`
कृकण विष्णु ४.१३.२ ( भजमान के ६ पुत्रों में से एक ) ।
कृकल अग्नि ८७.५(शान्ति कला/तुर्यावस्था के २ प्राणों में से एक, अलम्बुषा नाडी में स्थित कृकल/कृकर वायु की प्रकृति का कथन ), २१४.१३( कृकल वायु के भक्षण का हेतु होने का उल्लेख ), पद्म २.४१+, २.५९ ( कृकल नामक वैश्य का अपनी पतिव्रता पत्नी सुकला का परित्याग कर तीर्थयात्रा हेतु गमन, कृकल का धर्म से संवाद तथा धर्म द्वारा कृकल को सुकला के श्रेष्ठ पातिव्रत्य तथा चरित्र की महानता के समक्ष तीर्थयात्रा की व्यर्थता को निरूपित करते हुए गृह में किए गए कृत्यों से ही देवों , पितरों के संतुष्ट होने का वर्णन ) । krikala
कृकलास गरुड २.४६.२१(गुरुदाराभिलाषी के कृकलास बनने का उल्लेख), भागवत १०.६४.६ ( ब्राह्मण के प्रति हुए अपराध से राजा नृग को कृकलास / गिरगिट योनि की प्राप्ति, कृष्ण के करकमलों के स्पर्श से मुक्ति का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.१० ( मरुत्त के यज्ञ में रावण द्वारा उत्पन्न त्रास से कुबेर के कृकलास रूप धारण कर पलायन करने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.५२.९०(कुपात्र दान से कृकलास बनने का उल्लेख), ५.३.१५९.२१ ( गुरु - दारा से गमन की अभिलाषा करने पर कृकलास योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ७.४.१० ( कृकलास / नृग तीर्थ के माहात्म्य के प्रसंग के अन्तर्गत कृष्ण द्वारा राजा नृग के कूप से उद्धार की कथा ), वा.रामायण ७.१८.५ ( राजा मरुत्त के यज्ञ में रावण से भयभीत होने पर कुबेर देवता के कृकलास नामक तिर्यक् योनि में प्रवेश करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५० ( अलक्ष्मी के कर्ण की कृकलास से उपमा ), १.२२२ ( राजा नृग को द्विज - प्रदत्त शाप के कारण कृकलास योनि की प्राप्ति, श्रीकृष्ण के स्पर्श से शाप से मुक्ति की कथा ), २.१९.६० ( कृकलासी : कर्कि राशि के देवता रूप में कृकलासी का उल्लेख ), २.१२२.२( कर्कायन ऋषि का जल में कृकलास रूप में वास करने का उल्लेख ) । krikalaasa
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कृकवाकु मत्स्य ११.१७ ( विमाता छाया के शाप से यम के शीर्ण - पाद होने पर पैरों के कृमि - भक्षण हेतु विवस्वान् द्वारा यम को कृकवाकु / मुर्गा प्रदान करने का कथन ), विष्णु ३.१६.१२ ( कृकवाकु, श्वान, सूकर प्रभृति के देख लेने पर श्राद्ध की अपवित्रता का उल्लेख ) । krikavaaku
कृच्छ्र गरुड २.४.१६३(कृच्छ्र वर्त की परिभाषा), मत्स्य २२७.४१ ( चोरी करने पर अर्धकृच्छ्रव्रत तथा कृच्छ्रसान्तपन व्रत आदि के अनुष्ठान से पापशुद्धि का उल्लेख ), वायु १८.१६ ( कृच्छ्रातिकृच्छ्र : अज्ञात रूप में पशु और मृग की हिंसा हो जाने पर यतियों हेतु विहित प्रायश्चित्त, विकल्प में चान्द्रायण के विधान का उल्लेख ), १८.२१ ( कृच्छ्र प्रायश्चित्त से पाप मुक्ति का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.९६.५१ (व्यास द्वारा पादकृच्छ्र, पर्णकृच्छ्र, सौम्यकृच्छ्र, अतिकृच्छ्र, कृच्छ्रातिकृच्छ्र, तथा तप्तकृच्छ्र प्रभृति व्रतों के स्वरूप का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२६२.८ ( कार्तिक मास में करणीय कृच्छ्र व्रतों का निरूपण ) । krichhra
कृणु स्कन्द २.७.२१.६४ ( तप के कारण कृणु नामक मुनि के शरीर पर वल्मीक निर्माण से कृणु की वल्मीक नाम से प्रसिद्धि, वाल्मीकि नामक पुत्र की प्राप्ति ) ।
कृत ब्रह्माण्ड १.२.३५.४९ ( हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा सामवेद का २४ खण्डों में विभाजन कर शिष्यों के अध्यापन का उल्लेख ), २.३.७.१३० ( देवजनी व मणिवर के अनेक यक्ष पुत्रों में से एक ), भागवत ९.१७.१७ ( जय -पुत्र, हर्यवन - पिता, क्षत्रवृद्ध वंश ), ९.२४.४६ ( वसुदेव व रोहिणी के अनेक पुत्रों में से एक ), १२.६.८० ( हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा स्वशिष्यों को सामवेद की २४ संहिताएं पढाने का उल्लेख ), मत्स्य ४६.५ ( सुग्रीव- पिता, वसुदेव - भगिनी श्रुतदेवी के पति ), ४९.७५ ( सन्नतिमान्- पुत्र, हिरण्यनाभ कौसल्य - शिष्य कृत द्वारा सामवेद संहिताओं का चौबीस भागों में विभाजन, उग्रायुध - पिता, पौरव वंश ), वायु ९१.९६ ( विश्वामित्र के शुन:शेप आदि अनेक पुत्रों में से एक ), ९४.९ ( कनक के चार पुत्रों में से एक ), ९६.१३९ ( हृदिक के दस पुत्रों में से एक ), ९९.१८९ (सन्नतिमान्- पौत्र, सनति - पुत्र तथा हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा सामवेद का २४ खण्डों में विभाजन ), ९९.२१९ ( च्यवन - पुत्र, विश्रुत - पिता, तुर्वस्वादि वंश ), १०१.११/२.३९.११( ७ कृत व ७ अकृत लोकों का कथन ), विष्णु ४.९.२६ ( विजय - पुत्र, हर्यधना - पिता, रजि वंश ), ४.१९.५० ( हिरण्यनाभ द्वारा सन्नतिमान् - पुत्र कृत को योगाध्यापन, कृत द्वारा २४ साम संहिताओं का निर्माण ), हरिवंश १.२०.४२ (सन्नति- पुत्र, उग्रायुध - पिता, हिरण्यनाभ - शिष्य, सामसंहिता के विभागकर्त्ता ), महाभारत शल्य ३३.८( दुर्योधन के कृती होने का उल्लेख ), कथासरित् ६.२.१३ (कृत नामक राजा की सात सुन्दरी कन्याओं के वैराग्य धारण तथा परहित साधन की कथा ) । krita
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कृतक ब्रह्माण्ड २.३.७१.१७२ ( वसुदेव व मदिरा के दस पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२४.४८ ( वसुदेव व मदिरा के अनेक पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१५.२३ ( वसुदेव व मदिरा के दस पुत्रों में से एक ), ४.१९.७९ ( च्यवन - पुत्र, उपरिचर वसु - पिता ) ।*
कृतकृत्य ब्रह्माण्ड २.३.७.२४१ ( प्रधान वानरों में से एक ) ।
कृतघ्न पद्म ५.९८.५९ ( कृतघ्न, विदैव तथा अवैशाख नामक प्रेतों के धनशर्मा द्वारा उद्धार की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४७ ( कृतघ्न के गण्डक बनने का उल्लेख ), २.५१.३३ ( विभिन्न ऋषियों द्वारा सुयज्ञ नृप हेतु कृतघ्न के लक्षण, भेद तथा दोषादि का निरूपण ), महाभारत शान्ति १६८+ ( गौतम नामक पापी तथा कृतघ्न पुरुष के वृत्तान्त द्वारा कृतघ्न पुरुष के सदा त्याग का कथन ), २७१.१२ ( कृतघ्न के प्रजारहित होने का उल्लेख ; कृतघ्न का प्रायश्चित्त न होने का उल्लेख ), अनुशासन १२ ( कृतघ्न की गति व प्रायश्चित्त का कथन ), वा.रामायण ४.३४.१०( लक्ष्मण द्वारा सुग्रीव को कृतघ्नता के दोषों का कथन ), स्कन्द ६.१९.१५ ( राजा विदूरथ द्वारा गयाशिर में प्रदत्त श्राद्ध से कृतघ्न प्रेत की मुक्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४४२.५० (कृतघ्नता :१६ प्रकार की कृतघ्नता से प्राप्त नरकों का कथन ), ४.२९.३९ ( विप्र - पत्नी आत्मशेमुषी द्वारा कुथली नामक बाला को कृतघ्नता - स्वरूप का वर्णन ) । kritaghna
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कृतञ्जय ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२१( १७वें द्वापर में कृतञ्जय के व्यास होने का उल्लेख ), ३.४.४.६३ (१७वें द्वापर के वेदव्यास कृतञ्जय द्वारा धनञ्जय से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर तृणंजय को सुनाने का उल्लेख ), भागवत ९.१२.१३ ( बर्हि - पुत्र, रणंजय - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), लिङ्ग १.२४.७६ ( १७वें द्वापर के व्यास रूप में कृतञ्जय का उल्लेख ), वायु ९९.२८७ ( धर्मी - पुत्र, व्रात - पिता, तुर्वस्वादि वंश ), १०३.६२ ( पापनाशक तथा पुण्यप्रद वायु पुराण के उपदेश प्रदान की परम्परा में धनञ्जय द्वारा कृतञ्जय को तथा कृतञ्जय द्वारा तृणञ्जय को उपदेश प्रदान करने का उल्लेख ), विष्णु ४.२२.६ ( धर्मी -पुत्र, रणञ्जय - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ; द्र. देवकृतञ्जय । kritanjaya
कृतद्युति भागवत ६.१४.२८ ( राजा चित्रकेतु की ज्येष्ठा पत्नी कृतद्युति को अङ्गिरा ऋषि की कृपा से पुत्र प्राप्ति, सपत्नी - प्रदत्त विष से पुत्र के मरण का वृत्तान्त ) ।
कृतधर्मा ब्रह्माण्ड २.३.६८.११ ( संकृति - पुत्र ), वायु ९३.११ ( संकृति - पुत्र, चन्द्र वंश ), विष्णु ४.११.१० ( कृतधर्म : धनक के ४ पुत्रों में से एक, यदु वंश ) ।
कृतध्वज नारद १.४६.३७ (धर्मध्वज - पुत्र, अमितध्वज - भ्राता, केशिध्वज - पिता ), भागवत ९.१३.१९ ( धर्मध्वज - पुत्र, केशिध्वज - पिता, मितध्वज - अनुज, मैथिल वंश ), वामन ९०.५ ( कुरुक्षेत्र में विष्णु का कृतध्वज नाम से वास ), विष्णु ६.६.७ (धर्मध्वज - पुत्र, केशिध्वज - पिता, मितध्वज - अनुज, मैथिल वंश) । kritadhwaja
कृतप्राप्ति ब्रह्माण्ड ३.४.१.९० ( सुतार वर्ग के १० देवों में से एक ) ।
कृतबन्धु ब्रह्माण्ड १.२.३६.५० ( तामस मनु के ११ पुत्रों में कनिष्ठतम ) ।
कृतमाला अग्नि २.४ ( मत्स्यावतार के वर्णन में कृतमाला नदी में तर्पण करते समय वैवस्वत मनु की अञ्जलि में मत्स्य के प्राकट्य का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३६, २.३.३५.१७ ( मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), भागवत ५.१९.१८ ( भारतवर्ष की मुख्य नदियों में से एक ), ८.२४.१२ ( कृतमाला नदी में जल से तर्पण करते समय राजा सत्यव्रत की अञ्जलि में मत्स्य का आगमन, भगवान के मत्स्यावतार की कथा ), १०.७९.१६ ( तीर्थयात्रा प्रसंग में बलराम का कृतमाला व ताम्रपर्णी नदियों में स्नान कर मलय पर्वत पर गमन का उल्लेख ), ११.५.३९ ( कृतमाला प्रभृति नदियों के जलपान से अन्त:करण की शुद्धि का उल्लेख ), मत्स्य ११४.३० ( मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), वायु ४५.१०५ ( मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), विष्णु २.३.१३ ( वही) । kritamaalaa
कृतयुग ब्रह्माण्ड १.२.१६.६९ ( चार युगों में प्रथम ), १.२.२९.२४ ( कृतयुग का प्रमाण : ४ सहस्र दिव्य वर्ष ), २.३.७४.२२५ ( चन्द्र, सूर्य, तिष्य तथा बृहस्पति के एक राशि में होने पर कृतयुग के प्रारम्भ होने का उल्लेख ), भविष्य ४.१२२.१ ( कृतयुग का ब्राह्मयुग, त्रेता का क्षत्रिययुग, द्वापर का वैश्य युग तथा कलियुग का शूद्र युग के रूप में उल्लेख ), भागवत ९.१०.५२ ( राम के राज्य में त्रेतायुग के कृतयुग सदृश होने का उल्लेख ), ११.५.२१( कृतयुग आदि चारों युगों में भगवान् के भिन्न - भिन्न रंगों, नामों, आकृतियों तथा पूजा विधियों का कथन ), ११.१७.१० ( सत्य युग में प्रजा के जन्म से ही कृतकृत्य होने के कारण इस युग का कृतयुग नामोल्लेख ), १२.३.५२ ( कृतयुग में ध्यान मात्र से विष्णु की उपासना का उल्लेख ), मत्स्य १.३४ ( मत्स्यरूप धारी विष्णु द्वारा वैवस्वत मनु को कृतयुग के प्रारम्भ में नरेश के रूप में मन्वन्तराधिपति होने का कथन ), १४२.१७ ( चार युगों में से प्रथम कृतयुग का परिमाण ४ हजार दिव्य वर्षों का होने, चार सौ दिव्य वर्षों की उसकी संध्या तथा चार सौ दिव्य वर्षों के सन्ध्यांश के होने का कथन ), १४२.२४ ( मानुष वर्ष के अनुसार कृतयुग का परिमाण १७ लाख २८ हजार वर्ष होने का कथन ), १४४.८७ ( कलियुग सन्ध्यांश के व्यतीत हो जाने पर शेष प्रजा से कृतयुग के प्रारम्भ का कथन ), १४५.७ ( कृतयुग में देव , असुर, मनुष्य यक्ष, गन्धर्व तथा राक्षसों के शरीरों के विस्तार तथा ऊंचाई में समान होने का उल्लेख ), १६५.१ ( कृतयुग की व्यवस्था का कथन ), वायु ५७.२२ ( चार युगों में से प्रथम ), ५७.३७ ( कृतयुग का प्रमाण ४ सहस्र दिव्य वर्ष ), ५८.१०३ ( कृतयुग के प्रवृत्त हो जाने पर कलियुग की शेष प्रजाओं से ही कृतयुग की प्रजाओं की उत्पत्ति का उल्लेख ), ७८.३६ ( कृतयुग का ब्राह्मण युग, त्रेता का क्षत्रिय युग, द्वापर का वैश्य युग तथा कलियुग का शूद्रयुग के रूप में उल्लेख ), विष्णु ४.२४.१०२ ( चन्द्र, सूर्य, तिष्य तथा बृहस्पति के एक राशि में होने पर कृतयुग के प्रारम्भ का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.१३.९ ( हिरण्यगर्भ की कृतयुग में सूर्य, त्रेता में सविता, द्वापर में भास्कर तथा कलियुग में अर्कस्थल नाम से प्रसिद्धि ), ७.१.७४.७ ( शतकल्पेश्वर लिङ्ग की ही कृतयुग में भैरवेश्वर नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ) । kritayuga
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कृतरथ विष्णु ४.५.२७ ( प्रतिक - पुत्र, देवमीढ - पिता, जनक वंश ) ।
कृतरात विष्णु ४.५.२७ ( महाधृति - पुत्र, महारोमा - पिता, जनक वंश ) ।
कृतलक्षण मत्स्य ४५.२ ( माद्री व वृष्णि के पांच पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ) ।
कृतवर्मा गर्ग १.५.२४ ( कृतवर्मा के वरुण का अंश होने का उल्लेख ), ७.२०.३४ ( प्रद्युम्न व कौरवों के युद्ध में प्रद्युम्न - सेनानी कृतवर्मा का भूरिश्रवा से युद्ध ), ७.२४.१५ ( यादवों व यक्षों के युद्ध में कृतवर्मा द्वारा नलकूबर को पराजित करने का उल्लेख ), १०.४९.१९ ( यादवों व कौरवों के युद्ध में अनिरुद्ध - सेनानी कृतवर्मा का भूरि से युद्ध ), देवीभागवत ४.२२.३७ ( देवों के अंश वर्णन में कृतवर्मा के मरुद्गण का अंश होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( कनक के चार पुत्रों में से एक ), २.३.७१.१४० ( हृदीक के दस पुत्रों में से एक ), भविष्य ३.३.२६.८६ ( कृतवर्मा के अंशावतरण रूप अभय का नृहर द्वारा वध हो जाने पर कृतवर्मा में ही विलीन हो जाने का उल्लेख ), भागवत १.१४.२८ ( युधिष्ठिर द्वारा द्वारका से लौटकर आए अर्जुन से हृदीक कृतवर्मा प्रभृति वृष्णिवंशियों की कुशलता की पृच्छा ), ९.२३.२३ ( धनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ९.२४.२७ ( हृदीक के तीन पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), १०.६१.२४ ( कृष्ण व रुक्मिणी - कन्या चारुमती का कृतवर्मा के पुत्र बली से विवाह होने का उल्लेख ), १०.८२.७ ( सूर्य ग्रहण के अवसर पर यदुवंशियों के कुरुक्षेत्र चले जाने पर अनिरुद्ध तथा कृतवर्मा के नगर रक्षा हेतु द्वारका में ही निवास का उल्लेख ), मत्स्य ४३.१३ ( कनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ४४.८१( हृदीक के दस पुत्रों में से एक, अन्धक वंश ), वायु ९४.८ ( धनक के चार पुत्रों में से एक ), ९६.१३९ (हृदीक के तीन पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१३.६५ ( कृतवर्मा द्वारा सत्राजित् से उसकी कन्या सत्यभामा को मांगना, सत्राजित् के न देने पर कृतवर्मा के वैरभाव को प्राप्त होने का कथन ), ४.१४.२४ ( हृदीक के तीन पुत्रों में से एक ), ५.३७.४६ ( यादवों के गृहयुद्ध में कृतवर्मा की मृत्यु ), स्कन्द ३.१.५.७७ ( अलम्बुसा नामक अप्सरा का अयोध्या महानगरी के राजा कृतवर्मा की पुत्री मृगावती के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), कथासरित् २.१.२९ ( इन्द्र के शाप से अलम्बुषा नामक अप्सरा का अयोध्याराज कृतवर्मा की पुत्री मृगावती के रूप में जन्म, सहस्रानीक के साथ मृगावती के विवाह हेतु कृतवर्मा की स्वीकृति ) । kritavarmaa /kritvarma
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कृतवाक् मत्स्य १४५.१०१( कृतवाच : तैंतीस मन्त्रकृत आङ्गिरसों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.१५७.१२१( कृतवाक् नामक विप्रर्षि के रैवत - पुत्र ककुद्मी के रूप में जन्म का कथन ) । kritavaak
कृतवीर्य गणेश १.५८.९ ( पुत्र - हीन कृतवीर्य का तप हेतु वन गमन, नरक में स्थित कृतवीर्य के पिता द्वारा ब्रह्मा से पुत्र प्राप्ति उपाय की पृच्छा ), १.५९.९ ( कृतवीर्य के पूर्व जन्म की कथा : साम नामक अन्त्यज द्वारा अन्त समय में गणेश नाम लेने से कृतवीर्य राजा बनना ), १.६८.१ ( पुत्र की इच्छा वाले राजा कृतवीर्य के स्वप्न में पिता रूप धारी गणेश द्वारा दर्शन, पुस्तक प्रदान करना व संकष्ट चतुर्थी व्रत का निर्देश ), १.७२.२ ( गणेश की कृपा से कृतवीर्य की रानी से उत्पन्न पुत्र का हस्त - पाद रहित होना ), ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( कनक - पुत्र, कार्तवीर्य - पिता ), भविष्य ४.५२.७ ( हैहयराज कृतवीर्य द्वारा पुत्रायुष्य हेतु सम्पन्न स्नपन सप्तमी व्रत का वर्णन ), ४.१०६.११ ( हैहयराज, कार्तवीर्य - पिता, शीलधना - पति, मैत्रेयी - निर्दिष्ट अनन्त व्रत के प्रभाव से कृतवीर्य व शीलधना को कार्तवीर्य अर्जुन नामक पुत्र की प्राप्ति ), भागवत ९.२३.२३ ( धनक - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पिता, यदुवंश ), मत्स्य ४३.१३ ( कनक के चार पुत्रों में से एक, कार्त्तवीर्य - पिता, यदु वंश ), ६८.६ ( वाराह कल्प के २६ वें कृतयुग में हैहयवंशीय कृतवीर्य नृपति के पूछने पर भगवान् सूर्य द्वारा सप्तमी स्नपन व्रत का वर्णन ), वायु ६८.३८ ( प्रवाही से उत्पन्न दस देवगन्धर्वों में से एक ), ९४.८ ( कनक - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पिता ), विष्णु ४.११.१० ( धनक - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पिता, यदु वंश ) । kritaveerya/ kritvirya
कृतशर्मा वायु ८८.१८१ ( ऐडिविड - पुत्र, शतरथ - पौत्र, विश्वमहत् - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ।
कृतशल्या लक्ष्मीनारायण ३.२३१.८२ ( चम्बावती नगरवासी तारकादर्श नामक जल्लाद तथा तत्पत्नी कृतशल्या द्वारा हरिभक्ति से अभ्युदय व मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) ।
कृतशौच मत्स्य १३.४५ ( कृतशौच नामक पवित्र पीठ स्थान में सती देवी के सिंहिका रूप से विराजित होने का उल्लेख ), १७९.८७ ( मातृगण के साथ भगवान् नृसिंह के अन्तर्हित होने पर उस स्थान की कृतशौच तीर्थ नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), वामन ९०.५ ( कृतशौच तीर्थ में विष्णु का नृसिंह नाम से वास ), स्कन्द ५.३.१९८.८२ ( कृतशौच तीर्थ में उमा की सिंहिका नाम से स्थिति का उल्लेख ) । kritashaucha
कृतस्थला ब्रह्माण्ड २.३.७.१५ ( मेनकादि ग्यारह अप्सराओं में से एक ), ३.४.३३.१९ ( गोमेदक महाशाला के अन्दर कृतस्थला प्रभृति अप्सराओं का गन्धर्वों के साथ ललिता देवी का ध्यान तथा अर्चन करते हुए निवास का कथन ), भागवत १२.११.३३ ( कृतस्थली : चैत्र मास में धाता नामक सूर्य के गणों में कृतस्थली अप्सरा, हेति राक्षस, वासुकी सर्प आदि का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७.९ ( यक्ष - भार्या, रजतनाभ - माता ) । kritasthalaa
कृतज्ञता विष्णुधर्मोत्तर ३.२७०.१४ ( कृतज्ञता गुण का निरूपण ) ।
कृतस्मर स्कन्द ७.१.२२.२ ( प्रभास क्षेत्र के अन्तर्गत कृतस्मर पर्वत पर चन्द्रमा द्वारा शिवाराधना का वर्णन ), ७.१.३३.६७ ( बडवानल को सागर की ओर ले जाती हुई सरस्वती के मार्ग को कृतस्मर पर्वत द्वारा अवरुद्ध करना, पर्वत की सरस्वती पर आसक्ति तथा विवाह हेतु प्रस्ताव, सरस्वती का युक्तिपूर्वक बडवानल को कृतस्मर के हाथ में देना, हाथ में ग्रहण करते ही बडवा द्वारा कृतस्मर के भस्म होने का वृत्तान्त ), ७.१.१९९+ ( कृतस्मर तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन, तीर्थ के दक्षिण में स्थित कामकुण्ड में स्नान से सौन्दर्य प्राप्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५४०.६ ( पर्वत रूप कृतस्मर नामक तीर्थ में स्थित कामकुण्ड में स्नान से सौन्दर्य प्राप्ति का कथन ) । kritasmara
कृताग्नि ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( कनक - पुत्र ), भागवत ९.२३.२२ ( धनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ), मत्स्य ४३.१३ ( कनक के चार पुत्रों में से एक, यदुवंश ), विष्णु ४.११.१० ( धनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ) ।
कृतान्त गणेश २.९६.१२ ( उपनयन संस्कार के मध्य गणेश द्वारा गज रूप धारी कृतान्त व काल दैत्यों का वध ),ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९ ( स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १४८.३० ( दैत्यराज तारकासुर के राज्य में कृतान्त के अग्रेसर के स्थान पर नियुक्त होने का उल्लेख ), वायु ६२.१८ ( स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक ), कथासरित् १२.१९.१३७ ( कृतान्तसन्त्रास : पिता के शापवश प्रत्येक मास की अष्टमी व चर्तुदशी को शिवपूजन हेतु नगर से बाहर जाने पर मृगाङ्कवती का कृतान्तसन्त्रास नामक राक्षस द्वारा निगरण, राक्षस का पेट भेदकर मृगाङ्कवती का जीवित बाहर निकलना ) । kritaanta
कृताहार ब्रह्माण्ड २.३.७.१८० ( पुलह व श्वेता के दस वानरपुंगव पुत्रों में से एक ) ।
कृति गरुड ३.१६.७(प्रद्युम्न – भार्या), गर्ग ५.१५.३३ ( सुकृति : श्रीहरि के धर्मपालक कल्कि के रूप में प्रकट होने पर राधा के सुकृति रूप में प्रकट होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.७९, १०६ ( नड्वला व चाक्षुष मनु के १० पुत्रों में से एक ), २.३.६४.२३ ( बहुलाश्व - पुत्र, जनकवंशी अन्तिम सम्राट के रूप में कृति का उल्लेख ), २.३.६८.१२ ( नहुष के ययाति प्रभृति ६ पुत्रों में से एक ), ३.४.१.१४ ( बीस सुतपा देवों में से एक ), भागवत ६.१८.१४ ( हिरण्यकशिपु व कयाधु के चार पुत्रों में से एक संह्लाद नामक पुत्र की पत्नी, पञ्चजन - माता ), ९.१३.२६ ( बहुलाश्व - पुत्र, महावशी - पिता, मैथिल वंश ), ९.१८.१ ( नहुष के ६ पुत्रों में से एक, नहुष वंश ), ९.२१.२८ ( सन्नतिमान् - पुत्र, नीप - पिता, हिरण्यनाभ से योगविद्या की प्राप्ति, प्राच्यसाम नामक ऋचाओं की ६ संहिताओं का कथन ), ९.२४.२ ( बभ्रु - पुत्र, उशिक - पिता, विदर्भ वंश ), मार्कण्डेय ८.२१ ( असत्य वचन से कृति नामक स्वर्ग से च्युति का उल्लेख ), वायु ६१.४८ ( दो सर्वोत्कृष्ट सामगों में से एक ), ६२.६७ ( नड्वला व चाक्षुष मनु के १० पुत्रों में से एक ), ८९.२३ ( बहुलाश्व - पुत्र, जनकवंशीय अन्तिम सम्राट् ), विष्णु ४.५.३१ ( शतध्वज - पुत्र, अञ्जन - पिता, कुरुजित् - पितामह, जनक वंश ), ४.५.३१ ( बहुलाश्व - पुत्र, जनकवंशीय अन्तिम सम्राट ), ४.१०.१ ( नहुष के ६ पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.८८ ( श्रीकृष्ण नारायण - पत्नी, सूद्योग नामक सुत तथा नयराजती नामक सुता - माता ), ४.१०१.११४ ( कृतिनी : श्रीकृष्ण नारायण - पत्नी विद्योतिनी की सुता ), भरतनाट्य १४.४५(२० या अधिक अक्षरों वाले शब्दों की कृति, प्रकृति, संकृति आदि संज्ञाएं) ; द्र. सुकृति । kriti
कृतिमान् भागवत ९.२१.२७ ( यवीनर - पुत्र, सत्यधृति - पिता, भरत वंश ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२४ ( श्री कृष्णनारायण की पत्नी प्रकृति का पुत्र ) ।
कृतिरथ भागवत ९.१३.१६ ( प्रतीपक - पुत्र, देवमीढ - पिता, निमि वंश ) ।
कृतिरात भागवत ९.१३.१७ ( महाधृति - पुत्र, महारोमा- पिता, निमि वंश ) ।
कृती ब्रह्माण्ड २.३.७.२४१ ( किष्किन्धा वासी वालि की वानरसेना के प्रधान वानरों में से एक ), ३.४.१.११४ ( भौत्य मनु के ९ पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२२.५ ( च्यवन - पुत्र, उपरिचर वसु - पिता, कुरु वंश ) ।
कृतेयु वायु ९९.१२४ ( रौद्राश्व व घृताची के दस पुत्रों में से एक, पुरु वंश ) ।
कृतौजा ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( हैहयवंशी कनक के कृतवीर्य आदि चार पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२३.२२ ( हैहयवंशी धनक के कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों में से एक ), मत्स्य ४३.१३ ( हैहयवंशी कनक के कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.११.१० ( हैहय वंशी धनक के कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों में से एक ) । kritaujaa
कृत्तिका अग्नि १८.३९ (कृत्तिका से कार्त्तिकेय तथा सनत्कुमार की उत्पत्ति का उल्लेख ), गणेश १.८५.३१ ( षट् कृत्तिकाओं द्वारा अग्नि से शिव के वीर्य को ग्रहण करना, ऋषियों द्वारा त्याग, कृत्तिकाओं द्वारा वीर्य का गङ्गा में त्याग ),पद्म १.४४.१३२ ( जलक्रीडा करते हुए हिमशैलजा पार्वती द्वारा कृत्तिकाओं का दर्शन, कृत्तिकाओं द्वारा प्रदत्त पद्मपत्र स्थित जलपान से कार्त्तिकेय के जन्म का वृत्तान्त ), ब्रह्म २.१२ ( शिव वीर्य धारण से ऋषियों द्वारा कृत्तिकाओं का निष्कासन, दुःखी कृत्तिकाओं का नारद के कथनानुसार कार्त्तिकेय के समीप गमन, कार्त्तिकेय के आदेशानुसार गौतमी में स्नान तथा देवेश्वर के पूजन से कृत्तिकाओं की मुक्ति, गौतमी तीर्थ की कृत्तिका तीर्थ रूप से प्रसिद्धि तथा तीर्थ माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१४.३२ (६ कृत्तिकाओं द्वारा बालक को दुग्ध पान तथा पालन पोषण करने से कार्त्तिकेय नामकरण ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१७(कावेरी, कृष्णवेणा आदि १६ धिष्णियों /नदियों के कृत्तिकाचारिणी होने का उल्लेख ),१.२.२१.७७ ( अश्विनी, कृत्तिका व याम्य नक्षत्रों में सूर्य के उदय होने पर नागवीथी नाम से स्मरण किए जाने का उल्लेख ), १.२.२१.१४५ ( कृत्तिका नक्षत्र के प्रथम चरण में सूर्य के पहुंचने पर चन्द्रमा के विशाखा के चतुर्थ चरण में रहने तथा विशाखा के तीसरे चरण में सूर्य के जाने पर चन्द्रमा के कृत्तिका शिर पर पहुंचने का उल्लेख ), १.२.२४.१३० ( चाक्षुष मन्वन्तर में सूर्य के विशाखा नक्षत्र में तथा चन्द्रमा के कृत्तिका नक्षत्र में उत्पन्न होने का उल्लेख ), २.३.१०.४४ (कृत्तिकाओं द्वारा पोषित होने से कुमार के कार्तिकेय नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), ३.४.३०.१०० ( महेश्वर के उग्र वीर्य के क्रमश: पृथ्वी, अग्नि, कृत्तिकाओं, गङ्गाजल तथा शरवण में प्रक्षिप्त होने का कथन ), भविष्य ४.१०३.२४ ( कृत्तिका व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन ), भागवत ६.६.१४ ( कृत्तिका - पुत्र के रूप में स्कन्द का उल्लेख ), ६.६.२३ ( कृत्तिका प्रभृति २७ नक्षत्राभिमानिनी देवियों के चन्द्र - पत्नी होने का उल्लेख ), मत्स्य ५.२७ ( कृत्तिकाओं की संतति होने के कारण कुमार के कार्तिकेय नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), १५८.३३ ( छह कृत्तिकाओं द्वारा पार्वती को पद्मपत्र में सरोवर का जल देना, जलपान से कुमार की उत्पत्ति ), वामन ५१.२०(सन्ध्यारागवती/रागवती का रूप?), ५७.८६ ( कृत्तिकाओं द्वारा स्कन्द को हंसास्य, कुण्डजठर, बहुग्रीव, हयानन तथा कूर्मग्रीव नामक पांच अनुचर प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ६६.७८ ( अश्विनी, भरणी व कृत्तिका के नागवीथी नाम से स्मरण किए जाने का उल्लेख ), ७२.४३ ( कृत्तिकाओं द्वारा वर्धित होने से कुमार के कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), ८२.२ ( कृत्तिका नक्षत्र के योग में श्राद्ध करने पर मनुष्य के विगत ज्वर होने का उल्लेख ), विष्णु १.१५.११६ ( कृत्तिका - पुत्र होने से कुमार के कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), २.९.१५ ( कृत्तिका प्रभृति नक्षत्रों में सूर्य के स्थित रहने पर दिग्गजों द्वारा पवित्र जल छोडे जाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२८.१० ( गङ्गा द्वारा परित्यक्त षडानन का कृत्तिकाओं द्वारा पालन, चन्द्र से समायोग होने पर कृत्तिका पूजा विधि तथा माहात्म्य ), २.९६ ( गृहस्थों के काम्य कर्म के अन्तर्गत कृत्तिका में स्नानपूर्वक यथाशक्ति दान तथा मधुसूदन के पूजन का कथन ), वा.रामायण १.३७.२३ ( कुमार जन्म प्रसंग में कृत्तिकाओं द्वारा कुमार को स्तन - पान, एतदर्थ कुमार के कार्तिकेय नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), शिव १.१६.५१ ( कृत्तिका नक्षत्र में वार अनुसार देवपूजन, द्रव्यदान व फल का कथन ), स्कन्द १.१.२७.७३ ( अरुन्धती द्वारा निवारित किए जाने पर भी कृत्तिकाओं की प्रज्वलित अग्नि में तापने की लालसा, गर्भवती होने पर ऋषि पतियों द्वारा परित्याग, षण्मुख उत्पत्ति का प्रसंग ), १.२.२९.२१० ( षट् कृत्तिकाओं द्वारा गुह से अक्षय स्वर्ग प्राप्ति की कामना करने पर कृत्तिकाओं को स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.३४.७२ ( कृत्तिकाओं द्वारा स्कन्द को शूल प्रदान करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.३२.१५( कृत्तिकाओं द्वारा नक्षत्रों में स्थान प्राप्ति व सप्तशीर्षा होने के कारणों का कथन ), २.३२.१८( विनता को ६ कृत्तिकाओं के शीर्ष स्थान की प्राप्ति ) । krittikaa / krittika
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कृत्तिवास नारद २.४९.६ (काशी में कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग की पूजा की महिमा का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.९.६९ (ब्रह्मा की आज्ञा से कृत्तिवासेश्वर शिव द्वारा प्रजा सृजन का कथन ), २.३.२५.१४, २.३.७२.१८४ ( भार्गवकृत शिव स्तुति में शिव का एक नाम ), मत्स्य १८१.१४ (गजचर्म धारण करने से शिव का नाम ), वामन ९०.३५ ( रसातल में विष्णु के नामों में से एक ), वायु २१.५१ ( बाइसवें कल्प में मेघी विष्णु द्वारा कृत्तिवास महेश्वर को सहस्र दिव्य वर्ष तक धारण करने का उल्लेख ), शिव २.५.५७.६७ ( शिव द्वारा गजासुर का चर्म ग्रहण करने पर काशी क्षेत्र में कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग की स्थापना ), स्कन्द ४.१.३३.१६६ ( कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.६८.२९ ( गजासुर - चर्म धारण से शिव का काशी में कृत्तिवासेश्वर नाम से निवास तथा कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन ), ६.१०९.१२ ( एकाम्र तीर्थ में शिवलिङ्ग के कृत्तिवासेश्वर नाम का उल्लेख ), ७.१.७.१७ ( पञ्चम कल्प में शिव का नाम ) । krittivaasa
कृत्ती पद्म १.९.४०(पीवरी – कन्या, पाञ्चालपति – पत्नी, ब्रह्मदत्त – माता), द्र. कृत्वी
कृत्य स्कन्द ५.३.१५७.१५ ( हुंकार तीर्थ में शुभ या अशुभ कृत्य के नष्ट न होने का उल्लेख ) ।
कृत्या गणेश २.६३.३८ ( ईशिता सिद्धि से निर्गत कृत्या द्वारा शुक्र का बन्धन व मोचन )२.६५.३ ( बुद्धि के मुख से नि:सृत कृत्या द्वारा देवान्तक असुर का स्वभग में बन्धन व मोचन ), देवीभागवत ७.७.१३ ( च्यवन द्वारा इन्द्र के निग्रहार्थ मद नामक भीषण आकृति युक्त कृत्या की उत्पत्ति, अश्विनौ के सोमपान का प्रसंग ), पद्म ६.१७.८४ ( शिव के तृतीय नेत्र से कृत्या की उत्पत्ति, शिव की आज्ञानुसार कृत्या द्वारा स्व - योनि में शुक्राचार्य को छिपाना, शिव द्वारा जालन्धर दैत्य के वध का प्रसंग ), ६.२५१.११६ ( पौण्ड्रक वासुदेव - पुत्र दण्डपाणि द्वारा शंकरोपासना से कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा कृत्या का नाश ), ब्रह्म २.४०.१२५ ( पिप्पलाद द्वारा देवों के विरुद्ध बडवा कृत्या की उत्पत्ति, पांच नदियों द्वारा बडवा की समुद्र में स्थापना ), २.४६.२२ ( ऋषियों द्वारा बडवा कृत्या का मृत्यु से विवाह ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१६.७५(कृत्या के सत्व, रजो व तमो गुणों का कथन), ४.८४.२६ ( तीन प्रकार की कृत्या स्त्रियों के लक्षणों का वर्णन ), भागवत ९.४.४६ ( क्रुद्ध दुर्वासा द्वारा अम्बरीष वध हेतु कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा अम्बरीष की रक्षा तथा कृत्या को भस्म करने का वृत्तान्त ), १०.६६.३८ ( सुदक्षिण के अभिचार से माहेश्वरी कृत्या की उत्पत्ति, कृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा कृत्या के नष्ट होने का वृत्तान्त ), विष्णु १.१८.३३( हिरण्यकशिपु के आदेश पर पुरोहितों द्वारा प्रह्लाद के वध हेतु कृत्या को उत्पन्न करना, कृत्या की असफलता, कृत्या द्वारा पुरोहितों का नाश, प्रह्लाद की प्रार्थना से पुरोहितों का पुन: संजीवन ), ५.३४.३१( काशिराज पौण्ड्रक के पुत्र द्वारा कृष्ण वध हेतु कृत्या की उत्पत्ति, सुदर्शन चक्र से कृत्या का नष्ट होना ), स्कन्द ३.१.५१.१९(कृत्या को आहारार्थ पाषाण दान), ५.२.४.९ ( रुरु - पुत्र वज्र नामक दैत्य के वध हेतु देवों के अंश से कृत्या की उत्पत्ति का कथन ), ५.२.६६.२५ ( जल्प नामक राजा के सुबाहु आदि५ पुत्रों द्वारा एक दूसरे के वध हेतु कृत्याएं उत्पन्न करने तथा विनाश को प्राप्त होने का वृत्तान्त ), ५.३.४२.३८ ( पिप्पलाद बालक द्वारा आग्नेयी धारण से कृत्या उत्पन्न करने तथा कृत्या के कृत्यों का वर्णन ), ६.१६८.४६ ( विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ वधार्थ कृत्या की उत्पत्ति, वसिष्ठ से पराभव तथा धारा नाम प्राप्ति का कथन ), ७.१.३२.९० ( पिता दधीचि के वध से क्रुद्ध पिप्पलाद द्वारा देवों के हननार्थ वडवाग्नि रूप कृत्या की उत्पत्ति का कथन ), ७.१.९९.२३ ( पितृहन्ता वासुदेव के वध हेतु काशिराज - पुत्र द्वारा शिव को सन्तुष्ट करके कृत्या की प्राप्ति ), ७.१.२८२.१८ ( शक्र नाश हेतु च्यवन ऋषि द्वारा तपोबल से कृत्या की उत्पत्ति, कृत्या से मद नामक महासुर का उद्भव ), लक्ष्मीनारायण १.९०.४ ( इन्द्र के राज्य को नष्ट करने हेतु देवगुरु बृहस्पति द्वारा किए गए होम से क्रूर व भयानक आकृति युक्त कृत्या की उत्पत्ति ), १.४२४.२०( कृत्या के नाश हेतु रुद्र का उल्लेख ) । krityaa
कृत्वी पद्म १.९.४०(पीवरी – कन्या, पाञ्चालपति – पत्नी, ब्रह्मदत्त – माता, कृत्ती नाम पाठ), भागवत ९.२१.२५ ( नीप व शुक - कन्या कृत्वी से ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति, भरत वंश ), मत्स्य १४.९(कृत्वी का कीर्तिमती से साम्य; द्र. ब्रह्माण्ड २.३.१०.८२), १५.१-९( बर्हिषद् पितरों की कन्या पीवरी का तप से शुक - भार्या कृत्वी बनने का कथन ), १५९ ( शुक व पीवरी - कन्या, पांचाल नरेश - पत्नी, ब्रह्मदत्त - माता, कृत्वी का अन्य नाम गौ ), हरिवंश १.१८.५३ ( शुकदेव व पीवरी - कन्या, ब्रह्मदत्त - जननी, अणुह - पत्नी ), स्कन्द ७.१.२१२ ( कृत्वीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) । kritvee/ kritvi
कृप गर्ग ७.२०.२९ ( प्रद्युम्न व कौरवों के युद्ध में दीप्तिमान् के कृपाचार्य से युद्ध का उल्लेख ), १०.५०.३३ ( विदुर के परामर्श पर कृपाचार्य प्रभृति कौरवों द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति तथा यज्ञाश्व को लौटाना ), देवीभागवत ४.२२.३७ ( देवों के अंश वर्णन में कृपाचार्य के मरुद्गण का अंश होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.३६ ( हरिभावना से शुद्ध चिरजीवियों में कृप का उल्लेख ), भागवत ९.२१.३६ ( शरस्तम्ब में पतित शरद्वान् के वीर्य से कृप व कृपी की उत्पत्ति, शन्तनु द्वारा कृपावश बालक व बालिका के पालन से कृपाचार्य व कृपी नाम धारण ), १०.८२.२४ ( स्यमन्तपञ्चक तीर्थ में वसुदेव, उग्रसेन प्रभृति यदुवंशियों द्वारा सत्कृत व्यक्तियों में से एक ), मत्स्य ४.३९ ( ध्रुव - पुत्र शिष्ट व अग्नि - कन्या सुच्छाया के पुत्रों में से एक ), विष्णु ३.२.१७ ( सावर्णि मनु के आठवें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ४.१९.६८ ( शरस्तम्ब में पतित सत्यधृति के वीर्य से कृप नामक कुमार तथा कृपी नामक कन्या की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.२१.४ ( कृप द्वारा शतानीक को अस्त्र - शस्त्र प्रदान करने का उल्लेख ), हरिवंश १.३२.३५ ( अहल्या व गौतम के पौत्र सत्यधृति के वीर्य से कृप की उत्पत्ति, शन्तनु द्वारा कृपापूर्वक ग्रहण करने के कारण कृप नाम धारण ) । kripa
कृपण भागवत ११.१९.४४ ( अजितेन्द्रिय की कृपण संज्ञा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२४६.३३ ( कृपण जनों के स्वच्छाया होने का उल्लेख ), कथासरित् १०.५.२१५ ( मूर्ख कृपण द्वारा किसी भी स्थिति में धन को न छोडने का निरूपण ) ।
कृपा ब्रह्माण्ड १.२.१६.३८ ( शुक्तिमान् पर्वत से नि:सृत एक नदी ), भागवत १.४.२५(व्यास द्वारा कृपा करके स्त्री आदि हेतु भारत आख्यान की रचना), ७.१५.२४(कृपा द्वारा भूत से उत्पन्न दुःख, समाधि द्वारा दैव से उत्पन्न दुःख आदि हरण का निर्देश), मत्स्य ११४.३२ ( शुक्तिमन्त पर्वत से नि:सृत एक नदी ), मार्कण्डेय ११५.१४/११२.१४ ( सुरथ/सुरत मुनि की कृपा जनित मूर्च्छा से कन्या के उत्पन्न होने पर कृपावती नाम धारण ), स्कन्द ५.३.६.३३ ( नर्मदा नदी के कृपा नाम का कारण ), लक्ष्मीनारायण २.२०८.४५ ( कृपायन मुनि द्वारा मूषक पर कृपा करके मूषक को मार्जार आदि विभिन्न योनियां प्रदान करना, अन्त में पुन: मूषक बनाना ), ३.१९.२८ ( कृपावतीरमा : लक्ष्मी का एक अवतार ) । kripaa
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कृपाण अग्नि २५२.१७ ( कृपाण नामक अस्त्र के हरण, छेदन, घात, भेदन, रक्षण, पातन तथा स्फोटन नामक कर्मों का कथन ), कथासरित् १८.४.९६( सूकर के कण्ठ का स्पर्श करने से कृपाण में रूपान्तरित होना ) । kripaana
कृपी भागवत १.७.४५ ( द्रोणाचार्य - पत्नी, अश्वत्थामा - माता, अन्य नाम गौतमी ), १.१३.४ ( तीर्थयात्रा से लौटे हुए विदुर की अगवानी करने वालों में कृपी का उल्लेख ), ९.२१.३६ ( कृपाचार्य - भगिनी, द्रोणाचार्य - पत्नी ), वायु ९९.२०४ ( शरस्तम्ब में पतित सत्यधृति के शुक्र से मिथुन सन्तानों की उत्पत्ति, राजा शन्तनु द्वारा कृपापूर्वक मिथुन सन्तान के धारण तथा लालन - पालन से जुडवां सन्तति का कृप तथा कृपी नामकरण, कृपी के गौतमी नाम का उल्लेख ), विष्णु ४.१९.६८ ( शरस्तम्ब में पतित सत्यधृति के वीर्य से कृप नामक कुमार तथा कृपी नामक कन्या की उत्पत्ति, द्रोण - पत्नी, अश्वत्थामा - माता ) । kripee/ kripi
कृमि गरुड १.१६५ ( कृमियों के प्रकार व निदान का वर्णन - क्रिमयश्च द्विधा प्रोक्ता बाह्यभ्यन्तरभेदतः । बहिर्मलकफासृग्विट्जन्मभेदाच्चतुर्विधाः ॥ ), १.२२५.१३ ( याचक को कृमि योनि की प्राप्ति - नरकात्प्रतिमुक्तस्तु कृमिर्भवति याचकः । ), १.२२५.१६ ( न्यास अपहर्त्ता को कृमि योनि की प्राप्ति ), १.२२५.२० ( यज्ञ, दान, विवाह के विघ्नकर्त्ता को प्राप्त योनि ), १.२२५.२२ ( शूद्र पुरुष के ब्राह्मणी स्त्री से व्यभिचार करने पर कृमि योनि की प्राप्ति ), १.२२५.२३ ( कृतघ्नता से प्राप्त योनि ), १.२२५.२४ ( स्त्री वध कर्त्ता व बालहन्ता को कृमि योनि की प्राप्ति ), १.२२५.२७ ( काञ्चन भाण्ड हरण से कृमि योनि की प्राप्ति ), पद्म २.५३.९६(शुद्ध वीर्य से कृमियों की उत्पत्ति न होने का उल्लेख?, प्राणिनां हि कपालेषु कृमयः संति पंच वै। द्वावेतौ कर्णमूले तु नेत्रस्थाने ततः पुनः॥) , ५.९९.६४ ( प्राणियों के कपाल में पिङ्गली, शृङ्खली, चपल, पिप्पल, शृङ्गली, जङ्गली प्रभृति कृमियों की स्थिति तथा उनसे कपाल रोगों की उत्पत्ति का कथन - प्राणिनां हि कपालेषु कृमयः संति पंच वै । द्वावेतौ कर्णमूले तु नेत्रस्थाने ततः पुनः। ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.५८ ( नरक में कृमि कुण्ड प्रापक दुष्कर्मों का उल्लेख ), ४.८५.११८ ( मिष्ट चोर के कृमि बनने का उल्लेख - शुकोऽप्यञ्जनचोरश्च मिष्टचोरः कृमिर्भवेत् ।। ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४२८( माष, मुद्ग आदि शिम्बी धान्य व अन्य जन्तुओं से कृमियों के उत्पन्न होने का कथन - शिंबिभ्यो माषमुद्गानां जायन्ते कृमयस्तथा ॥ ), २.३.७४.२० ( कृमी व उशीनर - पुत्र कृमि की कृमिला नामक राजधानी का उल्लेख - कृम्याः कृमिस्तु दर्वायाः सुव्रतो नाम धार्मिकः ।…नवस्य नवराष्ट्रं तु कृमेस्तु कृमिला पुरी ॥ ), भविष्य १.१८४.५४( देह के विभिन्न भागों में कृमि दंशन पर प्रायश्चित्त विधान का कथन - ब्राह्मणस्य ब्रह्मद्वारे पूय शोणितसंभवे । क्रिमिभिर्दश्यते यश्च निष्कृतिं तस्य वच्मि ते ।। ), ४.५४.३१( उदरपूर्ति हेतु हृत गोधूमों का नरक में कृमि बनना ), मत्स्य ५०.२५ ( च्यवन व ऋक्ष - पुत्र, चैद्योपरिचर वसु - पिता, कुरु वंश ), महाभारत शान्ति ३.२० ( भृगु - पत्नी का अपहरण करने पर भृगु के शाप से प्राग्दंश नामक असुर के क्रिमि योनि में पतित होने का उल्लेख, परशुराम – कर्ण कथा ), २१३.१०(स्वेदादि से उत्पन्न क्रिमियों की भांति सुत कृमि को भी त्यागने का निर्देश – स्वदेहजानस्वसंज्ञान्यद्वदङ्गात्कृमींस्त्यजेत्। स्वसंज्ञानस्वकांस्तद्वत्सुतसंज्ञान्कृमींस्त्यजेत्।।), मार्कण्डेय १५.६ ( न्यास अपहर्त्ता द्वारा कृमि योनि की प्राप्ति ), १५.१२ ( यज्ञ, दान व विवाहों में विघ्नकर्त्ता द्वारा कृमि योनि की प्राप्ति ), १५.१७ ( कृतघ्न द्वारा कृमि, कीट, वृश्चिक् आदि योनियों की प्राप्ति ), १५.१९ ( स्त्री वध कर्त्ता द्वारा कृमि योनि की प्राप्ति ),१५.२२ ( लवण अपहरण पर कृमि योनि की प्राप्ति - वीचीकाकस्त्वपहृते लवणे दधनि कृमिः॥ ), १५.२६ ( काञ्चन आदि हरण पर कृमि योनि की प्राप्ति ), वायु ९९.२० ( कृमी व उशीनर - पुत्र कृमि की कृमिला नामक राजधानी का उल्लेख - कृम्याः कृमिस्तु दर्वायाः सुव्रतो नाम धार्मिकः ।।…नवस्य नवराष्ट्रन्तु कृमेस्तु कृमिला पुरी। ), विष्णु २.६.१५ ( पिता, ब्राह्मण, देवता या रत्न का अनादर करने वाले को क्रिमिभक्ष नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.१८.९ ( उशीनर के शिबि, नृग, नव, कृमि व वर्म नामक पांच पुत्रों का उल्लेख, अनु वंश - उशीनरस्यापि शिबिनृगनवकृमि वर्माख्याः पञ्च पुत्रा बभूवुः ॥ ), शिव ५.१६.१२( देव, द्विज, पितृद्वेष्टा व रत्नदूषक के कृमिभक्ष नरक में जाने का उल्लेख ), स्कन्द १.१.१८.४९ ( दान के अभाव से इन्द्र के कृमि होने तथा दान के प्रभाव से कृमि के इन्द्र होने का कथन - य इंद्र कृमिरेव स्यात्कृमिरिंद्रो हि जायते॥ तस्माद्दानात्परतरं नान्यदस्तीह मोचनम्॥ ), ५.३.१०३.१४७ ( पुत्र शोक से पीडित गोविन्द ब्राह्मण के कृमियों से ग्रस्त होने में भ्रूणहत्या कारण होने का वर्णन ), ५.३.२११.९ ( ब्राह्मणों द्वारा कुष्ठी रूप धारी शिव को भिक्षा न देने पर भोजन को कृमियों से युक्त पाने का उल्लेख - भुञ्जतेऽस्म द्विजा राजन्यावत्पात्रे पृथक्पृथक् । यत्रयत्र च पश्यन्ति तत्रतत्र कृमिर्बहुः ॥ ), ६.१९४.४१ ( मनुष्यों की दृष्टि में कृमि कीटों की गति के समान ही देवों की दृष्टि में मनुष्यों की गति, ब्रह्मा की दृष्टि में देवों की गति, विष्णु की दृष्टि में ब्रह्मा की गति, शिव शक्ति की दृष्टि में विष्णु की गति तथा सदाशिव की दृष्टि में शिव शक्ति की गति होने का कथन - यथैते दंशमशका मानुषाणां च कीटकाः ॥ जायंते च म्रियंते च गण्यंते नैव कुत्रचित् ॥ इन्द्रादीनां तथा मर्त्याः संभाव्या जगतीतले ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८७ ( नरक में कृमि कुण्ड प्रापक कर्म का उल्लेख - अभक्ष्यभक्षी मनुजो कृमिकुण्डं प्रयाति वै ।। ), २.२२६.६४( स्वेद से उत्पन्न क्रिमि व धातु से उत्पन्न पुत्र में साम्य का उल्लेख - सादृश्येऽत्र विशेषोऽस्ति साम्येऽपि स्वेदजैः सुतैः । स्वेदजाः क्रमयः प्रोक्ता धातुजाः सुतसंज्ञकाः ।। ), ३.४४.१९( कर्णमूल, नासिकाग्र तथा नेत्रों में स्थित कृमियों का नामोल्लेख - पिंगला शृंगली नाम द्वौ कृमीकर्णमूलयोः । चपलः पिप्पलश्चैव द्वावेतौ नासिकाग्रयोः ।।… ) , द्र. क्रिमि । krimi
कृमिचण्डेश्वर मत्स्य १८१.२९ ( वाराणसी में परम गुह्य आठ स्थानों में से एक कृमिचण्डेश्वर नामक स्थान के शिव सन्निधि से पवित्र होने का उल्लेख ) ।
कृमिभक्ष ब्रह्माण्ड ३.४.२.१४७, १६० ( देव - ब्राह्मण द्वेषक, गुरु अपूजक तथा रत्नदूषक को कृमिभक्ष नामक नरक प्राप्ति का उल्लेख ), भागवत ५.२६.७, १८ ( दूसरों को खिलाए बिना स्वयं खा लेने पर कृमिभोजन नामक नरक प्राप्ति ; २८ नरकों में से एक ), वायु १०१.१४७, १५८ ( देव - ब्राह्मण द्वेषक, गुरु अपूजक तथा रत्नदूषक को कृमिभक्ष नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ) ।
कृमिल मत्स्य ४४.५० (बाह्यका व भजमान के तीन पुत्रों में से एक, क्रोष्टु वंश ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.२२ ( कृमिला : कृमी व उशीनर - पुत्र कृमि की राजधानी ) ।
कृमी ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८ ( उशीनर की पांच रानियों में से एक, कृमि - माता ), वायु ९९.१९ (वही), १०१.१४७ ( घोर दुष्कर्मियों को कृमी प्रभृति नरक प्राप्ति का उल्लेख ) ।
कृश ब्रह्माण्ड २.३.६३.१८१ ( कृशशर्मा : इडविड - पुत्र, दिलीप / खट्वांग - पिता ), मत्स्य ४८.१६ ( कृशा : उशीनर की पांच रानियों में से एक, कृश - माता, अनु वंश ), स्कन्द ३.१.४१.१२ ( शृंगी नामक मुनि - पुत्र का मित्र, राजा परीक्षित का मुनि के स्कन्ध पर मृत सर्प रखने तथा मुनि पुत्र द्वारा परीक्षित को सर्पदंश के शाप का प्रसंग ), महाभारत शान्ति १२७( आशा के कृशकारी होने का वर्णन ) । krisha
कृशाङ्ग वायु ६९.१४ ( कृशाङ्गी : सुयशा अप्सरा की ४ अप्सरा पुत्रियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.९१.७८ ( द्विज - पुत्र कृशाङ्ग द्वारा महिष के ताडन पर महिषी द्वारा कृशाङ्ग के दूषित जन्म का कथन, कृशाङ्ग द्वारा विप्रत्व प्राप्ति हेतु तप तथा कृशानु अग्नि बनना ) ।
कृशानु ब्रह्माण्ड १.२.१२.२१ ( सम्राट् अग्नि कृशानु के द्वितीय वेदी में स्थित होने का उल्लेख ), मत्स्य ५१.१९ ( वासव उपनाम वाली कृशानु अग्नि के यज्ञ की वेदी के उत्तर भाग में स्थित होने का उल्लेख ), वायु २९.१९ ( कृशानु नामक सम्राट् अग्नि के यज्ञ के उत्तर में उत्तरवेदी पर निवास करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.१०.४२ ( अग्निलोक वर्णन के अन्तर्गत शिवशर्मा का गणों से कृशानु के कुलादि तथा आग्नेय पद की प्राप्ति के विषय में प्रश्न ), लक्ष्मीनारायण ३.९१.१२७ ( कृशाङ्ग द्वारा चाण्डाल से द्विज बनने हेतु तप व तप के फलस्वरूप कृशानु अग्नि बनना ) । krishaanu
कृशाश्व देवीभागवत ७.८.३८ ( बर्हणाश्व - पुत्र, प्रसेनजित् - पिता ), पद्म १.६.१४ ( दक्ष प्रजापति द्वारा कृशाश्व को दो कन्याएं प्रदान करने का उल्लेख ), १.४०.८७ ( साध्या द्वारा उत्पन्न साध्यगणों में से एक ), ब्रह्माण्ड १.२३३.१३ ( एक चरकाध्वर्यु ), १.२.३६.५० ( चतुर्थ तामस मनु का एक पुत्र ), १.२.३७.४६ ( दक्ष द्वारा स्वकन्या को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), २.३.६१.१५ ( सहदेव - पुत्र, सोमदत्त -पिता ), २.३.६३.६५ ( संहताश्व - पुत्र, धुन्धु वंश ), भागवत ६.६.२० ( दक्ष प्रजापति की दो कन्याओं अर्चि और धिषणा के पति, धूम्रकेश, वेदशिरा, देवल, वयुन और मनु के पिता ), ९.६.२५ ( बर्हणाश्व - पुत्र, सेनजित् - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), मत्स्य ५.१४,१४६.१७ ( प्रजापति दक्ष द्वारा दो कन्याओं को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), ६.६ ( महर्षि कृशाश्व के पुत्रों के देवप्रहरण नाम से विख्यात होने का उल्लेख ), वायु ६३.४२ ( दक्ष द्वारा एक कन्या को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), ६६.७९ ( देवर्षि कृशाश्व के पुत्रगण के देवप्रहरण नाम से विख्यात होने का उल्लेख ), ८६.२० ( सहदेव - पुत्र, सोमदत्त - पिता, वैवस्वत मनु वंश ), विष्णु १.१५.१०४ ( दक्ष प्रजापति द्वारा दो कन्याओं को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), १.१५.१३७ ( देवर्षि कृशाश्व के पुत्रों के देवप्रहरण नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), ४.१.५५ ( सहदेव - पुत्र, सोमदत्त - पिता ), ४.२.४६ ( अमिताश्व - पुत्र, प्रसेनजित् - पिता ), हरिवंश १.३.६५ ( राजर्षि कृशाश्व से प्रत्यङ्गिरस ऋचाओं तथा देव - आयुधों के प्राकट्य का उल्लेख ), वा.रामायण १.२१.१३ ( कृशाश्व व दक्ष - पुत्रियों जया व सुप्रभा के अस्त्र - शस्त्र रूप १०० पुत्रों को विश्वामित्र को प्रदान करने का कथन ) । krishaashva
कृषक लक्ष्मीनारायण १.२०४.७७ ( कृष्ण की कृषक रूप में व्याख्या ), २.१६३.२ ( द्युविश्राम नामक भगवद्भक्त कृषक के सिंह प्रधर्षित गोधन की श्रीकृष्ण द्वारा रक्षा का वर्णन ), २.२७०.३ ( कृष्ण द्वारा भगवद्भक्त देवानीक नामक कृषक की भीषण जलवृष्टि से रक्षा ), ३.८९.६१ ( विश्रामगुप्त नामक दरिद्र कृषक का धन पाकर अशान्त होने व धन त्याग कर सुखी होने का वृत्तान्त ) । krishaka
कृषि अग्नि १२१.४६ ( कृषि कार्य हेतु नक्षत्र विचार ), गर्ग ३.६.२१ ( कृषक द्वारा बीजों की कृषि के समान कृष्ण द्वारा मुक्ता कणों की कृषि करने का उल्लेख ), पद्म २.९७.५० ( मनुष्य द्वारा करणीय आध्यात्मिक कृषि का कथन ), ६.१८५.७५ ( कृषीवल :पथिक की गृध्र से रक्षा में असफलता पर कृषीवल का शाप से राक्षस बनना , गीता के ग्यारहवें अध्याय श्रवण से मुक्त की कथा ), भविष्य ४.३.३३ (द्विज द्वारा कृषि कार्य में दोष, विष्णु प्रोक्त ), वराह ७१.१२( गौतम द्वारा वर रूप में सस्य पंक्ति प्राप्ति का कथन ), वामन २२.२५ ( राजा कुरु द्वारा द्वैतवन में तप, सत्य, क्षमा, दया, शौच, दान, योग तथा ब्रह्मचर्य रूप धर्म के अष्टाङ्गों की कृषि करने का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर २.८२.१३ ( कृषि आरम्भ के लिए प्रशस्त तथा वर्जनीय नक्षत्रों का कथन ), ३.११८.१२( कृषि कर्म की प्रसिद्धि के लिए बलभद्र की पूजा का निर्देश ), ३.११९.६ ( कृषि कर्म आरम्भ में वराह अथवा संकर्षण की पूजा का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४५.२५ ( कृषि के दोष देखकर नन्दभद्र वैश्य द्वारा कृषि का त्याग ), योगवासिष्ठ ६.२.४४.३( चित्तभूमि में समाधि बीज द्वारा कृषि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२०४.१०९ ( कृष्ण की निरुक्तियों के संदर्भ में कृषि के विभिन्न अर्थ ), २.३०.८५ ( राजा कुरु द्वारा वन में तप, सत्य, शौच, दान, दया, क्षमा, योग तथा शील वृत्ति की कृषि का उल्लेख ), २.२०९.५१ ( वैश्य धर्म के रूप में कृषि कर्म का उल्लेख ), ४.१०१.९४ ( कृषीश्वरी : श्रीकृष्णनारायण की पत्नी दुर्गा की पुत्री ) ; द्र. सुकृष । krishi
कृष्टि लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८२(मरीचि की ४ कन्याओं में से एक)।
कृष्ण
अग्नि
१२
(
श्रीकृष्ण
के
अवतार
तथा
विविध
लीलाओं
का
संक्षिप्त
वर्णन
),
११५.५७(
प्रेतों
में
सित
के
जनक,
रक्त
के
पितामह
तथा
कृष्ण
के
प्रपितामह
होने
का
उल्लेख
-
अहं
सितस्ते
जनक
इन्द्रलोकं
गतः
शुभान्
॥
मम
रक्तः
पिता
पुत्र
कृष्णश्चैव
पितामहः
।
),
१८३
(
भाद्रपद
मास
के
कृष्णपक्ष
की
रोहिणी
नक्षत्र
से
युक्त
अष्टमी
तिथि
में
करणीय
कृष्णजन्माष्टमी
व्रत
की
विधि
व
माहात्म्य
का
वर्णन
),
२७६
(
कृष्ण
-
पत्नियों
व
पुत्रों
का
संक्षिप्त
नाम
निर्देश
),
कूर्म
१.२५
(
जाम्बवती
पत्नी
से
पुत्र
प्राप्ति
हेतु
कृष्ण
द्वारा
उपमन्यु
आश्रम
में
तपश्चरण,
गिरिजा
से
वर
प्राप्ति
का
वर्णन
),
गरुड
१.२८
(
गोपाल
पूजा
विधि
का
वर्णन
),
१.१४४
(
कृष्ण
चरित्र
का
वर्णन
),
३.२९.६२(पुत्रादि
चुम्बन
काल
में
वेणुहस्त
कृष्ण
के
ध्यान
का
निर्देश),
गर्ग
१.१२
(
कृष्ण
जन्म
पर
नन्द
गृह
में
उत्सव
),
१.१५.२८(
निरुक्ति,
गर्ग
द्वारा
नामकरण
-
ककारः
कमलाकांत
ऋकारो
राम
इत्यपि
॥
षकारः
षड्गुणपतिः
श्वेतद्वीपनिवासकृत्
।..
), १.१८
(
मृदा
भक्षण
प्रसंग
में
यशोदा
द्वारा
मुख
में
ब्रह्माण्ड
का
दर्शन
),
२.१७+
( गोप
देवी
रूप
में
राधा
के
प्रेम
की
परीक्षा
),
२.२२.१७
(
हंस
मुनि
की
पौण्ड्र
असुर
से
रक्षा
),
३.३
(
गोवर्धन
धारण
द्वारा
गोपों
की
वृष्टि
से
रक्षा
),
३.५.९
(
नन्द
व
गर्ग
प्रोक्त
कृष्ण
निरुक्ति
),
३.९
(
कृष्ण
के
अङ्गों
से
विभिन्न
सृष्टियां
),
४.५.१८(
कृष्ण
के
जन्म
का
काल
),
४.२१
(
याज्ञिक
विप्र
-
पत्नियों
को
दर्शन
),
४.२२
(
गोप
-
गोपियों
को
वैकुण्ठ
धाम
का
दर्शन
कराना
),
५.९
(
गुरु
-
पुत्र
को
यम
लोक
से
लाने
का
उद्योग,
पञ्चजन
दैत्य
का
वध
),
५.१९
(
व्रज
में
प्रत्यागमन
पर
कृष्ण
के
स्वागत
का
वर्णन
),
५.२२
(
नारद
-
तुम्बुरु
से
संगीत
सुनकर
ब्रह्मद्रव
रूप
होना
),
६.४
(
रुक्मिणी
से
विवाह
की
कथा
),
६.६
(
रुक्मिणी
का
हरण
),
६.८.७
(
जाम्बवती,
मित्रविन्दा,
सत्या,
भद्रा,
लक्ष्मणा
आदि
से
विवाह
की
कथा
),
८.६+
( कृष्ण
की
गोकुल,
मथुरा
व
द्वारका
में
लीला
का
संक्षिप्त
वर्णन
),
१०.२+
( कृष्ण
लीला
का
वर्णन
),
१०.४१+
( राधा
से
मिलन
व
रास,
उग्रसेन
के
अश्वमेध
का
प्रकरण
),
१०.४२.४२(
कृष्ण
स्वरूप
का
कथन
),
१०.४५
(
गोपियों
द्वारा
स्तुति,
आविर्भाव
),
१०.५०
(
कौरव
वीरों
द्वारा
स्तुति
),
१०.५९
(
कृष्ण
सहस्रनाम
:गर्ग
-
उग्रसेन
संवाद
प्रसंग
),
१०.६०
(
विभिन्न
रूपों
में
परम
धाम
गमन
),
१०.६१.४
(
कृष्ण
के
श्याम
वर्ण
का
रहस्य
-
श्यामं
तु
शृङ्गाररसस्य
रूपं श्रीकृष्णदेवं
कथितं
मुनींद्रैः
।
लावण्यसंघाच्च
तथोज्ज्वलत्वा च्छ्यामं
सुरूपं
हि
तथा
हरेश्च
॥..),
देवीभागवत
४.२३
(
कृष्ण
अवतार
की
कथा
),
९.२.२४
(
शब्द
निरुक्ति
के
अनुसार
कृष्ण
के
भक्ति
दास्य
प्रदाता
व
सर्वसृष्टा
होने
तथा
कृष्णा
शक्ति
के
साथ
मिलकर
सृष्टि
कार्य
करने
का
वर्णन
-
कृषिस्तद्भक्तिवचनो
नश्च
तद्दास्यवाचकः
॥
भक्तिदास्यप्रदाता
यः
स
च
कृष्णः
प्रकीर्तितः
।..
), नारद
१.६६.९४(
कृष्ण
की
शक्ति
बुद्धि
का
उल्लेख
-
कृष्णो
बुद्ध्या
युतः
सत्यो
भुक्त्या
मुक्त्याथ
सात्वतः ॥
),
१.८०
(
कृष्ण
सम्बन्धी
मन्त्रों
की
अनुष्ठान
विधि
व
विविध
प्रयोग
),
१.८०.४०
(
कृष्ण
व
वृन्दावन
के
स्वरूप
का
चिन्तन
;
त्रिकालपूजन
हेतु
कृष्ण
के
ध्यान
व
अर्चन
का
स्वरूप
तथा
पूजा
से
प्राप्त
फल
),
१.८१
(
कृष्ण
-
मन्त्र
-
भेद
निरूपण
),
१.८२
(
राधा
-
कृष्ण
युगल
सहस्रनाम
),
२.५५.४०
(द्वादशाक्षर
मन्त्र
से
कृष्ण
पूजन
का
माहात्म्य
तथा
फल
),
२.५८.४३
(
कृष्ण
रूप
ब्रह्म
से
ब्रह्माण्डोत्पत्ति
का
कथन
),
२.५९
(
गोलोक
में
कृष्ण
के
स्वरूप
का
कथन
),
पद्म
१.२०.१११
(
कृष्ण
व्रत
का
माहात्म्य
व
विधि
),
५.६९
(वृन्दावनादि
षोडशदलात्मक
श्रीकृष्ण
क्रीडा
किञ्जल्क
/पद्म
के
कथनपूर्वक
क्रीडा
स्थान
का
वर्णन,
कृष्ण
के
सौन्दर्य
का
कथन
),
५.७०
(
कृष्ण
के
पार्षद
गणों
का
वर्णन,
गोपीगण
-
मध्यवर्ती
कृष्ण
के
स्वरूप
का
वर्णन
),
५.७०.६४(दक्षिण
में
कृष्ण
वर्ण
विष्णु
की
द्वारपाल
रूप
में
स्थिति),
५.७२
(
कृष्ण
की
श्रेष्ठ
सुन्दरियों
का
कथन
),
५.७४
(
अर्जुन
का
राधा
स्वरूप
दर्शन
पूर्वक
स्त्रीत्व
प्राप्ति
से
श्रीकृष्ण
संग
का
वर्णन
),
५.७७
(
कृष्ण
तीर्थ,
स्वरूप
व
गुण
का
वर्णन
),
५.८०
(
कृष्णपद
में
चिह्न
तथा
विभिन्न
मासों
में
अर्चना
का
वर्णन
),
५.८१(
कृष्ण
मन्त्रार्थ
का
वर्णन
),
५.८३
(
वृन्दावन
में
कृष्ण
की
दैनन्दिन
लीला
तथा
राधा
के
साथ
विलासादि
का
वर्णन
),
६.८८
(
नारद
का
कृष्ण
को
कल्पवृक्ष
-
पुष्प
उपहार
स्वरूप
प्रदान
करना,
कृष्ण
का
सत्यभामा
को
विस्मरण
कर
अन्य
स्त्रियों
को
पुष्प
प्रदान
करना,
रुष्ट
सत्यभामा
हेतु
स्वर्ग
से
कल्पवृक्ष
को
लाना
तथा
सत्यभामा
के
गृह
में
आरोपण
का
वृत्तान्त
),
६.२४५
(
कृष्ण
अवतार
की
कथा
का
वर्णन
),
( अनिरुद्ध
के
विवाह
प्रसंग
में
बाणासुर
से
संग्राम
का
वर्णन,
शिव
की
पराजय,
कृष्ण
की
स्तुति
),
६.२५२
(
कृष्ण
के
स्वधाम
गमन
का
निरूपण
),
७.१२
(
फाल्गुन
से
लेकर
वैशाख
तक
विभिन्न
मासों
में
कृष्ण
की
पूजा
विधि
व
माहात्म्य
का
वर्णन
),
ब्रह्म
१.७२.४३
(
कृष्ण
जन्म
वृत्तान्त,
विष्णु
का
ही
देवकी
के
गर्भ
से
कृष्ण
रूप
में
प्राकट्य
),
१.९३+
( नराकसुर
वध
का
वर्णन
),
१.९४.२९
(
सत्यभामा
का
कृष्ण
से
पारिजात
लाने
का
आग्रह,
पारिजात
प्राप्ति
हेतु
देवों
से
युद्ध,
द्वारका
में
पारिजात
के
आरोपण
का
वर्णन
),
१.१०२,
१०३
(
कृष्ण
कृपा
से
लुब्धक
को
स्वर्ग
लोक
प्राप्ति,
कृष्ण
का
स्वर्गारोहण,
आठों
पटरानियों
का
अग्नि
प्रवेश
),
२.९१.५७(
विष्णु
के
आहवनीय
पर
श्वेत,
दक्षिणाग्नि
पर
श्याम
व
गार्हपत्य
पर
पीत
वर्ण
होने
का
उल्लेख
),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.६.७१(
कृष्ण
द्वारा
ब्रह्मा
को
सृष्टि
हेतु
आज्ञा
देने
का
उल्लेख
),
१.१८.९
(
मालावती
प्रोक्त
कृष्ण
-
स्तोत्र
),
१.१९.३३
(
कृष्ण
कवच
में
कृष्ण
से
प्राची
दिशा
की
रक्षा
की
प्रार्थना
),
१.३०
(
कृष्ण
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
२.२.२५
(
शब्द
निरुक्ति
द्वारा
कृष्ण
के
भक्ति
व
दास्य
प्रदायक
तथा
सर्वबीजस्वरूप
होने
का
उल्लेख
),
२.७.८५(कृष्ण
के
वैकुण्ठ
में
चतुर्भुज
व
गोलोक
में
द्विभुज
होने
का
उल्लेख),
२.१०.१४९(कृष्ण
द्वारा
सरस्वती
को
कौस्तुभ
रत्न
देने
का
उल्लेख),
२.४९.५८(चतुर्भुज
कृष्ण
की
पत्नियों
महालक्ष्मी,
सरस्वती
आदि
का
कथन;
द्विभुज
कृष्ण
की
पत्नी
राधा),
३.७.१०९
(
पार्वती
-
कृत
कृष्ण
स्तोत्र
का
कथन
),
३.९.८
(
कृष्ण
द्वारा
पार्वती
-
पुत्र
गणेश
बनने
का
वृत्तान्त
),
३.३१
(
कृष्ण
कवच
का
वर्णन
),
४.७
(
वसुदेव,
देवकी
व
कंस
का
परस्पर
वार्तालाप,
कृष्ण
जन्म
आख्यान
),
४.९.५३
(
गोकुल
में
कृष्ण
जन्मोत्सव
का
वर्णन
),
४.१२.१८
(
कवच
में
कृष्ण
से
चक्षुओं
की
रक्षा
की
प्रार्थना
),
४.१३
(
गर्ग
मुनि
-
कृत
कृष्ण
के
नामकरण
व
अन्नप्राशन
संस्कार
का
वर्णन
),
४.१३.५७
(
कृष्ण
नाम
निरुक्ति
-
ब्रह्मणो
वाचकः
कोऽयमृकारोऽनंतवाचकः
।।
शिवस्य
वाचकः
षश्च
नकारो
धर्मवाचकः
।।
),
४.१९.१७
(
नागपत्नी
सुरसा
-
कृत
कृष्ण
स्तुति
तथा
स्तोत्र
का
माहात्म्य
),
४.१९.७४
(
नागराज
कालिय
-
कृत
कृष्ण
स्तोत्र
तथा
स्तोत्र
माहात्म्य
),
४.१९.१७२
(
गोपों
द्वारा
दावानल
से
रक्षा
हेतु
कृष्ण
की
स्तुति
तथा
स्तोत्र
माहात्म्य
),
४.७२
(
कृष्ण
द्वारा
कुब्जा
का
उद्धार,
रजक
मोक्ष,
कंस
वध,
वसुदेव
व
देवकी
के
बन्धन
व
मोक्ष
का
वृत्तान्त
),
४.१२९
(
ब्रह्मा
-
कृत
कृष्ण
स्तुति
तथा
कृष्ण
के
गोलोक
गमन
का
वृत्तान्त
),
ब्रह्माण्ड
२.३.३१.३७
(
कार्य
सिद्धि
हेतु
ब्रह्मा
का
परशुराम
को
शिव
से
कृष्ण
मन्त्र
प्राप्ति
का
परामर्श
)
, २.३.३६.१०
(
अगस्त्य
द्वारा
परशुराम
को
कृष्ण
प्रेमामृत
स्तोत्र
तथा
स्तोत्र
माहात्म्य
का
कथन
),
भविष्य
१.७३.४०
(
कृष्ण
द्वारा
साम्ब
तथा
१६
हजार
रानियों
को
शाप
प्रदान
का
उल्लेख
),
३.३.१.३२
(
कृष्ण
का
उदयसिंह
रूप
में
जन्मोल्लेख
),
३.४.२५.८६
(
वैवस्वत
मन्वन्तर
के
मध्य
में
कर्क
राशि
में
कृष्ण
के
अवतरण
का
उल्लेख
),
४.५७
(
प्रत्येक
मास
की
कृष्णाष्टमी
में
करणीय
शिव
व्रत
का
वर्णन
),
भागवत
१.८
(
उत्तरा
के
गर्भ
की
रक्षा
के
लिए
कुन्ती
द्वारा
स्तुति
),
१.९
(
भीष्म
द्वारा
मृत्यु
से
पूर्व
कृष्ण
की
स्तुति
),
१०.३
(
कृष्ण
का
प्राकट्य,
पृथ्वी
पर
मंगल
स्थिति
),
१०.३
(
जन्म
समय
में
वसुदेव
व
देवकी
द्वारा
स्तुति
),
१०.९
(
उखल
बन्धन,
दाम
का
२
अङ्गुल
ह्रस्व
होना,
यमलार्जुन
का
उद्धार
),
१०.२१
(
वेणु
संगीत
की
मधुरता
का
वर्णन
),
१०.२६
(
कृष्ण
की
महिमा
),
१०.२८
(
नन्द
को
वरुण
से
मुक्त
कराना,
गोपों
को
निज
स्वरूप
का
दर्शन
कराना
),
१०.३५
(
गोपियों
द्वारा
कृष्ण
के
वैभव
का
वर्णन
),
१०.३९
(
अक्रूर
के
साथ
मथुरा
गमन
पर
गोपियों
की
व्याकुलता
),१०.४०.१३
(
विराट
रूप
का
न्यास
),
१०.५०
(
बलराम
सहित
जरासन्ध
से
युद्ध
),
१०.५२
+
( रुक्मिणी
हरण
),
१०.५९
(
नरकासुर
द्वारा
कैद
१६
सहस्र
राजकुमारियों
से
विवाह
),
१०.६१
(
कृष्ण
के
पुत्रों
के
नाम
),
१०.६३
(
शिव
से
युद्ध
),
१०.६९
(
विभिन्न
रूपों
में
युगपद्
उपस्थिति,
नारद
द्वारा
दर्शन
),
१०.७०
(
नित्यचर्या
का
वर्णन
),
१०.७१
(
युधिष्ठिर
के
राजसूय
हेतु
इन्द्रप्रस्थ
आगमन
),
१०.७३
(
जरासन्ध
द्वारा
बन्धित
राजाओं
द्वारा
स्तुति
),
१०.८४
(
मुनियों
द्वारा
स्तुति
),
१०.८९
(
ब्राह्मण
बालक
की
अर्जुन
द्वारा
प्राणरक्षा
में
असफलता
पर
स्वयं
अनन्त
से
मिलना,
प्राणरक्षा
),
११.६
(
देवों
द्वारा
कृष्ण
से
स्वधाम
गमन
की
प्रार्थना
),
११.३०
(
जरा
द्वारा
शर
भेदन,
परलोक
गमन
),
मत्स्य
४७
(
वसुदेव
व
देवकी
-
पुत्र,
कंस
भय
से
वसुदेव
द्वारा
कृष्ण
को
नन्दगोप
के
घर
पहुंचाना,
कृष्ण
की
भार्याओं
व
पुत्रों
के
नाम
),
५६
(
कृष्ण
पक्ष
की
सभी
अष्टमी
तिथियों
में
करणीय
शिव
पूजन
व
व्रत
की
विधि
तथा
माहात्म्य
),
१०१.५८
(
कृष्ण
व्रत
का
संक्षिप्त
माहात्म्य
),
१७२.१(
मनुष्यों
में
विष्णु
के
कृष्ण
रूप
की
प्रधानता
का
उल्लेख
),
लिङ्ग
१.५०.१२
(
कृष्ण
पर्वत
पर
गन्धर्वों
के
वास
का
उल्लेख
),
१.६९.६४
(
कृष्ण
के
पुत्र,
पत्नी
तथा
स्वर्ग
गमन
का
वृत्तान्त
),
वराह
४६
(
कृष्ण
द्वादशी
व्रत
का
माहात्म्य
:
द्वादशी
व्रत
के
प्रभाव
से
अपुत्रवती
देवकी
का
पुत्रवती
होना
),
वामन
६.२
(
ब्रह्मा
के
हृदय
से
प्रकट
धर्म
तथा
दाक्षायणी
के
चार
पुत्रों
में
से
एक
),
वायु
२३.२३/१.२३.२२(
३२वें
कल्प
का
नाम
;
कृष्ण
से
श्वेत
होने
का
कथन
),
१.३९.५९(
कृष्ण
पर्वत
पर
गन्धर्वों
के
वास
का
उल्लेख
),
५०.२१(
पाण्डुभौम
नामक
द्वितीय
तल
में
कृष्ण
प्रभृति
असुरों
के
नगरों
का
उल्लेख
),
९६.१९४
(
परम
प्रकाशमान्
भगवान
का
ही
योगेश्वर
कृष्ण
रूप
में
प्रादुर्भाव
का
उल्लेख
),
९६.२०१
(
जन्म
समय
में
नक्षत्र,
मुहूर्त
आदि
की
स्थिति,
वसुदेव
द्वारा
कृष्ण
को
नन्दगोप
के
घर
पहुंचाने
का
वृत्तान्त
),
९६.२३३
(
कृष्ण
की
रुक्मिणी,
सत्यभामा
प्रभृति
पटरानियों
व
उनके
पुत्रों
के
नामों
का
कथन
),
विष्णु
४.१३
(
स्यमन्तक
मणि
हरण
के
मिथ्या
कलङ्क
से
मुक्ति
की
कथा
),
५.३
(
कृष्ण
जन्म
कालिक
वृत्तान्त
:गोकुल
में
स्थान्तरण
),
५.५(
कृष्ण
की
बाललीला
के
अन्तर्गत
पूतना
वध
का
वृत्तान्त
),
५.१२
(
इन्द्र
कोप
से
रक्षा
हेतु
कृष्ण
द्वारा
गोवर्धन
धारण,
इन्द्र
द्वारा
कृष्ण
की
स्तुति
व
अभिषेक
),
५.१९+
( मथुरा
में
प्रवेश
व
विविध
लीलाओं
का
वर्णन
),
५.२०.९४
(
कंस
वध
पर
वसुदेव
-
कृत
कृष्ण
स्तुति
),
५.२१.१८
(
सान्दीपनि
से
विद्या
ग्रहण,
पञ्चजन
असुर
का
वध
),
५.३७.६९
(
जरा
व्याध
द्वारा
वेधन,
परम
धाम
गमन
),
विष्णुधर्मोत्तर
२.८.२३(
चतुष्कृष्ण
पुरुष
के
लक्षण
-
नेत्रतारे
भ्रुवौ
श्मश्रुः
कृष्णाः
केशास्तथैव
च
।।यस्येह
स
चतुष्कृष्णः
प्रोच्य
ते
मनुजोत्तमः
।।
),
३.४७.५(
अज्ञान
के
कृष्ण
व
विद्या
के
शुक्ला
होने
का
कथन
),
शिव
५.१.७
(
पुत्र
प्राप्ति
हेतु
कृष्ण
का
कैलास
पर्वत
पर
गमन,
कैलास
पर
तपोरत
उपमन्यु
ऋषि
से
कृष्ण
का
शिव
-
माहात्म्य
के
विषय
में
प्रश्न,
उपमन्यु
द्वारा
शिव
माहात्म्य
का
वर्णन
),
५.२
(
कृष्ण
के
प्रश्न
करने
पर
उपमन्यु
द्वारा
शिवाराधना
से
कामनाओं
की
प्राप्ति
करने
वाले
शिव
भक्तों
का
वर्णन
),
५.१९.४१
(
गोलोक
में
सुशीला
नामक
गायों
के
पालक
रूप
में
कृष्ण
का
उल्लेख
),
५.३३.१७
(
७
प्रजापतियों
में
से
एक
),
७.२.१(
उपमन्यु
से
कृष्ण
को
पाशुपत
व्रत
की
प्राप्ति,
तप
से
तुष्ट
शिव
से
कृष्ण
को
साम्ब
पुत्र
की
प्राप्ति
का
वर्णन
),
स्कन्द
२.२.१२.५०
(
सुदर्शन
चक्र
द्वारा
काशिराज
के
शिर
छेदन
का
उल्लेख
),
३.१.२७.३२
(
कृष्ण
द्वारा
कंस
के
वध
तथा
नारद
के
कथनानुसार
कोटि
तीर्थ
में
स्नान
से
मातुल
वध
दोष
से
निवृत्ति
का
वृत्तान्त
),
४.२.६१.२३२
(
कृष्ण
मूर्ति
के
शङ्ख,
गदा,
पद्म
तथा
चक्र
से
युक्त
होने
का
उल्लेख
),
५.१.२७
(
सान्दीपनि
-
पुत्र
प्राप्ति
हेतु
कृष्ण
द्वारा
ग्राह
रूपी
पञ्चजन
दैत्य
का
वध,
शङ्ख
प्राप्ति,
वरुण
से
रथ
प्राप्ति,
यम
से
युद्ध
तथा
गुरु
-
पुत्र
की
प्राप्ति
का
वृत्तान्त
),
५.१.३३
(
उज्जयिनी
में
कृष्ण
द्वारा
केशवादित्य
की
स्थापना
तथा
१०८
नाम
स्तोत्र
पठन
),
५.१.४१.१८
(
कृष्ण
शब्द
की
निरुक्ति
:
चराचर
जगत
का
विलेखन
),
५.३.४८.१५
(शची
हरण
प्रसंग
में
अन्धक
द्वारा
कृष्ण
की
स्तुति
),
५.३.१३२.११
(
कृष्ण
को
एक
बार
प्रणाम
से
१०
अश्वमेधों
के
तुल्य
फल
प्राप्ति
का
कथन
),
५.३.१९२.१०
(
धर्म
व
साध्या
के
४
पुत्रों
में
से
एक
),
६.२१३.९१(
कृष्ण
से
जानुयुगल
की
रक्षा
की
प्रार्थना
),
७.१.११८.११
(
हंस
रूप
कृष्ण
की
१६
कलाओं
रूपी
गोपियों
का
नामोल्लेख
),
७.१.२४०
(
कृष्ण
के
देहत्याग
के
स्थान
पर
पूजन
से
स्वर्ग
प्राप्ति
का
उल्लेख
),
७.३.३४
(
कृष्ण
तीर्थ
के
निर्माण
के
हेतु
का
कथन
तथा
ब्रह्मा
-
विष्णु
की
लिङ्ग
के
अन्त
का
दर्शन
करने
की
स्पर्धा
की
कथा
),
७.४.२
(
कृष्ण
और
रुक्मिणी
द्वारा
रथ
का
वाहन
बनकर
दुर्वासा
ऋषि
को
द्वारका
में
लाने
की
कथा
),
७.४.१७
(
कृष्णपूजा
विधि
के
अन्तर्गत
कृष्णपुरी
के
द्वारपालों
व
क्षेत्रपालों
के
पूजन
का
कथन
),
७.४.२१.१०
(
विभिन्न
मासों
व
तिथियों
में
कृष्ण
पूजा
का
फल
),
७.४.२३
(
कलियुग
में
कृष्ण
कथा
के
श्रवण,
पठन
से
यमलोक
गमन
से
मुक्ति
तथा
कृष्ण
पूजा
के
माहात्म्य
का
वर्णन
),
हरिवंश
२.४.१२
(
अभिजित्
मुहूर्त
में
देवकी
के
गर्भ
से
कृष्ण
का
प्राकट्य
),
२.६
(
शकट
भङ्ग
तथा
पूतना
वध
रूप
कृष्ण
लीला
का
वर्णन
),
२.७
(
यमलार्जुन
भङ्ग
रूप
कृष्ण
लीला
का
वर्णन
),
२.११(
कृष्ण
की
अङ्ग
शोभा
तथा
कालियनाग
के
निग्रह
का
विचार
),
२.१२
(
कृष्ण
द्वारा
कालिय
नाग
के
दमन
का
वर्णन
),
२.१९
(
इन्द्र
द्वारा
कृष्ण
की
स्तुति
तथा
गोविन्द
पद
पर
अभिषेक
का
वर्णन
),
२.२४.६५
(
केशी
वध
से
केशव
नाम
प्राप्ति
),
२.३९
(
मथुरा
से
पलायन
का
प्रसंग
),
२.५०
(
क्रथ
कैशिक
द्वारा
कृष्ण
को
राज्य
का
समर्पण
तथा
कृष्ण
के
राजेन्द्र
पद
पर
अभिषेक
का
वर्णन
),
२.६०.४०
(
कृष्ण
द्वारा
रुक्मी
की
पराजय,
रुक्मिणी
आदि
के
साथ
विवाह,
कृष्ण
-
संततियों
का
वर्णन
),
२.७४.२२
(
कृष्ण
द्वारा
बिल्वोदकेश्वर
शिव
की
पूजा
व
स्तुति
का
वर्णन
),
२.१०१
(
नारद
द्वारा
यादवों
की
सभा
में
कृष्ण
के
प्रभाव
का
वर्णन
),
२.१०३
(
कृष्ण
सन्तति
का
वर्णन
),
२.११४
(
कृष्ण
द्वारा
अर्जुन
को
अपने
यथार्थ
स्वरूप
का
परिचय
),
२.११५
(
कृष्ण
के
पराक्रमों
का
संक्षिप्त
वर्णन
),
३.७३+
( कृष्ण
की
कैलास
यात्रा
का
प्रसंग
),
३.७७+
( बदरिकाश्रम
में
कृष्ण
का
आगमन,
ऋषियों
द्वारा
आतिथ्य-सत्कार,
कृष्ण
की
समाधि
का
वर्णन
),
३.८४+
( कृष्ण
द्वारा
कैलास
पर
तप,
देवों
सहित
शिव
का
आगमन,
कृष्ण
द्वारा
महादेव
की
स्तुति
का
वर्णन
),
३.८९
(
शङ्कर
प्रोक्त
कृष्ण
महिमा
का
वर्णन
),
३.१००+
( कृष्ण
का
द्वारका
में
आगमन,
पौण्ड्रक
से
संवाद,
कृष्ण
व
पौण्ड्रक
का
युद्ध,
कृष्ण
द्वारा
पौण्ड्रक
के
वध
का
वर्णन
),
लक्ष्मीनारायण
१.२०४.७७
(
कृष्ण
की
कृषक
रूप
में
व्याख्या
-
वपते
कर्षुको
बीजं
जलं
सिञ्चति
कर्षुकः
।।
रक्षति
कर्षुकः
खाद्यं
ददात्यपि
च
कर्षुकः
।..),
१.२०४.१०९
(
कृष्ण
नाम
की
निरुक्तियां
-
कृषिश्च
सर्ववचनो
नकारश्चात्मवाचकः
।।
सर्वात्मा
च
परब्रह्म
स्वयं
कृष्णः
प्रकीर्तितः
।..
), १.२६४.१४(
कृष्ण
की
शक्ति
सुलक्षणा
का
उल्लेख
),
१.३८५.२(कृष्ण
शब्द
की
निरुक्तियां),
२.६.७
(
कृष्ण
शब्द
की
निरुक्ति
-
सर्वदुःखहरश्चाऽयं
हरिरित्यभिधीयते
।
दुःखानां
कर्षणात्
कृष्णो
नरस्थत्वान्नरायणः
।।
),
२.३६.७(
कृष्ण
द्वारा
गुरु
से
प्राप्त
विद्याओं
के
नाम
),
२.६०.३१(
कृष्ण
द्वारा
उदय
राजा
को
विराट
रूप
के
दर्शन,
राजा
द्वारा
कृष्ण
की
स्तुति
),
२.६८.७५
(
सभाजनों
द्वारा
कृष्ण
के
विराट
व
दिव्य
रूप
का
दर्शन
),
२.७९.१६(
कृष्ण
के
मनोहर
रूप
का
वर्णन
),
२.१६५.३७
(२८
कन्याओं
द्वारा
कृष्ण
की
स्तुति
),
२.२५२.१०५(
दिवस
में
कृष्ण
व
रात्रि
में
हरि
के
भजन
का
उल्लेख
)
, २.२६१.१४
(कृष्ण
शब्द
की
निरुक्ति
-
कर्षत्येव
जगत्सर्वं
सर्वाः
सृष्टिस्तनौ
क्वचित्
।
नयत्येव
लयं
सर्वं
कृष्णस्तेन
प्रकीर्तितः
।।..
), २.२९७.८२(
विभिन्न
पत्नियों
के
गृहों
में
कृष्ण
द्वारा
विभिन्न
कृत्य
सम्पन्न
करने
का
वर्णन
),
३.१०८
(
सर्वबाधानाशक,
सर्वेष्टप्रद
कृष्ण
सहस्रनाम
स्तोत्र
का
कथन
),
३.१९०
(
लुण्ठकों
द्वारा
त्रस्त
सौराष्ट्र
देशीय
भक्तों
की
कृष्ण
से
रक्षार्थ
प्रार्थना
का
वर्णन
),
३.१९१
(
विभिन्न
रूपों
में
कृष्ण
द्वारा
भक्तों
पर
कृपा
का
वर्णन
),
३.२३५.३१
(
कृष्ण
द्वारा
रक्षित
भक्तों
के
नामों
का
कथन
),
४.१०१(
कृष्ण
की
१०८
पत्नियों
व
पुत्र
-
पुत्रियों
के
नामों
का
कथन
),
कथासरित्
१.७.१५
(
भरद्वाज
मुनि
के
शिष्य
कृष्ण
नामक
ऋषि
के
ही
शापवश
राजा
सातवाहन
के
रूप
में
पृथ्वी
पर
अवतीर्ण
होने
का
उल्लेख
);
द्र.
जयकृष्ण,
मीनार्ककृष्ण,
रामकृष्ण
।
Krishna
कृष्ण संसार में कर्षण है, संघर्ष है सफलता - असफलता का, मान - अपमान का, सुख - दुःख का । जहां यह द्वन्द्व समाप्त हो जाता है , वह कृष्ण है । - फतहसिंह
Comments on Krishna
Vedic contexts on Krishna
कृष्णकल्प वायु २३.७४ ( महेश्वर के कृष्णवर्ण होने पर कल्प के कृष्णकल्प नाम से प्रथित होने का उल्लेख ) ।
कृष्णकुमार भविष्य ३.३.५.१० ( देवपाल व कीर्तिमालिनी के तीन पुत्रों में से एक, पृथ्वीराज - अग्रज, धुन्धुकार - अनुज ), ३.३.६.५० ( कृष्णकुमार द्वारा जयचन्द्र - सेनानी विद्योत के वध का उल्लेख ), ३.३.६.५४ ( जयचन्द्र - अनुज रत्नभानु से युद्ध में कृष्णकुमार की मृत्यु ) ।
कृष्णगङ्गा वराह १७५.१ ( अपर नाम यमुना, कालिन्दी; कृष्णगङ्गा के प्रभाव का कथन ) ।
कृष्णगिरि ब्रह्माण्ड १.२.१६.२२ ( भारतवर्ष के अनेक पर्वतों में से एक ), वायु ४५.९१ ( वही) ।
कृष्णचैतन्य भविष्य ३.४.१९.४, ३.४.२४.५३ - ५५ ( कृष्णचैतन्य के यज्ञांश होने का उल्लेख ) ।
कृष्णतीर्थ मत्स्य २२.३८ ( पितर श्राद्ध हेतु कृष्णतीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ) ।
कृष्णतोया वायु ४३.२८ ( भद्राश्व देश की अनेक नदियों में से एक ) ।
कृष्णद्वैपायन ब्रह्माण्ड २.३.८.९२ ( काली में पराशर से कृष्ण द्वैपायन की उत्पत्ति तथा अरणि में द्वैपायन से शुक की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.४.५० ( कृष्ण द्वैपायनोक्त पुराण के श्रवण से पापमुक्ति तथा पुण्य प्राप्ति का कथन ), भागवत १.४.३२ ( स्वयं को अपूर्ण सा मानकर खिन्न हुए कृष्ण द्वैपायन व्यास के आश्रम पर नारद के आगमन का उल्लेख ), ९.२२.२२ ( शुकदेव का सत्यवती व पराशर से उत्पन्न स्व - पिता कृष्ण द्वैपायन व्यास से भागवत पुराण के अध्ययन का उल्लेख ), १२.४.४१ ( नारायण द्वारा नारद को, नारद द्वारा कृष्णद्वैपायन व्यास को तथा कृष्ण द्वैपायन द्वारा शुकदेव को भागवत पुराण के उपदेश का कथन ), मत्स्य ५०.४६ ( कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र में धृतराष्ट्र तथा पाण्डु को उत्पन्न करने का उल्लेख ), १८५.३० ( महादेव द्वारा पार्वती को कृष्णद्वैपायन व्यास के साक्षात् नारायणत्व तथा क्रोध के हेतु का कथन, शिव -पार्वती का मनुष्य रूप में व्यास को भिक्षा प्रदान करना ), वायु ७०.८४ ( काली व पराशर के संयोग से कृष्णद्वैपायन की उत्पत्ति, अरणि में द्वैपायन से शुक की उत्पत्ति ), ९९.२४१( शन्तनु - पुत्र विचित्रवीर्य के क्षेत्र / पत्नी में कृष्णद्वैपायन द्वारा धृतराष्ट्र, पाण्डु व विदुर को उत्पन्न करने का उल्लेख ), विष्णु ३.३.१९ ( २८वें द्वापर के वेदव्यास के रूप में कृष्णद्वैपायन का उल्लेख ), ३.४.५ (कृष्णद्वैपायन व्यास के नारायणत्व तथा महाभारत कर्त्तृत्व का उल्लेख ),४.२०.३८ ( कृष्णद्वैपायन द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र में धृतराष्ट्र व पाण्डु तथा दासी में विदुर को उत्पन्न करने का उल्लेख ), ६.२.३२ ( कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा मुनियों को कलियुग में धर्म सिद्धि विषयक उपदेश का कथन ) । krishnadvaipaayana/ krishnadwaipaayana
कृष्णपक्ष ब्रह्माण्ड ३.४.३२.१५ ( महाकाल के आसनभूत षोडशदल कमल की कला, काष्ठा आदि सोलह शक्तियों में से एक ), वायु ५२.३७ ( शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा के पूर्ण होने पर कृष्णपक्ष में देवों द्वारा चन्द्र - अमृत को पीने का उल्लेख ), ५७.९ ( कृष्णपक्ष पितरों का दिव तथा शुक्लपक्ष पितरों की रात्रि होने का उल्लेख ), ८३.८० ( शुक्लपक्ष के पूर्वाह्न में तथा कृष्णपक्ष के अपराह्न में श्राद्ध सम्पन्न किए जाने का उल्लेख ) ।
कृष्णप्रेमामृत ब्रह्माण्ड २.३.३४.५०, ५३ ( मृग द्वारा परशुराम को कृष्णप्रेमामृत स्तोत्र से सफलता मिलने का कथन ), २.३.३६.१०, ४३ ( अगस्त्य द्वारा परशुराम को कृष्णप्रेमामृत स्तोत्र के माहात्म्य का कथन ), २.३.३७.१० ( अगस्त्य के कथनानुसार परशुराम द्वारा कृष्णप्रेमामृत स्तोत्र का स्तवन तथा कृष्ण के साक्षात् दर्शन ) । krishnapremaamrita
कृष्णमन्त्र ब्रह्माण्ड २.३.३१.३७ ( कार्य सिद्धि हेतु ब्रह्मा का परशुराम को शिव से कृष्णमन्त्र - प्राप्ति का परामर्श ) ।
कृष्णमातृका नारद १.६६
कृष्णमृग वामन ३५.५१ ( मानुष तीर्थ में स्नान करके बाण पीडित कृष्णमृगों का मनुष्यत्व को प्राप्त होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३८०.३९(पतिव्रता मृगी के प्रभाव से दावानल का शान्त होकर कृष्ण मृग बनने का उल्लेख ) ।
कृष्णयश लक्ष्मीनारायण ३.१७.८१ ( कृष्णयश नामक विप्र के पुत्र रूप में चतुर्मुख नारायण के प्राकट्य का कथन )
कृष्णवेणी पद्म ६.१११.२६ ( कृष्णा और वेण्या नदियों के क्रमश: विष्णु और महेश्वर रूप होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३४ ( सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिण दिक् प्रवाही वेणा नदी की पितर श्राद्ध हेतु प्रशस्तता ), मत्स्य २२.४६ ( पितर श्राद्ध हेतु कृष्णवेणा नदी की प्रशस्तता का उल्लेख ), ५१.१३ ( हव्यवाहन अग्नि द्वारा कृष्णवेणा प्रभृति १६ नदियों के साथ पृथक् - पृथक् विहार का उल्लेख ), ११४.२९ ( सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिणापथ की नदियों में से एक ), १६३.६१ ( हिरण्यकशिपुद्वारा क्षुब्ध तथा प्रकम्पित नदियों , पर्वतों, नगरी में से एक ), वायु २९.१३ ( कृष्णवेणी : हव्यवाहन अग्नि द्वारा कृष्णवेणी प्रभृति १६ नदियों में स्वयं को प्रविभक्त करके १६ धिष्णि पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), १०८.८१( कृष्णवेण्या : मुक्तिदायिनी कृष्णवेण्या नदी में स्नान कर पिण्डदान करने से पितरों को स्वर्ग प्राप्त होने का उल्लेख ), शिव १.१२.१५ ( अष्टादशमुखा कृष्णवेणा नदी का संक्षिप्त माहात्म्य ) । krishnaveni
कृष्णव्रत मत्स्य १०१.५८ ( विष्णुलोक प्रापक कृष्णव्रत में स्वर्णनिर्मित विष्णु चक्र के दान का उल्लेख ) ।
कृष्णशक्ति कथासरित् १८.५.५२ ( बन्धुओं से तिरस्कृत कृष्णशक्ति नामक राजकुमार का विक्रमादित्य के समीप पहुंचना और कार्पटिक बनना, सेवा से प्रसन्न होकर विक्रमादित्य द्वारा कार्पटिक को खण्डवटक का राज्य प्रदान करने की कथा ) ।
कृष्णसूत्र ब्रह्माण्ड ३.४.२.१५० ( घोर नरकों में से एक ), वायु १०१.१४९ ( वही) ।
कृष्णा पद्म ६.१११.३ ( स्वरा द्वारा शापित विष्णु के कृष्णा नदी रूप होने का कथन ), ६.१११.८६ ( सावित्री के शाप से विष्णु के कृष्णा नदी बनने का उल्लेख ), भागवत १.७.१४( द्रौपदी का एक नाम ), १०.२.१२ ( योगमाया का एक नाम ), वामन ९०.२( कृष्णा तीर्थ में विष्णु का हयशीर्ष नाम से वास ), वायु ४५.१०४ ( सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिणापथ की अनेक नदियों में से एक ), ६९.१७० ( खशा की सात पुत्रियों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.४७.१( संसार में सारी विकृति के कृष्णा होने तथा संसार की पालक होने का उल्लेख ),३.४७.३( कृष्ण की वनमाला के कृष्णा होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३८५.४३( कृष्ण-पत्नी कृष्णा का कार्य), १.४२४.२०( कृष्णा के नाश हेतु कृष्ण का उल्लेख ), २.८०.७६ ( राजा बलेशवर्मा की तीन पुत्रियों में से एक, कृष्णा द्वारा वनेचर रूप धारी कृष्ण नारायण को स्वमांस प्रदान करने का उल्लेख ), २.८१ ( बलेश्वर- पुत्री कृष्णा का कृष्णा नदी रूप से स्थित होना, कृष्णा के तप पर श्री हरि का कृष्णानिवास नाम से विराजित होने का कथन ) । krishnaa
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कृष्णाङ्गना वायु ३४.८७ ( चतुर्थ दिग्देश में विरूपाक्ष की कृष्णाङ्गना नामक सभा का उल्लेख ) ।
कृष्णाङ्गमणिपुञ्जक वायु ४४.१० ( केतुमाल के अनेक जनपदों में से एक ) ।
कृष्णाजिन भविष्य ४.१८८ ( कृष्णाजिन दान विधि का वर्णन ), मत्स्य ४७.८६ ( असुरों का कृष्णाजिन धारणकर काव्य - माता के पास गमन ), ८२.३ ( गुडधेनु - दान विधि में ४ हाथ लम्बे कृष्णाजिन को बिछाने का उल्लेख ), २०४.११ ( श्राद्ध कर्म में कृष्णाजिन दान की प्रशस्तता का उल्लेख ), २०६ ( कृष्णाजिन दान विधि व माहात्म्य ), २४५.८५ ( ब्रह्मा द्वारा वामन रूपधारी विष्णु को कृष्णाजिन प्रदान करने का उल्लेख ), २७९.५ ( कामधेनु दान विधि में कृष्णाजिन के ऊपर एक प्रस्थ गुड तथा स्वर्णनिर्मित धेनु की स्थापना का उल्लेख ), वायु २५.३४ ( कमलनाल के सहारे रसातल में पहुंच जाने पर ब्रह्मा द्वारा जल के भीतर कृष्णाजिन व उत्तरीय धारी विष्णु के दर्शन ), २५.८१ ( कृष्णाजिन - विभूषित ब्रह्मा द्वारा मन, भूतों आदि की सृष्टि का कथन ), ३०.२२१ ( कृष्णाजिनोत्तरीय : दक्ष - कृत महादेव स्तुति में महादेव का एक नाम ), ७४.४/२.१२.४ ( पितृकार्य में कृष्णाजिन के सान्निध्य, दर्शन अथवा दान की प्रशस्तता का उल्लेख ), ९९.४१०/२.३७.४०४ ( कलियुग के अन्त में विपत्तिग्रस्त प्रजा के कृष्णाजिन धारण का उल्लेख ), विष्णु १.११.३१ ( पितृगृह से निर्गत ध्रुव द्वारा वन में कृष्णाजिनों पर आसीन सप्तर्षियों के दर्शन ), ६.६.२० ( कृष्णाजिन धारी राजा केशिध्वज का प्रायश्चित्त पृच्छा हेतु खाण्डिक्य के समीप गमन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.४२.४ ( ऋषियों के रूप निर्माण में उन्हें कृष्णाजिन - उत्तरासंग युक्त दिखाने का निर्देश ), ३.३०१.३१( कृष्णाजिन प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), लक्ष्मीनारायण १.५१२.३७( अवभृथ स्नान के समय इन्द्र द्वारा गजारूढ होकर मृगचर्म/कृष्णसारमृग फेंकने का कथन ) । krishnaajina
कृष्णाष्टमी मत्स्य ५६.१-११ ( कृष्णाष्टमी व्रत विधि तथा माहात्म्य का वर्णन : कृष्णपक्ष की प्रत्येक अष्टमी को शङ्कर की पूजा बारह मासों में बारह नामों से करने का कथन ) ।
केकय महाभारत महाभारत विराट दाक्षिणात्य पृष्ठ १८९३(राजा केकय के सूतों के अधिपति होने का कथन, मालवी – द्वय पत्नियों से कीचक पुत्रों व सुदेष्णा कन्या के जन्म का कथन), शान्ति ७७(राक्षस द्वारा अपहृत होने पर कैकेयराज का राक्षस से संवाद), वायु ९९.२३/२.३७.२४ ( शिबि के ४ पुत्रों में से एक, तुर्वस्वादि वंश ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.५( केकय देश में भरत की पूजा का निर्देश ), द्र. कैकय kekaya ।
केकरी मत्स्य १७९.१८ ( अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक ) ।
केका ब्रह्म १.३४.७१( मन्त्र ध्वनि से हर्षित मयूरों द्वारा केका ध्वनि करने का उल्लेख ), वामन १.१७(बर्हिणों द्वारा केकारव करने का उल्लेख), महाभारत आश्रमवासिक ३४.१०(नीलकण्ठ द्वारा केकारव करने का उल्लेख) ।
केतकी गर्ग २.२०.३२ ( कुमुद वन में कृष्ण का शृङ्गार करते हुए राधा द्वारा उन्हें मोहिनी, मालिनी, कुन्द व केतकी पुष्पों से निर्मित हार धारण कराने का उल्लेख ), देवीभागवत ५.३३.३४ ( ब्रह्मा व विष्णु की लिङ्ग - अन्त दर्शन की स्पर्द्धा में केतकी पुष्प द्वारा ब्रह्मा के पक्ष में मिथ्या साक्षी, शिव पूजा में केतकी पुष्प के वर्जित होने का वृत्तान्त ), १२.६.३५ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), नारद १.९०.७२( केतकी पुष्पों द्वारा देवी पूजा से वाहन सिद्धि का उल्लेख ), पद्म १.२८.३१ ( केतकी पुष्प का शत्रुनाशक रूप में उल्लेख ), ६.१२१.१३ ( केतकी पुष्पों से केशवार्चन का माहात्म्य ), स्कन्द १.१.६.३७ ( ब्रह्मा द्वारा लिङ्ग के मस्तक के अन्वेषण के विषय में सुरभि व केतकी द्वारा मिथ्या साक्षी, आकाशवाणी द्वारा केतकी को शिवपूजा में अयोग्यता रूप शाप देने का वर्णन ), ७.३.३४.२२ ( ब्रह्मा के पक्ष में मिथ्या साक्षी से केतकी पुष्प को शाप प्राप्ति का वृत्तान्त ) । ketaki / ketakee
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केतन ब्रह्माण्ड ३.४.२८.१०४ ( विशुक्र के रथ - सारथि केतन का श्यामला द्वारा वध का उल्लेख ) ।
केतव वायु ६०.६६ ( ऋग्वेद शाखा प्रवर्तक रथीतर के चार शिष्यों में से एक ) ।
केतु पद्म ६.५.९० ( जालन्धर व इन्द्र के युद्ध में केतु के वैश्वानर के साथ युद्ध का उल्लेख - यमो दुर्वारणं वीरं स्वर्भानुश्चंद्रभास्करौ।। केतुं वैश्वानरो देवो ययौ शुक्रं बृहस्पतिः। ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.९० ( केतु के रथ के पलाल व धूम्रवर्णीय अष्ट अश्वों से युक्त होने का उल्लेख ), १.२.२४.१३९ ( केतुग्रहों में धूमकेतु के आदि होने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१२.३४(सुमेरु के सार से केतु के निर्माण का उल्लेख -- सुमेरोश्च तथा सारात्केतुं कृत्वा रथस्य वै । ददौ शिवाय महते यानं स्यन्दनरूपि तत् ।। ), ३.४.१७.४९ ( ध्रुव व वासुदेवी से केतु ग्रह की उत्पत्ति का उल्लेख - वासुदेव्यां ध्रुवाज्जातः केतुर्नाम महाग्रहः।। ग्रहभूतः स्थितस्तत्र नभोदेव्यां तदुद्भवः ।। राहुर्नाम तथा घोरो महाग्रह उपग्रहः ।। ), ३.४.२५.४२ ( विष्णुयशा नामक द्विज के गृह में श्री हरि के प्रादुर्भूत होने पर समस्त देवों द्वारा श्रीहरि की स्तुति के क्रम में केतु द्वारा स्तुति तथा स्वयं की ब्रह्माण्ड गुह्य से उत्पत्ति का कथन ; केतु द्वारा भौत मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख -- ब्रह्माण्डलिङ्गतो जातो राहुश्चाहं तव प्रियः ।…..ब्रह्माण्डगुह्यतो जातः केतुश्चाहं तवानुगः ।), भागवत ५.४.१० ( ऋषभदेव के १०० पुत्रों में से एक ), ५.२३.७ ( शिशुमार चक्र वर्णन में शिशुमार के समस्त अङ्गों में केतुओं की स्थिति का उल्लेख -- राहुर्गले केतवः सर्वाङ्गेषु रोमसु सर्वे तारागणाः ॥ एतदु हैव भगवतो विष्णोः सर्वदेवतामयं रूपम ), ६.६.३७ ( सिंहिका व विप्रचित्ति के १०१ पुत्रों में से ज्येष्ठ का राहु तथा शेष सौ पुत्रों का केतु नाम से उल्लेख -- विप्रचित्तिः सिंहिकायां शतं चैकमजीजनत्। राहुज्येष्ठं केतुशतं ग्रहत्वं य उपागताः ।। ), ८.१.२७ ( चतुर्थ तामस मनु के दस पुत्रों में से एक ), मत्स्य ६.१८ ( कश्यप व दनु के १०० दानव पुत्रों में से एक ), ४८.६ ( ययाति - पुत्र द्रुह्यु के दो पुत्रों में से द्वितीय -- द्रुह्योस्तु तनयौ शूरौ सेतुः केतुस्तथैव च। सेतुपुत्रः शरद्वांस्तु गन्धारस्तस्य चात्मजः।। ), ९३.१२ ( लोकहितकारी नौ ग्रहों में केतु का उल्लेख, नवग्रह शान्ति विधि का वर्णन ), ९३.१५( केतु के अधिदेवता चित्रगुप्त तथा राहु के अधिदेवता काल होने का उल्लेख - शनैश्चरस्य तु यमं राहोः कालं तथैव च।। केतौर्वै चित्रगुप्तञ्च सर्वेषामधिदेवताः।), ९३.६२( राहु के लिए आयस तथा केतु के लिए छाग दान का निर्देश - आयसं राहवे दद्यात् केतुभ्यश्छागमुत्तमम्। ), ९४.८( केतुओं के स्वरूप का कथन : धूम्र, द्विबाहु, विकृतानन, गृध्रासनगत आदि - नीलसिंहासनस्थश्च राहुरत्र प्रशस्यते। ध्रूम्रा द्विबाहवः सर्वे गदिनो विकृताननाः।। गृध्रासनगता नित्यं केतवः स्युर्वरप्रदाः।। ), १२८.६५( केतु ग्रह के मण्डल का आपेक्षिक मान ), १२७.११ ( ग्रहों के रथ वर्णन में केतु के रथ के धूम्रवर्णीय अष्ट अश्वों से युक्त होने का उल्लेख - ततः केतुमतस्त्वश्वा अष्टौ ते वातरंहसः।। पलालधूमवर्णाभाः क्षामदेहाः सुदारुणाः।), वायु ३५.४४ ( केतुवृक्ष : केतुमाल वर्ष के पार्श्व में स्थित वट वृक्ष का केतुवृक्ष के रूप में उल्लेख ), ५२.८२ ( ग्रहों के रथों के वर्णन में केतु के रथ के धूम्र तथा धूसर वर्णीय ६४ अश्वों से युक्त होने का उल्लेख ), ५३.१११ ( केतुग्रहों में धूमकेतु के आदि होने का उल्लेख - सर्वग्रहाणामेतेषामादिरादित्य उच्यते। ताराग्रहाणां शुक्रस्तु केतूनाञ्चैव धूमवान् ।।), ८८.१४९/२.२६.१४८( बर्हिकेतु व सुकेतु : कपिल की क्रोधाग्नि से सुरक्षित बचे सगर के ४ पुत्रों में से २ ), विष्णु २.२.१९ ( मेरु के चतुर्दिक पर्वतों पर जम्बू आदि वृक्षों का पर्वत केतुओं के रूप में नामोल्लेख ), २.१२.२३ ( केतु के रथ के पलाल तथा धूम्रवर्णीय आठ अश्वों से युक्त होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६.१०४( मृत्यु के नि:श्वास से केतु गृह की उत्पत्ति की कथा - दीर्घमुष्णं च निःश्वासं मुमोच वरवर्णिनी।। कृष्णसर्पसमाकारस्तस्मात्केतुरजायत। ), शिव २.५.८.१३(मोक्ष का शिव के रथ में ध्वज बनना - द्यौर्वरूथं रथस्यास्य स्वर्गमोक्षावुभौ ध्वजौ ।।), स्कन्द ३.१.७.७१( राम द्वारा स्थापित सेतु के केतु रूप होने का उल्लेख - दशकंठशिरश्छेदहेतवे सेतवे नमः ।। केतवे रामचंद्रस्य मोक्षमार्गैकहेतवे ।। ), ५.१.४४.२०( राहु के अमृत पी लेने पर विष्णु द्वारा चक्र से राहु के शिर का छेदन, सुधा पान से राहु की अमरता तथा चक्र छेदन से दो भागों की राहु - केतु के रूप में प्रसिद्धि ), ५.२.४४.३३ ( केतुग्रह द्वारा वासव / इन्द्र को पीडित करने का उल्लेख ), ६.२५२.३८( चातुर्मास में केतु की दर्भ में स्थिति का उल्लेख - राहुणा स्वीकृता दूर्वा पितॄणां तर्पणोचिता॥…… केतुना स्वीकृतो दर्भो याज्ञिकेयो महाफलः॥ ), महाभारत कर्ण ८७.९२( अर्जुन व कर्ण की ध्वजाओं की राहु - केतु से उपमा - तयोर्ध्वजौ हि विमलौ शुशुभाते रथे स्थितौ। राहुकेतू यथाऽऽकाशे उदितौ जगतः क्षये।। ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९१ ( केतु नामक देव के दर्भ रूप में अवतरण का उल्लेख - शनैश्चरः शमीवृक्षो राहुर्दुर्वात्मकोऽभवत् । केतुर्दर्भस्वरूपोऽभूत्तथा फलद्रुमोऽपि सः ।। ), २.१८४.७९ ( अल्पकेतु : श्री हरि के राजा अल्पकेतु की जीवनी नामक नगरी में आगमन का वर्णन ); द्र. अल्पकेतु, उरलकेतु, ग्रह, चन्द्रकेतु, चित्रकेतु, जीमूतकेतु, तालकेतु, तिग्मकेतु, दण्डकेतु, दीप्तिकेतु, धर्मकेतु, धृष्टकेतु, पातालकेतु, पुण्ड्रकेतु, मकरकेतु, माल्यकेतु, यज्ञकेतु, वज्रकेतु, विश्वकेतु, वीरकेतु, श्वेतकेतु, सत्यकेतु, सिंहकेतु, सुकेतु, हंसकेतु, । ketu
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केतु - पद्म ६.१२.३८ ( दैत्यों और शिव गणों के युद्ध में जालन्धर - सेनानी केतुमुख का शुभ्र के साथ युद्धोल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६.६ ( केतुवीर्य : कश्यप व दनु के १०० दानव पुत्रों में से एक ), मत्स्य ६.१८ ( केतुवीर्य : कश्यप व दनु के १०० दानव पुत्रों में से एक ), लिङ्ग १.४९.२८( ४ पर्वतों पर उत्पन्न कदम्ब आदि वृक्षों की द्वीपकेतु संज्ञा ), वायु ३५.२० ( मन्दर पर्वत के शृङ्ग पर स्थित एक महावृक्ष ), वा.रामायण ७.५.३८ ( केतुमती : नर्मदा - पुत्री, सुमाली - पत्नी, प्रहस्त, अकम्पन आदि १० पुत्रों तथा राका, पुष्पोत्कटा, कैकसी व कुम्भीनसी नामक ४ पुत्रियों की माता ), विष्णु ३.१.१९ ( केतुरूप : तामस मनु के चार पुत्रों में से एक ),
केतुमान् ब्रह्माण्ड १.२.११.४२ ( मार्कण्डेयी द्वारा पश्चिम दिशा में राजन, केतुमान् और प्रजापति को उत्पन्न करने का उल्लेख ), भागवत ९.६.१ ( अम्बरीष के तीन पुत्रों में से एक ), वायु २८.३७ ( रज व मार्कण्डेयी - पुत्र, प्रतीची दिशा में आश्रय प्राप्त करने का उल्लेख ), विष्णु १.२२.१३ ( लोकपितामह द्वारा रजि - पुत्र केतुमान् को पश्चिम दिशा का लोकपाल बनाने का उल्लेख ), २.८.८३ ( लोकालोक पर्वत पर स्थित चार लोकपालों में से एक ), शिव ३.४.१२ ( द्वितीय द्वापर में सुतार नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार शिष्यों में से एक ), ३.५.२९ ( इक्कीसवें द्वापर में दारुक नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार पुत्रों में से एक ), ७.२.९.१८ ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ), हरिवंश १.४.२० ( पृथु द्वारा रजस् - पुत्र केतुमान् का पश्चिम दिशा के दिक्पाल पद पर अभिषेक का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२४१.२४ ( सौराष्ट्र के अन्तर्गत भद्रावती नगर के राजा केतुमान् को पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी व्रत के प्रभाव से पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त ) । ketumaan
केतुमाल गर्ग ७.३१ ( केतुमाल वर्ष में प्रद्युम्न का आगमन, केतुमाल वासियों द्वारा कृष्ण का गुणगान, प्रजापति व्यति संवत्सर द्वारा भेंट का वर्णन ), देवीभागवत ८.९.१० ( केतुमाल वर्ष में लक्ष्मी द्वारा कामदेव रूपी हरि की स्तुति ), ब्रह्म १.१६.४५( लोकशैल/मेरु? के ४ पत्रों में से एक ), भागवत ५.२.१९( आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, देववीति - पति ), ५.१८.१५ ( केतुमाल वर्ष में भगवान् की कामदेव रूप से स्थिति तथा संवत्सर प्रजापति के पुत्रों, पुत्रियों द्वारा काम की उपासना ), वराह ७७.२५-२७ ( अश्वत्थ वृक्ष के केतु स्वरूप होने तथा माला से युक्त होने के कारण केतुमाल वृक्ष नाम से प्रसिद्धि, केतुमाल वृक्ष से चिह्नित होने के कारण उस वर्ष की केतुमाल वर्ष नाम से प्रसिद्धि का कथन ), वाय ३५.३८(अश्वत्थ वृक्ष के केतु पर इन्द्र - प्रदत्त माला की विराजमानता से द्वीप का केतुमाल नाम धारण),३५.४१( पश्चिम में विस्तृत द्वीप की ही केतु स्वरूप वृक्ष तथा माला से चिह्नित होने के कारण केतुमाल नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ४४.१ ( केतुमाल देश के पर्वतों, नदियों तथा निवासियों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१६४.९६ ( श्रीहरि द्वारा वृकायन तथा नीलकर्ण प्रभृति स्वभक्तों का माल्यवान् के पश्चिम में स्थित केतुमाल नामक महादेश में प्रेषण का कथन ), २.१७०.५८ ( श्रीकृष्ण के आगमन से केतुमाल देश की सार्थकता का कथन ), २.२९७.९७ ( केतुमालीय पत्नियों के गृहों में राजभूषा धारण करते हुए श्रीकृष्ण के दर्शन का उल्लेख ), ३.१२२.५७( केतुमाल में माताओं द्वारा कुमारी के दान का उल्लेख ), कथासरित् ८.५.७७ ( श्रुतशर्मा द्वारा केतुमालेश्वर क्षेत्र में उत्पन्न अश्विनी - पुत्रों दम और नियम नामक विद्याधरों को प्रभास से युद्ध हेतु प्रेषण का उल्लेख ) । ketumaala
केतुमाली वायु २३.१९६ ( २१वें द्वापर में विष्णु के अवतार दारुक के चार योगी पुत्रों में से एक ), हरिवंश २.१०५.४९ ( प्रद्युम्न द्वारा शम्बर - सेनानी केतुमाली के वध का वर्णन ) ।
केतुशृङ्ग वायु २३.१४९ ( दसवें द्वापर के भगवदावतार भृगु के चार पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.३१ ( पञ्चम मन्वन्तर में रैवत मनु के केतुशृङ्ग प्रभृति पुत्रों तथा देवादिकों का शान्तशत्रु नामक दैत्य द्वारा पीडन, हंस रूप धारी श्रीहरि द्वारा दैत्य के वध का वर्णन ) । ketushringa
केदार देवीभागवत ७.३८.२३ ( केदार क्षेत्र में मार्गदायिनी देवी के वास का उल्लेख ), नारद २.६५.६२(वृद्ध केदार तीर्थ का माहात्म्य), पद्म ३.२६.६९ ( कपिलकेदार व कपिष्ठलकेदार तीर्थों का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.१९० ( वृन्दा - पिता, जैगीषव्य के उपदेश से तप करना ), ४.८६.५ ( नन्दसावर्णि - पुत्र, ध्रुव - पौत्र, वृन्दा - पिता ), भविष्य २.२.८.१२७( केदार तीर्थ में महाश्रावणी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), ३.२.२६.१ ( केदारमणिपुर के राजा चन्द्रचूड की शत्रुओं से पराजय, सत्यदेव भगवान की आराधना से पुन: राज्य प्राप्ति का वर्णन ), भागवत १०.८८.१७ ( केदार तीर्थ में वृकासुर द्वारा शिव प्रीत्यर्थ तप करने का उल्लेख ), मत्स्य १३.३० ( केदार तीर्थ में देवी के मार्गदायिनी नाम से निवास का उल्लेख ), २२.११ ( पितर श्राद्ध के लिए प्रशस्त तीर्थों में केदार तीर्थ का उल्लेख ), १८१.२९ ( शिव सन्निधि से पवित्र स्थानों में केदार का उल्लेख ), वामन १६.३५/३७.३५(केदार में सरस्वती की सुवेणु नाम से स्थिति का उल्लेख), ५७.९७ ( केदार तीर्थ द्वारा स्कन्द को सुषमा, एकचूडा, धमधमा, उत्क्राथिनी तथा वेदमित्रा नामक मातृकाओं को प्रदान करने का उल्लेख ), ६०.१० ( शिव के कपाल को विदीर्ण करके पृथ्वी पर गिरी हुई वीटा / गुल्ली द्वारा पर्वत का टूटकर पृथ्वी के समान समतल होना तथा केदार तीर्थ का निर्माण , शिव द्वारा केदार तीर्थ को वर प्रदान करना, केदार तीर्थ का माहात्म्य ), ९०.३ ( केदार तीर्थ में विष्णु का माधव व शौरि नाम से वास ), वायु १०६.५६ ( गयासुर के मस्तक पर स्थापित शिला को निश्चल करने हेतु प्रपितामह द्वारा स्वयं को प्रपितामह, पितामह, फलग्वीश, केदार तथा कनकेश्वर रूप से पांच भागों में विभक्त कर शिला पर अवस्थित होना ), १११.७२ ( पितरों के उद्धार हेतु गया के उत्तर मार्ग में स्थित कनकेश, केदार, नारसिंह व वामन की पूजा का उल्लेख ), शिव ४.१९ ( नरनारायण की प्रार्थना पर ज्योति रूप शिव का केदार क्षेत्र में स्थायी वास, केदारेश्वर माहात्म्य का वर्णन, नयपाल में महिष का शिरोभाग ), स्कन्द १.१.१+ (केदार खण्ड संहिता का प्रारम्भ ), १.१.७.३०( मृत्युलोक में शिव की केदार लिङ्ग में स्थिति का उल्लेख ), १.२.५७ (महीनगर में केदारेश्वर लिङ्ग की स्थापना का कथन ), ४.१.३३.१७२ ( शिव शरीर के लिङ्ग का रूप ), ४.२.७७ ( केदारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : वसिष्ठ व हिरण्यगर्भ की मुक्ति की कथा ), ५.२.६७ ( केदारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शीत पीडा निवृत्ति के लिए देवों द्वारा केदारेश्वर की पूजा, महिष रूप धारण ), ५.३.१८३ ( केदारेश्वर तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ५.३.१९८.६७ ( केदार तीर्थ में उमा की मार्गदायिनी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ५.३.२३१.१४ ( रेवा - सागर सङ्गम पर ५ केदारेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.१२२ ( हिरण्याक्ष व उसके चार सचिवों से पीडित इन्द्र के समक्ष महिष रूप में प्रकट होकर शिव द्वारा वरदान, केदार की निरुक्ति व माहात्म्य, कर से तीन प्रकार से जलपान का महत्त्व), ७.१.१०.७(केदार तीर्थ का वर्गीकरण – जल), ७.१.३९ ( केदारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शूद्र दम्पत्ति का शशबिन्दु राजा व राजपत्नी बनना ), ७.३.९ ( केदार माहात्म्य : शूद्र द्वारा कमलों से केदारेश्वर लिङ्ग की पूजा से जन्मान्तर में अजापाल राजा बनना ), महाभारत आदि ३.२९( केदार खण्ड विदारण से आरुणि की उद्दालक नाम से ख्याति ), कथासरित् १२.५.२६० ( एक पर्वत ), लक्ष्मीनारायण १.३३०.७५( केदार - पुत्री बनकर वृन्दा का विष्णु को प्राप्त करना ), १.३११.२० ( ध्रुव - पौत्र, यज्ञकुण्ड से वृन्दा नामक कन्या का प्रकट होना ), १.५५३.३६ ( केदार कुण्ड तीर्थ, अजपाल राजा द्वारा निर्मित ) । kedaara / kedara
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केनाटक लक्ष्मीनारायण २.२००.१०० ( श्रीहरि के केनाटक प्रदेशों में आगमन का कथन ) ।
केयूर देवीभागवत ९.१९.२४( छाया से आहृत केयूर - युग्म की तुलसी को प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१६.१३५(छाया के केयूर युग्म के हरण का उल्लेख), ४.५९.४४(गंगा के केयूर युगल की श्रेष्ठता का उल्लेख), वामन १.२७( शिव के केयूर रूपी सर्पों कम्बल व धनञ्जय का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४१.१९६ ( केयूर दान से शत्रुपक्ष का क्षय होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२८३.५८( मञ्जुला द्वारा बालकृष्ण को केयूर देने का उल्लेख ), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद १७( धर्मार्थकाम के केयूर होने का उल्लेख ) । keyoora/ keyuura/ keyura
केरल गर्ग ७.१०.१९ ( केरल के अधिपति अम्बष्ठ द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान का उल्लेख ), १०.५१.४१( कुलिन्द द्वारा पालित केरलाधिपति - पुत्र चन्द्रहास का वृत्तान्त ), पद्म ६.१२९.७० ( केरलदेशीय वसु नामक ब्राह्मण की मुक्ति की कथा ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.६( आण्डीर - पुत्र केरल के नाम पर केरल जनपद का नामोल्लेख ), मत्स्य ४८.५ ( आण्डीर - पुत्र केरल के देश का उसी के नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), वायु ९९.६ ( जनापीड के चार पुत्रों में से एक केरल के नाम पर केरल जनपद के नामकरण का उल्लेख ) । kerala
केल स्कन्द १.२.६५.९६ ( केल भक्त के नाम पर देवी द्वारा केलेश्वरी नाम धारण का उल्लेख ) ।
केलि ब्रह्माण्ड २.३.७.९८ ( ९ ब्रह्मधानों में से एक ), भविष्य ३.४.२४.३२ ( केलिसिंह : कामशर्मा व देवहूति - पुत्र, वामन के अंश रूप में उल्लेख ), स्कन्द ६.१४९,१५० ( केलीश्वरी : शिव द्वारा अन्धक की पराजय हेतु अग्नि कुण्ड से केलीश्वरी देवी को उत्पन्न करना, अन्धक की पराजय, शुक्राचार्य द्वारा केलीश्वरी से अमृतविद्या की प्राप्ति, केलीश्वरी के माहात्म्य का वर्णन ) । keli
केवट भागवत ११.२०.१७ ( शरीर रूपी प्लव / नौका में गुरु के कर्णधार / केवट होने का उल्लेख ) ।
केवल गरुड ३.१६.९९(केवला - भारती का रूप, अन्य नाम काली, भीमसेन - भार्या), पद्म ६.२२८.७ ( विरजा व परम व्योम के मध्य केवल लोक की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.२३ ( काल की गति को पार करके ही कैवल्य की प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९४ ( स्वायम्भुव मन्वन्तर के सोमपायी गणों में से एक ), १.२.३५.२९ (याज्ञवल्क्य - शिष्य ), २.३.८.३६( नर - पुत्र, बन्धुमान् - पिता, मरुत्त वंश ), २.३.६१.९ ( नर - पुत्र, बन्धुमान् - पिता ), भागवत ९.२.३० (नर- पुत्र, बन्धुमान् - पिता , दिष्टवंश ), वायु ३१.७ ( स्वायम्भुव मन्वन्तरकालीन सोमपायी त्विषिमान् गण के देवों में से एक ), ८६.१४ ( नर - पुत्र, बन्धुमान् - पिता, वैवस्वत मनु वंश ), विष्णु ४.१.३८ ( सुवृद्धि - पुत्र, सुधृति - पिता ), ४.१.४२ ( नर -पौत्र, चन्द्र - पुत्र, बन्धुमान् - पिता ), स्कन्द ४.२.९८.३८ ( कैवल्य मण्डप का द्वापर में कुक्कुट मण्डप नाम से उल्लेख ) । kevala
केश अग्नि ३०२.२५ ( केश क्षरण रोधी औषधि योग का उल्लेख ), गरुड १.१७६ ( खल्वाट निवारण तथा केश कृष्ण चिकित्सा का वर्णन ), देवीभागवत ४.२२.५० ( श्रीहरि के श्याम व श्वेत केशों से क्रमश: कृष्ण व बलराम की उत्पत्ति का उल्लेख ), नारद १.५६.३४० ( क्षौर कर्म के काल का विचार ), २.६२.५०( गङ्गा के समीप पापों के केशों में समाने का कथन ), २.६५.५६(सीतावन में केश प्रक्षेपण का माहात्म्य), पद्म ६.१३५.१३ ( कश्यप नामक द्विज के वास स्थान के रूप में केशरन्ध्र तीर्थ का उल्लेख ), ब्रह्म १.७२.२६ ( भू भार हरण हेतु पृथ्वी सहित देवताओं की श्रीहरि से प्रार्थना, भगवान् का अपने सित व कृष्ण केशों को खोलना तथा केशों का पृथ्वी पर अवतरित होकर भू भार का हरण ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२१.३३(तुलसी के केश समूहों का तुलसी वृक्ष बनने का उल्लेख), ३.४.३३ ( केश सौन्दर्य के लिए लक्ष श्वेत चामर श्रीहरि को समर्पित करने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१.४५ ( निचित केशों से पुलस्त्य व लम्बे केशों से पुलह के समुद्भव का उल्लेख ), भागवत २.१.३४( विराट् पुरुष के केशों के मेघ होने का उल्लेख ), २.६.५(केशा आदि से शिला, लौह, अभ्र आदि की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य १५४.१० ( देवों द्वारा ब्रह्मा की स्तुति करते हुए आकाश को उनका मस्तक, चन्द्र - सूर्य को नेत्र तथा सर्पों को केश रूप कहने का उल्लेख ), वामन ५७.८४ ( कुटिला द्वारा कार्तिकेय को सित केश व कृष्ण केश प्रभृति दस गणों को प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ४३.२०( महाकेश : भद्राश्व वर्ष के जनपदों में से एक ), विष्णु ५.१.६० ( विष्णु के श्याम व सित केशों का पृथ्वी का भार हरण हेतु अवतार ग्रहण करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२३( केशों में रात्रि की स्थिति का उल्लेख ), शिव ३.५.४ ( केशलम्ब : ग्यारहवें द्वापर में कलौ? नाम से अवतार ग्रहण करने पर शिव के चार पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.१.१३.२१( शिव के केशों के जलद/मेघ होने का उल्लेख ), ४.१.४०.९९ ( केश वपन तथा केश रक्षण का विधान ), ७.१.२९.४ ( केश में सब पापों के स्थित हो जाने का उल्लेख ; तीर्थ में केश - त्याग के माहात्म्य का कथन ), हरिवंश २.८०.५ ( पतिव्रता स्त्री के केश लम्बे करने के उपाय का कथन ), ३.७१.४६ ( वामन के विराट रूप में सूर्य किरणों के केश होने का उल्लेख ), वा.रामायण ५.१७.६ ( हनुमान द्वारा अशोक वाटिका में सीता के समीप ध्वस्त केशी, अकेशी प्रभृति राक्षसियों के दर्शन का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.७४ ( नरक में केश कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.४३७.५०( मनोजव - पत्नी सुमित्रा के केश के होम से शत्रुनाशकारी अस्त्रों के उत्पन्न होने का कथन ), २.२४ ( मार्गशीर्ष त्रयोदशी में बालकृष्ण के चौल संस्कार विधान तथा चौल संस्कार हेतु का वर्णन ), २.२४.२४( चौल संस्कार के वर्णन में गर्भ केशों के पाप रूप होने का वर्णन ; बालकृष्ण के केशों से नारायणों की उत्पत्ति ), २.१०९.३२ ( श्रीहरि द्वारा कल्माषकेश के वधोपरान्त कल्माषकेश के रक्तकेश, कृष्णकेश, चित्रकेश, अग्निकेश तथा धूम्रकेश आदि पुत्रों का श्रीहरि की शरण में आने का उल्लेख ), २.१५८.५९( प्रासाद की ध्वज की नर के केशों से उपमा ), ३.१८२( सुरामिश्रित भोजन के अर्पण से मञ्जुलकेश भक्त द्वारा पाशुपतेश विप्र को उन्मत्त होने का शाप, श्रीहरि द्वारा विप्र के शाप के मोक्षण का वृत्तान्त ), कथासरित् २.२.७४ ( श्रीदत्त द्वारा राक्षसी के केशों को पकडते ही राक्षसी द्वारा दिव्य रूप धारण करना तथा कौशिक मुनि द्वारा प्रदत्त स्व शाप से मुक्त होने का कथन ), १०.५.१८१ ( धूर्त्तों द्वारा धनी मूर्खों के धन का अपहरण दर्शाने हेतु केशमूर्ख की कथा का वर्णन ); द्र. आदिकेश, ऊर्ध्वकेश, ऋषिकेश, गुडाकेश, दृढकेश, धूम्रकेश, भीमकेश, मञ्जुलकेश, विद्युत्केश, सुकेश, स्थूलकेश, हरिकेश, हिरण्यकेश, हृषीकेश । kesha
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केशर ब्रह्म १.४३.२९( नाभि जल में उत्पन्न पद्म में ब्रह्मा की पद्मकेशर के समान स्थिति का उल्लेख ) ।
केशव
गरुड
३.२९.४८(पुण्ड्र
धारण काल में केशव आदि १२ के
स्मरण का निर्देश -
पुण्ड्राणां
धारणे
चैव
केशवादींश्च
द्वादश
॥),
नारद
१.६६.८६
(
केशवादि
मातृका न्यास का कथन ;
केशव
की शक्ति कीर्ति का उल्लेख
-
केशवः
कीर्तिसंयुक्तः
कांत्या
नारायणस्तथा।
),
पद्म
६.१२१.५
(
धात्री
माला धारण से शरीर में केशव
के वास का उल्लेख
-
यावत्तिष्ठति
कंठस्था
धात्रीमाला
नरस्य
हि
।
तावत्तस्य
शरीरे
तु
प्रतिष्ठति
च
केशवः
।
),
६.१८८.४१
(
केशव
नामक ब्राह्मण द्वारा विलोभना
नामक स्व -
स्त्री
की हत्या,
जन्मान्तर
में केशव व विलोभना का शश व
शुनी बनना,
गीता
के १४ वें अध्याय के जप से शश
व शुनी को दिव्य लोक की प्राप्ति
का वर्णन
-
तत्रासीद्ब्राह्मणो
नाम्ना
केशवः
कितवाग्रणीः
।
विलोभनाभवत्तस्य
जाया
स्वैरविहारिणी
।
),
ब्रह्माण्ड
२.३.४२.१९
(
परशुराम
द्वारा गणेश का दन्तभङ्ग होने
से पार्वती का क्रुद्ध होना
,
शिव
के स्मरण मात्र से भगवान् केशव
के राधा सहित आगमन का वृत्तान्त
),
२.३.७१.२२१
(यशोदा
से उत्पन्न पुत्री के केशव /
कृष्ण
रक्षार्थ एकादशा/एकानंशा
देवी के नाम से विख्यात होने
का उल्लेख
-
एकादशा
तु
जज्ञे
वै
रक्षार्थं
केशवस्य
ह
॥
),
३.४.३४.७६
(
विष्णुलोक
में माणिक्य मण्डप की पूर्व
दिशा में केशव के विराजमान
होने का उल्लेख -
जाम्बूनदप्रभश्चक्री
पूर्वस्यां
दिशि
केशवः
।
पश्चान्नारायणः
शङ्खी
नीलजीमूतसंनिभः
॥),
भविष्य
३.२.२.१२
(
केशव
द्विज द्वारा मधुमती की अस्थियों
का संग्रह,
मधुमती
की कथा ),
३.४.२२.२१
(
मुकुन्द
के शिष्य केशव का जन्मान्तर
में अकबर के सात शिष्यों में
से एक गानसेन बनने का उल्लेख
-
केशवो
गानसेनश्च
वैजवाक्स
तु
माधवः
।
),
३.४.२२.३४
(
मुकुन्द
के शिष्य देववान् का जन्मान्तर
में केशव नामक कवि बनने का कथन
-
देववान्केशवो
जातो
विष्णुस्वामिमते
स्थितः
।
।
),
भागवत
६.८.२०
(
नारायण
कवच के अन्तर्गत प्रात:काल
में गदाधारी केशव से रक्षा
की प्रार्थना का उल्लेख
-
मां
केशवो
गदया
प्रातरव्याद्गोविन्द
आसङ्गवमात्तवेणुः।
),
मत्स्य
१६.१
(
श्राद्धकाल,
विधि,
भेद
तथा करणीय -
अकरणीय
कर्मों के विषय में मनु द्वारा
भगवान् केशव से प्रश्न ),
२२.९
(
पितृतीर्थ
प्रयाग में योगनिद्राशायी
भगवान् केशव के नित्य निवास
का उल्लेख
-
वटेश्वरस्तु
भगवान्
माधवेन
समन्वितः।
योगनिद्राशयस्तद्वत्
सदा
वसति
केशवः।।
),
६९.८
(
२८वें
द्वापर के अन्त में भगवान्
विष्णु द्वारा स्वयं को तीन
भागों में विभक्त करके महर्षि
द्वैपायन,
बलराम
तथा केशव रूप से अवतीर्ण होने
का उल्लेख
-
द्वैपायन
ऋषिस्तद्वद्रौहिणेयोऽथ
केशवः।
कंसादिदर्पमथनः
केशवः
क्लेशनाशनः।।
),
१२२.१८
(
शाकद्वीप
के सात पर्वतों में से एक,
अपर
नाम विभ्राज,
केशव
नाम के कारण का कथन
– वह्नि का वायुरूप होना -
यस्माद्विभ्राजते
वह्निर्विभ्राजस्तेन
स
स्मृतः।
सैवेह
केशवेत्युक्तो
यतो
वायुः
प्रवाति
च।।
),
१८५.६६
(
अविमुक्त
/
वाराणसी
के पांच तीर्थों में से एक ),
वराह
१.२५
(
धरणी
द्वारा केशव से पादों की रक्षा
की प्रार्थना
-
केशवः
पातु
मे
पादौ
जङ्घे
नारायणो
मम
।
माधवो
मे
कटिं
पातु
गोविन्दो
गुह्यमेव
च
।।
),
१६३.१६
(
मथुरा
रूपी पद्म की कर्णिका में केशव
की स्थिति का उल्लेख -
कर्णिकायां
स्थितो देवि केशवः क्लेशनाशनः
।।कर्णिकायां मृता ये तु
तेऽमरा मुक्तिभागिनः।।
),
१६३.६८
(
दिन
के चतुर्थ भाग में केशव में
वराह तेज की व्याप्ति का उल्लेख
-
मध्याह्ने
मामकं
तेजो
दीर्घविष्णौ
व्यवस्थितम्
।।
केशवे
मामकं
तेजो
दिनभागे
चतुर्थके
।।
),
वामन
९०.१५
(
वाराणसी
में विष्णु का केशव नाम से
वास-
तथैव
विप्रप्रवर
वाराणस्यां
च
केशवम्।
),
विष्णु
१.१५.५४
(
कण्डु
मुनि द्वारा ब्रह्मपार स्तोत्र
से भगवान केशव की अर्चना का
उल्लेख
-
ब्रह्मपारं
मुने
श्रोतुमिच्छामः
परमं
स्तवम्
।
जपता
कण्डुना
देवो
येनाराध्यत
केशवः
॥
),
५.१६.२३(
केशी
वध से जनार्दन को केशव नाम
प्राप्ति का उल्लेख
-
यस्मात्त्वयैष
दुष्टात्मा
हतः
केशी
जनार्दन
।
तस्मात्केशवनाम्ना
त्वं
लोके
ख्यातो
भविष्यसि
।
),
विष्णुधर्मोत्तर
१.७३.२२(
त्रेता
युग में केशव के रक्तता को
प्राप्त होने पर नरों की आयु
तथा यज्ञों की स्थिति का कथन
;
अन्य
युगों में केशव के पीत व कृष्ण
वर्ण होने का उल्लेख
-
त्रिपादविग्रहो
धर्मो
राम
त्रेतायुगे
तदा
॥
केशवे
रक्ततां
याते
नरा
दशशतायुषः
॥
),
१.१६८
(
पुष्पादि
से केशव अर्चना का वर्णन -
अरण्यादाहृतैः
पुष्पैर्मूलपत्रफलाङ्कुरैः।।
यथोपपन्नैः
सततमभ्यर्चयति
केशवम्
।।),
१.२३७.४
(
केशव
से जिह्वा की रक्षा की प्रार्थना
-
मनो
मम
हृषीकेशो
जिह्वां
रक्षतु
केशवः।।
),
३.१७६.२(केशव
के दशात्मा होने का कथन -
विश्वेदेवा
समाख्याता दशात्मा केशवो
विभुः ।।),
स्कन्द
२.१.२८.३७
(
केशव
नामक द्विज द्वारा ब्राह्मण
हत्या,
कटाह
तीर्थ में स्नान से ब्रह्महत्या
से मुक्ति की कथा
-
पुरा
कश्चिद्द्विजो
मोहात्केशवाख्यो
बहुश्रुतम्
।।
हत्वा
खड्गेन
दुर्बुद्ध्या
ब्रह्महत्यामवाप्तवान्
।।
),
२.५.२.२३(ललाट
में केशव के ध्यान का निर्देश
-
ललाटे
केशवं
ध्यायेन्नारायणमथोदरे।।
वक्षःस्थले
माधवं
च
गोविंदं
कण्ठकूबरे।।),
२.५.१५.२
(सहमास
में कीर्तियुक्त केशव की पूजा
का निर्देश -
सहोमासे
च
देवो
वै
कीर्तियुक्तो
हि
केशवः
।।),
२.७.२२.२७(
क्लेशनाशक
केशव के स्मरण से ही तुष्ट
होने का उल्लेख
-
स्मरणात्तोषमायाति
केशवः
क्लेशनाशनः
।।
),
४.२.५१.७३
(काशी
में आदिकेशव,
केशवादित्य
इत्यादि
तीर्थों
का माहात्म्य
-
अतः
स
केशवादित्यः
काश्यां
भक्ततमोनुदः
।।
),
४.२.५८.२९
(
आदि
केशव की पूजा से गृह में ही
वैकुण्ठ प्राप्ति का उल्लेख
-
आदिकेशवनाम्नीं
तां
श्रीमूर्तिं
पारमेश्वरीम्
।।
संपूज्य
मर्त्यो
वैकुंठं
मन्यते
स्वगृहांगणम्
।। ),
४.२.६१.४
(
पादोदक
तीर्थ में आदिकेशव,
श्वेतद्वीप
में ज्ञानकेशव,
तार्क्ष्यतीर्थ
में तार्क्ष्यकेशव,
नारदतीर्थ
में नारदकेशव,
प्रह्लाद
तीर्थ में प्रह्लादकेशव,
अम्बरीष
तीर्थ में आदित्यकेशव,
भार्गव
तीर्थ में भृगुकेशव,
वामनतीर्थ
में वामनकेशव,
हयग्रीवतीर्थ
में हयग्रीवकेशव तथा वृद्धकालेश
में भीष्मकेशव प्रभृति नामों
से विष्णु का अर्चन तथा फल
प्राप्ति
-
आदौ
पादोदके
तीर्थे
विद्धि
मामादिकेशवम्
।।
अग्निबिंदो
महाप्राज्ञ
भक्तानां
मुक्तिदायकम्
।।
),
४.२.६१.२१६
(
शङ्ख,
चक्र,
गदा
तथा पद्म से युक्त मूर्ति के
कैशवी होने तथा पूजित होने
पर चिन्तितार्थ पूरक होने का
उल्लेख
-
शंखचक्रगदापद्मैर्मूर्तिं
जानीहि
कैशवीम्
।।
पूजिता
या
नृणां
कुर्याच्चिंतितार्थमसंशयम्।।
),
४.२.८४.१७
(
आदित्यकेशव
तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य
-
आदित्यकेशवं
नाम
तदग्रे
तीर्थमुत्तमम्
।।
कृताभिषेकस्तत्रापि
लभेत्स्वर्गाभिषेचनम्
।।
),
४.२.९७.१५
(
आदि
केशव के दर्शन से त्रिभुवन
के दर्शन का कथन
-
वेदेश्वरादुदीच्यां
तु
क्षेत्रज्ञश्चादिकेशवः
।।
दृष्टं
त्रिभुवनं
सर्वं
तस्य
संदर्शनाद्ध्रुवम्
।।
),
५.१.३३.१७
(
केशवार्क
तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य
-
केशवार्कमुखं
दृष्ट्वा
पद्मरागसमप्रभम्
।।
विमुक्तः
सर्वपापेभ्यः
सूर्यलोके
महीयते
।।),
५.३.१४९.८
(
लिङ्गेश्वर
तीर्थ में मार्गशीर्ष द्वादशी
को केशव अर्चना का निर्देश,
१२
मासों में १२ नामों से केशव
की अर्चना -
मासि
मासि
निराहारो
द्वादश्यां
कुरुनन्दन
।
केशवं
पूजयेन्नित्यं
मासि
मार्गशिरे
बुधः
॥
),
५.३.१५५.११६
(
भास्कर
से आरोग्य,
जातवेदस्
से धन,
ईशान
से ज्ञान तथा केशव से मोक्ष
प्राप्ति का उल्लेख -
आरोग्यं
भास्करादिच्छेद्धनं
वै
जातवेदसः
॥
प्राप्नोति
ज्ञानमीशानान्मोक्षं
प्राप्नोति
केशवात्
।),
),
६.२४७.४१(अश्वत्थ
--
मूले
विष्णुः स्थितो नित्यं स्कंधे
केशव एव च ॥
नारायणस्तु
शाखासु पत्रेषु भगवान्हरिः
॥),
महाभारत
शान्ति ३४१.४८(
केशव
की निरुक्ति :
अग्नि,
सोम
व सूर्य की किरणों रूपी केशों
से युक्त
-
अंशवो
यत्प्रकाशन्ते ममैते
केशसंज्ञिताः।।
सर्वज्ञाः केशवं तस्मान्मामाहुर्द्विजसत्तमाः। ), लक्ष्मीनारायण १.८३.५७( केशवार्क : काशी में दिवोदास के राज्य में स्थित १२ आदित्यों में से एक ), १.४०५.६३ ( केशव नामक विप्र द्वारा ब्राह्मण की हत्या, भरद्वाज मुनि के कथनानुसार कटाह तीर्थ में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा ), २.२६१.३० ( केशव शब्द की निरुक्ति : केश जिसके अंश हैं - केशास्तदंशवः प्रोक्तास्तद्वान् कृष्णो हि केशवः ।।) । keshava
Comments on Keshava
केशिध्वज अग्नि ३७९.१५ ( केशिध्वज द्वारा खाण्डिक्य जनक को आत्म शिक्षा का उपदेश ), नारद १.४६.३७, १४७ ( कृतध्वज - पुत्र, होमधेनु की मृत्यु पर खाण्डिक्य जनक से प्रायश्चित्त विधान पूछना, दक्षिणा स्वरूप खाण्डिक्य को अध्यात्म ज्ञान का कथन ), भागवत ९.१३.२० ( कृतध्वज - पुत्र, भानुमान् - पिता, केशिध्वज के आत्मविद्या में प्रवीण होने का उल्लेख ), विष्णु ६.६, ६.७( कृतध्वज - पुत्र, केशिध्वज का होमधेनु की मृत्यु पर खाण्डिक्य जनक से प्रायश्चित्त विधान पूछना, दक्षिणा स्वरूप खाण्डिक्य को केशिध्वज द्वारा आत्म - ज्ञान का कथन ) । keshidhwaja/keshidhvaja
केशिनी नारद १.८.६३ ( और्व मुनि के वरदान स्वरूप सगर की प्रथम पत्नी केशिनी को वंशकारक एक पुत्र तथा द्वितीय पत्नी सुमति को साठ सहस्र पुत्रों की प्राप्ति, सगर - पुत्रों की दुश्चेष्टाओं के परिणामस्वरूप कपिल मुनि द्वारा सगर - पुत्रों के भस्म करने का वृत्तान्त ), पद्म ७.४.८९ ( भीमकेश - पत्नी केशिनी का बृहद्ध्वज राक्षस से समागम, गङ्गासागर सङ्गम महिमा से स्वर्ग गमन ), ३.२१.४१ ( केशिनी तीर्थ में स्नान, उपवास से ब्रह्महत्या से मुक्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१३९ ( खशा की सात पुत्रियों में से एक केशिनी द्वारा कपिल यक्ष से यक्षों व राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.३.४९.२,५९ ( राजा सगर द्वारा विदर्भराज - पुत्री केशिनी के पाणिग्रहण तथा सुखोपभोग का उल्लेख ), २.३.५१.३७ ( सगर - पत्नी केशिनी द्वारा असमञ्जस नामक पुत्र की उत्पत्ति, पिता सगर द्वारा असमञ्जस के त्याग का वृत्तान्त ), २.३.६३.१५४ ( विदर्भ - पुत्री तथा सगर - पत्नी केशिनी को और्व मुनि के वरदानस्वरूप असमञ्ज नामक पुत्र की प्राप्ति, प्रजा के अहित में तत्पर होने पर राजा सगर द्वारा पुत्र का नगर से निष्कासन ), २.३.६६.२५ ( सुहोत्र - पत्नी, जह्नु - माता ), भागवत ७.१.४३ ( विश्रवा मुनि की पत्नी केशिनी से रावण व कुम्भकर्ण की उत्पत्ति का उल्लेख ), ९.८.१५ ( विदर्भराज - पुत्री, असमञ्जस - माता, सगर - पत्नी ), मत्स्य ४९.४४,४६ ( अजमीढ - पत्नी, कण्व -माता ), १७९.२३ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक ), वामन ५६.२७ ( कौशिकी का केशिनि से रक्तबीज दानव के रक्तपान का आग्रह ), वायु ६९.१७० ( खशा की सात पुत्रियों में से एक ), ८८.१५५ ( विदर्भराज - पुत्री, असमञ्ज - माता, सगर - पत्नी ), ९९.१६७ ( अजमीढ की तीन पत्नियों में से एक, कण्ठ - माता ), विष्णु ४.४.१( विदर्भराज - पुत्री तथा सगर - पत्नी केशिनी को और्व मुनि के वरदान स्वरूप असमञ्जस नामक पुत्र की प्राप्ति, असमञ्जस के असत् चरित्र के कारण पिता सगर द्वारा पुत्र के त्याग का वर्णन ), वा.रामायण १.३८.१३ ( सगर - पत्नी केशिनी द्वारा महर्षि भृगु से वंशकर्त्ता पुत्र प्राप्ति का वर ग्रहण करने तथा असमञ्ज नामक पुत्र को उत्पन्न करने का उल्लेख ), कथासरित् ८.२.३४७ ( महल्लिका द्वारा सूर्यप्रभ को अपनी बारह सखियों का परिचय देते हुए केशिनी का पर्वत मुनि की कन्या के रूप में उल्लेख ) । keshini/keshinee
केशिनी केशिनी परा शक्ति है । सुधन्वा आत्मा की शक्ति है जो समाधि अवस्था में प्राप्त होती है । विरोचन व्युत्थान की अवस्था है – फतहसिंह
केशी गरुड ३.१२.९४(केशी दैत्य की आपेक्षिक श्रेष्ठता), गर्ग ५.२.१ ( कृष्ण द्वारा अश्व रूप धारी केशी दैत्य का वध, केशी द्वारा दिव्य रूप धारण, शापवश इन्द्र के अनुचर कुमुद का केशी बनने का वृत्तान्त ), देवीभागवत ४.२२.४३ ( हयशिरा के अंशावतार रूप में केशी का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६.२१ ( दैत्येश्वर केशी द्वारा श्रीकृष्ण का वेष्टन तथा श्रीकृष्ण द्वारा उसके वध का उल्लेख ), भागवत ९.२४.४८ ( वसुदेव व कौशल्या - पुत्र ), १०.२.१ ( कंस के साथियों में केशी का उल्लेख ), १०.३६.२० ( कंस द्वारा केशी को कृष्ण व बलराम के वध का आदेश ), १०.३७.१ ( हय रूप धारण कर केशी नामक दैत्य का कृष्ण के समीप गमन, कृष्ण द्वारा केशी के उद्धार का वृत्तान्त ), मत्स्य २४.२३ ( दानवराज केशी द्वारा चित्रलेखा और उर्वशी का हरण करने पर पुरूरवा द्वारा केशी से युद्ध तथा केशी की पराजय ), वायु ९८.१०० ( २८वें द्वापर में अवतारों विष्णु द्वारा कंस, केशी प्रभृति मानव देहधारी दैत्यों के वध का उल्लेख ), विष्णु ५.१६.१+ ( कंस - दूत केशी का कृष्ण को मारने हेतु अश्वरूप धारण, कृष्ण द्वारा केशी के वध का वृत्तान्त ), ५.१.२४ ( कंस, केशी प्रभृति दैत्यों के भार से पीडित भूमि का पीडा हरण हेतु देवों के समीप गमन तथा प्रार्थना), विष्णुधर्मोत्तर १.१७६.१० ( शक्रपीडक केशी नामक असुर के विष्णु द्वारा वध का उल्लेख ), हरिवंश २.२४.६ (कंस द्वारा अश्व रूप धारी दैत्य केशी का वृन्दावन में प्रेषण, केशी की उच्छृंखलता, कृष्ण द्वारा केशी के वध का वर्णन ), ३.५१.६१ ( देवों से युद्ध हेतु तत्पर केशी दैत्य के रथादि का वर्णन ), ३.५३.२० ( देवासुर युद्ध में केशी दैत्य के धनेश्वर भीम से युद्ध का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२८.२४ ( केशीय जाति के नागों के नाट्य कुशल होने का उल्लेख ), ३.२१८.२ ( मौक्तिकेशी : श्रीहरि द्वारा स्वभक्त मौक्तिकेशी की परीक्षा और मोक्ष प्रदान की कथा ) ; द्र. गुणकेशी, मिश्रकेशी, मौक्तिकेशी, विकेशी । keshi/keshee
Comments on Keshee
Vedic contexts on Keshee
केषणादी ब्रह्माण्ड २.३.७.३८० ( पिशाचों के १६ युग्मों में से १५ वें युग्म की पिशाची ) ।
केसट कथासरित् १८.४.१५७ ( पाटलिपुत्र - निवासी केसट नामक ब्राह्मण - पुत्र का रूपवती से विवाह, वियोग तथा पुनर्मिलन का वृत्तान्त ) ।
केसर नारद १.६७.६१( केसर पुष्प को शिव को अर्पण का निषेध - केतकीं कुटजं कुंदं बंधूकं केसरं जपाम्। मालतीपुष्पक चैव नार्पयेत्तु महेश्वरे ।। ), पद्म १.४०.४ ( हिरण्मय पद्म के केसरों का पर्वतों के प्रतीक रूप में उल्लेख - यत्पद्मं सा रसादेवी पृथिवी परिकथ्यते। ये पद्मकेसरा मुख्यास्तान्दिव्यान्पर्वतान्विदुः॥ ), वायु ३८.४५ ( केसरद्रोणि : कुमुद और अञ्जन पर्वतों के मध्य भूभाग का केसरद्रोणी नामोल्लेख - तथैव शैलवरयोः कुमुदाञ्जनयोरपि। अन्तरे केसरद्रोणी ह्यनेकायाम योजना ।। ), लक्ष्मीनारायण १.३१.१९( श्रीहरि की हिरण्यश्मश्रु से पूजा द्रव्य केसर की उत्पत्ति का उल्लेख - हिरण्यश्मश्रुभागाद्वै केसरं प्रकटीकृतम् । ), कथासरित् ८.२.३५२ ( केसरावली : महल्लिका द्वारा सूर्यप्रभ को अपनी बारह सखियों का परिचय देते हुए केसरावली का पिङ्गल गण की पुत्री के रूप में उल्लेख ) । kesara
केसरि ब्रह्माण्ड १.२.२०.३९( षष्ठम तल शिलाभौम रसातल में दैत्यपति केसरि के नगर का उल्लेख ), वायु ५०.३८ (शिलाभौम नामक षष्ठम् रसातल में दैत्यपति केसरि के नगर का उल्लेख ), भविष्य ३.३.२३.३३ ( केसरिणी : चित्ररेखा - सखी, नाट्यात्मजा, कुतुक - शिष्या ) ।
केसरी ब्रह्म २.१४.३ ( अञ्जन पर्वत पर केसरी के वानरी रूप धारी अञ्जना तथा मार्जारी रूप धारी अद्रिका नामक भार्याओं के साथ निवास का उल्लेख - अञ्जना नाम तत्राऽऽसीदुत्तमाङ्गेन वानरी। केसरी नाम तद्भर्ता अद्रिकेति तथाऽपरा।। ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.९० ( शाकद्वीप के अनेक पर्वतों में से वनौषधि युक्त एक पर्वत ), २.३.७.२२३ ( कुञ्जर वानर की पुत्री अञ्जना के पति के रूप में केसरी का उल्लेख, हनुमान , श्रुतिमान्, केतुमान्, मतिमान् , धृतिमान् – पिता - केसरी कुञ्जरस्याथ सुतां भार्यामविन्दत ॥ अञ्जना नाम सुभगा गत्वा पुंसवने शुचिः । ), विष्णु २.४.६२ ( शाकद्वीप के पर्वतों में से एक ), वा.रामायण ४.६६.८ ( अप्सरा से कपि योनि में अवतीर्ण, कुञ्जर - पुत्री अञ्जना के पति रूप में केसरी का उल्लेख - अप्सराप्सरसां श्रेष्ठा विख्याता पुञ्जिकस्थला । अञ्जनेति परिख्याता पत्नी केसरिणो हरेः ), ६.२७.३८ ( सारण द्वारा रावण को वानर यूथपतियों का परिचय देते हुए महामेरु पर रमण करने वाले वानर यूथपति के रूप में केसरी का उल्लेख ), ६.३०.२१ ( इन्द्र के गुरु बृहस्पति के पुत्र तथा हनुमान् के पिता रूप में केसरी का उल्लेख- गद्गदस्य एव पुत्रो अन्यो गुरु पुत्रः शत क्रतोः । कदनम् यस्य पुत्रेण कृतम् एकेन रक्षसाम् ॥ ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.२० ( प्रासाद वर्णनान्तर्गत केसरी नामक प्रासाद के स्वरूप का