म द्र. ओंकार
मकर
अग्नि
३४१.१८(नृत्य
में
असंयुत
कर
की
१३
मुद्राओं
में
से
एक),
गरुड
१.५३.५(मकर
निधि
के
स्वरूप
का
कथन
-
मकरेणाङ्कितः
खड्गबाणकुन्तादिसंग्रही
॥
दद्याच्छ्रुताय
मैत्रीं
च
याति
नित्यं
च
राजभिः
॥),
गर्ग
७.२९.१३(मकर
गिरि
पर
मधु
मक्षिकाओं
का
वास,
मधु
-
मक्षिकाओं
द्वारा
प्रद्युम्न
सेना
पर
आक्रमण
व
मोचन),
७.२९.१७(मकर
देश
में
मकर
मुख
वाले
मनुष्यों
का
उल्लेख),
पद्म
६.२३०.११(मत्स्यावतार
द्वारा
मकर
दैत्य
का
वध),
ब्रह्मवैवर्त्त
४.७६.३५(उत्तरायण
संक्रान्ति
पर
प्रयाग
में
स्नान
का
निर्देश),
ब्रह्माण्ड
२.३.७.४१३(मकर
आदि
जलचरों
की
ऋषा
से
उत्पत्ति),
भविष्य
१.३३.२५(मकरी
:
सर्प
के
४
विष
दन्तों
की
देवताओं
में
से
एक,
स्वरूप),
१.१३८.३८(काम
की
मकर
ध्वज
का
उल्लेख),
भागवत
५.१६.२७(मेरु
के
उत्तर
में
स्थित
२
पर्वतों
में
से
एक),
१२.११.१२(विष्णु
के
मकराकृत
कुण्डलों
के
सांख्य
और
योग
के
प्रतीक
होने
का
उल्लेख
-
बिभर्ति
साङ्ख्यं
योगं
च
देवो
मकरकुण्डले),
मत्स्य
५८.१८(तडाग
आदि
निर्माण
में
सौवर्ण
मकर
दान
का
निर्देश
-सौवर्णकूर्म्ममकरौ
राजतौ
मत्स्यदुन्दुभौ ),
१४८.४५(तारक
-
सेनानी
ग्रसन
के
ध्वज
का
मकर
चिह्न
होने
का
उल्लेख),
मार्कण्डेय
६८.५/६५.५(पद्मिनी
विद्या
के
अन्तर्गत
८
निधियों
में
से
एक),
६८.१६/६५.१६
(तामसी
प्रकृति
वाली
मकर
निधि
के
आश्रित
पुरुष
के
लक्षणों
का
कथन),
वायु
४१.१०(कुबेर
की
८
निधियों
में
से
एक),
१०५.४८/२.४३.४५(सूर्य
व
चन्द्र
ग्रहण
के
मकर
में
होने
पर
गया
में
पिण्ड
दान
के
महत्त्व
का
उल्लेख),
विष्णु
२.८.२८(उत्तरायण
के
आरम्भ
में
सूर्य
के
मकर
राशि
में
आने
का
उल्लेख),
विष्णुधर्मोत्तर
३.५२.१६(वरुण
के
विग्रह
में
मकर
सौख्य
का
प्रतीक
होने
का
उल्लेख
-
यशश्च
सुसितं
छत्रं
सौख्यं
मकर
एव
च
।।),
३.१०६.३६(मकर/झष
आवाहन
मन्त्र
-
झषमावाहयिष्यामि
कामकेतुं
वरप्रदम्
।
एहि
मे
मकराग्र्येह
समस्तभुवनेश्वर
।।),
स्कन्द
२.२.४२(मृग/मकर
संक्रान्ति
उत्सव
अनुष्ठान
की
विधि),
६.२७१.६५(मकर
संक्रान्ति
को
घृतकम्बल
दान
से
बालक
के
शिव
गण
बनने
का
वृत्तान्त
-
संप्राप्यातीव
चापल्याल्लिंगं
जागेश्वरं
मया॥
घृतकुम्भे
परिक्षिप्तं
पूजितं
जनकेन
यत्॥),
लक्ष्मीनारायण
१.४९८.११(मकर
संक्रान्ति
पर
विप्रों
द्वारा
पांच
रात्रि
निवास
हेतु
पुष्कर
को
जाने
पर
दमयन्ती
द्वारा
विप्र
-
पत्नियों
को
दान
देने
की
कथा),२.१०९(जलपान
देश
के
राजा
मकरकेतु
द्वारा
वैष्णव
आदि
गणों
से
युद्ध
व
सुदर्शन
चक्र
से
मरण),
२.१२१.१००(राशि
चक्र
वर्णन
के
अन्तर्गत
मकर
राशि
का
उल्लेख),
३.१४.४५(इच्छानुसार
रूप
धारण
करने
वाले
असंख्य
माकर
महादैत्यों
का
वर्णन),
३.१३१.९(मकरस्थ
वारुणी
देवी
के
न्यास
का
उल्लेख),
३.१५१.८१(दान
से
रहित,
स्वार्थपूर्ति
हेतु
प्रयुक्त
धन
की
मकर
संज्ञा
-
अदानकं
स्वार्थमात्रं
द्रव्यं
तन्माकरो
निधिः
।
मरणे
सति
सर्वस्वं
विनष्टं
तत्परैर्भवेत्
।।),
३.१७५.४(संसार
सागर
तरण
में
काम
क्रोधादि
रूपी
मकर
से
विघ्न
होने
का
उल्लेख
-
कामक्रोधादिमकरं
मोहभ्रमादिदिग्भ्रमम्
।
रागद्वेषादिकावर्त्तं
वासनाजलशैत्यदम्
।।),
कथासरित्
२.४.७९(मकरदंष्ट्रा
कुट्टनी
द्वारा
निर्धन
विप्र
को
गृह
से
बाहर
निकलवाने
का
वृत्तान्त),
१०.१.७९(सुन्दरी
वेश्या
की
माता
मकरकटी
नामक
कुट्टनी
का
वर्णन
)
makara
मकरध्वज ब्रह्माण्ड ३.४.११.२८(शिव द्वारा मकरध्वज के दहन का उल्लेख), ३.४.१९.६७(भण्डासुर के वधार्थी ५ कामों में से एक), ३.४.३०.५६(ललिता देवी के पुत्र रूप में उत्पन्न काम की मकरध्वज संज्ञा), ३.४.४४.७४(मकरध्वजा : वर्णों की ४८ शक्तियों में से एक), मत्स्य १५४.२४४(मकरध्वज द्वारा शिव को मोहन अस्त्र से विद्ध करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१४०.५७(मकरध्वज प्रकार के प्रासाद की विशेषता का कथन : १२ तिलक, ७७ अण्ड, १० तल - द्वादशतिलकं सप्तसप्तत्यण्डं तला दश । मकरध्वजसंज्ञं तत् तिलकं शोभनं मतम् ।। ) makaradhwaja
मकरन्द भविष्य ३.३.२१.२०(अग्नि/यज्ञ से उत्पन्न मयूरध्वज - पुत्र मकरन्द द्वारा धर्म से शिलामय अश्व की प्राप्ति का प्रसंग), ३.३.२१.६३(गोवर्धन का अंश), ३.३.२१.७९(वह्नि कुण्ड से उत्पन्न व शनि - प्रदत्त भल्ल से युक्त मकरन्द द्वारा शत्रुओं को परास्त करने व जयन्त से पराजित होने का वृत्तान्त), मत्स्य १३.४३(मकरन्द पीठ में देवी की चण्डिका नाम से स्थिति का उल्लेख), कथासरित् ८.५.७९(मकरन्द के ८ वसुओं के समान विक्रम, संक्रम आदि ८ पुत्रों के नाम), १०.३.११७(विद्याधरराज - कन्या मकरन्दिका की पार्थिव राजा सोमप्रभ पर आसक्ति, माता - पिता के शाप से निषाद - पुत्री बनना व सोमप्रभ को पति रूप में प्राप्त करना), १८.२.५(खण्डकापालिक द्वारा मकरन्द नामक उद्यान में मदनमञ्जरी यक्षी के दर्शन व उसके वशीकरण का उद्योग ) makaranda
मकराक्ष वामन ५७.८९(गयाशिर द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), ५८.७८(मकराक्ष द्वारा बाण से युद्ध का कथन), स्कन्द ३.१.४४.३७(खर – पुत्र, विभीषण द्वारा वध का उल्लेख), वा.रामायण ६.७८+ (खर - पुत्र, राम द्वारा वध ) makaraaksha
मक्षिका गरुड १.२१७.२४(भोजन चोरी करने से मक्षिका योनि प्राप्ति का उल्लेख), गर्ग ७.२९.१२(मकर गिरि पर मधुमक्षिकाओं द्वारा प्रद्युम्न सेना पर आक्रमण, वायव्य अस्त्र से शान्ति), पद्म ५.१०५.१५९(द्विज - पुत्र करुण का द्विजों के शाप से मक्षिका बनने तथा दधीचि द्वारा भस्म प्रभाव से शाप का अन्त करने की कथा), मार्कण्डेय १५.१९(भोजन चोरी के दुष्कृत्य के फलस्वरूप मक्षिका योनि प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२१४.३३(माक्षिका नगरी का उल्लेख), ३.१७.८६ (मधुविद्य विप्र की भार्या माक्षिकीसत्य से रमा का प्रमाक्षिकीरमा रूप में अवतार ) makshikaa
मख पद्म १.५०.७(पिता, पति अर्चना, मित्र - अद्रोह आदि ५ मखों के महत्त्व का वर्णन - पित्रोरर्चाऽथ पत्युश्च साम्यं सर्वजनेषु च। मित्राद्रोहो विष्णुभक्तिरेते पंच महामखाः ॥ नरोत्तम विप्र का मूक पतिव्रता, तुलाधार आदि के पास जाकर शिक्षा ग्रहण करना), ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८१(मखशत्रु व मखास्कन्दी : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से २), ३.४.२६.४८(वही), भविष्य ३.२.२९.४(मख की परिभाषा : माताओं व देवताओं के लिए स्वधा, स्वाहा - मातृभ्यो देवताभ्यश्च स्वधा स्वाहेति वै मखः।), भागवत ६.१८.१(महामख : सविता व पृश्नि की सन्तानों में से एक), ११.१७.१२(मख/यज्ञ से विराट् पुरुष के प्राकट्य का उल्लेख), १२.११.४४(मखापेत : ऊर्ज/कार्तिक मास में सूर्य रथ पर स्थित राक्षस), वायु ११२.५१/२.५०.६३(मख तीर्थ की उत्पत्ति व मख तीर्थ में पिण्ड दान का महत्त्व), स्कन्द ४.२.८४.६२(मख तीर्थ में स्नान से यज्ञ से प्राप्त पुण्य के समान पुण्य की प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३१६.३(शतमख : द्युवर्णा - पति, अधिमास नवमी व्रत से नर - नारायण की पुत्र द्वय रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त ), द्र. शतमख makha
मग अग्नि ११९.२१(मगों के मगधमनस्य व मन्दग होने का उल्लेख), भविष्य १.११७.५३(देवपूजा हेतु सूर्य के तेज से आठ मग/भोजक उत्पन्न होने का वर्णन), १.१३९+ (सूर्य व निक्षुभा - पुत्र मगों की साम्ब द्वारा सूर्य अर्चना हेतु नियुक्ति), १.१४४.२५(मग की निरुक्ति : ओंकार में म का ध्यान योग करने वाले - वदन्ति चार्धमात्रस्थं मकारं व्यञ्जनात्मकम्। ध्यायन्ति ये मकारीयं ज्ञानं ते हि सदात्मकम् । । मकारो भगवान्देवो भास्करः परिकीर्तितः । मकारध्यानयोगाच्च मगा ह्येते प्रकीर्तिताः । ।), १.१७१( मग द्वारा आचरणीय धर्म ) maga
मगध गणेश १.३६.२२(मगध राजा के पिता के श्राद्ध में गृत्समद ऋषि के जन्म का भेद खुलना), गर्ग ७.१७(प्रद्युम्न द्वारा मगध विजय हेतु प्रस्थान), पद्म ६.२१६.३(मगधदेशीय द्विज देवदास की इन्द्रप्रस्थ तीर्थ यात्रा का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१७२(पृथु के यज्ञ में सूत व मागध की उत्पत्ति, पृथु द्वारा दोनों की वृत्तियों तथा राज्य के निर्धारण का कथन), २.३.३९.८(परशुराम द्वारा मागध राजा को चरणाघात से मारने का उल्लेख), भागवत ९.२२.४५(मगध देशीय राजाओं का वर्णन), वामन ११.७(मगधारण्य के ऋषियों द्वारा धर्मोपदेश), ९०.२५(मगध में विष्णु का सुधापति नाम), वायु ४५.१११(मध्य देश के जनपदों में से एक), ४५.१२३(मगधगोविन्द : पूर्व के जनपदों में से ), ४७.४८(गङ्गा द्वारा प्लावित आर्य जनपदों में से एक), ६२.१३५/२.१.१३५(पितामह के यज्ञ में सूत व मागध की उत्पत्ति, मागध के कर्म का नियतन, पृथु द्वारा मागध को मगध देश देने का कथन), ९९.२९४/२.३७.२८९(मागध बृहद्रथ वंश का वर्णन), विष्णु ४.२३(मगध देशीय बृहद्रथ वंश का वर्णन), ४.२४.६१(मगध में विश्वस्फटिक द्वारा अन्य वर्णों को स्थापित करने का उल्लेख), स्कन्द ३.३.१३(मगधराज हेमरथ द्वारा दशार्ण देश पर विजय, पश्चात् दशार्ण के राजपुत्र भद्रायु द्वारा युद्ध व विजय प्राप्ति), महाभारत कर्ण ४५.३४(मागधों के इंगितज्ञ होने का उल्लेख- इङ्गितज्ञाश्च मगधाः प्रेक्षितज्ञाश्च कोसलाः), वा.रामायण १.१३.२६(मगधाधिपति प्राप्तिज्ञ के दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ में आने का उल्लेख), कथासरित् ३.१.९(राज्य रक्षा हेतु मगधराज प्रद्योत की पुत्री पद्मावती से उदयन के विवाह की योजना), १२.२.४७(मगध के राजा भद्रबाहु द्वारा वाराणसी के राजा की कन्या अनङ्गलीला को प्राप्त करने का वृत्तान्त ) magadha
मघ लक्ष्मीनारायण २.७२.२६(ज्यामघ द्वारा स्वभ्राता श्रीमघ को राज्य सौंपकर वन में गमन, भ्राता - द्वय द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान, श्री व नारायण के नगर में निवास हेतु देवालय का निर्माण ), द्र. जाड्यमघ, ज्यामघ, श्रीमघ magha
मघवा देवीभागवत १.३.२८(सप्तम द्वापर में मघवा व्यास का उल्लेख ) maghavaa
मघा ब्रह्माण्ड २.३.१७.२१(मघा नक्षत्रों में श्राद्ध की प्रशंसा), भागवत १२.२.२८(परीक्षित् के काल में सप्तर्षियों की मघा नक्षत्र पर स्थिति का उल्लेख), मत्स्य १७.३(मघा नक्षत्र में श्राद्ध का निर्देश), वायु ६६.४९/२.५.४९(मघा के अर्यमी वीथि में स्थित होने का उल्लेख), ८१.२५/२.१९.२५(पितरों को मघा नक्षत्र प्रिय होने का कथन), ८२.६/२.२०.६(नक्षत्रों में मघा में श्राद्ध से ज्ञातियों में श्रेष्ठ होने का उल्लेख), ९९.४२३/२.३७.४१७(परीक्षित् के काल में सप्तर्षियों के मघा नक्षत्र पर होने का उल्लेख ), द्र. नक्षत्र maghaa
मङ्कुती ब्रह्माण्ड १.२.१६.३१(ऋक्षवान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ) mankatee/ mankati
मङ्कण भविष्य ३.३.३१.१५७(मङ्कण - कन्या किन्नरी का उल्लेख), ३.३.३२.४७(रूप/रूम देश - अधिपति व विरज के अंश किन्नर का उल्लेख), ३.३.३२.१३०(किन्नर भूपति व पृथ्वीराज - सेनानी मङ्कण द्वारा युद्ध में अदृश्य रूप धारण करने पर इन्दुल द्वारा बन्धन, मुक्ति होने पर इन्दुल से युद्ध, दोनों की मृत्यु), लक्ष्मीनारायण १.५५३.४०(सिद्धि प्राप्ति के गर्व से मङ्कण ऋषि का नर्तन, शिव द्वारा अवरोध ) mankana
मङ्कणक कूर्म २.३५.४४(मङ्कणक ऋषि के हाथ से भस्म निर्गम की कथा, शङ्कर द्वारा गर्व भङ्ग), पद्म १.१८.१३२(प्राची सरस्वती के माहात्म्य के संदर्भ में मङ्कणक ऋषि के कर से शाकरस स्रवण की कथा), ३.२७.५(सप्त सारस्वत तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में मङ्कण के कर से शाक रस स्रवण की कथा), ५.११७.२५(मङ्कणक - पुत्र आकथ का वृत्तान्त), वामन ३७.३१(मङ्कणक ऋषि द्वारा कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी का आह्वान), ३८(कश्यप के मानस पुत्र मङ्कणक मुनि की कथा), ६२(मङ्कणक के कर से शाकरस स्रवण का प्रसंग), ६२.४५(सप्तसारस्वत में नृत्य करते हुए मङ्कणक को शिव द्वारा रोकना), ७२.७३(मङ्कणक के शुक्र से सात मरुतों का जन्म), स्कन्द ५.२.२(हाथ से शाकरस स्रवण करने वाले ऋषि मङ्कणक का शिव द्वारा दर्प भङ्ग), ६.४०.२७(विष विद्या विचक्षण मङ्कणक ऋषि के हाथ से शाकरस स्रवण व दर्प भङ्ग की कथा), ७.१.२७०(ऋषि मङ्कणक के गर्व भङ्ग का प्रसंग), ७.३.१०.४०(हाथ से रस स्रवण करने वाले मङ्कणक का शिव द्वारा दर्प भङ्ग), कथासरित् ६.६.९९(मङ्कणक ऋषि की पुत्री कदलीगर्भा के जन्म, विवाह आदि की कथा ) mankanaka
मङ्कन ब्रह्माण्ड २.३.६७.४२(निकुम्भ नामक गणेश द्वारा स्वप्न में वाराणसी के मङ्कन नामक द्विज को नगर सीमा पर प्रतिमा निर्माण का निर्देश), वायु ९२.३८/२.३०.३८(वही) mankana
मङ्कि पद्म ६.१४३(कौषीतक - पुत्र, पुत्र प्राप्ति हेतु साभ्रमती तट पर तप), मत्स्य १९५.२२(माङ्कायन : भार्गव गोत्रकार ऋषियों में से एक), वामन ७२.७१(वपु अप्सरा द्वारा मङ्कि ऋषि के तप में विघ्न, मङ्कि द्वारा शाप), स्कन्द ७.१.१८४(मङ्की ऋषि के नाम पर मङ्कीश्वर लिङ्ग की स्थापना), ७.१.२०३(कुब्जकाय मङ्कि द्विज द्वारा शिवाराधना), ७.१.२७०(ऋषि मङ्कणक द्वारा तप करने से मङ्कीश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य), ७.३.२५(मूर्ख विप्र मङ्कि का पिण्डारक गण बनना), योगवासिष्ठ ६.२.२३+ (मङ्कि विप्र का वसिष्ठ से वासना से मुक्ति विषयक प्रश्न), लक्ष्मीनारायण २.११०.८६(मञ्चूरों के राजा प्रभाकिरीट व गुरु मङ्किरथ का उल्लेख ) manki
मङ्गल गणेश २.७६.१४ (विष्णु व सिन्धु के युद्ध में भौम का कदम्ब से युद्ध - कदम्बेन च भौमश्च मदनेन च शम्बरः।), २.८५.२५ (मङ्गलमूर्ति गणेश से ऊरु की रक्षा की प्रार्थना - गणक्रीडो जानुजंघे ऊरूमंगलमूर्तिमान् ।), २.१०६.४(गणेश द्वारा क्रोड रूप धारी मङ्गल दैत्य का वध - एतस्मिन्नन्तरे तत्र दैत्यो मंगलसंज्ञकः । करालवदनः क्रोडीविजेता मरमाद्भुतः ), गर्ग ४.२(वङ्ग देश में मङ्गल गोप द्वारा स्व कन्याओं को कृष्ण हेतु नन्दराज को देना), ७.२९.२०(मङ्गल की निवास भूमि चर्चिका नगरी का वर्णन), देवीभागवत ९.९.४३(पृथ्वी व वराह से मङ्गल ग्रह की उत्पत्ति की कथा), ९.२२.८(देवासुर सङ्ग्राम में मङ्गल का शङ्खचूड - सेनानी उषाक्ष से युद्ध), पद्म १.२४(अङ्गारक चतुर्थी व्रत विधि के संदर्भ में रुद्र के स्वेदबिन्दु से वीरभद्र की उत्पत्ति, वीरभद्र का मङ्गल ग्रह बनना - भूमिपुत्र महाभाग स्वेदोद्भव पिनाकिनः। रूपार्थी त्वां प्रपन्नोहं गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते।), १.८१.४०(शिव द्वारा शुक्राचार्य को मुख मार्ग से निकाल कर भूमि पर गिराने से मङ्गल/भौम की उत्पत्ति - ततो देवान्समाभाष्य शुक्रमुद्गीर्णवान्शिवः। भूमौ निपतितो गर्भस्ततो भौम इति स्मृतः॥), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.२१(उपेन्द्र व वसुन्धरा से मङ्गल के जन्म का प्रसंग - कथं सौते स चोपेद्रान्मङ्गलः समजायत ।। वसुन्धरायां बलवांस्तन्मे व्याख्यातुमर्हसि ।।), १.९.३४( मङ्गलस्य प्रिया मेधा तस्य घण्टेश्वरो महान्।।) ब्रह्माण्ड २.३.३८.४९(परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य के सहायक मङ्गल/मत्स्यराज संज्ञक नृप के वध का कथन - त्यक्त्वा रथं भूमिगतं च मङ्गलं परश्वधेनाशु जघान मूर्द्धनि । स भिन्नशीर्षो रुधिरं वमन्मुहुर्मूर्च्छामवाप्याथ ममार च क्षणात् ॥), ३.४.२८.४१(भण्डासुर - सेनानी, स्वप्नेशी देवी से युद्ध - स्वप्नेशी मङ्गलाख्येन दैत्येन्द्रेण रणं व्यधात् । वाग्वादिनी तु जघटे द्रुघणेन समं रणे ॥ ), भविष्य १.३४.२२(भूमि-पुत्र का तक्षक नाग से साम्य - तक्षकं भूमिपुत्रं तु कर्कोटं च बुधं विदुः । ।), ३.४.१७.४८(मङ्गल ग्रह : ध्रुव व धरादेवी – पुत्र - पंचतत्त्वा हि वै माया प्रकृतिस्तत्पतिः स्वयम् ।।तस्माद्धरायां संभूतो भौमो नाम महाग्रहः ।।), ३.४.२५.३६(मङ्गल ग्रह का मोह नाम से उल्लेख?, ब्रह्माण्ड रसना से मोह की तथा मोह द्वारा सावर्णि मन्वन्तर की रचना का उल्लेख - ब्रह्माण्डरसनाज्जातो मोहोऽहं मनुकारकः । नमस्ते मनुरूपाय मया सावर्णिकं ततम् ।।), भागवत ५.१९.१६(मङ्गलप्रस्थ : भारत के अनेक पर्वतों में से एक), १२.६.७९(माङ्गलि : पौष्यञ्जि के सामग शिष्यों में से एक, गुरु से १०० संहिताओं की प्राप्ति का उल्लेख), विष्णु २.१२.१८(भौम ग्रह के रथ का स्वरूप - अष्टाश्वः काञ्चनः श्रीमान्भौमस्यापि रथो महान्। पद्मरागारुणैरश्वैः संयुक्तो वह्निसम्भवैः॥ ), वायु ३१.७(देवों के याम नामक गण के १२ देवों में से एक), शिव २.३.१०(रुद्र भाल से मङ्गल की उत्पत्ति का वर्णन - प्रभोर्ललाटदेशात्तु यत्पृषच्छ्रमसंभवम् ।। पपात धरणौ तत्र स बभूव शिशुर्द्रुतम् ।।), २.५.३६.१२(मङ्गल द्वारा शङ्खचूड - सेनानी गणकाक्ष से युद्ध का उल्लेख - धुरंधरेण धर्मश्च गणकाक्षेण मंगलः ।। शोभाकरेण वैश्वानः पिपिटेन च मन्मथः।।), स्कन्द ३.१.१२(मङ्गल तीर्थ के प्रभाव से राजा मनोजव की विजय व शिव लोक प्राप्ति की कथा), ४.२.५७.१११(मङ्गल विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८४.५९(मङ्गल तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : स्नान से अमङ्गल नाश व मङ्गल प्राप्ति), ५.२.४४.३३(मङ्गल ग्रह द्वारा वरुण देव को पीडित करने का उल्लेख - वरुणो यादसां नाथो मंगलेन प्रपीडितः ।। राज्यभ्रष्टस्तु बहुधा केतुना वासवः कृतः ।। ), ५.३.६९(मङ्गल तीर्थ का माहात्म्य, मङ्गल द्वारा शिव आराधना), ५.३.१४८(मङ्गलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, मङ्गल ग्रह की अर्चना), ६.२५२.३६(चातुर्मास में भूमिपुत्र की खदिर में स्थिति का उल्लेख - खदिरो भूमिपुत्रेण अपामार्गो बुधेन च ॥), लक्ष्मीनारायण १.१८३.१६(मङ्गल ग्रह की उत्पत्ति का वर्णन - मम स्वेदोद्भूतबिन्दुजन्योऽयं बालकस्तव । नाम्ना ख्यातो भवेल्लोके भूमिदातृगुणादिमान् ।। ), १.३३७.४४ (मङ्गल का शङ्खचूड - सेनानी मण्डूकाक्ष से युद्ध - शोभाकरेणैवेशानो मण्डुकाक्षेण मंगलः । मन्मथः पिठरेणापि युयुधेऽस्त्रप्रहेतिभिः ।।), १.४४१.९०(नारायण ह्रद में वृक्ष स्वरूप कृष्ण से मिलने हेतु मङ्गल द्वारा खदिर वृक्ष होने का उल्लेख), १.५३८.२३ (त्रिपुर विनाशार्थ शिव के नेत्र अश्रु से भौम/मङ्गल की उत्पत्ति - अथ शंभुस्त्रिपुरस्य विनाशाय स्वनेत्रतः ।। अश्रु मुमोच क्रोधेन स भौमो मंगलोऽभवत् ।), २.१४०.५८(मङ्गल प्रासाद के लक्षण), ३.२१३(मङ्गलदेव चर्मकार की भक्ति से प्रसन्न भगवान् द्वारा स्वयं आकर विष नाश करने की कथा), कथासरित् ९.१.१६०(राजा पृथ्वीरूप द्वारा मङ्गलघट हाथी पर चढकर बारात ले जाना ) mangala
मङ्गलचण्डी देवीभागवत ९.४७(मङ्गलचण्डी द्वारा त्रिपुर दैत्य के वध में शिव की सहायता, शिव द्वारा स्तुति, मङ्गलचण्डी के ध्यान का स्वरूप), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.८६(प्रकृति के प्रधानांशों में से एक देवी मङ्गलचण्डी के गुणों का कथन), २.४४(मङ्गलचण्डी स्तोत्र ) mangalachandee/ mangalachandi
मङ्गला देवीभागवत ७.३८.२४(मङ्गला देवी की गया क्षेत्र में स्थिति), नारद १.९१.६४(ईशान शिव की द्वितीय कला), पद्म २.५१.४५(शिवशर्मा द्वारा स्वभार्या मङ्गला को भिक्षुणी रूप में आई पूर्व पत्नी सुदेवा का सत्कार करने का निर्देश), २.५२.१(शिवशर्मा द्वारा मङ्गला को पूर्व - पत्नी सुदेवा के विषय में बताना), ब्रह्म २.५२.९४/१२२(मङ्गला नदी की इन्द्र के अभिषेक जल से उत्पत्ति), मत्स्य १३.३५(गङ्गा में देवी का मङ्गला नाम), १७९.२१(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु १०६.५८/२.४४.५८(मङ्गलागौरी : गया में शिला को स्थिर करने के लिए शिला पर स्थित देवियों में से एक),स्कन्द ४.२.७९.१०२(मङ्गलदायी मङ्गला पीठ का उल्लेख), ४.२.९७.१८६(मङ्गला गौरी की प्रदक्षिणा का माहात्म्य), ५.३.१९८.७२(शूलमूलाग्र से नि:सृत उमा देवी की पुरुषोत्तम क्षेत्र में मङ्गला नाम से स्थिति का उल्लेख), ७.१.६०(प्रभास क्षेत्र की ३ दूतियों में से एक, ब्राह्मी देवी का रूप, माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.३८५.३२(मङ्गला का कार्य), २.८.११(बालकृष्ण के दुग्धपान हेतु मङ्गलागौरी नामक गाय को दुहने का उल्लेख), २.२९७.९१(मङ्गलादि पत्नियों के गृह में कृष्ण द्वारा केश साधन का उल्लेख), ४.१०१.८५(कृष्ण - पत्नी मङ्गला के पुत्र प्रभासक व पुत्री भास्वरा का उल्लेख), कथासरित् ८.२.१७७(तुम्बुरु - कन्या मङ्गलावती के सुनीथ की भार्या बनने का उल्लेख ) mangalaa
मङ्गु ब्रह्माण्ड २.३.७१.१११(उपमङ्गु व मङ्गु : श्वफल्क व गान्दिनी के पुत्रों में २), वायु ९६.११०/२.३४.११०(वही) mangu
मज्जा गरुड २.३२.११३(मज्जा में शाक द्वीप की स्थिति का उल्लेख - अस्थिस्थाने स्थितो जम्बूः शाको मज्जासु संस्थितः ।), २.३२.११५(मज्जा में घृत सागर की स्थिति का उल्लेख - सुरोदधिश्च श्लेष्मस्थः मज्जायां घृतसागरः ॥ ), पद्म ६.६.२७(, ब्रह्माण्ड ३.४.४४.९०(म वर्ण की शक्ति के रूप में मज्जा का उल्लेख), भविष्य ४.६९.३७(गौ के शरीर में देवताओं की स्थिति के संदर्भ में मज्जा में क्रतुओं की स्थिति का उल्लेख ), भागवत ३.१२.४६(मज्जायाः पङ्क्तिरुत्पन्ना बृहती प्राणतोऽभवत् ।) majjaa
मञ्जरी स्कन्द ५.१.८.३४(आम्र मञ्जरी से उर्वशी के जन्म का कथन ), द्र. चम्पकमञ्जरी, मदनमञ्जरी manjaree/ manjari
मञ्जीर देवीभागवत ९.१९.२४(स्वाहा से आहृत मञ्जीर युग्म की तुलसी को प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.१६.१३५(स्वाहा के मञ्जीर युग्म का शंखचूड द्वारा हरण का उल्लेख), manjeera
मञ्जुघोषा पद्म ६.४६.१४(मञ्जुघोषा अप्सरा का मेधावी मुनि के साथ विहार, शाप प्राप्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.३३.१९(ललिता देवी का ध्यान करने वाली अप्सराओं में से एक), भविष्य ३.४.८.५८(मेधावी मुनि व मञ्जुघोषा से भगशर्मा पुत्र की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.२४६.४९(मेधावी मुनि द्वारा मञ्जुघोषा अप्सरा के साथ भोग व शाप दान की कथा), ३.७८.२६(मञ्जुघोषा अप्सरा द्वारा सुचन्द्रिका गोपी से स्वर्गप्राप्ति का कारण ज्ञात करना ) manjughoshaa
मञ्जुमती कथासरित् १२.४.३४(मायाबटु भिल्लराज की पत्नी, प्रतीहार द्वारा हानि पंहुचाने की चेष्टा )
मञ्जुलकेश लक्ष्मीनारायण ३.१८५(कृष्ण को सर्वस्व अर्पण करने वाले भक्त मञ्जुलकेश की कथा),
मञ्जुला लक्ष्मीनारायण २.२८३.५८(मञ्जुला द्वारा बालकृष्ण को केयूर देने का उल्लेख), ३.२०५.३३(वात्सल्यधीर भक्त की पतिव्रता पत्नी मञ्जुलिका की भक्ति से प्रसन्न साधु द्वारा चतुर्भुज रूप के दर्शन देना), ४.१०१.१२६(कृष्ण - पत्नी मञ्जुला की पुत्री मातङ्गिनी व पुत्र महेश्वर का उल्लेख ) manjulaa
मणि अग्नि २४६(रत्न लक्षण के संदर्भ में विभिन्न प्रकार की मणियों के नाम), २६७.११(माहेश्वर स्नान के संदर्भ में हाथ में मणि बन्धन हेतु अक्रन्दयति सूक्त का निर्देश), गरुड १.७१(मरकत मणि की उत्पत्ति व महिमा), देवीभागवत ५.२०.१६ (महिषासुर वध के पश्चात् देवी का वास स्थान मणिद्वीप), १२.१०+ (मणिद्वीप का वर्णन), नारद २.२०.७(धर्माङ्गद द्वारा मलय पर्वत पर पांच विद्याधरों को जीतकर पांच दिव्य मणियां प्राप्त करना, मणियों की दिव्यता का वर्णन), पद्म ३.२५.८ (मणिमान् तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अग्निष्टोम फल की प्राप्ति), ६.६.२५(बल असुर के अस्थि कणों से षट्कोणीय मणियों की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४७(नख सौन्दर्य हेतु मुनीन्द्रनाथ को मणीन्द्रसार लक्ष दान का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२९.७४(चक्रवर्तियों के ७ प्राणहीन रत्नों में से एक), २.३.७.३७ (काद्रवेय नागों में से एक), भविष्य ३.४.१०(विष्णुशर्मा द्वारा पारसमणि के तिरस्कार की कथा), वराह ११(राजा दुर्जय के सत्कार हेतु गौरमुख मुनि द्वारा मणि प्राप्ति, दुर्जय द्वारा मणि प्राप्ति की चेष्टा व निधन का प्रसंग), ७९.१४(मणि शैल पर स्थित वनों की शोभा का कथन), १४८.४४(मणिपूर गिरि तथा उस पर स्थित विष्णु तीर्थों का माहात्म्य, विष्णु का नाम स्तुतस्वामी), वामन ५७.६४(चन्द्रमा द्वारा स्कन्द को मणि नामक गण प्रदान करना), ९०.७(मणिमती ह्रद में विष्णु का शम्भु नाम से वास), वायु ५७.६८(चक्रवर्तियों के ७ प्राणहीन रत्नों में से एक), ६९.७४/२.८.७१(काद्रवेय नागों में से एक), ७८.५३/२.१६.५३(मणि आदि द्रव्यों की सिद्धार्थ या तिल कल्क से शुद्धि होने का उल्लेख), विष्णु २.५.६(पाताल में नागों के आभूषणों के रूप में मणियों का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१०९(मणियों के प्रकार, कल्पन, बन्धन), २.१३२.१८(शान्ति हेतु मणि द्रव्य), शिव ४.१७.६(चन्द्रसेन राजा को मणिभद्र द्वारा दत्त मणि का वर्णन), स्कन्द १.१.८.२२(ब्रह्मा द्वारा मणिमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), १.३.१.७.३ (कृतयुग में अग्निमय/शोण शैल के त्रेता युग में मणि पर्वत तथा अन्य युगों में अन्य नामों का उल्लेख), ४.२.६८.८१(विष व व्याधिहारक, सुख सौभाग्य दायक मणिकुण्ड का उल्लेख), ५.१.४४.२४(समुद्र मन्थन से प्राप्त कौस्तुभ मणि विष्णु को देने का उल्लेख), हरिवंश २.६४.२२ (मणियुक्त मणिपर्वत के शिखर को कृष्ण द्वारा उखाड कर द्वारका ले जाने की कथा), २.९९.२२(कृष्ण द्वारा मणिपर्वत को अन्त:पुर में रखना), महाभारत आश्वमेधिक ८०.४२(सञ्जीवन मणि से अर्जुन के जीवित होने का वृत्तान्त), योगवासिष्ठ ६.१.८८(साधक द्वारा अनायास प्राप्त वास्तविक मणि की उपेक्षा कर काच मणि को वास्तविक समझने का वर्णन), ६.१.९०.१९(तप की कांच मणि से उपमा), वा.रामायण ५.६६(सीता द्वारा अभिज्ञान रूप में हनुमान को दत्त मणि के दर्शन से राम का विलाप), लक्ष्मीनारायण १.५८१.४३१(मधु व कैटभ द्वारा कृष्ण के ह्रदय से मणि लेकर नीलपर्वत पर रखने व पृथिवी द्वारा सदैव रक्षा करने की कथा), २.७७.४४(कृष्ण मणि दान से खननादि के पाप के निवारण का उल्लेख), २.२०२(श्रीहरि के मणिपत्तन में स्वागत व भ्रमण का वर्णन), २.२२५.९६(दैत्यों को मणि दान का उल्लेख), ३.३३.८६(माणेय : मेरु के पूर्व - उत्तर में स्थित २ पर्वतों में से एक, पक्षवान् पर्वतों में से एक), ४.२६.५७(माणिकीश कृष्ण की शरण से काम से मुक्ति का उल्लेख), कथासरित् १२.७.७६(मणिदत्त वणिक् द्वारा लाए गए अश्वरत्न को प्राप्त करने के लिए भीमभट व समरभट में युद्ध की कथा), १२.२८.७(मणिवर्मा वणिक् द्वारा अनङ्गमञ्जरी को पत्नी रूप में प्राप्त करना, पत्नी व पत्नी के प्रेमी को मृत देखकर मणिवर्मा की भी मृत्यु की कथा), १७.१.६०(मणिपुष्पेश्वर गण द्वारा चन्द्रलेखा कुमारी का अभिलाषापूर्ण अवलोकन करने पर देवी से शाप प्राप्ति ), द्र. चिन्तामणि, चूडामणि, महामणि, वसुमणि, वीरमणि, स्यमन्तकमणि mani
मणि- ब्रह्माण्ड १.२.१४.१७(मणीवक : हव्य के शाकद्वीप के अधिपति ७ पुत्रों में से एक), १.२.१९.९२(श्याम पर्वत के मणीवक वर्ष? नाम का उल्लेख), १.२.२०.३०(तृतीय तल में मणिनाग के पुर की स्थिति का उल्लेख), २.३.७.३६(मणिस्थक : काद्रवेय नागों में से एक), २.३.७.१२३(मणिमन्त : पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ पुत्रों में से एक), २.३.७.४५३(मणिमन्त पर्वत : गरुडों द्वारा व्याप्त स्थानों में से एक), मत्स्य २२.३९(मणिमती नदी : श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), वायु ३३.१६(मणीचक : हव्य के शाकद्वीप के स्वामी ७ पुत्रों में से एक), ३६.१८(मणिशील : अरुणोद व मन्दर के पूर्व में स्थित पर्वतों में से एक), ४३.२८(मणिवप्रा : भद्राश्व देश की मुख्य नदियों में से एक), ४३.२९(मणितटा : भद्राश्व देश की नदियों में से एक), ५०.२९(तृतीय तल में मणिमन्त नाग के पुर की स्थिति का उल्लेख), ६७.७३/२.६.७४(अर्जुन द्वारा देवों से अवध्य मणिवर्त निवासी ३ करोड दैत्यों के वध का उल्लेख), ६९.१५४/२.८.१४९(मणिदत्त : मणिभद्र व पुण्यजनी के यक्ष पुत्रों में से एक), ९९.२२२/२.३७.२१७(मणिवाहन : विद्योपरिचर वसु व गिरिका के ७ पुत्रों में से एक, अपर नाम कुश), विष्णु ४.२४.६६(मणिधान्यक वंश के भविष्य के राजाओं के जनपदों के नाम ) mani-
मणिकर्ण शिव ४.२२.१४(मणिकर्णिक तीर्थ का वर्णन), स्कन्द ४.१.३२.१६९ (मणिकर्णेश : शिव शरीर के वाम कर का रूप), ४.२.५७.१०८(मणिकर्ण गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.५५४.१४(मणिकर्ण तीर्थ में किराती की मोक्ष प्राप्ति ) manikarna
मणिकर्णिका मत्स्य १८२.२४(मणिकर्णिका में देह त्याग से इष्ट गति प्राप्त करने का उल्लेख), शिव ४.२२.१४(मणिकर्णिका की उत्पत्ति व मणिकर्णिका में ब्रह्मा की उत्पत्ति), स्कन्द ४.१.३.६(काशी में विश्वनाथ के दर्शन से पूर्व मणिकर्णिका में स्नान का विधान), ४.१.७.७९(मणिकर्णिका तीर्थ की निरुक्ति), ४.१.२६.६३ (काशी में मणिकर्णिका की उत्पत्ति का वर्णन), ४.१.३०.८४(मणिकर्णिका में सायुज्य मुक्ति प्राप्ति का उल्लेख), ४.१.३३.९(मणिकर्णिका का माहात्म्य : कलावती व माल्यकेतु राजा का वृत्तान्त), ४.१.३३.१०९(मणिकर्णिका का वर्णन), ४.१.३४.१(मणिकर्णिका का माहात्म्य, कलावती द्वारा मणिकर्णिका का स्मरण), ४.२.६१.५०(मणिकर्णिका तीर्थ का माहात्म्य), ४.२.६१.८६ (मणिकर्णिका देवी के स्वरूप का कथन), ४.२.८४.९०(मणिकर्णिका के माहात्म्य का वर्णन), ७.३.१६(मणिकर्णेश्वर का माहात्म्य, मणिकर्णिका नामक स्त्री द्वारा स्नान से सुस्वरूप प्राप्ति ) manikarnikaa
मणिकुण्डल ब्रह्म २.१००/१७०(गौतम द्वारा वैश्य सखा मणिकुण्डल के धन का हरण व चक्षु छेदन किए जाने पर विभीषण द्वारा मणिकुण्डल की चिकित्सा, महाराज राजा की कन्या से विवाह ) manikundala
मणिग्रीव गर्ग १.१९.२७(देवल के शाप से मणिग्रीव का अर्जुन वृक्ष बनना), ७.२४.१(कुबेर - पुत्र मणिग्रीव का प्रद्युम्न - सेनानी चन्द्रभानु से युद्ध), भविष्य ३.२.९.९(मदपाल वैश्य के पुत्र मणिग्रीव व कामालसा की कथा), भागवत १०.९.२३(नारद के शाप से वृक्ष बने कुबेर - पुत्र मणिग्रीव का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३२१.११३(शूद्रजातीय मणिग्रीव द्वारा पुरुषोत्तम मास में दीपदान आदि करने से दारिद्र्य नाश व चित्रबाहु राजा के रूप में पुन: जन्म लेने की कथा ) manigreeva/ manigriva
मणिदेव भविष्य ३.३.३०.७३(पूर्वजन्म में मणिदेव यक्ष की प्रिया पद्मिनी का वर्णन ) manideva
मणिधर ब्रह्माण्ड १.२.१८.१२(विशोक नामक देवारण्य में मणिधर यक्ष के निवास का उल्लेख), १.२.३६.२१६(मणिधर यक्ष के पिता रजतनाभ का संदर्भ), मत्स्य १२१.१३(मणिधर यक्ष का विशोक वन में हेमशृङ्ग पर्वत पर वास ) manidhara
मणिनाग ब्रह्म २.२०(शेष नाग - पुत्र, तप द्वारा गरुड से अभय प्राप्ति, गरुड का रोष), स्कन्द ५.३.७२.३६(मणिनाग तीर्थ का माहात्म्य, कद्रू- विनता - उच्चैःश्रवा की कथा, कद्रू के शाप विनाशार्थ मणिनाग द्वारा तप करके लिङ्ग की स्थापना),
मणिपर्वत वायु ३७.१६(विकङ्क व मणिशैल के बीच स्थित चम्पक वन का संदर्भ), विष्णु ५.२९.१०(नरकासुर द्वारा मन्दर के शृङ्ग मणिपर्वत के हरण का उल्लेख), ५.२९.३४(श्रीहरि द्वारा मणिपर्वत आदि को गरुड पर आरोपित करके ले जाने का उल्लेख ) maniparvata
मणिपूर गणेश १.३७.४३(त्रेतायुग में पुष्पक नगर की मणिपूर नाम से ख्याति का उल्लेख), भविष्य ३.२.२८.२(मणिपूर के राजा चन्द्रचूड द्वारा सत्यनारायण की भक्ति), वराह १४८.६४(धूतपाप होने तक मणिपूर पर्वत से धारा पतन न होने का उल्लेख), १४९.६०(मणिपूर से चक्र तीर्थ पर ५ धाराओं के पतन का उल्लेख), स्कन्द ५.२.१०.५(माता के शाप से त्रस्त शङ्खचूड नाग के मणिपूर जाने का उल्लेख), महाभारत आश्वमेधिक ८०.४१(मणिपूर के राजा बभ्रुवाहन तथा संजीवनी मणि का प्रसंग ) manipoora/ manipura
मणिप्रदीप स्कन्द ४.१.३३.१५७(मणिप्रदीप नाग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६८.८१(मणिप्रदीप नाग के समक्ष मणिकुण्डल का संक्षिप्त माहात्म्य ) manipradeepa/ manipradipa
मणिबन्ध विष्णुधर्मोत्तर २.१०९(विभिन्न प्रकार की आथर्वण मणियों के खनन व मन्त्र सहित बन्धन की विधि ) manibandha
मणिभद्र ब्रह्माण्ड २.३.७.१२०(रजतनाभ व मणिवरा - पुत्र, पुण्यजनी व देवजनी - पति, पुत्रों के नाम), मत्स्य १२१.८(चन्द्रप्रभ पर्वत पर मणिभद्र यक्ष का निवास), वामन १७.३(यक्षराज मणिभद्र से वट वृक्ष की उत्पत्ति), वायु ४७.७ (यक्ष - सेनापति मणिभद्र का चन्द्रप्रभ गिरि पर निवास), ६९.१५२(रजतनाभ व भद्रा - पुत्र, पुण्यजनी – पति, मणिभद्र यक्ष के पुत्रों व कन्याओं के नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.१३(मणिभद्र की मूर्ति का रूप), शिव २.२.३७.५३(दक्ष यज्ञ के विध्वंस में मणिभद्र द्वारा भृगु की दाढी मूंछ नोचने का उल्लेख), ४.१७.६(मणिभद्र नामक गण द्वारा चन्द्रसेन को चिन्तामणि भेंट करने का कथन), स्कन्द १.२.६२.३५(निधियों में मणिभद्र जाति के क्षेत्रपालों की स्थिति का उल्लेख), ३.३.५(मणिभद्र द्वारा चन्द्रसेन राजा को चिन्तामणि प्रदान करना?), ५.२.७५(मणिभद्र द्वारा पुत्र वडल को शाप देने व शापमुक्त करने की कथा), ६.१९, ६.१५५+ (कृपण व कुरूप क्षत्रिय मणिभद्र द्वारा पुष्प ब्राह्मण का अपमान, पुष्प द्वारा सूर्य आराधना से मणिभद्र की पत्नी पर अधिकार, मणिभद्र को राजा से मृत्युदण्ड की प्राप्ति), वा.रामायण ७.१२(कुबेर - अनुचर मणिभद्र का धूम्राक्ष से युद्ध, पार्श्व मौलि नाम प्राप्ति), ७.१५.१५? (कुबेर अनुचर महायक्ष मणिभद्र का धूम्राक्ष व रावण से युद्ध, पार्श्व मौलि नाम प्राप्ति), कथासरित् २.५.१६५(शक्तिमती द्वारा मणिभद्र यक्ष की मूर्ति से प्रतिष्ठित मन्दिर में पर स्त्री के साथ बन्द अपने पति समुद्रदत्त की रक्षा का प्रसंग), १८.२.३(धनद - भ्राता मणिभद्र की गेहिनी मदनमञ्जरी को खण्डकापालिक द्वारा वश में करने के यत्न का वृत्तान्त ) manibhadra
मणिमान् पद्म ३.२५.७(मणिमान् तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अग्निष्टोम फल की प्राप्ति), भागवत ४.४.४(त्रिनेत्र शिव के अनुचरों में से एक), ४.५.१७(दक्ष यज्ञ विध्वंस के समय मणिमान् द्वारा भृगु ऋषि को बांधना), वायु ६९.१५८/ २.८.१५३(मणिवर व देवजननी के यक्ष पुत्रों में से एक ) manimaan
मणिवक्त्र मत्स्य ५.२२(आप नामक वसु के चार पुत्रों में से एक),
मणिवर हरिवंश १.६.३३(मणिवर - पिता रजतनाभ को दोग्धा बनाकर यक्षों द्वारा पृथिवी को दुहने का वर्णन),
मण्डप अग्नि ५६(मण्डप निर्माण विधि), ९५.१७(लिङ्ग प्रतिष्ठा हेतु मण्डप प्रकार व निर्माण विधि), ब्रह्माण्ड ३.४.३४.८५(सहस्रस्तम्भ मण्डप), भविष्य २.३.१२(मण्डप प्रतिष्ठा विधान), मत्स्य २७०(२७ प्रकार के मण्डपों के नाम, स्वरूप भेद, निर्माण विधि), स्कन्द १.१.२४(शिव विवाह मण्डप का वर्णन), २.४.३२(तुलसी निमित्त मण्डप), २.४.३३.५४(द्वादशी पूजा निमित्त मण्डप निर्माण का उल्लेख), ४.२.७९.५६(काशी में निर्वाण, मुक्ति, ज्ञान, शृङ्गार, ऐश्वर्य मण्डपों का माहात्म्य), ४.२.९८.८२+ (मुक्ति मण्डप, शृङ्गार आदि मण्डपों का माहात्म्य), योगवासिष्ठ ३.१५(मण्डप उपाख्यान), ६.२.८(माया मण्डप), ६.२.९३(आकाश मण्डप), लक्ष्मीनारायण २.१९(कृष्ण की द्वितीय जन्म तिथि पर मण्डप निर्माण का वर्णन), २.२३४(कृष्ण की १५वीं जयन्ती उत्सव हेतु विश्वकर्मा द्वारा मण्डप निर्माण का वर्णन), २.२७८.३०(मण्डप द्वारा मुक्त स्वरूप दिखाकर स्वयं कृष्ण गृह में मण्डप बनने का वर्णन), २.२७९+ (विभिन्न मण्डप व उनके उपयोग), ४.४१.९०(कृष्ण की २१वीं जन्म तिथि पर मण्डप निर्माण का उल्लेख ) mandapa
मण्डल अग्नि २९(मन्त्र साधन हेतु सर्वतोभद्र मण्डल निर्माण), ३०(सर्वतोभद्र मण्डल पूजा विधान), १३०(७ - ७ नक्षत्रों के आग्नेय, वायव्य, दारुण, माहेन्द्र नामक ४ मण्डलों में उत्पातों के विभिन्न देशों पर प्रभावों का कथन), १४३+ (कुब्जिका पूजा हेतु मण्डल), ३१८(गणपति पूजा के संदर्भ में विघ्नमर्द मण्डल का कथन), ३१९(समण्डल वागीश्वरी पूजा का कथन), ३२०(सर्वतोभद्र आदि ८ प्रकार के मण्डलों की रचना विधि), गरुड १.८(मण्डल निर्माण विधि), १.१२६(मण्डल पूजा विधि), नारद १.२८.३२(श्राद्ध हेतु चार वर्णों के लिए मण्डलों के स्वरूपों का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त १.२(गोलोक व वैकुण्ठ मण्डलों के अन्दर रासरासेश्वर कृष्ण के ज्योति स्वरूप का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.२१.२०(मण्डलों के वर्णन के अन्तर्गत पृथिवी के मण्डल के रूप में घनोदधि, घनतेजा, घनवायु आदि का कथन), भविष्य १.१८७.१७(सूर्य के खखोल्क नामक मण्डल के महत्त्व का कथन), १.२०५.१(आदित्य हेतु मण्डल पूजा विधि, मण्डल देवताओं सहित भास्कर पूजा वर्णन के अन्तर्गत पूजा के वैदिक मन्त्र), २.१.२१(मण्डल निर्माण के विविध नाम), २.२.१+ (सूर्य की पीठिकाओं के क्रौञ्च आदि मण्डलों के विस्तार का वर्णन), २.२.२.१(सूर्य की पीठिका के परित: क्रौञ्च मण्डल निर्माण की विधि), २.२.२.४७(सुभद्र मण्डल निर्माण विधि), २.२.१०+ (वास्तुमण्डल निर्माण, देवार्चन आदि), ४.४४(आदित्य मण्डल दान व प्रतिग्रहण विधि), मत्स्य १७.३९(श्राद्ध के अवसर पर मण्डल ब्राह्मण आदि के पठन का निर्देश), १०४.९(प्रयाग में श्रीहरि द्वारा मण्डल की रक्षा का उल्लेख), १०८.९(प्रयाग के ५ योजन विस्तीर्ण मण्डल में प्रवेश पर अश्वमेध फल प्राप्ति का कथन), १११.८(वही), ११४.५६(भारत के पर्वतों के आश्रित जनपदों में से एक), २५३(वास्तु मण्डल में देवों की स्थापना), २६२.६(मण्डला : पीठिकाओं के भेदों में से एक), २६२.१७(मण्डला रूपा पीठिका का फल : कीर्ति), २६५.२६(मूर्ति स्थापना के अवसर पर अध्वर्यु द्वारा मण्डलाध्याय आदि के जप का निर्देश), २६८(वास्तुमण्डल शान्ति विधि), वराह ९९.२२(विष्णु प्रीत्यर्थ द्वादशी तिथि को सर्वतोभद्र चक्र/मण्डल निर्माण की विधि), विष्णुधर्मोत्तर १.८८.८(ग्रहों व नक्षत्रों के मण्डलों के श्वेत आदि वर्णों का कथन), १.९४.१२(सर्वग्रह याग के अन्तर्गत ध्रुव के परित: मण्डल रचना का कथन), २.२९.१२(६४ पद वाले वास्तुमण्डल देवताओं का कथन), शिव ६.५(संन्यास मण्डल निर्माण की विधि का वर्णन), स्कन्द ३.२.३१.५८(धर्मारण्य की यात्रा के अन्तर्गत राम का एक रात्रि में माण्डलिक पुर में निवास का उल्लेख ), ७.१.१०.५(मण्डल तीर्थ का वर्गीकरण – पृथिवी), लक्ष्मीनारायण २.१३८.७३(प्रासाद के गर्भ मध्य से आरम्भ करके २४ मण्डलों के देवताओं का कथन), २.१५१.७७(सर्वतोभद्र मण्डल पूजन विधि), २.१५८.२०(नव प्रासाद के समीप ८१ पद मण्डल में कुम्भ स्थापना विधि ) mandala
मण्डूक गणेश २.१९.६(कूप नामक दैत्य द्वारा मण्डूक रूप धारण कर गणेश के वध का यत्न), गरुड ३.२९.११(मण्डूकिनी : मण्डूक-भार्या, भागीरथी का अंश), गर्ग ५.२४.६०(मण्डूक देव द्वारा बलराम दर्शन हेतु तप, बलराम से भागवत संहिता की मांग), पद्म ७.९.९७(राजा सत्यधर्म व महिषी विजया द्वारा भेक योनि प्राप्ति तथा भेक द्वारा गङ्गा का स्मरण करते हुए मृत्यु को प्राप्त करने पर अश्वमेध फल की प्राप्ति का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड २.३.७.१२३(मणिभद्र व पुण्यजनी के २४ यक्ष पुत्रों में से एक), मत्स्य ५८.१८(तडाग आदि निर्माण के अन्तर्गत ताम्र मण्डूक आदि दान का निर्देश), वायु ६९.२९७/२.८.२८९(अनुवृत्ता-सन्तान), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२४(अग्नि हरण से भेक योनि प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द १.१.१८.४(महेश द्वारा भेक रूप धारण कर अमरावती से निर्गमन का उल्लेख), २.१.२६.५९(तुम्बुरु - पत्नी को शाप से मण्डूकी योनि की प्राप्ति, अगस्त्य द्वारा घोण तीर्थ माहात्म्य वर्णन से मुक्ति), ४.२.७४.६२(शिव निर्माल्य भक्षिका भेकी का पुष्प वटु के गृह में गृध्रमुखी, गीत रहस्य ज्ञाता कन्या रूप में जन्म लेना व शिव लिङ्ग की ज्योति में लीन होना), ५.३.१९८.८०(माण्डव्य में देवी का माण्डुकी नाम), ६.९०.४३(भेक द्वारा देवों को अग्नि का निवास बताना, शाप व उत्शाप प्राप्ति), ७.१.३६१(मण्डूकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), महाभारत अनुशासन ८५.३०(मण्डूकों को अग्नि के शाप व देवों के वरदान का कथन), योगवासिष्ठ १.१८.४९(शरीर की दर्दुर से उपमा), ३.२४.५०(शुक्र के वाहन भेक का उल्लेख), ५.५२.१४(मण्डूकि की मन से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४४(मण्डूकाक्ष : शङ्खचूड - सेनानी, मङ्गल से युद्ध), १.४७१(शिव मन्दिरस्थ माण्डूकी की कथा), १.४९५.३९(भेक/मण्डूक द्वारा अग्नि से शाप प्राप्ति), २.९७.५९(भेकदानेय ऋषि द्वारा भेकदान पर्वत पर वातादि से स्वयं की रक्षा होने का कथन), कथासरित् ३.६.७६(भेकों द्वारा देवों को अग्नि के जल में छिपे होने का रहस्योद्घाटन करने पर अग्नि द्वारा भेकों को शाप), ६.४.१३१(घट में रखे गए मण्डूक को जान लेने से हरिशर्मा को अपार धन की प्राप्ति ), १०.६.१५३(भेक - वाहन सर्प की
कथा ) mandooka/manduuka /manduka
मतङ्ग पद्म १.३.१०६(मतङ्ग की ब्रह्मा के पद से उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड २.३.१३.१०६(गया में भरत आश्रम में अरण्य में मतङ्ग वन का महत्त्व), ३.४.३१.९०(मतङ्ग - पुत्र मातङ्ग द्वारा देवी को मातङ्गी पुत्री रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त), वराह ८(धर्मव्याध - पुत्री अर्जुनका के मतङ्ग - पुत्र से विवाह का वर्णन), वायु ७७.३६/२.१५.३६(कौशला में मतङ्गवापी में स्नान के महत्त्व का कथन), ७७.९८/२.१५.९८(भरत के आश्रम में अरण्य में मतङ्गपद के दिखाई देने का कथन), १०८.२५/२.४६.२५(वही), १११.२४/२.४९.३०(मतङ्गवापी में श्राद्ध हेतु मन्त्र), विष्णुधर्मोत्तर १.२५१.११(इरा व पुलह से उत्पन्न ८ मतङ्गजों/हस्तियों के नाम व लक्षण, ४ जातियां व निवासभूत ८ वनों के नाम), स्कन्द २.१.३९(अञ्जना द्वारा मतङ्ग ऋषि के निर्देशानुसार तप), ४.२.९७.१६०(मतङ्गेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : ज्ञान, विद्या प्रबोधक), ५.२.६०(मतङ्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, सुगति - पुत्र मतङ्ग द्वारा गर्दभी मुख से स्व - कुल का वृत्तान्त सुनकर तप, अन्त में मतङ्गेश्वर की पूजा से ब्राह्मणत्व प्राप्ति), वा.रामायण ३.७३(कबन्ध द्वारा राम को मतङ्ग आश्रम का परिचय देना), ४.११(दुन्दुभि दैत्य के रक्त से स्पर्श होने पर मतङ्ग ऋषि द्वारा बाली को शाप), लक्ष्मीनारायण १.५७२.४(अशोकवनिका में मतङ्ग के तप का वृत्तान्त), कथासरित् ४.२.२५४(मतङ्ग नामक जीमूतवाहन के सम्बन्धी का उल्लेख), ११.१.८१(मतङ्ग मुनि द्वारा समुद्र तट पर प्राप्त कन्या वेला को पालन हेतु स्वपत्नी यमुना को देना, कालान्तर में वेला व वेला - पति को वियोग का शाप व शाप मोक्षण), १२.३४.१५०(मतङ्ग मुनि व उनकी कन्या यमुना द्वारा मार्ग से नष्ट युवती मन्दारवती का पालन, कालान्तर में मन्दारवती का स्वपति सुन्दरसेन से मिलन), १४.४.१७९(मन्दर - कन्या मतङ्गिनी आदि ५ सखियों का नरवाहनदत्त द्वारा परिणय), १६.२.९(मतङ्गदेव विद्याधर व अशोकमञ्जरी की पुत्री सुरतमञ्जरी का वृत्तान्त), १६.२.१८७(मतङ्गदेव विद्याधर का शिव के शाप से उज्जयिनी में चाण्डाल बनना, १८ सहस्र ब्राह्मणों को भोजन कराने पर शापमुक्त होना ), द्र. मातङ्ग matanga
मता मत्स्य १३.४४(पारावार तट पर देवी की मता नाम से स्थिति का उल्लेख )
मति गरुड १.२१.४(वामदेव शिव की १३ कलाओं में से एक), देवीभागवत १.१७.३९(शास्त्रज व मतिज चातुर्य - द्वय का उल्लेख; मति के युक्त व अयुक्त प्रकार - द्वय का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९२(याम संज्ञक गण के १२ देवों में से एक), १.२.३६.५६(आभूतरय संज्ञक गण के देवों में से एक), १.२.३६.७२ (भाव्य संज्ञक गण के ८ देवों में से एक), मार्कण्डेय १००.३८/९७.३८(ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर के श्रवण से शुभ मति प्राप्ति का उल्लेख), वायु ४.३०/१.४.३२(मति शब्द की निरुक्ति), ५९.७७(भगवान् के मति नाम का कारण), ६२.४८/ २.१.४८(आभूतरय संज्ञक देवों के गण में से एक), शिव ७.२.५.२४(मति का माता, मान आदि से सम्बन्ध), महाभारत आश्वमेधिक २१.११(मति के चित्त के आश्रित होने का प्रश्न व उत्तर ), द्र. अभिमति, दृढमति, भद्रमति, विमति, वेणुमति, सुमति mati
मत्कुण कथासरित् १०.४.१२७(मत्कुण/खटमल द्वारा राजा को काटने की उपकथा )
मत्त नारद १.६६.१३४(मत्तवाह गणेश की शक्ति चञ्चला का उल्लेख), १.६६.१३४(मत्त गणेश की शक्ति शशिप्रभा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६९ (५१ वर्णों के गणेशों में से एक), वायु ४४.१५(मत्तकासिक : केतुमाल देश के जनपदों में से एक ), द्र. उन्मत्त matta
मत्तर्ण पद्म ३.२६.७(कुरुक्षेत्र में मत्तर्ण द्वारपाल को अभिवादन का फल )
मत्सर गरुड २.२.७४(मात्सर्य से जात्यन्ध बनने का उल्लेख), नारद १.४३.७२(तप की मत्सर से रक्षा का निर्देश), वराह २७.३६(मत्सर के इन्द्राणी मातृका का रूप होने का उल्लेख), १४८.३२(मात्सर्य दोष), स्कन्द ५.२.२५.४०, ५.३.१५९.१७(मात्सर्य दोष से जात्यन्ध होने का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.९७(हृत्ताप के मत्सर होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), शान्ति ३२९.११(श्री की मत्सर से रक्षा करने का निर्देश ) matsara
मत्स्य अग्नि २(मत्स्य अवतार की कथा : मनु के समक्ष प्रकट मत्स्य का विशाल बनना), गणेश २.९१.२१(गणेश द्वारा मत्स्य रूप धारण कर मत्स्यासुर का वध), गरुड १.८७.१२(प्रलम्ब दानव के वध हेतु विष्णु द्वारा मत्स्य रूप में अवतार), २.२.८०(जलहारी के मत्स्य बनने का उल्लेख), २.४६.२१(जलप्रस्रवण के भेदन से मत्स्य बनने का उल्लेख), ३.२२.४०(शिश्न, रसनाग्र, गुदा आदि पर मत्स्य का स्वरूप), गर्ग २.२२.१७/२.१९.१७(मत्स्य रूप धारी पौण्ड्र असुर द्वारा हंस मुनि के निगरण पर कृष्ण द्वारा हंस मुनि की रक्षा), देवीभागवत ८.९.१८(मनु द्वारा रम्यक वर्ष में मत्स्य रूपी श्रीहरि की आराधना), नारद १.५६.७४४(मत्स्य देश के कूर्म के पाणि मण्डल होने का उल्लेख), १.११४.२(चैत्र शुक्ल पञ्चमी को मत्स्य जयन्ती होने से मत्स्यावतार उत्सव करने का निर्देश), पद्म ३.२४.३७(विमल तीर्थ में सौवर्ण व राजत मत्स्यों की स्थिति का उल्लेख), ६.९१.१(कश्यप की अञ्जलि में आई मछली द्वारा क्रमश: विशाल रूप धारण करने, समुद्र में शङ्ख दैत्य का वध करने और ऋषियों को समुद्र से वेदों का ग्रहण करने के निर्देश का कथन), ६.१२०.६२(मत्स्य से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन), ६.२३०.२६(समुद्र में प्रविष्ट वेदों के उद्धार हेतु विष्णु द्वारा मत्स्य रूप धारण कर जल में प्रवेश तथा मकर रूप धारी दैत्य का वध, वेदों का उद्धार), ब्रह्माण्ड २.३.३८.४२(परशुराम द्वारा कार्तवीर्य - सेनानी मत्स्यराज मंगल के वध का वृत्तान्त), भविष्य ३.४.२५.२७(यज्ञ से मत्स्य कल्प की उत्पत्ति? का उल्लेख, यज्ञ द्वारा मत्स्य कल्प को नमस्कार), ३.४.२५.१३०(नवम मत्स्य कल्प का वर्णन, कुबेर पुराण पुरुष से मत्स्य की उत्पत्ति), भागवत २.७.१२(युगान्त समय में मत्स्य द्वारा क्षोणीमयी नौका द्वारा जीवों की रक्षा करने व वेदों की रक्षा का कथन), ५.१८.२५(रम्यक वर्ष में मनु द्वारा मत्स्य अवतार के दर्शन व स्तुति), ६.८.१३(मत्स्य रूपी विष्णु से वरुण पाशों से रक्षा की प्रार्थना), ८.२४(मत्स्य अवतार की कथा, मत्स्य द्वारा हयग्रीव का वध), ९.२२.६(उपरिचर वसु के पुत्र चेदि राजाओं में से एक), ११.४.१८ (मत्स्य अवतार में भगवान् द्वारा मनु, इला व ओषधियों की रक्षा करने का उल्लेख), १२.१३.८(मत्स्य पुराण में १४ हजार श्लोक होने का उल्लेख), मत्स्य १.२०(मनु के पाणि पर मत्स्य का प्राकट्य, मत्स्य द्वारा विशाल रूप धारण तथा मनु को प्रलय की सूचना देना), २.१७(मत्स्य द्वारा प्रलय के स्वरूप का वर्णन, मनु की नौका का उद्धार), ५०.२८(चैद्योपरिचर वसु व गिरिका के ७ पुत्रों में से एक), ५८.१८(तडाग आदि निर्माण में राजत मत्स्य दान का निर्देश), मार्कण्डेय १५.१८(अकृतज्ञ व कृतघ्न मनुष्य को मत्स्य योनि प्राप्ति का उल्लेख), वराह ९(वेदों के उद्धार हेतु मत्स्य अवतार, देवों द्वारा स्तुति), १२२(कोकामुख क्षेत्र के प्रभाव से मत्स्य को उत्तम योनि की प्राप्ति), १४०.८१(कोकामुख क्षेत्र में मत्स्यशिला तीर्थ का वर्णन), वामन ९०.१(मानस ह्रद में विष्णु का मत्स्य रूप में निवास), वायु १.३४(पितरों की मानसी कन्या वासवी द्वारा मत्स्य योनि में उत्पन्न होकर व्यास - माता बनना), ४७.४८(मात्स्य : गङ्गा द्वारा प्लावित आर्य जनपदों में से एक), ६०.६४(देवमित्र शाकल्य के ५ शिष्यों में से एक, गुरु से संहिता प्राप्ति का उल्लेख), ९९.२२२/ २.३७.२१७(मत्स्यकाल : विद्योपरिचर वसु व गिरिका के ७ पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१९.८१(मात्स्य : उपरिचर वसु के ७ पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.१७८(मत्स्य रूपी विष्णु द्वारा प्रलम्ब का वध), ३.३७.११(पुरुष की प्रतिमा निर्माण में नेत्रों को मत्स्योदराकृति बनाने का निर्देश), ३.११९.२(मत्स्य की समुद्र पोत यात्रा में पूजा), ३.१२१.३(काश्मीर देश में मत्स्य की पूजा का निर्देश), स्कन्द १.२.१३.१९४(शतरुद्रिय प्रसंग में मत्स्य द्वारा शास्त्र लिङ्ग की वृषाकपि नाम से पूजा का उल्लेख), २.२.३७.५५(राजा श्वेत द्वारा विष्णु के मत्स्यावतार के समय सायुज्य प्राप्ति का वर प्राप्त कर श्वेत माधव होना), २.२.३८.११४(मत्स्यावतार काल में दमनक दैत्य में मुक्तिदायिनी विष्णु भक्ति का आविर्भाव), २.५.१४(मार्गशीर्ष मास में मत्स्य उत्सव का वर्णन), ४.२.६१.२०७(विष्णु के २० मत्स्य रूपों का उल्लेख), ५.२.६९.३१(नृप द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन : शूद्र द्वारा अन्तकाल में धर्म की प्रशंसा से मत्स्य योनि प्राप्त करना आदि), ५.३.१३.४५(नर्मदा माहात्म्य के अन्तर्गत मात्स्य कल्प का उल्लेख), ५.३.१५९.२१(बहते जल में बाधा डालने वाले को मत्स्य योनि प्राप्त होने का उल्लेख), ७.१.३००+ (सङ्गालेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, त्रिनेत्र मत्स्यों वाली गङ्गा का आह्वान), ८.२४.२०(पुनर्वसुञ्च पुष्यञ्च द्वौमत्स्यौ वरुणालयौ) महाभारत वन १८७.६(वैवस्वत मनु द्वारा तप काल में क्षुद्र मत्स्य की प्राप्ति, मत्स्य द्वारा विराट रूप धारण करना), ३१३.६२(मत्स्य द्वारा सोने पर भी निमेष न करने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), शान्ति १३७(संकट से स्वयं की रक्षा के संदर्भ में दीर्घकालज्ञ, उत्पन्नप्रतिभा/ सम्प्रतिपतिज्ञ व दीर्घसूत्री मत्स्यत्रय का आख्यान), ३०१.६५(दुःख रूपी उदक में तम: रूपी कूर्म और रज मीन का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१७.४४(मत्स्यी की तृष्णा से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.१३२(मत्स्य अवतार द्वारा प्रलय के समय में बीजों सहित नौका की रक्षा), १.२७०.२(चैत्र शुक्ल पञ्चमी को मत्स्य जयन्ती महोत्सव की विधि), १.४९५.२९(मत्स्य द्वारा जल में अदृश्य अग्नि की स्थिति बताने पर अग्नि द्वारा मत्स्यों को शाप), १.४९५.६६(वह्नि द्वारा मत्स्यों को उत्शाप के रूप में वंश वृद्धि का वरदान), १.५४८.२७ (त्रिनेत्र तीर्थ का वर्णन : शिव के वरदान स्वरूप ऋषियों को तृतीय दिव्य नेत्र की प्राप्ति, मत्स्यों को भी त्रिनेत्रता की प्राप्ति ) २.१६१.९२(धनमेद नामक भक्त धीवर द्वारा बन्धित मत्स्य द्वारा धीवर को विराट् रूप दिखाने का कथन), ३.१०६.६२(जल में तपोरत शम्भलवार मुनि को नारायण द्वारा मत्स्य रूप में दर्शन तथा वर प्रदान का वृत्तान्त), ३.१६४.२१(औत्तम मन्वन्तर में मत्स्यावतार द्वारा प्रलम्ब दानव के वध का कथन), ३.१७०.१४(३४ अवतारों में १२वें अवतार के रूप में मत्स्यावतार का उल्लेख), ३.१७५.३(संसार सागर में तन्मात्राहार रूपी मत्स्यों आदि का कथन), ३.१९५.१(मत्स्या नदी के तट पर मायूर पुरी में हर्षुल नामक भक्त के पुत्र की विष से मृत्यु और साधु द्वारा जीवन दान देने का वृत्तान्त), ३.२३०.१(मत्स्य पत्तन में धीरपर्वा नामक भक्त धीवर द्वारा मत्स्यों को जीवन दान के अल्प पुण्य से वैष्णव कुल में जन्म व अक्षर धाम प्राप्ति का वर्णन), कथासरित् १.५.१६(वररुचि द्वारा मृत मत्स्य के हंसने का कारण ज्ञात करना), १०.४.८३(बगुले द्वारा मत्स्यों को खा जाने की कथा?), १०.४.१७८(अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति व यद्भविष्य नामक तीन मत्स्यों की कथा), १२.७.१९५(शङ्खदत्त के मत्स्य उदर से जीवित निकलने का कथन), १८.४.११०(मत्स्य के उदर से राजकन्या का वाहन सहित जीवित निकलना), १८.४.२३०(कन्दर्प - पत्नी सुमना का मत्स्य के उदर से जीवित निकलना ) matsya
Esoteric aspect of Matsya
Vedic view of Matsya
मत्स्य- ब्रह्माण्ड २.३.३८.४२(परशुराम द्वारा मत्स्यराज मङ्गल के वध का वृत्तान्त), मत्स्य २२.४९(मत्स्य नदी : पितरों के श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक), १९६.१६(मत्स्याच्छाद्य : आङ्गिरस कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), १९६.४१(मत्स्यदग्ध : आङ्गिरस कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक),
मत्स्यगन्धा नारद २.२९.२२(ब्रह्महत्या के मीनगन्धा होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१०.७३(पितरों की मानसी कन्या अच्छोदा के अमावसु व अद्रिका की मत्स्य पुत्री के रूप में जन्म का वृत्तान्त), मत्स्य १४.१३(पितरों की मानसी कन्या अच्छोदा के मत्स्ययोनिजा बनने का वृत्तान्त), स्कन्द ५.३.९७(वसु राजा के वीर्य से मत्स्य उदर में मत्स्यगन्धा की उत्पत्ति की कथा, पराशर से व्यास के जन्म की कथा), लक्ष्मीनारायण १.४८२.७(पराशर द्वारा वसु राजा के वीर्य से मत्स्यगन्धा कन्या के जन्म के वृत्तान्त का वर्णन ) matsyagandhaa
मत्स्येन्द्रनाथ नारद २.६९.२३(मत्स्येन्द्रनाथ के चरित्र का वर्णन, विज्ञान पारङ्गत योगी मत्स्यनाथ का पार्वती - पुत्र सिद्धनाथ के रूप में तपस्यारत होने का वर्णन), भविष्य ३.४.१२.४५(मच्छन्द व रम्भा से नाथशर्मा की उत्पत्ति का कथन), स्कन्द ६.२६३.६१(मत्स्य उदर से मत्स्येन्द्रनाथ की उत्पत्ति की कथा, शिव द्वारा मत्स्येन्द्रनाथ नामकरण ) matsyendranaatha/ matsyendranatha
मत्स्योदरी नारद २.४८.२३(मत्स्योदरी नाडी सुषुम्ना नाडी का रूप), स्कन्द ४.१.३३.१२०(काशी में मत्स्योदरी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : माता के गर्भ में वास से मुक्ति), ४.२.६९.१३६(मत्स्योदरी तीर्थ का माहात्म्य : संसार के आवागमन से मुक्ति), ४.२.७३.१५६(मत्स्योदरी तट पर ओङ्कार व नादेश्वर लिङ्ग की स्थिति व माहात्म्य), ४.२.९७.७९(मत्स्योदरी गङ्गा का संक्षिप्त माहात्म्य, मत्स्योदरी नाम का कारण), ४.२.९७.११२(श्री परिवर्धन हेतु मत्स्योदरी तट पर सत्यवतीश्वर लिङ्ग की पूजा का उल्लेख ) matsyodaree/ matsyodari
मथन ब्रह्माण्ड २.३.७.१७९(मथित : श्वेता व पुलह के १० वानर पुत्रों में से एक), ३.४.८.२४(प्राणियों की ४ मूल वासनाओं में से एक), ३.४.८.२९(२५/५भ्५ तत्त्वों के मन्थन सम्बन्धी कथन), मत्स्य १४८.५४(मथन दैत्य के रथ का प्रकार), १५२(तारक - सेनानी, विष्णु से युद्ध व पराजय), १९५.३६(मथित : भार्गव वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु २९.८(अथर्वा अग्नि द्वारा पुष्कर उदधि में अमृत मन्थन का उल्लेख), स्कन्द १.२.१६.२०(तारकासुर के १० नायकों में से एक, ध्वज पर राक्षसी चिह्न होने का उल्लेख ), द्र. निर्मथ्य, प्रमथ mathana
मथुरा गरुड २.६.१४१(मथुरा में वृषोत्सर्ग का उल्लेख), गर्ग २.१(मथुरा मण्डल की प्रयाग से श्रेष्ठता का वर्णन), ३.९.१८(कृष्ण की जत्रु/गले की हंसली से मथुरा का प्राकट्य), ५.२५(मथुरा का माहात्म्य), नारद २.७९(मथुरा के अन्तर्वर्ती विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य, १२ वनों का माहात्म्य), पद्म ५.६९.१४(सहस्रदल कमल का रूप), ५.७३.२६(मथुरा की महिमा का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१८६(शत्रुघ्न द्वारा लवण का वध करके बसाई गई मथुरा पुरी में शत्रुघ्न - पुत्र शूरसेन के राज्य का कथन), भागवत ९.११.१४(शत्रुघ्न द्वारा मधु - पुत्र लवण का वध कर मधुवन में मथुरापुरी निर्माण का कथन), १०.१.२७(मथुरा के यादवों की राजधानी बनने का कथन, मथुरा में कंस द्वारा देवकी के वध के प्रयास का वृत्तान्त), १०.४१(कृष्ण द्वारा मथुरा के वैभव का दर्शन), १०.५०(जरासन्ध द्वारा मथुरा पर चढाई, कृष्ण द्वारा बार - बार परास्त करना, कालयवन द्वारा मथुरा को घेर लेने पर कृष्ण द्वारा द्वारका के निर्माण का निश्चय), १०.७९.१५(बलराम द्वारा दक्षिण मथुरा तीर्थ की यात्रा करने का उल्लेख), वराह १५२(मथुरा तीर्थ का माहात्म्य), १५३+ (मथुरा के अन्तर्गत वन, यक्ष्मधनु - पीवरी की कथा), १५८+ (मथुरा के अन्तर्गत तीर्थ, मथुरा की प्रदक्षिणा), १६३.१५(मथुरा रूपी पद्म के चार पत्रों पर स्थित विष्णु के रूप), १६५(मथुरा में चतु:सामुद्रिक कूप पर पिण्ड दान से प्रेत की मुक्ति की कथा), १६८(मथुरा का माहात्म्य, शिव का क्षेत्रपालत्व), १६९(गरुड द्वारा सभी मथुरावासियों में कृष्ण रूप के दर्शन), वायु ८८.१८५/२.२६.१८५(शत्रुघ्न द्वारा बसाई गई मथुरा पुरी में शत्रुघ्न - पुत्र शूरसेन के राज्य का कथन), ९९.३८३/२.३७.३७७(भविष्य के ७ नाग राजाओं द्वारा मथुरा पुरी के भोग का उल्लेख), १०४.८०/२.४२.८०(मथुरा पीठ की कण्ठ में स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२४७.६(शत्रुघ्न का मधुवन में प्रवेश, लवण का वध तथा मथुरा की स्थापना का वृत्तान्त), ३.१२१.५(मथुरा में शत्रुघ्न की पूजा का निर्देश), स्कन्द २.५.१७(मथुरा का माहात्म्य), २.६.१(मथुरा में वज्रनाभ के राज्य का कथन), ४.१.७.१(मथुरा वासी देवसत्तम - पुत्र शिवशर्मा का वर्णन), ५.३.१९८.७६(मथुरा में देवी के देवकी नाम स्मरण का निर्देश), हरिवंश १.५४.५६(शत्रुघ्न द्वारा मधुवन के स्थान पर मथुरा पुरी के निर्माण का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३४३(प्रथम द्वापर में मथुरा के विभिन्न तीर्थ स्थलों के नाम तथा उनके माहात्म्य आदि का कथन), १.३४४(निषाद के मथुरा में मरण से सौराष्ट} - अधिपति बनने का वृत्तान्त, मथुरा के १२ वनों के नाम आदि), १.३४५(मथुरा में विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य, सुधन तीर्थ के संदर्भ में सुधन भक्त द्वारा नृत्य के पुण्यदान से ब्रह्मराक्षस की मुक्ति का वृत्तान्त), १.३४६(मथुरा के विभिन्न क्षेत्रों, कुण्डों आदि के महत्त्व, मथुरा प्रदक्षिणा की विधि), १.३४७(मथुरा में चक्र तीर्थ में स्नानादि से सिद्ध की ब्रह्महत्या दोष के निवारण का वृत्तान्त, मथुरा रूपी पद्म के विभिन्न दलों में कृष्ण के नाम, दक्षिण दल में वराह नाम के संदर्भ में कपिल - प्रदत्त वाराही प्रतिमा की मथुरा में प्रतिष्ठा का वृत्तान्त), १.३४८(मथुरा में गोवर्धन कूट व अन्नकूट के माहात्म्य के संदर्भ में चतु:सामुद्रिक कूप पर पिण्ड दान से प्रेत के उद्धार की कथा, मथुरा में वराह विष्णु द्वारा दुष्ट राजा विमति के सूदन का वृत्तान्त), १.३४८.५८(सुशील वैश्य के प्रेत के उद्धार हेतु विभ्व वैश्य द्वारा मथुरा में पिण्डदान), १.३४९(मथुरा में विश्रान्ति तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में विप्र द्वारा विश्रान्ति तीर्थ में स्नान के फल दान से प्रेत की मुक्ति का वृत्तान्त, शम्भु की क्षेत्रपाल रूप में मथुरा में स्थिति, कृष्ण के अंश पत्नीव्रत विप्र द्वारा मथुरा के जल से डाकिनी आदि के प्रोक्षण का वृत्तान्त), १.३५०(मथुरा में गोकर्णेश्वर तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में पुत्रहीन विप्र द्वारा स्वदेश सौराष्ट} में गोकर्णेश्वर शिव की स्थापना तथा कच्छ क्षेत्र में वनदेवियों की प्रतिष्ठा), १.३५१(विप्र द्वारा मथुरा यात्रा व मथुरा में याग, शुक का मोक्ष, विप्र द्वारा मथुरा - सरस्वती संगम में स्नान आदि के पुण्य दान से ५ प्रेतों की मुक्ति का वृत्तान्त), १.३५२(भगिनी व भ्राता के अगम्यागमन पाप से मुक्ति के संदर्भ में मथुरा में पञ्चतीर्थ तथा त्रिगर्तेश में स्नान का माहात्म्य), १.३५३(कुष्ठ से मुक्ति हेतु साम्ब द्वारा मथुरा में षडादित्यों की स्थापना का वृत्तान्त), १.३५४(मथुरा में ध्रुव तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में मथुरा के राजा चन्द्रसेन की दासी द्वारा ध्रुव तीर्थ में श्राद्धादि करने से जन्तु रूप पितर की मुक्ति का वृत्तान्त), कथासरित् २.४.७८(मथुरा नगरी में ब्राह्मण लोहजङ्घ की कथा), ३.१.८४(रत्नपूर्णा मथुरा नगरी के यइल्लक वैश्य - पुत्र व उसकी पत्नी द्वारा परस्पर विरह से प्राण त्याग की कथा), ६.८.६८(यक्ष द्वारा मथुरा नगरी के बाहर स्थित खजाने की रक्षा करना ), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद १७(ब्रह्मज्ञान से जगत को मथने पर उत्पन्न सार), द्र. मधुरा mathuraa
मद गणेश २.२७.८(मदनावती का राजा पति के साथ सती होना), गरुड १.१५५(मदात्यय रोग निदान), देवीभागवत ७.७.१४(च्यवन द्वारा यज्ञ में इन्द्र के निग्रहार्थ मद की उत्पत्ति, मद के वास स्थानों का निर्धारण), नारद १.६६.१३०(आमोद गणेश की शक्ति मदजिह्वा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.५९.९ (कलि - पुत्र), ३.४.४४.७३(मदजिह्वा : ४८ वर्ण शक्तियों में से एक), भविष्य ३.३.२८.६२(शोभा वेश्या द्वारा महामद पिशाच की आराधना व सहायता प्राप्ति का वर्णन), भागवत ४.४.४(सती द्वारा पिता दक्ष के घर जाते समय सती के साथ जाने वाले शिव गणों में से एक), १०.१०.८, मत्स्य ३.११(ब्रह्मा के अहंकार से मद की उत्पत्ति का उल्लेख), १७९.२२(मदोद्धता : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १९६.२६(मादि : अङ्गिरस वंश के ऋषियों में से एक), वराह २७.३६(ब्रह्माणी मातृका का रूप), वायु ८४.९/२.२२.९(कलि - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर ३.२४४(मद के दोषों का कथन), स्कन्द १.३.१.१३.२२(मृगमद की पुलक दैत्य की देह से प्राप्ति, शिव द्वारा पार्वती के अङ्गों पर मृगमद का लेपन), ७.१.२८२+ (च्यवन द्वारा अश्विनौ को सोमपान कराने पर इन्द्र का हस्तक्षेप, च्यवन द्वारा मद नामक असुर की उत्पत्ति, शक्र के अनुरोध पर मद का पान, स्त्रियों आदि में विभाजन), महाभारत उद्योग ४३.२६(मद के १८ दोषों के नाम, दम का विपर्यय), ४५.९(मद के १८ दोषों के नाम), लक्ष्मीनारायण २.५७.४०(मर्क व मदानक असुरों का यमदूत शृङ्गवान् से युद्ध, यमदूत द्वारा हस्त - पादों का कर्तन), २.१०९.४(रणमदाङ्कन : कालप्रालेयों का राजा, मखान्त में श्रीहरि से युद्ध करने वाले असुरों में से एक ), द्र. उन्मादिनी, गृत्समद, दुर्मद, नर्मदा, प्रमदा, भद्रमदा, मन्द, महामद, सुमद mada
मदन अग्नि १९१.८(मदनाशी द्वारा कार्तिक में विश्वेश्वर की पूजा का निर्देश), गणेश २.११४.१४(सिन्धु व गणेश के युद्ध में मदनकान्त का वीरभद्र से युद्ध), नारद १.१२१.२(चैत्र शुक्ल द्वादशी को मदन द्वादशी व्रत विधि), ब्रह्माण्ड ३.४.८.२४(४ वासनाओं के मूल के रूप में मदन का कथन?), ३.४.२१.७८(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.२५.९४(ललिता - सहायक कामेशी देवी द्वारा मदन दैत्य के वध का उल्लेख), ३.४.३६.७६(मदना व मदनातुरा : ललिता की सहायक ८ शक्तियों में से २), भविष्य ३.३.२६.८७(सरदन द्वारा उत्तर के अंश मदन का वध), ३.४.२२.२६(मुकुन्द - शिष्य, जन्मान्तर में चन्दल नर्तक बनने का कथन), ४.८६(मदन द्वादशी व्रत का वर्णन : दिति से मरुतों का जन्म), मत्स्य ७.७(मदन द्वादशी व्रत की विधि), ४६.१९(देवकी के ७वें पुत्र के रूप में मदन का उल्लेख), मार्कण्डेय २.१६(मदनिका : मेनका - पुत्री, विद्युद्रूप राक्षस की भार्या, राक्षस की मृत्यु पर कन्धर पक्षी की भार्या बन कर पक्षी रूप धारण करना, कन्धर व मदनिका से तार्क्षी का जन्म), वायु ६९.४८/२.८.४८(मदनप्रिया : अरिष्टा व कश्यप की ८ अप्सरा पुत्रियों में से एक), स्कन्द ५.३.३८.१७(पार्वती के आग्रह पर शिव द्वारा मदन रूप धारण कर महादारुवन की स्त्रियों के चरित्र में क्षोभ उत्पन्न करने तथा शिव के लिङ्ग पतन का वृत्तान्त), ६.२५२.३४(चातुर्मास में अश्विनौ द्वारा मदन वृक्ष के वरण का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८८(नारायण ह्रद में वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन हेतु अश्विनीकुमारों का मदन वृक्ष होना), कथासरित् ७.८.१३८(मदनदंष्ट्रा : राक्षस द्वारा राजा वीरभुज को खाने व उसकी पत्नी मदनदंष्ट्रा को स्वयं की पत्नी बनाने का उल्लेख), ९.२.६९(मदनपुर के विद्याधर प्रलम्बभुज द्वारा पुत्र स्थूलभुज को शाप देने की कथा), ९.२.४०५(पिता द्वारा शापित अनङ्गप्रभा को पत्नी बनाने हेतु विद्याधर मदनप्रभ के प्रयास की कथा ) madana
मदनक ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२७(भण्डासुर के १५ सेनापतियों में से एक), ३.४.२५.९४(ललिता - सहायक कामेशी देवी द्वारा मदन दैत्य के वध का उल्लेख ) madanaka
मदनमञ्चुका कथासरित् ६.८.९५(मदनवेग विद्याधर की पुत्री मदनमञ्चुका के बाल्यकाल का वर्णन), ६.८.२१७(कलिङ्गसेना की पुत्री मदनमञ्चुका के रूप में अवतरित रति का नरवाहनदत्त रूप में अवतरित कामदेव से विवाह), १२.३६.२४३ (मुनि पिशङ्गजट द्वारा नरवाहनदत्त के समक्ष नष्ट मदनमञ्चुका की पुन: प्राप्ति की भविष्यवाणी), १४.१.६(नरवाहनदत्त का मदनमञ्चुका के विरह में व्याकुल होना, नरवाहनदत्त का मदनमञ्चुका का रूप धारण करने वाली वेगवती विद्याधरी से विवाह, वेगवती द्वारा नरवाहनदत्त को मदनमञ्चुका से मिलाने का उद्योग), १४.२.७६(प्रभावती द्वारा नरवाहनदत्त का मानसवेग विद्याधर द्वारा बद्ध मदनमञ्चुका से मिलन कराना), १५.२.७०(मदनमञ्चुका के रति का अवतार होने का उल्लेख ) madanamanchukaa
मदनमञ्जरी भविष्य ३.२.४.१७(चन्द्रवती की सखी मेना पक्षी मदनमञ्जरी द्वारा शुक से विवाह की अस्वीकृति), ३.३.२०.२५(राजा लहर व रावी - पुत्री मदनमञ्जरी की उत्पत्ति व वरुण के अंश सुखखानि से विवाह का कथन), स्कन्द ५.२.६१.३(काशिराज - सुता व अश्ववाहन - पत्नी मदनमञ्जरी द्वारा पति प्रेम की प्राप्ति के लिए सौभाग्येश्वर लिङ्ग की पूजा ) madanamanjaree/ madanamanjari
मदनलेखा कथासरित् ५.२.१६२(राजा द्वारा स्वपुत्री मदनलेखा का विवाह अशोकदत्त से करना), १८.२.२६६(सिंहलाधीश के दूत अनङ्गदेव द्वारा सिंहलाधीश की कन्या मदनलेखा आदि को विक्रमादित्य को भेंट करना, विक्रमादित्य का मदनलेखा से विवाह ) madanalekhaa
मदनवेग कथासरित् ६.७.१६७(मदनवेग विद्याधर द्वारा वत्सेश का रूप धारण कर कलिङ्गसेना से गान्धर्व विवाह करना, वास्तविक वत्सेश के आगमन पर मदनवेग का अदृश्य होना आदि), १२.२०.७(मदनवेग विद्याधर द्वारा हरिस्वामी द्विज की भार्या लावण्यवती का अपहरण), १६.२.८(मदनवेग व कलिङ्गसेना - पुत्र इत्यक द्वारा सुरतमञ्जरी के हरण का प्रसंग, मदनवेग - पुत्र इत्यक का संदर्भ ) madanavega
मदनसुन्दरी कथासरित् ९.५.५७(देवशक्ति व अनन्तवती की पुत्री मदनसुन्दरी के राजा कनकवर्ष की भार्या बनने का वृत्तान्त, राजा द्वारा मदनसुन्दरी से पुत्र प्राप्त करने का वृत्तान्त, पुत्र व स्त्री से राजा के वियोग व पुन: मिलन का वृत्तान्त), १२.१३.८(शुद्धपट रजक - पुत्री व धवल - भार्या मदनसुन्दरी द्वारा भ्राता व पति के कटे हुए सिरों को भूल से एक दूसरे के कबन्धों से जोड देने का वृत्तान्त), १८.४.७४(एकाकिकेसरी भिल्लराज द्वारा स्वकन्या मदनसुन्दरी को राजा विक्रमादित्य को अर्पित करना ) madanasundaree/ madanasundari
मदनसेना कथासरित् ८.१.४२(सूर्यप्रभ द्वारा वीरभट - पुत्री मदनसेना आदि अपनी सात भार्याओं के साथ एक ही समय में विहार का कथन ) madanasenaa
मदनालसा देवीभागवत ६.२०.४(चम्पक विद्याधर के साथ क्रीडामग्न मदनालसा द्वारा अनायास प्राप्त बालक को पुत्र बनाने की कामना तथा इन्द्र द्वारा वर्जन का वृत्तान्त), भविष्य ३.२.१४.१९(विद्याधर चम्पक की पत्नी मदनालसा द्वारा निर्जन वन में प्राप्त बालक का वर्णन ) madanaalasaa
मदनिका मार्कण्डेय २.१६(मेनका - पुत्री, विद्युद्रूप राक्षस की भार्या, राक्षस की मृत्यु पर कन्धर पक्षी की भार्या बन कर पक्षी रूप धारण करना, कन्धर व मदनिका से तार्क्षी का जन्म), योगवासिष्ठ ६.१.१०६.३६(कुम्भ रूप धारी चूडाला का मदनिका नाम से शिखिध्वज की पत्नी बनना ) madanikaa
मदपाल भविष्य ३.२.४.२४(देवयाजी वैश्य के धूर्त्त पुत्र मदपाल द्वारा चन्द्रकान्ति से विवाह व उसकी हत्या का वृत्तान्त), ३.२.९? (मणिग्रीव वैश्य - पुत्र, पत्नी कामालसा द्वारा सत्य वचन की रक्षा का वृत्तान्त ) madapaala/ madapala
मदयन्ती भागवत ९.९.३८(वसिष्ठ द्वारा मित्रसह - पत्नी मदयन्ती में गर्भाधान करने व मदयन्ती द्वारा गर्भ पर अश्म प्रहार करने के कारण अश्मक पुत्र प्राप्त करने का कथन), विष्णु ४.४.६९(वसिष्ठ द्वारा मित्रसह - पत्नी मदयन्ती में गर्भाधान करने व मदयन्ती द्वारा गर्भ पर अश्म प्रहार करने के कारण अश्मक पुत्र प्राप्त करने का कथन), स्कन्द ३.३.२.३५(राजा मित्रसह की पत्नी मदयन्ती द्वारा राजा को गुरु को शाप देने से निवृत करने का उल्लेख), ७.३.२.१८(उत्तङ्क द्वारा सौदास - पत्नी मदयन्ती से कुण्डल प्राप्त करने की कथा ) madayantee/ madayanti
मदवती भविष्य ३.२.११.२४(मदवती का समुद्र से प्राकट्य, पिता के शाप से बकवाहन राक्षस द्वारा मदवती का उपभोग, धर्मवल्लभ राजा द्वारा मदवती के पाणिग्रहण का वृत्तान्त), ३.४.१७.२९(इल नृप की पत्नी मदवती पर इल द्विज की आसक्ति की कथा ) madavatee/ madavati
मदान्ध स्कन्द ५.२.२३(अहंकारी राजा मदान्ध के राज्य में अनावृष्टि, देवों द्वारा मेघनादेश्वर लिङ्ग की स्थापना),
मदालसा गर्ग ७.४२.४(शकुनि असुर की पत्नी मदालसा की क्षमा याचना पर कृष्ण द्वारा बालक को राज्य देना), देवीभागवत ७.३८.१३(मदालसा पीठ में योगेश्वरी देवी के निवास का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६२.४३(मदालसा के शाप से बलि के राज्यभ्रष्ट होने का उल्लेख), भविष्य ३.३.९.२२(वत्सराज द्वारा गुर्जर देश में मदालसा के पास जाने का उल्लेख), मार्कण्डेय २१.२९/१९.२९(मदालसा की सखी द्वारा राजा कुवलयाश्व को विश्वावसु गन्धर्व - पुत्री मदालसा का परिचय देना, पातालकेतु दानव द्वारा मदालसा का हरण, कुवलयाश्व द्वारा पातालकेतु का वध, मदालसा की भार्या रूप में प्राप्ति), २१.६२/१९( मदालसा का कुवलयाश्व से परिणय), २२.२५/२०.२५(कुवलयाश्व की मृत्यु का मिथ्या समाचार सुनकर मदालसा द्वारा प्राण त्याग का उल्लेख), २३.६६/२१.६६(अश्वतर व कम्बल नागों द्वारा तप से मदालसा को पुत्री रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त), २४.३६/२२ (कुवलयाश्व/ऋतध्वज द्वारा अश्वतर - पुत्री मदालसा की भार्या रूप में पुन: प्राप्ति), २५.९/२३.९(मदालसा द्वारा प्रथम पुत्र विक्रान्त को वैराग्य की शिक्षा), २५.२४/२३.२४(मदालसा द्वारा द्वितीय व तृतीय पुत्रों को वैराग्य की शिक्षा), २६/२३.३५+ (मदालसा द्वारा चतुर्थ पुत्र अलर्क को प्रवृत्ति मार्ग की विस्तार से शिक्षा), ३६.६/३३.६(मदालसा द्वारा असह्य दुःख के समय शिक्षा के लिए अलर्क को अङ्गुलीयक में विहित शासन देना), वामन ५९.१२(पातालकेतु राक्षस द्वारा विश्वावसु की पुत्री मदालसा का हरण), स्कन्द ४.२.९७.२३०(मदालसेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : सर्वविघ्नहर्त्ता),लक्ष्मीनारायण १.३९२.३९(राजा ऋतध्वज द्वारा पाताल में विश्वावसु - कन्या मदालसा की पातालकेतु दैत्य से रक्षा व पाणिग्रहण), १.३९२.९८(पति की मृत्यु का मिथ्या समाचार सुनकर मदालसा द्वारा मृत्यु का वरण, अश्वतर नाग की कन्या के रूप में जन्म लेना), १.३९३.२४(अश्वतर द्वारा स्वपुत्री मदालसा का ऋतध्वज हेतु दान), १.३९३.४१(मदालसा द्वारा प्रथम पुत्र विक्रान्त को निवृत्ति विषयक उपदेश), १.३९४.१(मदालसा द्वारा द्वितीय पुत्र सुबाहु को निवृत्ति मार्ग का उपदेश), १.३९४.३३(मदालसा द्वारा तृतीय पुत्र शत्रुमर्दन को निवृत्ति मार्ग का उपदेश), १.३९४.९१+ (मदालसा द्वारा चतुर्थ पुत्र अलर्क को प्रवृत्ति मार्ग का उपदेश), १.३९५.१०२(मदालसा व ऋतध्वज द्वारा तप से दिव्य देह प्राप्त कर अक्षर धाम प्राप्ति का उल्लेख ) madaalasaa/ madalasaa
मदिरा ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६१(वसुदेव की पत्नियों में से एक), २.३.७१.१७१ (वसुदेव व मदिरा के नन्द आदि पुत्रों के नाम), ३.४.२०.७३(किरिचक्र रथेन्द्र के पर्व पर मदिरासिन्धु देवता की स्थिति का कथन, सुरासिन्धु द्वारा पिपासाग्रस्त शक्तियों की पिपासा शान्त करना), ३.४.२८.५७(मदिरासिन्धु/सुरासिन्धु द्वारा शक्तियों की तृषा शान्त करने का वृत्तान्त, दण्डिनी/दण्डनाथा देवी द्वारा सुराम्बुधि को वरदान), भविष्य ३.३.३१.४६(कितव राक्षस द्वारा मायावर्म नृपति की कन्या मदिरेक्षणा का उपभोग, कितव की मृत्यु के पश्चात् तारक के साथ विवाह), भागवत ९.२४.४५(वसुदेव की पत्नियों में से एक, नन्द, उपनन्द, कृत आदि की माता), मत्स्य २५१.२(समुद्र मन्थन से अमृत उत्पत्ति से पूर्व विष, धन्वन्तरि व मदिरा की उत्पत्ति का उल्लेख), विष्णु ४.१३.१५७(बलभद्र द्वारा मदिरा पान के कारण स्यमन्तक मणि धारण करने में असमर्थता का उल्लेख), ४.१५.१८(वसुदेव की पत्नियों में से एक, नन्द, उपनन्द, कृत आदि की माता), ५.२५.३(वरुण - पुत्री मदिरा का वृन्दावन में कदम्ब वृक्ष में लीन होना, बलराम द्वारा मदिरा का पान), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७३(, २.२४४.८६(मदिराश्व राजा द्वारा हिरण्यकर ऋषि को स्व कन्या दान का उल्लेख), ३.७४.६६(मदिराश्व द्वारा हिरण्य को सुता प्रदान करने से अक्षर धाम प्राप्ति का उल्लेख), कथासरित् १३.१.२६ (मदिरावती कन्या द्वारा स्वप्रिय को प्राप्त करने में आई कठिनाईयों का वर्णन ) madiraa
मदोत्कट ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८८(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), मत्स्य १३.२८(चैत्ररथ तीर्थ में देवी की मदोत्कटा नाम से स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१९८.६६(चैत्ररथ में देवी का मदोत्कटा नाम), कथासरित् १०.४.१४५ (मदोत्कट नामक सिंह द्वारा उष्ट} अनुचर के भक्षण की कथा ) madotkata
मद्गु मत्स्य ११४.४४(मद~गुरक : प्राच्य जनपदों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२१(वसा हरण से मद्गु योनि प्राप्ति का उल्लेख ) madgu
मद्य ब्रह्माण्ड ३.४.७.६३(मद्यपान के दोष), ३.४.८.४१(निषिद्ध द्रव्यों में मद्य के आपेक्षिक पाप का कथन), स्कन्द ५.१.३०.४३(मद्य के ८ प्रकारों का उल्लेख), ५.३.१५९.१२(मद्यप के श्यावदन्त होने का उल्लेख ), द्र. मदिरा, सुरा madya
मद्र नारद १.५६.७४४(मद्र देश के कूर्म का पाणि मण्डल होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४०(माद्रेय : मध्यदेश के राज्यों में से एक), २.३.३.३१(माद्रव : धर्म व विश्वा के विश्वेदेव संज्ञक पुत्रों में से एक), २.३.१३.५२(मद्रव : अमरकण्टक पर्वत पर मद्रव संज्ञक पुण्य स्थान का उल्लेख), २.३.१३.५७(मद्रव पर्वत : श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक), भागवत ९.२३.३(शिबि के ४ पुत्रों में से एक), मत्स्य ११५.७(मद्र देश के अधिपति पुरूरवा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), वामन ७९.१२(मद्र देश के वैश्य द्वारा प्रेत की मुक्ति हेतु पिण्डदान), विष्णु २.३.१८(माद्रा: भारत की नदियों के जलों का सेवन करने वालों में मद्रवासियों का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.४(मद्र देश में नृकेसरी की पूजा का निर्देश), महाभारत कर्ण ४०.३०(कर्ण द्वारा मद्र देश के निवासियों के आचार की निन्दा), लक्ष्मीनारायण १.३६६(मद्र देश के राजा अश्वपति द्वारा सावित्री देवी की आराधना, पुत्री रूप में सावित्री का जन्म), कथासरित् ८.१.१७(मद्र देश में चन्द्रप्रभ - पुत्र सूर्यप्रभ का चरित्र ) madra
मद्रक ब्रह्माण्ड २.३.७४.२३(शिबि के ४ पुत्रों में से एक, मद्रक के मद्रक जनपद का उल्लेख), २.३.७४.१९१(मगधवंशी विश्वस्फाणि द्वारा क्षत्रिय राजाओं के बदले प्रतिष्ठित जातियों में से एक), भागवत १०.७२.१३(वृकोदर/भीम द्वारा मद्रकों की सहायता से प्राची दिशा की दिग्विजय का उल्लेख), १२.१.३६(मागध विश्वस्फूर्जि द्वारा मद्रक इत्यादि अपर वर्णों की प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ९९.२३/ २.३७.२३(क्षिति के ४ पुत्रों में से एक, माद्रक जनपद का अधिपति), विष्णु ४.१८.१०(शिबि के ४ पुत्रों में से एक ) madraka
मद्रकेश भविष्य ३.३.३१.१२१(मद्र देश के अधिपति मद्रकेश द्वारा अश्विनौ की आराधना से १० पुत्र व १ कन्या की प्राप्ति), ३.३.३२.३८(मद्रकेश के कौरवों के अंश रूप पुत्रों के नाम), ३.३.३२.१६८(पृथ्वीराज - सेनानी, कैकय राजा से युद्ध में मृत्यु ) madrakesha
मद्रा वायु ४५.१०२(विन्ध्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), ७०.६८/२.९.६८(भद्रा : भद्राश्व व घृताची की १० अप्सरा कन्याओं में से एक, सोम - माता), ९९.१२४/२.३७.१२१(रौद्राश्व व घृताची की १० अप्सरा कन्याओं में से एक ), द्र. भद्रा madraa
मद्रिटा लक्ष्मीनारायण २.१९०.२(श्रीहरि द्वारा राजा मुद्राण्ड की नगरी मद्रिटा में प्रवेश तथा राजा को उपेदश का वृत्तान्त),
मधु गरुड २.३०.५१/२.४०.५१(मृतक के शोणित में मधु देने का उल्लेख), ३.१२.८६(हंस-हिडम्ब का मधु-कैटभ से तादात्म्य), गर्ग ७.२०.३०(प्रद्युम्न - सेनानी मधु के कर्ण से युद्ध का उल्लेख), ७.४७.१(प्रद्युम्न द्वारा सेना सहित मधुधारा नदी तट पर आना), १०.१५.२३(कृष्ण - पुत्र मधु द्वारा राजा इन्द्रनील को विरथ करना), १०.२४.३५(कृष्ण - पुत्र मधु द्वारा युद्ध में साम्ब की सहायता करना), देवीभागवत ४.२०.५४(शत्रुघ्न द्वारा मधु - पुत्र लवण दानव का वध), नारद १.९०.७१(मधुक से गान सिद्धि का उल्लेख), पद्म १.७२(मधु द्वारा हर रूप धारण कर विष्णु से युद्ध, विष्णु/माधव द्वारा मधु का वध), ब्रह्म २.२८.३(अग्नि तीर्थ वर्णन के संदर्भ में दिति - पुत्र मधु द्वारा जातवेदा/दक्ष अग्नि के हनन का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.६९(मधुमक्षिका को मार कर मधु ग्रहण करने पर नरक में गरल कुण्ड प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१६(मधुक : मध्यमाध्वर्युओं में से एक), २.३.७.१३३(खशा व कश्यप के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक), २.३.६३.३८(मधु राक्षस के पुत्र धुन्धु का वृत्तान्त), २.३.७०.४६(देवन - पुत्र मधु के पुत्रों के नाम, ज्यामघ वंश), ३.४.१५.२२(सुराधिपति/इन्द्र द्वारा कामेश्वर व कामाक्षी के विवाह में शिव को मधुपात्र भेंट करने का उल्लेख), भविष्य ३.४.८.१०(आषाढ? मास के सूर्य के माहात्म्य के संदर्भ में माधव के तप से मधु/मध्वाचार्य की सूर्यांश से उत्पत्ति का वृत्तान्त), ३.४.२२.२१(मुकुन्द - शिष्य मधु के जन्मान्तर में हरिदास वैष्णव के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख), भागवत १.११.११(द्वारका की रक्षा करने वाले वंशों में से एक), ५.१५.१५(बिन्दुमान् व सरघा - पुत्र, सुमना - पति, वीरव्रत - पिता, गय वंश), ९.११.१४(शत्रुघ्न द्वारा मधु - पुत्र लवण का वध करके मधुवन में मथुरापुरी के निर्माण का उल्लेख), ९.२३.२७(कार्तवीर्य अर्जुन के नष्ट होने से बचे ५ पुत्रों में से एक), १०.९०.३३(कृष्ण के १८ महारथी पुत्रों में से एक), १२.११.३३(मधु मास में धाता नामक आदित्य के रथ का कथन), मत्स्य ९.१२(उत्तम मनु के मास नाम वाले १० पुत्रों में से एक), ४४.४४(देवक्षत्र - पुत्र, पुरवस - पिता, ज्यामघ वंश), १५४.२४२(शिव को मोहित करने के लिए कामदेव के मधु मित्र सहित आने का उल्लेख), १७१.४९(विश्वा व धर्म के विश्वेदेव संज्ञक पुत्रों में से एक), २०४.५(पितरों द्वारा अपेक्षित श्राद्ध योग्य पदार्थों में से एक), लिङ्ग १.३९.२८(कल्प वृक्ष के पुटक – पुटक से अमाक्षिक मधु की सृष्टि का कथन), वराह १०४(मधु धेनु दान की विधि व माहात्म्य), वामन ९०.८(मधु नदी में विष्णु का चक्रधर नाम से वास), वायु २३.२००/१.२३.१८९(२२वें परिवर्त्त में लाङ्गली संज्ञक अवतार के पुत्रों में से एक), ५२.५(मधु - माधव मास में धाता व अर्यमा सूर्यों के रथ का कथन), ६२.६६/ २.१.६६(चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ६९.१६६/२.८.१५९(खशा व कश्यप के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक), ९५.४५(देवन - पुत्र मधु के पुत्रों के नाम), विष्णु ३.१.२८(चाक्षुष मनु के काल के सप्तर्षियों में से एक), ४.११.२१(परशुराम द्वारा वध से बचे कार्त्तवीर्य अर्जुन के ५ पुत्रों में से एक), ४.११.२६(वृष - पुत्र, वृष्णि - प्रमुख १०० पुत्रों के पिता, कार्त्तवीर्य वंश), ४.१२.४२(देवक्षत्र - पुत्र, कुमारवंश - पिता, ज्यामघ वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.२००.१(पुलोमा - पुत्र मधु द्वारा शिव से शूल प्राप्त करने तथा माली - कन्या कुम्भीलसी का हरण करके लवण पुत्र उत्पन्न करने का कथन), १.२४२.८+ (राम द्वारा शत्रुघ्न को मधुवन में लवण का वध कर मथुरा पुरी बसाने का निर्देश), २.१२०.२०(मधु हरण से दंश योनि प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द १.२.४.८०(कनीयस् प्रकार के दान के द्रव्यों में से एक), १.२.४१.९९(अर्घ निर्माण हेतु अपेक्षित द्रव्यों में से एक), ४.२.६१.२१७(मधुहा विष्णु की मूर्ति के लक्षण), ५.१.८.६९(दुर्भगा तीर्थ में मधु से तुलादान सौभाग्यदायक), ५.१.३४.२६(काम के आग्रह पर शक्र द्वारा मधु को काम का अनुचर बनने का निर्देश ; शिव विमोहन प्रसंग), ५.३.७९.५(मधुस्कन्द तीर्थ में मधु - मिश्रित तिल दान का माहात्म्य), हरिवंश १.६.३०(दैत्यों द्वारा पृथिवी से माया दोहन हेतु द्विमूर्द्धा को ऋत्विज व मधु को दोग्धा बनाना), १.११.३३(मधु राक्षस के पुत्र धुन्धु के वध का वृत्तान्त), १.३३.५४(वृष - पुत्र, माधव वंश प्रवर्तक), ३.२६.४९(मधु का विष्णु से युद्ध, हयग्रीव द्वारा वेदमय रूप धारण कर मधु का वध), महाभारत उद्योग ६४.१८(विदुर द्वारा गन्धमादन पर्वत पर द्रष्ट दिव्य मधु का कथन), द्रोण ११२.६२/११२.६५(सात्यकि द्वारा कैलातक मधु पान के प्रभाव का कथन), अनुशासन ११५.८(मधु मांस अभक्षण से अश्वमेध के बराबर फल की प्राप्ति का उल्लेख), वा.रामायण ७.२५.२७(मधु द्वारा कुम्भीनसी का अपहरण करने पर रावण द्वारा मधु को प्राण दान), ७.६१(लोला - पुत्र, कुम्भीनसी - पति व लवण - पिता मधु द्वारा शिव से दिव्य शूल की प्राप्ति), ७.७९.१८(इक्ष्वाकु - पुत्र राजा दण्ड द्वारा मधुमन्त नगर बसाने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.३६.३२(रसभक्ष असुर के पुत्र मधुभक्ष द्वारा शिव से वर पाकर ओषधियों के रसों के भक्षण तथा श्रीहरि द्वारा सुदर्शन चक्र से मधुभक्ष के वध का वृत्तान्त ), द्र. मन्वन्तर, वंश भरत, सुमधु madhu
Comments on Madhu
Vedic contexts on Madhu
मधु- ब्रह्माण्ड १.२.१३.९४(मधुप : देवों के ग्रावजित? संज्ञक गण में से एक), भागवत ५.२०.२१(मधुरुह : क्रौञ्च द्वीप के अधिपति घृतपृष्ठ के ७ पुत्रों में से एक), ११.७.३३(दत्तात्रेय के गुरुओं में से एक के रूप में मधुकृत्/मधुमक्षिका का कथन), मत्स्य १७.३९(मधु ब्राह्मण : श्राद्ध में वाचनीय मन्त्र समुच्चयों में से एक), ८२.१९(मधुधेनु : ब्राह्मणों को देय गुड धेनु आदि १० धेनुओं में से एक), १२१.७१(मध्वी : जय संज्ञक १२ ह्रदों से नि:सृत २ नदियों में से एक), १७९.७०(मधुदंष्ट्री : शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं की शान्ति के लिए नृसिंह द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १९६.२२(मधुरावह : पञ्चार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ३१.७(मधुप : देवों के ? गण में से एक), ९९.३६९/२.३७.३६३ (मधुनन्दि : अङ्ग वंश के भविष्य के राजाओं में से एक ) madhu-
मधुकुल्या भागवत ५.२०.१५(कुश द्वीप की नदियों में से एक), वायु १०९.१७/ २.४७.१७(गया में स्थित नदियों में से एक), ११२.३०/२.५०.३६(गया में मधुकुल्या नदी में स्नान आदि का फल ) madhukulyaa
मधु - कैटभ गणेश १.१६.१३(विष्णु के श्रोत्रों से मधु - कैटभ दैत्यों की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा विष्णु को जगाने हेतु योगनिद्रा की स्तुति, गणेश की आराधना से विष्णु के मधु - कैटभ को मारने में सफल होने का वृत्तान्त), गरुड ३.१२.८६(मधु-कैटभ का हंस-हिडिम्ब से तादात्म्य), देवीभागवत १.६.२१(विष्णु के कर्ण मल से मधु व कैटभ की उत्पत्ति, मधु द्वारा तप से स्वेच्छा मरण वर की प्राप्ति), १.७(ब्रह्मा द्वारा विष्णु के प्रबोधन के लिए योगनिद्रा देवी की स्तुति), १.९(विष्णु द्वारा मधु व कैटभ के वध की कथा), पद्म १.४०.१८(रजो व तमोगुण रूप मधु व कैटभ की उत्पत्ति व वध), ६.१२२.८०(पूर्व काल में मधु - कैटभ के रक्त से रञ्जित पृथिवी के इन्द्र द्वारा ब्रह्महत्या के पाप से रञ्जित होने तथा पवित्रीकरण का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त १.४.२८(कृष्ण के कर्ण मल से उत्पन्न मधु व कैटभ का वध), ब्रह्माण्ड १.२.३७.२(मधु - कैटभ के मेद से लिप्त होने के कारण पृथिवी की मेदिनी संज्ञा का उल्लेख), ३.४.२९.७५(भण्डासुर के महासुर अस्त्र से दुर्गा सप्तशती के मधु कैटभ आदि दानवों की उत्पत्ति तथा ललिता देवी से उत्पन्न दुर्गा द्वारा दैत्यों के वध का कथन), भागवत ७.९.३७(मधु - कैटभ की रजो व तमोगुण से उपमा), मत्स्य १७०(रज और तम से मधु व कैटभ की उत्पत्ति तथा विष्णु द्वारा ऊरु तल पर उनके हनन का वृत्तान्त), मार्कण्डेय ७८/८१.५०(मधु व कैटभ की उत्पत्ति), वायु २५.२९ (शायी विष्णु से मधु - कैटभ की उत्पत्ति, विष्णु से युद्ध, जिष्णु द्वारा मधु व विष्णु द्वारा कैटभ का वध), विष्णुधर्मोत्तर १.१५.९(ब्रह्मा के स्वेद बिन्दु से मधु व कैटभ की उत्पत्ति तथा जिष्णु व विष्णु द्वारा मधु व कैटभ के वध का उपाख्यान), शिव ५.४५.५३(विष्णु के कर्णमल से मधु व कैटभ की उत्पत्ति, विष्णु द्वारा स्वजघन पर नाश की कथा), हरिवंश १.५२.२५ (मधु - कैटभ के नामकरण व विष्णु द्वारा वध की कथा - मृदुस्त्वयं मधुर्नाम कठिनः कैटभोऽभवत् ।।), ३.१३(मधु व कैटभ की उत्पत्ति, ब्रह्मा से संवाद व विष्णु द्वारा वध), लक्ष्मीनारायण १.१६२.३४(विष्णु के कर्णमल से मधु व कैटभ के जन्म व विष्णु के जघन पर मरण का प्रसंग ) madhu - kaitabha
मधुच्छन्दा ब्रह्म २.६८.३(शर्याति - पुरोहित मधुच्छन्दा की पत्नी द्वारा पति की मृत्यु का मिथ्या समाचार सुनकर मृत होना, पुन: सञ्जीवन), २.१०१.२५(प्रमति - पुरोहित मधुच्छन्दा द्वारा देवलोक में यजमान प्रमति के पाशबद्ध होने पर प्रमति - पुत्र को मुक्ति के उपाय का कथन), भागवत ९.१६.२९(विश्वामित्र के मध्यम पुत्र मधुच्छन्दा द्वारा देवरात को भ्राता रूप में स्वीकार करना, विश्वामित्र के अन्य पुत्रों की मधुच्छन्दा नाम से ख्याति), मत्स्य १४५.११२(१३ ब्रह्मिष्ठ कौशिक ऋषियों में से एक), वायु ९१.९६/२.२९.९२ (विश्वामित्र के पुत्रों में से एक), विष्णु ४.७.३८(विश्वामित्र के पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.१.२३.३०(असुर विनाशक यज्ञ में विश्वामित्र - पुत्र मधुच्छन्दा के सुब्रह्मण्य ऋत्विज बनने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७५(दक्ष द्वारा रुद्र को प्रदत्त १० कन्याओं में से एक ) madhuchchhandaa
मधुपर्क वराह १९१(मधुपर्क की विष्णु से उत्पत्ति, मधुपर्क के निर्माण व दान की विधि, शान्ति पाठ), विष्णुधर्मोत्तर १.६३.५३(मधुपर्क की निरुक्ति : परम स्थान की प्राप्ति कराने वाला), १.२४८.३३, लक्ष्मीनारायण १.३५६.१३८(श्राद्ध कर्म में मधुपर्क दान से मुक्ति ) madhuparka
मधुमती गर्ग २.२०.९(मधुमती गोपी द्वारा राधा को स्फुरद् रत्नाङ्गदद्वय भेंट का उल्लेख), भविष्य ३.२.२(हरिशर्मा व सुशीला - पुत्री मधुमती द्वारा पति चुनने की प्रहेली, मरण, पुन: सञ्जीवन, विवाह), हरिवंश २.३७.१३(मधु दैत्य की कन्या व हर्यश्व - भार्या मधुमती द्वारा राज्य से निष्कासित पति को पिता मधु के राज्य में जाने की प्रेरणा देना, यदु - माता ) madhumatee/ madhumati
मधुर नारद १.५०.४४(मधुर आदि गान के १० गुणों का वर्णन), पद्म ६.१४१.७(साभ्रमती माहात्म्य के अन्तर्गत मधुरा तीर्थ में श्रीहरि द्वारा स्थापित मधुरादित्य का माहात्म्य ; साभ्रमती - धर्मावती सङ्गम के माहात्म्य के संदर्भ में माण्डव्य को शूल पर आरोपित करने की कथा ) madhura
मधुरा पद्म ६.१४१.३(धर्मावती - गङ्गा सङ्गम के निकट मधुरादित्य तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य का कथन), वायु ३१.७(ग्रावाजिन नामक देवों के गण में से एक), विष्णु १.१२.३(शत्रुघ्न द्वारा मधु - पुत्र लवण का वध कर मधुरा पुरी की स्थापना का कथन), स्कन्द ३.१.१७.२२(कक्षीवान् के विवाह वर्णन के अन्तर्गत वर्षवरों का मधुरा को जाना), ३.१.५०.२(मधुरा के राजा पुण्यनिधि का वर्णन), वा.रामायण ७.१०८.११(शत्रुघ्न द्वारा पुत्र सुबाहु को मधुरा का राज्य देने का उल्लेख ), द्र. मथुरा madhuraa
मधुवन पद्म ३.३१.१८१(मधुवन में शाकुनि विप्र के ५ गृहस्थ व ४ विरक्त पुत्रों का वृत्तान्त), ६.२१३.१(कालिन्दी माहात्म्य के अन्तर्गत मधुवन में विश्रान्ति तीर्थ में श्राद्ध आदि करने के महत्त्व के संदर्भ में स्वैरिणी स्त्री के पुत्र द्वारा स्वमाता के श्राद्ध से माता को गोधा योनि से मुक्ति दिलाने का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१८६(शत्रुघ्न द्वारा लवण का वध करके मधुवन में मथुरा पुरी की स्थापना का उल्लेख), भागवत ४.९.१(मधुवन में ध्रुव की तपस्या का कथन), वामन ९०.१४(मधुवन में विष्णु का स्वयम्भू नाम से वास), वायु ८८.१८५/२.२६.१८५(शत्रुघ्न द्वारा लवण का वध करके मधुवन में मथुरा पुरी की स्थापना का उल्लेख), वा.रामायण ५.६१.८(दधिमुख वानर द्वारा रक्षित मधुवन का लङ्का से प्रत्यगमन पर वानरों द्वारा उपभोग ) madhuvana
मधुविन्दा लक्ष्मीनारायण ३.१८२.१८(पृथ्वीधर राजा की पत्नी मधुविन्दा के जन्मान्ध पुत्र का वृत्तान्त),
मधुसूदन ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.१८(मधुसूदन से मस्तक की रक्षा की प्रार्थना), भागवत ६.८.२१(मधुसूदन उग्रधन्वा से अपराह्न काल में रक्षा की प्रार्थना), १०.६.२३(मधुसूदन से पार्श्व की रक्षा की प्रार्थना), वराह १.२६(मधुसूदन से उदर की रक्षा की प्रार्थना), वामन ९०.२८(कन्था तीर्थ में विष्णु का मधुसूदन नाम), स्कन्द २.२.३०.७९(मधुसूदन से नैर्ऋत्य दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ६.२१३.९०(जाम्बवती द्वारा मधुसूदन से कण्ठ की रक्षा की प्रार्थना), लक्ष्मीनारायण १.२६५.९(मधुसूदन की पत्नी माधवी का उल्लेख ) madhusoodana/madhusuudana/ madhusudana
मधूक नारद १.९०.७१(मधूक पुष्प द्वारा देवी पूजा से गान सिद्धि का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.११.३७(सौभाग्यदायक), भविष्य १.१९३.७(मधूक दन्तकाष्ठ की महिमा), स्कन्द ५.३.२६.११०(षष्ठी को मधूक फल दान से स्कन्द के समान पुत्र प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.२६.१३५(मधूक तृतीया व्रत विधान), ५.३.१५९.२३(द्विज हेतु धन दान का वचन देकर न देने पर मधुक योनि प्राप्ति का उल्लेख), ६.२०८(विश्वेदेवों द्वारा मधूक वृक्ष का वरण), ६.२५२.३५(चातुर्मास में विश्वेदेवों की मधूक वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.१७.८(मधूक दन्तकाष्ठ के सेवन से पुत्र लाभ का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८९(पितृतृप्ति हेतु कृष्ण के पिप्पल रूप होने पर विश्वेदेवों का मधूक/महुआ वृक्ष होना ) madhooka/ madhuuka/ madhuka
मध्य गणेश १.५६.६(मध्य देश में शूरसेन नृप की कथा), ब्रह्माण्ड १.२.३१.८१(भारत के जनपदों में से एक), १.२.३५.११(मध्य देश में आसुरि द्वारा यजुर्वेद की प्रतिष्ठा का उल्लेख), २.३.७.११(रिष्टा के १० पुत्रों में से एक), भविष्य ४.६.१९४(सब देशों में मध्य देश भारत की श्रेष्ठता का कथन), मत्स्य १२.१९(इक्ष्वाकु द्वारा मध्य देश प्राप्त करने का उल्लेख), ३६.५८(ययाति द्वारा पूरु को पृथिवी के मध्य का तथा उसके अन्य भ्राताओं को पृथिवी के अन्त का राज्य देने का उल्लेख), ११४.३६(मध्य देश के जनपदों के नाम), २७१.५(अयोध्या के मध्य देश में होने का उल्लेख), विष्णु २.३.१५(कुरु पाञ्चालों का मध्य देश के निवासियों के रूप में उल्लेख), कथासरित् ६.६.१०५(मध्यदेश के नृप दृढवर्मा का वृत्तान्त ) madhya
मध्यन्दिन ब्रह्माण्ड १.२.३५.२८(याज्ञवल्क्य के वाजी संज्ञक १५ शिष्यों में से एक), भागवत ४.१३.१३(प्रभा व पुष्पार्ण के ३ पुत्रों में से एक), वायु ६१.२५(याज्ञवल्क्य के वाजी संज्ञक १५ शिष्यों में से एक ) madhyandina
मध्यम देवीभागवत ७.३८.२३(शर्वाणी देवी का मध्यम नामक स्थान - शाङ्करी तु महाकाले शर्वाणी मध्यमाभिधे । केदाराख्ये महाक्षेत्रे देवी सा मार्गदायिनी ॥ ), पद्म ३.३६(काशी में कृष्ण द्वारा आराधित मध्यमेश का माहात्म्य), ब्रह्म २.३०.१७(ब्रह्महत्या के भय से शिव की गङ्गा में मध्यमेश नाम से स्थिति तथा कश्यप द्वारा मध्यमेश की आराधना का कथन - ब्रह्महत्याभयादेव यत्र देवो महेश्वरः। गङ्गामध्ये सदा हायास्ते मध्यमेश्वरसंज्ञया।।), ब्रह्माण्ड २.३.३.५१(नक्षत्रों की ३ वीथियों की मध्यम मार्ग संज्ञा - ज्येष्ठा विशाखानुराधा वीथी जारद्गवी मता ॥ एतास्तु वीथयस्तिस्रो मध्यमो मार्ग उच्यते ।), भागवत ११.२.४६(मध्यम भक्त के ४ लक्षण - ईश्वरे तदधीनेषु बालिशेषु द्विषत्सु च । प्रेममैत्रीकृपोपेक्षा यः करोति स मध्यमः ॥), महाभारत उद्योग १११.२(उत्तर दिशा की मध्यम संज्ञा का उल्लेख - उत्तरस्य हिरण्यस्य परिवापस्य गालव । मार्गः पश्चिमपूर्वाभ्यां दिग्भ्यां वै मध्यमः स्मृतः ।।), वामन २२.१८(प्रयाग के मध्यमा वेदि होने का उल्लेख - प्रयागो मध्यमा वेदिः पूर्वा वेदिर्गयाशिरः। विरजा दक्षिणा वेदिरनन्तफलदायिनी।।), वायु २१.३६(मध्यम नामक १८वें कल्प में मध्यम स्वर की उत्पत्ति का कथन - ततस्तु मध्यमो नाम कल्पोऽष्टादश उच्यते। यस्मिंस्तु मध्यमो नाम स्वरो धैवतपूजितः ।), १०१.१०२/२.३९.१०२(संख्या विशेष के लिए मध्यम शब्द का प्रयोग- समुद्रं मध्यमञ्चैव परार्द्धमपरं ततः। एवमष्टादशैतानि स्थानानि गणनाविधौ ।। ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४९.१०(ब्रह्मा द्वारा मध्यम को द्वीपों का अधिपति नियुक्त करने का उल्लेख - भारतं सर्ववर्षाणां द्वीपानामथ मध्यमम् । स्वादूदकं समुद्राणामश्वत्थं सर्वशाखिनाम् ।।), शिव ५.४४.७७ (व्यास द्वारा काशी में अभिलाषाष्टक स्तोत्र द्वारा बाल रूप धारी मध्यमेश्वर शिव की स्तुति, प्राप्त वरदान के फलस्वरूप पुराणों की रचना - न मध्यमेश्वरादन्यल्लिंगं काश्यां हि विद्यते । यद्दर्शनार्थमायान्ति देवाः पर्वणिपर्वणि ।।), स्कन्द १.२.१३.१८३ (शतरुद्रिय प्रसंग में अश्वतर नाग द्वारा धान्यमय लिङ्ग की मध्यम नाम से पूजा का उल्लेख - नागश्चाश्वतरो धान्यं मध्यमेत्यस्य नाम च॥), ४.१.३३.१७० (मध्यमेश्वर : शिव शरीर में नाभि का रूप - ज्येष्ठेश्वरो नितंबश्च नाभिर्वै मध्यमेश्वरः ।।), ४.२.६७.१७७(मध्यमेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - क्षेत्रस्य मध्यमे भागे मध्यमेश्वर एष वै ।....मध्यमेशं समभ्यर्च्य नरो मध्यमविष्टपे । आसमुद्रक्षितींद्रः स्यात्ततो मोक्षं च विंदति ।।), ४.२.९७.१४९(मध्यमेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - तदुत्तरे मध्यमेशो मध्ये क्षेत्रं स्वपित्यहो ।। तत्र जागरणं कृत्वाऽशोकाष्टम्यां मधौ नरः ।), ७.१.१०.७(मध्यम तीर्थ का वर्गीकरण – जल - महाकालं मध्यमं च केदारं भैरवं तथा ॥ पवित्राष्टकमेतद्धि जलसंस्थं वरानने ॥ ), कथासरित् ५.३.७२(चन्द्रप्रभा द्वारा शक्तिदेव के लिए मध्यमा भूमि पर आरोहण का निषेध, शक्तिदेव द्वारा आरोहण का वृत्तान्त - एकेन पुनरेतस्मिन्मन्दिरेऽप्यवतिष्ठता । मध्यमा भवता भूमिर्नारोढव्या कथंचन ।। ) madhyama
मध्याह्न वायु ५०.९९(अर्यमा/सूर्य के मध्याह्न में वरुण की नगरी में होने पर सूर्य के उदय व अस्त होने के स्थान), ५०.१००(दिवाकर के मध्याह्न में सोम पुरी में होने पर सूर्य के उदय व अस्त होने के स्थान), ५०.१७१(सङ्गव, मध्याह्न, अपराह्न आदि कालों का निरूपण ) madhyaahna/ madhyahna
मन गणेश २.१३५.६(मनोमयी : सौभरि - पत्नी, क्रौञ्च गन्धर्व द्वारा धर्षण), गरुड १.२१.५ (मनोन्मनी – अघोर शिव की ८ कलाओं में से एक), ३.५.१४(मन-अभिमानी देवों का उल्लेख), गर्ग ३.९.२१(कृष्ण के मन से गायों व वृषभों के तथा बुद्धि से यवसगुल्मों के प्राकट्य का कथन), ५.१६.२५(बन्धन और मोक्ष का कारण मन), नारद १.४३.७८(मन को विश्रम्भ में धारण करने और प्राण द्वारा ग्रहण करने का निर्देश), पद्म ६.२२६.४१(मन की निरुक्ति : म – मकार, अहंकृति, न - निषेधक), ब्रह्म १.७०.५३(देह में ह्रदय में मन का स्थान होने तथा मन के प्रजापति होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.२(मरीचि के मन से कश्यप प्रजापति, प्रचेता के मन से गौतम, पुलस्त्य के मन से मैत्रावरुण आदि की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.४.६०(मन के सौन्दर्य हेतु मणि दान का निर्देश), ४.८६.९७(मर्त्य स्तर पर दुर्गा बुद्धि व मन ब्रह्म होने का उल्लेख), ४.९४.१०७(प्राण के विष्णु व मन के ब्रह्मा, चेतना होने का कथन), ब्रह्माण्ड १.१.३.१८(मन की परिभाषा : सब भूतों की चेष्टाफल का मनन करने वाला आदि आदि, भोक्ता, त्राता, विभक्तात्मा, वर्त्तन), १.२.९.१(रुद्र द्वारा मन से सृष्ट ५ भावों के नाम), २.३.३.१६(माध्य संज्ञक १२ देवों में से एक), ३.४.३.२२(प्रलय काल में महान् द्वारा बुद्धि, मन आदि को ग्रस लेने का कथन), भविष्य ३.४.२५.३२(ब्रह्माण्ड मन से मनुकारक ध्रुव व उत्तम मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख, अन्य अंगों से अन्य मन्वन्तर), भागवत २.१०.३०(ह्रदय से मन, चन्द्र आदि की उत्पत्ति का उल्लेख, मनः सर्वविकारात्मा...), ३.१२.२४(ब्रह्मा के मन से मरीचि ऋषि की उत्पत्ति का उल्लेख, अन्य अंगों से अन्य ऋषि), ५.५.५(क्रिया व कर्म से मन का शरीर से सम्बन्ध), ५.११.९(मन की १२ वृत्तियों तथा मन के क्षेत्रज्ञ से भिन्न होने का कथन), ११.२०.१८(मन को अचल रखने का निर्देश), ११.२२.३६(मनुष्यों में मन के कर्ममय होने का उल्लेख), ११.२३.४३(सुख - दुःख के परम कारण मन को एकाग्र करने का निर्देश), ११.२३.४४(मन से गुणों व कर्मों के सृजन का कथन ‹ अज =मन), मत्स्य ४.२१(इन्द्रियों में मन के ११वां होने का उल्लेख), ४.२३(मन द्वारा आकाश आदि भूतों की सृष्टि करने का कथन), लिङ्ग १.७०.१३(मन की निरुक्ति - मनुते सर्वभूतानां यस्माच्चेष्टा फलं ततः), वायु ४.२८/१.४.२६( मन की निरुक्ति व उपनाम - मनुते सर्वभूतानां यस्माच्चेष्टाफलं विभुः), ११.२९(मन से धारणा योग होने का उल्लेख), १७.६(त्रिदण्डों में मनोदण्ड का उल्लेख), २१.५९(२६वें मन नामक कल्प में शङ्करी देवी द्वारा प्रजा उत्पन्न करने का उल्लेख), २१.६७(ब्रह्मा के मन में पूर्ण सोम के प्रकट होने से पौर्णमासी नाम प्रथन का उल्लेख), ६६.१५/२.५.१५(तुषित संज्ञक देवों के साध्य संज्ञक गण बनने पर गण के १२ देवों में से एक), विष्णु १.२२.७१(विष्णु के सुदर्शन चक्र के मन का प्रतीक होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२४९.६(मन के सर्व इन्द्रियों के राज्य पर अभिषिक्त होने का उल्लेख), ३.४७.७(गरुड के मन का प्रतीक होने का उल्लेख), स्कन्द २.७.१९.४८(विभिन्न देवों की स्पर्द्धा में रुद्र रूपी मन के शरीर से विनिष्क्रान्त होने पर भी जीव के अस्तित्व का कथन; मन में बोधनात्मक रुद्र की स्थिति का कथन), २.७.१९.५५(मन के रुद्र में प्रवेश का उल्लेख), ५.२.६४.१८(मन रूपी बुद्धि की अस्थिरता का कथन), महाभारत वन १८१.२४(मन व बुद्धि में अन्तर), ३१३.५३(मन के यज्ञिय यजु व प्राण के यज्ञिय साम होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), शान्ति १६.२२(भीम द्वारा युधिष्ठिर को राज्य स्वीकार करके मन से युद्ध करने का प्रबोधन), २३३.१३(प्रलय काल में मन द्वारा आकाश के शब्द गुण को ग्रसने का उल्लेख, चन्द्रमा द्वारा मन को ग्रसने का कथन), २५४.९(शरीर रूपी पुर में मन के मन्त्री व बुद्धि के स्वामिनी होने का कथन, मन को बुद्धि से पृथक् करने पर मन के केवल होने का कथन), २५५.९(मन के ९ गुणों के नाम), ३०१.१५(मन के ६ गुणों का उल्लेख), ३११.१६(मन के अनुसार तिर्यक् योनियों के अह व रात्रि का परिमाण ; मन के इन्द्रियों का ईश्वर होने का कथन), आश्वमेधिक २१.८(शरीरभृद्/जीव के गार्हपत्य व मन के आहवनीय होने का कथन), २१.१५(स्थावर मन व जङ्गम वाणी के श्रेष्ठ होने का वर्णन), २१.२६(स्थावरत्व की दृष्टि से मन और जङ्गमत्व की दृष्टि से वाक् के श्रेष्ठ होने का कथन), २२.१४(मन व इन्द्रियों में श्रेष्ठता के विवाद का कथन), २२(घ्राण, चक्षु, मन, बुद्धि आदि में श्रेष्ठता की स्पर्द्धा), २५.१५(अनुमन्ता/मन के अध्वर्यु होने का उल्लेख), ३०.२८(अलर्क द्वारा मन को एकाग्र करने पर ही इन्द्रियों को मारने का वर्णन), ३४.१२(ब्राह्मण गीता के अन्तर्गत मन के ब्राह्मण व बुद्धि के ब्राह्मणी होने का उल्लेख), ४३.३४(प्रज्ञा द्वारा मन के ग्रहण आदि का कथन), ५१.१(पांच भूतों में मन के ईश्वर और भूतात्मा होने का कथन, मन द्वारा रथ में इन्द्रियों का योजन), ५१.४६(अनुगीता के अन्तर्गत कृष्ण के गुरु व मन के शिष्य होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१५.१४(अहंकार रूप विन्ध्य पर मन रूप महागज का कथन), ३.१.१४(मन की भूतात्मा संज्ञा), ३.४.४४(मन की संकल्प से अभिन्नता), ३.५(मन के परमात्मा में मूल का कथन), ३.९६(कर्म, भावना व क्रिया में सम्बन्ध का कथन, मन के जड या चेतन होने का प्रश्न, मन, बुद्धि, अहंकार आदि का विवेचन), ३.९७.३(संसार में फैले एक मन के अनेक रूपों का कथन), ३.८४.३०(मन अङ्कुर उत्पत्ति नामक सर्ग में मन द्वारा जगत भ्रान्ति निर्माण का कथन), ३.९२(मन माहात्म्य वर्णन नामक सर्ग के अन्तर्गत चेतन मन और जड देह में सम्बन्ध), ३.९३.२(ब्रह्म के सघन होने पर मन का सम्पादन और समन ब्रह्मा के संकल्प से जगत की उत्पत्ति का वर्णन), ३.९९.५(संसार महाटवी में मन रूपी महाकाय पुरुषों के भ्रमण का आख्यान), ३.९९.१०(कदली कानन आदि में भ्रमण करने वाले महाकाय पुरुषों के विभिन्न प्रकार के मन होने का कथन), ४.१७.२९(मलिन मन और शुद्ध मन में परस्पर मिलन न होने का कथन), ४.२०(मनोरूप वर्णन नामक सर्ग के अन्तर्गत शरीर पर मन के आधिपत्य का कथन), ४.५२.२४(वासनाग्रस्त होने पर बुद्धि के मन व मन के इन्द्रियता को प्राप्त होने का कथन), ५.१३.४७(जड मन के चित् तत्त्व की ओर भागने का कथन), ५.१३.८७(मन द्वारा चित् शक्ति व स्पन्द/प्राण शक्ति के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का कथन), ५.१४.६३(शरीर में मन रूपी सर्प द्वारा महान् भय उत्पन्न करने का उल्लेख), ५.८४.३९(जगत के मनोमात्रभ्रमोपम होने का कथन), ६.१.३१.३९(मन और प्राण के एक्य का प्रतिपादन), ६.१.६९.३३(मन और प्राण संयोग विचारणा नामक सर्ग में प्राण के शान्त होने पर मन द्वारा प्राणों से अलग होने तथा मन के शान्त होने पर प्राण द्वारा मन के त्याग का कथन, मन द्वारा ज्ञान प्राप्त किए बिना प्राणों को न त्यागने का कथन), ६.१.६९.३३(प्राण के साथ मन के संयोग की सूर्य और त्विषि से उपमा), ६.१.७८.२१(क्रिया में मन के संप्रेरक होने का कथन ), ६.२.४३.३७(जल व तरंग की भांति मन की अर्थ से एकरूपता का वर्णन ; सम्यग् ज्ञान से दोनों की शान्ति), ६.२.४४.३२(मनोमृग के संसार में विचरण से दुःख प्राप्ति का वर्णन, मनोमृग के चित्त भूमि में उत्पन्न वन में विश्राम का वर्णन), ६.२.८७.११, ६.२.८७.३६(बुद्धि के घनीभूत होने पर मन संज्ञा का उल्लेख, मन द्वारा इन्द्रियों को जानने का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.५४(युधिष्ठिर - यक्ष संवाद में मन के यज्ञीय यजु होने का उल्लेख. प्राण यज्ञीय साम), ३१३.६०(युधिष्ठिर - यक्ष संवाद में मन के वात से शीघ्रतर होने का उल्लेख), ३१३.७६(युधिष्ठर - यक्ष संवाद में मन का नियमन करने से शोक उत्पन्न न होने का उल्लेख), शान्ति ३१२.११(प्रलय काल में मन द्वारा आकाश को तथा अहंकार द्वारा मन को ग्रस लेने का कथन), ३३९.३०(आकाश के परमभूत मन में व मन के अव्यक्त में लीन होने का कथन), ३३९.३८(मन के प्रद्युम्न होने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.७८.३९(मन का पुत्र रूप में उल्लेख), २.२५५.३९(मन के चाञ्चल्य, वेगता आदि ६ भावों के नाम ), द्र. बृहन्मना, महामना, वसुमना, सुमना, सौमनस mana
मन- ब्रह्माण्ड २.३.७.७(मनोभवा : मौनेया संज्ञक २४ अप्सराओं में से एक )
मनसा देवीभागवत ९.४७+ (कश्यप की मानसी कन्या मनसा का कृष्ण द्वारा जरत्कारु नामकरण, जरत्कारु से विवाह, त्याग, आस्तीक नामक पुत्र प्राप्ति, सर्परक्षा, मनसा पूजा विधि), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.२(कमलांश मनसा का कद्रू- पुत्री, जरत्कारु - पत्नी व आस्तीक - माता के रूप में उल्लेख), २.४३.३ (मङ्गलचण्डिका, षष्ठी व मनसा देवियों के दुर्गा/प्रकृति से प्राकट्य का उल्लेख), २.४५(कश्यप की मानस पुत्री, मन से उद्दीप्त होने वाली मनसा देवी का वर्णन), ४.५१(मनसा का धन्वन्तरि से युद्ध), लक्ष्मीनारायण १.४८७.१४(धन्वन्तरि व उनके शिष्यों से युद्ध में वासुकि द्वारा मनसा देवी का आवाहन, मनसा का धन्वन्तरि से युद्ध, धन्वन्तरि द्वारा मनसा देवी की स्तुति का वर्णन), २.५.१(षष्ठी उपनाम वाली मनसा देवी द्वारा अहर्निश बालकृष्ण की दैत्यों आदि से रक्षा का वर्णन, दैत्यों द्वारा षष्ठी का हरण, बालकृष्ण द्वारा निर्मित महाकालानल द्वारा षष्ठी का मोचन, षष्ठी द्वारा निर्मित कन्याओं द्वारा दैत्यों का नाश ) manasaa
मनस्यु अग्नि १०७.१७(मनस्य : महान्त - पुत्र, ऋषभ/भरत वंश), ब्रह्माण्ड १.२.३६.७१(मनस्य : भव्य संज्ञक देवों के गण में से एक), मत्स्य ४९.२(प्राचीत्वत - पुत्र, पीतायुध - पिता, पूरु वंश), वायु ९९.१२१/ २.३७.११७(प्रवीर - पुत्र, जयद- पिता, पूरु वंश), विष्णु २.१.३९(महान्त - पुत्र, त्वष्टा - पिता, सुमति वंश), ४.१९.१(प्रवीर - पुत्र, अभयद - पिता, पूरु वंश ) manasyu
मनस्विनी ब्रह्माण्ड १.२.११.७(मृकण्ड - पत्नी, मार्कण्डेय - माता), १.२.३६.९०(उत्तानपाद की २ कन्याओं में से एक), मत्स्य ४९.७(रन्तिनार - पत्नी, सन्तानों के नाम), वायु २८.५(मृकण्ड - पत्नी, मार्कण्डेय - माता), ६२.७६/२.१.७६(उत्तानपाद की २ पुत्रियों में से एक ) manasvinee/ manasvini
मनु अग्नि २.४(वैवस्वत मनु की अञ्जलि में मत्स्य के आने, मत्स्य द्वारा विशाल रूप धारण करने और मनु की प्रलय में रक्षा करने का कथन), १८(स्वायम्भुव मनु वंश का वर्णन), २७३.३(सूर्य व संज्ञा - पुत्र वैवस्वत मनु के इक्ष्वाकु आदि पुत्रों तथा इला पुत्री विषयक कथन ; सूर्य व छाया की सन्तानों में सावर्णि मनु का उल्लेख), गणेश २.१२.३३(धूम्राक्ष राक्षस - पुत्र, महोत्कट गणेश द्वारा वध), iगरुड ३.७.६६(वैवस्वत मनु द्वारा हरि स्तुति), गर्ग ७.३०.३०(मानव पर्वत पर प्रद्युम्न की वैवस्वत मनु से भेंट), देवीभागवत ८.१(शतरूपा - पति स्वायम्भुव मनु द्वारा सृष्टि हेतु आद्या देवी की स्तुति), ८.३(स्वायम्भुव मनु से आकूति, देवहूति व प्रसूति कन्याओं की उत्पत्ति व विवाह), ८.९.१८(मनु द्वारा रम्यक वर्ष में मत्स्य रूपी हरि की आराधना), ९.४६.८(स्वायम्भुव मनु - पुत्र प्रियव्रत को षष्ठी देवी का दर्शन), १०.१+ (ब्रह्मा के मानस पुत्र मनु द्वारा देवी की स्तुति), १०.१३(दक्ष सावर्णि मनु : पूर्व जन्म में वैवस्वत मनु - पुत्र का रूप), १०.१३.३१(भ्रामरी देवी के वर से १४ मनुओं के बल - तेज युक्त होने का वर्णन), पद्म १.७.८१(१४ मन्वन्तरों के मनुओं, मनु - पुत्रों, ऋषियों व देवों का वृत्तान्त), ५.१४.४९ (मनु - कन्या सुकन्या द्वारा च्यवन ऋषि के नेत्र विस्फोटन का वृत्तान्त), ब्रह्म १.१.५४(वैराज पुरुष की स्वायम्भुव मनु संज्ञा का कथन ; मनु व शतरूपा से प्रजा की सृष्टि का वर्णन), १.३(१४ मन्वन्तरों के मनुओं, मनु - पुत्रों, सप्तर्षियों आदि का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.१६(ब्रह्मा के मुख से मनु व शतरूपा की उत्पत्ति), २.५४.४४(१४ मनुओं के आख्यान, सुतपा - सुयज्ञ संवाद), ४.४१.१०५(१४ मनुओं के नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१३.८९(स्वायम्भुव मन्वन्तर के देवों, ऋषियों, मनु - पुत्रों आदि के नाम), १.२.१६.६(मनु के भरत उपनाम का कारण), १.२.२९.६२(स्वायम्भुव मनु प्रजापति व शतरूपा के पुत्रों प्रियव्रत व उत्तानपाद के रूप में प्रथम बार दण्डधारी राजाओं की उत्पत्ति का कथन), १.२.३२.९६(ब्रह्मा के १० मानस ऋषि पुत्रों में से एक), १.२.३४.८(ब्रह्मा के निर्देश पर स्वायम्भुव मनु द्वारा एक वेद को चतुर्धा विभक्त करने का कथन), १.२.३६.६(द्वितीय मनु स्वारोचिष से आरम्भ करके मनु - पुत्रों, सप्तर्षियों, देवताओं आदि के नाम), १.२.३७.१३(विभिन्न मनुओं का पृथ्वी दोहन में वत्स बनना), १.२.३८.१(वैवस्वत मन्वन्तर के देवों के गणों के नाम), १.२.३८.३०(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों, मनु - पुत्रों के नाम), २.३.८.२१(वैवस्वत मनु के मनुष्यों के अधिपति बनने का उल्लेख), २.३.५९.४८(सूर्य - पुत्र श्रुतश्रवा के सावर्णि मनु बनने का कथन), २.३.५९.८०(सावर्णि मनु द्वारा सावर्णि मनु बनने से पहले मेरु पर्वत पर तप करने का उल्लेख), २.३.६०.२(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों के नाम, मनु के अश्वमेध से इला की उत्पत्ति का कथन), ३.४.१.८(भविष्य के ७ मन्वन्तरों के ऋषियों, देवों आदि के नाम), भविष्य १.७९.२९(सूर्य व छाया - पुत्र श्रुतश्रवा के सावर्णि मनु बनने का कथन), ३.४.२५.३०(ब्रह्माण्ड के रजस्, तमस, सत्त्व से विभिन्न मनुओं की सृष्टि का कथन), भागवत ३.१२.५३(ब्रह्मा के शरीर से स्वायम्भुव मनु व शतरूपा की उत्पत्ति का कथन ; मनु व शतरूपा की सन्तानों के नाम), ३.२०.१(पृथिवी पर प्रजा की सृष्टि के लिए स्वायम्भुव मनु द्वारा अपनाए गए उपायों का प्रश्न), ३.२०.४९(ब्रह्मा द्वारा मनुओं की उत्पत्ति का कथन), ३.२१.१(स्वायम्भुव मनु के पुत्रों प्रियव्रत और उत्तानपाद व पुत्री देवहूति से प्रजा की सृष्टि का कथन), ३.२१.३६+ (स्वायम्भुव मनु द्वारा स्वपुत्री देवहूति का कर्दम मुनि से विवाह करने का वृत्तान्त), ४.१.१(स्वायम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन), ४.११.६(स्वायम्भुव मनु द्वारा अपने पौत्र ध्रुव को यक्षों से युद्ध से विरत होने का उपदेश), ६.६.२०(कृशाश्व व धिषणा के ४ पुत्रों में से एक), ५.१.२८(उत्तम, तामस और रैवत मनुओं के प्रियव्रत - पुत्र होने का उल्लेख), ५.१९.१०(नारद द्वारा सावर्णि को उपदेश हेतु सांख्य और योग के अनुसार भगवद्भक्ति का वर्णन), ६.६.४१(सावर्णि मनु के छाया व सूर्य - पुत्र होने का उल्लेख), ७.८.४८(हिरण्यकशिपु संहार वर्णन के अन्तर्गत मनुओं द्वारा नृसिंह की स्तुति), ८.१(स्वायम्भुव मनु द्वारा तप, भगवद् स्तुति, यज्ञ पुरुष द्वारा असुरों से रक्षा), ८.१.५(शतरूपा - पति स्वायम्भुव मनु द्वारा तपोरत होकर ईश्वर की स्तुति, असुरों आदि द्वारा तप में विघ्न तथा यज्ञपुरुष अवतार द्वारा मनु की रक्षा का वर्णन), ८.१.१९(दूसरे स्वारोचिष मनु से लेकर चौथे तामस मनु तक के मनु - पुत्रों, देवों, इन्द्रों, विष्णु - अवतारों के नाम), ८.५.२(पांचवें व छठें रैवत व चाक्षुष मनुओं के काल के मनु - पुत्रों, देवताओं, विष्णु - अवतारों आदि का कथन), ८.५.७(चाक्षुष मनु का उल्लेख), ८.१३.१(वैवस्वत व आगामी ७ मन्वन्तरों के मनुओं, मनु - पुत्रों, सप्तर्षियों आदि के नाम), ८.१३.११(८वें मन्वन्तर में सावर्णि मनु के पुत्रों, देवगण, इन्द्र व विष्णु - अवतार का कथन), ९.१+ (मनु वंश का संक्षिप्त वर्णन), ११.१४.४(ब्रह्मा द्वारा वेद वाणी का स्वायम्भुव मनु को तथा स्वायम्भुव मनु द्वारा भृगु आदि ७ ब्रह्मर्षियों को उपदेश देने का उल्लेख), मत्स्य १+ (मनु के पाणि पर मत्स्य का प्रकट होकर विशाल रूप धारण करना, प्रलय में मनु की नौका का उद्धार), ४.३३(स्वायम्भुव मनु द्वारा तप से अनन्ती नामक पत्नी को प्राप्त करने व २ पुत्र प्राप्त करने का उल्लेख), ९.१(पूर्व मनुओं के पुत्रों आदि का वर्णन), ११४.५(भरत शब्द की निरुक्ति के कारण मनु की भरत संज्ञा का कथन), ११५.८(चाक्षुष मन्वन्तर में पुरूरवा के चाक्षुष मनु के कुल में उत्पन्न होने का उल्लेख), १४२.४२(स्वायम्भुव मनु द्वारा स्मार्त्त धर्म के प्रतिपादन का कथन), १४५.९०(ब्रह्मा के १० मानस पुत्रों में से एक), १४५.११५(वैवस्वत मनु : मन्त्रवादी क्षत्रियों में श्रेष्ठ २ में से एक), १७१.४९(चाक्षुष मनु : धर्म व विश्वा के विश्वेदेव संज्ञक पुत्रों में से एक), २०३.११(साध्या व मनु? के साध्य संज्ञक १२ देव पुत्रों में से एक), २२७.११४(मनु द्वारा निर्दिष्ट दण्ड नियम), मार्कण्डेय ४७/५०.१३(मनु व शतरूपा की संतति का वर्णन), ४७.१०/५०.१०(क्रोध पुरुष से उत्पन्न शतरूपा के स्वायम्भुव मनु की पत्नी बनने तथा सन्तान उत्पन्न करने का कथन), ५८+ /६१+ (कलि गन्धर्व व वरूथिनी अप्सरा से स्वारोचिष मनु के पिता स्वरोचिष की उत्पत्ति का वर्णन), ६३.३०/६६.३०(स्वरोचिष व मृगी से स्वारोचिष मनु की उत्पत्ति का वर्णन), लिङ्ग १.७०.३७७(संकल्प का रूप), वायु २३.४७/१.२३.४३(विश्वरूप कल्प में २६ मनुओं का उल्लेख), २६.२९(१४ मनुओं की १४ स्वरों से उत्पत्ति तथा उनकी वर्ण आदि प्रकृतियों का वर्णन), २६.३२, ६३.१३(स्वायम्भुव, स्वारोचिष आदि मनुओं का पृथ्वी दोहन में वत्स बनना), ६५.७९/२.४.७९(वरूत्री के पुत्रों द्वारा इज्या धर्म नाश के लिए मनु का अभियोजन करने तथा इन्द्र द्वारा मनु को इस कार्य से विरत करने का कथन), ७०.१८/२.९.१८(ब्रह्मा द्वारा प्रतिमन्वन्तर में मनुओं का मनुष्यों के अधिपति रूप में अभिषेक करने का उल्लेख), ८४.२२/२.२२.२२(विवस्वान् व संज्ञा का ज्येष्ठ पुत्र), ८८.२०९/ २.२६.२०९(शीघ्रक - पुत्र, प्रसुश्रुत - पिता, कलाप ग्राम में स्थित होकर १९वें युग में क्षत्र प्रवर्तन), ९५.४५/२.३३.४५(देवन - पुत्र मधु के ४ पुत्रों में से एक), विष्णु १.७.१६(ब्रह्मा द्वारा स्वायम्भुव मनु की रचना), १.१३.३(चाक्षुष मनु : चक्षु व वारुणी पुष्करिणी - पुत्र?, मनु के नड्वला पत्नी से उत्पन्न १० पुत्रों के नाम), ३.१(मन्वन्तरानुसार मनुओं का वर्णन), ३.२.१३(सावर्णि मनु का वर्णन), ४.१(वैवस्वत मनु वंश का वर्णन), ४.५.२७(हर्यश्व - पुत्र, प्रतिक - पिता, निमि वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.१७५+ (१४ मनवन्तरों में मनुओं के पुत्रों सहित नाम), ३.७०(मनु की मूर्ति का रूप), शिव २.१.१६.११(ब्रह्मा द्वारा देह का द्वैधा विभाजन करके मनु व शतरूपा को उत्पन्न करने तथा मनु व शतरूपा से पुत्रों व कन्याओं की उत्पत्ति का वृत्तान्त), ५.३६(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों व उनके वंशजों का वर्णन ), स्कन्द १.२.५.७१( १४ स्वर वर्णों का १४ मनुओं से तादात्म्य), १.२.१३.१७७(मनुओं द्वारा अन्नमय लिङ्ग की गिरीश नाम से पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग), ७.१.२३.९९(चन्द्रमा के यज्ञ में मनु के आग्नीध्र बनने का उल्लेख), हरिवंश १.२(स्वायम्भुव मनु की ब्रह्म देह से उत्पत्ति, मनु वंश), १.७(१४ मन्वन्तरों के मनुओं, मनु - पुत्रों, देवों आदि का वर्णन), १.८.१०(मनु के संदर्भ में अहोरात्र, पक्ष, मास आदि के आपेक्षिक मान), योगवासिष्ठ ६.१.११७+ (ब्रह्मलोक में मनु द्वारा इक्ष्वाकु को जगज्जाल से मुक्त होने के उपाय के रूप में स्वयं की चिन्मात्र रूप में कल्पना करने आदि उपायों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.६१.४५(सूर्य व संज्ञा के द्वितीय पुत्र के रूप में श्राद्धदेव मनु का उल्लेख), १.२१४.५०(प्रत्येक कल्प में उत्पन्न होने वाले १४ मनुओं के पिताओं सहित नाम), १.५५७.२(साकेता/अवध नगरी के राजा मनु द्वारा ऋक्ष पर्वत पर यज्ञान्त में अवभृथ स्नान पर रेवा नदी की स्तुति, नर्मदा का साकेता नगरी में रेवाकुण्ड पर सरयू नदी के साथ वास का कथन), २.१७८.४७(आरण्यक ऋषि व २५ सहयोगी ऋषियों का १४ मनु व १२ आदित्य बनना, पुन: १४ राजा बनना), ३.२.२२(वर्तमान ५१वें वाराह कल्प में १४ मनुओं के नाम), ३.३०.६९(वर्णिशाल नामक सप्तम मनु द्वारा हरिप्रथ आदि भक्तों का विष्णुपदी में स्नान से वर्जन, हरिप्रथ के शाप से मनु की मृत्यु, मनु के उज्जीवनार्थ अनादिश्री भक्त नारायण का प्राकट्य), ३.१५५(स्वायम्भुव से लेकर ८वें सावर्णि मनु तक मनुओं के जन्म के आख्यान), ३.१५६(नवम दक्ष सावर्णि से लेकर १३वें देवसावर्णि मनु तक के मनुओं के जन्मों के आख्यान), ३.१५८(१४वें इन्द्रसावर्णि मनु के जन्म का आख्यान : भूति के शिष्य शान्तिधर्म द्वारा शान्त हुई अग्नि के पुन: प्रज्वालन के लिए अग्नि की स्तुति, अग्नि द्वारा भूति को विशिष्ट पुत्र प्राप्त करने का वरदान ), द्र. वैवस्वतमनु, स्वयम्भू मनु manu
Esoteric aspect of the story of Vaivasvat Manu
मनु- ब्रह्माण्ड २.३.७.१३(मनुवन्ती : तुम्बुरु की २ कन्याओं में से एक, पञ्चचूडा संज्ञक अप्सराओं में से एक), मत्स्य २०३.१३(मनुज : धर्म व विश्वा के विश्वेदेव संज्ञक पुत्रों में से एक), वायु ३३.२१(मनुग : क्रौञ्च द्वीप के अधिपति द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक), ९५.४५(मनुवश : मधु के ४ पुत्रों में से एक ) manu-
मनुष्य अग्नि ३६४(शब्दकोश के अन्तर्गत मनुष्य वर्ग से सम्बन्धित दैनिक जीवन के शब्दों की परिभाषा), पद्म १.७६.२३(मनुष्य योनिगत दैत्यों व देवों के स्वभाव, लक्षण), ३.२६.६१(मानुष तीर्थ के माहात्म्य का कथन : मृगों द्वारा स्नान से मानुषत्व की प्राप्ति आदि), वायु ४४.२२(मानुषी : केतुमाल देश की नदियों में से एक), विष्णु १.५.२३(ब्रह्मा द्वारा सृष्ट सप्तम सर्ग के रूप में अर्वाक् स्रोत वाले मानुष सर्ग का उल्लेख), १.५.३७(ब्रह्मा के रजोमात्रात्मक शरीर से मनुष्यों की सृष्टि का उल्लेख), १.५.३९(ज्योत्स्ना आगमन पर मनुष्यों व पितरों के बली होने का कथन), १.६.१(ब्रह्मा द्वारा अर्वाक् स्रोत वाले मनुष्यों की सृष्टि का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर २.११३.३(प्राणियों में केवल मनुष्य द्वारा ही कर्मफल का भोग करने का कथन), शिव ५.२९.२२(प्रजापति के प्रजनन अङ्ग से मनुष्यों की उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द २.७.१९.१८(मनुष्य, गन्धर्व आदि के भूत से श्रेष्ठ व तत्त्वाभिमानी देव से अवर होने का उल्लेख), ७.३.२८(मनुष्य तीर्थ का माहात्म्य : मृगों का स्नान से मनुष्य बनना), महाभारत अनुशासन ९८.३२(मनुष्यों हेतु उपयुक्त पुष्प ) manushya
मनोजव गरुड १.८७.२४(चाक्षुष मन्वन्तर में इन्द्र), पद्म ३.२६.८८(मनोजव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.१०.७९(ईशान व शिवा - पुत्र), १.२.३६.७५ (लेखा संज्ञक देवों के गण में से एक ; चाक्षुष मन्वन्तर के मनोजव इन्द्र का उल्लेख), २.३.३.२६(अनिल संज्ञक वसु व शिवा – पुत्र, अविज्ञातगति - भ्राता), ३.४.१.८४(हरित संज्ञक गण के १० देवों में से एक), भागवत ५.२०.२५(शाक द्वीप के अधिपति मेधातिथि के पुत्रों में से एक), मत्स्य ५.२५(अनल संज्ञक वसु व शिवा के २ पुत्रों में से एक), २०३.७(पुरोजव : अनिल वसु - पुत्र), वायु ६६.२५/२.५.२५ (अनिल वसु व शिवा के २ पुत्रों में से एक), १००.८९/२.३८.८९(हरित संज्ञक गण के १० देवों में से एक), विष्णु १.१५.११४(अनिल वसु व शिवा के २ पुत्रों में से एक), ३.१.२६(छठें चाक्षुष मन्वन्तर में मनोजव इन्द्र का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.१८१.४(चाक्षुष मनु के काल में मनोजव इन्द्र होने का उल्लेख ; ऋषियों व देवगण के नाम), स्कन्द २.४.७.१०८टीका(हेलिक - पुत्र मनोजव के पिशाच होने व मुक्ति की कथा), ३.१.१२(गोलभ से युद्ध में पराजित राजा मनोजव पर पराशर की कृपा का वर्णन : मङ्गल तीर्थ की यात्रा, नृप चिह्न प्राप्ति, अभिषेक, राज्य प्राप्ति आदि), लक्ष्मीनारायण १.४३७(मनोजव राजा के नास्तिक्य से शत्रु गोलभ द्वारा राज्य का हरण, पराशर मुनि की कृपा से मनोजव - पत्नी सुमित्रा के केश होम से उत्पन्न अस्त्रों आदि द्वारा शत्रुओं के नाश का वर्णन ), द्र. वंश वसुगण, भूगोल manojava
मनोजवा ब्रह्माण्ड १.२.१९.७५(क्रौञ्च द्वीप की ७ मुख्य नदियों में से एक), मत्स्य १२२.८८(वही), वायु ४९.६८(वही), विष्णु २.४.५५(वही) manojavaa
मनोनुग ब्रह्माण्ड १.२.१४.२२(क्रौञ्च द्वीप के अधिपति द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक मनोनुग के मानोनुग देश का उल्लेख), १.२.१९.७१(वामन पर्वत के मनोनुग वर्ष का उल्लेख), मत्स्य १२२.८४(वही), वायु ४९.६५(वही) manonuga
मनोभद्र पद्म ७.३.१८(राजा, हेमप्रभा - पति, गृध्र द्वारा पुत्रों के पूर्व जन्म व गङ्गा माहात्म्य का कथन )
मनोरञ्जन गणेश १.१९.१३(अपत्यहीन राजा भीम के २ मन्त्रियों में एक, राजा द्वारा राज्य भार सौंपना )
मनोरथ देवीभागवत ९.४९.६(सुरभि गौ - पुत्र), भविष्य ३.३.१२.६४(कालिय से युद्ध में देवसिंह के मनोरथ हय पर आरूढ होने का उल्लेख), ३.३.३२.१९५(तारक द्वारा देवसिंह के मनोरथ हय के वध का उल्लेख), ४.८०(मनोरथ द्वादशी व्रत), स्कन्द ४.१.३१.१०२(लक्ष्मी द्वारा शिव के पात्र में मनोरथवती भिक्षा देने का उल्लेख), ४.२.८०.८(चैत्र शुक्ल तृतीया को मनोरथ तृतीया व्रत व विश्वभुजा देवी की पूजा), कथासरित् १२.४.७१(मनोरथसिद्धि नामक बन्दी द्वारा राजकुमार कमलाकर के मन में हंसावली के प्रति अनुराग उत्पन्न करने का वृत्तान्त), १२.४.२३७(मनोरथसिद्धि बन्दी द्वारा लुप्त हंसावली की खोज ) manoratha
मनोरथप्रभा कथासरित् १०.३.८७(पद्मकूट व प्रभा - कन्या, सोमप्रभ से स्ववृत्तान्त का वर्णन, मुनि - पुत्र रश्मिमान् द्वारा मनोरथप्रभा के वियोग में प्राण त्याग), १०.३.१६१(रश्मिमान् से सुमना राजा के रूप में जन्मे सुमना राजा द्वारा रश्मिमान् के शरीर में प्रवेश करके मनोरथप्रभा को प्राप्त करना) manorathaprabhaa
मनोरमा देवीभागवत ३.१४+ (वीरसेन - पुत्री, ध्रुवसन्धि - पत्नी मनोरमा द्वारा राज्य - च्युति पर भरद्वाज आश्रम में पुत्र सुदर्शन का पालन), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३५(कार्तवीर्य - पत्नी मनोरमा द्वारा देहत्याग), मत्स्य १७९.२६(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), मार्कण्डेय ६३/६६.६(इन्दीवर विद्याधर - पुत्री व स्वरोचिष - पत्नी मनोरमा के पुत्र विजय का उल्लेख), ६८/७१.१९(मनोरमा - पति नागराज कपोतक की कन्या नन्दा द्वारा राजपत्नी की रक्षा का प्रसंग), वायु ६९.६/२.८.६( मौनेया संज्ञक ३४ अप्सराओं में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(स्त्री रूपधारी विष्णु की श्री में मनोरमा? की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ३.१.१६(स्वनयराज - पुत्री मनोरमा की प्रतिज्ञा व कक्षीवान् से विवाह की कथा), लक्ष्मीनारायण १.४५७.१२९(पति सहस्रार्जुन से दु:स्वप्न सुनकर मनोरमा का ६ चक्रों को भेदकर सती लोक में जाने तथा अदृश्य रूप में पति के साथ युद्ध में जाने का कथन), १.४५८.३२(मनोरमा द्वारा परशुराम से युद्ध में कार्तवीर्य अर्जुन के प्राणों की रक्षा तथा पति को मूर्च्छा से जीवित करना), १.४५८.५८(मनोरमा द्वारा पति से महालक्ष्मी कवच को विप्र को दान में न देने का आग्रह, पति द्वारा कवच दान पर लक्ष्मी की कला मनोरमा द्वारा पति को त्याग विष्णु लोक को प्रस्थान), ३.१५५.३२(इन्दीवर गन्धर्व की कन्या मनोरमा सरित् द्वारा स्वरोचिष को पति बनाकर विहार का कथन), कथासरित् १२.७.३६(उग्रभट राजा की पत्नियों मनोरमा व लास्यवती के पुत्रों भीमभट व समरभट में शत्रुता का वृत्तान्त ) manoramaa
मनोवती वराह ७५(ब्रह्मा की मनोवती नामक सभा का वर्णन), वायु ३४.७२(ब्रह्मा की मनोवती सभा के वैभव का वर्णन), ६९.४९/२.८.४९(तुम्बुरु की २ कन्याओं में से एक, पञ्चचूडा अप्सराओं में से एक), हरिवंश २.९३.२८(मनोवती द्वारा रम्भा रूप धारण), कथासरित् ४.२.१३६(चित्राङ्गदा - कन्या मनोवती के मनुष्य राजा से विवाह तथा अगले जन्म में पुन: जीमूतवाहन की भार्या बनने का वृत्तान्त), ८.२.३३०(सूर्यप्रभ द्वारा सातवें पाताल में तन्तुकच्छ असुरराज की कन्या मनोवती को प्राप्त करने का कथन), ८.४.१०४(सूर्यप्रभ - भार्या मनोवती द्वारा विभिन्न प्रदेशों की स्त्रियों के विभिन्न गुणों का कथन ) manovatee/ manovati
मनोहर पद्म ५.६७.४१(सुमनोहरा : सुरथ - पत्नी), मत्स्य ५.२४(मनोहरा : धर वसु - पत्नी), लिङ्ग १.४९.६७(मनोहर वन में नन्दी आदि का वास), वामन ३७.३४(सरस्वती नदी का उत्तरकोसल में मनोहरा नाम से विख्यात होना), ७६.२४(विष्णु द्वारा इन्द्र को पापमुक्त करा कर मनोहरा नदी में स्नान कराना), विष्णु १.१५.१३(धर्म वसु व मनोहरा के ३ पुत्रों के नाम), कथासरित् १७.४.२७ (पद्मावती की सखी मनोहारिका द्वारा पद्मावती व मुक्ताफलकेतु के मिलन में सहायक होने का वृत्तान्त ), द्र. वंश वसुगण manohara
मन:शिला गरुड २.३०.५३/२.४०.५३(मृतक के गात्र में मन:शिला देने का उल्लेख )
मन:स्वामी कथासरित् १२.२२.७(मन:स्वामी नामक विप्र - पुत्र द्वारा गुलिका की सहायता से स्त्री रूप धारण कर स्त्री और पुरुष रूप में कईं सम्बन्ध बनाने का वृत्तान्त), १२.२६.३२(विष्णुस्वामी के शिष्य मन:स्वामी द्वारा चोर की पत्नी धनवती से धन लेकर धनवती से पुत्र उत्पन्न करना, पुत्र द्वारा उपयुक्त पिता के पिण्डदान का प्रश्न ) manahswaamee/ manahswami
मन्त्र अग्नि २५(ओं नमो भगवते वासुदेवाय आदि सबीज व निर्बीज मन्त्रों का कथन), २९(मन्त्र साधन हेतु सर्वतोभद्र मण्डल निर्माण), ५८(प्रतिमा स्नान व उपचार हेतु वैदिक मन्त्र), ५९.३२(द्वादशाक्षर वासुदेव मन्त्र का न्यास), ६३.१(सुदर्शन पूजा हेतु मन्त्र), ६३.४(नृसिंह विद्या मन्त्र), ६४(वरुण अभिषेक हेतु वैदिक मन्त्र), ८४+ (दीक्षा में कलाओं के अन्तर्गत मन्त्र प्रकार), ९१(मन्त्र में अक्षर संख्या से भविष्य ज्ञान, मन्त्र में देवता अनुसार बीजाक्षर), ९१.१४(सरस्वती, चण्डिका आदि के मन्त्रों के बीज मन्त्रों का कथन), ११७(श्राद्ध हेतु वैदिक मन्त्र), १२२.४१(अभिचार कर्म अनुसार मन्त्रों के ६ प्रकार), १२४.४(मन्त्र पीठ का कथन), १२५.१(अभिचार कर्म हेतु कर्णमोटी विद्या मन्त्र का कथन), १२५.५४(हनुमान मन्त्र), १३३.१२(भैरव मन्त्र से शत्रुनाश), १३३.२६(पिच्छिका मन्त्र से शत्रु नाश), १३३.२९(भङ्ग विद्या मन्त्र से शत्रु नाश), १३३.३८(मृत्युञ्जय मन्त्र द्वारा दुष्टों का नाश), १३३.४४(भेलखि विद्या मन्त्र से शत्रु स्तम्भन), १३४(शत्रु नाश हेतु त्रैलोक्य विजया विद्या मन्त्र व स्वरूप), १४२.१८(युद्धजयार्णव में मन्त्रौषधादि नामक अध्याय), १४४.१(कुब्जिका देवी मन्त्र का कथन), १४६.१(आठ अष्टक देवियों ब्रह्माणी, माहेश्वरी, कौमारी आदि के मन्त्र तथा उनसे उत्पन्न मातृकाओं के नाम), १५५.३(षोढा स्नान के अन्तर्गत आप: परिमार्जन मन्त्रों का कथन), १६७.९(यजमान के अभिषेक हेतु मन्त्र), २१४(मन्त्रमाहात्म्य नामक अध्याय में १० प्राणवायुओं का कथन ; मन्त्र जप की सम्यक् विधि), २१५(गायत्री मन्त्र अक्षर न्यास), २१९(राजा अभिषेक मन्त्र नामक अध्याय), २४५.११(धनुष की त्रैलोक्यमोहन मन्त्रों द्वारा पूजा का निर्देश), २५९(कामना सिद्धि हेतु वैदिक मन्त्र), २६०(कामना अनुसार यजुर्वेद मन्त्रों से होम का वर्णन), २६१(कामना अनुसार सामवेद मन्त्र जप), २६३.१(श्रीसूक्त का महत्त्व), २६४.१(देवपूजा में वैदिक मन्त्र), २६७.११(माहेश्वर स्नान के संदर्भ में हाथ में मणि बन्धन हेतु अक्रन्दयति सूक्त का निर्देश), २८४(मन्त्र रूप ओषधि का कथन), २९३(मन्त्र विद्या का वर्णन : प्रकार, भेद, लक्षण, साधक अनुसार मन्त्र निर्णय), २९३.१५(सिद्ध मन्त्र शोधन विधि), २९५(सर्प दंश चिकित्सा हेतु तार्क्ष्य मन्त्र का वर्णन), २९६(पञ्चाङ्ग रुद्र द्वारा दष्ट चिकित्सा के संदर्भ में पांच सूक्तों द्वारा पांच अङ्गों में रुद्रों का न्यास तथा रुद्राध्यायी के ऋषि, देवता, छन्द आदि का वर्णन), २९७(सर्प विष हरण मन्त्र), २९९.५०(बालग्रह शान्ति मन्त्र), ३०२.७(वशीकरण हेतु चामुण्डा मन्त्र), ३०२.२७(गोकुल रक्षा हेतु त्र्यम्बक मन्त्र), ३०३(अष्टाक्षर नारायण मन्त्र व उसके न्यास की विधि), ३०४(शिव पञ्चाक्षर मन्त्र दीक्षा विधान), ३०७(विष्णु हेतु त्रैलोक्य मोहन मन्त्र), ३०८(श्री व दुर्गा मन्त्रों का वर्णन), ३१२.६(मन्त्रों में प्रस्ताव के भेदन से सिद्धि का कथन), ३१३(गणेश, त्रिपुरा भैरवी, ज्वालामालिनी, श्री, गौरी, नित्यक्लिन्ना मन्त्र), ३१५.७(शत्रु स्तम्भनादि मन्त्र), ३१६(विभिन्न कामनाओं हेतु बीज मन्त्र), ३१७(सकल व निष्कल आदि मन्त्रों के उद्धार के संदर्भ में हं, हिं, हुं आदि प्रासाद बीज मन्त्रों की व्याख्या), ३१८.५(अघोरस्त्र मन्त्र का वर्णन), ३२२(पाशुपत मन्त्र द्वारा शान्ति), ३२३(गङ्गा मन्त्र, शिव मन्त्र राज, चण्डकपालिनी, क्षेत्रपाल बीज मन्त्र, सिद्ध विद्या, महामृत्युञ्जय, मृत सञ्जीवनी आदि मन्त्र), ३२३.२८(७० अक्षरों का ह्रदय/शिव मन्त्र), ३२५.७ (मन्त्र के सिद्ध आदि प्रकारों के परीक्षण की विधि, विभिन्न प्रकार के मन्त्रों के नाम, मन्त्र में देवों के अंशों का निर्धारण), ३२६.४(गौरी के मूल मन्त्र ओं ह्रीं स: शाम् गौय्यब्द नम: का उल्लेख), ३२६.२३(मृत्युञ्जय के मूल मन्त्र ओं जूं स: का कथन), ३४८(एकाक्षर कोश के अन्तर्गत वर्णों के अर्थ/हेतु), कूर्म २.१८.६२(वैदिक मन्त्रों का स्नान काल में जप), गणेश १.३८.१८(गृत्समद द्वारा स्वपुत्र को गणानां त्वा मन्त्र की शिक्षा), २.५.२०(अदिति द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु पञ्चाक्षर मन्त्र का जप), गरुड १.४८(देव प्रतिष्ठा कार्य हेतु मन्त्र), १.१०१(ग्रह शान्ति हेतु वैदिक मन्त्र), १.२०६(स्नान हेतु वैदिक मन्त्र), १.२०९(सन्ध्या कर्म हेतु मन्त्र), १.२१०(पार्वण श्राद्ध में प्रयुक्त मन्त्र), २.३०.२६(पिण्ड दान हेतु वैदिक मन्त्र), ३.२५.२२,३६(श्रीनिवास मन्त्र), देवीभागवत ३.११(ऐं बीज मन्त्र पाठ से मूर्ख उतथ्य के विद्वान बनने की कथा), ३.१६(सुदर्शन राजकुमार द्वारा क्लीं मन्त्र जप से वैभव प्राप्ति की कथा), ७.४०.२८(देवी पूजार्थ हृल्लेखा/ह्री मन्त्र), नारद १.१६.३६(अष्टाक्षर व द्वादशाक्षर मन्त्र हेतु नारायण स्वरूप), १.१९.१४(ध्वजारोपण हेतु होम में प्रयुक्त वैदिक मन्त्र), १.२७(वेदों की ऋचाएं), १.२९.७५(ऋचाएं), १.६४(मन्त्रों के स्त्री, पुरुष आदि भेद, लक्षण, ४९ मन्त्र दोष, बीज अनुसार मन्त्र भेद, अक्षर अनुसार मन्त्र भेद), १.६५.१(मन्त्र शोधन विधि), १.६६.७०(गायत्री के तीन कालों में स्वरूप का कथन), १.६८(गणेश मन्त्र विधान का निरूपण), १.६९.७३(मङ्गल, बुध व बृहस्पति ग्रहों के लिए मन्त्र), १.७०(महाविष्णु मन्त्र), १.७१+ (नृसिंह, हयग्रीव, राम व राम परिवार के मन्त्रों की अनुष्ठान विधि), १.७३(राम हेतु मन्त्र), १.७४(हनुमान मन्त्र), १.७६(कार्तवीर्य मन्त्र), १.८०(कृष्ण सम्बन्धी मन्त्रों की अनुष्ठान विधि), १.८४(देवी मन्त्र), १.८५(कालिका मन्त्र), १.८६.१(कालिका देवी का मन्त्र,यक्षिणी मन्त्र), १.९१(महेश हेतु मन्त्र), पद्म १.९.५१(श्राद्ध हेतु वैदिक मन्त्र), १.५९.१९७(रुद्राक्ष न्यास मन्त्र), ५.७०.५७(मन्त्र चूडामणि के सब मन्त्रों का कारण होने का कथन?), ५.८१(कृष्ण मन्त्र का वर्णन), ६.८०.१०३(नमो नारायण मन्त्र का माहात्म्य), ६.९३.५(स्नान मन्त्र), ६.९५.१९(अतो देवा इति मन्त्र), ६.१२४.४५(अर्घ्य मन्त्र), ६.२२३.२३३(दिलीप व वसिष्ठ संवाद में लक्ष्मी - नारायण मन्त्र), ६.२२३.४८(मन्त्र दीक्षा विधि, गुरु के लक्षण), ६.२२६.१८(अष्टाक्षर नारायण मन्त्र के ऋषि, देवता आदि), ब्रह्म २.६४.६(ब्रह्मा द्वारा माया से उत्पन्न प्रमदा के लिए ऋग्वैदिक ऋचा अजामेकां का विनियोग), २.७०.२२(यो जात एव प्रथमो इति वैदिक मन्त्र), २.१००.६५(इषे त्वा इति मन्त्र द्वारा विशल्यकरणी ओषधि की शाखा छिन्न करना), ब्रह्मवैवर्त्त २.४(सरस्वती मन्त्र), २.८(पृथिवी मन्त्र), ब्रह्माण्ड १.२.२८.९१(मन्त्रों द्वारा श्राद्धान्न को पितरों तक पंहुचाने का श्लोक), १.२.३२.६८(तपोरत ऋषियों से असंतोष आदि ५ प्रकार से मन्त्रों के प्रादुर्भाव का कथन), १.२.३३(मन्त्रों के भेद), १.२.३३.२८(ऋषि - पुत्रों द्वारा रचित वैदिक मन्त्रों के लक्षण), १.२.३३.३६(ऋग~, यजु, साम मन्त्रों के लक्षण), १.२.३३.४२(मन्त्रों के ९ भेद व २४ लक्षण), १.२.३५.७४(ऋक्, यजु के ग्राम्य, आरण्यक व मन्त्र भेदों का उल्लेख), २.३.७१.२४७(मन्त्रवित् : सत्यभामा व कृष्ण के पुत्रों में से एक), ३.४.८.५१(अशुद्ध अन्न के भक्षण पर प्रायश्चित्त हेतु मन्त्र), ३.४.८.५६(इदं विष्णु इति मन्त्र), ३.४.३८.४(वेद मन्त्रों, विष्णु मन्त्रों, दुर्गा मन्त्रों आदि का आपेक्षिक महत्त्व), ३.४.३८.११(गदि व कामराज मन्त्र), ३.४.४४.५८(मन्त्रात्मशक्ति : वर्ण शक्तियों में से एक), भविष्य १.२९(गणेश मन्त्र), १.१३४.१२(सूर्य प्रतिष्ठा में मण्डल विधि के अन्तर्गत कलश स्थापन हेतु वैदिक मन्त्र), १.१३५.२८(सूर्य प्रतिष्ठा के अन्तर्गत स्नान कृत्यो में प्रयुक्त होने वाले वैदिक मन्त्र), १.१३६.२९(अग्नि के गृह्य संस्कारों हेतु वैदिक मन्त्र), १.१८७.२३(सूर्य के ओं नम: खषोल्क मन्त्र के महत्त्व का कथन), १.१९९(सूर्य हेतु मन्त्र), १.२०१(सूर्य हेतु मन्त्र), १.२०२+ (सूर्य हेतु मन्त्र), १.२०६(सूर्य हेतु मन्त्र), १.२१४(सूर्य हेतु मन्त्र), २.१.८.३७(मन्त्र में अक्षर संख्या के अनुसार देवता व रूप का निरूपण), २.१.२०(पूर्ण होम में प्रयुक्त वैदिक मन्त्रों के ऋषि, छन्द, देवता), २.२.५(कलश स्थापना में विनियुक्त वैदिक मन्त्रों के ऋषि, देवता, छन्द), २.२.१०.४०(वास्तुयाग में देवताओं के लिए प्रयुक्त मन्त्रों के ऋषि, देवता, छन्द आदि), २.२.१०.४१(वास्तु देवताओं के संदर्भ में मन्त्रों के ऋषि, देवता व विनियोग), २.२.१४(संस्कार यागों तथा शान्तिकर्मों में प्रयुक्त वैदिक मन्त्रों के ऋषि, देवता, छन्द आदि का विवरण), २.२.२०.२६(जलाशय प्रतिष्ठा के संदर्भ में अनुष्ठीय याग में विभिन्न कर्मों में प्रयुक्त वैदिक मन्त्र), २.२.२१.१२१(मध्यम प्रकार के याग में प्रयुक्त वैदिक मन्त्र), २.३.१६(वृक्षादि प्रतिष्ठा हेतु याग में प्रयुक्त वैदिक मन्त्र), ३.२.२१.१४ (विष्णुशर्मा के चार पुत्रों द्वारा मृत संजीवनी विद्या के प्रभाव से व्याघ्र| को जीवित करने की कथा), ४.११८.७३(अगस्त्य: खनमान: इति वैदिक मन्त्र), ४.१४१(ग्रहों के लिए वैदिक मन्त्र), भागवत ५.२०.१५(मन्त्रमाला : कुश द्वीप की नदियों में से एक), ६.१५.२७(मन्त्रोपनिषद् : नारद द्वारा चित्रकेतु को मन्त्रोपनिषद् प्रदान करने का कथन), ८.५.८(छठें चाक्षुष मन्वन्तर में इन्द्र के मन्त्रद्रुम नाम का उल्लेख), ११.११.४५(स्थण्डिल/मिट्टी की वेदी में मन्त्रह्रदय द्वारा विष्णु की उपासना का निर्देश), ११.२७.३१(पूजार्थ वैदिक मन्त्र), मत्स्य ४७.७५(देवों को हराने हेतु शुक्राचार्य द्वारा महादेव से अप्रतीप मन्त्र प्राप्ति का उद्योग), ९३.३१(नवग्रह शान्ति होम में प्रयुक्त वैदिक मन्त्र), १४५.६२(ऋषियों द्वारा तप के समय असन्तोष, भय आदि ५ प्रकार के मन्त्रों के प्रादुर्भाव का कथन), २१५.४७(राजा द्वारा वाञ्छित कार्य हेतु मन्त्रियों से पृथक् - पृथक् मन्त्रणा करने सम्बन्धी कथन), २२०.३३(राजा के लिए मन्त्र के महत्त्व का कथन), लिङ्ग १.३५.१८(त्र्यम्बकं यजामहे मन्त्र की व्याख्या), १.८५(नम: शिवाय पञ्चाक्षर मन्त्र का माहात्म्य), २.७(द्वादशाक्षर मन्त्र का माहात्म्य : ऐतरेय द्वारा ऐश्वर्य प्राप्ति), २.५०(अघोर मन्त्र द्वारा शत्रु नाश), २.५३+ (मृत्युञ्जय मन्त्र का वर्णन), वराह ३७(नमो नारायण मन्त्र), १२०(सन्ध्या मन्त्र), वामन ६१(वासुदेव मन्त्र की देह में स्थिति), ९०.२४(मन्त्रों में विष्णु का पुरुषोत्तम नाम), वायु ५८.१४(मन्त्रप्रवचन : द्वापर में प्रवर्तित वैदिक शाखाओं में से एक), ५९.९७ (मन्त्रवादी व मन्त्रकर्ता ऋषियों के नाम), ६७.४/२.६.४(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट मन्त्र शरीर १२ देवों के नाम), २.२२.३९(श्राद्ध हेतु वैदिक मन्त्र), ९६.२३८/ २.३६.२३८(मन्त्रय : सत्यभामा व कृष्ण के पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.९५(ग्रह, नक्षत्र आवाहन मन्त्र), १.१०२(ग्रह - नक्षत्रों के लिए होम मन्त्र), २.१२४(विभिन्न कामनाओं की पूर्ति हेतु वैदिक मन्त्रों का विधान), २.१२६(विभिन्न कामनाओं की पूर्ति हेतु सामवेद के मन्त्रों का विधान), २.१२७(विभिन्न कामनाओं की पूर्ति हेतु अथर्वविधि से वैदिक मन्त्रों का विधान), २.१६०(छत्र, केतु, गज, पताका, खङ्ग, चर्म, दुन्दुभि व चाप हेतु मन्त्र), ३.९७+ (प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु मन्त्र), ३.१००(अर्चा शौच के अन्तर्गत २१ प्रकार की मृदाओं के शौच हेतु मन्त्र), ३.१११(प्रतिष्ठित भगवान् के बृहत् स्नान हेतु वैदिक मन्त्र), ३.११२+ (स्नान के पश्चात् विष्णु की अर्चना हेतु वैदिक मन्त्र), ३.२३५(प्रायश्चित्त हेतु वैदिक मन्त्र), शिव २.३.२१.३३(नारद द्वारा पार्वती को पञ्चाक्षर मन्त्र का वर्णन), ६.१४.१२(प्रणवार्थ के स्वरूपों में एक मन्त्र स्वरूप का कथन), ७.२.१२+ (श्रीकृष्ण व उपमन्यु संवाद में शिव के पञ्चाक्षर मन्त्र की महिमा), ७.२.१३.३८(पञ्चाक्षर मन्त्र नम: शिवाय की पञ्चाक्षरी विद्या के रहस्य का वर्णन), ७.२.१४.२३(पञ्चाक्षर मन्त्र जप की विधि), ७.२.१९(साधक संस्कार मन्त्र का माहात्म्य), स्कन्द १.२.६१.५५(गणपति मन्त्र), २.१.२(वराह मन्त्र), २.१.२०.६०(पृथ्वी दान मन्त्र), २.२.२८(ब्रह्मा द्वारा इन्द्रद्युम्न को मन्त्र उपदेश), २.२.२९(द्वादशाक्षर बलभद्र मन्त्र), २.२.३१(नृसिंह मन्त्र), २.४.९.९(दीप मन्त्र), २.४.१०.४४(बलि पूजा हेतु मन्त्र), २.४.३२.३१(अर्घ्य मन्त्र), २.४.३४.१३(अतो देवेति मन्त्र), ३.२.२०(शिव - पार्वती संवाद के अन्तर्गत आथर्वण मन्त्रों के प्रकार व कूटबीज मन्त्रों के भेद), ३.३.१(शिव पञ्चाक्षरी मन्त्र का माहात्म्य, दाशार्हराज का वृत्तान्त), ३.३.२१(पञ्चाक्षर शिव मन्त्र के माहात्म्य का वर्णन), ४.१.३५.९८(स्नानार्थ वैदिक मन्त्र), ४.२.६८.७७ (त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति मन्त्र), ४.२.७३.९५(त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति वैदिक मन्त्र), ५.३.१२५(मन्त्रयुक्त पूजा का विधान), ५.३.१३९.६(मन्त्र जप का माहात्म्य), ६.३६(वैदिक मन्त्र), ६.१२४.६४ (सप्तर्षियों द्वारा वाल्मीकि को प्रदत्त हास्य मन्त्र), ६.१२९.२०(याज्ञवल्क्य द्वारा अभिषेक के लिए प्रयुक्त मन्त्र), ६.१३३.३९(क्षेत्रपाल मन्त्र), ६.१३७.४(माण्डव्य द्वारा जपा गया विभ्राड इति मन्त्र), ६.१५७(आदित्य की पूजा हेतु वैदिक मन्त्र), ६.१६५.३४(ऋचीक द्वारा वरुण से श्यामकर्ण अश्वों की प्राप्ति हेतु अश्वो वोढेति मन्त्र का जप), ६.२२४.१७(श्राद्ध मन्त्र), ६.२५६(शिव - पार्वती संवाद के अन्तर्गत द्वादशाक्षर मन्त्र का माहात्म्य), ६.२६२(शिव - पार्वती संवाद के अन्तर्गत ओम नम: भगवते वासुदेवाय द्वादशाक्षर मन्त्र में प्रत्यक्षर बीज का वर्णन), ७.१७(सूर्य पूजार्थ वैदिक मन्त्र), ७.१.१७.६७(ग्रह पूजार्थ मन्त्र), ७.१.१७.७२(देव पूजार्थ मन्त्र), ७.१.१७.८०(सूर्य के षोडशोपचार हेतु मन्त्र), ७.१.१७.१००(मेरु शृङ्ग पूजा हेतु मन्त्र), ७.१.१७.१३६(सूर्य प्रदक्षिणा हेतु मन्त्र), ७.१.२३.१११(चन्द्रमा के यज्ञ में यजु, साम आदि मन्त्र), ७.१.८३.४४(खड्ग मन्त्र), ७.१.२४३(मन्त्रावलि क्षेत्रपाल द्वारा हीरक क्षेत्र की रक्षा का उल्लेख), ७.१.३४८(मन्त्रविभूषणा गौरी पूजन से दुःख निवृत्ति का उल्लेख), हरिवंश ३.२८(विषनाशक गरुड मन्त्र का वर्णन), ५.१+ (सन्तान गोपाल मन्त्र), योगवासिष्ठ ३.६९.१४(विषूचिका बीज मन्त्र का कथन), ५.३१(नारायण मन्त्र), लक्ष्मीनारायण १.१७६.८१(शम्भु द्वारा वीरभद्र को प्रदत्त कालकवल मन्त्र का कथन), २.४७.९३(ओं नमो श्री कृष्ण नारायणाय पत्ये स्वाहा मन्त्र का देह में न्यास), २.१५६.५४(देवप्रतिमा स्नान के समय विभिन्न उपचारों हेतु वेदमन्त्रों का उल्लेख), २.१५९.२(मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के संदर्भ में विविध वैदिक मन्त्रों का विभिन्न कर्मों में विनियोग), २.१६०.९७(चल मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में ध्रुवा द्यौ इति वैदिक मन्त्र का उल्लेख), २.२१२.३७(पूर्णाहुति होम के संदर्भ में समुद्रादूर्मिर्मधुमां इत्यादि विभिन्न वैदिक मन्त्रों का उल्लेख), २.२२०.७६(मन्त्राग्निक : अन्त:प्राक् नगरी के राजा आण्डजरा के गुरु), २.२३५.८८(मन्त्रिका : तामसाक्षि - कन्या, चाण्डाल जाति के मन्त्रों की आर्षी), ३.६.८०(सर्प नाशक मन्त्र), ३.६२.३९(ओम, कृष्ण, श्रीकृष्ण आदि विभिन्न अक्षर संख्याओं वाले मन्त्रों के फलों का वर्णन), ३.६८.१२(अनादि श्रीकृष्ण नारायण इति मन्त्र की विभिन्न व्याख्याएं, मन्त्र ग्रहण के अधिकारी गण तथा मन्त्र माहात्म्य का वर्णन), ३.६९.८(मन्त्र दीक्षा विधि वर्णन के अन्तर्गत देह में चिह्नों का धारण, जप हेतु विभिन्न गायत्री मन्त्र), ३.७०.२७(मन्त्रों के आदि अक्षर ॐ के तीन अक्षरों अ, उ तथा म की विभिन्न प्रकार से व्याख्या), ३.१५०.५६(हनुमान मन्त्र), कथासरित् १२.२.४७(राजा भद्रबाहु के मन्त्री मन्त्रगुप्त द्वारा स्व बुद्धि बल से राजा को वाञ्छित कन्या की प्राप्ति कराने का वृत्तान्त ), द्र. सुमन्त्र mantra
मन्त्रद्युम्न गरुड ३.२८.१८(१४ इन्द्रों में से षष्ठम्, निरुक्ति, अर्जुन रूप में अवतरण), ३.२८.२३(मन्त्रद्युम्न इन्द्र का गाधि रूप में अवतरण, गाधि की निरुक्ति), ३.२८.५५(पुलोमजा- पति)।
मन्त्रनाथा ब्रह्माण्ड ३.४.१७.२२(संकेत योगिनी मन्त्रनाथा के महत्त्व का वर्णन), ३.४.१९.६१(भण्डासुर को जीतने हेतु मन्त्रिनाथा देवी की गीति चक्र में स्थिति का उल्लेख), ३.४.३१.८२(मन्त्रिनाथा देवी के मन्दिर/भवन का वर्णन, मातङ्ग मुनि को वरदान, मातङ्ग मुनि की कन्या के रूप में जन्म ) mantranaathaa/ mantranathaa
मन्त्री पद्म २.७.४८(आकाश, वायु आदि पञ्च तत्त्वों के अमात्यों कर्ण, चर्म आदि का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.६.१(राजा के मन्त्री के लक्षण), महाभारत शान्ति ८०.२१(मन्त्री के लक्षण), वा.रामायण १.७(दशरथ के ८ मन्त्रियों के गुणों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.२२१.६०(बालकृष्ण का बाल्यरज नृप की नगरी मन्त्रिणांगां में आगमन व राजा द्वारा स्वागत आदि ) mantree/ mantri
मन्थ भागवत ५.१५.१५(मन्थु व प्रमन्थु : वीरव्रत व भोजा - पुत्र, मन्थु के पुत्र का उल्लेख ) mantha
मन्थन देवीभागवत १.१०.२३(व्यास द्वारा अरणि मन्थन से पुत्र प्राप्ति का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.८.२९(५ x ५ तत्त्वों के मन्थन सम्बन्धी कथन), भागवत १०.४६.४४(गोपियों द्वारा वास्तुपूजन के पश्चात् दधि मन्थन का उल्लेख), स्कन्द ५.२.२६.२१(दक्ष शाप से अन्तर्हित चन्द्रमा को लाने हेतु विष्णु द्वारा समुद्र मन्थन का उपक्रम), ५.३.१०३.९९(आमावास्या को दधि मन्थन का निषेध ), द्र. समुद्रमन्थन manthana
मन्थरा गरुड ३.१२.८४(कलि-भार्या अलक्ष्मी का मन्थरा नाम), गर्ग ५.१७.१५(राधा व कृष्ण के विरह पर ललिता यूथ की गोपियों द्वारा त्रेता की मन्थरा व द्वापर की कुब्जा में साम्य द्वारा उपालम्भ), भविष्य २.१.१७.१४(मन्थर : अश्वाग्नि का नाम), स्कन्द १.२.१०.४(मन्थरक नामक कूर्म से इन्द्रद्युम्न की भेंट), वा.रामायण १.२५.२०(इन्द्र द्वारा विरोचन - पुत्री मन्थरा का वध), लक्ष्मीनारायण ४.२५.५२(भगवान् के पदों की गति में मन्थरा होने का उल्लेख), कथासरित् १०.५.७९(मन्थरक नामक कूर्म की काक, मूषक व हरिण से मित्रता का वृत्तान्त), १२.५.२८९(ध्यानपारमिता के संदर्भ में मलयमाली वणिक् - पुत्र द्वारा मन्थरक नामक मित्र द्वारा दिए गए चित्र को वास्तविक समझने का वृत्तान्त ) mantharaa
मन्थु भागवत ५.१५.१५(वीरव्रत व भोजा - पुत्र, सत्या - पति, भौवन - पिता, गय/भरत वंश ), द्र. वंश भरत manthu
मन्द गर्ग ५.११.१२(बलि - पुत्र मन्दगति का त्रित मुनि के शाप से कुवलयपीड हाथी बनना), पद्म ५.११७.२३३(सोम वैश्य के पुत्र मन्द द्वारा घण्टा को उपहत करने का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१८.३(मद नामक कुमुद्वत् सर से मन्दाकिनी नदी के नि:सृत होने का उल्लेख), २.३.७.३३०(अभ्रमु हस्तिनी के ४ पुत्रों में से एक), २.३.७१.१६७(मन्दबाह्य : बलराम के पुत्रों में से एक), २.३.७१.१८१ (मन्दक : श्रीदेवा व वसुदेव - पुत्र), भविष्य ३.४.२५.४०(ब्रह्माण्ड पद से उत्पन्न मन्द द्वारा धर्मसावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), मत्स्य १२१.४(कैलास पर्वत पर मन्दोदक सरोवर की महिमा का कथन), १७१.५४(मन्दपन्नग : मरुत्वती व कश्यप के मरुद्गण संज्ञक पुत्रों में से एक), मार्कण्डेय २.३२(मन्दपाल ब्राह्मण के ४ पुत्रों में द्रोण द्वारा तार्क्षी से पुत्रों को उत्पन्न करने का वृत्तान्त), वायु ४७.२(कैलास के पाद से कुमुदों के मन्द नामक जल से मन्दाकिनी नदी की उत्पत्ति का उल्लेख), ५०.१५१(सूर्य व चन्द्रमा की मन्दा व शीघ्रा गतियों का कथन - दक्षिणे प्रक्रमे चैव दिवा शीघ्रं विधीयते । गतिः सूर्यस्य नक्तं वै मन्दा चापि तथा स्मृता ॥ ), ६९.२१४/२.८.२०८(श्वेता/अभ्रमु हस्तिनी के ४ पुत्रों में से एक), ६९.२१६/२.८.२१०(पद्म संज्ञक मन्द हस्ती के ऐलविल/कुबेर का वाहन होने का उल्लेख - पद्मो मन्दस्तु यो गौरो द्विपो ह्यैलविलस्य सः।), ९६.१६५/२.३४.१६५(मन्दवाह्य : सारण के पुत्रों में से एक), विष्णु २.४.६९(शाकद्वीप में शूद्रों की मन्दग संज्ञा का उल्लेख), कथासरित् १०.४.१२६(मन्दविसर्पिणी यूका/जूं द्वारा टिट्टिभ नामक खटमल से मित्रता करने के कारण मृत्यु को प्राप्त होने का वृत्तान्त ) manda
मन्दगा ब्रह्माण्ड १.२.१६.३८(मन्दगा व मन्दगामिनी : शुक्तिमान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से २), मत्स्य ११४.३२(मन्दगा व मन्दवाहिनी : शुक्तिमान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से २), वायु ४५.१०७(मन्दगा व मन्दवाहिनी : शुक्तिमान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से २) mandagaa
मन्दर
देवीभागवत
८.५.१७(मेरु
पर्वत
के
४
स्तम्भों
में
से
एक,
आम्र
वृक्ष
का
स्थल),
नारद
२.८(ब्रह्मा
द्वारा
प्रोक्त
मन्दराचल
की
महिमा
का
कथन),
पद्म
३.१५.३(त्रैपुर
वध
में
शिव
द्वारा
मन्दर
को
गांडीव
तथा
वासुकि
को
गुण
बनाने
का
उल्लेख
-
गांडीवं
मंदरं
कृत्वा
गुणं
कृत्वा
तु
वासुकिम्),
४.८.२१(विष्णु
द्वारा
मन्दर
को
घर्घर
व
सर्प
को
वेष्टन
बनाकर
समुद्र
मन्थन
का
आदेश
-
मंदरं
घर्घरं
कृत्वा
सर्पराजेन
वेष्टितम्।
कुरुध्वं
मथनं
देवाः
सदैत्याः
क्षीरसागरम्॥ ),
६.६०.२२(एकादशी
व्रत
के
प्रभाव
से
शोभन
द्वारा
मन्दराचल
पर
देव
पुर
को
प्राप्त
करने
का
उल्लेख
-
शोभनश्च
नृपश्रेष्ठ
रमाव्रतप्रभावतः।
प्राप्तो
देवपुरं
रम्यं
मंदराचलसानुनि),
ब्रह्माण्ड
१.२.१३.३६(मेरु
व
धारणी
-
पुत्र,
३
भगिनियों
के
नाम),
१.२.१६.२०(भारतवर्ष
के
पर्वतों
में
से
एक),
१.२.१९.५६
(कुश
द्वीप
के
पर्वतों
में
से
एक,
मन्दर
पर्वत
के
कपिल
वर्ष
का
उल्लेख,
नाम
की
निरुक्ति
:
मन्दा
नामक
आप:
का
दारण
करने
वाले
-
षष्ठो
हरिगिरिर्नाम
सप्तमो
मंदरः
स्मृतः
।।
मंदा
इति
ह्यपां
नाम
मंदरो
दारणादयम्
।।),
३.४.९.५१(विष्णु
द्वारा
मन्दर
को
मन्थान
बनाकर
समुद्र
का
मन्थन
करने
का
निर्देश,
समुद्र
मन्थन
का
वृत्तान्त),
भविष्य
२.१.१७.१४(गजाग्नि
का
नाम
-
अश्वाग्निर्मंथरो
नाम
रथाग्निर्जातवेदसः
।।
गजाग्निर्मंदरश्चैव
सूर्याग्निर्विंध्यसंज्ञकः
।। ),
४.१९५.२१(मन्दराचल
की
महिमा,
कदम्ब
का
स्थान),
भागवत
१.३.१६(विष्णु
द्वारा
कूर्म
रूप
में
पृष्ठ
पर
मन्दर
को
धारण
करने
का
उल्लेख),
३.२८.२७(विष्णु
की
बाहुओं
के
वलयों
आदि
के
समुद्र
मन्थन
के
समय
मन्दराचल
की
रगड
से
अधिक
उजले
होने
का
उल्लेख),
५.१६.११(मेरु
की
चार
दिशाओं
में
मन्दर,
मेरुमन्दर
आदि
पर्वतों
की
स्थिति
का
उल्लेख,
मन्दर
पर
चूत
वृक्ष
की
स्थिति
-
मन्दरोत्सङ्ग
एकादशशतयोजनोत्तुङ्गदेवचूतशिरसो
गिरिशिखरस्थूलानि
फलान्यमृतकल्पानि
पतन्ति ।),
७.३.२(हिरण्यकशिपु
द्वारा
मन्दरद्रोणी
में
तप),
८.५.१०(विष्णु
द्वारा
कूर्म
रूप
धारण
कर
मन्दर
को
धारण
करने
का
उल्लेख),
८.६.२२(समुद्र
मन्थन
में
मन्दर
के
मन्थान
बनने
का
उल्लेख
-
मन्थानं
मन्दरं
कृत्वा
नेत्रं
कृत्वा
तु
वासुकिम्
॥),
८.६.३३(मन्दर
गिरि
को
वहन
करने
में
देवों
व
असुरों
का
असमर्थ
होना,
गरुडध्वज
विष्णु
द्वारा
मन्दर
का
वहन),
१२.१३.२(कूर्म
पृष्ठ
पर
मन्दर
गिरि
के
भ्रमण
से
कण्डू/खुजली
नाश
का
उल्लेख),
मत्स्य
१३.२८(मन्दर
पर
देवी
के
कामचारिणी
नाम
का
उल्लेख),
८३.३१(मन्दराचल
पूजा
मन्त्र
-
यस्माच्चैत्ररथेन
त्वं
भद्राश्वेन
च
वर्षतः।।
शोभसे
मन्दर!
क्षिप्रमतस्तुष्टिकरो
भव।),
१२२.६१(सम्पूर्ण
धातुओं
से
युक्त
व
सुन्दर
मन्दर
पर्वत
का
उपनाम
ककुद्मान्,
कुश
द्वीप
के
पर्वतों
में
से
एक),
२६९.३२(१२
भूमियों
वाले
प्रासाद
की
मन्दर
संज्ञा),
२६९.४७(मन्दर
प्रासाद
का
विस्तार
मेरु
से
५
हस्त
कम(४५)
होने
का
उल्लेख),
मार्कण्डेय
५२/५५(मन्दर
के
परित:
वन,
सर,
शैल),
६३.१०/६०.१०(स्वरोचि
का
मन्दर
पर्वत
पर
विद्याधर
-
सुता
मनोहरा
से
मिलन,
राक्षस
का
उद्धार
आदि),
लिङ्ग
१.५३.९(मन्दराचल
की
निरुक्ति
:
मन्दा
नामक
आपः
को
धारण
करने
वाला
-
सप्तमो
मंदरः
श्रीमान्महादेवनिकेतनम्।।
मंदा
इति
ह्यपां
नाम
मंदरो
धारणादपाम्।।),
वराह
७७.९(मेरु
के
पूर्व
में
मन्दर
पर्वत
की
स्थिति
का
उल्लेख
;
मन्दर
के
शृङ्ग
पर
कदम्ब
वृक्ष
की
स्थिति
का
कथन
-
मन्दरस्य
गिरेः
श्रृङ्गे
कदम्बो
नाम
पादपः
।
प्रलम्बशाखाशिखरः
कदम्बश्चैत्यपादपः
।।),
९२.१(मन्दराचल
पर
वैष्णवी
देवी
द्वारा
तप
करने,
कुमारियों
के
प्रकट
होने
तथा
नारद
के
आगमन
का
कथन),
वामन
२.५(शिव
द्वारा
मन्दर
पर्वत
पर
विश्राम),
५१.७४(शिव
आगमन
से
पर्वतराज
मन्दर
द्वारा
प्रसन्नतापूर्वक
शिव
की
गणों
सहित
पूजा),
५४.३७(देवराज
से
ऐन्द्र
पद
हरण
होने
के
भय
से
युक्त
देवताओं
का
मन्दर
पर्वत
पर
जाकर
शिव
-
पुत्र
उत्पन्न
न
होने
की
युक्ति
करना),
वायु
३०.३३(मेरु
व
धारणी
-
पुत्र,
३
भगिनियों
के
नाम
-
मन्दरं
सुषुवे
पुत्रं
तिस्रः
कन्याश्च
विश्रुताः
।।
वेला
च
नियतिश्चैव
तृतीया
चायतिः
पुनः।),
३५.१६(पूर्व
दिशा
में
मेरु
के
पाद
रूप
में
मन्दर
का
उल्लेख),
३५.२०(मन्दर
के
शृङ्ग
पर
स्थित
वृक्ष
का
कथन
-
मन्दरस्य
गिरेःश्रृङ्गे
महावृक्षः
स
केतुराट्।
आलम्बशाखाशिखरः
कन्दरश्चैव
पादपः
।। ),
३६.१९(अरुण
सरोवर
के
पूर्व
में
स्थित
शैलों
में
से
एक),
४५.९०(भारतवर्ष
के
पर्वतों
में
से
एक),
४८.२३(मन्दर
पर्वत
पर
अगस्त्य
के
भवन
की
स्थिति
का
उल्लेख),
४९.५०(कुश
द्वीप
के
पर्वतों
में
से
एक,
नाम
की
निरुक्ति:
मन्दा
नामक
आपः
का
दारण
करने
वाला),
६९.१५५/२.८.१५०(मन्दरशोभि
:
मणिभद्र
व
पुण्यजनी
के
२४
यक्ष
पुत्रों
में
से
एक),
विष्णु
२.२.१८(मेरु
के
पूर्व
में
इलावृत
में
मन्दर
पर्वत
की
स्थिति
का
उल्लेख),
शिव
२.५.८.९(त्रिपुर
वधार्थ
शिव
के
रथ
में
मन्दर
के
रथनीड
बनने
का
उल्लेख
-
पुष्करं
चांतरिक्षं
वै
रथनीडश्च
मंदरः
।।),
७.१.१७.५१(मेरु
व
धरणी
-
पुत्र),
७.१.२४.२(सती
दाह
के
पश्चात्
शिव
का
मन्दराचल
पर
तप,
पर्वत
की
शोभा
का
कथन),
स्कन्द
३.३.१०(मन्दर
ब्राह्मण
की
पिङ्गला
वेश्या
में
आसक्ति,
ऋषभ
योगी
की
सेवा
से
जन्मान्तर
में
भद्रायु
नामक
राजकुमार
रूप
में
जन्म),
४.१.१.५७(मन्दर
पर्वत
के
मन्दलोचन
होने
का
उल्लेख
-
नीलश्च
नीलीनिलयो
मन्दरो
मन्दलोचनः
।।),
४.२.६४.३(मन्दर
पर्वत
पर
देवताओं
के
जाने
का
उल्लेख),
५.३.१९८.६५(मन्दर
पर
देवी
के
कामचारिणी
नाम
का
उल्लेख),
हरिवंश
२.८६.४४(मन्दराचल
पर
दिव्य
मन्दार
व
सन्तान
पुष्पों
की
उत्पत्ति,
नारद
द्वारा
अन्धकासुर
को
प्रलोभन),
वा.रामायण
७.४.२४(विद्युत्केश
-
पुत्र
सुकेश
को
राक्षसी
सालकटङ्कटा
द्वारा
मन्दराचल
पर
जन्म
देने
का
वर्णन),
लक्ष्मीनारायण
१.१५४(मन्दर
व
कुमुद
पर्वतद्वय
का
रैवत
गिरि
पर
स्थित
होना),
कथासरित्
१४.४.१७८
(अग्नि
में
प्राण
त्याग
को
उद्धत
मन्दर
-
कन्या
मतङ्गिनी
से
नरवाहनदत्त
का
विवाह),
१४.४.१९५(मन्दर
द्वारा
नरवाहनदत्त
को
मन्दरदेव
को
जीतने
का
उपाय
बताना),
१७.१.५३(मन्दर
पर्वत
पर
पार्वती
द्वारा
अपने
गणों
को
शाप
देने
का
वृत्तान्त
)
mandara
Comments on Mandara
मन्दरदेव कथासरित् १४.३.६९(उत्तरवेदी में स्थित राजा मन्दरदेव के अजेय न होने का उल्लेख- तत्र मन्दरदेवाख्यो मुख्यो राजास्ति दुर्मतिः । बलवानपि नासाध्यः प्राप्तविद्यस्य सोऽत्र ते ।।), १४.४.१९५(मन्दर द्वारा नरवाहनदत्त को मन्दरदेव को जीतने का उपाय बताना), १५.१.१०८(नरवाहनदत्त व मन्दरदेव की सेनाओं के युद्ध का वृत्तान्त), १५.१.१३७(मन्दरदेव की भगिनी मन्दरदेवी द्वारा नरवाहनदत्त को मन्दरदेव के वध से रोकना ), द्र.भूगोल mandaradeva
मन्दहास गर्ग ७.२२.५४( मौरङ्ग देश के राजा मन्दहास द्वारा प्रद्युम्न की शरण स्वीकार करना), ७.४२.१५(वसु - पुत्र मन्दहास का जन्मान्तर में भूतसन्तापन रूप में जन्म),
मन्दाकिनी पद्म ५.६.१८(विश्रवा की २ पत्नियों में से एक, धनद - माता), भागवत ५.१९.१८(भारत की नदियों में से एक), १०.७०.४४(नदियों में मन्दाकिनी द्वारा स्वर्ग को, भोगवती द्वारा पाताल को व गङ्गा द्वारा मृत्यु लोक को पवित्र करने का उल्लेख), मत्स्य ११४.२५(ऋक्ष पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), १२१.४(कैलास पर्वत पर मन्दोदक सरोवर से मन्दाकिनी के नि:सृत होने का उल्लेख, मन्दाकिनी के तट पर नन्दन वन की स्थिति का उल्लेख), १९९.३(मन्दाकिन्य : कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), वामन ५७.७६(मन्दाकिनी द्वारा स्कन्द को नन्द नामक गण प्रदान का उल्लेख), ७२.४४(ज्योतिष्मान् द्वारा मन्दाकिनी नदी के किनारे तपस्या करना), वायु ४१.१४(कैलास पर्वत पर मन्दाकिनी की शोभा का कथन), ४५.९९(ऋक्ष पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), ४७.३(कैलास पर्वत के मन्द नामक जल से मन्दाकिनी नदी की उत्पत्ति तथा मन्दाकिनी तीर पर नन्दन वन की स्थिति का कथन), शिव ४.४.५७(अत्रि हेतु गर्तमात्र जल वाली मन्दाकिनी नदी का प्रकट होना), स्कन्द ४.२.९७.१४८(मन्दाकिनी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२६.५९(उज्जयिनी में शिव द्वारा मन्दाकिनी नाम का कुण्ड बनाना), ५.१.२६.६८(मन्दाकिनी के दर्शन व स्नान का माहात्म्य), ५.३.६.३४(नर्मदा के मन्दाकिनी नाम का कारण : मन्द गति से बहना), महाभारत अनुशासन १०२.१८(मन्दाकिनी तट को प्राप्त करने वाले मनुष्य के लक्षण : इन्द्र - गौतम संवाद), वा.रामायण २.९५(राम द्वारा मन्दाकिनी नदी की शोभा का वर्णन), ५.३८.१३(हनुमान के पहचान चिह्न मांगने पर सीता द्वारा मन्दाकिनी के समीप चित्रकूट पर घटी घटनाओं का वर्णन करना), ७.११.४२(विश्रवा मुनि द्वारा पुत्र कुबेर को मन्दाकिनी नदी से युक्त कैलास पर्वत पर निवास करने का परामर्श), कथासरित् १५.१.४४(मन्दाकिनी नदी का संक्षिप्त माहात्म्य ) mandaakinee/ mandakini
मन्दार गणेश २.३४.१३(धौम्य - पुत्र, शमीका - पति, भ्रूशुण्डि का अपमान करने पर शाप प्राप्ति), २.३५.१८(गणेश द्वारा मन्दार मूल में स्थित होने का वर - अद्यप्रभृति मन्दारमूलं स्थास्यामि निश्चलः ।), २.४५.४(मरीचि द्वारा मन्दार मूल में तप का उल्लेख), गर्ग २.२०? (कृष्ण द्वारा मन्दार पुष्प का उत्तरीय धारण), ७.१०.२३(तैलङ्गराज विशालाक्ष की पत्नी मन्दारमालिनी द्वारा राजसूय यज्ञ हेतु प्रद्युम्न के आगमन का भान कराना), ७.४२.१५(परावसु गन्धर्व के मन्दार, मन्दर आदि ९ पुत्रों का जन्मान्तर में शकुनि, शम्बर आदि दैत्यों के रूप में जन्म - मन्दारो मन्दरो मन्दो मन्दहासो महाबलः ॥ सुदेवः सुधनः सौधः श्रीभानुरिति विश्रुताः ॥), नारद १.६७.६२(शक्ति को मन्दार पुष्प अर्पण का निषेध - शक्तौ दूर्वार्कमंदारान् गणेशे तुलसीं त्यजेत् ।।), पद्म १.२१.२९०(मन्दार सप्तमी व्रत), ब्रह्माण्ड २.३.४१.२७(परशुराम द्वारा शिव के गणों में एक मन्दार के दर्शन का उल्लेख), ३.४.३२.३३(मन्दार वाटिका में शरद ऋतु आदि द्वारा ललिता देवी की रक्षा का कथन), भविष्य ४.४०(मन्दार षष्ठी व्रत में सूर्य पूजा), ४.८८(गन्ध विनाशन व्रत के अन्तर्गत ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को श्वेत मन्दार आदि की पूजा का कथन), मत्स्य ७९(मन्दार सप्तमी व्रत के अन्तर्गत माघ शुक्ल सप्तमी को अष्टदल कमल पर सूर्य की पूजा), वराह १४३(मन्दार तीर्थ का माहात्म्य व अन्तर्वर्ती तीर्थ), स्कन्द ४.२.७६.७८(मन्दारदाम विद्याधर के पुत्र परिमलालय की कथा), ७.१.१७.११४(मन्दार पुष्प की महिमा - मंदारपुष्पकैः पूजा सर्वकुष्ठविनाशिनी ॥), हरिवंश २.८६.५१+(नारद द्वारा अन्धक से मन्दार वन व पुष्प की महिमा का कथन ), महाभारत अनुशासन १४.७४(हिरण्यकशिपु- पुत्र, ग्रह संज्ञा आदि ) mandaara
मन्दारवती कथासरित् १२.९.६(तीन ब्राह्मण - पुत्रों की मन्दारवती से विवाह की इच्छा, मन्दारवती की मृत्यु व पुनर्जीवन पर मन्दारवती के वास्तविक पति का प्रश्न), १२.३४.६१(महासेन - पुत्र सुन्दरसेन द्वारा मन्दारदेव - कन्या मन्दारवती को प्राप्त करने के उद्योग में विभिन्न बाधाओं का वर्णन, अन्त में सुन्दरसेन व मन्दारवती का मिलन ) mandaaravatee/ mandaaravati
मन्दिर अग्नि ३८(मन्दिर निर्माण का फल), ३९(मन्दिर निर्माण हेतु भूमि परिग्रह विधान), ४३(मुख्य मन्दिर के परित: देवों के मन्दिरों का वर्णन), गर्ग ९.६(हरिमन्दिर निर्माण, विग्रह प्रतिष्ठा व पूजन विधि), नारद १.१३.१२१(मन्दिर में पूजा, सेवा आदि का महत्त्व), पद्म ४.२(मन्दिर के मार्जनादि का माहात्म्य, दण्डक चोर द्वारा अनायास मन्दिर के लेपन से स्वर्ग प्राप्ति का वृत्तान्त), ४.६.३१(वेश्या द्वारा मन्दिर में अनायास ताम्बूल चूर्ण दान से स्वर्ग प्राप्ति का कथन), भविष्य १.९५(आदित्यालय का माहात्म्य), १.१३०(सूर्य मन्दिर निर्माण की विधि), वराह १३९(मन्दिर सम्मार्जन, गायन, लेपन का फल, चाण्डाल - ब्रह्मराक्षस की कथा), वामन ९४.३७(ज्यामघ द्वारा मन्दिर निर्माण), स्कन्द २.२.२०(इन्द्रद्युम्न राजा द्वारा मन्दिर का निर्माण), लक्ष्मीनारायण २.१३६-१६०(श्रीहरि द्वारा देवायतन भक्त को मन्दिर निर्माण की विस्तृत विधि का वर्णन), २.१४०.१६(मन्दिर प्रासाद के लक्षण), २.१४०.२३ (मन्दिर प्रासाद के लक्षण), २.१४०.९१(मन्दिर प्रासाद के लक्षण), २.१४३.९९(मन्दिर के अङ्गों का पुरुष के अङ्गों से तादात्म्य ) mandira
मन्देहा देवीभागवत ११.१६.५३(सूर्य के भक्षण के इच्छुक मन्देहा राक्षसों का अर्घ्य/उदक क्षेपण से नाश), ब्रह्माण्ड १.२.२१.११०(सन्ध्या काल में ३ कोटि मन्देहा राक्षसों के सूर्य से युद्ध का कथन), लिङ्ग २.५१(वज्रेश्वरी विद्या द्वारा मन्देहा राक्षसों पर जय), वराह २०१(मन्देहा राक्षसों का चित्रगुप्त से प्राकट्य, यमदूतों से संघर्ष), वायु ५०.१६२(सन्ध्या काल में मन्देहा राक्षसों द्वारा सूर्य को ग्रसने की चेष्टा, सूर्य से युद्ध तथा सन्ध्यावन्दन में अभिमन्त्रित जल के क्षेपण से मन्देहा राक्षसों के जलने का कथन), विष्णु २.४.३८(कुश द्वीप में शूद्र जाति), २.८.४९(सन्ध्या काल में मन्देहा राक्षसों के नाश के उपाय रूप में अग्निहोत्र आदि का कथन), स्कन्द ४.१.१.५६(मन्देहा राक्षसों की देह संदेह के कारण प्रसिद्धि का उल्लेख), महाभारत आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३३९(सावित्री का जप करके अभिमन्त्रित जल से मन्देहों के विनाश का निर्देश), वा.रामायण ४.४०.४१(शाल्मलि द्वीप में मन्देहा नामक राक्षसों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.३६०.३(चित्रगुप्त द्वारा मन्देहा राक्षसों को पापियों को पीडा देने के निर्देश का कथन ) mandehaa
मन्दोदरी देवीभागवत ५.१७+ (चन्द्रसेन व गुणवती - पुत्री, पति हेतु कम्बुग्रीव व वीरसेन का तिरस्कार, अन्त में दुराचारी चारुदेष्ण से विवाह कर दुःख प्राप्ति), १२.६.१२५(गायत्री सहस्रनामों में से एक), ब्रह्माण्ड ३.६.२९(मय व रम्भा - कन्या, दुन्दुभि आदि ६ दानवों की भगिनी), भविष्य ३.४.१३(मायी - भगिनी, मय - पुत्री मन्दोदरी द्वारा विष्णु भक्ति), मत्स्य ६.२१(मय की कन्याओं में से एक), वायु ६८.२९/२.७.२९(मय की सन्तानों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.२२०.३६(रावण द्वारा मय - पुत्री मन्दोदरी का वरण करने और मेघनाद पुत्र उत्पन्न करने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.३५.९(मय व तेजोवती - पुत्री, रावण द्वारा वरण, मेघनाद पुत्र का जन्म), वा.रामायण ५.१०, ७.१२(मय व हेमा - कन्या मन्दोदरी का रावण से विवाह ) mandodaree/ mandodari
मन्मथ देवीभागवत ९.२२.८( मन्मथ का शङ्खचूड - सेनानी पिठर से युद्ध), पद्म ६.१३३.३०(हेमकूट में तीर्थ का नाम), ब्रह्मवैवर्त्त १.४.६(मन्मथ की कृष्ण के मन से उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.११.३१(मन्मथ/काम की भस्म से भण्डासुर की उत्पत्ति का वृत्तान्त), मत्स्य १३.५०(हेमकूट तीर्थ में देवी की मन्मथा नाम से स्थिति का उल्लेख), लिङ्ग २.२७.१७२(मन्मथ व्यूह का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.२४९.६ (सुरस्त्रियों के राज्य पर मन्मथ के अभिषिक्त होने का उल्लेख), शिव २.५.३६.१२(मन्मथ का शङ्खचूड - सेनानी पिपिट से युद्ध), स्कन्द ५.१.६०.५८(ताम्बूल के ४ योगों में से खदिर से मन्मथ के प्रसन्न होने का उल्लेख), ५.३.१०२(मन्मथेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ५.३.१९८.८८(हेमकूट में देवी का मन्मथा नाम), ५.३.२३१.२१(२ मन्मथेश तीर्थों का उल्लेख ) manmatha
मन्यु ब्रह्म २.९२(देवों की दैत्यों पर जय हेतु शिव से मन्यु की उत्पत्ति, देवों का सेनापति बनना), ब्रह्माण्ड १.२.१३.११(शिशिर के तप व तपस्य मासों के मन्युमन्त गुण का उल्लेख), भागवत ३.१२.१२(११ रुद्रों में प्रथम, धी - पति), ८.५.३९ (विष्णु के मन्यु से गिरीश के प्राकट्य का उल्लेख), ९.२१.१(भरद्वाज/वितथ - पुत्र, पांच पुत्रों के नाम, भरत वंश), वायु ३०.९(सह व सहस्य/मार्गशीर्ष - पौष ऋतुओं के मन्युमन्त होने का उल्लेख), विष्णु ४.१९.२०(वितथ - पुत्र मन्यु के बृहत्क्षत्र आदि पुत्रों के नाम), स्कन्द ५.३.३८.१९(विप्रों द्वारा मन्यु द्वारा प्रहार करने तथा मन्यु के चक्र से भी क्रूरतर होने का उल्लेख ), द्र. उपमन्यु, भुवमन्यु, वीतमन्यु, समन्यु manyu
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मन्युमान् ब्रह्माण्ड १.२.१२.३४(मृत्युमान् : जठर अग्नि/हृच्छय अग्नि - पुत्र, विद्वान् अग्नि - पिता), १.२.१२.३५(मन्युमान् अग्नि के पुत्र संवर्तक अग्नि का कथन), १.२.१३.११(मन्युमत् : तप - तपस्य/माघ - फाल्गुन मासों का नाम), मत्स्य ५१.२८(ह्रदय अग्नि - पुत्र, जठराग्नि उपनाम, संवर्तक - पिता), वायु २९.३१(हृच्छय/जाठर अग्नि - पुत्र, विद्वान् उपनाम?, घोर संवर्तक अग्नि - पिता), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१८(जठर अग्नि - पुत्र ) manyumaan
मन्वन्तक स्कन्द ७.४.१७.३२(विष्णु प्रतिमा के उत्तर दिशा के रक्षकों में से एक),
मन्वन्तर अग्नि १५०(मन्वन्तरों में मनुओं, इन्द्रों व सप्तर्षियों का वर्णन), कूर्म १.५१(मन्वन्तरों में सप्तर्षि, इन्द्र व देवगण के नाम), गरुड १.८७(१४ मन्वन्तरों के सप्तर्षियों, देवगण, इन्द्रों, इन्द्र - रिपुओं का वर्णन), नारद १.४०(१४ मन्वन्तरों के देवगण व इन्द्रों का वर्णन, सुधर्मा - इन्द्र संवाद), पद्म १.७.८१ (मन्वन्तरों के ऋषियों, देवताओं का वर्णन), ब्रह्म १.३(मन्वन्तरों में मनुओं, मनु - पुत्रों, सप्तर्षियों आदि के नाम), ब्रह्माण्ड १.२.६.९(कल्पों व मन्वन्तरों की सन्धियों में अन्तर का वर्णन), १.२.३५.१७५(मन्वन्तरों के सन्धिकालों में देवताओं, ऋषियों आदि की स्थिति का वर्णन), १.२.३६(प्रथम सात मन्वन्तरों के ऋषि, देवता, मनु - पुत्रों आदि के नाम ) ३.४.१.८(भविष्य के ७ मन्वन्तरों के ऋषियों, देवों आदि के नाम), भविष्य ३.४.२५.३०(ब्रह्माण्ड/अज के विभिन्न गुणों से विभिन्न मनुओं की सृष्टि का कथन ; मनुओं का ग्रहों से तादात्म्य), ३.४.२५.५५(१४ मन्वन्तरों में से प्रत्येक के ४ युगों में मनुष्यों के आयु प्रमाण का कथन), ३.४.२५.८०(विभिन्न मन्वन्तरों में राशि विशेष में वराह आदि अवतारों का कथन), भागवत ३.११.२३(ब्रह्मा के एक दिन की अवधि १४ मन्वन्तरों के बराबर होने आदि का कथन), ८.१(मन्वन्तरों के मनुओं, मनु - पुत्रों, देवता गण, इन्द्रों का वर्णन), ८.५.२(रैवत व चाक्षुष मन्वन्तरों के मनुओं, मनु - पुत्रों और अवतारों के नाम, कूर्म अवतार का वर्णन), ८.१३(वैवस्वत मन्वन्तर से आरम्भ करके मनुओं, मनु - पुत्रों, सप्तर्षियों, देवों व अवतारों के नाम), ८.१४(मनु, ऋषि आदि गणों के कर्म), ८.२२.३१(वामन अवतार द्वारा बलि को सावर्णि मन्वन्तर में इन्द्र बनने का वरदान), मत्स्य ९(अतीत तथा भविष्य के मन्वन्तरों के ऋषि, मनु - पुत्र व देवता आदि), ५३.६४(पुराणों के ५ लक्षणों में से एक), मार्कण्डेय ५३.१०/५०.१०(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों का वृत्तान्त, भुवनकोश का वर्णन), ६१+ /५८+ (स्वारोचिष मनु की उत्पत्ति के आख्यान का आरम्भ : वरूथिनी अप्सरा व कलि गन्धर्व से स्वरोचिष का जन्म आदि), ६६.२४/६३.२४(स्वरोचिष व मृगी से स्वारोचिष मनु के जन्म का वृत्तान्त), ६७/६४(स्वारोचिष मन्वन्तर के ऋषि, देवता आदि के नाम), ६९/६६(औत्तम मन्वन्तर नामक अध्याय में राजा उत्तम की कर्कशा पत्नी का वृत्तान्त, राजा द्वारा पत्नी का त्याग, ब्राह्मण द्वारा राजा से अपनी खोई हुई पत्नी को प्राप्त करने का आग्रह), ७२.३७/६९.३७(ब्राह्मण द्वारा इष्टि से राजा की पत्नी व राजा में प्रीति उत्पन्न करना, राजा की पत्नी बहुला से औत्तम मनु का जन्म, औत्तम मन्वन्तर का आरम्भ), ७४.४१/७१.४१(राजा स्वराष्ट} व मृगी से तामस मनु की उत्पत्ति का वृत्तान्त, तामस मन्वन्तर के देवगण, इन्द्र, सप्तर्षियों आदि के नाम), ७५.६८/७२.६८(राजा दुर्गम व रेवती कन्या से रैवत मनु के जन्म का वृत्तान्त, रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षि, देवताओं आदि के नाम), ७६.४९/७३.४९(चाक्षुष मनु के जन्म के संदर्भ में जातहारिणी द्वारा राजाओं के पुत्रों को उठाकर एक दूसरे के स्थान पर रखना, अनमित्र - पुत्र आनन्द द्वारा मुक्ति हेतु तप, ब्रह्मा के वरदान से जन्मान्तर में चाक्षुष मनु बनना, चाक्षुष मन्वन्तर के देव, ऋषि आदि), ७७.२६/७४.२६(वैवस्वत मनु के संदर्भ में संज्ञा - छाया व सूर्य की कथा), ७८.२७/७५.२७(सूर्य व संज्ञा के ज्येष्ठ पुत्र द्वारा वैवस्वत मनु पद प्राप्त करने का उल्लेख), ७९/७६(वैवस्वत मन्वन्तर के ऋषि, देवता आदि), ८०/७७(सावर्णि मन्वन्तर के ऋषि, देवता आदि), ८१.१/७८.१(सावर्णि मनु की उत्पत्ति के संदर्भ में राजा सुरथ व समाधि के आख्यान का आरम्भ), ९४/९१(नवम सावर्णि मन्वन्तर से आरम्भ करके १३ तक मन्वन्तरों के ऋषि, देवता आदि के नाम), ९५+/९२+ (रौच्य मनु की उत्पत्ति के संदर्भ में रुचि प्रजापति द्वारा पितरों की स्तुति का वृत्तान्त), ९८/९५(रुचि व मालिनी से रौच्य मनु का जन्म), ९९/९६(भौत्य मनु की उत्पत्ति के संदर्भ में अङ्गिरस - शिष्य द्वारा अग्निहोत्र की प्रशान्त अग्नि को प्रसन्न करने का वृत्तान्त), १००.२७/९७.२७(भौत्य मन्वन्तर के ऋषि, देवता आदि के नाम), १००.३५/९७.३५(विभिन्न मन्वन्तरों की फलश्रुति), लिङ्ग १.४०.८०(एक मन्वन्तर में कृतादि चतुर्युगों की ७१ आवृत्तियां होने का कथन), वायु ३१.३(स्वायम्भुव मन्वन्तर के देवगण, ऋषियों, मनु - पुत्रों के नाम), ६१.१३७(मानुष गणना के अनुसार व्यतीत हुए मन्वन्तरों की संख्या), ६१.१४८(मन्वन्तरों में चतुर्युगों की संख्या, मन्वन्तरों की प्रतिसन्धियों में सप्तर्षियों व देवताओं की स्थिति का वर्णन), ६२.१/२.१.१(मन्वन्तरों में सप्तर्षियों व देवगण का वर्णन), ६३.१३/२.२.१३(विभिन्न मन्वन्तरों में पृथिवी के दोग्धाओं व वत्स मनुओं के नाम), ६६.१२९/२.५.१२७(स्वायम्भुव आदि ८ मन्वन्तरों में श्रीहरि की विभिन्न माताओं से देवों सहित उत्पत्ति का कथन), ६७.४/२.६.४(ब्रह्मा के जय नाम से प्रथित दर्श आदि १२ पुत्रों का ब्रह्मा के शाप से विभिन्न मन्वन्तरों में विभिन्न देवगण के रूप में जन्म लेने का वर्णन), १००.६/२.३८.६(भविष्य के ७ मन्वन्तरों के सप्तर्षियों तथा देवगण का वर्णन), वामन ७२(विभिन्न मन्वन्तरों में मरुतों की उत्पत्ति का प्रसंग), विष्णु ३.१(मन्वन्तरों के देवगण, इन्द्र व सप्तर्षियों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.१७५+ (शाम्बरायणी द्वारा विभिन्न मन्वन्तरों में शक्रों, शक्र सहायक देवों, शक्र - शत्रु असुरों आदि का वर्णन), शिव ५.३४(१४ मन्वन्तरों के नाम, मनु - पुत्रों व सप्तर्षियों के नाम), ७.१.११.७(वर्तमान वाराह कल्प के १४ मन्वन्तरों का संदर्भ तथा प्रत्येक कल्प में पूर्व जन्म के मनुओं की परिवृत्ति होने का कथन), स्कन्द १.२.५.१२८(मन्वन्तरादि तिथियों का कथन), हरिवंश १.७(१४ मन्वन्तरों के मनुओं, मनु - पुत्रों, सप्तर्षियों व देवों के नाम), लक्ष्मीनारायण ३.१६४(१४ मन्वन्तरों के मनुओं, मनु - पुत्रों, इन्द्र, इन्द्र - शत्रु तथा अवतारों का वर्णन ) manvantara
ममता मत्स्य ४८.३२(उशिज - पत्नी, दीर्घतमा पुत्र का जन्म, देवर बृहस्पति द्वारा वीर्य आधान की कथा), ४९.२५(बृहस्पति के वीर्य से ममता द्वारा भरद्वाज को जन्म देना), वायु ९९.१४९/२.३७.१४५(बृहस्पति वीर्य से उत्पन्न गर्भ का भरद्वाज बनना, ममता द्वारा कुमार के त्याग पर भरत द्वारा भरद्वाज पुत्र की प्राप्ति का कथन), विष्णु ४.१९.१६(मरुतों द्वारा उतथ्य - पत्नी ममता में बृहस्पति के वीर्य से उत्पन्न पुत्र को भरत को देने का कथन), शान्ति १३.४(मम के मृत्यु व न मम के शाश्वत होने का उल्लेख ) mamataa
मय गर्ग ४.२४.३(मय - पुत्र व्योमासुर का प्रसंग), १०.२८.७(मय द्वारा यज्ञीय अश्व का बन्धन करने वाले बल्वल दैत्य को यादवों से युद्ध न करने का परामर्श, बल्वल द्वारा मय की उपेक्षा), देवीभागवत ८.२०.१(मय का तलातल में वास), ९.२२.५(शङ्खचूड - सेनानी, विश्वकर्मा से युद्ध), ब्रह्म २.९०.८(शम्बर व मय के अश्विनौ से युद्ध का उल्लेख?), ब्रह्माण्ड १.२.९.६५(मय व माया से मृत्यु की उत्पत्ति का उल्लेख), २.३.६.५(दनु के वंश के प्रधान दैत्यों में से एक), २.३.६.२९(रम्भा - पति, मायावी, दुन्दुभि आदि का पिता), २.३.५९.२१ (विश्वकर्मा - पुत्र, सुरेणु - भ्राता), ३.४.३१.८(देवों द्वारा विश्वकर्मा व मय को ललिता देवी हेतु श्रीनगर के निर्माण का निर्देश), भविष्य ३.४.१२.१७(मय - पुत्र मायी हेतु त्रिपुर निर्माण व नाश का वर्णन), ३.४.१८.१९(संज्ञा विवाह प्रकरण में मय का विश्वकर्मा से युद्ध), ३.४.२१.३०(मय द्वारा तीर्थों में ज्योतिष यन्त्र की स्थापना, भक्तों द्वारा यन्त्र का विलोप करके वैष्णव चिह्न की स्थापना), भागवत २.७.३१(मय - पुत्र व्योमासुर? द्वारा गोपबालकों को बिल में छिपाने का उल्लेख), ४.१८.२०(मायावियों द्वारा मय दानव को वत्स बनाकर धारणामयी पृथिवी के दोहन का उल्लेख),५.२४.२८(मय के तलातल में निवास तथा महादेव से अभय प्राप्ति का कथन), ७.१०(मय द्वारा त्रिपुर का निर्माण, रुद्र द्वारा त्रिपुर के दहन की कथा), ८.१०.२९(मय का विश्वकर्मा से युद्ध), १०.५८.२७(अर्जुन द्वारा मय की अग्नि से रक्षा व मय द्वारा पाण्डवों के लिए सभा निर्माण का कथन), १०.७५.३४ (मय द्वारा पाण्डवों के लिए निर्मित सभा में दुर्योधन के भ्रमित होने का वृत्तान्त), १०.७६.७(मय द्वारा सौभ पुर/विमान का निर्माण कर शाल्व को देने का उल्लेख), १०.७७.२८(शाल्व द्वारा मय - प्रदत्त माया का प्रयोग), मत्स्य १२९+ (विश्वकर्मा मय के तप का वर्णन, मय द्वारा ब्रह्मा से वर प्राप्ति, त्रिपुर निर्माण), १३१.२०(मय द्वारा त्रिपुर के सम्बन्ध में द्रष्ट भयानक स्वप्न का कथन), १३४.९(मय द्वारा नारद से त्रिपुर में उत्पन्न उत्पातों के कारणों के विषय में पृच्छा, दैत्यों को देवों से युद्ध का निर्देश), १३५.६४(मय द्वारा संग्राम में माया द्वारा प्रहार का उल्लेख), १३६(मय द्वारा अमृतवापी का निर्माण), १७३.२(तारक - सेनानी मय के रथ का वर्णन), १७५+ (देवों से युद्ध में मय द्वारा और्व व शैल माया द्वारा युद्ध), वामन ९.२९(मय का वाहन दिव्य रथ), ७४.१३(इन्द्र से बलि दानव की विजय होने पर मय का वरुण बनना), वायु ६८.२८/२.७.२८(मय की सन्तानों के नाम), ८४.२०/ २.२२.२०(विश्वकर्मा - पुत्र, सुरेणु - भ्राता), विष्णुधर्मोत्तर १.२२०.३६(रावण द्वारा मय - पुत्री मन्दोदरी के भार्या रूप में वरण का उल्लेख), शिव २.१.१२.३४(मय द्वारा चान्दन लिङ्ग की पूजा), २.५.१२.१(त्रिपुर दाह से अदग्ध मय द्वारा शिव की स्तुति, वरदान रूप में शिव से भक्ति व दानव भाव रहितता की प्राप्ति), २.५.३६.९(शङ्खचूड - सेनानी, विश्वकर्मा से युद्ध), स्कन्द ५.३.३५.५(तपस्वी दानव मय द्वारा रावण को कन्या दान), ७.४.१२.४४(मय सरोवर का माहात्म्य, गोपियों द्वारा तप, इन्द्र द्वारा मय से मैत्री रूप वर की याचना), हरिवंश १.४३.२(मय के रथ का वर्णन), १.४६.२१(देवासुर संग्राम में मय द्वारा पार्वती माया से चन्द्रमा व वरुण के कोप का शमन, अग्नि व वायु द्वारा पार्वती माया के शमन का वर्णन), ३.४९.४२(बलि - सेनानी मय के रथ का वर्णन), ३.५५.२५(देवासुर संग्राम में मय द्वारा त्वष्टा को पराजित करने का वर्णन), वा.रामायण ४.४३.३०(सीता अन्वेषण हेतु सुग्रीव द्वारा वानरों को मय दानव के निवास पर भेजना), ४.५१(मयासुर द्वारा निर्मित स्वर्णमय वन का वर्णन), ७.१२(हेमा - पति, मन्दोदरी पुत्री का रावण से विवाह, अन्य पुत्र मायावी व दुन्दुभि), कथासरित् १.३.४७(पुत्रक नामक राजा द्वारा मय के पुत्र - द्वय से उनके धन भाजन, यष्टि व पादुका का हरण), ६.२.१००(मयासुर - सुता सोमप्रभा की राजा कलिङ्गदत्त की कन्या कलिङ्गसेना से मित्रता का वृत्तान्त), ६.३.१२(मय को असुरों से भय का कथन, मय की पुत्री - द्वय में से एक सोमप्रभा द्वारा स्वसखी को यन्त्रपुत्तलिका का प्रदर्शन करना), ६.८.१४८(मय के विश्वकर्मा का अवतार होने का उल्लेख), ८.१.२७(मय द्वारा विद्याधरों के भावी चक्रवर्ती सूर्यप्रभ को विद्याएं सिखाने का कथन), ८.२.३(मय का सभामध्य में चन्द्रप्रभ व सूर्यप्रभ के समक्ष प्रकट होना तथा विद्याधरों के राजा सुमेरु आदि से मिलने का निर्देश), ८.२.३४०(चतुर्थ पातालवासी मय असुर द्वारा सूर्यप्रभ मनुष्य को अपनी कन्या सुमाया प्रदान करने का कथन), ८.२.३९३(मय द्वारा सूर्यप्रभ का पक्ष लेने पर इन्द्र द्वारा मय को वज्र से मारने को उद्धत होना, कश्यप द्वारा मय की रक्षा), ८.२.४०७(कश्यप आदि द्वारा मय को वरदान), ८.४.११(सूर्यप्रभ व श्रुतशर्मा के युद्ध के प्रसंग में मय द्वारा स्वपुत्र सुनीथ को सेना के नायकों का परिचय देना), १२.६.१०७(कश्मीर में मय द्वारा निर्मित भूविवर का महत्त्व ) maya
मयूख स्कन्द ४.१.४९.३०(मयूखादित्य का माहात्म्य, सूर्य द्वारा शिव - पार्वती की स्तुति), ४.२.८४.६१(मयूखमाली तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) mayookha/ mayuukha/ mayukha
मयूर गणेश १.८३.२(परशुराम द्वारा मयूरेश्वर स्थान पर गणेश की आराधना से परशु की प्राप्ति), १.८७.४४(गणेश द्वारा स्व वाहन मयूर स्कन्द को प्रदान करने का उल्लेख), २.१.१९(त्रेता युग में गणेश का मयूर वाहन), २.७८.४२(मयूरेश्वर : त्रेतायुग में षड्भुज मयूरारूढ गणेश का नाम), २.९८.४७(सर्पों के नाश हेतु विनता द्वारा मयूर को उत्पन्न करने की कथा, गुणेश द्वारा मयूर को स्ववाहन बनाने का वृत्तान्त), गरुड १.५५(त्विष्टिम दानव वध के लिए श्रीहरि का मयूर अवतार), पद्म ६.८८.१४(गरुड के पतित पंख से मयूर, नकुल व चाष की उत्पत्ति का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.१०.४७(वायु द्वारा स्कन्द को मयूर, कुक्कुट व पताका देने का उल्लेख), भविष्य २.२.२.३०(मयूर के ब्रह्मा की मूर्ति होने का उल्लेख), मार्कण्डेय १५.२९(वर्णों के हरण पर मयूर योनि प्राप्ति का उल्लेख), वामन ५७.१०२(गरुड द्वारा स्वपुत्र मयूर को कार्तिकेय को समर्पित करना), वायु ४२.७०(गङ्गा द्वारा प्लावित पर्वतों में से एक), ७२.४६/२.११.४६(वायु द्वारा स्कन्द को मयूर, कुक्कुट व पताका उपहार देने का उल्लेख), विष्णु ३.१८.८३(शतधनु राजा द्वारा श्वान, बक आदि योनियां धारण करने के पश्चात् मयूर योनि में जन्म, पत्नी शैब्या द्वारा अवभृथ स्नान कराने से मयूर योनि त्याग कर जनक - पुत्र रूप में जन्म), ५.३३.३(बाणासुर की मयूर ध्वज के भङ्ग होने पर युद्ध होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.१८८.७(१३वें मन्वन्तर में मयूर रूपी विष्णु द्वारा टिट्टिभ वध का कथन), १.२२१.८(मरुत्त के यज्ञ में इन्द्र द्वारा गृहीत रूप, मयूर को वर), स्कन्द ४.१.४५.३५(मयूरी : ६४ योगिनियों में से एक), ४.२.५३.८०(शिव द्वारा मयूर प्रमथ गण का दिवोदास - पालित काशी में प्रेषण, स्वनाम ख्यात लिङ्ग की महिमा), ५.१.३४.७१(गौरी द्वारा कार्तिकेय को मयूर वाहन देना), ५.३.६(प्रलय काल में शिव के मयूर रूप का वर्णन), ५.३.१३.४४(१५वें कल्प मायूर का कथन), योगवासिष्ठ १.१७.२६(चिन्ता की बर्हिणी/मयूरी से उपमा), १.३१.४(लोभ रूपी मयूर), ६.२.११८.१६(मयूर द्वारा इन्द्र से जल की याचना, सर्प से वैर आदि की गुणी जनों के स्वभाव से तुलना), वा.रामायण ७.१८.५(राजा मरुत्त के यज्ञ में इन्द्र का मयूर में प्रवेश, मयूर को वरदान), लक्ष्मीनारायण ३.२४.३(ब्रह्मा से उत्पन्न मयूर असुर के नाश हेतु श्रीक्षत्रनारायण के अवतार का वृत्तान्त), ३.१६४.८७(देवसावर्णि नामक १३वें मन्वन्तर में टिट्टिभ असुर के वधार्थ श्रीहरि द्वारा मायूर रूप धारण का कथन), ३.१९५.१(मायूर पुरी में मत्स्या नदी के तट पर हर्षुल भक्त का वृत्तान्त), ३.२०१.३(कथा के उच्छिष्ट भक्षण से मयूर का हारीतक शूद्र के भक्त पुत्र रूप में जन्म का वृत्तान्त), कथासरित् १२.४.५०(मृगाङ्कदत्त के मन्त्री भीमभट को स्त्री द्वारा मयूर बनाने व मयूरत्व से मुक्ति का वृत्तान्त ) mayoora/mayuura/ mayura
मयूरध्वज भविष्य ३.३.२०.३(बलवर्धन व जलदेवी - पुत्र, लहर - अनुज, स्कन्द की आराधना से बल प्राप्ति), ३.३.३२.५०(विराट् का अंश, कुरुक्षेत्र में युद्धार्थ आगमन), ३.३.३२.७८(मयूरध्वज का पृथ्वीराज - सेनानी लहर राजा से युद्ध ) mayuuradhwaja/ mayuradhwaja
मयोभुव मत्स्य २०२.२(अगस्त्य कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक )
मरकत पद्म ६.६.२७(बल असुर के मेद से मरकत की उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द १.३.१.७.३(कलियुग में मरकताचिल के लिङ्ग? बनने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१६३.२९(बल असुर के पित्त समिद्बीज के पतन से मरकत की उत्पत्ति का कथन ) marakata
मरिच स्कन्द ६.२५२.२२(चातुर्मास में किन्नरों की मरिच वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८४(मरिच वृक्ष : किन्नरों का रूप ) maricha
मरीचि
अग्नि २०.११
(सम्भूति
व मरीचि से पौर्णमास पुत्र
के जन्म का उल्लेख),
११४.११(ब्रह्मा
-
पुत्र
मरीचि द्वारा स्वभार्या
धर्मवती को शिला बनने का शाप
तथा धर्मवती द्वारा प्रतिशाप
की कथा),
गणेश
२.४५.४(मरीचि
द्वारा मन्दार मूल में तप,
शिव
द्वारा वरदान
-
आधास्य
मन्दरगिरिं
मरीचिस्तु
तपस्यति
॥),
२.८५.१(मरीचि
-
पठित
गणेश कवच का वर्णन -
भूत-
भव्यभविष्यज्ञः
समलोष्ठाश्मकांचनः
।
वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञो
न्यस्तस्वपरविभ्रमः),
गरुड
१.२१.७(ईशान
शिव की कलाओं में एक),
३.७.४९(मरीचि
द्वारा हरि स्तुति
-
देवेन
चाहं
हतधीर्भवनप्रसङ्गात्सर्वाशुभोपगमनाद्विमुखेंद्रियश्च
।),
देवीभागवत
४.२२.८(स्वायम्भुवेऽन्तरे
पुत्रा
मरीचेः
षण्महाबलाः
॥
ऊर्णायां
चैव
भार्यायामासन्धर्मविचक्षणाः
।),
९.२१.३२(ब्रह्मा
– पुत्र,
कश्यप-पिता),
नारद
१.९१.६५
(ईशान
शिव की चतुर्थ कला),
पद्म
१.१६.९८(ब्रह्मा
के यज्ञ में उद्गाता
-
तत्रोद्गाता
मरीचिस्तु
ब्रह्मा
वै
नारदः
कृतः॥),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.२२.६(ऋषि
मरीचि की उत्पत्ति -
तेजोभेदे
मरीचिश्च
वेदेषु
वर्त्तते
स्फुटम्
।
जातः
सद्योऽतितेजस्वी
मरीचिस्तेन
कीर्तितः
।।),
२.५१.१७(सुयज्ञ
नृप द्वारा अतिथि तिरस्कार
पर मरीचि द्वारा व्यक्त
प्रतिक्रिया
-
पुण्यक्षेत्रे
भारते
च
देवं
च
ब्राह्मणं
गुरुम्।।
विष्णुभक्तिविहीनश्च
स
भवेद्योऽवमन्यते
।।),
ब्रह्माण्ड
१.१.५.७४(मरीचि
का ब्रह्मा के चक्षु से प्राकट्य
-
प्राणाद्दक्षोऽसृजद्वाचं
चक्षुर्भ्यां
च
मरीचिनम्
।
भृगुश्च
हृदयाज्जज्ञे
ऋषिः
सलिलयोनिनः
॥),
१.२.९.५५
(सम्भूति
– पति
-
सतीं
भवाय
प्रायच्छत्ख्यातिं
च
भृगवे
तथा
॥
मरीचये
तु
संभूतिं
स्मृतिमङ्गिरसे
ददौ
।),
१.२.११.१०(मरीचि
प्रजापति व सम्भूति के पुत्र
व कन्याओं के नाम
-
प्रजापतेः
पूर्णमासं
कन्याश्चेमा
निबोधत
।।
कृषिर्वृष्टिस्त्विषा
चैव
तथा
चोपचितिः
शुभा
।।),
१.२.३२.९६
(ब्रह्मा
के मन से उद्भूत १० ऋषियों में
से एक
-
भृगुर्मरीचिरत्रिश्च
ह्यंगिराः
पुलहः
क्रतुः
।।
मनुर्दक्षो
वसिष्ठश्च
पुलस्त्यश्चेति
ते
दश
।। ),
२.३.१.२१(ब्रह्मा
के ८ पुत्रों में से एक
-
भृग्वङ्गिरा
मरीचिश्च
पुलस्त्यः
पुलहः
क्रतुः
।
अत्रिश्चैव
वसिष्ठश्च
ह्यष्टौ
ते
ब्रह्मणः
सुताः
॥),
२.३.१.४३(ब्रह्मा
के शुक्र होम से मरीचि की
उत्पत्ति,
अत्रि
-
पुत्र
बनना?
- हुते
समभवंस्तस्मिन्यद्ब्रह्माण
इति
श्रुतिः
।
मरीचिः
प्रथमं
तत्र
मरीचिभ्यः
समुत्थितः
॥),
२.३.६.५(दनु
के प्रधान पुत्रों में से एक),
२.३.७.२४४(मरीचिमान्
:
वालि
के सामन्त प्रधान वानर सेनापतियों
में से एक),
भागवत
१.६.३१(मरीचि
आदि ऋषियों की ब्रह्मा के
प्राणों से उत्पत्ति का उल्लेख),
३.१२.२४(मरीचि
ऋषि की ब्रह्मा के मन से उत्पत्ति
का उल्लेख
-
अङ्गिरा
मुखतोऽक्ष्णोऽत्रिः
मरीचिर्मनसोऽभवत्
॥),
३.२४.२२(कर्दम
-
पुत्री
कला के मरीचि की पत्नी बनने
का उल्लेख),
४.१.१३(मरीचि
व कला से कश्यप व पूर्णिमा की
उत्पत्ति का उल्लेख),
५.१५.१५(सम्राट्
व उत्कला -
पुत्र,
बिन्दुमती
-
पति,
बिन्दुमान्
-
पिता,
गय
वंश
-
उत्कलायां
मरीचिर्मरीचेर्बिन्दुमत्यां
बिन्दुमानुदपद्यत),
९.१.१०(मरीचि
ऋषि की ब्रह्मा के मन से उत्पत्ति
का उल्लेख,
कश्यप-पिता
-
मरीचिः
मनसस्तस्य
जज्ञे
तस्यापि
कश्यपः
।),
१०.८५.४७(मरीचि
व ऊर्णा के षड्गर्भ संज्ञक ६
पुत्रों का वृत्तान्त -
स्मरोद्गीथः
परिष्वङ्गः
पतङ्गः
क्षुद्रभृद्घृणी।
षडिमे
मत्प्रसादेन
पुनर्यास्यन्ति
सद्गतिम्॥),
मत्स्य
३.६(ब्रह्मा
के १० मानस पुत्रों में ज्येष्ठ),
१२७.१६(तारा
संख्या के बराबर मरीचियों की
संख्या
तथा मरीचियों के ध्रुव-निबद्ध
होने का कथन -
यावन्त्यश्चैव
ताराः
स्युस्तावन्तोऽस्य
मरीचयः।
सर्वा
ध्रुवनिबद्धास्ता
भ्रमन्त्यो
भ्रामयन्ति
च।।),
१९५.९(परमेष्ठी
ब्रह्मा के शुक्र के होम से
मरीचियों से मरीचि की उत्पत्ति
का उल्लेख),
१९६.१(मरीचि
-
तनया
सुरूपा के पुत्रों का वृत्तान्त),
२५०.४(कौस्तुभ
मणि की मरीचियों का उल्लेख
-
कौस्तुभश्च
मणिर्दिव्यश्चोत्पन्नोऽमृतसम्भवः।
मरीचिविकचः
श्रीमान्
नारायण
उरोगतः
।।),
वामन
३०.३७(आषाढमददाद्
दण्डं
मरीचिर्ब्रह्मणः
सुतः।),
८९.४६(मरीचि
द्वारा वामन को पालाश दण्ड
देने का उल्लेख),
वायु
२८.९(मरीचि
व सम्भूति से उत्पन्न पुत्र
व कन्याओं के नाम),
५२.९५(मरीचि
की शिशुमार की पुच्छ में स्थिति
का उल्लेख
-
पुच्छेऽग्निश्च
महेन्द्रश्च
मरीचिः
कश्यपो
ध्रुवः।
तारकाः
शिशुमारश्च
नास्तमेति
चतुष्टयम्
।।),
६५.१०९/२.४.१०९(मरीचि
वंश का वर्णन),
६६.१०५/२.५.१०१(स्वयंभु
के राजसी पौरुषी तनु से मरीचि
कश्यप के जन्म का उल्लेख,
तामसी
व सात्त्विकी तनु से भव व विष्णु
का जन्म -
राजस्या
ब्रह्मणोंऽशेन
मरीचिः
कश्यपोऽभवत्।
तामसी
चान्तकृद्या
तु
तदंशेनाभवद्भवः
।।),
६८.५/२.७.५(मरीचिरक्षक
:
दनु
व कश्यप के प्रधान दानव पुत्रों
में से एक),
१००.६३/
२.३८.६३(मरीचि
देवगण के अन्तर्गत १२ देवों
के नाम),
१०७/२.४५(मरीचि
ऋषि द्वारा स्व पत्नी धर्मव्रता
को शाप से शिला बनाना,
पत्नी
द्वारा प्रतिशाप),
११२.३६/२.५०.४५(शिव
वन में प्रवेश से मरीचि को शिव
से शाप की प्राप्ति,
शुक्ल
से कृष्ण होना,
गया
में शिला पर तप से कृष्णता का
निवारण
-
मरीचिरीश्वराच्छप्तः
कृष्णत्वमगमत्पुरा
।
तपसा
दारुणेनेह
स
विप्रः
शुक्लतां
गतः
।),
विष्णु
१.७.५(ब्रह्मा
के ९ मानस पुत्रों में से एक),
१.१०.६(मरीचि
व सम्भूति से पौर्णमास के
जन्म का उल्लेख -
पत्नी
मरीचेः
सम्भूतिः
पौर्णामासमसूयत
।),
१.११.४३(मरीचि
ऋषि द्वारा ध्रुव को परम
पदप्राप्ति के उपाय का कथन
– गोविंद आराधना -
अनाराधितगोविन्दैर्नरैः
स्थानं
नृपात्मज
।
न
हि
संप्राप्यते
श्रेष्ठं
तस्मादाराधयाच्युतम्
॥),
२.८.१९(ब्रह्म
सभा से सूर्य की मरीचियों के
प्रतीप गमन का उल्लेख
-
येये
मरीचयोर्कस्य
प्रयान्ति
ब्रह्मणः
सभाम्।
तेते
निरस्तास्तद्भासा
प्रतीपमुपयान्ति
वै॥ ),
शिव
७.१.१७.२२(सम्भूति
-
पति,
पौर्णमास
नामक पुत्र व ४ कन्याओं के
पिता),
स्कन्द
४.१.१९.१०९(मरीचि
द्वारा ध्रुव को परम पद प्राप्ति
हेतु अच्युत विष्णु की आराधना
करने का निर्देश
-
अनर्चिताच्युतपदः
पदमापद्यते
कथम्
।
यथातथात्वमात्थांग
नातथ्यं
कथयाम्यहम्
।।),
४.१.५०.४(मारीच
कश्यप की पत्नियों कद्रू व
विनता का वृत्तान्त),
४.२.९७.११६(मरीचीश
कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य
:
पापनाशक
-
तद्वाव्ये
मरीचीशं
कुंडं
चाघौघनाशनम्
।।),
५.१.४६.३
(मरीचि
-
पुत्र
कश्यप के
तप का कथन),
५.३.४०.३(ब्रह्मा
के मानस पुत्र मरीचि),
५.३.१९४.५४(श्री
व विष्णु के विवाह यज्ञ में
मरीचि ऋषि के उद्गाता ऋत्विज
बनने का उल्लेख),
६.१८०.३३(ब्रह्मा
के यज्ञ में अच्छावाक् ऋत्विज
होने का उल्लेख),
७.१.२३.९३(ब्रह्मा
के शिवलिङ्ग स्थापना यज्ञ
में उद्गाता),
७.४.१४.४७
(पञ्चनद
तीर्थ में मरीचि ऋषि के पावनार्थ
गोमती नदी के आगमन का उल्लेख),
लक्ष्मीनारायण
१.२४८(मरीचि
-
शिष्य
वरूथ का उद्धार करने वाली
वरूथिनी एकादशी ),
१.३८२.१८१(मरीचि
के पुत्र पौर्णमास व ४ कन्याओं
तुष्टि,
वृष्टि,
कृष्टि,
अपचिति
का उल्लेख -
मरीचेरपि
संभूतौ
पूर्णमासः
सुतस्तथा
।।
कन्याचतुष्टयं
तुष्टिर्वृष्टिः
कृष्टिश्चापचितिः
।),
कथासरित्
१०.३.५३(मरीचि
की कृपा से शुक का पुलस्त्य
ऋषि से मिलन),
द्र.
वंश
भरत,
षड्गर्भ
mareechi/
marichi
मरीचिगर्भ ब्रह्माण्ड ३.४.१.५८(मेरुसावर्णि मनु के पुत्रों के गण के अन्तर्गत १२ नाम), भागवत ८.१३.१९(नवें मनु दक्षसावर्णि के काल में देवों के २ गणों में से एक), वायु ७३.३८/२.११.८१(पितरों के मरीचिगर्भ लोक का उल्लेख), विष्णु ३.२.२१(नवें मनु दक्षसावर्णि के काल के देवों के ३ गणों में से एक ) mareechigarbha/ marichigarbha
मरु पद्म ६.६९.१५(दासरक देश में मरु देश में वणिक् व प्रेत के संवाद का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड २.३.६३.२१०(शीघ्र| - पुत्र, प्रभुसुत - पिता, कलाप ग्राम में स्थिति, १९वें युग में क्षत्र प्रवर्तक), २.३.६४.११(हर्यश्व - पुत्र, प्रतिम्बक - पिता, निमि वंश), ३.४.१.८१(११वें सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), ३.४.४४.९८ (लिपि स्थानों में न्यास हेतु पीठों में से एक), भागवत ९.१२.५(शीघ्र| - पुत्र, कलाप ग्राम में निवास, वंश प्रवर्तक), ९.१३.१५(हर्यश्व - पुत्र, प्रतीपक - पिता, निमि वंश), १२.३.३७(इक्ष्वाकु वंशी योगी मरु के कलाप ग्राम में स्थित होने तथा कलियुग के अन्त में पुन: प्रकट होने का कथन), मत्स्य ११.२६(सूर्य - पत्नी संज्ञा द्वारा वडवा रूप धारण कर पृथिवी पर मरु देश में जाने का उल्लेख), वायु ८८.३५/२.२६.३५(मरुधन्व प्रदेश में बालुका में स्थित धुन्धु राक्षस का वृत्तान्त), ८९.११/२.२८.११(हर्यश्व - पुत्र, प्रतित्वक - पिता, निमि वंश), विष्णु ४.४.१०८(शीघ्र|ग - पुत्र, आगामी युग में क्षत्र वंश के प्रवर्तन से पूर्व कलाप ग्राम में स्थिति का कथन), स्कन्द ४.२.६९.१५९(मरुकेश्वर लिङ्ग अर्चना से राक्षस भय नाश का उल्लेख), हरिवंश १.५१.२८(मृगों द्वारा मरु साधना करने का कथन), वा.रामायण ६.२२.४०(मरुकान्तार : राम के बाण से समुद्र का शुष्क प्रदेश), लक्ष्मीनारायण १.३१३.२(मरुदेश के ब्राह्मण - द्वय के धन का नाश होने और अधिक मास द्वितीय पक्ष षष्ठी व्रत के प्रभाव से महेन्द्र व जयन्त आदि बनने का वृत्तान्त), १.३८९(आग्नीध्र - पुत्र नाभि की पत्नी मरुदेवी की पतिभक्ति), ४.८०.१७(राजा नागविक्रम के यज्ञ में मरुज विप्रों के परिवेषक होने का उल्लेख ) maru
मरुत
अग्नि
१९.१९(इन्द्र
द्वारा
दिति
के
गर्भ
छेदन
से
४९
मरुतों
के
जन्म
का
उल्लेख),
२१९.२८(मरुतों
के
४९
नाम
-
एकज्योतिश्च
द्विज्योतिस्त्रिश्चतुर्ज्योतिरेव
च
।
एकशक्रो
द्विशक्रश्च
त्रिशक्रश्च
महाबलः
॥),
गरुड
१.६.५८(मरुतों
के
४९
नाम
-
एकज्योतिश्च
द्विर्ज्योतिचतुर्ज्योतिस्तथैव
च
।।
एकशुक्रो
द्विशुक्रश्च
त्रिशुक्रश्च
महाबलः
।।),
गर्ग
७.१(राजा
मरुत
द्वारा
सम्पादित
यज्ञ
की
महिमा
का
वर्णन,
यज्ञपुरुष
के
वर
से
मरुत
का
राजा
उग्रसेन
रूप
में
अवतरण
आदि),
देवीभागवत
४.३.४३(इन्द्र
द्वारा
दिति
के
गर्भ
के
छेदन
से
४९
मरुतों
की
उत्पत्ति
की
कथा),
४.२२.३६(मरुतों
का
विराट्,
कृपाचार्य
व
कृतवर्मा
रूप
में
अवतरण),
नारद
१.६०.१८(आवह,
प्रवह
आदि
७
वायु
रूप,
विशिष्ट
कार्यों
का
कथन
-
आवहो
नाम
सोऽभ्येति
द्वितीयः
श्वसनो
नदन्
।।
उदयं
ज्योतिषां
शश्वत्सोमादीनां
करोति
यः
।।),
पद्म
१.७.१(दिति
के
गर्भ
के
छेदन
से
मरुतों
की
उत्पत्ति
की
कथा),
१.२२.३(समुद्र
में
असुरों
के
विनाश
हेतु
समुद्र
के
शोषण
के
इन्द्र
के
आदेश
का
उल्लङ्घन
करने
पर
अग्नि
व
मारुत
का
शापवश
वसिष्ठ
व
अगस्त्य
बनने
का
वृत्तान्त),
१.४०.९९(मरुत्वती
व
धर्म
से
मरुतों
की
उत्पत्ति,
२२
नाम
-
मरुत्वती
प्रजा
जज्ञे
ज्येष्ठां
तं
मरुतांगणं।),
२.२६.२३(मरुतों
की
उत्पत्ति
की
कथा),
३.१८.८५(नर्मदा
तट
पर
मरुतालय
तीर्थ
के
माहात्म्य
का
कथन),
ब्रह्म
२.३६.२७(राहु
का
अमृत
पान
के
लिए
मरुत
रूप
धारण),
ब्रह्माण्ड
१.२.७.१६६(मरुत
लोक
:
वैश्यों
का
स्थान),
२.३.३.३२(मरुतों
के
नाम),
२.३.५.७९(मरुद्गण
की
उत्पत्ति,
वात
स्कन्ध
बनना,
४९
नाम
-
पृथिव्यां
प्रथमस्कन्धो
द्वितीयश्चापि
भास्करे
॥
सोमे
तृतीयो
विज्ञेयश्चतुर्थो
ज्योतिषां
गणे
।),
२.३.७.२०(मरुत
से
शोभवती
नामक
अप्सरागण
की
उत्पत्ति),
२.३.६८.१(मरुत
द्वारा
सोम
से
मरुतों
को
तृप्त
करने
पर
मरुतों
द्वारा
अक्षयान्न
देने
तथा
मरुत
द्वारा
स्वकन्या
को
मित्रज्योति
को
देने
का
कथन
/
मित्रज्योति
की
कन्या
व
मरुत
से
उत्पन्न
पुत्रों
की
प्रकृति
का
कथन),
भविष्य
१.५७.७(मरुतों
हेतु
सस्नेह
तक्र
बलि
का
उल्लेख),
१.५७.१७(मरुतों
हेतु
कपित्थ
बलि
का
उल्लेख),
१.१२५.२८(प्रवह
आदि
७
मरुतों
के
नाम
-
प्रवहोथावहश्चैव
उद्वहः
संवहस्तथा
।
।
विवहो
निवहश्चैव
परिवाहस्तथैव
च
।),
२.१.१७.१०
(गर्भाधान
में
अग्नि
का
नाम),
३.४.१७.१५(मरुतों
की
दिति
से
उत्पत्ति,
पूर्व
भव
में
अनिल
ब्राह्मण
द्वारा
मरुतों
को
उत्पन्न
करने
के
वरदान
की
प्राप्ति
का
वृत्तान्त),
४.१५६.१६(मरुतों
की
गौ
के
दांतों
में
स्थिति),
भागवत
२.३.८(ओज
प्राप्ति
हेतु
मरुतों
की
उपासना
का
निर्देश),
६.१८.१९(मरुतों
के
अप्रजावान्
होने
तथा
इन्द्र
द्वारा
सात्मता
प्रदान
करने
का
उल्लेख),
६.१८.६३(दिति
के
गर्भ
से
मरुतों
की
उत्पत्ति
का
प्रसंग),
६.१९.३(पुंसवन
व्रत
में
मरुतों
के
जन्म
की
कथा
सुनने
का
निर्देश),
८.१०.३४(मरुतों
का
निवातकवचों
से
युद्ध),
९.२.२८(राजा
मरुत्त
के
यज्ञ
में
मरुतों
के
परिवेष्टा/भोजन
परोसने
वाले
होने
का
उल्लेख),
९.२०.३४(पुत्रकामार्थ
मरुत्स्तोम
करने
वाले
भरत
को
मरुतों
द्वारा
भरद्वाज
पुत्र
देने
का
कथन),
९.२३.१७(करन्धम
-
पुत्र
मरुत
के
अपुत्रवान्
होने
के
कारण
पौरव
दुष्यन्त
को
पुत्र
बनाने
का
कथन),
मत्स्य
७(दिति
से
मरुतों
की
उत्पत्ति
की
कथा),
८.४(शक्र
के
मरुतों
का
अधिपति
बनने
का
उल्लेख),
९.२९(वैवस्वत
मन्वन्तर
के
देवों
के
७
गणों
में
से
एक),
४९.१५(मरुतों
द्वारा
बृहस्पति
-
पुत्र
भरद्वाज
को
भरत
को
प्रदान
करने
का
वृत्तान्त),
१७१.५१(मरुत्वती
व
धर्म
से
मरुतों
की
उत्पत्ति,
नाम),
२४६.६०(वामन
की
सर्व
सन्धियों
में
मरुतों
की
स्थिति
का
उल्लेख),
मार्कण्डेय
५.११(वृत्र
हत्या
पर
इन्द्र
के
बल
का
मारुत
में
अवगमन),
१२७.३३/१२४.३३(मरुत्त
के
जन्म
के
अवसर
पर
तुम्बुरु
द्वारा
मरुतों
से
स्वस्ति
याचना),
वराह
१६.२६(दैत्यों
द्वारा
देवों
की
गायों
के
हरण
के
प्रसंग
में
मरुतों
द्वारा
इन्द्र
से
शुनी
के
कृत्य
का
कथन),
वामन
९.२२(मरुतों
के
हरिण/सारंग
वाहन
का
उल्लेख),
३८.५(मङ्कणक
ऋषि
के
रेत:
से
वायुवेग,
वायुबल
आदि
७
मरुद्गणों
की
उत्पत्ति
का
कथन),
६९.५९(मरुतों
का
निवातकवचों
से
युद्ध),
७१.३१(दिति
द्वारा
इन्द्र
-
हन्ता
पुत्र
की
प्राप्ति
के
लिए
तप,
इन्द्र
द्वारा
गर्भ
के
छेदन
से
मरुतों
की
उत्पत्ति
आदि),
७२(मरुतों
की
विभिन्न
मन्वन्तरों
में
उत्पत्ति
का
प्रसंग),
वायु
६७.१०२/२.६.११०(दिति
के
गर्भ
के
छेदन
से
मरुतों
की
उत्पत्ति,
७
वात
स्कन्ध
बनना,
४९
नाम
-
पृथिव्यां
प्रथमस्कन्धो
द्वितीयश्चैव
भास्करे।
सोमे
तृतीयो
विज्ञेयश्चतुर्थो
ज्योतिषां
गणे
।।),
६७.१२३/२.६.१२३(विभिन्न
स्कन्धों
में
स्थित
मरुतों
के
नाम),
६९.५९(निवातकवचों
द्वारा
मरुतों/मरुद्गण
से
युद्ध),
९२.१/२.३१.१(राजा
मरुत
द्वारा
सम्पादित
मरुत्सोम
यज्ञों
से
मरुतों
के
तुष्ट
होने
का
कथन),
९२.५/२.३१.५(मित्रज्योति
कन्या
व
मरुत
से
उत्पन्न
वंश
का
कथन),
९९.२५१/२.३७(मरुतों
द्वारा
भरत
को
बृहस्पति
व
ममता
के
पुत्र
भरद्वाज
को
प्रदान
करना),
१०१.२९/२.३९.२९(मरुतों
आदि
की
अन्तरिक्ष
में
स्थिति
का
उल्लेख),
विष्णु
१.२१.३०(दिति
से
मरुतों
की
उत्पत्ति
की
कथा),
४.१९.१६(मरुतों
द्वारा
भरत
को
भरद्वाज
पुत्र
प्रदान
करने
का
कथन),
विष्णुधर्मोत्तर
१.५६.१०(विष्णु
के
मरुतों
में
एकज्योति
होने
का
उल्लेख),
१.१२७(शक्र
द्वारा
दिति
के
गर्भ
के
छेदन
से
मरुतों
की
उत्पत्ति
का
प्रसंग,
४९
नाम
-
एकज्योतिश्च
द्विर्ज्योतिस्त्रिचतुर्ज्योतिरेव
च
।।
एकशक्रो
द्विशक्रश्च
त्रिशक्रश्च
महाबलः
।। ),
१.२३९.४(रावण
द्वारा
द्रष्ट
विश्वरूप
पुरुष
के
बस्ति
शीर्ष
में
मरुतों
की
स्थिति
का
उल्लेख),
३.१६६(चैत्र
शुक्ल
सप्तमी
को
मरुद्
व्रत
वर्णन
नामक
अध्याय
में
४९
मरुतों
का
७
श्रेणियों
में
विभाजन
करके
अर्चना
का
वर्णन
-
एकज्योतिश्च
द्विज्योतिस्त्रिज्योतिश्च
महाबल
।।
एकद्वित्रिचतुःशक्तिक्रमेण
च
तथा
नृप
।।),
शिव
२.२.३.२३(सन्ध्या
के
दर्शन
से
ब्रह्मा
के
शरीर
में
४९
भावों
की
उत्पत्ति
का
उल्लेख
-
तदैव
चोनपंचाशद्भावा
जाताश्शरीरतः
।।),
३.७.४१(नन्दिकेश्वर
द्वारा
मरुतों
की
सुता
सुयशा
को
भार्या
रूप
में
प्राप्त
करने
का
उल्लेख),
५.३२.३८(निवातकवचों
से
मरुतों
की
उत्पत्ति?),
५.३३(मरुतों
की
उत्पत्ति),
७.२.३८.२९(३२
मारुत
ऐश्वर्यों
के
नाम-
द्वात्रिंशद्गुणमैश्वर्यं
मारुतं
कवयो
विदुः
॥
छायाहीनविनिष्पत्तिरिन्द्रियाणामदर्शनम्
॥),
स्कन्द
३.१.४९,८३(मरुतों
द्वारा
रामेश्वर
की
स्तुति),
७.१.३१५(मरुदार्यादेवी
का
माहात्म्य),
स्कन्द
१.२.१३,
५.२.७४.२९(राजा
रिपुञ्जय
द्वारा
प्रजा
हित
में
मारुत
होकर
मेघ
धारण
करना),
५.३.१३.४३(मारुत
कल्प
का
उल्लेख),
५.३.८३.१०६(गौ
के
दांत
मरुद्गणों
का
रूप),
५.३.२३१.२३(२
मारुतेश
तीर्थों
का
उल्लेख),
६.२२.३२(दिति
के
४९
पुत्रों
द्वारा
मरुत
नाम
प्राप्ति
का
वर्णन),
७.२.१४.५३
(मरुत
का
इन्द्र
से
तादात्म्य
-
रथेन
सूर्यो
मरुतो
गजेन
वृषेण
रुद्रो
महिषेण
सौरिः
॥
हरिवंश
३.१४.५४(मरुत्वती
से
मरुतों
की
उत्पत्ति,
नाम
-
मरुत्वती
मरुत्वत्तो
देवानजनयच्छुभान्
।।
अग्निं
चक्षुर्हविर्ज्योतिः
सावित्रं
मित्रमेव
च
।),
३.७१.५१(विराट्
रूप
बने
वामन
की
पादसन्धियों
में
मरुतों
की
स्थिति
का
उल्लेख),
महाभारत
शल्य
३८.३६(मङ्कणक
ऋषि
के
वीर्य
से
७
ऋषि
रूप
७
मरुतों
की
उत्पत्ति),
शान्ति
२९.२२(मरुत्त
के
यज्ञ
में
मरुतों
व
साध्यों
के
परिवेष्टा
बनने
का
उल्लेख),
२९.८१(मरुत
देवों
द्वारा
पिता
के
पार्श्व
से
मान्धाता
यौवनाश्व
के
गर्भ
को
बाहर
निकालने
का
उल्लेख),
३१७.४(पार्श्व
से
प्राणों
का
उत्क्रमण
होने
पर
मरुत
देवों
के
लोक
की
प्राप्ति
का
उल्लेख),
३२८.५३(दिति
के
पुत्र
प्रवह
आदि
७
वायुओं/मरुतों
के
विशिष्ट
कार्यों
का
वर्णन),
स्वर्गारोहण
४.७(स्वर्गलोक
में
मरुद्गण
से
आवृत
भीम
के
दर्शन
का
उल्लेख),
वा.रामायण
१.४६+
(दिति
से
मरुतों
की
उत्पत्ति
की
कथा),
लक्ष्मीनारायण
१.३१४.१८(सन्ध्या
के
दर्शन
से
४९
भावों
की
उत्पत्ति
का
उल्लेख
-
सन्ध्यां
सर्वे
निरीक्षन्तो
विकृतिं
बहुधा
ययुः
।
तदैव
चोनपञ्चाशद्भावा
जाताः
शरीरतः
॥),
२.५६(राजा
सवन
के
शुक्र
से
मरुतों
की
उत्पत्ति
का
वर्णन),
२.११२.११(श्रीहरि
द्वारा
मरुत्देवों
को
नदी
-
संगम
के
तट
पर
निवास
करने
का
निर्देश),
२.१८८.८(मरुत्त
के
यज्ञ
में
मरुतों
के
परिवेष्टा
होने
का
उल्लेख),
३.४५.२३(निर्गुण
भक्ति
योग
के
अन्तर्गत
प्राण
भक्तों
द्वारा
मरुत्स्थली
जाने
का
उल्लेख),
३.१०१.७१(विशाल
पृष्ठा
गौ
दान
से
मरुत
लोक
की
प्राप्ति
का
उल्लेख),
३.१६२.१७(ताम्रवर्ण
वज्रमणि
का
देवता
मरुत),
३.१७५.३(संसार
वारिधि
तरण
विज्ञान
के
अन्तर्गत
शोकहर्षादि
मारुत
का
उल्लेख
),
ऋग्वेद
१०.६३.१५सायण
टीका(मितराविणो
देवा:
), शौ.अ.
५.२४.६(मरुतः
पर्वतानामधिपतयः),
५.२६.५(छन्दांसि
यज्ञे
मरुतः
स्वाहा),
maruta
मरुत्त गर्ग ७.१(जन्मान्तर में उग्रसेन हुए राजा मरुत्त के महान् यज्ञ में कृष्ण का प्राकट्य), ब्रह्माण्ड २.३.८.३५(नरिष्यन्त - पिता), २.३.६१.४(प्रांशु - पुत्र मरुत्त? के यज्ञ के आचार्य संवर्त के बृहस्पति से विवाद का कथन), २.३.७०.२५ (उशना - पुत्र, कम्बलबर्हि - पिता, क्रोष्टा वंश), २.३.७४.२(त्रैसानु - पुत्र मरुत्त द्वारा पौरव दुष्यन्त का पुत्र रूप में कल्पन करने का कथन), भागवत ९.२.२६(अवीक्षित - पुत्र, मरुत्त के यज्ञ की प्रशंसा, दम - पिता), मत्स्य ४४.१४(औशन - पुत्र, कम्बलबर्हि - पिता, क्रोष्टा वंश), ४४.२४(तितिक्षु - पुत्र, कम्बलबर्हिष - पिता, क्रोष्टा वंश), मार्कण्डेय १२७(अवीक्षित व विशाला - पुत्र मरुत्त के जन्म समय पर तुम्बुरु द्वारा मरुतों से शान्ति याचना), वायु ९५.२४/ २.३३.२४(उशना - पुत्र, कम्बलबर्हि - पिता), ९९.२/२.३७.२(त्रिसानु - पुत्र, पौरव दुष्कृत की पुत्र रूप में कल्पना, तुर्वसु वंश), विष्णु ४.१.३१(अविक्षित - पुत्र मरुत्त के यज्ञ की प्रशंसा, दम - पिता), ४.१६.३(करन्दम - पुत्र मरुत्त द्वारा अपत्यहीन होने के कारण पौरव दुष्यन्त की पुत्र रूप में कल्पना करने का उल्लेख, ययाति वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.१७(मरुत्त यज्ञ में रावण - आगमन का प्रसंग), स्कन्द २.४.२८.६(मरुत्त द्वारा जय - विजय को यज्ञ हेतु निमन्त्रण), ४.२.८४.७१(मरुत्त तीर्थ में स्नान से ऐश्वर्य प्राप्ति का उल्लेख), हरिवंश १.३६.७(शिनेयु - पुत्र, कम्बलबर्हिष - पिता, क्रोष्टा/यदु वंश), वा.रामायण ७.१८(ब्रह्मर्षि संवर्त द्वारा राजा मरुत्त को यज्ञ के बीच में आए रावण से युद्ध से रोकने का प्रसंग), लक्ष्मीनारायण १.४०९.६१(अवीक्षित व वीरा से मरुत्त पुत्र की उत्पत्ति का वृत्तान्त, मरुत नाम प्राप्ति का कारण, मरुत्त के यज्ञ की प्रशंसा, रुद्र द्वारा मरुत्त को प्राणहीन किए जाने पर मरुत्त - भार्या प्रभावती द्वारा मरुत्त को पुनरुज्जीवित करने व रुद्र के नाश आदि का वृत्तान्त), २.१८८.६(अवीक्षित - पुत्र मरुत्त के यज्ञ की प्रशंसा), २.२४२.२५(मरुत्स्तम्बी आदि ५ भगिनियों के आशीर्वाद से पङ्किल ऋषि द्वारा पांच कल्प चिर जीवित्व प्राप्ति का वृत्तान्त), २.२४४.७९(मरुत्त राजर्षि द्वारा अङ्गिरस को सुता दान का उल्लेख), ३.७४.६३ (मरुत्त द्वारा आङ्गिरस को कन्या दान से अक्षर धाम प्राप्ति का उल्लेख ) marutta
मरुत्वती ब्रह्माण्ड २.३.३.२(दक्ष की कन्याओं में से एक, धर्म की १० भार्याओं में से एक), २.३.३.३२(धर्म व मरुत्वती के पुत्रों की मरुत्वन्त संज्ञा का उल्लेख), भागवत ६.६.४(धर्म की १० भार्याओं में से एक, दक्ष की कन्याओं में से एक), मत्स्य ५.१५(धर्म की १० भार्याओं में से एक, मरुत्वन्त गण की माता), १७१.३२(धर्म की ५ भार्याओं में से एक, दक्ष - कन्या), १७१.५१(मरुत्वत देव गण की माता), १७१.५५(मरुत्वती द्वारा पूर्व काल में मरुत गणों को उत्पन्न करने का उल्लेख), विष्णु १.१५.१०५(धर्म की १० भार्याओं में से एक, दक्ष - कन्या ) marutvatee/ marutvati
मरुत्वन्त मत्स्य १७१.५१(पूर्व काल के मरुद्गणों का मरुत्वती व धर्म - पुत्रों मरुत्वन्त गण के रूप में जन्म लेने का कथन )
मरुत्वान् शिव ५.३९.३०(अमर्षण - पुत्र, विश्वसाह्व - पिता, सगर वंश ) marutvaan
मरुत्सोम ब्रह्माण्ड २.३.६८.२(मरुत राजा द्वारा अन्न प्राप्ति हेतु मरुत्सोम के अनुष्ठान का कथन), भागवत ९.२०.३५(भरत द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु मरुत्स्तोम के अनुष्ठान का कथन), वायु ९३.२/२.३१.२(मरुत्त? द्वारा अन्न प्राप्ति हेतु मरुत्सोम यज्ञ के अनुष्ठान का कथन), ९९.१५३/२.३७.१४९(भरत द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु मरुत्सोम द्वारा मरुतों को तुष्ट करने का कथन ), द्र. मरुत्स्तोम marutsoma
मरुदेव भागवत ९.१२.१२(सुप्रतीक - पुत्र, सुनक्षत्र - पिता), मत्स्य २७१.८(सुप्रतीप - पुत्र, सुनक्षत्र - पिता), विष्णु ४.२२.४(सुप्रतीक - पुत्र, सुनक्षत्र - पिता, इक्ष्वाकु वंश के भविष्य के राजाओं में से एक ) marudeva
मरुद्गण देवीभागवत ४.२२.३७(विराट, कृप, व कृतवर्मा : मरुद्गणों के अंश )
मरुद्वती लक्ष्मीनारायण १.२०६.५०(मार्कण्डेय - पुत्र मृकण्डु द्वारा पत्नी मरुद्वती सहित शिवाराधना करने से प्राप्त अल्पायु पुत्र का वर्णन ) marudvatee/ marudvati
मरुद्वृधा भागवत ५.१९.१८(भारतवर्ष की नदियों में से एक )
मरुद्वेग कथासरित् ८.५.२२(मनुष्यों और विद्याधरों के युद्ध में सेनापति प्रभास की सहायतार्थ आए १५ महारथियों में से एक मरुद्वेग के वायुबल के साथ युद्ध का उल्लेख )
मरुत्स्तोम मत्स्य ४९.२८(भरत द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु मरुत्स्तोम यज्ञ का अनुष्ठान, मरुत्सोम से तृप्त मरुतों द्वारा भरद्वाज नामक शिशु को भरत को पुत्र रूप में प्रदान करना ), द्र. मरुत्सोम marutstoma
मरुधन्व गर्ग ७.६(मरुधन्व देश के राजा गय को प्रद्युम्न द्वारा परास्त करना), १०.२१.१६(मरुधन्व देश के स्वामी यौवनाश्व का उल्लेख ) marudhanva
मरुभूति कथासरित् ४.३.५५(यौगन्धरायण - पुत्र), ६.८.११४(नरवाहनदत्त का मुख्य मन्त्री), ९.५.०(नरवाहनदत्त की आज्ञा पर मरुभूति द्वारा सेवक को वेतन प्रदान), १४.२.५८(मरुभूति से दूर होने पर नरवाहनदत्त को शोक ) marubhooti/ marubhuuti/ marubhuti
मर्क ब्रह्माण्ड २.३.१.७८(अमर्क : शुक्र व गौ के ४ पुत्रों में से एक), २.३.७३.६३(देवों से यज्ञ में भाग पाने पर शण्डामर्क का असुरों को त्याग देवों के पास आने का कथन), भागवत ७.५.१(काव्य - पुत्र शण्ड व अमर्क द्वारा प्रह्लाद को अध्यापन कराने का कथन), ७.५.४८(शण्ड व अमर्क द्वारा हिरण्यकशिपु को प्रह्लाद के सम्बन्ध में परामर्श, प्रह्लाद द्वारा गुरुओं की शिक्षा का अनादर), स्कन्द १.२.२२.३१(देवों के मर्क रूप का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.५७.४०(यमदूत अर्कहनु द्वारा मर्क असुर का वध ) marka
मर्कट भविष्य ४.४६.१६(व्रत भङ्ग के कारण रानी चन्द्रमुखी का प्लवङ्गमी/मर्कटी बनना), मत्स्य १३.३३(मर्कोट : मर्कोट पीठ में देवी की मुकुटेश्वरी नाम से स्थिति का उल्लेख), १९६.२२(मार्कटि : आङ्गिरस वंश के प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), स्कन्द ३.३.२०(रुद्राक्ष प्रभाव से मर्कट का जन्मान्तर में सुधर्मा नामक राजपुत्र बनना), ५.१.१२(मर्कटेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), योगवासिष्ठ १.१८.१२(चित्त की मर्कट से उपमा), १.१८.३१(जिह्वा की मर्कट से उपमा), कथासरित् १०.८.२२(जडबुद्धि - पुत्र को मर्कटों द्वारा काट लेने की कथा ), द्र. वानर markata
मर्कण भविष्य ३.४.३.४९(मर्कण पक्षी की देवी द्वारा रचित कान्यकुब्ज ग्राम के पूर्व में स्थिति ) markana
मर्दन भविष्य ३.३.१७.६(दुर्मुख का अंश), ३.३.२६.९२(मर्दन द्वारा रणजित् का वध), मत्स्य १४०.४३(मर्दल : वाद्य यन्त्रों में मर्दल का उल्लेख), वायु ५४.३७(वही), लक्ष्मीनारायण २.५.३३(बालकृष्ण को मारने आए पातालवासी दैत्यों में से एक), कथासरित् ८.७.३३(प्रभास द्वारा मर्दन का वध ), द्र. विमर्द mardana
मर्म भविष्य १.३४.१५(देह में १२ मर्मों के नाम), स्कन्द १.२.६६.३९(बर्बरीक के शर के मुख से भस्म उत्पन्न होकर वीरों के मर्मों पर गिरने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१८३.९१(सुदर्शन चक्र के तेज से मर्मरों के संगमर्मर बनने का कथन ) marma
मर्यादा नारद १.६६.११३(लाङ्गलीश की शक्ति मर्यादा का उल्लेख), पद्म १.३३.५४, १४८(पुष्कर में मर्यादा पर्वत की स्थिति आदि का कथन), १.३३.१४८ (राम द्वारा पुष्कर में मर्यादा पर्वत के समीप अजगन्ध शिव की स्तुति), ६.२२२.२७(गुरु तीर्थ के समीपस्थ मर्यादा पर्वत), ब्रह्माण्ड १.२.७.१५३ (प्रजापति द्वारा चार वर्णों की मर्यादा स्थापना का कथन), १.२.२९.८९(मर्यादा स्थापनार्थ दण्डनीति के प्रवर्तन का उल्लेख), १.२.३६.१३३(वेन राजा द्वारा यज्ञों आदि की मर्यादा का अतिक्रमण करने का कथन), ३.४.२.१५९(मर्यादा भेदन पर कीटलोह नरक प्राप्ति का उल्लेख), मत्स्य २२५.१०(दण्ड द्वारा मर्यादा की रक्षा का कथन), लिङ्ग १.५०.१७(मर्यादा पर्वत पर श्रीकण्ठ शिव का वास), वायु ३५.३(मेरु मूल के परित: स्थित मर्यादा पर्वतों का कथन), ४०.१(मर्यादा पर्वत के देवकूट पर वैनतेय गरुड का जन्म स्थान), विष्णु १.६.३२(प्रजापति द्वारा चतुर्वर्ण की मर्यादा स्थापना का कथन), महाभारत शान्ति १३५(मर्यादा का पालन करने वाले कायव्य नामक दस्यु का वृत्तान्त ) maryaadaa/ maryada
मल ब्रह्माण्ड १.२.१६.५३(मलवर्तिका : प्राच्य जनपदों में से एक), ३.४.९.३८(मलक आदि दैत्यों द्वारा स्वर्ग लोक पर आक्रमण का उल्लेख), ३.४.१०.२४(अमृत मन्थन के समय दैत्य, इन्द्र द्वारा मलक पर जय), ३.४.२१.८५(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), मत्स्य २२.६३(मलन्दरा : श्राद्ध हेतु प्रशस्त नदियों में से एक), शिव ५.२२.७(देह में १२ मल द्वारों का कथन), स्कन्द ५.१.६०.६१(मलिम्लुच मास - अपर नाम मलमास तथा अधिमास ), महाभारत उद्योग ३९.७८(अनाम्नाय आदि १० मलों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.२९४.३५(सूर्य संक्रान्ति से रहित मल मास की उत्पत्ति, मल मास का तिरस्कार, मल मास के वैकुण्ठ व गोलोक आदि गमन का वर्णन), १.३७०.५७(नरक में मल कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), द्र. परिमल, विमल mala
मलद पद्म ३.२५.४(मलद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५३(प्राच्य जनपदों में से एक), २.३.८.७५(मलदा : भद्राश्व व घृताची की १० अप्सरा पुत्रियों में से एक, अत्रि प्रजापति की १० पत्नियों में से एक), ३.४.२८.४०(भण्डासुर - सेनानी, भैरवी से युद्ध), वायु ७०.६८/२.९.६८(मलदा : भद्राश्व व घृताची की १० अप्सरा पुत्रियों में से एक, अत्रि प्रजापति की १० पत्नियों में से एक), वा.रामायण १.२४.१८(मलद जनपद : इन्द्र के अभिषेक से उत्पन्न मल का स्थान, ताटका के उपद्रव का स्थान ) malada
मलना भविष्य ३.३.५.२४(महीपति - भगिनी, परिमल - पत्नी), ३.३.२२.२६(चन्द्रावली - माता ) malanaa
मलमास स्कन्द ५.१.६०.१७(मलमास माहात्म्य के अन्तर्गत व्रत नियमादि की विधि, स्नान दानादि का माहात्म्य), ५.१.६१.१(मलमास में महाकाल वन में वास का माहात्म्य, पुरुषोत्तम पूजा के क्रम का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२९४.३५(सूर्य संक्रान्ति से रहित मल मास की उत्पत्ति, मल मास का तिरस्कार, मल मास के वैकुण्ठ व गोलोक आदि गमन का वर्णन ) malamaasa
मलय गर्ग ७.१२.११(प्रद्युम्न द्वारा मलय पर्वत पर अगस्त्य मुनि के दर्शन और ब्रह्म तत्त्व विषयक प्रश्न), देवीभागवत ७.३०.६६(मलय पर्वत पर कल्याणी देवी के वास का उल्लेख), नारद २.२०.२(मलय पर्वत पर पांच विद्याधरों को जीतकर धर्माङ्गद द्वारा सर्वकामप्रदायक मणियों का आहरण), पद्म ५.७४.५८(अर्जुन द्वारा गोलोकस्थ मलय सरोवर का दर्शन), ब्रह्मवैवर्त्त २.७.१११ (सावित्री के तप का स्थान), भागवत १.८.३२(मलय की कीर्ति के विस्तार के लिए मलय में चन्दन प्रकट होने का उल्लेख), ५.४.१०(ऋषभ व जयन्ती के ९ मुख्य पुत्रों में से एक), ५.१९.१६(भारतवर्ष के पर्वतों में से एक), ६.३.३५(अगस्त्य द्वारा मलय पर्वत पर आसीन होकर यम व यमदूतों के संवाद के वर्णन का उल्लेख), १०.७९.१६(मलय पर्वत पर अगस्त्य ऋषि की स्थिति का उल्लेख), १२.८.१६ (मलयानिल : काम के सहायकों में से एक), मत्स्य १३.२९(मलय पर्वत पर देवी का रम्भा नाम से वास), १३.३६(मलयाचल पर देवा का कल्याणी नाम धारण), ११४.३०(मलय पर्वत से उद्भूत नदियां), १६३.७१(तमालवन गन्ध से मलय पर्वत के शुभ होने का उल्लेख), वराह ८५.२(भारत के ७ कुलपर्वतों में से एक), ८५.६(मलय पर्वत से उत्पन्न नदियों के नाम), वामन ७१(शङ्कर द्वारा प्रेषित इन्द्र द्वारा मलय पर्वत पर पाक, पुर आदि दानवों का वध), ९०.१२(मलय पर्वत पर विष्णु का सौगन्धि नाम से वास), वायु ४८.२०(मलय द्वीप का वर्णन, त्रिकूट व लङ्का का स्थान), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.३३(, ३.१२१.६(मलय क्षेत्र में यदुनन्दन की पूजा का निर्देश), स्कन्द ४.१.३३.७८(मलय पर्वत पर विद्याधर के साथ राक्षस का युद्ध, परस्पर प्रहार से मृत्यु), ५.३.१९८.७४(मलय पर्वत पर देवी की कल्याणी नाम से स्थिति), ६.२५२.२१(चातुर्मास में गन्धर्वों की मलय वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८३(वृक्ष रूपी श्रीहरि के दर्शन हेतु गन्धर्वों द्वारा मलय वृक्ष रूप धारण), १.४६०.३६(विद्याधर का मृत्यु - पश्चात् राजा मलयकेतु के पुत्र माल्यकेतु रूप में जन्म का कथन), २.१४०.९१(मलय नामक प्रासाद के लक्षण), कथासरित् ४.२.४५(जीमूतवाहन का पिता के साथ मलयाचल पर गमन, वास, पिता की सेवा), ८.५.५२(श्रुतशर्मा के ८ महारथियों में से एक मलय पर्वत निवासी काकाण्डक का उल्लेख), १२.१.६८(मलय पर्वत के रजतकूट नामक शिखर पर वामदत्त द्वारा नगर निर्माण), १२.५.२१८(मलयप्रभ : कुरुक्षेत्र का एक राजा, इन्दुप्रभ - पिता), १२.५.२८४(मलयमाली : वणिक् - पुत्र, राजकन्या इन्दुयशा के प्रति मोहित होना),१५.१.५(नरवाहनदत्त का मलय पर्वतस्थ आश्रम में वामदेव ऋषि के समीप गमन), १६.२.११२(मलयसिंह : राजा, मायावती - पिता), १८.३.७९(मलयपुर नगर में मलयसिंह नृप का निवास, नृप - कन्या मलयवती पर विक्रमादित्य का मोहन ), द्र. भूगोल malaya
मलयगन्धिनी स्कन्द ४.२.८२(विद्याधर राजकुमारी मलयगन्धिनी का कङ्कालकेतु द्वारा हरण, अमित्रजित् राजा द्वारा मलयगन्धिनी की रक्षा व पाणिग्रहण), ५.२.४६.४४(वही), लक्ष्मीनारायण १.४७४(विद्याधर राजकुमारी मलयगन्धिनी का कङ्कालकेतु द्वारा हरण, अमित्रजित् राजा द्वारा रक्षा व पाणिग्रहण, मलयगन्धिनी द्वारा अभीष्ट तृतीया व्रत से कृष्ण - भक्त पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त ) malayagandhinee/ malayagandhini
मलयध्वज भागवत ४.२८.२९(पाण्ड~य नरेश, विदर्भ - कन्या से विवाह, मलय पर्वत पर तप, शरीर त्याग), कथासरित् १७.५.८१(मलयध्वज द्वारा अपने गरुडास्त्र से त्रैलोक्यमाली के सर्पास्त्र का भेदन ) malayadhwaja
मलयवती कथासरित् ४.२.१७३(जीमूतवाहन द्वारा मलयवती का पाणिग्रहण), १२.२३.५०(विश्वावसु - कन्या, मित्रावसु - भगिनी), १८.३.५८(विक्रमादित्य द्वारा स्वप्न में मलयवती का दर्शन, प्राप्त करने का प्रयत्न ) malayavatee/ malayavati
मलयार्जुन वराह १५७(मलयार्जुन तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य )
मलिन वायु ९९.१३२/२.३७.१२८(मलिन : त्रसु के ४ पुत्रों में से एक, ब्रह्मवादी), लक्ष्मीनारायण १.४१२.४(अधर्म - पुत्र वर्णसंकर से उत्पन्न मलिनता आदि ४ कन्याओं का दुःसह की पत्नियां बनने व निवास स्थानों का कथन ) malina
मलिम्लुचमास स्कन्द ५.१.६०.६१(अपर नाम मलमास तथा अधिमास )
मल्ल अग्नि २५२.२३(मल्ल युद्ध के कर्म), भविष्य ४.७३(मल्ल द्वादशी व्रत), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५५(प्राच्य जनपदों में से एक), २.३.७३.१००(कृष्ण द्वारा राजगृह के अधिपति मल्ल के हनन का उल्लेख), भागवत १०.४२.३२(कंस द्वारा मल्ल क्रीडा महोत्सव का आरम्भ), १०.४३(कंस द्वारा मल्ल क्रीडा का आयोजन, कृष्ण द्वारा कुवलयपीड का वध), वायु ८८.१८७/२.२६.१८७(लक्ष्मण - पुत्र चन्द्रकेतु की मल्ल संज्ञा), ९८.१०१/२.३६.१००(कृष्ण द्वारा राजगृह के अधिपति मल्ल के वध का उल्लेख), विष्णु २.४.४८(मल्लग : क्रौञ्च द्वीप के अधिपति द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.१.९(अशोकदत्त द्वारा मल्ल का हनन), हरिवंश २.२९+ (कृष्ण व कंस के सहयोगियों के बीच मल्ल युद्ध), वा.रामायण ७.१०२(मल्ल देश के राजा चन्द्रकेतु का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.६०.१(कथा श्रवण से हरिवर्म आदि मल्लों के मोक्ष का वृत्तान्त), कथासरित् ५.२.१२१(अशोकदत्त नामक मल्ल के पराक्रम से तुष्ट प्रतापमुकुट द्वारा अशोकदत्त को अङ्गरक्षक नियुक्त करना ) malla
मल्लार गर्ग ७.१३.१५(मल्लार देश के राजा रामकृष्ण पर प्रद्युम्न द्वारा विजय )
मल्लिका वामन ६.१०२(कामदेव के धनुष के एक भाग से मल्ली पुष्प के उद्भव का उल्लेख), स्कन्द २.२.४४.४(सांवत्सर व्रत में विष्णु की १२ मूर्तियों की १२ मासों में अशोक, मल्लिका प्रभृति १२ पुष्पों से क्रमश: पूजा का विधान), ७.१.१७.११२ (मल्लिका पुष्प की महिमा), ७.४.१७.१८(मल्लिकाक्ष : श्रीकृष्ण के परिचारक वर्ग में दक्षिण दिशा के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण ४.१८(मालियान मालाकार व उसकी पत्नी मल्लिका द्वारा कृष्ण की पुष्पों द्वारा अर्चना से मोक्ष प्राप्ति आदि का वृत्तान्त ) mallikaa
मल्लिकार्जुन शिव ४.१५(क्रौञ्च पर्वत पर शिव - पार्वती के कुमार के पास जाने से स्थापित लिङ्ग), लक्ष्मीनारायण १.१०८.४०(स्कन्द के दर्शनार्थ शिव का क्रौञ्च पर्वत पर गमन तथा वहां पर मल्लिकार्जुन नाम से निवास करने का कथन ) mallikaarjuna/ mallikarjuna
मशक ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.६६(नरक में मशक कुण्ड प्रापक दुष्कर्मों का कथन), वराह १८०.८(त्रिकालज्ञ मुनि द्वारा मशकाकार पितरों का दर्शन), योगवासिष्ठ ६.२.५९.५०(उदुम्बर वृक्ष में सुर - असुर रूप मशकों का उल्लेख), ६.२.११६(मशक द्वारा व्याध का बोधन), लक्ष्मीनारायण १.३५४.५१(पितर की देह में स्थित मशकों के उसकी मृत सन्तान होने का कथन ), वा.मा.सं. २४.२९(चक्षुषे मशकान्), mashaka
मषी ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.९९(मषी जीवी को नरक में मषी कुण्ड प्राप्त होने का उल्लेख), ४.८५.११८(मषी चोर के कोकिल बनने का उल्लेख ) mashee/ mashi
मषीग्रीव लक्ष्मीनारायण २.९७.६३(मषीग्रीव ऋषि द्वारा श्रीहरि को जलप्लावन से स्वयं की रक्षा की घटना का कथन), २.१०६.४९(वैष्णव यज्ञ में मषीग्रीव के आहर्ता ऋत्विज बनने का उल्लेख ) masheegreeva/ mashigriva
मसूर विष्णु १.६.२२(१७ ग्राम्य ओषधियों में से एक )
मसृण मत्स्य १९९.१७(द्वामुष्यायण गोत्र के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक )
मह पद्म ६.१८०.३०(ज्ञानश्रुति राजा के सारथी मह द्वारा तीर्थों के दर्शन, रैक्व मुनि से भेंट), ब्रह्माण्ड १.२.२१.२२(७ कृत लोकों में से एक), १.२.३५.१७९ (मन्वन्तरों की प्रतिसन्धियों में सप्तर्षियों, पितरों, देवों आदि के मह लोक में निवास का कथन), १.२.३५.१९७(वही), ३.४.१.१७(अमिताभ गण के २० देवों में से एक), ३.४.१.२५(क्रिया के ४ पुत्रों के भावी सावर्णि मनु बनने तक मह लोक में निवास का उल्लेख), ३.४.१.१२२(मन्वन्तरों की सन्धियों में सप्तर्षियों आदि के मह लोक में निवास का उल्लेख), ३.४.२.११(पृथिवी से लेकर मह तक ४ लोकों की आवर्णक संज्ञा तथा उनके क्षयातिशय युक्त होने का कथन), ३.४.२.४२(मह लोक निवासियों के पञ्च लक्षणा मानसी सिद्धि से युक्त होने का कथन), भागवत २.१.२८(मह लोक के विराट् पुरुष की ग्रीवा होने का उल्लेख), ९.१२.७(महस्वान् : अमर्षण - पुत्र, विश्वसाह्व - पिता, कुश वंश), ११.२४.१४(योग, तप आदि से मह आदि लोकों की प्राप्ति का कथन), वामन ९०.३९(मह लोक में विष्णु का अगस्त्य नाम), वायु २९.८(भरताग्नि के पुत्रों में से एक), १००.१६/२.३८.१६(अमिताभ गण के २० देवों में से एक), १०१.२३/२.३९.२३(मह व्याहृति से मह लोक की उत्पत्ति), १०१.४१/२.३९.४१ (ध्रुव व जन लोक के बीच मह लोक की स्थिति का उल्लेख, मह लोक के निवासियों की पञ्चलक्षणा मानसी सिद्धि का कथन), १०१.५२/२.३९.५२ (यामादि देवगण के महर्लोक निवासी होने का उल्लेख), विष्णु २.७.१२(ध्रुव से ऊपर मह लोक की स्थिति व निवासियों का कथन), ६.३.२८(प्रलय काल में भुव: व स्व: लोकों के निवासियों द्वारा ताप से दग्ध होकर मह लोक आदि में आने का कथन), लक्ष्मीनारायण ४.९५.५४(मह लोक के निवासी रुद्रों आदि द्वारा श्रीहरि का सत्कार, नीललोहित रुद्र कृत ताण्डव नृत्य का वर्णन ) maha
महत् गरुड ३.१०.११(७ आवरणों में से षष्ठम्), देवीभागवत ३.६.७२(महत् तत्त्व की महिमा, अहंकार से सम्बन्ध), ब्रह्माण्ड १.२.२१.२७(भूतादि के महत् से तथा महान् के अनन्त से आवृत होने का उल्लेख), १.२.३२.७६(महदादि के क्रमिक रूप से व्यक्त होने तथा महत् से अहंकार के व्यक्त होने का उल्लेख), भागवत १.३.१(भगवान् द्वारा लोक सृष्टि हेतु महत् से पुरुष रूप ग्रहण करने का उल्लेख), २.५.२२(कर्म से महत् तत्त्व के जन्म का कथन), ११.२४.२५(प्रलय काल में भूतादि के महत् में व महान् के अपने गुणों में लीन होने का कथन), मत्स्य ३.१७(सविकार प्रधान से महत्तत्त्व की उत्पत्ति तथा महत् से अहंकार की उत्पत्ति का कथन), १२३.५२(महत् द्वारा भूतादि की अपेक्षा १० गुना भूतों को धारण करने तथा अनन्त द्वारा महत्तत्त्व को धारण करने का उल्लेख), १२३.६१(महदादि भेदों के कारणात्मक होने का उल्लेख), वराह १७.७२(पुरुष की नारायणात्मकता के संदर्भ में महत् तत्त्व के भगवान् महादेव होने का उल्लेख), वायु १००.२४३/२.३८.२४३(प्रतिसर्ग में महत् के अव्यक्त में लीन होने तथा गुण साम्य होने का उल्लेख ) mahat
महती मत्स्य ११४.२३(पारियात्र पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), १२२.७४(कुश द्वीप की नदियों में से एक, अन्य नाम धृति), वायु ४५.९७(ऋक्ष पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक ) mahatee/ mahati
महमद भविष्य ३.४.२३.११९(कलि के अंश राहु के वंश में महमद नामक मत की सत्ता )
महल्लिका कथासरित् ८.२.२३२(प्रह्लाद - कन्या महल्लिका द्वारा नृत्य, सूर्यप्रभ के प्रति आकर्षण )क्ष्
महा- ब्रह्माण्ड १.२.२०.२१(महाजम्भ : सुतल में महाजम्भ राक्षस के भवन का उल्लेख), १.२.२०.२३(महोष्णीष : सुतल संज्ञक द्वितीय तल में महोष्णीष राक्षस के निवास का उल्लेख), १.२.२०.३७(पञ्चम तल में महामेघ राक्षस के निवास का उल्लेख), १.२.३६.१४(महामान : परावत गण के देवों में से एक), १.२.३६.३९ (महोत्साह : उत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक), १.२.३६.७१ (महासत्त्व : प्रसूत गण के देवों में से एक), २.३.६.७(महाशिरा : दनु व कश्यप के पुत्रों में से एक), २.३.६.९(महागिरि : दनु व कश्यप के १०० दानव पुत्रों में से एक), २.३.६.१०(महोदक : दनु व कश्यप के १०० प्रधान पुत्रों में से एक), २.३.७.१२४ (महाद्युति : पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ पुत्रों में से एक), २.३.७.१२८ (महामुद : देवजनी व मणिवर के यक्ष पुत्रों में से एक), २.३.७.२३३ (महासुख : वाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), २.३.७.२३६ (महादीप्त : वाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), २.३.१३.५८ (महाकूट : श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक), २.३.१३.५९ (सन्ध्या काल में महानदी में श्राद्ध सम्बन्धी अद्भुत घटना का कथन), ३.४.७.४(महागुरु की परिभाषा : ब्रह्मोपदेश से लेकर वेदान्त तक की शिक्षा देने वाले), ३.४.७.७२(महाशास्त्री : मधु अर्पण योग्य मातृकाओं में से एक), ३.४.२१.८६(महामह : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.२१.८८ (महाशीर्ष : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.२१.८९(महाण्ड : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.२६.४७(महाकाय व महाहनु : भण्डासुर के महाबली पुत्रों में से २), ३.४.२७.८३(युद्ध में महागणपति के आगे चलने वाले ६ विनायकों के नाम), ३.४.३२.९(महासन्ध्या व महानिशा : महाकाल की ३ शक्तियों में से दो ), ३.४.३३.३६(महादन्त : वैदूर्यशाला में स्थित नागों में से एक; महाफण : नागों में से एक), ३.४.३३.५२(महापर्णी : मुक्ताफलमय शाला की नदियों में से एक), ३.४.३५.४७(महाप्रकाश : मार्तण्ड भैरव की ३ शक्तियों में से एक), ३.४.४२.२(मुद्राओं में महामुद्रा का स्वरूप), ३.४.४२.११(महाङ्कुशा मुद्रा का स्वरूप), ३.४.४४.११४(महाङ्कुशी : मुद्राओं में से एक), भागवत ६.१८.१(महामख : सविता व पृश्नि की सन्तानों में से एक), ९.२३.२(महाशील : जनमेजय - पुत्र, महामना - पिता, अनु वंश), ९.२३.२१ (महाहय : शतजित् के ३ पुत्रों में से एक, यदु वंश), १०.२.१(महाशन : कंस के साथियों में से एक), १०.६१.१५(महाशक्ति : कृष्ण व माद्री/लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४९.७२(महापौरव : सार्वभौम - पुत्र, रुक्मरथ - पिता, अजमीढ वंश), १०१.५३(महा व्रत का कथन), १५४.४६९(पार्वती से विवाह हेतु शिव द्वारा महागिरि नगर में प्रवेश करने पर नगरवासियों की अवस्था का कथन), १७१.४९(महोरग : विश्वेशा व धर्म के विश्वेदेव संज्ञक पुत्रों में से एक), १७९.२१(महामुखी : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १७९.२२(महासुरी : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १७९.२४(महाग्रीवा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १७९.२६(महाचित्रा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), १८१.२९(महाभैरव : अविमुक्त क्षेत्र के ८ गुह्य स्थानों में से एक), १९६.१४(महाकापि : आङ्गिरस वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), १९९.५(महाचक्रि : कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), २०४.७(महाशाक : श्राद्ध हेतु प्रशस्त शाकों में से एक), वायु २५.५० (महाव्याहृति : ब्रह्मा द्वारा मोहिनी माया को महाव्याहृति नाम प्रदान), ३३.५८(महावीर्य : विराट् - पुत्र, धीमान् - पिता, भरत वंश), ४१.२५(महामाली : कुबेर के अनुचर यक्षों में से एक), ४२.४६(महाभ्राज : मेरु के पश्चिम में गङ्गा द्वारा प्लावित वनों में से एक), ४३.२०(भद्राश्व वर्ष के जनपदों में महास्थल, महाकेश, महानेत्र, महाभौम इत्यादि का उल्लेख), ४३.२२(महाभौम : भद्राश्व देश के जनपदों में से एक), ४३.२३(महाभौम : भद्राश्व देश के जनपदों में से एक), ४३.२५( : भद्राश्व देश की नदियों में से एक), ४४.१४(महाङ्ग : केतुमाल देश के जनपदों में से एक), ५०.२०(महाजम्भ : सुतल में महाजम्भ राक्षस के भवन की स्थिति का उल्लेख), ५०.२२(महोष्णीष : सुतल संज्ञक द्वितीय तल में महोष्णीष राक्षस के निवास का उल्लेख), ५०.३६(पञ्चम तल में महामेघ राक्षस के निवास का उल्लेख), ६८.४/२.७.४(महाविश्व : दनु व कश्यप के प्रधान १०० पुत्रों में से एक), ६८.५/२.७.९(महागिरि : दनु व कश्यप के १०० दानव पुत्रों में से एक), ६९.३२/२.८.३२(किन्नरों के गण में महानेत्र, महाघोष इत्यादि का उल्लेख), ६९.१५९/२.८.१५४(महाजय : देवजननी व मणिवर के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक), ७०.४९/२.९.४९(महापांशु : पुष्पोत्कटा व पुलस्त्य के ४ पुत्रों में से एक), ७७.५७/२.१५.५६(महाकूट : श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक), ७७.५८/ २.१५.५८(महावेदी : सन्ध्या काल में महावेदी में अद्भुत घटना का कथन), १०१.१४८/२.३९.१४८(महाघोर : नरकों में से एक), विष्णु २.१.३(महावीर्य : विराट् - पुत्र, धीमान् - पिता, भरत वंश), २.१.३९(महान्त : धीमान् - पुत्र, मनस्यु - पिता, भरत वंश ) mahaa-
महाकपाल वा.रामायण ३.२३.३३(खर - सेनानी), ३.२६(खर - सेनानी, राम द्वारा वध )
महाकर्ण मत्स्य २००.७(वसिष्ठ वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६९.७१/२.८.६८(काद्रवेय नागों में से एक),
महाकाल अग्नि ५०.३९(महाकाल की प्रतिमा के लक्षण), ९६.३(प्रतिष्ठा में अधिवास विधि के अन्तर्गत पूर्व दिशा के द्वारपालों में नन्दि व महाकाल की पूजा का उल्लेख), ९७(शिव प्रतिष्ठा विधि), गरुड १.८७.२४(मनोजव इन्द्र का शत्रु, अश्व रूपी विष्णु द्वारा वध), नारद २.७८(महाकालेश्वर - अधिष्ठित अवन्ती की यात्रा का महत्त्व), पद्म ६.१५१.६७(किरात द्वारा धवलेश्वर लिङ्ग पूजा से महाकाल गण बनना), ब्रह्म १.४१.६६(अवन्तिका पुरी में स्थित महाकाल शिव का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.३२.२(महाकाल का स्वरूप), मत्स्य ६.१३(बाणासुर द्वारा महाकालत्व प्राप्त करने का उल्लेख), १३.४१( महाकाल में देवी का महेश्वरी नाम से वास), १७९.५(अन्धकासुर व शिव के मध्य अवन्ती में महाकालवन में युद्ध होने का कथन), १८१.२६(दोनों सन्ध्याओं में सान्निध्य हेतु पवित्र स्थानों में से एक), १८३.६४(नन्दी की महाकाल संज्ञा?), २६६.४२(नन्दी की महाकालसंज्ञा?), विष्णुधर्मोत्तर १.१२६.२७(हर के अनुचर बली के महाकाल नाम से कल्पस्थायी होने का उल्लेख), १.१८१.५(हय रूपी विष्णु द्वारा शक्र - पीडक महामाल/महाकाल का वध), शिव ३.१७.२(शंकर के १० अवतारों में से प्रथम अवतार का नाम, महाकाल की शक्ति महाकाली), ४.१६(महाकाल द्वारा दूषण दैत्य का वध), स्कन्द १.१.५.१९१ (शिव - द्वारपाल, नन्दी का रूप), १.१.७.३१(नर्मदा में महाकालेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), १.२.४०.१(सिद्ध, माण्टि व चरक - पुत्र, माता - पिता से कालभीति का गर्भ में वास सम्बन्धी वार्तालाप, कालभीति नाम से महाकाल नाम), १.२.४०.१४४(महाकाल द्वारा करन्धम राजा को धर्म स्वरूप, चतुर्युग व्यवस्था का वर्णन), १.२.४०(महाकाल द्वारा नन्दी नाम की प्राप्ति), ४.१.७.९१(महाकाल शब्द की निरुक्ति, माहात्म्य), ४.२.९७.१३१(महाकालेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.१.२६+ (महाकाल वन का माहात्म्य), ५.१.२३.१ (महाकाल के अन्तर्गत तीर्थ व महाकाल यात्रा), ५.१.२६.१ (महाकाल के चारों दिशाओं में स्थित द्वारपाल), ५.१.२७.९९(अधोज्वाल महाकाल के दर्शन से अश्वमेध फल प्राप्ति का उल्लेख), ५.१.३९(अवन्ती क्षेत्र में महाकाल वन के माहात्म्य का कथन), ५.१.६१.१ (अधिमास में महाकाल वन में स्थिति का महत्त्व), ५.३.१९८.७९(महाकाल में देवी का महेश्वरी नाम से वास), ६.४७(महाकालेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, रुद्रसेन राजा द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन, वैश्य द्वारा महाकाल की कमल पूजा से जन्मान्तर में राजा बनना), ७.१.१०.७ (जल महाभूत में स्थित तीर्थों में से एक), ७.१.९३(महाकालेश्वर रुद्र का माहात्म्य, चित्राङ्गद गण द्वारा पूजा), ७.१.३२६(महाकालेश्वर का माहात्म्य), हरिवंश २.१२६.१५८(बाणासुर का महाकाल नाम से शिवगण बनना), ३.३७.१५(कालकेयों का अधिपति), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.३६(चाक्षुष मनु के काल में हयग्रीव अवतार द्वारा देवपीडक महाकाल असुर का वध), कथासरित् ८.५.१२४(वैतालपति द्वारा महाकाल देव से अग्निक - पुत्री की रक्षा की प्रार्थना, महाकाल से प्राप्त आदेश से योगिनियों द्वारा पुत्री की रक्षा), १२.३५.७(मृगाङ्कदत्त द्वारा शशाङ्कवती की प्राप्ति हेतु उज्जयिनी में महाकाल श्मशान में आगमन की कथा), १८.२.९७(ठिण्ठाकराल नामक जुआरी द्वारा महाकालकी प्रार्थना ) mahaakaala/ mahakala
महाकाली देवीभागवत ३.६.८२(त्रिगुणा प्रकृति द्वारा विष्णु को महालक्ष्मी, शिव को महाकाली तथा ब्रह्मा को महासरस्वती नामक शक्तियां प्रदान), नारद १.६६.११०(क्रोधीश की शक्ति महाकाली का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५७(वर्णों की शक्तियों में से एक), मत्स्य १७९.१४(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु १०१.२९८/२.३९.२९८(दक्ष यज्ञ विध्वंस के संदर्भ में महाकाली महेश्वरी का उल्लेख), विष्णु २.१३.४९(महाकाली द्वारा योगी भरत की बलि की अस्वीकृति का कथन), शिव २.२.३२.२५(सती के देहत्याग श्रवण से क्रुद्ध शिव की जटा से महाकाली, वीरभद्र आदि की उत्पत्ति, शिव द्वारा दक्ष यज्ञ विध्वंस की आज्ञा), ३.१७.२(शंकर के प्रथम अवतार महाकाल की शक्ति का नाम), ५.४५.६७(मधु - कैटभ वध हेतु ब्रह्मा द्वारा महामाया की स्तुति, महाकाली का प्रादुर्भाव), स्कन्द ७.१.१३३(महाकाली पीठ का माहात्म्य ) mahaakaalee/ mahakali
महाकोश वामन ९०.२७(महाकोशा में विष्णु का हंसयुक्त नाम )
महागौरी ब्रह्माण्ड १.२.१६.३३(विन्ध्य पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), मत्स्य ११४.२८(वही), वायु ४५.१०३(वही) mahaagauree/ mahagauri
महाजिह्वा ब्रह्माण्ड २.३.७.९९(ब्रह्मराक्षसों की स्वसाओं में से एक, ब्रह्मधान - पुत्री), वायु ६९.१३४/२.८.१२९(ब्रह्मराक्षसों की स्वसाओं में से एक, ब्रह्मधान - पुत्री), स्कन्द १.२.६३.९(राक्षस, विजय की साधना में बाधक ) mahaajihvaa/ mahajihva
महाज्वाल ब्रह्माण्ड ३.४.२.१४७(नरकों में से एक), ३.४.२.१५७(महाज्वाल नरक को प्राप्त होने वालों के अपेक्षित कर्मों का कथन), विष्णु २.६.१२ (वही) mahajwala
महातप वराह १६+ (महातपा का प्रजापाल राजा से मोक्ष विषयक संवाद), लक्ष्मीनारायण १.५३३(महातपा ऋषि द्वारा प्रजापाल राजा को देह में स्थित देवों में श्रेष्ठता की प्रतिस्पर्द्धा का वर्णन ) mahaatapa/ mahatapa
महातल भागवत २.१.२६(विराट् शरीर में महातल के गुल्फ रूप होने का उल्लेख), २.५.४१(वही), ५.२४.७(भूमि के नीचे के ७ तलों में से एक), ५.२४.२९ (महातल में निवास करने वाले सर्पों के क्रोधवश गण के सर्पों के नाम), वामन ९०.३६(महातल में विष्णु का गुरु नाम), वायु ५०.१२(भूमि के नीचे के ७ तलों में पञ्चम, अपर नाम शर्करातल), ५०.३४(शर्कराभौम में स्थित राक्षसों के पुरों का कथन ) mahaatala/ mahatala
महादंष्ट} ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८६(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), स्कन्द १.१.१७.१३९(इन्द्र - वृत्रासुर संग्राम में वरुण के महादंष्ट} से युद्ध का उल्लेख), कथासरित् ७.५.९०(रूपशिखा - पिता, शृङ्गभुज द्वारा बगुला रूप धारी महादंष्ट} को बाण से विद्ध करना), १४.४.१७९(पद्मप्रभा - पिता ) mahaadanshtra/ mahadanshtra
महादेव कूर्म १.५३.१(कलियुग में महादेव के अवतार), पद्म ६.२५५(शिव का नाम, भृगु के शाप से शिव को योनि लिङ्ग स्वरूप प्राप्ति का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.१०.५९(रुद्र का अष्टम नाम, मन/चन्द्रमा का रूप), १.२.२६.५६(ब्रह्मा व विष्णु द्वारा महादेव की स्तुति), १.२.२७.१(महादेव द्वारा नग्न विकृत वेश धारण,ऋषियों के शाप से लिङ्ग का पात), २.३.७२.३(मनुष्य प्रकृति के देवों में से एक?), २.३.७२.१०८(शुक्राचार्य द्वारा मन्त्र प्राप्ति हेतु महादेव के पास जाने का वर्णन), ३.४.११.३२(महादेव द्वारा बालक भण्डासुर को वरदान), भागवत ८.१२(शिव द्वारा विष्णु से मोहिनी अवतार का दर्शन कराने की प्रार्थना, मोहिनी रूप दर्शन से शिव का मोहित होना), मत्स्य ४७.१(महादेव द्वारा वसुदेव - पुत्र कृष्ण रूप में अवतरित होने का उल्लेख), ४७.७५(देवों को हराने हेतु शुक्राचार्य द्वारा महादेव से अप्रतीप मन्त्र प्राप्ति का उद्योग), ५४.२+ ( महादेव द्वारा नारद हेतु विभिन्न व्रतों की विधियों का वर्णन), १७९.३(महादेव द्वारा अन्धकासुर के रक्त पानार्थ मातृकाओं की सृष्टि), २४६.६१(वामन के विराट् रूप में वक्ष:स्थल पर महादेव की स्थिति का उल्लेख), २६५.४२(शिव की ८ मूर्तियों में महादेव द्वारा चन्द्रमा की रक्षा का उल्लेख), वायु २६.३(केवल वैवस्वत मन्वन्तर के कलियुग में ही महादेव के अवतार लेने का प्रश्न), २७(महादेव के तनुओं का वर्णन नामक अध्याय), विष्णु १.८.६(ब्रह्मा द्वारा महादेव नामक रुद्र को सोम तनु प्रदान का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.४८.४९(शिव के पांच मुखों में से पूर्व मुख की महादेव संज्ञा, महादेव के हाथ में अक्षiमाला तथा कमण्डलु धारण), स्कन्द ४.२.७९.९९(महादेव पीठ का संक्षिप्त माहात्म्य ), द्र शंकर, शिव mahaadeva/ mahadeva
महादेवी ब्रह्माण्ड ३.४.३६.४(चिन्तामणि गृह के समीप महादेवी के होत्री व कामेश्वर के होता होने का उल्लेख), भविष्य ३.२.५.४(हरिदास व भक्तिमाता - पुत्री, राक्षस द्वारा हरण, तीन वरों से विवाह की समस्या), मत्स्य १३.३३(शालग्राम में सती की महादेवी नाम से स्थिति का उल्लेख), १७९.३१(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु ९६.१३०/२.३४.१३०(महादेवा : देवक की ७ पुत्रियों में से एक, वसुदेव - भार्या), स्कन्द ५.३.१९८.७१(शालिग्राम में देवी का महादेवी नाम से वास), कथासरित् १.५.२९(राजा योगनन्द की पत्नी, चित्रकार द्वारा योगनन्द और महादेवी के सजीव से चित्र का निर्माण ) mahaadevee/ mahadevi
महाद्रुम ब्रह्माण्ड १.२.१४.२१(शाकद्वीप के अधिपति हव्य के ७ पुत्रों में से एक), वायु ६९.३५/२.८.३५(विक्रान्त के नरमुख किन्नर पुत्रों में से एक), विष्णु २.४.६०(शाकद्वीप के अधिपति भव्य के ७ पुत्रों में से एक ) mahaadruma/ mahadruma
महाधृति ब्रह्माण्ड २.३.६४.१२(विबुध - पुत्र, कीर्तिरात - पिता, विदेह वंश), भागवत ९.१३.१६(विश्रुत - पुत्र, कृतिरात - पिता, विदेह वंश), विष्णु ४.५.२७(विबुध - पुत्र, कृतरात - पिता, निमि वंश ) mahaadhriti/ mahadhriti
महान् गर्ग १.१६.२५(महान् की शक्ति राधा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६९(धीमान् - पुत्र, भौवन - पिता, नाभि वंश), १.२.२१.२७(भूतादि के महत् से तथा महान् के अनन्त से आवृत होने का उल्लेख), ३.४.१.१७(अमिताभ संज्ञक गण के २० देवों में से एक), ३.४.३.२१(बुद्धि लक्षण महान् द्वारा भूतादि को ग्रसने का कथन), भागवत ३.१२.१२(रुद्र के नामों में से एक), ६.६.१८(११ रुद्रों में से एक, भूत व सरूपा के पुत्रों में से एक), ११.२४.२६(प्रलय काल में महान् के स्वगुणों में लीन होने का उल्लेख), ११.२८.१६(जीव अन्तरात्मा के सूत्र, महान् नामों का उल्लेख), १२.४.१८(प्रलय काल में महान् द्वारा अहंकार को तथा सत्त्वादि गुणों द्वारा महान् को ग्रसने का कथन), मत्स्य ३.१७(महत्तत्त्व की महान् संज्ञा का उल्लेख), वायु ४.२२(सर्ग काल में महान् की सृष्टि, महान् से सृष्टि, महान् के मन से तादात्म्य का कथन), ४.२९/१.४.२७(महान् शब्द की निरुक्ति), ३३.५९(धीमान् - पुत्र, भौवन - पिता, नाभि वंश), १००.१६/ २.३८.१६ (अमिताभ संज्ञक गण के २० देवों में से एक), १०२.२०(प्रलय काल में बुद्धि लक्षण महान् द्वारा भूतादि को ग्रसने का कथन), विष्णु १.२.३४ (महान् द्वारा प्रधान तत्त्व के वेष्टन करने तथा सात्त्विक आदि ३ प्रकार का होने का कथन ) mahaan/ mahan
महानदी ब्रह्माण्ड १.२.१६.२८(पारियात्र पर्वत के आश्रित नदियों में से एक), १.२.१६.२९(महानद : ऋक्षवान् पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक), भागवत ५.८.१(भरत द्वारा महानदी से महाशावक की रक्षा की कथा), ११.५.४०(द्रविड देश की नदियों में से एक ) mahaanadee/ mahanadi
महानन्द नारद १.६६.१२९(महानन्द की शक्ति विघ्नेशी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७४.२२७(परीक्षित् के जन्म से लेकर महानन्द के अभिषेक तक १०५० वर्ष व्यतीत होने का उल्लेख), भविष्य ३.२.३४.५(मगध राज, कात्यायन - शिष्य, दुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र से कल्याण, पूर्व जन्म में भीमवर्मा), स्कन्द ४.२.९८.४०(महानन्द द्विज द्वारा चाण्डाल से प्रतिग्रह प्राप्ति का वृत्तान्त, चोरों द्वारा धन का हरण ) mahaananda/ mahananda
महानन्दा शिव ३.२६.२(महानन्दा वेश्या का भक्ति से वेश्यानाथ शिव अवतार), स्कन्द ३.३.२०.२९(शिव भक्त वेश्या महानन्दा का तीन दिन के लिए वैश्य - पत्नी बनना, पति मरण पर चिता में प्रवेश, शिव द्वारा वैश्य रूप में परीक्षा),
महानन्दि भागवत १२.१.७(नन्दिवर्धन - पुत्र, भविष्य के शिशुनाग वंश के १० राजाओं में अन्तिम), वायु ९९.३२०/२.३७.३१४(नन्दिवर्धन - पुत्र, शैशुनाक वंश के १० राजाओं में से एक, ४३ वर्ष राज्य करने का उल्लेख), विष्णु ४.२४.१८(नन्दिवर्धन - पुत्र, शूद्रा पत्नी से उत्पन्न पुत्रों का वृत्तान्त ) mahaanandi/ mahanandi
महानाद ब्रह्माण्ड १.२.२०.१६(महानाद असुर के निवास स्थान के रूप में प्रथम तल का उल्लेख), ३.४.४४.६७(५१ वर्णों के अधिपति गणेशों में से एक), मत्स्य २२.५३(श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक), १७९.३१(महानादा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), स्कन्द ७.४.१७.१७(भगवत् परिचारक वर्ग में दक्षिण दिशा के द्वारपालों में से एक), वा.रामायण ६.५८.२२ (रावण - सेनानी, प्रहस्त - सचिव, जाम्बवान् द्वारा वध ) mahaanaada/ mahanada
महानाभ गर्ग ७.३२.१२(हिरण्याक्ष के ९ पुत्रों में से एक), ७.३६(हिरण्याक्ष - पुत्र, उष्ट्र वाहन, कृष्ण - पुत्र दीप्तिमान् द्वारा वध), ब्रह्माण्ड २.३.५.३१(हिरण्याक्ष के ५ पुत्रों में से एक), भागवत ७.२.१८(हिरण्याक्ष के पुत्रों में से एक), मत्स्य ६.१४(हिरण्याक्ष - पुत्र), वायु ३९.५८(हरिकूट पर श्रीहरि की उपस्थिति से महानाभ के प्रकाशित होने का उल्लेख), ६७.६८/२.६.६८(हिरण्याक्ष के ५ पुत्रों में से एक ), द्र. वंश हिरण्याक्ष mahaanaabha/ mahanabha
महानाम वराह १७४(महानाम ब्राह्मण का पांच प्रेतों से संवाद, प्रेतों की मुक्ति )
महानासा द्र. महानस
महानील ब्रह्माण्ड २.३.७.३४(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), मत्स्य ७.३९(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), वराह ८१.२(महानील पर्वत पर किन्नरों के १५ सहस्र पुरों की स्थिति), वायु ३६.१९(अरुणोद/मन्दर पर्वत के पूर्व में स्थित पर्वतों में से एक), ३९.३२(महानील पर्वत पर १५ हयानन किन्नरों के निवास का उल्लेख), ६९.७१/२.८.६८(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ) mahaaneela/ mahanila
महानुभाव द्र. मन्वन्तर
महानेत्र वायु ३९.३८(वेणुमान् पर्वत पर स्थित ३ विद्याधरों में से एक), ४३.२१(भद्राश्व देश के जनपदों में से एक), ६९.३२/२.८.३२(हयानन किन्नरों के गण में से एक ) mahaanetra/ mahanetra
महान्त अग्नि १०७(धीमान् - पुत्र, मनस्यु - पिता, स्वायम्भुव मनु वंश )
महापद्म ब्रह्माण्ड १.२.२३.१७(सह - सहस्य/मार्गशीर्ष - पौष मासों में सूर्य रथ पर स्थित २ नागों में से एक), २.३.७.३३(कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), २.३.७.३४६(चान्द्रमस साम से उत्पन्न कुमुद हस्ती व पिङ्गला के २ पुत्रों में से एक), २.३.७४.१३९(महानन्दि व शूद्रा - पुत्र, सर्वक्षत्रिय अन्तकृत् भविष्य के राजाओं में से एक महापद्म व उसके पुत्रों के राज्यकाल का कथन), २.३.७४.२२८(परीक्षित् के जन्म व महापद्म के बीच कालान्तर का कथन),३.४.२०.५४(किरिचक्र रथेन्द्र के परित: स्थित नागों में से एक), ३.४.३३.३६(ललिता देवी की वैदूर्य शाला में निवास करने वाले नागों में से एक), ३.४.३५.६४(महापद्माटवी : ललिता देवी के महापद्माटवी स्थल के महत्त्व व स्वरूप का कथन), भविष्य १.३४.२३(महापद्म नाग का शुक्र ग्रह से तादात्म्य), भागवत १२.१.९(किसी द्विज द्वारा महापद्म के नन्दवंश का नाश करने का कथन), मत्स्य १२६.१८(सह - सहस्य मासों में सूर्य रथ पर स्थित २ नागों में से एक), २७२.१७(महानन्दि व शूद्रा से उत्पन्न व कलि के अंश महापद्म राजा व उसके वंश के राज्य सम्बन्धी कथन), २७३.३५(महापद्म के अभिषेक व परीक्षित् के जन्म के बीच कालमान), मार्कण्डेय ६८.५(आठ निधियों में से एक, सत्त्व प्रधान, लक्षण), स्कन्द ५.१.४४.१२(निधि, समुद्रमन्थन से प्राप्त १४ रत्नों में से एक), ५.१.४४.२८(निधि, कुबेर को प्रदान), वा.रामायण १.४०.१८(भूमि खनन करते समय सगर - पुत्रों द्वारा दक्षिण दिशा के दिग्गज महापद्म के दर्शन), कथासरित् ८.३.१२३(सूर्यप्रभ को महापद्म नामक आकाश यान की प्राप्ति, यान में १०० नगरों की निर्मिति, आकाशवाणी के अनुसार सूर्यप्रभ को यान की सिद्धि), १४.३.१३३(शिव - पार्वती द्वारा नरवाहनदत्त को ब्रह्मा द्वारा निर्मित महापद्म विमान प्रदान ), द्र. रथ सूर्य mahaapadma/ mahapadma
महापार्श्व ब्रह्माण्ड २.३.८.५५(पुष्पोत्कटा व पुलस्त्य के ४ पुत्रों में से एक, तुलनीय : महापांशु, वायु ७०.४९), मत्स्य १६१.८०(हिरण्यकशिपु की सभा के दैत्यों में से एक), वा.रामायण ५.४९.११(रावण का राक्षसजातीय एक मन्त्री), ६.१३(महापार्श्व द्वारा रावण को सीता से बलात्कार का परामर्श, रावण का उत्तर), ६.३६.१७(लङ्का के दक्षिण द्वार का रक्षक), ६.६९.३२(रावण - सेनानी), ६.७०(ऋषभ द्वारा महापार्श्व का वध), ६.९८(अङ्गद द्वारा युद्ध में महापार्श्व का वध), लक्ष्मीनारायण २.८६.४१(विश्रवा व पुष्पोत्कटा के पुत्रों में से एक ) mahaapaarshva/ mahaparshva
माहपाशुपत वामन ६७.१६(शिव के अनेकविध गणों में से एक, चक्र शूल धारक )
महापीठ ब्रह्माण्ड ३.४.३७.४५(बिन्दुनाद नामक महापीठ का महत्त्व व अन्य नाम )
महाबल नारद १.६६.११७(महाबल की शक्ति जया का उल्लेख), भविष्य ३.२.५.२(उज्जयिनी स्थित चन्द्र वंशी राजा), भागवत ११.२७.२८(विष्णु के ८ पार्षदों में से एक), मत्स्य ६.१६(दनु व कश्यप के प्रधान १०० पुत्रों में से एक), १६१.८०( हिरण्यकशिपु की सभा के दैत्यों में से एक), वायु ६८.७(दनु व कश्यप के १०० पुत्रों में से एक, असुरों में सुरों में से एक), ६९.३२/२.८.३२(विक्रान्त गण के अश्वमुख किन्नरों में से एक), स्कन्द १.१.१७.१३९(वृत्रासुर संग्राम में महाबल असुर के वायु से युद्ध का उल्लेख ), द्र. वंश दनु mahaabala/ mahabala
महाबाहु मत्स्य ६.१९(दनु व कश्यप के १०० प्रधान पुत्रों में से एक), विष्णु १.२१.३(हिरण्याक्ष के पुत्रों में से एक ) mahabahu/ mahaabaahu
महाबुद्धि कथासरित् ८.२.३८३(सूर्यप्रभ - मन्त्री, विकटाक्ष नामक असुर की महाबुद्धि नाम से उत्पत्ति )
महाबोधि वायु १११.२६/२.४९.३३(गया में महाबोधि तरु के महत्त्व का कथन ) mahaabodhi/ mahabodhi
महाभट कथासरित् १०.२.५(महाभट आदि ५ राजाओं द्वारा राजा विक्रमसिंह को राज्य से च्युत करना, कालांतर में विक्रमसिंह द्वारा ५ राजाओं का वध ) mahaabhata/ mahabhata
महाभद्र वायु ३६.१६(मेरु के उत्तर में स्थित सरोवर), विष्णु २.२.२६(मेरु के परित: ४ सरोवरों में से एक ) mahaabhadra/ mahabhadra
महाभाग ब्रह्माण्ड २.३.७१.१८८(देवभाग - पुत्र), मत्स्य १३.४४(महालय में देवी का महाभागा नाम से वास), स्कन्द ५.३.१९८.८२(महालय में देवी का महाभागा नाम से वास ) mahaabhaaga/ mahabhaga
महाभारत अग्नि १३(महाभारत की कथा), २७२.२३(महाभारत श्रवण विधि व माहात्म्य), गरुड १.१४५(महाभारत का संक्षिप्त वर्णन), स्कन्द ३.१.१८(रामसर तीर्थ में स्नान से युधिष्ठिर के मृषा वचन दोष की निवृत्ति के संदर्भ में महाभारत युद्ध का संक्षिप्त विवरण), हरिवंश ३.१३२(महाभारत का माहात्म्य ) mahaabhaarata/ mahabharata
Esoteric aspect of the play of dice in Mahaabhaarata
Esoteric aspect of the characters of Mahaabhaarata
महाभिष देवीभागवत २.३(महाभिष की गङ्गा पर आसक्ति, ब्रह्मा के शाप से शन्तनु राजा बनना), भागवत ९.२२.१३(महाभिष राजा के शन्तनु नाम का कारण), वायु ९९.२३७/२.३७.२३३(महाभिष राजा के शन्तनु नाम का कारण, जाह्नवी से भीष्म पुत्र प्राप्ति), स्कन्द ५.२.४२.१७(महाभिष द्वारा गङ्गा का नि:शंक दर्शन, ब्रह्मा के शाप से मनुष्य जन्म की प्राप्ति ) mahaabhisha/ mahabhisha
महाभूत अग्नि १७.३(तामस अहंकार से आकाशादि पञ्चमहाभूतों की उत्पत्ति), कूर्म १.४.२३(भूत तन्मात्राओं से महाभूतों की सृष्टि), गरुड १.१९७.१२(पार्थिवादि मण्डलों में स्थित नागों के नाम), २.३२.३५(देह में भूमि, आपः, तेज, वायु, आकाश के ५-५ गुणों के नाम), नारद १.४२.७६(भूमि, अग्नि आदि महाभूतों के गन्ध, तेज आदि गुण विभागों का वर्णन), १.४४.२८(आकाश आदि महाभूतों के गुणों का कथन), पद्म १.२.९२(सृष्टि रचना में महाभूतों की प्रयुक्ति), २.७.१८+ (पञ्च महाभूतों द्वारा आत्मा से मैत्री करके आत्मा को दुःख में डालने का वृत्तान्त), ३.१+ (महाभूतों की सृष्टि व गुण), ब्रह्म १.१२९.४५ (महाभूतों की शरीर में स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त १.२? (महाभूतों की सृष्टि), ब्रह्माण्ड ३.४.३.५(संहार काल में महाभूतों के क्रमश: लय का कथन), भविष्य ४.१८३ (महाभूत घट दान की विधि), मत्स्य १६८(एकार्णवशायी विष्णु से महाभूतों की उत्पत्ति), २८९.१(महाभूत घट दान की विधि), २७४.१०(महाभूतघट : १६ महादानों में से एक), लिङ्ग १.७०.५४(अण्ड के जल से, जल के तेज से, तेज के वायु से, वायु के आकाश से, आकाश के भूतादि से, भूतादि के महान् से तथा महान् के अव्यक्त से आवृत होने का कथन), वराह १८.६(नारायण से पञ्च महाभूतों की उत्पत्ति), वायु ४.५१(महाभूतों की सृष्टि), १०१.३४५/२.३९.३४५(प्रलय के पश्चात् सृष्टि काल में सिंह - व्याघ्र रूपी भूतों व ५ महाभूतों आदि के विष्णु के साथ संयोग होने का कथन), १०२.१/२.४०.१(महाभूत प्रलय / प्रत्याहार का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१५२(महाभूत व्रत में पञ्चमूर्ति वासुदेव की पूजन विधि, पांच मण्डलों के वर्ण), शिव १.१०.६(सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव तथा अनुग्रह नामक पांच कृत्यों की क्रमश: भूमि, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश में स्थिति ) २.१.१६(सूक्ष्म व स्थूल महाभूतों द्वारा सृष्टि), ७.२.३८.१८ ( पांच महाभूतों के ऐश्वर्यों का कथन), स्कन्द ४.१.४१.११३(पांच महाभूतों की धारणाओं का कथन) ७.१.१०.२(देवों का महाभूतों में वास, महाभूतों के अनुसार तीर्थों का विभाजन, पृथ्वी आदि में क्रमशः ब्रह्मा आदि की स्थिति), योगवासिष्ठ ३.६४.१७(संकल्पात्मक चित्त द्वारा भूत तन्मात्र की कल्पना करते हुए पश्चात् जड पञ्चभूतता की प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण २.६६.८८(जल, तेज, वायु, आकाश आदि के क्रमश: आधार - आधेय बनने का कथन ), द्र. भूत mahaabhoota/mahaabhuuta/ mahabhuta
महाभोज ब्रह्माण्ड २.३.७१.२(सात्त्वत व कौशल्या के पुत्रों में से एक), २.३.७१.१७(महाभोज की प्रशंसा, भोज वंश प्रवर्तक), भागवत ९.२४.७(सात्वत के ७ पुत्रों में कनिष्ठतम), ९.२४.११(महाभोज के धर्मात्मा होने व भोज वंश का प्रवर्तक होने का उल्लेख), वायु ९६.२/२.३४.२(कौशल्या के पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१३.१(सत्वत के पुत्रों में से एक), ४.१३.७(धर्मात्मा महाभोज के मृत्तिकावरपुर वासी भोजों के वंश का प्रवर्तक होने का उल्लेख ) mahaabhoja/ mahabhoja
महामणि शिव २.५.३६.१६(११ रुद्रों में से एक, उग्रचण्ड आदि से युद्ध )
महामति कथासरित् १८.१.५२(सुमति - पुत्र, विक्रमादित्य का बालसखा )
महामना ब्रह्माण्ड २.३.७४.१५(महाशाल - पुत्र, महामना के २ पुत्रों के नाम, अनु वंश), भागवत ९.२३.२(महाशील - पुत्र महामना के २ पुत्रों के नाम, अनु वंश ) mahaamanaa/ mahamanaa
महामद भविष्य ३.३.२.५(म्लेच्छ, भोजराज समकालिक, शिव के कथनानुसार बलि - प्रेषित त्रिपुरासुर, अयोनिज तथा दैत्य संवर्धक ), द्र. मुहम्मद
महामात्र भागवत १०.३६.२५(कंस द्वारा कुवलयपीड हस्ती के महावत का महामात्र सम्बोधन), १०.४३.१२(महामात्रों द्वारा कुवलयपीड हाथी को कृष्ण को मारने के लिए उत्तेजित करने का उल्लेख ) mahaamaatra/ mahamatra
महामाय ब्रह्माण्ड २.३.६.५(दनु व कश्यप के प्रधान दानव पुत्रों में से एक), ३.४.२१.८१(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), कथासरित् ८.२.२२५(प्रह्लाद द्वारा पाताल में महामाय आदि दैत्यराजों को भोजन हेतु निमन्त्रण), ८.७.३८(महामाय दानव द्वारा कुबेरदत्त नामक विद्याधर की हत्या ) mahaamaaya/ mahamaya
महामाया देवीभागवत १.५.४८(विष्णु के छिन्नशीर्ष होने पर देवों द्वारा महामाया का चिन्तन, स्तुति, महामाया द्वारा विष्णु के छिन्नशीर्ष होने के कारण का कथन, महामाया के आदेशानुसार देवशिल्पी द्वारा विष्णु के शीर्ष के रूप में हयग्रीव दैत्य के शीर्ष का संयोजन), ब्रह्माण्ड ३.४.२८.३९(ललिता - सहचरी, कुन्तिसेन से युद्ध), भागवत १०.५५.१६(शम्बरासुर वध हेतु मायावती द्वारा प्रद्युम्न को मायाविनाशिनी महामाया विद्या देने का उल्लेख), मार्कण्डेय ८१.४०/७८.४० (महामाया की उत्पत्ति का विस्तृत वर्णन, सुरथ राजा व सुमेधा ऋषि का संवाद), स्कन्द ५.२.१०.१३(कर्कोट नाग द्वारा महामाया पुरस्थ देवेश की आराधना), लक्ष्मीनारायण ३.१८६.६७(साधु के मल में महामाया की स्थिति का उल्लेख ) mahaamaayaa/ mahamayaa
महामारी अग्नि १३७(शत्रु विनाश हेतु महामारी विद्या का स्वरूप व मन्त्र), देवीभागवत ९.२२.११(महामारी का शंखचूड - सेनानी उग्रचण्ड से युद्ध), लक्ष्मीनारायण २.९०.१८(शम्भु - दूती भैरवी द्वारा राक्षसियों से युद्ध व उनका विनाश, महामारी भैरवियों को शिव से वरदान प्राप्ति, महामारियों के पापी जनों में व्याप्त होने से पापियों की मृत्यु व व्याकुलता), २.९१(भक्तों की प्रार्थना पर शिव द्वारा महामारियों को भक्तों के चिह्नों से युक्त शवों को जीवित करने का आदेश, श्रीहरि के वर से महामारियों का बदरी वृक्ष बनना और राम द्वारा बदरी फलों का सेवन), २.२३७.६०(सम्पर्क राजा व उसकी सेना का महामारी रोग से पीडित होना, दत्तात्रेय द्वारा रोग से मुक्ति ) mahaamaaree/ mahamari
महामुनि द्र मन्वन्तर
महामूर्ति पद्म ५.६७.४०(विभीषण - पत्नी )
महामोटी शिव ७.२.३१.८८(मातृका, महादेवी की पाद पूजा परायण )
महायज्ञ ब्रह्माण्ड २.३.१२.१६(५ करणीय दैनिक महायज्ञों के स्वरूप का कथन), वायु ७६.१७/२.१४.१७(वही)
महायान कथासरित् ८.५.१२१(विद्याधर महारथी महायान का महाश्मशान के अधिपतित्व से सिद्ध होना, श्रुतशर्मा का पक्ष छोडकर सूर्यप्रभ के समीप गमन )
महारथी ब्रह्माण्ड २.३.६९.४९(कार्त्तवीर्य अर्जुन के १०० पुत्रों में ५ महारथी पुत्रों के नाम), ३.४.२९.२१(आभिल नामक दैत्य की महारथ संज्ञा), वायु ९२.७०/२.३०.७१(धर्मकेतु - पुत्र सत्यकेतु की महारथ उपाधि ), द्र. रथ mahaarathee/ maharathi
महाराष्ट} गर्ग ७.१०.३०(महाराष्ट} के राजा विमल द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), नारद १.५६.७४३(महाराष्ट} देश के कूर्म का पुच्छ मण्डल होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५५(दक्षिणापथ वासियों के जनपदों में से एक), वायु ४५.१२५(वही) mahaaraashtra/ maharashtra
महारुद्र ब्रह्माण्ड ३.४.३३.८४(ललिता देवी की आज्ञा का पालन करने वाले रुद्रों में से एक महारुद्र द्वारा शत्रुओं का नाश), ३.४.३४.५१(१६ आवरणों में स्थित रुद्रों द्वारा महारुद्र की सेवा), मत्स्य २२.३४(श्राद्ध आदि हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक ) mahaarudra/ maharudra
महारूपा पद्म ४.१५.४६(वल्लभ नामक वैश्य की पत्नी महारूपा द्वारा अनजाने में किए गए एकादशी व्रत के प्रभाव से विष्णु लोक की प्राप्ति )
महारोमा ब्रह्माण्ड २.३.६४.१३(कीर्तिरात - पुत्र, स्वर्णरोमा - पिता, विदेह वंश), भागवत ९.१३.१७(कृतिरात - पुत्र, स्वर्णरोमा - पिता, विदेह वंश), विष्णु ४.५.२७(कृतरात - पुत्र, स्वर्णरोमा - पिता, विदेह वंश ) mahaaromaa/ maharoma
महारौरव भागवत ५.२६.७(२८ नरकों में से एक), ५.२६.१२(महारौरव नरक में क्रव्याद नामक रुरुओं द्वारा मांस भक्षण का उल्लेख), वायु १०१.१७७/२.३९.१७७ (भूमि के नीचे स्थित ७ नरकों में से एक ) mahaaraurava/ maharaurava
महार्णवा स्कन्द ५.३.६.३५(नर्मदा के महार्णवा नाम हेतु का कथन )
महालक्ष्मी
देवीभागवत
१.५.७८(विष्णु
द्वारा
उपहास
पर
महालक्ष्मी
द्वारा
विष्णु
को
छिन्नशीर्ष
होने
का
शाप),
१.१५+
(विष्णु
के
ह्रदय
में
वास
करने
वाली
सात्विकी
शक्ति,
वटपत्र
पर
शयन
करने
वाले
विष्णु
से
स्व
परिचय
का
कथन),
३.६.४९(त्रिगुणा
प्रकृति
द्वारा
विष्णु
को
सत्त्वगुण
युक्त
महालक्ष्मी
नामक
स्वशक्ति
प्रदान),
५.८+
(महिषासुर
वधार्थ
देवों
के
तेज
से
महालक्ष्मी
की
उत्पत्ति
-
त्रिगुणा
सा
महालक्ष्मीः
सर्वदेवशरीरजा
।
अष्टादशभुजा
रम्या
त्रिवर्णा
विश्वमोहिनी
॥),
९.१.२५(
५
प्रकृतियों
में
द्वितीय
महालक्ष्मी
का
स्वरूप
व
महिमा),
९.३९+
(महालक्ष्मी
का
राधा
से
प्राकट्य,
इन्द्र
को
दुर्वासा
द्वारा
शाप
से
महालक्ष्मी
द्वारा
इन्द्र
का
त्याग,
समुद्र
मन्थन
से
पुन:
प्राकट्य),
९.४२(इन्द्र
द्वारा
महालक्ष्मी
की
षोडशोपचार
पूजा,
महालक्ष्मी
स्तोत्र),
१२.६.१२५(गायत्री
-
सहस्रनामों
में
से
एक),
नारद
१.८३.४९(महालक्ष्मी
की
राधा
से
उत्पत्ति,
महालक्ष्मी
का
स्वरूप
व
मन्त्र
विधान),
१.८६.१(लक्ष्मी
के
अवतारों
का
कथन),
१.११७.५४
(महालक्ष्मी
अष्टमी
व्रत
की
विधि),
१.१२७.५५(,
पद्म
४.१०.२(समुद्र
मन्थन
से
द्वादशी
में
महालक्ष्मी
की
उत्पत्ति,
देवों
द्वारा
स्तुति,
विष्णु
का
महालक्ष्मी
से
परिणय
के
लिए
उद्धत
होना,
महालक्ष्मी
द्वारा
ज्येष्ठा
भगिनी
अलक्ष्मी
के
अविवाहित
होने
पर
कनिष्ठा
के
विवाह
का
अनौचित्य
बताना,
विष्णु
द्वारा
अलक्ष्मी
उद्दालक
को
प्रदान
करना,
लक्ष्मी
से
परिणय
का
वृत्तान्त),
६.१८६.१५(कोल्हापुर
में
महालक्ष्मी
का
वास,
राजकुमार
पर
महालक्ष्मी
की
कृपा
की
कथा
-
मणिकुंडे
कृतः
स्नानः
संपन्न
पितॄतर्पणः
।
महालक्ष्मीं
महामायां
नत्वा
तुष्टाव
भक्तितः
।),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.३.६५(महालक्ष्मी
की
कृष्ण
के
मन
से
उत्पत्ति),
१.६.१(कृष्ण
द्वारा
नारायण
को
महालक्ष्मी
का
दान),
२.१३.१२(भाद्रपद
मास
में
महालक्ष्मी
की
पूजा
का
उल्लेख),
२.३५.१०(श्रीकृष्ण
के
वामांश
से
महालक्ष्मी
तथा
दक्षिणांश
से
राधिका
की
उत्पत्ति,
महालक्ष्मी
द्वारा
चतुर्भुज
विष्णु
का
वरण),
३.२३.१९(महालक्ष्मी
के
निवास
योग्य
स्थानों
का
वर्णन),
ब्रह्माण्ड
३.४.३९.१११(कामाक्षी
के
साक्षात्
महालक्ष्मी
होने
का
उल्लेख),
३.४.४०.५(महालक्ष्मी
द्वारा
३
शक्तियों
के
पुर
रूप
३
अण्ड
सर्जन
करने
का
कथन),
३.४.४१.५(कामाक्षी
के
ही
महालक्ष्मी
होने
तथा
श्रीचक्र
मन्त्र
होने
का
कथन),
३.४.४४.१११(८
मातृकाओं
में
से
एक),
मत्स्य
१३.४१(करवीर
पीठ
में
देवी
का
महालक्ष्मी
नाम
से
वास),
शिव
२.३.३८.१४(शिव
-
पार्वती
के
विवाह
मण्डप
के
द्वार
पर
विश्वकर्मा
द्वारा
कृत्रिम
महालक्ष्मी
के
निर्माण
का
उल्लेख
-
द्वारि
स्थिता
महालक्ष्मीः
कृत्रिमा
रचिताद्भुता।।
सर्वलक्षणसंयुक्ता
गताः
साक्षत्पयोर्णवात
।।),
५.४६.११(महालक्ष्मी
का
प्रादुर्भाव,
देवों
से
आभूषण
व
आयुधों
का
ग्रहण),
स्कन्द
४.१.५.७५(अगस्त्य
मुनि
द्वारा
महालक्ष्मी
के
दर्शन,
स्तुति,
महालक्ष्मी
द्वारा
वर
प्रदान
-
त्रैलोक्यं
कोलरूपेण
त्रासयंतं
महासुरम्।।
विनिहत्य
स्थितां
तत्र
रम्ये
कोलापुरे
पुरे
।।),
४.२.५८.३९(महालक्ष्मी
तीर्थ
का
माहात्म्य
-
तत्रास्ति
हि
महालक्ष्म्या
मूर्तिस्त्रैलोक्यवंदिता
।।
तां
प्रणम्य
नरो
भक्त्या
न
रोगी
जायते
क्वचित्
।।),
४.२.७०.६३
(महालक्ष्मी
देवी
की
महिमा
-
संति
पीठन्यनेकानि
काश्यां
सिद्धिकराण्यपि
।।
महालक्ष्मीपीठसमं
नान्यल्लक्ष्मीकरं
परम्
।।),
४.२.८४.१२(
महालक्ष्मी
तीर्थ
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
-
तत्राभ्यर्च्य
महालक्ष्मीं
निर्वाणकमलां
लभेत्
।।),
४.२.९७.१०९(महालक्ष्मीश्वर
लिङ्ग
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
-
महालक्ष्मीं
समभ्यर्च्य
स्नातस्तत्कुंडवारिषु
।।
चामरासक्तहस्ताभिर्दिव्यस्त्रीभिश्च
वीज्यते
।।),
५.३.१९८.७८
(करवीर
में
देवी
की
महालक्ष्मी
नाम
से
स्थिति
-
करवीरे
महालक्ष्मी
रूपादेवी
विनायके
॥),
लक्ष्मीनारायण
१.१२६(महालक्ष्मी
के
प्रासाद
का
वर्णन),
१.१५५.४(बलि
-
भार्या
सन्ध्यावली
द्वारा
पति
रक्षार्थ
महालक्ष्मी
की
आराधना,
महालक्ष्मी
का
स्वरूप),
१.३७३(महालक्ष्मी
द्वारा
विष्णु
से
रति
के
लिए
नए
प्रासाद
का
निर्माण,
महालक्ष्मी
में
पातिव्रत्य
का
गर्व
उत्पन्न
होने
पर
गोपुर
के
द्वारपालों
जय
व
विजय
द्वारा
महालक्ष्मी
को
अन्दर
जाने
से
रोकना,
महालक्ष्मी
का
प्राण
त्याग
को
उद्धत
होना,
पातिव्रत्य
के
प्रभाव
से
विष्णु
को
प्रकट
करना),
१.४३६.४७(आस्तीक
-
माता
जरत्कारु
के
महालक्ष्मी
की
कला
होने
के
उल्लेख
सहित
महालक्ष्मी
के
स्वाहा,
स्वधा
आदि
अन्य
रूपों
के
नाम
-
ब्रह्मा
प्राह
महासर्प!
नेयं
साधारणी
प्रिया
।…इयं
चास्ति
महालक्ष्मीकला
धर्मपरायणा
।
),
१.४५६.१७(विन्ध्याचल
के
नमन
के
पश्चात्
अगस्त्य
व
लोपामुद्रा
द्वारा
गोदावरी
तट
पर
महालक्ष्मी
का
दर्शन,
लोपामुद्रा
द्वारा
महालक्ष्मी
की
स्तुति),
१.४९३.२४(शाप
से
गजमुखी
बनी
लक्ष्मी/माधवी
का
ब्रह्मा
के
वरदान
से
गजमुख
त्याग
कर
महालक्ष्मी
बनना),
३.११५.४३(भण्डासुर
के
वधार्थ
महालक्ष्मी
का
ललिता
के
रूप
में
अवतार,
ललिता
द्वारा
भण्डासुर
के
वध
का
वर्णन),
३.११८.१७(भण्डासुर
वध
के
पश्चात्
महालक्ष्मी
ललिता
स्तोत्र,
महालक्ष्मी
का
पृथिवी
पर
४
रूपों
में
वास,
महालक्ष्मी
की
मातङ्ग
नामक
भक्त
महर्षि
पर
कृपा),
३.११९.७५(महालक्ष्मी
का
विभिन्न
नामों
से
अङ्गन्यास,
महालक्ष्मी
मन्त्र),
३.१२०(महालक्ष्मी
का
अन्य
मन्त्र,
ब्रह्मा
की
प्रार्थना
पर
काञ्ची
में
महालक्ष्मी
का
२
रूपों
में
विभाजित
होना,
महालक्ष्मी
की
आराधना
हेतु
दीक्षा
विधि
)
mahaalakshmee/mahalakshmi
महालय ब्रह्माण्ड २.३.१३.८३(श्राद्ध हेतु महालय तीर्थ की प्रशस्तता का कथन), मत्स्य १३.४४(महालय पीठ में देवी की महाभागा नाम से स्थिति का उल्लेख), १८१.२९(अविमुक्त क्षेत्र में ८ गुह्य स्थानों में से एक), वामन ५७.९८(रुद्र महालय तीर्थ द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), ९०.२२(महालय में विष्णु का रुद्र नाम), वायु २३.१७५/१.२३.१६४(गुहावासी नामक अवतार के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.१.३६.३७(विभिन्न तिथियों में महालय श्राद्ध का महत्त्व), ३.१.३६.१४८(महालय शब्द की निरुक्ति, विभिन्न तिथियों में महालय श्राद्ध का फल), ५.१.५४.२५(नीलगङ्गा तीर्थ में करणीय महालय श्राद्ध), ५.१.५९.१४(गया श्राद्ध में सूर्य के कन्या राशि और हस्त नक्षत्र से संयुत होने पर महालय श्राद्ध के अक्षय होने का उल्लेख), ५.२.२४(महालयेश्वर का माहात्म्य, सृष्टि व प्रलय का केन्द्र स्थल), ५.३.१९८.८२(महालय में देवी की महाभागा नाम से स्थिति), ७.१.१०.११(महालय तीर्थ का वर्गीकरण – आकाश), लक्ष्मीनारायण १.१७६.९१(दक्ष यज्ञ विनाश के संदर्भ में शिव द्वारा जटा के प्रस्फालन से महालया शक्ति की उत्पत्ति ) mahaalaya/ mahalaya
महालिङ्ग मत्स्य १३.३३(महालिङ्ग पीठ में देवी की कपिला नाम से स्थिति का उल्लेख), २२.३४(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक )
महावज्रेश्वरी ब्रह्माण्ड ३.४.१९.५८(आनन्द महापीठ में भण्डासुर आदि को विजित करने के लिए निकली १५ देवियों में से एक), ३.४.२५.९६(महावज्रेश्वरी द्वारा बाण से केकिवाहन के वध का उल्लेख), ३.४.३७.३४(नाथान्तराल के ऊपर स्थित १५ नित्य देवियों में से एक ) mahaavajreshvaree/ mahavajreshvari
महावती भविष्य ३.४.३.४१(राष्ट}पाल द्वारा शारदा देवी की कृपा से निर्मित महावती पुरी में निवास )
महावराह कथासरित् ९.२.९२(शूरपुर नगर का राजा, पद्मरति - पति, अनङ्गरति - पिता),
महाविष्णु नारद १.७०(महाविष्णु मन्त्र जप का विधान), १.७६.११५(महाविष्णु के स्तुतिप्रिय होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.४.२६(महाविष्णु की कृष्ण रेतस् से उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण ३.७१.२८(प्रधान पुरुष से उत्पन्न अहंकार की हिरण्यगर्भ/महाविष्णु संज्ञा ) mahaavishnu/ mahavishnu
महावीत ब्रह्माण्ड १.२.१४.१४(पुष्कर द्वीप के स्वामी सवन के २ पुत्रों में से एक), १.२.१९.११७(मानसोत्तर पर्वत के २ वर्षों में से एक, मानस पर्वत के बाहर व अन्दर स्थित महावीत व धातकी वर्ष के निवासियों की प्रशंसा), वायु ३३.१४(पुष्कर द्वीप के स्वामी सवन के २ पुत्रों में से एक), ४९.११२(मानस पर्वत के अभित: स्थित महावीत वर्ष का उल्लेख, महावीत व धातकी वर्ष के निवासियों की महिमा), विष्णु २.४.७३(महावीर : पुष्कर में सवन के २ पुत्रों में से एक ) mahaaveeta/ mahavita
महावीर भागवत ५.१.२५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र), विष्णु २.४.७३(पुष्कर में सवन के २ पुत्रों में से एक, तुलनीय : अन्य पुराणों में नाम महावीत), लक्ष्मीनारायण २.२४५.१९(सोमयाग में प्रवर्ग्य कर्म के अन्तर्गत घृतपूर्ण महावीर पात्र में दुग्ध के निक्षेप का कथन), कथासरित् ८.५.७३(विद्याधरराज महावीर का श्रुतशर्मा के पक्ष में प्रभास से युद्ध ), द्र. भूगोल mahaaveera/ mahavira
महावीर्य अग्नि १०७(विराट् - पुत्र, धीमान् - पिता, स्वायम्भुव मनु वंश), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६९(विराट् - पुत्र, धीमान् - पिता, नाभि वंश), १.२.३६.६३(रैवत मनु के पुत्रों में से एक), २.३.६४.९(बृहदुक्थ - पुत्र, धृतिमान् - पिता, विदेह वंश), भागवत ९.१४.१५(बृहद्रथ - पुत्र, सुधृति - पिता, विदेह वंश), ९.२१.१(मन्यु के ५ पुत्रों में से एक, वितथ वंश), ९.२१.१९(दुरितक्षय - पिता), वायु ६१.४५(महवीर्य : कृत के २४ सामग शिष्यों में से एक), ८९.९/२.२७.९ (बृहदुच्छ - पुत्र, धृतिमान् - पिता, विदेह वंश), ९९.१५९/२.३७.१५५(भुवमन्यु के ४ पुत्रों में से एक, भीम - पिता, वितथ वंश), विष्णु ४.५.२५(बृहदुक्थ - पुत्र, सुधृति - पिता, विदेह वंश ) mahaaveerya/ mahavirya
महाव्रत मत्स्य १०१.५३(महाव्रत का उल्लेख - गुड़व्रतस्तृतीयायां गौरीलोके महीयते।। महाव्रतमिदं नाम परमानन्दकारकम्।।), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१(महाव्रतिक : सङ्गीत के अन्तर्गत २१ मध्यम ग्रामिकाओं में से एक), महाभारत उद्योग ४५.५(ब्राह्मण के १२ महाव्रतों के नाम - धर्मश्च सत्यं च तपो दमश्च अमात्सर्यं ह्रीस्तितिक्षानसूया। दानं श्रुतं चैव धृतिः क्षमा च महाव्रता द्वादश ब्राह्मणस्य ।।) mahaavrata/ mahavrata
महाशङ्ख भागवत ५.२४.३१(पाताल संज्ञक तल में स्थित नागों में से एक), १२.११.४१(सह/मार्गशीर्ष मास में सूर्य रथ पर महाशङ्ख नाग की स्थिति का उल्लेख), वामन ७२.३३(महाशङ्ख ग्राह की पत्नी शङ्खिनी द्वारा क्रतुध्वज के सात पुत्रों के स्खलित वीर्य का पान, अनन्तर उस वीर्य से सात मरुतों का जन्म ) mahaashankha/ mahashankha
महाशनि ब्रह्म २.५९(हिरण्य दैत्य का पुत्र, पराजिता व वारुणी - पति, इन्द्र का बन्धन व तिरस्कार, शिव - विष्णु रूप धारी पुरुष द्वारा महाशनि का हनन ) mahaashani/ mahashani
महाशाल मत्स्य २२.४२(महाशाल नदी : श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक), ४८.१३(जनमेजय - पुत्र, इन्द्र समान, महामना - पिता), वायु ९९.१५(वही), विष्णु ४.१८.६(वही),
महाशास्ता ब्रह्माण्ड ३.४.१०.७५(शिव के पतित वीर्य से महाशास्ता गण की उत्पत्ति का कथन), ३.४.१४.७(गणाग्रणी के रूप में महाशास्ता का उल्लेख), ३.४.३९.५७(वही)
महासरस्वती देवीभागवत ३.६.३२(त्रिगुणा प्रकृति द्वारा ब्रह्मा को रजोगुण युक्त महासरस्वती नामक स्वशक्ति प्रदान ) mahaasarasvatee/ mahasarasvati
महासुख विष्णुधर्मोत्तर १.१८९(शक्र पीडक , विष्णु द्वारा वध )
महासेन नारद १.६६.११०(महासेन की शक्ति विद्या का उल्लेख), भविष्य ३.२.१७.२(उज्जयिनी नगरी का एक राजा), शिव ४.३०.३४(निषध देश में वीरसेन - पिता), स्कन्द १.२.३६.५२(शिव द्वारा महासेन को सप्तम् मारुत स्कन्ध में वास स्थान देना), ५.३.१०९.२(महासेन का सेनापति पद पर अभिषेक होने से चक्रतीर्थ की सेनापुर नाम से प्रसिद्धि), कथासरित् २.३.३४(महेन्द्रवर्मा - पौत्र, जयसेन - पुत्र, चण्डिका को स्वमांस दान रूप चण्ड कर्म करने से चण्डमहासेन नाम की प्राप्ति, अङ्गारवती की पत्नी रूप में प्राप्ति), ३.१.११(महासेन नामक राजा को सन्ताप से गुल्म/रोग की प्राप्ति, निपुण वैद्य द्वारा उपचार), ८.६.५(राजा, अशोकवती - पति, गुणशर्मा ब्राह्मण का मित्र), ८.६.२४९(अज्ञान से महासेन राजा को विपत्ति प्राप्ति तथा गुणशर्मा को धैर्य द्वारा राज्यलक्ष्मी की प्राप्ति), १२.३४.४३(अलका नगरी के राजा महासेन के पुत्र सुन्दरसेन द्वारा मन्दारवती कन्या को प्राप्त करने का वृत्तान्त ) mahaasena/ mahasena
महाहनु ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८१(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.२६.४७(वही), मत्स्य ४६.१२(रोहिणी व आनकदुन्दुभि के पुत्रों में से एक), २४५.३१(बलि के अनुगामी प्रधान दैत्यों में से एक), मार्कण्डेय ८२.४१ (महिषासुर का सेनानी), स्कन्द ७.४.१७.८(भगवत्परिचारक वर्ग में पूर्व दिशा के रक्षकों में से एक ) mahaahanu/ mahahanu
महाहविविधि वायु १०१.१७९/२.३९.१७८(कालसूत्र नरक का दूसरा नाम )
महिदास गरुड ३.२२.८०(दाशों में महिदास हरि की स्थिति का उल्लेख)
महिनस भागवत ३.१२.१२(११ रुद्रों में से एक )
महिमा ब्रह्म २.८३.११(प्राचीनबर्हि - पुत्र, भव कृपा से जन्म), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.४(१० सिद्धि देवियों में से एक), ३.४.४४.१०८(अणिमा, लघिमा, महिमा आदि सिद्धियों का शरीर में अंस आदि में न्यास), वायु १३.१३(महिमा सिद्धि के अन्तर्गत सिद्ध योग का कथन), भागवत ६.१८.२(सिद्धि व भग के ३ पुत्रों में से एक ) mahimaa
महिमान मत्स्य ५१.३४(आयु अग्नि का पुत्र, दहन - पिता), वायु २९.३७(आयु - पुत्र, शावान अग्नि - पिता), लक्ष्मीनारायण ३.३२.२०(आरणेय अग्नि - पुत्र, सवन - पिता ) mahimaana
महिला वामन ९०.३३(महिला शैल पर विष्णु का महेश नाम ) mahilaa
महिष गणेश २.८७.५(व्योमासुर - भगिनी शतमाहिषा के विकृत स्वरूप का वर्णन, गणेश द्वारा शची रूप धारण कर वध), २.१०७.१०(कल - विकल दैत्यों का महिष रूप धारण कर इन्द्रयाग में आगमन, गणेश द्वारा वध), नारद १.९०.७१(जम्बीर द्वारा देवी पूजा से महिष सिद्धि का उल्लेख), पद्म १.३.१०५(महिष की ब्रह्मा के उदर से सृष्टि - अवयो वक्षसश्चक्रे मुखतोजांश्च सृष्टवान्। सृष्टवानुदराद्गाश्च महिषांश्च प्रजापतिः), ६.२१६.४४ (दुष्ट कलिङ्ग राजा का शप्त रूप, बदरी तीर्थ में स्नान से मुक्ति, कपिल की स्तुति), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५७(माहिषिक : दक्षिणापथ वासियों के जनपदों में से एक), १.२.१९.४०(शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक महिष पर्वत में महिष अग्नि के वास का उल्लेख), १.२.१९.४५(महिष पर्वत के मानस वर्ष का उल्लेख), १.२.२०.३९(षष्ठम तल में महिष के नगर का उल्लेख), २.३.३.७५(हंसकाली द्वारा महिषों को उत्पन्न करने का उल्लेख), २.३.६.२९(मय व रम्भा के ६ पुत्रों में से एक), २.३.६३.१४०(माहिषिक : सगर द्वारा धर्म से बहिष्कृत क्षत्रिय जातियों में से एक), २.३.७४.१८७(शङ्कमान के महिष प्रजा के अधिपति होने का उल्लेख - शङ्कमानोऽभवद्राजा महिषीणां महीपतिः ।), मत्स्य १२२.६८(पर्वत व वर्ष का नाम), वराह ९४.१३(देवासुर युद्ध में महिष का इन्द्र के साथ युद्ध), ९९.४(महिषासुर की विभिन्न मन्वन्तरों में नन्दा आदि देवियों द्वारा मृत्यु का कथन : महिष अज्ञान का रूप), ११४.४७(माहिषिक : दक्षिणापथ वासियों के जनपदों में से एक), वामन १७.४०(रम्भ - पुत्र महिष की उत्पत्ति की कथा), २२.२३(राजा कुरु द्वारा यम के पौण्ड्र संज्ञक महिष की सीरकर्षक रूप में प्राप्ति का उल्लेख), ५५.६९( चण्डमारी देवी द्वारा यम के पौण्ड्र नामक महिष के सर्पाकार विषाण /सींग उखाड कर युद्ध में प्रयोग करने का उल्लेख ), वायु ४४.१२(केतुमाल देश के जनपदों में से एक), ४५.१२५(माहिषक : दाक्षिणात्य देशों में से एक), ४९.३६(शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, वारिज महिष अग्नि का वास स्थान - षष्ठस्तु पर्वतस्तत्र महिषो मेघसन्निभः। यस्मिन् सोऽग्निर्निवसति महिषो नाम वारिजः ।।), ५०.३८(षष्ठम तल में महिष के नगर की स्थिति का उल्लेख), ६८.२८/२.७.२८(मय के पुत्रों में से एक), विष्णु ४.२४.६५(माहिष : गुह जाति द्वारा शासित देशों में से एक), शिव १.१७.६५(काल चक्र का रूप, अधर्म का वाहन, महिष के पाद आदि अङ्गों के रूपक का वर्णन, वृषभ से तुलना), ४.१९.१३(केदारेश्वर शिव के महिष स्वरूप का कथन - नयपाले शिरोभागो गतस्तद्रूपतः स्थितः), स्कन्द ३.१.२५.२२(वर्षा से वत्सनाभ ऋषि की रक्षार्थ धर्म द्वारा महिष रूप धारण), ५.१.९(हालाहल दैत्य का रूप, कपाल मातृकाओं द्वारा भक्षण), ५.२.६७.२४(तम तथा रज - बहुल मनुष्यों के भयार्थ शिव द्वारा महिष रूप धारण), ५.३.९२.१९(महिष के यम का वाहन होने, महिषियां यम की माताएं होने तथा महिषी दान की विधि), ६.१२२.१२(हिरण्याक्ष - प्रमुख पांच दैत्यों के वधार्थ शिव द्वारा धारित रूप, केदार नाम निरुक्ति - के दारयामि यत्प्रोक्तं त्वया महिषरूपिणा ॥ केदार इति नाम्ना त्वं ततः ख्यातो भविष्यसि ॥ ), ७.४.१७.१९(महिषार्क : भगवत्परिचारक वर्ग में याम्य दिशा के द्वारपालों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५०(अलक्ष्मी के नेत्र महिषी सदृश होने का उल्लेख), १.५३९.७३(पञ्च महिष के अशुभत्व का उल्लेख - एकच्छागं द्विगर्दभं गोत्रयं पञ्चमाहिषम् । षडश्वं वा सप्तगजं तद्गृहे वसतिर्हि वः ।।), ३.१६.५०(रुद्र ओज से उत्पन्न पौण्ड्रक महिष के यम का वाहन होने का उल्लेख), कथासरित् १०.६.२१३(महिष मूर्ख की कथा), १२.१.४५(वामदत्त की कथा के अन्तर्गत वामदत्त द्वारा पत्नी की प्रताडना से महिष रूप धारण, योगिनी की कृपा से महिष रूप से मुक्ति ), शौ.अ. ५.२६.२(युनक्तु देवः सविता प्रजानन् अस्मिन् यज्ञे महिषः स्वाहा), द्र. भूगोल mahisha
महिषासुर देवीभागवत ५.२(रम्भ व महिषी - पुत्र, महिषासुर की उत्पत्ति की कथा), ५.२.८(महिषासुर द्वारा अवध्यता वर की प्राप्ति), ५.२.१६(रम्भ व महिषी से महिषासुर के जन्म का वृत्तान्त), ५.३+ (महिषासुर द्वारा इन्द्रलोक को जीतने का उद्योग), ५.६(महिषासुर का देवों से युद्ध, स्वर्ग पर अधिकार), ५.८.२८(महिषासुर के वधार्थ देवों के तेज से नारी की उत्पत्ति का वृत्तान्त), ५.१६+ (महिषासुर का देवी से वार्तालाप, मन्दोदरी - कन्या की दुर्गति के दृष्टान्त का कथन, देवी द्वारा महिषासुर का वध), ५.१८.२६(देवी व महिष के युद्ध का आरम्भ, देवी द्वारा सहस्रार चक्र से दानव का वध), भविष्य ३.४.१६.१६(विष्णु कल्प में उत्पन्न महिषासुर दानव का देवी द्वारा वध), ४.६१.३(रक्तासुर - पिता), भागवत ६.१८(अनुह्राद व सूर्म्या - पुत्र), ८.१०.३२(महिषासुर का विभावसु से युद्ध), मत्स्य १४८.४७(तारक - सेनानी महिषासुर के ध्वज पर स्वर्ण निर्मित शृगाल के चित्र का अंकन - महिषस्य तु गोमायुङ्केतोर्हैमं तदा भवत्।), १५२.१७(तारक - सेनानी, गरुड व विष्णु से युद्ध), मार्कण्डेय ८२(असुरों के स्वामी महिषासुर का देवों को पराजित कर स्वयं स्वर्गलोक का इन्द्र बनना, त्रस्त देवों की ब्रह्मा, विष्णु व महेश से रक्षार्थ प्रार्थना, महिषासुर के वधार्थ देवी का प्राकट्य, युद्ध), वराह ९३+ (महिष द्वारा मन्त्रियों से वैष्णवी देवी के विषय में परामर्श), ९५(महिषी से महिषासुर के जन्म का प्रसंग), ९५.५६(वैष्णवी देवी द्वारा महिषासुर का वध), ९९.४(महिषासुर की विभिन्न मन्वन्तरों में विभिन्न देवियों द्वारा मृत्यु का कथन - स्वायम्भुवे हतो दैत्यो वैष्णव्या मन्दरे गिरौ । महिषाख्यः परः पश्चात्स वै चैत्रासुरो हतः । नन्दया निहतो विन्ध्ये महाबलपराक्रमः ।।), ९९.६(अज्ञान रूप महिषासुर के ज्ञान रूप शक्ति द्वारा वध का उल्लेख), वामन २०(कात्यायनी से युद्ध में महिषासुर की मृत्यु), ५८.११०(महिषासुर द्वारा क्रौञ्च पर्वत में प्रवेश, स्कन्द द्वारा वध), शिव २.१.२.८(काम के महिषासुर का समधी होने का उल्लेख), २.५.५७.३(गजासुर - पिता), ५.४६(रम्भासुर - पुत्र, देवों के शरीर से उत्पन्न देवी द्वारा वध), स्कन्द १.२.१६.१८(महिषासुर के ध्वज व वाहन का उल्लेख - महिषस्य च गोमायुः कांतो हैमस्तथा बभौ॥), १.२.१८.६३(महिषासुर द्वारा निर्ऋति व वरुण के ग्रसन का उद्योग), १.३.१.१०.४४(महिषासुर का तपोरत पार्वती के पास वृद्ध ब्राह्मण के रूप में आगमन, पार्वती से युद्ध), १.३.२.२९(महिषासुर की तपोरत पार्वती पर आसक्ति, दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध), ३.१.६.१४(महिषी से महिषासुर की उत्पत्ति, देवों से युद्ध, दुर्गा द्वारा वध), ४.२.६८.३(गजासुर - पिता), ४.२.८४.३३(महिषासुर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.११९.४(हिरण्याक्ष - पुत्र, दुर्वासा के शाप से महिष रूप की प्राप्ति, शिव से वर की प्राप्ति), ७.१.८३(महिषासुर मर्दन हेतु देवों द्वारा स्त्री का निर्माण, महिषासुर द्वारा स्त्री प्राप्ति का उद्योग, स्त्री रूपा देवी द्वारा महिषासुर का वध), ७.३.३६(चण्डिका द्वारा महिषासुर का वध), लक्ष्मीनारायण १.१६३(रम्भ व महिषी से महिषासुर के जन्म का वृत्तान्त, महिषासुर वध हेतु देवों के तेज से कात्यायनी देवी की उत्पत्ति), १.१६४(महिषासुर द्वारा कात्यायनी को जीतने के लिए स्व सेनानियों का प्रेषण, अन्त में कात्यायनी द्वारा महिषासुर के वध का वृत्तान्त), १.१६५.२८(कुण्ढी - पति ) mahishaasura/ mahishasura
महिषी गरुड २.४.३१(महिषी दान का फल), नारद १.६६.१३१(द्विजिह्व गणेश की शक्ति महिषी का उल्लेख), भविष्य ४.१६२(महिषी दान विधि), वायु ४४.२२(केतुमाल देश की नदियों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर २.७.१(राजा की अग्रमहिषी के लक्षणों का कथन), स्कन्द ३.१.६.११(दिति - पुत्री द्वारा महिषी रूप धारण कर तपश्चरण, सुपार्श्व मुनि द्वारा महिष मुख प्राप्ति का आश्वासन, महिषासुर की उत्पत्ति), ५.३.१०३.१४९(गोविन्द ब्राह्मण की कथा में पशुपाल द्वारा अरण्य में महिषियों की रक्षा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.७७.३८(महिषी दान से राजा द्वारा पाश व शूल पर आरोपण से उत्पन्न पाप से मुक्ति का उल्लेख ) mahishee/ mahishi
महिष्मान् ब्रह्माण्ड २.३.६९.५(संज्ञेय - पुत्र, भद्रसेन - पिता, यदु/हैहय वंश), भागवत ९.२३.२२(सोहञ्जि - पुत्र, भद्रसेनक - पिता, यदु/हैहय वंश), मत्स्य ४३.१०(संहत - पुत्र, रुद्रश्रेण्य - पिता, यदु/हैहय वंश), वायु ९४.५/२.३२.५ (संज्ञेय - पुत्र, भद्रसेन - पिता, यदु/हैहय वंश ) mahishmaan
मही गरुड ३.२२.८०(मही में उपेन्द्र की स्थिति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१९.६२(कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक), मत्स्य २७१.२८(महीनेत्र : भविष्य के राजाओं में से एक, ३३ वर्ष राज्य करने का उल्लेख), वामन ५७.९५(मही द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), विष्णु १.४.७(जल के अन्तस्थ मही के उद्धार हेतु प्रजापति द्वारा मत्स्य, कूर्म, वराह आदि रूप धारण करने का कथन), १.४.४९(महावराह द्वारा मही का जल से उद्धार), १.८.७(८ रुद्रों में से एक शर्व का वास स्थान), २.४.४३(कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक), स्कन्द १.२.३.२३(मही नदी द्वारा सागर से सङ्गम करने पर महीसागर सङ्गम नाम, सङ्गम का माहात्म्य), १.२.५.२९(योग्य ब्राह्मण की खोज में नारद का १२ प्रश्नों का गान करते हुए सम्पूर्ण मही पर विचरण), १.२.५२.४(ब्रह्मा के स्मरण करने पर महीतल से ७० लाख तीर्थों का आगमन, कोटि तीर्थ के निर्माण का वृत्तान्त ), द्र भूगोल mahee/ mahi
महीजित् पद्म ६.५५(माहिष्मती पुरी का राजा, पुत्र प्राप्ति हेतु एकादशी व्रत का अनुष्ठान, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ) maheejit/ mahijit
महीधर वामन ९०.१०(दक्षिण गिरि तीर्थ में विष्णु का महीध्र नाम से वास), लक्ष्मीनारायण २.१४०.९५(महीधर नामक प्रासाद के लक्षण), कथासरित् १.७.१०३(देवदत्त - पुत्र, सुशर्मा - दौहित्र), १६.२.१३७(नागस्थल ग्राम वासी एक ब्राह्मण, बलधर - पिता ) maheedhara/ mahidhara
महीपति भविष्य ३.३.१३.९४(सुयोधन का अवतार), ३.३.२२.२८(दुर्योधन का अंश), ३.३.२६.१(महीपति द्वारा राजा परिमल व पृथ्वीराज के बीच मिथ्या संवाद द्वारा युद्ध कराना), ३.३.३२.२४१(बलि के सैनिकों द्वारा महीपति का लुंठन ) maheepati/ mahipati
महीपाल कथासरित् ९.६.७(चन्द्रस्वामी व देवमति - पुत्र, जन्म समय में महीपाल के राजा होने की आकाशवाणी), ९.६.१२३(कृष्ण सर्प द्वारा महीपाल का दंशन, पिता चन्द्रस्वामी द्वारा देवी - प्रदत्त कमल से महीपाल को जीवन प्रदान ) maheepaala/ mahipala
महीरथ पद्म ५.९९(कश्यप द्वारा महीरथ नृप हेतु कृमियों व शरीर की अनित्यता का वर्णन, महीरथ का यमदूतों से नरक विषयक संवाद ) maheeratha/ mahiratha
महीसागर स्कन्द १.२.६.९(नारद द्वारा महीसागर सङ्गम पर ब्राह्मणों को स्थान दान देने की इच्छा प्रकट करना, स्थान पर चोरों के प्रकोप तथा चोर के प्रतीक का कथन), १.२.५८(स्व - प्रख्याति करने के कारण धर्म द्वारा महीसागर सङ्गम को शाप, गुह द्वारा स्व - प्रख्याति का समर्थन, धर्म द्वारा क्षमा याचना, स्तम्भ ) maheesaagara/ mahisagara
महेन्द्र गरुड १.२००(शरीर के मध्य में स्थित महेन्द्र तत्त्व की शुक्ल व कृष्ण पक्ष में स्थितियों का कथन), देवीभागवत ७.३८.२५(महेन्द्र पर्वत पर महान्तका देवी के वास का उल्लेख), ९.२२.३(महेन्द्र का शंखचूड - सेनानी वृषपर्वा से युद्ध), ब्रह्माण्ड २.३.१३.१७(पिण्डदान हेतु महेन्द्र पर्वत का महत्त्व), भविष्य ३.४.२५.२३(ब्रह्मा के अर्ध मुख से महेन्द्र की उत्पत्ति आदि का कथन), मत्स्य ११४.३१(महेन्द्र पर्वत से उद्भूत नदियां), वाम ५६.८(माहेन्द्री मातृका की देवी के स्तनमण्डल से उत्पत्ति ), ९०.११(महेन्द्र तीर्थ में विष्णु का सोमपीथ नाम से वास), वायु ५०.१८(माहेन्द्र : प्रथम तल के निवासी नागों में से एक), ७७.१७/२.१५.१७(महेन्द्र पर्वत पर बिल्व शिखर के नीचे श्राद्ध से दिव्य चक्षुओं के प्रवर्तन का कथन), ९९.३८६/२.३७.३८०(महेन्द्रनिलय : गुह द्वारा पालित जनपदों में से एक), शिव २.५.३६.७(महेन्द्र का शङ्खचूड - सेनानी वृषपर्वा से युद्ध), स्कन्द १.२.४५.१०७(वृत्र वध के पश्चात् इन्द्र द्वारा महेन्द्र पर्वत पर शिव लिङ्ग की स्थापना और पाप से मुक्ति का उल्लेख), ५.३.१३.४३(२१ कल्पों में से एक का नाम), ६.२५२.१९(चातुर्मास में यव में महेन्द्र की स्थिति का उल्लेख), ७.१.१०.१०(माहेन्द्र तीर्थ का वर्गीकरण – वायु), ७.१.३३४(महेन्द्र दानव द्वारा तप, शिव से युद्ध, शिव ज्वाला से उत्पन्न तल द्वारा महेन्द्र का वध), हरिवंश ३.३५.२१(वराह भगवान् द्वारा पर्वतराज महेन्द्र का निर्माण), वा.रामायण १.७६.१५(राम द्वारा परशुराम के पुण्य लोकों का क्षय, परशुराम का महेन्द्र पर्वत पर लौटना), ४.६७(समुद्र लङ्घन हेतु हनुमान का महेन्द्र पर्वत पर आरोहण), ५.१.११(समुद्र लङ्घन के समय हनुमान के चरणों से महेन्द्र का पीडन), ५.५७.१४(हनुमान का समुद्र के उत्तर तटवर्ती महेन्द्र गिरि को देखकर प्रसन्नतावश सिंह सदृश गर्जन), लक्ष्मीनारायण १.३१३(मन्दिर में देवद्रव्य का अपहरण करने वाले विप्र देवयव व उसकी पत्नी देवतुष्टा का पुरुषोत्तम मास की षष्ठी व्रत के प्रभाव से महेन्द्र व महेन्द्राणी बनने का वृत्तान्त), १.४०७.२४(देवों द्वारा असुरों के नाश पर शुक्र - पत्नी ख्याति द्वारा महेन्द्र को जड करना, विष्णु द्वारा महेन्द्र को स्वयं में लीन करके रक्षा करना), १.४४१.८२(महेन्द्र का यव वृक्ष के रूप में अवतरण), १.५४७.५६(कायानगर में त्रिगुणात्मिका बुद्धि दासी द्वारा अपने वक्ष पर महेन्द्र की रक्षा करने, महेन्द्र के बार - बार दस्युओं के आधीन होने और नृप पुरुष द्वारा महेन्द्र की सहायता का वर्णन), २.१४०.८२(महेन्द्र नामक प्रासाद के लक्षण), २.१४०.९४(महेन्द्र नामक प्रासाद के लक्षण), ३.८.५६(प्राणरोधन वत्सर में श्रीहरि द्वारा महेन्द्रभीषण राजा के वध का कथन), ३.३३.८७(मेरु के पश्चिम् में उत्तर - दक्ष रूप में आयत मैरव महेन्द्र की स्थिति का उल्लेख), कथासरित् २.३.३३(महेन्द्रवर्मा : उज्जयिनी का राजा, जयसेन - पिता, महासेन - पितामह), १२.६.३८०(महेन्द्रशक्ति : उपेन्द्रशक्ति - पुत्र, तपस्वी द्वारा ताडन से उन्माद रोग से मुक्ति), १२.३४.१६६(महेन्द्रादित्य : शशाङ्कपुर नगर का राजा, नगरागमन पर सुन्दरसेन का सत्कार), १८.१.११(महेन्द्रादित्य : उज्जयिनी का राजा, शिव का अंश स्वरूप, सौम्यदर्शना - पति, विक्रमादित्य - पिता ), द्र. भूगोल, माहेन्द्र mahendra
महेश वामन ९०.३३(महिला शैल पर विष्णु का महेश नाम), स्कन्द ४.२.७२.५५(महेशी द्वारा उत्तर दिशा की रक्षा ) mahesha
महेश्वर अग्नि २१४.३१(महेश्वर की ललाट में स्थिति, सकल परमात्मा के ५ रूपों में से एक), ३४८.३(औ एकाक्षर महेश्वर का वाचक), नारद १.६६.१०७(महेश्वर की शक्ति वर्तुला का उल्लेख ), पद्म ३.१३.१३(अमरकण्टक पर्वत पर स्थित महेश्वर तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), ६.१२५.७(पार्वती के पूछने पर महेश द्वारा माघ मास के माहात्म्य का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.४९(महेश्वर से मुख की रक्षा की प्रार्थना), भागवत १०.६३.२३(बाणासुर युद्ध के प्रसंग में माहेश्वर व वैष्णव ज्वरों का युद्ध), मत्स्य ५६.२(माघ कृष्ण अष्टमी को महेश्वर की अर्चना का निर्देश), ९५(माहेश्वर व्रत की विधि, मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी व्रत, शङ्कर का न्यास), २९०.१०(माहेश्वर संज्ञक २९वें कल्प में त्रिपुरघात का उल्लेख), वामन ९०.२३(प्रयाग में विष्णु का महेश्वर नाम), वायु १०३.३६/२.४३.३६(अव्यक्त कारण से प्रधान व पुरुष से महेश्वर के जन्म का कथन), १०३.७३/२.४१.७३ (महेश्वर के अव्यक्त व व्यक्त स्वरूप का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८२(महेश्वर व्रत की संक्षिप्त विधि), शिव ७.२.२९.९(शैवों के ज्ञान यज्ञ में तथा माहेश्वरों के कर्म यज्ञ में रत होने का उल्लेख), स्कन्द ३.३.१२.१९(महेश्वर से दिन के प्रथम याम में रक्षा की प्रार्थना - महेश्वरः पातु दिनादियामे मां मध्ययामेऽवतु वामदेवः ।।), ५.३.१९८.८०(महेश्वर पुर में देवी का स्वाहा नाम से वास), ७.१.१०५.५१(२९वें कल्प का नाम), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२६(कृष्ण व मञ्जुला के पुत्र महेश्वर व पुत्री मातङ्गिनी का उल्लेख ) maheshwara
महेश्वरी मत्स्य १३.४१(महाकाल में देवी का महेश्वरी नाम से वास), स्कन्द ४.२.७१.१०४(महेश्वरी / विन्ध्यवासिनी देवी का दुर्ग असुर से युद्ध व देवी द्वारा असुर का वध), ५.३.१९८.७९(महाकाल में देवी का महेश्वरी नाम से वास ) maheshwaree/ maheshwari
महोग्र ब्रह्माण्ड २.३.७.९१(प्रहेति के ३ पुत्रों में से एक )
महोत्कट गणेश १.८९.८(काम द्वारा गणेश की महोत्कट नाम से आराधना), २.६.४३(कश्यप व अदिति - पुत्र विनायक गणेश का अवतार), २.७.१३(विरजा राक्षसी द्वारा महोत्कट गणेश का भक्षण, महोत्कट द्वारा जठर विदारण), २.८.१(महोत्कट द्वारा शुक रूप धारी राक्षस द्वय उद्धत व धुन्धु का वध), २.८.२१(महोत्कट द्वारा नक्र का वध, नक्र के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), २.९.१२(महोत्कट द्वारा अतिथियों की पञ्च मूर्तियों को नष्ट करने व स्वयं को पञ्चमूर्ति रूप में प्रदर्शित करने का वृत्तान्त), २.१०.१०(महोत्कट द्वारा अक्षतों में छिपे ५ राक्षसों का वध), २.१०.२३(उपनयन संस्कार के समय वसिष्ठ, बृहस्पति, कुबेर आदि द्वारा भेंट व नामकरण का वर्णन), २.११.१८(इन्द्र द्वारा महोत्कट की परीक्षा, महोत्कट द्वारा इन्द्र को असंख्य लोचनों आदि का दर्शन),२.१२.१५(महोत्कट गणेश का काशीराज के साथ प्रस्थान, मार्ग में धूम्राक्ष आदि राक्षसों का वध), २.२३.२६(महोत्कट गणेश द्वारा १० भुजाओं से शुक्ल द्विज के गृह में ओदन भक्षण), २.८५.१९(महोत्कट गणेश से मस्तक की रक्षा की प्रार्थना), स्कन्द ४.२.६९.२३(महोत्कटेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) mahotkata
महोत्पात कथासरित् ८.५.२७(महोत्पात दोहन का प्रहस्त के साथ द्वन्द्व युद्ध), ८.७.१४(महोत्पात का सिद्धार्थ के साथ द्वन्द्व युद्ध, भग देवता द्वारा रक्षा )
महोत्पला स्कन्द ५.३.१९८.७२(हिरण्याक्ष में देवी का महोत्पला नाम से वास )
महोदय पद्म १.३८.१८७(राम द्वारा महोदय पर्व में गङ्गातीर पर वामन की प्रतिष्ठा), २.१११.४(हुण्ड असुर के महोदय पुर की शोभा का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१९.३९ (कङ्क पर्वत के सुमहोदय वर्ष का उल्लेख), वामन ९०.१४(महोदय तीर्थ में विष्णु का हयग्रीव नाम से वास), ९०.२९(कोशल तीर्थ में विष्णु का महोदय नाम), वायु ३४.९०(मेरु के सप्तम अन्तरतल में नक्षत्राधिपति की वैदूर्य वेदिका रूपी महोदया नामक सभा का कथन), स्कन्द ३.१.३०.११७(धनुषकोटि में अर्द्धोदय – महोदय तीर्थ का माहात्म्य), ४.१.२९.१३३(महोदया : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ७.१.३२७(महोदय तीर्थ का माहात्म्य), वा.रामायण १.३१.४(कुशनाभ की राजधानी महोदया होने का उल्लेख), १.५९.१२(महोदय ऋषि द्वारा त्रिशङ्कु के सशरीर स्वर्ग गमन हेतु यज्ञ में आने की अस्वीकृति पर विश्वामित्र द्वारा शाप), ६.१०१(हनुमान द्वारा ओषधि लाने के संदर्भ में महोदय पर्वत को लाने का प्रसंग ) mahodaya
महोदर गणेश २.८५.२०(महोदर गणेश से भ्रूयुग की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड २.३.८.५५(पुष्पोत्कटा के ४ पुत्रों में से एक), २.३.२४.५०(शम्भु द्वारा महोदर को तपोरत परशुराम को लाने का आदेश), २.३.२५.४६(परशुराम द्वारा शिव से प्राप्त रथ, चाप आदि को महोदर की रक्षा में सौंपने का कथन), २.३.४६.११(परशुराम द्वारा कार्तवीर्य के वध हेतु महोदर से रथ, चाप आदि की प्राप्ति), मत्स्य १७९.३१(महोदरी : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु ६८.१०/२.७.१०(दनु के प्रधान पुत्रों में से एक), स्कन्द ४.२.५३.३५(शिव द्वारा दिवोदास - पालित काशी की स्थिति जानने के लिए महोदर गण का प्रेषण, महोदर लिङ्ग की स्थापना), ४.२.७४.५६(महोदर गण द्वारा काशी में पश्चिम् द्वार की रक्षा), ७.४.१७.२७(भगवत्परिचारक वर्ग के अन्तर्गत प्रतीची दिशा के रक्षकों में से एक), वा.रामायण ६.५९.१७(रावण - सेनानी, स्वरूप का कथन), ६.६४(महोदर द्वारा रावण को सीता को छल से वश में करने का परामर्श), ६.६९.२०(सुदर्शन नाग का वाहन), ६.७०(नील द्वारा महोदर का वध), ६.९७(सुग्रीव द्वारा युद्ध में महोदर का वध), लक्ष्मीनारायण २.८६.४१(विश्रवा व पुष्पोत्कटा के पुत्रों में से एक ) mahodara
महोल लक्ष्मीनारायण ४.११८(श्रीहरि के रङ्गमहोल आदि १६ महोलों/महलों के वैभव का वर्णन )
महौघ कथासरित् ८.५.९६(श्रुतशर्मा का महारथी, त्वष्टा देव का अंश )
महौजा ब्रह्माण्ड १.२.३६.११(तुषित गण के १२ देवों में से एक), २.३.७१.१७३ (भद्रा व वसुदेव के ४ पुत्रों में से एक), वायु ९६.१७१/२.३४.१७१(वही), स्कन्द ७.३.५९(महौजस तीर्थ का प्रभाव : ब्रह्महत्या से निस्तेज हुए इन्द्र को तेज की प्राप्ति ) mahaujaa