संस्कृतशिक्षा की उपेक्षा का फल
आज भ्रष्टाचार जो सर्वत्र बढ़ता जा रहा है,
नित्य ही नैतिक गुणों का ह्रास होता जा रहा है,
बढ़ रही नर-नारियों में जो विषम स्वच्छन्दता है,
शील शिष्टाचार संयम का नहीं कुछ भी पता है,
विश्ववन्द्या भी हुई जो दूषिता भारतमही है,
लाभ संस्कृत की उपेक्षा से मिला केवल यही है । १
देववाणी मानवों में सत्य ही देवत्व लाती,
सर्वदा शुभ आचरण की भावना मन में जगाती,
देशका इतिहास ही इस सत्यता का साक्ष्य देता,
था कभी यह देश ही तो विश्व का अध्यात्म नेता,
किन्तु चारित्रिक पतन की आज जो सीमा नहीं है,
लाभ संस्कृत की उपेक्षा से मिला केवल यही है । २
-- रचयिता - श्री. वासुदेव द्विवेदी शास्त्री
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