भगवती धूमावतीसाधना

भगवती धूमावतीसाधना

पूर्व परिचय-- महाविद्या धूमावती उग्रशक्ति हैं । भगवान् शिव इनमें धूम्ररूप से विराजमान हैं । विश्व की अमाङ्गल्यपूर्ण अवस्था की अधिष्ठात्री के रूप में ये भगवती त्रिवर्णा, चञ्चला, गलिताम्बरा, विरलदन्ता, विधवा, मुक्तकेशी, शूर्पहस्ता, काकध्वजिनी, रूक्षनेत्रा, कलहप्रिया आदि विशेषणों से वर्णित है । शत्रुसंहार, दारिद्र्य-विध्वंसन एवं भक्तसंरक्षण के लिए ये सदा आराध्य हैं । नारदपञ्चरात्र में इनकी उत्पत्ति कथा वर्णित है, जिसमें कहा गया है कि-᳚एक समय भगवान् शिव के अङ्क में विराजमान पार्वती देवी ने शिव से प्रार्थना की कि मुझे भूख लगी है, कुछ खाने के लिए दें । तब शिव ने आश्वासन दिया कि कुछ प्रतीक्षा करो, अभी व्यवस्था होती है, किन्तु व्यवस्था नहीं हुई और बहुत समय बीत गया । तब भगवती ने स्वयं शिव को ही मुख में रखकर निगल लिया । उससे उनके शरीर से धुआं निकला और अपनी माया से शिवजी बाहर आ गये । शिव ने पार्वती से कहा कि- ᳚मैं एक ही पुरुष हूं और तुम एक ही स्त्री हो । तुमने अपने पति को निगल लिया, अतः तम विधवा हो गई हो । अतः सौभाग्यवती के श‍ृङ्गार छोड़कर वैधव्य वेष में रहो । तुम्हारा यह शरीर परा भगवती बगला के रूप में विद्यमान था । अब तुम ``धूमावती'' महाविद्या के रूप में विश्व में पूजित होकर संसार का कल्याण करोगी । इसी प्रकार दक्षप्रजापति के यज्ञ में सती के शरीर के हवन से निकले धुएं से भी धूमावती का आविर्भाव माना गया है । ज्येष्ठा देवी, धूमिनी, धूमावती आदि नामों से प्रसिद्ध इस भगवती के अनेक उपासक हुए हैं, जिनमें अर्धनारीश्वर, नारसिंह, स्कन्द, क्षपणक, पिप्पलाद, बौधायन आदि प्रमुख हैं । इनका मन्त्र- `ॐ धूं धूं धूं धूमावति स्वाहा'' इस प्रकार है । इस मन्त्र का एक लाख जप और दशांश क्रम से हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन करना चाहिए । इसके विनियोग तथा ध्यान इस प्रकार हैं-- (ख) मन्त्र-विधान विनियोगः - अस्य श्रीधूमावती मन्त्रस्य स्कन्दऋषि, पङ्क्तिश्छन्दः, श्रीधूमावतीदेवता, धूं बीजं, स्वाहा शक्तिः प्रणवः कीलकं मम शत्रुक्षयार्थे विनियोगः । ऋष्यादिन्यास - स्कन्दर्षये नमः (शिरसि) । पङ्क्तिच्छन्दसे नमः (मुखे) । श्रीधूमावतीदेवतायै नमः (हृदये) । धूं बीजाय नमः (गुह्ये) । स्वाहा शक्तये नमः (पादयोः) । प्रणवकीलकाय नमः (नाभौ) । विनियोगाय नमः (सर्वाङ्गे) । कर-हृदयादि-न्यास - (मूल मन्त्र द्वारा) । ध्यान- श्यामाङ्गीं रक्तनयनां श्यामवस्त्रोत्तरीयकम् । वामहस्ते शोधनं च दक्षहस्ते तु शूर्पकम् ॥ धृत्वा विकीर्णकेशां च धूलिधूसरविग्रहाम् । लम्बोष्ठीं शुभ्रदशनां लम्बमान-यशोधराम् ॥ संलग्नभ्रूयुगयुतां कटुदंष्ट्रोष्ठवल्लभाम् । कृसरन्तु कुलुत्थोत्थं भग्नभाण्डतले स्थितम् ॥ तिलपिष्टसमायुक्तं मुहुर्मुहुश्च भक्तितम् । महिषीश‍ृङ्गताटङ्कीं लम्बकर्णातिभीषणाम् ॥ भजे धूमावतीं देवीं शत्रुसंहारकारिणीम् । सर्वसिद्धिप्रदात्रीं च मातरं शोकहारिणीम् ॥ यन्त्र, कवचादि बोध-धूमावती यन्त्र का स्वरूप `षट्कोण, अष्टदल और चतुर्दारयुक्त भूपुर'' वाला है । कामनाभेद से अन्य प्रकार के यन्त्र भी बनाये जाते हैं । धूमावती के कवच, हृदय, मालामन्त्र, स्तोत्र, शतनाम, सहस्रनाम आदि सभी अङ्ग प्राप्त होते हैं । धूमावती की अङ्ग-साधना में -- वीरेश, बटुक, प्रत्यङ्गिरा, शरभ, पाशुपत, संहारास्त्र, ककुदी, कर्कटिका, मारिणी, त्वरिता और कुल्लका आदि की साधनाएं भी की जाती हैं । साधक को गुरुपरम्परा से मन्त्र प्राप्त कर विधिपूर्वक अनुष्ठान करना चाहिए तथा किसी का अपकार नहीं करना चाहिए । आत्मरक्षा के लिए यह अत्युपयोगी है । धूमावती देवी का ``मालामन्त्र'' यहां पाठकों की सुविधा के लिए हम दे रहे हैं । इस मन्त्र का १०८ या १००८ की सङ्ख्या में जप करने से सब प्रकार के सङ्कटों का नाश एवं सुख-समृद्धि प्राप्त होती है । मूल मालामन्त्र इस प्रकार है- श्रीधूमावती माला-मन्त्र- ``ॐ, धूं धूमावति चतुर्दशभुवननिवासिनि सकलग्रहोच्चाटनि सकलशत्रुरक्तमांसभक्षिणि, मम शरीररक्षिणि भूतप्रेत-पिशाचब्रह्मराक्षसादि सकलग्रहसंहारिणि मम शरीर परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्रनिवारिणि आत्ममन्त्रयन्त्रतन्त्र प्रकाशिनि मम शरीरे परकट्टु-परवाटु-परवेट्टु-परजप-परहोम-परशून्य-परवृष्टि- परकौतुक-परौषधादिच्छेदिनि-चिट्टेरि-काहेरि-कन्नेरि-पाट्टेरि शुनककाटेरि-प्ररिटिकाट्टेरि -दर्भकाट्टेरि-पातालकाट्टेरि -सकलजाति- काट्टेरि-ग्रहच्छेदिनि मम नाभि-कमलस्थान-सञ्चारग्रहसंहारिणि धूम्रलोचनि उग्ररूपिणि सकलविषच्छेदिनि सकलविषसञ्चयान् नाशय नाशय मारय मारय विषमज्वर-तापज्वर-शीतज्वर-वातज्वर-लूतज्वर- पयत्यज्वर -श्लेष्मज्वर-मोहज्वर -सान्निपातज्वर-पातालकाट्टेरिज्वर- प्रेतज्वर-पिशाचज्वर-कृत्रिमज्वर-नानादोषज्वर -सकलरोगनिवारिणि सकलग्रहच्छेदिनि शिरःशूलाक्षिशूल-कुक्षिशूल कर्णशूल-नाभिशूल- कटिशूल-पार्श्वशूल-गण्डशूल-गुल्मशूलाङ्गशूल-सकलशूलान् निर्धूमय (धू ?) सकलग्रहान् निवारय निवारय रां रां रां रां रां, क्ष्रां क्ष्रां क्ष्रां क्ष्रां क्ष्रां, ख्रैं ख्रैं ख्रैं ख्रैं ख्रैं, ध्रूं ध्रूं ध्रूं ध्रूं, ध्रूं, फ्रें फ्रें फ्रें फ्रें फ्रें, धूं धूं धूं धूं धूं धूमावति मां रक्ष रक्ष शीघ्र शीघ्रमागच्छागच्छ, क्षिप्रमेवारोग्यं कुरु कुरु हुं फट् धूं धूं धूमावति स्वाहा ।᳚ इस मन्त्र को सूर्य-ग्रहण, चन्द्रग्रहण, अक्षयतृतीया की रात्रि और होली की रात्रि में विधिवत् पुरश्चरण करके सिद्ध कर लें और बाद में आवश्यकता पड़ने पर जल-भस्म आदि का अभिमन्त्रण तथा नीम की डाली से झाड़-फूङ्क करने में उपयोग करें इससे रोग एवं भूत-प्रेतादि के दोष दूर होते हैं । प्रणाम करने का पद्य वन्दे कालाभ्रनीलां विकलितवदनां काकनासां विकर्णां सम्मार्जिन्युल्कशूर्पैर्युत-मुसलकरां वक्रदन्तां विषास्याम् । ज्येष्ठां निर्वाणवेषां भ्रुकुटितनयनां मुक्तकेशामुदारां, पीनोत्तुङ्गाद्रितुङ्गस्तनभरनमितां निष्कृपां शत्रुहन्त्रीम् ॥ इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे भगवती धूमावती संक्षिप्त साधना समाप्ता । Proofread by Aruna Narayanan
% Text title            : Bhagavati Dhumavati Sadhana
% File name             : bhagavatIdhUmAvatIsAdhanA.itx
% itxtitle              : bhagavatIdhUmAvatIsAdhanA (rudrayAmalAntargatam)
% engtitle              : bhagavatIdhUmAvatIsAdhanA
% Category              : devii, ShaTchakrashakti, dashamahAvidyA
% Location              : doc_devii
% Sublocation           : devii
% SubDeity              : dashamahAvidyA
% Texttype              : stotra
% Language              : Sanskrit
% Subject               : philosophy/hinduism/religion
% Proofread by          : Aruna Narayanan
% Indexextra            : (Scan)
% Latest update         : December 24, 2021
% Send corrections to   : sanskrit at cheerful dot c om
% Site access           : http://sanskritdocuments.org

This text is prepared by volunteers and is to be used for personal study and research. The file is not to be copied or reposted for promotion of any website or individuals or for commercial purpose without permission. Please help to maintain respect for volunteer spirit.

BACK TO TOP
sanskritdocuments.org