भगवान शिवस्य तान्त्रिक उपासना
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारु-चन्द्रावतंसं,
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशु-मृग-वराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं,
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥
इस ध्यान पद्य के अनुसार हिमगिरि के समान, चक्रधर, रत्न
जैसी उज्ज्वल देह, चारों हाथों में परशु, मृग, वर और अभय
मुद्रा को धारण किए हुए, प्रसन्न, पद्म पर विराजमान, देवगणों से
स्तुत व्याघ्रचर्म पहने हुए सर्वादि, सर्ववन्द्य, समस्त श्रमहारी,
पञ्चमुख एवं त्रिनेत्र रूप शिव प्रसिद्ध हैं । किन्तु एक मुख
और एकादशमुख श्री शिव को भी माना गया है । शिवोपासना के लिए
पञ्चाक्षर अथवा षडक्षर-मन्त्र `` ॐ नमः शिवाय'' की सर्वोपरि
महत्ता है । यह पञ्चमहाफल-प्रद है । हेतवे जगतामेव
संसारार्णव-सेतवे । प्रभवे सर्वविद्यानां शम्भवे गुरवे नमः ।
इसके अनुसार शिव समस्त विद्याओं के अधिपति हैं और सब के गुरु
हैं । आगमों की सृष्टि ही शिव और पार्वती के द्वारा संवाद के रूप
में हुई है ।
रुद्रयामल में ``पार्थिव-पूजा'' को सभी विद्याओं की साधना का
अधिकार-प्राप्त करने का आधार'' माना है । अतः यहां हम उसका पूजा-
विधान प्रस्तुत कर रहे हैं- ``पार्थिव-पूजा'' विधान सङ्कल्प-
''अद्येत्यादि'' (पूरा सङ्कल्प बोलकर) मम (अमुक) देवता पूजनाधिका
रसिद्ध्यर्थं पार्थिवलिङ्गपूजनमहं करिष्ये । ऐसा सङ्कल्प
करके मृत्तिका के स्थान पर भूमि की प्रार्थना करे-
ॐ सर्वाधारधरे देवि त्वद्रूपां मृत्तिकामिमाम् ।
ग्रहीष्यामि प्रसन्ना त्वं लिङ्गार्थं भव सुप्रभे ॥
इस पद्य से प्रार्थना करके `` ॐ हराय नमः'' बोलते हुए पवित्र
स्थान से स्वच्छ मिट्टी ग्रहण करे । फिर `` ॐ महेश्वराय नमः''
इस मन्त्र से उसे सान्ध ले । `` ॐ शूलपाणये नमः'' बोलकर अपने
सामने पीठ पर शिवलिङ्ग बनाकर रखे । उसके बाद `` ॐ '' मन्त्र
से तीन प्राणायाम करे और पूजन के लिए विनियोग करे ।
विनियोग - अस्य श्रीसाम्बसदाशिव पूजन मन्त्रस्य वामदेव
ऋषिः पङ्क्तिश्छन्दः श्रीशिवो देवता ॐ बीजं नमः शक्तिः शिवाय कीलकं
मम श्रीसाम्बसदाशिव प्रीत्यर्थं पूजने विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास -
वामदेव ऋषये नमः (शिरसि),
पङ्क्तिश्छन्दसे नमः (मुखे),
श्रीशिवदेवतायै नमः (हृदये),
ॐ बीजाय नमः (गुह्ये),
नमः शक्तये नमः (पादयोः),
शिवाय कीलकाय नमः (नाभौ),
विनियोगाय नमः (सर्वाङ्गे) ।
करन्यासः-
ॐ ॐ अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ नं तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
ॐ मं मध्यमाभ्यां वषट् ।
ॐ शिं अनामिकाभ्यां हुम् ।
ॐ वां कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ।
ॐ यं करतल करपृष्ठाभ्यां फट् ।
हृदयादिन्यासः-
ॐ ॐ हृदयाय नमः ।
ॐ नं शिरसे स्वाहा ।
ॐ मम्ं शिखायै वषट् ।
ॐ शिं कवचाय हुम् ।
ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ यं अस्त्राय फट् ॥
ध्यानम्-
शान्तं पद्मासनस्थं शशिधरमुकुटं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं,
शूलं वज्रं च खड्गं परशुमभयदं दक्षभागे वहन्तम् ।
नागं पाशं च घण्टां प्रलयहुतवहं साङ्कुशं वामभागे,
नानालङ्कारदीप्तं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ॥
इस से ध्यान करके मानस उपचारों से पूजन कर पात्रस्थापना करे
। तत्पश्चात् चैतन्यमूर्तिकल्पना पुष्पाञ्जलि द्वारा कर के `ॐ
पिनाकपाणे साम्ब इहागच्छागच्छ, इह तिष्ठ तिष्ठ सन्निधत्स्व
ममेष्टं साधय पूजां गृहाण हूं पिनाकपाणये नमः'' इसके द्वारा
आवाहन तथा प्राणप्रतिष्ठा करे और इस स्तोत्र का पाठ करे-
ॐ सर्वज्ञ ज्ञान-विज्ञान-प्रदानैक-महात्मने ।
नमस्ते देवदेवेश सर्वभूत-हिते रत ॥ १॥
अनन्तकीर्ति-सम्पन्न अनेकासन-संस्थित ।
अनेककान्ति-संयोग परमेश नमोऽस्तु ते ॥ २॥
परात्पर मदातीत उत्पत्ति-स्थिति-कारक ।
सर्वार्थसाधनोपाय विश्वेश्वर नमोऽस्तु ते ॥ ३॥
स्वभाव-निर्मलाभोग सर्वव्याधि-विनाशन ।
योगि-योगि-महायोगि-योगीश्वर नमोऽस्तुते ॥ ४॥
यह स्तोत्र पढ़कर शिवजी को प्रणाम करे तथा ``ॐ नमः शिवाय''
इस मन्त्र से प्रतिष्ठापित लिङ्ग की स्नानादि-पूजा करे । तदनन्तर पीठ
पर अपने सामने से अष्टमूर्ति शिव की गन्धाक्षत द्वारा नीचे बताये
मन्त्रों को बोलते हुए पूजा करे-
१. ॐ शर्वाय क्षितिमूर्तये नमः ।
२. ॐ भवाय जलमूर्तये नमः ।
३. ॐ रुद्रायाग्निमूर्तये नमः ।
४. ॐ उग्राय वायुमूर्तये नमः ।
५. ॐ भीमायाकाशमूर्तये नमः ।
६. ॐ पशुपतये यजमानमूर्तये नमः ।
७. ॐ महादेवाय सोममूर्तये नमः ।
८. ॐ ईशानाय सूर्याय नमः ।
और प्रणालिका में ``श्री उमायै नमः'' से पार्वती की पूजा करे । इसके
अनन्तर ``साङ्गाय सपरिवाराय श्रीशिवाय नमः'' कहकर तीन बार
शिवलिङ्ग पर गन्धाक्षत चढ़ाये तथा `` ॐ नमः शिवाय'' मन्त्र
से धूप, दीप, नैवेद्य कर आरती और पुष्पाञ्जलि करे ।
प्राणायाम और ऋष्यादि-षडङ्ग-न्यास-
पूर्वक जप करे तथा क्षमा प्रार्थना करे-
अङ्गहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं महेश्वर ।
पूजितोऽसि महादेव तत्क्षमस्व ममाकृतम् ॥
अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं, भवान् नाथ दाता त्वदन्यं न याचे ।
भवद्भक्तिमन्तःस्थिरां देहि मह्यं, कृपाशील शम्भो कृतार्थोऽस्मि
तस्मात् ॥
इति भगवान शिवस्य संक्षिप्त तान्त्रिक उपासना समाप्ता ।
Proofread by Aruna Narayanan