पक्ष नारद १.१२१.१०३( पक्षवर्धिनी द्वादशी तिथि का अर्थ व महत्त्व ), ब्रह्माण्ड १.२.३३.४( पक्षगंता : ८६ श्रुतर्षियों में से एक ), २.३.७.१२९( मणिवर यक्ष व देवजनी के पुत्रों में से एक ), वायु १.३९.६३( सुपक्ष पर्वत पर गन्धर्वों, किन्नरों, यक्षों, नागों व विद्याधरों के पुरों का उल्लेख ), ९९.१३/२.३७.१३( अनु के ३ पुत्रों में से एक ), योगवासिष्ठ १.१.७( मोक्ष के लिए कर्म व ज्ञान रूपी २ पक्षों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४०६.६६( श्रीवेंकटाद्रि द्वारा उडकर मेरु पर जाने का प्रयास, वराह द्वारा वेंकटाद्रि के प्रयास का वर्जन, पुन: सती सुवर्णरेखा द्वारा वेंकटाद्रि के पक्षों को जडीभूत करने का वृत्तान्त ) paksha


      पक्षी अग्नि ३६३.७१( पक्षी के पर्यायवाची शब्दों का वर्ग ), गणेश १.८.३४( राजा सोमकान्त द्वारा भृगु के वचनों पर संशय करने पर उसके अङ्गों से पक्षी रूपी द्विजों का निकलकर उसके मांस को नोचना ), २.२०.३०( दैत्यों की माया से उद्भूत वृष्टि से बचाने के लिए गणेश द्वारा पक्षी रूप धारण करने का वृत्तान्त, अन्धक आदि दैत्यों का नाश), पद्म २.८५.२९( च्यवन मुनि द्वारा कुञ्जल शुक व उसके ४ पुत्रों के वार्तालाप का श्रवण ; शुक - पुत्रों द्वारा द्रष्ट आश्चर्यों का वर्णन ), ब्रह्म २.९४( द्विमुख चिच्चिक पक्षी के पवमान राजा से संवाद व उद्धार का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड ३.४.३२.११( पक्षिणी : षोडश पत्राब्ज पर स्थित १६ शक्तियों में से एक ), भविष्य १.१२४( सूर्य - द्वारपाल, गरुड का रूप ), भागवत ३.१०.२०( तिरश्ची संज्ञक अष्टम सर्ग के अन्तर्गत पशुओं व पक्षियों के विशिष्ट गुणों का कथन ), ११.११.६( शरीर रूपी वृक्ष पर रहने वाले पक्षी ), मत्स्य २३७( पक्षियों सम्बन्धी उत्पात ), वायु ९.३७( ब्रह्मा द्वारा स्ववय:? से पक्षियों की सृष्टि करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २१२०,स्कन्द १.२.१३.१८८( शतरुद्रिय प्रसंग में पक्षियों द्वारा व्योम लिङ्ग पूजा का उल्लेख ), योगवासिष्ठ १.२०.२५( आधि व्याधि की पक्षी से तुलना ), महाभारत शान्ति ११( पक्षी रूप धारी इन्द्र द्वारा तप की व्याख्या ), २६१.२०( तपोरत जाजलि मुनि की जटाओं में पक्षियों द्वारा नीड बनाने की कथा ), आश्वमेधिक ४७.१६( देह रूपी वृक्ष पर निवास करने वाले पक्षी - द्वय का कथन ), कथासरित् ५.३.२९( शक्तिदेव द्वारा पक्षी पर आरूढ होकर कनकपुरी जाने का वृत्तान्त ) द्र. पतत्रि pakshee/pakshi


      पङ्क महाभारत शान्ति ३०१.६५( स्नेह पङ्क का रूप ),


      पङ्कज भविष्य १.१३८.३७( ब्रह्मा की पङ्कज ध्वज का उल्लेख ), वामन ५७.६४( शक्र द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त २ गणों में से एक ), ९०.३६( वितल में विष्णु का पङ्कजानन नाम ), वायु ११२.४३/२.५०.५३( गया में पवित्र पङ्कज वन का उल्लेख )


      पङ्किल लक्ष्मीनारायण २.२४२.१९( दाक्षी नामक सेविका व वामदेव से पङ्किल का जन्म, पङ्किल द्वारा ५ भगिनियों की सेवा से ५ कल्प आयु की प्राप्ति, पङ्किल द्वारा वामन की सेवा का वृत्तान्त ), pankila


      पंक्ति अग्नि ११७.४७( पंक्तिपावन ब्राह्मण के लक्षण ), ब्रह्माण्ड २.३.१५.२८( श्राद्ध के संदर्भ में पंक्तिपावन तथा पंक्तिदूषक ब्राह्मणों के लक्षण ), वायु ७९.५३/२.१७.५४( श्राद्ध के संदर्भ में पंक्तिपावन तथा पंक्तिदूषक ब्राह्मणों के लक्षण ), ८३.५१/२.२१.२३( वही), लक्ष्मीनारायण १.३११.४१( पंक्ति द्वारा पुरुषोत्तम कृष्ण को सुगन्ध, पुष्पसार व धूप प्रस्तुत करने का उल्लेख - पंक्तिर्ददौ सुगन्धं च पुष्पसारं च धूपकम् ॥), pankti


      पङ्गु गरुड १.२१७.३०( यावक हरण से पङ्गु योनि की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द १.३.१.६.६३( पङ्गु मुनि द्वारा शोण नदी के अनुग्रह से हस्त - पाद प्राप्त करने का उल्लेख ), ७.३.१७( पङ्गु तीर्थ का माहात्म्य : पङ्गु की पङ्गुता का निराकरण ), लक्ष्मीनारायण १.५५४.१६( अर्बुद पर्वत पर पङ्गु तीर्थ का माहात्म्य : पङ्गु विप्र द्वारा पङ्गु तीर्थ की स्थापना, चित्राङ्गद राजा को मोक्ष की प्राप्ति ), pangu


      पञ्चक पद्म ४.२३( कार्तिक के अन्तिम पांच दिनों में विष्णु पञ्चक व्रत का माहात्म्य : दण्डकर नामक दुष्ट विप्र का उद्धार ), लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३( पञ्च माहिष की अशुभता का उल्लेख ), कथासरित् ८.५.६३( पञ्चकाद्रि के महारथी दिण्डिमाली का संदर्भ ) panchaka


      पञ्चकूट वायु ३९.५३( पञ्चकूट पर्वत पर दानवों के वास का उल्लेख ), ४२.३२( गङ्गा के पिशाचक पर्वत से पञ्चकूट पर्वत पर आने तथा पञ्चकूट से कैलास पर्वत को जाने का उल्लेख ) panchakoota/ panchakuuta/ panchakuta


      पञ्चक्रोशी वराह १४७.४५( गोनिष्क्रमण क्षेत्र में वायव्य दिशा में पञ्चक्रोशी क्षेत्र का माहात्म्य ), शिव ४.२२.९( शिव द्वारा सृष्ट पञ्चक्रोशात्मक काशी नगरी की महिमा का वर्णन ),


      पञ्चगव्य अग्नि ३४.९( पञ्चगव्य निर्माण हेतु चतुर्व्यूह मन्त्रों का प्रयोग ),


      पञ्चान्तक नारद १.६६.१११( पञ्चान्तक की शक्ति सिद्धगौरी का उल्लेख ),


      पञ्चचूडा ब्रह्माण्ड २.३.७.१०१( क्रतुस्थला अप्सरा का अपर नाम?, क्रतुस्थला व गन्धर्व रूप धारी यक्ष से रजतनाभ पुत्र की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), वायु ९१.३२/२.२९.३२( पुरूरवा द्वारा कुरुक्षेत्र में ५ पञ्चचूडा अप्सराओं के साथ क्रीडा करती हुई उर्वशी के दर्शन आदि का कथन ), शिव ५.२३.५९(पञ्चचूडा – कथित स्त्री के अवगुण), ५.२४.१( पञ्चचूडा द्वारा नारद को स्त्री स्वभाव का वर्णन ),स्कन्द ४.२.९७.१४६( पञ्चचूडा अप्सरा सर का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३७९.५०( पञ्चचूडा द्वारा नारद को स्त्री स्वभाव का वर्णन ), panchachoodaa/ panchachuudaa/ panchachuda


      पञ्चजन गर्ग ५.९.२०( कृष्ण द्वारा मुष्टि से पञ्चजन दैत्य का वध, पञ्चजन के शरीर से उत्पन्न शङ्ख का कृष्ण द्वारा ग्रहण ), ५.१२.२२( अहंकार होने पर लक्ष्मी द्वारा पञ्चजन शङ्ख को दैत्य होने का शाप, कृष्ण द्वारा उद्धार ), पद्म ६.२०.४०( सगर के कपिल की क्रोधाग्नि से सुरक्षित बचे ४ पुत्रों में से एक ), ६.२१.६( सगर की एक पत्नी से उत्पन्न एकमात्र पुत्र पञ्चजन के राजा बनने का उल्लेख ; पञ्चजन के अंशुमान् , दिलीप आदि पुत्र - पौत्रों का उल्लेख ), ब्रह्म १.८६.२७( कृष्ण व बलराम द्वारा पञ्चजन दैत्य का वध करके गुरु - पुत्र की रक्षा तथा दैत्य की अस्थियों से पाञ्चजन्य शङ्ख बनाने का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१४७( कपिल की क्रोधाग्नि से सुरक्षित बचे सगर के ४ पुत्रों में से एक ), भागवत ३.३.२(कृष्ण द्वारा पञ्चजन के उदर से सान्दीपनी के पुत्र को लाने का उल्लेख - तस्मै प्रादाद् वरं पुत्रं मृतं पञ्चजनोदरात् ॥), ६.४.५१( दक्ष द्वारा पञ्चजन प्रजापति की कन्या असिक्नी को पत्नी रूप में प्राप्त करना ), ६.१८.१४( संह्राद व कृति - पुत्र ), १०.४५.४०( शङ्खरूपधारी पञ्चजन दैत्य द्वारा सान्दीपनी मुनि के पुत्र का हरण, कृष्ण द्वारा वध ), विष्णु ५.२१.२८( कृष्ण द्वारा गुरु सान्दीपनी के पुत्र का हरण करने वाले पञ्चजन दैत्य को मारकर उसकी अस्थियों से शङ्ख बनाने का वृत्तान्त ), शिव २.२.१३.७( दक्ष द्वारा पञ्चजन - पुत्री असिक्नी का पत्नी रूप में ग्रहण ), २.२.१३.२५( दक्ष द्वारा पञ्चजनी से सबलाश्व पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.३८.५४( सगर के दग्ध होने से बचे ४/५? पुत्रों में से एक ), स्कन्द ७.४.१७.२८( दैत्य, द्वारका की पश्चिम दिशा की रक्षा करने वालों में से एक ), हरिवंश १.१५.१२( कपिल द्वारा भस्म सगर - पुत्रों में से अवशिष्ट एक, अंशुमान् – पिता, उपनाम असमञ्ज? - एकः पञ्चजनो नाम पुत्रो राजा बभूव ह ।। सुतः पञ्चजनस्यासीदंशुमान्नाम वीर्यवान् । ), २.३३( तिमि या मत्स्य रूपी दैत्य, सान्दीपनी के पुत्र का हरण, कृष्ण द्वारा वध ), panchajana


      पञ्चजनी भागवत ५.७.१( विश्वरूप - कन्या, भरत - पत्नी, तन्मात्रा रूपी पांच पुत्रों की प्राप्ति का कथन ), मत्स्य ५.४( दक्ष द्वारा पञ्चजनी /पाञ्चजनी पत्नी में हर्यश्व संज्ञक पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ) panchajanee


      पञ्चतीर्थ ब्रह्माण्ड ३.४.४०.६०( शिव द्वारा ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु काञ्ची में पञ्चतीर्थ में स्नान आदि का कथन ), वायु १११.१/२.४९.१( गया में उत्तरमानस आदि ५ तीर्थों का माहात्म्य )


      पञ्चदशी नारद १.८८.२१९(पञ्चदशी का स्वरूप), स्कन्द ५.३.५१.६( ज्येष्ठी पञ्चदशी : मन्वन्तरादि तिथियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.६४.१६( पञ्दशी तिथि के वेधा /ब्रह्मा की तिथि होने का उल्लेख ),


      पञ्चनख वा.रामायण ४.१७.३९( वाली वानर के संदर्भ में पञ्चनख जीवों में भक्ष्य - अभक्ष्य का कथन )


      पञ्चनद पद्म ३.२४.३३( पञ्चनद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : पांच यज्ञों की प्राप्ति ), ३.२६.१४( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत पञ्चनद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.५७( श्राद्ध के संदर्भ में पञ्चनद तीर्थ का उल्लेख ), वराह २१५.१०१( पञ्चनद तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य : अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), वायु ७७.५६( श्राद्ध के संदर्भ में पञ्चनद तीर्थ का उल्लेख ), विष्णु ५.३८.१२( द्वारका से इन्द्रप्रस्थ को जाते समय अर्जुन का पञ्चनद स्थान में वास और दस्युओं द्वारा अर्जुन को लूटने का वृत्तान्त ),स्कन्द २.४.४.४४( कार्तिक में काशी में पञ्चनद तीर्थ में स्नान व तर्पण के महत्त्व का कथन ), ४.१.३३.१५१( पञ्चनद तीर्थ : पञ्चब्रह्म का प्रतीक, पञ्चब्रह्मात्म संज्ञा ), ४.२.७९.१०२( पञ्चनद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८४.५०( पञ्चनद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.४.१४.४६( द्वारका में पांच नदियों के आगमन से निर्मित पञ्चनद तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), panchanada


      पञ्चपट्टिक कथासरित् ९.२.९९( पञ्चपट्टिक आदि ४ वीरों द्वारा अनङ्गरति कन्या की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ९.२.२४६( देवी के गण पञ्चमूल के शापवश पञ्चपट्टिक शूद्र बनने का कथन ), १२.१६.२२( कन्या अनङ्गरति हेतु पञ्चपट्टिक शूद्र, भाषाज्ञ वैश्य, खड्गधर क्षत्रिय व जीवदत्त विप्र में से पति वरण का प्रश्न ),


      पञ्चपद भागवत ५.२०.२६( शाकद्वीप की ७ मुख्य नदियों में से एक ), वराह १४७.३६( गोनिष्क्रमण क्षेत्र में पञ्चपद तीर्थ का माहात्म्य )


      पञ्चपिण्ड वराह १४९.३७( द्वारका में पञ्चपिण्ड ह्रद का माहात्म्य )


      पञ्चभूत गरुड २.३२.३५(देह का ५ भूतों में विभाजन, ५ भूतों का ५-५ में विभाजन), मत्स्य १२३.४९(भूमि, आपः, अग्नि आदि के आपेक्षिक परिमाणों का कथन), महाभारत भीष्म ५.३( पृथिवी आदि ५ महाभूतों के गुणों का कथन ), द्र. महाभूतpanchabhoota/ panchabhuta


      पञ्चम ब्रह्माण्ड १.२.३५.५१( कृत के २४ शिष्यों में से एक ), २.३.१५.३७( पञ्चम संकरात्मक आश्रम के चतुराश्रम से बाह्य तथा श्राद्ध के अयोग्य होने का कथन ), वायु २१.४७/१.२१.४३( २१वें पञ्चम नामक कल्प में ब्रह्मा के प्राण, अपान आदि पुत्रों का कथन, पञ्चम नाम का कारण ), ६१.४५( कृत के २४ शिष्यों में से एक ), ८६.३७/२.२४.३७( ७ स्वरों में से एक ) panchama


      पञ्चमी अग्नि १८०( नाग पञ्चमी पूजा व्रत ), २९१( पञ्चमी को गज शान्ति कर्म ), गरुड १.११६.५( पञ्चमी को श्रीहरि की पूजा - चतुर्थ्यां च चतुर्व्यूहः पञ्चम्यामर्चितो हरिः ।कार्तिकेयो रविः षष्ठ्यां सप्तम्यां भास्करोऽर्थदः ॥ ), १.१२९.२७( नाग पञ्चमी व्रत ), २.४४.२४(पञ्चमी तिथियों को नाग पूजा विधि - प्रमादादिच्छया मर्त्यो न गच्छेत्सर्पसंमुखः । पक्षयोरुभयोर्नागं पञ्चमीषु प्रपूजयेत् ॥), गर्ग २.१९( वैशाख कृष्ण पञ्चमी : कृष्ण व गोपियों का रास - वैशाखमासि पंचम्यां जाते चन्द्रोदये शुभे । यमुनोपवने रेमे रासेश्वर्या मनोहरः ॥), ४.११.६( माघ शुक्ल पञ्चमी : कृष्ण द्वारा वृषभानु - कन्याओं के प्रेम की परीक्षा ), देवीभागवत ९.४.२२( माघ शुक्ल पञ्चमी : सरस्वती पूजा विधि ), नारद १.११४( पञ्चमी तिथि के व्रतों का वर्णन : मत्स्य जयन्ती, लक्ष्मी पूजा, पृथिवी व्रत, हयग्रीव व्रत, चान्द्र व्रत, शेषनाग पूजा, वायु परीक्षा, दिक्पाल पूजा, अन्न व्रत, ऋषि पूजा, ललिता व्रत, जया व्रत आदि ), २.५४.१०४( आषाढ शुक्ल पञ्चमी : पुरुषोत्तम क्षेत्र में प्रतिमाओं की रथ यात्रा ), पद्म ५.३६.३९( पौष शुक्ल पञ्चमी : राम द्वारा समुद्र तरण हेतु प्रायोपवेशन का उद्योग - समुद्रतरणार्थाय पंचम्यां मंत्र उद्यतः। प्रायोपवेशनं चक्रे रामो दिनचतुष्टयम् ॥ ), ५.३६.७४( वैशाख शुक्ल पञ्चमी : अयोध्या आगमन के समय राम का भरद्वाज से मिलन - पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पंचम्यां माधवस्य तु। भरद्वाजाश्रमे रामः सगणः समुपाविशत्॥), ६.७७.४८( भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी : ऋषि पञ्चमी नाम, विधि, देवशर्मा द्वारा माता - पिता का उद्धार - मासे भाद्रपदे शुक्ले जायते ऋषिपंचमी। रजसा विकृतं पापं नश्यते करणाद्यतः ॥), ब्रह्मवैवर्त २.४.२३( माघ शुक्ल पञ्चमी को सरस्वती पूजा, विद्यारम्भ आदि ), २.२७.१०१( माघ शुक्ल पञ्चमी को सरस्वती पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.२५( चिन्तामणि गृह के वायव्य में स्थित ४ देवियों में से एक ), भविष्य १.३२( नाग पञ्चमी : कद्रू द्वारा नागों को शाप की कथा ), ३.२.१.२८( ज्येष्ठ शुक्ल पञ्चमी को पद्मावती द्वारा वज्रमुकुट राजकुमार के दर्शन ), वराह २४.३२( नागों द्वारा पञ्चमी को ब्रह्मा से शाप व प्रसाद की प्राप्ति का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.३४( पञ्चमी तिथि को पूजनीय देवी - देवताओं के नाम तथा पूजा का फल ), स्कन्द २.२.२९.३१( माघ पञ्चमी को गुण्डिचा यात्रा - माघमासस्य पंचम्यामष्टम्यां चैत्रशुक्लके । एते कालाः प्रशस्ता हि गुंडिचाख्यमहोत्सवे ।।), ५.१.१०.६( चैत्र शुक्ल पञ्चमी को कुटुम्बेश्वर लिङ्ग की अर्चना का माहात्म्य : रुद्र लोक की प्राप्ति ), ५.१.५९.३३( ऋषि पञ्चमी व्रत का माहात्म्य : सप्तर्षि - पत्नियों द्वारा गया में अनुष्ठान से पतियों की पुन: प्राप्ति ), ५.३.२६.१०९( पञ्चमी को तिल दान से तिलोत्तमा समान रूप सम्पन्न होने का उल्लेख - पञ्चमीं तु ततः प्राप्य ब्राह्मणे तिलदा तु या ॥ सा भवेद्रूपसम्पन्ना यथा चैव तिलोत्तमा । ), ५.३.१६३.१( आश्विन् शुक्ल पञ्चमी को नाग तीर्थ में व्रत आदि के फल का कथन ), ५.३.१८२.७( माघ पञ्चमी को भृगु द्वारा भृगुकच्छ नगर की रचना कराने का उल्लेख ), ६.१३६.२४( आश्विन् पञ्चमी : दीर्घिका स्नान का माहात्म्य - कन्याराशिगते सूर्ये संप्राप्ते पंचमीदिने ॥ येऽत्र स्नानं करिष्यंति श्रद्धया सहिता नराः ॥ अपुत्रास्ते भविष्यंति सपुत्रा वंशवर्धनाः ॥ ), ६.१८३.२६( श्रावण कृष्ण पञ्चमी : नाग तीर्थ में स्नान, पूजा आदि ), ७.१.८३.३९( आश्विन् शुक्ल पञ्चमी : महिषासुर मर्दिनी दुर्गा की पूजा का आरम्भ ), ७.१.१०१.७०( माघ शुक्ल पञ्चमी : साम्बादित्य की पूजा - माघस्य शुक्लपक्षे तु पञ्चम्यां यादवोत्तम ॥ एकभक्तं सदा ख्यातं षष्ठ्यां नक्तमुदाहृतम् ॥ ), ७.१.१२९.५१( भाद्रपद ऋषि पञ्चमी : अक्षमालेश्वर लिङ्ग की पूजा - तत्रैव ऋषिपञ्चम्यां प्राप्ते भाद्रपदे शुभे ॥ अक्षमालेश्वरं पूज्य मुच्यते नारकाद्भयात् ॥ ), ७.१.१३२.८( श्री पञ्चमी को सिद्ध लक्ष्मी की पूजा - श्रीपञ्चम्यां नरो यस्तु पूजयेत्तां विधानतः ॥ गन्धपुष्पादिभिर्भक्त्या तस्यालक्ष्मीभयं कुतः ॥), ७.१.१३७.२(श्रावण शुक्ल पञ्चमी को कङ्काल भैरव की पूजा का माहात्म्य - श्रावणे शुक्लपञ्चम्यामष्टम्यामाश्विनस्य च ॥ यस्तं पूजयते भक्त्या बलिपुष्पादिभिः क्रमात् ॥ ), ७.३.३७.२१( श्रावण पञ्चमी को नाग उद्भव तीर्थ में स्नान आदि का माहात्म्य - नागह्रदं तु तत्तीर्थमेतद्भावि धरातले ॥ अत्र यः श्रावणे मासि पञ्चम्यां भक्तितत्परः ॥ करिष्यति नरः स्नानं तस्य नाहिकृतं भयम् ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.३६.७८( रजस्वला दोष से मुक्ति हेतु भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी को ऋषि पञ्चमी व्रत ), १.२०५.५४(शंकरप्राणरूपा च सती पार्वती पंचमी ।), १.२७०( वर्ष भर की पञ्चमी तिथियों में करणीय व्रतों का वर्णन ), १.३१२( वसुदान नृप व राध्यासा राज्ञी द्वारा तुलसीसेवनव्रत व पुरुषोत्तम मास पञ्चमी व्रत से हिरण्याधिपति बनने का वर्णन ), २.१८४.९९( भाद्रपद कृष्ण पञ्चमी को श्रीकृष्ण द्वारा राजा अल्पकेतु की जीवनी नगरी में आगमन ), ३.६४.६( पञ्चमी तिथि को चन्द्रमा की अर्चना का निर्देश - चन्द्रस्य पञ्चमी प्रोक्ता पूजनीयः शशी ह्यहम् ।। गोवृषवाटिकादाता भवामि चामृतान्नदः ।। ), ३.१०३.४(पञ्चम्यां तु तथा दत्वा लभते सद्गुणान् सुतान् ।। ), ३.१२२.६८( फाल्गुन कृष्ण पञ्चमी को पुत्री व्रत की विधि व महत्त्व ), ४.७१.१( तिथियों में पञ्चमी को प्रसाद मिश्रित उच्छिष्ट के भक्षण से नकुल द्वारा देवत्व प्राप्ति का कथन ),panchamee/ panchami



      पञ्चमुद्रा स्कन्द ४.२.८३.२६( मूल नक्षत्र में उत्पन्न पुत्र को रानी द्वारा विकटा देवी के पञ्चमुद्रा क्षेत्र में त्यागना, काशी में पञ्चमुद्रा क्षेत्र की महिमा ), ५.२.४६.१४५( वही) panchamudraa


      पञ्चमेढ्र पद्म ५.१०७.३२( पञ्चमेढ्र राक्षस के स्वरूप का कथन, वीरभद्र द्वारा वध, पञ्चमेढ्र द्वारा वाली व सुग्रीव का ग्रसन, पञ्चमेढ्र द्वारा तप से शिव से वराह प्राप्ति का वृत्तान्त ),


      पञ्चयाम भागवत ६.६.१६( आतप - पुत्र? पञ्चयाम का महत्त्व )


      पञ्चरथ ब्रह्माण्ड २.३.७.२३५( प्रधान वानरों में से एक ), २.३.४६.१७( शूरसेन आदि योद्धाओं की पञ्चरथ उपाधि का उल्लेख )


      पञ्चरात्र अग्नि ३९( पञ्चरात्र प्रवर्तक २५ तन्त्रों के नाम, पञ्च महाभूतों का रूप ), कूर्म २.१६.१५( पञ्चरात्र अनुष्ठान का निषेध ), वराह ६६.११( विष्णु द्वारा नारद को पञ्चरात्र के महत्त्व का कथन तथा नारद को पञ्चरात्र शास्त्र का ज्ञान होना ), १३९.९२( अविधिपूर्वक पञ्चरात्र यज्ञ सम्पन्न करने से सोमशर्मा ब्राह्मण के ब्रह्मराक्षस बनने का कथानक ), स्कन्द ५.३.१९५.२१( पञ्चरात्र विधान से श्रीपति की अर्चना करने पर भवसागर से पार होने का उल्लेख ), ६.१९०+ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी से आरम्भ ब्रह्मा के यज्ञ में पञ्चरात्र का वर्णन ), ६.२०७( इन्द्र पञ्चरात्र : इन्द्र - अहल्या आख्यान, गौतम द्वारा इन्द्र पूजा का विधान ), ६.२०७.७२( पञ्चरात्र व्रत विधि व माहात्म्य ), pancharaatra


      पञ्चवटी वा.रामायण ३.१४+ ( राम का पञ्चवटी में आगमन व निवास, जटायु से भेंट ), कथासरित् १२.३५.४६( पञ्चवटी की विशिष्ट घटनाओं के उल्लेख सहित पञ्चवटी के निकट करभग्रीव में स्थित मातङ्गपति दुर्गपिशाच का वृत्तान्त ) panchavatee/ panchavati

      Esoteric aspect of Panchavati


      पञ्चवन वायु ७७.९९/२.१५.९९( गया में मुण्डपृष्ठ, गृध्रकूट आदि की पञ्चवन संज्ञा; पञ्चवन की श्राद्ध हेतु प्रशस्तता ), ८८.१४८/२.२६.१४८( कपिल की क्रोधाग्नि से भस्म होने से सुरक्षित बचे सगर के ४ पुत्रों में से एक )


      पञ्चविंश महाभारत शान्ति ३०७.१४( पञ्चविंश की क्षेत्र संज्ञा का कारण ; गुणों के अव्यक्तात्मा में लीन होने पर गुणों सहित पञ्चविंश के लीन होने का कथन ), ३०८.६( षड्विंश द्वारा पञ्चविंश व चतुर्विंश को जानने का कथन ), panchavimsha


      पञ्चशिख अग्नि ३८२.४(पञ्चशिख के मत में परम श्रेय – समदर्शित्व, निर्ममत्व, असंगता), नारद १.४५( कपिला ब्राह्मणी - पुत्र, आसुरि - शिष्य, राजा जनदेव / जनक को सांख्य / मोक्ष का उपदेश ), ब्रह्मवैवर्त १.८.२६( पञ्चशिख ऋषि की ब्रह्मा की नाभि से उत्पत्ति ), १.१२.४( ऊर्ध्वरेता, प्रजारहित ऋषियों में से एक ), १.२२.१६( पञ्चशिख ऋषि के नाम का कारण : मस्तक पर वह्निशिखा रूपा पांच जटाओं की स्थिति ), ४.९६.३३( चिरजीवी ऋषियों में से एक पञ्चशिख का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.४५४( पञ्चशिखर : सम्पाती, गरुड आदि पुलह की सन्तानों द्वारा व्याप्त स्थानों में से एक ), मत्स्य १०२.१८( श्राद्ध में तर्पण योग्य ऋषियों में से एक ), वराह १४१.१४( बदरिकाश्रम में पञ्चशिख तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), वामन ५७.८९( कनखल द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम ), ५८.५९( पञ्चशिख द्वारा मुद्गर से असुर संहार ), शिव ३.४.३३( अष्टम द्वापर में शिव - अवतार दधिवाहन के ४ पुत्रों में से एक ), कथासरित् १.७.७६( पञ्चशिख नामक शिव गण द्वारा वृद्ध ब्राह्मण रूप धारण कर सुशर्मा राजा के पास स्त्री वेश धारी पुरुष को धरोहर रखने की कथा ), panchashikha


      पञ्चशिर भागवत ६.१५.१४( पञ्चशिरा/पञ्चशिख : ज्ञान प्रदान हेतु पृथिवी पर विचरण करने वाले सिद्धों में से एक ), वराह १४१.३९( बदरिकाश्रम में पञ्चशिर तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य का कथन : ब्रह्मा के पञ्चम शिर के कर्तन का स्थान ) panchashira


      पञ्चशैल वायु ३६.२४( मेरु के दक्षिण में स्थित पर्वतों में से एक )


      पञ्चसर वराह १४९.२४( द्वारका में पञ्चसर के माहात्म्य का कथन )


      पञ्चहस्त विष्णु ३.२.२४( नवम मनु दक्षसावर्णि के पुत्रों में से एक ), द्र. मन्वन्तर


      पञ्चाग्नि ब्रह्माण्ड २.३.२२.७२( परशुराम द्वारा हिमालय पर पञ्चाग्नि के मध्य तप का उल्लेख ), मत्स्य १६.७( पञ्चाग्नि धारण करने वाले ब्राह्मण की श्राद्ध में प्रशस्तता का उल्लेख ), ३५.१६( ययाति द्वारा पञ्चाग्नि मध्य में तप का उल्लेख ), वायु ८३.५३/२.२१.२४( पञ्चाग्नि धारण करने वाले ब्राह्मण की श्राद्ध में प्रशस्तता का उल्लेख ), १०६.४१/२.४४.४१( ब्रह्मा के यज्ञ में अग्निशर्मा ऋत्विज द्वारा मुख से पञ्चाग्नियों का सृजन, पञ्चाग्नियों के नाम ), १०९.१९/२.४७.१९( गया में पञ्चाग्नि के पदों की स्थिति का उल्लेख ) panchaagni


      पञ्चाङ्ग नारद १.५४.१२०( पञ्चाङ्ग गणित ज्योतिष का वर्णन ) panchaanga/ panchanga


      पञ्चाप्सरस स्कन्द १.२.१( पञ्चाप्सरस तीर्थ में अर्जुन द्वारा ग्राह रूपी पांच अप्सराओं का उद्धार ), वा.रामायण ३.११.११( माण्डकर्णि मुनि द्वारा निर्मित तीर्थ ), panchaapsarasa


      पञ्चाब्द ब्रह्माण्ड १.२.२८.१७( पञ्चाब्द पितरों के ब्रह्मा के पुत्र होने का कथन ), १.२.२८.२१( काव्य पितरों की पञ्चाब्द संज्ञा ), मत्स्य १४१.१६( काव्य संज्ञक पञ्चाब्द पितरों के अग्नि, सूर्य आदि ५ अब्दों का कथन ), वायु ५२.६८( कव्य पितरों की पञ्चाब्द संज्ञा का उल्लेख )


      पञ्चारुम वराह १४८.४६( मणिपूर गिरि पर पञ्चारुम क्षेत्र का माहात्म्य )


      पञ्चाल पद्म १.४४.९२( यक्ष, एकानंशा का किंकर ), ब्रह्म १.११.९६( बाह्याश्व के ५ पुत्रों द्वारा ५ देशों की रक्षा से पञ्चाल नाम की प्राप्ति ), भागवत ४.२५.५०( पुरञ्जनोपाख्यान के अन्तर्गत पुरी के दक्षिण में स्थित पितृहू नामक द्वार के दक्षिण पञ्चाल की ओर जाने का उल्लेख ), ४.२७.८( राजा पुरञ्जन की पञ्चालपति संज्ञा ), १०.७१.२२( मुकुन्द कृष्ण द्वारा इन्द्रप्रस्थ में आगमन हेतु पञ्चाल, मत्स्य आदि देशों को पार करने का उल्लेख ), मत्स्य ५०.३( भद्राश्व के ५ पुत्रों द्वारा शासित जनपद की पञ्चाल नाम से ख्याति का कथन ), १५७.१८( यक्ष, विन्ध्यवासिनी देवी का किंकर ), स्कन्द ४.२.७४.५७( पञ्चालगण की काशी में वरणा तट पर स्थिति ), हरिवंश १.३२.२७( वाह्याश्व के पांच पुत्रों की पञ्चाल संज्ञा, नाम का कारण ), panchaala/ panchala


      पञ्जर अग्नि २७०( विष्णु पञ्जर स्तोत्र का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.१७.२०( दण्डनाथा देवी के १२ नामों वाले वज्रपञ्जर स्तोत्र का कथन ), भविष्य ४.५४.१८( यम लोक के ७ पञ्जरों में यातनाओं का वर्णन ), वामन ८६.९( विष्णु पञ्जर/कवच का वर्णन ), वास्तुसूत्रोपनिषद २.२१(खिलपञ्जर ज्ञान का कथन) panjara


      पटच्चर ब्रह्माण्ड १.२.१६.४१( मध्यदेश के जनपदों में से एक )


      पटल भागवत ३.१४.२६(यस्यानवद्याचरितं मनीषिणो गृणन्त्यविद्यापटलं बिभित्सवः । निरस्तसाम्यातिशयोऽपि यत्स्वयं पिशाचचर्यामचरद्ग१तिः सताम् ॥)


      पटुमान् ब्रह्माण्ड २.३.७४.१६४( आपोलव - पुत्र, अनिष्टकर्मा - पिता, २४ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), विष्णु ४.२४.४५( मेघस्वाति - पुत्र, अरिष्टकर्मा - पिता )


      पटुमित्र विष्णु ४.२४.५८( आन्ध्र के राजाओं का एक वंश )


      पटोल पद्म ४.२१.२५( पटोल भोजन से वृद्धि न होने का उल्लेख )


      पट्ट गरुड ३.२६.१०८(पट्टाभिराम शिला का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८३( पट्टसेन : भण्डासुर के पुत्रों व सेनापतियों में से एक ), ३.४.२६.४८( वही), ३.४.३८.२२( पट्टवर्धन : तिलक के ४ प्रकारों में से एक ), मत्स्य ६७.१८( ग्रहण पीडा की शान्ति हेतु यजमान के शिर पर पञ्चरत्न समन्वित वस्त्रपट्ट बन्धन का विधान ) patta


      पण वायु ९६.४/२.३४.४( पणव : बाह्यक के ४ पुत्रों में से एक ) द्र. दुष्पण


      पणि देवीभागवत ८.२०( रसातल में पणियों व निवातकवचों के वास का कथन ), भागवत ५.२४( दैत्य, उपनाम निवातकवच, कालेय आदि, रसातल में निवास ) pani


      पणितल द्र. पाणितल


      पण्डारक द्र. पिण्डारक


      पण्डित स्कन्द ५.३.१५९.२७( कुपण्डित द्वारा मार्जार योनि की प्राप्ति का उल्लेख )


      पण्य स्कन्द ३.१.२२.३३( पशुमान् वैश्य के पण्यवन्त, चारुपण्य, सुपण्य आदि पुत्रों में से दुष्पण्य पुत्र की दुष्टता का वृत्तान्त ) panya


      पतङ्ग गणेश २.१३.२९( महोत्कट गणेश द्वारा काशी में पतङ्ग दैत्य का वध ), गरुड २.२.७४(वस्त्रहारक के पतङ्ग बनने का उल्लेख), गर्ग ७.४०.१९( पतङ्ग पर्वत पर शकुनि असुर के जीव रूपी शुक की विद्यमानता का उल्लेख ), ७.४६.५( वसन्तमालतीपुरी के गन्धर्वराज पतङ्ग का प्रद्युम्न - सेना से युद्ध, गद से युद्ध, बलराम से पराजय ), ब्रह्म १.१६.३३( मेरु के दक्षिण में स्थित केसराचलों में से एक ), भागवत ५.२.१४( गेंद की पतङ्ग संज्ञा? - करसरोजहतः पतङ्गो ), ५.१६.२६( मेरु के मूल देश के परितः स्थित २० पर्वतों में से एक ), ५.२०.४( प्लक्ष द्वीप के निवासियों के ४ वर्णों में से एक ), १०.८५.५१( देवकी के षड्गर्भ पुत्रों में से एक ), ११.७.३३( दत्तात्रेय द्वारा पतङ्ग से शिक्षा की प्राप्ति का उल्लेख ), ११.८.७( प्रलोभितः पतत्यन्धे तमस्यग्नौ पतङ्गवत्), वराह ७७, वायु २८.३१( वालखिल्यों के पतङ्ग/सूर्य के सहचारी होने का उल्लेख ), ३६.२२( मेरु के दक्षिण में स्थित पर्वतों में से एक ), ३८.२( शिशिर व पतङ्ग पर्वत के बीच स्थित उदुम्बर वन का कथन ), ५२.३८( सूर्य की पतङ्ग संज्ञा ), ५४.८( वालखिल्यों के पतङ्ग/सूर्य के सहचारी होने का उल्लेख ), विष्णु २.२.२८( मेरु के दक्षिण में स्थित केसराचलों में से एक ), स्कन्द १.१.७.४९( पतङ्गी द्वारा पक्षों द्वारा शिवालय का अनायास मार्जन करने से जन्मान्तर में राजकुमारी बनने का कथन ), हरिवंश २.१२२.३२( पतगः : स्वधाकार जातवेदा ५ अग्नियों में से एक ), महाभारत भीष्म ११.२१(पतगवर्ण का श्यामवर्ण से तादात्म्य), patanga


      पतञ्जलि ब्रह्माण्ड १.२.३५.४६( पाराशर्य कौथुम के शिष्यों में से एक ), भागवत ३.२.३५( पतञ्जलि की कात्यायन से पराजय, सरस्वती - स्तुति, सप्तशती के उत्तर चरित्र के जप से कात्यायन की पराजय ), वायु ६१.४१( पाराशर्य कौथुम के शिष्यों में से एक? ), लक्ष्मीनारायण २.२४१( पतञ्जलि द्वारा चमस हेतु अष्टाङ्ग योग की श्रीहरि भक्ति परक व्याख्या करना, वैवस्वत मनु द्वारा मन्दिर में पतञ्जलि को वासुदेव के स्थान पर शेष आदि अन्य देवों के साथ स्थापित करना आदि ), ४.२.४०( राजा बदर द्वारा सृष्ट स्वर्णशेष नाग के पतञ्जलि योगी के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ) patanjali


      पतत्रि ब्रह्म २.९६( पतत्रि तीर्थ के माहात्म्य के अन्तर्गत अरुण, गरुड, सम्पाति व जटायु की कथा ), द्र. पक्षी


      पताका अग्नि ६१.३५( ध्वज के सापेक्ष पताका का मान ), २६९.२४( पताका प्रार्थना का मन्त्र ), ब्रह्माण्ड २.३.१०.४७( वायु द्वारा स्कन्द को मयूर, कुक्कुट व पताका भेंट करने का उल्लेख ), भविष्य ४.१३८( पताका - मन्त्र ), मत्स्य २८६.९( कनककल्पलता दान के संदर्भ में वायवीय दिशा की शक्ति पताकिनी के मृग वाहन का उल्लेख ), वायु ४३.३०( भद्राश्व वर्ष की मुख्य नदियों में से एक ), ७२.४६/२.११.४६( वायु द्वारा स्कन्द को मयूर, कुक्कुट व पताका भेंट करने का उल्लेख ), विष्णु १.८.३२( ध्वज - पत्नी ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२९( विष्णु के ध्वज व लक्ष्मी के पताका होने का उल्लेख ) pataakaa/ pataka


      पति पद्म २.४१.१३( पति की सेवा की महिमा के संदर्भ में पति के वाम व सव्य पादों के पुष्कर व प्रयाग तीर्थ होने का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७( कलावती द्वारा पति के महत्त्व का वर्णन ), ४.५७( महालक्ष्मी- प्रोक्त पति का महत्त्व ), भागवत २.४.२०( भगवान् की स्तुति में विष्णु की श्रीपति, यज्ञपति आदि संज्ञाएं ), ५.१८.२०( पति की परिभाषा), मत्स्य २१०.१८( पिता, पुत्र आदि की अपेक्षा पति द्वारा अमित देने का कथन ), स्कन्द ४.१.४.४७( पतिव्रता हेतु पति की महिमा का वर्णन ), महाभारत शान्ति ७२.१०( द्विज के पृथिवी का पहला पति होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२७२.५५( पिप्पलाद - पत्नी पद्मा द्वारा ब्रह्माण्ड में देह अभिमान, सुख, दुःख आदि आदि पतियों का वर्णन ), १.३२२.१४६( सम्पुटाकार ब्रह्माण्ड दान से पति के पत्नी परायण होने का कथन ), १.४६५.२९( विष्णु द्वारा दिवोदास – पत्नी लीलावती को धातु, अन्न, प्राण, मन, आनन्द आदि पतियों का वर्णन ), २.४७.८१( पति के ३ प्रकार ), २.७८.३८( पति रूप में आत्मा तथा पत्नी रूप में बुद्धि का उल्लेख ), ३.१०६.२०( विवाहित, देवरादि आदि ४ प्रकार के पतियों का उल्लेख ), ३.१३१.४७( स्वर्णकान्त रूपी पति महादान विधि व माहात्म्य ), ४.४४.६४( पति के रौद्र प्रकार का बन्धन होने का उल्लेख ), द्र. दिवस्पति, पशुपति, विद्यापति, सरस्पति, हयपति pati


      पतिव्रता गरुड १.१४२( पतिव्रता का माहात्म्य, कौशिक ब्राह्मण की पतिव्रता पत्नी का सीता बनना ), नारद २.१६( वेश्यारत रुग्ण पति की सेवा से पतिव्रता द्वारा देवलोक प्राप्ति की कथा ), पद्म १.५०.४७( श्रीहरि द्वारा नरोत्तम ब्राह्मण को पतिव्रता के लक्षणों का कथन, पतिव्रता द्वारा नरोत्तम ब्राह्मण को शिक्षा ), १.५१.५( शूलारोपित माण्डव्य को कुष्ठी पति से कष्ट, माण्डव्य द्वारा शाप देना, कुष्ठी की पतिव्रता पत्नी द्वारा सूर्योदय रोकना ), २.४१+ ( पातिव्रत्य धर्म का वर्णन ), ६.१०३.१( विष्णु द्वारा जालन्धर का रूप धारण कर वृन्दा के पातिव्रत्य को भङ्ग करने का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८३( कृष्ण - प्रोक्त पतिव्रता धर्म ), ४.८४( पतिव्रता के लक्षण ), मार्कण्डेय १६( कौशिक ब्राह्मण - माण्डव्य - अनसूया की कथा ), वराह २०८+ ( पतिव्रता का माहात्म्य, मिथि - भार्या रूपवती का वृत्तान्त ), शिव २.३.५४( द्विज - पत्नी द्वारा गौरी हेतु पतिव्रता धर्म, पतिव्रता के महत्त्व और ४ भेदों का वर्णन ), स्कन्द २.१.२६.८१( अगस्त्य द्वारा तुम्बुरु - पत्नी को पति के वश में रहने का उपदेश ), ३.२.७( पतिव्रता का धर्म ), ४.१.४.६( लोपामुद्रा के चरित्र की प्रशंसा के संदर्भ में पतिव्रता के लक्षण ), ५.३.१७१.४७( पतिव्रता शाण्डिली द्वारा पति की मृत्यु से रक्षा हेतु सूर्योदय का निरोध करने का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.३०.२६( पातिव्रत्य सेवा की कुमारी रूप में उत्पत्ति, पातिव्रत्य आचार का निरूपण ), १.३५.२५( पत्नीव्रत ब्राह्मण की पत्नी, पत्नी के कर्तव्य ), १.७६.२३( पति की मृत्यु पर पत्नी द्वारा अङ्गुष्ठ से अग्नि का उत्पादन कर पति के साथ गमन का उल्लेख ), १.३२२.१११( पतिव्रता नारी के कर्तव्यों का वर्णन ), १.३६२.५७( जनक की पतिव्रता पत्नी को सूर्य तेज से पीडा होने पर सूर्य का पृथिवी पर पतन, पतिव्रता के महत्त्व का वर्णन ), १.३६४.४४( ब्रह्मा की पतिव्रता पत्नी सावित्री द्वारा पातिव्रत्य प्रभाव से मृत ब्रह्मा की देह से ब्रह्मा को पुन: - पुन: जीवित करने का कथन ), १.३६५.५४( देवशुनी सरमा द्वारा पातिव्रत्य प्रभाव से शुन: रूप धारी दैत्यों को नष्ट करने का वृत्तान्त ), १.३६६+ ( पातिव्रत्य के संदर्भ में सावित्री - सत्यवान् आख्यान का आरम्भ ), १.३७७( गोलोकस्थ राधा द्वारा स्वपुत्रियों हेतु पतिव्रता के कर्तव्य तथा पतिव्रता के महत्त्व का वर्णन ), १.३७९( पतिव्रता के कर्तव्यों का वर्णन ), १.४०८.३६( मालावती द्वारा पातिव्रत्य प्रभाव से स्वपति उपबर्हण गन्धर्व को जीवित करने का वृत्तान्त ), १.४०९.१( करन्धम - पुत्र अवीक्षित द्वारा स्वयंवर में अन्य राजाओं से युद्ध में परास्त होने पर पत्नी का त्याग, पत्नी द्वारा पति को दानव के वध हेतु तप का अंश प्रदान करने पर पति द्वारा पत्नी को ग्रहण करने का वृत्तान्त ), १.४१४( पतिव्रता द्वारा कृष्ण को पति मानने के महत्त्व का वर्णन ), २.१५.३७( पति सेवा के महत्त्व का वर्णन ), ३.७७( पतिव्रत स्त्री के लक्षणों का वर्णन ), ३.१०७.८२( पत्नीव्रत ब्राह्मण की पत्नी, ब्रह्मव्रत - माता ), ४.१०१.८९( कृष्ण - पत्नी एकादशी की पुत्री पतिव्रता का उल्लेख ), कथासरित् ७.२.३०( अन्त:पुर की स्त्रियों द्वारा स्पर्श करने पर भी दिव्य गज का पुनर्जीवित न होना, शीलवती नामक साध्वी स्त्री के स्पर्श से गज में जीवन का संचार ) pativrataa


      पत्तन स्कन्द ५.१.३१.६२( पत्तनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.२.३२.९( पत्तनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, महाकालवन में पत्तनेश्वर की स्थिति, नारद द्वारा महिमा का कथन ) pattana


      पत्नी गरुड १.१०८.१८( पत्नी के गुण - अवगुण ), २.२६.२१(ब्राह्म विवाह-संस्कृत वधू की पिण्डोदक क्रिया भर्तृ गोत्र में तथा अन्यों की पितृगोत्र में करने का निर्देश), देवीभागवत ९.१.९७( विभिन्न देवताओं आदि की पत्नियों के नामों तथा उनकी महिमाओं का कथन ), पद्म १.१५.३१८( भार्या के चन्द्र लोक की ईश्वरी होने का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१००( विभिन्न देवताओं आदि की पत्नियों के नाम व उनके महत्त्व ), ४.११३.५( दुर्वासा - पार्वती संवाद में पार्वती द्वारा पत्नी - त्याग के दोषों का कथन ), भविष्य ३.४.१८.२४( स्वसा के सत्त्वरूपा, पत्नी के रजोरूपा व कन्या के तमोरूपा होने का उल्लेख ), भागवत ६.१८.१( आदित्यों आदि की पत्नियों व उनकी सन्तानों के नाम ), मार्कण्डेय ५२.२०/४९.२०( सप्तर्षियों की पत्नियों व पुत्रों के नाम ), वायु २.६( सत्र में इळा के पत्नी तथा तप के गृहपति बनने का उल्लेख ), शिव २.१.१६.१९( दक्ष की ६० कन्याओं के धर्म आदि की भार्याएं बनने का सार्वत्रिक वर्णन ), ७.२.४.३९( शिव - पार्वती के रूपों के रूप में विभिन्न युगलों का कथन ), स्कन्द १.२.४२.१७४( ऐतरेय - इतरा संवाद में प्रकृति रूपी पत्नी के पुरुष के आधीन होने की अपेक्षा का कथन ), ४.१.३६.८२( उत्तम पत्नी के लक्षण व महिमा ), ६.३६.१२(पत्नी स्नेह प्राप्ति हेतु तं पत्नीभिरिति जप का निर्देश ), ७.१.१०६.६७(कुशमयी पत्नी रचने का निर्देश), महाभारत अनुशासन १४६.६( विभिन्न पतियों की पतिव्रता स्त्रियों के नाम ), हरिवंश ३.५४.१९(बलि की सेना की पत्नी से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.१०७.३२( गृह में गृहिणी के ही गङ्गा होने का उल्लेख ), १.२०५.५१( वधू के ६ स्वरूपों वाली मूल प्रकृति का अंश होने का कथन ), १.२८३.३८( पत्नी के प्रियों में अनन्यतम होने का उल्लेख ), १.४४३.३३( सुतपा ऋषि द्वारा सुयज्ञ नृप को पत्नी व्रत धर्म का उपदेश ), २.४७.८०( पत्नी के ३ प्रकार ), २.७८.३८( आत्मा पति तथा बुद्धि पत्नी का कथन ), ३.१३१.३४( कल्पप्रिया रूपी पत्नी दान विधि व माहात्म्य ), द्र. ऋषिपत्नी patnee/ patni

      Short remark on Patni


      पत्नीव्रत लक्ष्मीनारायण १.३४.५८( पत्नीव्रत ब्राह्मण के नाम का शब्दार्थ ), १.३५( पत्नीव्रत ब्राह्मण हेतु पत्नी के प्रति कर्तव्यों का उपदेश ), १.५७( पत्नीव्रत ऋषि के गले में बर्हिषाङ्गद राजा द्वारा मृत सर्प डालना, परीक्षित की कथा से साम्य ), १.१५९.३( पत्नीव्रत विप्र का रैवताचल गमन, दामोदर के दर्शन, आत्मस्वरूप का दर्शन ), १.३१५.१०९( कम्भरा लक्ष्मी व गोपाल कृष्ण - पुत्र, पुरुषोत्तम का अवतार ), १.३२२.१४७( पत्नीव्रत / पत्नी परायण पति के कर्तव्यों का वर्णन ), १.३४८.६५( कृष्ण के अंश पत्नीव्रत विप्र द्वारा डाकिनी, शाकिनी आदि के उद्धार का वृत्तान्त ), १.३४९.६५( मथुरा क्षेत्र के माहात्म्य के अन्तर्गत कृष्णांश पत्नीव्रत विप्र द्वारा यमुना जल से शाकिनी - डाकिनियों के उद्धार का वर्णन ), १.५०९.६७( कृष्ण के अंश से उत्पन्न पत्नीव्रत द्विज के कालान्तर में गायत्री - पिता बनने का कथन ), ३.१०७.८१( नारायण के मुख से पत्नीव्रत ब्राह्मण की उत्पत्ति का उल्लेख , पतिव्रता - पति, ब्रह्मव्रत - पिता ), patneevrata/ patnivrata


      पत्र पद्म ३.१७.१( नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित पत्रेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ६.२७.१५( वृक्षों द्वारा पत्रों से पितरों की पूजा का उल्लेख ), ब्रह्म १.१६.४५( लोकशैल / मेरु के ४ पत्रों भारत, केतुमाल, भद्राश्व व कुरु का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५०( देह सौन्दर्य हेतु सद्रत्न वर्तुलाकार पत्र दान का निर्देश ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२( पत्रवान् : १६ मौनेय देवगन्धर्वों में से एक ), मत्स्य २१८.३१( पत्रिका : राजा द्वारा संग्रहणीय ओषधियों में से एक ), स्कन्द ५.३.३२.३( पत्रेश्वर : चित्र - पुत्र, मेनका के नृत्य पर मोहित होने पर इन्द्र का शाप, नर्मदा तट पर तप ), ६.२४७.४१(अश्वत्थ -- मूले विष्णुः स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च ॥ नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान्हरिः ॥), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.९६( पत्रावली : कृष्ण - पत्नी बदरा की पुत्री पत्रावली का उल्लेख ), कथासरित् ९.१.१७३( राजा पृथ्वीरूप के उदारचरित नामक नृप द्वारा पालित पत्रपुर नगरी में आगमन का कथन ) patra


      पथ लक्ष्मीनारायण १.५१४.१४(३ महत्त्वपूर्ण पथों के नाम), द्र. चित्रपथा

      References on Patha


      पथ्य ब्रह्माण्ड १.२.३५.५६( कबन्ध आथर्वण - शिष्य, जाजलि आदि ३ शिष्यों के नाम ), भागवत १२.७.१( सुमन्तु/कबन्ध? - शिष्य, तीन शिष्यों को अथर्व संहिता का ज्ञान देने का कथन ), वायु ६१.५०( कबन्ध आथर्वण - शिष्य, जाजलि आदि ३ शिष्यों के नाम ), ६५.९६/२.४.९६( भार्गव गोत्र के ७ पक्षों में से एक ), विष्णु ३.६.९( कबन्ध - शिष्य, जाबालि आदि ३ शिष्यों के नाम ) pathya


      पथ्या ब्रह्माण्ड २.३.१.१०३( मानवी पथ्या : अथर्व आङ्गिरस की ३ पत्नियों में से एक, अयास्य आदि पुत्रों के नाम ), वायु ६५.९८/२.४.९८( वही), कथासरित् १२.६.४१७( कमलगर्भ नामक द्विज की भार्या - द्वय पथ्या व बला द्वारा जन्मान्तरों में भी स्वपति को प्राप्त करने का कथन ) pathyaa

      References on Pathyaa


      पद अग्नि ३४.१९( पाद्य की अङ्गभूत वस्तुएं), ८४.२६(निवृत्ति कला/जाग्रत के २८ पदों के नाम ), ८५.१४( प्रतिष्ठा कला के ३२पद), ८६.५( दीक्षा में विद्या कला के अन्तर्गत २१ पदनाम ), ८७.५( शान्ति कला के अन्तर्गत १२ पदनाम ), गणेश १.६९.२०( गणेश पूजा हेतु पाद्य मन्त्र : एतावानस्य इति ), २.६०.४५ (नरान्तक वध हेतु गणेश के समक्ष आठ पद वाले पिनाक धनुष के पतन का उल्लेख), गरुड २.२.२४(विष्णु, एकादशी, गीता, तुलसी, विप्र, धेनु का षट्पदी रूप में कथन), x/२.४.९( आतुर द्वारा देय छत्र, उपानह आदि ८ पदों/दान द्रव्यों का कथन ), २.८.१५/२.१८.१६( मृतक के लिए देय छत्रोपानह आदि सप्तविधपद), गर्ग २.२१.२५( कृष्ण व राधा के पदचिह्नों का कथन ), नारद २.४६( गया में विभिन्न देव पदों पर पिण्ड दान का माहात्म्य ), पद्म १.३.१०६(मतङ्ग की ब्रह्मा के पद से उत्पत्ति), ५.८०.१४( कृष्णपद में चिह्नों का कथन ), ६.२२८.१(त्रिपाद् विभूति लोकों का कथन), भविष्य ३.४.२५.४०( ब्रह्माण्डपद से उत्पन्न मन्द/शनि द्वारा धर्मसावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख ), वायु ६.१६( वराह पाद का वेद से साम्य ), २३.९१/१.२३.८४(नरों के द्विपद होने के कारण का कथन : क्रिया रूपी महेश्वरी /सावित्री का द्विपद होना ), ७७.९८/२.१५.९८(भरत के आश्रम में अरण्य में मतङ्गपद के दिखाई देने का कथन), १०८.२५/२.४६.२५(वही), १११.४६/२.४९.५५( गया में विष्णु पद, रुद्र पद, दक्षिणाग्नि पद आदि तीर्थों में श्राद्धों के फलों का कथन ), विष्णु १.२२.४३(परब्रह्म के पद का वर्णन), २.८.१००( विष्णु के परम पद का निरूपण ), विष्णुधर्मोत्तर २.२९.१२(६४ पद वाले वास्तुमण्डल देवताओं का कथन), शिव ७.१.३२.२६( नित्यपद व अनित्य पदों का कथन ), ७.२.१७.२( दीक्षा कर्म में ६ अध्वों में पञ्चम पद अध्वों का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.४२.१४( विष्णु पदों का भ्रूमध्य में स्थान होने का उल्लेख ), ५.३.१९४.७२( श्री व विष्णु के विवाह रूपी यज्ञ में अवभृथ स्नान के लिए विष्णु के पादपङ्कजों से गङ्गा के प्रादुर्भाव का कथन ), ७.३.४१(आश्रम पद का माहात्म्य, अल्पायु मार्कण्डेय द्वारा ब्रह्म व सप्तर्षियों की कृपा से दीर्घायु की प्राप्ति), ७.३.५३.८(ब्रह्मपद की उत्पत्ति व माहात्म्य ; सद्गति के लिए ब्रह्मा के पद का स्पर्श), महाभारत वन ३१३.६९ (एकपदधर्म्य का प्रश्न : दाक्ष्य के एकपदधर्म्य होने का उल्लेख), ३१३.७०(दान का एकपद वाले यश के रूप में उल्लेख), शान्ति ३१७.१(पदों से प्राणों के उत्क्रमण पर वैष्णव स्थान प्राप्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.७३.३६(विष्णु, एकादशी आदि षट्पदी के नाम ), १.१५५.५३( अलक्ष्मी के खर्जूर वृक्ष सदृश पद का उल्लेख ), २.१५८.२०(नव प्रासाद के समीप ८१ पद मण्डल में कुम्भ स्थापना विधि ), २.२५०.५७(भक्ति पाक के ब्रह्मता तथा ब्रह्मपाक के परम पद होने का उल्लेख), ३.७१( भगवान् के त्रिपाद् विभूति विस्तार का वर्णन? ), द्र. अग्निसत्यपद, उत्तानपाद, एकपदा, कल्माषपाद, गोष्पद, जनपद, जालपाद, त्रिपाद, पाद, प्रौष्ठपद, ब्रह्मपद, भाद्रपद, रुद्रपद, रोमपाद, विष्णुपद, व्याघ्रपाद, शङ्खपद, शतपदी, pada


      पद्म अग्नि ८१.५०( चक्रवर्ती पद प्राप्ति हेतु होम द्रव्य पद्म का उल्लेख ), ३२०.१०( भोग, मोक्ष आदि कामना अनुसार बाल, युवा आदि पद्मों की रचना ), ३२४.१४( दल विन्यास के अनुसार नियति, माया आदि तत्त्वों की स्थिति ), ३७४.२१( विष्णु नाभि के पद्म में अष्ट दल अणिमा आदि ऐश्वर्यों के रूप, नाल वैराग्य का रूप होने का कथन ), गणेश २.१०.२३( वसिष्ठ द्वारा महोत्कट गणेश को सर्वदा विकसित पद्म भेंट करना ), २.८५.२६( पद्महस्त गणेश से अङ्गुलि रक्षा की प्रार्थना ), गरुड १.८( पद्म निर्माण विधि ), १.९.८( हस्त का रूप ), १.५३( पद्म-महापद्म निधियों का स्वरूप ), १.२२७.३७/१.२३५.३७( पद्म के अवयवों के आध्यात्मिक रूप का कथन ), ३.११.१९(विष्णु की नाभि से उत्पन्न पद्म की विशिष्टता), पद्म १.३४.१००(षोडशात्मा पद्म का उल्लेख ), १.४०.२( हिरण्मय पद्म रूपी पृथिवी का वर्णन ), २.१०१.४०( अशोकसुन्दरी के अश्रुओं के गङ्गा में पतन से पद्मों के उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), २.१२१.१२+ ( कामोदा युवती के दुःख के कारण उत्पन्न अश्रुओं के गङ्गा में पतन से रक्त पद्मों की उत्पत्ति, विहुण्ड दैत्य द्वारा रक्त पद्मों से शिव की पूजा करने के कारण नष्ट होने का विस्तृत वृत्तान्त ), ३.६२.२( पुराणों में पद्म पुराण के श्रीहरि के हृदय रूप होने का उल्लेख, अन्य पुराणों का अन्य अङ्गों के रूप में उल्लेख ), ६.१६.१९( शिव रूप धारी जालन्धर के आगमन पर पार्वती का सरोज में प्रवेश तथा सखियों का कमल में भ्रमर बनने का उल्लेख ), ७.१३.८८( कार्तिक मास में कमलापति को पद्म अर्पित करने का माहात्म्य : निर्दय शबर द्वारा विप्र को विष्णु पूजा हेतु पद्म देने पर शबर का ब्राह्मण कुल में जन्म व मोक्ष प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१२४( मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक ), २.३.७.३२९( भद्र हस्ती व अभ्रमु के ४ हस्ती पुत्रों में से एक ), २.३.७.३३१( पद्म हस्ती के ऐलविल/कुबेर के वाहन होने का उल्लेख ), २.३.७.३३२( पद्मगुल्म : मृगश्याम हस्ती के ८ पुत्रों में से एक ), २.३.७.३३२( पद्मोत्तम : मृगश्याम हस्ती के ८ पुत्रों में से एक ), ३.४.२०.५३( प्रधान नागों में से एक ), भविष्य १.३४.२३( पद्म नाग का बृहस्पति ग्रह से तादात्म्य ), ३.४.२५.१०२( पद्म कल्प का वर्णन ), ४.३९( पद्म षष्ठी व्रत की विधि व महत्त्व ), भागवत ११.१६.३०( भगवान् के रूपवानों में पद्मकोश होने का उल्लेख ), १२.११.१३ (धर्म, ज्ञानादियुक्त सत्त्व के पद्म होने का उल्लेख), मत्स्य ११४.५३( विन्ध्य पृष्ठ के जनपदों में से एक ), १३३.३३( त्रिपुरारि के रथ में हयों के बालबन्धन के लिए प्रयुक्त नागों में से २ ), १६८.१५(एकार्णवशायी श्रीहरि की नाभि से सहस्रदल पद्म का प्राकट्य, पद्म से ब्रह्मा का प्राकट्य ), १६९( पृथिवी रूपी पद्म के महत्त्व का वर्णन ),१७९.७३( पद्मकरा : रेवती मातृका की अनुचरियों में से एक ), मार्कण्डेय ६८.८/६५.८( पद्म व महापद्म निधियों के आश्रित पुरुषों के गुणों का कथन ), लिङ्ग १.८१.३०( पद्म पर शिव की स्थिति का कथन ), १.८८.३ (पद्मासन का स्वरूप - कल्पयेच्चासनं पद्मं सोमसूर्याग्निसंयुतम्।।
      षड्विंशच्छक्तिसंयुक्तमष्टधा च द्विजोत्तमाः।।), वराह ६२( आरोग्य व्रत माहात्म्य के अन्तर्गत राजा अनरण्य के सारथी द्वारा दिव्य पद्म के आहरण की चेष्टा पर मृत्यु तथा राजा के कुष्ठग्रस्त होने का वृत्तान्त ), वायु २१.११( सप्तम कल्प का नाम ), ३४.६२( पद्म कर्णिका में अश्रि /कोण की संख्या ), ४१.१०( कुबेर की ८? निधियों में से एक ), ६२.१८७/२.१.१८४( गन्धर्वों व अप्सराओं द्वारा पद्म पात्र में पृथिवी रूपी गौ के दोहन का उल्लेख ), ६९.१५५/२.८.१५०( मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक ), ६९.२१६/२.८.२१०( पद्म हस्ती के ऐलविल का वाहक होने का उल्लेख ), १०१.१००/२.३९.१००( सहस्र संख्या का परिपद्म नाम ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३७.१२( नेत्रों की आकृतियों के संदर्भ में पद्म पत्र समान नेत्रों का कथन ; रोदन से पद्मपत्र समान आकृति ), ३.४५( देवों की प्रतिष्ठा हेतु पद्म के स्वरूप व मान का कथन ), ३.८२.८( लक्ष्मी के मस्तक पर पद्म सौभाग्य का प्रतीक होने का उल्लेख ), ३.८२.९( लक्ष्मी के कर में पद्म का प्रतीकार्थ : विभव ), ३.८२.१०( लक्ष्मी की मूर्ति में हस्ती द्वय का प्रतीकार्थ : शंख व पद्म निधियां ), शिव २.१.११.४५( प्रणव की पद्म रूप में कल्पना, पद्म के अणिमा आदि दलों का कथन, कर्णिका सोम ), ५.१७.३३( लोक रूपी पद्म में मेरु पर्वत के कर्णिका होने तथा जठर आदि पर्वतों के पत्र होने का कथन ), ७.१.३३.३०( पाशुपत व्रत विधान में पद्म कर्णिका में लिङ्ग के कल्पन का निर्देश ), ७.१.३३.४५( पाशुपत व्रत विधान में पद्म के बाहर आवरणों में पूजा विधान का कथन ), ७.२.३२.७८( वह्नि के पद्म बनने की संभावना का उल्लेख ), ७.२.३८.६१( देह के अन्दर स्थित विभिन्न चक्र रूपी पद्मों पर शिव - पार्वती के ध्यान का निर्देश ; चक्र रूपी पद्मों का वर्णन ), स्कन्द २.२.२५.९( सुभद्रा के रथ के पद्म ध्वज का उल्लेख ), ४.२.८४.११( पद्म तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.६२( कण्व - कन्या से बलात्कार के कारण कण्व द्वारा राजा पद्म को कुरूपता का शाप, रूपेश्वर लिङ्ग की पूजा से पद्म की मुक्ति ), ५.३.१३.४५( २१ कल्पों में १९वें कल्प के रूप में पाद्म कल्प का उल्लेख ), ५.३.२२.५( पद्मक : गार्हपत्य अग्नि के २ पुत्रों में से एक ), ५.३.५६.८४( शबर द्वारा एकादशी को जनार्दन पूजा हेतु राजपुत्री को बिना मूल्य लिए पद्म देने का वर्णन ), ५.३.५७.१२( पञ्चदशी तिथि को पद्मक पर्व के लिए अपेक्षित वार, नक्षत्र, योग, करण आदि तथा महत्त्व का कथन ), ७.१.२९.२( प्रभास क्षेत्र में पद्म कुण्ड में स्नान की विधि व माहात्म्य ), हरिवंश ३.११+( श्रीहरि की नाभि से पद्म का प्राकट्य, पद्म की विराटता का वर्णन ), योगवासिष्ठ ३.१५.१९( लीला - पति राजा पद्म के चरित्र की महिमा ), ३.२०.१( पद्म राजा : पूर्व जन्म में वसिष्ठ ब्राह्मण ), ३.२५( लीला व सरस्वती द्वारा दृष्ट भू कमल के रूप का वर्णन ), ३.३२+ ( पद्म राजा के सिन्धुराज से युद्ध का वर्णन ), ३.४१.२०( राजा, अपर नाम विदूरथ, नभोरथ व सुमित्रा - पुत्र ), ३.५८+ ( सरस्वती द्वारा मृत राजा पद्म को जीवित करने का वृत्तान्त ), ५.३१.५२( विष्णु की नाभि में उत्पन्न कमल का विष्णु के करगत होने का उल्लेख ), ६.१.१२६.३७( विवेक पद्म का कथन ), ६.२.११७.१६( बाह्य जल व अन्तर्जगत के जल की तुलना करते हुए पद्म, भ्रमर व हंस का वर्णन ), वा.रामायण ७.१५.१६( रावण से युद्ध को उन्मुख कुबेर के ४ अनुचरों/मन्त्रियों में से एक ), महाभारत शान्ति ३५३.१+( महापद्मपुर के विप्र को अतिथि द्वारा उपदेश आदि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५४१.६( राजा नन्द द्वारा मानसरोवर में स्थित ब्रह्मा के नाभिपद्म को प्राप्त करने की लालसा पर कृष्ण वर्ण होने तथा पद्म पर स्थित ब्रह्मा की स्वर्णमूर्ति की आराधना करने से कृष्णता दोष से मुक्ति का वृत्तान्त ), २.१७६.२९( ज्योतिष में पद्म योग का उल्लेख ), ३.१४२.१२( पद्म नाग के गुरु व महापद्म के भार्गव ग्रह से सम्बद्ध होने का उल्लेख ; स्व गृह में सर्प के दंशन पर जीवित न रहने का उल्लेख ), ३.१५१.७३( विष्णु भक्त हेतु पुण्यार्थ दिए गए द्रव्य की पद्म संज्ञा का कथन ), कथासरित् ३.६.७( पद्मपुर में अग्निदत्त विप्र के मूर्ख पुत्र सोमदत्त का वृत्तान्त ), ७.६.८४( राजा अजर द्वारा वैद्य को स्वर्ण पद्मों के उद्गम स्थान के अन्वेषण का निर्देश, वैद्य द्वारा पद्मों के उद्गम नरकंकाल को तीर्थ में फेंकना, नरकंकाल का रहस्य ), ९.२.११८( खड्गधर क्षत्रिय द्वारा पद्मकवल नामक मत्त हस्ती के वध का कथन ), १०.३.८६( पद्मकूट विद्याधर व हेमप्रभा की कन्या मनोरथप्रभा का वृत्तान्त ), द्र. महापद्म padma


      पद्मकिरण वामन ९०.१६( पम्पा में विष्णु के पद्मकिरण नाम से वास का उल्लेख )


      पद्मगन्धा पद्म ७.८.२८( शक्र की प्रिय दासी , पूर्व जन्म में क्रौञ्च, गङ्गा महिमा से शक्र की दासी बनना )


      पद्मनाभ गणेश २.३२.२०( पद्मनाभि : प्रियव्रत व प्रभा - पुत्र ), गरुड १.८७.३७( कालकाक्ष असुर के वधकर्ता विष्णु का नाम ), १.१९७.१२( पद्मनाभ सर्प की वरुण मण्डल/महाभूत में स्थिति का उल्लेख ), ३.२९.६४(निद्राकाल में पद्मनाभ के ध्यान का निर्देश), नारद १.६६.८९( पद्मनाभ की शक्ति श्रद्धा का उल्लेख ), १.८५.११७( अक्षोभ्य मन्त्र के परित: षट्कोण के देवताओं में से एक पद्मनाभ का उल्लेख ), पद्म ६.१२०.७३( पद्मनाभ से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१७७( पद्मनाभ के महत्त्व का कथन ), २.३.७.१३०( मणिवर यक्ष व देवजनी के यक्ष व गुह्यक पुत्रों में से एक ), २.३.३३.१७( कवच में पद्मनाभ से नाभि की रक्षा की प्रार्थना ), भागवत ६.८.२१( पद्मनाभ से निशीथ काल में रक्षा की प्रार्थना ), वराह ४९( आश्विन् शुक्ल पद्मनाभ द्वादशी व्रत की विधि व माहात्म्य : वैश्य - दास व दासी द्वारा विष्णु मन्दिर में दीप प्रज्वालन से जन्मान्तर में राजा व रानी बनना ), वामन ९०.२२( उत्तरकुरु में विष्णु का पद्मनाभ नाम ), ९०.३३( क्रौञ्च द्वीप में विष्णु का पद्मनाभ नाम ), वायु ६९.१६१/२.८.१५६( मणिवर यक्ष व देवजनी के यक्ष व गुह्यक पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.१८४.७( नवम मन्वन्तर में वसुनाभ - पुत्र चक्रवर्ती राजा पद्मनाभ द्वारा राजा कालकक्ष के वध का कथन ), ३.८१( पद्मनाभ की मूर्ति का रूप ), ३.११८.४( पुत्रकामी के लिए पद्मनाभ की पूजा का निर्देश ), स्कन्द २.१.२३( पद्मनाभ द्वारा चक्र तीर्थ में तप, चक्र द्वारा असुर से रक्षा ), २.१.२८.५६( केशव - पिता पद्मनाभ द्विज का ब्रह्महत्या से मुक्ति के सम्बन्ध में भरद्वाज से वार्तालाप ), ५.३.१४९.११( आश्विन् द्वादशी को पद्मनाभ नाम के कीर्तन का निर्देश ), महाभारत शान्ति ३५५.४+ ( अतिथि द्वारा प्रबोधन पर ब्राह्मण का नागराज पद्मनाभ से मिलन हेतु गमन, परस्पर संवाद ), लक्ष्मीनारायण १.२५९.८( आश्विन् शुक्ल एकादशी को पद्मनाभ की पूजा ), १.२६५.११( पद्मनाभ की पत्नी पद्मावती का उल्लेख ), १.४०४.१९( पद्मनाभ विप्र द्वारा चक्र पुष्करिणी तट पर तप, सुदर्शन चक्र द्वारा विप्र की राक्षस से रक्षा आदि ), ३.१६४.६०( नवम मन्वन्तर में पद्मनाभ अवतार द्वारा कालकाक्ष के वध का उल्लेख ), ४.१०१.६८( कृष्ण - पत्नी कमला के पुत्र पद्मनाभ का उल्लेख ), कथासरित् १२.२०.३४( पद्मनाभ विप्र की पत्नी द्वारा दिए गए भोजन से हरिस्वामी ब्राह्मण की मृत्यु का वृत्तान्त ), १२.२८.४( विशाला पुरी के राजा पद्मनाभ की नगरी में अर्थदत्त वणिक् की कन्या अनङ्गमञ्जरी का वृत्तान्त ) padmanaabha


      पद्मनिधि स्कन्द २.२.२३.७७( ब्रह्मा द्वारा पद्मनिधि को भूतल पर प्रासाद निर्माण हेतु वस्तु सम्भरण का निर्देश ), २.२.२४.४१( ब्रह्मा की आज्ञा से पद्मनिधि द्वारा नीलाद्रि शिखर पर प्रासाद निर्माण हेतु सामग्री का सम्भरण / सम्पादन ), २.२.२५( इन्द्रद्युम्न की आज्ञा से पद्मनिधि द्वारा कृष्ण परिवार के रथों का निर्माण ), पञ्चतन्त्र ५.१( श्रेष्ठी के समक्ष पद्म निधि का क्षपणक रूप में प्रकट होना, श्रेष्ठी द्वारा शिर पर प्रहार, स्वर्ण में रूपांतरित होना), padmanidhi



      पद्मनेमि लक्ष्मीनारायण १.३११.४४( समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण के कर में पुष्प गुच्छ देने का उल्लेख ),


      पद्मपत्रा लक्ष्मीनारायण १.३११.३५( समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण के ललाट पर चन्दन का पुण्ड्र देने का उल्लेख )


      पद्मप्रभा कथासरित् १४.४.१७९( महादंष्ट} - पुत्री, वायुवेगयशा की ४ सखियों में से एक, नरवाहनदत्त की भार्या बनना )


      पद्मबन्धु स्कन्द २.७.२४.५३( पद्मबन्धु द्विज द्वारा द्वादशी के पुण्य दान द्वारा शुनी के उद्धार का वृत्तान्त ),


      पद्मभू स्कन्द ७.१.७.१४( द्वितीय कल्प में ब्रह्मा का नाम )


      पद्ममालिनी लक्ष्मीनारायण १.३११.४०( समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण को मिष्टान्न, शाकपायस देने का उल्लेख )


      पद्मरति कथासरित् ९.२.९३( महावराह व पद्मरति की कन्या अनङ्गसुन्दरी का वृत्तान्त ), ९.२.१५४( पद्मरति - पुत्री अनङ्गरति की मृत्यु का प्रसंग ), १२.१६.७( वीरदेव व पद्मरति की कन्या अनङ्गरति के विवाह का वृत्तान्त )


      पद्मराग गरुड १.७०.६( पद्मराग मणि की महिमा, वल असुर के रक्त के रावण गङ्गा में पतन से उत्पत्ति की कथा ), पद्म ६.६.२६( बल असुर के क्षतज/रक्त? से पद्मराग मणि की उत्पत्ति का उल्लेख ), भागवत ११.१६.३०( भगवान् के रत्नों में पद्मराग होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.३५( पद्मराग नामक प्रासाद में अण्डकों, तलभागों तथा तिलकों की संख्याओं का कथन ) padmaraaga


      पद्मवर्ण ब्रह्माण्ड २.३.७.१२९( देवजनी व मणिवर यक्ष के यक्ष/गुह्यक पुत्रों में से एक ), वायु ६९.१६०/२.८.१५५( वही), स्कन्द ३.३.४.४०( वसुमती - पति, पूर्व ७ जन्मों का वृत्तान्त ), हरिवंश २.३८.२६( यदु - पुत्र, पद्मावत जनपद की स्थापना ), लक्ष्मीनारायण १.३११.४६( पद्मवर्णा : समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण को शंख देने का उल्लेख ) padmavarna


      पद्मवेग कथासरित् १०.९.५८( पद्मवेग विद्याधर के पुत्र वज्रवेग का वृत्तान्त : पिता के शाप से सिंह बनना )


      पद्मशेखर कथासरित् १७.२.२५( इन्द्र का विद्याधरराज मित्र पद्मशेखर के साथ विद्युद्ध्वज असुर से लडने हेतु युद्धक्षेत्र में आने का उल्लेख ), १७.२.८२( पद्मशेखर द्वारा तप से शिव से वर प्राप्त करने का कथन ), १७.२.१३६( पद्मशेखर द्वारा कन्या की प्राप्ति का कथन )


      पद्मसेन कथासरित् ७.८.१९९( विद्याधर मुक्तसेन व कम्बुवती - पुत्र पद्मसेन द्वारा पिता के शाप के कारण पृथ्वी पर जन्म लेने और मुक्ति का वृत्तान्त ), १२.६.४००( पद्मसेन के पिता राजा श्रीसेन व माता पद्मिष्ठा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त ) padmasena


      पद्मा गर्ग २.१७.११/२.२०.११( पद्मा गोपी द्वारा राधा को भालतिलकबिन्दु/बिन्दी भेंट करने का उल्लेख ), नारद १.१२०.३७( पद्मा एकादशी व्रत विधि : कटिदान की विधि ), पद्म ५.७०.६( कृष्ण - पत्नी, दक्षिण(?) दिशा में स्थिति ), ब्रह्मवैवर्त्त २.६.२०( लक्ष्मी के लिए पद्मा शब्द का प्रयोग ), ३.२२.९( पद्मा लक्ष्मी द्वारा मस्तक की रक्षा ), ४.४१.१२२( अनारण्य - कन्या, पिप्पलाद - पत्नी, धर्म से संवाद, वर प्राप्ति ), मत्स्य २६२.११( पद्मा प्रकार की पीठिका के लक्षणों का कथन ), २६२.१८( पद्मा पीठिका के सौभाग्यदायक होने का उल्लेख ), विष्णु १.८.२४( विष्णु की पितृगण व पद्मा की स्वधा से उपमा ), शिव २.३.३४.११( अनरण्य - पुत्री, पिप्पलाद से विवाह का वृत्तान्त ), २.३.३५( धर्म द्वारा पद्मा के पातिव्रत्य की परीक्षा, पद्मा का धर्म से संवाद ), ५.८.२१( नरक की २८ कोटियों में से एक ), स्कन्द ४.२.७२.५९( पद्मा देवी द्वारा पाणिफलक की रक्षा ), ५.१.४४.६( समुद्र मन्थन से उत्पन्न लक्ष्मी / पद्मा का नारद के परामर्श पर महाकालवन में स्थित होना, उज्जयिनी का पद्मावती नाम होना आदि ), ७.४.१२.३२( पद्मा गोपी द्वारा कृष्ण - विरह पर प्रतिक्रिया ), लक्ष्मीनारायण १.२५७( पद्मा एकादशी व्रत का वर्णन ), १.२६५.१०( त्रिविक्रम की पत्नी पद्माक्षा का उल्लेख ), १.३७२.१०( अनरण्य - कन्या पद्मा का पिप्पलाद ऋषि की पत्नी बनने पर धर्म द्वारा पद्मा के पातिव्रत्य की परीक्षा, पद्मा का धर्म को चतुष्पाद होने का शाप ), १.३८५.३१(पद्मा का कार्य – पादपद्मद्वय में अलक्तक), ४.१०१.१०९( कृष्ण की पत्नियों में से एक, नाल व रजपत्रिणी - माता ) padmaa


      पद्माकर भविष्य ३.३.२५.७( शारदानन्दन / कामपाल - पुत्र, भगिनी पद्मिनी के स्वयंवर में तक्षण तथा अन्यों का शाम्बरी माया द्वारा बन्धन ), ३.३.२५.२७( कामपाल राजा - पुत्र, पद्मिनी - भ्राता, लक्षण व सहयोगियों को माया से बांधना ), ३.३.३०.१०( पद्माकर द्वारा विष देकर लक्षण का बन्धन आदि ), ३.३.३०.८५( पद्माकर का पिता सहित अन्तर्द्धान होकर युद्ध व कृष्णांश द्वारा पद्माकर का बन्धन ), स्कन्द ३.३.१०.३२( पद्माकर वैश्य द्वारा राजपुत्र भद्रायु के पालन का वृत्तान्त ) padmaakara


      पद्माक्ष लिङ्ग २.१.५८( पद्माक्ष द्विज द्वारा कौशिक द्विज को अन्न दान से धनद बनना ), स्कन्द ७.४.१७.२०( द्वारकापुरी के दक्षिण द्वार की रक्षा करने वाले क्षेत्रपालों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.३११.३९( पद्माक्षी : समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण को यज्ञोपवीत व योगपट्ट देने का उल्लेख ), padmaaksha


      पद्मावती गर्ग २.१७.११/२.२०.११(पद्मावती द्वारा राधा को नासामौक्तिक प्रस्तुत करने का उल्लेख), पद्म २.४८.५( उग्रसेन - भार्या, उग्रसेन रूप धारी गोभिल दैत्य से समागम, कंस पुत्र की उत्पत्ति ), ६.१८४.७२( अप्सरा, दुर्वासा शाप से पद्म - अङ्गी होना, गीता के दशम अध्याय के पाठ से मुक्ति, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), ७.४(प्रयाग माहात्म्य प्रसंग में प्रणिधि - पत्नी, श्वपच का प्रणिधि रूप धारण, स्वर्ग गमन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.६.८६( गङ्गा, सरस्वती व लक्ष्मी की कलह में लक्ष्मी / पद्मा का शापवश भारत में पद्मावती नदी व तुलसी वृक्ष बनने का कथन ), ४.१३.३८( गिरिभानु गोप - पत्नी, यशोदा -माता ), ४.९४.२१( पद्मावती द्वारा कृष्ण विरह से ग्रस्त राधा को सांत्वना ), भविष्य ३.२.१.९( दन्तवक्त्र - कन्या, वज्रमुकुट से रमण तथा पिता द्वारा निष्कासन की कथा , वेताल - विक्रम संवाद ), ३.४.९.४१( सत्यव्रत ब्राह्मण - पुत्री, जयदेव विप्र की पत्नी बनकर जयदेव की सेवा करने का वृत्तान्त ), भागवत १२.१.३७( मागध राजा पुरञ्जय की पद्मवती पुरी होने का उल्लेख ), मत्स्य ४५.२१( भङ्गकार व व्रतवती की ३ कन्याओं में से एक, कृष्ण - पत्नी ), लिङ्ग २.५.११( त्रिशङ्कु - भार्या, अम्बरीष - माता ), वामन ५७.९६( बदरिकाश्रम द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम ), विष्णु ४.२४.६४( ९ मागध/नाग राजाओं द्वारा पद्मवती पुरी के भोग का उल्लेख, पद्मवती पुरी की सीमाओं का उल्लेख ), शिव ५.८.२१( नरक की २८ कोटियों में से एक ), स्कन्द २.१.३.२१( आकाशराज द्वारा पृथिवी के शोधन से प्राप्त कन्या का आकाश व धरणी - कन्या पद्मावती बनने का वृत्तान्त ), २.१.४.१( नारद द्वारा पद्मावती का पद्मिनी नामकरण व पद्मिनी के सामुद्रिक लक्षणों की लक्ष्मी के लक्षणों से तुलना ), २.१.४.३८( हयारूढ श्रीनिवास का पद्मावती से वार्तालाप ), २.१.५.१( पद्मावती के दर्शन से भगवान् श्रीनिवास को मोह प्राप्ति ), २.१.५.१८( पद्मावती के पूर्वजन्म में वेदवती / सीता होने का वर्णन ), २.१.६.५०( पद्मावती द्वारा माता को दृष्ट पुरुष के लक्षणों का वर्णन ), २.१.८.१८( भगवान् श्रीनिवास का पद्मावती से परिणय ), ५.१.३६.७( षष्ठम कल्प में उज्जयिनी का नाम ), ६.१७७.३६( विश्वक्सेन - पुत्री, काशिराज जयसेन - भार्या, पांच पिण्डिका गौरी पूजा से सौभाग्य प्राप्ति की कथा, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), हरिवंश २.४५.४८( शृगाल राजा की भार्या, शक्रदेव - माता ), लक्ष्मीनारायण १.३३३.१( पद्मावती लक्ष्मी की तपोरत गणेश पर आसक्ति, गणेश के शाप से तुलसी आदि बनना ), १.४११.२२( त्रिशङ्कु - भार्या पतिव्रता पद्मावती द्वारा विष्णु भक्ति से भक्त पुत्र अम्बरीष को जन्म देने का कथन ), २.२९७.८३( पद्मावती पत्नी के गृह में पर्यङ्कस्थ कृष्ण के दर्शन होने का उल्लेख ), ३.१००.१३९( सूर्यप्रभा का दिशांश अम्बा व सूर्यांश नाकजित् की पुत्री रूप में जन्म लेकर श्रीहरि की पत्नी बनने का कथन, पद्मावती के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में ब्रह्मा - पुत्री ), ३.१२२.१०८( दिशाओं द्वारा पुत्री व्रत के चीर्णन से पद्मावती पुत्री की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.२६.६१( पद्मावती - पति कृष्ण की शरण से वासना से मुक्ति का उल्लेख ), कथासरित् ३.१.२०+ ( मगधराज प्रद्योत की कन्या पद्मावती को वासवदत्ता - पति वत्सराज उदयन की पत्नी बनाने हेतु वासवदत्ता के जल कर मरने का झूठा समाचार प्रसारित करना, वासवदत्ता का पद्मावती के गृह में शरण लेना आदि ), १२.८.५९( राजकुमार वज्रमुकुट द्वारा मन्त्री - पुत्र बुद्धिशरीर की सहायता से दन्तवैद्य की कन्या पद्मावती को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १२.१६.६( कृतयुग में उज्जयिनी के पद्मावती नाम का उल्लेख ), १७.१.१५( विद्याधरराज द्वारा मुक्ताफलकेतु के रूप में जन्म लेकर पद्मावती को प्राप्त करने का उल्लेख ), १७.१.६३( शिव गण चन्द्रलेखा व मणिपुष्पेश्वर को पार्वती द्वारा पृथिवी पर मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप ), १७.२.१२६( मुक्ताफलकेतु व पद्मावती के पृथिवी पर जन्म लेने का वृत्तान्त ) padmaavatee/ padmavati

      पद्मिनी पद्म ६.१८४.७५( दुर्वासा को देखकर अप्सरा द्वारा पद्मिनी रूप धारण, पञ्चाम्बुजा रूप का कथन, दुर्वासा द्वारा पद्मिनी होने का शाप ), ६.१८४.५०( राजीविनी / पद्मिनी द्वारा हंस को अपने पूर्व जन्मों के वृत्तान्त बताना ), भविष्य ३.३.२५.११( कामपाल राजा की पुत्री, स्वयंवर में लक्षण का वरण ), ३.३.३०.१३( कारागृह में कैद स्वपति को पद्मिनी द्वारा विघ्न नाशक मन्त्र बताना ), ३.३.३०.४२( पद्मिनी द्वारा अन्तर्द्धान विद्या प्राप्त करने का कथन ), ३.३.३०.७३( पूर्व जन्म में कुबेर - सेनापति मणिदेव की भार्या ), मार्कण्डेय ६६.७/ ६३.७( स्वरोचिष द्वारा पद्मिनी विद्या का प्रयोग ), ६८.१/६५.१( पद्मिनी विद्याश्रित निधियों की प्रकृति का वर्णन ), स्कन्द २.१.३( आकाशराज व धरणी - पुत्री, श्रीहरि की पद्मिनी पर आसक्ति ), २.१.५( वेदवती का रूप ), लक्ष्मीनारायण १.३९८.८७( आकाशराज व धरणी द्वारा कृषि करते समय प्राप्त कन्या का पद्मिनी नामकरण, नारद द्वारा पद्मिनी कन्या के सामुद्रिक लक्षणों का वर्णन, पद्मिनी द्वारा हयारूढ श्रीनिवास के दर्शन ), १.३९९( वेदवती के पद्मिनी बनने का कथन, पद्मिनी के श्रीनिवास से विवाह के आयोजन का आरम्भ ), १.४००( पद्मिनी का श्रीनिवास से विवाह, पद्मिनी द्वारा पति सेवा का वर्णन ), ३.१००.१४२( सूर्य - पुत्री रमा का अम्बा व नाकजित् - पुत्री के रूप में जन्म लेकर श्रीहरि की पत्नी बनने का कथन ; पद्मिनी के पूर्व जन्म का कथन : पूर्व जन्म में ब्रह्मा - पुत्री रमा ), ४.१०१.११३( श्रीहरि व पद्मिनी के मूलकर्दम पुत्र व सलिला पुत्री का उल्लेख ), padminee/ padmini


      पद्मिष्ठा कथासरित् १२.६.२०२( चोरों के हाथों में पडी कन्या पद्मिष्ठा के स्वभ्राता मुखरक से मिलन तथा श्रीदर्शन से विवाह का वृत्तान्त )


      पनस नारद १.५६.२०९( पनस / कटहल वृक्ष की उत्तरषाढा नक्षत्र से उत्पत्ति ), पद्म १.२८( कटहल वृक्ष, श्रीप्रद ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२२१( सुग्रीव - भार्या रुमा का पिता ), २.३.७.२३१( प्रधान वानरों में से एक ), लिङ्ग १.४९.६६( पनस वृक्ष वन में दानवों का वास ), वायु ४३.४( पनस वृक्ष की गण्डकी क्षेत्र में स्थिति व महिमा ), ६८.३९/२.७.३९( पन : प्रवाही के १० देवगन्धर्व पुत्रों में से एक ), स्कन्द २.२.४४.६( ज्येष्ठ मास में पनस फल दान का निर्देश ), ३.१.४४.१९(पनस के पुटेश से युद्ध का उल्लेख), ३.१.४९.३३( वानर, रामेश्वर की स्तुति ), ६.२५२.२२( चातुर्मास में गुह्यकों की पनस वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), वा.रामायण ६.२६.३९( सारण द्वारा रावण को पनस वानर का परिचय ), ६.३७( राम के वानर सेनानियों में से एक, विभीषण - मन्त्री, लङ्का की रक्षा व्यवस्था का दर्शन ), ६.३८.११( सुवेल पर्वत पर चढने वाले वानरों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.१२४.११( साकेत में ब्रह्म पनस, लक्ष्मी पनस वृक्षों का वर्णन ), १.४४१.८४( पनस वृक्ष : गुह्यकों का रूप ), panasa


      पन्थ भागवत ११.१९.४२( भगवान् का निगम ही पन्थ होने का उल्लेख ), महाभारत वन ३१३.११४( पन्थ के विषय में यक्ष का प्रश्न व युधिष्ठिर का उत्तर ) pantha


      पन्नग नारद १.४२.३०( सलिल के अन्त में पन्नगाधिपों की स्थिति तथा पन्नगाधिपों के अन्त में आकाश की स्थिति का उल्लेख - रसातलांते सलिलं जलांते पन्नगाधिपाः ।। तदंते पुनराकाशमाकाशांते पुनर्जलम् ।।  ), ब्रह्माण्ड १.२.३३.४( प्रधान श्रुतर्षियों में से एक ), वायु ६१.३( पन्नगारि : निरुक्तकार रथीतर के ३ शिष्यों में से एक ), १.२.३५.६( पान्नगारि : बाष्कलि भरद्वाज के ३ शिष्यों में से एक ), स्कन्द ५.३.३९.३२( कपिला गौ के खुरों में पन्नगों की स्थिति - खुरेषु पन्नगाश्चैवं पुच्छाग्रे सूर्यरश्मयः । ), महाभारत अनुशासन १४.२५६(पिनाक धनुष के पन्नग रूप का कथन - पिनाकमिति विख्यातं स च वै पन्नगो महान्।।), द्र. पुन्नाग pannaga,


      पन्नाम लक्ष्मीनारायण २.१०९.८( पन्नाम देश के राजा पादसह का उल्लेख ), २.११०.७४( विष्णु से पन्नाम नदिका भूमि की रक्षा की प्रार्थना ; श्याम देश के पन्नाम्नी तीर्थ होने की कामना ),


      पपीहक भविष्य ३.३.७.३८( वत्सराज द्वारा सूर्य की आराधना से नर स्वर वाले पपीहक हय की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३.१०.४२( देशराज द्वारा सूर्य आराधना से पपीहक हय की प्राप्ति, पपीहक की निरुक्ति ) papeehaka/ papihaka


      पप्लव द्र. पह्लव


      पम्पा भविष्य ३.४.९.२४( माघ मास के त्वष्टा सूर्य के संदर्भ में पम्पापुर में हेली द्विज का वृत्तान्त ), वामन ९०.१६( पम्पा तीर्थ में विष्णु का पद्मकिरण नाम से वास ), वायु ४३.२७( भद्राश्व वर्ष की मुख्य नदियों में से एक ), शिव १.१२.१७( पम्पा नदी का संक्षिप्त माहात्म्य ), वा.रामायण ३.७३( कबन्ध द्वारा राम को पम्पा सरोवर का परिचय देना ), ३.७५( राम द्वारा पम्पा सरोवर की शोभा का वर्णन ), ४.१( राम द्वारा पम्पा सरोवर की शोभा का वर्णन, कामोद्दीपन ), लक्ष्मीनारायण १.४२२.५( राधा की सखियों ब्रह्मप्रिया व पम्पा का राधा के शापवश भूलोक में भीम नामक कुलाल की मानसी कन्या - द्वय तथा पश्चात् शबरी व पम्पा पुष्करिणी बनने का वृत्तान्त ), २.१३.८( पाम्पी राक्षसी का उल्लेख ), ४.१०१.९७( श्रीहरि व पम्पा की सारसी पुत्री व वीर्यसेतु पुत्र का उल्लेख ), कथासरित् १४.३.९( ऋष्यमूक पर्वत के संदर्भ में पम्पा सर का उल्लेख ) pampaa


      पयोष्णी देवीभागवत ७.३०( पयोष्णी पीठ में पिङ्गलेश्वरी देवी का वास ), वामन ९०.७( पयोष्णी में विष्णु का यमखण्ड नाम से वास ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४७( पयोष्णी के महिष वाहन का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.१९८.८२( पयोष्णी में सती देवी की पिङ्गलेश्वरी नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५६४.१७( चन्द्र - पुत्री पयोष्णी नदी के विन्ध्य पर्वत से निर्गम का उल्लेख ), द्र. भूगोल payoshnee/ payoshni


      पय: ब्रह्माण्ड १.२.१८.६९( पयोद : नील पर्वत पर स्थित सर का नाम ), १.२.१८.७०( पयोदा : नील पर्वत पर पयोद सर से निकलने वाली २ नदियों में से एक ), २.३.७.२४०( पय:कीर्ति : प्रधान वानरों में से एक ), भागवत ५.१९.१८( पयस्विनी : भारत की मुख्य नदियों में से एक ), ८.१६.२५( पयोव्रत की विस्तृत विधि ), ८.१७.१( अदिति द्वारा पयोव्रत के चीर्णन से विष्णु को पुत्र रूप में प्राप्त करना ), ११.५.३९( पयस्विनी : द्रविड देश की मुख्य नदियों में से एक ), ११.१५.२३( पयोव्रत की संक्षिप्त विधि, परकाय प्रवेश ), मत्स्य १७.३४( गव्य पय: से संवत्सर पर्यन्त पितरों की तृप्ति का उल्लेख ), वायु ४७.६७( पयोदा : नील पर्वत पर पयोद सर से निकलने वाली २ नदियों में से एक ), स्कन्द ५.३.२६.१४६( श्रावण शुक्ल तृतीया को पय: दान का निर्देश ), हरिवंश ३.३५.२६( पयोधारा : वराह अवतार द्वारा दक्षिण दिशा में सृष्ट नदी, नर्मदा? का अन्य नाम ), लक्ष्मीनारायण १.१४८( पुत्र प्राप्ति हेतु पयोव्रत विधि ), ४.१०१.११३( पयोनिधि : श्रीहरि व सुदुघा - पुत्र ), अथर्वपरिशिष्ट ३१.६.५(पयः होम से ब्रह्मवर्चस प्राप्ति का उल्लेख), payah

      Comments on Payah


      पर ब्रह्माण्ड १.२.३५.७६( तैत्तिरीय शाखा आदि के खिलों व उपखिलों की परक्षुद्र संज्ञा का उल्लेख ), ३.४.२.९१( संख्या मान में पर और परार्द्ध शब्दों का अर्थ ), ३.४.२.१०४( पर शब्द का महत्त्व, पर आरम्भ प्रत्यय वाले शब्द ), ३.४.२.१४३( ध्रुव आदि लोकों के संदर्भ में पर लोक की स्थिति का कथन ), ३.४.१०.८९( ललिता देवी की पर देवता संज्ञा ), भागवत २.३.९( सकाम व निष्काम, दोनों द्वारा पर पुरुष के यजन का निर्देश ), ११.१५.२३( परकाय प्रवेश की संक्षिप्त विधि ), मत्स्य ९.१७( परंतप : तामस मनु के १० पुत्रों में से एक ), १९६.४२( परण्य : त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), वायु ४५.१२८( दाक्षिणात्य/अपर/परक्षर जनपदों के नाम ), ६१.६६( तैत्तिरीय शाखा आदि के खिलों व उपखिलों की परक्षुद्र संज्ञा का उल्लेख ), ९९.१३/२.३७.१३( अनु के ३ पुत्रों में से एक ), ९९.१७७/२.३७.१७२( समर के ३ पुत्रों में से एक ), १०१.१०३/२.३९.१०३( संख्या मान के संदर्भ में परार्द्ध व पर का तात्पर्य, पर आदि प्रत्यय वाले शब्दों का कथन, ब्रह्मा के संदर्भ में पर का तात्पर्य ), हरिवंश ३.४७.२७( नृसिंह की स्तुति में पर आदि वाले श्लोक ), कथासरित् ८.१.४८( परपुष्टा : कौशाम्बी नगरी के राजा जनमेजय की कन्या, सूर्यप्रभ की पत्नियों में से एक ) para


      परपुरञ्जय स्कन्द ४.२.८२.४( राजा मित्रजित् का नाम, परपुरञ्जय द्वारा मलयगन्धिनी कन्या की कङ्कालकेतु राक्षस से रक्षा व विवाह ),


      परम भागवत ३.११.२( परम महान् का अर्थ ), मत्स्य ४८.१०( परमेषु : अनु के ३ पुत्रों में से एक ), १४५.८२( परमर्षि की परिभाषा ), विष्णु ४.१८.१( परमेषु : अनु के ३ पुत्रों में से एक ) parama


      परमाणु ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.४७( काल के परा - सूक्ष्म मान के रूप में परमाणु का कथन ), भागवत ३.११.१( वैशेषिक के अनुसार परमाणु की परिभाषा, पदार्थ स्वरूप व काल के संदर्भ में परमाणु के तात्पर्य का कथन ), वायु १०१.११६/२.३९.११६( सूक्ष्मता के संदर्भ में परमाणु की परिभाषा ), योगवासिष्ठ ४.१८.५०( परमाणु जगत के अन्दर चित् परमाणुओं के होने का उल्लेख ), ६.१.८०.७५( आकाश वृक्ष के बीज संकल्प का परमाणु रूप में उल्लेख ) paramaanu/ paramanu


      परमात्मा योगवासिष्ठ ३.७.२०( परमात्मा के रूप का निरूपण ),


      परमार्थ नारद १.४९.१( सौवीर नरेश की जिज्ञासा पर जड भरत द्वारा परमार्थ का निरूपण ), विष्णु २.१४.१२( सौवीर राज - जड भरत संवाद के अन्तर्गत परमार्थ का निरूपण : परमात्मा व आत्मा का योग ), योगवासिष्ठ ३.११( उत्पत्ति प्रकरण में परमार्थ वर्णन के अन्तर्गत द्रष्टा व दृश्य के द्वैत से परे होने का निर्देश ), ३.२०( लीलोपाख्यान में परमार्थ वर्णन के अन्तर्गत इन्द्रियों द्वारा असत्य दर्शन व सत्य दर्शन का प्रतिपादन ), ३.८१( चिद्व्योम रूपी परमाणु में परमार्थ पिण्डीकरण नामक सर्ग ), ६.१.११४( परमार्थोपदेश नामक सर्ग ), ६.१.१२६( परमार्थ स्वरूप वर्णन नामक सर्ग के अन्तर्गत योग की ७ भूमिकाओं का वर्णन ), ६.२.३४( परमार्थ योगोपदेश नाम सर्ग : अहं ब्रह्म की जगत से अभिन्नता ), ६.२.९२( परमार्थ - सर्ग एकता प्रतिपादन नामक सर्ग में वातमयी धारणा द्वारा अनुभूत जगत का वर्णन ), ६.२.९९( परमार्थ निरूपण नामक सर्ग में तिर्यक् योनि के जीवों द्वारा अनुभूत सुख - दुःख तथा जगत की स्वप्नवत् भासता का वर्णन ), ६.२.१०३( सकल भावों के अभाव होने के उपदेश सहित परमार्थ एकता प्रतिपादन नामक सर्ग ) paramaartha/ parmartha


      परमेश्वर गर्ग ९.१०( व्यास - उग्रसेन संवाद में परमेश्वर के स्वरूप का निरूपण ), योगवासिष्ठ ६.१.३६( परमेश्वर वर्णन नामक सर्ग में रुद्रेश्वर की विभूतियों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ४.४६.५८( परमेश कृष्ण द्वारा भ्रान्ति से रक्षा ),


      परमेश्वरी ब्रह्माण्ड ३.४.१६.१( ललिता देवी की परमेश्वरी संज्ञा ), मत्स्य १३.३९( पाताल में सती देवी की परमेश्वरी नाम से स्थिति का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.११९८.७६( पाताल में सती की परमेश्वरी नाम से स्थिति का उल्लेख ),


      परमेष्ठी अग्नि १०७.१४( इन्द्रद्युम्न - पुत्र, प्रतीहार - पिता, ऋषभ वंश ), पद्म ६.१२०.५८( परमेष्ठी से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६५( इन्द्रद्युम्न/तेजस? - पुत्र, निधन साम में उत्पत्ति का उल्लेख ), २.३.२.१३( परमेष्ठी के कश्यप - प्रपौत्र? होने का उल्लेख ; नारद - पिता, दक्ष द्वारा परमेष्ठी को सुता प्रदान करने का उल्लेख ), भागवत २.१.३०( विष्णु के भ्रू विजृम्भण की परमेष्ठी धिष्ण्य से एकता का उल्लेख ), २.२.२२( परमेष्ठी पद प्राप्ति के उपाय का कथन ), २.३.६( आधिपत्य कामी के लिए परमेष्ठी का आराधना का निर्देश ), ५.१५.३( देवद्युम्न व धेनुमती - पुत्र, सुवर्चला - पति, प्रतीह - पिता ), वराह २३.१२( परमेष्ठी शिव के हंसने आदि पर पृथिवी आदि महाभूतों से परमेष्ठी के प्रतिरूप गणेश के प्रादुर्भाव का कथन ), वायु ३३.५५( इन्द्रद्युम्न - पुत्र, निधन में उत्पत्ति, प्रतीहार - पिता? ), विष्णु २.१.३६( इन्द्रद्युम्न - पुत्र, प्रतिहार - पिता ), स्कन्द ७.१.७.१६( चतुर्थ कल्प में परमेष्ठी ब्रह्मा के समय में अनामय शिव की स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश ३.३३.२७( कल्पान्त में परमेष्ठी हृषीकेश द्वारा शयन उपक्रम का उल्लेख ), ३.३३.३३( श्रीहरि द्वारा शयन के अन्त में पारमेष्ठ्य कर्म द्वारा सृष्टि का उल्लेख ), द्र वंश भरत parameshthee/ parameshthi


      परशु अग्नि २५२.१३( परशु के कर्म - करालमवघातञ्च दंशोपप्लुतमेव च । क्षिप्तहस्तं स्थितं शून्यं परशोस्तु विनिर्दिशेत् ।।), गणेश २.१००.३८( गुणेश द्वारा परशु से भगासुर का वध - उद्यम्य परशुं दीप्तं शशिसूर्यनिभं विभु । तत्याज कण्ठे तं तस्य पशुमारममारयत्  ), २.१२३.३०( गुणेश द्वारा परशु से सिन्धु का वध - परशुं मन्त्रयामास महोव्याप्तं दिगन्तरम्। लक्षीकृत्य रिपोर्नाभिं सुधामन्त्रेण संयुतम् ), देवीभागवत ५.९.१८( विश्वकर्मा द्वारा देवी को परशु भेंट करने का उल्लेख - परशुं विश्वकर्मा च तीक्ष्णमस्यै ददावथ ॥ ), पद्म ७.१५.९( वैश्य, जीवन्ती - पति, राम नाम श्रवण से पत्नी का उद्धार - आसीत्स परशुर्नाम पूर्वं कृतयुगे शुचिः। वैश्यो वैश्यकुलश्रेष्ठः समस्तगुणपारगः), ब्रह्म २.९३( परशु राक्षस का ब्राह्मण वेश में शाकल्य का अतिथि बनना, कवच से रक्षित शाकल्य का भक्षण करने में परशु की असमर्थता, सरस्वती कृपा से मुक्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३.२५( पर्शुओं में विष्णुपञ्जर की उत्कृष्टता का उल्लेख - शालग्रामश्च मूर्तीनां पर्शूनां विष्णुपञ्जरः ।। ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.३९( उत्तम मनु के १३ पुत्रों में से एक ), २.३.२४.७४( शिव द्वारा देवशत्रुओं के वध हेतु परशुराम को परशु अस्त्र देने का कथन ), २.३.३२.५८( शिव द्वारा परशुराम को प्रदत्त अस्त्रों में से एक ), २.३.४०.१३( परशुराम द्वारा युद्ध में परशु से पुष्कराक्ष को मूर्द्धा से लेकर पाद तक द्वेधा भिन्न करने का उल्लेख - क्षणं स्थित्वा भृशं धावन्परशुं मूर्ध्न्यपतयात् । शिखामारभ्य पादान्तं पुष्कराक्षं द्विधाकरोत् ॥  ), मत्स्य ४७.१६( कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक ), विष्णु ३.१.१५( उत्तम मनु के पुत्रों में से एक ), महाभारत शान्ति ३४२.११५( नर द्वारा रुद्र के विघात के लिए इषीका को परशु बनाना, रुद्र द्वारा परशु का खण्डन - क्षिप्तश्च सहसा तेन खण्डनं प्राप्तवांस्तदा। ततोऽहं खण्डपरशुः स्मृतः परशुखण्डनात्।। ), अनुशासन १४.२७१( उपमन्यु द्वारा परशुराम के परशु के शिव के निकट दर्शन, परशु के स्वरूप का कथन - दीप्तधारः सुरौद्रास्यः सर्पकण्ठाग्रधिष्ठितः।। अभवच्छूलिनोऽभ्याशे दीप्तवह्निशतोपमः।), लक्ष्मीनारायण ३.७४.८३( परशुचन्द्र द्वारा श्रीकृष्ण को अल्प तण्डुल दान से अक्षर धाम की प्राप्ति का वृत्तान्त ) parashu

      Comments on Parashu


      परशुचि मार्कण्डेय ७०.१०/७३.१०( तृतीय उत्तम मन्वन्तर में उत्तम मनु के ३ पुत्रों में से एक ),


      परशुनाभ वायु ६९.१५५/२.८.१६०( खशा के प्रमुख राक्षस पुत्रों में से एक )


      परशुराम अग्नि ४.१२( परशुराम अवतार का संक्षेप में वर्णन ), गणेश १.८२.४२( गणेश द्वारा राम की भक्ति से प्रसन्न होकर परशु प्रदान करना ), गरुड ३.२९.५३(आर्तिक्य? काल में परशुराम के स्मरण का निर्देश), नारद २.७४.८( समुद्र - प्लावित गोकर्ण क्षेत्र के उद्धार हेतु परशुराम द्वारा समुद्र पर अग्नि बाण के संधान का वृत्तान्त ), पद्म १.५५.३३(शन्तनु - पत्नी अमोघा द्वारा ब्रह्मा के वीर्य से उत्पन्न गर्भ के युगन्धर में मोचन का उल्लेख, परशुराम का जन्म), ६.४५.४३( फाल्गुन शुक्ल एकादशी को जामदग्नि पूजा का विधान, न्यास विधि ), ६.२४१( परशुराम अवतार की कथा, इक्ष्वाकु कुल के अतिरिक्त अन्य क्षत्रियों का संहार ), ब्रह्म १.८.५२( चरु विपर्यास प्रसंग में जमदग्नि - पुत्र परशुराम के जन्म का कथन ), १.१०४.१०६( अवतारों में परशुराम अवतार की महिमा का संक्षेप में वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२७.३७( जमदग्नि की मृत्यु होने पर परशुराम द्वारा कार्तवीर्य को नष्ट करने की प्रतिज्ञा आदि ), ३.३३( परशुराम द्वारा पुष्कर में तप, स्वप्न - दर्शन ), ३.३४.१( परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य को दूत प्रेषण ), ३.४०( युद्ध में परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य के वध का वृत्तान्त ), ३.४२( परशुराम द्वारा शिव के अन्त:पुर में जाने के आग्रह पर गणपति से विवाद ), ३.४३( परशुराम द्वारा गणेश का दन्त भङ्ग करना ), ४.९६.३५( चिरजीवियों में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.२१( परशुराम द्वारा पितामह भृगु / ऋचीक के दर्शन के लिए गमन का वर्णन, भृगु द्वारा हिमालय पर तप द्वारा शिव से अस्त्र प्राप्त करने का निर्देश ), २.३.२२( परशुराम द्वारा हिमालय की शोभा का दर्शन व तप ), २.३.२३( तपोरत परशुराम की मृगव्याध रूप धारी शिव द्वारा परीक्षा ), २.३.२४+ ( परशुराम द्वारा शिव से परशु की प्राप्ति, शिव आदेश से असुर वध, शिव की स्तुति, अस्त्र प्राप्ति, विप्र - पुत्र अकृतव्रण की व्याघ्र से रक्षा, क्षत्रिय वध की कथा ), २.३.३२( क्षत्रिय वध हेतु परशुराम द्वारा ब्रह्मा व शिव की अनुमति प्राप्त करना, शिव की स्तुति ), २.३.३४+ ( मृगी के वचन सुनकर परशुराम द्वारा अगस्त्य से कृष्ण प्रेमामृत स्तोत्र को ग्रहण करना ), २.३.३७( परशुराम द्वारा कृष्ण के दर्शन व स्तुति ), २.३.४१( परशुराम द्वारा गणेश पर परशु से प्रहार की कथा ), २.३.४३.१( परशुराम द्वारा रुष्ट पार्वती की स्तुति ), २.३.४५+ ( शूरसेनों द्वारा जमदग्नि की हत्या पर परशुराम द्वारा क्षत्रिय वध की कथा ), २.३.४७( परशुराम द्वारा हयमेध का अनुष्ठान, कश्यप को पृथिवी दान में देना ), २.३.५७+ ( गोकर्ण क्षेत्र के उद्धार हेतु परशुराम द्वारा वरुण का निग्रह, शूर्पारक क्षेत्र की स्थापना ), भविष्य ३.४.२५.८७( चाक्षुष मन्वन्तर में कन्या राशि में परशुराम की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.८३.१२०( वित्त प्राप्ति के लिए अवतारों में परशुराम की अर्चना का निर्देश ), भागवत ६.८.१५( परशुराम से अद्रि कूटों में रक्षा की प्रार्थना ), ९.१५( पितृ - हत्यारे सहस्रबाहु अर्जुन का वध ), ९.१६( परशुराम द्वारा माता का वध व पुनरुज्जीवन, क्षत्रिय संहार ), वराह ४४( परशुराम का न्यास ), ४८.२१( वित्त हेतु जमदग्नि - पुत्र परशुराम के यजन का निर्देश ),विष्णुधर्मोत्तर १.३५.२१( जमदग्नि - भार्या रेणुका से उत्पन्न कनीयस् पुत्र परशुराम का उल्लेख ), १. २.१ - १८३( पुष्कर द्वारा राम हेतु राजोचित धर्म का विशद वर्णन ), १.३६( परशुराम द्वारा माता का वध, जमदग्नि से वर प्राप्ति ), १.४९( परशुराम द्वारा साल्व असुर का वध, शिव द्वारा परशुराम को अस्त्र प्रदान ), १.५१+ ( परशुराम व शिव के संवाद के रूप में शङ्कर गीता का आरम्भ ), १.६६( शिव द्वारा परशुराम को पातालवासी दैत्यों के वध का आदेश तथा दैत्यों के नाश हेतु चाप रत्न व अक्षय सायक वाले तूण प्रदान करना ), १.२३७.१५( परशुराम से रोग नाश की प्रार्थना ), ३.११९.८( परशुराम की प्रतिज्ञा पारण में पूजा ), स्कन्द १.२.१३.१८५( शतरुद्रिय प्रसंग में परशुराम द्वारा यवाङ्कुर लिङ्ग की भर्गादित्य नाम से पूजा ), ३.१.२२.१८( परशुराम की पत्नी के रूप में धरणी का उल्लेख), ४.२.६१.२०८( विष्णु के ३० परशुराम रूपों का उल्लेख ), ४.२.८३.७५( परशुराम तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२१८.२७( जामदग्न्य तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा जमदग्नि की हत्या पर परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य अर्जुन तथा क्षत्रियों का वध, उनके रक्त से समन्तपञ्चक क्षेत्र में ५ ह्रदों की रचना, ह्रदों में स्नान, श्राद्ध आदि का महत्त्व ), ६.६७( कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा पिता जमदग्नि की हत्या पर परशुराम द्वारा पुलिन्दों आदि के साथ कार्त्तवीर्य अर्जुन व उसकी सेना का वध, कार्त्तवीर्य के रक्त से हाटकेश्वर क्षेत्र में गर्तों का पूरण ), ६.६८( परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य के रक्त से पितरों का तर्पण, विप्रों को पृथिवी दान, स्वयं के निवास हेतु समुद्र से स्थान की प्राप्ति ), ६.६९( क्षेत्रज क्षत्रियों द्वारा विप्रों से भूमि हरण पर परशुराम द्वारा २१ बार क्षत्रियों का वध, क्षत्रियों के रक्त से बने ह्रद से पितरों का तर्पण, राम ह्रद में श्राद्ध का माहात्म्य ), ६.९४( ब्राह्मणों के अनुरोध पर परशुराम द्वारा स्वकुठार को लोहयष्टि में बदलना ), ६.१६६.४४( चरु विपर्यय प्रसंग में ऋचीक द्वारा स्वभार्या को पुत्र की अपेक्षा पौत्र के क्षात्रबल से युक्त होने का कथन ), ७.१.१२१( माता के वध के पश्चात् परशुराम द्वारा तप, लिङ्ग स्थापना, पृथिवी को क्षत्रिय हीन करना ), ७.१.१९६( क्षत्रिय वध जनित घृणा से निवृत्ति हेतु परशुराम द्वारा जल प्रभासेश्वर लिङ्ग के दर्शन ), ७.३.४९( परशुराम तीर्थ का माहात्म्य, शत्रु विनाशार्थ ), हरिवंश १.२७.३९( आर्चीक व कामली / रेणुका से परशुराम के जन्म का उल्लेख ), १.४१( परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य का वध ), २.३९.२१+ ( मथुरा से पलायन करते कृष्ण व बलराम से परशुराम का संवाद, परशुराम द्वारा कृष्ण व बलराम को भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन ), वा.रामायण १.७४.१७+ ( राम द्वारा शिव के धनुष भञ्जन पर परशुराम का रोष आदि ), १.७६( राम द्वारा वैष्णव धनुष से परशुराम के तप:प्राप्त पुण्य लोकों का नाश, परशुराम का महेन्द्र पर्वत को गमन ), लक्ष्मीनारायण १.२४४( रेणुका द्वारा फाल्गुनकृष्ण विजया एकादशी व्रत से श्रीहरि के अवतार परशुराम को पुत्र रूप में प्राप्त करना, परशुराम द्वारा विजया एकादशी व्रत के प्रभाव से कार्त्तवीर्य का वध ), १.२६८.२२( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को परशुराम जयन्ती उत्सव विधि का कथन ), १.३८०.६६( मृग - मृगी का व्याध को देखकर तपोरत परशुराम का आश्रय लेकर निर्भय होना, जातिस्मर होना ), १.३८१.२२( परशुराम द्वारा शिव से परशु की प्राप्ति ), १.३८१.१२७( पितृवधकर्ता कार्त्तवीर्य के वध हेतु परशुराम द्वारा शिव से अस्त्रों की प्राप्ति, कार्त्तवीर्य व अन्य क्षत्रियों का वध, समन्तपञ्चक क्षेत्र में तर्पण आदि ), १.४५७.७( कार्त्तवीर्य वध हेतु परशुराम द्वारा शङ्कर से कृष्ण कवच की प्राप्ति, शकुनों का दर्शन ), १.४५८.१( परशुराम द्वारा कार्त्तवीर्य के वध हेतु कार्त्तवीर्य के शिव कवच की प्राप्ति, विष्णु द्वारा कार्त्तवीर्य के महालक्ष्मीकवच की याचना आदि ), १.४५८.१३१( गणेश द्वारा परशुराम का प्रवेश रोकने पर परशुराम द्वारा गणेश के दन्त का छेदन ), २.२४३.५५( कृष्ण - भक्त हेमकल्गि नृप से परशुराम की पराजय, राजा द्वारा सुदर्शन चक्र की रश्मियों से परशुराम का बन्धन व मोचन ), ३.९४.१५( परशुराम द्वारा समुद्र से आप्लावित गोकर्ण क्षेत्र के उद्धार का उद्योग ), ३.१७०.१७( ३४ धामों में २४वें धाम के रूप में पर्शुराम धाम का उल्लेख ), parashuraama/ parashurama


      परा अग्नि ३८३.४( परा - अपरा विद्या के रूप में अग्नि पुराण का महत्त्व ), नारद १.६६.९६( बलानुज विष्णु की शक्ति परा का उल्लेख ), ब्रह्म २.९१.६( पर पुरुष व अपरा प्रकृति से ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचना का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१३( पराक्ष : अनु के ३ पुत्रों में से एक ), ३.४.१८.१४( पराङ्कुशा : ललिता देवी के २५ नामों में से एक ), ३.४.३५.९९( निवृत्ति आदि १६ शक्तियों में से एक परा का उल्लेख ), ३.४.३९.९( हयग्रीव व अगस्त्य के संवाद में त्रिपुरा/कामाक्षी देवी के चित्परा, शुद्धपरा, परापरा व परा, परात्परा भेदों का निरूपण ), ३.४.४४.१४१( १६ शक्तियों में से एक ), ३.४.२०.१४(परा – अपरा प्रकृति का कथन), वायु ४३.२०( पराचक : भद्राश्व देश के जनपदों में से एक ), ४५.९८( पारियात्र पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), विष्णु ६.७.६१( विष्णु की परा, अपरा व अविद्या शक्तियों का वर्णन ), शिव ६.१६.५४( पराशक्ति से चित् व चित् शक्ति से आनन्द शक्ति का उद्भव ) paraa


      पराक् द्र. पाराक


      पराक्रम वामन ५७.६३( विष्णु द्वारा स्कन्द को प्रदत्त ३ गणों में से एक ),


      पराङ्व्रत लक्ष्मीनारायण २.२२३.८३( आशासना पुरी के राजा पराङ्व्रत द्वारा श्रीहरि के स्वागत का वर्णन )


      परायत्त लक्ष्मीनारायण २.५.८०( हिरण्यकूर्च असुर के भय से ब्रह्मा के हृदय से उत्पन्न ८ पुत्रों में से एक ),


      परार्द्ध वायु ७.१०( कल्पों के संदर्भ में अपरार्द्ध, पर, परार्द्ध का निरूपण ), १००.२४१/२.३८.२४१( अज/ब्रह्मा की आयु परार्द्ध की द्विगुण होने का उल्लेख ), १०१.९९/२.३९.९९( परार्द्ध संख्या मान का निरूपण ), विष्णु १.३.५( ब्रह्मा की आयु के परार्द्ध मान का कथन ), १.३.२७( ब्रह्मा के द्वितीय परार्द्ध के वाराह कल्प नाम का कथन ), ६.३.३( प्राकृत प्रतिसंचर/लय के संदर्भ में परार्द्ध संख्या का निरूपण ) paraardha


      परावसु गरुड ३.९.४(१५ अजान देवों में से एक), गर्ग ७.४२.१३( परावसु गन्धर्व के ९ पुत्रों के जन्मान्तरों का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१३( परावसु गन्धर्व की सूर्य के रथ के साथ स्थिति का कथन ), भविष्य १.११६( परावसु द्वारा सत्राजित् के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन ), स्कन्द ३.१.३३.७( रैभ्य - पुत्र, अर्वावसु - अग्रज, पिता की हत्या का दोष कनिष्ठ भ्राता पर आरोपित करना ), ६.१९७( विश्वावसु - पुत्र, वेश्यागृह में मदपान जनित दोष की निवृत्ति हेतु रत्नावती के अधरों का पुत्र रूप में पान ), paraavasu


      परावह मत्स्य १६३.३२( ७ मरुतों में से एक ), द्र. आवह, मरुत


      परावृत विष्णु ४.१२.१०( रुक्मकवच - पुत्र, रुक्मेषु आदि ५ पुत्रों के नाम, यदु वंश )


      पराशर कूर्म २.११.१२९( पराशर द्वारा सनक से ज्ञान प्राप्ति ), गणेश २.१०५.६२( द्विज रूप धारी विश्वदेव असुर द्वारा पराशर द्वारा पूजित मृण्मय गणेश को लड्डू आदि भक्षण करते देखना ), २.१३३.१६( पराशर द्वारा जंगल में त्यक्त बालक गजानन का ग्रहण ), देवीभागवत २.२( पराशर द्वारा समागम हेतु सत्यवती के शरीर में दिव्यता प्रदान करना ), ९.२६.१३( पराशर द्वारा अश्वपति को सावित्री पूजा विधान का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.५६( पराशर द्वारा सुयज्ञ नृप से शूद्र की सेवा के पाप का निरूपण ), ब्रह्माण्ड १.१.१.९( वसिष्ठ द्वारा ब्रह्माण्ड पुराण को स्वपौत्र पराशर को तथा पराशर द्वारा जातूकर्ण्य को अध्यापन का उल्लेख ), १.२.३२.११५( ७ ब्रह्मवादी वशिष्ठों में से एक ), १.२.३४.२७( पाराशर : बाष्कलि के वेदाध्यायी शिष्यों में से एक ), १.२.३५.२९( याज्ञवल्क्य के १५ वाजी शिष्यों में से एक ), १.२.३५.४२( सामग आचार्य कुशुम के ३ शिष्यों में से एक ), १.२.३५.५४( पाराशर्य : कृत के २४ सामग शिष्यों में से एक ), १.२.३५.१२४( २८ द्वापरों के वेदव्यासों में से एक? ),२.३.९.९१( शक्ति व अदृश्यन्ती से पराशर तथा काली व पराशर से कृष्ण द्वैपायन के जन्म का उल्लेख ), ३.४.४.६५( शक्ति - पुत्र पराशर द्वारा गर्भ में ब्रह्माण्ड पुराण श्रवण का उल्लेख ), भविष्य ३.४.२१.१४( कलियुग में पराशर का कण्व - पौत्रों के रूप में जन्म ), भागवत १.३.२१( १७वें अवतार में विष्णु का सत्यवती व पराशर से जन्म का कथन ), ९.२२.२१( वही), १२.६.४९( वही), १२.६.५५( बाष्कल द्वारा ऋग्वेद संहिता के ४ भाग करके पराशर सहित ४ शिष्यों को देने का उल्लेख ), मत्स्य ४७.२४६( अष्टम अवतार के रूप में विष्णु का २८वें द्वापर में पराशर से वेदव्यास के रूप में जन्म ), १४५.९५( पराशर द्वारा सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख ), २०१.३१( शक्ति - पुत्र, वंश व गोत्र का कथन ), लिङ्ग १.२४.११७( २६वें द्वापर में व्यास ), १.६३.८४( पराशर वंश का वर्णन ), १.६४( अदृश्यन्ती से पराशर के जन्म की कथा ), वायु १.२.११( नैमिषारण्य में शक्ति - पत्नी अदृश्यन्ती से पराशर के जन्म का उल्लेख ), ७०.८३/२.९.८३( नैमिष क्षेत्र में अदृश्यन्ती से पराशर के जन्म का उल्लेख, सागर संज्ञा ), २३.१४४/१.२३.१३४( ९वें द्वापर के ऋषभ अवतार के पुत्रों में से एक ), २३.२१२/१.२३.२००( २६वें द्वापर के वेदव्यास के रूप में पराशर का उल्लेख ), ५९.१०५( १० मन्त्र ब्राह्मण कारक ऋषियों में से एक ), ६०.२६( पाराशर : बाष्कलि के वेदाध्यायी ४ शिष्यों में से एक ), ६१.४१( पाराशर्य संज्ञा वाले कौथुम के शिष्यों का कथन ), ६१.४७( कृत के २४ सामग शिष्यों में से एक ), ७०.८७( पराशर के आठ पक्ष/गोत्र नाम ), १०३.६५/२.४१.६५( शक्ति - पुत्र पराशर द्वारा गर्भ में ब्रह्माण्ड? पुराण का श्रवण कर जातूकर्ण्य को सुनाने का उल्लेख ), विष्णु १.१+ ( पराशर द्वारा मैत्रेय शिष्य को विष्णु पुराण रूपी उपदेश, राक्षसों के विनाश हेतु यज्ञ, यज्ञ बन्द करने पर पुलस्त्य से वर प्राप्ति ), ३.४.१८( बाष्कल द्वारा ऋग्वेद संहिता का चतुर्धा विभाजन कर पराशर आदि ४ शिष्यों को देने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.११७.३२( कृष्ण, नील, रक्त, श्वेत, गौर आदि पराशर गोत्रों का कथन ), शिव ३.५.२६( २६वें द्वापर में पराशर के व्यास होने के समय शिव अवतार व उनके शिष्यों के नाम ), स्कन्द ३.१.१२.६०( संकट ग्रस्त मनोजव राजा पर पराशर की कृपा तथा उसका अभिषेक करना ), ३.१.२३.२६( देवों के यज्ञ में पराशर के ग्रावस्तुत होने का उल्लेख ), ३.३.२०.२३( रुद्राक्ष धारण के महत्त्व के संदर्भ में भद्रसेन राजा को कुक्कुट व मर्कट द्वारा रुद्राक्ष धारण के फल का वर्णन ), ३.३.२१.७( पराशर द्वारा भद्रसेन नृप को रुद्राध्याय की महिमा का वर्णन ), ४.२.६५.२( पराशरेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : ज्ञान प्राप्ति ), ५.३.७६( नर्मदा के दक्षिण? तट पर पारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.३.९७.१०( व्यास तीर्थ के संदर्भ में पराशर द्वारा निषाद कन्या को उसके जन्म के रहस्य का वर्णन, व्यास का जन्म ), ५.३.९७.९०( पराशर आदि ऋषियों द्वारा व्यास से नर्मदा के केवल उत्तर तट पर ही भोजन करने की मांग, व्यास द्वारा तप से भोजन की प्राप्ति ), ५.३.२३१.२१( रेवा तट पर २ पराशरेश्वर लिङ्गों के होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४१०.५३( शक्ति व अदृश्यन्ती - पुत्र, जन्म समय पर पितरों आदि के हर्ष का कथन ), १.४३७.३५( शत्रु से पराजित राजा मनोजव की पतिव्रता पत्नी सुमित्रा को पराशर द्वारा शत्रु पर विजय प्राप्त करने का उपाय बताना ), १.४८२.२( पराशर व मत्स्यगन्धा कन्या से व्यास के जन्म का वृत्तान्त ) paraashara/ parashara

      Comments on Parashara


      परिकम्प मत्स्य १७९.२४( परिकम्पिनी : अन्धकासुरों के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक )


      परिकूट मत्स्य १९८.१०( कुशिक कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक )


      परिकृष्ट ब्रह्माण्ड १.२.३५.५२( कृत के २४ सामग शिष्यों में से एक )


      परिक्षित वायु ९९.२२९/२.३७.२२४( जनमेजय - पिता ) , द्र. परीक्षित parikshita


      परिघ गर्ग ७.२.२६७( अग्नि द्वारा प्रद्युम्न को परिघ अस्त्र भेंट ), पद्म १.४०.१९१( परिघाकार बाहुओं का उल्लेख ), मत्स्य ४४.२८( रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, विदेह - राजा ), वामन ५७.७०( अंशुमान द्वारा कुमार को प्रदत्त गण का नाम ), वायु ९५.२८/२.३३.२८( रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, विदेह - राजा ), हरिवंश २.११९.१२२( अनिरुद्ध द्वारा युद्ध में प्रयुक्त परिघ के ३२ पैंतरों का कथन ), ३.६१.७(विप्रचित्ति असुर के परिघ अस्त्र का कथन), योगवासिष्ठ ५.६१( राजा परिघ द्वारा तप, पर्णाद नाम प्राप्ति, राजा सुरघु से संवाद ), ५.६२( राजा सुरघु द्वारा परिघ से समाधि के तत्त्व के विषय में पृच्छा ), ५.६३( परिघ द्वारा सुरघु की प्रशंसा ) parigha


      परित्यागसेन कथासरित् ७.८.५३( राजा परित्यागसेन की २ रानियों व २ पुत्रों का वृत्तान्त )


      परिधि लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०१( कृष्ण व मणि - पुत्र, विश्वप्रभा - भ्राता )


      परिप्लव भागवत ९.२२.४२( सुखीनल - पुत्र, सुनय - पिता ), वायु ९९.२७५/२.३७.२७१( सुखीबल - पुत्र, सुनय - पिता ) pariplava


      परिमल भविष्य ३.३.५.१४( प्रद्योत - पुत्र ), ३.३.७.५( शिव द्वारा परीक्षार्थ परिमल का सर्परोग से ग्रसन, रोग से मुक्ति पर परिमल द्वारा सुवर्ण प्रदान करने वाले लिङ्ग की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.३.२४.१६( परिमल द्वारा कृष्णांश आदि का राज्य से निष्कासन ), ३.३.२६.८( महावती पुरी का राजा, ब्रह्मानन्द - पिता, पृथ्वीराज की सेना का संहार ), ३.३.२७.१०( परिमला : प्रद्योत - कन्या, दु:शला का अंश, कमलापति से विवाह, जननायक नामक पुत्र ), ३.३.३२.२१४( पृथ्वीराज द्वारा रुद्र - प्रदत्त बाण से परिमल का वध ) parimala


      परिमलालय स्कन्द ४.२.७६.७८( विद्याधर मन्दारदाम - पुत्र, रत्नावली से विवाह, पूर्व जन्म में पारावत ), लक्ष्मीनारायण १.४७२.६१( मन्दारदाम विद्याधर - पुत्र, रत्नावली आदि ३ पत्नियों की प्राप्ति, परिमलालय व उसकी पत्नियों के २ पूर्व जन्मों का वृत्तान्त ),


      परिमाण मार्कण्डेय ४६.३६/४९.३६( परमाणु, अङ्गुल आदि परिमाणों का कथन )


      परिवत्सर द्र. वत्सर


      परिवर्त मार्कण्डेय ५१.१३/४८.१३( दुःसह व निर्मार्ष्टि की १६ सन्तानों में से एक, परिवर्त के कार्य तथा उससे रक्षा का कथन ), शिव ३.५( द्वापर का अन्य नाम ), कथासरित् ८.३.११८( याज्ञवल्क्य द्वारा परिवर्त्तिनी/विपरिवर्त्तिनी विद्या मय को सिखाने का कथन ) parivarta



      परिवर्तन कथासरित् ८.३.११८( सूर्यप्रभ द्वारा याज्ञवल्क्य से परिवर्तिनी विद्या की प्राप्ति का कथन )


      परिवह ब्रह्माण्ड १.२.२२.५०( परिवह वायु के महत्त्व का कथन : आकाशगङ्गा को धारण करने वाले ), २.३.५.८९( आवह आदि वातस्कन्धों के अन्तर्गत परिवह वातस्कन्ध की ऋषियों से ऊर्ध्व और ध्रुव पर्यन्त स्थिति का उल्लेख ), मत्स्य १६३.३३( हिरण्यकशिपु के क्रुद्ध होने पर आवह आदि ७ वायुओं के क्षुभित होने का उल्लेख ), वायु ५१.४६( परिवह वायु के महत्त्व का कथन : आकाशगङ्गा को धारण करने वाले ), ६७.१२०/२.६.१२०( आवह आदि ७ मरुत स्कन्धों के अन्तर्गत परिवह की सप्तर्षियों व ध्रुव के मध्य में स्थिति का कथन ) parivaha


      परिवृत्ता ब्रह्माण्ड २.३.७.४१४( ऋषा की ५ पुत्रियों में से एक, शंख विकारों, कालकंठ विकारों तथा जलूका विकारों की माता ), वायु ६९.२९१/२.८.२८५( ऋषा की ५ पुत्रियों में से एक, शंख विकारों, कालकूट विकारों व जलौक विकारों की माता ) parivrittaa


      परिव्राट मार्कण्डेय ११३.२९/११०.२९( परिव्राजक/नारद द्वारा वैश्य नाभाग के पिता दिष्ट को वैश्य पुत्र से न लडने का निर्देश ),


      परिष्वङ्ग भागवत १०.८५.५१( देवकी के षड्गर्भ संज्ञक पुत्रों में से एक )


      परिहार भविष्य ३.१.६.४७( कान्यकुब्ज द्विज द्वारा उत्पन्न क्षत्रिय कुलों में से एक, अथर्ववेदी )


      परीक्षित अग्नि ६५.१( परीक्षित भूमि पर वास्तु याग करने का निर्देश ), देवीभागवत २.८+ ( सर्प द्वारा परीक्षित के दंशन की कथा ), ब्रह्म १.११.१२३( अभिमन्यु - पुत्र, पारीक्षित - पिता ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.४९( तामस मनु के पुत्रों में से एक ), भविष्य ३.४.९.३( त्रेतान्त में राजा परीक्षित की कन्या भानुमती पर नारद की आसक्ति, सविता के भानुमती से विवाह आदि का वृत्तान्त ), भागवत १.८( उत्तरा के गर्भ की कृष्ण द्वारा अश्वत्थामा के अस्त्र से रक्षा का वर्णन ), १.१२( कृष्ण द्वारा उत्तरा के गर्भ की रक्षा, परीक्षित का जन्म ), १.१२.३०( परीक्षित के नाम का कारण ), १.१७( परीक्षित द्वारा गौ व वृषभ का ताडन करने वाले कलियुग का दमन ), १.१८( परीक्षित द्वारा शमीक ऋषि का सर्प द्वारा अपमान, शृङ्गी द्वारा परीक्षित को शाप ), १.१९( परीक्षित द्वारा अनशन व्रत, शुकदेव से भेंट ), ९.२२.४( कुरु के ४ पुत्रों में से एक ), ९.२२.९( परीक्षित् के अनपत्य होने का उल्लेख ), १२.६( तक्षक द्वारा दंशन से परीक्षित की मृत्यु ), मत्स्य ५०.२३( कुरु के ४ पुत्रों में से एक ), वायु ९९.२१८/२.३७.२१३( कुरु के ४ पुत्रों में से एक ), वायु ९९.४१५/२.३७.४०९( महादेव के अभिषेक काल से लेकर परिक्षित के जन्म तक के काल की गणना ), विष्णु ४.२१( परीक्षित वंश का वर्णन ), ५.३८.९२( पाण्डवों द्वारा परीक्षित को राज्य देकर वनगमन का उल्लेख ), स्कन्द २.१.११.६( स्वामिपुष्करिणी माहात्म्य के संदर्भ में तक्षक द्वारा परीक्षित के दंशन की कथा ), २.६.१+ ( परीक्षित का वज्रनाभ से मिलन, शाण्डिल्य से संवाद ), २.६.३.१( उद्धव द्वारा परीक्षित को श्रीमद्भागवत की महिमा का वर्णन तथा कलि के निग्रह का निर्देश ), २.६.३.५२( परीक्षित का विष्णुरात उपनाम ), ५.२.८४( उत्तरेश्वर माहात्म्य के संदर्भ में कन्या प्राप्ति के लिए परीक्षित द्वारा दर्दुरों के वध की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.५७( राजा बर्हिषाङ्गद द्वारा ऋषि के गले में मृत सर्प डालने की कथा ), १.६०.८ (धन्वन्तरि विप्र द्वारा हाटकाङ्गद को सर्पदंश से बचाने का प्रयास, सर्प से धन लेकर लौटना), , द्र. परिक्षित pareekshita/ parikshita

      Comments on Pareekshita


      परीज लक्ष्मीनारायण २.१६७.३०( इन्दुराय नृप से साथ परीज मुनि का उल्लेख ), २.१८८.१००( परीज पर्वत के राजा इन्दुराय द्वारा श्रीहरि के स्वागत का वर्णन )


      परीवान् विष्णु ३.१.११( स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), द्र. मन्वन्तर


      परीशान लक्ष्मीनारायण २.१६७.२९( फेरुनस ऋषि सहित परीशान नृप का उल्लेख ), २.१८६.९( श्रीहरि का परीशान नृप की नगरी में भ्रमण, उपदेश आदि ),


      परुष द्र. पारुष्य


      परुष्णी ब्रह्म २.७४.१( आत्रेया का पति अङ्गिरस के परुष वचनों की शान्ति के लिए परुष्णी नदी बनना ) parushni


      परूषक वायु ३८.६३( शङ्कुकूट व वृषभ पर्वत के मध्य स्थित परूषक स्थली के महत्त्व का कथन )


      परोक्ष अग्नि ३४८.१२( एकाक्षर कोश के अन्तर्गत स: वर्ण से परोक्ष के बोध का उल्लेख ), गरुड ३.१२.४१(अपरोक्ष-परोक्ष ज्ञान का विवेचन), भागवत ९.२३.१( अनु के ३ पुत्रों में से एक )


      परोपकारी कथासरित् ५.१.१९( परोपकारी राजा की पुत्री कनकरेखा के विवाह का वृत्तान्त )


      पर्जन्य कूर्म १.४३.२१( आश्विन मास में सूर्य का नाम व पर्जन्य सूर्य की रश्मि संख्या का उल्लेख - पर्जन्योऽश्वयुजि त्वष्टा कार्तिके मासि भास्करः । ), गरुड ३.१३.५१(मन्त्रयन्त्राभिमानी देवता - कर्मदेवानन्तरं तु त्रिंशद्वर्षादनन्तरम् । पर्जन्यमसृजद्ब्रह्मा मन्त्रयन्त्राभिमानिनम् ॥ ), ३.२९.१२(आदित्य व गङ्गा-पुत्र, निरुक्ति : सुवैराग्य का वर्षण करने वाला, शरभ से तादात्म्य - आदित्याच्चैव गङ्गातः पर्जन्यः समुदाहृतः । प्रवर्षति सुवैराग्यं ह्यतः पर्जन्यनामकम् ॥), ३.२९.१५(शरभ नाम), देवीभागवत १२.४.९( हृदय में पर्जन्य का न्यास - बाह्वोर्मरुतः । हृदये  पर्जन्यः । आकाशमुदरम् । ), ब्रह्माण्ड १.२.११.१९( भरताग्नि व सद्वती - पुत्र ; मारीची - पति, हिरण्यरोमा - पिता ), १.२.२१.५७( लोकपालों में से एक ), १.२.२२.४९( हेमन्त ऋतु में पर्जन्य द्वारा शीत की वर्षा करने का उल्लेख - तेषामाप्यायनं धूमः सर्वेषामविशेषतः । तेषां श्रेष्ठस्तु पर्जन्यश्चत्वारश्चैव दिग्गजाः ।। ), १.२.२३.१२( आश्विन्(?) मास में तपने वाले सूर्य का पर्जन्य नाम - शरद्यन्याः पुनः शुभ्रा वसंति मुनिदेवताः। पर्जन्यश्चैव पूषा च भारद्वाजः सगौतमः ।। ), १.२.३६.६२( रैवत मन्वन्तर के ७ ऋषियों में से एक ), २.३.७.३( दक्ष व मुनि के मौनेय संज्ञक १६ देवगन्धर्वों में से एक ), २.३.८.२०( उत्तर दिशा के अधिपति के रूप में पर्जन्य - पुत्र हिरण्यरोमा का उल्लेख - तथा हिरण्यरोमाणं पर्जन्यस्य प्रजापतेः ॥ उदीच्यां दिशि दुर्द्धर्षपुत्रं राज्येऽभ्यषेचयत् ।), भागवत २.६.७( विराट् पुरुष का लिङ्ग पर्जन्यात्मक होने का उल्लेख - अपां वीर्यस्य सर्गस्य पर्जन्यस्य प्रजापतेः । पुंसः शिश्न उपस्थस्तु प्रजात्यानन्द निर्वृतेः ॥  ), ४.१४.२६( वर व शाप देने में समर्थ देवताओं में से एक - पर्जन्यो धनदः सोमः क्षितिरग्निरपाम्पतिः ॥ एते चान्ये च विबुधाः प्रभवो वरशापयोः । ), १२.४.७( प्रलय काल में पर्जन्य वर्षण न होने का उल्लेख - पर्जन्यः शतवर्षाणि भूमौ राजन्न वर्षति ।), १२.११.४०( तपस्य/फाल्गुन मास में पर्जन्य(?) नामक सूर्य के तपने का कथन ), मत्स्य ४.२९( भगवान् वामदेव द्वारा पर्जन्य की सृष्टि का उल्लेख - विद्युतोऽशनिमेघाश्च रोहितेन्द्रधनूंषि च। छन्दांसि च ससर्जादौ पर्जन्यं च ततः परम्।। ), ९.१९( रैवत मन्वन्तर के ७ ऋषियों में से एक ), २५३.२४( ८१ पदीय वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक ), वामन ६५.३०( पर्जन्य व घृताची - कन्या वेदवती का प्रसंग - ततोऽभ्यागाद् वेदवती नाम्ना गन्धर्वकन्यका। पर्जन्यतनया साध्वी घृताचीर्गर्भसंभवा।। ), वायु २८.१५( अग्नि व संहूति - पुत्र, मारीची - पति, हिरण्यरोमा - पिता ), ५०.२०६( लोकपालों में से एक ), ५२.१२( शरद् ऋतु के २ आदित्यों में से एक - शरदृतौ पुनः शुभ्रा वसन्ति मुनि देवताः। पर्ज्जन्यश्चाथ पूषा च भरद्वाजः सगौतमः ।। ), ६६.६६/२.५.६६( कश्यप - पुत्र १२ आदित्यों में से एक ), ६९.३/२.८.३( दक्ष व मुनि के मौनेय संज्ञक १६ देवगन्धर्वों में से एक ), ७०.१३/२.९.१३( सागरों, नदियों, मेघों आदि के अधिपति के रूप में पर्जन्य आदित्य के अभिषेक का उल्लेख - सागराणां नदीनाञ्च मेघानां वर्षितस्य च। आदित्यानामन्यतमं पर्जन्यमभिषिक्तवान् ।।  ), विष्णु १.२२.१४( पर्जन्य प्रजापति - पुत्र हिरण्यरोमा के उदीची दिशा के राजा बनने का उल्लेख ), २.१०.१२( कार्तिक में पर्जन्य सूर्य के तपने का उल्लेख - विश्वावसुर्भरद्वाजः पर्जन्यैरावतौ तथा विश्वाची सेनजिच्चापि कार्त्तिके च वसन्ति वै ), ३.१.२२( रैवत मन्वन्तर के ७ ऋषियों में से एक ), शिव ५.३३.१७( पर्जन्य के धनाध्यक्ष होने का उल्लेख - पर्जन्यस्तु धनाध्यक्षस्तस्य सर्वमिदं जगत् ।। ), महाभारत वन ३१३.७२( पर्जन्य के मनुष्य का उपजीवन होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद - उपजीवनं च पर्जन्यो दानमस्य परायणम् ॥ ), कर्ण २०.२९(पर्जन्य के पूषानुज होने का उल्लेख), वा.रामायण १.१७.१५( पर्जन्य का शरभ वानर के रूप में जन्म का उल्लेख ), कथासरित् ५.२.४१( शक्तिदेव की कथा के संदर्भ में पर्जन्य राक्षस द्वारा समुद्र में नौका को डुबाने का उल्लेख ), द्र. मन्वन्तर, रथ सूर्य, वास्तुमण्डल, parjanya


      पर्ण ब्रह्माण्ड २.३.७.४५३( पर्णमाल : गरुड के पुत्रों द्वारा व्याप्त पर्वतों में से एक ), ३.४.३३.५२( मुक्ताफलमय शाला में ताम्रपर्णी व महापर्णी नदियों की स्थिति का उल्लेख ),भविष्य २.१.१७.९( पर्ण दाह में अग्नि के यम नाम का उल्लेख ), मत्स्य १९७.६( पर्णवि : त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), स्कन्द ७.१.२५९( पर्णाद द्विज द्वारा स्थापित पर्णादित्य का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५४५.८( आतापि राक्षस के पर्णशाला बनने का कथन ), २.२१०.५९( तनु व ऋषभ मुनियों के संवाद में चिदाकाश रूपी पर्णकुटी में आश्रय का निरूपण ), ३.७५.८०( शष्प व शैवाल पर्ण भक्षण व्रतों से अमरावती व वारुण लोक प्राप्ति का उल्लेख ), द्र. एकपर्णा, ताम्रपर्णी, सुपर्ण parna


      पर्णाशा ब्रह्म १.१३.३६( पर्णाशा का देवावृध की भार्या बनना, बभ्रु - माता ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.७( पर्णाशा नदी का देवावृध की भार्या बनकर बभ्रु पुत्र उत्पन्न करने का वृत्तान्त ), मत्स्य ४४.५२( पर्णाशा नदी द्वारा देवावृध की भार्या बनकर बभ्रु पुत्र उत्पन्न करने का वृत्तान्त ), ११४.२३( पारियात्र पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), वामन ५७.८१? ( पर्णाशा द्वारा स्कन्द को गण प्रदान का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४८( पर्णाशा नदी के भुजग वाहन का उल्लेख ), हरिवंश १.३७.७( पर्णाशा नदी का देवावृध की भार्या बनना, बभ्रु - माता ), parnaashaa/ parnasha


      पर्णिनी ब्रह्माण्ड २.३.७.१४( १० अप्सराओं के गण में से एक ), वायु ६९.५/२.८.५( १४ मौनेया अप्सराओं में से एक )


      पर्यङ्क गरुड ३.२.३३(विष्णु शयन काल में श्री के पर्यंक व रमा के वास बनने का उल्लेख), ३.२४.९४(श्रीनिवास की पीठ की पर्यङ्क रूप में कल्पना), वायु २४.११( विष्णु के सहस्र फणों वाले नाग के महत् पर्यङ्क पर शयन का उल्लेख ), शिव ७.२.३७.२० (स्वस्तिकं पद्ममध्येंदुं वीरं योगं प्रसाधितम् ॥पर्यंकं च यथेष्टं च प्रोक्तमासनमष्टधा ॥), लक्ष्मीनारायण १.५५६.९०( रेवा नदी के पर्यङ्क पर्वत पर अवतरित होने तथा पर्यङ्क पर्वत से निकल कर वारुणी दिशा में जाने का उल्लेख ) paryanka


      पर्यायवाची विष्णुधर्मोत्तर ३.१०( मनुष्य, स्त्री आदि विभिन्न शब्दों के पर्यायवाची नाम ),


      पर्यावर्तन भागवत ५.२६.७( २८ नरकों में से एक )


      पर्युषित गरुड २.१२( पर्युषित, सूचीमुख आदि पांच प्रेतों की कथा ), पद्म १.३२.२१( पृथु ब्राह्मण से पर्युषित प्रेत का संवाद, मुक्ति ), स्कन्द ७.१.२२३.३४, ६८( ५ प्रेतों में से एक का नाम, गौतम द्वारा प्रेतों की मुक्ति की कथा ) paryushita


      पर्व ब्रह्माण्ड १.२.११.१५( पर्वश: व पर्वशा की सन्तानों के नाम ), १.२.२८.३४( मास के शुक्ल व कृष्ण पक्षों की वेणु, इक्षुदण्ड के पर्वों से तुलना, वेणु के पर्वों की सन्धियों व ग्रन्थियों की पूर्णमास व अमावास्या आदि से तुलना ), मत्स्य १४१.२९( संवत्सर के अवयवों अब्द, मास, पक्ष आदि के संदर्भ में पर्व सन्धियों की परिभाषा तथा महत्त्व का वर्णन ), मार्कण्डेय १३.१८( पर्व काल में पितरों तथा तिथिकाल में देवों के आगमन का उल्लेख ), वायु १.६.३५( अविद्या के तम, मोह आदि ५ पर्वों के नाम ), २८.१२( पर्वस व पर्वसा के गोत्रकार २ पुत्रों के नाम ), ५६.३२( संवत्सर के अवयवों अब्द, मास, पक्ष आदि के संदर्भ में पर्व सन्धियों की परिभाषा तथा महत्त्व का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४८४.३२( पर्वों पर मैथुन के वर्जन के संदर्भ में पुरुहूता - जाबालि व निषाद - नैषादी का आख्यान ), २.१८९.२१( अविद्या रूपी पर्व से कृष्ण के शून्य होने का उल्लेख ), द्र. वृषपर्वा, सुपर्व parva


      पर्वत अग्नि १०८.५( जम्बू द्वीप के मध्य में स्थित मेरु पर्वत के दक्षिण व उत्तर में स्थित वर्ष पर्वतों के नाम ), १०८.१०( मेरु के परित: इलावृत में पूर्वादि चार दिशाओं में मन्दर आदि ४ पर्वतों के नाम ), १०८.१४( मेरु की पूर्वादि ४ दिशाओं में सुपार्श्व आदि पर्वतों के नाम ), १०८.१६( मेरु के परित: अरुणोद आदि केशराचलों के नाम ), १०८.२३( मेरु के परित: स्थित मर्यादा पर्वतों जठर, देवकूट आदि की स्थितियों का कथन ), गरुड २.२२.५७( पर्वतों का दिशाओं के सापेक्ष विन्यास ), गर्ग ६.१४(राजा रैवत द्वारा मेधावी पर्वत को द्वारका में स्थापित करने की कथा), देवीभागवत ६.२६( नारद की सञ्जय - पुत्री दमयन्ती में आसक्ति होने पर नारद के भागिनेय/भानजे पर्वत द्वारा नारद को वानरमुखत्व का शाप व नारद द्वारा पर्वत को प्रतिशाप - स्नानायोष्णजलं मह्यं पर्वताय च शीतलम् । दधि मह्यं तथा तक्रं पर्वतायाप्यकल्पयत् ॥  ), ६.२७.३६( पर्वत द्वारा नारद को चारु मुख करना, नारद द्वारा पर्वत को स्वर्ग लोक गमन योग्य करना ), पद्म १.४०.४( हिरण्मय पद्म के केसर का रूप ), ६.३९.२४( पर्वत मुनि द्वारा वैखानस राजा को एकादशी व्रत का कथन ), ६.१९९.४( नारद व पर्वत का खाण्डव वन में गमन, नारद का शिबि औशीनर से संवाद ), ब्रह्म १.१६.१३( जम्बू द्वीप के मध्य में स्थित व भूपद्म के कर्णिकाकार रूप मेरु पर्वत के विस्तार तथा मेरु के परित: स्थित वर्ष पर्वतों व वर्षों का कथन ), १.१६.२०( इलावृत के मध्य में स्थित मेरु तथा इलावृत की चार दिशाओं में स्थित पर्वतों के नाम ), ब्रह्मवैवर्त्त २.७.१०८(विभिन्न देवियों द्वारा तप हेतु विभिन्न पर्वतों का चुनाव), ब्रह्माण्ड १.२.७.९( पर्वतों की उत्पत्ति व नाना अर्थ ), १.२.१९.९( नारद पर्वत पर नारद व पर्वत की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.२.१९.१३७( अपर्वा होने पर गिरि तथा पर्ववान् होने पर पर्वत नाम का उल्लेख ), १.२.३५.९५( नारद व पर्वत के कश्यप - पुत्र होने का उल्लेख ), २.३.७.२७( नारद, पर्वत व अरुन्धती के देवर्षियों से जन्म का उल्लेख ), २.३.८.८६( कश्यप से नारद, पर्वत व अरुन्धती के जन्म का उल्लेख ), २.३.३८.४४( मत्स्यराज द्वारा परशुराम पर पर्वतास्त्र के प्रयोग का उल्लेख, परशुराम द्वारा वायव्य अस्त्र से पर्वतास्त्र का निराकरण ), ३.४.१.८४( रुद्र सावर्णि मन्वन्तर के हरित नामक देवगण के १० देवों में से एक ), भविष्य २.१.१७.१५( पर्वताग्नि का क्रतुभुज नाम ), ४.१३.८( सञ्जय - पुत्री से नारद के विवाह पर पर्वत द्वारा नारद को स्वर्ग न जाने का शाप, नारद द्वारा प्रतिशाप आदि ), ४.१९५+ ( दशविध पर्वत दान विधि व माहात्म्य ), भागवत १.१३.३७(पर्वत का तुम्बुरु से साम्य?), ५.१९.१६+ ( भारत तथा ६ द्वीपों में पर्वत ), मत्स्य ८३+ ( मेरु पर्वत दान भेद वर्णन ), १२२.१६(आम्बिकेय/सुमना पर्वत पर वराह द्वारा हिरण्याक्ष के वध का उल्लेख), १२३.३६(पर्वत व गिरि की निरुक्ति), मार्कण्डेय ५४.९/५१.९( हिमवान्, हेमकूट आदि ७ वर्ष पर्वतों के नाम; पर्वतों के मध्य में स्थित पर्वतों व वर्षों का वर्णन ), ५४.१४/५१.१४( मेरु पर्वत के परित: ४ दिशाओं में स्थित मन्दर, गन्धमादन आदि पर्वतों का वर्णन ), ५५.१/५२.१( मन्दरादि ४ पर्वतों पर वनों व सरोवरों की स्थितियों तथा मेरु के परित: अन्य पर्वतों का वर्णन ), ५७.१०/५४.१०( भारत के महेन्द्र, मलय आदि ७ कुलाचलों तथा अन्य पर्वतों के नाम ), ५९.४/५६.४( भद्राश्व वर्ष के श्वेतपर्ण आदि ५ कुलपर्वतों के नाम ), ५९.१३/५६.१३( केतुमाल वर्ष के विशाल आदि ७ कुलपर्वतों के नाम ), लिङ्ग १.४९( पृथिवी पर मेरु के सापेक्ष विभिन्न पर्वतों की स्थितियों का वर्णन ), २.५.५३( नारद व पर्वत द्वारा अम्बरीष - कन्या श्रीमती को प्राप्त करने की चेष्टा, विष्णु से वानर मुख प्राप्ति, अम्बरीष को शाप आदि ), वराह ७८( चार मुख्य सरोवरों के निकट पर्वत ), ७९( मणिशैल पर्वत का वर्णन ), ८१( पर्वतों पर देवस्थानों का वर्णन ), ८३( निषध पर्वत के अन्तर्गत पर्वतों व नदियों के नाम ), ८५( भारत में पर्वतों के नाम ),वायु १.६.२७/६.२८( वराह द्वारा पृथिवी पर स्थापित पर्वतों की आरम्भिक व परवर्ती स्थितियों का कथन ; गिरि, पर्वत, अचल आदि पर्यायवाची शब्दों की निरुक्तियां ), ३५.१( मेरु के मूल रूप मर्यादा पर्वतों का कथन ), ३५.१६( मेरु की चार दिशाओं में स्थित मन्दर आदि पर्वतों पर स्थित केतु रूप वृक्षों का वर्णन ), ३६.१( ४ महाशैलों पर स्थित वनों की शोभा का वर्णन ), ३६.१७( मेरु की ४ दिशाओं में स्थित पर्वतों के नाम ), ३७.१( मुख्य पर्वतों के बीच स्थित स्थलों, द्रोणियों, सरों का वर्णन ), ३९( विभिन्न पर्वतों पर देवों, गन्धर्वों, दानवों आदि के वासों का वर्णन ), ४०( मर्यादा पर्वत के शिखरों पर देवों आदि के वासों का वर्णन ), ४९.१३२( पर्व वाले पर्वत ), ६१.८५( नारद व पर्वत के कश्यप - पुत्र होने का उल्लेख ), ६९.६४( प्रजापति के नारद पर्वत पर स्खलित वीर्य से पर्वत मुनि की उत्पत्ति ), ७०.७९/२.९.७९( कश्यप से नारद, पर्वत व अरुन्धती के जन्म का उल्लेख ), १००.८९/२.३८.८९( पर्वतानुचर : ऋतुसावर्णि मन्वन्तर में हरित नामक देवगण के १० देवों में से एक ), वा.रामायण ५.१.१५( समुद्र पार जाने हेतु हनुमान द्वारा महेन्द्र पर्वत का पीडन), ५.१.९१(मैनाक पर्वत द्वारा प्लवमान हनुमान के स्वागत का कथन), ६.१०१.३०( हनुमान द्वारा महोदय पर्वत से ओषधि लाने का कथन), विष्णु १.१०.६( मरीचि व विरजा? - पुत्र ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०.१( महेन्द्र आदि ७ कुलपर्वतों व उनसे विनि:सृत नदियों के नाम ), १.४२.२४( मोहिनी रूप धारी विष्णु के पार्श्वों में पर्वतों की स्थिति का उल्लेख - पार्श्वयोः पर्वताश्चैव दैत्येशः सर्वदेवताः ।। ), १.५३.३८( शक्र द्वारा पर्वतों के पक्ष काटने का उल्लेख ), शिव १.१८.४६( पर्वत के पुरुष और भूमि के प्रकृति का रूप होने का उल्लेख - पर्वतं पौरुषं प्रोक्तं भूतलं प्राकृतं विदुः। ), स्कन्द १.१.२७.१( शिव - पार्वती के विवाह के अवसर पर विष्णु द्वारा पूजित पर्वतों के नाम - तथैव विष्णुना सर्वे पर्वताश्च प्रपूजिताः॥ सह्याचलश्च विंध्यश्च मैनाको गंधमादनः॥  ), १.१.३१.८१( कार्तिकेय द्वारा तारक वध पर गिरियों द्वारा कार्तिकेय की स्तुति, कार्तिकेय द्वारा पर्वतों को पूज्यत्व का वरदान ), १.२.४२.१६०( विद्यावन में स्थित तेज, अभयदान आदि ७ पर्वतों के नाम - तेजश्चाभयदानत्वमद्रोहः कौशलं तथा॥
      अचापल्यमथाक्रोधः प्रियवादश्च सप्तमः॥ ), १.२.६२.३५( पर्वतों पर कुरव जाति के क्षेत्रपालों की स्थिति का उल्लेख ), २.१.१.३७( पृथिवी को स्थिरता देने वाले विभिन्न मुख्य पर्वतों के नाम - सुमेरुर्हिमवान्विंध्यो मन्दरो गंधमादनः ।। सालग्रामश्चित्रकूटो माल्यवान्पारियात्रकः ।।..), ३.१.४( इन्द्र द्वारा पर्वतों के पक्ष छेदन व उसका कारण ), ३.१.४९.४४(विषय की क्रूर पर्वत से उपमा - क्रोधेर्ष्या लोभवह्नौ च विषयक्रूरपर्वते ।।), ४.१.२.७८( गौ के खुराग्रों में सर्व पर्वतों की स्थिति ), ४.२.६१.७८( पर्वत तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८४.८१( पर्वत तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.२८.९३(धान्य आदि १० की पर्वत संज्ञा), हरिवंश ३.३५( विभिन्न दिशाओं में यज्ञ वराह द्वारा पर्वतों का निर्माण ), ३.४०.१८( इन्द्र द्वारा पर्वतों के पक्षों का छेदन ), महाभारत वन १३५.४८( बालधि के पुत्र मेधावी की आयु पर्वतों के आधीन होना, पर्वतों के भङ्ग होने पर मेधावी की मृत्यु ), कर्ण ४५.३५( पर्वतीयों की विषय विशेषता का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१५४( मेरु पर स्थित कुमुद, मन्दर व अरुणाद्रियों पर विष्णु, शिव व ब्रह्मा का वास, पर्वत - त्रय का उड कर तैजस रूप में रैवताचल पर स्थित होने का वृत्तान्त, रैवताचल की महिमा ), १.४११.६०( नारद व पर्वत ऋषियों द्वारा अम्बरीष - कन्या श्रीमती से विवाह की इच्छा, नारद व पर्वत द्वारा वानरमुखता प्राप्ति, विष्णु व अम्बरीष को शाप, सुदर्शन चक्र द्वारा मुनिद्वय का पीछा, विष्णु की शरण से सुदर्शन से छुटकारा ), १.५११.७८( देवशर्मा - कन्या उदुम्बरी के पूर्व जन्म में पर्वत ऋषि की पुत्री होने का उल्लेख, नारद शाप से पृथिवी पर आना, सोमयाग में औदुम्बरी का प्रसंग ), १.५१४.९(३ महत्त्वपूर्ण पर्वतों के नाम), ३.३३.५६( हिरण्य नामक संवत्सर में पृथिवी पर पर्वतों द्वारा मेरु के समीप स्थित होने की स्पर्द्धा के कारण पर्वतों की अस्थिरता, इन्द्र द्वारा पर्वतों में अनुशासन की स्थापना करने में असफलता, विष्णु द्वारा हिरण्य नारायण रूप में पर्वतों पर स्थित होने पर पर्वतों का स्थिर होना - अहं मेरोः सन्निधाने निवत्स्यामि न दूरतः । अहं चाऽह तथेत्येवमन्योन्येषां विवादनम् ।।), कथासरित् ८.२.३४७( महल्लिका की १२ सखियों में पर्वत मुनि की कन्या - द्वय अमृतप्रभा व केशिनी का उल्लेख, सूर्यप्रभ की पत्नियां बनना ), द्र. नारद - पर्वत, वंश मरीचि, शरीर parvata

      Comments on Parvata


      पर्शु ब्रह्मवैवर्त्त ३.३.२५( पर्शुओं में विष्णुपञ्जर की उत्कृष्टता का उल्लेख - शालग्रामश्च मूर्तीनां पर्शूनां विष्णुपञ्जरः ।। ) parshu


      पललक विष्णु ४.२४.४७( हालाहल - पुत्र, पुलिन्दसेन - पिता, अन्ध्र वंश )


      पलाण्डु ब्रह्माण्ड १.२.३२.६( चरकाध्वर्यु संज्ञक ८६ श्रुतर्षियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.३७.५७( वराटक दैत्य के योद्धाओं में से एक, प्रभु प्रसाद से कन्द रूप होना ),


      पलाश अग्नि ८१.४९( वशीकरण व आकर्षण हेतु होम द्रव्य ), गरुड १.१०७.३१( अग्निहोत्र विधि से मृतक विप्र के दहन हेतु कृष्णाजिन् पर ६०० पलाश पत्र बिछाने का निर्देश ), देवीभागवत ९.२२.१०( शङ्खचूड - सेनानी, आदित्यों से युद्ध का उल्लेख ), नारद १.५६.२०६( पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र से पलाश की उत्पत्ति ), पद्म १.२८.२६( पलाश वृक्ष के ब्रह्मप्रद होने का उल्लेख ), ६.६४.२६( पलाश पत्र की महिमा ), ६.११८.३६( पलाश पत्रों का त्रिदेव रूप ), ब्रह्म २.३३.६( प्रियव्रत के यज्ञ में दानव आगमन पर सोम का शरण स्थल ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३८( पलाशिनी : शुक्तिमान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), १.२.१६.४७( उत्तर दिशा के देशों में से एक ), २.३.११.३५( बलि पात्रों के संदर्भ में पलाश द्वारा ब्रह्मवर्चस्व प्राप्ति का उल्लेख ), मत्स्य १०.२७( वृक्षों द्वारा वसुधा दोहन में पलाश के पात्र बनने का उल्लेख ), ११४.४०( उत्तर दिशा के देशों में से एक ), वामन १७( पलाश की यम से उत्पत्ति ), शिव २.५.३६.१४( शङ्खचूड - सेनानी, आदित्यों से युद्ध ), वायु ४४.१८( पलाशा : केतुमाल देश की नदियों में से एक ), ४५.१०७( पलाशिनी : शुक्तिमान् पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक ), स्कन्द १.२.६३.४३( पलाशी दैत्य द्वारा क्षपणक रूप धारण कर बर्बरीक को अहिंसा की शिक्षा, बर्बरीक द्वारा ताडन पर दैत्य का भूविवर में प्रवेश, बर्बरीक द्वारा पलाशी के वध का वृत्तान्त ), २.४.३.३८टीका ( ब्रह्मा का रूप ), ६.२४८( पलाश की महिमा, प्रति अङ्ग में देवों का वास ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८९( वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु चन्द्रमा के पलाश वृक्ष बनने का उल्लेख ), १.४४१.९५( वृक्ष रूपी श्रीहरि के दर्शनार्थ ब्रह्मा के पलाश वृक्ष होने का उल्लेख ), ४.४५.६१( ब्रह्मा के पलाश में वास से पलाश के लाल होने का कथन ) palaasha


      पल्लव लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२६( पल्लवा : कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, पत्रानना व दलेश्वर - माता ), कथासरित् ८.६.११८( राजा महासेन की रानी की सेविका पल्लविका का उल्लेख )


      पल्ली गणेश १.२२.८( सिन्धु देश में पल्ली पुरी में कल्याण वैश्य का वृत्तान्त ),


      पवन गणेश २.७६.१३( पवन के निशुम्भ से युद्ध का उल्लेख ), गर्ग ७.२८.३६? ( वीरधन्वा से युद्ध में कृष्ण - पुत्र पूर्णमास द्वारा पवन पर्वत को वाराही पुरी में फेंकने का कथन ), पद्म ३.२६.१००( पवन ह्रद में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य : वायु लोक की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.११.४१( ऊर्जा व वसिष्ठ के सप्तर्षि संज्ञक ७ पुत्रों में से एक ), भागवत ५.१६.२७( मेरु के पश्चिम में स्थित २ पर्वतों में से एक ), ८.१.२३( उत्तम मनु के पुत्रों में से एक ), मत्स्य १०१.७८( माघ सप्तमी के पवन व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), १४८.८२( पवन के अङ्कुशपाणि होने का उल्लेख ), वायु ५९.११०/xx ( वायु के तीर्थ रूप पुर का कथन ), ६०.६८( पवन पुत्र हनुमान के जन्म पर वायु द्वारा तीर्थ के निर्माण का उल्लेख ), स्कन्द १.१.८.२४( पवन द्वारा काश्मीर लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख ), ४.१.१३.४( पूतात्मा द्वारा स्थापित पवनेश्वर/पवमानेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), कथासरित् ७.२.७३( पवनसेन : पवनसेन वणिक् के पुत्र द्वारा रानी राजदत्ता से समागम आदि का वृत्तान्त ), १८.२.२७७( पवनजव : जयकेतु द्वारा पवनजव नामक अश्व प्राप्त करने का उल्लेख ), द्र. वायु आदि pavana


      पवमान कूर्म १.१३.१५( अग्नि, निर्मथ्य अग्नि का रूप ), नारद १.६०.३४( विष्णु की नि:श्वास रूप पवमान वायु के वहन पर व्यास द्वारा वेद पठन का निषेध ), ब्रह्म २.९४.७( पवमान राजा का चिच्चिक पक्षी/द्विज से संवाद, चिच्चिक का उद्धार ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.२( स्वाहा - पुत्र, मन्थन से उत्पत्ति, कव्यवाहन - पिता ), १.२.१२.११( अथर्वण - पुत्र, गार्हपत्य अग्नि का रूप, शंस्य व शुक - पिता ), १.२.१२.२२( परिषत्पवमान : शंस्य अग्नि व १६ नदियों के धिष्ण्य संज्ञक पुत्रों में से एक ), १.२.२४.१५( अर्चिष्मान पवमान अग्नि के निष्प्रभ व जठराग्नि होने का उल्लेख ), भागवत ४.१.६०( अग्नि व स्वाहा के ३ पुत्रों में से एक, ४५ अग्नियों के ३ पिताओं में से एक ), ४.२४.४( अन्तर्धान व शिखण्डिनी के ३ पुत्रों में से एक, अग्नि का अवतार ), ५.२०.२५( मेधातिथि के ७ पुत्रों में से एक ), मत्स्य ५१.३( अग्नि व स्वाहा - पुत्र, निर्मथ्य अग्नि का रूप, सहरक्षा - पिता ), वायु २९.१०( गार्हपत्य अग्नि का रूप ), विष्णु १.१०.१५( अग्नि व स्वाहा के ३ पुत्रों में से एक, ४५ अग्नियों के ३ पिताओं में से एक ), स्कन्द ४.१.१३.२८( पूतात्मा द्वारा स्थापित पवनेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.११७( वह्नि - पुत्र पवमान द्वारा व्याघ्रारण्य को जलाने पर पिच्छलर्षि द्वारा क्षय का शाप, वराह तथा कृष्ण की कृपा से पवमान की पुन: प्रतिष्ठा का वृत्तान्त ), ३.३२.७( कव्यवाहन अग्नि - पिता ), द्र. वंश अग्नि pavamaana/ pavamana


      पवित्र अग्नि ३६+(पवित्रारोपण विधि), ७८(पवित्रारोहण विधि का वर्णन), गरुड १.४२( शिव हेतु पवित्र आरोपण विधि ), १.४३( विष्णु हेतु पवित्र आरोपण विधि - वनमाला यथा देव कौस्तुभं सततं हृदि ।। तद्वत्पवित्रं तन्तूनां मालां त्वं हृदये धर ।। ), पद्म ६.५५.३६( श्रावण शुक्ल द्वादशी को वासुदेव हेतु पवित्र आरोपण विधि - द्वादश्यां वासुदेवाय पवित्रारोपणं स्मृतम्। हेम रौप्य ताम्र क्षौमैः सूत्रैः कौशेयपद्मजैः॥), ६.८६( पवित्र आरोपण विधि, देवों के लिए पवित्र आरोपण हेतु तिथियां ), ७.२५.९( बहुला - पति पवित्र ब्राह्मण का लोमश से सर्वत्र विष्णु दर्शन विषयक संवाद, अतिथि महिमा, मूषक का घात, तुलसी द्वारा मूषक की मुक्ति ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०८( १४वें मन्वन्तर के ५ देवगण में से एक, ७ लोकों का रूप ), भागवत ८.१३.३३( १४ मनु के काल में देवगण में से एक ), वायु १००.१११/२.३८.१११( भौत्य मन्वन्तर के ५ देवगणों में से एक ), विष्णु ३.२.४३( १४वें मनु के काल में स्थित ५ देवगण में से एक ), महाभारत आश्वमेधिक २१.६( ज्ञान के यज्ञ का पवित्र होने का उल्लेख - चित्तं स्रुवश्च वित्तं च पवित्रं ज्ञानमुत्तमम्। ), कथासरित् १२.६.२२( अट्टहास यक्ष के पवित्रधर नामक मनुष्य के रूप में जन्म लेकर सौदामिनि यक्षिणी से विवाह करने का वृत्तान्त ), द्र. भूगोल, मन्वन्तर pavitra

      Comments on Pavitra by Dr. Tomar


      पवित्रा ब्रह्माण्ड १.२.१९.६२( कुशद्वीप की ७ नदियों में से एक ), भागवत ५.२०.२१( पवित्रवती : क्रौञ्च द्वीप की ७ नदियों में से एक ), मत्स्य १२२.७२( कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक, दूसरा नाम वितृष्णा - पवित्रा तृतीया ज्ञेया वितृष्णापि च या पुनः। ), विष्णु २.४.४३( कुश द्वीप की ७ नदियों में से एक ) pavitraa


      पशु कूर्म १.७.५४( पशुओं की ब्रह्मा के अङ्गों से उत्पत्ति - मुखतोऽजान् ससर्जान्यान् उदराद्‌गाश्चनिर्ममे ।। पद्भ्यांचाश्वान् समातङ्गान् रासभान् गवयान् मृगान् । ), नारद १.६३.१५( पशुपति, पशु व पाश के भेदों का वर्णन - पशवस्त्रिविधाश्चापि विज्ञाताः कलसंज्ञिकाः ।। तलपाकलसंज्ञश्च सकलश्चेति नामतः ।। ), १.९०.७०( तगर द्वारा देवी पूजा से पशु सिद्धि का उल्लेख - रक्तोत्पलैरश्वसिद्धौ कुमुदैश्चरसिद्धये ।। उत्पलैरुष्ट्रसंसिद्ध्यै तगरैः पशुसिद्धये ।।.. ), पद्म १.३.१०५( ब्रह्मा के वक्ष से अवि, मुख से अजा, उदर से गौ आदि की सृष्टि का कथन ; आरण्यक व ग्राम्य पशुओं के नाम - अवयो वक्षसश्चक्रे मुखतोजांश्च सृष्टवान्। सृष्टवानुदराद्गाश्च महिषांश्च प्रजापतिः॥..  ), ५.१०९.५५( धर्म के पशुओं का पालक व अधर्म के तस्कर होने का उल्लेख - पशूनां पालको धर्मः स्यादधर्मश्च तस्करः। ), ब्रह्म २.३४.२७(हरिश्चन्द्र-वरुण आख्यान में यज्ञपशु के लक्षण - राजाऽपि वरुणं प्राह निर्दन्तो निष्फलः पशुः। पशोर्दन्तेषु जातेषु एहि गच्छाधुनाऽप्पते।। ), ब्रह्माण्ड १.२.८.४३( ब्रह्मा के अङ्गों से पशुओं की सृष्टि - मुखतोऽजाः ऽसृजन्सोऽथ वक्षसश्चाप्यवीः सृजन् ॥ … ), १.२.३०.१६( महर्षियों द्वारा यज्ञ में पशु हिंसा की निन्दा, उपरिचर वसु द्वारा हिंसा का समर्थन आदि ), १.२.३२.१० ( मनुष्यों व पशुओं के उत्सेध के अङ्गुलिमानों के कथन सहित मनुष्यों के शरीरों में देवों के लक्षण होने का कथन - मानुषस्य शरीरस्य सन्निवेशस्तु यादृशः ।। तल्लक्षणस्तु देवानां दृश्येत तत्त्वदर्शनात् ।। ), ३.४.६.५३( भगवती माया द्वारा देवों, असुरों व मानवों के संरक्षण हेतु १४ पशुओं का सृजन, देव, पितृ आदि के लिए मेध्य पशु के आलभन आदि का कथन - ससर्ज सर्वदेवांश्च तथैवासुरमानुषान् ॥ तेषां संरक्षणार्थाय पशूनपि चतुर्दश । ), ३.४.६.५७ ( यज्ञ आदि के लिए पशुओं की हिंसा का समर्थन ; पशु को मारने का मन्त्र उद्बुध्यस्व इत्यादि- देवतार्थे च पित्रर्थे तथैवाभ्यागते गुरौ । महदागमने चैव हन्यान्मेध्यान्पशून्द्विजः ॥ ), ३.४.६.६९( पशु के रुद्र से तादात्म्य का कथन - उद्बुध्यस्व पशो त्वं हि नाशिवः सञ्छिवो ह्यसि ॥ ), भागवत ३.१०.२०( ब्रह्मा की आठवीं तिर्यक् सृष्टि में पशुओं आदि की सृष्टि का कथन - तिरश्चामष्टमः सर्गः सोऽष्टाविंशद्विधो मतः । अविदो भूरितमसो घ्राणज्ञा हृद्यवेदिनः ॥), ६.१८.१( सविता व पृश्नि की ८ सन्तानों में से एक - पृश्निस्तु पत्नी सवितुः सावित्रीं व्याहृतिं त्रयीम्। अग्निहोत्रं पशुं सोमं चातुर्मास्यं महामखान् ॥ ), ७.१५.७( श्राद्ध में आमिष अर्पण का निषेध - न दद्यादामिषं श्राद्धे न चाद्याद्धर्मतत्त्ववित्।मुन्यन्नैः स्यात्परा प्रीतिर्यथा न पशुहिंसया॥ ), १०.२३.८( पशुसंस्था आदि यज्ञों में दीक्षित के अन्न का भक्षण करने से दोष न लगने का उल्लेख - दीक्षायाः पशुसंस्थायाः सौत्रामण्याश्च सत्तमाः ।  अन्यत्र दीक्षितस्यापि नान्नमश्नन् हि दुष्यति ॥ ), ११.१०.२८( अविधिपूर्वक पशुओं के आलभन द्वारा भूतप्रेतों का यजन करने से नरक प्राप्ति का उल्लेख - पशूनविधिनालभ्य प्रेतभूतगणान्यजन्। नरकानवशो जन्तुर्गत्वा यात्युल्बणं तमः  ), ११.२१.३०( खल पुरुषों द्वारा यज्ञों में पशुओं के आलम्भन द्वारा देवताओं आदि के यजन का उल्लेख - हिंसाविहारा ह्यालब्धैः पशुभिः स्वसुखेच्छया।
      यजन्ते देवता यज्ञैः पितृभूतपतीन्खलाः ॥ ), मत्स्य १७.३०( विभिन्न पशुओं के मांस से पितरों की तृप्ति का कथन - द्वौ मासौ मत्स्यमांसेन त्रीन्मासान्‌ हारिणेन तु। औरभ्रमेणाथ चतुरः शाकुनेनाथ पञ्च वै।।  ), २४६.६४( महामखों, इष्टियों व पशुबन्धों के विष्णु का उदर रूप होने का उल्लेख - स्तनौ कुक्षी च वेदाश्च उदरञ्च महामखाः ।। इष्टयः पशुबन्धाश्च द्विजानां वीक्षितानि च।), लिङ्ग १.८०.४७( देवों के पशुत्व के विशोधन के लिए शिव द्वारा पाशुपत व्रत का उपदेश देने का कथन - पुरा पुरत्रयं दग्धुं पशुत्वं परिभाषितम्।। शंकिताश्च वयं तत्र पशुत्वं प्रति सुव्रत।।  ), २.९.१२( सब जीवों को बांधने वाले २४ तत्त्वात्मक माया पाशों का वर्णन - पशवः परिकीर्त्यंते संसारवशवर्तिनः।। तेषां पतित्वाद्भगवान् रुद्रः पशुपतिः स्मृतः।। ), वराह ७०.४२( वेदबाह्य पुरुषों हेतु पशु बन्धन के लिए नय शास्त्र रूप पाश का सृजन, नय शास्त्र रूप पशु भाव के पतन पर ही पाशुपत शास्त्र के जन्म का उल्लेख - पाशोऽयं पशुभावस्तु स यदा पतितो भवेत् । तदा पाशुपतं शास्त्रं जायते वेदसंज्ञितम् ।।  ),वायु ९.४१/१.९.३९( ब्रह्मा के विभिन्न अङ्गों से विभिन्न पशुओं के सृजन का कथन - मुखतोऽजान् ससर्ज्जाथ वक्षसश्चवयोऽसृजत्। गाश्चैवाथोदराद्ब्रह्मा पार्श्वाभ्याञ्च विनिर्ममे ।। ), २३.८८/१.२३.८१( चतुष्पदा सरस्वती के दर्शन से पशुओं के चतुष्पाद होने का कथन, सावित्रीदर्शन से द्विपाद - यस्माच्चतुष्पदा ह्येषा त्वया दृष्टा सरस्वती। तस्माच्च पशवः सर्वे भविष्यन्ति चतुष्पदाः।), ५७.९७( ऋषियों द्वारा यज्ञ में पशु हिंसा की निन्दा, वसु द्वारा हिंसा का समर्थन करने पर शाप प्राप्ति - अधर्मो बलवानेष हिंसाधर्मेप्सया तव। नेष्टः पशुवधस्त्वेष तव यज्ञे सुरोत्तम ।।  ), १०४.८३( पशुबन्ध यज्ञ की उर में स्थिति - सौत्रामणिं कण्ठदेशे पशुबन्धमथोरसि। वाजपेयं कटितटे ह्यग्निहोत्रं तथानने ।।), विष्णु १.५.५१( ७ ग्राम्य व ७ आरण्यक पशुओं के नाम - गौरजः पुरुषो मेषश्चाश्वाश्वतरगर्दभाः । एतान्ग्राम्यान्पशूनाहुरारण्यांश्च निबोध मे ॥ ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.१०( विभिन्न प्रकार के पापों से ग्राम्य व आरण्यक पशुओं की योनि प्राप्ति के कथन - परस्वहारिणः पापाः कुञ्जरास्तुरगाः खराः ।। बलीवर्दास्तथैवोष्ट्रा जायन्ते नात्र संशयः ।। ), शिव २.५.९.१३( त्रिपुर वध के संदर्भ में शिव द्वारा असुरों को मारने के लिए देवों से पशुओं के अधिपति पद की मांग, सब देवों व असुरों के पशु होने और रुद्र के पशुपति होने का उल्लेख - अथाह भगवान्रुद्रो देवानालोक्य शंकरः।। पशूनामाधिपत्यं मे धद्ध्वं हन्मि ततोऽसुरान्।।), ७.२.५.३६( पशु द्वारा अनीश/ईश के दर्शन तक पाशबद्ध रहने का कथन - यावत्पशुर्नैव पश्यत्यनीशं १ पुराणं भुवनस्येशितारम् ॥ तावद्दुःखे वर्तते बद्धपाशः संसारे ऽस्मिञ्चक्रनेमिक्रमेण ॥ ), ७.२.१५.४०( परिग्रह विनिर्मुक्त की पशु संज्ञा का उल्लेख - परिग्रहविनिर्मुक्तः पशुरित्यभिधीयते ॥ पशुभिः प्रेरितश्चापि पशुत्वं नातिवर्तते ॥ ), स्कन्द ३.१.२२.२९( पशुमान् वैश्य के ८ पुत्रों के नाम ; अष्टम पुत्र दुष्पण्य की दुष्टता का वृत्तान्त ), ५.२.६४.२३( पशुपति नामक ६४वें लिङ्ग के माहात्म्य के संदर्भ में दक्ष यज्ञ में शिव द्वारा देवों को पशु बनाने व पशुत्व से मुक्त करने का कथन - नेत्रे भग्ने भगस्यापि विद्धो यज्ञो मृगाकृतिः ।। पशवश्च कृता देवा मुनयो वेदवर्जिताः ।। ), ६.३२.६०( सप्तर्षियों के भृत्य पशुमुख द्वारा सप्तर्षियों द्वारा हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर प्रतिक्रिया - स्वामिद्रोहरतो नित्यं स भूयात्पापकृन्नरः ॥ साधु द्वेषपरश्चैव बिसस्तैन्यं करोति यः ॥ ), ६.२६३.१४( पञ्चेन्द्रिय रूपी पशुओं का हनन करके शीर्ष रूपी अग्नि रहित कुण्ड में होम? करने का निर्देश - पंचेंद्रियपशून्हत्वाऽनग्नौ शीर्षे च कुण्डले ॥ गुरूपदेशविधिना ब्रह्मभूतत्वमश्नुते ॥ ), ७.१.२५५.४३( सप्तर्षियों के भृत्य पशुमुख द्वारा सप्तर्षियों द्वारा हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर प्रतिक्रिया - परस्य प्रेष्यतां यातु सदा जन्मनिजन्मनि ॥ सर्वधर्मक्रियाहीनो बिसस्तैन्यं करोति यः॥), महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ७८४( यज्ञवराह के पशुजानु होने का उल्लेख ), भीष्म ४.१७( ७ आरण्यक व ७ ग्राम्य पशुओं के नाम - सिंहा व्याघ्रा वराहाश्च महिषा वारणास्तथा ।। ऋक्षाश्च वानराश्चैव सप्तारण्याः स्मृता नृप ।), योगवासिष्ठ १.१८.१९( इन्द्रियों की पशु से उपमा - पङ्क्तिबद्धेन्द्रियपशुं वलत्तृष्णागृहाङ्गनम् । रागरञ्जितसर्वाङ्गं नेष्टं देहगृहं मम ।।  ), लक्ष्मीनारायण २.२९.२२( दिव्य लक्षणों से युक्त बालक को देवी की बलि हेतु पशु बनाने पर देवी द्वारा राजा के नाश का वृत्तान्त - यस्य हस्ते मत्स्यरेखा धनुष्यं ज्याशरान्वितम् ।। ध्वजः शूलं स्वस्तिकं च चक्रं यवो भवेच्च वा । ), २.१५७.३४( पशु इष्टियों के अङ्गुलियों में न्यास का उल्लेख - चातुर्मास्याय च वामे सौत्रामणये हस्तयोः । पश्विष्टीभ्योऽङ्गुलीष्वेव दर्शपौर्णाय नेत्रयोः ।। ), ३.२८.३७( पाशव वत्सर में लक्ष्मी के दरिद्र विप्र दम्पत्ति की पुत्री तथा विष्णु के सवनद्रुम से अवतार का वर्णन - अथाऽन्यस्मिन् पाशवाख्ये चतुस्त्रिंशे तु वत्सरे । वेधसः सप्तषष्ट्यूर्ध्वत्रिशते कल्पके पुरा ।। ) pashu

      Comments on Pashu

      Vedic contexts on Pashu


      पशुपति अग्नि ३२२( पाशुपत मन्त्र द्वारा शान्ति विधि ), नारद १.६३.१४( चतुष्पाद तन्त्र के चार पादों के पादार्थ के रूप में पशुपति का उल्लेख ; पशु व पाशों के भेदों का वर्णन- भोगमोक्षक्रियाचर्याह्वया पादाः प्रकीर्तिताः ।।पादार्थास्तु पशुपतिः पशुपाशास्त्रय एव हि ।। ), १.११५.५०( फाल्गुन शुक्ल षष्ठी को पशुपति पूजा का विधान - फाल्गुने शुक्लषष्ठ्यां तु देवं पशुपतिं द्विज ॥ मृन्मयं विधिना कृत्त्वा पूजयेदुपचारकैः ॥ ), १.१२३.५०( पाशुपत चर्तुदशी व्रत विधि : स्वयं की पूजा - स्वात्मानं स्वयमभ्यर्च्य चक्रे पाशुपतव्रतम् ।। ततस्तत्र महापूजां लिंगे गन्धादिभिश्चरेत् ।। ), ब्रह्माण्ड १.२.१०.१३( महादेव के पुत्र कुमार नीललोहित द्वारा ब्रह्मा से प्राप्त नामों में से एक ), १.२.१०.४७( पशुपति नामक रुद्र द्वारा अग्नि को तनु रूप में धारण करने का कथन - यस्मादग्निः पशुश्चासीद्यस्मात्पाति पशूंश्च सः ।। तस्मात्पशुपतेस्तस्य तनुरग्निर्निरुच्यते ।। ), १.२.१०.८०( पशुपति नामक रुद्र के तनु अग्नि की स्वाहा पत्नी तथा स्कन्द पुत्र का उल्लेख - नाम्ना पशुपतेर्या तु तनुरग्निर्द्विजैः स्मृता ।। तस्याः पत्नी स्मृता स्वाहा स्कंदस्तस्याः सुतः स्मृतः ।। ), मत्स्य १५४.४८५( शिव - पार्वती विवाह में पशुपति के वर तथा विश्वारणि के कन्या होने का उल्लेख - दाता महीभृतान्नाथो होता देवश्चतुर्मुखः ।। वरः पशुपति साक्षात् कन्या विश्वारणिस्तथा। ), लिङ्ग १.८८( पाशुपत योग ज्ञान व विधि का वर्णन - अष्टशक्तिसमायुक्तमष्टमूर्तिमजं प्रभुम्।। ताभिश्चाष्टविधा रुद्राश्चतुःषष्टिविधाः पुनः।। ), वराह ८१.३( कुञ्जर पर्वत पर पशुपति शिव की नित्य स्थिति का उल्लेख - कुञ्जरे तु पर्वतवरे नित्यं पशुपतिः स्थितः । ), वामन ९०.२६( गिरिव्रज में विष्णु का पशुपति नाम - गिरिव्रजे पशुपतिं श्रीकण्ठं यमुनातटे। ), विष्णु १.८.६( ब्रह्मा द्वारा कुमार नीललोहित को प्रदत्त नामों में से एक ), शिव ७.१.५.१४( अक्षर पुरुष पशु, क्षर प्रकृति पाश तथा क्षराक्षर से परे पशुपति होने का कथन - अक्षरं पशुरित्युक्तः क्षरं पाश उदाहृतः ॥ क्षराक्षरपरं यत्तत्पतिरित्यभिधीयते ॥  ), ७.१.५( पशुपति का शब्दार्थ, वायु व ऋषियों का संवाद - अक्षरं पशुरित्युक्तः क्षरं पाश उदाहृतः ॥ क्षराक्षरपरं यत्तत्पतिरित्यभिधीयते ॥ ), ७.१.६.१( पशु व पाश के पति के विषय में मुनियों के प्रश्न का वायु द्वारा उत्तर - अभावे तस्य विश्वस्य सृष्टिरेषा कथं भवेत् ॥ अचेतनत्वादज्ञानादनयोः पशुपाशयोः ॥  ), ७.१.३३( पशुपति व्रत विधान नामक अध्याय ), ७.२.१.१९( श्रीकृष्ण द्वारा उपमन्यु से द्वादश-मासिक पाशुपत व्रत ज्ञान प्राप्त करने का कथन - अथ पाशुपतं साक्षाद्व्रतं द्वादशमासिकम् ॥ कारयित्वा मुनिस्तस्मै प्रददौ ज्ञानमुत्तमम् ॥  ), ७.२.२.१( पाशुपत ज्ञान के रहस्य का क्रमश: उद्घाटन ), ७.२.३.१८( शिव की शर्व, भव आदि ८ मूर्तियों में सप्तम पशुपति का उल्लेख - शर्वो भवस्तथा रुद्र उग्रो भीमः पशोः पतिः ॥ ईशानश्च महादेवो मूर्तयश्चाष्ट विश्रुताः ॥ ), ७.२.५( पशुपतित्व ज्ञान योग नामक अध्याय ), स्कन्द १.२.१३.१८९( शतरुद्रिय प्रसंग में पशुपति द्वारा भस्म निर्मित लिङ्ग की महेश्वर नाम से पूजा का उल्लेख - भस्मलिंगं पशुपतिर्नाम चास्य महेश्वरः॥  ), ३.३.१२.२१( पशुपति से अन्त:स्थिति में रक्षा की प्रार्थना - अंतःस्थितं रक्षतु शंकरो मां स्थाणुः सदा पातु बहिःस्थितं माम् ।। तदंतरे पातु पतिः पशूनां सदा शिवो रक्षतु मां समंतात् ।। ), ४.२.६१.१०६( पाशुपत तीर्थ का माहात्म्य : पशु पाशों से मुक्ति - कृतोदकक्रियस्तत्र पश्येत्पशुपतीश्वरम् ।। यत्र पाशुपतो योग उपदिष्टः पिनाकिना ।। ), ४.२.६९.११०( पशुपति लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : पशु पाश से मुक्ति - नैपालाच्च महाक्षेत्रादायात्पशुपतिस्त्विह ।।
      यत्र पाशुपतो योग उपदिष्टः पिनाकिना ।।), ४.२.७९.९३( पशुपतीश्वर लिङ्ग : शिव की सायं सन्ध्या का स्थान - सायं पाशुपतीं संध्यां कुर्यां पशुपतीश्वरे ।।
      विभूतिधारणात्तत्र पशुपाशैर्न बध्यते ।।  ), ५.१.४३.४४( देवी के निर्देश पर शिव द्वारा पाशुपत अस्त्र द्वारा त्रिपुर के त्रेधा भेदन का कथन - महापाशुपतं शस्त्रं करे कृत्वा च शंकरः ।। उज्जहार तदा शंभुर्दैत्यनाशाय सत्वरः ।। ), ५.२.६४( पशुपति लिङ्ग का माहात्म्य, पशु रूपी देवों द्वारा पशुपति लिङ्ग की पूजा, पशुपाल राजा द्वारा दस इन्द्रियों पर विजयार्थ पशुपति लिङ्ग की पूजा ), ७.१.१३०( प्रभास क्षेत्र में स्थित पाशुपतेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य का वर्णन : वामदेव आदि ४ सिद्धों द्वारा सिद्धि प्राप्ति, शिव द्वारा आमन्त्रित पाशुपत सिद्धों का नन्दी के कमलनाल में सूक्ष्म रूप से प्रवेश करके कैलास पर पहुंचना - चत्वारो मुनयः सिद्धास्तस्मिँल्लिंगे यशस्विनि॥
      वामदेवस्तु सावर्णिरघोरः कपिलस्तथा॥ ), लक्ष्मीनारायण ३.१८५.३०( पाशुपतेश विप्र द्वारा भक्त विप्र को मद्य युक्त भोजन प्रस्तुत करने पर विचित्तता शाप की प्राप्ति, प्रायश्चित्त व कृष्ण कृपा से शाप का मोक्षण ) pashupati


      पशुपाल मत्स्य ४३.२७( राजा कार्त्तवीर्य की संज्ञाओं में से एक - स एव पशुपालोऽभूत् क्षेत्रपालः स एव हि। ), वराह ५१.१०+ ( वन में पशुपाल राजा के समक्ष विविध वर्णों के पुरुष व सर्प रूप धारी पापों द्वारा प्रकट होकर राजा का बन्धन, राजा द्वारा बन्धन से मुक्त होना, पुरुषों का राजा के पुत्र बन कर सद्गुणों के रूप में प्रकट होना आदि ), ५३( दस इन्द्रियों तथा बुद्धि रूपी दस्युओं के आक्रमण पर पशुपाल राजा द्वारा नारद के परामर्श पर पशुपति लिङ्ग की पूजा ), वायु ९४.२४/२.३२.२४( राजा कार्तवीर्य की संज्ञाओं में से एक ), स्कन्द ५.२.६४( राजा पशुपाल का १० पुरुषों द्वारा बन्धन, दस्युओं का राजा के शरीर में प्रवेश, नारद के उपदेश से राजा द्वारा पशुपति लिङ्ग की उपासना से मुक्ति ) pashupaala


      पशुसख पद्म १.१९.२५९( सप्तर्षियों द्वारा हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर पशुसख की प्रतिक्रिया ), द्र. पशु शीर्षक में पशुमुख pashusakha


      पश्चिम नारद २.६३.५( प्रयाग में गङ्गा के पश्चिम वाहिनी होने का उल्लेख ), ब्रह्म १.७०.५८( ५ वायुओं में अपान के पश्चिम काया होने का उल्लेख ), भागवत २.६.९(पश्चिम से पराभूति, अधर्म, तम की उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द ३.१.४७.३९(विभीषण के कैकसी के पश्चिम पुत्र होने का कथन), ७.३.२९.५८, ६८, ७७( कपिला गौ द्वारा अध्याय में ३ बार अपश्चिम शब्द का प्रयोग ), योगवासिष्ठ ५.३३.२( प्रह्लाद के मोक्ष के संदर्भ में प्रदग्ध बीज के अंकुरित न होने की भांति प्रह्लाद के पाश्चात्य जन्म का कथन ), ५.३८.१९( प्रह्लाद की देह के पश्चिम होने का उल्लेख ), वा.रामायण ७.१.४( पश्चिम दिशा में निवास करने वाले ऋषियों नृषङ्गु, कवष आदि का उल्लेख ) pashchima


      पह्लव ब्रह्माण्ड १.२.३१.८३( कलियुग में कल्कि? अवतार द्वारा नष्ट किए गए जनपदों के निवासियों में से एक ), २.३.४१.३९( परशुराम द्वारा नष्ट किए गए राजाओं के गणों में से एक ), २.३.४८.२९( सगर द्वारा पह्लवों आदि को निष्कासित करने का उल्लेख, पह्लव आदि के वसिष्ठ की शरण में जाने और पह्लवों के श्मश्रुधारी बनने का कथन ), २.३.६३.१२०( पह्लवों आदि द्वारा राजा बाहु को पदच्युत करने का उल्लेख ), २.३.६३.१२३( सगर द्वारा पह्लवों आदि को निष्कासित करने का उल्लेख, पह्लव आदि के वसिष्ठ की शरण में जाने और पह्लवों के श्मश्रुधारी बनने का कथन ), वायु ४५.११८( उत्तर दिशा के जनपदों में से एक ), ५८.८२( कलियुग में कल्कि? अवतार द्वारा नष्ट किए गए जनपदों के निवासियों में से एक ), ८८.१२४/२.२६.१२४( सगर द्वारा पह्लवों आदि को निष्कासित करने का उल्लेख, पह्लव आदि के वसिष्ठ की शरण में जाने और पह्लवों के श्मश्रुधारी बनने का कथन ), विष्णु ४.३.४२( सगर द्वारा पप्लवों/पह्लवों को श्मश्रुधारी बनाने का कथन ) pahlava


      पांशु ब्रह्माण्ड २.३.७.३७( पाशु व पांशुमती : पिशाचों के १६ गणों में से एक ), वायु ६९.२७२/२.८.२६६( पाशु पिशाचों के लक्षण : अङ्गों से पांशुओं का मोचन ), ७०.४९/२.९.४९( महापांशु : पुष्पोत्कटा व पुलस्त्य के ४ पुत्रों में से एक ) paanshu/ panshu


      पाक गरुड ३.१२.९३(पाक की नमुचि से उपमा), नारद १.६३.१७( पाकल : पशुओं के ३ भेदों में से एक, मल व कर्म युक्त ), भागवत ८.११.२८( अमृतपान से सम्बन्धित देवासुर संग्राम में इन्द्र द्वारा वल व पाक के वध का उल्लेख ), वामन ६९, ७०, ७१.१२ ( इन्द्र द्वारा पाक असुर के वध से पाकशासन नाम प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ५.२२.३( देह रूपी पाक/पाचन पात्र का कथन ), महाभारत शल्य ४८( श्रुतावती द्वारा इन्द्र - प्रदत्त ५ बदरों के पाचन की कथा ), लक्ष्मीनारायण २.२५०.५७( कर्म पाक शरीर, ज्ञान पाक निरीहता, भक्ति पाक ब्रह्मता व ब्रह्मपाक परम पद होने का श्लोक ) paaka


      पाकशासन ब्रह्माण्ड २.३.६३.९९( त्रय्यारण द्वारा पुत्र सत्यव्रत को निष्कासित कर देने पर १२ वर्ष तक पाकशासन द्वारा वृष्टि न करने का उल्लेख ), २.३.६६.३५( पाकशासन द्वारा कुशिक - पुत्र कौशिक के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), मत्स्य ७.५१( पाकशासन द्वारा दिति के छिद्र के अन्वेषण का उल्लेख ), वामन ७१.१३( इन्द्र द्वारा पाक असुर के वध से पाकशासन नाम प्राप्ति का उल्लेख ),वायु ८८.८५/२.२६.८५( त्रय्यारुण द्वारा पुत्र सत्यव्रत को निष्कासित कर देने पर १२ वर्ष तक पाकशासन द्वारा वृष्टि न करने का उल्लेख ) paakashaasana/ pakashasana


      पाखण्ड पद्म ६.२३५.१( पाखण्डियों के लक्षणों का कथन ), भागवत ४.१९.२३( पृथु के यज्ञीय अश्व के हरण हेतु इन्द्र द्वारा धारित रूपों से पाखण्ड की उत्पत्ति का कथन ), विष्णु ३.१८.५७( पाखण्डी से वार्तालाप के कारण राजा शतधनु का विभिन्न योनियों में जन्म तथा राजा की पत्नी द्वारा प्रत्येक बार उसके उद्धार का वर्णन ; पाखण्डी की परिभाषा तथा निन्दा ), ६.१.४५( पाखण्ड में वृद्धि होने पर कलि की बलवत्ता जानने का कथन ; पाखण्डियों के वेदविरुद्ध कथनों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.११७.७९( भण्डासुर के पाखण्डास्त्र के निवारण के लिए महालक्ष्मी द्वारा गायत्र्यास्त्र के मोचन का उल्लेख ) paakhanda/ pakhanda


      पाचन लक्ष्मीनारायण ४.८०.१७( राजा नागविक्रम के यज्ञ में गौर्जर विप्रों के पाचक होने का उल्लेख )


      पाञ्चजनी मत्स्य ५.४( दक्ष - पत्नी, हर्यश्व - माता )


      पाञ्चजन्य अग्नि २५.१४( पाञ्चजन्य शङ्ख पूजा हेतु बीज मन्त्र - वं शं मं क्षं पाञ्चजन्यं छं तं पं कौस्तुभाय च।), गर्ग ७.४०.२५( पाञ्चजन्य सागर में गरुड द्वारा नक्र का उद्धार : नक्र के पूर्व जन्म का वृत्तान्त - लङ्कां प्राप्य ततो वेगात्पांचजन्यं जगाम ह ॥), १०.२६+ ( बल्वल दैत्य के निवास स्थान पाञ्चजन्य द्वीप में अनिरुद्ध सेना का आगमन व संग्राम ), पद्म ६.२४२.९४( पाञ्चजन्य शङ्ख के राम - भ्राता भरत रूप में अवतार का उल्लेख - कैकेय्यां भरतो जज्ञे पांचजन्यांशचोदितः । ), भविष्य ३.४.१८.१६( संज्ञा विवाह प्रसंग में पाञ्चजन्य असुर के धाता से युद्ध का उल्लेख - पांचजन्यस्तथा धाता हयग्रीवश्च मित्रकः ।।), स्कन्द ५.१.४४.१२( समुद्र मन्थन से उत्पन्न १४ रत्नों में से एक? ) paanchajanya/ panchajanya

      Comments on Panchajanya


      पाञ्चरात्र मत्स्य १३९(पाञ्चरात्र यज्ञ : अविधि के कारण सोमशर्मा का ब्रह्मराक्षस बनना),


      पाञ्चाल नारद १.५६.७४०( पाञ्चाल देश के कूर्म में अन्तर्वेदी/नाभि होने का उल्लेख ), भागवत ९.२१.३२( भर्म्याश्व के ५ पुत्रों की पञ्चाल संज्ञा का कारण ), ९.२२.३( भर्म्याश्व के वंश में उत्पन्न पाञ्चाल राजाओं के नाम ), मत्स्य १५.९( शुक व पीवरी - कन्या कृत्वी के पाञ्चालाधिपति की पत्नी बनकर ब्रह्मदत्त की माता बनने का उल्लेख ), २०.२०( कौशिक के ७ पुत्रों में से एक पितृवर्ती की पाञ्चालराज के वैभव में आसक्ति होने के कारण पाञ्चालराज विभ्राज के पुत्र ब्रह्मदत्त के रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ), ४९.६८( सामगाचार्य कृत के पुत्र उग्रायुध द्वारा पाञ्चालाधिपति नील के वध का उल्लेख ), ५०.४( भद्राश्व के मुद्गल आदि ५ पुत्रों के जनपदों की पञ्चाल संज्ञा का कथन ), २७२.१४( कलियुग में २७ पाञ्चाल राजाओं के होने का उल्लेख ), २७३.७२( वैवस्वत मन्वन्तर में १०० पाञ्चाल राजा होने का उल्लेख ), वराह ३६.४( शुभदर्शन के युगान्तर में पाञ्चाल बनने का उल्लेख ), १७५.११+ ( वसु ब्राह्मण - पुत्र, तिलोत्तमा भगिनी से अगम्या गमन, मथुरा तीर्थ में स्नान से पाप से निवृत्ति ), वामन ६.४६( कुबेर - पुत्र पाञ्चालिक द्वारा शिव से कामास्त्रों का ग्रहण, चैत्र मास में पाञ्चालिक की अर्चना का महत्त्व ), ९०.१३( ब्रह्मर्षि देश में विष्णु का पाञ्चालिक नाम से निवास ), विष्णु ४.१९.५९( हर्यश्व के ५ पुत्रों की पाञ्चाल संज्ञा के कारण का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.७( पाञ्चाल देश में पृथु वैन्य की पूजा का निर्देश ), शिव ५.४२.११( भारद्वाज के ७ पुत्रों के जन्मान्तर में द्विज योनि में जन्म लेने पर एक ऋग्वेदी पुत्र का नाम ), स्कन्द २.७.१५.२( पाञ्चाल देश के राजा पुरुयश के राज्यच्युत होने तथा पूर्व जन्मों के पाप - पुण्यों का वृत्तान्त ), ३.३.१७.११( पाञ्चालराज - पुत्र सिंहकेतु के शबर भृत्य द्वारा शिवलिङ्ग की चिता भस्म द्वारा पूजा से मुक्ति प्राप्ति का वृत्तान्त ), हरिवंश १.२३.२१, १.२४.३२( ब्रह्मदत्त - मन्त्री, शिक्षा वेत्ता, ऋग्वेदी ), लक्ष्मीनारायण १.३५२.२८( वसु द्विज - पुत्र, अज्ञानता में भगिनी तिलोत्तमा के साथ रमण तथा देहत्याग को उद्धत होना, मथुरा में विश्रान्ति नामक पञ्च तीर्थ में स्नान से पापमोक्षण ), १.४३०.७( पाञ्चाल देश के राजकुमार भक्त दानक द्वारा अरण्य में सिह रूप धारी ऋषियों की हत्या, त्रित ऋषि की सेवा से ब्रह्महत्या से मुक्ति ), १.४३२.२( पाञ्चाल देश के राजा हेमन्त की शत्रुओं से पराजय तथा याजक गुरु द्वारा राजा के पूर्वजन्म के वृत्तान्त का वर्णन ), कथासरित् १२.५.२०५( पाञ्चाल देश के निवासी देवभूति ब्राह्मण व उसकी पत्नी भोगवती का वृत्तान्त ) paanchaala/ panchala


      पाञ्चाली लक्ष्मीनारायण १.३८५.३७(पांचाली का कार्य)


      पाटल अग्नि ८१.५०( लक्ष्मी प्राप्ति हेतु होम द्रव्य ), देवीभागवत १०.६.१०६( पाटली : गायत्री सहस्रनामों में से एक ), नारद १.९०.६९( पाटल द्वारा देवी पूजा से गज सिद्धि का उल्लेख - किंशुकैर्भूषणावाप्तौ पाटलैर्गजसिद्धये । रक्तोत्पलैरश्वसिद्धौ कुमुदैश्चरसिद्धये ।। ), पद्म १.२८.२८( पाटला/गुलाब के पार्वती को प्रिय होने का उल्लेख - श्रीवृक्षे शंकरो देवः पाटलायां तु पार्वती। ), ६.१३३.१५( पाटल क्षेत्र में पुण्ड्रवर्धन तीर्थ - विपाशायां विपापा च पाटले पुंड्रवर्द्धनम्। ), ब्रह्माण्ड २.३.१०.९( मेना की ३ कन्याओं में से एक एकपाटला के जैगीषव्य -पत्नी तथा शङ्ख व लिखित की माता होने का कथन - तिस्रः कन्यास्तु मेनायां जनयामास शैलाराट् । अपर्णामेकपर्णां च तृतीयामेकपाटलाम् ॥ ), मत्स्य १३.३५( पुण्ड्रवर्धन पीठ में सती देवी की पाटला नाम से स्थिति का उल्लेख - विपाशायाममोघाक्षी पाटला पुण्ड्रवर्द्धने॥ ), वामन ६.१००( शिव के क्रोध से काम के धनुष की कोटि के पाटला बनने का उल्लेख - या च कोटी शुभा ह्यासीदिन्द्रनीलविभूषिता। जाता सा पाटला रम्या भृङ्गराजिविभूषिता।। ), स्कन्द १.३.२.२२.४२( नन्दन वन द्वारा शिव को प्रस्तुत पाटल फल के ग्रहण हेतु गणेश व कार्तिकेय में स्पर्द्धा का वृत्तान्त - तदा च देवदेवाय नंदनारण्यदेवता । उपायनीकृतवती फलं किमपि पाटलम् ।। ), २.२.४४.४( संवत्सर व्रत में श्रीहरि की १२ मूर्तियों को अर्पणीय १२ पुष्पों में से एक ), ५.३.१९८.७३( पुण्ड्रवर्धन में उमा देवी का पाटला नाम से निवास ), कथासरित् १.३.५८( राजा पुत्रक द्वारा पादुका व यष्टि की सहायता से आकर्षिका नगरी की राजकुमारी पाटलिका को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), द्र. एकपाटला paatala/ patala


      पाटलिपुत्र पद्म ६.१८१.२( गीता के सप्तम अध्याय के माहात्म्य के संदर्भ में पाटलिपुत्र पुर में शङ्कुकर्ण ब्राह्मण के सर्प योनि से उद्धार का वृत्तान्त - अस्ति पाटलिपुत्राख्यं दुर्गमुत्तुङ्गगोपुरम् । तत्राभूद्ब्राह्मणो नाम शंकुकर्णो दयार्णवः ।। ), कथासरित् १.२.४५( पाटलिपुत्र पुर के मूर्ख विप्र वर्ष के तप से विद्वान् बनने का वृत्तान्त ), १.७.५६( पाटलिपुत्र के उपाध्याय वेदकुम्भ और उसकी कामुक पत्नी का संदर्भ ), ३.३.६४( पाटलिपुत्र पुर में धर्मगुप्त वणिक् की दिव्य कन्या के विवाह आदि का वृत्तान्त ), ३.५.१६( पाटलिपुत्र पुर के द्यूत व्यसनी देवदास नामक वणिक् - पुत्र द्वारा कुलटा स्त्री के कथन से धन प्राप्ति का वृत्तान्त ), ४.१.५८( देवदत्त राजा द्वारा स्वपुत्र का विवाह वणिक् सुता के साथ करने का कारण ), ७.१.५४( पाटलिपुत्र के दृढ सत्त्व वाले राजा विक्रमतुङ्ग द्वारा स्वर्ण निर्माण आदि में सफलताएं प्राप्त करने का वर्णन ), ७.४.३( पाटलिपुत्र के राजा विक्रमादित्य द्वारा स्वसिद्धियों व मदनमाला वेश्या की सहायता से शत्रु नरेश को जीतने का वृत्तान्त ), ७.४.४७( पाटलिपुत्र नगर के भिक्षु प्रपञ्चबुद्धि का वृत्तान्त ), १०.१.२५( पाटलिपुत्र के भारिक शुभदत्त द्वारा यक्षों से अक्षय घट प्राप्त करने और घट के नष्ट होने का वृत्तान्त ), १०.५.३००( पाटलिपुत्र के २ ब्राह्मण भ्राताओं द्वारा स्वधन की रक्षा व नष्ट करने, पुन: प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १०.१०.६( कश्मीर देश के निवासी संन्यासी द्वारा शास्त्रार्थ में विजय हेतु पाटलिपुत्र को प्रस्थान, मार्ग में यक्ष से पाटलिपुत्र की स्त्रियों के छल चरित्र का श्रवण आदि ), १२.७.६२( रानी मनोरमा द्वारा स्वपुत्र भीमभट की राजा के क्रोध से रक्षा के लिए पुत्र को पाटलिपुत्र में मातामह के पास जाने का परामर्श ), १२.१०.४( पाटलिपुत्र नगर के राजा विक्रमकेसरी द्वारा पालित शुक व सारिका में कलह का वृत्तान्त ), १४.२.९४( पाटलिपुत्र की विधवा युवती द्वारा मोदक द्वारा स्वपुत्र को शान्त रखने का वृत्तान्त ), १८.४.१५७( पाटलिपुत्र निवासी केसट ब्राह्मण पुत्र द्वारा रूपवती से विवाह करने, रूपवती से वियोग होने तथा पुन: मिलन का वृत्तान्त ) paataliputra/ pataliputra


      पाठ स्कन्द ५.३.५१.३४( शिवलिङ्ग को समर्पणीय ८ पुष्पों में सप्तम प्राजापत्य पुष्प के रूप में पाठादि का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.८०.१८( राजा नागविक्रम के यज्ञ में सिन्धुज विप्रों के पाठक बनने का उल्लेख ) paatha/ patha


      पाणि अग्नि १८.१२( वेन के दक्षिण पाणि के मथन से पृथु की उत्पत्ति का उल्लेख ), गरुड ३.५.१६(पाणि अभिमानी देवों के नाम), नारद १.२८.५०(श्राद्ध में अग्नि के अभाव में विप्र के पाणितल पर होम का निर्देश), २.३१.५१(पुण्यदान विधि में पाणि में वारि ग्रहण का उल्लेख), २.६५.८०(पाणिघात तीर्थ में पितरों के तर्पण का माहात्म्य), पद्म ३.२६.८५( पाणि तीर्थ में स्नान से राजसूय फल व ऋषि लोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.३९८(पृष्ठतः पाणि-पाद वाले पिशाचों के गण का उल्लेख), वराह ८०.१०( मेरु के पश्चिम में पाणितल नामक स्थली की स्थिति का कथन ), शिव ७.२.२९.२१( रक्त पद्म दल का पाणि, पाद तल व अधरों से साम्य ), स्कन्द ३.१.२३.५४(चक्र तीर्थ में स्नान से सविता द्वारा छिन्नपाणि की पुनः प्राप्ति), महाभारत अनुशासन ५९.२५(पाणि में देव, पितृ आदि ५ तीर्थों की स्थिति का कथन), योगवासिष्ठ ६.१.१२८.९( पाणि का इन्द्र में न्यास ), वा.रामायण १.३३.२३(ब्रह्मदत्त द्वारा पाणिस्पर्श करते ही वायु से कुब्जित कन्याओं का सुन्दर बनना), ऋग्वेद ४.२१.९(भद्र हस्त, सुकृत पाणि), द्र. दण्डपाणि, शूलपाणि paani


      पाणिनि ब्रह्मवैवर्त २.४.५७(पाणिनि को शेष से सरस्वती मन्त्र प्राप्ति का उल्लेख), भविष्य ३.२.३०.१९( पितृशर्मा के चार पुत्रों में से एक, सामवेदी, चन्द्रगुप्त से ब्रह्मचर्य विषयक संवाद ), ३.२.३१( पाणिनि की कणाद - शिष्यों से पराजय, शिव उपासना से व्याकरण सूत्रों की प्राप्ति ), कथासरित् १.४.२०( वर्ष उपाध्याय के मूर्ख शिष्य पाणिनि द्वारा विद्या प्राप्ति हेतु तप तथा शिव से नवीन व्याकरण की प्राप्ति, वररुचि को शास्त्रार्थ में हराने का कथन ), १.४.८८( वररुचि द्वारा तप से शिव को प्रसन्न करके उनसे पाणिनीय शास्त्र की प्राप्ति तथा वर्ष उपाध्याय द्वारा कार्तिकेय से नवीन व्याकरण की प्राप्ति का कथन ) paanini/ panini


      पाण्ड वायु ६५.९६/ २.४.९६( भार्गव गोत्र के ऋषियों में से एक )


      पाण्डर वायु ३६.२८( मेरु के पश्चिम में स्थित पर्वतों में से एक ), ३८.८९( कृष्ण व पाण्डुर पर्वतों के बीच स्थित एक शिल देश का वर्णन ),


      पाण्डव अग्नि २७५.४८( पाण्डवों के धर्म आदि के अंश होने का कथन ), पद्म १.१३.११५( पाण्डु व कुन्ती और माद्री से उत्पन्न पांच पाण्डवों के धर्म, वात आदि के अंशावतार होने का कथन ), भागवत ९.२२.२७( पाण्डु - पुत्रों युधिष्ठिर आदि के पुत्रों के नाम ), मार्कण्डेय ४.३२( जैमिनि द्वारा पक्षियों से पाण्डवों से सम्बन्धित संशयों जैसे पांच पाण्डुपुत्रों की एक महिषी द्रौपदी जैसे रहस्यों के विषय में पृच्छा ), ५.२१( पांच पाण्डवों के इन्द्र के तेज से उत्पन्न होने के कारण द्रौपदी रूपी शची के इन्द्र रूपी पाण्डवों की पत्नी होने का कथन ), ७.६२( पाण्डवों के पुत्रों के अनाथ मरण के कारण का कथन : पांच विश्वेदेवों के विश्वामित्र के शाप से पाण्डव - पुत्रों के रूप में जन्म की कथा ), वायु ९६.१५२/२.३४.१५२( पाण्डु व कुन्ती व माद्री से उत्पन्न ५ पुत्रों के देवताओं के अंश होने का कथन ), ९९.२४०/२.३७.२४०( ५ पाण्डवों के धर्म आदि देवों के अंश होने का कथन ), विष्णु ४.२०.४१( पाण्डवों की सन्तति का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.८५.६७( पाण्डवों की मूर्तियों के रूप ), स्कन्द २.१.१.७२( पाण्डव तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ४.१.४९.३( पांच पाण्डव पञ्चमूर्ति शिव के अवतार ; द्रौपदी उमा का अवतार ), ५.२.३४.२( पाण्डव ब्राह्मण के कन्था से अयोनिज, अल्पायु पुत्र कन्था की उत्पत्ति, कन्था द्वारा शिव से चिरायु प्राप्ति ), ७.१.८६( पाण्डवेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ७.१.२३२( प्रभास क्षेत्र में पाण्डव कूप व पाण्डवेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), कथासरित् २.१.६( पाण्डव वंश में जनमेजय के पुत्र शतानीक तथा शतानीक के पुत्र सहस्रानीक का वृत्तान्त ), द्र. उत्तरापाण्डव paandava/ pandava


      पाण्डु गर्ग १.५.२७( पूषा देवता का अंश ), देवीभागवत २.६.४०( विचित्रवीर्य - पुत्र, कुन्ती व माद्री - पति, मृग रूप धारी मुनि से शाप प्राप्ति व मृत्यु की कथा - मृगयां रममाणस्तु वने पाण्डुर्महाबलः । जघान मृगबुद्ध्या तु रममाणं मुनिं वने ॥ ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.१४( द्वितीय पाताल/सुतल की पाण्डु भूमि का उल्लेख ), १.२.२०.२०( पाण्डुभौम नामक द्वितीय तल में स्थित नागों, राक्षसों व दानवों के भवनों का कथन ), २.३.१३.३७( पाण्डुकूप : श्राद्ध के लिए प्रशस्त स्थानों में से एक ), भागवत ९.२२.२५( पाण्डु की बादरायण से उत्पत्ति तथा पाण्डु के देवों के अंशों से उत्पन्न पुत्रों का कथन ), ९.२४.३०( पाण्डु की भार्या पृथा/कुन्ती द्वारा कर्ण को उत्पन्न करने का वृत्तान्त ), मत्स्य १९५.२२( पाण्डुरोचि : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक ), १९६.९( त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), महाभारत आदि ११३.६/१२३.६(जिततन्द्रीस्तदा पाण्डुर्बभूव वनगोचरः।।..अरण्यनित्यः सततं बभूव मृगयापरः।।). वायु २८.५( विधाता व आयति? - पुत्र, पुण्डरीका - पति, द्युतिमान - पिता ), २८.३५( वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्री पुण्डरीका के पाण्डु की पत्नी बनकर द्युतिमान् को जन्म देने का उल्लेख ), ७७.९९/२.१५.९९( पाण्डुविशाल : गया में पञ्चवन में स्थित तीर्थों में से एक ), ९६.१५१/२.३४.१५१( पाण्डु की २ पत्नियों कुन्ती व माद्री से देवताओं के अंशों के रूप में उत्पन्न पुत्रों का कथन ), ९९.२४१/२.३७.२४१( वही), ११२.४५/२.५०.५४( युधिष्ठिर द्वारा गया में पाण्डुशिला पर पिण्डदान से पाण्डु से वर प्राप्त करने का कथन ), विष्णु ४.१४.३४( पाण्डु द्वारा कुन्ती व माद्री भार्याओं से देवों के अंश पुत्र प्राप्त करने का कथन ), ४.२०.३८( कृष्ण द्वैपायन द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र में उत्पन्न पाण्डु के देवों के अँशों से उत्पन्न पुत्रों का कथन ), स्कन्द ५.३.११६( पाण्डु तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), कथासरित् ४.१.२०( राजा पाण्डु द्वारा मृगया में किंदम मुनि की हत्या पर शाप प्राप्ति तथा माद्री का आलिङ्गन करने पर मृत्यु को प्राप्त होने का कथन ) paandu/ pandu

      Comments on Paandu


      पाण्डुर पद्म ६.१६६.३( नकुल द्वारा दक्षिण दिशा पर विजय के पश्चात् स्थापित पाण्डुरार्या देवी के माहात्म्य का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२१( भारतवर्ष के ७ कुल पर्वतों के निकटवर्ती पर्वतों में से एक ), १.२.२०.२९( तृतीय पाताल में पाण्डुरक नाग के भवन की स्थिति का उल्लेख ), लिङ्ग १.५०.१२( पाण्डुर पर्वत पर विद्याधरों का वास ), वायु १.३९.६०( पाण्डुर पर्वत पर विद्याधरों के वास का उल्लेख ), ४५.९१( भारतवर्ष के ७ कुलपर्वतों के निकटवर्ती पर्वतों में से एक ), ५०.२८( तृतीय पाताल में पाण्डुरक नाग के भवन की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२८( कृष्ण - पत्नी श्वेता की सुता पाण्डुरकेशी व पुत्र हिमध्रुव का उल्लेख ) paandura/ pandura


      पाण्डुरङ्ग गरुड ३.२९.५७(परान्न भोगकाल में पाण्डुरङ्ग विष्णु के ध्यान का निर्देश)


      पाण्ड्य गरुड १.६९.२३( शुक्ति उद्भव का स्थान ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.११.७( तृणावर्त असुर के उद्धार के संदर्भ में पाण्ड्य देश के राजा सहस्राक्ष के दुर्वासा शाप से तृणावर्त असुर बनने का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.३०.४०( पाण्ड्यज : तप से स्वर्ग प्राप्त करने वाले राजर्षियों में से एक ), २.३.७४.५( अण्डीर के ४ पुत्रों में से एक, तुर्वसु वंश ), भागवत ८.४.७( पाण्ड्यवंशी राजा इन्द्रद्युम्न के अगस्त्य शाप से हस्ती बनने का कथन ), मत्स्य ४८.५( डीर के ५ पुत्रों में से एक, तुर्वसु वंश ), वायु ९९.६/२.३७.६( जनापीड के ४ पुत्रों में से एक ), स्कन्द १.३.२.२२.६( पाण्ड्य नरेश वज्राङ्गद द्वारा अश्व पर आरूढ होकर शोणाद्रि की परिक्रमा से अश्व के मुक्त होने आदि का वृत्तान्त ), ३.१.३५.३( पाण्ड्य देश के द्विज इध्मवाह व उसकी पत्नी रुचि के पुत्र दुर्विनीत द्वारा मातृगमन पाप के प्रायश्चित्त का वर्णन ), ३.१.४८( पाण्ड्य नरेश शङ्कर द्वारा वन में व्याघ्र| चर्म धारी मुनि का वध, प्रायश्चित्त रूप में अग्नि प्रवेश का उपक्रम, आकाशवाणी के निर्देशानुसार रामनाथ की अर्चना से मुक्ति ), ३.३.४.३८( किरातराज विमर्दन के सप्तम जन्मान्तर में पाण्ड्य राजकुमार बनने का कथन ), ३.३.६.६१( विदर्भराज सत्यरथ के पूर्व जन्म में पाण्ड्यराज होने का वृत्तान्त, पाण्ड्यराज द्वारा शिव पूजा को अधूरा छोडने से जन्मान्तर में कष्टों की प्राप्ति ) paandya/ pandya


      पात महाभारत कर्ण ४१.२५( काक द्वारा हंस को १०१ प्रकार के पातों/उडानों का कथन ),


      पातक अग्नि १६८-१७४( विभिन्न पातकों व महापातकों के प्रायश्चित्तों का कथन ), पद्म १.२०.४३( पातक नाशन व्रत की विधि व माहात्म्य का कथन ), भविष्य १.१९०.९( महापातकों, पातकों तथा उपपातकों का कथन ),


      पाताल गणेश १.४०.१३( त्रिपुर - सेनापति वज्रदंष्ट} द्वारा ७ पातालों पर विजय ), पद्म ५.१+ ( पद्म पुराण का पाताल खण्ड ), ब्रह्म १.१९( पातालों की महिमा का वर्णन ), भविष्य ३.४.२४.८०( कलियुग के द्वितीय चरण में मनुष्यों की सप्त पातालों में स्थिति होने का कथन ), भागवत २.१.२६( वैराज पुरुष के शरीर में ७ पातालों की स्थिति का कथन ), २.५.४१(पादतल में पाताल की स्थिति का उल्लेख), ५.२४.७( सात पातालों के ऐश्वर्य का वर्णन ),मार्कण्डेय २१.११/१९.११( वराह रूप धारी पातालकेतु राक्षस के वध हेतु कुवलयाश्व द्वारा अश्व सहित पाताल में पंहुचने, राक्षस का वध करने और मदालसा कन्या को प्राप्त करने का वृत्तान्त ), लिङ्ग १.४५.८( पृथिवी के नीचे सात तलों की विशेषताओं का वर्णन ), वामन ९०.३८( पाताल में विष्णु का योगीश नाम ), वायु ४९.१६३( सात पातालों से लेकर द्युलोक तक वायु? की ५ प्रकार की गतियों का उल्लेख ), ९७.१८/२.३५.१८( और्व अग्नि द्वारा पातालस्थ समुद्र में तोयमय हवि का पान करने का उल्लेख ), ९८.८०/२.३६.८०( वामन द्वारा असुरों को पुत्र - पौत्रों सहित पाताल तल में लाने का उल्लेख ), ९८.८६/२.३६.८६( वामन द्वारा विरोचन के कुल को पाताल में स्थापित करने का उल्लेख ), १००.१५७/२.३८.१५७( प्रलय काल में संवर्तक अग्नि द्वारा पाताल लोकों का दहन करके नागलोक का दहन करने का उल्लेख ), विष्णु २.५.१( पृथिवी के उच्छ्राय/ऊंचाई के संदर्भ में ७ पातालों की महिमा का वर्णन ), २.६.१( भूमि के नीचे नरकों का वर्णन ), ५.१.७२( विष्णु द्वारा योगनिद्रा को पाताल से ६ षड्गर्भों को लाकर देवकी के गर्भ में स्थापित करने का निर्देश तथा सातवें शेष का सप्तम गर्भ बनने का उल्लेख ), ६.८.४८( वेदशिरा मुनि द्वारा पाताल में ऐलापुत्र सर्प से विष्णु पुराण श्रवण का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.४( सप्त अधोलोकों का वर्णन ), ३.१५८( पाताल व्रत ), स्कन्द ५.२.६३.१०( विदूरथ द्वारा पाताल में स्थित कुजम्भ दानव के वध का वृत्तान्त ), ५.३.१७५.३( कपिल के ७ पातालों में अधस्तम में तपोरत होने का उल्लेख ; ७ पातालों में से कुछ के नाम ), ५.३.१९८.७६( पाताल में उमा देवी की परमेश्वरी नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२२.२१( पाताल में हाटकेश्वर तीर्थ की श्रेष्ठता का उल्लेख ), ३.२१५.६३( ब्रह्माण्ड में पाताल की देह में पादमूल से समता ), ४.९७.१७( २२वर्षीय कृष्ण द्वारा पाताल लोकों में गमन व सात पातालों के निवासी दैत्यों तथा गरुड आदि द्वारा कृष्ण के स्वागत का वर्णन ), कथासरित् ८.२.३२९( सूर्यप्रभ द्वारा सप्तम पाताल में तन्तुकच्छ की कन्या मनोवती की प्राप्ति का कथन ) paataala/ patala


      पातालकेतु पद्म ६.१२.५( जालन्धर - सेनानी, हास से युद्ध ), मार्कण्डेय २१.३०/१९.३०( पातालकेतु द्वारा मदालसा का अपहरण, कुवलयाश्व द्वारा पातालकेतु का वध ), वामन ५८.३५( सूकर रूप पातालकेतु द्वारा गालव के आश्रम में तीर से विद्ध होने की व्यथा का अन्धक से निवेदन ), ५९( पातालकेतु द्वारा गालव के तप में विघ्न, ऋतध्वज के आक्रमण की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३९२.४१( पातालकेतु द्वारा मदालसा के हरण का कथन ) paataalaketu/ patalaketu


      पातालगङ्गा स्कन्द ७.१.२८९( विश्वामित्र द्वारा आहूत पातालगामिनी गङ्गा के माहात्म्य का कथन ),


      पात्र गणेश २.७४.४३( सिन्धु द्वारा तप करके सूर्य से अमृतपात्र की प्राप्ति ), देवीभागवत १२.९.२३( गायत्री देवी द्वारा गौतम को प्रदत्त पात्र की महिमा ), पद्म ५.११४.४४७( विभिन्न द्रव्यों के लिए वर्जित विभिन्न प्रकार के पात्रों के नाम ), ६.२७.४७( पात्रों में सर्वश्रेष्ठ पुराणवित् की प्रशंसा, पात्र शब्द की निरुक्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.११.३५( विभिन्न काष्ठ पात्रों की महिमा ), वराह ३८.१३( दुर्वासा द्वारा तपोरत व्याध से अन्न की मांग करने पर व्याध के समक्ष आकाश से सौवर्ण पात्र व उसमें अन्न प्रकट होने की कथा ), वायु ७५.१/२.१३.१( बलि हेतु विभिन्न काष्ठ पात्रों का महत्त्व ), शिव १.१५.१३( तपोनिष्ठ, ज्ञाननिष्ठ व योगियों के पूजा, दान पात्र आदि होने के औचित्य का वर्णन ), ५.१३.५( पुराणवित् की पात्रों में श्रेष्ठता का उल्लेख ; पात्र की निरुक्ति : पतन से त्राण करने वाले ), ५.२२.३( देह रूपी पाक/पाचन पात्र का कथन ), स्कन्द १.२.४.८०( कनीयस् प्रकार के दान की वस्तुओं में से एक ), १.२.५.१८( विद्या व तप दोनों की उपस्थिति से दान प्रतिग्रह की पात्रता होने का कथन ), योगवासिष्ठ १.१८.२४( देह गृह में मलाढ~य विषय व्यूह के भाण्ड होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२७४.४०( दान हेतु विभिन्न सुपात्रों का वर्णन ), १.२८३.३८( ब्रह्म के पात्रों में अनन्यतम होने का उल्लेख ), १.३००.१९( पञ्चपात्र : ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक ), २.२२१.७४( पात्रगोनय राष्ट} के नृप रायसोमन तथा वायुमाना नगरी का उल्लेख ), २.२२२.१( बालकृष्ण का पात्रगोनय राष्ट} की प्रजा को उपदेश : साधु की समस्त देह के पुण्य होने का वर्णन ), कथासरित् १.३.४७( दिव्य गुण सम्पन्न पात्र ), द्र. यज्ञपात्र paatra/ patra


      पाद गर्ग २.१८.२१/२.२१.२१( कृष्ण व राधा के पादों के चिह्नों का कथन ), नारद १.६३.१३( चतुष्पाद तन्त्र के भोग, मोक्ष आदि ४ पादों का उल्लेख; पादार्थ के पशुपति होने का उल्लेख ), २.३२.५२( ब्राह्मण रूप धारी विष्णु द्वारा विरोचन - पत्नी विशालाक्षी को पादोदक दान के बदले दम्पत्ति के जीवनहरण का वृत्तान्त ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५४( पाद सौन्दर्य हेतु पद्मनेत्र को एक लाख शतपत्रस्थल अब्ज दान का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.३७.५२( ललिता देवी के मञ्चरत्न के ४ पादों के रूप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश व ईश्वर का कथन ), भविष्य ३.४.८.९३(वृषभ के तीन पादों के रूप में भूत, भव्य व भव का उल्लेख), भागवत १.१७.२४(धर्म के तीन पादों तप, शौच व दया को नष्ट करने वाले स्मय, संग व मद), २.५.४१(पादतल में पाताल की स्थिति का उल्लेख), लिङ्ग १.४९.२६( मेरु के चारों दिशाओं में चार पाद रूपी पर्वतों के नाम ), वायु ८४.११/२.२२.११( कलि व निकृति - पुत्र विधम के एकपाद होने का उल्लेख ), शिव २.५.८.१८( शिव रथ में दिशाओं व उपदिशाओं रूपी पादों का उल्लेख ), ७.२.१०.३०( ज्ञान, क्रिया, चर्या व योग नामक धर्म के ४ पादों की व्याख्या ), ७.२.२९.२१( रक्त पद्म दल का पाणि, पादतल व अधरों से साम्य ), स्कन्द १.२.६२.२७( नीलपाद : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), २.७.१९.३७( पादों में जयन्त की स्थिति ), ३.१.२३.४८(छिन्नपाद हरिहर विप्र द्वारा चक्र तीर्थ में पुनः पाद प्राप्ति), ३.२.६.७( वेदमयी गौ के वर्ण पाद होने का उल्लेख), ४.२.५८.१८( पादोदक तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ४.२.७५.७५( पादोदक कूप का संक्षिप्त माहात्म्य : उदक पान से पुनर्जन्म से मुक्ति ), ४.२.८४.३( पादोदक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ),५.१.६३.१३०( एकपाद, द्विपाद, बहुपाद आदि : विष्णु सहस्रनामों में ९ नाम ), ५.२.११.२३( सिद्धेश्वर लिङ्ग के दर्शन से अनूरु द्वारा पादलेप रसायन प्राप्त करने का उल्लेख ), ६.२७(चतुर्युगों के स्वरूप का वर्णन, युगों में धर्म के पाद), ६.२०८.१७( राम के पाद स्पर्श से शिला रूप गौतम - पत्नी अहल्या के शुद्ध होने का पूर्वकथन ), ७.४.१७.२५( एकपाद : द्वारका के पश्चिम् द्वार की रक्षा करने वालों में एक ), हरिवंश ३.१७.३०( धर्म के ४ पादों के ब्रह्मचर्य, गृहस्थ आदि नाम ), महाभारत उद्योग ४४.१०(ब्रह्मचर्य के ४ पादों का कथन), योगवासिष्ठ ६.१.१२८.१०( पादों का विष्णु में न्यास ), वा.रामायण ५.१७.१३( हनुमान द्वारा अशोक वाटिका में हस्तिपादा, महापादा आदि राक्षसियों को देखना ), लक्ष्मीनारायण १.३७२.११७(धर्म के पूर्व, वर्त्तमान व भविष्य के चार - चार पादों के नाम), २.१८.२२( कुबेर - कन्याओं द्वारा कृष्ण को समर्पित पादपीठ के स्वरूप का कथन ) , २.५७.४०(मर्क व मदानक असुरों का यमदूत शृङ्गवान् से युद्ध, यमदूत द्वारा हस्त - पादों का कर्तन), २.७९.४६( कृष्ण के पादों में स्थित चिह्नों का कथन ), २.१०९.९७( पन्नाम देश के राजा पादसह द्वारा शम्भु से युद्ध का उल्लेख ), ३.७१( भगवान् के त्रिपाद् विभूति विस्तार का वर्णन? ), ३.१८३.४३( राजा द्वारा सागर नामक भक्त भृत्य के पादों को भङ्ग करना, भगवान् द्वारा भिषक् रूप में पादों को नीरोगी करना, सागर द्वारा पूर्व जन्म में हस्ती के पाद भङ्ग करने का वर्णन ), ३.२१५.६३( देह में पादमूल की ब्रह्माण्ड में पाताल से समता ), द्र. उत्तानपाद, एकपाद, कल्माषपाद, जालपाद, त्रिपाद, पद, रोमपाद, व्याघ्रपाद paada

      Comments on Paada


      पादप मत्स्य ५९( पादप उद्यापन विधि का वर्णन ), २३२( पादपों के रोने, हंसने, रस स्राव करने आदि के फलों का कथन ), स्कन्द ५.१.५.३९( कुशस्थली में शिव द्वारा पादपों को वरदान देने का वृत्तान्त ) paadapa


      पादुका गरुड १.२५.१( पादुका पूजन मन्त्र ), गर्ग ७.२.२७( पृथिवी द्वारा प्रद्युम्न को पादुका भेंट ), नारद १.६५.५४( श्रीपादुका मन्त्र का कथन? ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.११( पादुका दान से वायु लोक की प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड ३.४.३७.२९( योगनाथों द्वारा पादुकात्मक लोकों की सृष्टि का उल्लेख ), भागवत ४.१५.१८( भू द्वारा पृथु को योगमयी पादुका देने का उल्लेख ), मत्स्य ५९.१४( पादप दान के अन्तर्गत दान योग्य उपस्करों में से एक ), ७०.४८( अनङ्ग दान व्रत के अन्तर्गत दान योग्य उपस्करों में से एक ), २७५.२५( हिरण्यगर्भ दान व्रत के अन्तर्गत दान योग्य वस्तुओं में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३३.३०१.३३( पादुका प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि ), स्कन्द ५.२.११.२२( सिद्धेश्वर लिङ्ग के दर्शन से कार्तवीर्य अर्जुन द्वारा पादुका गमन सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.५९.५३( महासिद्धियों में से एक ), ६.८९( अम्बा - वृद्धा द्वारा मातृकाओं के अनुशासनार्थ पादुकाओं की स्थापना, शिव से उत्पन्न कन्याओं द्वारा पादुका पूजन ), ६.१९४( कुमारियों द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्ति हेतु स्थापित पादुका तीर्थ ), ७.१.८४( आदिनारायण द्वारा पादुका से मेघवाहन दैत्य का वध ), ७.३.२२( श्रीमाता देवी द्वारा कलिङ्ग दानव के ऊपर पादुकाओं की स्थापना ), हरिवंश २.७८.२७( व्रत, उपवास आदि में तृण आदि से पादुका निर्माण का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण १.५३८.३२( मेघवाहन दैत्य का पादुका से वध ), २.१०६.९६( श्रीकृष्ण को भेंट की गई पादुकाओं के स्वरूप का कथन ), २.२२५.९१( मुक्त पुरुषों को पादुका दान का उल्लेख ), ३.४९.९४( गुर्वी की पादुका में गङ्गा की स्थिति का उल्लेख ), कथासरित् १.३.५२( राजा पुत्रक द्वारा दिव्य पादुकाओं का उपयोग करने का वृत्तान्त ) paadukaa/ paduka


      पाद्य अग्नि ३४.१९( पाद्य जल के अङ्गभूत ४ द्रव्यों का कथन ), गरुड ३.११.२६(वृत्ति रूप परम ज्ञान के पाद्य अर्घ्य होने का उल्लेख)


      पान गरुड ३.२९.६१(पान काल में नृसिंह के स्मरण का निर्देश), भागवत १.१७.३८( कलि द्वारा परीक्षित् से निवास हेतु प्राप्त स्थानों में से एक ), मत्स्य २२०.८( राजा के पान का निषेध ), वायु ४९.४१( पानी : शाल्मलि द्वीप में कुमुद? पर्वत से नि:सृत नदी ), विष्णुधर्मोत्तर १.१००.१( ग्रहों, नक्षत्रों के लिए देय पान ), लक्ष्मीनारायण २.१८९.६७( श्रीहरि का राजा मुद्राण्ड के सुपान नगर में आगमन हेतु प्रस्थान ) paana


      पाप अग्नि ३१( पाप मार्जन हेतु अपामार्जन विधान व स्तोत्र ), १६८+ ( महापातकों व प्रायश्चित्तों का वर्णन ), १७२( पाप नाशक विष्णु स्तोत्र ), २०३.६( विभिन्न पापों के अनुसार नरक की यातनाओं के नाम ), ३७१.३०( पाप अनुसार योनि की प्राप्ति ), कूर्म २.३२+ ( पापों के प्रायश्चित्त की विधि ), २.४२.९( धौतपाप तीर्थ का माहात्म्य ), गणेश १.९.१०( राजा सोमकान्त के शरीर से पाप पुरुष का निकलना, पापपुरुष के स्पर्श से आम्र वृक्ष का भस्म होना आदि ), गरुड १.५२( पाप हेतु प्रायश्चित्तों का कथन ), १.१०४( पापों के अनुसार प्राप्त योनियां ), १.१०५( पापों के अनुसार प्रायश्चित्त ), नारद १.१४( अशुचि कर्मों के प्रायश्चित्तों का वर्णन ), १.१५.४६( प्रायश्चित्त विहीन पापों का वर्णन ), १.३०( पापों के प्रायश्चित्त का विधान ), १.११९.३१( सार्वभौम दशमी व्रत में पाप का १० दिशाओं में विन्यास व नाश ), १.१२०.८०( पापमोचनिका एकादशी व्रत की विधि ), २.४३.६०(दशहरे के संदर्भ में ३ कायिक, ४ वाचिक व ३मानसिक पापों के नाम), पद्म २.११( पाप रूप वृक्ष का वर्णन ), २.१५( पापियों की मरण भूमि, यमदूतों के लक्षण, मरणशील पापी की चेष्टाओं आदि लक्षणों का वर्णन ), २.१६( पापियों द्वारा यम मार्ग में प्राप्त कष्टों, यम के स्वरूप व पुनर्जन्म में प्राप्त योनियों का कथन ), ५.९४.१५ ( विभिन्न पापों के कारण पांच पुरुषों के पांच प्रेत बनने व वैशाख मास में रेवा स्नान आदि से मुक्ति का वर्णन ), ५.९४.१३१( नारद द्वारा अम्बरीष हेतु कथित पापप्रशमन स्तोत्र ), ५.९६.५०( यम द्वारा ब्राह्मण को नरक व स्वर्ग प्रापक कर्मों का वर्णन ), ७.२२( पाप पुरुष को भोजनार्थ एकादशी तिथि को अन्न रूप स्थल की प्राप्ति ), ब्रह्म १.१०५.८८( विभिन्न पापों के अनुसार यमालय को जाते हुए मार्ग में यातनाएं प्राप्त करने का वर्णन ), १.१०५.१२८( पापियों के दक्षिण द्वार से यमपुरी में प्रवेश का कथन ), १.१०६.८४( विविध पापों के अनुसार नरक में यातनाओं का वर्णन ), १.१०८.३६( पाप कर्म के अनुसार प्राप्त क्रमिक योनियों का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.९( भूमि हरण आदि भूमि से सम्बन्धित पापों के फलों का वर्णन ), २.५८.६५( तारा व चन्द्र के पाप निर्हरण के संदर्भ में चन्द्रमा के पापों का विभिन्न पापियों में वितरण का वृत्तान्त ), ४.७५.३१( पापों के फलस्वरूप प्राप्त योनियां तथा कर्म विपाक का वर्णन ), ४.८५.३४( कर्म विपाक का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१४५( पाप के फलस्वरूप नरक की प्राप्ति ), ३.४.८.३८( संयोगज पाप के ४ प्रकार तथा विभिन्न प्रकार के अन्नों के सेवन से प्राप्त आपेक्षिक अघों का कथन ), भविष्य १.१९०+ ( विविध पाप कर्मों का वर्णन, नरक यातना ), ४.५( पापों के विभिन्न प्रकार, उपपातक व कर्मफल ), भागवत ५.२६( पापों के फलस्वरूप नरक यातनाओं का वर्णन ), मार्कण्डेय १४( पाप अनुसार नरकों का वर्णन ), वराह १४०.५१( कोकामुख क्षेत्र में पापप्रमोचन तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), १९५.२( नाचिकेत द्वारा विभिन्न प्रकार के पापियों का वर्णन ), १९९+ ( पापों के प्रायश्चित्त स्वरूप नरकों की यातनाओं का वर्णन ), २०३( पापों के फलस्वरूप नरक की यातना भोगने के पश्चात् कर्मक्षय होने पर मनुष्य लोक में दुःखों के स्वरूपों का वर्णन ), २१०.५०( पापों के नाशोपाय रूप में देह में चन्द्र, सूर्य आदि के दर्शन का कथन ), २११( पापनाशन के विभिन्न उपायों का वर्णन ), वामन ६१.१( नरक को ले जाने वाले पापों का कथन ), वायु १८.२( पाप के वाक्, मन व काय नामक ३ प्रकारों का उल्लेख ), ६९.१३२/२.८.१२७( ब्रह्मधना के १० पुत्रों में से एक ), १०१.१५१( पापों के अनुसार नरकों के नाम ), विष्णु १.१९.५( अन्यों के पापों का चिन्तन न करने पर पाप के प्राप्त न होने का कथन ), २.६.१( पापों के अनुसार नरकों के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर २.१११.२( विभिन्न पापों के फलस्वरूप नरक में निवास की अवधि का कथन ), ३.२५३.१( विभिन्न पाप कर्मों के फलानुसार अन्ध, मूक आदि होकर जन्म लेने का वर्णन ), शिव २.१.११.१२( चतुर्विध पापों के दारिद्र्य, रोग, दुःख, शत्रु द्वारा पीडा का उल्लेख ), ५.६( पापों के भेद ), ५.१६( पापों के प्रायश्चित्त ), ५.४२.२१( आम/कच्चे पात्र के जल में विलीन होने से पापों के विलीन होने की उपमा ), ७.२.२६.१( पञ्चाक्षर मन्त्र सहित शिव पूजा से १२ वर्षों में पापों से निवृत्ति का कथन ), स्कन्द १.२.५१( कमठ द्वारा अतिथि को विभिन्न पापकर्मों के फलों का वर्णन ), २.१.१( पाप नाशन तीर्थ का माहात्म्य ), २.१.१९.१८( पाप विनाश तीर्थ का माहात्म्य : सुमति विप्र द्वारा शूद्र को उपदेश के पाप से मुक्ति आदि ), २.१.२०( पाप नाशन तीर्थ : भूदान से भद्रमति द्विज का कल्याण ), २.४.३०.९( पापी या धर्मी के संसर्ग से तथा अन्य निकटस्थों से प्राप्त पाप - पुण्य के अंशों का वर्णन ), २.८.२.३८( अयोध्या में पापमोचन तीर्थ में स्नान से नरहरि विप्र के पापों के नाश का कथन ), ३.१.१०( पापविनाश तीर्थ : सुमति विप्र व दृढमति शूद्र की मुक्ति ), ३.१.१०.८३( दक्षिण समुद्र में सेतु रूप गन्धमादन पर्वत पर पापविनाशन तीर्थ का माहात्म्य : ब्रह्मराक्षस द्वारा गृहीत विप्र बालक को नीरोगता प्राप्ति तथा शूद्र का उद्धार आदि ), ४.१.२७.१५१( दशविध पापों से मुक्ति हेतु दशहरा व्रत विधि ), ४.१.४५.३८( पापहन्त्री : ६४ योगिनियों में से एक ), ४.२.७७.९( हरपाप ह्रद के माहात्म्य का कथन ), ४.२.८३.८१( हरपाप तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.९०.१०२( जलशायि तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में नष्ट होने वाले पापों के प्रकार ), ५.३.११०( विष्णु द्वारा स्थापित धौतपाप तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१३२.४( द्वादशी को उपवास में पापियों आदि से आलापादि का निषेध ), ५.३.१३२.८( वराह के दर्शन से पापों के नष्ट होने की सर्प विष - गरुड व तम - सूर्य से उपमा ), ५.३.१५६.२३( शुक्ल तीर्थ में चान्द्रायण व्रत से नष्ट होने वाले पापों के नाम ), ५.३.१५९.८( यमलोक में यातना न भोगने पर मर्त्य लोक में जीव के पापों के चिह्न प्रकट होने का वर्णन ), ५.३.१७८.१०( गङ्गा में स्नान से नष्ट पापों के नाम ), ५.३.१८४( धौतपाप तीर्थ का माहात्म्य : शिव की ब्रह्महत्या पाप से मुक्ति का कथन ), ६.२७०( पाप से मुक्ति हेतु २४ तत्त्वात्मक पाप पिण्ड दान का कथन ), ७.१.१५( अरुण द्वारा स्थापित पापनाशन लिङ्ग के माहात्म्य का कथन ), स्कन्द १.२.४१.१७( स्थूल, सूक्ष्म व असूक्ष्म अधर्म के संदर्भ में १२ पापनिचयों की व्याख्या ), महाभारत शान्ति १६५.३८( अनिर्देश्य व निर्देश्य/प्रायश्चित्त योग्य पापों का वर्णन ), १९३.२६( पाप को छिपाने पर भी न छिपने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.६७( पाप अनुसार योनि की प्राप्ति ), १.२३२.४( द्वारका में गोमती में स्नान से वज्रलेप पापों के नष्ट होने के संदर्भ में वैश्य के दर्शन से राक्षस के पाप नष्ट होने का वृत्तान्त ), १.३७०.४५( पाप अनुसार नरक में कुण्डों में यातनाओं का वर्णन ), १.४०३.६०( पापनाशन तीर्थ में भूदान से भद्रमति ब्राह्मण को ऐश्वर्य प्राप्ति आदि का वृत्तान्त ), १.५२६.७१( राजा वसु के शरीर से ब्रह्महत्या रूपी पापपुरुष का निकलना, राजा के वरदान से धर्मव्याध बनना ), २.२४.३८( अधर्म व हिंसा - पुत्र, पाप द्वारा गर्भस्थ शिशु के केशों में स्थान प्राप्त करने की कथा ), २.८३( राजा जयध्वज द्वारा पर्वतों को पाप प्रक्षालन के उपायों का वर्णन : तीर्थ सेवन आदि ), २.१०७.३१( राक्षसों द्वारा पापास्त्रों से पितृकन्याओं के पुण्य तत्त्व से निर्मित विमान का निरोध ), २.१४४.३८( मूर्ति प्रतिष्ठा के संदर्भ में प्रायश्चित्त मुक्ति हेतु ब्राह्मण को पापधेनु दान का निर्देश ), ३.५४.५७( गणिकाओं के शरीर से पापों का काक, घूक, मशक, पिशाच आदि रूप में निर्गमन ), ३.१६७( पापव्यपोहन स्तोत्र का वर्णन ), ३.१६८.८६( पाप पुरुष की मूर्ति के स्वरूप का कथन ), ३.२०७.४९( विभिन्न पाप कर्मों के अनुसार योनियों के नाम ), ४.२६.५४( काम्भरेय कृष्ण की शरण से पाप से मुक्ति का उल्लेख ), कथासरित् ७.२.१०८( रानी के दुराचार को देखकर राजा रत्नाधिपति द्वारा स्वराज्य पापभञ्जन ब्राह्मण को दान में देने का उल्लेख ), १७.५.१५४( दैत्यराज की कन्याओं त्रैलोक्यप्रभा व त्रिभुवनप्रभा द्वारा पतियों की प्राप्ति हेतु पापरिपु तीर्थ में तप का कथन ), द्र. धूतपापा paapa


      पायस स्कन्द ५.१.५४.२८( पायस से श्राद्ध करने के महत्त्व का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.१५.२६( पायस से पितामह की तुष्टि होने का उल्लेख )


      पायु गरुड ३.५.२५(पायु अभिमानी देवों के नाम), महाभारत शान्ति ३१७.३(पायु से प्राणों के उत्क्रमण पर मैत्र स्थान प्राप्ति का उल्लेख)


      पार ब्रह्माण्ड ३.४.१.५७( मेरुसावर्णि मनु के १२ पुत्रों के गण का नाम ), भागवत ८.१३.१९( दक्षसावर्णि मनु के काल में पार आदि देवगण की स्थिति का उल्लेख ), ९.२१.२४( रुचिराश्व - पुत्र, पृथुसेन - पिता, वितथ वंश ), मत्स्य ४९.५४( सगर के ३ पुत्रों में से एक, पृथु - पिता, भरद्वाज वंश ), २०२.४( पारण : त्र्यार्षेयों में से एक ), मार्कण्डेय ६४.५/६१.५( पार ऋषि व पुञ्जिकस्तना अप्सरा से कलावती कन्या के जन्म का कथन ), वायु ९९.१७४/२.३७.१६९( पृथुषेण - पुत्र, नीप - पिता, वितथ वंश ), ९९.१७७/२.३७.१७२( सगर के ३ पुत्रों में से एक, वृष - पिता, वितथ/भरद्वाज वंश ), १००.६१/२.३८.६१( पार नामक देवगण के १२ नामों में से कुछ का उल्लेख ), विष्णु ३.२.२१( दक्षसावर्णि मनु के काल में पार आदि देवगण की स्थिति का उल्लेख ), ४.१९.३७( पृथुसेन - पुत्र, नील - पिता, वितथ वंश ), स्कन्द ५.३.७६( पारेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : पराशर द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु तप ) paara


      पारद गरुड २.३०.५२/२.४०.५२( मृतक के रेत:स्थान में पारद देने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४८( भारत के उत्तर दिशा के जनपदों में से एक ), १.२.१८.५०( गङ्गा द्वारा भावित जनपदों में से एक ), २.३.४८.२६( सगर द्वारा पराजित जातियों में से एक ), २.३.६३.१३९( सगर से पराजित होने के पश्चात् वसिष्ठ द्वारा पारदों को मुक्तकेश बनाने का कथन ), मत्स्य ११४.४१( भारत के उत्तर दिशा के जनपदों में से एक ), १२१.४५( चक्षु नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक ), १४४.५७( कल्कि अवतार द्वारा नष्ट किए गए जनपदों में से एक ), विष्णु ४.३.४७( सगर द्वारा पराजित करने पर वसिष्ठ द्वारा पारदों को श्मश्रुधारी करने का कथन ), शिव २.१.१२( पारदेश्वर लिङ्ग की बाण द्वारा पूजा ), ५.३८.३०( राजा बाहु के राज्य का हरण करने वाले राक्षसों के ५ गणों में से एक ), स्कन्द १.२.२९.८७( शिव द्वारा अग्नि में प्रदत्त वीर्य से पारद सरोवर बनने का उल्लेख ) paarada/ parada


      पारमिता कथासरित् १२.५.२१८( दान पारमिता के संदर्भ में राजकुमार द्वारा तप से प्रजा के लिए कल्पवृक्ष बनने की कथा ), १२.५.२३७( शील पारमिता के संदर्भ में शुकों के राजा द्वारा मूर्ख शुक को शील के अभ्यास में प्रवृत्त करने की कथा ), १२.५.२६०( क्षमा पारमिता के संदर्भ में शुभनय मुनि द्वारा चोरों को राजा से क्षमा दिलाने की कथा ), १२.५.२७८( धैर्य पारमिता के संदर्भ में मालाधर नामक ब्राह्मण कुमार द्वारा धैर्यपूर्वक आकाश में उडने के यत्न का वृत्तान्त ), १२.५.२८४( ध्यान पारमिता के संदर्भ में वणिक् - पुत्र मलयमाली द्वारा स्वप्रेयसी के चित्र से संतुष्ट होने की कथा ), १२.५.३१९( प्रज्ञा पारमिता के संदर्भ में सिंह विक्रम चोर द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्ति के यत्न का वृत्तान्त ) paaramitaa


      पारवाल लक्ष्मीनारायण २.२४७.१०१( पारवाल शाक की निरुक्ति : संसाराब्धि से पार ले जाने वाला ),


      पारसीक विष्णु २ .३.१८( भारत के पश्चिम में स्थित जनपदों में से एक ), कथासरित् १८.३.४( पारसीक नृप निर्मूक का उल्लेख )


      पारा मत्स्य १३.४४( पारा तट पर देवी की सती? नाम से स्थिति का उल्लेख ), ११४.२४( पारियात्र पर्वत के आश्रित नदियों में से एक ), स्कन्द ५.३.१९८.८१( पारा तट पर उमा देवी की पापा नाम से स्थिति ) paaraa


      पाराक लक्ष्मीनारायण १.२८३.२०( पाराक नामक मासोपवास व्रत की विधि का वर्णन ), १.२८३.३९( पाराक? के व्रतों में अनन्यतम होने का उल्लेख ), २.२३०.११(भगीरथ की कथा का पाराक राजर्षि की कथा से साम्य),


      पारावत ब्रह्माण्ड १.२.३६.८( स्वारोचिष मन्वन्तर में वर्तमान पारावत देवगण के अन्तर्गत १२ देवों के नाम ), मत्स्य ६.३२( ताम्रा - कन्या गृध्री से उत्पन्न सन्तानों में से एक ), स्कन्द १.१.१८.५( देवों द्वारा अमरावती के त्याग करने के संदर्भ में वायु द्वारा पारावत का रूप धारण कर अमरावती के त्याग का उल्लेख ), १.२.२९.८३( अग्नि द्वारा पारावत रूप धारण कर शिव - पार्वती के गृह में प्रवेश का उल्लेख ), ४.२.७६.४६( पारावत के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में नारायण विप्र ), ५.२.४५.४( पारावत दम्पत्ति द्वारा त्रिलोचन शिव की प्रदक्षिणा, जन्मान्तर में परिमलालय गन्धर्व व नागकन्या रत्नावली होना ), लक्ष्मीनारायण १.४७२.१( शिव मन्दिर का आश्रय लेने से पारावत दम्पत्ति का विद्याधर व नागकन्या बनने का वृत्तान्त ), २.२२३.८४( पारावत राष्ट~ के राजा पराङ्गव्रत द्वारा श्रीहरि का सत्कार ), कथासरित् १२.३.६०( पारावत नाग द्वारा प्राप्त दिव्य खड्ग का संदर्भ ) paaraavata/ paravata


      पारिजात गर्ग १०.४( कृष्ण द्वारा पारिजात हरण की कथा ), देवीभागवत ९.४०.२०( इन्द्र द्वारा दुर्वासा - प्रदत्त पारिजात पुष्प को करि - मस्तक पर रखने पर करि का कायाकल्प होना, पारिजात के अपमान पर दुर्वासा द्वारा इन्द्र को नष्टश्री होने का शाप ), १२.१०.६१( पारिजात अटवी के मध्य हेमन्त ऋतु की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्म १.९४.२८( सत्यभामा के अनुरोध पर कृष्ण द्वारा पारिजात तरु को स्वर्ग से लाने का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.२८( रूप प्राप्ति हेतु विष्णु को पारिजात पुष्प प्रदान करने का निर्देश ), ३.२०.५२( दुर्वासा द्वारा इन्द्र को पारिजात पुष्प की महिमा का कथन, इन्द्र द्वारा पारिजात के तिरस्कार पर इन्द्र के भ्रष्टश्री होने का कथन ), ४.९४.५६( राधा के कृष्ण विरह में मूर्च्छित होने पर पारिजाता गोपी के उद्गार ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१८१( पुलह व श्वेता के १० वीर वानर पुत्रों में से एक ), २.३.७.२३६( प्रधान वानरों में से एक ), ३.४.९.७०( समुद्र मन्थन से उत्पन्न रत्नों में से एक ), ३.४.३२.३६( हेमन्त ऋतु द्वारा पारिजात वाटिका की रक्षा का कथन ), वराह ८१.१( पारिजात वन की सीता पर्वत पर स्थिति ), वायु ३९.१०( महेन्द्र के पारिजात वन की शोभा का वर्णन ), विष्णु १.९.९५( समुद्र मन्थन से उत्पन्न रत्नों में से एक ), ५.३०( कृष्ण द्वारा स्वर्ग से पारिजात वृक्ष के हरण की कथा ), ५.३८.७( कृष्ण के मर्त्य लोक को त्यागने पर पारिजात वृक्ष के स्वर्ग जाने का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.४४.९( पारिजात तरु : समुद्र मन्थन से प्राप्त १४ रत्नों में से एक ), हरिवंश २.६५.१४( पारिजात पुष्प की नारद द्वारा कृष्ण को व कृष्ण द्वारा रुक्मिणी को भेंट ), २.६७.५७( नारद द्वारा पारिजात पुष्प की उत्पत्ति तथा महिमा का वर्णन ), २.६८( कृष्ण द्वारा इन्द्र से पारिजात मांगने हेतु नारद का प्रेषण, शिव द्वारा मन्दार कन्दरा में पारिजात वृक्षों को उत्पन्न करने का उल्लेख ), २.६९.२४( नारद द्वारा इन्द्र को कृष्ण द्वारा पारिजात की मांग को बताना, इन्द्र द्वारा पृथिवी पर पारिजात को न भेजने के कारणों का कथन ), २.७३.९( कृष्ण द्वारा नन्दन वन में पारिजात का उत्पाटन कर गरुड पर रखना, कृष्ण व देवों का युद्ध ), २.७५.३८( अदिति द्वारा सत्यभामा के व्रत की पूर्ति हेतु पारिजात कृष्ण को देना ), २.७६.२६( पुण्यक व्रत की समाप्ति पर पारिजात का पुन: स्वर्गलोक में प्रेषण ), २.८६.५१+ ( मन्दराचल पर्वत पर शिव के पारिजात वन की महिमा, अन्धकासुर द्वारा पारिजात प्राप्त करने की चेष्टा ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९३( वृक्ष रूप धारी श्रीकृष्ण के दर्शन हेतु नारद के पारिजात बनने का उल्लेख ) paarijaata/ parijata


      पारिप्लव पद्म ३.२६.१०( पारिप्लव तीर्थ का माहात्म्य : अग्निष्टोम आदि के फल की प्राप्ति ), विष्णु ४.२१.१२( सुखिबल - पुत्र, सुनय - पिता, परीक्षित् वंश ) paariplava/pariplava


      पारियात्र ब्रह्म १.१६.४८( मेरु के दक्षिणोत्तर मर्यादा पर्वतों में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३३( प्रधान वानरों में से एक ), भागवत ९.१२.२( अनीह/अहोन - पुत्र, बल - पिता, कुश वंश ), वराह ८५.४( पारियात्र पर्वत से उद्भूत नदियों के नाम ),वामन ९०.११( पारियात्र पर्वत पर विष्णु का अपराजित नाम से वास ), वायु ८८.२०४/२.२६.२०३( अहीनगु - पुत्र, दल - पिता, कुश वंश ), विष्णु ४.४.१०६( रुरु - पुत्र, देवल - पिता, कुश वंश ), हरिवंश २.७३.९१( कृष्ण व इन्द्र के युद्ध में ऐरावत का पारियात्र पर गिरना, कृष्ण के भय से पारियात्र का धरणी में प्रवेश ), २.७४( कृष्ण द्वारा पारियात्र पर्वत पर विश्राम, पारियात्र को वर प्रदान, उपनाम शाणपाद ), द्र भूगोल paariyaatra/ pariyatra


      पारुष्य अग्नि २५८.१( वाक् पारुष्यादि प्रकरणम् )


      पार्थ गरुड ३.२८.२१(विष्णु, वायु, अनन्त व इन्द्र का अवतार), स्कन्द ७.३.३३( पार्थेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : देवल - पत्नी पार्था द्वारा तप से पुत्र की प्राप्ति )


      पार्वण द्र. श्राद्ध


      पार्वती अग्नि १७८.२( चैत्र शुक्ल तृतीया को गौरी व शिव के विवाह का उल्लेख ; शिव - पार्वती न्यास ), कूर्म १.११.११( कालाग्नि रुद्र से प्रकट स्त्री रूप का दक्ष - पुत्री होना ), १.१२.४२( पार्वती द्वारा हिमालय को अष्टभुज तथा विराट रूप दिखाना, हिमालय द्वारा सहस्रनाम द्वारा स्तुति ), २.३८.९( नारायण द्वारा शिव - भार्या का रूप धारण करके कामुक रूप धारी शिव के साथ विचरण, द्विजों द्वारा शिव के लिङ्ग के उत्पाटन का वृत्तान्त ), गरुड ३.६.५७(पार्वती द्वारा हरि-स्तुति), गर्ग १.३.३७( पार्वती के भूतल पर जाम्बवती के रूप में अवतार लेने का उल्लेख ), देवीभागवत ३.१९.३४( पार्वती से पृष्ठ भाग की रक्षा की प्रार्थना ), नारद १.६६.१२७( दीर्घजिह्व की शक्ति पार्वती का उल्लेख ), पद्म १.४३+ ( पार्वती के जन्म की कथा, शिव से विवाह, वीरक को पुत्र रूप में स्वीकार करना, पार्वती के शरीर में रात्रि देवी के प्रवेश से कृष्ण वर्ण होना, तप, आडि दैत्य द्वारा पार्वती का रूप धारण कर शिव प्रासाद में प्रवेश पर पार्वती द्वारा द्वारपाल वीरक को शाप, सिंह की उत्पत्ति, रात्रि रूपी देह की कृष्णता का त्याग, कार्तिकेय की उत्पत्ति ), ६.१०.६( नारद द्वारा जालन्धर से शिव के रत्न रूप पार्वती के सौन्दर्य के विषय में कथन ), ६.१३.१६( गौरी के दर्शन हेतु जालन्धर द्वारा मायामय शिव का रूप धारण करने का वृत्तान्त, युद्ध में हत मायामय शिव को देखकर पार्वती का शोक ), ६.१६.४( पार्वती का तप हेतु गङ्गा को गमन, मायाशिव की परीक्षा हेतु सखी जया का प्रेषण, सत्य जानकर पार्वती का पद्म में छिपना ), ६.१०२.२३( जालन्धर द्वारा शिव रूप धारण कर पार्वती के दर्शन करने पर वीर्यपात्, पार्वती का अन्तर्धान होना ), ब्रह्म १.३४( पार्वती स्वयम्वर में देवों का आगमन, शिशु रूपी शिव का पार्वती की गोद में सोना, इन्द्र आदि द्वारा वज्र प्रहार ), २.११.९( कार्तिकेय की विषय भोग की लालसा की निवृत्ति के लिए देवपत्नी रूप धारण ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.६.८९( पुत्रहीना पार्वती को पुत्र प्राप्ति हेतु पुण्यक व्रत चीर्णन का परामर्श ), ३.७( पार्वती का पुण्यक व्रत के अन्त में पति को दक्षिणा रूप में पुरोहति को देने में संकोच का वृत्तान्त ), ३.८+ ( विष्णु का विप्र रूप में शिव - पार्वती के रतिगृह में आगमन तथा गणेश रूप धारण करने का वृत्तान्त ), ४.६.५१( पार्वती की विष्णु पर आसक्ति से जाम्बवान् - कन्या, कृष्ण - पत्नी जाम्बवती के रूप में जन्म ), ४.६.१२५( कृष्ण द्वारा पार्वती को यशोदा व नन्द - पुत्री के रूप में जन्म लेकर कंस के दर्शन मात्र से पुन: शिव से मिलन का निर्देश ), ४.६.१४६( पार्वती का कृष्ण के रूप पर आकृष्ट होना, कृष्ण - पत्नी रूप में जन्म ), ४.१०९.१३( कृष्ण व रुक्मिणी के विवाह में पार्वती का हास्य ), ४.१२७( पार्वती की राधा तथा अन्य देवियों के साथ एकात्मता ), ब्रह्माण्ड २.३.४३( गणेश के दन्त का कर्तन करने के पश्चात् परशुराम द्वारा पार्वती की स्तुति ), भविष्य ४.२१.२७( ललिता तृतीया व्रत के संदर्भ में मास अनुसार पार्वती के नाम ), ४.२४.१२( रम्भा तृतीया व्रत के संदर्भ में मास अनुसार पार्वती के नाम ), ४.२९( विभिन्न मासों की तृतीया तिथियों को पार्वती के नाम व पूजा ), ४.६९.३९( पार्वती द्वारा गौ का रूप धारण, शिव रूपी व्याघ्र| से भय, मुनियों द्वारा गौ की रक्षा ), भागवत ४.१५.१७( अम्बिका द्वारा पृथु को शतचन्द्र असि देने का उल्लेख ), ६.१७.५( राजा चित्रकेतु द्वारा आलिङ्गन अवस्था में शिव - पार्वती के दर्शन व उपहास, पार्वती द्वारा चित्रकेतु को असुर बनने का शाप ), १०.८८.२३( वृक द्वारा पार्वती की प्राप्ति का यत्न, ब्रह्मचारी वेश धारी विष्णु की युक्ति से वृक की मृत्यु ), मत्स्य १५४.२९४( शिव की पति रूप में प्राप्ति हेतु पार्वती द्वारा तप ), १५५( शिव द्वारा पार्वती के कृष्ण वर्ण पर आक्षेप, पार्वती द्वारा तप ), १५८( शिव वीर्य रूपी सरोवर के जल के पान से पार्वती से स्कन्द की उत्पत्ति ), लिङ्ग १.९९.१३( अर्धनारीश्वर शिव द्वारा सृष्ट स्वपत्नी श्रद्धा का जन्मान्तरों में सती व पार्वती बनने का कथन ), १.१०२+ ( पार्वती के विवाह की कथा ), वामन ५७.१०३( पार्वती द्वारा स्कन्द को वस्त्र प्रदान का उल्लेख ), ५९( अन्धक द्वारा पार्वती की प्राप्ति की चेष्टा ), शिव २.३.०+ ( पार्वती का हिमालय से जन्म, शिव से विवाह ), २.३.१( पार्वती का हिमालय के घर जन्म, नारद उपदेश से शिव की प्राप्ति का उद्योग ), स्कन्द १.१.२०.६४( सुर कार्य की सिद्धि हेतु मेना द्वारा पार्वती को उत्पन्न करने के लिए गर्भ धारण का कथन ), १.१.२२( शिव की प्राप्ति हेतु पार्वती द्वारा तप, वटु रूप धारी शिव को पार्वती द्वारा अस्वीकार करना, शिव द्वारा पार्वती को दर्शन देना ), १.१.३५( पार्वती द्वारा शबरी रूप में शिव का मोहन ), १.२.२७.६०( काली नाम से पुकारने पर पार्वती द्वारा शिव की भर्त्सना ), १.३.१.३.२४( पार्वती द्वारा शिव के नेत्रत्रय मूंदना, शंकर की आज्ञा से कम्पा नदी तट पर तप ), १.३.१.४.२९( नदी जल के प्रवाह से रक्षा के लिए पार्वती द्वारा लिङ्ग का आलिङ्गन, लिङ्ग का अरुणाचल नामकरण ), १.३.२.१८( देह की कालिमा की निवृत्ति के लिए पार्वती द्वारा गौतम के उपदेश से तप करना ), १.३.२.१९( तपोरत पार्वती को महिषासुर द्वारा दूत का प्रेषण, दुर्गा की उत्पत्ति, महिष का वध ), २.४.१७( नारद से पार्वती के रूप की प्रशंसा सुनकर जालन्धर द्वारा पार्वती की प्राप्ति के लिए यत्न, शिव के पास राहु दूत का प्रेषण ), ४.२.९०.१८( काशी में पार्वतीश लिङ्ग का माहात्म्य ), ४.२.९६( काशी में व्यास को भिक्षा की उपलब्धि में पार्वती का बाधक बनना, व्यास के क्रोधित होने पर व्यास को काशी त्यागने का निर्देश ), ५.२.५५( पार्वती के क्रोध रूपी तेज से सिंह की उत्पत्ति, पार्वती का सिंह पर ममत्व, सिंह को महाकाल में सिंहेश्वर की उपासना का आदेश तथा स्ववाहन बनाना ), ५.३.१९८.८९( शिव सन्निधि में देवी के पार्वती नाम का उल्लेख ), ६.२५४( शिव से रुष्ट होने पर शिव द्वारा तोषणार्थ ताण्डव नृत्य, पार्वती द्वारा स्तुति ), ७.१.७.२७( कल्पों के अनुसार पार्वती के नाम ), ७.१.१६७.९( वैवस्वत मन्वन्तर में पार्वती के हिमालय गृह में जन्म व द्वितीय द्वापर में शिव से विवाह का कथन, पार्वती की देह से उत्पन्न भूतमाता का वर्णन ), हरिवंश २.१०७( प्रद्युम्न द्वारा पार्वती की स्तुति ), लक्ष्मीनारायण १.१८०.५५( पार्वती के जन्म के समय नक्षत्रों की स्थिति ), १.३७९.१( मेना द्वारा पार्वती को पातिव्रत्य धर्म का उपदेश ), १.४५०( देवों के आगमन से शिव - पार्वती की रति भङ्ग होने पर शिव वीर्य का भूमि पर पतन, पार्वती द्वारा देवों को व्यर्थ वीर्य होने का शाप, पुत्र प्राप्ति हेतु पार्वती द्वारा पुण्यक व्रत का चीर्णन, शिव को दक्षिणा में दान देने का वर्णन, गणेश पुत्र की प्राप्ति ), १.५०५.३०( तिलोत्तमा अप्सरा के रूप को देखकर शिव का पञ्चवक्त्र होना, नारद द्वारा पार्वती का प्रबोधन, पार्वती का शिव के नेत्रों में प्रवेश तथा तिलोत्तमा को कुरूप होने का शाप आदि ), १.३०५.५( ब्रह्मा द्वारा सनकादि हेतु जया, ललिता, पारवती आदि ४ शक्तियों की सृष्टि, सनकादि द्वारा अस्वीकार करने पर कन्याओं द्वारा त्रयोदशी व्रत से कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति ), १.३२८.७२( जालन्धर द्वारा रुद्र का रूप धारण कर पार्वती के प्रति गमन, वीर्य मोचन, पार्वती का अदृश्य होना, पार्वती के निर्देश पर विष्णु द्वारा जालन्धर - पत्नी वृन्दा के सतीत्व को भङ्ग करना ), १.३८५.३०(पार्वती का कार्य), कथासरित् ४.१.३३( चण्डमहासेन की पुत्री व उदयन - भार्या वासवदत्ता के पार्वती का अंश होने का उल्लेख ), ४.२.८०( भिल्लराज द्वारा पार्वती के समान सिंह पर आरूढ कन्या का विवाह मित्र वसुदत्त से कराने का वृत्तान्त ) paarvatee/ parvati


      पार्श्व ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६६( पार्श्वी व पार्श्वमर्दी : राम के पुत्रों में पार्श्वी व पार्श्वमर्दी का उल्लेख ), वायु ९६.१६४/२.३४.१६४( सारण के पुत्रों में पार्श्वनन्दी व पार्श्वी का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२४( अमृत वितरण के संदर्भ में मोहिनी के पार्श्वों में पर्वतों की स्थिति का उल्लेख ), स्कन्द २.२.३९.१६( नभ: शुक्ल एकादशी को पार्श्व परिवर्तन उत्सव का कथन - अतः परं प्रवक्ष्यामि पार्श्वस्य परिवर्तनम् ।।
      शयितस्य जगद्भर्तुः परिवर्तयितुर्युगम् ।।), लक्ष्मीनारायण २.१४०.८६( पार्श्व नामक प्रासाद में तलों व अण्डकों की संख्या ), द्र. महापार्श्व, सुपार्श्वpaarshva/ parshva


      पार्श्वमौलि गर्ग ६.१०.४०( कुबेर - मन्त्री, दुर्वासा के शाप से गज बनना ), ७.२३.४७( कुबेर के मन्त्रियों घण्टानाद व पार्श्वमौलि का उल्लेख ), ७.१५.१५( मणिभद्र यक्ष द्वारा पार्श्वमौलि नाम अर्जन का कारण ) paarshvamauli


      पार्षद गरुड ३.२४.७७(श्रीनिवास के विभिन्न दिशाओं में द्वारों पर पार्षदों की स्थिति), गर्ग ५.१७.६( राधा के कृष्ण से विरह पर पार्षदा नामक गोपियों की प्रतिक्रिया ), भागवत २.९.१४( ब्रह्मा द्वारा दृष्ट विष्णु के चार पार्षदों सुनन्द, नन्द, प्रबल व अर्हण के नाम ) paarshada


      पार्ष्णिग्रह देवीभागवत ७.९.२४( देवासुर संग्राम में राजा शशाद / ककुत्स्थ के पार्ष्णिग्राह बनने की कथा ), ब्रह्माण्ड २.३.६५.३१( तारा के कारण देवासुर सङ्ग्राम में उशना के चन्द्रमा तथा रुद्र के बृहस्पति का पार्ष्णिग्राह बनने का उल्लेख ), ३.४.२५.१४( भण्डासुर व ललिता देवी के युद्ध में विषङ्ग के भण्डासुर का पार्ष्णिग्राह बनने का उल्लेख ), मत्स्य २४०.२( राजा के यात्रा काल के निर्णय में पार्ष्णिग्राह/सीमावर्ती राजा के महत्त्व का कथन ), विष्णु ४.५.१२( तारा के कारण सङ्ग्राम में उशना के चन्द्रमा का तथा रुद्र के बृहस्पति का पार्ष्णिग्राह बनने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.११६.५७( गवय की हिंसा पर पार्ष्णिग्रह मुनि द्वारा राजा समीरण को शरभ बनने का शाप, दत्तात्रेय की कृपा से राजा की मुक्ति का वृत्तान्त ) paarshnigraha


      पार्ष्णिरद लक्ष्मीनारायण २.२६५.३( पार्ष्णिरद नामक अजापाल द्वारा अजा के शिशुओं की हत्या से पाप की प्राप्ति, कृष्ण की शरण में जाने आदि से पापों के नाश का वृत्तान्त )


      पालक अग्नि १८.१९( पालित : पृथु के २ पुत्रों में से एक ), २९२.४४( पालकाप्य द्वारा अङ्गराज को गौ आयुर्वेद का उपदेश ), गरुड १.२१.४( पाल्या : वामदेव की १३ कलाओं में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.३७( पालमञ्जर पर्वत पर शौर्पारक तीर्थ का उल्लेख ), २.३.७४.१२५( प्रद्योति - पुत्र व विशाखयूप - पिता पालक द्वारा २४ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), भागवत १२.१.३( प्रद्योत - पुत्र, विशाखयूप - पिता ), मत्स्य २००.१२( पालङ्कायन : त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), २७२.३( बालक - पुत्र व विशाखयूप - पिता पालक द्वारा २८ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), वायु ६३.२२/२.२.२२( पालिन : पृथु के २ पुत्रों में से एक ), ९९.३१२/२.३७.३०६( प्रद्योत - पुत्र व विशाखयूप - पिता पालक द्वारा २४ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), स्कन्द ६.२७१.१०३( शिव गण पालक का गालव के शाप से बक बनना ), ६.२७१.४३७( पालक द्वारा द्विजातियों को कार्पास निर्मित हिमवान दान का उल्लेख ), कथासरित् १६.१.६०( चण्ड - पुत्र गोपालक द्वारा उज्जयिनी का राजा बनने की अनिच्छा पर गोपालक के अनुज पालक के राज्याभिषिक्त होने का कथन ), १६.१.९०( प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा नरवाहनदत्त को उसके मातुल - द्वय पालक व गोपालक का कुशल - क्षेम बताना ) paalaka


      पालिका भविष्य ४.९१( पाली व्रत में जलाशयों में वरुण की उपासना ), लक्ष्मीनारायण ३.१८३.२( पालिकातान राज्य के राजा द्वारा मृगयाकाल में सागर भक्त भृत्य के पाद भङ्ग करने का वृत्तान्त ),


      पावक कूर्म १.१३.१५( वैद्युत अग्नि का रूप - पावकः पवमानश्च शुचिरग्निश्च ते त्रयः । निर्मथ्यः पवमानः स्याद्‌ वैद्युतः पावकः स्मृतः ।। यश्चासौ तपते सूर्यः शुचिरग्निस्त्वसौ स्मृतः । ), गरुड १.९५.१९( पावक द्वारा व्यभिचारिणी को सर्वमेध्यत्व दान का उल्लेख - सोमः शौचं ददौ तासां गन्धर्वश्च शुभां गिरम् ॥
      पावकः सर्वमेध्यत्वं मेध्या वै योषितो यतः ॥ ), ३.२२.२७(पावक के १३ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख - चतुर्दशैस्तु(चतुर्विंशैस्तु?) धनपः पावकस्तु त्रयोदशैः ॥), देवीभागवत ५.८.६४( पावक के तेज से देवी के नयनों की उत्पत्ति - नयनत्रितयं तस्या जज्ञे पावकतेजसा । कृष्णं रक्तं तथा श्वेतं वर्णत्रयविभूषितम् ॥ ), ब्रह्माण्ड १.१.२.१७( गङ्गा द्वारा धारित पावक के तेज से हिरण्य की उत्पत्ति का उल्लेख - यं गर्भं सुषुवे गङ्गा पावकाद्दीप्ततेजसम् ॥ तत्तुल्यं पर्वते न्यस्तं हिरण्यं समपद्यत । ), १.२.१२.३( स्वाहा - पुत्र, वैद्युत अग्नि, अप - योनि, सहरक्ष - पिता ), १.२.१२.३३( पावक अग्नि के वंश का कथन - ततो यः पावको नाम्ना अब्जो यो गर्भ उच्यते। अग्निः सोऽवभृथे ज्ञेयो वरुणेन सहेज्यते ), २.३.८.५( पावक के वसुओं का अधिपति बनने का उल्लेख - आदित्यानां पुनर्विष्णुं वसूनामथ पावकम् । प्रजापतीनां दक्षं च मरुतामथ वासवम् ॥  ), भविष्य १.५७.१३( पावक हेतु हविष्य बलि का उल्लेख - राजवृक्षं तथेन्द्राय हविष्यं पावकाय च । ), २.१.१७.८( वैश्वदेव में अग्नि का नाम - वृषोत्सर्गे भवेत्सूर्योऽवसानांते रविः स्मृतः । पावको वैश्वदेवे च दीक्षापक्षे जनार्दनः ।। ), २.१.१७.१६( दीपाग्नि का नाम ), भागवत ४.१.६०( अग्नि व स्वाहा के ३ पुत्रों में से एक, ४५ अग्नियों के पिता ), ४.२४.४( विजिताश्व/अन्तर्धान व शिखण्डिनी के ३ पुत्रों में से एक, वसिष्ठ के शाप से जन्म का उल्लेख - पावकः पवमानश्च शुचिरित्यग्नयः पुरा । वसिष्ठशापात् उत्पन्नाः पुनर्योगगतिं गताः ॥ ), मत्स्य ५१.३( अग्नि व स्वाहा - पुत्र, सहरक्षा - पिता, वैद्युत अग्नि का रूप ), ५१.२७( पावक अग्नि का योग व अवभृथ उपनाम - ततो यः पावको नाम्ना यः सद्भिर्योग उच्यते। अग्निः सोऽवभृथो ज्ञेयो वरुणेन सहेज्यते ), वराह ६७.२( पावक के ७ समुद्रों में विभाजित होने का कथन - यः पुमान् सप्तधा जात एको भूत्वा नरेश्वर । स समुद्रस्तु विज्ञेयः सप्तधैको व्यवस्थितः ।। ), ८८.३( क्रौञ्च द्वीप के वर्षों में से एक, अपर नाम सुदर्शन), वायु १.२.१६( गङ्गा द्वारा धारित पावक के तेज से हिरण्य की उत्पत्ति का उल्लेख - यं गर्भे सुषुवे गङ्गा पावकाद्दीप्ततेजसम्। तदुल्बं पर्वते न्यस्तं हिरण्यं प्रत्यपद्यत ।। ), १.२९.३१( अग्नि, पावक/अपांगर्भ नाम - तयोर्यः पावको नाम स चापां गर्भ उच्यते । अग्निः सोऽवभृथो ज्ञेयः सम्यक् प्राप्याप्सु हूयते।), ७०.५/२.९.५( पावक के वसुओं का अधिपति बनने का उल्लेख - आदित्यानां पुनर्विष्णुं वसूनामथ पावकम् । ), विष्णु १.१०.१४( अग्नि व स्वाहा के पावक आदि ३ पुत्रों तथा उनकी ४५ सन्तानों का उल्लेख ), १.२२.३( पावक के वसुओं का अधिपति बनने का उल्लेख - राज्ञां वैश्रवणं राज्ये जलानां वरुणं तथा । आदित्यानां पतिं विष्णुं वसूनामथ पावकम् ॥), शिव ५.३३.२१( प्रजापति द्वारा पावक को वसुओं का अधिपति नियुक्त करने का उल्लेख - आदित्यानां तथा विष्णुं वसूनामथ पावकम् ।। ), ७.१.१७.३८( पावक की वैद्युत प्रकृति का उल्लेख - निर्मंथ्यः पवमानस्स्याद्वैद्युतः पावकस्स्मृतः ॥ सूर्ये तपति यश्चासौ शुचिः सौर उदाहृतः ॥), स्कन्द १.२.४२.१७६( पावक के सात आधिभौतिक नाम - घ्राणं जिह्वा च चक्षुश्च त्वक्च श्रोत्रं च पंचमम्॥ मनो बुद्धिश्च सप्तैते दीप्यंते पावका मम॥ ), ३.१.२३.२९(देवों के यज्ञ में पोता - आग्नीध्रोऽभूच्छुनःशेपः पोता जातश्च पावकः ।। ), ५.३.२२.२२( नर्मदा - पुत्र द्वारा पावक व मारुत को युद्ध में दैत्यों को नष्ट करने का निर्देश ), महाभारत सभा ७.२१नीलकंठी टीका( २७ पावकों के अङ्गिरा, दक्षिणाग्नि आदि नाम ), वा.रामायण १.१७.१३( नील वानर के पावक - सुत होने का उल्लेख - पावकस्य सुतः श्रीमान् नीलः अग्नि सदृश प्रभः । तेजसा यशसा वीर्यात् अत्यरिच्यत वीर्यवान् ॥ ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.६( सहरक्षा - पिता ) paavaka


      पावन ब्रह्माण्ड १.२.१४.२२( द्युतिमान् - पुत्र, पावन देश का अधिपति ), भागवत १०.६१.१६( मित्रविन्दा व कृष्ण के १२ पुत्रों में से एक ), मत्स्य १२२.८१( क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५( पावनी नदी के सृमर वाहन का उल्लेख ), स्कन्द १.१.७.३०( वायव्या में पावनेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ५.१९+ ( दीर्घतपा - पुत्र ) paavana


      पावनी ब्रह्माण्ड १.२.१२.१६( आहवनीय अग्नि द्वारा सम्पर्क की गई १६ धिष्णी नदियों में से एक ), १.२.१८.४०( गङ्गा की प्राची दिशा की ओर उन्मुख ३ शाखाओं में से एक ), मत्स्य १२१.४०( गङ्गा की प्राची को ओर उन्मुख ३ धाराओं में से एक ), १२२.३१( शाक द्वीप की ७ द्विनामा नदियों में से एक ), वायु २९.१४( शंस्य/आहवनीय अग्नि की १६ नदी रूपी पत्नियों में से एक ), ४७.३८( गङ्गा की प्राची दिशा की ओर उन्मुख ३ शाखाओं में से एक ) paavanee/ pavani


      पाश अग्नि २५१.२( पाश निर्माण तथा क्षेपण विधि का कथन ), २५२.५( पाश विधारण की ११ विधियां ), गणेश २.८५.२२( पाशपाणि गणेश से श्रवणों की रक्षा की प्रार्थना ), २.९८.२१( गुणेश द्वारा पाश से अभिनवाकृति दैत्य का वध ), २.१०२.२०( गणेश द्वारा पाश से कमलासुर का वध ), नारद १.३५.७३( ज्ञान प्राप्ति से कर्म पाश विच्छेद का उल्लेख ), १.६३.१६( शैव दीक्षा में पाशों के भेद ), १.६६.९२( पाशी विष्णु की शक्ति विरजा का उल्लेख ), १.१२०.४५( पाशाङ्कुशा एकादशी व्रत की विधि ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.२८( पाशा : पारियात्र पर्वत के आश्रित नदियों में से एक ), मत्स्य १५३.२१३( वरुण द्वारा तारक पर प्रयुक्त सर्प पाश के छिन्नाङ्ग होने का कथन ), लिङ्ग १.८०.१( पशुपति के दर्शन मात्र से देवों के पशुत्व से मुक्त होने का प्रश्न ), १.८०.४९( पाशुपत व्रत से पशुत्व नष्ट होने का कथन, पाशुपत व्रत का वर्णन ), २.९.९( पशुपति द्वारा पशु को बांधने वाले पाशों के स्वरूप का प्रश्न ), २.९.१३( परमेश्वर द्वारा २४ तत्त्वात्मक माया पाशों से पशु को बांधने का उल्लेख ), वायु ६९.३३८/२.८.३३८( ताम्रा की पाशशालिनी प्रकृति का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.४५.२७( पाशहस्ता : ६४ योगिनियों में से एक ), ४.२.५७.६४( पाशपाणि विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.४.१७.१७( पाशहस्त : द्वारका के दक्षिण दिशा की रक्षा करने वाले गणों में से एक ), ७.४.१७.२५( पाशहस्त : द्वारका के पश्चिम् दिशा की रक्षा करने वाले गणों में से एक ), हरिवंश ३.८१.२०( कृष्ण के दर्शन के पश्चात् पिशाच द्वारा आन्त्रपाश के भेदन का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २२७.११६( चातुर्वर्ण के भ्रष्ट होने पर बलि के पाशों के खुलने का कथन ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.६६( पाशवती : कृष्ण - पत्नी पाशवती के अनन्त पुत्र व बृहतीश्वरी पुत्री का उल्लेख ), द्र. विपाशाpaasha


      पाशुपत ब्रह्माण्ड १.२.२७.११६( पाशुपत व्रत के अन्तर्गत भस्म के महत्त्व का कथन ), २.३.४०.६५( परशुराम द्वारा युद्ध में पाशुपत अस्त्र से कार्त्तवीर्य के नाश का कथन ), मत्स्य २२.५६( श्राद्ध योग्य तीर्थों में से एक ), लिङ्ग १.८०.४७( देवों के पशुत्व के विशोधन हेतु शिव द्वारा पाशुपत व्रत के उपदेश का कथन ), २.१८.५३( पाशुपत व्रत की विधि ), वराह ७०.४३( नय सिद्धान्त के विपरीत पाशुपत शास्त्र का कथन, नय सिद्धान्त शास्त्र रूप पाश व पशुभाव के नष्ट होने पर ही वेद संज्ञक पाशुपत शास्त्र के प्रादुर्भाव का कथन ), वामन ६.८७( शिव पूजा हेतु निर्मित ४ सम्प्रदायों में द्वितीय ; भरद्वाज के महापाशुपत आचार्य होने का कथन ), स्कन्द २.२.१२.५५( पाशुपतास्त्र के सम्बन्ध में विष्णु द्वारा शिव को प्रदत्त वर का कथन : विष्णु के प्रतिकूल होने पर पाशुपतास्त्र का विफल होना ), ५.१.४९.२८( बाणासुर युद्ध में कृष्ण के वैष्णवास्त्र के प्रतीकार स्वरूप शिव द्वारा पाशुपतास्त्र धारण करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१८५.३०( श्वसुर पाशुपतेश द्वारा जामाता मञ्जुलकेश को सुरा मिश्रित भोजन प्रस्तुत करने पर जामाता के शाप द्वारा प्रमत्त बनना, शाप निवृत्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् ८.७.५४( सूर्यप्रभ व श्रुतशर्मा के युद्ध के प्रसंग में प्रभास द्वारा विष्णु के अंश दामोदर पर पाशुपतास्त्र का प्रयोग व विष्णु द्वारा प्रतीकार रूप में सुदर्शन चक्र का प्रयोग ), १७.५.७५( मुक्ताफलकेतु द्वारा पाशुपत अस्त्र के स्वरूप का दर्शन ), द्र. पशुपति, महापाशुपतpaashupata


      पाषाण गणेश २.१३.४१( महोत्कट गणेश द्वारा परशु से पाषाण दैत्य का वध ), नारद १.१२३.५८( पाषाण चर्तुदशी व्रत की विधि ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.८९( रौप्य आदि पात्रों की चोरी पर नरक में तप्त पाषाण कुण्ड प्राप्ति का कथन ), स्कन्द ३.१.७.५१( सेतु स्थापना के संदर्भ में आरम्भ में राम द्वारा ९ पाषाणों की स्थापना का उल्लेख ), ३.१.५१.१५(सेतुमूल पर पाषाण दान का निर्देश), ३.१.५१.१८(पाषाण दान विधि), योगवासिष्ठ ६.१.७८.२१( मन की पाषाण से उपमा के कारण का कथन ), ६.२.५६( पाषाणोपाख्यान का आरम्भ ), ६.२.६०.३३, लक्ष्मीनारायण २.१८३.८९( चक्र की वह्नि से पर्वत के पाषाणों के रसात्मक होने का उल्लेख ) paashaana/ pashana


      पाह्नव शिव ५.३८.३०( राजा बाहु के राज्य का हरण करने वाले ५ राक्षस गणों में से एक )


      पिङ्ग गर्ग ७.९.१०( शिशुपाल – मन्त्रीद्वय रङ्ग व पिङ्ग का प्रद्युम्न - सेनानी भानु से युद्ध व मृत्यु ), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१६( मध्यमाध्वर्युओं में से एक - भार्गवो मधुकः पिंगः श्वेतकेतुस्तथैव च ।। ), शिव ३.५.३२( २२वें द्वापर में लाङ्गली नामक शिव अवतार के ४ पुत्रों में से एक - भल्लवी मधुपिंगश्च श्वेतकेतुस्तथैव च ।। ), स्कन्द ५.१.५६.५४( शनि के नामों में से एक - पिंगश्छायासुतो बभ्रुः स्थावरः पिप्पलायनः ।। ), ७.१.२४६( पिङ्गा नदी का माहात्म्य, पिङ्गली/पिङ्गला नदी ), ७.१.३३३.८( खण्डघट स्थान पर पिङ्गेश लिङ्ग का माहात्म्य - तस्मान्नैर्ऋत्यदिग्भागे स्थानं खंडघटेति च ॥ तत्र पिंगेश्वरो देवः समुद्रतटसन्निधौ ॥ ), ७.४.१७.३०( द्वारका के वायव्य द्वार के रक्षकों में से एक - झंझकामर्दनः पिंगो रुरुः सर्वभुजोव्रणी ॥ ), लक्ष्मीनारायण २.१०८.५७( प्रागुत्तर दिशा में पिङ्ग देश में सम्पन्न वैष्णव यज्ञ का वर्णन - पिंगदेशे किंपुरुषे यज्ञार्थं विष्णुसंहिताः ।। ), २.१०९.७६( पिङ्ग देश के राजा बोधविहङ्गम की वैष्णव गणों से युद्ध में मृत्यु, पिङ्गल - पुत्र पिङ्गकेश द्वारा श्रीहरि की शरण - नाशं प्राप्तस्तथा राजा पिंगो बोधविहंगमः । तत्पुत्राः शतसंख्याश्च विज्ञविहंगमादयः ।। ), २.११०.६८( यज्ञ के पश्चात् पिङ्गदेश का राज्य पिङ्गकेश राजकुमार को प्राप्त होने का उल्लेख - दीयते प्राचीनराज्यं विज्ञविहंगमाय च । पिंगचिपिंगराज्यं तु पिंगकेशाय दीयते ।। ), कथासरित् ९.६.९३( राजा विमल के मन्त्री पिङ्गदत्त द्वारा राजा के षण्ढ पुत्र के लिए यक्ष से पुंस्त्व प्राप्त करने का परामर्श ), १७.१.६१( शिव गणों पिङ्गेश्वर व गुहेश्वर द्वारा पार्वती से शाप प्राप्ति का वृत्तान्त - तद्दृष्ट्वान्यौ गणौ नाम्ना पिङ्गेश्वरगुहेश्वरौ ।
      बभूवतुः स्मितमुखावन्योन्याननदर्शिनौ ।। ) pinga


      पिङ्गल कूर्म २.४२.३५( पिङ्गलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य - ततो गच्छेत राजेन्द्र पिङ्गलेश्वरमुत्तमम् । तत्र स्नात्वा नरो राजन् रुद्रलोके महीयते ।। ), गणेश २.१०.१०( महोत्कट द्वारा अक्षतों में छिपे पिङ्गल आदि ५ राक्षसों का वध ), २.२७.३१, २.२८.३६( पिङ्गल राक्षस के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में दुष्टबुद्धि नाम से मन्त्री, गणेश - पूजा का फल प्राप्त करना ), देवीभागवत ७.३०( पिङ्गलेश्वरी : पयोष्णी तीर्थ में देवी का नाम ), पद्म १.४०.८४( सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक ), ६.१०.३७( जालन्धर की कथा में कीर्तिमुख की पिङ्गल संज्ञा - त्र्याननस्त्रिचरणस्त्रिपुच्छः सप्तहस्तवान् । स च कीर्तिमुखो नाम पिंगलो जटिलो महान् । ), ६.१३३.२३( पयोष्णी में पिङ्गल तीर्थ का उल्लेख - महालयं महापद्मे पयोष्ण्यां पिंगलेश्वरम् ), ६.१७९( परदारा रत विप्र पिङ्गल का मृत्यु पश्चात् गृध्र बनना, गीता के पञ्चम अध्याय श्रवण से मुक्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.४१.२७( शिव के गणों में से एक पिङ्गलाक्ष का उल्लेख ), भविष्य १.१२४.१९( सूर्य - अनुचर, अग्नि का रूप - लिखते यः प्रजानां च सुकृतं यच्च दुष्कृतम् ।। अग्निर्दक्षिणपार्श्वे तु पिंगलत्वात्स पिंगलः ।। ), २.१.१७.१०( सीमन्त कर्म में अग्नि का नाम - गर्भाधाने च मरुतः सीमंते पिंगलः स्मृतः ।। पुंसवे त्विंद्र आख्यातः प्रशस्तो यागकर्मणि ।। ), ३.४.१८.४६( पिङ्गलस्पति : अश्विनौ का नाम, पिङ्गलस्पति का रैदास के रूप में अवतरण - द्वितीयश्च नृणां राशेः सावर्णिर्भ्रमकारकः ।।
      तस्य शान्तिकरो भूमौ भविता पिंगलापतिः ।। ), ४.१३०.३( पिङ्गल तापस द्वारा जाम्बवती को शरीर को तेज आदि से युक्त करने के लिए दीप दान की महिमा का वर्णन ), मत्स्य १५३.१९( ११ रुद्रों में से एक ), १७१.३९( ११ रुद्रों में से एक ), १९१.३२( पिङ्गलेश्वर तीर्थ का माहात्म्य - ततो गच्छेत्तु राजेन्द्र! पिङ्गलेश्वरमुत्तमम्।
      अहोरात्रोपवासेन त्रिरात्रफलमाप्नुयात् ।। ), १९५.२५( पैङ्गलायनि : भृगु गोत्र प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), १९६.१८( पिङ्गलि : पिङ्गल ऋषियों के गोत्र प्रवरों का कथन ), २६१.५( सूर्य के प्रतीहार - द्वय में से एक पिङ्गल के स्वरूप का कथन - प्रतिहारौ च कर्तव्यौ पार्श्वयोर्दण्डिपिङ्गलौ। कर्तव्यौ खड्गहस्तौ तौ पार्श्वयोः पुरुषावुभौ ।।.. ), वराह ८१.५( अनेकपर्वता(पवता?) नामक गन्धर्वों के अधिपति के रूप में एकपिङ्गल का उल्लेख - तत्र चानेकपर्वता नाम गन्धर्वा युद्धशालिनो वसन्ति । तेषां चाधिपतिर्देवो राजराजैकपिङ्गलः । ), वामन ५७.६४( रवि द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण का नाम ), ५८.५६( पिङ्गल द्वारा दण्ड से असुरों का संहार ), वायु ३६.२७(कपिल व पिङ्गल -- मेरु के पश्चिम में स्थित पर्वतों में से दो - महालयं महापद्मे पयोष्ण्यां पिंगलेश्वरम्॥), विष्णुधर्मोत्तर ३.६७.७( सूर्य के गण पिङ्गल की मूर्ति का रूप - लेखनीपत्रककरः कार्यो भवति पिङ्गलः । ), शिव ३.१८.२६( कपाली व पिङ्गल -- सुरभि व कश्यप के ११ रुद्र पुत्रों में से प्रथम दो ), स्कन्द ४.२.५३.५८( पिङ्गल गण द्वारा काशी में स्थापित पिङ्गलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.५५.२( शिवगण द्वारा पिङ्गलेश्वर शिव की स्थापना का उल्लेख, संक्षिप्त माहात्म्य - गणेन पिंगलाख्येन पिंगलाख्येशसंज्ञितम् ।।
      लिंगं प्रतिष्ठितं शंभोः कपर्दीशादुदग्दिशि ।। ), ४.२.९७.२१४( पिङ्गल द्वारा लाङ्गलीश लिङ्ग की आराधना से मोक्ष की प्राप्ति - तत्पूर्वे लांगलीशश्च सर्वसिद्धिसमर्पकः ।। ),५.१.२६.६( महाकाल के पूर्व दिशा के द्वाराध्यक्ष के रूप में पिङ्गलेश का उल्लेख, एकादशी को अर्चना, अन्य दिशाओं में अन्य ईश्वर - पिंगलेशः स्थितः पूर्वे बालरूपो विभावसुः ।। ), ५.१.२६.२४( पिङ्गल हेतु रथ दान का निर्देश - रथं पिंगलके दद्याद्गजं कायावरोहणे ।। ), ५.२.८१.३०( पिङ्गलेश्वर का माहात्म्य ; महाकालवन में चारों दिशाओं में लिङ्ग की स्थितियां, पूर्व दिशा के रक्षक के रूप में धनाध्यक्ष पिङ्गलेश की नियुक्ति का कथन, माता - पिता के आश्रय से हीन पिङ्गला द्वारा पिङ्गलेश्वर की पूजा, पिङ्गला के पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), ५.२.८१.३८( पिङ्गाक्षी - पति, पिङ्गला - पिता, पिङ्गला कन्या का वृत्तान्त ), ५.३.८३.४३( हनूमन्तेश्वर में अस्थिक्षेपण करने वाले विप्र पिङ्गल का शतबाहु राजा से संवाद ), ५.३.८६( पिङ्गलावर्त का माहात्म्य : हव्यवाहन द्वारा रुद्र रेतस भक्षण के कष्ट से मुक्ति हेतु पिङ्गलेश्वर लिङ्ग की स्थापना ), ५.३.१७६.१( पिङ्गलान्त का माहात्म्य : देवखात का माहात्म्य, अग्नि की सेवा से मुक्ति, तपोरत अग्नि को तीर्थों से आहृत जल द्वारा चन्द्र व सूर्य रूपी नेत्रों की प्राप्ति का वृत्तान्त ), ५.३.१९८.८२( पयोष्णी में देवी की पिङ्गलेश्वरी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ७.१.११.२०७( सूर्य द्वारा पिङ्गल व दण्डनायक गणद्वय को रेवन्त का पीछा करके अश्व को वापस लाने का निर्देश ), ७.१.२४७.१( पार्वती रूप धारिणी देवी पिङ्गला का उल्लेख ), हरिवंश ३.३७.२४( उत्तर दिशा के अधिपति के रूप में पिङ्गल का उल्लेख - पुलस्त्यपुत्रो द्युतिमान्महेन्द्रप्रतिमः प्रभुः ।। एकाक्षः पिङ्गलो नाम सौम्यायां दिशि पार्थिवः।।  ), लक्ष्मीनारायण २.१०९.७६ ( यज्ञ के अवभृथ स्नान के संदर्भ में पिङ्गलक के निर्देश पर चिपिङ्ग योद्धाओं का विनायकों से युद्ध व मृत्यु ; पिङ्गलक - पुत्र पिङ्गकेश द्वारा श्रीहरि की शरण ), कथासरित् ८.२.३५२( पिङ्गल - कन्या केसरावली के सूर्यप्रभ - भार्या बनने का उल्लेख ), १०.४.१८( पिङ्गलक नामक सिंह द्वारा शरणागत वृष को भक्ष्य बनाने की कथा ) pingala

      महाभारत द्रोण १४६.१०७ (प्रदीप्तोल्कमभवच्चान्तरिक्षं मृतेषु देहेष्वपतन्वयांसि। यत्पिङ्गलज्येन किरीटमाली क्रुद्धो रिपूनाजगवेन हन्ति।।), सौप्तिक १८.७(शिव द्वारा यज्ञों से धनुष और वषट्कार से धनुष की ज्या बनाने का वर्णन - वषट्कारोऽभवज्ज्या तु धनुषस्तस्य भारत । यज्ञाङ्गानि च चत्वारि तस्य संहननेऽभवन् ॥ )


      पिङ्गलगन्धार कथासरित् १४.२.७३( पिङ्गल गान्धार विद्याधर अधिपति की कन्या प्रभावती द्वारा नरवाहनदत्त को प्रेरित करने का वृत्तान्त ), १४.३.५७( पिङ्गल गान्धार द्वारा स्व जामाता नरवाहनदत्त को हिमालय के दक्षिण व उत्तर भागों पर विजय के लिए प्रेरित करना ) pingalagandhaara


      पिङ्गला नारद २.४८.२१( पिङ्गला नाडी : काशी की शुष्क असि नदी का रूप - पिंगला नाम यत्तीर्थं आग्नेयी सा प्रकीर्तिता ।। शुष्का सरिच्च सा ज्ञेया लोकार्को यत्र तिष्ठति ।।  ), ब्रह्माण्ड २.३.७.३४६( कुमुद हस्ती व पिङ्गला से उत्पन्न हस्ती पुत्रों का कथन - जज्ञे चान्द्रमसः साम्नः कुमुदः कुमुदद्युतिः ॥ पिङ्गलायां सुतौ तस्य महापद्मोर्मिमालिनौ । ), ३.४.३३.७०( मारुतनाथ की ३ शक्तियों में से एक ), भागवत १०.४७.४७( गोपियों द्वारा वेश्या पिङ्गला के कथन को उद्धृत करना : निराशा परम सुख - परं सौख्यं हि नैराश्यं स्वैरिण्यप्याह पिङ्गला। तज्जानतीनां नः कृष्णे तथाप्याशा दुरत्यया ।। ), ११.७.३४( दत्तात्रेय के गुरु के रूप में पिङ्गला का कथन - मधुहा हरिणो मीनः पिङ्गला कुररोऽर्भकः।.. ), ११.८.२२(अहो मे मोहविततिं पश्यताविजितात्मनः । या कान्ताद् असतः कामं कामये येन बालिशा ॥), मत्स्य १७९.२३( अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), वायु ६९.२२९/२.८.२२३( चन्द्रमस् साम से कुमुदद्युति पिङ्गला की उत्पत्ति, पिङ्गला के पुत्रों महापद्म व ऊर्मिमाली का कथन - जज्ञे चन्द्रमसः साम्नः पिङ्गला कुमुदद्युतिः। पिङ्गलायाः सुतौ तस्या महापद्मोर्मिमालिनौ ॥  ), शिव २.५.४१.६२( गण्डकी तीर पर कीटों द्वारा स्थल पर गिराए गए पत्थरों की संज्ञा/अवर नाम, शुक - माता ), स्कन्द ३.३.१०( मन्दर विप्र द्वारा पिङ्गला वेश्या का सेवन, पिङ्गला द्वारा ऋषभ योगी की सेवा - अवंतीविषये कश्चिद्ब्राह्मणो मंदराह्वयः ।।…स वेश्यां पिंगलां नाम रममाणो दिवानिशम् ।। ), ३.३.११.१( पिङ्गला का जन्मान्तर में चन्द्राङ्गद व सीमन्तिनी - पुत्री कीर्तिमालिनी बनना - चन्द्रांगदस्य सा भूयः सीमंतिन्यामजायत ।। रूपौदार्यगुणोपेता नाम्ना वै कीर्तिमालिनी ।। ), ३.३.१३.६२( ऋषभ के निर्देश पर कीर्तिमालिनी का राजपुत्र भद्रायु से विवाह - आवेद्य रहसि प्रेम्णा त्वत्सुतां कीर्तिमालिनीम् ।। भद्रायुषे प्रयच्छेति बोधयित्वा च नैषधम् ।। ), ५.२.८१.४१( पिङ्गल व पिङ्गाक्षी - पुत्री, माता - पिता से वियोग होने पर पिङ्गलेश्वर की पूजा से मुक्ति, पूर्वजन्म में वेश्या होने का वृत्तान्त ), ६.१४८.१( जाबालि - कन्या व व्यास - भार्या वटिका का उपनाम?, पुत्र प्राप्ति हेतु तप ), ६.१८४.१५( यज्ञ में आगत अतिथि द्वारा राजा सुतपा - भार्या पिङ्गला से प्राप्त आशा त्याग की शिक्षा का कथन - आशानिराशां कृत्वा च सुखं स्वपिति पिंगला ॥ न करोति च शृंगारं न स्पर्धां च कदाचन॥ ), ७.१.२४७.१( पार्वती रूप धारी नदी पिङ्गला का माहात्म्य - तत्रैव संस्थितं पश्येत्सूर्यं पापप्रणाशनम् ॥ तथा च पिंगलां देवीं पार्वतीरूपधारिणीम् ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.१६१.७( भद्रा नदी के पिङ्गला का रूप होने का उल्लेख - इडा ओजस्वती बोध्या भद्रा तु पिंगला मता । स्वर्णरेखा सुषुम्णाऽस्ति तया मोक्षमवाप्नुयात् ।।  ), १.३११.४३( सुषुम्ना व पिङ्गला द्वारा कृष्ण पर चामर धारण का उल्लेख - इडा छत्रं दधाराऽस्य शिरसि स्वर्णभास्वरम् ॥ सुषुम्णा पिंगला श्वेते दध्यतुश्चामरे ह्युभे । ), १.५१०.४४( यज्ञ में अतिथि द्वारा पिङ्गला वेश्या से ग्रहण की गई आशा त्याग की शिक्षा का कथन - तस्याऽप्यन्तःपुरे चासीत् पिंगला नाम नायिका । रात्रौ सुखं स्वपित्येव पतिहीना निरीहिणी ।।), २.४८.३( ब्रह्मा की ३ पुत्रियों में से एक, बालकृष्ण को पतिरूप में ग्रहण करके पिता के गृह को जाना- सूर्यवद्रूपसम्पन्नाः सुषुम्णेडा च पिङ्गला । तिस्रः कन्याः कुमार्यश्चाऽनुज्ञया वेधसो भुवि ।। ), ३.४४.१९( कर्णमूलों में पिङ्गला व शृङ्गली नामक कृमियों की स्थिति का उल्लेख ), ४.१०१.१०९( कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, पीताम्बर व आत्मबोधिनी – माता - पिंगलायाः सुतः पिताम्बरः सुताऽऽत्मबोधिनी ।।  ) pingalaa


      पिङ्गली पद्म २.५३.९८( कर्णमूल में कृमि का नाम ), स्कन्द ७.१.२४६.१( पिङ्गली नदी के माहात्म्य का कथन : रूप की प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.३७८.३३( भालुक नामक शूद्र जार के रोगग्रस्त होने पर पिङ्गली वेश्या द्वारा धन का हरण करके अन्यत्र जाने का कथन ), कथासरित् ४.१.३८( दरिद्र पिङ्गलिका ब्राह्मणी द्वारा रानी वासवदत्ता को राजकुमार की वैश्य कुल की पत्नी के दुराचार की कथा सुनाना ), ४.१.१२२( पिङ्गलिका द्वारा वासवदत्ता को स्ववृत्तान्त सुनाना, देवर शान्तिकर से मिलन आदि ) pingalee/ pingali


      पिङ्गा पद्म ३.२४.६( पिङ्गा तीर्थ के माहात्म्य का उल्लेख : शत कपिला दान के फल की प्राप्ति - पिंगातीर्थमुपस्पृश्य ब्रह्मचारी नराधिप । कपिलानां नरव्याघ्र शतस्य फलमाप्नुयात् । ), स्कन्द ७.१.२४६( पिङ्गली / पिङ्गा नदी का माहात्म्य : रूप की प्राप्ति - अत्र स्नाता वयं सर्वे यतः पिंगत्वमागताः ॥ अतः प्रभृति नामास्यास्ततः पिंगा भविष्यति ॥) pingaa


      पिङ्गाक्ष गणेश २.१०.१०( महोत्कट गणेश द्वारा अक्षतों में छिपे पिङ्गाक्ष आदि ५ राक्षसों का वध - विघातश्चैव पिंगाक्षो विशालः पिंगलस्तथा । चपलश्च महापुंड्रा अक्षमालाविभूषिताः ।। ), २.२६.९( पिङ्गाक्ष राक्षस द्वारा शमीपत्रों से वामन गणेश की अनायास पूजा का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१२३( मणिभद्र यक्ष व पुण्यजनी के २४ पुत्रों में से एक ), वायु २३.२००/१.२३.१८८( २२वें द्वापर में लाङ्गलि अवतार के पुत्रों में से एक ), स्कन्द १.२.६२.२५( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ४.१.१२.१७( पिङ्गाक्ष भिल्ल द्वारा तीर्थयात्रियों के प्राणों की रक्षा से लोकपालत्व की प्राप्ति ), ५.२.८१.३८( भार्या पिङ्गाक्षी की मृत्यु पर पिङ्गल विप्र का वन गमन, पिङ्गल - पुत्री पिङ्गला का वृत्तान्त ), ५.३.८३.३०( हनुमान के नामों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०७( कृष्ण - पत्नी हिरण्मयी की सुता पिङ्गाक्षिणी व सुत मौक्तिक का उल्लेख ) pingaaksha


      पिचिण्डिल स्कन्द ४.२.५७.९५( पिचिण्डिल देव का संक्षिप्त माहात्म्य )


      पिचु नारद १.५६.२१०( पिचुमन्द वृक्ष की उत्तरभाद्रपद नक्षत्र से उत्पत्ति का उल्लेख ), पद्म ६.१५८.१( पिचुमन्दार्क तीर्थ का माहात्म्य : कोलाहल दैत्य से त्रस्त सूर्य द्वारा पिचुमन्द/निम्ब वृक्ष में शरण ), स्कन्द ७.१.५९.६( रुद्र द्वारा सप्तम शीर्ष पिचु को विष्णु को देने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१०७.९१( पिचु देवानीक : कल्याण देवानीक व मिश्रदेवी - पुत्र, कृष्ण की मुकुटमणि का अंश, महाविष्णु - पिता ) pichu


      पिच्छिका अग्नि १३३.२६(पिच्छिका मन्त्र से शत्रु नाश), योगवासिष्ठ ३.१०४.३१, ३.१०६.४( इन्द्रजालिक द्वारा राजा लवण की सभा में पिच्छिका घुमाकर जादू दिखाने का वृत्तान्त ),


      पिच्छिल पद्म १.४६.८०( पिच्छिला : अन्धक के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), २.११७.३०( पवमान अग्नि द्वारा पिच्छल ऋषि के आश्रम का दहन, पिच्छल ऋषि द्वारा वह्नि को नष्ट करना, प्रसन्न होने पर पवमान को जीवित करना व शाप मोक्ष का उपाय बताना ), मत्स्य १७९.११( पिच्छला : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ) pichchhila


      पिञ्जल ब्रह्माण्ड २.३.७.३३( पिञ्जर : कद्रू के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण ३.२१९.१( पिञ्जल ग्राम के लुब्धक चक्रधर की पौतिमाष्य ऋषि की कृपा से मुक्ति का वृत्तान्त ),


      पिठर देवीभागवत ९.२२.८( शङ्खचूड - सेनानी, मन्मथ से युद्ध ), मत्स्य १६१.८०( हिरण्यकशिपु के सेवक दैत्यों में से एक ), हरिवंश २.१२२.३२( स्वधाकार के आश्रित ५ अग्नियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.३३७.४४( शङ्खचूड - सेनानी, मन्मथ से युद्ध ),


      पिण्ड अग्नि ११५.४३( गयाशिर, रुद्रपद, विष्णुपद आदि में पिण्ड दान के माहात्म्य का वर्णन, राजा विशाल द्वारा गयाशिर में पिण्डदान से पुत्र की प्राप्ति, वणिक् द्वारा गया में पिण्डदान से प्रेतराज की मुक्ति आदि - पञ्चक्रोशं गयाक्षेत्रं क्रोशमेकं गयाशिरः ॥
      तत्र पिण्डप्रदानेन कुलानां शतमुद्धरेत् । ), गरुड २.५.३३(पिण्डों से प्रेत देह का निर्माण - शिरस्त्वाद्येन पिण्डेन प्रेतस्य क्रियते तथा ॥ द्वितीयेन तु कर्णाक्षिनासिकं तु समासतः ।), २.१०.१७ (३ पिण्डों से पितरों के तृप्त होने का कथन - अपसव्यं क्षितौ दर्भे दत्ताः पिण्डास्त्रयस्तु वै । यान्ति तांस्तर्पयन्त्येवं प्रेतस्थानस्थितान्पितॄन् ॥), २.१०.८२(पिण्ड दान से अंगुष्ठमात्र वायु पुरुष के एकता को प्राप्त होने का कथन - पिण्डजेन तु देहेन वायुजश्चैकतां व्रजेत् ॥ पिण्डजो यदि नैव स्याद्वायुजोऽर्हति यातनाम् ।), २.१५.६९(पिण्डों से मृतक की देह का निर्माण - प्रथमेऽहनि यः पिण्डस्तेन मूर्धा प्रजायते ॥ ग्रीवा स्कन्धौ द्वितीये च तृतीये हृदयं भवेत् ।), २.२६.१(प्रेत के सपिण्डीकरण के नियम संवत्सरे तु सम्पूर्णे कुर्यात्पिण्ड प्रवेशनम् । पिण्डप्रवेशविधिना तस्य नित्यं मृताह्निकम् ॥), २.२६.३७(पिता के जीवित रहते हुए पुत्र की तथा पति के जीवित रहते हुए पत्नी की सपिण्डता का निषेध - जीवमाने च पितरि न हि पुत्त्रे सपिण्डता । स्त्रीणां सपिण्डनं नास्ति तथा भर्तरि जीवति ॥ ), २.३२.३२(६ कोशों वाले देह रूपी पिण्ड का कथन - षाट्कौशिकमिदं पिण्डं स्याज्जन्तोः पाञ्चभौतिकम् । नवमे दशमे मासि जायते पाञ्चभौतिकः ॥ ), २.४०.२६( पिण्ड दान हेतु वैदिक मन्त्र - आपोदेवीर्मधुमतीरादिपीठे प्रकल्पितम् ॥ उपयामगृहीतोऽसि द्वितीयेऽर्घं निवेदयेत् ।), २.४०.२६(एकोद्दिष्ट श्राद्ध में ११ पिण्डों हेतु ऋचाओं का विनियोग), २.४४.१५(५ पिण्डदान का क्रम - प्रथमं विष्णवे दद्याद्ब्रह्मणे च शिवाय च । सभृत्याय शिवायाथ प्रेतायापि च पञ्चमम् ॥), नारद २.४५( गया में प्रथम व द्वितीय दिन पिण्ड दान की विधि ), ब्रह्म १.११२/२२०.३४( सपिण्डीकरण विधि, श्राद्ध योग्य ब्राह्मण - अपत्यकामो रोहिण्यां सौम्ये तेजस्वितां लभेत्। शौर्यमार्द्रासु चाऽऽप्नोति क्षेत्राणि च पुनर्वसौ।।  ), ब्रह्माण्ड २.३.११.५७( पितरों हेतु ३ पिण्डों के निर्वाप की विधि - सकृद्देवपितॄणां स्यात्पितॄणां त्रिभिरुच्यते ॥ एकं पवित्रं हस्तेन पितॄन्सर्वान्सकृत्सकृत् । ), २.३.१२.३१( विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए पिण्ड दान की विधियां - पूजयेत पितॄन्पूर्वं देवांश्च तदनन्तरम् ।
      देवा अपि पितॄन्पूर्वमर्च्चयन्ति हि यत्नतः ॥ ), २.३.१३.९०(शालग्राम में देवह्रद में नागराज द्वारा योग्यों का पिण्ड स्वीकार करने व अयोग्यों का अस्वीकार करने का उल्लेख - पिण्डं गृह्णाति हि सतां न गृह्णात्यसतां सदा ।), २.३.२०.१०( पितरों हेतु ३ पिण्डों के दान की विधि व महत्त्व - भूमौ कुशोत्तरायां च अपसव्यविधानतः ।
      सर्वत्र वर्त्तमानास्ते पिण्डाः प्रीणन्ति वै पितॄन् ॥ ), भविष्य ३.२.१८.३४( चोर - पत्नी मोहिनी व द्विज से उत्पन्न पुत्र से पिण्ड प्राप्ति हेतु उपयुक्त पितर की समस्या की कथा - इत्युक्त्वा स तु वैतालो नृपतिं प्राह भो नृप ।। कस्मै योग्यो हि पिंडोऽसौ श्रुत्वा राजाब्रवीदिदम् ।।), ३.४.२३.३८( श्राद्ध के औचित्य पर संवाद के संदर्भ में सम्यक् पिण्डदान से पितरों की उन्नति का कथन, गीता के १८ अध्यायों व सप्तशती के चरित्रों द्वारा पिण्ड को पवित्र करने का निर्देश - सत्पुत्रैश्च विधानेन पिण्डदानं च यत्कृतम् । तद्विमानं नभोजातं सर्वानन्दप्रदायकम् । ), मत्स्य १६.२१( पिण्डान्वाहार्यक श्राद्ध विधि का वर्णन ), १७.६७( वृद्धि श्राद्ध में दूर्वा व कुश युक्त पिण्ड दान का उल्लेख - प्राङ्मुखो निर्वपेत्‌ पिण्डान् दूर्वया च कुशैर्युतान्।।  ), १८( एकोद्दिष्ट व सपिण्डीकरण श्राद्ध की विधि ), १८.५( प्रेत हेतु १२ दिन तक पिण्डदान का कारण - प्रेताय पिण्डदानन्तु द्वादशाहं समाचरेत्। पाथेयं तस्य तत् प्रोक्तं यतः प्रीतिकरं महत्।। ), १८.१५( सपिण्डीकरण श्राद्ध की विधि - ततः संवत्सरे पूर्णे सपिण्डीकरणं भवेत्।।
      सपिण्डीकरणादूर्ध्वं प्रेतः पार्वणभाग् भवेत्। ), १७९.३२( पिण्डजिह्वा : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), १८६.३९( जलेश्वर ह्रद में पिण्ड प्रदान से पितरों की १० वर्षों तक तृप्ति का उल्लेख ), मार्कण्डेय २३.६७/२१.६९( श्राद्ध में मध्यम पिण्ड के भक्षण से कम्बल व अश्वतर नागों के फणों से मदालसा कन्या की उत्पत्ति - श्राद्धे तु समनुप्राप्ते मध्यमं पिण्डमात्मना । भक्षयेथाः फणिश्रेष्ठ ! शुचिः प्रयतमानसः॥ ), योगवासिष्ठ ३.७४.१५( सूची द्वारा उदर सौषिर्य के पिण्डीकरण द्वारा अशना निवारण का उल्लेख - बहुनात्र किमुक्तेन वाताद्यशनशान्तये । यया स्वोदरसौषिर्यं पिण्डीकृत्वा निवारितम् ।। ), वराह ७.२१( गया में पिण्ड प्रदान से नरकाश्रित पितरों का संयोजित होकर प्रकट होना ), वायु ७१.३२/ २.१०.३२( श्राद्ध में पितरों हेतु ३ पिण्डों का महत्त्व ), ७५.२२/ २.१३.२२( पितरों हेतु ३ पिण्डों के निर्वाप की विधि - त्रीन् पिण्डानानुपूर्व्व्येण साङ्गुष्ठान्पुष्टिवर्द्धनान् । जान्वन्तराभ्यां यत्नेन पिण्डान् दद्याद्यथाक्रमम् ।।  ), ७६.३१/ २.१४.३१( विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए अग्नि, गौ, काक आदि को पिण्ड दान का कथन - पिण्डमग्नौ सदा दद्याद्भोगार्थी तु प्रयत्नतः । प्रजार्थी पत (त्न)ये दद्यान्मध्यमं तत्र पूर्वकम् ।। ), १०५.११/ २.४३.११( गया में पिण्डदान का महत्त्व - महाकल्पकृतं पापं गयां प्राप्य विनश्यति।
      पिण्डं दद्याच्च पित्रादेरात्मनोऽपि तिलैर्विना ।। ), १०५.३३/ २.४३.३०( गया में पिण्ड पात हेतु पिण्ड के द्रव्यों का कथन - पायसेनापि चरुणा सक्तुना पिष्टकेन वा। तण्डुलैः फलमूलाद्यैर्गयायां पिण्डपातनम् ।। ), १०८.१४/ २.४६.१४( गया में प्रेत शिला के अङ्गुष्ठ पर पिण्ड दान का महत्त्व - शिलाङ्गुष्ठैकतेशो यः सा च प्रेतशिला स्मृता। पिण्डदानाद्यतस्तस्यां प्रेतत्वान्मुच्यते नरः ।। ), ११०.२४/ २.४८.२४( पितरों हेतु देय पिण्ड का प्रमाण, पिण्ड दान की महिमा - मुष्टिमात्रप्रमाणञ्च ह्यार्द्रामलकमात्रकम्।
      शमीपत्रप्रमाणं वा पिण्डं दद्याद्गयाशिरे। ), १११.५८/२.४९.७४( हस्त की अपेक्षा पद में पिण्ड दान का माहात्म्य, भारद्वाज, राम व भीष्म का दृष्टान्त - भारद्वाजस्ततः पिण्डं कश्यपस्य पदे ददौ । हंसयुक्तविमानेन ब्रह्मलोकमुभौ गतौ ।।  ), ११२.११/२.५०.११( गया में पिण्ड दान से राजा विशाल को पुत्र प्राप्ति का कथन ), ११२.२७/२.५०.३२( विभिन्न तीर्थों में पिण्ड दान का महत्त्व - स्नातोऽथ पिण्डदो ब्रह्मलोकं कुलशतं नयेत्। देवनद्यां वैतरण्यां स्नातः स्वर्गं नयेत्पितॄन् ।। ), विष्णु ३.१५.३४( पिण्ड दान की विधि ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३९.११( यज्ञ वराह के दंष्ट्र से लग्न मृत्पिण्ड से श्राद्ध हेतु पिण्ड का प्रादुर्भाव, ४ पिण्डों की चतुर्व्यूह के अनुसार व्याख्या - दंष्टाग्रलग्नं मृत्पिण्डं गृहीत्वा दक्षिणे करे।। प्रस्वेदाच्च तिलान्कृत्वा दर्भान्रोमभ्य एव च ।। ), शिव ७.२.५.१६( जाति व व्यक्ति के संदर्भ में पिण्ड के जाति से सम्बन्ध का कथन - या पिंडेप्यनुवर्तेत सा जातिरिति कथ्यते ॥ व्यक्तिर्व्यावृत्तिरूपं तं पिण्डजातेः समाश्रयम् ॥ ), स्कन्द १.१.८.१८( शिव लिङ्ग के पिण्डीभूत होने के कारण पुरुषों के लिङ्ग व स्त्रियों के पिण्डीभूत उत्पन्न होने का उल्लेख - पिण्डीयुक्तं यथा लिंगं स्थापितं च यथाऽभवत्॥ तथा नरा लिंगयुक्ताः पिण्डीभूतास्तथा स्त्रियः॥ ), ४.१.३५.२१०( शुन:, पापरोगी, काकादि हेतु पिण्ड दान विधि का कथन - प्रतिगृह्णंत्विमं पिंडं काका भूमौ मयार्पितम् ।। द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोद्भवौ ।। ), ५.३.१५०.४४( कुसुमेश्वर तीर्थ में अकुल्लमूल में पिण्ड दान के माहात्म्य का कथन : सत्रयाज फल की प्राप्ति - अङ्कुल्लमूले यः पिण्डं पितॄनुद्दिश्य दापयेत् । तस्य ते द्वादशाब्दानि तृप्तिं यान्ति पितामहाः ॥), ६.१७७( पञ्चपिण्डिका गौरी का माहात्म्य, पद्मावती द्वारा पञ्चपिण्डिका गौरी की पूजा से सौभाग्य प्राप्ति की कथा ), ६.२७०.७( पाप से मुक्ति हेतु २४ तत्त्व रूप पिण्ड का दान - चतुर्विंशतितत्त्वानि पृथिव्यादीनि यानि च॥ तेषां नामभिस्तत्पिंडं पूजयेतन्नराधिपः॥), लक्ष्मीनारायण १.६४.३५( मृत्यु - पश्चात् पिण्ड दान से प्रेत की देह का निर्माण - प्रथमेऽहनि यः पिण्डस्तेन मूर्द्धा प्रजायते ॥ ग्रीवास्कन्धौ द्वितीये तु तृतीये हृदयं भवेत् । ), १.५०८( पञ्चपिण्डिका गौरी व्रत का माहात्म्य : काशीराज - पत्नी अमा द्वारा व्रत के अनुष्ठान से लक्ष्मी बनना ), द्र. पञ्चपिण्ड pinda

      Comments on Pinda


      पिण्डोदक नारद १.१४.७५( विवाह में सप्तम पद में नारी के स्वगोत्र से भ्रष्ट होने के कारण नारी की पिण्डोदक क्रिया स्वामी के गोत्र में करने का निर्देश ), स्कन्द ५.३.१४६.४८( अस्माहक तीर्थ में पिण्डोदक प्रदान के महत्त्व का वर्णन ), ७.३.२१( पिण्डोदक तीर्थ का माहात्म्य, पिण्डोदक ब्राह्मण द्वारा सरस्वती की कृपा की प्राप्ति ) pindodaka


      पिण्डारक गर्ग ६.२१.८( पिण्डारक तीर्थ का माहात्म्य : सम्पूर्ण तीर्थों के पिण्डीभूत होने का स्थान, द्वारका का माहात्म्य ), ७.५०.१( उग्रसेन के राजसूय यज्ञ का स्थान ), देवीभागवत ७.३०.७८( पिण्डारक तीर्थ में धृति देवी के वास का उल्लेख ), पद्म ३.२४.१५( पिण्डारक तीर्थ का माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड २.३.१३.३७( श्राद्ध के लिए प्रशस्त तीर्थों में से एक ), २.३.७१.१६५( वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक ), भागवत ११.१.११( पिण्डारक क्षेत्र में निवास कर रहे ऋषियों के पास साम्ब द्वारा स्त्री वेष धारण करके जाने की कथा ), मत्स्य १३.४८( पिण्डारक तीर्थ में देवी की धृति नाम से स्थिति ), ४६.१२( वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक ), वामन ५८.६३ष्( स्कन्द के गणों में से एक, तुण्ड द्वारा असुरों का संहार करने का उल्लेख ), वायु ७७.३७.२.१५.३७( पण्डारकवन : श्राद्ध के लिए प्रशस्त स्थानों में से एक ), ९६.१६३/२.३४.१६३( वसुदेव व रोहिणी के ८ पुत्रों में से एक ), विष्णु ५.३७.६( पिण्डारक क्षेत्र में निवास कर रहे ऋषियों के पास साम्ब द्वारा स्त्री वेष धारण करके जाने की कथा ), स्कन्द २.८.१०.१२( अयोध्या में पिण्डारक नामक वीर की पूजा के माहात्म्य का कथन ), ५.३.१९८.८६( पिण्डारक तीर्थ में पार्वती के धृति नाम से वास का उल्लेख ), ७.३.२५( पिण्डारक तीर्थ का माहात्म्य : मङ्कि विप्र का पिण्डारक गण बनना ), हरिवंश २.८८+ ( पिण्डारक तीर्थ में कृष्ण व यादवों की जलक्रीडा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.२३०.१४( द्वारका में पिण्डारक तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन : पिण्डारक में चतुर्भुज कृष्ण का वास, पितरों की तृप्ति आदि ) pindaaraka


      पिण्डिका अग्नि ४५.१( प्रतिमा की पिण्डिका के लक्षणों का कथन ), मत्स्य २६६.६( प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु पिण्डिका शोधन विधि ), स्कन्द १.१.७.१८( पिण्डी से युक्त शिवलिङ्ग का नर लिङ्ग व स्त्री पिण्डी से साम्य), १.१.७.२१( शिवलिङ्ग के भय से मुक्ति के लिए विष्णु आदि का पिण्डीरूप होकर लिङ्ग पूजन करने का उल्लेख ) pindikaa


      पितर गणेश १.६८.३( पुत्र की इच्छा वाले राजा कृतवीर्य को गणेश द्वारा पितर रूप में दर्शन का वृत्तान्त ), गरुड १.८९( कन्या प्राप्ति हेतु रुचि प्रजापति द्वारा पितरों की स्तुति ), १.८९.३६(विप्रादि चार वर्णों के पितरों के कुमुदादि वर्णों का कथन), १.८९.४१(अग्निष्वात्त आदि पितरों द्वारा प्राची आदि दिशाओं की रक्षा), १.८९.४३( ९+६+७+५+४ संख्याओं वाले पितर गण के रूप में ३१ पितरों के नाम), ३.२२.२९(पितरों के ३२ में से ७ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), नारद १.२८.७८( श्राद्ध में पितृ सूक्त से होम का निर्देश ), १.४३.११४( निवाप से पितरों की तृप्ति का उल्लेख ), १.५१.१०१( पितर कल्प का वर्णन ), पद्म १.९( पितरों के प्रकार व श्राद्ध, अच्छोदा कन्या का वृत्तान्त ), १.५०.७( पितृ सेवा के महत्त्व के वर्णन में पितृ सेवा को त्याग तप हेतु गमन करने वाले नरोत्तम ब्राह्मण का वृत्तान्त, पितृ - सेवा में रत मूक द्वारा नरोत्तम की उपेक्षा आदि ), १.५०.१९५( पितृ सेवा के संदर्भ में पितृ श्राद्ध आदि के महत्त्व का वर्णन ), २.६२.२३( सुकर्मा द्वारा देवों से वर रूप में मातृ - पितृ भक्ति का वरदान मांगना ), २.६२.६२( सुकर्मा द्वारा माता - पिता की सेवा को ही ज्ञान प्राप्ति, अर्वाचीन - पराचीन गति प्राप्ति में कारण होने का कथन ), ६.२७.१५( वृक्षों द्वारा पुष्पों से देवों व पत्रों से पितरों की पूजा का उल्लेख ), ब्रह्म १.११०.४( चन्द्रमा - कन्या ऊर्जा/ स्वधा/ कोका पर पितरों की आसक्ति, चन्द्रमा द्वारा पितरों को शाप ), १.११०.२६( विश्वेदेवों से रहित पितरों को दैत्यों से भय, पितरों की कोका नदी में स्थिति, पितरों द्वारा श्रीहरि की स्तुति, सूकर रूप धारी विष्णु द्वारा पितरों का उद्धार ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.३४( पितरों की तीन मानसी कन्याओं कलावती, रत्नमाला व मेनका द्वारा पतियों को प्राप्त करने का कथन ), ब्रह्माण्ड १.१.५.८५( पितरों का ब्रह्मा के वक्ष से प्राकट्य ), १.२.१३.२०(आर्तव, ऋतु व वत्सर रूपों की पितर, पितामह व प्रपितामह संज्ञा), १.२.१३.२९(स्वधा व पितरों से २ कन्याओं के जन्म का कथन), १.२.१७.३६( शृङ्गवान् पर्वत पर पितरों के वास का उल्लेख ), १.२.२३.३९( पितरों द्वारा चन्द्रमा की अवशिष्ट कला के पान का उल्लेख ), १.२.२३.७१( पितरों द्वारा चन्द्रमा की १५वीं कला से स्वधामृत के पान का कथन ; काव्य, सौम्य आदि पितरों का संवत्सर, ऋतु आदि से तादात्म्य ), १.२.२८.१६( पितर, पितामह, प्रपितामह के अर्धमास/आर्तव आदि रूप ), २.३.३.३९( पित्र्य : दिन के १६ मुहूर्तों में से एक ), २.३.९( पितरों का महत्त्व, शंयु - बृहस्पति संवाद ), २.३.९.२०(देवों द्वारा पितरों से प्रायश्चित्त विधान की पृच्छा, देवपुत्रों का पितर नामकरण), २.३.१०.८६( चतुर्वर्णों द्वारा पूज्य पितर, पितरों की मानसी कन्याएं ), २.३.१२.५( ब्रह्मा सहित पितरों द्वारा विश्वेदेवों को वर देने का वृत्तान्त, पिण्डदान की विधि व महत्त्व, कामनानुसार अग्नि, जल, कुक्कुट आदि को पिण्ड देने का महत्त्व ), २.३.२०( पितरों का सात गणों में विभाजन, प्रथम तीन का योगी, देव व दानवों में विभाजन ), भविष्य ३.४.२३.९८( ब्राह्मण वर्ण से पितरों की तृप्ति ), भविष्य १.५७.५( पितरों हेतु पायस बलि का उल्लेख ), १.५७.१९( पितरों हेतु पिण्डमूल बलि का उल्लेख ), भागवत १.२.२७( रजोगुणी व तमोगुणी व्यक्तियों द्वारा पितरों आदि की अर्चना करने का उल्लेख ), २.३.८( तन्तु/वंश वृद्धि हेतु पितरों के यजन का निर्देश ), ३.३२.२०( अर्यमा के दक्षिण पथ से पितृलोक जाने वालों की गति का कथन - हित्वा शृण्वन्ति असद्‍गाथाः पुरीषमिव विड्भुजः ॥ दक्षिणेन पथार्यम्णः पितृलोकं व्रजन्ति ते । ), ४.१.६३( अग्निष्वात्त आदि ४ प्रकार के पितरों के नाम, पत्नी व सन्तानों के नाम ), ४.२५.५०( पुरञ्जन की पुरी के दक्षिण में पितृहू नामक द्वार के दक्षिण पाञ्चाल की ओर तथा उत्तर में देवहू नामक द्वार के उत्तरपाञ्चाल की ओर जाने का उल्लेख ), ४.२९.१२( पितृहू के दक्षिण कर्ण व देवहू के उत्तर कर्ण का प्रतीक होने का उल्लेख ), ५.२.२( आग्नीध्र द्वारा पितृलोक की कामना करते हुए तप, पूर्वचित्ति अप्सरा की उपलब्धि ), ५.२.२२( आग्नीध्र द्वारा मृत्यु उपरान्त पितृलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.६.१९( अङ्गिरस प्रजापति की पत्नी स्वधा से पितरों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ८.५.४०( पुरुष/परमात्मा की छाया से पितरों की उत्पत्ति का उल्लेख ), मत्स्य १.१८( पितृतर्पण करते समय मनु के हाथ में मछली आने का वृत्तान्त ), ८.५( ब्रह्मा द्वारा यम को पितरों का अधिपति नियुक्त करने का उल्लेख ), १३.३( स्वर्ग निवासी ४ मूर्तिमन्त व ३ मूर्तिरहित पितृगणों के वंश का कथन : वैराज प्रजापति - पुत्र, मेना - कन्या के पिता आदि ), १४.१( मरीचि के वंशज अग्निष्वात्त नामक देवपितरों व उनकी मानसी कन्या अच्छोदा का वर्णन ), १४.५( पितरों की कन्या अच्छोदा की अमावसु नामक पितर पर आसक्ति व अच्छोदा के जन्मान्तरों का वर्णन ), १५( पितरों के बर्हिषद्, हविष्मान् आदि प्रकार, वास स्थान, कन्याएं, पितरों के श्राद्ध के उपयुक्त व वर्जित द्रव्य ), १६+ ( श्राद्धों के विविध भेद, उनके करने का समय, श्राद्ध में निमन्त्रित करने योग्य ब्राह्मण के लक्षण आदि ), १७.२( श्राद्ध के उपयुक्त युगादि तिथियों आदि का वर्णन ), २०.३( कौशिक के ७ पुत्रों द्वारा श्राद्ध हेतु गौ के हनन की कथा ), २२.१( श्राद्ध हेतु उपयुक्त तीर्थों के नाम ), १०१.३०( पूर्णिमा तिथि को करणीय पितृ व्रत विधि ), १०२.२४( १४ दिव्य पितरों के नाम ), १४१.१०( पुरूरवा के संदर्भ में पितरों के सौम्य, बर्हिषद आदि प्रकारों का कथन ; पितामह आदि का ऋतु आदि से तादात्म्य ), १४१.५८( श्राद्ध भोजी पितरों का वर्णन ), १४२.६( पितृ और मानव काल मान में सम्बन्ध ), १९४.७( नर्मदा तटवर्ती मनोहर तीर्थ में स्नान से पितृलोक प्राप्ति का उल्लेख ), २०४( पितृ गाथा ; पितरों द्वारा श्राद्ध की कामना का वर्णन ), मार्कण्डेय १३.१८( पर्व काल में पितरों व तिथिकाल में देवों के आगमन का उल्लेख ), ९२+/९५+( पितरों द्वारा रुचि प्रजापति को दार संग्रह का परामर्श देना ), वराह १३.१२( मार्कण्डेय द्वारा ऋषि गौरमुख को ४ मूर्तिमन्त व ३ अमूर्तिमन्त पितर गणों का कथन ), १३.३२( पितरों के श्राद्ध हेतु उपयुक्त काल का विचार ), १३.५२( पितरों को पिण्डदान हेतु अन्न की प्रकृति का विचार ), १७.५२( इन्द्रियार्थों के शरीर से निष्क्रमण पर भी शरीर पात न होना - तं दृष्ट्वा पितरश्चोचुस्तन्मात्रा यावदस्मभिः । प्रगतैरेभिरेतच्च शरीरं शीर्यते ध्रुवम् ।), १७.७२( पितरों के इन्द्रियार्थ बनने का उल्लेख - इन्द्रियार्थाश्च पितरो भविष्यन्ति न संशयः । ), ३४( पितृ सर्ग स्थिति वर्णन संज्ञक अध्याय में परमेष्ठी से उत्पन्न तन्मात्राओं के पितर बनने का कथन, चार वर्णों के पितरों का कथन ), १८७.२८( पुत्र की मृत्यु पर पुत्र के शोक से पीडित निमि द्वारा शोक में अनजाने पितृश्राद्ध करने का वर्णन ; निमि से पितृश्राद्ध का आरम्भ ), वामन ११.२१( ब्रह्मचर्य आदि पैतृक धर्म का कथन ), वायु १.३९/१.१.३४( पितरों की मानसी कन्या वासवी के मत्स्य योनि में जन्म लेकर व्यास को जन्म देने का कथन ), ९.१४/१.९.११( ब्रह्मा द्वारा सन्ध्या काल में पितरों के सृजन का कथन ), २९.४०( पितृकृत् : अर्काग्नि के ८ पुत्रों में से एक ), ३०.७( मधु माधव आदि ऋतुओं के रूप ), ५२.६७( कव्य, बर्हिषद् आदि पितर : ऋतुओं आदि के रूप ), ५६.१३(पुरूरवा द्वारा तर्पित पितरों के भेद का वर्णन ), ६५.४९/२.४.४९(सप्तर्षियों के अनुसार मारीच, भार्गव, आङ्गिरस, पौलस्त्य आदि पितरों की उत्पत्ति तथा उनके राजा यम का कथन ), ७१.२३/२.१०.२३( देवों के पुत्र ; देवों द्वारा पुत्रों से प्रायश्चित्त सम्बन्धी ज्ञान प्राप्ति के कारण पितर नामकरण ), ७१.५२/२.१०.५२( पितरों की ब्रह्मा से उत्पत्ति, मूर्त्त - अमूर्त्त आदि ७ गण, पितरों की पितर संज्ञा का कारण ), ७५.६/२.१३.६( पितरों को धूप, दीप, पिण्ड आदि प्रदान के महत्त्व का वर्णन ), १०१.३०/ २.३९.३०( पितरों आदि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख ), विष्णु १.१०.१८( अग्निष्वात्त व बर्हिषद पितरों की अनग्निक व साग्निक संज्ञा, स्वधा से उत्पन्न पितर कन्याओं मेना व धारिणी का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३८( ४ मूर्त्तिमान व ३ अमूर्तिमान पितरों का वर्णन, वर्ण अनुसार विभाजन ), ३.१५७( सप्तमूर्ति पितर व्रत का वर्णन ), ३.१८९( पितृ व्रत की संक्षिप्त विधि ), शिव २.२.३.४८( ब्रह्मा के लज्जा से उत्पन्न स्वेद जल के पतन से अग्निष्वात्त व बर्हिषद् पितरों की उत्पत्ति का कथन ), २.२.३.५५( रति के दर्शन से क्रतु आदि महर्षियों के पतित बीज से सोमपा आदि पितरों की उत्पत्ति का कथन ), २.३.२.५( पितरों द्वारा दक्ष - कन्या स्वधा की भार्या रूप में प्राप्ति, मेना, धन्या व कलावती नामक ३ कन्याओं का हिमवान् आदि से विवाह का वृत्तान्त ), ५.१२.१९( वृक्षों द्वारा पुष्पों से देवों व फलों से पितरों को तुष्ट करने का कथन ), ५.२९.२२( ब्रह्मा/प्रधान पुरुष द्वारा मुख से देवों, वक्ष से पितरों व प्रजनन से मनुष्यों को उत्पन्न करने का उल्लेख ), ५.४०.४३( देवों व पितरों के परस्पर पिता - पुत्र व पुत्र - पिता बनने का वृत्तान्त ; पितृसर्ग का आरम्भ ), ५.४१.११( पितृवर्ती : भारद्वाज के ७ पुत्रों में अन्तिम, पितरों के उद्देश्य से गौ का भक्षण करने पर जन्मान्तरों का वृत्तान्त ), स्कन्द १.२.१३.१८१( शतरुद्रिय प्रसंग में पितरों द्वारा तिलान्न लिङ्ग की वृषपति नाम से पूजा का उल्लेख ), २.३.६.५५( पितरों की यम से श्रेष्ठता? का उल्लेख ), २.७.२२.५४( अन्ध कूप में स्थित पितरों के धर्मवर्ण द्वारा उद्धार का वृत्तान्त ), ४.२.६२.४९( कपिलधार तीर्थ में श्राद्ध के माहात्म्य का कथन : कपिल ह्रद से अग्निष्वात्त आदि दिव्य पितरों की उत्पत्ति, पितरों द्वारा शिव से वर प्राप्ति ), ४.२.९७.९२( पितृकूप में पिण्ड परिक्षेपण आदि का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.४८.१३( मास के २ पक्ष पितरों के अहोरात्र होने का उल्लेख ), ५.१.५८.१३( पितरों के ७ भेद, स्थान, पितरों के श्राद्ध से जातिस्मरता की प्राप्ति ), ५.३.५५.२२( शूलभेद तीर्थ के प्रसंग में विष्णु के पिता, ब्रह्मा के पितामह तथा रुद्र के प्रपितामह होने का उल्लेख ), ५.३.१४६.४३( पितरों, पितामहों तथा प्रपितामहों के देवत्रय ब्रह्मा, विष्णु, महेश होने का कथन ), ५.३.१४६.७४( अस्माहक तीर्थ में पिण्डदान के संदर्भ में पितृ संहिता के जप तथा नील वृषोत्सर्ग से पितरों के उद्धार का कथन ), ५.३.२३१.२२( नर्मदा तट पर २ पितृ तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.२१६( पितरों के भेद, पितरों द्वारा क्षुत्पिपासा की शान्ति हेतु ब्रह्मा से प्रार्थना, उपाय, अमा काल में पितरों की तृप्ति, श्राद्ध के विभिन्न काल ), ७.१.१०५.५२( पितृ नामक ३०वें कल्प के ब्रह्मा की अमावास्या/कुहू होने का उल्लेख ), हरिवंश १.१७.३१( पितरों और देवों में सम्बन्ध – ज्ञानप्रदाता व शरीरकर्ता ), १.१८( पितरों के ७ गण, नाम, लोक व कन्याओं का वर्णन ), ३.२६.३०(पितरों के ऊष्माणों से तृप्त होने का उल्लेख), ३.२६.३२( ७ पितर गणों के चन्द्र - सूर्यात्मक होने का कथन ), महाभारत शान्ति ३१७.६( ललाट से प्राणों का उत्क्रमण होने पर पितरों की प्राप्ति का उल्लेख ), ३४५.१४( वृषाकपि/वराह द्वारा पितरों को पिण्डदान की विधि का निरूपण ), आश्वमे ९२.४८( पितरों के शाप से धर्म द्वारा नकुल योनि प्राप्ति का वृत्तान्त ), ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३४०( देवपितरों व पितरों के तर्पण की विधि ), लक्ष्मीनारायण १.३४.४( पितृ महिमा ), १.३९( पितरों के वर्णन में ऋतु रूप पितरों की ऋषियों व संवत्सर अग्नि रूप ऋत् से उत्पत्ति का वर्णन ; तपोलोक के ऋषियों द्वारा जनलोक निवासी पितरों को उत्पन्न करने का कथन ; विभिन्न लोकों के पितरों का कथन ), १.४०( जीवों, देवों, ऋषियों आदि द्वारा कर्म करने के पश्चात् विभिन्न लोकों के पितर बनने का कथन ; पितरों के राजा - द्वय सोम व अर्यमा का कथन `; मूर्त्त, अमूर्त्त, भावमूर्त्त, सूक्ष्म मूर्त्त आदि पितरों के स्वरूपों का कथन ; पितरों को श्राद्ध आदि द्वारा तृप्त करने का निर्देश ; पितरों के राजत आदि पात्रों का कथन ; पितरों हेतु श्राद्ध काल में अर्पणीय विभिन्न भोज्य वस्तुओं के नाम ), १.४१( पितरों की प्रसन्नता हेतु पितर - स्तोत्र ; पितरों को विभिन्न वस्तुओं के अर्पण से प्राप्त फल का कथन ; विश्वेदेवों के पितर होने का उल्लेख ), १.१९८.३४( ब्रह्म वीर्य से उत्पन्न अग्निष्वात्त तथा बर्हिषद् पितरों के स्वरूप का कथन ), १.१९८.४०( क्रतु, वसिष्ठ, पुलस्त्य आदि ऋषियों के वीर्यों से उत्पन्न सोमपा, आज्यपा आदि पितरों के नाम ), १.२२९.८( सोमशर्मा द्विज द्वारा हरिभक्ति व द्वारका की यात्रा किए बिना ही सोमनाथ की यात्रा पूर्ण करने के कारण पितरों का उद्धार न होने का वृत्तान्त ), १.२५४.४४( श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी व्रत के प्रभाव से श्रवण नामक पितरों द्वारा दूरश्रवण, दूरदर्शन आदि सिद्धियां प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १.२६७.४४( मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया को ब्रह्मदेह से अर्यमा आदि पितरों की उत्पत्ति का उल्लेख तथा श्राद्धादि का निर्देश ), १.३१९.५( जोष्ट्री - पुत्री पिपासा द्वारा पितरों की सेवा ), १.३५४( त्रिकालज्ञ ऋषि द्वारा ध्रुव तीर्थ में विभिन्न प्रकार के पितरगणों का दर्शन, प्रभावती नामक राजदासी के मशकावेष्टित पितरगण की तृप्ति के उद्योग का वर्णन ), १.५३३.७१( पितरों के शब्दादि इन्द्रियार्थ होने का उल्लेख ),१.५३३.१२४( इन्द्रियार्थों के दिव्य रूप में पितर बनने का उल्लेख ), १.५५६.४३( पितरों के उद्धार हेतु राजा हिरण्यतेजा द्वारा नर्मदा नदी का ब्रह्मलोक से उदय पर्वत पर, पुरूरवा द्वारा ऋक्ष पर्वत पर तथा पुरुकुत्स द्वारा पर्यङ्क पर्वत पर अवतारण का वृत्तान्त ), १.५६४.४७( अमावास्या के दिन पितरों द्वारा पिण्डों को हाथ में स्वीकार करने का उल्लेख ),२.१८.३९( पितृ दिवस अमावास्या पर विभिन्न प्रकार के पितरों की कन्याओं द्वारा कृष्ण को विभिन्न वस्तुएं अर्पित करने का वर्णन, पितृका रूपी कन्याओं की व्याख्या ), २.१०७( राक्षसों द्वारा पितृकन्याओं के हरण के प्रयास पर अर्यमा पितर द्वारा राक्षसों से युद्ध, असफल होने पर ब्रह्मा, विष्णु व महेश का स्मरण, कालप्रालेय राक्षस का संकर्षण से युद्ध आदि ), २.१५७.२१( पितरों के जानु में न्यास का उल्लेख ), २.२९३.९९( पितरों द्वारा कृष्ण को दहेज में स्वर्ण पात्रों को देने का उल्लेख ), ३.१६.५८( पितरों के पुण्य वाहन का उल्लेख ), ३.२१.३५( २५वें वत्सर में नाभ्यूर्ध्व देह वाले पितरों द्वारा हरि - प्रसाद के अतिरिक्त भोजन को ग्रहण न करने पर श्रीहरि का अर्धपितृनारायण रूप में प्राकट्य ), ३.२४.१( ब्रह्मा के ९९वें पितृ वत्सर में उत्पन्न मयूर असुर के वध के लिए श्री क्षत्र नारायण के प्राकट्य का वर्णन ), ३.४१.८५( पितरों का प्रत्यक्ष, मानव, देवों तथा प्रेतों में वर्गीकरण ; देव पितरों का चन्द्रमा, सूर्य व अग्नि में वर्गीकरण ), ३.१०१.६९( पीत धेनु दान से पितृलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१३६.१( लक्ष्मी व्रत करने से अच्छोदा, पीवरी, यशोदा आदि पितरों की कन्याओं द्वारा पति व पुत्र प्राप्त करने का वर्णन ), ३.१५७.४( पितरों द्वारा रुचि प्रजापति को दारसंग्रह का उपदेश, रुचि द्वारा दारा प्राप्ति हेतु पितरों की स्तुति ), ३.१५७.४८( विभिन्न लोक वासियों द्वारा विभिन्न कामनाओं हेतु विभिन्न प्रकार से पितरों की पूजा का कथन ), ३.१५७.६६( चार वर्णों द्वारा पूजित पितरों के श्वेत आदि वर्ण ), ३.१५७.७०( चार दिशाओं के रक्षक पितरों के अग्निष्वात्त आदि नाम ), ३.१५७.७२( ३१ पितरों के नाम ), ३.१६२.१७( श्यामवर्ण मणियों में पितरों की स्थिति का उल्लेख ), ४.२५.६१( श्रीकृष्ण के पितरों के पुण्य संचय में वास का उल्लेख ), ४.९४.१( तपोलोक में निवास करने वाले अर्यमा, वैराज आदि पितरों के गणों तथा गणों का प्रतिनिधित्व करने वाले पितरों के नाम ), भरतनाट्य १३.२७(पितरों के शृङ्गवान् पर्वत पर वास का उल्लेख), शौ.अ. ५.२४.१४(यमः पितॄणां अधिपतिः), pitara


      पिता पद्म १.१५( पिता के प्रजापति लोक का स्वामी होने का उल्लेख ), २.६१+ ( पितृ तीर्थ का वर्णन, सुकर्मा द्वारा पिप्पल को पितृ भक्ति की शिक्षा ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.८.४७( विद्यादाता, अन्नदाता आदि पितरों के ५ प्रकारों का कथन ), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.४( पितृदत्ता : विवाह के ४ प्रकारों में से एक ), मत्स्य १०.८( वेन के पिता के अंशभूत दक्षिण हस्त के मन्थन से धनुष, कवच आदि धारण करने वाले पृथु की उत्पत्ति का कथन ), १९.३( पिता के वसुओं का रूप होने का उल्लेख ), २११.२६( पिता गार्हपत्य अग्नि व प्रजापति का रूप, माता दक्षिणाग्नि, गुरु आहवनीय होने का उल्लेख ), २९०.११( ३०वें कल्प के रूप में पितृकल्प का उल्लेख ; ब्रह्मा का कुहू का रूप ), वायु ६९.१३२/२.८.१२७( ब्रह्मधना के १० पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३९.२१( श्राद्ध में पितृपिण्ड के चतुर्व्यूह में प्रद्युम्नात्मक होने का कथन ), २.३७.५१( पिता के प्रजापति की मूर्ति होने का उल्लेख ), २.३७५६( पिता के गार्हपत्य अग्नि होने का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.३६.७६( पिता की भक्ति से भुव: लोक पर विजय ), ५.३.१४६.४६( पिता व पुत्र के श्रुति - स्मृति की भांति तथा बिम्ब के बिम्ब की भांति सदा एक होने का उल्लेख ), ५.३.२०९.५४( जनिता, उपनेता, विद्या प्रदाता, अन्नदाता व भयत्राता नामक ५ पितरों का उल्लेख ), महाभारत वन ३१३.६०( पिता के खं/आकाश से उच्चतर होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), लक्ष्मीनारायण १.१०१.३१( ५ प्रकार के पिताओं का कथन ) pitaa


      पितामह पद्म १.३२.१३१( वसुगण पिता, रुद्रगण पितामह तथा आदित्यगण प्रपितामह होने का उल्लेख ), ३.२१.४( नर्मदा तट पर पितामह तीर्थ में पिण्डादि दान का संक्षिप्त माहात्म्य ), मत्स्य १९.३( पितामह रुद्र गण का रूप, प्रपितामह आदित्य गण का रूप ), १५४.४३५( शिव के विवाह के अवसर पर पितामह ब्रह्मा द्वारा जटाजूट में चन्द्रखण्ड बांधने का उल्लेख ), लिङ्ग २.२७.२२५( पितामह व्यूह का वर्णन ), वामन ६९.१०१( प्रपितामह/ब्रह्मा द्वारा पद्म को घुमा कर दिव्य जल का अभिषेक करने का कथन ), वायु १०६.५६/२.४४.५६( प्रपितामह द्वारा गया में शिला को स्थिर करने के लिए धारित ५ रूपों में से एक ), स्कन्द ४.२.६१.१४९( पितामह तीर्थ का माहात्म्य ), ४.२.६६.५( पितामहेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.२.२३( शिव द्वारा ब्रह्मा को पितामह नाम देना ), ५.३.३९.३०( कपिला गौ के शृङ्ग मध्य में पितामह की स्थिति का उल्लेख ), ५.३.५५.२२( विष्णु के पितृ रूप, ब्रह्मा के पितामह व रुद्र के प्रपितामह का रूप होने का उल्लेख ), ५.३.१४६.४३( ब्रह्मा, विष्णु व महेश के पिता, पितामह व प्रपितामह होने का उल्लेख ), ५.३.२०४( पितामह तीर्थ का माहात्म्य : ब्रह्मा द्वारा स्वपुत्री के प्रति कामुक होने पर शिव द्वारा अपूज्यत्व का शाप, ब्रह्मा द्वारा शिव की आराधना ), ५.३.२०४( भृगु तीर्थ की पैतामह तीर्थ के नाम से ख्याति का कारण : पितामह ब्रह्मा द्वारा विस्मृत वेदों की प्राप्ति हेतु तप का स्थान ), हरिवंश १.४.१( पितामह द्वारा ब्रह्माण्ड के विभिन्न पदों पर अधिपतियों की नियुक्ति का वर्णन ), योगवासिष्ठ ४.२७( ब्रह्मा द्वारा देवों को दाम, व्याल व कट असुरों को जीतने का उपाय बताना ) pitaamaha/ pitamah


      पितृयान ब्रह्माण्ड १.२.२१.१५९( पितृयान पथ का निरूपण ), १.२.३५.१११( पितृयान के आश्रित लोगों द्वारा दाराग्निहोत्री बनकर प्रजा उत्पन्न करने का कथन ), भागवत ३.३२.२०( अर्यमा के दक्षिण पथ से पितृलोक जाने वालों की गति का कथन ), मत्स्य १२४.९७( वैश्वानर पथ से बाहर पितृयान पथ का निरूपण ), वायु ५०.२१०( पितृयान मार्ग का कथन ), ६१.१००( पितृयान के आश्रित लोगों द्वारा दाराग्निहोत्री बनकर प्रजा उत्पन्न करने का कथन ), विष्णु २.८.८५( वैश्वानर पथ से बाहर पितृयान पथ का निरूपण ), महाभारत वन २.७५(अष्टविध धर्म के ४ वर्ग पितृयाण पथ में तथा ४ देवयान पथ में स्थित होने का कथन), द्र देवयान - पितृयान pitriyaana


      पितृवर्ती मत्स्य २०.३( कौशिक के ७ पुत्रों में से एक, जन्मान्तरों में व्याध, मृग, चक्रवाक आदि बनने की कथा ) pitrivartee/ pitrivarti


      पितृशर्मा भविष्य ३.२.३०( पितृशर्मा द्वारा विष्णुयशा नामक पत्नी की प्राप्ति, वेद रूप ४ पुत्रों की प्राप्ति, चन्द्रगुप्त से गृहस्थ धर्म की श्रेष्ठता का कथन ), कथासरित् ८.४.८१( पितृशर्मा आदि के कालकम्पन से युद्ध का उल्लेख )


      पित्त ब्रह्माण्ड २.३.७२.४८( पित्त की नाभि में प्रतिष्ठा होने तथा पित्त के अग्नि रूप व कफ के सोम रूप होने का उल्लेख - कफस्य हृदयं स्थानं नाभ्यां पित्तं प्रतिष्ठितम्।
      देहस्य मध्ये हृदयं स्थानं तु मनसः स्मृतम्॥ ), वायु ९७.४८/२.३५.४८( शोणित के पित्तवर्ग का होने तथा पित्त के अग्नि रूप होने आदि का कथन - कफवर्गेऽभवच्छुक्रं पित्तवर्गे च शोणितम् । कफस्य हृदयं स्थानं नाभ्यां पित्तं प्रतिष्ठितम्।) pitta


      पित्तल गरुड २.४.१४२(पुरीष में पित्तल देने का उल्लेख), २.३०.५२/२.४०.५२( मृतक के पुरीष में पित्तल देने का उल्लेख ), पद्म ६.६.२८( बल असुर के अङ्गों के उद्वर्तन से पित्तल की उत्पत्ति का उल्लेख ), वायु ४४.१५( केतुमाल देश के जनपदों में से एक ) pittala


      पिनाकी अग्नि १४५.२९(ल वर्ण का पिनाकी नाम से मांस में न्यास का उल्लेख - र रक्ते स्याद्भुजङ्गेशो ल पिनाकी च मांसके ।), गणेश २.६०.४५ (नरान्तक वध हेतु गणेश के समक्ष आठ पद वाले पिनाक धनुष के पतन का उल्लेख), नारद १.६६.११७( पिनाकी की शक्ति माधवी का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५४( लिपि मातृका न्यास के प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता ), भविष्य ३.४.१२.३८( पिनाक धनुष के निर्माण से शिव द्वारा पिनाकी नाम की प्राप्ति, ११ रुद्रों में से एक, नाथशर्मा रूप में अवतरण - विस्मितो भगवान्विष्णुस्सारं स्वर्गस्य वै तदा ।। गृहीत्वाशु धनुर्दिव्यं पिनाकं स चकार ह ।। ), मत्स्य ५.३०( ११ रुद्रों में से एक ), ६०.११( दक्ष - पुत्री सती से विवाह के संदर्भ में शिव की पिनाकी संज्ञा का प्रयोग ), १५४.११८( शैल - पुत्री के पिनाकी के साथ योग करने की चिन्ता ), ४१०( शिव - पार्वती के विवाह के संदर्भ में शिव के पिनाकी नाम का प्रयोग ), २४१.१४( तुरग रथ दान से पिनाकपाणि के पद को प्राप्त होने का उल्लेख ), वायु १०१.३१७/२.३९.३१७( रुद्रों के पिनाकपाणि होने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २८९.१८ (शिव द्वारा पाणि से अपने शूल को आनत करने पर पिनाक नाम की प्रसिद्धि का वर्णन - आनतेनाथ शूलेन पाणिनामिततेजसा। पिनाकमिति चोवाच शूलमुग्रायुधः प्रभुः।।), pinaakee/ pinaki


      पिपठायन लक्ष्मीनारायण ४.२८.३०( पाठायनी - पति पिपठायन ऋषि द्वारा कृष्ण के दर्शनार्थ मत्स्य देह धारण, कैवर्त्त द्वारा जालबद्ध करने पर पत्नी पाठायनी द्वारा कैवर्त्त को शाप, पिपठायन द्वारा मोक्ष उपाय का कथन ),


      पिपासा देवीभागवत ९.१.११९( लोभ की २ भार्याओं में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.३१९.५( जोष्ट्री - पुत्री, माता द्वारा पितरों को देना ) pipaasaa


      पिपिट शिव २.५.३६.१२( शङ्खचूड - सेनानी, मन्मथ से युद्ध )


      पिपीलिका अग्नि ८८.४४( ब्रह्मरन्ध्र में दिव्य पिपीलिका स्पर्श अनुभव का कथन ), ८८.५२( स्पर्श के प्रकारों में से एक ), गरुड १.२१७.२६( अपूप हरण से पिपीलिका योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२२.८१(पिपीलिका में भूतभावन की स्थिति का उल्लेख), पद्म १.१०.८४( ब्रह्मदत्त द्वारा पिपीलिका संवाद का श्रवण ), मत्स्य २०.२९( राजा ब्रह्मदत्त द्वारा कामुक कीट व पिपीलिका के मध्य वार्तालाप का श्रवण ), २३८.७( पिपीलिकाओं के उत्तर दिशा की ओर जाने रूपी उत्पात का फल ), मार्कण्डेय १५( दुष्कृत्य फलस्वरूप पिपीलिका योनि प्राप्ति का उल्लेख ), लिङ्ग १.९०.४५( ओंकार की चतुर्थ मात्रा गान्धारी द्वारा मूर्ध्नि में स्पर्श की पिपीलिका संज्ञा ), स्कन्द ५.२.२१.१४( कुक्कुटेश्वर लिङ्ग के माहात्म्य के संदर्भ में रानी विशाला द्वारा पिपीलिका कीट मिथुन की प्रणय वार्ता को सुनना ), हरिवंश १.२४.३( ब्रह्मदत्त राजा द्वारा पिपीलिका रुत या बोली को समझना ), लक्ष्मीनारायण १.४८६.१३९( पिपीलिका समूह के पूर्व जन्मों में क्रमश: इन्द्र होने का उल्लेख ), ३.९२.८९( पिपीलिकाओं के चयन धर्म का उल्लेख ), कथासरित् २.५.५९( पिपीलिका द्वारा जन्तु नामक पुत्र का दंशन करने पर जन्तु का व्याकुल होकर रोना, जन्तु के पिता द्वारा पुत्रों की प्राप्ति के लिए जन्तु का होम करना आदि ) pipeelikaa/ pipilika


      पिप्पल गणेश १.५२.२१( पिप्पल देश में क्षत्रिय द्वारा गजानन की आराधना ), नारद १.५६.२००५( पिप्पल वृक्ष की पुष्य नक्षत्र से उत्पत्ति का उल्लेख ), पद्म २.५३.९९( नासिकाग्र में स्थित कृमि का नाम ), २.६१ +( पिप्पल ब्राह्मण द्वारा तप से सिद्धि प्राप्ति, सारस वचन से सुकर्मा से पितृभक्ति के उपदेश की प्राप्ति ), २.७८( पिप्पल द्वारा सुकर्मा से पितृतीर्थ के माहात्म्य श्रवण के संदर्भ में पूरु द्वारा पिता से जरा प्राप्ति प्रसंग का श्रवण ), ३.३.१६( सुदर्शन द्वीप के २ अंश पिप्पल व २ अंश शश होने का उल्लेख - एवं सुदर्शनो द्वीपो दृश्यते चक्रमंडलः। द्विरंशे पिप्पलस्तस्य द्विरंशे च शशो महान् ), ३.३.१९( भूगोल के संदर्भ में शश व पिप्पल का उल्लेख ), ब्रह्म २.४८.१०( कैटभ - पुत्र पिप्पल द्वारा सामग ब्राह्मण के रूप में विप्रों को पीडा, शनि द्वारा पिप्पल का नाश ), भागवत ६.१८.६( मित्र व रेवती के ३ पुत्रों में से एक ), ११.११.६( जीव द्वारा पिप्पल अन्न खाने का उल्लेख ), मत्स्य १९०.१३( नर्मदा तटवर्ती पिप्पलेश तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : रुद्र लोक की प्राप्ति ), स्कन्द ५.३.२३१.२४( नर्मदा तट पर २ पिप्पलेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), महाभारत द्रोण २०१.७६( दिव्य सुपर्ण - द्वय के रक्षक ७ पिप्पलों/धातुओं का श्लोक ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.७०( कृष्ण द्वारा पिप्पल वृक्ष का रूप धारण करने पर सब देवताओं द्वारा विभिन्न वृक्षों का रूप धारण कर कृष्ण के दर्शन का वर्णन ), १.५३७.७४( कृष्ण द्वारा सरस्वती नदी रूपी पत्नी का साथ देने के लिए पिप्पल वृक्ष बनने का कथन, सरस्वती का सदा द्रुम मूल रूपी चरणों में निवास ), ३.४४.१९( नासिकाग्र में स्थित २ कृमियों में से एक ), ४.४५.५३( सहस्रशीर्षा पुरुष के पिप्पल/प्लक्ष में स्थित होने का कथन ) pippala


      पिप्पला ब्रह्म २.६२.३( विश्वावसु - स्वसा, ऋषियों के उपहास से शाप प्राप्ति, यक्षिणी नदी बनना, गौतमी सङ्गम से मुक्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.३०( ऋक्ष पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक ), मत्स्य ११४.२५( पिप्पली : ऋक्ष पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक ), वायु ४५.१००( वही) pippalaa


      पिप्पलाद नारद १.८७.१५७( धूमावती - उपासक ), पद्म ६.१५७( पिप्पलाद तीर्थ का माहात्म्य, पिप्पलाद द्वारा कोलासुर वधार्थ कृत्या की उत्पत्ति, पिप्पलाद का कहोड उपनाम ), ब्रह्म १.११.१३३( पैप्पलादि : श्रविष्ठा के २ पुत्रों में से एक ), २.४०.८१( दधीचि व गभस्तिनी/वडवा से पिप्पलाद की उत्पत्ति का वृत्तान्त, वनस्पतियों द्वारा पिप्पलाद का पालन, पिप्पलाद द्वारा माता - पिता के दर्शनार्थ तप, वडवा कृत्या की उत्पत्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४१.१२६( पिप्पलाद की अनरण्य - कन्या पद्मा पर आसक्ति, राजा अनरण्य से कन्या को भार्या रूप में प्राप्त करना ), ४.४२.२( धर्म द्वारा पिप्पलाद - भार्या पद्मा की परीक्षा का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.३५.५७( अथर्ववेदी देवदर्श के ४ शिष्यों में से एक ), भविष्य ४.११४( शनि द्वारा पीडित होने के कारण पिप्पलाद द्वारा शनि का भूमि पर पातन ), ४.१६७( पिप्पलाद द्वारा शुभावती को आपाक/आवां दान विधि का कथन ), भागवत ११.११.७( ईश्वर - जीव के संदर्भ में अपिप्पलाद द्वारा स्वयं से अतिरिक्त अन्य को भी जानने का उल्लेख ), १२.७.२( पिप्पलायनि : अथर्ववेदी वेददर्श के ४ शिष्यों में से एक ), मत्स्य ७२.४( पिप्पलाद द्वारा युधिष्ठिर को अङ्गारक व्रत की विधि व माहात्म्य का वर्णन ), ७३( पिप्पलाद द्वारा युधिष्ठिर को प्रतिशुक्र प्रशान्ति व बृहस्पति पूजा विधि का वर्णन ), वायु ६१.५१( अथर्ववेदी वेदस्पर्श के ४ शिष्यों में से एक ), विष्णु ३.६.१०( अथर्ववेदी देवदर्श के ४ शिष्यों में से एक ), शिव २.३.३४( वृद्ध पिप्पलाद द्वारा अनरण्य - कन्या पद्मा की भार्या रूप में प्राप्ति के लिए अनरण्य से याचना व प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.२४.३३( दधीचि व सुवर्चा - पुत्र पिप्पलाद के अवतार की कथा : सुवर्चा द्वारा उदर के विदारण से पिप्पलाद का जन्म, पिप्पल वृक्ष द्वारा पिप्पल की रक्षा आदि ), ३.२५( पिप्पलाद का अनरण्य - सुता से परिणय, शनि को शाप ), स्कन्द १.१.१७( सुवर्चा व दधीचि - पुत्र, उत्पत्ति का प्रसंग ), ४.२.८४.६४( पिप्पलाद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : शनि पीडा से मुक्ति ), ५.३.४२( याज्ञवल्क्य - भगिनी व याज्ञवल्क्य के वीर्य से पिप्पलाद की उत्पत्ति, माता द्वारा पिप्पलाद का त्याग, अश्वत्थ फलों द्वारा पिप्पलाद का पालन, पिप्पलाद द्वारा कृत्या की उत्पत्ति, तप, पिप्पलादेश्वर लिङ्ग की स्थापना ), ६.१७४द्द ( याज्ञवल्क्य व कंसारि - पुत्र, उत्पत्ति का वर्णन, बृहस्पति का अवतार, जन्म कष्टों के कारण शनि का स्तम्भन व वर प्राप्ति, याज्ञवल्क्य द्वारा पिप्पलाद को ग्रहण करना ), ७.१.३२( दधीचि व सुभद्रा - पुत्र, पितृहन्ता देवों के प्रति कृत्या की उत्पत्ति ), हरिवंश ३.१( श्रविष्ठा - पुत्र, अजपार्श्व की रक्षा ), महाभारत शान्ति १९९.४( पैप्पलादि जापक ब्राह्मण का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण १.३७२.११( पिप्पलाद द्वारा अनरण्य - कन्या पद्मा से विवाह, पद्मा के पातिव्रत्य का वर्णन, धर्म द्वारा पद्मा के पातिव्रत्य की परीक्षा का वृत्तान्त ), १.५०७.५८( याज्ञवल्क्य व याज्ञवल्क्य - भगिनी कंसारिका से पिप्पलाद के जन्म का वृत्तान्त, षष्ठी देवी द्वारा पिप्पलादि की रक्षा, पिप्पलाद का शनि पर प्रकोप तथा तदनन्तर शनि की स्तुति ) pippalaada


      पिप्पलायन भागवत ५.४.११( ऋषभ व जयन्ती के १०० पुत्रों में से एक ), ११.३.३५( ९ योगीश्वरों में से एक, निमि को ब्रह्म सम्बन्धी उपदेश ), १२.७.२( पिप्पलायनि : अथर्ववेदी वेददर्श के ४ शिष्यों में से एक ), स्कन्द ५.१.५६.५४( शनि के नामों में से एक ) pippalaayana


      पिलिपिच्छ अग्नि ९३.३०( वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक ), १०५.१३( ८१ पदों वाले वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक ), मत्स्य १७९.१३( पिलपिच्छिका : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ) pilipichchha


      पिलिपिला स्कन्द ४.२.५५.२६( पिलिपिला तीर्थ में स्नान के पश्चात् सुमुखेश के दर्शन का निर्देश ), ४.२.५७.९६( पिलिपिला तीर्थ में उद्दण्ड मुण्ड हेरम्ब का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.७३.४( पिलिपिला तीर्थ से आरम्भ होने वाले त्रिलोचन लिङ्ग का माहात्म्य ), ४.२.८४.४२( पिलिपिला तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.४५.८९( नागकन्याओं द्वारा पिलिपिला तीर्थ में स्नान के पश्चात् त्रिलोचन शिव के दर्शन का वृत्तान्त ) pilipilaa


      पिशङ्ग गरुड ३.२८.५३(पिशङ्गदा का चित्राङ्गदा व शची, तारा से तादात्म्य), ब्रह्माण्ड २.३.७.१२८( देवजनी व मणिवर के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक - कुसुं चरं पिशङ्गं च स्थूलकर्णं महामुदम् । श्वेतं च विमलं चैव पुष्पदन्तं जयावहम् ॥ ), वायु २६.४३( एकार व ऐकार संज्ञक ११वें व १२वें मनुओं के पिशङ्ग वर्ण का उल्लेख - मुखादेकादशात्तस्य एकारो मनुरुच्यते।पिशङ्गो वर्णतश्चैव पिशङ्गो वर्ण उच्यते ।। ...), ४७.९( कैलास के दक्षिण पूर्व में दिव्य पिशङ्ग पर्वत की स्थिति - कैलासाद्दक्षिणप्राच्यां शिवसत्त्वौषधिं गुरुम् ।
      मनःशिलामयं दिव्यं पिशङ्गं पर्वतं प्रति ।। ), स्कन्द ४.२.८४.३९( पिशङ्गिला तीर्थ का माहात्म्य - स्नात्वा पिशंगिला तीर्थे दत्त्वा दानं च किंचन । किं शोचति कृतात्पापादन्यत्रापि मृतो यदि ।। ... ), लक्ष्मीनारायण २.२२८.३०( पिशङ्गी कान्त कृष्ण की पूजा से सोमयाग फल की प्राप्ति का उल्लेख - पिशंगीकान्तं मां भक्त्याऽध्वरेऽत्र पूजयेत्तु यः । ब्रह्मयतीन् भोजयेच्च लभेत् सोमक्रतोः फलम् ।। ) pishanga


      पिशङ्गजट कथासरित् १२.२.१०( भार्या के वियोग से ग्रस्त नरवाहनदत्त को मुनि पिशङ्गजट द्वारा मृगाङ्कदत्त की कथा सुनाना ), १२.३६.२४४( मुनि पिशङ्गजट द्वारा वर्णित मृगाङ्कदत्त की कथा की समाप्ति )


      पिशाच अग्नि ५१.१७( प्रतिमा लक्षण के अन्तर्गत पिशाचों के दुर्बलाङ्ग होने का उल्लेख ),८४.३२( ८ देवयोनियों में प्रथम ), कूर्म १.३३( पिशाचमोचन कुण्ड में स्नान से पिशाच का दिव्य रूप धारण करना, पिशाच का मुनि शङ्कुकर्ण से संवाद ), गरुड २.११( स्ववंशीय पिशाच द्वारा गृहीत होने पर दृष्ट स्वप्न ), पद्म ३.२२.१००( अच्छोदा सरोवर तट पर गन्धर्व कन्याओं द्वारा ब्रह्मचारी के बलात् आलिङ्गन पर ब्रह्मचारी द्वारा कन्याओं को पिशाची बनने का शाप, कन्याओं द्वारा ब्रह्मचारी को पिशाच बनने का शाप, रेवा स्नान से पिशाचत्व से मुक्ति ), ३.३५.१४( कपर्दीश्वर के समीप पिशाचमोचन तीर्थ का माहात्म्य : शङ्कुकर्ण विप्र द्वारा पिशाच को उद्धार का उपाय बताना ), ६.१२८( पिशाचमोचन : अप्सराओं की अग्निप मुनि पर आसक्ति, परस्पर शाप - प्रतिशाप, माघ स्नान से मुक्ति ), ब्रह्म २.१४.१( गौतमी गङ्गा के दक्षिण तट पर पैशाच तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य : अद्रिका व निर्ऋति से अद्रि पिशाच का जन्म, अद्रि तथा हनुमान द्वारा माताओं को गङ्गा स्नान कराने से माताओं की मुक्ति का वृत्तान्त ), २.८०.१( गौतमी गङ्गा के उत्तर तट पर पैशाच तीर्थ का माहात्म्य : अजीगर्त का पिशाच बनना, पुत्र शुन:शेप द्वारा गङ्गा के तट पर जलदान से अजीगर्त की मुक्ति का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड २.३.७.७५, २.३.७.१६८( पिशाचों के राक्षसों से तीन गुना हीन होने का कथन ), २.३.७.३०३( जाम्बवन्त व व्याघ्री के पुत्रों में से एक ), २.३.७.३७४( कपिशा व कूष्माण्ड - पुत्र, वंश व स्वरूप का वर्णन ), २.३.८.७१( पुलह के पुत्रों के गणों में से एक ), भविष्य ३.३.२८.६२( महामद नामक पिशाच की शोभना वेश्या द्वारा आराधना, पिशाच द्वारा सहायता का वर्णन ), मत्स्य १४८.४६( जम्भ के ध्वज के पिशाच चिह्न का उल्लेख ), १७१.६१( क्रोधा से पिशाच आदि की उत्पत्ति का उल्लेख ), लिङ्ग १.५०.११( पिशाच पर्वत पर कुबेर के वास का उल्लेख ), १.७४.११( पिशाचों द्वारा सीसा - निर्मित लिङ्ग की पूजा ), वराह १७४.९८( पांच प्रेतों की मुक्ति के कारण निर्मित पिशाच तीर्थ ), वायु ३६.२४( पिशाचक : मेरु के दक्षिण में स्थित पर्वतों में से एक ), ३९.५७( पिशाचक पर्वत पर कुबेर के भवन का उल्लेख ), ४२.३१( अलकनन्दा के महाशैल से पिशाचक और पिशाचक से पञ्चकूट को जाने का उल्लेख ), ६९.२५७/२.८.२५१( कपिशा से उत्पन्न कूष्माण्ड मिथुनों के पिशाच नाम की निरुक्ति, १६ पिशाच मिथुनों के नाम ; पिशाचों के १६ कुलों के नाम ; विभिन्न कुलों के पिशाचों के स्वरूपों का वर्णन ; ब्रह्मा द्वारा पिशाचों को प्रदत्त वर का वर्णन ), १०१.२८/२.३९.२८( स्वर्लोक में निवास करने वाले गणों में से एक ), विष्णु १.२१.२४( क्रोधा से पिशाचों की उत्पत्ति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.४( विष्णु के नखों में पिशाचों की स्थिति का उल्लेख ), ३.१८.१( १४ षड्ज ग्रामिकों में से एक पैशाच का उल्लेख ), ३.४२.१२( पिशाचों के वामन, कुब्ज आदि रूप का कथन ), शिव ०.५.१५( चञ्चुला - पति बिन्दुग का दुष्कर्मों के फलस्वरूप मृत्यु - पश्चात् पिशाच बनना, तुम्बुरु द्वारा पिशाच को बांधकर शिव पुराण की कथा सुनाने से पिशाच के उद्धार का वृत्तान्त ), ७.२.३८.१९(पार्थिवांशं विना नित्यं सुरभिर्गन्धसंग्रहः ॥ एवमष्टगुणं प्राहुः पैशाचं पार्थिवं पदम् ॥),  स्कन्द २.४.७.१०८( हेलिक के पुत्र द्वारा आकाशदीप दान से पिशाचत्व से मुक्ति का उल्लेख ), २.७.१४( वैशाख मास माहात्म्य श्रवण से छिन्नकर्ण पिशाच की मुक्ति की कथा ), २.८.९.१२( अयोध्या में पिशाचमोचन तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ३.१.२२.९५( वैश्य के दुष्ट पुत्र दुष्पण्य का मृत्यु - पश्चात् पिशाच बनना, सुतीक्ष्ण द्वारा अग्नि तीर्थ में स्नान के फल से पिशाच की मुक्ति का वृत्तान्त ), ३.३.२२.११८( विदुर ब्राह्मण का मृत्यु - पश्चात् पिशाच बनना, तुम्बुरु द्वारा पिशाच को बांध कर कथा सुनाने से पिशाच की मुक्ति का वृत्तान्त ), ४.१.८.११( पिशाच लोक प्राप्ति के लिए अपेक्षित कर्म का कथन ), ४.२.५४( काशी में वाल्मीकि - प्रदत्त भस्म से पिशाच की मुक्ति का वृत्तान्त ), ४.२.५४.७४( पिशाचमोचन तीर्थ का माहात्म्य : विमलोदक सर में स्नान से प्रेत की मुक्ति का वर्णन ), ५.१.२०.२( पिशाच तीर्थ के माहात्म्य का कथन ), ५.१.३०.६०( पिशाचों द्वारा शिव को दीप अर्पित करने के फल का कथन ), ५.१.५३.२६( सुन्दर कुण्ड की महिमा के संदर्भ में पिशाचमोचन तीर्थ का माहात्म्य : देवल ब्राह्मण की पिशाचत्व से मुक्ति का वृत्तान्त ), ५.२.६८( पिशाचेश्वर का माहात्म्य : सोम पिशाच द्वारा मुक्ति हेतु पिशाचेश्वर की पूजा ), ५.३.१५९.१९( प्रव्राजी द्वारा मरुपिशाच योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ६.२५२.३५( चातुर्मास में गुग्गुल वृक्ष में पिशिताशनों की स्थिति का उल्लेख ), ७.१.१६७.१०४( भूत माता से उत्पन्न पिशाचों के रूप व निवास स्थान का कथन ), हरिवंश ३.७९.१( बदरिकाश्रम की यात्रा के संदर्भ में कृष्ण के निकट पिशाच - द्वय का आगमन, पिशाचों के स्वरूप का कथन ), ३.८०.२३( घण्टाकर्ण पिशाच द्वारा कृष्ण को अपना परिचय देना, कृष्ण का स्तवन करना व ध्यानस्थ होना ), ३.८१.१०( पिशाच को समाधि में कृष्ण के दर्शन का वर्णन, पिशाच द्वारा आन्त्रपाश का भेदन ), ३.८२( पिशाच द्वारा कृष्ण के अलौकिक कर्मों का स्मरण करते हुए कृष्ण की स्तुति ), ३.८३( पिशाच द्वारा कृष्ण को ब्राह्मण के शव का मांस प्रस्तुत करना, कृष्ण द्वारा अस्वीकृति, कृष्ण की कृपा से पिशाच का दिव्य देह होना ), महाभारत कर्ण ४४.४१( विपाशा में बहि व हीक पिशाच - द्वय से बाहीक प्रजा की उत्पत्ति का श्लोक ), योगवासिष्ठ ३.४९.१२( सिन्धु राजा द्वारा विदूरथ पर प्रयुक्त पिशाच अस्त्र का उल्लेख ), ४.३३.४१( अहंकार रूपी पिशाच का कथन ), ६.२.५७.१( देह में स्थित अहंभाव रूपी पिशाच को शान्त करने की युक्ति : अज्ञान का नाश ), ६.२.९४.२९( पिशाचों के स्वरूप का वर्णन ), वा.रामायण ६.५९.१८( रावण - सेनानी पिशाच का स्वरूप ), लक्ष्मीनारायण १.२४३.५४( माल्यवान् गन्धर्व व पुष्पवती अप्सरा का इन्द्र के शाप से पिशाच बनने व जया एकादशी व्रत के प्रभाव से पिशाचत्व से मुक्ति का वृत्तान्त ), १.२४६.११२( मेधावी ऋषि के शाप से मञ्जुघोषा अप्सरा का पिशाची बनना, चैत्र कृष्ण पापमोचनिका एकादशी व्रत से मञ्जुघोषा की पिशाचत्व से मुक्ति ), १.२४७.१००( कामैकादशी व्रत के प्रभाव से ललिता - पति ललित गन्धर्व के राक्षसत्व व पिशाचत्व के नाश का वृत्तान्त ), १.४३१.९७( तपोव्रत द्वारा तप की अपेक्षा कथा श्रवण का अनादर करने पर पिशाचत्व प्राप्ति, सत्यव्रत द्वारा कथा के पुण्य दान से तपोव्रत का उद्धार ), १.५३९.१०६( भूतमाता से पिशाचों की उत्पत्ति, स्वरूप, निवास स्थान आदि का वर्णन ), २.१३१.७८( पिशाचिनी बनने के हेतुक कर्मों का कथन ), २.१५७.२२( पिशाचों का दक्ष पाद में न्यास ), २.२२३.४५( द्वेष का रूप ), ३.१७४.७८( पिशाचों की दुर्गन्ध में स्वाभाविक भाव का उल्लेख ), ३.४५.२८( वासनावन्त मनुष्यों के पिशाच योनि में जाने का उल्लेख ), ४.४४.६१( काम के पैशाची बन्धन होने का उल्लेख ), कथासरित् १.१.५९( सुप्रतीक यक्ष का शाप के कारण काणभूति पिशाच बनना ), १.७.२७( गुणाढ्य द्वारा चौथी भाषा पैशाची सीखने का वृत्तान्त ), ६.२.१६२( ब्राह्मण के व्रण का पिशाच की साधना से भरना और युवती द्वारा पिशाच को छलने की कथा ), १७.१.६७( पार्वती द्वारा अपने २ गणों पिङ्गेश्वर व गुहेश्वर को ब्राह्मण, पिशाच आदि बनने का शाप ), १७.१.१०८( ब्राह्मण - बालकों के पिशाच बनने तथा पिशाच से चाण्डाल बनने का वृत्तान्त ) pishaacha/ pishacha


      पिशाची/पिशाचिका ब्रह्माण्ड १.२.१६.३०( ऋक्ष पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक ), वायु ४५.१००( ऋक्ष पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४( चिन्ता का रूप ) pishaachee/ pishachi


      पिशुन शिव ५.४१.११( भारद्वाज के ७ पुत्रों में से एक, जन्मान्तरों का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण ३.२२०( पैशुन्य वृत्ति के कारण राजा के भक्त खवास को राजा से दण्ड प्राप्ति तथा श्रीहरि द्वारा संकट से मोक्षण का वृत्तान्त ) pishuna


      पिष्ट गरुड ३.२८.१३४(विवाहकाल में पिष्ट देवी पूजा का उल्लेख), नारद १.७५.८( विभिन्न कामनाओं की पूर्ति हेतु पञ्च धान्यों के पिष्टों से निर्मित दीपों का कथन ), शिव २.१.१२.३५( छाया द्वारा पिष्टमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१३.१६५( विनायक द्वारा पिष्ट लिङ्ग की कपर्दी नाम से अर्चना का उल्लेख, शतरुद्रिय प्रसंग ), लक्ष्मीनारायण २.१३.८( पिष्टि : प्रधान राक्षसियों में से एक ) pishta

      Comments on Pishta

      Nanotechnology aspect of Pishta


      पीठ गरुड १.१२( योगपीठ पूजा विधान ), ३.२४.८२(पीठ के मध्य में श्रीनिवास तथा अन्य दिशाओं में अन्य देवों की स्थिति, पीठ की पर्यङ्क रूप में कल्पना), देवीभागवत ७.३०.५३( पीठोंx में देवी के नाम ), ७.३८.१९( पृथिवी पर विभिन्न पीठोंx में देवी के नाम ), नारद १.८५.६०( पीठ न्यास का कथन ), पद्म ५.६९.२४( गोकुल नामक सहस्रदल कमल की कर्णिका में स्वर्ण पीठ पर गोविन्द की स्थिति का उल्लेख ), ५.६९.८१( वृन्दावन रूप सहस्रदल कमल में अष्टकोणीय योगपीठ का कथन ), ५.७०.३( मुख्य पीठ की आवरण रूप बाह्य योगपीठ आदि में वासुदेवात्मक चतुर्व्यूह की स्थितियों का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.५४( आनन्द पीठ ), ३.४.३७.४६( बिन्दु पीठ, श्री पीठ ), भागवत १०.५९.१२( मुर दैत्य के ७ पुत्रों द्वारा पीठ को सेनापति बनाकर कृष्ण पर आक्रमण का कथन ), मत्स्य २६२( पीठिका निर्माण, देवों की स्थापना हेतु पीठोंx के भेद, लक्षण, फल, पीठ का देवता की पत्नी से तादात्म्य ), २६९.८( प्रासाद के लिङ्ग मान के अनुसार पीठिका मान होने का कथन ), वायु ३३.३४( योगपीठस्थ देवता पूजा का वर्णन ), ४१.३०( मन्दिर में देवपीठ का उच्छ्राय/ ऊंचाई ), ७४.४४/x ( शिव की आधार पीठ का स्वरूप ), १०४.८१/२.४२.८१( पीठोंx की शरीर में स्थिति का वर्णन ), १२४.१५? ( विद्या पीठ का शरीर में स्वरूप ), स्कन्द ७.१.१३२.६( सौराष्ट} में महोदय पीठ में सिद्ध लक्ष्मी की पूजा का माहात्म्य ) peetha/ pitha


      पीडा गरुड २.१०( प्रेत प्रदत्त पीडा के प्रकारों का वर्णन ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१३५( पीडापर : खशा व कश्यप के पुत्रों में से एक ) peedaa/ pida


      पीत ब्रह्माण्ड १.२.२०.१४( चतुर्थ पाताल की भूमि का पीतभौम विशेषण ), मत्स्य २४.१( तारा - पुत्र बुध के दिव्य पीताम्बर वस्त्र का उल्लेख ), ४९.२( पीतायुध : मनस्यु - पुत्र, धुन्धु - पिता, पूरु वंश ), लिङ्ग १.२३( पीत कल्प का वर्णन ), वामन ९०.९( नैमिष तीर्थ में विष्णु का पीतवासा नाम से वास ), वायु २३.१( पीतवासा नामक ३१वें कल्प में ब्रह्मा से पीत स्वरूप वाले रुद्र तथा रुद्र से चतुष्पदा माहेश्वरी गौ के प्राकट्य का वर्णन ), १०४.४७( कृष्ण के दिव्य पीताम्बर का उल्लेख ), विष्णु २.४.३०( शाल्मलि द्वीप के निवासियों के वर्णों में से एक ), शिव ३.१.१७( २१वें कल्प में पीतवासा ब्रह्मा से तत्पुरुष नामक शिव के प्राकट्य का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.५४.४६( पीतवर्णा लक्ष्मी की प्रकृति का कथन : तामस गुण युक्त आदि ), द्र. विपीत peeta/ pita


      पीताम्बर लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०९( कृष्ण व पिङ्गला - पुत्र, आत्मबोधिनी - भ्राता )


      पीपा भविष्य ३.४.१७( राजा सुदेव का पुत्र, अत्रि - पुत्र सोम का अंश ),


      पीयूष लक्ष्मीनारायण ४.१०१.९२( पीयूषवर्षिणी : कृष्ण व गोमती - पुत्री, पावन - भगिनी ), द्र. समित्पीयूष


      पीव विष्णु २.१३.७२( जड भरत - सौवीरराज संवाद में आत्मा के पीव न होने के कारण का कथन ; आत्मा के वृद्धि व अपचय से रहित होने का कथन ),


      पीवर ब्रह्माण्ड १.२.१९.७२( क्रौञ्च द्वीप के ७ वर्षों में से एक ), १.२.३६.४८( तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), वायु ३३.२१( क्रौञ्च द्वीप में द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक ), विष्णु २.४.४८( क्रौञ्च द्वीप में द्युतिमान् के ७ पुत्रों में से एक ), ३.१.१८( तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ) peevara/ pivara


      पीवरी देवीभागवत १.१९.४०( पितर - कन्या, शुक - भार्या, ४ पुत्रों व कीर्ति कन्या के नाम ), पद्म १.९.४०( बर्हिषद् पितर - कन्या, तप, शुक्र की भार्या बनना, कृत्ती - माता ), ब्रह्माण्ड १.२.११.८( वेदशिरा व पीवरी से मार्कण्डेय संज्ञक ऋषि पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.२.११.३१( क्षमा व पुलस्त्य की सन्तानों में से एक? ), २.३.८.९३( पीवरी व शुक से उत्पन्न सन्तानों के नाम ), २.३.१०.७७( अग्निष्वात्त पितरों की कन्या, शुक से उत्पन्न ५ पुत्रों के नाम ), मत्स्य १५.५( बर्हिषद् पितर - कन्या, कृत्वी - माता, तप से शुक - भार्या बनना ), मार्कण्डेय १४.२( विपश्चित् जनक द्वारा वैदर्भी पीवरी नामक ऋतुमती पत्नी का ऋतु व्यतिक्रम करने से नरक प्राप्ति का कथन ), वराह १५३.११( काशिराज - पुत्री, यक्ष्मधनु की मुख्य पत्नी, पति से मथुरा के रहस्य के उद्घाटन का आग्रह ), १५४.५( पीवरी द्वारा राजा को अपने पूर्वजन्म के वृत्तान्त का कथन : यमुना में गिरकर मृत्यु होने से काशिराज - कन्या बनना ), वायु २८.२५( क्षमा व पुलह की सन्तानों में से एक ), ४४.२२( केतुमाल देश की नदियों में से एक ), ७०.८५/२.९.८५( शुक - पत्नी पीवरी से उत्पन्न ५ पुत्रों व एक कन्या के नाम ), ७३.२६/२.११.७०( धर्म/मूर्तिमान् पितरों की कन्या, शुक - पत्नी, पुत्रों के नाम ), हरिवंश १.१८.४९( बर्हिषद् पितरों की कन्या पीवरी द्वारा शुक की पत्नी बनकर सन्तान उत्पन्न करने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३४४.२४( यक्ष्मधनु नामक नृप द्वारा अपनी सबसे प्रिय पत्नी पीवरी को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ), कथासरित् ८.२.३५१( पीवरा : प्रह्लाद - कन्या महल्लिका की १२ सखियों में से एक, हुहू गन्धर्व - कन्या, सूर्यप्रभ - पत्नी ), द्र भूगोल, मन्वन्तर peevaree/ pivari


      पुंश्चली ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४( वेश्या के पुंश्चली आदि प्रकारों का कथन )


      पुंसवन भागवत ६.१९( पुंसवन व्रत की विधि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.२२( अवृष नामक २७वें वत्सर में नरमेध में भक्त के जीवन के रक्षार्थ पुंस्त्व नारायण के प्राकट्य का वर्णन ; कृष्ण के वृषणों का शालग्राम बनना ) punsavana


      पुक्लस ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९६( भण्डासुर - सेनानी, शिवदूती द्वारा वध )


      पुङ्ख स्कन्द ५.३.२१०( पुङ्खिल तीर्थ के माहात्म्य का कथन )


      पुङ्गव द्र. राक्षसपुङ्गव


      पुच्छ स्कन्द ५.१.५२.४५( यज्ञवराह की पुच्छ के कर्माशन? होने का उल्लेख ), ५.३.३९.३२( कपिला गौ के पुच्छाग्र में सूर्य रश्मियों की स्थिति का उल्लेख ) puchchha


      पुञ्जिकस्थला ब्रह्माण्ड १.२.२३.४( सुस्थला व पुञ्जिकस्थला : मधु - माधव मास में सूर्य रथ पर स्थिति - तुंबुरुर्नारदश्चैव सुस्थला पुंजिकस्थला । रक्षो हेतिः प्रहेतिश्च यातुधानावुदाहृतौ ।। ), २.३.७.१४( १० अप्सराओं में से एक ), ३.४.३३.१९( गोमेदक महाशाला में स्थित अप्सराओं में से एक ), भागवत १२.८.२६( काम द्वारा मार्कण्डेय मुनि के सम्मोहन के प्रयास में पुञ्जिकस्थला अप्सरा की चेष्टाओं व क्रीडाओं का कथन - क्रीडन्त्याः पुञ्जिकस्थल्याः कन्दुकैः स्तनगौरवात् । ), १२.११.३४( माधव/वैशाख मास में सूर्य रथ पर पुञ्जिकस्थली अप्सरा की स्थिति का उल्लेख - अर्यमा पुलहोऽथौजाः प्रहेतिः पुञ्जिकस्थली। नारदः कच्छनीरश्च नयन्त्येते स्म माधवम्  ), मार्कण्डेय ६१.६/६४.६( पार नामक ब्रह्मचारी व पुञ्जिकस्थला/पुञ्जिकस्तना अप्सरा से उत्पन्न कन्या कलावती का वृत्तान्त ), वायु ५२.४( पुञ्जिकस्थली : मधु - माधव मास में सूर्य रथ पर स्थित २ अप्सराओं में से एक ), ६९.५०/२.८.५०( १० अप्सराओं में से एक ), विष्णु २.१०.५( माधव मास में पुञ्जिकस्थला अप्सरा की सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख ), वा.रामायण ४.६६.८( पुञ्जिकस्थला का अञ्जना रूप में अवतरण, केसरी - भार्या, वायु के संयोग से हनुमान के जन्म का वृत्तान्त ), ६.१३.११( रावण द्वारा पुञ्जिकस्थला अप्सरा से बलात्कार पर ब्रह्मा द्वारा रावण को शाप ) punjikasthalaa


      पुटक ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३४( नासा सौन्दर्य हेतु पुटक दान का निर्देश )


      पुण्डरीक/पुंडरीक अग्नि ५६.१३( ध्वज के एक देवता का नाम - कुमुदः कुमुदाक्षश्च पुण्डरीकोथ वामनः। शङ्कुकर्णः सर्व्वनेत्रः सुमुखः सुप्रतिष्ठितः ।। ), ९६.९( ध्वज के ८ दिशाओं में ८ देवताओं में से एक - कुमुदः कुमुदाक्षश्च पुण्डरीकोथ वामनः। शङ्कुकर्णः सर्वनेत्रः सुमुख सुप्रतिष्ठितः ।। ), कूर्म १.१३.१२( पुण्डरीकाक्षा : वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्री ), नारद २.७३( पुण्डरीक पुर का माहात्म्य : जैमिनि के समक्ष शिव द्वारा ताण्डव नृत्य का स्थान ),  गरुड १.११.४४(पुण्डरीकाक्ष विद्या द्वारा अर्घ्य – पाद्यादि देने का निर्देश - अर्घ्यपाद्यादि वै दद्यात्पुण्डरीकाक्षविद्यया ।।), २.४.११९/२.१४.११९(प्रेतकार्य में पुण्डरीकाक्ष अर्चना मन्त्र - अक्षयः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्षप्रदो भव ।), २.३०.१८ /२.४०.१८( प्रेतकार्य में पुण्डरीकाक्ष अर्चना मन्त्र - अनादिनिधनो देवः शङ्खचक्रगदाधरः ॥ अव्ययः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्षप्रदो भवेत् । ), पद्म २.३७.३५( पुण्डरीक यज्ञ में गज हनन का उल्लेख - पुंडरीके गजं हन्याद्गजमेधेऽथ कुंजरम्  ), ३.२६.७८( शुक्ल पक्ष की दशमी को पुण्डरीक तीर्थ में स्नान के माहात्म्य का उल्लेख ), ६.४७.६( नागों के राजा पुण्डरीक द्वारा ललित गन्धर्व को शाप का वृत्तान्त ), ६.८०.१५( विष्णु भक्त पुण्डरीक को नारद द्वारा आगम का उपदेश, पुण्डरीक द्वारा विष्णु की स्तुति ), ६.२१८.१८( पुण्डरीक द्वारा मामा मालव से धन की प्राप्ति, दुष्ट भ्राता भरत से पुष्कर माहात्म्य का श्रवण, माधव का पुण्डरीक के गृह में एक मास तक वास, पुष्कर स्नान से पुण्डरीक की मुक्ति ), ब्रह्म १.४७.५१(पुण्डरीकाक्ष की मूर्ति का स्वरूप - द्वितीयं पुण्डरीकाक्षं नीलजीमूतसंनिभम्। अतसीपुष्पसंकाशं पद्मपत्रायतेक्षमण्॥ ),  ब्रह्माण्ड १.२.११.३९( पुण्डरीका : ऊर्जा व वसिष्ठ - कन्या, प्राण - भार्या, द्युतिमान् – माता - ज्यायसी च सुता तेषां पुंडरीका सुमध्यमा ।। जननी सा द्युतिमतः प्राणस्य महिषी प्रियाः ।। ), १.२.१९.६८( क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक, द्विविद से परे पुण्डरीक व पुण्डरीक से परे दुन्दुभिस्वन की स्थिति का उल्लेख - द्विविदात्परतश्चापि पुंडरीको महागिरिः ।। पुंडरीकात्परश्चापि प्रोच्यते दुंदुभिस्वनः ।। ), २.३.७.३३५(रथन्तर साम द्वारा पुण्डरीक व कपिल गजों  की उत्पत्ति - कपिलः पुण्डरीकश्च सुनामानौ रथन्तरात् । जातौ नाम्ना श्रुतौ ताभ्यां सुप्रतीकप्रमर्दनौ ॥  ), २.३.१३.५६( पुण्डरीक तीर्थ में श्राद्ध से पुण्डरीक यज्ञ फल की प्राप्ति का उल्लेख - पुण्डरीके महातीर्थे पुण्डरीकसमं फलम् । ), २.३.६३.२०२( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश - नभसः पुण्डरीकस्तु क्षेम धन्वा ततः स्मृतः ॥ ), भविष्य १.६८.८(पुण्डरीक पुष्प से सौभाग्यप्राप्ति का उल्लेख - सौभाग्यं पुण्डरीकैश्च भजत्येव च शाश्वतम् । ), ३.३.१३.४१( पुण्डरीक नाग द्वारा शाप से नाग के शुक बनने का उल्लेख - स शुकः पन्नगः पूर्वं पुंडरीकेन शापितः ।। रेवत्यंशस्य कार्यं च कृत्वा मोक्षत्वमागतः ।। ), ३.३.११८( पुण्डरीक नाग द्वारा आह्लाद को नाग भूषण देना ), ३.४.१७.५१( दिग्गज, ध्रुव व दिशा? – पुत्र, आग्नेय दिशा में स्थिति - आग्नेय्यां दिशि वै तस्मात्पुंडरीको गजोऽभवत् ।।  ), ३.४.२३.३ (पुण्डरीक नाग की किलकिला पुरी का कथन - आग्नेय्यां दिशि विख्याता पुण्डरीकेण निर्मिता । पुरी किलकिला नाम तत्र राजा बभूव ह । ), भागवत ९.१२.१( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश ), मत्स्य १२.५३( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश ), २२.७७( पुण्डरीकपुर : श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक ), ५३.२७( कार्तिक में मार्कण्डेय पुराण दान से पुण्डरीक यज्ञ फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ७०.३४( पण्यस्त्री व्रत के संदर्भ में पुण्डरीकाक्ष की अर्चना विधि व अङ्गों में काम का विभिन्न नामों से  न्यास ), १२२.८२( क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक ), १२२.८८( पुण्डरीका : क्रौञ्च द्वीप की ७ गङ्गाओं में से एक ), वराह १२६.५९( कुब्जाम्रक तीर्थ के अन्तर्गत पुण्डरीक तीर्थ के चिह्न व माहात्म्य का कथन –-- रथचक्र समान कच्छप का चार - रथचक्रप्रमाणो वै चरते तत्र कच्छपः।। ), १६४.१९( गोवर्धन तीर्थ के अन्तर्गत पुण्डरीक कुण्ड में स्नान के माहात्म्य का कथन ), वामन ९०.६( महाम्भस तीर्थ में विष्णु का पुण्डरीक नाम से वास ), वायु २८.३४( पुण्डरीका : वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्री, पाण्डु - पत्नी, द्युतिमान् - माता ), ४९.६३( क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक ), ६९.७२/२.८.६९( कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ), ८८.२०२/२.२६.२०१( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश ), विष्णु २.४.५१( पुण्डरीकवान् : क्रौञ्च द्वीप के पर्वतों में से एक ), ४.४.१०६( नभ - पुत्र, क्षेमधन्वा - पिता, कुश वंश ), शिव ५.४२.११( भारद्वाज के ७ पुत्रों का जन्मान्तर में द्विज योनि में जन्म लेने पर एक छन्दोग/सामग पुत्र का नाम ), ७.१.१७.३३(ऊर्जा व वसिष्ठ से ७ पुत्र व पुण्डरीका पुत्री के जन्म का उल्लेख, पुत्रों के नाम), स्कन्द २.२.४.९१( दुराचारी पुण्डरीक व अम्बरीष की पुरुषोत्तम क्षेत्र में मुक्ति, भगवद् स्तुति - संस्मरंतौ स्वजातिं तौ पुंडरीकांबरीषकौ ।। निंदन्तौ दुश्चरित्रं स्वं परस्परमभाषताम् ।। ), २.४.३५.११( पुण्डरीकाक्ष विष्णु द्वारा सहस्र पद्मों से शिव अर्चन के संकल्प को नेत्र रूपी पद्म के अर्पण से पूरा करना - पुण्डरीकाक्ष इत्येवं मां वदंति मुनीश्वराः ।।  नेत्रं मे पद्मसदृशे पद्मार्थे त्वर्पयाम्यहम् ।। ), ५.३.२८.१३१( ज्वालेश्वर तीर्थ में पिण्डदान आदि से पौण्डरीक फल प्राप्ति का उल्लेख - तिलसंमिश्रतोयेन तर्पयेत्पितृदेवताः । पिण्डदानेन च पितॄन् पौण्डरीकफलं लभेत् ॥ ), ५.३.१०९.१३( चक्र तीर्थ में स्नान कर अच्युत की पूजा से पुण्डरीक यज्ञ फल प्राप्ति का उल्लेख - चक्रतीर्थे तु यः स्नात्वा पूजयेद्देवमच्युतम् । पुण्डरीकस्य यज्ञस्य फलमाप्नोति मानवः ॥ ), ६.२१३.९१( पुण्डरीकाक्ष से जठर की रक्षा की प्रार्थना - जठरं पुंडरीकाक्षः कटिं पातु गदाधरः ॥ जानुनोर्युगलं कृष्णः पादौ च धरणीधरः ॥ ), ७.१.१७.११३( पुण्डरीक पुष्प की महिमा – सौभाग्य व अर्थ प्राप्ति - सौभाग्यं पुंडरीकैस्तु भवत्यर्थश्च शाश्वतः ॥),  ७.१.७५.१०( नारद द्वारा पौण्डरीक यज्ञ करने का वृत्तान्त ), महाभारत आदि १५०.१७(पाण्डु – भार्या कुन्ती का पुण्डरीकान्तरप्रभा/पुण्डरीकोदरप्रभा विशेषण), १७२.८(पुण्डरीक सुगंधि से मुकुट का स्पर्श करने पर राजा संवरण के प्राण पुनः लौटने का उल्लेख - अस्पृशन्मुकुटं राज्ञः पुण्डरीकसुगन्धिना।। ततः प्रत्यागतप्राणस्तद्बलं बलवान्नृपः।),  १९६.९(स्त्री के अश्रुबिन्दुओं के स्वर्ण पुण्डरीक बनने का कथन), वन ८३.६९(शुक्ल दशमी को पुण्डरीक तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य - शुक्लपक्षे दशम्यां च पुण्डरीकं समाविशेत्। तत्र स्नात्वा नरो राजन्पौण्डरीकफलं लभेत् ।।), ८४.११३(कम्पना नदी में स्नान से पुण्डरीक प्राप्ति का उल्लेख - कम्पनां तु समासद्य नदीं सिद्धनिवेषिताम्। पुण्डरीकमवाप्नोति स्वर्गलोकं च गच्छति ।।),  ८४.११९(तीर्थकोटि में अभिषेक से पुण्डरीक प्राप्ति का उल्लेख - तत्राभिषेकं कुर्वीत तीर्थकोट्यां युधिष्ठिर ।। पुण्डरीकमवाप्नोति विष्णुलोकं च गच्छति।), ८६.४(कृष्ण व अर्जुन का पुण्डरीकाक्ष – द्वय के रूप में उल्लेख - त्रियुगौ पुण्डरीकाक्षौ वासुदेवधनंजयौ। ), उद्योग ७०.६( पुण्डरीकाक्ष की निरुक्ति – नित्य अक्षय अक्षर पुण्डरीक धाम के भाव वाला), अनुशासन २५.४३(कृत्तिका उर्वशी योग में लौहित्य सरोवर में स्नान से पुण्डरीक फल प्राप्ति का उल्लेख - उर्वशीं कृत्तिकायोगे गत्वा चैव समाहितः। लौहित्ये विधिवत्स्नात्वा पुण्डरीकफलं लभेत्।।), २५.५५(ब्रह्मसर में स्नान से पुण्डरीक प्राप्ति का उल्लेख - तथा ब्रह्मसरो गत्वा धर्मारण्योपशोभितम्। पुण्डरीकमवाप्नोति उपस्पृश्य नरः शुचिः।। ), १०२.५४(रथन्तर व बृहत् दोनों साम गाये जाने वाले, जहां वेदी पर पुण्डरीक फैलाये जाते हैं, उस याग का कथन),  लक्ष्मीनारायण १.२६४.४८( पुरुषोत्तम मास शुक्ल धामदा एकादशी के माहात्म्य के संदर्भ में राजा पुण्डरीक द्वारा रानी कुमुद्वती को धामदा एकादशी के फल का अर्पण करने से रानी के कल्याण का वृत्तान्त ), २.२८.२०( पुण्डरीक जाति के नागों का वाटिकाकार बनना - पुण्डीकास्तथा नागा भवन्ति वाटिकाकराः ।। ), २.२३९.२( पौण्डरीक राजा द्वारा कार्तिक एकादशी व्रत से हंस रूप धारी श्रीहरि के दर्शन व मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ), ३.१६.३६( १९वें वत्सर में लक्ष्मी का पुण्डरीक - पुत्री पुण्डरीकश्री के रूप में जन्म लेकर श्रीवार्धि नारायण की पत्नी बनने का वृत्तान्त ), द्र.  पौण्डरीक, पौण्ड्रक pundareeka/ pundarika

       Comment on Pundarika


      पुण्डरीका ब्रह्माण्ड १.२.१८.७०( नील पर्वत पर पयोद नामक सर से नि:सृत २ नदियों में से एक ), २.३.७.५( २४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), मत्स्य १२२.८८( क्रौञ्च द्वीप की ७ नदियों में से एक ), वायु २८.३४( पुण्डरीका : वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्री, पाण्डु - पत्नी, पुत्रों के नाम ), ४७.६७( नील पर्वत पर पयोद नामक सर से नि:सृत २ नदियों में से एक ), ४९.६९( क्रौञ्च द्वीप की ७ नदियों में से एक ), ६९.७/२.८.७( २४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), विष्णु २.४.५५( क्रौञ्च द्वीप की ७ नदियों में से एक ) pundareekaa/ pundarikaa


      पुण्ड्र गरुड १.५५.१२( पूर्व - दक्षिण के देशों में से एक ), ३.२९.४८(पुण्ड्र धारण में केशवादि के स्मरण का निर्देश), गर्ग ७.१५.२०( कामरूप देश - अधिपति, प्रद्युम्न से पराजय ), पद्म ४.२१.१३( अच्छिद्र ऊर्ध्वपुण्ड्र की निन्दा ), ६.१३३.१५( पाटल क्षेत्र में पुण्ड्रवर्धन तीर्थ की स्थिति का उल्लेख ), ६.२२५.१( ऊर्ध्वपुण्ड्र धारण विधि ), ब्रह्माण्ड १.२.२२.५३( पुण्ड्र नगर के तुषारजनित वर्षा का स्थान होने का उल्लेख ), १.२.३५.२९( याज्ञवल्क्य के वाजी संज्ञक १५ शिष्यों में से एक ), २.३.७.२३७( प्रधान वानरों में से एक ), २.३.७१.१८६( सुगन्धी व वसुदेव के २ पुत्रों में से एक ), ३.४.२१.७९( पुण्ड्रकेतु : भण्ड असुर के सेनानी पुत्रों में से एक ),३.४.२५.२८( पुण्ड्रकेतु : भण्डासुर के १५ सेनापतियों में से एक ), ३.४.२५.९७( भण्डासुर - सेनानी, त्वरिता देवी द्वारा वध ), भागवत ९.२३.५( दीर्घतमा से उत्पन्न बलि के क्षेत्रज पुत्रों में से एक ), मत्स्य १३.३५( पुण्ड्रवर्धन में सती देवी की पाटला नाम से ख्याति का उल्लेख ), ४६.२१( वसुदेव व सुतनु?/रथराजी? - पुत्र ), ४८.२९( बलि के क्षेत्रज पुत्रों में से एक ), वायु ५१.४८( हेमकूट शैल पर नगर का नाम ), ९६.१८३/२.३४.१८३( वसुदेव के २ पुत्रों में से एक, राजा ), ९९.८५/ २.३७.८५( दीर्घतमा से उत्पन्न बलि के क्षेत्रज पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.२४.६४( देवरक्षित द्वारा रक्षित देशों में से एक ), स्कन्द ५.३.१९८.७३( पुण्ड्रवर्धन तीर्थ में देवी की पाटला नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.११४+( पुण्ड्र धारण की महिमा व विधि ), २.८०.१९( राजा बलेशवर्मा द्वारा अतिथि हेतु पुत्र पुण्ड्रक का हृदय भोजन रूप में देने का वृत्तान्त ), २.८१.५७( श्रीहरि द्वारा विष्णु रूपी पुण्ड्रक को पुण्ड्रक नगर में निवास का निर्देश), ३.६९.८९( भक्त द्वारा धारणीय १२ ऊर्ध्वपुण्ड्रों का महत्त्व ), ३.२०२.५( निम्बवटिका नगरी के शासक पुण्ड्रवर्मा द्वारा व्रतर्दि नामक गायक भक्त की संगति से प्रजासहित वैष्णवत्व व मोक्ष की प्राप्ति का वृत्तान्त ), कथासरित् १२.१९.२७( मन्त्री दीर्घदर्शी द्वारा पुण्ड्र नगरी में निधिदत्त वैश्य का आतिथ्य स्वीकार करने का वृत्तान्त ), द्र. पौण्ड्रक, त्रिपुण्ड्र pundra


      पुण्य देवीभागवत ९.१.१०७( प्रतिष्ठा - पति ), पद्म ५.९६.४७( यज्ञदत्त ब्राह्मण द्वारा यम से स्वर्ग प्राप्ति के लिए अपेक्षित पुण्य के विषय में पृच्छा ), ब्रह्माण्ड १.२.११.३८( पुण्या : क्रतु व सन्नति की २ पुत्रियों में से एक, पर्वश - भार्या ), मत्स्य ४९.६( पुण्येयु : भद्राश्व व धृता अप्सरा के १० पुत्रों में से एक ), ५०.३०( पुण्यवान् - पुत्र, सत्यधृति - पिता, दिवोदास वंश ), वराह १४५.६९( शालग्राम क्षेत्र में पुण्यनदी में स्नान के माहात्म्य का कथन ), वायु २८.३०( पुण्या : क्रतु व सन्तति की २ पुत्रियों में से एक, पर्वस - भार्या ), स्कन्द २.४.३०.४( व्यवहार में संसर्ग से प्राप्त पाप - पुण्यों का वर्णन ), ५.१.३१.८३( पुण्येश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य : गाणपत्य प्राप्ति ), योगवासिष्ठ ५.१९द्द ( दीर्घतपा - पुत्र ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.५०( वासना सागर से पार करने वाले जीव रथ में पुण्य के सारथी होने का उल्लेख ), ३.१६.५८( पितरों के पुण्य वाहन का उल्लेख - ऋषयश्चासनस्थाश्च पितरः पुण्यवाहनाः ), ३.१८.१३( सवृत्ति गृहदान से पुण्यदान व पुण्यदान से धर्मकर्म प्रदान के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ३.१३१.६०( पुण्यों के दान का महत्त्व ), ४.२५.६१( श्रीकृष्ण के पितरों के पुण्य संचय में वास का उल्लेख ), कथासरित् ३.१.९७( राजा पुण्यसेन के मन्त्रियों द्वारा राजा की मृत्यु के मिथ्या समाचार द्वारा राज्य की रक्षा का वृत्तान्त ) punya


      पुण्यक ब्रह्मवैवर्त्त ३.४( पुण्यक व्रत विधान का वर्णन ), हरिवंश २.७६+( सत्यभामा द्वारा पुण्यक व्रत का चीर्णन ), महाभारत आदि ३.९७( आदि धौम्य गुरु की पत्नी द्वारा पुण्यक व्रत चीर्णन का कथन व उसके लिए कुण्डलों की आवश्यकता का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.९५ +( माघ शुक्ल त्रयोदशी को आरम्भ होने वाले पुण्य व्रत की विधि, हरि - पूजा ), १.४५०.१०( पार्वती द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु पुण्यक व्रत के चीर्णन का वर्णन ) punyaka


      पुण्यकीर्ति स्कन्द ४.२.५८.८०( दिवोदास का काशी से उच्चाटन करने हेतु काशी में विष्णु द्वारा पुण्यकीर्ति नामक बौद्ध का रूप धारण करने का वृत्तान्त ),


      पुण्यजन भागवत २.३.८( रक्षा की कामना पूर्ति हेतु पुण्यजनों की अर्चना का निर्देश ), वायु ८८.१/२.२६.१( रैवत ककुद्मी के ब्रह्मलोक गमन पर पुण्यजन राक्षसों द्वारा कुशस्थली को रौंदने का कथन ), विष्णु ४.२.१( रैवत ककुद्मी की अनुपस्थिति में पुण्यजन संज्ञक राक्षसों द्वारा कुशस्थली पर अधिकार का उल्लेख ) punyajana


      पुण्यजनी ब्रह्माण्ड २.३.७.१२१( क्रतुस्थला - पुत्री, मणिभद्र गुह्यक - पत्नी, पुत्रों के नाम ), वायु ६९.१५३/२.८.१४८( मणिभद्र - पत्नी, पुत्रों व कन्याओं के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९७.१२( ककुत्स्थ - पुत्री, मणिचर यक्ष की भार्या, पुण्यजन यक्षों आदि की माता ) punyajanee


      पुण्यनिधि स्कन्द ३.१.५०( विन्ध्यावली - पति राजा पुण्यनिधि द्वारा लक्ष्मी की कन्या रूप में प्राप्ति, विप्र रूप धारी विष्णु का बन्धन आदि ), लक्ष्मीनारायण १.४३८( लक्ष्मी द्वारा राजा पुण्यनिधि की परीक्षा हेतु राजा की कन्या बनना, विप्र रूप धारी विष्णु द्वारा कन्या के धर्षण पर राजा द्वारा विप्र का बन्धन, ज्ञान प्राप्त होने पर विष्णु व लक्ष्मी की स्तुति ) punyanidhi


      पुण्यवती लक्ष्मीनारायण ३.३४.७५( सती पुण्यवती द्वारा अपत्यहीन रहने पर ब्रह्मा को अपत्यहीनता का शाप, ब्रह्मा का सृष्टिविहीन होना, शाप निवृत्ति हेतु पुण्यनारायण का प्राकट्य ),


      पुण्यरात लक्ष्मीनारायण ३.१८( पुण्यरात विप्र व उसकी पत्नी राधनिका द्वारा भूमि के सब प्राणियों की मुक्ति हेतु तप, कृष्ण का आगमन ), ३.१९.१( पुण्यरात विप्र के तप के कारण सब प्राणियों को तारने वाले कृपानारायण का प्राकट्य ) punyaraata


      पुण्यशील गणेश १.५६.१०( पुण्यशीला : शूरसेन - पत्नी ), पद्म ६.१०९.३३( विष्णुदास विप्र के विष्णु - पार्षद पुण्यशील बनने का वृत्तान्त : चाण्डाल रूप धारी विष्णु की सेवा ), स्कन्द २.१.२२.२४( आकाशगङ्गा में स्नान से पुण्यशील की गर्दभ मुख विकृति से मुक्ति ), २.४.२७.३२( विष्णुदास विप्र व चोल नृप के विष्णु पार्षद पुण्यशील व सुशील बनने का वृत्तान्त ), २.४.२५५.९( २ विष्णु - पार्षदों में से एक ), ४.१.७.१३४( शिवशर्मा द्विज द्वारा मृत्यु पश्चात् विष्णु के गणों पुण्यशील व सुशील के दर्शन ), ४.१.८.६( पुण्यशील व सुशील द्वारा शिवशर्मा को विभिन्न लोकों का परिचय देना ), लक्ष्मीनारायण १.४२५.९६( विष्णुदास विप्र व चौल राजा में भक्ति की प्रतिस्पर्द्धा, विप्र के पुण्यशील व नृप के सुशील नामक विष्णु पार्षद - द्वय बनने का वृत्तान्त ) punyasheela/ punyashila


      पुण्यश्रवा पद्म ५.७२.१५२( तप से पुण्यश्रवा का कृष्ण - पत्नी लवङ्गा के रूप में जन्म ) punyashravaa


      पुण्यसेन कथासरित् ३.१.९७( राजा पुण्यसेन के मन्त्रियों द्वारा राजा की मृत्यु के मिथ्या समाचार द्वारा राज्य की रक्षा का वृत्तान्त ), १२.१.२५( राजा पुण्यसेन के अमात्य हरिस्वामी की कन्या सोमप्रभा के विवाह का वृत्तान्त ) punyasena


      पुण्योदा वायु ४२.३( सोम से नि:सृत पुण्योदा नदी की प्रशंसा ), ४४.२१( केतुमाल देश की नदियों में से एक )


      पुत्तलिका अग्नि १३३.१६( शत्रु की पुत्तलिका द्वारा शत्रु का नाश ), गरुड २.३०.४४/ २.४०.४४( अपमृत्यु की स्थिति में शरीर रूपी पुत्तलिका निर्माण की विधि ), नारद १.९०.१०९( शत्रु नाश हेतु पुत्तली निर्माण व होम विधि ), लक्ष्मीनारायण १.७७( नारायण बलि हेतु मृतक की पुत्तलिका का निर्माण ), २.७७.५३( ताम्र व आयस पुत्तलिका दान का फल : गणिका संगज पाप की निवृत्ति ), २.७७.५४( आयस पुत्तली दान से ६ ईतियों से निवृत्ति का उल्लेख ) puttalikaa


      पुत्र अग्नि २५६.१५( १२ प्रकार के पुत्रों का वर्णन ), ३०२.१७( पुत्र प्राप्ति हेतु ओषधि योग ), गणेश २.७३.३९( शौनक द्वारा राजा चक्रपाणि को पुत्र प्राप्ति हेतु सौर व्रत का उपदेश ), गरुड २.१५.२९( क्षेत्रज /इतर पुत्रों द्वारा पार्वण श्राद्ध का निषेध ), २.२५.३५(औरस पुत्र द्वारा पार्वण तथा अन्य पुत्रों द्वारा एकोद्दिष्ट श्राद्ध का विधान), देवीभागवत ०.२.४०( पुत्र प्राप्ति हेतु देवीभागवत पुराण श्रवण का महत्त्व ; नारद - वसुदेव संवाद ), १.४.४( कलविङ्क पक्षियों को देखकर व्यास को पुत्र प्राप्ति की तृष्णा ), ६.१३.७( १०विध पुत्रों का उल्लेख ; हरिश्चन्द्र द्वारा क्रीत पुत्र शुन:शेप की बलि का वृत्तान्त ), ७.१६.१५( वही), नारद १.९०.७२( कह्लार द्वारा देवी पूजा से पुत्र सिद्धि का उल्लेख ), १.११६.६५( माघ कृष्ण सप्तमी को आदित्य की अर्चना से आदित्य की पुत्र रूप में प्राप्ति का उल्लेख ), १.१२०.६४( पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि ), पद्म २.११( सुमना - सोमशर्मा संवाद में पुत्रों के प्रकारों का वर्णन ), २.११.३२( न्यास हरण पर न्यास - स्वामी द्वारा पुत्र रूप में उत्पत्न होकर धन व्यय कराने का कथन ), २.१२.१( ऋणदाता द्वारा पुत्र रूप में उत्पन्न होकर धन व्यय कराने का वर्णन ), २.१२.१६( प्रिय व उदासीन पुत्रों के लक्षणों का कथन ), २.१२.३८( सोमशर्मा - पत्नी सुमना द्वारा पुत्र की प्रशंसा ), ४.५.३( अपुत्रवान् बनाने वाले तथा पुत्रवान् बनाने वाले कर्मों का वर्णन ), ५.८७.६८( सुमना द्वारा पति को प्रोक्त ५ प्रकार के पुत्रों के लक्षण ), ब्रह्म १.११३.७६( पुत्र प्राप्ति हेतु मैथुन के लिए युग्म - अयुग्म तिथियों का विचार ), २.५४.१२०( पुत्र तीर्थ का वर्णन , मरुत उत्पत्ति कथा ; दिति - गङ्गा सङ्गम की पुत्र तीर्थ के रूप में ख्याति के कारण का वर्णन ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२.२४( पार्वती द्वारा शिव को अपुत्रवान् होने के दु: का निवेदन ), ३.३.३( शिव द्वारा पार्वती को पुत्र हेतु पुण्यक व्रत चीर्णन का सुझाव, पुण्यक व्रत की श्रेष्ठता का वर्णन ), ३.४( पुत्र प्राप्ति हेतु पुण्यक व्रत की विधि का वर्णन ), ३.४.६३( पुत्र हेतु कूष्माण्ड आदि फल दान का निर्देश ), ३.६द्द ( पार्वती द्वारा चीर्णित पुण्यक व्रत की विधि का विस्तार से वर्णन ), ३.८.४९( ४ प्रकार के पुत्रों में से वीर्यज पुत्र द्वारा धन भागी होने का कथन ), ४.९३.७७( सौ क्रतुओं से पुत्र के और सौ पुत्रों से सत्य के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३८.३२( वैवस्वत मनु के ९ पुत्रों के नाम ), २.३.३.६९( सुरभि व कश्यप के ११ रुद्र पुत्रों के नाम ), २.३.६.२८( मय - पुत्र ), २.३.६.३०( अनायुषा - पुत्र ), २.३.६.३८( क्रोधा - पुत्र ), २.३.७.३१( कद्रू- पुत्र ), २.३.७.३७( खशा - पुत्र ), भविष्य ३.२.१९( राजा द्वारा द्विज के मध्यम पुत्र की राक्षस हेतु बलि दिए जाने पर द्विज - पुत्र के हास्य व रोदन के कारण का कथन ), मत्स्य ६८.१४( मृतवत्सा स्त्री के अभिषेक हेतु सप्तमी स्नपन व्रत ), १९६.३९( त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), मार्कण्डेय ५०.३३/४७.३३( मृत्यु के १४ पुत्रों की दस इन्द्रियों, राग, क्रोध आदि में स्थिति का कथन ), ५१.१/४८.१( दुःसह व निर्मार्ष्टि के ८ पुत्रों के नाम ), १२०.८/११७.८( अपुत्रवान् मृग का खनीनेत्र से संवाद ), वराह ४८.२२( पुत्र प्राप्ति हेतु बल व कृष्ण के यजन का निर्देश ), ६३( भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को पुत्र प्राप्ति व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य का कथन ), १९३.२७( नचिकेता के संदर्भ में पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र के महत्त्व का कथन ), वामन १२.४७( पुत्र के स्पर्शवतों में वरिष्ठ होने का उल्लेख ), ६१.२८( पापों के नाश में शिष्य की अपेक्षा पुत्र की श्रेष्ठता का कथन ; औरस आदि पुत्रों के ६ प्रकारों का कथन ), वायु २८.३६( वसिष्ठ व ऊर्जा के सप्तर्षि संज्ञक पुत्रों में से एक ), ३१.१८( स्वायम्भुव मनु के १० पुत्रों में से एक ), ९२.१( पुत्रधर्मा : स्वर्भानु - कन्या प्रभा से उत्पन्न ५ पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३३०.१( पुत्रों के १२ प्रकार व उनके लक्षण ), ३.७३( कृष्ण द्वारा पुत्र की महिमा का वर्णन ), शिव ५.१२.१८( रोपित वृक्षों के पुत्र बनने का उल्लेख ), ५.४०.४७( देवों द्वारा पितर रूपी पुत्रों से पृच्छा, पितरों द्वारा देवों को पुत्र बनाना ), स्कन्द ३.१.२६.३९(पुत्र नामक राजर्षि के पुत्र जानश्रुति की पौत्रायण संज्ञा), ५.३.१०३.११( पुत्र, पौत्र व प्रपौत्र द्वारा क्रमश: नरक से उद्धार, परम गति व शाश्वत ब्रह्म की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१०३.११५( गोविन्द विप्र द्वारा काष्ठ भार क्षेपण से पुत्र की मृत्यु पर गोविन्द का शोक, पुत्र के महत्त्व का कथन ), ५.३.१६६.३( सिद्धेश्वरी देवी की कृपा से पुत्र प्राप्ति का कथन ), ६.५९.४( पुत्रों के प्रकार, महिमा, विदुर द्वारा अश्वत्थ की पुत्र रूप में प्रतिष्ठा ), ६.१२८.२४( सुपुत्रद तीर्थ का वर्णन, बृहद्बल राजा की भार्याओं का स्नान से ऋतुमती होना ), ६.१४७.६२( पुत्र द्वारा नरक से तारने के कथन पर व्यास - पुत्र शुक द्वारा प्रश्नचिह्न ), हरिवंश २.७९.४२( नारियों के पुत्रफला होने का उल्लेख ; नारियों द्वारा सपुत्र? करकों के दान के निर्देश ), महाभारत आदि ११९.३२( पुत्रों के प्रकारों का कथन ), वन ३१३.५६( प्रसवतों के लिए पुत्र के श्रेष्ठ होने का उल्लेख, युधिष्ठिर - यक्ष संवाद ), ३१३.७२( पुत्र के मनुष्य की आत्मा होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), अनुशासन ४७.१०( ब्राह्मण की ४ वर्णों की स्त्रियों से उत्पन्न पुत्रों के दायभाग का प्रश्न व उत्तर ), लक्ष्मीनारायण १.३६( पुत्र उत्पत्ति में ऋण के हेतु होने, वीर्य निषेक काल की स्थिति के पुत्र के आचार - विचार पर प्रभाव तथा पुत्र प्राप्ति हेतु निषेक काल का वर्णन ), १.९४.१९( शिव द्वारा श्रेष्ठतम पुत्र की प्राप्ति के लिए पार्वती को पुण्यक व्रत का उपदेश ), १.९६( पुत्र प्राप्ति के महत्त्व का कथन ; पार्वती द्वारा पुण्यक व्रत करने से कार्तिकेय व गणेश पुत्रों की प्राप्ति का वर्णन ), १.९७( पार्वती के पुत्र कार्तिकेय के जन्म का वृत्तान्त ), १.१०१.३५( ५ प्रकार के पुत्रों का कथन ), १.१४८.१( श्रावण शुक्ल त्रयोदशी को पुत्र प्राप्ति हेतु पयोव्रत विधि का वर्णन ), १.२५५.७( श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी के व्रत से पुरूरवा को पुत्रों की प्राप्ति का वृत्तान्त ; पुरूरवा द्वारा अपुत्रवान् होने के कारण का वर्णन ; पूर्व जन्म में वैश्य वर्धमान द्वारा गौ का ताडन आदि, गौ के शाप से अपुत्रवान् होना ), १.३०३.४८( पुत्र - व स्वर्ग - प्रद अधिमास एकादशी व्रत विधि का वर्णन ), १.३०५.२५( ज्ञानियों व योगियों के लिए ज्ञान के पुत्र रूप होने का उल्लेख ), २.४७.६८( पुत्रों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन ), २.७८.३९( मन का पुत्र रूप में उल्लेख ), २.२२६.६४( स्वेद से उत्पन्न क्रिमि व धातु से उत्पन्न पुत्र में साम्य का उल्लेख ), ३.४०.५( गृह धर्म के अन्तर्गत गृह को धामाक्षर, पुरुषोत्तम को पति, पञ्चदेवों को पुत्र तथा क्रियाओं को पूजन मानने का उल्लेख ), ३.५३.५६( मासिक धर्म के पश्चात् दिन की संख्या अनुसार पुत्र या पुत्री उत्पन्न करने का कथन ), ३.१०६.७( आत्मा सहित १२ प्रकार के पुत्रों का कथन ), कथासरित् १०.५.२८९( स्त्री द्वारा द्वितीय पुत्र पाने की लालसा से प्रथम पुत्र की बलि देने की चेष्टा का कथन ), द्र. ऋषिपुत्र, त्रिपुत्रक, पाटलिपुत्र, हव्यपुत्र, बहुपुत्र putra


      पुत्रक वायु ९९.२१८/२.३७.२१३( कुरु के पुत्रों में से एक ), कथासरित् १.३.२१( पुत्रक द्वारा शिव कृपा से स्वर्ण प्राप्त करने, पितृव्यों द्वारा पुत्रक के वध का प्रयत्न, पुत्रक द्वारा राक्षसों से दिव्य पादुका, यष्टि व पात्र प्राप्त करने का वृत्तान्त ) putraka


      पुत्री भागवत ३.४.१८.२७( ब्रह्मा द्वारा स्वसुता को पत्नी? रूप में स्वीकार करने से श्रेष्ठता प्राप्ति का उल्लेख ), ४.१.२( मनु व शतरूपा - कन्या आकूति का रुचि प्रजापति के साथ पुत्रिका धर्म के अनुसार विवाह होने का कथन ), वायु ६९.५/२.८.५( पुत्रिका : मौनेया अप्सराओं में से एक ), ७९.७८/२.१७.७८( पुत्रिका - पति के श्राद्ध के अयोग्य होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३१७.५( माता हेतु पुत्री के महत्त्व का वर्णन ), २.१००.७३( चक्रवाकी रूप धारी उर्वशी व माता लक्ष्मी के संवाद में माता के लिए पुत्री के महत्त्व तथा पुत्री के लिए माता के महत्त्व का वर्णन ), ३.१२२.६८( फाल्गुन कृष्ण पञ्चमी को पुत्री प्राप्ति हेतु पुत्री व्रत की विधि व महत्त्व ) putree/ putri


      पुत्रेष्टि देवीभागवत ३.१०.२०( देवदत्त द्विज की पुत्रेष्टि के ऋत्विजों के नाम, गोभिल द्वारा देवदत्त को मूर्ख पुत्र प्राप्त होने का शाप, उतथ्य नामक मूर्ख व विद्वान पुत्र के उत्पन्न होने का वृत्तान्त ), मत्स्य ७.६( दिति के संदर्भ में पुत्र प्राप्ति हेतु मदन द्वादशी व्रत की विधि ), स्कन्द २.८.७.२( दशरथ द्वारा क्षीरोदक तीर्थ में पुत्रेष्टि यज्ञ करने का कथन ), कथासरित् १२.७.४३( पुरोहित यजु:स्वामी द्वारा राजा हेतु पुत्रेष्टि सम्पन्न करने का उल्लेख ) putreshti


      पुनर्वसु ब्रह्माण्ड २.३.१८.४( पुनर्वसु में श्राद्ध से पुत्रवान् होने का उल्लेख ), २.३.७१.११९( अभिजित् द्वारा अश्वमेध/अतिरात्र के अनुष्ठान से पुनर्वसु पुत्र की प्राप्ति का कथन), भागवत ५.२३.६( पुनर्वसु नक्षत्र की शिशुमार की दक्षिण श्रोणी में स्थिति का उल्लेख ), ९.२४.२०( अरिद्योत/अविद्योत - पुत्र, आहुक व आहुकी - पिता, अन्धक वंश ), मत्स्य ४४.६४( दरदुन्दुभि - पुत्र, अतिरात्र से उत्पत्ति, चरित्र प्रशंसा, आहुक व आहुकी - पिता ), वायु ६६.४८/२.५.४८( ऐरावती वीथि के नक्षत्रों में से एक ), ८२.४/२.२०.४( पुनर्वसु में श्राद्ध से पुत्र, धन आदि की प्राप्ति का कथन ), ९६.११८/२.३४.११८( अभिजित् द्वारा अश्वमेध के अनुष्ठान से पुनर्वसु पुत्र प्राप्ति का कथन, आहुक व आहुकी - पिता ), विष्णु ४.१४.१४( अभिजित् - पुत्र, आहुक व आहुकी - पिता ), हरिवंश १.३७.१९(तित्तिरि – पुत्र, अभिजित् - पिता), लक्ष्मीनारायण २.१७५.७(श्रवणादित्रिभं स्वातिः पुनर्वसुचरं चलम् ।

      तत्र वाजिगजारोहो वाटिकारचनादिकम्), २.१७६.२३(शुक्रे तु कृत्तिकाः शनौ पुनर्वसुर्यदा स च। छत्रयोगः स वै प्रोक्तः राजसन्मानदः सदा), २.१७६.५३(पुनर्वसुर्मंगले च पूर्वाफाल्गुनिका बुधे । स्वातिर्गुरौ कवौ मूलं श्रवणं तु शनौ तथा ।। स्थिरयोगो महारंभकरः सर्वविवर्धनः । ), ३.१५३.४(पुनर्वसुः सूर्यदेवा पुष्यं तु गुरुदैवतम् ।), ३.१५३.२१(रेवती चाश्विनी चित्रा स्वाती हस्ता पुनर्वसुः । अनुराधा मृगो ज्येष्ठा ह्येताः पार्श्वमुखा मताः।।), ।।२१ ।।punarvasu


      पुन्नाग पद्म ६.१८४.१८( पुन्नागकानन में गीता के दशमअध्याय का माहात्म्य - कदाचिदासं कैलासं पार्श्वे पुन्नागकानने। रणत्खेचरसुश्रोणि पूर्णस्तबककानने॥),  भविष्य ४.७५.३४( प्रेत द्वारा पुन्नाग वृक्ष से प्राप्त जलधारा से अतिथि को तृप्त करना - पुन्नागवृक्षात्करको वारिधारामनोरमः ।। दध्योदनसमायुक्तो वर्धमानेन संयुतः ।। ), स्कन्द २.२.४४.५( माघ पूर्णिमा? को विष्णु की पुन्नाग पुष्प द्वारा अर्चना का निर्देश - उत्पलं चैव वासंती कुंदं पुन्नागकं तथा।। एतानि क्रमशो दद्यात्कुसुमानि हरेर्मुदा ।। ), ६.२५२.२१( चातुर्मास में यक्षों की पुन्नाग वृक्ष में स्थिति का उल्लेख - गन्धर्वा मलयं वृक्षमगुरुं गणनायकः ॥ समुद्रा वेतसं वृक्षं यक्षा पुन्नागमेव च ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८३( वृक्ष, यक्षों का रूप - गन्धर्वा मलयवृक्षा अगुरुश्च गणाधिपः ।
      समुद्रा वैतसवृक्षा यक्षाः पुन्नागभूरुहाः ।। ), रघुवंश ४.५७(कटेषु करिणां पेतुः पुंनागेभ्यः शिलीमुखाः ॥ ), द्र. पन्नग punnaaga


      पुर कूर्म १.४६( ब्रह्मा की पुरी के परित: अग्नि आदि की पुरी ), भविष्य ४.१४७( काञ्चन पुरी व्रत, पाप शमन हेतु काञ्चन पुरी व्रत, विष्णु व लक्ष्मी के पुर का निर्माण ), लिङ्ग १.७०.१७( पुर की निरुक्ति : अनुग्रह द्वारा पूरण आदि ), वराह ५२.५( पशुपाल राजा के पुत्र बने पापों द्वारा सृष्ट नवद्वार, एकस्तम्भ, चतुष्पथ वाले पुर का कथन ), वामन ७१.१५( बाणासुर - पुत्र, इन्द्र द्वारा वध ), वायु ८.११४( प्रशस्त - अप्रशस्त पुर के लक्षणों का कथन ), महाभारत शान्ति २५४.९( शरीर रूपी पुर में मन व बुद्धि के कार्यों का कथन ), द्र. तेज:पुर, त्रिपुर, हरपुर pura


      पुरजित् ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८३( भण्डासुर के पुत्रों व सेनापतियों में से एक ), ३.४.२६.४८( पुराजित् : भण्डासुर के पुत्र सेनापतियों में से एक ), भागवत १०.६१.११( पुरुजित् : जाम्बवती व कृष्ण के पुत्रों में से एक ) purajit


      पुरञ्जन ब्रह्माण्ड १.२.२०.२७( पुरञ्जन दैत्य के पुर की तृतीय तल/पाताल में स्थिति का उल्लेख ), भागवत ४.२५+ ( नारद प्रोक्त पुरञ्जन राजा का आख्यान : पुरञ्जन के नगर का वर्णन, नगर पर चण्डवेग का आक्रमण, पुरञ्जन द्वारा स्त्री योनि की प्राप्ति, अविज्ञात के उपदेश से पुरञ्जन की मुक्ति ), ४.२८( कालकन्या का आलिङ्गन करने से पुरञ्जन का विनाश ) puranjana


      पुरञ्जय देवीभागवत ७.९.२८( शशाद - पुत्र द्वारा पुरञ्जय व ककुत्स्थ नाम प्राप्ति के कारण का कथन, वंश का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१५( सृञ्जय - पुत्र, महामना - पिता, प्रशंसा ), भागवत ९.६.१२( विकुक्षि - पुत्र, इन्द्रवाह और ककुत्स्थ उपनाम, दैत्यों से युद्ध के लिए इन्द्र को वाहन बनाना ), १२.१.२( मन्त्री शुनक द्वारा राजा पुरञ्जय की हत्या करने का उल्लेख, बृहद्रथ वंश का अन्तिम नृप ), १२.१.३६( मागधों के राजा विश्वस्फूर्जि पुरञ्जय द्वारा अब्रह्म/शूद्र प्रजा को प्रतिष्ठित करने का कथन ), मत्स्य ४८.१२( सञ्जय - पुत्र, जनमेजय - पिता, अनु वंश ), ५०.८४( मेधावी - पुत्र, उर्व - पिता, अधिसोमकृष्ण वंश ), वायु ९९.३६३/२.३७.३६०( शेषनाग - पुत्र स्वरपुरञ्जय भोगी नृप का उल्लेख ), विष्णु ४.२.२०( शशाद/विकुक्षि - पुत्र, ककुत्स्थ नाम प्राप्ति की कथा ), ४.१८.४( सृञ्जय - पुत्र, जनमेजय - पिता, अनु वंश ), ४.१९.५७( सुशान्ति - पुत्र, ऋक्ष - पिता, अजमीढ वंश ), ४.२४.५६( विन्ध्यशक्ति - पुत्र, रामचन्द्र - पिता, भविष्य के नृपों में से एक ), स्कन्द ४.१.३९.३५( परपुरञ्जय : राजा दिवोदास का नाम ), लक्ष्मीनारायण ४.९२.६२( वर्धमान नगर के राजा पुरञ्जय द्वारा स्वप्न में नरक यातनाओं का भोग व कृष्ण की शरण से मुक्ति का वृत्तान्त puranjaya


      पुरन्दर गरुड ३.२८.१७(१४ इन्द्रों में सप्तम, निरुक्ति), ३.२८.२२(वालि रूप में अवतरण), ब्रह्माण्ड १.२.३६.२०५( देवों द्वारा पुरन्दर के नेतृत्व में पृथ्वी दोहन का उल्लेख ), भागवत ८.१३.४( वैवस्वत मन्वन्तर के देवों के गण के पुरन्दर नामक इन्द्र का उल्लेख ), ९.८.८( पुरन्दर द्वारा सगर के यज्ञीय अश्व के हरण का उल्लेख ), १०.७७.३६( पुरन्दर द्वारा वज्र से वृद्वा के वध का उल्लेख ), १२.८.१५( सप्तम मन्वन्तर में पुरन्दर द्वारा मार्कण्डेय की तपस्या में विघ्न ), मत्स्य २५२.२( वास्तु शास्त्र के १८ उपदेशकों में से एक ), वायु ६४.७( सहस्राक्ष पुरन्दरों के भूत व भव्य के स्वामी होने का उल्लेख ), ६७.१०२( पुरन्दर द्वारा दिति के गर्भ के छेदन का उल्लेख ), विष्णु ३.१.३१( सप्तम मन्वन्तर में इन्द्र के पुरन्दर नाम का उल्लेख ), ५.२१.१६( पुरन्दर द्वारा सुधर्मा सभा यादवों हेतु देने का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर २.१९.१( अभिषेक दिवस पर पौरन्दरी शान्ति विधि ), स्कन्द ३.१.२३.३२( गन्धमादन पर पुरन्दर के यज्ञ के ऋत्विजों के नाम, यज्ञ में सविता के छिन्नपाणि होने का वृत्तान्त ), द्र मन्वन्तर purandara


      पुरश्चरण स्कन्द ६.१६२.१३( पुरश्चरण सप्तमी व्रत की विधि व माहात्म्य : राजा पुष्प के पापों का नाश, मार्कण्डेय - रोहिताश्व संवाद ) purashcharana


      पुराकल्प वायु ५९.१३७/१.५९.११२( पुराकल्प शब्द की निरुक्ति व व्याख्या )


      पुराण अग्नि २७१.१६( आग्नेय पुराण की महिमा का कथन ), २७२.१( पुराणों की श्लोक संख्या तथा विभिन्न मासों की पूर्णिमाओं में दक्षिणा सहित देय पुराणों का कथन ), ३८३( अग्नि पुराण का माहात्म्य ), कूर्म २.४६.६८( कूर्म पुराण की विषय अनुक्रमणिका व फलश्रुति ), गणेश २.१.५५( गणेश पुराण की फलश्रुति ), गरुड १.२+ ( गरुड पुराण का माहात्म्य ), १.२१५.१५( पुराणों व उपपुराणों के नाम ), ३.१.४३(पुराणों का सात्त्विक, राजस, तामस गुणों के अनुसार विभाजन), ३.१.५७(उपपुराणों का सात्त्विक, राजस आदि गुणों के अनुसार विभाजन), देवीभागवत ०.१( देवीभागवत पुराण का महत्त्व ), ०.२.४०( पुत्र प्राप्ति हेतु देवीभागवत पुराण श्रवण का महत्त्व, वसुदेव द्वारा देवीभागवत पुराण श्रवण से कृष्ण का जाम्बवान् को जीतकर गुफा से बाहर आना ), ०.३.५१( देवीभागवत पुराण श्रवण से सुद्युम्न के स्त्री से पुरुष होने की कथा ), ०.४.७१( देवीभागवत पुराण श्रवण से दुर्दम व रेवती से रैवत मनु पुत्र के जन्म का वृत्तान्त ), ०.५( देवीभागवत पुराण श्रवण की विधि ), १.१.१५( पुराणों में भागवत पुराण की प्रशंसा ), १.२.२१( पुराणों के सर्ग, प्रतिसर्ग आदि लक्षणों की व्याख्या ), १.३.२( पुराणों के नाम व श्लोक संख्या, उपपुराणों के नाम ), १.१५.५२+ ( देवी भागवत पुराण : आधे श्लोक सर्वं खल्विदं - - -की व्याख्या ), १२.१३( देवीभागवत पुराण का माहात्म्य ), नारद १.१( नारद पुराण के श्रवण का माहात्म्य ), १.९२++ ( १८ पुराणों की विषय अनुक्रमणिका व फलश्रुति, पुराण दान का फल ), १.१२५( नारद पुराण का माहात्म्य व फलश्रुति ), २.२४.१६( रुक्माङ्गद द्वारा वेद व स्मृति के सापेक्ष पुराण की प्रशंसा ), २.८२( नारद पुराण की फलश्रुति ), पद्म ३.६२.२( पुराणों का शरीर के अङ्गों में विन्यास ), ४.२५.२७( पुराण श्रवण का महत्त्व, पुराण वाचक के सम्मान की विधि ), ५.१०४.६( राम को पुराण कथा सुनाने के लिए शम्भु विप्र का हिमावान् पर्वत से आगमन, पुराण द्वारा शकुन निर्वचन की विधि का वर्णन ), ५.११३.१४( अङ्गिरा द्वारा पुराण श्रवण के माहात्म्य तथा विधि का वर्णन ), ५.११४.४०२( पुराण वक्ता के सब ब्राह्मणों से श्रेष्ठ होने का उल्लेख, पुराण वक्ता को गुरु मानने से पापों के नाश का कथन ), ५.११४.४०८( दुष्ट चरित्र वाले गौतम विप्र का पापों के प्रायश्चित्त के संदर्भ में पौराणिक से वार्तालाप ), ५.११५.२१( पुराण श्रवण हेतु उपयुक्त काल व विधि का वर्णन, पुराण वक्ता के सम्मान की विधि ), ५.११५.९४( उपपुराणों के नाम ), ६.२७.४७( पात्रों में सर्वश्रेष्ठ पुराणवित् की प्रशंसा ), ६.२८.२५( पुराण पठन के महत्त्व के संदर्भ में धरापाल राजा का वृत्तान्त ), ६.१९४.५५( कलियुग में अन्य ग्रन्थों की अपेक्षा भागवत पुराण की महिमा के संदर्भ में भागवत श्रवण से भक्ति, ज्ञान, वैराग्य के जाग्रत होने का कथन ), ६.१९८.१( भागवत पुराण सप्ताह श्रवण विधि व महत्त्व ), ६.२३६.१३( पुराणों के सात्त्विक , राजस आदि विभाग ), ब्रह्माण्ड १.१.१.३७( पुराणों के ५ लक्षण ), ३.४.४.४३( ब्रह्माण्ड पुराण का कथनानुकथन ), भविष्य १.१.५१( शूद्र - प्रमुख ४ वर्णों के लिए पुराणों की रचना का कथन ), १.१.६१( १८ पुराणों के नाम, भविष्य पुराण के अन्तर्गत वर्णित विषयों की सूची, भविष्य पुराण के वक्ता - श्रोताओं के नाम ), १.२.१( पुराणों के सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर, वंशानुचरित नामक ५ लक्षणों तथा ब्राह्म, वैष्णव, शैव, त्वाष्ट} व प्रतिसर्ग नामक ५ पर्वों का कथन ; ५ लक्षणों का वर्णन ), १.२.५६( ब्रह्मा के पञ्चम मुख से १८ पुराणों व इतिहास आदि की सृष्टि का उल्लेख ), १.२१६.४३( पुराण श्रवण की विधि, पुराण रूपी पुस्तक का देव स्वरूप, पुराण वाचक व पुराण श्रोता के लक्षणों का वर्णन ), २.१.१.८( भविष्य पुराण के मध्यम पर्व के लक्षणों का कथन ), २.१.७( पुराण श्रवण की विधि व पुराणों के वक्ता ), ३.३.२८.९( १८ पुराणों व उनके वक्ताओं के नाम ), ३.४.४.४३( ब्रह्माण्ड पुराण के ४ पादों का कथन, पुराण का महत्त्व व वक्ता - श्रोता परम्परा ) भागवत २.१०( भागवत पुराण के १० लक्षण ), १२.७( पुराणों के आचार्य व पुराण के लक्षण ), १२.१३( पुराणों में श्लोक संख्या, भागवत पुराण की महिमा ), मत्स्य ३.३( तपोरत ब्रह्मा के मुख से विनि:सृत प्रथम शास्त्र ), ५३.१( ब्रह्मा के मुख से वेदों से पूर्व निर्गत पुराणों की श्लोक संख्या, विभिन्न मासों में विभिन्न पुराणों के दान तथा उसके फल का वर्णन ), २९०.१५( कल्प अनुसार पुराणों के सात्विक, राजस आदि भेद, पद्म व ब्रह्म पुराणों की महिमा आदि ), मार्कण्डेय १३७.७/१३४.७( १८ पुराणों के नाम, पुराणों के ५ लक्षणों का कथन ), लिङ्ग १.३९.६१( पुराणों के नाम तथा कालभेद से पुराणों के भेद हो जाने का कथन ; लिङ्ग पुराण के ११ भेदों का उल्लेख ), वराह ६६ ( नारद पुराणार्थ सूचक नामक अध्याय में पाञ्चरात्र विधान की प्रशंसा ), ११२.६७( वराह पुराण की श्रवणानुश्रवण परम्परा, १८ पुराणों के नाम ), २१७( वराह पुराण की फलश्रुति ), वायु १०३.५५/२.४१.५८( वायु पुराण श्रवणानुश्रवण परम्परा का वर्णन ), १०४.२/२.४२.२( पुराणों की श्लोक संख्या का कथन ), विष्णु ३.६.१५( पुराणों के नाम ), ६.८.१२( विष्णु पुराण के अन्तर्वर्ती विषयों का कथन, फलश्रुति, श्रवणानुश्रवण शिष्य परम्परा ), शिव १.२( शिव पुराण ), ५.१३.३( पुराणज्ञ की प्रशंसा, पुराण श्रवण का महत्त्व ), ५.१३.४१( पुराणों की संख्या २६ होने का उल्लेख ), ७.१.१.२५( १८ विद्याओं में से एक, ब्रह्मा के मुख से पुराण निर्गत होने के पश्चात् वेदों की सृष्टि का उल्लेख , वेदाध्ययन में पुराणों के महत्त्व का कथन, १८ पुराणों के नाम, शिव पुराण के अन्तर्गत विभिन्न संहिताओं का कथन ), स्कन्द २.१.२७.२५( पुराण श्रवण विधि ), २.२.४९.५( पुराण श्रवण की विधि ), २.५.१६.२९( भागवत पुराण का माहात्म्य ), ३.३.२२( पुराण श्रवण का माहात्म्य, विदुर ब्राह्मण व बिन्दुला पत्नी का आख्यान ), ४.१.२.९७(पुराण की हृदय से उपमा), ४.१.३३.१३२( पुराणेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : १८ विद्याओं की प्राप्ति ), ५.३.१.१६( श्रुति, स्मृति व पुराणों के लोचनत्रय होने का कथन ; पुराणों के वेदों की आत्मा होने आदि का कथन ; ब्रह्मा के मुख से पहले पुराणों तथा पश्चात् वेदों के उत्पन्न होने का कथन ; १८ पुराणों तथा उपपुराणों का वर्णन ), ५.३.१.२२( पुराणों के नाम, श्लोक संख्या, उपपुराणों के नाम ), ७.१.२( पुराणों के नाम, श्लोक संख्या, उपपुराणों के नाम ), हरिवंश ३.१३२.७१( हरिवंश पुराण के श्रवण का फल तथा श्रवण काल में दान योग्य द्रव्यों का कथन ), ३.१३४( हरिवंश पुराण में वर्णित वृत्तान्तों का संग्रह ), ३.१३५( हरिवंश पुराण के श्रवण का फल, देय दक्षिणा का वर्णन ) puraana/ purana


      पुराण पुरुष भविष्य ३.४.२५.८०( राशियों में स्थिति पर अवतारों के नाम )


      पुरीतत् योगवासिष्ठ ६.२.१०८.५( पुरीतत् नगरी में राजा विपश्चित् का आख्यान ), ६.२.१९७५?, लक्ष्मीनारायण १.३११.४३( पुरीतत् नाडी द्वारा कृष्ण पर व्यजन द्वारा पवनार्पण करने का उल्लेख - सुषुम्णा पिंगला श्वेते दध्यतुश्चामरे ह्युभे । पुरीतत् व्यजनं धृत्वा करोति पवनार्पणम् ॥ )


      पुरी भविष्य ३.४.११.७०( वसुशर्मा द्वारा पुरीशर्मा नामक मृत्युञ्जय पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त, अजैकपाद रुद्र का अंश ), ३४१२७०, लक्ष्मीनारायण १.५१४.५(३ महत्त्वपूर्ण पुरियों के नाम)


      पुरीष गरुड २.४.१४२(पुरीष में पित्तल देने का उल्लेख), २.३०.५२/२.४०.५२( मृतक के पुरीष में पित्तल देने का उल्लेख ), पद्म ६.६.२७( वल असुर के पुरीष के कांस्य बनने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१६६( पञ्चपत्तलक - पुत्र? पुरीषभीरु द्वारा २१ वर्ष राज्य करने का उल्लेख ), भागवत ३.१२.४०( पुरीष्य/चयन आदि यागों की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से उत्पत्ति का उल्लेख - षोडश्युक्थौ पूर्ववक्त्रात् पुरीष्यग्निष्टुतावथ ।
      आप्तोर्यामातिरात्रौ च वाजपेयं सगोसवम् ॥ ), ६.१८.४( विधाता व क्रिया से पुरीष्य नामक ५ अग्नियों की उत्पत्ति का उल्लेख - अग्नीन्पुरीष्यानाधत्त क्रियायां समनन्तरः। ), १२.१.२५( पुरीषभीरु : तलक - पुत्र, सुनन्दन - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक ), वायु ६८.७९( शौच/पुरीष त्याग के नियम ) pureesha/ purisha


      पुरु अग्नि २७८.१( पुरु वंश का वर्णन, जनमेजय - पिता ), ब्रह्म १.११.१( पुरु वंश का वर्णन ), १.७५( मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक ; आग्नेयी व पुरु से उत्पन्न ६ पुत्रों के नाम ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.७९( चाक्षुष मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक ), १.२.३६.१०६( वही), २.३.६.२५( शर्मिष्ठा - पुत्र ), २.३.६८.५५( पूरु द्वारा ययाति की जरा को स्वीकार करना, कालान्तर में ययाति द्वारा पूरु को यौवन वापस देकर जरा ग्रहण करना, पूरु द्वारा राज्य की प्राप्ति का वर्णन ), २.३.७१.२५५( बृहती - पति, पुत्रों व पुत्री के नाम ), ३.४.२१.८४( पुरुषेण : भण्ड के सेनापतियों में से एक ), भागवत ४.१३.१५( चक्षु मनु व नड्वला के १२ पुत्रों में से एक ), ९.२४.५३( पुरुविश्रुत : वसुदेव व सहदेवी के ८ पुत्रों में मुख्य ), वायु ६८.२४/२.७.२४( शर्मिष्ठा - पुत्र ), ९३.१७/२.३१.१७( पूरु : शर्मिष्ठा के ३ पुत्रों में से एक ), ९९.११९( पुरु वंश का वर्णन ), विष्णु १.१३.५( चाक्षुष मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक ), ४.२४.११८( पुरु का कलाप ग्राम में वास, सत्ययुग के आरम्भ में क्षत्रिय कुल के प्रवर्तक ), लक्ष्मीनारायण ३.७३.८३( पुरू द्वारा पिता ययाति को यौवन देकर जरा प्राप्त करने का वृत्तान्त ), द्र पूरु, वंश ध्रुव puru


      पुरुकुत्स देवीभागवत ७.१०.४( मान्धाता के २ पुत्रों में से एक, अरण्य - पिता ), पद्म ६.१७९.२( पुरुकुत्स पुर निवासी दुष्ट पिङ्गल द्विज व उसकी पत्नी की गीता के पञ्चम अध्याय के प्रभाव से मुक्ति का वृत्तान्त ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०८( ३३ आङ्गिरस ऋषियों में से एक ), २.३.१०.९८( नर्मदा - पति, त्रसद्दस्यु- पिता ), २.३.६३.७२( मान्धाता व बिन्दुमती के ३ पुत्रों में से एक ), २.३.६६.८७( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले राजर्षियों में से एक ), भागवत ९.६.३८( मान्धाता व बिन्दुमती के ३ पुत्रों में से एक ), ९.७.२( पुरुकुत्स द्वारा नागों की कन्या नर्मदा से विवाह, रसातल में गन्धर्वों का वध, नागों से वर प्राप्ति ), मत्स्य १२.३५( मान्धाता के पुत्रों में से एक, वसुद? - पिता ), १४५.१०२( ३३ आङ्गिरस ऋषियों में से एक ), वायु ७२९१, ७३.४८/२.११.९१( नर्मदा व पुरुकुत्स से त्रसद्दस्यु के जन्म का उल्लेख ), ९१.११६/२.२९.११२( तप से सिद्धि प्राप्त करने वाले क्षत्रोपेत द्विजों में से एक ), ९९.११९/२.३७.११९( पूरु वंश का वर्णन ), विष्णु १.२.९( पुरुकुत्स राजा द्वारा ब्रह्मा से विष्णु पुराण का श्रवण कर सारस्वत को सुनाने का उल्लेख ), ४.२.६७( मान्धाता व बिन्दुमती के ३ पुत्रों में से एक ), ४.३.६( मान्धाता - पुत्र, गन्धर्वों का निग्रह कर नागों की रक्षा ), ६.८.४५( पुरुकुत्स द्वारा भृगु से विष्णु पुराण का श्रवण कर नर्मदा को सुनाने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.१७७.५( स्वायम्भुव मन्वन्तर में विपश्चित् इन्द्र द्वारा असुरों के राजा पुरुकुत्स के वध का कथन ), हरिवंश १.१२.९( मान्धाता व बिन्दुमती - पुत्र ), लक्ष्मीनारायण १.५५६.८८( पुरुकुत्स द्वारा नर्मदा अवतारण के लिए तप, नर्मदा - पति बनना ) purukutsa


      पुरुकृत्सर गरुड १.८७.८( विपश्चित् इन्द्र का शत्रु, हस्ती रूपी विष्णु द्वारा वध ), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.८( स्वारोचिष मन्वन्तर में पुरुकृत्सर दैत्य के विनाश हेतु गज नारायण के अवतार का कथन ) purukritsara


      पुरुजित् भागवत ९.१३.२२( अज - पुत्र, अरिष्टनेमि - पिता, निमि वंश ), ९.२३.३५( रुचक के ५ पुत्रों में से एक ), ९.२४.४१( कङ्का व आनक के २ पुत्रों में से एक ), १०.६१.११( जाम्बवती व कृष्ण के पुत्रों में से एक ) purujit


      पुरुद्वान् ब्रह्माण्ड २.३.७०.४७( पुरुवस - पुत्र, भद्रवती - पति, पुरूद्वह - पिता ), मत्स्य ४४.४४(पुरवस - पुत्र, पुरुद्वान् व भद्रसेनी वैदर्भी से जन्तु पुत्र के जन्म का उल्लेख ), वायु ९५.४७/२.३३.४७( पुरुवस - पुत्र, भद्रवती - पति, पुरूद्वह - पिता )


      पुरुमित्र विष्णु ४.१२.४२( अनु - पुत्र, अंशु - पिता, यदु वंश ), महाभारत उद्योग १६०.१२३( दुर्योधन की समुद्र रूपी सेना के पुरुमित्र गाध होने का उल्लेख ) purumitra


      पुरुमीढ भागवत ९.२१.३०( बहुरथ - पुत्र पुरुमीढ के अप्रजावान् होने का उल्लेख ), मत्स्य ४९.४३( हस्ती के ३ पुत्रों में से एक ), विष्णु ४.१९.२९( वही) purumeedha/ purumidha


      पुरुयशा स्कन्द २.७.१५+ ( भूरियशा - पुत्र, शिखिनी - पति पाञ्चालराज पुरुयशा को याज व उपयाज द्वारा दरिद्रता के कारण रूप में पूर्व जन्मों का कथन, वैशाख मास के धर्म का पालन करने से मुक्ति ) puruyashaa