`

      कृकण विष्णु ४.१३.२ ( भजमान के ६ पुत्रों में से एक ) ।


      कृकल अग्नि ८७.५(शान्ति कला/तुर्यावस्था के २ प्राणों में से एक, अलम्बुषा नाडी में स्थित कृकल/कृकर वायु की प्रकृति का कथन ), २१४.१३( कृकल वायु के भक्षण का हेतु होने का उल्लेख ), पद्म २.४१+, २.५९ ( कृकल नामक वैश्य का अपनी पतिव्रता पत्नी सुकला का परित्याग कर तीर्थयात्रा हेतु गमन, कृकल का धर्म से संवाद तथा धर्म द्वारा कृकल को सुकला के श्रेष्ठ पातिव्रत्य तथा चरित्र की महानता के समक्ष तीर्थयात्रा की व्यर्थता को निरूपित करते हुए गृह में किए गए कृत्यों से ही देवों , पितरों के संतुष्ट होने का वर्णन ) । krikala


      कृकलास गरुड २.४६.२१(गुरुदाराभिलाषी के कृकलास बनने का उल्लेख), भागवत १०.६४.६ ( ब्राह्मण के प्रति हुए अपराध से राजा नृग को कृकलास / गिरगिट योनि की प्राप्ति, कृष्ण के करकमलों के स्पर्श से मुक्ति का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२१.१० ( मरुत्त के यज्ञ में रावण द्वारा उत्पन्न त्रास से कुबेर के कृकलास रूप धारण कर पलायन करने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.५२.९०(कुपात्र दान से कृकलास बनने का उल्लेख), ५.३.१५९.२१ ( गुरु - दारा से गमन की अभिलाषा करने पर कृकलास योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ७.४.१० ( कृकलास / नृग तीर्थ के माहात्म्य के प्रसंग के अन्तर्गत कृष्ण द्वारा राजा नृग के कूप से उद्धार की कथा ), वा.रामायण ७.१८.५ ( राजा मरुत्त के यज्ञ में रावण से भयभीत होने पर कुबेर देवता के कृकलास नामक तिर्यक् योनि में प्रवेश करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५० ( अलक्ष्मी के कर्ण की कृकलास से उपमा ), १.२२२ ( राजा नृग को द्विज - प्रदत्त शाप के कारण कृकलास योनि की प्राप्ति, श्रीकृष्ण के स्पर्श से शाप से मुक्ति की कथा ), २.१९.६० ( कृकलासी : कर्कि राशि के देवता रूप में कृकलासी का उल्लेख ), २.१२२.२( कर्कायन ऋषि का जल में कृकलास रूप में वास करने का उल्लेख ) । krikalaasa

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      कृकवाकु मत्स्य ११.१७ ( विमाता छाया के शाप से यम के शीर्ण - पाद होने पर पैरों के कृमि - भक्षण हेतु विवस्वान् द्वारा यम को कृकवाकु / मुर्गा प्रदान करने का कथन ), विष्णु ३.१६.१२ ( कृकवाकु, श्वान, सूकर प्रभृति के देख लेने पर श्राद्ध की अपवित्रता का उल्लेख ) । krikavaaku


      कृच्छ्र गरुड २.४.१६३(कृच्छ्र वर्त की परिभाषा), मत्स्य २२७.४१ ( चोरी करने पर अर्धकृच्छ्रव्रत तथा कृच्छ्रसान्तपन व्रत आदि के अनुष्ठान से पापशुद्धि का उल्लेख ), वायु १८.१६ ( कृच्छ्रातिकृच्छ्र : अज्ञात रूप में पशु और मृग की हिंसा हो जाने पर यतियों हेतु विहित प्रायश्चित्त, विकल्प में चान्द्रायण के विधान का उल्लेख ), १८.२१ ( कृच्छ्र प्रायश्चित्त से पाप मुक्ति का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.९६.५१ (व्यास द्वारा पादकृच्छ्र, पर्णकृच्छ्र, सौम्यकृच्छ्र, अतिकृच्छ्र, कृच्छ्रातिकृच्छ्र, तथा तप्तकृच्छ्र प्रभृति व्रतों के स्वरूप का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२६२.८ ( कार्तिक मास में करणीय कृच्छ्र व्रतों का निरूपण ) । krichhra


      कृणु स्कन्द २.७.२१.६४ ( तप के कारण कृणु नामक मुनि के शरीर पर वल्मीक निर्माण से कृणु की वल्मीक नाम से प्रसिद्धि, वाल्मीकि नामक पुत्र की प्राप्ति ) ।


      कृत ब्रह्माण्ड १.२.३५.४९ ( हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा सामवेद का २४ खण्डों में विभाजन कर शिष्यों के अध्यापन का उल्लेख ), २.३.७.१३० ( देवजनी व मणिवर के अनेक यक्ष पुत्रों में से एक ), भागवत ९.१७.१७ ( जय -पुत्र, हर्यवन - पिता, क्षत्रवृद्ध वंश ), ९.२४.४६ ( वसुदेव व रोहिणी के अनेक पुत्रों में से एक ), १२.६.८० ( हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा स्वशिष्यों को सामवेद की २४ संहिताएं पढाने का उल्लेख ), मत्स्य ४६.५ ( सुग्रीव- पिता, वसुदेव - भगिनी श्रुतदेवी के पति ), ४९.७५ ( सन्नतिमान्- पुत्र, हिरण्यनाभ कौसल्य - शिष्य कृत द्वारा सामवेद संहिताओं का चौबीस भागों में विभाजन, उग्रायुध - पिता, पौरव वंश ), वायु ९१.९६ ( विश्वामित्र के शुन:शेप आदि अनेक पुत्रों में से एक ), ९४.९ ( कनक के चार पुत्रों में से एक ), ९६.१३९ ( हृदिक के दस पुत्रों में से एक ), ९९.१८९ (सन्नतिमान्- पौत्र, सनति - पुत्र तथा हिरण्यनाभ - शिष्य कृत द्वारा सामवेद का २४ खण्डों में विभाजन ), ९९.२१९ ( च्यवन - पुत्र, विश्रुत - पिता, तुर्वस्वादि वंश ), १०१.११/२.३९.११( ७ कृत व ७ अकृत लोकों का कथन ), विष्णु ४.९.२६ ( विजय - पुत्र, हर्यधना - पिता, रजि वंश ), ४.१९.५० ( हिरण्यनाभ द्वारा सन्नतिमान् - पुत्र कृत को योगाध्यापन, कृत द्वारा २४ साम संहिताओं का निर्माण ), हरिवंश १.२०.४२ (सन्नति- पुत्र, उग्रायुध - पिता, हिरण्यनाभ - शिष्य, सामसंहिता के विभागकर्त्ता ), महाभारत शल्य ३३.८( दुर्योधन के कृती होने का उल्लेख ), कथासरित् ६.२.१३ (कृत नामक राजा की सात सुन्दरी कन्याओं के वैराग्य धारण तथा परहित साधन की कथा ) । krita

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      कृतक ब्रह्माण्ड २.३.७१.१७२ ( वसुदेव व मदिरा के दस पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२४.४८ ( वसुदेव व मदिरा के अनेक पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१५.२३ ( वसुदेव व मदिरा के दस पुत्रों में से एक ), ४.१९.७९ ( च्यवन - पुत्र, उपरिचर वसु - पिता ) ।*


      कृतकृत्य ब्रह्माण्ड २.३.७.२४१ ( प्रधान वानरों में से एक ) ।


      कृतघ्न पद्म ५.९८.५९ ( कृतघ्न, विदैव तथा अवैशाख नामक प्रेतों के धनशर्मा द्वारा उद्धार की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४७ ( कृतघ्न के गण्डक बनने का उल्लेख ), २.५१.३३ ( विभिन्न ऋषियों द्वारा सुयज्ञ नृप हेतु कृतघ्न के लक्षण, भेद तथा दोषादि का निरूपण ), महाभारत शान्ति १६८+ ( गौतम नामक पापी तथा कृतघ्न पुरुष के वृत्तान्त द्वारा कृतघ्न पुरुष के सदा त्याग का कथन ), २७१.१२ ( कृतघ्न के प्रजारहित होने का उल्लेख ; कृतघ्न का प्रायश्चित्त न होने का उल्लेख ), अनुशासन १२ ( कृतघ्न की गति व प्रायश्चित्त का कथन ), वा.रामायण ४.३४.१०( लक्ष्मण द्वारा सुग्रीव को कृतघ्नता के दोषों का कथन ), स्कन्द ६.१९.१५ ( राजा विदूरथ द्वारा गयाशिर में प्रदत्त श्राद्ध से कृतघ्न प्रेत की मुक्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४४२.५० (कृतघ्नता :१६ प्रकार की कृतघ्नता से प्राप्त नरकों का कथन ), ४.२९.३९ ( विप्र - पत्नी आत्मशेमुषी द्वारा कुथली नामक बाला को कृतघ्नता - स्वरूप का वर्णन ) । kritaghna

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      कृतञ्जय ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२१( १७वें द्वापर में कृतञ्जय के व्यास होने का उल्लेख ), ३.४.४.६३ (१७वें द्वापर के वेदव्यास कृतञ्जय द्वारा धनञ्जय से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर तृणंजय को सुनाने का उल्लेख ), भागवत ९.१२.१३ ( बर्हि - पुत्र, रणंजय - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), लिङ्ग १.२४.७६ ( १७वें द्वापर के व्यास रूप में कृतञ्जय का उल्लेख ), वायु ९९.२८७ ( धर्मी - पुत्र, व्रात - पिता, तुर्वस्वादि वंश ), १०३.६२ ( पापनाशक तथा पुण्यप्रद वायु पुराण के उपदेश प्रदान की परम्परा में धनञ्जय द्वारा कृतञ्जय को तथा कृतञ्जय द्वारा तृणञ्जय को उपदेश प्रदान करने का उल्लेख ), विष्णु ४.२२.६ ( धर्मी -पुत्र, रणञ्जय - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ; द्र. देवकृतञ्जय । kritanjaya


      कृतद्युति भागवत ६.१४.२८ ( राजा चित्रकेतु की ज्येष्ठा पत्नी कृतद्युति को अङ्गिरा ऋषि की कृपा से पुत्र प्राप्ति, सपत्नी - प्रदत्त विष से पुत्र के मरण का वृत्तान्त ) ।


      कृतधर्मा ब्रह्माण्ड २.३.६८.११ ( संकृति - पुत्र ), वायु ९३.११ ( संकृति - पुत्र, चन्द्र वंश ), विष्णु ४.११.१० ( कृतधर्म : धनक के ४ पुत्रों में से एक, यदु वंश ) ।


      कृतध्वज नारद १.४६.३७ (धर्मध्वज - पुत्र, अमितध्वज - भ्राता, केशिध्वज - पिता ), भागवत ९.१३.१९ ( धर्मध्वज - पुत्र, केशिध्वज - पिता, मितध्वज - अनुज, मैथिल वंश ), वामन ९०.५ ( कुरुक्षेत्र में विष्णु का कृतध्वज नाम से वास ), विष्णु ६.६.७ (धर्मध्वज - पुत्र, केशिध्वज - पिता, मितध्वज - अनुज, मैथिल वंश) । kritadhwaja


      कृतप्राप्ति ब्रह्माण्ड ३.४.१.९० ( सुतार वर्ग के १० देवों में से एक ) ।


      कृतबन्धु ब्रह्माण्ड १.२.३६.५० ( तामस मनु के ११ पुत्रों में कनिष्ठतम ) ।


      कृतमाला अग्नि २.४ ( मत्स्यावतार के वर्णन में कृतमाला नदी में तर्पण करते समय वैवस्वत मनु की अञ्जलि में मत्स्य के प्राकट्य का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३६, २.३.३५.१७ ( मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), भागवत ५.१९.१८ ( भारतवर्ष की मुख्य नदियों में से एक ), ८.२४.१२ ( कृतमाला नदी में जल से तर्पण करते समय राजा सत्यव्रत की अञ्जलि में मत्स्य का आगमन, भगवान के मत्स्यावतार की कथा ), १०.७९.१६ ( तीर्थयात्रा प्रसंग में बलराम का कृतमाला व ताम्रपर्णी नदियों में स्नान कर मलय पर्वत पर गमन का उल्लेख ), ११.५.३९ ( कृतमाला प्रभृति नदियों के जलपान से अन्त:करण की शुद्धि का उल्लेख ), मत्स्य ११४.३० ( मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), वायु ४५.१०५ ( मलय पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), विष्णु २.३.१३ ( वही) । kritamaalaa


      कृतयुग ब्रह्माण्ड १.२.१६.६९ ( चार युगों में प्रथम ), १.२.२९.२४ ( कृतयुग का प्रमाण : ४ सहस्र दिव्य वर्ष ), २.३.७४.२२५ ( चन्द्र, सूर्य, तिष्य तथा बृहस्पति के एक राशि में होने पर कृतयुग के प्रारम्भ होने का उल्लेख ), भविष्य ४.१२२.१ ( कृतयुग का ब्राह्मयुग, त्रेता का क्षत्रिययुग, द्वापर का वैश्य युग तथा कलियुग का शूद्र युग के रूप में उल्लेख ), भागवत ९.१०.५२ ( राम के राज्य में त्रेतायुग के कृतयुग सदृश होने का उल्लेख ), ११.५.२१( कृतयुग आदि चारों युगों में भगवान् के भिन्न - भिन्न रंगों, नामों, आकृतियों तथा पूजा विधियों का कथन ), ११.१७.१० ( सत्य युग में प्रजा के जन्म से ही कृतकृत्य होने के कारण इस युग का कृतयुग नामोल्लेख ), १२.३.५२ ( कृतयुग में ध्यान मात्र से विष्णु की उपासना का उल्लेख ), मत्स्य १.३४ ( मत्स्यरूप धारी विष्णु द्वारा वैवस्वत मनु को कृतयुग के प्रारम्भ में नरेश के रूप में मन्वन्तराधिपति होने का कथन ), १४२.१७ ( चार युगों में से प्रथम कृतयुग का परिमाण ४ हजार दिव्य वर्षों का होने, चार सौ दिव्य वर्षों की उसकी संध्या तथा चार सौ दिव्य वर्षों के सन्ध्यांश के होने का कथन ), १४२.२४ ( मानुष वर्ष के अनुसार कृतयुग का परिमाण १७ लाख २८ हजार वर्ष होने का कथन ), १४४.८७ ( कलियुग सन्ध्यांश के व्यतीत हो जाने पर शेष प्रजा से कृतयुग के प्रारम्भ का कथन ), १४५.७ ( कृतयुग में देव , असुर, मनुष्य यक्ष, गन्धर्व तथा राक्षसों के शरीरों के विस्तार तथा ऊंचाई में समान होने का उल्लेख ), १६५.१ ( कृतयुग की व्यवस्था का कथन ), वायु ५७.२२ ( चार युगों में से प्रथम ), ५७.३७ ( कृतयुग का प्रमाण ४ सहस्र दिव्य वर्ष ), ५८.१०३ ( कृतयुग के प्रवृत्त हो जाने पर कलियुग की शेष प्रजाओं से ही कृतयुग की प्रजाओं की उत्पत्ति का उल्लेख ), ७८.३६ ( कृतयुग का ब्राह्मण युग, त्रेता का क्षत्रिय युग, द्वापर का वैश्य युग तथा कलियुग का शूद्रयुग के रूप में उल्लेख ), विष्णु ४.२४.१०२ ( चन्द्र, सूर्य, तिष्य तथा बृहस्पति के एक राशि में होने पर कृतयुग के प्रारम्भ का उल्लेख ), स्कन्द ७.१.१३.९ ( हिरण्यगर्भ की कृतयुग में सूर्य, त्रेता में सविता, द्वापर में भास्कर तथा कलियुग में अर्कस्थल नाम से प्रसिद्धि ), ७.१.७४.७ ( शतकल्पेश्वर लिङ्ग की ही कृतयुग में भैरवेश्वर नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ) । kritayuga

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      कृतरथ विष्णु ४.५.२७ ( प्रतिक - पुत्र, देवमीढ - पिता, जनक वंश ) ।


      कृतरात विष्णु ४.५.२७ ( महाधृति - पुत्र, महारोमा - पिता, जनक वंश ) ।


      कृतलक्षण मत्स्य ४५.२ ( माद्री व वृष्णि के पांच पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ) ।


      कृतवर्मा गर्ग १.५.२४ ( कृतवर्मा के वरुण का अंश होने का उल्लेख ), ७.२०.३४ ( प्रद्युम्न व कौरवों के युद्ध में प्रद्युम्न - सेनानी कृतवर्मा का भूरिश्रवा से युद्ध ), ७.२४.१५ ( यादवों व यक्षों के युद्ध में कृतवर्मा द्वारा नलकूबर को पराजित करने का उल्लेख ), १०.४९.१९ ( यादवों व कौरवों के युद्ध में अनिरुद्ध - सेनानी कृतवर्मा का भूरि से युद्ध ), देवीभागवत ४.२२.३७ ( देवों के अंश वर्णन में कृतवर्मा के मरुद्गण का अंश होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( कनक के चार पुत्रों में से एक ), २.३.७१.१४० ( हृदीक के दस पुत्रों में से एक ), भविष्य ३.३.२६.८६ ( कृतवर्मा के अंशावतरण रूप अभय का नृहर द्वारा वध हो जाने पर कृतवर्मा में ही विलीन हो जाने का उल्लेख ), भागवत १.१४.२८ ( युधिष्ठिर द्वारा द्वारका से लौटकर आए अर्जुन से हृदीक कृतवर्मा प्रभृति वृष्णिवंशियों की कुशलता की पृच्छा ), ९.२३.२३ ( धनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ९.२४.२७ ( हृदीक के तीन पुत्रों में से एक, वृष्णि वंश ), १०.६१.२४ ( कृष्ण व रुक्मिणी - कन्या चारुमती का कृतवर्मा के पुत्र बली से विवाह होने का उल्लेख ), १०.८२.७ ( सूर्य ग्रहण के अवसर पर यदुवंशियों के कुरुक्षेत्र चले जाने पर अनिरुद्ध तथा कृतवर्मा के नगर रक्षा हेतु द्वारका में ही निवास का उल्लेख ), मत्स्य ४३.१३ ( कनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ), ४४.८१( हृदीक के दस पुत्रों में से एक, अन्धक वंश ), वायु ९४.८ ( धनक के चार पुत्रों में से एक ), ९६.१३९ (हृदीक के तीन पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१३.६५ ( कृतवर्मा द्वारा सत्राजित् से उसकी कन्या सत्यभामा को मांगना, सत्राजित् के न देने पर कृतवर्मा के वैरभाव को प्राप्त होने का कथन ), ४.१४.२४ ( हृदीक के तीन पुत्रों में से एक ), ५.३७.४६ ( यादवों के गृहयुद्ध में कृतवर्मा की मृत्यु ), स्कन्द ३.१.५.७७ ( अलम्बुसा नामक अप्सरा का अयोध्या महानगरी के राजा कृतवर्मा की पुत्री मृगावती के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), कथासरित् २.१.२९ ( इन्द्र के शाप से अलम्बुषा नामक अप्सरा का अयोध्याराज कृतवर्मा की पुत्री मृगावती के रूप में जन्म, सहस्रानीक के साथ मृगावती के विवाह हेतु कृतवर्मा की स्वीकृति ) । kritavarmaa /kritvarma

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      कृतवाक् मत्स्य १४५.१०१( कृतवाच : तैंतीस मन्त्रकृत आङ्गिरसों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.१५७.१२१( कृतवाक् नामक विप्रर्षि के रैवत - पुत्र ककुद्मी के रूप में जन्म का कथन ) । kritavaak


      कृतवीर्य गणेश १.५८.९ ( पुत्र - हीन कृतवीर्य का तप हेतु वन गमन, नरक में स्थित कृतवीर्य के पिता द्वारा ब्रह्मा से पुत्र प्राप्ति उपाय की पृच्छा ), १.५९.९ ( कृतवीर्य के पूर्व जन्म की कथा : साम नामक अन्त्यज द्वारा अन्त समय में गणेश नाम लेने से कृतवीर्य राजा बनना ), १.६८.१ ( पुत्र की इच्छा वाले राजा कृतवीर्य के स्वप्न में पिता रूप धारी गणेश द्वारा दर्शन, पुस्तक प्रदान करना व संकष्ट चतुर्थी व्रत का निर्देश ), १.७२.२ ( गणेश की कृपा से कृतवीर्य की रानी से उत्पन्न पुत्र का हस्त - पाद रहित होना ), ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( कनक - पुत्र, कार्तवीर्य - पिता ), भविष्य ४.५२.७ ( हैहयराज कृतवीर्य द्वारा पुत्रायुष्य हेतु सम्पन्न स्नपन सप्तमी व्रत का वर्णन ), ४.१०६.११ ( हैहयराज, कार्तवीर्य - पिता, शीलधना - पति, मैत्रेयी - निर्दिष्ट अनन्त व्रत के प्रभाव से कृतवीर्य व शीलधना को कार्तवीर्य अर्जुन नामक पुत्र की प्राप्ति ), भागवत ९.२३.२३ ( धनक - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पिता, यदुवंश ), मत्स्य ४३.१३ ( कनक के चार पुत्रों में से एक, कार्त्तवीर्य - पिता, यदु वंश ), ६८.६ ( वाराह कल्प के २६ वें कृतयुग में हैहयवंशीय कृतवीर्य नृपति के पूछने पर भगवान् सूर्य द्वारा सप्तमी स्नपन व्रत का वर्णन ), वायु ६८.३८ ( प्रवाही से उत्पन्न दस देवगन्धर्वों में से एक ), ९४.८ ( कनक - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पिता ), विष्णु ४.११.१० ( धनक - पुत्र, कार्त्तवीर्य - पिता, यदु वंश ) । kritaveerya/ kritvirya


      कृतशर्मा वायु ८८.१८१ ( ऐडिविड - पुत्र, शतरथ - पौत्र, विश्वमहत् - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ।


      कृतशल्या लक्ष्मीनारायण ३.२३१.८२ ( चम्बावती नगरवासी तारकादर्श नामक जल्लाद तथा तत्पत्नी कृतशल्या द्वारा हरिभक्ति से अभ्युदय व मोक्ष प्राप्ति का वर्णन ) ।


      कृतशौच मत्स्य १३.४५ ( कृतशौच नामक पवित्र पीठ स्थान में सती देवी के सिंहिका रूप से विराजित होने का उल्लेख ), १७९.८७ ( मातृगण के साथ भगवान् नृसिंह के अन्तर्हित होने पर उस स्थान की कृतशौच तीर्थ नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), वामन ९०.५ ( कृतशौच तीर्थ में विष्णु का नृसिंह नाम से वास ), स्कन्द ५.३.१९८.८२ ( कृतशौच तीर्थ में उमा की सिंहिका नाम से स्थिति का उल्लेख ) । kritashaucha


      कृतस्थला ब्रह्माण्ड २.३.७.१५ ( मेनकादि ग्यारह अप्सराओं में से एक ), ३.४.३३.१९ ( गोमेदक महाशाला के अन्दर कृतस्थला प्रभृति अप्सराओं का गन्धर्वों के साथ ललिता देवी का ध्यान तथा अर्चन करते हुए निवास का कथन ), भागवत १२.११.३३ ( कृतस्थली : चैत्र मास में धाता नामक सूर्य के गणों में कृतस्थली अप्सरा, हेति राक्षस, वासुकी सर्प आदि का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७.९ ( यक्ष - भार्या, रजतनाभ - माता ) । kritasthalaa


      कृतज्ञता विष्णुधर्मोत्तर ३.२७०.१४ ( कृतज्ञता गुण का निरूपण ) ।


      कृतस्मर स्कन्द ७.१.२२.२ ( प्रभास क्षेत्र के अन्तर्गत कृतस्मर पर्वत पर चन्द्रमा द्वारा शिवाराधना का वर्णन ), ७.१.३३.६७ ( बडवानल को सागर की ओर ले जाती हुई सरस्वती के मार्ग को कृतस्मर पर्वत द्वारा अवरुद्ध करना, पर्वत की सरस्वती पर आसक्ति तथा विवाह हेतु प्रस्ताव, सरस्वती का युक्तिपूर्वक बडवानल को कृतस्मर के हाथ में देना, हाथ में ग्रहण करते ही बडवा द्वारा कृतस्मर के भस्म होने का वृत्तान्त ), ७.१.१९९+ ( कृतस्मर तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन, तीर्थ के दक्षिण में स्थित कामकुण्ड में स्नान से सौन्दर्य प्राप्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५४०.६ ( पर्वत रूप कृतस्मर नामक तीर्थ में स्थित कामकुण्ड में स्नान से सौन्दर्य प्राप्ति का कथन ) । kritasmara


      कृताग्नि ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( कनक - पुत्र ), भागवत ९.२३.२२ ( धनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ), मत्स्य ४३.१३ ( कनक के चार पुत्रों में से एक, यदुवंश ), विष्णु ४.११.१० ( धनक के चार पुत्रों में से एक, यदु वंश ) ।


      कृतान्त गणेश २.९६.१२ ( उपनयन संस्कार के मध्य गणेश द्वारा गज रूप धारी कृतान्त व काल दैत्यों का वध ),ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९ ( स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १४८.३० ( दैत्यराज तारकासुर के राज्य में कृतान्त के अग्रेसर के स्थान पर नियुक्त होने का उल्लेख ), वायु ६२.१८ ( स्वारोचिष मनु के ९ पुत्रों में से एक ), कथासरित् १२.१९.१३७ ( कृतान्तसन्त्रास : पिता के शापवश प्रत्येक मास की अष्टमी व चर्तुदशी को शिवपूजन हेतु नगर से बाहर जाने पर मृगाङ्कवती का कृतान्तसन्त्रास नामक राक्षस द्वारा निगरण, राक्षस का पेट भेदकर मृगाङ्कवती का जीवित बाहर निकलना ) । kritaanta


      कृताहार ब्रह्माण्ड २.३.७.१८० ( पुलह व श्वेता के दस वानरपुंगव पुत्रों में से एक ) ।


      कृति गरुड ३.१६.७(प्रद्युम्न – भार्या), गर्ग ५.१५.३३ ( सुकृति : श्रीहरि के धर्मपालक कल्कि के रूप में प्रकट होने पर राधा के सुकृति रूप में प्रकट होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.७९, १०६ ( नड्वला व चाक्षुष मनु के १० पुत्रों में से एक ), २.३.६४.२३ ( बहुलाश्व - पुत्र, जनकवंशी अन्तिम सम्राट के रूप में कृति का उल्लेख ), २.३.६८.१२ ( नहुष के ययाति प्रभृति ६ पुत्रों में से एक ), ३.४.१.१४ ( बीस सुतपा देवों में से एक ), भागवत ६.१८.१४ ( हिरण्यकशिपु व कयाधु के चार पुत्रों में से एक संह्लाद नामक पुत्र की पत्नी, पञ्चजन - माता ), ९.१३.२६ ( बहुलाश्व - पुत्र, महावशी - पिता, मैथिल वंश ), ९.१८.१ ( नहुष के ६ पुत्रों में से एक, नहुष वंश ), ९.२१.२८ ( सन्नतिमान् - पुत्र, नीप - पिता, हिरण्यनाभ से योगविद्या की प्राप्ति, प्राच्यसाम नामक ऋचाओं की ६ संहिताओं का कथन ), ९.२४.२ ( बभ्रु - पुत्र, उशिक - पिता, विदर्भ वंश ), मार्कण्डेय ८.२१ ( असत्य वचन से कृति नामक स्वर्ग से च्युति का उल्लेख ), वायु ६१.४८ ( दो सर्वोत्कृष्ट सामगों में से एक ), ६२.६७ ( नड्वला व चाक्षुष मनु के १० पुत्रों में से एक ), ८९.२३ ( बहुलाश्व - पुत्र, जनकवंशीय अन्तिम सम्राट् ), विष्णु ४.५.३१ ( शतध्वज - पुत्र, अञ्जन - पिता, कुरुजित् - पितामह, जनक वंश ), ४.५.३१ ( बहुलाश्व - पुत्र, जनकवंशीय अन्तिम सम्राट ), ४.१०.१ ( नहुष के ६ पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.८८ ( श्रीकृष्ण नारायण - पत्नी, सूद्योग नामक सुत तथा नयराजती नामक सुता - माता ), ४.१०१.११४ ( कृतिनी : श्रीकृष्ण नारायण - पत्नी विद्योतिनी की सुता ), भरतनाट्य १४.४५(२० या अधिक अक्षरों वाले शब्दों की कृति, प्रकृति, संकृति आदि संज्ञाएं) ; द्र. सुकृति । kriti


      कृतिमान् भागवत ९.२१.२७ ( यवीनर - पुत्र, सत्यधृति - पिता, भरत वंश ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२४ ( श्री कृष्णनारायण की पत्नी प्रकृति का पुत्र ) ।


      कृतिरथ भागवत ९.१३.१६ ( प्रतीपक - पुत्र, देवमीढ - पिता, निमि वंश ) ।


      कृतिरात भागवत ९.१३.१७ ( महाधृति - पुत्र, महारोमा- पिता, निमि वंश ) ।


      कृती ब्रह्माण्ड २.३.७.२४१ ( किष्किन्धा वासी वालि की वानरसेना के प्रधान वानरों में से एक ), ३.४.१.११४ ( भौत्य मनु के ९ पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२२.५ ( च्यवन - पुत्र, उपरिचर वसु - पिता, कुरु वंश ) ।


      कृतेयु वायु ९९.१२४ ( रौद्राश्व व घृताची के दस पुत्रों में से एक, पुरु वंश ) ।


      कृतौजा ब्रह्माण्ड २.३.६९.८ ( हैहयवंशी कनक के कृतवीर्य आदि चार पुत्रों में से एक ), भागवत ९.२३.२२ ( हैहयवंशी धनक के कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों में से एक ), मत्स्य ४३.१३ ( हैहयवंशी कनक के कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.११.१० ( हैहय वंशी धनक के कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों में से एक ) । kritaujaa


      कृत्तिका अग्नि १८.३९ (कृत्तिका से कार्त्तिकेय तथा सनत्कुमार की उत्पत्ति का उल्लेख ), गणेश १.८५.३१ ( षट् कृत्तिकाओं द्वारा अग्नि से शिव के वीर्य को ग्रहण करना, ऋषियों द्वारा त्याग, कृत्तिकाओं द्वारा वीर्य का गङ्गा में त्याग ),पद्म १.४४.१३२ ( जलक्रीडा करते हुए हिमशैलजा पार्वती द्वारा कृत्तिकाओं का दर्शन, कृत्तिकाओं द्वारा प्रदत्त पद्मपत्र स्थित जलपान से कार्त्तिकेय के जन्म का वृत्तान्त ), ब्रह्म २.१२ ( शिव वीर्य धारण से ऋषियों द्वारा कृत्तिकाओं का निष्कासन, दुःखी कृत्तिकाओं का नारद के कथनानुसार कार्त्तिकेय के समीप गमन, कार्त्तिकेय के आदेशानुसार गौतमी में स्नान तथा देवेश्वर के पूजन से कृत्तिकाओं की मुक्ति, गौतमी तीर्थ की कृत्तिका तीर्थ रूप से प्रसिद्धि तथा तीर्थ माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१४.३२ (६ कृत्तिकाओं द्वारा बालक को दुग्ध पान तथा पालन पोषण करने से कार्त्तिकेय नामकरण ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१७(कावेरी, कृष्णवेणा आदि १६ धिष्णियों /नदियों के कृत्तिकाचारिणी होने का उल्लेख ),१.२.२१.७७ ( अश्विनी, कृत्तिका व याम्य नक्षत्रों में सूर्य के उदय होने पर नागवीथी नाम से स्मरण किए जाने का उल्लेख ), १.२.२१.१४५ ( कृत्तिका नक्षत्र के प्रथम चरण में सूर्य के पहुंचने पर चन्द्रमा के विशाखा के चतुर्थ चरण में रहने तथा विशाखा के तीसरे चरण में सूर्य के जाने पर चन्द्रमा के कृत्तिका शिर पर पहुंचने का उल्लेख ), १.२.२४.१३० ( चाक्षुष मन्वन्तर में सूर्य के विशाखा नक्षत्र में तथा चन्द्रमा के कृत्तिका नक्षत्र में उत्पन्न होने का उल्लेख ), २.३.१०.४४ (कृत्तिकाओं द्वारा पोषित होने से कुमार के कार्तिकेय नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), ३.४.३०.१०० ( महेश्वर के उग्र वीर्य के क्रमश: पृथ्वी, अग्नि, कृत्तिकाओं, गङ्गाजल तथा शरवण में प्रक्षिप्त होने का कथन ), भविष्य ४.१०३.२४ ( कृत्तिका व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन ), भागवत ६.६.१४ ( कृत्तिका - पुत्र के रूप में स्कन्द का उल्लेख ), ६.६.२३ ( कृत्तिका प्रभृति २७ नक्षत्राभिमानिनी देवियों के चन्द्र - पत्नी होने का उल्लेख ), मत्स्य ५.२७ ( कृत्तिकाओं की संतति होने के कारण कुमार के कार्तिकेय नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), १५८.३३ ( छह कृत्तिकाओं द्वारा पार्वती को पद्मपत्र में सरोवर का जल देना, जलपान से कुमार की उत्पत्ति ), वामन ५१.२०(सन्ध्यारागवती/रागवती का रूप?), ५७.८६ ( कृत्तिकाओं द्वारा स्कन्द को हंसास्य, कुण्डजठर, बहुग्रीव, हयानन तथा कूर्मग्रीव नामक पांच अनुचर प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ६६.७८ ( अश्विनी, भरणी व कृत्तिका के नागवीथी नाम से स्मरण किए जाने का उल्लेख ), ७२.४३ ( कृत्तिकाओं द्वारा वर्धित होने से कुमार के कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), ८२.२ ( कृत्तिका नक्षत्र के योग में श्राद्ध करने पर मनुष्य के विगत ज्वर होने का उल्लेख ), विष्णु १.१५.११६ ( कृत्तिका - पुत्र होने से कुमार के कार्त्तिकेय नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), २.९.१५ ( कृत्तिका प्रभृति नक्षत्रों में सूर्य के स्थित रहने पर दिग्गजों द्वारा पवित्र जल छोडे जाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२८.१० ( गङ्गा द्वारा परित्यक्त षडानन का कृत्तिकाओं द्वारा पालन, चन्द्र से समायोग होने पर कृत्तिका पूजा विधि तथा माहात्म्य ), २.९६ ( गृहस्थों के काम्य कर्म के अन्तर्गत कृत्तिका में स्नानपूर्वक यथाशक्ति दान तथा मधुसूदन के पूजन का कथन ), वा.रामायण १.३७.२३ ( कुमार जन्म प्रसंग में कृत्तिकाओं द्वारा कुमार को स्तन - पान, एतदर्थ कुमार के कार्तिकेय नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), शिव १.१६.५१ ( कृत्तिका नक्षत्र में वार अनुसार देवपूजन, द्रव्यदान व फल का कथन ), स्कन्द १.१.२७.७३ ( अरुन्धती द्वारा निवारित किए जाने पर भी कृत्तिकाओं की प्रज्वलित अग्नि में तापने की लालसा, गर्भवती होने पर ऋषि पतियों द्वारा परित्याग, षण्मुख उत्पत्ति का प्रसंग ), १.२.२९.२१० ( षट् कृत्तिकाओं द्वारा गुह से अक्षय स्वर्ग प्राप्ति की कामना करने पर कृत्तिकाओं को स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.३४.७२ ( कृत्तिकाओं द्वारा स्कन्द को शूल प्रदान करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.३२.१५( कृत्तिकाओं द्वारा नक्षत्रों में स्थान प्राप्ति व सप्तशीर्षा होने के कारणों का कथन ), २.३२.१८( विनता को ६ कृत्तिकाओं के शीर्ष स्थान की प्राप्ति ) । krittikaa / krittika

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      कृत्तिवास नारद २.४९.६ (काशी में कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग की पूजा की महिमा का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.९.६९ (ब्रह्मा की आज्ञा से कृत्तिवासेश्वर शिव द्वारा प्रजा सृजन का कथन ), २.३.२५.१४, २.३.७२.१८४ ( भार्गवकृत शिव स्तुति में शिव का एक नाम ), मत्स्य १८१.१४ (गजचर्म धारण करने से शिव का नाम ), वामन ९०.३५ ( रसातल में विष्णु के नामों में से एक ), वायु २१.५१ ( बाइसवें कल्प में मेघी विष्णु द्वारा कृत्तिवास महेश्वर को सहस्र दिव्य वर्ष तक धारण करने का उल्लेख ), शिव २.५.५७.६७ ( शिव द्वारा गजासुर का चर्म ग्रहण करने पर काशी क्षेत्र में कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग की स्थापना ), स्कन्द ४.१.३३.१६६ ( कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.६८.२९ ( गजासुर - चर्म धारण से शिव का काशी में कृत्तिवासेश्वर नाम से निवास तथा कृत्तिवासेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन ), ६.१०९.१२ ( एकाम्र तीर्थ में शिवलिङ्ग के कृत्तिवासेश्वर नाम का उल्लेख ), ७.१.७.१७ ( पञ्चम कल्प में शिव का नाम ) । krittivaasa


      कृत्ती पद्म १.९.४०(पीवरी – कन्या, पाञ्चालपति – पत्नी, ब्रह्मदत्त – माता), द्र. कृत्वी


      कृत्य स्कन्द ५.३.१५७.१५ ( हुंकार तीर्थ में शुभ या अशुभ कृत्य के नष्ट न होने का उल्लेख ) ।


      कृत्या गणेश २.६३.३८ ( ईशिता सिद्धि से निर्गत कृत्या द्वारा शुक्र का बन्धन व मोचन )२.६५.३ ( बुद्धि के मुख से नि:सृत कृत्या द्वारा देवान्तक असुर का स्वभग में बन्धन व मोचन ), देवीभागवत ७.७.१३ ( च्यवन द्वारा इन्द्र के निग्रहार्थ मद नामक भीषण आकृति युक्त कृत्या की उत्पत्ति, अश्विनौ के सोमपान का प्रसंग ), पद्म ६.१७.८४ ( शिव के तृतीय नेत्र से कृत्या की उत्पत्ति, शिव की आज्ञानुसार कृत्या द्वारा स्व - योनि में शुक्राचार्य को छिपाना, शिव द्वारा जालन्धर दैत्य के वध का प्रसंग ), ६.२५१.११६ ( पौण्ड्रक वासुदेव - पुत्र दण्डपाणि द्वारा शंकरोपासना से कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा कृत्या का नाश ), ब्रह्म २.४०.१२५ ( पिप्पलाद द्वारा देवों के विरुद्ध बडवा कृत्या की उत्पत्ति, पांच नदियों द्वारा बडवा की समुद्र में स्थापना ), २.४६.२२ ( ऋषियों द्वारा बडवा कृत्या का मृत्यु से विवाह ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१६.७५(कृत्या के सत्व, रजो व तमो गुणों का कथन), ४.८४.२६ ( तीन प्रकार की कृत्या स्त्रियों के लक्षणों का वर्णन ), भागवत ९.४.४६ ( क्रुद्ध दुर्वासा द्वारा अम्बरीष वध हेतु कृत्या की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा अम्बरीष की रक्षा तथा कृत्या को भस्म करने का वृत्तान्त ), १०.६६.३८ ( सुदक्षिण के अभिचार से माहेश्वरी कृत्या की उत्पत्ति, कृष्ण के सुदर्शन चक्र द्वारा कृत्या के नष्ट होने का वृत्तान्त ), विष्णु १.१८.३३( हिरण्यकशिपु के आदेश पर पुरोहितों द्वारा प्रह्लाद के वध हेतु कृत्या को उत्पन्न करना, कृत्या की असफलता, कृत्या द्वारा पुरोहितों का नाश, प्रह्लाद की प्रार्थना से पुरोहितों का पुन: संजीवन ), ५.३४.३१( काशिराज पौण्ड्रक के पुत्र द्वारा कृष्ण वध हेतु कृत्या की उत्पत्ति, सुदर्शन चक्र से कृत्या का नष्ट होना ), स्कन्द ३.१.५१.१९(कृत्या को आहारार्थ पाषाण दान), ५.२.४.९ ( रुरु - पुत्र वज्र नामक दैत्य के वध हेतु देवों के अंश से कृत्या की उत्पत्ति का कथन ), ५.२.६६.२५ ( जल्प नामक राजा के सुबाहु आदि५ पुत्रों द्वारा एक दूसरे के वध हेतु कृत्याएं उत्पन्न करने तथा विनाश को प्राप्त होने का वृत्तान्त ), ५.३.४२.३८ ( पिप्पलाद बालक द्वारा आग्नेयी धारण से कृत्या उत्पन्न करने तथा कृत्या के कृत्यों का वर्णन ), ६.१६८.४६ ( विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ वधार्थ कृत्या की उत्पत्ति, वसिष्ठ से पराभव तथा धारा नाम प्राप्ति का कथन ), ७.१.३२.९० ( पिता दधीचि के वध से क्रुद्ध पिप्पलाद द्वारा देवों के हननार्थ वडवाग्नि रूप कृत्या की उत्पत्ति का कथन ), ७.१.९९.२३ ( पितृहन्ता वासुदेव के वध हेतु काशिराज - पुत्र द्वारा शिव को सन्तुष्ट करके कृत्या की प्राप्ति ), ७.१.२८२.१८ ( शक्र नाश हेतु च्यवन ऋषि द्वारा तपोबल से कृत्या की उत्पत्ति, कृत्या से मद नामक महासुर का उद्भव ), लक्ष्मीनारायण १.९०.४ ( इन्द्र के राज्य को नष्ट करने हेतु देवगुरु बृहस्पति द्वारा किए गए होम से क्रूर व भयानक आकृति युक्त कृत्या की उत्पत्ति ), १.४२४.२०( कृत्या के नाश हेतु रुद्र का उल्लेख ) । krityaa


      कृत्वी पद्म १.९.४०(पीवरी – कन्या, पाञ्चालपति – पत्नी, ब्रह्मदत्त – माता, कृत्ती नाम पाठ), भागवत ९.२१.२५ ( नीप व शुक - कन्या कृत्वी से ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति, भरत वंश ), मत्स्य १४.९(कृत्वी का कीर्तिमती से साम्य; द्र. ब्रह्माण्ड २.३.१०.८२), १५.१-९( बर्हिषद् पितरों की कन्या पीवरी का तप से शुक - भार्या कृत्वी बनने का कथन ), १५९ ( शुक व पीवरी - कन्या, पांचाल नरेश - पत्नी, ब्रह्मदत्त - माता, कृत्वी का अन्य नाम गौ ), हरिवंश १.१८.५३ ( शुकदेव व पीवरी - कन्या, ब्रह्मदत्त - जननी, अणुह - पत्नी ), स्कन्द ७.१.२१२ ( कृत्वीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) । kritvee/ kritvi


      कृप गर्ग ७.२०.२९ ( प्रद्युम्न व कौरवों के युद्ध में दीप्तिमान् के कृपाचार्य से युद्ध का उल्लेख ), १०.५०.३३ ( विदुर के परामर्श पर कृपाचार्य प्रभृति कौरवों द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति तथा यज्ञाश्व को लौटाना ), देवीभागवत ४.२२.३७ ( देवों के अंश वर्णन में कृपाचार्य के मरुद्गण का अंश होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.३६ ( हरिभावना से शुद्ध चिरजीवियों में कृप का उल्लेख ), भागवत ९.२१.३६ ( शरस्तम्ब में पतित शरद्वान् के वीर्य से कृप व कृपी की उत्पत्ति, शन्तनु द्वारा कृपावश बालक व बालिका के पालन से कृपाचार्य व कृपी नाम धारण ), १०.८२.२४ ( स्यमन्तपञ्चक तीर्थ में वसुदेव, उग्रसेन प्रभृति यदुवंशियों द्वारा सत्कृत व्यक्तियों में से एक ), मत्स्य ४.३९ ( ध्रुव - पुत्र शिष्ट व अग्नि - कन्या सुच्छाया के पुत्रों में से एक ), विष्णु ३.२.१७ ( सावर्णि मनु के आठवें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ४.१९.६८ ( शरस्तम्ब में पतित सत्यधृति के वीर्य से कृप नामक कुमार तथा कृपी नामक कन्या की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.२१.४ ( कृप द्वारा शतानीक को अस्त्र - शस्त्र प्रदान करने का उल्लेख ), हरिवंश १.३२.३५ ( अहल्या व गौतम के पौत्र सत्यधृति के वीर्य से कृप की उत्पत्ति, शन्तनु द्वारा कृपापूर्वक ग्रहण करने के कारण कृप नाम धारण ) । kripa


      कृपण भागवत ११.१९.४४ ( अजितेन्द्रिय की कृपण संज्ञा का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२४६.३३ ( कृपण जनों के स्वच्छाया होने का उल्लेख ), कथासरित् १०.५.२१५ ( मूर्ख कृपण द्वारा किसी भी स्थिति में धन को न छोडने का निरूपण ) ।


      कृपा ब्रह्माण्ड १.२.१६.३८ ( शुक्तिमान् पर्वत से नि:सृत एक नदी ), भागवत १.४.२५(व्यास द्वारा कृपा करके स्त्री आदि हेतु भारत आख्यान की रचना), ७.१५.२४(कृपा द्वारा भूत से उत्पन्न दुःख, समाधि द्वारा दैव से उत्पन्न दुःख आदि हरण का निर्देश), मत्स्य ११४.३२ ( शुक्तिमन्त पर्वत से नि:सृत एक नदी ), मार्कण्डेय ११५.१४/११२.१४ ( सुरथ/सुरत मुनि की कृपा जनित मूर्च्छा से कन्या के उत्पन्न होने पर कृपावती नाम धारण ), स्कन्द ५.३.६.३३ ( नर्मदा नदी के कृपा नाम का कारण ), लक्ष्मीनारायण २.२०८.४५ ( कृपायन मुनि द्वारा मूषक पर कृपा करके मूषक को मार्जार आदि विभिन्न योनियां प्रदान करना, अन्त में पुन: मूषक बनाना ), ३.१९.२८ ( कृपावतीरमा : लक्ष्मी का एक अवतार ) । kripaa

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      कृपाण अग्नि २५२.१७ ( कृपाण नामक अस्त्र के हरण, छेदन, घात, भेदन, रक्षण, पातन तथा स्फोटन नामक कर्मों का कथन ), कथासरित् १८.४.९६( सूकर के कण्ठ का स्पर्श करने से कृपाण में रूपान्तरित होना ) । kripaana


      कृपी भागवत १.७.४५ ( द्रोणाचार्य - पत्नी, अश्वत्थामा - माता, अन्य नाम गौतमी ), १.१३.४ ( तीर्थयात्रा से लौटे हुए विदुर की अगवानी करने वालों में कृपी का उल्लेख ), ९.२१.३६ ( कृपाचार्य - भगिनी, द्रोणाचार्य - पत्नी ), वायु ९९.२०४ ( शरस्तम्ब में पतित सत्यधृति के शुक्र से मिथुन सन्तानों की उत्पत्ति, राजा शन्तनु द्वारा कृपापूर्वक मिथुन सन्तान के धारण तथा लालन - पालन से जुडवां सन्तति का कृप तथा कृपी नामकरण, कृपी के गौतमी नाम का उल्लेख ), विष्णु ४.१९.६८ ( शरस्तम्ब में पतित सत्यधृति के वीर्य से कृप नामक कुमार तथा कृपी नामक कन्या की उत्पत्ति, द्रोण - पत्नी, अश्वत्थामा - माता ) । kripee/ kripi


      कृमि गरुड १.१६५ ( कृमियों के प्रकार व निदान का वर्णन - क्रिमयश्च द्विधा प्रोक्ता बाह्यभ्यन्तरभेदतः । बहिर्मलकफासृग्विट्जन्मभेदाच्चतुर्विधाः ॥ ), १.२२५.१३ ( याचक को कृमि योनि की प्राप्ति - नरकात्प्रतिमुक्तस्तु कृमिर्भवति याचकः । ), १.२२५.१६ ( न्यास अपहर्त्ता को कृमि योनि की प्राप्ति ), १.२२५.२० ( यज्ञ, दान, विवाह के विघ्नकर्त्ता को प्राप्त योनि ), १.२२५.२२ ( शूद्र पुरुष के ब्राह्मणी स्त्री से व्यभिचार करने पर कृमि योनि की प्राप्ति ), १.२२५.२३ ( कृतघ्नता से प्राप्त योनि ), १.२२५.२४ ( स्त्री वध कर्त्ता व बालहन्ता को कृमि योनि की प्राप्ति ), १.२२५.२७ ( काञ्चन भाण्ड हरण से कृमि योनि की प्राप्ति ), पद्म २.५३.९६(शुद्ध वीर्य से कृमियों की उत्पत्ति न होने का उल्लेख?, प्राणिनां हि कपालेषु कृमयः संति पंच वै। द्वावेतौ कर्णमूले तु नेत्रस्थाने ततः पुनः॥) , ५.९९.६४ ( प्राणियों के कपाल में पिङ्गली, शृङ्खली, चपल, पिप्पल, शृङ्गली, जङ्गली प्रभृति कृमियों की स्थिति तथा उनसे कपाल रोगों की उत्पत्ति का कथन - प्राणिनां हि कपालेषु कृमयः संति पंच वै । द्वावेतौ कर्णमूले तु नेत्रस्थाने ततः पुनः। ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.५८ ( नरक में कृमि कुण्ड प्रापक दुष्कर्मों का उल्लेख ), ४.८५.११८ ( मिष्ट चोर के कृमि बनने का उल्लेख - शुकोऽप्यञ्जनचोरश्च मिष्टचोरः कृमिर्भवेत् ।। ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४२८( माष, मुद्ग आदि शिम्बी धान्य व अन्य जन्तुओं से कृमियों के उत्पन्न होने का कथन - शिंबिभ्यो माषमुद्गानां जायन्ते कृमयस्तथा ॥ ), २.३.७४.२० ( कृमी व उशीनर - पुत्र कृमि की कृमिला नामक राजधानी का उल्लेख - कृम्याः कृमिस्तु दर्वायाः सुव्रतो नाम धार्मिकः ।…नवस्य नवराष्ट्रं तु कृमेस्तु कृमिला पुरी ॥  ), भविष्य १.१८४.५४( देह के विभिन्न भागों में कृमि दंशन पर प्रायश्चित्त विधान का कथन - ब्राह्मणस्य ब्रह्मद्वारे पूय शोणितसंभवे । क्रिमिभिर्दश्यते यश्च निष्कृतिं तस्य वच्मि ते ।। ), ४.५४.३१( उदरपूर्ति हेतु हृत गोधूमों का नरक में कृमि बनना ), मत्स्य ५०.२५ ( च्यवन व ऋक्ष - पुत्र, चैद्योपरिचर वसु - पिता, कुरु वंश ), महाभारत शान्ति ३.२० ( भृगु - पत्नी का अपहरण करने पर भृगु के शाप से प्राग्दंश नामक असुर के क्रिमि योनि में पतित होने का उल्लेख, परशुराम – कर्ण कथा ), २१३.१०(स्वेदादि से उत्पन्न क्रिमियों की भांति सुत कृमि को भी त्यागने का निर्देश – स्वदेहजानस्वसंज्ञान्यद्वदङ्गात्कृमींस्त्यजेत्। स्वसंज्ञानस्वकांस्तद्वत्सुतसंज्ञान्कृमींस्त्यजेत्।।), मार्कण्डेय १५.६ ( न्यास अपहर्त्ता द्वारा कृमि योनि की प्राप्ति ), १५.१२ ( यज्ञ, दान व विवाहों में विघ्नकर्त्ता द्वारा कृमि योनि की प्राप्ति ), १५.१७ ( कृतघ्न द्वारा कृमि, कीट, वृश्चिक् आदि योनियों की प्राप्ति ), १५.१९ ( स्त्री वध कर्त्ता द्वारा कृमि योनि की प्राप्ति ),१५.२२ ( लवण अपहरण पर कृमि योनि की प्राप्ति - वीचीकाकस्त्वपहृते लवणे दधनि कृमिः॥ ), १५.२६ ( काञ्चन आदि हरण पर कृमि योनि की प्राप्ति ), वायु ९९.२० ( कृमी व उशीनर - पुत्र कृमि की कृमिला नामक राजधानी का उल्लेख - कृम्याः कृमिस्तु दर्वायाः सुव्रतो नाम धार्मिकः ।।…नवस्य नवराष्ट्रन्तु कृमेस्तु कृमिला पुरी। ), विष्णु २.६.१५ ( पिता, ब्राह्मण, देवता या रत्न का अनादर करने वाले को क्रिमिभक्ष नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.१८.९ ( उशीनर के शिबि, नृग, नव, कृमि व वर्म नामक पांच पुत्रों का उल्लेख, अनु वंश - उशीनरस्यापि शिबिनृगनवकृमि वर्माख्याः पञ्च पुत्रा बभूवुः ॥  ), शिव ५.१६.१२( देव, द्विज, पितृद्वेष्टा व रत्नदूषक के कृमिभक्ष नरक में जाने का उल्लेख ), स्कन्द १.१.१८.४९ ( दान के अभाव से इन्द्र के कृमि होने तथा दान के प्रभाव से कृमि के इन्द्र होने का कथन - य इंद्र कृमिरेव स्यात्कृमिरिंद्रो हि जायते॥ तस्माद्दानात्परतरं नान्यदस्तीह मोचनम्॥ ), ५.३.१०३.१४७ ( पुत्र शोक से पीडित गोविन्द ब्राह्मण के कृमियों से ग्रस्त होने में भ्रूणहत्या कारण होने का वर्णन ), ५.३.२११.९ ( ब्राह्मणों द्वारा कुष्ठी रूप धारी शिव को भिक्षा न देने पर भोजन को कृमियों से युक्त पाने का उल्लेख - भुञ्जतेऽस्म द्विजा राजन्यावत्पात्रे पृथक्पृथक् । यत्रयत्र च पश्यन्ति तत्रतत्र कृमिर्बहुः ॥ ), ६.१९४.४१ ( मनुष्यों की दृष्टि में कृमि कीटों की गति के समान ही देवों की दृष्टि में मनुष्यों की गति, ब्रह्मा की दृष्टि में देवों की गति, विष्णु की दृष्टि में ब्रह्मा की गति, शिव शक्ति की दृष्टि में विष्णु की गति तथा सदाशिव की दृष्टि में शिव शक्ति की गति होने का कथन - यथैते दंशमशका मानुषाणां च कीटकाः ॥ जायंते च म्रियंते च गण्यंते नैव कुत्रचित् ॥ इन्द्रादीनां तथा मर्त्याः संभाव्या जगतीतले ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.८७ ( नरक में कृमि कुण्ड प्रापक कर्म का उल्लेख - अभक्ष्यभक्षी मनुजो कृमिकुण्डं प्रयाति वै ।। ), २.२२६.६४( स्वेद से उत्पन्न क्रिमि व धातु से उत्पन्न पुत्र में साम्य का उल्लेख - सादृश्येऽत्र विशेषोऽस्ति साम्येऽपि स्वेदजैः सुतैः । स्वेदजाः क्रमयः प्रोक्ता धातुजाः सुतसंज्ञकाः ।। ), ३.४४.१९( कर्णमूल, नासिकाग्र तथा नेत्रों में स्थित कृमियों का नामोल्लेख - पिंगला शृंगली नाम द्वौ कृमीकर्णमूलयोः । चपलः पिप्पलश्चैव द्वावेतौ नासिकाग्रयोः ।।… ) , द्र. क्रिमि । krimi


      कृमिचण्डेश्वर मत्स्य १८१.२९ ( वाराणसी में परम गुह्य आठ स्थानों में से एक कृमिचण्डेश्वर नामक स्थान के शिव सन्निधि से पवित्र होने का उल्लेख ) ।


      कृमिभक्ष ब्रह्माण्ड ३.४.२.१४७, १६० ( देव - ब्राह्मण द्वेषक, गुरु अपूजक तथा रत्नदूषक को कृमिभक्ष नामक नरक प्राप्ति का उल्लेख ), भागवत ५.२६.७, १८ ( दूसरों को खिलाए बिना स्वयं खा लेने पर कृमिभोजन नामक नरक प्राप्ति ; २८ नरकों में से एक ), वायु १०१.१४७, १५८ ( देव - ब्राह्मण द्वेषक, गुरु अपूजक तथा रत्नदूषक को कृमिभक्ष नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ) ।


      कृमिल मत्स्य ४४.५० (बाह्यका व भजमान के तीन पुत्रों में से एक, क्रोष्टु वंश ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.२२ ( कृमिला : कृमी व उशीनर - पुत्र कृमि की राजधानी ) ।


      कृमी ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८ ( उशीनर की पांच रानियों में से एक, कृमि - माता ), वायु ९९.१९ (वही), १०१.१४७ ( घोर दुष्कर्मियों को कृमी प्रभृति नरक प्राप्ति का उल्लेख ) ।


      कृश ब्रह्माण्ड २.३.६३.१८१ ( कृशशर्मा : इडविड - पुत्र, दिलीप / खट्वांग - पिता ), मत्स्य ४८.१६ ( कृशा : उशीनर की पांच रानियों में से एक, कृश - माता, अनु वंश ), स्कन्द ३.१.४१.१२ ( शृंगी नामक मुनि - पुत्र का मित्र, राजा परीक्षित का मुनि के स्कन्ध पर मृत सर्प रखने तथा मुनि पुत्र द्वारा परीक्षित को सर्पदंश के शाप का प्रसंग ), महाभारत शान्ति १२७( आशा के कृशकारी होने का वर्णन ) । krisha


      कृशाङ्ग वायु ६९.१४ ( कृशाङ्गी : सुयशा अप्सरा की ४ अप्सरा पुत्रियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.९१.७८ ( द्विज - पुत्र कृशाङ्ग द्वारा महिष के ताडन पर महिषी द्वारा कृशाङ्ग के दूषित जन्म का कथन, कृशाङ्ग द्वारा विप्रत्व प्राप्ति हेतु तप तथा कृशानु अग्नि बनना ) ।

      कृशानु ब्रह्माण्ड १.२.१२.२१ ( सम्राट् अग्नि कृशानु के द्वितीय वेदी में स्थित होने का उल्लेख ), मत्स्य ५१.१९ ( वासव उपनाम वाली कृशानु अग्नि के यज्ञ की वेदी के उत्तर भाग में स्थित होने का उल्लेख ), वायु २९.१९ ( कृशानु नामक सम्राट् अग्नि के यज्ञ के उत्तर में उत्तरवेदी पर निवास करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.१०.४२ ( अग्निलोक वर्णन के अन्तर्गत शिवशर्मा का गणों से कृशानु के कुलादि तथा आग्नेय पद की प्राप्ति के विषय में प्रश्न ), लक्ष्मीनारायण ३.९१.१२७ ( कृशाङ्ग द्वारा चाण्डाल से द्विज बनने हेतु तप व तप के फलस्वरूप कृशानु अग्नि बनना ) । krishaanu


      कृशाश्व देवीभागवत ७.८.३८ ( बर्हणाश्व - पुत्र, प्रसेनजित् - पिता ), पद्म १.६.१४ ( दक्ष प्रजापति द्वारा कृशाश्व को दो कन्याएं प्रदान करने का उल्लेख ), १.४०.८७ ( साध्या द्वारा उत्पन्न साध्यगणों में से एक ), ब्रह्माण्ड १.२३३.१३ ( एक चरकाध्वर्यु ), १.२.३६.५० ( चतुर्थ तामस मनु का एक पुत्र ), १.२.३७.४६ ( दक्ष द्वारा स्वकन्या को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), २.३.६१.१५ ( सहदेव - पुत्र, सोमदत्त -पिता ), २.३.६३.६५ ( संहताश्व - पुत्र, धुन्धु वंश ), भागवत ६.६.२० ( दक्ष प्रजापति की दो कन्याओं अर्चि और धिषणा के पति, धूम्रकेश, वेदशिरा, देवल, वयुन और मनु के पिता ), ९.६.२५ ( बर्हणाश्व - पुत्र, सेनजित् - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), मत्स्य ५.१४,१४६.१७ ( प्रजापति दक्ष द्वारा दो कन्याओं को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), ६.६ ( महर्षि कृशाश्व के पुत्रों के देवप्रहरण नाम से विख्यात होने का उल्लेख ), वायु ६३.४२ ( दक्ष द्वारा एक कन्या को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), ६६.७९ ( देवर्षि कृशाश्व के पुत्रगण के देवप्रहरण नाम से विख्यात होने का उल्लेख ), ८६.२० ( सहदेव - पुत्र, सोमदत्त - पिता, वैवस्वत मनु वंश ), विष्णु १.१५.१०४ ( दक्ष प्रजापति द्वारा दो कन्याओं को कृशाश्व को प्रदान करने का उल्लेख ), १.१५.१३७ ( देवर्षि कृशाश्व के पुत्रों के देवप्रहरण नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), ४.१.५५ ( सहदेव - पुत्र, सोमदत्त - पिता ), ४.२.४६ ( अमिताश्व - पुत्र, प्रसेनजित् - पिता ), हरिवंश १.३.६५ ( राजर्षि कृशाश्व से प्रत्यङ्गिरस ऋचाओं तथा देव - आयुधों के प्राकट्य का उल्लेख ), वा.रामायण १.२१.१३ ( कृशाश्व व दक्ष - पुत्रियों जया व सुप्रभा के अस्त्र - शस्त्र रूप १०० पुत्रों को विश्वामित्र को प्रदान करने का कथन ) । krishaashva


      कृषक लक्ष्मीनारायण १.२०४.७७ ( कृष्ण की कृषक रूप में व्याख्या ), २.१६३.२ ( द्युविश्राम नामक भगवद्भक्त कृषक के सिंह प्रधर्षित गोधन की श्रीकृष्ण द्वारा रक्षा का वर्णन ), २.२७०.३ ( कृष्ण द्वारा भगवद्भक्त देवानीक नामक कृषक की भीषण जलवृष्टि से रक्षा ), ३.८९.६१ ( विश्रामगुप्त नामक दरिद्र कृषक का धन पाकर अशान्त होने व धन त्याग कर सुखी होने का वृत्तान्त ) । krishaka


      कृषि अग्नि १२१.४६ ( कृषि कार्य हेतु नक्षत्र विचार ), गर्ग ३.६.२१ ( कृषक द्वारा बीजों की कृषि के समान कृष्ण द्वारा मुक्ता कणों की कृषि करने का उल्लेख ), पद्म २.९७.५० ( मनुष्य द्वारा करणीय आध्यात्मिक कृषि का कथन ), ६.१८५.७५ ( कृषीवल :पथिक की गृध्र से रक्षा में असफलता पर कृषीवल का शाप से राक्षस बनना , गीता के ग्यारहवें अध्याय श्रवण से मुक्त की कथा ), भविष्य ४.३.३३ (द्विज द्वारा कृषि कार्य में दोष, विष्णु प्रोक्त ), वराह ७१.१२( गौतम द्वारा वर रूप में सस्य पंक्ति प्राप्ति का कथन ), वामन २२.२५ ( राजा कुरु द्वारा द्वैतवन में तप, सत्य, क्षमा, दया, शौच, दान, योग तथा ब्रह्मचर्य रूप धर्म के अष्टाङ्गों की कृषि करने का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर २.८२.१३ ( कृषि आरम्भ के लिए प्रशस्त तथा वर्जनीय नक्षत्रों का कथन ), ३.११८.१२( कृषि कर्म की प्रसिद्धि के लिए बलभद्र की पूजा का निर्देश ), ३.११९.६ ( कृषि कर्म आरम्भ में वराह अथवा संकर्षण की पूजा का उल्लेख ), स्कन्द १.२.४५.२५ ( कृषि के दोष देखकर नन्दभद्र वैश्य द्वारा कृषि का त्याग ), योगवासिष्ठ ६.२.४४.३( चित्तभूमि में समाधि बीज द्वारा कृषि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२०४.१०९ ( कृष्ण की निरुक्तियों के संदर्भ में कृषि के विभिन्न अर्थ ), २.३०.८५ ( राजा कुरु द्वारा वन में तप, सत्य, शौच, दान, दया, क्षमा, योग तथा शील वृत्ति की कृषि का उल्लेख ), २.२०९.५१ ( वैश्य धर्म के रूप में कृषि कर्म का उल्लेख ), ४.१०१.९४ ( कृषीश्वरी : श्रीकृष्णनारायण की पत्नी दुर्गा की पुत्री ) ; द्र. सुकृष । krishi


      कृष्टि लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८२(मरीचि की ४ कन्याओं में से एक)।


      कृष्ण अग्नि १२ ( श्रीकृष्ण के अवतार तथा विविध लीलाओं का संक्षिप्त वर्णन ), ११५.५७( प्रेतों में सित के जनक, रक्त के पितामह तथा कृष्ण के प्रपितामह होने का उल्लेख - अहं सितस्ते जनक इन्द्रलोकं गतः शुभान् ॥ मम रक्तः पिता पुत्र कृष्णश्चैव पितामहः । ), १८३ ( भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की रोहिणी नक्षत्र से युक्त अष्टमी तिथि में करणीय कृष्णजन्माष्टमी व्रत की विधि व माहात्म्य का वर्णन ), २७६ ( कृष्ण - पत्नियों व पुत्रों का संक्षिप्त नाम निर्देश ), कूर्म १.२५ ( जाम्बवती पत्नी से पुत्र प्राप्ति हेतु कृष्ण द्वारा उपमन्यु आश्रम में तपश्चरण, गिरिजा से वर प्राप्ति का वर्णन ), गरुड १.२८ ( गोपाल पूजा विधि का वर्णन ), १.१४४ ( कृष्ण चरित्र का वर्णन ), ३.२९.६२(पुत्रादि चुम्बन काल में वेणुहस्त कृष्ण के ध्यान का निर्देश), गर्ग १.१२ ( कृष्ण जन्म पर नन्द गृह में उत्सव ), १.१५.२८( निरुक्ति, गर्ग द्वारा नामकरण - ककारः कमलाकांत ऋकारो राम इत्यपि ॥ षकारः षड्‍गुणपतिः श्वेतद्वीपनिवासकृत् ।.. ), १.१८ ( मृदा भक्षण प्रसंग में यशोदा द्वारा मुख में ब्रह्माण्ड का दर्शन ), २.१७+ ( गोप देवी रूप में राधा के प्रेम की परीक्षा ), २.२२.१७ ( हंस मुनि की पौण्ड्र असुर से रक्षा ), ३.३ ( गोवर्धन धारण द्वारा गोपों की वृष्टि से रक्षा ), ३.५.९ ( नन्द व गर्ग प्रोक्त कृष्ण निरुक्ति ), ३.९ ( कृष्ण के अङ्गों से विभिन्न सृष्टियां ), ४.५.१८( कृष्ण के जन्म का काल ), ४.२१ ( याज्ञिक विप्र - पत्नियों को दर्शन ), ४.२२ ( गोप - गोपियों को वैकुण्ठ धाम का दर्शन कराना ), ५.९ ( गुरु - पुत्र को यम लोक से लाने का उद्योग, पञ्चजन दैत्य का वध ), ५.१९ ( व्रज में प्रत्यागमन पर कृष्ण के स्वागत का वर्णन ), ५.२२ ( नारद - तुम्बुरु से संगीत सुनकर ब्रह्मद्रव रूप होना ), ६.४ ( रुक्मिणी से विवाह की कथा ), ६.६ ( रुक्मिणी का हरण ), ६.८.७ ( जाम्बवती, मित्रविन्दा, सत्या, भद्रा, लक्ष्मणा आदि से विवाह की कथा ), ८.६+ ( कृष्ण की गोकुल, मथुरा व द्वारका में लीला का संक्षिप्त वर्णन ), १०.२+ ( कृष्ण लीला का वर्णन ), १०.४१+ ( राधा से मिलन व रास, उग्रसेन के अश्वमेध का प्रकरण ), १०.४२.४२( कृष्ण स्वरूप का कथन ), १०.४५ ( गोपियों द्वारा स्तुति, आविर्भाव ), १०.५० ( कौरव वीरों द्वारा स्तुति ), १०.५९ ( कृष्ण सहस्रनाम :गर्ग - उग्रसेन संवाद प्रसंग ), १०.६० ( विभिन्न रूपों में परम धाम गमन ), १०.६१.४ ( कृष्ण के श्याम वर्ण का रहस्य - श्यामं तु शृङ्गाररसस्य रूपं     श्रीकृष्णदेवं कथितं मुनींद्रैः ।  लावण्यसंघाच्च तथोज्ज्वलत्वा च्छ्यामं सुरूपं हि तथा हरेश्च ॥..), देवीभागवत ४.२३ ( कृष्ण अवतार की कथा ), ९.२.२४ ( शब्द निरुक्ति के अनुसार कृष्ण के भक्ति दास्य प्रदाता व सर्वसृष्टा होने तथा कृष्णा शक्ति के साथ मिलकर सृष्टि कार्य करने का वर्णन - कृषिस्तद्‍भक्तिवचनो नश्च तद्दास्यवाचकः ॥
      भक्तिदास्यप्रदाता यः स च कृष्णः प्रकीर्तितः ।.. ), नारद १.६६.९४( कृष्ण की शक्ति बुद्धि का उल्लेख - कृष्णो बुद्ध्या युतः सत्यो भुक्त्या मुक्त्याथ सात्वतः ॥ ), १.८० ( कृष्ण सम्बन्धी मन्त्रों की अनुष्ठान विधि व विविध प्रयोग ), १.८०.४० ( कृष्ण व वृन्दावन के स्वरूप का चिन्तन ; त्रिकालपूजन हेतु कृष्ण के ध्यान व अर्चन का स्वरूप तथा पूजा से प्राप्त फल ), १.८१ ( कृष्ण - मन्त्र - भेद निरूपण ), १.८२ ( राधा - कृष्ण युगल सहस्रनाम ), २.५५.४० (द्वादशाक्षर मन्त्र से कृष्ण पूजन का माहात्म्य तथा फल ), २.५८.४३ ( कृष्ण रूप ब्रह्म से ब्रह्माण्डोत्पत्ति का कथन ), २.५९ ( गोलोक में कृष्ण के स्वरूप का कथन ), पद्म १.२०.१११ ( कृष्ण व्रत का माहात्म्य व विधि ), ५.६९ (वृन्दावनादि षोडशदलात्मक श्रीकृष्ण क्रीडा किञ्जल्क /पद्म के कथनपूर्वक क्रीडा स्थान का वर्णन, कृष्ण के सौन्दर्य का कथन ), ५.७० ( कृष्ण के पार्षद गणों का वर्णन, गोपीगण - मध्यवर्ती कृष्ण के स्वरूप का वर्णन ), ५.७०.६४(दक्षिण में कृष्ण वर्ण विष्णु की द्वारपाल रूप में स्थिति), ५.७२ ( कृष्ण की श्रेष्ठ सुन्दरियों का कथन ), ५.७४ ( अर्जुन का राधा स्वरूप दर्शन पूर्वक स्त्रीत्व प्राप्ति से श्रीकृष्ण संग का वर्णन ), ५.७७ ( कृष्ण तीर्थ, स्वरूप व गुण का वर्णन ), ५.८० ( कृष्णपद में चिह्न तथा विभिन्न मासों में अर्चना का वर्णन ), ५.८१( कृष्ण मन्त्रार्थ का वर्णन ), ५.८३ ( वृन्दावन में कृष्ण की दैनन्दिन लीला तथा राधा के साथ विलासादि का वर्णन ), ६.८८ ( नारद का कृष्ण को कल्पवृक्ष - पुष्प उपहार स्वरूप प्रदान करना, कृष्ण का सत्यभामा को विस्मरण कर अन्य स्त्रियों को पुष्प प्रदान करना, रुष्ट सत्यभामा हेतु स्वर्ग से कल्पवृक्ष को लाना तथा सत्यभामा के गृह में आरोपण का वृत्तान्त ), ६.२४५ ( कृष्ण अवतार की कथा का वर्णन ), ( अनिरुद्ध के विवाह प्रसंग में बाणासुर से संग्राम का वर्णन, शिव की पराजय, कृष्ण की स्तुति ), ६.२५२ ( कृष्ण के स्वधाम गमन का निरूपण ), ७.१२ ( फाल्गुन से लेकर वैशाख तक विभिन्न मासों में कृष्ण की पूजा विधि व माहात्म्य का वर्णन ), ब्रह्म १.७२.४३ ( कृष्ण जन्म वृत्तान्त, विष्णु का ही देवकी के गर्भ से कृष्ण रूप में प्राकट्य ), १.९३+ ( नराकसुर वध का वर्णन ), १.९४.२९ ( सत्यभामा का कृष्ण से पारिजात लाने का आग्रह, पारिजात प्राप्ति हेतु देवों से युद्ध, द्वारका में पारिजात के आरोपण का वर्णन ), १.१०२, १०३ ( कृष्ण कृपा से लुब्धक को स्वर्ग लोक प्राप्ति, कृष्ण का स्वर्गारोहण, आठों पटरानियों का अग्नि प्रवेश ), २.९१.५७( विष्णु के आहवनीय पर श्वेत, दक्षिणाग्नि पर श्याम व गार्हपत्य पर पीत वर्ण होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.६.७१( कृष्ण द्वारा ब्रह्मा को सृष्टि हेतु आज्ञा देने का उल्लेख ), १.१८.९ ( मालावती प्रोक्त कृष्ण - स्तोत्र ), १.१९.३३ ( कृष्ण कवच में कृष्ण से प्राची दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), १.३० ( कृष्ण के माहात्म्य का वर्णन ), २.२.२५ ( शब्द निरुक्ति द्वारा कृष्ण के भक्ति व दास्य प्रदायक तथा सर्वबीजस्वरूप होने का उल्लेख ), २.७.८५(कृष्ण के वैकुण्ठ में चतुर्भुज व गोलोक में द्विभुज होने का उल्लेख), २.१०.१४९(कृष्ण द्वारा सरस्वती को कौस्तुभ रत्न देने का उल्लेख), २.४९.५८(चतुर्भुज कृष्ण की पत्नियों महालक्ष्मी, सरस्वती आदि का कथन; द्विभुज कृष्ण की पत्नी राधा), ३.७.१०९ ( पार्वती - कृत कृष्ण स्तोत्र का कथन ), ३.९.८ ( कृष्ण द्वारा पार्वती - पुत्र गणेश बनने का वृत्तान्त ), ३.३१ ( कृष्ण कवच का वर्णन ), ४.७ ( वसुदेव, देवकी व कंस का परस्पर वार्तालाप, कृष्ण जन्म आख्यान ), ४.९.५३ ( गोकुल में कृष्ण जन्मोत्सव का वर्णन ), ४.१२.१८ ( कवच में कृष्ण से चक्षुओं की रक्षा की प्रार्थना ), ४.१३ ( गर्ग मुनि - कृत कृष्ण के नामकरण व अन्नप्राशन संस्कार का वर्णन ), ४.१३.५७ ( कृष्ण नाम निरुक्ति - ब्रह्मणो वाचकः कोऽयमृकारोऽनंतवाचकः ।। शिवस्य वाचकः षश्च नकारो धर्मवाचकः ।। ), ४.१९.१७ ( नागपत्नी सुरसा - कृत कृष्ण स्तुति तथा स्तोत्र का माहात्म्य ), ४.१९.७४ ( नागराज कालिय - कृत कृष्ण स्तोत्र तथा स्तोत्र माहात्म्य ), ४.१९.१७२ ( गोपों द्वारा दावानल से रक्षा हेतु कृष्ण की स्तुति तथा स्तोत्र माहात्म्य ), ४.७२ ( कृष्ण द्वारा कुब्जा का उद्धार, रजक मोक्ष, कंस वध, वसुदेव व देवकी के बन्धन व मोक्ष का वृत्तान्त ), ४.१२९ ( ब्रह्मा - कृत कृष्ण स्तुति तथा कृष्ण के गोलोक गमन का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड २.३.३१.३७ ( कार्य सिद्धि हेतु ब्रह्मा का परशुराम को शिव से कृष्ण मन्त्र प्राप्ति का परामर्श ) , २.३.३६.१० ( अगस्त्य द्वारा परशुराम को कृष्ण प्रेमामृत स्तोत्र तथा स्तोत्र माहात्म्य का कथन ), भविष्य १.७३.४० ( कृष्ण द्वारा साम्ब तथा १६ हजार रानियों को शाप प्रदान का उल्लेख ), ३.३.१.३२ ( कृष्ण का उदयसिंह रूप में जन्मोल्लेख ), ३.४.२५.८६ ( वैवस्वत मन्वन्तर के मध्य में कर्क राशि में कृष्ण के अवतरण का उल्लेख ), ४.५७ ( प्रत्येक मास की कृष्णाष्टमी में करणीय शिव व्रत का वर्णन ), भागवत १.८ ( उत्तरा के गर्भ की रक्षा के लिए कुन्ती द्वारा स्तुति ), १.९ ( भीष्म द्वारा मृत्यु से पूर्व कृष्ण की स्तुति ), १०.३ ( कृष्ण का प्राकट्य, पृथ्वी पर मंगल स्थिति ), १०.३ ( जन्म समय में वसुदेव व देवकी द्वारा स्तुति ), १०.९ ( उखल बन्धन, दाम का २ अङ्गुल ह्रस्व होना, यमलार्जुन का उद्धार ), १०.२१ ( वेणु संगीत की मधुरता का वर्णन ), १०.२६ ( कृष्ण की महिमा ), १०.२८ ( नन्द को वरुण से मुक्त कराना, गोपों को निज स्वरूप का दर्शन कराना ), १०.३५ ( गोपियों द्वारा कृष्ण के वैभव का वर्णन ), १०.३९ ( अक्रूर के साथ मथुरा गमन पर गोपियों की व्याकुलता ),१०.४०.१३ ( विराट रूप का न्यास ), १०.५० ( बलराम सहित जरासन्ध से युद्ध ), १०.५२ + ( रुक्मिणी हरण ), १०.५९ ( नरकासुर द्वारा कैद १६ सहस्र राजकुमारियों से विवाह ), १०.६१ ( कृष्ण के पुत्रों के नाम ), १०.६३ ( शिव से युद्ध ), १०.६९ ( विभिन्न रूपों में युगपद् उपस्थिति, नारद द्वारा दर्शन ), १०.७० ( नित्यचर्या का वर्णन ), १०.७१ ( युधिष्ठिर के राजसूय हेतु इन्द्रप्रस्थ आगमन ), १०.७३ ( जरासन्ध द्वारा बन्धित राजाओं द्वारा स्तुति ), १०.८४ ( मुनियों द्वारा स्तुति ), १०.८९ ( ब्राह्मण बालक की अर्जुन द्वारा प्राणरक्षा में असफलता पर स्वयं अनन्त से मिलना, प्राणरक्षा ), ११.६ ( देवों द्वारा कृष्ण से स्वधाम गमन की प्रार्थना ), ११.३० ( जरा द्वारा शर भेदन, परलोक गमन ), मत्स्य ४७ ( वसुदेव व देवकी - पुत्र, कंस भय से वसुदेव द्वारा कृष्ण को नन्दगोप के घर पहुंचाना, कृष्ण की भार्याओं व पुत्रों के नाम ), ५६ ( कृष्ण पक्ष की सभी अष्टमी तिथियों में करणीय शिव पूजन व व्रत की विधि तथा माहात्म्य ), १०१.५८ ( कृष्ण व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य ), १७२.१( मनुष्यों में विष्णु के कृष्ण रूप की प्रधानता का उल्लेख ), लिङ्ग १.५०.१२ ( कृष्ण पर्वत पर गन्धर्वों के वास का उल्लेख ), १.६९.६४ ( कृष्ण के पुत्र, पत्नी तथा स्वर्ग गमन का वृत्तान्त ), वराह ४६ ( कृष्ण द्वादशी व्रत का माहात्म्य : द्वादशी व्रत के प्रभाव से अपुत्रवती देवकी का पुत्रवती होना ), वामन ६.२ ( ब्रह्मा के हृदय से प्रकट धर्म तथा दाक्षायणी के चार पुत्रों में से एक ), वायु २३.२३/१.२३.२२( ३२वें कल्प का नाम ; कृष्ण से श्वेत होने का कथन ), १.३९.५९( कृष्ण पर्वत पर गन्धर्वों के वास का उल्लेख ), ५०.२१( पाण्डुभौम नामक द्वितीय तल में कृष्ण प्रभृति असुरों के नगरों का उल्लेख ), ९६.१९४ ( परम प्रकाशमान् भगवान का ही योगेश्वर कृष्ण रूप में प्रादुर्भाव का उल्लेख ), ९६.२०१ ( जन्म समय में नक्षत्र, मुहूर्त आदि की स्थिति, वसुदेव द्वारा कृष्ण को नन्दगोप के घर पहुंचाने का वृत्तान्त ), ९६.२३३ ( कृष्ण की रुक्मिणी, सत्यभामा प्रभृति पटरानियों व उनके पुत्रों के नामों का कथन ), विष्णु ४.१३ ( स्यमन्तक मणि हरण के मिथ्या कलङ्क से मुक्ति की कथा ), ५.३ ( कृष्ण जन्म कालिक वृत्तान्त :गोकुल में स्थान्तरण ), ५.५( कृष्ण की बाललीला के अन्तर्गत पूतना वध का वृत्तान्त ), ५.१२ ( इन्द्र कोप से रक्षा हेतु कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण, इन्द्र द्वारा कृष्ण की स्तुति व अभिषेक ), ५.१९+ ( मथुरा में प्रवेश व विविध लीलाओं का वर्णन ), ५.२०.९४ ( कंस वध पर वसुदेव - कृत कृष्ण स्तुति ), ५.२१.१८ ( सान्दीपनि से विद्या ग्रहण, पञ्चजन असुर का वध ), ५.३७.६९ ( जरा व्याध द्वारा वेधन, परम धाम गमन ), विष्णुधर्मोत्तर २.८.२३( चतुष्कृष्ण पुरुष के लक्षण - नेत्रतारे भ्रुवौ श्मश्रुः कृष्णाः केशास्तथैव च ।।यस्येह स चतुष्कृष्णः प्रोच्य ते मनुजोत्तमः ।। ), ३.४७.५( अज्ञान के कृष्ण व विद्या के शुक्ला होने का कथन ), शिव ५.१.७ ( पुत्र प्राप्ति हेतु कृष्ण का कैलास पर्वत पर गमन, कैलास पर तपोरत उपमन्यु ऋषि से कृष्ण का शिव - माहात्म्य के विषय में प्रश्न, उपमन्यु द्वारा शिव माहात्म्य का वर्णन ), ५.२ ( कृष्ण के प्रश्न करने पर उपमन्यु द्वारा शिवाराधना से कामनाओं की प्राप्ति करने वाले शिव भक्तों का वर्णन ), ५.१९.४१ ( गोलोक में सुशीला नामक गायों के पालक रूप में कृष्ण का उल्लेख ), ५.३३.१७ ( ७ प्रजापतियों में से एक ), ७.२.१( उपमन्यु से कृष्ण को पाशुपत व्रत की प्राप्ति, तप से तुष्ट शिव से कृष्ण को साम्ब पुत्र की प्राप्ति का वर्णन ), स्कन्द २.२.१२.५० ( सुदर्शन चक्र द्वारा काशिराज के शिर छेदन का उल्लेख ), ३.१.२७.३२ ( कृष्ण द्वारा कंस के वध तथा नारद के कथनानुसार कोटि तीर्थ में स्नान से मातुल वध दोष से निवृत्ति का वृत्तान्त ), ४.२.६१.२३२ ( कृष्ण मूर्ति के शङ्ख, गदा, पद्म तथा चक्र से युक्त होने का उल्लेख ), ५.१.२७ ( सान्दीपनि - पुत्र प्राप्ति हेतु कृष्ण द्वारा ग्राह रूपी पञ्चजन दैत्य का वध, शङ्ख प्राप्ति, वरुण से रथ प्राप्ति, यम से युद्ध तथा गुरु - पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ५.१.३३ ( उज्जयिनी में कृष्ण द्वारा केशवादित्य की स्थापना तथा १०८ नाम स्तोत्र पठन ), ५.१.४१.१८ ( कृष्ण शब्द की निरुक्ति : चराचर जगत का विलेखन ), ५.३.४८.१५ (शची हरण प्रसंग में अन्धक द्वारा कृष्ण की स्तुति ), ५.३.१३२.११ ( कृष्ण को एक बार प्रणाम से १० अश्वमेधों के तुल्य फल प्राप्ति का कथन ), ५.३.१९२.१० ( धर्म व साध्या के ४ पुत्रों में से एक ), ६.२१३.९१( कृष्ण से जानुयुगल की रक्षा की प्रार्थना ), ७.१.११८.११ ( हंस रूप कृष्ण की १६ कलाओं रूपी गोपियों का नामोल्लेख ), ७.१.२४० ( कृष्ण के देहत्याग के स्थान पर पूजन से स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख ), ७.३.३४ ( कृष्ण तीर्थ के निर्माण के हेतु का कथन तथा ब्रह्मा - विष्णु की लिङ्ग के अन्त का दर्शन करने की स्पर्धा की कथा ), ७.४.२ ( कृष्ण और रुक्मिणी द्वारा रथ का वाहन बनकर दुर्वासा ऋषि को द्वारका में लाने की कथा ), ७.४.१७ ( कृष्णपूजा विधि के अन्तर्गत कृष्णपुरी के द्वारपालों व क्षेत्रपालों के पूजन का कथन ), ७.४.२१.१० ( विभिन्न मासों व तिथियों में कृष्ण पूजा का फल ), ७.४.२३ ( कलियुग में कृष्ण कथा के श्रवण, पठन से यमलोक गमन से मुक्ति तथा कृष्ण पूजा के माहात्म्य का वर्णन ), हरिवंश २.४.१२ ( अभिजित् मुहूर्त में देवकी के गर्भ से कृष्ण का प्राकट्य ), २.६ ( शकट भङ्ग तथा पूतना वध रूप कृष्ण लीला का वर्णन ), २.७ ( यमलार्जुन भङ्ग रूप कृष्ण लीला का वर्णन ), २.११( कृष्ण की अङ्ग शोभा तथा कालियनाग के निग्रह का विचार ), २.१२ ( कृष्ण द्वारा कालिय नाग के दमन का वर्णन ), २.१९ ( इन्द्र द्वारा कृष्ण की स्तुति तथा गोविन्द पद पर अभिषेक का वर्णन ), २.२४.६५ ( केशी वध से केशव नाम प्राप्ति ), २.३९ ( मथुरा से पलायन का प्रसंग ), २.५० ( क्रथ कैशिक द्वारा कृष्ण को राज्य का समर्पण तथा कृष्ण के राजेन्द्र पद पर अभिषेक का वर्णन ), २.६०.४० ( कृष्ण द्वारा रुक्मी की पराजय, रुक्मिणी आदि के साथ विवाह, कृष्ण - संततियों का वर्णन ), २.७४.२२ ( कृष्ण द्वारा बिल्वोदकेश्वर शिव की पूजा व स्तुति का वर्णन ), २.१०१ ( नारद द्वारा यादवों की सभा में कृष्ण के प्रभाव का वर्णन ), २.१०३ ( कृष्ण सन्तति का वर्णन ), २.११४ ( कृष्ण द्वारा अर्जुन को अपने यथार्थ स्वरूप का परिचय ), २.११५ ( कृष्ण के पराक्रमों का संक्षिप्त वर्णन ), ३.७३+ ( कृष्ण की कैलास यात्रा का प्रसंग ), ३.७७+ ( बदरिकाश्रम में कृष्ण का आगमन, ऋषियों द्वारा आतिथ्य-सत्कार, कृष्ण की समाधि का वर्णन ), ३.८४+ ( कृष्ण द्वारा कैलास पर तप, देवों सहित शिव का आगमन, कृष्ण द्वारा महादेव की स्तुति का वर्णन ), ३.८९ ( शङ्कर प्रोक्त कृष्ण महिमा का वर्णन ), ३.१००+ ( कृष्ण का द्वारका में आगमन, पौण्ड्रक से संवाद, कृष्ण व पौण्ड्रक का युद्ध, कृष्ण द्वारा पौण्ड्रक के वध का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२०४.७७ ( कृष्ण की कृषक रूप में व्याख्या - वपते कर्षुको बीजं जलं सिञ्चति कर्षुकः ।। रक्षति कर्षुकः खाद्यं ददात्यपि च कर्षुकः ।..), १.२०४.१०९ ( कृष्ण नाम की निरुक्तियां - कृषिश्च सर्ववचनो नकारश्चात्मवाचकः ।। सर्वात्मा च परब्रह्म स्वयं कृष्णः प्रकीर्तितः ।.. ), १.२६४.१४( कृष्ण की शक्ति सुलक्षणा का उल्लेख ), १.३८५.२(कृष्ण शब्द की निरुक्तियां), २.६.७ ( कृष्ण शब्द की निरुक्ति - सर्वदुःखहरश्चाऽयं हरिरित्यभिधीयते । दुःखानां कर्षणात् कृष्णो नरस्थत्वान्नरायणः ।।  ), २.३६.७( कृष्ण द्वारा गुरु से प्राप्त विद्याओं के नाम ), २.६०.३१( कृष्ण द्वारा उदय राजा को विराट रूप के दर्शन, राजा द्वारा कृष्ण की स्तुति ), २.६८.७५ ( सभाजनों द्वारा कृष्ण के विराट व दिव्य रूप का दर्शन ), २.७९.१६( कृष्ण के मनोहर रूप का वर्णन ), २.१६५.३७ (२८ कन्याओं द्वारा कृष्ण की स्तुति ), २.२५२.१०५( दिवस में कृष्ण व रात्रि में हरि के भजन का उल्लेख ) , २.२६१.१४ (कृष्ण शब्द की निरुक्ति - कर्षत्येव जगत्सर्वं सर्वाः सृष्टिस्तनौ क्वचित् । नयत्येव लयं सर्वं कृष्णस्तेन प्रकीर्तितः ।।.. ), २.२९७.८२( विभिन्न पत्नियों के गृहों में कृष्ण द्वारा विभिन्न कृत्य सम्पन्न करने का वर्णन ), ३.१०८ ( सर्वबाधानाशक, सर्वेष्टप्रद कृष्ण सहस्रनाम स्तोत्र का कथन ), ३.१९० ( लुण्ठकों द्वारा त्रस्त सौराष्ट्र देशीय भक्तों की कृष्ण से रक्षार्थ प्रार्थना का वर्णन ), ३.१९१ ( विभिन्न रूपों में कृष्ण द्वारा भक्तों पर कृपा का वर्णन ), ३.२३५.३१ ( कृष्ण द्वारा रक्षित भक्तों के नामों का कथन ), ४.१०१( कृष्ण की १०८ पत्नियों व पुत्र - पुत्रियों के नामों का कथन ), कथासरित् १.७.१५ ( भरद्वाज मुनि के शिष्य कृष्ण नामक ऋषि के ही शापवश राजा सातवाहन के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण होने का उल्लेख ); द्र. जयकृष्ण, मीनार्ककृष्ण, रामकृष्ण । Krishna

      कृष्ण संसार में कर्षण है, संघर्ष है सफलता - असफलता का, मान - अपमान का, सुख - दुःख का । जहां यह द्वन्द्व समाप्त हो जाता है , वह कृष्ण है । - फतहसिंह


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      Vedic contexts on Krishna


      कृष्णकल्प वायु २३.७४ ( महेश्वर के कृष्णवर्ण होने पर कल्प के कृष्णकल्प नाम से प्रथित होने का उल्लेख ) ।


      कृष्णकुमार भविष्य ३.३.५.१० ( देवपाल व कीर्तिमालिनी के तीन पुत्रों में से एक, पृथ्वीराज - अग्रज, धुन्धुकार - अनुज ), ३.३.६.५० ( कृष्णकुमार द्वारा जयचन्द्र - सेनानी विद्योत के वध का उल्लेख ), ३.३.६.५४ ( जयचन्द्र - अनुज रत्नभानु से युद्ध में कृष्णकुमार की मृत्यु ) ।


      कृष्णगङ्गा वराह १७५.१ ( अपर नाम यमुना, कालिन्दी; कृष्णगङ्गा के प्रभाव का कथन ) ।


      कृष्णगिरि ब्रह्माण्ड १.२.१६.२२ ( भारतवर्ष के अनेक पर्वतों में से एक ), वायु ४५.९१ ( वही) ।


      कृष्णचैतन्य भविष्य ३.४.१९.४, ३.४.२४.५३ - ५५ ( कृष्णचैतन्य के यज्ञांश होने का उल्लेख ) ।


      कृष्णतीर्थ मत्स्य २२.३८ ( पितर श्राद्ध हेतु कृष्णतीर्थ की प्रशस्तता का उल्लेख ) ।


      कृष्णतोया वायु ४३.२८ ( भद्राश्व देश की अनेक नदियों में से एक ) ।


      कृष्णद्वैपायन ब्रह्माण्ड २.३.८.९२ ( काली में पराशर से कृष्ण द्वैपायन की उत्पत्ति तथा अरणि में द्वैपायन से शुक की उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.४.५० ( कृष्ण द्वैपायनोक्त पुराण के श्रवण से पापमुक्ति तथा पुण्य प्राप्ति का कथन ), भागवत १.४.३२ ( स्वयं को अपूर्ण सा मानकर खिन्न हुए कृष्ण द्वैपायन व्यास के आश्रम पर नारद के आगमन का उल्लेख ), ९.२२.२२ ( शुकदेव का सत्यवती व पराशर से उत्पन्न स्व - पिता कृष्ण द्वैपायन व्यास से भागवत पुराण के अध्ययन का उल्लेख ), १२.४.४१ ( नारायण द्वारा नारद को, नारद द्वारा कृष्णद्वैपायन व्यास को तथा कृष्ण द्वैपायन द्वारा शुकदेव को भागवत पुराण के उपदेश का कथन ), मत्स्य ५०.४६ ( कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र में धृतराष्ट्र तथा पाण्डु को उत्पन्न करने का उल्लेख ), १८५.३० ( महादेव द्वारा पार्वती को कृष्णद्वैपायन व्यास के साक्षात् नारायणत्व तथा क्रोध के हेतु का कथन, शिव -पार्वती का मनुष्य रूप में व्यास को भिक्षा प्रदान करना ), वायु ७०.८४ ( काली व पराशर के संयोग से कृष्णद्वैपायन की उत्पत्ति, अरणि में द्वैपायन से शुक की उत्पत्ति ), ९९.२४१( शन्तनु - पुत्र विचित्रवीर्य के क्षेत्र / पत्नी में कृष्णद्वैपायन द्वारा धृतराष्ट्र, पाण्डु व विदुर को उत्पन्न करने का उल्लेख ), विष्णु ३.३.१९ ( २८वें द्वापर के वेदव्यास के रूप में कृष्णद्वैपायन का उल्लेख ), ३.४.५ (कृष्णद्वैपायन व्यास के नारायणत्व तथा महाभारत कर्त्तृत्व का उल्लेख ),४.२०.३८ ( कृष्णद्वैपायन द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र में धृतराष्ट्र व पाण्डु तथा दासी में विदुर को उत्पन्न करने का उल्लेख ), ६.२.३२ ( कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा मुनियों को कलियुग में धर्म सिद्धि विषयक उपदेश का कथन ) । krishnadvaipaayana/ krishnadwaipaayana


      कृष्णपक्ष ब्रह्माण्ड ३.४.३२.१५ ( महाकाल के आसनभूत षोडशदल कमल की कला, काष्ठा आदि सोलह शक्तियों में से एक ), वायु ५२.३७ ( शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा के पूर्ण होने पर कृष्णपक्ष में देवों द्वारा चन्द्र - अमृत को पीने का उल्लेख ), ५७.९ ( कृष्णपक्ष पितरों का दिव तथा शुक्लपक्ष पितरों की रात्रि होने का उल्लेख ), ८३.८० ( शुक्लपक्ष के पूर्वाह्न में तथा कृष्णपक्ष के अपराह्न में श्राद्ध सम्पन्न किए जाने का उल्लेख ) ।


      कृष्णप्रेमामृत ब्रह्माण्ड २.३.३४.५०, ५३ ( मृग द्वारा परशुराम को कृष्णप्रेमामृत स्तोत्र से सफलता मिलने का कथन ), २.३.३६.१०, ४३ ( अगस्त्य द्वारा परशुराम को कृष्णप्रेमामृत स्तोत्र के माहात्म्य का कथन ), २.३.३७.१० ( अगस्त्य के कथनानुसार परशुराम द्वारा कृष्णप्रेमामृत स्तोत्र का स्तवन तथा कृष्ण के साक्षात् दर्शन ) । krishnapremaamrita


      कृष्णमन्त्र ब्रह्माण्ड २.३.३१.३७ ( कार्य सिद्धि हेतु ब्रह्मा का परशुराम को शिव से कृष्णमन्त्र - प्राप्ति का परामर्श ) ।


      कृष्णमातृका नारद १.६६


      कृष्णमृग वामन ३५.५१ ( मानुष तीर्थ में स्नान करके बाण पीडित कृष्णमृगों का मनुष्यत्व को प्राप्त होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३८०.३९(पतिव्रता मृगी के प्रभाव से दावानल का शान्त होकर कृष्ण मृग बनने का उल्लेख ) ।


      कृष्णयश लक्ष्मीनारायण ३.१७.८१ ( कृष्णयश नामक विप्र के पुत्र रूप में चतुर्मुख नारायण के प्राकट्य का कथन )


      कृष्णवेणी पद्म ६.१११.२६ ( कृष्णा और वेण्या नदियों के क्रमश: विष्णु और महेश्वर रूप होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३४ ( सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिण दिक् प्रवाही वेणा नदी की पितर श्राद्ध हेतु प्रशस्तता ), मत्स्य २२.४६ ( पितर श्राद्ध हेतु कृष्णवेणा नदी की प्रशस्तता का उल्लेख ), ५१.१३ ( हव्यवाहन अग्नि द्वारा कृष्णवेणा प्रभृति १६ नदियों के साथ पृथक् - पृथक् विहार का उल्लेख ), ११४.२९ ( सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिणापथ की नदियों में से एक ), १६३.६१ ( हिरण्यकशिपुद्वारा क्षुब्ध तथा प्रकम्पित नदियों , पर्वतों, नगरी में से एक ), वायु २९.१३ ( कृष्णवेणी : हव्यवाहन अग्नि द्वारा कृष्णवेणी प्रभृति १६ नदियों में स्वयं को प्रविभक्त करके १६ धिष्णि पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), १०८.८१( कृष्णवेण्या : मुक्तिदायिनी कृष्णवेण्या नदी में स्नान कर पिण्डदान करने से पितरों को स्वर्ग प्राप्त होने का उल्लेख ), शिव १.१२.१५ ( अष्टादशमुखा कृष्णवेणा नदी का संक्षिप्त माहात्म्य ) । krishnaveni


      कृष्णव्रत मत्स्य १०१.५८ ( विष्णुलोक प्रापक कृष्णव्रत में स्वर्णनिर्मित विष्णु चक्र के दान का उल्लेख ) ।


      कृष्णशक्ति कथासरित् १८.५.५२ ( बन्धुओं से तिरस्कृत कृष्णशक्ति नामक राजकुमार का विक्रमादित्य के समीप पहुंचना और कार्पटिक बनना, सेवा से प्रसन्न होकर विक्रमादित्य द्वारा कार्पटिक को खण्डवटक का राज्य प्रदान करने की कथा ) ।


      कृष्णसूत्र ब्रह्माण्ड ३.४.२.१५० ( घोर नरकों में से एक ), वायु १०१.१४९ ( वही) ।


      कृष्णा पद्म ६.१११.३ ( स्वरा द्वारा शापित विष्णु के कृष्णा नदी रूप होने का कथन ), ६.१११.८६ ( सावित्री के शाप से विष्णु के कृष्णा नदी बनने का उल्लेख ), भागवत १.७.१४( द्रौपदी का एक नाम ), १०.२.१२ ( योगमाया का एक नाम ), वामन ९०.२( कृष्णा तीर्थ में विष्णु का हयशीर्ष नाम से वास ), वायु ४५.१०४ ( सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिणापथ की अनेक नदियों में से एक ), ६९.१७० ( खशा की सात पुत्रियों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.४७.१( संसार में सारी विकृति के कृष्णा होने तथा संसार की पालक होने का उल्लेख ),३.४७.३( कृष्ण की वनमाला के कृष्णा होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३८५.४३( कृष्ण-पत्नी कृष्णा का कार्य), १.४२४.२०( कृष्णा के नाश हेतु कृष्ण का उल्लेख ), २.८०.७६ ( राजा बलेशवर्मा की तीन पुत्रियों में से एक, कृष्णा द्वारा वनेचर रूप धारी कृष्ण नारायण को स्वमांस प्रदान करने का उल्लेख ), २.८१ ( बलेश्वर- पुत्री कृष्णा का कृष्णा नदी रूप से स्थित होना, कृष्णा के तप पर श्री हरि का कृष्णानिवास नाम से विराजित होने का कथन ) । krishnaa

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      कृष्णाङ्गना वायु ३४.८७ ( चतुर्थ दिग्देश में विरूपाक्ष की कृष्णाङ्गना नामक सभा का उल्लेख ) ।


      कृष्णाङ्गमणिपुञ्जक वायु ४४.१० ( केतुमाल के अनेक जनपदों में से एक ) ।


      कृष्णाजिन भविष्य ४.१८८ ( कृष्णाजिन दान विधि का वर्णन ), मत्स्य ४७.८६ ( असुरों का कृष्णाजिन धारणकर काव्य - माता के पास गमन ), ८२.३ ( गुडधेनु - दान विधि में ४ हाथ लम्बे कृष्णाजिन को बिछाने का उल्लेख ), २०४.११ ( श्राद्ध कर्म में कृष्णाजिन दान की प्रशस्तता का उल्लेख ), २०६ ( कृष्णाजिन दान विधि व माहात्म्य ), २४५.८५ ( ब्रह्मा द्वारा वामन रूपधारी विष्णु को कृष्णाजिन प्रदान करने का उल्लेख ), २७९.५ ( कामधेनु दान विधि में कृष्णाजिन के ऊपर एक प्रस्थ गुड तथा स्वर्णनिर्मित धेनु की स्थापना का उल्लेख ), वायु २५.३४ ( कमलनाल के सहारे रसातल में पहुंच जाने पर ब्रह्मा द्वारा जल के भीतर कृष्णाजिन व उत्तरीय धारी विष्णु के दर्शन ), २५.८१ ( कृष्णाजिन - विभूषित ब्रह्मा द्वारा मन, भूतों आदि की सृष्टि का कथन ), ३०.२२१ ( कृष्णाजिनोत्तरीय : दक्ष - कृत महादेव स्तुति में महादेव का एक नाम ), ७४.४/२.१२.४ ( पितृकार्य में कृष्णाजिन के सान्निध्य, दर्शन अथवा दान की प्रशस्तता का उल्लेख ), ९९.४१०/२.३७.४०४ ( कलियुग के अन्त में विपत्तिग्रस्त प्रजा के कृष्णाजिन धारण का उल्लेख ), विष्णु १.११.३१ ( पितृगृह से निर्गत ध्रुव द्वारा वन में कृष्णाजिनों पर आसीन सप्तर्षियों के दर्शन ), ६.६.२० ( कृष्णाजिन धारी राजा केशिध्वज का प्रायश्चित्त पृच्छा हेतु खाण्डिक्य के समीप गमन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.४२.४ ( ऋषियों के रूप निर्माण में उन्हें कृष्णाजिन - उत्तरासंग युक्त दिखाने का निर्देश ), ३.३०१.३१( कृष्णाजिन प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), लक्ष्मीनारायण १.५१२.३७( अवभृथ स्नान के समय इन्द्र द्वारा गजारूढ होकर मृगचर्म/कृष्णसारमृग फेंकने का कथन ) । krishnaajina


      कृष्णाष्टमी मत्स्य ५६.१-११ ( कृष्णाष्टमी व्रत विधि तथा माहात्म्य का वर्णन : कृष्णपक्ष की प्रत्येक अष्टमी को शङ्कर की पूजा बारह मासों में बारह नामों से करने का कथन ) ।


      केकय महाभारत महाभारत विराट दाक्षिणात्य पृष्ठ १८९३(राजा केकय के सूतों के अधिपति होने का कथन, मालवी – द्वय पत्नियों से कीचक पुत्रों व सुदेष्णा कन्या के जन्म का कथन), शान्ति ७७(राक्षस द्वारा अपहृत होने पर कैकेयराज का राक्षस से संवाद), वायु ९९.२३/२.३७.२४ ( शिबि के ४ पुत्रों में से एक, तुर्वस्वादि वंश ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.५( केकय देश में भरत की पूजा का निर्देश ), द्र. कैकय kekaya ।


      केकरी मत्स्य १७९.१८ ( अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक ) ।


      केका ब्रह्म १.३४.७१( मन्त्र ध्वनि से हर्षित मयूरों द्वारा केका ध्वनि करने का उल्लेख ), वामन १.१७(बर्हिणों द्वारा केकारव करने का उल्लेख), महाभारत आश्रमवासिक ३४.१०(नीलकण्ठ द्वारा केकारव करने का उल्लेख) ।


      केतकी गर्ग २.२०.३२ ( कुमुद वन में कृष्ण का शृङ्गार करते हुए राधा द्वारा उन्हें मोहिनी, मालिनी, कुन्द व केतकी पुष्पों से निर्मित हार धारण कराने का उल्लेख ), देवीभागवत ५.३३.३४ ( ब्रह्मा व विष्णु की लिङ्ग - अन्त दर्शन की स्पर्द्धा में केतकी पुष्प द्वारा ब्रह्मा के पक्ष में मिथ्या साक्षी, शिव पूजा में केतकी पुष्प के वर्जित होने का वृत्तान्त ), १२.६.३५ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), नारद १.९०.७२( केतकी पुष्पों द्वारा देवी पूजा से वाहन सिद्धि का उल्लेख ), पद्म १.२८.३१ ( केतकी पुष्प का शत्रुनाशक रूप में उल्लेख ), ६.१२१.१३ ( केतकी पुष्पों से केशवार्चन का माहात्म्य ), स्कन्द १.१.६.३७ ( ब्रह्मा द्वारा लिङ्ग के मस्तक के अन्वेषण के विषय में सुरभि व केतकी द्वारा मिथ्या साक्षी, आकाशवाणी द्वारा केतकी को शिवपूजा में अयोग्यता रूप शाप देने का वर्णन ), ७.३.३४.२२ ( ब्रह्मा के पक्ष में मिथ्या साक्षी से केतकी पुष्प को शाप प्राप्ति का वृत्तान्त ) । ketaki / ketakee

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      केतन ब्रह्माण्ड ३.४.२८.१०४ ( विशुक्र के रथ - सारथि केतन का श्यामला द्वारा वध का उल्लेख ) ।


      केतव वायु ६०.६६ ( ऋग्वेद शाखा प्रवर्तक रथीतर के चार शिष्यों में से एक ) ।


      केतु पद्म ६.५.९० ( जालन्धर व इन्द्र के युद्ध में केतु के वैश्वानर के साथ युद्ध का उल्लेख - यमो दुर्वारणं वीरं स्वर्भानुश्चंद्रभास्करौ।। केतुं वैश्वानरो देवो ययौ शुक्रं बृहस्पतिः। ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.९० ( केतु के रथ के पलाल व धूम्रवर्णीय अष्ट अश्वों से युक्त होने का उल्लेख ), १.२.२४.१३९ ( केतुग्रहों में धूमकेतु के आदि होने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.१२.३४(सुमेरु के सार से केतु के निर्माण का उल्लेख -- सुमेरोश्च तथा सारात्केतुं कृत्वा रथस्य वै । ददौ शिवाय महते यानं स्यन्दनरूपि तत् ।। ), ३.४.१७.४९ ( ध्रुव व वासुदेवी से केतु ग्रह की उत्पत्ति का उल्लेख - वासुदेव्यां ध्रुवाज्जातः केतुर्नाम महाग्रहः।। ग्रहभूतः स्थितस्तत्र नभोदेव्यां तदुद्भवः ।। राहुर्नाम तथा घोरो महाग्रह उपग्रहः ।। ), ३.४.२५.४२ ( विष्णुयशा नामक द्विज के गृह में श्री हरि के प्रादुर्भूत होने पर समस्त देवों द्वारा श्रीहरि की स्तुति के क्रम में केतु द्वारा स्तुति तथा स्वयं की ब्रह्माण्ड गुह्य से उत्पत्ति का कथन ; केतु द्वारा भौत मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख -- ब्रह्माण्डलिङ्गतो जातो राहुश्चाहं तव प्रियः ।…..ब्रह्माण्डगुह्यतो जातः केतुश्चाहं तवानुगः ।), भागवत ५.४.१० ( ऋषभदेव के १०० पुत्रों में से एक ), ५.२३.७ ( शिशुमार चक्र वर्णन में शिशुमार के समस्त अङ्गों में केतुओं की स्थिति का उल्लेख -- राहुर्गले केतवः सर्वाङ्गेषु रोमसु सर्वे तारागणाः ॥ एतदु हैव भगवतो विष्णोः सर्वदेवतामयं रूपम ), ६.६.३७ ( सिंहिका व विप्रचित्ति के १०१ पुत्रों में से ज्येष्ठ का राहु तथा शेष सौ पुत्रों का केतु नाम से उल्लेख -- विप्रचित्तिः सिंहिकायां शतं चैकमजीजनत्। राहुज्येष्ठं केतुशतं ग्रहत्वं य उपागताः ।। ), ८.१.२७ ( चतुर्थ तामस मनु के दस पुत्रों में से एक ), मत्स्य ६.१८ ( कश्यप व दनु के १०० दानव पुत्रों में से एक ), ४८.६ ( ययाति - पुत्र द्रुह्यु के दो पुत्रों में से द्वितीय -- द्रुह्योस्तु तनयौ शूरौ सेतुः केतुस्तथैव च। सेतुपुत्रः शरद्वांस्तु गन्धारस्तस्य चात्मजः।। ), ९३.१२ ( लोकहितकारी नौ ग्रहों में केतु का उल्लेख, नवग्रह शान्ति विधि का वर्णन ), ९३.१५( केतु के अधिदेवता चित्रगुप्त तथा राहु के अधिदेवता काल होने का उल्लेख - शनैश्चरस्य तु यमं राहोः कालं तथैव च।। केतौर्वै चित्रगुप्तञ्च सर्वेषामधिदेवताः।), ९३.६२( राहु के लिए आयस तथा केतु के लिए छाग दान का निर्देश - आयसं राहवे दद्यात् केतुभ्यश्छागमुत्तमम्। ), ९४.८( केतुओं के स्वरूप का कथन : धूम्र, द्विबाहु, विकृतानन, गृध्रासनगत आदि - नीलसिंहासनस्थश्च राहुरत्र प्रशस्यते। ध्रूम्रा द्विबाहवः सर्वे गदिनो विकृताननाः।। गृध्रासनगता नित्यं केतवः स्युर्वरप्रदाः।। ), १२८.६५( केतु ग्रह के मण्डल का आपेक्षिक मान ), १२७.११ ( ग्रहों के रथ वर्णन में केतु के रथ के धूम्रवर्णीय अष्ट अश्वों से युक्त होने का उल्लेख - ततः केतुमतस्त्वश्वा अष्टौ ते वातरंहसः।। पलालधूमवर्णाभाः क्षामदेहाः सुदारुणाः।), वायु ३५.४४ ( केतुवृक्ष : केतुमाल वर्ष के पार्श्व में स्थित वट वृक्ष का केतुवृक्ष के रूप में उल्लेख ), ५२.८२ ( ग्रहों के रथों के वर्णन में केतु के रथ के धूम्र तथा धूसर वर्णीय ६४ अश्वों से युक्त होने का उल्लेख ), ५३.१११ ( केतुग्रहों में धूमकेतु के आदि होने का उल्लेख - सर्वग्रहाणामेतेषामादिरादित्य उच्यते। ताराग्रहाणां शुक्रस्तु केतूनाञ्चैव धूमवान् ।।), ८८.१४९/२.२६.१४८( बर्हिकेतु व सुकेतु : कपिल की क्रोधाग्नि से सुरक्षित बचे सगर के ४ पुत्रों में से २ ), विष्णु २.२.१९ ( मेरु के चतुर्दिक पर्वतों पर जम्बू आदि वृक्षों का पर्वत केतुओं के रूप में नामोल्लेख ), २.१२.२३ ( केतु के रथ के पलाल तथा धूम्रवर्णीय आठ अश्वों से युक्त होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६.१०४( मृत्यु के नि:श्वास से केतु गृह की उत्पत्ति की कथा - दीर्घमुष्णं च निःश्वासं मुमोच वरवर्णिनी।। कृष्णसर्पसमाकारस्तस्मात्केतुरजायत। ), शिव २.५.८.१३(मोक्ष का शिव के रथ में ध्वज बनना - द्यौर्वरूथं रथस्यास्य स्वर्गमोक्षावुभौ ध्वजौ ।।), स्कन्द ३.१.७.७१( राम द्वारा स्थापित सेतु के केतु रूप होने का उल्लेख - दशकंठशिरश्छेदहेतवे सेतवे नमः ।। केतवे रामचंद्रस्य मोक्षमार्गैकहेतवे ।। ), ५.१.४४.२०( राहु के अमृत पी लेने पर विष्णु द्वारा चक्र से राहु के शिर का छेदन, सुधा पान से राहु की अमरता तथा चक्र छेदन से दो भागों की राहु - केतु के रूप में प्रसिद्धि ), ५.२.४४.३३ ( केतुग्रह द्वारा वासव / इन्द्र को पीडित करने का उल्लेख ), ६.२५२.३८( चातुर्मास में केतु की दर्भ में स्थिति का उल्लेख - राहुणा स्वीकृता दूर्वा पितॄणां तर्पणोचिता॥…… केतुना स्वीकृतो दर्भो याज्ञिकेयो महाफलः॥ ), महाभारत कर्ण ८७.९२( अर्जुन व कर्ण की ध्वजाओं की राहु - केतु से उपमा - तयोर्ध्वजौ हि विमलौ शुशुभाते रथे स्थितौ। राहुकेतू यथाऽऽकाशे उदितौ जगतः क्षये।। ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९१ ( केतु नामक देव के दर्भ रूप में अवतरण का उल्लेख - शनैश्चरः शमीवृक्षो राहुर्दुर्वात्मकोऽभवत् । केतुर्दर्भस्वरूपोऽभूत्तथा फलद्रुमोऽपि सः ।।  ), २.१८४.७९ ( अल्पकेतु : श्री हरि के राजा अल्पकेतु की जीवनी नामक नगरी में आगमन का वर्णन ); द्र. अल्पकेतु, उरलकेतु, ग्रह, चन्द्रकेतु, चित्रकेतु, जीमूतकेतु, तालकेतु, तिग्मकेतु, दण्डकेतु, दीप्तिकेतु, धर्मकेतु, धृष्टकेतु, पातालकेतु, पुण्ड्रकेतु, मकरकेतु, माल्यकेतु, यज्ञकेतु, वज्रकेतु, विश्वकेतु, वीरकेतु, श्वेतकेतु, सत्यकेतु, सिंहकेतु, सुकेतु, हंसकेतु, । ketu

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      केतु - पद्म ६.१२.३८ ( दैत्यों और शिव गणों के युद्ध में जालन्धर - सेनानी केतुमुख का शुभ्र के साथ युद्धोल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.६.६ ( केतुवीर्य : कश्यप व दनु के १०० दानव पुत्रों में से एक ), मत्स्य ६.१८ ( केतुवीर्य : कश्यप व दनु के १०० दानव पुत्रों में से एक ), लिङ्ग १.४९.२८( ४ पर्वतों पर उत्पन्न कदम्ब आदि वृक्षों की द्वीपकेतु संज्ञा ), वायु ३५.२० ( मन्दर पर्वत के शृङ्ग पर स्थित एक महावृक्ष ), वा.रामायण ७.५.३८ ( केतुमती : नर्मदा - पुत्री, सुमाली - पत्नी, प्रहस्त, अकम्पन आदि १० पुत्रों तथा राका, पुष्पोत्कटा, कैकसी व कुम्भीनसी नामक ४ पुत्रियों की माता ), विष्णु ३.१.१९ ( केतुरूप : तामस मनु के चार पुत्रों में से एक ),


      केतुमान् ब्रह्माण्ड १.२.११.४२ ( मार्कण्डेयी द्वारा पश्चिम दिशा में राजन, केतुमान् और प्रजापति को उत्पन्न करने का उल्लेख ), भागवत ९.६.१ ( अम्बरीष के तीन पुत्रों में से एक ), वायु २८.३७ ( रज व मार्कण्डेयी - पुत्र, प्रतीची दिशा में आश्रय प्राप्त करने का उल्लेख ), विष्णु १.२२.१३ ( लोकपितामह द्वारा रजि - पुत्र केतुमान् को पश्चिम दिशा का लोकपाल बनाने का उल्लेख ), २.८.८३ ( लोकालोक पर्वत पर स्थित चार लोकपालों में से एक ), शिव ३.४.१२ ( द्वितीय द्वापर में सुतार नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार शिष्यों में से एक ), ३.५.२९ ( इक्कीसवें द्वापर में दारुक नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर चार पुत्रों में से एक ), ७.२.९.१८ ( शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ), हरिवंश १.४.२० ( पृथु द्वारा रजस् - पुत्र केतुमान् का पश्चिम दिशा के दिक्पाल पद पर अभिषेक का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२४१.२४ ( सौराष्ट्र के अन्तर्गत भद्रावती नगर के राजा केतुमान् को पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी व्रत के प्रभाव से पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त ) । ketumaan


      केतुमाल गर्ग ७.३१ ( केतुमाल वर्ष में प्रद्युम्न का आगमन, केतुमाल वासियों द्वारा कृष्ण का गुणगान, प्रजापति व्यति संवत्सर द्वारा भेंट का वर्णन ), देवीभागवत ८.९.१० ( केतुमाल वर्ष में लक्ष्मी द्वारा कामदेव रूपी हरि की स्तुति ), ब्रह्म १.१६.४५( लोकशैल/मेरु? के ४ पत्रों में से एक ), भागवत ५.२.१९( आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, देववीति - पति ), ५.१८.१५ ( केतुमाल वर्ष में भगवान् की कामदेव रूप से स्थिति तथा संवत्सर प्रजापति के पुत्रों, पुत्रियों द्वारा काम की उपासना ), वराह ७७.२५-२७ ( अश्वत्थ वृक्ष के केतु स्वरूप होने तथा माला से युक्त होने के कारण केतुमाल वृक्ष नाम से प्रसिद्धि, केतुमाल वृक्ष से चिह्नित होने के कारण उस वर्ष की केतुमाल वर्ष नाम से प्रसिद्धि का कथन ), वाय ३५.३८(अश्वत्थ वृक्ष के केतु पर इन्द्र - प्रदत्त माला की विराजमानता से द्वीप का केतुमाल नाम धारण),३५.४१( पश्चिम में विस्तृत द्वीप की ही केतु स्वरूप वृक्ष तथा माला से चिह्नित होने के कारण केतुमाल नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ४४.१ ( केतुमाल देश के पर्वतों, नदियों तथा निवासियों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१६४.९६ ( श्रीहरि द्वारा वृकायन तथा नीलकर्ण प्रभृति स्वभक्तों का माल्यवान् के पश्चिम में स्थित केतुमाल नामक महादेश में प्रेषण का कथन ), २.१७०.५८ ( श्रीकृष्ण के आगमन से केतुमाल देश की सार्थकता का कथन ), २.२९७.९७ ( केतुमालीय पत्नियों के गृहों में राजभूषा धारण करते हुए श्रीकृष्ण के दर्शन का उल्लेख ), ३.१२२.५७( केतुमाल में माताओं द्वारा कुमारी के दान का उल्लेख ), कथासरित् ८.५.७७ ( श्रुतशर्मा द्वारा केतुमालेश्वर क्षेत्र में उत्पन्न अश्विनी - पुत्रों दम और नियम नामक विद्याधरों को प्रभास से युद्ध हेतु प्रेषण का उल्लेख ) । ketumaala


      केतुमाली वायु २३.१९६ ( २१वें द्वापर में विष्णु के अवतार दारुक के चार योगी पुत्रों में से एक ), हरिवंश २.१०५.४९ ( प्रद्युम्न द्वारा शम्बर - सेनानी केतुमाली के वध का वर्णन ) ।


      केतुशृङ्ग वायु २३.१४९ ( दसवें द्वापर के भगवदावतार भृगु के चार पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.३१ ( पञ्चम मन्वन्तर में रैवत मनु के केतुशृङ्ग प्रभृति पुत्रों तथा देवादिकों का शान्तशत्रु नामक दैत्य द्वारा पीडन, हंस रूप धारी श्रीहरि द्वारा दैत्य के वध का वर्णन ) । ketushringa


      केदार देवीभागवत ७.३८.२३ ( केदार क्षेत्र में मार्गदायिनी देवी के वास का उल्लेख ), नारद २.६५.६२(वृद्ध केदार तीर्थ का माहात्म्य), पद्म ३.२६.६९ ( कपिलकेदार व कपिष्ठलकेदार तीर्थों का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.१९० ( वृन्दा - पिता, जैगीषव्य के उपदेश से तप करना ), ४.८६.५ ( नन्दसावर्णि - पुत्र, ध्रुव - पौत्र, वृन्दा - पिता ), भविष्य २.२.८.१२७( केदार तीर्थ में महाश्रावणी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख ), ३.२.२६.१ ( केदारमणिपुर के राजा चन्द्रचूड की शत्रुओं से पराजय, सत्यदेव भगवान की आराधना से पुन: राज्य प्राप्ति का वर्णन ), भागवत १०.८८.१७ ( केदार तीर्थ में वृकासुर द्वारा शिव प्रीत्यर्थ तप करने का उल्लेख ), मत्स्य १३.३० ( केदार तीर्थ में देवी के मार्गदायिनी नाम से निवास का उल्लेख ), २२.११ ( पितर श्राद्ध के लिए प्रशस्त तीर्थों में केदार तीर्थ का उल्लेख ), १८१.२९ ( शिव सन्निधि से पवित्र स्थानों में केदार का उल्लेख ), वामन १६.३५/३७.३५(केदार में सरस्वती की सुवेणु नाम से स्थिति का उल्लेख), ५७.९७ ( केदार तीर्थ द्वारा स्कन्द को सुषमा, एकचूडा, धमधमा, उत्क्राथिनी तथा वेदमित्रा नामक मातृकाओं को प्रदान करने का उल्लेख ), ६०.१० ( शिव के कपाल को विदीर्ण करके पृथ्वी पर गिरी हुई वीटा / गुल्ली द्वारा पर्वत का टूटकर पृथ्वी के समान समतल होना तथा केदार तीर्थ का निर्माण , शिव द्वारा केदार तीर्थ को वर प्रदान करना, केदार तीर्थ का माहात्म्य ), ९०.३ ( केदार तीर्थ में विष्णु का माधव व शौरि नाम से वास ), वायु १०६.५६ ( गयासुर के मस्तक पर स्थापित शिला को निश्चल करने हेतु प्रपितामह द्वारा स्वयं को प्रपितामह, पितामह, फलग्वीश, केदार तथा कनकेश्वर रूप से पांच भागों में विभक्त कर शिला पर अवस्थित होना ), १११.७२ ( पितरों के उद्धार हेतु गया के उत्तर मार्ग में स्थित कनकेश, केदार, नारसिंह व वामन की पूजा का उल्लेख ), शिव ४.१९ ( नरनारायण की प्रार्थना पर ज्योति रूप शिव का केदार क्षेत्र में स्थायी वास, केदारेश्वर माहात्म्य का वर्णन, नयपाल में महिष का शिरोभाग ), स्कन्द १.१.१+ (केदार खण्ड संहिता का प्रारम्भ ), १.१.७.३०( मृत्युलोक में शिव की केदार लिङ्ग में स्थिति का उल्लेख ), १.२.५७ (महीनगर में केदारेश्वर लिङ्ग की स्थापना का कथन ), ४.१.३३.१७२ ( शिव शरीर के लिङ्ग का रूप ), ४.२.७७ ( केदारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : वसिष्ठ व हिरण्यगर्भ की मुक्ति की कथा ), ५.२.६७ ( केदारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शीत पीडा निवृत्ति के लिए देवों द्वारा केदारेश्वर की पूजा, महिष रूप धारण ), ५.३.१८३ ( केदारेश्वर तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ५.३.१९८.६७ ( केदार तीर्थ में उमा की मार्गदायिनी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ५.३.२३१.१४ ( रेवा - सागर सङ्गम पर ५ केदारेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.१२२ ( हिरण्याक्ष व उसके चार सचिवों से पीडित इन्द्र के समक्ष महिष रूप में प्रकट होकर शिव द्वारा वरदान, केदार की निरुक्ति व माहात्म्य, कर से तीन प्रकार से जलपान का महत्त्व), ७.१.१०.७(केदार तीर्थ का वर्गीकरण – जल), ७.१.३९ ( केदारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शूद्र दम्पत्ति का शशबिन्दु राजा व राजपत्नी बनना ), ७.३.९ ( केदार माहात्म्य : शूद्र द्वारा कमलों से केदारेश्वर लिङ्ग की पूजा से जन्मान्तर में अजापाल राजा बनना ), महाभारत आदि ३.२९( केदार खण्ड विदारण से आरुणि की उद्दालक नाम से ख्याति ), कथासरित् १२.५.२६० ( एक पर्वत ), लक्ष्मीनारायण १.३३०.७५( केदार - पुत्री बनकर वृन्दा का विष्णु को प्राप्त करना ), १.३११.२० ( ध्रुव - पौत्र, यज्ञकुण्ड से वृन्दा नामक कन्या का प्रकट होना ), १.५५३.३६ ( केदार कुण्ड तीर्थ, अजपाल राजा द्वारा निर्मित ) । kedaara / kedara

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      केनाटक लक्ष्मीनारायण २.२००.१०० ( श्रीहरि के केनाटक प्रदेशों में आगमन का कथन ) ।


      केयूर देवीभागवत ९.१९.२४( छाया से आहृत केयूर - युग्म की तुलसी को प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१६.१३५(छाया के केयूर युग्म के हरण का उल्लेख), ४.५९.४४(गंगा के केयूर युगल की श्रेष्ठता का उल्लेख), वामन १.२७( शिव के केयूर रूपी सर्पों कम्बल व धनञ्जय का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४१.१९६ ( केयूर दान से शत्रुपक्ष का क्षय होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२८३.५८( मञ्जुला द्वारा बालकृष्ण को केयूर देने का उल्लेख ), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद १७( धर्मार्थकाम के केयूर होने का उल्लेख ) । keyoora/ keyuura/ keyura


      केरल गर्ग ७.१०.१९ ( केरल के अधिपति अम्बष्ठ द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान का उल्लेख ), १०.५१.४१( कुलिन्द द्वारा पालित केरलाधिपति - पुत्र चन्द्रहास का वृत्तान्त ), पद्म ६.१२९.७० ( केरलदेशीय वसु नामक ब्राह्मण की मुक्ति की कथा ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.६( आण्डीर - पुत्र केरल के नाम पर केरल जनपद का नामोल्लेख ), मत्स्य ४८.५ ( आण्डीर - पुत्र केरल के देश का उसी के नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), वायु ९९.६ ( जनापीड के चार पुत्रों में से एक केरल के नाम पर केरल जनपद के नामकरण का उल्लेख ) । kerala


      केल स्कन्द १.२.६५.९६ ( केल भक्त के नाम पर देवी द्वारा केलेश्वरी नाम धारण का उल्लेख ) ।


      केलि ब्रह्माण्ड २.३.७.९८ ( ९ ब्रह्मधानों में से एक ), भविष्य ३.४.२४.३२ ( केलिसिंह : कामशर्मा व देवहूति - पुत्र, वामन के अंश रूप में उल्लेख ), स्कन्द ६.१४९,१५० ( केलीश्वरी : शिव द्वारा अन्धक की पराजय हेतु अग्नि कुण्ड से केलीश्वरी देवी को उत्पन्न करना, अन्धक की पराजय, शुक्राचार्य द्वारा केलीश्वरी से अमृतविद्या की प्राप्ति, केलीश्वरी के माहात्म्य का वर्णन ) । keli


      केवट भागवत ११.२०.१७ ( शरीर रूपी प्लव / नौका में गुरु के कर्णधार / केवट होने का उल्लेख ) ।


      केवल गरुड ३.१६.९९(केवला - भारती का रूप, अन्य नाम काली, भीमसेन - भार्या), पद्म ६.२२८.७ ( विरजा व परम व्योम के मध्य केवल लोक की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.२३ ( काल की गति को पार करके ही कैवल्य की प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९४ ( स्वायम्भुव मन्वन्तर के सोमपायी गणों में से एक ), १.२.३५.२९ (याज्ञवल्क्य - शिष्य ), २.३.८.३६( नर - पुत्र, बन्धुमान् - पिता, मरुत्त वंश ), २.३.६१.९ ( नर - पुत्र, बन्धुमान् - पिता ), भागवत ९.२.३० (नर- पुत्र, बन्धुमान् - पिता , दिष्टवंश ), वायु ३१.७ ( स्वायम्भुव मन्वन्तरकालीन सोमपायी त्विषिमान् गण के देवों में से एक ), ८६.१४ ( नर - पुत्र, बन्धुमान् - पिता, वैवस्वत मनु वंश ), विष्णु ४.१.३८ ( सुवृद्धि - पुत्र, सुधृति - पिता ), ४.१.४२ ( नर -पौत्र, चन्द्र - पुत्र, बन्धुमान् - पिता ), स्कन्द ४.२.९८.३८ ( कैवल्य मण्डप का द्वापर में कुक्कुट मण्डप नाम से उल्लेख ) । kevala


      केश अग्नि ३०२.२५ ( केश क्षरण रोधी औषधि योग का उल्लेख ), गरुड १.१७६ ( खल्वाट निवारण तथा केश कृष्ण चिकित्सा का वर्णन ), देवीभागवत ४.२२.५० ( श्रीहरि के श्याम व श्वेत केशों से क्रमश: कृष्ण व बलराम की उत्पत्ति का उल्लेख ), नारद १.५६.३४० ( क्षौर कर्म के काल का विचार ), २.६२.५०( गङ्गा के समीप पापों के केशों में समाने का कथन ), २.६५.५६(सीतावन में केश प्रक्षेपण का माहात्म्य), पद्म ६.१३५.१३ ( कश्यप नामक द्विज के वास स्थान के रूप में केशरन्ध्र तीर्थ का उल्लेख ), ब्रह्म १.७२.२६ ( भू भार हरण हेतु पृथ्वी सहित देवताओं की श्रीहरि से प्रार्थना, भगवान् का अपने सित व कृष्ण केशों को खोलना तथा केशों का पृथ्वी पर अवतरित होकर भू भार का हरण ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२१.३३(तुलसी के केश समूहों का तुलसी वृक्ष बनने का उल्लेख), ३.४.३३ ( केश सौन्दर्य के लिए लक्ष श्वेत चामर श्रीहरि को समर्पित करने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१.४५ ( निचित केशों से पुलस्त्य व लम्बे केशों से पुलह के समुद्भव का उल्लेख ), भागवत २.१.३४( विराट् पुरुष के केशों के मेघ होने का उल्लेख ), २.६.५(केशा आदि से शिला, लौह, अभ्र आदि की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य १५४.१० ( देवों द्वारा ब्रह्मा की स्तुति करते हुए आकाश को उनका मस्तक, चन्द्र - सूर्य को नेत्र तथा सर्पों को केश रूप कहने का उल्लेख ), वामन ५७.८४ ( कुटिला द्वारा कार्तिकेय को सित केश व कृष्ण केश प्रभृति दस गणों को प्रदान करने का उल्लेख ), वायु ४३.२०( महाकेश : भद्राश्व वर्ष के जनपदों में से एक ), विष्णु ५.१.६० ( विष्णु के श्याम व सित केशों का पृथ्वी का भार हरण हेतु अवतार ग्रहण करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२३( केशों में रात्रि की स्थिति का उल्लेख ), शिव ३.५.४ ( केशलम्ब : ग्यारहवें द्वापर में कलौ? नाम से अवतार ग्रहण करने पर शिव के चार पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.१.१३.२१( शिव के केशों के जलद/मेघ होने का उल्लेख ), ४.१.४०.९९ ( केश वपन तथा केश रक्षण का विधान ), ७.१.२९.४ ( केश में सब पापों के स्थित हो जाने का उल्लेख ; तीर्थ में केश - त्याग के माहात्म्य का कथन ), हरिवंश २.८०.५ ( पतिव्रता स्त्री के केश लम्बे करने के उपाय का कथन ), ३.७१.४६ ( वामन के विराट रूप में सूर्य किरणों के केश होने का उल्लेख ), वा.रामायण ५.१७.६ ( हनुमान द्वारा अशोक वाटिका में सीता के समीप ध्वस्त केशी, अकेशी प्रभृति राक्षसियों के दर्शन का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.७४ ( नरक में केश कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.४३७.५०( मनोजव - पत्नी सुमित्रा के केश के होम से शत्रुनाशकारी अस्त्रों के उत्पन्न होने का कथन ), २.२४ ( मार्गशीर्ष त्रयोदशी में बालकृष्ण के चौल संस्कार विधान तथा चौल संस्कार हेतु का वर्णन ), २.२४.२४( चौल संस्कार के वर्णन में गर्भ केशों के पाप रूप होने का वर्णन ; बालकृष्ण के केशों से नारायणों की उत्पत्ति ), २.१०९.३२ ( श्रीहरि द्वारा कल्माषकेश के वधोपरान्त कल्माषकेश के रक्तकेश, कृष्णकेश, चित्रकेश, अग्निकेश तथा धूम्रकेश आदि पुत्रों का श्रीहरि की शरण में आने का उल्लेख ), २.१५८.५९( प्रासाद की ध्वज की नर के केशों से उपमा ), ३.१८२( सुरामिश्रित भोजन के अर्पण से मञ्जुलकेश भक्त द्वारा पाशुपतेश विप्र को उन्मत्त होने का शाप, श्रीहरि द्वारा विप्र के शाप के मोक्षण का वृत्तान्त ), कथासरित् २.२.७४ ( श्रीदत्त द्वारा राक्षसी के केशों को पकडते ही राक्षसी द्वारा दिव्य रूप धारण करना तथा कौशिक मुनि द्वारा प्रदत्त स्व शाप से मुक्त होने का कथन ), १०.५.१८१ ( धूर्त्तों द्वारा धनी मूर्खों के धन का अपहरण दर्शाने हेतु केशमूर्ख की कथा का वर्णन ); द्र. आदिकेश, ऊर्ध्वकेश, ऋषिकेश, गुडाकेश, दृढकेश, धूम्रकेश, भीमकेश, मञ्जुलकेश, विद्युत्केश, सुकेश, स्थूलकेश, हरिकेश, हिरण्यकेश, हृषीकेश । kesha

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      केशर ब्रह्म १.४३.२९( नाभि जल में उत्पन्न पद्म में ब्रह्मा की पद्मकेशर के समान स्थिति का उल्लेख ) ।


      केशव गरुड ३.२९.४८(पुण्ड्र धारण काल में केशव आदि १२ के स्मरण का निर्देश - पुण्ड्राणां धारणे चैव केशवादींश्च द्वादश ॥), नारद १.६६.८६ ( केशवादि मातृका न्यास का कथन ; केशव की शक्ति कीर्ति का उल्लेख - केशवः कीर्तिसंयुक्तः कांत्या नारायणस्तथा। ), पद्म ६.१२१.५ ( धात्री माला धारण से शरीर में केशव के वास का उल्लेख - यावत्तिष्ठति कंठस्था धात्रीमाला नरस्य हि । तावत्तस्य शरीरे तु प्रतिष्ठति च केशवः । ), ६.१८८.४१ ( केशव नामक ब्राह्मण द्वारा विलोभना नामक स्व - स्त्री की हत्या, जन्मान्तर में केशव व विलोभना का शश व शुनी बनना, गीता के १४ वें अध्याय के जप से शश व शुनी को दिव्य लोक की प्राप्ति का वर्णन - तत्रासीद्ब्राह्मणो नाम्ना केशवः कितवाग्रणीः । विलोभनाभवत्तस्य जाया स्वैरविहारिणी । ), ब्रह्माण्ड २.३.४२.१९ ( परशुराम द्वारा गणेश का दन्तभङ्ग होने से पार्वती का क्रुद्ध होना , शिव के स्मरण मात्र से भगवान् केशव के राधा सहित आगमन का वृत्तान्त ), २.३.७१.२२१ (यशोदा से उत्पन्न पुत्री के केशव / कृष्ण रक्षार्थ एकादशा/एकानंशा देवी के नाम से विख्यात होने का उल्लेख - एकादशा तु जज्ञे वै रक्षार्थं केशवस्य ह ॥ ), ३.४.३४.७६ ( विष्णुलोक में माणिक्य मण्डप की पूर्व दिशा में केशव के विराजमान होने का उल्लेख - जाम्बूनदप्रभश्चक्री पूर्वस्यां दिशि केशवः । पश्चान्नारायणः शङ्खी नीलजीमूतसंनिभः ॥), भविष्य ३.२.२.१२ ( केशव द्विज द्वारा मधुमती की अस्थियों का संग्रह, मधुमती की कथा ), ३.४.२२.२१ ( मुकुन्द के शिष्य केशव का जन्मान्तर में अकबर के सात शिष्यों में से एक गानसेन बनने का उल्लेख - केशवो गानसेनश्च वैजवाक्स तु माधवः । ), ३.४.२२.३४ ( मुकुन्द के शिष्य देववान् का जन्मान्तर में केशव नामक कवि बनने का कथन - देववान्केशवो जातो विष्णुस्वामिमते स्थितः । । ), भागवत ६.८.२० ( नारायण कवच के अन्तर्गत प्रात:काल में गदाधारी केशव से रक्षा की प्रार्थना का उल्लेख - मां केशवो गदया प्रातरव्याद्गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः। ), मत्स्य १६.१ ( श्राद्धकाल, विधि, भेद तथा करणीय - अकरणीय कर्मों के विषय में मनु द्वारा भगवान् केशव से प्रश्न ), २२.९ ( पितृतीर्थ प्रयाग में योगनिद्राशायी भगवान् केशव के नित्य निवास का उल्लेख - वटेश्वरस्तु भगवान् माधवेन समन्वितः। योगनिद्राशयस्तद्वत् सदा वसति केशवः।। ), ६९.८ ( २८वें द्वापर के अन्त में भगवान् विष्णु द्वारा स्वयं को तीन भागों में विभक्त करके महर्षि द्वैपायन, बलराम तथा केशव रूप से अवतीर्ण होने का उल्लेख - द्वैपायन ऋषिस्तद्वद्रौहिणेयोऽथ केशवः। कंसादिदर्पमथनः केशवः क्लेशनाशनः।। ), १२२.१८ ( शाकद्वीप के सात पर्वतों में से एक, अपर नाम विभ्राज, केशव नाम के कारण का कथन – वह्नि का वायुरूप होना - यस्माद्विभ्राजते वह्निर्विभ्राजस्तेन स स्मृतः। सैवेह केशवेत्युक्तो यतो वायुः प्रवाति च।। ), १८५.६६ ( अविमुक्त / वाराणसी के पांच तीर्थों में से एक ), वराह १.२५ ( धरणी द्वारा केशव से पादों की रक्षा की प्रार्थना - केशवः पातु मे पादौ जङ्घे नारायणो मम । माधवो मे कटिं पातु गोविन्दो गुह्यमेव च ।।  ), १६३.१६ ( मथुरा रूपी पद्म की कर्णिका में केशव की स्थिति का उल्लेख - कर्णिकायां स्थितो देवि केशवः क्लेशनाशनः ।।कर्णिकायां मृता ये तु तेऽमरा मुक्तिभागिनः।। ), १६३.६८ ( दिन के चतुर्थ भाग में केशव में वराह तेज की व्याप्ति का उल्लेख - मध्याह्ने मामकं तेजो दीर्घविष्णौ व्यवस्थितम् ।। केशवे मामकं तेजो दिनभागे चतुर्थके ।। ), वामन ९०.१५ ( वाराणसी में विष्णु का केशव नाम से वास- तथैव विप्रप्रवर वाराणस्यां च केशवम्। ), विष्णु १.१५.५४ ( कण्डु मुनि द्वारा ब्रह्मपार स्तोत्र से भगवान केशव की अर्चना का उल्लेख - ब्रह्मपारं मुने श्रोतुमिच्छामः परमं स्तवम् । जपता कण्डुना देवो येनाराध्यत केशवः ॥  ), ५.१६.२३( केशी वध से जनार्दन को केशव नाम प्राप्ति का उल्लेख - यस्मात्त्वयैष दुष्टात्मा हतः केशी जनार्दन । तस्मात्केशवनाम्ना त्वं लोके ख्यातो भविष्यसि । ), विष्णुधर्मोत्तर १.७३.२२( त्रेता युग में केशव के रक्तता को प्राप्त होने पर नरों की आयु तथा यज्ञों की स्थिति का कथन ; अन्य युगों में केशव के पीत व कृष्ण वर्ण होने का उल्लेख - त्रिपादविग्रहो धर्मो राम त्रेतायुगे तदा ॥ केशवे रक्ततां याते नरा दशशतायुषः ॥ ), १.१६८ ( पुष्पादि से केशव अर्चना का वर्णन - अरण्यादाहृतैः पुष्पैर्मूलपत्रफलाङ्कुरैः।। यथोपपन्नैः सततमभ्यर्चयति केशवम् ।।), १.२३७.४ ( केशव से जिह्वा की रक्षा की प्रार्थना - मनो मम हृषीकेशो जिह्वां रक्षतु केशवः।। ), ३.१७६.२(केशव के दशात्मा होने का कथन - विश्वेदेवा समाख्याता दशात्मा केशवो विभुः ।।), स्कन्द २.१.२८.३७ ( केशव नामक द्विज द्वारा ब्राह्मण हत्या, कटाह तीर्थ में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा - पुरा कश्चिद्द्विजो मोहात्केशवाख्यो बहुश्रुतम् ।। हत्वा खड्गेन दुर्बुद्ध्या ब्रह्महत्यामवाप्तवान् ।। ), २.५.२.२३(ललाट में केशव के ध्यान का निर्देश - ललाटे केशवं ध्यायेन्नारायणमथोदरे।। वक्षःस्थले माधवं च गोविंदं कण्ठकूबरे।।), २.५.१५.२ (सहमास में कीर्तियुक्त केशव की पूजा का निर्देश - सहोमासे च देवो वै कीर्तियुक्तो हि केशवः ।।), २.७.२२.२७( क्लेशनाशक केशव के स्मरण से ही तुष्ट होने का उल्लेख - स्मरणात्तोषमायाति केशवः क्लेशनाशनः ।। ), ४.२.५१.७३ (काशी में आदिकेशव, केशवादित्य इत्यादि तीर्थों का माहात्म्य - अतः स केशवादित्यः काश्यां भक्ततमोनुदः ।। ), ४.२.५८.२९ ( आदि केशव की पूजा से गृह में ही वैकुण्ठ प्राप्ति का उल्लेख - आदिकेशवनाम्नीं तां श्रीमूर्तिं पारमेश्वरीम् ।। संपूज्य मर्त्यो वैकुंठं मन्यते स्वगृहांगणम् ।। ), ४.२.६१.४ ( पादोदक तीर्थ में आदिकेशव, श्वेतद्वीप में ज्ञानकेशव, तार्क्ष्यतीर्थ में तार्क्ष्यकेशव, नारदतीर्थ में नारदकेशव, प्रह्लाद तीर्थ में प्रह्लादकेशव, अम्बरीष तीर्थ में आदित्यकेशव, भार्गव तीर्थ में भृगुकेशव, वामनतीर्थ में वामनकेशव, हयग्रीवतीर्थ में हयग्रीवकेशव तथा वृद्धकालेश में भीष्मकेशव प्रभृति नामों से विष्णु का अर्चन तथा फल प्राप्ति - आदौ पादोदके तीर्थे विद्धि मामादिकेशवम् ।। अग्निबिंदो महाप्राज्ञ भक्तानां मुक्तिदायकम् ।।  ), ४.२.६१.२१६ ( शङ्ख, चक्र, गदा तथा पद्म से युक्त मूर्ति के कैशवी होने तथा पूजित होने पर चिन्तितार्थ पूरक होने का उल्लेख - शंखचक्रगदापद्मैर्मूर्तिं जानीहि कैशवीम् ।। पूजिता या नृणां कुर्याच्चिंतितार्थमसंशयम्।।  ), ४.२.८४.१७ ( आदित्यकेशव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - आदित्यकेशवं नाम तदग्रे तीर्थमुत्तमम् ।। कृताभिषेकस्तत्रापि लभेत्स्वर्गाभिषेचनम् ।। ), ४.२.९७.१५ ( आदि केशव के दर्शन से त्रिभुवन के दर्शन का कथन - वेदेश्वरादुदीच्यां तु क्षेत्रज्ञश्चादिकेशवः ।।
      दृष्टं त्रिभुवनं सर्वं तस्य संदर्शनाद्ध्रुवम् ।। ), ५.१.३३.१७ ( केशवार्क तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - केशवार्कमुखं दृष्ट्वा पद्मरागसमप्रभम् ।। विमुक्तः सर्वपापेभ्यः सूर्यलोके महीयते ।।), ५.३.१४९.८ ( लिङ्गेश्वर तीर्थ में मार्गशीर्ष द्वादशी को केशव अर्चना का निर्देश, १२ मासों में १२ नामों से केशव की अर्चना - मासि मासि निराहारो द्वादश्यां कुरुनन्दन । केशवं पूजयेन्नित्यं मासि मार्गशिरे बुधः ॥ ), ५.३.१५५.११६ ( भास्कर से आरोग्य, जातवेदस् से धन, ईशान से ज्ञान तथा केशव से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख - आरोग्यं भास्करादिच्छेद्धनं वै जातवेदसः ॥ प्राप्नोति ज्ञानमीशानान्मोक्षं प्राप्नोति केशवात् ।), ), ६.२४७.४१(अश्वत्थ -- मूले विष्णुः स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च ॥ नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान्हरिः ॥), महाभारत शान्ति ३४१.४८( केशव की निरुक्ति : अग्नि, सोम व सूर्य की किरणों रूपी केशों से युक्त - अंशवो यत्प्रकाशन्ते ममैते केशसंज्ञिताः।।

      सर्वज्ञाः केशवं तस्मान्मामाहुर्द्विजसत्तमाः। ), लक्ष्मीनारायण १.८३.५७( केशवार्क : काशी में दिवोदास के राज्य में स्थित १२ आदित्यों में से एक ), १.४०५.६३ ( केशव नामक विप्र द्वारा ब्राह्मण की हत्या, भरद्वाज मुनि के कथनानुसार कटाह तीर्थ में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति की कथा ), २.२६१.३० ( केशव शब्द की निरुक्ति : केश जिसके अंश हैं - केशास्तदंशवः प्रोक्तास्तद्वान् कृष्णो हि केशवः ।।) । keshava

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      केशिध्वज अग्नि ३७९.१५ ( केशिध्वज द्वारा खाण्डिक्य जनक को आत्म शिक्षा का उपदेश ), नारद १.४६.३७, १४७ ( कृतध्वज - पुत्र, होमधेनु की मृत्यु पर खाण्डिक्य जनक से प्रायश्चित्त विधान पूछना, दक्षिणा स्वरूप खाण्डिक्य को अध्यात्म ज्ञान का कथन ), भागवत ९.१३.२० ( कृतध्वज - पुत्र, भानुमान् - पिता, केशिध्वज के आत्मविद्या में प्रवीण होने का उल्लेख ), विष्णु ६.६, ६.७( कृतध्वज - पुत्र, केशिध्वज का होमधेनु की मृत्यु पर खाण्डिक्य जनक से प्रायश्चित्त विधान पूछना, दक्षिणा स्वरूप खाण्डिक्य को केशिध्वज द्वारा आत्म - ज्ञान का कथन ) । keshidhwaja/keshidhvaja


      केशिनी नारद १.८.६३ ( और्व मुनि के वरदान स्वरूप सगर की प्रथम पत्नी केशिनी को वंशकारक एक पुत्र तथा द्वितीय पत्नी सुमति को साठ सहस्र पुत्रों की प्राप्ति, सगर - पुत्रों की दुश्चेष्टाओं के परिणामस्वरूप कपिल मुनि द्वारा सगर - पुत्रों के भस्म करने का वृत्तान्त ), पद्म ७.४.८९ ( भीमकेश - पत्नी केशिनी का बृहद्ध्वज राक्षस से समागम, गङ्गासागर सङ्गम महिमा से स्वर्ग गमन ), ३.२१.४१ ( केशिनी तीर्थ में स्नान, उपवास से ब्रह्महत्या से मुक्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१३९ ( खशा की सात पुत्रियों में से एक केशिनी द्वारा कपिल यक्ष से यक्षों व राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख ), २.३.४९.२,५९ ( राजा सगर द्वारा विदर्भराज - पुत्री केशिनी के पाणिग्रहण तथा सुखोपभोग का उल्लेख ), २.३.५१.३७ ( सगर - पत्नी केशिनी द्वारा असमञ्जस नामक पुत्र की उत्पत्ति, पिता सगर द्वारा असमञ्जस के त्याग का वृत्तान्त ), २.३.६३.१५४ ( विदर्भ - पुत्री तथा सगर - पत्नी केशिनी को और्व मुनि के वरदानस्वरूप असमञ्ज नामक पुत्र की प्राप्ति, प्रजा के अहित में तत्पर होने पर राजा सगर द्वारा पुत्र का नगर से निष्कासन ), २.३.६६.२५ ( सुहोत्र - पत्नी, जह्नु - माता ), भागवत ७.१.४३ ( विश्रवा मुनि की पत्नी केशिनी से रावण व कुम्भकर्ण की उत्पत्ति का उल्लेख ), ९.८.१५ ( विदर्भराज - पुत्री, असमञ्जस - माता, सगर - पत्नी ), मत्स्य ४९.४४,४६ ( अजमीढ - पत्नी, कण्व -माता ), १७९.२३ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक ), वामन ५६.२७ ( कौशिकी का केशिनि से रक्तबीज दानव के रक्तपान का आग्रह ), वायु ६९.१७० ( खशा की सात पुत्रियों में से एक ), ८८.१५५ ( विदर्भराज - पुत्री, असमञ्ज - माता, सगर - पत्नी ), ९९.१६७ ( अजमीढ की तीन पत्नियों में से एक, कण्ठ - माता ), विष्णु ४.४.१( विदर्भराज - पुत्री तथा सगर - पत्नी केशिनी को और्व मुनि के वरदान स्वरूप असमञ्जस नामक पुत्र की प्राप्ति, असमञ्जस के असत् चरित्र के कारण पिता सगर द्वारा पुत्र के त्याग का वर्णन ), वा.रामायण १.३८.१३ ( सगर - पत्नी केशिनी द्वारा महर्षि भृगु से वंशकर्त्ता पुत्र प्राप्ति का वर ग्रहण करने तथा असमञ्ज नामक पुत्र को उत्पन्न करने का उल्लेख ), कथासरित् ८.२.३४७ ( महल्लिका द्वारा सूर्यप्रभ को अपनी बारह सखियों का परिचय देते हुए केशिनी का पर्वत मुनि की कन्या के रूप में उल्लेख ) । keshini/keshinee

      केशिनी केशिनी परा शक्ति है । सुधन्वा आत्मा की शक्ति है जो समाधि अवस्था में प्राप्त होती है । विरोचन व्युत्थान की अवस्था है – फतहसिंह


      केशी गरुड ३.१२.९४(केशी दैत्य की आपेक्षिक श्रेष्ठता), गर्ग ५.२.१ ( कृष्ण द्वारा अश्व रूप धारी केशी दैत्य का वध, केशी द्वारा दिव्य रूप धारण, शापवश इन्द्र के अनुचर कुमुद का केशी बनने का वृत्तान्त ), देवीभागवत ४.२२.४३ ( हयशिरा के अंशावतार रूप में केशी का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६.२१ ( दैत्येश्वर केशी द्वारा श्रीकृष्ण का वेष्टन तथा श्रीकृष्ण द्वारा उसके वध का उल्लेख ), भागवत ९.२४.४८ ( वसुदेव व कौशल्या - पुत्र ), १०.२.१ ( कंस के साथियों में केशी का उल्लेख ), १०.३६.२० ( कंस द्वारा केशी को कृष्ण व बलराम के वध का आदेश ), १०.३७.१ ( हय रूप धारण कर केशी नामक दैत्य का कृष्ण के समीप गमन, कृष्ण द्वारा केशी के उद्धार का वृत्तान्त ), मत्स्य २४.२३ ( दानवराज केशी द्वारा चित्रलेखा और उर्वशी का हरण करने पर पुरूरवा द्वारा केशी से युद्ध तथा केशी की पराजय ), वायु ९८.१०० ( २८वें द्वापर में अवतारों विष्णु द्वारा कंस, केशी प्रभृति मानव देहधारी दैत्यों के वध का उल्लेख ), विष्णु ५.१६.१+ ( कंस - दूत केशी का कृष्ण को मारने हेतु अश्वरूप धारण, कृष्ण द्वारा केशी के वध का वृत्तान्त ), ५.१.२४ ( कंस, केशी प्रभृति दैत्यों के भार से पीडित भूमि का पीडा हरण हेतु देवों के समीप गमन तथा प्रार्थना), विष्णुधर्मोत्तर १.१७६.१० ( शक्रपीडक केशी नामक असुर के विष्णु द्वारा वध का उल्लेख ), हरिवंश २.२४.६ (कंस द्वारा अश्व रूप धारी दैत्य केशी का वृन्दावन में प्रेषण, केशी की उच्छृंखलता, कृष्ण द्वारा केशी के वध का वर्णन ), ३.५१.६१ ( देवों से युद्ध हेतु तत्पर केशी दैत्य के रथादि का वर्णन ), ३.५३.२० ( देवासुर युद्ध में केशी दैत्य के धनेश्वर भीम से युद्ध का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२८.२४ ( केशीय जाति के नागों के नाट्य कुशल होने का उल्लेख ), ३.२१८.२ ( मौक्तिकेशी : श्रीहरि द्वारा स्वभक्त मौक्तिकेशी की परीक्षा और मोक्ष प्रदान की कथा ) ; द्र. गुणकेशी, मिश्रकेशी, मौक्तिकेशी, विकेशी । keshi/keshee

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      Vedic contexts on Keshee


      केषणादी ब्रह्माण्ड २.३.७.३८० ( पिशाचों के १६ युग्मों में से १५ वें युग्म की पिशाची ) ।


      केसट कथासरित् १८.४.१५७ ( पाटलिपुत्र - निवासी केसट नामक ब्राह्मण - पुत्र का रूपवती से विवाह, वियोग तथा पुनर्मिलन का वृत्तान्त ) ।


      केसर नारद १.६७.६१( केसर पुष्प को शिव को अर्पण का निषेध - केतकीं कुटजं कुंदं बंधूकं केसरं जपाम्। मालतीपुष्पक चैव नार्पयेत्तु महेश्वरे ।। ), पद्म १.४०.४ ( हिरण्मय पद्म के केसरों का पर्वतों के प्रतीक रूप में उल्लेख - यत्पद्मं सा रसादेवी पृथिवी परिकथ्यते। ये पद्मकेसरा मुख्यास्तान्दिव्यान्पर्वतान्विदुः॥ ), वायु ३८.४५ ( केसरद्रोणि : कुमुद और अञ्जन पर्वतों के मध्य भूभाग का केसरद्रोणी नामोल्लेख - तथैव शैलवरयोः कुमुदाञ्जनयोरपि। अन्तरे केसरद्रोणी ह्यनेकायाम योजना ।। ), लक्ष्मीनारायण १.३१.१९( श्रीहरि की हिरण्यश्मश्रु से पूजा द्रव्य केसर की उत्पत्ति का उल्लेख - हिरण्यश्मश्रुभागाद्वै केसरं प्रकटीकृतम् । ), कथासरित् ८.२.३५२ ( केसरावली : महल्लिका द्वारा सूर्यप्रभ को अपनी बारह सखियों का परिचय देते हुए केसरावली का पिङ्गल गण की पुत्री के रूप में उल्लेख ) । kesara


      केसरि ब्रह्माण्ड १.२.२०.३९( षष्ठम तल शिलाभौम रसातल में दैत्यपति केसरि के नगर का उल्लेख ), वायु ५०.३८ (शिलाभौम नामक षष्ठम् रसातल में दैत्यपति केसरि के नगर का उल्लेख ), भविष्य ३.३.२३.३३ ( केसरिणी : चित्ररेखा - सखी, नाट्यात्मजा, कुतुक - शिष्या ) ।


      केसरी ब्रह्म २.१४.३ ( अञ्जन पर्वत पर केसरी के वानरी रूप धारी अञ्जना तथा मार्जारी रूप धारी अद्रिका नामक भार्याओं के साथ निवास का उल्लेख - अञ्जना नाम तत्राऽऽसीदुत्तमाङ्गेन वानरी। केसरी नाम तद्भर्ता अद्रिकेति तथाऽपरा।।  ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.९० ( शाकद्वीप के अनेक पर्वतों में से वनौषधि युक्त एक पर्वत ), २.३.७.२२३ ( कुञ्जर वानर की पुत्री अञ्जना के पति के रूप में केसरी का उल्लेख, हनुमान , श्रुतिमान्, केतुमान्, मतिमान् , धृतिमान् – पिता - केसरी कुञ्जरस्याथ सुतां भार्यामविन्दत ॥ अञ्जना नाम सुभगा गत्वा पुंसवने शुचिः । ), विष्णु २.४.६२ ( शाकद्वीप के पर्वतों में से एक ), वा.रामायण ४.६६.८ ( अप्सरा से कपि योनि में अवतीर्ण, कुञ्जर - पुत्री अञ्जना के पति रूप में केसरी का उल्लेख - अप्सराप्सरसां श्रेष्ठा विख्याता पुञ्जिकस्थला । अञ्जनेति परिख्याता पत्नी केसरिणो हरेः  ), ६.२७.३८ ( सारण द्वारा रावण को वानर यूथपतियों का परिचय देते हुए महामेरु पर रमण करने वाले वानर यूथपति के रूप में केसरी का उल्लेख ), ६.३०.२१ ( इन्द्र के गुरु बृहस्पति के पुत्र तथा हनुमान् के पिता रूप में केसरी का उल्लेख- गद्गदस्य एव पुत्रो अन्यो गुरु पुत्रः शत क्रतोः । कदनम् यस्य पुत्रेण कृतम् एकेन रक्षसाम् ॥ ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.२० ( प्रासाद वर्णनान्तर्गत केसरी नामक प्रासाद के स्वरूप का उल्लेख ), ४.७४.४ ( सुकेसरी : राजा सप्ताब्धिसिंह का रथवाह, सर्प दंशन से राजा के मृत होने पर सुकेसरी द्वारा मन्त्रधुन्य योग से राजा के संजीवन का वर्णन ) । kesari/kesaree


      कैकय गर्ग ७.१५.३४ ( कैकय देश के अधिपति धृतकेतु द्वारा प्रद्युम्न के सत्कार का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५७ ( शूर की पांच पुत्रियों में से तृतीय श्रुतकीर्ति के पति, संतर्दन, चेकितान, बृहत्क्षत्र आदि के पिता, वृष्णि वंश ), भविष्य ३.३.३१.८१ ( काश्मीर के राजा कैकय के दस पुत्रों तथा मदनावती नामक कन्या का उल्लेख ), ३.३.३२.१६७ ( कैकय की पुत्रों सहित युद्ध में मृत्यु का उल्लेख ), भागवत २.७.३५ ( कैकय प्रभृति देशों के राजाओं के युद्ध में मृत्यु को प्राप्त कर परम धाम गमन का उल्लेख ), ९.२४.३८ ( कैकय देश के राजा धृष्टकेतु और श्रुतकीर्ति से सन्तर्दन आदि पांच कैकय राजकुमारों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति ७७(राक्षस द्वारा अपहृत होने पर कैकयराज का राक्षस से संवाद), द्र. केकय, कैकेय । kaikaya


      कैकस लक्ष्मीनारायण ३.११७.१ ( सात सहोदर कैकस नामक दैत्यों द्वारा सूर्य से वर प्राप्ति, ललिता द्वारा कैकसों के वध का वृत्तान्त ) ।


      कैकसी पद्म १.३८.१०५ ( राम द्वारा विभीषण की माता कैकसी का अभिवादन , कैकसी का राम को आशीर्वाद कथन ), ५.६.१८ ( विश्रवा - पत्नी, विद्युन्मालि - पुत्री, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण -माता, कैकसी के रोषपूर्ण वचनों का श्रवण कर रावण द्वारा तपश्चर्या के निश्चय का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.८.४० ( सुमाली - कन्या, विश्रवा की चार पत्नियों में से एक, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण व शूर्पणखा की माता ), वायु ७०.३४ ( वही), विष्णुधर्मोत्तर १.२२० ( पिता सुमाली के कहने पर कैकसी का विश्रवस मुनि के समीप गमन, विश्रवस से कैकसी को रावण, कुम्भकर्ण तथा शूर्पणखा की प्राप्ति का कथन ), स्कन्द ३.१.४७.१२ ( सुमाली - कन्या, विश्रवा - भार्या, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण व शूर्पणखा की माता ), ५.३.१६८.१५ ( वही), वा.रामायण ७.५.४१ ( सुमाली व केतुमती की चार कन्याओं में से एक ), ७.९.६ ( सुमाली - पुत्री कैकसी का पिता के आदेश से मुनि विश्रवा से परिणय, रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण तथा शूर्पणखा की उत्पत्ति, कुबेर सदृश बनने के लिए कैकसी की प्रेरणा से रावण द्वारा तपश्चर्या का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण २.८६.३९( विश्रवा की ४ पत्नियों में से एक, रावण आदि पुत्रों के नाम ) । kaikasi/kaikasee


      कैकेय भागवत ९.२३.३ ( शिबि के चार पुत्रों में से एक, अनु वंश ), मत्स्य ४५.१९ ( कैकेय की दस कन्याओं के सत्राजित् की पत्नियां होने का उल्लेख ), महाभारत भीष्म ६.४५.५२/६.४३.४९(कैकेय का कृपाचार्य से युद्ध), ६.६९.११/६.६५.११(श्येन व्यूह में अक्षौहिणीपति कैकेय के दक्षिणपक्ष में होने का उल्लेख), द्रोण ७.२२.१७(कैकेय बृहत्क्षत्र के पलालधूम वर्ण वाले अश्वों का उल्लेख), ७.१२५.५/७.१०१(द्रोण व कैकेय बृहत्क्षत्र का युद्ध, द्रोण द्वारा बृहत्क्षत्र का वध), कर्ण ८.९.६(सात्यकि द्वारा कैकेय विन्द व अनुविन्द से युद्ध व उनका वध करने का वृत्तान्त), स्कन्द ३.३.३.३३ ( कैकेय द्विज की विधवा कुमार्गगामिनी कन्या की कथा ), द्र. केकय। kaikeya


      कैकेयी गरुड २.२.२०.१९?( कृष्ण - पत्नी भद्रा का अपर नाम ), ३.२०.८१(नल-पुत्री भद्रा का कैकेयी/भद्रा रूप में जन्म, कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति), देवीभागवत ६.२७.१ ( संजय राजा - पत्नी, दमयन्ती - माता , पुत्री दमयन्ती के नारद से तथाकथित विवाह का प्रसंग ), १२.६.३५ ( गायत्री सहस्रनाम में से एक ), भागवत १०.५८.५६ ( कैकेयराज की पुत्री होने से कैकेयी उपाधि धारण करने वाली भद्रा का श्रीकृष्ण द्वारा पाणिग्रहण का उल्लेख ), महभारत १३.१२३.२(कैकेयी सुमना का शाण्डिली से स्वर्गलोक प्राप्ति विषयक प्रश्न), वा.रामायण १.१८.१३ ( दशरथ - पत्नी, भरत - माता ), २.३५.३ ( राम वनगमन प्रसंग में सारथी सुमन्त्र का कैकेयी को समझाना तथा वाग्बाणों से कैकेयी के हृदय को विचलित करने की चेष्टा का वर्णन ), २.३६.१० ( राम वन गमन प्रसंग में दशरथ द्वारा राम के साथ सेना और कोष भेजने के आदेश देने पर कैकेयी द्वारा विरोध का उल्लेख ), २.३६.१८ ( राम वन गमन प्रसंग में मन्त्री सिद्धार्थ द्वारा कैकेयी को समझाने का वर्णन ), २.३७.२१ ( राम वनगमन प्रसंग में सीता के वल्कल वस्त्र धारण करने पर गुरु वसिष्ठ द्वारा कैकेयी को फटकारने का वर्णन ), स्कन्द २.४.२५.२४ ( कलहा का दशरथ - भार्या कैकेयी का रूप होने का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.४२५.९८ ( धर्मदत्त के दशरथ नाम से जन्म लेने पर सौराष्ट्रीय कलहा के दशरथ - पत्नी कैकेयी के रूप में जन्म ग्रहण का उल्लेख ) । kaikeyee/kaikeyi

      Remarks on Kaikeyi


      कैटभ ब्रह्म २.४८.१० ( कैटभ राक्षस के पुत्रों अश्वत्थ और पिप्पल द्वारा ब्राह्मणों का भक्षण, ब्राह्मणों द्वारा रवि - पुत्र शनि से सहायता की प्रार्थना, शनि द्वारा कैटभ - पुत्रों को भस्म करने का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त ३.४५.३८(नैर्ऋत की शक्ति कैटभी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३७.२ ( मधु तथा कैटभ नामक दानवों के मेद से आकीर्ण होने के कारण पृथ्वी द्वारा मेदिनी नाम धारण करने का उल्लेख ), ३.४.२९.७५ ( भण्डासुर द्वारा छोडे गए महासुरास्त्र से मधु, कैटभ प्रभृति सहस्रों महादानवों की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ३.२४.१८ ( कैटभ असुर का संहार करने के कारण श्रीहरि का कैटभार्दन नामोल्लेख ), ६.१२.१ ( प्रलयकालीन जल में कैटभ असुर द्वारा श्रीहरि पर प्रहार के समान वृत्रासुर द्वारा इन्द्र पर प्रहार का कथन ), १०.४०.१७ ( मधु तथा कैटभ असुरों के संहारार्थ भगवान् के हयग्रीव अवतार ग्रहण करने का उल्लेख ), मत्स्य १७० ( मधु तथा कैटभ असुरों की उत्पत्ति व स्वरूप का कथन, ब्रह्मा के साथ वार्तालाप, भगवान् द्वारा मधु व कैटभ के वध का वृत्तान्त ), १७८.६ ( महासागर में निवास करने वाले मधु व कैटभ असुरों के प्राणहर्त्ता के रूप में श्रीहरि का उल्लेख ), वायु २५.३० ( मधु तथा कैटभ नामक भ्राताओं द्वारा ब्रह्मा के पद्म का कम्पन तथा पद्मपत्रों का भञ्जन, भयभीत ब्रह्मा द्वारा विष्णु से रक्षा की प्रार्थना, विष्णु द्वारा मुख से विष्णु तथा जिष्णु की उत्पत्ति, विष्णु द्वारा कैटभ तथा जिष्णु द्वारा मधु के वध का वृत्तान्त ) । kaitabha


      कैतव ब्रह्म २.१०१ ( राजा प्रमति द्वारा अक्ष क्रीडा में इन्द्र व विश्वावसु की पराजय, चित्रसेन की विजय, चित्रसेन द्वारा प्रमति का बन्धन, प्रमति - पुत्र सुमति का मुनि से पिता की बन्धन मुक्ति के उपाय पूछना, मुनि द्वारा कैतव दोष का कथन तथा गौतमी पर ईश्वर आराधना से प्रमति की मुक्ति के उपाय का कथन, सुमति द्वारा कैतव दोष से पिता को मुक्त करने पर उर्वशी तीर्थ की कैतव तीर्थ के नाम से प्रसिद्धि का वृत्तान्त ) । kaitava


      कैरात ब्रह्माण्ड २.३.५.३६ ( अर्जुन द्वारा कैरात में मूक के वध का उल्लेख ), ३.४.१६.१८ ( ललिता देवी के घोडों में कैरात प्रभृति राज्यों के घोडों का उल्लेख ), मत्स्य १९९.१६ ( काश्यप प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), १९६.७ ( कैराति : गोत्र प्रवर्तक आङ्गिरस ऋषियों में से एक ) ।


      कैलास गणेश १.४०.५ ( त्रिपुर द्वारा शिव से कैलास मांगना, शिव का मन्दार शिखर को जाना ), ब्रह्माण्ड १.२.१८ ( कैलास पर्वत के परित: वन, सरोवर, नदी व पर्वत का वर्णन ), १.२.२०.५० ( सप्तम तल पाताल में विराजमान महात्मा कुण्डली की कैलास से समता का उल्लेख ), १.२.२५.२४ ( कैलास के रमणीय शिखर पर आसीन शिव द्वारा पार्वती के पूछने पर नीलकण्ठत्व के हेतु का कथन ), २.३.१३.३६ ( कैलास स्थित मतङ्ग वापी में स्नान से पक्षियों के भी स्वर्ग गमन का कथन ), २.३.२५.९ ( भार्गव / परशुराम - कृत शिवस्तुति में शिव का कैलासवासी रूप से उल्लेख ), २.३.४१.१८ ( कार्त्तवीर्य का पुत्रों सहित वध करके परशुराम का कृतकार्य हो शिव, पार्वती, स्कन्द तथा विनायक के दर्शन हेतु कैलास पर गमन का कथन ), ३.४.१०.२७ ( अमृत वितरण हेतु विष्णु के मोहिनी रूप धारण करने के वृत्तान्त को शिव से निवेदित करने के लिए नारद मुनि का कैलास गमन तथा शिव से समस्त वृत्तान्त का निवेदन ), भागवत ४.६.८ ( देवों, प्रजापतियों तथा पितरों के साथ ब्रह्मा का शिव धाम कैलास पर्वत पर गमन तथा कैलास की भव्यता का वर्णन ), ५.१६.२७ ( सुवर्ण गिरि मेरु के दक्षिण में कैलास और करवीर पर्वतों की स्थिति का उल्लेख ), ९.४.५५ ( भगवान् के चक्र से संतप्त दुर्वासा ऋषि का रक्षा हेतु कैलासवासी शंकर की शरण में जाने का उल्लेख ), १०.१०.२ ( कुबेर - पुत्रों के कैलास के रमणीय उपवन में मदोन्मत्त होकर भ्रमण करने का उल्लेख ), मत्स्य ५४.३ ( कैलास शिखर पर आसीन शिव से नारद का व्रत - उपवास सम्बन्धी प्रश्न तथा शिव द्वारा विविध व्रतों का कथन ), ६२.२ ( कैलास शिखरासीन शिव से उमा का व्रत सम्बन्धी प्रश्न तथा शिव द्वारा अनन्त तृतीया व्रत की विधि व माहात्म्य का कथन ), १२१.२ ( हिमालय के पृष्ठ भाग के मध्य में कैलास पर्वत की स्थिति तथा उस पर शिव के निवास का कथन ), १२१.३ ( कैलास के पाद से मन्दोदक नामक सरोवर के प्राकट्य का कथन ), १२१.५ ( कैलास की पूर्वोत्तर दिशा में चन्द्रप्रभ नामक पर्वत की स्थिति का कथन ), १२१.१० ( कैलास के दक्षिण - पूर्व में हेमशृङ्ग पर्वत की स्थिति का कथन ), १२१.१४ ( कैलास के पश्चिमोत्तर में ककुद्मान पर्वत की स्थिति का कथन ), १२१.१९ ( कैलास के पश्चिम में वरुण पर्वत की स्थिति का कथन ), १२१.२४ ( कैलास के उत्तर में हिरण्यशृङ्ग पर्वत की स्थिति का कथन ), १६३.८५ ( हेमगर्भ, हेमसख तथा पर्वतराज कैलास को हिरण्यकशिपु द्वारा प्रकम्पित करने का उल्लेख ), १८३.१ ( पार्वती द्वारा शिव से कैलास प्रभृति स्थानों का परित्याग कर अविमुक्त क्षेत्र में निवास का कारण पूछने पर शिव द्वारा अविमुक्त क्षेत्र के माहात्म्य का वर्णन ), वामन ९०.३३ ( कैलास पर विष्णु का वृषभध्वज नाम से वास ), वायु ३५.९ ( मेरुमूल के दक्षिण में कैलास पर्वत की स्थिति का उल्लेख ), ३५.२४ ( मानसरोवर के दक्षिणस्थ पर्वतों में कैलास का उल्लेख ), ३८.३३ ( दक्षिण दिशा की द्रोणियों में पञ्चकूट और कैलास शिखरों के मध्य की वनभूमि का उल्लेख ), ४१ ( देवकूट पर्वत के मध्यम शिखर पर स्थित कुबेर की सभा के स्थान, शोभा का वर्णन ), ४२.३२ ( अलकनन्दा नदी के त्रिकूट, कलिङ्ग , रुचक आदि पर्व शिखरों से होते हुए कैलास पर गिरने का उल्लेख ), ४७ ( कैलास पर्वत के परित: वन, सरोवर, नदी व पर्वतों का वर्णन ), ५०.३० ( कैलास के सुरम्य शिखर पर आसीन शिव से पार्वती द्वारा नीलकण्ठत्व का कारण पूछना, शिव द्वारा नीलकण्ठत्व के हेतु का कथन ), विष्णु २.२.४२ ( कैलास पर्वत के विस्तार तथा स्थिति का उल्लेख ), शिव १.१७.९२(ज्ञान कैलास का उल्लेख), १.१९.६१(अहिंसा लोक में ज्ञान कैलास पुर का कथन), ५.१.७ ( पुत्रप्राप्त्यर्थ तप हेतु कृष्ण के शिव के निवास कैलास जाने का उल्लेख), ६.१+ ( शिवपुराण के अन्तर्गत कैलास संहिता का आरम्भ ), स्कन्द ७.१.३ ( कैलास पर्वत की शोभा का वर्णन ), हरिवंश ३.८४.४ ( तपस्या हेतु कृष्ण के कैलास पर्वत पर गमन का उल्लेख तथा कैलास की महिमा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.१२( कैलास प्रासाद के लक्षण), २.१४०.२८( कैलास नामक प्रासाद के स्वरूप का कथन), २.१४१.५३ ( कैलास मेरु नामक प्रासाद के स्वरूप का कथन ), ३.४५.१५ ( शम्भु भक्ति से युक्त लोगों को कैलास नामक शिव स्थान की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२.१० ( राजा बदर के कैलास नामक विमान का कथन ), कथासरित् १५.१.४४ ( शिव के निवास स्थान कैलास के लङ्घन से विद्याओं के नष्ट हो जाने, अतएव त्रिशीर्ष गुफा से होकर कैलास के उत्तर में पहुंचने का कथन ), १५.१.६१ ( ऋषभ देव द्वारा तप से कैलास के उत्तर व दक्षिण पार्श्व द्वय का साम्राज्य प्राप्त करना ), १५.१.६६ ( कैलास को भेदकर शिव द्वारा त्रिशीर्ष गुफा का निर्माण, कैलास के निवेदन करने पर गुफा के दक्षिण द्वार पर महामाय तथा उत्तर द्वार पर कालशक्ति, चण्डिका तथा अपराजिता को रक्षार्थ नियुक्त करने का उल्लेख ), १५.१.८७ ( गुफा के मध्य से निकलकर नरवाहनदत्त द्वारा कैलास के उत्तर भाग के दर्शन, कालरात्रि से विजय प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करके नरवाहनदत्त का मन्दरदेव से युद्ध, मन्दरदेव की पराजय, नरवाहनदत्त को हिमालय के उत्तर भाग के राज्य की प्राप्ति का वृत्तान्त ) । kailaasa/ kailasa


      कैवर्त गणेश १.५७.२ ( दुष्ट कैवर्त्त की बुद्धि के मुद्गल मुनि के दर्शन से परिवर्तित होने की कथा ), लक्ष्मीनारायण ३.११३.९६ ( राजा वैवर्त का मृत्यु पश्चात् स्व अनुज कैवर्त्त के पुत्र रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ) ।


      कैवल्य दृ. केवल


      कैशिक नारद १.५०.५६ ( गान विद्या में ग्राम का नाम? ), ब्रह्माण्ड २.३.७०.३७ ( ज्यामघ व शैब्या - पौत्र, विदर्भ - पुत्र, चिदि - पिता, क्रोष्टु वंश ), मत्स्य ४४.३६ ( वही), विष्णु ४.१२.३७ ( ज्यामघ व शैब्या - पौत्र, विदर्भ - पुत्र, क्रथ, रोमपाद - भ्राता ), ४.१२.३९ ( रोमपाद के पौत्र धृति का पुत्र, चिदि - पिता ), हरिवंश २.४७.४४ ( रुक्मिणी स्वयंवर प्रसंग में विदर्भराज कैशिक द्वारा श्रीकृष्ण के सत्कार का उल्लेख ), २.५० ( विदर्भराज कैशिक द्वारा क्रथ भ्राता सहित कृष्ण को राज्य का समर्पण, कृष्ण के राजेन्द्र पद पर अभिषेक का वृत्तान्त ) । kaishika

      कोकनद वामन ५७.७४( यक्षों द्वारा कुमार को प्रदत्त १५ गणों में से एक ), ९०.३८( धरातल में विष्णु का कोकनद नाम से वास ) ।


      कोका ब्रह्म १.११०.४( ऊर्जा व स्वधा उपनाम वाली सोम की कला में पितरों की आसक्ति, सोम के शाप से ऊर्जा का कोका नदी होने व पितरों के उसमें निमग्न होने का वर्णन ) । kokaa


      कोकामुख पद्म ३.३८.६७( कोकामुख तीर्थ में स्नान से जातिस्मरत्व प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्म १.१२१.६९( नारद द्वारा कोकामुख नदी में स्नान करने पर माया के कारण रूप परिवर्तन, कोकामुख तीर्थ में कामदमन की मुक्ति की कथा ), वराह १२२( कोकामुख तीर्थ का माहात्म्य : चिल्ली व मत्स्य को उत्तम गति की प्राप्ति की कथा ), १४०( कोकामुख तीर्थ के श्रेष्ठत्व का कथन तथा तदन्तर्वर्ती गुह्य स्थलों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५६८.३( मत्स्य के कोकामुख क्षेत्र में पतन से राजपुत्र बनने व चिल्ली के राजकन्या बनने का वृत्तान्त ) । kokaamukha/ kokamukha


      कोकावराह स्कन्द ४.२.६१.२०६( किटीश्वर के समीप कोकावराह के पूजन से अभिलषितार्थ प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२.८३.६२( कोकावराह तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - कोकावराहतीर्थं च पुण्यदं गजतीर्थतः ।। कोकावराहमभ्यर्च्य तत्र नो जन्मभाग्जनः ।। ) ।


      कोकिल गरुड १.२१७.१९( भ्रातृ - भार्या प्रसंग से प्राप्त योनि ), नारद १.२०.४०( अवकोकिला : अन्त समय में विष्णु अर्चन से निषाद कुलोत्पन्न अवकोकिला का राजा सुमति की पत्नी सत्यमति बनने का वृत्तान्त ), १.५०.६२ ( कोकिला द्वारा पञ्चम स्वर के वादन का उल्लेख - पुष्पसाधारणे काले कोकिला वक्ति पञ्चमम् ।। अश्वस्तु धैवतं वक्ति निषादं वक्ति कुंजरः ।। ), १.१२४.१८ ( कोकिला व्रत विधि में कोकिला रूपी गौरी की पूजा से सुख सौभाग्य की प्राप्ति का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.१० ( पुंश्चली/वेश्यागामी द्वारा कोकिल योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ४.८५.११८ ( मसी चोर के कोकिल होने का उल्लेख ), भविष्य ४.११ ( शत्रुघ्न - पत्नी कीर्तिमाला - कृत कोकिला व्रत की विधि व महत्त्व का कथन ), मत्स्य १५४.२५२( काम को भस्म करने के पश्चात् शिव द्वारा कामाग्नि को विभक्त कर आम्रवृक्ष, वसन्त ऋतु, चन्द्र, पुष्प, भ्रमर तथा कोकिलमुखों में स्थापित करने का उल्लेख ), मार्कण्डेय १५.११( भ्रातृभार्या से बलात्कार करने के फलस्वरूप कोकिल योनि प्राप्ति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.२.११६.७३ ( अनुचरी द्वारा विपश्चित् को काक, कोकिल आदि पक्षियों को दिखलाकर अन्योक्ति द्वारा विशेष अभिप्राय के सूचन का वर्णन ) । kokila/kokilaa


      कोङ्कण गर्ग ७.१०.१ ( प्रद्युम्न का विजयार्थ कोङ्कण प्रदेश की ओर गमन, कोङ्कण देशाधिपति मेधावी की मल्ल युद्ध में गद से पराजय, मेधावी द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान करने का वर्णन ), नारद १.५६.७४२( कोङ्कण देश के कूर्म के पाद मण्डल होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५९ ( भारत के दक्षिण देशों में से एक ), भागवत ५.६.७ ( ऋषभदेव के कोङ्क आदि प्रदेशों में विचरण का उल्लेख ), मत्स्य १६.१६ ( श्राद्ध काल में त्रिशङ्कु, बर्बर, द्राव, वीत, द्रविड तथा कोङ्कण देश निवासियों के वर्जन का उल्लेख ) । konkana


      कोचरश पद्म ७.२३.१ ( एकादशी व्रत के प्रभाव से नित्योदय नामक शूद्र की अग्रजन्म में कोचरश नामक राजा बनने की कथा ) ।


      कोटन स्कन्द १.२.६२.३६( यज्ञवाट् में कोटन जाति के क्षेत्रपाल की स्थिति का उल्लेख )


      कोटरा पद्म ६.१५९.१३ ( कोटरा तीर्थ में कोटराक्षी देवी के निवास तथा कोटरा तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.११५.४३ ( कोटरी : ग्राम देवी कोटरी द्वारा बाण को स्वेच्छया उषा को अनिरुद्ध को दे देने का परामर्श ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५९ ( ३६ वर्ण शक्तियों में से एक ), भागवत १०.६३.२० ( बाणासुर की माता कोटरा द्वारा पुत्र प्राणों के रक्षार्थ श्रीकृष्ण के समक्ष नग्न प्राकट्य का उल्लेख ), वामन ५७.९८ ( प्रयाग द्वारा कार्त्तिकेय को प्रदत्त ६ मातृकाओं में से एक ), स्कन्द ५.१.६४.९ (कोटरी :९ मातृकाओं में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.८३.३२( कोटरी : ६४ योगिनियों में से एक ), २.१४.२९ ( लोमश ऋषि - प्रेषित कन्यकाओं व राक्षसियों के परस्पर युद्ध में कोटरा राक्षसी द्वारा शालग्राम अस्त्र के निवारण व पांशु अस्त्र के मोचन का उल्लेख ) । kotaraa


      कोटराक्षी पद्म ६.१५९ ( बाणासुर को जीतकर कृष्ण द्वारा द्वारका जाते हुए कोटराक्षी देवी की स्थापना, कोटराक्षी देवी की स्तुति से अनिरुद्ध की पाशमुक्ति, कोटराक्षी स्तोत्र पाठ से कष्टों, बन्धनों से मुक्ति तथा शिव सन्निधि का कथन ), स्कन्द ४.१.४५.३५ ( ६४ योगिनियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.८३.२७( ६४ योगिनियों में से एक ) । kotaraakshi/ kotaraakshee/ kotarakshi


      कोटवी देवीभागवत ७.३०.६८ ( कोटि तीर्थ में कोटवी नाम से देवी के वास का उल्लेख ), पद्म १.८१.१८ ( अन्धक से त्रस्त होकर पार्वती द्वारा कोटवी रूप धारण का उल्लेख ), मत्स्य १३.३७ ( कोटि तीर्थ में सती के कोटवी देवी रूप से विराजमान होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१९८.७४ ( कोटि तीर्थों में उमा की कोटवी नाम से स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश २.१२० ( कोटवती : नागपाश में बद्ध अनिरुद्ध द्वारा मुक्ति हेतु कोटवती देवी की स्तुति, देवी द्वारा अनिरुद्ध को दर्शन देकर बन्धन मुक्त करने का वर्णन ), २.१२६.२३ ( कार्तिकेय की रक्षा हेतु कोटवी देवी का कृष्ण व कार्तिकेय के मध्य नग्न प्राकट्य का उल्लेख ), २.१२६.११२ ( बाणासुर की रक्षा हेतु कोटवी देवी के कृष्ण के समक्ष नग्न प्राकट्य का कथन ) । kotavee/kotavi


      कोटि देवीभागवत ७.३०.६८ ( कोटि तीर्थ में कोटवी देवी के वास का उल्लेख ), पद्म ३.१८.८ ( कोटीश्वर युक्त कोटि तीर्थ का माहात्म्य : शिव द्वारा कोटि संख्यक राक्षसों के हनन से कोटि नाम धारण ), ३.२५.२५ ( रुद्रकोटि : देवदर्शन की इच्छा से आए हुए कोटि संख्यक ऋषियों को युगपद् दर्शन देने के लिए रुद्र द्वारा कोटि संख्यक रूप धारण करने से रुद्रकोटि नाम से प्रसिद्धि, तीर्थ में स्नान करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ब्रह्म २.७८ ( कोटि तीर्थ में किए गए समस्त कर्मों के कोटि गुण रूप होने से कोटि नाम धारण तथा कोटि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), मत्स्य १३.३७ ( कोटि तीर्थ में कोटवी रूप से सती के विराजमान होने का उल्लेख ), १०६.४४ ( कोटि तीर्थ में शरीर परित्याग का माहात्म्य ), १९१.७ ( कोटि दानवों के संहार तथा शूलपाणि महादेव के विराजित होने से कोटितीर्थ की कोटीश्वर नाम से प्रसिद्धि, कोटीश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वराह १४०.४७ ( कोकामुख क्षेत्र में कोटिवट तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), १५२.६५ ( कोटि तीर्थ में स्नान से ब्रह्मलोक प्राप्ति का कथन ), १५४.३२ ( कोटितीर्थ में स्नान व प्राण - त्याग से ब्रह्मलोक प्राप्ति का कथन ), वायु ११२.३२ ( कोटि तीर्थ में पिण्ड दान से पितरों को स्वर्ग प्राप्ति तथा स्नान करके कोटीश्वर के दर्शन से कोटि जन्मों तक वेदपारग धनी ब्राह्मण होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.५२ ( कोटि तीर्थ के निर्माण के हेतु तथा माहात्म्य का वर्णन ), २.२.१२.९५ ( राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा कोटीश्वर शिव का पूजन, कोटिलिङ्गेश द्वारा इन्द्रद्युम्न को वर प्रदान का उल्लेख ), ३.१.२७ ( कोटि तीर्थ का माहात्म्य : कृष्ण की मातुल वध दोष से मुक्ति ), ३.१.४४.११७ ( रावण वधोपरान्त ब्रह्महत्या से निवृत्ति हेतु राम द्वारा गन्धमादन पर्वत पर शिवलिङ्ग का निर्माण, लिङ्ग अभिषेक हेतु जल न मिलने पर राम द्वारा धनुष की कोटि से पृथ्वी का भेदन कर जल प्राप्ति, धनुष्कोटि से जल प्राप्त कर लिङ्गाभिषेक करने से कोटितीर्थ का निर्माण, कोटि तीर्थ में कृष्ण की मातुल वध दोष से निवृत्ति, कोटि तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ५.१.३६.२१ ( शिव के पादाङ्गुष्ठ का भूमि पर स्पर्श होने से कोटि पापों के नष्ट होने से कोटि तीर्थ की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.३.९६ ( कोटीश्वर :कोटि ऋषियों द्वारा स्थापित होने से कोटीश्वर नाम धारण , कोटीश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.११३ ( कोटि तीर्थ में कोटि ऋषियों को परम सिद्धि की प्राप्ति तथा कोटि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२०३ ( कोटि ऋषियों द्वारा शिव की स्थापना से कोटि नाम धारण, कोटि तीर्थ में किए गए दान, जप आदि के कोटि गुण होने का कथन ), ५.३.२१९, ५.३.२२४ ( कोटीश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२३१.१२ ( रेवा - सागर सङ्गम पर कोटि तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.५२.१३ ( रुद्रकोटि के माहात्म्य का वर्णन : कोटि द्विजों को दर्शन देने हेतु रुद्र का युगपत् कोटि रूपों में प्राकट्य ), ७.१.४.२४(तीर्थों की तीन कोटियों का कथन), ७.१.१०.११(रुद्रकोटि तीर्थ का वर्गीकरण – आकाश), ७.१.१०४ (कोटीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : कोटि ब्राह्मणों द्वारा लिङ्ग की स्थापना तथा पूजा से लिङ्ग का कोटीश्वर नाम ), ७.१.३५७ ( कोटीश्वर तीर्थ में स्नान व पूजन से कोटि यज्ञों के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ७.३.११ ( कोटीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : कोटि ऋषियों को कोटि लिङ्गों के रूप में युगपद् दर्शन ), ७.३.५० ( कोटि तीर्थ का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१६३(ऋषियों के शिष्यों की कोटि में गणना) ; द्र. धनुषकोटि । koti


      कोटिनार लक्ष्मीनारायण ३.१९७.२ ( कोटिनार नगर के समीप स्थित पटोलक ग्रामवासी शाणधर कृषक को प्राग्जन्म के कर्म से कुष्ठ रोग प्राप्ति, हरिभक्ति से रोगमुक्ति तथा रक्षण का वर्णन ) ।


      कोटीश्वर लक्ष्मीनारायण २.२१७.८५ ( एकद्वार प्रदेश के राजा कोटीश्वर द्वारा कृष्ण के सत्कार का उल्लेख ), कथासरित् ९.६.६४ ( बालकों का अन्वेषण करते हुए चन्द्रस्वामी ब्राह्मण का कोटीश्वर नामक वैश्य के साथ चित्रकूट गमन का उल्लेख ) ।


      कोण गरुड ३.८.१२(निर्ऋति के कोणाधिप होने का उल्लेख), ३.२८.५७(कोणाधिप रूप में प्रवह वायु का उल्लेख), ब्रह्म १.२६.९ ( कोण आदित्य : भारतवर्ष के ओण्ड देश में सूर्य की कोण आदित्य नाम से प्रसिद्धि, कोण आदित्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य तथा पूजा विधि का वर्णन ), भविष्य ३.३.३२.१८१ ( त्रिकोण : पृथ्वीराज - सेनानी त्रिकोण के वीरसिंह से युद्ध का उल्लेख ), मत्स्य १७९.२८( कोणा : अन्धकासुर युद्ध में अन्धकों के रक्तपान हेतु महादेव द्वारा सृष्ट अनेक मातृकाओं में से एक ), स्कन्द ७.१.२३.१०५(विभिन्न दिशाओं में त्रिकोण आदि आकृतियां), द्र. त्रिकोण । kona


      कोदण्ड ब्रह्माण्ड ३.४.१७.४१( धनुर्वेद द्वारा देवी को चित्रजीव नामक कोदण्ड भेंट करने का उल्लेख ), ३.४.२९.११४ ( भण्ड से युद्ध के समय ललिता देवी द्वारा वाम हस्त की तर्जनी के नख से लक्ष्मण सहित कोदण्डराम की सृष्टि का उल्लेख ) ।



      कोप स्कन्द १.१.१७.१३८( वृत्र व इन्द्र के संग्राम में अग्नि के तीक्ष्ण कोप से युद्ध का उल्लेख ), ३.१.७.१ ( महिषासुर - सेनानी चण्डकोप का देवी अम्बिका से युद्ध, देवी द्वारा चण्डकोप का वध ) ; द्र. यज्ञकोप ।


      कोमल पद्म ५.६७.३९( कोमला : लक्ष्मीनिधि - पत्नी )


      कोरञ्ज वायु ४३.१४ ( भद्राश्व देश के पांच कुलपर्वतों में से एक ) ।


      कोरल स्कन्द ५.३.१८९.१४ ( विष्णु के वराह रूप द्वारा नर्मदा तट पर कोरल आदि ५ स्थानों में स्वयं को प्रकट करने का उल्लेख ) ।


      कोल कूर्म २.४१.६३ ( अकोल्ल : अकोल्ल तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - अकोल्लंतु ततो गच्छेत् सर्वपापविनाशनम् ।.. अकोल्लमूले दद्याच्च पिण्डांश्चैव यथाविधि । ), गणेश २.७६.३३ ( विष्णु द्वारा सिन्धु - सेनानी कोलासुर के हृदय में गदा से आघात करना ), गर्ग ५.२४.४ ( कंस के सखा तथा शूकरमुख कोल नामक दैत्य द्वारा राजा कोशारवि को जीतकर कोशारविपुर में निवास, प्रजा का पीडन, बलराम द्वारा कोल दैत्य का वध, राजा दृढाश्व का लोमश शाप से कोल दैत्य बनने का वर्णन ), पद्म ६.१५४.१३ ( कोल के वध हेतु श्रीवृक्ष पर आसीन भिल्ल द्वारा श्रीवृक्ष के पत्रों से अनायास शिवपूजा की कथा ), ६.१५७.९ ( कोल नामक असुर के हनन हेतु पिप्पलाद द्वारा कृत्या की उत्पत्ति, कृत्या द्वारा कोलासुर का वध ), मार्कण्डेय ८१.४/७८.४( कोलाविध्वंसी राजाओं द्वारा सुरथ राजा की पराजय तथा राज्य से च्युति का कथन ), शिव ५.४५.१७ ( कोला : शत्रु राजाओं द्वारा राजा सुरथ की कोला नामक राजधानी रौंदने का उल्लेख - कोलानाम्नीं राजधानीं रुरुधुस्तस्य भूपतेः ।। ), स्कन्द १.२.६२.२६( कोलाक्ष : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.१६७.४१ ( कोलक : कोलक नृपति के लेपनाद ऋषि व कुटुम्ब के साथ यज्ञ में आगमन का उल्लेख ), २.१९८.९४ ( श्रीहरि के कोलक नृप के राष्ट्र में अभिगमन का उल्लेख ) । kola


      कोलम्बा स्कन्द १.२.४७.२७ ( नव दुर्गाओं में एक, कोलम्बा देवी के माहात्म्य का वर्णन ) ।


      कोलाट ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८५ ( कोल्लाट : भण्ड के अनेक पुत्रों तथा सेनापतियों में से एक ), ३.४.२८.४२ ( भण्डासुर - सेनानी कोलाट के चण्डकाली से युद्ध का उल्लेख ) ।


      कोलापुर ब्रह्माण्ड ३.४.४४.९७ ( ललिता देवी की ५१ पीठों में से एक ), शिव ५.४५.१७ ( शत्रु राजाओं द्वारा राजा सुरथ की कोला नामक राजधानी रौंदने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.५.७८ ( असुर वध के पश्चात् महालक्ष्मी के कोलापुर में वास का उल्लेख ) ; द्र. कोल्हापुर


      कोलार लक्ष्मीनारायण २.८३.९४ ( कोलार प्रभृति ४ सरोवरों का श्रीहरि की शरण में जाकर परमपद प्रदान करने हेतु प्रार्थना, श्रीहरि की कृपा से कोलार आदि चारों सरोवरों को तीर्थ, भक्त तथा मुक्त रूपों की प्राप्ति का कथन ) ।


      कोलाहल पद्म ६.१२.२३ ( जालन्धर - सेनानी कोलाहल के माल्यवान से युद्ध का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२१ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ), २.३.७२.७६ ( १२वें देवासुर सङ्ग्राम का नाम ), मत्स्य ४७.४५ ( १२वें देवासुर सङ्ग्राम का नाम ), ४८.११( सभानर - पुत्र, संजय - पिता, मनु वंश ), वामन ६५.१०९ ( कपि तथा घृताची द्वारा कोलाहल पर्वत पर आनन्दक्रीडा ), वायु १०६.५( गयासुर द्वारा कोलाहल पर्वत पर हजार वर्ष तक घोर तपस्या करने का उल्लेख ), विष्णु ३.१८.७३ ( पाषण्ड के साथ वार्तालाप से राजा शतधनु के कोलाहल पर्वत पर शृगाल योनि में उत्पन्न होने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.६१.१९५ ( विष्णु के कोलाहल नृसिंह रूप द्वारा दैत्य दानवों के मर्दन तथा नामोच्चार से पापनाश का उल्लेख ) । kolaahala/ kolahala


      कोलिकिल वायु ९९.३६५ ( कोलिकिल नामक शूद्र जातीय राजाओं में विन्ध्यशक्ति नामक राजा के उत्पन्न होने तथा ९६ वर्षों तक पृथ्वी पर राज्य करने का उल्लेख ) ।


      कोली पद्म १.२८.३१( रतिप्रदा रूप में कोली वृक्ष का उल्लेख ) ।


      कोल्लक भागवत ५.१९.१६ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ) ।


      कोल्हापुर पद्म ६.१८६.१ ( महालक्ष्मी से विराजित कोल्हापुर नगर की शोभा का वर्णन, गीता के बारहवें अध्याय के माहात्म्य का प्रसंग - अस्ति कोल्हापुरं नाम नगरं दक्षिणापथे। सुखानां सदनं साध्वि साधूनां सिद्धिसंभवम् ॥ ) ; द्र. कोलापुर, कोहल


      कोविद भागवत ५.२०.१६ ( कुश द्वीप वासी कुशल, कोविद, अभियुक्त तथा कुलक वर्ण के पुरुषों द्वारा अग्नि स्वरूप श्रीहरि के यजन का उल्लेख ) ।


      कोविदार भविष्य १.५७.१२( भास्कर हेतु कोविदार बलि का उल्लेख ), मत्स्य १७९.३० ( कोविदारी : अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट अनेक मानस मातृकाओं में से एक ), वा.रामायण २.८४.३(भरत की कोविदार ध्वज का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२५९ (भरत के ध्वज पर कोविदार चिह्न का उल्लेख) ।


      कोश लक्ष्मीनारायण २.२५५.४२ ( शरीर में रोम आदि ६ कोशों का कथन ; कोशों के तीन भावों क्लेद्यता आदि का कथन ) ; द्र. उपकोशा, क्रोश, धनिष्ठकोश ।


      कोशकरण मत्स्य १६३.६६ (ऋषियों तथा वीर पुरुषों द्वारा सेवित कोशकरण नामक नगर को हिरण्यकशिपु द्वारा कम्पित करने का उल्लेख ) ।


      कोशकार वामन ९०.२२ ( मुद्गल - पुत्र, धर्मिष्ठा - पति, निशाकर - पिता, निशाकर द्वारा स्वपिता कोशकार को मूकता, जडता तथा अन्धत्व ग्रहण के हेतु का कथन ) ।


      कोशल गर्ग ५.१७.३२ ( कृष्ण विरह पर कोशल प्रान्तवासिनी गोपियों के उद्गारों का कथन ), ७.१८.५ ( कोशल जनपद के राजा नग्नजित् द्वारा प्रद्युम्न के पूजन तथा भेंट प्रदान का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४१( भारत के मध्यदेशीय जनपदों में से एक ), १.२.१६.६४ ( भारत के विन्ध्यपृष्ठीय जनपदों में से एक ), २.३.७४.१९७ ( देवरक्षितों द्वारा कोशल प्रभृति जनपदों के शासित होने का उल्लेख ), वामन ९०.२९ ( कोशल में विष्णु का महोदय नाम से वास ), द्र. कोसल।koshala


      कोशला पद्म ६.२०९+ ( कोशला तीर्थ के प्रसाद से मुकुन्द ब्राह्मण को उत्तम गति की प्राप्ति की कथा ), वायु ७७.३६ ( कोशला में मतङ्ग नामक वापी में स्नान मात्र से कामचारी पक्षियों के स्वर्ग गमन का उल्लेख ), कथासरित् १२.४.६७, १२.४.२०२ ( कोशला नगरी वासी कमलाकर नामक राजपुत्र की कथा ) । koshalaa


      कोशस्तेन लक्ष्मीनारायण ३.११३ ( ब्रह्मा के जघन प्रदेश से कोशस्तेन की उत्पत्ति, कोशस्तेन राक्षस द्वारा द्विजों के भक्षण से देवों को सत्त्वहीनता रूप त्रास, श्रीहरि द्वारा कोशस्तेन के निवासस्थान तथा मर्यादा को निश्चित करने का वर्णन ) ।


      कोशाम्बी नारद १.११.५९ ( कौशाम्बी नगरी वासी सुघोष का भद्रमति को भूमि दान, भद्रमति द्वारा विष्णुदत्त को भूदान, भूदान फल का वर्णन ), स्कन्द ३.१.५.३४ ( ब्रह्मा के शाप से विधूम नामक वसु का पृथ्वी पर कौशाम्बी नगर के राजा शतानीक के पुत्र रूप में उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), कथासरित् १.१.६४ ( पार्वती के शापवश पुष्पदन्त नामक गण के कौशाम्बी नगरी में वररुचि रूप से उत्पन्न होने का उल्लेख ), २.१.५ ( वत्स देश के मध्य भाग में भूकर्णिका सदृश कौशाम्बी नगरी की स्थिति का उल्लेख ), द्र. कौशाम्बी । koshambi/koshambee


      कोशीतिका ब्रह्माण्ड १.२.३३.१९ ( ब्रह्मवादिनी लोपामुद्रा का उपनाम ) ।


      कोष अग्नि २५५.२८,४७ ( सन्दिग्ध अर्थ के निर्णय हेतु धर्मशास्त्र में वर्णित पांच दिव्य प्रमाणों में से एक, कोष दिव्य प्रमाण द्वारा सत्यानृत की परीक्षा विधि का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.१९२.१( धनिष्ठ कोष : धनिष्ठकोष नामक श्रेष्ठी की गणिकाओं में आसक्ति, श्रेष्ठी की पत्नी स्नेहलता द्वारा भगवद् भक्ति तथा व्रत आराधना आदि से धनिष्ठकोष को गणिकाओं से मुक्त करने का वृत्तान्त ) । kosha


      कोष्ठक लक्ष्मीनारायण २.२१७.१०४ ( श्रीहरि के कोष्ठक ऋषि के साथ पेयिस्था नगरी में गमन का उल्लेख ) ।


      कोसल भागवत १०.७५.१२ ( युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के पश्चात् यज्ञान्त स्नान हेतु युधिष्ठिर को आगे करके यदु, काम्बोज, कुरु, केकय तथा कोसल देश के नरपतियों का सैन्य सहित गङ्गा की ओर गमन का उल्लेख ), १०.८६.२० ( कृष्ण के मिथिला जाते समय कोसल प्रभृति देशों के निवासियों द्वारा श्रीकृष्ण के मुखारविन्द के रसपान का उल्लेख ), विष्णु ४.४.१०३ ( राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के स्वर्गारूढ होने पर उनमें अनुराग रखने वाले कोसल नगर के निवासियों को भी सालोक्यता प्राप्ति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१२ ( भारत की पूर्व दिशा में स्थित कोसल नगरी के वैभव का वर्णन ), महाभारत कर्ण ४५.३४( कोसल निवासियों की प्रेक्षितज्ञ विशेषता का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.३७.४३ ( विदूरथ और सिन्धुराज के सैन्य युद्ध में कोसल देश की सेना के पौरव देश की सेना से युद्ध का उल्लेख ), वा.रामायण १.१३.२६ ( कोसल देश के राजा भानुमान् को दशरथ के अश्वमेध यज्ञ में आमन्त्रित करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१२३ ( सरयू तट पर स्थित कोसल वन की वृक्ष सम्पदा तथा ऐश्वर्यादि का वर्णन ) । kosala


      कोहनस्व स्कन्द ५.३.१२२ ( कोहनस्व तीर्थ का नाम हेतु तथा माहात्म्य : ब्राह्मण द्वारा शिव उपासना से यमकिङ्करों से मुक्ति की कथा ) ।


      कोहल पद्म ६.१९६.१८ ( तुङ्गभद्रा नदी के तट पर स्थित कोहल नगरवासी आत्मदेव ब्राह्मण को विष्णु कथा रस पान से हरिपद प्राप्ति की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.३५.४८ ( सामवेद शाखा प्रवर्तक लाङ्गल के ६ शिष्यों में से एक ), स्कन्द २.७.१७.४८ ( मतङ्ग मुनि के पुत्र कोहल का शाप से मत्त मातङ्ग बनना, वैशाख धर्म श्रवण से मुक्ति प्राप्ति का कथन ) । kohala


      कोह्लार गणेश १.७.८ ( कोह्लार नगर में चिद्रूप वैश्य व उसके दुष्ट पुत्र कामन्द का वृत्तान्त ) ।


      कौच्छे स्कन्द ५.३.४८.६८ ( अन्धक से युद्ध में शिव द्वारा अन्धकासुर पर कौच्छे नामक अस्त्र के प्रयोग का उल्लेख ) ।


      कौटिल्य ब्रह्माण्ड २.३.७४.१४४ ( कौटिल्य द्वारा महापद्म वंशीय राजाओं को अपदस्थ कर चन्द्रगुप्त को सिंहासनारूढ करने का उल्लेख ), मत्स्य २७२.२२ ( कौटिल्य द्वारा महापद्म के पुत्रों का उच्छेदन कर मौर्यों को सिंहासनारूढ कराने का उल्लेख ), वायु ९९.३३० ( कौटिल्य द्वारा महापद्म वंशीय राजा को अपदस्थ करके चन्द्रगुप्त को राज्य पर अधिष्ठित करने का उल्लेख ), विष्णु ४.२४.२६ ( कौटिल्य ब्राह्मण द्वारा नन्दवंशीय राजाओं का उन्मूलन करने पर सौर्य राजाओं द्वारा शासन करने का उल्लेख ) ;, द्र. चाणक्य । kautilya


      कौण्डिन्य गणेश १.१९.६ ( कौडिन्य नगर में राजा भीम की कथा ), १.२१.२१ ( कौण्डिन्य पुर में आने पर कमला - पुत्र दक्ष का रोगमुक्त होना ), १.२५.१ ( कौण्डिन्य नगर में चन्द्रसेन राजा की मृत्यु के पश्चात् का वृत्तान्त ), १.६३.८ ( कौण्डिन्य द्वारा स्वपत्नी आश्रया को दूर्वांकुर माहात्म्य का वर्णन ), १.६६.२७ ( कौण्डिन्य द्वारा स्वपत्नी को एक दूर्वाङ्कुर भार के बराबर स्वर्ण मांगने इन्द्र के पास भेजने की कथा ), नारद २.२७.५१+ ( कौण्डिन्य ब्राह्मण की पत्नी को पतिवंचना से काष्ठीला / काष्ठकीट योनि की प्राप्ति, काष्ठीला द्वारा रानी सन्ध्यावली से विस्तारपूर्वक पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन ), पद्म ६.४९.२९ ( कौण्डिन्य मुनि द्वारा निर्दिष्ट वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में करणीय मोहिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से धृष्टबुद्धि के पापों का क्षय तथा वैष्णव लोक की प्राप्ति का कथन ), ६.६६.१९ ( कौण्डिन्य ग्राम में भीमक - पुत्र मुद्गल मुनि के वास का उल्लेख ), ६.१४५.२ ( कौण्डिन्य मुनि के आश्रम के हस्तिमती नदी के जल में बह जाने से मुनि द्वारा नदी को शुष्कता का शाप ), भविष्य ४.९४.४४ ( अनन्त चर्तुदशी व्रत माहात्म्य के अन्तर्गत कौण्डिन्य नामक द्विज को अनन्त भगवान के दर्शन की लालसा, दर्शन तथा अनन्त भगवान् की कृपा से नक्षत्र रूप होने की कथा ), स्कन्द १.१.१८.७९ ( कर्म विपाक से ३ घडी के लिए इन्द्रपद प्राप्त करने पर कितव द्वारा विभिन्न ऋषियों को दिए गए विभिन्न दानों में कौण्डिन्य ऋषि को कल्पतरु व गृह प्रदान का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२४९.८० ( कौण्डिन्य ऋषि द्वारा उपदिष्ट वैशाख - शुक्ल - मोहिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से धृष्टबुद्धि नामक पापी वैश्य के पापों का क्षय तथा वैष्णव लोक की प्राप्ति का वर्णन ) । kaundinya


      कौतुकपुर कथासरित् ९.४.१६७ ( कौतुकपुर नगर - निवासी अर्थवर्मा और भोगवर्मा नामक वैश्यों की कथा के माध्यम से धन - लक्ष्मी की तुलना में भोग - लक्ष्मी की श्रेष्ठता का कथन ) ; द्र. विज्ञप्तिकौतुक ।


      कौतुजाति मत्स्य २०१.३४ ( पराशरवंशीय पांच नील पराशरों में से एक ) ।


      कौत्स मत्स्य १९५.२५ ( भृगु के गोत्र प्रवर्तकों में से एक ), १९६.३३ ( एक त्रिप्रवर ऋषि ), स्कन्द २.८.४.५४ ( कौत्स मुनि द्वारा इक्ष्वाकुवंशीय राजा रघु से दक्षिणा रूप में १४ कोटि सुवर्णों की प्राप्ति तथा मुनि द्वारा रघु को सत्पुत्र प्राप्ति रूप वर प्रदान करना ), २.८.५.११ ( कौत्स मुनि द्वारा राजा रघु से १४ कोटि सुवर्ण मुद्राओं के मांगने के हेतु का कथन ) । kautsa


      कौथुम ब्रह्माण्ड १.२.३५.४५ ( पराशर - पुत्र, एक साम संहिता के आचार्य ), भविष्य १.२११ ( कौथुमि : हिरण्यनाभ - पुत्र कौथुमि को ब्रह्महत्या से कुष्ठ प्राप्ति, सूर्य उपासना से कुष्ठ से मुक्ति का वर्णन ), स्कन्द १.२.५.५४ ( मातृका विषयक नारद के प्रश्न के उत्तर में सुतनु ब्राह्मण द्वारा कौथुम ब्राह्मण के पुत्र के मातृका - ज्ञान के वृत्तान्त का वर्णन ), ६.१८०.३६ ( ब्रह्मा के यज्ञ में कौथुम के प्रस्तोता बनने का उल्लेख ) । kauthuma


      कौन्तलपुर गर्ग १०.५१.४० ( अनिरुद्ध के अश्वमेधीय अश्व का राजा चन्द्रहास के कौन्तलक नामक नगर में पहुंचने का उल्लेख ) ।


      कौपीन गरुड २.३०.५५/२.४०.५५( मृतक की कौपीन में त्रपु देने का उल्लेख )


      कौबेरक वायु ४७.६० ( कौबेरक ऋषि के हरिशृङ्ग में वास का उल्लेख ) ।


      कौमार ब्रह्माण्ड १.२.१४.१८ ( शाकद्वीप में हव्य - पुत्र कुमार के नाम पर कौमार वर्ष के नामकरण का उल्लेख ), १.२.१९.९२ ( रैवत पर्वत के सन्निकट शाकद्वीप का एक राज्य ), भागवत १.३.६ ( प्रथम सर्ग में हरि द्वारा कौमार रूप में अवतार ग्रहण का उल्लेख ), मत्स्य १२२.२२ (शाक द्वीप के सात दिव्य महापर्वतों में से एक नारद पर्वत के वर्ष का कौमार नाम से उल्लेख ), वायु ३३.१७ (शाक द्वीप में हव्यवाहन के पुत्र कुमार के नाम पर कौमार वर्ष के नामकरण का उल्लेख ), ४९.८६ ( रैवत पर्वत के सन्निकट शाक द्वीप का एक राज्य ), विष्णु १.५.२५ ( प्रजापति के नौ सर्गों में से नवां सर्ग ) । kaumaara


      कौमारी अग्नि ५०.१९ ( कौमारी देवी की प्रतिमा निर्माण में लक्षणों का उल्लेख ), १४६.१५ ( कौमारी देवी की आठ शक्तियों हुताशना आदि के नामोल्लेख ), देवीभागवत ५.२८.२२ ( शुम्भ से युद्ध के समय कुमार कार्तिकेय की शक्ति कौमारी का मयूर पर आरूढ होकर युद्ध में सहायतार्थ चण्डिका के पास गमन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.७ ( चक्रराज रथेन्द्र के पूर्वार्ध भाग में स्थित आठ शक्ति देवियों में से एक ), ३.४.३६.५८ ( ललिता देवी के चिन्तामणि गृह में ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी प्रभृति अष्ट देवियों की स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १७९.९ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक ), २६१.२७ ( कुमार के समान ही कौमारी की प्रतिमा में देवी को मयूर पर आसीन, लाल वस्त्र से सुशोभित, शूल शक्तिधारी तथा शर व केश से विभूषित करने का कथन ), वामन ५६.५ ( चण्डिका देवी के कण्ठ से कौमारी मातृका की उत्पत्ति का उल्लेख ), वराह २७.३६ (अष्ट मातृकाओं के अन्तर्गत कौमारी मातृका के मोह रूप होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.१०,१५ ( कौमारी नामक शान्ति के ताम्र वर्णीय तथा अन्तरिक्ष स्थानीय होने का उल्लेख ), २.१३३.१४ ( बालकों से सम्बन्धित उपद्रव उपस्थित होने पर कौमारी शान्ति कराने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.७०.२९ ( स्कन्देश्वर के समीप मयूरारूढा कौमारी देवी के दर्शन से महाफल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.३७.२० ( अन्धकासुर के रुधिर से असुरों के उत्पन्न होने पर देवों द्वारा मातृकाओं की सृष्टि प्रसंग में कुमार द्वारा कौमारी देवी की उत्पत्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५४३.२३ ( अष्ट मातृकाओं में से एक, मत्सर से उत्पत्ति ) । kaumaaree/kaumaari/ kaumari


      कौमुदी भविष्य २.२.८.१३२( आश्विन् पूर्णिमा के कौमुदी नाम का उल्लेख ), ४.१४० ( दीपावली पर बलि उत्सव का कौमुदी नाम तथा कौमुदी शब्दार्थ कथन ), लिङ्ग १.४९.६३( कौमुद वन में विष्णु प्रभृति महात्माओं के निवास का उल्लेख ), स्कन्द २.२.३९.३२ ( कौमुदी नामक भगवद् उत्थापन महोत्सव का वर्णन ), २.४.९.६९ टीका ( कौमुदी शब्द की निरुक्ति ), २.४.१०.५५( कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को कौमुदी उत्सव की विधि, बलि पूजा व महत्त्व का वर्णन ), ४.२.५८.११२( विज्ञान कौमुदी नामक पुराङ्गना द्वारा बौद्ध धर्म के अनुकूल देह सौख्य का प्रतिपादन ), लक्ष्मीनारायण १.१९८.५०( आनाभिपत्तल माला की कौमुदी से उपमा ), ३.४.४७ (धूम्र असुर द्वारा चन्द्रमा को उदरस्थ करना, नारायण द्वारा युक्तिपूर्वक धूम्र असुर का वध, धूम्र के उदर से चन्द्रमा तथा कौमुदी के बहिरागमन का वर्णन ), ४.१०१.८४ ( कौमुदी का श्रीकृष्ण नारायण की पत्नी सरस्वती की सुता रूप में उल्लेख ), द्र. कुमुद । kaumudee/kaumudi


      कौमोदकी भागवत ८.४.१९ ( कौमोदकी गदा के विष्णु रूप होने का उल्लेख ), ८.२०.३१ ( सुदर्शन चक्र, शार्ङ्ग धनुष तथा कौमोदकी गदा आदि के वामन रूप धारी हरि की सेवा में उपस्थित होने का उल्लेख - पर्जन्यघोषो जलजः पाञ्चजन्यः      कौमोदकी विष्णुगदा तरस्विनी ।  ), १०.७८.८ ( कृष्ण द्वारा कौमोदकी गदा से करूष - नरेश दन्तवक्त्र के वध का उल्लेख - कृष्णोऽपि तमहन्गुर्व्या कौमोदक्या स्तनान्तरे ), विष्णु ५.२२.६ ( जरासन्ध से युद्ध हेतु शार्ङ्ग धनुष, कौमोदकी गदा, हल तथा मुसल के कृष्ण - बलराम की सेवा में उपस्थित होने का उल्लेख ), हरिवंश २.९०.३७ ( कृष्ण - निकुम्भ युद्ध में कृष्ण द्वारा कौमोदकी गदा से प्रहार का कथन ) । kaumodakee/ kaumodaki


      कौरर ब्रह्माण्ड २.३.७.४५४ ( कौरर पर्वत पर गरुड गण के निवास का उल्लेख ) ।


      कौरव भविष्य ३.३.३२.१६ ( कलियुग में अनेक राजपुत्रों के रूप में कौरवांशों की उत्पत्ति का वर्णन ), स्कन्द ७.१.३५० ( कौरवेश्वरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।


      कौर्म मत्स्य २९०.६ ( तीस कल्पों में से १५वें कौर्म कल्प के ब्रह्मा की पूर्णिमा तिथि होने का उल्लेख ) ।


      कौलपति वामन ४७.५२ ( स्थाणु तीर्थ के मठ में देवकृत्य में रत कौलपति नामक महन्त की अधर्मपूर्ण कर्मविपाक से श्वान योनि में उत्पत्ति का उल्लेख ) ।


      नामक आठ देवियों में से एक ) ।


      कौलेय स्कन्द ४.२.७४.५४ ( कौलेय प्रभृति गणों द्वारा काशी में पूर्व दिशा की रक्षा का उल्लेख ) ।


      कौशल ब्रह्माण्ड १.२.१४.२४ ( क्रौञ्च द्वीपाधिपति द्युतिमान् के पुत्र कुशल के नाम पर कौशल राज्य के नामकरण का उल्लेख ), भागवत ११.१६.२४ (विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के कौशलों में आन्वीक्षिकी होने का उल्लेख ) । kaushala


      कौशल्या भविष्य १.११५ ( गौतमी द्वारा कौशल्या के सौख्यादि का कारण पूछने पर कौशल्या का आदित्य पूजा को ही समस्त सौख्यादि का हेतु बतलाना ), ४.१००.१७ ( वैशाखी कार्तिकी, माघी प्रभृति तिथियों के माहात्म्य के प्रसंग में लक्ष्मण व सीता सहित राम के वन चले जाने पर भी अविश्वस्त कौशल्या को तिथि श्रवण से सहसा विश्वास प्राप्ति का कथन ), भागवत ९.२४.४८ ( वसुदेव - पत्नी , केशी - माता ), मत्स्य ४४.४७ ( सात्वत - पत्नी, भजि, भजमान, वृष्णि आदि की माता ), ४७.१४ ( श्रीकृष्ण की रुक्मिणी प्रभृति सोलह हजार पत्नियों में से एक ), १९६.९ ( कौशल्य ?:अङ्गिरस वंश के गोत्र प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), वायु ९९.६१ ( सात्वत - पत्नी, भजिन, भजमान,देवावृध, अन्धक, वृष्णि प्रभृति की माता ) । kaushalyaa


      कौशाम्बी गर्ग ५.२४.१३ ( कोल दैत्य से पीडित प्रजा द्वारा रक्षा हेतु बलराम से प्रार्थना, बलराम का कौशाम्बी नगरी में गमन तथा कोल दैत्य के वध का वृत्तान्त ), ७.२२.२१ ( कौशाम्बी नगरी के राजा कुशाम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान न करने पर प्रद्युम्न की आज्ञा से रुक्मिणी - कुमारों द्वारा कौशाम्बी पर आक्रमण, भय विह्वल कुशाम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान का कथन ), भागवत ९.२२.४० ( गङ्गा द्वारा हस्तिनापुर नगर के डुबा दिए जाने पर असीम कृष्ण के पुत्र नेमिचक्र द्वारा कौशाम्बी पुरी में निवास करने का उल्लेख ), मत्स्य ५०.७९ ( गङ्गा द्वारा हस्तिनापुर नगर के डुबा दिए जाने पर अधिसोमकृष्ण के पुत्र विवक्षु द्वारा कौशाम्बी नगरी में निवास करने का उल्लेख ), वायु ९९.२७१ ( गङ्गा द्वारा नाग / हस्तिनापुर नगर के डुबा दिए जाने पर अधिसामकृष्ण के पुत्र निर्वक्त्र द्वारा कौशाम्बी पुरी में निवास करने का उल्लेख ), विष्णु ४.२१.८ (गङ्गा द्वारा हस्तिनापुर के डुबा दिए जाने पर अधिसीमकृष्ण के पुत्र निचक्नु द्वारा कौशाम्बी पुरी में निवास का उल्लेख ), कथासरित् २.६.८ ( वत्सराज उदयन का वासवदत्ता के साथ विन्ध्य - शिविर से अपने नगर कौशाम्बी की ओर प्रस्थान करने का उल्लेख ), ६.४.३८ ( वत्स देश की कौशाम्बी नामक नगरी में वत्सेश्वर के राज्य करने का उल्लेख ), ६.५.४४ ( वत्सराज से मिलने हेतु कलिङ्गसेना के कौशाम्बी नगरी में गमन का उल्लेख ), ८.१.४८ ( सूर्यप्रभ को वरण करने वाली ७ राजकुमारियों में कौशाम्बी नगरी - पति जनमेजय की परपुष्टा नामक कन्या का उल्लेख ) ; द्र. कोशाम्बी, निष्कौशाम्बी kaushaambee/ kaushaambi/ kaushambi


      कौशिक अग्नि १८४.१३ ( बुधाष्टमी व्रत की कथा में धीर व रम्भा के पुत्र कौशिक द्विज का बुधाष्टमी व्रत के प्रभाव से अयोध्या का राजा बनने तथा अपने माता - पिता को नरक यातना से मुक्त कर स्वर्ग पहुंचाने का वर्णन ), गणेश १.५२.२६ ( कौशिक द्वारा क्षत्रिय को गजानन की महिमा का वर्णन ), गरुड १.१३२.९ ( बुधाष्टमी व्रत के प्रभाव से वीर व रम्भा के पुत्र कौशिक को अयोध्या के राज्य की प्राप्ति का कथन ), २.२.७५(मित्रहन्ता के कौशिक बनने का उल्लेख), देवीभागवत १२.४.९( जङ्घाओं में कौशिक का न्यास ), ब्रह्म २.२३.७ ( अनावृष्टि से पुत्र, पत्नी, शिष्यादि को क्षुधा पीडित देखकर कौशिक / विश्वामित्र का शिष्यों को भोजन हेतु कुछ भी ले आने के लिए आदेश, शिष्यों का मृत कुत्ते को लाना, कुत्ते को पकाना तथा सर्वप्रथम देवों को अर्पित करना, इन्द्र द्वारा मांस के स्थान पर मधु समर्पित करना, विश्वामित्र का मधु को अस्वीकार करना, भयभीत इन्द्र द्वारा अमृत - जल की वृष्टि, प्रजा के तृप्त हो जाने पर देवों को अमृत जल से तृप्त करके अन्त में पुत्रों , शिष्यों तथा भार्या सहित कौशिक द्वारा अमृत जल के पान का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.१९ (अतल नामक प्रथम तल में कौशिक नाम के नगर का उल्लेख ), १.२.३५.५३ ( सामगश्रेष्ठ कृत के अनेक शिष्यों में से एक ), २.३.६६.७३ ( कौशिक गोत्र के अन्तर्गत नामों का उल्लेख, तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले क्षत्रियोपेत ऋषियों के नाम ), २.३.७१.१७४(शौरि व वैशाली-पुत्र), २.३.७१.१९३ (वसुदेव द्वारा पुत्र कौशिक को सन्तान रहित वृक को दान करने का उल्लेख ), भागवत १.९.७ ( शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म से मिलने हेतु कौशिक प्रभृति ऋषियों के आगमन का उल्लेख ), ६.८.३८ ( कौशिक ब्राह्मण द्वारा नारायण कवच धारण तथा प्रभाव का कथन ), ६.१८.६४ ( इन्द्र की कौशिक संज्ञा ), मत्स्य ९.३२ ( सावर्णि मन्वन्तर के सात ऋषियों में से एक ), २०+(कौशिक ऋषि के स्वसृप आदि ७ पुत्रों द्वारा दुर्भिक्ष काल में गर्ग की धेनु का श्राद्ध निमित्त भक्षण, श्राद्धकर्म प्रभाव से पांच जन्मों में ही उत्तम योग साधन द्वारा परमपद की प्राप्ति का वृत्तान्त ), १४५.९३ ( परमर्षि, महर्षि , ऋषि, ऋषिक तथा ऋषि- पुत्रक नामक पांच प्रकार के ऋषियों में ऋषि के अन्तर्गत कौशिक का उल्लेख, तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में एक ), मार्कण्डेय १६.१४ ( कौशिक नामक कुष्ठी ब्राह्मण के पाद ताडन से माण्डव्य को व्यथा प्राप्ति, माण्डव्य द्वारा कौशिक को शाप प्रदान ), लिङ्ग २.१.९ ( भगवद् भक्ति से कौशिक प्रभृति विप्रों को विष्णु के सान्निध्य की प्राप्ति का वृत्तान्त ), वायु ६१.४६ ( २४ संहिताओं के प्रणेता हिण्यनाभ के अनेक शिष्यों में से एक ), ६४.२५ ( वैवस्वत मन्वन्तर के सिद्ध सप्तर्षियों में कौशिक का उल्लेख ), ९५.३६-३८ ( विदर्भ - पुत्र, चेदि - पिता, क्रोष्टु वंश ), ९६.१७२ ( वसुदेव व वैशाखी - पुत्र, वृष्णि वंश ), ९६.१८२ ( वसुदेव व सैव्या - पुत्र, वृष्णि वंश ), ९६.१८९ ( अपुत्र वस्तावनि को दत्तक रूप में प्राप्त एक पुत्र ), १०६.३५ ( गयासुर के शरीर पर यज्ञकर्म सम्पादन हेतु ब्रह्मा द्वारा सृष्ट मानस पुरोहितों में से एक ), विष्णु ४.७.११ ( इन्द्र के ही कौशिक रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख ), ४.१५.२५ ( वसुदेव व वैशाली - पुत्र ), हरिवंश १.१९.४ ( भरद्वाज - पुत्रों का योगभ्रष्ट होकर कुरुक्षेत्र में कौशिक के पुत्रों के रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख ), १.२१+ ( कौशिक / विश्वामित्र के सात पुत्रों को श्राद्धकर्म के प्रभाव से उत्तम जन्मों की प्राप्ति तथा अन्त में उत्तम योग साधन द्वारा परमपद की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.३७.३ ( उत्पन्न होते ही ब्राह्मणों द्वारा कुशों से धारण करने के कारण इन्द्र द्वारा कौशिक नाम प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.११.२७(वरुण का कौशिक असुर से युद्ध), ३.२.९.६८ ( कौशिक वंश के ३ प्रवरों में से एक ), ५.२.२१.२ ( कौशिक राजा द्वारा कुक्कुटों का भक्षण, कुक्कुटराज ताम्रचूड द्वारा कौशिक राजा को दिन में मनुष्य तथा रात्रि में कुक्कुट हो जाने का शाप, कुक्कुटेश्वर लिङ्ग के पूजन से कौशिक की शाप से मुक्ति का वर्णन ), ७.१.२३.९७(चन्द्रमा के यज्ञ में कौशिक के ब्राह्मणाच्छंसी बनने का उल्लेख), ७.१.२१४ ( कौशिकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : कौशिक द्वारा वसिष्ठ - पुत्रों की हत्या के दोष से मुक्ति हेतु स्थापना ), वा.रामायण १.३४.६ ( कुश वंश में उत्पन्न होने आदि के कारण विश्वामित्र के कौशिक नाम का कथन ), लक्ष्मीनारायण १ .३९१.९ ( कुष्ठ रोग से ग्रस्त कौशिक नामक ब्राह्मण के पतिव्रता पत्नी के प्रभाव से रोग मुक्त होने का वृत्तान्त ), ३.५८.१० ( कौशिक - प्रभृति गायकों के दृष्टान्त द्वारा जनार्दन के चरणों में सर्वार्पण से हरिपद प्राप्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् २.२.७५ ( कौशिक ऋषि की तपस्या में विघ्न उपस्थित करने पर क्रुद्ध ऋषि द्वारा रूप यौवन सम्पन्न स्त्री को राक्षसी होने का शाप, केश ग्रहण होने पर शाप से मुक्ति का कथन ) ; द्र. प्रज्ञप्तिकौशिक । kaushika


      कौशिकाम्ब लक्ष्मीनारायण २.७४.१२ ( कौशिकाम्ब ऋषि के सहयोग तथा प्रभु भक्ति से त्र्यष्ट कारु अन्त्यज के पत्नी सहित ब्रह्मलोक गमन का वृत्तान्त ), २.७५.३४ ( हिरण्यकेशी ऋषि के गुरुकुलस्थ बालकों का सन्तापनादि दैत्यों द्वारा नाश हो जाने पर कौशिकाम्ब ऋषि का सहायतार्थ आगमन तथा रक्षा हेतु हरि मन्दिर में गमन का वृत्तान्त ) । kaushikaamba


      कौशिकी देवीभागवत ५.२३.२ ( देवों की सहायतार्थ पार्वती के शरीर से नि:सृत अम्बिका का लोक में कौशिकी नाम से प्रसिद्ध होने का उल्लेख ), पद्म १.४४.९३ ( पार्वती द्वारा त्यक्त कालिमा से कौशिकी देवी का प्राकट्य, ब्रह्माज्ञा से कौशिकी का विन्ध्य पर्वत पर गमन ), ३.२६.९० ( कौशिकी तथा दृषद्वती नदियों के सङ्गम पर स्नान से पाप मुक्ति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१३.६६ ( उपबर्हण गन्धर्व की पत्नी महापतिव्रता मालावती का पति की मृत्यु पर देवों को शाप देने के लिए कौशिकी नदी के तट पर गमन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१५ ( हव्यवाहन अग्नि की सोलह नदी पत्नियों में से एक ), १.२.१६.२६ ( हिमालय के पाद से नि:सृत अनेक नदियों में से एक ), २.३.७.३५५ ( कौशिकी से समुद्रपर्यन्त गजों के गहन वन का उल्लेख ), २.३.१३.१०९ ( कौशिकी ह्रद में किए गए श्राद्ध के महाफलदायक होने का उल्लेख ), २.३.६६.५९ ( सत्यवती के कौशिकी नदी रूप होने का उल्लेख ), भागवत १.१८.३६ ( राजा परीक्षित द्वारा शमीक मुनि का अपमान किए जाने पर शमीक - पुत्र द्वारा कौशिकी नदी के जल से आचमन करके परीक्षित के प्रति वाणी रूप वज्र के प्रयोग का कथन ), ५.१९.१८ ( भारतवर्ष की प्रमुख नदियों में से एक ), ९.१५.१२ ( ऋचीक मुनि की पत्नी सत्यवती के कौशिकी नदी रूप होने का उल्लेख ), १०.७९.९ ( तीर्थयात्रा प्रसंग में बलराम द्वारा कौशिकी नदी में स्नान का उल्लेख ), मत्स्य २२.६३ ( श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में कौशिकी नदी का उल्लेख ), ५१.१४ ( आहवनीय अग्नि की १६ नदी पत्नियों में से एक ), ११४.२२ ( हिमालय की उपत्यका से नि:सृत नदियों में से एक ), १६३.६० ( हिरण्यकशिपु द्वारा प्रकम्पित नदियों, पर्वतों, प्रदेशों में कौशिकी नदी का उल्लेख ), १९४.४० ( नर्मदा तट पर स्थित कौशिकी तीर्थ में स्नान तथा वास से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति का कथन ), मार्कण्डेय ८५.४० ( पार्वती के शरीरकोश से नि:सृत अम्बिका की कौशिकी नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), वामन ५४.२५ ( पार्वती के कृष्ण कोश से उत्पन्न होने के कारण कौशिकी नाम धारण, विन्ध्य पर्वत पर वास से विन्ध्यवासिनी नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), ५५.२८, ४४ ( चण्ड दैत्य द्वारा शुम्भ तथा निशुम्भ के समक्ष कौशिकी के सौन्दर्य का वर्णन, शुम्भ द्वारा कौशिकी को स्वपत्नी बनाने के प्रस्ताव का प्रेषण ), ५७.७७ ( कौशिकी द्वारा कार्तिकेय को मार्जार प्रदान करने का उल्लेख ), ९०.२ ( कौशिकी तीर्थ में विष्णु का पापनाशन/कूर्म? नाम से निवास ), वायु २९.१४ (हव्यवाहन अग्नि की १६ नदी पत्नियों में से एक ), ४५.९७ ( हिमालय के पाददेश से नि:सृत नदियों में से एक ), ९१.५४ ( कौशिका : सुहोत्र - पत्नी, जह्नु - माता, चन्द्र वंश ), ९१.८८ ( ऋचीक - पत्नी तथा जमदग्नि - माता सत्यवती के कौशिकी नदी रूप में परिवर्तित होने का उल्लेख ), १०८.८१ ( मुण्डपृष्ठ की उपत्यका में लोमश ऋषि द्वारा आवाहित अनेक नदियों में कौशिकी का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४८ ( कौशिकी नदी द्वारा वराह वाहन से जनार्दन के अनुगमन का उल्लेख ), शिव ५.४७.१४ ( कौशिका : निशुम्भ - शुम्भ दैत्यों से पीडित देवों द्वारा स्तुति करने पर देवों की सहायतार्थ देवी के शरीर कोश से निर्गत देवी की कौशिका नाम से प्रसिद्धि का उल्लेख ), स्कन्द १.२.२९.५१ ( पार्वती के शरीर दोष से कौशिकी की उत्पत्ति, ब्रह्माज्ञा से कौशिकी का विन्ध्य पर्वत पर वास ), ५.१.६१ ( कौशिकी नदी में स्नान से हत्या दोष से मुक्ति का उल्लेख ), हरिवंश २.१०३.१८ ( श्रीकृष्ण - भार्या कौशिकी से वनस्तम्ब, स्तम्बवन, निवासन, अवनस्तम्ब व स्तम्बवती की उत्पत्ति का उल्लेख ), वा.रामायण १.३४.८ ( गाधि - पुत्री सत्यवती के ही लोकहितार्थ कौशिकी नामक महानदी के रूप में प्रकट होकर प्रवाहित होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१६६.२० (देवों की प्रार्थना पर पार्वती का स्वशरीर से कोशरूपा कन्या को खींचकर देवों को प्रदान करना, कौशिकी कन्या को लेकर देवों का विन्ध्याचल पर्वत पर गमन ) । kaushikee/kaushiki


      कौशिल्य ब्रह्माण्ड १.२.३३.८ ( ऋषि- पुत्रों में से एक श्रुतर्षि ), वायु २३.१७६ (१९वें द्वापर में विष्णु के अवतार जटामाली के ४ पुत्रों में से एक ), शिव ३.५.२४ ( कौशल्य : उन्नीसवें द्वापर में शिव के अवतार जटीमाली के चार पुत्रों में से एक ), ७.२.९.१७ ( कौशल्य : शिव के योगाचार्य शिष्यों में से एक ) ।

      कौषारव भागवत ३.४.२६ ( उद्धव द्वारा विदुर को तत्त्वज्ञान हेतु कौषारव / कुषारु मुनि - पुत्र मैत्रेय की सेवा करने का निर्देश ) ।


      कौषीतक पद्म ६.१६१.५ ( कौषीतक ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर महेश्वर का आगमन, ऋषि के अभीष्ट को पूर्ण करते हुए महेश्वर द्वारा लिङ्ग से प्रकट होकर सोमेश्वर नाम से नित्य निवास, सोमतीर्थ के निर्माण का कथन ) ।


      कौष्माण्ड मत्स्य ४८.८८ ( गौतम - पुत्र कक्षीवान् के हजारों पुत्रों के कौष्माण्ड तथा गौतम नाम से विख्यात होने का उल्लेख ) ।


      कौसल्या ब्रह्माण्ड २.३.३७.३१( २४ वें त्रेतायुग में कौसल्या व दशरथ के पुत्र रूप में राम के अवतार ग्रहण का उल्लेख ), ३.४.४०.११२ ( राजा दशरथ का देवी कौसल्या को स्वप्न के वृत्तान्त का निवेदन, कौसल्या तथा दशरथ द्वारा कामाक्षी देवी की आराधना, देवी द्वारा ४ पुत्रों की प्राप्ति का भविष्य कथन ) ; द्र. कौशल्या


      कौस्तुभ अग्नि २५.१४ ( कौस्तुभ माला पूजा हेतु बीज मन्त्र का उल्लेख- वं शं मं क्षं पाञ्चजन्यं छं तं पं कौस्तुभाय च।…ओं धं वं वनमालायै महानन्ताय वै नमः । ), गणेश २.११३.२९ ( सिन्धु राज - मन्त्री, वीरभद्र व षडानन से युद्ध, वीरभद्र द्वारा कौस्तुभ का वध - कौस्तुभोऽथ मयूरेशं यातो मैत्रश्च पातितुम। ), गरुड १.४३( विष्णु हेतु पवित्र आरोपण की कौस्तुभ से उपमा - वनमाला यथा देव कौस्तुभं सततं हृदि ।। तद्वत्पवित्रं तन्तूनां मालां त्वं हृदये धर ।। ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.१४९(कृष्ण द्वारा सरस्वती को कौस्तुभ देने का उल्लेख - कृष्णः कौस्तुभरत्नं च सर्व रत्नात्परं वरम् ।), ब्रह्माण्ड ३.४.९.७३ (समुद्र मन्थन से उत्पन्न कौस्तुभ मणि को जनार्दन द्वारा ग्रहण करने का उल्लेख - कौस्तुभाख्यं ततो रत्नमाददे तज्जनार्दनः ।), भागवत २.२.१० ( श्रीहरि के कण्ठ में कौस्तुभ मणि सुशोभित होने का उल्लेख - श्रीलक्षणं कौस्तुभरत्‍नकन्धरं अम्लानलक्ष्म्या वनमालयाचितम् ॥ ), ८.४.१९ ( कौस्तुभ मणि के विष्णु रूप होने का उल्लेख - श्रीवत्सं कौस्तुभं मालां गदां कौमोदकीं मम। ), ८.८.५ ( समुद्र मन्थन से कौस्तुभ नामक पद्मरागमणि के प्राकट्य का उल्लेख - कौस्तुभाख्यमभूद्रत्नं पद्मरागो महोदधेः। तस्मिन्मणौ स्पृहां चक्रे वक्षोऽलङ्करणे हरिः॥ ), ११.२७.२७ ( भावना द्वारा श्रीहरि की पूजा करते हुए वक्ष:स्थल पर यथास्थान कौस्तुभ मणि की पूजा का उल्लेख - मुसलं कौस्तुभं मालां श्रीवत्सं चानुपूजयेत् ॥), १२.११.१० ( भगवान् द्वारा कौस्तुभ मणि के व्याज से जीव - चैतन्य रूप आत्मज्योति को ही धारण करने का उल्लेख - कौस्तुभव्यपदेशेन स्वात्मज्योतिर्बिभर्त्यजः। तत्प्रभा व्यापिनी साक्षात्श्रीवत्समुरसा विभुः॥ ), मत्स्य २५०.४ ( समुद्र मन्थन से कौस्तुभ मणि के प्राकट्य का उल्लेख ), २५१.३ ( समुद्र मन्थन से प्रकट हुई लक्ष्मी तथा कौस्तुभ मणि को विष्णु द्वारा ग्रहण करने का उल्लेख ), विष्णु १.२२.६८ ( श्रीहरि द्वारा कौस्तुभ मणि के रूप में निर्लेप अगुण अमल आत्मा को धारण करने का उल्लेख - आत्मानमस्य जगतो निर्लेपमगुणामलम् । बिभर्ति कौस्तुभमणिस्वरूपं भगवान्हरिः ॥ ), स्कन्द ४.२.६१.२४३ (अग्निबिन्दु मुनि का कौस्तुभ मणि से एकाकार होने का उल्लेख - ज्योतीरूपोथ स मुनिः कौस्तुभे ज्योतिषां तनौ । एकीभूतः कलशज बिंदुमाधवसेवनात्।।  ), ४.२.९७.८४ ( कौस्तुभेश्वर लिङ्ग के अर्चन से रत्ननिधि से युक्त होने का उल्लेख - बाष्कुलीशाद्दक्षिणतो लिंगं वै कौस्तुभेश्वरम् ।। तस्यार्चनेन रत्नौघैर्न वियुज्येत कर्हिचित् ।। ) । kaustubha

      कु भूमिं स्तुम्नाति कुस्तुभोजलधिः तत्र भवः - वाचस्पत्यम्

      कुं भुवं स्तुभ्नाति व्याप्नोति इति । कुस्तुभः सागरः तत्र भव इत्यण् । यद्वा, कुं भूमिं जगदित्यर्थः स्तुभते व्याप्नोति सर्व्वमाक्रम्य तिष्ठतीति भावः । - शब्दकल्पद्रुमः



      क: भागवत ६.१.४२( देही के धर्म - अधर्म के साक्षियों में से एक ), ६.६.३४( कश्यप की क: संज्ञा), वायु ४.४३/१.४.४१( क: शब्द की निरुक्ति )



      क्रकच लक्ष्मीनारायण २.१७६.६८ ( ज्योतिष में एक योग ) ।


      क्रतु कूर्म १.२०.४४ ( क्रतु ऋषि द्वारा सुमना राजा को मुक्ति के उपाय का कथन ), गरुड ३.७.६३(क्रतु द्वारा हरि स्तुति), पद्म १.३४.१६ ( ब्रह्मा के यज्ञ में क्रतु के अच्छावाक् पद पर अधिष्ठित होने का उल्लेख ), ३.२१.९( क्रतु तीर्थ में स्नान से अभीष्ट कामनाओं की प्राप्ति का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२४ ( ब्रह्मा के वाम नेत्र से उत्पत्ति, दक्ष नेत्र से अत्रि ), ४.९३.७६ ( सौ वापी से क्रतु के श्रेष्ठ होने तथा सौ क्रतुओं से पुत्र के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.५.७६ ( ब्रह्मा के अपान से प्राकट्य, प्राणादि से दक्ष आदि ), १.१.५.७९ ( क्रतु का ऊर्ध्वरेतस महर्षि के रूप में उल्लेख, ऋभु से साम्य?, तुलनीय : लिंङ्ग १.७०.१७० ), १.२.९.५६ ( दक्ष द्वारा स्व - पुत्री संतति को क्रतु ऋषि को प्रदान करने का उल्लेख ), १.२.११.३६ ( क्रतु व सन्नति से बालखिल्यों की उत्पत्ति ), १.२.१३.९२ ( बारह याम देवगणों में से एक ), १.२.१६.३१ ( ऋक्षवान् पर्वत से नि:सृत एक नदी ), १.२.३२.९६ ( ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक ), १.२.३५.९२ ( क्रतु - पुत्रों बालखिल्यों के देवर्षि होने का उल्लेख ), १.२.३६.१२ ( स्वारोचिष मन्वन्तर में क्रतु - पुत्रों के सोमपायी होने का उल्लेख ), १.२.३६.३१ ( बारह प्रर्तदन देवों के गण का एक प्रतर्दन देव ), २.३.१.२१ ( ब्रह्मा के आठ पुत्रों में से एक ), २.३.१.८९ ( भृगु के बारह पुत्र देवों में से एक ), २.३.३० ( विश्वा व धर्म से उत्पन्न दस विश्वेदेवों में से एक ), २.३.८.७२ ( वैवस्वत मन्वन्तर में क्रतु के संतानरहित होने का उल्लेख ), २.३.६४.२२ ( विजय - पुत्र, सुनय - पिता, मैथिल वंश ), ३.४.१.१४ ( बीस सुतप देवों में से एक ), भविष्य ४.६९.३७ ( गौ की मज्जा में क्रतुओं की स्थिति का उल्लेख ), भागवत ४.१.३९ ( क्रतु - पत्नी क्रिया द्वारा साठ हजार बालखिल्यादि ऋषियों को जन्म देने का उल्लेख ), ४.१३.१७ ( उल्मुक व पुष्करिणी के ६ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश ), ६.४.४६( अङ्गों के क्रतु होने का उल्लेख -तपो मे हृदयं ब्रह्मंस्तनुर्विद्या क्रियाकृतिः। अङ्गानि क्रतवो जाता धर्म आत्मासवः सुराः॥ ), १०.६१.१२ ( श्रीकृष्ण व जाम्बवती के १० पुत्रों में से एक ), १०.७४.८ ( युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में आमन्त्रित वेदवादी ब्राह्मणों में से एक ), १२.११.४० ( तपस्य / फाल्गुन मास में सूर्य के कार्य निर्वाहक गणों में क्रतु यक्ष का उल्लेख ), मत्स्य ४.४३ ( आग्नेयी व उरु के ६ पुत्रों में से एक ), १३३.६७ ( त्रिपुर को नष्ट करने हेतु त्रिपुरारि के रथ का अनुगमन करते हुए क्रतु आदि महर्षियों द्वारा शिवस्तुति करने का उल्लेख ), १४५.९० ( ब्रह्मा के पुत्रभूत महर्षियों में क्रतु का उल्लेख ), १७१.२७( ब्रह्मा से उत्पन्न महर्षियों में से एक ), १९५.१३ ( भृगु व पौलोमी के १२ पुत्रों में से एक ), २०२.८ ( वैवस्वत मन्वन्तर में क्रतु के संतानहीन होने पर अगस्त्य - पुत्र इध्मवाह को पुत्र रूप में स्वीकार करने का उल्लेख ), २४८.६७(यज्ञवराह के क्रतुदन्त होने का उल्लेख), वराह २१.१६( दक्ष यज्ञ में क्रतु के प्रस्तोता बनने का उल्लेख ), वायु ६.१६ (वराह के वक्षस्थल का क्रतु / यज्ञ से साम्य ), २१.३० ( सप्तम कल्प का नाम ), २९.२६(क्रतु का विभु से साम्य?), ३१.६ ( बारह याम देवों में से एक ), ३१.१६ ( स्वायम्भुव युग के सप्तर्षियों में से एक ), ४९.१७ ( प्लक्ष द्वीप की सात महानदियों में से एक ), ४९.९३ ( शाक द्वीप की सप्त महागङ्गाओं में से एक ), ६१.८४ ( क्रतु - पुत्र बालखिल्यों के देवर्षि होने का उल्लेख ), ६२.११ ( स्वारोचिष मनु युग में तुषिता नाम से प्रसिद्ध क्रतु - पुत्र गणों के सोमपायी होने का उल्लेख ), ६५.४४ ( क्रतु / यज्ञ में उत्पन्न होने से क्रतु नामोल्लेख ), ६५.८७ ( भृगु के बारह पुत्र देवों में से एक ), ६६.३१ ( विश्वा व धर्म से उत्पन्न दस विश्वेदेवों में से एक ), ६७.३४ ( अजिता में रुचि से उत्पन्न बारह अजित देवों में से एक ), ७०.६६ ( वैवस्वत मन्वन्तर में क्रतु के नि:सन्तान होने का उल्लेख ), १०१.३५, १०१.४९ ( प्रलय काल में लोकों के दग्ध हो जाने पर क्रतु आदि प्रजापतियों के जन लोक में विद्यमान रहने का उल्लेख ), विष्णु १.७.५ ( ब्रह्मा के भृगु आदि ९ मानस पुत्रों में से एक ), १.११.४८ ( क्रतु द्वारा ध्रुव को परम पद प्राप्ति के उपाय का कथन ), २.१०.१४ ( पौष मास में क्रतु के भास्कर मण्डल में निवास का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.११ ( विभूति वर्णन में जनार्दन का भृगुओं में प्रधान क्रतु होने का उल्लेख ), १.११८.८ ( सन्तान रहित होने से क्रतु ऋषि द्वारा अगस्त्य - पुत्र इध्मवाह को पुत्र रूप में स्वीकार करने का उल्लेख ), शिव २.२.३.५७( क्रतु ऋषि से सोमप पितरों की उत्पत्ति का कथन ), ७.१.१७.२८( सन्नति - पति, वालखिल्य गणों के पिता ), ७.२.४.५२ ( क्रतुध्वंसी शिव के क्रतु रूप होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.२.६.४४(५ क्रतुओं का कथन), ४.१.१९.११४ ( क्रतु द्वारा ध्रुव को यज्ञपुरुष विष्णु की आराधना का निर्देश ), ७.१.२३.९८ ( चन्द्रमा के यज्ञ में ग्रावस्तुत् पद पर अधिष्ठित एक ऋषि ), ७.४.१४.४८(क्रतु के लिए जाम्बवती नदी), लक्ष्मीनारायण १.२५१.४१ ( यज्ञान्न - भक्षक क्रतु द्वारा एकादशी व्रत के पारण में असमर्थता व्यक्त करने पर श्री हरि द्वारा क्रतु को मात्र ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी व्रत के पारण का आदेश ) ;, तैत्तिरीय ब्राह्मण ३.१२.२.१ टीका(यूपसहित यज्ञ क्रतु, यूपरहित इष्टि), द्र. शतक्रतु । kratu


      क्रतुञ्जय विष्णु ३.३.१५ ( सत्रहवें द्वापर के व्यास ) ।


      क्रतुजित् ब्रह्माण्ड २.३.५.३९ ( कालनेमि के चार पुत्रों में से एक ) ।


      क्रतुध्वज वामन ७२.२४ ( स्वारोचिष मनु के पुत्र ) ।


      क्रतुभुज भविष्य २.१.१७.१५ ( अग्नि - नाम - वर्णनान्तर्गत पर्वताग्नि का क्रतुभुज नाम से उल्लेख ) ।


      क्रतुमान् भागवत ९.१६.३६ ( विश्वामित्र - पुत्र ) ।


      क्रतुस्थला ब्रह्माण्ड २.३.७.१०१ ( यक्ष द्वारा वसुरुचि नामक गन्धर्व रूप में क्रतुस्थला अप्सरा से रमण, रजतनाभ पुत्र की उत्पत्ति ), वायु ५२.४ ( क्रतुस्थली : क्रतुस्थली अप्सरा का चैत्र मास में सूर्य के साथ सूर्य रथ पर रहने का उल्लेख ), ६९.१३६ ( यक्ष द्वारा वसुरुचि गन्धर्व का रूप धारण कर क्रतुस्थली अप्सरा के साथ समागम, नाभि नामक पुत्र की उत्पत्ति ), विष्णु २.१०.३ ( क्रतुस्थला अप्सरा के चैत्र मास में सूर्य रथ पर अधिष्ठित होने का उल्लेख ) । kratusthalaa


      क्रथ गरुड ३.१२.९८(क्रथ असुर की आपेक्षिक श्रेष्ठता), ब्रह्माण्ड २.३.७०.३७ ( विदर्भ - पुत्र, कैशिक व लोमपाद - भ्राता, कुन्ति -पिता, धृष्टि - पितामह ), भागवत ९.२४.१ ( विदर्भ व भोज्या - पुत्र, कुश व रोमपाद - भ्राता, कुन्ति - पिता, विदर्भ वंश ), मत्स्य ४४.३८ ( विदर्भ - पुत्र, कुन्ति - पिता, कैशिक व लोमपाद - भ्राता, क्रोष्टु वंश ), वामन ५७.७७ ( गौतमी नदी द्वारा कुमार को क्रथ व क्रौञ्च नामक गण प्रदान करने का उल्लेख ), विष्णु ४.१२.३७ ( विदर्भ - पुत्र, कैशिक व रोमपाद - भ्राता, कुन्ति - पिता, धृष्टि - पितामह ), स्कन्द ६.११४.१२ ( देवरात - पुत्र क्रथ द्वारा रुद्रमाल नाग की हत्या, हत्या से क्रुद्ध नागों द्वारा चमत्कारपुर में भीषण दंशन ), ७.१.२३.९७ ( चन्द्रमा के यज्ञ में नेष्टा पद पर अधिष्ठित एक ऋषि ), ७.४.१७.१५ ( कृष्ण की पूजा विधि के अन्तर्गत आग्नेय दिशा में स्थित रक्षकों में क्रथ का उल्लेख ), हरिवंश २.३६.२ (वृष्णिवंशियों तथा जरासन्ध सैनिकों के द्वन्द्व युद्ध में वसुदेव से क्रथ का युद्ध ), २.५०.८ ( विदर्भ - नगराधिपतियों क्रथ और कैशिक भ्राताओं द्वारा श्रीकृष्ण को राज्य समर्पण ), लक्ष्मीनारायण २.१७४.१ ( क्रथक : क्रथक राजा की ओंकारेष्टा नगरी में कृष्ण का आगमन, मन्दिर निर्माण हेतु शुभ काल विषयक उपदेश ) । kratha


      क्रथन ब्रह्माण्ड २.३.७.१३३ ( खशा व कश्यप के अनेक पुत्रों में से एक ), मत्स्य १६१.८० ( हिरण्यकशिपु की सेवा में तत्पर दैत्यों, दानवों में से एक ), वायु ५०.२२ ( पाण्डुभौम नामक द्वितीय तल में क्रथन दानव के पुर का उल्लेख ), वा.रामायण ६.२७.२३ ( राम के वानर सेनानियों में से एक, सारण द्वारा रावण को परिचय ) ।


      क्रन्दन द्र. संक्रन्दन ।


      क्रम ब्रह्माण्ड ३.४.१.८८ ( दस सुकर्मा देवों में से एक ), ३.४.१५.४ ( विवाह के चार प्रकारों में से एक क्रमक्रीता के दासी होने का उल्लेख ), वायु १००.९३ (वही), कथासरित् १२.६.९.५ ( क्रमसर : सुनन्दन नामक अनुज को राज्य सौंपकर राजा भूनन्दन के क्रमसर नामक तीर्थ में गमन का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २३२.२८टीका ( आत्मसिद्धि हेतु १० क्रमों का उल्लेख ) ; द्र. विक्रम । krama


      क्रमु ब्रह्माण्ड १.२.१९.१९ ( प्लक्षद्वीप की सात श्रेष्ठ नदियों में से एक ), स्कन्द २.२.४४.७ ( क्रमुक : फाल्गुन आदि बारह सामों में क्रमश: दाडिम, नारिकेल, क्रमुक / सुपारी आदि १२ फलों से श्री हरि के १२ रूपों की अर्चना का निर्देश ) ।


      क्रय - विक्रय अग्नि १२१.३३ ( क्रय -विक्रय हेतु मुहूर्त - नक्षत्र विचार ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३३५ ( क्रय - विक्रय निर्णय का वर्णन ), स्कन्द ५.३.१५९.२२( क्रय वञ्चन से उलूक योनि प्राप्ति का उल्लेख )


      क्रव्याद ब्रह्माण्ड १.२.१२.३७ (क्षामाग्नि - पुत्र, मृत मनुष्यों का भक्षण करने वाली अग्नि का क्रव्यादग्नि नामोल्लेख ), वायु २९.३५ ( वही), भागवत ५.२६.१२ ( महारौरव नरक में आए हुए पुरुष का क्रव्याद रुरुओं द्वारा भक्षण का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१९ ( क्षाम अग्नि - पुत्र ), अन्त्येष्टिदीपिका पृ. २१(देवव्रत साम में क्रव्येभ्यश्च विरिंफेभ्यश्च नमः, क्रव्य का विरिंफ से साम्य?) ।


      क्राथ भविष्य ३.३.३२.३९ ( तोमर वंशीय मद्रकेश के कौरवांश दस पुत्रों में से एक ), वामन ६.९० ( सम्प्रदाय - प्रचारक आपस्तम्ब के शिष्य क्राथेश्वर द्वारा सम्प्रदाय के विशेष प्रचार का उल्लेख ) । kraatha


      क्रान्त द्र. विक्रान्त ।


      क्रान्ति द्र. संक्रान्ति ।


      क्रिमि विष्णु २.६.१५ ( पिता, ब्राह्मण, देवता या रत्न का अनादर करने वाले को क्रिमिभक्ष नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२२६.६४( स्वेद से उत्पन्न क्रिमि व धातु से उत्पन्न पुत्र में साम्य का उल्लेख ), द्र. कृमि


      क्रिमीश विष्णु २.६.१५ ( देव, द्विज, पितृद्वेष्टा तथा रत्नदूषक को क्रिमीश नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख ) ।


      क्रिया गणेश २.१४१.१ ( क्रिया योग व संन्यास में श्रेष्ठता का प्रश्न : वरेण्य - गजानन संवाद ), गरुड १.२१.४ ( वामदेव की १३ कलाओं में से एक ), नारद १.६६.८८ ( सन्ध्यादि निरूपण में मातृका न्यास के सन्दर्भ में क्रिया नामक शक्ति से युक्त त्रिविक्रम के ध्यान का निर्देश ), पद्म ७.१+ ( पद्म पुराणान्तर्गत सप्तम क्रिया योग सार खण्ड का वर्णन ), ब्रह्माण्ड १.२.९.६० ( धर्म - पत्नी, दम व शम - माता ), १.२.१६.२९ ( ऋक्षवान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१ ( क्रतु - भार्या , वालखिल्य - माता ), २.१.११५ ( प्रकृति की कलाओं में से एक क्रिया का उद्योग की पत्नी के रूप में उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.२४( दक्ष - कन्या क्रिया के ४ पुत्रों के भविष्य के मनु बनने का उल्लेख ), भागवत ३.२४.२३(कर्दम की कन्याओं में से एक, क्रतु – भार्या), ४.१.३९ ( कर्दम - पुत्री, क्रतु - पत्नी, साठ हजार बालखिल्यों की माता ), ४.१.४९, ५१ ( दक्ष - पुत्री, धर्म - पत्नी, योग - माता ), ५.५.५ ( क्रिया के कारण ही मन के अस्तित्व का कथन ), ६.४.४६( क्रिया के भगवान् की आकृति होने का उल्लेख ), ६.१८.४ ( विधाता - पत्नी, पुरीष्य नामक पांच अग्नियों की माता ), मार्कण्डेय ५०.२०, २६ ( प्रसूति व दक्ष की २४ कन्याओं में से एक, धर्म - पत्नी, दण्ड, नय तथा विनय - माता ), वायु १०.२५, ३५ ( दक्ष - पुत्री, नय, दण्ड व समय की माता ), २३.७६/१.२३.८४( महेश्वरी के क्रिया रूप होने पर द्विपादा होने व परिणाम स्वरूप नरों के द्विपाद व द्विस्तन होने का कथन ), विष्णु १.७.२३, २९ ( दक्ष व प्रसूति की २४ कन्याओं में से एक ; दण्ड, नय, विनय - माता ), १.८.१८( विष्णु के धर्म और लक्ष्मी के सत्क्रिया होने का उल्लेख ), शिव १.१७.८७( शिव के वाहन क्रिया वृषभ के स्वरूप का कथन ), २.३.५४.७०( सत्क्रिया पतिव्रता, फल पति होने का उल्लेख ), ५.५१ ( उमा के क्रिया योग का वर्णन ; ज्ञान, क्रिया व भक्ति के संदर्भ में चित्त के बाह्यार्थ संयोग का क्रिया नाम होने का उल्लेख ), ७.२.१०.३१ ( ज्ञान, क्रिया, चर्या व योग नामक चतुष्पाद धर्म में षडध्व शुद्धि की क्रिया संज्ञा होने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.१३.१८ ( ज्ञान रूप शिव व इच्छा रूप पार्वती के मिलन से क्रिया शक्ति की उत्पत्ति, क्रिया शक्ति से जगत् के प्राकट्य का कथन ), ७.१.५८.१( क्रिया शक्ति रूप भैरवी का माहात्म्य : अजापाल राजा द्वारा व्याधियों से मुक्ति हेतु पूजा आदि ), योगवासिष्ठ ६.१.८७.१५ ( ज्ञान व क्रिया में श्रेष्ठता के प्रश्न का उत्तर ), ६.२.८४.२५ ( क्रिया रूपी चिति शक्ति की जडता का कथन ), ६.२.८५.२ ( क्रिया रूपी चिति शक्ति के आयुधों का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३२३.५१( असिक्नी व दक्ष - पुत्री, धर्म - पत्नी, नय, दण्ड व समय - माता ), १.३८२.१९( विष्णु के धर्म व लक्ष्मी के सत्क्रिया होने का उल्लेख ), द्र. भद्रक्रिय । kriyaa


      क्रियायोग भागवत १२.११.३+ ( क्रियायोग के यथावत् ज्ञान प्राप्ति हेतु शौनक का सूत से प्रश्न, सूत द्वारा क्रियायोग का वर्णन ), मत्स्य ५२.५ ( ऋषियों के पूछने पर सूत द्वारा कर्मयोग का निरूपण, २५८.२+ ( देवार्चन रूप क्रियायोग का वर्णन ) ।


      क्रीड वायु ६९.१६६ ( खशा के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक ) ।


      क्रीडा नारद १.७९.११० ( हरि - हर की जल क्रीडा का वर्णन ), पद्म २.५७.१ ( काम की सखी क्रीडा द्वारा सती सुकला को पथभृष्ट करने का प्रयत्न करना ), ५.११४.१५० ( विष्णु - महेश्वर तथा मुनीश्वरी की जल क्रीडा का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२८.७७ ( श्रीकृष्ण द्वारा राधा तथा गोप - गोपियों के साथ रास क्रीडा का वृत्तान्त ), भविष्य ३.४.२४.३३ (क्रीडावती :भोगसिंह व केलिसिंह का मयनिर्मित क्रीडावती नगरी में वास ), भागवत १०.६.२५ ( बालक कृष्ण के अङ्गों में बीजन्यास प्रसंग में क्रीडा के समय गोविन्द से रक्षा की प्रार्थना ), मत्स्य १२०.१ ( राजा पुरूरवा द्वारा गन्धर्वों के साथ अप्सराओं के क्रीडा विहार का दर्शन ), महाभारत आदि २२१.२० ( यमुना तट पर स्थित विहार स्थान में श्रीकृष्ण व अर्जुन के साथ अन्य जनों द्वारा विभिन्न क्रीडाएं करने का कथन ), वायु ३६.१०( देवों के ४ आक्रीडनक : पूर्व में चैत्ररथ, दक्षिण में नन्दन, पश्चिम में वैभ्राज व उत्तर में सवितृ वन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३१.३१ ( रम्भा द्वारा क्रीडावन में स्थित वृक्षों की उर्वशी के अङ्गों से उपमा ), १.१५३ ( गन्धर्वों के साथ अप्सराओं की जल क्रीडा का वर्णन, पुरूरवा द्वारा दर्शन ), शिव २.५.५९.११ ( गौरी के कन्दुक क्रीडा करते हुए विदल, उत्पल दैत्यों का आगमन, गौरी द्वारा दैत्य वध ), ७.१.९.१( जगत् का निर्माण कर परमेश्वर द्वारा उसमें परम क्रीडा करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.७९.६८ ( काशी में शिव के जल क्रीडा स्थान का संक्षिप्त माहात्म्य ), हरिवंश २.८८ ( बलराम, कृष्ण व यादवों की पिण्डारक तीर्थ में जलक्रीडा का वर्णन ), ३.१११.४ ( द्वारका में सात्यकि आदि कुमारों के साथ कृष्ण की गोल क्रीडा का कथन ) ; द्र. द्यूतक्रीडा । kreedaa


      क्रीत द्र. यवक्रीत ।


      क्रुष्ट द्र. क्रोष्टा, क्रोष्टु, क्रोष्टुकि


      क्रूर ब्रह्माण्ड २.३.७.९३ ( पौरुषेय नामक राक्षस के पांच पुत्रों में से एक ), वायु ६९.३३७/२.८.३३७( कद्रू के क्रूरशीला होने का उल्लेख ), कथासरित् १०.६.१०१ ( क्रूरलोचन : उलूकराज के मन्त्रियों में से एक ) ; द्र. अक्रूर । kruura/kroora/ krura


      क्रोड अग्नि ३४८.८ (° त ° अक्षर के तस्कर तथा क्रोडपुच्छ के अर्थ में प्रयुक्त होने का उल्लेख - णो निष्कर्षे निश्चये च तश्चौरे क्रोडपुच्छके । ), गणेश २.१०६.४ ( गणेश द्वारा क्रोड / सूकर रूप धारी मङ्गल दैत्य का वध ), गरुड १.१२७.१५ ( वराह न्यास के संदर्भ में कटि में क्रोडाकृति के न्यास का निर्देश ), नारद १.५१.५४ ( होम में अभिचार कर्म हेतु क्रोडी मुद्रा का कथन - अभिचारे सूकरी स्यान्मृगी हंसी शुभात्मके । सर्वाङ्गुलीभिः क्रौडी स्याद्धंसी मुक्तकनिष्ठिका ),योगवासिष्ठ ६.१.४१.४१ ( वात सत्ता, स्पन्दसत्ता, स्पर्शसत्ता आदि का क्रोडीकरण होकर देह का निर्माण होने का कथन - सर्वसत्तागणं चैतत्क्रोडीकृत्य स्वरूपवत् । स्फुरत्याश्रित्य पत्रादि बीजं बीजादितां गतम् ।। ) । kroda


      क्रोध अग्नि ३४८.२ ( क्रोध अर्थ में °आ ° एकाक्षर के प्रयोग का उल्लेख ), गणेश २.१४.१२ ( महोत्कट गणेश द्वारा खर रूप धारी काम व क्रोध राक्षसों का वध ), नारद १.४३.७२( नित्य क्रोध से श्री की रक्षा का निर्देश ), १.६६.११०( क्रोधीश की शक्ति महाकाली का उल्लेख ), पद्म १.१९.३२६ ( सत्त्व द्वारा क्रोध को धारण करने तथा क्रोध को जीतने वाले के सत्सारतम होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८५.११६ ( क्रोध युक्त मनुष्य के गर्दभ बनने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.७८ ( गीतिरथेन्द्र के षष्ठ पर्व पर आश्रित आठ भैरवों में से एक ), भविष्य ४.९४.६३( अनन्त व्रत कथा में खर रूप ), भागवत ३.१२.२६ (ब्रह्मा की भृकुटियों से क्रोध की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.८.३ ( लोभ और निकृति / शठता से क्रोध व हिंसा की उत्पत्ति का उल्लेख, अधर्म वंश ), मत्स्य ३.१० ( ब्रह्मा के भ्रूमध्य से क्रोध की उत्पत्ति ), १५७.४ ( वीरक को शाप देने के पश्चात् पार्वती के मुख से क्रोध के सिंह रूप में निर्गत होने का उल्लेख ), महाभारत वन ३१३.९१ ( क्रोध के दुर्जय शत्रु होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), शान्ति ३२९.११ ( तप की क्रोध से रक्षा करने का निर्देश ), आश्वमेधिक ३१.२( ३ राजस गुणों में से एक, स्तम्भ सात्त्विक, तन्द्रा तामसिक ), ९२.४२ ( जमदग्नि मुनि की परीक्षा लेने हेतु धर्म का क्रोध रूप धारण कर दुग्ध - पात्र में प्रवेश, क्रोध रूप धारी धर्म की पराजय ), मार्कण्डेय ४७.९/५०.९( ब्रह्मा के क्रोध से अर्धनारी वपु वाले पुरुष की उत्पत्ति का कथन ), वायु १०.४१ ( मृत्यु की चार सन्तानों में से एक ), १०१.२९४/२.३९.२९४( देवी के क्रोध के भूत/सिंह बनने का कथन ; अग्निमय पाश द्वारा सिंह का बन्धन ), विष्णु १.१.१७ ( वसिष्ठ द्वारा क्रोध से उत्पन्न अनर्थ का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२४६ ( क्रोध के दोषों का वर्णन ), स्कन्द १.२.२९.३६ ( पार्वती - मुख से सिंह रूप क्रोध के नि:सृत होने का उल्लेख ), १.२.६२.१३( बाल रूप धारी रुद्र द्वारा कालिका के क्रोध रूप दुग्ध का पान, क्रोध का शिव के कण्ठ का विष बनना ), ३.१.४९.४३(क्रोध की सिंह रूप में कल्पना), ५.२.२५.२९ ( ब्राह्मणों के क्रोध की उग्रता का कथन : सागर को अपेय बनाना आदि ), ५.२.२५.४० ( क्रोध से श्री की रक्षा करने का निर्देश ), ५.२.५५.११( काली / गौरी के क्रोध से सिंह की उत्पत्ति का उल्लेख, सिंहेश्वर का माहात्म्य ), ५.३.१८१.१६ ( क्रोध से तप के नष्ट होने का उल्लेख ) । krodha


      क्रोधन गणेश २.११४.१५ ( सिन्धु - सेनानी, कार्त्तवीर्य का पाश से बन्धन, हिरण्यगर्भ द्वारा क्रोधन का वध ), पद्म ५.५७.६४ ( राम से सीता के वियोग में हेतु बने क्रोधन नामक रजक का पूर्वजन्म का वृत्तान्त तथा अन्त्यज योनि प्राप्ति हेतु का कथन ), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९४( शंकर की ११ कलाओं में से एक ), भागवत ९.२२.११ ( अयुत - पुत्र, देवतिथि - पिता, कुरु वंश ), मत्स्य २०.३ ( कौशिक ऋषि के सात पुत्रों में से एक, गर्ग मुनि - शिष्य ), १७९.२९( क्रोधनी : अन्धकासुर के रक्तपान हेतु महादेव द्वारा सृष्ट एक मानस मातृका ), २००.७ ( क्रोधिन : वसिष्ठ वंशज एक ऋषि ), २०१.३७ ( पांच श्याम पराशर वंशीय ऋषियों में से एक ), कथासरित् १०.२.८४ ( वज्रसार - मित्र क्रोधन द्वारा वज्रसार को उसकी पत्नी के परपुरुष में आसक्त होने की सूचना दिए जाने का कथन ) । krodhana


      क्रोधनक लक्ष्मीनारायण २.९.५८ ( क्रोधनक नामक असुर का माया द्वारा कन्या बनकर बाल श्रीहरि का हरण, श्रीहरि द्वारा उत्पन्न अग्निदाह से क्रोधनक का पीडित होना तथा हरि की शरण में जाने का वर्णन ) ।



      क्रोधवश भागवत ५.२४.२९ ( महातल - निवासी काद्रवेय नागों के क्रोधवश नामक समुदाय की गरुड से भीतता का उल्लेख ), ८.१०.३४ ( देवासुर - संग्राम में क्रोधवशों के साथ रुद्रगणों के संग्राम का उल्लेख ) ।


      क्रोधवशा ब्रह्म १.१.२१५ ( क्रोधवशा से क्रोधवश गण नामक दंष्ट्रधारी राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१७१ (मृगी, मृगमन्दा आदि बारह पुत्रियों की माता, क्रोधवशा के वंश का वर्णन ), भागवत ६.६.२६, २८ ( कश्यप की तेरह पत्नियों में से एक, सर्पों तथा दन्दशूक आदि की माता ), मत्स्य ६.४३ ( क्रोधवशा से क्रोधवश नामक दंष्ट्रधारी राक्षसों की उत्पत्ति, भीमसेन द्वारा वध ), १४६.१८ ( कश्यप की तेरह पत्नियों में से एक, कश्यप - पत्नियों से स्थावर - जङ्गम रूप नाना प्रकार के प्राणियों के जन्म का उल्लेख ), वायु ६६.५४ ( दक्ष - पुत्री, कश्यप - पत्नी ), विष्णु १.१५.१२५ ( काश्यप की १३ पत्नियों में से एक ), १.२१.२३ ( क्रोधवशा से क्रोधवश गण की उत्पत्ति ) । krodhavashaa


      क्रोधा ब्रह्माण्ड २.३.६.३८ ( क्रोधा के गायन में उत्तम दस पुत्रों के नामों का कथन, तु. वायु ६८.३८/२.७.३८ में प्रवाही ), २.३.७.१७१ ( क्रोधा की मृगी, मृगमन्दा प्रभृति १२ कन्याओं के पुलह - भार्याएं होने का उल्लेख, वंश वर्णन ), २.३.७.४६६ ( क्रोधा के अध्ययनशीला होने का उल्लेख ), २.३.७.४६७ ( शुचिशीला होने का उल्लेख ), मत्स्य १७१.२९ ( दक्ष प्रजापति की बारह कन्याओं में से एक ; मरीचि - पुत्र कश्यप की बारह पत्नियों में से एक ), वायु ६९.१९८ ( क्रोधा से क्रोध के वश में रहने वाली प्रजाओं की उत्पत्ति, क्रोधा की बारह कन्याओं का पुलह ऋषि की पत्नियां बनना, क्रोधा के वंश का वर्णन ) । krodhaa


      क्रोश वराह २१५.९० ( क्रोशोदक तीर्थ में स्नान से समस्त पापों से मुक्ति का उल्लेख ), वामन ९०.२७( महाक्रोशी में विष्णु की हंसयुक्त नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), शिव ४.२२.९( प्रकृति व पुरुष के सम्मुख तप हेतु पञ्च क्रोशात्मक भूमि/काशी के प्रकट होने का कथन ), स्कन्द २.३.१.२९( क्रोशी : असी व वरुणा के मध्य में पंच क्रोशी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३७१.४ ( नरक के कुण्डों के क्रोश मानों का कथन ) ; द्र. पञ्चक्रोशी । krosha


      क्रोष्टा भागवत ९.२३.२०, ३० ( यदु के चार पुत्रों में से एक, वृजिनवान् - पिता), मत्स्य १९६.८ ( त्र्यार्षेय प्रवर गोत्र प्रवर्तक आंगिरस ऋषियों में से एक ), १९६.२२ ( पंचार्षेय प्रवर आंगिरस ऋषियों में से एक ), हरिवंश १.३३.१ ( यदु के पांच पुत्रों में से एक, यदुवंश ), लक्ष्मीनारायण ३.२२७.७९ ( देश्यावन नामक कीशपालक के कीश नाट्य में हरि नाट्य का आरोपण करते हुए क्रोष्टा को अहंकार का प्रतीक मानकर विष्णु को समर्पित करने का कथन ) । kroshtaa


      क्रोष्टु अग्नि २७५.१२ ( क्रोष्टु वंश का वर्णन ; वृजिनीवान् - पिता, क्रोष्टु वंश में स्वयं श्रीहरि के जन्म धारण का कथन ), कूर्म १.२४ ( वज्रवान् - पिता, क्रोष्टु वंश का वर्णन ), पद्म १.१३.१( वृजिनीवान् - पिता, क्रोष्टु वंश का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.६९.२ ( यदु के सहस्रजित् प्रभृति पांच पुत्रों में से एक ), २.३.७०.१४ ( क्रोष्टु वंश का वर्णन, वृजिनीवान् - पिता ), मत्स्य ४३.७ ( यदु के पांच पुत्रों में से एक, यदुवंश ), ४३.४६ ( कार्तवीर्य अर्जुन के सौ पुत्रों में से एक ), ४४.१४ ( क्रोष्टु वंश का वर्णन ), विष्णु ४.११.५ ( यदु के ४ पुत्रों में से एक ), ४.१२.१ ( यदु -पुत्र क्रोष्टु के पुत्र रूप में ध्वजिनीवान् का उल्लेख ) । kroshtu


      क्रोष्टुकि मार्कण्डेय ४५ ( क्रौष्टुकि का मार्कण्डेय से सृष्टि विषयक प्रश्न ), ४५.१६ ( मार्कण्डेय मुनि द्वारा द्विजपुत्र क्रौष्टुकि को सृष्टि, प्रपञ्च, स्थिति प्रभृति ज्ञान का कथन ), वायु ३४.६३ (क्रोष्टुकि ऋषि द्वारा मेरु पद्म की कर्णिका के परिमण्डलाकार मान का उल्लेख ) ।


      क्रोष्ट्री भविष्य ३.४.११.४२ ( नैर्ऋत ब्राह्मण का क्रोधवश नारद से स्वपत्नी के क्रोष्ट्री हो जाने का वर मांगना, ब्राह्मण - पत्नी का क्रोष्ट्री होना ) ।


      क्रौञ्च कूर्म १.४९.२७ ( क्रौञ्च द्वीप के सप्त पर्वतों, नदियों के नामों का कथन, क्रौञ्च द्वीप के निवासियों द्वारा महादेव का अर्चन, प्रसाद स्वरूप सायुज्य, सारूप्य, सालोक्य तथा सामीप्य की प्राप्ति - कुशद्वीपस्य विस्ताराद् द्विगुणेन समन्ततः । क्रौञ्चद्वीपस्ततो विप्रा वेष्टयित्वा घृतोदधिम् । ), गणेश २.१३४.७ ( क्रौञ्च गन्धर्व को वामदेव से मूषक होने के शाप की प्राप्ति ), २.१३५.९ ( क्रौञ्च द्वारा सौभरि - पत्नी मनोमयी का धर्षण, सौभरि शाप से मूषक होना ), गरुड १.५६.१२ ( क्रौञ्च द्वीप में द्युतिमान् के ७ पुत्रों का आधिपत्य, सप्त पर्वतों तथा नदियों के नाम ), १.८८ ( क्रौञ्चुकि : मार्कण्डेय द्वारा क्रौञ्चुकि को पितृस्तोत्र का कथन ), १.२२५.२१, २८ ( कार्पास हरण तथा अग्रज के अपमान से प्राप्त योनि ), २.१५.८२ ( मृत्यु पश्चात् क्रूर क्रौञ्चपुर में जाने का उल्लेख ), २.१६.१९(छठें मास में प्रेत द्वारा प्राप्त पुर का नाम), २.२२.५९/२.३२.११३( क्रौञ्च द्वीप की शरीर में शिरा में स्थिति का उल्लेख ), देवीभागवत ८.४.२४ ( क्रौञ्च द्वीप के प्रियव्रत - पुत्र घृतपृष्ठ द्वारा शासित होने का उल्लेख ), ८.१३.२ ( क्रौञ्च द्वीप का वर्णन ), नारद १.५०.६१ ( क्रौञ्च द्वारा मध्यम स्वर के वादन का उल्लेख - षङ्जं मयूरो वदति गावो रंभंति चर्षभम् ।। अजाविके तु गांधारं क्रौंचो वदति मध्यमम् ।।  ), पद्म ५.६६.१५०( मा निषाद प्रतिष्ठां इति श्लोक - मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचपक्षिणोरेकमवधीः काममोहितम् । ), ६.४.४२( क्रौञ्च प्रसाद से स्वर्ण नामक अप्सरा द्वारा वृन्दा पुत्री को जन्म देने का उल्लेख - अत्रांतरेऽप्सराः काचित्स्वर्णेत्यासीत्पुरा दिवि । तस्याः क्रौंचप्रसादेन वृंदानाम सुताभवत् । ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.१३, २२ ( प्रियव्रत द्वारा क्रौञ्च द्वीप में द्युतिमान् का अभिषेक, द्युतिमान् के सात पुत्रों के नाम पर कौशलादि सात जनपदों का नामकरण ), १.२.१९.६५ ( क्रौञ्च द्वीप के सात पर्वतों, सात वर्षों तथा सात नदियों के नामों का कथन, दधिमण्डोदक समुद्र से परिवेष्टित ), भविष्य २.२.२.१ ( मण्डल निर्माण के एक प्रकार क्रौञ्चमान का वर्णन ), ३.४.२४.७८ ( द्वापर युग के तृतीय चरण में क्रौञ्च द्वीप की स्थिति, अन्य चरणों में अन्य द्वीपों की स्थिति का कथन ), भागवत ५.१.३२ ( प्रियव्रत के रथ चक्र की नेमि से बने हुए सात समुद्रों से निर्मित सात द्वीपों में से एक ), ५.२०.१८ ( क्रौञ्च द्वीप का वर्णन : क्षीर समुद्र से आवेष्टित, क्रौञ्च पर्वत की स्थिति से द्वीप का नामकरण, प्रियव्रत - पुत्र घृतपृष्ठ द्वारा अधिष्ठित, घृतपृष्ठ द्वारा द्वीप के सात विभाग करके सात पुत्रों को प्रदान करना, सातों विभागों में सात - सात पर्वतों तथा नदियों की स्थिति, पुरुष, ऋषभ, देवक और द्रविण नामक निवासियों द्वारा जल देवता की उपासना ), मत्स्य ६.३२ ( ताम्रा व कश्यप - पुत्री शुचि द्वारा धर्म के संयोग से हंस, सारस, क्रौञ्च आदि के प्रादुर्भूत होने का उल्लेख ), १३.७, १२३.३७ ( हिमालय व मेना - पुत्र क्रौञ्च पर्वत के नाम पर क्रौञ्च द्वीप के नामकरण का उल्लेख ), १२२.७८ ( क्रौञ्च द्वीप का वर्णन ), १६३.८८ ( हिरण्यकशिपु द्वारा प्रकम्पित पर्वतों में से एक ), मार्कण्डेय १५.१५ ( ज्येष्ठ भ्राता की अवमानना करने के फलस्वरूप क्रौञ्च योनि की प्राप्ति ), १५.२९ ( कार्पास हरण पर प्राप्त योनि ), वामन ५७.७७ ( गौतमी नदी द्वारा कुमार को क्रथ व क्रौञ्च गणों को प्रदान करने का उल्लेख ), ५८.१०९ ( प्रदक्षिणा क्रम में इन्द्र को प्रथम बतलाने पर स्कन्द द्वारा क्रौञ्च पर्वत के वध का उल्लेख - एवं ब्रुवन्तं क्रौञ्चं स क्रोधात्प्रस्फुरिताधरः। बिभेद शक्त्या कौटिल्यो महिषेण समं तदा।। ), ९०.४३ ( क्रौञ्च द्वीप में विष्णु का पद्मनाभ नाम से वास ), वायु ३०.३२ ( मैनाक - अनुज क्रौञ्च के नाम से क्रौञ्च द्वीप के नामकरण का उल्लेख ), ४४.१० ( केतुमाल देश का एक जनपद ), ५७.१८ ( क्रौञ्च संवत्सर के मनुष्यों के नौ हजार नब्बे वर्षों के बराबर होने का उल्लेख ), ६९.६० ( क्रौञ्च द्वीप के अन्तर्गत क्रौञ्च आदि सप्त पर्वतों, सप्त वर्षों तथा सप्त नदियों के नामों का कथन ), ७२.६ ( मैनाक - पुत्र ), १०८.७५/२.४६.७८( मुनि द्वारा मुण्डपृष्ठ पर क्रौञ्च रूप में तप करने का कथन - क्रौञ्चरूपेण हि मुनिर्मुण्डपृष्ठे तपोऽकरोत्। तस्य पादाङ्कितो यस्मात्क्रौञ्चपादस्ततः स्मृतः ।। ), १०९.१६, १११.४४? ( गया में मुण्डपृष्ठ पर्वत पर स्थित क्रौञ्चपद तीर्थ में ऋषि द्वारा तप, क्रौञ्चपद में स्नान, तर्पण, पिण्डदान का माहात्म्य - क्रौञ्चमातङ्गयोः श्राद्धी ब्रह्मलोकं नयेत्पितॄन्। ), विष्णु २.४.४६ ( कुश द्वीप से द्विगुण विस्तार युक्त क्रौञ्च द्वीप के अधिपति , वर्ष, पर्वत, नदी तथा निवासियों का कथन ), ३.४.२४ ( ऋग्वेद की तीन शाखाओं के प्रवर्त्तक तथा निरुक्त के निर्माता शाकपूर्ण के चार शिष्यों में से एक ), शिव २.४.११.१ ( बाणासुर से पीडित क्रौञ्च पर्वत का सहायतार्थ कुमार की शरण में आना, कुमार द्वारा बाणासुर का वध, क्रौञ्च पर्वत का निर्भय होकर स्वगृह गमन - एतस्मिन्नंतरे तत्र क्रौञ्चनामाचलो मुने ।। आजगाम कुमारस्य शरणं बाणपीडित ।। ), २.४.२०.२३ ( नारद वचनों का श्रवण कर क्रोधित स्कन्द का क्रौञ्च पर्वत पर गमन - स्कन्दोऽपि पितरं नत्वा कोपाग्निज्वलितस्तदा ।। जगाम पर्वतं क्रौंचं पितृभ्यां वारितोऽपि सन् ।।), ५.१८.४५ ( क्रौञ्च द्वीप का वर्णन ), स्कन्द १.२.३२.१७८ ( बाण नामक महासुर का क्रौञ्च पर्वत पर छिपना, स्कन्द द्वारा पर्वत का भेदन कर बाण का वध - स्कंदस्कंद महाबाहो बाणोनाम बलात्मजः॥ क्रौंचपर्वतमादाय देवसंघान्प्रबाधते॥ ), १.२.३२.१८२ ( बाण वध हेतु क्रौञ्च पर्वत के भेदन से निर्मित छिद्र से हंस तथा क्रौञ्च आदि पक्षियों के मानसरोवर जाने का उल्लेख - अद्यापि छिद्रं तत्पार्थ क्रौंचस्य परिवर्तते॥ येन हंसाश्च क्रौंचाश्च मानसाय प्रयांति च॥ ), ३.३.१५.६( लोक में भ्रमण करते हुए वामदेव नामक शिवयोगी का क्रौञ्च वन में प्रवेश, बुभुक्षा - पीडित ब्रह्मराक्षस द्वारा ग्रहण, शिवयोगी के स्पर्श मात्र से ब्रह्मराक्षस को तृप्तिपूर्वक आनन्दानुभूति का कथन - स एकदा चरंल्लोके सर्वानुग्रहतत्परः ।। क्रौंचारण्यं महाघोरं प्रविवेश यदृच्छया ।। ), ५.१.५८.२३( मैनाक - पुत्र क्रौञ्च पर्वत पर अग्निष्वात्त पितरों के निवास का उल्लेख ), हरिवंश १.४६.२४ ( स्वर्ग में पीडित दैत्यों की सहायतार्थ मय दानव द्वारा स्व - पुत्र क्रौञ्च द्वारा निर्मित पार्वती माया को प्रकट करना, विष्णु - प्रेरित अग्नि तथा वायु द्वारा पार्वती माया को भस्म करना ), वा.रामायण १.२.१५ ( निषाद द्वारा क्रौञ्च मिथुन में से एक की हत्या पर वाल्मीकि के शोक का कथन - मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत् क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥ ), १.२७.११ ( विश्वामित्र द्वारा राम को प्रदत्त अनेक अस्त्रों में क्रौञ्च अस्त्र का उल्लेख - वायव्यं प्रथमं नाम ददामि तव चानघ । अस्त्रं हयशिरो नाम क्रौञ्चमस्त्रं तथैव च ॥ ), ६.६३.१९ ( राजा की दुर्बलता / चंचलता रूप छिद्र की क्रौञ्च पर्वत के छिद्र से तुलना - चपलस्येह कृत्यानि सहसानुप्रधावतः । छिद्रमन्ये प्रपद्यन्ते क्रौञ्चस्य स्वमिव द्विजाः ।। ), लक्ष्मीनारायण १.१०८.३२ ( नारद के वचनों को सुनकर क्रुद्ध कार्तिकेय का क्रौञ्च पर्वत पर आगमन ), वायु १०८.७५, १०९.१६, १११.४४ ( गया में मुण्डपृष्ठ पर्वत पर स्थित क्रौञ्चपद तीर्थ में ऋषि द्वारा तप, क्रौञ्चपद में स्नान, तर्पण, पिण्डदान का माहात्म्य ), वा.रामायण ६.९६.२६( विराध वध क्रौञ्च वन में होने का उल्लेख ), ७.५९.२० ( ययाति - पुत्र यदु द्वारा क्रौञ्च वन में यातुधानों को जन्म देने का उल्लेख ), krauncha

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      क्रौञ्चव्यूह गर्ग १०.४९.६ (यादवों के साथ युद्ध में कौरवों का स्वरक्षार्थ क्रौञ्चव्यूह का निर्माण, क्रौञ्चव्यूह के मुख पर भीष्म, कण्ठ पर द्रोण, पक्षों पर कर्ण तथा शकुनि, पुच्छ पर दुर्योधन तथा मध्य में चतुरंगिणी सेना की स्थापना का कथन ), पद्म ५.२५.३१( राजा सुबाहु की आज्ञा से क्रौञ्चव्यूह का निर्माण, क्रौञ्चव्यूह के मुख पर सुकेतु, गले पर चित्रांग, पक्षों पर राजपुत्रों, पुच्छ पर स्वयं राजा तथा मध्य में चतुरंगिणी सेना की स्थापना का कथन ) । kraunchavyuuha


      क्रौञ्ची पद्म ७.८.५२ ( गङ्गा महिमा से क्रौञ्ची पक्षी का शक्र - दासी पद्मगन्धा बनने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४४६, ४४८ ( ताम्रा की ६ पुत्रियों में से एक, गरुड - भार्या ), वायु ६९.३२५, ३२८, ३३६ ( पुलह - पुत्री ताम्रा से क्रौञ्ची की उत्पत्ति, गरुड - भार्या, क्रौञ्ची से वार्धीणस् नामक पक्षियों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ६९.३४२ ( कश्यप - पत्नी क्रौञ्ची के श्रुतिशालिनी होने का उल्लेख ), kraunchee/ kraunchi


      क्लम विष्णु २.४.११ ( प्लक्ष द्वीप की सात मुख्य नदियों में से एक ) ।


      क्लिन्ना नारद १.६६.९५( मातृका न्यास के संदर्भ में विश्वमूर्ति विष्णु की शक्ति क्लिन्ना का उल्लेख ) ।


      क्लीं देवीभागवत ३.१७.३४ ( क्लीं बीज मन्त्र की महिमा, सुदर्शन राजकुमार द्वारा वैभव प्राप्ति की कथा ) ।


      क्लीब भविष्य ३.४.१५.५५ ( वज्रमय वीर्य तथा दृढ ब्रह्मचर्य से सम्पन्न व्यक्ति की क्लीब संज्ञा का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१५९.१६ ( विप्र को पर्युषित अन्न दान से क्लीबता प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.२७.३८ ( क्लीबा : जयविघ्न महामन्त्र के आठ कोणों की अष्ट देवियों में से एक देवी ) । kleeba


      क्लेदन नारद १.६६.९५( मातृका न्यास के संदर्भ में भूधर विष्णु की शक्ति क्लेदिनी का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.५.३२ ( क्लेदन आदि राक्षसों द्वारा बालप्रभु को मारने का उद्योग, षष्ठी देवी द्वारा बालक की रक्षा ) ।


      क्लेश भविष्य १.५३.२० ( सूर्य - रथ का वर्णन करते हुए रथ के छत्रदण्ड अथवा छत्र का क्लेश नामोल्लेख ) ।


      क्वण भागवत १०.२१.१२(कृष्ण की वेणु के क्वणित गीत का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.१९.१(अवनद्ध वाद्य के क्वणित व करुणान्वित स्वरों का उल्लेख), kwana/kvana

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      क्षण विष्णु ४.२२.२( बृहत्क्षण : बृहद्बल - पुत्र, उरुक्षय - पिता, इक्ष्वाकु वंश के भविष्य के नृपों में से एक )

      क्षत्र अग्नि ३४८.१२ ( क्षत्र हेतु क्ष: एकाक्षर के प्रयोग का उल्लेख - धारणे हस्तथा रुद्रे क्षः क्षत्त्त्रे चाक्षरे मतः ।। ), ब्रह्माण्ड १.२.११.३४ ( काम्या व प्रियव्रत के पुत्रों से क्षत्र धर्म के प्रवर्तन का उल्लेख - दक्षिणस्यां दिशि रतः काम्या दत्ता प्रियव्रते ।। काम्या प्रियव्रताल्लेभे स्वायंभुवसमान्सुतान् ।। दश कन्याद्वयं चैव यैः क्षत्रं सम्प्रवर्त्तितम् ।। ), मत्स्य ४५.२५ ( अनमित्र व पृथ्वी के तीन पुत्रों में से एक, अनमित्र वंश - अनमित्रस्य संज्ञज्ञे पृथ्व्यां वीरो युधाजितः। अन्यौ तु तनयौ वीरौ वृषभः क्षत्र एव च।। ), महाभारत शान्ति १४२.२६(अज, अश्व व क्षत्र में सादृश्य होने का उल्लेख - अजोऽश्वः क्षत्रमित्येतत्सदृशं ब्रह्मणा कृतम्। तस्मान्नतैक्ष्ण्याद्भूतानां यात्रा काचित्प्रसिद्ध्यति।।), आश्वमेधिक २९.१७ ( क्षत्रियों के वधोपरान्त द्विजों द्वारा उत्पादित क्षत्रियों के भी परशुराम द्वारा कर्तित किए जाने का उल्लेख - ततश्च हतवीरासु क्षत्रियासु पुनः पुनः। द्विजैरुत्पादितं क्षत्रं जामदग्न्यो न्यकृन्तत।। ), वायु २६.३५ ( रक्तवर्णीय ईकार से क्षत्र कुल के प्रवर्तन का उल्लेख - ईकारः स मनुर्ज्ञेयो रक्तवर्णः प्रतापवान्। ततः क्षत्रं प्रवर्त्तन्त तस्माद्रक्तस्तु क्षत्रियः ।।  ), २८.२९ ( काम्या व प्रियव्रत के पुत्रों से क्षत्र धर्म के प्रवर्तन का उल्लेख - काम्या प्रियव्रताल्लेभे स्वायम्भुवसमान् सुतान्। दशकन्याद्वयञ्चैव यैः क्षत्रं सम्प्रवर्तितम् ।। ) ; द्र. बृहत्क्षद्वा । kshatra


      क्षत्रजित् वायु ६७.८० ( कालनेमि के चार पुत्रों में से एक ) ।


      क्षत्रधर्म ब्रह्माण्ड २.३.६८.७ ( अनेना - पुत्र, प्रतिपक्ष - पिता ), वायु ९३.७ ( प्रतिपक्ष - पिता, चन्द्रवंश ), विष्णु ४.९.२७ ( संकृति - पुत्र, क्षत्रवृद्ध वंश ),


      क्षत्रनारायण लक्ष्मीनारायण ३.२४.८० ( मयूर असुर के वध के पश्चात् वैष्णवी प्रजा के रक्षण हेतु कृष्ण का एक अवतार ) ।


      क्षत्रविद्ध ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०४ ( १२ वें मन्वन्तर में रौच्य मनु के दस पुत्रों में से एक )


      क्षत्रवृद्ध ब्रह्माण्ड २.३.६७.२ (आयु तथा प्रभा के पांच पुत्रों में से एक, सुनहोत्र - पिता ), भागवत ९.१७.१ ( आयु तथा प्रभा - पुत्र, क्षत्रवृद्ध वंश का वर्णन ), विष्णु ४.८.३ ( आयु के ५ पुत्रों में से एक, सुहोत्र - पिता, पुरूरवा वंश ), ४.९.२५ ( प्रतिक्षत्र - पिता ), शिव ५.३४.६२ ( रौच्य मनु के पुत्रों में से एक ), हरिवंश १.२९.६ ( सुनहोत्र - पिता, क्षत्रवृद्ध वंश का वर्णन ) । kshatravriddha


      क्षत्रसिंह भविष्य ३.२.२२ ( वेताल का ही पूर्व जन्म में बिल्वती ग्राम का राजा क्षत्रसिंह होना, अष्टक प्रभाव से राजा क्षत्रसिंह को वेतालत्व की प्राप्ति का वर्णन ) ।


      क्षत्रिय गरुड २.४८.७(क्षत्रिय द्वारा ललाट देश से रुधिर पान का उल्लेख - यः क्षत्त्रियो बाहुबलेन संयुगे ललाटदेशाद्रुधिरं मुखे पपौ । तत्सोमपानं हि कृतं महामखे जीवन्मृतः सोऽपि हि याति मुक्तिक् ॥), ३.२२.८०(क्षत्रिय में जनार्दन की स्थिति का उल्लेख - संकर्षणः शूद्रवर्णे सदास्ति वैश्ये प्रद्युम्नस्तिष्ठति सर्वदैव ॥ जनार्दनः क्षत्त्रजातौ सदास्ति दाशेषु नित्यं महिदासो हरिस्तु ।), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१५ ( चन्द्र, सूर्य और मनु द्वारा उत्पन्न क्षत्रिय गण के श्रेष्ठ होने तथा अन्य क्षत्रिय जाति के ब्रह्मा के बाहु से उत्पन्न होने का उल्लेख - चन्द्रादित्यमनूनां च प्रवराः क्षत्रियाः स्मृताः । ब्रह्मणो बाहुदेशाच्चैवान्याः क्षत्रियजातयः ।।), ब्रह्माण्ड १.१.५.१०८ ( ब्रह्मा के वक्षस्थल से क्षत्रिय की उत्पत्ति का उल्लेख - वक्त्राद्यस्य ब्राह्मणाः संप्रसूता वक्षसश्चैव क्षत्रियाः पूर्वभागे ।वैश्या ऊरुभ्यां यस्य पद्भ्यां च शूद्राः सर्वे वर्णा गात्रतः संप्रसूताः ॥ ), १.२.७.१५४(इतरेषां कृतत्राणान् स्थापयामास क्षत्रियान्) , १.२.७.१६१(क्षत्रियाणां बलं दंडं युद्धमाजीव्यमादिशत्), १.२.७.१६६ ( क्षत्रिय कर्म का निरूपण - स्थानमैन्द्रं क्षत्रियाणां संग्रामेष्वपलायिनाम्। वैश्यानां मारुतं स्थानं स्वस्वकर्मोपजीविनाम्  ), भागवत १०.२४.२० ( राजन्य / क्षत्रिय द्वारा पृथ्वी पालन से निर्वाह का निर्देश - वर्तेत ब्रह्मणा विप्रो राजन्यो रक्षया भुवः । वैश्यस्तु वार्तया जीवेत् शूद्रस्तु द्विजसेवया ॥ ), ११.१७.१७( क्षत्रिय वर्ण के स्वभावों का उल्लेख - तेजो बलं धृतिः शौर्यं तितिक्षौदार्यमुद्यमः । स्थैर्यं ब्रह्मण्यतैश्वर्यं क्षत्र प्रकृतयस्त्विमाः ॥ ), मत्स्य १३.६३ ( देवी के १०८ नामों के जप से ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय तथा शूद्र द्वारा मनोवांछित सिद्धि प्राप्त करने का उल्लेख ), १५.१७ ( क्षत्रिय के हविष्मन्त पितृगण होने का उल्लेख - पितरो यत्र तिष्ठन्ति हविष्मन्तोऽङ्गिरः सुताः।।

      तीर्थश्राद्धप्रदा यान्ति ये च क्षत्रियसत्तमाः।), ३०.१९ ( ययाति के प्रति देवयानी की उक्ति के अनुसार क्षत्रिय और ब्राह्मण में वैवाहिक सम्बन्ध की सम्भावना - संसृष्टं ब्रह्मणा क्षत्रं क्षत्रं ब्रह्मणि संश्रितम्।
      ऋषिश्च ऋषिपुत्रश्च नाहुषाद्य भजस्व माम्।।), महाभारत आदि ३.१२३ ( ब्राह्मण व क्षत्रिय की भिन्नता प्रदर्शित करते हुए ब्राह्मण का हृदय नवनीत सदृश तथा वाणी क्षुरधार सदृश बतलाते हुए क्षत्रिय का हृदय क्षुरधार सदृश तथा वाणी नवनीत सदृश होने का उल्लेख - नवनीतं हृदयं ब्राह्मणस्य वाचि क्षुरो निहितस्तीक्ष्णधारः। तदुभयमेतद्विपरीतं क्षत्रियस्य वाङ्नवनीतं हृदयं तीक्ष्णधारम्।।  ), वन १९४ ( क्षत्रिय नरेशों के माहात्म्य के प्रतिपादन में सुहोत्र व शिबि की प्रशंसा ), ३१३.५१ ( क्षत्रिय के कर्त्तव्य - अकर्त्तव्य का कथन : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद - किं क्षत्रियाणां देवत्वं कश्च धर्मः सतामिव। कश्चैषां मानुषो भावः किमेषामसतामिव ॥), शान्ति ९१.५ ( वस्त्रों का मल दूर करने वाले रजक के समान चरित्रदोष को दूर करने वाले क्षत्रिय के ही प्रजावर्ग के पिता तथा अधिपति होने का कथन - तेषां यः क्षत्रियो वेद पात्राणामिव शोधनम्। शीलदोषान्विनिर्हर्तुं स पिता स प्रजापतिः।।...), वराह १२८.१ ( क्षत्रिय की दीक्षा विधि का कथन ), विष्णु १.६.६ ( ब्रह्मा के वक्ष:स्थल से क्षत्रिय की उत्पति का उल्लेख - ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राश्च द्रिजसत्तम ।
      पादोरुवक्षःस्थलतो मुखतश्च समुद्गताः ।। ६ ।। ), ३.८.२७ ( क्षत्रिय के कर्त्तव्य का निरूपण ), ३.८.३९ ( आपत्ति काल में क्षत्रिय के लिए वैश्य कर्म के भी करणीय होने का उल्लेख ), शिव ५.२१.१ ( ईश्वर की बाहु से क्षत्रिय की उत्पत्ति का उल्लेख - ईश्वरस्य मुखात्क्षत्रं बाहुभ्यामूरुतो विशः ।। पद्भ्यां शूद्रस्समुत्पन्न इति तस्य मुखाच्छ्रुतिः ।। ), ५.२१.१३ ( क्षत्रिय के ब्राह्मण बनने के लिए अपेक्षित कर्मों का कथन - अधीते स्वर्गमन्विच्छंस्त्रेताग्निशरणं सदा ।।आर्द्रहस्तपदो नित्यं क्षितिं धर्मेण पालयेत् ।। ) । kshatriya


      क्षत्तृ भागवत १२.१२.८ ( विदुर का नाम ) ।


      क्षत्रोपक्षत्र विष्णु ४.१४.९ ( अक्रूर के १३ पुत्रों में से एक ) ।


      क्षपणक गरुड २.२.७४(शय्याहर्ता के क्षपणक बनने का उल्लेख), महाभारत आदि ३.१२७ ( क्षपणक वेषधारी नागराज तक्षक द्वारा गुरुपत्नी हेतु उत्तंक द्वारा लाए गए कुण्डलों को हरण करने का वर्णन ), कथासरित् ७.५.५९ ( ज्ञानी क्षपणक / भिक्षु द्वारा राजकुमारी को बगुले के छद्म रूप का परिचय तथा उसे मारने के उपाय का कथन ) ।


      क्षपादेश स्कन्द ४.२.९७.१७४ ( क्षपादेश लिङ्ग का महाज्ञान प्रवर्तक रूप में उल्लेख ) ।


      क्षम ब्रह्माण्ड १.२.३६.२७ ( स्वारोचिष मनु युग के १२ सुधामा देवों में से एक ) ।


      क्षमा अग्नि ५०.३७ ( क्षमा देवी की प्रतिमा के लक्षणों का कथन ), देवीभागवत ९.१३.४४ ( कृष्ण के सकाम होने पर राधा द्वारा पुन: पुन: कृष्ण को क्षमा करने का उल्लेख ), १२.६.१५५ ( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), नारद १.६५.२७( रवि की १२ कलाओं में से एक ), १.६६.९५( सौरि विष्णु की शक्ति क्षमा का उल्लेख ), १.९१.७२ ( अघोर शिव की तृतीय कला ), पद्म २.१२.८३(क्षमा की मूर्ति का स्वरूप), २.१३.१८ ( क्षमा गुण के स्वरूप का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.११( दक्ष व प्रसूति - कन्या, चन्द्रमा - पत्नी, सहिष्णु - माता ), २.११.७१(क्षमा गोपी की देह से उत्पन्न लज्जा का विश्व में विभाजन), ब्रह्माण्ड १.२.९.५५ ( दक्ष व प्रसूति - कन्या, पुलह - पत्नी ), १.२.११.३० ( कर्दम, उर्वरीवान् , सहिष्णु, कनकपीठ व पीवरी -माता ), १.२.३२.४९ ( क्षमा नामक गुण के लक्षण का कथन ), २.३.७.९९ ( ब्रह्मधानात्मजा एक ब्रह्मराक्षसी ), ३.४.४४.९१( नारदा आदि ६ शक्ति देवियों में से एक ) , व्रñवैवर्त्त २.१.१०९ ( प्रकृति - कला क्षमा के यम - पत्नी होने तथा क्षमा के बिना समस्त लोक के उन्मत्त व भयंकर होने का उल्लेख ), २.११.४६ ( कृष्ण के सकाम होने पर राधा द्वारा कृष्ण को पुन:- पुन: क्षमा करने का उल्लेख ), २.११.७१ ( क्षमा गोपी के साथ कृष्ण का विहार, लज्जित क्षमा का पृथिवी में प्रवेश ), मत्स्य १४५.४६ ( धर्म के अनेक अङ्गों में से एक क्षमा के लक्षणों का कथन ), महाभारत वन ३१३.८७ ( द्वन्द्व सहने का नाम क्षमा होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), शान्ति ३२९.१२ ( क्षमा के परम बल होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक ९२ दाक्षिणात्य पृ. ६३७५( क्षमा नामक गुण तथा क्षमाशील मनुष्य के श्रेष्ठत्व का कथन ), वायु १०.२७, ३१ ( दक्ष - पुत्री, पुलह - पत्नी ), २८.२५ ( कर्दम, अम्बरीष, सहिष्णु, ऋषिधनाकपीवान् व पीवरी - माता, पुलह प्रजापति की भार्या ), विष्णु १.७.७ ( ब्रह्मा के भृगु आदि ९ मानस पुत्रों में से चतुर्थ पुत्र क्रतु की पत्नी ), १.७.२५ ( दक्ष - पुत्री, पुलह - पत्नी ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.१३ ( विभूति वर्णन में जनार्दन के क्षमाशीलों में विरूपाक्ष होने का उल्लेख ), ३.२६९ (क्षमा गुण का वर्णन ), शिव १.१७.६०( सत्य से क्षमा तक विष्णु के १४ लोकों का कथन, क्षमा लोक का वैकुण्ठ नाम? ), ७.१.१७.२६( पुलह - पत्नी, कर्दम आदि ३ पुत्रों के नाम ), स्कन्द ४.१.२९.१६८ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.३.५१.३५ ( क्षमा के आठ पुष्पों में से एक होने तथा क्षमा प्रभृति पुष्पों से देवताओं के तुष्ट होने का उल्लेख ), ५.३.२०९.२ ( क्षमानाथ तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ६.२७१.१०८( तपस्वियों का रूप क्षमा होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२८३.३७ ( क्षमा के माताओं में अनन्यतम होने का उल्लेख ) २.२६२.९ ( क्षमाभृत् : भालदेश के राजा क्षमाभृत् द्वारा भगवद्भक्त भाणवीर्य का बन्धन, भगवत् कृपा से भाणवीर्य का मोचन तथा हरि दर्शन का वृत्तान्त ), ३.२३४.३४ ( निर्मोहनायन साधु द्वारा विखण्डल को क्षमा रूपी शस्त्र की महिमा का कथन ), कथासरित् १२.५.२५९ ( क्षमा पारमिता की कथा के अन्तर्गत शुभनय नामक मुनि के मोक्षदायक क्षमा गुण से युक्त चरित्र का कथन ), kshamaa


      क्षय वायु ९९.२८१/२.३७.२७७( बृहत्क्षय : बृहद्रथ - पुत्र, क्षय - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), लक्ष्मीनारायण २.२६५ ( अश्वपट्ट तीर्थ में स्नान से क्षय रोग निवारण का वर्णन ) ।


      क्षर ब्रह्म १.१३३.१० ( करालजनक के पूछने पर वसिष्ठ द्वारा संसार के क्षरत्व तथा परब्रह्म के अक्षरत्व का निरूपण ), महाभारत शान्ति २८०.२० ( श्रीहरि के ही सम्पूर्ण प्राणियों में क्षर - अक्षर रूप से विद्यमान होने का उल्लेख ), ३०२.३५ ( पाञ्चभौतक व्यक्त जगत् का ही प्रतिदिन क्षरण होने से क्षर नाम धारण का कथन - कृत्स्नमेतावतस्तात क्षरते व्यक्तसंज्ञितम्। अहन्यहनि भूतात्मा ततः क्षर इति स्मृतः।।), ३०५.३६ ( सदा एक रूप में रहने वाले परमात्मतत्त्व का अक्षर तथा नाना रूपों में प्रतीत होने वाले प्राकृत प्रपञ्च का क्षर रूप में उल्लेख ), ३०७.११ ( सांख्यमतानुसार प्रकृति और पुरुष दोनों के ही अक्षर और क्षर होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२५६.२ ( संसार का क्षरत्व, आत्मा का अक्षरत्व, क्षरमोचन तथा अक्षरगमन का निरूपण ) । kshara


      क्षाता स्कन्द ५.१.५६.१ ( क्षाता सङ्गम तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ५.१.५६.६ ( रेवा, चर्मण्वती व क्षाता नामक तीन पावन नदियों की अमरकण्टक से उत्पत्ति होने का उल्लेख ) ।


      क्षान्ति पद्म ५.८४.५७ ( श्रीहरि के अहिंसा, क्षान्ति प्रभृति आठ पुष्पों के अर्चन से तुष्ट होने का उल्लेख ), विष्णु २.४.५५ ( क्रौञ्च द्वीप की सप्त नदियों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१९( विष्णु की जानुओं में क्षान्ति की स्थिति ), कथासरित् १२.३२ ( वेताल पञ्चविंशति के अन्तर्गत २५ वीं कथा के रूप में क्षान्तिशील नामक भिक्षुक की कथा ) । kshaanti


      क्षाम ब्रह्माण्ड १.२.१२.३७ ( सहरक्ष - पुत्र तथा क्रव्यादग्नि - पिता क्षाम का गृहदाही अग्नि रूप में उल्लेख ), १.२.३६.२७ ( स्वारोचिष मनु युग के १२ सुधामा देवों में से एक ), वायु २९.३४ ( सहरक्ष - पुत्र क्षाम का गृह - दाही अग्नि रूप में उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१९ ( सहरक्षा अग्नि - पुत्र, क्रव्याद - पिता ) । kshaama


      क्षार लक्ष्मीनारायण १.३२२.७३( क्षार त्याग पर उद्यापन में रस दान का निर्देश ) ।


      क्षारकर्दम भागवत ५.२६.७, ३० ( अग्रजों तथा पूज्यों का अनादर करने से प्राप्त नरक का नाम, २८ नरकों में से एक ), वराह २००.२८ ( वैतरणी नामक नरक की क्षारोदा नदी का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.४९ ( नरक में क्षार कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) ।


      क्षालिताघौघा स्कन्द ४.१.२९.६८ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) ।


      क्षिप्र गणेश २.३३.२८ ( क्षिप्रप्रसादन : प्रियव्रत व कीर्ति - पुत्र, विमाता द्वारा विषदान, गृत्समद द्वारा जीवनदान ), २.८५.२६ ( क्षिप्रप्रसादन गणेश से बाहुद्वय की रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.२५८ ( उपासङ्ग - पुत्र, वृष्णि वंश ), वायु ९६.२४९ ( उपाङ्ग - पुत्र, विष्णु वंश ) ।


      क्षिप्रा ब्रह्माण्ड १.२.१६.२९ ( पारियात्र पर्वत से नि:सृत एक नदी ), १.२.१६.३३ ( विन्ध्याचल से नि:सृत एक नदी ), मत्स्य २२.२४ ( पितृप्रिय तीर्थों में क्षिप्रा नदी का उल्लेख ), ११४.२७ ( विन्ध्याचल से नि:सृत एक नदी ) । kshipraa


      क्षीर गरुड २.२.८०(क्षीरहारी के बलाक बनने का उल्लेख), ३.१४.३५(आश्विन् में क्षीर के निःसार होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१५.७४( कुरु वर्ष में क्षीरी वृक्षों की स्थिति का कथन ), मत्स्य १९६.६ ( गोत्रप्रवर्तक आंगिरस ऋषियों में से एक ),शिव १.१६.५० ( हरीतकि , मरिच, वस्त्र व क्षीर दान से क्षय रोग के क्षय का उल्लेख ), स्कन्द २.८.७ ( राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करने पर यज्ञ में क्षीर की प्राप्ति होने से उस स्थान की क्षीरोदक तीर्थ के रूप में प्रसिद्धि का वर्णन ), २.८.८.६८ ( कामधेनु के स्तनों से प्रवाहित दुग्ध से क्षीरकुण्ड के निर्माण का उल्लेख ), ३.१.३७.३ ( विष्णु द्वारा मुद्गल हेतु क्षीरकुण्ड के निर्माण तथा कुण्ड के माहात्म्य का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१५.२५ ( क्षीर से महेश्वर की तुष्टि का उल्लेख ) । ksheera


      क्षीराब्धि गर्ग १.५.२६ ( क्षीराब्धि के शन्तनु रूप में अवतरण का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१०२ ( समान विस्तार वाले क्षीरोद समुद्र से शाकद्वीप के आवृत्त होने का उल्लेख ), १.२.२५.४५ ( क्षीरोद मन्थन से सर्वप्रथम विष के समुत्थित होने का उल्लेख ), ३.४.९.५६ ( देवों और दैत्यों द्वारा नाना प्रकार की औषधियों का क्षीरसागर में प्रक्षेपण, समुद्र मन्थन का वृत्तान्त ), ३.४.९.६४ - ६६ ( देवों और दैत्यों द्वारा क्षीराब्धि मन्थन से सुरभि तथा वारुणी देवी के प्राकट्य का कथन ), भागवत ५.१.३३, ५.२०.१८( सप्त समुद्रों में से एक क्षीरोद की क्रौञ्च द्वीप के चतुर्दिक् स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १२२.४९( कुशद्वीप के वर्णन में कुशद्वीप द्वारा क्षीरोद को चारों ओर से आवृत करने का उल्लेख; कुश द्वीप के ७ पर्वतों वर्षों आदि का वर्णन ), वायु ५४.४९( अमृतमन्थन के समय क्षीरोद से विष निकलने का उल्लेख ), १०६.४८ ( गयासुर के मस्तक पर यमशिला की स्थापना और देवों के पाद प्रक्षेप से भी गयासुर के अस्थिर रहने पर ब्रह्मा का व्याकुल होकर क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु के पास सहायतार्थ गमन का कथन ), विष्णु १.८.१६ ( अमृत मन्थन में क्षीराब्धि से लक्ष्मी की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.९.७७ ( अमृत हेतु देवों और दैत्यों द्वारा क्षीराब्धि में औषधि प्रक्षेपण का उल्लेख ), २.४.७१ ( शाक द्वीप के क्षीरोद से आवृत होने का उल्लेख ), शिव ५.१८.५९ ( शाक द्वीप के परित: क्षीरोद समुद्र होने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.५८.३१ ( क्षीराब्धि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८४.७ ( वही), लक्ष्मीनारायण १.३८५.१०३(क्षीरोद में कृष्ण के चतुर्भुज होने का उल्लेख), ksheeraabdhi


      क्षीरी पद्म १.२८.२५ ( क्षीरी का आयुप्रदाता वृक्ष के रूप में उल्लेख ) ।


      क्षीरोदवीर लक्ष्मीनारायण ४.४७.१३( रुहारणि - पति, लक्ष्मीनारायण संहिता श्रवण से क्षीरोदवीर राजा की मुक्ति का कथन ) ।


      क्षुत कथासरित् ६.२.१२९ ( शयनागार में सौ बार क्षुत / छींक आने पर राजपुत्र की मृत्यु हो जाने का पूर्वकथन )


      क्षुद्र नारद १.९०.७५( क्षौद्र द्वारा सौभाग्य सिद्धि का उल्लेख ), भागवत १०.८५.५१ ( क्षुद्रभृत् : कंस द्वारा वध को प्राप्त हुए देवकी के ६ पुत्रों में से एक, श्रीकृष्ण की कृपा से सभी ६ पुत्रों को सद्गति प्राप्त होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४२४.१८( क्षुद्र के नाश हेतु चण्डिका का उल्लेख ) । kshudra


      क्षुद्रविद्राविणी स्कन्द ४.१.२९.६८( गङ्गा सहस्रनामों में से एक )।


      क्षुधा गरुड १.२१.५( तत्पुरुष की ८ कलाओं में से एक ), देवीभागवत ९.१.११९( लोभ की २ भार्याओं में से एक ), नारद १.९१.७४ ( अघोर शिव की सप्तम कला ), पद्म १.१९.२७३ ( ऋषियों द्वारा क्षुधा वेदना का वर्णन ), २.९७.७७( क्षुधा तृप्ति हेतु ८ दानों के नाम, सुबाहु राजा के स्वर्ग में क्षुधापीडित होने का प्रसंग ), ब्रह्म २.१५.१४( क्षुधा पीडित कण्व द्वारा गौतमी गङ्गा तथा क्षुधा देवी का स्तवन, गङ्गा तथा देवी द्वारा अभिलषित वर प्रदान करना, उस स्थान की काण्व, गाङ्ग तथा क्षुधा तीर्थ नाम से प्रसिद्धि ), मत्स्य २५२.९( क्षुधाविष्ट भूत/वास्तु द्वारा अन्धकासुरों के रक्त का पान करने पर भी क्षुधा का शान्त न होना, जगतीत्रय को स्वदेह से आविष्ट करना ), योगवासिष्ठ ३.६९.२ ( कर्कटी राक्षसी का स्वक्षुधा शान्ति हेतु अनायसी व आयसी जीवसूचिका होने का वृत्तान्त ), ३.७४.१५( सूची द्वारा उदर सौषिर्य के पिण्डीकरण द्वारा अशना निवारण का उल्लेख ), शिव ५.११.२२ ( क्षुधा के व्याधियों में श्रेष्ठतम तथा दुःखरूप होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२५३.४ ( जीवरथ में क्षुधा व तृषा नामक दो वाहकों का उल्लेख ), कथासरित् ७.८.३९ ( रूपिणी विद्या द्वारा क्षुधा व तृष्णा शान्त होने का उल्लेख ) kshudhaa

      क्षुप मार्कण्डेय ११९( खनित्र - पुत्र, प्रमथा व नन्दिनी - पति, विवंश - पिता, क्षुप के चरित्र का कथन ), लिङ्ग १.३५ ( नृप व द्विज के श्रेष्ठता विवाद में क्षुप नृपति की पराभव का वर्णन ), १.३६ ( क्षुप व दधीचि के संवाद का वर्णन ), वायु ८६.६ ( खनित्र - पुत्र, विंश - पिता, वैवस्वत मनु वंश ), वा.रामायण ७.७६.४२ ( क्षुप नामक राजा की उत्पत्ति तथा लोकपालों द्वारा प्रदत्त तेज से क्षुप नृप को संयुक्त करने का कथन ), लक्ष्मीनारायण ४.५९.५९ ( राजा क्षुप और दधीचि के मध्य नृप - विप्र श्रेष्ठता विषयक विवाद का वृत्तान्त ) ; द्र. क्षुव kshupa


      क्षुरिका नारद १.५६.३८० ( क्षुरिका बन्धन कर्म काल का विचार ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.१२६ ( ग्राम आदि का दहन करने पर क्षुरधार नरक की प्राप्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३७०.१२२ ( नरक में क्षुरधार कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) ।


      क्षुव देवीभागवत ७.८.५१( मनु - पुत्र, इक्ष्वाकु - पिता ), शिव २.२.३८.८(क्षुव व दधीचि के मध्य विवाद, दधीचि द्वारा मृत्युञ्जय विद्या से क्षुव को पराजित करना), २.२.३९ ( राजा क्षुव व दधीचि मुनि के मध्य ब्राह्मण व नृप में श्रेष्ठवर होने के सम्बन्ध में विवाद, दधीचि द्वारा ब्राह्मण के श्रेष्ठत्व को प्रमाणित करने का वृत्तान्त ) ; द्र. क्षुप kshuva



      क्षुवन लक्ष्मीनारायण २.५.३२ ( क्षुवन आदि दैत्यों द्वारा बाल कृष्ण को मारने का उद्योग, षष्ठी देवी द्वारा बाल कृष्ण की रक्षा का उल्लेख ) ।


      क्षेत्र गणेश २.१४६.२२ ( पञ्चभूत, तन्मात्रा आदि आदि के समूह की क्षेत्र संज्ञा का कथन ; सूक्ष्म क्षेत्रज्ञ को जानने का निर्देश ), पद्म ६.२२२.८६( निवास क्षेत्र की परिक्रमा का निर्देश ), ब्रह्माण्ड १.१.३.३७( अव्यक्त के क्षेत्र तथा ब्रह्म के क्षेत्रज्ञ होने का उल्लेख ), वायु १०२.३४ ( अव्यक्त के क्षेत्र और ब्रह्मा के क्षेत्रज्ञ होने का उल्लेख ), १०२.३६ ( क्षेत्र के अविषय और ब्रह्मा के विषय होने का उल्लेख ), शिव १.१२( शिव क्षेत्रों का वर्णन ), महाभारत शान्ति ३०७.१६( क्षेत्रज्ञ को क्षेत्र में लीन करने पर प्रकृति के क्षर बनने का कथन ), ३१९.४०( क्षेत्र व क्षेत्रज्ञ की परिभाषा ), अनुशासन ६.८ ( देव बीज व पुरुषार्थ क्षेत्र होने का कथन ), योगवासिष्ठ ६.२.९४.६८( अन्तरिक्ष रूप अक्षय क्षेत्र में खं गगन रूपी बीज से उत्पन्न प्रजाओं का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५१४.३(३ महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के नाम), ३.१८.११ ( क्षेत्र दान के पुत्र दान से श्रेष्ठ व आरोग्य दान से अवर होने का उल्लेख ) ; द्र. कुरुक्षेत्र । kshetra


      क्षेत्रज्ञ नारद १.४७.३८ ( केशिध्वज द्वारा खाण्डिक्य को वर्णित योग स्वरूपान्तर्गत अपरा नाम धारी क्षेत्रज्ञ शक्ति के प्राणियों में क्रमश: विकास का कथन ), ब्रह्माण्ड १.१.३.३७( अव्यक्त के क्षेत्र तथा ब्रह्म के क्षेत्रज्ञ होने का उल्लेख ), १.२.३२.८५, ३.४.३.८७ ( क्षेत्र ज्ञान से युक्त होने के कारण परम पुरुष के क्षेत्रज्ञ अभिधान का कथन ), ३.४.४.१९ ( सृष्टि प्रारम्भ के समय क्षेत्रज्ञ द्वारा अधिष्ठित गुणों के विषमता को प्राप्त होने, क्षेत्र व क्षेत्रज्ञ के व्यक्तावस्था को प्राप्त होने तथा क्षेत्रज्ञ द्वारा अधिष्ठित सत्त्व के विकार को उत्पन्न करने का कथन ), भागवत ५.११.११( मन की क्षेत्रज्ञ से भिन्नता का कथन ), १२.१.५ ( क्षेत्रधर्मा - पुत्र, विधिसार - पिता, शिशुनाग वंश ), वराह ३५.११( देह में क्षेत्रज्ञ पुरुष का ही सोम नाम होने का उल्लेख ), वायु १०१.२२३ ( नित्य अपरिसंख्येय, परस्पर गुणाश्रयी, सूक्ष्म , प्रसवधर्मिणी प्रकृतियों से ब्रह्म नामक जगत्कर्त्ता क्षेत्रज्ञ के प्रादुर्भाव का उल्लेख ), १०२.३४ ( अव्यक्त के क्षेत्र और ब्रह्म के क्षेत्रज्ञत्व का कथन, क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ की क्रमश: विषयत्व एवं अविषयत्व प्रसिद्धि का कथन ), १०३.१७ ( साम्यावस्था में प्रतिष्ठित गुणगणों के सृष्टि प्रारम्भ के समय क्षेत्रज्ञ द्वारा अधिष्ठित होकर विषमता को प्राप्त होने, क्षेत्र व क्षेत्रज्ञ के व्यक्तावस्था को प्राप्त होने, क्षेत्रज्ञ द्वारा अधिष्ठित सत्त्व के विकार को उत्पन्न करने का कथन ), विष्णु ६.७.६१( विष्णु की क्षेत्रज्ञ संज्ञक अपरा शक्ति का वर्णन ), महाभारत २३६.३२ ( व्यक्त के सत्त्व /क्षेत्र तथा अव्यक्त के क्षेत्रज्ञ होने का कथन ), शान्ति १८७.२३ ( प्राकृत गुणों से युक्त आत्मा के क्षेत्रज्ञ व गुणों से मुक्त आत्मा के परमात्मा होने का कथन ), ३४४.१८ ( भगवान वासुदेव के ही निर्गुण क्षेत्रज्ञ होने का कथन ), आश्वमेधिक ३४.१०( क्षेत्र व क्षेत्रज्ञ के विषय में ब्राह्मण - ब्राह्मणी संवाद ), योगवासिष्ठ ४.४२.२१ ( चित् का रूप क्षेत्रज्ञ होने का उल्लेख , क्षेत्रज्ञ द्वारा शरीर रूपी क्षेत्र को बाह्याभ्यन्तर अखण्डित रूप में जानने का उल्लेख ), ४.४२.२३ ( क्षेत्रज्ञ के वासनाग्रस्त होने पर अहंकार बनने का कथन ) । kshetrajna


      क्षेत्रपाल अग्नि ५१.१८ ( प्रतिमा निर्माण में क्षेत्रपालों को शूलधारी बनाने का निर्देश ), ३१३.१० ( त्रिपुरा भैरवी पूजन में हेतुक आदि आठ क्षेत्रपालों के पूजन का उल्लेख ), ३४८.१३ ( क्षेत्रपाल हेतु क्षो एकाक्षर के प्रयोग का निर्देश ), पद्म ३.१३.२२ ( नर्मदा तीर्थ के वर्णन में क्षेत्रपाल दर्शन के माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड २.३.४१.३३ ( शिवमन्दिर में पार्षद प्रवर क्षेत्रपालों की संस्थिति का उल्लेख ), ३.४.१४.७ (महादेवी महेश्वरी के दर्शन हेतु भैरवों, क्षेत्रपालों आदि के आगमन का उल्लेख ), मत्स्य ४३.२७ ( कार्तवीर्य के पशुपाल, क्षेत्रपाल, पर्जन्य तथा अर्जुन आदि होने का उल्लेख ), वराह १६८.६ ( मथुरा में शिव के क्षेत्रपाल रूप से निवास का उल्लेख ), वायु ९४.२४ ( कार्त्तवीर्य अर्जुन के पशुपाल, क्षेत्रपाल, पर्जन्य आदि होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६२ ( बालरुद्र से क्षेत्रपालों की उत्पत्ति, चौंसठ क्षेत्रपाल तथा क्षेत्रपाल आराधना विधि का वर्णन ), ७.१.४.८७ ( प्रभास क्षेत्र के रक्षक क्षेत्रपालों के नामों का कथन ), ७.१.१३७ ( कङ्काल भैरव क्षेत्रपाल का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.१८१ ( क्षेत्रपालेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.२४३ ( महाप्रभ क्षेत्रपाल का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५८२.७९ ( पुरुषोत्तम क्षेत्र के कामाख्य नामक क्षेत्रपाल की सदैव स्थिति का उल्लेख ), २.१४८.२४ ( देवप्रतिष्ठा वर्णन में ५० क्षेत्रपालों के पूजन का कथन ), २.१५३.७९ ( वास्तुस्थ देवताओं के होम के वर्णनान्तर्गत क्षेत्रपाल होम का वर्णन ) । kshetrapaala


      क्षेत्रशर्मा भविष्य ३.४.१२.६१ ( क्षेत्रशर्मा नामक ब्राह्मण श्रेष्ठ के रुद्र का अंश होने का उल्लेख ) ।


      क्षेपणी अग्नि २५२.१८ ( क्षेपणी अस्त्र के कर्म का कथन ) ।


      क्षेम ब्रह्माण्ड १.२.९.६१ ( धर्म व शान्ति - पुत्र ), १.२.३६.३५ ( गौतम मनु युग के बारह सत्य देवों में से एक ), २.३.७.९८ ( ब्रह्मधान के दस पुत्रों में से एक ), २.३.६७.४०( शिव द्वारा क्षेम नामक गणेश को वाराणसी को शून्य करने का निर्देश ; निकुम्भ का अपर नाम? ), २.३.६७.७३ ( सुनीथ - पुत्र, केतुमान् - पिता , काश्यप वंश ), २.३.७४.११६ ( शुचि - पुत्र, सुव्रत - पिता, मागध वंश ), भागवत ४.१.५२ ( धर्म व तितिक्षा - पुत्र ), ५.२०.३ ( प्लक्षद्वीप के सात वर्षों में से एक ), ९.२२.४७ ( शुचि - पुत्र, सुव्रत - पिता, मागध वंश ), मत्स्य ४९.७८ ( उग्रायुध - पुत्र, सुनीथ -पिता, पौरव वंश), २७१.२५ ( शुचि - पुत्र, सुव्रत - पिता, मागध वंश ), मार्कण्डेय ५०.२७( शान्ति - पुत्र ), वायु १०.३७ ( धर्म व शान्ति - पुत्र ), ६२.३२ ( औत्तम मनु युग के १२ सत्यदेवों में से एक ), ६७.३४ ( औत्तम मनु युग के १२ अजित देवों में से एक ), ६९.१३२ ( ब्रह्मधान के १० पुत्रों में से एक ), ९९.३०२ ( शुचि - पुत्र, सुव्रत - पिता, मागध वंश ), शिव २.४.२०८( सिद्धि व गणेश - पुत्र ), स्कन्द ४.१.२९.६८ ( क्षेमदा : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ४.२.७७.७२ ( क्षेमेश्वर लिङ्ग के दर्शन से क्षेम प्राप्ति का उल्लेख ), ७.१.३२३ ( प्रभास क्षेत्र के अन्तर्गत क्षेमेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.३१६ ( प्रभास क्षेत्र माहात्म्य के अन्तर्गत क्षेमादित्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) । kshema


      क्षेमक ब्रह्माण्ड १.२.१४.३७ ( प्लक्ष द्वीपाधिपति मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक क्षेमक द्वारा क्षेमक राज्य की संस्थापना का उल्लेख ), १.२.१९.१६( वृषभ पर्वत के क्षेमक वर्ष का उल्लेख ), २.३.६७.२७ ( क्षेमक राक्षस द्वारा वाराणसी नगरी का विध्वंस, अलर्क राजा द्वारा क्षेमक वध तथा वाराणसी की पुनरस्थापना का वृत्तान्त ), भविष्य ३.१.४.२ ( म्लेच्छों द्वारा मारे गए राजा क्षेमक को यमलोक की प्राप्ति, नारद निर्दिष्ट तथा क्षेमक - पुत्र प्रद्योत द्वारा सम्पादित म्लेच्छ यज्ञ से क्षेमक को स्वर्गलोक की प्राप्ति ),मत्स्य १२२.२५( मैनाक वर्ष का दूसरा नाम ), वायु ३३.३३ ( प्लक्ष द्वीपाधिपति मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक ), ४९.१४( ऋषभ वर्ष का अपर नाम ), ६९.१६० ( मणिवर व देवजनी के यक्ष पुत्रों में से एक ), २.३०.२४ / ९२.२४ ( क्षेमक राक्षस द्वारा वाराणसी को जनशून्य करने का उल्लेख ), २.३०.३६ / ९२.३६ ( शिव द्वारा गणेश्वर क्षेमक को वाराणसी को जनशून्य करने का आदेश ), २.३०.६७-६९ / ९२.६७ ( अलर्क राजा द्वारा क्षेमक का वध ), विष्णु २.४.४ ( प्लक्षद्वीपेश्वर मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक ), स्कन्द ४.२.५५.१७ ( वाराणसीस्थ क्षेमक नामक महागण के पूजन से क्षेम प्राप्ति तथा विघ्न शान्ति का कथन ), शिव ५.३४.५३ ( तृतीय सावर्णि मनु के पौत्रों में से एक ), हरिवंश १.२९.७७ ( राजा अलर्क द्वारा क्षेमक राक्षस को मारकर वाराणसी पुरी की पुनरस्थापना का उल्लेख ) । kshemaka


      क्षेमङ्कर/क्षेमङ्करी गणेश १.१.२९ ( सोमकान्त नृप के मन्त्रियों में से एक ), पद्म १.५६.५ ( क्षेमङ्करी : पार्वती का क्षेमङ्करी रूप धारण कर शिव को अन्य स्त्रियों के साथ क्रीडा से रोकने का कथन ), ७.२०.२१ ( क्षेमङ्करी नामक भ्रष्टाचरण वाली ब्राह्मणी की दान से मुक्ति की कथा ), स्कन्द ४.२.७२.६३ ( क्षेमङ्करी देवी द्वारा क्षेत्र की रक्षा का उल्लेख ), ६.११८ ( आनर्त अधिपति - कन्या, रैवत - भार्या, रेवती - माता, तक्षक नाग की भार्या का अवतार, क्षेमङ्करी नाम प्राप्ति का कारण )स्कन्द ७.१.१२७ ( राजा क्षेममूर्ति द्वारा स्थापित क्षेमङ्करेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१३( नृसिंह की शक्ति क्षेमङ्करी का उल्लेख ) । kshemankaree/kshemankari


      क्षो अग्नि ३४८.१३ ( नृसिंह, हरि व क्षेत्रपाल हेतु क्षो एकाक्षर मन्त्र के प्रयोग का उल्लेख ) ।


      क्षौ अग्नि ३४८.१४( हयशीर्ष हेतु क्षौं एकाक्षर मन्त्र के प्रयोग का उल्लेख ) ।


      क्षौद्र नारद १.९०.७५( क्षौद्र द्वारा सौभाग्य सिद्धि का उल्लेख )


      क्षौम नारद २.२२.७८ ( एकान्तरोपवासी को क्षौम वस्त्र देने का निर्देश ) ।


      क्ष्मा वामन ९०.१९ ( सूकराचल पर विष्णु का क्ष्माधर नाम से वास ), लक्ष्मीनारायण ३.२८.३९ ( क्ष्मा चोलक : निर्वाणिका - पति, दरिद्र विप्र क्ष्माचोलक द्वारा धन प्राप्ति हेतु स्त्री सहित लक्ष्मी - नारायण की आराधना ) । kshmaa


      क्ष्वेळा मत्स्य १७९.२५ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट अनेक मानस मातृकाओं में से एक ) ।


      ख अग्नि ३४८.४ ( शून्येन्द्रिय हेतु खं के प्रयोग का निर्देश ), महाभारत वन ३१३.५९ ( पिता के खं से उच्चतर होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ) । kha


      खखोल्क/खषोल्क भविष्य १.१५०.३ ( सूर्य पूजा विधि में सहस्रकिरणायुध खषोल्क को मण्डल के मध्य में स्थापित कर पूजा करने का कथन ), १.१८७.१७, २३ ( परमात्म वाचक तथा षड~ अक्षर युक्त खषोल्क सूर्यमन्त्र का माहात्म्य ), स्कन्द ४.१.५०.१३९, १४७ ( खखोल्क - आदित्य : विनता व गरुड द्वारा काशी में स्थापना व उपासना ), लक्ष्मीनारायण १.८३.५६( खखोल :काशी में दिवोदास के राज्य में स्थित १२ आदित्यों में से एक ) । khakholka/ khasholka


      खग गणेश २.६८.२५( गणेश द्वारा प्रयुक्त खगास्त्र से गन्धर्वास्त्र का निवारण, देवान्तक के खड्गास्त्र से खगास्त्र का निवारण ) । khaga


      खगण भागवत ९.१२.३ ( वज्रनाभ - पुत्र, विधृति - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) ।


      खगम देवीभागवत २.११.३३ ( मित्र द्वारा सर्प - भय उत्पन्न करने पर खगम नामक ब्राह्मण द्वारा मित्र को सर्प होने का शाप ), स्कन्द ४.२.९७.१६(खङ्गमेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.६९(खङ्गमेश्वर का माहात्म्य, मत्स्य व श्येन का खङ्गमेश्वर लिङ्ग पर कल्याण, सुबाहु राजा द्वारा शिरोव्यथा के कारण का कथन), ५.३.१५८(खङ्गमेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, पुण्यतोया - नर्मदा सङ्गम), लक्ष्मीनारायण २.१२७.२८(सात्त्विक, राजसिक व तामस खङ्गमों का कथन ) ।


      खगर्ता स्कन्द ५.१.६३.३ ( खगर्ता - शिप्रा सङ्गम माहात्म्य : गङ्गा स्नान के फल की प्राप्ति ), ५.२.४३.१९ ( गङ्गा के खगर्ता नाम का कारण ) ।


      खङ्ग अग्नि ८१.१९ ( दीक्षा कर्म में कुश से बोधमय खङ्ग निर्माण का उल्लेख ), २४५.१६ ( ब्रह्मा के यज्ञ में अग्नि से प्राकट्य, विष्णु द्वारा नन्दक को खङ्ग रूप में ग्रहण करके लोह दैत्य का वध, देशानुसार खङ्गों की विशिष्टताएं, श्रेष्ठ खङ्गों के लक्षण ), २५२.४ ( खङ्ग द्वारा युद्ध की ३२ विधियों का नामोल्लेख ), २६९.२९ (खङ्ग प्रार्थना मन्त्र ), पद्म ६.१३५.११६ ( राजखङ्ग तीर्थ का माहात्म्य : वैकर्तन राजा को दिव्य शरीर की प्राप्ति ), ६.१४७ ( खङ्ग तीर्थ में स्नान व खङ्गेश्वर शिव के दर्शन से स्वर्गलोक की प्राप्ति ), ६.१५४ ( खङ्गधार तीर्थ का माहात्म्य : चण्ड नामक कोलिक द्वारा स्थापना की कथा ), ब्रह्म २.६९ ( खङ्ग तीर्थ का माहात्म्य : पैलूष द्वारा ज्ञान खङ्ग से दुर्गुणों के छेदन द्वारा मुक्ति की प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१२.२६ ( कृष्ण में मन लगाने पर भक्ति रूपी खङ्ग द्वारा मनुष्यों के कर्म रूपी वृक्षों के मूलोच्छेदन का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.५२ ( खङ्गसिद्धि : आठ प्रकार की योगसिद्धियों में से एक ), भविष्य ४.१३८.६५ ( अस्त्र विशेष खङ्ग के आठ नाम तथा मन्त्र ), महाभारत कर्ण २५.२९ ( सुतसोम व शकुनि के द्वन्द्व युद्ध में सुतसोम द्वारा खङ्ग से युद्ध का वर्णन ), सौप्तिक ७.६६ ( महादेव के चरणों में स्वयं को समर्पित कर देने पर अश्वत्थामा को महादेव से निर्मल खङ्ग की प्राप्ति होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक ४७.१४ ( देह रूपी वृक्ष को तत्त्वज्ञान रूपी असि / खङ्ग से छिन्न भिन्न करने का निर्देश ), शान्ति १६६ ( भीष्म द्वारा नकुल के प्रति खङ्ग की उत्पत्ति तथा प्राप्ति की परम्परा का वर्णन, खङ्ग के आयुधों में सर्वप्रथम प्रकट होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१७.२० ( खङ्ग के लक्षणों का वर्णन ), २.१६०.२६ ( खङ्ग मन्त्र का कथन ), शिव २.५.३६.१३ ( खङ्ग प्रभृति शंखचूड - सेनानियों से आदित्यों के युद्ध का उल्लेख ), स्कन्द १.३.१.१२.४ ( आकाशवाणी के अनुसार देवी द्वारा शिलातल पर खङ्ग से प्रहार, गङ्गा, यमुना प्रभृति नव तीर्थों के आगमन से खङ्ग तीर्थ का निर्माण ), ३.३.१२.३४ ( ऋषभ योगी द्वारा राजपुत्र भद्रायु को तप व मन्त्र से अनुभावित खङ्ग प्रदान करने का उल्लेख ), ५.२.११.२१ ( सिद्धेश्वर लिङ्ग की आराधना से वसुमान राजा द्वारा खङ्ग सिद्धि प्राप्ति ), ७.१.८३.४४ ( खङ्ग मन्त्र का कथन ), हरिवंश ३.१२५.१४ ( डिम्भक और सात्यकि का परस्पर खङ्ग युद्ध तथा खङ्ग युद्ध के ३२ पैतरों का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१२७.३९ ( खङ्ग न्यास ), कथासरित् २.२.४५ ( विद्युत्प्रभा के कथनानुसार श्रीदत्त को मृगाङ्क नामक खङ्ग की प्राप्ति की कथा ), २.३.३७ ( महासेन द्वारा देवी की आराधना करने पर देवी द्वारा उत्तम खङ्ग प्रदान करना ), ५.३.२५९ ( गर्भस्थ शिशु के खङ्ग बनने का उल्लेख ), ७.८.१३३ ( इन्दीवरसेन द्वारा खङ्ग प्रहार से यमदंष्ट्र राक्षस का वध ), ९.६.१५ ( खङ्ग नामक वैश्य पुत्र की कथा द्वारा माता - पिता के विरोध से उत्पन्न दुष्परिणाम का कथन ), ९.६.२१४ ( पाशुपत द्वारा गुफा स्थित खङ्ग की सिद्धि हेतु सहायतार्थ याचना तथा खङ्ग प्राप्ति का वर्णन ), १२.१.६६ ( वामदत्त द्वारा श्रीपर्वत पर विद्या की साधना, सिद्ध विद्या द्वारा वामदत्त को उत्तम खङ्ग प्रदान करना ), १२.५.३६९ ( खङ्ग व अश्व के प्रभाव से इन्दुकलश द्वारा कनककलश को राज्य से निर्वासित करना ), १२.१४.१०८ ( दैत्यसुता द्वारा राजा को अपराजित नामक खङ्ग प्रदान करना ), १२.२१.३० ( राजा वीरकेतु के खङ्ग विज्ञानी होने तथा युक्तिपूर्वक चोर के हाथ से शस्त्रों को ग्रहण करने का उल्लेख ), १५.१.२१ ( राजा नरवाहनदत्त को गुफा में जैत्र नामक खङ्गरत्न के सिद्ध होने का उल्लेख ), १७.२.१४३ ( भक्ति से प्रसन्न शिव द्वारा मुक्ताफलकेतु को अपराजित नामक खङ्ग प्रदान करना ) । khanga


      खङ्गदंष्ट्रा कथासरित् ७.८.१४१ ( यमदंष्ट्र राक्षस की बहन, राजा इन्दीवरसेन पर अनुरक्त ,पश्चात् विवाह ) ।


      खङ्गधर कथासरित् ९.२.१०३ ( अनङ्गरति से विवाह के इच्छुक चार वीरों में से एक खङ्गधर नामक क्षत्रिय का राजा महावराह के समक्ष स्व परिचय देना, राजा द्वारा चारों वीरों की परीक्षा तथा अनङ्गरति से किसी एक वीर को वरण करने के निवेदन का वृत्तान्त ), १२.१६.२७ ( वही) ।



      खङ्गबाहु पद्म ६.१९० ( खङ्गबाहु राजा का ब्राह्मण से गीता के १६ वें अध्याय का माहात्म्य जानकर उन्मत्त हाथी को वश में करना ) ।


      खङ्गरोमा पद्म ६.१३.२ ( जालन्धर - सारथी ) ।


      खङ्गवर्मा लक्ष्मीनारायण ३.२१६.१९ ( सञ्जय देव नामक भगवद् भक्त शिल्पी द्वारा राजा खङ्गवर्मा के नूतन प्रासाद का निर्माण ) ।


      खङ्गिनी स्कन्द ४.१.२९.४६ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) ।


      खङ्गी ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७० (वर्णों के ५१ गणेशों में से एक ), शिव ५.३४.२६ ( चतुर्थ तामस मन्वन्तर में तामस मनु के १० पुत्रों में से एक ) ।


      खञ्जन स्कन्द १.२.६२.२८( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ७.४.१६.३४ ( खञ्जनक दैत्य के नाम पर खञ्जनक तीर्थ का निर्माण, तीर्थ में स्नान से सोमलोक की प्राप्ति ), ७.४.१७.२३ ( द्वारका के उत्तर द्वार पर स्थित क्षेत्रपाल ), लक्ष्मीनारायण २.५.३४ ( खञ्जन प्रभृति दैत्यों द्वारा बाल प्रभु को मारने का उद्योग, षष्ठी देवी द्वारा प्रभु की रक्षा का वृत्तान्त ) । khanjana


      खञ्जरीट वराह १३८.११ ( सौकरव तीर्थ के प्रभाव से खञ्जरीट पक्षी का वैश्य बालक के रूप में जन्म ), लक्ष्मीनारायण १.५७८.५ ( ईश क्षेत्र में गायन से खञ्जरीट पक्षी के मरणोपरान्त वैभव सम्पन्न वैश्य के गृह में जन्म तथा मुक्ति का वर्णन ) ।


      खट्वा कथासरित् १८.५.२१२ ( मूलदेव के पुत्र द्वारा पिता की खाट / शय्या के विक्रय का वृत्तान्त ) ।


      खट्वाङ्ग ब्रह्म १.६.७४ ( अंशुमान् - पुत्र तथा भगीरथ - पिता दिलीप की खट्वाङ्ग नाम से प्रसिद्धि, मुहूर्त मात्र जीवन में तत्त्व प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.१०.९० ( उपहूत नामक पितरगणों की मानसी कन्या यशोदा का पुत्र ), २.३.६३.१८२ ( विश्वसह - पुत्र दिलीप की खट्वाङ्ग नाम से प्रसिद्धि तथा मुहूर्त्त मात्र जीवन में सत्य प्राप्ति का कथन ; दीर्घबाहु - पिता ), भागवत २.१.१३ ( राजा खट्वाङ्ग द्वारा मुहूर्त मात्र में ही अभयपद को प्राप्त करने का उल्लेख ), ९.९.४१ ( सूर्यवंशीय विश्वसह - पुत्र राजा खट्वाङ्ग का मृत्यु समय में भगवान में मन तथा ब्रह्म प्राप्ति ), ९.१०.१ ( दीर्घबाहु - पिता, रघु - पितामह, सूर्य वंश ), ११.२३.३० ( राजा खट्वाङ्ग द्वारा मुहूर्त भर में ही ब्रह्मलोक प्राप्त कर लेने का उल्लेख ), वायु ७३.४१ ( उपहूत नामक पितरगणों की मानसी कन्या यशोदा का पुत्र, एक राजर्षि ), ८८.१८२ ( खट्वाङ्गद : विश्वमहत् - पुत्र दिलीप की खट्वाङ्गद नाम से प्रसिद्धि तथा मुहूर्त मात्र जीवन में सत्य प्राप्ति का कथन ; दीर्घबाहु - पिता ), विष्णु ४.४.७६ ( विश्वसह - पुत्र, दीर्घबाहु -पिता, मुहूर्त मात्र जीवन में वासुदेव में चित्त लीनता का कथन ), स्कन्द ४.२.९७.७१ ( खट्वाङ्गेश लिङ्ग के दर्शन से मनुष्य के निष्पाप होने का उल्लेख ), ५.१.१९.३( शिव द्वारा नागेश शशिखट्वाङ्ग को दक्षिण कर में धारण करने का उल्लेख ), हरिवंश १.१५.१३ ( अंशुमान - पुत्र दिलीप की खट्वाङ्ग नाम से प्रसिद्धि तथा मुहूर्त भर में तत्त्व प्राप्ति का उल्लेख ), २.२५.४८ ( खट्वाङ्ग वन में हुए कंस - नारद संवाद में नारद द्वारा कंस को वसुदेव - पुत्र की उत्पत्ति आदि का कथन ), २.३९.५८( कृष्ण व बलराम द्वारा खट्वाङ्ग नदी की शोभा निहारने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५५.३१, १.५६, १.५७ ( रैवत मनु की दक्षिण भुजा के अङ्गद से खट्वा पर होने से खट्वाङ्गद नाम धारण, तप से लक्ष्मी नारायण के दर्शन, बर्हिषाङ्गद - पिता ), २.३७.१४ ( सौराष्ट्र देशीय राजा के सैनिकों का वराटक दैत्य के सैनिकों से युद्ध, वराटक दैत्य की पराजय का वर्णन ), कथासरित् १८.५.८ ( कापालिक द्वारा सिद्धियुक्त खट्वाङ्ग / सोंटे की सहायता से कन्याओं का हरण, ब्राह्मण कुमार द्वारा खट्वाङ्ग को गङ्गा में फेंक देने पर कापालिक के सिद्धिरहित होने का कथन ) । khatvaanga


      खड्ग गणेश २.६८.३२ ( देवान्तक द्वारा प्रयुक्त खड्गास्त्र से गणेश के खगास्त्र का निवारण, वज्रास्त्र से खड्गास्त्र का निवारण ), २.९३.१२ ( गणेश द्वारा उष्ट्र रूप धारी खड्ग असुर का वध ), नारद १.६६.९२( खड्गी विष्णु की शक्ति सत्या का उल्लेख ), १.६६.११८( खड्गीश की शक्ति वारुणी का उल्लेख ), १.६६.१३५( खड्गी गणेश की शक्ति दुर्भगा का उल्लेख ), स्कन्द २.१.६.६४( भक्त हेतु हृदय में खड्ग धारण का निर्देश ), कथासरित् १८.४.९६( राजा द्वारा सूकर के कण्ठ व गज के पृष्ठ का स्पर्श करने से उनका खड्ग व चर्म बनना ); द्र. खङ्ग khadga


      खणि स्कन्द १.२.६२.२९( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक )


      खण्ड पद्म ६.१४४.११ ( वृषतीर्थ उपनाम युक्त खण्ड तीर्थ का माहात्म्य : खण्ड तीर्थ के अन्तर्गत खण्ड हृद में स्नान से शिव के शाप से ग्रस्त गायों को गोलोक प्राप्ति ), भविष्य ४.७९ ( खण्ड व्रतों के दोष निवारण हेतु अखण्ड द्वादशी व्रत के विधान का वर्णन ), वायु ६७.७८ ( प्रह्लाद - पुत्र जम्भ के ४ पुत्रों में से एक ), शिव ५.३४.५४ ( खण्डक : तृतीय सावर्णि मनु के ९ पौत्रों में से एक ), स्कन्द २.२.२८.४०( सब दुःखों के खण्डन व अखण्ड आनन्दन की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.६८.३२ (महाकालवन में अखण्ड सर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.३१ ( खण्डेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन : भद्राश्व द्वारा खण्डित व्रत की पूर्णता हेतु स्थापना ), ७.१.३३३.७( खण्डघट स्थान पर पिङ्गेश्वर देव की स्थिति का कथन ), द्र. शशिखण्ड । khanda


      खण्डवटक कथासरित् १८.५.६३ ( राजा विक्रमादित्य द्वारा कार्पटिक कृष्णशक्ति को खण्डवटक ग्राम प्रदान करने का कथन ) ।


      खदिर नारद १.५६.२०५ ( इन्दुभ / मृगशिरा नक्षत्र में खदिर वृक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख - इन्दुभात्खदिरो जातः कृष्णप्लक्षश्च रौद्रभात्।), पद्म १.२८.२७ ( आरोग्यता हेतु खदिर वृक्षारोपण का उल्लेख - अंकोले कुलवृद्धिस्तु खादिरेणाप्यरोगिता। ), भविष्य १.१९३.८ ( दन्तकाष्ठ वर्णन में खदिर वृक्ष से संचय का उल्लेख - ऐश्वर्यं च भवेद्बिल्वैः खदिरेण च संचयः ।। ), वराह १५३.४२ ( मथुरा माहात्म्य के अन्तर्गत १२ वनों में खदिर वन का उल्लेख ), वामन १७.५ ( ब्रह्मा के शरीर के मध्य भाग से खदिर वृक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.६०.५८ ( खदिर से मन्मथ की प्रसन्नता का उल्लेख - चूर्णकेनानलः प्रीतः खदिरेण तु मन्मथः ।। ), ६.२५२.३६( चातुर्मास में भूमिपुत्र/मङ्गल की खदिर वृक्ष में स्थिति का उल्लेख - खदिरो भूमिपुत्रेण अपामार्गो बुधेन च ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९० ( मङ्गल देवता के खदिर वृक्ष रूप में अवतरण का उल्लेख ), २.२७.१०१ ( ब्रह्मा के मध्य भाग से खदिर की उत्पत्ति का उल्लेख ) । khadira


      खद्योत गरुड २.२.७८(वन दाहक के खद्योत बनने का उल्लेख), २.४६.१५(कक्षदाहक के खद्योत बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२४.९ ( आविर्भाव की इच्छा से स्वयम्भू भगवान् के खद्योतवत् विचरण का उल्लेख ), १.२.३२.७८ ( अन्धकार में खद्योत के सहसा दृष्टिगोचर होने के समान अव्यक्त में महत्तत्व के विवर्त का कथन ), भागवत ४.२५.४७, ४.२९.१० ( शरीर रूपी नगरी के ९ द्वारों में से पूर्व दिशा के खद्योता और आविर्मुखी नामक दो चक्षु - रूप द्वारों द्वारा जीव रूप राजा पुरञ्जन के रूप रूपी विभ्राजित नामक देश में गमन का कथन ), स्कन्द ५.३.१५९.१५ ( कक्ष दाह से खद्योत योनि प्राप्त होने का उल्लेख ), कथासरित् १०.४.२०५ ( वानरों का खद्योत को अग्नि समझकर उससे शरीर तापने का कथन ) । khadyota


      खनन विष्णुधर्मोत्तर २.१०९(विभिन्न प्रकार की आथर्वण मणियों के खनन व मन्त्र सहित बन्धन की विधि ), लक्ष्मीनारायण ३.२१८ ( मौक्तिकेशी नाम अङ्गार खनिक की ईश भक्ति, ईश्वर द्वारा भक्त के परीक्षण व मोक्षण का वृत्तान्त ) ; द्र. घोरखनक ।


      खनिज लक्ष्मीनारायण २.१८.४३( खनिजन्य पितृकन्याओं द्वारा कृष्ण को धातुओं से उत्पन्न विविध द्रव आदि समर्पित करने का उल्लेख ), २.२२५.७३(८४ खनिजों का उल्लेख), khanija


      खनित्र भागवत ९.२.२४ ( प्रमति - पुत्र, चाक्षुष - पिता, दिष्ट वंश ), मार्कण्डेय ११७.१०,११८( प्रजाति के ५ पुत्रों में से एक, खनित्र के चरित्र का वर्णन ), वायु ८६.५ ( प्रजानि - पुत्र, क्षुप - पिता, वैवस्वत मनु वंश ), विष्णु ४.१.२४ ( प्रजापति - पुत्र, चक्षुष - पिता, वैवस्वत मनु वंश ) । khanitra


      खनिनेत्र भागवत ९.२.२५ ( रम्भ - पुत्र, करन्धम - पिता, दिष्ट वंश ), मार्कण्डेय १२० ( विविंश - पुत्र, क्षुप - पौत्र, पुत्र प्राप्ति की कामना से मृग वध हेतु वन में जाने पर अपुत्रवान् तथा पुत्रवान् मृगों से खनीनेत्र का संवाद ), वायु ८६.७ ( विविंश - पुत्र, करन्धम - पिता, वैवस्वत मनु वंश ), विष्णु ४.१.२८ ( विविंश - पुत्र, अतिविभूति - पिता, वैवस्वत मनु वंश ) । khaninetra


      खर गणेश २.१४.१३ ( खर रूप धारी काम व क्रोध राक्षसों का महोत्कट गणेश द्वारा वध ), गरुड १.२२५.२३ ( अशस्त्र पुरुष का हरण करने से खर योनि की प्राप्ति का उल्लेख ), देवीभागवत ४.२२.४४ ( खर नामक असुर के धेनुकासुर रूप में अवतरण का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.२७.१७ ( विकृत रूप धारी शिव द्वारा खर तुल्य गायन से क्रुद्ध मुनियों द्वारा खर होने का शाप ), २.३.६.३३ ( विजर के दो पुत्रों में से एक, दनु वंश ), २.३.८.५५ ( विश्रवा व पुष्पोत्कटा के ४ पुत्रों में से एक, पुलस्त्य वंश ), भविष्य ४.९४.६४ ( अनन्त भगवान् के दर्शनार्थ कौण्डिन्य ब्राह्मण द्वारा मार्ग में देखे गए खर / गर्दभ के क्रोध रूप होने का उल्लेख ), भागवत २.७.३४ ( श्रीकृष्ण द्वारा प्रलम्ब, खर प्रभृति राक्षसों के वध का उल्लेख ), ९.१०.९ ( राम द्वारा शूर्पणखा के खर तथा दूषण प्रभृति १४००० भाइयों के वध का उल्लेख ), मत्स्य ६.३३ ( ताम्रा व कश्यप की ६ कन्याओं में से एक सुग्रीवी से अज, अश्व, मेष, उष्ट्र तथा खरों की उत्पत्ति का उल्लेख ), १४८.४६ ( दैत्य सेनानायक कुजम्भ के ध्वज पर विधूत लाङ्गूल खर के अङ्कित होने का उल्लेख ), १७३.१३ ( तारकासुर के दिव्य रथ के सहस्र खरों से युक्त होने का उल्लेख ), १७३.१७, १७७.७ ( तारकामय सङ्ग्राम का एक दैत्य ), मार्कण्डेय १५.१ ( दुष्कर्म फलस्वरूप खर योनि प्राप्ति का उल्लेख ), १५.१८ ( अशस्त्र पुरुष की हत्या पर खर योनि प्राप्ति का उल्लेख ), वा.रामायण ३.१९ ( शूर्पणखा - भ्राता, शूर्पणखा की दुर्दशा देखकर क्रोधित खर द्वारा राम वध हेतु राक्षसों के प्रेषण का वृत्तान्त ), ३.२८, २९, ३० ( खर के राम से युद्ध तथा मृत्यु प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.४२.७ ( रावण द्वारा मारीच को खर युक्त रथ में आसीन होने का निर्देश ), ६.७८.२ ( रावण की आज्ञा से राम - लक्ष्मण वध हेतु खर - पुत्र मकराक्ष के युद्ध हेतु प्रस्थान का वर्णन ), वायु ५०.२७ ( तृतीय पीतभौम नामक तल में खर प्रभृति राक्षसों के निवास का उल्लेख ), ७०.४९ /२.९.४९ ( पुष्पोत्कटा व विश्रवा के चार पुत्रों में से एक, रावण - भ्राता ), ९९.४०६ ( कलियुग में प्रजा द्वारा अजा, खर, उष्ट्र आदि पशुओं के पालन का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६२.२८( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ५.३.१५९.१४ ( बहुयाजी को खर योनि प्राप्त होने का उल्लेख ), हरिवंश १.५४.७५ ( खर नामक दैत्य के ही धेनुक नामक दैत्य के रूप में उत्पन्न होकर तालवन में विचरने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५६१.२५ ( ब्राह्मणों के शाप से राजा हिरण्यबाहु का खर राक्षस बनना, रेवा - चरु संगम तीर्थ में स्नान से मोक्ष प्राप्ति ), २.८६.४१( विश्रवा व पुष्पोत्कटा के पुत्रों में से एक ), २.८७.२ ( विश्रवा - पुत्र, अधर्मजीव - पिता ), २.२४८.३३ (सोमयाग के संदर्भ में खरों / अग्निकुंडों में विभिन्न देवताओं के ग्रहों को रखने के उल्लेख ), ३.२२५.१४ (नरसिंह स्वामी साधु द्वारा खर पालक आदि को कृष्ण भक्ति का उपदेश ; खर की नारायण से रहित नर से उपमा), ३.२२५.१८ ( खर रूपी मनुष्यों के गुणों का वर्णन, खर शब्द की निरुक्ति ), कथासरित् १०.७.१३० ( वानर द्वारा शिशुमार / नाग को सुनाई गई कर्ण व हृदय से हीन खर की कथा ), १२.५.२०७ ( ब्राह्मणी की लाठी से मार खाकर भागे हुए खर के भग्न - खुर होने का उल्लेख ) । khara


      खर - दूषण वामन ४६.२२, २३ ( खर व दूषण द्वारा शिवलिङ्ग पूजन का उल्लेख ), वायु ७०.४९ ( विश्रवा व पुष्पोत्कटा से खर की तथा विश्रवा व वाका से दूषण की उत्पत्ति का उल्लेख ), कथासरित् ६.३.१३३ ( भैरव द्वारा खर - दूषण वंशोत्पन्न राक्षसी को क्षुधा तृप्ति के उपाय का कथन ) । khara - duushana


      खरपथ ब्रह्माण्ड १.२.१८.५७ ( पावनी नदी द्वारा सिंचित राज्य ), मत्स्य १२१.५६ ( नलिनी नदी द्वारा सिंचित राज्य ), वायु ४७.५४ ( पावनी नदी द्वारा सिंचित राज्य ) ।


      खरपाद स्कन्द ४.२.७४.५७ ( खरपाद गण की काशी में वरणा तट पर स्थिति तथा रक्षा का उल्लेख ) ।


      खररोमा वायु ६९.७४ ( काद्रवेय नागों में से एक ), शिव ५.३२.४७ ( कश्यप व सुरसा के सर्प - पुत्रों में से एक ) ।


      खरस्वन स्कन्द ७.४.१७.१८ ( दक्षिण दिशा के द्वार रक्षकों में से एक ) ।



      खर्जूर अग्नि २४७.३१ ( खर्जूर आदि वृक्षों को लवणोदक से सींचने का निर्देश ), पद्म १.१८.३४९ ( खर्जूरवन : पुष्कर के निकट फलपुष्पों से युक्त खर्जूर वन की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१.८५ ( इन्द्र द्वारा मारे गए वरत्री - पुत्रों के शीर्षों से खर्जूर की उत्पत्ति का उल्लेख ), वायु ६५.८३ /२४.८३ ( शुक्र - पुत्र वरूत्री के पुत्रों का इन्द्र द्वारा संहार करने पर वरूत्री - पुत्रों के शीर्षों के खर्जूर रूप में परिणत होने का उल्लेख ), स्कन्द २.२.४४.६ ( श्रावण मास में खर्जूर द्वारा श्रीहरि की अर्चना का निर्देश ), ६.२५२.२४( चातुर्मास में वरुण की खर्जूरी वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८६ ( वरुण देवता के खर्जूर वृक्ष के रूप में अवतरण का उल्लेख ), १.१५५.५३ ( अलक्ष्मी के खर्जूर वृक्ष सदृश पद का उल्लेख ), कथासरित् १०.५.३१ ( राजा की आज्ञा से खर्जूर तोडने हेतु प्रेषित मूर्खों द्वारा खर्जूर वृक्षों के छेदन की कथा ) । kharjuura/ kharjura


      खर्वट मत्स्य २६०.४७ ( खर्वट / पर्वत के समीपस्थ ग्राम में कुमार कार्तिकेय की चतुर्भुज प्रतिमा की स्थापना का उल्लेख ), २८३.३ ( पञ्चलाङ्गल नाम महादान में खर्वट आदि के दान का कथन ), वायु ९१.३० ( उर्वशी के अन्तर्हित होने पर राजा पुरूरवा द्वारा पर्वतों, उपवनों, आखेट स्थानों, खर्वटों / पर्वतों के समीपवर्ती ग्रामों आदि में उर्वशी के अन्वेषण का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.४४.१९(खर्वट के तार से युद्ध का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१२.७४ (दैत्यराज दमनक के दूत खर्वट का लोमश ऋषि के आश्रम में आगमन और दमनक के कन्या हरण रूप संदेश को लोमश को सुनाने का वृत्तान्त ) । kharvata


      खर्वविनायक स्कन्द ४.२.५७.६५ ( अष्ट विनायकों में से एक खर्वविनायक की गङ्गा -वरणा सङ्गम पर स्थिति तथा माहात्म्य ) ।


      खलति कथासरित् १०.५.४८(खलति / गञ्जा व्यक्ति व युवा की कथा द्वारा मूर्खों की कार्य असिद्धि का कथन ), १०.५.१८० ( केशरहित वैद्य को देखकर भी खलति का वैद्य से केशोत्पादक औषधि मांगकर स्वयं की मूर्खता के परिचय की कथा ) ।


      खला वायु ७०.६९ ( भद्राश्व व घृताची की दस पुत्रियों में से एक ), ९९.१२६ ( रौद्राश्व व घृताची की दस पुत्रियों में से एक ) ।


      खलीन ब्रह्माण्ड १.२.३५.२( खलीयान् : शाकल्य देवमित्र के ५ शिष्यों में से एक ), स्कन्द ५.३.२८.१३ ( महेश्वर के रथ के खलीन आदि अङ्गों में रश्मियों, छन्दों की स्थिति का उल्लेख ) ।


      खलीयान् ब्रह्माण्ड १.२.३५.२ ( वेदविद् शाकल्य के ५ शिष्यों में से एक ), वायु ६०.६४ ( खलीय : शाकल्य के पांच शिष्यों में से एक ) ।


      खश ब्रह्माण्ड १.२.१८.४६, ५० ( चक्षु व गङ्गा नदियों द्वारा खश प्रभृति जनपदों को प्लावित करने का उल्लेख ), १.२.३१.८३ ( अधर्मियों पर शासन हेतु राजा प्रमति द्वारा खश प्रभृति जातियों के संहार का उल्लेख ), भागवत ९.२०.३० ( भरत द्वारा खश, हूण प्रभृति जाति के राजाओं के वध का उल्लेख ),मत्स्य १४४.५७ ( खस : अधर्मियों पर शासन हेतु राजा प्रमति द्वारा खस प्रभृति जातियों के संहार का उल्लेख ) । khasha


      खशा गरुड १.५५.१८ ( भुवनकोश वर्णन के अन्तर्गत भारत के उत्तर पश्चिम में खशा प्रभृति देशों की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.३.५५, २.३.७.३७ ( दक्ष - पुत्री, कश्यप - पत्नी, यक्ष व राक्षस - माता, पुत्र स्वरूप का वर्णन ), २.३.७.१३२ ( खशा के पुत्र - पुत्रियों के नामों का कथन ), २.३.७.४६७ ( क्रूरशीला रूप में खशा का उल्लेख ), वायु २.८.७२+ /६९.७४ ( कश्यप - पत्नी, यक्ष तथा राक्षस रूप दो पुत्रों की माता , कर्म के अनुसार खशा -पुत्रों का कश्यप द्वारा नाम निरूपण, खशा - पुत्रों की प्रकृति का वर्णन ), विष्णु १.१५.१२४, १.२१.२५ ( कश्यप - पत्नी खसा से यक्ष तथा राक्षसों की उत्पत्ति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७.३ ( कश्यप-पत्नी, यक्ष व राक्षस - माता, खशा के वंश का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५४.२४ ( खशजातीय विष्णुदास की लीलावती नाम की खशी कन्या का म्लेच्छ युवक द्वारा अपहरण, गणिकाओं की सहायता से खशी का स्वगुरु के आश्रम में गमन, गुरु कृपा से गणिकाओं व खशी की पाप मुक्ति का वृत्तान्त ) । khashaa


      खस नारद १.५६.७४४( खस देश के कूर्म का पाणिमण्डल होने का उल्लेख ),


      खसृम पद्म १.६.५९ ( विप्रचित्ति व सिंहिका के नौ पुत्रों में से एक, दनु वंश ), विष्णु १.२१.११( सिंहिका व विप्रचित्ति के अनेक पुत्रों में से एक ) ।



      खाण्डव भागवत १.१५.८ ( खाण्डववन :अग्निदेव की तृप्ति हेतु खाण्डववन के दान का उल्लेख ), १०.५८.२५, १०.७१.४५ (अग्निदेव की प्रसन्नता हेतु खाण्डव वन को प्रदान करने का उल्लेख ), १०.७३.३२ ( खाण्डवप्रस्थ : कृष्ण, अर्जुन तथा भीम का जरासन्ध के वध के पश्चात् खाण्डवप्रस्थ में युधिष्ठिर के समीप गमन का उल्लेख ), महाभारत आदि २२२+ ( अग्निदेव की कृष्ण व अर्जुन से खाण्डववन को भस्म करने हेतु सहायता की याचना, कृष्ण व अर्जुन को शस्त्रास्त्र तथा दिव्य रथ प्रदान करना, खाण्डववन को भस्म करने का वृत्तान्त ), मत्स्य १९५.४० ( भार्गवों का एक आर्षेय प्रवर ), लक्ष्मीनारायण १.३३९.२१ ( खाण्डववन : वृन्दावन के समीपस्थ क्षेत्र खाण्डववन में वृन्दा व विष्णु विवाह के समय वरपक्ष का शिविर लगाने का उल्लेख ) । khaandava/ khandava

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      खाण्डिक्य अग्नि ३७९.१५ ( राजा केशिध्वज द्वारा खाण्डिक्य जनक को आत्मा सम्बन्धी उपदेश ), नारद १.४६.३७, १.४७ ( अमितध्वज - पुत्र, केशिध्वज द्वारा राज्य से च्युति, केशिध्वज को होमधेनु मरण प्रायश्चित्त विधान का कथन, केशिध्वज से अध्यात्म ज्ञान की प्राप्ति का वृत्तान्त ), भागवत ९.१३.२० ( मितध्वज - पुत्र, केशिध्वज - भ्राता, धर्मशास्त्र के महान् ज्ञाता रूप में उल्लेख ), विष्णु ६.५.८१, ६.६, ६.७ ( अमितध्वज - पुत्र, खाण्डिक्य जनक द्वारा केशिध्वज को ब्रह्म प्राप्ति कारक योगादि का उपदेश ) । khaandikya/ khandikya


      खात स्कन्द ५.३.१७६.३ ( देवखात : पिङ्गलेश्वर तीर्थ में देवखात निर्माण के कारण व उसमें स्नान के फल का कथन ), ५.३.१८१.२ ( वृषखात : वृषखात तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य का वर्णन ; भृगु ऋषि के तप का स्थान ) ; द्र. देवखात । khaata


      खातनास लक्ष्मीनारायण २.५.३४ ( खातनास आदि दैत्यों द्वारा बाल प्रभु को मारने का उद्योग, षष्ठी देवी द्वारा बाल प्रभु की रक्षा का वृत्तान्त ) ।


      खाता लक्ष्मीनारायण २.१४.३१ ( विखाता : राक्षसियों और कन्यकाओं के तुमुल युद्ध में विखाता राक्षसी द्वारा वृश्चिकास्त्र के मोचन का उल्लेख ) ।



      खुर महाभारत कर्ण ३४.१०५ ( त्रिपुर वध के समय भगवान् रुद्र द्वारा वृषभ के खुरों को चीरकर दो भागों में विभक्त कर देने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.६१.१६१ ( गोलोक से आई गायों के कोटि खुरों से खुरकर्तरि तीर्थ का निर्माण तथा संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८३.१०८ ( वही), ५.३.३९.३२ ( कपिला गौ के खुरों में पन्नगों की स्थिति का उल्लेख ), ५.३.८३.११० ( गौ के खुराग्रों में गन्धर्वों, अप्सराओं आदि के वास का उल्लेख ), ५.३.९२.२२ ( महिषी दान प्रसंग में यम के वाहक महिष के खुरों को आयसी किए जाने का उल्लेख ) । khura


      खेचर गरुड २.१५.३४(चत्वर पर खेचर के लिए पिण्ड दान का निर्देश), स्कन्द १.३.२.२२.१६ ( तुरङ्ग व सारङ्ग को शाप समाप्ति पर खेचरत्व / विद्याधरत्व की प्राप्ति तथा शाप के हेतु का वर्णन ) ।


      खेचरी नारद १.६६.११३( सोमेश की शक्ति खेचरी का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.३७.१० ( स्व चक्र की रक्षाकारिणी एक देवी ), ३.४.४२.१४ ( खेचरी मुद्रा के निर्माण का कथन ), ३.४.४४.५९ ( वर्ण शक्तियों में से एक ), स्कन्द ४.१.२९.४७ ( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), कथासरित् ३.६.१०५(खेचरी सिद्धि के संदर्भ में कालरात्रि व सुन्दरक का आख्यान, सुन्दरक द्वारा कालरात्रि से खेचर सिद्धि मन्त्र का श्रवण आदि) । khechari


      खेटा मत्स्य १७९.१७ ( अन्धकासुर के रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट अनेक मानस मातृकाओं में से एक ) ।


      खं भागवत ६.१.४२( देहधारियों के कर्म के साक्षियों में से एक ), स्कन्द ५.२.६९.५७(खङ्गमेश्वर लिङ्ग दर्शन से सहस्र राजसूय यज्ञों से अधिक फल प्राप्ति),


      ख्याति अग्नि २०.७ ( दक्ष - कन्या, भृगु - पत्नी, धाता, विधाता तथा लक्ष्मी - माता ), कूर्म १.१३.१ ( दक्ष - कन्या, भृगु- पत्नी, लक्ष्मी, धाता, विधाता की माता, ख्याति वंश का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५२, १.२.११.१ ( दक्ष- पुत्री, भृगु - पत्नी, धाता, विधाता व लक्ष्मी - माता ), १.२.१९.७५ ( क्रौञ्च द्वीप की सात नदियों में से एक ), १.२.३६.१०८ ( उरु व आग्नेयी के ६ पुत्रों में से एक ), २.३.१०.८७(ख्याति का एकशृङ्गा से साम्य?), भागवत ३.२४.२३( कर्दम मुनि द्वारा स्वपुत्री ख्याति को भृगु को समर्पित करने का उल्लेख - ख्यातिं च भृगवेऽयच्छद् वसिष्ठायाप्यरुन्धतीम् ॥ ), ४.१.४३ ( भृगु - पत्नी, धाता, विधाता व श्री की माता ), ४.१३.१७ ( उल्मुक तथा पुष्करिणी के ६ पुत्रों में से एक ), ८.१.२७ ( तामस मनु के दस पुत्रों में से एक ), मत्स्य ४.४३ ( उरु व आग्नेयी के ६ पुत्रों में से एक ), ४७.९४ ( शुक्राचार्य - माता तथा भृगु - पत्नी ख्याति देवी द्वारा इन्द्र का स्तम्भन, विष्णु चक्र से देवी की मृत्यु, भृगु द्वारा पुन: संजीवन का वृत्तान्त - संभृत्य सर्वसम्भारानिन्द्रं साभ्यचरत्तदा। तस्तम्भ देवी बलवद्योगयुक्ता तपोधना ), १२२.८८ ( क्रौञ्च द्वीप की सप्तविध गङ्गाओं में से एक ), लिङ्ग १.७०.१९, २० (ईश्वर के अनेक नामों में से एक, ख्याति की निरुक्ति - ख्यातिः प्रत्युपभोगश्च यस्मात्संवर्तते ततः। भोगस्य ज्ञाननिष्ठत्वात्तेन ख्यातिरिति स्मृतः।।.. ), वायु ४.३५/ १.४.३२-३३ ( ख्याति शब्द की निरुक्ति - ख्यातिः प्रत्युपभोगश्च यस्मात् संवर्त्तते ततः। भोगश्च ज्ञाननिष्ठत्वात्तेन ख्यातिरिति स्मृतः ।।.. ), १.२८.१ ( भृगु - पत्नी, धाता व विधाता – माता - भृगोः ख्यातिर्विजज्ञेऽथ ईश्वरौ सुखदुःखयोः। शुभाशुभप्रदातारौ सर्वप्राणभृतामिह। ), ४९.६९ ( क्रौञ्च द्वीप की सात गङ्गाओं में से एक ), ६२.४४ ( तामस मनु के दस पुत्रों में से एक ), विष्णु १.७.७, १.१०.२ ( भृगु - पत्नी, धाता, विधाता व लक्ष्मी - माता ), १.१३.७ ( कुरु व आग्नेयी के ६ पुत्रों में से एक ), ३.१.१९ ( तामस मनु के दस पुत्रों में से एक ), शिव ७.२.४.४९(त्रिनयनप्रिया देवी का रूप - भृगुर्भगाक्षिहा देवः ख्यातिस्त्रिनयनप्रिया ॥), लक्ष्मीनारायण १.४०७.३० ( भृगु - पत्नी, विष्णु कृत ख्याति नाश, भृगु द्वारा ख्याति के उज्जीवन का वर्णन ) । khyaati/ khyati