब्रह्मविद्यैककारणम् ।। तत्र स्नानेन मुक्तः स्याद्दृष्ट्वा नारदकेशवम् ।। ), ५.१.४४.५ (नारद द्वारा समुद्र मन्थन में रत देवों व दानवों के बीच कलह का निवारण करना), ५.१.४४.२४ (नारद द्वारा समुद्र मन्थन से उत्पन्न रत्नों का विभिन्न देवों में विभाजन करना - मणिं पद्मां धनुः शंखं विष्णवे नारदो ददौ ।।...), ५.१.५९.२०(सप्तर्षियों द्वारा त्यक्त ऋषि - पत्नियों को दोष निवारण के लिए नारद द्वारा महाकालवन में गया तीर्थ में जाने का निर्देश), ५.१.६३.३३ (नारद का किन्नरोत्तम विशेषण- ववन्दिरे सर्वशस्तु बलिना किंनरोत्तमम्।।), ५.१.६३.२४१ (बलि के यज्ञ में नारद के उद्गाता होने का उल्लेख - उद्गाता नारदश्चैव वसिष्ठश्च सभासदः ।।), ५.२.५७.९ (नारद द्वारा ईश्वर के गण घण्ट को पाप विनाशार्थ महाकालवन में जाने का निर्देश ), ५.३.२६ (नारद द्वारा बाणासुर की स्त्रियों के माध्यम से त्रिपुर में क्षोभ उत्पन्न करना), ५.३.६७.३४(देव - दानव कलह देखकर नारद के हर्षित होने का उल्लेख), ५.३.७८.३ (नारद द्वारा रेवा के उत्तर तट पर तप करके शिव से वरों की प्राप्ति ;नारदेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ६.१७४.४२ (नारद द्वारा बालक पिप्पलाद को उसके जन्म के रहस्य का वर्णन तथा बालक पिप्पलाद को याज्ञवल्क्य को सौंपना ), ६.१८०.३४ (ब्रह्मा के यज्ञ में ब्रह्मा नामक ऋत्विज - ब्रह्मा च नारदो गर्गो ब्राह्मणाच्छंसिरेव च ॥), ७.१.२३.९४ (चन्द्रमा के यज्ञ में ब्रह्मा - तत्रोद्गाता मरीचिस्तु ब्रह्मत्वे नारदः कृतः ॥), ७.१.७५.८ (नारद द्वारा स्थापित कलकलेश्वर लिङ्ग के नाम का कारण : नारद द्वारा कलह हेतु अविद्वान ब्राह्मणों में रत्न प्रक्षेप करना ), ७.१.१५२ (सरस्वती से प्राप्त वीणा के वादन में असफलता पर नारद द्वारा भैरवेश्वर लिङ्ग की स्थापना - तंत्रीभ्यो वाद्यमानाभ्यो ब्राह्मणाः पतिता भुवि ॥ सप्त स्वरास्ते विख्याता मूर्च्छिताः षड्जकादयः ॥), ७.१.३०५ (नारदादित्य का माहात्म्य, नारद द्वारा साम्ब के शाप से जरा की प्राप्ति, जरा निवृत्ति हेतु सूर्य की आराधना), ७.१.३४७ (नारदेश्वरी देवी का माहात्म्य), ७.४.१७.३५ (कलियुग में कृष्ण पूजा के संदर्भ में उत्तर दिशा में पूजनीय गण में से एक - नारदोनाम गन्धर्वो रंभा चैव वराप्सराः ॥ एते पूज्याः प्रयत्नेन प्लक्षोनाम महाद्रुमः ॥), ७.४.२९.१५ (गौतमी नदी द्वारा पाप प्रक्षालनार्थ नारद से उपाय की पृच्छा, शिव के निर्देश पर द्वारका में गोमती में स्नान हेतु जाना, नारद द्वारा द्वारका यात्रा विधि का वर्णन), हरिवंश १.३३.१९(नारद के वरीदास - पुत्र होने का उल्लेख), २.१ (नारद द्वारा कंस को भावी भय की सूचना), २.२२ (नारद द्वारा कंस को विष्णु की महिमा का वर्णन), २.६७.५४ (नारद द्वारा कृष्ण को पारिजात पुष्प की महिमा का वर्णन - सौभाग्यमावहत्येव पूज्यमानोऽपि नित्यशः ।। पुण्यं कर्तुं तदा सृष्टः पारिजातो महाद्रुमः ।), २.६८ (नारद का पारिजात वृक्ष मांगने के लिए कृष्ण का दूत बनकर इन्द्र के पास जाना), २.७१ (नारद द्वारा इन्द्र से कृष्ण की महिमा का कथन), २.७६ (नारद द्वारा कृष्ण से पुण्यक व्रत के प्रतिग्रह की प्राप्ति), २.८६ (नारद द्वारा अन्धक से मन्दार पुष्पों व वन की महिमा का वर्णन), २.१०१+ (नारद द्वारा कृष्ण के प्रभाव का वर्णन), २.११० (नारद द्वारा धन्यता का वर्णन, कृष्ण की परम धन्यता), २.११९ (नारद द्वारा चित्रलेखा को तामसी विद्या का दान), ३.७२ (नारद द्वारा बलि को मोक्ष विंशक स्तोत्र का दान), वा.रामायण १.१ (नारद द्वारा वाल्मीकि को संक्षिप्त राम कथा का वाचन), लक्ष्मीनारायण १.२००.१३ (ब्रह्मा के कण्ठ से नारद की उत्पत्ति, प्रजोत्पादन को अस्वीकार करने पर ब्रह्मा द्वारा नारद को उपबर्हण गन्धर्व बनने का शाप, ५० कन्याओं के पति उपबर्हण गन्धर्व की रम्भा अप्सरा पर आसक्ति, ब्रह्मा द्वारा शूद्र होने का शाप, नारद द्वारा शरीर का त्याग- वक्षसश्चैव वोडुश्च कण्ठदेशाच्च नारदः ।), १.२०१ (उपबर्हण गन्धर्व रूपी नारद की मृत्यु पर प्रधान पत्नी मालावती द्वारा सब देवों का आह्वान), १.२०२ (पत्नी मालावती के आग्रह पर देवों द्वारा उपबर्हण रूपी नारद के शव को जीवित करना, कालान्तर में नारद व मालावती की मृत्यु, जन्मान्तर में मालावती का शूद्र - कन्या रूप में उत्पन्न होकर दक्ष शाप से कश्यप - पुत्र बने नारद के वीर्य से नारद नामक पुत्र उत्पन्न करना, नारद शब्द की निरुक्तियां, शूद्र नारद का मृत्यु पश्चात् पुन: ब्रह्मा के कण्ठ से उत्पन्न होना), १.२०२.११२ ( नारद नाम की निरुक्तियां - तस्य जन्मक्षणे नारं जलं भूमौ ववर्ष ह ।। जन्मकाले ददौ नारं तेनायं नारदः स्मृतः ।), १.२०३.५४ (नारद की पूर्वपत्नी मालावती के सृंजय - पुत्री के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख, ब्रह्मा द्वारा नारद को विवाह का निर्देश), १.२०३.६९ (नारद के एक जन्म में मरीचि - पुत्र होने का उल्लेख, नारद द्वारा वैष्णव गुरु मन्त्र ग्रहण हेतु कैलास पर्वत पर शिव के पास जाना), १.२०५ (नारद का बदरिकाश्रम गमन, नर - नारायण की स्तुति, नर - नारायण द्वारा विवाह का निर्देश), १.२०६.२० (नारद द्वारा प्रथम जन्म में महाविष्णु की आराधना करके बदरी तीर्थ में नारद शिला की स्थापना का वर्णन), १.२०६.६९ (नारद द्वारा मार्कण्डेय की अल्पजीविता के नाश हेतु सन्तों की सेवा का निर्देश), १.२१०(नारद द्वारा सृंजय - पुत्री मालावती से विवाह का वृत्तान्त, ज्येष्ठ भ्राता सनत्कुमार के उपदेश से कृतमाला तट पर तप हेतु गमन), १.३५५ (पुत्र की मृत्यु पर शोकग्रस्त राजा निमि को नारद द्वारा श्राद्ध क्रिया क्रम का उपदेश), १.३६४.२३ (नारद द्वारा प्रियव्रत को द्रष्ट आश्चर्य का वर्णन ; नारद द्वारा सावित्री के दर्शन पर वेदों की विस्मृति, सावित्री के शरीर में तीन पुरुषों के रूप में तीन वेदों का दर्शन ), १.३७९.४९ (पञ्चचूडा अप्सरा द्वारा नारद को स्त्री स्वभाव का वर्णन), १.३९८.८८ (नारद द्वारा धरणी व विर्य~राज - कन्या पद्मा के सामुद्रिक लक्षणों का वर्णन, विष्णु पत्नी होने की भविष्यवाणी करना), १.४०८ (नारद के विश्वावसु गन्धर्व - पुत्र उपबर्हण रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त, उपबर्हण की मृत्यु पर पत्नी मालावती द्वारा उपबर्हण को पुन: जीवित कराने का वृत्तान्त), १.४११.५८ (नारद व पर्वत की अम्बरीष - कन्या श्रीमती में आसक्ति, नारद व पर्वत द्वारा विष्णु से एक दूसरे के लिए वानरमुखता की याचना, स्वयंवर में श्रीमती द्वारा विष्णु का वरण करने पर नारद व पर्वत द्वारा विष्णु व अम्बरीष को शाप देने का वृत्तान्त), १.४४१.९३ (वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन हेतु नारद के पारिजात वृक्ष बनने का उल्लेख - नारदोऽभूत्पारिजातो गौरी वृन्दाऽभवत्तदा ।। ), १.५०९.२५(ब्रह्मा के सोमयाग में ब्रह्मा ऋत्विज - ब्रह्मा भवतु नारदो गर्गोऽस्तु सत्रवीक्षकः ।। ), १.५२२.९ (नारद द्वारा सावित्री के शरीर में तीन वेद रूपी तीन पुरुषों के दर्शन का वृत्तान्त, सरोवर में स्नान से नारद द्वारा अपने पूर्व जन्म का स्मरण करना : पूर्व जन्म में शारद ब्राह्मण द्वारा तप का वृत्तान्त), १.५२२.६४ (नारद शब्द की निरुक्ति : आत्म स्थित विष्णु को जल देने वाले - नारं पानीयमित्युक्तं नारं ज्ञानं तथोच्यते ।। नारं त्वात्मस्थितं विष्णुं यो ददाति स नारदः ।), १.५५०.२६ (नारद द्वारा विभिन्न तीर्थों में विष्णु के दर्शन करने पर वास्तविक विष्णु के स्वरूप के बारे में भ्रम, विष्णु द्वारा नारद को स्वप्राप्ति के उपायों का कथन), २.१५७.२० (नारद के दक्षिण कुक्षि में न्यास का उल्लेख), ३.३६.७० (५०वें नारद नामक वत्सर में कलियुग में धर्म स्थापनार्थ श्री नाथ नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.५८.८७(गानविद्या में तुम्बुरु से समता प्राप्ति के लिए नारद द्वारा तप), ३.५९ (नारद द्वारा गानविद्या में तुम्बुरु की समानता के लिए गानबन्धु उलूक आदि से शिक्षा प्राप्त करना, उलूक की चिरजीविता का वरदान आदि), ३.१७०.१८ (श्रीहरि के नारद नामक २९वें धाम का उल्लेख), कथासरित् ४.१.१७(नारद द्वारा वत्सराज उदयन को मृगया के वर्जन का परामर्श ; वत्सराज के पुत्र रूप में कामदेव के अवतार होने का कथन), ४.२.१३९(नारद द्वारा चित्राङ्गद विद्याधर को सिंह होने का शाप - अपतन्मम दैवाच्च पुष्पमाला तदम्भसि ।। ततोऽकस्मात्समुत्थाय नारदोऽन्तर्जलस्थितः ।), ८.२.१२ (इन्द्र का दूत बनकर नारद द्वारा राजा चन्द्रप्रभ को मर्त्य पुत्र सूर्यप्रभ को विद्याधरों का अधिपति न बनाने को कहना), ८.२.१६२(इन्द्र के दूत के रूप में नारद का प्रह्लाद को भावी विद्याधर राज श्रुतशर्मा से वैर न करने के लिए कहना), १४.१.८२(शूली /शिव के दूत के रूप में नारद द्वारा वत्सराज उदयन को पुत्र नरवाहनदत्त की कुशलक्षेम सूचित करना), १५.२.१५(नारद द्वारा चक्रवर्ती विद्याधरराज नरवाहनदत्त को मेरु विजय से निवृत्त करना), महाभारत शान्ति २३०(नारद के गुणों का वर्णन ), कृष्णोपनिषद २४(सुदामा के नारद मुनि का रूप होने का उल्लेख ) naarada/narada

      नारद ( १ )-एक देवर्षि, जो ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं । ये जनमेजय के सदस्य बने थे ( आदि० ५३ । ८)। ये ही कालान्तर में देवगन्धर्व होकर कश्यप द्वारा 'मुनि' के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं ( आदि० ६५ । ४४)। इन्होंने तीस लाख श्लोकों वाला महाभारत देवताओं को सुनाया था (नारदोऽश्रावयद्देवानसितो देवलः पितॄन्। - आदि० १ । १०६-१०७, स्वर्गा० ५। ५६)। इन्होंने दक्ष के पुत्रों को सांख्यज्ञान का उपदेश दिया था, जिससे वे सब के सब विरक्त होकर घर से निकल गये थे (सहस्रसङ्ख्यानसंभूतान्दक्षपुत्रांश्च नारदः। मोक्षमध्यापयामास साङ्ख्यज्ञानमनुत्तमम्।। आदि० ७५ । ७-८)। ये अर्जुन के जन्म-समय में पधारे थे ( आदि० १२२ । ५७) । द्रौपदी के स्वयंवर में अन्य गन्धर्वो और अप्सराओं के साथ गये थे (आदि. १८६ । ७ ) । द्रौपदी के निमित्त पाण्डवों का आपस में कोई मतभेद न हो-इस उद्देश्य से इनका इन्द्रप्रस्थ में आगमन (आदि० २०७ । ९)। इनके गुण, प्रभाव एवं रहस्य का विशद वर्णन ( आदि० २०७ । ९ के बाद दा० पाठ)। इनके द्वारा पाण्डवों के प्रति सुन्द और उपसुन्द की कथा का वर्णन करके द्रौपदी के विषय में परस्पर फूट से बचने के लिये कोई नियम बनाने की प्रेरणा (आदि. अध्याय २०८ से २२१ तक)। इनका वर्गा आदि शापग्रस्त अप्सराओं को आश्वासन और दक्षिण समुद्र के समीपवर्ती तीथों में रहने का आदेश देना (दक्षिणे सागरानूपे पञ्च तीर्थानि सन्ति वै। पुण्यानि रमणीयानि तानि गच्छत मा चिरं।।आदि० २१६ । १७ ) । इनके गुणों का उल्लेख, इनके द्वारा युधिष्ठिर को प्रश्न के रूप में विविध मङ्गलमय उपदेश (सभा० ५ अध्याय)। इनके द्वारा इन्द्र, यम, वरुण, कुबेर तथा ब्रह्माजी की सभा का वर्णन (सभा० अध्याय ५ से ११ तक ) । इनका हरिश्चन्द्र की संक्षिप्त कथा सुनाकर युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ करने के लिये पाण्डु का संदेश सुनाना ( सभा० १२ । २३-३४ ) । बाणासुर द्वारा अनिरुद्ध के कैद होने की श्रीकृष्ण को सूचना देना (सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८२२, कालम १ )। राजसूय यज्ञ में अवभृथ-स्नान के समय इन्होंने युधिष्ठिर का अभिषेक किया ( सभा० ५३ । १०) । कौरवों के विनाश के विषय में नारद की भविष्यवाणी ( सभा० ८० । ३३-३५)। इन्होंने धौम्य को सूर्य के अष्टोत्तरशत नाम का उपदेश दिया था ( वन० ३ । ७८ )। इनका शाल्व को मारने के लिये उद्यत प्रद्युम्न के पास आकर देवताओं का संदेश सुनाना ( वन० १९ । २२-२४ ) । इन्द्रलोक में अर्जुन के स्वागत में अन्य गन्धर्वो के साथ ये भी पधारे थे (वन० ४३ । १४ )। इनके द्वारा इन्द्र के प्रति दमयन्ती स्वयंवर की सूचना (वन० ५४ । २०-२४)। इनका युधिष्ठिर को तीर्थयात्रा का प्रसङ्ग सुनाकर अन्तर्धान होना (प्रदक्षिणां यः कुरुते पृथिवीं तीर्थतत्परः। किं फलं तस्य कार्त्स्न्येन तद्भवान्वक्तुमर्हति ।।वन० ८१ । १२ से ८५ अध्याय तक)। राजा सगर को उनके पुत्रों की मृत्यु का समाचार सुनाना (वन० १०७ । ३३ ) । अर्जुन को दिव्यास्त्र प्रदर्शन से रोकना (अर्जुनार्जुन मा युङ्क्ष दिव्यान्यस्त्राणि भारत। नैतानि निरधिष्ठाने प्रयुज्यन्ते कथंचन ।। वन० १७५ । १८-२३ )। काम्यकवन में पाण्डवों के पास इनका आगमन और मार्कण्डेय मुनि से कथा सुनने का अनुमोदन करना (वन० १८३ । ४७-४९)। सुहोत्र और शिबि में इनका शिबि को ही बढ़कर बताना (क्रूरः कौरव्य मृदवे मृदुः क्रूरे च कौरव । साधुश्चासाधवे साधुः साधवे नाप्नुयात् कथम् ।।वन. १९४ । ३-७)। राजा अश्वपति से सत्यवान् के गुण-दोष का वर्णन करके उनके साथ सावित्री के विवाह के लिये सम्मति देकर विदा होना (वन० २९४ । ११-३२)। शान्ति-दूत बनकर हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्ण की परिक्रमा करना ( उद्योग० ८३ । २७ ) । पुत्री के लिये वर की खोज में जाते समय मातलि को वरुणलोक में ले जाना और वहाँ आश्चर्यजनक वस्तुएँ दिखाना (उद्योग० ९८ अध्याय ) । मातलि को पाताल-लोक में ले जाना (उद्योग० ९९ अध्याय)। मातलि से हिरण्यपुर का वर्णन और दिग्दर्शन ( उद्योग० १०० अध्याय )। मातलि को गरुडलोक में ले जाना ( उद्योग० १०१ अध्याय)। मातलि से संतानसहित सुरभि तथा रसातल का वर्णन (उद्योग० १०२ अध्याय)। मातलि से नागलोक का वर्णन ( उद्योग० १०३ अध्याय ) । आर्यक के सम्मुख मातलि की कन्या के विवाह का प्रस्ताव (उद्योग० १०४।१ -७)। दुर्योधन को समझाते हुए धर्मराज द्वारा विश्वामित्र की परीक्षा और विश्वामित्र को गुरुदक्षिणा देने के लिये गालव के हठ का वर्णन (उद्योग० १०६ अध्याय से १२३-२२ तक)। भीष्म को परशुरामजी के ऊपर प्रस्वापनास्त्र के प्रयोग से मना करना ( उद्योग० १८५ । ३-४ )। पुत्रशोक से दुखी अकम्पन को इनके द्वारा सान्त्वना (द्रोण ५२ । ३७ से द्रोण० ५४ । ४४-५० तक)। राजा सृंजय से उनकी कन्या को माँगना (द्रोण० ५५ । १२ )। महर्षि पर्वत के शाप के बदले उन्हें शाप देना (द्रोण. ५५ । १७) । राजा सृंजय को पुत्र प्राप्ति का वर देना (द्रोण० ५५ । २३ के बाद)। पुत्रशोक से दुखी सृंजय को मरुत्त का चरित्र सुनाकर समझाना (द्रोण० ५५ । ३६-५०)। राजा सुहोत्र की दानशीलता का वर्णन करना ( द्रोण० ५६ अध्याय )। पौरव की दानशीलता का वर्णन (द्रोण० ५७ अध्याय )। शिबि के यज्ञ और दान की महत्ता का वर्णन (द्रोण० ५८ अध्याय) । श्रीराम के चरित्र का वर्णन (द्रोण० ५९ अध्याय)। राजा भगीरथ के चरित्र का वर्णन (द्रोण० ६० अध्याय)। महाराज दिलीप के उत्कर्ष का वर्णन (द्रोण० ६१ अध्याय )। मान्धाता की महत्ता का वर्णन (द्रोण० ६२ अध्याय )। महाराज ययाति का वर्णन (द्रोण. ६३ अध्याय )। राजा अम्बरीष के चरित्र का वर्णन (द्रोण० ६४ अध्याय)। राजा शशबिन्दु के दान का वर्णन (द्रोण० ६५ अध्याय)। राजा गय के चरित्र का वर्णन (द्रोण ० ६६ अध्याय )। राजा रन्तिदेव के अतिथिसत्कार का वर्णन (द्रोण. ६७ अध्याय) । राजा भरत के चरित्र का वर्णन (द्रोण० ६८ । अध्याय ) । राजा पृथु के चरित्र का वर्णन ( द्रोण ० ६९ अध्याय)। परशुरामजी का चरित्र सुनाना (द्रोण० ७० अध्याय)। सृंजय के मरे हुए पुत्र को जीवित करके उन्हें देना (द्रोण० ७१ । ८) । रणक्षेत्र में अर्जुन द्वारा बाणों के प्रहार से प्रकट किये हुए सरोवर को देखनेके लिये नारदजी वहाँ पधारे थे (द्रोण० ९९ । ६१)। रात्रियुद्ध में कौरव-पाण्डव सेनाओं में दीपक का प्रकाश करना (द्रोण० १६३ । १५)। वृद्धकन्या को विवाह करने के लिये प्रेरित करना (शल्य० ५२ । १२ - १३)। बलरामजी से कौरवों के विनाश का समाचार बताना (शल्य० ५४ । २५-३४)। अश्वत्थामा और अर्जुन के ब्रह्मास्त्रको शान्त करने के लिये प्रकट होना (सौप्तिक० १४। ११)। युद्ध के पश्चात् युधिष्ठिर के पास आकर उनसे कुशल-समाचार पूछना (शान्ति० १ । १०-१२)। युधिष्ठिर से कर्ण को शाप प्राप्त होने का प्रसंग सुनाना ( शान्ति० अध्याय २ से ३ तक ) । कर्ण के पराक्रम का वर्णन (शान्ति० अध्याय ४ से ५ तक)। इनके द्वारा सृंजय के प्रति कहे हुए षोडश-राजकीयोपाख्यान का श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर के समक्ष वर्णन (शान्ति० २९ अध्याय ) । श्रीकृष्ण द्वारा पर्वत ऋषि के साथ इनके विचरने और परस्पर शाप आदि का वर्णन ( शान्ति० ३० अध्याय)। इनका युधिष्ठिर को सृंजयपुत्र सुवर्णष्ठीवी का वृत्तान्त सुनाना (शान्ति० ३१ अध्याय)। शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म को देखने के लिये अन्य ऋषियों के साथ इनका भी जाना (शान्ति० ४७ । ५) । युधिष्ठिर आदि को भीष्मजी से धर्मविषयक प्रश्न के लिये प्रेरणा देना (शान्ति० ५४ । ८-१०)। जाति-भाइयों में फूट न पड़ने के विषय में श्रीकृष्ण के प्रश्नों का उत्तर (शान्ति. ८१ अध्याय )। सेमलवृक्ष की प्रशंसा ( शान्ति. १५४ । १०-३१)। सेमलवृक्ष का अहंकार देखकर उसे फटकारना (शान्ति० १५५ । ९-१८) । वायुदेव के पास जाकर सेमलवृक्ष की बात कहना ( शान्ति० १५६ । २-४) । भगवान् विष्णु से कृपा-याचना ( शान्ति. २०७ । ४६ के बाद ) । भगवान् विष्णु का स्तवन (शान्ति० २०९ । दाक्षिणात्य पाठ)। इन्द्र के साथ लक्ष्मी का दर्शन ( शान्ति० २२८ । ११६)। पुत्रशोक से दुखी अकम्पन को समझाना ( शान्ति० अध्याय २५६ से २५८ तक )। महर्षि असितदेवल से सृष्टिविषयक प्रश्न (शान्ति० २७५ । ३)। महर्षि समङ्ग से उनकी शोकहीनता का कारण पूछना (शान्ति. २८६ । ३-४) । गालवमुनि को श्रेय का उपदेश देना (शान्ति०२८७ । १२--५९)। व्यासजी के पास आना और उनकी उदासी का कारण पूछना ( शान्ति० ३२८ । १२-१५) । व्यासजी को पुत्र के साथ वेदपाठ करने को कहना ( शान्ति० ३२८ । २०-२१)। शुकदेवजी को वैराग्य और ज्ञान आदि विविध विषयों का उपदेश (शान्ति० अध्याय ३२९ से ३३१ तक ) । नरनारायण के समक्ष सबसे श्रेष्ठ कौन है, इस बात की जिज्ञासा (शान्ति० ३३४ । २५-२७)। श्वेतद्वीप का दर्शन और वहाँ के निवासियों का वर्णन (शान्ति० ३३५ । ९-१२)। दो सौ नामों द्वारा भगवान् की स्तुति (शान्ति. ३३८ अध्याय ) । श्वेतद्वीप में भगवान् का दर्शन (शान्ति. ३३९ । १-१०)। श्वेतद्वीप से लौटकर नर-नारायण के पास जाना और उनके समक्ष वहाँ के दृश्य का वर्णन करना (शान्ति० ३४३ । ४७-६६ )। मार्कण्डेयजी के विविध प्रश्नों का उत्तर देना (अनु० २२ । दाक्षिणात्य पाठ)। श्रीकृष्ण के पूछने पर पूजनीय पुरुषों के लक्षण और उनके आदर-सत्कार से होनेवाले लाभ का वर्णन करना (अनु. ३१ । ५-३५)। पञ्चचूड़ा अप्सरा से स्त्रियों के स्वभाव के विषय में प्रश्न ( अनु० ३८ । ६)। भीष्मजी से अन्नदान की महिमा का वर्णन ( अनु० ६३ । ५–४२ ) । देवकी देवी को विभिन्न नक्षत्रों में विभिन्न वस्तुओं के दान का महत्त्व बताना ( अनु० ६४ । ५--३५)। अगस्त्यजी के कमलों की चोरी होने पर शपथ खाना (अनु० ९४ । ३० ) । पुण्डरीक को श्रेय के लिये भगवान् नारायण की आराधना का उपदेश देना ( अनु० १२४ । दाक्षिणात्य पाठ)। इनके द्वारा हिमालय पर्वत पर भूतगणों सहित शिवजी की शोभा का वर्णन ( अनु० १४० अध्याय )। संवर्त को पुरोहित बनाने के लिये मरुत्त को सलाह देना (आश्व० ६ । १८-१९ )। मरुत्त को संवर्त का पता बताना (आश्व० ६ । २०-२६)। महर्षि देवमत के प्रश्नों का उत्तर देना (आश्व० २४ अध्याय)। युधिष्ठिर के अश्वमेध-यज्ञ में इनकी उपस्थिति (आश्व० ८८ । ३९) । नारदजी का प्राचीन ऋषियों की तपःसिद्धि का दृष्टान्त देकर धृतराष्ट्र की तपस्याविषयक श्रद्धा को बढ़ाना और शतयूप के पूछने पर धृतराष्ट्र को मिलनेवाली गति का वर्णन करना (आश्रम० २० अध्याय)। इनका युधिष्ठिर के समक्ष वन में कुन्ती, गान्धारी और धृतराष्ट्र के दावानल से दग्ध होने का समाचार बताना ( आश्रम ३७ । १-३८ )। धृतराष्ट्र लौकिक अग्नि से नहीं, अपनी ही अग्नि से दग्ध हुए हैं-यह युधिष्ठिर को बताना और उनके लिये जलाञ्जलि प्रदान करने की आज्ञा देना ( आश्रम० ३९ । १-९)। साम्ब के पेट से मूसल पैदा होने का शाप देनेवाले ऋषियों में ये भी थे (मौसल० १ । १५-२२ )। इनके द्वारा युधिष्ठिर की प्रशंसा (महाप्र० ३ । २६--२९)।

      महाभारतमें आये हुए नारदजीके नाम-ब्रह्मर्षि, देवर्षि, परमेष्ठिज, परमेष्ठी, परमेष्ठिपुत्र और सुरर्षि आदि । (२) विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों मे से एक ( अनु० ४ । ५३)।

      नारदागमनपर्व-आश्रमवासिक पर्व का एक अवान्तर पर्व (अध्याय ३७ से ३९ तक)।

      नारदी-विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक (अनु० ४ । ५९)।

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      नारद नारद और पर्वत एक ही तत्त्व के दो पक्ष हैं। नारद का जन्म दिव्य आप: के अन्नमय कोश में अवतरित होने से उत्पन्न नर प्राणों से हुआ है । पर्वत शरीर के पर्व - पर्व में बसे प्राणों का प्रतीक है । यह दोनों मित्र हैं। पर्वत को तीर्थयात्रा करने की आवश्यकता है , नारद को नहीं । नारद ऊपर - नीचे कहीं भी जा सकते हैं।

      Esoteric aspect of Naarada

      Vedic view of Naarada

      नारद - पर्वत ब्रह्माण्ड २.३.७.२९ (नारद, पर्वत व अरुन्धती के सह जन्म का कथन), मत्स्य १२२.११ (नारद व पर्वत का शाक द्वीप में नारद व दुर्ग शैल पर्वतों के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख - नारदो नाम चैवोक्तो दुर्गशैलो महाचितः। तत्राचलौ समुत्पन्नौ पूर्वं नारदपर्वतौ।।  )


      नारसिंही देवीभागवत ५.२८.२५ (शुम्भ असुर के संदर्भ में नारसिंही देवी के नृसिंह सदृश रूप का उल्लेख), ५.२९.१२ (नारसिंही देवी द्वारा नखों से jरक्तबीज असुर पर प्रहार का उल्लेख), पद्म १.४६.७९ (अन्धकासुर के रक्त पान के लिए शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), मार्कण्डेय ८८/८५.१९ (शुम्भ दैत्य से युद्ध के संदर्भ में नारसिंही देवी के नृसिंह सदृश रूप का उल्लेख), वामन ५६.९(चण्डिका के ह्रदय से नखिनी नारसिंही देवी के प्रादुर्भाव का उल्लेख )


      नारायण अग्नि १७.७ (नारायण की निरुक्ति : आपो नारा इति), गरुड १.२२८ (नारायण की भक्ति का कथन), २.२७.४२ (नारायण पूजा से प्रेत की मुक्ति का कथन), २.४०.११(नारायण बलि विधान), ३.१६.१०(अजा-पति), ३.२४.५३(नारा की निरुक्ति : दोषों के विरुद्ध गुण), ३.२९.६२(प्रयाणकाल में तार्क्ष्यवाह नारायण के ध्यान का निर्देश), देवीभागवत ४.१७ (अप्सराओं के अनुरोध पर नारायण का २८वें द्वापर में पति बनने का वचन), ८.१.७+ + (नारद द्वारा नारायण से जगत्तत्त्व, माया नाश, प्रकाश के उदय आदि के विषय में पृच्छा), ९.१++ (नारद द्वारा नारायण से दुर्गा, राधा, लक्ष्मी आदि पञ्चविध प्रकृति के आविर्भाव व लक्षणों आदि के बारे में पृच्छा), १०.१++ (नारद द्वारा नारायण से मन्वन्तरों में देवी के स्वरूपों के विषय में पृच्छा), ११.१++ (नारद द्वारा भक्तों द्वारा देवी को प्रसन्न करने तथा देवी द्वारा भक्तों को प्रसन्न करने के उपाय के विषय में पृच्छा, नारायण द्वारा सदाचार का वर्णन), १२.१++ (नारद द्वारा कठिन सदाचार मार्ग के अतिरिक्त गायत्री न्यास द्वारा देवी प्रसाद प्राप्त करने के विषय में पृच्छा), नारद १.६६.८६(नारायण की शक्ति कान्ति का उल्लेख, केशवादि मातृका के नारायण मुनि होने का उल्लेख), १.८३.९४ (नारायण ऋषि द्वारा महासरस्वती की आराधना), २.२०.२० (धर्माङ्गद द्वारा नारायणास्त्र से वरुण को जीतने का उल्लेख), २.५६.३४ (नारायण महिमा व कवच : वसु - मोहिनी संवाद का प्रसंग), २.५७ (नारायण की षोडशोपचार पूजा विधि), २.५७.७(ॐ नमो नारायणाय अष्टाक्षर मन्त्र का देह में न्यास), पद्म १.३४.१५ (नारायण के ब्रह्मा के यज्ञ में प्रतिहर्त्ता ऋत्विज बनने का उल्लेख), ५.१०५.२१ (कृत्या द्वारा अपहृत द्विज - पत्नी के अन्वेषणार्थ राम द्वारा नारायणपुर में प्रवेश का उद्योग, शम्भु द्विज द्वारा नारायणी माया से राम की सहायता ), ६.१२०.५६(नारायण से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन), ६.२२६.५०(नारायण की निरुक्ति : नारा: आत्मनां संघा:, उनकी गति असौ पुमान्; ते एव चायनं तस्य), ब्रह्म १.१.३९ (आपो नारा इति प्रोक्ता इत्यादि), १.१.४६(मरीचि, अत्रि आदि ब्रह्मा से उत्पन्न सात ऋषियों के नारायणात्मक होने का उल्लेख), १.५७.२५ (नारायण मन्त्र व कवच), १.७१.१६ (नारायण की जगत में चतुर्धा स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.६ (पञ्चतन्मात्र के पश्चात् नारायण की उत्पत्ति), १.१९.३५ (नारायण से परः की रक्षा की प्रार्थना), २.५२.३ (नारायण ऋषि द्वारा सुयज्ञ नृप हेतु कृतघ्नता का निरूपण), ३.०+ (नारायण का नारद से संवाद), ३.७.६२ (नारायण द्वारा प्रकृति की महिमा का वर्णन ; नारायण आत्मा, मन ब्रह्मा, ज्ञान शिव आदि का कथन), ४.१२.२४ (नारायण से ऊर्ध्व दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.६.६२ (आपो नारा तत्तनव - - - - आपूर्यमाणा तत्रास्ते तेन नारायण: श्लोक), २.३.३.१७(१२ साध्य देवों में से एक), २.३.८.६ (नारायण का साध्यों के राजा के रूप में अभिषेक का उल्लेख), भविष्य १.२२.१९ (शिव द्वारा नारायण की भुजा में शूल के प्रहार से निकले रक्त को कपाल में भरना, कपाल से रक्त नर की उत्पत्ति, श्वेत व रक्त नरों का युद्ध आदि), २.२.२.३१ (नारायण के क्रौञ्च वाहन का उल्लेख), भागवत ६.८ (नारायण कवच का वर्णन), ६.८.१६ (नारायण से उग्र धर्मों से रक्षा की प्रार्थना), ६.८.२० (नारायण से दोपहर से पूर्व रक्षा की प्रार्थना), १०.६.२४ (नारायण से प्राणों की रक्षा की प्रार्थना), ११.१६.२५ (भगवान् के मुनियों में नारायण होने का उल्लेख), मत्स्य १७२.२९ (नारायण का सागर रूप), लिङ्ग १.८१.३६(बक पुष्प पर नारायण की स्थिति का उल्लेख), वराह १.२५ (नारायण से जङ्घा की रक्षा की प्रार्थना), २.११ (शून्य में शब्द , वायु व तेज आदि भूतों की सृष्टि के पश्चात् आप: आदि की सृष्टि करके उसी में शयन करने से नारायण नाम की निरुक्ति), २.२४ (आपो नारा इत्यादि श्लोक), ४.१३ (नारायण आराधक अश्वशिरा राजा के समक्ष कपिल व जैगीषव्य मुनियों द्वारा विष्णु व गरुड रूप का प्रदर्शन), ५.४८ (राजा अश्वशिरा द्वारा यज्ञतनु नारायण हेतु पठित स्तोत्र), ७०.२४ (कृतयुग में नारायण की सूक्ष्म रूप में, त्रेता में यज्ञ रूप द्वारा, द्वापर में पञ्चरात्र द्वारा तथा कलियुग में तामस मार्गों द्वारा उपासना करने का निर्देश), ७३.३( अङ्गुष्ठ पुरुष के ध्यान पर नारायण का प्राकट्य ), वामन २.४२ (शिव द्वारा नारायण से भिक्षा मांगना, नारायण की भुजा का ताडन), ९०.४ (बदरी तीर्थ में विष्णु का नारायण नाम से वास), वायु ६.५ (नारायण शब्द की निरुक्ति), ७.६४/१.७.५९ (आपो नारा इत्यादि श्लोक का रूपान्तर : आपूर्य नाभिं तत्रास्ते - - - -), विष्णु १.४.६ (सार्वत्रिक परिभाषा वाले श्लोक : आपो नारा इति), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.११ (साध्यों में नारायण की प्रधानता का उल्लेख), १.१२९.१० (नारायण ऋषि द्वारा ऊरु से उर्वशी को उत्पन्न करने की कथा), १.२३७.१२ (नर - नारायण से बुद्धि की रक्षा की प्रार्थना), ३.३५ (चित्रसूत्र अथवा नृत्तशास्त्र के विवेचन के संदर्भ में नारायण द्वारा चित्रसूत्र द्वारा उर्वशी का सृजन करने का कथन), शिव २.१.६ .५४ (विष्णु के अङ्गों से नि:सृत जलधारा द्वारा शून्य को अभिव्याप्त करने और विष्णु द्वारा उस जल में शयन करने से नारायण नाम प्राप्ति का कथन), स्कन्द २.१.१.५९(६ तीर्थों वाले नारायणाद्रि के चार युगों में नाम तथा माहात्म्य का कथन), २.२.३०.८१ (नारायण से मन और गरुडध्वज से चैतन्य की रक्षा की प्रार्थना ), ४.२.६१.२०७ (नारायण के १०५ रूपों का उल्लेख), ४.२.६१.२३० (नारायण की मूर्ति के लक्षण – शङ्ख, पद्म, गदा, चक्र), ४.२.७६.१३९ (आमुष्यायण - पुत्र, चारण्य की पुत्रियों से विवाह, सर्प दंश से मृत्यु, जन्मान्तर में कपोत व विद्याधर बनना), ५.१.४.८४ (नारायण की रुद्र के तेज से उत्पत्ति, नर-नारायण की भृगु-अङ्गिरा व अश्वत्थ-शमीगर्भ से तुलना?), ५.२.५९.१५ (कपिल व जैगीषव्य का राजा अश्वशिरा के समक्ष क्रमश: नारायण व गरुड रूप दिखाना), ५.३.९५ (नारायणेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१३२.१० (वराह तीर्थ के अन्तर्गत नमो नारायणाय मन्त्र के महत्त्व का कथन), ५.३.१४९.९ (नर्मदा में लिङ्गेश्वर तीर्थ में विभिन्न मासों में वराह के विभिन्न नामों में पौष में नारायण नाम से पूजा), ५.३.१७१.१ (ज्येष्ठ भ्राता माण्डव्य को शूलारोपित देखकर नारायण का राजा को शाप देने को उद्धत होना, माण्डव्य द्वारा रोकना), ५.३.१९२.६ (नारायण के नाभि कमल से ब्रह्मा, दक्षाङ्गुष्ठ से दक्ष आदि के जन्म का उल्लेख), ५.३.१९२.१० (धर्म व साध्या के ४ पुत्रों में से एक, नर - नारायण के तप से संतप्त होकर इन्द्र द्वारा तप में विघ्न हेतु वसन्तकामा अप्सराओं का प्रेषण, वसन्तकामा अप्सराओं द्वारा नर - नारायण की स्तुति व विश्वरूप के दर्शन, नर - नारायण द्वारा उर्वशी अप्सरा को उत्पन्न करना आदि), ५.३.१९४.४ (नारायण द्वारा अप्सराओं को विश्वरूप दिखाने का वृत्तान्त सुनकर भृगु - पुत्री लक्ष्मी द्वारा नारायण की पतिरूप में प्राप्ति हेतु तप, नारायण से विवाह यज्ञ का वर्णन ), ७.१.८४ (आदि नारायण द्वारा मेघवाहन दैत्य का वध), ७.१.३०७ (अपर नारायण का माहात्म्य : सूर्य का विष्णु रूप), ७.१.३३७ (नारायण गृह का माहात्म्य : दैत्य के विनाश के पश्चात् हरि का विश्राम स्थल, चार युगों में नारायण के नाम), ७.१.३५८ (नारायण तीर्थ का माहात्म्य- शांडिल्य की पूजा), हरिवंश ३.१४.११(ब्रह्मा द्वारा भू आदि पुत्रों को कपिल तथा नारायण से निर्देश प्राप्त करने का आदेश), योगवासिष्ठ ५.३३ (प्रह्लाद के लिए नारायण का आगमन), लक्ष्मीनारायण १.२९.१६ (लोक में जन्म होने पर नारायण के शरीर के दिव्य चिह्नों का वर्णन), १.११२.२२ (नारायण द्वारा शिव को वैष्णव दीक्षा प्रदान करते समय प्रदत्त मन्त्रों लक्ष्मी नारायण, स्वामिनारायण, नरनारायण, हरि नारायण आदि का कथन), १.१५९ (नारायण ह्रद में स्नान, तर्पण आदि के महत्त्व का वर्णन : पत्नीव्रत नामक द्विज व दामोदर के नारायण - द्वय होकर ब्रह्माण्ड में विचरण का वर्णन), १.१६० (पत्नीव्रत द्विज व दामोदर नारायण - द्वय द्वारा नारायण ह्रद में सार्वभौम श्राद्ध - तर्पण का वर्णन), १.१६१.३९ (रैवताद्रि पर ह्रदों में मुख्य नारायण ह्रद का महत्त्व), १.३८५.६(नारायण शब्द की निरुक्तियां), १.३९८.२१ (नारायण पर्वत पर नारायण पुर में वियद्राज व उसकी पत्नी धरणी की कन्या पद्मिनी के नारायण से विवाह का वृत्तान्त), २.४७.९३ (ओं नम: श्रीकृष्ण नारायणाय पत्ये स्वाहा षोडशाक्षर मन्त्र के अक्षरों के न्यास का कथन), २.१४२.१५ (नारायण मूर्ति को विष्णु आदि की मूर्ति के सापेक्ष नवांश बनाने का निर्देश), २.२६१.१३ (नारायण शब्द की निरुक्ति : अरा/माया से मुक्ति), ३.३.३३ (प्रथम ब्राह्म वत्सर में रोहिताण्ड असुर के वधार्थ द्युनारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.३.६७ (मेरु के स्थैर्य हेतु मेरुनारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.३.१०२ (सूर्य के तीक्ष्ण तेज के शातनर्थ विष्णु नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.४.५१ (धूम्र असुर से चन्द्रमा की रक्षा हेतु श्री देवनारायण का प्राकट्य), ३.४.९२ (ज्योतिष्मान् मनु के यज्ञ की रक्षा हेतु अध्वरनारायण व उनकी पत्नी दक्षिणा का प्राकट्य), ३.५.५१ (जगत के संहार कार्य से विरत रुद्र के शासनार्थ ब्रह्म नारायण का प्राकट्य), ३.५.९४ (देवों की धिष्ण्य /पदों के नियमार्थ आदित्य नारायण व द्यु नारायणी का प्राकट्य), ३.६ (अष्टाङ्ग योग में नियम वत्सर में नागों के शासनार्थ गरुत्मन्नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.७.२६ (आसन नामक वत्सर में राजा चलवर्मा को अचला भक्ति प्रदान करने हेतु आर्ष नारायण के प्राकट्य का वर्णन), ३.७.८० (प्राणरोधन वत्सर में थुरानन्द के पराभव हेतु प्राज्ञ नारायण का प्राकट्य, प्राज्ञ नारायण द्वारा थुरानन्द - कन्या ज्योत्स्ना से विवाह का वृत्तान्त), ३.८.१०५ (प्रत्याहार वत्सर में प्रजा को धर्म के उपदेश के लिए वीर नारायण के प्राकट्य का वृत्तान्त), ३.९.६१ (धारणा वत्सर में शोणभद्र वैश्य के यज्ञ में अग्नि के प्रकोप की शान्ति हेतु भद्र नारायण का प्राकट्य), ३.१०.९३ (प्रध्यान वत्सर में तुङ्गभद्रा योगिनी द्वारा रात्रि में राक्षसों के विनाश हेतु सूर्य की गति का रोधन, श्री हरिनारायण का प्रकट होकर तुङ्गभद्रा - कन्या सर्वभद्रा से विवाह), ३.११.७५ (मान वत्सर में बीज भक्षक कोशस्तेन नामक राक्षस के निग्रह हेतु बीज नारायण का प्राकट्य), ३.१२.८५ (समाधि वत्सर में धर्मव्रत विप्र के ११० पुत्रों के मोक्ष के पश्चात् श्रीहरि का अग्रज संकर्षण सहित नरनारायण रूप में अवतार), ३.१४.३८ (प्रज्ञा नामक वत्सर में सुदर्शनी सती के शाप से नारी भाव को प्राप्त संसार के तारणार्थ स्त्रीपुँ नारायण का प्राकट्य), ३.१४.१०७ (अप्रज्ञा वत्सर में मकर दैत्य के नाशार्थ जल नारायण का प्राकट्य), ३.१५.१०१ (लय भाव वत्सर में साधु धर्म स्थापनार्थ वषट् व स्वधा के पुत्र रूप में शील नारायण का प्राकट्य), ३.१६.९६ (साक्षात्कृत वत्सर में व्याघ्रानल असुर के विनाशार्थ वारिधि /वार्धि नारायण का प्राकट्य), ३.१७.८५ (सृष्टिमान वत्सर में चतुर्मुख नारायण का प्राकट्य), ३.१९.२० (वेद वत्सर में भक्त पुण्यरात व उसकी पत्नी राधनिका को स्वलोक ले जाने के लिए कृपा नारायण का प्राकट्य), ३.१९.८७ (सती चारणी द्वारा वैमानिक देवों के पृथिवी पर अवतरण के निषेध किए जाने पर तीर्थों के उद्धार हेतु तीर्थ नारायण का प्राकट्य), ३.२०.८८ (सनातन वत्सर में पार्वती शाप से मृत भक्तिहीन द्विजों के जीवन हेतु जीव - नारायण का प्राकट्य), ३.२१.२५ (आर्ष वत्सर में ब्रह्मा के सर्वमेध यज्ञ में अर्धश्रीश्वर नारायण का प्राकट्य), ३.२१.५४ (धर्म वत्सर में पितरों की तृप्ति हेतु अर्धपितृनारायण का प्राकट्य), ३.२१.८९ (अनङ्ग वत्सर में भक्तों की आशा प्रपूरणार्थ प्लक्ष नारायण का प्राकट्य), ३.२२.१०७ (आवृष वत्सर में नरमेध में भक्त नरपशु की रक्षार्थ पुंस्त्व नारायण का प्राकट्य ; नारायण के शालग्राम रूपी वृषणों के कर्तन व पुन: योजन का वर्णन ), ३.२३.८५ (अनल वत्सर में सूर्यवर्चा नृप की भक्ति से शिंशपा नारायण का प्राकट्य), ३.२४.८० (पितृ वत्सर में मयूर असुर के नाशार्थ क्षत्र नारायण का प्राकट्य), ३.२५.९१ (देव वत्सर में प्रसविष्णु / प्रस्रवण असुर के कारण नैष्ठिकी श्री लक्ष्मी द्वारा काम, रति आदि को भस्म करना, ब्रह्मचारि नारायण का प्राकट्य), ३.२६.९२ (मानव वत्सर में हल्लक असुर द्वारा शिव के शिर: छेदन पर शिव के उज्जीवनार्थ शिव नारायण का प्राकट्य), ३.२७.७३ (कल्पद्रुम वत्सर में यम द्वारा मारित कुबेर के उज्जीवनार्थ स्वर्ण नारायण का प्राकट्य), ३.२८.३३ (सस्य वत्सर में स्वामि नगर के वासियों की ज्वाला पर्वत की ज्वालाओं से रक्षा हेतु स्वामिनारायण का प्राकट्य), ३.२८.८५ (पाशव वत्सर में सावन नारायण के निर्वाणिका नामक दरिद्र विप्राणी के गृह में प्राकट्य का वर्णन), ३.२९.९८ (याक्ष वत्सर में साधुओं आदि की प्रार्थना पर साधु नारायण का प्राकट्य), ३.३०.९५ (राक्षस वत्सर में भक्त हरिप्रथ के शाप से मृत वर्णिशाल मनु के उज्जीवनार्थ भक्त नारायण का प्राकट्यय), ३.३१.८४ (अण्डज वत्सर में ऋषि के शाप से अश्वमेधीय अश्व बने राजा की मुक्ति हेतु मेध नारायण का प्राकट्य), ३.३२.३७ (अनलाद असुर के विनाशार्थ वह्नि नारायण का प्राकट्य), ३.३२.१०१ (नाग वत्सर में रस भक्षक इलोदर असुर के नाशार्थ रस नारायण का प्राकट्य), ३.३३.२६ (४०वें वत्सर में दैत्यों के नाश हेतु चक्रनारायण का प्राकट्य), ३.३३.५१ (अध्वर वत्सर में सत्य धर्म की स्थापना हेतु सत्य नारायण का प्राकट्य), ३.३३.९४ (हिरण्य वत्सर में पृथिवी पर पक्ष युक्त पर्वतों को स्थिर करने के लिए हिरण्यनारायण का प्राकट्य), ३.३४.६६ (राजत वत्सर में निरञ्जन भक्त हेतु निरञ्जन नारायण का प्राकट्य), ३.३४.१०६ (कपाल वत्सर में ब्रह्मा को सती पुण्यवती के शाप से मुक्त करने हेतु पुण्यनारायण का प्राकट्य), ३.३५.३६ (४५वें वत्सर में अप्सराओं की कामना पूर्ति हेतु बृहद्ब्रह्म नारायण का प्राकट्य), ३.३५.५२ (४६वें वत्सर में त्रेता में विद्या की प्रतिष्ठा हेतु गुरु नारायण का प्राकट्य), ३.३५.१३० (बृहद्धर्म राजा को राजसूय यज्ञ की दीक्षा हेतु आचार्य नारायण का प्राकट्य), ३.३६.२६ (अर्चि मार्ग वत्सर में विद्युतस्राव राक्षस के नाश हेतु महाविद्युन्नारायण का प्राकट्य), ३.३६.६२ (अब्धिमथन वत्सर में मधुभक्ष दैत्य के वधार्थ मधु नारायण का प्राकट्य), ३.३६.९३ (नारद वत्सर में धेनु की रक्षा व म्लेच्छों के नाश हेतु नाथ नारायण का प्राकट्य), ३.२७.४६(५१वें वैष्णव वत्सर में स्वर्ण जयन्ती उत्सव पर विभु नारायण का प्राकट्य), ३.३७.१११ (सोम वत्सर में ऋषियों, देवताओं, पितरों आदि की आराधना पर मोक्ष नारायण का प्राकट्य), ३.३८.२ (गायत्री वत्सर में कृष्ण नारायण का प्राकट्य), ३.६८.१२ (कृष्ण नारायण शब्द में नारायण शब्द के अक्षरों के सूक्ष्मार्थों का कथन), ३.६८.३०(नारायण शब्द की निरुक्तियां), ३.६८.५१(नारायण शब्द की निरुक्तियों का कथन), ३.९८.८६ (नारायण मुनि द्वारा राक्षस के शिर पर जल का प्रक्षेप करने से राक्षस द्वारा दिव्य रूप की प्राप्ति का कथन), ३.१८६.७८(नारायणास्त्र : साधु की आत्मा में नारायणास्त्र की स्थिति का उल्लेख), ३.२३२.३१ (ज्वाला प्रसाद व प्रभावती के मन्दिर में नारायणायन योगी का आगमन व उपदेश आदि), ४.२४.२६ (नारायण के नित्य गृह व बुद्धि के दारा आदि होने का कथन), कथासरित् ८.५.७४ (सूर्यप्रभ - सेनानी प्रभास द्वारा नारायणास्त्र प्रयोग का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३४१.४०(आपो नारा इति प्रोक्ता आदि श्लोक ); द्र. नर - नारायण, यज्ञनारायण, विप्रनारायण naaraayana/ narayana


      नारायणी देवीभागवत ७.३० (सुपार्श्व पीठ में विराजमान देवी का नाम), ब्रह्मवैवर्त्त ३.७.६५ (प्रकृति / माया के नारायणी नाम के कारण का कथन), मत्स्य १३.३६(सुपार्श्व तीर्थ में सती की नारायणी नाम से स्थिति का उल्लेख), मार्कण्डेय ९१.७/८८.७ (नारायणी नमोस्तु ते अन्तिम पद वाले श्लोक), स्कन्द ४.२.७०.३४(नारायणी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१९८.७३ (सुपार्श्व तीर्थ में उमा की नारायणी देवी के नाम से ख्याति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३०६.७०(ईश्वरी का पुरुषोत्तम की आराधना से नारायणी बनने व नारायणी के गोपी बनने का उल्लेख), ४.१०१.७१ (कृष्ण - पत्नी नारायणी के नर पुत्र व नरोत्तमी पुत्री का उल्लेख), कथासरित् ९.६.७६ (नारायणी - प्रमुख देवियों द्वारा भैरव की प्रतीक्षा का वृत्तान्त, नारायणी देवी द्वारा चन्द्रस्वामी विप्र को अपनी दासी से भोग की अनुमति, नारायणी द्वारा चन्द्रस्वामी को अम्लान उत्पल देना ) naaraayanee/ narayani


      नारिकेल अग्नि २४७.३०(नारिकेल आदि वृक्षों की वृद्धि के लिए लवणोदक से सिंचन का निर्देश), गणेश २.१४.४४ (महोत्कट गणेश द्वारा नारिकेल फल से धूम्राक्ष - पत्नी जृम्भा का वध), नारद १.९०.७६(नारिकेल उदक द्वारा प्रीति प्राप्ति का उल्लेख), पद्म १.२८ (वृक्ष, बहुभार्याप्रद होने का उल्लेख), ४.२१.२६(कार्तिक व्रत में नारिकेल भोजन से मूर्खता प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६३ (पुत्र हेतु श्रीहरि को समर्पणीय फलों में से एक), स्कन्द २.२.४४.६ (वैशाख? मास में श्रीहरि हेतु नारिकेल फल अर्पित करने का निर्देश), कथासरित् ९.४.१५ (नारिकेल द्वीप पर स्थित चार पर्वतों पर ४ सिद्ध पुरुषों के निवास आदि का वृत्तान्त), ९.६.५४(चन्द्रस्वामी के नारिकेल द्वीप को प्रस्थान का कथन ) naarikela


      नारी गर्ग १०.१७ (नारीपाल : राजा, मोहिनी - पति, अष्टावक्र का उपहास करने से शाप प्राप्ति), भागवत ५.२.२३(मेरु की ९ पुत्रियों में से एक, कुरु - पत्नी), शिव ५.२०.२३ (नाडी संचार विज्ञान के अन्तर्गत नारी, शय्या आदि ५ राजैश्वर्य विभूतियों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.७६.३४(नारी हेतु दान के प्रकार का कथन : देह का पति को दान, अहंकार पुत्र को, सौन्दर्य जरा को आदि), ३.९२.८६ (भङ्गास्वन नृप द्वारा सरोवर में स्नान करने पर नारी बनने का वृत्तान्त ; नारी के गुण - दोषों का वर्णन), ३.१३१.२६ (स्वर्णपुत्तलिका के रूप में स्वभार्या दान विधि का वर्णन), कथासरित् १२.१५.३७ (नारीचङ्ग विप्र कुमार द्वारा कन्या में अजगन्ध के अनुभव का वृत्तान्त ); द्र. स्फूर्तिनारी naaree/ nari


      नारीकवच ब्रह्माण्ड २.३.६३.१७९ (अश्मक - पुत्र मूलक द्वारा प्राप्त नाम), भागवत ९.९.४० (मूलक द्वारा नारीकवच नाम ग्रहण करने के कारण का कथन ; अश्मक - पुत्र), विष्णु ४.४.७४(अश्मक - पुत्र मूलक के नारीकवच नाम का कारण : स्त्रियों की रक्षा ) naareekavacha


      नाल वराह ८१.२ (नालक : वज्रक पर्वत पर राक्षसों के पुरों का नाम?), लक्ष्मीनारायण ३.२१२ (नालीकर भक्त लोहकार द्वारा लौह सन्धान कार्य में ही हरि भजन का आरोपण, मुक्ति का वृत्तान्त), ४.१०१.१०९ (नाल: : कृष्ण व पद्मा - पुत्र, रजतपत्रिणी - भ्राता ) naala


      नाव द्र. नौका


      नाश गरुड २.३८.१७(अनाशक में मरने से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख)


      नासत्य गणेश २.७६.१५(नासत्यौ के कालदैत्य से युद्ध का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.५९.२५(सूर्य व संज्ञा से नासत्य व दस्र के जन्म का कथन ; नासत्य की नासिका से उत्पत्ति), भविष्य ३.४.१८ (अश्विनौ का नाम, नासत्य द्वारा शनि का बन्धन, इडा व पिङ्गला की पत्नी रूप में प्राप्ति का वर्णन), भागवत ६.६.४०(नासत्यौ : सूर्य व संज्ञा के पुत्र - द्वय), ९.३.११(नासत्य द्वारा च्यवन को युवा बनाने का वृत्तान्त), ९.२२.२८(नासत्य व दस्र से नकुल व सहदेव के जन्म का उल्लेख), मत्स्य ११.३७(संज्ञा की नासिका से नासत्य व दस्र की उत्पत्ति का कथन), वायु ८४.२४/२.२२.२४(अश्व रूपी सूर्य व वडवा रूपी संज्ञा की नासिका से नासत्य व दस्र की उत्पत्ति का कथन), ८४.७७/२.२२.७७(वही), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.४ (१२ खण्डयुगेश्वरों में से एक), ३.४९ (नासत्य की मूर्ति का रूप), ३.१३० (नासत्य की पूजा), ३.३२१.१३ (ओषधि दान से नासत्य लोक की प्राप्ति), स्कन्द २.७.१९.४३(घ्राण में नासत्यौ की स्थिति का कथन, नासत्य के निष्क्रमण पर भी देहपात न होना), ७.१.१६३ (नासत्य लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : रोग से मुक्ति आदि), ७.१.१६४ (अश्विनेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : रोग से मुक्ति आदि), लक्ष्मीनारायण ३.४९.८६ (गुर्वी के अङ्गों में न्यास के संदर्भ में नितम्बों पर नासत्यौ का न्यास ) ; द्र. अश्विनौ, दस्र naasatya


      नासदीय भविष्य ३.४.१४.१(नासदीय सूक्त का विवेचन), nasadiya


      नासिका गरुड २.३०.५४/२.४०.५४(मृतक की नासिका में शतपत्र देने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३४ (नासिका सौन्दर्य हेतु गोपिकेश नामक कृष्ण को रत्न रचित सहस्र पुटक/कमल? देने का निर्देश), भागवत ५.२३.६(शिशुमार की दक्षिण व वाम नासिका में अभिजित् व उत्तराषाढा नक्षत्रों की स्थिति का उल्लेख), वायु ६.१७ (वराह नासिका का आज्य से साम्य), १०४.७६(प्रयाग की प्राणग देश/नासिका में स्थिति का उल्लेख), १०४.८१/२.४२.८१(नासिकापुट में अयोध्या पीठ की स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.३.४ (यज्ञवराह के आज्यनासा होने का उल्लेख), १.४२.२३(नासिका में शची की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ३.१.४८.१०८(भारती की नासिका छेदन का उल्लेख), ४.१.४२.१४(ध्रुव के नासाग्र होने का उल्लेख), ४.१.४५.४० (स्थूल नासिका : ६४ योगिनियों में से एक), ५.३.३९.२९ (कपिला गौ की नासिका में मारुत की स्थिति का उल्लेख), हरिवंश २.८०.१६ (सुन्दर नासिका प्राप्ति के लिए तिल पुष्प युक्त घृत दान का कथन), वा.रामायण ५.१७.१२ (हनुमान द्वारा अशोक वाटिका में अतिनासा, तिर्यङ्ग नासा आदि राक्षसियों को देखना), महाभारत शान्ति ३४७.५१(हयग्रीव की नासिका के रूप में सन्ध्या का उल्लेख), आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४८(कपिला गौ की नासिका में ज्येष्ठा देवी की स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१६३.३५(यक्ष तेज से महिषासुर मर्दिनी देवी की नासिका के निर्माण का उल्लेख), १.१७७.६४(दक्ष यज्ञ में वीरभद्र द्वारा सरस्वती के नासाग्र के छेदन का उल्लेख ); द्र. नासत्य naasikaa


      नास्तिक भविष्य ३.२.२१(विष्णुस्वामी - पुत्र नास्तिक द्वारा व्याघ्र के संजीवन व व्याघ्र द्वारा नास्तिक के भक्षण की कथा), विष्णुधर्मोत्तर ३.२४७ (नास्तिकता , दोष), स्कन्द १.२.४५.४८, १२४ (सत्यव्रत नास्तिक शूद्र द्वारा नन्दभद्र भक्त वैश्य को शिक्षा देने का प्रयास), योगवासिष्ठ ६.२.१०० (नास्तिक निराकरण नामक अध्याय), लक्ष्मीनारायण ३.१११.४०(आस्तिक व नास्तिक दीर्घशील नामक विप्रों के यमलोक जाने की कथा : पुरुषोत्तम साम के जप से नास्तिक के पाप नष्ट होना, धर्मराज द्वारा नास्तिक व आस्तिक को दान कर्म का उपदेश), ३.११३.६३(नास्तिक वैवर्त राजा के प्रेत की गति रुद्ध होना ) naastika/ nastika


      नि:श्वास महाभारत आश्वमेधिक दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४८(कपिला गौ के नि:श्वास में वेदों की स्थिति का उल्लेख )


      नि:स्वर द्र. मन्वन्तर


      निकर वायु ६९.१८९/२.८.१८३(राक्षसों की ८ जातियों में से एक )


      निकषा वा.रामायण १.१७२(सुमाली - पुत्री, विश्रवा - पत्नी, रावण आदि ३ पुत्रों की माता )


      निकाम लक्ष्मीनारायण ४.२२.८१ (निकाम देव द्वारा स्वपुत्री बालयोगिनी का विवाह कृष्ण से करने का वृत्तान्त), ४.२४.१ (निकाम देव द्वारा श्रीकृष्ण से मोक्ष साधन के विषय में पृच्छा, श्रीकृष्ण द्वारा मोक्ष योग का वर्णन), ४.२६ (जामाता कृष्ण द्वारा श्वसुर निकाम देव को निर्भय योग का उपदेश), ४.२७ (निकामदेव व उसकी पत्नी सुरेश्वरी द्वारा कृष्ण के दिव्य रूपों के दर्शन व मोक्ष ) nikaama


      निकुञ्ज गर्ग ५.१७.१० (कृष्ण से विरह पर कुञ्ज व निकुञ्ज वासिनी गोपियों की प्रतिक्रिया )


      निकुन्त मत्स्य ४४.७९(शोणाश्व के ५ पुत्रों में से एक )


      निकुम्भ गणेश १.१७.२१ (शिव द्वारा निकुम्भ को गानरत विष्णु के पास भेजना), देवीभागवत ७.९.३८ (हर्यश्व - पुत्र, बर्हणाश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश), पद्म १.४०.९४ (विश्वेदेवों में से एक, धर्म व विश्वा - पुत्र), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२१ (सुतल नामक द्वितीय तल में स्थित भवनों में निकुम्भ के मन्दिर का उल्लेख), २.३.६.३१(वल के पुत्रों में से एक), २.३.७.९५ (ब्रह्मराक्षस, स्फूर्ज - पिता), २.३.६७.४१(निकुम्भ द्वारा मङ्कन द्विज की सहायता से वाराणसी को जनशून्य बनाने का वृत्तान्त ; अपर नाम क्षेम?), भविष्य ३.४.१२.२ (निकुम्भ - पुत्र हिर्बु दैत्य का वृत्तान्त), भागवत ९.६.२४(हर्यश्व - पुत्र, बर्हणाश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश), मत्स्य ६.११ (बलि के १०० पुत्रों में से एक, बाण - अनुज), १२.३३(हर्यश्व - पुत्र, संहताश्व - पिता), १७९.२६(निकुम्भा : अन्धकासुर का रक्त पान करने हेतु शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वामन ५७.७३ (यक्षों द्वारा कुमार को निकुम्भ नामक गण प्रदान करने का उल्लेख), वायु ५०.२१(सुतल नामक द्वितीय तल में स्थित भवनों में निकुम्भ के मन्दिर का उल्लेख), ६९.१३०/२.८.१२५(वध राक्षस - पुत्र, यातुधान), ९२.३६ (गणेश, क्षेमक नाम), विष्णु ४.२.४५(हर्यश्व - पुत्र, अमिताश्व - पिता), स्कन्द ४.२.५५.११ (निकुम्भेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : कार्य सिद्धि ), हरिवंश १.२९.४५ (नापित की सहायता से निकुम्भ की वाराणसी में प्रतिष्ठा तथा निकुम्भ द्वारा राजा दिवोदास को शाप देकर उसे जनशून्य बनाना), २.८३.१० (निकुम्भ आदि असुरों द्वारा ब्रह्मदत्त के यज्ञ में सोमपान करने व कन्याएं प्राप्त करने का हठ, १०० कन्याओं का हरण आदि), २.८४.१६ (निकुम्भ व असुर सेना का यादवों की सेना से युद्ध, निकुम्भ द्वारा अनाधृष्टि का युद्ध में बन्धन), २.८५ (श्रीकृष्ण - सेनानी जयन्त से युद्ध में निकुम्भ की पराजय, निकुम्भ का कृष्ण से युद्ध व मरण), २.८५.४० (निकुम्भ की तीन देह होने का कथन), २.८५.६२ (कृष्ण द्वारा सुदर्शन से निकुम्भ का शिर: छेदन), २.९० (निकुम्भ द्वारा भानुमती का हरण, कृष्ण आदि से युद्ध व मृत्यु), वा.रामायण ५.४९.११(रावण के ४ मन्त्रियों में से एक), ६.८.१९ (कुम्भकर्ण -पुत्र, राम की सेना को परास्त करने का उत्साह), ६.४३.९ (रावण - सेनानी, नील से युद्ध), ६.५९.२१ (निकुम्भ का स्वरूप), ६.७५.४६ (कुम्भकर्ण - पुत्र, कुम्भ - अनुज, रावण - सेनानी), ६.७७ (हनुमान द्वारा निकुम्भ का वध), nikumbha


      निकुम्भिला वा.रामायण ६.८५ (देवी, इन्द्रजित् द्वारा आभिचारिक होम से निकुम्भिला को तुष्ट करना, लक्ष्मण द्वारा इन्द्रजित् के होम में व्यवधान), ७.२५.२ (मेघनाद द्वारा लङ्का में निकुम्भिला उपवन में यज्ञ करने का उल्लेख ) nikumbhilaa


      निकृति पद्म १.३.१९२ (हिंसा व अधर्म - पुत्री), ब्रह्माण्ड १.२.९.६३(हिसा व अधर्म - पुत्री, अनृत - पत्नी, भय व नरक - माता), भागवत ४.८.३(दम्भ व माया - पुत्री, लोभ - भगिनी), वायु १०.३९(हिंसा व अधर्म - पुत्री, अनृत - पत्नी, भय व नरक - माता), ८४.९(कलि की प्रथम पत्नी ) nikriti


      निकेत देवीभागवत ४.११.१२( तदद्य विनयं कृत्वा सामपूर्वं छलेन वै । तिष्ठध्वं स्वनिकेतेषु मदागमनकाङ्क्षया ॥), ब्रह्म १.३२.८२(अशित्वा त्वेकपर्णां तु अनिकेतस्तपोऽचरत्॥), ब्रह्माण्ड ३.४.२.२७ (अनिकेतान्तरिक्षास्ते भुवर्लोका दिवौकसः । आदित्या ऋभवो विश्वे साध्याश्च पितरस्तथा ॥), भागवत १.४.११(नमन्ति यत्पादनिकेतमात्मनः      शिवाय हानीय धनानि शत्रवः ।), ३.२.२९ (स एव गोधनं लक्ष्म्या निकेतं सितगोवृषम् । चारयन्ननुगान् गोपान् रणद् वेणुररीरमत् ॥ ), ३.२४.४२ (निःसङ्गो व्यचरत् क्षोणीं अनग्निरनिकेतनः ॥), ३.३३.३४ (स्तूयमानः समुद्रेण दत्तार्हणनिकेतनः ॥), ४.२.१९(तस्माद् विनिष्क्रम्य विवृद्धमन्युः     जगाम कौरव्य निजं निकेतनम् ॥ ), ५.७.८(स्वयं सकल-सम्पन्निकेतात्स्वनिकेतात्पुलहाश्रमं प्रवव्राज), ५.२४.१०( शतपत्रादिवनेषु कृतनिकेतनानामेकविहाराकुलमधुरविविधस्वनादिभि), कथासरित् ३.६.१४४(प्रत्याययौ कालरात्री रात्रिमध्ये निकेतनात् ।।), ८.२.८० (जगाद च स योगीन्द्रः सैषा सिद्धिरिदं च तत् । ज्ञानं स्वातन्त्र्यमैश्वर्यमणिमादिनिकेतनम् ।। ), ८.२.१७५ (प्रणम्य बलिमाजग्मुस्तदेव स्वं निकेतनम् ।।), ८.३.३२(सर्वे विद्याधरेन्द्रस्य सुमेरोस्ते निकेतनम् । ययुर्मयगिरा पूर्वगङ्गातीरतपोवनम् ।।), १०.९.२१४(अस्तीह हिमवत्कुक्षौ देशः पृध्वीशिरोमणिः । कश्मीर इति विद्यानां धर्मस्य च निकेतनम् ।।), १२.२९.३०(याति काले च मिलितास्ते संकेतनिकेतने । किं केन शिक्षितमिति भ्रातरोऽन्योन्यमब्रुवन् ।।), १२.३४.३७५(सकलसमृद्धिनिकेतनभूमिं भूयिष्ठपुण्यजनाम् ।।)






      ८.५.५३ (निकेताद्रि - पति दर्पवाह का श्रुतशर्मा विद्याधर के सेनानी के रूप में प्रभास से युद्ध )


      निक्षुभा भविष्य १.७९.४ (छाया का उपनाम), १.१३९.३३ (ऋग्जिह्व/सुजिह्व - पुत्री, सूर्य - पत्नी, महा - माता), १.१६६ (निक्षुभा व्रत की विधि व माहात्म्य), स्कन्द ७.१.११.६३ (सूर्य - पत्नी, माघ सप्तमी को सूर्य से मिलन), ७.१.१२ (निक्षुभा शब्द की निरुक्ति व माहात्म्य ) nikshubhaa


      निगड स्कन्द ४.२.७०.४७ (निगड भञ्जनी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य : बंदी का मोक्षण), लक्ष्मीनारायण ४.२८(निगडभ्रम नामक कैवर्त द्वारा मत्स्य रूप धारी पिपठायन ऋषि का जाल में बन्धन, पिपठायन - पत्नी द्वारा शाप व शाप का मोक्षण आदि ) nigada


      निगड भागवत ५.३.१६(राजा नाभि के यज्ञ में ऋत्विजों द्वारा विष्णु की स्तुति रूप में निगड का कथन )


      निगम पद्म ६.२००.८४ (निगमोद्बोध तीर्थ में स्नान से शिवशर्मा को जाति ज्ञान होना ; तीर्थ में मरण से भिल्ल व सिंह के विष्णु लोक को जाने की कथा), ६.२०१.१७ (निगमोद्बोध तीर्थ का माहात्म्य, शिवशर्मा को जाति ज्ञान की प्राप्ति), ६.२०४.६ (निगमोद्बोध तीर्थ में स्नान से शरभ वैश्य को पुत्र प्राप्ति), ६.२०४.४० (शरभ वैश्य द्वारा निगमोद्बोध तीर्थ का सेवन, कालान्तर में विकट नामक राक्षस द्वारा निगमोद्बोध तीर्थ के जल का पान करने से जाति ज्ञान होना, तीर्थ की महिमा जानकर शरभ व विकट द्वारा निगमोद्बोध तीर्थ का सेवन, शरभ द्वारा सारूप्य मोक्ष की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण ३.२२८(निगमिका नामक भक्त सेविका के अनुपस्थित रहने पर लक्ष्मी द्वारा सेविका का रूप धारण कर क्रुद्ध रानी की सेवा करने का वृत्तान्त ) nigama


      निघण्ट कथासरित् १८.२.२२९ (घण्ट व निघण्ट असुरों द्वारा प्रजापति के प्रजा सृजन कार्य में विघ्न, प्रजापति द्वारा सृष्ट सुन्दर कन्याओं हेतु परस्पर युद्ध में असुरों का विनाश )


      निघण्टु अग्नि ३६०(शब्दकोश के अन्तर्गत विभिन्न नामों के लिङ्गों का कथन), वायु ६१.२(रथीतर द्वारा निरुक्त की रचना करने का उल्लेख ) ; द्र. निरुक्त nighantu


      निघ्न ब्रह्म १.१४.११ (अनमित्र - पुत्र, प्रसेन व सत्राजित् - पिता), ब्रह्माण्ड २.३.७१.२० (अनमित्र - पुत्र, प्रसेन व सत्राजित् - पिता), मत्स्य १२.४७ (अनरण्य - पुत्र, अनमित्र व रघु - पिता), ४२.३(अनमित्र - पुत्र, प्रसेन व शक्तिसेन - पिता), ९६.१९/२.३४.१९(अनमित्र - पुत्र, प्रसेन व सत्राजित् - पिता), विष्णु ४.१३.९(अनमित्र - पुत्र, प्रसेन व सत्राजित् - पिता, सत्राजित् द्वारा मणि प्राप्त करने का वृत्तान्त ) nighna


      निचन्द्र विष्णु ४.३१.७(अधिसीमकृष्ण - पुत्र, उष्ण - पिता, हस्तिनापुर से कौशाम्बी नगर में बसने का उल्लेख )


      नितम्ब ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५२ (नितम्बों के सौन्दर्य हेतु चक्रपाणि को रत्न रचित रथचक्र सहस्र देने का निर्देश), ३.३१.३६(गोपीरमण कृष्ण से नितम्बों की रक्षा की प्रार्थना ) nitamba


      नितुन्द ब्रह्माण्ड २.३.७.३८०(पिशाचों के १६ युगलों में से एक, स्वरूप का कथन )


      नित्य मत्स्य १४५.१०६(कश्यप कुल के मन्त्रकृत् ऋषियों में से एक )


      नित्यकर्म कूर्म २.१३ (नित्यकर्म विधान), २.१८ (नित्यकर्म निरूपण), गरुड १.५०.८ (नित्यकर्म विधि के अन्तर्गत षडङ्ग स्नान, सन्ध्या आदि का वर्णन), गर्ग ९.७ (नित्यकर्म विधि), पद्म १.४९.१ (ब्रह्मतेज वर्धन हेतु प्रात:काल देव स्मरण, नित्यकर्म आदि का वर्णन), ६.९२.३ (कार्तिक व्रत के नियमों के संदर्भ में नित्यकर्म विधि का वर्णन), ब्रह्म १.११३.१७ (व्यास प्रोक्त नित्य नैमित्तिक कर्म विधि), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७५.४ (प्रात:काल स्नान के पश्चात् करणीय ध्यान आदि का कथन), विष्णु ३.११.८(और्व - सगर संवाद में नित्यकर्म का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर २.८८.१(पुष्कर - राम संवाद में नित्यकर्म वर्णन), शिव २.१.११.१६(शिवार्चन के संदर्भ में नित्यकर्म विधि), ७.२.२१.१ (शिवाश्रम सेवियों के लिए नित्यकर्म विधि), ७.२.३४.१ (नित्यनैमित्तिक आदि कर्मों से प्राप्त सिद्धियों के लिङ्गबेर प्रतिष्ठा से तुरन्त प्राप्त होने का कथन), स्कन्द २.५.२ (मार्गशीर्ष मास में नित्यकर्म), ३.२.५ (नित्यकर्म का वर्णन ) nityakarma


      नित्यक्लिन्ना अग्नि ३१३.२७ (नित्यक्लिन्ना मन्त्र व नित्यक्लिन्ना के ध्यान के स्वरूप का कथन), गरुड १.१९८ (नित्यक्लिन्ना मन्त्र), नारद १.८८.७९ (राधा की चतुर्थ नित्य कला नित्यक्लिन्ना के स्वरूप का वर्णन), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.५७(ललिता देवी की १५ सहचरी देवियों में से एक), ३.४.२५.९५ (ललिता सहचरी नित्यक्लिन्ना द्वारा हुम्ब का वध ) nityaklinnaa


      नित्या नारद १.८८ (राधा की दशम कला नित्या का स्वरूप), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.५५(नित्या संज्ञा वाली ललिता की सहचरी १५ देवियों के नाम), ३.४.३१.२१(नित्या देवी के संदर्भ में नित्या शब्द की व्याख्या), ३.४.३७.३२(ललिता की सहचरी १५ नित्या देवियों के नाम व उनके भवन के मान का कथन ) nityaa


      नित्यानन्द भविष्य ३.४.१७.८८ (शुक्लदत्त ब्राह्मण का पुत्र, अष्टम वसु प्रभास का अंश )


      नित्योदय पद्म ७.२३ (नित्योदय शूद्र का एकादशी प्रभाव से जन्मान्तर में राजा बनना), कथासरित् ४.३.५७ (इत्यक अपर नाम वाले नित्योदित प्रतीहार के अधिकारी के पुत्र गोमुख का उल्लेख )


      निदाघ अग्नि ३८०.४५ (पुलस्त्य - पुत्र निदाघ द्वारा स्वगुरु ऋतु / ऋभु से शिक्षा प्राप्ति), नारद १.४९ (पुलस्त्य - पुत्र, ऋभु - शिष्य, ऋभु द्वारा भोजन व वाहन के माध्यम से अद्वैत की शिक्षा), मत्स्य १९९.५७(कश्यप वंशज एक प्रवर प्रवर्तक), वायु २१.३५(१६वें षड्ज कल्प में ब्रह्मा के शिशिर आदि मानस पुत्रों में से एक), विष्णु २.१५ (पुलस्त्य - पुत्र, ऋभु द्वारा भोजन के माध्यम से शिष्य निदाघ को अद्वैत की शिक्षा), २.१६(ऋभु द्वारा वाह - वाहक के माध्यम से निदाघ को अद्वैत की शिक्षा ) nidaagha


      निद्रा गणेश १.१६-१८ (ब्रह्मा द्वारा मधु - कैटभ वधार्थ विष्णु नेत्रगत निद्रा की स्तुति), २.६८.२५ (गणेश द्वारा प्रयुक्त घण्टास्त्र से देवान्तक के निद्रास्त्र का निवारण), गरुड १.२१.५ (तत्पुरुष की ८ कलाओं में से एक), ३.११.२४(प्रलय में मुक्तिहीन की सुप्त संज्ञा), ३.११.२६(इन्द्रियों की उपरति की सुप्ति संज्ञा), ३.२९.६४(निद्रा काल में पद्मनाभ के ध्यान का निर्देश), देवीभागवत ४.११.४४(असुरों के हनन को उद्धत देवों को काव्यमाता द्वारा निद्रा के वशीभूत करना, विष्णु द्वारा इन्द्र की निद्रा से रक्षा), ९.१.११७ (कालाग्नि रुद्र - पत्नी), नारद १.६६.९७(वराह विष्णु की शक्ति निद्रा का उल्लेख), १.९१.७२ (अघोर शिव की चतुर्थ कला), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१२३(निद्रा के कालाग्निरुद्र की पत्नी होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९४(शङ्कर की ११ घोर कलाओं में से एक), भविष्य १.६१.२६(सोते समय भास्कर सूर्य के स्मरण का निर्देश), भागवत ८.७.११, १३(समुद्र मन्थन के समय विष्णु का वासुकि नाग के नेत्रों में निद्रा रूप में प्रवेश का उल्लेख?), लिङ्ग २.१.६०(कौशिक विप्र के गान से विष्णु की योगनिद्रा दूर होने का कथन), स्कन्द ५.३.६७.४३(माता, स्वसा आदि के शयन से प्रबोधन का निषेध ; नारद द्वारा आपत्ति काल में सुप्त विष्णु का प्रबोधन), हरिवंश १.५०.२७ (विष्णु के शयन के संदर्भ में निद्रा की प्रकृति का कथन), २.२.२७(कृष्ण के अनुरोध पर निद्रा द्वारा षड्गर्भों को देवकी के गर्भ में स्थापित करना, देवकी के गर्भ से कन्या रूप में जन्म, कंस द्वारा शिला पर पटके जाने पर देवी बनने का वर्णन), योगवासिष्ठ ५.५४.४८(उद्दालक द्वारा शुद्ध बोध प्राप्ति से पूर्व अनुभूत निद्रा की प्रकृति का कथन), महाभारत वन ३१३.६१(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में मत्स्य के सोने पर भी निमेष न करने का उल्लेख), आश्वमेधिक ५७.२३(निद्रा के वशीभूत होकर कुण्डल धारण करने पर देवों द्वारा हरण का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१७०.९१(शिव द्वारा सती को पत्नी बनाने से अस्वीकार करने पर सती का योगनिद्रा बनकर विष्णु की आंखों में वास करना), २.१५७.७८(निद्रा देवी के आह्वान, पूजा आदि का कथन ) ; द्र. योगनिद्रा nidraa


      निधन लक्ष्मीनारायण २.५.८६(ब्रह्मकूर्च राक्षस पर मृत्यु के आक्रमण पर राक्षस के मलापसरण से निधन नामक नर की उत्पत्ति ) ; द्र. वंश नाभि nidhana


      निधि अग्नि ४१.१४(वास्तु प्रतिष्ठा में आठ इष्टकाओं व मध्य शिला पर ९ निधियों का न्यास?), गरुड १.५३ (निधियों के आठ प्रकार व स्वरूप), नारद १.९०.७१(दाडिम द्वारा देवी पूजा से निधि सिद्धि का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.१.१८(२० संख्या वाले सुखदेव गण में से एक देव का नाम, मारीच कश्यप - पुत्र), मत्स्य १३.५१(वैश्रवणालय में सती देवी की निधि नाम से अर्चना का उल्लेख), मार्कण्डेय ६८ / ६५ (पद्मिनी विद्या के आश्रित निधियों के आश्रित पुरुषों की प्रकृति का वर्णन), वामन ७५.३१ (निधियों के प्रकार व पुरुषों पर प्रभाव), वायु ४१.१०(कुबेर की पद्म आदि आठ निधियों के नाम), १००.१८/२.३८.१८(२० संख्या वाले सुखदेव गण में से एक देव का नाम, मारीच कश्यप - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर ३.८२.१०(लक्ष्मी की मूर्ति में हस्तिद्वय शङ्ख व पद्म निधियों के प्रतीक होने का उल्लेख), स्कन्द १.२.६२.३५(निधियों में मणिभद्र जाति के क्षेत्रपालों की स्थिति का उल्लेख), २.८.७.५०(विश्वामित्र द्वारा धनयक्ष तीर्थ में ९ निधियों के वास का कथन : ९ निधियों के नाम), ५.१.४४.२८(समुद्र मन्थन से उत्पन्न महापद्म निधि कुबेर को मिलने का उल्लेख), ५.३.१९८.८८(वैश्रवणालय में देवी के निधि नाम से वास का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.५४.५३(लक्ष्मी के चार रूपों के अनुरूप महापद्म आदि ४ निधियों के आश्रित पुरुषों का वर्णन - वेदाः कथानकाद्याश्च संहिताः शास्त्रसत्क्रियाः ।।
      चतुःषष्टिकलाः श्वेता महापद्मो निधिः स्थितः ।), २.२४४.८०(ब्रह्मदत्त द्वारा द्विज को शंख निधि दान का उल्लेख - ब्रह्मदत्तोऽपि पाञ्चाल्यो निधिं शंखं द्विजातये । दत्वा स्वर्गं चिरं भुक्त्वा पारमेशपदं ययौ ।।), ३.१५१.६९(नौ निधियों के स्वरूपों के वर्णन के अन्तर्गत निधियों के आश्रित पुरुषों के गुणों का वर्णन - पद्मं चापि महापद्मं मकरं कच्छपं दिशेत् ।। मुकुन्दं चापि नन्दं च नीलं शंखं तथाऽर्पयेत् ।), कथासरित् ६.८.६७(विप्र द्वारा मानववसादीप से यक्ष - रक्षित निधान को प्राप्त करने की चेष्टा का कथन), १२.१९.२९ (निधिदत्त/लक्ष्मीदत्त वणिक् द्वारा मन्त्री दीर्घदर्शी का सत्कार व राजा यश: केतु द्वारा दिव्य कन्या प्राप्ति में सहायक बनना ) ; द्र. गुणनिधि, पुण्यनिधि, प्रणिधि, लक्ष्मीनिधि, वेदनिधि, शीलनिधि nidhi


      निध्रुव ब्रह्माण्ड २.३.८.३०(वत्सार - पुत्र, सुमेधा - पति, कुण्डपायि गण के पिता), २.३.८.३३(काश्यपों के तीन पक्षों में से एक वर्ग), वायु ७०.२६/२.९.२६ (वत्सार - पुत्र, सुमेधा - पति, कुण्डपायि गण के पिता ) nidhruva


      निनृति विष्णुधर्मोत्तर ३.५७.३(विरूपाक्ष - भार्या )


      निन्दा नारद १.६६.९३(निन्दी विष्णु की शक्ति स्मृति का उल्लेख), स्कन्द ७.१.२२.७९(६ अनिन्दनीय वस्तुओं के नाम), लक्ष्मीनारायण ४.५०(द्विर्वदन्ती नामक निन्दक नास्तिक स्त्री के यमदूत द्वारा प्रदत्त यातनाओं से आस्तिक बनने का वृत्तान्त ) nindaa


      निपुण ब्रह्माण्ड २.३.७.३८०(पिशाचों के १६ वर्गों में से एक), २.३.७.३८३ (पिशाचों की १६ कलाओं में से एक), २.३.७.३९५(निपुण पिशाचों के स्वरूप का कथन), वायु ६९.२६४/२.८.२५८(पिशाचों के १६ वर्गों में से एक ) nipuna


      निभृत् वायु ६२.१०/२.१.१०(क्रतु के पुत्र १२ सुकर्म देवों में से एक), १००.९३/ २.३८.९३ (क्रतु के पुत्र १० सुकर्म देवों में से एक )


      निमि देवीभागवत ६.१४ (वसिष्ठ की अनुपस्थिति में गौतम द्वारा निमि के यज्ञ को सम्पन्न कराना, वसिष्ठ द्वारा निमि को शाप व प्रतिशाप की कथा), ६.१४ (निमि के शरीर के मन्थन से मिथि / जनक बालक की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१८(६ ऋतुओं के पिता), भागवत ९.१३ (इक्ष्वाकु - पुत्र, वसिष्ठ शाप से देह त्याग, विदेह बनना, वंश वर्णन, शरीर मन्थन से जनक का जन्म), ९.२२.४४(दण्डपाणि - पुत्र, क्षेमक - पिता), ११.२ (निमि का नौ योगीश्वरों से कल्याण का उपाय पूछना), मत्स्य ४४.५०(भजमान व बाह्यका के ३ पुत्रों में से एक), ६१ (निमि द्वारा वसिष्ठ को शाप व प्रतिशाप की कथा), १४८.५१ (तारक - सेनानी, निमि के रथ के महागजों से युक्त होने का उल्लेख), १५३.५५(निमि से युद्ध में ऐरावत पर आरूढ इन्द्र की पराजय, कुबेर से युद्ध में निमि की पराजय), वराह १८७ (निमि द्वारा पुत्र आत्रेय की मृत्यु पर श्राद्ध करना, शोक, नारद से संवाद), २०८.२७(निमि - पुत्र मिथि/जनक का वृत्तान्त), वायु ८९.१ (निमि के वंश का वर्णन), ९६.४/२.३४.४(भजमान व बाह्यका के ३ पुत्रों में से एक, क्रोष्टा वंश), विष्णु ४.५ (निमि चरित्र : वसिष्ठ को शाप व प्रतिशाप की कथा, वंश वर्णन), ४.१३.२(भजमान के पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.११७.१(वसिष्ठ व निमि द्वारा परस्पर शाप की कथा), स्कन्द १.२.१३.१५४ (शतरुद्रिय प्रसंग में निमि द्वारा नयन लिङ्ग की पूजा), १.२.१९.१(तारकासुर सङ्ग्राम में कालनेमि दैत्य द्वारा देव के भ्रम में निमि दैत्य को पकडने व मुक्त करने का कथन), १.२.१९.६२(निमि आदि दैत्यों का विष्णु से युद्ध), १.२.२०.७(निमि दैत्य द्वारा परिघ से विष्णु पर प्रहार का उल्लेख), ५.२.२७.२७ (निमि द्वारा पाप से नरक दर्शन, अनरकेश्वर लिङ्ग स्थापना से मुक्ति), ५.२.५३.१५(निमि द्वारा ब्रह्मास्त्र से ब्रह्मराक्षस को मार गिराने का कथन), वा.रामायण ७.५५ (वसिष्ठ व निमि के शाप - प्रतिशाप की कथा ), ७.५७.१०(वसिष्ठ के शाप से मृत निमि की चेतना का सब भूतों के नेत्रों में बसने का कथन ; निमि की देह के अरणि मन्थन से मिथि/जनक की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.३५५.८(ब्रह्मा के नेत्रों से निमि का जन्म, श्रीमान् नामक मानस पुत्र की मृत्यु पर निमि का शोक व पुत्र का श्राद्ध कार्य सम्पन्न करना, पुत्र के श्राद्ध विषयक शोक पर नारद द्वारा निमि को उपदेश ) nimi


      निमित्त भागवत १२.४.४(नैमित्तिक आदि प्रलयों की व्याख्या), मत्स्य १६.५(३ प्रकार के श्राद्धों में नैमित्तिक श्राद्ध का उल्लेख), वायु १.१६१/१.१.१४७(३ प्रकार की प्रलयों में से एक), १००.१३२/२.३८.१३२(नैमित्तिक आदि ३ प्रलयों का कथन ; ब्राह्म के नैमित्तिक होने का उल्लेख), विष्णु ६.३.१(नैमित्तिक आदि ३ प्रलयों का कथन ; ब्राह्म के नैमित्तिक होने का उल्लेख), ६.४.७(नैमित्तिक, प्राकृत आदि प्रलयों की व्याख्या ) nimitta


      निमेष भागवत ११.१६.२७(विभूति वर्णन के अन्तर्गत विष्णु के अनिमिषों में संवत्सर होने का उल्लेख - संवत्सरोऽस्म्यनिमिषामृतूनां मधुमाधवौ।), विष्णु १.८.२९ (विष्णु की विभूतियों के संदर्भ में काष्ठा लक्ष्मी व निमेष विष्णु होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.२९(गरुड के सुपर्ण संज्ञक पुत्रों के नामों में निमिष व अनिमिष का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.६१(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में सुप्तावस्था में निमेष न करने वाले के रूप में मत्स्य का उल्लेख - मत्स्यः सुप्तो न निमिषत्यण्डं जातं न चेङ्गते। ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२७(विष्णु के निमेष व लक्ष्मी के काष्ठा होने का उल्लेख ) nimesha

      प्राणो वा अग्निहोत्रस्याश्रावितम् । अपानः प्रत्याश्रावितम् । मनो होता । चक्षुर्ब्रह्मा ।निमेषो वषट्कारः – तैब्रा २.१.५.९, अश्वमेधाङ्गमन्त्रकथनम् - अहोरात्रे निमेषः- तैसं ७.५.२५.१


      निम्न ब्रह्म २.८१ (निम्नभेद तीर्थ का माहात्म्य : उर्वशी से वियोग होने पर पुरूरवा द्वारा निम्नभेद तीर्थ में यज्ञ प्रभाव से उर्वशी की प्राप्ति), भागवत ९.२४.१२(अनमित्र - पुत्र, सत्राजित् व प्रसेन - पिता ) nimna


      निम्ब नारद १.११६.१८ (वैशाख शुक्ल सप्तमी को निम्ब व्रत विधि), पद्म १.२८ (सूर्य के तोषणार्थ निम्ब का उल्लेख), भविष्य ३.४.७.८२ (निम्बार्क द्वारा निम्ब में सुदर्शन चक्र के तेज से सूर्य की स्थापना की कथा), ४.८८.१(गन्ध विनाशन व्रत के संदर्भ में निम्ब की पूजा का कथन), स्कन्द ७.१.२७८ ( निम्ब मूल में सूर्य की स्थिति, वाल्मीकि का निवास स्थान), लक्ष्मीनारायण १.३१५.५३ (निम्बदेव द्विज : गोलोक में स्थित कृष्ण की मुकुट मणि का अवतार), १.४४१.९६ (वृक्ष रूप धारी कृष्ण के दर्शन हेतु प्रभाकर द्वारा निम्ब वृक्ष का रूप धारण करने का उल्लेख), ३.१९८(भक्त निम्बदेव द्वारा आक्रामक वृषभ की हत्या पर कुष्ठ की प्राप्ति, कृष्ण की कृपा से कुष्ठ से मुक्ति, वृषभ के पूर्व जन्म में निम्बदेव का भृत्य होने का वृत्तान्त), ३.२१७.२(निम्बकाल ग्राम के निवासी संभरदेव भक्त चित्रकार द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) nimba


      निम्बशुचि स्कन्द ६.२७४ (मठाधीश, दु:शील शिष्य द्वारा धन के हरण का वृत्तान्त )


      निम्बार्क गर्ग १०.६१.२३ (निम्बार्क आचार्य : सनकादि के अंश), पद्म ६.१५८ (निम्बार्क तीर्थ का माहात्म्य : दैत्यों से पराजित सूर्य द्वारा निम्ब में शरण), भविष्य ३.४.७.६७ (अरुण व जयन्ती - पुत्र, सुदर्शन चक्र का अंश, ब्रह्मा को भोजन हेतु निम्ब में सूर्य की स्थापना की कथा ) nimbaarka/ nimbarka


      निम्बुक पद्म ४.२१.२५ (कार्तिक व्रत में निम्बुक भोजन से तिर्यक् योनि प्राप्ति का उल्लेख )


      निम्लोचनी देवीभागवत ८.१५.१७ (सूर्य के उदय - अस्त प्रकरण में वरुण की पुरी निम्लोचनी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७१.४(भजमान की एक पत्नी के ३ पुत्रों में से एक), भागवत ५.२१.७(मेरु के पश्चिम् में वरुण की पुरी निम्लोचनी का उल्लेख), ९.२४.७(निम्लोचि : भजमान की एक पत्नी के ३ पुत्रों में से एक), वायु ५२.११(निम्लोचा : भाद्रपद मास में सूर्य के रथ पर अधिष्ठित रहने वाली अप्सरा ) nimlochanee/nimlochaa


      नियति ब्रह्माण्ड १.२.११.५ (मेरु - कन्या, धातृ - पत्नी, मृकण्ड – माता - मेरुकल्पे स्मृते भार्ये विधातुर्धातुरेव च ।। आयतिर्नियतिश्चैव तयोः पुत्रौ दृढव्रतौ ।। प्राणश्चैव मृकंडश्च ब्रह्मकोशौ सनातनौ ।।), भागवत ४.१.४४(आयति व नियति : मेरु - पुत्रियां, धाता व विधाता की भार्याएं, मृकण्ड व प्राण की माताएं), विष्णु १.१०.३(मेरु - कन्याओं आयति व नियति के धाता व विधाता की भार्याएं व प्राण व मृकण्डु की माताएं होने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१९(नियति का विष्णु की जघन में वास), शिव ६.१६.८३(विभु की शक्ति, कर्त्तव्यज्ञानदायक - इदन्तु मम कर्तव्यमिदन्नेति नियामिका । नियतिस्स्याद्विभोश्शक्तिस्तदाक्षेपात्पतेत्पशुः ।।), ६.१७.१(नियत्यधस्तात्प्रकृतेरुपरिस्थः पुमानिति ।। पूर्वत्र भवता प्रोक्तमिदानीं कथमन्यथा।।), ७.१.१७.५३(मेरु व धरणी की ३० कन्याओं में से एक, भृगु - पुत्र की पत्नी - वेलां च नियतिं चैव तृतीयामपि चायतिम् ॥ आयतिर्नियतिश्चैव पत्न्यौ द्वे भृगुपुत्रयोः ॥), योगवासिष्ठ १.२५.१० (काल - पत्नी नियति के स्वरूप का कथन - एवंरूपस्य तस्याग्रे नियतिर्नित्यकामिनी । अनस्तमितसंरम्भमारम्भैः परिनृत्यति ।।), ६.१.३७.१०(संसार में नियति के नृत्य का वर्णन - इदमित्थमिदं नेति नियतिर्भवति स्वयम् ।। ) ; द्र. वंश भृगु niyati


      नियन्त्रक कथासरित् ८.५.६९(श्रुतशर्मा - सेनानी, मङ्गल ग्रह से जम्भक के क्षेत्र में उत्पत्ति, प्रभास से युद्ध )


      नियम पद्म १.१९.२८९(यम और दम से नियम के प्रादुर्भाव का उल्लेख), २.१२.७८ (दुर्वासा के समक्ष प्रकट नियम का स्वरूप), ब्रह्माण्ड १.२.९.५९ (धृति व धर्म - पुत्र), १.२.३६.५५(आभूतरय वर्ग के १४ देवों में से एक), ३.४.८.१९(सुखदेव वर्ग के २० देवों में से एक), भागवत ११.१९.३३ (१२ यमों व १२ नियमों के नाम), मार्कण्डेय ५०.२५/४७.२५ (धृति - पुत्र), वायु १००.१९/२.३८.१९(सुखदेव वर्ग के २० देवों में से एक), विष्णु १.७.२८(धृति - पुत्र), स्कन्द ३.२.५५.१९(दस यमों व १० नियमों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.३२३.५१(धर्म व ह्री - पुत्र), ३.६.१(नियम नामक वत्सर में सर्पों के पाताल से आकर भूमि पर बसने पर सर्प यज्ञ द्वारा सर्पों का नाश, कृष्ण का गरुड नारायण रूप में अवतार आदि), कथासरित् ८.५.८३(दम व नियम : केतुमाल के क्षेत्र में उत्पन्न अश्विनौ के पुत्र, श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानी, प्रभास से युद्ध ) niyama


      नियुत भागवत ३.१२.१३(११ रुद्राणियों में से एक )


      नियुत्सा भागवत ५.१५.६ (प्रस्ताव - पत्नी, विभु - माता )


      नियोजिका मार्कण्डेय ४८.५/५१.५(दुःसह व निर्मार्ष्टि की १६ सन्तानों में से एक )


      निरञ्जन गरुड १.२१.७ (निरञ्जना : ईशान की कलाओं में से एक), नारद १.६६.१२७(निरञ्जन की शक्ति मोहिनी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६६(५१ वर्णों के गणेशों में से एक), मत्स्य १०८.२९(यमुना के उत्तर तट पर स्थित निरञ्जन तीर्थ के माहात्म्य का कथन), वायु १०२.७९/२.४०.७९(कैवल्य से निरञ्जन व निरञ्जन से शुद्ध स्थिति की प्राप्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.३४.२(निरञ्जन भक्त द्वारा विष्णु के विराट् रूपों को देखने पर भी अतृप्त रहना, अन्त में समाधि द्वारा मूल रूप को देखकर संतुष्ट होने का वर्णन ) niranjana


      निरपेक्ष भागवत ११.२०.३५(भक्ति में निरपेक्षता की प्रशंसा )


      निरमित्र भागवत ४.२३.४(अयुतायु - पुत्र, सुनक्षत्र - पिता, बृहद्रथ वंश), ९.२२.३२(करेणुमती तथा नकुल - पुत्र), मत्स्य ५०.८७(दण्डपाणि के पुत्रों में से एक, क्षेमक - पिता), वायु ९९.२७७/२.३७.२७३(निरामित्र : दण्डपाणि के पुत्रों में से एक, क्षेमक - पिता), विष्णु ४.२०.४८(नकुल व रेणुमती - पुत्र), ४.२१.१५( दण्डपाणि - पुत्र, क्षेमक - पिता), ४.२३.४(अयुतायु - पुत्र, सुनेत्र - पिता ) niramitra


      निरय भागवत ४.८.४(भय व मृत्यु - पुत्र, यातना - भ्राता), विष्णु ३.१.११(स्वारोचिष मन्वन्तर के ऋषियों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.२२४.१० (विषय, इन्द्रिय, मन आदि १८ निरयों के नाम )


      निराकार वामन ९०.४१(निराकार में विष्णु का नाम तपोमन्त्र )


      निरानन्द ब्रह्माण्ड २.३.७.९६(व्याघ्र राक्षस - पुत्र, क्रतुओं में विघ्नकारक), वायु ६९.१३१/२.८.१२६(व्याघ्र राक्षस - पुत्र, जन्तुओं में विघ्नकारक )


      निरामय ब्रह्माण्ड ३.४.१.६४(प्रथम सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.२४(दक्ष सावर्णि के पुत्रों में से एक )


      निरामित्र ब्रह्माण्ड १.२.३६.६४(रेवतक मनु के १० पुत्रों में से एक), ३.४.१.७२ (द्वितीय सावर्णि मनु के १० पुत्रों में से एक), वायु २३.१४९(भृगु/वामन अवतार? के ४ पुत्रों में से एक), ६२.५५/२.१.५५(चरिष्णु के १० पुत्रों में से एक), ९९.२९८/२.३७.२९२(निरामित्र द्वारा १०० वर्ष राज्य करने का उल्लेख ) niraamitra


      निरालम्ब वामन ९०.४१ (निरालम्ब में विष्णु का नाम अप्रतर्क्य )


      निराश्रय लक्ष्मीनारायण २.५.८०(हिरण्यकूर्च राक्षस के भय से ब्रह्मा के कम्प के कारण उत्पन्न ८ पुत्रों में से एक, निराश्रय का हिरण्यकूर्च की मृत्यु में कारण बनना )


      निराहार वायु ५९.४१(तप के ४ लक्षणों में से एक),


      निरुक्त नारद १.५३(निरुक्त का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.८.३१(राक्षस, यज्ञ, व्याल, अहि, भूत, पिशाच, गन्धर्व आदि की निरुक्ति), १.२.२४.१०३(स्वर्भानु की निरुक्ति), १.२.३५.३(वैण रथीतर द्वारा तीन संहिताओं के अतिरिक्त चतुर्थ निरुक्त की रचना का उल्लेख), १.२.३७(वसुधा, मेदिनी, पृथिवी की निरुक्ति), १.२.३८.११(भू , भव्य की निरुक्ति), २.३.११.४२(वसिष्ठ की निरुक्ति), २.३.१.४४(अत्रि की निरुक्ति : अहं तृतीय इति), ३.४.१.१७८(अम्भ की निरुक्ति), ३.४.३.८६(क्षेत्रज्ञ आदि की निरुक्ति), भविष्य ३.४.९.४४(निरुक्तकार जयदेव द्वारा ५ प्रकार के निरुक्तों के साक्षात्कार करने का कथन), भागवत १२.६.५८(जातूकर्ण्य द्वारा स्वसंहिता को निरुक्त सहित शिष्यों को देने का उल्लेख), वायु ६१.२(रथीतर द्वारा ३ संहिताओं के अतिरिक्त चतुर्थ निरुक्त की रचना करने का उल्लेख), ६१.२८(सामवेद में स्तोभों के निरुक्त व स्वरभक्तियां होने का उल्लेख), विष्णु ३.४.२३(शाकपूर्ण द्वारा निरुक्त की रचना का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.४४(निरुक्त का वरुण अधिदेवता), स्कन्द २.२.४.७३(दारु की निरुक्ति), ५.१.२.२३(ब्रह्मा शब्द की निरुक्ति), ५.३.१९४.३३(गिरि की निरुक्ति : गिरति), लक्ष्मीनारायण २.१५७.१३(निरुक्त का ह्रदय में न्यास ) ; द्र. निघण्टु, शब्द विशेष nirukta


      निरोध लक्ष्मीनारायण १.१०९.४८ (ब्रह्मचर्य द्वारा धातु, त्वक्, रसना व मन के निरोध की प्राप्ति का कथन )


      निर्ऋति गरुड ३.८.८(निर्ऋति द्वारा हरि-स्तुति), ३.८.१२(निर्ऋति के कोणाधिप होने का उल्लेख), नारद १.५६.६८९(निर्ऋति का स्वरूप), ब्रह्म २.१४.१४(निर्ऋति देव व अद्रिका से अद्रि नामक पिशाच की उत्पत्ति का कथन), २.६७.१(अलक्ष्मी / दरिद्रा व लक्ष्मी में ज्येष्ठता के विवाद का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३६(निर्ऋति का दिति - पुत्री सिंहिका से साम्य), ब्रह्माण्ड २.३.३.४०(दिन के मुहूर्तों में से एक का नाम), २.३.३. ७०(११ रुद्रों में से एक, सुरभि व कश्यप - पुत्र), २.३.७१.३८(निर्ऋता : खशा - पुत्री, नैर्ऋत राक्षस की माता), २.३.३.७०(कश्यप व सुरभि से उत्पन्न एकादश रुद्रों में से एक), भविष्य १.५७.९(निर्ऋति के लिए शष्कुलि बलि का उल्लेख), १.५७.१७(निर्ऋति हेतु फल - मूल बलि का उल्लेख), ३.४.११.१४(विष्णु द्वारा नैर्ऋत नामक विप्र के दरिद्र होने के कारण का कथन, शिव भक्ति से नैर्ऋत का धनवान होना, मृत्यु पश्चात् वृष राशि के सूर्य में स्थित होकर वनशर्मा नाम से जन्म लेना), भागवत १.१९.४(तक्षक की निर्ऋति संज्ञा – मुनेः सुतोक्तो निर्ऋतिस्तक्षकाख्यः), ३.१२.२६(ब्रह्मा के मेढ्र से निर्ऋति की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.८.२(निर्ऋति द्वारा अधर्म - पुत्र व पुत्री दम्भ व माया को अपत्य रूप में ग्रहण करने का उल्लेख), ४.२५.५३(राजा पुरञ्जन के पश्चिम दिशा के द्वार का नाम ; निर्ऋति द्वार से वैशस नामक देश/विषय को जाने का उल्लेख), मत्स्य १५०.१०९(निर्ऋति का तारक सेनानी कुजम्भ से युद्ध), १७१.३८(सुरभि गौ व प्रजापति से उत्पन्न ११ रुद्रों में से एक), १७१.४७(आठ वसुओं में से अष्टम वसु), मार्कण्डेय ५०.३३/४७.३३ (अधर्म व हिंसा - पुत्री), लिङ्ग १.७४.७(निर्ऋति द्वारा दारु लिङ्ग की पूजा), वायु ६६.४१/२.५.४१(दिन के मुहूर्तों में से एक का नाम), ६९.१५९/२.८.१६४(खशा की सात पुत्रियों में से एक, नैर्ऋत गण राक्षसों की माता), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.५(विरूपाक्ष पुरुष, निर्ऋति प्रकृति), स्कन्द १.१.८.२४ (नैर्ऋत द्वारा राजत लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), १.१.१३.२८(निर्ऋति का प्रघस से युद्ध), १.२.१८(निर्ऋति का कुजम्भ से युद्ध, निर्ऋति की पराजय), ४.१.१२( निर्ऋति लोक का वर्णन), ५.३.२८.१७(बाण के त्रिपुर नाशार्थ शिव के रथ में वरुण व निर्ऋति का शम्या बनने का उल्लेख), ६.२५२.२४(चातुर्मास में नैर्ऋताधिप की बकुल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१५५.४८ (समुद्र मन्थन से उत्पन्न अलक्ष्मी देवी के स्वरूप का वर्णन), १.५४३.७२(दक्ष द्वारा कश्यप को प्रदत्त १३ कन्याओं में से एक), ३.४५.२४(आसुर जनों के नैर्ऋत लोक प्राप्त करने का उल्लेख), ४.४४.६६(द्वेष के नैर्ऋत बन्धन होने का उल्लेख), कथासरित् ८.७.३६(श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानी निर्ऋति के सूर्यप्रभ - सेनानी सिंहदंष्ट्र से युद्ध का उल्लेख ) ; द्र. नैर्ऋत nirriti


      निर्घात कथासरित् ८.४.१२(मयासुर - सेनानी, अर्ध रथी राजा), ८.४.७५ (निर्घात का श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानी चक्रवाल से युद्ध व मृत्यु )


      निर्भय ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०४(१३ वें मन्वन्तर में रौच्य मनु के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य १७९.२५(निर्भया : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु १००.१०९/२.३८.१०९(१३वें मन्वन्तर में रौच्य मनु के १० पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण ४.२६(श्रीहरि द्वारा भक्त निकामदेव को कथित निर्भय योग का वर्णन ) nirbhaya


      निर्मथ्य कूर्म १.१३.१५(अग्नि, पवमान का रूप), मत्स्य १२८.८(निर्मथ्य अग्नि का वर्णन), शिव ७.१.१७.३८(पवमान अग्नि का रूप), लक्ष्मीनारायण ३.२३.१० (अथर्वा अग्नि - पुत्र, गार्हपत्य - पिता ) nirmathya


      निर्मल अग्नि ३४८.६(एकाक्षर कोश के अन्तर्गत च वर्ण का दुर्जन व निर्मल अर्थ में प्रयोग )


      निर्मार्ष्टि मार्कण्डेय ५१(दुःसह - पत्नी, कलि - पुत्री )


      निर्माल्य गरुड २.२.२३(विप्र, मन्त्र आदि के निर्माल्य न बनने का कथन), २.२९.२२(कुश, ब्राह्मण, मन्त्र, अग्नि आदि के निर्माल्यता को प्राप्त होने की स्थिति का कथन), वराह १२६ (निर्माल्य कूट पर सर्पिणी का नकुल से युद्ध, दोनों का मरण, जन्मान्तर की कथा), स्कन्द २.२.३७.५४(निर्माल्य भक्षण से राजा श्वेत के पापों के नाश का कथन), २.२.३८.३ (विष्णु के निर्माल्य भक्षण का महत्त्व )


      निर्मूक कथासरित् १८.३.४(पारसीक राजा निर्मूक का उल्लेख )


      निर्मोक ब्रह्माण्ड ३.४.१.२२(आठवें मन्वन्तर में सावर्णि मनु के पुत्रों में से एक), भागवत ८.१३.११(आठवें मन्वन्तर में सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), ८.१३.३१(१२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), विष्णु ३.२.१९(आठवें मन्वन्तर में सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक )


      निर्मोह ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०३(रौच्य मनु के युग के सप्तर्षियों में से एक), मत्स्य ९.२१(रैवत मन्वन्तर में रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक), वायु १००.२१/ २.३८.२१(सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.४०(१३वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) nirmoha


      निर्यास भविष्य १.५७.१४(रेवत हेतु निर्यास बलि का उल्लेख )


      निर्वक्त्र वायु ९९.२७१/२.३७.२६७(अधिसामकृष्ण - पुत्र, उष्ण - पिता, हस्तिनापुर को त्याग कौशाम्बी में वास का उल्लेख )


      निर्वाक् भागवत ४.२५.५४(वैशस नामक देश के निवासियों में निर्वाक् व पेशस्कृत के अन्धे होने का कथन), ४.२९.१५(अन्धे निर्वाक् के हस्त - पाद का प्रतीक होने का उल्लेख )


      निर्वाण अग्नि ३२.१(निर्वाणादि दीक्षाओं में ४८ संस्कारों के नाम), ८३(निर्वाण दीक्षा के अन्तर्गत मूलादि दीपन, अधिवासन विधि का वर्णन), ८४(निर्वाण दीक्षा विधान के अन्तर्गत निवृत्ति कला शोधन का वर्णन), ८५(निर्वाण दीक्षा के अन्तर्गत प्रतिष्ठा कला संशोधन विधि), ८६(निर्वाण दीक्षा में विद्या शोधन विधान), ८७ (निर्वाण दीक्षा के अन्तर्गत शान्ति शोधन विधान), ८८(निर्वाण दीक्षा में शान्त्यतीत कला शोधन विधान), ब्रह्माण्ड ३.४.१.७३(निर्वाणरति : तीसरे सावर्णि मनु के ११वें मन्वन्तर के ३ देवगणों में से एक गण, गण के ३० देवों के मास के ३० दिन होने का उल्लेख), भागवत ८.१३.२५(निर्वाणरुचि : ११वें मन्वन्तर के ३ देवगणों में से एक), स्कन्द ४.२.७९.५६(निर्वाण मण्डप का संक्षिप्त माहात्म्य), योगवासिष्ठ ५.३१(प्रह्लाद - निर्वाण नामक सर्ग), ५.५५ (उद्दालक का निर्वाण नामक सर्ग), ५.८७(वीतहव्य का निर्वाण नामक सर्ग), ६.१.१++ (निर्वाण प्रकरण), ६.२.२०(जीव निर्वाण योगोपदेश नामक सर्ग), ६.२.३१(निर्वाण युक्ति उपदेश वर्णन नामक सर्ग), ६.२.३८(निर्वाण वर्णन नामक सर्ग), ६.२.४२(निर्वाणोपदेश नामक सर्ग), ६.२.५३(निर्वाण वर्णन नामक सर्ग), ६.२.७२(निर्वाण वर्णन नामक सर्ग), ६.२.१४३(मुनि द्वारा व्याध को निर्वाण बोधोपदेश), ६.२.१६१(वसिष्ठ - राम संवाद प्रसंग में निर्वाण वर्णन नामक सर्ग), ६.२.१७४(निर्विकल्प व सविकल्प समाधि व निर्वाण में अन्तर का कथन ; निर्वाण व तुरीया मोक्षादि में तादात्म्य का कथन), ६.२.२०३.५०(राम द्वारा स्वयं को निर्वाण स्थिति में मानना), लक्ष्मीनारायण ३.२८.३९(क्ष्माचोलक दरिद्र विप्र - पत्नी, लक्ष्मी की नामों सहित आराधना से लक्ष्मी की पुत्री रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त), ३.२३०.५९(श्रीहरि द्वारा निर्वाणायन साधु को हरि भक्ति का उपदेश ) nirvana


      निर्वासभुज कथासरित् ७.५.५४(अयशोलेखा व वीरभुज - पुत्र, भ्राता शृङ्गभुज से स्वर्णिम शर को वापस मांगने व शृङ्गभुज द्वारा शर प्राप्ति के उद्योग का वर्णन), ७.५.२००(वही)


      निर्वृति ब्रह्माण्ड २.३.७०.४०(धृष्टि - पुत्र, दशार्ह - पिता, विदर्भ वंश), भागवत ९.२४.३(धृष्टि - पुत्र, दशार्ह - पिता, विदर्भ वंश), मत्स्य ४४.३९(धृष्ट - पुत्र, विदूरथ - पिता, क्रोष्टा वंश), २७१.२६(मगधराज सुनेत्र - पुत्र, ५८ वर्षों तक राज्य करने का उल्लेख), मार्कण्डेय ७४.२७/७१.२७(निर्वृत्ति चक्षु ऋषि के पुत्र सुतपा का प्रसंग ) nirvriti


      निर्व्याधि ब्रह्माण्ड ३.४.३४.१४(षोडशावरण चक्र के षष्ठ आवरण के रुद्रों में से एक )


      निर्हपु वायु ३१.८(१२ देवों के गण में से एक )


      निर्ह्रति पद्म १.४०.८३(एकादश रुद्रों में से एक, सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र), १.४०.९१(अष्टम वसु प्रभास, धर्म व सुरभि - पुत्र )


      निर्ह्राद पद्म ६.६.९१(जालन्धर सेनानी, धनद से युद्ध )


      निवात ब्रह्माण्ड २.३.७१.१३८(शूर के १० पुत्रों में से एक), वायु ९६.१३६/२.३४.१३६(शूर के १० पुत्रों में से एक )


      निवातकवच गर्ग ८.२.१७(निवातकवचों के राजा कलि का उल्लेख), देवीभागवत ८.२० (निवातकवचों का रसातल में वास), ब्रह्माण्ड २.३.५.३७(संह्राद के कुल में उत्पन्न निवातकवचों के द्वारा महान् तप करने का उल्लेख), भागवत ५.२४.३०(पणि दैत्यों का उपनाम, अन्य नाम कालेय, हिरण्यपुरवासी), ८.१०.३४(निवातकवचों का मरुतों से युद्ध), मत्स्य ६.२८(संह्राद - पुत्र), वामन ६९.५८(अन्धकासुर के देवों से युद्ध में निवातकवचों के साध्यों व मरुतों से युद्ध का उल्लेख), विष्णु १.२१.१४(प्रह्लाद के कुल में निवातकवचों के उत्पन्न होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२२३.३(पाताल विजय के संदर्भ में रावण द्वारा निवातकवचों आदि से युद्ध, ब्रह्मा द्वारा रावण व निवातकवचों में मैत्री कराने का कथन), शिव ५.३२.३८(संह्राद के कुल में निवातकवचों के उत्पन्न होने का उल्लेख), स्कन्द ७.१.२१.२९(संह्राद के पुत्र?, सव्यसाची द्वारा वध का उल्लेख), वा.रामायण ७.२३(निवातकवचों का रावण से युद्ध व मैत्री ) nivaatakavacha


      निवाप नारद १.४३.११४(निवाप से पितरों की तृप्ति का उल्लेख),


      निवास स्कन्द ४.२.६३.१६(काशी में ज्येष्ठ स्थान में निवासेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : गृह में संपदाओं का निवास), ४.२.९७.१३७(निवासेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : काशी वास का फल ); द्र. श्रीनिवास nivaasa


      निवृत्ति अग्नि ८४.११(निवृत्ति कला शोधन की विधि), गरुड १.२१.६ (ईशान की कलाओं में से एक), नारद १.९१.६९(तत्पुरुष शिव की चतुर्थ कला का नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१९.४(शाल्मलि द्वीप की ७ नदियों में से एक), ३.४.३५.९८(शिव की १६ कलाओं में से एक), भागवत ७.१५.४७(प्रवृत्ति व निवृत्ति परक कर्मों व उनके द्वारा प्राप्त पितृयान व देवयान मार्गों का वर्णन), वायु ४९.४१(शाल्मलि द्वीप की ७ नदियों में से एक), विष्णु २.४.२८(शाल्मलि द्वीप की ७ नदियों में से एक), शिव ७.२.२९.२९(५ कलाओं में से एक, निवृत्ति का जानु में न्यास), महाभारत शान्ति ३४०.३(देवताओं के प्रवृत्ति धर्मा तथा ऋषियों के निवृत्तिधर्मा होने का उल्लेख), ३४०.७२(निवृत्ति धर्म में स्थित सन:, सनत्सुजात, सनक आदि ७ ऋषियों का उल्लेख ; प्रवृत्ति धर्म में स्थित अन्य ७ ऋषियों का उल्लेख )द्र. प्रवृत्ति nivritti


      निवेश वायु ६९.३९/२.८.४०(यक्षों के कईं गणों में से एक )


      निशठ ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६६(बलदेव के एक पुत्र का नाम, उल्मुक - भ्राता), विष्णु ५.२५.१९(निशित : बलदेव व रेवती - पुत्र, उल्मुक - भ्राता), हरिवंश २.१०३.२४(बलराम व रेवती - पुत्र ) nishatha


      निशा ब्रह्माण्ड ३.४.३२.९(महानिशा : महाकाल की ३ शक्तियों में से एक), मत्स्य १२२.७१(कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक, अन्य नाम सीता), वायु ६९.२०५/२.८.१९९(क्रोधा की पुत्रियों में से एक, पुलह - भार्या), स्कन्द ५.१.१८.६( ब्रह्मा द्वारा रात्रि/निशा/एकानंशा देवी को शिव - पार्वती की सुरत में विघ्न डालने के लिए प्रेरित करना ) ; द्र. रात्रि nishaa


      निशार लक्ष्मीनारायण ३.२०४.२(निशार ग्राम के काष्ठहार जाङ्गलदेव भक्त का वृत्तान्त )


      निशाकर वामन ९०/९१.४५(कोशकार द्विज का मूक पुत्र, सूर्पाक्षी हरण प्रसंग में कोशकार के पूर्वजन्म का वृत्तान्त , पूर्व जन्म में निशाकर के व्याघ्र व गर्दभ रूप), वा.रामायण ४.५१+ (पङ्ख जलने पर सम्पाती गृध्र द्वारा निशाकर मुनि के दर्शन व सान्त्वना प्राप्ति), ४.६०.८(सम्पाती का निशाकर ऋषि से मिलन), ४.६१(सम्पाती द्वारा निशाकर मुनि को अपने पङ्ख जलने का कारण बताना), ४.६२(निशाकर मुनि द्वारा सम्पाती को राम के भावी कार्य में सहायता देने के लिए जीवित रहने का निर्देश आदि ) nishaakara


      निशाचर विष्णुधर्मोत्तर १.८२.३७ (ग्रह विशेष के निशाचरों के नाम )


      निशीथ ब्रह्माण्ड ३.४.३३.१२(निशीथा : षोडशावरणाब्ज में स्थित १६ शक्तियों में से एक), भागवत ४.१३.१४(पुष्पार्ण व दोषा के ३ पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.३.१२.२०(निशीथ काल में गङ्गाधर द्वारा रक्षा की प्रार्थना - पायान्निशादौ शशिशेखरो मां गंगाधरो रक्षतु मां निशीथे ।), द्र. वंश ध्रुव


      निशुम्भ गणेश २.७६.१३ (सिन्धु व विष्णु के युद्ध में निशुम्भ का पवन से युद्ध), देवीभागवत ५.२१.१०(शुम्भ व निशुम्भ भ्राता - द्वय द्वारा ब्रह्मा से नारी के सिवाय अन्यों से अवध्यता के वर की प्राप्ति), ५.२१.४३(इन्द्र से युद्ध में निशुम्भ की पराजय, शुम्भ द्वारा इन्द्र पर विजय), ५.३०( शुम्भ - भ्राता, चण्डिका द्वारा वध), पद्म ६.६.९१(जालन्धर - सेनानी, रुद्रों से युद्ध), ६.१२.२(जालन्धर सेनानी, महाकाल से युद्ध), ६.१०१(जालन्धर सेनानी, कार्तिकेय से युद्ध), मार्कण्डेय ८५.१/८२.१(शुम्भ - निशुम्भ दैत्यों से पीडित देवों द्वारा विष्णु माया देवी की स्तुति), ८८.२३/८५.२३(देवी द्वारा शिव को दूत बनाकर शुम्भ - निशुम्भ के पास भेजना), ८९.४/८६.४(शुम्भ - निशुम्भ का सेना सहित देवी से युद्ध व मृत्यु), वामन ५५.२(दनु व कश्यप - पुत्र, शुम्भ व नमुचि - भ्राता, नमुचि की मृत्यु पर शुम्भ व निशुम्भ द्वारा देवताओं पर विजय, भ्राता - द्वय द्वारा कौशिकी / विन्ध्यवासिनी देवी की प्राप्ति के लिए असुर दूतों का प्रेषण), ५६.१३(शिव द्वारा शिवदूती देवी का संदेश शुम्भ - निशुम्भ को देना), ५६.३३(निशुम्भ का देवी कात्यायनी/कौशिकी से युद्ध व मरण), वायु ६७.७७/२.६.७७(वैरोचन असुर - पुत्र गवेष्ठी के ३ पुत्रों में से एक), स्कन्द २.४.२२.२(जलन्धर द्वारा माया से सृष्ट गौरी का निशुम्भ द्वारा वध किए जाते देखने पर शिव द्वारा शुम्भ - निशुम्भ को गौरी के हाथों मृत्यु का शाप), लक्ष्मीनारायण १.३२८.६(निशुम्भ के षडानन से युद्ध का उल्लेख ), द्र. जलन्धर/जालन्धर nishumbha


      निश्चय अग्नि ३४८.८(एकाक्षर कोश में ण वर्ण के निश्चय व निष्कर्ष हेतु प्रयोग का उल्लेख), कथासरित् ७.३.३(वणिक् - पुत्र निश्चयदत्त द्वारा शृङ्गोत्पादिनी यक्षिणी की सहायता से अनुरागपरा विद्याधरी को प्राप्त करने के लिए किए गए उद्योग का वृत्तान्त ) nishchaya


      निश्चर ब्रह्माण्ड ३.४.१.७९(११वें मन्वन्तर/तीसरे सावर्णि मनु के समय के सप्तर्षियों में से एक )


      निश्चल गरुड १.२१.७ (निश्चला : ईशान की कलाओं में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१८(स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक )


      निश्च्यवन मत्स्य ९.८(स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक )


      निषध अग्नि ३४१.१८(नृत्य में १८ संयुत करों में से एक निषध का उल्लेख), गरुड २.२२.५८/२.३२.११२(पिण्ड में ब्रह्माण्ड के न्यास के संदर्भ में ऊर्ध्वभाग में निषध की स्थिति का उल्लेख), गर्ग ७.१८.४५(निषध देश के राजा वीरसेन द्वारा प्रद्युम्न को भेंट देने का उल्लेख ), पद्म १.८.१५७(अतिथि - पुत्र, नल - पिता, इक्ष्वाकु वंश), १.४०.९७ (मरुत का नाम, मरुत्वती - पुत्र), ३.३०.१(निषध नगर वासी हेमकुण्डल वैश्य व उसके २ पुत्रों का वृत्तान्त), ब्रह्म १.१६.३३(मेरु के दक्षिण में स्थित केसराचलों में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३२(निषधा : विन्ध्याचल से निर्गत नदियों में से एक), १.२.१७.३४(निषध में नागों के वास का उल्लेख), २.३.३९.८(परशुराम द्वारा शक्ति से निषधराज का वध), भागवत ९.२२.४ (निषधाश्व : कुरु के चार पुत्रों में से एक), मत्स्य १२.५२(अतिथि - पुत्र, नल - पिता), १७१.५३(निषधन : धर्म व मरुत्वती से उत्पन्न मरुतों में से एक), लिङ्ग १.५२.४५ (निषध पर्वत पर नागों का वास), वराह ८३ (निषध पर्वत के उपपर्वतों व नदियों के नाम), वामन ९०.१३ (निषध देश में विष्णु का अमरेश्वर नाम से वास), वायु ४१.४८(पश्चिम् दिशा में स्थित निषध पर्वत के महत्त्व का कथन), ४५.१०२(निषधा : विन्ध्याचल से नि:सृत नदियों में से एक), स्कन्द ३.३.९.१४(निषधराज - पत्नी सीमन्तिनी द्वारा वधू वेश धारी ब्रह्मचारी को वास्तविक वधू बनाने का वृत्तान्त), ३.३.१३.६३(निषधराज चन्द्राङ्गद द्वारा स्वकन्या का विवाह दशार्ण के राजपुत्र भद्रायु से करने का वृत्तान्त), ४.१.१.५६ (निषध पर्वत की निरुक्ति : ओषधि से रहित), हरिवंश १.१५.२७ (अतिथि - पुत्र, नल - पिता), कथासरित् १२.१९.१४२(विद्याधर द्वारा स्वपुत्री को शाप देकर निषध अद्रि को जाने का उल्लेख ; विद्याधरी पुत्री द्वारा शाप के अन्त होने पर निषध अद्रि को जाने का कथन), १३.१.८०(निषध देश की प्रशंसा ) ; द्र. नैषध nishadha


      निषाद पद्म २.३८.३६(वेन की सव्य बाहु के मन्थन से निषाद की उत्पत्ति), भागवत ४.१४.४३(वेन की ऊरु के मन्थन से निषाद की उत्पत्ति आदि), वराह १५३.५(नैमिषारण्य निवासी निषाद द्वारा मथुरा में यमुना में स्नान से राजा बनने का वृत्तान्त), वायु २१.४३/१.२१.४०(२०वें कल्प में निषाद का जन्म, कल्प व स्वर द्वारा निषाद नाम प्राप्ति), ४७.८१(विन्ध्य से प्रतिहत गङ्गा का लौटकर निषाद आदि जातियों के प्लवन करने का कथन), ९६.१८४/२.३४.१८४(श्राद्धदेव के निषध जाति के मूल पुरुष होने, निषादों द्वारा पोषित होने व एकलव्य के नाम से विख्यात होने का कथन), लक्ष्मीनारायण १.३४४.९(मथुरा में संयमन तीर्थ में स्नान से नैमिषारण्य निवासी दुष्ट निषाद द्वारा जन्मान्तर में राजा बनने का वृत्तान्त), कथासरित् ५.२.३३(कनकपुरी की खोज में शक्तिदेव विप्र के सत्यव्रत निषाद तक पंहुचने का वृत्तान्त ) nishaada

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      निष्कर्ष अग्नि ३४८.८(ण वर्ण के निष्कर्ष व निश्चय हेतु प्रयोग का उल्लेख )


      निष्कल स्कन्द ५.१.६.६(देवों व योगियों द्वारा सकल - निष्कल, तपस्वियों द्वारा सकल व ज्ञानियों द्वारा निष्कल शिव के दर्शन का उल्लेख )


      निष्किञ्चन लक्ष्मीनारायण ३.३४.६४(निरञ्जन भक्त द्वारा लक्ष्मी को निष्किञ्चन श्री नामक पुत्री रूप में प्राप्त करना )


      निष्कुट ब्रह्माण्ड २.३.७.४०४(पिशाचों के निवासभूत स्थानों में से एक निष्कुट का उल्लेख )


      निष्कुम्भ हरिवंश ३.५९(निष्कुम्भ विश्वेदेव का वृषपर्वा से युद्ध )


      निष्कल पद्म १.४०(विश्वेदेव का नाम )


      निष्कुलाद ब्रह्माण्ड १.२.२०.१७(अतल नामक प्रथम तल में निष्कुलाद असुर का भवन होने का उल्लेख), वायु ५०.१६(वही)


      निष्कौशाम्बी गर्ग ७.२७.८(दशार्ण देश के राजा शुभाङ्ग के निष्कौशाम्बी पुरी के अधिपति होने का उल्लेख )


      निष्क्रिय भागवत ३.१२.४३(संन्यासियों के ४ वर्गों में से एक), महाभारत शान्ति ३३९.३१ (निष्क्रिय पुरुष में अव्यक्त पुरुष के लीन होने का कथन )


      निष्ठीवी ब्रह्माण्ड १.२.१६.२६(हिमालय से नि:सृत २२ नदियों में से एक )


      निष्ठुरक वराह ५(निष्ठुरक व्याध द्वारा विप्र को अग्नि द्वारा जाल के पारण का दृष्टान्त देना), वायु ५९.१०४(निष्ठुर : आत्रेय मन्त्रकार ऋषियों में से एक), स्कन्द २.४.७.५०(दीप दान के सन्दर्भ में निष्ठुरक लुब्धक का चन्द्रशर्मा से वार्तालाप), लक्ष्मीनारायण १.५२५.७(कपिल - जैगीषव्य - अश्वशिरा राजा संवाद में कपिल द्वारा कर्म से निर्लिप्ति के संदर्भ में निष्ठुरक व्याघ्र व संयमन विप्र के द्रष्टान्त का वर्णन), कथासरित् २.२.२१(मन्त्रिपुत्र श्रीदत्त के मित्रों में से एक ) nishthuraka


      निष्पाव मत्स्य ६०.८(विष्णु के वक्ष: स्थल पर स्थित सौभाग्य के भूमि पर पतन से उत्पन्न ८ द्रव्यों में से एक), स्कन्द १.२.१३.१८०(शतरुद्रिय प्रसंग में दानवों द्वारा निष्पावज लिङ्ग की दिक्पति नाम से पूजा का उल्लेख), ५.३.२६.१४६ मधूक तृतीया व्रत के संदर्भ में आषाढ में निष्पाव दान का निर्देश )

      निष्प्रकम्प ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०३(१३वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से प्रथम), विष्णु ३.२.४०(३.२.४०(वही)


      निसुन्द ब्रह्माण्ड २.३.५.३४(ह्राद - पुत्र, सुन्द - भ्राता), वायु ६७.७१/ २.६.७१ ह्रद - पुत्र, ह्राद - भ्राता, सुन्द व उपसुन्द - पिता), हरिवंश २.६३.७०(नरकासुर - सेनानी निसुन्द का कृष्ण द्वारा वध ) nisunda




      नि:श्वास वराह ७१.५४(कलिपीडित द्विजों के लिए शिव द्वारा नि:श्वास संहिता की सृष्टि करने का कथन )


      निस्स्वर विष्णु ३.२.३१(११वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक )


      नीति अग्नि २२६ (साम, दाम आदि नीतियां - प्रतिकूलं तथा दैवं पौरुषेण विहन्यते ।
      सात्त्विकात् कर्म्मणः पूर्वात् सिद्धिः स्यात्पौरुषं विना ।।), २३४ (साम दाम आदि नीतियों का वर्णन - दण्डः स्वदेशे कथितः परदेशे व्रवीमि ते ।। प्रकाशश्चाप्रकाशश्च द्विविधो दण्ड उच्यते ।), २३८ (राम द्वारा लक्ष्मण को राजनीति का उपदेश), गरुड १.१०८+ (सुखी जीवन हेतु नीति - नीतिसारं प्रवक्ष्यामि अर्थशास्त्रादिसंश्रितम् । राजादिभ्यो हितं पुण्यमायुः स्वर्गादिदायकम् ॥ ), ३.१७.४१(वायु का सहदेव में नीति के रूप से प्रवेश करने का उल्लेख - नीतिरूपेण चाविष्टो सहदेवे च मारुतः ।
      द्रौपदीं रमते नित्यं सहदेवोप्युषां खग ॥ ), ३.२९.६७(सुनीति काल में नृसिंह नारायण के ध्यान का निर्देश - सुनीतिकाले संस्मरेन्नारसिंहं नारायणं संस्मरेत्सर्वदापि ॥), ब्रह्मवैवर्त्त १.१० (घृताची व विश्वकर्मा का नीति विषयक संवाद), मत्स्य २.२२+ (साम दाम आदि नीतियां), ४७.७४(शुक्राचार्य द्वारा शिव से नीति सीखकर असुरों को बताने का आश्वासन - नीतिं यां वोऽभिधास्यामि तिष्ठध्वं कालपर्ययात्।), १४८.६५(देवासुर सङ्ग्रामों के संदर्भ में बृहस्पति द्वारा इन्द्र को नीति का उपदेश), २२२+ (साम नीति का वर्णन, साम, दाम, दण्ड, भेद), मार्कण्डेय २७ (मदालसा द्वारा पुत्र अलर्क को नीतिगत अनुशासन देना), वायु ९७.१०५(शुक्राचार्य द्वारा शिव से नीति सीखकर असुरों को बताने का आश्वासन), विष्णु १.८.१८ (विष्णु की विभूतियों के संदर्भ में नीति लक्ष्मी, नय विष्णु होने का उल्लेख), वा.रामायण २.१०० (राम द्वारा भरत को राजनीति की शिक्षा), महाभारत शान्ति ५९.३२(ब्रह्मा द्वारा निर्मित नीति शास्त्र के अन्तर्गत वर्णित विषयों का कथन - आत्मादेशश्च कालश्चाप्युपायाः कृत्यमेव च। सहायाः कारणं चैव षड्वर्गो नीतिजः स्मृतः।।), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१९(लक्ष्मी के नीति व विष्णु के नय होने का उल्लेख ), द्र. सुनीति neeti/ niti


      नीप ब्रह्माण्ड ३.४.१७.३४(नीपप्रिया : ललिता देवी के १६ नामों में से एक), मत्स्य ४९.५९(नीप वंशी राजाओं द्वारा जनमेजय की पराजय, उग्रायुध द्वारा नीपों का संहार), भागवत ९.२१.२४(पार - पुत्र, १०० पुत्रों के पिता, कृत्वी पत्नी से ब्रह्मदत्त पुत्र की उत्पत्ति), ९.२१.२९(कृति - पुत्र, उग्रायुध - पिता), १०.२२.९(कृष्ण द्वारा स्नानरत गोपियों के वस्त्र लेकर नीप वृक्ष पर चढने की कथा), मत्स्य ४९.५२(पौर - पुत्र, नीप के १०० नीप पुत्रों का उल्लेख), ४९.५९(जनमेजय की रक्षा के लिए उग्रायुध द्वारा सारे नीपों के नाश का शाप, जनमेजय द्वारा रक्षा की कथा), महाभारत अनुशासन ३४.१७( भृगवस्तालजङ्घांश्च नीपानाङ्गिरसोऽजयन्। भरद्वाजो वैतहव्यानैलांश्च भरतर्षभ।। ), मार्कण्डेय ११४.७/११.७(नाभाग वैश्य - पुत्र भलन्दन द्वारा शत्रुओं को जीतने के लिए राजर्षि नीप से अस्त्र ग्राम ग्रहण करने का कथन), वायु ९९.१७४/२.३७/१६९(पार - पुत्र, नीप के १०० राजा पुत्रों की नीप संज्ञा का उल्लेख), हरिवंश १.२०.४५(उग्रायुध द्वारा पृषत् - पितामह नीप का वध), १.२१.४१(नीपों के राजा विभ्राज के वैभव को देखकर चक्रवाकों का तप से च्युत होना), लक्ष्मीनारायण २.१००.११(गण्डकी तट पर नीपालय प्रदेश में शिवराज के गृह में लक्ष्मी के अवतार व चक्रवाकी उर्वशी से मिलन का वृत्तान्त), २.१०३.३४(गण्डकी तट पर नीपालय प्रदेश में शिव, सती, लक्ष्मी आदि के अवतार का कथन), २.१०४.२४(भूतायन प्रदेश में शाङ्करी व नीपालय प्रदेश में पार्वती प्रजा होने का उल्लेख), २.१६५.४(नीलकर्ण भक्त आदि द्वारा नीपराया तट पर केतुमाल खण्ड में भ्रमण का वृत्तान्त ) neepa


      नीराजन अग्नि २६८.१६ (नीराजन विधि का वर्णन), नारद १.१२१.३९ (नीराजन द्वादशी व्रत की विधि), भविष्य ४.७१ (नीराजन द्वादशी व्रत का माहात्म्य : अजपाल द्वारा रावण को ज्वर का प्रेषण, रावण का भय), विष्णुधर्मोत्तर २.१५९ (राजा हेतु नीराजन शान्ति विधि का वर्णन), स्कन्द १.१.२५ (शिव - पार्वती, लक्ष्मी, गायत्री आदि द्वारा नीराजन), २.४.९.५(कार्तिक कृष्ण द्वादशी पर नीराजन से शुभ – अशुभ ज्ञान), लक्ष्मीनारायण १.३००.१८(ब्रह्मा के ६ मानस पुत्र - पुत्रियों में से एक, नीराजना के शान्त स्वभाव का कथन), १.३००.११७(वैकुण्ठ में नीराजना द्वारा साग्निक नर्तन, भ्रामण कार्य का उल्लेख ) neeraajana/ nirajana


      नील गरुड १.५३ (नील निधि का स्वरूप), गर्ग ७.२५.५६(प्राग्ज्योतिष पुर के राजा, भौमासुर - पुत्र नील द्वारा प्रद्युम्न को भेंट देने का कथन), पद्म १.२० (नील व्रत की विधि व माहात्म्य), ५.१७ (नील पर्वत का माहात्म्य, रत्नग्रीव राजा का आगमन), ब्रह्म १.४३.७०(पुरुषोत्तम क्षेत्र में स्थित इन्द्रनीलमयी प्रतिमा का माहात्म्य : प्रतिमा के दर्शन से यमलोक का रिक्त होना आदि ; यम के अनुरोध पर भगवान् द्वारा प्रतिमा का आच्छादन करना), ब्रह्माण्ड १.१.१.६९(जम्बू द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक), १.२.१४.५०(आग्नीध्र - पुत्र रम्य के नील वर्ष के अधिपति बनने का उल्लेख ), १.२.१५.२२(नील पर्वत के वैदूर्यमय होने का उल्लेख), १.२.१५.३३(नील या रम्यक वर्ष के इलावृत वर्ष से परे होने का उल्लेख ; नीलवान् से परे उत्तरवेदी होने का उल्लेख), १.२.१७.३५(वैदूर्यमय नील पर्वत पर सिद्धों, ब्रह्मर्षियों के निवास का उल्लेख), १.२.१८.५४(नीलमुख : ह्लादिनी नदी द्वारा प्लावित पूर्व के जनपदों में से एक), १.२.२०.२२(सुतल नामक द्वितीय तल में नील राक्षस के भवन का उल्लेख), २.३.७.३३९(नीलवत् : वामन व अङ्गना के २ पुत्रों में से एक), २.३.८.९५(पराशरों की ८ शाखाओं में से एक), २.३.६९.२(यदु के ५ पुत्रों में से एक), २.३.७१.४७ (नीला : केशिनी - पुत्री, आलम्ब - भार्या, नैल राक्षस व विकचा की माता), भविष्य २.२.१४.२६ (रुरु रक्षेति मन्त्र के ऋषि), ३.३.३२.२३४ (आह्लाद द्वारा कलि से प्राप्त महानील द्वारा पृथ्वीराज की आंखें नीली करना), भागवत ५.१६.८(इलावृत वर्ष के उत्तर में स्थित ३ पर्वतों में से एक), ५.१९.१६(भारतवर्ष के बहुत से पर्वतों में से एक), ५.२५.७(अनन्त के नीलवासा होने का उल्लेख), ९.२१.३०(अजमीढ व नीलिनी - पुत्र, शान्ति - पिता, सुशान्ति - पितामह), १०.६५.३०(यमुना का यमन करने के पश्चात् बलराम द्वारा नील वस्त्र धारण करने का उल्लेख), मत्स्य २२.२२(पितरों के श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थ नीलकुण्ड का उल्लेख), २२.७०(नील पर्वत : श्राद्ध हेतु प्रशस्त व पवित्र तीर्थ), ४३.७(यदु के ५ पुत्रों में से एक), ५०.१(अजमीढ व नीलिनी - पुत्र, तप से सुशान्ति पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख), १०१.५ (नील व्रत की संक्षिप्त विधि), ११३.२२(जम्बू द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक), १२१.५३(नीलमुख : ह्लादिनी नदी द्वारा प्लावित पूर्व के जनपदों में से एक), १२१.६८(मेरु के पार्श्व में स्थित ह्रदों में से एक), १९५.१९(भार्गव गोत्रकार एक ऋषि), २६५.२८(मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में जपे जाने वाले सूक्तों में नील सूक्त का उल्लेख), मार्कण्डेय ६८.३७/६५.३७(नील निधि के आश्रित पुरुष के गुणों का कथन), लिङ्ग १.४९.२०(नील पर्वत के वैडूर्यमय होने का उल्लेख), १.५०.९ (सुनील पर्वत पर राक्षसों का वास), १.५२.४६ (नील पर्वत पर सिद्धों आदि का वास), वामन ७२.१५(नीला : राजा के वीर्य का पान कर मरुतों को जन्म देने वाली ७ मुनि पत्नियों में से एक), ९०.३२ (शङ्कुकर्ण में विष्णु का नीलाभ नाम), वायु १.३९.३१(वज्रक पर्वत पर नीलक नामक घोर राक्षसों के निवास का उल्लेख), १.३९.३२(महानील पर्वत पर किन्नरों के १५ पुरों तथा नागों के पुरों का कथन), १.८५/१.१.७७(जम्बू द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक), ३३.४३(आग्नीध्र - पुत्र रम्य के नील वर्ष के अधिपति बनने का उल्लेख), ३४.२०(नील पर्वत के वैदूर्यमय होने का उल्लेख), ३५.८(नील व निषध पर्वतों के मेरु की दक्षिण व उत्तर दिशा में होने का उल्लेख), ३९.३१(नीलक : वज्रक पर्वत पर नीलक राक्षसों के वास का उल्लेख), ४१.१०(कुबेर की ८ निधियों में से एक), ४२.६७(गङ्गा नदी का नाग पर्वत से निकल कर नील पर्वत पर व नील से कपिञ्जल, इन्द्रनील, महानील आदि पर्वतों को जाने का कथन), ४३.१४(भद्राश्व देश के ५ कुलपर्वतों में से एक), ४६.३४(नील पर्वत के वैडूर्यमय होने व सिद्ध ब्रह्मर्षियों से सेवित होने का उल्लेख), ५०.२२(पाण्डुभौम नामक द्वितीय तल में नील राक्षस के भवन का उल्लेख), ९४.२/२.३.२(यदु के ५ पुत्रों में से एक), ९९.१९२/२.३७.१८७(पाञ्चाल नरेश नील के उग्रायुध द्वारा वध का उल्लेख), ९९.१९४(अजमीढ व नीलिनी - पुत्र, सुशान्ति आदि के पिता), विष्णु १.४.२६(महावराह द्वारा पृथिवी के उद्धार के संदर्भ में रसातल से नील उत्पल के पत्र के समान प्रकट होने का उल्लेख), २.१.२०(आग्नीध्र - पुत्र रम्य के नीलाचल आश्रित वर्ष के अधिपति बनने का उल्लेख), २.२.११(मेरु के उत्तर के वर्ष पर्वतों में से एक), ४.१९.३८(राजा पार का एक पुत्र, समर - प्रधान १०० पुत्रों के पिता), स्कन्द १.१.८.२४(यम द्वारा नीलमय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), २.२.१.३४ (नील पर्वत पर पुरुषोत्तम दर्शन का माहात्म्य), २.२.११.५(राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा नीलमाधव / पुरुषोत्तम के दर्शन हेतु यात्रा आरम्भ का वर्णन), २.२.१५.१८(इन्द्रद्युम्न द्वारा नारद से नीलमाधव की स्थिति के स्थान के बारे में पृच्छा ; नारद द्वारा न्यग्रोध आदि का दर्शन कराना), ३.१.४२.४९ (नील तीर्थ का माहात्म्य), ३.१.४९.३०(देशकाल से अभिन्न कहकर नील द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ४.१.१.५७ (नील पर्वत के नीली निलय होने का उल्लेख), ५.१.१६(नील? गन्धवती नदी की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का वर्णन), ५.१.५४.२०(महाकालवन में प्रवेश करने पर गङ्गा के नष्टपापा होकर नीलवासा से शुक्लवासा बनने का कथन), ५.३.१४६.७५(अस्माहक तीर्थ में नील वृषभ उत्सर्ग के महत्त्व का वर्णन), ६.२५८.४५(विप्रों के शाप से लिङ्ग पतन पर शिव का सुरभि गौ से नील वृष के रूप में जन्म लेना), ६.२५९.४०(नील वृष रूपी शिव का माहात्म्य), वा.रामायण १.१७.१३ (वानर, पावक - पुत्र), ४.२९.२९(सुग्रीव द्वारा नील वानर को सारी दिशाओं से समस्त वानर सेना को एकत्र करने का आदेश), ६.२४.१४ (नील की वानर सेना के पुरोदेश में स्थिति), ६.२६.१४ (सारण द्वारा रावण को नील का परिचय), ६.३७.२६ (लङ्का के पूर्व द्वार पर नील का प्रहस्त से युद्ध), ६.४३.९ (नील का रावण - सेनानी निकुम्भ से युद्ध), ६.५८.३४(नील का प्रहस्त से युद्ध व नील द्वारा प्रहस्त का वध), ६.५९.७४(रावण से युद्ध में नील का मूर्च्छित होना, पिता अग्नि द्वारा नील के प्राणों की रक्षा), ६.७०.२८(नील का रावण - सेनानी महोदर से युद्ध व नील द्वारा महोदर का वध), ६.२५८.४५(विप्रों के शाप से लिङ्ग पतन पर शिव का सुरभि गौ से नील वृष के रूप में जन्म लेना), ६.२५९.४०(नील वृष रूपी शिव का माहात्म्य), योगवासिष्ठ ६.२.१४३.३२(व्योम की सुषिरता व निबिडता में स्थित नीलता का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५८१.३१(पुरुषोत्तम क्षेत्र में नीलाचल की उत्पत्ति का वृत्तान्त : कण्ठ की नील मणि का स्थान), २.५४.४७(नीला लक्ष्मी की प्रकृति के अन्तर्गत नीला लक्ष्मी के त्रिगुणात्मक होने का कथन), २.८३.१०७(श्रीहरि के पाद पङ्कज में विराजने वाले ८ तीर्थों में से एक नील का उल्लेख), २.१४०.३१ (इन्द्रनील, महानील नामक प्रासादों के लक्षणों का कथन), ३.२५१.९२(नील निधि के लक्षणों का कथन ) ; द्र. महानील neela/ nila


      नीलकण्ठ नारद १.९१.१४८ (नीलकण्ठ शिव के मन्त्र का विधान), पद्म ६.९६.१०(जालन्धर उपाख्यान में इन्द्र द्वारा वज्र के प्रहार के कारण शिव द्वारा नीलकण्ठत्व प्राप्ति), ६.१५१.१८ (धवलेश्वर लिङ्ग का युगान्तर में नाम), ६.१७२ (नीलकण्ठ तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.४९ (नीलकण्ठ से दन्त पंक्तियों की रक्षा की प्रार्थना), १.१९.५० (नीलकण्ठ से वक्ष स्थल की रक्षा की प्रार्थना), ४.३७.३३ (पार्वती के कोप से नीलकण्ठ होना), ब्रह्माण्ड १.२.२५ (शिव द्वारा नीलकण्ठ नाम प्राप्ति का कारण), वामन ९०.२७ (कालञ्जर में विष्णु का नीलकण्ठ नाम), वायु ५४.४६ (शिव द्वारा नीलकण्ठ नाम प्राप्ति के कारण का वर्णन : समुद्र मन्थन से उत्पन्न विष का पान), स्कन्द १.२.५७(नीलकण्ठ का माहात्म्य? ), ३.३.१२.२३ (नीलकण्ठ से मार्गों में रक्षा की प्रार्थना), ४.२.७२.५९ (नीलकण्ठी देवी से कण्ठ प्रदेश की रक्षा की प्रार्थना), ४.२.७७.६८ (नीलकण्ठेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१०९ (कालिञ्जर तीर्थ में लिङ्ग का नाम), ७.१.२१९.१ (नीलकण्ठेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), कथासरित् १२.७.११६(श्रीकण्ठ द्विज - पुत्र, गङ्गा से फलों की व राजकुमार भीमभट से धन की प्राप्ति का कथन), महाभारत शान्ति ३४२.११४(नारायण द्वारा आक्रामक रुद्र का कण्ठ पकड लेने से रुद्र के शितिकण्ठ / नीलकण्ठ होने का उल्लेख ) neelakantha/ nilakantha

      Remarks by Dr. Fatah Singh

      नीलकण्ठ पुराणों की कथा के अनुसार इन्द्र बृहस्पति को साथ लेकर शिव के दर्शन को गया । उसे शिव तो दिखाई नहीं पडे, एक भयंकर आकृति वाला पुरुष अवश्य दिखाई दिया । इन्द्र ने क्रुद्ध होकर उसके कण्ठ पर वज्र का प्रहार किया जिससे उसका कण्ठ नीला हो गया । वही नीलकण्ठ कहलाये । जीवात्मा रूपी इन्द्र शिव की खोज में कैलास पर जाता है तो उसे कल्याणकारी शिव दिखाई नहीं पडते, अपितु अपनी कमजोरियां - काम, क्रोध आदि के रूप में भयंकरताएं दिखनी आरम्भ हो जाती हैं। जीवात्मा को यह पता नहीं है कि साधना का पहला चरण यही है, लेकिन गुरु बृहस्पति के रूप में बृहती बुद्धि, या अनुभवी व्यक्ति तुरन्त जान लेता है । इस भयंकर पुरुष से उत्तर न मिलने पर इन्द्र के वज्र प्रहार से उस पुरुष का कण्ठ नील हो गया । ऐसी ही स्थिति तब हुई थी जब शिव ने समुद्र मन्थन से उत्पन्न विष को पिया था । इन्द्र का वज्र मारना वज्र की भांति दृढ संकल्प का , कि वह अपनी बुराइयों को समाप्त करके ही रहेगा, का प्रतीक है । शिव का विषपान भी सारी बुराइयों को पी जाने, समाप्त कर देने का प्रतीक है । अत: दोनों स्थितियों में नीलकण्ठ होना एक ही बात है । अन्य दृष्टिकोण से यदि सोचा जाए तो कण्ठ में नीले रंग का प्रकट होना साधना का आरम्भ है । नीला रंग तमस का , लाल रजस का और श्वेत सत्त्व का प्रतीक हो सकता है । कण्ठ नीला होने के पश्चात् ही लाल रंग की ज्वाला भृकुटि मध्य में उत्पन्न होती है । यह शिव का क्रोध है । यह साधारण क्रोध नहीं है जो रक्त में उत्पन्न होता है । यह तो मन्यु है जो वीर्य में उत्पन्न होता है । यह इन्द्र रूपी जीवात्मा की बुराइयों को जला देने वाले है, यदि बृहती बुद्धि उसके साथ न हो । यदि बृहती बुद्धि साथ है तो फिर इस सात्त्विक क्रोध का उपयोग अन्यत्र करना है । इस ज्वाला को शान्त करके जाल बनाना है । - फतहसिंह


      नीलकर्ण लक्ष्मीनारायण २.१६४+ (नीलकर्ण चात्वाल द्वारा वृकायन ऋषि की रक्षा व वृकायन द्वारा नीलकर्ण के परिवार की अतिवृष्टि से रक्षा, नीलकर्ण आदि द्वारा केतुमाल खण्ड की यात्रा )


      नीलगङ्गा स्कन्द ५.१.५४(नीलगङ्गा माहात्म्य के अन्तर्गत नीलवासा गङ्गा द्वारा महाकालवन में प्रवेश करने पर नष्ट पापा होकर नीलवासा से शुक्ल वासा बनना), ५.३.२५(नीलगङ्गा - रेवा सङ्गम का संक्षिप्त माहात्म्य : काम्य अर्थ की प्राप्ति )


      नीलग्रीव स्कन्द ४.२.८४.२८ (नीलग्रीव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : स्नान से सर्वदा शुचिता )


      नीलध्वज गर्ग १०.१४.१३(माहिष्मती पुरी के राजा इन्द्रनील के पुत्र नीलध्वज द्वारा उग्रसेन के अश्वमेधीय हय का बन्धन), १०.१५.१(इन्द्रध्वज का अनिरुद्ध व साम्ब से युद्ध व पराजित होना )



      नीलपताका नारद १.८८.१६० (राधा की १२वीं कला, स्वरूप), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.५९(ललिता देवी की सहचरी १५ देवियों में से एक), ३.४.२५.९८ (ललिता सहचरी नीलपताका द्वारा जम्बुकाक्ष का वध), ३.४.३७.३४(नीलपताका आदि १५ देवियों के १५ तिथियों का प्रतीक होने का कथन ) neelapataakaa


      नीलमाधव ब्रह्म १.४३.७४(यम द्वारा नीलमाधव / इन्द्रनील की मूर्ति का आच्छादन )


      नीलरत्न पद्म ५.६७.४०(अधिरम्या - पति )


      नीललोहित ब्रह्माण्ड १.२.१० (नीललोहित की महादेव से उत्पत्ति, भव, शर्व आदि ८ नाम प्राप्ति, नीललोहित का वास स्थान), मत्स्य ४७.१२७(शुक्र द्वारा नीललोहित की ३०० नामों से स्तुति), २९०.३(३० कल्पों में से दूसरे कल्प का नाम), लिङ्ग १.४१.२५ (नील लोहित शिव की उत्पत्ति), १.५०.५ (नीललोहित का करञ्ज पर्वत पर वास), स्कन्द ५.१.२.२८ (रुद्र, ब्रह्मा के ललाट के स्वेद से उत्पत्ति का वृत्तान्त ), ७.१.१०५.४५ (द्वितीय कल्प का नाम ) neelalohita


      नीलवासा स्कन्द ७.४.१७.२५(कृष्ण के पश्चिम दिशा के द्वारपालों में से एक )


      नीलवृष पद्म ६.३२.२२(नील वृष के लक्षणों का कथन )


      नीला गरुड ३.१९.६९(कुम्भक-पुत्री नीला द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति, अन्य जन्म), ब्रह्माण्ड २.३.७.१४७(कपिल यक्ष व केशिनी - पुत्र, आलम्बेय - भार्या, नैला नामक क्षुद्र राक्षसों आदि की माता), वायु ६९.१७८/२.८.१७२(वही) neelaa


      नीलिनी मत्स्य ४९.४४(अजमीढ की ३ रानियों में से एक), वायु ९९.१९४/२.३७.१८९(अजमीढ - पत्नी, नील -माता )


      नीलोत्पल लिङ्ग (नीलोत्पल पर अम्बिका की स्थिति का उल्लेख), वायु ४५.१००(नीलोत्पला : ऋक्ष पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक )


      नीहार ब्रह्माण्ड १.२.२२.५२ (दिग्गजों के मुख से नि:सृत शीकर का नाम )


      नूपा ब्रह्माण्ड १.२.१६.२८(पारियात्र पर्वत से नि:सृत कईं पुण्य नदियों में से एक )


      नूपुर गणेश २.९०.१३ (नूपुर दैत्य का नृत्यरत गणेश के नूपुरों में प्रवेश , गणेश द्वारा वध), स्कन्द १.१.२२.५(शिव द्वारा शंखक व पद्मक नागों का नूपुर रूप में धारण का उल्लेख), ३.१.९.३३(अशोकदत्त द्वारा श्मशान में देवी से एक नूपुर प्राप्त करने व पुन: दूसरा नूपुर प्राप्त करने का वृत्तान्त), ५.२.४७ (नूपुरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : नूपुर गण द्वारा उर्वशी के नृत्य में विघ्न पर कुबेर का शाप, लिङ्ग की स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.३८५.५३(विकुण्ठा द्वारा नूपुर प्रदान), कथासरित् ५.२.१५२(अशोकदत्त द्वारा श्मशान में देवी से एक नूपुर प्राप्त करने तथा पुन: दूसरा नूपुर प्राप्त करने का वृत्तान्त ) noopura/nuupura/ nupur


      नृकेसरी विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.४(मद्र देश में नृकेसरी की पूजा का निर्देश )


      नृग अग्नि २७७.७ (महामना व नृगा - पुत्र, नरा व कृमि - पति), ब्रह्माण्ड १.२.३८.३०(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), २.३.७४.१९(उशीनर व नृगा - पुत्र), भागवत ९.१.१२(श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक), ९.२.१७ (नृग वंश का वर्णन ; सुमति - पिता), १०.६४ (शाप से नृग को कृकलास योनि की प्राप्ति, कृष्ण द्वारा कृकलास रूपी नृग का कूप से उद्धार), मत्स्य ४८.१८(उशीनर व भृशा - पुत्र), वराह ४७ (द्वादशी देवी द्वारा नृग की व्याधों से रक्षा, नृग का वामदेव से संवाद), विष्णु ३.१.३३(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), ४.१.७(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), ४.१८.९(उशीनर के ५ पुत्रों में से एक), स्कन्द २.७.११.१३(नृग - पुत्र कीर्तिमान् द्वारा वसिष्ठ से वैशाख मास धर्म का श्रवण व पालन), ६.१७७.५२ (नृग द्वारा कूप में बालुकामय यज्ञ द्वारा पूजा), ७.४.१० (नृग तीर्थ का माहात्म्य , गौ के पुन: दान के कारण ब्राह्मणों का नृग को शाप, कृष्ण द्वारा उद्धार की कथा), वा.रामायण ७.५३ (राजा नृग द्वारा दान की हुई गौ का पुन: दान करने से कृकलास बनने की कथा), ७.५४(नृग द्वारा पुत्र वसु को राज्य देकर विशेष प्रकार से निर्मित गर्त्त में शाप भोगने का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.२२२(नृग द्वारा गौतम व सोमशर्मा विप्रों को गोदान की सार्वत्रिक कथा), १.५४५.२२(नृग तीर्थ के संदर्भ में नृग राजा के शरीर से निर्गत एकादशी व द्वादशी तिथियों द्वारा दस्युओं के नाश का वृत्तान्त ) nriga


      नृगा ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८(उशीनर की ५ रानियों में से एक, नृग - माता )


      नृत्त भविष्य १.२४ (स्त्रीपुरुष के सामुद्रिक लक्षणों के अनुसार फल), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४.१६(मधु - कैटभ दैत्यों के हनन हेतु निर्मित नृत्त शास्त्र को विष्णु द्वारा ब्रह्मा को देने का कथन), ३.३५+ (नृत्त सूत्र व चित्र सूत्र के अनुसार देह के विभिन्न अङ्गों के आयामों का वर्णन ) nritta


      नृत्य अग्नि ३४१ (नृत्य में आङ्गिक कर्म का वर्णन), गणेश २.९०(गणेश द्वारा नृत्य काल में नूपुर दैत्य का वध), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४ (नृत्य का माहात्म्य), स्कन्द ६.२५४ (पार्वती की तुष्टि हेतु शिव द्वारा ताण्डव नृत्य), ७.१.२७० (हस्त से शाक रस स्रवण पर मङ्कि ऋषि का नृत्य, ब्रह्माण्ड का कम्पित होना), योगवासिष्ठ १.१७.८३ (तृष्णा की नर्तकी से उपमा), ६.१.३७ (नियति का नृत्य ) ; द्र. ताण्डवनृत्य nritya


      नृदेव मत्स्य १४४.५९(कलियुग में प्रमति नामक विष्णु अवतार के पिता नृदेव का उल्लेख )


      नृप अग्नि १२१.४२ (नृप दर्शन हेतु नक्षत्र विचार), भविष्य १.२७ (नृप के सामुद्रिक लक्षणों का वर्णन), ३.२.२९.४(धर्म व मख के रक्षक की नृपति संज्ञा), शिव ५.६.४१(नरक प्राप्त कराने वाले नृप के अनुचित कर्मों का कथन), २.१२७.२२(बालकृष्ण व राजा शिबि संवाद के अन्तर्गत नृप के कर्तव्यों का वर्णन ) nripa


      नृपञ्जय भागवत ९.२२.४२(मेधावी - पुत्र, दूर्व - पिता), मत्स्य ४९.७९(सुनीथ - पुत्र, विरथ - पिता), वायु ९९.१९३/२.३७.१८८(सुवीर - पुत्र, वीररथ - पिता )


      नृम्णा भागवत ५.२०.४(प्लक्ष द्वीप की ७ मुख्य नदियों में से एक )


      नृशंस महाभारत उद्योग ४३.१९(१३ प्रकार के नृशंसों के नाम), ४५.३(नृशंसधर्मा ६ प्रकार के मनुष्यों के दोष), ४५.४(७ पापशील नृशंसों के नाम), लक्ष्मीनारायण २.२१८.३७(नृशंस मनुष्यों के लक्षणों का कथन ) nrishamsa/ nrishansa


      नृषङ्गु वा.रामायण ७.१.४(पश्चिम दिशा में निवास करने वाले ऋषियों में से एक )


      नृसिंह अग्नि ३१.३२(नृसिंह से वृद्ध, बाल व युवा ग्रहों को दग्ध करने की प्रार्थना), ६३.४ (नृसिंह विद्या मन्त्र), ३४८.१३(एकाक्षर कोश के अन्तर्गत क्षो द्वारा नृसिंह का निरूपण), कूर्म १.१६ (हिरण्यकशिपु की कथा का रूप भेद), गरुड १.२२३ (घोर मातृकाओं के शमन हेतु नृसिंह का प्राकट्य, शिव द्वारा नृसिंह की स्तुति), गरुड ३.२४.६७(वेंकटाद्रि पर नृसिंह की जल रूप में स्थिति), ३.२९.६१(पान काल में नृसिंह के स्मरण का निर्देश), ३.२९.६७(सुनीति काल में नृसिंह के ध्यान का निर्देश), गर्ग १.१६.२४(नृसिंह की शक्ति रमा का उल्लेख), देवीभागवत ८.९ (हरिवर्ष में प्रह्लाद द्वारा आराध्य देव), नारद १.६६.९८(नृसिंह की शक्ति विद्युता का उल्लेख), १.७१ (नृसिंह का नृहरि से साम्य ; नृसिंह यन्त्र का कथन , नृसिंह मन्त्र उपासना, नृसिंह न्यास आदि का वर्णन), १.१२३.८ (नृसिंह चतुर्दशी व्रत की विधि), २.५५.८१ (नृसिंह की महिमा व पूजा विधि), पद्म १.३०.६ (नृसिंह का जनलोक में वास), ६.१७४ (नृसिंह तीर्थ का माहात्म्य, नृसिंह चतुर्दशी व्रत, नृसिंह का हारीत व लीलावती - पुत्र बनना, नृसिंह द्वारा प्रह्लाद के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन), ६.२३८ (नृसिंह अवतार की कथा), ६.२३८.१०० (नृसिंह शरीर के अङ्गों में विश्व की स्थिति), ब्रह्म १.५५ (नृसिंह पूजा, नृसिंह दर्शन का माहात्म्य), २.९३.३० (नृसिंह से अङ्गुलि की रक्षा की प्रार्थना - बाहू रक्षतु वाराहः पृष्ठं रक्षतु कूर्मराट्।
      हृदयं रक्षतात्कृष्णो ह्यङ्गुली रक्षतान्मृगः।।), ब्रह्मवैवर्त्त २.९३.३० (नृसिंह से अङ्गुलि की रक्षा की प्रार्थना), ३.३१.४४ (नृसिंह से जल, स्थल व अन्तरिक्ष में रक्षा की प्रार्थना -), ४.१२.२३ (नृसिंह से हस्तों की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड २.३.३३.२६(नृसिंह से जल, स्थल व अन्तरिक्ष में रक्षा की प्रार्थना - जले स्थले चान्तरिक्षे नृसिंहः पातु मां सदा । स्वप्ने जागरणे चैव पातु मां माधवः स्वयम् ॥), भागवत २.७.१४(अवतारों की महिमा के संदर्भ में नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु को ऊरुओं पर गिराकर नख से विदारण करने का कथन), ५.१८.७ (हरिवर्ष में प्रह्लाद द्वारा नृसिंह की उपासना), ६.८.१४(नृसिंह से दुर्ग आदि में रक्षा की प्रार्थना), ६.८.३४(नृसिंह से दिशाओं - विदिशाओं में रक्षा की प्रार्थना), ७.८(नृसिंह का प्रादुर्भाव, हिरण्यकशिपु का वध, देवों द्वारा नृसिंह की स्तुति), ७.९(प्रह्लाद द्वारा नृसिंह की स्तुति), मत्स्य १६१.३७(नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु की सभा के अवलोकन का वर्णन), १६२(प्रह्लाद द्वारा नृसिंह वपु में ब्रह्माण्ड के देवताओं का दर्शन, हिरण्यकशिपु द्वारा नृसिंह पर अस्त्रों से प्रहार), १६३.९३ (नृसिंह द्वारा नखों व ओंकार की सहायता से हिरण्यकशिपु का वध, वध के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा नृसिंह की स्तुति), १७९.४४(घोर मातृकाओं से जगत की रक्षा हेतु शिव द्वारा नृसिंह की आराधना, नृसिंह द्वारा ३२ मातृकाओं की सृष्टि कर घोर मातृकाओं को शान्त करने का वृत्तान्त), १७९.७१(नृसिंह भैरवी : नृसिंह द्वारा अपने अङ्गों से सृष्ट ३२ मातृकाओं में से एक), २६०.३१(नृसिंह की प्रतिमा का रूप), लिङ्ग १.९५(हिरण्यकशिपु वध के पश्चात् देवों द्वारा नृसिंह की स्तुति), १.९६ (वीरभद्र द्वारा नृसिंह के घोर रूप का निग्रह), वराह ४२ (नृसिंह का न्यास व नृसिंह व्रत), वामन ९०.५ (कृतशौच तीर्थ में विष्णु का नृसिंह नाम से वास), विष्णु १.१७(हिरण्यकशिपु- प्रह्लाद के आख्यान का आरम्भ), १.२०.३२(हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्लाद को दी गई यातनाओं के विस्तृत वर्णन में नृसिंह का उल्लेख मात्र), ५.५.१६(रक्षा कवच के संदर्भ में नृसिंह से सर्वत्र रक्षा की प्रार्थना), विष्णुधर्मोत्तर १.२२६ (रौद्र मातृकाओं की शान्ति के लिए नृसिंह द्वारा मातृकाओं की सृष्टि), ३.७८ (नृसिंह की मूर्ति का रूप - हिरण्यकशिपुर्दैत्यस्तमज्ञानं विदुर्बुधाः ।।
      सङ्कर्षणात्मा भगवानज्ञानस्य विनाशनः ।।..), ३.११९.१२ (नृसिंह की भय से मुक्ति हेतु पूजा - पूजयेन्नरसिंहं तु सर्वबाधा विनाशनम् ।। यथेष्टरूपं धर्मज्ञ सर्वकार्येषु चार्चयेत् ।।), ३.३५४ (नृसिंह का शिव लिङ्ग से प्राकट्य, विश्वक्सेन की रक्षा - लिङ्गं भित्त्वा ततो देवो नरसिंहवपुर्धरः ।। समुत्थाय ततः क्रोधाद् ग्रामस्वामिकुमारकम् ।।), शिव ३.११-३.१२ (भीषण ज्वालाओं की शान्ति हेतु शरभ द्वारा नृसिंह का शिर छेदन - कण्ठे कालो महाबाहुश्चतुष्पाद्वह्निसन्निभः ।।), स्कन्द २.२.४.२४(पुरुषोत्तम क्षेत्र में नृसिंह का माहात्म्य), २.२.१५.१५(इन्द्रद्युम्न द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र में नृसिंह की भयानक उग्र मूर्ति का दर्शन, नृसिंह का माहात्म्य), २.२.१६ (नारद व इन्द्रद्युम्न द्वारा नृसिंह मूर्ति हेतु प्रासाद की स्थापना का उद्योग, इन्द्रद्युम्न द्वारा स्तुति, नृसिंह का माहात्म्य), २.२.२८ (नृसिंह का प्राकट्य, ब्रह्मा द्वारा स्तुति), २.२.२८.४४ (सामवेद का स्वरूप - ऋग्वेदरूपी हलधृक्सामवेदो नृकेसरी ।। यजुर्मूर्त्तिस्त्वियं भद्रा चक्रमाथर्वणं स्मृतम् ।।), २.२.३०.७९ (नृसिंह से आग्नेय दिशा की रक्षा की प्रार्थना - आग्नेय्यां नरसिंहस्तु नैर्ऋत्यां मधुसूदनः ।। ), २.३.४ (बदरी क्षेत्र में शिला), ४.२.५८.५६ (विदार नरसिंह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : पापों का विदारण), ४.२.६१.१८९ (महाबल नृसिंह, प्रचण्ड नृसिंह, गिरि नृसिंह आदि विष्णु मूर्तियों का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६१.२२८ (नृसिंह की मूर्ति के लक्षण - नृसिंहः शंखचक्राभ्यां पद्मेन गदयोह्यते ।।), ४.२.७०.३१ (निर्वाण नृसिंह के समीप नारसिंही देवी की पूजा का निर्देश), ४.२.८३.९९ (नृसिंह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - ततो नृसिंहतीर्थं च महाभयनिवारणम् ।। कालादपि कुतस्तत्र स्नात्वा परिबिभेति च ।।), ४.२.८४.२३ (विदार नरसिंह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अघ नाश), ४.२.८४.४८ (सर्व नृसिंह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अघ जनित भय से मुक्ति), ५.१.६६ (महाकाल वन में नृसिंह तीर्थ का माहात्म्य - सभामध्ये तदा व्यास हरिणाऽमित्रघातिना ।। करेणैकप्रहारेण हिर ण्यकशिपुर्हतः ।।), ५.३.९०.५९(नृसिंह द्वारा तालमेघ दैत्य पर नारसिंह बाण से प्रहार, तालमेघ द्वारा रथ को त्यागने का उल्लेख), ७.१.१०५.४९(१६वें कल्प का नाम), हरिवंश १.४१.३९ (नृसिंह अवतार के संदर्भ में हिरण्यकशिपु का वृत्तान्त), ३.४१.४२(नृसिंह का हिरण्यकशिपु की सभा में गमन व सभा का अवलोकन), ३.४२(नृसिंह द्वारा अप्सराओं व दैत्यों से सेवित हिरण्यकशिपु का अवलोकन), ३.४३ (प्रह्लाद द्वारा नृसिंह विग्रह में त्रिलोकी के दर्शन), ३.४४(दैत्यों व हिरण्यकशिपु द्वारा नृसिंह पर विभिन्न अस्त्रों का प्रहार), ३.४५(दैत्यों तथा हिरण्यकशिपु द्वारा नृसिंह पर किए गए प्रहारों की निष्फलता), ३.४७ (देवों के अनुरोध पर नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध, ब्रह्मा द्वारा नृसिंह की स्तुति), लक्ष्मीनारायण १.१४० (नृसिंह का आविर्भाव, प्रह्लाद द्वारा विराट रूप के दर्शन, देवों द्वारा स्तुति), १.२६५.१३(नृसिंह की शक्ति क्षेमङ्करी का उल्लेख - अधोक्षजस्त्रयीयुक्तः क्षेमंकर्या नृकेसरी ।), २.२२.२२(अरण्य में नृसिंह तीर्थ की श्रेष्ठता का उल्लेख - पर्वते बदरीतीर्थं चारण्ये नारसिंहकम् ।), २.२३९.६९(राजा रोल की सेना के पशुओं के कारण उद्यान के नष्ट होने पर रोल के आराध्य देव नृसिंह का अदृश्य होना, उद्यानादि की स्थापना पर पुन: प्राकट्य), ३.१७०.१६(एकविंश धाम के नारसिंह धाम होने का उल्लेख - विंशं हंसाश्रितं धामैकविंशं नारसिंहकम् । आर्षभं द्वाविंशकं च त्रयोविंशं तु वामनम् ।। ) ; द्र. नरसिंह nrisimha



      नृहर ३.३.१७.५ (पृथ्वीराज - पुत्र, दु:शासन का अंश), ३.३.२६.२९ (राजपुत्र), ३.३.२६.८१ (युद्ध में नृहर द्वारा अभय का वध), ३.३.२६.९० (दु:शासन का अंश, युद्ध में रणजित् द्वारा वध), ३.३.३१.७५ (नृहर का मूलवर्मा की कन्या प्रभावती से विवाह ) nrihara


      नेतिष्य मत्स्य १९५.२७(एक भार्गव गोत्रकार ऋषि )


      नेत्र गरुड २.३०.५७/२.४०.५७(मृतक के नेत्रों में कपर्दिका देने का उल्लेख), ब्रह्म २.९३.३१ ( पक्षिग? हंस से नेत्रों की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३१(नेत्र दीप्ति हेतु दर्पण दान का निर्देश ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२४४(नेत्रवान् : वाली के सामन्त व वानर नायकों में से एक), भविष्य ३.४.२५.३५(ब्रह्माण्ड देह से चाक्षुषप्रद सूर्य की और ब्रह्माण्ड नेत्र से सोम व सोम से वैवस्वत मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख), भागवत २.३.२२ (विष्णु के लिङ्गों के दर्शन न करने वाले नयनों के मोर के चक्षु - चिह्नों की भांति व्यर्थ होने का कथन), ९.२३.२२(धर्म - पुत्र, कुन्ति - पिता, यदु वंश), लिङ्ग १.९८.१६२ (विष्णु के नेत्रों का सुदर्शन चक्र बनना ?), वामन ७८.५८(प्रभास ब्राह्मण - पुत्र, गतिभास नामक वामनावतार - भ्राता, नेत्रभास द्वारा गतिभास का गृह से निष्कासन), ९०.३१ (सैन्धवारण्य में विष्णु का सुनेत्र नाम), वायु ६.१६ (वराह के अक्षों का क्रतु से साम्य), ६९.३२/२.८.३२(महानेत्र : किन्नरों के गण में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.३७ (नेत्रों की आकृति), शिव ३.३९.१९ (नेत्रों से दर्शन के चार प्रकारों उज्ज्वल, सरस आदि का वर्णन), स्कन्द ४.१.४२.१४(नेत्रों में मातृमण्डल होने का उल्लेख), ५.१.५१.६(शिव द्वारा तृतीय नेत्र से सर्पों के २१ कुण्डों के अमृत के पान का उल्लेख), ५.२.२६.२३(समुद्र मन्थन के संदर्भ में वासुकि को नेत्र बनाने का उल्लेख), ५.३.१५०.१८(शिव के एक नेत्र के समाधि में, एक पार्वती के शृङ्गार में तथा एक काम को भस्म करने में व्यस्त होने का कथन), ५.३.१६९.२८(राजा देवपन्न की कन्या कामप्रमोदिनी के नेत्र कर्णान्त तक होने का उल्लेख), ७.४.१७.२३(नेत्रभङ्ग : नैर्ऋत दिशा में कृष्ण की रक्षा करने वाले गणों में से एक), हरिवंश २.८०.१८(नेत्रों की सुन्दरता के लिए करणीय कर्तव्यों का कथन), ३.१७.४७(अव्यक्त के नेत्रों से ऋग्वेद व यजुर्वेद की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५० (अलक्ष्मी के नेत्र महिषी सदृश होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३४२.२५ (दक्ष के तप से रुद्र के ललाट में तीसरा नेत्र उत्पन्न होने का कथन ) ; द्र. कुनेत्रक, त्रिनेत्र, दुर्नेत्र netra


      नेत्रसिंह भविष्य ३.३.१३.१७ (स्वर्णवती कन्या - पिता, इन्द्र से शत्रु विजयक ढक्का की प्राप्ति), ३.३.१३.९४ (शल्य का अंश, आह्लाद आदि को स्वकन्या स्वर्णवती प्रदान करने का उद्योग, छल से आह्लाद की हत्या का यत्न, बन्धन ग्रस्त होना, भ्राता हरानन्द द्वारा नेत्रसिंह का मोचन आदि), ३.३.३२.४८ (शल्यांश, कुरुक्षेत्र में युद्धार्थ आगमन), ३.३.३२.९५ (परिमल - सेनापति, गजपति से युद्ध ) netrasimha


      नेदिष्ठ लक्ष्मीनारायण २.२३२.५३(कृष्ण के द्विनेदिष्ठ पुरी में जाने का उल्लेख )


      नेपाल देवीभागवत ७.३८ (नेपाल में गुह्य काली देवी का वास), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.९३(५१ पीठ स्थानों में से एक), वायु १०४.७९/२.४२.७९(नेपाल पीठ के नयनों में न्यास का उल्लेख), शिव ४.१९.१५(केदार तीर्थ में स्थित महिष रूप धारी शिव का शिर नयपाल में होने का उल्लेख), स्कन्द ५.२.७०.२, २९(नेपाल के राजा दुर्द्धर्ष द्वारा कल्प द्विज की कन्या की प्राप्ति, राक्षस द्वारा कन्या का हरण व महाकाल की कृपा से पुन: प्राप्ति का वृत्तान्त), कथासरित् १२.२२.३(नेपाल के राजा यश:केतु की कन्या शशिप्रभा के विवाह का वृत्तान्त ) nepaala/nepal


      नेमि ब्रह्माण्ड ३.४.१.१४ (सुतपा देवगण का नाम), भागवत ९.२२.३९(नेमिचक्र : असीमकृष्ण - पुत्र, चित्ररथ - पिता, कौशाम्बी को राजधानी बनाना), मत्स्य १५०.१६१ (तारक - सेनानी, कालनेमि को परामर्श देना), वायु ५१.६० (सूर्य रथ में षड्ऋतु रूपी नेमि), ९९.३५२/२.३७.३४६(नेमिकृष्ण : आपादबद्ध - पुत्र, २५ वर्षों तक राज्य करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३११.४४ (पद्मनेमि : समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण के हाथ में पुष्प गुच्छ देना), २.१४०.८५(नेमि नामक प्रासाद में अण्डों, तलों व तिलों की संख्या का कथन), २.२४५.५०(जीवरथ में आचार के नेमि होने का कथन), महाभारत आश्वमेधिक ३२.२६ (जनक के सत्त्वनेमि वाले चक्र का प्रवर्तक होने का उल्लेख ) ; द्र. अरिष्टनेमि, कालनेमि, वसुनेमि nemi


      नेष्टा पद्म १.३४.१७(पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ में बृहस्पति के नेष्टा बनने का उल्लेख), मत्स्य १६७.९(पुरुष रूपी यज्ञ की ऊरु से नेष्टा व अच्छावाक् की सृष्टि का उल्लेख), वायु २९.२९(उशीराग्नि के नैष्ठीय अग्नि होने का उल्लेख), स्कन्द ३.१.२३.२७(ब्रह्मा के यज्ञ में वरुण के नेष्टा बनने का उल्लेख), ६.५.८(त्रिशङ्कु व विश्वामित्र के यज्ञ में अत्रि के नेष्टा बनने का उल्लेख), ६.१८०.३४(उत्तर? पुष्कर में ब्रह्मा के यज्ञ में रैभ्य मुनि के नेष्टा बनने का उल्लेख), ७.१.२३.९७ (ब्रह्मा/चन्द्रमा के यज्ञ में क्रथ के नेष्टा बनने का उल्लेख ) ; द्र. ऋत्विज neshtaa

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      नै:श्रेयस भागवत ३.१५.१६(वैकुण्ठ के नै:श्रेयस वन के महत्त्व का कथन )


      नैकजिह्व मत्स्य १९५.२७(भार्गव गोत्रकार एक ऋषि )


      नैकवक्त्रा विष्णु ५.२०.४(कुब्जा का नाम, श्रीकृष्ण द्वारा सुन्दरी बनाना ) ; द्र. कुब्जा


      नैगमेय ब्रह्माण्ड २.३.३.२५(स्कन्द का अंश, कुमार - भ्राता, अग्नि - पुत्र), मत्स्य ५.२६(स्कन्द का अंश, कुमार - भ्राता, अग्नि - पुत्र), वामन ६८.६० (शिव गण, युद्ध में अय:शिरा दैत्य पर शक्ति से आक्रमण करने का कथन), ६९.४८(नैगमेय के बाण असुर से युद्ध का उल्लेख), वायु ६६.२४(कुमार के अनुजों में से एक, अग्नि - पुत्र), विष्णु १.१५.११५(वही) ; द्र. वंश वसुगण naigameya


      नैतुन्द ब्रह्माण्ड २.३.७.३८३(पिशाचों के १६ गणों में से एक), वायु ६९.२६४(नितुन्दक पिशाचों के स्वरूप का कथन )


      नैध्रुव ब्रह्माण्ड १.२.३२.११२(६ ब्रह्मवादी काश्यपों में से एक), मत्स्य १४५.१४६(वही), स्कन्द ३.३.१८+ (अन्ध ऋषि, शारदा के वैधव्य की समाप्ति के लिए उमा - महेश्वर व्रत का उपदेश ; जगदम्बा के प्रसाद से चक्षुओं की प्राप्ति), ४.१.२४.६० (नैध्रुव का अल्पायु में मरण ) naidhruva


      नैमित्तिक वायु १०१.१४/२.३९.१४(जन आदि ३ नैमित्तिक लोकों की नैमित्तिक संज्ञा )


      नैमिषारण्य कूर्म १.३७.३७ (कृतयुग में नैमिषारण्य की विशिष्टता - कृते तु नैमिषं तीर्थं त्रेतायां पुष्करं परम् । द्वापरे तु कुरुक्षेत्रं कलौ गङ्गां विशिष्यते ।। ), २.४३.७ (नैमिषारण्य की उत्पत्ति व माहात्म्य - यत्रास्य नेमिः शीर्येत स देशः पुरुषर्षभाः । ततो मुमोच तच्चक्रं ते च तत्समनुव्रजन् ।), देवीभागवत ४.९ (च्यवन की प्रेरणा से प्रह्लाद का नैमिषारण्य में आगमन, नर - नारायण से युद्ध), ७.३८ (ललिता देवी के वास का स्थान), नारद २.६३.३१(नैमिष में विष्णु सारूप्य प्राप्ति का उल्लेख - नैमिषे विष्णुसारूप्यं पुष्करे ब्रह्मणेंऽतिकम् ।। आखंडलस्य लोको हि कुरुक्षेत्रे च माघतः ।। ), पद्म १.१.१० (चक्र नेमि की शीर्णता से नैमिषारण्य की उत्पत्ति, सूत द्वारा पुराण कथन - गंगावर्तसमाहारो नेमिर्यत्र व्यशीर्यत। ईजिरे दीर्घसत्रेण ऋषयो नैमिषे तदा।), ३.२६.१०४(कुरुक्षेत्र में सरस्वती में नैमिष कुञ्ज तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य का संक्षिप्त कथन), ब्रह्माण्ड १.१.२.८ (नैमिषारण्य में हिरण्य से निर्मित यज्ञशाला पर पुरूरवा को लोभ की उत्पत्ति, ऋषियों द्वारा पुरूरवा का वध - भ्रमतो धर्मचक्रस्य यत्र नेमिरशीर्यत । कर्मणा तेन विख्यातं नैमिषं मुनिपूजितम् ॥), भविष्य २.२.८.१३०(नैमिष में महाफाल्गुनी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख - महाफाल्गुनी नैमिषे च निर्दिष्टाः स्युर्महाफलाः ।।), मत्स्य १३.२६(नैमिष में सती देवी के लिङ्गधारिणी नाम का उल्लेख - वाराणस्यां विशालाक्षी नैमिषेलिङ्गधारिणी॥), महाभारत शल्य ३७.५७(नैमिष कुञ्ज : प्रतीची सरस्वती के प्राची सरस्वती बनने का स्थान- कस्मात्सरस्वती ब्रह्मन्निवृत्ता प्राङ्मुखीभवत्।...भूयः प्रतीच्यभिमुखी प्रसुस्राव सरिद्वरा।। ), वराह ११.१०७(नैमिषारण्य की निरुक्ति : निमेष भर में दैत्यों का नाश - उवाच निमिषेणेदं निहतं दानवं बलम् ।। अरण्येऽस्मिंस्ततस्त्वेवं नैमिषारण्यसंज्ञितम् ।), १५३.५(नैमिष निवासी निषाद द्वारा मथुरा में यमुना में स्नान से राजा बनने का वृत्तान्त - कश्चित्पापसमाचारो निषादो दुष्टमानसः ।। वसते नैमिषारण्ये सुप्रतीतेऽतिपापकृत्।।), वामन ९०.९ (नैमिष तीर्थ में विष्णु का पीतवासा नाम से वास - भृगुतुङ्गे सुवर्णाक्षं नैमिषे पीतवाससम्।
      गयायां गोपतिं देवं गदापाणिनमीश्वरम्।। ), वायु १२५ , २.७(यज्ञ सत्र में भ्रमण करते हुए धर्म चक्र की नेमि शीर्ण होने से नैमिष नाम प्राप्ति - भ्रमतो धर्मचक्रस्य यत्र नेमिरशीर्यत। कर्मणा तेन विख्यात नैमिषं मुनिपूजितम् ।।), २.१३ (नैमिषारण्य में ऋषियों द्वारा पुरूरवा का वध), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.४(नैमिष में धर्म की पूजा का निर्देश - अयोध्यायां तथा रामं नैमिषे धर्ममेव च ।। कर्णाटे चाश्वशिरसं मद्रदेशे नृकेसरिम् ।।), शिव ७.१.३.५३(मनोमय चक्र की नेमि के शीर्ण होने के स्थान पर नैमिषारण्य के विख्यात होने का कथन - एतन्मनोमयं चक्रं मया सृष्टं विसृज्यते ॥ यत्रास्य शीर्यते नेमिः स देशस्तपसश्शुभः ॥), ७.१.४.३(नैमिषारण्य में ब्रह्मा के वैश्वसृज होम में वायु का आगमन व ऋषियों से संवाद), स्कन्द १.२.४५.१०९ (नैमिष में वायु व वरुण द्वारा लिङ्ग की स्थापना का उल्लेख), २.३.७.१(पञ्च धाराओं के संदर्भ में नैमिष में एक धारा गिरने का उल्लेख), ५.३.१३९.१० (इन्द्रिय ग्राम के निरोध से नैमिष आदि तीर्थों की उत्पत्ति का उल्लेख - संनिरुध्येन्द्रियग्रामं यत्रयत्र वसेन्मुनिः । तत्रतत्र कुरुक्षेत्रं नैमिषं पुष्कराणि च ॥), ७.१.१०.८( नैमिषारण्य का तैजस महाभूत वाले तीर्थों में वर्गीकरण - अमरेशं प्रभासं च नैमिषं पुष्करं तथा ॥ आषाढिं चैव दण्डिं च भारभूतिं च लांगलम् ॥) लक्ष्मीनारायण १.१७४.४३(नैमिषारण्य में ऋषियों के दीर्घसत्र में शिव द्वारा दक्ष का अपमान, दक्ष द्वारा दुर्वचन कहने पर नन्दी द्वारा दक्ष व ब्राह्मणों को शाप), ३.२२७.४५ (नैमिषारण्य में मन, इन्द्रियों के कुण्ठित हो जाने का कथन - क्षेत्रं वै नैमिषारण्यं कुण्ठितं यत्र मानसम् ।। इन्द्रियाणि कुण्ठितानि निवृत्तानि स्थिराणि च । ) naimishaaranya/ naimisharanya


      नैर्ऋत ब्रह्माण्ड २.३.७.१४१(राक्षसों के ४ गणों में से एक), २.३.७.१६३(कुबेर के नैर्ऋत गण आदि राक्षसों के राजा होने का उल्लेख), २.३.८.६२(राक्षसों के ७ गणों में से एक, निशाचर), भविष्य १.५७.९(नैर्ऋत हेतु शष्कुली देने का निर्देश), ३.४.११ (भव रुद्र की आराधना से नैर्ऋत ब्राह्मण का रुद्र से सायुज्य), भागवत १२.११.४८(नैर्ऋत राक्षसों द्वारा सूर्य के रथ के पृष्ठ में रहकर रथ को चलाने का उल्लेख), मत्स्य १७९.१०(नैर्ऋती : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ सृष्ट मातृकाओं में से एक), २६१.१५(नैर्ऋत दिशा के लोकपाल के नर वाहन, स्वरूप आदि का कथन), २६६.२२(वही), २८६.८ (नैर्ऋती देवी का स्वरूप), वायु ६९.१६२/२.८.१६७(त्र्यम्बक - अनुचर होने के कारण नैर्ऋत राक्षस गण की उत्तम गणों में परिगणना),२.८.१६७(राक्षसगण, निर्ऋता - पुत्र), ६९.१७३/२.८.१६७(राक्षसों के गणों में से एक, त्र्यम्बक के अनुचर), ८४.१४/२.२२.१४(रेवती पूतना - पुत्र गण, बाल ग्रह होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.११ (नैर्ऋती शान्ति का वर्ण), स्कन्द ४.२.६९.१६० (नैर्ऋतेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.१७७.५२(दक्ष यज्ञ में नैर्ऋत के चण्ड से युद्ध का उल्लेख ) nairrita


      नैल ब्रह्माण्ड १.२.३३.४(८६ श्रुतर्षियों में से एक, बह्-वृच), २.३.७.१४८(आलम्बेय व नीला के राक्षस पुत्रों की संज्ञा )


      नैवेद्य देवीभागवत ८.२४ (देवी पूजा में तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, मास अनुसार अर्पणीय ओषधियां), पद्म ७.१९.७४(पक्षी द्वारा विष्णु नैवेद्य का भक्षण करने से स्वर्ग व ब्राह्मण योनि की प्राप्ति का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.४९(विष्णु को अनिवेदित अन्न के विष्ठा व जल के मूत्र बनने का कथन), ३.२१.११(दुर्वासा – प्रदत्त हरिनैवेद्य को इन्द्र द्वारा गजमूर्द्धा पर रखने का कथन), ३.४४.९१ (विष्णु के नैवेद्य को उदर में धारण करने से गणेश के लम्बोदर होने का उल्लेख), ४.३७ (नैवेद्य भक्षण से सनत्कुमार का पुलकित होना, शिव के नैवेद्य की अभक्ष्यता का शाप), विष्णुधर्मोत्तर १.९९ (ग्रह, नक्षत्रों के लिए नैवेद्य), शिव १.१६.१६ (पूजा में नैवेद्य अर्पण से आयु व तृप्ति की प्राप्ति का कथन), १.१६.६२ (नैवेद्य हेतु शालि अन्न की प्रशस्तता), १.१६.७१ (विशिष्ट अवसरों पर शिव को महानैवेद्य अर्पित करने के महत्त्व का कथन), १.२२ (शिव नैवेद्य भक्षण विधान), स्कन्द २.२.३८ (पुरुषोत्तम क्षेत्र में विष्णु के निर्माल्य /नैवेद्य भक्षण का माहात्म्य : नैवेद्य ग्रहण न करने से शाण्डिल्य को पीडा की प्राप्ति, उद्धार), २.३.५.३८ (बदरी क्षेत्र में नैवेद्य भक्षण की महिमा), २.५.९ (विष्णु के लिए नैवेद्य बनाने की विधि), लक्ष्मीनारायण १.५१६.५९(पार्वती द्वारा शिव के नैवेद्य भक्षण पर सारमेय होने के शाप का वृत्तान्त ), naivedya


      नै:श्रेयस गर्ग ७.३०.१९ (नै:श्रेयस वन में प्रद्युम्न सेना का आगमन, वन की शोभा का वर्णन )


      नैषध ब्रह्माण्ड १.२.१४.४९(आग्नीध्र के तीसरे पुत्र हरिवर्ष के राज्य का नाम), १.२.१५.३२(आग्नीध्र के तीसरे पुत्र हरिवर्ष के राज्य का नाम ; नैषध के हेमकूट से परे होने का उल्लेख), १.२.१८.५३(ह्लादिनी नदी द्वारा नैषध निवासियों का प्लावन करने का उल्लेख), मत्स्य ११४.५३( विन्ध्य पृष्ठ के जनपदों में से एक), वायु ३३.४२(नैषध वर्ष आग्नीध के पुत्र हरिवर्ष को प्राप्त होने का उल्लेख), ९९.३७६/२.३७.३७०(कलियुग में मेधा/मेघा नाम से ख्याति वाले ९ नैषध राजाओं के होने का उल्लेख), विष्णु २.१.१९(नैषध वर्ष आग्नीध्र के पुत्र हरिवर्ष को प्राप्त होने का उल्लेख), ४.२४.६६(मणिधान्यवंशियों द्वारा नैषध आदि जनपदों को भोगने का उल्लेख ) ; द्र. निषध naishadha


      नैष्ठीय वायु २९.२९(वीर्यवान् उशीराग्नि का नाम )


      नौका अग्नि १२१.४२ (नौका निर्माण हेतु तिथि का विचार), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.३७(सुषुम्ना के अमृत जल में पक्षी नौका व नौकेश्वरी देवी कुरुकुल्ला का कथन), ३.४.३५.९१(सूर्य रूपी अर्घ्य पात्र में स्थित अर्घ्य रूपी अमृत में स्थित कला रूपी नौकाओं का कथन), भागवत ११.२०.१७ (देह की नौका / प्लव से तुलना, गुरु केवट / कर्णधार), ११.२६.३२(भवसागर में डूब रहे जनों के लिए सन्तों के नौका रूप होने का उल्लेख), शिव ७.२.२५.६२(पापार्णव से पार करने हेतु भक्ति रूपी नौका का उल्लेख), हरिवंश २.८८.२७(कृष्ण व उनकी नारियों द्वारा जल विहार के संदर्भ में विभिन्न आकृतियों की नौकाओं का कथन), २.८८.५७(अन्धक व वृष्णि वंशी यादवों की गृह आकृति की नौकाओं का वर्णन), ३.३५.१(यज्ञ वराह द्वारा पृथिवी को जल के ऊपर नौका की भांति स्थापित करने का कथन), योगवासिष्ठ १.१८.९ (संसार समुद्र के तारण हेतु देह रूपी नौका), लक्ष्मीनारायण १.२८३.३९ (साधु के नौकाओं में अनन्यतम होने का उल्लेख), २.६०.१०२+ (अतिवृष्टि में कृष्ण द्वारा नौका द्वारा प्राणियों की रक्षा), महाभारत आदि १४८.४(जतुगृह से निर्गत पाण्डवों का नाव में बैठकर गङ्गा पार करना), वन १८७.३१(मत्स्य द्वारा मनु को प्रलय में रक्षार्थ नौका निर्माण का परामर्श आदि), शान्ति ३२९.३८(संसार रूपी नदी के पार उतरने के उपयुक्त नौका का कथन ) naukaa

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      Vedic contexts on Naukaa


      न्यग्रोध गर्ग ५.८.३६ (कंस - भ्राता, बलराम द्वारा वध - सुनामसृष्टिन्यग्रोधतुष्टिमद्राष्ट्रपालकाः ॥..... न्यग्रोधं भुजवेगेन कंकं वामकरेण वै ॥), ब्रह्म १.४३.५३(पुरुषोत्तम क्षेत्र में स्थित न्यग्रोध वृक्ष के माहात्म्य का कथन : ब्रह्महत्या से मुक्ति आदि), ब्रह्माण्ड २.३.७.११८(न्यग्रोध में यक्षों का निवास स्थान - न्यग्रोधो रोहिणो नाम्ना शेरते तत्र गुह्यकाः । तस्मिन्निवासो यक्षाणां न्यग्रोधे रोहिणे स्मृतः ॥), २.३.१०.९(मेना - कन्या एकपर्णा द्वारा न्यग्रोध का आश्रय लेकर तप करने का उल्लेख), २.३.११.३६ (पुष्टि व प्रजा दायक), २.३.७१.१३३(उग्रसेन के ९ पुत्रों में से एक, कंस - अनुज), भागवत ९.२४.२४(उग्रसेन के ९ पुत्रों में से एक), १०.९०.३४(श्रीकृष्ण के १८ पुत्रों में से एक), मत्स्य ४४.७४(उग्रसेन के ९ पुत्रों में से एक, कंस - अनुज), ११३.६२ (रमणक वर्ष में न्यग्रोध रोहिण वृक्ष की स्थिति तथा महत्त्व का कथन - वर्षं रमणकं नाम जायन्ते यत्र वै प्रजाः।... तत्रापि च महावृक्षो न्यग्रोधो रोहिणो महान्। तस्यापि ते फलरसं पिबन्तो वर्तयन्ति हि।।), लिङ्ग १.४९.३३(सुपार्श्व पर्वत के द्वीपकेतु के रूप में न्यग्रोध का उल्लेख- सुपार्श्वस्योत्तरस्यापि श्रृंगे जातो महाद्रुमः।। न्यग्रोधो विपुलस्कंधोऽनेकयोजनमंडलः।।), १.४९.६४ (न्यग्रोध वन में शेष का वास - स्थलपद्मवनांतस्थन्यग्रोधेऽशेषभोगिनः।। शेषस्त्वशेषजगतां पतिरास्तेऽतिगर्वितः।। ), वराह ७७.२७(सुपार्श्व पर्वत के उत्तर शृङ्ग पर न्यग्रोध/वट की स्थिति), ८०.९(शुक्ल व पाण्डुर पर्वतों के मध्य दीर्घिका/वापी में स्थित न्यग्रोध वृक्ष में चन्द्रशेखर शिव के निवास का कथन), ८४.४(रम्यक वर्ष में स्थित न्यग्रोध रोहित वृक्ष के महत्त्व का कथन), वायु ६९.१५०/२.८.१४५(जगाम सह पुत्रेण ततो यक्षः स्वमालयम्। न्यग्रोधरोहिणं नाम गुह्यका यत्र शेरते। तस्मिन्निवासो यक्षाणां न्यग्रोधः सर्वतः प्रियः ॥), विष्णुधर्मोत्तर १.१३५.४६(उर्वशी के विरह में पीडित पुरूरवा के उर्वशी की ऋद्धि से निर्मित न्यग्रोध वृक्ष के नीचे रात्रि में वास का उल्लेख), स्कन्द २.२.१५.२१ (इन्द्रद्युम्न द्वारा नारद से नीलमाधव के दर्शन कराने के आग्रह पर नारद द्वारा न्यग्रोध रूप नारायण के दर्शन कराना - पश्यैतं योजनायामं योजनद्वयमुच्छ्रितम् । कल्पांतस्थायिनं भूप न्यग्रोधं मुक्तिदं नृणाम् ।। .... न्यग्रोधरूपं दृष्ट्वापि नारायणमकल्मषम् ।। ), २.२.३०.२४ (मार्कण्डेय वट के दक्षिण में स्थित नारायण रूपी न्यग्रोध के माहात्म्य का कथन), ५.१.५९.२९ (महाकालवन में गया तीर्थ में अक्षय नामक न्यग्रोध का कथन - महाकालवने रम्ये गयातीर्थमनुत्तमम् ।। तत्रैव चाक्षयो नाम न्यग्रोधः शाखिनां वरः ।।), ५.३.६७.७४ (कालपृष्ठ दैत्य के नाश हेतु विष्णु द्वारा न्यग्रोध वृक्ष में कन्या उत्पन्न करने का उल्लेख - तस्मिन्मध्ये महावृक्षो न्यग्रोधश्च सुशोभनः ।..... कृष्णेन च कृतं तस्मिन्कन्यारूपं च तत्क्षणात् ।), ५.३.८३.७३(विप्र द्वारा नर्मदा में अस्थिक्षेप के संदर्भ में न्यग्रोध मूल के सान्निध्य में सूक्ष्म अस्थियां होने का उल्लेख - न्यग्रोधमूलसांनिध्ये सूक्ष्मान्यस्थीनि द्रक्ष्यसि । समूह्य तानि संगृह्य गच्छ रेवां द्विजोत्तम ॥), ६.१६६.१७(क्षात्र तेज वाले पुत्र की प्राप्ति के लिए चरु प्राशन के पश्चात् न्यग्रोध के आलिङ्गन का उल्लेख), ७.१.२३.१०८(दिशा अनुसार न्यग्रोध आदि की स्थापना), ७.४.१७.१४(कृष्ण की पूजा के संदर्भ में न्यग्रोध की पूर्व द्वार पर स्थिति का उल्लेख, अन्य द्वारों पर अन्य वृक्ष), वा.रामायण २.५२.६८(जटाः कृत्वा गमिष्यामि न्यग्रोध क्षीरम् आनय । तत् क्षीरम् राज पुत्राय गुहः क्षिप्रम् उपाहरत् ॥), ३.३५.२७ (गरुड द्वारा हस्ती व कच्छप भक्षण के लिए न्यग्रोध का आश्रय, न्यग्रोध शाखा का भङ्ग होना- तत्रापश्यत्स मेघाभं न्यग्रोधमृषिभिर्वृतम् । समन्ताद्यस्य ताः शाखाः शतयोजनमायताः), ३.३५.३५(रावण द्वारा न्यग्रोध का दर्शन, मारीच से भेंट - तं महर्षिगणैर्जुष्टं सुपर्णकृतलक्षणम् । नाम्ना सुभद्रं न्यग्रोधं ददर्श धनदानुजः), ६.८७.३(रावण - पुत्र इन्द्रजित् द्वारा न्यग्रोध में भूत बलि देने से भूतों में अदृश्य होने और पश्चात् युद्ध करने का कथन - नीलजीमूतसङ्काशं न्यग्रोधं भीमदर्शनम् ।तेजस्वी रावणभ्राता लक्ष्मणाय न्यवेदयत् ।।), कथासरित् ३.३.१०६(गुहचन्द्र की भार्या के न्यग्रोध वृक्ष पर स्थित दिव्य कन्या के साथ आसीन होने का कथन - गुहचन्द्रो ददर्शासावेकं न्यग्रोधपादपम् ।। तस्याधस्ताच्च शुश्राव वीणावेणुरवान्वितम् ।), ४.३.४० (विन्ध्यवासिनी की कृपा से सिंहपराक्रम को न्यग्रोध मूल से धन की प्राप्ति - तत्र सर्वमहानेको योऽस्ति न्यग्रोधपादपः । तन्मूलात्खन्यमानात्त्वं स्वैरं निधिमवाप्स्यसि ।।), ९.४.१२५(समुद्रशूर द्वारा न्यग्रोध वृक्ष पर गृध्र के नीड/घोंसले से अमित धन की प्राप्ति का वृत्तान्त - समूद्रशूरो न्यग्रोधमारूढोऽभूदलक्षितः ।।), १०.६.५(न्यग्रोध पर निवास कर रहे काकों को उलूक द्वारा मारने की कथा - बभूव क्वापि सच्छायो महान्न्यग्रोधपादपः । शकुन्तशब्दैः पथिकान्विश्रमायाह्वयन्निव ।। तत्रासीन्मेघवर्णाख्यः काकराजः कृतालयः । ) nyagrodha


      न्यङ्कु स्कन्द ७.१.३३.५४ (न्यङ्कु ऋषि द्वारा न्यङ्कु नामक सरस्वती का आह्वान), ७.१.३५.६५ (न्यङ्कु नदी की शिव द्वारा सरस्वती की सखी के रूप में उत्पत्ति ) nyanku


      न्यङ्कुमती स्कन्द ७१.७.६२(प्रभास में समुद्र के उत्तर में न्यङ्कुमती नदी तक क्षेत्र पीठ होने का कथन), ७.१.२६१ (न्यङ्कुमती नदी का माहात्म्य), ७.१.२८५ (न्यङ्कुमती नदी का माहात्म्य, अगस्त्याश्रम में न्यङ्कुमती की स्थिति, अगस्त्य द्वारा वातापि व इल्वल का निग्रह), ७.१.२९०+ (न्यङ्कुमती का माहात्म्य, कुबेर द्वारा सोमनाथेश्वर पूजा से धनद बनना), लक्ष्मीनारायण १.५४४.३४ (च्यवन के न्यङ्कुमती तट पर १ वर्ष वास का उल्लेख ) nyankumatee


      न्याय देवीभागवत १.१.१४(न्याय के तामस शास्त्र होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३५.८७(वेदों के अङ्गों में से एक न्याय का उल्लेख), भविष्य ३.२.१८ (न्यायशर्मा : व्यसनी , चोर द्विज, शूली पर आरोपण काल में न्यायशर्मा के मोहिनी से विवाह की कथा), भागवत १०.४५.३४(कृष्ण द्वारा न्याय आदि की शिक्षा प्राप्त करने का उल्लेख ), मत्स्य ३.४(तपोरत ब्रह्मा के मुखों से प्रकट शास्त्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.४५(न्याय के समीरण/वायु देवता का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.६४(न्यायाधीश मुकुन्द सावित्र व पत्नी न्यायाक्षिणी का वृत्तान्त : कथा श्रवण से पक्षाक्षात रोग से मुक्त होना, मोक्ष प्राप्ति ) nyaaya


      न्यास अग्नि २५ (१ से लेकर २६ तत्त्वात्मक व्यूहों का न्यास), ४१(वास्तु प्रतिष्ठा के संदर्भ में ८ दिशाओं में ८ इष्टकाओं पर उनकी शक्तियों का न्यास), ५९.१६ (जीवभूत मकार, प्राणतत्त्व भकारादि वर्णों का न्यास), ५९.३३ (केशव, नारायण आदि नामों से विष्णु का न्यास), ९२(वास्तु प्रतिष्ठा के संदर्भ में शिला न्यास की विधि), ९४ (देवता न्यास), १४५.१(मालिनी मन्त्रों के षोढा न्यास के संदर्भ में न्यासों के तीन प्रकारों शाक्त, शाम्भव व यामल का कथन), १७८.३(चैत्र शुक्ल तृतीया व्रत में अङ्गों में शिव - पार्वती का विभिन्न नामों से न्यास), १८९.८(भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को वासुदेव का विभिन्न नामों से न्यास), १९६.१(नक्षत्र पुरुष के अङ्गों में नक्षत्रों का न्यास), २१५.२१ (गायत्री मन्त्र के अक्षरों का न्यास), २९३.३७ (वर्ण मातृका न्यास की विधि), ३०३ (अष्टाक्षर नारायण मन्त्र का न्यास), गणेश १.४६.१ (अङ्गुलियों व ह्रदय आदि में गणपति न्यास), गरुड १.११ (बीज मन्त्र का न्यास), १.१९.१५ (सर्पों से रक्षा हेतु न्यास), १.२३.३३ (पञ्चवक्त्र शिव का न्यास), १.३५ (गायत्री न्यास), १.१९७.१२ (सर्पों का दिशाओं में विन्यास), देवीभागवत ५.८.६२(विभिन्न देवों के तेजों से देवी के अङ्गों के निर्माण का कथन), ११.१०.२०(भस्म से चिह्नों के संदर्भ में मूर्धा, ललाट आदि न्यास स्थानों तथा उनमें देवों के न्यास का कथन), ११.११.१९ (मन्त्र सहित अङ्गन्यास), ११.१६ (सन्ध्या कर्म में कृष्ण नामों का न्यास), ११.१६.७५ (गायत्री - मन्त्र के अक्षरों का न्यास), १२.३.१५(तत्सवितु: इत्यादि गायत्री मन्त्र का न्यास), १२.४ (अङ्गों में देवताओं का न्यास), नारद १.६९.८६ (अङ्गारक न्यास), १.७०.९ (नारायण मन्त्र के विभूति पञ्जर नामक दश आवृत्तिमय न्यास की विधि), १.७१.३२ (हरि न्यास का कथन), १.८०.३७ (षोढा न्यास की विधि का कथन), १.८०.२४० (विभूति पञ्जर न्यास), १.८३.१२८ (सावित्र पञ्जर न्यास का वर्णन), १.८५.३९ (षोढा न्यास का वर्णन), १.८५.४६ (ग्रह न्यास), १.८५.६० (पीठ न्यास), पद्म १.७.१६ (ब्रह्मा का न्यास), २.११.३२(न्यास हरण पर न्यास - स्वामी द्वारा पुत्र रूप में उत्पन्न होकर धन व्यय कराने का कथन), ६.३६.१०(विष्णु पूजा के संदर्भ में विष्णु का विभिन्न नामों से देह में न्यास), ६.४५.४९(फाल्गुनशुक्ल द्वादशी व्रत के संदर्भ में परशुराम का विभिन्न नामों से देह में न्यास), ६७१ , ६.७८ (विष्णु का न्यास), ब्रह्माण्ड १.२.२३.९९ (शिशुमार शरीर में देवों का न्यास), ३.४.१३.१२ (भण्डासुर वधार्थ प्रकट ललिता के शरीर में न्यास), ३.४.४४.६३(षोढा न्यास, श्रीचक्र न्यास), भविष्य १.१७.७८ (गायत्री मन्त्र तत्सवितु: इत्यादि का न्यास), १.१३३.१० (भास्कर के अङ्गों में ब्रह्माण्ड के समस्त देवताओं का न्यास), १.१३६.१४ (खषोल्काय नम: मन्त्र का न्यास), १.२१२.१८ (अर्क न्यास का कथन), ४.२५.१८(चैत्र शुक्ल तृतीया को देह के अङ्गों में गौरी - शिव का विभिन्न नामों से न्यास), ४.२६.१०(शुक्ल पक्ष तृतीया को देह में गौरी का विभिन्न नामों से न्यास), ४.२७.५(आर्द्रानन्दकरी तृतीया को देह में गौरी व शिव का विभिन्न नामों से न्यास), ४.३४.३(शुक्ल पञ्चमी को देह में विभिन्न नागों के न्यास का कथन), ४.३७.४३(मार्गशीर्ष शुक्ल पञ्चमी को लक्ष्मी के विभिन्न नामों से न्यास का कथन), ४.६९.२५(गौ के अङ्गों में विभिन्न देवों की स्थिति), ४.७२.२६(भीष्म पञ्चक व्रत के संदर्भ में श्रीहरि के अङ्गों की विभिन्न पुष्पों से पूजा ), ४.७५.९(भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को श्रीहरि के विभिन्न अङ्गों की विभिन्न नामों से पूजा), ४.८३.२१(मार्गशीर्ष एकादशी को नारायण का विभिन्न नामों से न्यास), ४.८३.४४(पौष शुक्ल द्वादशी को कूर्म का विभिन्न नामों से न्यास), ४.८३.५५(माघ शुक्ल द्वादशी को वराह का विभिन्न नामों से न्यास), ४.८३.६९(फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को श्रीहरि का विभिन्न नामों से देह में न्यास), ४.८३.८२(वैशाख शुक्ल द्वादशी को श्रीहरि का विभिन्न नामों से न्यास), ४.८३.९१(ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को श्रीहरि का विभिन्न नामों से न्यास), ४.८३.९९(आषाढ आदि विभिन्न मासों की द्वादशी तिथियों में विष्णु के न्यासों का वर्णन), ४.८३.१२२(आश्वयुज शुक्ल द्वादशी को पद्मनाभ का विभिन्न नामों से न्यास), ४.८४.७(विशोक द्वादशी व्रत के संदर्भ में विष्णु का न्यास), ४.८५.६(विभूति द्वादशी व्रत के संदर्भ में विष्णु का न्यास), ४.८६.९(मदन द्वादशी व्रत के संदर्भ में अङ्गों में काम का विभिन्न नामों से न्यास), ४.९७.५(मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी को शिव के विभिन्न अङ्गों की विभिन्न नामों से पूजा), ४.१०८.१८(रूप प्राप्ति हेतु नक्षत्र न्यास का वर्णन), ४.१०९.६( शिव रूपी नक्षत्र पुरुष का अङ्गों में शिव के विभिन्न नामों से न्यास), ४.१११.३५(पण्यस्त्री व्रत के संदर्भ में देह में काम का विभिन्न नामों से न्यास), ४.१४७.४५(काञ्चनपुरी व्रत के संदर्भ में विष्णु का अङ्गों में न्यास), ४.१५६.१५(कामधेनु दान काल में कामधेनु की देह में स्थित देवों के नाम), ४.२०६.८(रोहिणी चन्द्र शयन व्रत में सोम/काम का विभिन्न नामों से न्यास), भागवत ८.७.२६ (शिव द्वारा विषपान के संदर्भ में शिव के अङ्गों में ब्रह्माण्ड का न्यास), १०.६.२२ (कृष्ण की रक्षा हेतु अङ्ग न्यास), मत्स्य १४५.५४(न्यास के लक्षण), २५३ (वास्तुमण्डल में देवताओं का न्यास), लिङ्ग १.१७ (ओंकार का न्यास), १.८५ (न्यास के भेद, पञ्चाक्षर मन्त्र न्यास), वराह १.२५(धरा कृत विष्णु के नामों के न्यास का कथन), ३९.४१(मत्स्य द्वादशी व्रत के संदर्भ में विष्णु का विभिन्न नामों से न्यास), ४३(वामन द्वादशी व्रत के संदर्भ में वामन का विभिन्न नामों से न्यास), ४४.२(जामदग्न्य द्वादशी व्रत के संदर्भ में परशुराम का विभिन्न नामों से न्यास), ५६(धन्य व्रत के संदर्भ में शरीर में अग्नि का विभिन्न नामों से न्यास), ७०.३५?(अनङ्ग दान व्रत के संदर्भ में देह के अङ्गों में वामदेव का विभिन्न नामों से न्यास), २०६.२९(गौ के अङ्गों में देवों की स्थिति), वायु ५२.९१ (शिशुमार शरीर में देवों का न्यास), १०४.७१/ २.४२.७१(व्यास द्वारा दृष्ट वर्ण, पीठ आदि के न्यासों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१८(मोहिनी रूप धारी विष्णु के शरीर में देवियों की स्थिति), १.१०६ (ध्रुव शरीर में देवों का न्यास), १.१७३.३ (पुत्रदायक अनन्त व्रत में प्रतिमास अनन्त के एक अङ्ग की अर्चना), १.२३९.३(विराट् पुरुष की देह के अङ्गों में विभिन्न देवों की स्थिति का कथन), ३.७३.४५ (न्यास का अधिदेवता वायु), ३.९५.१(वास्तु पुरुष की देह के अङ्गों पर देवों की स्थिति का वर्णन), ३.९८ (प्रासाद प्रतिष्ठा के संदर्भ में चार दिशाओं में तोरण न्यास का कथन), शिव ७.२.२२.१(स्थिति, उत्पत्ति व लय नामक तीन प्रकार के न्यासों का वर्णन), स्कन्द २.४.१२.२० (धात्री वृक्ष का न्यास), २.५.२ (कृष्ण का न्यास), २.५.१४.१७(मार्गशीर्ष एकादशी के संदर्भ में देह में नारायण का विभिन्न नामों से न्यास), ५.३.३९.२८(कपिला गौ में देवों का न्यास), ६.२५८.३७(सुरभि गौ के शरीर में देवों का न्यास), हरिवंश ३.८०.६९ (अन्तकाल में घ्राण, रसना आदि के करण - देवताओं में न्यास की अभीप्सा), योगवासिष्ठ ५.३१.४१(प्रह्लाद द्वारा स्वदेह में हरि के न्यास का वर्णन), ६.१.१२८.८ (श्रोत्र, चक्षु आदि करणों के करण- देवताओं के न्यास का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४१३.४३( पण्यस्त्रियों/दासियों हेतु कामदेव का न्यास), २.१०.२२ (पृथ्वी मूर्ति में तलों का न्यास), २.४७.९३ (षोडशाक्षर मन्त्र ओं नम: श्रीकृष्ण नारायणाय पत्ये स्वाहा का न्यास), २.१५६.९५ (अक्षर मातृका न्यास), २.१५६.१०२(ग्रह न्यास), २.१५६.१०४(नक्षत्र न्यास), २.१५७ (देवता की मूर्ति में ब्रह्माण्ड की समस्त वस्तुओं के न्यास का वर्णन), २.१५८.५२ (प्रासाद की पुरुषाकारता का ध्यान), २.१६०.६१ (मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में प्राण,मन, रस, शब्द आदि का न्यास), २.२२८.१०(श्रीहरि की देह के विभिन्न अङ्गों में विभिन्न गणों की स्थिति), २.२४५.६२(सृष्टि के समय ब्रह्माण्ड के समस्त तत्त्वों व देवों को जीव को प्रदान करने का कथन ; विभिन्न अङ्गों में देवों तथा तत्त्वों की स्थिति का कथन), ३.४९.८४(गुर्वी/गुरुपत्नी के अङ्गों में देवों का न्यास), ३.६९.९९ (अङ्गों में विभिन्न पुण्ड्रों में श्री - विष्णु का विभिन्न नामों से ध्यान), ३.११९.७६ (महालक्ष्मी का विभिन्न नामों से न्यास), ३.१३८.२२(आर्द्रानन्द रमानारायण व्रत के संदर्भ में रमा व विष्णु का विभिन्न नामों से न्यास), ३.१८६.५५(साधु की देह में सुकृतों का न्यास), महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४८(कपिला गौ की देह में देवों के वास का वर्णन ) ; द्र. ललिता न्यास nyaasa

      टिप्पणी – न्यास के संदर्भ में धनुर्वेद संहिता ३.२६ का निम्नलिखित मन्त्र उपयोगी हो सकता है –

      भूतत्त्वे ह्युदरं रक्षेत्पादौ रक्षेज्जलेन च । ऊरू च वह्नितत्त्वेन करौ रक्षेच्च वायुना । व्योमतत्त्वे शिरो रक्षेदेवं योधो जयी भवेत् ।।


      न्यूह भविष्य ३.१.४(लोमक म्लेच्छ - पुत्र, न्यूह शब्द की निरुक्ति आदि, न्यूह के तीन पुत्रों के नाम, न्यूह द्वारा प्रलय में नाव में आरोहण कर प्रजा रक्षा का वृत्तान्त), ३.१.५.२(न्यूह द्वारा म्लेच्छ भाषा के प्रवर्तन का कथन ; न्यूह के वंश का कथन ) nyooha/nyuuha /nyuha