धट स्कन्द ६.२०४.६(नष्ट वंश नागर की शुद्धि हेतु धट? देने का कथन )
धत्तूर नारद १.६७.६०(धत्तूर पुष्प को विष्णु को अर्पण का निषेध), वामन १७ (धत्तूर की शिव से उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण २.२७.१०१ (धत्तूर की शिव ह्रदय से उत्पत्ति )
धन अग्नि २१४.१६(कास के ऋण व नि:श्वास के धन होने का उल्लेख), २५६ (पैतृक धन पर पुत्रों, पौत्रों आदि के अधिकार का विवेचन), गरुड २.३९.१५(क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र् द्वारा ब्राह्मण को द्विगुण, त्रिगुण व चतुर्गुण धन देने का कथन), नारद १.११०.३८ (मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को धन व्रत विधि), २.२८.४९ (धन द्वारा धर्म साधित होने का उल्लेख), पद्म १.२०.१०३(धनप्रद व्रत माहात्म्य व विधि), ५.९८ (धनशर्मा का कृतघ्न आदि प्रेतों से संवाद व उनका उद्धार), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६४(स्वामी के धन की वृद्धि हेतु रत्नेन्द्रसार दान का निर्देश), भविष्य १.३.४० (धनवर्धन वैश्य द्वारा पुन: भोजन करने से मृत्यु होने का कथन), ३.४.१०.३९(ब्राह्मण आदि चार वर्णों के धनों के गुण), भागवत १०.६४ (ब्राह्मण धन अपहरण में दोष, नृग का दृष्टान्त), ११.१९.३९ (धर्म के मनुष्यों का इष्ट धन होने का उल्लेख), मार्कण्डेय १००.३६/९७.३६(औत्तम मन्वन्तर को सुनने से धन प्राप्ति का उल्लेख), वामन १४.१९ (धन के सदाचार वृक्ष की शाखाएं होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.९५(वास्तु से क्षेत्र में निहित धन का ज्ञान - ऊष्मा प्रदृश्यते यत्र च्छत्राकारः क्षितौ क्वचित् । तत्र वित्तं विजानीयात्सुषिरं यदि भूतलम्।।), ३.१८४ (धन व्रत), ३.२१० (धन प्राप्ति व्रत), ३.२९९ (धन की शुक्लता), ३.३३० (धन दाय विभाग), स्कन्द ५.२.२५.४० (मत्सर के कारण धन के क्षय को रोकने का निर्देश), ५.३.७८.२९ (धन से नरों में नष्ट यौवन की पुन: प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१५५.११५ (जातवेदस अग्नि से धन की इच्छा करने का निर्देश), ५.३.१८२.२४ (विद्या के त्रिपौरुषा होते हुए भी धन के त्रिपुरुष न होने का उल्लेख), ७.१.१४८ ( धन नामक वणिक् की पत्नी के कर्ण का कुण्डल नामक चोर द्वारा कर्तन), महाभारत उद्योग ११४.३(प्रोष्ठपद में धन प्राप्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण १.३३.२३ (धन त्रयोदशी को लक्ष्मी की उत्पत्ति), १.२८३.३७ (कीर्ति के धनों में अनन्यतम होने का उल्लेख), १.३८८.५४ (राजा नन्दसावर्णि द्वारा वाराह की दन्तास्थि की सहायता से अबाधित गति प्राप्त करके धन एकत्र करना, धन का सदुपयोग न करके समुद्र तल में सुरक्षित करना, दन्तास्थि के नष्ट होने पर धन का समुद्र तल में ही रहना), १.५४३.७४ (धना : दक्ष द्वारा कुबेर को अर्पित ५ कन्याओं में से एक), २.७१.२ (ज्यामघ द्वारा स्वभार्या धनालसा को इन्द्रद्युति विप्र भक्त द्वारा भगवान की परम माया को देखने का वृत्तान्त सुनाना), २.७३.८ (चोरों द्वारा सुधना भक्त के धन का अपहरण कर लेने पर कृष्ण द्वारा राजभट रूप धारण कर सुधना को धन वापस दिलाने की कथा), २.१२१.१०० (धनायन : मेषादि राशियों के ऋषियों के संदर्भ में ब्रह्मा द्वारा धनायन/धनु ऋषि को भ, म,फ, ढ वर्ण देने का उल्लेख), २.१६१.१३ (धनमेद धीवर द्वारा तुरी नामक कुल देवी की अर्चना व तुर्या लक्ष्मी के दर्शन, जाल द्वारा मत्स्य पकडने पर मत्स्य में विराट मत्स्यावतार रूप धारी कृष्ण के दर्शन करना व वैष्णव बनना), २.२३६ (बालकृष्ण द्वारा धन त्रयोदशी को धनलक्ष्मी की पूजा, बर्बुर / बबूल वृक्ष रूप धारी नृप का उद्धार आदि), २.२७०.९८ (रायधनेश्वर हस्ती के काष्ठहार से वैर के संदर्भ में हस्ती के पूर्व जन्म में रायधनेश्वर नामक नृप होने का कथन), ३.१८.९ (धन दान के वस्त्र दान से श्रेष्ठतर व गोदान से निकृष्टतर होने का उल्लेख), ३.१५६.१ (राजा धनवर्मा द्वारा तप करके दक्षसावर्णि मनु बनने का वृत्तान्त), ४.२४.२७ (भक्ति के अव्यय धन होने का उल्लेख), ४.३४.१ (धनधृक् नगर में शिबिका - वाहक विष्टि नारियों की कृष्ण भक्ति से मुक्ति का वृत्तान्त), ४.६२.१२ (राज्य प्रधान द्वारा अन्याय से उपार्जित धन के वृश्चिक बनने का कथन), कथासरित् ६.७.१४१ (राजा द्वारा ब्राह्मण के अपहृत धन की पुन: प्राप्ति के लिए अपनाई गई युक्ति का वर्णन), ७.७.५७ (राजा चिरायु की रानी धनपरा द्वारा पुत्र जीवहर को दीर्घकाल तक राज्य प्राप्ति का उपाय बताना), १०.८.९१ (धनदेव वणिक् व उसके मित्रों द्वारा स्वभार्याओं के अनाचार देखकर वैराग्य की ओर अग्रसर होना), महाभारत वन ९९.११ (इल्वल के धन का स्वामी होने का उल्लेख), शान्ति २६ (युधिष्ठिर द्वारा धनञ्जय / अर्जुन हेतु धन की अपेक्षा धर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन ; प्राप्त धन का उपयोग यज्ञार्थ करने का निर्देश), २७१.३ (ब्राह्मण द्वारा धन प्राप्ति हेतु कुण्डधार जलधर को प्रसन्न करना, कुण्डधार द्वारा मणिभद्र के माध्यम से ब्राह्मण को धन के बदले धर्म की प्राप्ति कराना, धन की अपेक्षा धर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), २९२.४ (न्याय से अर्जित धन को धर्म हेतु न्याय द्वारा वर्धित करने व संरक्षण करने का निर्देश), अनुशासन ७० (ब्राह्मण के स्व की रक्षा न कर पाने के कारण राजा नृग के कृकलास बनने की कथा ) ; द्र. जन्तुधना, तपोधना, शीलधना, सुधना, सधना, ब्रह्मधना dhana
धनक भागवत ९.२३.२३(दुर्मद - पुत्र, कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों के पिता, यदु वंश), विष्णु ३.१.१८(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ४.११.१०(दुर्दम - पुत्र, ४ पुत्रों के पिता, यदु वंश ) dhanaka
धनञ्जय अग्नि ८८.४(शान्त्यतीत/तुर्यातीत कला के २ प्राणों में से एक, शङ्खिनी नाडी में स्थित धनञ्जय वायु की प्रकृति का कथन), २१४.१४(धनञ्जय वायु के घोष का हेतु होने का उल्लेख), गणेश २.१०.३२ (अग्नि द्वारा महोत्कट गणेश का धनञ्जय नामकरण), देवीभागवत १.३.३० (१६वें द्वापर में व्यास), पद्म ५.१०५.१५२ (सौ भार्याओं वाले धनञ्जय विप्र के पुत्र करुण का वृत्तान्त), ७.१२ (विष्णु भक्त धनञ्जय, अश्वत्थ महिमा, धनञ्जय द्वारा विष्णु के दर्शन), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१४ (धनञ्जय नाग की सूर्य रथ में स्थिति), १.२.३२.११८(१३ कुशिक श्रेष्ठों में से एक), १.२.३५.१२०(१६वें द्वापर में धनञ्जय के वेदव्यास होने का उल्लेख), भविष्य २.१.१७.१२ (समावर्तन में अग्नि का नाम), भागवत ५.२४.३१(रसातल के नीचे पाताल में धनञ्जय आदि नागों की स्थिति का उल्लेख), १२.११.३९(धनञ्जय नाग की तप/माघ मास में सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख), मत्स्य १४५.११३(१३ श्रेष्ठ कौशिकों में से एक), १९८.१०(कुशिक कुल के एक त्र्यार्षेय प्रवर), वायु ५२.१४(धनञ्जय की इष/आश्विन मास में सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख), ६९.७०/२.८.६७(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), १०३.६३/२.४२.६२(धनञ्जय द्वारा त्रय्यारुणि से वायु पुराण सुनकर कृतञ्जय को सुनाने का उल्लेख), विष्णु १.२१.२२(कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), २.१०.११(धनञ्जय की इष/आश्विन मास में सूर्य रथ पर स्थिति की उल्लेख), ३.३.१५(१६वें द्वापर में धनञ्जय के वेदव्यास होने का उल्लेख), ४.७.३८(विश्वामित्र के देवरात आदि ७ पुत्रों में से एक), स्कन्द ४.१.३०.२४ (धनञ्जय वणिक् द्वारा काशी में माता की अस्थियों के गङ्गा में क्षेपण के प्रयास के विफल होने का वृत्तान्त), महाभारत शल्य ४६.४७(शिव द्वारा रुद्र को प्रदत्त सेना का विशेषण), लक्ष्मीनारायण १.५३३.१२२(शरीर की धनञ्जय वायु के दिव्य रूप में कुबेर बनने का उल्लेख ), द्र. व्यास, रथ सूर्य dhananjaya
धनद अग्नि १८४.१३ (धीर विप्र के धनद वृष की चोरी व पुन: प्राप्ति का वर्णन), देवीभागवत ५.८.६७ (धनद के तेज से देवी की नासिका की उत्पत्ति), नारद १.१२२.७५ (धनद त्रयोदशी व्रत), पद्म ६.६.९१ (धनद का जालन्धर - सेनानी निर्ह्राद से युद्ध), ब्रह्माण्ड २.३.५.९४(तृतीय गण के सात मरुतों में से एक), भागवत ९.२.३२(विश्रवा व इडविडा - पुत्र), मत्स्य १७१.५६(१२ आदित्यों में से एक), लिङ्ग २.१.५८ (पद्माक्ष विप्र द्वारा कौशिक विप्र को अन्न दान से धनद बनना), वराह ३०.७ (वायु द्वारा मूर्त्त रूप धारण कर धनद बनने का कथन), वामन ९ (धनद का शकटचक्राक्ष वाहन), विष्णु ३.२.११(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज से धनद की शिबिका के निर्माण का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२२+ (धनद का अष्टावक्र से धर्म फल संबंधी संवाद), स्कन्द १.२.१३.१५० (धनद द्वारा हेम लिङ्ग पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग), ५.३.६८ (धनद तीर्थ का माहात्म्य), ६.२५२.२५(चातुर्मास में धनद की अक्षोट वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.५६ (धनदेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : अलका का आधिपत्य प्राप्त करने हेतु धनद द्वारा स्थापना), ७.३.२६ (धनद यक्ष : सुमति राजा द्वारा कनखल तीर्थ में सुवर्ण क्षेपण से धनद यक्ष बनना), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८६ (वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन के लिए धनद के अक्षोट वृक्ष होने का उल्लेख ) dhanada
धनदत्त कथासरित् २.५.५४ (पुत्रहीन धनदत्त वणिक् द्वारा कठिनता से गुहसेन पुत्र की प्राप्ति, गुहसेन का वृत्तान्त), १२.१०.१६ (सारिका द्वारा पुरुषों की नृशंसता के वर्णन के संदर्भ में अर्थदत्त - पुत्र धनदत्त द्वारा स्वपत्नी रत्नावली के साथ की गई नृशंसता का वर्णन), १८.४.९८, १४५ (धनदत्त वणिक् की भार्या के हस्ती द्वारा अपहरण व पुन: प्राप्ति की कथा ) dhanadatta
धनपाल पद्म ६.४९.१३ (धनपाल वैश्य के पांच पुत्रों में से धृष्टबुद्धि नामक दुष्ट प्रकृति वाले पुत्र का वृत्तान्त), भविष्य १.९४ (अयोध्या में वैश्य, सूर्य आराधना से सूर्य लोक प्राप्ति), ३.२.७.९ (कुबेर द्वारा जीवों की भाषा के ज्ञाता धनपाल का रूप धारण कर त्रिलोसुन्दरी कन्या की याचना करना ) dhanapaala
धनयक्ष पद्म ६.११४.२८ (पापी धनेश्वर विप्र द्वारा कार्तिक व्रतियों के दर्शन के पुण्य से धनद - अनुचर धनयक्ष बनना), स्कन्द २.४.२९.२७ (कुबेर - अनुचर, पूर्व जन्म में धनेश्वर ब्राह्मण), २.८.७.३२ (धनयक्ष तीर्थ की उत्पत्ति तथा माहात्म्य का वर्णन ; धनयक्ष तीर्थ में निधि लक्ष्मी व धनयक्ष के पूजन का महत्त्व ) dhanayaksha
धनवती भविष्य ३.२.१८.३ (धनाध्यक्ष वैश्य - पुत्री, गौरीदत्त - पत्नी, मोहिनी - माता, मोहिनी के मरणासन्न चोर की पत्नी बनने का वृत्तान्त), कथासरित् १२.२६.८ (धनपाल - पुत्री धनवती के चोर की दत्तक - पुत्री बनने व विप्र से उत्पन्न पुत्र के राजा बनने की कथा), १४.२.३७ (देवसिंह नामक विद्याधर की पत्नी धनवती द्वारा स्व - पुत्री अजिनावती को उसके भावी पति नरवाहनदत्त को सौंपना ) dhanavatee/ dhanavati
धनायु मत्स्य २४.३३(पुरूरवा व उर्वशी के ८ पुत्रों में से एक )
धनिष्ठा लक्ष्मीनारायण ३.१९२ (धनिष्ठकोश : स्नेहलता - पति, पत्नी द्वारा भक्ति से वेश्याओं की संगति से मुक्त होने का वृत्तान्त ); द्र. नक्षत्र dhanishtha
धनु नारद १.६६.१३३(वक्रतुण्ड गणेश की शक्ति धनुर्धरी का उल्लेख), ब्रह्म १.९.३५ (दीर्घतपा - पुत्र, धन्वन्तरि - पिता, अनेना वंश), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१९३(सृंजय के २ पुत्रों में से एक), ३.४.४४.७४(धनुर्धरी : ४९ वर्ण शक्तियों में से एक), भागवत १०.३६.२६(धनुर्यज्ञ : कंस द्वारा कृष्ण को छलपूर्वक बुलाने के लिए धनुर्यज्ञ का आयोजन), मत्स्य ४६.२७ (शूर व भोजा - पुत्र शमीक के ४ पुत्रों में से एक), २१७.६(धनुदुर्ग : ६ प्रकार के दुर्गों में से एक), वायु ६७.८१/२.६.८१(धनुक : प्रह्लाद - पुत्र शम्भु के ६ पुत्रों में से एक), स्कन्द ५.२.६३ (धनु:सहस्र लिङ्ग का माहात्म्य : विदूरथ - कन्या का कुजम्भ दैत्य द्वारा हरण होने पर विदूरथ द्वारा धनुर्लिङ्ग उपासना से धनुष प्राप्ति, दैत्य का वध), लक्ष्मीनारायण १.३७१.७(नरक के कुण्डों के धनु प्रमाणों का कथन ) ; द्र. बृहद्धनु, यक्ष्मधनु, शतधनु dhanu
धनुर्ध्वज पद्म ७.४.३४ (श्वपच, पद्मावती की प्राप्ति हेतु प्रणिधि वैश्य रूप धारण करना, स्वर्ग गमन, प्रयाग माहात्म्य का प्रसंग )
धनुर्वेद अग्नि १२१.२९ (धनुर्वेद आरम्भ हेतु नक्षत्र विचार), २४९ - २५२ (धनुर्वेद का वर्णन), ब्रह्माण्ड ३.४.१७.३८(संगीतयोगिनी के करस्थ शुक पोत से प्रकट धनुर्वेद के स्वरूप का कथन), भागवत ९.२१.३५(शतानन्द - पुत्र सत्यधृति के धनुर्वेद में निपुण होने का उल्लेख), मार्कण्डेय १३३.५/१३०.५(वृषपर्वा से धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्ति का उल्लेख), विष्णु ५.२१.२१(कृष्ण व बलराम द्वारा ६४ दिनों में सान्दीपनी गुरु से धनुर्वेद को सरहस्य ग्रहण के अद्भुत कृत्य का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१७८+ (धनुर्वेद का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.१५७.१४ (न्यास वर्णन के अन्तर्गत धनुर्वेद का वाम भुजा में न्यास), महाभारत शल्य ६.१४ (अश्वत्थामा द्वारा दस अङ्गों व चार पादों वाले इषु अस्त्र / धनुर्वेद को तत्त्वतः जानने का उल्लेख) dhanurveda
धनुष अग्नि २४५.४ (धनुष निर्माण हेतु प्रशस्त द्रव्य), २४९.२४ (धनुष का नाभि में तथा शर का नितम्बों में न्यास), २४९.३७ (धनुष के हस्तप्रमाणों का कथन), गणेश २.६०.४५ (नरान्तक वध हेतु गणेश के समक्ष आठ पद वाले पिनाक धनुष के पतन का उल्लेख), गर्ग ५.६.२४ (कृष्ण द्वारा मथुरा में धनुष भङ्ग का उद्योग), देवीभागवत ५.९.१४ (वायु द्वारा देवी को धनुष व तरकस भेंट करना), ७.३६.६ (सार्वत्रिक श्लोक प्रणवो धनु: शरो आत्मा इत्यादि), पद्म २.५५.२ (सुकला सती के संदर्भ में धर्म चाप व ज्ञान बाण का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.१२.१० (भण्डासुर के विजय धनुष का उल्लेख), भविष्य ४.१३८.७२ (दुर्गा उत्सव के संदर्भ में चाप मन्त्र का कथन), भागवत ५.२.७(भ्रूवलियों/भौहों की बिना डोरी के धनुष से उपमा), ७.१०.६६ (त्रिपुर नाशार्थ शिव के रथ में तप के धनुष व क्रिया के बाण होने का उल्लेख), १०.४२.१७ (कृष्ण द्वारा कंस के धनुष का भञ्जन), वराह २१.३५(दक्ष यज्ञ विध्वंस हेतु गायत्री के धनुष, ओंकार के गुण , सात स्वरों के शर बनने का उल्लेख), वामन ६.९७ (शिव के क्रोध से कामदेव के धनुष के पञ्चधा विभक्त होकर चम्पक, बकुल आदि बनने का कथन), वा.रामायण १.१.४२ (राम द्वारा अगस्त्य से ऐन्द्र धनुष आदि प्राप्त करने का उल्लेख), १.६६.८ (जनक द्वारा शिव का धनुष प्राप्त होने के मूल का वर्णन), १.६७.४ (राम द्वारा शिव के धनुष पर आरोपण करने पर धनुष के भङ्ग होने का वर्णन), १.७५ (विष्णु द्वारा हुंकार मात्र से शिव के धनुष को स्तम्भित करने, विष्णु का धनुष ऋचीक मुनि आदि को क्रमश: प्राप्त होने तथा राम द्वारा वैष्णव धनुष से परशुराम के तप:प्राप्त लोकों का नाश करने का वृत्तान्त), १.७६ (राम द्वारा वैष्णव धनुष पर शर आरोपित करके परशुराम के तप: - प्राप्त पुण्य लोकों का नाश करना), विष्णु १.२२.७० (विष्णु का शार्ङ्ग धनुष : इन्द्रियादि राजस अहंकार का प्रतीक), विष्णुधर्मोत्तर १.६६ (परशुराम द्वारा कार्यसिद्धि के पश्चात् तूण अगस्त्य को व चाप श्रीराम को देने का शिव का निर्देश), १.६७.१४(शिव व विष्णु द्वारा एक दूसरे के चाप पर प्रत्यारोपण करने का प्रयत्न करना, शिव के धनुष का परशुराम, वरुण, अर्जुन, जनक आदि में स्थान्तरण), २.१६ (चाप व शर लक्षण वर्णन के अन्तर्गत धनुष व शर के द्रव्यों आदि का वर्णन), २.१६०.३२ (धनुष - मन्त्र), २.१७८+ (धनुर्वेद विद्या का वर्णन), ३.३७.१० (चक्रवर्ती पुरुषों के नेत्रों के चापाकृति होने का उल्लेख), स्कन्द २.१.६.६४(भक्त हेतु मूर्धा में शार्ङ्ग व शर धारण करने का निर्देश), ३.१.३०. ७५ (विभीषण के आग्रह पर राम द्वारा धनुष की कोटि से स्वनिर्मित सेतु को भङ्ग करने से धनुष कोटि नाम विख्यात होना), ३.२.१४.४८ (महाविष्णु के प्रबोधन के लिए देवों के आग्रह पर वम्रियों द्वारा धनुष के गुण को काटना, धनुष के गुण से विष्णु के शिर: छेदन होने की कथा), ५.१.४४.११ (समुद्र मन्थन से शार्ङ्ग धनुष की उत्पत्ति का उल्लेख), ५.२.६३.२९ (राजा विदूरथ द्वारा कुजम्भ असुर के वध के लिए धनु:साहस्र प्राप्त करने का वर्णन, इन्द्र द्वारा धनुष से जम्भ के वध का उल्लेख), हरिवंश २.२७.४१ (कृष्ण द्वारा कंस के धनुष का भञ्जन), महाभारत उद्योग ९८.१९(गाण्डीव धनुष की निरुक्ति एवं प्रशंसा- एष गाण्डीमयश्चापो लोकसंहारसंभृतः), द्रोण २३.९१ (युधिष्ठिर, भीम आदि पाण्डवों के दिव्य धनुषों के स्वामी देवताओं के नाम - माहेन्द्रं च धनुर्दिव्यं धर्मराजे युधिष्ठिरे। वायव्यं भीमसेनस्य धनुर्दिव्यमभून्नृप।।…), ८१.१४ (नागों का धनुष व बाण के रूप में परिवर्तित होना, शिव द्वारा अर्जुन को पाशुपत अस्त्र प्रदान करना), १४६.१०७ (प्रदीप्तोल्कमभवच्चान्तरिक्षं मृतेषु देहेष्वपतन्वयांसि। यत्पिङ्गलज्येन किरीटमाली क्रुद्धो रिपूनाजगवेन हन्ति।।), कर्ण ६४.४६ (कर्ण द्वारा विजय नामक धनुष पर भार्गवास्त्र के प्रयोग का कथन), सौप्तिक १८.७ (शिव द्वारा यज्ञों से धनुष और वषट्कार से धनुष की ज्या बनाने का वर्णन - वषट्कारोऽभवज्ज्या तु धनुषस्तस्य भारत । यज्ञाङ्गानि च चत्वारि तस्य संहननेऽभवन् ॥), शान्ति २६.२७(धनुष, ज्या आदि का यज्ञ में यूप, रशना आदि से साम्य - धनुर्यूपो रशना ज्या शरः स्रुक्स्रुवः खड्गो रुधिरं यत्र चाज्यम्।), २८९.१८ (शिव द्वारा पाणि से अपने शूल को आनत करने पर पिनाक नाम की प्रसिद्धि का वर्णन), अनुशासन १४.२५६ (पाशुपतास्त्र के संदर्भ में शिव के पिनाक धनुष व बाण का उपयोग), १४१ दाक्षिणात्य पृ.५९१५ (ब्रह्मा द्वारा वेणु विशिष्ट से तीन धनुषों पिनाक, शार्ङ्ग व गाण्डीव बनाने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३९ (न्यास वर्णन में शार्ङ्ग धनुष का मस्तक में न्यास), कथासरित् ८.३.७६ (सूर्यप्रभ द्वारा भूमि व आकाश से पतित नागों को पकडने पर नागों के धनुष, धनुषगुण व तूणरत्न आदि बनने का वर्णन - सोऽपि सूर्यप्रभेणात्र गृहीतस्तेन पूर्ववत् । धनुर्गुणत्वं संप्राप मेघश्चाशु ननाश सः ।। ) dhanusha
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धनुषकोटि ब्रह्माण्ड १.२.३६.१९५(पृथु द्वारा धनुष की कोटि से पृथिवी को समतल बनाने का उल्लेख), मत्स्य १०.३१(वही), वायु ६२.१६९/२.१.१६७(पृथु द्वारा धनुष की कोटि से पृथिवी को समतल करने का उल्लेख), स्कन्द ३.१.३०.६९ (धनुषकोटि तीर्थ का माहात्म्य, राम द्वारा लङ्का के परित: रेखाकरण?, अश्वत्थामा का सुप्तमारण दोष से मुक्त होना), ३.१.३२ (राजा धर्मगुप्त - ऋक्ष - सिंह की कथा , राजा द्वारा धनुषकोटि में स्नान से उन्माद से मुक्ति), ३.१.३३ (धनुषकोटि तीर्थ का माहात्म्य : अर्वावसु - परावसु की कथा ) dhanushakoti
धनेश्वर पद्म ६.११३ (भ्रष्ट ब्राह्मण धनेश्वर द्वारा नरक के दर्शन, तुलसी जल से मुक्ति, धन यक्ष बनना), भविष्य ४.१६९.४१ (धनेश्वर वैश्य द्वारा सर्प का पालन, सहस्र अन्न दान द्वारा सर्प भय से मुक्ति की कथा), वराह १७.७१(वायु रूप धनेश के शरीर में कारण बनने का उल्लेख), स्कन्द २.४.२९.२ (धनेश्वर ब्राह्मण का सांसर्गिक पुण्य से कुबेर अनुचर बनना ) dhaneshwara
धन्य अग्नि ३८२.१४(आरोग्य के परम धन्य होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८७.४७ (सनत्कुमार - प्रोक्त देवों की धन्यता), वराह ७.१०, २७ (पितरों का उद्धार करने के कारण सनत्कुमार द्वारा रैभ्य के लिए धन्य की उपाधि), ५६ (मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को धन्य व्रत की विधि व माहात्म्य), विष्णु २.४.५३ (क्रौञ्च द्वीप के निवासी वैश्यों की उपाधि), हरिवंश २.११०.२२ (नारद द्वारा कच्छप की धन्यता से लेकर श्रीकृष्ण की परम धन्यता का प्रतिपादन), महाभारत वन ३१३.७३ (यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में यक्ष द्वारा दक्षता को धन्यों में उत्तम कहना ) dhanya
धन्या पद्म ५.७०.५ (कृष्ण - पत्नी, उत्तर दिशा में स्थिति), मत्स्य ४.३८ (मनु - कन्या, ध्रुव - पत्नी, शिष्ट - माता), शिव २.३.२.५ (स्वधा व पितरों की तीन कन्याओं में से एक, सनकादि द्वारा नर स्त्रियां होने का शाप, सीता - माता बनना), स्कन्द ७.४.१२.२८ (धन्या गोपी द्वारा कृष्ण विरह पर प्रतिक्रिया), लक्ष्मीनारायण १.१७९.१७ (स्वधा व पितरों की तीन कन्याओं में से एक, सनकादि द्वारा नर स्त्रियां होने का शाप, सीरध्वज जनक - पत्नी व सीता - माता बनना), १.२९८.५७ (स्वधा व पितर - पुत्री, तप करके जनक - पत्नी व सीता - माता बनना), १.३८५.४४(धन्या का कार्य : ललाट भूषण), १.५४३.७४ (दक्ष द्वारा कुबेर को अर्पित ५ कन्याओं में से एक), २.२७१.५० (वणिक् - पत्नी धन्येश्वरी द्वारा चोरों से प्राप्त रत्नों को घट में छिपाना, हस्त का घट से चिपकना और लक्ष्मी के मन्दिर के निर्माण के संकल्प से हस्त का घट से विलग्न होना ) dhanyaa
धन्व ब्रह्माण्ड २.३.६७.७(दीर्घतपा - पुत्र, धन्वन्तरि - पिता, धन्वन्तरि पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त - धन्वश्च दीर्घतपसो विद्वान्धन्वन्तरिस्ततः ॥), शिव ५.४.२९ (कश्यप द्वारा धन्व नृप की कन्या की याचना का उल्लेख - कश्यपः शिवमायातो मोहितः कामसंकुलः ।। ययाचे कन्यकां मोहाद्धन्वनो नृपतेः पुरा ।।), ब्रह्माण्ड ३.४.३४.२६(धन्वकारा : षोडशावरण चक्र के दशम आवरण में एक रुद्र), स्कन्द १.२.१३.१८४(शतरुद्रिय प्रसंग में यम द्वारा कालायसमय लिङ्ग की धन्वी नाम से पूजा का उल्लेख - यमः कालायसमयं नाम प्राह च धन्विनम्॥ ), हरिवंश १.२९.२२ ( सुनहोत्र - पुत्र, तप द्वारा धन्वन्तरि पुत्र प्राप्ति - पुत्रकामस्तपस्तेपे धन्वो दीर्घं तपस्तदा ।। ... अब्जं देवं सुतार्थाय तदाऽऽराधितवान्नृपः ।। ) ; द्र. त्रिधन्वा, दृढधन्वा, मरुधन्व, वीरधन्व, शतधन्व, सुधन्वा, स्वर्णधन्व dhanva
धन्वन्तरि गरुड ३.२९.५७(शाकादि भक्षण काल में धन्वन्तरि के स्मरण का निर्देश), ब्रह्म १.९.३५ (दीर्घतमा - पुत्र, धनु का कनिष्ठ भ्राता?, केतुमान - पिता के रूप में धन्वन्तरि देव का मानुष योनि में जन्म होने का कथन ; धन्वन्तरि द्वारा आयुर्वेद के ८ विभाग करने का उल्लेख ) , २.५२ (तम राक्षस द्वारा तपोहानि पर धन्वन्तरि नृप द्वारा विष्णु की स्तुति, इन्द्र पद प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.४६.१०६(काश्यप ब्राह्मण द्वारा तक्षक से धन प्राप्त करने की कथा के संदर्भ में काश्यप के बदले धन्वन्तरि का उल्लेख), ४.५१ (धन्वन्तरि - शिष्यों का तक्षक की मणि निकालना, धन्वन्तरि व मनसा देवी का परस्पर युद्ध), ब्रह्माण्ड २.३.६७ (समुद्र मन्थन से धन्वन्तरि की उत्पत्ति, कालान्तर में दीर्घतपा - पुत्र बनना, द्वितीय जन्म में सिद्धि प्राप्ति), भविष्य ३.४.९.१७ (पौष मास के सूर्य के कलियुग में धनवन्तरि वैद्य के रूप में अवतरण की कथा), ३.४.२०.३६ (धन्वन्तरि द्विज का यज्ञांश कृष्ण चैतन्य से प्रकृति व पुरुष के विषय में संवाद, धन्वन्तरि का कृष्ण चैतन्य का शिष्य बनना), भागवत ६.८.१८ (धन्वन्तरि से कुपथ्य से रक्षा की प्रार्थना - धन्वन्तरिर्भगवान्पात्वपथ्याद्द्वन्द्वाद्भयादृषभो निर्जितात्मा।), ८.८.३१(समुद्र मन्थन से प्रकट धन्वन्तरि के स्वरूप का कथन - दीर्घपीवरदोर्दण्डः कम्बुग्रीवोऽरुणेक्षणः। श्यामलस्तरुणः स्रग्वी सर्वाभरणभूषितः।..), वायु ९१, ९२.६/२.३०.७ (समुद्र मन्थन से धन्वन्तरि का प्राकट्य, अज उपनाम, कालान्तर में दीर्घतपा - पुत्र बनना ; केतुमान - पिता), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३.४१ (धन्वन्तरि की मूर्ति का रूप), शिव ५.१०.३९ (भोजन से पूर्व बलि के संदर्भ में चतुष्कोण मण्डल में धन्वन्तरि के लिए ईशान कोण में बलि दान का निर्देश), स्कन्द १.१.१२.१(समुद्र मन्थन से धन्वन्तरि के प्रकट होने और मोहिनी द्वारा अमृत वितरण की कथा), १.२.१३.१५५ (शतरुद्रिय प्रसंग में धन्वन्तरि द्वारा गोमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख - धन्वंतरिर्गोमयं च सर्वलोकेश्वरेश्वरम्॥), ६.२१२ (धन्वन्तरि वापी का माहात्म्य), हरिवंश १.२९ (धन्व - पुत्र, समुद्र मन्थन से उत्पत्ति, अब्ज नाम, वंश वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.६०.८ (धन्वन्तरि विप्र द्वारा हाटकाङ्गद को सर्पदंश से बचाने का प्रयास, सर्प से धन लेकर लौटना), १.७८ (द्वापर में विष्णु के धन्वन्तरि अवतार की आवश्यकता का वर्णन, ब्रह्मा द्वारा धन्वन्तरि की स्तुति), १.८० (धन्वन्तरि के त्रिविध प्राकट्य का वर्णन : मानस, सामुद्र व दीर्घतपा - पुत्र रूप में अवतरण), १.४८७ (समुद्रज धन्वन्तरि द्वारा नागों की पराभव व मनसा देवी से युद्ध आदि का वर्णन ) dhanvantari
धन्वन् रेगिस्तान को कहते हैं। रेगिस्तान से पार कराने वाला धन्वन्तरि कहलाएगा । हमारा जीवात्मा सोम, आप:, ओषधि और गा: से सम्पन्न होने पर धन्वन्तरि कहलाएगा । - फतहसिंह
धमनि भागवत ६.१८.१५ (ह्राद - भार्या, वातापि व इल्वल की माता )
धर नारद १.६६.१०८(धर की शक्ति कुण्डोदरी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.३.३१(वसु व धर्म के पुत्रों ८ वसुओं में से एक, द्रविण आदि ३ पुत्रों के पिता), भविष्य ३.४.१५.६५ (कलियुग में कुबेर के धरदत्त वैश्य के पुत्र त्रिलोचन के रूप में अवतरण की कथा), मत्स्य ५.२१(कल्याणी व मनोहरा - पति, ८ वसुओं में से एक), २०३.४(८ वसुओं में से एक), लिङ्ग १.४९.५(मेरु के पश्चिम् में पर्वत - द्वय धराधर का उल्लेख), वायु ६६.२०/२.५.२०(वसु व धर्म के पुत्रों ८ वसु पुत्रों में से एक, मनोरमा पति), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८.१८ (धर वसु द्वारा सुमाली राक्षस के वध का उल्लेख), हरिवंश ३.५३.८ (धर वसु का नमुचि से युद्ध), ३.५५.१ (नमुचि व धर वसु का युद्ध, नमुचि के चक्र से धर की पराजय ) dhara
धरणि/धरणी गणेश १.९०.५४ (शेष द्वारा धरणीधर नाम से गणेश की आराधना का उल्लेख, प्रवाल नगर में धरणीधर नाम), भविष्य ४.८३.६ (धरणी / पृथिवी द्वारा रसातल से उद्धार हेतु विभिन्न मासों के द्वादशी व्रतों का वर्णन व माहात्म्य), ४.१०५.३ (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा व्रत में धरणी देवी से शोक रहित करने की प्रार्थना), भागवत ६.६.१२(ध्रुव - पत्नी, पुरों की माता), वराह ५० (कार्तिक द्वादशी को धरणी व्रत की विधि व माहात्म्य), ११३.५ (धरणी - सनत्कुमार संवाद के अन्तर्गत धरणी द्वारा यज्ञवराह से हुए धर्म सम्बन्धी वार्तालाप का वर्णन), स्कन्द २.१.३ (आकाशराज - भार्या, वसुदान व पद्मिनी - माता), ३.१.२२.१८(परशुराम की पत्नी के रूप में धरणी का उल्लेख), ४.२.८१.४६ (धरणीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१८६(मेरु-भामिनी धरणी का उल्लेख), १.३९८.११ (धरणी देवी का वराह के पास इला व पिङ्गला सखियों सहित आने का उल्लेख, धरणी सुषुम्ना का रूप? ) dharanee/ dharani
वेद में धरणी व वियतराज (आकाश ) का साम्य द्यावापृथिवी से है ।
धरा गणेश २.८५.२४ (धराधर गणेश से पार्श्व की रक्षा की प्रार्थना), गर्ग १.३.४१ (द्रोण वसु - पत्नी, यशोदा रूप में अवतरण), देवीभागवत ७.३० (शङ्खोद्धार तीर्थ में देवी का धरा नाम), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९.१७(द्रोण वसु का पत्नी धरा सहित श्रीकृष्ण दर्शनार्थ तप, जन्मान्तर में नन्द - यशोदा रूप में कृष्ण की पुत्र रूप में प्राप्ति का कथन), पद्म ३.२८.२६ (धरा नदी का संक्षिप्त माहात्म्य : पाप से मुक्ति), ६.२८.१७ (धरापाल राजा द्वारा विष्णु आयतन निर्माण व पुराण श्रवण के पुण्य से उत्तम लोक की प्राप्ति), भागवत १०.८.५०(द्रोण वसु की पत्नी, यशोदा रूप में अवतरण), मत्स्य १०१.५२ (धरा व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), २८४(हेम धरा दान विधि), वराह ३९.२३+ (रसातल में गिरी धरा द्वारा व्रत - उपवासों के चीर्णन से नारायण द्वारा पृथिवी का उद्धार ; धरा द्वारा चीर्णित व्रतों का वर्णन), वामन ९०.३८ (धरातल में विष्णु का कोकनद नाम), शिव ७.१.१७.४९(स्वधा व बर्हिषद् पितरों की पुत्री, मेरु - पत्नी, मन्दर व ३० कन्याओं की माता), स्कन्द ३.२.२०.३८ (धरा क्षेत्र का वर्णन : शिव द्वारा मन्त्रों के कूटों व बीजों का उद्घाटन, धर्मारण्य में शिव के पास पार्वती के पहुंचने पर शिव की जटा आदि का भूमि पर पतन आदि), ४.२.७२.६० (धरित्री देवी द्वारा ह्रदय की रक्षा), हरिवंश १.३.११७ (स्थल व जल के पक्षियों की माता), योगवासिष्ठ ६.२.८७.५७ (धरा धारणा का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.१८३.७८ (हस्तिपालक धरोधर द्वारा हस्ती के पाद भङ्ग करने से अगले जन्म में राजा बने हस्ती द्वारा सागर रूपी धरोधर के पादों को भङ्ग करने का वृत्तान्त ), कृष्णोपनिषद १५(सत्यभामा धरा का रूप), द्र. वसुन्धरा dharaa
धर्त्ता वायु ६७.१२६/२.६.१२६(मरुद्गणों के तीसरे गण का एक मरुत् )
धर्म
अग्नि
१६७.१३(धर्म
की
कीर्त्ति
आदि
१४
पत्नियों
के
नाम),
२२३
(राजधर्माः),
२२५
(राजधर्म),
२३९
(राजधर्म),
गणेश
२.११९.५
(धर्म
-
अधर्म
:
सिन्धु
असुर
-
पुत्र,
युद्ध
में
कार्तिकेय
द्वारा
वध
)
गरुड
१.८७.३७
(धर्मसावर्णि
मनु
के
पुत्रों
के
नाम),
१.९३+
(याज्ञवल्क्य
द्वारा
ब्रह्मचारी,
गृहस्थ
आदि
के
आचार/धर्म
के
लक्षणों
का
कथन),
१.२१३
(श्रुति,
स्मृति,
सदाचार,
अष्टविधधर्म
का
वर्णन),
१.२१५.५/१.२२३.५(कृतयुग
आदि
में
धर्म
के
४
पादों
सत्य,
दान,
तप,
दया
की
प्रतिष्ठा
तथा
हरि
के
श्वेतादि
वर्ण
का
कथन),
२.३४.२(कृत
में
तप,
त्रेता
में
ज्ञान,
द्वापर
में
यज्ञदान
व
कलि
में
दान
की
प्रशंसा,
गृहस्थधर्म
का
वर्णन),
देवीभागवत
४.४.१४
(सत्य,
शौच,
दया,
दान
आदि
धर्म
के
४
पाद,
धर्म
के
संदर्भ
में
छल
का
औचित्य
-
अनौचित्य),
९.२२.८
(धर्म
का
शङ्खचूड
-
सेनानी
धुरन्धर
से
युद्ध),
नारद
१.२३.५४
(धर्मकीर्ति
:
विधर्मी
राजा,
एकादशी
व्रत
प्रभाव
से
नरक
से
मुक्ति,
गालव
-
पुत्र
भद्रशील
बनना),
२.२८.२७
(राक्षसी
द्वारा
ब्राह्मण
को
धर्म
की
सूक्ष्म
गति
के
उदाहरण
देना),
२.२८.७१
(धर्म
के
कामदुघा
धेनु
होने
का
श्लोक),
पद्म
१.३४.१७
(ब्रह्मा
के
यज्ञ
में
सदस्य),
२.१२.४८
(दुर्वासा
द्वारा
तीन
शापों
के
कारण
धर्म
की
युधिष्ठिर,
विदुर
व
चाण्डाल
रूप
में
उत्पत्ति),
२.५५.२
(सुकला
सती
के
संदर्भ
में
धर्म
चाप
व
ज्ञान
बाण
का
उल्लेख),
२.५६.१
(सत्य
द्वारा
धर्म
से
अपनी
महिमा
तथा
काम
द्वारा
गृहों
से
सत्य
के
निष्कासन
का
वर्णन),
२.५६.३०
(धर्म
द्वारा
प्रज्ञा
शकुनी
की
सहायता
से
काम
के
मनोरथ
को
निष्फल
करना),
२.५९.८
(धर्म
द्वारा
पतिव्रता
भार्या
सुकला
को
छोड
तीर्थ
यात्रा
करने
वाले
पति
कृकल
का
प्रबोधन),
५.९९.१८
(सत्य
व
धर्म
की
कुण्डल
-
द्वय
से
उपमा),
५.१०९.५५
(धर्म
के
पशुओं
का
पालक
व
अधर्म
के
तस्कर
होने
का
उल्लेख),
६.७४.२
(धर्म
से
अर्थ,
काम
व
मोक्ष
की
प्राप्ति
का
उल्लेख),
६.१४१
(माण्डव्य
– धर्म
संवाद,
विदुर
द्वारा
धर्मावती
नदी
में
स्नान
द्वारा
शूद्रत्व
से
मुक्ति),
७.६.२०
(धर्मबुद्धि
:
भीमनाद
गण्डक
का
पूर्व
जन्म
में
नाम),
७.७.१४
(धर्मस्व
ब्राह्मण
द्वारा
कालकल्प
का
गङ्गाजल
से
सिंचन,
गङ्गा
की
स्तुति,
वर
प्राप्ति),
ब्रह्म
१.१०७
(धर्मराजपुरी
जाने
के
लिए
अपेक्षित
कर्म,
धर्म
की
महिमा),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.३.४१
(धर्म
का
श्रीकृष्ण
वक्ष
से
जन्म),
१.१०
(वेश्या
धर्म
के
सम्बन्ध
में
घृताची
-
विश्वकर्मा
संवाद),
२.१०.१५२(धर्म
द्वारा
सरस्वती
को
धर्मबुद्धि
व
यश
देने
का
उल्लेख),
३.७.४१(सनत्कुमार
द्वारा
पार्वती
से
शिव
को
दक्षिणा
में
मांगने
के
संदर्भ
में
भर्त्ता
के
१००
पुत्रों
के
समान
और
धर्म
से
अवर
होने
का
कथन),
४.४२.२
(
धर्म
द्वारा
नृप
रूप
धारण
कर
पिप्पलाद
-
पत्नी
पद्मा
के
सतीत्व
की
परीक्षा,
सती
द्वारा
धर्म
को
क्षय
होने
का
शाप,
धर्म
की
चार
युगों
में
क्षय
-
वृद्धि),
४.८३
(चतुर्वर्ण
का
धर्म),
४.८६.३३
(धर्म
द्वारा
द्विज
रूप
धारण
कर
तपोरत
वृन्दा
की
परीक्षा,
वृन्दा
द्वारा
धर्म
को
भस्म
करना
व
पुनरुज्जीवित
करना,
धर्म
का
चार
युगों
में
कलाओं
से
युक्त
होना),
ब्रह्माण्ड
१.२.७.१७८(प्रजापति
द्वारा
ब्राह्मण
आदि
चार
वर्णों
व
ब्रह्मचर्य
आदि
चार
आश्रमों
के
धर्मों
का
वर्णन),
१.२.९.१(सृष्टि
के
आदि
में
ब्रह्मा
द्वारा
रुद्र,
धर्म
आदि
५
की
मानसी
सृष्टि
का
उल्लेख),
१.२.९.४९(धर्म
द्वारा
दक्ष
की
श्रद्धा,
लक्ष्मी
आदि
१३
पुत्रियों
को
पत्नियों
के
रूप
में
स्वीकार
करना),
१.२.३२.४९
(क्षमा,
तप,
शम
आदि
के
लक्षण),
२.३.७४.१०(गान्धार
-
पुत्र,
धृत
-
पिता,
द्रुह्यु
वंश),
३.४.१.१४
(सुतपा
देवगण
के
२०
देवों
में
से
एक),
३.४.१.१०४(१३वें
मन्वन्तर
में
रौच्य
मनु
के
१०
पुत्रों
में
से
एक),
३.४.१३.१३(ललिता
देवी
की
बाहुओं
के
धर्म
का
स्वरूप
होने
का
उल्लेख),
भविष्य
१.१.४३(धर्मशास्त्रों
के
रचयिता
ऋषियों
के
नाम),
१.१३८.३७(रवि
की
धर्म
ध्वज
का
उल्लेख),
१.१५१
(सौर
धर्म),
१.१७१
(मग
धर्म),
१.१७३
(सौर
धर्म--
अरुण-गरुड
संवाद),
१.१८१.१(सूर्य
द्वारा
अरुण
को
पंच
प्रकार
धर्म
का
वर्णन),
१.१८४
(ब्राह्मण
धर्म),
२.१.१
(चतुर्वर्ण
को
धर्म
फल
की
प्राप्ति),
३.२.११
(राजा
धर्मवल्लभ
द्वारा
मन्त्री
बुद्धिप्रकाश
की
सहायता
से
पाताल
में
विद्याधर
-
कन्या
को
पत्नी
रूप
में
प्राप्त
करना,
मन्त्री
की
मृत्यु),
३.२.११.६
(वानप्रस्थ
से
प्राप्त
धर्मानन्द
के
अधम,
कर्मकाण्ड
से
सत्य
धर्म
व
संन्यास
से
सर्वोत्तम
आनन्द
की
प्राप्ति
का
कथन),
३.२.२९.३(धर्म
की
परिभाषा
:
विप्रों
व
अतिथियों
के
लिए
दान),
३.४.९
(राजा
धर्मपाल
द्वारा
जयदेव
ब्राह्मण
से
दीक्षा
की
प्राप्ति),
३.४.२५.२६(ब्रह्मा
की
पूर्व
भुजा
से
धर्म
व
पश्चिम्
भुजा
से
यज्ञ
की
उत्पत्ति
का
कथन),
४.८९
(धर्म
आराधना
व्रत,
मुद्गल
मुनि
व
मुद्गल
राजा
का
यमदूतों
द्वारा
बन्धन,
यम
त्रयोदशी
व्रत
के
कारण
मुक्ति),
भागवत
१.१६.१८+
(परीक्षित्
द्वारा
एक
पाद
वृषभ
रूपी
धर्म
व
गौ
रूपी
पृथिवी
के
बीच
वार्तालाप
का
श्रवण
कर
कलियुग
का
दमन
करना
-
धर्मः
पदैकेन
चरन्
विच्छायामुपलभ्य
गाम्
।
पृच्छति
स्माश्रुवदनां
विवत्सामिव
मातरम्
॥),
१.१७.२४(धर्म
के
चार
पादों
तप,
शौच,
दया
व
सत्य
में
से
कलियुग
में
केवल
सत्य
के
ही
शेष
रहने
का
कथन,
अधर्मांश
स्मय,
सङ्ग
व
मद
से
तीन
पादों
के
नष्ट
होने
का
कथन
-
इदानीं
धर्म
पादस्ते
सत्यं
निर्वर्तयेद्यतः
।
तं
जिघृक्षत्यधर्मोऽयमनृतेनैधितः
कलिः
॥),४.१.४९
(धर्म
की
१३
पत्नियों
व
उनके
पुत्रों
के
नाम),
६.३.२१(भागवत
धर्म
को
जानने
वाले
१२
पुरुषों
के
नाम),
६.४.४६(धर्म
के
भगवान्
की
आत्मा
होने
का
उल्लेख),
७.११.१२
(धर्म
के
तीस
लक्षण),
८.१३.२६
(धर्मसेतु
:
अवतार,
आर्यक
व
वैधृता
-
पुत्र),
९.२३.१५(गान्धार
-
पुत्र,
धृत
-
पिता,
द्रुह्यु
वंश),
९.२३.२२(हैहय
-
पुत्र,
नेत्र
-
पिता,
यदु
वंश),
९.२३.३४(पृथुश्रवा
-
पुत्र,
उशना
-
पिता,
यदु
वंश),
११.१९.३९(धर्म
के
मनुष्यों
का
इष्ट
धन
होने
का
उल्लेख),
११.२९
(कृष्ण
द्वारा
उद्धव
हेतु
प्रोक्त
भागवत
धर्म),
मत्स्य
४८.८(गन्धार
-
पुत्र,
घृत
-
पिता,
द्रुह्यु
वंश),
१४५.४१
(धर्म
के
अङ्गों
क्षमा
आदि
के
लक्षण),
१६५(कृतादि
४
युगों
में
धर्म
व
अधर्म
की
पाद
संख्याओं
का
कथन),
२०३
(धर्म
के
वंश
का
वर्णन),
२१५
(राजा
व
राज्य
कर्मचारी
का
धर्म),
मार्कण्डेय
५०
(दक्ष
पुत्रियों
का
धर्म
की
पत्नियां
बनना),
लिङ्ग
१.४०.४७(त्रेता
में
वार्षिक,
द्वापर
में
मासिक,
कलि
में
आह्निक
धर्म
का
उल्लेख),
वराह
३२
(धर्म
की
उत्पत्ति,
चन्द्रमा
के
दोष
से
अदृश्य
होना,
देवों
द्वारा
स्तुति),
११५
(विविध
धर्मोत्पत्ति
:
चतुर्वर्ण
द्वारा
श्रीहरि
की
प्राप्ति
के
लिए
अपेक्षित
कर्मों
का
वर्णन),
१४०.४४
(कोकामुख
क्षेत्र
में
धर्मोद्भव
तीर्थ
का
माहात्म्य
:
शूद्र
से
वैश्य
होना
आदि),
वामन
२.१२
(दक्ष
यज्ञ
में
धर्म
व
उसकी
भार्या
अहिंसा
के
द्वारपाल
बनने
का
उल्लेख),
११.१४
(ऋषियों
द्वारा
सुकेशि
राक्षस
को
देवों,
दैत्यों,
सिद्धों,
गन्धर्वों,
गुह्यकों
आदि
के
धर्मों
का
कथन),
१४.१
(धर्म
के
अहिंसा,
सत्य
आदि
१०
अङ्गों
का
कथन),
१४.४
(ब्रह्मचारी
के
धर्म
का
कथन),
१४.१८
(धर्म
के
सदाचार
वृक्ष
का
मूल
व
धन
के
शाखा
होने
का
उल्लेख
;
गृहस्थ,
वानप्रस्थ
आदि
के
धर्मों
का
वर्णन),
वायु
८.१८६/
१.८.१७७(धर्म
के
१०
लक्षणों
का
कथन),
१०.२६(धर्म
द्वारा
दक्ष
की
श्रद्धा,
लक्ष्मी
आदि
१३
कन्याओं
को
पत्नी
रूप
में
स्वीकार
करने
का
उल्लेख),
१०.३३(धर्म
व
दक्ष
-
पुत्रियों
से
उत्पन्न
पुत्रों
का
वृत्तान्त),
५७.११७(यज्ञ
के
धर्म
मन्त्रात्मक
तथा
तप
के
अनशनात्मक
होने
का
उल्लेख,
यज्ञ
की
अपेक्षा
तप
की
प्रशंसा),
५९.२१(धर्म
की
निरुक्ति
:
श्रौत
व
स्मार्त
धर्म
का
ज्ञान
-
वर्णाश्रमेषु
युक्तस्य
स्वर्गगोमुखचारिणः।
श्रौतस्मार्तस्य
धर्मस्य
ज्ञानाद्धर्मः
स
उच्यते
।।),
५९.२७(कुशलाकुशल
कर्म
के
धर्म
होने
का
कथन),
५९.४३
(दया,
दम,
त्याग
आदि
के
लक्षण),
६३.४१/२.२.४१(दक्ष
द्वारा
१०
कन्याएं
धर्म
को
देने
का
उल्लेख),
६६.२/२.५.२(धर्म
की
१०
भार्याओं
से
उत्पन्न
पुत्रों
का
वर्णन),
७६.३/
२.१४.३(धर्म
की
पत्नी
विश्वा
से
उत्पन्न
विश्वेदेवों
का
वर्णन),
९२.७(दीर्घतपा
-
पुत्र,
धनवन्तरि
-
पिता),
१००.१५/२.३८.१५(२०
सुतपा
देवगण
में
से
एक
देव),
विष्णु
१.१५.११०(८
वसुओं
में
से
एक,
मनोहरा
पत्नी
से
उत्पन्न
द्रविण
आदि
पुत्रों
के
नाम),
४.११.८(हैहय
-
पुत्र,
धर्मनेत्र
-
पिता,
यदु
वंश),
४.१७.४(गान्धार
-
पुत्र,
घृत
-
पिता,
द्रुह्यु
वंश),
४.२३.६(सुव्रत
-
पुत्र,
सुश्रवा
-
पिता,
मागध
बार्हद्रथ
वंश),
विष्णुधर्मोत्तर
१.१०७.९३
(१४
दक्ष
पुत्रियों
से
धर्म
का
परिणय,
पुत्रों
के
नाम),
१.११९
(अरुन्धती
-
पुत्र
धर्म
के
वंश
का
वर्णन),
१.१४६.३२
(धर्मसूत्रों
के
रचयिता
ऋषियों
के
नाम),
१.१४६.४१
(युधिष्ठिर
के
प्रश्न
के
उत्तर
में
कृष्ण
द्वारा
धर्मवृद्धि
कारक
वृषभ
के
लक्षणों
तथा
वृषोत्सर्ग
विधि
का
वर्णन),
२.८२
(चतुर्वर्णों
का
आपद
धर्म),
३.७७
(धर्म
की
मूर्ति
का
रूप),
३.१२१.४(नैमिष
में
धर्म
की
पूजा
का
निर्देश),
३.१७८
(धर्म
व्रत),
३.२०९
(धर्म
प्राप्ति
व्रत),
३.२५५
(धर्म
की
प्रशंसा),
३.३२२
(स्त्री
धर्म),
३.३२३
(राजा
का
धर्म),
शिव
१.१७.८४(महिषारूढ
धर्म
को
तरने
पर
वृषभारूढ
धर्म
को
प्राप्त
करने
का
कथन),
२.१.१६.६
(ब्रह्मा
द्वारा
संकल्प
से
धर्म
के
सृजन
का
उल्लेख
-
संकल्पादसृजं
धर्मं
सर्वसाधनसाधनम्
।।),
२.१.१६.१९
(दक्ष
द्वारा
धर्म
को
प्रदत्त
श्रद्धादि
१३
पुत्रियों
के
नाम
;
कल्प
भेद
से
दक्ष
द्वारा
धर्म
को
१०
कन्याएं
देने
का
उल्लेख),
२.३.३५
(धर्म
का
पिप्पलाद
-
पत्नी
पद्मा
से
संवाद),
२.५.३६.१२
(शङ्खचूड
-
सेनानी,
धुरन्धर
से
युद्ध),
७.१.३२
(क्रियातपजप
आदि
पंचविध
शैव
धर्म),
७.२.१०.३०(ज्ञान,
क्रिया,
चर्या
व
योग
नामक
चतुष्पाद
धर्म
का
उल्लेख),
स्कन्द
१.२.४
(धर्मवर्म
राजा
द्वारा
दान
के
विषय
में
आकाशवाणी
प्रोक्त
श्लोक
का
श्रवण,
नारद
द्वारा
श्लोक
का
अर्थ
बताकर
राजा
से
दान
प्राप्त
करना),
१.२.५८.३३
(महीसागर
सङ्गम
तीर्थ
द्वारा
स्वयं
को
सर्वश्रेष्ठ
घोषित
करने
पर
धर्म
द्वारा
शाप),
१.३.१.९.८५
(धर्मकेतु
राजा
व
उसके
अश्व
द्वारा
अरुणाचलेश
की
प्रदक्षिणा
से
शिवगण
बनने
का
कथन),
२.४.२.५५
टीका
(शालग्राम
शिला
के
दान
के
अभाव
में
धर्मचार
वैश्य
द्वारा
जन्मान्तरों
में
कष्ट
प्राप्ति
की
कथा),
२.७.२०.५२
(भागवत
धर्म
का
विवेचन),
२.७.२२.१६
(
धर्मवर्ण
मुनि
द्वारा
कलियुग
की
अवस्था
का
दर्शन,
पितरों
के
कल्याणार्थ
तर्पण,
विवाह
आदि),
२.८.४
(अयोध्या
में
धर्म
हरि
स्थान
का
माहात्म्य
:
धर्म
द्वारा
विष्णु
की
स्तुति),
३.१.३.६३
(धर्म
द्वारा
शिव
का
वाहन
होने
की
कामना
से
आराधना,
वृषभ
वाहनत्व
की
प्राप्ति),
३.१.१५
(धर्मसखा
:
राजा,
पुत्रेष्टि
यज्ञ
द्वारा
सौ
पुत्रों
की
प्राप्ति),३.१.२५
(
वत्सनाभ
की
रक्षा
हेतु
धर्म
द्वारा
महिष
का
रूप
ग्रहण
करना),
३.२.३
(धर्म
के
तप
में
वर्धिनी
अप्सरा
का
विघ्न,
धर्म
द्वारा
वरदान,
शिव
द्वारा
धर्म
को
वर,
धर्मेश्वर
लिङ्ग
की
स्थापना),
३.२.४(धर्मारण्य
में
क्षेत्र
स्थापन
नामक
अध्याय),
३.२.५.२२(धर्म
के
संचिनुयन
की
शृङ्गवान्
द्वारा
वल्मीक
निर्माण
से
उपमा),
४.१.२९.९३
(धर्मधारा
:
गङ्गा
सहस्रनाम),
४.१.३३.१६९
(धर्मेश-मणिकर्णेश
:
शिव
शक्ति
के
दक्षिण-वाम
कर
का
रूप),
४.२.५९.८७
(धर्म
की
धूतपापा
कन्या
पर
आसक्ति,
परस्पर
शाप
-
प्रतिशाप
से
नद
व
शिला
बनना),
४.२.७८
(धर्म
पीठ
में
यम
का
तप,
शिव
की
स्तुति,
शुक
शावकों
का
कल्याण,
पार्वती
की
विश्वभुजा
रूप
में
धर्म
पीठ
में
उपस्थिति),
४.२.७९.६
(धर्म
द्वारा
अपने
तप
के
साक्षी
शुकों
के
लिए
शिव
से
वर
की
याचना),
४.२.८०.६
(धर्म
पीठ
में
पार्वती
की
विश्वभुजा
नाम
से
स्थिति),
४.२.८१.५१
(धर्मेश
लिङ्ग
का
माहात्म्य
:
इन्द्र
द्वारा
धर्म
रूप
में
स्नान
से
ब्रह्महत्या
से
मुक्ति,
दुष्ट
प्रकृति
वाले
दुर्दम
राजा
द्वारा
आराधना
से
निर्वाण
प्राप्ति),
४.२.८३.१०१
(धर्म
तीर्थ
का
संक्षिप्त
माहात्म्य),
५.२.६९.२९
(शूद्र
द्वारा
अन्त
समय
में
धर्म
की
प्रशंसा
करने
से
शिप्रा
में
मत्स्य
बनना),
५.२.८१.५३
(ब्राह्मण
रूप
धारी
धर्म
द्वारा
पिङ्गला
कन्या
को
उसके
पूर्व
जन्म
का
वृत्तान्त
सुनाना),
५.३.२६.१२६
(चतुर्दशी
को
श्राद्ध
में
धर्म
हेतु
पात्र
व
उपानह
-
द्वय
ब्राह्मण
को
देने
का
निर्देश),
५.३.१९२.७
(नारायण
के
स्तनों
से
धर्म
का
प्रादुर्भाव,
दक्ष
की
१०
कन्याओं
से
धर्म
का
विवाह,
साध्य
गण
व
नर,
नारायण
आदि
पुत्रों
की
प्राप्ति),
५.३.१९४.५५
(नारायण
व
श्री
के
विवाह
यज्ञ
में
ऋत्विजों
के
वर्णन
के
संदर्भ
में
धर्म
व
वसिष्ठ
के
होता
बनने
का
उल्लेख),
६.२५९.४७
(धर्म
का
नील
वृषभ
का
रूप),
७.१.२१.६
(दक्ष
द्वारा
धर्म
को
प्रदत्त
१०
कन्याओं
के
नाम),
हरिवंश
३.१७.३०
(धर्म
के
ब्रह्मचर्य
आदि
४
पादों
के
नाम),
वा.रामायण
३.११.८
(धर्मभृत्
मुनि
द्वारा
राम
को
पञ्चाप्सरस
तीर्थ
के
माहात्म्य
का
कथन),
महाभारत
वन
२.७५(अष्टविध
धर्म
का
कथन—पितृयान+देवयान),
३१३.४६
(युधिष्ठिर
व
यक्ष
के
संवाद
में
धर्म
द्वारा
सूर्य
को
अस्त
की
ओर
ले
जाने
का
उल्लेख),
३१३.६५
(सनातन
धर्म
की
प्रकृति
का
प्रश्न?),
३१३.६९
(एकपदधर्म्य
का
प्रश्न
:
दाक्ष्य
के
एकपदधर्म्य
होने
का
उल्लेख),
३१३.७५
(पर
लोक
में
तथा
सदाफल
धर्म
का
प्रश्न
:
आनृशंस्य
/
दया
के
परलोक
में
धर्म
व
त्रयी
धर्म
के
सदाफल
होने
का
उल्लेख),
शान्ति
१++
(राजधर्म
अनुशासन
पर्व
का
आरम्भ),
१०९
(युधिष्ठिर
-
भीष्म
संवाद
में
धर्म
के
सत्य
-
अनृत
आदि
व्यावहारिक
स्वरूप
का
वर्णन),
१३१+
(आपद्धर्म
पर्व
का
आरम्भ),
१७४+
(मोक्ष
धर्म
पर्व
का
आरम्भ),
२३६.९
(जीव
के
योग
रथ
में
धर्म
के
उपस्थ
होने
का
उल्लेख),
२३७.२(धर्म
के
प्रवृत्ति
लक्षण
या
निवृत्ति
लक्षण
होने
का
प्रश्न
व
उत्तर,
धर्मज्ञों
के
वेदज्ञ,
आत्मज्ञ
आदि
क्रमिक
स्तर),
२५०.४
(मन
और
इन्द्रियों
की
एकाग्रता
के
परम
तप
व
परम
धर्म
होने
का
कथन),
२५९
(धर्म
के
इस
लोक
या
उस
लोक
में
अर्थयुक्त
होने
का
प्रश्न
-
भीष्म
द्वारा
धर्माधर्म
के
स्वरूप
के
व्यावहारिक
निर्णय
का
प्रतिपादन),
२६०
(कालप्रभाव
से
बलवानों
के
धर्म
के
अनाचार
में
परिवर्तित
होने
का
प्रश्न),
२६२+
(तुलाधार
द्वारा
जाजलि
मुनि
को
धर्म
विषयक
उपदेश),
२६४
(तुलाधार
द्वारा
जाजलि
मुनि
को
धर्म
के
संदर्भ
में
श्रद्धा
के
महत्त्व
का
वर्णन),
२७१
(कुण्डधार
जलधर
द्वारा
ब्राह्मण
को
धन
की
अपेक्षा
धर्म
की
प्राप्ति
कराने
के
उद्योग
का
वृत्तान्त),
२७२.१७(ब्राह्मण
द्वारा
यज्ञ
में
मृग
की
हिंसा
अस्वीकार
करने
पर
मृग
का
धर्म
रूप
में
प्रकट
होना),
२७३
(पापात्मा
के
अकुशल
धर्म
तथा
प्रज्ञायुक्त
धर्मात्मा
के
कुशल
धर्म
के
लक्षणों
का
वर्णन),
३४८
(धर्म
की
चार
गतियों
में
एकान्तिक
/
सात्वत
धर्म
की
उपदेश
परम्परा
का
वर्णन),
अनुशासन
१++
(दानधर्म
पर्व
का
आरम्भ),
१२६+
(विष्णु,
बलदेव,
देवगण,
धर्म
आदि
द्वारा
धर्म
के
गूढ
रहस्यों
का
वर्णन),
१४१.२८
(शिव
-
पार्वती
संवाद
में
चातुर्वर्ण्य
धर्म
का
निरूपण),
१४२
(वानप्रस्थ,
यायावर,
वैखानसों,
वालखिल्यों
आदि
के
धर्मों
का
वर्णन),
आश्वमेधिक
३२
(ब्राह्मण
रूप
धारी
धर्म
व
राजा
जनक
का
संवाद),
९२.४२
(धर्म
द्वारा
क्रोध
का
रूप
धारण
कर
पय:
पात्र
में
प्रवेश,
जमदग्नि
के
शाप
से
धर्म
का
नकुल
/
नेवला
बनना,
नकुल
द्वारा
युधिष्ठिर
पर
आक्षेप
करके
नकुलता
से
मुक्त
होना),
९२.५३
दाक्षिणात्य
(युधिष्ठिर
-
कृष्ण
संवाद
के
रूप
में
वैष्णव
धर्म
पर्व
का
आरम्भ),
लक्ष्मीनारायण
१.३०३
(धर्म
की
ब्रह्मा
के
वक्ष
से
उत्पत्ति,
धर्म
की
भावी
पत्नी
मूर्ति
द्वारा
अधिक
मास
की
एकादशी
को
नारायण
पूजा
से
दक्ष
गृह
में
जन्म
लेकर
धर्म
की
पत्नी
बनना
और
नर,
नारायण,
कृष्ण
व
हरि
पुत्रों
को
जन्म
देना),
१.३७२.११७(धर्म
के
पूर्व,
वर्त्तमान
व
भविष्य
के
चार
-
चार
पादों
के
नाम),
१.३८२.१९(विष्णु
के
धर्म
व
लक्ष्मी
के
सत्क्रिया
होने
का
उल्लेख),
१.४३९
(तपोरत
धर्म
द्वारा
तपभङ्ग
करने
के
लिए
प्रेषित
वर्धिनी
अप्सरा
को
पतिव्रता
के
लक्षणों
का
वर्णन),
१.४४०.९४
(धर्मारण्य
में
धर्म
द्वारा
किए
गए
यज्ञ
के
ऋत्विजों
के
नामादि),
१.४६६
(शुचि
अप्सरा
व
वेदशिरा
मुनि
-
कन्या
धूतपापा
का
धर्म
की
पत्नी
बनने
का
वृत्तान्त,
धर्म
की
पत्नियों
में
धूतपापा
के
सर्वाधिक
प्रिय
होने
का
कथन
;
धर्म
व
धूतपापा
-
पुत्र
बिन्दु
माधव
का
माहात्म्य
आदि),
१.४७३
(सूर्य
-
पुत्र
यम
द्वारा
तप
करके
धर्म
बनना,
यम
के
सहवासी
शुकों
द्वारा
वर
से
सर्वज्ञत्व
प्राप्त
करना),
१.५२६.१००
(राजा
वसु
के
शरीर
से
पाप
पुरुष
का
निकलकर
राजा
से
वर
मांगना,
राजा
द्वारा
पाप
पुरुष
को
धर्मव्याध
होने
का
वरदान),
१.५३३.६७(धर्म
-
अधर्म
के
शरीर
में
कर्मात्मक
होने
का
उल्लेख),
१.५४३
(चार
युगों
में
धर्म
के
पादों
की
नवीन
रूप
में
व्याख्या),
२.१४०.७८(धर्म
प्रासाद
के
लक्षण),
२.२४५.४९
(जीव
रथ
में
धर्म
व
वैराग्य
को
कूबर
बनाने
का
निर्देश),
२.२६६.८
(सर्प
द्वारा
धर्मसुमन्तु
विप्र
का
दंशन,
धर्मसुमन्तु
का
सर्प
से
वार्तालाप,
धर्मसुमन्तु
विप्र
के
क्रोध
के
कारण
मृत
राजा
का
सर्प
बनना,
सर्प
द्वारा
दिव्य
देह
प्राप्ति,
धर्मसुमन्तु
का
पुन:
जीवित
होना),
३.१२.३
(धर्मव्रत
विप्र
व
भक्तिव्रता
पत्नी
के
११०
अल्पजीवी
पुत्रों
तथा
एक
दीर्घजीवी
पुत्र
का
वर्णन),
३.१४.५६
(युद्ध
में
मकर
जाति
के
दैत्यों
द्वारा
चक्रवर्ती
राजा
धर्मवाहन
के
हनन
का
उल्लेख),
३.२१.३५
(धर्म
नामक
२५वें
ब्रह्म
वत्सर
में
पितरों
की
प्रार्थना
पर
श्री
अर्धपितृनारायण
के
प्राकट्य
का
वर्णन),
३.२१.७२
(तप
व
भक्ति
में
श्रेष्ठता
के
निर्णय
के
प्रश्न
पर
धर्मदेव
विप्र
द्वारा
प्लक्ष
द्रुम
में
स्थित
देव
से
पूछने
का
सुझाव
देना),
३.३५.५७
(स्वर्धूनी
वत्सर
में
बृहद्धर्म
नृप
द्वारा
अनुष्ठित
राजसूय
यज्ञ
का
वर्णन),
३.१०१.६७
(धूम्रा
गौ
दान
से
धर्म
लोक
की
प्राप्ति
का
उल्लेख),
३.१५२.२
(धर्मदेव
की
पत्नियों
व
उनसे
उत्पन्न
पुत्रों
काम,
दर्प,
नियम
आदि
का
वर्णन),
३.१८७.६९
(धर्मशालायन
साधु
का
चर्मकार
के
गृह
में
प्रवेश,
साधु
द्वारा
चर्मकार
शब्द
की
व्याख्या
में
सारे
जगत
को
चर्मकार
कहना),
४.२.११
(राजा
बदर
के
विमानों
में
धर्म
नामक
विमान
का
उल्लेख),
४.६३.५२
(शीलयानी
-
पति
धर्मभट
द्वारा
कथा
श्रवण
करने
व
व्यास
का
सम्मान
आदि
करने
से
अक्षर
धाम
की
प्राप्ति),
४.८५.८
(नागविक्रम
-
सेनापति
धर्मवज्र
द्वारा
नन्दिभिल्ल
की
सेना
से
युद्ध
का
वर्णन),
कथासरित्
१.७.८८
(शिबि,
कपोत
व
श्येन
की
संक्षिप्त
कथा),
९.१.१७
(अलङ्कारशील
विद्याधर
नृप
व
काञ्चनप्रभा
-
पुत्र,
तप
हेतु
वन
गमन),
९.३.९०
(धर्मवती
:
स्वामिभक्त
वीरवर
की
पत्नी,
पति
द्वारा
पुत्र
सत्त्ववर
को
देवी
को
अर्पित
करने,
धर्मवती
द्वारा
पुत्र
व
पुत्री
की
चिता
में
जलने
व
पुनर्जीवन
का
वृत्तान्त),
१०.४.२११
(दुष्टबुद्धि
द्वारा
मित्र
धर्मबुद्धि
की
स्वर्ण
मुद्राओं
की
चोरी
करने
व
राजाधिकारियों
द्वारा
न्याय
करने
की
कथा),
१२.२.४८
(राजा
भद्रबाहु
द्वारा
राजा
धर्मगोप
के
हस्ती
भद्रबाहु
को
युक्तिपूर्वक
मरवाकर
राजा
की
कन्या
अनङ्गलीला
को
प्राप्त
करना),
१२.२.१२५
(धर्मसेन
:
विद्युल्लेखा
-
पति,
अन्तिम
समय
में
हंस
के
ध्यान
से
हंस
बनने
का
वृत्तान्त),
१२.५.१४५
(धर्म
द्वारा
वराह
की
मुनीन्द्रता
की
परीक्षा
हेतु
मायामय
सिंह
का
निर्माण,
वराह
द्वारा
सिंह
को
स्वमांस
प्रस्तुत
करना),
१२.३१.५
(राजा
धर्म
की
पुत्री
लावण्यवती
को
सब
राजाओं
द्वारा
मांगने
पर
राजा
द्वारा
नगर
से
पलायन,
वन
में
भिल्लों
द्वारा
राजा
का
वध,
राजा
की
रानी
व
पुत्री
का
क्रमश:
पुत्र
व
पिता
द्वारा
वरण
करने
का
वृत्तान्त
)
; द्र.
चारुधर्मा,
बृहद्धर्म,
सत्यधर्म,
सुधर्मा
dharma
धर्म - ब्रह्माण्ड २.३.७.२३७(धर्मचेता : एक वानर नायक का नाम), २.३.७१.११२(धर्मवृद्ध : श्वफल्क व गान्दिनी के अक्रूर - प्रमुख १२ पुत्रों में से एक), भविष्य ४५.३०(धर्मवर्मा : अक्रूर व रत्ना के ११ पुत्रों में से एक), भागवत ९.२०.४(धर्मेयु : रौद्राश्व व घृताची के १० पुत्रों में से एक), ९.२२.४८(धर्मसूत्र : सुव्रत - पुत्र, शम - पिता, कलियुग में बृहद्रथ वंश के राजाओं में से एक), ९.२४.१६(धर्मवृद्ध : श्वफल्क व गान्दिनी के अक्रूर - प्रमुख १२ पुत्रों में से एक), मत्स्य १२.३५(धर्मसेन : मान्धाता के ४ पुत्रों में से एक, इक्ष्वाकु वंश), ४५.३०(धर्मभृत् : अक्रूर व रत्ना के ११ पुत्रों में से एक), ४९.४(धर्मेयु : भद्राश्व व धृता के १० पुत्रों में से एक, पूरु वंश), वायु २३.१५८(धर्मनारायण : १३वें द्वापर में व्यास), ६०.६६(धर्मशर्मा : रथीतर के ४ शिष्यों में से एक, ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त करने का वृत्तान्त), ६६.५५/२.५.५५(धर्मज्ञा : दक्ष - पुत्री, कश्यप - पत्नी), ९२.२२.३०.२(स्वर्भानु व प्रभा के ५ पुत्रों में से एक), ९४.४(धर्मतन्त्र : हैहय - पुत्र, कीर्ति - पिता, यदु वंश), ९६.१११/२.३४.१११(श्वफल्क व गान्दिनी के ११ पुत्रों में से एक), ९९.२८६/२.९९.२८३(धर्मी : भरद्वाज - पुत्र, कृतञ्जय - पिता, बृहद्रथ वंश), १००.१०८/२.३८.१०८(रौच्य मनु के ९ पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१४.९(धर्मदृक् : श्वफल्क के पुत्रों में से एक), ४.१९.२(धर्मेषु : रौद्राश्व के १० पुत्रों में से एक, पूरु वंश), ४.२२.६(धर्मी : बृहद्भाज - पुत्र, कृतञ्जय - पिता, कलियुग में इक्ष्वाकु वंशी राजाओं में से एक), ४.२४.५६(धर्मवर्मा : रामचन्द्र - पुत्र, वंग - पिता, कलियुग के राजाओं में से एक ) dharma
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष iगरुड २.१७.१९(अर्थदाता, कामदाता आदि के यानों का कथन), देवीभागवत ६.११ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के अनुसार युगों में प्रजा की स्थिति), पद्म ६.७४.२ (धर्म से अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति का उल्लेख), मत्स्य २४.१५ (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष द्वारा पुरूरवा राजा की परीक्षा, शाप व वरदान दान का वृत्तान्त), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०५.५० (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष आवाहन मन्त्र), स्कन्द १.२.४.५५ (धर्म, अर्थ, काम आदि के अनुसार दान व उसका फल), २.४.३.१३ (कार्तिक व्रत को युधिष्ठिर द्वारा धर्म हेतु, ध्रुव द्वारा अर्थ हेतु, कृष्ण द्वारा काम हेतु व नारद द्वारा मोक्ष हेतु करने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.२६.६१ (वृक्ष का मूल धर्म, शाखा अर्थ, पुष्प काम, फल मोक्ष), महाभारत वन ३१३.१०१ (यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में परस्पर विरोधी धर्म, अर्थ व काम का एकीकरण करने का प्रश्न : धर्म व भार्या को वश में करना), शान्ति १६७ (धर्म, अर्थ व काम के विषय में विदुर तथा अर्जुन आदि पाण्डवों के पृथक् - पृथक् विचार ) dharma- artha-kaama- moksha
धर्मकेतु ब्रह्माण्ड २.३.६७.७४(सुकेतु - पुत्र, सत्यकेतु - पिता), भागवत ९.१७.८(सुकेतन - पुत्र, सत्यकेतु - पिता, आयु/काश्य वंश), वायु ९२.७०/ २.३०.७०(सुकेतु - पुत्र, सत्यकेतु - पिता, दिवोदास वंश), विष्णु ४.८.१९ (सुकेतु - पुत्र, सत्यकेतु - पिता, काश्य/आयु वंश ) dharmaketu
धर्मगुप्त शिव ३.३१.७५ (धर्मगुप्त नामक अनाथ राजपुत्र के जन्म, द्विज - पत्नी द्वारा पालन व राज्य प्राप्ति का वृत्तान्त), स्कन्द २.१.१३ (नन्द - पुत्र, ऋक्ष को वृक्ष से गिराना, उन्माद ग्रस्त होना, उन्माद निवारण की कथा), ३.१.३२ (नन्द - पुत्र, ध्यानकाष्ठ मुनि के शाप से उन्मत्तता प्राप्ति, धनुषकोटि तीर्थ स्नान से मुक्ति की कथा), ३.३.७ (सत्यरथ - पुत्र, विप्र पत्नी उमा द्वारा पालन, शाण्डिल्य द्वारा नामकरण, गन्धर्व कन्या अंशुमती से विवाह), लक्ष्मीनारायण १.४०२.१९ (धर्मगुप्त द्वारा ऋक्ष को वृक्ष से नीचे गिराने का प्रयास, ऋक्ष रूप धारी ध्यानकाष्ठ मुनि के शाप से उन्मत्त होना, स्वामिपुष्करिणी तीर्थ में स्नान से शाप से मुक्ति), कथासरित् २.५.६९ (धर्मगुप्त की कन्या देवस्मिता द्वारा गुहसेन के वरण का वृत्तान्त), ३.३.६४ (धर्मगुप्त वणिक् की दिव्य कन्या सोमप्रभा के विवाह का वृत्तान्त ) dharmagupta
धर्मजाल स्कन्द १.२.४६.१११ (विदिशा में धर्मजालिक विप्र को दुष्कर्मों से क्षुद्र योनियों की प्राप्ति, अन्त में कुष्ठी बालक के रूप में नन्दभद्र को उपदेश )
धर्मदत्त गणेश २.१४.३(धर्मदत्त विप्र द्वारा काशिराज के गृह से गणेश को स्वगृह में ले जाने पर काम, क्रोध आदि राक्षसों के उपद्रवों का वर्णन, धर्मदत्त द्वारा गणेश को सिद्धि, बुद्धि कन्याएं भेंट करने का उल्लेख), पद्म ६.१०६.३ (धर्मदत्त द्वारा तुलसी जल से कलहा राक्षसी का उद्धार, जन्मान्तर में दशरथ व कैकेयी बनना), भविष्य ३.२.७ (यम द्वारा धनुर्वेद में निपुण धर्मदत्त का रूप धारण करके त्रिलोकसुन्दरी से परिणय की याचना करना), स्कन्द २.४.२४ (धर्मदत्त गुप्त द्वारा कलहा राक्षसी से संवाद, राक्षसी द्वारा अपने पूर्व जन्म का वर्णन), २.४.२५ (धर्मदत्त द्वारा पुण्य दान से राक्षसी का उद्धार, जन्मान्तर में राजा दशरथ बनना ) dharmadatta
धर्मध्वज देवीभागवत ९.६.४७ (सपत्ना कलह के कारण लक्ष्मी के धर्मध्वज की कन्या तुलसी के रूप में जन्म लेकर शङ्खचूड असुर की पत्नी बनने की कथा), ९.१५.४८ (रथध्वज - पुत्र, कुशध्वज - भ्राता), ९.१७.२ (धर्मध्वज - पत्नी माधवी द्वारा कन्या तुलसी को जन्म देना, तुलसी - शंखचूड की कथा), नारद १.४६.३७ (धर्मध्वज जनक के पौत्रों केशिध्वज व खाण्डिक्य के योग सम्बन्धी संवाद का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त २.६.४५ (सपत्ना कलह के कारण लक्ष्मी का धर्मध्वज की कन्या के रूप में जन्म लेकर शङ्खचूड असुर की पत्नी तुलसी बनने का उल्लेख), २.१५.१ (माधवी - पति, पद्मा के अंश तुलसी नामक कन्या को जन्म देना, तुलसी व शङ्खचूड की कथा), भविष्य ३.२.१३.२(धर्मध्वज वैश्य की कन्या का शूलारोपण के लिए उन्मुख चोर पर आसक्त होना, धर्मध्वज द्वारा राजा से धन के बदले चोर का जीवन दान मांगना आदि), भागवत ९.१३.१९(कुशध्वज - पुत्र, कृतध्वज व मितध्वज - पिता, जनक वंश), विष्णु ६.६.७(कुशध्वज - पुत्र, कृतध्वज व मितध्वज - पिता, जनक उपाधि), कथासरित् १२.१८.३ (राजा धर्मध्वज की तीन रानियों के अभिजात्य / सुकुमारिता की कथा ) dharmadhwaja
धर्मनेत्र ब्रह्माण्ड २.३.६९.४(हैहय - पुत्र, कुन्ति - पिता, यदु वंश), २.३.७४.११७(सुव्रत - पुत्र, बृहद्रथ वंश), मत्स्य ४३.३(हैहय - पुत्र, कुन्ति - पिता, यदु वंश), वायु ९९.३०३/२.३७.२९७(बृहद्रथ वंश के कलियुगी राजाओं में से एक, भुव?- पुत्र), विष्णु ४.११.८(धर्म - पुत्र, कुन्ति - पिता, यदु वंश )
धर्ममूर्ति पद्म १.२१.१ (लीलावती वेश्या के भृत्य स्वर्णकार व उसकी पत्नी के जन्मान्तर में राजा धर्ममूर्ति व उसकी पत्नी भानुमती बनने की कथा), भविष्य ४.२०४ (भानुमती - पति धर्ममूर्ति के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, पूर्व जन्म में स्वर्णकार, लवणाचल दान से राजा बनना), मत्स्य ९२ (राजा, भानुमती - पति, पूर्व जन्म में शौण्ड स्वर्णकार, स्वर्णमयी देव प्रतिमा निर्माण से राजा), स्कन्द ५.२.२२ (भानुमती - पति, पूर्व जन्म में शूद्र नृप, पुन: मर्कट योनि में अनायास शिव पूजा से मुक्ति ) dharmamoorti/ dharmamurti
धर्मरथ पद्म ६.२०.४० (सगर के अवशिष्ट ४ पुत्रों में से एक), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१४७ (सगर के नष्ट होने से बचे ४ पुत्रों में से एक), २.३.७४.१०३ (दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता, बलि/मरुत्त वंश), भागवत ९.२३.७(दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता, अनु वंश), मत्स्य ४८.९२(दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता, इन्द्र के साथ सोमपान का उल्लेख), वायु ९८.१०१/२.३७.१०१ (दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता , बलि वंश, धर्मरथ द्वारा इन्द्र के साथ सोमपान करने का उल्लेख), विष्णु ४.१८.१५(दिविरथ - पुत्र, चित्ररथ - पिता, अनु वंश ) dharmaratha
धर्मराज देवीभागवत ९.३०(धर्मराज द्वारा सावित्री को विभिन्न दानों के फलों का वर्णन), ९.३१(सावित्री द्वारा यम अष्टक द्वारा धर्मराज की स्तुति), ९.३२(धर्मराज द्वारा सावित्री को नरक के ८६ कुण्डों के नामों का कथन), ९.३३(धर्मराज द्वारा विभिन्न नरक कुण्डों की प्राप्ति के हेतु कर्मों का वर्णन), ९.३४.१(यम धर्म द्वारा विभिन्न दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनियों का वर्णन), ९.३४.२९(धर्मराज द्वारा ब्रह्महत्या, गोहत्या आदि पापों के प्रापक कर्मों का वर्णन), ९.३५(धर्मराज द्वारा विभिन्न नरकों व क्षुद्र योनियों की प्राप्ति के हेतु कर्मों का वर्णन), ९.३६(सावित्री द्वारा धर्मराज से नरक कुण्डों के दर्शन से बचाने वाले कर्मों के विषय में पृच्छा), ९.३७(धर्मराज द्वारा नरक के कुण्डों के दैर्घ्य परिमाण व स्वरूपों का वर्णन), ९.३८(सावित्री द्वारा धर्मराज से देवभक्ति दान की मांग), नारद १.१२.३६ - १.१३ (धर्मराज द्वारा भगीरथ को पुण्य कर्मों के विपाक का वर्णन), १.१४ - १.१५ (धर्मराज द्वारा जीव के दुष्कर्मों के विपाक और उनके प्रायश्चित्तों का वर्णन), १.११९.२ (धर्मराज की दशमी को पूजा), १.१२३.४३ (धर्मराज की आश्विन शुक्ल चतुर्दशी को पूजा), १.१२४.४ (धर्मराज पूर्णिमा व्रत विधि), ब्रह्म २.९३.३० (धर्मराज से पृष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.२.१० (गुणेश्वर राजा का पुत्र, तीन सुकुमारी पत्नियों की कथा), मत्स्य १०८.२७(यमुना के दक्षिण तट पर धर्मराज के पश्चिम् में नरक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), स्कन्द ६.१३८+ (धर्मराजेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : यम द्वारा माण्डव्य के शाप से मुक्ति हेतु स्थापना, उपाध्याय द्वारा पुत्र मरण पर अपूज्यत्व का शाप), वा.रामायण ७.१८.२६ (मरुत्त के यज्ञ में रावण के आगमन पर धर्मराज का वायस के शरीर में अदृश्य होना, धर्मराज द्वारा वायस को रोगरहित होने आदि का वरदान ), महाभारत अनुशासन १५०.३४ (धर्मराज के दक्षिण दिशा में स्थित सात ऋत्विजों उन्मुच आदि के नाम ) dharmaraaja
धर्मव्रता अग्नि ११४.१० (मरीचि - पत्नी, शिला बनने की कथा), वायु १०७+ (धर्म व विश्वरूपा - कन्या, धर्मव्रता द्वारा तप, मरीचि से विवाह, ब्रह्मा की सेवा, मरीचि के शाप से शिला बनना, शिला का गयासुर के ऊपर स्थित होना )
धर्मशर्मा पद्म २.२ (शिवशर्मा - पुत्र, पिता द्वारा पितृभक्ति की परीक्षा), २.१२२.१४ (विद्याधर - पुत्र, द्विज योगी से ज्ञान प्राप्त करना , शुक पक्षी के शोक में मृत्यु पर कुञ्जल शुक बनना )
धर्मसावर्णि भविष्य ३.४.२५.४०(ब्रह्माण्ड पद से उत्पन्न मन्द द्वारा धर्मसावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), भागवत ८.१३.२४(११वें मनु का नाम, सत्य, धर्म आदि १० पुत्रों का उल्लेख), विष्णु ३.२.२९(११वें मनु का नाम, सत्य, धर्म आदि १० पुत्रों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.४७ (आनन्दवर्णी/ देवानीक कृषक के धर्मसावर्णि मनु बनने का वर्णन ) dharmasaavarni
धर्महरि स्कन्द २.८.४.१ (अयोध्या में धर्महरि स्थान का माहात्म्य : धर्म द्वारा श्रीहरि का साक्षात्कार, पापों का प्रायश्चित्त आदि )
धर्माङ्गद नारद २.७.६९ (ब्रह्मा द्वारा मोहिनी को शिक्षा के संदर्भ में धर्माङ्गद - पिता रुक्माङ्गद से पुत्र का शिर काट कर मोहिनी को देने की मांग करने का निर्देश), २.९ (रुक्माङ्गद द्वारा पुत्र धर्माङ्गद को राज्य सौंपकर वनगमन), २.१०.५७ (रुक्माङ्गद व सन्ध्यावली - पुत्र, जन्मान्तर में सुव्रत), २.१६.३४ (धर्माङ्गद / वृषाङ्गद द्वारा सपत्ना माता मोहिनी को दैत्यों से रण में जीते गए रत्न भेंट करना), २.२० (धर्माङ्गद द्वारा दिग्विजय में प्राप्त उपहारों को माता मोहिनी को भेंट करना , धर्माङ्गद द्वारा नागकन्या की प्राप्ति), २.३२.३ (राजा रुक्माङ्गद द्वारा एकादशी को भोजन न करने के बदले मोहिनी द्वारा धर्माङ्गद के शिर की मांग), २.३४.१६ (धर्माङ्गद / वृषाङ्गद का सिर काटने को उद्धत रुक्माङ्गद का विष्णु द्वारा वर्जन ) पद्म २.२२ (रुक्माङ्गद व सन्ध्यावली - पुत्र, जन्मान्तर में सुव्रत बनना), लक्ष्मीनारायण १.२८७ (रुक्माङ्गद द्वारा स्वपुत्र को राज्य देकर अरण्य में तप के लिए प्रस्थान), १.२९०.६७ (मोहिनी द्वारा राजा रुक्माङ्गद से धर्माङ्गद के शिर को मांगना ), १.२९१.१२ (रुक्माङ्गद द्वारा धर्माङ्गद के शिर: छेदन का वृत्तान्त ) dharmaangada
धर्मारण्य स्कन्द ३.२.१+ (धर्मारण्य का माहात्म्य), ३.२.४(धर्मारण्य में क्षेत्र स्थापन नामक अध्याय), ३.२.३०+ (राम द्वारा धर्मारण्य का जीर्णोद्धार), ५.३.४४.१८ (नर्मदा के दक्षिण तटवर्ती शूलभेद तीर्थ के महत्त्व की धर्मारण्य के कूप तीर्थ से तुलना), लक्ष्मीनारायण १.४३९ (धर्मारण्य में तपोरत धर्म के तप में विघ्न हेतु वर्धिनी अप्सरा का आगमन, धर्म द्वारा वर्धिनी को पातिव्रत्य धर्म का उपदेश), १.४४० (धर्मारण्य में विप्रों का वास, जृम्भक, विद्युज्जिह्व आदि राक्षसों का उपद्रव, मातृकाओं द्वारा प्रतिरोध आदि ; धर्म द्वारा धर्मारण्य में यज्ञ का अनुष्ठान), २.२६४ (मृग व मृगघाती शूद्र की गोदावरी तट पर मृत्यु से धर्मारण्य में क्रमश: शृङ्गधर व शार्ङ्गधर नाम से जन्म आदि का वृत्तान्त), कथासरित् १२.२६.८७ (राजा चन्द्रप्रभ द्वारा धर्मारण्य में गयाकूप में पितर श्राद्ध करने पर उत्पन्न आश्चर्य का वर्णन ) dharmaaranya
धर्मिष्ठा वामन ९०.२४/९१.२४ (कोशकार - पत्नी धर्मिष्ठा के जडबुद्धि पुत्र निशाकर का वृत्तान्त, निशाकर द्वारा धर्मिष्ठा को अपने पूर्व जन्मों का वर्णन )
धवल पद्म ६.१५१(धवलेश्वर लिङ्ग की इन्द्र ग्राम में स्थिति, युगान्तरों में धवलेश्वर के नाम, नन्दी वैश्य व किरात द्वारा धवलेश्वर की पूजा से द्वारपाल बनने की कथा), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९६ (वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन के लिए नन्दी के धवल द्रुम बनने का उल्लेख), ३.१८७.१ (धवलपुर में मृतादन चर्मकार भक्त की कथा), कथासरित् ८.५.६४ (भूमितुण्डक - शासक, श्रुतशर्मा - सेनानी, सूर्यप्रभ - सेनानी प्रभास से युद्ध व मृत्यु), ९.६.१४० (धवलपुर के वणिक् - पुत्र चक्र का वृत्तान्त), १०.५.२२० (धवलमुख नामक राजसेवक द्वारा अपने दो मित्रों की परीक्षा का वृत्तान्त), १२.१३.७ (धवल नामक रजक व उसके साले द्वारा अपने सिर देवी को अर्पित करना, पत्नी द्वारा सिरों को विपरीत कबन्धों से जोडकर जीवित करने पर पति व भ्राता का प्रश्न), १८.१.१०३(सिंहल के नृप द्वारा स्वकन्या को धवलसेन दूत के साथ राजा विक्रमादित्य को भेजना ) dhawala/dhavala
धातकी कूर्म १.४०.१५ (सवन - पुत्र, धातकि खण्ड का अधिपति), देवीभागवत ८.१३.३४ (वीतिहोत्र - पुत्र, पुष्कर द्वीप का शासक), ब्रह्माण्ड १.२.१९.११७ (मानसोत्तर पर्वत के २ वर्षों में से एक), भागवत ५.२०.३१(प्रियव्रत - पुत्र वीतिहोत्र द्वारा स्वपुत्रों रमणक व धातकि को वर्षपति नियुक्त करने का उल्लेख), मत्स्य १२३.५ (हव्य - पुत्र, कुमुद - भ्राता, गोमेदक द्वीप में सौमन वर्ष का धातकी खण्ड नाम), वायु ४९.११३ (धातकी खण्ड की पुष्कर द्वीप में स्थिति व महिमा ) dhaatakee/ dhaataki/ dhataki
धाता गर्ग १.५.२९ (धाता का बाह्लीक रूप में अवतरण), ब्रह्माण्ड २.३.३.६७ (वैवस्वत मन्वन्तर के १२ आदित्यों में से एक), २.३.५.९४(धातु : मरुतों के तीसरे गण का एक मरुत्), भविष्य २.१.१७.७(तुलापुरुष दान में अग्नि का नाम), ३.४.७.५ (चैत्र मास के सूर्य के माहात्म्य के संदर्भ में धातृशर्मा द्विज का वृत्तान्त : परिवार की समृद्धि हेतु सूर्य की आराधना, मोक्ष, कलियुग में सूर्य - अवतार ईश्वर नाम से जन्म ), ३.४.१८.१६ (संज्ञा विवाह प्रकरण में धाता का पाञ्चजन्य से युद्ध), भागवत ६.१८.३(धाता की कुहू आदि ४ पत्नियों से सायं आदि ४ पुत्रों के नाम), १०.१.५०(धाता की गति/विधान के दुरत्यय/जटिल होने का उल्लेख), १२.११.३३(मधु मास में धाता सूर्य के साथ स्थित गणों के नाम), मत्स्य २३.२४(धाता की पत्नी तुष्टि का पति को त्याग कर सोम के पास जाने का उल्लेख), ४७.४५(धात्र : १०वें देवासुर सङ्ग्राम का नाम), वामन ५७.६५ (धाता द्वारा स्कन्द को ३ गणों की भेंट), ५७.७२ (धाता द्वारा स्कन्द को २ गण प्रदान करना), वायु ५२.२(मधु/वसन्त मास में तपने वाले धाता नामक सूर्य के साथ रहने वाले गणों के नाम), विष्णु २.१०.४(मधु/चैत्र मास में तपने वाले सूर्य का नाम), स्कन्द २.३.६.५ (ब्रह्मा की संज्ञा), ५.३.१९१.१३ (प्रलय काल के १२ आदित्यों के संदर्भ में धाता आदित्य द्वारा आग्नेयी दिशा का तापन करने का उल्लेख), महाभारत शान्ति १५.१९ (मध्य, दान्त, शम परायण होने के कारण ब्रह्मा, धाता व पूषा की प्राय: पूजा न होने का उल्लेख), ३४२.४१(धाता द्वारा दधीचि की अस्थियों से वज्र के निर्माण का उल्लेख ; इन्द्र द्वारा वज्र से विश्वरूप के ३ शिरों का छेदन), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१३२ (श्रीकृष्ण - पत्नी दुग्धा की धारिणी पुत्री व धाता पुत्र का उल्लेख ) ; द्र. ब्रह्मधाता, वंश भृगु, विधाता dhaataa/ dhata
धाता - विधाता अग्नि २०.९ (भृगु व ख्याति - पुत्र, प्राण व मृकण्डु - पिता), कूर्म १.१३ (धाता व विधाता : मेरु के जामाता, आयति व नियति के पति, प्राण व मृकण्डु के पिता), गरुड १.५.८ (भृगु व ख्याति - पुत्र, मनु - जामाता, आयति व नियति - पति, प्राण व मृकण्डु - पिता इत्यादि), पद्म ६.२२८.१४ (धाता व विधाता की अयोध्या में उत्तर द्वार पर स्थिति), ब्रह्माण्ड १.२.११.१(भृगु व ख्याति से उत्पन्न धाता - विधाता के महत्त्व का कथन - भृगोः ख्यातिर्विजज्ञे वै ईश्वरौ सुखदुःखयोः ।। शुभाशुभप्रदातारौ सर्वप्राणभृतामिह ।। ), भागवत ४.१.४३ (भृगु व ख्याति से धाता - विधाता का जन्म, आयति व नियति - पति, मृकण्ड व प्राण - पिता), ५.२३.५(धाता - विधाता की शिशुमार की पुच्छमूल में स्थिति का उल्लेख), ६.६.३९(अदिति के १२ आदित्य पुत्रों में से दो), वायु ३०.३४ (धाता व विधाता का क्रमश: मन्दर - कन्याओं आयति व नियति के पति होने का उल्लेख), विष्णु १.१०.२ (भृगु व ख्याति - पुत्र, मेरु - कन्याओं आयति व नियति के पति, प्राण व मृकण्डु के पिता, आगे वंश का कथन), शिव ५.१०.४० (भोजन - पूर्व बलि के संदर्भ में धाता - विधाता के लिए द्वार देश पर बलि देने का निर्देश), स्कन्द ५.३.२८.१४ (त्रिपुर दाह के संदर्भ में शिव द्वारा धाता को अग्र में व विधाता को पृष्ठ में करने का उल्लेख - कृत्वा प्रतोदमोंकारं मुखग्राह्यं महेश्वरः । धातारं चाग्रतः कृत्वा विधातारं च पृष्ठतः ॥), ५.३.३९.२८ (धाता व विधाता की कपिला गौ के ओष्ठों में स्थिति - धाता विधाता ह्योष्ठौ च जिह्वायां तु सरस्वती ॥ ) dhaataa-vidhaataa/ dhata - vidhata
धातु गरुड २.३०.५१/२.४०.५१(मृतक की धातु में गन्धक देने का उल्लेख), २.३२.५३(देह में धातुओं का परिमाण), देवीभागवत १२.१०.३४(ऋतुओं के अनुसार कांस्य, ताम्र, सीस, आरकूट, पञ्चलौह, रौप्य, स्वर्ण शालाओं का वर्णन), ब्रह्म १.७०.४८ (शरीर में स्थित कफादि धातुएं), ब्रह्माण्ड ३.४.२०.१९(धातुनाथा : ललिता की सहचरी देवी धातुनाथा द्वारा असुरों की सेना के मज्जा, शुक्र आदि के पान का कथन), भविष्य ३.४.२३.५६ (अयोध्या के राजा राक्षसारि द्वारा स्वर्ण, ताम्र आदि धातुओं का मूल्य आर धातु के सापेक्ष निश्चित करने का कथन), स्कन्द ४.१.२१.३१ (धातुओं में हाटक की श्रेष्ठता), लक्ष्मीनारायण १.३०.१८(रसों द्वारा धातु प्राप्ति का उल्लेख ) dhaatu/dhatu
धातृशर्मा भविष्य ३.४.७.५ (चैत्र मास के सूर्य के माहात्म्य के संदर्भ में धातृशर्मा द्विज का वृत्तान्त : परिवार की समृद्धि हेतु सूर्य की आराधना, मोक्ष, कलियुग में सूर्य - अवतार ईश्वर नाम से जन्म )
धात्री पद्म १.६० (धात्री वृक्ष की महिमा ; चाण्डाल का धात्री फल भक्षण से उद्धार ; प्रेतों का उद्धार), ४.२२ (कार्तिक में धात्री का माहात्म्य), ६.१०५ (तमोगुणी?), ६.१२१ (धात्री का माहात्म्य ), ७.२४ (धात्री वृक्ष का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.१०.७७ (भव - पत्नी, उशना - माता), ३.४.४४.८९(नाभि चक्र? की डंकारी आदि १० शक्तियों में से एक), स्कन्द २.४.१२ (धात्री की ब्रह्मा के अश्रुओं से उत्पत्ति, महिमा, मूषक की मुक्ति की कथा, धात्री वृक्ष में देवों का वास), २.४.२२.२५ (स्वरा देवी द्वारा देवों को प्रदत्त बीजों से धात्री वृक्ष की उत्पत्ति), २.४.२३.२ (धात्री वृक्ष की धात्री देवी से उत्पत्ति, तमोगुणी, धात्री व तुलसी का विष्णु के प्रति सदा रागयुक्त होने का कथन), ४.१.२९.९२ (गङ्गा सहस्रनामों में से एक), योगवासिष्ठ ३.१०१ (बालक - धात्री आख्यान), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९४(वृक्ष रूपी कृष्ण के दर्शन के लिए सरस्वती के धात्री वृक्ष बनने का उल्लेख ) ; द्र. आमलक dhaatree/ dhaatri/ dhatri
धान लक्ष्मीनारायण २.२४८.५ (सोमयाग में निर्वाप के ५ द्रव्यों में धान की व्याख्या : भ्रष्ट यव, देवता हरित्वान इन्द्र )
धान्य अग्नि १२१.५० (धान्य छेदन हेतु नक्षत्र विचार), पद्म १.२१.८४ (धान्य शैल निर्माण व दान), ब्रह्म २.५० (धान्य तीर्थ का माहात्म्य), भविष्य २.२.५.१४ (धान्य सूक्त का कलश स्थापना में विनियोग), २.२.५.२६ (तिल, माष आदि ५ धान्य गणों के नाम), ४.१९५ (धान्य शैल दान की विधि व माहात्म्य), मत्स्य ८३.४(धान्यशैल दान की विधि), १९६.२७(धान्यायनि : आंगिरस कुल के ऋषि, त्र्यार्षेय प्रवर), २७६.७(१८ प्रकार के धान्य होने का उल्लेख मात्र), मार्कण्डेय १५.७ , विष्णुधर्मोत्तर १.८२.२७(शूकधान्यक्षयकर ग्रहनक्षत्र योग), ३.३१४ (धान्य दान), शिव १.१५.४९ (धान्य दान से समृद्धि प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१८३(शतरुद्रिय प्रसंग में अश्वतर नाग द्वारा धान्यमय लिङ्ग की मध्यम नाम से पूजा का उल्लेख), ५.३.५६.१२१(धान्य दान से शाश्वत सौख्य की प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१५९.२० (धान्यहर्त्ता के मूषक होने का उल्लेख), वा.रामायण ६.७१.३० (धान्यमालिनी व रावण - पुत्र अतिकाय के बल का वर्णन ) dhaanya
धान्यपाल भविष्य ३.३.३२.५३ (युयुत्सु का अंश), ३.३.३२.२१४ (पृथ्वीराज द्वारा धान्यपाल का वध), ३.४.१७.३७ (धान्यपाल वैश्य द्वारा मूलगण्डान्त में उत्पन्न त्यक्त पुत्र के कबीर बनने की कथा ) dhaanyapaala/dhanyapal
धाम पद्म १.२०.१२६ (धाम व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य व विधि), मत्स्य १०१.७९ (धाम व्रत की संक्षिप्त विधि), वायु ६२.४१/२.१.४१(ज्योतिर्धामा : तामस युग के सप्तर्षियों में से एक), विष्णु ३.१.१८(ज्योतिर्धामा : तामस युग के सप्तर्षियों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.२६४ (पुरुषोत्तम मास में धामदा एकादशी व्रत का माहात्म्य), ३.१७०.३ (श्रीकृष्ण के ३४ धामों के नाम ), ३.२०२.३२(जहीहि जन्मवासनां प्रदेहि धामवासनम्); द्र. त्रिधामा, सुधामा dhaama
धारणा अग्नि ३४८.१२ (ह अक्षर के धारण तथा रुद्र कार्य में प्रयोग का उल्लेख), ३७५ (धारणा योग का वर्णन), गणेश २.१४१.३४ (१२ उत्तम प्राणायामों द्वारा एक धारणा बनने का कथन), गर्ग १.१६.२६(विराट् की शक्ति धारणा का उल्लेख), नारद १.४७.५५ (धारणा योग हेतु विष्णु का चिन्त्य स्वरूप), ब्रह्माण्ड १.१.२.४२(प्राणादि पांच वृत्तियों की धारणा द्वारा शरीर का पूरण करने का कथन?), ३.४.२२.७५(परशुराम द्वारा अष्टाङ्ग योग युक्त तप के संदर्भ में धारणा द्वारा चञ्चल मन को स्थिर करने का उल्लेख), भागवत २.१.२२ (शुक द्वारा परीक्षित् को भगवान् के विराट् स्वरूप की धारणा का वर्णन), २.२.८ (भगवान् के विभिन्न शोभाओं वाले विग्रहों की धारणाओं का वर्णन), ३.२८.११ (अष्टाङ्ग योग विधि वर्णन के अन्तर्गत भगवान् के सुशोभित रूपों की धारणाओं का वर्णन), ४.१८.२०(मायावियों द्वारा मय को वत्स बनाकर धारणामयी पृथिवी से पय: रूप में धारणामयी माया दोहन का उल्लेख), ११.१५२ (मन की विभिन्न धारणाओं से विभिन्न सिद्धियां प्राप्त करने का वर्णन), वायु ११.२२(धारणा के द्वादशायाम का उल्लेख), ११.२९(मन से धारणा योग होने का उल्लेख), १२.१८(पृथिवी, आपः आदि की धारणा तथा उसके परिणाम), ३०.५४(सती द्वारा आग्नेयी धारणा द्वारा स्वयं को भस्म करने का उल्लेख), विष्णु ६.७.७९ (शुद्ध धारणा हेतु भगवत् स्वरूप का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.२८२ (धारणा योग का वर्णन), स्कन्द ४.१.४१.१११(पांच भूतों की धारणा का कथन), ४.१.४१.१६१(धारणा के लाभों का कथन : परकाय प्रवेश आदि), ५.२.१३.३१ (काम द्वारा शिव की देह में प्रवेश करने पर शिव द्वारा प्रत्याहार और बाह्याग्नि में धारणा द्वारा देहस्थित काम को जलाने का संकल्प), ५.३.४२.३८ (पिप्पलाद द्वारा कृत्या उत्पन्न करने हेतु आग्नेयी धारणा द्वारा अग्नि उत्पन्न करने का उल्लेख, अग्नि से कृत्या की उत्पत्ति), योगवासिष्ठ ६.२.८७.५७ (धरा धारणा का वर्णन), ६.२.९०.१० (जल धारणा द्वारा जगत की अनुभूति का वर्णन), ६.२.९१ (तेज: धारणा का वर्णन), ६.२.९२ (वातमयी धारणा का वर्णन), महाभारत शान्ति २३६.१४ (सात धारणाओं व इनकी पार्श्ववर्ती व पृष्ठवर्ती सात प्रधारणाओं का उल्लेख ; पृथिवी, जल आदि की धारणाओं में विशिष्ट अनुभवों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५८ (हरि मूर्ति धारणा की विधि), ३.९.१(प्रधारणा नामक १२वें वत्सर में भक्त शोणभद्र के यज्ञ में अग्नि के उपद्रव से दग्ध जनों के मोक्षार्थ अनादि भद्र नारायण का प्राकट्य ) dhaaranaa/dharna
धारणी कूर्म १.१३ (धारिणी : मेरु - पत्नी, आयति व नियति कन्याओं की माता), नारद १.६५.२७(धारिणी : रवि की १२ कलाओं में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.१३.३६ (स्वधा व पितर - कन्या, मेरु - पत्नी, मन्दर व तीन कन्याओं की माता), भागवत ४.१.६४ (धारिणी : पितर व स्वधा - कन्या), वायु ३०.३३ (बर्हिषद् पितरों की कन्या, मेरु - पत्नी, मन्दर आदि पुत्र व पुत्रियां), विष्णु १.१०.१९(धारिणी : अग्निष्वात्त व बर्हिषद् पितरों की स्वधा पत्नी से उत्पन्न २ योगिनी कन्याओं में से एक), स्कन्द ३.२.९.४९ (धारीण गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवर व गुण), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१३२ (श्रीकृष्ण - पत्नी दुग्धा की धारिणी पुत्री व धाता पुत्र का उल्लेख ) ; द्र. वंश पितर dhaaranee/ dhaaarinee/ dhaarini
धारा नारद १.६६.९८(विमल विष्णु की शक्ति धारा का उल्लेख), पद्म ६.१४३ (पाण्डु पुत्रों द्वारा स्थापित सप्त धारा तीर्थ का माहात्म्य, मङ्कि द्वारा पुत्र प्राप्ति), वराह १४८.६५ (मणिपूर गिरि पर धूतपाप होने तक धारा पतन न होने का कथन), १५४.९ ( मथुरा में यमुना में धारापतन तीर्थ का माहात्म्य : नाक लोक की प्राप्ति आदि), वायु ६६.२३/२.५.२३(धार : चन्द्रमा के ३ पुत्रों में से एक), स्कन्द २.३.६.४३ (मानसोद्भेद तीर्थ के दक्षिण में द्रव धारा तीर्थ का माहात्म्य), २.३.६.६० (मानसोद्भेद तीर्थ के पश्चिम में वसुधारा तीर्थ का माहात्म्य), २.३.७.१ (मानसोद्भेद तीर्थ की नैर्ऋत्य दिशा में पांच तीर्थों की द्रव रूप पञ्च धारा तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.९७.१७८ (व्यास तीर्थ में सिद्धेश्वर लिङ्ग की पूजा से धारासर्प के सिद्ध बनने का उल्लेख), ६.१६८+ (देवशर्मा - पुत्री, बाल विधवा, शङ्ख तीर्थ में आराधना, अरुन्धती से मिलन, देवी का प्रकट होकर धारा नाम ग्रहण करना, विश्वामित्र द्वारा इस शक्ति का उपयोग वसिष्ठ के मारणार्थ करना, धारा नदी की उत्पति), लक्ष्मीनारायण ३.८१.७७ (धारा ग्राम में विप्र शतानन्द व उसकी भक्त पत्नी विनोदिनी का वृत्तान्त), ४.८०.१५ (राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ में धारायण के होता ऋत्विज होने का उल्लेख), कथासरित् ९.५.१५३(पुत्र प्राप्ति हेतु कुमार धारा के विघ्नों का कथन ), द्र. मधुधारा, रत्नधारा, वसुधारा, सप्तधारा, वेदधारा dhaaraa/ dhara
धारीणस स्कन्द ३.२.९.४९(धारीणस गोत्रीय विप्रों के गुण)
धार्ष्ट देवीभागवत ७.२.२३ (धृष्ट - पुत्र, ब्रह्म व क्षत्र कर्मों में रुचि का उल्लेख), वायु ८४.४(धृष्ट के पुत्रों के गणों में से एक )
धावक कथासरित् १२.५.२११ (धावक / धोबी के खर द्वारा ब्राह्मण की शाकवाटिका के शाक का भक्षण, ब्राह्मणी द्वारा खर के ताडन पर पुर अधिकारी का विचित्र निर्णय )
धिषणा अग्नि १८.२० (हविर्धान व आग्नेयी धिषणा से उत्पन्न ६ पुत्रों प्राचीनबर्हि, शुक्र आदि के नाम? - हविर्धानात्षडाग्नेयी धिषणाजनयत्सुतान् । प्राचीनबर्हिषं शुक्रं गयं कृष्णं व्रजाजिनौ ॥), पद्म ६.७.४१ (धिषणा/बृहस्पति द्वारा असुरों से युद्ध में मृत देवों का संजीवन - धिषणस्तु जगन्नाथमुवाच त्वरितं तदा। ओषधीभिरहं स्वामिन्जीवयिष्यामि निर्जरान् ।।), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१८ (धिष्ण्य अग्नियां : शंस्य/आहवनीय अग्नि द्वारा १६ नदियों रूपी धिष्णियों से १६ धिष्ण्य पुत्र उत्पन्न करने का कथन - आत्मानं व्यदधात्तासु धिष्णीष्वथ बभूव सः। कृत्तिकाचारिणी धिष्णी जज्ञिरे ताश्च धिष्णयः ), १.२.१२.२७(आग्नीध्र, होता आदि की ८ धिष्ण्य अग्नियों का कथन, तु. शुक्ल यजुर्वेद - विभुः प्रवाहणोऽग्नीध्रस्तेषां धिष्ण्यस्तथा परे । विधीयंते यथास्थानं सौत्येऽह्नि सवने क्रमात्), १.२.३६.३०(धिष्ण्य : १२ संख्या वाले प्रतर्दन देवगण में से एक - अवध्योऽवरतिर्देवो वसुर्धिष्ण्यो विभावसुः ।।), १.२.३७.२३(हविर्धान की पत्नी, प्राचीनबर्हि आदि ६ पुत्रों की माता - हविर्धानात्षडाग्नेयी धिषणाजनयत्सुतान् ।। प्राचीनबर्हिषं शुक्लं गयं कृष्णं प्रजाजिनौ ।।), भागवत २.१.३० (विष्णु के भ्रू विलास के परमेष्ठी धिष्ण्य /ब्रह्मलोक होने का उल्लेख - तद्भ्रूविजृम्भः परमेष्ठिधिष्ण्यं), ४.८.११ (सुरुचि द्वारा ध्रुव को नृपति के धिष्ण्य/पद पर बैठने से रोकने का उल्लेख - न वत्स नृपतेर्धिष्ण्यं भवान् आरोढुमर्हति । न गृहीतो मया यत्त्वं कुक्षौ अपि नृपात्मजः ॥ ), ६.६.२० (कृशाश्व? - पत्नी धिषणा के वेदशिरा आदि चार पुत्रों के नाम - धिषणायां वेदशिरो देवलं वयुनं मनुम्।), ८.५.३९(पुरुष/परमात्मा की धिषणा से विरिञ्च/ब्रह्मा की उत्पत्ति का उल्लेख - मन्योर्गिरीशो धिषणाद्विरिञ्चः ।), ११.१६.२१(भगवान के धिष्ण्यों में मेरु होने का उल्लेख - धिष्ण्यानामस्म्यहं मेरुर्गहनानां हिमालयः।), १२.८.४३(ब्रह्मा की आयु के संदर्भ में धिष्ण्य शब्द का प्रयोग - ब्रह्मा बिभेत्यलमतो द्विपरार्धधिष्ण्यः ), मत्स्य ४.४५ (अग्नि - कन्या, हविर्धान - पत्नी, प्राचीनबर्हि आदि ६ पुत्र - हविर्धानात् ष़डाग्नेयी धिषणाऽजनयत् सुतान्।। प्राचीनबर्हिषं साङ्गं यमं शुक्रं बलं शुभम्।। ), ५१.१७ (धिष्ण्य अग्नि के १६ नदियों से उत्पन्न पुत्र, स्वरूप का कथन - विभुः प्रवाहणोऽग्नीध्रस्तत्रस्था धिष्णवोऽपरे ।), वामन ९०.१३ / ८९.१३ (अवन्ति देश में विष्णु के धिष्ण्य नाम से वास का उल्लेख - अवन्तिविषये धिष्ण्यं निषधेष्वमरेश्वरम्।), वायु २९.२७(८ धिष्ण्य अग्नियों के नाम तथा उनके दूसरे नाम - पौत्रेयस्तु ततो ह्यग्निः स्मृतो यो हव्यवाहनः। शान्तिस्वाग्निः प्रचेतास्तु द्वितीयः सत्य उच्यते ।।), ६५.१०१/२.४.१०१ (धिष्णु : बृहस्पति व पथ्या - पुत्र, सुधन्वा – पिता - धिष्णुः पुत्रस्तु पथ्यायां संवर्तश्चैव मानसः। विचित्तश्च तथायस्यः शरद्वांश्चाप्युतथ्यजः ।।), ६९.४६/२.८.४६(स्वर्गीय संगीत में दक्ष ७ गन्धर्वों में से एक - चतुर्थो धिषणश्चैव ततो वासिरुचिस्तथा ॥ ), विष्णु १.१४.२(आग्नेयी धिषणा व हविर्धान के ६ पुत्रों के नाम - शिखण्डिनी हविर्द्धानमन्तर्द्धानाद् व्यजायत ।। हविर्द्धानात् षडाग्नेयी धिषणाजनयत् सुतान् ।), स्कन्द ५.३.२२.११ (गार्हपत्य अग्नि के पुत्रद्वय द्वारा नर्मदा व अन्य १६ नदियों से धिष्ण्यप संज्ञक पुत्र उत्पन्न करना - व्यभिचारात्तु भर्तुर्वै नर्मदाद्यासु धिष्णिषु । उत्पन्नाः शुचयः पुत्राः सर्वे ते धिष्ण्यपाः स्मृताः ॥), लक्ष्मीनारायण ३.५.५६ (यम नामक वत्सर में देवों में धिष्ण्य पद हेतु विवाद, अनादि आदित्य नारायण द्वारा प्रकट होकर देवों के धिष्ण्यों का निर्णय - यमाख्ये वत्सरे चाद्ये कल्पे चाद्ये मनौ तथा । देवतानां विवादोऽभूद् धिष्ण्यार्थं स्वर्गवासिनाम् ।।), ३.३२.१३ (धिष्णि : शंस्य अग्नि के नदियों से उत्पन्न पुत्रों के नाम? - तथा शंस्यसुतानन्यान् नदीषु जातसंभवान् । धिष्णिसंज्ञानपि पुत्रानभक्षयन्महासुरः ।।), ४.२५.६३ (श्रीकृष्ण के राजाओं के धिष्ण्य में वास का उल्लेख - धनिनां दानभावेऽस्मि राज्ञां धिष्ण्ये वसाम्यहम् ।।), ४.४४.६३ (धिष्ण्य के वैधस / ब्राह्म बन्धन होने तथा उसे त्यागने का निर्देश - वैधसं बन्धनं धिष्ण्यं तत्त्यागे तुष्यति प्रभुः ।। ) ; द्र. वंश पृथु dhishanaa
धी भागवत ११.११.४४(वायु में मुख्य धी द्वारा ईश्वर की उपासना का निर्देश - वायौ मुख्यधिया तोये द्रव्यैस्तोयपुरःसरैः), वायु ९६.१४०/२.३४.१४०(धियान्त : हृदीक के १० पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.१४.८४ (कम्भरा लक्ष्मी द्वारा धी भक्षिणी राक्षसी का वध - दृष्ट्वा तदा तु सा साध्वी मुष्ट्या जघान धीमखीम् । ब्रह्मरन्ध्रे मृता धीभक्षिणी तूर्णं पपात ह ।।), २.९४.७५ (प्रद्युम्न – पत्नी - प्रद्युम्नस्य प्रिया धीश्च सर्वपोषणकारिणी ।। ) ; द्र. धीरधी
धीमान् अग्नि १०७.१६ (नर - पुत्र, महान्त - पिता, ऋषभ वंश), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६९(महावीर्य - पुत्र, महान् - पिता, नाभि वंश), १.२.३५.४(वैण रथीतर के ४ शिष्यों में से एक), १.२.३५.६(बाष्कलि भरद्वाज के ३ शिष्यों में से एक), २.३.६६.२२(पुरूरवा व उर्वशी के ६ पुत्रों में से एक), मत्स्य ९.१६(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), वायु ३३.५८ (विराट्/महावीर्य? - पुत्र, नर - पौत्र, महान् - पिता), ९१.५१/२.२९.४८(पुरूरवा व उर्वशी के ६ पुत्रों में से एक), विष्णु २.१.३९(महावीर्य - पुत्र, महान् - पिता, नाभि वंश ) dheemaan/ dhiman
धीर अग्नि १८४.१३ (ब्राह्मण, रम्भा - पति, कौशिक - पिता, पुत्र द्वारा बुधाष्टमी व्रत के पुण्य दान से मुक्ति), पद्म ६.१८४ (शिव द्वारा भृङ्गिरिटि के पूर्व जन्म का कथन : पूर्व जन्म में ब्रह्मा का वाहन हंस, गीता के दशम अध्याय श्रवण से जन्मान्तर में धीरधी ब्राह्मण बनना), भागवत ११.१६.२८ (भगवान के धीरों में देवल असित होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.६०.६ (राजा उदय द्वारा धीरवीर सरोवर तट पर कृष्ण के विराट रूप के दर्शन), ३.२३०.३ (धीरपर्वा नामक धीवर द्वारा मत्स्य हिंसा से नरक यातनाओं की प्राप्ति, जल प्लावन में मानवों की रक्षा के पुण्य से वैष्णव नौपति के गृह में जन्म ) dheera
धीवर ब्रह्माण्ड १.२.१८.५४(ह्रादिनी नदी द्वारा प्लावित प्राची जनपदों के निवासियों में से एक), मत्स्य १२१.५३(वही), वायु ४७.५१(वही), ६२.१२३/२.१.१२३(राजा वेन की बाहु के मन्थन से उत्पन्न निषाद से धीवरों की उत्पत्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५४७.५० (आख्यान के रूप में भवाब्धि में द्वीप - द्वीप में धीवरों के बसने, काम, क्रोध, धर्म, अधर्म आदि वृक्ष होने का वर्णन), २.१६१.१३ (धनमेद नामक धीवर द्वारा तुरी देवी से दास्य भक्ति की प्राप्ति, जाल द्वारा पकडे गए मत्स्य का कृष्ण रूपी महामत्स्य के रूप में दर्शन आदि), २.१९२.१९ (श्रीहरि का वल्लीजीवन मुनि के साथ बृहच्छर नृपति की धीवरा नगरी में आने का कथन), कथासरित् ६.१.१२५ (धीवरों को मत्स्य भक्षण करते देखकर विप्र व चाण्डाल तपस्वियों के मन के भावों और परिणामस्वरूप जन्मान्तर में जन्म की कथा ) dheevara
धुनि वायु ६६.३१/२.५.३१(धर्म व विश्वा के १० विश्वेदेव पुत्रों में से एक), ६७.१२६/२.६.१२६(तीसरे मरुद्गण में से एक मरुत), ६९.१३२/२.८.१२७ (ब्रह्मधना के १० पुत्रों में से एक )
धुन्धली पद्म ६.१९६ (आत्मदेव - पत्नी, धुन्धुकारी - माता), भागवत ०.४ (आत्मदेव - पत्नी, धुन्धुकारी व गोकर्ण पुत्रों की कथा )
धुन्धु गणेश २.८.१ (महोत्कट गणेश द्वारा शुक रूप धारी उद्धत व धुन्धु राक्षस - द्वय का वध), ब्रह्म १.५.६३ (मधु राक्षस का पुत्र, उत्तङ्क ऋषि के आग्रह पर कुवलाश्व द्वारा धुन्धु के वध का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड २.३.६.३१(अररु - पुत्र, कुवलाश्व द्वारा वध का उल्लेख), २.३.६३.३० (मधु राक्षस - पुत्र, बृहदश्व - पुत्र कुवलाश्व द्वारा धुन्धुमार नाम प्राप्ति का वृत्तान्त : उत्तङ्क व धुन्धु की कथा), भागवत ९.६.२२(धुन्धु असुर की मुखाग्नि से भस्म होने से बचे कुवलाश्व के ३ पुत्रों के नाम), मत्स्य ४९.२(मनस्यु - पुत्र, बहुविध - पिता), लिङ्ग २.८ (धुन्धुमूक द्विज : विशल्या - पति, दुष्ट पुत्र को जन्म देना, पूर्व जन्म में मेघवाहन?), वामन ७८ (दनु व कश्यप - पुत्र, धुन्धु द्वारा जन, तपो, सत्य आदि लोकों को जीतने की इच्छा पूर्ति हेतु अश्वमेध यज्ञ की दीक्षा, वामन विष्णु द्वारा पराभव, बलि की कथा से साम्य), वायु ६८.३१/२.७.३१(अररु - पुत्र, कुवलाश्व द्वारा वध का उल्लेख), ८८.२९/२.२६.२९(उत्तङ्क के अनुरोध पर कुबलाश्व द्वारा धुन्धु असुर के निग्रह का वृत्तान्त), ८८.३७/२.२६.३७(मनु? - पुत्र, कुबलाश्व - उत्तङ्क द्वारा निग्रह की कथा), ९९.१२२/२.३७.११८(जयद - पुत्र, बहुगवी - पिता, पूरु वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.१६ (धुन्धु का उज्जानक समुद्र में वास, कुवलाश्व द्वारा वध), हरिवंश १.११ (मधु - पुत्र, कुवलाश्व द्वारा वध), लक्ष्मीनारायण २.५७.१०० (रक्तबीज दैत्य का अंश), २.५८.२७ (भविष्य में रक्तबीज का दनु के गर्भ से धुन्धु नाम से उत्पन्न होने का कथन, धुन्धु द्वारा मह, जन, तपो लोकों को जीतने हेतु यज्ञ, विष्णु का वामन रूप में प्रकट होकर विराट रूप धारण करना व धुन्धु को पाताल में भेजना, पुन: भविष्य में धुन्धु द्वारा अन्धकासुर की सहायता, श्रीहरि द्वारा सुदर्शन से धुन्धु का वध ), द्र. सुद्यु(भागवत ९.२०.३, विष्णु ४.१९.१) dhundhu
धुन्धुकार भविष्य ३.३.५.१० (कीर्तिमालिनी - पुत्र, पृथ्वीराज - भ्राता, मथुरा का राजा), ३.३.६.५४ (जयचन्द्र - अनुज रत्नभानु से युद्ध में धुन्धुकार की मृत्यु), ३.३.३२.१५६ (पृथ्वीराज - सेनानी, लक्षण द्वारा वध )
धुन्धुकारी पद्म ६.१९६+ (धुन्धली व आत्मदेव - पुत्र, मृत्यु पर प्रेत बनना, भ्राता गोकर्ण द्वारा धुन्धुकारी की मुक्ति का उद्योग), भागवत ०.५ (आत्मदेव व धुन्धली - पुत्र, व्यसनी, गोकर्ण द्वारा प्रेत योनि से उद्धार ) dhundhukaaree/ dhundhukari
धुन्धुमार ब्रह्म १.५.७२ (बृहदश्व - पुत्र, दृढाश्व आदि का पिता, कुवलाश्व द्वारा धुन्धु को मारने से धुन्धुमार नाम की प्राप्ति का वृत्तान्त), मत्स्य १२.३१(धुन्धुमार / कुवलाश्व के पूर्वापर वंश का वर्णन), वायु ८८.३० (कुवलाश्व द्वारा धुन्धुमार नाम प्राप्ति की कथा), स्कन्द ४.२.६६.२६ (धुन्धुमारेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.९०.४६ (तालमेघ दैत्य का सैनिक, तालमेघ की आज्ञा से गरुडारूढ कृष्ण को पकडने के लिए जाना, कृष्ण द्वारा वध), ६.३८ (धुन्धुमारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश १.११४६ (कुवलाश्व द्वारा धुन्धु असुर को मारने से धुन्धुमार नाम की प्राप्ति), १.१२.१ (धुन्धुमार के दृढाश्व आदि ३ पुत्रों के वंश का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.५६४.८४ (राजा धुन्धुमार द्वारा वराह का वेधन करने पर वराह का अङ्गद नामक शम्भुगण के रूप में प्राकट्य, राजा के अश्व द्वारा नर्मदा में स्नान करने पर अश्व द्वारा दिव्य रूप धारण करना व अपना पूर्व वृत्तात सुनाना, राजा के समक्ष त्रिनेत्रा युवती कपिला नदी का प्रकट होना आदि), ३.९४.६५ (उत्तङ्क ऋषि के अनुरोध पर धुन्धु राक्षस को मारने हेतु कुवलाश्व - पुत्रों द्वारा भूमि का खनन व धुन्धु की ज्वाला से भस्म होना, कुवलाश्व द्वारा धुन्धु का वध, वंश वर्णन ) dhundhumaara
धुरन्धर शिव २.५.३६.१२ (शङ्खचूड - सेनानी, धर्म से युद्ध), कथासरित् ८.५.२६ (श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानी धुरन्धर के सूर्यप्रभ - सेनानी विकटाक्ष से युद्ध का उल्लेख), ८.७.२६ (कुञ्जरकुमार द्वारा धुरन्धर को रथविहीन करने का उल्लेख )
धुरि वायु ९९.१३०/२.३७.१२६(धुर्य : प्रतिरथ - पुत्र, कण्ठ - पिता, पूरु वंश), स्कन्द ५.३.२८.११ (त्रिपुर नाशार्थ शिव के रथ में अश्विनी - द्वय को रथ की धुरि बनाने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२०३.१ (धुरिल नामक पुर में तूलवायि नामक सूत्रवायक भक्त का वृत्तान्त ) dhuri
धूतपाप ब्रह्माण्ड २.३.१३.२०(गोकर्ण का निकटवर्ती तीर्थ, शङ्कर के तप का स्थान), मत्स्य २२.३९(पितृ श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), वराह १४८.५८ (स्तुतस्वामि क्षेत्र में स्थित धूतपाप नामक स्थान के माहात्म्य का वर्णन), स्कन्द ५.१.३७.९ (धूतपाप तीर्थ का माहात्म्य : शिव के त्रिशूल द्वारा अन्धक वध के पश्चात् भोगवती में पाप प्रक्षालन का स्थान),५.३.११० (धौतपाप तीर्थ का माहात्म्य :जनार्दन की दैत्य हत्या पाप से निवृत्ति), ५.३.१८४ (धौतपाप तीर्थ के नाम का कारण व माहात्म्य : ब्रह्मा के शिर छेदन से उत्पन्न ब्रह्महत्या से शिव की मुक्ति , धौतेश्वरी देवी का दर्शन), ५.३.२३१.१९ (२ धौतपाप तीर्थ होने का उल्लेख ) dhuutapaapa/dhootapaapa
धूतपापा मत्स्य ११४.२२(हिमालय से निकली नदियों में से एक), १२२.७१ (कुश द्वीप की सात नदियों में से एक, अन्य नाम योनि), वामन ५७.८० (धूतपापा नदी द्वारा स्कन्द को गण प्रदान करना), स्कन्द ४.२.५९.४२ (वेदशिरा मुनि व शुचि अप्सरा की कन्या, धूतपापा द्वारा तप व धर्म की आसक्ति का तिरस्कार, धर्म के शाप से शिला बनना), लक्ष्मीनारायण १.४६६.१३ (वेदशिरा मुनि व शुचि अप्सरा से धूतपापा कन्या के जन्म का वृत्तान्त, धर्म को पति रूप में प्राप्त करने के लिए धूतपापा द्वारा तप, जन्मान्तर में दक्ष - कन्या व धर्म - पत्नी मूर्ति होना ) dhuutapaapaa/dhootapaapaa
धूनी लक्ष्मीनारायण ४.२२.९८ (बालयोगिनी के श्रीकृष्ण से विवाह के संदर्भ में करुणा नदी के तट पर धूनी ग्राम में विश्राम का उल्लेख )
धूप अग्नि २२४.२०(शौच, आचमन आदि कर्माष्टक में से एक), २२४.२५(धूप हेतु २१ द्रव्यों नख, कुष्ठ आदि का कथन), भविष्य १.१४३.२० (दण्डनायक वेला आदि ५ धूप वेलाओं का कथन), १.१९६.१६ (चन्दन, अगुरु, गुग्गुल आदि द्रव्यों से निर्मित धूपों के दान से प्राप्त विशिष्ट फलों का कथन), लिङ्ग १.८१.३४ (विभिन्न प्रकार की धूपों का उल्लेख), वराह ११५.१८ (विष्णु को धूपदान का मन्त्र), विष्णुधर्मोत्तर १.९८ (ग्रहों, नक्षत्रों के लिए दातव्य धूप का कथन), शिव ७.१.३३.४१(सद्योजात, वामदेव आदि शिवों के लिए देय धूपों के विधान का कथन ) स्कन्द २.५.८.२० (विभिन्न द्रव्यों से बनी धूपों के दान का फल), ५.३.२६.११७ (नवमी को गन्धधूप दान के फल का कथन : पिता, पुत्र, पति आदि की रण में रक्षा ), ५.३.५१.३३ (धूप दीपादि के आग्नेय तथा आठ पुष्पों में से एक होने का कथन), ६.२३९.४५(चातुर्मास में धूप दान के महत्त्व का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.७९.२२ (विभिन्न द्रव्यों से निर्मित धूपों द्वारा देवों, यक्ष - राक्षस, भूतादि की तृप्ति का कथन ) dhoopa/dhuupa
धूम पद्म ३.२६.९६ (मृगधूम तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अश्वमेध फल की प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.५३ (धूमान्ध नरक प्रापक कर्मों का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.२४.१३९(धूमवान् के सब केतुओं का आदि होने का उल्लेख), २.३.७२.११९, १५६(शुक्र द्वारा धूमव्रत चारण का वृत्तान्त), भागवत ३.३२.१६ (मृत्यु पश्चात् दक्षिण/धूममार्ग तथा अर्चि मार्ग से यात्रा करने वाले पुरुषों का वर्णन), मत्स्य ४७.१२२ (शुक्राचार्य द्वारा धूमपान व्रत का चारण), १२५.३० (धूम का महत्त्व), लिङ्ग १.५४.४० (विभिन्न प्रकार के धूमों से निर्मित मेघों का वर्णन), वायु ३०.१००(धूमप : पितरों के ४ वर्गों में से एक), ५३.१११(धूमवान् के सब केतुओं का आदि होने का उल्लेख), स्कन्द ४.१.४५.४० (धूमनिःश्वासा : ६४ योगिनियों में से एक), ५.३.४५.१३ (तपोरत अन्धकासुर के सिर से धूम वर्ति के निकल कर लोकों में व्याप्त होने पर शिव - पार्वती का आगमन), ५.३.१८७.४ (कालाग्नि रुद्र से काल रूपी धूम तथा व्याप्त धूम से लिङ्ग के उद्भव का कथन), कथासरित् ७.५.८४ (शृङ्गभुज नामक राजपुत्र के अग्निशिख राक्षस की पुरी धूमपुर पंहुचने और उसकी रूपशिखा कन्या से विवाह करने का वृत्तान्त), १२.६.४०३ (धूमकेतु यक्ष की कन्याओं ज्योतिलेखा व धूमलेखा द्वारा पति प्राप्त्यर्थ तप, पूर्व जन्म के पति दीप्तशिख को आगामी जन्म में श्रीदर्शन राजा के रूप में प्राप्त करना ) ; द्र. विधूम dhooma/dhuuma/ dhuma
Remarks on Dhooma
धूमकेतु गणेश १.९२.२४ (सर्पों द्वारा धूमकेतु नाम से गणेश की पूजा), २.१.२१ (कलियुग में गणेश का नाम, अश्व वाहन), २.७८.४३ (कलियुग में द्विभुज गणेश का नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६.१०६ (तपोरत मृत्यु कन्या के नि:श्वास से धूमकेतु की उत्पत्ति का कथन), महाभारत आदि १०३.१७(अर्क से प्रभा तथा धूमकेतु से उष्मा के उत्सर्जन का उल्लेख), कथासरित् ८.२.२२५, ८.७.३५ (सूर्यप्रभ - सेनानी धूमकेतु का श्रुतशर्मा विद्याधर - सेनानियों यमदंष्ट्र व यम से युद्ध का उल्लेख), १२.६.४२२ (धूमकेतु यक्ष की पुत्रियों ज्योतिलेखा व धूमलेखा का वृत्तान्त ) dhoomaketu/ dhuumaketu/ dhumketu
धूमशिख मत्स्य १७९.२४(धूमशिखा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), कथासरित् ७.५.१२५ (अग्निशिख राक्षस द्वारा शृङ्गभुज राजकुमार को स्वभ्राता धूमशिख को लाने के लिए भेजना, शृङ्गभुज द्वारा धूमशिख से स्वयं की रक्षा के उपायों का वृत्तान्त), १५.१.१०८ (राजा मन्दरदेव का प्रधान?, चक्रवर्ती नरवाहनदत्त द्वारा युद्ध में धूमशिख को जीतना), १६.२.१९(राजा नरवाहनदत्त द्वारा उज्जयिनी के राजा पालक व उसके पुत्र को लाने के लिए धूमशिख विद्याधर को भेजने का उल्लेख ) dhoomashikha
धूमावती देवीभागवत १२.६.८० (गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.८७.१५५ (दुर्गा - अवतार, धूमावती के मन्त्र विधान का कथन), पद्म ३.२८.२३ (धूमावती तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : कामनाओं की पूर्ति), शिव ३.१७.८ (शिव के सातवें अवतार धूमवान् की शक्ति धूमावती : सदुपासक कामदा), ५.४७.५१(गौरी के शरीर से प्रकट कौशिकी द्वारा धूम्राक्ष / धूम्रलोचन असुर का वध करने पर धूमावती नाम प्राप्ति ) dhoomaavatee/ dhumavati
धूमिनी ब्रह्माण्ड ३.४.१०.८१ (भण्डासुर - भार्या), ३.४.२८.६(भण्डासुर की भगिनी, उलूकजित् आदि की माता), मत्स्य ४९.७० (अजमीढ - भार्या, यवीनर - माता), ५०.१७ (अजमीढ / सोमक - पत्नी, पुत्र जन्तु की मृत्यु पर धूमिनी द्वारा तप से धूमवर्ण ऋक्ष पुत्र को जन्म देना), हरिवंश १.३२.४३ (अजमीढ - पत्नी धूमिनी द्वारा तप से ऋक्ष पुत्र की माता बनने का कथन, वंश वर्णन ) dhoominee/ dhumini
धूमोर्णा देवीभागवत ९.२२ (शङ्खचूड - सेनानी, नलकूबर से युद्ध), विष्णु १.८.२७ (यम - पत्नी), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.४(यम पुरुष, धूमोर्णा प्रकृति), ३.५१ (धूमोर्णा की मूर्ति के स्वरूप का वर्णन), स्कन्द ७.१.१६ (राक्षस, सूर्य प्रभाव से पाताल में पतन), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२५(विष्णु के यम व लक्ष्मी के धूमोर्णा होने का उल्लेख), ४.१०६.७५ (यमराज - पत्नी धूमोर्णा का उल्लेख ) dhoomornaa
धूम्र नारद १.६५.२७(धूम्रा : रवि की १२ कलाओं में से एक), पद्म ३.२६.९६ (मृगधूम तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्म १.३४.७७(नि:श्वास रूपी धूम्र का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.११.७(मार्कण्डेय - पत्नी, वेदशिरा - माता), १.२.१८.७५(भारत के पूर्व दिशा के ३ पर्वतों में से एक), २.३.७.१३४(धूम्रित : खशा व कश्यप के कईं राक्षस पुत्रों में से एक), २.३.७.२३५(प्रधान वानर नायकों में से एक), २.३.७.४४३(धूम्रगण : दुल्लोल नाग के ८ पुत्रों में से एक), ३.४.३५.८३ (धूम्रार्चि : दिव्य अर्घ्य पात्र के आधार में स्थित अग्नि की १० कलाओं में से एक), ३.४.३५.८७(धूम्रा : दिव्य अर्घ्य पात्र के परित: स्थित सूर्य की १२ कलाओं में से एक), भागवत ५.२०.२५(धूम्रानीक : मेधातिथि के ७ पुत्रों में से एक), मत्स्य १६३.८९(धूम्रवर्ण : हिरण्यकशिपु के कारण कम्पित पर्वतों में से एक), १७९.१७(धूम्रा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु २६.४१(चतुर्दश मुखी ब्रह्मा के नवम ऌकार मुख से नवम धूम्र मनु की उत्पत्ति का उल्लेख), ६९.१६५/२.८.१५९(धूम्रित : खशा के मुख्य पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.२४९.५ (धूम्र के वलीमुखों, ऋक्षों आदि के अधिपति होने का उल्लेख), शिव २.५.३६.११ (शङ्खचूड - सेनानी, नलकूबर से युद्ध), २.५.३६.१३ (शङ्खचूड - सेनानी, आदित्यों से युद्ध), वा.रामायण ६.२७.९ (वानर, राम - सेनानी, जाम्बवान - अग्रज, सारण द्वारा रावण को धूम्र का परिचय देना), लक्ष्मीनारायण २.२४२.२६ (आपस्तम्बी, धूम्रस्तम्बी आदि पांच भगिनियों का ध्यानस्थ पङ्किल ऋषि के पास आगमन और पङ्किल को ५ कल्प जीवी होने की शुभाशीष), २.२४३.१६ (धूम्रस्तम्बी आदि ५ भगिनियों का श्रीहरि से विवाह), ३.४ (धूम्र असुर की शिव के मस्तक पृष्ठ से उत्पत्ति, धूम्र द्वारा शिव से प्राप्त त्रिशूल से ब्रह्माण्ड को विजित करना, कन्या रूपधारी लक्ष्मी पर मोहित होना व मृत्यु ) ; द्र. सुधूम्राक्ष dhoomra/ dhumra
धूम्रकेतु भागवत ५.७.२ (भरत व पञ्चजनी के पांच पुत्रों में से एक), ९.२.३३(तृणबिन्दु व अलम्बुषा के ३ पुत्रों में से एक ) dhoomraketu
धूम्रकेश भागवत ४.२२.५४ (पृथु - पुत्र), ४.२४.१ (दक्षिण दिशा के राजा), ६.६.२० (कृशाश्व व अर्चि - पुत्र )
धूम्रलोचन देवीभागवत ५.२१ , ५.२४.३६(शुम्भ - निशुम्भ द्वारा काली देवी से युद्ध हेतु धूम्रलोचन का प्रेषण, धूम्रलोचन द्वारा देवी को युद्ध के रतिज और उत्साह जन्य भेदों का कथन), ५.२५.१(धूम्रलोचन का कालिका देवी से युद्ध, देवी द्वारा हुंकार से धूम्रलोचन को भस्म करना), ब्रह्माण्ड १.२.१८.२० (धूम्रलोचन शिव का मुञ्जवान पर्वत पर वास), मत्स्य १२१.२२ (शृङ्गवान पर्वत पर धूम्रलोचन शिव के निवास का उल्लेख), मार्कण्डेय ८६ (शुम्भ व निशुम्भ - सेनानी), वामन ५५ (कौशिकी द्वारा धूम्रलोचन का वध), शिव ५.४७.४४ (शुम्भ व निशुम्भ - सेनापति, कौशिकी / धूमावती देवी द्वारा हुंकार से वध), कथासरित् ८.५.१०७ (विद्याधर श्रुतशर्मा व सूर्यप्रभ के युद्ध में वीरसेन द्वारा धूम्रलोचन के वध का उल्लेख ) dhoomralochana/ dhumralochan
धूम्राक्ष गणेश २.१२.२३ (महोत्कट गणेश द्वारा धूम्राक्ष के वध का वृत्तान्त), २.१४.३६ (धूम्राक्ष - पत्नी द्वारा महोत्कट गणेश का विषयुक्त तैल से मर्दन, गणेश द्वारा वध), २.६९.१७ (धूम्राक्ष दैत्य के विशेष वज्र का कथन), भविष्य ४.७१ (अयोध्या के राजा अजपाल को अपने आधीन करने के लिए रावण द्वारा धूम्राक्ष को दूत बनाकर भेजना), भागवत ९.२.३४(हेमचन्द्र - पुत्र, संयम - पिता, मरुत्त वंश), ९.१०.१८(रावण - सेनापति, राम द्वारा वध), विष्णु ४.१.५२(चन्द्र - पुत्र, सृंजय - पिता, मरुत्त वंश), शिव ५.४७.४४ (कौशिकी देवी द्वारा हुंकार से धूम्राक्ष / धूम्रलोचन का वध), वा.रामायण ६.५१ (रावण - सेनानी धूम्राक्ष के रथ का वर्णन, हनुमान द्वारा लङ्का के पश्चिम द्वार पर धूम्राक्ष का वध), ७.५.४० ( सुमाली व केतुमती - पुत्र), लक्ष्मीनारायण १.१६६.४३ (शुम्भ - सेनानी, देवी को बलात् पकडने के प्रयास पर देवी द्वारा हुंकार अग्नि से भस्म करना), २.१७६.८ (ज्योतिष में योग का नाम ) dhoomraaksha
धूम्राश्व मार्कण्डेय ११४.२५/ १११.२६ (धूम्राश्व - पुत्र नल के भस्म होने का वृत्तान्त), वा.रामायण १.४७.१४(सुचन्द्र - पुत्र, सृंजय - पिता, इक्ष्वाकु वंश )
धूर्जटि ब्रह्माण्ड ३.४.३०.८४(काम द्वारा उद्दीपित धूर्जटि शिव का गौरी से विवाह के लिए उद्धत होना), विष्णु ४.७.८(कुश के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द १.२.१३.१९३(शतरुद्रिय प्रसंग में शृङ्गी द्वारा विषमय लिङ्ग की धूर्जटि नाम से पूजा का उल्लेख), ३.३.१२.१७ (धूर्जटि से कटि की रक्षा की प्रार्थना), कथासरित् १७.१.६९ (चन्द्रलेखा द्वारा धूर्जट गण को मनुष्य बनने का शाप), १७.१.१३७ (धूर्जट का ब्रह्मदत्त - मन्त्री शिवभूति बनना ) dhoorjati/ dhurjati
धूर्त्त गणेश २.११४.१६ (सिन्धु असुर व गणेश के युद्ध में धूर्त्तराज का विकट से युद्ध), कथासरित् ८.५.५३ (धूर्त्तवहन : विद्याधर श्रुतशर्मा - सेनानी, सूर्यप्रभ - सेनानी प्रभास से युद्ध ) dhoorta/ dhurta
धृत - ब्रह्माण्ड १.२.३६.३१(धृतधर्मा : प्रतर्दन देव गण के १२ देवों में से एक), २.३.७१.१३१(देवक की ७ पुत्रियों में से एक, वसुदेव - भार्या), भागवत ९.२४.२२(धृतदेवा : देवक की ७ पुत्रियों में से एक, वसुदेव - पत्नी), मत्स्य १२.२१ (धृतकेतु : धृष्ट के तीन पुत्रों में से एक), ४९.५(धृतेयु : भद्राश्व व घृताची के १० पुत्रों में से एक), वायु ६९.७३/२.८.७०(धृतपाद : कश्यप व कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), ८८.१२१/२.२६.१२०(धृतक : रुरुक - पुत्र, बाहु - पिता, हरिश्चन्द्र वंश), विष्णु ३.२.२४(धृतकेतु : दक्ष सावर्णि मनु के पुत्रों में से एक), ४.१९.२(धृतेषु : रौद्राश्व व घृताची के १० पुत्रों में से एक ) ; द्र. विधृत
धृतराष्ट्र गरुड ३.९.३(अजान देवों में से एक), गर्ग १.५.२७ (भग नामक सूर्य का अंश), देवीभागवत २.६ (शन्तनु - पुत्र की पत्नी व व्यास के वीर्य से अन्धे धृतराष्ट्र के उत्पन्न होने आदि का वृत्तान्त), ४.२२.३६ (अरिष्ट - पुत्र हंस का अंश), ब्रह्माण्ड १.२.२३.२१(धृतराष्ट्र गन्धर्व की माघ/तप मास में सूर्य रथ के साथ स्थिति का उल्लेख), २.३.६.८(कश्यप व दनु के विप्रचित्ति प्रमुख १०० दानव पुत्रों में से एक), २.३.७.२(१६ मौनेय देवगन्धर्वों में से एक), भविष्य ३.२.३६.२८ (रुद्र के शाप से पाण्डवों व कौरवों के कलियुग में अंशावतरण के संदर्भ में धृतराष्ट्र का अजमेर के शासक पृथ्वीराज के रूप में जन्म का उल्लेख), भागवत १.१३.१८ (विदुर के उपदेश से धृतराष्ट्र का गान्धारी सहित वन गमन व शरीर त्याग), ५.२४.३१(पाताल लोक वासी प्रमुख नागों में से एक), १२.११.४३(धृतराष्ट्र की आश्विन/इष मास में सूर्य रथ पर स्थिति), मत्स्य ६.११ (बलि के सौ पुत्रों में से एक, बाण - भ्राता), १०.२० (नागों द्वारा गौ दोहन में धृतराष्ट्र के दोग्धा होने का उल्लेख), वामन ३९ (दाल्भ्य बक द्वारा धृतराष्ट्र से याचना, धृतराष्ट्र के राष्ट्र का होम व क्षय), वायु ५२.२१(धृतराष्ट्र की माघ मास में सूर्य रथ पर स्थिति), ६९.२/२.८.२(१६ मौनेय देवगन्धर्वों में से एक), ६९.७१/२.८.६८(कद्रू व कश्यप से उत्पन्न प्रधान नागों में से एक), ६९.३१७ (धृतराष्ट्री : पुलह व ताम्रा की कन्याओं में से एक, गरुड - भार्या, हंसों आदि की माता), विष्णु २.१०.१६(धृतराष्ट्र की माघ मास में सूर्य रथ पर स्थिति), ६.८.४५(धृतराष्ट्र नाग द्वारा नर्मदा से विष्णु पुराण सुनकर वासुकि को सुनाना), स्कन्द ३.१.५.१३२ (उदयन राजकुमार द्वारा धृतराष्ट्र नाग के पुत्र किन्नर को शबर के बन्धन से मुक्त कराना, धृतराष्ट्र - पुत्री ललिता से विवाह आदि), ४.२.६८.५६(कृतिवासेश्वर कुण्ड में काकों के पतन से धार्तराष्ट्र/हंस बनने का कथन), हरिवंश १.६.२७ (सर्प, नागों द्वारा पृथिवी के दोहन में धृतराष्ट्र के दोग्धा बनने का उल्लेख), महाभारत शल्य ४१.७(धृतराष्ट्र द्वारा बक दाल्भ्य ऋषि को मृत गाएं देने पर बक दाल्भ्य द्वारा मृत गायों के मांस के होम से धृतराष्ट्र के राज्य का क्षय करना, धृतराष्ट्र द्वारा बक दाल्भ्य को प्रसन्न करना), लक्ष्मीनारायण २.२८.१७(धृतराष्ट्र जाति के नागों का क्षत्रिय बनना ); द्र. रथ सूर्य dhritaraashtra/ dhritrashtra/dhritarashtra
Comments on Dhritaraashtra
धृतराष्ट्री ब्रह्माण्ड २.३.७.४४६, ४५७(कश्यप व ताम्रा की ५ पुत्रियों में से एक, गरुत्मान् - पत्नी, हंसों आदि की माता), वायु ६९.३२८, ३३७/२.८.३१९, ३२८(गरुत्मान् - भार्या धृतराष्ट्री द्वारा हंसों, कलहंसों आदि सब विहगों की सृष्टि का उल्लेख ) dhritaraashtree/ dhritrashtri
धृतव्रत ब्रह्म २.२२ (मही - पति, सनाज्जात - पिता, अल्पायु में मरण से पत्नी का वेश्या होना), ब्रह्माण्ड १.२.३६.६४(रैवत मनु के १० पुत्रों में से एक), भागवत ९.२३.१३(धृति - पुत्र, सत्कर्मा - पिता), वायु ९९.११६/२.३७.११२(धृति -पुत्र, सत्कर्मा - पिता), विष्णु ४.१८.२५(धृति - पुत्र, सत्कर्मा - पिता )
धृति अग्नि २७४.५ (धृति का पति नन्दी को त्याग सोम के पास जाने का उल्लेख), ३३९.२९(सम्पदा अभ्युदय की धृति संज्ञा का उल्लेख), गरुड १.२१.२ (सद्योजात शिव की ८ कलाओं में से एक), १.४४.१० (धृति का धारणा से साम्य), ३.१६.२४(वायु के धृति नाम का कारण - यतो हृदि स्थितो वायुस्ततो वै धृतिसंज्ञकः । सर्वेषां च हृदि स्थित्वा स्मरते सर्वदा हरिम् ॥), ३.१६.८८(धृति रूप वायु की पत्नी हरिप्रीति का उल्लेख - हरौ स्नेहयुतत्वाच्च हरिप्रीतिरिति स्मृता । धृतिरूपस्य वायोश्च भार्या सा परिकीर्तिता ॥), गर्ग ७.१६.४ (मिथिला का राजा, बहुलाश्व - पिता, ब्रह्मचारी रूप धारी प्रद्युम्न से संवाद, प्रद्युम्न द्वारा धृति को दिव्य रूप का दर्शन देना), देवीभागवत ४.२२.४० (धृति के माद्री रूप में अवतरण का उल्लेख), ७.३० (पिण्डारक तीर्थ में देवी का धृति नाम से वास), ९.१.१०४ (कपिल - पत्नी), ९.१.११४ (ज्ञान - पत्नी), १२.६.८० (गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६५.२८(चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक), १.६६.८७ (विष्णु की शक्ति), पद्म १.२०.७८ (धृति व्रत विधि व माहात्म्य), ब्रह्म १.९.७(धृति के राजा रजि के साथ होने, श्री के धृति के साथ व धर्म के श्री व धृति से साथ होने का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.१०(दक्ष व प्रसूति - कन्या, चन्द्रमा -भार्या, धैर्य - माता), २.११०८ (कपिल - पत्नी, अधीरता को नष्ट करने वाली), ब्रह्माण्ड १.२.९.५९ ( धर्म - पत्नी, नियम - माता), १.२.१४.२७ (कुश द्वीप में ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों में से एक), १.२.२१ (धृतिमान् : कीर्तिमान् व धेनुका - पुत्र), १.२.३६.२७(१२ सुधामा देवगण में से एक), १.२.३६.९८ (सृष्टि व छाया के ५ पुत्रों में से एक), २.३.७.९८(ब्रह्मधान के ९ पुत्रों में से एक), २.३.६४.१२(महाधृति : विबुध - पुत्र, कीर्तिरात - पिता), २.३.६४.२३ (वीतहव्य - पुत्र, बहुलाश्व - पिता, जनक वंश), २.३.७१.१२४(आर्द्रक - पुत्र), ३.४.१.१५(२० संख्या वाले सुतप देवगण में से एक), ३.४.१.६४(धृतिकेतु : प्रथम सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), ३.४.३५.९४(ब्रह्मा की कलाओं में से एक), भागवत ५.२०.२६(निजधृति : शाकद्वीप की ७ नदियों में से एक), ९.१३.२६(वीतहव्य - पुत्र, बहुलाश्व - पिता, जनक वंश), ९.१९.३६(धृति की परिभाषा : जिह्वा-उपस्थ जय), ९.२३.११(जयद्रथ व संभूति - पुत्र), ९.२३.१२(विजय - पुत्र, धृतव्रत - पिता), ११.१९.३६(जिह्वा व उपस्थ जय का धृति नाम), मत्स्य ९.३३(भावी सावर्णि मनु के १० पुत्रों में से एक), १३.४८(पिण्डारक तीर्थ में स्थित सती देवी का नाम), २३.२६ (धृति द्वारा स्वपति नन्दी को त्याग कर सोम के पास जाने का उल्लेख), ४४.६२(वृष्णि - पुत्र, कपोतरोमा - पिता), १०१.३४ (धृति व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), १२२.७४ (कुश द्वीप की सात द्विनामा नदियों में से एक, अन्य नाम महती), १७९.२०(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), २४६.६२(वामन रूप विष्णु की कटि में स्थित देवियों में से एक), वराह ८७.३ (कुश द्वीप में एक द्विनामा नदी), वामन २.९ (पत्नी धृति सहित कौशिक द्वारा दक्ष के यज्ञ में सदस्य बनने का उल्लेख), वायु ३३.२६(कुश द्वीप के राजा ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों में से एक), ४९.५३(कुश द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक), ६२.८३/२.१.८३(पुष्टि व छाया के ५ पुत्रों में से एक), ८९.१२/२.२७.१२(विबुध - पुत्र, कीर्तिराज - पिता), ८९.२२/२.२८.२२(वीतहव्य - पुत्र, बहुलाश्व - पिता, जनक वंश), ९०.२५/२.२८.२५(धृति का पति को त्याग सोम की सेवा में जाने का उल्लेख), ९६.१२३/२.३४.१२३(आहुक - पुत्र धृति की प्रशंसा?), ९९.११६/२.३७.११२(विजय - पुत्र, धृतव्रत - पिता), १००.१५/२.३८.१५(२० संख्या वाले सुतप देवगण में से एक), विष्णु १.७.२३(दक्ष - कन्या, धर्म की १३ भार्याओं में से एक, नियम - माता), १.८.२५ (वायु - पत्नी), २.४.३६(कुश द्वीप में ज्योतिष्मान् के ७ पुत्रों में से एक), ४.१२.३९(बभ्रु - पुत्र, कैशिक - पिता), ४.१२.४१(निधृति : धृति - पुत्र, दशार्ह - पिता), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१८ (विष्णु/मोहिनी की जङ्घाओं में धृति की स्थिति), स्कन्द २.१.८.४ - १२ (भगवान् श्रीनिवास व पद्मावती के विवाह के संदर्भ में श्रीहरि के शृङ्गार हेतु धृति द्वारा श्रीहरि को आदर्श / दर्पण दिखाना), ४.२.९३.३ (शतधृति : ब्रह्मा की संज्ञा), ५.३.१९८.८६ (अणिमाण्डव्य व शूलेश्वरी देवी के संवाद में पिण्डारक तीर्थ में उमा देवी के धृति नाम से स्थित होने का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.४८ (युधिष्ठिर - यक्ष संवाद में द्वितीयवान् होने का प्रश्न : धृति से द्वितीयवान्), शान्ति १६२.१९ (सुख - दुःख में मन में विकृति न होने का नाम धृति ; भूति प्राप्ति के लिए धृति के सेवन का निर्देश), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२५(विष्णु के वायु और लक्ष्मी के धृति होने का उल्लेख), २.२४५.७८ (धृति द्वारा शिश्नोदर को जीतने का निर्देश ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(शेष की सहना शक्ति धृति, व्यापिनी शक्ति विधृति) ; द्र. तपोधृति, दक्ष कन्याएं, सत्यधृति dhriti
धृतिमान् ब्रह्माण्ड १.२.११.२१(धेनुका व कीर्तिमान् के २ पुत्रों में से एक), १.२.१९.५८(कुशेशय पर्वत के धृतिमान् वर्ष का उल्लेख), २.३.६४.९(महावीर्य - पुत्र, सुधृति - पिता, निमि/जनक वंश), ३.४.१.१०५(१३वें रौच्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), मत्स्य २१.३(ब्राह्मण - पुत्रों के पूर्व जन्मों के संदर्भ में सुदरिद्र के ४ पुत्रों में से एक), २४.३३(पुरूरवा व उर्वशी के ८ पुत्रों में से एक), ४९.७०(यवीनर - पुत्र, सत्यधृति - पिता, पूरु वंश), वायु २८.१७(धेनुका व कीर्तिमान् के २ पुत्रों में से एक), ९९.१८४/२.३७.१७९(यवीनर - पुत्र, सत्यधृति - पिता, पूरु वंश), विष्णु ३.२.४०(१३वें रौच्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ४.१९.४९(यवीनर - पुत्र, सत्यधृति - पिता, पूरु वंश ) dhritimaan
धृष्ट देवीभागवत ७.२.२२ (वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक, धार्ष्ट - पिता), ब्रह्माण्ड १.२.३८.३०(वैवस्वत मनु के ९/१० पुत्रों में से एक), २.३.६०.२ (वही), २.३.६३.४(धृष्ट के रणधृष्ट पुत्रों की धार्ष्टिक संज्ञा), २.३.७०.४० (कुन्ति - पुत्र, निर्वृत्ति - पिता, मरुत्त वंश), भागवत ७.२.१८(हिरण्याक्ष व रुषाभानु के पुत्रों में से एक), ८.१३.२(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), ९.२.१७ (वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक, धृष्ट - पुत्रों धार्ष्ट के क्षत्रिय से ब्राह्मण बनने का उल्लेख), मत्स्य ११.४०(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), १२.२० (वैवस्वत मनु - पुत्र, ३ पुत्रों के नाम), ४४.३९(कुन्ति - पुत्र, निर्वृत्ति - पिता), ४५.३०(धृष्टमान् : अक्रूर व रत्ना के ११ प्रतिहोता संज्ञक पुत्रों में से एक), वायु ६४.२९/२.३.२९(वैवस्वत मनु के ९/१० पुत्रों में से एक), ८८.४/२.२६.४(धृष्ट के रणधृष्ट पुत्रों की धार्ष्टिक संज्ञा), विष्णु ३.१.३३(वैवस्वत मनु के ९/१० पुत्रों में से एक), ४.१.७(वही), ४.१४.१३(कुकुर - पुत्र, कपोतरोमा - पिता, अनमित्र वंश ) dhrishta
धृष्टकेतु गर्ग ७.१५.३५ (श्रुतकीर्ति - पति, केकय देश का राजा, प्रद्युम्न को भेंट), देवीभागवत ४.२२.४४ (अनुह्राद दैत्य का अंश), ब्रह्माण्ड २.३.६४.१०(सुधृति - पुत्र, हर्यश्व - पिता, जनक वंश), २.३.६७.७६(सुकुमार - पुत्र, वेणुहोत्र - पिता, दिवोदास वंश), भागवत ९.१३.१५(सुधृति - पुत्र, हर्यश्व - पिता, जनक वंश), ९.१७.९(सत्यकेतु - पुत्र, सुकुमार - पिता, पुरूरवा वंश), ९.२२.३(धृष्टद्युम्न - पुत्र, दिवोदास वंश), ९.२४.३८(श्रुतकीर्ति - पति, संतर्दन आदि ५ पुत्र, कैकय देश का राजा), वायु ८९.१०/२.२७.१०(सुधृति - पुत्र, हर्यश्व - पिता, जनक वंश), ९२.७२/२.३०.७२(सुकुमार - पुत्र, वेणुहोत्र - पिता, दिवोदास वंश), ९९.२११/२.३७.२०६(धृष्टद्युम्न - पुत्र, दिवोदास वंश), विष्णु ४.५.२७(सुधृति - पुत्र, हर्यश्व - पिता, जनक वंश), ४.१९.७३(धृष्टद्युम्न - पुत्र, दिवोदास वंश ) dhrishtaketu
धृष्टद्युम्न देवीभागवत ४.२२.३८ (पाक / अग्नि का अंश), भागवत ९.२२.२ (द्रुपद - पुत्र, धृष्टकेतु - पिता), वायु ९९.२११/२.३७.२०६(द्रुपद - पुत्र, धृष्टकेतु - पिता), विष्णु ४.१९.७३(वही) dhrishtadyumna
धृष्टबुद्धि पद्म ६.४९.१५ (धनपाल वैश्य के पुत्रों में से एक, एकादशी व्रत से उद्धार), लक्ष्मीनारायण १.२४९.५५ (धनपाल वैश्य के ५ पुत्रों में से एक, कुकर्मों में धन को नष्ट करने और कौण्डिन्य के उपदेश से मोहिनी एकादशी व्रत से उद्धार )
धृष्टि ब्रह्माण्ड २.३.७१.४(भजमान व बाह्यका के ३ पुत्रों में से एक), २.३.७१.१८(गान्धारी व माद्री - पति, पुत्रों के नाम), भागवत ९.२४.३(कुन्ति - पुत्र, निवृत्ति - पिता, विदर्भ वंश), ९.२४.७(भजमान के ६ पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१२.४१(कुन्ति - पुत्र, निधृति - पिता, विदर्भ वंश), वा.रामायण १.७.३ (राजा दशरथ के ८ मन्त्रियों में से एक ) dhrishti
धृष्णि ब्रह्माण्ड २.३.१.१०५(अथर्वाङ्गिरस व पथ्या - पुत्र )
धेनु
अग्नि १६७.२५(यस्मात्त्वं
पृथिवी सर्वा धेनुः केशवसन्निभा
।
सर्वपापहरा
नित्यमतः शान्तिं प्रयच्छ
मे ॥)
,
२१०.१०
(गौरी
आदि १० धेनुओं की कल्पना व दान
;
धेनु
के शक्ति का रूप होने का कथन),
देवीभागवत
७.१०.५१(सत्यव्रत
द्वारा वसिष्ठ की धेनु को मार
कर खाने का कथन -
वसिष्ठस्य
च गां दोग्ध्रीमपश्यद्वनमध्यगाम्।।
तां जघान क्षुधार्तस्य
क्रोधान्मोहाच्च दस्युवत्
।।),
नारद
२.२८.७१
(धर्म
के कामदुघा धेनु होने का श्लोक
-
धर्मकामदुघा
धेनुः संतोषो नंदनं वनम् ।। ),
२.४२
(वसु
-
मोहिनी
संवाद के अन्तर्गत गुड धेनु
आदि
निर्माण व दान विधि),
पद्म
१.२१.५१
(पुलस्त्य
द्वारा भीष्म को गुड धेनु आदि
१० धेनुओं के दान की महिमा का
वर्णन ;
गुड,
क्षीर,
जल
आदि दस धेनुएं लक्ष्मी का
रूप),
५.३०.२३
(जाबालि
ऋषि द्वारा पुत्र प्राप्ति
हेतु राजा ऋतम्भर को धेनु की
सेवा करने का निर्देश -
तस्मात्त्वं
कुरु वै पूजां धेनोर्देवतनोर्नृप।
यस्याः
पुच्छे मुखे शृंगे पृष्ठे
देवाः प्रतिष्ठिताः ),
भविष्य
४.८४.२८
(विभिन्न
द्रव्यों से धेनु के अङ्गों
की अर्चना
-
गुडधेनुविधानं
मे त्वमाचक्ष्व जगत्पते ।।
किंरूपा
केन मंत्रेण दातव्या तदिहोच्यताम्
।।),
४.१५२
(तिल
धेनु दान विधि),
४.१५३
(जल
धेनु दान विधि,
मुद्गल
-
यम
संवाद),
४.१५४
(घृत
धेनु दान विधि),
४.१५५
(लवण
धेनु दान विधि),
४.१५६
(सुवर्ण
धेनु दान विधि),
४.१५७
(रत्न
धेनु दान विधि),
४.१५८
(उभयमुखी
धेनु दान का माहात्म्य),
भागवत
५.१५.३(धेनुमती
:
देवद्युम्न
-
पत्नी,
परमेष्ठी
– माता --
तत्तनयो
देवद्युम्नस्ततो धेनुमत्यां
सुतः परमेष्ठी ),
मत्स्य
८२
(गुड
आदि धेनु निर्माण व दान विधि
,
लक्ष्मी
आदि
का धेनु रूप),
१०१.४९
(धेनु
व्रत की संक्षिप्त विधि -
यश्चोभयमुखीं
दद्यात् प्रभूतकनकान्विताम्।
दिनं पयोव्रतस्तिष्ठेत् स
याति परमम्पदम्।),
२०५
(धेनु
दान विधि,
प्रसूयमाना
धेनु का महत्त्व),
२८८
(रत्न
धेनु दान विधि),
मार्कण्डेय
२९.६/२६.६
(सबकी
आधारभूता गृहस्थ रूपी धेनु
का वर्णन -
सर्वस्याधारभूतेयं
वत्स !
धेनुस्त्रयीमयी
। यस्यां प्रतिष्ठितं विश्वं
विश्वहेतुश्च या मता॥),
लिङ्ग
२.३५
(हेम
धेनु दान विधि -
खुराग्रे
विन्यसेद्वज्रं श्रृंगे वै
पद्मरागकम्।।
भ्रुवोर्मध्ये
न्यसेद्दिव्यं मौक्तिकं
मुनिसत्तमाः।।),
२.३७
(तिल
धेनु दान विधि),
वराह
९९.८७
(राजा
विनीताश्व द्वारा स्वर्ग में
भी क्षुधाविष्ट रहने पर मर्त्य
लोक में तिलधेनु,
जलधेनु
आदि दान से क्षुधा से मुक्ति,
तिल
धेनु दान आदि की विधि),
१४०.४०
(कोकामुख
क्षेत्र में धेनुवट क्षेत्र
का माहात्म्य),
विष्णुधर्मोत्तर
३.३०७
(घृत
धेनु,
कल्प),
३.३०८
(तिल
धेनु दान),
३.३०९
(जल
धेनु का वर्णन),
शिव
५.१०.४३
(धेनु
के स्वाहाकार,
स्वधाकार
आदि ४ स्तनों तथा उनके पान
करने वाले देवादिकों का कथन
;
धेनु
को बलि देने का निर्देश -
स्वाहाकारं
स्तनं देवास्स्वधां च पितरस्तथा।।
वषट्कारं
तथैवान्ये देवा भूतेश्वरास्तथा
।।..),
स्कन्द
३.२.६
(गृहस्थरूपी
धेनु
में विश्व की प्रतिष्ठा,
माहात्म्य
-
ऋक्पृष्ठासौ
यजुःसंध्या सामकुक्षिपयोधरा
।
इष्टापूर्तविषाणा
च साधुसूक्ततनूरुहा ।।),
५.१.२६.६६
(कुशस्थली
में उज्जयिनी में कार्तिक,
माघ
व वैशाख में क्रमश:
घृत,
तिल
व जल धेनुओं के दान का फल
-
कौमुदे
मासि संप्राप्ते गोदानं तत्र
कारयेत् ।।
घृतधेनुं
च कार्तिक्यां माघ्यां तिलमयीं
तथा ।।),
५.३.२६.११५
(बाणासुर
की रानी व नारद संवाद में अष्टमी
को कृष्णा धेनु दान के फल का
कथन),
५.३.८५.८१
(सोमनाथ
तीर्थ में श्वेत,
रक्त,
शबल,
पीत,
कपिला
गायों के दान के विभिन्न फलों
का कथन
-
श्वेतया
वर्धते वंशो रक्ता सौभाग्यवर्धिनी
। शबला पीतवर्णा च दुःखघ्न्यौ
संप्रकीर्तिते ॥),
५.३.१५९.७५
(नरक
की वैतरणी पार करने के लिए
धेनु दान की विधि),
७.१.२८.९३(गुड
आदि १० की धेनु संज्ञा -
गुडाज्यदधिमध्वंबुसलिल
क्षीरशर्कराः ॥
रत्नाख्याश्च
स्वरूपेण दशैता धेनवो मताः
॥),
महाभारत
उद्योग १०२
(सुरभि
की पुत्री स्वरूपा ४ धेनुओं
द्वारा चार दिशाओं का धारण -
पोषण,
४
धेनुओं के नाम -
सर्वकामदुघा
नाम धेनुर्धारयते दिशम्।
उत्तरां
मातले धर्म्यां तथैलविलसंश्रिताम्
।।),
शान्ति
२.२०
(धनुर्वेद
के अभ्यास में रत कर्ण द्वारा
अग्निहोत्री की होमधेनु के
वध से शाप प्राप्ति),
लक्ष्मीनारायण
१.४८९
(नन्दिनी
धेनु से वार्तालाप से व्याघ्र
बने कलश नृप की मुक्ति की कथा
-
दुर्वासास्तं
ततः प्राह यदा धेनुस्तु नन्दिनी
। शंभोर्बाणं भूतलस्थं
दर्शयिष्यति ते नृप ।।),
१.५६३
(मृत
राजा विनीताश्व के प्रेत
द्वारा क्षुधा से स्वशव भक्षण
के संदर्भ में रस धेनु,
तिल
धेनु आदि १२ धेनुओं के कल्पन
व दान विधि का वर्णन -
तिलधेनुं
शुभां देहि जलधेनुं च सतम ।।
घृतधेनुं रसधेनुं दधिधेनुं
प्रदेहि च ।),
२.१०१.१६
(धेनुपाल
पार्षद द्वारा विष्णु व लक्ष्मी
के शयन में विघ्न डालने से
लक्ष्मी के शापवश मानव योनि
में जन्म लेने का वृत्तान्त),
२.१४४.३८
(मूर्ति
प्रतिष्ठा उत्सव के अन्तर्गत
पापधेनु दान का निर्देश
-
प्रातश्चाधिवासनेऽह्नि
स्नात्वा तीर्थोदकैस्ततः
।।
प्रायश्चित्तस्य
मुक्त्यर्थं पापधेनुं समर्पयेत्
।),
२.२७९.८
(मण्डप
में माणिक्य स्तम्भ के देवता
इन्द्राग्नि व धेनु होने का
उल्लेख
-
पूजितश्चैन्द्रदैवत्यश्चाग्निदैवत्य
इत्यपि ।।
धेनुदैवत्य
एवापि माणिक्यस्तंभ उच्यते
।),
३.३६.९४
(अनाथ
धेनुओं की रक्षा करने हेतु
लक्ष्मी के धेनुमती नामक अवतार
का कथन),
३.१३२.२६
(रत्नधेनु
कल्पन व दान विधि का वर्णन );
द्र.
कामधेनु,
गौ
dhenu
धेनुक गर्ग २.११ (धेनुक असुर का तालवन में वास, गोपों द्वारा ताडन, बलराम द्वारा उद्धार), देवीभागवत ४.२२.४४ (खर का अंश), ब्रह्म १.७८.२ (कृष्ण व बलराम द्वारा तालवन में खर रूप धारी धेनुकासुर के वध का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२२ (धेनुक गर्दभ का कृष्ण द्वारा वध, पूर्व जन्म में साहसिक नामक बलि - पुत्र का धेनुक गर्दभ बनना, कृष्ण की स्तुति), भागवत १०.१५.२२ (धेनुक द्वारा तालवन में फलों पर अधिकार , बलराम द्वारा उद्धार), वायु ६८.१५/२.७.१५(दनु व कश्यप के मनुष्यधर्मा पुत्रों में से एक), ११२.५६/२.५०.६८(धेनुकारण्य : गया में पितरों को पिण्ड दान हेतु धेनुकारण्य का माहात्म्य), विष्णु ५.८ (तालवन में खराकृति धेनुकासुर के उपद्रव व कृष्ण द्वारा वध का वृत्तान्त), हरिवंश १.५४.७५ (खर दैत्य का रूप, तालवन में विचरण), २.१३ (तालवन में गर्दभ, बलराम द्वारा वध ) dhenuka
धेनुका ब्रह्माण्ड १.२.११.२०(कीर्तिमान - पत्नी, चरिष्णु व धृतिमान् की माता), वायु २८.१७(कीर्तिमान - पत्नी, वरिष्ठ व धृतिमान् की माता), ४९.९४(शाक द्वीप की ७ नदियों में से एक, अन्य नाम मृता), विष्णु २.४.६५(वही)
धैर्य ब्रह्मवैवर्त्त १.९.१०(चन्द्रमा व धृति - पुत्र), हरिवंश ३.७१.५२ (वामन के विराट रूप में धैर्य के महार्णव होने का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.९५ (यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में धैर्य के इन्द्रिय निग्रह होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.३०.४५ (धैर्य के ३ साधनों उद्यम, पुत्र, आरोग्य का उल्लेख), कथासरित् १२.५.२७८ (धैर्य पारमिता का दृष्टान्त : ब्राह्मण कुमार द्वारा तृण के पक्षों से उडने का प्रयत्न करते रहने पर स्कन्द का अनुचर बनना ) dhairya
धौम्य गर्ग ७.२०.३२ (कौरव - यादव युद्ध के प्रसंग में धौम्य का प्रद्युम्न - सेनानी अरुण से युद्ध), देवीभागवत ३.१६.२९(जयद्रथ द्वारा द्रौपदी के विषय में धौम्य ऋषि से पृच्छा), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१५(मध्यमाध्वर्युओं में से एक), शिव ७.२.१.१० (धौम्य - अग्रज उपमन्यु का संदर्भ ) dhaumya
ध्यान अग्नि १६५ (ध्यान योग का वर्णन - ध्येय आत्मा स्थितो योऽसौ हृदये दीपवत्प्रभुः । अनन्यविषयं कृत्वा मनो बुद्धिस्मृतीन्द्रियं ॥..), ३७४ (ध्यान योग का वर्णन - ध्याता ध्यानं तथा ध्येयं यच्च ध्यानप्रयोजनं । एतच्चतुष्टयं ज्ञात्वा योगं युञ्जीत तत्त्ववित् ।।), गरुड १.१४ (ध्यान योग का वर्णन - ध्यायिभिः प्रोच्यते ध्येयो ध्यानेन हरिरीश्वरः ।।), १.१६ (विष्णु का ध्यान), १.४४ (ब्रह्म ध्यान का वर्णन - प्रत्याहारो जयः प्रोक्तो ध्यानमीश्वरचिन्तनम् ।। मनोधृतिर्धारणा स्यात्समाधिर्ब्रह्मणि स्थितिः ।।), १.९१+ (हरि के ध्यान का स्वरूप - रूपेण रहितञ्चैव गन्धेन परिवर्जितम् ॥ अनादि ब्रह्मरन्ध्रान्तमहं ब्रह्मास्मि केवलम् ॥), १.२२७ (ध्यान योग का कथन), नारद १.४४.८३ (ध्यान योग का वर्णन, भरद्वाज - भृगु संवाद प्रसंग - शब्दं न विंदेच्छ्रोत्रेण त्वचा स्पर्शं न वेदयेत् ।। रूपं न चक्षुषा विंद्याज्जिह्वया न रसांस्तथा ।।), पद्म २.७.३६+ (ध्यान द्वारा आत्मा को पञ्च तत्त्वों से मैत्री न करने का सत्परामर्श - न कर्तव्यं त्वया चात्मन्नैतेषां वै समागमम् । एषां संसर्गमात्रेण महद्दुःखं भविष्यति ।), ५.८४.५८ (श्रीहरि को प्रिय ८ पुष्पों में से एक), ५.१०९.५४ (ध्यान के शिव का द्रविणाध्यक्ष व सत्य के सेनापति होने आदि का उल्लेख - प्राणायामः पुरोधास्तु प्रत्याहारः सुवर्णधृक् ।। ध्यानं च द्रविणाध्यक्षः सत्यं सेनापतिस्तथा ।), ब्रह्माण्ड १.२.३४.६५ (याज्ञवल्क्य - शाकल्य वाद- विवाद में अध्यात्म की मुख्य गति के रूप में सांख्य, योग अथवा ध्यान मार्ग का प्रश्न - सुसूक्ष्मज्ञानसंयुक्तं सांख्यंयोगमथापि वा ।। अध्यात्मस्य गतिं मुख्यां ध्यानमार्गमथापि वा ।। ), भविष्य ३.४.७.२६ (ध्यान से सारूप्य मोक्ष प्राप्ति - मोक्षश्चतुर्विधो विप्र सालोक्यं तपसोद्भवम् ।। सामीप्यं भक्तितो जातं सारूप्यं ध्यानसंभवम् ।। ), भागवत २.१.१५ (मृत्युकालीन ध्यान, धारणा आदि की विधि), ११.११.४४(ह्रदय के खे में ध्यान द्वारा ईश्वर की उपासना का निर्देश - वैष्णवे बन्धुसत्कृत्या हृदि खे ध्याननिष्ठया। वायौ मुख्यधिया तोये द्रव्यैस्तोयपुरःसरैः।।), ११.१४.३२ (ह्रदय कमल पर ध्यान : कृष्ण द्वारा उद्धव हेतु स्वस्वरूप के ध्यान का कथन ), लिङ्ग १.८.९० (शरीर में ध्यान के स्थान व शिव नाम - नाभौ वाथ गले वापि भ्रूमध्ये वा यथाविधि।। ललाट फलिकायां वा मूर्ध्नि ध्यानं समाचरेत्।।), विष्णुधर्मोत्तर ३.२८३ (ध्यान की विधि का वर्णन - द्रव्ये तु धारणा बाह्ये धारणा परिकीर्तिता ।। सैव चेतसि निर्दिष्टा ध्यानेति मनुजोत्तमाः।।), शिव ७.२.२२.४४ (कर्म, तप आदि ५ यज्ञों में ध्यान व ज्ञान यज्ञ की श्रेष्ठता का कथन - जपध्यानरतो भूत्वा जायते भुवि मानवः ॥ जपध्यानरतो मर्त्यस्तद्वैशिष्ट्यवशादिह ॥), ७.२.३९.१४(ध्यान शब्द की निरुक्ति, ध्यान की प्रशंसा - ध्याता ध्यानं तथा ध्येयं यद्वा ध्यानप्रयोजनम् ॥ एतच्चतुष्टयं ज्ञात्वा ध्याता ध्यानं समाचरेत् ॥), स्कन्द २.५.१६ (कृष्ण के बाल स्वरूप का ध्यान), ४.१.४१.११९(ध्यान के सगुण व निर्गुण प्रकार तथा ध्यान की प्रशंसा - ध्यै चिंतायां स्मृतो धातुश्चिंता तत्त्वे सुनिश्चला ।। एतद्ध्यानमिह प्रोक्तं सगुणं निर्गुणं द्विधा ।।.. ), ५.३.५१.३५(८ आध्यात्मिक पुष्पों में ध्यान पुष्प का उल्लेख), ६.५१.६४( त्रेतायुग में ध्यान की श्रेष्ठता का उल्लेख - तपः कृते प्रशंसंति त्रेतायां ध्यानमेव च ॥ द्वापरे यज्ञयोगं च दानमेकं कलौ युगे ॥), ७.१.१०५.४७ (एकादश कल्प का नाम - सद्योऽथ नवमः प्रोक्तः ईशानो दशमः स्मृतः ॥ ध्यान एकादशः प्रोक्तस्तथा सारस्वतोऽपरः ॥), योगवासिष्ठ ५.५६(ध्यान विचार नामक सर्ग में अन्तर्मुखी साधक के व्यवहार का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४२५.१२(ध्यान के ज्ञान से श्रेष्ठ व भावना से हीन होने का उल्लेख - कर्मणो ज्ञानमुत्कृष्टं ज्ञानाद् ध्यानं तथोत्तमम् । ध्यानाच्च भावना श्रेष्ठा भावतः स्नेह उत्तमः ।।), १.४८९.७१ (त्रेता युग में ध्यान की श्रेष्ठता, सत्ययुग में तप की श्रेष्ठता आदि का उल्लेख - धेनुः प्राह तपः सत्ये, त्रेतायां ध्यानमेव तु ।। द्वापरे यज्ञदानं च, दानमेकं कलौ शुभम् ।), २.२४५.८० (ध्यान द्वारा तेज का और भक्ति द्वारा ध्यान का प्रवर्धन होने का उल्लेख - तेजस्तु वर्धते ध्यानाद् ध्यानं भक्त्या प्रवर्धते ।। भक्तिः संवर्धते स्नेहात् स्नेहो माहात्म्यबोधनात् ।), ३.९.६३ (यम, नियम आदि वत्सरों में से प्रध्यान नामक वत्सर में तुङ्गभद्रा योगिनी द्वारा राक्षसों से मुक्ति हेतु सूर्य की गति के रोधन का वर्णन), ३.१८९.२ (भगवान् की चिन्तामणि मूर्ति के ध्यान के महत्त्व का वर्णन - साक्षात्कारो हरेश्चापि कृपया सेवयाऽथवा । ध्यानेन शाश्वतेनाऽपि भवेदेव न संशयः ।।), कथासरित् १२.५.२८४ (ध्यान पारमिता के दृष्टान्त के अन्तर्गत वणिक् - पुत्र द्वारा राजकन्या के चित्र से सजीव जैसा व्यवहार, प्रबोधित किए जाने पर वणिक् - पुत्र द्वारा अर्हता प्राप्ति - क्रमात्तन्मयतां प्राप्य तया वृत्त्याकरोत्क्रियाः ।।शनैश्च तामालपन्तीं चुम्बनादि च कुर्वतीम् । ) dhyaana
ध्यानकाष्ठ स्कन्द २.१.१३ (ऋक्ष रूप धारी ध्यानकाष्ठ मुनि को राजा द्वारा वृक्ष से गिराये जाने की चेष्टा पर ध्यानकाष्ठ द्वारा राजा को शाप, सिंह के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ३.१.३२ (धर्मगुप्त - ऋक्ष - सिंह की कथा ) dhyaanakaashtha
ध्येय अग्नि ३८२.१४(विष्णु के परम ध्येय होने का उल्लेख)
ध्रांधरा लक्ष्मीनारायण २.७३.३५(ध्रांधरा नदी तट पर चोरों का वास, श्रीहरि द्वारा सुधना भक्त के धन की चोरों से रक्षा का वृत्तान्त )
ध्रुव अग्नि १८.३५ (८ वसुओं में से एक, काल - पिता, इन्दु व नक्षत्र - पुत्र ?), गरुड १.६ (ध्रुव वंश का वर्णन), गर्ग १.५.२३ (ध्रुव नामक वसु के देवक रूप में अवतरण का उल्लेख), देवीभागवत ८.१७ (ध्रुव नक्षत्र की महिमा), पद्म १.४० (साध्य नामक देवगण में से एक), ३.३१.१८३ (शाकुनि ऋषि के ९ पुत्रों में से एक), ६.६.३२(श्रद्धाहीन होकर एकादशी व्रत करने पर शोभन को अध्रुव लोक की प्राप्ति, शोभन - पत्नी चन्द्रभागा द्वारा एकादशी व्रतों के पुण्यदान से लोक का ध्रुव होना), ब्रह्म १.२२.४(ध्रुव की शिशुमार की पुच्छ में स्थिति, तारा रूपी शिशुमार का आधार जनार्दन, ध्रुव का शिशुमार व भानु का ध्रुव होने का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१४.३९(प्लक्ष द्वीपाधिपति मेधातिथि के ७ पुत्रों में से एक), १.२.१९.१६ (वैभ्राज पर्वत के ध्रुव वर्ष का उल्लेख), १.२.२२.६ (शिशुमार की पुच्छ में स्थित ध्रुव के महत्त्व का वर्णन), १.२.३०.३९(यज्ञ की अपेक्षा तप द्वारा स्वर्ग जाने वाले राजर्षियों में से एक), १.२.३६.५७(स्वारोचिष मन्वन्तर में वैकुण्ठ देवताओं में से एक), १.२.३६.७५(लेख वर्ग के देवगण में से एक), २.३.३.२०(धर्म व वसु के ८ वसु पुत्रों में से एक, काल - पिता), २.३.७.२२०(अङ्गद - पुत्र), २.३.६६.६८ (विश्वामित्र के पुत्रों में से एक), ३.४.१.१९(२० संख्याओं वाले सुखदेव गण में से एक, मारीच कश्यप - पुत्र), भविष्य ३.४.१७ (ख मण्डल में स्थित होने पर ध्रुव का दिक्पति बनना, दिशाओं से ग्रहों, दिग्गजों की उत्पत्ति ; पूर्व जन्म में माधव ब्राह्मण, कलियुग में नरश्री रूप में अवतरण), ३.४.१७.४९(वासुदेवी व ध्रुव से केतु ग्रह के जन्म का उल्लेख), ३.४.१७.५१(ध्रुव व नभो दिशा से ८ दिग्गजों के जन्म का कथन), ३.४.१७.५७(ऊर्ध्व व अधो ध्रुव की सत् व तमोगुणी प्रकृतियों का कथन ; ध्रुव के जन्मान्तरों का वृत्तान्त), ३.४.२०.१८ (अपरा प्रकृति के देवताओं में से एक), ३.४.२५.३२ (ब्रह्माण्ड मन से ध्रुव तथा ध्रुव से उत्तम मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.६९.६१(सुनीति/शुघ्नी व उत्तानपाद - पुत्र, सुरुचि द्वारा ध्रुव का वध , व्रत से ध्रुव का पुनर्जीवन), भागवत ४.८ (उत्तानपाद व सुनीति - पुत्र, वन गमन, नारद द्वारा ध्यान विधि की शिक्षा), ४.९ (ध्रुव द्वारा विष्णु से वर प्राप्ति, गृह आगमन), ४.१० (उत्तम की मृत्यु पर ध्रुव का यक्षों से युद्ध, स्वायम्भुव मनु द्वारा युद्ध की समाप्ति), ४.१२ (ध्रुव द्वारा कुबेर से वर की प्राप्ति, विष्णुलोक प्राप्ति, पुत्र उत्कल को राज्य प्रदान करना), ६.६.११(धर्म व वसु के ८ वसु पुत्रों में से एक, धरणी - पति, अनेक पुरों की उत्पत्ति), ९.२०.६(रन्तिभार के ३ पुत्रों में से एक, पूरु वंश), ९.२४.४६(वसुदेव व रोहिणी के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४.३८ (उत्तानपाद व सूनृति - पुत्र, धन्या - पति, शिष्ट - पिता), १२२.२५(विभ्राज वर्ष का अपर नाम), १२७(सारे तारापिण्डों का शिशुमार की मेढ्र में स्थित ध्रुव के परित: गति करने का कथन ; केवल ध्रुव द्वारा ही ज्योतिष चक्र का अधोमुखी कर्षण करने का कथन), १५३.१९(११ रुद्रों में से एक), १७१.४३ (धर्म व साध्या के साध्य नामक पुत्रों में से एक), १७१.४६(धर्म व सुदेवी के ८ वसु पुत्रों में से एक), लिङ्ग १.५४.६७(ध्रुव द्वारा अधिष्ठित् वायु द्वारा वृष्टि का संहरण करने का कथन), १.५५.६(सूर्य के रथ में चक्र के अक्ष में तथा अक्ष के ध्रुव में निबद्ध होने का कथन ; ध्रुव द्वारा वातरश्मियों द्वारा ज्योतियों को प्रेरित करने का उल्लेख), १.६२ (पिता द्वारा तिरस्कार करने पर ध्रुव के तप की कथा), वराह १८०.१ (ध्रुव तीर्थ में श्राद्ध से प्रभावती की दासी के मशक वेष्टित पितरों की मुक्ति), वामन ९०.२१(त्रितय में विष्णु की ध्रुव नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ४९.१४(वैभ्राज वर्ष का अपर नाम), ५१.६ (ध्रुव की महिमा : सम्पूर्ण जगत का नियन्ता), ६६.१९/२.५.२० (८ वसुओं में से एक, भव/काल के पिता), ८६.५६/२.२४.५६(उत्तरमन्द्र ध्वनि का अधिष्ठाता देवता), ९१.९६/२.२९.९२(विश्वामित्र के पुत्रों में से एक), ९९.१२९/२.३७.१२५(रन्तिनार व सरस्वती के ३ पुत्रों में से एक, पूरु वंश), १००.१९/२.३८.१९( २० संख्याओं वाले मुख्य देव गण में से एक, मारीच कश्यप - पुत्र), १०१.१४४/२.३९.१४४(ध्रुव से ऊपर ध्रुवाग्र का कथन), विष्णु १.११ (उत्तानपाद व सुनीति - पुत्र, ध्रुव के वन गमन की कथा), १.१२ (इन्द्रादि द्वारा ध्रुव का तप भङ्ग करने का यत्न, ध्रुव को विष्णु से ध्रुव पद प्राप्ति), १.१३.१ (ध्रुव वंश का वर्णन), १.१५.११०(ध्रुव वसु के पुत्र काल का उल्लेख), २.४.४ , ४.१९.४(अन्तिनार के ३ पुत्रों में से एक, पूरु वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६ (ध्रुव शरीर में देवों आदि का न्यास), ३.७३.६ (ध्रुव की मूर्ति का रूप), स्कन्द ४.१.१९ (माता - पिता से तिरस्कृत होकर ध्रुव का वन में तप, सप्तर्षियों से मन्त्र दीक्षा की प्राप्ति), ४.१.२० (इन्द्र द्वारा ध्रुव के तप में विघ्न, ध्रुव द्वारा विष्णु की स्तुति), ४.१.४२.१४ (ध्रुव का नासाग्र में स्थान), हरिवंश ३.५३.७ (ध्रुव वसु का बल असुर से युद्ध), ३.५४.५८(देवासुर सङ्ग्राम में वल असुर द्वारा ध्रुव वसु पर गदा द्वारा प्रहार), ३.५४.७२(ध्रुव वसु का बलाक असुर से युद्ध व पराजय), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११५टीका (सोम की अवशिष्ट कला की ध्रुवा संज्ञा का कथन), लक्ष्मीनारायण १.३३१.२० (ध्रुव - पौत्र केदार नृप की कथा : वृन्दा कन्या की यज्ञ कुण्ड से उत्पत्ति), १.३५४.३७ (मथुरा में ध्रुव तीर्थ में पितरों के श्राद्ध का महत्त्व : राजा की दासी द्वारा श्राद्ध की कथा), २.४४.१८ (राजा रणङ्गम द्वारा दक्षिण ध्रुव व उसके विचित्र निवासियों के दर्शन का वर्णन), ३.७.३१(आसन नामक वत्सर में राजा चलदेव द्वारा अचला भक्ति तथा वंश की अचलता का वर मांगना, विष्णु का दृढध्रुवा नाम से राजा के पुत्र रूप में जन्म लेना), ३.१८४.२ (ध्रुवालय नामक नगर में नास्तिक भावशूर नृप व वृक्णदेव नामक भक्त भृत्य की कथा), ४.२.१० (राजा बदर के ध्रुव संज्ञक विमान का कथन), ४.९६.१(श्रीहरि के ध्रुव लोक में भ्रमण का वृत्तान्त ), द्र. निध्रुव, नैध्रुव dhruva
Esoteric aspect of story of Dhruva
Comments on Dhruva
Vedic contexts on Dhruva
ध्रुवक्षिति ब्रह्माण्ड १.२.३६.७५(चाक्षुष मन्वन्तर में लेखवर्ग के एक देवता )
ध्रुवसन्धि देवीभागवत ३.१४ (कोसल - राजा, पुष्य - पुत्र, मनोरमा व लीलावती - पति, सिंह से युद्ध व मृत्यु), ब्रह्माण्ड २.३.६३.२०९(पुष्य - पुत्र, सुदर्शन - पिता, कुश वंश), भागवत ९.१२.५(पुष्य - पुत्र, सुदर्शन - पिता, कुश वंश), वायु ८८.२०९/२.२०६.२०८(वही), विष्णु ४.४.१०८(वही), वा.रामायण १.७०.२६(सुसन्धि - पुत्र, भरत - पिता, प्रसेनजित् - भ्राता, इक्ष्वाकु वंश ) dhruvasandhi
ध्वज अग्नि ५६.१० (तोरणों / द्वारों पर स्थित ध्वजों के प्रकारों का वर्णन), ६१.१७ (ध्वज आरोपण विधि, ध्वज अवयवों के प्रतीकार्थ), ९६.१० (८ ध्वज देवताओं के नाम), १०२.२५ (कुण्डलिनी शक्ति का प्रतीक, ध्वज आरोपण विधि), २६९.९ (ध्वज प्रार्थना मन्त्र), गणेश २.२७.७ (राज - मन्त्री, दुष्ट राजपुत्र साम्ब द्वारा बन्धन), २.११४.१५ (सिन्धु असुर व गणेश के युद्ध में ध्वजासुर का पुष्पदन्त से युद्ध), नारद १.१९ (कार्तिक शुक्ल एकादशी को ध्वजारोपण व्रत विधि), १.२०(ध्वजारोपण के महत्त्व के संदर्भ में राजा सुमति तथा उसकी रानी सत्यमति के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड २.३.७२.७५(नवम देवासुर सङ्ग्राम का नाम, इन्द्र द्वारा अदृश्य ध्वज का वध), भविष्य १.१३८ (विभिन्न देवताओं हेतु ध्वज दण्डों के प्रमाण तथा ध्वज चिह्नों का विस्तृत वर्णन), ४.६१.४६ (ध्वज नवमी व्रत, दुर्गा आदि द्वारा असुर का हनन), ४.१३८.५१ (ध्वज मन्त्र), ४.१३९ (इन्द्रध्वज उत्सव, ध्वज अपशकुन का वर्णन), मत्स्य १४८.४५ (तारकासुर संग्राम में दैत्यों के केतुओं का कथन), १४८.४६ (कुजम्भ दैत्य का ध्वज), १४८.४६ (जम्भ दैत्य का ध्वज), १४८.४७ (महिष दैत्य का ध्वज), १४८.४७ (शुम्भ दैत्य का ध्वज), १४८.८६ (देव सेना में यक्षों, राक्षसों, किन्नरों, यम, इन्द्र आदि की ध्वजाओं का वर्णन), वामन ६९.१२४(स्वस्तिक जगद्रथ के वानर ध्वज से युक्त होने का उल्लेख), वायु ५१.६३ (सूर्य रथ में घर्म रूपी ध्वज), ९७.७५, ८५/२.३५.७५(नवम देवासुर सङ्ग्राम का नाम, इन्द्र द्वारा अदृश्य ध्वज का वध), विष्णु १.८.३२ (पताका व ध्वज में स्त्री - पुरुष के सम्बन्ध का उल्लेख), ४.१२.१(ध्वजिनीवान् : क्रोष्टु - पुत्र, स्वाति - पिता, यदु वंश), विष्णुधर्मोत्तर २.१५४ (असुरों पर विजय प्राप्ति हेतु विष्णु द्वारा शक्र को शक्रध्वज प्रदान करना, शक्र ध्वज के महत्त्व का वर्णन), २.१५५ (शक्रध्वज उत्सव का वर्णन), २.१६०.१२ (ध्वज मन्त्र), ३.९४ (विभिन्न देवताओं के ध्वज), ३.९८ (प्रासाद प्रतिष्ठा के अन्तर्गत स्थण्डिल परिकल्पना, तोरण, ध्वज आदि की प्रतिष्ठा आदि का वर्णन), ३.९८ (तोरणों के ऊपर विभिन्न दिशाओं में ध्वजों व पताकाओं के लक्षणांकों का कथन ) ३.११६ (मूर्ति प्रतिष्ठा से पूर्व तोरणोद्धार विधि का वर्णन), ३.१४६ (चतुर्व्यूह के देवताओं के ध्वजों के चिह्नों और उनके व्रतों का वर्णन), ३.२३३.१६८ (ध्वजी के दशचक्र सम और वेश्या के दस ध्वज सम होने का पुराणों का सार्वत्रिक श्लोक), शिव २.५.८.१३ (शिव के रथ में स्वर्ग व मोक्ष का ध्वज बनना), ४.१३ (भोज में बटुक पूजा न होने से ध्वज पात), स्कन्द १.२.१६.१७ (तारक संग्राम में ग्रसन, जम्भ, कुजम्भ, महिष, कुञ्जर, मेष, कालनेमि, मथन, जम्भक, शुम्भ असुरों के ध्वज), १.२.१६.६५(देवों के ध्वज), २.२.२५.९(सुभद्रा के रथ के पद्मध्वज होने का उल्लेख), ४.२.५८.१६१ (शिव रथ में कल्पतरु ध्वज, सुमेरु ध्वज - दण्ड), ५.३.२८.१८(त्रिपुर दाह हेतु शिव के रथ में सत्य के ध्वज होने का उल्लेख), हरिवंश २.११०.७८ (यज्ञों की ध्वज यूप होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२७०.२०(आषाढ पञ्चमी को वायु व्रत के अन्तर्गत ध्वज फहराने की दिशा निरीक्षण का कथन), १.२८२.२५(ध्वजारोपण व्रत विधि, ध्वज के विभिन्न अवयवों का महत्त्व, ध्वजारोपण के महत्त्व के संदर्भ में राजा सुमति व रानी सत्यमति के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), १.३८२.२९(विष्णु के ध्वज व लक्ष्मी के पताका होने का उल्लेख), २.१३९.४४ (प्रासाद के ध्वजाधार के मान का कथन), २.१३९.६९ (ध्वजदण्ड के प्रमाण का विवेचन), २.१४२.४२(मूर्ति प्रतिष्ठा उत्सव में मण्डप की आठ दिशाओं में रोपणीय विभिन्न ध्वजों का वर्णन), २.१५८.५९ (प्रासाद के ध्वज की नर के केशों से उपमा), २.१६०.२६ (मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में मण्डप में कलश स्थापना के साथ ध्वजारोपण का निर्देश ; ध्वजारोपण के महत्त्व का वर्णन), २.१७६.१६ (ज्योतिष में एक योग), ४.४८३ (मिष्टासवध्वजी नामक मदिरा व्यवसायी द्वारा कथा सुनने के संकल्प पर भगवान द्वारा सहायता आदि करने का वर्णन), महाभारत उद्योग ५६.७ (अर्जुन के रथ के ध्वज की दिव्यता का वर्णन), भीष्म १७.२५ (कौरव सेना के महारथियों द्रोण, दुर्योधन, कृप, जयद्रथ आदि के ध्वजों के चिह्नों का कथन), द्रोण २३.७२ (पाण्डव सेना के महारथियों पाण्ड्य, घटोत्कच, युधिष्ठिर, नकुल आदि के ध्वज चिह्नों का वर्णन), १०५.८ (कौरव महारथियों व अर्जुन के ध्वज चिह्नों का वर्णन), कर्ण ८७.९३ (कर्ण की ध्वज में हस्तिकक्षा / हाथी की सांकल का चिह्न व अर्जुन की ध्वज में कपि चिह्न , युद्ध से पूर्व ध्वजों में युद्ध ) ; द्र. अमितध्वज, ऋतध्वज, कुम्भध्वज, कुशध्वज, कृतध्वज, केशिध्वज, क्रतुध्वज, जयध्वज, तालध्वज, धर्मध्वज, नीलध्वज, बृहद्ध्वज, मयूरध्वज, मलयध्वज, यज्ञध्वज, रथध्वज, विलापध्वज, वृषध्वज, वृषभध्वज, शिखिध्वज dhwaja
ध्वनि अग्नि ३४८.७ (ड व ढ अक्षरों का ध्वनि के अर्थ में प्रयोग का उल्लेख), देवीभागवत ७.३८ (देवी, शङ्कुकर्ण पर्वत पर वास), ब्रह्म १.३४.७१(मन्त्र ध्वनि से हर्षित मयूरी द्वारा केका रव करने का उल्लेख), मत्स्य १३.४८(शङ्खोद्धार में स्थापित सती देवी की मूर्ति), स्कन्द ४.१.४१.९७(पवन के व्योम में प्रवेश पर घण्टा आदि महान् ध्वनि के उत्पन्न होने का उल्लेख), ५.३.१९८.८६ (माण्डव्य - शूलेश्वरी देवी संवाद में उमा के शङ्खोद्धार तीर्थ में ध्वनि नाम से स्थित होने का उल्लेख ); द्र. वंश वसुगण dhwani
ध्वांक्ष मत्स्य १४८.४७ (शुम्भ दैत्य के ध्वज का चिह्न), लक्ष्मीनारायण २.१७६.१४ (ज्योतिष में एक योग )
ध्वान्त वायु ६७.१२६/२.६.१२६(४९ मरुतों के तृतीय गण में से एक )