श्रीकार्तिकेयकरावलम्बस्तोत्रम्
(वसन्ततिलका)
ओङ्काररूप शरणाश्रय शर्वसूनो
शृङ्गारवेष सकलेश्वर दीनबन्धो । (सिङ्गार वेल, शृङ्गारशूल)
सन्तापनाशन सनातन शक्तिहस्त
श्रीकार्तिकेय मम देहि करावलम्बम् ॥ १॥
पञ्चाद्रिवास सहजा सुरसैन्यनाथ
पञ्चामृतप्रिय गुहा-सकलाधिवास ।
गङ्गेन्दु मौलि तनय मयिल्वाहनस्थ
श्रीकार्तिकेय मम देहि करावलम्बम् ॥ २॥
आपद्विनाशक कुमारक चारुमूर्ते
तापत्रयान्तक दयापर तारकारे ।
आर्ताऽभयप्रद गुणत्रय भव्यराशे
श्रीकार्तिकेय मम देहि करावलम्बम् ॥ ३॥
वल्लीपते सुकृतदायक पुण्यमूर्ते
स्वर्लोकनाथ-परिसेवित शम्भुसूनो ।
त्रैलोक्यनायक षडानन भूतपाद
श्रीकार्तिकेय मम देहि करावलम्बम् ॥ ४॥
ज्ञानस्वरूप सकलात्मक वेदवेद्य
ज्ञानप्रियाऽखिलदुरन्त महावनाग्ने । (महावनाघ्ने?)
दीनावनप्रिय निरामय दानसिन्धो
श्रीकार्तिकेय मम देहि करावलम्बम् ॥ ५॥
इति श्रीकार्तिकेयकरावलम्बस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
There appears some local influence in this
stotra, for example in mayilvAhanastha,
mayil means peacock in Malayalam. Using
mayUravAhanastha gives extra letter to fit the meter.
si.ngAra vela means 1 million in Telugu, and
vela is spear in Malayalam.
Proofread by Rajani Arjun Shankar