श्रीशिवस्तुतिः स्कन्दप्रोक्तम्

श्रीशिवस्तुतिः स्कन्दप्रोक्तम्

स्कन्द उवाच - नमः शिवायास्तु निरामयाय नमः शिवायास्तु मनोमयाय । नमः शिवायास्तु सुराचिताय तुभ्यं सदा भक्तकृपापराय ॥ १॥ स्कन्दजी बोले - जो सब प्रकारके रोग-शोकसे रहित हैं, उन कल्याणस्वरूप भगवान शिवको नमस्कार है । जो सबके भीतर मनरूपसे निवास करते हैं, उन भगवान शिवको नमस्कार है । सम्पूर्ण देवताओंसे पूजित भगवान शंकरको नमस्कार है । भक्तजनोंपर निरन्तर कृपा करनेवाले आप भगवान महेश्वरको नमस्कार है ॥ १॥ नमो भवायास्तु भवोद्भवाय नमोऽस्तु ते ध्वस्तमनोभवाय । नमोऽस्तु ते गूढमहाव्रताय नमोऽस्तु मायागहनाश्रयाय ॥ २॥ सबको उत्पत्तिके कारण भगवान भवको नमस्कार है । भगवन्! आप भवके उद्भव (संसारके स्रष्टा) हैं, आपको नमस्कार है । कामदेवका विध्वंस करनेवाले आपको नमस्कार है । आप गूढ़ भावसे महान व्रतका पालन करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है । आप मायारूपी गहन वनके आश्रय हैं अथवा सबको आश्रय देनेवाला आपका स्वरूप योगमायासमावृत होनेके कारण दुर्बोध है, आपको नमस्कार है ॥ २॥ नमोऽस्तु शर्वाय नमः शिवाय नमोऽस्तु सिद्धाय पुरातनाय । नमोऽस्तु कालाय नमः कलाय नमोऽस्तु ते कालकलातिगाय ॥ ३॥ प्रलयकालमें जगतका संहार करनेवाले । 'शर्व' नामधारी आपको नमस्कार है । शिवरूप आपको नमस्कार है। आप पुरातन सिद्धरूप हैं, आपको नमस्कार है । कालरूप आपको नमस्कार है। आप सबको कलना (गणना) करनेवाले होनेके कारण ऽकलऽ नामसे प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है । आप कालकी कलाका अतिक्रमण करके उससे बहुत दूर रहते हैं, आपको नमस्कार है ॥ ३॥ नमो निसर्गात्मकभूतिकाय नमोऽस्त्वमेयोक्षमहर्द्धिकाय । नमः शरण्याय नमोऽगुणाय नमोऽस्तु ते भीमगुणानुगाय ॥ ४॥ आप स्वाभाविक ऐश्वर्यसे सम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है । आप अप्रमेय महिमावाले वृषभ तथा महासमृद्धिसे सम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है । आप सबको शरण देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप ही निर्गुण ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है । आपके अनुगामी सेवक भयानक गुणसम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है ॥ ४॥ नमोऽस्तु नानाभुवनाधिकर्त्रे नमोऽस्तु भक्ताभिमतप्रदात्रे । नमोऽस्तु कर्मप्रसवाय धात्रे नमः सदा ते भगवन् सुकर्त्रे ॥ ५॥ नाना भुवनोंपर अधिकार रखनेवाले आपको नमस्कार है । भक्तोंको मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले आपको नमस्कार है । भगवन्! आप ही कमोँका फल देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है । आप ही सबका धारण-पोषण करनेवाले धाता तथा उत्तम कर्ता हैँ, आपको सर्वदा नमस्कार है ॥ ५॥ अनन्तरूपाय सदैव तुभ्यमसह्यकोपाय सदैव तुभ्यम् । अमेयमानाय नमोऽस्तु तुभ्यं वृषेन्द्रयानाय नमोऽस्तु तुभ्यम् ॥ ६॥ आपके अनन्त रूप हैं, आपका कोप सबके लिये असह्य है, आपको सदैव नमस्कार है । आपके स्वरूपका कोई माप नहीं हो सकता, आपको नमस्कार है । वृषभेन्द्रको अपना वाहन बनानेवाले आप भगवान महेश्वरको नमस्कार है ॥ ६॥ नमः प्रसिद्धाय महौषधाय नमोऽस्तु ते व्याधिगणापहाय । चराचरायाथ विचारदाय कुमारनाथाय नमः शिवाय ॥ ७॥ आप सुप्रसिद्ध महौषधरूप हैं, आपको नमस्कार है । समस्त व्याधियोंका विनाश करनेवाले आपको नमस्कार है । आप चराचरस्वरूप, सबको विचार तत्त्वनिर्णयात्मिका शक्ति देनेवाले, कुमारनाथके नामसे प्रसिद्ध तथा परम कल्याणस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ॥ ७॥ ममेश भूतेश महेश्वरोऽसि कामेश वागीश बलेश धीश । क्रोधेश मोहेश परापरेश नमोऽस्तु मोक्षेश गुहाशयेश ॥ ८॥ प्रभो ! आप मेरे स्वामी हैं, सम्पूर्ण भूतोंके ईश्वर एवं महेश्वर हैं । आप ही समस्त भोगोंके अधिपति हैं। वाणी, बल और बुद्धिके अधिपति भी आप ही हैं । आप ही क्रोध और मोहपर शासन करनेवाले हैं । पर और अपर (कारण और कार्य) -के स्वामी भी आप ही हैं । सबकी हृदयगुहामें निवास करनेवाले परमेश्वर तथा मुक्तिके अधीश्वर भी आप ही हैं, आपको नमस्कार है ॥ ८॥ ये च सायं तथा प्रातस्त्वत्कृतेन स्तवेन माम् । स्तोष्यन्ति परया भक्त्या श‍ृणु तेषां च यत्फलम् ॥ ९॥ न व्याधिर्न च दारिद्र्यं न चैवेष्टवियोजनम् । भुक्त्वा भोगान् दुर्लभांश्च मम यास्यन्ति सदा ते ॥ १०॥ शिवजीने कहा - जो लोग सायंकाल और प्रातःकाल पूर्ण भक्तिपूर्वक तुम्हारे द्वारा को हुई इस स्तुतिसे मेरा स्तवन करेंगे, उनको जो फल प्राप्त होगा, उसका वर्णन करता हूँ, सुनो-उन्हें कोई रोग नहीं होगा, दरिद्रता भी नहीं होगी तथा प्रियजनोंसे कभी वियोग भी न होगा । वे इस संसारमें दुर्लभ भोगोंका उपभोग करके मेरे परमधामको प्राप्त करेंगे ॥ ९-१०॥ ॥ इति श्रीस्कन्दमहापुराणे कुमारिकाखण्डे शिवस्तुतिः सम्पूर्णा ॥ ॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दमहापुराणके कुमारिकाखण्डमें शिवस्तुति सम्पूर्ण हुई ॥ This is also referred to be in matsyapurANa, 154.260-270 in purana reference. Proofread by Ganesh Kandu kanduganesh at gmail.com
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% Latest update         : Aoril 30, 2020
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