कांस्य गरुड २.२.७०(कांस्यहारी के हंस बनने का उल्लेख), पद्म ६.६.२७ ( बल असुर के पुरीष का कांस्य बनने का उल्लेख ), वराह १८५( कांस्य प्रतिमा स्थापन की विधि ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०( कांस्य हरण से हंस योनि प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ५.२६.४०,४५ ( ९ प्रकार के नादों में कांस्य शब्द का उल्लेख, प्राणियों की गति स्तम्भन आदि हेतु प्रयोग ), स्कन्द ५.१.५६.५७ ( धर्मसर तीर्थ में कांस्य पात्र दान से मातृलोक आदि पर जय का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३००.११९ ( कांस्य द्वारा मन्दिर में नीराजन / आरती काल में मोक्ष की घोषणा ), १.३२२.१४६ ( पतिव्रता पत्नी के लिए कांस्य पात्र में संपुटीकृत ब्रह्माण्ड दान देने का विधान ) ; द्र. कंस, kaansya
काक अग्नि २१२ ( काक चेष्टा से शुभाशुभ शकुन का ज्ञान ), २६४.२४ ( काक बलि हेतु मन्त्र : ऐन्द्र, वारुण, वायव्य, याम्य व नैर्ऋत काकों द्वारा बलि का ग्रहण ), गरुड १.२८.७( कं काक तत्त्व के लिए मूलाधार? पद्म के यजन का उल्लेख ), १.२२५.२०/१.२१७.२० ( देवों व पितरों आदि को अर्पण रहित भोजन करने से काक योनि की प्राप्ति ), १.२१७.२५ ( आमिष भोजन का हरण करने से प्राप्त योनि ), २.४६.१४(निर्मन्त्र भोजन से काक बनने का उल्लेख), नारद १.५०.४४ ( काक स्वर : १४ गीति दोषों में से एक ), १.५६.७५३ ( रात्रि में काकों एवं दिन में कपोतों के कोलाहल की उत्पातों में गणना ), पद्म ६.११.५५ ( नन्दी के काकतुण्ड रथ का उल्लेख ), ६.२२२.३ ( शिंशपा वृक्ष गिरने से वृक्ष पर वास करने वाले काक की मृत्यु, काक आदि का मृत्यु - पश्चात् विष्णु लोक गमन, काक आदि के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में श्रवण ब्राह्मण का वृत्तान्त ), ब्रह्म १.१०८.१०८(घृत, मत्स्यमांस हरण पर काक बनने का उल्लेख) २.३३.६ ( राजा प्रियव्रत के अश्वमेध यज्ञ में हिरण्यक दानव के आगमन पर यम का वायस रूप धारण करके अदृश्य होना ), ब्रह्माण्ड १.२.१८.७६ ( मेरु के उत्तर में स्थित पर्वतों में से एक ), २.३.७.४५५ ( भासी के उलूक, काक, कुक्कुट आदि पुत्रों का उल्लेख ), २.३.१२.३२ ( दीर्घायु प्राप्ति हेतु वायसों को पिण्ड दान का निर्देश ), २.३.१३.८५( काकह्रद में पिण्डदान से जातिस्मरत्व प्राप्ति का उल्लेख ), ३.४.२४.४४ ( भण्डासुर - सेनानी सूचीमुख के काक वाहन का उल्लेख ), भविष्य ४.१३९.२८(इन्द्रयष्टि पर काक के पात से दुर्भिक्ष होने का उल्लेख), भागवत १.१४.१४ ( काक के लिए प्रत्युलूक शब्द का प्रयोग ), १०.४७.१७ ( बलि राजा को बन्धन में डालने वाले विष्णु की बलि खाने वाले ध्वांक्ष/काक से तुलना ), मार्कण्डेय १५.२२ ( मत्स्य मांस हरण पर प्राप्त योनि ), ५१.६८ ( शकुनि के पांच पुत्रों में से एक काल द्वारा काक को ग्रहण करना ), वायु १११.४० ( काक बलि हेतु मन्त्र : ऐन्द्र, वारुण, वायव्य, याम्य व नैर्ऋत काकों द्वारा बलि का ग्रहण ), वा.रामायण १.२२.६ ( राम द्वारा काक पक्ष धारण करने का उल्लेख ), ५.३८ ( चित्रकूट में वायस / काक द्वारा सीता को त्रास, राम द्वारा शर से चक्षु भङ्ग करना ), ७.१८.५ ( राजा मरुत्त के यज्ञ में रावण के आगमन पर धर्मराज का वायस रूप में अदृश्य होना तथा काक को मृत्यु, व्याधि आदि से अभय होने का वरदान ), विष्णु ३.१८.८१ ( राजा शत्रुजित् द्वारा मृत्यु पश्चात् श्वान, शृगाल, गृध्र, काक आदि योनियों की प्राप्ति का उल्लेख व प्रत्येक योनि में शत्रुजित् की पतिव्रता पत्नी शैब्या द्वारा पति को बोध ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.१३ ( राजा मरुत्त के यज्ञ में रावण के आगमन पर धर्मराज का वायस रूप में अदृश्य होना तथा काक को मृत्यु, व्याधि आदि से अभय होने का वरदान ), २.१२०.२०( पय: हरण से काक योनि प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ५.१०.३६ ( वारुण, याम्य, नैर्ऋत्य वायसों का उल्लेख, भोजन से पूर्व बलि का विधान ), स्कन्द १.१.१८.३ ( बलि द्वारा अमरावती पर अधिकार कर लेने पर यम का काक रूप धारण करके पलायन ), २.२.२.३ ( पुरुषोत्तम क्षेत्र में रोहिण कुण्ड में काक के पतन से काक का दिव्य चतुर्भुज रूप होना ), ३.३.१.५८ ( गर्ग की कृपा से दाशार्हराज के शरीर से पातक रूपी करोडों वायसों का निकल कर भस्म होना ), ४.१.४५.३४ ( काकतुण्डिका : ६४ योगिनियों में से एक ), ५.१.५०.४१ ( काक / वायस द्वारा राजा दमनक का मांस शिप्रा नदी में डालने से राजा की मुक्ति का उल्लेख ), ५.२.२७.४६ ( नरक में वज्रतुण्ड काकों की स्थिति का कथन ), ५.३.११.३१ ( शूद्रान्न से पुष्ट होने पर काक आदि बनने का उल्लेख ), ५.३.९०.१०७ ( नरक में लौहमुख काकों के वास का कथन ), ५.३.१५५.२७ ( धूर्त्त वायसों द्वारा छले जाने पर राजा चाणक्य द्वारा काकों के वध का अभियान, सुन्द व उपसुन्द के पुत्रों काकद्वय द्वारा राजा से प्राणदान के बदले यम लोक जाकर राजा की मृत्यु पश्चात् गति का समाचार लाने का वृत्तान्त ), हरिवंश ४.४.२७ ( अविधि पूर्वक कथा श्रवण पर काक योनि की प्राप्ति ),महाभारत कर्ण ४१(हंसों व काक का वार्तालाप, सौ प्रकार की उडानों के नाम), शान्ति ८२(मुनि कालकवृक्षीय द्वारा काकविद्या से राज्याधिकारियों के कुकृत्यों का कथन, अधिकारियों द्वारा काक का वध आदि), सौप्तिक १.३६(सोए हुए काकों पर उलूक द्वारा आक्रमण), योगवासिष्ठ १.१८.१३ ( कोप की काक से उपमा ), ३.१७.३८ ( युद्ध में जठर प्रदेश के योद्धाओं द्वारा श्वेत काकों के शिरच्छेदन का उल्लेख ), ६.२.११६.६२ ( लिङ्ग के ऊपर बैठे काक के नरक भक्षण से हंसों से अलग परिज्ञान होना तथा कर्कश स्वर से कोकिल से अलग परिज्ञान होना ), लक्ष्मीनारायण १.८३.२५( काकतुण्डिका : ६४ योगिनियों में से एक ), १.३७०.१०० ( नरक में काक कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.३८६.४५ ( श्वान योनि को प्राप्त शैब्या के पति की देह से शृगाल, वृक, गृध्र व काक आदि पाप रूपों का निकलना ; अन्याय अन्न के भक्षण से काक रूपी पाप का उत्पन्न होना, तु. : विष्णु ३.१८.८१ ), १.५८१.५८ ( पुरुषोत्तम क्षेत्र में रोहिण कुण्ड में काक के पतन से काक का दिव्य चतुर्भुज रूप होना ), २.७०.५ ( काकाक्षी राक्षसी द्वारा कौशिक के पुत्र जाड्यमघ का हरण व पुन: लौटाना ),२.१९६.४४ ( काकलत नामक मुनि द्वारा काकविद्या द्वारा कोसल राजा के भृत्यों के दोष कथन पर भृत्यों द्वारा काक की हत्या ; आत्मा राजा, गुरु काकी, शास्त्र काक, क्रोध आदि दोष भृत्य / दस्यु ), २.२००.७४ ( काक द्वारा सिंह राजा को लोभी ब्राह्मण को खाने का परामर्श ), ४.६९.४६ ( कथा के उच्छिष्ट भोजन का भक्षण करने से काकों का हंस बनना, काक शब्द की निरुक्ति, काकों के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में कङ्क जाति के दस्यु, कपोतों द्वारा द्वादशी को व काकों द्वारा त्रयोदशी को उच्छिष्ट भक्षण ), कथासरित् १.३.३२ ( काकों के शिवालय में कुण्ड में पतन व मरण से स्वर्णिम हंस बनना ), ८.५.५२ ( काकाण्डक : मलय पर्वत निवासी, श्रुतशर्मा विद्याधर का सेनानी ), १०.४.१५६ ( सिंह के अनुचर काक द्वारा वाणी के कपट से उष्ट्र को सिंह का भक्ष्य बनाना ), १०.६.६, १०.६.१४४ ( काकों की उलूकों से शत्रुता का कारण, मेघवर्ण नामक काकराज के मन्त्री चिरजीवी द्वारा युक्ति पूर्वक उलूकों को नष्ट करने का वृत्तान्त ), १७.१.१३० ( शिव के गणों पिङ्गेश्वर व गुहेश्वर का पार्वती के शाप के कारण चोरों के सरदार, श्वान, काक, भास, मयूर, हंस आदि बनना ) । kaaka
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काकभुशुण्डि गर्ग २.१३.१५ ( अश्वशिरा मुनि का वेदशिरा मुनि के शाप से काकभुशुण्डि बनना ), योगवासिष्ठ ६.१.१५+ ( वसिष्ठ द्वारा कल्प वृक्ष के कोटर में निवास करने वाले चिरञ्जीवी काकभुशुण्ड के दर्शन ), ६.१.१६(, ६.१.१७( ), ६.१.१८+ ( काकभुशुण्ड द्वारा स्व वृत्तान्त का वर्णन : चण्ड व हंसियों के समागम से काकभुशुण्डि के २१ भ्राताओं का जन्म, तप, कल्पवृक्ष में स्थित होना ), ६.१.२०+ ( वसिष्ठ द्वारा काकभुशुण्डि से कल्पवृक्ष के सर्वदा क्षोभरहित रहने का कारण पूछना ), ६.१.२१.१५ ( प्रलयकाल में काकभुशुण्डि का आकाश में वास ), ६.१.२३ ( काकभुशुण्डि द्वारा जगत में व्यवहार करते हुए भी मृत्यु से देह को बाधा न पहुंचने की स्थितियों का वर्णन ), ६.१.२४ ( प्राणचिन्ता : काकभुशुण्डि का प्राण व अपान वायुओं का नित्य अनुसरण ), ६.१.२५ ( काकभुशुण्डि द्वारा शरीर में प्राण व अपान की प्रकृति का वर्णन ), ६.१.२६ ( काकभुशुण्डि द्वारा चिरञ्जीविता के हेतु का कथन ), ६.२.५.७+ ( विद्याधर - भुशुण्ड वार्तालाप के अन्तर्गत विद्याधर द्वारा इन्द्रियों से बद्ध होने के विषाद का वर्णन ), ६.२.७ ( काकभुशुण्डि द्वारा अहंकार रूपी बीज से उत्पन्न जगत वृक्ष का वर्णन ), ६.२.८ ( काकभुशुण्डि द्वारा मायामण्डप में उपलब्ध क्रीडा सामग्री का वर्णन ), ६.२.१० ( काकभुशुण्डि द्वारा कारणों के कारण अज शिव की ज्ञेयता का कथन ), ६.२.११ ( स्व संविद के अर्थ ज्ञान से अग्निरूपी पदार्थ को तरने के उपाय का कथन ), ६.२.१२ ( स्व को जानने से अविद्या के नाश का कथन ), ६.२.१३ ( शत्रुओं से पीडित होने पर इन्द्र द्वारा अपने अन्त:करण में प्रवेश व अन्तर्मुखी संसार के दर्शन के दृष्टान्त का कथन ), ६.२.१४ ( बिस बाल में स्थित इन्द्र के अन्तर्मुखी होने पर ब्रह्मतत्त्व के दर्शन का दृष्टान्त ), ६.२.१५ ( जगत में स्वत्व के दर्शन से अहंकार की विलीनता का कथन ) । kaakabhushundi/ kakbhushundi
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काकोदरी नारद १.६६.११४( आषाढी की शक्ति काकोदरी का उल्लेख ) ।
काकोली अग्नि १९१.४( काकोल प्राशक द्वारा फाल्गुन में नीर की पूजा का निर्देश ), २९९.४ ( काकोली ग्रही से आक्रान्त बालक के लक्षण व चिकित्सा का कथन ) ।
काचरक कथासरित् ८.५.६३ ( श्रुतशर्मा विद्याधर के सेनानी काचरक द्वारा प्रभास से युद्ध ) ।
काञ्च योगवासिष्ठ ६.१.९०.१९ ( तप की कांच मणि से उपमा )
काञ्चन पद्म ४.१५.४५ ( काञ्चन नगर में वल्लभ - पत्नी हेमप्रभा द्वारा अनायास एकादशी व्रत चीर्णन से स्वर्ग प्राप्ति ), भागवत ९.१५.३ ( भीम - पुत्र, होत्र - पिता, पुरूरवा वंश ), वायु ४८.२४ ( मलय द्वीप के पर्वत कञ्चनपाद की शोभा का कथन ), ६९.१२ ( प्रचेता व सुयशा के यक्ष पुत्रों में से एक ), ९१.५३ ( भीम - पुत्र, होत्र - पिता, पुरूरवा वंश ), वा.रामायण ७.१०८.८ ( शत्रुघ्न द्वारा शरीर त्याग से पूर्व रघुकुल के पुरोहित काञ्चन के आह्वान का उल्लेख ), विष्णु ४.७.३ ( भीम - पुत्र, होत्र - पिता, पुरूरवा वंश ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०४ ( श्रीकृष्ण की पत्नी काञ्चनी के पुत्र चामीकर व पुत्री सुवर्णिनी का उल्लेख ), कथासरित् १०.३.९ ( हिमालय पर काञ्चनशृङ्ग पर निवास करने वाले स्फटिकयश नामक विद्याधर की कन्या शक्तियशा का वृत्तान्त ), १०.३.८६ ( काञ्चनाभ नगर के विद्याधर राजा पद्मकूट की कन्या मनोरथप्रभा की कथा ) १०.५.३१९ ( शाप से अजगर बने काञ्चनवेग विद्याधर की सती से संवाद पर मुक्ति ), १७.५.२४ ( इन्द्र द्वारा राजा मेरुध्वज को काञ्चनगिरि व काञ्चन शेखर नामक दो हाथी प्रदान करने का उल्लेख ) । kaanchana/ kanchan
काञ्चनदंष्ट्र कथासरित् १५.१.११८, १५.१.१४६ (नरवाहनदत्त व मन्दरदेव राजाओं के युद्ध में काञ्चनदंष्ट्र का मन्दरदेव की ओर से चण्डसिंह से युद्ध ), १५.२.३३ ( काञ्चनदंष्ट्र की पुत्री कनकवती के नरवाहनदत्त से विवाह का उल्लेख ), १८.४.६७ ( शबरों के राजा काञ्चनदंष्ट्र द्वारा एकाकिकेसरी की सेनापति पद पर नियुक्ति ) ।
काञ्चनपुर भविष्य ४.१४७.२०( काञ्चनपुरी व्रत की विधि व माहात्म्य ), वायु ९९.३७१ ( दोहित्र , शिशुक और प्रवीर द्वारा कांचनका पुरी में ६० वर्ष तक राज्य करने का उल्लेख ), कथासरित् १०.१.७३ ( ईश्वरवर्मा नामक वैश्य के काञ्चनपुर में वेश्या की मिथ्या आसक्ति के जाल में फंसने की कथा ), १०.३.२२ ( काञ्चनपुरी के राजा सुमना के समक्ष वेदपाठी शुक के उपस्थित होने का वृत्तान्त ), १२.२३.५ ( काञ्चनपुर के राजा जीमूतकेतु के पुत्र जीमूतवान का वृत्तान्त ), १२.३६.१२८ ( मृगाङ्कदत्त राजकुमार का शशाङ्कवती के साथ काञ्चनपुर के शबर अधिपति मायाबटु के यहां ठहरना ) ।
काञ्चनप्रभ ब्रह्माण्ड २.३.६६.२४ ( भीम - पुत्र, सुहोत्र - पिता, जह्नु - पितामह, पुरूरवा वंश ), वायु ९१.५३ ( वही) ।
काञ्चनप्रभा कथासरित् ९.१.१६ ( अलंकारशील व काञ्चनप्रभा की कन्या अलङ्कारवती के नरवाहनदत्त से विवाह का वृत्तान्त ) ।
काञ्चनमालिनी नारद २.६३.७७ ( कलिङ्ग राजा की वेश्या का प्रयाग में माघ स्नान से पार्वती की अप्सरा सखी बनना, काञ्चनमालिनी अप्सरा द्वारा माघ स्नान के पुण्य दान से राक्षस का उद्धार करना ), पद्म ६.१२७.५७ ( विस्तार में वही कथा ), कथासरित् २.५.२२ ( वत्सराज उदयन की भार्या वासवदत्ता की सखी ) ।
काञ्चनाक्षी वामन ३७.२८ ( नैमिषारण्य में सरस्वती का काञ्चनाक्षी नाम से प्रकट होना ), ६३.६० ( विश्वकर्मा की पुत्री चित्राङ्गदा का सरस्वती जल में गिरना और काञ्चनाक्षी सरस्वती का उसे गोमती में फेंकना ), स्कन्द ४.१.२९.४१ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) ।
काञ्ची गर्ग ४.१९.२६ ( यमुना सहस्रनामों में से एक ), देवीभागवत १२.६.३३ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), ब्रह्माण्ड ३.४.५.१ ( काञ्ची नगरी में अगस्त्य - हयग्रीव संवाद ), ३.४.३९.१५ ( शिव के नेत्र रूपी काञ्ची की महिमा ), पद्म ६.२२२.३६ ( इन्द्रप्रस्थ तीर्थ के अन्तर्गत शिव काञ्ची का माहात्म्य : हेरम्ब ब्राह्मण का शिव व विष्णु लोक गमन ), वराह १३७.८० ( ब्रह्मदत्त - पुत्र सोमदत्त द्वारा हत सृगाली का काञ्चीराज की सुता के रूप में जन्म लेकर कलिङ्गराज की रानी बनने का वृत्तान्त ), वायु ४३.२५ ( भद्राश्व वर्ष की महानदियों में से एक ), ४४.१८ ( केतुमाल वर्ष की महानदियों में से एक ), १०४.७६.२.४२.७६ ( काञ्ची की शरीर में लिङ्ग देश में स्थिति ), १०४.८० ( काञ्ची पीठ की शरीर में कटि में स्थिति ), स्कन्द १.३.१.३.५९ ( शिव के नेत्र पिधान के पाप से मुक्ति पाने के लिए पार्वती द्वारा काञ्ची में कम्पा नदी तट पर तप का वृत्तान्त ), २.४.२६.५ ( काञ्चीपुरी के चोल राजा की विष्णुदास द्विज से भक्ति में स्पर्धा का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण ३.१२०.२५ ( काञ्चीपुरी में महालक्ष्मी की शिव - भार्या व विष्णु - भार्या, द्वैध रूप में स्थिति का वृत्तान्त ), कथासरित् ७.९.९० ( प्राणधर नामक तक्षा द्वारा यन्त्र की सहायता से काञ्ची के राजा बाहुबल के कोष के हरण का वृत्तान्त ), ८.१.४४ ( काञ्ची के राजा कुम्भीर की कन्या वरुणसेना की सूर्यप्रभ पर आसक्ति ) । kaanchi/ kanchi
काजल पद्म २.८६.७० ( दीपक के काजल के संदर्भ में विषयों को काजल बनाने का निर्देश ) ।
काण स्कन्द ५.३.१.१५ ( श्रुति अथवा स्मृति से हीन विप्र की काण संज्ञा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१७६.३७ ( ज्योतिष में ग्रहों व नक्षत्रों के विशिष्ट काण नामक योग का फल ), कथासरित् १.१.५९ ( काणभूति : सुप्रतीक यक्ष का कुबेर के शाप से काणभूति पिशाच बनना व पुष्पदन्त नामक शिवगण को काणभूति के दर्शन पर जाति स्मरण होना ), १.२.१९ ( वही), १.२.३०+ ( काणभूति का पुष्पदन्त / वररुचि से उसके जन्म का वृत्तान्त सुनना ), १.६.३ ( काणभूति के दर्शन पर माल्यावान / गुणाढ~य को जाति ज्ञान होना, काणभूति का गुणाढ्य से उसके जीवन का वृत्तान्त सुनना ), १.८.१ ( काणभूति द्वारा गुणाढ्य को पुष्पदन्त से सुनी हुई सात कथामयी दिव्य कथाएं सुनाना ), ३.२.११ ( काणवटु : वत्सराज उदयन के सचिव वसन्तक द्वारा धारित छद्म रूप ) । kaana
काण्ड लक्ष्मीनारायण ३.७९.३४ ( काण्डायन महर्षि की पुत्री ब्रह्मप्रथा का हरिप्रथ मनु से विवाह ), ३.१९४.९८ ( चक्रधर राजा के अमात्य देवविश्राम द्वारा काण्डिका नामक अभिचारिका योगिनी के वध पर स्त्री वध पाप से मुक्ति हेतु विष्णुयाग का अनुष्ठान करना, यज्ञ में विष्णु का प्रकट होना, अभिचारिका का विद्युत रूप में विष्णु में लीन होना ), ४.१०१.१२९ ( श्रीकृष्ण - पत्नी वैष्णवी से उत्पन्न पुत्री का काण्डिका नाम ) । kaanda
काण्व ब्रह्म २.७८.४ ( कण्व - पुत्र बाह्लीक का उपनाम, काण्व द्वारा आहुति देते समय अग्नि के उपशान्त होने व कोटितीर्थ स्थापित होने का वृत्तान्त ), विष्णु ३.५.३० ( याज्ञवल्क्य द्वारा प्रवर्तित यजुर्वेद की १५ शाखाओं में से एक ) । kaanva
कण्व वैदिक निघण्टु में कण्व मेधावि नामों के अन्तर्गत आता है । ऋग्वेद १०.११५.५ में सायण ने कण्व का अर्थ स्तुति योग्य किया है । कण्व शब्द कनि धातु से बना प्रतीत होता है जिससे कनक, सोना शब्द बना है । कन् धातु दीप्ति, कान्ति, गति के अर्थों में प्रयुक्त होती है । कण धातु शब्द के अर्थ में है । कण और अण धातु साथ - साथ आती हैं। अण धातु से अणु शब्द बना है जिसका तात्पर्य होता है अल्प परिधि का द्रव्य । लोकोक्ति है कि कण का या अणु का प्रतिपादन कणाद ऋषि ने किया । अथर्व वेद २.२५ में कण्व को गर्भ को खाने वाले, पाप कहा गया है ।
काण्वायन भागवत १२.१.१९ ( काण्वायन उपनाम वाले वसुदेव द्विज अमात्य द्वारा शुङ्गवंशी राजा देवभूमि का वध करके राजा बनना, वसुदेव के पुत्र राजाओं की काण्वायन संज्ञा ) मत्स्य ४९.४७ ( कण्व - पुत्र मेधातिथि के द्विज पुत्रों की संज्ञा ), १९६.२१ ( काण्वायन गोत्र के प्रवर आदि का कथन ), २७२.३३ ( काण्वायन उपनाम वाले वसुदेव द्विज अमात्य द्वारा शुङ्गवंशी राजा देवभूमि का वध करके राजा बनना, वसुदेव के पुत्र राजाओं की काण्वायन संज्ञा ) ; द्र. कण्व, ऋग्वेद ८.५५.४ ।
कातन्त्र कथासरित् १.७.१३ ( स्कन्द / कार्त्तिकेय द्वारा निर्मित संक्षिप्त व्याकरण का नाम, अन्य नाम कलाप ) ।
कात्यायन अग्नि ११७ ( कात्यायन द्वारा श्राद्ध कल्प का वर्णन ), ३४९+ ( कात्यायन द्वारा कार्त्तिकेय से व्याकरण रूपी उपदेश का श्रवण ), ३५१.१ ( स्कन्द द्वारा कात्यायन को विभक्ति सिद्ध रूपों का वर्णन ), ब्रह्म १.११.९२( विश्वामित्र - पुत्र कति से कात्यायन नाम की प्रसिद्धि का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.४.५६(कात्यायन द्वारा शिव से सरस्वती कवच की प्राप्ति), २.५१.४१ ( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि की उपेक्षा करने पर कात्यायन द्वारा कृतघ्नता दोष का निरूपण - कृत्वा शपथरूपं च सत्यं हन्ति न पालयेत् ।। स कृतघ्नः कालसूत्रे वसेदेव चतुर्युगम् ।। ), भविष्य ३.२.३४.६( कात्यायन द्वारा शूद्र राजा महानन्द को सप्तशती के मध्यम चरित्र का उपदेश ), ३.२.३५.३( सप्तशती के उत्तम चरित्र के माहात्म्य के संदर्भ में कात्यायन की महाभाष्यकार पतञ्जलि से वाद में विजय व पराजय का कथन ), ३.४.२१.१४ ( कलियुग में कात्यायन का कण्व - पौत्रों के रूप में जन्म का उल्लेख ), मत्स्य १९२.१० ( शुक्ल तीर्थ का सेवन करने वाले ऋषियों में से एक ), १९६.३३ ( कात्यायन गोत्र के प्रवर का उल्लेख ), वामन १८.७ ( कात्यायन ऋषि द्वारा देवों के एकत्रित तेज में अभिवृद्धि करने पर कात्यायनी देवी के प्राकट्य का कथन ), वायु १०६.३७ ( ब्रह्मा के गयासुर की देह पर हो रहे यज्ञ के ऋत्विजों में से एक ), वा.रामायण १.७.५ ( राजा दशरथ के मन्त्रियों मे से एक ), स्कन्द १.२.२.३० ( कात्यायन द्वारा सारस्वत मुनि से तप व दान के बीच श्रेष्ठता की पृच्छा, सारस्वत द्वारा दान की श्रेष्ठता का प्रतिपादन ), ६.१२९.७१ ( कात्यायनी व याज्ञवल्क्य के वेद सूत्रकार पुत्र का उल्लेख ), ६.१३२.३० ( याज्ञवल्क्य व कात्यायनी - पुत्र, वररुचि - पिता, कात्यायन द्वारा वास्तु नामक भयङ्कर प्राणी की शान्ति के लिए सर्वप्रथम वास्तु पूजा विधान करना ), लक्ष्मीनारायण १.५०१.१०१ ( वही), कथासरित् १.२.१ ( शाप से मानव शरीर धारण करने पर पुष्पदन्त नामक शिव के गण का नाम, अन्य नाम वररुचि, पुष्पदन्त /कात्यायन का काणभूति को महाकथा का वाचन करना ) ; द्र. वररुचि ; प्रश्नोपनिषद १ में कबन्धी कात्यायन का पिप्पलाद मुनि से प्रजा की उत्पत्ति विषयक प्रश्न व पिप्पलाद द्वारा प्राण व रयि का निरूपण । kaatyaayana /katyayana
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कात्यायनी देवीभागवत १२.६.२८ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), नारद १.११५.३४ ( आश्विन शुक्ल षष्ठी को कात्यायनी देवी की पूजा का विधान ), भविष्य १.५७.५( कात्यायनी हेतु यवागू बलि का उल्लेख - कात्यायन्यै यवागूं च श्रियै दद्यात्तथा दधि । ।), भागवत १०.२२.१ ( गोपियों द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति के लिए मार्गशीर्ष मास में कात्यायनी देवी की पूजा, कृष्ण द्वारा चीर हरण प्रसंग ), मार्कण्डेय ९१.१/८८.१( शुम्भ असुर के वध पर देवों द्वारा कात्यायनी की स्तुति : देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥), वामन १८.८ ( देवताओं व कात्यायन ऋषि के एकीभूत तेज से कात्यायनी देवी के विभिन्न अङ्गों का प्राकट्य, देवों द्वारा कात्यायनी को अस्त्रों आदि की भेंट ), १९.१ ( चण्ड व मुण्ड द्वारा महिषासुर से कात्यायनी देवी के सौन्दर्य का वर्णन ), १९.२१ ( महिषासुर द्वारा कात्यायनी से विवाह के प्रस्ताव के लिए दुन्दुभि दैत्य का प्रेषण ), २०.१ ( कात्यायनी देवी का महिषासुर से युद्ध व उसका वध ), ५४.२४ ( पार्वती के परित्यक्त कृष्ण कोश से कात्यायनी देवी का प्राकट्य, अन्य नाम कौशिकी व विन्ध्यवासिनी ), स्कन्द ४.२.७२.५८ ( कात्यायनी से वदनमण्डल की रक्षा की प्रार्थना - पायात्सदैव चिबुकं जयमंगला नः कात्यायनी वदनमंडलमेव सर्वम् ।।), ५.३.२६.११८ ( नवमी तिथि को कात्यायनी हेतु गन्ध धूप दान का फल ), ६.१२०.१३+ ( देवों व कार्त्तिकेय के तेजों के मिश्रण से कात्यायनी देवी की उत्पत्ति, निरुक्ति, देवों द्वारा आयुधों की भेंट, महिषासुर से युद्ध व महिषासुर का पराभव ), ६.१३०.३ ( याज्ञवल्क्य - पत्नी, मैत्रेयी - सपत्ना कात्यायनी द्वारा सौभाग्य प्राप्ति हेतु शाण्डिली के परामर्श से तृतीया तिथि को पञ्चपिण्डा गौरी की आराधना, कात्यायन पुत्र की प्राप्ति ), ७.३.२४.१ ( अर्बुद पर्वत वासिनी कात्यायनी देवी द्वारा शुम्भ दैत्य के वध का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.१६३.३० ( देवताओं व कात्यायन ऋषि के एकीभूत तेज से कात्यायनी देवी का प्राकट्य, देवों द्वारा कात्यायनी को अस्त्रों आदि की भेंट ), १.१६५.२५ ( कात्यायनी द्वारा महिषासुर के वध पर महिषासुर - भार्या कुण्ढी द्वारा कात्यायनी को पति मरण का शाप, कात्यायनी का कालान्तर में दक्ष - पुत्री व हिमालय - कन्या आदि बनना ), २.२७.६२ ( कात्यायनी का अष्टमी को शयन ), २.२७.१०२ ( कात्यायनी से शमी की उत्पत्ति ), कथासरित् १२.१४.४५ ( राजा चण्डसिंह के अनुचर सत्त्वशील द्वारा कात्यायनी देवी के मन्दिर व देवी के प्रभा मण्डल से निर्गत कन्या के दर्शन करने का वृत्तान्त ), १२.३४.५४ ( कात्यायनी नामक तापसी द्वारा राजा महासेन के पुत्र सुन्दरसेन को मन्दारवती कन्या के सौन्दर्य से अवगत कराना ) ; कात्यायनी = कान्त्यायनी । kaatyaayani
कादम्बरी हरिवंश २.४१.१३ ( वारुणी का नाम, कदम्ब से उत्पत्ति ) ।
कादम्बिनी पद्म ६.२०३.५१( सारङ्ग द्वारा कादम्बिनी के जल की अभीप्सा का उल्लेख )
कानीन भागवत ९.२.२१( अग्निवेश्य का उपनाम, अन्य नाम जातूकर्ण्य - ततोऽग्निवेश्यो भगवान् अग्निः स्वयं अभूत्सुतः । कानीन इति विख्यातो जातूकर्ण्यो महान् ऋषिः ॥), ९.२३.१३( योऽसौ गंगातटे क्रीडन् मञ्जूषान्तर्गतं शिशुम् । कुन्त्यापविद्धं कानीनं अनपत्योऽकरोत्सुतम् ॥)
कान्त ब्रह्माण्ड ३.४.१.८८ ( १२वें रुद्रसावर्णि / ऋतुसावर्णि मन्वन्तर में सुकर्मा नामक देवगण में से एक ), वराह ३६.७ ( कृतयुग के कान्त राजा का त्रेतायुग में दशरथ बनने का उल्लेख ), वायु १००.९३ ( १२वें रुद्रसावर्णि / ऋतुसावर्णि मन्वन्तर में सुकर्मा नामक देवगण में से एक ) ; द्र. चन्द्रकान्त, हेमकान्त । kaanta
कान्ति गरुड १.२१.३ ( सद्योजात शिव की ८ कलाओं में से एक ), १.२१.४ ( वामदेव की १३ कलाओं में से एक ), नारद १.६५.२९( चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक ), १.६६.८६ ( मातृका न्यास के संदर्भ में नारायण की शक्ति कान्ति का उल्लेख ), १.६६.१२६( द्विदन्त की शक्ति कान्ति का उल्लेख ), पद्म ६.१०८.५ ( कान्तिपुरी में चोल नृप व विष्णुदास विप्र की विष्णु भक्ति में स्पर्द्धा की कथा ), ब्रह्माण्ड २.३.१२.३२ ( कान्ति प्राप्ति हेतु गायों को पिण्ड दान का निर्देश ), ३.४.३५.९४ ( ब्रह्मा की १० कलाओं में से एक ), ३.४.४४.७२ ( ५१ गणेशों में से एक की शक्ति का नाम ), मत्स्य १०१.४५ ( कान्ति व्रत की विधि व संक्षिप्त माहात्म्य ), वराह ५७.१ ( कान्ति व्रत की विधि व माहात्म्य : सोम की यक्ष्मा रोग से मुक्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१९( ऊरुद्वय में कान्ति की स्थिति ), स्कन्द १.१.७.३३( कान्ति में मल्लालनाथ? लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), १.३.२.२२.३ ( कान्तिशाली विद्याधर का दुर्वासा के शाप से वज्राङ्गद राजा का अश्व बनना, शोणाद्रि की परिक्रमा से शाप से मुक्ति का वर्णन ), ४.१.७.१०० ( महाकालवन की यात्रा के पश्चात् शिवशर्मा द्विज का कान्ति नगरी में आगमन, कान्ति नगरी की महिमा का वर्णन ), हरिवंश २.४१.२६ ( गोमन्त पर्वत पर कदम्ब वृक्ष से वारुणी के सेवन पर बलराम के समक्ष कान्ति आदि तीन देवियों का प्रकट होना, बलराम को भेंट देना व आत्मसमर्पण करना ) । kaanti
कान्तिमती गरुड ३.२८.५५(कुश - पत्नी, शची का अंश), पद्म १.१५.१३ ( ब्रह्मा की सभा का नाम ), ५.६७.३७( पुष्कल - पत्नी ), ५.९५.१२३ ( अम्बरीष की भार्या कान्तिमती के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : देवदास हेमकार की वेश्या पत्नी द्वारा माधव मास धर्म के सेवन से कान्तिमती के रूप में जन्म ), भविष्य ३.३.३१.१२२ ( मद्रकेश - कन्या व सूर्यवर्मा - भार्या कान्तिमती का कर्बुर राक्षस द्वारा हरण, कृष्णांश / उदयसिंह द्वारा कान्तिमती की मुक्ति का उद्योग, कान्तिमती का पूर्वजन्म में कर्बुर - भार्या होने का उल्लेख ), स्कन्द २.७.१८.४० ( व्याध के पूर्व जन्म का वृत्तान्त :भार्या कान्तिमती द्वारा स्तम्ब नामक वेश्यारत द्विज पति की सेवा का वर्णन ), ३.१.८.९ ( गालव की कन्या कान्तिमती पर विद्याधर कुमारों सुदर्शन व सुकर्ण की आसक्ति, सुदर्शन द्वारा कान्तिमती से बलात्कार पर गालव द्वारा विद्याधर भ्राता - द्वय को मनुष्य व वेताल बनने का शाप ), ५.१.१.२१ ( देवों की कान्तमती सभा में स्थित सनत्कुमार द्वारा महाकालवन की महिमा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१०( श्रीधर की पत्नी कान्तिमती का उल्लेख ), १.४२८.३ ( राजा वीरबाहु की पतिव्रता पत्नी कान्तिमती के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त : पूर्व जन्मों में शूद्र व विप्र की पतिव्रता पत्नी ), कथासरित् ८.१.४७ ( श्रीकण्ठ देश के राजा कान्तिसेन की कन्या कान्तिमती का सूर्यप्रभ की पत्नी बनना ), १२.१.५२ ( शूरदत्त के पुत्र वामदत्त का महिष योनि से मुक्ति पाकर योगिनी की कन्या कान्तिमती से विवाह करना, कान्तिमती की कन्या ललितलोचना का वृत्तान्त ) । kaantimati
कान्यकुब्ज पद्म १.३८.१२२, १८६( लङ्का में विभीषण से प्राप्त वामन मूर्ति की राम द्वारा कान्यकुब्ज / महोदय में प्रतिष्ठा ), ६.१३३.६ ( जम्बू द्वीप के तीर्थों में विष्णु के नामों के संदर्भ में कान्यकुब्ज में वामन रूपी विष्णु की स्थिति ), भविष्य २.२.८.१२८( कान्यकुब्ज में महाकार्तिकी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), ३.१.६.४५ ( कान्यकुब्ज द्विज का अर्बुद शिखर पर ब्रह्महोम करके चार क्षत्रिय पुत्रों को प्राप्त करना, कान्यकुब्ज द्वारा बौद्धों व अशोक राजा का नाश ), ३.४.३.४३ ( राष्ट्रपाल राजा के पुत्र प्रजय द्वारा शारदा देवी की आराधना से कान्यकुब्ज नगर प्राप्त करने का वृत्तान्त, कान्यकुब्ज नाम का कारण ), भागवत ६.१.२१ ( कान्यकुब्ज नगर के भ्रष्ट द्विज अजामिल द्वारा नारायण शब्द उच्चारण से विष्णुलोक प्राप्ति की कथा ), मत्स्य १३.२९ ( कान्यकुब्ज पीठ में सती देवी का गौरी नाम से वास ), स्कन्द ३.२.३६.१२ ( कलियुग में कान्यकुब्ज के अधिपति आम की कन्या रत्नगङ्गा द्वारा जैन धर्म स्वीकार करने व स्वयं राजा द्वारा बौद्ध धर्म को प्रश्रय देने व ब्राह्मणों का तिरस्कार करने का वृत्तान्त ), ५.३.१९८.६६ ( कान्यकुब्ज तीर्थ में उमा की गौरी नाम से स्थिति का उल्लेख ), कथासरित् ३.६.१६८ ( कान्यकुब्ज वासी सुन्दरक पर गुरु - पत्नी कालरात्रि की आसक्ति, सुन्दरक द्वारा कालरात्रि देवी से उडने का मन्त्र सीखने व मालवा की मूली कान्यकुब्ज में बेचने आदि का वृत्तान्त ), ४.१.८६ ( राजकुमार जयदत्त द्वारा कान्यकुब्ज के चक्रवर्ती नृप की सहायता से अपने राज्य को शत्रुओं से मुक्त करने का वृत्तान्त ), १०.५.२१९ ( कान्यकुब्ज देश के चन्द्रापीड राजा के धवलमुख नामक राजसेवक द्वारा अपने मित्रों कल्याणवर्मा व वीरबाहु की मित्रता की परीक्षा का वृत्तान्त ), १२.१.३३ ( कान्यकुब्ज देश के वामदत्त ब्राह्मण की स्वैरिणी पत्नी द्वारा स्वपति को महिष बनाने व कालान्तर में वामदत्त के मुक्त होने की कथा ), १२.९.८ ( कान्यकुब्ज देश के तीन ब्राह्मणकुमारों की मन्दारवती कन्या पर आसक्ति व मन्दारवती की मृत्यु पर उसे पुन: जीवित करने व विवाह का वृत्तान्त ) । kaanyakubja/ kanyakubja
काम अग्नि ३४८.२ ( काम अर्थ में °इ° एकाक्षर के प्रयोग का उल्लेख ), गणेश १.८८.३ ( शिव द्वारा काम के भस्म होने पर रति द्वारा शिव से वर प्राप्ति, काम का मन स्मरण मात्र से प्रकट होने तथा प्रद्युम्न रूप में अवतरित होने का वर, काम द्वारा गणेश की आराधना से देह युक्त होना ), २.१४.१२ ( महोत्कट गणेश द्वारा खर रूप धारी काम व क्रोध राक्षसों का वध ), २.७६.१४ ( विष्णु व सिन्धु के युद्ध में शम्बर का मदन से युद्ध ),२.७७.४ ( सिन्धु असुर द्वारा मन्मथ के पादों? पर आघात ), गरुड १.२१.४( कामा : वामदेव की १३ कलाओं में से एक ), ३.२४.८६(आरोग्यों के अधिपति काम का उल्लेख), ३.२८.३०(काम का भरत रूप में अवतरण), ३.२८.३१(चक्राभिमानी काम का सुदर्शन नाम, स्कन्द के कामावतार होने का उल्लेख), ३.२८.३२(काम का सनत्कुमार आदि ६ रूपों में अवतार), गर्ग ७.३१.३६ ( काम वन में प्रद्युम्न का आगमन , स्व - स्वरूप में लीन होने का उल्लेख ), देवीभागवत ४.६.६ ( नर - नारायण की तपस्या से भयभीत इन्द्र की आज्ञा से कामदेव के रति सहित बदरिकाश्रम में वास का कथन ), ८.९.१० ( केतुमाल वर्ष में कामदेव रूप हरि की लक्ष्मी द्वारा आराधना , स्तोत्र कथन ), पद्म १.२०.५५ ( काम व्रत विधि व माहात्म्य ), १.२३.११० ( दाल्भ्य द्वारा वेश्या कल्याण के लिए कामदेव रूप विष्णु पूजन विधि का वर्णन ), १.४३.२०६ ( इन्द्र के कहने पर कामदेव द्वारा शिव के निकट जाने में असमर्थता व्यक्त करना ), १.४३.२११ ( पुन: रति और वसन्त के साथ शिव के निकट गमन ), १.४३.२४२ ( शिव नेत्र से निर्गत ज्वाला से काम का भस्म होना ), १.४३.२६२ ( रति की स्तुति से प्रसन्न शिव द्वारा कामदेव के पुनर्जन्म तथा अनङ्ग नाम से प्रसिद्ध होने का कथन ),१.५४ ( काम - पीडित इन्द्र द्वारा गौतम - पत्नी अहल्या से दुराचार की कथा ), २.७६.२० ( ययाति के चरित्र पतन हेतु धर्म के अनुरोध पर इन्द्र द्वारा कामदेव का आह्वान, कामदेव का रति, गन्धर्व आदि की सहायता से नाट्य रचना द्वारा ययाति को मुग्ध करना ), ब्रह्म १.३६.१२ ( शिव द्वारा काम के भस्म हो जाने पर रति का विलाप , कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में काम का पुनर्जन्म , वर प्रदान ), २.२.३७ ( काम का शिव के समीप जाना , शिव द्वारा दग्ध होना ), ब्रह्मवैवर्त्त १.४.६ -८ ( परमात्मा कृष्ण के मन से कामदेव की उत्पत्ति , अपर नाम मन्मथ, रति - पति, पञ्च बाण धारक ), ४.३१.६५ ( ब्रह्मा के भाव को जानकर तथा अपना प्रयत्न निष्फल समझकर मोहिनी द्वारा काम की स्तुति ), ४.३९.४३ -५३ ( इन्द्र की आज्ञा से कामदेव का शिव के समीप गमन तथा शिव की क्रोधाग्नि से भस्म हो जाने का उल्लेख ), ४.६२.४३(घृताची के शाप से काम के भस्म होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.९.५८,६२ ( श्रद्धा व धर्म - पुत्र, हर्ष - पिता ), १.२.११.३५ ( यशोधरा व कनकपीठ - पुत्र ), २.३.३.३० ( धर्म व विश्वा के दस पुत्रों में से एक विश्वेदेव ), २.३.७.२४ ( अप्सराओं के चौदह गणों में से १४वें गण शोभयन्ती की अप्सराओं के काम से उत्पन्न होने का उल्लेख ), २.३.८.१५ ( कामदेव को अप्सरा गणों का अधिपति बनाने का उल्लेख ), ३.४.१९.६९( कामराज, कंदर्प आदि ५ कामों के स्वरूप का कथन ), भविष्य ४.१११ ( पण्यस्त्री व्रत में विष्णुरूप कामदेव का पूजन ), ४.१३५ ( काम उत्सव वर्णन ), भागवत १.२.९ -१० ( पुरुषार्थ - चतुष्टय के अन्तर्गत जीवन में काम के स्थान का उल्लेख ), ३.१२.२६ ( ब्रह्मा के हृदय से काम की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.१८.१५, ५.१८.१८ ( केतुमाल वर्ष में भगवान की कामदेव रूप से स्थिति , लक्ष्मी द्वारा भगवान कामदेव की आराधना ), ६.६.१० ( दक्ष - कन्या संकल्पा का पौत्र, संकल्प - पुत्र ), ६.८.१७ ( नारायण कवच में सनत्कुमार से कामदेव से रक्षा की प्रार्थना ), ८.७.३२ ( शिव द्वारा काम को भस्म करने का उल्लेख ), ८.१०.३३ ( देवासुर संग्राम में कामदेव का दुर्मर्ष से युद्ध ), १०.५५ ( वासुदेव के अंश कामदेव का श्रीकृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में पुनर्जन्म का वर्णन ), ११.४.७ ( नर की तपस्या से भयभीत होकर इन्द्र द्वारा तप में विघ्न हेतु कामदेव का प्रेषण ), ११.१९.३७ ( काम त्याग का तप नाम होने का उल्लेख ), मत्स्य ३.३३ ( अपनी पुत्री सावित्री को देखकर कामबाण से पीडित ब्रह्मा के व्यथित होने का उल्लेख ), ४.१३ ( ब्रह्मा द्वारा कामदेव को रुद्र द्वारा भस्मीभूत होने का शाप दिए जाने पर कामदेव का ब्रह्मा को प्रसन्न करना, कर्त्तव्य पालन की याद दिलाने पर ब्रह्मा का कामदेव को कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में उत्पन्न होने का वरदान ), ७.१३-२३ ( मदन द्वादशी व्रत विधि वर्णन में कदली दल के ऊपर काम की स्थापना, कामदेव नामक विष्णु की आराधना में विष्णु के पैरों में कामदेव की भावना करते हुए केशव के सांगोपांग पूजन का वर्णन, कामदेव की स्वर्ण निर्मित प्रतिमा का द्विज को दान ), २३.२३ ( चन्द्रमा के अवभृथ स्नान कर लेने पर कामबाण से तप्त अंगों वाली लक्ष्मी , सिनीवाली आदि नौ देवियों द्वारा चन्द्रमा की सेवा का उल्लेख ), १००.३२ ( विभूति द्वादशी व्रत के प्रभाव से अनंगवती वेश्या का कामदेव की पत्नी तथा रति की सपत्नी होने का उल्लेख, काम - पत्नी बनकर अनंगवती का प्रीति रूप से प्रसिद्ध होना ), १०१.१० ( प्रद्युम्न के प्रीत्यर्थ कामव्रत विधि व फल वर्णन ), १५४.२१९ ( इन्द्र के कहने पर रति सहित कामदेव का मित्र मधुमास को साथ लेकर हिमालय पर शिव के निकट गमन ), १५४.२३६ -२७२ ( काम द्वारा शिव का मोहन , दग्ध होना , रति द्वारा शिव स्तुति, शिव द्वारा काम के पुनर्जन्म का कथन ), १९१.११० ( नर्मदा के दक्षिण तट पर स्थित कुसुमेश्वर तीर्थ में शिव की उपासना कर कामदेव द्वारा पुन: देवत्व प्राप्ति ), २६१.५३ ( कामदेव प्रतिमा का रूप ), २७७.६ ( कल्पवृक्ष दान के संदर्भ में कल्पवृक्ष के अधोभाग में पत्नी सहित कामदेव की कल्पना करने का निर्देश ), महाभारत वन ३३.३०( द्रव्यों के स्पर्श तथा धनादि लाभ से प्रसन्नता होने पर तदर्थ चित्त में उठे संकल्प का ही °काम° नाम से उल्लेख ), ३३.३८ ( ज्ञानेन्द्रियों , मन तथा बुद्धि की विषयों में प्रवृत्ति होने पर उत्पन्न हुई प्रीति के ही काम होने तथा धर्म अर्थ व काम - तीनों के परस्पर अविरोधपूर्वक सेवन करने का कथन ), ३१३.७८ ( काम के त्याग से अर्थवान् बनने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), ३१३.९७ ( यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से °काम ° के विषय में प्रश्न करने पर युधिष्ठिर द्वारा संसारहेतु (वासना) को ही काम बतलाने का उल्लेख ), शान्ति १६३.८ ( संकल्प से काम की उत्पत्ति , सेवन से वृद्धि तथा विरक्ति से काम के तत्काल नष्ट हो जाने का उल्लेख ), १६७.८ ( विदुर द्वारा धर्म, अर्थ तथा काम के त्रिवर्ग में से काम की कनिष्ठता का उल्लेख ), १६७.१२ ( अर्जुन द्वारा अर्थ की श्रेष्ठता बतलाते हुए अर्थ के बिना धर्म और काम की असिद्धि का कथन ), १६७.२७ ( नकुल व सहदेव द्वारा धर्म व अर्थ की अनुकूलता रखते हुए काम सेवन का कथन ), १६७.२८ ( भीमसेन द्वारा त्रिवर्ग में काम की श्रेष्ठता का प्रतिपादन ), १७७.१६ ( मङ्कि गीता के अन्तर्गत काम को त्यागने के संकल्प का वर्णन ),१७८, २५४.१७८ ( काम / कामना रूपी अद्भुत् वृक्ष का तथा उसे काटकर मुक्ति प्राप्त करने के उपाय का कथन ), अनुशासन ४४ ( कामोपभोग से काम वृद्धि का उल्लेख ), आश्वमेधिक १३.१२ ( कामगीता के अन्तर्गत वास्तविक उपाय का आश्रय लेकर ही काम / कामना के नाश का कथन ), मार्कण्डेय ५०.२४-२५ ( धर्म व श्रद्धा - पुत्र, अतिमुद हर्ष - पिता ), लिङ्ग १.१०१.३२ ( इन्द्र द्वारा काम का स्मरण तथा काम को स्वकार्य से अवगत कराना , शिव की नेत्राग्नि से काम का भस्म होना , रति विलाप, शिव द्वारा रति को काम के अनंग रूप से रहने तथा पश्चात् कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न रूप से पति प्राप्ति की सान्त्वना का वृत्तान्त ), वराह २७.३५ (आठ मातृकाओं में से एक योगीश्वरी मातृका ), ६१( कामना सिद्धि हेतु काम व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन), वामन ६.२४ ( कन्दर्प : हर्ष - पुत्र, शंकर द्वारा भस्म होकर अनंगत्व प्राप्ति का उल्लेख ), ६.४३ ( पूर्व में उन्मादन बाण से विद्ध शिव को कामदेव द्वारा सन्तापन बाण से विद्ध करने का उल्लेख ), वायु १०.३३, ३७ ( श्रद्धा व धर्म - पुत्र , हर्ष - पिता ), २८.३० ( यशोधारी व कनकपीठ के एक पुत्र का नाम ), ६६.३१ ( धर्म व विश्वा के दस विश्वेदेव पुत्रों में से एक विश्वेदेव ), ६९.५८ ( अप्सराओं के चौदह गणों में से चौदहवें गण शोभयन्ती की अप्सराओं का काम - कन्याएं होने का उल्लेख ), ७०.१४ ( कामदेव को अप्सरा गणों का अधिपति बनाने का उल्लेख ), ९३.९४ ( नहुष -पुत्र ययाति के प्रसंग में जीवन में कामनाओं के उपभोग से काम के शान्त न होने का उल्लेख ), विष्णु १.७.२८ ( श्रद्धा व धर्म - पुत्र , हर्ष - पिता ), १.८.२० ( इच्छा - पति ), ५.२७.३० ( नारद द्वारा कामदेव के ही कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न रूप में अवतीर्ण होने तथा शम्बरासुर - दासी मायावती के कामदेव - पत्नी रति होने के रहस्य का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.१९ ( कामदेव मूर्ति निर्माण विधि का वर्णन ), ३.१८३ ( शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में कामदेव व्रत विधि व फल का वर्णन ), ३.२४१ ( धर्म, अर्थ से रहित काम सेवन से मनुष्य की दुरावस्था का उल्लेख ), शिव २.२.२ ( काम के प्रादुर्भाव का वर्णन ), २.२.३ ( काम के विविध नामों का उल्लेख, काम द्वारा विकार युक्त होने पर ब्रह्मा द्वारा काम को शाप, पश्चात् काम द्वारा स्व कर्त्तव्य की याद दिलाने पर ब्रह्मा द्वारा काम पर अनुग्रह रूप में पुनर्जन्म में शरीर प्राप्ति का कथन ), २.२.४ ( दक्ष - पुत्री रति से कामदेव के विवाह का वर्णन ), २.२.८.५० ( वसन्त तथा रति के साथ कामदेव के शिव के समीप गमन का उल्लेख ), २.२.९ (शिव सम्मोहन में काम की असफलता तथा स्वाश्रम को लौटना ),२.३.१३.५७ ( तारकासुर से पीडित देवों द्वारा ब्रह्मा की आज्ञा से कामदेव को शिव के समीप भेजने तथा काम के भस्म होने का उल्लेख ), २.३.१७ ( कामेदव - इन्द्र संवाद का वर्णन , इन्द्र के कहने से कामदेव का वसन्त तथा रति के साथ शिव के समीप गमन ), २.३.१९ ( शिव कृत काम दाह, रति विलाप , देवों के प्रार्थना करने पर शिव द्वारा काम का प्रद्युम्न रूप में पुनर्जन्म ), २.३.५१( विवाहोत्सव को अनुकूल अवसर जानकर रति द्वारा काम संजीवन हेतु शिव से प्रार्थना , शिव द्वारा काम का संजीवन ), स्कन्द १.१.२१.८२ ( देवों द्वारा काम के भस्म होने का कारण पूछने पर महादेव द्वारा काम के दोष का कथन, देवों द्वारा प्रत्युत्तर में काम की अनिवार्यता का उल्लेख ), १.२.१३.१६७ ( शतरुद्रिय प्रसंग में कामदेव द्वारा गुड के शिवलिङ्ग की रतिद नाम से पूजा ), १.२.२४.१८ ( शिव मोहन हेतु इन्द्र के प्रार्थना करने पर काम का स्वयं को त्याज्य बतलाना , पुन: इन्द्र द्वारा काम के तामस , राजस व सात्विक रूपों को बताकर काम की अनिवार्यता का निरूपण ), १.२.२४.४० ( शिव की क्रोधाग्नि से काम का भस्म होना, विलाप करती हुई रति को देखकर शिव द्वारा रति को कृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में पति प्राप्ति का उल्लेख ), २.७.८.८१( इन्द्र द्वारा कामदेव का आह्वान और स्वस्वार्थ साधन का आदेश ), २.७.८.९१ ( कामदेव द्वारा क्षुब्ध होकर शिव का नेत्रोन्मीलन, वाम पार्श्व में कामदेव के दर्शन , क्रुद्ध होकर काम के दहन का वर्णन ), ३.२.३१.७६ ( राम द्वारा धर्मारण्य यात्रा प्रसंग में रामेश्वर तथा कामेश्वर लिङ्गों की स्थापना ), ४.२.८५.७६ ( दुर्वासा द्वारा स्थापित शिव लिङ्ग की कामेश्वर लिङ्ग के नाम से प्रसिद्धि ), ४.२.९७.९६ (कामेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.२५.६ ( कामेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.३१.८९ ( कामोदक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : स्नान से रूप प्राप्ति आदि ), ५.१.३४.२४ ( इन्द्र का कामदेव को बुलाकर स्वकार्य से अवगत कराना , काम का मधु तथा रति के साथ शिव के निकट गमन , शिव की नेत्राग्नि से काम का भस्म होना , रति का विलाप , आकाशवाणी द्वारा रति को काम के प्रद्युम्न रूप में पुनर्जन्म का आश्वासन ), ५.१.७०.७२ ( अवन्ती क्षेत्र के तीर्थों में कामेश्वर तीर्थ का उल्लेख ), ५.२.१३ ( ब्रह्मा द्वारा काम को निवास हेतु १२ स्थान प्रदान करना व शिव द्वारा दग्ध अनंग काम द्वारा स्थापित कामेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन ), ५.३.७१ (कामेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : कामनानुसार प्राप्ति ), ५.३.१०६ (कामद तीर्थ माहात्म्य : तीर्थ में स्नान व उमा - रुद्र की अर्चना से सौभाग्य प्राप्ति का कथन ), ५.३.१५० ( शंकर द्वारा काम को भस्म करने पर देवों की प्रार्थना से अनंग काम को अंग युक्त करना, काम द्वारा तप करके कुसुमेश्वर नाम से शिवलिङ्ग स्थापना ), ५.३.१९८.६५ ( मन्दर पर्वत पर उमा की कामचारिणी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.१२७.१६ ( पार्वती की कृपा से रूप यौवन की प्राप्ति होने पर कर्णोत्पला पर कामदेव की प्रीति , विवाह , काम - पत्नी बनकर कर्णोत्पला का प्रीति नाम होने का वृत्तान्त ), ६.१३४ ( हारीत - पत्नी पूर्णकला पर काम की आसक्ति , हारीत के शाप से काम को कुष्ठ प्राप्ति , खण्डशिला की अर्चना से मुक्ति ), ७.१.६७ ( कामेश्वर लिङ्ग का नाम हेतु कथन व माहात्म्य ), ७.१.९६ ( कामेश्वर लिंग का माहात्म्य : रति द्वारा कामदेव प्राप्ति हेतु तप से शिवलिङ्ग का उद्भूत होना , लिंग पूजन से काम की प्राप्ति ), ७.१.२०० ( काम के भस्म होने पर सृष्टि कार्य रुकने से देवों की प्रार्थना पर शिव द्वारा काम की उत्पत्ति , उस स्थान की कामकुण्ड तथा कृतस्मर नाम से प्रसिद्धि ), ७.३.४० ( शिव कृपा से अनंग काम के पुन: संजीवन पर रति व काम द्वारा अर्बुद पर्वत पर स्थापित कामेश्वर लिङ्ग का वर्णन ), हरिवंश ३.१४.४४ ( धर्म व लक्ष्मी से काम की उत्पत्ति ), योगवासिष्ठ ३.४५.१० ( सत्यकाम : काम की ही अभीष्ट सिद्धि का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३३.५ ( ताम्बूल रस जनित विकृति शान्ति हेतु नारायण द्वारा कामदेव की उत्पत्ति , काम परिवार के अन्य सदस्य ), १.१८४.११७ ( शिव को मोहित करने में सफल न होने पर रम्भा द्वारा मोहिनी को कामदेव की सहायता लेने का परामर्श, मोहिनी व काम के सम्मिलन से भृङ्गारक व वसन्तक की उत्पत्ति, शिव मोहन वृत्तान्त ), १.१८५.५९ ( इन्द्र के आह्वान पर काम का रति और वसन्त के साथ आगमन, निर्देशानुसार काम का शिव के समीप गमन और उन्हें मुग्ध करना , शिव की क्रोधाग्नि से भस्म होना, रति - विलाप, शिव द्वारा काम को अनंग रूप से रहने तथा द्वापर में श्रीकृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न के रूप में अवतार लेकर पुन: रति को पति रूप में प्राप्त होने का वृत्तान्त ), १.१९४.१३३ ( रति के प्रार्थना करने पर शिव द्वारा रति द्वारा सुरक्षित काम भस्म की पोटली से काम की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.१९८ ( सृष्टि विस्तार हेतु ब्रह्मा द्वारा काम की उत्पत्ति , काम के सौन्दर्य का वर्णन , काम के विविध नाम तथा दक्ष - पुत्री रति से काम के विवाह का वृत्तान्त ), १.२५४ ( कामिका : श्रावण कृष्ण एकादशी को कामिका व्रत करने से समस्त कामनाओं की प्राप्ति व समस्त संकल्पों की सिद्धि का वर्णन ; श्रवण नामक पितरों को व्रत प्रभाव से दूर श्रवण , दूरदर्शन व गुप्त वृत्तान्त ज्ञान सिद्धि , रति को कामिका व्रत प्रभाव से स्वपति काम की प्राप्ति ), १.३१४.१०१ ( सप्तमी व्रत के प्रभाव से पुरुषोत्तम के प्रकट होने पर अरुन्धती का केवल यौवनावस्था में कामोत्पत्ति रूप वर मांगना , श्री हरि द्वारा वर प्रदान का उल्लेख ), १.३८२.२०( विष्णु के काम व लक्ष्मी के कामना होने का उल्लेख ), १.४४१.८५ ( कन्दर्प का यष्टिमधु वृक्ष रूप में अवतरण का उल्लेख ), १.५००.६५ (सत्यसन्ध राजा की कन्या कर्णोत्पला के तप से प्रसन्न गौरी द्वारा कर्णोत्पला को रूप यौवन प्रदान करना , ब्रह्मा द्वारा प्रेषित कामदेव का कर्णोत्पला से विवाह , काम - पत्नी बनकर कर्णोत्पला की प्रीति नाम से प्रसिद्धि का वृत्तान्त ), १.५०२.२६ ( हारीत मुनि की पत्नी पूर्णकला पर काम की आसक्ति , मुनि के शाप से काम को कुष्ठ रोग की प्राप्ति तथा पूर्णकला का शिला रूप होना , सूर्याराधन से काम का कुष्ठ से मुक्त होकर स्वलोक गमन तथा पूर्णकला के स्वपिता हारीत के पास गमन का वर्णन ), १.५४३.६५ ( दक्ष द्वारा काम को अर्पित २ कन्याओं रति व प्रीति का उल्लेख ), ३.६३.७९ ( पति प्राप्ति हेतु चैत्र शुक्ल एकादशी को दमनक व्रत में कामदेव की पूजा विधि का वर्णन ), ३.११५.९ ( शिव मोहन हेतु कामदेव का आगमन , शिव द्वारा दहन , काम की भस्म से चित्रकर्मा गण द्वारा भण्डासुर की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.२४ ( निकाम : श्री पुरुषोत्तम द्वारा निकामदेव को प्रदत्त मोक्ष साधन का वर्णन ), ४.२६.५७ ( माणिकीश आदि कृष्ण की शरण से काम से मुक्ति का कथन ), ४.४४.६१ ( काम भाव को पैशाचिक बन्धन बताकर उसके त्याग में श्री हरि की प्रसन्नता का उल्लेख ), कथासरित् २.३.७८ ( राजा चण्डमहासेन की कन्या के उत्पन्न होते ही कन्या के गर्भ से पुत्र रूप में कामदेव के अवतार होने की आकाशवाणी का उल्लेख ), ३.१.१३० ( चण्डमहासेन की कन्या वासवदत्ता के प्रणाम करने पर नारद द्वारा पुत्र रूप में कामदेव के अंश को ही प्राप्त करने तथा पुत्र के विद्याधर राज होने का आशीर्वाद ), ४.३.७३ ( उदयन के पुत्र नरवाहनदत्त के उत्पन्न होते ही बालक के कामदेव का अवतार होने तथा विद्याधरराज होने की आकाशवाणी ), १०.८.१३२ ( शशी के पूछने पर कुष्ठी का स्वयं को कामदेव कहने का उल्लेख ); द्र. निकाम । kaama
टिप्पणी : काम का एक नाम स्मर भी है । तैत्तिरीय आरण्यक १०.६३.१ में चित्त से स्मृति, स्मृति से स्मर, स्मर से विज्ञान को प्राप्त करने का उल्लेख है । इस उल्लेख से ऐसा लगता है कि स्मृति के पठन का कार्य स्मर या काम का है ।
Comments on Kaama
Vedic contexts on Kaama
कामकटंकटा स्कन्द १.३.५९.३७ ( श्रीकृष्ण द्वारा मुर दैत्य का वध करने पर मुर - पुत्री कामकटंकटा का श्रीकृष्ण से युद्ध हेतु उद्यत होना , कामास्या देवी का प्रकट होकर कामकटंकटा को युद्ध से रोकना तथा भीम - पुत्र घटोत्कच से कामकटंकटा के विवाह की भविष्यवाणी करना , कामकटंकटा का घटोत्कच की बल बुद्धि की परीक्षा करके ही विवाह हेतु स्वीकृति देना , सभा में विद्यमान युधिष्ठिर द्वारा घटोत्कच विवाह हेतु चिन्ता व्यक्त करने पर श्रीकृष्ण द्वारा उपर्युक्त पूर्वघटित वृत्तान्त सुनाना तथा घटोत्कच का कामकटंकटा की शर्त को पूरा करने के लिए प्राग्ज्योतिषपुर नगरी के लिए प्रस्थित होना व कामकटंकटा की शर्त को पूरा कर विजयी होना , घटोत्कच का कामकटंकटा से विवाह तथा बर्बरीक पुत्र की उत्पत्ति का वृत्तान्
कामकल्पा लक्ष्मीनारायण ३.१९.३३ ( कामकल्पा नदी तट पर सन्त योगिनी द्वारा पशुओं के चारण का उल्लेख )।
कामकोटिगा ब्रह्माण्ड ३.४.१८.१६ ( ललिता देवी के २५ नामों में से एक )
कामकोष्ठक ब्रह्माण्ड ३.४.४०.१, ३.४.४४.९४ ( कामाक्षी देवी के पचास सिद्धपीठों में से एक ) ।
कामकोष्णी भागवत १०.७९.१४ ( तीर्थयात्रा करते हुए बलराम द्वारा कामकोष्णी देवी के दर्शन का उल्लेख ) ।
काम-क्रोधादि पद्म ७.१७.६७ ( भद्रतनु द्विज द्वारा पाप विच्छेद का उपाय पूछने पर दान्त ब्राह्मण का कामक्रोधादि विकारों को यत्नपूर्वक त्यागने का उपदेश ), ७.१७.७९,८० (काम, क्रोधादि विकारों के अभिप्राय का वर्णन ), मत्स्य ३.१० ( ब्रह्मा के हृदय से कुसुमायुध / काम तथा भ्रूमध्य से क्रोध की उत्पत्ति का उल्लेख ), महाभारत शान्ति १६३ ( काम, क्रोध आदि तेरह दोषों का निरूपण तथा उनके नाश के उपाय का कथन ), १९९.११५ ( काम, क्रोध द्वारा विरूप व विकृत नामक रूप धारण करके इक्ष्वाकु राजा की परीक्षा लेने का कथन ),आश्वमेधिक ९०.९४, वराह २७.३४, ३५ ( काम क्रोध आदि अष्ट मातृकाओं में काम का योगीश्वरी और क्रोध का माहेश्वरी रूप में उल्लेख ), स्कन्द २.४.३०.२५( काम , क्रोध आदि के गुरुतल्प, पितृघात आदि पुत्रों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२५१.५८ ( लोमश द्वारा काम, क्रोध आदि पर विजय के उपाय का उल्लेख ) ।
कामगम पद्म ५.६७.४०( कामगमा : उग्राश्व - पत्नी ), भागवत ८.१३.२५ ( धर्मसावर्णि मनु के ग्यारहवें मन्वन्तर में ३० - ३० देवों के त्रिविध देवगणों में से एक गण का नाम ), विष्णु ३.२.३० ( वही) ।
कामगिरि ब्रह्माण्ड ३.४.३९.१०५ ( काञ्ची में स्थित एक प्रमुख पीठरूप ), भागवत ५.१९.१६ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ) ।
कामचारिणी मत्स्य १३.२८ ( मन्दर पर्वत पर स्थित एक सती देवी की प्रतिरूप देवी की मूर्त्ति ) ।
कामचूडामणि कथासरित् ८.३.१५९ ( प्रतीहार द्वारा श्रुतशर्मा को सुनीथ - कन्या कामचूडामणि को मुक्त करने का उल्लेख ), ८.७.१२४ ( पार्वती - प्रतीहारों जया का सुमेरु को स्वकन्या कामचूडामणि को सूर्यप्रभ को देने के सन्देश का उल्लेख ) ।
कामठक महाभारत आदि ५७.१६ ( जनमेजय राजा के सर्प यज्ञ में मारा गया धृतराष्ट्र वंश का एक नाग ) ।
कामद पद्म ६.१९५.६ ( गङ्गाद्वार के समीप स्थित कामद नामक नगर में भागवत ज्ञान यज्ञ सम्पन्न करने का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१०६.१९ ( कामद तीर्थ माहात्म्य : उमा - रुद्र की अर्चना से सौभाग्य प्राप्ति का कथन ) ।
कामदमन ब्रह्म १.१२१.२२, १.१२१.८७ ( आग्नीध्र - पुत्र कामदमन की कोकामुख नदी में स्नान से मुक्ति ) ।
कामदा नारद १.१२०.७ ( समस्त पापों की विनाशक चैत्र शुक्ल एकादशी की कामदा नाम से प्रसिद्धि, कामदा एकादशी व्रत विधि का उल्लेख ) ।
कामदुघा गर्ग ७.४६.१ ( प्रद्युम्न का स्वसैनिकों के साथ कामदुघा नदी के समीप स्थित पतंग नामक गन्धर्वराज से युद्ध का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.३.७४,७५ ( रोहिणी की चार पुत्रियों में से एक , गायों की माता ), वायु ६६.७२ ( रोहिणी की चार पुत्रियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.७३, ९० ( कृष्ण - पत्नियों में से एक, विष्णु नामक पुत्र तथा सुरार्हणा नामक पुत्री की माता ) kaamadughaa
कामदेव मत्स्य २७७.६ ( कल्पवृक्ष दान के संदर्भ में कल्पवृक्ष के अधोभाग में पत्नी सहित कामदेव की कल्पना करने का निर्देश )।
कामधेनु
गणेश
१.७७.५१
(
जमदग्नि
द्वारा
कामधेनु
की
सहायता
से
राजा
कार्त्तवीर्य
का
सत्कार,
कामधेनु
से
उत्पन्न
सेना
द्वारा
राजा
की
सेना
की
पराजय
),
देवीभागवत
२.३.२६
(
पृथु
आदि
८
वसुओं
का
पत्नियों
सहित
घूमते
हुए
वसिष्ठ
के
आश्रम
में
आगमन
,
द्यौ
नाम
वसु
की
पत्नी
का
वसिष्ठ
ऋषि
की
नन्दिनी
गौ
को
देखना
,
द्यौ
द्वारा
गौ
के
ऐश्वर्य
का
वर्णन
,
गौ
का
हरण
तथा
वसिष्ठ
द्वारा
वसुओं
को
शाप
का
वृत्तान्त),
नारद
२.२८.७१
(
धर्म
का
महत्त्व
बतलाते
हुए
राक्षसी
द्वारा
धर्म
के
कामधेनु
से
सादृश्य
का
कथन
-
कामरूपा
ब्राह्मणी
तु
संजाता
धर्मकारणात्
।।
धर्मकामदुघा
धेनुः
संतोषो
नंदनं
वनम्
।।),
ब्रह्मवैवर्त्त
३.२४.१२,
३.२४.४०(
राजा
कार्त्तवीर्य
को
क्षुधा
से
पीडित
देखकर
जमदग्नि
मुनि
द्वारा
राजा
को
भोजन
हेतु
निमन्त्रित
करना
,
मुनि
का
कामधेनु
गौ
को
समस्त
वृत्तान्त
सुनाना
,
कामधेनु
द्वारा
अतिथि
सत्कार
हेतु
समस्त
सामग्री
की
सृष्टि
,
कार्त्तवीर्य
का
कामधेनु
की
याचना
करना
,
मुनि
द्वारा
गौ
देने
में
असमर्थता
बताना
,
मुनि
को
भयभीत
देखकर
गौ
द्वारा
अपार
सैन्य
समूह
की
सृष्टि
कर
मुनि
को
अभय
प्रदान
करने
का
वृत्तान्त
),
ब्रह्माण्ड
२.३.२६.५४
(
राजा
कार्त्तवीर्य
के
आतिथ्य
हेतु
जमदग्नि
ऋषि
की
कामधेनु
गौ
द्वारा
आतिथ्य
सामग्री
प्रस्तुत
करने
का
वृत्तान्त
),
३.४.१५.३७(
ललिता
देवी
के
सिंहासनारूढ
होने
पर
उनकी
आज्ञा
से
चिन्तामणि
,
कल्पवृक्ष
व
कामधेनु
आदि
बहुमूल्य
वस्तुओं
के
उपस्थित
होने
का
उल्लेख
),
मत्स्य
१७९.७३
(
अन्धकासुर
विनाशार्थ
सृष्ट
मानसी
शक्तियों
द्वारा
जगत्क्षय
होने
पर
शंकर
की
प्रार्थना
पर
श्री
नृसिंह
हरि
द्वारा
सृष्ट
३२
मातृकाओं
में
से
शुष्करेवती
की
अनुचरी
एक
मातृका
),
२७९
(
काञ्चन
निर्मित
कामधेनु
दान
विधि
),
वायु
११२.५६/२.५०.६८
(
कामधेनुपद
:
गया
-
स्थित
कामधेनुपद
में
पिण्डदान
करने
से
पितरों
को
ब्रह्मलोक
की
प्राप्ति
का
उल्लेख
-
पिण्डदो
धेनुकारण्ये
कामधेनुपदेषु
च।
स्नात्वा
नत्वाथ
सम्पूज्य
ब्रह्मलोकं
नयेत्पितॄन्
।।),
स्कन्द
३.२.१०.२
(
ब्रह्मा
के
आह्वान
पर
कामधेनु
का
आगमन
,
विप्रों
की
रक्षा
हेतु
कामधेनु
की
हुंकार
से
३६
सहस्र
वणिजों
की
उत्पत्ति
की
कथा,
कामधेनु
के
शरीर
में
देवों
आदि
का
न्यास
),
४.१.२९.४१(
गङ्गा
सहस्रनामों
में
से
एक
),
५.१.४६.१३
(
कामधेनु
-
प्रदत्त
अतुल
ऐश्वर्य
के
कारण
कुशस्थली
पुरी
के
अमरावती
नाम
धारण
करने
का
प्रसंग
),
५.१.७३.३
(
कामधेनु
की
तपस्या
से
महेश्वर
का
प्रकट
होना
तथा
गोपारेश्वर
तीर्थ
निर्माण
का
प्रसंग
),
६.६६.३८
(
जमदग्नि
आश्रम
में
राजा
सहस्रार्जुन
द्वारा
कामधेनु
को
मांगना,
ऋषि
के
मना
करने
पर
राजा
द्वारा
जमदग्नि
के
वध
का
प्रसंग
),
वा.रामायण
१.५२.२२-२३
(
महर्षि
वसिष्ठ
द्वारा
कामधेनु
को
विश्वामित्र
के
सत्कार
हेतु
अभीष्ट
वस्तुओं
की
सृष्टि
करने
का
आदेश
),
१.५३
(
कामधेनु
द्वारा
विश्वामित्र
के
आतिथ्य
हेतु
भोजन
की
प्रस्तुति
,
विश्वामित्र
द्वारा
कामधेनु
की
याचना
,
वसिष्ठ
द्वारा
गौ
देने
में
असमर्थता
व्यक्त
करने
का
वृत्तान्त
),
१.५४
(
कामधेनु
देने
के
लिए
मना
करने
पर
विश्वामित्र
द्वारा
कामधेनु
का
हरण
,
कामधेनु
द्वारा
यवन
सेना
की
सृष्टि
),
लक्ष्मीनारायण
१.४७९.५७
(
ग्रीष्म
काल
में
नैवेद्य
हेतु
फल
आदि
के
अभाव
में
कामधेनु
द्वारा
वाल्मीकि
को
स्व
दुग्ध
रूपी
नैवेद्य
प्रदान
करना
),
३.१२८.१(
सर्वसंकल्प
साधक
स्वर्णकामधेनु
दान
विधि
का
वर्णन
),
३.१८१.८४(
शाश्वत
सुख
दुहने
वाले
सज्जनों
की
कामधेनु
से
समता
का
उल्लेख
-
सन्तो
वै
कल्पवल्ल्यश्चाऽमृतं
फलं
ददत्यपि
।
साधवः
कामगावस्ते
दुहन्ति
शाश्वतं
सुखम्
।।
),
कथासरित्
९.६.१६९
(
माता
-
पिता
की
भक्ति
की
कामधेनु
से
समता
-
ईदृक्पापफलं
पुत्र
मातापित्रोर्विरोधनम्
।।
कामधेनुस्तु
तद्भक्तिस्तत्राप्येतां
कथां
शृणु
।
)
kaamadhenu/ kamadhenu
कामना अग्नि ८१.४८ ( पृथक् - पृथक् कामना पूर्ति हेतु पृथक् - पृथक् होम द्रव्यों का कथन ), २१५.२५ ( कामना अनुसार भिन्न - भिन्न द्रव्यों द्वारा होम का कथन ), २५९ ( विविध कामनाओं की सिद्धि हेतु ऋग्वेदीय मन्त्रों के जप का वर्णन ), २६० ( कामना अनुसार भिन्न - भिन्न द्रव्यों तथा यजुर्वेदीय मन्त्रों से होम का वर्णन ), २६१ ( कामना अनुसार सामवेद मन्त्रों के जप का वर्णन ), २६२ ( कामना अनुसार होम तथा अथर्ववेद मन्त्र जप का वर्णन ), २६५ ( भिन्न - भिन्न कामनाओं के अनुसार पृथक् - पृथक् स्थानों पर स्नान करने का उल्लेख ), २६७.७ ( कामना अनुसार भिन्न - भिन्न पदार्थों से स्नान करने का उल्लेख ), ३०९.१५ ( कामना अनुसार होम द्रव्य का कथन ), कूर्म २.२०.८ ( भिन्न - भिन्न कामनाओं के अनुसार भिन्न -भिन्न नक्षत्रों, तिथियों व वारों में श्राद्ध करने का उल्लेख ), २.२६.३८ ( कामना अनुसार भिन्न - भिन्न देवों की पूजा का उल्लेख ), गरुड १.५१.१८( वही), देवीभागवत ११.२४.२२ ( कामना अनुसार विभिन्न द्रव्यों से होम करने का उल्लेख ), नारद १.७६.३१( कार्त्तवीर्य होम में कामना अनुसार होमद्रव्य का कथन ), १.९०.६९ ( पृथक् - पृथक् कामनाओं की सिद्धि हेतु माहेश्वरी देवी के अर्चन में प्रयुक्त पृथक् - पृथक् द्रव्यों का उल्लेख ), पद्म ३.५७.३८ ( कामना अनुसार देव पूजा का उल्लेख ), भागवत २.३.१-१० ( वही), महाभारत शान्ति २०१.१३ (कामनाओं से मुक्त होकर निष्काम भाव से कर्मानुष्ठान करके परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.११८ ( भिन्न - भिन्न देवों की पूजा द्वारा भिन्न - भिन्न कामनाओं की पूर्ति का वर्णन ), शिव १.१५.४७ ( कामना अनुसार दान - द्रव्यों का कथन ), स्कन्द ६.२१९ ( कामना अनुसार श्राद्ध योग्य तिथि ), ४.१.१०.१४० ( शिव सन्निधि में विश्वानर -प्रोक्त अभिलाषाष्टक स्तोत्र के पठन से समस्त कामनाओं की सिद्धि का उल्लेख ),महाभारत शान्ति २०१, लक्ष्मीनारायण १.५९.३९ ( कामना अनुसार देवों की आराधना का उल्लेख ), १.१५८.२८ ( भिन्न - भिन्न कामनाओं के अनुसार भिन्न - भिन्न नक्षत्रों में श्राद्ध करने का उल्लेख ), १.३८२.२०( विष्णु के काम व लक्ष्मी के कामना होने का उल्लेख ), २.२७९.४२ ( गणेश के कटि से नीचे के भाग का समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले भाग के रूप में उल्लेख ) । kaamanaa/ kamna
कामन्द गणेश १.७.१० ( राजा सोमकान्त के पूर्व जन्म का नाम, चिद्रूप व सुभगा - पुत्र, कुटुम्बिनी - पति, कामन्द की दुष्ट वृत्तियों का वर्णन, कान्त प्रासाद निर्माण से कामन्द का सोमकान्त नृप बनना ), कथासरित् १२.१०.१६ (कामन्दिका नगरी -वासी अर्थदत्त - पुत्र धनदत्त की कथा : सारिका द्वारा पुरुष की कृतघ्नता को व्यक्त करने का प्रसंग ), ।
कामपाल भविष्य ३.३.२५.४ ( ब्रह्मचर्य के प्रभाव से वीर्य को शिर में धारण करने से राजा शारदानन्द की कामपाल नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख, पद्मिनी तथा पद्माकर - पिता ), ३.३.३०.८४ ( कामपाल द्वारा लक्षण का बन्धन , कृष्णांश की सेना से पराजय ), वामन ९०.६ ( प्राचीन तीर्थ में विष्णु का कामपाल नाम से वास ) ।
कामप्रमोदिनी स्कन्द ५.३.१६९.२४ ( देवपन्न राजा के तप से उत्पन्न कन्या कामप्रमोदिना का श्येन रूपधारी शम्बर असुर द्वारा हरण , माण्डव्य ऋषि का शूलारोपण प्रसंग ), ५.३.१७२.१४( कामप्रमोदिनी के माण्डव्य ऋषि की पत्नी बनने का उल्लेख ) ।
कामराज वामन ७०.३४ ( शिव शरीर से नि:सृत पश्चिम दिशा में प्रवाहित रक्तधारा से कामराज भैरव की उत्पत्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१८.१६ ( कामराजप्रिया : ललिता देवी के २५ नामों में से एक ) ।
कामरूप गर्ग ७.१५.२० ( प्रद्युम्न का कामरूप देश के राजा पुण्ड्र के पास गमन , प्रद्युम्न व पुण्ड्र का युद्ध, पुण्ड्र का पराजित होकर प्रद्युम्न की शरण में गमन का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७२ ( कामरूपिणी : श्री, ह्री आदि ४८ शक्ति देवियों में से एक शक्ति देवी ), ३.४.४४.९३ ( ललिता देवी की पचास पीठों में से एक मुख्य पीठ ), मत्स्य १७९.२१ ( कामरूपा : अन्धकासुर विनाशार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक ), वामन ९०.३३ ( कामरूप में विष्णु का शशिप्रभ नाम ), विष्णु २.३.१५ ( भारत के पूर्व में स्थित एक राज्य ), शिव ४.२०,४.२१ ( भीम दैत्य द्वारा कामरूप देश के शिवभक्त राजा सुदक्षिण को बन्धन युक्त करना , कामरूपेश्वर द्वारा शिव का पार्थिव पूजन , दैत्य द्वारा शिव के पार्थिव रूप पर प्रहार, पार्थिव रूप से साक्षात् शिव का प्राकट्य , शिव द्वारा दैत्य का संहार, शिव लिङ्ग की भीमशंकर ज्योतिर्लिङ्ग रूप से प्रसिद्धि का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.५०४.८० ( कामाक्षी देवी की इच्छा से कामरूप पर्वतों का नर - नारी बनने का उल्लेख ), १.५०४.८६ ( कामरूप तीर्थ का उल्लेख ), ४.१०६.२३ ( कामरूप देश की प्रजा में दुःख व्याप्त होने तथा प्रजा के दुःख को विनष्ट करने की सनत्कुमार की इच्छा का उल्लेख ), कथासरित् ३.५.११३ ( कामरूप देश के राजा द्वारा वत्सराज उदयन को प्रणामपूर्वक कर प्रदान का उल्लेख ), १८.५.१९८ ( कूटलेख में कामरूप देश के राजा मानसिंह द्वारा सुमंगला को प्रेषित आदेश का उल्लेख ) । kaamaruupa/ kaamaroopa/kamrupa
कामलायनिज मत्स्य १९८.१३ ( कुशिकवंशज एक ऋषि, त्र्यार्षेय प्रवर ) ।
कामली वायु ९१.९० ( इक्ष्वाकुवंशीय सुवेणु राजा की कन्या रेणुका का अपर नाम, जमदग्नि - पत्नी , परशुराम - माता ), हरिवंश १.२७.३८ ( इक्ष्वाकुवंशीय रेणु नरेश की कन्या , रेणुका अपर नाम , जमदग्नि - पत्नी, परशुराम - माता ) ।
कामशंकर ब्रह्माण्ड ३.४.१५.४५ ( देवी कामेश्वरी के कान्त कामेश्वर का एक नाम ) ।
कामशास्त्र ब्रह्मवैवर्त्त ३.१७.१३ ( देवों द्वारा कार्तिकेय को उपहार प्रदान प्रसंग में कामदेव द्वारा कुमार को कामशास्त्र प्रदान का उल्लेख ), मत्स्य २१.३० ( राजा ब्रह्मदत्त के मन्त्री बाभ्रव्य सुबालक पाञ्चाल का कामशास्त्र प्रणेता होने का उल्लेख ), २२.२ ( राजधर्म के अन्तर्गत राजा द्वारा स्वपुत्र को धर्म , अर्थ एवं कामशास्त्र की शिक्षा दिये जाने का उल्लेख ) ।
कामशिव ब्रह्माण्ड ३.४.१५.१६ (कामेश्वरी वल्लभ श्री कामेश्वर का एक नाम , ललिता -शंकर विवाहोत्सव प्रसंग ) ।
कामसेन भविष्य ३.४.७.३९ ( दाक्षिणात्य राजा कामसेन की पुत्री चित्रिणी को देखकर मित्रशर्मा द्विज का मोहित होना , सूर्याराधन से प्राप्त वर से मित्रशर्मा का चित्रिणी को प्राप्त करने का वृत्तान्त ) ।
कामहानि वायु ६१.४२ ( सामवेद शाखा प्रवर्तक आचार्य लाङ्गलि के ६ शिष्यों में से एक ),
कामाक्षा नारद २.६९ ( कामाक्षा देवी का माहात्म्य : कलियुग में मनुष्यों की सिद्धि प्रदात्री ), पद्म ५.१२.५५ ( राम के अश्वमेध यज्ञ के अश्व की रक्षा करते हुए शत्रुघ्न का अहिच्छत्रा नामक नगरी में पहुंचकर कामाक्षा देवी के मन्दिर को देखना तथा मन्त्री सुमति से सर्वसिद्धि प्रदात्री कामक्षी देवी की स्थापना का हेतु पूछना ) ।
कामाक्षी ब्रह्माण्ड ३.४.५.७ ( पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए काञ्ची नगरी में आकर अगस्त्य ऋषि द्वारा कामाक्षी देवी की पूजा का उल्लेख ), ३.४.१५.३५ ( कामनाओं को पूर्ण करने के कारण ब्रह्मा द्वारा ललिता देवी को कामाक्षी और कामेश्वरी नामों से अभिहित करने का उल्लेख ), ३.४.३८.८१ ( ललिता देवी का अपर नाम, भण्डासुर वधार्थ देवी की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.३९.१४+ ( ललिता देवी का ही काञ्ची में कामाक्षी रूप से उल्लेख ), ३.४.४०.१ ( महात्रिपुर सुन्दरी देवी का अपर नाम ), ३.४.४०.१६ ( कामाक्षी देवी की काञ्ची में स्थिति का उल्लेख ), ३.४.४०.१४२ ( कामाक्षी देवी के माहात्म्य का कथन : कामाक्षी देवी द्वारा राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति का वरदान ), मत्स्य १३.२६ ( गन्धमादन पर्वत पर सती देवी की कामाक्षी नाम से स्थिति का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.४५.४१ ( ६४ योगिनियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.८३.३३( ६४ योगिनियों में से एक ), १.५०४.७९( भरद्वाज - पुत्र तैत्तिरि द्वारा नवलक्ष पर्वत पर कामाक्षी की आराधना का कथन ), २.११५.१९ ( कामाक्षी देवी की आसाम देश में स्थिति का उल्लेख ), ३.१२०.२९ ( ब्रह्मा की तपस्या से कामाक्षी देवी का प्राकट्य , ब्रह्मा द्वारा कामाक्षी देवी की स्तुति, संसार के कल्याण हेतु ब्रह्मा द्वारा कामाक्षी देवी से भूमि पर निवास हेतु प्रार्थना , देवी के स्वीकार करने पर काञ्ची पुरी में मन्दिर का निर्माण , देवी स्थापना , कामाक्षी नाम निरुक्ति ), ४.१०५.२४( दुष्ट राजा मायापाल द्वारा स्वपत्नी को कामाक्षी देवी के नाम से प्रतिष्ठित करने का उल्लेख ), ४.१०५.५४( सनत्कुमार द्वारा कामाक्षी देवी से राजा मायापाल व प्रजा पर कृपा की प्रार्थना ) । kaamaakshee/kamakshi
कामाख्या पद्म ३.२५.१२ ( कामाख्या तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : स्नान से सिद्धि प्राप्ति ), स्कन्द १.२.५९.४१ ( श्रीकृष्ण द्वारा मुर दैत्य की पुत्री कामकटंकटा को मारने के लिए उद्यत होने पर कामाख्या देवी का प्रकट होना , कृष्ण व कामकटंकटा को परस्पर युद्ध से निवृत्त करना तथा कामकटंकटा के भीम की पुत्रवधू बनने की भविष्यवाणी करने का वृत्तान्त ) ।
कामाङ्गी भविष्य ३.२.६.१५ ( कलिभोजन रजक/धोबी का कामाङ्गी नामक कन्या पर मोहित होकर चण्डिका से उसे पत्नी रूप में प्राप्त करने की प्रार्थना , वेताल द्वारा राजा से प्रश्न पूछने का प्रसंग ) ।
कामार्त्ता ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७३ ( श्री, ह्री आदि ४८ शक्ति देवियों में से एक ) ।
कामालसा भविष्य ३.२.९ ( हिरण्यदत्त वैश्य - पुत्री, मदपाल - पत्नी कामालसा द्वारा सोमदत्त को रतिसुख तथा चोर को आभूषण देने का वचन , वेताल द्वारा राजा से श्रेष्ठ सत्य पूछने के लिए कहा गया कथा प्रसंग ) ।
कामावसायिता वायु १३.४ ( योग के अन्तर्गत अणिमा , लघिमा आदि ऐश्वर्य के आठ गुणों में से एक ) ।
कामावरूथिनी भविष्य ३.२.१६ ( रत्नदत्त वैश्य - पुत्री, बलभद्र सेनापति से विवाह, राजा की आसक्ति व मरण , कामावरूथिनी द्वारा देहत्याग, वेताल द्वारा राजा से श्रेष्ठ धर्म पूछने के लिए कही गई कथा का प्रसंग ) ।
कामिका नारद १.१२०.२८ ( श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी व्रत माहात्म्य : सम्पूर्ण कामनाओं को प्राप्त कर विष्णुपद की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.१४० ( चक्र न्यास में शक्ति देवी कामिकी के विन्यास का कथन ) ।
कामिनी ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७२ ( श्री, ह्री आदि ४८ शक्तियों में से एक ), भागवत ५.२४.१६ ( अतललोक निवासी वलासुर के जंभाई लेने पर उसके मुख से स्वैरिणी , कामिनी और पुंश्चली नामक तीन प्रकार की स्त्रियों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), स्कन्द २.१.२०.५ ( भद्रमति द्विज की ६ पत्नियों में से एक ), २.१.२०.२२ ( कामिनी द्वारा भद्रमति को वेंकटाचल पर्वत पर भूदान हेतु प्रेरित करने का उल्लेख ) ।
कामुका स्कन्द ५.३.१९८.६४ ( गन्धमादन पर्वत पर उमा देवी की कामुका नाम से स्थिति का उल्लेख ) ।
कामेशी ब्रह्माण्ड ३.४.१३.२ ( ललिता देवी का प्रादुर्भाव होने पर देवों द्वारा की गई स्तुति में देवों द्वारा उच्चरित ललिता देवी का एक नाम ), ३.४.१८.१५ (ललिता देवी के २५ नामों में से एक नाम ), ३.४.१९.४८ ( चक्र रथेन्द्र के तृतीय पर्व पर स्थित दैत्यसंहार कारिणी ८ देवियों में से एक ), ३.४.१९.५२ ( चक्र रथेन्द्र के द्वितीय पर्व पर स्थित ललिता देवी की तीन अन्तरङ्ग सहचरियों में से एक ), ३.४.१९.५७ ( आनन्दपीठ में चक्र रथेन्द्र के मध्य पर्व में स्थित भगमाला , नित्यक्लिन्ना , भेरुण्डा आदि १५ अक्षर देवियों में प्रथम देवी ), ३.४.२५.९४ ( कामेशी देवी द्वारा दमन दैत्य के वध का उल्लेख ) । kaameshi
कामेश्वर ब्रह्माण्ड ३.४.१४.२१ ( ब्रह्मा द्वारा शृङ्गारमूर्ति ललिता देवी के साथ अमंगल वेषधारी शिव का चिन्तन करने पर शिव का कमनीय रूप धारण करके प्रादुर्भूत होना , ब्रह्मा द्वारा अप्रतिम सौन्दर्य युक्त शिव को कामेश्वर नाम से अभिहित करने का उल्लेख ), ३.४.१५.१२ ( लोक पर अनुग्रह करने के लिए किसी पुरुष को वरण करने हेतु ब्रह्मा तथा देवों की प्रार्थना पर ललिता देवी द्वारा फेंकी हुई माला का कामेश्वर के कण्ठ में आकर गिरने का उल्लेख ), ३.४.२७.६७ ( मन्त्रिणी द्वारा सेना में व्याप्त आलस्य रूप विकार का वर्णन करने पर ललिता देवी का कामेश्वर की ओर देखकर हास्य करना , उस हास्य से जयविघ्न महायन्त्र का भेदन करने वाले गजानन की सृष्टि का उल्लेख ) । kaameshwara/kameshwar
कामेश्वरी नारद १.८८.३९ ( श्रीराधा की १६ नित्य कलाओं में से द्वितीय कला कामेश्वरी के मन्त्र, तन्त्र, ध्यान तथा पूजनादि का निरूपण ), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.३५ ( समस्त कामनाओं को पूर्ण करने के कारण ब्रह्मा द्वारा ललिता देवी को कामाक्षी तथा कामेश्वरी नामों से अभिहित करने का उल्लेख ), ३.४.३१.२४ ( कामेश्वरी पुरी : ललिता देवी के निवास श्रीपुर का एक नाम ), ३.४.३७.३३ ( १५ नित्या देवियों में से एक नित्या देवी ), ३.४.४४.१४१ ( चक्र न्यास में शक्ति देवी कामेश्वरी के विन्यास का कथन ) ।
कामोदा नारद २.६८ ( समुद्रमन्थन से उत्पन्न चार कन्यारत्नों में से तृतीय कन्या कामोदा के अश्रुओं से कमलों की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), पद्म २.११८.२५ ( विष्णुमाया रूपी सुन्दरी द्वारा विहुण्ड दैत्य को कामोद से उत्पन्न पुष्पों से शिव पूजा करने तथा कामोद पुष्पों की माला सुन्दरी के गले में डालने से दैत्य की भार्या बनने का वचन, विहुण्ड का कामोद वृक्ष को न पाना, शुक्र मुनि से कामोद वृक्ष के प्राप्ति स्थान के विषय में पूछने पर मुनि द्वारा कामोद वृक्ष की असत्ता तथा कामोदपुर में कामोदा नामक योषिता के अश्रुओं से कामोद पुष्पों की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), पद्म २.११९.१३ ( समुद्र मन्थन के समय अमृत की तरङ्गों से कामोदा की उत्पत्ति, भविष्य में तुलसी नाम धारण, विहुण्ड दैत्य के कामोद पुष्प हेतु कामोदपुर की ओर गमन करने पर विष्णु द्वारा प्रेषित नारद मुनि द्वारा विहुण्ड दैत्य को कामोदपुर जाने से रोकना तथा जल द्वारा बहाकर लाए गए कामोद पुष्पों से शिव अर्चना करने का परामर्श देना ), २.१२०, २.१२१ ( नारद का कामोदा के पास पहुंचना, नारदोक्त वृत्तान्त को सुनकर कामोदा का रोना , कामोदा के अश्रुबिन्दुओं से उत्पन्न कमलों को प्राप्तकर विहुण्ड दैत्य का शिव पूजा करना , परमेश्वरी द्वारा क्रोधित होकर दैत्य का वध करने का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण ३.५२.८९ ( समुद्रमन्थन से उत्पन्न चार कन्याओं में से एक, समुद्र द्वारा कामोदा को विष्णु को अर्पित करना, विष्णु वियोग में कामोदा का गङ्गामूल में जाकर रुदन करना , रुदन से उत्पन्न रक्त पुष्पों से दैत्य का विनाश, भविष्य में तुलसी होकर विष्णु संयोग के स्मरण से कामोदा का हास्य , हास्य से उत्पन्न कामोद पुष्पों से देवगण की पूजा का वृत्तान्त ) । kaamodaa
काम्पिल्य पद्म ६.१३३.१२ ( कम्पिल : कम्पिल क्षेत्र में कापिल तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), ६.२०६.५ ( काम्पिल्य नगरी में साक्षात् काम रूप द्विज पर स्त्रियों की आसक्ति का वर्णन ), ६.२०६.५३ ( काम्पिल्य नगरी पर कारूष अधिपति के आक्रमण का उल्लेख ), भागवत ९.२१.३२ ( भर्म्याश्व के पंचाल नाम से प्रसिद्ध पांच पुत्रों में से एक ), वराह १३७.६७ ( काम्पिल्य नगर वासी राजा ब्रह्मदत्त के पुत्र सोमदत्त के बाण से हत शृगाली और गृध्र का सौरव तीर्थ के प्रभाव से राजकुल में उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), वायु ९९.१७६( राजा समर की राजधानी ), ९९.१९६ ( भेद के पाञ्चाल संज्ञक पांच पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१९.४० ( राजा समर की राजधानी ), ४.१९.५९ ( हर्यश्व के पांचाल संज्ञक पांच पुत्रों में से एक ), शिव २.१.१७.५ (काम्पिल्य नगर वासी गुणनिधि दीक्षित के चरित्र का वर्णन ), स्कन्द १.२.७.२२ ( राजा इन्द्रद्युम्न के स्वर्ग से काम्पिल्य नगर में आने का उल्लेख ), ४.१.१३.३७ ( काम्पिल्य नगर निवासी गुणनिधि के चरित्र का वृत्तान्त ), ६.२७१.३३+ ( राजा इन्द्रद्युम्न के ब्रह्मलोक से काम्पिल्य नगर में अवतरण का उल्लेख ), हरिवंश १.२०.७४( अर्जुन द्वारा द्रुपद को जीतकर काम्पिल्य नगर द्रोण को समर्पित करना , द्रोण द्वारा काम्पिल्य नगर को पुन: द्रुपद को देने का वृत्तान्त ), १.२३.१६ ( सात हंसों के काम्पिल्य नगर में ब्रह्मदत्त आदि नामों से उत्पन्न होने का उल्लेख ), कथासरित् ५.२.२३ ( कनकपुरी का पता पूछने हेतु शक्तिदेव का मुनि के कहने पर काम्पिल्य नगरी में गमन , काम्पिल्य में उत्तर नामक पर्वत पर स्थित आश्रम में दीर्घतपा ऋषि से कनकपुरी नगरी के सम्बन्ध में पूछने का उल्लेख ) । kaampilya/ kampilya
काम्बोज नारद १.५६.७४४( काम्बोज देश के कूर्म का पाणिमण्डल होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४९ ( भारतवर्ष के राज्यों में उत्तर देश के एक राज्य काम्बोज का उल्लेख ), २.३.४१.३९ ( परशुराम द्वारा निहत क्षत्रियों में काम्बोजों का उल्लेख ), २.३.४८.२२, ४४ ( हैहयों को जीतकर राजा सगर का काम्बोजों की ओर प्रस्थान , सगर द्वारा काम्बोजों आदि की विरूपता का उल्लेख ), २.३.६३.१२० ( सगर - पिता बाहु को राज्य - च्युत करने में हैहयों की सहायतार्थ आए पांच गणों में से एक ), २.३.६३.१३४ ( सगर द्वारा हैहयों सहित काम्बोज आदि पांचों गणों को समाप्त प्राय करने की प्रतिज्ञा , वसिष्ठ का सगर को रोकना , वसिष्ठ के कहने से सगर द्वारा काम्बोज आदि पांचों गणों को धर्म से च्युत तथा विरूप करने का उल्लेख ), ३.४.१६.१६ ( भण्ड नामक दैत्य को जीतने हेतु ललिता देवी की विशाल सेना में काम्बोजों का उल्लेख ), वायु ८८.१२२ ( शक, यवन , काम्बोज, पारद तथा पह्लवों की सहायता से हैहयवंशीय तालजंघों द्वारा व्यसनी राजा बाहु को राज्य - च्युत करने का उल्लेख ), विष्णु ४.३.४२ ( राजा सगर का हैहय तालजंघ को मारकर शक, यवन, काम्भोज, पारद तथा प्लवों को मारने के लिए उद्यत होने पर शकादि का वसिष्ठ की शरण में जाना , वसिष्ठ द्वारा जीवन दान के साथ शक, काम्भोज आदि को धर्म - च्युत करने का कथन ), शिव ५.३८.३० ( राक्षसों के पांच गणों में से एक, बाहु राजा के राज्य - हरण का उल्लेख ) । kaamboja/ kamboja
काम्यक नारद २.६५.५ ( कुरुक्षेत्र के सात वनों में प्रथम वन ), वामन ४१.३२ ( काम्यकवन का संक्षिप्त माहात्म्य : पापों से मुक्ति का उल्लेख ), स्कन्द २.३.६.५६ ( काम्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : कामी और अकामी की मुक्ति का उल्लेख ), ५.३.२.१४( तीर्थयात्रा प्रसंग में पाण्डवों का मुनियों सहित काम्यक वन में प्रवेश, काम्यक वन की शोभा का वर्णन, काम्यक वन में युधिष्ठिर का मार्कण्डेय से संवाद ); । kaamyaka/ kamyaka
काम्या ब्रह्माण्ड १.२.११.३२-३४ ( श्रुति व कर्दम की कन्या, प्रियव्रत - भार्या , १० पुत्रों व २ पुत्रियों की माता ), १.२.१४.७ ( काम्या के दस पुत्रों को पिता प्रियव्रत द्वारा विभिन्न द्वीपों का राजा बनाने का उल्लेख ) ।
कायनि मत्स्य १९५.३१ ( भृगु वंश में उत्पन्न एक ऋषि ), लक्ष्मीनारायण २.२१६.९३ ( कायनी : गतैनस राष्ट्र के राजा द्वारा कायनी नगरी के निकट समुद्र तट पर स्थित महोद्यान में श्री हरि के स्वागत का उल्लेख )
कायस्थ ब्रह्मवैवर्त्त ४.८५.१३७ ( कायस्थ की निन्दा ), भविष्य ३.४.२३.१०० ( कायस्थ वर्ण द्वारा भूत , प्रेत व पिशाचों की तृप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२६३.७ ( ऊर्जव्रत नामक कायस्थ के सूर्याराधन से कुष्ठ रोग से मुक्त होने का वृत्तान्त ), ४.६५.४२ ( लक्ष्मीनारायण संहिता कथा श्रवणादि से कायस्थों की मुक्ति का वृत्तान्त ) । kaayastha/ kayastha
काया गणेश २.११४.१५ ( सिन्धु व गणेश के युद्ध में महाकाय का भूतराज से युद्ध ), पद्म २.६४.५६( आत्मा और काया की मैत्री के सम्बन्ध में मातलि और ययाति का संवाद ), भागवत ९.२१.२२( बृहत्काय : बृहद्धनु - पुत्र, जयद्रथ - पिता ), योगवासिष्ठ १.१८ ( काय जुगुप्सा नामक सर्ग ), ६.१.८१.६१ ( काया को सूक्ष्म छिद्रों में गति करने योग्य बनाने आदि का प्रश्न व उत्तर ), लक्ष्मीनारायण २.१०७.२९( राक्षसों द्वारा पतत्काया पर्वत पर पितृकन्याओं के विमान के रोधन का कथन ), द्र. अतिकाय, हड्डकायिनी ।kaayaa
कायावरोहण मत्स्य १३.४८ ( कायावरोहण क्षेत्र में सती देवी की माता नाम से स्थिति का उल्लेख ), २२.३० ( पितरों के परम प्रिय तीर्थों में से एक ), १८१.२६ ( दोनों संध्याओं में शिव के सान्निध्य से कायावरोहण नामक क्षेत्र की पवित्रता का उल्लेख ), वायु २३.२११ ( कायारोहण : २८वें द्वापर में रुद्र के नकुली नाम से अवतार लेने पर रुद्र द्वारा अधिष्ठित स्थान की कायारोहण नामक सिद्ध क्षेत्र के रूप में प्रसिद्धि का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.२६.७ ( महाकालवन क्षेत्र के दक्षिण भाग में कायावरोहण तीर्थ में कायावरोहणेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), ५.१.२६.२४ ( कायावरोहण तीर्थ में गज दान का उल्लेख ), ५.२.८१.३३ ( शिव द्वारा महाकालवन क्षेत्र के दक्षिण भाग में कायावरोहण नामक गण को रक्षक रूप में नियुक्त करने का उल्लेख ), ५.२.८२ ( कायावरोहणेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : दक्ष यज्ञ में भद्रकाली व वीरभद्र द्वारा तुषित देवों का विदेह होना, कायावरोहणेश्वर लिंग पूजा से पुन: देह प्राप्ति का वृत्तान्त ), ५.३.१९८.८५ ( कायावरोहण तीर्थ में देवी की माता नाम से स्थिति का उल्लेख ) । kaayaavarohana/ kayavarohana
कारकि मत्स्य १९६.१४ ( एक आंगिरस प्रवर प्रवर्तक ऋषि ) ।
कारण अग्नि ८४.३४( निवृत्ति कला में ब्रह्मा के कारण होने का उल्लेख - अष्टानां पार्थिवन्तत्त्वमधिकारास्पदं मतं ।। लयस्तु प्रकृतौ बुद्धौ भोगो ब्रह्मा च कारणं। ), ८५.१६( प्रतिष्ठा कला/स्वप्न में गरुडध्वज के कारण होने का उल्लेख - रसस्तु विषयो रूपशब्दस्पर्शरसा गुणाः।..स्वप्नावस्थाप्रतिष्ठायां कारणं गरुडध्वजं। ), ८६.१०( विद्या कला/सुषुप्ति में रुद्र के कारण होने का कथन - विषयो रूपमेवैकमिन्द्रिये पादचक्षुषी। अवस्थाऽत्र सुषुप्तिश्च रुद्रो देवस्तु कारणं। ), ८७.६( शान्ति कला में ईश्वर के कारण होने का उल्लेख ), गरुड १.१५.४८ ( विष्णु सहस्रनामों के अन्तर्गत विष्णु के कारण प्रत्यय वाले ५० से अधिक नामों का कथन - कारणं महतश्चैव प्रधानस्य च कारणम् ॥ बुद्धीनां कारणं चैव कारणं मनसस्तथा ॥ ), गर्ग १०.३५.२३( कारण - कार्य के सम्बन्ध में बल्वल - अनिरुद्ध वार्तालाप - तस्माद्वदंति कर्तारं कर्मकालात्परं वरम् ॥ स कर्ता कृष्णचंद्रस्तु गोलोकेशः परात्परः ॥ ), पद्म ५.६९.१०७(परम कारण कृष्ण गोविंद का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३२.७८( काल रूप एक कारण से क्षेत्रज्ञों की उत्पत्ति का कथन ), भागवत ३.२१.१९( जगत के सृष्टि कारण के संदर्भ में भगवान् द्वारा ऊर्णनाभि की भांति स्वयं सृष्टि करने का कथन ), मत्स्य १२३.४९(भूमि, आप:, अग्नि आदि द्वारा एक - दूसरे को धारण करने का कथन ), १२३.६१( महदादि के कारणात्मक होने का उल्लेख ), वराह १७.७०( शरीर माया/दुर्गा के कारणान्त बनने का उल्लेख ), १७.७१( वायु/धनेश के कारण बनने का उल्लेख ), वायु ४९.१५१ ( कोटि - कोटि अण्डों का अव्ययात्मा कारण के ऊपर, नीचे और बीच में स्थित होने तथा प्रत्येक अण्ड के सात - सात प्रकृत कारणों द्वारा आवृत होने का उल्लेख ),१०२.१०१ ( जीव , प्राण , लिंग तथा कारण आदि चारों पर्यायवाची शब्दों द्वारा एक ही अर्थ को द्योतित करने का उल्लेख ), १०३.३६/२.४३.३६(अव्यक्त कारण से प्रधान व पुरुष से महेश्वर के जन्म का कथन), विष्णु १.२.१९ ( अव्यक्त का एक नाम ), शिव १.१७.९०(कारण ब्रह्म, कारण विष्णु, कारण रुद्र का कथन, ब्रह्मा के १४ तथा विष्णु के १४ लोकों के कारण लोकों के पश्चात् रुद्र के २८ लोकों का कथन - पुनः कारणविष्णोर्वै स्थिता लोकाश्चतुर्दश॥ पुनःकारणरुद्रस्य लोकाष्टाविंशका मताः।), ६.१६.५ ( वामदेव द्वारा ब्रह्मादि स्थावरान्त सृष्टि का कारण पूछना ), स्कन्द ३.१.४९.३२(कुमुद द्वारा प्रधान कारण रूप रामेश्वर की स्तुति), योगवासिष्ठ ३.३.८( अज में कारण का अभाव होने का कथन ), ३.५ ( परमात्मा की सत्ता से ही समस्त पदार्थों के सत्तावान् होने से परमात्मा के मूल कारण रूप होने का उल्लेख ), ३.९.७६ ( परब्रह्म परमात्मा का समस्त कारणों के कारण रूप में उल्लेख ), ५.५३.३५ ( अकारण से उत्पन्न होने के कारण जगत के मिथ्यात्व का कथन ), ६.१.९५.१२ ( कार्य - कारण के अभाव का नाम अद्वैत ), ६.१.१०३.२८ ( चित्त स्पन्द के सारे जगत की स्थिति का कारण होने का कथन ), ६.२.१४९ ( सृष्टि तथा तद्गत पदार्थ कारण का विचार ), लक्ष्मीनारायण २.११.२१(कर्णवेधिका सूची व दोरक का प्रसंग - कुटुम्बं मे तथा द्वेधा कार्यं च कारणं सदा । कारणं देवतारूपं कार्यं भौतिकमित्यपि ) । kaarana/ karana
Comments on Kaarana
कारण्डव लक्ष्मीनारायण २.२८.२६ (कारण्डव का पातालवासी नागों का राजा होने का उल्लेख ), २.२८.८१ ( नागराज कारण्डव के मन्त्री सुमधु द्वारा स्वस्तिक नामक नाग ब्राह्मण की कन्याओं को बन्दी बनाना , कन्याओं की मुक्ति हेतु कृष्ण का गरुड को नागराज कारण्डव के पास भेजना , गरुड का कारण्डव को कन्या मुक्ति का आदेश, अमुक्ति की स्थिति में गरुड द्वारा युद्ध की चेतावनी, कारण्डव का मन्त्री को बुलाकर युद्धार्थ तत्पर होने का वृत्तान्त ) ।
कारयत ब्रह्माण्ड २.३.६३.१८९ ( हिमालय पर्वत के निकट कारयत देश में लक्ष्मण - पुत्र अंगद की अंगदा तथा चन्द्रकेतु की चन्द्रचक्रा नामक राजधानियों का उल्लेख ) ।
कारवती ब्रह्माण्ड २.३.१३.९२ ( श्राद्धादि के लिए अतिप्रशस्त कारवती तीर्थ का उल्लेख ) ।
कारागार स्कन्द २.२.३९.५( अहंकार के कारण भव रूपी कारागार में बद्ध होने का उल्लेख ),
कारांकिक पद्म ५.११०.७५ ( कारांकिक के छलपूर्ण वचनों के कारण राजा द्वारा पतिव्रता वेश्या के शिरोछेदन का वृत्तान्त ) ।
कारीष स्कन्द १.२.६.४२ ( कारीष नामक कीटों के भक्षण से बचने के उपाय का कथन ) ।
कारु भागवत ११.१७.४९ ( शूद्र के लिए आपत्तिकाल में कारु वृत्ति द्वारा निर्वाह का निर्देश ), वायु ४५.९२ ( भारतवर्ष के पर्वतों में कारु पर्वत का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.१२९.२० ( कारुकान्न भक्षण से प्रजा नाश का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१०९.८४, २.१०९.९५ ( कर्वरी देश के राजा कारुवर्मा का शम्भु से युद्ध, हरि द्वारा सुदर्शन चक्र से कारुवर्मा का वध ), २.११०.७२ ( श्रीकृष्ण द्वारा कारु प्रदेश का राज्य कूर्मि महर्षि को प्रदान करने का उल्लेख ), २.१११.१८ ( कारुकर : श्रीकृष्ण नारायण द्वारा अर्यमा को सिन्धु के पार्श्व में स्थित कारुकर पर्वत भूमि प्रदान करने तथा अर्यमा का श्री सहित पर्वतभूमि पर निवास का उल्लेख ), ४.१०१.९६ ( कारुनाथ : श्रीकृष्ण व कलावती - पुत्र ) ; द्र. जरत्कारु । kaaru
कारुपथ वायु ८८.१८८( कारपथ : कारपथ में लक्ष्मण के पुत्रों अंगद और चन्द्रकेतु की क्रमश: अंगदीया और चन्द्रवक्त्रा नामक राजधानियों का उल्लेख ; तुलनीय - ब्रह्माण्ड पुराण में कारयत ), वा.रामायण ७.१०२.५ ( कारुपथ देश में लक्ष्मण - पुत्र अंगद तथा चन्द्रकेतु हेतु क्रमश: अंगदीया तथा चन्द्रकान्त नगरियों के निर्माण का उल्लेख ) ।
कारूष गर्ग ७.१८.१३ ( कारूष देश के राजा पौण्ड्रक द्वारा प्रद्युम्न की पूजा का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६१.२( मनुपुत्र करूष से कारूष नामक क्षत्रियों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), भविष्य १.८.५८ ( कारूष राजा के पुत्र द्वारा दर्पण रूपी असि से कारूष राजा के वध का उल्लेख ), भागवत ९.२.१६ ( मनु - पुत्र करूष से कारूष नामक क्षत्रियों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), ९.२४.३७ ( श्रुतदेवा के पति तथा दन्तवक्त्र के पिता वृद्धशर्मा का करूष देश का अधिपति होने का उल्लेख ), मत्स्य १२.२४ ( मनु - पुत्र करूष के पुत्रों की भूतल पर कारूष नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ११४.५३ ( करूष : विन्थ्य पर्वत की घाटी में स्थित अनेक जनपदों में से एक ), वा.रामायण १.२४.२० ( देवों तथा ऋषियों द्वारा वृत्रासुर वध के पश्चात् मल तथा कारूष / क्षुधा से मलिन हुए इन्द्र के मल तथा कारूष को छुडाने का उल्लेख ), १.२४.२२ ( इन्द्र के अंगजनित मल तथा कारूष को धारण करने से जनपदों की मलद तथा करूष नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), विष्णु ४.१.१८ ( मनु - पुत्र करूष के क्षत्रिय पुत्रों की कारूष नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ) । kaaruusha/kaaroosha / karusha
कारेलिका लक्ष्मीनारायण ४.३६ ( श्रीकरला ग्राम निवासी कारेलिका नामक शूद्री का लक्ष्मीनारायण संहिता कथा श्रवण से निर्मोहत्व को प्राप्त होने का वृत्तान्त ) ।
कार्त्तवीर्य गणेश १.७२.२५ ( कृतवीर्य की रानी से हस्त - पाद रहित पुत्र कार्त्तवीर्य की उत्पत्ति, गणेश मन्त्र जप से अङ्गों की प्राप्ति ),१.७३.१९ ( कार्त्तवीर्य द्वारा गणेश की आराधना, गणेश द्वारा उदर में प्रवेश करने पर हस्त - पाद आदि की उत्पत्ति ),१.७७.३० ( कार्त्तवीर्य का जमदग्नि द्वारा सत्कार, राजा द्वारा कामधेनु की मांग, जमदग्नि व रेणुका की हत्या ), देवीभागवत ६.१६.८ ( हैहयवंशीय राजा कार्त्तवीर्य के परम धार्मिक तथा दानपरायण होने से भृगुओं के धनाढ्य होने का उल्लेख ), नारद १.७६ ( सुदर्शन चक्र के अवतार कार्त्तवीर्य के मन्त्र, पूजन व दीप दान विधान का वर्णन ), १.७७ ( कार्त्तवीर्य कवच निरूपण ), पद्म १.१२.१०५ ( कृतवीर्य - पुत्र, कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय से वर प्राप्ति , रावण का बन्धन व मुक्ति , वसिष्ठ शापवश परशुराम द्वारा वध, कार्त्तवीर्य वंश का उल्लेख ), ६.१२६ ( कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय से माघ स्नान माहात्म्य श्रवण : कुब्जिका नामक ब्राह्मणी द्वारा माघ स्नान के प्रभाव से तिलोत्तमा नामक अप्सरा बनकर सुन्द - उपसुन्द दैत्यों का विनाश ), ब्रह्म १.११.१५९+ ( कृतवीर्य - पुत्र, कार्त्तवीर्य प्रभाव का वर्णन, कार्त्तवीर्य का वसिष्ठ आश्रम को जलाना, शाप प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२४ ( जमदग्नि ऋषि द्वारा राजा कार्त्तवीर्य का आतिथ्य - सत्कार, कार्त्तवीर्य का ऋषि से गौ ग्रहण हेतु याचना, ऋषि द्वारा गौ देने में असमर्थता व्यक्त करना, क्रुद्ध कपिला गौ द्वारा असंख्य सैनिकों की सृष्टि का वृत्तान्त ), ३.२५ ( राजा कार्त्तवीर्य का जमदग्नि के पास दूत भेजकर गौ प्रदान करने अथवा युद्ध करने का संदेश प्रेषित करना, जमदग्नि - कार्त्तवीर्य युद्ध का वृत्तान्त ), ३.२७ ( कार्त्तवीर्य - जमदग्नि युद्ध में जमदग्नि की मृत्यु, परशुराम द्वारा इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय शून्य करने तथा कार्त्तवीर्य का वध करके उसके रक्त से पितरों का तर्पण रूप प्रतिज्ञा ), ३.३५ ( मनोरमा - पति, कार्तवीर्य द्वारा मनोरमा की मृत्यु पर विलाप, परशुराम से युद्ध के लिए प्रस्थान ), ३.४० ( युद्ध में कार्त्तवीर्य द्वारा शूल से परशुराम को मूर्च्छित करना, कार्त्तवीर्य द्वारा भिक्षु रूप धारी शंकर को कृष्ण कवच भिक्षा में देना, परशुराम द्वारा पाशुपत अस्त्र से कार्त्तवीर्य का वध ), ब्रह्माण्ड २.३.२६ ( राजा कार्त्तवीर्य का जमदग्नि ऋषि के आश्रम में पहुंचना, ऋषि द्वारा कामधेनु की सहायता से राजा के आतिथ्य - सत्कार का वर्णन ), २.३.२८ ( राजा के मन्त्री चन्द्रगुप्त का जमदग्नि से कामधेनु को मांगना, गौ देने में असमर्थता व्यक्त करने पर मन्त्री द्वारा बलपूर्वक गौ को ले जाना ), २.३.३१.५ ( परशुराम द्वारा राजा कार्त्तवीर्य को युद्ध में मारने की प्रतिज्ञा ), २.३.३२.६१(परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य के दुष्कृत्यों का शिव से निवेदन, शिव से प्राप्त अस्त्रों तथा कवचादि की सहायता से परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य का वध ), २.३.३७.२८ ( राजा कार्त्तवीर्य के कृष्ण के चक्र का अवतार होने का उल्लेख ), २.३.३८ ( माहिष्मती नगरी में पहुंचकर परशुराम का कार्त्तवीर्य के पास दूत भेजना, युद्ध हेतु आह्वान, कार्त्तवीर्य का युद्धार्थ आगमन ), २.३.४०.६६ ( परशुराम द्वारा भस्म होने के पश्चात् कार्त्तवीर्य के सुदर्शन चक्र में प्रविष्ट होने का उल्लेख ), २.३.४४.१४ ( परशुराम का घर लौटकर माता - पिता से कार्त्तवीर्य वध के समाचार को निवेदित करने का उल्लेख ), २.३.४७.६६ ( कार्त्तवीर्य के पंचम पुत्र जयध्वज तथा पौत्र तालजंघ आदि का उल्लेख ), २.३.६९.९ ( कृतवीर्य - पुत्र , दत्तात्रेय की आराधना से चार वरों की प्राप्ति, कार्त्तवीर्य के पराक्रम व महिमा का वृत्तान्त ), भविष्य ४.५८.२४ ( माहिष्मती नगरी के राजा कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा अत्रि व अनुसूया के पुत्र दत्त /अनघ की सेवा - शुश्रूषा , प्रसन्न होकर अनघ द्वारा कार्त्तवीर्य को चार वर प्रदान करना , कार्त्तवीर्य द्वारा कार्तिकेय के पराक्रम व गुणों का वर्णन तथा कार्तिकेय द्वारा मर्त्यलोक में अनघाष्टमी व्रत का प्रवर्तन ), भागवत ९.१५.१७ ( हैहय वंश का अधिपति, अपर नाम अर्जुन तथा सहस्रबाहु, दत्तात्रेय की आराधना से कार्त्तवीर्य को वरदान प्राप्ति, रावण को बन्दी बनाकर माहिष्मती नगरी में रसना, जमदग्नि आश्रम से कामधेनु को ले जाने पर क्रुद्ध परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य से युद्ध तथा कार्त्तवीर्य के वध का वृत्तान्त ), मत्स्य ४३.१३ ( कृतवीर्य - पुत्र, कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय की आराधना से चार वरों की प्राप्ति, कर्कोटक नाग के पुत्र को जीतकर माहिष्मती पुरी में बांधकर रखना तथा रावण को बन्दी बनाना, परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य वध में शाप की हेतुता का उल्लेख ), ४४ ( सूर्य की तुष्टि हेतु कार्त्तवीर्य द्वारा वृक्षों, आश्रमों, वनों, उपवनों को दग्ध करना, आपव / वसिष्ठ ऋषि से शाप प्राप्ति का वृत्तान्त ), मार्कण्डेय १८( कृतवीर्य - पुत्र, गर्ग ऋषि द्वारा कार्त्तवीर्य को राज्य करने का उपदेश ), १९.६ ( कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय - आराधना, राज्य स्वीकार करके प्रजा पालन में तत्परता का उल्लेख ), वा.रामायण ७.३२ ( कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा नर्मदा के प्रवाह को अवरुद्ध करने तथा रावण को बन्दी बनाकर अपने नगर में लाने का उल्लेख ), वराह ५०.२५ ( कार्तिक द्वादशी को धरणी व्रत के पालन से राजा कृतवीर्य को कार्त्तवीर्य नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), वायु ९४.९ ( कृतवीर्य - पुत्र, अपर नाम अर्जुन, दत्त की आराधना से कार्त्तवीर्य को चार वरदानों की प्राप्ति , प्रथम वरदान में सहस्र बाहुओं की प्राप्ति, द्वितीय वरदान में अधर्म से नष्ट होते हुए लोक का सदुपदेशों से निवारण, तृतीय वरदान में पृथ्वी का धर्मपूर्वक पालन तथा चतुर्थ वरदान में अधिक बलशाली से मृत्यु की प्राप्ति ; कार्तवीर्य पराक्रम का वर्णन, आपव / वसिष्ठ शापवश परशुराम द्वारा वध का वृत्तान्त ), विष्णु ४.११.११ ( वही), विष्णुधर्मोत्तर १.२३.१२ ( कार्त्तवीर्य के पराक्रम व महिमा का वृत्तान्त ), १.२५.१३ (कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय की शुश्रूषा का उल्लेख ), १.३०.१-३१ ( कार्त्तवीर्य द्वारा सूर्य को भोजन देने हेतु द्रुम दाह तथा वसिष्ठ से बाहुछेदन रूप शाप प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.२०.११ ( दसवें त्रेतायुग में चक्रवर्ती राजा कार्त्तवीर्य के होने का उल्लेख, राजा कार्त्तवीर्य द्वारा योग से चोरों को देखने का उल्लेख ;कार्त्तवीर्य के स्मरण से प्रणष्ट द्रव्यता न होने का उल्लेख ), हरिवंश १.३३.८ ( कृतवीर्य - पुत्र, दत्त की आराधना से चार वरों की प्राप्ति, कर्कोटक नाग के पुत्रों को जीतकर माहिष्मती नगरी में बसाना तथा रावण को पराजित् करके बन्दी बनाना, कार्तवीर्य महिमा का वर्णन ), १.३३.३८ ( कार्त्तवीर्य द्वारा अग्निदेव को भिक्षा प्रदान, अग्निदेव द्वारा वनों , पर्वतों तथा आश्रम आदि के दग्ध होने पर आपव / वसिष्ठ द्वारा शाप, शापवश कार्त्तवीर्य का परशुराम द्वारा वध ) । kaartaveerya/ kartvirya/ kartavirya
कार्तिक देवीभागवत ७.३०.७५ ( कार्तिक नामक देवीपीठ में अतिशांकरी नाम से अम्बिका देवी के वास का उल्लेख ), नारद १.१२४.५६ ( कार्तिक पूर्णिमा में दीपदान तथा क्षीरसागर दान की विधि व महिमा ), २.२२.४१,६६ ( कार्तिक माहात्म्य : रुक्मांगद द्वारा मोहिनी को कार्तिक मास में करणीय एवं वर्जनीय कर्मों का कथन तथा तत्तत् कर्मों के फलों का वर्णन ), पद्म ४.३ ( कार्तिक माहात्म्य वर्णन : कार्तिक मास में दीपदान से वैकुण्ठ प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२० ( कार्तिक मास में राधा - दामोदर की अर्चना से पापों का नाश तथा गोलोक प्राप्ति का उल्लेख ), ६.८९.९ ( कार्तिक मास में व्रत, दान, स्नानादि के माहात्म्य का वर्णन : देवशर्मा - कन्या गुणवती का कार्तिक व्रत के प्रभाव से कृष्ण - भार्या सत्यभामा बनने का उल्लेख ), ६.९०.२३ ( कार्तिक मास में मन्त्र, बीज और यज्ञों से युक्त वेदों के जल में विश्राम करने का उल्लेख ), ६.९३ ( कार्तिक मास में व्रती हेतु स्नान विधि का वर्णन ), ६.९४ ( कार्तिक मास में व्रती द्वारा करणीय नियम ), भविष्य २.२.८.१२८( पुष्कर में महाकार्तिकी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), ३.४.८.८१ ( कार्तिक मास के सूर्य का माहात्म्य( ? ) : व्याकरण के उद्धार हेतु कार्तिक मास के सूर्य का वेदशर्मा - पुत्र कार्यगुण बनना आदि ), ४.१०० ( स्नान, दान हेतु कार्तिक पूर्णिमा की श्रेष्ठता का उल्लेख ), ४.१०१ ( चार युगादि तिथियों में से कार्तिक शुक्ल नवमी को किए गए स्नान, दान, जप आदि पुण्यकर्मों के अक्षय होने का उल्लेख ), ४.१०३ ( कार्त्तिक मास में कृत्तिका - व्रत विधि व माहात्म्य, कलिङ्गभद्रा के जन्मान्तरों का कथन ), मत्स्य १७.४ ( कार्त्तिक शुक्ल नवमी की युगादि तिथि के नाम से प्रसिद्धि तथा इसमें किए श्राद्ध से अक्षय फल प्राप्ति का उल्लेख ), १७.८ ( चौदह मन्वन्तरों की चौदह आदि तिथियों में से एक कार्तिक पूर्णिमा में किए गए श्राद्ध से अक्षय फल प्राप्ति का उल्लेख ), वराह ५०.४ ( कार्तिकी द्वादशी व्रत की विधि व माहात्म्य का वर्णन : धरणी द्वारा सम्पन्न होने से कार्तिकी द्वादशी व्रत का धरणीव्रत नाम धारण ), वामन ६५.१८ ( ऋषियों तथा राजाओं द्वारा कार्तिकी पूर्णिमा के दिन पुष्कर तीर्थ में स्नान का उल्लेख ), शिव २.४.२०.३०( कार्तिक मास में कृत्तिका योग होने पर स्वामी कार्तिकेय के दर्शन से पापों के नाश तथा अभीप्सित फल की प्राप्ति का उल्लेख ; अमावास्या को शिव तथा पूर्णिमा को पार्वती द्वारा कार्त्तिकेय के दर्शन का उल्लेख ), स्कन्द १.१.१७.११३ ( कार्तिक त्रयोदशी को वृत्र जय हेतु बृहस्पति द्वारा इन्द्र को प्रदोष व्रत व उद्यापन विधि का वर्णन ), १.३.२.२०.२६ ( तपस्या से निरत पार्वती को कार्तिक पूर्णिमा की शुभ तिथि में अरुणाद्रि पर्वत पर ज्योति के दर्शन, पार्वती द्वारा अरुणाचलेश्वर की स्तुति का वर्णन ), २.४.१ ( कार्तिक मास माहात्म्य : कार्तिक में स्नान, दान आदि से समस्त पापों से मुक्ति ), ४.१.४.८९ ( कार्तिक मास में विधवा स्त्री के कर्त्तव्यों का कथन ), ४.२.६०.७३ ( कार्त्तिक मास में बिन्दु तीर्थ में स्नान, व्रतादि से पुण्य फल की प्राप्ति का कथन ), ५.२.६९.६१ ( कार्तिक मास में संगमेश्वर लिङ्ग के दर्शन से राजसूय फल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१४९.११( कार्तिक द्वादशी को दामोदर की अर्चना से दुःखों तथा पापों से मुक्ति का उल्लेख ), ५.३.१५६.१८ ( कार्तिक कृष्ण चर्तुदशी को शुक्ल तीर्थ में करणीय कृत्यों का वर्णन ), ५.३.१७४.५ ( कार्तिक शुक्ल नवमी को गोपेश्वर तीर्थ में दीपदान आदि के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१९८.८२ (कार्तिक तीर्थ में उमा देवी की शांकरी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ५.३.२०९.११० ( कार्तिक मास में करणीय स्नान, दानादि कृत्यों को न करने से वर्ष पर्यन्त किए गए पुण्यों के क्षीण होने का उल्लेख ), ५.३.२०९.१७६ ( कार्तिक चर्तुदशी को लिङ्ग का चार प्रकार से पूरण करने के फल का कथन ), ६.१२६.३३ ( कार्तिक मास में सत्यसन्धेश्वर लिङ्ग की पूजा से मुक्ति प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१९.१ ( कार्तिक कृष्ण अष्टमी को बालकृष्ण प्रभु के जन्मोत्सव का उल्लेख ), २.८०.११ ( राजा बलेश वर्मा द्वारा कार्तिक व्रत पालन, कार्तिक व्रत में यथाशक्ति दान का वर्णन, श्री बालकृष्ण प्रभु द्वारा वनेचर का रूप धारण करके कार्तिक व्रत पालन के व्याज से बलेशवर्मा की परीक्षा लेने का वृत्तान्त ), २.९०.२२( कार्तिक कृष्ण चर्तुदशी को महामारी भैरवी द्वारा राक्षसियों को नष्ट करने का वृत्तान्त ) । kaartika/ kartik
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कार्त्तिकेय अग्नि ३४९ (कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति व्याकरण सार का निरूपण ), ३५० ( कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति सन्धि रूपों का निरूपण ), ३५१ ( कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति सुबृन्त रूपों का निरूपण ), ३५२, ३५३ (कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग शब्दों के सिद्ध रूपों का निरूपण ), ३५४, ३५५ ( कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति कारक तथा समास निरूपण ), ३५६, ३५७ ( कार्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति त्रिविध तद्धित रूपों तथा उणादि शब्द रूपों का दिग्दर्शन ), ३५८,३५९ ( कार्त्तिकेय द्वारा कात्यायन के प्रति लिङ् विभक्तन्त रूपों तथा कृदन्त शब्द रूपों का निदर्शन ), गर्ग ७.२४.४६ ( कुबेर - सेनानी , अनिरुद्ध एवं साम्ब के साथ कार्तिकेय के युद्ध का उल्लेख ), १०.३७.१८ ( साम्ब को जीतने हेतु शिव द्वारा कार्तिकेय / शिखिवाहन के प्रेषण का उल्लेख ), देवीभागवत ५.८.६९ ( कार्त्तिकेय के तेज से देवी के उत्तरोष्ठ की उत्पत्ति का उल्लेख ), पद्म १.४४.१४५ ( स्कन्द, विशाख तथा षड~वक्त्र आदि नामों से प्रसिद्ध कार्तिकेय का चैत्र कृष्ण अमावस्या में जन्म, चैत्र शुक्ल षष्ठी में देवों द्वारा अभिषेक, इन्द्र द्वारा कार्त्तिकेय को देवसेना नाम वाली स्वपुत्री पत्नी रूप में प्रदान करने का उल्लेख ), १.४४.१५४ ( देवों द्वारा कार्तिकेय की स्तुति, तारकासुर व हिरण्यकशिपु के वध की प्रार्थना, कार्त्तिकेय द्वारा तारक वध का वृत्तान्त ), पद्म १.६३.११ ( देवों द्वारा प्रदत्त महाबुद्धि नामक मोदक को प्राप्त करने हेतु स्कन्द / कार्त्तिकेय द्वारा त्रिभुवन स्थित तीर्थों में गमन ), ६.१०१.३ ( निशुम्भ व कार्तिकेय के युद्ध में निशुम्भ के बाणों से कार्त्तिकेय के वाहन मयूर के मूर्च्छित होने का उल्लेख ), ६.१०१.२४ ( कार्त्तिकेय द्वारा जलन्धर नामक दैत्य को शक्ति से विद्ध करना, पश्चात् जलंधर द्वारा गदा से कार्त्तिकेय को ताडित करने का उल्लेख ), ब्रह्म २.११ ( कार्त्तिकेय तीर्थ माहात्म्य : तीर्थ में स्नान से गुरु - पत्नी अनुगमन जैसे महापातकों से मुक्ति , उत्तम जाति की प्राप्ति तथा कुरूप को सुरूपता की प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१४ ( विष्णु द्वारा देवों से महेश्वर के अमोघ वीर्य के अपहरण के विषय में पूछे जाने पर धर्म, क्षिति, अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र, जल, सन्ध्या, रात्रि तथा दिवस द्वारा कार्त्तिकेय की क्रमश: जन्मोत्पत्ति का वर्णन ), ३.१५ ( कार्त्तिकेय को लाने हेतु शिव पार्षदों के आने पर कृत्तिकाओं के माता होने के सम्बन्ध में नन्दिकेश्वर से कार्त्तिकेय का संवाद ), ३.१६ ( कार्त्तिकेय का शिव - पार्षदों तथा कृत्तिकाओं के साथ शिवालय गमन का वृत्तान्त ), ३.१७ ( कार्त्तिकेय का अभिषेक तथा विभिन्न देवों द्वारा कार्त्तिकेय को उपहार प्रदान ), ब्रह्माण्ड १.२.२५.१६ ( प्रजापति वसिष्ठ का कार्त्तिकेय से शिव के नीलकण्ठत्व का रहस्य पूछना, कार्त्तिकेय द्वारा पूर्व में माता पार्वती की गोद में बैठकर सुने हुए पिता शिव के नीलकंठत्व के रहस्य को निवेदित करना ), २.३.१०.४४ ( कृत्तिकाओं द्वारा पुष्ट होने से कार्त्तिकेय नाम धारण का उल्लेख, उत्पत्ति प्रसंग ), २.३.३२.२३ ( शिवलोक में पहुंचकर परशुराम द्वारा शिव का दर्शन, शिव के वामभाग में कार्त्तिकेय तथा दक्षिण भाग में गणेश, क्रोड / गोद में पार्वती तथा सामने वीरभद्र की स्थिति का उल्लेख ), २.३.४१.३२ ( समस्त क्षत्रियों का संहार करके परशुराम का शिव को प्रणाम करने के लिए शिवलोक के प्रति गमन, शिव द्वार के वाम भाग में कार्तिकेय तथा दक्षिण भाग में स्थित गणेश द्वारा परशुराम को प्रवेश से रोकने का उल्लेख ), २.३.४२.६ ( क्रुद्ध परशुराम द्वारा परशु के प्रक्षेपण से गणेश के दांत का टूटना, कार्तिकेय आदि देवों का हाहाकार, पार्वती के पूछने पर कार्त्तिकेय द्वारा समस्त वृत्तान्त का वर्णन ), २.३.४३.३१ ( शिव - पार्वती की अभिवादन पूर्वक परिक्रमा करके तथा कार्त्तिकेय व गणेश को प्रणाम कर परशुराम द्वारा स्वगृह गमन ), ३.४.१.६२ ( रोहित मन्वन्तर के इन्द्रों में पावकि व पार्वतीय विशेषणों वाले स्कन्द का उल्लेख ), भविष्य १.२२.८ (सामुद्रिक शास्त्र के जनक कार्त्तिकेय द्वारा पुरुष - स्त्री के लक्षण रूप कार्य में गणेश द्वारा विघ्न करने पर क्रुद्ध कार्त्तिकेय द्वारा गणेश के दन्त का उच्छेद ), १.२४.४( कार्त्तिकेय / गुह द्वारा कहे गए स्त्री - पुरुषों के शुभाशुभ लक्षणों का वर्णन ), १.३९ ( कार्तिक मास में कार्त्तिकेय षष्ठी - व्रत की विधि व महिमा ),१.४६ (भाद्रपद मास की षष्ठी तिथि को कार्त्तिकेय पूजन की महिमा का वर्णन ), १.५७.१( कार्तिकेय हेतु फल बलि का उल्लेख ), १.१२४.१७ ( स्कन्द की दण्डनायक रूप से सूर्य के वाम भाग में स्थिति का उल्लेख ), १.१२४.२२ ( राज्ञ नामक द्वारपाल के कार्त्तिकेय का अवतार होने का उल्लेख ), ४.४२ ( मार्गशीर्ष मास की षष्ठी में कार्तिकेय पूजा विधि व महिमा ), भागवत ८.१०.२८ ( देवासुर संग्राम में कार्त्तिकेय / गुह द्वारा तारकासुर से युद्ध का उल्लेख ), १०.६३.७ ( कृष्ण - बाणासुर युद्ध में कार्त्तिकेय के प्रद्युम्न से युद्ध का उल्लेख ), मत्स्य ५.२७ ( कृत्तिकाओं की संतान होने से कार्त्तिकेय नाम प्राप्ति का उल्लेख ), १३.४५ ( कार्त्तिकेय तीर्थ में यशस्करी नाम से सती देवी के निवास का उल्लेख ), ५३.६०( नन्दी पुराण में कार्त्तिकेय द्वारा नन्दा के माहात्म्य कथन का उल्लेख ), १५९.३ ( स्कन्द, विशाख तथा षण्मुख आदि नामों से प्रसिद्ध कार्त्तिकेय का चैत्र कृष्ण अमावस्या को जन्म, चैत्र शुक्ल षष्ठी को देव सेनापति पद पर अभिषेक, देवताओं द्वारा कार्त्तिकेय को उपहार प्रदान, देवकृत स्तुति, कार्त्तिकेय द्वारा देव- कृत तारक वध का निवेदन स्वीकार करने का वृत्तान्त ), १६० ( तारकासुर और कुमार / कार्त्तिकेय का भीषण युद्ध तथा कुमार द्वारा तारक के वध का वृत्तान्त ), २६०.४५ ( कार्त्तिकेय की प्रतिमा के निर्माण में बारह, चार तथा दो भुजाओं से युक्त प्रतिमाओं के रूपों का वर्णन ), वा.रामायण १.३६+ ( कार्त्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग ), १.३७.२५ ( कृत्तिकाओं द्वारा नवजात कुमार को दुग्ध पान कराने पर देवों द्वारा कुमार की कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), वामन ५७ ( शिव - पार्वती , अग्नि , कुटिला देवी , शरवण तथा कृत्तिकाओं द्वारा कार्तिकेय की उत्पत्ति का वृत्तान्त, गुह नाम से शिव के, स्कन्द नाम से पार्वती के, महासेन नाम से अग्नि के, कुमार नाम से कुटिला के, शारद्वत नाम से शरवण के तथा कार्त्तिकेय नाम से कृत्तिकाओं के पुत्र होने का उल्लेख, देवों द्वारा कार्त्तिकेय का सेनापति पद पर अभिषेक, देवों द्वारा कार्त्तिकेय को प्रदत्त गणों के नाम ), ९०.१६ ( बर्हण तीर्थ में विष्णु का कार्तिकेय नाम से वास ), वराह २५ ( पुरुष रूप शिव तथा अव्यक्त रूप उमा के संयोग से अहंकार रूप कार्त्तिकेय की उत्पत्ति का कथन ; कार्त्तिकेय को सेनापति बनाने के लिए शिव द्वारा स्वदेह से शक्ति का सृजन करके कार्त्तिकेय को देना तथा खिलौने के रूप में कुक्कुट आदि देने का वर्णन ), १५१.६३ ( कार्त्तिकेय कुण्ड में स्नान व प्राण त्याग से ब्रह्म लोक में स्थिति का उल्लेख ), वायु ४१.३८ ( कार्त्तिकेय के षडानन, स्कन्द, गुह तथा कुमार आदि विभिन्न नामों के उल्लेख के साथ शरवण नामक उत्पत्ति स्थल, ध्वजापताका युक्त सिंहरथ स्थल, शक्ति मुंचन स्थल, अभिषेक स्थल तथा पाण्डुशिला नामक क्रीडास्थल का उल्लेख ), ७२.४३ ( कुमार उत्पत्ति प्रसंग में कृत्तिकाओं द्वारा पुष्ट होने के कारण कुमार की कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), १०९.१९ ( गया में स्थित कार्त्तिकेय लिङ्ग के रूप में स्वयं आदि गदाधर भगवान के विराजित होने का उल्लेख ), १११.५४ ( कार्त्तिकेय के चरणों में श्राद्ध सम्पन्न करने पर श्राद्धकर्त्ता द्वारा स्वपितरों को शिवलोक में पहुंचाने का उल्लेख ), विष्णु १.१५.११६ ( कृत्तिकाओं के पुत्र का कार्त्तिकेय नाम से उल्लेख ), ५.३३.२१ ( शौरी के साथ कार्त्तिकेय के युद्ध का उल्लेख ), ५.३३.२६ ( कृष्ण की हुंकार से अभिशप्त शक्ति वाले कार्त्तिकेय / गुह की अपक्रान्तता का उल्लेख ), शिव २.४.२ ( शिव रेतस को क्रमश: अग्नि, ६ मुनि - पत्नियों, हिमालय तथा गंगा द्वारा धारण करने पर अन्त में शरवण में कार्त्तिकेय की उत्पत्ति ), २.४.३ ( कार्त्तिकेय लीला वर्णन : बालक कुमार द्वारा विश्वामित्र से स्व - संस्कार सम्पन्न कराना, कृत्तिकाओं द्वारा बालक की पुष्टि हेतु स्तनपान कराने पर कुमार का षण्मुख बनकर कृत्तिकाओं को तुष्ट करना ), २.४.४ ( शिवा द्वारा शिव से भूमि पर स्खलित वीर्य के विषय में पूछने पर पृथ्वी, अग्नि, पर्वत, गंगा, वायु, सूर्य, चन्द्र, जल, सन्ध्या, रात्रि तथा दिन आदि देवों द्वारा कृत्तिकाओं के गृह में कार्त्तिकेय नाम से बालक के पुष्ट होने के वृत्तान्त का वर्णन, कार्त्तिकेय को लाने हेतु नन्दीश्वर को शिव पार्षदों के साथ कृत्तिकाओं के घर भेजना, कार्त्तिकेय - नन्दीश्वर संवाद, कार्त्तिकेय के शिवालय गमन का वृत्तान्त ), २.४.५ ( शिवालय पहुंचने पर कार्तिकेय के प्रति शिव - शिवा के वात्सल्य का वर्णन, विभिन्न देवों द्वारा कार्त्तिकेय को उपहार प्रदान, तारक वध हेतु शिव द्वारा कार्त्तिकेय का प्रेषण, देवों द्वारा सेनापति पद पर कार्त्तिकेय के अभिषेक का वृत्तान्त ), २.४.१० ( कार्त्तिकेय द्वारा तारकासुर के वध का वृत्तान्त ), २.४.११ ( क्रौञ्च नामक गिरि की प्रार्थना पर कुमार / कार्त्तिकेय द्वारा बाणासुर वध तथा नग - पुत्र कुमुद की प्रार्थना पर प्रलम्बासुर का वध, स्कन्द द्वारा तीन शिवलिंगों की स्थापना का उल्लेख ), २.४.२०.२२ ( गणेश के विवाह के संदर्भ में नारद द्वारा उकसाए जाने पर कार्त्तिकेय का क्रुद्ध होकर क्रौञ्च पर्वत पर गमन ; कार्तिक अमावास्या को पार्वती तथा पूर्णिमा को शिव का कार्त्तिकेय दर्शन हेतु गमन का उल्लेख ), स्कन्द ६.७० ( कार्त्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग ), ६.७१ ( ब्रह्मा द्वारा कार्त्तिकेय को शक्ति प्रदान, शक्ति से तारकासुर का वध, शक्ति मुञ्चन से पर्वत तथा नगर का कम्पित होना , कंपन द्वारा मृत द्विजों को स्कन्द द्वारा जीवन प्रदान तथा पर्वत को स्थायित्व प्रदान करना, नगर का स्कन्दपुर नाम धारण, स्कन्द का उसी नगर में वास तथा चैत्र शुक्ल षष्ठी को स्कन्द तथा शक्ति पूजन से रोगमुक्ति रूप फल का कथन ), ६.२६१.३४ ( कृत्तिकाओं के कहने से पार्वती द्वारा पुत्र ग्रहण ), ७.४.१७.१२ ( द्वारका के पूर्व द्वार पर कार्त्तिकेय की स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश २.१२६.२५ ( कार्त्तिकेय और कृष्ण के युद्ध में कार्त्तिकेय की पराजय, महादेव - प्रेषित कोटवी देवी द्वारा कार्त्तिकेय की रक्षा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.९७ ( शंकर - पार्वती, अग्नि, गंगा, शरस्तम्ब तथा कृत्तिकाओं द्वारा कार्त्तिकेय की उत्पत्ति का प्रसंग ), १.९८ ( कार्त्तिकेय को सेनापतित्व पद प्राप्ति तथा देवों द्वारा आयुध प्रदान करने का वृत्तान्त ), १.९९ ( कार्त्तिकेय द्वारा तारकासुर वध का वृत्तान्त ), १.१०७ ( कार्त्तिकेय व गणेश विवाह हेतु शिव - पार्वती द्वारा पृथ्वी प्रदक्षिणा रूप शर्त के निर्धारण का वृत्तान्त ), १.१०८.३२ ( कार्तिकेय का क्रौंच पर्वत पर गमन व वास, कार्तिक स्वामी नाम से पूजित होने का उल्लेख ), १.४४१.९३ ( कार्त्तिकेय का चम्पक वृक्ष के रूप में अवतरण का उल्लेख ), कथासरित् ८.६.२३७ ( अग्निदत्त - प्रदत्त कार्तिक मन्त्र से गुणशर्मा द्वारा कार्त्तिकेय की आराधना करने का उल्लेख ) । kaartikeya/ kartikeya
कार्त्तिक्य मत्स्य १९९.५ ( कश्यप कुल के एक गोत्रकार ऋषि ) ।
कार्तिवीर्य वायु ९४.८ ( यदुवंशी राजा कनक के चार पुत्रों में से एक ) ।
कार्दमायनि मत्स्य १९५.३४,४३ ( भृगु वंशोत्पन्न एक ऋषि ) ।
कार्पट ब्रह्माण्ड २३.१४.३९ ( धर्म का अनुवर्तन न करने वाले नग्न संज्ञक लोगों में वृद्ध, श्रावकि, निर्ग्रन्थ, शाक्य, जीवक तथा कार्पटों का उल्लेख तथा श्राद्धकर्म में उपर्युक्त लोगों के अदर्शन का विधान ), कथासरित् ९.३ ( राजा लक्षदत्त व लब्धदत्त नामक कार्पटिक की कथा : पापों का क्षय होने पर ही लब्धदत्त कार्पटिक का लक्षदत्त - प्रदत्त रत्नों को पहचानना ) ।
कार्पास गरुड २.३०.१५(कार्पास दान से भूतों से भय न होने का उल्लेख), नारद १.११६.३० ( श्रावण शुक्ल सप्तमी में अव्यंग व्रत में कार्पास दान से कल्याण प्राप्ति का उल्लेख ), भविष्य ४.२०० ( पाप समूह के विनाश हेतु कार्पासाचल दान विधि का वर्णन ), मत्स्य ८८ ( कार्पासाचल दान की विधि व माहात्म्य का कथन ), विष्णु धर्मोत्तर ३.३४१.१७६ ( कार्पास निर्मित वस्त्रों के दान से स्वर्गलोक प्राप्ति का कथन ), शिव १.१६.४९ ( कार्तिक मास में रविवार के दिन कार्पास दान से कुष्ठ आदि के क्षय का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.२६.१४७ ( मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया को कार्पास दान का उल्लेख ), ५.३.९२.२३ ( महिषी दान प्रसंग में याम्य भाग में कार्पास पर्वत बनाने का उल्लेख ), ६.२७१.४३७( पालक द्विज/बक द्वारा कार्पास निर्मित हिमवान् दान से बकत्व से मुक्ति का कथन ), कथासरित् १८.५.२१२ ( मूलदेव के पुत्र द्वारा मूलदेव को सुप्तावस्था में ही खट्वा से उठाकर कार्पास के ढेर पर रख कर खट्वा चुराने का उल्लेख ) । kaarpaasa/ karpasa
कार्य ब्रह्माण्ड ३.४.१५.८ ( पितामह ब्रह्मा द्वारा ललिता देवी को कार्य कारणरूपिणी रूप से अभिहित करने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.८५ ( कार्यगुण : व्याकरण के उद्धार के हेतु कार्तिक मास के सूर्य का वेदशर्मा - पुत्र कार्यगुण बनना आदि ), योगवासिष्ठ ६.१.९५.१२ ( कार्य - कारण के अभाव का नाम अद्वैत ), ६.२.१०६ ( वसिष्ठ द्वारा दृश्य रूप कार्य तथा दृष्टा रूप कारण के अभिन्नत्व का निरूपण ), वायु ५.२१( कार्य - कारण से संसिद्ध ब्रह्मा के प्रादुर्भाव का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.४९.३४(कार्य की कारण रूप में कल्पना), लक्ष्मीनारायण ३.१५३ ( नक्षत्र, योगिनी, तिथि, योग, दशा, शकुन, स्थान, लग्न, घटिका आदि में कार्याकार्य फल - अफल का निरूपण ) । kaarya/ karya
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कार्ष्णायन मत्स्य २०१.३५ ( गौर पराशर, नील पराशर, कृष्ण पराशर, श्वेत पराशर, श्याम पराशर तथा धूम्र पराशर रूप ६ प्रकार के पाराशरों में से कृष्ण पराशरों के वर्ग के एक ऋषि ) ।
कार्ष्णि गर्ग ७.१८ ( श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का नाम ), भागवत १०.७६.२८ ( श्रीकृष्ण - पुत्र प्रद्युम्न का अपर नाम ), वायु ६९.१७२ (कार्ष्णेय : खशा की सात पुत्रियों में से तृतीय पुत्री कृष्णा से उत्पन्न राक्षसगण ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१११ ( श्रीकृष्ण - पत्नी कार्ष्ण्या के कृशोदर तथा शुभा नामक पुत्र - पुत्री युगल का उल्लेख ) ।
काल
अग्नि
१२२
(
ज्योतिषीय
काल
गणना
:
पञ्चांग
मान
साधन
का
वर्णन
),
कूर्म
१.५.६(
काल
की
लघुतम
इकाई
निमेष
से
आरम्भ
करके
दीर्घतम
इकाई
परार्द्ध
पर्यन्त
काल
परिमाण
का
निरूपण
),
१.५.२२
(
अनादि,
अनन्त,
अजर
और
अमर
भगवान
काल
द्वारा
सम्पूर्ण
सृष्टि
के
सृजन
और
ग्रसन
का
उल्लेख
),
गणेश
२.७६.१५
(
विष्णु
व
सिन्धु
के
युद्ध
में
काल
दैत्य
का
नासत्यौ
से
युद्ध
-
नासत्यौ
कालदैत्येन
सर्व
एव
च
सैनिकाः।
),
२.९६.१२
(
गणेश
द्वारा
उपनयन
संस्कार
के
मध्य
गज
रूप
धारी
कृतान्त
व
काल
दैत्यों
का
वध
),
गरुड
१.८९.३३(महर्षियों
द्वारा
कालशाक
द्वारा
पितरों
को
तृप्त
करने
का
उल्लेख),
३.२९.३८(विभिन्न
कालों
में
विभिन्न
रूपों
में
श्रीहरि
का
स्मरण
-
प्रातः
काले
समुत्थाय
स्मरेन्नारायणं
हरिम्
॥...त्रिविक्रमं
शौचकाले
गङ्गापानकरं
हरिम्
।),
गर्ग
१.१६.२५(
काल
की
शक्ति
प्रधाना
का
उल्लेख
-
त्वं
ब्रह्म
चेयं
प्रकृतिस्तटस्था
कालो
यदेमां
च
विदुः
प्रधानाम्
।
),
देवीभागवत
९.८.६६
(
काल
के
स्वरूप
का
निरूपण
-
वाराः
सप्त
तथा
विप्र
तिथयः
षोडश
स्मृताः
।
),
९.२२.४
(
देव
-
दानव
युद्ध
में
काल
नामक
देव
के
कालस्वर
दैत्य
के
साथ
युद्ध
का
उल्लेख
-
कालस्वरेण
कालश्च
गोकर्णेन
हुताशनः
॥
),
नारद
१.५.२१
(
निमेष
से
आरम्भ
करके
परार्द्ध
पर्यन्त
काल
परिमाण
का
निरूपण
),
पद्म
१.३.४
(
काल
परिमाण
निरूपण
),
४.१६.१५(
काल
नामक
पापी
द्विज
के
मृत्यु
के
पश्चात्
पाषाण
व
सर्प
बनने
तथा
आश्विन्
पूर्णिमा
के
प्रभाव
से
मुक्त
होने
का
वृत्तान्त
),
ब्रह्म
१.१२४.६
(
काल
परिमाण
निरूपण
),
२.९१.३८(यज्ञ
में
यूप
का
रूप
-
योऽनादिश्च
त्वनन्तश्च
स्वयं
कालोऽभवत्तदा।
यूपरूपेण
देवर्षे
योक्त्रं
च
पशुबन्धनम्।। ),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.५.५
(
ब्राह्म,
वाराह
तथा
पाद्म
नामक
कल्प
परिमाण
का
निरूपण
),
१.१५.२१
(
मृत्युकन्या
नामक
भार्या
तथा
व्याधि
रूप
६४
पुत्रों
से
युक्त
नारायणांश
काल
के
६
मुखों,
१६
भुजाओं,
२४
नेत्रों,
६
पादों
से
युक्त
होने
का
कथन
-
कालं
नारायणांशं
च
ददर्श
पुरतः
सती
।।
महोग्ररूपं
विकटं
ग्रीष्मसूर्य्यसमप्रभम्
।।
),
१.१५.४१
(
कालपुरुष
व
मालावती
संवाद
में
कालपुरुष
का
मालावती
के
पति
की
मृत्यु
के
लिए
ईश्वराज्ञा
को
ही
उत्तरदायी
बताने
का
कथन
-
हे
काल
कर्मणां
साक्षिन्कर्मरूप
सनातन
।।
नारायणांशो
भगवन्नमस्तुभ्यंपराय
च
।।
),
२.१.१२४(
काल
की
तीन
भार्याओं
सन्ध्या,
रात्रि
व
दिन
का
उल्लेख
-
कालस्य
तिस्रो
भार्य्याश्च
सन्ध्या
रात्रिर्दिनानि
च
।।
याभिर्विना
विधात्रा
च
संख्यां
कर्तुं
न
शक्यते
।।
),
२.७.७२
(
लौकिक
व
दिव्य
काल
में
सम्बन्ध
का
कथन
-
वर्षे
पूर्णे
नराणां
च
देवानां
च
दिवानिशम्
।।..
), २.५४.२७
(
दण्ड,
घटी,
प्रहर
आदि
कालमान
तथा
चारों
युगों
का
मनुष्य
मान
से
कालमान
निरूपण
),
४.९६.१२
(
उद्धव
का
राधा
से
कालगति
के
विषय
में
प्रश्न
-
यां
यां
कालगतिं
मातः
सुराणां
च
नृणामपि
।
पितॄणां
ब्रह्मलोकस्य
तदूर्ध्वस्य
च
तां
वद
।।
),
४.९६.१९
(
राधा
द्वारा
उद्धव
को
कालगति
का
कथन
),
४.९६.४३
(
काल
पर
विजय
पाने
के
उपाय
रूप
में
राधा
द्वारा
श्रीकृष्ण
के
भजन
का
कथन
-
कालारम्भात्मकं
सर्वमनूरं
परमीप्सितम्
।
चरमः
सद्विशेषाणामनेकोऽसंयुतः
सदा
।।
),
४.९६.४७
(
राधा
द्वारा
उद्धव
को
परमाणु
से
लेकर
चतुर्युग
पर्यन्त
काल
का
वर्णन
),
ब्रह्माण्ड
१.२.१३.११०
(
काल
स्वरूप
योनि,
आदि
,तत्त्व,
चक्षु,
मूर्ति,
अवयव
,
नामधेय
,
आत्मा
आदि
का
वर्णन
-
किमस्य
चक्षुः
का
मूर्तिः
के
वा
अवयवाः
स्मृताः
।।
किं
नामधेयं
कोऽस्यात्मा
एतत्त्वं
ब्रूहि
तत्त्वतः
।।),
१.२.२१.११६
(
काल
परिमाण
का
वर्णन
),
१.२.२८.३८
(
काल
के
पर्वों
की
संधियों
का
वर्णन
),
१.२.२९
(
लौकिक
व
दिव्य
काल
में
सम्बन्ध
तथा
चतुर्युगों
के
काल
परिमाण
का
निरूपण
),
२.३.३.२२
(
८
वसुओं
में
से
द्वितीय
वसु
ध्रुव
का
पुत्र
),
२.३.३.३०
(
धर्म
व
विश्वा
के
दस
विश्वेदेव
पुत्रों
में
से
एक
),
२.३.१४.३
(
रात्रि
में
श्राद्धकर्म
के
वर्जित
होने
का
उल्लेख
),
३.४.१.२११
(
आभूतसंप्लव
काल
का
वर्णन
),
३.४.१६.१२
(
कालनाथ
:
ललिता
देवी
की
भयंकर
खंगलता
का
काल
के
नाथ
महादेव
की
भृकुटि
से
साम्य
),
३.४.४४.९७
(
कालेश्वर
:
ललिता
देवी
की
५०
पीठों
में
से
एक
),
भविष्य
१.२.८६
(कल्प
की
काल
संख्याओं
निमेष
आदि
का
निरूपण
),
१.१३८.३८(
बलदेव
की
काल
ध्वज
का
उल्लेख
-
बलदेवस्य
कालस्तु
कामस्य
मकरध्वजः
।
।
),
२.१.१७.९
(
अग्नि
नाम
वर्णनान्तर्गत
त्रासन
में
अग्नि
के
काल
नाम
का
उल्लेख
),
४.१८१.९
(
कालपुरुष
दान
विधि
तथा
माहात्म्य
का
वर्णन
),
भागवत
१.११.६
(
श्रीकृष्ण
के
चरण
कमलों
की
शरण
ले
लेने
पर
परम
समर्थ
काल
की
भी
असमर्थता
का
उल्लेख
),
३.११.४(
काल
के
परमाणु
व
परम्
महान्
नाम
से
२
भेदों
का
कथन,
अणु,
परमाणु,
त्रसरेणु
आदि
काल
भेदों
का
कथन
),
३.१२.१२
(
रुद्र
के
ग्यारह
नामों
में
से
एक
),
३.२९.३७
(
परब्रह्म
के
स्वरूप
विशेष
के
ही
काल
नाम
से
विख्यात
होने
तथा
काल
की
महिमा
का
वर्णन
),
४.१२.३
(
समस्त
जीवों
की
उत्पत्ति
एवं
विनाश
में
एकमात्र
काल
के
ही
कारण
होने
का
उल्लेख
),
४.२७.२७
(
वृद्धावस्था?
का
काल
की
कन्या
के
रूप
में
उल्लेख
),
१.६.४,
१.१३.४८,
२.१०.४७,
८.१७.२७
(
सर्वशक्तिमान्
ईश्वर
के
ही
काल
रूप
होने
का
कथन
),
१०.५१.१९
(
काल
के
समस्त
बलवानों
से
भी
बलवान
होने,
परम
समर्थ,
अविनाशी
व
भगवत्स्वरूप
होने
तथा
खेल
-
खेल
में
समस्त
प्रजा
को
अपने
आधीन
रखने
वाले
होने
का
उल्लेख
),
११.१९.१०
(
कालरूपी
सर्प/अहि
द्वारा
मनुष्य
के
दंशन
का
उल्लेख
),
११.२४.२६
(
गुणों
के
अव्यक्त
प्रकृति
में,
अव्यक्त
प्रकृति
के
अव्यय
काल
में,
काल
के
मायामय
जीव
में
तथा
जीव
के
अजन्मा
आत्मा
में
लीन
होने
का
कथन
),
मत्स्य
१३.१४
(
सूर्य,
चन्द्र
प्रभृति
नव
ग्रहों
में
से
एक
राहु
के
अधिदेवता
रूप
में
काल
देव
का
उल्लेख
),
९३.१४(
काल
के
राहु
ग्रह
का
अधिदेवता
होने
का
उल्लेख
),
१९१.८५
(कालेश्वर
:नर्मदा
तटस्थ
कालेश्वर
नामक
तीर्थ
में
स्नान
से
सर्वसम्पद्
प्राप्ति
का
उल्लेख
),
५.२३,
२०३.४
(
आठ
वसुओं
में
द्वितीय
वसु
ध्रुव
का
पुत्र
),
२१३.५
(
सभी
प्राणियों
के
काल
की
गणना
करने
से
यम
की
ही
काल
संज्ञा
का
उल्लेख
),
२७३.३९(
सप्तर्षि
नक्षत्र
मण्डल
से
काल
की
गणना
),
महाभारत
कर्ण
३४.४८
(
भगवान
रुद्र
के
काल
होने,
काल
के
अवयवभूत
संवत्सर
के
उनका
धनुष
होने
तथा
कालरात्रि
के
अटूट
प्रत्यंचा
होने
का
उल्लेख
-
कालो
हि
भगवान्रुद्रस्तच्च
संवत्सरं
धनुः।
तस्माद्रौद्री
कालरात्री
ज्या
कृता
धनुषो
जरा।।
),
शान्ति
३३.१५
(
व्यास
द्वारा
युधिष्ठिर
को
काल
की
प्रबलता
बतलाते
हुए
मृत
जनों
के
विषय
में
विषाद
न
करने
का
उपदेश
),
१९९.३१
(
जापक
ब्राह्मण
के
स्वर्गारोहण
हेतु
स्वयं
काल
के
उपस्थित
होने
का
उल्लेख
),
२२४
(
बलि
द्वारा
काल
की
प्रबलता
का
प्रतिपादन
करते
हुए
इन्द्र
को
फटकारना
),
२२७
(
इन्द्र
और
बलि
के
संवाद
में
बलि
द्वारा
काल
की
महिमा
का
वर्णन
),
२३१
(
निमेष,
काष्ठा
आदि
काल
परिमाण
कथन
),
२३५
(
काल
रूप
नद
को
पार
करने
के
उपाय
का
कथन
),
२३८.१९
(काल
नामक
तत्त्व
के
ही
प्राणियों
का
उत्पादक,
पालक,
संहारक
तथा
नियन्त्रक
होने
का
उल्लेख
),
स्त्री
७.१२
(
संवत्सर,
मास,
पक्ष,
अहोरात्र
तथा
संधियों
का
काल
की
विधियों
के
रूप
में
उल्लेख
),
आश्वमेधिक
४५
(
देह
रूपी
कालचक्र
का
वर्णन
),
मार्कण्डेय
१६.३१
(
माण्डव्य
ऋषि
द्वारा
पति
को
दिए
गए
शाप
का
श्रवण
कर
पतिव्रता
भार्या
द्वारा
काल
का
स्तम्भन
),
८२.४४
(
महिषासुर
– सेनानी
-
वृतः
कालो
रथानाञ्च
रणे
पञ्चाशतायुतैः
।
),
वा.रामायण
४.४३.१४
(
सीता
-
अन्वेषण
हेतु
सुग्रीव
का
शतबलि
आदि
वानरों
को
काल
पर्वत
पर
भेजने
का
उल्लेख
),
७.४.१६
(
राक्षसराज
हेति
की
पत्नी
भया
का
भाई
),
७.१०३,
७.१०४
(
काल
का
तपस्वी
वेष
में
अयोध्यापति
राम
के
समीप
गमन,
ब्रह्मा
के
संदेश
के
रूप
में
राम
से
स्वर्ग
प्रस्थान
हेतु
निवेदन
का
वृत्तान्त
),
वराह
१९७.२८
(
यम
सभा
में
काल
की
स्थिति
व
स्वरूप
का
कथन,
संसारचक्रे
कृतान्तकालमृत्युकिङ्करवर्णनं
),
वामन
५.२८
(
आकाश
में
स्थित
काल
रूप
शिव
के
स्वरूप
का
कथन
),
वायु
३१.२२
(
काल
की
उत्पत्ति,
काल
का
आदि,
कालतत्त्व,
कालस्वरूप,
चक्षु,
मूर्ति,
अवयव
तथा
कालात्मा
आदि
का
वर्णन
),
३२.२६
(
काल
शब्द
के
युग
का
वाचक
होने
का
उल्लेख
),
३२.८
(
काल
से
भयभीत
देवगणों
का
महादेव
की
शरण
में
पहुंचना,
महादेव
द्वारा
चतुर्मुख
काल
की
अगाधता
का
निरूपण
),
३६.२७
(
सितोद
झील
के
पश्चिम
में
स्थित
एक
पर्वत
),
५०.१६८
(
काल
परिमाण
के
अन्तर्गत
निमेष,
काष्ठा,
कला,
मुहूर्त्त,
दिनरात,
प्रातः,
संगव,
मध्याह्न,
अपराह्न,
सायाह्न,
पक्ष,
मास,
ऋतु,
अयन,
संवत्सर,
चला,
विद्युत्,
सरांश
आदि
का
वर्णन
),
५३.३९
(
सूर्य
से
क्षण,
मुहूर्त्त,
दिवस,
निशा,
पक्ष,
मास,
संवत्सर,
ऋतु,
युगादि
रूप
काल
की
उत्पत्ति,
अत:
सूर्य
के
ही
काल
रूप
होने
का
कथन
),
६६.२१
(
आठ
वसुओं
में
से
द्वितीय
वसु
ध्रुव
का
पुत्र
),
६६.३१
(
धर्म
व
विश्वा
के
दस
विश्वेदेव
पुत्रों
में
से
एक
),
९७.३०
(
विष्णु
द्वारा
क्षण,
निमेषादि
स्वरूप
काल
की
रचना
का
उल्लेख
),
विष्णु
१.२.१४
(
व्यक्त
-
अव्यक्त
स्वरूप
ब्रह्म
के
पुरुषरूप
तथा
कालरूप
से
स्थित
होने
का
उल्लेख
),
१.२.१८(
व्यक्त
के
विष्णु
तथा
अव्यक्त
के
कालपुरुष
होने
का
कथन
-
व्यक्तं
विष्णुस्तथाव्यक्तं
पुरुषः
काल
एव
च
।...अव्यक्तं
कारणं
यत्तत्प्रधानमृषिसत्तमैः
।
),
१.३.६
(
काल
परिमाण
वर्णन
),
१.१५.१११
(
ध्रुव
नामक
वसु
का
पुत्र
),
२.८.५९
(
काल
परिमाण
का
निरूपण
),
५.३८.५७
(
काल
स्वरूप
भगवान
द्वारा
सृष्टि
के
सृजन
तथा
संहार
का
उल्लेख
),
६.३
(प्राकृत,
नैमित्तिक
लय
निरूपण
),
विष्णुधर्मोत्तर
१.६१.६+
( अखण्डकारी
बनने
हेतु
अभिगम,
उपादान,
इज्या
आदि
५
कालों
के
नाम
व
उनमें
करणीय
कृत्यों
का
वर्णन
),
१.७२.११
(
चान्द्र,
सौर,
सावन
तथा
नाक्षत्र
नामक
कालमान
-
चतुष्टय
का
कथन
),
१.७३
(
काल
अवयव
तथा
संख्या
का
वर्णन
),
१.८३
(
कालावयव
देवों
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
१.१४२
(
श्राद्ध
काल
का
वर्णन
),
१.२३६
(
शिव
द्वारा
स्वभक्त
श्वेत
नामक
ऋषि
की
काल
से
रक्षा
का
कथन
),
३.४७.१४(
बलराम
के
लाङ्गल
के
काल
का
प्रतीक
होने
का
उल्लेख
-
कालं
च
लाङ्गलं
विद्धि
मृत्युं
च
मुसलं
तथा।।
),
३.७३.३९
(
देवता
रूप
निर्माण
के
अन्तर्गत
काल
देवता
के
रूप
निर्माण
का
कथन
),
३.९६
(
प्रतिमा
प्रतिष्ठा
हेतु
काल
का
निर्देश
),
३.१२०
(
काल
के
अनुसार
देवपूजा
का
वर्णन
),
३.२२१.१२(
प्रतिपदा
को
काल
के
अवयवों
की
पूजा
का
निर्देश
),
शिव
२.५.३६.८
(
शंखचूड
-
सेनानी
कालासुर
के
साथ
काल
के
युद्ध
का
उल्लेख
),
५.२५
(
काल
मृत्यु
का
ज्ञान
कराने
वाले
विविध
लक्षणों
का
निरूपण
),
५.२६,
२७
(
कालवंचन
तथा
शिव
प्राप्ति
का
वर्णन
),
७.१.७
(
काल
की
शिव
से
अभिन्नता
तथा
काल
महिमा
का
वर्णन),
७.१.८
(निमेष,
काष्ठा,
कला
आदि
काल
स्वरूप
की
विवेचना
),
स्कन्द
१.१.३२
(
शिव
द्वारा
स्वभक्त
श्वेत
हेतु
काल
की
दग्धता,
श्वेत
की
प्रार्थना
पर
पुन:
काल
के
संजीवन
का
वर्णन
),
१.२.३९.४६
(
काल
के
मान
का
वर्णन
),
३.३.१२.८
(
कालरुद्र
से
दावाग्नि
से
रक्षा
की
प्रार्थना
),
४.१.३१.४१
(
कालभैरव
की
उत्पत्ति
तथा
दर्शन,
पूजन
के
माहात्म्य
का
कथन
),
४.२.६१.१८६
(
कालमाधव
लिंग
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
),
४.२.६७.१८०
(
वृद्ध
कालेश्वर
लिंग
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
-
प्रतिदर्शं
वसेद्यत्र
रात्रौ
चंद्रः
सतारकः
।।
यस्य
संदर्शनान्नृणां
न
कालः
प्रभवेद्भवे
।।
),
४.२.६९.१०७
(
कालेश्वर
लिंग
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
-
काललिंगं
समालोक्य
कलिकाल
भयं
कुतः
।।
),
४.२.७७.७१
(
कालंजरेश्वर
लिंग
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
),
४.२.९७.१२४
(
कालेश्वर
लिंग
तथा
कालोद
कूप
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
-
विश्वेश्वरस्य
पूर्वेण
वृद्धकालेश्वरो
हरः
।।
कालोदो
नाम
कूपोस्ति
तदग्रे
सर्वरोगहृत्
।।
),
४.२.९७.१७२
(
शतकालेश्वर
लिंग
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
-
शतकालस्तत्समीपे
शतं
कालानुमापतिः
।।
तल्लिंगाविर्भवे
काश्यां
कालयामास
कुंभज
।।
),
४.२.९७.२०९
(
कालकेश
लिंग
का
उल्लेख
-
तदग्रे
कालकेशाख्यो
दृष्टप्रत्ययकृत्परः
।।
छाया
संदृश्यते
तत्र
निष्पापस्तदवेक्षणात्
।।
),
५.१.२७.७१
(
सान्दीपनि
मुनि
के
पुत्र
को
नरक
से
लाने
के
संदर्भ
में
काल
द्वारा
बलराम
पर
कालदण्ड
से
प्रहार
आदि
का
वर्णन
),
५.१.४८.१४
(
मनुष्य,
पितर,
देव
व
मनुओं
के
लिए
दिन,
रात्रि,
पक्ष
आदि
के
मान
का
वर्णन
),
५.३.२८.१२
(
बाण
के
त्रिपुर
नाश
हेतु
शिव
के
रथ
में
काल
के
वाम
पार्श्व
में
स्थित
होने
का
उल्लेख
-
यमं
तु
दक्षिणे
पार्श्वे
वामे
कालं
सुदारुणम्
।
),
५.३.१५५.६०
(
कलिकाल
:
यम
सभा
में
कलिकाल
व
चित्रगुप्त
की
स्थिति
का
उल्लेख
),
५.३.१८७.४
(
कालाग्नि
रुद्र
से
काल
रूपी
धूम
के
निर्गमन
का
उल्लेख
),
५.३.१९८.८६
(
चन्द्रभागा
तीर्थ
में
उमा
की
काला
नाम
से
स्थिति
का
उल्लेख
),
६.२७२
(
त्रुटि,
लव,
यव,
काष्ठा
आदि
दिवस
प्रमाण
का
कथन
),
७.१.१९.५
(
काल
के
त्रुटि,
लव,
निमेष,
कला,
काष्ठा,
मुहूर्त्त,
रात्रि,
दिन,
पक्ष,
मास,
अयन,
वत्सर,
युग,
मन्वन्तर,
कल्प
तथा
महाकल्प
नामक
१६
अवयवों
का
उल्लेख
),
७.१.२०५.६
(दिन
के
आठवें
मुहूर्त्त
की
कुतप
काल
संज्ञा
का
उल्लेख
),
हरिवंश
१.८
(
ब्रह्मा
के
चारों
युगों,
मन्वन्तरों,
दिन
एवं
वर्ष
के
काल
मान
का
निरूपण
),
३.५३.२२(प्रह्रादस्तु
महावीर्यो
वीरैः
स्वैस्तनयैर्वृतः
।
युयुधे
सह
कालेन
रणे
काल
इवापरः
।।),
३.५९.२४
(
देव
-
दानव
युद्ध
में
प्रह्लाद
के
काल
के
साथ
युद्ध
का
उल्लेख
-
तत्रैव
तु
महावीर्यः
प्रह्लादः
कालमाहवे
॥
योधयामास
रक्ताक्षो
हिरण्यकशिपोः
सुतः
।।
),महाभारत
कर्ण
३४.४८,
शान्ति
३३,
१९९.३२(यथावदस्य
जप्यस्य
फलं
प्राप्तस्त्वमुत्तमम्।
कालस्ते
स्वर्गमारोढुं
कालोऽहं
त्वामुपागतः।।),
२२४,
२२७.२९(कालः
काले
नयति
मां
त्वां
च
कालो
नयत्ययम्।
तेनाहं
त्वं
यथा
नाद्य
त्वं
चापि
न
यथा
वयम्।।),
२३१,
२३५.१४(कालोदकेन
महता
वर्षावर्तेन
संततम्।
मासोर्मिणर्तुवेगेन
पक्षोलपतृणेन
च।।),
२३८,
आश्वमेधिक
४५,
स्त्री
७.१२(एते
कालस्य
विधयो
नैताञ्जानान्ति
दुर्बुधाः।
धात्राऽभिलिखितान्याहुः
सर्वभूतानि
कर्मणा।।)
योगवासिष्ठ
१.२३
(
काल
महिमा
का
वर्णन
),
१.२४
(
क्रिया
व
इनके
फलरूप
काल
के
विलास
का
वर्णन
),
४.१०.१७
(
काल
को
शाप
देने
के
लिए
उद्धत
भृगु
ऋषि
को
काल
द्वारा
प्रतिबोधन
का
वर्णन
),
लक्ष्मीनारायण
१.१३.९
(
श्री
हरि
द्वारा
स्वमूर्ति
से
महाकाल
का
प्राकट्य,
महाकाल
का
समय
रूप
होना,
घण्टादि
काल
का
निरूपण
),
१.१७६.८१(
शम्भु
द्वारा
वीरभद्र
को
प्रदत्त
कालकवल
मन्त्र
का
कथन
),
१.२०१.७८(
मालावती
द्वारा
द्रष्ट
काल
के
स्वरूप
का
कथन
),
१.४१०.१४
(
वसिष्ठ
-
पुत्रवधू
व
शक्ति
-
पत्नी
अदृश्यन्ती
के
शाप
से
काल,
रुद्र,
यम
आदि
देवताओं
का
शिलारूप
होना,
पश्चात्
शापमुक्त
होने
पर
केवल
सूक्ष्म
स्वरूप
में
स्थित
होने
का
कथन
),
१.४२४.२१(
दुष्ट
के
नाश
हेतु
काल
का
उल्लेख
),
२.१७.४०
(
श्रीहरि
द्वारा
काललक्ष्मी
रूप
धारण
कर
कङ्कताल
दैत्यों
की
पत्नियों
का
निग्रह
),
२.१५७.७
(
कल्प,
अयन,
विषुवत
आदि
का
न्यास
),
२.१७४
(
मन्दिर
आदि
निर्माण
हेतु
शुभ
-
अशुभ
काल
का
निरूपण
),
२.१८४.३९
(
शंकर
द्वारा
काल
राक्षस
के
वध
का
उल्लेख
-
कालो
वै
राक्षसश्चाऽस्ति
यथाऽत्र
राक्षसो
ह्यभूत्
।
मारितः
शंकरेणाऽसौ
मम
भक्तेन
साऽन्वयः
।।
),
२.२९३.१०५
(
बालकृष्ण
व
लक्ष्मी
के
विवाह
में
काल
द्वारा
शाटी
कंचुकी
प्रभृति
अम्बर
/
वस्त्र
भेंट
स्वरूप
प्रदान
करने
का
उल्लेख
-
रत्नहारान्
ददौ
सदाशिवः
कालोऽम्बरं
ददौ
।।
दिव्यां
शाटीं
जराहीनां
कंचुकीं
नवयौवनाम्
।
),
४.२६.५१
(
बालकृष्ण
की
शरण
से
काल
से
मुक्ति
का
उल्लेख
-
बालकृष्णं
प्रपन्नोऽस्मि
किं
मे
कालः
करिष्यति
।
),
४.८४.२१
(
कालवज्र
:नन्दिभिल्ल
नृप
का
सेनापति,
कुवरनायक
सेनापति
द्वारा
कालवज्र
के
वध
का
वृत्तान्त
),
कथासरित्
८.२.८३
(
काल
नामक
जापक
ब्राह्मण
की
कथा
द्वारा
भोगों
से
विमुख
रहकर
सिद्धि
प्राप्ति
को
ही
लक्ष्य
बनाने
का
कथन
),
८.२.३५१
(
काल
की
कन्या
अंजनिका
के
महल्लिका
की
सखी
होने
का
उल्लेख
),
८.२.३७८
(काल
नामक
दानव
के
ही
सूर्यप्रभ
के
मित्र
वीतिभीति
के
रूप
में
अवतीर्ण
होने
का
उल्लेख
)
; द्र.
त्रिकालज्ञ,
महाकाल,
वृद्धकाल
।
kaala
काल काल की दो अवस्थाएं है । एक सांख्य की, एक योग की । सांख्य में योगी कालातीत अवस्था से क्रमश: संवत्सर, अयन, मास, पक्ष, दिन - रात, आदि से लेकर काल के अल्पतम मान क्षण तक जाता है । इसके विपरीत योग में योगी काल के अल्पतम मान से आरम्भ करके कालातीत अवस्था तक पहुंचता है ।- फतहसिंह
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कालक ब्रह्माण्ड २.३.६.३३ ( दनुवंशीय विजर के दो पुत्रों में से एक ), वामन ५७.६६ ( पूषा द्वारा स्कन्द को प्रदत्त कालक नामक महाबलशाली गण का उल्लेख ), वायु ६८.३३ ( विरक्ष के दो पुत्रों में से एक, दनु वंश ) ।
कालकर्ण लक्ष्मीनारायण २.५७.७५ ( कालकर्ण नामक यमदूत द्वारा तुष्क दैत्य के वध का उल्लेख ) ।
कालकल्प पद्म ७.७.२० ( रत्नाकर वैश्य के महापापी भृत्य कालकल्प द्वारा दण्ड से वृषभ को ताडित करना, ताडन से क्रुद्ध हुए वृषभ द्वारा विषाणों / शृङ्गों से कालकल्प को विदारित करना, मृतप्राय कालकल्प को देखकर धर्मस्व नामक धार्मिक द्वारा कालकल्प के ऊपर गंगाजल का सिंचन, गंगाजल सिंचन से महापापी कालकल्प के पापों का नष्ट होना, विष्णुदूतों द्वारा कालकल्प को विष्णुलोक ले जाने का वृत्तान्त ) ।
कालका पद्म १.६.५५ ( वैश्वानर की दो पुत्रियों में से एक, कालका व मारीच से कालखञ्जों की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ६.६.३३ ( दनु - पुत्र वैश्वानर की चार कन्याओं में से चतुर्थ कन्या कालका का कश्यप प्रजापति की पत्नी तथा कालकेयों की माता होने का उल्लेख ), मत्स्य ६.२२ ( वैश्वानर - पुत्री, मारीच - पत्नी, कालकेय - माता ), वा.रामायण ३.१४.११, १६ ( दक्ष प्रजापति - कन्या, कश्यप - पत्नी, नरक तथा कालक नामक पुत्रों की माता ), विष्णु १.२१.८ ( वैश्वानर - पुत्री, मरीचि - पुत्र कश्यप - पत्नी, कालकेय - माता ) । kaalakaa
कालकाक्ष गरुड १.८७.४० ( नवम दक्षसावर्णि मन्वन्तर में पद्मनाभ द्वारा कालकाक्ष असुर के वध का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१८४.६ ( वही), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.५५,६० ( कालकाक्षक : नवम दक्षसावर्णि मन्वन्तर में कालकाक्षक दैत्य के वध हेतु श्रीहरि द्वारा पद्मनाभ अवतार ग्रहण का उल्लेख ) ।
कालकाम मत्स्य २०३.१३ ( विश्वा के दस विश्वेदेव पुत्रों में से एक, धर्म देव वंश ) ।
कालकूट गणेश १.४३.२ ( त्रिपुर - शिव युद्ध में भ्रूशुण्डि का कालकूट से युद्ध - भृशुंडी कालकूटेन विषवत्प्राणहारिणा ॥ ), ब्रह्माण्ड १.२.२५.६० ( समुद्र मन्थन से उत्पन्न विष की कालानल और कालकूट नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), २.३.२५.९ ( कालकूट विपाशी : परशुराम - कृत शिवस्तुति में शिव का एक नाम ), ३.४.२३.३० ( तक्षक, कर्कोटक आदि नानाविध सर्पों द्वारा स्वमुखों से छोडे गए दारद, वत्सनाभ आदि नानाविध विषों में कालकूट विष का उल्लेख ), मत्स्य २५०.२१ ( विष्णु के पूछने पर कालकूट विष द्वारा समुद्रमन्थन से स्व उत्पत्ति प्रयोजन को निवेदित करने का वृत्तान्त ), वायु ५४.६३ ( ब्रह्मा द्वारा समुद्र - मन्थन से उत्पन्न कालकूट विष के वेग को सहन करने में अपनी व विष्णु की असमर्थता तथा शिव के सामर्थ्य का उल्लेख ), वायु ६९.२९९/२.८.२९१(परिवृत्ता-सन्तान) । kaalakuta/ kaalakuuta/ kalkuta
कालकेतु देवीभागवत ६.२२.५ ( कालकेतु दानव द्वारा रैभ्य - पुत्री एकावली का हरण, हैहयराज एकवीर द्वारा कालकेतु का वध ) ।
कालकेय देवीभागवत ९.२२.५ (शंखचूड - सेनानी कालकेय के साथ कुबेर के युद्ध का उल्लेख ), पद्म १.१९.६१ ( कालेय प्रभृति दानवगणों द्वारा देवों को त्रास , इन्द्र द्वारा वृत्रासुर के वधोपरान्त कालेयों का समुद्र में छिपना , देवों की प्रार्थना पर अगस्त्य द्वारा समुद्र पान, कालकेयों के वध का वृत्तान्त ), १.६५.९९ ( चित्ररथ द्वारा हिरण्याक्ष - सेनानी कालकेय के वध का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.६.२७ ( कालका के पुत्रों की कालकेय नाम से प्रसिद्धि तथा सव्यसाची द्वारा कालेयों के वध का उल्लेख ), २.३.७.२५५ ( रावण द्वारा कालकेयों को परास्त करने का उल्लेख ), मत्स्य १७१.५९ ( काला से कालकेय नामक असुरों और राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख ), वा.रामायण ७.१२.२ (रावण द्वारा कालकेय विद्युज्जिह्व से स्वभगिनी शूर्पणखा का विवाह करने का उल्लेख ), ७.२३.१७ ( रावण द्वारा कालकेय दानवों के संहार का उल्लेख ), वायु ४०.१५ ( मर्यादा पर्वत पर कालकेय नामक असुरों के सुनास नामक नगर की स्थिति का उल्लेख ), विष्णु १.२१.९ ( मारीच व कालका - पुत्र, दनु वंश ), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.१ ( दैत्यरूपी सागर में कालकेय दैत्य की महाजल से समता का उल्लेख ), शिव २.५.३६.९ ( शंखचूड - सेनानी, देव - दानव युद्ध में कालकेय दानव के कुबेर से युद्ध का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.३४७ ( व्याघ्र रूप धारी विष्णु द्वारा कालकेय दैत्यों का भक्षण, भक्षण से अवशिष्ट तथा समुद्र में प्रविष्ट दैत्यों के वधार्थ अगस्त्य ऋषि द्वारा समुद्र के शोषण का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४०( शङ्खचूड - सेनानी, यक्षराज से युद्ध ) । kaalakeya/ kalkeya
कालकेली स्कन्द ५.२.४८.५ ( ब्रह्मा के दक्षिण नयन के अश्रुओं से कालकेलि दानव की उत्पत्ति , अभयेश्वर लिङ्ग द्वारा ब्रह्मा व विष्णु को कालकेलि से अभय प्रदान ) ।
कालकोप कथासरित् ८.५.७० ( दामोदर की पत्नी में शनैश्चर से उत्पन्न कालकोप नामक विद्याधरराज के प्रभास के साथ युद्ध का उल्लेख ) ।
कालकम्पन स्कन्द ४.२.७४.५४ ( कालकम्पन गण द्वारा पूर्व दिशा से अविमुक्त क्षेत्र की रक्षा करने का उल्लेख ), कथासरित् ८.४.७८ ( विद्याधरराज कालकम्पन द्वारा प्रकम्पन आदि अनेक योद्धाओं के वध का उल्लेख ), ८.५.२० ( राजा सूर्यप्रभ के १५ महारथियों में से एक, सूर्यप्रभ तथा श्रुतशर्मा के १५ - १५ महारथियों के द्वन्द्व युद्ध में दानव कालकम्पन के तेज:प्रभ के साथ युद्ध का उल्लेख ) । kaalakampana/ kalkampana
कालखञ्ज विष्णुधर्मोत्तर १.२२३.२ (पाताल में प्रवेश कर रावण का कालखञ्ज, कालकेय तथा निवातकवच दैत्यों से युद्ध ), शिव ५.३२.३२ ( कश्यप के दानव पुत्र गणों में पौलोम व कालखञ्ज का उल्लेख ) ।
कालचक्षु ब्रह्माण्ड २.३.७४.१३ ( ययाति व शर्मिष्ठा - पुत्र अनु के तीन पुत्रों में से एक ) ।
कालचक्र ब्रह्माण्ड २.३.७.२३५ (राजा बालि के सात द्वीपों में स्थित प्रधान वानरों में से एक ), ३.४.३२.७, २० ( कालचक्र रूपी आसन पर महाकाल की स्थिति का उल्लेख ), भागवत ५.२२.२ ( नक्षत्र तथा राशियों से उपलक्षित कालचक्र में सूर्य की गति का उल्लेख ), ५.२३.३ ( कालचक्र पर स्थित ग्रहों तथा नक्षत्रों के कल्प पर्यन्त भ्रमण का उल्लेख ), मत्स्य १६२.१९ ( हिरण्यकशिपु द्वारा कालचक्र आदि दिव्यास्त्रों का नृसिंहरूपधारी विष्णु पर प्रक्षेपण का उल्लेख ), कथासरित् ८.५.२३ (सूर्यप्रभ और श्रुतशर्मा के १५ -१५ महारथियों के द्वन्द्व युद्ध में कालचक्र नामक असुर के सुरोषण के साथ युद्ध का उल्लेख ) । kaalachakra/ kalchakra
कालजंघिका मत्स्य १७९.२३ (अन्धकासुर युद्ध में महादेव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में कालजंघिका का उल्लेख ) ।
कालजित्
पद्म
५.१०.१६
(
लक्ष्मण
की
आज्ञा
से
सेनानी
कालजित्
द्वारा
अश्वमेध
यज्ञ
हेतु
अश्व
की
सज्जा
का
उल्लेख
-
इत्याकर्ण्य
वचस्तस्य
लक्ष्मणस्य
महात्मनः।
सेनानी
कालजिन्नामा
कारयामास
सज्जताम्॥
),
५.६०.६
(
शत्रुघ्न
की
आज्ञा
से
सेनानी
कालजित्
का
सेना
सहित
प्रस्थान,
कालजित्
का
लव
को
समझाना,
लव
से
युद्ध
व
कालजित
की
मृत्यु
का
वृत्तान्त
)
।
कालजिह्व ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७६ ( कालजिह्वा : ५१ वर्णों की शक्तियों में से एक शक्ति का नाम ), कथासरित् १२.५.३५ ( वासुकि के शापवश नागराज गन्धमाली का कालजिह्व नामक यक्ष से पराजित होने तथा दास बनने का उल्लेख ), १२.५.५९ ( विनीतमति के भय से कालजिह्व यक्ष के शरणागत होने तथा गन्धमाली को दासत्व से मुक्त करने का उल्लेख ), १५.२.३४ ( कलावती - पिता ) । kaalajihva
कालञ्ज विष्णु २.२.३० ( मेरु के उत्तर में कालञ्ज प्रभृति केसर पर्वतों की स्थिति का उल्लेख ) ।
कालञ्जर कूर्म २.३६.११ ( कालञ्जर तीर्थ माहात्म्य : रुद्र द्वारा राजा श्वेत को पाशबद्ध करने वाले काल के वध का वर्णन ), पद्म २.९१.४० ( विदुर आदि चार पापियों के कालञ्जर पर्वत पर जाने का उल्लेख ), २.९२ ( कालंजर पर्वत पर दुःखपूर्वक वास करते हुए पापियों को किसी सिद्ध द्वारा मुक्ति उपाय का कथन ), ब्रह्म १.१६.३६( मेरु के उत्तर में स्थित केसराचलों में से एक ), २.७६ ( ययाति - पुत्र पुरु द्वारा गौतमी के दक्षिण तट पर तप, तप से प्रसन्न शिव द्वारा पुरु को जरा से मुक्ति व भ्राताओं की शाप से मुक्ति का वरदान, उपरोक्त स्थल की यायात तीर्थ के रूप में प्रसिद्धि, कालंजर शिव का वास होने से यायात तीर्थ की ही कालंजर तीर्थ के नाम से ख्याति ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.१०० ( योगेश्वर की नित्य स्थिति से कालञ्जर तीर्थ में प्रदत्त श्राद्ध के अक्षय होने का उल्लेख ), भागवत ५.८.३० ( कालञ्जर पर्वत पर मृगरूप में उत्पन्न भरत के शालग्राम तीर्थ में आने का उल्लेख ), ५.१६.२६ ( मेरु के मूलदेश के चारों ओर कालंजर प्रभृति बीस पर्वतों की स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १३.३२ ( सती देवी की कालञ्जर पर्वत पर काली रूप से स्थिति का उल्लेख ), २०.१५, २१.९ -२८ ( कौशिक - पुत्रों का कालञ्जर पर्वत पर मृग योनि में उत्पन्न होने तथा जातिस्मर बने रहने का उल्लेख ), वराह १७५.७ ( कालञ्जर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : दर्शन मात्र से कृष्ण गंगा के फल की प्राप्ति ), वामन ६.५५ ( कुबेर - पुत्र पाञ्चालिक नामक यक्ष के कालञ्जर के उत्तर में परम पवित्र स्थान पर स्थित होने का उल्लेख ), ७६.२५ ( इन्द्र के कहने से पुलिन्दों का हिमालय तथा कालिञ्जर पर्वतों के बीच की भूमि में निवास करने का उल्लेख ), ९०.२७ ( कालञ्जर में विष्णु का नीलकण्ठ नाम ), वायु २३.२०४ ( २३वें द्वापर में भगवान् विष्णु के श्वेत नामक मुनि - पुत्र के रूप में अवतार लेकर पर्वतश्रेष्ठ पर कालयापन करने से उस पर्वत की कालञ्जर नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), शिव ३.५.३३ ( २३वें द्वापर में कालञ्जर पर्वत पर शिव द्वारा श्वेत नाम से अवतार ग्रहण का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१९८.७० ( कालञ्जर तीर्थ में उमा की काली नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.१०.५(कालिञ्जर तीर्थ का वर्गीकरण – पृथिवी), हरिवंश १.२१.२४ ( कौशिक - पुत्रों का अन्य जन्म में मृग योनि में उत्पन्न होकर कालंजर पर्वत पर वास का उल्लेख ), कथासरित् ८.५.४२ ( कालंजर पर्वताधिपति विद्युत्प्रभ के प्रभास से युद्ध का उल्लेख ), १६.१.७० ( शाश्वत पद की प्राप्ति हेतु वत्सराज उदयन के कालञ्जर पर्वत पर गमन का उल्लेख ) । kaalanjara/ kalanjara
कालतोयक ब्रह्माण्ड १.२.१६.४६ ( भारत के उत्तर का एक देश ), २.३.७४.१९६ ( मणिधान्यज वंश के राजाओं द्वारा कालतोयक आदि जनपदों में राज्य करने का उल्लेख ), मत्स्य ११४.४० ( कालतोयक नामक स्थान का भारतवर्ष के उत्तरापथ के क्षत्रिय उपनिवेश के रूप में उल्लेख ), वायु ९१.७४ ( कालतोपक : मणिधान्यज राजाओं द्वारा उपभुक्त अनेक जनपदों में कालतोपक का उल्लेख ) ।
कालदंष्ट्र मत्स्य ६१.४ ( अग्नि द्वारा सहस्रों दानवों को भस्म कर दिए जाने पर कालदंष्ट्र प्रभृति प्रधान दानवों का रणभूमि से पलायन कर समुद्र में छिपकर रहने का उल्लेख ) ।
कालनर भागवत ९.२३.१ ( सभानर - पुत्र, सृंजय - पिता ), वायु ९९.१३ (कालानल :सभानर - पुत्र,सृंजय - पिता ) ।
कालनाभ गर्ग ७.३२.११ ( हिण्याक्ष दैत्य के नौ पुत्रों में से एक ), ७.३५ ( हिरण्याक्ष - पुत्र, शूकर वाहन, साम्ब द्वारा वध ), ब्रह्माण्ड २.३.५.३० ( हिरण्याक्ष के पांच महाबली पुत्रों में से एक ), २.३.६.२० ( विप्रचित्ति व सिंहिका के १४ पुत्रों में से एक, सैंहिकेय नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), भागवत ७.२.१८ ( हिरण्याक्ष की मृत्यु हो जाने पर हिरण्यकशिपु द्वारा कालनाभ, महानाभ आदि भ्रातृ - पुत्रों को सान्त्वना देने का उल्लेख ), ८.१०.२९ ( देवासुर संग्राम में कालनाभ के यमराज के साथ द्वन्द्व युद्ध का उल्लेख ), वायु ६७.६७ ( हिरण्याक्ष के पांच पुत्रों में से एक ), ६८.१९ ( सिंहिका व विप्रचित्ति के सैंहिकेय संज्ञक १४ पुत्रों में से एक ), विष्णु १.२१.३ ( हिरण्याक्ष - पुत्र, दनु वंश ), १.२१.१२ ( सिंहिका व विप्रचित्ति - पुत्र, दनु वंश ), शिव ५.३२.२५ ( हिरण्याक्ष के ५ पुत्रों में से एक, दिति वंश ), ५.३२.३६ ( सिंहिका व विप्रचित्ति के १३ पुत्रों में से एक, दनु वंश ), स्कन्द १.२.६०.४८ ( गुह्यकाधिपति कालनाभ के घटोत्कच रूप में अवतरण का उल्लेख ) । kaalanaabha/ kalnabha
कालनेमि गरुड ३.१२.८५(कालनेमि का कंस से तादात्म्य), गर्ग ७.३०.३ ( श्रीकृष्ण - पुत्र प्रघोष के कपीन्द्रास्त्र से प्रकट हुए हनुमान द्वारा कालनेमि - पुत्र कलंक के वध का उल्लेख ), देवीभागवत ४.२२.१० ( मरीचि व ऊर्णा के ६ पुत्रों की ब्रह्मा? के शापवश कालनेमि दैत्य के पुत्रों के रूप में उत्पत्ति ), पद्म १.४१.१६८ ( देव - दानव युद्ध में कालनेमि असुर का विष्णु से युद्ध व मृत्यु ), २.५१.२२ ( उग्रसेन - पत्नी पद्मावती को उसके गर्भस्थ शिशु द्वारा कंस रूप में जन्म लेने तथा पूर्वजन्म में कालनेमि नामक महासुर होने का कथन ), ६.१०१.२ ( जालंधर - सेनानी कालनेमि के नन्दी से युद्ध का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.५.३९ ( ब्रह्मजित्, क्रतुजित्, देवान्तक तथा नरान्तक नामक कालनेमि के ४ पुत्रों का उल्लेख ), २.३.७२.२१ ( तारकामय युद्ध में विष्णु द्वारा कालनेमि के वध का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१८.१९ ( हरि से युद्ध, संज्ञा विवाह प्रसंग ), भागवत ८.१०.५६ ( देवासुर संग्राम में कालनेमि दैत्य द्वारा गरुडवाहन भगवान् पर त्रिशूल से प्रहार करने परन्तु भगवान द्वारा उसी त्रिशूल से कालनेमि का वध करने का उल्लेख ), १०.१.६८, १०.५१.४२ ( पूर्वजन्म में कंस के कालनेमि असुर होने तथा विष्णु द्वारा मारे जाने का उल्लेख ), मत्स्य १४८.४२ ( दैत्यराज ग्रसन के दस सेनानायकों में कालनेमि का उल्लेख ), १५०.१५२ ( तारक - सेनानी कालनेमि के सूर्य से युद्ध का वृत्तान्त ), १५०.१९२ ( कालनेमि के अश्विनीकुमारों से युद्ध का वर्णन ), १५०.२२३ (विष्णु द्वारा कालनेमि की पराजय का वृत्तान्त ), १५४.३ ( कालनेमि द्वारा देवों को बन्दी बनाने का उल्लेख ), १६०.३,१८ ( कालनेमि प्रभृति दैत्यों के कुमार के साथ युद्ध तथा पलायन का उल्लेख ), १७६.४८ ( कालनेमि के स्वरूप तथा युद्ध भूमि में प्रवेश का उल्लेख ), १७७.३७ ( देवों से युद्ध में कालनेमि के पराक्रम का वर्णन ), १७८.१-५० ( कालनेमि का विष्णु से युद्ध, विष्णु चक्र से कालनेमि की मृत्यु का वृत्तान्त ), वामन ६९.५७ ( कालनेमि असुर का विष्वक्सेन प्रभृति विश्वेदेव गणों से युद्ध ), ७३.३५ ( विष्णु - पीडित दैत्यों का कालनेमि की शरण में जाना, कालनेमि के विष्णु से युद्ध तथा पराजय का वृत्तान्त ), वायु ९७.२२ ( विष्णु द्वारा कालनेमि के वध का उल्लेख ), विष्णु ५.१.२२, २३ ( तारकामय युद्ध में विष्णु द्वारा हत कालनेमि दैत्य के उग्रसेन - सुत कंस के रूप में अवतरण का उल्लेख ), ५.१.६५ ( श्री हरि द्वारा देवकी के अष्टम गर्भ से अवतरित होकर कालनेमि के अवतार रूप कंस के वध उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.३ ( दैत्य रूपी सागर में कालनेमि की बलाहक से समता का उल्लेख ), १.१२१.३ ( विष्णु द्वारा युद्ध में हिण्यकशिपु - पुत्र कालनेमि के वध का उल्लेख ), १.१२४ ( दैत्यों को पराजित होते देख कालनेमि का युद्धार्थ आगमन, कालनेमि द्वारा दैत्यों को अभय प्रदान, त्रिलोकी पर अधिकार तथा श्री हरि के समीप गमन का वर्णन ), १.१२५ ( श्री हरि के प्रति कहे गए कालनेमि के अभद्र तथा प्रतिकूल वचनों को सुनकर श्री हरि का क्रुद्ध होना, सुदर्शन चक्र द्वारा कालनेमि के वध का वर्णन ), स्कन्द १.१.१३.८७ ( कालनेमि द्वारा देवों की पराजय, कालनेमि के साथ युद्ध हेतु विष्णु का प्रादुर्भाव, विष्णु द्वारा कालनेमि के वध का वृत्तान्त ), १.२.१९ ( देव - दैत्य संग्राम में कालनेमि के पराक्रम का वर्णन, विष्णु द्वारा कालनेमि की पराजय का उल्लेख ), २.४.१४.३० ( सागर का जलन्धर हेतु कालनेमि - पुत्री वृन्दा को मांगना तथा कालनेमि का वृन्दा को देने का उल्लेख ), हरिवंश १.४६.४८ ( तारक संग्राम में वायु तथा अग्नि द्वारा दैत्यों को पीडित करने पर कालनेमि दानव के आगमन का उल्लेख ), १.४७ ( तारक संग्राम में कालनेमि के युद्ध व प्रभाव का वर्णन ), १.४८ ( कालनेमि - विष्णु संवाद, युद्ध व विष्णु द्वारा कालनेमि के वध का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.३२४.८४ ( ब्रह्मा द्वारा कृष्ण - पत्नी वृन्दा के कालनेमि के गृह में पुत्री रूप में उत्पन्न होने तथा जालन्धर की पत्नी बनने का उल्लेख ), १.३२४.८८ ( समुद्र द्वारा कालनेमि से पुत्र - भार्या हेतु वृन्दा की याचना, कालनेमि का जालन्धर को सुता प्रदान करने का उल्लेख ), १.३२८.६( कालनेमि के नन्दी से युद्ध का उल्लेख ), कथासरित् २.२.७ ( यज्ञसेन ब्राह्मण के दो पुत्रों में से एक ), ८.७.४७ ( भास का पूर्व जन्म में कालनेमि असुर होने का उल्लेख ) । kaalanemi/kalnemi
कालन्धरा लक्ष्मीनारायण ३.११३.५१ ( राजा वैवर्त्त - भार्या कालन्धरा द्वारा पति को कृष्ण भक्ति हेतु प्रेरित करने का उल्लेख ) ।
कालपर्णी मत्स्य १७९.२२ ( अन्धकासुर के रक्तपान हेतु शिव द्वारा सृष्ट अनेक मानस - मातृकाओं में से एक ) ।
कालपुरुष गणेश २.५८.४०+ ( गणेश द्वारा सृष्ट कालपुरुष द्वारा नरान्तक दैत्य की सेना का भक्षण, नरान्तक को पकडना, गणेश के मुख में शयन ), ब्रह्मवैवर्त १.१५.४१ ( कालपुरुष व मालावती संवाद में कालपुरुष का मालावती के पति की मृत्यु के लिए ईश्वराज्ञा को ही उत्तरदायी बताने का कथन - हे काल कर्मणां साक्षिन्कर्मरूप सनातन ।। नारायणांशो भगवन्नमस्तुभ्यंपराय च ।। ),भविष्य ४.१८१ ( कालपुरुष की पूजा व दान विधि का वर्णन ), विष्णु १.२.१८( व्यक्त के विष्णु तथा अव्यक्त के कालपुरुष होने का कथन - व्यक्तं विष्णुस्तथाव्यक्तं पुरुषः काल एव च ।...अव्यक्तं कारणं यत्तत्प्रधानमृषिसत्तमैः । ), ।
कालपृष्ठ स्कन्द ५.३.६७ ( कालपृष्ठ दानव का तपस्या द्वारा शिव से मूर्द्धा स्पर्श से मृत्युरूप वर की प्राप्ति, कन्या रूप धारी विष्णु द्वारा कालपृष्ठ की वंचना, स्वशिर स्पर्श करने से कालपृष्ठ की मृत्यु का वृत्तान्त ), महाभारत कर्ण ३४.२९-३० ( त्रिपुरासुर विनाश के समय शिव के रथ में जुते हुए अश्वों के केसर बांधने हेतु रज्जु रूप में प्रयुक्त कालपृष्ठ नामक एक सर्प का उल्लेख ) ।
कालप्रालेय लक्ष्मीनारायण २.१०७.६१ ( दैत्यों के स्मरण मात्र से उपस्थित कालप्रालेय नामक महादैत्य के संकर्षण के साथ युद्ध व स्वरक्षार्थ पलायन का उल्लेख ) ।
कालभवन वायु ६९.४० ( कालभवन का भूतगण के रूप में उल्लेख ) ।
कालभीति स्कन्द १.२.४०.२७ ( माण्टि व चटिका - पुत्र, कालभीति नाम हेतु कथन, महाकाल उपनाम, कालभीति के जन्म व तप का प्रसंग ) ।
कालभैरव कूर्म २.३१.२९ ( ब्रह्मा की गर्वोक्ति को सुनकर शिव द्वारा कालभैरव का प्रेषण, कालभैरव द्वारा ब्रह्मा के पंचम शिर का छेदन, ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु भ्रमण, विष्णु से कपाल में रक्त रूपी भिक्षा प्राप्ति का वृत्तान्त ), नारद १.११७.८६, ८७ (मार्गशीर्ष शुक्लाष्टमी में कालभैरव की सन्निधि में व्रत, जागरण तथा कालभैरव के दर्शन से पापों से मुक्ति का कथन ), शिव ३.८.४७ ( ब्रह्मा की गर्वोक्ति को सुनकर क्रुद्ध शिव द्वारा कालभैरव की उत्पत्ति, शिव - प्रदत्त वरों को ग्रहण करके कालभैरव द्वारा नखाग्र से ब्रह्मा के पंचम शिर के छेदन का वृत्तान्त ), स्कन्द ३.१.२४.३५ ( ब्रह्मा के गर्वनाश हेतु शिव द्वारा कालभैरव का प्रेषण, कालभैरव द्वारा ब्रह्मा के पंचम शिर का छेदन, शिव तीर्थ में स्नान से कालभैरव की ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा ), ४.१.३१ ( ब्रह्मा के शिर छेदन हेतु शिव से कालभैरव की उत्पत्ति, कपालमोचन तीर्थ में ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा ), ४.१.४१.१७२( षडङ्ग योग के देवताओं में चतुर्थ ), ५.१.६४ ( भैरव योगी द्वारा काल भैरव नाम प्राप्ति का कारण, भैरवाष्टक स्तोत्र व उसके फल का वर्णन ), ७.१.२०१ ( कालभैरव श्मशान का संक्षिप्त माहात्म्य ) । kaalabhairava/kalbhairava
कालमुख वामन ६.८७ (शिवभक्तों के चार सम्प्रदायों में तृतीय कालमुख सम्प्रदाय का कथन ), ६७.१२ ( नन्दी द्वारा शिव के समक्ष कालमुख नामक गणों के आगमन का उल्लेख ) ।
कालमूर्त्ति ब्रह्माण्ड २.३.७.२३३ ( वानरराज वालि के महाबली वानरों में से एक ) ।
कालमृत्यु ब्रह्माण्ड ३.४.३२.५ ( महाकाल के कालमृत्यु - प्रमुख सेवकों द्वारा सेवित होने का उल्लेख ) ।
कालमेघ स्कन्द १.२.६२.३१( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ७.१.३३१ ( कालमेघ लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : अष्टमी अथवा चर्तुदशी में पूजन से कथित अर्थ की प्राप्ति ), ७.२.१५.२६ ( रैवतक पर्वत पर स्थित पांच क्षेत्रपालों में से एक ) ।
कालयवन गर्ग ६.२.६ ( कालयवन द्वारा मथुरा पर आक्रमण, श्रीकृष्ण का पीछा करते हुए गुफा में प्रवेश तथा मुचुकुन्द द्वारा कालयवन को भस्म करने की कथा ), ७.२२.३१ ( प्रद्युम्न के आगमन का समाचार सुनकर म्लेच्छ देश के अधिपति कालयवन के पुत्र चण्ड के कुद्ध होने तथा युद्ध करते हुए अर्जुन द्वारा मृत्यु को प्राप्त होने का उल्लेख ), ब्रह्म १.१२.५० ( गोपाली व गार्ग्य के पुत्र कालयवन का पिता के उपहास का बदला लेने के लिए वृष्णि व अन्धकों पर आक्रमण, कालयवन के भय से वृष्णि व अन्धक कुल का मथुरा से पलायन ), १.८८.५ ( सन्तानहीन यवनेश्वर द्वारा कालयवन का राज्य पर अभिषेक, कालयवन का यादवों के वध हेतु मथुरा पर आक्रमण, कृष्ण द्वारा यादवों का द्वारका में प्रेषण, कृष्ण का अनुगमन करते हुए कालयवन का गुफा में प्रवेश तथा मुचुकुन्द राजा की क्रोधाग्नि से दग्ध होने का वृत्तान्त ), भागवत १०.५०.४४ ( यदुवंशियों से युद्ध हेतु नारद द्वारा प्रेरित कालयवन के मथुरा में आगमन का उल्लेख ), १०.५१.६ ( कृष्ण का पीछा करते हुए कालयवन का गुफा मे प्रवेश तथा मुचुकुन्द द्वारा भस्म होना ), विष्णु ५.२३.५ (गार्ग्य - पुत्र कालयवन का श्रीकृष्ण का अनुगमन करते हुए गुफा में प्रविष्ट होना, प्रसुप्त मुचुकुन्द को कृष्ण समझकर पाद से ताडित करना, क्रुद्ध मुचुकुन्द के दृष्टिपात से कालयवन के भस्म होने का वृत्तान्त ), स्कन्द ६.८८.८ ( कालयवनों द्वारा काशिराज का वध, काशिराज - पत्नियों द्वारा देवी की आराधना, मातृकाओं द्वारा कालयवनों का भक्षण ), हरिवंश १.३५.१५-१६ ( गर्ग गोत्रीय शैशिरायण व गोपकन्या वेषधारी गोपाली नामक अप्सरा से कालयवन की उत्पत्ति, नि:संतान यवनराज के गृह में पालनपोषण होने से कालयवन नाम से प्रसिद्धि ), २.५२.२५ ( रुद्रदेव की आराधना से उत्पन्न गार्ग्य - पुत्र कालयवन के माथुरों द्वारा अवध्य होने के वरदान का उल्लेख ), २.५३ ( दूत बनकर शाल्वराज का कालयवन की सभा में उपस्थित होना, जरासंध के संदेश के रूप में कालयवन को मथुरा पर आक्रमण करने तथा कृष्ण व माथुरों के वध के लिए उकसाना ), २.५७ (गार्ग्य व गोपाली से कालयवन की उत्पत्ति, कालयवन द्वारा मथुरा पर आक्रमण तथा मुचुकुन्द द्वारा कालयवन के वध का वृत्तान्त ) । kaalayavana/ kalyavana
कालराज वामन ७०.३३ ( शिव के शरीर से नि:सृत दक्षिण दिशा की रक्त धारा से कालराज नामक भैरवी के उत्पन्न होने का उल्लेख ) ।
कालरात्रि गरुड १.४१ ( स्त्री प्राप्ति हेतु कालरात्रि मन्त्र जप का निरूपण ), देवीभागवत ५.२३.४ ( पार्वती के शरीर से अम्बिका के नि:सृत हो जाने पर कृष्ण रूप की कालिका तथा कालरात्रि रूप से प्रसिद्धि का उल्लेख ), नारद १.६६.११६( लोहित की शक्ति कालरात्रि का उल्लेख ), १.६६.१३६( व्यापी गणेश की शक्ति कालरात्रि का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.६० ( कालरात्रि का वर्ण - शक्ति के रूप में उल्लेख ), भविष्य १.३३.२५( सर्प के ४ विषदंष्ट्रों की देवताओं में से एक, स्वरूप ), महाभारत शान्ति ३४७.५३ ( हयग्रीव रूप धारी श्री हरि की ग्रीवा रूप में कालरात्रि का उल्लेख - गोलोको ब्रह्मलोकश्च ओष्ठावास्तां महात्मनः। ग्रीवा चास्याभवद्राजन्कालरात्रिर्गुणोत्तरा।।), शिव ५.८.१९ (२८ नरक कोटियों में से अष्टम कोटि का कालरात्रि नाम से उल्लेख ), स्कन्द ४.२.७१.२५ ( माहेश्वरी के आह्वान पर कालरात्रि का आगमन, दूती बनाकर दुर्ग नामक असुर के पास प्रेषण, दुर्ग का कालरात्रि पर मोहित होने का वृत्तान्त ), ५.३.१४.३२ (क्रुद्ध शिव की हुंकार से सौम्य महेश्वरी का कालरात्रि सदृश रौद्र रूप धारण करके जगत को भस्म करने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.२.८१.२४ ( छाया की भांति शिव के शरीर से निर्गत कालरात्रि के स्वरूप का वर्णन ), कथासरित् ३.६.१०४ ( विष्णुदत्त - पत्नी कालरात्रि का डाकिनी मन्त्रों की गुरु के रूप में उल्लेख, कालरात्रि चरित्र का वर्णन ), १५.१.७० ( त्रिशीर्ष नामक गुफा की रक्षार्थ गुफा के उत्तर द्वार पर शिव द्वारा कालरात्रि प्रभृति स्व शक्तियों को स्थापित करने का उल्लेख ) । kaalaraatri
कालवदन वामन ६.८७( विष्णु द्वारा सृष्ट ४ वर्णों में तृतीय कालवदन का उल्लेख ; आपस्तम्ब के कालवदन होने का कथन ) ।
कालवन्दि ब्रह्माण्ड ३.४.१६.१७ ( ललिता देवी का अनुसरण करने वाली अश्व सेना में कालवन्दि आदि राज्यों के घोडे होने का उल्लेख ) ।
कालवाशित ब्रह्माण्ड ३.४.२१.७७ ( भण्ड के सेनानियों में से एक ) ।
कालवीर्य मत्स्य ६.२८ ( विप्रचित्ति व सिंहिका के सैंहिकेय संज्ञक १३ पुत्रों में से एक, हिरण्यकशिपु का भ्रातृ - पुत्र ) ।
कालशंबर विष्णु ५.२७.३ ( मायावी दैत्य कालशंबर द्वारा जन्म के छठें दिन प्रद्युम्न के हरण तथा समुद्र में क्षेपण का उल्लेख ), ५.२७.२० ( मायावती की अष्टमी माया का प्रयोग कर प्रद्युम्न द्वारा कालशंबर के वध का उल्लेख ) ।
कालशाक स्कन्द ६.२२०.३१( श्राद्ध में कालशाक भोजन के महत्त्व का कथन )
कालशिख मत्स्य २००.८ ( वसिष्ठ वंशज ऋषियों में से एक ऋषि ) ।
कालसंकर्षणी मत्स्य १७९.६८ ( अन्धकासुर के रक्तपान हेतु शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं के उत्पात शमनार्थ नृसिंह रूप धारी हरि द्वारा सृष्ट वागीश्वरी देवी की आठ अनुचरियों में कालसंकर्षणी का उल्लेख ), कथासरित् १२.१.६५(वामदत्त द्वारा कालसंकर्षण विद्या की साधना, खड्ग प्राप्ति) ।
कालसर्पि ब्रह्माण्ड २.३.१३.९८ ( काश्यप तीर्थ की कालसर्पि रूप से प्रसिद्धि तथा श्राद्ध हेतु कालसर्पि तीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ), वायु ७७.८७ ( अक्षय श्राद्ध हेतु काश्यप के कालसर्पि तीर्थ में नित्य श्राद्ध का उल्लेख ) । kaalasarpi/ kalsarpi
कालसूत्र ब्रह्माण्ड ३.४.२.१८१,१८४ ( पृथ्वी के नीचे स्थित सात नरकों में तृतीय नरक कालसूत्र का निकृन्तन सर्प के वास स्थान के रूप में उल्लेख, अपर नाम महाहि ), ३.४.३३.६० ( यमपुर में स्थित दण्डधारी प्रभु द्वारा श्री ललिता देवी की आज्ञा से दुराचारियों को कालसूत्र आदि नरकों में गिराने का उल्लेख ), भागवत ५.२६.७,१४ ( २८ नरकों में से एक, माता - पिता, ब्राह्मण तथा वेद विरोधी को कालसूत्र नरक की प्राप्ति, कालसूत्र नरक के स्वरूप का वर्णन ), वायु १०१.१७८ (तृतीय नरक कालसूत्र का निकृन्तन नामक सर्प के निवास स्थान के रूप में उल्लेख, अपर नाम महाहविधि ), ११०.४२ ( कालसूत्र आदि नरकों में गए हुए स्वजनों हेतु पिण्ड प्रदान का उल्लेख ), विष्णु १.६.४१,४२ ( वेद - निंदकों, यज्ञ - विध्वंसकों तथा स्वधर्म त्यागियों को कालसूत्र प्रभृति नरकों की प्राप्ति का उल्लेख ), २.६.४ ( अट्ठाइस मुख्य नरकों में से एक ) । kaalasuutra /kaalasutra/ kalsutra
कालस्वर देवीभागवत ९.२२.४ ( शंखचूड - सेनानी कालस्वर के काल से युद्ध का उल्लेख ) ।
कालहस्तीश स्कन्द २.१.३०.१३ ( सुवर्णमुखरी तीरस्थ कालहस्ती पर्वत पर अर्जुन द्वारा कालहस्तीश के पूजन का उल्लेख ) ।
काला मत्स्य १३.४९ ( चन्द्रभागा तीर्थ में सती देवी की काला नाम से स्थिति का उल्लेख ), १७१.२९ ( दक्ष प्रजापति की १२ कन्याओं में से एक, कश्यप - पत्नी ), १७१.५९ ( काला से कालकेय नामक असुरों व राक्षसों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), वायु ६६.५५ ( दक्ष - पुत्री, कश्यप - पत्नी ) ।
कालाक्ष स्कन्द ४.२.७४.५४ ( कालाक्ष गण द्वारा काशी में पूर्व दिशा की रक्षा का उल्लेख ) ।
कालाग्नि देवीभागवत ९.१.११७ ( कालाग्नि का रुद्र - पत्नी तथा निद्रा देवी के रूप में उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.११७ ( कालाग्नि का परिवत्सर रूप में उल्लेख ), ३.४.१.१५७ ( अग्नि के भयंकरतम रूप कालाग्नि द्वारा भू, भुव:, स्व: तथा मह नामक चारों लोकों के संहार का उल्लेख ), वामन ९०.३५ ( रसातल में विष्णु के नामों में से एक ), स्कन्द ४.२.५८.१६२ ( कालाग्नि रुद्र का शिव रथ में भल्ल बनने का उल्लेख ), ५.३.१८७ ( जालेश्वर में स्थित कालाग्नि रुद्र तीर्थ का माहात्म्य : तीर्थ में स्नान व पूजन से सर्व कार्य सिद्धि का उल्लेख ), ७.१.७.१४ ( द्वितीय कल्प में श्री सोमेश्वरदेव की ही कालाग्नि रुद्र नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ) । kaalaagni/ kalagni
कालात्मा वायु ३१.५५ ( युगाभिमानी ), ६६.१२५ (तमोगुणमयी तामसी मूर्ति में ब्रह्मा के अंश से कालात्मा रुद्र की उत्पत्ति का उल्लेख ) ।
कालादन लक्ष्मीनारायण ३.२०.३ ( सुरनदी तट पर कालादन वन में क्ष्मासुरों के वास का उल्लेख ) ।
कालानल ब्रह्माण्ड १.२.२५.४५, ५६ (समुद्र मन्थन से उत्पन्न विष की कालानल से समता का उल्लेख ), २.३.७४.१३ ( अनु - सुत सभानर का पुत्र, संजय - पिता ), विष्णु ४.१८.२, ३ (सभानल - पुत्र, सृंजय - पिता, ययाति वंश ) ।
कालान्तक गणेश २.६३.२९ ( देवान्तक - सेनानी, वशिता सिद्धि से युद्ध ), २.६४.१ ( देवान्तक असुर - सेनानी, प्राकाम्य व वशित्व सिद्धियों से युद्ध व मृत्यु ) ।
कालाम्र ब्रह्माण्ड १.२.१५.५८ ( भद्रशाल वन में कालाम्र वृक्ष की स्थिति का उल्लेख ), १.२.१५.६१ ( कालाम्र के रस का पान करने से यौवन की स्थिरता का उल्लेख ), मत्स्य ( भद्रमाल वन में कालाम्र नामक वृक्ष की स्थिति का उल्लेख ), ११३.५५ ( कालाम्र वृक्ष के फलों के रसपान से यौवन के स्थायित्व तथा नीरोगता का उल्लेख ), वायु ४३.६, ९ ( भद्राश्व देश के शालवन का एक वृक्ष, कालाम्र रसपान से दीर्घायु, नीरोगता तथा स्थिर यौवन की प्राप्ति का उल्लेख ) । kaalaamra/ kalamra
कालायनि विष्णु ३.४.२५ ( ऋग्वेद शाखा - प्रवर्तक बाष्कल के ३ शिष्यों में से एक ) ।
कालायस ब्रह्माण्ड ३.४.३१.३४ ( मेरु के मध्य शिखर पर स्थित श्रीपुर के कालायस शाल नामक प्रथम प्राकार की निर्मिति आदि का कथन ), स्कन्द १.२.१३.१८४( शतरुद्रिय प्रसंग में यम द्वारा कालायस लिङ्ग की धन्वी नाम से पूजा का उल्लेख ) ।
कालिक ब्रह्माण्ड १.२.३५.५१ ( सामगश्रेष्ठ कृत के २४ शिष्यों में से एक ), २.३.६.२९ ( मय व रम्भा के ६ पुत्रों में से एक, मन्दोदरी - भ्राता ), वायु ६१.४५ ( सामगश्रेष्ठ कृत के चौबीस शिष्यों में से एक ), स्कन्द ७.४.१७.३० ( द्वारका के वायव्य द्वार पर स्थित अनेक द्वारपालों में से एक ) ।
कालिका देवीभागवत ३.२६.४२ ( षड्वर्षीया कन्या की कालिका नाम से पूजा करने का उल्लेख ), ३.२६.४८ ( शत्रुनाशार्थ कालिका पूजन का उल्लेख ), ५.२३.३ ( पार्वती के शरीर से अम्बिका के निकल जाने पर कृष्ण रूप की कालिका नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ५.२५ ( कालिका देवी द्वारा शुम्भ - सेनानी धूम्रलोचन के वध का वृत्तान्त ), ५.२६ ( कालिका देवी द्वारा शुम्भ - सेनानियों चण्ड-मुण्ड के वध का वृत्तान्त, चण्ड - मुण्ड वध से चामुण्डा नाम धारण का उल्लेख ), नारद १.६६.१३७( गणेश्वर गणेश की शक्ति कालिका का उल्लेख ), १.८५ (वाक् देवता की अवतार रूप कालिका का मन्त्र, तन्त्र विधान तथा फल निरूपण ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.८६ ( शक्ति न्यास में कालिका शक्ति के न्यास का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३९.१५ ( दुर्गा कवच में कालिका देवी से आग्नेयी दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), भविष्य २.२.२.३१ ( कृष्ण व्याघ्र के कालिका का वाहन होने का उल्लेख ), मत्स्य २२.३६ ( श्राद्ध कर्म में स्नान - दान हेतु कालिका नदी की प्रशस्तता का उल्लेख ), मार्कण्डेय ८५.४१ ( पार्वती के शरीर कोश से अम्बिका के निकल जाने पर कृष्ण वर्ण पार्वती की कालिका रूप से प्रसिद्धि का उल्लेख ), शिव २.३.५ ( मेना की भक्ति से प्रसन्न होकर कालिका देवी का प्रत्यक्ष होकर मेना को वर प्रदान करने का उल्लेख ), ५.४४.५०, ९१ ( कृष्ण द्वैपायन व्यास की माता सत्यवती का उपनाम ), स्कन्द १.२.६२.७ ( दारुक दैत्य वधार्थ पार्वती द्वारा शिव - कण्ठ की कालिमा से कालिका की उत्पत्ति, बाल रुद्र द्वारा स्तनपान के व्याज से कालिका के क्रोध के पान का उल्लेख ), हरिवंश १.३.९२, ९४ ( वैश्वानर दानव की दो पुत्रियों में से एक, मरीचिनन्दन कश्यप की पत्नी, कालकेय दानवोंकी माता ), ( कालिकामुख : सुमाली व केतुमती के दस पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.१७६.९१( दक्ष यज्ञ नाश के संदर्भ में शिव द्वारा जटा के मार्जन से कालिका की उत्पत्ति ), कृष्णोपनिषद २३( गदा के कालिका रूप होने का उल्लेख ) ।kaalikaa/ kalika
कालिन्द वायु ६९.३२ ( विक्रान्त द्वारा उत्पन्न अश्वमुखधारी किन्नर गणों में कालिन्द नामक किन्नरगण का उल्लेख ) ।
कालिन्दी गरुड २.२.२१.१( सूर्य - पुत्री कालिन्दी द्वारा तप से कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त ), ३.२१.२(यमुना-अनुजा, कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति हेतु तप), गर्ग १.३.३७ ( विरजा नदी के कृष्ण - पत्नी कालिन्दी के रूप में प्रकट होने का उल्लेख ), पद्म ३.२९ ( कालिन्दी तीर्थ माहात्म्य : कालिन्दी जल में स्नान से महान् फलों की प्राप्ति ), ५.७५.११ ( वृन्दावन में स्थित कालिन्दी नदी का शरीरस्थ सुषुम्ना के रूप में उल्लेख ), ६.१९९ (कालिन्दी माहात्म्य का वर्णन : इन्द्र के पूछने पर बृहस्पति का खाण्डव वन में कालिन्दी के तट को यज्ञ हेतु परम पवित्र स्थान बतलाना ), ६.२४९.४१ ( कृष्ण की आठ पत्नियों में कालिन्दी का उल्लेख, वैवस्वती का रूप ), भागवत १०.५८.२० ( कृष्ण - प्रेषित अर्जुन के पूछने पर कालिन्दी द्वारा स्वयं के सूर्य - पुत्री होने, यमुना जल में निवास करने तथा कृष्ण को पति रूप में वरण करने हेतु तपश्चर्या करने का वृत्तान्त ), १०.५८.२३ (कृष्ण का कालिन्दी को रथ पर बैठाकर युधिष्ठिर के पास ले आने का उल्लेख ), १०.५८.२९ ( कृष्ण द्वारा कालिन्दी के पाणिग्रहण का उल्लेख ), १०.६१.१४ (कृष्ण की आठ पटरानियों में से एक, कालिन्दी के श्रुत आदि १० पुत्रों का उल्लेख ), १०.८३.११(द्रौपदी के पूछने पर कालिन्दी द्वारा कृष्ण के साथ पाणिग्रहण का वर्णन ), मत्स्य ४७.१४ ( श्रीकृष्ण की सोलह हजार पत्नियों में से एक ), मार्कण्डेय ७५.३२ ( विक्रमशील - पत्नी, राजा दुर्गम की माता ), वामन ५७.७५ ( कालिन्दी द्वारा स्कन्द को कालकन्द नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), ६४.१० ( कपि का कालिन्दी नदी के जल में निमग्न होने तथा कालिन्दी का कपि को शिवि नामक स्थान में बहाकर ले जाने का उल्लेख, विश्वकर्मा - देववती वृत्तान्त ), ९०.३ ( कालिन्दी में विष्णु का त्रिविक्रम नाम से वास ),वायु ४४.२१ ( केतुमाल देश की अनेक नदियों में से एक ), ८४.३७ ( रवि व संज्ञा - पुत्री ), ९६.२३४ ( कृष्ण - पत्नी ), विष्णु ५.७.२ ( कृष्ण का गोपों के साथ कालिन्दी नदी के तट पर गमन का उल्लेख, कालिय दमन ), ५.१८.३४ ( व्रज से मथुरा की ओर जाते समय अक्रूर द्वारा कालिन्दी जल में स्नान, देवपूजादि करने का उल्लेख, अक्रूर को परमात्मा रूप में कृष्ण के दर्शन ), ५.२८.३ ( कृष्ण की सोलह प्रमुख पत्नियों में से एक ), ५.३२.४ ( कृष्ण - पत्नी कालिन्दी के श्रुत आदि पुत्रों की माता होने का उल्लेख ), ६.८.३६ ( कालिन्दी का नदी रूप में उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४४ ( कालिन्दी नदी द्वारा कच्छप वाहन से जनार्दन के अनुगमन का उल्लेख ), स्कन्द २.६.२.९८ ( कृष्ण - पत्नी, विरहातुर कृष्ण - पत्नियों का कालिन्दी से उसके मोद का रहस्य पूछना, कालिन्दी द्वारा मोद - रहस्य का निरूपण ), हरिवंश २.१०३.४, १४ ( कृष्ण की प्रमुख रानियों में एक, अश्रुत तथा श्रुतसम्मित - माता ), वा.रामायण १.७०.३३ ( इक्ष्वाकु वंशीय असित - पत्नी, सगर - माता ), लक्ष्मीनारायण १.४२९.१९ ( सूर्य - पुत्री यमुना का ही कलिन्दराज की पुत्री के रूप में उत्पन्न होकर श्रीकृष्ण से विवाहित होने का उल्लेख ), १.४२९.३२ ( श्रीकृष्ण - पत्नी कालिन्दी की सर्वकालिक प्रसन्नता का रहस्योद्घाटन करते हुए कालिन्दी के पातिव्रत्य का उल्लेख ), कथासरित् ८.२.३४८ ( महामुनि देवल की तीन कन्याओं में से एक तथा महल्लिका की बारह सखियों में से एक ) । kaalindi/ kalindi
कालिमाश लक्ष्मीनारायण २.१२३.२४ ( कालिमाश राजा द्वारा कालिमा सागर योग पर पंचम यज्ञ के आयोजन का उल्लेख ) ।
कालिय गर्ग २.१२ ( कृष्ण द्वारा कालिय नाग के दमन का वृत्तान्त ), २.१३ ( अश्वशिरा मुनि के शाप से वेदशिरा मुनि का ही जन्मान्तर में कालिय नाग बनने का उल्लेख ), २.१४ (कालिय के यमुना जल में निवास के रहस्य का उल्लेख ), ब्रह्म १.७७ ( कृष्ण द्वारा कालिय नाग के दमन का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१९ ( सुरसा - पति कालिय नाग के वास से यमुना जल का विषाक्त होना, कृष्ण द्वारा कालिय दमन, कृष्ण के कहने से कालिय का कालिन्दी छोडकर रमणक द्वीप में जाना तथा कृष्ण के वरदान से गरुड से निर्भय होने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.१२४ ( भण्डासुर नामक दैत्य द्वारा सृष्ट राजासुर नामक महास्त्र से कालिय प्रभृति दानवों की उत्पत्ति, ललिता देवी के वामहस्त की अनामिका के नख से सृष्ट वासुदेव द्वारा चतुरूप होकर कालिय प्रभृति दानवों के विनाश का कथन ), भविष्य ३.३.१२.४५ ( पंचशब्द नामक गज पर आरूढ होकर राजा कालिय के बलखानि के साथ युद्ध का उल्लेख ), ३.३.१२.११६ ( राजा जम्बुक के तीन पुत्रों में से एक ), ३.३.१२.१२३ ( कालिय के पूर्व जन्म में जरासंध होने का उल्लेख ), भागवत ५.२४.२९ ( कालिय की महातल में स्थिति तथा कद्रू वंशोत्पन्न क्रोधवशा समुदाय से सम्बद्ध होने का उल्लेख ), १०.१६ (कृष्ण द्वारा कालिय नाग का दमन तथा नागपत्नियों के प्रार्थना करने पर कृष्ण की कालिय नाग पर कृपा का वृत्तान्त ), १०.१७ ( कालिय नाग के कालियदह में आगमन के हेतु का कथन ), वायु ५०.१८ ( पृथ्वी के प्रथम अतल नामक भूभाग में कालिय नाग की स्थिति का उल्लेख ), ६९.७२ ( कद्रू से उत्पन्न प्रधान नागों में कालिय का उल्लेख ), विष्णु ५.७ ( कृष्ण द्वारा कालिय दमन का वृत्तान्त ), ५.१३.४ ( कृष्ण की दिव्य लीलाओं में कालिय दमन का उल्लेख ), स्कन्द ५.२.१०.६ ( कद्रू द्वारा शाप के पश्चात् कालिय नाग द्वारा यमुना में तप का उल्लेख ), हरिवंश २.११.४९ ( गरुड के भय से कालियदह में नागराज कालिय के निवास तथा श्रीकृष्ण द्वारा कालिय के निग्रह के विचार का उल्लेख ), २.१२ ( कृष्ण द्वारा कालिय नाग का दमन, गरुड से अभय प्राप्त कर कालिय के समुद्र में प्रस्थान का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.४७०.३ ( कालिय सर्प के निवास से यमुना जल के विषाक्त होने का उल्लेख ) । kaaliya/ kaliya
कालिय यम - नियम - संयम की धारा को वेद में यमुना नदी कहते हैं। यमुना ही स्वर्ग है । यह यमुना नदी जीवन में बह रही है । इसमें अहंकार रूपी अहि, सर्प उत्पन्न हो गया है जो इस धारा को दूषित कर रहा है । यही कालिय नाग है । इस अहंकार को यदि परमात्मा को समर्पित कर दें तो फिर अहंकार पर कृष्ण के चरणचिह्न बन जाते हैं। फिर रमणक द्वीप रूपी इस रमणीय संसार में कालिय को भय प्राप्त नहीं होगा । - फतहसिंह
काली गरुड ३.१६.९९(भीमसेन – पत्नी का नाम, अन्य नाम केवला व द्रौपदी), ब्रह्माण्ड २.३.८.९२ ( काली व पराशर से कृष्ण द्वैपायन की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.७.७२ ( काली प्रभृति शक्तियों के पूजन हेतु मधुपान की प्रशस्तता का उल्लेख ), ३.४.३२.१८ ( कालचक्र की चार द्वारपालिकाओं में काली का उल्लेख ), ३.४.४४.५९ ( काली का वर्ण शक्ति के रूप में उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.९१ ( काली देवी का प्रकृति देवी के प्रधान अंश के रूप में उल्लेख, शुम्भ - निशुम्भ से युद्ध में दुर्गा के ललाट से काली का प्राकट्य, सुपूजित होने पर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदाता ), भविष्य ४.२० ( भाद्रपद शुक्ल तृतीया में हरकाली देवी की पूजा, व्रत व पूजा फल का वर्णन ), भागवत ९.२२.३१ ( भीमसेन - पत्नी, सर्वगत - माता ), मत्स्य १३.३२ ( सती देवी की कालंजर पर्वत पर काली नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), २२.२० ( काली नदी का पितरों की प्रिय नदी के रूप में उल्लेख ), ५०.२८ ( चैद्योपचर व गिरिका - पुत्री, कुरु वंश ), ५०.४५ ( अपर नाम दाशेयी तथा मत्स्यगन्धा, काली के गर्भ से शन्तनु - पुत्र विचित्रवीर्य की उत्पत्ति का उल्लेख ), १७९.१४ ( अन्धकासुर रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट अनेक मातृकाओं में से एक ), १७९.६४ ( अन्धकासुर विनाश के अनन्तर जगद्भक्षण हेतु उद्यत शिव- सृष्ट मानस मातृकाओं के उत्पात शमनार्थ नृसिंह की अस्थियों से काली / शुष्करेवती की उत्पत्ति का उल्लेख ), मार्कण्डेय ८७.५ ( चण्ड - मुण्ड आदि दैत्यों द्वारा अम्बिका को पकडने का उद्योग करने पर क्रुद्ध अम्बिका के ललाट से काली की उत्पत्ति का उल्लेख ), लिङ्ग १.१०६.१४ ( दारुक दैत्य वधार्थ शिव के कण्ठ विष से काली की उत्पत्ति का उल्लेख ), वामन ५४.६ ( शंकर द्वारा विनोद में पार्वती को काली नाम से सम्बोधित करने का उल्लेख ), शिव ७.१.२४.३१ ( परिहास में शिव द्वारा शिवा को काली कहने तथा शिवा का गौर वर्ण प्राप्ति हेतु तप करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.४५.३८ ( ६४ योगिनियों में से एक ), ५.१.६४.६ ( काली नामक योगिनी द्वारा भैरव के पालन का उल्लेख ), ५.३.१९८.७० ( कालञ्जर तीर्थ में उमा की काली नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.३६.३६ ( शोषण हेतु काली कराली इति मन्त्र जपने का निर्देश ),७.१.१३३( महाकाली पूजा विधान व फल का वर्णन ), योगवासिष्ठ ६.२.८४.१( काली के स्वरूप का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१६६.२१ ( देवों की रक्षार्थ पार्वती की देह से प्रकट कोशरूपा सुन्दरी का कृष्ण वर्ण होने से काली नाम से व्यवहृत होने का उल्लेख ), १.१७९.६६, ७६ ( हिमालय व मेना की तीन पुत्रियों - रागिणी , कुटिला तथा काली में काली की उमा नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), १.१९५ ( शिव - पत्नी शिवा के कृष्ण वर्ण से गौर वर्ण होने के हेतु का कथन ), १.३३७.५१( काली के शंखचूड से युद्ध का कथन ), द्र. गन्धकाली, भद्रकाली ।kaalee/ kali
कालीमण्डलीन लक्ष्मीनारायण २.२१५.१३ ( कुलम्बायन राष्ट्रेश तथा विगोष्ठा नगरी - पति कालीमण्डलीन द्वारा श्री हरि की पूजा का उल्लेख ) ।
कालीवर्मा भविष्य ३.३.३२.१८१ ( पृथ्वीराज - सेनानी कालीवर्मा के कलिङ्ग के साथ युद्ध का उल्लेख ) ।
कालेय पद्म १.६६ ( जयन्त द्वारा कालकेय के भ्राता कालेय के वध का उल्लेख ), भागवत ५.२४.३० ( रसातल वासी पणि नामक दैत्यों के तीन उपनामों में से एक उपनाम ), ८.७.१४( समुद्र मन्थन के अवसर पर नागराज वासुकि के श्वास से नि:सृत विषाग्नि के धूम से कालेय प्रभृति असुरों के निस्तेज होने का उल्लेख ), ८.१०.३४ ( देवासुर संग्राम में कालेय असुरों के साथ वसुओं के युद्ध का उल्लेख ), मत्स्य १९७.९ ( आत्रेयी से उत्पन्न ५ प्रवरकर्ता ऋषियों में से एक ), शिव ५.२८.२७ ( महामुनि कालेय व्यास द्वारा सनत्कुमार के प्रति प्रणाम आदि द्वारा कृतज्ञता ज्ञापन का उल्लेख ), स्कन्द ६.३५.११ ( कालेय दैत्यों के उत्पात से पीडित ऋषि, मुनि व देवों द्वारा अगस्त्य से समुद्र शोषण की प्रार्थना का उल्लेख ) । kaaleya/ kaleya
कालोदर ब्रह्माण्ड १.२.१८.५५( ह्लादिनी नदी का पूर्व दिशा की ओर बहते हुए कालोदर प्रभृति राज्यों को प्लावित करने का उल्लेख ), वायु ४७.५२ ( गङ्गा की सप्त धाराओं में से एक ह्लादिनी नामक धारा का कालोदर प्रभृति पूर्वीय राज्यों को प्लावित करते हुए पूर्वीय समुद्र में विलीन होने का उल्लेख ) ।
कावेरी पद्म ३.१६.२+ ( कावेरी - नर्मदा संगम का संक्षिप्त माहात्म्य : कुबेर का तप से यक्षाधिपति बनने का उल्लेख ), ब्रह्म १.८.१९ ( युवनाश्व - पुत्री, जह्नु - भार्या, सुनन्द - माता, युवनाश्व के शाप से गङ्गा के अर्ध भाग से कावेरी के निर्गत होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१४ ( शंस्य अग्नि द्वारा कावेरी प्रभृति सोलह धिष्णियों में स्वयं को स्थापित करने से १६ नदी पुत्रों, धिष्ण्यों की प्राप्ति का उल्लेख ), १.२.१६.३५ ( कावेरी प्रभृति नदियों के सह्य पर्वत से निर्गमन का उल्लेख ), २.३.७.३५७ ( उडीसा प्रान्त से कावेरी नदी के पश्चिम तक वामन नामक हस्ती वन होने का उल्लेख ), २.३.१३.२८ ( श्राद्धादि पितृकार्य के लिए अति प्रशस्त स्थानों में कावेरी का उल्लेख ), २.३.६६.२९ ( कावेरी का यौवनाश्व - पौत्री, जह्नु - भार्या, सुनह - माता के रूप में उल्लेख ), भागवत ५.१९.१८ ( भारतवर्ष की मुख्य - मुख्य नदियों में कावेरी का उल्लेख ), ७.१३.१२ (प्रह्लाद द्वारा कावेरी नदी के तट पर सोए हुए दत्तात्रेय मुनि के दर्शन का उल्लेख ), १०.७९.१४ (तीर्थयात्रा प्रसंग में बलराम का कावेरी में स्नान करते हुए श्रीरङ्ग क्षेत्र में पहुंचने का उल्लेख ), मत्स्य २२.२७ ( कावेरी पितृ तीर्थ में स्नानादि से कुरुक्षेत्र से शताधिक फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५१.१३ ( आहवनीय अग्नि द्वारा स्वयं को १६ भागों में विभक्त कर कावेरी प्रभृति १६ नदियों के साथ विहार करने का उल्लेख ), ११४.२३ ( सह्य पर्वत की शाखाओं से प्रकट होने वाली तथा दक्षिणापथ में प्रवाहित होने वाली नदियों में कावेरी का उल्लेख ), १६३.६१ ( कावेरी प्रभृति नदियों, पर्वतों तथा जनपदों को हिरण्यकशिपु द्वारा प्रकम्पित करने का उल्लेख ), १८९.२ ( कावेरी - नर्मदा सङ्गम का माहात्म्य : कुबेर का तप से यक्षाधिपति बनने का वृत्तान्त ), वायु २९.१३ ( शंस्य अग्नि द्वारा स्वयं को १६ भागों में विभक्त कर कावेरी प्रभृति १६ नदियों से अनेक पुत्रों की प्राप्ति का उल्लेख ), ४३.२६ ( भद्राश्व वर्ष की अनेक नदियों में कावेरी नदी का उल्लेख ), ४५.१०४ ( सह्य पर्वत के पादमूल से कावेरी नदी के नि:सृत होने का उल्लेख ), ७७.२८ ( कावेरी तीर्थ में सिद्धि की प्राप्ति, पितरों का उद्धार तथा शरीर त्याग से अमरावती प्राप्ति का कथन ), ९१.५८ ( सरिताओं में श्रेष्ठ कावेरी का यौवनाश्व - पौत्री, जह्नु - भार्या तथा गङ्गा व सुहोत्र - माता के रूप में उल्लेख ), १०८.७९ ( मुण्डपृष्ठ की उपत्यका में लोमश ऋषि द्वारा आवाहित नदियों में कावेरी का उल्लेख , कावेरी प्रभृति नदियों में स्नान कर पिण्डदान से पितरों को स्वर्ग पहुंचाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४७ ( कावेरी नदी द्वारा वृषभ वाहन से जनार्दन के अनुगमन का उल्लेख ), शिव १.१२.१८ ( २७ मुखों वाली, सह्याद्रि पर्वत से उत्पन्न कावेरी नदी का संक्षिप्त माहात्म्य ), स्कन्द २.१.२५.६ ( कावेरी तीर निवासी दुराचार नामक विप्र की जाबालि तीर्थ में स्नान से मुक्ति की कथा ), २.४.४.५ ( कार्तिक मास में कावेरी में स्नान से पापों से मुक्ति का वर्णन ), २.४.१२.३७ (कावेरी के उत्तरी तट वासी देवशर्मा ब्राह्मण - पुत्र की कार्तिक मास में हरिकथा श्रवण से पाप मुक्ति की कथा ), ५.३.२९ ( कावेरी संगम तीर्थ का माहात्म्य : कुबेर को तीर्थ के प्रभाव से यक्षाधिपतित्व की प्राप्ति ), हरिवंश १.२७.९, १० ( युवनाश्व - पुत्री, जह्नु - पत्नी, सुनह - माता, युवनाश्व के शाप से गङ्गा द्वारा अपने ही अर्ध भाग से कावेरी को प्रकट करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५६४.१५ (कावेरी नदी का संक्षिप्त माहात्म्य : कुबेर की तपस्या के कारण कौबेरी नाम धारण, कावेरी में स्नान मात्र से परमगति की प्राप्ति का उल्लेख ), कथासरित् ३.५.९५ ( वत्सराज उदयन द्वारा कावेरी नदी का उल्लङ्घन कर चोल राजा को पराजित करने का उल्लेख ) । kaaveri/ kaveri
काव्य अग्नि ३३७ ( काव्य के स्वरूप का वर्णन ), ३४६ ( काव्य गुणों का विवेचन ), ३४७ ( काव्य दोष विवेचन ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.९८ ( काव्य प्रभृति ऋषियों द्वारा तप से ऋषित्व प्राप्ति का उल्लेख ), १.२.३२.१०४ ( उन्नीस मन्त्रवादी ऋषियों में काव्य का उल्लेख ), १.२.३३.७ ( श्रुतर्षियों में काव्य का उल्लेख ), १.२.३६.४७ ( तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), २.३.१.७६ ( भृगु व दिव्या के पुत्र शुक्र की ही काव्य तथा उशना नाम से प्रसिद्धि, असुरों के गुरु, सोमपा पितरों की मानसी कन्या गौ के पति, त्वष्टा , वरत्री, शण्ड व मर्क के पिता ), २.३.१०.८५( काव्य पितरों की कन्या योगोत्पत्ति का कथन), २.३.६८.८६ ( पूरु को राजा बनाने के संदर्भ में ययाति की प्रजा के समक्ष शुक्र /काव्य/उशना - प्रदत्त वर का उल्लेख ), २.३.७२.९५ ( यज्ञों द्वारा असुरों का परित्याग करके देवों के समीप चले जाने पर भयभीत असुरों द्वारा स्वगुरु काव्य से रक्षा की प्रार्थना, असुर रक्षार्थ मन्त्र प्राप्ति हेतु काव्य का महादेव के निकट गमन, महादेव के कथनानुसार काव्य द्वारा कुण्ड धूम - पान रूप तपश्चरण, प्रसन्न होकर महादेव द्वारा काव्य को धनेशत्व, प्रजेशत्व तथा अवध्यत्व रूप वरों के प्रदान का वृत्तान्त ), २.३.७३ ( काव्य का इन्द्र - पुत्री जयन्ती के साथ १० वर्ष तक परोक्ष रूप से वास, बृहस्पति द्वारा काव्य का रूप धारण कर दैत्यों को पढाना, १० वर्ष पश्चात् काव्य का दैत्यों के समीप गमन, बृहस्पति को देखकर काव्य द्वारा दैत्यों को सचेत करने का प्रयत्न, दैत्यों के सचेत न होने पर काव्य द्वारा दैत्यों को चेतना के लुप्त होने तथा पराजय होने का शाप प्रदान करने का वृत्तान्त ), वायु २९.८ ( भरताग्नि - पुत्र, अग्नि वंश ), ५९.९० ( काव्य , बृहस्पति प्रभृति ऋषिगणों द्वारा ज्ञानबल से ऋषित्व प्राप्ति का उल्लेख ), ५९.९६ ९ (उन्नीस मन्त्रवादी ऋषियों में काव्य का उल्लेख ), ६२.४१ ( तामस मन्वन्तर के सप्त ऋषियों में काव्य हर्ष का उल्लेख ), ६५.७४ ( भृगु व दिव्या से उत्पन्न शुक्र की उशना तथा काव्य नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ९७.९४ ( संत्रस्त असुरों द्वारा काव्य से स्व दैन्यावस्था के निवेदन का उल्लेख ), ९८ ( शुक्राचार्य का अपर नाम, आराधना से प्रसन्न शिव द्वारा काव्य को दर्शन देना, काव्य का जयन्ती के साथ १० वर्ष तक अदृश्य रूप से निवास , बृहस्पति द्वारा छद्म रूप धारण कर दैत्यों का गुरु बनना, काव्य का दैत्यों को शाप देने का वृत्तान्त ), ९९.१७३ ( सेनजित् के चार पुत्रों में से एक, अजमीढ वंश ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१५ ( महाकाव्य के लक्षणों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४५०.२९( काव्यों में संहिता की श्रेष्ठता का उल्लेख ) । kaavya/ kavya
Comments on Kaavya
काव्यगण ब्रह्माण्ड १.२.२३.३९ ( काव्य नामक पितरों द्वारा सुधामृत को पीने का उल्लेख ), १.२.२८.४, २३, ७० ( काव्यों का पितर रूप में उल्लेख ), २.३.१०.८५ ( चार मूर्तिमान पितरों में से एक, स्वधा व अग्नि कवि के पुत्र, ज्योतिर्मास नामक देवलोक में स्थिति, काव्यों की मानसी कन्या योगोत्पत्ति को सनत्कुमार द्वारा शुक्र को देने तथा शुक्र की महिषी बनने का उल्लेख ), मत्स्य १४१.४ ( चार प्रकार के पितरों में काव्यों का उल्लेख ), १४१.१३ ( पुरूरवा द्वारा स्वधामृत से काव्य प्रभृति पितरों को तृप्त करने का उल्लेख ), १४१.१७ ( अष्टकापति आर्तव पितरों को काव्य कहे जाने का उल्लेख ), वायु ५६.१३ ( काव्यों का पितर रूप में उल्लेख ), ५६.१६ ( काव्यों के कवि - पुत्र होने का उल्लेख ), ५६.१७ ( काव्यों के घृतपायी होने का उल्लेख ), कथासरित् ७.८.५५ ( काव्यालङ्कारा : ऐरावती नगरी के राजा परित्यागसेन की दो रानियों में से एक ) ।
काश ब्रह्माण्ड २.३.११.७७ ( अश्व प्रजापति के पृथ्वी पर पतित बालों से काश की उत्पत्ति, श्राद्ध कर्म में काश की पवित्रता तथा वैभव के इच्छुक व्यक्ति द्वारा काश पर पिण्डदान करने का उल्लेख ), २.३.६७.४( शुनहोत्र के तीन पुत्रों में से एक, चन्द्र वंश ), वायु ७५.४१ ( आकाशमार्ग से पृथ्वी पर गिरे हुए प्रजापति के बालों से काश नामक तृण विशेष की उत्पत्ति तथा श्राद्धकर्म में काश की परम पवित्रता के कारक, वैभव के इच्छुक व्यक्ति द्वारा काश पर पिण्डदान करने का उल्लेख ), ९२.३ (
सुतहोत्र के तीन पुत्रों में से एक, चन्द्र वंश ), विष्णु ४.८.५ ( सुहोत्र के तीन पुत्रों में से एक ), योगवासिष्ठ ३.३७.३१( काश देश के निवासियों की विशिष्टता का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.२३३.१ ( काशमित्र देश में लबादन मन्त्री द्वारा सेनापति आदि के सहयोग से अधर्मी राजा मानवेश्वर का विष द्वारा नाश का वृत्तान्त ) । kaasha/ kasha
काशि गरुड ३.२८.५५(काशिका : गाधिराज - भार्या, शची का अंश), ब्रह्माण्ड २.३.६७.७ ( काशिप :काश्य/ काश के तीन पुत्रों में से एक, चन्द्र वंश ),
भागवत ९.१७.४ ( काश्य - पुत्र, राष्ट्र - पिता, पुरूरवा वंश ) ।
काशिराज गणेश २.१२.७+ ( काशिराज द्वारा पुत्र के विवाह हेतु कश्यप से महोत्कट गणेश की प्राप्ति, मार्ग में राक्षसों का विघ्न आदि ), २.५०.१९ ( काशिराज की गणेश भक्ति की पराकाष्ठा का वर्णन, काशिराज का मुद्गल ऋषि से संवाद ), २.५१.३५ ( काशिराज का चर्म देह से ही विनायक के लोक को जाना ), ब्रह्म १.९८.१५ ( पौण्ड्रक वासुदेव के सहायक काशिराज का कृष्ण द्वारा वध, काशिराज - पुत्र द्वारा कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के चक्र द्वारा कृत्या का अनुगमन, काशी दाह का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.१६ ( काशिराज द्वारा °चिकित्सा कौमुदी ° ग्रन्थ की रचना का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.१२२ ( काशीपति : भण्ड दानव द्वारा राजासुर नामक अस्त्र से सृष्ट अनेक नृप दानवों में काशीपति का उल्लेख ), मत्स्य ४५.२६ ( काशिराज की जयन्ती नामक कन्या को वृष्णिवंशीय वृषभ द्वारा पत्नी रूप में ग्रहण करने का उल्लेख ), मार्कण्डेय ४४ ( काशिराज के साहाय्य से सुबाहु का कनिष्ठ भ्राता अलर्क को ज्ञान प्राप्ति हेतु प्रेरित करने का वृत्तान्त ), वायु ९६.१०३ ( काशिराज के राज्य में तीन वर्ष तक अनावृष्टि होने पर राजा श्वफल्क के निवास से वृष्टि होने तथा काशिराज की कन्या गान्दिनी का श्वफल्क की भार्या बनने का उल्लेख ), विष्णु ४.१३.११६ ( काशिराज के राज्य में अनावृष्टि होने पर श्वफल्क के निवास से वृष्टि होना, काशीराज द्वारा स्व - कन्या गान्दिनी को श्वफल्क को अर्पित करने का वृत्तान्त ), ४.२०.३६ (विचित्रवीर्य द्वारा काशीराज की पुत्रियों अम्बा व अम्बालिका से विवाह करने का उल्लेख ), ५.३४.१४ ( श्रीकृष्ण के विरुद्ध पौण्ड्रक की सहायता हेतु प्रस्थित काशी के राजा काशीराज की मृत्यु , काशीराज - पुत्र द्वारा महादेव की स्तुति से कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा कृत्या का अनुगमन तथा काशी नगरी के दाह का वृत्तान्त ), स्कन्द २.२.१२.४५ ( उग्र तपस्या द्वारा काशिराज को शिव से वर प्राप्ति, कृष्ण द्वारा काशिराज के शिर छेदन का उल्लेख ), ५.३.५३+ ( काशिराज चित्रसेन द्वारा मृग रूप धारी ऋष्यशृङ्ग मुनि का वध, ब्रह्महत्या से भयभीत राजा को ऋष्यशृङ्ग द्वारा हत्या से मुक्ति के उपाय का कथन, शूलभेद तीर्थ में अस्थि - प्रक्षेपण से ऋष्यशृङ्ग की सपरिवार मुक्ति की कथा ), ६.८८.७ ( अम्बा व वृद्धा - पति, कालयवनों द्वारा काशिराज के वध का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२०२.१ ( १६ चिकित्सकों में से एक ), १.४८५ ( काशीराज चित्रसेन द्वारा मृगरूपधारी ऋष्यशृङ्ग का वध तथा ऋष्यशृङ्ग की सपरिवार मुक्ति का वृत्तान्त ), १.५०८.६ (काशीराज जयसेन की पत्नी अमा द्वारा पंचपिंडिका गौरी व्रत के प्रभाव से पुत्र सौभाग्य प्राप्ति का वृत्तान्त ), २.२९७.८८ ( कन्या रूप धारी द्यौ द्वारा काशीराज की पुत्रियों के ग्रहों में शृङ्गारनिरत कृष्ण के दर्शन का उल्लेख ) । kaashiraaja/ kashiraja
काशी अग्नि ११२ ( वाराणसी माहात्म्य का कथन ), गणेश २.३९.२७ ( दुरासद असुर द्वारा काशी विजय का अभियान, शिव आदि का काशी से पलायन ), नारद १.६.३५ ( सनक - प्रोक्त काशी माहात्म्य का वर्णन ), १.५६.७४३( काशी देश के कूर्म के पुच्छ मण्डल होने का उल्लेख ), २.२९ ( हस्तिनी रूप धारी राक्षसी द्वारा प्रोक्त काशी माहात्म्य, काशी में शिव की ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा ), २.२९.१ ( काशी के पूर्वकाल में वैष्णव स्थान होने तथा परवर्ती काल में शिव स्थान बनने की कथा ), २.२९.५( काशी के पूर्व में माधव की पुरी होने का कथन ), २.४८.१० ( वसु द्वारा मोहिनी को काशी महिमा का कथन ), २.४९ (काशी के तीर्थ व शिवलिंगों के दर्शन - पूजन आदि की महिमा का कथन ), २.५० ( विभिन्न देवयोनियों द्वारा विभिन्न मासों में काशी की यात्रा, काशी स्थित तीर्थों व लिङ्गों का वर्णन ), पद्म ६.२२२ ( काशी वास से शिंशपा वृक्ष, काक व सर्प की मुक्ति का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४१ (मध्य देश के जनपदों में काशी का उल्लेख ), १.२.१८.५१ ( काशी प्रभृति जनपदों के गंगा द्वारा प्लावित होने का उल्लेख ), २.३.७४.२१३ ( संध्या मात्र कलियुग के शेष रहने पर मानवजाति द्वारा त्रस्त होकर प्रिय देशों का त्याग कर काशी प्रभृति प्रान्तों में निवास का उल्लेख ), ३.४.३९.१५ (काशी तथा कांची नामक पुर - द्वय का शिव के नेत्रद्वय के रूप में उल्लेख ), ३.४.४०.१५ ( पार्वती द्वारा शिव के नेत्रपिधान रूप पाप के फलस्वरूप पाप शान्ति हेतु काशी में व्रताचरण का उल्लेख ), ३.४.४०.८० ( कामाक्षी देवी के आदेशानुसार शिव द्वारा सरोवर में निमज्जन कर उठने पर काशी नगरी के दर्शन का उल्लेख ), भागवत १०.३७.२० ( कृष्ण की स्तुति करते हुए नारद का कृष्ण द्वारा काशी नगरी के दहन का पूर्वकथन ), १०.५७.३२ ( काशी नरेश द्वारा अवर्षा की स्थिति में स्वपुत्री गान्दिनी का विवाह श्वफल्क से करने, तत्पश्चात् काशी नगरी में वर्षा होने का उल्लेख ), १०.६६.१२( काशी के राजा के पौण्ड्रक का मित्र होने का उल्लेख ), १०.६६.४० ( माहेश्वरी कृत्या का श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से कुंठित होकर काशी / वाराणसी लौटकर सुदक्षिण तथा ऋत्विज आचार्यों को भस्म करना, कृत्या का अनुगमन करते हुए सुदर्शन चक्र द्वारा काशी नगरी के दाह का कथन ), १०.८२.२५ ( कुरुक्षेत्र में आए हुए काशीनरेश प्रभृति नृपतियों द्वारा श्रीकृष्ण के दर्शन का उल्लेख ), मत्स्य ५०.५४ ( भीमसेन - पत्नी, सर्वग - माता ), वामन ५७.७९ ( काशी नदी द्वारा स्कन्द को अष्टबाहु नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ४५.११० ( मध्य देश के जनपदों में काशी का उल्लेख ), ४७.४८ ( गंगा द्वारा काशि प्रभृति आर्य देशों को प्लावित करने का उल्लेख ), ९९.२४७/२.३७.२४३ ( भीमसेन - पत्नी, सर्ववृक - माता ), ९९.४०२ ( सन्ध्या मात्र कलियुग के शेष रहने पर मानव जाति द्वारा स्व - स्व प्रिय देशों का त्याग कर काशि प्रभृति प्रान्तों में निवास का उल्लेख ), १०४.७५ ( चारों वेदों के प्रादुर्भाव के समय व्यास को भ्रूमध्य में काशी के दर्शन का उल्लेख ), विष्णु ४.२०.४६ ( भीमसेन - पत्नी , सर्वग - माता ), शिव ४.२२.२४ ( काशी की निरुक्ति : कर्म द्वारा कर्षण ; पञ्चक्रोशी अपर नाम वाली काशी नगरी के माहात्म्य का वर्णन ), ४.२३ ( वही), स्कन्द ४.१, ४.२ ( स्कन्द महापुराण के अन्तर्गत काशी खण्ड का आरम्भ ), ४.१.५ ( अगस्त्य द्वारा काशी की महिमा का वर्णन, काशी से प्रयाण करते समय प्रलाप ), ४.१.२२.८१ ( अविमुक्त क्षेत्र की महिमा का वर्णन ), ४.१.२५.५५ ( स्कन्द द्वारा अविमुक्त क्षेत्र की महिमा का कथन ), ४.१.२६ ( काशी उत्पत्ति की कथा ), ४.१.४१( काशी में योग के स्वरूप का वर्णन ), ४.१.४१.१७३ ( षडङ्ग योग से काशी के साम्य का उल्लेख ), ४.१.४४.१ ( दिवोदास - पालित काशी से शिव के वियोग का वर्णन ), ४.२.६४.३० (ब्राह्मण - शिव संवाद में काशी महिमा का वर्णन ), ४.२.८५ ( काशी में तप से फल प्राप्ति न होने पर दुर्वासा द्वारा क्रोधाविष्ट होकर शाप दान की चेष्टा, शिव द्वारा प्रादुर्भूत होकरदुर्वासा को वर प्रदान करने का वृत्तान्त ), ४.२.९६.१२५ ( काशी में भिक्षा प्राप्त न होने पर व्यास द्वारा काशी को शाप प्रदान का उल्लेख ), ५.१.६२.५ ( पंचक्रोशी काशी का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.८१+ ( मन्दर की प्रार्थना पर शिव का काशी छोडकर मन्दर पर्वत पर वास, देवों का भी काशी का परित्याग कर शिव के समीप निवास, दिवोदास द्वारा धर्मपूर्वक काशी का पालन, देवों द्वारा दिवोदास का काशी से निष्कासन हेतु प्रयास, प्रजा तथा दिवोदास का काशी से निष्कासन, संहिता श्रवण तथा काशी विश्वेश्वर की स्थापना द्वारा दिवोदास का प्रजा से साथ वैकुण्ठ लोक गमन, काशी से दिवोदास के निष्कासन के हेतु का वृत्तान्त ), १.२३२.६ ( द्वारका तीर्थ माहात्म्य के अन्तर्गत काशी स्थित मायानन्द यति की मुक्ति की कथा ), १.४७८ ( काशी महिमा का श्रवण कर व्यास का भिक्षार्थ काशी गमन, भिक्षा न मिलने पर व्यास का शाप प्रदान, शिव द्वारा व्यास का काशी से निष्कासन, व्यास के साथ सरस्वती का भी बहिर्गमन, काशी की प्रजा का मूकत्व, व्यास तथा सरस्वती के काशी आगमन से मूकत्व के नाश का वृत्तान्त ) ; द्र. वाराणसी kaashee/ kaashi/ kashi
काश्मर ब्रह्माण्ड २.३.११.३७ ( काश्मरी : श्राद्ध में प्रयुक्त बलि पात्रों में काश्मरी पात्र द्वारा रक्षा व यश प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य ९६.६ ( सर्वफलत्याग व्रत विधान में कदली, काश्मर प्रभृति १६ फलों को स्वर्ण से निर्मित कराने का उल्लेख ) ।
काश्मर्य मत्स्य ९६.९ ( सर्वफलत्याग व्रत विधान में पिंडारक , काश्मर्य प्रभृति १६ फलों को ताम्र से निर्मित कराने का निर्देश ) ।
काश्मीर नारद १.५६.७४४( काश्मीर देश के कूर्म का पाणि मण्डल होने का उल्लेख ), पद्म ३.२५.२ ( काश्मीर स्थित वितस्ता तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५१ ( भारतवर्ष के प्राच्य जनपदों में काश्मीर का उल्लेख ), १.२.१८.४७ ( सिन्धु द्वारा काश्मीर प्रभृति जनपदों को प्लावित करने का उल्लेख ), २.३.७४.२१३ ( सन्ध्यामात्र कलियुग के शेष रहने पर त्रस्त प्रजा द्वारा स्वगृहों को त्याग कर काश्मीर प्रभृति स्थानों पर निवास करने का उल्लेख ), भविष्य ३.१.६.६ ( काश्यप मुनि द्वारा काश्मीर मण्डल में सरस्वती को प्रसन्न करके सरस्वती से म्लेच्छों आदि को संस्कृत करने के लिए ज्ञान की प्राप्ति ), भागवत १२.१.३९ (काश्मीर मण्डल पर शूद्रों, म्लेच्छों तथा अब्रह्मवर्चसों के राज्य होने का उल्लेख ), मत्स्य १३.४७ ( काश्मीर मण्डल में सती देवी द्वारा मेधा नाम से निवास करने का उल्लेख ), वराह ६.७ ( काश्मीर देश के राजा वसु का वृत्तान्त : पुष्कर में विष्णु की आराधना, स्तोत्र द्वारा शरीर से व्याध का निर्गम, पूर्व जन्म का वृत्तान्त आदि ), विष्णु ४.२४.६९ ( व्रात्यों तथा म्लेच्छों द्वारा काश्मीर प्रभृति जनपदों पर शासन करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.३( काश्मीर देश में मत्स्य की पूजा का निर्देश ), स्कन्द १.१.८.२४( पवन द्वारा काश्मीर लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख ), १.१.२७.३६( अग्नि द्वारा ह्रस्व रूप में काश्मीर सदृश छवि धारण कर शिव - पार्वती के अन्त:पुर में प्रवेश का उल्लेख ), १.१.३१.१०० ( लिङ्गों में काश्मीर लिङ्ग की श्रेष्ठता का कथन ), २.४.८.२० ( काश्मीर देश निवासी हरिमेध तथा सुमेध ब्राह्मणों के द्वारा तुलसी - महिमा श्रवण से पाप मुक्ति तथा ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख ), २.७.२४.२२ ( काश्मीर देश निवासी देवव्रत द्विज की मालिनी नामक कन्या का पतिवंचना से शुनी बनना, पद्मबन्ध द्विज कृत वैशाख द्वादशी के पुण्य प्रभाव से शुनी के मोक्ष का वृत्तान्त ), ३.३.२०.१६ ( काश्मीर देश के राजा भद्रसेन के पुत्र सुधर्मा तथा मन्त्रि - पुत्र तारक द्वारा रुद्राक्ष धारण में प्रीति होने के हेतु का कथन ), ५.३.१९८.८४ ( काश्मीर में उमा की मेधा नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५२६ ( काश्मीर नरेश वसु के चरित्र का वृत्तान्त :विष्णु भक्ति के प्रभाव से पापमुक्त होकर विष्णु धाम गमन ), २.१०४.२५ ( हिमालय पर स्थित काश्मीर देश में काश्यपी प्रजा होने का उल्लेख ), २.१११.२० ( कारु पर्वतों से सुशोभित, पर्वतभूमि °कश्मेरा° / काश्मीर शब्द की निरुक्ति ), कथासरित् ७.५.३६ (विजय क्षेत्र, नन्दि क्षेत्र, वराह क्षेत्र व उत्तर - मानस प्रभृति पवित्र तीर्थस्थलों तथा वितस्ता नाम धारण करने वाली पवित्र गंगा से युक्त काश्मीर देश की पवित्रता का उल्लेख ), १०.७.५३ ( शिव तथा विष्णु के निवास से युक्त वितस्ता के जल से पवित्र, शूर तथा विद्वान व्यक्तियों से परिपूर्ण काश्मीर देश की हिमालय के दक्षिण में स्थिति का उल्लेख ), १०.९.२१४ ( पृथ्वी के शिरोमणि स्वरूप काश्मीर देश की हिमालय के कुक्षि प्रदेश में स्थिति का उल्लेख ), १२.६.७९ ( पृथ्वी के आभरण स्वरूप काश्मीर मण्डल के स्वर्ग सदृश होने का उल्लेख ), १८.३.४ ( काश्मीर देश के सुनन्दन द्वारा शासित होने का उल्लेख ) । kaashmeera/ kashmir
काश्य ब्रह्माण्ड २.३.६६.८७ ( तपस्या द्वारा क्षत्रियत्व से ऋषित्व को प्राप्त करने वाले राजाओं में काश्य का उल्लेख ), भागवत ९.१७.३ ( सुहोत्र के तीन पुत्रों में से एक, काशि - पिता, पुरूरवा वंश ), ९.२१.२३ ( सेनजित् के चार पुत्रों में से एक, अजमीढ वंश ), विष्णु ४.८.५ ( सुहोत्र के तीन पुत्रों में से एक, काशेय व काशीराज - पिता, चन्द्र वंश ), ४.१९.३६ ( सेनजित् के चार पुत्रों में से एक, पूरु वंश ) । kaashya/ kashya
काश्या मत्स्य ४४.७०,१( काश्यदुहिता : काश्य - पुत्री, आहुक - पत्नी, देवक व उग्रसेन - माता ), ४७.२४ ( वृष्णिवंशीय साम्ब की पत्नी काश्या के सुपार्श्व की पुत्री तथा पांच पुत्रों की माता होने का उल्लेख ), वायु ९६.२५२ ( सुपार्श्व - माता , वृष्णि वंश ), हरिवंश २.१०३.२८ ( काश्या का कृष्ण -पुत्र साम्ब की भार्या तथा सुपार्श्व की माता होने का उल्लेख ) । kaashyaa
काश्यप नारद १.८.६३ ( राजा सगर की पत्नी केशिनी के पिता ), ब्रह्मवैवर्त्त २.४६.१०६( काश्यप ब्राह्मण द्वारा तक्षक से धन प्राप्त करने की कथा के संदर्भ में काश्यप के स्थान पर धन्वन्तरि का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३५.६३ ( सूत के शिष्यों में काश्यप अकृतव्रण का उल्लेख ), १.२.३५.६६ ( काश्यप के संहिताकर्त्ता होने का उल्लेख ), २.३.८.८६ ( कश्यप से नारद, पर्वत तथा अरुन्धती की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.३.४७.४७ (परशुराम के अश्वमेध यज्ञ में गुरु रूप काश्यप के अध्वर्यु बनने का उल्लेख ), २.३.४७.५४ (परशुराम द्वारा काश्यप को सम्पूर्ण पृथ्वी दान में देने का उल्लेख ), २.३.६७.७९ ( कश्यप - पुत्र ), ३.४.९.३ (काश्यप व दिति से दनु तथा रूपवती नामक कन्या की उत्पत्ति आदि ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२०.१३, २६-४२ ( कश्यप - पुत्र नारद, कलावती संवाद, द्रमिल - पत्नी कलावती द्वारा काश्यप/ नारद के वीर्य के ग्रहण का वृत्तान्त), भविष्य २.१.१७.२ (शतार्ध यज्ञ में अग्नि के काश्यप नाम का उल्लेख ), ३.१.६.२ ( आर्यावती - पति, उपाध्याय, दीक्षित, पाठक, शुक्ल, मिश्र, अग्निहोत्री, द्विवेदी, त्रिवेदी, पाण्डे तथा चतुर्वेदी नामक १० पुत्रों के पिता, स्तुति से प्रसन्न सरस्वती की कृपा से काश्यप मुनि द्वारा म्लेच्छों को द्विजन्मना बनाने का उल्लेख ), मत्स्य ९.३२ ( सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), १४५.९८,१०६ ( उन्नीस भृगुवंशी मन्त्रकर्त्ता ऋषियों में काश्यप /काश्य का उल्लेख ), १४५.१०६ (६ ब्रह्मवादी काश्यप / कश्यपवंशीय ऋषियों का उल्लेख ), १९९.१६ ( द्वयामुष्यायण गोत्रोत्पन्न एक ऋषि ), महाभारत वन २२०.१ ( काश्यप, वासिष्ठ, प्राणक, च्यवन तथा त्रिवर्चा नामक पांच अग्नियों का तीव्र तपस्या कर पांचजन्य को उत्पन्न करने का कथन ), शान्ति १८०.५ ( वैश्य के रथ के धक्के से गिरकर ऋषिकुमार काश्यप का आत्महत्या हेतु उद्धत होना, शृगाल रूप धारी इन्द्र के उपदेश से आत्महत्या से निवृत्ति का वर्णन ), वायु २३.१६० ( तेरहवें द्वापर में अवतार रूप वालि के चार महायोगी ऊर्ध्वरेता पुत्रों में से एक ), २३.१७३ ( सोलहवें द्वापर में अवतार रूप गोकर्ण के चार पुत्रों में से एक ), २८.१३ ( पर्वस व पर्वसा के दो पुत्रों में से एक, ऋषि वंश ), ५९.१०२ ( ६ कश्यपवंशीय ऋषियों का उल्लेख ), ६१.५६ ( सूत के शिष्यों में काश्यप /कश्यपगोत्रीय अकृतव्रण का उल्लेख ), ६१.५८ ( काश्यप के संहिता कर्त्ता होने का उल्लेख ), ६२.१६ ( स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में कश्यप - पुत्र स्तम्भ का उल्लेख ), ६४.२८ ( वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में कश्यपगोत्रीय वत्सार का उल्लेख ), १००.६६ ( रोहित मन्वन्तर के सप्तर्षियों में कश्यपगोत्रीय वसु का उल्लेख ), १००.७४ ( भाव्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में कश्यपकुलोत्पन्न नाभाग का उल्लेख ), १००.८२ ( ग्यारहवें सावर्ण मन्वन्तर के सप्तर्षियों में कश्यपनन्दन हविष्मान् का उल्लेख ), १००.९६ ( बारहवें सावर्णिक मन्वन्तर के सप्तर्षियों में कश्यपात्मज तपस्वी का उल्लेख ), १००.१०७ ( तेरहवें रौच्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में कश्यपात्मज निर्मोह का उल्लेख ), १००.११६ ( चौदहवें भौत्य मनु के पुत्रों में एक ), १०६.३४ ( गयासुर के शरीर पर यज्ञ कार्य हेतु ब्रह्मा द्वारा सृष्ट मानस पुरोहितों में काश्यप का उल्लेख ), विष्णु २.१०.१३ ( मार्गशीर्ष में काश्यप की सूर्य के रथ पर स्थिति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२५०.२ ( प्रजापति द्वारा देवों के राज्य पर कश्यप नन्दन के अभिषेक का उल्लेख ), स्कन्द २.१.११ ( काश्यप नामक द्विज के परीक्षित की रक्षा न करने के पाप का स्वामि पुष्करिणी में स्नान से नाश, शाकल्य द्वारा उपदेश का वृत्तान्त ), ३.१.४१.२ ( काश्यप नामक द्विज के परीक्षित की रक्षा न करने के दोष की गायत्री - सरस्वती कुण्ड में स्नान से मुक्ति की कथा ), ३.१.४९.७३ ( राम आदि द्वारा रामेश्वर की स्तुति प्रसंग में काश्यप द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ३.२.९.२८ ( द्विजों के २४ गोत्रों में से एक ), ३.२.९.४६(काश्यप गोत्रीय विप्रों के गुण), ३.२.९.७३ ( काश्यप गोत्रीय ऋषियों के ३ प्रवरों व गुणों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२०२.८१( द्रुमिल शूद्र की पत्नी कलावती का पुत्रेच्छा से काश्यप / कश्यप - पुत्र नारद मुनि के समीप गमन, कलावती की प्रार्थना पर काश्यप नारद द्वारा स्ववीर्य प्रदान, वीर्यपान से कलावती का गर्भवती होना तथा समयानुसार पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त ) द्र. कश्यप । kaashyapa
काश्यपेय मत्स्य १९९.९ ( कश्यप कुलोत्पन्न गोत्र प्रवर्तक ऋषि ), वायु ७.१ ( सूत से प्रथम प्रक्रिया पाद सुनने के पश्चात् काश्यपेय ऋषि द्वारा प्रतिसन्धि श्रवण हेतु जिज्ञासा का उल्लेख ) ।
काष्ठ भविष्य १.१९३ ( दन्तधावन विधि वर्णन में अनेक दन्त - काष्ठों का उल्लेख ), ३.२.२७ (काष्ठवाही निषादों को सत्यनारायण भगवान के पूजन अर्चन से वैष्णव धाम की प्राप्ति की कथा ), ४.१३३.३२( दोला में सत्य रूपी काष्ठ का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.६८.२( ४ प्रकार के मौनों में काष्ठ मौन व काष्ठतापस की व्याख्या ), ६.२.१९६ ( शास्त्रों की निरर्थकता / सार्थकता के संदर्भ में काष्ठ हारकों द्वारा चिन्तामणि प्राप्त करने का दृष्टान्त ), वराह १८१( काष्ठ - निर्मित प्रतिमा स्थापन की विधि ), वायु ७५.१ ( बलि हेतु विभिन्न काष्ठ पात्रों का महत्त्व ), शिव ५.२०.२२ ( योग की अवस्थाओं में से एक काष्ठ का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४.८१ ( काष्ठ दान का कनीयस कोटि के दानों में वर्गीकरण ), २.४.५.१२ ( बारह अंगुल परिमाण के दन्तकाष्ठ से दन्तधावन का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण २.१६७.४० ( काष्ठयान राजा का नाररव ऋषि के साथ यज्ञ में आगमन का उल्लेख ), २.१७९.६४,९४ ( जयकाष्ठल नामक राजा द्वारा राजधानी प्रयाग में श्री हरि के स्वागत का वर्णन ), २.१९७.७४+ ( श्री हरि का काष्ठयान राजा के नगर में गमन, काष्ठयान द्वारा श्री हरि के सत्कार का वर्णन ), २.२७०.८८ (वन में कूप्यवाल नामक काष्ठहारक पर हस्ती का आक्रमण, सनत्कुमार द्वारा काष्ठहारक की रक्षा, हस्ती का परमधाम गमन, काष्ठहारक द्वारा पर्णकुटी का निर्माण करके सनत्कुमार की काष्ठमयी प्रतिमा की स्थापना का वृत्तान्त ), ३.२०४ ( भक्त जाङ्गलदेव द्वारा काष्ठ संचय, विक्रय में भी कृष्ण नाम का स्मरण ), कथासरित् २.५.१३६(लङ्का में भूमि के काष्ठमयी होने का कारण), ६.२.१५७ ( काष्ठ को काटते हुए ब्राह्मण की जंघा में काष्ठ का टुकडा घुसने से नाडी व्रण का बनना, पिशाच की साधना से पिशाच द्वारा नाडीव्रण के उपचार का वृत्तान्त ) ; जयकाष्ठ, ध्यानकाष्ठ । kaashtha/ kashtha
काष्ठा गरुड ३.२८.४३(साम्ब-भार्या, रति से तादात्म्य), ब्रह्माण्ड २.३.३.५६ ( दक्ष - पुत्री, कश्यप - पत्नी ), ३.४.३२.१४ ( काष्ठा प्रभृति काल परिमाणों का पत्राब्जवासिनी देवी की शक्तियों के रूप में उल्लेख ), भविष्य २.१.१.३९ ( योगियों को प्राप्त होने वाले अमृत आदि नामों वाले स्थान के प्राप्तव्य की काष्ठा / अन्तिम सीमा होने का उल्लेख ), भागवत ६.६.२५,२९ ( दक्ष- पुत्री, कश्यप - पत्नी, एक खुर वाले घोडे आदि चौपायों की माता ), महाभारत शान्ति ४५.१५ ( कुमार कार्तिकेय के अभिषेक हेतु कला, काष्ठा, मास, ऋतु के भी आगमन का उल्लेख ), वराह १७.४६ (विष्णु के प्राधान्य का वर्णन करते हुए काष्ठा /काल - परिमाण प्रभृति समस्त तत्त्वों के अप्राधान्य का उल्लेख ; काष्ठा के शरीर से निष्क्रमण पर शरीर पात न होना , काष्ठाओं का १० कन्याएं होने का उल्लेख ), विष्णु १.८.२९ ( लक्ष्मी को काष्ठा तथा विष्णु को निमेष बताते हुए लक्ष्मी विष्णु के अभिन्नत्व का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२७( विष्णु के निमेष व लक्ष्मी के काष्ठा होने का उल्लेख ), १.५४३.७१ ( दक्ष द्वारा कश्यप को प्रदत्त १३ कन्याओं में से एक ) । kaashthaa
काष्ठाहारिण मत्स्य १९९.९ ( कश्यप कुलोत्पन्न , गोत्र प्रवर्तक ऋषि ) ।
काष्ठीला नारद २.२७ ( काष्ठ कीट द्वारा सन्ध्यावली को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, पूर्व जन्म में कौन्डिन्य मुनि की पत्नी होना, पति वंचना से काष्ठीला योनि प्राप्ति का वृत्तान्त ), २.३१ ( काष्ठीला द्वारा सन्ध्यावली को माघमास व द्वादशी व्रत महिमा का कथन, सन्ध्यावली के पुण्य दान से काष्ठीला की मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.३७८.७४ ( काष्ठ - कीट / काष्ठीला द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन : मुनि - पत्नी का पतिवंचना से काष्ठीला योनि प्राप्त करने का उल्लेख ) । kaashtheelaa/ kashthila
कास अग्नि २१४.१६( संवत्सर? में ऋण के कास होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२९.३२ ( कासदीन नामक सिद्ध यति द्वारा चक्रवर्ती लक्षणों से सम्पन्न बालक के दर्शन की सूचना राजा को देने का उल्लेख ) ।
कासार भागवत १२.६.५९ ( बाष्कलि ऋषि के तीन शिष्यों में से एक ) ।