द लक्ष्मीनारायण ३.१७४.६८(ब्रह्माण्ड में सर्पादि विभिन्न योनियों के लिए द अक्षर के अर्थ का वर्णन ) ।
दंश भविष्य १.१८४.४८(शुन: दंशन व कृमि दंशन के प्रायश्चित्त का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०(मधु हरण से दंश योनि प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३७०.९१ (नरक में दंश कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) । dansha
दंष्ट्र ब्रह्माण्ड २.३.७.१७२(दंष्ट्रा : क्रोधवशा की १२ पुत्रियों में से एक, पुलह - पत्नी), २.३.७.२३३(दंष्ट्री : प्रधान वानर नायकों में से एक), २.३.७.४१२ (दंष्ट्रा : सिंह आदि की माता), भविष्य १.३३.२५(सर्प के ४ विषवह दंष्ट्रों के देवता), मत्स्य १७९.२३(दंष्टाला : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), वराह ११.१००(आग्निदंष्ट्र : गौरमुख मुनि व राजा दुर्जय के युद्ध के प्रसंग में गौरमुख - सेनानी सुमना का अग्निदत्त/अग्निदंष्ट्र से युद्ध), वायु ६.१६ (वराह दंष्ट्र का यूप से साम्य), ६९.२०५/२.८.१९९(क्रोधवशा की १२ पुत्रियों में से एक, पुलह - पत्नी), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.१० (विराट् पुरुष के दन्तों में मास-ऋतु व दंष्ट्रों में वत्सर की स्थिति का उल्लेख), २.८.२२(चतुर्दंष्ट्र पुरुष के लक्षण), स्कन्द १.१.१७.१३९(वृत्र व इन्द्र के सङ्ग्राम में वरुण के महादंष्ट्र से युद्ध का उल्लेख), १.२.६२.२७(एकदंष्ट्रिक : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक), ५.१.५२.४३ (यूप - दंष्ट्र यज्ञ वराह का उल्लेख), ५.१.५२.४९ (वराह रूप धारी विष्णु द्वारा चन्द्ररेखा दंष्ट्र से पृथिवी का उद्धार), ७.१.३५३.२०(यज्ञ वराह के संदर्भ में यूप के दंष्ट्र होने का उल्लेख), महाभारत भीष्म १४.१०(भीष्म के दंष्ट्रों की शरों से उपमा, चाप मुख ), द्र. उग्रदंष्ट्री, मकरदंष्ट्र, यमदंष्ट्र, वज्रदंष्ट्र danshtra
दक्ष अग्नि १८.२७ (प्रचेता एवं मारिषा से दक्ष की उत्पत्ति, दक्ष द्वारा मन से चर, अचर, द्विपद, चतुष्पद तथा स्त्रियों की सृष्टि), कूर्म १.८.१४ (दक्ष व प्रसूति से २४ कन्याओं की उत्पत्ति, नाम, विवाह व सन्तति का वर्णन), १.१४.६३ (दक्ष को शिव से शाप प्राप्ति, स्वायम्भुव दक्ष का प्रचेतस दक्ष बनना), १.१५ (दक्ष यज्ञ विध्वंस की कथा), १.१६ (दक्ष कन्याओं व उनकी प्रजा का वर्णन), गणेश १.९.३३ (यज्ञ ध्वंस से दुःखी दक्ष द्वारा मुद्गल से गणेश पुराण श्रवण का उल्लेख), १.२०.२ (वल्लभ व कमला - पुत्र, जन्म से रोगयुक्त), १.२६.४ (गज द्वारा कण्ठ में माला डालने पर दक्ष के राजा बनने का वृत्तान्त), गरुड १.८७.३८ (नवें दक्षसावर्णि मनु के पुत्रों के नाम), १.८७.४९ (१२वें दक्ष - पुत्र मनु के १२ पुत्रों आदि के नाम), ३.७.१४(दक्ष द्वारा हरि स्तुति), गर्ग १.५.२४ (दक्ष के अक्रूर रूप में अवतरण का उल्लेख), देवीभागवत ७.१.११ (ब्रह्मा के अङ्गुष्ठ से दक्ष की तथा वामङ्गुष्ठ से दक्ष - पत्नी वीरिणी की उत्पत्ति, नारद द्वारा दक्ष - पुत्रों की प्रजोत्पादन से निवृत्ति करने पर दक्ष - शाप से नारद की पुन: दक्ष व वीरिणी से उत्पति, पुन: दक्ष से ६० कन्याओं की उत्पति का वर्णन), ७.३०.३० (दक्ष द्वारा दुर्वासा - प्रदत्त दिव्य माला के तिरस्कार से सती व शंकर से द्वेष की उत्पत्ति), ८.३.१२ (स्वायम्भुव मनु द्वारा स्वकन्या प्रसूति दक्ष को प्रदान, दक्ष व प्रसूति से देव, तिर्यक् व नरादि लोक की उत्पत्ति), नारद २.६६.५(गङ्गाद्वार माहात्म्य के अन्तर्गत दक्ष द्वारा यज्ञ का आयोजन, सती का गमन, पति - अपमान से सती द्वारा देह - त्याग, शिव द्वारा उत्पन्न वीरभद्र द्वारा यज्ञ का नाश, ब्रह्मा की प्रार्थना पर शिव द्वारा पुन: विकृत यज्ञ को प्रकृतिस्थ करने की कथा), पद्म १.३.१८२ (दक्ष - कन्याओं और उनकी प्रजा का वर्णन), १.५ (दक्ष यज्ञ विध्वंस की कथा), १.४०.७१ (ब्रह्मा से उत्पन्न विश्वेदेवों /प्रजापतियों में से एक), २.२७.७ (ब्रह्मा द्वारा दक्ष की प्रजापतियों के गणेश्वर पद पर नियुक्ति), ब्रह्म १.१.१०३ (दक्ष कन्याओं व उनकी प्रजा का वर्णन), १.३२ (दक्ष यज्ञ में सती का निधन, दक्ष व शिव का शाप - प्रतिशाप), १.३७ (वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस, शिव से दक्ष को वर प्राप्ति), १.३८(दक्ष कृत शिव स्तुति, स्तुति फल का कथन), २.२८.३(मधु दैत्य द्वारा जातवेद तथा दक्ष के वध का उल्लेख), २.३९ (दक्ष यज्ञ में शिव निन्दा श्रवण से दाक्षायणी द्वारा देह विसर्जन, वीरभद्र द्वारा विष्णु के चक्र का निगरण, दक्ष द्वारा शिव की स्तुति), ब्रह्मवैवर्त्त १.९.७ (दक्ष द्वारा चन्द्रमा को शाप, श्रीहीन चन्द्रमा को शिव मस्तक पर स्थान की प्राप्ति, दक्ष द्वारा शिव से चन्द्रमा की याचना), ४.६२.४१(रम्भा के शाप से दक्ष के छागमस्तक होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.१.५.७०(ब्रह्मा के ९ मानस पुत्रों में से एक), १.१.५.७४ (दक्ष का ब्रह्मा के प्राण से प्राकट्य), १.२.१३.४०(स्वायम्भुव दक्ष का त्र्यम्बक के शाप से चाक्षुष मनु के पुत्र रूप में जन्म तथा उसके कारण का वृत्तान्त), १.२.१३.६८ (चाक्षुष मन्वन्तर में शिव द्वारा दक्ष को शाप - प्रतिशाप, वैवस्वत मन्वन्तर में मानुष जन्म ग्रहण करना), २.३.२ (दक्ष द्वारा असिक्नी से प्रजा की सृष्टि), २.३.५.३८(बाष्कल असुर के ४ पुत्रों में से एक), ३.४.४.६५(दक्ष द्वारा तृणबिन्दु से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर शक्ति को सुनाने का उल्लेख), भविष्य ३.४.५.१२ (ब्रह्मा के चरणों से शूद्रराज दक्ष की उत्पत्ति, दक्ष से शूद्रों की उत्पत्ति), ४.२५.७ (विष्णु के वक्ष:स्थल में स्थित सौभाग्य में से अर्ध सौभाग्य का ब्रह्मा - पुत्र दक्ष प्रजापति द्वारा पान, रूप लावण्य, बल व तेज में अभिवृद्धि, पीत सौभाग्य से दक्ष से सती नामक कन्या की उत्पत्ति), भागवत ३.१२.२३(ब्रह्मा के अङ्गुष्ठ से दक्ष के जन्म का उल्लेख), ४.१.४७ (दक्ष का प्रसूति से विवाह, कन्याएं व उनकी प्रजा), ४.२ (दक्ष द्वारा शिव को यज्ञ भाग प्राप्त न होने का शाप, नन्दी द्वारा दक्ष को तत्त्व ज्ञान विमुखता का शाप), ४.३(सती का पिता के यज्ञोत्सव में जाने का आग्रह, शिव द्वारा समझाना व स्वयं द्वारा दक्ष की उपेक्षा का कारण बताना), ४.४(सती द्वारा पिता दक्ष से शिव की महिमा का कथन व देह त्याग), ४.५ (वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस व दक्ष वध), ४.७(दक्ष यज्ञ की पूर्ति), ४.३०.४९ (प्रचेता व मारिषा - पुत्र, चाक्षुष मन्वन्तर में प्रजा की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा दक्ष को प्रजापतियों का नायक बना कर सृष्टि रक्षार्थ नियुक्त करना), ६.४.१८ (प्रचेतागण - पुत्र, अघमर्षण तीर्थ में तप, हंस गुह्य स्तोत्र का कथन, असिक्नी से विवाह), ६.६ (दक्ष की कन्याएं व उनकी प्रजा), ९.२३.३(उशीनर के ४ पुत्रों में से एक, अनु वंश), मत्स्य ४.५०+ (प्रचेता व मारिषा - पुत्र, सृष्टि का वर्णन), ५.३ (दक्ष के पूर्व व पश्चात् सृष्टि की उत्पत्ति), ५.४ (दक्ष द्वारा पाञ्चजनी के गर्भ से सहस्र पुत्रों की उत्पत्ति), ५.१२ (दक्ष द्वारा वीरिणी से साठ कन्याओं की उत्पत्ति), १३.१२ (दक्ष यज्ञ में शिव के अनिमन्त्रित रहने पर सती का क्रोध, सती शाप से प्रचेता गण के पुत्र रूप में क्षत्रिय वर्ण में उत्पत्ति), १३.२२ (दक्ष की ६० कन्याओं के सती का अंश होने का उल्लेख), ५०.३७( देवातिथि - पुत्र, भीमसेन - पिता, कुरु वंश), १७१ (दक्ष की बारह कन्याओं का वृत्तान्त), १९५.१३(भृगु व पौलोमी के १२ भार्गव पुत्रों में से एक), १९६.२(सुरूपा व अङ्गिरा के १० पुत्रों में से एक), २०३.१३(धर्म व विश्वा के १० विश्वेदेव पुत्रों में से एक), मार्कण्डेय ५०.५/४७.५ (ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष द्वारा प्रसूति पत्नी से श्रद्धा, लक्ष्मी प्रभृति २४ कन्याओं की उत्पत्ति), १०४.४/१०१.४ (दक्ष की अदिति, दिति प्रभृति १३ कन्याएं कश्यप को प्रदान, उनसे देवता, दैत्य, उरगादि अनेक पुत्रों की उत्पत्ति), लिङ्ग १.६३.२(दक्ष द्वारा मैथुनी प्रजा की सृष्टि, प्रजा में वैराग्य उत्पत्ति से प्रजा का नष्ट होना , पुन: दक्ष द्वारा वैरिण्या से ६० कन्याएं उत्पन्न करना, कन्याओं के विवाह तथा वंश का वृत्तान्त), १.७०.३७७ (वैराज एवं शतरूपा - पुत्री प्रसूति का दक्ष से विवाह, प्राण का रूप), १.१००.२ (दक्ष द्वारा शिव की अवज्ञा से क्रुद्ध सती का सदेह भस्म होना, वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस), २.२७.१३५ (दक्ष व्यूह का वर्णन), वराह २१.१३ (दक्ष यज्ञ के ऋत्विजों के नाम, रुद्र व विष्णु में संघर्ष, शान्ति, दक्ष द्वारा गौरी रूप दाक्षायणी रुद्र को प्रदान), वामन २.७ (दक्ष यज्ञ के ऋत्विज, शिव व सती का तिरस्कार), ४ (कपाली होने से दक्ष द्वारा शिव व सती का तिरस्कार, सती द्वारा प्राण त्याग, वीरभद्र आदि शिव गणों द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस), वायु १०.१२(स्वायम्भुव मनु द्वारा स्वपुत्री प्रसूति को दक्ष को प्रदान करने का उल्लेख), २५.८२ (ब्रह्मा द्वारा सृष्ट सात मानस पुत्रों में से एक, रुद्रों के साथ मिलकर दक्ष का सृष्टि हेतु उद्धत होना), ३०.६१ (दक्ष का शिव शाप से चाक्षुष मन्वन्तर में प्रचेतागण - पुत्र बनना), ३०.६९ (गृहपति अग्नि का नाम), ३०.१३९ (दक्ष यज्ञ विध्वंस), ३०.१८१ (दक्ष द्वारा शिव - स्तुति, प्रसन्न शिव से पाशुपत - व्रत के फल की प्राप्ति), ४४.१९(दक्षा : केतुमाल देश की नदियों में से एक), ५२.२३(माघ व फाल्गुन में सूर्य के साथ रहने वाले राक्षसों में से एक, अपर नाम यज्ञोपेत), ६३.३५/२.२.३५(सोम व प्रचेताओं के अंश से मारिषा - पुत्र के रूप में दक्ष के जन्म व दक्ष द्वारा प्रजा की सृष्टि का वर्णन), ६५.१०५/२.४.१०५(सुरूपा व अङ्गिरा के १० पुत्रों में से एक), ६५.१३०(दक्ष द्वारा असिक्नी से हर्यश्व, शबलाश्व व ६० कन्याओं की सृष्टि), ६६.३१/२.५.३१(धर्म व विश्वा के १० विश्वेदेव पुत्रों में से एक), ६७.७८/२.६.७८(जम्भ के ३ पुत्रों में से एक), १००.४२/२.३८.४२(दक्ष द्वारा स्व कन्या सुव्रता से दक्ष सावर्ण मनु को उत्पन्न करने का वृत्तान्त), विष्णु १.७.२२ (दक्ष व प्रसूति से २४ कन्याओं की उत्पत्ति, विवाह व उनकी प्रजा), १.१५.७४ (प्रचेतागण व मारिषा - पुत्र, मानसी व मैथुनी सृष्टि का उद्योग), १.१५.१०२ (दक्ष व वैरुणी से ६० कन्याओं की उत्पत्ति, सन्तति का वर्णन), ४.१.६(ब्रह्मा के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष प्रजापति की, दक्ष से अदिति व अदिति से विवस्वान् की उत्पत्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७ (प्रजापति के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष तथा वाम अङ्गुष्ठ से दक्ष भार्या की उत्पत्ति, दक्ष सन्तति, दक्ष यज्ञ में सती के अनादर से क्रुद्ध शिव द्वारा मनुष्य योनि प्राप्ति का शाप), १.११० (मारिषा से दक्ष का जन्म, वीरिणी से उत्पन्न पुत्रों का नारद उपदेश से विनाश, दक्ष प्रजा का वर्णन), १.२४८.३१(सुपर्णों में से एक), १.२४९.५ (ब्रह्मा द्वारा प्राचेतस दक्ष की प्रजापतियों के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति), शिव २.१.१६ (दक्ष - कन्याएं तथा उनका वंश), २.२.४.४(दक्ष के स्वेद बिन्दुओं से उत्पन्न कन्या का रति नाम, कामदेव को प्रदान), २.२.१३ (दक्ष का असिक्नी से विवाह, मैथुनी प्रजा की सृष्टि, नारद द्वारा प्रजा में वैराग्य उत्पन्न करने के कारण नारद को दक्ष का शाप), २.२.१४ (दक्ष की ६० कन्याएं तथा उनकी प्रजा), २.२.२६+ (दक्ष के शिव से विरोध का कारण, यज्ञ की कथा), ५.४.२६(ब्रह्मा - पुत्र, शिव माया से मोहित होने का उल्लेख), ५.३१.४ (दक्ष द्वारा वीरिणी से उत्पन्न हर्यश्वों तथा सुबलाश्वों की सृष्टि निर्माण से निवृत्ति, पुन: दक्ष द्वारा वीरिणी से ६० कन्याओं की उत्पत्ति, कन्याओं की सन्तति आदि), ५.३१.१४ (दक्ष द्वारा नारद को अस्थिरता, कलहकारी होने का शाप), ७.१.१८ (शिवा का सती नाम से दक्ष के घर में जन्म, दक्ष के रुद्र से द्वेष का कारण), ७.१.१९ (दक्ष के शिव द्वेष के कारण सती द्वारा देह त्याग), ७.१.२०(वीरभद्र द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस), स्कन्द १.१.१ (दक्ष द्वारा नन्दी को शाप, नन्दी द्वारा प्रतिशाप), १.१.२+ (दक्ष यज्ञ के विध्वंस का वृत्तान्त), १.१.५ (दक्ष के शिर का यज्ञाग्नि में होम, छाग शिर का संयोजन), २.७.८.१५ (दक्ष यज्ञ की कथा), २.७.१९.३९(दक्ष प्रजापति की गुह्य स्थान में स्थिति, गुह्य देश से दक्ष के निष्क्रमण पर भी देह पात न होने का कथन, शरीरस्थ सर्व देवों की अपेक्षा प्राण देव के प्राधान्य का प्रसंग), ४.१.१५ (दक्ष प्रजापति की ६० कन्याओं में रोहिणी प्रभृति २७ कन्याओं द्वारा पति प्राप्ति हेतु शिवलिङ्ग स्थापना, सोम रूप पति की प्राप्ति), ४.२.६७.२१८ (दाक्षायणीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८७ (दक्ष यज्ञ में वीरभद्र का उत्पात, दक्ष को मेष शीर्ष का संयोजन), ५.१.६७.३(दक्ष द्वारा प्रजा प्राप्ति हेतु कुटुम्बेश्वर तीर्थ में तप), ५.२.९ (दक्ष - कृत अपमान से क्रुद्ध शिव की आज्ञा से वीरभद्र आदि शैवगणों का विष्णु आदि देवों से युद्ध), ५.२.२६.५ (रोहिणी में ही विशेष प्रीति होने से क्रुद्ध दक्ष द्वारा सोम को अन्तर्हित होने का शाप), ५.२.८२(कायावरोहण तीर्थ के संदर्भ में दक्ष की ब्रह्मा से उत्पत्ति का कथन ; दक्ष यज्ञ विध्वंस का वर्णन), ५.३.८५ (दक्ष द्वारा सोम को २७ कन्याएं प्रदान करना, सोम की रोहिणी में ही प्रीति होने से दक्ष द्वारा क्षय प्राप्ति रूप शाप), ५.३.१९२.६ (ब्रह्मा के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष की उत्पत्ति), ७.१.१९ (ब्रह्मा के द्वितीय परार्ध में प्राण से दक्ष की उत्पत्ति), ७.१.२१ (दक्ष - कन्याओं से सृष्टि), ७.१.१९९ (दक्ष - कन्याओं का वृत्तान्त, सती द्वारा देह त्याग, दक्ष यज्ञ का वृत्तान्त), ७.२.९ (दक्ष द्वारा सती से शिव की निन्दा करना, शिव शाप से स्वायम्भुव ब्राह्मण दक्ष से क्षत्रिय कुल दक्ष बनना), ७.२.९ (दक्ष यज्ञ में दधीचि द्वारा शिव की अनुपस्थिति पर आपत्ति, शिव गणों द्वारा यज्ञ का विध्वंस), हरिवंश १.२.४६ (दक्ष का दस प्रचेताओं व मारिषा से जन्म), १.३ (दक्ष - कन्याएं व उनकी प्रजा), ३.१४.२८ (ब्रह्मा के १३ पुत्रों में से एक, दक्ष द्वारा प्रजा की उत्पत्ति, दक्ष की कन्याएं), ३.२२ (दक्ष - कन्याओं व प्रजा का वर्णन), ३.३२.२४ (दक्ष - यज्ञ का मृग रूप में पलायन, शिव द्वारा पीछा, मृगशिरा नाम धारण), ३.३६.२० (ब्रह्मा के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष तथा वाम अङ्गुष्ठ से दक्ष - भार्या की उत्पत्ति, दक्ष कन्याएं व प्रजा), महाभारत वन ३१३.६९(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में दाक्ष्य के एकपदधर्म होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४३.१८(दक्ष द्वारा चन्द्रमा को प्रदत्त रोहिणी - प्रमुखा २७ कन्याओं के नाम), १.४४.४(दक्ष द्वारा चन्द्रमा को स्वपत्नियों में समभाव की शिक्षा), १.४५.१(दक्ष द्वारा चन्द्रमा को दिए गए शाप का हरण), १.१६५.१६ (अङ्गिरस व सुरूपा - पुत्र, १० आङ्गिरस गण में से एक), १.१६९(ब्रह्मा द्वारा तारकासुर वध हेतु स्कन्द को उत्पन्न करने के लिए निशा देवी को दक्ष व असिक्नी की पुत्री सती बनने का निर्देश ; कन्या सती द्वारा दक्ष को अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन कराना, दक्ष द्वारा स्तुति), १.१७२.६७(दक्ष द्वारा सती के शिव से साथ विवाह उत्सव का वर्णन), १.१७४.३(दक्ष का जामाता शम्भु के घर तीन बार गमन, तीनों बार जामाता द्वारा श्वसुर की अवमानना), १.१७४.१५(शिव से सम्मान पाने के इच्छुक दक्ष को शिव द्वारा प्राचेतस दक्ष रूप में क्षत्रिय योनि में जन्म लेने का शाप), १.१७४.३६(शिव द्वारा कैलास पर भवन निर्माण उत्सव में प्रजापति दक्ष की अवमानना), १.१७४.४८(नैमिषारण्य में दीर्घ सत्र में रुद्र द्वारा दक्ष की अवमानना पर दक्ष का कोप तथा रुद्र को वेदबाह्य होने का शाप, नन्दी द्वारा दक्ष आदि को शाप), १.१७४.६४(कनखल में आयोजित दक्ष यज्ञ में दक्ष द्वारा शिव को आमन्त्रित न करना, स्वपत्नी असिक्नी से रुद्र की निन्दा), १.१७४.१२०(दक्ष यज्ञ में शिव की अनुपस्थिति पर दधीचि ऋषि द्वारा आपत्ति, रुद्र को आमन्त्रित करने का आग्रह, दक्ष द्वारा दधीचि का यज्ञ से निष्कासन, दधीचि द्वारा दक्ष को शाप, दधीचि के साथ बहिर्गमन करने वाले अन्य ऋषियों के नाम), १.१७५.११(सती के स्व - पिता दक्ष के यज्ञ में जाने के लिए हठ का वर्णन), १.१७५.७१(दक्ष से शिव की निन्दा सुनकर सती द्वारा ब्रह्मरन्ध्र की अग्नि में स्व देह को भस्म करने का वर्णन), १.१७६.२४(दक्ष द्वारा यज्ञ नाश के सम्बन्ध में आकाशवाणी का श्रवण), १.१७६.२२(सती के नाश के पश्चात् दक्ष यज्ञ की पूर्ति हेतु यज्ञ का पुनरारम्भ), १.१७६.५६(नारद से सती का नाश सुनकर रुद्र द्वारा जटाओं से वीरभद्र तथा अन्य शक्तियों को उत्पन्न करना, वीरभद्र आदि का दक्ष यज्ञ में अवतरण, दक्ष यज्ञ में अपशकुन), १.१७७.१(वीरभद्र व अन्य गणों द्वारा दक्ष यज्ञ व दक्ष के विनाश का वर्णन), १.१७७.१०९(शिव द्वारा दक्ष यज्ञ में मृत जनों का पुन: संजीवन, मेष मुख द्वारा दक्ष का संजीवन, शिव द्वारा दक्ष को भक्ति का वरदान), १.३०३.१३९(ब्रह्मा के वक्ष से उत्पन्न मूर्ति देवी का दक्ष की पुत्री बनकर धर्म को पति रूप में प्राप्त करना), १.३१४.३(सृष्टि आरम्भ में ब्रह्मा द्वारा दक्षादि ऋषियों की मानसी सृष्टि करने का कथन), १.३१४.१७(दक्षादि के युवती सन्ध्या को देखकर मोहित होने का कथन), १.५४३.६१ (हरद्वार में दक्ष यज्ञ में रुद्र हेतु चतुर्दशी तिथि अर्पित करने का व्रत ; दक्ष द्वारा विभिन्न देवताओं को अर्पित १०० कन्याओं के नाम), ३.१३५(ललिता देवी द्वारा दक्ष हेतु अपने शतद्वय नामरूपों का कथन ) , ३.१८३.२७(दक्षगर्व राजा द्वारा दण्ड स्वरूप वनेचर भक्त सागर की पाद अस्थियों का भञ्जन ; राजा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में गजरक्षक सागर का हस्ती आदि), कथासरित् १.१.३४(पार्वती का पूर्वजन्म में दक्ष - कन्या होना, पिता द्वारा पति के अपमान से शरीर त्याग कर हिमालय - सुता के रूप में उत्पत्ति ) ; द्र. सुदक्ष । daksha
दक्ष वेदों में दक्ष से अदिति उत्पन्न होती है और अदिति से दक्ष उत्पन्न होता है । अदिति अखण्ड बुद्धि है । दिति खण्डित बुद्धि है । अदिति रूपी आत्मा की शक्ति जीवात्मा में आए तो जीवात्मा में दक्षता आएगी और दूसरी ओर, जीवात्मा पूर्णत: दक्ष हो तभी परमात्मा की अदिति शक्ति उसे प्राप्त होगी । अत: दक्ष अदिति का पुत्र भी है और पिता भी । - फतहसिंह
Comments on Daksha
Esoteric aspect of Daksha
दक्षजवंगर लक्ष्मीनारायण २.१०६.५०(उष्णालय देश का राजा, दक्ष का मानस पुत्र, विष्णु याग का आयोजन ) ।
दक्षता महाभारत वन ३१३.७३(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में यक्ष द्वारा दक्षता को धन्यों में उत्तम कहना ) ।
दक्षसावर्णि गरुड १.८७.३५ (नवम मनु दक्ष सावर्णि के पुत्रों के नाम), भविष्य ३.४.२५.३८(ब्रह्माण्ड वक्त्र से उत्पन्न जीव द्वारा दक्षसावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), भागवत ८.१३.१८(नवें मनु, वरुण से उत्पत्ति, दक्ष सावर्णि मन्वन्तर में देवताओं आदि के गणों का कथन), विष्णु ३.२.२०(नवम दक्ष सावर्णि मनु के काल में देव गणों आदि का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.२१ (राजा धनवर्मा का तप से जन्मान्तर में दक्षसावर्णि मनु बनना ) ; द्र. मन्वन्तर । dakshasaavarnee/dakshasaavarni
दक्षिण ब्रह्माण्ड १.२.२१.५१(मेरु के सबसे उत्तर व लोकालोक पर्वत के सबसे दक्षिण में होने का उल्लेख), १.२.२७.१२५(श्मशान साधना से दक्षिण पन्थ द्वारा शिव को प्राप्त करने का कथन ?), १.२.३५.१४७(वही), २.३.३.५३(३ वीथियों के अनुसार २७ नक्षत्रों का उत्तम, मध्यम व दक्षिण मार्गों में वर्गीकरण), वायु ६१.१२३(श्मशान साधना से दक्षिण पन्थ को प्राप्त करने का उल्लेख?), १११.६/२.४९.६(दक्षिणमानस : गया में स्थित दक्षिणमानस तीर्थ का माहात्म्य), स्कन्द ३.१.१० (दक्षिणोदधिस्थ गन्धमादन पर्वतवर्ती तीर्थ का माहात्म्य),३.१.१४(दक्षिणोदधिस्थ गन्धमादनवर्ती ब्रह्मकुण्ड का माहात्म्य), हरिवंश ३.३५.१६(वाराह भगवान् द्वारा दक्षिण दिशा में पर्वतों और नदियों का निर्माण), वा.रामायण ७.१.४(राम के अभिनन्दन हेतु दक्षिण दिशा के ऋषियों का आगमन), लक्ष्मीनारायण ४.८०.१९(राजा नागविक्रम के यज्ञ में दाक्षिणात्य विप्रों द्वारा हवन व जप कार्य करने का उल्लेख), कथासरित् ६.७.२५(दक्षिण भूमि में गोकर्ण नगरस्थ राजा श्रुतसेन की कथा ) ; द्र. सुदक्षिण । dakshina
दक्षिणा कूर्म १.८.१२ (रुचि प्रजापति व आकूति - सन्तान, दक्षिणा से उत्पन्न १२ पुत्रों की स्वायम्भुव मन्वन्तर में याम देवता नाम से प्रसिद्धि), गर्ग १.३.३८ (यज्ञ - पत्नी, लक्ष्मणा रूप में अवतार), देवीभागवत ९.१.९८, ९.४५.३५ (गोलोक से निष्कासित सुशीला के दक्षिणा बनने का वृत्तान्त, यज्ञ को पत्नी रूप में दक्षिणा की प्राप्ति, स्तोत्र व पूजा विधि में दक्षिणा का महत्त्व, दक्षिणा देवी का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.४२ (दक्षिणा की उत्पत्ति व पूजा विधान का वर्णन), २.४२.९२(दक्षिणा देवी के स्तोत्र में ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं का उल्लेख), ३.७.१५ (सनत्कुमार पुरोहित द्वारा पार्वती से शिव को दक्षिणा में मांगने का वृत्तान्त), ४.८७.७१( सनत्कुमार प्रोक्त दक्षिणा की धन्यता), ४.१२३ (दक्षिणा काल के बारे में सनत्कुमार का वसुदेव को प्रबोध), भविष्य २.२.३ (विविध कर्मों में देय दक्षिणा ; दक्षिणा रहित यज्ञादि कार्य का निषेध), भागवत २.७.२(अनन्त भगवान् द्वारा सुयज्ञ रूप में अवतार ग्रहण कर दक्षिणा नामक पत्नी से सुयम नामक देवताओं की उत्पत्ति), ४.१.६ (रुचि व आकूति - पुत्री, यज्ञ - पत्नी, १२ पुत्रों के नाम), ११.१९.३९(दक्षिणा की परिभाषा), मत्स्य २४८.७२(यज्ञवराह के दक्षिणाहृदय होने का उल्लेख), मार्कण्डेय ४७.१८/५०.१८ (रुचि प्रजापति व आकूति - कन्या, यज्ञ व दक्षिणा से याम नामक १२ पुत्रों की उत्पत्ति), वायु ६.२१ (दक्षिणा का वराह के ह्रदय से साम्य), १०.१२(रुचि प्रजापति व आकूति से उत्पन्न दक्षिणा व यज्ञ से याम नाम से प्रसिद्ध १२ देवों की उत्पत्ति), विष्णु १.७.२०(रुचि प्रजापति व आकूति से यज्ञ तथा दक्षिणा की उत्पत्ति, यज्ञ व दक्षिणा से याम नाम से प्रसिद्ध १२ पुत्रों की उत्पत्ति), १.१५.२२टीका(दक्षिणा की परिभाषा - या गौरवं भयं प्रेम सद्भावं पूर्वनायके । न मुञ्चति अन्यचित्तापि सा ज्ञेया दक्षिणा बुधै:), विष्णुधर्मोत्तर १.१०३(पृथक् - पृथक् ग्रहों के लिए देय दक्षिणा का कथन), ३.२९३ (दाक्षिण्य लाभ निरूपण), स्कन्द ७.१.३५३.२२(यज्ञ वराह के संदर्भ में दक्षिणा के ह्रदय होने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ७९.७(युधिष्ठिर - भीष्म संवाद के अन्तर्गत यज्ञ में सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा देने का प्रश्न), आश्वमेधिक २५.१५(अपवर्ग/मोक्ष के दक्षिणा होने का उल्लेख ) । dakshinaa
दक्षिणाग्नि गरुड १.२०५.६६/१.२१३.६६(त्रिलोचन शिव का रूप ; अन्य अग्नियों का कथन), पद्म १.१४.८० (अग्निहोत्र हेतु गृहीत तीन प्रकार की अग्नियों में से एक), ब्रह्म २.९१.५७(विष्णु के आहवनीय पर श्वेत, दक्षिणाग्नि पर श्याम व गार्हपत्य पर पीतवर्ण होने का उल्लेख), भविष्य ४.६९.३६(गौ के जठर में गार्हपत्याग्नि, ह्रदय में दक्षिणाग्नि, कण्ठ में आहवनीयाग्नि तथा तालु में सभ्याग्नि की स्थिति), भागवत ६.१७.३८ (त्वष्टा की दक्षिणाग्नि से वृत्र के जन्म का उल्लेख), वायु १०४.८५(दक्षिणाग्नि का ऊर्ध्वोष्ठ में न्यास), १११.१५ (दक्षिणाग्नि से फल्गु तीर्थ की उत्पत्ति का कथन), १११.५०/२.४९.५९(गया में दक्षिणाग्नि पद पर श्राद्ध से पितरों को ब्रह्मपुर प्राप्ति का उल्लेख), विष्णु ५.३४.३२ (कृष्ण की हत्या हेतु दक्षिणाग्नि से कृत्या की उत्पत्ति), २.३७.५६(माता के दक्षिणाग्नि व पिता के गार्हपत्य अग्नि होने का उल्लेख), स्कन्द २.१.३६.६ (दक्षिणाग्नि के यज्ञवराह का उदर होने का उल्लेख), ५.१.३.५९ (धनुषाकार दक्षिणाग्नि में विष्णु की पूजा का निर्देश), महाभारत शान्ति १०८.७(माता के दक्षिणाग्नि होने का उल्लेख ), द्र. अन्वाहार्यपचन dakshinaagni
दक्षिणापथ ब्रह्माण्ड २.३.१०.९८(नर्मदा के दक्षिणापथ गामिनी होने का उल्लेख), २.३.६३.१०(इक्ष्वाकु के ५० पुत्रों के उत्तरापथ व ५० पुत्रों के दक्षिणापथ के रक्षक होने का कथन), भागवत ९.१.४१(दक्षिणापथ में सुद्युम्न के उत्कल आदि ३ पुत्रों के राज्य का उल्लेख), मत्स्य १५.२८(नर्मदा के दक्षिणापथ गामिनी होने का उल्लेख), ११४.२९(वही), विष्णु ५.२३.२(दक्षिणापथ में गार्ग्य का पुत्रार्थ तप, कालयवन पुत्र की प्राप्ति), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.६(दक्षिणापथ में प्रद्युम्न की पूजा का निर्देश ) । dakshinaapatha
दक्षिणामूर्ति नारद १.८६.२ (दक्षिणामूर्ति ऋषि द्वारा त्रिपुरा बाला देवी की आराधना), १.८७.४४ (दक्षिणामूर्ति ऋषि द्वारा त्रिपुर भैरवी की आराधना), १.९१.१३० (शिव का नाम, शुक द्वारा दक्षिणामूर्ति शिव की आराधना), स्कन्द २.२.३२ (वासुदेव आदि की दक्षिण मुखस्थ मूर्ति के दर्शन का फल), २.२.३९.१५(दक्षिणामूर्ति के दर्शन से पापनाश का उल्लेख ) । dakshinaamoorti/ dakshinamurti
दक्षिणायन अग्नि २१४.१७ (सूर्य की गति से घटित अयन, विषुव आदि दस दशाओं की शरीर में भी स्थिति के अन्तर्गत उत्तरायण की वामनाडी से तथा दक्षिणायन की दक्षिण नाडी से तुलना), ब्रह्माण्ड १.२.२१.३५, ६७(सूर्य की दक्षिणायन व उत्तरायण में गतियों का वर्णन), वायु ५०.९२(सूर्य की दक्षिणायन में गति का वर्णन), ५०.२०१(दक्षिणायन के ६ मासों के नाम), स्कन्द २.२.३७ (दक्षिणायन में पुरुषोत्तम पूजा का फल ), महाभारत वन ३.६(सूर्य द्वारा उत्तरायण में तेज का ग्रहण कर दक्षिणायन में भूमि में निवेश का कथन) ; द्र. उत्तरायण । dakshinaayana
दग्ध लक्ष्मीनारायण २.१७६.६५(ज्योतिष में दग्ध योग ) ।
दण्ड अग्नि २२७ (अपराध अनुसार दण्ड की व्यवस्था), २४५.३ (प्रशस्त दण्ड / यष्टि के लक्षण), नारद १.६६.११५(दण्डीश की शक्ति भद्रकाली का उल्लेख), पद्म १.३७.१४ (वैवस्वत मनु - पुत्र, इक्ष्वाकु - अनुज, अरजा पर आसक्ति, शुक्राचार्य के शाप से दण्ड के राज्य का दग्ध होना), ४.२३.१७(दुष्ट विप्र दण्डकर द्वारा विष्णु पञ्चक व्रत से श्रीहरि के रूप को प्राप्त करने का कथन), ७.१३.१४०(निर्दयी शबर के दण्डी, दण्डायुध आदि ६ भ्राताओं के नाम), ब्रह्माण्ड १.२.२९.६३(प्रियव्रत व उत्तानपाद के प्रथम दण्डधारी राजा होने का उल्लेख), २.३.६३.९(इक्ष्वाकु के १०० पुत्रों में से एक), ३.४.१७.४(दण्डनाथा देवी की सेना का एक भैरव), भविष्य ४.१३८.७९ (कनक दण्ड मन्त्र), भागवत ६.१.४२(सूर्य आदि साक्षियों द्वारा द्रष्ट अधर्म के अनुसार दण्ड प्राप्त होने का कथन), ११.१८.१७ (तीन दण्डों की परिभाषा : चेतः/मन, वाक् एवं शरीर के लिए क्रमश: प्राणायाम, मौन तथा अनीहा/निश्चेष्ट स्थिति रूप दण्डों की आवश्यकता ), ११.१९.३७(दण्डन्यास/अभयदान का श्रेष्ठ दान के रूप में उल्लेख), मत्स्य ५.२२ (आप नामक वसु के ४ पुत्रों में से एक, यज्ञ रक्षा का अधिकारी), १२.३२(कुवलाश्व के ३ पुत्रों में से एक), १८३.६५(दण्डचण्डेश्वर : अविमुक्त क्षेत्र के रक्षक गणेश्वरों में से एक), २२५(दण्ड नीति का वर्णन, अदण्डी देवों की पूजा न होने का कथन), २२७ (पृथक् - पृथक् अपराधों के लिए पृथक् - पृथक् दण्ड का निरूपण), मार्कण्डेय ४१.२२/३८.२२ (वाग्दण्ड, कर्मदण्ड, मनोदण्ड नामक त्रिदण्डों को वशीभूत करने वाले की त्रिदण्डी संज्ञा), ५०.२६/४७.२६ (धर्म व क्रिया - पुत्र), वामन ६३.१९ (राजा दण्ड की शुक्राचार्य - कन्या अरजा पर आसक्ति , चित्राङ्गदा का वृत्तान्त), ६६ (अरजा का शील भङ्ग करने पर शुक्राचार्य द्वारा दण्ड को सप्त रात्रियों में राष्ट्र सहित विनष्ट होने का शाप), ८९.४६(मरीचि द्वारा वामन को पालाश दण्ड देने का उल्लेख), ९०.२९(लोहदण्ड में विष्णु की हृषीकेश नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु १०.३५(क्रिया व धर्म के ३ पुत्रों में से एक), १७.६ (त्रिदण्डी की परिभाषा, वाक् दण्ड, कर्मदण्ड व मनोदण्ड का उल्लेख), ४४.२२(दण्डा : केतुमाल देश की एक नदी), ८५.८/२.२३.८(मनु के दण्डधर होने का उल्लेख), ८८.९/२.२६.९(इक्ष्वाकु के १०० पुत्रों में से एक), १०५.२५/२.४३.२३(भिक्षु द्वारा गया में पिण्डदान के बदले दण्ड प्रदर्शन का विधान), विष्णु १.७.२९ (दक्ष - पुत्री क्रिया व धर्म के तीन पुत्रों में से एक), ४.२.३(इक्ष्वाकु के ३ ज्येष्ठ पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर २.७०+ (दण्ड की प्रशंसा), २.७२ (राजा द्वारा विविध अपराधों के अनुसार दण्ड का प्रणयन), २.१११(पाप अनुसार नरक गमनादि दण्ड का विधान), ३.२३८ (राजा द्वारा अनुशासनार्थ दण्ड व्यवस्था का वर्णन), स्कन्द १.२.६.४५ (तप सामर्थ्य से नारद का दण्ड के अग्रभाग पर द्विजों को स्थापित कर महीसागर सङ्गम पर आगमन), ४.२.६४.५ (काशी में ब्राह्मणों के दण्ड द्वारा खातित दण्डखात तीर्थ), ५.३.१५९.७७ (वैतरणी नामक महादान के अन्तर्गत यम को लौहदण्ड से युक्त करने तथा उडुप/नौका को इक्षुदण्डमय बनाने का निर्देश), ५.३.२१८.२० (क्रुद्ध जमदग्नि द्वारा ब्रह्मदण्ड सदृश महादण्ड धारण, दण्ड प्रहार से कार्त्तवीर्य का भूमि पर पतन), ६.२६३.१६ (योगी द्वारा धारित दण्ड का प्रतीकार्थ), ७.१.११.२०० (विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के शातित तेज से प्रेतपति के दण्ड का निर्माण), ७.३.२.४१ (उत्तङ्क द्वारा तक्षक से कुण्डल प्राप्ति के लिए दण्ड की सहायता से भूमि खनन, दण्डाग्र पर वज्र का आरोपण), वा.रामायण १.५५.२८ (वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र के विरुद्ध ब्रह्मदण्ड का प्रयोग), ७.५.४० (निशाचर सुमाली व केतुमती के अनेक पुत्रों में से एक), ७.७९ (इक्ष्वाकु - पुत्र, मधुमन्त नगर का राजा, शुक्र - कन्या से बलात्कार पर शुक्र द्वारा शाप, राज्य का नाश), लक्ष्मीनारायण १.३००.५३ (दण्ड द्वारा ताडन पर दुन्दुभि से घोष का उल्लेख), १.३२३.५१(धर्म व क्रिया के ३ पुत्रों में से एक), २.२२.११०(पराजित पुरुष द्वारा जेता को दण्ड प्रदान का उल्लेख), २.४१.४(शिवाराधना से कन्थाधर नामक राजा को कालदण्ड की प्राप्ति, दण्ड की सहायता से यमपुर में गमन और विप्र - पुत्र के आनयन का वृत्तान्त), २.५०(राजा, शुक्र - पुत्री अरजा पर आसक्ति, शुक्र - शाप से नाश को प्राप्ति की कथा), २.१८२.२६(श्रीहरि द्वारा दण्ड का विधान, दण्ड - भय से सम्पूर्ण जगत् की नियम में स्थिति ; राजदण्ड, धर्मदण्ड, यमदण्ड, देवदण्ड आदि की महिमा), ४.६६.१९(दण्डारणि : दण्डारणि नामक कौलिक को हिंसादि कर्म से गृध्र योनि की प्राप्ति, गृध्र जन्म में भगवत् प्रसाद भक्षण से मुक्ति), ४.८०.१४ (दण्डायन : नागविक्रम राजा के सर्वमेध यज्ञ में प्रतिहर्त्ता), महाभारत शान्ति १४.१४(तप युक्त ब्राह्मण तथा दण्डयुक्त क्षत्रिय के शोभा पाने का श्लोक), १४.२१(युधिष्ठिर द्वारा जम्बू आदि द्वीपों को दण्ड द्वारा मर्दित करने का कथन), १५(अर्जुन द्वारा युधिष्ठिर हेतु संसार राजदण्ड की महत्ता का वर्णन), १२१(भीष्म द्वारा युधिष्ठिर हेतु दण्ड के स्वरूप, नाम , लक्षण व प्रभाव का वर्णन), ३०१.६३(तप दण्ड का उल्लेख ) । danda
दण्डक अग्नि ३०५.१० (दण्डकारण्य में विष्णु का शार्ङ्गधारी नाम), गणेश २.७९.५ (सिन्धु असुर के भय से त्र्यम्बक व ऋषियों का दण्डकारण्य में त्रिसन्ध्य? क्षेत्र में वास), पद्म १.३७.६० (दण्ड के राज्य का भार्गव के शाप से दण्डकारण्य बनना), ४.२.६(हरि मन्दिर में लेपन माहात्म्य के अन्तर्गत दण्डक नामक चोर का वृत्तान्त), ४.२३(विष्णु पञ्चक माहात्म्य के अन्तर्गत दण्डकर नामक चोर का वृत्तान्त), ब्रह्म २.९१.६८ (दण्डकारण्य : ब्रह्मा के यज्ञ का स्थान), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५८(दक्षिण पथ का एक जनपद), २.३.५.३६( सुन्द - पुत्र मारीच के दण्डकारण्य में राम द्वारा हत होने का उल्लेख), २.३.१३.१०७(दण्डक वन तथा उसमें स्थित विशल्या तीर्थ की प्रशंसा), भागवत ९.६.४(इक्ष्वाकु के ३ ज्येष्ठ पुत्रों में से एक ), वराह ७१.१०(दण्डक वन में गौतम द्वारा तप से अन्नप्राप्ति व गङ्गावतारण का वृत्तान्त), वामन ५७.६४ (रवि द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण का नाम), ५८.५३ (कार्तिकेय - गण, असुरों से युद्ध), ९०.२६ (दण्डकारण्य में विष्णु का वनस्पति नाम), वायु ४५.१२६(दक्षिण पथ का एक जनपद), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.५(दण्डक क्षेत्र में लक्ष्मण की पूजा का निर्देश), शिव २.२.२४.२२ (दण्डकारण्य में विहार करते हुए शिव - शिवा द्वारा सीता की खोज में व्यस्त राम - लक्ष्मण के दर्शन), वा.रामायण ६.१०७.६०(कबन्ध वध दण्डक वन में होने का उल्लेख), ७.२४.३८ (रावण द्वारा खर की दण्डकारण्य रक्षणार्थ नियुक्ति), ७.८१.१९ (दण्डकारण्य : शुक्राचार्य के शाप से शापित होने पर दण्ड के राज्य द्वारा दण्डकारण्य नाम धारण ) । dandaka
दण्डखात स्कन्द ४.२.६४.५ (दण्डखात पुष्करिणी का माहात्म्य : ब्राह्मणों के दण्ड द्वारा खातित होने से दण्डखात तीर्थ नाम धारण), ४.२.६५.४५ (दण्डखात तीर्थ में तपोरत विप्रों के पास दुन्दुभिनिर्ह्राद दैत्य के आगमन का वर्णन ) । dandakhaata
दण्डनाथा ब्रह्माण्ड ३.४.१६.३१ (ललिता - सहचरी दण्डनाथा देवी द्वारा भण्डासुर से युद्ध हेतु प्रस्थान), ३.४.१७.१८ (दण्डनाथा देवी के १२ नाम), ३.४.२०.१२(किरिचक्र रथेन्द्र के प्रथम बिन्दु पर्व में स्थित दण्डनाथा/ दण्डनायिका देवी के महत्त्व का वर्णन), ३.४.२८.१८ (सेना की तृषा शान्ति के लिए दण्डनाथा द्वारा सुधा वर्षण का उद्योग), ३.४.२८.३७ (दण्डनाथा द्वारा विषाङ्ग का वध), ३.४.३६.३०(चिन्तामणि गृहेन्द्र के वाम पार्श्व में दण्डनाथा देवी के भवन का उल्लेख ) । dandanaathaa
दण्डनायक भविष्य १.१२४.१७ (स्कन्द द्वारा दण्डनायक का रूप धारण कर सूर्य के बांयी ओर स्थिति, नाम हेतु का कथन), मत्स्य १८५.४४(शिव के प्रधान गण दण्डनायक द्वारा पापियों के काशी से निष्कासन का उल्लेख ) । dandanaayaka/ dandanayaka
दण्डपाणि पद्म ६.२५१.१५ (पौण्ड्रक वासुदेव - पुत्र, पिता की मृत्यु पर कृष्ण वधार्थ कृत्या की उत्पत्ति, सुदर्शन चक्र द्वारा विनाश), ७.१३.९६ (शबर, सर्ववेदा ब्राह्मण को पद्म दान से जन्मान्तर में प्रजा ब्राह्मण बनना), भागवत ९.२२.४४(भविष्य के राजाओं के संदर्भ में वहीनर - पुत्र, निमि - पिता), मत्स्य ५०.८७(भविष्य के राजाओं के संदर्भ में वहीनर - पुत्र, निरमित्र - पिता, अधिसोमकृष्ण वंश), वायु ९९.२७६/२.३७.२७२(मेधावी - पुत्र, निरामित्र - पिता, भविष्य के राजाओं का संदर्भ), विष्णु ४.२१.१५(भविष्य के राजाओं के संदर्भ में वहीनर - पुत्र, निमि - पिता), स्कन्द ४.१.३२.५ (पूर्णभद्र यक्ष - पुत्र हरिकेश का शिव आराधना से काशी में दण्डपाणि गण बनना, दण्डपाणि की महिमा का कथन), ४.१.४१.१७२(षडङ्ग योग के ६ देवताओं में से अन्तिम), ४.१.४५.३७ (दण्डहस्ता : ६४ योगिनियों में से एक), ७.१.९९.३३ (शिव गण, पौण्ड्रक वासुदेव - पुत्र द्वारा उत्पन्न कृत्या की कृष्ण के चक्र से रक्षा), ७.४.१७.१७(कृष्णदेव के दक्षिण द्वार के रक्षकों में से एक ) । dandapaani/ dandapani
दण्डपाल पद्म ३.१८.१२१(दण्डपाल तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) ।
दण्डी ब्रह्माण्ड ३.४.२०.६८(दण्डिनी : ललिता देवी की सहचरी दण्डिनी देवियों का उल्लेख), मत्स्य १९५.१७(भार्गव गोत्रकार), २६१.५(सूर्य के २ पार्श्वचरों में से एक), लिङ्ग १.२४.११५ (२५वें द्वापर में शिव का दण्डी मुनि के रूप में अवतार), वायु २३.२०९/१.२३.१९९ (२५वें द्वापर में शिव अवतार), शिव ३.५.३७ (२५वें द्वापर में दण्डीमुण्डीश्वर नाम से शिव द्वारा अवतार ग्रहण), स्कन्द ४.२.६९.१०१ (दण्डीश्वर शिव का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.१०.८(दण्डि तीर्थ का वर्गीकरण –- तेज), कथासरित् ८.४.८५(सूर्यप्रभ - सेनानी, कालकम्पन द्वारा वध ) ; द्र. श्रीदण्डी । dandee/ dandi
दत्त स्कन्द ५.२.६१.५१(सौभाग्येश्वर लिङ्ग की दत्त नाम से ख्याति होने ? का उल्लेख), कथासरित् ७.१.८०(दत्तशर्मा : ब्रह्मचारी, राजा को ताम्र से स्वर्ण बनाने की युक्ति प्रदान करना ) । datta
दत्तक ब्रह्माण्ड १.२.३६.८५(अत्रि द्वारा उत्तानपाद को दत्तक पुत्र रूप में स्वीकार करने का कथन), २.३.१०.१८(भृगु - पुत्र उशना के उमा के दत्तक पुत्र होने का उल्लेख ) । dattaka
दत्तात्रेय गणेश १.७२.३३ (दत्तात्रेय द्वारा अङ्गहीन कृतवीर्य - पुत्र कार्त्तवीर्य को गणेश मन्त्र जप का निर्देश), गर्ग ७.११(प्रद्युम्न के जगत् व ब्रह्म सम्बन्धी प्रश्न का दत्तात्रेय नामक अवधूत मुनि द्वारा समाधान), ७.१४.९ (जगत के स्वरूप का बोध करने के लिए दत्तात्रेय द्वारा प्रद्युम्न को ब्रह्मज्ञान प्राप्ति का उपदेश), नारद १.७६.४ (दत्तात्रेय के समाराधन से कार्त्तवीर्य को उत्तम तेज की प्राप्ति), पद्म २.१०३.११०(आयु नामक सन्ततिहीन नृप द्वारा अत्रि - पुत्र दत्तात्रेय की शुश्रूषा, सेवा से तुष्ट दत्तात्रेय द्वारा नृप को पुत्र प्राप्ति का वरदान), ६.१२६, १२७ (दत्तात्रेय द्वारा कार्तवीर्य को माघ स्नान माहात्म्य का कथन), ब्रह्म १.१०४.९९(विष्णु द्वारा दत्तात्रेय नामक अवतार में शिथिलप्राय धर्म तथा वैदिक प्रक्रियाओं का पुनरुद्धार, कार्त्तवीर्य को वर प्रदान), २.४७ (आत्मज्ञान प्राप्ति हेतु दत्तात्रेय द्वारा शिव की स्तुति), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२७.२४ (दत्तात्रेय - प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करके कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा जमदग्नि का संहार), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१८(दत्त : पौलस्त्य ?), २.३.८.८२(दत्तात्रेय का अत्रि के ज्येष्ठ पुत्र व विष्णु के अवतार होने का उल्लेख), २.३.४७.६५(कार्त्तवीर्य द्वारा दत्तात्रेय से उत्तम पुरुष से मृत्यु प्राप्ति के वर का उल्लेख), भविष्य ३.४.१७.७८(अनसूया के शापवश ब्रह्मा, विष्णु व शिव का क्रमश: चन्द्रमा, दत्तात्रेय तथा दुर्वासा रूप से पुत्र रूप होना, दत्तात्रेय का जन्मान्तर में प्रभास नामक अष्टम वसु बनना), ४.५८ (दत्तात्रेय द्वारा अनघ रूप में असुर वध), भागवत २.७.४(दत्त/दत्तात्रेय के नामकरण का हेतु ; दत्त से यदु व हैहय आदि राजाओं को योगसिद्धि की प्राप्ति), ४.१.१५(अत्रि व अनसूया के तीन पुत्रों में से एक, विष्णु के अंश), ६.८.१६(नारायण कवच के अन्तर्गत दत्तात्रेय से योगविघ्नों से रक्षा की प्रार्थना), ७.१३.११ (अजगर मुनि/दत्तात्रेय? द्वारा प्रह्लाद को यति धर्म का उपदेश), ११.७ (दत्तात्रेय द्वारा यदु को उपदेश ; दत्तात्रेय द्वारा २४ विभिन्न गुरुओं से शिक्षा का वृत्तान्त), मत्स्य ९.८(स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), मार्कण्डेय १७ (दत्तात्रेय का अत्रि से जन्म, गर्ग द्वारा कार्त्तवीर्य को दत्तात्रेय के प्रभाव का वर्णन, कार्त्तवीर्य का दत्तात्रेय की शरण में जाना, वर प्राप्ति), ३८+ (अलर्क का दत्तात्रेय से परमार्थ चिन्तन विषयक प्रश्न, दत्तात्रेय द्वारा अलर्क को योगोपदेश), वायु ७०.७६/२.९.७६(दत्तात्रेय का अत्रि के ज्येष्ठ पुत्र व विष्णु के अवतार होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२५.५ (जनार्दन व महेश्वर का अत्रि - पुत्रों दत्तात्रेय व दुर्वासा रूप में जन्म, दत्तात्रेय द्वारा शिथिलप्राय वेदों, याज्ञिक क्रियाओं तथा धर्म का उद्धार, दत्तात्रेय द्वारा कार्त्तवीर्य को शिष्य बनाना), १.२३७.१४ (दत्तात्रेय से परिवार हित पालन की प्रार्थना), ३.११९.४ (दत्तात्रेय की सर्व संस्कारों में पूजा का उल्लेख), स्कन्द ३.१.३६.२०(दत्तात्रेय द्वारा दुराचार ब्राह्मण को महालय पक्ष श्राद्ध महिमा का कथन), ४.२.५८.५१ (दत्तात्रेय तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८४.१८ (दत्तात्रेय तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१०३(पुत्र प्राप्ति हेतु अनसूया का तप, देवों के वरदान स्वरूप दुर्वासा, दत्तात्रेय तथा सोम नामक पुत्रों की प्राप्ति), हरिवंश १.४१.१०४(विष्णु का दत्तात्रेय रूप में अवतार, दत्तात्रेय द्वारा कार्त्तवीर्य को वर प्रदान), लक्ष्मीनारायण १.३९६(दत्तात्रेय - प्रदत्त ज्ञानयोगोपदेश से अलर्क की मुक्ति आदि का निरूपण), १.४८३.८०(अत्रि - पत्नि अनसूया के तप से तुष्ट होकर ब्रह्मा, विष्णु व महेश का द्विज रूप में आगमन, त्रिदेवों की ही सोम, दत्तात्रेय तथा दुर्वासा नाम से पुत्ररूपता का वर्णन), १.५५७.३६ (दत्तात्रेय तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), २.११६.९१(पार्ष्णिगृह नामक ऋषि के शाप से समीरण राजा का शरभ बनना, दत्तात्रेय द्वारा कुङ्कुमवापि क्षेत्र में पहुंचकर शाप से मुक्ति तथा मोक्ष प्राप्ति), २.२३७.४६(सोमनाथ की यात्रा हेतु निर्गत सम्पर्क नामक राजा का सैन्य सहित रोगपीडित होना, सम्पर्क द्वारा दत्तात्रेय नामक स्वगुरु से रोगमुक्ति हेतु प्रार्थना, श्रीहरि का दत्तात्रेय के रूप में दर्शन देकर रोगमुक्त करना, दत्तात्रेय तीर्थ निर्माण का वर्णन), ३.१७०.१५(श्रीहरि के मुक्तिदायक विविध धामों में दत्तात्रेय के १९वें धाम का उल्लेख ) ; द्र. वंश अत्रि । dattaatreya/ dattatreya
दत्तोत्रि ब्रह्माण्ड १.२.३६.१८(एक पौलस्त्य?, स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) ।
दत्तोलि वायु २८.२२(दत्तालि : प्रीति व पुलस्त्य - पुत्र, पूर्व जन्म में अगस्त्य), विष्णु १.१०.९(प्रीति व पुलस्त्य - पुत्र, पूर्व जन्म में अगस्त्य ) । dattoli
दधि अग्नि ११९.१२(कुश द्वीप में दधिमुख्य विप्रों द्वारा ब्रह्म रूप के यजन का उल्लेख), गरुड २.२२.६२/२.३२.११६(दधि सागर की शोणित में स्थिति, अन्य धातुओं में अन्य), ३.१४.३५(भाद्रपद मास में दधि के निःसार होने का उल्लेख), ३.२९.५८(दधि अन्न भोजनकाल में गोपाल के स्मरण का निर्देश), गर्ग १.१७.२७ (कृष्ण द्वारा दधि चोरी का वर्णन), २.२२.१७ (दधिमण्डोद : पुष्कर द्वीप में समुद्र, हंस मुनि के तप का स्थान), नारद १.११९.६० (औदुम्बर व दधि - १४ यमों में से दो, अन्त्य शुक्ल दशमी में यजन), पद्म ४.२३.१२ (विष्णुपंचक व्रत में कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को दधि सेवन का निर्देश), भागवत १०.४६.४४(गोपियों द्वारा प्रातःकाल दधि मन्थन, अक्रूर का आगमन), वराह १०६(दधिधेनु दान की विधि व माहात्म्य), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२१(दधि हरण से बलाका पक्षी योनि प्राप्ति का उल्लेख), शिव २.१.१२.३५ (यक्षों द्वारा दधिमय लिङ्ग की पूजा), स्कन्द १.२.४.८०(कानीयस दान - द्रव्यों में दधि की गणना), २.४.९.३९ (यम के १४ नामों में से एक ) ४.२.६१.१९९ (दधिवामन का संक्षिप्त माहात्म्य- दरिद्रता से मुक्ति), ४.२.९७.१८४ (दधि कल्प ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.१४.५( कुश द्वीप में दधि समुद्र की स्थिति का उल्लेख), ५.१.१४.२८(दधिसमुद्र यात्रा विधि व माहात्म्य), ५.३.७९.२ (दधि स्कन्द, मधुस्कन्द तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.८० (दधि स्कन्द तीर्थ का माहात्म्य : नन्दी की तप से सिद्धि), वा.रामायण ५.६१.९ (दधिमुख वानर : सुग्रीव - मातुल, मधुवन का रक्षक, वानरों द्वारा दधिमुख का निग्रह), ६.३०.२२(दधिमुख वानर : सोम - पुत्र), लक्ष्मीनारायण २.१५.२५ (दधि से देवताओं, क्षीर से महेश्वर, आज्य से अग्नि, पयः से पितामह की तृप्ति), २.२४८.८(सोमयाग में पांचवें दिन दधिग्रहप्रचार कृत्य ), अथर्वपरिशिष्ट ३१.६.५(दधि होम से पुत्र, पयः से ब्रह्मवर्चस प्राप्ति का उल्लेख); द्र. सर्पिदधि । dadhi
दधि – गरुड ३.२६.६२(दधिवामन का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.१.५८(दधिक्राव : नवम रोहित मन्वन्तर के १२ मरीचि देवों में से एक),वायु १०६.३७/२.४४.३७(दधिपञ्चमुख : गया में गयासुर के शरीर पर यज्ञ करने वाले ऋत्विजों में से एक ) ।
Remarks on Dadhikraavaa by Dr. Fatah Singh
आनन्दमय कोश के आनन्द को पय: या दुग्ध कहते हैं। जब इस पय: या आनन्द का विज्ञानमय कोश में अवतरण होता है तो यह विकृत होकर दधि बन जाता है । वहां जो जीवात्मा इस दधि को धारण करता है उसे दध्यङ्ग कहते हैं। जब यह जीवात्मा विज्ञानमय से निचले - मनोमय, प्राणमय और अन्नमय स्तरों पर दधि रूपी आनन्द बिखेरता है तो वह दधिक्रावा अश्व कहलाता है । दध्यङ्ग ही पुराणों का दधीचि ऋषि है । वह जीवात्मा जो दधिक्रा - दधि से युक्त है, उसकी अस्थियों से वज्र बनता है । अस्थि अर्थात् अस्ति । वज्र: - वर्जनात्, अर्थात् जो अहंकार की वर्जना करता है ।
दधिमण्डोद ब्रह्माण्ड १.२.१९.७७(क्रौञ्च द्वीप के चारों ओर दधिमण्डोद समुद्र से आवृत्त होने तथा दधिमण्डोद समुद्र के शाक द्वीप से आवृत्त होने का उल्लेख), ३.४.३१.१९(७ सिन्धुओं में से एक), भागवत ५.१.३३(प्रियव्रत के रथ की नेमि से बने ७ समुद्रों में से एक), ५.२०.२४(शाक द्वीप के दधिमण्डोद समुद्र से आवृत्त होने का उल्लेख), मत्स्य १२२.९२(शाल्मलि द्वीप द्वारा दधिमण्डोद समुद्र को आवृत्त करने का उल्लेख), विष्णु २.४.५७(क्रौञ्च द्वीप के चारों ओर दधिमण्डोद समुद्र से आवृत्त होने तथा दधिमण्डोद समुद्र के शाक द्वीप से आवृत्त होने का उल्लेख ) । dadhimandoda
दधिमुख ब्रह्माण्ड २.३.७.३५(प्रधान काद्रवेय नागों में से एक), वायु ६९.७२/२.८.६९(वही) ।
दधिवाहन ब्रह्माण्ड २.३.७४.१०२ (अङ्ग - पुत्र, बलि - पौत्र, दीर्घतमा के शाप से अनपान उत्पन्न होना), लिङ्ग १.२४.४० (अष्टम द्वापर में शिव का दधिवाहन मुनि के रूप में अवतार), वायु ९९.१०० (अङ्गद - पुत्र, बलि व सुदेष्णा - पौत्र, दीर्घतमा द्वारा सुदेष्णा को प्राप्त शाप के कारण दधिवाहन की मलमार्ग हीनता, अपर नाम अनपान), विष्णुधर्मोत्तर १.१६४(दधिवाहन राजा की पत्नी कमला के राजमहिषीत्व हेतु का कथन), शिव ३.४.३२(अष्टम द्वापर में शिव का दधिवाहन रूप में अवतार ) dadhivaahana/ dadhivahana
दधीचि कूर्म १.१५ (दधीचि द्वारा दक्ष के यज्ञ में शिव को भाग देने के लिए प्रेरित करना, ब्राह्मणों को शाप), पद्म १.१९.७५(वृत्र वध हेतु दधीचि द्वारा अस्थि दान का प्रसंग), ५.१०५ (दधीचि द्वारा भस्म से करुण को पुन: जीवित करना), ब्रह्म २.४०.५ (गभस्तिनी - पति, देवों के अस्त्रों का पान व अस्थि दान की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३.२८(दधीचि की दानियों में उत्कृष्टता का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१.९३(च्यवन व सुकन्या के २ पुत्रों में से एक, सरस्वती - पति, सारस्वत - पिता), भागवत ४.१.४२(दध्यङ : अथर्वा व चित्ति - पुत्र, अपर नाम अश्वशिरा), ६.१० (देवों के वज्र निर्माण हेतु दधीचि द्वारा स्व अस्थियों का दान), लिङ्ग १.३५ (दधीचि का क्षुप से विवाद, क्षुप व विष्णु की पराजय), वायु २१.४१(१९वें वैराजक कल्प में वैराज मनु से दधीचि की उत्पत्ति, गायत्री द्वारा दधीचि की कामना ,उससे पुत्र स्वरूप स्निग्ध स्वर की उत्पत्ति), ३०.१०२(दधीच : दक्ष द्वारा यज्ञ में शिव को निमन्त्रित न करने पर दधीच द्वारा क्रोध, शिव की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), ६५.९० (च्यवन व सुकन्या - पुत्र), विष्णुधर्मोत्तर १.२०७.२३(वृत्र वध हेतु दधीचि द्वारा अस्थि प्रदान का वृत्तान्त), शिव २.२.२७ (दधीचि का दक्ष यज्ञ से निर्गमन), २.२.३८ (स्वश्रेष्ठता विवाद में दधीचि की क्षुव राजा से पराजय, मृत्युञ्जय मन्त्र से अमरता प्राप्ति), २.२.३९ (क्षुव निमित्त विष्णु का गमन, कलह, दधीचि शव से विष्णु की पराजय), ३.२४ (दधीचि - पत्नी सुवर्चा से शिवांश पिप्पलाद की उत्पत्ति), ७.१.३२.१५(पाशुपत ज्ञान देने वाले ४ योगाचार्यों में से एक), स्कन्द १.१.२ (शिव के अनादर पर दधीचि का दक्ष के यज्ञ से निष्क्रमण), १.१.१६ (दधीचि द्वारा अस्थि दान का प्रसंग), ४.१.३५.५३ (दधीचि की वदान्यों / दाताओं में श्रेष्ठता), ४.२.८७.६८ (दधीचि द्वारा शिव रहित दक्ष यज्ञ की निन्दा, दक्ष द्वारा दधीचि का यज्ञ से निष्कासन), ४.२.९७.११ (दधीचीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.८(दधीचि की अस्थियों से वज्र निर्माण, वृत्र वध का प्रसंग), ७.१.३१+ (सुभद्रा - पति, देवों द्वारा प्रदत्त अस्त्रों का पान, सुभद्रा गर्भ से पिप्पलाद की उत्पत्ति की कथा, दधीचि का देवों के लिए प्राण त्याग), लक्ष्मीनारायण १.४८(दध्यङ्ग द्वारा वृत्र वध हेतु इन्द्र को स्वशरीर की अस्थि दान का उल्लेख), १.१७४.१२०(दक्ष के यज्ञ में शिव की अनुपस्थिति पर दधीचि द्वारा आपत्ति, दक्ष द्वारा दधीचि का यज्ञ से निष्कासन, दधीचि द्वारा यज्ञ में विघ्न का शाप), १.५३७.३८(दधीचि द्वारा देवों के अस्त्रों का पान, दधीचि की अस्त्र रूपी अस्थियों से देवों द्वारा वज्र का निर्माण, दधीचि व सुभद्रा से उत्पन्न बालक से बडवाग्नि की उत्पत्ति का वर्णन), ४.५९.५९(क्षुप तथा दधीचि नामक मित्रों में क्षत्रिय तथा ब्राह्मण में श्रेष्ठता विषयक विवाद का वृत्तान्त । dadheechi/ dadhichi
दधिक्रावा : आनन्दमय कोश के आनन्द को पय: या दुग्ध कहते हैं। जब इस पय: या आनन्द का विज्ञानमय कोश में अवतरण होता है तो यह विकृत होकर दधि बन जाता है । वहां जो जीवात्मा इस दधि को धारण करता है उसे दध्यङ्ग कहते हैं। जब यह जीवात्मा विज्ञानमय से निचले - मनोमय, प्राणमय और अन्नमय स्तरों पर दधि रूपी आनन्द बिखेरता है तो वह दधिक्रावा अश्व कहलाता है । दध्यङ्ग ही पुराणों का दधीचि ऋषि है । वह जीवात्मा जो दधिक्रा - दधि से युक्त है, उसकी अस्थियों से वज्र बनता है । अस्थि अर्थात् अस्ति । वज्र: - वर्जनात्, अर्थात् जो अहंकार की वर्जना करता है । - फतहसिंह
दध्यङ्ग ब्रह्माण्ड १.२.१२.१० (अग्नि का नाम, अथर्वण - पुत्र), भागवत ४.१.४२ (अथर्वा व चित्ति - पुत्र, अश्वशिरा उपनाम), मत्स्य ५१.९ (दध्यङ्ग आथर्वणि : अथर्वा अग्नि का पुत्र), वायु २९.९ (अग्नि का नाम, अथर्वा अग्नि का पुत्र), लक्ष्मीनारायण १.४८.४७ (वृत्र वध हेतु दध्यङ्ग द्वारा अस्थि दान), ३.३२.१० (अथर्वा अग्नि - पुत्र ) । dadhyanga
दनायुषा वायु ६८.३० (दनायुषा के ५ पुत्रों के नाम), ६९.९५ (कश्यप - भार्या, वैर - अनुग्रह शीला प्रकृति ) ।
दनु गरुड १.६.४३ (दनु के पुत्रों के नाम), पद्म १.६.४८ (दनु के पुत्रों के नाम), २.६.१(दनु द्वारा दिति को दानवों व दैत्यों के मारे जाने का समाचार देना), ब्रह्माण्ड २.३.६.१ (दनु के पुत्रों के नाम), २.३.७.४६६ (दनु की मायाशीला प्रकृति का उल्लेख), ३.४.९.३(कश्यप व दिति की पुत्री, धाता - पत्नी, विश्वरूप - माता), मत्स्य ६.१६ (कश्यप - भार्या, पुत्रों के नाम), १४६.१८(दक्ष - कन्या, कश्यप की १३ पत्नियों में से एक), १७१.२९(दक्ष - पुत्री, मारीच कश्यप की १२ भार्याओं में से एक), १७१.५८(दनु से दानवों की उत्पत्ति का उल्लेख), १७९.१९(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ सृष्ट मानस मातृकाओं में से एक), वामन ५५.१ (कश्यप - पत्नी, शुम्भ, निशुम्भ व नमुचि की माता), ६०.३०(कश्यप - पत्नी, मुर - माता), ७८.१३(कश्यप - पत्नी, धुन्धु - माता), वायु ६५.१०५/२.४.१०५(अङ्गिरस व सुरूपा के १० पुत्रों में से एक), ६८.१ (दनु के पुत्रों के नाम), ६९.९३ (दनु की मायाशीला प्रकृति का उल्लेख), विष्णु १.२१.४ (दनु के पुत्रों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१२८(दनु से विप्रचित्ति - प्रमुख दानवों की उत्पत्ति), शिव २.५.२७.८(कश्यप - पत्नी, विप्रचित्ति आदि की माता), स्कन्द ५.३.४०.७ (मरीचि - भार्या, दक्ष - पुत्री, करञ्ज - माता), हरिवंश १.३.८० (दनु के सौ पुत्रों के नाम), वा.रामायण ३.१४.१६(अश्वग्रीव - माता, कश्यप वंश), ४.४.१५ (दिति - पुत्र, शाप के कारण राक्षस भाव को प्राप्ति, राम को सुग्रीव का पता बताना ) लक्ष्मीनारायण १.१६५.१६ (अङ्गिरस व सुरूपा के १० आङ्गिरस पुत्रों में से एक नाम), कथासरित् ८.२.३६३(मय, सुनीथ तथा सूर्यप्रभ का प्रह्लाद की आज्ञा से अन्य असुरों के साथ कश्यप आश्रम में दिति, दनु माताओं के दर्शनार्थ गमन, माताओं द्वारा आशीर्वाद), ८.३.२३४(नमुचि - माता, नमुचि के मरने पर दनु द्वारा पुन: नमुचि को स्वगर्भ से उत्पन्न करने का संकल्प, नमुचि की प्रबल नाम से दनु - गर्भ से उत्पत्ति ) । danu
दन्त गणेश २.१३.२३ (महोत्कट गणेश द्वारा काशी में दन्तुर राक्षस का वध), २.७०.४ (देवान्तक द्वारा गणेश दन्त को भङ्ग करना, गणेश द्वारा दन्त से देवान्तक का वध), गरुड ३.२९.४०(दन्त धावन काल में चन्द्रान्तर्यामी हरि के स्मरण का निर्देश), गर्ग १.१७.११(कृष्ण - मुख में पहले ऊर्ध्व दन्तद्वय निकलना मातुल दोषकारक होने का उल्लेख), देवीभागवत ११.२.३५(दन्त धावन विधि), पद्म १.४८.१५९ (गौ के दन्तों में गरुड के वास का उल्लेख), ६.६.२६(बल असुर के दन्तों से मुक्ता की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.५६(नरक में दन्त कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), ३.४.३६ (दन्त सौन्दर्य हेतु श्रीहरि को मुक्ताफल समर्पण का निर्देश), ब्रह्माण्ड १.१.५.१६(यज्ञवाराह के क्रतु दन्त, इष्टि दंष्ट्र होने का उल्लेख), २.३.४२.४ (भार्गव द्वारा गणेश के दन्त का परशु द्वारा छेदन), ३.४.३३.३६(महादन्त : वैदूर्यशाल में स्थित नागों में से एक), ५.७२.२१(रङ्गवेणी के दन्तों में चित्र शोण बिन्दुओं की स्थिति का उल्लेख), भविष्य १.२२.८(गणेश द्वारा कार्तिकेय के कार्य में विघ्न करने पर कार्तिकेय द्वारा गणेश के एक दन्त का छेदन, शिव के कहने पर दन्त को पुन: प्रदान करना, कार्तिकेय की शर्त के अनुसार गणेश द्वारा हाथ में सदैव दन्त धारण करना), भागवत १०.६१.३७(बलराम द्वारा कलिङ्गराज के दन्त तोडने का उल्लेख), मार्कण्डेय ५१.३/४८.३(दन्ताकृष्टि : दुःसह व निर्मार्ष्टि की १६ सन्तानों में से एक दन्ताकृष्टि के कार्य का कथन), ९१.४१/८८.४१(शुम्भ - निशुम्भ के भक्षण से विन्ध्यवासिनी देवी का रक्तदन्ता होने का कथन), वामन ७२.५७(दन्तध्वज/ऋतध्वज : तामस मनु - पुत्र दन्तध्वज द्वारा पुत्र उत्पन्न करने हेतु अग्नि में स्वमांसादि का होम, मरुतों की उत्पत्ति), ९२.२६(वामन विराट रूप में दशनों में सर्व सूक्त होने का उल्लेख), वायु ६९.२२१/२.८.२१५(पुष्पदन्त हाथी के षड्दन्त व दन्त पुष्पवान् होने का उल्लेख), ७२.१६/२.११.१६(दन्तकाण्वोशना : उमा व महादेव - पुत्र ?), विष्णु ५.२८.९(बलराम द्वारा कलिङ्गराज के दन्त तोडने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.१० (विराट् पुरुष के दन्तों में मासों व ऋतुओं की तथा दंष्ट्रों में वत्सर स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ४.२.५७.९४(दन्तहस्त गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.५७.१००(चतुर्दन्त विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.३९.२८ (कपिला गौ के दन्तों में सर्पों की स्थिति), ५.३.८३.१०६(गौ के दन्तों में मरुद्गणों की स्थिति), ५.३.१५९.१२(कर्मविपाक वर्णन के अन्तर्गत मद्यपायी के श्यावदन्त होने का उल्लेख), ५.३.१९३.२७(वसन्तकामा अप्सराओं को श्रीहरि के विराट रूप का दर्शन, देवों की दन्तों में स्थिति), हरिवंश २.८०.२४(सुन्दर दन्त प्राप्ति हेतु व्रत विधान – रौप्य दन्त दान), ३.७१.५१ (भगवान् वराह के विराट् स्वरूप के अन्तर्गत दशन में छन्दों की स्थिति), योगवासिष्ठ १.१८.५ (दन्त की पुष्प के केसरों से उपमा), १.२३.१३ (काल रूपी महागज के शुभाशुभ फल रूपी दन्त), ६.१.९१.२ (वैराग्य व विवेक की हस्ती के २ दन्तों से उपमा), ६.१.१२६.८०(इच्छा रूपी करिणी के कर्म दन्त द्वय का उल्लेख), ६.२.१८५ (कुन्द दन्त : द्विज, वसिष्ठ प्रोक्त मोक्षोपाय नामक संहिता का श्रवण, तत्त्वज्ञान प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.३८८( राजा नन्दसावर्णि द्वारा वराह की दन्तास्थि के प्रभाव से धन का संग्रह, पत्नी द्वारा अस्थि को भस्म करने पर मरण की कथा ), २.१५.२७(गौ के दन्तों में मरुत् की स्थिति), कथासरित् १२.८.८२ (दन्तवैद्य : कलिङ्गदेशीय कर्णोत्पल राजा का कृपापात्र सङ्ग्रामवर्धन नामक दन्तवैद्य, पद्मावती - पिता), महाभारत शान्ति ३४७.५२(भगवान हयग्रीव के दन्तों के रूप में सोमपा पितरों का उल्लेख ) ; द्र. एकदन्त, कुन्ददन्त, पुष्पदन्त । danta
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गौ के दन्तों में गरुड के वास |
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बल असुर के दन्तों से मुक्ता की उत्पत्ति |
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यज्ञवाराह के क्रतु दन्त, इष्टि दंष्ट्र |
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वामन विराट रूप में दशनों में सर्व सूक्त |
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वराह दंष्ट्र का यूप से साम्य |
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विराट् पुरुष के दन्तों में मासों व ऋतुओं की तथा दंष्ट्रों में वत्सर की स्थिति |
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कपिला गौ के दन्तों में सर्पों की स्थिति |
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गौ के दन्तों में मरुद्गणों की स्थिति |
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यज्ञ वराह के संदर्भ में यूप के दंष्ट्र |
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वराह के विराट् स्वरूप के अन्तर्गत दशन में छन्दों की स्थिति |
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भीष्म के दंष्ट्रों की शरों से उपमा, चाप मुख |
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भगवान हयग्रीव के दन्तों के रूप में सोमपा पितरों का उल्लेख |
दन्तकाष्ठ गरुड १.११७ (मासानुसार दन्तकाष्ठों के नाम), १.१२० (रम्भा तृतीया व्रत के अन्तर्गत मासानुसार दन्तकाष्ठों के नाम), १.२०५.४८ (दन्तकाष्ठ हेतु प्रशस्त काष्ठों के नाम), देवीभागवत ११.२.३७ (दन्तकाष्ठ का मन्त्र), नारद १.२७.२५ (दन्तकाष्ठ का मन्त्र तथा परिमाण), भविष्य १.१९३.७ (दन्तकाष्ठों के प्रकार ; भिन्न - भिन्न दन्तकाष्ठों से दन्तधावन करने पर भिन्न - भिन्न फलों की प्राप्ति), मत्स्य ५६.८ (दन्तपवन : कृष्ण अष्टमी व्रत में दन्तकाष्ठ का विधान), स्कन्द ४.१.३५.७६ (दन्तकाष्ठ मन्त्र विधान), ४.२.८०.४१ (मास अनुसार दन्तकाष्ठों के नाम), ७.१.१७.८ (विभिन्न दन्तकाष्ठों का महत्त्व, दन्तधावन में ग्राह्य - अग्राह्य काष्ठ का निर्णय), ७.१.२५.२२ (विभिन्न सोमवार व्रतों में भिन्न - भिन्न दन्तकाष्ठों का प्रयोग ) । dantakaashtha
दन्तवक्त्र / दन्तवक्र गर्ग ६.६.४० (कृष्ण व रुक्मिणी विवाह में दन्तवक्र की बलराम से पराजय, वक्र दन्त का पतन), ७.१०.३२ (वृद्धशर्मा व श्रुतदेवा - पुत्र, प्रद्युम्न सेना से युद्ध व पराजय), ७.११(श्रीकृष्ण के पुत्रों द्वारा दन्तवक्र का वध), पद्म ६.२५२.२१ (कृष्ण द्वारा दन्तवक्त्र का वध), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५६(वृद्धशर्मा व श्रुतदेवा - पुत्र, करूषाधिपति), ३.४.२९.१२२(भण्डासुर के असुरास्त्र से उत्पन्न नृपों में से एक), भविष्य ३.२.१.९(कर्णाटक का भूपति, पद्मावती - पिता), भागवत ७.१.३२ (दन्तवक्र : जय - विजय का जन्मान्तर में रूप), ७.१०.३८(वही), ९.२४.३७(दिति - पुत्र, ऋषि शाप से श्रुतदेवा व वृद्धशर्मा के पुत्र रूप में उत्पन्न होने का उल्लेख), १०.७८ (करूष नरेश, गदा युद्ध में कृष्ण द्वारा उद्धार), वायु ९६.१५५(वृद्धशर्मा व श्रुतदेवा - पुत्र, करूषाधिपति), विष्णु ४.१४.४०(वृद्धधर्मा व श्रुतदेवा - पुत्र, कारूष अधिपति), हरिवंश २.३६.३ (दन्तवक्र का शङ्कु से युद्ध), २.४९ (रुक्मिणी स्वयंवर प्रसंग में दन्तवक्र द्वारा कृष्ण के प्रभाव का कथन ) । dantavakra/dantavaktra
दन्तिल स्कन्द २.७.१७.४८ (मतङ्ग मुनि - पुत्र, शाप से क्रोध रूपी सिंह बनना , वैशाख धर्म श्रवण से मुक्ति ) ।
दन्तोग्नि शिव ७.१.१७.२५(पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र, पूर्व जन्म में अगस्त्य ) ।
दन्दशूक भागवत ५.२६.७, ३३(२८ नरकों में से एक), ६.६.२८(क्रोधवशा से उत्पन्न सर्प आदि की संज्ञा ) ।
दम पद्म १.१९.२९० (सप्तर्षियों द्वारा दम के महत्त्व का वर्णन), २.१२.७७(दम की मूर्ति का स्वरूप), २.१३.२७ (दम का लक्षण), ५.८४.५८ (पुष्प रूप, श्रीहरि की पूजा के आठ पुष्पों में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.९.६० (क्रिया व धर्म - पुत्र), १.२.३६.५५(आभूतरय वर्ग के १२ देवों में से एक), १.२.३६.५७(तामस मन्वन्तर के वैकुण्ठ वर्ग के १४ देवों में से एक), २.३.६१.८(नरिष्यन्त - पुत्र, विज्ञात - पिता), भागवत ९.२.२९(मरुत्त - पुत्र, राज्यवर्धन - पिता), ९.१९.३६(दम की परिभाषा : इन्द्रिय संयम), ११.१९.३६(इन्द्रिय संयम रूप में दम का उल्लेख), मत्स्य १४५.४९ (दम के लक्षण), १९५.३६(भार्गवों का एक आर्षेय प्रवर), मार्कण्डेय १३३/१३० (नरिष्यन्त व इन्द्रसेना - पुत्र, दशार्णाधिपति चारुकर्मा की कन्या सुमना द्वारा स्वयंवर में दम का वरण, महानन्द व वपुष्मान् प्रभृति राजपुत्रों की सुमना पर आसक्ति, दम का महानन्द व वपुष्मान से युद्ध, दोनों का वध, दम व सुमना का विवाह), १३४.१८/१३१.१८(वपुष्मान् द्वारा शत्रु दम के पिता नरिष्यन्त का वध), १३६/१३३ (दम का पितृघाती वपुष्मान् से युद्ध व वध), वायु ६९.१६०/ २.८.१५५(मणिवर व देवजनी के गुह्यक पुत्रों में से एक), ७०.३०/ २.९.३० (ऋष्यन्त - पुत्र), ८६.१२/२.२४.१२(नरिष्यन्त - पुत्र, विक्रान्त - पिता), १००.१८/ २.३८.१८ (सावर्णिक मन्वन्तर के २० मुख्य/सुख वर्ग के देवों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.२६४ (दम की प्रशंसा), शिव २.१.१८.५३ (अरिन्दम - पुत्र, पूर्व जन्म में गुणनिधि, अगले जन्म में कुबेर), स्कन्द ४.१.१३ (अरिन्दम - पुत्र, पूर्व जन्म में दुष्ट चरित्र गुणनिधि, दीप दान से कल्याण, अगले जन्म में कुबेर), ५.३.२८.१८(दम की शिवरथ के रथध्वज में स्थिति), हरिवंश १.१०.३२(नरिष्यन्त - पुत्र), लक्ष्मीनारायण १.१६५.१६ (अङ्गिरस व सुरूपा के १० आङ्गिरस पुत्रों में से एक), २.२१७.३९(दम गुण की प्रशंसा), महाभारत वन ३१३.८७(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में मन के दमन का नाम दम होने का उल्लेख), उद्योग ४३.२३(दम के १८ गुणों/दोषों के नाम), ६३.९(विदुर द्वारा दुर्योधन को दम की महिमा का वर्णन), शान्ति १६०(युधिष्ठिर - भीष्म संवाद में दम के महत्त्व का वर्णन), २२०.१(दम के पालन से उपलब्ध गुणों संतोष, अक्रोध आदि का वर्णन), २५१.११(सत्य का उपनिषत् दम व दम का दान होने का उल्लेख), कथासरित् ८.५.८३(विद्याधर, श्रुतशर्मा - सेनानी), १२.३.३० (दमधि : श्रुतधि - पिता, पुत्र के छलपूर्ण व्यवहार से कुपित दमधि द्वारा पुत्र को शुष्क वृक्ष होने का शाप प्रदान, शाप से मुक्ति के उपाय का कथन ), कृष्णोपनिषद १६(उद्धव दम का रूप), द्र. अरिन्दम, किंदम, दुर्दम, श्रीदामा ।dama
Short remarks by Dr. Fatah Singh
जब मन से दुर्भावनाओं का दमन हो जाता है तब वह व्यक्तित्व दम: (घर ) कहलाता है ।
दमघोष गर्ग ७.७+ (चेदि - अधिपति, श्रुतिश्रवा - पति, शिशुपाल - पिता, प्रद्युम्न सेना से पराजय), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५९(श्रुतश्रवा - पति, शिशुपाल - पिता), भागवत ९.२४.३९(श्रुतश्रवा - पति, शिशुपाल - पिता), हरिवंश २.४३ (चेदिराज, कृष्ण व बलराम का मार्गदर्शन ) ; द्र. कामदमन । damaghosha
दमन पद्म ५.१४.३२ (राक्षस दमन द्वारा भृगु - पत्नी का हरण, च्यवन द्वारा भस्म करना), ५.२३+(सुबाहु - पुत्र, राम के अश्व का बन्धन, शत्रुघ्न - सेना से युद्ध), ५.६५.६३(सुबाहु - पुत्र, राम के हयमेध अश्व को पकडना आदि), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६५(वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक), ३.४.२५.९४ (भण्डासुर - सेनानी, कामेशी द्वारा वध), भविष्य ४.६४.१७ (पुरोहित, दमयन्ती को पुन: पति प्राप्ति के लिए आशादशमी व्रत का परामर्श), ४.९०.३६ (अनङ्ग त्रयोदशी व्रत विधि के अन्तर्गत कार्तिक मास में दमन फल के प्राशन का उल्लेख), मत्स्य ४६.१२(वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक), १९६.२(अङ्गिरा व सुरूपा के १० पुत्रों में से एक), लिङ्ग १.२४.२१ (तृतीय द्वापर में शिव का दमन मुनि के रूप में अवतार), वायु २३.१२३(तीसरे द्वापर में ईश्वर का एक अवतार), ९६.१६३/ २.३४.१६३ (वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक), वायु १०६.३६/२.४४.३६ (ब्रह्मा के गयासुर के शरीर पर किए गए यज्ञ का एक मानस ऋत्विज), शिव ३.४.१४(तृतीय द्वापर में शिव द्वारा दमन नाम से अवतार ग्रहण), स्कन्द २.२.४५ (दमन भञ्जिका यात्रा : दमन दैत्य के वध से उत्पन्न तृण, हिरण्यकशिपु की अन्त्रमाला का रूप), ४.२.७४ (भरद्वाज - पुत्र, गर्ग द्वारा दमन को ओंकार के माहात्म्य का कथन), ४.२.९४.२? (भारद्वाज - पुत्र, गर्ग से काशी माहात्म्य का श्रवण), ५.१.५०.२ (दुष्ट राजा, मांस खण्ड शिप्रा में गिरने से मुक्ति), हरिवंश १.३५.५(वसुदेव व रोहिणी - पुत्र), लक्ष्मीनारायण २.१२.३(दमन राजा द्वारा लोमश आश्रम में स्थित कन्याओं के अपहरण का उद्योग, लोमश प्रयुक्त स्तम्भन मन्त्र से जडी भाव को प्राप्ति ), २.५७.७५(यमराज द्वारा दमन असुर का विनाश ) । damana
दमनक अग्नि ८० (दमनक वृक्ष आरोपण विधि ; शिव द्वारा शप्त भैरव का रूप), पद्म ६.८४ (चैत्र शुक्ल द्वादशी को दमनक उत्सव का वर्णन), भविष्य ४.१३३ (दमनक वृक्ष : गन्ध से उन्मत्तता के कारण ब्रह्मा का शाप व वरदान), स्कन्द २.२.३८.११६ (दमनक दैत्य का मत्स्यावतार द्वारा हनन, तृणों का सुगन्धित होना), लक्ष्मीनारयण ३.६३.८९(चैत्र शुक्ल एकादशी को कामदेव के निवास स्थान दमनक वृक्ष के पूजन का कथन), कथासरित् १०.४.१९(शृगाल, पिङ्गलक - मन्त्री ) । damanaka
दमयन्ती गरुड ३.१६.९५(दमयन्ती की अनल से उत्पत्ति, अपर नाम इन्द्रसेना, द्रौपदी से साम्य?), देवीभागवत ६.२६.१७, ६.२७ (सञ्जय व कैकेयी - पुत्री, नारद मुनि पर आसक्ति, वानर मुख नारद से विवाह, नारद द्वारा सुन्दर रूप की प्राप्ति), भविष्य ३.४.१६.७३(आकाशवाणी द्वारा दमयन्ती - पति नल के वास्तविक नल न होकर अनल ब्राह्मण होने का कथन), शिव ३.२८.३०(शिव के वरदान स्वरूप भिल्ली का जन्मान्तर में विदर्भ देश में भीमराज - पुत्री दमयन्ती होना), स्कन्द ३.३.८.२० (दमयन्ती के रूप की विशिष्टता का उल्लेख), ६.१११ (आनर्त्त अधिपति - पत्नी, ब्राह्मण - पत्नियों को सस्पृहा दान से ब्राह्मणों का पतन, ब्राह्मणों के शाप से शिला बनना), लक्ष्मीनारायण १.४९८(चमत्कारपुर के राजा की पत्नी, मकर संक्रान्ति पर विप्र पत्नियों को आभूषण दान करने पर विप्रों का गति भ्रष्ट होना, विप्रों के शाप से शिला बनना, माधवी द्वारा शिला स्पर्श से पुन: रूप प्राप्ति), कथासरित् ९.६.२३९(निषधराज नल तथा विदर्भदेशीय भीमराज - कन्या दमयन्ती की कथा ) । damayantee/damayanti
दमी विष्णु २.४.३८(कुशद्वीप में रहने वाले दमी, शुष्मी, स्नेह और मन्देह नामक चार वर्णों के क्रमश: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र होने का उल्लेख ) ।
दम्पत्ति लक्ष्मीनारायण ३.८८.५(दाम्पत्य धर्म व अधर्म का वर्णन ) ।
दम्भ देवीभागवत ९.२१.३५ (विप्रचित्ति - पुत्र, शङ्खचूड - पिता, दनु वंश), ९.२२.४ (शङ्खचूड - सेनानी, चन्द्रमा से युद्ध), ब्रह्मवैवर्त्त २.१८.३६(विप्रचित्ति दानव का पुत्र), २.१९.२४(दम्भ का चन्द्रमा के साथ युद्ध), ब्रह्माण्ड १.२.१९.६२(दम्भा : कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक), भागवत ४.८.२(मृषा व अधर्म - पुत्र, माया - भ्राता व पति, लोभ व निकृति - पिता), ७.१५.१३(शब्दों के साथ छल का दम्भ नाम), ७.१५.२३(महत् की उपासना द्वारा दम्भ पर जय प्राप्ति का निर्देश), ११.१७.१८(वैश्य वर्ण के प्रकृतिगत गुणों में दम्भहीनता का उल्लेख), मत्स्य २४.३५(आयु के ५ पुत्रों में से एक, पुरूरवा वंश), शिव २.५.२७.१० (दानव, विप्रचित्ति - पुत्र, पुत्र प्राप्ति हेतु तप, विष्णु से वर प्राप्ति, शङ्खचूड नामक पुत्र की प्राप्ति), २.५.३६.८ (शङ्खचूड - सेनानी, विष्णु से युद्ध), वा.रामायण ६.२७.१६ (वानर, राम - सेनानी, सारण द्वारा रावण को दम्भ का परिचय), महाभारत वन ३१३.९५(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में महान् अहंकार के दम्भ होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३३६.१०२(विप्रचित्ति व दनु - पुत्र, शङ्खचूड - पिता), १.३३७.४०(शङ्खचूड - सेनानी, चन्द्र से युद्ध ) । dambha
दम्भोलि कूर्म १.१३.१० (पुलस्त्य - व प्रीति - पुत्र, पूर्व जन्म में अगस्त्य ) । dambholi
दया देवीभागवत ९.१.१०६ (मोह - पत्नी, दया देवी के बिना समस्त लोक की निष्फलता का उल्लेख), नारद १.६६.८८(वामन की शक्ति दयिता का उल्लेख), पद्म २.१२.९८ (भाव - भार्या, धर्म - माता, धर्म के साथ दुर्वासा के समीप गमन, दया की मूर्ति का स्वरूप), ५.८४.५७ ( पुष्प रूप, श्रीहरि की पूजा के आठ पुष्पों में से एक), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१९(कृष्ण की सर्वशक्तिस्वरूपा प्रकृतियों में से एक), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.८९ (मणिपूर चक्र ? की १० शक्तियों में से एक), भागवत ४.१.४९(धर्म की १३ पत्नियों में से एक, दक्ष व प्रसूति - कन्या), मत्स्य १४५.४५ (दया के लक्षण), विष्णुधर्मोत्तर ३.२९२ (दया के महत्त्व का वर्णन), ३.३२१.१४ (दया से आदित्य लोक की प्राप्ति), शिव ५.३४.३१(दया - पुत्रों अर्जुन व पंक्ति विन्ध्य द्वारा मेरु पृष्ठ पर तप का उल्लेख? ) , स्कन्द ५.३.५१.३५(श्रीहरि की पूजा के ८ पुष्पों में से एक ), कृष्णोपनिषद १५(रोहिणी दया का रूप ) ।dayaa
दरद ब्रह्माण्ड १.२.१६.४९(भारत के उत्तर के देशों में से एक), १.२.१८.४७ (सिन्धु नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), १२१.४६(सिन्धु नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), १४४.५७(विष्णु के अवतार प्रमति द्वारा हत जनपद वासियों में से एक), हरिवंश २.४३.५९ (बलराम द्वारा दरद का मुसल से वध ) । darada
दरिद्र ब्रह्म २.६७ (दरिद्रा का लक्ष्मी से ज्येष्ठता सम्बन्धी विवाद, गङ्गा द्वारा लक्ष्मी के पक्ष में निर्णय), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६७(सारण के पुत्रों में से एक), भागवत १०.१०.१३ (परपीडानुभव तथा अन्त:करण की शुद्धि में धनी की अपेक्षा दरिद्र की श्रेष्ठता का प्रतिपादन), ११.१९.४४(असन्तुष्ट का दरिद्र रूप में उल्लेख), मत्स्य २१.३ (सुदरिद्र : ब्राह्मण, चार पुत्रों द्वारा धन प्राप्ति का उपाय बताकर तप हेतु निष्क्रमण, ब्रह्मदत्त प्रसंग), वायु ९६.१६५/२.३४.१६५(सारण के ११ पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.४१२.८( दरिद्रता : वर्णसङ्कर की ४ पुत्रियों में से एक, दुःसह - पत्नी, दरिद्रता के स्व भगिनियों बुभुक्षा, कलहा आदि के साथ गृहों में निवास का वर्णन ) । daridra
दरी - ब्रह्माण्ड २.३.७.१७८(दरीमुख : श्वेता व पुलह के १० वानर पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.५.३४(दरीश्रवा : दैत्य, बाल प्रभु को मारने का उद्योग ) ।
दरुण भागवत १.४.२२( सुमन्तु-पिता)
दर्दुर भागवत २.७.३४(बकासुर का अपर नाम), वायु ४५.९०(भारत के ७ कुल पर्वतों के निकटवर्ती पर्वतों में से एक), स्कन्द ५.२.८४ (कन्या प्राप्ति के लिए परीक्षित् द्वारा वापी में दर्दुरों की हत्या, वृद्ध दर्दुर का परीक्षित् से संवाद, पूर्व जन्म की कथा), लक्ष्मीनारायण १.१५५.५४ (अलक्ष्मी की दर्दुर सदृश जिह्वा का उल्लेख), २.१४.६५(रुण्ढिका राक्षसी द्वारा दर्दुरी रूप धारण), ४.६३.५१(दर्दुर नगर निवासी धर्मभट नामक अमात्य को हरिकथा श्रवण से मुक्ति प्राप्ति की कथा ) , ४.८१.१४ (दर्दुर रत्न : नन्दिभिल्ल राजा द्वारा नागविक्रम राजा को प्रेषित दूत का नाम), कथासरित् १२.४.७३(दर्दुरक : संगीताचार्य, मेघमाली नामक राजा की पुत्री हंसावली को नृत्य की शिक्षा प्रदान करना ) ; द्र. मण्डूक । dardura
दर्प ब्रह्मवैवर्त्त १.९.१०(चन्द्रमा व तुष्टि - पुत्र), ४.४७+ (इन्द्र, रवि, अग्नि आदि के दर्प का भङ्ग), भागवत ४.१.५१(उन्नति व धर्म - पुत्र), मार्कण्डेय ५०.२५/४७.२५ (धर्म व श्री - पुत्र), कथासरित् ८.१.६०(दर्पभङ्ग : विलासिनी - भ्राता, सूर्यप्रभ - श्याला), ८.२.३४९ (दर्पकमाला : देवल - कन्या, महल्लिका - सखी), ८.५.५३ (दर्पवाह : निकेत पर्वत का राजा, श्रुतशर्मा के अनेक महारथियों में से एक ), कृष्णोपनिषद १४(दर्प कुवलयापीड होने का उल्लेख ) ।darpa
दर्पण ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३१(नेत्र दीप्ति हेतु दर्पण दान का निर्देश), ४.५९.४६(काम – पत्नी के दर्पण की श्रेष्ठता का उल्लेख), भविष्य १.८.५८ (पुत्र द्वारा दर्पण रूपी असि से कारूष राजा के वध का उल्लेख), भागवत ६.५.१७ (२५ तत्त्वों के पुरुष के अद्भुत दर्पण होने का उल्लेख), मत्स्य १५४.४४७(पार्वती से विवाह हेतु शिव शृङ्गार के समय दर्पण की स्थानपूर्ति हेतु समुद्रों की उपस्थिति), स्कन्द २.२.२५.१४(हस्त तल में नित्य दर्पण की स्थिति से ताल होने का कथन), ४.१.३३.९६ (कलावती द्वारा चित्रपट देखने पर पूर्व जन्म की स्मृति ), कथासरित् ९.३.९१(वीरवर के करतल में चर्म दर्पण का उल्लेख) । darpana
दर्भ गरुड २.२.२७(आतुर हेतु दर्भ प्रशंसा - मृत्युकाले क्षिपेद्दर्भान्करयोरातुरस्य च । दर्भैस्तु क्षिप्यते योऽसौ दर्भैस्तु परिवेष्टितः ॥), २.१९.१७/२.२९.१८ (दर्भ की विष्णु के लोमों से उत्पत्ति, महिमा - दर्भा मल्लोमसम्भूतास्तिलाः स्वेदसमुद्भवाः ।), २.२९.२०(दर्भ का कुश से एक्य, दर्भ के ३ भाग - अपसव्यादितो ब्रह्मा दर्भमध्ये तु केशवः ।दर्भाग्रे शङ्करं विद्यात्त्रयो देवाः कुशे स्थिताः ॥), भागवत १२.१.६(दर्भक : अजातशत्रु - पुत्र, अजय - पिता, कलियुगी राजाओं में से एक), मत्स्य २४८.६८(यज्ञवराह के दर्भलोमा होने का उल्लेख - अग्निजिह्वो दर्भलोमा ब्रह्मशीर्षो महातपाः।), वायु ६.१६ (दर्भ का वराह के रोमों से साम्य - अग्निजिह्वो दर्भरोमा ब्रह्मशीर्षो महातपाः ।।), ६५.१०४/२.४.१०४(अङ्गिरा व सुरूपा के १० पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.१३९.१२(स्वेद से तिल तथा रोम से दर्भ की उत्पत्ति), ३.५६.९(अग्नि की मूर्ति में दर्भ के श्मश्रु होने का उल्लेख - श्मश्रु तस्य विनिर्दिष्टं दर्भाः परमपावनम् ।।), शिव ३.५.२९(दार्भायणी : २१वें द्वापर में शिव - अवतारी दारुक के ४ शिष्यों में से एक), स्कन्द ३.१.७.५९ (सेतु की पश्चिम कोटि का दर्भशय्या नाम - सेतोस्तु पश्चिमा कोटिर्दर्भशय्या प्रकीर्तिता ।। ), ५.३.१४६.९१ (अस्माहक तीर्थ में स्नान करके दर्भग्रन्थि बांधने का निर्देश - स्नात्वा तु विमले तोये दर्भग्रन्थिं निबन्धयेत् । मस्तके बाहुमूले वा नाभ्यां वा गलकेऽपि वा ॥ ), ६.२५२ .३८(चातुर्मास में केतु की दर्भ में स्थिति का उल्लेख - केतुना स्वीकृतो दर्भो याज्ञिकेयो महाफलः॥), वा.रामायण ५.३८.३०(काक द्वारा सीता पर चञ्चु से आघात करने पर राम द्वारा ब्रह्मास्त्र मन्त्र से अभिमन्त्रित दर्भ का काक पर प्रयोग - स तं प्रदीप्तं चिक्षेप दर्भं तं वायसं प्रति । ततस्तं वायसं दर्भः सो ऽम्बरे ऽनुजगाम ह ।।), लक्ष्मीनारायण १.७३.३४(दर्भ के मूल, मध्य व अग्र में त्रिदेवों की स्थिति - दर्भमूले स्थितो ब्रह्मा दर्भमध्ये तु केशवः । दर्भाग्रे शंकरश्चास्ते त्रयो देवाः कुशे स्थिताः ।), १.४४१.९१(वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु केतु के दर्भ स्वरूप होने का उल्लेख - शनैश्चरः शमीवृक्षो राहुर्दुर्वात्मकोऽभवत् । केतुर्दर्भस्वरूपोऽभूत्तथा फलद्रुमोऽपि सः ।।), ४.२८.१००(निगडभ्रम कैवर्त्त के ज्ञानदर्भि, प्रभादर्भि आदि ५ पुत्रों के नाम - पुत्राः पञ्च ज्ञानदर्भिः प्रभादर्भिर्विदर्भिकः । विष्णुदर्भिः कृष्णदर्भिस्त्वेते भागवतोत्तमाः ।।), कथासरित् १.५.११०(चाणक्य ब्राह्मण द्वारा दर्भ उन्मूलन हेतु भूमि खनन का उल्लेख - दर्भमुन्मूलयाम्यत्र पादो ह्येतेन मे क्षतः ।। ) ; द्र. विदर्भ, वृषादर्भि, वैदर्भी । darbha
दर्भि लक्ष्मीनारायण ४.२८.१०० (वैष्णव भक्त कैवर्त्त के ज्ञानदर्भि, प्रभा दर्भि आदि ५ पुत्रों का उल्लेख - पुत्राः पञ्च ज्ञानदर्भिः प्रभादर्भिर्विदर्भिकः । विष्णुदर्भिः कृष्णदर्भिस्त्वेते भागवतोत्तमाः ।।) ।
दर्व ब्रह्माण्ड १.२.१६.६७(विन्ध्य पर्वत के आश्रित जनपदों में से एक), २.३.७४.१८२०(दर्वा : राजा उशीनर की ५ पत्नियों में से एक, सुव्रत - माता), मत्स्य ११४.५६(विन्ध्य पर्वत के आश्रित देशों में से एक), वायु ४५.१३६(वही),
९९.१९/२.३७.१९(राजा उशीनर की ५ पत्नियों में से एक, सुव्रत - माता ) । darva
दर्श गर्ग ७.२८.२६ (कालिन्दी - पुत्र), ब्रह्माण्ड २.३.३.६(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट १२ जयदेवों में से एक), २.३.४.२(वही), भागवत ६.१८.३ (धाता व सिनीवाली - पुत्र), १०.६१.१४(कृष्ण व कालिन्दी के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य ४८.१६(दर्शा : उशीनर की ५ पत्नियों में से एक, सुव्रत - माता), १४१.४२(अमावास्या को चन्द्र व सूर्य द्वारा एक दूसरे का दर्शन करने से दर्श नाम प्रथित होने का उल्लेख), वायु २१.६७/१.२१.६१ (२७वें भाव कल्प के दर्श नाम पडने के हेतु का कथन : ब्रह्मा द्वारा अदृश्य सूर्य को सम्पूर्णता से देखने के कारण दर्श नाम की सार्थकता), ५६.५२ (दर्श की वषट् क्रिया हेतु अमावास्या काल का निर्धारण), ६६.६/२.५.६(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट १२ जयदेवों में से एक), ६७.५/२.६.५(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट १२ जयदेवों में से एक, ब्रह्मा द्वारा शाप ) । darsha
दर्श - पूर्णमास वायु २१.६७(भाव कल्प में सूर्य के संदर्भ में दर्श व चन्द्रमा के संदर्भ में पौर्णमास की व्याख्या), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३४(मूर्ति में न्यास के अन्तर्गत नेत्रों में दर्शपूर्ण का न्यास ) ।
References on Darshapurnamaasa
दर्शन ब्रह्मवैवर्त्त ४.७६ (शुभ - अशुभ दर्शन व उसका फल), ब्रह्माण्ड २.३.७.१२५ (दर्शनीय : यक्ष , पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ५.३.१५९.३६(पित्त से दर्शन शक्ति बनने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ५.९३ (जीवन्मुक्त की समदर्शन स्थिति), महाभारत अनुशासन ९८.३५(पुष्पों के दर्शन से यक्षों - राक्षसों की तृप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१४३.४६ (त्रेता में दर्शन से सृष्टि होने का उल्लेख), ४.१०१.५ (दर्शन द्वारा सृष्टि का कथन, त्रेता में दर्शन द्वारा सृष्टि ) ; द्र. सुदर्शन । darshana
दल ब्रह्माण्ड १.२.३५.९४(प्रत्यूष - पुत्र, देवर्षियों में से एक), २.३.६३.२०४ (पारियात्र - पुत्र, बल - पिता, कुश वंश), वायु ८८.२०४/२.२६.२०४(पारियात्र - पुत्र, बल - पिता, कुश वंश ) ; द्र. विदल । dala
दवशद शिव ३.५.११(१४वें द्वापर में शिव - अवतार गौतम के ४ पुत्रों में से एक )
दशग्रीव मत्स्य १६१.८१(हिरण्यकशिपु की सभा का एक असुर), वराह २१६(रावण का नाम, शंकर उपासना से त्रैलोक्य विजय रूप वर की प्राप्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१८६ (दशग्रीवा : शक्र पीडक, स्त्री रूपी विष्णु द्वारा वध), वा.रामायण ७.९.२९(विश्रवा व कैकसी - पुत्र, कुम्भकर्ण, विभीषण व शूर्पणखा - भ्राता, दशग्रीवा से युक्त होकर जन्म लेने पर पिता विश्रवा द्वारा दशग्रीव नामकरण, दशग्रीव के जन्म पर प्रकृति के उत्पात का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.६७(धर्म सावर्णि नामक एकादश मनु के काल में दशग्रीव नामक महादैत्य को वश में करने के लिए नारी रूपवान् श्री हरि के अवतार का कथन ) । dashagreeva/ dashagriva
दशमी अग्नि १८६ (दशमी व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य - दशम्यामेकभक्ताशी समाप्ते दशधेनुदः ॥ दिशश्च काञ्चनीर्दद्याद्ब्राह्मणाधिपतिर्भवेत् ।), गरुड १.११६.६ (दशमी को यम व चन्द्रमा की पूजा का उल्लेख - दुर्गाष्टम्यां नवम्यां च मातरोऽथ दिशोऽर्थदाः । दशम्यां च यमश्चन्द्र एकादश्यामृषीन्यजेत् ॥), १.१३५.३ (दिग्दशमी व्रत- दशम्यामेकभक्ताशी समान्ते दशधेनुदः । दिशश्च काञ्चनीर्दत्त्वा ब्रह्माण्डाधिपतिर्भवेत् ॥), गर्ग २.१४.१३/२.११.१२(आश्विन् शुक्ल दशमी को नीलकण्ठ व मयूर के दर्शन के महत्त्व - तेषां तु दर्शनं पुण्यं सर्वकामफलप्रदम् । शुक्लपक्षे मैथिलेंद्र दशम्यामाश्विनस्य तत् ॥), नारद १.८८.१५८(दशमी का स्वरूप - इत्येषा दशमी नित्या प्रोक्ता ते कुलसुन्दरी ॥ नित्यानित्यां तु दशमीं त्रिकुटां वच्मि सांप्रतम् ॥), १.११९ (दशमी तिथि व्रत व पूजा का वर्णन : विजय दशमी, दशहरा, यम, विश्वेदेव, अङ्गिरसों, अवतारों की पूजा आदि), २.४३.४२ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी : गङ्गा पूजन विधि , दशहरा), वराह २९.१४ (दशमी को दश दिशाओं की उत्पत्ति की कथा ; दशमी तिथि का दिशाओं को दान, दिशाओं द्वारा भर्तृ प्राप्ति, दशमी को दधिभक्षण का माहात्म्य), ३९.२६(मार्गशीर्ष मास की दशमी से प्रारम्भ कर द्वादशी तक करणीय मत्स्यद्वादशी व्रत के विधान एवं फल का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१७६ (दशमी में करणीय विश्वेदेव, अङ्गिरा व्रतों का वर्णन), ३.२२१.७५(दशमी को १० विश्वेदेवों, १० दिशाओं तथा धर्म की पूजा का निर्देश), स्कन्द ४.१.२७.१७९ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी : गङ्गा दशहरा स्तोत्र), ५.१.६३.५३ (आश्विन् शुक्ल दशमी में अष्टसिद्धिशमी देश में गणेश्वर पूजा का माहात्म्य), ५.२.७४.५८(दशमी में राजस्थलेश्वर तीर्थ के दर्शनादि का माहात्म्य), ५.३.२६.११९(दशमी में इक्षुदण्ड रस का दान व उसका फल - इक्षुदण्डरसं देवि दशम्यां या प्रयच्छति ॥ लोकपालान्समुद्दिश्य ब्राह्मणे व्यङ्गवर्जिते ।), ५.३.५१.५(शूलभेद तीर्थ में आषाढ दशमी में श्राद्ध की प्रशस्तता, मन्वन्तरादि तिथियों में एक), ५.३.१८०.५४(सरस्वती नदी का आश्विन् दशमी में दशाश्वमेध तीर्थ में पापप्रक्षालन हेतु आगमन), लक्ष्मीनारायण १.२७५(विभिन्न मासों की दशमी तिथियों के महत्त्व का वर्णन), १.३०२(अधिमास दशमी व्रत का माहात्म्य : पृथिवी का भगवान की सेविका बनना व पृथिवी पर भार रूप प्रजा का नष्ट होना), १.३१७.६७(अधिमास दशमी व्रत का माहात्म्य : राधा - पुत्री विकुण्ठा का ६/१० रूप धारण कर पुरुषोत्तम - पत्नी बनने का वृत्तान्त), २.२७.६२ (दशमी को सर्पों का शयन - कात्यायनी तथाऽष्टम्यां नवम्यां कमलालया । दशम्यां भुजगेन्द्राश्च स्वपन्ति वायुभोजनाः ।।), २.२११(श्री हरि द्वारा दशमी में अध्वर देवता का पूजन, होमादि), २.२४६(सोमयज्ञ के तृतीय दिन दशमी में करणीय यज्ञ विधान), ३.६४.११(तिथि देवताओं के संदर्भ में यम के दशमी तिथि के देवता होने का उल्लेख), ३.१०३.७ (शुक्ल पक्ष की विभिन्न तिथियों में दान फलों के संदर्भ में दशमी को दान से कामधेनु युक्त होने का उल्लेख - दशम्यां तु तथा दत्वा कामधेनुयुतो भवेत् । एकादश्यां तथा दत्वा रूप्यशेवधिमान् भवेत् ।।), ३.१३८.२२ (आषाढ शुक्ल दशमी को आर्द्रानन्द रमा नारायण व्रत का वर्णन ) । dashami/dashamee
दशरथ गणेश २.२८.११ (पुत्रार्थ तप करते समय दशरथ द्वारा विनायक की वरद नामक मूर्ति स्थापित करने का उल्लेख), पद्म ६.३३ (दशरथ द्वारा रोहिणी शकट के भेदन को उद्धत शनि का वर्जन, शनि - स्तोत्र), ६.१०७.२३(विष्णु दूतों का धर्मदत्त को सूर्यवंशी दशरथ होने का वर प्रदान), ब्रह्म २.५३(असुरों से युद्ध में दशरथ द्वारा देवों की सहायता, श्रवण कुमार वध से ब्रह्महत्या की प्राप्ति, नरक गमन, राम द्वारा गौतमी स्नान से दशरथ की नरक से मुक्ति), ब्रह्माण्ड २.३.३७.३१(राम - पिता के रूप में दशरथ का उल्लेख), २.३.६३.१८४(रघु - पुत्र, राम आदि के पिता), २.३.७०.४३(नवरथ - पुत्र, एकादशरथ - पिता), ३.४.४०.८८(अयोध्याधिपति, सन्तान प्राप्ति हेतु वसिष्ठ मुनि से परामर्श, कामाक्षी देवी का पूजन, देवी - कृपा से पुत्र प्राप्ति का वर्णन), भविष्य ४.८३.९५(धरणी व्रत के अनुष्ठान से पुत्रहीन राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति का कथन), भागवत ९.९.४१(मूलक - पुत्र, ऐडविड - पिता), ९.२४.४(नवरथ - पुत्र, शकुनि - पिता), मत्स्य ४८.९४(सत्यरथ - पुत्र, अपर नाम लोमपाद, चतुरङ्ग व शान्ता - पिता ; तुलनीय : वायु ९९.१०३/२.३७.१०३ में धर्मरथ - पुत्र चित्ररथ/लोमपाद), २७२.२५( मौर्य वंश का एक राजा, शक - पुत्र), वराह ३६.७(सत्ययुगीन कान्त नामक राजा की त्रेता युग में दशरथ नाम से प्रसिद्धि), ४५.६(पुत्रहीन दशरथ द्वारा पुत्र प्राप्ति की कामना से रामद्वादशी व्रत का अनुष्ठान, राम रूप में पुत्र की प्राप्ति), वायु ९५.४२/२.३३.४२(नवरथ - पुत्र, एकादशरथ - पिता), विष्णु ४.४.७५(मूलक - पुत्र, इलिविल - पिता), ४.४.८६ (दशरथ वंश का वर्णन), ४.१२.४१(नवरथ - पुत्र, शकुनि - पिता, विदर्भ वंश), ४.२४.३०(सुयशा - पुत्र, संयुत - पिता, मौर्य वंश), स्कन्द २.४.२५.२४ (पूर्व जन्म में धर्मदत्त विप्र), २.८.७ (पुत्र प्राप्त्यर्थ दशरथ कृत पुत्रकामेष्ट यज्ञ का वर्णन), ६.९६ (अजापाल - पुत्र, शनि का रोहिणी शकट भेदन से वर्जन करना), ६.९८ (पुत्रहीन होने के कारण शक्र द्वारा दशरथ का अपमान, दशरथ द्वारा पुत्रार्थ तप, विष्णु द्वारा वर), ७.१.४९ (दशरथ द्वारा रोहिणी शकट भेदन को उद्धत शनि का वर्जन, स्तुति, वर प्राप्ति), ७.१.१७१ (दशरथ द्वारा स्थापित लिङ्ग का माहात्म्य), वा.रामायण १.७.२० (दशरथ के आठ मन्त्रियों के गुणों का वर्णन), २.९.१५ (शम्बर - देवगण युद्ध में दशरथ द्वारा देवों की सहायता, कैकेयी को वर), २.६४.१३ (सरयू तट पर वैश्य जातीय तापस / श्रवण कुमार के वध का प्रसंग), ६.११९.७ (रावण वध के पश्चात् राम - लक्ष्मण से मिलन हेतु दशरथ का इन्द्रलोक से आगमन), लक्ष्मीनारायण १.४२५.७(धर्मदत्त विप्र द्वारा कलहा को पुण्यदान करने से जन्मान्तर में दशरथ बनना तथा कलहा का कैकेयी बनना), १.४९६.५४(दशरथ द्वारा रोहिणी की शकट का भेदन करने वाले शनि का वर्जन, शनि से वर प्राप्ति), १.४९६.७०(दशरथ की इन्द्र से मैत्री, इन्द्र द्वारा अपुत्रवान् दशरथ के आसन का प्रक्षालन सुनकर दशरथ द्वारा पुत्र प्राप्ति का उद्योग), महाभारत भीष्म ६२.२१(कौरव पक्ष के १० महारथियों का पाण्डव पक्ष के १० महारथियों से युद्ध ) । dasharatha
Comments on Dasharatha by Dr. Fatah Singh
प्राणमय कोश का पुरुष , जो पांच ज्ञानेन्द्रियों और पांच कर्मेन्द्रियों से युक्त है , दशरथ राजा बन सकता है यदि इन दसो को उसने श्रेष्ठ बना लिया हो । जब मनोमय कोश में विज्ञानमय की शक्ति प्रविष्ट होती है , अन्य शब्दों में, जब मनुष्य की चेतना एक इकाई बन जाती है , तब वह राम रूप पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करता है । आनन्दमय कोश का आत्मा राम है , विज्ञानमय कोश का आत्मा शृङ्गी (सत् और चित् उसके दो शृङ्ग हैं) है । मनोमय कोश की शान्त बुद्धि राजा की कन्या शान्ता है । उसी शान्ता का विवाह शृङ्गी ऋषि से होता है जो पुत्रेष्टि यज्ञ सम्पन्न करता है । आनन्दमय कोश का ईश्वर चार रूपों में दशरथ अर्थात् मनोमय पुरुष के यहां अवतरित होता है ।
दशहरा नारद १.११९.८ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी : दशहरा लग्न हेतु दश योग, दस पाप हरण से दशहरा नाम, जाह्नवी में स्नान का महत्त्व), २.४३.४२ (गङ्गा दशहरा : ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, गङ्गा पूजा विधि), स्कन्द ४.१.२७.१३५ (गङ्गा दशहरा स्तोत्र व माहात्म्य), ४.२.५२.९० (दशहरा तिथि को दशाश्वमेध तीर्थ में स्नान का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.२७५.५(ज्येष्ठ शुक्ल दशमी का गङ्गा दशहरा नाम ) । dashahara
दशानन ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२४ (दशानन - वधकर्ता कृष्ण से आग्नेय दिशा में रक्षा की प्रार्थना), वामन ५७.८५ (कुटिला द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त दस गणों में से एक ) । dashaanana
दशाफल नारद १.११७.१५ (दशाफल व्रत विधि व माहात्म्य ) ।
दशार्ण अग्नि ११७.५४(एक देश), गर्ग ७.२७.८ (दशार्ण देश के शुभाङ्ग राजा द्वारा प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करना, दशार्ण तीर्थ में स्नान से प्रह्लाद का ऋण से मुक्त होना), ब्रह्माण्ड १.२.१६.६४(विन्ध्य पृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), भविष्य ४.७५.१९(दशार्ण देश के पश्चिम स्थित मरु देश में वणिक् व प्रेत का वार्तालाप, वणिक् द्वारा गया में किए गए श्राद्ध से प्रेतों की मुक्ति), वायु ४५.१३२ (विन्ध्य पृष्ठ के निवासियों के जनपदों में से एक), स्कन्द ३.३.१०(ऋषभ शिवयोगी की सेवा से मन्दर नामक विषयी ब्राह्मण का दशार्ण अधिपति वज्रबाहु के पुत्र रूप में जन्म), ३.३.१३(दशार्ण देशस्थ वज्रबाहु की मगधराज से पराजय तथा राज्य - च्युति), ६.१४(गोरक्षक के दशार्णाधिपति के कुल में जन्म का वर्णन), ६.१९६, ६.२६६(चोर का पुण्य प्रभाव से दशार्णाधितिपति के कुल में जन्म, राज्य प्राप्ति), हरिवंश १.२१.१८(वाहदुष्ट, क्रोधन प्रभृति ७ कौशिक पुत्रों की दशार्ण देश में व्याध रूप में उत्पत्ति), योगवासिष्ठ ३.३७.५२ (दशार्ण देश की सेना का कामरूप देश की भूत - पिशाच सेना से युद्ध ) । dashaarna/ dasharna
दशार्णा ब्रह्माण्ड १.२.१६.३०(ऋक्षवान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), २.३.१३.१००(श्राद्ध हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक), मत्स्य २२.३४(उत्तम पितृ तीर्थों में से एक), वायु ४५.९९(ऋक्षवान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ) ।
दशार्ह भागवत ९.२४.३(निर्वृति - पुत्र, व्योम - पिता, विदर्भ वंश), मत्स्य ४४.४० (निर्वति/विदूरथ - पुत्र, व्योम - पिता, विदर्भ वंश), वायु ९५.४०/ २.३३.४०(निर्वति - पुत्र, व्योमा - पिता, विदर्भ वंश), हरिवंश २.६३.२३(द्वारका में यादवों की सभा के दाशार्ही नाम का उल्लेख ) । dashaarha/ dasharha
दशाश्वमेध पद्म ३.२०.२० (दशाश्वमेध तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.२६.१२(कुरुक्षेत्र में दशाश्वमेध तीर्थ के माहात्म्य का कथन), ब्रह्म २.१३ (भौवन राजा द्वारा गौतमी तट पर अन्न दान से निर्मित तीर्थ), स्कन्द २.३.२.२४ (दशाश्वमेधिक तीर्थ का वर्णन ; प्रयाग में दशाश्वमेध तीर्थ में अग्नि द्वारा ऋषियों से सर्वभक्षित्व दोष से मुक्ति के उपाय की पृच्छा), ४.२.५२(दिवोदास - पालित काशी में ब्रह्मा द्वारा अनुष्ठित दस यज्ञों का स्थान), ४.२.५२.६९ (ब्रह्मा द्वारा काशी में दशाश्वमेध तीर्थ की स्थापना का वृत्तान्त, दशाश्वमेध का माहात्म्य ), ४.२.८३.८३ (दशाश्वमेध तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.१७ (दशाश्वमेध तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.१८० (दशाश्वमेध तीर्थ का माहात्म्य : गौरमुख द्विज का तप, वाजिमेध के पश्चात् भोजन की कथा, सरस्वती का स्नानार्थ आगमन), ५.३.२३१.२०(तीर्थ संख्या के अन्तर्गत २ दशाश्वमेध तीर्थों का उल्लेख), ७.१.२३४ (दशाश्वमेध तीर्थ का माहात्म्य, भरत द्वारा दस अश्वमेधों का अनुष्ठान), लक्ष्मीनारायण १.८४.४७(शिव द्वारा दिवोदास के राज्य में छिद्रान्वेषण हेतु प्रेषित ब्रह्मा का दशाश्वमेधेश लिङ्ग की स्थापना कर काशी में ही निवास )१.३४५.८(मथुरा के पश्चिम् में दशाश्वमेध तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) । dashaashvamedha/ dashashvamedha
दशाह शिव ६.२१ (यति के अन्त्येष्टि कर्म की दशाहपर्यन्त विधि का वर्णन ) । dashaaha
दस्यु पद्म ७.१९(भगवदर्थ वस्तु समर्पण के माहात्म्य के अन्तर्गत दस्युवृत्तिधारी उर्वीश ब्राह्मण का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०८(दस्युमान् : ३३ श्रेष्ठ आङ्गिरसों में से एक, मन्त्रकृत् ऋषि), भागवत ५.१४.१(६ इन्द्रियों की दस्यु संज्ञा), विष्णु ५.३८.१३(यदुवंशी स्त्रियों की रक्षा करते हुए अर्जुन की दस्युओं द्वारा पराजय ) ; द्र. त्रसद्दस्यु। dasyu
दस्र द्र. अश्विनौ, नासत्य ।
दहन मत्स्य ५१.३४ (महिमान अग्नि - पुत्र, दहन द्वारा पाक यज्ञों में हवि का भक्षण, अद्भुत - पिता), १७१.३९(११ रुद्रों में से एक), स्कन्द ७.४.१७.२३ (दहनप्रिय : कृष्ण देव के निर्ऋति दिशा के रक्षकों में से एक ) । dahana
दह्राग्नि भागवत ४.१.३६(अगस्त्य के जन्मान्तर में दह्राग्नि होने का उल्लेख ) ।
दाक्षी मत्स्य १९६.२५(आङ्गिरस कुल के एक ऋषि, त्र्यार्षेय प्रवर), १९७.६(अत्रि वंशज एक प्रवर ) ।
दाडिम नारद १.९०.७१(दाडिम द्वारा देवी पूजा से निधि सिद्धि का उल्लेख), पद्म १.२८ (दाडिम वृक्ष : भार्याप्रद), स्कन्द २.२.४४.६(संवत्सर व्रत में श्री हरि को प्रदान करने योग्य फलों में से एक ) । daadima
दात वायु ९६.१३७(निदात : शूर के १० पुत्रों में से एक ) ।
दाता ब्रह्माण्ड ३.४.१.१९(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० सुखदेव गण में से एक), वायु १००.१८/२.३८.१८(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर के २० मुख्य देव गण में से एक ) ।
दात्यायनी स्कन्द ५.३.१६९.७(राज्ञी, देवपन्न - भार्या, कामप्रमोदिनी - माता ) ।
दान अग्नि ६४.४४ (कूप प्रतिष्ठा के अन्तर्गत तोयदान से सर्वदानों का फल प्राप्त करने का उल्लेख), ६६.२८ (मठदान से स्वर्ग व इन्द्रलोक, प्रपादान से वरुण लोक तथा गृहदान से स्वर्गलोक प्राप्ति का उल्लेख), १६४ (धेन्वादि दान), १८८.६ (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी में लवण दान से सर्व रस प्रदान फल की प्राप्ति का उल्लेख), १८८.९(फाल्गुन कृष्ण द्वादशी में ब्राह्मणों को तिल दान का उल्लेख), १९०.२ (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को यव व व्रीहियुक्त पात्र दान का निर्देश), १९१.८ (त्रयोदशी तिथि के वार्षिक व्रतों की समाप्ति पर स्वर्ण निर्मित शिवलिङ्ग तथा गौ, शय्या, छत्र, कलश, पादुका तथा रसपूर्ण पात्र दान का उल्लेख), १९६.१२ (नक्षत्र व्रत में कृशरा व पायस दान का निर्देश), १९६ (अन्न दान), १९८.२(वैशाख में पुष्प लवण त्याग से गोदान फल की प्राप्ति का उल्लेख), १९८.३ (आषाढ आदि चातुर्मास में वैष्णव होकर प्रात: स्नान से गुड धेनु दान के फल की प्राप्ति का उल्लेख), १९९.१(वर्षा में इन्धन आदि दान से अग्निव्रती होने का कथन), २०० (द्वीप दान व्रत का माहात्म्य), २०४(मासोपवास व्रत की समाप्ति पर वस्त्र, पात्र, आसन, छत्र आदि विविध वस्तुओं के दान का माहात्म्य),२०८.६ (दान के संकल्प का मन्त्र), २०९ (दान के इष्ट व पूर्त भेद, प्रशस्त दानकाल, दान पात्र विचार तथा दान विधि का वर्णन), २१० (१६ महादानों के नाम, १० मेरु दान, १० धेनु दान, विविध गो दान विधि व माहात्म्य), २११ (विविध द्रव्य दानों की महिमा), २१२ (१२ प्रकार के मेरु दानों का वर्णन), २१३(पृथिवी दान तथा गो दान की महिमा), कूर्म २.२६ (भूमि, तिल आदि दान का माहात्म्य व फल), गरुड १.५१ (विविध दानों का फल), १.९८ (दान की विधि व महिमा), २.४.४(गो, भू, तिल आदि १० दानों के नाम), २.२१/२.३० (नाना दान फल का निरूपण), २.३०.१३(तिल, लौह, हिरण्य, कार्पास आदि दान के फलों का कथन), २.३१(मृतक की सद्गति हेतु दान), २.४२.५(गावः, पृथिवी, सरस्वती रूप में तीन अतिदानों के उल्लेख), गर्ग ६.१९.२४ (द्वारका मण्डल के अन्तर्गत दान तीर्थ का माहात्म्य), देवीभागवत ९.२९+ (विभिन्न दानों के फलों का कथन : यम - सावित्री संवाद), नारद १.१२.१ (दान पात्र - अपात्र निर्णय ; सनक द्वारा नारद को उपदेश, उत्तम, मध्यम व अधम दान प्रकार), १.१३ (अन्न, रत्न व पशु आदि दानों के फल का वर्णन), १.४३.१००(दान के २ प्रकारों का कथन), १.१२४.६५ (कार्तिक पूर्णिमा तिथि को क्षीर सागर दान की विधि), २.२२.६७ (चातुर्मास्य व्रत के उद्यापन में दान), २.४१.४५ (गङ्गा तट पर विविध दानों का माहात्म्य), २.४२.५ (गुड धेनु दान विधि, दस प्रकार की धेनुओं का दान), २.४४.५० (गया में पिण्ड दान का माहात्म्य, वणिक् द्वारा पिण्डदान से प्रेतगणों का उद्धार), २.४५.२१(गया में पिण्डदान की विधि), पद्म १.१८.६९(पुष्कर के अन्तर्गत सरस्वती में स्नान दानादि की प्रशंसा), १.२१.८०(गुडादि दशविध धेनुदान तथा धान्यादि दशविध शैलदान की विधि), १.३४+ (पुष्करादि तीर्थ में नानाविध दान की महिमा), १.५०.२७ (चन्द्र- सूर्य ग्रहण के समय दान का महत्त्व), १.५७ (जल दान का माहात्म्य), १.५८.५२ (धर्म घट दान से प्रपादान फल की प्राप्ति), १.५९.६५(घृतप्रदीप, धूप आदि विविध दानों का महत्त्व), १.७७.४८ (तुलादि विविध दानों की महिमा), १.८०.२९ (चन्द्र को उद्देश्य कर दिए गए दान का महत्त्व), १.८२.३९(कृतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ तथा कलियुग में दान का महत्त्व), २.१३.९(दान के स्वरूप का कथन), २.३९.४० (दान का माहात्म्य, दानोपयोगी काल, देश, दान के पात्र व अपात्र का वर्णन), २.६९.१९(अन्न दान की प्रशंसा ; प्रेत हेतु प्रशस्त ८ दानों के नाम), २.९४.३८(जैमिनी द्वारा सुबाहु को दान के महत्त्व का कथन), २.९५.२४(दान की श्रेष्ठता), ३.३१ (पुण्य दान : स्वकृत सुकृत दान से विकुण्डल द्वारा श्रीकुण्डल का उद्धार), ३.५७ (दान धर्म तथा विविध दानों का माहात्म्य), ४.१०(चन्द्र व सूर्य ग्रहण में दान का महत्त्व), ४.१६(आश्विन् पूर्णिमा में श्रीहरि को लाजादि दान का महत्त्व), ४.२० (विविध दानों का फल), ४.२४(विविध दान माहात्म्य व फल का वर्णन), ५.९७(विविध दानों का वर्णन), ५.११४ (कलियुग में दान की प्रशंसा), ६.२६ (अन्न दान की प्रशंसा), ६.३२ (भूमि, वस्त्र, जल, दीप आदि दान का वर्णन), ६.७४ (दान धर्म का माहात्म्य), ६.८८ (सत्यभामा द्वारा तुला पुरुष दान), ६.११८ (तिल धेनु आदि दान का वर्णन), ६.१२१(पिण्ड, दीप दान विधि का वर्णन), ७.१९.३५( दान की गई वस्तु के भविष्य में स्वयं उपयोग का निषेध), ७.२० (विविध दानों का माहात्म्य : ब्रह्मा व हरिशर्मा ब्राह्मण संवाद, अन्न दान का माहात्म्य), ७.२२(एकादशी में पापपुरुष के निवास हेतु अन्न रूप स्थल दान), ब्रह्म १.१०९.१०(सर्वदानों में अन्नदान की प्रशंसा, अन्नदान से उत्तम लोक की प्राप्ति), २.८५.१४(कपिला सङ्गम तीर्थ में दान का भूमि दान सदृश फल), ब्रह्मवैवर्त्त २.९ (भूमि दान के फल का वर्णन), ४.७६.५४ (गज दानादि नानाविध दानों के फलों का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.११.२६ (दानाग्नि : पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र, सुजङ्घी - पति, जन्मान्तर में अगस्त्य), २.३.१६ (श्राद्ध में दान का फल), ३.४.१.१९(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० सुखदेव गण में से एक), भविष्य १.११८ (दीप दान के फल का कथन), १.१७२.४४ (विभिन्न दानों के फलों का कथन ; दान के पात्र ), १.१८७ (धेनु दान), १.१८९ (दान हेतु पात्र - अपात्र का निर्णय तथा दान का महत्त्व), २.१.१७.६ (महादान में अग्नि का नाम हविर्भुज), २.२.१३ (अर्घ्य दान विधि), ४.१००.१५(ब्राह्मणों की अपेक्षा अन्यों को दान देने के श्रेष्ठ फल का कथन), ४.१३० (दीप दान विधि व माहात्म्य), ४.१४१.१३ (नवग्रह यज्ञ में भिन्न - भिन्न ग्रहों के लिए भिन्न - भिन्न दानों का विधान), ४.१५० (वृष दान), ४.१५० (विविध दान व उनकी महिमा), ४.१५१ (धेनु दान), ४.१५२ (तिल धेनु दान), ४.१५३ (जल धेनु दान), ४.१५४ (घृत धेनु दान), ४.१५५ (लवण धेनु दान), ४.१५६ (काञ्चनधेनु दान), ४.१५७ (रत्न धेनु दान), ४.१५८ (उभयमुखी गौ दान), ४.१५९ (गो सहस्र दान), ४.१६० (वृषभ दान), ४.१६१ (कपिला दान), ४.१६२ (महिषी दान), ४.१६३ (अवि दान), ४.१६४ (भूमि दान), ४.१६५ (सौवर्ण पृथिवी दान), ४.१६६ (हल पंक्ति दान), ४.१६७ (आपाक दान), ४.१६८ (गृह दान), ४.१६९ (अन्न दान), ४.१७० (गौ दान), ४.१७० (स्थाली दान), ४.१७१ (दासी दान), ४.१७२ (प्रपा दान), ४.१७३ (अग्नीष्टका दान), ४.१७४ (विद्या दान), ४.१७५ (तुला पुरुष दान), ४.१७६ (हिरण्यगर्भ दान), ४.१७७ (ब्रह्माण्ड दान), ४.१७८ (कल्पवृक्ष दान), ४.१७९ (कल्पलता दान), ४.१८० (गज अश्वरथ दान), ४.१८१(कालपुरुष दान), ४.१८३ (महाभूतघट दान), ४.१८२ (सप्त सागर दान), ४.१८४ (शय्या दान), ४.१८५ (आत्मप्रकृति दान),४.१८६ (हिरण्याश्व दान), ४.१८७ (हिरण्याश्वरथ दान), ४.१८८ (कृष्णाजिन दान), ४.१८९ (हेम हस्ति रथ दान), ४.१९० (विश्वचक्र दान), ४.१९२ (नक्षत्र दान), ४.१९३ (तिथि दान), ४.१९४ (वराह दान), ४.१९५ (धान्य पर्वत दान), ४.१९६ (लवण पर्वत दान), ४.१९७ (गुडाचल दान), ४.१९८ (हेमाचल दान), ४.१९९ (तिलाचल दान), ४.२०० (कार्पासाचल दान), ४.२०१ (घृताचल दान), ४.२०२ (रत्नाचल दान), ४.२०३ (रौप्याचल दान), ४.२०४ (शर्कराचल दान), भागवत ५.२०.२७(दानवृत : शाकद्वीप के निवासियों का वर्ग), ११.१७.१८(वैश्य वर्ण के प्रकृतिगत गुणों में दाननिष्ठा का उल्लेख), ११.१९.३७(दण्डन्यास का परम दान के रूप में उल्लेख), मत्स्य ८२ (गुड धेनु दान की विधि एवं माहात्म्य), ८३.२(पर्वत दान के दस भेदों का कथन), ८३.९ (धान्य शैल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८४ (लवणाचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८५ (गुड पर्वत दान की विधि एवं माहात्म्य), ८६ (सुवर्णाचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८७ (तिल शैल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८८ (कार्पासाचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ८९ (घृताचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ९०(रत्नाचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ९१ ( रजताचल दान की विधि एवं माहात्म्य), ९२ (लवणाचल दान), ९२ (शर्करा शैल दान की विधि एवं माहात्म्य), १२७.२७(तिलधेनु दान एवं वृक्ष दान का माहात्म्य), २०५ (धेनु दान की विधि एवं माहात्म्य), २०६ (कृष्ण मृगचर्म /कृष्णाजिन दान की विधि एवं माहात्म्य), २७४.६ (१६ महादानों के नाम, तुला दान की विधि एवं माहात्म्य), २७५ (हिरण्यगर्भ दान की विधि एवं माहात्म्य), २७६ (ब्रह्माण्ड दान की विधि एवं माहात्म्य), २७७ (कल्पपादप दान की विधि एवं माहात्म्य), २७८ (गो सहस्र दान की विधि एवं माहात्म्य), २७९ (कामधेनु दान की विधि एवं माहात्म्य), २८० (हिरण्याश्व दान की विधि एवं माहात्म्य), २८१ (हिरण्याश्व रथ दान की विधि एवं माहात्म्य), २८२ (हेम हस्ति रथ दान की विधि एवं माहात्म्य), २८३ (पञ्चलाङ्गल दान की विधि एवं माहात्म्य), २८४ (हेमधरा दान की विधि एवं माहात्म्य), २८५ (विश्व चक्र दान की विधि एवं माहात्म्य), २८६ (कनक कल्पलता दान की विधि एवं माहात्म्य), २८७ (सप्त सागर दान की विधि एवं माहात्म्य), २८८ (रत्नधेनु दान की विधि एवं माहात्म्य), २८९ (महाभूत घट दान की विधि एवं माहात्म्य), वराह १४ (अन्न व पिण्ड दान), ३९.५२ (मत्स्य द्वादशी व्रत के अन्तर्गत ४ कुम्भों की स्थापना तथा वेदी ब्राह्मणों को दान का कथन), ५५ (शुभ नामक व्रत के अन्तर्गत रौप्य दान, मही दान आदि), ५७ (कान्ति व्रत के अन्तर्गत राजत निर्मित चन्द्र प्रतिमा का दान), ९९.८७(क्षुधापीडित के लिए तिलधेनु दान का माहात्म्य), १००(जलधेनु दान की विधि), १०१ (रस धेनु दान का माहात्म्य), १०२(गुडधेनु दान का माहात्म्य), १०३ (शर्करा धेनु दान का माहात्म्य), १०४ (मधु धेनु दान का माहात्म्य), १०५ (क्षीर धेनु दान विधि), १०६ (दधि धेनु दान का माहात्म्य), १०७ (नवनीत धेनु दान का माहात्म्य), १०८ (लवण धेनु दान का माहात्म्य), १०९ (कार्पास धेनु दान का माहात्म्य), ११० (धान्य धेनु दान का माहात्म्य), १११ (कपिला धेनु दान का माहात्म्य), ११२ (उभयमुखी गौ दान तथा हेमकुम्भ दान की प्रशंसा), १८० (ध्रुव तीर्थ में पिण्ड दान तथा श्राद्ध आदि से पितरों की तृप्ति), २०७.४६ (नानाविध दानों से नाना फलों की प्राप्ति का उल्लेख), वामन ९४ (मास अनुसार दान), वायु ८० (श्राद्ध में विभिन्न दानों का फल), १००.१८/२.३८.१८(प्रथम सावर्णि मन्वन्तर में २० मुख्य नामक देवगण में से एक), विष्णुधर्मोत्तर २.६९(दान का माहात्म्य), ३.१६ (दान हेतु पात्र विशेष), ३.२८८.२५ (विभिन्न दान व उनका फल), ३.२८८.४५ (पितरों हेतु श्राद्ध में किए गए विभिन्न दानों का फल), ३.२९८ (प्रपा दान, यात्रा उपस्कर दान व उनका फल), ३.३०० (संक्रान्ति काल में दान, तीर्थादि में दान व उसका फल), ३.३०१ (दान / प्रतिग्रह विधि), ३.३०५ (भूमि दान का फल), ३.३०६ (गौदान व उसका फल), ३.३०८ (तिल धेनु दान विधि का वर्णन), ३.३०९ (जल धेनु दान विधि का वर्णन ), ३.३१० (सुवर्ण दान व उसकी विधि), ३.३११ (अनेक वस्तुओं का दान व उनके फल का वर्णन), ३.३१२ (वाहन, दास, दासी आदि के दान का माहात्म्य), ३.३१३ (वस्त्र दान की महिमा), ३.३१४ (धान्य दान की महिमा), ३.३१५ (अन्न दान का माहात्म्य), ३.३१७ (ऋतु, मास, नक्षत्र, तिथि अनुसार दान तथा दान फल का वर्णन), ३.३१८ (नक्षत्र अनुसार दान), ३.३१९ (पूर्णिमा, द्वादशी में दान फल का वर्णन), ३.३४१ (देवालय में विभिन्न धर्म द्रव्य, पुष्पादि दान का फल), शिव १.१५.३६ (विभिन्न पात्रों को अन्न दान के समय बुद्धि के अपेक्षित रूप का कथन), १.१५.४७ (कामना अनुसार दान द्रव्य का कथन), १.१६.५१(भिन्न - भिन्न दानों के भिन्न - भिन्न फलों का कथन), ५.११ (यम लोक के मार्ग में सुविधा - प्रदायक विविध दानों का वर्णन), ५.१२(जल दान की महिमा), ५.१४.१ (दान का माहात्म्य व दान के भेद), स्कन्द १.१.१८ (साढे तीन घटिका मात्र के लिए इन्द्र पद प्राप्त होने पर कितव द्वारा ऐरावतादि दान), १.२.२ (दान के माहात्म्य का वर्णन), १.२.३ (दान का स्थान, दर्श श्राद्ध दान), १.२.४ (धर्म, अर्थ, काम, लज्जा, दर्प, भय के अनुसार दान का निरूपण), १.२.४.१७, ७८ (दान के २ हेतु, ६ अधिष्ठान, ६ उत्स, २ पादादि का निरूपण), १.२.५० (विविध दान, यम लोक में फल), २.१.१६ (वेंकटाद्रि पर जल दान की प्रशंसा), २.१.२० (भूमि दान की महिमा), २.१.२२ (दान योग्य सत्पात्र का निर्णय), २.१.४० (वेंकटाचल पर करणीय दान की प्रशंसा), २.२.३० (ज्येष्ठ मास में दान का माहात्म्य), २.३.५ (बदरी क्षेत्र में दान का माहात्म्य), २.४.२.४२.५२ (गौ दान, शालिग्राम शिला दान का माहात्म्य), २.५.१४+ (द्वादशी में करणीय मत्स्योत्सव में मत्स्य रूप स्वर्ण मूर्ति दान का माहात्म्य), २.५.१५ (मार्गशीर्ष में विविध दानों का माहात्म्य), २.७.२ (वैशाख मास में विविध दानों का माहात्म्य), २.७.१० (वैशाख मास में छत्र दान, हेमकान्त व त्रित की कथा), ३.१.५२ (दान पात्र योग्यता : दिलीप - वसिष्ठ संवाद), ४ + (दान के पात्र), ५.१.८ (महाकालवन में दान का माहात्म्य ),५.२.८३.१५(बिल्व व कपिल के परस्पर वाद विवाद में बिल्व द्वारा ५.३.३५ (मेघनाद तीर्थ में दान का माहात्म्य), (दान पात्र - अपात्र विचार), ५.३.५६ (तीर्थ में स्नान दानादि का फल, माहात्म्य), ५.३.१५३.१०(भिन्न -भिन्न अवसरों पर दान का आपेक्षिक महत्त्व), ५.३.१९५.११(सोम को वस्त्र, भार्गव को मौक्तिक तथा सूर्य को स्वर्ण दान से दान की अनन्तता का उल्लेख), ७.१.५ (पिण्ड दान), ७.१.२०७+ (श्राद्ध में वस्त्र, अन्नादि दान का फल, पात्र - अपात्र विचार), ७.१.२०८ (दान पात्र ब्राह्मण विचार), ७.१.२०८.३ (१६ महादानों का कथन), ७.२.१८.२४८(दाता इन्द्र, प्रतिगृहीता विष्णु, द्रव्य आदित्य), हरिवंश ३.१७.६७(कर्म के फल के आदान और अनादान का कथन), महाभारत वन ३१३.६४(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में दान के मुमूर्षु मनुष्य का मित्र होने का उल्लेख), ३१३.७०(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में दान के एकपद यश होने का उल्लेख), ३१३.७२(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में दान के मनुष्य के परायण होने का उल्लेख), ३१३.७९(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में ब्राह्मण, नट - नर्तक, भृत्यों व राजाओं को दान देने के हेतुओं का कथन), ३१३.९५(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में भूतरक्षण के ही दान होने का उल्लेख), शान्ति ३६.३६(दान ग्रहण योग्य पात्र - अपात्र का विचार), १६५.३(ब्राह्मणेतर जातियों हेतु बहिर्वेदी में अकृत अन्न दान का निर्देश), २३४.१६(विभिन्न राजर्षियों द्वारा ब्राह्मणों को दिए गए विशिष्ट दानों का कथन), २५१.११(दम का उपनिषत् दान व दान का तप होने का उल्लेख), २९२.३(प्रतिग्रह की अपेक्षा दान की श्रेष्ठता का कथन), अनुशासन २२दा.पृ.५५४५(चार वर्णों द्वारा मन्त्रहीन हव्य - कव्य दान के असुरों, राक्षसों , प्रेतों व भूतों को प्राप्त होने का कथन), २२.१(हव्य - कव्य दान ग्रहण हेतु सुपात्रों व कुपात्रों के लक्षण), ५७(विभिन्न दानों के फलों का वर्णन), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ६३५२(अन्न, तिल, गृह आदि दानों का फल), लक्ष्मीनारायण १.७३.२८(मृतक हेतु तिल, दर्भ लवण व धान्य दान का महत्त्व), १.७४.१ (अन्तकाल व एकादशाह में गौ, उपानह, छत्र, अङ्गुलीयक आदि के दान के महत्त्व का कथन), १.७५.१७(मृतक हेतु एकादशाह में दान योग्य वस्तुओं का कथन), १.७६.३४(नारी हेतु सम्यक् दान कथन : देह का पति को दान, अहंकार पुत्र को, सौन्दर्य जरा को आदि आदि), १.१४६.२५(१६ वृथा दानों/दान के अयोग्य पात्रों के नाम), १.१५१.४०(तीर्थ में गौ, वृष आदि दान के फल का कथन), १.२६५(३१(एकादशी उद्यापन के संदर्भ में दशविध धेनु दान, मेरु दान, अन्य अद्रियों के दान का वर्णन), १.३६१(मृत्यु पश्चात् अन्न, गौ आदि दान फल के उदय का वर्णन : विभिन्न लोकों की प्राप्ति आदि), १.४०४.१(दान ग्रहण के योग्य व अयोग्य पात्रों के नाम), १.४३०.१०(दानक : निर्भयवर्मा - पुत्र, सिंह रूप धारी ऋषि के वध पर हत्या दोष की प्राप्ति, त्रित ऋषि की सेवा से दोष से मुक्ति, यम मार्ग में श्रीहरि के कीर्तन से यम लोक के प्राणियों की मुक्ति आदि), १.४९८.२०(विप्र पत्नियों द्वारा पतियों की अनुमति के बिना दान ग्रहण करने पर विप्रों की व्योमचर गति के रोधन का वृत्तान्त), २.६९.२३ (मास अनुसार दान), २.७७.३० (हस्ति दान का माहात्म्य), २.११२.५३(नदी रूप कृष्ण - पत्नियों को भिन्न - भिन्न वस्तुओं का दान), २.१७०.७९(यज्ञ भूमि में दान का माहात्म्य), २.२४५.५७ (द्वापर युगी जनों के दान - धर्मपर होने का उल्लेख), ३.१८.९ (अन्न, वस्त्र, धन आदि दानों की उत्तरोत्तर श्रेष्ठता का वर्णन), ३.४५.१२ (दाताओं द्वारा सोम लोक प्राप्ति का उल्लेख), ३.७४.४८(अन्न दान, वारिदान, ज्ञानदान, ब्रह्मदान, मोक्ष दान, आत्मदान आदि आदि से मुक्ति प्राप्त करने वाले भक्तों के उदाहरणों का वर्णन), ३.७९.६२(साधु सेवा की अपेक्षा विभिन्न दानों की गौणता का वर्णन), ३.९०.९३(दान ग्रहण योग्य सत्पात्रों के गुणों का वर्णन), ३.१०३.२(शुक्ल पक्ष की विभिन्न तिथियों में स्वर्ण, गो, भूमि आदि दान के विभिन्न फलों का कथन), ३.१०३.११(विभिन्न नक्षत्रों में स्वर्ण, गो, भूमि आदि दान के विभिन्न फलों का कथन), ३.१०३.२६(दान ग्रहण योग्य पात्रों के गुणों का वर्णन), ३.१०३.५२(दान ग्रहण के दोषों के संदर्भ में राजा से प्रतिग्रह ग्रहण के दोष : राजा वृषादर्भि द्वारा सप्तर्षियों को दान देने का प्रयत्न), ३.१०३.८०(प्रेत की मुक्ति के लिए दान योग्य विभिन्न वस्तुओं के नाम), ३.१०३.९६(छत्र व उपानह दान के महत्त्व के संदर्भ में जमदग्नि ऋषि - रेणुका व सूर्य की कथा), ३.१०९.५१(अन्न, दीप आदि वस्तुओं के दान से प्राप्त विभिन्न लोकों का कथन), ३.११०.८(अन्न, भोजन, अभय, पृथिवी, आजीविका आदि आदि दानों के महत्त्व का वर्णन), ३.१११(विभिन्न दानों के महत्त्व का वर्णन : यमराज द्वारा आस्तिक व नास्तिक दीर्घशील नामक विप्रों को दान धर्म का उपदेश), ३.११२(दान का महत्त्व ; देह दान के महत्त्व के संदर्भ में ब्रह्मसती द्वारा स्वदेह को पति व नारायण को समर्पित करने की कथा), ३.१२५(तुला पुरुष आदि १६ महादानों के नाम ; तुला पुरुष दान विधि), ३.१२६.१(हिरण्यगर्भ दान विधि का वर्णन), ३.१२६.५१(ब्रह्माण्ड दान विधि), ३.१२७.१(कल्पपादप दान विधि), ३.१२७.५८(गो सहस्र महादान विधि), ३.१२८.१(हिरण्य कामधेनु दान विधि), ३.१२८.३६(हिरण्याश्व दान विधि), ३.१२८.७१(हिरण्यरथ दान विधि), ३.१२९.१(हेमहस्ति रथ दान विधि), ३.१२९.३९(पञ्चलाङ्गलक महादान विधि), ३.१२९.७७(हेमधरा महादान की विधि), ३.१३०.१(विश्वसुदर्शन चक्र दान विधि), ३.१३१.१(महाकल्पलता दान विधि), ३.१३१.२६(कल्पप्रिया दान विधि व माहात्म्य), ३.१३१.४७(स्वर्णकान्त महादान विधि व माहात्म्य), ३.१३१.६०(पुण्यदान तथा अन्य दानों का महत्त्व), ३.१३२.१(सप्तसागर दान विधि), ३.१३२.२६(रत्न धेनु दान विधि), ३.१३२.५१(महाभूत कलश दान विधि), ३.१३२.७७(लक्ष्मी महादान विधि व माहात्म्य), कथासरित् १२.५.२१८(दान पारमिता की कथा : मलयप्रभ राजा के पुत्र इन्दुप्रभ द्वारा प्रजा के लिए कल्पवृक्ष बनने का वृत्तान्त ), शौ.अ. ५.२४.३ (द्यावापृथिवी दातॄणां अधिपत्नी) ; द्र. बकदान, वसुदान । daana/dana
दानव गरुड २.१०.७(दानवों का भोजन मांस होने का उल्लेख), पद्म १.६.४८(दनु वंशीय दानवों का कथन), भविष्य ३.४.१८.९ (विप्रचित्ति आदि ८४ दानवों का उल्लेख), मत्स्य १९.९ (पितरों हेतु प्रदत्त श्राद्धान्न के दैत्य योनि में भोग रूप में तथा दनुज योनि में माया रूप में परिवर्तित होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.१२ (यज्ञ कर्म के समारम्भ में दानवों की पूजा? का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१८० (शतरुद्रिय प्रसंग में दानवों द्वारा निष्पाव लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), हरिवंश १.३.८९(कश्यप व दनु से उत्पन्न दानवों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.२१०.९५(दानवर्षि का उल्लेख ) ; द्र. उपदानवी । daanava/danav
दान्त पद्म ७.१७(दान्त गुरु के उपदेश से भद्रतनु नामक ब्राह्मण को भगवद्भक्ति तथा सस्यत्व प्राप्ति का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.३६.२७(उत्तम मन्वन्तर में १२ सुदामा देवों में से एक), २.३.७१.१३८(निदान्त : शूर के १० पुत्रों में से एक), वायु ९६.१३७(निदात : शूर के १० पुत्रों में से एक), महाभारत उद्योग ४३.२५(दान्त की परिभाषा), लक्ष्मीनारायण १.४९८.४१(पत्नियों के दोषों के कारण गति भ्रष्ट न होने वाले ४ विप्रों में से एक), कथासरित् ९.६.२९४(दान्त नामक वृष की प्राप्ति हेतु नल द्वारा भ्राता पुष्कर के साथ द्यूत क्रीडा, नल की पराजय ) । daanta
दाम ब्रह्माण्ड ३.४.१.१८(२० संख्या वाले सुखदेव गण में से एक), योगवासिष्ठ ४.२५+ (दाम - व्याल – कट का आख्यान), लक्ष्मीनारायण ३.२१५( दामशिलाद नामक भक्त शिलागर द्वारा भृत्यों की सहायता से भूमि से शिलाओं का खनन, शिलाओं का भक्ति के अनुरूप नामकरण, शिला के नीचे भृत्यों के दबने पर कृष्ण द्वारा साधु वेश में भृत्यों की चिकित्सा ) ; द्र. सुदामा । daama
दामा पद्म ५.७०.२०(दामा प्रत्यय वाले कृष्ण-पार्षदों की दिशा सापेक्ष स्थिति)
दामिनी लक्ष्मीनारायण २.१३.७(दैत्य संहार पर शोकपीडित दैत्य पत्नियों में से एक), २.१४.७३(दामिनी द्वारा सुदर्शन चक्र का निगरण, सुदर्शन द्वारा भेदन, दामिनी का पतन), २.१४.८०(दामिनी राक्षसी द्वारा अग्नि उत्पन्न कर लोमश आश्रम के दाह का प्रयास, बालाहकी महालक्ष्मी द्वारा वृष्टि रूप होकर रक्षा, दामिनी का वध ); द्र. सौदामिनी । daaminee/damini
दामोदर अग्नि ३०५.११ (रैवतक गिरि पर विष्णु का दामोदर नाम), गर्ग १.१९(यमलार्जुन के उद्धार की कथा), नारद १.६६.८९(पद्मनाभ की श्रद्धा व दामोदर की शक्ति लज्जा का उल्लेख), पद्म ४.२०(राधा - दामोदर पूजन का कथन), ६.१२०.६९(दामोदर से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन - दामोदरस्तथा स्थूलो मध्ये चक्रं प्रतिष्ठितम्। दूर्वाभं द्वारसंकीर्णं पीतरेखं तथैव च ), ब्रह्माण्ड ३.४.३४.८३(पद्मनाभ द्वारा अनुलोम व दामोदर द्वारा विलोम वेष्टन का कथन), भागवत ६.८.२२ (पद्मनाभ से निशीथ व दामोदर से अनुसन्ध्य/ सूर्योदय से पूर्व रक्षा की प्रार्थना), १०.१०.२७(यमलार्जुन के उद्धार की कथा), वराह १.२७ (दामोदर से शिर की रक्षा की प्रार्थना), विष्णु ५.६.२०(उलूखल से बद्ध कृष्ण द्वारा यमलार्जुन के उद्धार व दामोदर नाम प्राप्त करने की संक्षिप्त कथा), स्कन्द २.५.१०.२२(भगवान् द्वारा दामोदर नाम प्राप्ति के कारण का कथन), ४.२.६१.२१९ (दामोदर की मूर्ति के लक्षण), ५.३.१४९.११(आश्विन् में पद्मनाभ व कार्तिक में दामोदर नाम से विष्णु के अर्चन का निर्देश), ७.२.१.८९ (रैवतक गिरि पर दामोदर का माहात्म्य : राजा गज व भद्र का संवाद), ७.२.१५.३४ (दामोदर माहात्म्य का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.१४२.७८(रैवत पर्वत पर दामोदर रूप धारी श्रीहरि के महत्त्व का वर्णन : सुवर्णा नदी रूपी पत्नी द्वारा दामोदर की सेवा आदि), १.२६१.१० (कार्तिक शुक्ल एकादशी को दामोदर की पूजा), २.२६१.३० (दामोदर शब्द की निरुक्ति : दमन, दान, मोद के अर्थों में), कथासरित् ८.१.१३९(विद्याधर, आषाढेश्वर - पुत्र), ८.४.४०(विद्याधरराज, श्रुतशर्मा - सेनापति), ८.५.३(श्रुतशर्मा - सेनापति, सेना में चक्रव्यूह का निर्माण), ८.५.७०(श्रुतशर्मा - सेनानी कालकोप की दामोदर के क्षेत्र में शनैश्चर से उत्पत्ति), ८.७.३३(दामोदर का प्रभास से युद्ध), ८.७.४५(हरि का अंश, प्रभास से युद्ध), महाभारत शान्ति ३४१.४४/३५०.३९(दामोदर की निरुक्ति : दम से द्युलोक, अन्तरिक्ष व भूमि पर सिद्धि ) । daamodara/damodara
दारा लक्ष्मीनारायण २.९७.५६(दार लिङ्गायन : ऋषि, श्रीहरि से वात प्रकोप से स्वरक्षा के वृत्तान्त का कथन), ४.६.२३(दाराभाग्यनगर में श्रीशील - पुत्र सुशील नामक द्विज का आगमन, लक्ष्मीनारायण संहिता कथा का वाचन ) । daaraa/dara
दारु ब्रह्माण्ड १.२.२७ (दारु वन : ऋषियों के शाप से शिव लिङ्ग पतन का स्थान), भविष्य १.५७.१८(गणाधिप हेतु दारु बलि का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.८९ (गृह निर्माण हेतु वन में दारु की परीक्षा का वर्णन), स्कन्द १.१.६(दारु वन में शिव का भिक्षार्थ भ्रमण, मुग्ध ऋषि पत्नियों द्वारा शिव का अनुगमन),२.२.४ (इन्द्रद्युम्न द्वारा पुरुषोत्तम की दारुमय प्रतिमा की स्थापना), २.२.४.७३ (दारु शब्द की निरुक्ति : द्यति संसार दु:खानि ददाति सुखमव्ययम्), २.२.२१.१४(ब्राह्मण द्वारा दारु वपु धारी विष्णु की महिमा का कथन), २.२.२४(आकाशवाणी द्वारा पद्मनिधि को दारु मूर्ति की स्थापना का निर्देश), २.२.२८ (इन्द्रद्युम्न द्वारा नृसिंह के भीषण रूप के दर्शन, चतुर्वेद हेतु चार रूपों का प्रतिपादन), २.२.२९ (भगवान द्वारा दारु देह से इन्द्रद्युम्न को वर), ५.१.३०.५१(दारु/काष्ठ की तम से उपमा), ५.३.३० (दारु तीर्थ का माहात्म्य – दारु के तप का स्थान), ५.३.३६ (पिता द्वारा शापित मातलि का अवतार, दारु तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.३८.६ (दारु वन का माहात्म्य : ब्राह्मणों के शाप से शिव के लिङ्ग पतन की कथा), ६.११७(तक्षक द्वारा मुक्त भट्टिका का दारु पर्वत पर गमन, अग्नि में प्रवेश, देवों द्वारा स्तवन), योगवासिष्ठ ६.२.१९६ (दारु विक्रय से जीवन - यापन करने वाले काष्ठ हारकों द्वारा चिन्तामणि प्राप्त करने का दृष्टान्त), लक्ष्मीनारायण १.१९६.७(दारुवन में भिक्षार्थ विचरण करते हुए नग्न शिव को देखकर ऋषि - पत्नियों का विचलित होना, विप्रों द्वारा दर्भशलाका आदि द्वारा शिव के लिङ्ग का ताडन, लिङ्ग के पातन से ज्योतिर्लिङ्गों के प्रादुर्भाव का वृत्तान्त), १.५६२.६१(दारु वन में स्थित व्याघ्रेश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति की कथा), १.५७४.३५(दारुक द्वारा रेवा तट पर स्थित दारु वन में तप से विष्णु का सारथी बनने का वर प्राप्त करना ) ; द्र. काष्ठ, देवदारु । daaru
दारुक नारद १.६६.११३(दारुकेश की शक्ति रूपिणी का उल्लेख), ब्रह्म १.१०१.४७(द्वारका निवासियों के द्वारका परित्याग के लिए कृष्ण द्वारा दारुक के प्रति संदेश का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५२ (लिपि न्यास के प्रसंग में एक व्यंजन के देवता का नाम), भागवत १०.७६.२७(दारुक - पुत्र द्वारा प्रद्युम्न के रथ का संचालन), ११.३०.४१ (कृष्ण - सारथि, कृष्ण के परलोक गमन का संदेश द्वारका पंहुचाना), लिङ्ग १.२४.१०० (२१वें द्वापर में शिव का दारुक मुनि के रूप में अवतार), १.१०६.२ (केवल स्त्री द्वारा ही वध्य दारुक दैत्य का काली/कालकण्ठी द्वारा वध), वायु २३.१९५ (२१वें द्वापर में शिव अवतार), शिव ३.५.२८(२१वें द्वापर में शिव द्वारा दारुक नाम से अवतार ग्रहण), ३.४२.४(दारुक वन में शिव द्वारा नागेश रूप में अवतार ग्रहण, ज्योतिर्लिङ्ग स्वरूप), ४.२९ (राक्षस, दारुका - पति, दारुक वन में निवास), ४.३० (दारुका - पति दारुक द्वारा शिव भक्ति से वर प्राप्ति, सुप्रिय वैश्य को त्रास, शिव द्वारा दारुक का नाश), स्कन्द १.२.६२ (दारुक दैत्य के हनन के लिए कालिका की उत्पत्ति), ४.२.७०.८० (दारुकेश्वर तीर्थ में चर्ममुण्डा देवी का वर्णन), ५.३.३६(दारुक नामक इन्द्रमित्र द्वारा शिवलिङ्ग स्थापना, दारु तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२३१.१६(तीर्थ संख्या के अन्तर्गत ४ दारुकेश्वरों के होने का उल्लेख), ७.१.१८७(शिव का दारुक वन में भ्रमण, मुनियों के शाप से लिङ्ग पतन की कथा ) । daaruka/daruka
दारुका शिव ४.२९+ (राक्षसी, शिव की आराधना से दारुक वन में स्वच्छन्द रूप से विचरण, और्व मुनि के शाप से दुःख प्राप्ति, शिवा की कृपा से वन सहित जल में निवास ) ।
दारुण गणेश २.१५.१५ (महोत्कट गणेश द्वारा वायु रूप दारुण का वध), ब्रह्माण्ड २.३.७.११(रिष्टा से उत्पन्न ९/१० गन्धर्वों में से एक )daaruna।
दार्भायणी शिव ३.५.२९(२१वें द्वापर में शिव - अवतारों दारुक के ४ शिष्यों में से एक ) ।
दालकि वायु ६०.६६(रथीतर के ४ शिष्यों में से एक, पातक प्रायश्चित्त का कथन ) ।
दाल्भ्य पद्म १.२३.१०० (चेकितान - पुत्र, दस्युओं द्वारा हृत कृष्ण - पत्नियों के कल्याणार्थ काम - न्यास / पूजा का कथन), ६.४४ (दाल्भ्य - बक का राम से संवाद, विजया एकादशी व्रत का कथन), मत्स्य ७०.१९ (चेकितायन - पुत्र दाल्भ्य बक द्वारा दस्यु - अपहृत कृष्ण - पत्नियों को पण्यस्त्री व्रत का उपदेश), वामन ३९.२८ (दाल्भ्य बक ऋषि द्वारा धृतराष्ट्र से याचना, धृतराष्ट्र द्वारा अपमानित किए जाने पर धृतराष्ट्र के राष्ट्र का होम व क्षय करना, धृतराष्ट्र द्वारा पुन: सम्मानित किए जाने पर राज्य एवं यश प्रदान करना), विष्णुधर्मोत्तर १.१४६ (दाल्भ्य द्वारा पुलस्त्य से मुक्ति विषयक प्रश्न), ३.२२०- (दाल्भ्य का पुलस्त्य से संवाद), स्कन्द ५.१.१४ (पुत्र प्राप्ति हेतु सुद्युम्न व सुदर्शना को दाल्भ्य द्वारा परामर्श), ५.१.६५ (बक दाल्भ्य का कुशस्थली में नाग तीर्थ में तप), लक्ष्मीनारायण १.४१३.११४(दाल्भ्य द्वारा स्त्रियों को उपदेश), २.३४(दाल्भ्य ऋषि का कुङ्कुमवापी क्षेत्र में आगमन, बाल हरि द्वारा सिंहचर्म की सजीवता रूप चमत्कार के दर्शन, स्तुति, चर्म प्राप्ति का वृत्तान्त), महाभारत शल्य ४१.७(दाल्भ्य बक ऋषि द्वारा धृतराष्ट्र से पशुओं की याचना, मृत गौ पशु प्राप्त होने पर धृतराष्ट्र के राष्ट्र का होम, प्रसन्न होने पर धृतराष्ट्र के राष्ट्र की रक्षा का उद्योग ) ; द्र. बकदाल्भ्य । daalbhya/dalbhya
दावानल गर्ग २.१२.३० (कृष्ण द्वारा गोपों की दावानल से रक्षा), ४.२१ (मुञ्जवन में कृष्ण द्वारा गोपों की दावाग्नि से रक्षा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१९.१६५ (कृष्ण द्वारा गोपों की दावानल से रक्षा), भविष्य २.१.१७.१५ (दावाग्नि का सूर्य नाम), भागवत १०.१९(कृष्ण द्वारा गोपों की दावानल से रक्षा), लक्ष्मीनारायण १.३८०.३९(पतिव्रता मृगी के प्रभाव से दावानल का शान्त होकर कृष्ण मृग बनने का उल्लेख ) । daavaanala/davanala
दाश गरुड ३.२२.८०(दाश में महिदास हरि की स्थिति का उल्लेख), मत्स्य २०.१२, २१.९(कौशिक के ७ पुत्रों का व्याध /दाश के रूप में दाशपुर में जन्म), कथासरित् ५.३.१५०(दाश/धीवर - पुत्रों द्वारा शक्तिदेव का बन्धन, उन्हीं की भगिनी बिन्दुमति से विवाह का वृत्तान्त), १६.२.१३६(दाश युवक सुप्रहार तथा राजा मलयसिंह की सुता मायावती का पूर्वजन्म कृत कर्मों के प्रभाव से परस्पर प्रीति का वृत्तान्त ) । daasha/dasha
दाशार्ह स्कन्द ३.३.१ (मधुराधिपति, कलावती - पति, शिव पञ्चाक्षरी मन्त्र की दीक्षा ग्रहण करना), ३.३.४.३७(किरात देशस्थ निमर्दन राजा द्वारा पांचवें जन्म में स्वयं अवन्तिनाथ तथा स्वपत्नी के दाशार्हराज कन्या के रूप में जन्म लेने का कथन), हरिवंश २.६३.२३(द्वारका में यादवों की सभा के दाशार्ही नाम का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४७.४(मथुरा के राजा दाशार्ह द्वारा अपवित्र होकर पतिव्रता पत्नी कलावती का स्पर्श करने पर दाहयुक्त होना, गर्ग ऋषि से कृष्ण मन्त्र लेकर पाप रहित होना ) । daashaarha/dasharha
दाशूर योगवासिष्ठ ४.४८.१६(मुनि, शरलोमा - पुत्र, पिता की मृत्यु पर शोक, आकाशवाणी द्वारा धैर्य धारण कराना, अग्नि द्वारा प्रदत्त वरदान से कदम्ब वृक्ष पर निवास ) । daashoora/daashuura
दास ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.४९(विपश्चितों द्वारा वर की अपेक्षा दास्य की कामना का उल्लेख), वायु ६०.३७(जनक द्वारा ब्राह्मणों हेतु प्रस्तुत धन में से एक), विष्णु ३.१०.९(शूद्रों के नाम के साथ दास जोडने का निर्देश, अन्य वर्णों के साथ शर्म, वर्म, गुप्त आदि), लक्ष्मीनारायण २.७८.३९(विषयों का दास रूप में उल्लेख), २.१६१.६५ (धनमेद धीवर द्वारा राधा/तुरी देवी से दास्यत्व की प्राप्ति का कथन ; दास्य भाव का स्वरूप, दास्यत्व की प्रशंसा, विशिष्ट दास - दासियों के नामों का कथन), २.२४६.३३ (दास वर्ग के छाया रूप होने से अधिक्षिप्त होने पर सहने का निर्देश, प्रतिक्षेप का निषेध), ३.६३.१६(दास्य भाव का निरूपण ) ; द्र. दिवोदास, देवदास, रङ्गदास, विष्णुदास, सुदास, सौदास, हरिदास । daasa/dasa
दासी ब्रह्माण्ड ३.४.८.११(दासियों के देवदासी आदि ४ प्रकारों का कथन), भविष्य ४.१७१ (दासी दान की विधि), लक्ष्मीनारायण १.४१३.११(दासी, पण्यस्त्री आदि के लिए भगवत्पातिव्रत्य का निरूपण), ३.१११.२२(दासी प्रदान से अप्सरा लोक प्राप्ति का उल्लेख ) । daasee/dasi
दिक् मत्स्य ४.२५(शतरूपा व मनु के ७ पुत्रों में से एक), वायु ६२.३१/२.१.३१(१२ संख्या वाले सत्य देव गण में से एक ) ; द्र. दिशा । dik
दिक्पति ब्रह्माण्ड १.२.३६.३४(दिक्पति : १२ संख्या वाले सत्य देव गण में से एक), स्कन्द १.२.१३.१८०(शतरुद्रिय प्रसंग में दानवों द्वारा निष्पावज लिङ्ग की दिक्पति नाम से पूजा का उल्लेख), ४.१.११.६२(शिव के वरदान स्वरूप वैश्वानर को दिक्पतित्व की प्राप्ति ) । dikpati
दिक्पाल अग्नि ५१(दिक्पालों की प्रतिमाओं के लक्षण), ५१.३(दिक्पालों के रूप के अन्तर्गत दिक्पालों के शस्त्रों का कथन), ९६.८(वज्र, शक्ति प्रभृति दस दिक्पालों की पताका पूजन के मन्त्र का स्वरूप), २६५.८(दिक्पाल स्नान की विधि), नारद १.५६.६८६ ( दिक्पालों के स्वरूप), पद्म २.२७.१९(ब्रह्मा द्वारा सुधन्वा, शङ्खपद, पुष्कर तथा नलकूबर आदि प्रजापति पुत्रों की दिक्पाल पद पर नियुक्ति), भविष्य ३.४.१७.४६(दिक्पति : ध्रुव का विशेषण), मत्स्य ८.९ (ब्रह्मा द्वारा चारों दिशाओं में दिक्पालों की नियुक्ति व अभिषेक ; दिक्पालों के नाम), वराह ७६ (इन्द्र, अग्नि आदि अष्ट दिक्पालों की पुरियों का वर्णन), १५८.१७(दिक्पालों द्वारा मथुरा तीर्थ की रक्षा), वायु १०१.२८८/२.३९.२८८(दिशाओं के देवों के रूप का कथन), विष्णु १.२२.१०( पृथु को राज्य प्रदान कर ब्रह्मा द्वारा सुधन्वा आदि ४ दिक्पालों की स्थापना), विष्णुधर्मोत्तर २.१०४(दिक्पाल स्नान का वर्णन), हरिवंश १.४.१७ (ब्रह्मा द्वारा दिक्पालों की प्रतिष्ठा), लक्ष्मीनारायण १.२७२.२(चैत्र शुक्ल सप्तमी को ८ दिक्प्रपाल व्रत में ८ दिशाओं में दिक्पालों के साथ ९ ग्रहों का न्यास), २.१२०.५० (देवायतन द्वारा दिक्पाल - अधिवासित इन्द्रपुरी के दर्शन), २.१५२.९३(दश दिक्पालों हेतु होम - मन्त्र का निरूपण), २.२९३.१००(दिक्पालों द्वारा श्रीहरि को दिव्य सौवर्ण नाणक प्रदान), ४.८०.१६(राजा नागविक्रम के यज्ञ में यामुनेय विप्रों के वैष्णव दिक्पाल बनने का उल्लेख ) । dikpaala/dikpala
दिगम्बर ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.५० (दिगम्बर शिव से पृष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), ३.७.८९ (सनत्कुमार द्वारा दक्षिणा में प्राप्त शिव को दिगम्बर करके घुमाने का हठ, कृष्ण का तेज रूप में प्रकट होना व पार्वती - पुत्र बनना ) । digambara
दिग्गज देवीभागवत ८.१४.१०(समस्त लोकों की स्थिति हेतु चारों दिशाओं में ऋषभ, पुष्पचूड, वामन तथा अपराजित नामक दिग्गजों की स्थापना - ऋषभः पुष्पचूडोऽथ वामनोऽथापराजितः ॥ एते समस्तलोकस्य स्थितिहेतव ईरिताः ।), नारद ७२.१३(ऐरावत आदि ८दिग्गजों के नाम), ब्रह्माण्ड २.३.७.२९२ (इरावती से ऐरावण, कुमुद, अञ्जन, वामन दिग्गजों की उत्पत्ति की कथा), भविष्य ३.४.१७.५२ (ध्रुव व दिशा - पुत्र, ऐरावत, पुण्डरीक, वामन, कुमुद आदि ८ नाम), भागवत ५.२०.३९(चार आशाओं में चार दिग्गजों ऋषभ, पुष्करचूड, वामन व अपराजित की स्थिति का कथन - जगद्गुरुणाधिनिवेशिता ये द्विरदपतय ऋषभः पुष्करचूडो वामनोऽपराजित इति सकललोकस्थितिहेतवः), वायु ६९.२१५(श्वेता द्वारा भद्र, मृग, मन्द और संकीर्ण नामक ४ दिग्गजों की उत्पत्ति, रथन्तर व बृहत् गुण), वा.रामायण १.४०.१३ (पृथिवी खनन के समय सगर - पुत्रों द्वारा विरूपाक्ष, महापद्म, सौमनस व भद्र दिग्गजों का दर्शन), महाभारत अनुशासन १३२(रेणुक नाग का दिग्गजों से धर्म गुह्य संवाद का श्रवण : बहुला अष्टमी आदि ) । diggaja
दिण्डि भविष्य १.५६.६(सूर्य की रथयात्रा उत्सव में पिङ्गल, रक्षक, द्वारक, दिण्डी तथा लेखक के सूर्य रथ के साथ - साथ चलने का उल्लेख), १.६२.२ (ब्रह्महत्या से अभिभूत दिण्डि द्वारा आदित्य से पाप नाश हेतु क्रिया योग के उपदेश की प्राप्ति), १.६३(ब्रह्मा द्वारा दिण्डि हेतु क्रिया योग के दीक्षा आदि विस्तार का वर्णन), १.६४(ब्रह्मा द्वारा दिण्डि हेतु उपवास व भास्कर की अर्चना के महत्त्व का वर्णन), १.६५(ब्रह्मा द्वारा दिण्डि हेतु सप्तमी व्रत का वर्णन), १.६६.१(दिण्डी के सूर्य का अनुचर बनने का उल्लेख), १.८०.५(दिण्डी द्वारा ब्रह्मा से सूर्य पूजा फल के विषय में पृच्छा), १.८२- .१.१०१(दिण्डि द्वारा ब्रह्मा से आदित्य दिन में दिवाकर पूजा के फल की पृच्छा, ब्रह्मा द्वारा विस्तार से वर्णन), १.१२४.१ (सूर्य - द्वारपाल, रुद्र का रूप), वामन ३६.१५(दिण्डि के अर्चन का माहात्म्य ) । dindi
दिति अग्नि ३४८.३(लृ अक्षर दिति – बोधक - ऋ शब्दे चादितौ ऋस्यात् लृ लॄ ते वै दितौ गुहे ।), देवीभागवत ४.३.२१(दक्ष - सुता, कश्यप - पत्नी, कश्यप से इन्द्रतुल्य बलशाली पुत्र हेतु प्रार्थना, कश्यप के निर्देशानुसार दिति द्वारा व्रताचरण, इन्द्र द्वारा छद्म रूप से दिति के व्रत को भङ्ग करना, इन्द्र का सूक्ष्म रूप से दिति के गर्भ में प्रवेश कर वज्र से गर्भ का ४९ भागों में कर्तन, दिति द्वारा शाप का वर्णन), पद्म १.६.४०(दिति के वंश का कथन), १.७ (दिति द्वारा गर्भ के रक्षार्थ ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत का चीर्णन, ब्रह्मा की आराधना, इन्द्र द्वारा गर्भ छेदन से मरुतों की उत्पत्ति), १.४२(तारकासुर के प्रसङ्ग में दिति से वज्राङ्ग नामक पुत्र की उत्पत्ति , वज्राङ्ग से तारकासुर की उत्पत्ति), २.७+ (कश्यप द्वारा दिति को आख्यान का कथन : आत्मा द्वारा ज्ञान - ध्यान का संग त्यागकर पञ्चेन्द्रियों का संग करने से दुःख प्राप्ति), २.२३+ (हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष नामक पुत्रों के वध से दुःखी दिति द्वारा कश्यप से पुत्र हेतु प्रार्थना, कश्यप - वर से दिति को बल नामक पुत्र की प्राप्ति, इन्द्र द्वारा वल का वध, दिति द्वारा कश्यप से पुन: पुत्र हेतु प्रार्थना, वृत्रासुर की उत्पत्ति, इन्द्र द्वारा वध, पुन: इन्द्र वध हेतु दिति द्वारा गर्भ धारण, इन्द्र द्वारा गर्भ का छेदन, ४९ मरुत नामक पुत्रों की उत्पत्ति का वर्णन), २.२४(दिति द्वारा वृत्रासुर पुत्र की प्राप्ति, वृत्रासुर की रम्भा पर आसक्ति), ब्रह्म २.५४ (इन्द्र - शत्रु पुत्र प्राप्ति हेतु दिति द्वारा गर्भ धारण, व्रतों का पालन, इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ का छेदन, दिति द्वारा शाप - न पौरुषं कृतं तस्माच्छापोऽयं भविता तव। स्त्रीभिः परिभवं प्राप्य राज्यात्प्रभ्रश्यसे हरे।। ), ब्रह्माण्ड २.३.५.४७ (दिति के कुशप्लव में तप व गर्भ छेदन की कथा, मरुतों के सप्त वातस्कन्धों का कथन), २.३.७.४६५ (दिति की बलशीला प्रकृति का उल्लेख - अदितिर्धर्मशीला तु बलशीला दितिस्तथा ॥), भविष्य ४.८६(मदन द्वादशी व्रत के प्रभाव से दिति को ४९ मरुद्गणों की पुत्र रूप में प्राप्ति), भागवत ३.१४ (दिति द्वारा हिरण्याक्ष रूप गर्भ धारण की कथा), ६.१८ (पुत्र प्राप्ति के लिए कश्यप द्वारा दिति को संवत्सरव्रत का उपदेश, दिति द्वारा व्रत भङ्ग , ४९ मरुतों की उत्पत्ति), मत्स्य ७.८ (पुत्र प्राप्ति हेतु कश्यप द्वारा दिति को मदन द्वादशी व्रत का उपदेश), वायु ६७.८८ (शक्र द्वारा दिति के गर्भ का छेदन व मरुतों की उत्पत्ति की कथा), ६९.९२ (दिति की गन्धशीला प्रकृति का उल्लेख - गन्धशीला दितिश्चैव प्रवार्ध्ययनशालिनी।), विष्णु १.२१.३०(पुत्र वध से दुःखी दिति द्वारा पति कश्यप को प्रसन्न करना, कश्यप से वर प्राप्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१२१ (दिति का हिरण्यकशिपु आदि वंश), १.१२७(दिति द्वारा कश्यप से इन्द्र - हन्ता पुत्र की याचना, दिति द्वारा कश्यप द्वारा निर्दिष्ट व्रत का पालन, इन्द्र द्वारा छल से दिति के गर्भ में प्रवेश, गर्भ छेदन, ४९ मरुतों की उत्पत्ति की कथा), स्कन्द १.२.१४(दक्ष - कन्या, वज्राङ्ग माता), ३.१.६.८(दिति द्वारा स्वपुत्री को पुत्र प्राप्ति हेतु तप की आज्ञा, दिति – पुत्री द्वारा महिषीरूप धारण, महिष की उत्पत्ति), हरिवंश ३.७१.४९(वराह के विराट् स्वरूप के अन्तर्गत दिति की ग्रीवा में स्थिति – ग्रीवा दितिर्महादेवी तालुः सूर्यश्च दीप्तिमान् ।। ) , वा.रामायण १.४६(इन्द्रहन्ता पुत्र की प्राप्ति हेतु कश्यप - पत्नी दिति का कुशप्लव में तप, इन्द्र द्वारा दिति की परिचर्या व अशुचि अवस्था में स्थित दिति के गर्भ के टुकडे करने का वृत्तान्त - गते तस्मिन् नरश्रेष्ठ दितिः परम हर्षिता । कुशप्लवम् समासाद्य तपः तेपे सुदारुणम् ॥), लक्ष्मीनारायण १.१३३.३(स्वपुत्र हयग्रीव के विष्णु द्वारा वध पर दिति द्वारा पुत्रार्थ तप व ब्रह्मा के वरदान से हिरण्याक्ष व हिरण्यकशिपु पुत्रों की प्राप्ति का वृत्तान्त), २.३२.३३(दैत्यों की माता, बालग्रह, नाम स्वरूप का कथन), कथासरित् ८.२.३६३(मय तथा सुनीथ का सूर्यप्रभ के साथ दिति, दनु माताओं के दर्शनार्थ गमन, माताओं द्वारा आशीर्वाद ) । diti
दिदेहक वायु ३१.९ (स्वायम्भुव मन्वन्तर के त्विषिमान गण के देवों में से एक ) ।
दिनकर ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२३ (दिनकर सूर्य से दन्तों की रक्षा की प्रार्थना), स्कन्द ५.२.८२.३९(दक्ष यज्ञ में भद्रकाली द्वारा दिनकर के करों का सूदन ) । dinakara/ dinkara
दिनकृत्य स्कन्द २.४.५(उष: काल से आरम्भ कर दिन के कृत्यों का निरूपण ) ।
दिनमानार्क लक्ष्मीनारायण २.१९९.९१(राजा, नाविकापुरी - अधिपति, श्रीहरि का सत्कार ) ।
दिनेश स्कन्द ५.१.४३.५७(सुखार्थी द्वारा दिनेश की आराधना का निर्देश, अन्य इच्छा पूर्तियों के लिए अन्य देवों का निर्देश ) । dinesha
दिलावरी लक्ष्मीनारायण ४.८१.६० (राजा नन्दिभिल्ल की नगरी तथा पतिव्रता पत्नी का नाम), ४.८६.५ (पति नन्दिभिल्ल की युद्ध में मृत्यु पर दिलावरी का पाद से वह्नि उत्पादन करके उसमें जलना ) ।
दिलीप पद्म ३.१०+ (दिलीप का वसिष्ठ से तीर्थ विषयक संवाद), ४.१३(वसिष्ठ का दिलीप के प्रति कृष्ण जन्म व बाललीलादि का कथन), ५.११३.२४(दिलीप व वसिष्ठ का पद्म पुराण श्रवण विषयक संवाद), ६.१२५ (दिलीप द्वारा हारीत व वसिष्ठ से माघ स्नान माहात्म्य का श्रवण), ६.२०२ (सुदक्षिणा - पति, वसिष्ठ की आज्ञा से पुत्र प्राप्ति हेतु नन्दिनी गौ की सेवा), ६.२२३ (दिलीप द्वारा पृच्छा पर वसिष्ठ द्वारा लक्ष्मीनारायण मन्त्र का उपदेश), ब्रह्माण्ड २.३.१०.९२(यशोदा - पुत्र, खट्वाङ्ग उपनाम, प्रशंसा), २.३.५६.२९(अंशुमान् - पुत्र, भगीरथ - पिता, तप हेतु वन जाने का उल्लेख), २.३.६३.१६६(दिलीप वंश का वर्णन), २.३.६३.१८२ ( दिलीप का खट्वाङ्ग उपनाम), भागवत ९.९.२(अंशुमान् - पुत्र दिलीप द्वारा गङ्गा अवतारण हेतु तप व असफलता का उल्लेख), ९.२२.११(ऋष्य - पुत्र, प्रतीप - पिता, दिवोदास वंश ), मत्स्य १२.४४(अंशुमान् - पुत्र, भगीरथ - पिता), १२.४८(रघु - पुत्र, अज - पिता), मत्स्य १४.१९(दिलीप का खट्वाङ्ग से तादात्म्य- ब्रह्माण्ड २.३.१०.९०), १५.१९(यशोदा व अंशुमान - पुत्र, भगीरथ - पिता), ५०.३८(भीमसेन - पुत्र, प्रतीप - पिता), वायु ७३.४२/ २.११.८५(आङ्गिरस पितरों के संदर्भ में खट्वाङ्ग/दिलीप की जननी यशोदा व पिता विश्वमहत् का उल्लेख), ८८.१६७/२.२६.१६७(अंशुमान - पुत्र, भगीरथ - पिता), ८८.१८२/२.२६.१८१(दिलीप द्वारा स्वर्ग से आकर मुहूर्त्त भर जीवन प्राप्त करके त्रिलोक जीतने का कथन), ९९.२३३/२.३७.२२८(भीमसेन - पुत्र, प्रतीप - पिता), विष्णु ४.४.३४(अंशुमान् - पुत्र, भगीरथ - पिता), ४.२०.७(भीमसेन - पुत्र, प्रतीप - पिता, परीक्षित् वंश), स्कन्द ३.१.५२ (दान के पात्र के सम्बन्ध में दिलीप का वसिष्ठ से वार्तालाप), ४.२.८३.६४ (दिलीपेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.४.३४ (दिलीप द्वारा वसिष्ठ से काशी में किए पापों के प्रक्षालनार्थ पृच्छा, द्वारका का माहात्म्य), हरिवंश १.१५.१३ (अंशुमान - पुत्र, खट्वाङ्ग उपनाम), १.१८.६१ (विश्वमहान् व यशोदा - पुत्र ), द्र. खट्वाङ्ग ।dileepa/ dilipa
दिव ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०(दिवस्पृश : स्वारोचिष मन्वन्तर के १२ संख्या वाले तुषित देवगण में से एक), १.२.३६.३५(दिवि : औत्तम मन्वन्तर में १२ संख्या वाले सत्य देवगण में से एक), १.२.३६.१०१(दिवञ्जय : उदारधी व भद्रा के पुत्रों में से एक, वाराङ्गी - पति, रिपु - पिता), भागवत ९.१२.१०(दिवाक : भानु - पुत्र, सहदेव - पिता, भविष्य का राजा), मत्स्य १२४.२०(दिव: का परिमाण पृथिवी के बराबर होने का उल्लेख), १९९.१३(दिववष्टा : कश्यप कुल के एक ऋषि), वामन ९० (दिवाकीर्ति : सूर्पाक्षी व घटोदर - पुत्र, कोशकार का प्रसंग), वायु १०१.२१/२.३९.२१(स्व: लोक के ही दिव: होने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.९७.७९(दिवादिङ्गायन : ऋषि, स्व रक्षा के वृत्तान्त का कथन), २.२०१.१२(दिविमानायन : ऋषि, रायकिन्नर नामक राजा के साथ वैष्णव यज्ञ का आयोजन), ३.४५.१७(पञ्चदेव पूजा से दिव लोक प्राप्ति का उल्लेख ) ; द्र. त्रिदिव diva
दिवस अग्नि १९७ (दिवस व्रत का वर्णन), वा.रामायण ६.२२.६८ (समुद्र पर सेतु निर्माण में प्रतिदिन सेतु विस्तार का वर्णन ) । divasa
दिवस्पति गरुड १.८७.५४ (१३वें मन्वन्तर में इन्द्र), गर्ग ४.१३ (दिवस्पति नन्द : मालव देश के गोप, देवाङ्गनाओं का दिवस्पति नन्द की कन्याएं बनकर कृष्ण को प्राप्त करना), ब्रह्माण्ड १.२.२३.५०(सूर्य का नाम), १.२.३६.९५(सूर्य का नाम), ३.४.१.१०१(१३वें मन्वन्तर के इन्द्र का नाम), भागवत ८.१३.३१(१३वें मन्वन्तर के इन्द्र का नाम), मत्स्य २७१.५(प्रतिव्योम - पुत्र, सहदेव - पिता, अयोध्या का राजा, भविष्य के इक्ष्वाकु वंशी राजाओं में से एक), वायु १००.१०५/२.३८.१०५(१३वें मन्वन्तर के इन्द्र का नाम), १०१.२२(भव्य लोक के अधिपति होने के कारण सूर्य के दिवस्पति नाम का उल्लेख), विष्णु ३.२.३९(१३वें मन्वन्तर के इन्द्र का नाम ) ; द्र. मन्वन्तर । divaspati
दिवाकर ब्रह्माण्ड २.३.७०.४(ब्राह्मण रूप धारी आदित्य का सम्बोधन, कार्तिकेय द्वारा स्वागत), भविष्य ३.४.२२.३३ (मुकुन्द ब्राह्मण के शिष्य विमल का अकबर के समय में दिवाकर नामक सन्त के रूप में अवतरण), मत्स्य १५०.१५१(दिवाकर सूर्य का कालनेमि से युद्ध), २६५.३८, ४१(रुद्र की ८ मूर्तियों में से एक, रुद्र द्वारा आदित्य/दिवाकर की रक्षा का उल्लेख), २६६.३८(दिवाकर की मूर्ति के स्वरूप का उल्लेख), वामन ९०.४४(सूर्पाणी व घटोदर - पुत्र, कोशकार मुनि द्वारा पालन तथा दिवाकर नामकरण), ५.३.१५७.१३ (दिवाकर के होम से तुष्ट होने का उल्लेख), वायु २८.३२(वालखिल्यों द्वारा दिवाकर को घेरकर अरुण के आगे जाने का उल्लेख), ५३.२९(सोम के नक्षत्राधिपति तथा दिवाकर के ग्रहराज होने का उल्लेख), ९९.२८२/२.३७.२७८(प्रतिव्यूह - पुत्र, सहदेव - पिता, अयोध्या का राजा, इक्ष्वाकु वंश), १०१.२९/२.३९.१२९(दिवाकर के पृथिवी से १०००x१० योजन दूर होने का उल्लेख ) । divaakara/divakara
दिवाकीर्त्य ब्रह्माण्ड १.२.२८.२३(काव्य व ऊष्मपा पितरों की दिवाकीर्त्य संज्ञा), वामन ९०.१११(दिवाकीर्ति : कोशकार विप्र का मूक पुत्र, सूर्पाक्षी राक्षसी द्वारा हरण आदि प्रसंग), वायु ५६.२१(लेखा व ऊष्मपा पितरों की दिवाकीर्त्य संज्ञा), ७३.६२/२.११.१०२(वातरशना व दिवाकीर्त्य प्रजा) ।
दिवावृत ब्रह्माण्ड १.२.१९.६७(क्रौञ्च द्वीप के ७ पर्वतों में से एक), वायु ४९.६२(वही), विष्णु २.४.५१(वही) ।
दिविरथ ब्रह्माण्ड २.३.७४.१०३(अनपान - पुत्र, धर्मरथ - पिता), भागवत ९.२३.६(खनपान - पुत्र, धर्मरथ - पिता, अनु वंश), मत्स्य ४८.९२(दधिवाहन - पुत्र, धर्मरथ - पिता, बलि वंश), वायु ९९.१०१/२.३७.१०१(अनपान - पुत्र, धर्मरथ - पिता), विष्णु ४.१८.१५(अनपान - पुत्र, धर्मरथ - पिता ) । diviratha
दिवोदास गणेश २.४४.१३ (सुशीला - पति दिवोदास द्वारा काशी के पालन का वर्णन), २.४७.१७ (विष्णु का बौद्ध रूप धारण कर दिवोदास के पास आना, दिवोदास को काशी त्यागने का निर्देश, चतुर्भुज रूप दिखाना), गर्ग १.५.२७(दिवोदास का शल के रूप में अवतरण), पद्म २.८५.५३(प्लक्ष द्वीपस्थ दिवोदास नामक राजा की पुत्री दिव्या देवी के विवाह काल में २१ बार भर्तृ मरण की कथा), ब्रह्म १.९.४० (भीमरथ - पुत्र, प्रतर्दन - पिता, दृषद्वती - पति), १.११.९८ (दिवोदास के वंश का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.१६(दिवोदास द्वारा चिकित्सा दर्पण शास्त्र के प्रणयन का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.६७.२६ (भीमरथ - पुत्र प्रजेश्वर का अपर नाम ; निकुम्भ के शाप से वाराणसी पुरी के नष्ट होने की कथा), भागवत ९.२१.३४ (मुद्गल - पुत्र), मत्स्य ५०.७ (विन्ध्याश्व व मेनका - पुत्र, पूरु वंश), वायु ९२.२३/२.३०.२३ (केतुमान - पुत्र, भीमरथ नाम, वाराणसी के राजा), ९९.२०५/२.३७.२०० (दिवोदास के वंश का वर्णन), विष्णु ४.८.११(भीमरथ - पुत्र, प्रतर्दन - पिता, पुरूरवा वंश), ४.१९.६२, ६९(हर्यश्व - पुत्र, मित्रायु - पिता), स्कन्द ४.१.३९ (रिपुञ्जय का काशी में तप, अनङ्गमोहिनी से विवाह, दिवोदास नाम प्राप्ति), ४.१.३९.३८ (दिवोदास नाम की निरुक्ति, ब्रह्मा द्वारा दिवोदास को काशी का राज कार्य करने का आदेश), ४.१.४३ (दिवोदास के राज्य की स्थिति का वर्णन ; दिवोदास - पालित काशी से अग्नि आदि देवों के प्रयाण पर दिवोदास द्वारा देवों के कार्यों को सम्पन्न करना), ४.२.५२(दिवोदास के निष्कासन हेतु शिव द्वारा प्रेषित ब्रह्मा का द्विज वेष में आगमन), ४.२.५८.१९७ (द्विज रूप धारी गणेश व विष्णु द्वारा दिवोदास को पथ भ्रष्ट करना, दिवोदास द्वारा काशी में दिवोदासेश्वर लिङ्ग की स्थापना व माहात्म्य), ४.२.६२(दिवोदास के कैलासपुर गमन पर देवों का मन्दर पर शिव सन्निधि में गमन), ४.२.८३.७८ (दिवोदास तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.२९.२९ (भीमरथ - पुत्र, निकुम्भ शाप से वाराणसी की जनशून्यता का प्रसंग), १.२९.७२ (सुयशा व दृषद्वती - पति, प्रतर्दन - पिता), १.३२.३१(वध्र्यश्व व मेनका - पुत्र ), लक्ष्मीनारायण १.८१(काशी में अग्नि के लुप्त होने पर दिवोदास द्वारा अग्नि तथा अन्य देवों का कार्य स्वयं संभालना, काशी से देवों का निष्कासन), १.८२.४३(काशी से विरह अनुभव होने पर शिव द्वारा काशी से दिवोदास के निष्कासन हेतु योगिनी चक्र का प्रेषण),१.८३(शिव द्वारा दिवोदास के राज्य में छिद्रान्वेषण हेतु प्रेषित ६४ योगिनियों व आदित्य का लौटकर मन्दर पर्वत को न जाकर काशी में ही स्थित होना), १.८४(शिव द्वारा दिवोदास के राज्य में छिद्रान्वेषण हेतु ब्रह्मा का प्रेषण, ब्रह्मा द्वारा काशी में दशाश्वमेधीश आदि लिङ्गों की स्थापना कर काशी में ही वास), १.८५(शिव द्वारा दिवोदास के राज्य में छिद्रान्वेषण हेतु प्रेषित गणों का वापस न आना, गणेश का काशी गमन व स्वप्नों के फल वक्ता के रूप में काशी की प्रजा को भयभीत करना), १.२०२.७ (१६ चिकित्सकों में से एक), १.४६५(विष्णु द्वारा दिवोदास - पत्नी लीलावती हेतु अन्न, प्राण, मन, आनन्द आदि पतियों की व्याख्या ) । divodaasa/ divodasa
दिव्य अग्नि २५५.२८ (तुला , अग्नि आदि दिव्य परीक्षाओं द्वारा सत्यानृत का निर्णय), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१४(दिव्यमान : स्वारोचिष मन्वन्तर के १२ संख्या वाले पारावत देवगण में से एक), १.२.३६.३९(उत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक ; दिव्यौषधि : उत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक), २.३.७१.१(कौशल्या व सात्वत के ७ पुत्रों में से एक), ३.४.१.८९(१० संख्या वाले सुतार वर्ग के देवों में से एक), भागवत ९.२४.६(सात्वत के ७ पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१३.१(सात्वत~ के पुत्रों में से एक), स्कन्द १.२.४४(अष्टविध शपथादि दिव्य प्रकार का कथन ) । divya
दिव्या गर्ग ५.१८.६ (दिव्या व अदिव्या गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), पद्म २.८६ (दिव्या देवी : दिवोदास -पुत्री, अनेक भर्त्ता मरण दोष, पूर्व जन्म में चित्रा, कृष्ण नाम जप से दोष से निवृत्ति), ५.९२+ (पति मरण के कारण रूप में चित्रा रूपी दिव्यादेवी का चरित्र, वीरसेन से विवाह), ब्रह्माण्ड २.३.१.७४(हिरण्यकशिपु- पुत्री, भृगु - पत्नी, शुक्र - माता), २.३.७.७(२४ मौनेया अप्सराओं में से एक), भविष्य ४.६३ (भृगु - पत्नी, विष्णु द्वारा चक्र से वध), वायु ६५.७३ (हिण्यकशिपु - कन्या, भृगु - भार्या, शुक्राचार्य - माता), लक्ष्मीनारायण ३.५०.२७(दिवोदास राज - कन्या, पतियों का मरण, हेतु वर्णन ), कथासरित् ३.४.२५९(राजा देवसेन की दुःखलब्धिका पुत्री के पतियों के मरण की कथा), । divyaa
दिशा अग्नि १९.२८(ब्रह्मा द्वारा चारों दिशाओं में चार रक्षकों की नियुक्ति का उल्लेख), ५६.१९ (दिशाओं की रक्षा हेतु देवों के आवाहन, मन्त्र आदि द्वारा पूजन का कथन), ८४.१२(दिशाओं के सापेक्ष १०८ रुद्रों की स्थिति), १४३.७(विविध दिशाओं में कुब्जिका की क्रमपूजा का वर्णन), २०१(वासुदेव के परित: नव व्यूहार्चन का वर्णन), २४७.४(वास्तुमण्डल के निर्माण में विभिन्न दिशाओं में विभिन्न देवताओं की स्थापना का कथन), २६४.१३(विविध दिशाओं में वैश्वदेव बलि का अर्पण), ३०१.४(अष्टदल कमल के दिग्वर्ती तथा कोणवर्ती अष्ट दलों में गणेश की अष्ट मूर्तियों का पूजन), गरुड १.१३.२(८ दिशाओं में विष्णु से रक्षा की प्रार्थना), १.३५.३ (दिग्दशमी व्रत), १.५५ (जम्बू द्वीप में भारत आदि नव वर्षों का दिशा - विन्यास), १.११६.६ (दिशाओं की नवमी को पूजा?), २.२३.२९ (रोगों के गृहों का चित्रगुप्त के गृह के सापेक्ष दिशा विन्यास), देवीभागवत १२.३.१२(भुवनेश्वरी देवी के विभिन्न रूपों से दसों दिशाओं में रक्षा की प्रार्थना), पद्म १.४७.७० (विभिन्न दिशाओं में म्लेच्छों के लक्षण), ५.१० (रामाश्वमेध में विभिन्न दिशाओं में द्वारों पर स्थित ऋषियों के नाम), ५.६९ (मथुरा में विभिन्न दिशाओं में स्थित वनों का वर्णन), ५.७०.५ (कृष्ण - पत्नियों की दिशाओं में स्थिति), ६.२२८.१३ (अयोध्या में विभिन्न दिशाओं में द्वारपालों चण्ड, प्रचण्ड आदि का कथन), ब्रह्म १.७.५(अत्रि के तेज से पतित रेतस् का दस दिशाओं द्वारा धारण, धारण में असमर्थ होने पर भूमि पर पतन, सोम की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१०.८१ (भीम शिव की दिशाएं पत्नी तथा स्वर्ग पुत्र होने का उल्लेख), भविष्य ३.४.१७.४५ (ध्रुव - पत्नियों के दिशाओं के सापेक्ष नाम, दिशाओं के दिग्गजों व करिणियों के जन्म), ४.२६.१७(अनन्त तृतीया व्रत विधि के अन्तर्गत आठों दिशाओं में भिन्न - भिन्न देवियों की स्थापना), ४.४०.५(मन्दार षष्ठी व्रत विधि के अन्तर्गत अष्टदल कमल के दलों में पूर्वादि दिशा क्रम से सूर्य की भिन्न - भिन्न नाम मन्त्रों द्वारा पूजा), ४.४८.५(कल्याण सप्तमी व्रत विधि के अन्तर्गत अष्टदल कमल में पूर्वादि दिशा क्रम से सूर्य की भिन्न - भिन्न नाम मन्त्रों द्वारा पूजा), ४.५३.३७(अचला सप्तमी व्रत विधि के अन्तर्गत अष्टदल कमल में पूर्वादि दिशाओं के क्रम से सूर्य की पूजा), ४.११६.४(संक्रान्ति व्रत विधि के अन्तर्गत अष्टदल कमल में पूर्वादि दिशाक्रम से सूर्य की भिन्न - भिन्न नाम मन्त्रों से पूजा), भागवत ६.८.३४(नृसिंह से दिशाओं - विदिशाओं में रक्षा की प्रार्थना), ९.१६.२१ (यज्ञ में परशुराम द्वारा ऋत्विजों को दिशाओं का दान - ददौ प्राचीं दिशं होत्रे ब्रह्मणे दक्षिणां दिशम्। अध्वर्यवे प्रतीचीं वै उद्गात्रे उत्तरां दिशम् ॥), ९.१९.२२(ययाति द्वारा दिशाओं में यदु आदि का नियोजन), १०.८९.४७ (पश्चिम दिशा में अर्जुन व कृष्ण का गमन, अन्धकार का वर्णन, अनन्त से मिलन), मत्स्य ९३.११(ग्रहों का दिशा विन्यास), २६१.१( ८ दिशाओं में लोकपालों के स्वरूप), मार्कण्डेय ९६.४१/९३.४१(दिशाओं के रक्षक अग्निष्वात्त आदि पितरों के नाम), लिङ्ग १.४८ (८ पुरियों की दिशाओं के सापेक्ष स्थिति), वराह १७.२५(दिशाओं की विष्णु से उत्पत्ति), २९ (दस दिशाओं की श्रीहरि के कर्ण से उत्पत्ति व इन्द्र, अग्नि आदि दस लोकपालों से विवाह), ६५(सार्वभौम व्रत के अन्तर्गत दसों दिशाओं को शुद्ध बलि प्रदान करने का विधान), वामन ७०.३२(पूर्वादि चारों दिशाओं में प्रवाहित शिव की रक्त धारा से विद्याराज, कालराज, कामराज तथा सोमराज नामक भैरवों की उत्पत्ति), ८५.९(तपोरत ऋषि द्वारा रक्षामन्त्र से सभी दिशाओं में विष्णु - रूपों द्वारा रक्षा), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.३(विभिन्न दिशाओं में पुरुष व प्रकृति के नाम), वायु ५३.४६(विभिन्न दिशाओं में ग्रहों की योनिभूत सूर्य रश्मियों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०४.१०० (दिशा आवाहन मन्त्र), ३.२२४ (उत्तर दिशा का अष्टावक्र से संवाद : दिशा द्वारा स्त्री स्वभाव का वर्णन, भार्गव मुनि द्वारा स्वसुता दिक् को अष्टावक्र को प्रदान करना), शिव १.१०.९(सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह नामक पञ्चकृत्य को धारण करने हेतु शिव की पञ्चमुखता, चार दिशाओं की चतुर्मुखता तथा पञ्चम मुख ब्रह्मा विष्णु से तप द्वारा प्राप्त), २.१.११.४५(शिव पूजा विधि के अन्तर्गत दिशाओं में अणिमादि सिद्धियों का न्यास), ७.२.२५.४(शिव पूजा के अन्तर्गत विभिन्न दिशाओं में गर्भावरण तथा भिन्न - भिन्न देवों की पूजा), ७.२.२९.२३(शिव के ५ मुखों के ५ दिशाओं में स्वरूप का कथन), ७.२.३०.५(विभिन्न आवरणों में विभिन्न दिशाओं में शिव के नामों का न्यास), स्कन्द ३.१.५१.२४(दिशाओं में वानरों का स्मरण), ४.२.७४.५० (काशी में विभिन्न दिशाओं के रक्षक गणों के नाम), ४.२.८१.४२ (धर्मेश लिङ्ग के परित: स्थित लिङ्ग व उनके फल), ५.१.२६ (महाकाल के परित: द्वारपाल), ५.२.८१.३२(महाकाल के परित: पिङ्गल, कायावरोहण, बिल्वेश्वर तथा दुर्दर्श की नियुक्ति), ५.३.६०.५३ (नर्मदा में विभिन्न दिशाओं में स्नान से विभिन्न पापों के नष्ट होने के संदर्भ में पांच पुरुषों का वृत्तान्त), ७.१.४.९५ (प्रभास क्षेत्र में विभिन्न दिशाओं में द्वारपाल), ७.१.१७.६५ (ग्रहों का दिशाओं के सापेक्ष विन्यास), ७.१.२३.१०५(दिशा अनुसार कुण्ड की आकृतियां), ७.४.१७ (कृष्ण की पुरी में विभिन्न दिशाओं में द्वारपालों के नाम), हरिवंश ३.३५(यज्ञवाराह द्वारा पूर्वादि चारों दिशाओं में पर्वतों व नदियों का निर्माण), ३.७१.४७(वराह के विराट् स्वरूप के अन्तर्गत कान में दिशाओं की तथा भुजाओं में विदिशाओं की स्थिति), योगवासिष्ठ ३.३६.२१(समस्त दिशाओं से युद्धार्थ आए हुए राजा पद्म के सहायकों का कथन), ५.३१.५८(प्रह्लाद द्वारा कुक्षियों में दिशाओं की धारणा का उल्लेख), वा.रामायण १.४०.१७(सगर - पुत्रों द्वारा अश्व अन्वेषणार्थ रसातल खनन के समय पूर्व आदि चारों दिशाओं में चार दिशा गजों का दर्शन), ४.४०+ (सुग्रीव द्वारा सीता अन्वेषणार्थ विभिन्न दिशाओं में वानर प्रेषण, विभिन्न दिशाओं में स्थानों का वर्णन), महाभारत वन ३१३.८५(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में सन्तों के दिक् होने का उल्लेख), उद्योग १०८+ (गरुड द्वारा गालव को ४ दिशाओं का वर्णन), शान्ति २०८.२६(४ दिशाओं में स्थित ऋषियों के नाम), अनुशासन १६५.३७(४ दिशाओं में विराजने वाले ऋषियों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.२२७.१(द्वारका के परित: ८ दिशाओं में स्थित द्वारपालों के नाम), २.२४६.३१(सम्बन्धी – बान्धवों के दिगीश्वर होने से विरोध का निषेध), ३.१००.१२०(दिशा की सूर्य पर मुग्धता, सूर्य के कथनानुसार अगि|म जन्म में पद्मावती नामक पुत्री की प्राप्ति), ३.१२२.१०८ (पुत्रीव्रत से दिशाओं को पद्मावती नामक पुत्री की प्राप्ति), कथासरित् ३.४.५७(वत्सराज के पूछने पर यौगन्धरायण द्वारा दिग्विजय प्रयाण हेतु सर्वप्रथम पूर्व दिशा में गमन के हेतु का कथन ) ;द्र. दिक्, विदिशा । dishaa
दिष्ट देवीभागवत १०.१३ (वैवस्वत मनु के छह पुत्रों में से एक, भ्रामरी देवी की उपासना से इन्द्र सावर्णि मनु बनना), ब्रह्माण्ड १.२.३८.३१(वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों में से एक), २.३.६०.३(वही), भागवत ८.१३.२(श्राद्धदेव/वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक), ९.१.१२(श्राद्धदेव मनु व श्रद्धा के १० पुत्रों में से एक), ९.२.२३ (दिष्ट के वंश का वर्णन), मार्कण्डेय ११३/११०(दिष्ट - पुत्र नाभाग द्वारा वैश्य - कन्या से पाणिग्रहण कर वैश्यत्व प्राप्ति का वृत्तान्त), विष्णु ४.१.७(वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक ) । dishta
दीक्षा अग्नि २४.४३ (दीक्षा विधि), २७ (दीक्षा विधि का वर्णन), ८१ (दीक्षा के सबीजा आदि प्रकार व दीक्षा विधि, समय दीक्षा), ८२ (संस्कार दीक्षा विधि - मायात्मनोर्विवेकेन ज्ञानं सीमन्तवर्धनं ॥), ८३+ (निर्वाण दीक्षा विधि), ८९ (एकतत्त्व दीक्षा विधि), ३०४ (शिव पञ्चाक्षर मन्त्र दीक्षा विधान), ३२५.४ (दीक्षा कुल भेद का वर्णन), गरुड १.९ (दीक्षा विधि), १.२२ (पञ्च तत्त्व दीक्षा), देवीभागवत १२.७ (दीक्षा लक्षण व विधि का वर्णन), नारद १.६३.१०७+ (पाश मोचन हेतु दीक्षा की महिमा का कथन ; दीक्षा विधि), १.६४(मन्त्र सिद्धिप्रद दीक्षा विधि का निरूपण), १.६५.२० (दीक्षा विधि), पद्म ५.८२ (कृष्ण मन्त्र दीक्षा विधि), ७.२१(दीक्षित : हरिशर्मा - पुत्र, अन्न जल दान से पिता की स्वदेह भक्षण से मुक्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१०.५५(शिव के उग्र नाम से द्विज के दीक्षित होने का कथन), १.२.१०.८३ (उग्र रुद्र की पत्नी, सन्तान - माता), ३.४.४३ (श्रीदेवी के दर्शन हेतु स्पर्श, दृग् आदि दीक्षा, क्रिया दीक्षा प्रकार का वर्णन), भविष्य १.६३(दीक्षा के अधिकारी पुरुष के कर्त्तव्य), १.१४९ (सूर्य दीक्षा विधि), २.१.१७.८ (दीक्षा में अग्नि का नाम जनार्दन), ४.९४.१३ (सुमन्त - पत्नी, भृगु - पुत्री, अनन्त व्रत माहात्म्य प्रसंग), लिङ्ग २.१३.१८ (उग्र शिव की पत्नी, सन्तान - माता), २.२० (दीक्षा की महिमा, दीक्षा के अधिकारी), २.२१ (शैवदीक्षा विधि), वराह १२७ (दीक्षा - पूर्व अनुशासन ; ब्राह्मण दीक्षा सूत्र का वर्णन), २०७.४०(दीक्षा से कुलजन्य प्राप्ति का उल्लेख), वायु २७.५५(महादेव के ७वें उग्र नामक शरीर की पत्नी रूप में दीक्षा का तथा पुत्र रूप में सन्तान का उल्लेख), १२८.१ (चतुर्वर्ण - दीक्षा, दीक्षा के प्रकार), विष्णुधर्मोत्तर ३.९७ (देव प्रतिमा प्रतिष्ठा विधि के अन्तर्गत यजमान का ऋत्विजों के साथ दीक्षा ग्रहण), शिव ६.२ (शिव द्वारा पार्वती को मन्त्र दीक्षा प्रदान), ७.२.१५.५(दीक्षा की निरुक्ति : दीयते विज्ञानं, क्षीयते पाशबन्धनं । दीक्षा के ३ प्रकारों शाम्भवी, शक्ति व मान्त्री का कथन), ७.२.१५.५(शिव दीक्षा विधान का कथन), ७.२.१६ (शिव दीक्षा में शिष्य संस्कार का विधान), स्कन्द १.२.१३ (इन्द्रद्युम्न आदि की प्रार्थना पर लोमश महर्षि द्वारा शिव दीक्षा प्रदान पूर्वक शिवलिङ्ग पूजा का उपदेश), लक्ष्मीनारायण १.११२+ (नारायण द्वारा शिव को वैष्णवी दीक्षा ; दीक्षा विधि), १.२०२(सनकादि द्वारा शूद्री - सुत नारद को दीक्षा विधान का कथन : बालक द्वारा भुक्त शेष का भक्षण आदि), १.५७५(कन्या दान हेतु आचार्य रूपी वर? से भागवती दीक्षा के ग्रहण का वर्णन), २.१३३.१०(श्रीहरि द्वारा लालासन योगी को दीक्षा प्रदान, दीक्षा की महिमा का वर्णन), २.१७५.६५ (दीक्षा में शनि के बलशाली होने का उल्लेख), ३.३५.१२१(श्रीहरि द्वारा बृहद्धर्म नृपति को साधवी दीक्षा प्रदान), ३.६९.८(मन्त्र दीक्षा की विधि), ३.१२०.८१(दीक्षा विधान के अन्तर्गत स्पर्श दीक्षा), महाभारत अनुशासन ५७.११(दीक्षा से उत्तम कुल में जन्म प्राप्ति का उल्लेख ) ; द्र. हरिदीक्षित । deekshaa/ diksha
दीक्षित पद्म ७.२१ (हरिशर्मा - पुत्र, अन्न - जल दान से पिता की स्वदेह भक्षण से मुक्ति), वायु २७.१९(दीक्षित ब्राह्मण : कुमार नीललोहित के ८ नामों के संदर्भ में ब्रह्मा की ८ धातुओं में से एक ), द्र. हरिदीक्षित ।deekshita/ dikshita
दीधय वायु ३१.६(स्वायम्भुव मन्वन्तर के याम नामक १२ देवों में से एक ) ।
दीननाथ पद्म ४.१२ (अपुत्र राजा, गालव परामर्श से नरमेध के निश्चय का प्रसंग ) ।
दीप अग्नि २०० (दीप दान व्रत : दीप प्रबोध के प्रभाव से मूषिका का राजकुमारी बनना), गरुड २.२.७४(दीपहारक के कपाली बनने का उल्लेख), नारद १.७५ (हनुमान हेतु दीप निर्माण व दान विधि), १.७६.६१ (कार्त्तवीर्य अर्जुन हेतु दीप निर्माण व दान विधि), १.१२२.४६ (कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को यम व शिव हेतु दीप दान), पद्म २.८६.६७ (दीप द्वारा कर्म तैल को शोषित करने का निर्देश), ४.३(दीप दान की महिमा), ५.८४.८१ (दीप का आध्यात्मिक तात्पर्य), ६.३० (संवत्सर दीप व्रत विधान, कपिल - मार्जार - मूषक कथा), ६.३२(दीप दान का फल), ६.१२१(दीप दान की विधि), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.१३ (दीप दान से ब्रह्म लोक की प्राप्ति), ३.४.४२(दृष्टि सौन्दर्य हेतु रत्नप्रदीप दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड २.३.११.४५(पितरों को दीपदान के फल का कथन), ३.४.३५.९८(दीपिका : शंकर की शक्तिरूप १६ कलाओं में से एक), भविष्य १.११८ (सूर्य मन्दिर में दीप जलाने का माहात्म्य, भद्र ब्राह्मण की कथा), १.१९७.१७ (घृत दीपक, कटु तैल के दीपक व मधूक तैल के दीपक के फल का कथन), २.१.१७.१६ (दीपाग्नि का पावक नाम), ४.१२१.७६(दीप व्रत की विधि का कथन), ४.१३० (दीप दान की महिमा, भिन्न - भिन्न देवों के लिए भिन्न - भिन्न रङ्ग के वस्त्रों से निर्मित वर्तिकाओं के नाम, दीप दान से मूषिका का रानी ललिता बनना), मत्स्य १९१.३८(दीपेश्वर : नर्मदा तट पर एक तीर्थ), वराह १३५.८(रात्रि में दीप रहित स्थिति में भगवान् वराह के स्पर्श दोष के प्रायश्चित्त का कथन), १३६(दीपक स्पर्श कर भगवान् वराह का स्पर्श करने से दोष प्राप्ति, दोष निवृत्ति हेतु प्रायश्चित्त का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.९८.१५ (ग्रह - नक्षत्रों के लिए घृत अथवा तैल के दीपक की देयता, वसायुक्त दीपक की वर्जना), १.१६६ (दीप दान के माहात्म्य का वर्णन), १.१६७ (दीप के संदर्भ में मूषिका द्वारा वर्तिका भक्षण की कथा), २.९१.१६ (देवपूजा में देय व अदेय दीप का विचार), शिव १.१६.५१ (दीप दान से अपस्मार का क्षय), स्कन्द १.२.४.८१(दीपदान की कानीयस दान के अन्तर्गत गणना), २.२.७.८३(शबरों के आवास की शबरदीप नाम से प्रसिद्धि), २.४.७.२७ (आकाश दीप की महिमा ; दीप दान), २.४.९ (पांच दीपों से शकुन का अवलोकन), २.४.३५.३८(कार्तिक पूर्णिमा में हर हेतु दीप दान से पाप मुक्ति), २.५.८ (दीप का पूजा में महत्त्व), ४.१.१३(शिवालय में दीपदान से गुणनिधि को जन्मान्तर में राजपुत्रत्व की प्राप्ति), ५.१.३० (दीप दान की महिमा, शिव के अन्तर्धान हो जाने पर लोकों में अन्धकार, दीप से ज्ञान होना), ५.३.५६.११८(दीप दान से उत्तम चक्षु की प्राप्ति), ५.३.१५९.९४(आश्विन् कृष्ण चतुर्दशी में दीप दानादि की महिमा), ६.२३९.४९(चातुर्मास में दीप दान के महत्त्व का वर्णन), ६.२४० (विष्णु पूजा में दीप का विनियोग व माहात्म्य), हरिवंश २.८१.३(पतिप्रिया व पुत्रवती हेतु दीपदान), योगवासिष्ठ १.१७.४९ (दीप शिखा की तृष्णा से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.४१२.८८(दीपावली आदि पर्वों पर दीप दान से दुःसह के निष्कासन का उल्लेख), १.४५१.७५(शबरी कथित दीपादि का रूप : ह्रदय सुप्रदीप, प्राण हवि, करण अक्षत आदि), ३.४५.२९(दीप दानादि से वह्निमण्डल प्राप्ति का उल्लेख), ३.७९.२५(दीप दान माहात्म्य), ३.८५.११५ (दीपोत्सवीघोटक : महर्षि का नाम), ४.३२.९( कुम्भकार - पत्नी सुनारिणी द्वारा श्री हरि को नैवेद्य, जल, दीप आदि प्रदान), कथासरित् ६.८.७०( द्विज द्वारा मनुष्य वसा से प्रज्वलित दीप से भूमि का परीक्षण, दीप का पतन, द्विज द्वारा पतन स्थान पर भूमि - खनन, यक्ष द्वारा द्विज का वध), १.६.८८ (दीपकर्णि : राजा, शक्तिमती - पति, सातवाहन नामक पुत्र की प्राप्ति की कथा), महाभारत अनुशासन ६८.२७(यमराज द्वारा शर्मी ब्राह्मण हेतु दीप दान के महत्त्व का कथन), ९८.४५(अन्धतामिस्र नरक व दक्षिणायन हेतु दीप दान के महत्त्व व दीप के तैल के प्रकार का कथन), १२७.८(अङ्गिरा द्वारा करञ्ज वृक्ष में दीप दान के महत्त्व का कथन ) । deepa/ dipa
दीपावली पद्म ६.१२२ (दीपावली के कृत्य), भविष्य ४.१४० (दीपावली उत्सव विधि), स्कन्द २.४.९.७१(दीपावली विधान), ६.१०३ (आनर्त्त तीर्थ में दीप दान से राजा श्वेत को चक्षु की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण २.५.६५(षष्ठी देवी की देह से नि:सृत देवी की सैन्य की कुङ्कुमवापिका क्षेत्र में स्थिति तथा हरि द्वारा दीपावली नाम प्रदान), २.२३७.३२(श्रीहरि द्वारा दीपोत्सव में श्री, शारदा, लक्ष्मी, सरस्वती व सती के पूजन का उल्लेख) । deepaavalee/ deepaavali/ dipavali
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दीप्त पद्म १.२०.९० (दीप्ति व्रत का माहात्म्य व विधि), मत्स्य १०१.४१ (दीप्ति व्रत का विधान और माहात्म्य), वराह ३६.३(सत्ययुगीन शान्त नामक राजा की त्रेतायुग में दीप्ततेजा नाम से प्रसिद्धि), विष्णु ३.१.१५(उत्तम मनु के पुत्रों में से एक), शिव २.५.३६.११ (दीप्तमान् : शङ्खचूड - सेनानी, अश्विनौ से युद्ध), स्कन्द ४.२.६९.११४ (दीप्तेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७०.६२ (दीप्ता देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), कथासरित् १०.६.८२(दीप्तनयन : उलूकराज - मन्त्री, चोर की रक्षा का परामर्श), १२.६.४०(दीप्तशिख : अट्टहास - भ्राता, विनोद हेतु नाटक में नडकूबर पात्र बनना, कुबेर - पुत्र नडकूबर द्वारा शाप), १२.६.४३१ (दीप्तशिख : यक्ष, शाप से मर्त्यलोक में जन्म, शाप समाप्ति पर पुन: यक्ष रूप धारण करना ) । deepta
दीप्तकेतु ब्रह्माण्ड ३.४.१.६४(प्रथम सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), भागवत ८.१३.१८(दक्ष सावर्णि मनु के पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.२४(वही) ।
दीप्ति नारद १.६६.१३४(जटी गणेश की शक्ति दीप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३६.५९(दीप्तिमेधा : १४ संख्या वाले सुमेधा देवगण में से एक), २.३.७.२३६ (महादीप्त : वाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), ३.४.१.१७(२० संख्या वाले अमिताभ देव गण में से एक), मत्स्य १०१.४१(दीप्तिव्रत की विधि का कथन), वायु ११.४, ९(प्राणायाम के ४ फलों में से एक), १००.१६/२.३८.१६(२० संख्या वाले अमिताभ देव गण में से एक), स्कन्द १.२.१३.१७१(शतरुद्रिय प्रसंग में किन्नरों द्वारा धातुलिङ्ग की सुदीप्त नाम से पूजा का उल्लेख ) । deepti
दीप्तिमान् गर्ग ७.६.१५ (प्रद्युम्न - सेनानी, राजा गय को पराजित करना), ७.२०.२८ (दीप्तिमान् का कृपाचार्य से युद्ध), ७.३६.७ (दीप्तिमान् द्वारा महानाभ असुर का वध), १०.२४.१३ (अनिरुद्ध - सेनानी, अनुशाल्व राजा से युद्ध), १०.३७.२९ (दीप्तिमान् द्वारा शिवगणों को पराजित करना), देवीभागवत ९.२२.७ (शङ्खचूड - सेनानी, अश्विनौ से युद्ध), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९७(स्वायम्भुव मन्वन्तर के १२ देवगण का नाम), ३.४.१.११(सावर्णि मनु के प्रथम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), भागवत ८.१३.१५(आठवें सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), १०.६१.१८(कृष्ण व रोहिणी के पुत्रों में से एक), १०.९०.३३(कृष्ण के १८ महारथी पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१७(कृष्ण व सत्यभामा के पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.१७(आठवें सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ५.३२.२ (कृष्ण व रोहिणी के पुत्रों में से एक), शिव २.५.३६.११(शङ्खचूड - सेनानी, अश्विनौ से युद्ध ) । deeptimaan
दीर्घ गणेश २.६३.२६ (दीर्घदन्त : देवान्तक असुर - सेनानी , चक्र व्यूह का निर्माण), नारद १.६६.१०७(अर्धीश? की शक्ति दीर्घघोणा का उल्लेख), १.६६.१०८ (दीर्घमुखी : भारभूति की शक्ति दीर्घमुखी का उल्लेख), १.६६.१३२(वामदेवेश गणेश की शक्ति दीर्घघोणा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९५(दीर्घा : विष्णु की १० कलाओं में से एक), ३.४.४४.६६(दीर्घमुख : ५१ वर्णों के गणेशों में से एक), मत्स्य १७९.२९(दीर्घकेशी : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु १०१.११५/२.३९.११५(दैर्घ्य : लिक्षा, यूका, यव, अङ्गुल आदि दैर्घ्य मान व अवयवों का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.८.२९(पञ्चदीर्घ पुरुष के लक्षण), स्कन्द ७.१.५८.२४(दिलीप– पुत्र, रघु – पिता), ७.४.१७.१२ (दीर्घनख : दानव, कृष्ण पुरी के पूर्व द्वार के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.१११.३७(दीर्घशील : ब्राह्मण, दान तथा पुरुषोत्तम साम जप के प्रभाव से मुक्ति की कथा), ३.२२४.१(दीर्घरम्भ : उष्ट्रपालक, रामायण नामक साधु के सदुपदेश से मोक्ष प्राप्ति की कथा), कथासरित् १.२.२०(दीर्घजङ्घ : काणभूति - अग्रज, कुबेर द्वारा काणभूति को शाप देने पर दीर्घजङ्घ द्वारा शाप मुक्ति हेतु कुबेर से प्रार्थना), १२.१९.३५(दीर्घदर्शी : अङ्गदेशीय यश:केतु राजा का मन्त्री, मिथ्या जनापवाद से मुक्ति हेतु तीर्थयात्रा के लिए गमन), १५.२.३४(दीर्घदंष्ट्र : विद्याधरराज, श्रुता - पिता), महाभारत शान्ति १३७(संकट से सावधान रहने के संदर्भ में दीर्घदर्शी, उत्पन्नप्रतिभ व दीर्घसूत्री मत्स्यों का दृष्टान्त ) ; द्र. दैर्घ्य । deergha/dirgha
दीर्घजिह्व नारद १.६६.१०८(स्थावरेश की शक्ति दीर्घजिह्वा का उल्लेख), १.६६.१२७(दीर्घजिह्व की शक्ति पार्वती का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२७(दीर्घजिह्व : भण्डासुर के १५ सेनानायकों में से एक), ३.४.२५.९४ (दीर्घजिह्व :भण्डासुर -सेनानी, भगमाला द्वारा दीर्घजिह्व का वध), ३.४.४४.५६(दीर्घजिह्विका : १६ स्वर शक्तियों में से एक ), deerghajihva
दीर्घतपा ब्रह्माण्ड २.३.६७.२० (काशिराज, शुनहोत्र - पुत्र, धन्वन्तरि - पिता), वायु ५९.१०२(३३ आङ्गिरस मन्त्रकर्ताओं में से एक), ९२.६ (काश - पुत्र, धन्वन्तरि - पिता), विष्णु ४.८.७(राष्ट्र - पुत्र, धन्वन्तरि - पिता, पुरूरवा वंश), स्कन्द २.७.२३.१७ (उतथ्य - पुत्र दीर्घतपा के जन्म की कथा – इन्द्र के वीर्य पर पदाघात, इन्द्र के शाप से जात्यन्ध होना आदि), ५.३.५२+ (काशिराज चित्रसेन द्वारा दीर्घतपा - पुत्र ऋक्षशृङ्ग की हत्या, दीर्घतपा के समस्त परिवार का मरण, शूलभेद तीर्थ में अस्थि क्षेप से स्वर्गारोहण), हरिवंश १.३१.३९(बलि के अङ्ग, वङ्ग प्रभृति ५ क्षेत्रज पुत्रों की दीर्घतपा व सुदेष्णा से उत्पत्ति), योगवासिष्ठ ५.१९.११(मुनि, पुण्य और पावन - पिता), लक्ष्मीनारायण १.८०.६ (राष्ट्र - पुत्र, तप द्वारा धन्वन्तरि पुत्र की प्राप्ति), १.४८५(दीर्घतपा ऋषि के मृगरूप धारी पुत्र ऋष्यशृङ्ग का राजा चित्रसेन द्वारा वध, दीर्घतपा की शोक से मृत्यु, अस्थियों के नर्मदा में क्षेपण से दिव्य देह प्राप्ति), ३.९८.७६(ऋषि, शबर द्वारा शश - अदन पर शाप), कथासरित् ५.२.२४(ऋषि, सूर्यतपा - अग्रज, शक्तिदेव के पूछने पर दीर्घतपा का कनकपुरी नगरी के सम्बन्ध में अनभिज्ञता प्रकट करना ) ; द्र. दीर्घतमा । deerghatapaa/ dirghatapa
दीर्घतमा ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०१(गर्भ से उत्पन्न व सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक), २.३.७४.३४ (उशिज एवं ममता - पुत्र दीर्घतमा के चरित्र का वर्णन), भागवत ९.१७.४(राष्ट्र - पुत्र, धन्वन्तरि - पिता, पुरूरवा वंश), ९.२३.५(दीर्घतमा द्वारा बलि के क्षेत्र में अङ्ग, वङ्ग आदि ५ पुत्र उत्पन्न करने का उल्लेख), मत्स्य ४८.४२ (उशिज व ममता से दीर्घतमा की उत्पत्ति की कथा, बृहस्पति द्वारा दीर्घतमा को शाप, दीर्घतमा द्वारा बलि - पत्नी / दासी से पुत्र उत्पति की कथा), ४८.८० (दीर्घतमा द्वारा गौ धर्म के आचरण से सुरभि गौ का प्रसन्न होना, गौ द्वारा दीर्घतमा के शरीर से पाप का निवारण), ४९.२३ (दीर्घतमा द्वारा माता के गर्भ में बृहस्पति के वीर्य पर पदाघात करने पर शाप की प्राप्ति), १४५.९५ (दीर्घतमा द्वारा सत्य के प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख), वायु ९९.३४/२.३७.३४(अशिज - पुत्र, बृहस्पति के शाप से दीर्घतमा नाम की प्राप्ति, वृषभ द्वारा गौ - धर्म ग्रहण, औतथ्य - पत्नी से समागम पर शरद्वान से शाप प्राप्ति, जल में पतित दीर्घतमा की बलि द्वारा रक्षा, दीर्घतमा से बलि को ५ क्षेत्रज पुत्रों की प्राप्ति, दीर्घतमा के गौ - धर्म आचरण से प्रसन्न वृष द्वारा दीर्घतमा का शाप - निवारण, दीर्घतमा द्वारा गौतम नाम धारण करने का वृत्तान्त), विष्णु ४.१८.१३(दीर्घतमा द्वारा बलि के क्षेत्र में अङ्ग, वङ्ग आदि ५ पुत्र उत्पन्न करने का उल्लेख), ४.१९.१६(माता ममता के गर्भ में स्थित दीर्घतमा द्वारा बृहस्पति के वीर्य से उत्पन्न गर्भ पर पदाघात करने का कथन), स्कन्द २.७.२३.८ (उतथ्य - पुत्र, जन्म की कथा, इन्द्र द्वारा जात्यन्धता का शाप आदि, दीर्घतपा नाम), ३.१.१६.६३ (कक्षीवान् - पिता, कक्षीवान् के विवाह में स्वनय राजा द्वारा दीर्घतमा को आमन्त्रण), लक्ष्मीनारायण १.४८५.२ (दीर्घतमा का दीर्घतपा से साम्य ?), २.३१.८४(बृहस्पति के शाप से दीर्घतमा नाम धारण, प्रद्वेषी-पति, बलि की पत्नी तथा दासी में पुत्रों की उत्पत्ति ) ; द्र. दीर्घतपा । deerghatamaa/ dirghatama
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दीर्घबाहु गर्ग ६.१५.२३ (दीर्घबाहु राजा की मृत्यु पर गोपीचन्दन मृत्तिका के स्पर्श से नरक से मुक्ति ), ७.१८.१६ (विन्ध्य - अधिपति, प्रद्युम्न से सन्धि, यादव वीरों द्वारा जलपूर्ण पात्र वेधन की स्पर्धा, दीर्घबाहु द्वारा स्वकन्याओं का विवाह), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१८३(खट्वाङ्ग - पुत्र, रघु - पिता), भागवत ९.१०.१ (खट्वाङ्ग - पुत्र, रघु - पिता), मत्स्य १२.४९(अज - पुत्र, अजपाल - पिता, इक्ष्वाकु वंश), वराह ३७.२५ (दीर्घबाहु राजा का शाप से व्याघ्र बनना), वायु ८८.१८३/२.२६.१८२(खट्वाङ्ग - पुत्र, रघु - पिता), विष्णु ४.४.८३(खट्वाङ्ग - पुत्र, रघु - पिता), स्कन्द ५.२.२५ (दीर्घबाहु द्वारा ब्राह्मणों के अपमान से शाप द्वारा व्याघ्र बनना, नारायण मन्त्र से मुक्ति), ६.११९(दुर्वासा द्वारा दीर्घबाहु राजा को महिष होने का शाप, दीर्घबाहु द्वारा हाटकेश्वर में शिवाराधना, शिव द्वारा वर प्रदान), लक्ष्मीनारायण १.५४२.२८(क्रियाकाण्ड परायण दीर्घबाहु विप्र द्वारा ब्राह्मणों की अवमानना करने पर शाप से सिंह बनना, व्याध के बाण से सिंह की मृत्यु, अन्तिम समय में कृष्ण नाम श्रवण से दिव्य देह प्राप्ति, आरुण - व्याध प्रसंग ) । deerghabaahu/ dirghabahu
दीर्घिका ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९४(दीर्घा : श्रीहरि की कलाओं में से एक), स्कन्द ६.१३५ (वीरशर्मा - पुत्री, तापसी, कुष्ठी से विवाह, माण्डव्य की शूली का कम्पन करना, माण्डव्य का शाप, सूर्योदय न होना, भूमि में पदाघात से जल उत्पन्न करना, स्नान माहात्म्य आदि ; तुलनीय : स्क. ५.३.१७१ में शाण्डिली), लक्ष्मीनारायण १.५०२(कुरूप दीर्घिका कन्या द्वारा कुष्ठी पति के वरण का वृत्तान्त : माण्डव्य ऋषि द्वारा पति माण्डूक्य को सूर्योदय से पूर्व मरण का शाप, दीर्घिका द्वारा सूर्योदय का रोधन आदि), २.११६.४७(नदी, तटवर्ती वृक्षों में गज अश्वादि को ठहराकर राजा का मृगया हेतु गहनारण्य में प्रवेश), ४.२२.४४ (इन्द्र द्वारा दीर्घिका कन्या का आसन शुद्ध करने पर दीर्घिका द्वारा विवाह करना), कथासरित् ३.४.३५२(विदूषक द्वारा उदय पर्वत पर दीर्घिका /बावडी के दर्शन), १२.६.१५७(दैत्यकन्या की सेविकाओं द्वारा राजा भूनन्दन का दीर्घिका /बावली में प्रक्षेपण ) । deerghikaa/ dirghika
दुकूल विष्णुधर्मोत्तर ३.३४१.१८२(देव हेतु दुकूल/ वस्त्र दान से वह्निष्टोम फल प्राप्ति का उल्लेख ) ।
दुगण्ड स्कन्द ७.१.१०.५(दुगण्ड का पृथिवी तत्त्व वाले तीर्थों में वर्गीकरण)
दुग्ध गरुड ३.२९.५९(दुग्ध अन्न भोगकाल में श्रीनिवास के स्मरण का निर्देश), नारद १.९०.७६(दुग्ध द्वारा आरोग्य सिद्धि का उल्लेख), पद्म २.२९.४४(पृथु द्वारा पृथिवी दोहन का वृत्तान्त), ४.२३.१२ , ६.१५५ (दुग्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : दधीचि द्वारा अस्थि त्याग के स्थान का धेनु द्वारा दुग्ध से सिंचन), वामन ८२.४४ (माता के निर्देशानुसार विरूपाक्ष शिव के आराधन से उपमन्यु को विरूपाक्ष शिव से दुग्ध की प्राप्ति), वायु २३.७४/१.२३.८२(शिव के मुख से च्युत सोम के जीवों के प्राणदायक पय: बनने का कथन), स्कन्द २.८.८ (दुग्धेश्वर कुण्ड : कामधेनु द्वारा राम का दुग्ध से सत्कार), ५.१.५४.२९ (दुग्ध कुण्ड की उत्पत्ति व उसमें स्नान आदि का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.२३५.८६ (चाण्डालों की कुलदेवी चाण्डाल - कन्या तामसाक्षि का कथन), ३.१११.२३(दुग्धदान से अमृत धाम प्राप्ति का उल्लेख), ४.१०१.१३२(दुग्धा : कृष्ण - पत्नी, धारिणी व धाता युगल - माता ) । dugdha
दुन्दुभि अग्नि २६९.३५ (दुन्दुभी प्रार्थना मन्त्र), गणेश २.८८.३० (दुन्दुभि असुर द्वारा दिए गए विषयुक्त फल को गणेश द्वारा पचाना, असुर का वध), ब्रह्माण्ड १.२.१४.२३, २६(क्रौञ्च द्वीप के अधिपति द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक, दुन्दुभि के दुन्दुभि जनपद का उल्लेख), १.१.२.१९.१०(प्लक्ष द्वीप पर स्थित पर्वत), १.२.१८.७५(जम्बू द्वीप के पूर्व दिशा में स्थित पर्वतों में से एक), १.२.१९.१६(दुन्दुभि पर्वत के आनन्द वर्ष का उल्लेख), २.३.६.४(दनु के १०० पुत्रों में से एक), २.३.६.२९(दानव, मय व रम्भा के ६ पुत्रों में से एक), भविष्य ४.१३८.७२ (दुन्दुभी मन्त्र), भागवत ९.२४.२०(अन्धक - पुत्र, अरिद्योत - पिता, सात्वत वंश), मत्स्य ५८.१८(तडाग आदि निर्माण में रजत निर्मित दुन्दुभि दान का निर्देश), १२२.१३(श्याम पर्वत का अपर नाम, शाकद्वीप के सात महापर्वतों में से एक, दुन्दुभी नाम धारण हेतु का कथन, दुन्दुभि की शब्द मृत्यु का उल्लेख), मार्कण्डेय १३३.६/१३०.६(नरिष्यन्त - पुत्र दम द्वारा दैत्यश्रेष्ठ दुन्दुभी से अस्त्र - शिक्षा ग्रहण करने का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.१९(द्वितीय द्वापर में शिव के अवतार सुतार मुनि के चार शिष्यों में से एक), वराह ८८.३(क्रौञ्च द्वीप के वर्षों में से एक, अपर नाम अनर्थ), वामन ९.२९ (दुन्दुभी का नाग वाहन), १९.२१ (मय - पुत्र, महिषासुर द्वारा कात्यायनी को प्रेषित दूत), वायु ३३.२१(क्रौञ्च द्वीप के अधिपति द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक, दुन्दुभि के दुन्दुभि नामक जनपद का उल्लेख), ४९.९(प्लक्ष द्वीप के पर्वतों में से एक, दुन्दुभि असुर की पराजय का स्थान), ६८.२८/२.७.२८(मय के पुत्रों में से एक), ६९.२५६/ २.८.२५४ (वज्रदंष्ट्र व दुन्दुभि : पिशाचों के १६ युगलों में से एक), ९६.१४५/ २.३४.१४५(वसुदेव के जन्म पर स्वर्ग में दुन्दुभि व आनकों के स्तोम से वसुदेव का आनकदुन्दुभि नाम प्राप्त करना), विष्णु २.४.७(प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों में से एक), २.४.५१(क्रौञ्च द्वीप के अधिपति द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक, दुन्दुभि के दुन्दुभि जनपद का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१६०.३१ (दुन्दुभी मन्त्र), शिव ३.४.१२(द्वितीय द्वापर में सुतार नाम से शिव के अवतार ग्रहण करने पर शिव के शिष्यों में से एक), ५.२६.४० ,५० (नौ प्रकार के नादों में से एक दुन्दुभि नाद के ध्यान से जरा, मृत्यु से मुक्ति), स्कन्द २.४.९.१४टीका (दुन्दुभी के दुष्ट चरित्र के संदर्भ में एकाङ्गी आभीरी की कथा), ७.४.१७.१७(दुन्दुभी निस्वन : कृष्ण की द्वारका के दक्षिण द्वार के रक्षकों में से एक), ७.४.१७.१९(द्वारका के दक्षिण दिशा के द्वारपालों में से एक), वा.रामायण ४.११.७ (महिष रूप दुन्दुभी राक्षस का वाली से युद्ध व मृत्यु), ७.१२.१३(रावण को मयासुर द्वारा दुन्दुभी का परिचय), लक्ष्मीनारायण १.३००.१७(ब्रह्मा द्वारा अपत्यार्थ तप से उत्पन्न तीन पुत्रों, तीन पुत्रियों व तीन षण्ढों में से एक), १.३००.४६(ब्रह्मा - पुत्र दुन्दुभि का वैकुण्ठ वासी महादुन्दुभि से पुरुषोत्तम मास की अष्टमी व्रत के सम्बन्ध में वार्तालाप), १.३०१.६०(श्रीहरि की दुन्दुभि द्वारा अग्नि व सुवर्ण को मलमास की नवमी के महत्त्व का कथन, सुवर्ण को दुन्दुभि से प्रथम बार सम्मान प्राप्त होना), १.३०४.७८(दुन्दुभि द्वारा सावित्री को पुरुषोत्तम मास की द्वादशी व्रत की विधि का कथन), १.३०५.५०(दुन्दुभि द्वारा जया, ललिता आदि चार कन्याओं को पुरुषोत्तम मास की त्रयोदशी के माहात्म्य का वर्णन), १.३०६(श्री, लक्ष्मी भगिनी आदि कन्याओं द्वारा दुन्दुभि से अधिक मास की चतुर्दशी के माहात्म्य का श्रवण), कथासरित् ८.५.५५(पर्वत, दुन्दुभी - पर्वतराज मेधावर के श्रुतशर्मा - महारथी होने का उल्लेख), १८.२.३(यक्षराज, मदनमञ्जरी - पिता ) ; द्र. आनकदुन्दुभि । dundubhi
दुन्दुभिनिर्ह्राद शिव २.५.५८.१ (प्रह्लाद-मातुल/मामा, व्याघ्र रूप शिव द्वारा वध), स्कन्द ४.२.६५.४६ (प्रह्लाद का मामा, व्याघ्र रूप, दण्डखात तीर्थ में तपोरत विप्रों के पास आगमन, शिव द्वारा वध ) ।
दुन्नविल्ल स्कन्द ७.२.४ (दुन्नविल्ल ह्रद का माहात्म्य ) ।
दुरतिक्रम शिव ३.४.१९(चतुर्थ द्वापर में शिव के अवतारों सुहोत्र के ४ शिष्यों में से एक ) ।
दुराचार पद्म ६.१८७ (दुराचारा : हरिदीक्षित - पत्नी, व्याघ्र द्वारा भक्षण, जन्मान्तर में चाण्डाली बनना , गीता के १३वें अध्याय के प्रभाव से मुक्ति), ६.२१३+ (दुराचारा : कुशल विप्र - पत्नी, मृत्यु के पश्चात् पुत्र द्वारा श्राद्ध से उद्धार, शची - सखी बनना), स्कन्द २.१.२५ (जाबालि तीर्थ में स्नान से दुराचार द्विज की पाप से मुक्ति), २.४.१२ (देवशर्मा - पुत्र, शाप से मूषक, कार्तिक कथा से मुक्ति), ३.१.३६ (वेताल द्वारा दुराचार का ग्रहण, मुक्ति, दत्तात्रेय से संवाद, श्राद्ध महिमा), लक्ष्मीनारायण १.४०४.५१(वेताल द्वारा पापी दुराचार विप्र के ग्रहण व जाबालि तीर्थ में वेताल द्वारा दुराचार के मोचन की संक्षिप्त कथा ) । duraachaara/ durachara
दुरारोह स्कन्द १.२.६२.३५(चत्वरों में दुरारोह जाति के क्षेत्रपालों की स्थिति का उल्लेख), कथासरित् ८.२.२२४(दैत्यराज, प्रह्लाद के आमन्त्रण पर भोजन हेतु आगमन), ८.२.३२५(पांचवें रसातल का दैत्यराज, कुमुदावती - पिता, सूर्यप्रभ को पुत्री प्रदान करना ) ।
दुरासद गणेश २.३८.४१ (भस्मासुर - पुत्र, शिव भक्ति से अवध्यता, अजेयत्व प्राप्ति), २.४१ (दुरासद का वक्रतुण्ड गणेश के साथ युद्ध), २.४२.२५ (वक्रतुण्ड द्वारा विराट रूप धारण कर दुरासद दैत्य को पराजित करना, दुरासद दैत्य का पर्वत की भांति निश्चल होना ) । duraasada/ durasada
दुरितघोष लक्ष्मीनारायण ४.६३.१(विप्र, पापाचार रत, श्रीहरि कथा श्रवण से त्यागिदीक्षा ग्रहण, मुक्ति की कथा ) ।
दुर्ग अग्नि २२२ (दुर्ग के प्रकार व निर्माण विचार), ब्रह्माण्ड १.२.७.१०२(३ स्वयं उत्थित दुर्गों के उल्लेख सहित कृत्रिम दुर्ग की रचना का वर्णन), भागवत १०.५०.४९(जरासन्ध व कालयवन से यदुवंशियों की रक्षा हेतु कृष्ण व बलराम द्वारा द्वारका नामक दुर्ग का निर्माण), मत्स्य १३०.१(मय द्वारा निर्मित त्रिपुर दुर्ग का वर्णन), २१७.६ (दुर्ग निर्माण विधि, दुर्ग में संग्रहणीय उपकरणों का वर्णन), मार्कण्डेय ४९.३५/४६.३५(त्रेतायुग में शीत, उष्ण आदि द्वन्द्वों के निवारण हेतु पर्वत, गुफा आदि स्वसमुत्थित तथा स्वनिर्मित दुर्गों में निवास का उल्लेख), वायु ८.१०८/१.८.१०३ (तीन स्वयमुत्थित दुर्गों के अतिरिक्त त्रेतायुग में प्रजा द्वारा ४ प्रकार के दुर्गों का निर्माण, कृत्रिम दुर्ग के निर्माण की विधि, दुर्ग के लक्षण), विष्णुधर्मोत्तर २.२६(दुर्ग में संग्रहणीय द्रव्य व ओषधियों का वर्णन), स्कन्द ४.२.५७.६०(काशी के दक्षिण में स्थित दुर्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.७१(कालरात्रि द्वारा दुर्गासुर का वध), लक्ष्मीनारायण २. ? ( दुर्गजङ्घ : दैत्य, बालप्रभु का मारने का उद्योग), कथासरित् १२.४.११(दुर्गपिशाच : मातङ्गपति, भिल्लराज - मित्र), १२.६.२(वही), महाभारत शान्ति ८६.४(६ प्रकार के दुर्गों के नाम ; राजा के निवास योग्य दुर्ग /नगर का वर्णन ) । durga
दुर्गन्ध स्कन्द ६.२२.२२(दिति के गर्भ के टुकडे करने पर शक्र के दुर्गन्धयुक्त होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.५.८७(ब्रह्मकूर्च महासुर के पर्दन / देहमल से दुर्गन्ध नामक नर की उत्पत्ति), ३.१७४.७८(दकार के परिणामस्वरूप उत्पन्न भावों के वर्णन में पिशाचों का दुर्गन्ध के प्रति स्वाभाविक भाव होने का उल्लेख ) । durgandha
दुर्गम देवीभागवत ७.२८.५(दैत्य, रुरु - पुत्र, तप से ब्रह्मा से वर रूप में वेद प्राप्ति, शताक्षी/शाकम्भरी देवी द्वारा दुर्गम का वध), मार्कण्डेय ७५.३०/७२.३० (रेवती - पति, विक्रमशील व कालिन्दी - पुत्र, दुर्गम व रेवती के विवाह का प्रसंग), शिव ५.५०.३(रुरु - पुत्र दुर्गम दैत्य द्वारा वेदों का हरण, लोक को त्रास, त्रस्त देवों द्वारा देवी से प्रार्थना, देवी द्वारा दुर्गम का वध, दुर्गा नाम धारण), कथासरित् २.१.५६(सहस्रानीक - पत्नी मृगावती का गरुडवंशीय पक्षी द्वारा हरण, दुर्गम पर्वत पर पतन, जमदग्नि के आश्रम में निवास आदि ) । durgama
दुर्गा अग्नि ५०.७(दुर्गा की प्रतिमा के लक्षण), ५०.१०(नव दुर्गा प्रतिमाओं के लक्षण), १८५(आश्विन् शुक्ल नवमी में नव दुर्गाओं की स्थापना, दशाक्षर मन्त्र से पूजा), ३०८.१९(दुर्गा ह्रदय मन्त्र सहित दुर्गा पूजन विधि), गणेश २.११७.३(उग्र - पुत्री, सिन्धु - पत्नी, धर्म व अधर्म - माता, रण विमुख पति को सत्परामर्श देना), गरुड १.३८(दुर्गा पूजा विधि), १.१३३+ (दुर्गा प्रीतिकर महानवमी व्रत का निरूपण), देवीभागवत ३.२६.४३(९ वर्षीया कन्या का नाम), ९.१.१४(५ मूल प्रकृतियों में प्रथम दुर्गा देवी की महिमा व स्वरूप), ९.२.६४(दुर्गा की महिमा), ९.५०.५३(दुर्गा मन्त्र, आवरण पूजा विधान ; दुर्गा स्तोत्र का कथन), नारद १.६६.९०(गदी विष्णु की शक्ति दुर्गा का उल्लेख), १.६७.१००(दुर्गा की पार्षद उच्छिष्ट चाण्डाली), १.७६.११५(दुर्गा के अर्चनप्रिया होने का उल्लेख), १.८३.७०(दुर्गा की राधा से उत्पत्ति, स्वरूप व मन्त्र विधान का कथन), १.८७(विधान सहित दुर्गा मन्त्र चतुष्टय का निरूपण), १.११८.१७ (आश्विन शुक्ल नवमी को दुर्गा पूजा), पद्म ६.१७३ (दुर्गा - साभ्रमती सङ्गम का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.८५ (दुर्गा की उत्पत्ति), १.६.४ (दुर्गा की सिंह वाहिनी प्रकृति, कृष्ण द्वारा शङ्कर को दुर्गा का समर्पण), २.१.१(गणेश - माता, सृष्टि निर्माण में प्रकृति नामधेय), २.१०.१५१(दुर्गा द्वारा सरस्वती को विष्णुभक्ति देने का उल्लेख), २.५७.२(दुर्गा के विभिन्न नामों का माहात्म्य, सुरथ - पूजित), ३.३९ (दुर्गा कवच का वर्णन), ३.४५.३ (परशुराम कृत दुर्गा स्तोत्र), ४.६.१४६(जाम्बवती रूप में अवतरण), ४.२७.८ (गोपियों द्वारा कृष्ण प्राप्ति हेतु पठित दुर्गा स्तोत्र), ४.२७.१८(दुर्गा शब्द की निरुक्तियां), ४.८६.५३(धर्म द्वारा दुर्गा की विशेषताओं का उल्लेख), ४.८६.९७(दुर्गा के मर्त्य स्तर पर बुद्धि होने का उल्लेख), ४.८८ (त्रिपुर वध के लिए शङ्कर कृत दुर्गा स्तोत्र), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.८०(ललिता देवी के अट्टहास से उत्पन्न दुर्गा देवी को देवों द्वारा उपहार प्रदान करना, देवी द्वारा महिषादि का वध), भविष्य ४.६१.१०(नव दुर्गाओं के नाम), मार्कण्डेय ७८/८१(दुर्गा सप्तशती का प्रारम्भ), वराह २८(वेत्रासुर से त्रस्त देवों की पुकार पर दुर्गा का प्राकट्य, शिव द्वारा स्तुति), ६४.३(शौर्य व्रत के संदर्भ में नवमी को दुर्गा की अर्चना का उल्लेख), वामन १८.३६(देवी, विन्ध्य पर्वत पर स्थिति), शिव ५.५०.३६ (दुर्गा शब्द की निरुक्ति : दुर्गम दैत्य का वध करने से देवी द्वारा दुर्गा नाम धारण), स्कन्द १.३.२.१९ (पार्वती द्वारा महिषासुर वधार्थ दुर्गा की उत्पत्ति, दुर्गा द्वारा मातृका उत्पन्न करना, महिष वध), ३.१.६ (देवों के तेज से दुर्गा की उत्पत्ति, आयुध प्राप्ति, महिषासुर का वध), ४.२.७१ (दुर्ग असुर का वध करने पर कालरात्रि द्वारा दुर्गा नाम प्राप्ति), ७.१.८३.४८(दुर्गा स्तुति के प्रकार), ७.१.३२२ (दुर्गादित्य का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.४२४.१९(रण्ड के नाश हेतु दुर्गा का उल्लेख), २.२९७.८७(कृष्ण का दुर्गा पत्नी के गृह में हंसने व नर्म वाक्य बोलने का कृत्य), ४.१०१.९४(कृष्ण - पत्नी, देवगणप व कृषीश्वरी युगल की माता ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(रुद्र की रक्षण शक्ति) । durgaa
Remarks on Durgaa Saptashati
दुर्जन अग्नि ३४८.६(एकाक्षर कोश में च वर्ण द्वारा दुर्जन के बोध का उल्लेख ) ।
दुर्जय कूर्म १.२३ (अनन्त - पुत्र, वीतिहोत्र - पौत्र, उर्वशी से रमण, कण्व से प्रायश्चित्त पृच्छा, वाराणसी में पाप का प्रायश्चित्त), गणेश २.६३.२९ (देवान्तक असुर - सेनानी, ईशिता सिद्धि से युद्ध ), वराह १०+ (सुप्रतीक व विद्युत्प्रभा - पुत्र, सुकेशी व मिश्रकेशी कन्याओं से विवाह, गौरमुख मुनि से मणि हरण का प्रसंग), ११ (गौरमुख मुनि द्वारा दुर्जय का चिन्तामणि द्वारा आतिथ्य, दुर्जय द्वारा मणि का हरण, गौरमुख द्वारा दुर्जय को भस्म करना), लक्ष्मीनारायण १.५३२.३(सुप्रतीक व विद्युत्प्रभा - पुत्र, विद्युत् व सुविद्युत् नामक असुरों की सहायता से सुकेशी व मिश्रकेशी कन्याओं की पत्नी रूप में प्राप्ति, गौरमुख ऋषि द्वारा मणि की सहायता से राजा दुर्जय व उसकी सेना का सत्कार, राजा द्वारा मुनि से चिन्तामणि की याचना, युद्ध व नष्ट होना ) । durjaya
दुर्दम देवीभागवत ०.४.३९ (विक्रमशील व कालिन्दी - पुत्र, रेवती कन्या से रेवती नक्षत्र में विवाह की कथा, देवी भागवत कथा श्रवण से रैवत पुत्र की प्राप्ति), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६५, १७१(वसुदेव व रोहिणी की ८ सन्तानों में से एक, अभिभूत - पिता), २.३.७४.११(गान्धारराज धृत - पुत्र, प्रचेता - पिता, द्रुह्यु वंश), भागवत ९.२२.४३(शतानीक - पुत्र, वहीनर - पिता, जनमेजय वंश), मत्स्य ४३.११(रुदश्रेणी - पुत्र, कनक - पिता, यदुवंश), ४६.१२(वसुदेव व रोहिणी के पुत्रों में से एक), वायु २३.१२७/१.२३.१२०(चतुर्थ द्वापर में भगवदवतार सुहोत्र के ४ पुत्रों में से एक), ९२.६३.२.३०.६३(भद्रश्रेण्य के दिवोदास द्वारा हत १०० पुत्रों में से बचा एक पुत्र), ९६.१६३/२.३४.१६३(आनकदुन्दुभि व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक), ९६.१६८/२.३४.१६९(दुर्मद : रोहिणी के पुत्रों में से एक), ९९.११/ २.३७.११ (घृत - पुत्र, प्रचेता -पिता, द्रुह्यु वंश), विष्णु ४.११.१०(भद्रश्रेण्य - पुत्र, धनाक - पिता, यदु वंश), ४.१५.२२(आनकदुन्दुभि व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक), ४.१७.४(घृत - पुत्र, प्रचेता - पिता, द्रुह्यु वंश), शिव ३.४.१९(चतुर्थ द्वापर में सुहोत्र नामक शिव - अवतार के ४ पुत्रों में से एक?), स्कन्द ३.१.४ (विश्वावसु गन्धर्व - पुत्र, वसिष्ठ द्वारा शाप, सुदर्शन चक्र से मुक्ति), ४.२.८१.५१ (दम - पुत्र, दुष्ट प्रवृत्ति, आनन्द कानन में प्रवेश व धर्मेश लिङ्ग की आराधना से निर्वाण प्राप्ति), ७.२.१७.१५६ (राजा, रेवती से विवाह, रैवत मनु - पिता), हरिवंश १.२९.६९(भद्रश्रेण्य - पुत्र), १.३५.५(वसुदेव व रोहिणी - पुत्र), लक्ष्मीनारायण १.१५७.६२(विक्रमशील व कालिन्दी - पुत्र, प्रमुच मुनि द्वारा पालित कन्या रेवती से विवाह का वृत्तान्त, दुर्दम के पुत्र का पञ्चम मनु रैवत बनना ) । durdama
दुर्दर्श स्कन्द ५.२.८१.३३(महाकालवन के क्षेत्र रक्षण हेतु उत्तर दिशा में दुर्दर्श नामक गणनायक की नियुक्ति ) ।
दुर्धर देवीभागवत ५.१२.५२ (महिषासुर - सेनानी, महिषासुर को परामर्श), ५.१८(महिषासुर - सेनानी, देवी द्वारा वध), ब्रह्म १.१०६.१२९(उत्कोच भक्षकों के दुर्धर नामक नरक में यातना प्राप्त करने का उल्लेख), स्कन्द ७.४.१७.३७(कृष्ण पुरी के ईशान दिशा के रक्षकों में से एक), हरिवंश २.१०५.४७ (शम्बर - सेनानी, प्रद्युम्न द्वारा वध), वा.रामायण ५.४६.२४ (दुर्धर द्वारा प्रमदावन में हनुमान से युद्ध, मृत्यु), ५.४९.११(मन्त्र तत्त्व का ज्ञाता, रावण का मन्त्री), ६.३०.३३ (वानर, वसु - पुत्र ) । durdhara
दुर्धर्ष गणेश २.२७.२१ (प्रमदा - पति, जारज पुत्र साम्ब को राज्य देना), पद्म १.७० (यम द्वारा दुर्धर्ष का वध), ६.१५३ (दुर्धर्षेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : शुक्र द्वारा संजीवनी विद्या प्राप्ति, इन्द्र द्वारा दुर्धर्ष शिव से पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति), स्कन्द ५.१.३१ (दुर्धर्ष तीर्थ का माहात्म्य), ५.२.७० (दुर्धर्षेश्वर का माहात्म्य : राक्षस द्वारा पत्नी हरण पर दुर्धर्ष राजा द्वारा पूजा ) । durdharsha
दुर्नेत्र गर्ग १०.३४.१६(दुर्नेत्र का बृहद्भानु से युद्ध ) ।
दुर्भगा नारद १.६६.१३५(खड्गी गणेश की शक्ति दुर्भगा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.७५(५१ वर्णशक्तियों में से एक वर्ण शक्ति), भागवत ४.२७+ ( कालकन्या, पूरु को वर, नारद को शाप, पुञ्जन पुरी पर आक्रमण), मत्स्य १७९.१४(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ सृष्ट मातृकाओं में से एक), स्कन्द ५.२.६१.४५(जमदग्नि द्वारा राजा को दु:शीला और दुर्भगा पत्नी के भी पोषण का निर्देश ) । durbhagaa
दुर्भर स्कन्द २.८.८(दुर्भर नामक तीर्थ का माहात्म्य ) ।
दुर्मद ब्रह्माण्ड २.३.६७.६६(भद्रसेन - पुत्र, दिवोदास द्वारा जीवन दान का उल्लेख), २.३.६९.७(भद्रसेन - पुत्र, कनक - पिता), ३.४.२२.६४ (भण्डासुर - सेनानी, सम्पत्करी देवी द्वारा वध), ३.४.४४.६८(५१ विघ्नेश्वररों में से एक), भागवत ४.२५.५२(पुरञ्जन उपाख्यान के अन्तर्गत पुरञ्जन का शरीर रूपी नगर के ९ द्वारों में से एक पश्चिम दिशा के आसुरी नामक द्वार से दुर्मद के साथ ग्रामक देश में गमन), ४.२९.१४(दुर्मद के उपस्थ का प्रतीक होने का उल्लेख), ९.२३.२३(भद्रसेन - पुत्र, धनक - पिता?, यदु वंश), ९.२४.४६(वसुदेव व रोहिणी के पुत्रों में से एक), ९.२४.४७(वसुदेव व पौरवी के पुत्रों में से एक), वायु ९४.७(भद्रश्रेण्य - पुत्र, कनक - पिता, यदु वंश), ९६.१६८/२.३४.१६९(वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक ) । durmada
दुर्मना भागवत ९.२३.१५(धृत के पुत्रों में से एक, प्रचेता - पिता, द्रुह्यु वंश ) ।
दुर्मर्ष भविष्य ३.३.३२.१८(दुर्मर्षण : कौरवांश, विष्वक्सेनीय राजा लहर के १६ पुत्रों में से एक), भागवत ८.१०.३३ (देव - दानव युद्ध में दुर्मर्ष का कामदेव से युद्ध), ९.२४.४२(सृंजय व राष्ट्रपाली के पुत्रों में से एक ) । durmarsha
दुर्मुख गणेश २.८५.२१ (दुर्मुख गणेश से दन्तों की रक्षा की प्रार्थना), गर्ग १०.३४.१६(दुर्मुख का यादववीर अरुण से युद्ध), १०.३५.६ (अनुशाल्व द्वारा बल्वल - सेनानी दुर्मुख का वध), देवीभागवत ५.१२.४० (महिषासुर - सेनानी, युद्ध हेतु परामर्श), ५.१३.४८(महिषासुर - सेनानी, देवी द्वारा वध), नारद १.६६.१३०(दुर्मुख गणेश की शक्ति भूति का उल्लेख), पद्म १.७० (यम द्वारा दुर्मुख का वध), ब्रह्माण्ड २.३.७.१३६(खशा व कश्यप के कईं राक्षस पुत्रों में से एक), ३.४.२७.८१(छह विघ्ननायकों में से एक), वायु २३.१२७/१.२३.१२०(विष्णु अवतार सुहोत्र के पुत्रों में से एक), शिव ३.४.१९(चतुर्थ द्वापर में शिव के अवतारी सुहोत्र के ४ शिष्यों में से एक), स्कन्द ७.१.२९० (सुदुर्मुख : राजा, कुबेर के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), वा.रामायण ५.२३.१६ (दुर्मुखी : राक्षसी, सीता को रावण का वरण करने का परामर्श ), ६.५८.२१ (दुर्मुख वानर द्वारा प्रहस्त - सचिव समुन्नत का वध), ७.५.३६(माल्यवान् व सुन्दरी के ७ पुत्रों में से एक ) । durmukha
दुर्योधन कूर्म १.२४.१४ (दुर्योधन राक्षस द्वारा राजा नवरथ का अनुगमन, सरस्वती द्वारा वध), गरुड ३.१२.८३(कलि का दुर्योधन से तादात्म्य), गर्ग १.५.३० (कलि का अंश), ७.२०.२८ (दुर्योधन का प्रद्युम्न से युद्ध), १०.४८+ (दुर्योधन द्वारा उग्रसेन के अश्वमेधीय हय का बन्धन, यादवों से युद्ध व पराजय), १०.४९.१९ (दुर्योधन का अनिरुद्ध - सेनानी सात्यकि से युद्ध), १०.५०.३६ (दुर्योधन द्वारा कृष्ण की स्तुति), देवीभागवत ४.२२.३७ (कलि का अंश), ब्रह्म १.९९.३४(साम्ब द्वारा दुर्योधन - सुता का हरण, दुर्योधनादि कौरवों द्वारा साम्ब का बन्धन, पश्चात् मुक्ति का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.७१.८४ (दुर्योधन द्वारा बलराम से गदा संचालन शिक्षा की प्राप्ति का उल्लेख), भविष्य ३.३.१३.९४ (दुर्योधन का कलियुग में महीपति रूप में अवतरण), ३.३.२२.२८ (दुर्योधन का कलियुग में महीपति रूप में जन्म), भागवत ३.१.१३(विदुर द्वारा धृतराष्ट्र को दुर्योधन को त्यागने का परामर्श, दुर्योधन द्वारा विदुर का तिरस्कार व निष्कासन), १०.५७.२६(दुर्योधन द्वारा बलराम से गदा संचालन की शिक्षा की प्राप्ति का उल्लेख), १०.७५.३८ (युधिष्ठिर की सभा में दुर्योधन को जल - थल की भ्रान्ति), १०.७९.२३(बलराम द्वारा कुरुक्षेत्र में भीम व दुर्योधन के गदायुद्ध को रोकने के प्रयास में असफलता), महाभारत स्वर्गारोहण १.५(मृत्यु - पश्चात् दुर्योधन का साध्यगण के बीच सुशोभित होना), वामन ६८.४५(अन्धक - सेनानी, नन्दी से युद्ध एवं नन्दी द्वारा वध), ६९.५० (अन्धक - सेनानी, घण्टाकर्ण से युद्ध), वायु ९६.८३/२.३४.८३(दुर्योधन द्वारा बलराम से गदा संचालन शिक्षा की प्राप्ति का उल्लेख), विष्णु ४.१३.७०(दुर्योधन द्वारा निर्मित लाक्षागृह से पाण्डवों की रक्षा आदि के लिए कृष्ण के वारणावत जाने का उल्लेख), ४.१३.१०६(मिथिला में बलराम द्वारा दुर्योधन को गदा युद्ध की शिक्षा), स्कन्द ५.३.३३.५(दुर्योधन राजा द्वारा असवर्ण वह्नि के साथ स्वकन्या के विवाह का निषेध, वह्नि का यज्ञकुण्ड में न आना, दुर्योधन द्वारा स्वकन्या का वह्नि से विवाह), ६.७२.१(हाटकेश्वर क्षेत्र में दुर्योधन द्वारा स्थापित लिङ्ग के संदर्भ में बलराम - पुत्री भानुमती के दुर्योधन से विवाह का वृत्तान्त ) । duryodhana
दुर्वसु द्र. तुर्वसु ।
दुर्वार्क्षी भागवत ९.२४.४३(वृक - पत्नी, तक्ष, पुष्कर आदि की माता ) ।
दुर्वासा गर्ग १.२० (दुर्वासा द्वारा कृष्ण के मुख में ब्रह्माण्ड का दर्शन, कृष्ण की स्तुति), ४.१ (दुर्वासा का भाण्डीर वन में आगमन, कृष्ण द्वारा सत्कार, गोपियों द्वारा प्रदत्त भोजन के भोग की कथा), ६.१०.३८ (दुर्वासा द्वारा कुबेर के मन्त्रियों घण्टानाद व पार्श्वमौलि को शाप देकर गज व ग्राह बनाना), देवीभागवत ९.४०.३ (पारिजात पुष्पों का तिरस्कार करने के कारण दुर्वासा द्वारा इन्द्र को भ्रष्ट - श्री होने का शाप), पद्म १.४ (दुर्वासा को विद्याधरों से प्राप्त माला का इन्द्र द्वारा अपमान करने पर दुर्वासा द्वारा इन्द्र को शाप), २.१२.१२२ (तप सिद्धि न होने पर दुर्वासा द्वारा धर्म को तीन शाप : राजत्व, दासी पुत्रत्व तथा चाण्डालत्व), ४.८(माला की अवमानना पर दुर्वासा द्वारा इन्द्र को शाप), ६.१८४.७५(दुर्वासा को देखकर नग्न अप्सरा द्वारा पद्मिनी का रूप धारण, दुर्वासा द्वारा पद्मिनी बनने का शाप), ६.२०५(दुर्वासा से शापित शिवशर्मा की निगमोद्बोध तीर्थ में देहत्याग से मुक्ति), ६.२३१(दुर्वासा द्वारा इन्द्र को श्रीहीन होने का शाप), ब्रह्मवैवर्त्त २.३६.४(दुर्वासा द्वारा इन्द्र को शाप), २.५१.२१ (सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि तिरस्कार पर दुर्वासा द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया), ३.२०.५०(महेन्द्र को दुर्वासा द्वारा पारिजात पुष्प प्रदान, पुष्प का माहात्म्य), ४.७.१३२(वसुदेव द्वारा दुर्वासा को अपनी पुत्री प्रदान करना), ४.११.१५(पाण्ड~य देशाधिपति सहस्राक्ष का दुर्वासा द्वारा शापित होना), ४.१६.३९ (वसुदेव को दुर्वासा द्वारा योग प्राप्ति), ४.२३.१(दुर्वासा द्वारा तिलोत्तमा एवं बलिपुत्र को ब्रह्मशाप), ४.२४.१(दुर्वासा द्वारा कन्दली को पत्नी रूप में स्वीकार करना), ४.२५ (और्व द्वारा दुर्वासा को शाप), ४.२५ (अम्बरीष - एकादशी उपाख्यान में दुर्वासा की सुदर्शन चक्र से मुक्ति), ४.५० (केश युक्त भोजन के कारण दुर्वासा द्वारा अम्बरीष के लिए कृत्या उत्पन्न करना, दुर्वासा का दर्प भङ्ग होना), ४.६०.४२(दुर्वासा द्वारा नहुष को शाप), ४.११२.५० (दुर्वासा का कृष्ण से संवाद), ब्रह्माण्ड २.३.८.८२(दत्तात्रेय - अनुज), ३.४.६.१३ ( दुर्वासा द्वारा विद्याधरों से दिव्य माला की प्राप्ति, शक्र को माला प्रदान करना, शक्र द्वारा माला की अवमानना से दुर्वासा द्वारा श्रीहीन होने का शाप), भविष्य १.७२(दुर्वासा मुनि द्वारा साम्ब को शाप प्रदान), भागवत १.१५.११(कृष्ण द्वारा वन में दुर्वासा व उनके शिष्यों को तृप्त कर पाण्डवों की दुर्वासा के कोप से रक्षा का कथन), ४.१.१५(अत्रि व अनसूया के ३ पुत्रों में से एक), ९.४(दुर्वासा द्वारा अम्बरीष के लिए कृत्या उत्पन्न करना, चक्र द्वारा दुर्वासा का पीछा, अम्बरीष से क्षमा याचना से मुक्ति), ४.१.३३(दुर्वासा की शिव के अंश से उत्पत्ति का उल्लेख), ६.१५.१३(ज्ञान दान हेतु पृथिवी पर विचरण करने वाले सिद्धों में से एक), ८.५.१६(दुर्वासा के शाप से इन्द्र सहित तीनों लोकों के श्रीभ्रष्ट होने पर समुद्र मन्थन का उद्योग), ९.५ (दुर्वासा द्वारा अम्बरीष के लिए कृत्या उत्पन्न करना, चक्र द्वारा दुर्वासा का पीछा, मुक्ति), ११.१.१२(पिण्डारक क्षेत्र में निवास करने वाले ऋषियों में से एक), वराह १६(दुर्वासा द्वारा इन्द्र को शाप दान का उल्लेख), ३८ (दुर्वासा का बुभुक्षाग्रस्त व्याध के पास आगमन, व्याध द्वारा अन्न व जल से दुर्वासा को संतुष्ट करने का वृत्तान्त, दुर्वासा द्वारा वर प्रदान, व्याध का सत्यतपा नामकरण), ३९.११+ (दुर्वासा द्वारा सत्यतपा व्याध को कर्मकाण्ड के चार भेदों में से चतुर्थ विविध द्वादशी व्रतों के विधान व माहात्म्य का वर्णन), वामन २.४७(दुर्वासा की शंकर के अंश से उत्पत्ति), वायु ७०.७६/२.९.७६(दत्तात्रेय - अनुज, अबला - भ्राता), विष्णु १.९(शंकर के अंशावतार, विद्याधरों से दिव्य माला का ग्रहण, इन्द्र को प्रदान, इन्द्र द्वारा माला के तिरस्कार से क्रुद्ध दुर्वासा द्वारा इन्द्र को श्रीहीन होने का शाप प्रदान), विष्णुधर्मोत्तर १.२५(अत्रि - पुत्र, रुद्र का अवतार), शिव ३.१९.२७ (अत्रि व अनसूया के तीन पुत्रों में से एक, शिवांश दुर्वासा द्वारा अम्बरीष की परीक्षा), ३.३७ (दुर्योधन की प्रेरणा से दुर्वासा का पाण्डवों के पास गमन, शाक द्वारा दुर्वासा की तृप्ति), स्कन्द २.१.१४.३०(दुर्वासा द्वारा सुमति को ब्रह्महत्या से मुक्ति के उपाय का कथन), २.८.५ (दुर्वासा का विश्वामित्र के पास आगमन, कौत्स द्वारा दुर्वासा की तुष्टि), ३.१.३४ (दुर्वासा द्वारा सुमति को ब्रह्महत्या से छूटने के उपाय का कथन), ४.२.८५ (काशी में तप से फल प्राप्ति न होने पर दुर्वासा द्वारा काशी को शाप देने की चेष्टा, शिव का प्राकट्य, कामेश्वर लिङ्ग की स्थापना), ४.२.८८.२६ (दुर्वासा आदि का शिव निन्दा सुनकर दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन), ४.२.९७.१७७ (दुर्वासेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२३.२३(दुर्वासेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१०३(अनसूया का पुत्र प्राप्ति हेतु तप, देवों के वरदान स्वरूप दुर्वासा, दत्तात्रेय व सोम नामक पुत्रों की प्राप्ति ) , ६.४९(कलश नृप के गृह में दुर्वासा का आगमन, भोजन में मांस देखकर नृप को व्याघ्र होने का शाप देना), ६.९९ (दुर्वासा का देवदूत से मन्त्रणा में रत राम से मिलन को आगमन, लक्ष्मण की प्रतिज्ञा भङ्ग होना), ६.११९(दुर्वासा द्वारा दीर्घबाहु राजा को महिष रूप होने का शाप दान), ६.२७४ (दुर्वासेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, दुःशील द्वारा अर्चना), ७.१.२३ (चन्द्रमा के यज्ञ में मैत्रावरुण), ७.१.१००(कृष्ण - पुत्र साम्ब द्वारा दुर्वासा का अपमान, साम्ब को कुष्ठ प्राप्ति का शाप दान), ७.१.२३६ (दुर्वासादित्येश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.४.२ (कृष्ण व रुक्मिणी द्वारा दुर्वासा के रथ का वाहन बनना, तृषित होने पर जलपान पर रुक्मिणी को शाप), ७.४.१७.११(कृष्ण की पुरी के पूर्व द्वार के रक्षकों में से एक), ७.४.१८+ (चक्र तीर्थ में गोमती में स्नान की चेष्टा पर दैत्यों द्वारा दुर्वासा का ताडन, वामन विष्णु द्वारा दैत्यों का निग्रह), हरिवंश २.८३.३५(दुर्वासा की सेवा से ब्रह्मदत्त - भार्याओं को पुत्र व कन्या की प्राप्ति), २.९४.४५ (प्रभावती को दुर्वासा से मनोवांछित पति को प्राप्त करने वाली विद्या प्राप्त होने का कथन), ३.१०९+ (हंस व डिम्भक द्वारा दुर्वासा का अपमान, शाप, जनार्दन को वर, द्वारका गमन, कृष्ण से संवाद), योगवासिष्ठ ६.१.१०५.९ (दुर्वासा द्वारा कुम्भ को रात्रि में स्त्री होने का शाप), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८० (दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक), १.४८९.१(राजा कलश द्वारा दुर्वासा को मांस रस युक्त भोजन परोसने पर शाप से व्याघ्र होना, शिव लिङ्ग दर्शन व नन्दिनी धेनु से संवाद पर व्याघ्र की मुक्ति), १.५४२.५२(दुर्वासा द्वारा तपोरत व्याध से अन्न व जल की मांग करना, तृप्त होने पर व्याध को सत्यतपा ऋषि बनने का वरदान व साधन के अभाव में मानसिक आराधना), १.५७३.२४ (राजा रविचन्द्र के यज्ञ में दुर्वासा का आगमन), २.९.९१(क्रोधन का जन्मान्तर में रूप), कथासरित् ३.२.३६(कुन्ती और दुर्वासा की कथा ) ; द्र. प्रणद्ब्रह्म, वंश अत्रि । durvaasaa/ durvasa
Short comments by Dr. Fatah Singh
जब साधक साधना में सफलता के अत्यन्त निकट होता है, उस समय कोई पुरानी वासना प्रकट हो जाती है जो बडे कष्ट से दूर होती है । उसी का नाम दुर्वासा ऋषि है । ऐसा प्रतीत होता है कि वेद का तुर्वसु पुराणों में दुर्वासा ऋषि के माध्यम से चित्रित किया गया है ।तुर्वसु - कर्म में प्रवृत्त जीवात्मा, तुर्वसु - तुर + वसु - जल्दी भावना में डूबने वाला, भक्ति के मार्ग पर चलने वाला ।
दुर्विनीत ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८७(भण्ड के सेनापति पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.१.३५ ( इध्मवाह - पुत्र, माता के साथ अगम्या गमन, व्यास परामर्श से मुक्ति ) ।
दुर्वोढक लक्ष्मीनारायण ३.१८२.६३(तापस, अगले जन्म में पृथ्वीधर नामक राजा के पुत्र रूप में जन्म ) ।
दुला पद्म ३.१२.३(दुलिकाश्रम का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.३२.२९(वर्षा ऋतु में जलधारा बरसाने वाली १२ शक्तियों में से एक ) ।
दुल्लोल ब्रह्माण्ड २.३.७.४४१(सरमा के २ पुत्रों में से एक ) ।
दुष्कन्त ब्रह्माण्ड २.३.७४.३(मरुत्त के २ दत्तक पुत्रों में से एक, सरूप - पिता, तुर्वसु वंश ) ।
दुष्कर्ण भविष्य ३.३.३२.१८(कौरवांश, विष्वक्सेनीय राजा लहर के १६ पुत्रों में से एक ) ।
दुष्ट ब्रह्माण्ड ३.४.१०.८१(दुष्टशेखर : भण्ड द्वारा वामांस से सृष्ट असुरों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.४२४.२१(दुष्ट के नाश हेतु काल का उल्लेख), कथासरित् ८.३.६७ (दुष्टदमन :विद्याधरराज, अजगर को पकडने का प्रयत्न, असफलता), ८.५.२५(प्रवहण का दुष्टदमन से साथ द्वन्द्व युद्ध), १०.४.२११(धर्मबुद्धि तथा दुष्टबुद्धि नामक वणिक् - पुत्रों की कथा ) । dushta
दुष्पण्य स्कन्द ३.१.२२ (पशुमान् - पुत्र, दुष्ट चरित्र, उग्रश्रवा शाप से विभिन्न योनियों की प्राप्ति, पिशाच योनि से मुक्ति आदि ) ।
दुष्पर ब्रह्माण्ड २.३.७.३७७(पिशाचों के १६ युगलों में से एक, पूरणा - पति ) ।
दुष्यन्त ब्रह्म १.११.१४५(पुत्रहीन मरुत्त द्वारा पूरुवंशी दुष्यन्त को गोद लेना, दुष्यन्त से करूरोम का जन्म), ब्रह्माण्ड २.३.६.२५(उपदानवी - पुत्र), भागवत ९.२०.७ (दुष्यन्त की शकुन्तला पर आसक्ति, पुत्र व पत्नी की विस्मृति की कथा), ९.२३.१७(मरुत्त के दत्तक पुत्र पूरु वंशी दुष्यन्त का राज्य करने हेतु स्व वंश में लौटने का उल्लेख), मत्स्य ४९.१०(ऐलिन एवं उपदानवी - पुत्र, भरत - पिता, पूरु वंश), वायु ६८.२४/२.७.२४(उपदानवी - पुत्र), ९९.३/२.३७.३ (दुष्कृत : मरुत्त के २ दत्तक पुत्रों में से एक, तुर्वसु वंश), ९९.१३३/ २.३७.१२९(मलिन व उपदानवी के ४ पुत्रों में से एक, शकुन्तला से भरत पुत्र के जन्म का कथन), विष्णु ४.१६.५(दुष्यन्त : मरुत्त के २ दत्तक पुत्रों में से एक, दुर्वसु वंश), ४.१९.१०(ऐलीन के ४ पुत्रों में से एक, भरत - पिता, पूरु वंश ) । dushyanta
Esoteric aspect of Dushyanta
दुहद्रुह स्कन्द १.२.६३.२७(दुहद्रुह अश्वतरी का घटोत्कच - पुत्र सुह्रदय द्वारा वध, प्रक्षेपण स्थल की दुहद्रुह ग्राम नाम से प्रसिद्धि ) ।
दुहिता पद्म १.१५.३१८(दुहिता के अप्सरा लोक की ईश्वरी होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१८.२६(देह गृह में चिन्ता के दुहिता होने का उल्लेख ), द्र. पुत्री ।duhitaa
दुःख ब्रह्म १.१२६.९(गर्भ, जन्म, जरा, मृत्यु आदि के दुःखों का कथन), भागवत ७.१५.२४(विभिन्न प्रकार के दुःखों (भूतज, दैव, आत्मज ) को दूर करने के उपाय का कथन), ११.१९.४१(विषयभोगों की कामना का दुःख रूप से उल्लेख), वराह ११६.१० (लौकिक सुखों से वंचन पर उत्पन्न दुःखों का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.१५२.२५(वेदना - पुत्र, अधर्म वंश), ३.१६८.८२(दुःखदेव के पूजन से दुःख - विसर्जन, दुःखदेव की मूर्ति के स्वरूप का कथन), कथासरित् ३.४.२६० (दुःखलब्धिका : देवसेन राजा की कन्या, कच्छपनाथ आदि अनेक राजाओं से विवाह, राजाओं का मरण, विदूषक द्वारा मारणकर्त्ता राक्षस के हाथ का कर्त्तन, राजकन्या से विवाह ) । duhkha/dukha
दु:शला भविष्य ३.३.३२.१७(कौरवांश, विष्वक्सेनीय राजा लहर के १६ पुत्रों में से एक ) ।
दु:शासन गरुड ३.१२.९७(दुःशासन की जरासंध से तुलना), गर्ग ७.२०.३३ (दु:शासन का प्रद्युम्न - सेनानी श्रुतदेव से युद्ध), १०.४९.१९ (दु:शासन का अनिरुद्ध - सेनानी बली से युद्ध), पद्म ६.१९१ (भृत्य, मृत्यु पर हस्ती बनना, गीता के १७वें अध्याय श्रवण से मुक्ति), भविष्य ३.३.१७.५ (दु:शासन का पृथ्वीराज - पुत्र नृहरि रूप में जन्म), ३.३.२६ - ९१ (दु:शासन का नृहर रूप में अवतरण), महाभारत उद्योग १६०.१२३(दुर्योधन द्वारा वर्णित सैन्य नदी में दु:शासन के ओघ/तीव्र प्रवाह होने का उल्लेख ) । duhshaasana/ dushshasana
दु:शील स्कन्द ६.३७(दु:शील नामक शिव प्रासाद की उत्पत्ति की कथा), ६.२७४ (दु:शील द्वारा स्वगुरु निम्बशुचि के धन का अपहरण, धन से गृहस्थ पालन, दुर्वासा से परामर्श, स्वनाम से लिङ्ग स्थापना), कथासरित् १०.२.६८(दु:शीला : देवदास - पत्नी, परपुरुष में प्रेम होने से देवदास की हत्या ) । duhsheela/dushshila
दुःसह भविष्य ३.३.३२.१७(कौरवांश, विष्वक्सेनीय राजा लहर के १६ पुत्रों में से एक), मार्कण्डेय ५०.३८/४७.३८ (मृत्यु व अलक्ष्मी - पुत्र, ब्रह्मा द्वारा दुःसह को तुष्टि, पुष्टि हेतु आश्रय योग्य तथा त्यागने योग्य स्थानों का निर्देश), लिङ्ग २.६.८ (ज्येष्ठा - पति, उद्दालक का नाम), स्कन्द ५.२.३३.३०(जातहारिणी का पिता), ७.१.२९० (देवशर्मा - पुत्र, शिव मन्दिर में चोरी पर मृत्यु, जन्मान्तर में सुदुर्मुख व कुबेर बनना), लक्ष्मीनारायण १.४१२.२(अधर्म - पुत्र दुःसह का चार पत्नियों बुभुक्षा, कलहा, दरिद्रता, मलिनता सहित लोक में निवास, देवों द्वारा दुःसह के निवास योग्य स्थानों का वर्णन), ३.१५२.२६(निर्ऋति - पुत्र, अधर्म वंश, दुःसह के निवास स्थानों का कथन ) । duhsaha/dussaha
दु:स्वभाव गर्ग १०.३५.२(दु:स्वभाव का सारण के साथ युद्ध ) ।
दूत अग्नि २४१.८(उत्तम दूत के लक्षण एवं भेद), नारद १.८८.११९ (दूती : राधा की अष्टम कला, स्वरूप), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.४८(दूती : ललिता देवी की सहचरी १५ अक्षर देवियों में से एक), मत्स्य १७९.१०(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ सृष्ट मातृकाओं में से एक ) ; द्र. शिवदूती ।duta
दूरदर्शी महाभारत शान्ति १३७(संकट से सावधान रहने के संदर्भ में दीर्घदर्शी/ दूरदर्शी, प्रत्युत्पन्नमति व दीर्घसूत्री मत्स्यों का दृष्टान्त ) ।
दूर्वा अग्नि ८१.५१ (व्याधि विनाश हेतु दूर्वा द्वारा होम), ३०८.२०(शान्ति प्राप्ति हेतु दूर्वा - हवन), गणेश १.६२.२, १.६२.२७ (भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश को दूर्वाङ्कुर अर्पण से चाण्डाली, रासभ व वृषभ की मुक्ति की कथा), १.६३.१६ (कौण्डिन्य द्वारा स्वपत्नी आश्रया को दूर्वा माहात्म्य का वर्णन), १.६४.१७ (गणेश की कण्ठ ज्वाला की शान्ति हेतु मुनियों द्वारा दूर्वाङ्कुर अर्पण करने पर ज्वाला का शान्त होना), १.६६.११ (द्विज द्वारा श्रद्धापूर्वक दिए गए एक दूर्वाङ्कुर से ही गणेश की तृप्ति), १.६६.२८ (कौण्डिन्य - भार्या आश्रया का एक दूर्वाङ्कुर भार के तुल्य स्वर्ण मांगने इन्द्र के पास जाना), १.७६.१४ (दूर्व : शाकिनी - पति, बुध - पिता, वेश्यारत पुत्र बुध द्वारा पिता की हत्या), गरुड १.१३१.२ (दूर्वा अष्टमी व्रत विधि), नारद १.६७.६२(दूर्वा को शक्ति को अर्पण का निषेध), १.८७.१४९(दूर्वा होम से आयु प्राप्ति का उल्लेख), १.११३.१७ (श्रावण चतुर्थी में करणीय दूर्वा गणपति व्रत), १.११७.४५ (दूर्वा अष्टमी व्रत : भाद्रपद शुक्ल अष्टमी में करणीय), भविष्य ४.३१.१८ (दूर्वा मन्त्र का कथन), ४.५६ (विष्णु रोम व अमृत से दूर्वा की उत्पत्ति, दूर्वा अष्टमी व्रत का माहात्म्य), भागवत ९.२२.४२(दूर्व : नृपञ्जय - पुत्र, तिमि - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), वामन १७.९ (वासुकि नाग की पुच्छ एवं पीठ पर श्वेत - कृष्ण दूर्वा की उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३.१७३(शतरुद्रिय प्रसंग में ऋतुओं द्वारा दूर्वाङ्कुरमय लिङ्ग की सर्व नाम से पूजा का उल्लेख), २.२.२२.७२(कूप में पितरों के वंश रूपी दूर्वा पर अवलम्बित होने तथा काल रूपी मूषक द्वारा दूर्वा के छेदन का कथन), २.७.२२.७२ (वंश रूप), ६.२५२.३७ (चातुर्मास में राहु द्वारा दूर्वा का वरण), योगवासिष्ठ १.१६.८ (मन रूपी हरिण के लिए भोग रूपी दूर्वा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९१(वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु राहु के दूर्वा बनने का उल्लेख), २.२७.१०५ (दूर्वा की वासुकि पृष्ठ पर उत्पत्ति ) । duurvaa/ doorvaa/ durva
दूषण ब्रह्माण्ड २.३.८.५६(वाका के पुत्रों में से एक), भविष्य ४.९४.६४(कुञ्जर के धर्मदूषक होने का उल्लेख, अनन्त व्रत कथा), भागवत ५.१५.१५(भौवन व दूषणा - पुत्र, विरोचना - पति, विरज - पिता), वायु ७०.५० (विश्रवा व वाका - पुत्र), शिव ३.४२.१४(असुर, महाकालरूप शिव द्वारा वध), ४.१६ (दैत्य, महाकालशिव द्वारा वध), वा.रामायण ३.२३.३३(राक्षस सेनापति), ३.२६.१ (खर - सेनापति, राम द्वारा वध), ७.२४.३९(रावण द्वारा दूषण की सेनापति पद पर नियुक्ति), लक्ष्मीनारायण २.८६.४२(विश्रवा व वाका के पुत्रों में से एक ) । duushana / dooshana/ dushana
दृक् ब्रह्माण्ड २.३.५.९६(ईदृक्, अन्यादृक्, नान्यादृक् आदि मरुतों के पंचम व षष्ठम गण का उल्लेख ) ।
दृढ पद्म १.२०.९३ (दृढ व्रत का माहात्म्य व विधि), ब्रह्माण्ड १.२.३६.४९ (दृढेषुधि : तामस मनु के ११ पुत्रों में से एक), २.३.७.२३९(दृढभक्ति : वानर नायक), भागवत ४.२८.३२ (दृढच्युत : अगस्त्य - पुत्र, इध्मवाह - पिता), ५.२०.१४ (दृढरुचि : कुशद्वीप के अधिपति हिरण्यरेता के पुत्रों में से एक), ९.२१.२३ (दृढहनु : सेनजित् के ४ पुत्रों में से एक), मत्स्य १०१.४४ (दृढ व्रत की विधि एवं माहात्म्य), वायु २३.१८३/१.२३.१७३(दृढव्रत : १८वें द्वापर में विष्णु अवतार शिखण्डी के ४ पुत्रों में से एक), १०१.१००/२.३९.१००(शत संख्या का परिदृढ नाम), विष्णु ४.१९.३६(दृढहनु : सेनजित् के ४ पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.११८ (दृढस्यु : अगस्त्य - पुत्र, पुलह - पुत्र बनना), कथासरित् ६.६.१०५ (दृढवर्मा : मध्यदेश का भूपति, मङ्कणक - पुत्री कदलीगर्भा पर आसक्ति, विवाह), १२.२.१९ (दृढमुष्टि : राजपुत्र मृगाङ्कदत्त के दस सचिवों में से एक), १२.२४.१३(दृढमुष्टि : मृगाङ्कदत्त के वियोग में प्राण देने को उद्धत तीन सचिवों में से एक, ऋषि महातपा द्वारा प्राणों की रक्षा का वृत्तान्त), १७.४.१२(दृढव्रत : तपोधन मुनि का शिष्य, मुक्ताफलकेतु को शाप, पद्मावती द्वारा प्रतिशाप का वृत्तान्त ) । dridha
दृढधन्वा मार्कण्डेय ७४.२१/७१.२१(दृढधन्वा - कन्या उत्पलावती द्वारा स्वराष्ट्र नृपति से मृगत्व योनि प्राप्ति के हेतु का वर्णन), स्कन्द ५.२.६९.३(विशालाक्षी - पिता, सुबाहु - श्वसुर), लक्ष्मीनारायण १.३२१.१(चित्रधर्म - पुत्र दृढधन्वा द्वारा मृगया काल में शुक के मुख से वैराग्य विषयक श्लोक का श्रवण, वाल्मीकि द्वारा राजा दृढधन्वा को उसके पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन : पूर्व जन्म में सुदेव विप्र व उसकी पत्नी गौतमी द्वारा तप से पुत्र की प्राप्ति, पुत्र का गुरु बनकर दृढधन्वा का प्रबोधन ) । dridhadhanvaa
दृढनेमि भागवत ९.२१.२७(सत्यधृति - पुत्र, सुपार्श्व - पिता, भरत वंश), मत्स्य ४९.७०(सत्यधृति - पुत्र, सुधर्मा - पिता, अजमीढ वंश), विष्णु ४.१९.४९ (सत्यधृति - पुत्र, सुपार्श्व - पिता, पूरु वंश ) । dridhanemi
दृढमति स्कन्द २.१.१९(दृढमति शूद्र द्वारा सुमति विप्र से अनुष्ठान कर्म सीखना), ३.१.१० (दृढमति शूद्र द्वारा तप, सुमति विप्र द्वारा दृढमति को वैदिक कर्म का उपदेश, दृढमति द्वारा विभिन्न योनियों की प्राप्ति, गृध्र योनि में पापविनाश तीर्थ में मुक्ति ) । dridhamati
दृढरथ मत्स्य ४४.४२(नवरथ - पुत्र, शकुनि - पिता, क्रोष्टा वंश), ४९.५० (सेनजित् के ४ पुत्रों में से एक, अजमीढ वंश), वायु ९९.१११/ २.३७.१०७ (जयद्रथ - पुत्र, जनमेजय - पिता ) ।
दृढायु ब्रह्माण्ड १.२.३२.११९(तीन आगस्त्य ब्रह्मिष्ठों में से एक), मत्स्य २४.३३(पुरूरवा व उर्वशी के ८ पुत्रों में से एक ) ।
दृढाश्व गर्ग ५.२४.५३ (वङ्ग देश का राजा, लोमश के शाप से कोल असुर बनना), देवीभागवत ७.९.३७(कुवलाश्व - पुत्र, हर्यश्व - पिता), भागवत ९.६.२३(धुन्धु असुर की मुखाग्नि से बचे कुवलाश्व के तीन पुत्रों में से एक), मत्स्य १२.३२(धुन्धुमार के तीन पुत्रों में से एक, प्रमोद - पिता, इक्ष्वाकु वंश), वायु ८८.६१/२.२६.६१(धुन्धु असुर की मुखाग्नि से बचे कुवलाश्व के ३ पुत्रों में से एक ) । dridhaashva
दृढास्य मत्स्य २०२.११ (अगस्त्य - पुत्र, पुलह द्वारा पुत्र रूप में वरण), विष्णुधर्मोत्तर १.११८.११ (दृढस्यु : अगस्त्य - पुत्र, पुलह - पुत्र बनना ) ।
दृश्य ब्रह्माण्ड १.२.२४.२८(दृश्यामेघा : सूर्य की हिमसर्जक रश्मियों में से एक), भागवत ३.५.२४(माया की सृष्टि से पूर्व दृश्य के अभाव तथा माया के दर्शन करने वाली शक्ति होने का कथन), योगवासिष्ठ ३.१.२२(द्रष्टा व दृश्य की सत्ता के बन्ध होने का वर्णन, दृश्य की परिभाषा ) drishya
दृषत् गरुड १.१०७.३५(मृत विप्र के दाह हेतु चिता निर्माण के संदर्भ में उर पर दृषद रखने का निर्देश), पद्म ३.२६.८३ (दृषत्पान तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड २.३.६३.२७(दृषदश्व : पृथु - पुत्र, अन्ध्र - पिता, इक्ष्वाकु वंश ) । drishat
दृषद्वती पद्म ३.२६.९० (दृषद्वती - कौशिकी सङ्गम का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्म १.९.४९ (दिवोदास व दृषद्वती से प्रतर्दन की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.६३.६५(संहताश्व की एक रानी, प्रसेनजित् - माता), २.३.६३.७५(हर्यश्व - पत्नी, सुमति - माता), २.३.६७.६७(दिवोदास - पत्नी, प्रतर्दन - माता), २.३.७४.१८(उशीनर की ५ रानियों में से एक, शिबि - माता), मत्स्य ४८.१६(उशीनर की ५ रानियों में से एक, शिबि - माता), वामन २२.४६( सरस्वती व दृषद्वती के मध्य कुरुक्षेत्र की स्थिति), ३६.४६(दृषद्वती नदी में स्नान व तर्पण का फल), वायु ९१.१०३/२.२९.९९ (विश्वामित्र - भार्या, अष्टक - माता, माधवी से साम्य?), ९२.६४(दिवोदास - पत्नी, प्रतर्दन - माता), २.३७.२१/९९.२१ (उशीनर - पत्नी , उशीनर शिबि - माता), ९९.२५८/ २.३७.२५७(कुरुक्षेत्र में अधिसोमकृष्ण के २ वर्षीय यज्ञ का स्थान), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.५१ (दृषद्वती के चाष वाहन से विष्णु के समीप गमन का उल्लेख), हरिवंश १.१२.४(हिमवान् - पुत्री, संहताश्व - भार्या, प्रसेनजित् - माता), १.२९.७२ (दिवोदास - पत्नी , प्रतर्दन - माता), महाभारत आश्वमेधिक ९२ दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३६१(सरस्वती व दृषद्वती नदियों के बीच के देश के ब्रह्मावर्त नाम होने का उल्लेख ) । drishadvati/ drishadvatee
Short remarks by Dr. Fatah Singh
अनेकधा विभक्त सत्य का नाम दृषद् है । ऐसी चेतना दृषद्वती है ।
दृष्ट - ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८६(दृष्टकेतु : भण्ड के सेनापतियों में से एक), ३.४.२१.८६(दृष्टहास : भण्ड के सेनापति पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१४.९ (दृष्टधर्म : उपमद्गु के १३ पुत्रों में से एक ) ।
दृष्टि ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४२(दृष्टि सौन्दर्य हेतु रत्नप्रदीप दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड ३.४.३७.४२(दृष्टिदेवी : ललिता देवी की समीपवर्तिनी ६ शक्ति देवियों में से एक), भविष्य १.१३२.२९(देव प्रतिमा में ऊर्ध्वदृष्टि अन्धत्व व अधोदृष्टि चिन्ता का प्रतीक होने का उल्लेख), शिव ६.१६.४९(ज्ञान, क्रिया, इच्छा के शिव की दृष्टित्रय होने का उल्लेख ), महाभारत उद्योग १६.२६(नहुष की दृष्टि में विष होने का कथन - तेजोहरं दृष्टिविषं सुघोरं मा त्वं पश्येर्नहुषं वै कदाचित्। देवाश्च सर्वे नहुषं भृशार्ता न पश्यन्ते गूढरूपाश्चरन्तः ।।), भरतनाट्य ८.३७(३६ दृष्टियों के लक्षण) । drishti
देव अग्नि ५१ (देव गण की प्रतिमाओं के रूप), ६६ (देवगण की प्रतिष्ठा विधि), गणेश १.१.२३ (देवनगर : सौराष्ट्र के देवनगर में राजा सोमकान्त की कथा), गरुड १.४८ (देवों की प्रतिष्ठा की विधि), नारद १.५६.५२४ (देव प्रतिष्ठा हेतु काल का विचार), १.३७(१४ मन्वन्तरों के देवताओं का कथन), १.६७(देवपूजा का निरूपण), पद्म १.७६.१०३(मनुष्य रूप में अवतीर्ण देवों के लक्षण, भीष्म, द्रोण, पाण्डवादि के देवत्व का कथन), ३.५७.३८(भिन्न - भिन्न कामना से भिन्न - भिन्न देवों की आराधना), ६.१६६ (देव तीर्थ का माहात्म्य : नकुल द्वारा पाण्डुरार्या देवी की स्थापना, हनुमान को प्लवन शक्ति की प्राप्ति), ब्रह्म २.५७(देवतीर्थ के प्रभाव का वर्णन), भविष्य ४.७०(देव शयन उत्थापन द्वादशी व्रत का वर्णन), ४.१७५.५३(तुला पुरुष दान विधि के अन्तर्गत विभिन्न देवों के आवाहन मन्त्र), मत्स्य १०१.३ (देव व्रत का विधान व माहात्म्य), २९०.४(छठें कल्प का नाम), मार्कण्डेय ८२/७९ (महिषासुर से परास्त देवगण का शिव एवं विष्णु की शरण में गमन, देवों के शरीर से नि:सृत तेज से देवी का प्रादुर्भाव, देवी के महिषासुर सेना से युद्ध का वर्णन), वायु ९.१(देवादि की सृष्टि का वर्णन), ३१.१(देव वंश का वर्णन), ५८.१२३(देवों के ८ प्रकारों का उल्लेख), ९१.९६/२.२९.९२(विश्वामित्र के पुत्रों में से एक), ९६.११२/२.३४.११२(अक्रूर व उग्रसेनी के पुत्रों में से एक), ९६.१२९/२.३४.१२९( देवक के पुत्रों में से एक ; देवक की देवा अन्त्य प्रत्यय वाली ७ कन्याओं के नाम), विष्णु ३.१ (मन्वन्तरानुसार देवों का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.९०(देव अर्चा मन्त्र प्रतीक कथन), २.९१(देवपूजा में देव को निवेदनीय वस्तुओं की योग्यता, अयोग्यता का विचार ) ३.१०४+ (ब्रह्मादि देवों के आवाहन मन्त्रों का कथन), ३.२८८(देव पूजा महिमा व फल का वर्णन), शिव ३.५.१५(१६वें द्वापर में व्यास का नाम), स्कन्द १.१.२७.४५ (कुमार कार्तिकेय जन्म प्रसङ्ग में अग्नि द्वारा मुख में शिव वीर्य धारण करने पर देवों का सगर्भ होना, शिव के निर्देश पर वमन से पीडा से मुक्ति), २.१.१ (देव तीर्थ का माहात्म्य), ३.१.४२ (देव तीर्थ का माहात्म्य), ३.१.४९.८५ (देवों द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ५.१.४८.१५(मानुष मान से संवत्सर का देवों का दिन व रात्रि होना), ५.२.६४.२३(देवों को पशुभाव की प्राप्ति, महाकालवन में पशुपतीश्वर के दर्शन से पशुत्व से मुक्ति), ५.३.३७ (देव तीर्थ का माहात्म्य : नर्मदा तट पर देवों के तप का स्थान), ५.३.१३० (देव तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१९५.३(देवतीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२०१ (देव तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२३१.१५(देवतीर्थों की ५ संख्या), ६.१९२ (ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री द्वारा देवों को शाप), ६.२४६ (शिव - पार्वती रति में विघ्न डालने के कारण पार्वती द्वारा देवों को शिला बनने का शाप, बिल्व व तुलसी वृक्षों के दर्शन से मुक्ति), ६.२५१ (पार्वती के शाप से देवों का शालग्राम शिला बनना), ७.१.१७.७२ (देव पूजा मन्त्र), महाभारत वन ५७.२४ (दमयन्ती द्वारा देवों के लिङ्गों/लक्षणों का अभिज्ञान), अनुशासन ९८.२८(देवों हेतु उपयुक्त पुष्प), लक्ष्मीनारायण २.११२.४(देवों को वास प्रदान से नदियों की तीर्थरूपता), २.१५३(देव होम निरूपण), २.१५७.१७(शरीराङ्गों में देवों का न्यास), २.१६०.६९ (देवों के लिए देय अन्न), २.२५४.५(देव तोषण का वर्णन), ३.२५.१ (देव वत्सर में प्रसविष्णु असुर द्वारा लक्ष्मी प्राप्त करने का वृत्तान्त), ३.३५.६१ (चातुर्मास यज्ञ में देवों को देय द्रव्य), ४.५२.५३(देवद्रोह के दुष्परिणाम, देवों की तुष्टि का निर्देश ) । deva
देव - गर्ग ५.१२.१३(देवयक्ष नामक यक्ष के आठ पुत्रों द्वारा पूजा के पुष्पों को दूषित करने पर पिता द्वारा पुत्रों को शाप), ५.१७.२३(देवाङ्गना : कृष्ण विरह पर देवाङ्गनाओं द्वारा व्यक्त उद्गार), देवीभागवत १.१९.४१(देवश्रुत : शुकदेव व पीवरी - पुत्र), पद्म ६.६.२३(देवनदी : बल असुर के एक अङ्ग के देवनदी में गिरने का उल्लेख), ब्रह्म २.९०(देवागम/देवप्रिय तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१२(देववर : चरकाध्वर्युओं में से एक), १.२.३५.५७(देवदर्श : अथर्ववेदी कबन्ध का शिष्य, संहिता के भाग कर चार शिष्यों को देना), १.२.३६.३९(देवाम्बुज : उत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक), ३.४.७.३१, ३७(देवव्रात : काष्ठहार द्वारा देवव्रात पुरोहित ब्राह्मण के प्रतिष्ठार्थ देवरात नगर की स्थापना), भविष्य ३.३.५.३ (देवपाल : अनङ्गपाल द्वारा कान्यकुब्ज - अधिपति देवपाल को चन्द्रकान्ति नामक स्वकन्या प्रदान करना), ३.४.८.७० (सूर्योपासना से देवयाजी ब्राह्मण के मृत पुत्र का पुनरुज्जीवन, पुत्र द्वारा विवस्वान् नाम धारण की कथा), भागवत ५.२.२३(देववीति : मेरु - कन्या, केतुमाल से विवाह), ५.१५.३(देवद्युम्न : देवताजित् व आसुरी - पुत्र, धेनुमती - पति, परमेष्ठी - पिता, ऋषभ वंश), ५.१९.१६(देवगिरि : भारत के पर्वतों में से एक), ५.२०.९ (देववर्ष : शाल्मलि द्वीप के ७ भागों में से एक), ५.२०.२६(देवपाल : शाक द्वीप के ७ पर्वतों में से एक सीमा पर्वत), ६.६.५(देवऋषभ : धर्म व भानु - पुत्र), ८.१३.१७(देवगुह्य : सरस्वती - पति, सार्वभौम हरि - पिता), ९.२४.२२ (देववर्द्धन : देवक के ४ पुत्रों में से एक, देवकी आदि ७ भगिनियां), मत्स्य ४६.२(देवमार्ग : शूर व भोजा के १० पुत्रों में से एक), १९६.२८(देवमति : आङ्गिरस वंश में त्र्यार्षेय प्रवर्तक ऋषि), १९६.४३(देवजिह्व : आंगिरस कुल का एक त्र्यार्षेय प्रवर ऋषि), वराह १४५.७५(देवह्रद : शालग्राम क्षेत्र के अन्तर्गत एक तीर्थ क्षेत्र, माहात्म्य), वायु ४२.४६(देवभ्राज : गङ्गा द्वारा प्लावित वनों में से एक), ६३.१५/२.२.१५(उत्तम मन्वन्तर में देवभुज द्वारा वैराज गौ के दोहन का उल्लेख), ९६.१२९/२.३४.१२९(देवरञ्जित : देवक के पुत्रों में से एक), विष्णु ३.६.९(देवदर्श : कबन्ध - शिष्य, देवदर्श के ४ शिष्यों के नाम), स्कन्द ५.१.६८ (देवप्रयाग तीर्थ का माहात्म्य : आनन्द भैरव की उपस्थिति), ५.३.१६९.५ (राजा, प्रमोदिनी नामक कन्या के श्येन रूप धारी शम्बर द्वारा हरण की कथा), लक्ष्मीनारायण १.३११.९८(देवयुति दासी के अभिजित् नक्षत्र बनने का कथन), १.३१३.२(देवयव : देवजुष्टा - पति देवयव ब्राह्मण द्वारा देवद्रव्य का हरण करने से भृत्यों सहित दुःख में पडना, अधिक मास की षष्ठी व्रत से जन्मान्तर में महेन्द्र अद्रि बनना), २.७४.४२(देवप्रिय विप्र व उसकी पत्नी द्युमती द्वारा अशुचि अवस्था में देवपूजा से जन्मान्तर में मार्जार व अन्त्यज योनियों की प्राप्ति), २.२७०.६५(देवमूल - कन्या अमरा द्वारा विष्णु की आराधना, विष्णु द्वारा अमरा का विवाह विधि से ग्रहण), ३.५.९६(देववीथि : द्यु - पुत्री देववीथि के रूप में श्री/लक्ष्मी का एक अवतार), ३.३४.७६(देवपुष्प : पुण्यवती - पति, पुण्यवती द्वारा ब्रह्मा को शाप देने का वृत्तान्त), ३.१९४.२(देवविश्राम : चक्रधर नृप का अमात्य, हरि कृपा से स्त्री हत्या के पाप से मुक्ति की कथा), ४.७२(देवमतीश्वर : भार्या सहित मोक्ष प्राप्ति की कथा), ४.१०१.११७(देवता : कृष्ण - पत्नी, देवेश्वर व दिवस्पदा युगल की माता), कथासरित् २.५.६९(देवस्मिता : धर्मगुप्त वैश्य की कन्या, गुहसेन से विवाह), ९.४.१८(देवसिद्धि : देवताओं की सिद्धि प्राप्त एक दिव्य पुरुष, बलाहक पर्वत पर निवास), ९.४.२२६(देवबल : चमरवाल - सेनापति), ९.५.५६(देवशक्ति : कुण्डिनपुर - राजा, अनन्तशक्ति - पति, मदनसुन्दरी - पिता), ९.६.५(चन्द्रस्वामी ब्राह्मण - पत्नी, महीपाल - माता), १२.६.५७(देवदर्शन : शाप मुक्त होने पर अट्टहास नामक यक्ष व यक्षिणी द्वारा स्वपुत्र का पुत्रहीन देवदर्शन ब्राह्मण के गृह में स्थापन), १४.४.१९७(देवमाय : त्रिशीर्ष नामक गुहा के द्वार पर नियुक्त एक वीर), १५.१.४६(त्रिशीर्ष नामक गुफा का रक्षक एक राजा, नरवाहनदत्त द्वारा बन्धन स्वीकार, अनन्तर मुक्ति), १७.१.८४(देवसोम : यज्ञसोम - पुत्र, हरिसोम - भ्राता, मांस भक्षण से मामा द्वारा ब्रह्मराक्षस होने का शाप), १७.५.८(देवसभ : मेरुध्वज नामक चक्रवर्ती राजा द्वारा शासित एक नगर ) ; द्र. उपदेव, चिरन्देव, जयदेव, बलदेव, ब्रह्मदेव, महादेव, वसुदेव, शक्तिदेव, श्राद्धदेव, श्रुतदेव, सत्यदेव, सहदेव, सुदेव । deva
देवक गर्ग १.५.२३ (ध्रुव वसु का अंश), देवीभागवत ४.२२.३५(गन्धर्वपति का अंश), ब्रह्म १.१३.५५(आहुक के दो पुत्रों में से एक, उग्रसेन - भ्राता, देववान् प्रभृति ४ पुत्रों तथा देवकी प्रभृति ७ पुत्रियों के पिता), ४.७.७(आहुक - पुत्र, पुत्री देवकी का विवाह वसुदेव से करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१२९(आहुक - पुत्र, उग्रसेन - भ्राता, पुत्रों के नाम), भागवत ९.२२.३०(युधिष्ठिर व पौरवी - पुत्र), ९.२४.२१(देवक के ४ पुत्रों व ७ पुत्रियों के नाम), मत्स्य ४४.७१(आहुक - पुत्र, उग्रसेन - भ्राता, पुत्रों के नाम), वायु ९६.१२८/२.३४.१२८(आहुक - पुत्र, उग्रसेन - भ्राता, पुत्रों के नाम), विष्णु ४.१४.१६(आहुक - पुत्र, उग्रसेन - भ्राता, पुत्रों के नाम), ४.२०.४४(युधिष्ठिर व यौधेयी - पुत्र), ५.१.५(देवक - सुता देवकी के वसुदेव से विवाह का उल्लेख ) । devaka
देवकी गरुड ३.२९.२४(यम व कलि-भार्या श्यामला का देवकी रूप में अवतरण), देवीभागवत ४.१.४(कंस द्वारा देवकी के छह पुत्रों का वध विषयक प्रश्न), ४.२०.७२ (आकाशवाणी सुनकर कंस द्वारा देवकी के वध की चेष्टा), ४.२२.२१ (कंस द्वारा मारे गए ६ देवकी - पुत्रों के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ७.३०.७० (मथुरा में विराजमान देवी का नाम), १२.११.९ (६४ कला नामों के अन्तर्गत एक नाम), ब्रह्म १.१३.५७(देवक की ७ पुत्रियों में से एक, वसुदेव - पत्नी), १.७२.३३(नारद का कंस के प्रति देवकी के आठवें गर्भ से मृत्यु प्राप्ति का कथन, कंस द्वारा वसुदेव व देवकी का कारागार में स्थापन, देवकी के छह पुत्रों का कंस द्वारा वध), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१४१(देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में जाकर अनन्त की उत्पत्ति), ४.७.७(देवक - कन्या देवकी का वसुदेव से विवाह, कंस द्वारा देवकी के वध की चेष्टा, देवकी से कृष्ण जन्म का वृत्तान्त आदि), भविष्य ३.३.१.३३(देवकी से कृष्णांश उदयसिंह की उत्पत्ति), ३.३.८.४(गोपालक राष्ट्र - भूपति दलवाहन द्वारा स्वकन्या देवकी को देशराज को प्रदान करना), ४.४६(लोमश मुनि द्वारा मृतवत्सा देवकी से स्थिर संतान प्राप्ति हेतु मुक्ताभरण सप्तमी व्रत के माहात्म्य का वर्णन), ४.१९२ (नारद द्वारा देवकी को नक्षत्र दान / दान द्रव्य का वर्णन), भागवत १०.१.२९ (सूर्या का विशेषण), १०.३.३२ (जन्मान्तर में पृश्नि व अदिति), ११.३१.१८(कृष्ण के स्वर्गगमन पर देवकी द्वारा विरह में प्राण त्यागने का उल्लेख), मत्स्य १३.३९(मथुरा में सती देवी की देवकी नाम से स्थिति का उल्लेख), ५०.५६(युधिष्ठिर - भार्या, यौधेय - माता), वायु ९६.१७३/ २.३४.१७३(कंस द्वारा हत वसुदेव व देवकी के ६ पुत्रों के नाम), विष्णु ५.१.५ (वसुदेव के विवाह के अवसर पर कंस द्वारा देवकी के वध की चेष्टा), ५.२ (कृष्ण को गर्भ में धारण करने पर देवों द्वारा देवकी की स्तुति), ५.३८.४(वसुदेव व उनकी देवकी आदि पत्नियों के अग्नि प्रवेश का कथन), स्कन्द ५.३.१९८.७६ (मथुरा में देवी की देविका नाम से स्थिति ) । devakee/ devaki
देवकुल्या भागवत ४.१.१४ (पूर्णिमा - पुत्री, गङ्गा में रूपान्तरण), ५.१५.६(उद्गीथ व देवकुल्या से प्रस्ताव के जन्म का उल्लेख ) ।
देवकूट ब्रह्म १.१६.४६(मेरु के दक्षिणोत्तर मर्यादा पर्वतों में से एक), ब्रह्माण्ड २.३.७.४५२(गरुडों से व्याप्त पर्वतों में से एक), भागवत ५.१६.२७(मेरु मूल के पूर्व का एक पर्वत), लिङ्ग १.५१.१ (देवकूट पर्वत का वर्णन , देवकूट पर्वत पर शिव का वास), वायु ३५.८(मेरु के पूर्व में स्थित २ पर्वतों में से एक), ४०१ (वैनतेय गरुड का देवकूट पर्वत पर जन्म व वास स्थान ) ; द्र. भूगोल । devakoota/ devakuuta/ devkuta
देवकृतञ्जय वायु २३.१७४/१.२३.१६३(१७वें द्वापर में व्यास), शिव ३.५.१८(१७वें द्वापर में व्यास का नाम ) ।
देवक्षेत्र ब्रह्माण्ड २.३.७०.४५(देवरात - पुत्र, देवन - पिता, मरुत्त वंश), भागवत ९.२४.५(देवक्षत्र : देवरात - पुत्र, मधु - पिता, विदर्भ वंश), मत्स्य ४४.४३ (देवक्षत्र : देवरात - पुत्र, मधु - पिता, मरुत्त वंश), वायु ९५.४४/ २.३३.४४ (देवरात - पुत्र, देवन - पिता, मरुत्त वंश), विष्णु ४.१२.४२(देवरात - पुत्र, मधु - पिता ) । devakshetra
देवखात स्कन्द ३.२.१५.७०(सरोवर, माहात्म्य का कथन), ७.३.४५ (देवखात तीर्थ का माहात्म्य ) । devakhaata
देवगर्भ पद्म १.३४.१४ (ब्रह्मा के यज्ञ में उद्गाता), भागवत ५.२०.१५(देवगर्भा : कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक), विष्णु ४.१४.२४(हृदिक के पुत्रों में से एक, शूर - पिता ) ।
देवजनी ब्रह्माण्ड २.३.७.१२१, १२७(क्रतुस्थ - पुत्री, मणिवर यक्ष - पत्नी, पुत्रों के नाम), वायु ६९.१५३/२.८.१४८(क्रतुस्थली - पुत्री, मणिभद्र - पत्नी, पुत्रों व कन्याओं के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७ (वीरभद्र - भार्या ) । devajanee
देवजुष्टा लक्ष्मीनारायण १.३१३.३, १०३(देवयव विप्र की पत्नी, पति द्वारा देवद्रव्य का हरण करने पर दुःखों की प्राप्ति, पुरुषोत्तम मास की षष्ठी व्रत के प्रभाव से महेन्द्र व महेन्द्राणी बनना ) ।
देवजय कथासरित् १०.३.१२३(विद्याधर, मनोरथप्रभा को सिंहविक्रम का सन्देश ) ।
देवता अग्नि ३८(देव - मन्दिरों के निर्माण से प्राप्त फल का वर्णन), कूर्म १.२२.४२ (नृप, विप्र, गन्धर्व आदि विभिन्न वर्गों/योनियों के लिए देवताओं के नाम), भागवत ५.१५.२(देवताजित् : सुमति व वृद्धसेना - पुत्र), योगवासिष्ठ ६.१.४०(देवता तत्त्व विचार नामक सर्ग में पूज्य, पूजक, पूजा अभिन्नता आदि का विचार ), द्र. देव । devataa
देवदत्त अग्नि ८८.४(शान्त्यतीत कला/तुर्यातीत के २ प्राणों में से एक, कुहू? नाडी में स्थित देवदत्त वायु की प्रकृति का कथन), २१४.१३(देवदत्त वायु के विजृम्भा का हेतु होने का उल्लेख), देवीभागवत ३.१०.१८ (देवदत्त द्विज द्वारा तमसा तट पर पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन, गोभिल के शाप से मूर्ख पुत्र उतथ्य की प्राप्ति), भागवत ५.१४.२४(लौकिक धन के देवदत्त द्वारा हरण का उल्लेख), ५.२४.३१(पाताल के प्रमुख नागों में से एक), ६.९.२०(भगवान् के देवदत्त की भांति गुण के कार्य रूप जगत् में प्रकट हो जाने का उल्लेख), ९.२.२०(उरुश्रवा - पुत्र, अग्निवेश्य - पिता), १२.२.१९(कल्कि के घोडे का नाम), वराह १४६.५(प्रम्लोचा अप्सरा द्वारा देवदत्त द्विज के तप में विघ्न, देवदत्त व प्रम्लोचा की कन्या रुरु की तपस्या का वृत्तान्त), कथासरित् १.७.५१(गोविन्ददत्त व अग्निदत्ता के ५ पुत्रों में से एक, पिता द्वारा तिरस्कृत होने पर तप, तप से सन्तुष्ट शिव द्वारा विद्याध्ययन का आदेश), ४.१.५४(जयदत्त - पुत्र, देवदत्त की वेश्या - पत्नी की कथा), ५.३.१९५(द्विज, हरिदत्त - पुत्र, देवदत्त द्वारा विद्याधर - राज्य प्राप्ति की कथा), १०.८.३(देवदत्ता : देवशर्मा - भार्या ) । devadatta/devdatta
देवदारु कूर्म २.३७.५३+ (देवदारु वन का माहात्म्य : पार्वती रूपी नारायण का लिङ्गी शिव सहित दारुवन में विचरण, ऋषियों का मोहन व शाप), पद्म ६.२०३.२१ (शिवगण कुम्भोदर द्वारा पार्वती के पुत्रवत् प्रिय देवदारु वृक्ष की त्वचा का उत्पाटन, पार्वती शाप से सिंह बनना), मत्स्य १३.४७(देवदारु वन में सती के पुष्टि नाम से वास का उल्लेख), वायु २३.१९५/१.२३/१८४(२१वें द्वापर में विष्णु के दारुक अवतार के कारण देवदारु वन की प्रसिद्धि का उल्लेख), १०८.६६/२.४६.६९ (गया में मुण्ड पृष्ठ के नितम्ब पर देवदारु वन की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ५.२.११(विप्रों का सिद्धि प्राप्ति हेतु देवदारु वन में तप, आकाशवाणी श्रवण से महाकालवन में गमन, सिद्धिप्रद लिङ्ग की स्थापना), ५.३.१९८.८४(देवी की देवदारु वन में पुष्टि नाम से स्थिति ) । devadaaru/ devdaru
देवदास पद्म ५.९५.१४० (हेमकार, वैशाख मास माहात्म्य से जन्मान्तर में अम्बरीष बनना), ६.२१६ (विप्र, उत्तमा - पति, अङ्गद व वलया - पिता, बदरी तीर्थ में मुक्ति), कथासरित् ३.५.१६(देवदास वैश्य तथा उसकी परपुरुषगामी स्त्री की कथा), ६.१.८९(राजा धर्मदत्त का पूर्वजन्म में देवदास होना), १०.२.६७(दु:शीला - पति, चरित्रहीना पत्नी के षडयन्त्र से मृत्यु ) । devadaasa/ devdasa
देव - दैत्य ब्रह्मवैवर्त्त २.१९(शङ्कर व शङ्खचूड का युद्ध), वामन ६९(प्रमथों व देवों के साथ दानवों का युद्ध), ७३(बलि, मय प्रभृति दैत्यों का देवों के साथ युद्ध, कालनेमि का विष्णु से युद्ध, विष्णु द्वारा कालनेमि का वध), विष्णुधर्मोत्तर १.४३(विष्णु द्वारा राहु के शिर छेदन से क्रुद्ध दैत्यों का देवों के साथ युद्ध, दैत्यों की पराजय), १.१३०(वैवस्वत मन्वन्तर के प्रथम द्वापर में दैव - दैत्यों के युद्ध का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३३७.३९(शङ्खचूड व शिव के युद्ध में देवों और असुरों के युद्ध का वर्णन ) ; द्र. देवासुर सङ्ग्राम । deva - daitya
देवद्युति पद्म ६.१२८.१८६ (विप्र, सुमित्र - पुत्र, तप, विष्णु की स्तुति), ६.१२९ (देवद्युति द्वारा पिशाच योनि प्राप्त चित्र राजा को माघ स्नान माहात्म्य का कथन ) । devadyuti
देवन ब्रह्माण्ड २.३.७०.४५(देवक्षत्र - पुत्र, मधु - पिता, मरुत्त वंश), मत्स्य १२२.८०(क्रौञ्च द्वीप का एक पर्वत ) ।
देवप्रभ वराह १४५.६३(शालग्राम क्षेत्र के अन्तर्गत एक तीर्थ क्षेत्र, माहात्म्य), कथासरित् ७.२.११३(गन्धर्व, सोमप्रभ - भ्राता, सिंह शाप से अगले जन्म में रत्नाधिपति राजा बनना), १७.४.१७७(देवप्रभा : सिद्धकन्या, गन्धर्वराज चन्द्रकेतु की कन्या पद्मावती को शाप प्रदान ) । devaprabha
देवप्रहरण मत्स्य ६.६(कृशाश्व के पुत्रों की देवप्रहरण नाम से प्रसिद्धि), वायु ६६.७९(कृशाश्व - पुत्र), विष्णु १.१५.१३६(शास्त्रों के अभिमानी देवगण, कृशाश्व की संतति ) । devapraharana
देवबाहु ब्रह्माण्ड १.२.११.२७(प्रीति व पुलस्त्य के ३ पुत्रों में से एक), १.२.३६.६१(रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), २.३.७१.१४१(हृदीक के १० पुत्रों में से एक, कम्बलबर्हिष - पिता), भागवत ९.२४.२७(हृदीक के ३ पुत्रों में से एक), वायु २८.२२(प्रीति व पुलस्त्य के ३ पुत्रों में से एक ) । devabaahu
देवभाग ब्रह्माण्ड २.३.७१.१४९, १८८(शूर व मारिषा के १० पुत्रों में से एक), भागवत ९.२४.२८(शूर व मारिषा के १० पुत्रों में से एक), ९.२४.४०(कंसा - पति, चित्रकेतु व बृहद्बल - पिता), वायु ९६.१४७/२.३४.१४४(शूर व भाषी के १० पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१४.३०(शूर व मारिषा के १० पुत्रों में से एक, आनकदुन्दुभि - भ्राता ) । devabhaaga
देवभूति ब्रह्माण्ड २.३.७४.१५५(देवभूमि : भागवत - पुत्र, १० शुङ्ग राजाओं में अन्तिम), भागवत १२.१.१८(भागवत - पुत्र, १२ शुङ्ग राजाओं में अन्तिम, कलियुगी राजा प्रसंग), मत्स्य २७२.३१(देवभूमि : समाभाग - पुत्र, १० शुङ्ग राजाओं में अन्तिम), वायु ९९.१४४/२.३७.३३८(देवभूमि : १० शुङ्ग राजाओं के पश्चात् देवभूमि राजा का उल्लेख), विष्णु ४.२४.३६( भागवत - पुत्र, शुङ्गवंशी राजाओं में अन्तिम ; मन्त्री द्वारा देवभूति के वध का कथन), कथासरित् १२.५.२०५(ब्राह्मण, भोगवती - पति, नगरपाल के निर्णय से दुःखी होकर प्राण त्याग ) । devabhooti/devabhuuti/ devbhuti
देवमाता मत्स्य १३.४४(सरस्वती में सती देवी के देवमाता नाम से वास का उल्लेख), स्कन्द ७.१.४१ (बडवानल का वहन करने से सरस्वती द्वारा प्राप्त नाम ) ।
देवमित्र ब्रह्माण्ड १.२.३४.३३ (शाकल्य ऋषि का नाम, जनक सभा में याज्ञवल्क्य से विवाद में मृत्यु), १.२.३५.१(देवमित्र द्वारा पांच संहिताओं का निर्माण, मुद्गल आदि ५ शिष्य), भागवत १२.६.५६(माण्डण्केय - शिष्य , सौभरि आदि को संहिता की शिक्षा), वायु ६०.३२(शाकल्य देवमित्र द्वारा ५ शिष्यों हेतु ५ संहिताओं के निर्माण का उल्लेख ) । devamitra
देवमीढ ब्रह्मवैवर्त्त ४.७.५(वसुदेव - पिता, मारिषा - पति), ब्रह्माण्ड २.३.६४.१२(कीर्तिरथ - पुत्र, विबुध - पिता, जनक वंश), भागवत ९.१३.१६(कृतिरथ - पुत्र, विश्रुत - पिता), वायु ८९.१२/२.२७.१२(कीर्तिरथ - पुत्र, विबुध - पिता, जनक वंश), विष्णु ४.५.२७(कृतरथ - पुत्र, विबुध - पिता, जनक वंश ) । devameedha/ devmeedha
देवमीढुष ब्रह्माण्ड २.३.७१.१४५(शूर का विशेषण ?), मत्स्य ४५.२(वृष्णि व माद्री के पुत्रों में से एक), वायु ९६.१४३/२.३४.१४३(शूर व माष्या - पुत्र ? ) ।
देवयान - पितृयान भागवत ७.१५.५५ (देवयान - पितृयान मार्ग का वर्णन), वायु ५०.२१७ (देवयान - पितृयान मार्ग का कथन), विष्णु २.८.८५ (देवयान - पितृयान मार्ग का वर्णन ), महाभारत वन २.७५(अष्टविध धर्म के ४ वर्ग पितृयाण पथ में तथा ४ देवयान पथ में स्थित होने का कथन) । devayaana
देवयानी देवीभागवत ८.४.२७ (शुक्राचार्य व ऊर्जस्वती - पुत्री), १२.६.७६ (गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म २.८०.२(ययाति - पत्नी, अश्रुबिन्दुमती नामक सपत्नी के प्रति दुष्ट भाव की प्राप्ति), भागवत ५.१.३४(शुक्राचार्य व ऊर्जस्वती - कन्या), ९.१८ (देवयानी की शर्मिष्ठा से कलह, देवयानी का कूप में पतन, ययाति से परिणय), मत्स्य २५.७ (शुक्राचार्य - पुत्री, देवयानी के आग्रह पर शुक्राचार्य द्वारा कच के पुन: संजीवन का उद्योग), २६.१ (देवयानी द्वारा कच से पाणिग्रहण का अनुरोध, कच की अस्वीकृति पर शाप - प्रतिशाप), २७.६ (देवयानी की शर्मिष्ठा से कलह, कूप में पतन, ययाति द्वारा कूप से उद्धार), ३२.१ (शर्मिष्ठा व ययाति से पुत्र उत्पत्ति का ज्ञान होने पर देवयानी का रोष, पिता शुक्र के पास गमन), ४७.१८६ (जयन्ती व शुक्राचार्य से देवयानी की उत्पत्ति), वायु ६५.८४(यजनी/जयन्ती नामक पत्नी से शुक्र - पुत्री देवयानी की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.४०७.८०(इन्द्र - पुत्री जयन्ती व शुक्राचार्य से देवयानी कन्या के जन्म का कथन ) । devayaani/devayaanee/ devyani
देवरक्षित ब्रह्म १.१३.५६(देवक के ४ पुत्रों में से एक, देवकी - भ्राता), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१३०(देवक के पुत्रों में से एक, देवकी - भ्राता), मत्स्य ४४.७२(देवक के पुत्रों में से एक, देवकी - भ्राता), विष्णु ४.१४.१७(देवक के ४ पुत्रों में से एक), कथासरित् १४.४.२८(करभक ग्राम निवासी देवरक्षित ब्राह्मण द्वारा पालित कपिला गौ द्वारा गोमुख की योगिनियों से रक्षा ) । devarakshita
देवरक्षिता ब्रह्म १.१३.५७(देवक की ७ पुत्रियों में से एक, देवकी - भगिनी), भागवत ९.२४.२३(देवक की ७ पुत्रियों में से एक, देवकी - भगिनी), ९.२४.५२(वसुदेव - पत्नी, गद आदि ९ पुत्रों की माता), मत्स्य ४६.१६(उपासंगधर - माता), विष्णु ४.१४.१८(देवकी की ७ पुत्रियों में से एक, देवकी - भगिनी), हरिवंश १.३५.२(वसुदेव की १४ पत्नियों में से एक, उपासंगवर - माता ) । devarakshitaa
देवराज शिव १.२.१६(किरात नगर वासी दुष्ट ब्राह्मण देवराज द्वारा शिव पुराण कथा श्रवण से मृत्यु उपरान्त शिव लोक में जाने की कथा), स्कन्द ७.१.२१७ (देवराजेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ) ।
देवरात पद्म १.३४ (ब्रह्मा के यज्ञ में पोता), ५.११२(शिव नाम माहात्म्य के वर्णन के अन्तर्गत देवरात - सुता कला का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.३२.११७(१३ श्रेष्ठ कौशिक ऋषियों में से एक), २.३.६४.८(सुकेतु - पुत्र, बृहदुक्थ - पिता, जनक वंश), २.३.६६.६७(शुन:शेप द्वारा देवरात नाम प्राप्ति के कारण का कथन : देवों द्वारा विश्वामित्र को दत्त), २.३.७०.४४(करम्भ धन्वी - पुत्र, देवक्षत्र - पिता), ३.४.७.३७(किरात द्विजवर्मा द्वारा देवायतन निर्माण के संदर्भ में काञ्चीपुर को प्रदत्त एक नाम), भागवत ९.१३.१४(सुकेतु - पुत्र, बृहद्रथ - पिता, जनक वंश), ९.१६ (विश्वामित्र के दत्तक पुत्र शुन:शेप का अपर नाम, भ्राताओं द्वारा ज्येष्ठ भ्राता रूप में स्वीकृति), ९.२४.५(करम्भि - पुत्र, देवक्षत्र - पिता, विदर्भ वंश), १२.६.६४(याज्ञवल्क्य - पिता), मत्स्य ४४.४२(करम्भ - पुत्र, देवक्षत्र - पिता), १४५.१११(१३ ब्रह्मिष्ठ कौशिकों में से एक), १९८.३(विश्वामित्र के वंश प्रवर में से एक), वराह ४१ (देवरात द्वारा वीरधन्वा को ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु द्वादशी व्रत का कथन), वायु ९१.९५(विश्वामित्र - पुत्र शुन:शेप की देवरात नाम से प्रसिद्धि), ९५.४३/२.३३.४३(करम्भक धन्वी - पुत्र, देवक्षत्र - पिता), ९६.१८५/ २.३४.१८२ (देवश्रवा - पिता),विष्णु ४.५.२५(सुकेतु - पुत्र, बृहदुक्थ - पिता, जनक वंश), ४.७.३७(शुन:शेप द्वारा देवरात नाम प्राप्ति के कारण का कथन : देवों द्वारा विश्वामित्र को दत्त), ४.१२.४१(करम्भि - पुत्र, देवक्षत्र - पिता), स्कन्द ५.२.२८.२२(मुनि, वीरधन्वा राजा द्वारा वध), ६.२९(विवस्त्रा स्त्री के दर्शन से देवरात मुनि का जल में रेत: स्खलन, मृगी द्वारा प्राशन, कन्या का जन्म, देवरात द्वारा वत्स ऋषि को कन्या प्रदान), ६.११४(देवरात विप्र के पुत्र क्रथ द्वारा नागपुत्र का हनन, क्रुद्ध नागों द्वारा क्रथ का भक्षण), लक्ष्मीनारायण १.५४४.७ (मृग रूप धारी तापसों की हत्या पर राजा वीरधन्वा द्वारा देवरात ऋषि से प्रायश्चित्त उपाय की पृच्छा), ३.२०८.१००(सागर नामक किरात का भक्ति से देवरात बनना ) । devaraata/ devrata
देवल
अग्नि ३८२.९(देवल
के मत में परम श्रेय :
सर्व
विधित्सों में हानि-
हानिः
सर्व्वविधित्सानामात्मनः
सुखहैतुकी ।
श्रेयः
परं मनुष्याणां देवलोद्गीतमीरितं
।। ),
गर्ग
१.१९.२९(देवल
मुनि द्वारा कुबेर -
पुत्रों
नलकूबर और मणिग्रीव को वृक्षरूप
होने का शाप,
कृष्ण
दर्शन से स्व -
स्वरूप
प्राप्ति रूप शाप मुक्ति का
कथन),
पद्म
१.६.२७(प्रत्यूष
वसु -
पुत्र,
ऋभु
– भ्राता
-
प्रत्यूषस्य
ऋभुः पुत्रो मुनिर्नामाथ
देवलः।),
१.३४.१४
(ब्रह्मा
के यज्ञ में आग्नीध्र
-
देवगर्भं
च पोतारमाग्नीध्रं चैव देवलम्।
उद्गातांगिरसः
प्रत्युद्गाता च पुलहस्तथा॥
),
१.५९.१३(लिङ्गार्थ
पूजा हेतु दत्त वस्तुओं को
ग्रहण करने के कारण देवल/पुजारी
के नरक में जाने का कथन),
५.१०.३७
(राम
के अश्वमेध में पूर्व द्वार
पर देवल व असित की स्थिति),
६.२०१+
(देवल
द्वारा शरभ ब्राह्मण को पुत्र
प्राप्ति के उपाय का कथन),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.५२.११
(देवल
द्वारा सुयज्ञ नृप से कृतघ्नता
दोष का निरूपण
-
ब्रह्मस्वं
वा गुरुस्वं वा देवस्वं वाऽपि
यो हरेत् ।।
स
कृतघ्न इति ज्ञेयो महापापी
च भारते ।।),
४.१४.३५(एक
मुनि),
४.३०
(असित
-
पुत्र,
रत्नमाला
-
पति,
देवल
को रम्भा का शाप,
अष्टावक्र
नाम प्राप्ति),
ब्रह्माण्ड
१.२.३२.११३(६
ब्रह्मवादी काश्यपों में से
एक),
२.३.३.२७
(प्रत्यूष
वसु -
पुत्र,
२
पुत्रों के पिता
-
प्रत्यूषस्य
विदुः पुत्रमृषिं नाम्नाथ
देवलम् ।
द्वौ
पुत्रौ देवलस्यापि क्षमावन्तौ
मनीषिणौ ॥ ),
२.३.८.३२
(एकपर्णा
व असित मुनि -
पुत्र,
शाण्डिल्यों
में श्रेष्ठ
-
असितस्यैकपर्णायां
ब्रह्मिष्ठः समपद्यत ।
शाण्डिल्यानां वरः श्रीमान्
देवलः सुमहायशाः ॥ ),
२.३.१०.१९
(एकपर्णा
व असित – पुत्र
-
असितस्यैकपर्णा
तु पत्नी साध्वी पतिव्रता
॥....
देवलं
सुषुवे सा तु ब्रह्मिष्ठं
ज्ञानसंयुता ॥ ),
भविष्य
३.४.७.५४(देवल
विप्र के पुत्र रूप में हरिभक्त
रामानन्द का जन्म
-
समुत्पाद्य
कृतः काश्यां रामानंदस्ततोभवत्
।।
देवलस्य
च विप्रस्य कान्यकुब्जस्य
वै सुतः ।।),
४.९२(देवल
मुनि प्रोक्त रम्भा व्रत का
वर्णन),
भागवत
६.६.२०(कृशाश्व
व धिषणा के ४ पुत्रों में से
एक),
८.४.३(देवल
द्वारा हूहू को मकर योनि में
जन्म लेने का शाप -
योऽसौ
ग्राहः स वै सद्यः परमाश्चर्यरूपधृक्।
मुक्तो
देवलशापेन हूहूर्गन्धर्वसत्तमः ),
११.१६.२८(भगवान्
के धीरों में देवल होने का
उल्लेख
-
अहं
युगानां च कृतं धीराणां
देवलोऽसितः),
मत्स्य
५.२७(प्रत्यूष
वसु का पुत्र),
२०.२६(देवल
-
कन्या
सन्नति का पाञ्चाल नरेश
ब्रह्मदत्त की पत्नी होना),
४७.१७(वसुदेव
एवं उपदेवी -
पुत्र),
१४५.१०७(कश्यप
कुल के ६ ब्रह्मवादियों में
से एक ),
वामन
८४.६४(देवल
के शाप से हू हू नामक गन्धर्व
को ग्राह योनि की प्राप्ति,
विष्णु
चक्र से विदीर्ण होने पर ग्राह
रूप धारी गन्धर्व को स्वर्ग
प्राप्ति -
स
हि देवलशापेन हूहूर्गन्धर्वसत्तमः।
ग्राहत्वमगमत् कृष्णाद् वधं
प्राप्य दिवं गतः।)
,
वायु
२३.२०५/१.२३.१९३(भगवद्
अवतार श्वेत के ४ पुत्रों में
से एक),
५९.१०३(६
ब्रह्मवादी काश्यपों में से
एक),
६६.२६
(ऋषि,
प्रत्यूष
-
पुत्र,
क्षमावन्त
व मनीषि -
पिता),
७०.२८/२.९.२७(वर
प्रभृति देवों के देवल की
प्रजा होने का उल्लेख-
असितस्यैकपर्णायां
ब्रह्मिष्ठः समपद्यत
।।….वरप्रभृतयो
देवा देवलस्य प्रजास्त्विमाः।),
७२.१७/
२.११.१७(असित
व एकपर्णा -
पुत्र),
९१.१००/२.२९.९६(विश्वामित्र
के पुत्रों में से एक),
विष्णु
१.१५.११७
(प्रत्यूष
वसु -
पुत्र),
४.४.१०६(पारियात्र
-
पुत्र,
वच्चल
-
पिता,
कुश
वंश),
विष्णुधर्मोत्तर
१.१९३.५
(देवल
द्वारा हा हा -
हू
हू को गज व ग्राह बनने का शाप
-
हाहा
भविष्यति करी हूहू नक्रो
भविष्यति ।।),
शिव
३.५(२३वें
द्वापर में शिव अवतार श्वेत
के ४ पुत्रों में से एक),
स्कन्द
१.२.८.३८(सुदर्शना
-
पिता),
१.२.१३.१७८(शतरुद्रिय
प्रसंग में देवल द्वारा यव
लिङ्ग की पूजा
-
अगस्त्यो
व्रीहिजं वापि सुशांतमिति
नाम च॥ यवजं देवलो लिंगं
पतिमित्येव नाम च॥),
२.१.२६.३९(गार्ग्य
के पूछने पर देवल ऋषि द्वारा
घोण तीर्थ के माहात्म्य का
वर्णन -
कथयस्व
महाभाग मयि कारुणिको भव ।।
घोणतीर्थस्य माहात्म्यं
सर्वपापहरं शुभम् ।।),
२.७.१८.६४(स्तम्ब
द्विज की पत्नी कान्तिमती
द्वारा
पति की रोगमुक्ति हेतु
देवल मुनि की सेवा का उल्लेख
-
तदा
चाऽऽगान्मुनिः कश्चिन्महात्मा
देवलाह्वयः ।।
वैशाखे
मासि घर्मार्तः सायाह्ने
तस्य वै गृहम् ।।),
४.२.९७.१७१(देवलेश्वर
लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य
-
महापुण्यप्रदं
लिंगं तत्पश्चाद्देवलेश्वरम्
।। शतकालस्तत्समीपे शतं
कालानुमापतिः ।।),
५.१.५३
(दुष्ट
चरित्र ब्राह्मण,
द्विज
हत्या से पिशाच बनना,
सुन्दर
कुण्ड में स्नान से मुक्ति),
५.३.१५९.२५(देवलक
गमन से चाण्डाल योनि की
प्राप्ति?),
हरिवंश
१.१८.२३(हिमालय
व मेना -
कन्या
एकपर्णा को असित देवल को पत्नी
रूप में प्रदान करने का उल्लेख
-
असितस्यैकपर्णा
तु देवलस्य महात्मनः । पत्नी
दत्ता महाब्रह्मन् योगाचार्याय
धीमते ।।),
१.२३.२५(देवल
-
कन्या
सन्नति की ब्रह्मदत्त द्वारा
पत्नी रूप में प्राप्ति -
ब्रह्मदत्तस्य
भार्या तु देवलस्यात्मजाभवत्
। असितस्य हि दुर्धर्षा
संनतिर्नाम नामतः ।।),
१.३५.३(देवल?
की
सात पुत्रियों सहदेवा आदि के
नाम),
लक्ष्मीनारायण
१.४८८.७९(असित
-
पुत्र,
रत्नमाला
-
पति,
रम्भा
अप्सरा के शाप से अष्टावक्र
बनना,
अष्टावक्र
के मोक्ष का वृत्तान्त
-
रम्भा
शप्त्वा ययौ स्वर्गमृषिर्नाम्नाऽष्टवक्रकः
। देवलः स प्रसिद्धोऽभूत्
प्रययौ मलयाचलम् ।।),
४.१६.९३(देवलक
:
विनोदिनी
-
पति,
कृष्ण
-
कृपा
से सखीत्व भाव की प्राप्ति
-
श्रीकृष्णोऽपि
परं भावं ज्ञात्वा देवलकान्तरे
। सखीरूपं विनोदिन्या इव तं
योषितं व्यधात् ।।),
कथासरित्
८.२.३४९(मुनि,
कालिन्दी
,
मुद्रिका
तथा दर्पकमाला -
पिता
)
।
devala
देववती वामन ६३+ (कन्दरमाला - पुत्री, वानररूप धारी विश्वकर्मा द्वारा हरण, चित्राङ्गदा से भेंट का वृत्तान्त), वा.रामायण ७.५.२(ग्रामणी नामक गन्धर्व द्वारा स्व कन्या देववती को सुकेश राक्षस को प्रदान करना ) । devavatee/ devvati
देववर्णिनी ब्रह्माण्ड २.३.८.३९(बृहस्पति - पुत्री, विश्रवा - पत्नी, कुबेर - माता), वायु ७०.३३(बृहस्पति - कन्या, विश्रवा की ४ पत्नियों में से एक, वैश्रवण कुबेर - माता), विष्णुधर्मोत्तर १.२१९.४(विश्रवा - भार्या, वैश्रवण - माता, बृहस्पति - पौत्री, भरद्वाज प्रसंग), लक्ष्मीनारायण २.८६.३९(विश्रवा की ४ पत्नियों में से एक, कुबेर - माता ) । devavarnini/devavarninee
देववान् ब्रह्म १.१३.५६(देवक के ४ पुत्रों में से एक, देवकी भ्राता), ब्रह्माण्ड २.३.७१.११३(अक्रूर व उग्रसेनी के पुत्रों में से एक), २.३.७१.१३०(देवक के ४ पुत्रों में से एक, ७ भगिनियों के नाम), ३.४.१.९४(१२वें मन्वन्तर में रुद्र सावर्णि मनु के १२ पुत्रों में से एक), भविष्य ३.४.२२.१५ (मुकुन्द - शिष्य, जन्मान्तर में केशव कवि), भागवत ८.१३.२७(१२वें मन्वन्तर में रुद्र सावर्णि मनु के १२ पुत्रों में से एक), ९.२४.१८(अक्रूर के २ पुत्रों में से एक), ९.२४.२२(देवक के ४ पुत्रों में से एक, ७ भगिनियों के नाम), मत्स्य ४४.७२(देवक के ४ पुत्रों में से एक, ७ भगिनियों के नाम), ४५.३१(अक्रूर व उग्रसेनी के पुत्रों में से एक), वायु १००.९८/२.३८/९८(१२वें मन्वन्तर में रुद्र सावर्णि मनु के १२ पुत्रों में से
एक), विष्णु ३.२.३६(१२वें मन्वन्तर में सावर्णि मनु के पुत्रों में से एक), ४.१४.१०(अक्रूर के २ पुत्रों में से एक), ४.१४.१७(देवक के ४ पुत्रों में से एक, ७ भगिनियों के नाम ) । devavaan
देववीति भागवत ५.२.२३(मेरु की ९ कन्याओं में से एक, केतुमाल - पत्नी)
देवव्रत मत्स्य ५०.४५(शन्तनु व गङ्गा - पुत्र भीष्म का अपर नाम), स्कन्द २.७.२४.२२(द्विज, पत्नी की शुनी योनि से मुक्ति प्राप्ति की कथा ) । devavrata
देवशयन भविष्य ४.७०.२(चातुर्मास में विष्णु शयन का विधान, मन्त्र, नियम, व्रत आदि का वर्णन ) ।
देवशर्मा पद्म ५.८७+ (ब्राह्मण, सुमना - पति, वसिष्ठ द्वारा देवशर्मा के पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन : पूर्वजन्म में शूद्र, पुत्र प्राप्ति हेतु वैशाख मास व्रत का अनुष्ठान, पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त ) , ५.८९ (सुमना - पति देवशर्मा ब्राह्मण को वसिष्ठ द्वारा उसके पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन : पूर्व जन्म में शूद्र), ६.१५.१३ (विष्णु द्वारा वृन्दा के समक्ष धारित मुनि रूप, भरद्वाज - पुत्र), ६.७७ (भग्ना - पति, वृषभ रूप पिता व शुनी रूपी माता के तारणार्थ ऋषि पञ्चमी व्रत का अनुष्ठान), ६.८८(गुणवती - पिता, चन्द्र - गुरु, जन्मान्तर में सत्राजित), ६.८९(वही), ६.१७६ (देवशर्मा द्वारा मित्रवान् से गीता के द्वितीय अध्याय के माहात्म्य का श्रवण), मत्स्य ४४.७९(शोणाश्व के ५ पुत्रों में से एक), वायु ६०.६६(रथीतर के ४ शिष्यों में से एक), स्कन्द १.२.३.४१(देवशर्मा द्वारा सुभद्र को निज पुण्य का चतुर्थाश दान), २.४.७.७३ (देवद्रव्य का अपहारक, मार्जार योनि की प्राप्ति), २.४.१२.३८(देवशर्मा - पुत्र दुराचार का शाप से मूषक होना, कार्तिक कथा से मुक्ति), २.४.१३.१८ (गुणवती - पिता देवशर्मा का सत्राजित् रूप में जन्म), २.५.११ (देवशर्मा ब्राह्मण का शूद्र द्वारा सत्कार), २.५.१२ ( देवशर्मा द्वारा एकादशी व्रत का उपदेश), ६.३१ (देवशर्मा ब्राह्मण द्वारा विष्णुसेन राजा से पिता के श्राद्ध का निमन्त्रण स्वीकार करना), ७.१.२२५ (देवशर्मा द्वय का वृत्तान्त : यम से नरक सम्बन्धी संवाद), महाभारत अनु ७६(४०-गीताप्रेस) ( देवशर्मा – शिष्य विपुल द्वारा गुरु-पत्नी रुचि की इन्द्र से रक्षा का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.४२८.४०(शूद्र दम्पत्ति द्वारा तृषा आदि से पीडित देवशर्मा ब्राह्मण की सेवा, देवशर्मा द्वारा शूद्र दम्पत्ति के पिछले जन्म के वृत्तान्त का वर्णन व कृष्ण भक्ति का उपदेश), ३.९३.४(विप्र, स्वपत्नी रुचि की शील लक्षण की कथा), कथासरित् २.२.९(पाटलिपुत्र निवासी देवशर्मा उपाध्याय द्वारा कालनेमि और विगतभय द्विजों को विद्या प्रदान के पश्चात् अपनी कन्याद्वय प्रदान), १०.८.३ (ब्राह्मण, देवदत्ता - पति, विचार किए बिना शीघ्रता में पालतू नेवले का वध ) । devasharmaa
देवश्रवा ब्रह्माण्ड १.२.३२.११८(विश्वामित्र के १३ श्रेष्ठ पुत्रों में से एक), २.३.७१.१४९ (शूर व मारिषा के १० पुत्रों में से एक), भागवत ९.२४.२८(शूर व मारिषा के १० पुत्रों में से एक), ९.२४.४१(कंसवती - पति, २ पुत्रों के नाम), मत्स्य ४६.२(शूर व भोजा के १० पुत्रों में से एक), वायु ९६.१८५/ २.३४.१८५(देवरात के पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१४.३०(शूर व मारिषा के १० पुत्रों में से एक ) । devashravaa
देवश्रेष्ठ ब्रह्माण्ड ३.४.१.९४(बारहवें मनु रुद्र सावर्णि के १२ पुत्रों में से एक), भागवत ८.१३.२७(बारहवें मनु रुद्रसावर्णि के १२ पुत्रों में से एक), वायु १००.९८/ २.३८.९८(बारहवें मनु ऋतुसावर्णि के १२ पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.३६(१२वें मनु के पुत्रों में से एक ) । devashreshtha
देवसख गर्ग ७.२९.२३(स्वर्ण चर्चिका नगरी के राजा देवसख द्वारा प्रद्युम्न का पूजन), लक्ष्मीनारायण ३.२५.४ (देवसख आदि ५ विप्रों द्वारा प्रसविष्णु असुर को लक्ष्मी व कामादि प्रदान करने का वर्णन, भविष्य के ५ इन्द्रों में से एक ) । devasakha
देवसर्ग भागवत ३.१०.१६, २६(६ प्राकृत सर्गों में से पञ्चम), वायु ६.६३(तीन प्राकृत सर्गों में से एक ) ।
देवसावर्णि भागवत ८.१३.३०(१३वें मनु का नाम, चित्रसेन आदि के पिता), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.८६ (सुधर्म विप्र का यज्ञादि से रुचि व मालिनी - पुत्र देवसावर्णि मनु बनना ) । devasaavarni
देवसिंह भविष्य ३.३.१.२७ (भीष्मसिंह - पुत्र), ३.३.८.३२ (सहदेव का अवतार), ३.३.१०.५० (देवसिंह द्वारा मनोरथ हय की प्राप्ति), ३.३.१२.२७ (कृष्णांश की सेना में रथियों का अधिपति), ३.३.१५.१२ (देवी द्वारा देवसिंह की परीक्षा व वरदान ) । devasimha/ devasingh
देवसेन कथासरित् ३.१.६३(राजा देवसेन और उन्मादिनी की कथा), ३.४.३१(देवसेन नामक गोपालक की आज्ञा से ब्राह्मण के पैर कर्त्तन की कथा), ३.४.२५९(राजा, दुःखलब्धिका- पिता, पुत्री के पतियों के मरण की कथा), ६.३.७१(कीर्त्तिसेना और देवसेन की कथा), ६.७.६२(वैश्यकन्या उन्मादिनी और राजा देवसेन की कथा ) । devasena
देवसेना देवीभागवत ९.१.७८ (प्रधान मातृका, षष्ठी नाम), ९.४६.५ (देवसेना द्वारा प्रियव्रत के मृत पुत्र को जीवित करना, अन्य नाम षष्ठी, स्तोत्र व पूजा विधि), नारद १.११५.३८(कार्तिक शुक्ल षष्ठी में षण्मुख व देवसेना की पूजा), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.७९(प्रकृतिदेवी का प्रधान अंश, श्रेष्ठ मातृका), २.४३ (षष्ठी नाम, बालकों की धात्री, प्रियव्रत का उपाख्यान), ब्रह्माण्ड ४.३०.१०५(इन्द्र - पुत्री, स्कन्द - पत्नी, तारकासुर के वध से प्रसन्न होकर इन्द्र द्वारा कन्यादान), मत्स्य १५९.८ (इन्द्र द्वारा स्कन्द को देवसेना कन्या पत्नी रूप में प्रदान), स्कन्द १.१.२८.११(कुमार द्वारा मृत्यु - कन्या सेना/एक सुन्दरी के वरण का कथन ) । devasenaa
देवस्थान मत्स्य १९६.१५(देवस्थानि : आङ्गिरस कुल का एक प्रवर प्रवर्तक), वायु १२.३९/१.१२.३६(योग द्वारा ८ देवस्थानों से ऊपर उठने का कथन), ६१.१७०(योग द्वारा ८ देवस्थानों से ऊपर उठने का कथन), १०२.९६/२.४०.९६(ब्रह्मा से लेकर पिशाचों तक देवों के ८ स्थानों का कथन ) । devasthaana
देवस्वामी कथासरित् १.२.४१(विप्र, करम्भक - भ्राता, इन्द्रदत्त - पिता), १२.१२.६(ब्राह्मण, हरिस्वामी - पुत्र, सोमप्रभा - भ्राता), १२.२५.१३(ब्राह्मण, चन्द्रप्रभ - मन्त्री, चन्द्रस्वामी - पिता), १८.४.२५२(ब्राह्मण, कमललोचना - पिता ) । devaswaami/devaswaamee/ devswami
देवहू भागवत ४.२५.५१(पुरञ्जन नगर का उत्तरी प्रवेश द्वार), ४.२९.१२(उत्तर कर्ण का प्रतीक ) । devahoo/ devhu
देवहूति
देवीभागवत
८.३
(स्वायम्भुव
मनु
की
पुत्री,
कर्दम
-
पत्नी),
भविष्य
३.४.२४.३१(कामशर्मा
विप्र
की
पत्नी,
भोगसिंह
व
केलिसिंह
की
माता-
स्वपूर्वार्द्धाद्देवहूत्यां
तत्पत्न्यां
च
समुद्भवः
।
द्विधा
भूत्वा
मही
जातौ
दिव्याङ्गौ
दिव्यविग्रहौ
।।),
भागवत
३.२२+
(स्वायम्भुव
मनु
की
पुत्री,
कर्दम
-
पत्नी,
विमान
में
विहार,
कपिल
का
जन्म,
कपिल
द्वारा
भक्ति
की
महिमा
का
वर्णन),
३.३३
(देवहूति
द्वारा
कपिल
की
स्तुति
व
मोक्ष
प्राप्ति),
८.१.५(आकूत्यां
देवहूत्यां
च
दुहित्रोस्तस्य
वै
मनोः।
धर्मज्ञानोपदेशार्थं
भगवान्पुत्रतां
गतः॥),
९.२४.३२
(पृथा/कुन्ती
द्वारा
दुर्वासा
से
देवहूति
विद्या
प्राप्त
करके
सूर्य
का
आह्वान
करने
का
कथन
-
साप
दुर्वाससो
विद्यां
देवहूतीं
प्रतोषितात्।
तस्या
वीर्यपरीक्षार्थमाजुहाव
रविं
शुचिः॥),
लक्ष्मीनारायण
३.१३६.३७(देवहूति
के
पूर्व
जन्म
का
कथन
:
पूर्व
जन्म
में
सिनीवाली,
लक्ष्मीशान्ति
व्रत
के
प्रभाव
से
देवहूति
रूप
में
जन्म
लेकर
कपिल
नामक
पुत्र
की
प्राप्ति
-
अथ
कर्दमपत्नी
या
सिनीवाली
पुराऽभवत्
।
लक्ष्मीशान्तिव्रतं
कृत्वा
देवहूती
ततोऽभवत्
।।
)
।
devahooti/devahuuti/
devhuti
देवह्रद ब्रह्माण्ड २.३.१३.९०(शालग्राम में देवह्रद में नागराज द्वारा योग्यों का पिण्ड स्वीकार करने व अयोग्यों का अस्वीकार करने का उल्लेख), वराह १४५.७५(शालग्राम क्षेत्र के अन्तर्गत एक तीर्थ, माहात्म्य ) । devahrada
देवातिथि भागवत ९.२२.११(क्रोधन - पुत्र, ऋष्य - पिता, कुरु/परीक्षित् वंश), मत्स्य ५०.३७(अक्रोधन - पुत्र, दक्ष - पिता), वायु ९९.२३२/२.३७.२२८ (अक्रोधन - पुत्र, ऋक्ष - पिता, परिक्षित् वंश), विष्णु ४.२०.५(अक्रोधन - पुत्र, ऋक्ष - पिता, परीक्षित् वंश ) । devaatithi
देवानीक ब्रह्माण्ड २.३.६३.२०३(क्षेमधन्वा - पुत्र, अहीनगु - पिता, कुश वंश), भागवत ५.२०.१५(कुश द्वीप के ७ पर्वतों में से एक), ९.१२.२(क्षेमधन्वा - पुत्र, अनीह - पिता, कुश वंश), मत्स्य १२.५३( क्षेमधन्वा - पुत्र, अहीनगु - पिता, कुश वंश), वायु ८८.२०३/२.२६.२०२(क्षेमधन्वा - पुत्र, अहीनगु - पिता, कुश वंश), १००.८४/२.३८.८४(१२वें धर्म सावर्णि मनु के ८ पुत्रों में से एक), विष्णु ४.४.१०६(क्षेमधन्वा - पुत्र, अहीनक - पिता, कुश वंश), लक्ष्मीनारायण २.२७०.३(कृषक वैश्य, जलमग्न होने पर विष्णु द्वारा उद्धार की कथा), ३.१०७.११(चिह्न योगी द्वारा सौराष्ट्र नृप देवानीक व रानी सहजाश्री की कठिन परीक्षा व वरदान का वृत्तान्त), ३.१५६.५४ (देवानीक / आनन्दवर्णी नामक कृषक के धर्मसावर्णि मनु बनने का वर्णन), ३.१५६.५९ (आनन्दवर्णी वैश्य का कृष्ण के वरदान से देवानीक विप्र व धर्मसावर्णि मनु बनना ) । devaaneeka
देवान्तक गणेश २.१.३७ (रौद्रकेतु व शारदा - पुत्र देवान्तक द्वारा शिव से अवध्यता वर की प्राप्ति, स्वर्ग विजय), २.३.५ (देवान्तक द्वारा स्वर्ग विजय), २.६२.२२ (भ्राता नरान्तक की मृत्यु पर देवान्तक द्वारा काशी पर आक्रमण), २.६५.३ (बुद्धि से निर्गत कृत्या द्वारा देवान्तक का भग में बन्धन व मोचन), पद्म १.७० (यम द्वारा देवान्तक का वध), ब्रह्माण्ड २.३.५.३९(कालनेमि के ४ पुत्रों में से एक), वा.रामायण ६.६९.३१ (रावण - सेनानी), ६.७०+ (हनुमान द्वारा देवान्तक का वध ) । devaantaka/devantaka
देवापि ब्रह्म २.५७ (उपमन्यु - पुत्र, मिथु असुर द्वारा यज्ञ के यजमान आर्ष्टिषेण व पुरोहित उपमन्यु आदि का हरण, देवापि द्वारा पिता उपमन्यु आदि की रक्षा का उद्योग), भविष्य ३.४.२२ (मुकुन्द - शिष्य, जन्मान्तर में बीरबल), भागवत ९.२२.११ (प्रतीप - पुत्र, शन्तनु - भ्राता, कलाप ग्राम में योग साधना - ऋष्यस्तस्य दिलीपोऽभूत् प्रतीपस्तस्य चात्मजः ॥ देवापिः शान्तनुस्तस्य बाह्लीक इति चात्मजाः ।), मत्स्य ५०.४१ (प्रतीप - पुत्र, कुष्ठ के कारण राज्य से च्युति - देवापिस्तु ह्यपध्यातः प्रजाभिरभवन् मुनिः।। ), वायु ९९.४३७/२.३७.४३३(देवापि द्वारा कृतयुग में क्षत्रियों की स्थापना का उल्लेख), विष्णु ४.२०.१९ (प्रतीप - पुत्र, शन्तनु - अग्रज, संक्षिप्त चरित्र), ४.२४.११८ (देवापि का कलाप ग्राम में वास, सत्ययुग के आरम्भ में मनु वंश के बीज रूप - देवापिः पौरवो राजा पुरुश्चेक्षाकुवंशजः। महायोगबलोपेतौ कलापग्रामसंश्रितौ) । devaapi/devapi
देवायतन लक्ष्मीनारायण २.११९(भक्त ऋषि देवायतन के हरिनाम संकीर्तन से यमपुरी वासियों की बन्धन से मुक्ति), २.१३५.२३(भक्त ऋषि, देवालय स्वरूपता, कृष्ण द्वारा देवायतन भक्त को देवालय होने का वरदान व देवालय के स्वरूप का दर्शन कराना, देवालय में वास हेतु अपेक्षित योग्यता का कथन), २.१६७(देवायतन प्रभृति ऋषियों तथा नृपादिकों का यज्ञभूमि में आगमन ) । devaayatana
देवायन लक्ष्मीनारायण २.३९.९१(द्विज, अश्वपट्ट सर में स्नान से मुक्ति की कथा), ३.१८०.६१(देवायन ऋषि द्वारा जलोदर रोग से पीडित उत्तम नामक कर्मकाण्डी को हरि नाम दीक्षा देने का उल्लेख ) । devaayana
देवार्चन योगवासिष्ठ ६.१.३९(देवार्चन विधि), द्र. अर्चना, पूजा ।
देवालय अग्नि ३८(देवालय निर्माण से प्राप्त फल का वर्णन), ३२७.१६(देवालय निर्माण का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.२३.९५(वातरश्मियों से संचालित ग्रहों के रथों की देवालय संज्ञा), वायु ५२.८५(वातरश्मियों से संचालित ग्रहों के रथों की देवालय संज्ञा), लक्ष्मीनारायण २.१३५(देवायतन भक्त ऋषि का कृष्ण के वरदान से देवालय स्वरूप होना, देवालय में वास हेतु अपेक्षित योग्यता का वर्णन ) ; द्र. देवायतन । devaalaya
देवावृध ब्रह्म १.१३.३५ (देवावृध द्वारा पर्णाशा नामक नदी भार्या से बभ्रु पुत्र की प्राप्ति), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६(देवावृध द्वारा पर्णाशा के तट पर तप, नदी रूपी स्त्री से विवाह, बभ्रु पुत्र की प्राप्ति), भागवत ९.२४.६(सात्वत के ७ पुत्रों में से एक, बभ्रु - पिता, देवावृध की प्रशंसा में श्लोक), मत्स्य ४४.४७ (सात्वत व कौसल्या - पुत्र, कुमारी रूप धारी पर्णाशा नदी को पत्नी रूप में प्राप्त करना, देवावृध व पर्णाशा से बभ्रु का जन्म), वायु १.१४५(कौशल्य के कईं पुत्रों में से एक), ९६.६/२.३४/६(वर्णासा नदी द्वारा तपोरत राजा देवावृध से बभ्रु पुत्र उत्पन्न करने का कथन), विष्णु ४.१३.१(सत्वत - पुत्र, बभ्रु - पिता), ४.१३.६(बभ्रु व देवावृध की प्रशंसा में श्लोक), हरिवंश १.३७.१३ (सत्वत व कौशल्या - पुत्र, पर्णाशा में तप, बभ्रु पुत्र की प्राप्ति, चरित्र), लक्ष्मीनारायण २.२४४.७३(देवावृध द्वारा भूसुर को छत्र व सुवर्ण दान का उल्लेख), ३.७४.५७(स्वर्ण छत्र दान से देवावृध को हरिधाम प्राप्ति ) । devaavridha
देवासुर-सङ्ग्राम अग्नि २७६.१० (१२ देवासुर सङ्ग्रामों का संक्षिप्त परिचय), देवीभागवत ९.२२ (शिव व शङ्खचूड का सङ्ग्राम), पद्म १.४०+ (देव - असुर सङ्ग्राम में कार्तिकेय द्वारा तारकासुर का वध), १.६५+ (देव - दानव युद्ध में वाराह रूप धारी हरि द्वारा हिरण्याक्ष का वध), ६.६(इन्द्र व बल के द्वन्द्व युद्ध में इन्द्र द्वारा बल का वध), ६.१०१ (शिव व जालन्धर सङ्ग्राम), ब्रह्म २.९०.८(देवों व असुरों के सङ्ग्राम में अहि, वृत्र, बलि, त्वाष्ट्रि, नमुचि, शम्बर व मय का क्रमश: अग्नि, इन्द्र, वरुण, त्वष्टा, पूषा व अश्विनौ से युद्ध का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.१९ (शङ्खचूड व शिव का सङ्ग्राम), ४.१२० (यादवों व शिवगणों का सङ्ग्राम), ब्रह्माण्ड २.३.७२.६६ (१२ देवासुर सङ्ग्रामों का वर्णन), ३.४.१६(ललिता देवी एवं भण्डासुर के युद्ध का वर्णन), ३.४.२५.९४ (मातृकाओं व दैत्यों का सङ्ग्राम), ३.४.२८.३७(मातृकाओं एवं दैत्यो के मध्य युद्ध का वर्णन), भविष्य ३.४.१८.१३(संज्ञा के स्वयंवर के अवसर पर देवों व असुरों में सङ्ग्राम), भागवत ८.१० (समुद्र मन्थन के उपरान्त देवासुर सङ्ग्राम), १०.६३ (कृष्ण व बाणासुर का सङ्ग्राम), मत्स्य ४७.४१ (१२ देवासुर सङ्ग्रामों के नाम व वर्णन), १३४+ (शिव व त्रिपुर का सङ्ग्राम), १४९+ (तारक व स्कन्द का सङ्ग्राम), १५०(देवों व असुरों का घमासान युद्ध, विष्णु का युद्धभूमि में आगमन, कालनेमि को परास्त करके जीवित छोडना), मार्कण्डेय ८३ (भद्रकाली व महिषासुर का सङ्ग्राम), वराह ९४(देवों व महिषासुर सेना के युद्ध का वर्णन), वामन ९ (अन्धक व इन्द्र का सङ्ग्राम), ६८ (अन्धक व शिव का सङ्ग्राम), ६९ , ७३ (बलि व देवों का सङ्ग्राम), वायु ९७.६८/२.३५.७३(१२ देवासुर सङ्ग्रामों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२१६+ (माली, सुमाली का विष्णु व देवों से सङ्ग्राम), शिव २.५.३६ (शिव आदि देवों तथा शङ्खचूड आदि दानवों के युद्ध का वर्णन), स्कन्द १.१.१७(इन्द्र व वृत्रासुर का सङ्ग्राम), १.२.१६ (तारकासुर व इन्द्र का सङ्ग्राम), २.४.१९ (शिव व जालन्धर का सङ्ग्राम), हरिवंश १.४३ (तारकासुर व देवों का सङ्ग्राम), ३.५१+ (बलि व इन्द्र का सङ्ग्राम), लक्ष्मीनारायण १.९३ (समुद्र मन्थन के पश्चात् देवासुर सङ्ग्राम), १.९९(तारकासुर व कार्तिकेय के युद्ध के संदर्भ में देवासुर सङ्ग्राम), १.१६४(देवी द्वारा महिषासुर की सेना का संहार), ३.१००.१६(१२ देवासुर सङ्ग्रामों का वर्णन ) । devaasura sangraama
देविका देवीभागवत ७.३०.६९ (देविका तट पीठ में नन्दिनी देवी का वास), नारद १.४९.३८(देविका नदी तट पर स्थित वीरनागर नगरस्थ निदाघ को ऋभु द्वारा परमार्थ का उपदेश), पद्म ३.२५.९ (देविका तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड २.३.१३.४१(देविका में वृषकूप का श्राद्ध के लिए महत्त्व), भविष्य ४.१३०.५४ (देविका नदी : पार्वती का अवतार, नदी तट पर विष्णु मन्दिर में मूषिका व दीप की कथा), मत्स्य १३.३९(मथुरा में सती देवी का देवकी नाम से निवास), १३३.२४(त्रिपुरारि के रथ में देविका आदि नदियों की वेणु रूप में स्थिति का उल्लेख), वराह ३८ (व्याध द्वारा देविका नदी की स्तुति, देविका नदी द्वारा जल प्रदान), १४४.९६(गण्डकी - त्रिवेणी सङ्गम की एक नदी), वामन ७८.३५ (ब्रह्मलोक की विजय हेतु धुन्धु असुर द्वारा देविका नदी तट पर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन, यज्ञ में वामन का आगमन), ९०.३० (देविका नदी में विष्णु का भूधर नाम), विष्णु २.१५.६(देविका तट पर स्थित वीरनगर में राजा निदाघ की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.१६७.१५(उमा का रूप, देविका नदी के तट पर निर्मित तीर्थ की महिमा), १.२१५.४७ (देविका नदी का हंस वाहन से विष्णु के समीप गमन), स्कन्द ५.३.१९८.७५(देविका तट पर देवी की नन्दिनी नाम से स्थिति), ६.१०९ (देविका तीर्थ में उमापति लिङ्ग), ७.१.२७६+ (देविका नदी का माहात्म्य), ७.१.२७८.३८(वाल्मीकि को देविका - तट पर जप से सिद्धि की प्राप्ति ) । devikaa
देवी अग्नि ६५.२०(गृह प्रवेश के समय गौ देवी को उद्देश कर अभ्युदय हेतु प्रार्थना), १३४.१(त्रैलोक्य विजया विद्या वर्णन के अन्तर्गत विभिन्न देवियों का आह्वान), १३५(सङ्ग्राम विजय विद्या वर्णन के अन्तर्गत विभिन्न देवियों का आह्वान), १४५+ (मालिनी मन्त्रों के शाक्त न्यास के वर्णन में वर्णमाला के अक्षरों द्वारा विभिन्न शक्तियों/देवियों का निरूपण), १४६.१(अष्टाष्टक देवियों में त्रिखण्डी देवियों आदि का वर्णन व न्यास), ३१३.१५(ज्वालामालिनी देवी, श्रीदेवी, गौरी देवी तथा नित्यक्लिन्ना देवी के मन्त्रों का वर्णन), ३४८.३(देवी का बोधक अक्षर ए), देवीभागवत ५.८.४६(महिषासुर वधार्थ देवों के तेज से देवी की उत्पत्ति), ५.१४ (सुमेधा ऋषि - प्रोक्त देवी पूजा की विधि), ७.३०.५३ (देवी के पीठों में नाम), ७.३९+ (देवी की पूजा के प्रकार व विधि), ८.२४ (तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, मास अनुसार नैवेद्य द्वारा देवी की पूजा), १०.१२ (देवों के तेज से महिषासुर मर्दिनी देवी का प्राकट्य, देवों द्वारा देवी को भेंट), नारद १.८७(विधान सहित दुर्गा देवी के मन्त्र चतुष्टय का निरूपण), पद्म १.२०.११२ (देवी व्रत का माहात्म्य व विधि), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.३८(दस देवियों के नाम), ३.४.२२(अश्वारूढा ललिता देवी द्वारा युद्ध), ३.४.२२.३६(संपत्सरस्वती देवी द्वारा युद्ध), ३.४.२३.५६(नकुली देवी द्वारा युद्ध), ३.४.२४.८२(तिरस्करणिका देवी द्वारा युद्ध), ३.४.३५.२९(वारुणि देवी), भविष्य ३.२.३०.१६(पितृशर्मा ब्राह्मण द्वारा विष्णुयशा की कन्या देवी ब्रह्मचारिणी से विवाह, पुत्रादि की प्राप्ति), मत्स्य १३ (तीर्थों में देवी के नाम), १०१.५९ (देवी व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), वराह १७२ (उद्यान अधिष्ठात्री देवी का गोकर्ण वैश्य से संवाद, अयोध्या नरेश द्वारा मथुरा के उद्यान नष्ट करने के दुःख का कथन), १७२ (ज्येष्ठा देवी का गोकर्ण वैश्य से संवाद), वायु ६९.६/२.८.६(३४ मौनेया अप्सराओं में से एक), स्कन्द १.२४७ (देवी के चतुर्दश नाम व माहात्म्य), ३.२.१७(शान्ता देवी, श्रीमाता देवी का माहात्म्य ) , ५.३.१९८ (तीर्थ अनुसार देवी के १०८ नाम, माण्डव्य शूल का प्रसंग), ७.१.८३(देवी द्वारा महिषासुर वध का प्रसंग), लक्ष्मीनारायण १.२७ (देवी के विभिन्न नामों की निरुक्ति), १.२७३(विभिन्न मासों की अष्टमी तिथियों में विभिन्न देवियों के व्रतों का वर्णन), १.४४०.५४(गोत्रों की रक्षक कुलदेवियों के नाम), महाभारत शान्ति २२८.८२(श्री का जया - प्रमुख ८ देवियों के साथ असुरों को त्याग कर देवताओं पास आना ) । devee/devi
देवीभागवत देवीभागवत ०.१+ (देवीभागवत पुराण का माहात्म्य ) ।
देश अग्नि १३० (नक्षत्र मण्डलों में उत्पात का देशों पर प्रभाव), गरुड १.५५ (देशों का दिशा अनुसार विन्यास), नारद १.५६.७३९ (कूर्म के अङ्गों में पाञ्चाल, मागध प्रभृति देशों का विन्यास), पद्म ३.६.३४ (भारत के अन्तर्गत देशों के नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४६ (भारत के वर्णन के अन्तर्गत देशों/जनपदों के नाम), १.२.३६.१७२ (अनूप देश का वर्णन), भविष्य १.१८१(ब्रह्मावर्त, मध्यदेश, आर्यावर्त, यज्ञिय तथा म्लेच्छ देशों का निर्धारण), मत्स्य ११४.३४ (भारतवर्ष की विभिन्न दिशाओं में अवस्थित देशों के नाम), २३८ (देश के विनाश सूचक लक्षण व उनकी शान्ति के उपाय का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.८६ (नक्षत्र, ग्रह अनुसार देशों में पीडा), १.१४४ (श्राद्ध के लिए उपयुक्त देश), ३.१२१ (पुष्कर, प्रयाग आदि देशों में देव विशेष का प्रादुर्भाव व पूजा), शिव १.१५.१ (देवयज्ञादि कर्मों में गृह आदि स्थानों की आपेक्षिक महिमा का कथन), योगवासिष्ठ ३.३६.२२ (विभिन्न दिशाओं में स्थित देशों के नाम), महाभारत कर्ण ४५.३४(मगध, कोसल, कुरुपाञ्चाल आदि देशों के वासियों की विशेषताओं का कथन), आश्वमेधिक ९२ दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३६१(कुरुक्षेत्र, मत्स्य, पाञ्चाल आदि कुछ देशों की विशेषताओं का कथन ) ; द्र. भद्रदेश । desha
देशकाल योगवासिष्ठ ६.२.१००.३७टीका(काल से असत्ता क्षणिकत्व व देश से असत्ता जाड्य होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.४९.३०(देशकाल से अभिन्न कहकर नील द्वारा रामेश्वर की स्तुति ) ।
देशराज भविष्य ३.३.४(वसुमान् व व्रतपा - पुत्र, रामांश), ३.३.१०.४० (सूर्य की आराधना से देशराज द्वारा पपीहक हय की प्राप्ति ) ।
देश्यावन लक्ष्मीनारायण ३.२२७(देश्यावन नामक कीशपालक द्वारा सुधामर साधु के खङ्ग से मोक्ष प्राप्ति ) ।
देसट कथासरित् १८.४.१८५(केसट - पिता ) ।
देह अग्नि १७८.३(चैत्र शुक्ल तृतीया व्रत में अङ्गों में शिव - पार्वती का विभिन्न नामों से न्यास - नमोऽस्तु पाटलायैव पादौ देव्याः शिवस्य च । शिवायेति च सङ्कीर्त्य जयायै गुल्फयोर्यजेत् ॥), १८९.८(भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को वासुदेव का विभिन्न नामों से देह में न्यास - श्रीधराय मुखं तद्वत्कण्ठे कृष्णाय वै नमः ॥ नमः श्रीपतये वक्षो भुजो सर्वास्त्रधारिणे ।), गरुड २.५.३३(पिण्डों से प्रेत देह का निर्माण - अहोरात्रैस्तु नवभिर्देहो निष्पत्तिमाप्नुयात् । शिरस्त्वाद्येन पिण्डेन प्रेतस्य क्रियते तथा ॥), २.१८.३९(१० पिण्डों से प्रेत देह बनने का उल्लेख - दिवसैर्दशभिर्जातं तं देहं दशपिण्डजम् । जामदग्न्यस्येव रामं दृष्ट्वा तेजः प्रसर्पति ॥), २.३०.३२(देह का त्रिदेवों में विभाजन - पादादूर्ध्वं कटिं यावत्तावद्ब्रह्याधितिष्ठति । ग्रीवां यावद्धरिर्नाभेः शरीरे मनुजस्य च ॥ ), २.३२.३५(देह का ५ भूतों में विभाजन), २.३२.५४(देह में धातुओं का परिमाण), २.३४.४८(दशाह में मृतक के अंगों का निर्माण), २.४०.४९(देह में विभिन्न वस्तुओं का न्यास, पुत्तलिका के अङ्गों में देय द्रव्य), ३.५.१६(देह में त्वक् आदि के अहंकारिक देवों का वर्णन), ३.१२.१०१(चित्त, हस्त, पाद आदि की असुर संज्ञा), ३.२३.३७(श्रीनिवास की देह के अंगों का तलातल, सुतल आदि लोकों में विभाजन), देवीभागवत ९.३६.६(सावित्री - धर्मराज संवाद में मृत्यु पश्चात् नरक यातना भोगने वाली देह के स्वरूप का प्रश्न), ११.८.१(शरीर में नाडी चक्रों के स्वरूप का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.२८(देह के विभिन्न अङ्गों के सौन्दर्य हेतु विभिन्न वस्तुओं के दानों का वर्णन), ३.४.५०(देह सौन्दर्य प्राप्ति हेतु पुण्यक व्रत में विधि - विधान), व्रह्माण्ड ३.४.१.१७(देही : २० अमिताभ देव गण में से एक), ३.४.३६.५३ (देहसिद्धि : रससिद्धि आदि ८ सिद्धियों में से एक), भविष्य ३.४.२५.३४ (ब्रह्माण्ड देह से सूर्य/ चाक्षुष मनु की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.४.२५.३५ (ब्रह्माण्ड देह से विभिन्न ग्रहों की सृष्टि), ४.१३.७४ (विष्णु की देह में विभिन्न नामों से पूजा - प्रथमेह्नि स्मृता पूजा पादयोश्चक्रपाणिनः ।। नाभिपूजा द्वितीयेह्नि कर्तव्या विधिवन्नरैः ।।), ४.२५.१८(सौभाग्य शयन व्रत के संदर्भ में गौरी व शिव का विभिन्न नामों से अङ्गों में न्यास - पाटलां शंभुसहितां पादयोस्तु प्रपूजयेत् ।। त्रियुगां शिवसंयुक्तां गुल्फयोरुभयोरपि ।। ), ४.८६.९(मदन द्वादशी व्रत के संदर्भ में अङ्गों में काम का विभिन्न नामों से न्यास - कामाय पादौ संपूज्य जंघे सौभाग्यदाय च । मन्मथाय तथा मेढ्रं माधवाय कटिं नमः ।।), ४.९७.५(मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी को शिव के विभिन्न अङ्गों की विभिन्न नामों से पूजा - ऊरू चानन्त्यवैराग्यं जानुनी चार्चयेद्बुधः । प्रधानाय नमो जंघे गुल्फौ व्योमात्मने नमः ।।), ४.१०६.२२(अनन्त व्रत के संदर्भ में विभिन्न मासों में अनन्त के विभिन्न अङ्गों की पूजा - ततश्च पौषे पुष्यर्क्षे तथैव भगवत्कटिम् ।), ४.१५६.१५ (कामधेनु दान के समय कामधेनु के विभिन्न अङ्गों में स्थित देवताओं के नाम), भागवत ५.२३.८(विष्णु की शिशुमार रूपी देह में देवों, नक्षत्रों, ग्रहों आदि की स्थिति का वर्णन), मत्स्य ३.९(ब्रह्मा के शरीर के अङ्गों से उत्पन्न दक्ष आदि १० अपत्यों का कथन), ७०.३५(वेश्याओं के कल्याण हेतु देह के अङ्गों में अनङ्ग का विभिन्न नामों से न्यास - कामाय पादौ संपूज्य जङ्घे वै मोहकारिणे। मेढ्रं कन्दर्पनिधये कटिं प्रीतिमते नमः।।), वराह ३८.२(दुर्वासा द्वारा व्याध को अतीन्द्रिय शरीर के ३ भेदों के संबंध में उपदेश), वामन १८.८(देवों के तेज से कात्यायनी देवी की देह की उत्पत्ति - दिवाकराणमपि तेजसाऽङ्गुलीः कराङ्गुलीश्च वसुतेजसैव।। ), वायु १००.१७/२.३८.१७(२० संख्या वाले अमिताभ देवगण में से एक), विष्णुधर्मोत्तर १.१७३.५(पुत्रदायक अनन्त व्रत में अनन्त के विभिन्न अङ्गों की मास अनुसार पूजा का कथन), १.२३९.३(विराट् पुरुष की देह के अङ्गों में विभिन्न देवों की स्थिति का कथन - विश्वेदेवाः कटीभागे मरुतो बस्तिशीर्षके ।। पादयोश्च धरादेवी पिशाचाश्च नखाश्रिताः ।।), २.८.३(पुरुष की देह के नृत्त शास्त्र अनुसार शुभाशुभ लक्षण - चतुर्गंधश्चतुर्ह्रस्वः पञ्चसूक्ष्मस्तथैव च ।।), २.११३ (प्रेत देह से भोग देह की प्राप्ति), २.११५.५६(रक्त, कफ, वात आदि से देह के अंगों के निर्माण का कथन), ३.३५+ (चित्र सूत्र व नृत्त शास्त्र के अनुसार देह के अङ्गों के आयामों का वर्णन), ३.९५.१(वास्तुपुरुष की देह पर देवों की स्थिति का वर्णन), शिव ५.२२ (देह की उत्पत्ति, बाल्य काल में देह की अशुचि), ५.४६.१४(महिषासुर के संदर्भ में देवों के तेज से देवी की देह के अङ्गों की उत्पत्ति का कथन - आर्केण चरणांगुल्यः करांगुल्यश्च वासवात्।।), स्कन्द १.२.५०.१(देह के अङ्गों में ब्रह्माण्ड के लोकों का न्यास ; प्राणापान आदि वायुओं के देह में विशिष्ट कार्यों का कथन ; देह में भोजन की पाचन प्रक्रिया का कथन), ३.१.६.३६(देवों के तेज से नारी के विभिन्न अंगों का निर्माण - ब्रह्मतेजस्तु चरणौ मध्यमैंद्रेण तेजसा । यमस्य तेजसा केशाः कुचौ चंद्रस्य तेजसा ।।), योगवासिष्ठ १.१८.१९(देह गृह की निन्दा), लक्ष्मीनारायण १.३०.२६(पातिव्रत्य सेवा रूपी कन्या की देह में ब्रह्माण्ड की स्थिति का कथन - पत्तले सर्वतीर्थानि सक्थ्नोस्तु कल्पपादपान् ॥), १.१६३.३१(विभिन्न देवों के तेजों से कात्यायनी देवी के विभिन्न अङ्गों की उत्पत्ति - शंभुतेजोऽभवद्वक्त्रं वह्नितेजस्त्रिनेत्रकम् । याम्यतेजोऽभवन्केशा हरेस्तेजोऽभवन् भुजाः ।), १.५३७.५(इडा के समुद्र की देह होने का उल्लेख), २.२९.११(शावदीन नृप के नाम की निरुक्ति : शव रूपी देह में आत्मा जिसकी), २.२२२.२६(साधु के समस्त अङ्गों के पुण्य होने का कथन), २.२२८.१०(श्रीहरि की देह के विभिन्न अङ्गों में विभिन्न गणों की स्थिति), ३.११२.११४(देह दान के महत्त्व के संदर्भ में ब्रह्मसती द्वारा स्वदेह को पति और नारायण को अर्पित करने की कथा), ३.१८६.५५(साधु की देह के अङ्गों में सुकृतों के न्यास का कथन), ४.३७.८६ (परदेह भक्षक इस देह का राक्षस नाम), योगवासिष्ठ ३.३६(स्वयंभू ब्रह्मा की देह आतिवाहिक तथा अन्यों की आधिभौतिक होने का कारण), ३.६५.१२(देह व कर्म में भेद न होने का कथन), ६.१.९३.२१ (चूडाला द्वारा देह की तपस्वी से उपमा), ६.१.१०३.३३ (समाधि में देह से सत्त्व और चित्त, दोनों के निकल जाने पर देह के विलीन हो जाने का वर्णन), महाभारत शान्ति ३०१.५४(देह के कामादि ५ दोषों का कथन), ३१७.१(देह के विभिन्न अङ्गों से प्राणों के उत्क्रमण पर विभिन्न देवों के लोकों की प्राप्ति का कथन ), द्र. विदेह, शरीर, सुदेहा ।deha
देहली भविष्य ३.३.५.२७ (महावती पुरी के राजा महीपति द्वारा देहली की स्थापना), स्कन्द ४.१.३०.२१ (देहली विनायक की काशी में प्रवेश में विघ्न हेतु नियुक्ति, धनञ्जय वणिक् की माता की अस्थियों के गङ्गा में क्षेपण में देहली विनायक द्वारा विघ्न का वृत्तान्त), ४.२.५७.६२ (देहली विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.१४० (देहलीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण ३.४६.३५(मन्दिर की देहली में कल्प वृक्ष को चित्रित करने का निर्देश ) । dehalee/dehali
दैत्य गरुड ३.१२.८१(दैत्यों की आपेक्षिक श्रेष्ठता का कथन), देवीभागवत ४.१०.४०(इन्द्र व दैत्यों में युद्ध), पद्म १.६.४०(दिति - पुत्रों हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष के वंश का वर्णन), १.७६(मनुष्य योनिगत दैत्यों के दैत्यत्व का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३५(श्वेत पर्वत पर दैत्यों - दानवों के वास का उल्लेख), भविष्य ३.४.२३.९९ ( दैत्यों व दानवों की शूद्र वर्ण द्वारा तृप्ति का उल्लेख), वराह ९४.५ (महिषासुर की सेना के ८ वसु रोधक दैत्यों का उल्लेख), ९४.९ (१२ आदित्य रोधक दैत्यों का उल्लेख), ९४.११ (११ रुद्र रोधक दैत्यों का उल्लेख), वायु ४६.३५(श्वेत पर्वत पर दैत्यों व दानवों के वास का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३ (शतरुद्रिय प्रसंग में दैत्यों द्वारा राजिका लिङ्ग की पूजा), ७.१.२१.२९(संह्राद दैत्य के कुल में निवातकवचों की उत्पत्ति, सव्यसाची द्वारा वध), ७.१.८१.१९ (सप्तम कल्प में विष्णु के दैत्यसूदन अवतार द्वारा दैत्यों के हनन का वर्णन), हरिवंश १.४३(तारकामय संग्राम में दैत्य सेना का वर्णन), १.५४(कालनेमि दैत्य की कंस रूप में, रिष्ट की हाथी रूप में, लम्ब की प्रलम्ब रूप में, खर की धेनुक रूप में उत्पत्ति), ३.४९.३ (मरीचि कुल के दैत्यों के नाम, बलि - सेनानी), ३.७२ (वामन त्रिविक्रम पर आक्रमण करने वाले दैत्यों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.३१९.८(जोष्ट्री - पुत्री विलासा द्वारा दैत्यों की सेवा), २.२२५.९६(दैत्यों को मणि दान का उल्लेख ), भरतनाट्य १३.२६(श्वेत पर्वत पर दैत्यों-दानवों के वास का उल्लेख) । daitya
दैर्घ्य ब्रह्मवैवर्त २.१०.११७(विभिन्न लोकों में गङ्गा के दैर्घ्य का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.७.९६(अङ्गुलों से दैर्घ्य प्रमाणों का कथन), वायु ८.९३/१.८.९८(ग्राम, गृह आदि के संदर्भ में अङ्गुल मानों का कथन), १०१.११५ (दैर्घ्य मान व दैर्घ्य के अवयव ) ; द्र. दीर्घ । dairghya
दैव भागवत ७.१५.२४(समाधि द्वारा दैव पर जय प्राप्ति का निर्देश), स्कन्द ५.१.४.९६(दैव के भृगु – अंगिरस रूप में द्विविध होने का उल्लेख), ५.३.१५९.२७(कर्म विपाक वर्णन के अन्तर्गत दैवज्ञ के गर्दभ होने का उल्लेख?), योगवासिष्ठ ३.६२ (दैव शब्द की व्याख्या), महाभारत वन १७९.२७ (दैव के आगे पुरुषार्थ की निरर्थकता का उल्लेख), ३१३.९९(यक्ष - युधिष्ठिर संवाद में दान - फल के दैव होने का उल्लेख), सौप्तिक २(दैव और पुरुषार्थ के विषय में कृपाचार्य के उद्गार), अनुशासन ६.८ (पुरुषार्थ व दैव की श्रेष्ठता के संदर्भ में दैव के बीज और पुरुषार्थ के क्षेत्र होने का कथन ) । daiva
दोरक लक्ष्मीनारायण २.११.१९(तुन्नवाय - पुत्र, विश्वकर्मा - पौत्र, सूची - पति, सूची द्वारा कृष्ण के कर्ण वेधन का प्रसंग ) ।
दोला अग्नि ३४१.१८(दोल : नृत्य कला में संयुत हस्त के १३ भेदों में से एक), पद्म ६.८३ (दोलारोहण उत्सव विधि व माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.२२ (श्रीहरि हेतु दोलाकरण से जीवन्मुक्ति), भविष्य ४.१३३.२४(दोला उत्सव का वर्णन, पार्वती के लिए देवों द्वारा दोला का निर्माण, शिव के दोला - विहार से त्रैलोक्य को क्षोभ की प्राप्ति, शिव की दोला - लीला से निवृत्ति, दोला की रचना व उद्देश्य आदि), ४.१३४ (देवों द्वारा पार्वती के लिए दोला का निर्माण, दोला के दिव्य स्वरूप का वर्णन, शिव के कारण दोला का कम्पन), स्कन्द १.२.९.२४(कपि द्वारा शिवलिङ्ग अधिष्ठित् दोला का चालन, क्रुद्ध जनों द्वारा कपि का ताडन, मरण, दोला चालन महिमा से कपि का काशीराज के पुत्र रूप में जन्म), २.२.४३ (फाल्गुन में दोला रोहण उत्सव विधि), लक्ष्मीनारायण १.२८१.२(चैत्र शुक्ल एकादशी को विष्णु व लक्ष्मी के आन्दोलन का कथन), १.२८१.८(आषाढ कृष्ण द्वितीया से श्रावण कृष्ण तृतीया तक दोलोत्सव का कथन), २.२५.२(फाल्गुन में पुष्प दोला महोत्सव का वर्णन), २.११५.५४(फाल्गुन में पुष्प दोला महोत्सव का वर्णन), २.११५.८३ (श्रावण के दिव्य दोला की विशेषताओं का वर्णन), ४.१०१.९५(श्रीहरि की दोला पत्नी के स्वर्णलता पुत्री व तोरण पुत्र का उल्लेख ), द्र. प्रेङ्खा । dolaa
दोष भविष्य २.१.५.२३ (नरक गामी मनुष्यों के २६ प्रकार के दोषों का वर्णन), भागवत ४.१३.१३ (दोषा : पुष्पार्ण - पत्नी, प्रदोष आदि ३ पुत्रों की माता), ६.६.११(वसु के ८ वसु पुत्रों में से एक), ६.६.१४(दोष - पत्नी शर्वरी से शिशुमार का जन्म), लिङ्ग १.३९.६८(वैराग्य से दोष दर्शन व दोष दर्शन से ज्ञान की उत्पत्ति का कथन), महाभारत शान्ति ३०१.५४(देह के ५ दोषों का कथन), लक्ष्मीनारायण २.२५१.५७(काम, क्रोध आदि विभिन्न दोषों को जीतने के उपायों का वर्णन ) । dosha
दोहन कथासरित् ८.५.२७(महोत्पात दोहन का प्रहस्त के साथ द्वन्द्व युद्ध ) ।
दौवारिक अग्नि ९३.१४ (वास्तु मण्डल के पश्चिम दिशा के ८ देवताओं में से एक), मत्स्य २५३.२६ (वास्तु मण्डल के ३२ बाह्य देवताओं में से एक ) ; द्र. वास्तु (मण्डल ) ।
दौहित्र भविष्य १.१८५.२०(श्राद्ध में दौहित्र की पवित्रता का कथन तथा श्राद्ध में दौहित्र का प्रतीक), स्कन्द ७.१.२०५ (श्राद्ध में पात्र विशेष), लक्ष्मीनारायण १.५४०.२१(८ कुतुपों में से एक, दौहित्र की परिभाषा ) । dauhitra
द्यावापृथिवी अग्नि २४.४९(द्यावापृथिवी रूपी शकट के मध्य प्रजापति के जन्म की कल्पना - द्यावापृथिव्यौ शकले तयोर्मध्ये प्रजापतिम् ॥), स्कन्द ४.१.२९.८७ (द्यावाभूमि विगाहिनी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ५.१.२.७(ताडन से हिरण्यमय अण्ड का दो दलों में विभाजन, अध:खण्ड की भूमि तथा ऊर्ध्व खण्ड की द्यौ संज्ञा - करेण ताडितं तद्धि बभूव द्विदलं महत् ।।अधःखंडं स्मृता भूमिरूर्ध्वं द्यौस्तारकान्वितम् ।।), महाभारत कर्ण ८७.३८(अर्जुन व कर्ण के युद्ध में द्यौ के कर्ण व भूमि के धनञ्जय के पक्ष में होने का उल्लेख ), शौ.अ. ५.२४.३(द्यावापृथिवी दातॄणामधिपतिः स मावतु ।) । dyaavaaprithivi/ dyaavaaprithivee/ dyavaprithvi
Remarks by Dr. Fatah Singh
लगातार बदलती रहने वाली चेतना पृथिवी या भूमि है । हमारा मनोमय कोश द्यौ है, द्यौ और पृथिवी के बीच का अन्तरिक्ष हमारा प्राणमय कोश है । द्यौ से भी ऊपर उत्तर द्यौ हमारा विज्ञानमय कोश है ।
वेद में धरणी व वियतराज (आकाश ) का साम्य द्यावापृथिवी से है ।
द्यु लक्ष्मीनारायण १.३१६.७(शतमख राजा व उसकी पत्नी द्युवर्णा द्वारा पुरुषोत्तम मास की नवमी व्रत से नर - नारायण को पुत्र रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त), १.३७६.५(द्युवर्णा : शतमख राजा की पत्नी, नरादित्य व रामादित्य की माता; दशरथ - पत्नी कौशल्या से साम्य?), १.३८५.५३(कृष्ण-पत्नी द्युवर्णा का कार्य), २.१६३(द्युविश्राम : द्युविश्राम भक्त कृषक की गायों का सिंह द्वारा प्रधर्षण, कृष्ण द्वारा रक्षा), २.१४.७६(द्युहना राक्षसी द्वारा बालकृष्ण का निगरण, बालकृष्ण द्वारा वह्नि रूप होकर द्युहना से मुक्ति पाना), कथासरित् १६.२.१३८ (अनशन हेतु द्यु नदी तट पर स्थित ब्राह्मण द्वारा दासों को मत्स्य भक्षण करते देख मन में विकार आने पर दास कुल में जन्म लेने आदि का कथन ); द्र. सलिलद्यु । dyu
द्युति ब्रह्माण्ड १.२.१३.९२(स्वायम्भुव मन्वन्तर में १२ संख्या वाले याम देवगण में से एक), ३.४.१.१५(द्योतन : २० सुतपा देवों में से एक), ३.४.१.६१(द्युतय : १२ संख्या वाले सुधर्म देवगण में से एक), ३.४.१.९१(१२वें मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक), ३.४.३५.९४(ब्रह्मा की कलाओं में से एक), भविष्य ४.१००.३(द्योतनिका : उज्जयिनी का नाम?, वैशाख पूर्णिमा को द्योतनिका तीर्थ की श्रेष्ठता का उल्लेख), मत्स्य २३.२४(विभावसु - पत्नी, राजसूय यज्ञ में चन्द्रमा की सेवा में नियुक्त), वायु ३१.६(स्वायम्भुव मन्वन्तर के याम नामक १२ देवों में से एक), १००.१४/२.३८.१४(द्योतन : २० संख्या वाले सुतपा देवगण में से एक), विष्णु ३.२.३५(१२वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) ; द्र. कृतद्युति, तपोद्युति, देवद्युति, प्रद्योत, विद्युद्द्योता । dyuti
द्युतिमान् अग्नि ११९.१३(कुशद्वीप के सात वर्ष पर्वतों में से एक), ११९.१४(राजा द्युतिमान् के कुशल आदि ७ पुत्रों के क्रौञ्चद्वीप के स्वामी होने का उल्लेख), कूर्म १.४०.१९ (क्रौञ्च द्वीप का अधिपति, द्युतिमान के ७ पुत्रों के नाम), गरुड १.५६.१२ (क्रौञ्च द्वीप का स्वामी, ७ पुत्रों के नाम), ब्रह्माण्ड १.२.११.४०(प्राण व पुण्डरीका - पुत्र, वसिष्ठ वंश), १.२.१३.१०४(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), १.२.१४.९(प्रियव्रत के १० पुत्रों में से एक, क्रौञ्च द्वीप का अधिपति), १.२.१४.२२(द्युतिमान् के ७ पुत्रों के नाम), १.२.१९.५५(कुश द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, द्युतिमान् पर्वत के रथाकार वर्ष का उल्लेख), १.२.३६.५६(स्वारोचिष मन्वन्तर में १४ संख्या वाले आभूतरया देववर्ग में से एक), २.३.१२५(पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ यक्ष पुत्रों में से एक), ३.४.१.६३(रोहित काल के सप्तर्षियों में से एक), ३.४.१.८९(१२वें मन्वन्तर में सुतार वर्ग के १० देवों में से एक), भागवत ८.१३.१९(९वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), मत्स्य ९.५(स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक), १२२.५५(कुशद्वीप के ७ पर्वतों में से एक), मार्कण्डेय ६६.२९/ ६३.२९ (स्वरोचिष व मृगी से उत्पन्न पुत्र का द्युतिमान् नामकरण, अन्य नाम स्वारोचिष), वायु २८.७(पाण्डु व पुण्डरीका - पुत्र), ३३.९(प्रियव्रत के १० पुत्रों में से एक, क्रौञ्च द्वीप - अधिपति), ४९.५०(कुश द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक, द्युतिमान् पर्वत की पवित्रा नदी का उल्लेख), ६९.१५६/२.८.१५१(पुण्यजनी व मणिभद्र के २४ यक्ष पुत्रों में से एक), विष्णु १.१०.५(प्राण - पुत्र, राजवान् - पिता, भृगु वंश), २.१.७, १४(प्रियव्रत के १० पुत्रों में से एक, क्रौञ्च द्वीप का राजा), २.४.४१(कुश द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक, द्युतिमान पर्वत की पवित्रा नदी का उल्लेख), ३.२.२३(९वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.७४.६५(द्युतिमान् द्वारा ऋचीक को पृथिवी दान से अक्षर धाम प्राप्ति का उल्लेख ) ; द्र. वंश भृगु । dyutimaan
द्युमत्सेन ब्रह्मवैवर्त्त २.२४.८(सत्यवान् - पिता), भविष्य ४.१०२.२४(सत्यवान् - पिता, सावित्री द्वारा द्युमत्सेन हेतु नेत्रों की आरोग्यता तथा राज्य प्राप्ति रूप वर की यम से प्राप्ति), भागवत ९.२२.४८(शम - पुत्र, सुमति - पिता, जरासन्ध वंश), मत्स्य २०८.१४(सत्यवान् - पिता), २१४.१०(अन्धे द्युमत्सेन द्वारा चक्षु प्राप्त कर सत्यवान् व सावित्री के दर्शन, राज्य की पुन: प्राप्ति), २७१.२७(त्रिनेत्र - पुत्र, ४८ वर्ष तक राज्य का उल्लेख ) । dyumatsena
द्युमती लक्ष्मीनारायण २.७४.४२(कौशिकाम्ब ऋषि द्वारा अन्त्यज के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन : पूर्व जन्म में देवप्रिय विप्र व उसकी पत्नी द्युमती द्वारा अशुचि अवस्था में देव पूजा आदि ) । dyumatee/ dyumati
द्युमान् गर्ग ७.८.४ (शिशुपाल - सेनानी, अक्रूर से युद्ध, युयुधान / सात्यकि द्वारा द्युमान का वध), भागवत ४.१.४१(वसिष्ठ के सात ब्रह्मर्षि पुत्रों में से एक), ४.२५.४७ (पुरञ्जन - मित्र), ८.१.१९(स्वारोचिष मनु के पुत्रों में से एक), ९.१७.६(दिवोदास - पुत्र, अलर्क - पिता, प्रतर्दन, शत्रुजित्, वत्स, ऋतध्वज, कुवलयाश्व आदि अपर नाम), १०.७६.२६(शाल्व - मन्त्री, प्रद्युम्न को पराजित करना, प्रद्युम्न द्वारा द्युमान् का वध ) । dyumaan
द्युमेय लक्ष्मीनारायण १.३६५.५३(देवशुनी पतिव्रता सरमा के पति द्युमेय का उल्लेख ) ।
द्युमेरुजित् लक्ष्मीनारायण १.३१६.२ (द्युमेरुजित् इन्द्र के शतमख राजा बनने का उल्लेख ) ।
द्युम्न ब्रह्माण्ड ३.४.१.८८(१२वें मन्वन्तर में सुकर्म वर्ग के १० देवों में से एक), भागवत ४.१३.१५(चक्षु मनु की स्त्री नड्वला से उत्पन्न १२ पुत्रों में से एक), मत्स्य ४५.२३(द्युम्नि : असङ्ग - पुत्र, युगङ्धर - पिता, शिनि वंश), वायु १००.९२/२.३८.९२(१२वें मन्वन्तर में सुकर्म वर्ग के १० देवों में से एक ) ; द्र. इन्द्रद्युम्न, देवद्युम्न, धृष्टद्युम्न, प्रद्युम्न, बृहद्द्युम्न, वंश ध्रुव, शतद्युम्न, सुद्युम्न, । dyumna
द्यूत अग्नि २५७.४९ (द्यूत कर्म का विवेचन), ब्रह्माण्ड १.२.८.९(ब्रह्मा के मुख से दीव्यन् करते हुए देवों की उत्पत्ति का कथन), भविष्य ३.२.२१.३ (विष्णुस्वामी - पुत्र द्यूत द्वारा व्याघ्र का सञ्जीवन, व्याघ्र द्वारा द्यूत का भक्षण), भागवत १०.६१.२७(बलराम द्वारा अक्ष क्रीडा में रुक्मी के वध का वृत्तान्त), विष्णु ५.२८.९(बलराम द्वारा अक्ष क्रीडा में रुक्मी के वध का वृत्तान्त), स्कन्द १.१.३४ (द्यूत क्रीडा में शिव की पार्वती से हार), २.४.१० (द्यूत प्रतिपदा : शङ्कर -भवानी की कथा), हरिवंश २.६१.२७ (रुक्मी व बलराम की द्यूतक्रीडा), योगवासिष्ठ ६.२.८.१६ (भूतल की द्यूतफलक से तथा शशि व भानु की अक्षों से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.५७१.४३ (नकुल /नेवले के द्यूत में कुशल होने का उल्लेख), २.२९७.८५(श्री के गृह में कृष्ण द्वारा श्री से द्यूत क्रीडा का उल्लेख), ४.४०(नृपों की द्यूतक्रीडा, सर्वस्व हरण, पतिव्रता के शाप से भाणवाणी तथा रायहरि को उन्मत्तता की प्राप्ति, शान्ति हेतु लक्ष्मीनारायण संहिता कथा का श्रवण), कथासरित् ९.२.२९२(द्यूतकार सुदर्शन के धन का चोरों द्वारा अपहरण व प्रिया अनङ्गप्रभा का वणिक् द्वारा अपहरण, सुदर्शन का तप हेतु गमन), १२.६.२६३(कितव के वीर होने का कारण), १२.७.१४८(द्यूत परिभाषा के अनुसार हारित धन को पुन: न देने का उल्लेख), १८.२.७२(ठिण्ठाकराल नामक द्यूतकार की कथा), महाभारत भीष्म १४.७०(धृतराष्ट्र - संजय वार्तालाप में रणभूमि रूपी द्यूतसभा का कथन), द्रोण १३०.१७(द्रोण द्वारा युद्ध रूपी द्यूत में शरों के अक्ष व सिन्धुराज जयद्रथ के ग्लह/दांव का कथन ), द्र. कितव । dyuuta/dyoota /dyuta
Remarks by Dr. Fatah Singh
द्यूत दिव~ धातु से बना है जिसके क्रीडा करना, चमकना आदि कईं अर्थ हैं। इन्द्रियों के साथ जुआ खेलना, उनका दुरुपयोग करना द्यूत कहलाता है । अत: कहा जाता है - अक्षै: मा दीव्य: कृषिमित् कृषस्व (ऋ. १०.३४.१३) । दूसरी ओर शिव और पार्वती की अक्ष - क्रीडा दिव्य है ।
द्यौ देवीभागवत २.३.२६ (अष्टम वसु, वसिष्ठ शाप से शन्तनु व गङ्गा का पुत्र भीष्म बनना), भविष्य १.७९.१८(विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के राज्ञी, त्वाष्ट्री द्यौ, प्रभा तथा सुरेणु नामक नामों का उल्लेख), लिङ्ग १.२०.८१ (अण्डकपाल के भेदन से द्यौ की उत्पत्ति), शिव २.५.८.१३ (शिव रथ में वरूथ का रूप), ७.२.८.१२ (सोम से द्यौ की उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द ७.१.११.६२(सूर्य - पत्नी राज्ञी/संज्ञा , मार्गशीर्ष सप्तमी को सूर्य से मिलन), ७.१.११.९७(सूर्य के यजुर्मय तेज से उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२४(विष्णु के आकाश व लक्ष्मी के द्यौ होने का उल्लेख), २.२९७.६०(इन्द्र - पत्नी द्यौ द्वारा कृष्ण के मण्डप व प्रासाद का दर्शन : कृष्ण की विभिन्न रानियों में विभिन्न क्रियाओं का वर्णन ) । dyau
Short remarks by Dr. Fatah Singh
द्रघण ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८५(भण्ड असुर के १०५ पुत्र सेनापतियों में से एक ) ।
द्रव ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.११४(कृष्णाङ्ग द्रव से गङ्गा की उत्पत्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.१.६०(द्रवकेतु : मेरु सावर्णि मन्वन्तर के १२ सुधर्मा देवों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.३३.३६ (कलि के नाश व सत्य युग की स्थापना हेतु श्री सत्य नारायण द्वारा द्रावण विप्र के पुत्र रूप में जन्म लेना ) । drava
द्रविक स्कन्द ३.३.७.१२०(गन्धर्व, अंशुमती - पिता, धर्मगुप्त नामक राजकुमार को स्वकन्या प्रदान ) ।
द्रविड गर्ग ७.१४.१५ (द्रविड देश के स्वामी सत्यवाक् द्वारा प्रद्युम्न का सत्कार), नारद १.५६.७४२(द्रविड देश के कूर्म का पार्श्वमण्डल होने का उल्लेख), पद्म ६.१२९(द्रविड देशस्थ चित्र नामक राजा को अधर्माचरण से पिशाच योनि की प्राप्ति, देवद्युति द्वारा माघ स्नान माहात्म्य का कथन), ६.२२०.४८(तीर्थ - जल पान से वेश्या का द्रविड देशस्थ वीरवर्मा की महिषी बनना), ब्रह्माण्ड २.३.३५.१०(मृग के पूर्व जन्म के वर्णन के संदर्भ में द्रविड देश में विप्र के ४ पुत्रों का वृत्तान्त), २.३.७३.१०७(कल्कि द्वारा हत जनपदों में से एक), भागवत ४.२८.३०( राजा मलयध्वज व पुरञ्जनी से उत्पन्न ७ पुत्रों के द्रविड देश के राजा होने का उल्लेख), ८.४.७(द्रविड देशस्थ पाण्ड~यवंशी इन्द्रद्युम्न का अगस्त्य मुनि के शाप से गजेन्द्र होना), १०.६१.१२(कृष्ण व जाम्बवती के १० पुत्रों में से एक), वायु ८६.१६/२.२४.१६(द्रविडा : तृणबिन्दु - पुत्री, विश्रवा - माता, विशाल - भगिनी ; तुलनीय : इडविडा), स्कन्द १.३.२.४(द्राविड देशान्तर्गत अरुणाचलेश्वर के माहात्म्य का वर्णन), २.४.७.७(द्रविड देशस्थ बुद्ध नामक ब्राह्मण की दुराचारा पत्नी की कार्तिक में दीपदान से मुक्ति की कथा), ३.३.१५.५२(शिव भस्म के स्पर्श से द्रविड देशस्थ दुराचारी ब्राह्मण की मुक्ति की कथा ) । dravida
द्रविण ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०(क्रतु व तुषिता के तुषित वर्ग के १२ पुत्रों में से एक), २.३.२.२२(धर वसु के २ पुत्रों में से एक), भविष्य ४.१७५.१९(द्रविण/धन को बहिश्चर प्राण मानकर उसके धर्म में विनियोजन की आवश्यकता), भागवत ४.२२.५४ (पृथु व अर्चि - पुत्र), ४.२४.२ (उत्तर दिशा के राजा), ५.२०.१५(कुश द्वीप के पर्वतों में से एक), ६.६.१३(द्रविणक : वसोर्धारा व अग्नि के पुत्रों में से एक), मत्स्य ५.२३(धर नामक वसु एवं कल्याणिनी - पुत्र), २०३.४(धर वसु - पुत्र), वायु १८.१० (बाहर विचरने वाले प्राणों का नाम), ६६.२१/२.५.२१(धर वसु के २ पुत्रों में से एक), विष्णु १.१५.११३(चतुर्थ वसु धर्म के २ पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.३३.३६(द्रावण : ४१वें वत्सर में श्रीहरि द्वारा द्रावण विप्र के पुत्र रूप में अवतार ग्रहण कर म्लेच्छ आदियों के नाश का वृत्तान्त ) । dravina
द्रव्य अग्नि १२९ (द्रव्य सङ्ग्रह हेतु उपयुक्त काल का विचार), १५६(द्रव्यों की शुद्धि का वर्णन), वामन १४.६१(विविध द्रव्यों की शुद्धि की विधि), विष्णुधर्मोत्तर ३.२३१(भिन्न - भिन्न द्रव्यों की शुद्धि के प्रकार का कथन), ३.३२८(दिव्य द्रव्य शुद्धि विधान का प्रकार), महाभारत शान्ति ३१९.१७(द्रव्य त्याग हेतु कर्मों का उल्लेख ) dravya
द्रष्टा भागवत ३.५.२४(माया - सृष्टि से पूर्व द्रष्टा द्वारा दृश्य के दर्शन न करने का कथन), योगवासिष्ठ ४.१८.३३ (द्रष्टा - दृश्य की विवेचना), ५.७.९ (सिद्धों के संवाद के अन्तर्गत द्रष्टा व दृश्य के समायोग से आत्मतत्त्व के निश्चय का कथन ) ।
द्राक्षा पद्म १.२८.३१ (द्राक्षा वृक्ष के सर्वाङ्ग सुन्दरी स्त्रीप्रद होने का उल्लेख), स्कन्द १.१.७.३२(गङ्गा - सागर सङ्गम पर द्राक्षारामेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ) । draakshaa/ draksha
द्रावण नारद १.६६.११२(द्राविणी : अजेश की शक्ति द्राविणी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.६५(द्राविणी : गेय चक्र रथ के तृतीय पर्व पर स्थित कामदेव की बाणभूत ५ देवियों में से एक), ३.४.४४.५८(द्राविणी : ३३ वर्ण शक्तियों में से एक), मत्स्य १२१.७५(इन्द्र के भय से लवण समुद्र में दक्षिण दिशा में छिपने वाले पर्वतों में से एक ) ।
द्रुघण ब्रह्माण्ड ३.४.२८.४१ (भण्डासुर - सेनानी, वाहवादिनी देवी द्वारा वध ) ।
द्रुति भागवत ५.१५.६ (नक्त - पत्नी, गय - माता ) ; द्र. शतद्रुति ।
द्रुपद देवीभागवत ४.२२.३९ (द्रुपद के वरुण का अंश होने का उल्लेख), भागवत १.१५.७(अर्जुन द्वारा स्वयंवर में द्रुपद - पुत्री द्रौपदी को प्राप्त करने का कथन), ९.२२.२(पृषत् - पुत्र, द्रौपदी व धृष्टद्युम्न आदि के पिता, दिवोदास वंश), वायु ९९.२१०/२.३७.२०५(पृषत् - पौत्र?, धृतद्युम्न - पिता), विष्णु ४.१९.७३(पृषत् - पुत्र, धृतद्युम्न - पिता, दिवोदास वंश), स्कन्द ५.३.१००.४(मार्कण्डेश तीर्थ में जल के अन्दर द्रुपद नामक मन्त्र जप से पाप से मुक्ति), ५.३.२००.१६(जल के अन्दर द्रुपद नामक मन्त्र जप से पाप का क्षय), लक्ष्मीनारायण १.८३.५७(काशी में दिवोदास के राज्य में स्थित १२ आदित्यों में से एक ) । drupada
Remarks by Dr. Fatah Singh
द्रुपद वह पद जहां द्रुत गति है , अर्थात् हमारा मनोमय कोश । यज्ञ में द्रुपद का योपन किया जाता है अर्थात् उसे यूप (यज्ञ पशु बांधने का खूंटा ) बनाया जाता है ।
द्रुम विष्णुधर्मोत्तर ३.३०१.३४(द्रुम प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि), वा.रामायण ६.२२.३२ (द्रुमकुल्य : राम के बाण से नष्ट समुद्र का पवित्र प्रदेश), लक्ष्मीनारायण २.१८.३७ (द्रु - कन्याओं द्वारा कृष्ण को वस्त्र समर्पित करने का उल्लेख), २.२४२.२५(द्रुमस्तम्बी : पङ्किल ऋषि की पांच भगिनियों में से एक द्रुमस्तम्बी का उल्लेख ) । druma
द्रुमिल ब्रह्मवैवर्त्त १.२०.१२(कान्यकुब्ज प्रदेश का राजा), भागवत ५.४.११(ऋषभ व जयन्ती के ९ भागवत पुत्रों में से एक), ११.२.२१(ऋषभदेव के ९ संन्यासी पुत्रों में से एक, राजा निमि से संवाद), ११.४ (द्रुमिल द्वारा निमि को लीलावतार सम्बन्धी उपदेश), हरिवंश २.२८ (दैत्य, कंस का पिता, उग्रसेन - पत्नी से समागम), लक्ष्मीनारायण १.२०२.८०(द्रुमिल राजा की पत्नी कलावती द्वारा कश्यप - पुत्र नारद के तेज से गर्भ धारण करके नारद पुत्र को जन्म देने का वृत्तान्त ) ; द्र. गोभिल । drumila
द्रुहिण देवीभागवत १.८.२८(द्रुहिण/ब्रह्मा में सृष्टि शक्ति व हरि में पालनशक्ति का उल्लेख), नारद १.८६.६५ (द्रुहिण मुनि द्वारा अन्नपूर्णा देवी की आराधना), ब्रह्माण्ड २.३.४१.९(देवताओं में द्रुहिण की प्रधानता का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.१५.२५(सोम का द्रुहिण – पौत्र के रूप में उल्लेख) ।
द्रुह्यु ब्रह्माण्ड २.३.६८.१६ (ययाति एवं शर्मिष्ठा - पुत्र द्रुह्यु को ययाति से शाप प्राप्ति, पश्चिम - उत्तर का राजा बनना), २.३.७४.७ (ययाति - पुत्र द्रुह्यु के वंश का वर्णन), मत्स्य ३३.१५ (ययाति व शर्मिष्ठा - पुत्र, पिता से जरा ग्रहण की अस्वीकृति पर शाप प्राप्ति), ४८.६ (द्रुह्यु वंश का वर्णन), वायु ९३.४८ (द्रुह्यु को ययाति से शाप की प्राप्ति), ९९.७ (द्रुह्यु के वंश का वर्णन), विष्णु ४.१७ (द्रुह्यु के वंश का वर्णन), हरिवंश १.३२.८६(ययाति - पुत्र, संतति ) । druhyu
Remarks by Dr. Fatah Singh
आध्यात्मिक स्तर से प्रेम लेकिन स्थूल शरीर के स्तर से द्रोह करने वाला । यह विभिन्न स्तरों के बीच सेतु का कार्य करता है ।
द्रोण गरुड ३.२८.४७(बृहस्पति का अवतार), गर्ग १.३.४१ (द्रोण वसु के व्रज में नन्द रूप में अवतरण का उल्लेख), १.५.२६ (द्रोण वसु के भीष्म रूप में अवतरण का उल्लेख), ३.७.२२ (गोवर्धन पर्वत पर क्षेत्र, कृष्ण द्वारा वृक्षों के पत्तों के द्रोण / दोने बनाने के कारण उत्पत्ति), देवीभागवत ४.२२.३(बृहस्पति का अंश), पद्म ६.७.५६(पर्वत, जालन्धर की आज्ञा से रसातल में गमन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९.२१ (वसु, हरि दर्शनार्थ तप), ४.७३.७५(भगवान् के जलधरों में द्रोण होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१८.७६(इन्द्र के भय से लवण समुद्र में उत्तर में छिपने वाले पर्वतों में से एक), १.२.१९.३८(शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, द्रोण पर्वत के हरित वर्ष का उल्लेख), भागवत ५.१९.१६(भारत के पर्वतों में से एक), ६.६.११ (८ वसुओं में से एक, अभिमति - पति, हर्ष, शोक, भय आदि के पिता), १०.८.४८(ब्रह्मा के वरदान से द्रोण वसु के नन्द रूप में जन्म का कथन), मत्स्य २.८(सात प्रलयकारक मेघों में से एक), १२१.७३(इन्द्र के भय से लवण समुद्र में उत्तर में छिपने वाले पर्वतों में से एक), १२२.५६(कुश द्वीप के ७ द्विनामा पर्वतों में से एक, अपर नाम पुष्पवान्), वराह ८७ (कुश द्वीप के एक पर्वत द्रोण की नदियों के नाम), वायु ४९.३५(शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, द्रोण पर्वत के हरित वर्ष का उल्लेख), विष्णु २.४.२६(शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक), स्कन्द ४.२.७५.७९(द्रोणेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.२४ (द्रोण पुष्प की पुष्पों में आपेक्षिक महिमा का कथन), महाभारत उद्योग १६०.१२२(सैन्य रूपी समुद्र में द्रोण की ग्राह से उपमा), वा.रामायण ६.५०.३१(क्षीरसमुद्र के तट पर स्थित पर्वत, सुषेण द्वारा द्रोण तथा चन्द्र पर्वत पर विद्यमान संजीवकरणी तथा विशल्यकरणी ओषधियों को लाने हेतु हनुमान का प्रेषण), लक्ष्मीनारायण २.८२.९७(द्रोणाचल आदि ४ शैलों का जयध्वज राजा के यज्ञ में आगमन, अवभृथ स्नान से पाप क्षालन करना), २.८३.१(द्रोण आदि पर्वतों द्वारा जयध्वज से पाप प्रक्षालन के उपाय की पृच्छा, जयध्वज द्वारा तीर्थ आदि के माहात्म्य का वर्णन), २.८३.१०७(द्रोण आदि ४ तीर्थों के श्रीकृष्ण के पादपञ्कज में विराजने का उल्लेख ) ; द्र. भारत । drona
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Remarks by Dr. Fatah Singh
द्रोण शब्द द्रु - न से बना प्रतीत होता है । द्रु - शीघ्र| गति, न - नहीं , जिसमें गति न हो , वह जो स्थिर रहने का इच्छुक हो । दूसरी ओर द्रुपद का अर्थ है शीघ्र पद अर्थात् शीघ्र| गति । मनोमय से लेकर अन्नमय कोश तक का व्यक्तित्व चंचल है । अत: द्रुपद द्रोण का मित्र नहीं हो सकता । द्रोण की ध्वजा का चिह्न कमण्डलु है । यह विज्ञानमय कोश का प्रतीक है जहां सारी वृत्तियां एकत्र होकर गोष्ठ बना लेती हैं। द्रोणाचार्य बृहस्पति के अंश से उत्पन्न हुए हैं। द्रोण का पुत्र अश्वत्थामा वह मन है जो स्तम्भित हो गया है । मन का स्तम्भन समाप्त हुआ कि द्रोणाचार्य मरा । द्रोण का जन्म भरद्वाज से होता है । भरद्वाज मन की ऊर्ध्वमुखी वृत्ति का प्रतीक है । जब भरद्वाज को हिरण्यय कोश रूपी घृत प्रदान करने वाली अप्सरा प्राप्त हो जाती है तभी द्रोण का जन्म हो सकता है । यही द्रोण विज्ञानमय और हिरण्यय कोश रूपी कूप से पाण्डवों की वीटा निकाल सकता है ।
सोमयाग में उदुम्बर काष्ठ से बना एक पात्र होता है जिसका मुख ॐ की आकृति का होता है । इसमें छना हुआ सोम एकत्र किया जाता है । पुराणों के द्रोण पर्वत को इस पात्र के माध्यम से समझा जा सकता है ।
द्रोणाचल गर्ग २.२.१७(गोवर्धन पर्वत का पिता, पुलस्त्य मुनि द्वारा द्रोणाचल से गोवर्धन की याचना, शाप भय से द्रोणाचल द्वारा स्वीकृति प्रदान, पुलस्त्य का गोवर्धन को हथेली पर रख कर काशी के लिए प्रस्थान, व्रजमण्डल में ही गोवर्धन की स्थिति का वृत्तान्त), पद्म ५.४४+ (हनुमान का द्रोणाचल लाने के लिए गमन, देवों से युद्ध, द्रोणाचल से लाई हुई मृत संजीवनी से युद्ध में मृत योद्धाओं को पुनर्जीवन प्राप्ति का वृत्तान्त), ६.७.४२(जालन्धर - देवता सङ्ग्राम में बृहस्पति द्वारा द्रोणाचल से ओषधि लाकर देवताओं को जीवित करना, जालन्धर द्वारा पादतल प्रहार से द्रोणाचल को रसातल में भेजना), स्कन्द २.४.१५.१९(द्रोणाचल की मृत संजीवनी ओषधि से अङ्गिरा द्वारा जलन्धर दैत्य द्वारा हत देवों का संजीवन, क्रुद्ध जलन्धर द्वारा द्रोणाचल का समुद्र में प्रक्षेपण ) । dronaachala
द्रोणाचार्य गर्ग १.५.२९ (आचार्य, अग्नि देवता का अंश), ७.२०.३० (आचार्य, प्रद्युम्न - सेनानी भानु से युद्ध), १०.४९.१८ (आचार्य, अनिरुद्ध - सेनानी सारण से युद्ध), भागवत १.७.२७(अर्जुन द्वारा द्रोण - पुत्र के ब्रह्मास्त्र को ब्रह्मास्त्र से शान्त करने का कथन), ९.२१.३६(शरद्वान - पुत्री कृपी के द्रोण - पत्नी बनने का उल्लेख), विष्णु ४.१९.६८(कृपी - पति, अश्वत्थामा - पिता ) । dronaachaarya/ dronacharya
द्रोणी ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२५(द्रोणि : भविष्य द्वापर युग के वेदव्यास), मार्कण्डेय ४९.४५/४६.४५(द्रोणीमुख : पुर का आठवां भाग), वराह ६९.१२(नौका, अगस्त्य के सत्कार हेतु मुनि की हुंकार मात्र से द्रोणी का प्राकट्य), ७९+ (मेरु द्रोणी का निरूपण), वायु ३७.१(शीतान्ताचल व कुमुद? पर्वत के बीच स्थित द्रोणियों का वर्णन), ३८.१(दक्षिण दिशा में शिशिराचल व पतङ्ग पर्वतों के बीच स्थित द्रोणियों का वर्णन), ३८.४५(कुमुद व अञ्जन पर्वतों के बीच स्थित द्रोणियों का वर्णन), ६१.१०४(द्रोणि : भविष्य में द्वापर में द्रोणि के वेदव्यास बनने का उल्लेख), विष्णु ३.२.१७(अष्टम सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ३.३.२१(द्रोणि : भविष्य द्वापर युग के वेदव्यास), लक्ष्मीनारायण ३.२१३.२(द्रोणिकापुरी निवासी मङ्गलदेव भक्त चर्मकार की भक्ति के कारण कृष्ण द्वारा आकर सर्प विष के निवारण का वृत्तान्त ) । dronee/droni
द्रोहण स्कन्द ५.१.६.६७ (द्रोहण का रसातल में वास, शिव द्वारा कपाल क्षेपण से द्रोहण के सेनानियों का विनाश ) ।
द्रौपदी गरुड ३.१६.१००(द्रौपदी का दमयन्ती से साम्य?), ३.१७.३२(द्रौपदी की उत्पत्ति का वृत्तान्त), देवीभागवत ३.१६.१७(पाण्डवों के वन में निवास के समय जयद्रथ द्वारा द्रौपदी हरण के प्रयास का वृत्तान्त), ४.२२.३९ (द्रौपदी - पुत्रों के विश्वेदेवों के अंश होने का उल्लेख ; द्रौपदी रमा का अंश), ९.१६.५१ (त्रेतायुगीन छाया सीता की ही सत्ययुग में कुशध्वज - कन्या वेदवती तथा द्वापर में द्रुपद - पुत्री के रूप में उत्पत्ति, युगत्रय में विद्यमान रहने से त्रिहायणी नाम धारण), ब्रह्मवैवर्त्त २.१४.५२ (द्रौपदी के सीता - छाया का अवतार होने का उल्लेख), भविष्य ३.३.१.२८ (कलियुग में द्रौपदी का पृथ्वीराज - सुता वेला के रूप में अवतरण), ४.१७० (ब्राह्मणी द्वारा स्थाली दान से जन्मान्तर में द्रौपदी बनना), भागवत १.७.१४(कृष्णा /द्रौपदी - पुत्रों का अश्वत्थामा द्वारा वध), १.१५.५०(पाण्डवों के निरपेक्ष हो जाने पर द्रौपदी द्वारा वासुदेव में एकान्तमति से वासुदेव को प्राप्त करने का उल्लेख), ४.३२(द्रुपद - कन्या द्रौपदी के पांच पाण्डवों की महिषी होने तथा द्रौपदी - पुत्रों के अविवाहित अवस्था में ही मृत होने के हेतु का वर्णन), ९.२२.२(द्रुपद - पुत्री, धृष्टद्युम्न आदि की भगिनी), १०.८३ (द्रौपदी का कृष्ण की पटरानियों से विवाह विषयक वार्तालाप), मत्स्य ५०.५१(द्रौपदी से उत्पन्न पाण्डवों के ५ पुत्रों के नाम), मार्कण्डेय ४, ७.६७(विश्वेदेवों की द्रौपदी - गर्भ से पांच पाण्डुनन्दन रूप में उत्पत्ति, विश्वामित्र के शाप के कारण ही पाण्डु - पुत्रों का अविवाहित रहना), वायु ९९.२४६/२.३७.२४२(द्रौपदी व युधिष्ठिर के पुत्र श्रुतिविद्ध का उल्लेख), विष्णु ४.२०.४१(द्रौपदी से उत्पन्न पाण्डवों के ५ पुत्रों के नाम), स्कन्द ४.१.४९ (द्रौपदी द्वारा काशी में सूर्याराधना, स्थाली प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.३२०(श्री - पुत्री सुदुघा के जन्मान्तरों में मेधावी विप्र - पुत्री व याज्ञसेनी बनकर पांच पति प्राप्त करने का वृत्तान्त), १.४६२.१५(द्रौपदी द्वारा सूर्य से अक्षय भोजन पात्र की प्राप्ति, दुर्वासा के भोजनार्थ आगमन पर कृष्ण द्वारा द्रौपदी की रक्षा का वृत्तान्त), कथासरित् ३.१.१४१ (पांच पाण्डवों की पत्नी, नारद द्वारा कलह निवारण हेतु समस्या के समाधान का प्रतिपादन ) । draupadi/draupadee
द्वन्द्व महाभारत आश्वमेधिक २४.३(प्राण, अपान आदि के द्वन्द्वों का वर्णन - येनायं सृज्यते जन्तुस्ततोऽन्यः पूर्वमेति तम्। प्राणद्वन्द्वं हि विज्ञेयं तिर्यगूर्ध्वमधश्च यत्।। )
द्वय लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३(द्विगर्दभ के अशुभत्व का उल्लेख )
द्वात्रिंशत् गर्ग ५.१७.२०(द्वात्रिंशत् सखियों के कृष्ण विरह में करुण उद्गार ) ।
द्वादशाब्द स्कन्द ५.३.५६.१९(चेदिनाथ वीरसेन की द्वादशाब्द मख में स्थिति), ५.३.१२५.२९(द्वादशाब्द काल तक नमस्कार की अपेक्षा मन्त्रयुक्त नमस्कार से सद्य: फल प्राप्ति), ५.३.१४६.६७(अस्माहक तीर्थ में पितरों हेतु सम्यक् दक्षिणा से पितरों की द्वादशाब्द काल तक तृप्ति), ५.३.१४९.६(लिङ्ग वाराह तीर्थ में ब्राह्मणों को भोजन, दान आदि से द्वादशाब्द काल तक सत्रयाजि फल की प्राप्ति), ५.३.१५०.४४(द्वादशाब्द काल तक किए गए सत्रयाजि फल के समान पिण्डदान से फल की प्राप्ति), ५.३.१५५.७८(कायिक, वाचिक, मानसिक पापों से द्वादशाब्द काल तक रौरव नरक में स्थिति), ५.३.१६५.४(सिद्धेश्वर तीर्थ में श्राद्ध से पितरों की द्वादशाब्द काल तक तृप्ति ) । dvaadashaabda/dwadashabda
द्वादशाह गरुड २.५.६६/२.५.४९ (मृतक कर्म हेतु द्वादशाह), २.२४/२.३४ (मृतक संस्कार हेतु द्वादशाह का विधान), स्कन्द ५.३.१५५.३८(राजा चाणक्य द्वारा काकों के माध्यम से यम से मृतक के द्वादशाह पर अशनादि से तृप्ति करने पर फल की पृच्छा), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३१(मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में ह्रदय में द्वादशाह के न्यास का उल्लेख, अन्य अङ्गों में अन्य यज्ञों का न्यास ) । dvaadashaaha/dwadashaha
Remarks on Dvaadashaaha
द्वादशी अग्नि ११५.६१ (श्रवण नक्षत्र के योग वाली द्वादशी में कुम्भ दान का महत्त्व), १८८ (विभिन्न द्वादशी व्रतों के नाम व महत्त्व), १८९ (भाद्रपद शुक्ल द्वादशी : श्रवण द्वादशी व्रत, वामन विष्णु की पूजा), १९० (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी : अखण्ड द्वादशी व्रत, विष्णु पूजा), गरुड १.११८ (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी : अखण्ड द्वादशी व्रत), १.१३६ (भाद्रपद शुक्ल द्वादशी : श्रवण द्वादशी व्रत विधि, विष्णु का न्यास), नारद १.१७ (शुक्ल पक्ष की द्वादशियों में मास अनुसार विष्णु नाम व पूजा विधि), १.८८.१६९(द्वादशी का स्वरूप), १.१२१ (द्वादशी तिथि व्रतों का वर्णन : विष्णु की विभिन्न नामों से अर्चना), १.१२१.९६ (त्रिस्पृशा, वंजुला, जया, विजया, जयन्ती, अपराजिता द्वादशी तिथि का अर्थ व महत्त्व), २.२ (व्रत / पूजा कार्य हेतु त्रयोदशी या एकादशी से विद्ध द्वादशी का निर्णय), २.५५.४ (ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी : पुरुषोत्तम के दर्शन), पद्म १.२०.३७ (विभूति द्वादशी व्रत का माहात्म्य व विधि), १.२१.२३ (आश्वयुज द्वादशी : विशोक द्वादशी व्रत), १.२३ (माघ शुक्ल द्वादशी : भीम द्वादशी व्रत, भीम व कृष्ण का संवाद, कृष्ण का न्यास / पूजा), २.१८ (आषाढ शुक्ल द्वादशी का माहात्म्य : विष्णु शयन, शूद्र का जन्मान्तर में सोमशर्मा ब्राह्मण बनना), ४.२३१२ (कार्तिक शुक्ल द्वादशी), ५.३६.३० (मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी : हनुमान का लङ्का में सीता से वार्तालाप), ५.९६.१०८ (द्वादशी के भेद), ६.६९ (श्रवण द्वादशी व्रत का माहात्म्य : वणिक् द्वारा प्रेतों का उद्धार), ६.८४ (चैत्र शुक्ल द्वादशी : दमनक उत्सव), ६.१६० (माघ द्वादशी : वामन तीर्थ में श्राद्ध),६.१९८.७८ (आषाढ शुक्ल द्वादशी को बलराम द्वारा पुराण वाचन में रत लोमहर्षण का वध), ६.२३४ (द्वादशी का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.९६ (भाद्रपद शुक्ल एकादशी को शक्र पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य), भविष्य ४.६९+ (गोवत्स, गोविन्द शयनोत्थापन, नीराजन, मल्ल, भीम, श्रवण, विजयश्रवणा, संप्राप्ति, गोविन्द, अखण्ड, मनोरथ, उल्का, सुकृत, विशोक, विभूति, मदन प्रभृति द्वादशी व्रतों का वर्णन), मत्स्य ७.८ (चैत्र शुक्ल द्वादशी : मदन द्वादशी, दिति द्वारा अनुष्ठान से मरुत पुत्रों की प्राप्ति), ६९.१९ (माघ शुक्ल द्वादशी : भीम द्वादशी व्रत विधि, विष्णु व लक्ष्मी का न्यास), ८१.३ (आश्विन द्वादशी : विशोक द्वादशी व्रत, विष्णु का न्यास, लक्ष्मी पूजा), ९९+ (विभूति द्वादशी व्रत विधि, विष्णु का न्यास, पुष्पवाहन राजा व लावण्यवती रानी के पूर्व जन्म का प्रसंग), वराह ३१ (विष्णु द्वादशी : द्वादशी उत्पत्ति की कथा), ३९ (मत्स्य द्वादशी व्रत विधान व फल का कथन), ४० (कूर्म द्वादशी व्रत विधान), ४१ (वराह द्वादशी : वीरधन्वा का आख्यान), ४२ (नृसिंह द्वादशी : वत्स द्वारा पुन: राज्य प्राप्ति), ४३ (वामन द्वादशी : हर्यश्व द्वारा पुत्र प्राप्ति), ४४.१५ (जामदग्नि / परशुराम द्वादशी : नल पुत्र की उत्पत्ति), ४५ (राम द्वादशी), ४६ (कृष्ण द्वादशी), ४७ (बुध द्वादशी : द्वादशी देवी द्वारा नृग की रक्षा), ४८ (कलिक द्वादशी व्रत), ४९ (पद्मनाभ द्वादशी : भद्राश्व व अगस्त्य का संवाद), ५४ (वसन्त शुक्ल द्वादशी), ९९ (कार्तिक शुक्ल द्वादशी), ११५(द्वादशी तिथियों में हरि पूजा का माहात्म्य व विधान), १२३(कार्तिक शुक्ल द्वादशी व वैशाख शुक्ल द्वादशी में हरि पूजा का माहात्म्य व विधि), १२४ (फाल्गुन शुक्ल द्वादशी व वैशाख शुक्ल द्वादशी में हरि पूजा का विधान), १७८ (मार्गशीर्ष द्वादशी : शत्रुघ्न द्वारा लवण के वध की कथा), वामन ७९.५०(प्रेत द्वारा वणिक् से श्रवण द्वादशी की महिमा का कथन), विष्णु ५.३२.१४ (वैशाख शुक्ल द्वादशी : स्वप्न में उषा का अनिरुद्ध से समागम), विष्णुधर्मोत्तर १.१५७ (राज्य प्रद द्वादशी व्रत विधि), १.१५८ (काम द्वादशी का वर्णन), १.१५९ (शुक्ल पक्ष की द्वादशी में केशवार्चन से अग्निष्टोमादि यज्ञ फल की प्राप्ति), १.१६० (कृष्ण पक्ष की द्वादशी की विधि व फल का वर्णन), १.१६१ (श्रावणी द्वादशी उपवास का फल), १.१६२ (श्रावण मास की द्वादशी : प्रेत का मोक्ष), १.१६३ (तिल द्वादशी में तिल की प्रशस्तता), १.१६४ (तिल द्वादशी :चण्डवेग का उपाख्यान), ३.२१५ (सुगति द्वादशी व्रत), ३.२१९ (द्वादशी में करणीय अनन्त व्रत का वर्णन), ३.२२० (पौष शुक्ल द्वादशी को ब्रह्म द्वादशी व्रत की विधि का कथन), ३.२२१.८०(द्वादशी को १२ आदित्यों, वरुण, विष्णु की पूजा का निर्देश तथा फल), शिव ५.४५.६७ (फाल्गुन शुक्ल द्वादशी में महाकाली का प्रादुर्भाव), स्कन्द २.२.१६.५६(ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी में नरसिंह मूर्ति की स्थापना), २.५.१२(दशमी युक्त द्वादशी का निषेध), २.५.१३.५०(द्वादशी जागरण का माहात्म्य), २.७.२४ (वैशाख शुक्ल द्वादशी का माहात्म्य), ५.३.२६.१२१(द्वादशी में उदक दान की महिमा), ५.३.१४४ (द्वादशी तीर्थ का माहात्म्य), ७.४.२७ (द्वादशी जागरण का माहात्म्य), ७.४.३९(द्वादशी व्रतादि का माहात्म्य), हरिवंश २.८०.३५(सुन्दर हाथों हेतु द्वादशी व्रत का विधान), २.११७.१९(वैशाख द्वादशी प्रदोष काल में स्वप्न में रमणकर्ता के उषा - पति होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१५५.१०६ (द्वादशी को समुद्र मन्थन से लक्ष्मी का प्रादुर्भाव), १.१५६.१२ (द्वादशी माहात्म्य का वर्णन : लक्ष्मी की उत्पत्ति), १.२७७(विभिन्न मासों की द्वादशियों का वर्णन), १.३०४.४१(पुरुषोत्तम मास की द्वादशी व्रत से सावित्री कन्या का वैराज नृप की पुत्री बनकर ब्रह्मा को पति रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त), १.३१९.४९(अधिक मास की द्वादशी व्रत का माहात्म्य : जोष्ट्री सेविका की १२ सेविका पुत्रियों का कृष्ण की पत्नियां बनने का वृत्तान्त), १.५४५.३६ (राजा नृग के शरीर से निर्गत एकादशी द्वारा द्वादशी रूपी हेति से दस्युओं का नाश करना), १.५६८.५२(कार्तिक आदि मासों की द्वादशियों में अर्पणीय पुष्पादि का कथन), २.२१३.५८(एकादशी को पूर्णाहुति व अवभृथ स्नान के पश्चात् द्वादशी को अन्न दान, सम्मान आदि का वर्णन), २.२४८(मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी को सोमयाग के पञ्चम दिवस के कृत्यों का वर्णन), ३.१०३.८(प्रेतोद्धार हेतु विभिन्न तिथियों में देय दान के फल के संदर्भ में द्वादशी में दान से स्वर्णरत्नादि प्राप्ति का उल्लेख), ४.५८.३७(काराञ्चनी पुरीस्थ यवसन्ध की चैत्रकृष्ण द्वादशी में सकुटुम्ब मुक्ति की कथा ) , ४.६८.४९(अजापाल भरवाट की श्येन जन्म में तथा अजों की चटका जन्म में वैशाख कृष्ण द्वादशी में उच्छिष्ट प्रसाद भक्षण से मुक्ति की कथा), ४.७९(आषाढ शुक्ल द्वादशी में श्रीहरि का प्रिया सहित निजालय में विराजमान होना ) । dvaadashee/dvaadashi/ dwadashi
द्वापर कूर्म १.५२ (२८ द्वापरों में व्यासों के नाम), गणेश २.१२७ (द्वापर मेंआखु / मूषक के गणेश का वाहन होने के कारण का वर्णन), देवीभागवत ४.२२.३७(द्वापर का शकुनि रूप में अवतरण), ब्रह्माण्ड १.२.७.५९(द्वापर में युद्ध की प्रवृत्ति होने का उल्लेख ; द्वापर में रज व तम की प्रकृति का उल्लेख), १.२.३५.११६ (२८ द्वापरों में व्यासों के नाम), भविष्य ३.४.२४.७८ (द्वापर युग में चरणों के अनुसार नरों की द्वीपों में स्थिति), ४.१२२.१(कृतयुग का ब्राह्मणयुग, त्रेता का क्षत्रिययुग, द्वापर का वैश्य युग तथा कलियुग का शूद्र युग के रूप में उल्लेख), लिङ्ग १.२४.१२ ( २८ द्वापरों में व्यास, रुद्र आदि का वर्णन), वायु १.६.४१(अष्टाविंशात्मक तिर्यक् सृष्टि का कथन? ), ८.६६(द्वापर में यज्ञ के कल्याणकारी होने का उल्लेख), २३.११६ (द्वापरों में व्यास व शिव अवतारों के नाम), ५८ (द्वापर में धर्म की स्थिति), ७८.३६/२.१६.३७(द्वापर के वैश्य वर्ण व युद्ध प्रकृति का उल्लेख), विष्णु ३.३ (२८ द्वापरों में व्यासों के नाम), शिव ३.४+(२८ द्वापरों में शिव द्वारा भिन्न - भिन्न नामों से अवतार ग्रहण), ३.५(द्वापर का अन्य नाम परिवर्त्त), स्कन्द २.६.३.१०(२८वें द्वापर के अन्त में श्रीहरि द्वारा स्वमाया को हटा लेने पर जीव को प्रकाश प्राप्त होने का कथन), ७.१.१३.९(विश्वकर्मा द्वारा शातित तेज वाले हिरण्यगर्भ की कृतयुग में सूर्य, त्रेता में सविता, द्वापर में भास्कर तथा कलियुग में अर्कस्थल नाम से प्रसिद्धि), लक्ष्मीनारायण १.५३.३(द्वापर में धर्म की क्षीण स्थिति का वर्णन), ३.१४३.७(द्वापर में धर्म, कर्म की क्षीण स्थिति का वर्णन ) । dvaapara/ dwapara
द्वार अग्नि ५६.७ (मण्डप के द्वारों के दिशाओं के अनुसार नाम व निर्माण विधि), १०० (द्वार प्रतिष्ठा विधि), १०४.२४ (प्रासाद निर्माण में द्वार की स्थिति तथा परिमाण का निरूपण), १०५.३४ (गृह में निर्मित बहुसंख्य द्वारों का दिक् विन्यास अनुसार फल), २६४.१७(धर्म व अधर्म को द्वार पर बलि देने का निर्देश), कालिका ४७.४(नर्म कार्य हेतु द्वार पर भृङ्गि व महाकाल द्वारपालों की स्थिति), ६४.३९(पूर्वादि द्वारों पर काम, प्रीति, रति, मोहन तत्त्वों की स्थिति), गरुड १.११.२२(पूर्व द्वार पर वैनतेय, दक्षिण द्वार पर सुदर्शन, सहस्रार, उत्तर द्वार पर गदा आदि की प्रतिष्ठा का कथन), १.२८.१(द्वार पर धाता – विधाता की प्रतिष्ठा का निर्देश), १.२८.२( पूर्वादि द्वारों पर भद्र-सुभद्र, चण्ड-प्रचण्ड, बल-प्रबल व जय-विजय की प्रतिष्ठा का निर्देश), नारद १.६६.७८ (द्वार पूजा विधि), १.७५.७०(पूर्वादि द्वारों पर गज, महिष, सर्प व व्याघ्र की स्थापना का निर्देश), पद्म ५.७०.२०(पूर्वादि दिशाओं के द्वारों पर सुदामा, किंकिणी, श्रीदामा, वसुदामा द्वारपालों की स्थिति), भागवत ४.२५.४८ (पुरञ्जन नगर में द्वारों का वर्णन – पूर्व में खद्योत, आविर्मुखी, नलिनी, नालिनी, मुख्य, दक्षिण में पितृहू, पश्चिम में आसुरी व निर्ऋति तथा उत्तर में देवहू), ४.२९.९(देह के द्वारों का पूर्वादि क्रम से विन्यास का कथन, गुदा, शिश्न की पश्चिम में स्थिति आदि), मत्स्य २५५.८(वास्तु में पूर्वादि क्रम से इन्द्र-जयन्त, याम्य –वितथ, पुष्पदन्त-वारुण, भल्लाट-सौम्य द्वारों का कथन, द्वार-वेध के फल), महाभारत अनुशासन १५४.१३(मनुष्यों के लिए बलि द्वार से बाहर एवं मरुद्गण व देवों के लिए द्वार के अन्दर देने का निर्देश), मार्कण्डेय २९.१९(धाता – विधाता के लिए द्वार पर बलि देने का निर्देश), वायु ९६.५४/२.३४.५४(द्वारवती : भङ्गकार - पत्नी), वा.रामायण ४.४०.६४ (पूर्व में उदय पर्वत का पृथिवी व भुवन के द्वार के रूप में उल्लेख), ६.३६.१७(युद्ध में लंका के पूर्वादि द्वारों पर प्रहस्त, महापार्श्व-महोदर, इन्द्रजित्, सारण की स्थिति), ६.३७.२७(लंका के पूर्व आदि द्वारों पर नील – प्रहस्त, अंगद-महापार्श्व-महोदर, हनुमान-इन्द्रजित्, राम-लक्ष्मण – रावण का युद्ध) का स्कन्द ४.२.५७.११३ (द्वार विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२६.६(पूर्वादि द्वारों पर पिङ्गलेश, कायावरोहण, वित्तेश व उत्तरेश की स्थिति), ५.१.३६.६४(नरदीप तीर्थ की यात्रा में द्वारों पर करणीय दान), ५.१.७०.८५( पूर्वादि द्वारों पर पिङ्गलेश्वर, कायावरोहणेश्वर, बिल्वकेश्वर व दर्दुरेश्वर लिंगों की स्थिति का कथन), ५.२.८१.२७(महाकालवन के चार द्वारों पर चार लिङ्गों की स्थापना), लक्ष्मीनारायण २.२१७.१०१(श्रीहरि का कोटीश्वर नृप द्वारा पालित एकद्वारराष्ट्र को गमन, प्रजा को उपदेश आदि), २.२४९.७४(बाह्य इन्द्रिय द्वार को बन्द करके ब्रह्मद्वार को खोलने के उपाय का वर्णन ), पञ्चतन्त्र १.२८४(वृक को द्वारपालत्व प्राप्त होने का कथन); द्र. हरिद्वार । dwaara/dvaara
द्वारका गर्ग ३.९.१८ (कृष्ण की जत्रु / गले की हंसुली से द्वारका का प्राकट्य), ६.१(गर्ग संहिता के द्वारका खण्ड का आरम्भ), ६.९ (वैकुण्ठ धाम का अंश, आनर्त द्वारा स्थापना का उद्योग), ६.१०.३ (द्वारका का माहात्म्य), ६.१९ (द्वारका मण्डल व अन्तर्वर्ती पुण्य स्थानों की शोभा का वर्णन), ६.२० (द्वारका के द्वितीय दुर्ग के द्वारों पर तीर्थों का विन्यास), ६.२१ (द्वारका के तृतीय दुर्ग के द्वारों पर तीर्थों का विन्यास), १०.९ (गर्ग प्रोक्त द्वारका की शोभा का वर्णन), देवीभागवत ७.३०.६९ (द्वारका पीठ में रुक्मिणी नाम से देवी का वास), पद्म ६.२००.१०(गोमती - समुद्र संगम का स्थान), ६.२०६(इन्द्रप्रस्थ में स्थित द्वारका के माहात्म्य का वर्णन), ६.२०८ (इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्वर्ती तीर्थों में से एक, द्वारका जल से राक्षसियों की मुक्ति की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०३ (द्वारका के निर्माण का आरम्भ), भागवत १०.५० (द्वारका का निर्माण), वराह १४९ (द्वारका का माहात्म्य), १७७(द्वारका में घटित साम्ब को शाप प्राप्ति का वृत्तान्त), वायु १०४. ७६ (द्वारका की कण्ठ में स्थिति), विष्णु ५.२३.१३ (कृष्ण द्वारा द्वारका के निर्माण का उद्योग), स्कन्द १.२.५३.२६ (अपर द्वारका व उत्तर द्वारका का माहात्म्य), ३.२.२६ (धर्मारण्य में स्थित द्वारका क्षेत्र का माहात्म्य), ४.१.७.१०३ (द्वारका की महिमा), ७.४.१++ ( प्रभास खण्ड में द्वारका का माहात्म्य), ७.४.४ (द्वारका यात्रा विधि व माहात्म्य), ७.४.३१+ (गौतम व नारद द्वारा द्वारका का दर्शन, द्वारका की शोभा का वर्णन), ७.४.३४ (दिलीप द्वारा वसिष्ठ से काशी में किए पापों के प्रक्षालनार्थ पृच्छा, द्वारका का माहात्म्य), हरिवंश २.५६.३३ (कुशस्थली का कृष्ण द्वारा द्वारका नामकरण, कृष्ण सहित यादवों का द्वारका में आगमन), २.५८ (विश्वकर्मा द्वारा द्वारका का निर्माण), २.९८ (विश्वकर्मा द्वारा पुन: परिष्कृत द्वारका का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.२१७(द्वारका के आनर्त नगरी नाम का कारण : पूर्व स्थापित द्वारकाओं के लुप्त होने पर कृष्ण द्वारा विश्वकर्मा को द्वारका की पुन: स्थापना का आदेश, नगरादि में शुभ - अशुभ वृक्षों आदि की स्थिति का वर्णन), १.२१८(कृष्ण द्वारा निर्मित द्वारका के दर्शन के लिए ब्रह्माण्ड के देवों - ऋषियों आदि का आगमन व द्वारका में वास, उनके वास स्थानों की उन्हीं के नामों से ख्याति), १.२१९(द्वारका में सनकादि द्वारा तप, सुदर्शन चक्र द्वारा पृथिवी का भेदन कर जल की सृष्टि करना, गङ्गा का द्वारका में गोमती रूप में स्थित होना), १.२२०(द्वारका में गोमती तीर्थ व चक्र तीर्थ सेवन की विधि), १.२२१(द्वारका में गोमती - सागर सङ्गम, सप्तह्रद तीर्थ व लक्ष्मी तीर्थों में विधान का निरूपण), १.२२२(द्वारका में नृग कूप के संदर्भ में नृग द्वारा २ ब्राह्मणों को गोदान के कारण शाप से कृकलास बनना व कृष्ण द्वारा कृकलास का उद्धार), १.२२३(द्वारका में रुक्मिणी तीर्थ के संदर्भ में कृष्ण व रुक्मिणी द्वारा दुर्वासा ऋषि को रथ में ढोने की कथा), १.२२४+ (गोकुल की कृष्ण विरह में व्याकुल गोपियों द्वारा कृष्ण से मिलन के लिए द्वारका में गोपी तडाग तीर्थ की स्थापना द्वारा कृष्ण से मिलन का वृत्तान्त, गोपीसर का महत्त्व), १.२२६(द्वारका में ब्रह्मकुण्ड, सूर्य, वरुण, कुबेर प्रभृति देवसरोवर आदि ३६ तीर्थों का माहात्म्य), १.२२७(द्वारका के परित: ८ दिशाओं में स्थित द्वारपालों के नाम ; रुक्मिगणेश पूजन का महत्त्व ; कुशस्थली में कुशेश तीर्थ की स्थिति के संदर्भ में दुर्वासा द्वारा चक्रतीर्थ में स्नान की कथा आदि), १.२२८(द्वारका वास, कृष्ण पूजन माहात्म्य आदि), १.२२९(शिव भक्त सोमशर्मा द्वारा सोमनाथ के दर्शन करने के पश्चात् द्वारका की यात्रा न करने से पितरों का मुक्त न होना, द्वारका यात्रा तथा कृष्ण भक्ति से पितरों की मुक्ति का वृत्तान्त), १.२३०(द्वारका में शङ्खोद्धार तीर्थ का माहात्म्य ; पिणाडारक तीर्थ आदि की प्रशंसा), १.२३१(बृहस्पति के सिंह राशि में होने पर गोदावरी सहित सब तीर्थों, देवों, पार्षदों आदि का द्वारका में संघश: आगमन, वास, गोमती में पाप प्रक्षालन आदि), १. २३२(द्वारका की यात्रा से मायानन्द यति के वज्रलेप नामक पाप के नष्ट होने का वृत्तान्त ) । dwaarakaa/dvaarakaa/dwarka
द्वारपाल अग्नि ९६.२(लिङ्ग प्रतिष्ठा अधिवासन विधि के अन्तर्गत द्वारों पर द्वारपालों के पूजन का उल्लेख), गरुड ३.२४.७७(श्रीनिवास के चार दिशाओं में द्वारपालों के नाम), गर्ग ५.१७.३(द्वारपालिका गोपियों के कृष्ण विरह में करुण उद्गार), नारद १.६६.८१ (शैव व वैष्णव द्वारपालों / द्वारपालिकाओं के नाम), ब्रह्मवैवर्त्त ४.५ (राधा भवन में षोडश द्वारपालों की स्थापना), स्कन्द ५.१.२६.५(महाकालवन के द्वारों पर द्वारपालों की स्थिति), ६.२६३.२२(मोक्ष रूपी नगर के चार द्वारों पर शम, सद्विचार, संतोष तथा साधु सङ्गम नामक द्वारपालों की स्थिति), ७.१.४.९४ (प्रभास क्षेत्र के रक्षक शिवगण द्वारपालों का कथन), ७.४.१७(कृष्ण तीर्थ में कृष्ण के द्वारपालों का कथन), योगवासिष्ठ २.११.५९ (मोक्ष द्वार के चार द्वारपालों शम आदि का कथन), लक्ष्मीनारायण १.२२७.१(द्वारका के परित: ८ दिशाओं में स्थित द्वारपालों के नाम ) । dvaarapaala/dwaarapaala/dwarpala
द्वि - नारद १.६६.११६(द्विरण्डेश की शक्ति वज्रा का उल्लेख), १.६६.१२६(द्विदन्त की शक्ति कान्ति का उल्लेख), १.६६.१३१(द्विजिह्व गणेश की शक्ति महिषी का उल्लेख), १.६६.१३३(द्विरण्ड गणेश की शक्ति यामिनी का उल्लेख ) । dvi
द्विकल लक्ष्मीनारायण २.१२६.१९(थर्कूट नगर के राजा शिबि द्वारा द्विकल सरोवर तट पर यज्ञ का आयोजन), २.१२७.२(सामन पर्वत पर स्थित, भूकम्प से पीडित प्रेतों का द्विकल तीर्थ में श्रीहरि के पास मोक्षार्थ आगमन आदि ) । dvikala
द्विज गरुड १.९३.१०(चार वर्णों में प्रथम तीन की द्विज संज्ञा), ब्रह्माण्ड ३.४.७.३५ (द्विजवर्मा : वीरदत्त किरात द्वारा अर्जित नाम), भविष्य १.६६ (मुनि, सूर्य उपासना के सम्बन्ध में शङ्ख से वार्तालाप), १.१३९.४४(मगों के अग्नि जाति, द्विजों के सोम जाति व भोजकों के आदित्य जाति होने का कथन), भागवत ७.१५(द्विजों की कर्मनिष्ठा प्रभृति अनेक निष्ठाओं का उल्लेख), ११.१८.४२(आचार्य - सेवा रूप द्विज - धर्म का उल्लेख), मत्स्य ११५.१०(द्विज ग्राम : ब्राह्मण पुरूरवा के जन्म का स्थान), वामन ९०.४(विपाशा में द्विजप्रिय की प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ९९.११२/२.३७.१०८(शूरसेन - पुत्र), ११२.७/२.५०.७ (द्विजों के १४ गोत्रों के नाम), विष्णु ४.१९.२९, ४८(द्विजमीढ : हस्ती के ३ पुत्रों में से एक, यवीनर - पिता), स्कन्द ५.३.५०.१(पूज्य व अपूज्य द्विजों के लक्षण), ५.३.८५.७२(त्याज्य द्विजों के लक्षण), ५.३.१८२.२२(लक्ष्मी द्वारा द्विजों को शाप प्रदान), ६.२३९.३१(जन्म से शूद्र उत्पन्न होकर संस्कार से द्विज बनने का उल्लेख), महाभारत शान्ति ७२.१०(विप्र/द्विज के पृथिवी का स्वाभाविक पति होने का उल्लेख), २९६.२५(तीन वर्णों की द्विजाति संज्ञा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.४१.९०(माता - पिता के चान्द्र, द्विजादि के सौर्य व अतिथि के आग्नेय होने पर शुभ होने का उल्लेख ) , ३.९१.७८(उपवीत से द्विजन्मा बनने का उल्लेख ; कृशाङ्ग चाण्डाल द्वारा तप से द्विज बनने का वृत्तान्त ) । dwija/dvija
द्विजिह्व नारद १.६६.१३१(द्विजिह्व गणेश की शक्ति महिषी का उल्लेख),
द्वित पद्म ५.१०.३९ (राम के अश्वमेध में द्वित की उत्तर द्वार पर स्थिति), स्कन्द ७.१.२५७(सौराष्ट्र देश के अधिपति आत्रेय राजा के एकत, द्वित तथा त्रित नामक तीन पुत्रों में त्रित की श्रेष्ठता का प्रतिपादन ) । dwita/dvita
द्वितीया अग्नि १७७.२ (पौष शुक्ल द्वितीया : विष्णु व्रत), १७७.१३ (कार्तिक शुक्ल द्वितीया : कान्ति व्रत), १७७ (द्वितीया व्रत : अश्विनौ, यम, विष्णु की पूजा, अशून्य शयन व्रत), गणेश १.६१.५० (गणेश के वरदान से प्रत्येक मास की द्वितीया को चन्द्रमा का शुभ / नमस्य होना), नारद १.१११ (द्वितीया तिथि के व्रत का वर्णन : ब्रह्मा की पूजा, अश्विनौ की पूजा, नेत्र व्रत, अशून्य शयन व्रत, चन्द्रमा हेतु अर्घ्य, यम द्वितीया आदि), पद्म १.२४.२ (श्रावण कृष्ण द्वितीया : अशून्य शयन नाम), ५.३६.७० (वैशाख शुक्ल द्वितीया : विभीषण का लङ्का के राज्य पर अभिषेक), ६.१२२.८४(कार्तिक शुक्ल द्वितीया : यम द्वितीया कृत्य), ६.१२२.७४(आश्वयुज शुक्ल द्वितीया : प्रेत संचारा नाम), ६.१२२.७९ (श्रावण शुक्ल द्वितीया : कलुषा नाम, इन्द्र द्वारा वृत्र वध से प्राप्त ब्रह्महत्या का प्राणियों में वितरण), ६.१२२.८० (भाद्रपद शुक्ल द्वितीया : अमला नाम, मधु - कैटभ के मेद से दूषित पृथिवी का निर्मलीकरण), ६.१२२ (कार्तिक शुक्ल द्वितीया : यम द्वितीया व उसके कृत्य), भविष्य १.१९ (पुष्प द्वितीया : माहात्म्य, च्यवन - सुकन्या कथा), १.१९ (द्वितीया का माहात्म्य : च्यवन व सुकन्या की कथा), मत्स्य ७१.२ (श्रावण कृष्ण द्वितीया में करणीय अशून्य शयन द्वितीया व्रत, गोविन्द पूजा, शय्या दान), वराह ५७.१७ (कार्तिक शुक्ल द्वितीया को अश्विनौ का शेष व विष्णु रूप होना), विष्णुधर्मोत्तर १.१४५ (अशून्य शयन द्वितीया में व्रत, श्राद्धादि का फल), ३.२२१.१५(द्वितीया तिथि को पूजनीय देवों के नाम तथा फल), स्कन्द २.२.४६.२(वैशाख शुक्ल द्वितीया में करणीय अक्षय मोक्षदा यात्रा का कथन), ४.२.७०.२० (इष / आश्विन कृष्ण द्वितीया को ललिता देवी की पूजा), ५.३.२६.१०४(द्वितीया में नवनीत दान से सुकुमार तनु की प्राप्ति), ६.४१ (अशून्य शयन नामक द्वितीया का माहात्म्य : इन्द्र द्वारा बाष्कलि का वध), ७.१.१६४ (माघ द्वितीया : अश्विनौ के लिङ्ग की पूजा), लक्ष्मीनारायण १.२०५.५२(लक्ष्मीः सम्पत्प्रदा नारायणप्राणा द्वितीयका ।), १.२६७ (वर्ष में द्वितीया तिथियों के व्रतों का वर्णन), १.३०९(राजा सर्वहुत व उसकी रानी गोऋतम्भरा द्वारा पुरुषोत्तम मास की द्वितीया तिथि व्रत के पारण से जन्मान्तर में क्रमश: ब्रह्मा व उनकी पत्नी गायत्री बनने का वृत्तान्त), २.२७.६० (दक्षिणायन में द्वितीया को विश्वकर्मा का शयन), २.५२.८८(ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया को रुद्र सरोवर में स्नान), २.१८१.१(भाद्रपद कृष्ण द्वितीया को श्रीकृष्ण का अल्वीनर राजा की नगरी में आगमन, अर्थेष्ट दैत्य का उद्धार आदि), २.२२०(आश्विन कृष्ण द्वितीया को श्रीहरि के त्रेताकर्कश राजा की नगरी में भ्रमण का वृत्तान्त), २.२८२(मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया को सौराष्ट्र में मण्डप में बालकृष्ण के स्नान आदि का वर्णन ) , ३.६४.२(तिथियों में पूजनीय देवताओं के संदर्भ में द्वितीया को लक्ष्मी की पूजा का उल्लेख - लक्ष्म्यास्ते वै द्वितीयाऽस्ति त्वं पूज्या पुरुषोत्तमी । सर्वलक्ष्मीप्रदा त्वं स्या मदात्मिका नरायणी ।।), ३.१०३.३(विभिन्न तिथियों में दान के संदर्भ में द्वितीया में दान से कन्याओं व सुतों की प्राप्ति- द्वितीयायां तथा दत्वा लभते कन्यकाः सुतान् । ) ; द्र. यमद्वितीया । dwiteeyaa/ dviteeyaa/dwitiya
द्विनाम मत्स्य १२२.७०(कुश द्वीप की ७ नदियों के द्विनाम )
द्विपद वायु २३.९१/१.२३.८४(नरों के द्विपद होने के कारण का कथन : क्रिया रूपी महेश्वरी /सावित्री का द्विपद होना - दृष्टा पुनस्त्वया चैषा सावित्री लोकभाविनी। तस्माद्वै द्विपदाः सर्वे द्विस्तनाश्च नराः स्मृताः ।। ) ; द्र. चतुष्पद । dvipada/dwipada
द्विपि योगवासिष्ठ ३.३७.५६(द्विपि जनपद के निवासियों का बाहुधान जनपद के निवासियों से युद्ध ) ।
द्विमीढ भागवत ९.२१.२१, २७(हस्ती के तीन पुत्रों में से एक, अजमीढ - भ्राता, यवीनर - पिता), मत्स्य ४९.४३(हस्ती के ३ पुत्रों में से एक), वायु ९९.१६६/२.३७.१६२(हस्ती के ३ पुत्रों में से एक ) ।
द्विमूर्धा ब्रह्माण्ड २.३.६.४(दनु वंश के प्रधान दानवों में से एक), भागवत ६.६.३०(दनु के ६१ पुत्रों में से एक), ८.१०.२०(देवासुर संग्राम में बलि के सेनानियों में से एक), मत्स्य ६.१७(दनु के १०० पुत्रों में से एक), १०.२१(असुरों द्वारा पृथिवी दोहन में विरोचन को वत्स तथा द्विमूर्धा को दोग्धा बनाना), २४९.६७(समुद्र मन्थन के संदर्भ में नाग के मुख को पकडने वाले असुरों में से एक), वामन ६९.५४ (अन्धक - सेनानी, पवन से युद्ध), वायु ६८.४/२.७.४ (दनु के प्रधान पुत्रों में से एक), विष्णु १.२१.४(दनु व कश्यप के पुत्रों में से एक ) । dvimoordhaa/ dwimoordhaa/ dwimurdha
द्विविद गर्ग ६.१५.१ (बलराम द्वारा कपिटङ्क तीर्थ में द्विविद वानर का वध), ७.१३ (शाल्व राजा का सहायक वानर, प्रद्युम्न से पराजय), ७.२५.५७(वानर, प्राग्ज्योतिषपुर के द्वार का वासी, प्रद्युम्न द्वारा वध), ब्रह्म १.१००.२ (वानर, नरकासुर - सखा, उपद्रव, बलदेव द्वारा वध), ब्रह्माण्ड १.२.१९.६८(क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक), भविष्य ३.३.१२.१२३ (द्विविद का कलियुग में सूर्यवर्मा के रूप में जन्म), भागवत १०.६७ (वानर, चरित्र दुष्टता, बलराम द्वारा वध), विष्णु ५.३६ (वानर, कुचेष्टाओं पर बलराम द्वारा वध), वा.रामायण १.१७.१४ (वानर, अश्विनौ का अंश), ४.६५.८ (द्विविद वानर की गमन शक्ति का कथन), ६.४१.३९ (द्विविद द्वारा लङ्का के पूर्व द्वार पर नील की सहायता), ६.४३.१२ (द्विविद का रावण - सेनानी अशनिप्रभ से युद्ध), ६.५८.२० (द्विविद द्वारा प्रहस्त - सचिव नरान्तक का वध), ६.७६.३४ (द्विविद द्वारा शोणिताक्ष का वध ), स्कन्द ३.१.५१.२५(उदीची दिशा में द्विविद का स्मरण), द्र. गोविन्द/द्विविन्द । dwivida/dvivida
द्विविधा मत्स्य १२२.३२(शाक द्वीप की ७ गङ्गाओं में से एक, अपर नाम शिबिका ) ।
द्वीप अग्नि १०७.३(प्रियव्रत द्वारा आग्नीध्र प्रभृति सात पुत्रों में जम्बू प्रभृति सात द्वीपों का विभाजन), १०८.२(जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रौञ्च, शाक तथा पुष्कर नामक सात द्वीपों के लवण, इक्षु , सुरा, सर्पि , दधि, दुग्ध तथा जल से आवृत होने का उल्लेख), ११८.३(इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रवर्ण, गभस्तिमान्, नागद्वीप, सौम्य, गान्धर्व, वारुण तथा भारत नामक नव द्वीपों का उल्लेख), ११९(जम्बू प्रभृति सात द्वीपों के विस्तार, वर्ष, पर्वत, नदियों, शासक तथा निवासियों का वर्णन), कूर्म १.४० (द्वीप अधिपति, वर्ष आदि का वर्णन), गरुड १.५६ (प्लक्ष आदि द्वीप व उनके स्वामियों का वर्णन), २.३२.११३(देह में द्वीपों की स्थिति), देवीभागवत ८.३.२३ (मनु - पुत्रों के द्वारा द्वीप, वर्ष, समुद्र आदि की व्यवस्था का उल्लेख ) , ८.४.१५ (प्रियव्रत द्वारा पृथिवी की प्रदक्षिणा से द्वीपों की उत्पत्ति की कथा ; जम्बूद्वीप प्रभृति सप्त द्वीपों का सप्त पुत्रों में विभाजन), ८.५(जम्बू द्वीप का वर्णन), पद्म ३.८ (द्वीपों का वर्णन), ब्रह्म १.१६(सप्त द्वीपों का वर्णन), १.१८ (प्लक्ष, शाक आदि द्वीपों का वर्णन), २.८१ (यज्ञ द्वीप : पुरूरवा द्वारा उर्वशी प्राप्ति हेतु यज्ञों का स्थान, वेद द्वीप उपनाम), ब्रह्माण्ड १.२.१५ (जम्बू द्वीप का वर्णन), १.२.१९ (प्लक्ष द्वीप आदि का वर्णन), १.२.१९.१३६(द्वीप की निरुक्ति), भविष्य १.१३९.८० (द्वीपों में सूर्य के नाम), ३.४.२४.७८(द्वापर युग के चरणों के अनुसार मनुष्यों का द्वीपों में वास), भागवत ५.१.३१(प्रियव्रत द्वारा पृथिवी की ७ परिक्रमाओं से ७ द्वीपों की उत्पत्ति, प्रियव्रत द्वारा आग्नीध प्रभृति पुत्रों की पृथक् - पृथक् द्वीपों में नियुक्ति – जम्बू प्लक्ष शाल्मलि कुश क्रौञ्च शाक पुष्कर संज्ञा), ५.२० (जम्बू द्वीप आदि के अन्तर्गत नदियों, अधिपतियों का वर्णन ), मत्स्य १२२ (शाक, कुश, क्रौञ्च, शाल्मलि आदि द्वीपों का वर्णन), १२३ (गोमेदक व पुष्कर द्वीप का वर्णन), मार्कण्डेय ५३.१६/५०.१६(प्रियव्रत द्वारा पृथिवी के सात द्वीपों में सात पुत्रों की स्थापना, पुन: द्वीपाधिपतियों द्वारा स्व - स्व पुत्रों में द्वीप के विभाजन का वर्णन), ५४.८/५१.८ (जम्बू द्वीप का वर्णन), लिङ्ग १.४६ (द्वीपों व द्वीप स्वामियों का वर्णन), वराह ७४ (द्वीपों का प्रियव्रत - पुत्रों में विभाजन), ८६ (शाक व कुश द्वीप का वर्णन), ८८ (क्रौञ्च द्वीप के वर्ष, पर्वत, नदी आदि), ८९ (शाल्मलि द्वीप के वर्ष, पर्वत, नदी आदि), वामन ११.३०(ब्रह्मा द्वारा द्वीपों की रचना, सातों द्वीपों के भिन्न - भिन्न धर्मों का कथन), वायु ३३.११ (प्रियव्रत द्वारा सात पुत्रों की सात द्वीपों में स्थापना, द्वीप स्वामियों व वर्षों का वर्णन), विष्णु २.४(जम्बू, प्लक्षादि द्वीपों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.६.३९ (मेरु के परित: द्वीपों का वर्णन ; क्षीरोद मध्य में श्वेत द्वीप की महिमा), १.७(जम्बू द्वीप का वर्णन), १.२४९.१०(ब्रह्मा द्वारा मध्यम? को द्वीपों का अधिपति नियुक्त करने का उल्लेख), ३.१५९ (चैत्र शुक्ल पक्ष से आरम्भ कर सप्ताह पर्यन्त जम्बूद्वीपादि सप्त द्वीप व्रत), शिव ५.१८ (प्लक्षादि षट् द्वीपों का वर्णन), स्कन्द १.२.३७ (सप्त द्वीपों की स्थिति का वर्णन), ५.३.९७.४८(द्वीपेश्वर का माहात्म्य), ५.३.९७.१६६ (द्वीपेश्वर में वृषोत्सर्ग का माहात्म्य ; द्वीप को सूत्र से वेष्टित करने आदि का महत्त्व), ५.३.२३१.२४(तीर्थ संख्या के अन्तर्गत दो द्वीपेश्वरों का उल्लेख), योगवासिष्ठ ३.३७.५६ (द्विपि : जनपद नाम, बाहुधान जनपद की सेना से युद्ध), ६.२.१८२+ (सप्त द्वीप का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.२२०.१३(सुतारसिंह राजा की पत्नी द्वैपी द्वारा पति से छिपाकर दान करने के कारण संकटग्रस्त होना, कृष्ण द्वारा रक्षा), ४.९८(श्रीकृष्ण का जम्बू, प्लक्षादि सात द्वीपों में भ्रमण, द्वीपेश्वरी व उनके पुत्रों द्वारा कृष्ण के स्वागत का वर्णन), महाभारत भीष्म ११(सञ्जय द्वारा धृतराष्ट्र हेतु शाक द्वीप का वर्णन), १२.१(कुश, क्रौञ्च, पुष्कर आदि द्वीपों का वर्णन ) ; द्र. कुशद्वीप, क्रौञ्चद्वीप, गोमेदकद्वीप, जम्बुद्वीप, पुष्करद्वीप, प्लक्षद्वीप, शङ्खद्वीप, शरीर, शाकद्वीप, श्वेतद्वीप, सिन्धुद्वीप । dweepa/dveepa/dwipa
द्वीपी गरुड २.२.७७(वेदविक्रेता के द्वीपी बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.१७६(क्रोधा की एक कन्या हरि व पुलह से उत्पन्न वानर जातियों में से एक), २.३.७.३१९(वानरों की ११ जातियों में से एक ) ; द्र. द्वैपी । dweepee/dwipi
द्वेष लिङ्ग २.९.३३(द्वेष की तामिस्र संज्ञा का उल्लेख), महाभारत आश्वमेधिक २६.५(सर्पों के द्वेष भाव का कथन), लक्ष्मीनारायण २.३१.८५(दीर्घतमा - पत्नी प्रद्वेषी द्वारा पति के त्याग आदि का कथन), २.२२३.४५ (पिशाच का रूप), ४.४४.६६ (द्वेष के नैर्ऋत बन्धन होने का उल्लेख ) । dwesha/dvesha
Comments on Dwesha
द्वैत योगवासिष्ठ ६.१.३३ (द्वैतेक्य प्रतिपादन नामक सर्ग : वासना व संकल्प को त्यागने से एकत्व की प्राप्ति व दुःखों का नाश ) । dwaita/dvaita
द्वैपायन ब्रह्माण्ड १.१.१.११(द्वैपायन द्वारा जातूकर्ण्य से ब्रह्माण्ड पुराण सुनकर जैमिनी आदि ५ शिष्यों को देना), १. २.३४.११(पराशर - पुत्र व विष्णु के अंश द्वैपायन द्वारा जैमिनि, सुमन्तु आदि को वेदों व पुराणों की शिक्षा देने का कथन), १.२.३५.१२४(२८वें द्वापर में वेदव्यास का नाम), ३.४.४.६६(ब्रह्माण्ड पुराण के श्रोताओं के संदर्भ में द्वैपायन द्वारा जातुकर्ण्य से पुराण सुनकर सूत को सुनाने का उल्लेख), भागवत ६.८.१९ (द्वैपायन व्यास से अज्ञान से रक्षा की प्रार्थना), १०.७९.२० (बलराम द्वारा द्वैपायनी आर्या देवी के दर्शन का उल्लेख), ११.१६.२८ (भगवान के व्यासों में द्वैपायन होने का उल्लेख), मत्स्य ४७.२४७ (२८वें द्वापर में पराशर - पुत्र द्वैपायन के रूप में विष्णु के ८वें अवतार का कथन), ६९.८(विष्णु के द्वैपायन, रोहिणी - पुत्र व केशव के रूप में त्रिधा अवतार लेने का उल्लेख), वायु ६०.११(पराशर - पुत्र, विष्णु के अंश द्वैपायन द्वारा जैमिनि आदि ५ शिष्यों को वेदादि सिखाने का कथन), स्कन्द ५.३.२.३(द्वैपायन - शिष्य वैशम्पायन का उल्लेख ) । dwaipaayana/ dvaipaayana
Remarks by Dr. Fatah Singh
द्वैपायन अर्थात् द्वीप में रहने वाला । हर मनुष्य की देह एक द्वीप है । अलगाव की प्रवृत्ति , आत्म केन्द्रित व्यक्तित्व द्वैपायन है । जब द्वैपायन व्यक्तित्व अपना विस्तार कर लेता है जिससे सारा समाज, राष्ट्र लाभान्वित होने लगता है तो वह द्वैपायन व्यास कहलाता है ।
द्वैपी लक्ष्मीनारायण ३.२२०.१३ (द्वैपी नामक रानी द्वारा दान दिए जाने पर राजा की रुष्टता की कथा ) ; द्र. द्वीपी ।