फट्कारी अग्नि २९९.११(बालक के जन्म की ६ठी रात्रि को फट्कारी ग्रही द्वारा बालक के ग्रहण तथा उसके लक्षण व उपाय का कथन), ३०९.९(त्वरिता विद्या पूजा के संदर्भ में फट्कारी देवी के स्वरूप का कथन), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.८९(वर्ण शक्तियों के अन्तर्गत फ वर्ण की फट्कारिणी शक्ति का उल्लेख ) fatkaaree/ fatkari
फणा अग्नि १३६(यात्रा आदि में फलदायक फणीश्वर चक्र का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.३५.७(ऋषियों द्वारा ज्ञान हेतु फणिनायक की उपासना करने का उल्लेख), ३.४.३३.३६(महाफण : नागों में से एक), ३.४.३८.३५(४ लाख काम्य जपों से फणिकन्यकाओं के क्षुभित होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.३२.१(फणा ग्राम में सुनारिणी नामक कुम्भकारिणी व रणस्तम्भ कुम्भकार के घर में चन्द्रमा के जन्म का वृत्तान्त ) fanaa
फल गरुड १.१३०.४(फल सप्तमी व्रत), नारद १.११६.३४(भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को फल सप्तमी व्रत की विधि), १.१२०.६२(सफला एकादशी व्रत की विधि), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६३(पुत्र प्राप्ति हेतु कूष्माण्ड आदि फल दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड १.१.५.१०१(ब्रह्मवृक्ष में सुख - दुःख फल), भविष्य १.५७.१(कार्तिकेय हेतु फल बलि का उल्लेख), ४.३९.१२(फल षष्ठी व्रत की विधि), मत्स्य ७६(फल सप्तमी व्रत में सूर्य पूजा व फल दान), ९६.८(सर्वफल त्याग व्रत : स्वर्णिम, रजत व ताम्र फलों का निर्माण व ), १०१.६२(फल व्रत), वराह ३३.३२(क्रतु के वृषणों का फल नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.१४९.३(चतुर्मूर्ति व्रत के संदर्भ में फलाहार का उल्लेख), शिव २.३.५४.७०(फल पति, सत्क्रिया पतिव्रता होने का उल्लेख), ५.१२.१९(वृक्षारोपण के गुणों के संदर्भ में पुष्पों से सुरों व फलों से पितरों की तृप्ति का उल्लेख), ५.२०.३८(भारतवर्ष के कर्मभूमि तथा द्युलोक के फल भूमि होने का कथन), स्कन्द २.२.४४.६(संवत्सर की १२ पूर्णिमाओं में श्रीहरि को अर्पणीय १२ फलों के नाम), ४.१.२९.११३(फलहस्ता : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ५.३.१५९.१७(फल हरण से अपत्य मरण का उल्लेख), ५.३.१५९.२५(फलविक्रेता के दुर्भग होने का उल्लेख), हरिवंश २.७९.४२(नारियों के पुत्र - फला होने का उल्लेख), महाभारत आश्वमेधिक २७.१५(प्रज्ञा वृक्ष पर मोक्ष फल लगने का कथन), लक्ष्मीनारायण १.३४२.९२(फल चोरी से वानर योनि प्राप्ति का वृत्तान्त), २.१६७.३३(लीनोर्ण नृप के फलाशन ऋषि के साथ यज्ञ में आगमन का उल्लेख), २.१९२.५(कृष्ण के स्वनगरी में आगमन पर लीनोर्ण नृप द्वारा फलाशन ऋषि के साथ कृष्ण का स्वागत), ३.७५.८१(फलमूल अनिल अशन करने वाले को यज्ञ लोक प्राप्त होने का उल्लेख ) fala
फलक पद्म ३.२६.८१(फलकी वन का संक्षिप्त माहात्म्य : देवों के तप का स्थान )
फलभूति कथासरित् ३.६.३५(सोमदत्त विप्र द्वारा फलभूति नाम धारण कर आदित्यप्रभ राजा के पास आने तथा रानी द्वारा फलभूति के वध के प्रयास का वृत्तान्त), ३.६.१९४(रानी द्वारा फलभूति को पकाकर भक्षण करने के उद्देश्य को प्रकट करना ) falabhooti/ falabhuti
फलवती स्कन्द ६.१४३+ (जाबालि व रम्भा - पुत्री फलवती द्वारा चित्राङ्गद गन्धर्व के साथ विहार करने पर पिता द्वारा दोनों को शाप, स्व - स्व नाम से लिङ्ग स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.५०३.३०(जाबालि व रम्भा से उत्पन्न कन्या फलवती का चित्राङ्गद गन्धर्व से रमण, जाबालि द्वारा शाप, फलवती द्वारा तप से शाप से मुक्त होना, पिता से स्त्री के महत्त्व पर विवाद, तप से मोक्ष प्राप्ति ) falavatee/ falavati
फल्गु अग्नि ११५.२५(फल्गु तीर्थ : गयाशीर्ष का नाम, महिमा), देवीभागवत १२.६.१०८(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद २.४५.९५(फल्गु तीर्थ का गया में स्थान निर्धारण), २.४६.१७(फल्गु तीर्थ : गयासुर का मुख), पद्म ५.८०.४७ (फाल्गुन में ४ प्रकार के फल्गु चूर्णों का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.११.३८(बलि पात्रों के संदर्भ में फल्गु पात्र से सर्व कामाप्ति का उल्लेख), २.३.४७.७६(शत्रुओं द्वारा सगर के पिता फल्गुतन्त्र/बाहु? के अयोध्या से निष्कासन का कथन), वायु १०६.५६/२.४४.५६(फल्ग्वीश : प्रपितामह द्वारा गया में शिला को स्थिर करने के लिए धारित ५ रूपों में से एक), १११.१४/२.४९.१४(फल्गु तीर्थ की उत्पत्ति व निरुक्ति), स्कन्द ५.१.५९.४(गया क्षेत्र में फलदायिनी फल्गु नदी का उल्लेख ) falgu
फान्कलाशी लक्ष्मीनारायण २.२१९.१०७+ (श्रीहरि का त्रेताकर्कश नृप व कर्णफाल ऋषि के साथ फान्कलाशी नगरी में आगमन, राजा द्वारा स्वागत, श्रीहरि द्वारा चिन्ता/आशा त्याग का उपदेश),
फाल ब्रह्माण्ड ३.४.२४.९(फालमुख : भण्डासुर - सेनानी, कङ्क वाहन, तिरस्करिणी देवी द्वारा वध), स्कन्द १.२.४४.७०(तप्त आयस से जिह्वा लेपन द्वारा फालशुद्धि विधि का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१६७.३८(फालनाद ऋषि के फेनतन्तु नृप के साथ यज्ञ में आगमन का उल्लेख ) faala
फाल्गुन ब्रह्माण्ड १.२.२४.१३२(बृहस्पति ग्रह की फाल्गुनी नक्षत्रों में उत्पत्ति का उल्लेख), २.३.१८.६(फाल्गुनी नक्षत्रों में श्राद्ध से सौभाग्य प्राप्ति, अपत्य प्राप्ति आदि का उल्लेख), भविष्य २.२.८.१३०(नैमिष में महाफाल्गुनी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख), ३.४.१०(फाल्गुन मास के सूर्य का माहात्म्य : विष्णुशर्मा द्विज का कण्टकों को स्पर्श मणियों में बदलना), मत्स्य १७.७(फाल्गुनी अमावास्या का मन्वन्तरादि तिथियों में उल्लेख), ५३.३७(फाल्गुन में लिङ्ग पुराण दान का संक्षिप्त माहात्म्य), ५६.२(फाल्गुन मास में शिव की महादेव नाम से अर्चना का निर्देश), ६०.३६(सौभाग्यशयन व्रत के अन्तर्गत फाल्गुन में पञ्चगव्य सेवन का निर्देश), वायु २३.१०७/१.२३.९९(वराह की देह में नक्षत्रों के न्यास के संदर्भ में फाल्गुनी नक्षत्रों का वराह के पर्वों? में न्यास), ५३.१०७(बृहस्पति ग्रह की फाल्गुनी नक्षत्रों में उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द २.२.४३(फाल्गुन में गोविन्द हेतु दोलारोहण विधि का वर्णन), लक्ष्मीनारायण ४.९६.१(फाल्गुन में श्रीहरि के ध्रुव स्वर्ग में आगमन का वर्णन ), द्र. अर्जुन, मास, नक्षत्र faalguna/ falguna
फुल्ल स्कन्द ३.१.३७.७(राम के सेतुबन्ध का आरम्भ स्थल, मुद्गल के यज्ञ का स्थान, फुल्ल ग्रामस्थ क्षीरकुण्ड के माहात्म्य का वर्णन )
फेन पद्म १.४०.१४२(अव्यक्तानन्द सलिल वाले समुद्र में व्यक्ताहंकार की फेन से उपमा), ब्रह्म २.५९(फेन द्वारा नमुचि का वध करने के पश्चात् गङ्गा से मिलन, फेना नदी की उत्पत्ति), भागवत ३.१२.४३(फेनप : वानप्रस्थियों के ४ भेदों में से एक, द्र. टीका), ६.९.१०(जल को प्राप्त ब्रह्महत्या के अंश से बुद्बुद - फेन की उत्पत्ति का कथन), मत्स्य १९५.२१(फेनप : भार्गव वंश के गोत्रकार ऋषियों में से एक), महाभारत शान्ति १७३.४(सुरभि के मुख के फेन से राजधर्मा बक के जीवित होने का कथन), अनुशासन ७७.१९(गायों के मुख के फेन का शिव पर गिरना), १४१.९७(फेनप ऋषियों के धर्म का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१६७.३८(फेनतन्तु नृप के फालदान ऋषि सहित यज्ञ में आगमन का उल्लेख), २.१९५.९३(श्रीकृष्ण के फेनतन्तु नृप की नगरी में आगमन व कृष्ण द्वारा उपदेश का वर्णन), २.२११.२३(श्रीहरि के द्वैपायन द्वीप के राजा राजबालेश्वर की नगरी वायुफेना में आगमन का वृत्तान्त), २.२४२.२६(पङ्किल ऋषि द्वारा वामदेव की फेनस्तम्बी आदि ५ कन्याओं का सत्कार, कन्याओं द्वारा पङ्किल को कल्प - कल्प आयु का वरदान), २.२४३.१६(पङ्किल द्वारा भगिनी रूपी ५ कन्याओं को श्रीहरि को अर्पण करने का कथन ) phena/ fena
फेरुनर लक्ष्मीनारायण २.१६७.२९(फेरुनर ऋषि के परीशान नृप के साथ यज्ञ में आगमन का उल्लेख),
फेरुनस लक्ष्मीनारायण २.१८६.९६(श्रीहरि का फेरुनस ऋषि के साथ राजा परीशान की नगरी परीशा में आगमन व स्वागत आदि का वृत्तान्त),
बक अग्नि १४५.२९(अस्थियों में श वर्ण के साथ बक शिव का न्यास - व खड्गीशः स्वात्मनि स्याद्बकश्चास्थिनि शः स्मृतः ॥), गरुड १.२१७.२८/१.२२५.२८(वह्नि हरण से बक योनि प्राप्ति का उल्लेख - कार्पासिके हृते क्रौञ्चो वह्रिहर्ता बकस्तथा ।), गर्ग १.६.५८(पूतना - भ्राता, पक्षी रूप धारी बक दैत्य द्वारा कंस का निगरण व वमन, कंस से भ्रातृ सम्बन्ध की स्थापना), २.५(कृष्ण द्वारा बक असुर का उद्धार, पूर्व जन्म में हयग्रीव - पुत्र उत्कल), १०.१९.३०+ (राक्षस, भीषण - पिता, बक के स्वरूप का कथन, अनिरुद्ध सेना से युद्ध व पराजय), देवीभागवत ४.२२.४६(बक के बलि - पुत्र का अंश होने का उल्लेख), नारद १.६६.११८(बकेश की शक्ति वायवी का उल्लेख - खड्गीशो वारुणीयुक्तो बकेशो वायवीयुतः।), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६.४(देवों द्वारा बक पर प्रहार , कृष्ण द्वारा वध - एतस्मिन्नन्तरे कृष्णः प्रज्वलन्ब्रह्मतेजसा । ददाह दैत्यसर्वाङ्गं बाह्याभ्यन्तरमीश्वरः ।।), ब्रह्माण्ड २.३.६.३६(वृत्र - पुत्र, राक्षस), ३.४.४४.५४(लिपि न्यास प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता का नाम), भविष्य ३.२.११.२२(बकवाहन राक्षस द्वारा विद्याधर - बाला का सेवन, राजा द्वारा वध), ३.४.१८(संज्ञा विवाह प्रकरण में बक असुर के वरुण से युद्ध का उल्लेख), भागवत १०.११.४५(बक द्वारा कृष्ण के निगरण व कृष्ण द्वारा बक असुर के वध का वृत्तान्त), १०.१२.१४(बकी व बक के अनुज अघासुर का वृत्तान्त), मत्स्य ९५.३०(माहेश्वर व्रत के अन्तर्गत बक व्रती को दान देने का निषेध), १५६.१२(अन्धकासुर - पुत्र, आडि – भ्राता - देवान्सर्वान् विजित्याजौ बकभ्राता रणोत्कटः।), मार्कण्डेय ९.९(वसिष्ठ के शाप से विश्वामित्र को बक योनि की प्राप्ति, विश्वामित्र द्वारा प्रतिशाप से वसिष्ठ को आडि योनि की प्राप्ति, परस्पर युद्ध, ब्रह्मा के हस्तक्षेप से पुन: स्वशरीरों की प्राप्ति), लिङ्ग १.८१.३६(बक पुष्प पर नारायण की स्थिति का उल्लेख), वामन ३९.२६(बक ऋषि द्वारा धृतराष्ट्र से धन की याचना पर अपमान, क्रुद्ध ऋषि के यज्ञ से धृतराष्ट्र के राष्ट्र का क्षय, प्रसन्न होने पर पुन: राष्ट्र की सम्पन्नता), वायु ६९.१६०/२.८.१५५(मणिवर व देवजननी के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक), स्कन्द १.२.७(नाडीजङ्घ नामक दीर्घजीवी बक का इन्द्रद्युम्न से वार्तालाप), ५.३.८(बक कल्प में शिव द्वारा बक रूप धारण), ५.३.१३.४५(२१ कल्पों में से एक), ६.२७१.५५(शिव प्रसाद से व गालव शाप से बक को बकत्व की प्राप्ति), ६.२७१.५१(नाडीजङ्घ बक का इन्द्रद्युम्न से संवाद, पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ७.१.१७.११८(बक पुष्प की महिमा), महाभारत वन ३१३.२९(बक रूप धारी यक्ष द्वारा पाण्डवों से प्रश्न पूछना), द्रोण १०८.२४(भीम द्वारा अलम्बुष राक्षस के भ्राता बक के वध का उल्लेख), शल्य ४१.१(अवाकीर्ण तीर्थ के संदर्भ में दाल्भ्य बक द्वारा धृतराष्ट्र के राष्ट्र का होम करने की कथा), शान्ति १६९.१९(नाडीजङ्घ/राजधर्मा बक का नीच ब्राह्मण गौतम से मिलन व मित्रता), १७०(बक द्वारा गौतम को विरूपाक्ष से धन प्राप्त कराना), १७१.३४(गौतम द्वारा भोजन हेतु बक के वध का विचार), १७२.२(गौतम द्वारा बक का वध), १७३.४(सुरभि के फेन से राजधर्म बक का जीवित होना, राजधर्मा द्वारा गौतम को भी जीवन दिलाना), योगवासिष्ठ ६.२.११८.१(बक पक्षी के चरित्र का वर्णन - निर्गुणस्य बकस्यास्य गुण एकोऽस्ति दृश्यताम् । यत्प्रावृषं स्मारयति प्रावृट् प्रावृडिति ब्रुवन् ।।), लक्ष्मीनारायण १.५१९.३०(राजा इन्द्रद्युम्न व मार्कण्डेय ऋषि का बक ऋषि से मिलन, बक द्वारा बक योनि प्राप्ति व चिरजीविता के कारण का कथन), २.५७.१०१(असुरनाश के पश्चात् यमराज द्वारा बकदान ऋषि के आश्रम में रक्षकों को नियुक्त करना), २.१६४.१(बकस्राव नगरी में श्रीहरि द्वारा नीलकर्ण चात्वाल की अतिवृष्टि से रक्षा का वृत्तान्त), कथासरित् ७.५.५८(राजकुमारों द्वारा बक रूप धारी अग्निशिख राक्षस का दर्शन, शृङ्गभुज द्वारा बाण से बक के वेधन का वृत्तान्त - राजपुत्रा बको नायं रूपेणानेन राक्षसः । भ्रमत्यग्निशिखाख्योऽयं नगराणि विनाशयन् ।।), १०.४.७९(बक व कर्कट की कथा), १०.४.२३४(बक व सर्प की कथा ), कृष्णोपनिषद १४(बकासुर के गर्व का रूप होने का उल्लेख ) baka
बकदान लक्ष्मीनारायण २.५५.९७(श्रीकृष्ण द्वारा यमराज को बकदान ऋषि के आश्रम को दैत्यरहित करने का निर्देश), २.५७.१०१(असुरनाश के पश्चात् यमराज द्वारा बकदान ऋषि के आश्रम में रक्षकों को नियुक्त करना )
बकदाल्भ्य पद्म ६.४४.१२(राम का बकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में आगमन, रावण विजयार्थ उपाय की पृच्छा, बकदाल्भ्य द्वारा फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी व्रत की महिमा तथा विधि का कथन ) bakadaalbhya
बकरी द्र. बर्करी
बकुल नारद १.५६.२०८(बकुल वृक्ष की अनुराधा नक्षत्र से उत्पत्ति), १.९०.७२ (बकुल द्वारा देवी पूजा से अङ्गना सिद्धि का उल्लेख), पद्म १.२८( मौलसिरी, कुलवर्धक), ६.१३८(बकुला सङ्गम का माहात्म्य), वराह १५३.३९(मथुरान्तर्गत बकुल वन का संक्षिप्त महत्त्व), वामन ६.९९(शिव के क्रोध से काम के धनुष की नाभि के बकुल वन बनने का उल्लेख), स्कन्द ३.२.१३(संज्ञा द्वारा सूर्य के तेज की शान्ति हेतु बकुल के नीचे तप, अश्विनौ की उत्पत्ति), ३.२.१३.५६(धर्मारण्य में बकुलार्क का माहात्म्य), ६.२५२.२४(चातुर्मास में नैर्ऋताधिप की बकुल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.१७.११३(बकुल पुष्प की महिमा), ७.१.३१२(बकुल स्वामि सङ्गम का माहात्म्य ) bakula
बकुलमाली स्कन्द २.१.५(बकुलमालिका : श्रीहरि की सखी व दूती, पद्मावती से हरि विवाह में सहायक), लक्ष्मीनारायण १.३९९.५(श्रीहरि की सखी? बकुलमालिका का श्रीनिवास रूप धारी श्रीहरि के पद्मिनी से विवाह में सहायक होने का वृत्तान्त ; पद्मिनी - माता धरणी को भविष्य का कथन ) bakulamaalee/ bakulamali
बगलामुखी नारद १.८६.८६(महालक्ष्मी की अवतारभूत बगलामुखी देवी मन्त्र साधन का निरूपण), शिव ३.१६.९(बगलामुख नामक शिवावतार की शक्ति ) bagalaamukhee/ bagalamukhi
बञ्जुला ब्रह्माण्ड १.२.१६.३१(ऋक्ष से प्रसूत नदियों में से एक), १.२.१६.३७ (महेन्द्र पर्वत से प्रसूत नदियों में से एक ), द्र. वञ्जुला banjulaa
बटुक अग्नि ३१३.८(४ बटुकों के नाम), शिव ४.१३(चण्डी - पुत्र, भोज में बटुक पूजा न होने से ध्वजपात ) batuka
बडवा देवीभागवत ६.१८(श्रीहरि द्वारा लक्ष्मी को वडवा होने का शाप, वडवा रूप धारी लक्ष्मी द्वारा शिवाराधन, शिव - लक्ष्मी वार्तालाप), १२.६.१०९(गायत्री सहस्रनामों में से एक), ब्रह्म २.४०.६(दधीचि - पत्नी गभस्तिनी का अपर नाम), २.४६(बडवानल तीर्थ का वर्णन : वडवा रूपिणी कृत्या के अभिषेक जल से वडवा नदी का निर्माण), भविष्य ३.३.७.३(शूर को इन्द्राराधन से सिंहिनी नामक वडवा वाहन की प्राप्ति), ३.४.१२.५६(जलदेवी द्वारा वडवा रूप धारण कर तेज का पान, वमन, वडवा - मुख से उत्पन्न होने के कारण वाडव नाम धारण, क्षेत्रशर्मा की उत्पत्ति का प्रसंग), भागवत ८.१३.९(विवस्वान की ३ पत्नियां संज्ञा, छाया व वडवा होने का कथन, अश्विनौ - माता), विष्णुधर्मोत्तर १.३२(बडवा अग्नि की उत्पत्ति), शिव २.३.२०(कामदाह के उपरान्त शिव की क्रोधाग्नि का नाम), स्कन्द ७.१.३२.१०४(कृत्या निर्माणार्थ पिप्पलाद द्वारा ऊरु मन्थन से वडवा की उत्पत्ति, वडवा से वडवानल की उत्पत्ति, देवभक्षण हेतु वडवानल का स्वर्गगमन, विष्णु द्वारा वडवानल के वञ्चन का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.६३.१७(सूर्य - पत्नी संज्ञा द्वारा वडवा रूप धारण कर तप करने तथा अश्वरूप धारी सूर्य से सन्तान उत्पन्न करने का वृत्तान्त), कथासरित् ५.३.१०(वडवामुख : समुद्री अग्नि), १२.१.५३(अभिमन्त्रित सरसों द्वारा दुष्टा भार्या को वडवा/घोडी बनाना ), द्र. वडवा badavaa
बडवानल पद्म १.१८.१५९(देवों सहित विष्णु द्वारा सरस्वती से बडवाग्नि को पश्चिम समुद्र में डालने की प्रार्थना, ब्रह्मा की आज्ञा मिलने पर सरस्वती द्वारा विष्णु - प्रदत्त बडवाग्नि का उदर में धारण, पश्चिम की ओर प्रस्थान), विष्णु ३.११.९५ (वडवानल से भुक्त अन्न के पाचन हेतु प्रार्थना), विष्णुधर्मोत्तर १३२, वा.रामायण ४४० , स्कन्द ७.१.२९.९५(बडवानल संज्ञक तीर्थ का उल्लेख), ७.१.३२.१०४(कृत्या निर्माणार्थ पिप्पलाद द्वारा ऊरुमन्थन से वडवा की उत्पत्ति, वडवा से बडवानल की उत्पत्ति, देवभक्षण हेतु बडवानल का स्वर्ग गमन, विष्णु द्वारा बडवानल के वञ्चन का वृत्तान्त), ७.१.६५(वाडवेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.९१.१५(समुद्र मन्थन में कूर्म पृष्ठ व मन्दराचल के घर्षण से उत्पन्न अग्नि का विष्णु द्वारा संकर्षण रूप धारण करके पान करने का कथन), १.१८५.१६५(ब्रह्मा द्वारा शिव के क्रोध से उत्पन्न वडवा रूप अग्नि को क्षार समुद्र में स्थापित करने का कथन), १.५३७.४७(दधीचि - पुत्र सुप्लक्ष के तप से सुप्लक्ष की ऊरु से वडवा अग्नि की उत्पत्ति, सरस्वती द्वारा अग्नि का प्रभास क्षेत्र में समुद्र में प्रक्षेपण, अग्नि द्वारा लवणोदक के पान आदि का कथन ), द्र. वडवानल badavaanala/ badavanala
बडवामुख वा.रामायण ४.४०.४९(समुद्र की अग्नि )
बदरपाचन महाभारत शल्य ४८.१६(भरद्वाज - पुत्री श्रुतावती द्वारा इन्द्र - प्रदत्त ५ बदरों के पाचन का वृत्तान्त )
बदरी देवीभागवत ७.३०.७९(बदरी वन में उर्वशी देवी का वास), नारद २.६७(बदरी तीर्थ का माहात्म्य : अन्तर्वर्ती तीर्थों के माहात्म्य), पद्म ६.२(नर - नारायण की प्रतिष्ठा स्थल बदरी आश्रम की प्रशंसा), ६.१५२.१५(सूर्य द्वारा बाला को पांच बदर प्रदान करना, बाला द्वारा बदरी पाकार्थ पादों को अग्नि में जलाना), ६.१७८(बदरी वृक्ष द्वय, सत्यतपा द्वारा अप्सरा द्वय को शाप से बदरी वृक्ष बनाना, भरत मुनि से गीता के चतुर्थ अध्याय श्रवण से मुक्ति), ६.२१६.१(बदरी माहात्म्य, इन्द्रप्रस्थ का अन्तर्वर्ती तीर्थ, देवदास विप्र की मुक्ति, महिष की मुक्ति), भविष्य १.१९३.८(बदरी दन्तकाष्ठ की महिमा - रोगमोचन), २.२.८.१२८(बदरी तीर्थ में महाभाद्री पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख - महाभाद्री बदर्यां च कुजोऽपि स्यान्नरस्तथा ।।), भागवत ३.४.४(कृष्ण द्वारा प्रभास गमन से पूर्व उद्धव को बदरी गमन का निर्देश - अहं चोक्तो भगवता प्रपन्नार्तिहरेण ह । बदरीं त्वं प्रयाहीति स्वकुलं सञ्जिहीर्षुणा ॥), ३.४.२२(उद्धव द्वारा बदरिकाश्रम जाने का निश्चय), ७.११.६(धर्म व दाक्षायणी के पुत्र द्वारा बदरिकाश्रम में तप करने का उल्लेख), १०.५२.४(मुचुकुन्द द्वारा बदरिकाश्रम में गन्धमादन पर तप करने का उल्लेख), १३.२.२२(कृष्ण का उद्धव को साधनभूमि बदरी/ बदरिकाश्रम में साधना पूर्ण करने का निर्देश), मत्स्य १३.४९(बदरी आश्रम में देवी के उर्वशी नाम से वास का उल्लेख - वेणायाममृता नाम बदर्यामुर्वशी तथा॥), २०१.२४(मित्र व वरुण के बदरिकाश्रम में तपोरत होने पर उर्वशी का आगमन, वसिष्ठ व अगस्त्य के जन्म का कथन), वराह ४८.७(गन्धमादनस्थ बदरी वन में विशाल नृप द्वारा तप), १४१(बदरी तीर्थ का माहात्म्य व अन्तर्वर्ती तीर्थ), वामन २.४२ (बदरिकाश्रम – नर-नारायण व सरस्वती का वास स्थान), ३.६(ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु शिव का बदरिकाश्रम में गमन, नर व नारायण ऋषियों का अदर्शन), ५७.९६(बदरी तीर्थ द्वारा स्कन्द को पद्मावती व माधवी गण प्रदान का उल्लेख), ९०.४(बदरी तीर्थ में विष्णु का नारायण नाम से वास), वायु १०४.७८/२.४२.७८(बदरी तीर्थ की ब्रह्मरन्ध्र में स्थिति - हनुग्रीवामध्यगतं प्रभासक्षेत्रमुत्तमम्। बदर्य्याश्रममेतेषां ब्रह्मरन्ध्रे ददर्श ह ।।), विष्णु ५.३७.३४(कृष्ण द्वारा अन्तकाल में उद्धव को बदरिकाश्रम में जाने का निर्देश), विष्णुधर्मोत्तर ३.७६(नर - नारायण रूप निर्माण के अन्तर्गत मध्य में फलयुक्त बदरी वृक्ष का निर्माण - तयोर्मध्ये च बदरी कार्या फलविभूषणा ।। बदर्यामनु तौ कार्यावक्षमालाधरावुभौ ।।), स्कन्द २.३.१+ (बदरी क्षेत्र का माहात्म्य), २.३.५ (बदरी क्षेत्र का माहात्म्य), ५.१.५ (बदरी आश्रम में कपालपाणि शिव का आगमन, वन की शोभा, शिव का पादपों को वर प्रदान), ५.३.१९८.८७(बदरी में देवी की उर्वशी नाम से स्थिति का उल्लेख), ६.२५२.२५ (चातुर्मास में रुद्रों की बदरी वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.१७.९(बदरी वृक्ष के दन्तकाष्ठ का महत्त्व -- वक्तृत्वं), हरिवंश ३.७६+ (बदरी तीर्थ में कृष्ण का आगमन, पिशाचद्वय की मुक्ति), महाभारत ३.१२.१३ (बदरी प्रदेश में कृष्ण द्वारा ऊर्ध्वबाहु, एकपाद होकर तप करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.७.२९ (अक्षर प्रदेश में स्थित बदरिकाश्रम में अक्षर प्रदेश द्वारा नारायण सेवा हेतु नर रूप धारण का कथन), १.११२.५(बदरिकाश्रम में नर व नारायण के रूप का कथन ; शिव द्वारा बदरिकाश्रम में तप व कृष्ण नाम दीक्षा ग्रहण का वृत्तान्त), १.२०५ (नारद का बदरिकाश्रम में गमन, नर - नारायण की स्तुति, नारायण द्वारा वरदान व विवाह का आदेश), १.२०९.३४(बदरी तीर्थ के अन्तर्वर्ती तीर्थ, बदरिकाश्रम का माहात्म्य), १.३३४.६१+ (धर्मध्वज व माधवी - कन्या तुलसी द्वारा कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति हेतु बदरिकाश्रम में तप, स्वप्न में सुदामा पार्षद के अवतार शङ्खचूड असुर का पति रूप में दर्शन), १.४४१.८६(प्लक्ष वृक्ष रूप धारी कृष्ण के दर्शन हेतु रुद्र द्वारा बदरी वृक्ष का रूप धारण करने का उल्लेख - धनदोऽक्षोटकवृक्षो रुद्रास्तु बदरीद्रुमाः ।।), १.५२२.२(नारद द्वारा बदरीवन में तपोरत राजा प्रियव्रत को सावित्री दर्शन पर वेदों की विस्मृति का वृत्तान्त सुनाना), २.९१.८६(श्रीहरि द्वारा महामारी देवियों के बदरी वृक्ष होने तथा कालान्तर में शबरी द्वारा राम को बदरी फल खिलाने का कथन), ३.१.२०९ - ३४(बदरी तीर्थ का माहात्म्य), ३.४५.२०(तापसों के बदरी लोक को प्राप्त करने का उल्लेख), ४.१(बदरी द्रुम रूप धारी कन्या की प्रशंसा व महिमा), ४.२(बदर राजर्षि की महिमा, हेमानल असुर की पराजय, चन्द्रमा से प्राप्त चन्द्रकान्त मणि का जल में प्रक्षेप करने से हिमगिरि की उत्पत्ति आदि), ४.३(हेमानल असुर के निग्रह हेतु माणिकीश्री का बदरी वृक्ष बनना, राजा बदर का बदरफल तथा नर का बदर बीज तथा कृष्ण का फलगर्भ बनना), ४.४(बदर नृप द्वारा स्वदेह को कृष्ण हेतु उपयोगी बनाने की इच्छा से देह त्याग करना, देह का रस रूप होकर बदरी वृक्ष में लीन होना व बदर फल बनना), ४.५(बदरी माहात्म्य), ४.६.८३(श्राद्ध, तर्पण आदि में बदरी वृक्ष व बदरी फल का महत्त्व), ४.७(बदरी यात्रा को प्रस्थित दाराभाग्य नृप व प्रजाजनों की परीक्षा हेतु नारायण, नर व बदरीश्री द्वारा रुग्ण साधु - द्वय तथा उनकी पत्नी का रूप धारण करने का वृत्तान्त), ४.८(ब्रह्मदेव विप्र व उसकी पत्नी द्वारा बदरी व्रत के चीर्णन से पुत्र प्राप्ति का वृत्तान्त ; बदरी व्रत की विधि), ४.९(बालयोगिनी रूप धारी बदरीश्री द्वारा सुरेश्वरी विप्राणी को ब्रह्मभाव का उपदेश, बालयोगिनी गीता का आरम्भ), ४.३६.६९(बद्रिकायन ऋषि द्वारा पांच कन्याओं के निर्मोहत्व की परीक्षा के लिए सुन्दर रूप धारण करने का वृत्तान्त), ४.३७(बद्रिकायन ऋषि द्वारा पांच कन्याओं के भ्राताओं, माता व पिता के निर्मोहत्व की परीक्षा, मूकत्व शाप की प्राप्ति तथा शाप से मुक्ति), ४.१०१.९६(कृष्ण की ११२ पटरानियों में से एक, बदर व पत्रावली - माता), कथासरित् १.७.५३(देवदत्त द्वारा बदरिकाश्रम में तप ) badaree/ badari
बधीर लक्ष्मीनारायण २.५७.४७(यम - दूत बधीर द्वारा महाशैल का रूप धारण कर असीरक व पेगन् दैत्यों के वध का कथन )
बन्दी गर्ग २.२०.१०१(गोपी, राधा को ताटङ्क भेंट), स्कन्द २.८.८.२४(बन्दी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य : बन्दी देवी के स्मरण मात्र से निगडादि बन्धन से मुक्ति), ४.२.८३.८४(बन्दी तीर्थ का माहात्म्य), ४.२.९७.१३६(बन्दीश्वर कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य), महाभारत अनुशासन ४८.१२(बन्दी सन्तान की परिभाषा), लक्ष्मीनारायण ४.७३(जयमान नामक बन्दी द्वारा वज्रविक्रम नृप का कृष्ण से तादात्म्य स्थापित कर स्तुति गान, राजा को विवेक प्राप्ति आदि), कथासरित् १२.४.२३७(मनोरथसिद्धि नामक बन्दी की सहायता से राजा को हंसावली की प्राप्ति ) bandee/ bandi
बिन्दुला लक्ष्मीनारायण १.४५४.१७(भ्रष्ट आचार वाले विदुर द्विज की सती पत्नी बिन्दुला द्वारा पति आज्ञा के पालन से पातिव्रत्य व्रत की रक्षा का वृत्तान्त ) ‹
बन्ध वायु १०२.५८/२.४०.५८(अज्ञान के हेतु ३ बन्धों का कथन), स्कन्द ४.१.४१.७९, ४.१.४१.१८०(काशी में उड्डीयान, जालन्धर व मूल बन्धों के स्वरूप का कथन), योगवासिष्ठ ३.१(बन्ध हेतु के अन्तर्गत द्रष्टा व दृश्य की सत्ता के बन्धन होने का वर्णन), ३.३(बन्ध हेतु वर्णन नामक सर्ग), लक्ष्मीनारायण ४.२६.६२(एकरूप, बहुरूप आदि कृष्ण की शरण से बन्ध नाश का उल्लेख ), द्र. बलबन्ध, मणिबन्ध, सेतुबन्ध bandha
बन्धन अग्नि ३४८.७(उद्बन्धन अर्थ में ठ अक्षर का प्रयोग), गर्ग ७.१२(बन्धन से मुक्ति का उपाय : अगस्त्य - प्रद्युम्न संवाद), मत्स्य २२७.२०८(बन्धन से पलायन करने पर अष्ट गुना दण्ड का विधान), वायु १०१.१५४/ २.३९.१५४(बन्धन रक्षक? द्वारा प्राप्त नरक यातनाओं का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.४४.६१(विभिन्न प्रकार के बन्धनों के नाम), कथासरित् ६.८.५८(अपनी ही उद्दण्डता के कारण कलिङ्गसेना को बन्धकी/व्यभिचारिणी विशेषण की प्राप्ति ) bandhana
बन्धु ब्रह्माण्ड ३.४.१.८५(रोहित संज्ञक गण के १० देवों में से एक), भागवत ९.२.३०(वेगवान् - पुत्र, तृणबिन्दु - पिता, मरुत्त वंश), वायु १००.९०/ २.३८.९०(रोहित संज्ञक गण के १० देवों में से एक), हरिवंश २.८१.१ (गुणसम्पन्न बन्धु - बान्धवों की प्राप्ति हेतु सप्तमी एकाशना), ऋग्वेद ३.६०.१ (बध्नन्ति फलेन संयोजयन्तीति बन्धवः कर्माणि -सायण भाष्यम्), योगवासिष्ठ ३.११४.२४(संकल्प के परम बन्ध होने का उल्लेख - संकल्पः परमो बन्धस्त्वसंकल्पो विमुक्तता), द्र. पद्मबन्धु, सुबन्धु bandhu
बन्धुजीव वामन १७(बन्धुजीव तरु की स्कन्द से उत्पत्ति), ६५.४४(वृक्ष, वानर द्वारा जल में प्रक्षेपण), लक्ष्मीनारायण २.२७.१०४(बन्धुजीव की स्कन्द से उत्पत्ति का उल्लेख ) bandhujeeva/ bandhujiva
बन्धुदत्त वामन ५७.९०(वाजिशिर द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), ५८.६७ (बन्धुदत्त द्वारा शूल से असुर संहार), ७३१०३?,
बन्धुमती कथासरित् २.६.६७(वत्सराज द्वारा राजपुत्री बन्धुमती से गान्धर्व विधि से विवाह), ९.६.१९८(महीपाल - पत्नी )
बन्धुमान् ब्रह्माण्ड २.३.८.३६(केवल - पुत्र, वेगवान् - पिता, मरुत्त वंश), २.३.६१.९(वही), २.३.७१.८७(भङ्गकार व नरा के २ पुत्रों में से एक, अक्रूर द्वारा वध का उल्लेख), भागवत ९.२.३०(केवल - पुत्र, वेगवान् - पिता, मरुत्त वंश), वायु ९६.८५/२.३४.८५(भङ्गकार व नरा के २ पुत्रों में से एक, अक्रूर द्वारा वध का उल्लेख ) bandhumaan
बन्धुमित्र कथासरित् ९.५.२०७(विद्याधर का मनुष्य योनि में धारित नाम, राजा कनकवर्ष का प्रत्युपकार )
बन्धूक अग्नि ८१.४९(वशीकरण आकर्षण हेतु होमद्रव्यों में से एक), नारद १.६७.६१(बन्धूक पुष्प को शिव को अर्पण का निषेध), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३५(ओष्ठ वर्ण के सौन्दर्य हेतु राधेश्वर को बन्धूक पुष्प अर्पण का उल्लेख ) bandhooka/ bandhuuka/ bandhuka
बभ्रु पद्म १.६.६७(सम्पाति - पुत्र, गृध्र, शीघ्रग - भ्राता), ब्रह्म १.१३.१४८(बभ्रुसेतु : द्रुह्यु - पुत्र, अङ्गारसेतु - पिता, ययाति वंश), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१३(देवावृध द्वारा पर्णाशा नदी से बभ्रु पुत्र प्राप्त करने का वृत्तान्त, बभ्रु के चरित्र की प्रशंसा), २.३.७१.८१(अक्रूर की बभ्रु संज्ञा, बभ्रु द्वारा स्यमन्तक मणि से प्राप्त धन से यज्ञ करने तथा स्यमन्तक मणि को कृष्ण से पुन: प्राप्त करने का वृत्तान्त), भागवत ९.२३.१४(द्रुह्यु - पुत्र, सेतु - पिता, ययाति वंश - द्रुह्योश्च तनयो बभ्रुः सेतुः तस्यात्मजस्ततः ॥), ९.२४.२(रोमपाद - पुत्र, कृति - पिता, विदर्भ वंश- रोमपादसुतो बभ्रुर्बभ्रोः कृतिरजायत॥), ९.२४.९(देवावृध व देवावृध - पुत्र बभ्रु के चरित्र की प्रशंसा, विदर्भ वंश), १२.७.३(अथर्व संहिताकार शुनक के २ शिष्यों में से एक - बभ्रुः शिष्योऽथांगिरसः सैन्धवायन एव च ।), मत्स्य ६.३५(पक्षी, सम्पाति – पुत्र, अन्य? नाम शीघ्रग - सम्पातिपुत्रो बभ्रुश्च शीघ्रगश्चापि विश्रुतः।।), ४४.५८(देवावृध व पर्णाशा - पुत्र , महिमा), १९९.७(कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों के गण में एक), वायु ९६.१५/२.३४.१५(देवावृध द्वारा सावित्री से बभ्रु पुत्र प्राप्त करने का वृत्तान्त, बभ्रु के चरित्र की प्रशंसा), ९९.७(द्रुह्यु के २ पुत्रों में से एक, रिपु - पिता), विष्णु ३.६.१२(शुनक के २ शिष्यों में से एक, शुनक से अथर्ववेद संहिता प्राप्ति का उल्लेख), ४.१२.३९(रोमपाद - पुत्र, धृति - पिता), ४.१३.५(देवावृध - पुत्र बभ्रु की प्रशंसा में श्लोक - यथैव शृणुमो दूरात्संपश्यामस्तथांतिकात्। बभ्रुः श्रेष्ठो मनुष्याणां देवैर्देवावृधस्समः॥), शिव ५.३६.५७(मनु - पुत्र वृषघ्न द्वारा गोरक्षा में शार्दूल शंका में बभ्रु का वध, शाप प्राप्ति - व्युष्टायां निशि चोत्थाय प्रगे तत्र गतो हि सः ।।अद्राक्षीत्स हतां बभ्रुं न व्याघ्रं दुःखितोऽभवत् ।।), स्कन्द १.२.५४.१४(महीसागर यात्रा में कृष्ण के सहचरों में से एक), ५.१.५६.५४(शनि के नामों में से एक), ७.१.२३७.८(इयं स्त्री पुत्रकामस्य बभ्रोरमिततेजसः ॥ ऋषयः साधु जानीत किमियं जनयिष्यति ॥), हरिवंश १.३७.११(देवावृध व पर्णाशा - पुत्र), वा.रामायण ४.४१.४३(पांच गन्धर्वराजों में से एक, ऋषभ पर्वतस्थ वन का रक्षक - तत्र गन्धर्वपतयः पञ्चसूर्यसमप्रभाः। शैलूषो ग्रामणीर्भिक्षुः शुभ्रो बभ्रुस्तथैव च॥), लक्ष्मीनारायण १.५६२.६२(बभ्रु द्वारा पिता के श्राद्ध में ऋषियों को आमिष भोजन प्रस्तुत करने पर भारद्वाज के शाप से व्याघ्र बनना, बभ्रु द्वारा ब्राह्मणों को ब्रह्मराक्षस बनने का शाप, नर्मदा में स्नान से मुक्ति ), द्र. बाभ्रव्य babhru
बभ्रु-(१) एक वृष्णिवंशी यादव, जो रैवतक पर्वत के महोत्सव में सम्मिलित थे ( आदि० २१८ । १० ) । यदुवंशियों के सात प्रधान महारथियों में एक ये भी थे । (सभा० १४ । ६० के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। द्वारका जाते समय इन तपस्वी बभ्रु की पत्नी को शिशुपाल ने हर लिया था (सौवीरान्प्रतियातां च बभ्रोरेष तपस्विनः। भार्यामभ्यहरन्मोहादकामां तामितो गताम्।।-सभा० ४५ । १०)। इयं स्त्री पुत्रकामस्य बभ्रोरमिततेजसः। ऋषयः साधु जानीत किमियं जनयिष्यति।।(मौसल २.६) इन्होंने भी श्रीकृष्ण के पास ही बने हुए पेय पदार्थ को पीया था (मौसल० ३ । १६-१७)। व्याध के बाण से लगे हुए एक मूसल द्वारा इनकी मृत्यु हुई थी (कूटे युक्तं मुसलं लुब्धकस्य।। ततो दृष्ट्वा निहतं बभ्रुमाह - मौसल. ४ । ५-६ ) । शान्तिपर्व के ८१ । १७ में अक्रूर के लिये भी बभ्रु शब्द का प्रयोग आया है - बभ्रूग्रसेनतो राज्यं नाप्नुं शक्यं कथंचन।। (२) श्रीकृष्ण के कृपापात्र काशी के नरेश । ये श्रीकृष्ण की कृपा से राज्यलक्ष्मी को प्राप्त हुए थे ( उद्योग० २८ । १३)। (३) ये मत्स्यनरेश विराट के एक वीर पुत्र थे ( उद्योग ५७ । ३३ ) । (४) महर्षि विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक (अनु० ४ । ५०)।
बभ्रुमाली-एक ऋषि, जो युधिष्ठिर की सभा में विराजमान होते हैं ( सभा० ४ । १६ )।
बभ्रवे – विश्वस्य भर्त्रे – ऋ.२.३३.८सायण भाष्य, अनवभ्रराधसः – अभ्रष्टहविरादिधनाः – ऋ. १.१६६.७सायणभाष्य
बभ्रुवाहन गरुड २.९.२(राजा बभ्रुवाहन द्वारा प्रेत के दर्शन, प्रेत का उद्धार, प्रेत द्वारा आत्मश्राद्ध का उपदेश), २.१७(राजा, मृगया काल में प्रेत दर्शन, प्रेत का उद्धार), ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८५(भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), भागवत ९.२२.३२(अर्जुन व मणिपूर नरेश की कन्या का पुत्र, बभ्रुवाहन के मणिपूर - नरेश का पुत्र माने जाने का उल्लेख), विष्णु ४.२०.५०(वही) babhruvaahana/ babhruvahana
बभ्रुवाहन - राजा चित्रवाहन की पुत्री चित्राङ्गदा के गर्भ से अर्जुन द्वारा उत्पन्न एक वीर राजा (आदि० २१६ । २४)। चित्रवाहन ने अर्जुन को अपनी कन्या देने से पहले ही यह शर्त रख दी थी कि इसके गर्भ से जो एक पुत्र हो, वह यहीं रहकर इस कुलपरम्परा का प्रवर्तक हो। इस कन्या के विवाह का यही शुल्क आपको देना होगा ।' 'तथास्तु' कहकर अर्जुन ने वैसा ही करने की प्रतिज्ञा की । पुत्र का जन्म हो जाने पर उसका नाम 'बभ्रुवाहन' रखा गया । उसे देखकर अर्जुन ने राजा चित्रवाहन से कहा-'महाराज ! इस बभ्रुवाहन को आप चित्राङ्गदा के शुल्करूप में ग्रहण कीजिये । इससे मैं आपके ऋण से मुक्त हो जाऊँगा ।' इसके अनुसार ये धर्मतः चित्रवाहन के पुत्र माने गये ( आदि० २१४ । २४-२६, आदि० २१६ । २४-२५) । अपने पिता अर्जुन को मणिपूर के समीप आया जान इनका बहुत-सा धन साथ में लेकर उनके दर्शन के लिये नगर के बाहर निकलना ( आश्व० ७९ । १)। क्षत्रियधर्म के अनुसार युद्ध न करने के कारण अर्जुन का इन्हें धिक्कारना (आश्व० ७९ । ३-७)। उलूपी के प्रोत्साहन देने पर इनका अर्जुन के साथ युद्ध करने के लिये उद्यत होना और अश्वमेधसम्बन्धी अश्व को पकड़वा लेना (आश्व० ७९ । ८-१७)। पिता और पुत्र में परस्पर अद्भुत युद्ध और बभ्रुवाहन का अर्जुन को मूर्छित करके स्वयं भी मूर्छित होना (आश्व० ७९ । १४-३७ ) । मूर्छा से जगने पर बभ्रुवाहन का विलाप और आमरण अनशन के लिये प्रतिज्ञा करके बैठना (आश्व० ८० । २१--४०) । उलूपी का बभ्रुवाहन को सान्त्वना देकर उनके हाथ में दिव्यमणि प्रदान करना और उसे पिता के वक्षःस्थल पर रखन के लिये आदेश देना ( आश्व० ८०। ४२-५०)। मणि के स्पर्श से जीवित हुए पिता को बभ्रुवाहन का प्रणाम करना और पिता का पुत्र को गले से लगाना (आश्व० ८० । ५१-५६ ) । अर्जुन का बभ्रुवाहन से युद्धस्थल में उलूपी और चित्राङ्गदा के उपस्थित होने का कारण पूछना और बभ्रुवाहन का उलूपी से ही पूछने की प्रार्थना करना (आश्व० ८० । ५७-६१)। उलूपी से सब समाचार सुनकर प्रसन्न हुए अर्जुन का बभ्रुवाहन को अपनी दोनों माताओं के साथ युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में आनेके लिये निमन्त्रण देना (आश्व० ८१।१-२४)। पिता की आज्ञा शिरोधार्य करके बभ्रुवाहन का पिता से नगर में चलने के लिये अनुरोध करना और अर्जुन का कहीं भी ठहरने का नियम नहीं है। ऐसा कहकर पुत्र से सत्कारपूर्वक विदा ले वहाँ से प्रस्थान करना ( आश्व० ८१ । २६-३२) । अर्जुन का संदेश सुनाते हुए श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर से राजा बभ्रुवाहन के भावी आगमन की चर्चा करना (आश्व० ८६ । १८-२०)। माताओं सहित बभ्रुवाहन का कुरुदेश में आगमन और गुरुजनों को प्रणाम करके उनका कुन्ती के भवन में प्रवेश (आश्व० ८७ । २६-२८)। माताओं सहित बभ्रुवाहन का कुन्ती, द्रौपदी और सुभद्रा आदि के चरणों में प्रणाम करना और उन सबके द्वारा रत्न-आभूषण आदि से सम्मानित होना (आश्व० ८८ । १-५) । अन्तःपुर से आकर बभ्रुवाहन का राजा धृतराष्ट्र, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणाम करना और उन सबके द्वारा धन आदि से सत्कृत होना । श्रीकृष्ण का बभ्रुवाहन को दिव्य अश्वों से जुता हुआ सुवर्णमय रथ प्रदान करना (आश्व० ८८ । ६-११)। राजा युधिष्ठिर का बभ्रुवाहन को बहुत धन देकर विदा करना (आश्व० ८९ । ३४) । महाभारतमें आये हुए बभ्रुवाहनके नाम-बभ्रुवाह, चित्राङ्गदासुत, चित्राङ्गदात्मज, धनंजयसुत, मणिपूरपति, मणिपूरेश्वर आदि ।
बर्करी स्कन्द १.२.३९.७०(महीसागर सङ्गम में पतित बर्करी का सङ्गम के पुण्य प्रभाव से शतशृङ्ग नृप की कुमारिका नामक कन्या के रूप रूप में जन्म, कुमारी द्वारा बर्करी मुख की प्राप्ति, सङ्गम स्नान से सुन्दर मुख प्राप्ति का वृत्तान्त), ४.१.४७(बर्करी कुण्ड : उत्तरार्क कुण्ड का उपनाम), ४.१.४७(सुलक्षणा के तप में सहायक, शिव वरदान से काशिराज - कन्या), लक्ष्मीनारायण १.४२३.२०(राधा की दासी चित्रलेखा का शापवश पृथिवी पर बर्करी रूप में जन्म लेना, तीर्थ में मरण के प्रभाव से राजा शतशतङ्ग की अजामुखी कन्या के रूप में जन्म लेना, अजामुखत्व से मुक्ति का वृत्तान्त, कालान्तर में उषा - सखी चित्रलेखा बनना ), द्र. अजामुखी barkaree/ barkari
बर्बर गणेश २.६३.४०(कृत्या द्वारा बन्धित शुक्राचार्य का बर्बर देश में त्याग), पद्म ६.९९.३३(राहु का नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४९(उत्तर के जनपदों में से एक), १.२.१६.६५(विन्ध्य पृष्ठ के जनपदों में से एक), भागवत ९.८.५(सगर द्वारा बर्बर आदि जातियों को परास्त करने का उल्लेख), मत्स्य १६.१६(श्राद्ध काल में वर्जित जातियों में से एक), १२१.४५(चक्षु आदि नदियों द्वारा बर्बर आदि म्लेच्छ जनपदों को प्लावित करने का कथन), १४४.५७(कल्कि अवतार/प्रमति द्वारा बर्बर आदि जातियों के हनन का उल्लेख), वायु ४५.११८(उत्तर के देशों में से एक), ४७.४२(सीता नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), ५८.८३(कल्कि? अवतार द्वारा हनन किए गए जनपदों में से एक), ९८.१०८/२.३६.१०८(कल्कि अवतार द्वारा नष्ट किए गए जनपदों में से एक ) barbara
बर्बरी पद्म ६.१०५.६(मालती द्वारा धारित नाम), वायु २३.१९३/ १.२३.१८२(वर्वरि : २०वें द्वापर में अट्टहास नामक अवतार के पुत्रों में से एक), शिव २.५.२६.५१(लक्ष्मी - प्रदत्त बीज से बर्बरी वृक्ष की उत्पत्ति का कथन), ३.५.२७(२०वें द्वापर में अट्टहास नामक शिव अवतार के पुत्रों में से एक), स्कन्द १.२.३७.१(अपर संज्ञा कुमारी नाम वाले बर्बरी तीर्थ के माहात्म्य का आरम्भ), १.२.६२.३१(क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक), २.४.२३.६(लक्ष्मी द्वारा ईर्ष्या सहित प्रदत्त बीजों से उत्पन्न बर्बरी/मालती वनस्पति का कथन ) barbaree/ barbari
बर्बरीक स्कन्द १.२.६०+ (घटोत्कच व कामकटंकटा - पुत्र, कृष्ण द्वारा चातुर्वर्ण धर्म का कथन , देवी आराधना का आदेश, सुह्रदय नामकरण, विजय ब्राह्मण की साधना में सहायक), १.२.६४(बर्बरीक का भीम से युद्ध , चण्डिल नाम प्राप्ति), १.२.६६.५९(यक्ष सूर्यवर्चा का अंश ) barbareeka/ barbarika
बर्बुर लक्ष्मीनारायण १.१५५.५२(अलक्ष्मी के बर्बुर वृक्ष सदृश हस्त का उल्लेख), २.२३६.२३(बर्बुर नृप द्वारा वन में अश्व रूप धारी मुनि का ग्रहण, अश्व द्वारा नृप को बर्बुर वृक्ष बनने का शाप, कृष्ण द्वारा बर्बुर वृक्ष की मुक्ति का वृत्तान्त), ४.२९.१०९(कृतघ्ना का बर्बुर अरण्य में जाने का उल्लेख ) barbura
बर्हण देवीभागवत ७.९.३८(बर्हणाश्व : निकुम्भ - पुत्र, कृशाश्व - पिता), भागवत ९.६.२५(निकुम्भ - पुत्र, इक्ष्वाकु वंश), वामन ९०.१६(बर्हण तीर्थ में विष्णु का कार्तिकेय नाम से वास ) barhana
बर्हि ब्रह्माण्ड २.३.६३.१४७(बर्हिकेतु : कपिल की क्रोधाग्नि से सुरक्षित बचे सगर के ४ पुत्रों में से एक), भागवत ३.२२.३१(वराह के रोमों से बर्हि की उत्पत्ति का कथन - न्यपतन्यत्र रोमाणि यज्ञस्याङ्गं विधुन्वतः ॥ कुशाः काशास्त एवासन् शश्वद्धरितवर्चसः ।), ९.१२.१३(बृहद्राज - पुत्र, कृतञ्जय - पिता, भविष्य के नृपों में से एक), मत्स्य १५.२(विभ्राज नामक लोकों में बर्हिणयुक्त विमानों की स्थिति का उल्लेख), १९६.१३(बर्हिसादी : आङ्गिरस गोत्र के प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), १९९.४(बर्हियोगगदायन : कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), वायु ४८.१२(भारतवर्ष के दक्षिण में बर्हिण द्वीप के पर्वों के रूप में क्षुद्र द्वीप समूह का उल्लेख), ८८.१४९/२.२६.१४८(बर्हिकेतु : कपिल की क्रोधाग्नि से सुरक्षित बचे सगर के ४ पुत्रों में से एक), विष्णु ३.१८.२(मायामोह नामक बर्हिपिच्छधारी दिगम्बर द्विज द्वारा तपोरत असुरों को वेद मार्ग से भ्रष्ट करने का वृत्तान्त ), द्र. प्राचीनबर्हि barhi
बर्हिष मत्स्य १५.२(विभ्राज लोकों में संकल्प द्वारा संचालित बर्हिषों की स्थिति का उल्लेख), ५१.२४(होत्रिय अग्नि, हव्यवाहन - पिता ), द्र. कम्बलबर्हिष, चित्रबर्ह, प्राचीनबर्हि barhisha
बर्हिषद् गरुड १.८९.४१(पितर, दक्षिण दिशा की रक्षा - अग्निष्वात्ताः पितृगणाः प्राचीं रक्षन्तु मे दिशम् ॥ तथा बर्हिषदः पान्तु याम्यां मे पितरः सदा ॥), गर्ग ४.१४.३२(रङ्गोजि गोप की नगरी का नाम), ब्रह्माण्ड १.२.१३.७(अग्निहोत्र करने वाले पितरों का नाम), १.२.१३.२९(पितरों के २ मुख्य भेदों अग्निष्वात्त व बर्हिषद का कथन), १.२.१३.३२(बर्हिषद् पितरों व स्वधा से उत्पन्न २ कन्याओं धारणी व मानसी का कथन), १.२.१३.३३(बर्हिषद पितरों के सोमपायी होने का उल्लेख), १.२.२३.७६(४ प्रकार के पितरों में बर्हिषद पितरों के मास रूप होने का उल्लेख), १.२.२८.१५(४ प्रकार के पितरों का कथन, पितरों का अर्धमास, मास, अयन आदि के साथ तादात्म्य तथा पितामह, प्रपितामह संज्ञा), १.२.२८.७२(हविर्यज्ञ करने वालों के बर्हिषद पितर बनने का कथन?), २.३.१०.५३(बर्हिषद पितरों की मानसी कन्या अच्छोदा का वृत्तान्त), भागवत ४.२४.८(हविर्धान - पुत्र, प्राचीनबर्हि उपनाम, शतद्रुति - पति, १० प्रचेताओं का पिता), मत्स्य १५.१(विभ्राज नामक लोकों में बर्हिषद् पितरों की स्थिति का उल्लेख), १०२.२१(स्नान कर्म के संदर्भ में तर्पणीय पितरों के ७ प्रकारों में से एक), १२६.६८(पितरों के ४ प्रकारों में एक), १४१.३(पुरूरवा द्वारा पितरों की तृप्ति के संदर्भ में पितरों के ४ प्रकारों में से एक), १४१.१५(हविर्यज्ञ करने वाले गृहस्थों के बर्हिषद् पितर होने का उल्लेख), वायु ३०.६(पितर, अग्निहोत्री), ५२.६८(पितर, मासों का रूप - संवत्सरास्तु वै कव्याः पञ्चाब्दा ये द्विजैः स्मृताः। सौम्यास्तु ऋतवो ज्ञेया मासा बर्हिषदः स्मृताः।), ५६.१३(पुरूरवा द्वारा पितरों को प्रतिमास सुधा से तृप्त करने के संदर्भ में ४ प्रकार के पितरों का वर्णन), ५६.६७/१.५६.६४(यजन करने वालों के बर्हिषद पितर बनने का उल्लेख?), ११०.१०/२.४८.१०(गया में श्राद्ध के समय आहूत पितरों के ३ प्रकारों में से एक), विष्णु १.१०.१८(अनग्निक व साग्निक रूप से अग्निष्वात्त व बर्हिषद् पितरों के भेद का कथन), २.१२.१३(अमावास्या को नि:सृत सुधा से ३ प्रकार के पितरों की तृप्ति का कथन), शिव ७.१.१७.४७(२ प्रकार के पितरों में से एक, धरणी कन्या के पति), स्कन्द ५.१.५८.२४(पितर , दक्षिण दिशा में वास), हरिवंश १.१८.४६(पितरों का गण, वंश वर्णन), लक्ष्मीनारायण ३.४१.८९(चन्द्र पिता, रवि पितामह तथा अग्नि प्रपितामह का क्रम से सोमप, बर्हिषद् व अग्निष्वात्त नामोल्लेख - चन्द्रः पिता रविः पितामहोऽग्निः प्रपितामहः ।। सोमपश्च बर्हिषच्च अग्निष्वात्तश्च ते क्रमात् । ) barhishad
बर्हिषाङ्गद लक्ष्मीनारायण १.५७(हाटकाङ्गद उपनाम, खट्वाङ्गद राजा से बर्हिषाङ्गद की उत्पत्ति की कथा, ऋषि के गले में मृत सर्प डालना, परीक्षित् की कथा से साम्य), लक्ष्मीनारायण १.५७(बर्हिषाङ्गद की खट्वाङ्गद राजा से उत्पत्ति की कथा, ऋषि के गले में मृत सर्प डालना, परीक्षित की कथा से साम्य),
बर्हिष्मती गर्ग ४.१५.३(बर्हिष्मतीपुरी की जातिस्मरा वनिताओं का कृष्ण के साथ रास - विलास), ५.१८.१(बर्हिष्मती पुरी की गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), देवीभागवत ८.४.३(विश्वकर्मा प्रजापति की कन्या, प्रियव्रत - पत्नी, १० अग्नि संज्ञक पुत्र), भागवत ३.२२.२९(मनु की राजधानी बर्हिष्मती के बर्हिष्मती नाम के कारण का कथन), ५.१.२४(विश्वकर्मा - पुत्री, प्रियव्रत - भार्या, आग्नीध्र आदि पुत्रों की माता ) barhishmatee/ barhishmati
बल अग्नि ३४८.६(ञ अक्षर के बलवाचक होने का उल्लेख), ३४८.११(र अक्षर के अग्नि, बल व इन्द्र का वाचक होने का उल्लेख), गरुड १.६८(असुर , पशुता त्याग पर शरीर अवयवों का रत्न बनना ), ३.९.४(१५ अजान देवों में से एक), देवीभागवत ८.१९.१(मय - पुत्र, अतल नामक विवर में स्थिति), नारद १.६६.९६(बलानुज विष्णु की शक्ति परायणा का उल्लेख), १.६६.९६(बली विष्णु की शक्ति परा का उल्लेख), १.६६.११७(बलीश की शक्ति सुमुखेश्वरी का उल्लेख), पद्म १.६७.२९(देव - दानव युद्ध में इन्द्र द्वारा बल का वध), २.२३(दिति व कश्यप से बल की उत्पत्ति, सन्ध्या रत बल का इन्द्र द्वारा वध), ६.६(प्रभावती - पति, जालन्धर - सेनानी, इन्द्र द्वारा वध पर शरीर से रत्नों की उत्पत्ति), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४३(बल सौन्दर्य हेतु धत्तूर कुसुमाकार रत्न पात्र दान का उल्लेख), ३.३५.८७(गृहस्थ का बल धर्म, वृक्ष का फल, बाल का रोदन आदि आदि), ब्रह्माण्ड १.२.११.३(श्री व नारायण के २ पुत्रों में से एक, तेज - पिता), २.३.६.३१(अनायुषा के ५ दैत्य पुत्रों में से एक, निकुम्भ व चक्रवर्मा - पिता), २.३.७.२३६(बलसागर : वाली के सेनानायक प्रधान वानरों में से एक), २.३.७.४५१(शुकी व गरुड के ६ पुत्रों में से एक), २.३.७.४६५ (दिति की बलशीला प्रकृति का उल्लेख), २.३.६३.२०४(दल - पुत्र, उलूक - पिता, कुश वंश), ३.४.३६.५२(बलसिद्धि : कईं सिद्धियों में से एक), भविष्य ३.४.१८.१७(संज्ञा विवाह प्रकरण में बल का शक्र से युद्ध), भागवत ५.२४.१६(मय - पुत्र, बल के जृम्भण से कामिनी स्त्रियों की उत्पत्ति), ८.११.२८(इन्द्र द्वारा बल का वध), ८.२१.१६(विष्णु के पार्षदों में से एक), ९.१२.२(बलस्थल : पारियात्र - पुत्र, वज्रनाभ - पिता), ९.१९.३९(प्राणायाम के परम बल होने का उल्लेख), ९.२४.४६(वसुदेव व रोहिणी के पुत्रों में से एक), १०.६१.१५(माद्री/लक्ष्मणा व कृष्ण के पुत्रों में से एक), ११.१६.३२(भगवान की विभूति के वर्णनान्तर्गत भगवान के बलवानों में ओज, सह होने का उल्लेख), ११.१९.३९(प्राणायाम के श्रेष्ठ बल रूप होने का उल्लेख), मत्स्य ४.४५(हविर्धान व आग्नेयी के ६ पुत्रों में से एक), १४५.१११(१३ ब्रह्मिष्ठ कौशिक ऋषियों में से एक), १७१.४३(धर्म व साध्या के साध्य संज्ञक पुत्रों में से एक), २००.१२(बलेक्षव : वसिष्ठ वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), मार्कण्डेय १००.३७/९७.३७(वैवस्वत मन्वन्तर के श्रवण से बल प्राप्ति का उल्लेख), वामन ९.३०(अन्धकासुर - सेनानी), ६९.१८(वही), वायु २८.२(श्री व नारायण के २ पुत्रों में से एक), ८८.२०४/२.२६.२०३(दल - पुत्र, औक - पिता, कुश वंश), विष्णु ४.१.२०(बलन्धन : नाभाग - पुत्र, वत्सप्रीति - पिता), विष्णुधर्मोत्तर ३.७३(यम पुत्र, मूर्ति रूप), शिव ४.२०.३०(कर्कटी व कुम्भकर्ण - पुत्र भीम द्वारा ब्रह्मा से अतुल बल रूप वरदान की प्राप्ति), स्कन्द ४.२.६१.१८९(महाबल नृसिंह विष्णु का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६९.१४(महाबल लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.७९.१९(बल में हनुमान की अतुलनीयता का उल्लेख), हरिवंश ३.४९.३२(बलि - सेनानी, रथ का वर्णन), ३.५३.७(बल का ध्रुव वसु से युद्ध), ३.५३.१८(वृत्र - भ्राता, मृगव्याध रुद्र से युद्ध), ३.५८.३०(बल असुर का मृगव्याध से युद्ध), महाभारत सभा १५.१३(कृष्ण में नय, अर्जुन में जय तथा भीम में बल होने का उल्लेख), उद्योग ३७.५२(बाहुबल आदि ५ बलों के नाम), ३९.६९(तापसों का बल तप, ब्रह्मविदों का ब्रह्म, असाधुओं का हिंसा और गुणियों का क्षमा होने का उल्लेख), शान्ति ३२९.१२(क्षमा के परम बल होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.८०(राजा बलेशवर्मा द्वारा तारकायन ऋषि की कृपा प्राप्त करना, कृष्ण द्वारा तामस वनवासी रूप धारण कर राजा की परीक्षा का वृत्तान्त), २.८१(बलेशवर्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति, कृष्ण द्वारा बलेशवर्मा व उसके पुत्र - पुत्रियों के दिव्य अंशावतारों के नामों का कथन, राजा आदि द्वारा द्वेधा रूप धारण कर निवास), २.१०६.४९(राजा दक्षजवंगर के वैष्णव यज्ञ में बलायन के उद्गाता ऋत्विज बनने का उल्लेख), ३.१६१(ललिता लक्ष्मी के द्वारपालों बल व प्रबल में से बल का ललिता की सखियों के असंयत आवागमन से क्रुद्ध होना, ललिता की सखियों द्वारा दानव होने का शाप, दिति - पुत्र बल द्वारा तपस्या से बल की प्राप्ति पर देवों पर विजय, देवों को वरदान स्वरूप समित् में परिणत होना, समित् का रत्नों में परिवर्तित होना), कथासरित् २.२.२१(महाबल उपेन्द्रबल : श्रीदत्त का मित्र), ९.२.३४(बलसेन : क्षत्रिय, अशोकमाला - पिता), १०.२.५७(बलवर्मा : चन्द्रश्री - पति, पत्नी के व्यभिचार तथा सती होने की कथा), १२.५.२११(देवभूति की कथा में बलासुर धोबी ), द्र. कुशीबल, नागबला, महाबल bala
बलक ब्रह्माण्ड २.३.७.१२९(देवजनी व मणिवर के यक्ष गुह्यक पुत्रों में से एक), वायु ६८.९/२.७.९(दनु के प्रधान असुर पुत्रों में से एक), विष्णु ४.२४.३(बलाक : प्रद्योत - पुत्र, विशाखयूप - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक ) balaka
बलखानि भविष्य ३.३.१.२३(वत्सराज - पुत्र, युधिष्ठिर का अंश), ३.३.१२.२८(कृष्णांश की सेना में हयों का अधिपति), ३.३.१२.३२(देवी को प्रसन्न करने के लिए बलखानि द्वारा कांस्य / मंजीरे धारण), ३.३.१५.१०(देवी द्वारा कुण्ड भरण की परीक्षा, दीर्घजीवी होने का वर), ३.३.१६.१०(गजसेना - कन्या गजमुक्ता द्वारा स्वयंवर में बलखानि का वरण, गजसेन द्वारा यातनाएं), ३.३.२४.८३(चामुण्ड द्वारा आक्रमण करने पर चामुण्ड को पराजित कर अपमानित करना), ३.३.२५.४८(पृथ्वी राज से युद्ध , १२ गर्त्त पार करते समय चामुण्ड द्वारा बलखानि का वध ) balakhaani/ balakhani
बलद कथासरित् ७.३.१५४(बल, सोमदा योगिनी के प्रभाव से बलद रूप धारण )
बलदेव देवीभागवत ४.२२.३१(अनन्त का अंश), ७.८.४१(वासुदेव - अग्रज, शेषांश, रेवत - कन्या रेवती से विवाह), ब्रह्म १.९०(गोपियों के साथ विहार, यमुना का कर्षण , रेवती से विवाह), १.९२(रुक्मी से द्यूत क्रीडा , रुक्मी का वध), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९(बलदेव के जन्म की कथा, गर्भ स्थान्तरण), ४.१०४.८८(बलदेव द्वारा उग्रसेन के राज्याभिषेक के समय पारिजात माला, रत्न, छत्र आदि भेंट करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.६१(रेवती प्रदान), भविष्य १.१३८.३८(बलदेव की काल ध्वज का उल्लेख), भागवत ९.३.३३(ब्रह्मा द्वारा रैवत ककुद्मी को स्वकन्या रेवती को नारायण के अंश बलदेव को प्रदान करने का निर्देश), मार्कण्डेय ६(बलदेव द्वारा सूत की हत्या), वायु ८६.२९/२.२४.२९(ककुद्मी द्वारा स्वकन्या रेवती बलदेव को देने का कथन), विष्णु ४.१.९१(केशवांश , रेवती से विवाह की कथा), ४.१३.१०६(दुर्योधन द्वारा बलदेव से गदा की शिक्षा का ग्रहण), स्कन्द ३.१.१९ (सूत वध से बलभद्र को ब्रह्महत्या की प्राप्ति, ब्रह्महत्या से निवृत्ति हेतु उपाय, लक्ष्मणेश्वर लिङ्ग के दर्शन से मुक्ति का वर्णन), कथासरित् ५.१.५७(शक्तिदेव - पिता ) baladeva
बलदेवी स्कन्द ७.१.१७०(बलदेवी पूजन का संक्षिप्त माहात्म्य )
बलधर कथासरित् १२.२४.३५(उन्मादिनी - पति, यशोधन - सेनापति), १६.२.१३७(महीधर - पुत्र, संकल्प दोष से दाश कुल में जन्म, राजकन्या की प्राप्ति )
बलबन्धु ब्रह्माण्ड १.२.३६.६४(रैवत मनु के पुत्रों में से एक), २.३.७.२३९ (प्रधान वानरों में से एक), वायु २३.१४९/१.२३.१३८(दशम द्वापर में भृगु अवतार के ४ पुत्रों में से एक), ६२.५५/२.१.५५(पांचवें पर्याय में चरिष्णव मनु के पुत्रों में से एक), ६३.१६/२.२.१६(पञ्चम पर्याय? में बलबन्धु द्वारा तामस मनु को वत्स बनाकर पृथिवी रूपी गौ के दोहन का उल्लेख), विष्णु ३.१.२३(रैवत मनु के पुत्रों में से एक ), द्र मन्वन्तर balabandhu
बलभद्र गर्ग ८.१+ (दुर्योधन- गुरु प्राड~विपाक द्वारा बलभद्र की महिमा का वर्णन), ८.१३(बलभद्र सहस्रनाम), नारद २.५५.३३(पुरुषोत्तम क्षेत्र में बलभद्र पूजा विधि व स्वरूप), पद्म ७.१८.२२(जगन्नाथ क्षेत्र में कृष्ण, बलभद्र व सुभद्रा के दर्शन का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१३.८१(बलदेव के विभिन्न नामों की निरुक्तियां), भविष्य ३.२.१६.१६(चन्द्रशेखर - सेनापति, कामावरूथिनी - पति, राजा की मृत्यु पर मरण प्राप्ति), भागवत ५.२०.२६(शाक द्वीप के ७ पर्वतों में से एक), वायु ९६.८३/२.३४.८३(दुर्योधन द्वारा मिथिला में बलभद्र से गदा की शिक्षा की प्राप्ति, यादवों द्वारा बलभद्र को प्रसन्न करके द्वारका में लाने का कथन), विष्णु ४.१३.९९(बलभद्र के रुष्ट होकर मिथिला जाने व दुर्योधन को गदा की शिक्षा देने का वृत्तान्त), स्कन्द २.२.२७.३९(ब्रह्मा द्वारा बलभद्र की स्तुति), २.२.२८.४४ (बलराम के ऋग्वेद स्वरूप, सुभद्रा के यजुर्वेद स्वरूप, नृसिंह के सामवेद तथा चक्र के अथर्ववेद स्वरूप होने का उल्लेख), ३.१.१९(सूत की हत्या से बलभद्र को ब्रह्महत्या की प्राप्ति, बल्वल राक्षस का वध, तीर्थयात्रा, लक्ष्मण तीर्थ में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति), ४.२.८३.७७(बलभद्र तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.४६ (बलभद्र नामक राजा को अम्बूवीचि नामक मूक पुत्र की प्राप्ति, मूकत्व निरसन हेतु सरस्वती तीर्थ में गमन, स्नान व लिङ्गपूजन से मूकत्व से मुक्ति), ७.१.१८६(कृष्ण के देहत्याग पर बलभद्र का प्रभास में गमन, लिङ्ग स्थापन, नागरूप धारण कर पाताल में गमन, लिङ्ग की नागेश्वर नाम से प्रसिद्धि), ७.१.२२७(बलभद्रेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.२४०(बलभद्र सुभद्रा कृष्ण का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.१५७.१३४(ब्रह्मा द्वारा राजा रैवत ककुद्मी को स्वकन्या रेवती को बलभद्र को अर्पित करने का निर्देश), १.३९०.१०१(ब्रह्मा द्वारा राजा रैवत ककुद्मी को स्वकन्या रेवती को बलदेव को अर्पित करने का सुझाव), १.४१६(अनन्त - पत्नी नागलक्ष्मी का चाक्षुष मनु - पुत्री ज्योतिष्मती के रूप में जन्म लेकर अनन्त को पति रूप में प्राप्त करने हेतु तप का वृत्तान्त, पुन: ज्योतिष्मती का रेवत - कन्या रेवती के रूप में जन्म लेकर बलराम को पति रूप में प्राप्त करना ) balabhadra
बलराम गर्ग ५.२४(बलराम द्वारा कोल दैत्य का वध), ८.५.८(बलराम के प्राकट्य के समय में ग्रहों की स्थिति), ८.९(व्रज में बलराम की रासलीला का वर्णन, हलाग्र से यमुना का कर्षण), ८.१०(बलराम पूजा पद्धति व पटल), ८.१२(गर्ग प्रोक्त बलराम कवच), नारद १.६६.९६(बलानुज विष्णु की शक्ति परायणा का उल्लेख), पद्म ६.१९८(कथा वक्ता सूत का वध, मुनियों के अनुरोध पर बल्वल असुर का वध), ७.१८.२२(जगन्नाथ क्षेत्र में कृष्ण, बलभद्र व सुभद्रा के दर्शन का माहात्म्य), ब्रह्म १.८७(जरासन्ध के साथ बलराम व कृष्ण के युद्ध का वर्णन), १.८९(बलराम का गोकुल में प्रत्यागमन), १.९०(बलराम की क्रीडा का वर्णन), १.९२(बलराम की रुक्मी के साथ द्यूतक्रीडा, रुक्मी का वध), १.९९(साम्ब की कौरवों के बन्धन से मुक्ति हेतु हस्तिनापुर का हल से कर्षण), भागवत ४.५.२१(वीरभद्र द्वारा पूषा के दांत तोडने की बलराम द्वारा कलिङ्गराज के दांत तोडने से तुलना), ६.८.१८(नारायण कवच के अन्तर्गत बलराम से गण/मनुष्यकृत कष्टों से रक्षा की प्रार्थना), १०.१५.२३(बलराम द्वारा धेनुकासुर के वध का वृत्तान्त), १०.१८.२४(बलराम द्वारा प्रलम्बासुर के वध का वृत्तान्त), १०.३४.३२(कृष्ण द्वारा शङ्खचूड यक्ष के सिर की मणि निकाल कर बलराम को देने का कथन), १०.४३.४०(बलराम के मुष्टिक से युद्ध का उल्लेख), १०.४४.२४ (बलराम द्वारा मुष्टिक व कूट के वध का वृत्तान्त), १०.४४.४०(बलराम द्वारा कंस के ८ भ्राताओं के वध का कथन), १०.६५(द्वारका से व्रज में गमन, गोपियों से वार्तालाप, यमुना का हल से कर्षण), १०.६८(साम्ब की मुक्ति हेतु हस्तिनापुर का हल द्वारा कर्षण), १०.७८(कुशाग्र द्वारा रोमहर्षण का वध, ब्रह्महत्या प्राप्ति), १०.७९(तीर्थयात्रा), ११.३०(समाधि), विष्णु ४.१.९१(राजा रैवत ककुद्मी द्वारा स्वकन्या रेवती को बलदेव को प्रदान करने तथा बलराम द्वारा हलाग्र से कर्षण करके रेवती को ह्रस्व करने का कथन), ५.२५.३(बलराम द्वारा वारुणी के पान तथा क्रुद्ध होकर यमुना के कर्षण का वृत्तान्त), ५.२५.१९(रेवती - पति, निशित व उल्मुक - पिता), ५.३५(साम्ब को कौरवों के बन्धन से मुक्त कराना, हस्तिनापुर का हलाग्र से कर्षण), स्कन्द २.२.१९.२१(बलराम की मूर्ति को शंख और इन्दु के समान धवल वर्ण में चित्रित करने का उल्लेख), ५.१.२७.७२ (बलराम व कृष्ण के जन्म कर्म का निरूपण : सान्दीपनि की गुरुदक्षिणा हेतु राम - कृष्ण का यमलोक गमन, शङ्खासुर का वध, गुरु - पुत्र का मोचन, पुत्र रूप में गुरु दक्षिणा प्रदान का वृत्तान्त), ७.१.२०२(महाभारत युद्ध समय में बलराम द्वारा तीर्थ यात्रा, सूत हत्या पातक प्राप्ति व निवृत्ति), हरिवंश २.१३+ (तालवन में धेनुकासुर का वध , पुन: प्रलम्ब वध), २.१४.३४(कृष्ण द्वारा बलराम की महिमा का वर्णन), २.४१(वारुणी , कान्ति व श्री का अङ्गीकरण), २.४३.५९(बलराम द्वारा दरद का वध), २.४६(यमुना का हल से कर्षण), २.६१(रुक्मी का वध), २.६२(बलराम का माहात्म्य , हस्तिनापुर को गङ्गा में गिराने का प्रयत्न), ३.९८(बलराम का एकलव्य से युद्ध ) balaraama/ balarama
बललीन लक्ष्मीनारायण २.१६७.३५(बललीन नृप का जरा मौन ऋषि के साथ यज्ञ में आने का उल्लेख), २.१९२.१०३+ (श्रीकृष्ण का जरा मौन ऋषि के साथ राजा बललीन की नगरी में आगमन व राजा आदि द्वारा कृष्ण का सत्कार, कृष्ण द्वारा उपदेश आदि का वर्णन )
बलवर्धन भविष्य ३.३.२०.१(पाञ्चाल देशाधिपति व जलदेवी - पति बलवर्धन द्वारा लहर व मयूरध्वज पुत्रों की प्राप्ति का उल्लेख )
बला नारद १.५०.३६(संगीत में देवताओं की सात मूर्च्छनाओं में से एक), ब्रह्माण्ड २.३.८.७५(भद्राश्व व घृताची से उत्पन्न १० अप्सराओं में से एक, अत्रि? की १० पत्नियों में से एक), मत्स्य १७९.१२(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), २६७.१२(महास्नान हेतु प्रयुक्त ८ ओषधियों में से एक), स्कन्द ५.३.२१४.७(वणिक् द्वारा बलाका से लिङ्ग पूरण, बलाकेश्वर लिङ्ग पूजन से रुद्रलोक की प्राप्ति), वा.रामायण १.२२.१३(बला - अतिबला विद्याएं, राम द्वारा विश्वामित्र से बला व अतिबला विद्याओं का ग्रहण ) balaa
बलाक अग्नि ३०८.६(शक्रवेश्म नामक यन्त्र के अन्तर्गत पूर्व द्वार पर श्री - दूती बलाकी का ध्यान), गरुड २.२.८०(क्षीरहारी के बलाक बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२२.३६(बलाक नामक मेघ के गुणों का कथन), भागवत ९.१५.३(पूरु - पुत्र, अजक - पिता?, पुरूरवा वंश), १२.६.५८ (जातूकर्ण्य के शिष्यों में से एक), मत्स्य १९१.१९(नर्मदा तटवर्ती बलाकेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : सिंहासन प्राप्ति), मार्कण्डेय १५.२२(दुष्कृत्य के फलस्वरूप बलाक योनि की प्राप्ति का उल्लेख), ६९(बलाक द्वारा विप्र - पत्नी का अपहरण), विष्णु ३.४.२४(शाकपूर्ण के ३ शिष्यों में से एक, गुरु से संहिता ग्रहण), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२१(दधि हरण से बलाका योनि प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ४.१.४५.३१(बलाकास्या : ६४ योगिनियों में से एक), ५.३.२१४.६(बलाकेश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य), हरिवंश ४.४.२४(अविधि पूर्वक कथा श्रवण पर बलाक योनि की प्राप्ति), कथासरित् ९.६.१७१(बलाका/बगुली द्वारा तपस्वी मुनि पर बींट/विष्ठा करने पर मुनि की क्रोधाग्नि से भस्म होना ) balaaka
बलाकाश्व ब्रह्माण्ड २.३.६६.३१(अजक - पुत्र, कुश - पिता, मृगयाशीलता गुण का उल्लेख, पुरूरवा वंश), भागवत ९.१५.३(अजक - पुत्र, कुश - पिता, पुरूरवा वंश), वायु ९१.६०/२.२९.५८(अजक - पुत्र, कुश - पिता, गयशीलता गुण का उल्लेख), विष्णु ४.७.८(अजक - पुत्र, कुश - पिता, पुरूरवा वंश ) balaakaashva/ balakashva
बलातिबल स्कन्द ७.१.११९(बलातिबल दैत्य द्वारा देवों को पराजित कर त्रिलोकी पर आधिपत्य प्राप्त करना, देवों की प्रार्थना पर पार्वती द्वारा अद्भुत रूप धारण कर बलातिबल का नाश ) balaatibala
बलायन लक्ष्मीनारायण २.१०६.४९(राजा दक्षजवंगर के वैष्णव यज्ञ में बलायन के उद्गाता ऋत्विज बनने का उल्लेख )
बलारक वायु ७०.७८/२.९.७८(दत्तात्रेय/अत्रि कुल के ४ गोत्रकार ऋषियों में से एक )
बलाश्व मार्कण्डेय ११८.८(खनीनेत्र - पुत्र, करन्धम नाम प्राप्ति के हेतु का कथन )
बलासुर कथासरित् १२.५.२११(धोबी, देवभूति की कथा )
बलाहक ब्रह्माण्ड १.२.१८.७८(दक्षिण समुद्र में फैले ३ पर्वतों में से एक), १.२.१९.३७(शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक), १.२.१९.४४(बलाहक पर्वत के जीमूत वर्ष का उल्लेख), २.३.७.३४(कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), २.३.७.२४०(वालि के सेनानायक प्रधान वानरों में से एक), ३.४.२१.७७(भण्डासुर के सेनानायक पुत्रों में से एक), ३.४.२४.३९(भण्डासुर - सेनानी बलाहक का महागृध्र वाहन, तिरस्करिणी देवी से युद्ध, तिरस्करिणी देवी द्वारा सात भ्राताओं के वध का वृत्तान्त), ३.४.२४.९२(तिरस्करिणी देवी द्वारा सावित्र देव से वरदान प्राप्त बलाहक प्रभृति ७ असुरों के वध का वृत्तान्त), भविष्य ३.३.१०.४७(मेघपुष्प व बलाहक द्वय का हरिणी व पपीहक के पुत्रों बिन्दुल व हरिनागर अश्वों के रूप में जन्म का कथन), भागवत १०.५३.५(कृष्ण के रथ के ४ अश्वों में से एक), १०.८९.४९(कृष्ण के रथ के ४ अश्वों में से एक), मत्स्य २(प्रलय कारक मेघ), २.८(७ प्रलयकारक मेघों में से एक), ६.४०(कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), १२१.७२(लवण समुद्र की ४ दिशाओं में डूबे ४ पर्वतों में से एक), १२२.५५(कुशद्वीप के ७ पर्वतों में से एक, अपर नाम द्युतिमान्), वायु ४७.७४(बलाहक पर्वत का दक्षिण समुद्र में मिलन), ६९.७१/२.८.६८(कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), विष्णु २.४.२६(शाल्मलि द्वीप के ७ पर्वतों में से एक), स्कन्द ३.२.२७(राजा, गोवत्सेश्वर लिङ्ग का दर्शन), हरिवंश ३.३४.७(बलाहक मेघ का सुवर्ण अण्ड के बहुवर्णीय टुकडों से निर्माण), कथासरित् ९.४.१६(नारिकेल द्वीप के चार दिव्यभूमि युक्त पर्वतों में से एक ), द्र भारत, भूगोल balaahaka/ balahaka
बलि अग्नि ९३(वास्तुमण्डल में देवता अनुसार बलि द्रव्य विशेष), कूर्म १.१०(वामन द्वारा बलि के निग्रह की कथा), १.१७(बलि के पुर में उत्पात होने पर प्रह्लाद द्वारा बलि को विष्णु की शरण लेने का परामर्श, वामन द्वारा बलि के यज्ञ में आगमन और बलि के निग्रह का वृत्तान्त), गणेश १.४३.४(त्रिपुर व शिव के युद्ध में बलि का जयन्त से युद्ध), २.३०-३१(वामन - बलि आख्यान), गरुड १.८७.३४(८वें मन्वन्तर में इन्द्र), गरुड ३.२७.८(बलि के सुवर्णहरण दोष का उल्लेख), गर्ग २.११.३४(बलि - पुत्र साहसिक का दुर्वासा मुनि के शापवश धेनुकासुर बनना), ५.११.१३(बलि - पुत्र मन्दगति का त्रित मुनि के शापवश कुवलयापीड हाथी बनना), ५.१२.३(उतथ्य मुनि के ५ पुत्रों द्वारा बलि के यहां मल्लयुद्ध की शिक्षा ग्रहण, पिता के शापवश पांचों पुत्रों का चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल और तोशल नामक मल्ल बनना), देवीभागवत ४.१४.५१(बलि द्वारा छिपने के लिए गर्दभ रूप धारण), ८.१९.१३(सुतल - अधिपति, विरोचन - पुत्र, महिमा), ९.४५.६६(दक्षिणाहीन कर्मादि का बलि का आहार होना), नारद १.११.८५(बलि द्वारा यज्ञ, बलि - वामन की कथा), १.११.१९०(वामन द्वारा बलि के निग्रह के पश्चात् बलि हेतु भोजन की व्यवस्था), पद्म १.३०(बलि का बाष्कलि उपनाम, वामन द्वारा निग्रह), २.१०.३५(बलि द्वारा हिरण्यकशिपु प्रभृति दैत्यों को श्रीहरि से वैर त्याग का परामर्श, बलि के परामर्श की दैत्यों द्वारा निन्दा तथा अवहेलना), ५.११४.८१(बलि के आराध्य देव सोम होने का उल्लेख), ६.१२२(कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को बलि की पूजा), ६.२३९(विरोचन - पुत्र, प्रह्लाद - पौत्र, इन्द्र पर विजय प्राप्ति), ब्रह्म १.११.२८(सुतपसा - पुत्र, अङ्ग, वङ्गादि ५ पुत्रों का पिता, वंश की बालेय नाम से प्रसिद्धि), २.४(बलि की प्रशंसा, वामन द्वारा बलि के दर्प का हनन), २.९०.८(बलि के वरुण से युद्ध का उल्लेख?), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०.४२(बलि - कन्या रत्नमाला की वामन रूप पर पुत्रासक्ति, पुन: पूतना रूप में कृष्ण को विषाक्त स्तन पिलाकर मुक्ति), ४.२२.२९(बलि - पुत्र साहसिक को दुर्वासा के शाप से गर्दभ योनि की प्राप्ति, कृष्ण द्वारा उद्धार की कथा), ४.९६.३५(अतिचिरञ्जीवियों में से एक), ४.११९(बाण की सभा में बलि द्वारा कृष्ण की स्तुति), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६२.४३(मदालसा के शाप से बलि के राज्यभ्रष्ट होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.५.४३(बलि के पुत्रों व पुत्रियों के नाम), २.३.७.३०३(बलिबाहु : ऋक्षराज जाम्बवान् के पुत्रों में से एक), २.३.११.३४(विभिन्न प्रकार की काष्ठों से निर्मित बलि पात्रों के फल का कथन), २.३.७४.२९(दीर्घतमस ऋषि से सुदेष्णा में बलि को ५ क्षेत्रज पुत्रों की प्राप्ति का वृत्तान्त), भविष्य १.१९.२६(वैरोचन द्वारा रूप देने का उल्लेख), ३.४.१८.१८(संज्ञा विवाह प्रसंग में बलि का विवस्वान् से युद्ध), ४.७६(बलि व वामन की कथा), ४.१३७(बलि रक्षा विधि), भागवत ५.२४(बलि का सुतल लोक में निवास, ऐश्वर्य का वर्णन), ६.३.२०(भागवत धर्म के जानने वाले १२ व्यक्तियों में से एक), ६.१८.१६(विरोचन - पुत्र, अशना - पति, बाण आदि १०० पुत्र), ८.५.२(रैवत मनु के पुत्रों में से एक), ८.१०(बलि का इन्द्र से युद्ध), ८.२२+ (वामन द्वारा बलि का बन्धन, बलि द्वारा वामन की स्तुति, बलि - पत्नी विन्ध्यावली द्वारा वामन से प्रार्थना, बलि की बन्धन से मुक्ति, सुतल लोक गमन), १०.६१.२४(कृतवर्मा - पुत्र बली द्वारा रुक्मिणी - कन्या चारुमती को प्राप्त करने का उल्लेख), १०.८५(कृष्ण का मृत देवकी पुत्रों को लाने हेतु आगमन, बलि द्वारा स्तुति), ११.१६.३५(भगवान् की विभूतियों के वर्णन के अन्तर्गत भगवान् के ब्रह्मण्यों/ब्राह्मण - भक्तों में बलि होने का उल्लेख), १२.१.२२(आन्ध्र जातीय वृषल बली द्वारा स्व स्वामी की हत्या कर राज्य करने का कथन), मत्स्य ६.११(बलि के पुत्रों के नाम), ४८.२५(सुतपा - पुत्र, सुदेष्णा - पति , अङ्ग, वङ्ग आदि पांच क्षेत्रज पुत्रों की उत्पत्ति की कथा), १९७.६(अत्रि कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), १८७.४०(विन्ध्यावली - पति, अनौपम्या - श्वसुर), २४५+ (विष्णु की निन्दा पर प्रह्लाद द्वारा बलि को नष्ट होने का शाप, वामन द्वारा बलि का निग्रह), २४६(बलि यज्ञ व वामन की कथा), वामन २३+ (बलि के स्वर्गाधिपति बनने व वामन का उपाख्यान), २९(प्रह्लाद से विष्णु महिमा सम्बन्धी संवाद), वामन २३(विरोचन - पुत्र, दैत्यराज पद पर अभिषेक, अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति), ६८( अन्धक - सेनानी, शिवगणों से युद्ध), ७३(मय प्रभृति दैत्यों का बलि को देवताओं से युद्ध का परामर्श), ७४(बलि द्वारा इन्द्र पद की प्राप्ति, प्रह्लाद को उपदेश), ७७(बलि द्वारा विष्णु को दुर्वचन, प्रह्लाद का शाप), (दनु व कश्यप - पुत्र धुन्धु द्वारा जन, तपो, सत्य आदि लोकों को जीतने की इच्छा पूर्ति हेतु अश्वमेध यज्ञ की दीक्षा, वामन विष्णु द्वारा पराभव, बलि की कथा से साम्य), ८८ (बलि द्वारा यज्ञ दीक्षा, वामन का प्राकट्य), ९४(बलि का प्रह्लाद से संवाद), वायु ५९.९९(३३ मन्त्रकार आङ्गिरस ऋषियों में से एक), ६८.३०/२.७.३०(दनायुषा के ५ पुत्रों में से एक, बलि के २ पुत्रों कुम्भिल व चक्रवर्मा का कथन), ७४.३२+ (विभिन्न प्रकार के काष्ठों से निर्मित बलि पात्रों के फल का कथन), ९८.७४(बलि व वामन की कथा), विष्णु ४.२४.४३(आन्ध्र जातीय बलिपुच्छक भृत्य द्वारा स्व स्वामी की हत्या कर राज्य करने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.१(बलि की महाकूर्म से उपमा), १.५५(बलि - वामन उपाख्यान), १.१२१.६(विरोचन - पुत्र, बाण - पिता व वामन रूप हरि द्वारा बन्धन), १.१२६.२५(सावर्णिक मन्वन्तर में बलि को इन्द्रत्व प्राप्ति), १.१८३(८ वें सावर्णि मन्वन्तर में बलि के इन्द्र होने तथा अन्य ऋषियों, देवसंघ आदि का कथन), १.२३८(बलि द्वारा रावण के गर्व को भङ्ग करना), २.९२(बलि वैश्वदेव), ३.१२१.५(यमुना क्षेत्र में बलि की पूजा का निर्देश), शिव ३.५.८(तेरहवें द्वापर में बलि नामक मुनि रूप से शिवावतार), स्कन्द १.१.९.२०(दैत्यों द्वारा स्वर्ग से अपहृत रत्नों का समुद्र में पतन होने पर बलि द्वारा गुरु शुक्र से कारण की पृच्छा, शुक्र द्वारा हेतु का कथन), १.१.१७(वृत्र वध से क्रुद्ध बलि का शुक्र - आज्ञा से यज्ञ सम्पादन, यज्ञ से रथ प्राप्ति, रथारूढ बलि का देवों पर विजयार्थ स्वर्ग लोक गमन), १.१.१८.११७(विरोचन व सुरुचि - पुत्र, उत्पत्ति प्रसंग, इन्द्र के राज्य की प्राप्ति, वामन द्वारा बलि के निग्रह का वृत्तान्त), १.१.१८.५३(पूर्व जन्म में कितव होने का वृत्तान्त), १.१.१९(बलि द्वारा शुक्र के परामर्श की उपेक्षा, शाप प्राप्ति, वामन द्वारा निग्रह), १.२.६.१०८ (मेधातिथि गौतम की पत्नी द्वारा बलि राजा के ईक्षण का उल्लेख), १.२.१३.१६०(बलि द्वारा उंछज या यज्ञ लिङ्ग की ज्ञानात्मा नाम से पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग), २.४.९.४९(कार्तिक चतुर्दशी से लेकर तीन दिन के लिए बलि द्वारा राज्य की प्राप्ति), २.४.९.५८(कार्तिक चतुर्दशी से आरम्भ करके ३ दिन बलि के राज्य में दीपदान आदि का महत्त्व), २.४.१०(बलि प्रतिपदा के कृत्य), ४.२.६१.२०१(बलि वामन का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.६३(नारद द्वारा बलि को त्रिलोकी विजयार्थ उकसाना, बलि द्वारा त्रिलोकी पर विजय, पीडित देवों का ब्रह्मा के समीप गमन, ब्रह्मा द्वारा उपाय का कथन, बलि का यज्ञ, हरि का वामन रूप में आगमन, बलि - वामन आख्यान), ५.१.६३.२३९(बलि के वाजिमेध यज्ञ के ऋत्विजों के नाम, वामन का आगमन व बलि के यज्ञ की प्रशंसा आदि), ७.१.२०.७(दैत्यावतार क्रम में बलि के जन्म व प्रभाव का कथन), ७.२.१७.२४२(राज्य में अरिष्ट लक्षणों की उत्पत्ति पर शान्ति हेतु बलि द्वारा यज्ञ), ७.४.१८+ (दैत्यों से प्रताडित दुर्वासा का सहायतार्थ बलि के द्वारस्थ वामन से निवेदन, वामन द्वारा पराधीनता का प्रदर्शन, बलि से आज्ञा मिलने पर ही वामन का स्वरूप वृद्धिकरण पूर्वक दुर्वासा सहायतार्थ चक्रतीर्थ में गमन का वर्णन), हरिवंश १.३.७४(विरोचन - पुत्र, वाण प्रभृति १०० पुत्रों का पिता), १.३१.३२ (सुतपा - पुत्र, अङ्ग, वङ्गादि का पिता), ३.३१(वामन द्वारा बलि के राज्य के हरण का प्रसंग), ३.४८+ (बलि का अभिषेक, बलि द्वारा त्रिलोकी की विजय का अभियान), ३.५१.७३(बलि के रथ का वर्णन), ३.६४(बलि का इन्द्र से युद्ध, इन्द्र को पराजित करना), ३.७१(बलि के यज्ञ में वामन का आगमन , विराट रूप का दर्शन २), ३.७२(नारद से मोक्ष विंशक स्तोत्र की प्राप्ति, बन्धन से मुक्ति), महाभारत शान्ति २२७.११६(चातुर्वर्ण के भ्रष्ट होने पर बलि के पाशों के खुलने का कथन), योगवासिष्ठ ५.२२(विरोचन - पुत्र), ५.२३+ (बलि - विरोचन संवाद), वा.रामायण ७.१२.२३(बलि की दौहित्री वज्रज्वाला से कुम्भकर्ण का विवाह), लक्ष्मीनारायण १.१४४.१२(बलि के राज्य के वैभव को देखकर नारद द्वारा इन्द्र व बलि में वैर उत्पन्न करना, वामन के जन्म का वृत्तान्त), १.१४५.११(बलि के यज्ञ के वैभव का वर्णन), १.१४६.१(वामन का बलि के यज्ञ में प्रवेश व ३पद भूमि की याचना, शुक्र द्वारा बलि को दान से रोकने पर भी बलि द्वारा वचन पर वामन द्वारा विराट रूप धारण का वृत्तान्त), १.१४७(बलि का पाशबन्धन, रसातल के राज्य की प्राप्ति, वामन का बलि के गृह में वास), २.३१.९६(बलि द्वारा दीर्घतमा ऋषि की जल से रक्षा तथा बलि की पत्नी सुदेष्णा व दीर्घतमा से पुत्रों की उत्पत्ति का वृत्तान्त), ३.१५६.२८(बलीश्वर नामक जड विप्र के तप से ब्रह्मसावर्णि मनु बनने का वृत्तान्त), ३.१६४.६१(दशम मन्वन्तर में शान्ति इन्द्र के शत्रु बलि के हरि द्वारा निग्रह का कथन), कथासरित् २.२.३९(पाताल - निवासी बलि - पौत्री विद्युत्प्रभा द्वारा श्रीदत्त से स्व दुःख का निवेदन), ८.२.१५६(बलि का तीसरे पाताल में निवास, मयासुर, सुनीथ, सूर्यप्रभ आदि से मिलन), ८.२.३३५(बलि द्वारा सूर्यप्रभ को सुन्दरी नामक कन्या प्रदान ), द्र. बालेय bali
बलि-वैश्वदेव अग्नि ५९.५७(अधिवासन विधि में दिक्पालों को बलि देने का निर्देश), १५९.४(पतित प्रेत हेतु नारायण बलि का विधान), २६४.८(बलि वैश्वदेव विधान), ३२३.१३(क्षेत्रपाल बलि मन्त्र व महत्त्व), गरुड २.३०/२.४०(अपमृत्यु होने पर नारायण बलि विधान), देवीभागवत ११.२२(बलि वैश्वदेव विधि), भविष्य १.५७.१(सूर्य रथ यात्रा के संदर्भ में विभिन्न देवताओं को बलि प्रदान का उल्लेख), २.२.१०(बलि व मण्डल पूर्वक वास्तुयाग का विधान), स्कन्द ४.१.३५.१९४ (बलि वैश्वदेव विधि), ४.१.३८.३८(सत्यकाल में बलि वैश्वदेव विधि), ७.१.१७.३७ (बलिभुक् : ईशान दिशा में स्थित क्षेत्रपालों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.७७(नारायण बलि विधि), ३.३५.६३(चातुर्मास में वैश्वदेव पर्व में विभिन्न देवों हेतु बलि), ३.१३३.३९(ग्रहों हेतु बलि द्रव्य ) bali vaishvadeva
बलीवर्द गरुड २.४६.१६(पात्र को विद्या अप्रदाता के बलीवर्द बनने का उल्लेख), पद्म ६.७७.१६(ऋषि पञ्चमी व्रत विधान के अन्तर्गत शुनी व बलीवर्द का परस्पर संभाषण, देवशर्मा ब्राह्मण को बलीवर्दत्व प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त १.५(कृष्ण के रोमकूपों से उत्पन्न बलीवर्दों में से शिव को एक बलीवर्द की प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१५९.१६(अज्ञान प्रदान से बलीवर्द योनि की प्राप्ति का उल्लेख ) baleevarda/ balivarda
बलोत्कट स्कन्द ३.१.५.७५(विधूम वसु - भृत्य, वल्लभ - पुत्र वसन्तक रूप में अवतरण )
बल्लाल गणेश १.२२.१२(कल्याण व इन्दुमती - पुत्र, बालक बल्लाल की गणेश भक्ति )
बल्वल गर्ग ८.८.१५(बलभद्र द्वारा इल्वल - पुत्र बल्वल दैत्य का वध), १०.२५.१९(दैत्य, उग्रसेन के अश्वमेधीय हय का बन्धन, स्वरूप), १०.३५.११(युद्धभूमि में बल्वल का अनिरुद्ध से संवाद व पराजय), पद्म ६.१९८.९०(असुर, बलराम द्वारा वध का उल्लेख), भागवत १०.७८+ (इल्वल - पुत्र, चरित्र दुष्टता, बलराम द्वारा मुसल से वध), स्कन्द ३.१.१९.४२(इल्वल - पुत्र बल्वल के उपद्रव, बलभद्र द्वारा वध ) balvala
बस्त
बहि महाभारत कर्ण ४४.४१(विपाशा में स्थित पिशाच - द्वय में से एक, वाहीक प्रजा की बहि से उत्पत्ति का उल्लेख )
बहिर्वेदी भविष्य २.१.९.२(अन्तर्वेदी व बहिर्वेदी में अन्तर का निर्धारण), विष्णुधर्मोत्तर ३.२९६.१(बहिर्वेदी के रूप में जल व जलाशय निर्माण, वृक्षारोपण आदि की महिमा का वर्णन ) bahirvedee/ bahirvedi
बहु ब्रह्माण्ड २.३.७१.११४(बहुभूमि : चित्रक के पुत्रों में से एक), २.३.७.२४४ (बहुगुण : वाली के प्रधान सामन्त वानरों में से एक), भागवत ९.२०.३(बहुगव : सुद्यु - पुत्र, संयाति - पिता, पूरु वंश), ९.२१.३०(रिपुञ्जय - पुत्र, वितथ वंश), मत्स्य ४९.३(बहुविध : धुन्धु - पुत्र, सम्पाति - पिता), १०४.५(बहुमूलक : प्रयाग में प्रजापति क्षेत्र में स्थित नागों में से एक), १९१.१४(बहुनेत्र : त्रयोदशी को नर्मदा तटवर्ती बहुनेत्र तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : सर्वयज्ञ फल की प्राप्ति), १९६.२२(बहुवीति : पञ्चार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ९६.११४/२.३४.११४(बहुभूमि : चित्रक के पुत्रों में से एक), ९९.१२२/ २.३७.११८ (बहुगवी : धुन्धु - पुत्र, सञ्जाति - पिता, पूरु वंश), विष्णु ४.१९.१(बहुगत : सुद्यु - पुत्र, संयाति - पिता, पूरु वंश), ४.१९.५५(रिपुञ्जय - पुत्र, पौरव वंश का अन्तिम राजा), लक्ष्मीनारायण ३.१९४.१३(बहुचरा माता की सेविका स्त्रियों द्वारा राजा चक्रधर के राज्य में उपद्रव पर राजा द्वारा सेविकाओं की हत्या आदि ) bahu
बहुपुत्र ब्रह्माण्ड १.२.३७.४५(बहुपुत्र द्वारा दक्ष की २ कन्याओं की भार्या रूप में प्राप्ति का उल्लेख), २.३.१.५४(प्रजापतियों में से एक), मत्स्य १७९.१९(बहुपुत्री : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वायु ६५.५३/२.४.५३(प्रजापतियों में से एक), ६६.७८/२.५.७७(अरिष्टनेमि के १६ पुत्रों में से एक बहुपुत्र की ४ विद्युत रूप भार्याएं/पुत्रियां? होने का उल्लेख), विष्णु १.१५.१०४(बहुपुत्र द्वारा दक्ष की २ कन्याओं को भार्या रूप में प्राप्त करने का उल्लेख), १.१५.१३४(अरिष्टनेमि के १६ पुत्रों में से एक, ४ प्रकार की विद्युत् संज्ञक भार्याएं ) bahuputra
बहुरूप भागवत ५.२०.२५(मेधातिथि के ७ पुत्रों में से एक), ६.६.१८(भूत व सरूपा के मुख्य ११ रुद्र पुत्रों में से एक), मत्स्य ५.२९(११ रुद्रों में से एक), विष्णु १.१५.१२२(११ रुद्रों में से एक), स्कन्द ५.३.१३.४३(१३वें कल्प का नाम ) bahuroopa/ bahurupa
बहुल ब्रह्माण्ड २.३.१.५४(प्रजापतियों में से एक), वायु ६५.५४/२.४.५४(वही), मत्स्य ६.४१(कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक ) bahula
बहुला गणेश १.४८.३(बहुला पूर्णिमा को त्रिपुर का वध), पद्म ७.२५.९(पवित्र ब्राह्मण की पत्नी - पवित्रनामा सुमतिर्बभूव परमार्थवित्। बभूव ब्राह्मणी तस्य बहुला नाम धारिणी।।), मार्कण्डेय ६९.६(बभ्रु - कन्या, उत्तम मनु – भार्या, पति द्वारा वन में त्याग - बाभ्रव्यां बहुलां नाम उपयेमे स धर्मवित् । उत्तानपादतनयः शचीमिन्द्र इवोत्तमः । ।), ७१.१६(नागराज कपोतक द्वारा बहुला का हरण), ७२.१७(नागराज - सुता द्वारा बहुला का गोपन, राजा द्वारा स्वपत्नी को पाताल से लाना, बहुला द्वारा नागराजसुता हेतु सारस्वती इष्टि का उद्योग ), वामन ७९.४३(सोमशर्मा - माता, प्रेत द्वारा स्ववृत्तान्त का संदर्भ - अहमासं पुरा विप्रः शाकले नगरोत्तमे। सोमशर्मेति विख्यातो बहुलागर्भसंभवः।।), स्कन्द ६.२५२.२५(चातुर्मास में बहुल वृक्ष में अमरों की स्थिति का उल्लेख - सप्तर्षीणां महाताला बहुलश्चामरैर्वृतः ॥ ), महाभारत अनुशासन १३२.७(अहोई अष्टमी का बहुलाष्टमी से साम्य? - कार्तिके मासि चाश्लेषा बहुलस्याष्टमी शिवा।) bahulaa
बहुलाश्व गर्ग १.१+ (जनक का उपनाम, नारद से कृष्ण अवतार सम्बन्धी वार्तालाप, गर्ग द्वारा नारद व बहुलाश्व के संवाद से युक्त गर्गसंहिता का निर्माण), ७.१६.५(धृति/जनक - पुत्र, भगवद्भक्त), ब्रह्माण्ड २.३.६४.२३(धृति - पुत्र, कृति - पिता, निमि वंश), भागवत ९.१३.२६(धृति - पुत्र, कृति - पिता, निमि वंश), १०.८६.१६(मिथिला नरेश, कृष्ण आगमन, बहुलाश्व द्वारा स्तुति, ब्राह्मण श्रुतदेव से भक्ति में प्रतिस्पर्द्धा ) bahulaashva/bahulashva
बहुसुवर्ण कथासरित् ९.४.१५२(नृप, कौतुकपुर नगर वासी )
बहूदक भागवत ३.१२.४३(बृह्वोद : संन्यासियों के ४ भेदों में से एक), शिव ५.३८.३०(राक्षसों के ५ गणों में से एक), स्कन्द १.२.४६+ (बहूदक तीर्थ का माहात्म्य, नन्दभद्र वैश्य - कुष्ठी बालक संवाद, १४ शक्तियों की स्थापना), ४.१.२९.१२०(बहूदका : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) bahoodaka/ bahudaka
बहूदन भागवत ४.२५.४९(पुरञ्जन की पुरी के पूर्व द्वार से बहूदन देश को जाने का उल्लेख), ४.२९.१२(बहूदन के चित्र अन्ध/अन्न? के प्रतीक होने का उल्लेख )
बृह्वडक वायु ५६.८७/१.५६.८४(बृह्वडक संज्ञक पितरों की विशेषता का कथन )
बह्वृच ब्रह्माण्ड १.२.३३.२(प्रधान श्रुतर्षियों में से एक), १.२.३५.७(ऋग्वेद के संहिताकारों के नाम), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.८४(कृष्ण - पत्नी भार्गवी के बह्वृच पुत्र ब्रह्मरुचि पुत्री का उल्लेख ) bahvricha
बाण गरुड ३.१२.९५(बाण असुर का कीचक से साम्य), ब्रह्म २.६१(बाण तीर्थ : विष्णु द्वारा बाण से दैत्यों का हनन करके अपहृत गायों की रक्षा), ब्रह्मवैवर्त्त भविष्य ३.३.२४.९२(सुखखानि द्वारा अग्निदेव से अग्नि बाण की प्राप्ति, रक्तबीजों का संहार, चामुण्ड की पराजय), वराह १४४.७०(रावण द्वारा बाण से पर्वत का भेदन, जलधारा का प्राकट्य), शिव १.१८.४८(बाण लिङ्ग के क्षत्रियों द्वारा पूजित होने का उल्लेख), स्कन्द ४.२.५३.६५(प्रमथ गण चतुष्टय में से एक, बाण द्वारा काशी में बाणेश्वर लिङ्ग की स्थापना), ४.२.८४.३५(बाण तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१५९.४२(बाण छूटने के समान गर्भ के निर्गम का उल्लेख), महाभारत द्रोण १५६.१३०(घटोत्कच द्वारा अञ्जलिक मार्गण/बाण के प्रयोग का उल्लेख), कर्ण २०.२२टीका (नाराच/बाण की १० गतियों का कथन), ३४.१७(त्रिपुर वध हेतु शिव के इषु का स्वरूप), ९१.३२(युद्ध में अर्जुन व कर्ण द्वारा प्रयुक्त किए गए शरों का वर्णन), सौप्तिक १५.३१(अश्वत्थामा द्वारा ब्रह्मशिर अस्त्र/इषीकास्त्र द्वारा पाण्डवों के गर्भों के नाश का कथन), अनुशासन १४.२५८(शिव के पिनाक धनुष के पाशुपत शर के स्वरूप का कथन), योगवासिष्ठ ३.४७.३३(बाण के प्रकारों का कथन), वा.रामायण १.७०.२३(विकुक्षि - पुत्र, अनरण्य - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), द्र. इषु baana
बाणगङ्गा वराह १४४.७१(रावण द्वारा बाण से पर्वत का भेदन करने से प्रकट नदी का बाण गङ्गा नाम होना, संक्षिप्त महत्त्व ) baanagangaa/ banagangaa
बाणाङ्गण लक्ष्मीनारायण ३.१८६.१(मद्यविक्रयी बाणांगण के साधु समागम आदि से मोक्ष का वृत्तान्त),
बाणासुर गर्ग ७.२३.५(बाणासुर द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), पद्म १.६.४३(बलि के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र बाण के तप से तुष्ट शिव का बाण - नगरी में वास), ३.१४(बाण के त्रिपुर का गगन में भ्रमण, भयभीत मुनियों द्वारा रक्षार्थ शिव से प्रार्थना, शिव के आदेश से नारद द्वारा बाण के त्रिपुर में छिद्र की उत्पत्ति), ५.११४(बाण प्रभृति दैत्यों का गौतम गृह में आगमन, भगवत्पूजन), ६.२५०(अनिरुद्ध - उषा प्रसंग में बाणासुर का कृष्ण की सेना से युद्ध), ब्रह्म १.९७(शंकर व बाणासुर का संवाद, बाण- कृत अनिरुद्ध का बन्धन, कृष्ण द्वारा बाण के नगर का रोधन, बाण की भुजाओं के कर्तन का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.४३(बाण असुर द्वारा महेश्वर से संसारपावन नामक कवच की प्रार्थना, महेश्वर द्वारा बाणासुर को कवच प्रदान), ४.११५+ (बाणासुर का अनिरुद्ध से संवाद), ब्रह्माण्ड २.३.५.४२(बलि के ४ प्रधान पुत्रों में से एक, सहस्रबाहु), भागवत ६.१८.१७(बलि के ज्येष्ठ पुत्र बाण द्वारा शिवाराधन से प्रधान गणत्व की प्राप्ति), ८.१०.३०(बाणासुर का सूर्य से युद्ध), १०.६२(शिव द्वारा बाणासुर के नगर की रक्षा, बाणासुर द्वारा शिव से युद्ध की इच्छा, शाप प्राप्ति, उषा - अनिरुद्ध कथा), १०.६३(बाणासुर का सात्यकि से युद्ध), मत्स्य ६.१२(बलि के १०० पुत्रों में ज्येष्ठ, शिव का बाण के नगर में निवास), १८७.८(त्रिपुर - स्वामी, देवों द्वारा त्रिपुर विनाशार्थ शिव से प्रार्थना, त्रिपुर वध के उद्योग का आरम्भ), वामन ५८.७६(तारक - सेनानी, सुचक्राक्ष से युद्ध), ६९.४९(दैत्यों व देवों के युद्ध में बाण का नैगमेय से युद्ध), ७४.१३ (यम में रूपान्तरण), विष्णु ५.३३(कृष्ण से युद्ध में बाणासुर की बाहुओं का नष्ट होना, उषा - अनिरुद्ध प्रसंग), विष्णुधर्मोत्तर १.१२१.७(बलि - पुत्र, सहस्र बाहु युक्त), १.१२६.२६(बलि - पुत्र, शिव - अनुचर, हरि कृपा से कल्पस्थायी), शिव २.१.१२.३६(बाण द्वारा पारद लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), २.५.५१.१५(शिव द्वारा शिव - भक्त बलि - पुत्र बाण को गाणपत्य प्रदान करना), २.४.११(कुमार द्वारा क्रौञ्च पर्वत पर बाणासुर का वध), २.५.५१+ (उषा - अनिरुद्ध - बाणासुर आख्यान), स्कन्द १.२.१३.१५६(शतरुद्रिय प्रसंग में बाणासुर द्वारा मरकत लिङ्ग की वसिष्ठ नाम से पूजा), ४.२.५३.८०(शिव द्वारा दिवोदास पालित काशी में बाण नामक प्रमथ गण का प्रेषण, बाण द्वारा स्वनाम ख्यात लिङ्ग की स्थापना), ५.१.४९(बाण व कृष्ण के युद्ध में कृष्ण द्वारा बाणासुर की सहस्र भुजाओं का कर्तन, बाण का शिव की शरण में गमन),५.३.२६(बाणासुरादि दैत्यों द्वारा देवों का पीडन, ब्रह्मा व विष्णु सहित देवों का शिव के समीप गमन, स्तवन, शिवाज्ञा से नारद का बाण के समीप गमन, बाण - पत्नी के पूछने पर नारद द्वारा मधूक तृतीया व्रत स्नान - दानादि के फल का वर्णन), ५.३.२८(त्रिपुर दाह पर बाण द्वारा शिव की स्तुति), ५.३.९०.५७(तालमेघ व विष्णु के युद्ध में दैत्य द्वारा आग्नेय बाण का प्रेषण), ५.३.१२०.४(बलि - पुत्र, शम्बर - पिता ), हरिवंश २.१.२६(बाणासुर का कृष्ण से युद्ध, कृष्ण द्वारा बाणासुर की भुजाओं का कर्तन, शिवगण महाकाल बनना), २.१२७.४७(कृष्ण द्वारा बाणासुर की गायों का दर्शन, गरुड को देखकर गायों का समुद्र में प्रवेश, वरुण - कृत प्रार्थना, कृष्ण द्वारा गायों की प्राप्ति के प्रयत्न का त्याग), ३.४९.२१(देवासुर संग्राम में बाणासुर के रथ आदि का वर्णन), कथासरित् ६.५.११(बाणासुर - कन्या उषा व अनिरुद्ध की कथा ) baanaasura/ banasura
बादरायण ब्रह्म १.२४.६(महाभारतकार पराशर - पुत्र व्यास के मुनियों से संवाद का आरम्भ), १.६८.२९+ (व्यास द्वारा ऋषियों को पुरुषोत्तम माहात्म्य वर्णन के संदर्भ में कण्डु मुनि व प्रम्लोचा आख्यान का वर्णन), १.७०(संशयग्रस्त मुनियों का बादरायण व्यास से कृष्णावतार विषयक प्रश्न), भागवत १.७.१(शुक - पिता व्यास के लिए बादरायण संज्ञा का प्रयोग), मत्स्य १४.१६(पराशर - पुत्र, वेद का अनेक भागों में विभाजन), २०१.३७(बादरि : ५ श्याम पराशरों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.५६०.४०(ब्रह्मा के मानस पुत्र - द्वय बादरायण व शकट द्वारा राजा को प्रतिग्रह अस्वीकार करने का कथन ) baadaraayana/ badarayana
बाध्यश्व ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०६(१९ भार्गव मन्त्रवादियों में से एक )
बाभ्रव्य मत्स्य २१.३०(ब्रह्मदत्त और उसके मन्त्रियों के आख्यान में बाभ्रव्य सुबालक के कामशास्त्र का प्रणेता होने का उल्लेख), १९८.४(विश्वामित्र कुल के त्र्यार्षेय प्रवरों में से एक), स्कन्द १.२.५४(बाभ्रव्य ब्राह्मण की सदैव नारद के समीप स्थिति, अर्जुन के नारद विषयक प्रश्नों का उत्तर), हरिवंश १.२३.१९(सात हंसों में से २ के अणुह के मन्त्री - द्वय बाभ्रव्य व वत्स के पुत्रों के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ) baabhravya/ babhravya
बाल अग्नि २९९ (बाल ग्रह पीडा के लक्षण व चिकित्सा), गणेश २.८४.४४(गुणेश द्वारा सिन्धु - प्रेषित बालासुर का वध), गरुड २.१४(बाल मृत्यु पर पिण्डादि क्रिया का कथन), नारद १.६६.९७(वृषघ्न विष्णु की शक्ति बालसूक्ष्मा का उल्लेख), १.१२४.७८(बालिशों द्वारा होलि करने का मन्त्र), पद्म १.४०(विश्वेदेवों में से एक), ३.२५.१३(बाल तीर्थ का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.७.३८०(बालाद : पिशाचों के १६ गणों में से एक), २.३.७.३९८ (बालाद संज्ञक पिशाचों के स्वरूप का कथन), २.३.६८.२२(जनमेजय द्वारा गार्ग्य के बाल सुत की हत्या करने पर लोहगन्धी होने का उल्लेख), भागवत ११.७.३४(दत्तात्रेय - गुरु), १२.६.५९(बालायनि द्वारा गुरु बाष्कलि से वालखिल्य संहिता ग्रहण का उल्लेख), मत्स्य १७१.५०(विश्वा व धर्म के विश्वेदेव संज्ञक देवपुत्रों में से एक), १९५.३८(बालपि : भार्गव कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), १९६.१५(बालडि : त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक गोत्रकार ऋषियों में से एक), २७२.२(पुलक द्वारा स्वस्वामी की हत्या कर स्वपुत्र बालक का राज्याभिषेक करने का कथन, पालक - पिता), वायु ६८.२९/२.७.२९(बालकि : मय के पुत्रों में से एक), ६९.१६०/२.८.१५५(देवजननी व मणिवर के यक्ष - गुह्यक पुत्रों में से एक), ६९.२७७/२.८.२७१(बालाद संज्ञक पिशाचों के स्वरूप का कथन), १०१.११९/ २.३९.१२०(दैर्घ्य मापन के अन्तर्गत ८ रथरेणुओं के एक बालाग्र व ८ बालाग्रों के एक लिक्षा होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.५२(बालक का जन्म, पालन तन्त्र, संस्कार), शिव ५.४४.९५(व्यास द्वारा बाल रूप धारी मध्यमेश्वर शिव के दर्शन, व्यास द्वारा अभिलाषाष्टक स्तोत्र द्वारा स्तुति), स्कन्द १.२.४६(कुष्ठ - पीडित ब्राह्मण बालक द्वारा नन्दभद्र वैश्य को ज्ञानोपदेश, नन्दभद्र द्वारा गुरुदक्षिणा रूप में बालादित्य की स्थापना), १.२.६२(रुद्र रूप, कालिका का क्रोध पान करके सौम्य बनाना, क्षेत्रपालों की उत्पत्ति करना), ६.२१(मृकण्डु - पुत्र मार्कण्डेय की दीर्घजीविता रूप वर प्राप्ति का वृत्तान्त, बालसख्य तीर्थ का माहात्म्य), ७.१.२८६(बालार्क तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.२८८(बालादित्य तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.२८९(बालेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), योगवासिष्ठ २९३३(चित्त रूपी बालक), ३.१०१(जगत की संकल्परूपता के प्रदर्शन हेतु बालकाख्यायिका का निरूपण), ६.१.७८.२३(जीव की बालक से उपमा का कारण), लक्ष्मीनारायण १.७३.११(शिखा होने तक बाल होने का उल्लेख), १.५४८.९०(कृष्ण, ब्रह्मा, शिव आदि के बाल रूपों की महिमा के संदर्भ में बालक के गुणों की प्रशंसा), २.२९(पुत्रहीन शावदीन नृप द्वारा बालकों की बलि द्वारा पुत्र प्राप्ति की चेष्टा का वर्णन), २.९७.४९(बालायन मुनि द्वारा बाला नदी के तट पर प्राणरक्षा के वृत्तान्त का कथन), २.२११.२२(द्वैपायन द्वीप के राजा रायबालेश्वर द्वारा श्रीकृष्ण से स्वनगरी वायुफेनापुरी में आगमन की प्रार्थना तथा स्वनगरी में श्रीकृष्ण के स्वागत का वृत्तान्त), २.२१९.१०७+ (श्रीहरि का बालवित्तक राष्ट} के राजा त्रेताकर्कश व कार्णफाल ऋषि के साथ बालवित्तक राष्ट} में आगमन व उपदेश, विभिन्न जीवों के सुखी होने के कारण), २.२२१.६०(श्रीहरि के बाल्यरज राजा की नगरी मन्त्रिणां गां में आगमन का वृत्तान्त), २.२२१.९४(श्रीकृष्ण द्वारा रायसोमन नृप की नगरी में बाल द्विज को धन देने का उल्लेख), ४.९.१९+ (सुरेश्वरी विप्राणी द्वारा गृह में आई बालयोगिनी कन्या का पालन, बालयोगिनी द्वारा माता को मोक्ष विषयक उपदेश, बालयोगिनी गीता का आरम्भ ) baala
बालकृष्ण लक्ष्मीनारायण २.२६१.३८(बालकृष्ण की निरुक्तियां : बा - माया, ल - लय इत्यादि), २.२९१(बालकृष्ण के विभिन्न अङ्गों की शोभा से नर - नारियों की मुग्धता का वर्णन )
बालखिल्य गरुड १५, ब्रह्म २.३.१९(पार्वती के सौन्दर्य - दर्शन से ब्रह्मा के वीर्य की च्युति, वीर्य से बालखिल्यों की उत्पत्ति), २.३०.४(इन्द्र की बालखिल्य महर्षियों से ईर्ष्या, बालखिल्यों द्वारा कश्यप को स्वतप का अर्धभाग प्रदान कर इन्द्र दर्प - हारी पुत्र की उत्पत्ति की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.११.३६(क्रतु व सन्नति के पुत्रों में से एक), २.३.१.५५(बालखिल्यों की उत्पत्ति व वैशिष्ट्य का कथन), भागवत ४.१.३९(बालखिल्यादि ६० हजार ऋषियों की क्रतु - पत्नी क्रिया से उत्पत्ति), ६.८.४०(बालखिल्यों द्वारा चित्ररथ को विमान के पतन के कारण का कथन, बालखिल्यों के वचनानुसार इन्द्र द्वारा कौशिक ब्राह्मण की अस्थियों का सरस्वती में प्रक्षेपण), वामन ४३.४(ऋषि, ब्रह्मा - पुत्र), ५३(ब्रह्मा के वीर्य से बालखिल्यों की उत्पत्ति), वा.रामायण ४.४०.६०(वैखानस नामक बालखिल्यों की सौमनस शिखर पर स्थिति), स्कन्द १.१.२६.१६(पार्वती के चरण दर्शन से स्खलित ब्रह्मा के वीर्य से बालखिल्यों की उत्पत्ति), २.४.७.१००(बालखिल्यों द्वारा आकाशदीप दान विधि व माहात्म्य का वर्णन), २.४.९(बालखिल्य - प्रोक्त वत्स द्वादशी, यम त्रयोदशी, नरक चतुर्दशी, दीपावली प्रभृति व्रत विधान व माहात्म्य का वर्णन), ३.१.३८.७३(इन्द्र द्वारा समिध आहरण करते हुए बालखिल्यों का अपमान, बालखिल्यों द्वारा इन्द्र को शाप), ६.७९(ब्रह्मा के यज्ञ में समिधा वहन करते हुए बालखिल्यों का इन्द्र द्वारा उपहास, बालखिल्यों द्वारा द्वितीय इन्द्र की उत्पत्ति का उद्योग, दक्ष द्वारा निवारण, यज्ञ कलश जल से गरुड की उत्पत्ति), ७.२.१४.६४(ऋषियों व श्रीहरि द्वारा बालखिल्यों के उपहास पर बालखिल्यों द्वारा विष्णु को वामन होने का शाप), ७.३.३९(कामुक शिव के लिङ्ग का बालखिल्यों के शाप के कारण पतन, देवों द्वारा पतित लिङ्ग की पूजा), लक्ष्मीनारायण १.१४४.५७(विष्णु द्वारा बालखिल्यों के उपहास पर बालखिल्यों द्वारा विष्णु को वामन बनने का शाप), १.१७२.१४५(सती के दर्शन से ब्रह्मा के स्खलित वीर्य से ८०,००० वालखिल्यों की उत्पत्ति का वृत्तान्त तथा वालखिल्यों की वैराज लोक में स्थिति, अन्य ६० हजार वालखिल्यों का सूर्य के सम्मुख रहकर मन्देहा राक्षसों का नाश आदि), १.१९४.९१(पार्वती वधू के मुख दर्शन से ब्रह्मा के स्खलित वीर्य से बालखिल्यों की उत्पत्ति, गन्धमादन पर्वत पर स्थिति व अर्क की सेवा में नियुक्ति का कथन ), द्र. वालखिल्य baalakhilya/ balakhilya
बालग्रह अग्नि १०५.१३(८१ पदों से युक्त वास्तु चक्र में ईशानादि कोण क्रम से चरकी, स्कन्द, बिदारी आदि बालग्रहों की पूजा का विधान), लक्ष्मीनारायण २.३२(विभिन्न बालग्रहों की उत्पत्ति आदि का वर्णन ) baalagraha
बालमण्डन स्कन्द ६.२०.६७(बालमण्डन तीर्थ का माहात्म्य : लक्ष्मण की स्वामिद्रोह से मुक्ति का वृत्तान्त), ६.२२.३३(बालमण्डन तीर्थ माहात्म्य : शक्र द्वारा दिति के गर्भ के छेदन का स्थान, गर्भ को अच्छिद्र करने हेतु बालमण्डन तीर्थ की यात्रा), ६.१०३.३(सुग्रीव व वानरों द्वारा बालमण्डन तीर्थ में हारव मुख लिङ्ग की स्थापना), ६.२०६(बालमण्डन तीर्थ का माहात्म्य : दिति द्वारा मरुतों की उत्पत्ति हेतु तप का स्थान, इन्द्र द्वारा लिङ्ग की स्थापना ) baalamandana/ balamandana
बालमुकुन्द पद्म १.३९.१२१(बालमुकुन्द द्वारा मार्कण्डेय को विभूति योग का कथन), भागवत १२.९.२१(मार्कण्डेय द्वारा बालमुकुन्द के दर्शन, बालमुकुन्द के उदर में ब्रह्माण्ड के दर्शन - प्रागुत्तरस्यां शाखायां तस्यापि ददृशे शिशुम् । शयानं पर्णपुटके ग्रसन्तं प्रभया तमः ॥), स्कन्द २.२.३.६(मार्कण्डेय द्वारा बालमुकुन्द के दर्शन व स्तुति ) baalamukunda/ balamukunda
बालयोगिनी लक्ष्मीनारायण ४.९++ (बद्रिका देवी की अवतार बालयोगिनी द्वारा पालिका माता सुरेश्वरी को मोक्ष विषयक उपदेश ; बालयोगिनी गीता का आरम्भ), ४.२६.५८(बालयोगिनी - स्वामी कृष्ण की शरण से भ्रान्ति नाश का उल्लेख ) baalayoginee/ balayogini
बालव लक्ष्मीनारायण १.५०४.८२(तपोरत बालव योगी द्वारा कामरूप की स्त्रियों को समान संख्या में नर व कन्या सन्तान उत्पन्न करने का वरदान ) baalava
बालशर्मा भविष्य ३.४.१३.५१(हनुमान का अंश )
बालसखा स्कन्द ६.२१(बालसखा तीर्थ का माहात्म्य : मार्कण्डेय द्वारा सप्तर्षियों व ब्रह्मा की कृपा से दीर्घायु प्राप्ति )
बालादित्य स्कन्द १.२.४६(नन्दभद्र वैश्य का देहत्याग हेतु उद्यत होना, ब्राह्मण बालक द्वारा ज्ञानोपदेश, प्रसन्न नन्दभद्र द्वारा गुरु दक्षिणार्थ बालादित्य की स्थापना), ७.१.२८८(विश्वामित्र द्वारा बालादित्य तीर्थ में विद्या साधना का कथन), ७.१.२९२(भद्रकाली द्वारा व्याधियों से मुक्ति हेतु बालार्क की स्थापना का कथन ) baalaaditya/ baladitya
बाला पद्म १.४६.८०(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२५(कृष्ण की पत्नियों में से एक, बहुलार्क व प्रवालिका - माता ) baalaa
बालाप पद्म ६.१५२.१(बालाप तीर्थ का माहात्म्य, बाला द्वारा सूर्य - प्रदत्त पांच बदरों का पाक, महिष का राजा बनना ) baalaapa
बालाम्बा ब्रह्माण्ड ३.४.२६.७७(कुमारी देवी का नाम )
बालिका मत्स्य १७९.७३(शिव द्वारा अन्धकासुर के रक्त पानार्थ सृष्ट मातृकाओं के उत्पात की शान्ति के लिए नृसिंह द्वारा सृष्ट रेवती मातृका की अनुचरियों में से एक )
बालि द्र. बाली
बालिश/बालिशय नारद १.१२४.७८(बालिशों द्वारा होलि के निर्माण का कथन), भागवत ११.२.४६ (प्रसिद्ध श्लोक ईश्वरे तदधीनेषु बालिशेषु द्विषत्सु च), मत्स्य १९६.१२(बालिशायनि : आङ्गिरस कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), २००.४(वसिष्ठ कुल के एकार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ) baalisha
बाली ब्रह्माण्ड २.३.७.२१४(ऋक्ष व विरजा - पुत्र), भागवत ११.२.४६(भक्त को बालिशों पर कृपा करने का निर्देश), विष्णुधर्मोत्तर १.२२३.१३(रावण का युद्धार्थ किष्किन्धा में गमन, बाली विषयक पृच्छा, तारा द्वारा बाली की प्रशंसा), स्कन्द ५.१.३.५१(ब्रह्मा के स्वेद से उत्पन्न तथा इन्द्र द्वारा पालित नर का रूप, सूर्य द्वारा पालित सुग्रीव नर के हितार्थ राम द्वारा बाली का हनन), वा.रामायण ४.९+ (ऋक्षरजा - पुत्र, सुग्रीव - भ्राता, मायावी दैत्य का वध, दुन्दुभि दैत्य का वध, मतङ्ग मुनि से शाप प्राप्ति, राम द्वारा वध ,इन्द्र - पुत्र), ४.१७+ (राम बाण से घायल होने पर राम की निन्दा, राम से क्षमा याचना), ७.३४(बाली द्वारा रावण का बन्धन व मोचन ), द्र. वालि baalee/ baali
बाली-सुग्रीव कथा का आध्यात्मिक रहस्य
बालुका गरुड २.४.१४१(घ्राण में बालुका देने का उल्लेख), २.३०.५०/२.४०.५०(मृतक की आन्त्र में बालुका देने का उल्लेख), स्कन्द १.२.६.३४(कलाप ग्राम से आगे शतयोजन विस्तार युक्त, साक्षात् स्वर्ग स्वरूप बालुकार्णव स्थान का उल्लेख), १.२.१३.१६२(कपिल द्वारा बालुका लिङ्ग की वरद नाम से अर्चना), ५.३.५.९(बालु वाहिनी नर्मदा का नाम व कारण?), ६.१७७(पञ्चपिण्डा गौरी पूजा के संदर्भ में नृग द्वारा कूप में बालुका द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान, पद्मावती द्वारा मरुस्थल में बालुका द्वारा गौरी पूजा आदि ), गया स्थल पुराण(सीता द्वारा दशरथ हेतु बालुका – निर्मित पिण्ड दान), baalukaa/ baluka
बालेय ब्रह्माण्ड २.३.५.४४(विरोचन - पुत्र बलि के पुत्रों व पौत्रों की बालेय संज्ञा का उल्लेख), मत्स्य ४८.२५(सुतप - पुत्र बलि के वंशजों की बालेय ब्राह्मण संज्ञा का उल्लेख), १९७.९(आत्रेय पुत्रिका - पुत्रों में से एक), २०१.३६(५ श्वेत पराशरों में से एक ) baaleya
बाष्कल देवीभागवत ४.२२.४४(बाष्कल का भगदत्त रूप में अवतरण - अनुह्लादो धृष्टकेतुर्भगदत्तोऽथ बाष्कलः । लम्बः प्रलम्बः सञ्जातः खरोऽसौ धेनुकोऽभवत् ॥), ५.१२.४६ (महिषासुर - सेनानी, देवी से युद्ध हेतु इच्छा), ५.१३.२४(महिषासुर - सेनानी, देवी द्वारा वध), ब्रह्माण्ड १.२.३४.२५ (पैल - शिष्य, गुरु से गृहीत संहिता को चार भागों में विभक्त कर पुन: शिष्यों को प्रदान करना - द्वे कृत्वा संहिते चैव शिष्याभ्यामददाद्विभुः। इंद्रप्रमत्तये चैकां द्वितीयां बाष्कलाय च ।। ), २.३.५.३९(बाष्कल असुर के पुत्रों के नाम?), भागवत ६.१८.१६(अनुह्राद व सूर्म्या के २ पुत्रों में से एक, महिष – भ्राता - अनुह्रादस्य सूर्यायां बाष्कलो महिषस्तथा), १२.६.५४(पैल के २ शिष्यों में से एक बाष्कल द्वारा संहिता को ४ शिष्यों को देने का कथन), मत्स्य ६.९(प्रह्लाद के ४ पुत्रों में से एक), मार्कण्डेय ८२.४२/७९.४२(महिषासुर - सेनानी), वायु ६७.७६(प्रह्लाद - पुत्र, पुत्रों के नाम - विरोधश्च मनुश्चैव वृक्षायुः कुशलीमुखः। बाष्कलस्य सुता ह्येते कालनेमिसुतान् श्रृणु ।।), विष्णु ३.४.१६(पैल के २ शिष्यों में से एक बाष्कल द्वारा संहिता को ४ शिष्यों को देने का कथन), ३.४.२५(बाष्कल द्वारा अन्य तीन संहिताओं को ३ शिष्यों को देने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२१(वामन पद क्रमण की कथा), १.१७६.९(बलि का उपनाम, वामन द्वारा लोकों का हरण), शिव ०.३(बाष्कल ग्राम के निवासियों बिन्दुग व चञ्चुला की कुमार्गगामिता की कथा), स्कन्द ३.३.२२.५०(बाष्कल ग्राम के निवासियों के दुराचार का कथन तथा बिन्दुला व उसके पति विदुर की कथा ), द्र. बलि, वंश संह्राद baashkala/bashkal
बाष्कलि गरुड १.८७.४(विश्वभुक् इन्द्र का शत्रु, विष्णु द्वारा वध), पद्म १.६.४२(प्रह्लाद - पुत्र), १.३०.१३(बलि उपनाम वाले बाष्कल का वामन द्वारा निग्रह), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१०७(३३ आङ्गिरस मन्त्रकार ऋषियों में से एक), १.२.३३.४(बह्-वृच ८६ श्रुतर्षियों में से एक, ब्राह्मणों के रचयिताओं में से एक), १.२.३३.१३(चरकाध्वर्युओं? में से एक), १.२.३४.३२(सत्यश्री के शाखाप्रवर्तक शिष्यों में से एक), १.२.३५.५(भरद्वाज बाष्कलि द्वारा ऋग्वेद संहिता को ३ शिष्यों को देने का उल्लेख), भागवत १२.६.५९(बाष्कलि द्वारा वालखिल्य संहिता को ३ शिष्यों को देने का उल्लेख), वायु ५९.९८(३३ आङ्गिरस मन्त्रकार ऋषियों में से एक), ६०.२५(पैल के २ शिष्यों में से एक बाष्कलि द्वारा संहिता को ४ शिष्यों को प्रदान करने का कथन), ६१.२(भरद्वाज बाष्कलि द्वारा तीन शिष्यों को संहिता दान का उल्लेख), स्कन्द ४.२.९६.८४(बाष्कुलीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.४१.६(बाष्कलि दैत्य द्वारा देवों का पीडन, विष्णु से पराजय), ७.३.२२(बाष्कलि उपनाम वाले कलिङ्ग दैत्य द्वारा स्वर्ग से देवों का निष्कासन, श्रीमाता देवी द्वारा कलिङ्ग की सेना को नष्ट करना तथा बाष्कलि को पर्वत शृङ्ग से दबाकर शृङ्ग पर स्वयं विराजमान होना ) baashkali
बाहीक महाभारत कर्ण ४४.५(कर्ण द्वारा वाहीक देश की निन्दा ) baaheeka/ bahika
बाहु गर्ग ११.२.९(वज्र - पुत्र प्रतिबाहु नृप द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु शाण्डिल्य मुनि से उपाय की पृच्छा), नारद १.७.३(वृक - पुत्र, असूया दोष के कारण राज्य से च्युति), २.१.१(श्रीहरि की ४ बाहुओं का त्रैलोक्य मण्डप के स्तम्भों के रूप में उल्लेख), पद्म १.४०.१९१(परिघाकार बाहुओं का उल्लेख), ६.२०.१२(सगर - पिता, अन्य नाम सुबाहु, सगर का वृत्तान्त), ब्रह्म २.९३.३०(वाराह से बाहु की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४४(बाहु सौन्दर्य हेतु रत्न निर्मित पद्मनाल चण्डकपाल को अर्पित करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२६.५८(ब्रह्मा के महादेव की दक्षिण बाहु व विष्णु के वाम बाहु होने का उल्लेख), २.३.४७.७६(सगर के पिता के रूप में फल्गुतन्त्र नाम का कथन), २.३.६३.१९(वृक - पुत्र, शत्रुओं द्वारा राज्य से निष्कासन पर पुत्र सगर के जन्म का वृत्तान्त), ३.४.१३.१३(ललिता देवी की बाहुएं धर्मादि का रूप होने का उल्लेख), भागवत ४.१५.१, ९.८.२(बाहुक : वृक - पुत्र, पुत्र सगर के जन्म के वृत्तान्त का कथन), मत्स्य १२.३८(वृक - पुत्र, सगर - पिता), १७९.२५(बाहुशालिनी : अन्धकासुर के रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वामन ९०.२५(शूर्पारक में विष्णु की चतुर्बाहु नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), ९०.४२(जम्बू द्वीप में विष्णु की चतुर्बाहु नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु २३.२११/१.२३.१९९(प्रबाहुक : २५वें द्वापर में मुण्डीश्वर अवतार के पुत्रों में से एक), ६३.४२/२.२.४३(बाहु पुत्र द्वारा दक्ष की २ कन्याएं भार्या रूप में प्राप्त करने का उल्लेख), ८८.१२१/२.२६.१२१(धृतक/हृतक - पुत्र, पुत्र सगर के जन्म का वृत्तान्त), १००.६१(बाहुवश : पार संज्ञक देवगण के १२ देवों में से एक), विष्णु ४.३.२६(वृक - पुत्र, सगर - पिता), विष्णुधर्मोत्तर १.१७.७(वृक - पुत्र, सगर - पिता, व्यसनी, शत्रु द्वारा राज्य हरण पर वन में वास), १.४२.७(बाहु की मृणाल से उपमा), स्कन्द ५.३.१९३.२५(जनार्दन की बाहुओं में लोकपालों की स्थिति का उल्लेख), ६.२१३.९०(हृषीकेश से बाहु देश की रक्षा की प्रार्थना), हरिवंश १.१३.३० (वृक - पुत्र, सगर - पिता, राज्य से च्युति), २.२४.३३(कृष्ण द्वारा बाहु से केशी अश्व का वध), महाभारत द्रोण १४२.७२(अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की बाहु का छेदन), कर्ण ३१.६३(शल्य में बाहुबल की प्रधानता का उल्लेख), वा.रामायण २.११०.१८(सगर - पिता, अन्य नाम असित, कालिन्दी - पति), ३.७१.१५(कबन्ध की भुजाओं का योजन विस्तार, राम व लक्ष्मण द्वारा भुजा कर्तन पर स्वर्गगमन), लक्ष्मीनारायण १.१७७.६६(दक्ष यज्ञ में अर्यमा के बाहु छेदन का उल्लेख), १.३९४.२९(मदालसा – पुत्र सुबाहु के नाम की निरुक्ति के संदर्भ में गोविन्द के रक्षक/बाहु बनने का उल्लेख), २.१५८.५३(प्रासाद के स्तम्भ की नर की बाहुओं से उपमा), कथासरित् २.२.१९(बाहुशाली : श्रीदत्त - मित्र), २.२.९९(बाहुशाली - प्रदत्त अंगूठी व मन्त्र की सहायता से श्रीदत्त द्वारा मृगाङ्कवती को जीवनदान), ७.९.२१(बाहुबल : नृप, कांची निवासी), १२.१.३३(बाहुदत्त : नृप, वामदत्त की कथा), १८.२.२७७(बाहु व सुबाहु को क्रमश: शरवेग व गरुडवेग नामक अश्व प्रदान ), द्र. अग्निबाहु, ऊर्ध्वबाहु, कुणिबाहु, खङ्गबाहु, खड्गबाहु, महाबाहु, चण्डबाहु, चित्रबाहु, दीर्घबाहु, बृहद्बाहु, यज्ञबाहु, वज्रबाहु, वीरबाहु, वेदबाहु, शतबाहु, सहस्रबाहु, सुबाहु, हिरण्यबाहु baahu
बाहुदा ब्रह्माण्ड २.३.६३.६७(युवनाश्व - पत्नी गौरी का पति के शाप से बाहुदा नदी बनने का उल्लेख), मत्स्य ११४.२२(हिमालय से नि:सृत नदियों में से एक), वामन ५७.७८(बाहुदा नदी द्वारा स्कन्द को २ गण प्रदान), वायु ४५.९६(हिमालय से नि:सृत नदियों में से एक), ८८.६६/२.२६.६६(नदी, युवनाश्व -पत्नी गौरी का शापित रूप), हरिवंश १.१२.५(प्रसेनजित् - भार्या गौरी का शाप से बाहुदा नदी बनना), लक्ष्मीनारायण २.१८५.७४(बाहुदा में उदक दान से लिखित ब्राह्मण के कटे हुए हाथों की पूर्ति का कथन ) baahudaa/ bahuda
बाहुलक लक्ष्मीनारायण ४.१७.९(बाहुलक भक्त नर्तक व उसकी पत्नी द्वारा नर्तन की उत्कृष्टता से ब्रह्म प्राप्ति का वृत्तान्त )
बाह्य ब्रह्माण्ड १.२.१६.३५(बाह्या : सह्य पर्वत से नि:सृत नदियों में से एक), २.३.७१.३(भजमान व सृंजय की पुत्री - द्वय बाह्यका व उपबाह्यका से उत्पन्न पुत्रों के नाम), वायु ४५.११८(बाह्यतोदर : उत्तर के जनपदों में से एक), ५३.२१(बाह्या : सूर्य की चन्द्रा संज्ञक हिमवाह रश्मियों में से एक), ९६.३.२.३४.३(बाह्य व उपरिबाह्य : भजमान व सृंजयी - पुत्र?), ९६.४(भजमान व बाह्यकार्य शृञ्जयी से उत्पन्न पुत्रों के नाम ) baahya/ bahya
बाह्लिक गरुड १.५५.१७(उत्तर में देश), भागवत १२.१.३४(किलकिला नगरी में भूतनन्द आदि के १३ पुत्रों की बाह्लिक संज्ञा का उल्लेख), विष्णु ४.२४.५७(किलकिला नगरी के भूतनन्द आदि के १३ पुत्रों की बाह्लिक संज्ञा का उल्लेख), वा.रामायण ७.८७.३(देश, इल व इल - पुत्र शशबिन्दु का आधिपत्य ) baahlika/ bahlika
बाह्लीक गर्ग १.५.२९(धाता का अंश), ७.२०.३०(बाह्लीक का प्रद्युम्न - सेनानी साम्ब से युद्ध), नारद १.५६.७४४(बाह्लीक देश के कूर्म का पाणिमण्डल होने का उल्लेख), ब्रह्म १.११.११४(प्रतीप के तीन पुत्रों में से एक, शान्तनु व देवापि - भ्राता, सोमदत्त - पिता), २.७८.३(कण्व - पुत्र, काण्व उपनाम, होम में अग्नि का उपशान्त होना , कोटि तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४६(उत्तर के जनपदों में से एक), १.२.१८.४६(चक्षु नदी द्वारा बाह्लव जनपदों को प्लावित करने का उल्लेख), १.२.२८.९३(पितरों के २ वर्गों में से एक, दिवाकीर्त्य संज्ञा), २.३.७१.१६३(रोहिणी व पौरवी - अग्रज, रोहिणी व रोहिणी - पति वसुदेव का वृत्तान्त), भविष्य ३.३.२३.८(राजा, चित्ररेखा - पिता), ३.४.२३.१४ (यशोनन्दी व जालवती - पुत्र, राज वंश), मत्स्य ५०(प्रतीप के तीन पुत्रों में से एक, शान्तनु व देवापि - भ्राता, ७ पुत्रों का पिता), ११४.४०(उत्तर के देशों में से एक), वामन ९०.१६(कुमारधार तीर्थ में विष्णु का बाह्लीश नाम से वास), वायु ९९.२३४/२.३७.२२९(प्रतिप के ३ पुत्रों में से एक, सप्तवाह्ल व सोमदत्त - पिता), हरिवंश १.३५.४(रोहिणी - पिता, वसुदेव - श्वसुर ) bahleeka
बिडानी पद्म १.४६.८१(अन्धकासुर के रक्त - पानार्थ महादेव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक )
बिडाल गणेश २.८४.२४(गुणेश द्वारा सिन्धु - प्रेषित बिडाल असुर का वध), देवीभागवत ५.५.३४(महिषासुर - सेनानी, इन्द्र व जयन्त से युद्ध व पराजय), ५.१२.३१(महिषासुर - सेनानी बिडाल द्वारा स्त्री के विषय में स्वमत का कथन), ५.१५.२९(देवी द्वारा बिडाल का वध), मत्स्य १७९.१२(बिडाली : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), मार्कण्डेय ८२.४४/७९.४४(महिषासुर - सेनानी, ५० रथों से आवृत होने का उल्लेख), ८३.१८/८०.१९(देवी द्वारा असि से बिडाल के शिर का छेदन), लक्ष्मीनारायण १.४२४.५७(पति से द्वेष करने के कारण कलहा द्वारा बिडाली योनि प्राप्ति का उल्लेख ) bidaala
बिन्दु गर्ग ७.१८.१६(बिन्दु देश के दीर्घबाहु द्वारा पात्रभेदन की परीक्षा के पश्चात् १८ कन्याएं १८ कृष्ण - पुत्रों को प्रदान), १०.२२.४(राजाधिदेवी - पुत्र, अनुबिन्दु - अग्रज, अनिरुद्ध सहित यादव सेना का सत्कार, बिन्दु का विन्द से साम्य), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३८(बिन्दुकार : वाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), २.३.७.२४०(बिन्दुकेतु : वाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), ३.४.३६.४४(चिन्तामणि गृह के मध्य में स्थित बिन्दु चक्र में स्थित अणिमा आदि सिद्धियों का वर्णन), ३.४.३७.३९(विसृष्टि बिन्दु चक्र में षोडशी के भवन का उल्लेख), ३.४.३७.४४(बिन्दु पीठ के परित: स्थित देवियों तथा बिन्दुपीठ पर स्थित ललिता देवी के मञ्चरत्न का वर्णन), ३.४.४३.७६(बिन्दु व नाद के युगल का उल्लेख), भागवत ३.२१.३९(कृपा अतिरेक से निकले अश्रु बिन्दु से बिन्दु सरोवर की उत्पत्ति), मत्स्य ६.२०(दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक), १९६.२६(आङ्गिरस वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६९.३६/२.८.३६(विक्रान्त - पुत्र नरमुख किन्नरों में से एक) शिव १.१६.९१(बिन्दु रूपा माता, नाद रूपी पिता), १.१७.७९ (बिन्दु रूप के अर्वाक् और नाद रूप के उत्तर होने का कथन), स्कन्द २.२.३४.५(बिन्दु तीर्थ के तट पर सप्ताह पर्यन्त स्थिति का माहात्म्य), २.४.३०.४९टीका(बिन्दु ऋषि द्वारा तापस को कार्तिक व्रत का उपदेश), ४.२.८४.६३(बिन्दु तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.७०.६ (बिन्दु सर तीर्थ के माहात्म्य का कथन), ५.३.४४.२९(शूलभेद तीर्थ में तैलबिन्दु के असर्पण का उल्लेख), ५.३.२०७(सुवर्ण बिन्दु तीर्थ के माहात्म्य का कथन), महाभारत सभा ५०.२५(मय द्वारा बिन्दु सरोवर के रत्नों से नलिनी का निर्माण, दुर्योधन को उसमें उदक का भ्रम), शान्ति ३४७.२४(जल बिन्दुओं से मधु व कैटभ की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.४६६.५४(अग्निबिन्दु का बिन्दु तीर्थ में तप, श्रीहरि का बिन्दुमाधव नाम से तीर्थ में वास ), द्र. अग्निबिन्दु, अश्रुबिन्दुमती, तृणबिन्दु, शशबिन्दु bindu
बिन्दुग शिव ०.३(बाष्कल ग्राम के निवासी बिन्दुग ब्राह्मण की कुमार्गगामिता, नरक प्राप्ति )
बिन्दुमती देवीभागवत ७.१०.३(शशबिन्दु - कन्या, मान्धाता - पत्नी, पुरुकुत्स व मुचुकुन्द - माता), ब्रह्म १.५.९३(शशबिन्दु - कन्या चैत्ररथी का अपर नाम, मान्धाता - भार्या, पुरुकुत्स व मुचुकुन्द - माता), भागवत ५.१५.१५(मरीचि - भार्या, बिन्दुमान् - माता), विष्णु ४.२.६६(शतबिन्दु - कन्या, मान्धाता - पत्नी, पुरुकुत्स, अम्बरीष, मुचुकुन्द तथा ५० कन्याओं की माता), हरिवंश १.१२.७(शशबिन्दु - पुत्री , मान्धाता - भार्या), लक्ष्मीनारायण ३.७३.५३(राजा ययाति द्वारा रति - पुत्री बिन्दुमती अप्सरा के सेवन से वार्धक्य प्राप्ति, अप्सरा द्वारा राजा से यौवन की अपेक्षा आदि), कथासरित् ५.३.१५०(धीवरराज - कन्या, शक्तिदेव से विवाह ), द्र. अश्रुबिन्दुमती bindumatee/ bindumati
बिन्दुमाधव मत्स्य १८५.६५(वाराणसी के पांच मुख्य तीर्थों में से एक), स्कन्द ४.१.३३.१४८(बिन्दु माधव क्षेत्र का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.१.३३.१५१(अमूर्त्त परब्रह्म का रूप), ४.२.६०.६७(काशी में अग्निबिन्दु मुनि की आराधना से विष्णु का बिन्दुमाधव नाम से स्थित होना, बिन्दु माधव तीर्थ का माहात्म्य ; कलियुग में बिन्दुमाधव का महत्त्व ) bindumaadhava/ bindumadhava
बिन्दुमान् भागवत ५.१५.१५(मरीचि व बिन्दुमती - पुत्र, भरत वंश ), द्र. वंश भरत bindumaan
बिन्दुरेखा कथासरित् ५.३.१७९(चण्डविक्रम - कन्या, शक्तिदेव द्वारा पाणिग्रहण ), ५.३.१८७(शक्तिदेव की बिन्दुरेखा व बिन्दुमती संज्ञक २ भार्याओं का वृत्तान्त), ५.३.२६०(बिन्दुरेखा के गर्भ का खड्ग में रूपान्तरित होना) bindurekha
बिन्दुला स्कन्द ३.३.२२.५५(बिन्दुला : विदुर - पत्नी, जार कर्मासक्त , पुराण श्रवण से मुक्ति, पिशाच योनि ग्रस्त पति की मुक्त हेतु उद्योग), लक्ष्मीनारायण १.४५४.१७(सती पत्नी बिन्दुला द्वारा पति विदुर के दुष्कर्मों की उपेक्षा, विदुर की मृत्यु पर सतीत्व प्रभाव से यमदूतों का वर्जन ) bindulaa
बिन्दुसर ब्रह्माण्ड १.२.१८.२५(भगीरथ के तप का स्थान व महिमा, गङ्गा का उद्भव स्थल), भविष्य ३.३.२५.१(बिन्दुसरोवर तीर पर बिन्दुगढ नामक ग्राम की स्थिति), भागवत ३.२१.३५(सरस्वती के जल से पूरित सरोवर, कर्दम ऋषि का स्थान), मत्स्य १२१.३१(गङ्गा के बिन्दुओं से बिन्दुसर की उत्पत्ति), वायु ४७.२४(आकाश गङ्गा के बिन्दुओं के पतन से बिन्दुसर की उत्पत्ति), स्कन्द ५.१.७०.६(बिन्दुसर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), वा.रामायण १.४३.११(गङ्गा का शिव जटा से मुक्ति का स्थान ) bindusara
बिभीतक पद्म १.२८.२६(वृक्ष, प्रेतत्व दायक), भविष्य १.५७.१९(भूतों हेतु बिभीतक बलि का उल्लेख), वामन ७५.९(बिभीतक वन में कलि द्वारा प्रवेश), स्कन्द ६.२५२.२४(चातुर्मास में यम की बिभीतक में स्थिति का उल्लेख ) bibheetaka/ bibhitaka
बिम्ब गर्ग ७.१५.१८(असम देश - अधिपति बिम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१७३(उपबिम्ब व बिम्ब : वसुदेव व भद्रा के ४ पुत्रों में से २), वायु ९६.१७१/२.३४.१७१(उपबिम्ब व बिम्ब : वसुदेव व भद्रा के ४ पुत्रों में से २), कथासरित् २.२.१९५(बिम्बकि राजा द्वारा श्रीदत्त को स्वकन्या प्रदान ), द्र. श्रीबिम्ब bimba
बिल भागवत ६.५.७, १३(अदृष्ट निर्गम बिल के रूप में अन्त:ज्योति ? का कथन), स्कन्द १.२.६.३०(कलाप ग्राम में पहुंचने के लिए आकाशमार्ग तथा बिल मार्ग की शक्यता, बिल मार्ग से पहुंचने की विधि का कथन), ३.१.४७.४०(रावण वध से उत्पन्न ब्रह्महत्या : राम द्वारा बिल में रख कर ऊपर से भैरव की स्थापना), ६.८.२४(देवों द्वारा पाताल में हाटकेश्वर क्षेत्र को मिट्टी से भरना, कालान्तर में नागबिल का निर्माण, इन्द्र का नागबिल से हाटकेश्वर में आना व देवों द्वारा नागबिल का गिरि से पूरण), महाभारत आदि ३.१२९(तक्षक नाग द्वारा पृथिवी में महाबिल में घुसने व उत्तङ्क ऋषि द्वारा उसे खोदने का वृत्तान्त), वा.रामायण ३.४.३०(राम व लक्ष्मण द्वारा विराध राक्षस का वध, बिल में प्रक्षेपण), ४.९.१२(वाली व सुग्रीव से पीछा किए जाते हुए मायावी राक्षस का बिल में प्रवेश, राक्षस वध हेतु वाली का भी बिल में गमन), ४.५२.११(सीता अन्वेषण हेतु निकले हुए हनुमानादि वानरों का बिल में प्रवेश, तापसी स्वयंप्रभा के दर्शन, तापसी के प्रभाव से बिल से निर्गमन), लक्ष्मीनारायण १.५३.४०+ (पृथिवी के पश्चिम् में भूविवर के पूरणार्थ राजा रैवत द्वारा श्रीहरि से सौराष्ट} देश की प्राप्ति तथा उस प्रदेश पर निवास का वृत्तान्त ) bila
बिल्व अग्नि ८१.५०(राज्य लाभ हेतु होम द्रव्य - बिल्वं राज्याय लक्ष्मार्थं पाटलांश्चम्पकानपि ।), पद्म ४.२१.२५(कार्तिक व्रत में बिल्व सेवन से कलङ्की होने का उल्लेख - कलंकी जायते बिल्वे तिर्यग्योनिश्च निंबुके ।), ब्रह्माण्ड २.३.११.३९(बिल्व के बलि पात्र से लक्ष्मी, मेधा, आयु की प्राप्ति का उल्लेख - बैल्वे लक्ष्मीन्तथा मेधां नित्यमायुस्तथैव च ।), भविष्य १.५७.१७(कुबेर हेतु बिल्व बलि का उल्लेख - बिल्वं दद्यात्कुबेराय कपित्थं मरुतां तथा । ।), १.१८७.५२(बिल्व वृक्ष की गोमय से उत्पत्ति का उल्लेख - गोमयादुत्थितः श्रीमान्बिल्ववृक्षोऽर्कवल्लभः ।। तत्रास्ते पद्महस्ता श्रीर्वृक्षस्तेन च स स्मृतः ।।), २.३.१०(बिल्व प्रतिष्ठा विधि), ३.२.२२.१(बिल्वती ग्राम में राजा क्षत्रसिंह की कथा), मत्स्य १३.३१(बिल्व तीर्थ में सती देवी का बिल्वपत्रिका नाम से वास - स्थानेश्वरे भवानी तु बिल्वके बिल्वपत्रिका।), १७९.७१(बिल्वा : नृसिंह द्वारा सृष्ट मातृका भवमालिनी की ८ अनुचरी मातृकाओं में से एक), १९५.३३(बिल्वि : भार्गव वंश के पञ्चार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), महाभारत वन ३३.७(कुणीनामिव बिल्वानि पङ्गूनामिव धेनवः । हृतमैश्वर्यमस्माकं जीवतां भवतः कृते ।।), वराह ७९.९(बिल्व वन में बिल्व वृक्ष के फलों का कथन - शीर्यद्भिश्च पतद्भिश्च कीर्णभूमिवनान्तरम् । नाम्ना तच्छ्रीवनं नाम सर्वलोकेषु विश्रुतम् ।।), १४५.३८(बिल्वप्रभ : शालग्राम के अन्तर्गत बिल्वप्रभ तीर्थ का महत्त्व), १५३.४५(बिल्व वन : मथुरान्तर्वर्ती १२ तीर्थों में से एक), वामन १७.८(बिल्व की लक्ष्मी के हस्त से उत्पत्ति), वायु ३८.३४(सुमूल व वसुधार पर्वतों के बीच स्थित बिल्वस्थली की महिमा का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.८२.९(बिल्व के सकल लोक व आपः सारामृत का प्रतीक होने का उल्लेख - बिल्वं च सकलं लोकमपां सारामृतं तथा ।।), शिव १.२२.२१(बिल्वमूल व उसमें स्थित शिवलिङ्ग का महत्त्व - पुण्यतीर्थानि यावंति लोकेषु प्रथितान्यपि । तानि सर्वाणि तीर्थानिबिल्वमूलेव संति हि।..), ४.४०.१५(आखेट हेतु भिल्ल का बिल्व वृक्ष पर आरोहण, बिल्व पत्र का शिवलिङ्ग पर पतन, भिल्ल की मुक्ति की कथा - इत्येवं कुर्वतस्तस्य जलं बिल्वदलानि च ।। पतितानि ह्यधस्तत्र शिवलिंगमभूत्ततः ।।), स्कन्द १.१.३३(चण्ड किरात की बिल्व वृक्ष पर स्थिति, अनायास पत्र पतन से शिवलिङ्ग पूजन - एकदा निशि पापीयाच्छ्रीवृक्षोपरि संस्थितः॥ कोलं हंतुं धनुष्पाणिर्जाग्रच्चानिमिषेण हि॥ ), २.२.१३.२२(बैल्व फल द्वारा शिव की पूजा से श्रीकृष्ण द्वारा पाताल में प्रवेश हेतु विवर के दर्शन करना - बैल्वं फलं समादाय तत्रावाह्य त्रिलोचनम् ।। पूजयित्वा पुरारातिं तुष्टावासुरसूदनः ।।), २.२.१८.४(दक्षिण तट प्रदेश में बिल्वेश्वर के समीप अद्भुत वृक्ष का उद्भव, नारद द्वारा वृक्ष का माहात्म्य - दक्षिणे तटभूदेशे बिल्वेश्वरसमीपतः ।।...देव दृष्टो महान्वृक्षस्तटभूमौ महोदधेः ।।), २.४.३२.४४(भीष्मपञ्चक व्रत विधान के अन्तर्गत हरिपूजन में प्रथम दिन हरि चरणों को कमलों से, द्वितीय दिन जानुदेश को बिल्वपत्र से तथा तृतीय दिन शीर्ष को मालती से पूजने का निर्देश - प्रथमेऽह्नि हरेः पादौ पूजयेत्कमलैर्व्रती ।। द्वितीये बिल्वपत्रेण जानुदेशं समर्चयेत् ।।), ५.१.२६.७(बिल्वेश की महाकाल के पश्चिम् द्वार पर स्थिति का उल्लेख), ५.१.२६.२५(बिल्वेश्वर को अश्व दान का निर्देश - दत्त्वा बिल्वेश्वरे चाश्वं वृषं दत्त्वा तु चोत्तरे ।।), ५.२.८१.३३(बिल्वेश्वर : शिव के गण नायकों में से एक, क्षेत्र रक्षणार्थ प्रतीची दिशा में नियुक्ति - बिल्वेश्वरः प्रतीच्यां तु दुर्द्दर्शश्चोत्तरे तथा ।।), ५.२.८३(बिल्वेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, कपिल को पराजित करने के लिए बिल्व नृप द्वारा बिल्वेश्वर की पूजा की कथा), ५.३.१९८.६८(बिल्व तीर्थ में देवी की बिल्वपत्रिका नाम से स्थिति), ६.२४७.१(बिल्व में पार्वती के वास का कथन), ६.२५०(बिल्व की पार्वती के स्वेद से उत्पत्ति, अङ्गों में देवों की स्थिति), ७.१.१७.९(बिल्व की दन्तकाष्ठ का महत्त्व), ७.१.१७.११५(बिल्व पुष्प की महिमा का कथन - बिल्वस्य पत्रकुसुमैमहतीं श्रियमश्नुते ॥), हरिवंश २.७४.१९(बिल्वोदकेश्वर शिव , कृष्ण द्वारा पूजा - उदकं च गृहायाथ बिल्वं च हरिरव्ययः । देवमावाहयामास रुद्रं सर्वेश्वरेश्वरम् ।।), २.८०.३१(उन्नत स्तन प्राप्ति हेतु स्वर्ण - निर्मित बिल्व फल दान का निर्देश - संवत्सरे ततः पूर्णे द्वे बिल्वे काञ्चने शुभे । सदक्षिणे ब्राह्मणाय प्रयच्छति धृतात्मने ।।), २.८४.५३(बिल्वोदकेश्वर शिव की आज्ञा से कृष्ण द्वारा दुर्योधनादि राजाओं का गुफा में प्रक्षेपण - बिल्वोदकेश्वरेणाहमाज्ञप्तः शूलपाणिना । प्रक्षेप्तव्या नरेन्द्रास्ते गुहायामिति धीमता ।।), २.८५(बिल्वोदकेश्वर शिव की आज्ञा से कृष्ण द्वारा निकुम्भ का नाश - चक्रेण शमयस्यैनं देवब्राह्मणकण्टकम् ।। इति होवाच भगवान् देवो बिल्वोदकेश्वरः ।), योगवासिष्ठ ६.१.४५(बिल्वफल आख्यान द्वारा परब्रह्म का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९६(प्लक्षावतार श्रीहरि के दर्शन हेतु शम्भु द्वारा बिल्व वृक्ष का रूप धारण करने का उल्लेख - धवलद्रुस्तदा नन्दी शंभुर्बिल्वस्वरूपधृक् ।), १.५५९.३२(राजा रन्तिदेव द्वारा अग्नि में बिल्व आम्रवेतस की आहुति से बिल्वाम्रक लिङ्ग के समुत्थान का कथन - अथाऽग्नौ च जुहावाऽयं राजा बिल्वाऽऽम्रवेतसम् । तस्मात् समुत्थितं लिंगं ज्वलत्कालानलप्रभम् ॥), १.५५९.८१(बिल्वाम्रक तीर्थ में स्नान आदि से काम की दासियों को कुब्जत्व से मुक्ति का वृत्तान्त - यज्ञपाकाश्रमं गत्वा बिल्वाम्रकं सुतीर्थकम् ॥ कृत्वा शापात्ततो मुक्ता भविष्यन्ति द्रुतं तु ताः ।), ४.४८(बिल्व नगर के मदिरा व्यवसायियों द्वारा कथा श्रवण हेतु प्रयाण व मार्ग में लुण्ठकों से कष्ट प्राप्ति का वृत्तान्त), कथासरित् ७.१.५६(ब्राह्मण द्वारा बिल्वफल से होम, राजा द्वारा कारण की पृच्छा, अग्निदेव द्वारा वर प्रदान की कथा - अनेन बिल्वहोमेन प्रसीदति यदानलः । हिरण्मयानि बिल्वानि तदा निर्यान्ति कुण्डतः ।। ),सुश्रुत सूत्रस्थान ४६.२०९(फलेषु परिपक्वं यद्गुणवत्तदुदाहृतम्। बिल्वादन्यत्र विज्ञेयमामं तद्धि गुणोत्तरम्॥), अथर्वपरिशिष्ट ३१.६.४(कांचन प्राप्ति के लिए बिल्व से होम का निर्देश - समिद्भिः सर्वकामस्तु बिल्वैः प्राप्नोति काञ्चनम् ॥), bilva
बिल्वप्रभ वराह १४५.३८(शालग्राम के अन्तर्गत बिल्वप्रभ तीर्थ का महत्त्व - तत्र बिल्वप्रभं नाम गुह्यं क्षेत्रं मम प्रियम् ।। कुञ्जानि तत्र चत्वारि क्रोशमात्रे यशस्विनि ।। )
बिल्वमङ्गल भविष्य ३.४.२२.२५(अकबर - मित्र, पूर्व जन्म में शूर - बिल्वमङ्गल एवापि नाम्ना तन्नृपतेः सखा । नायिकाभेदनिपुणो वेश्यानां स च पारगः । )
बिस पद्म ५.३६.५६(बिस तन्तु आदि पांच राक्षसों के राम -सेना द्वारा संहार का उल्लेख), स्कन्द ७.१.२५५(ऋषियों द्वारा सरोवर से प्राप्त बिसों का शुनोमुख रूप धारी इन्द्र द्वारा हरण, पश्चात् इन्द्र द्वारा वर प्रदान, ऋषि तीर्थ की स्थापना), योगवासिष्ठ ३.८१.१०५(बिसतन्तु की महामेरु से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.३७४.१४(बृहस्पति की अवमानना से इन्द्र को ब्रह्महत्या की प्राप्ति तथा इन्द्र के पुष्कर सरोवर में कमल सूत्र में छिपने का उल्लेख ) bisa
बीज अग्नि २५(चतुर्व्यूह के देवताओं आदि के लिए बीज मन्त्र), २६(बीज मन्त्रों हेतु मुद्राएं), ३३.३८(यं, रं, लं आदि बीजों के विशिष्ट कार्य), ५९.१३(बीज मन्त्रों के प्रतीक व न्यास), ८४+ (दीक्षा में कलाओं के लिए विशिष्ट बीज), ८८.४७(हां हीं हूं आदि बीज मन्त्रों का अर्थ), ९१(देवता अनुसार मन्त्र में बीजाक्षर को सम्बद्ध करना), १२१.४०(बीज वपन हेतु नक्षत्र विचार), २०१(नवव्यूहार्चन विधि में वासुदेवादि की पृथक् - पृथक् बीज से युक्त करके पूजा का विधान, गदा, गरुड, श्रीवत्स आदि के बीजमन्त्रों का कथन), ३०१.१(गणपति हेतु बीज मन्त्र), ३१७(शिव मूर्तियों व प्रासाद मन्त्र के बीज मन्त्र), ३२३.१५(बीज मन्त्र हंस व माया मन्त्र का कथन), कूर्म २.४६.४१(सबीज व निर्बीज योगों का कथन), गरुड १.७(बीज मन्त्रों सहित सूर्य आदि ग्रहों, शिव, विष्णु व आयुधों की पूजा), १.११(बीज मन्त्र न्यास), १.२०(आयुधों हेतु बीज मन्त्र), गर्ग ३.६(कृष्ण द्वारा कृषि हेतु मुक्ताकणों का बीज रूप में उपयोग), पद्म ६.६.२४(इन्द्र द्वारा हत बल दैत्य के शरीर के अवयवों की रत्नबीजत्व रूप में परिणति), ६.१०४.२९(गौरी, लक्ष्मी व स्वरा द्वारा देवों को स्व - स्व बीज का दान, देवों द्वारा बीजारोपण, बीजों से धात्री, मालती व तुलसी नामक वनस्पतियों की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.१९.२०(बीजाकर्षणिका : चन्द्रमा की कला रूपा गुप्ता संज्ञक १६ शक्तियों में से एक), ३.४.३६.७१(वही), मत्स्य २(बीज की अण्ड रूप में परिणति, ब्रह्माण्ड का प्राकट्य), १७९.६९(बीजभावा : नृसिंह द्वारा सृष्ट माया मातृका की अनुचरी देवियों में से एक), १९७.७(बीजवापी : अत्रि वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), लिङ्ग १.१७.६३(मकार के विभु बीजी, अकार के बीज और उकार के हरि योनि के संयोग से सौवर्ण अण्ड की उत्पत्ति का कथन), १.२०.७०(विष्णु योनि, ब्रह्मा बीज, शिव बीजी), १.४९.६३(बीजपूर वन में बृहस्पति का वास), वायु ८.२३(प्रलय काल में तपोलोक से नीचे की प्रजा के अग्नि से दग्ध होने और नये सर्ग के लिए बीज बनने का कथन), १०१.२२८/२.३९.२२८(ईश्वर से बीज की उत्पत्ति, क्षेत्रज्ञ बीज तथा नारायणात्मिका प्रकृति के योनि होने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.३०१.३२(बीज प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि), शिव ६.३.११(ओङ्कार की अ मात्रा बीज, उ योनि व म बीजी का रूप), ७.२.२७.२३(शिवाग्नि की स्थापना व अग्नि संस्कार के अन्तर्गत भ्रुं स्तुं ब्रुं श्रुं पुं ड्रुं द्रुं नामक सात अग्नि बीजों का कथन), स्कन्द २.४.२२.२८(देवियों द्वारा कार्यसिद्धि हेतु देवों को बीज प्रदान, देवों का बीज ग्रहण कर विष्णु द्वारा अधिष्ठित भूमि पर बीजों का प्रक्षेपण), २.४.२३(देवियों द्वारा प्रदत्त बीजों से धात्री, मालती , तुलसी की उत्पत्ति), ३.२.२०.७(शिव - पार्वती संवाद में बीज मन्त्रों के भेद), ३.२.२०.१९, ५.१.५२.४३(हिरण्याक्ष वध हेतु विष्णु द्वारा धारित वराह स्वरूप में बीज ओषधि की तनूरुह/रोंगटों से उपमा ?), ५.३.१०३.६१(ब्रह्मा द्वारा मेघरूप होकर बीजवपन करने, विष्णु के हेमन्त रूप होकर पालन करने तथा शिव द्वारा ग्रीष्म रूप होकर कर्षण करने रूप व्यापार का कथन), ५.३.१११.१३ (अग्नि द्वारा शिव व पार्वती की रति में व्यवधान, शिवाज्ञा से अग्नि द्वारा अमोघ बीज का धारण, असह्य होने पर गङ्गा में प्रक्षेपण, स्कन्द के जन्म का वृत्तान्त), योगवासिष्ठ ४.१+ (बीजाङ्कुर), ५.९१(संसृति बीज), ६.१.८०.७९(सूक्ष्म तन्मात्र की बीज से तुलना, पांच तन्मात्र बीजों से पांच भूत - पादपों की उत्पत्ति), ६.२.२ (कर्म बीज), ६.२.७(जगत वृक्ष के बीज), ६.२.२८(दैव द्वारा वासना बीज के अङ्कुरण को रोकने का उपाय), ६.२.३६(संसार बीज), ६.२.४४.३(चित्त भूमि में समाधि बीज द्वारा कृषि का वर्णन), ६.२.९४.६८(अन्तरिक्ष रूपी अक्षय क्षेत्र में ख गगन रूपी बीज से उत्पन्न प्रजाओं का वर्णन), महाभारत वन ३१३.५६(निवपन करने वालों के लिए बीज के श्रेष्ठ होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), अनुशासन ६.८(दैव बीज और पुरुषार्थ क्षेत्र होने का कथन), आश्वमेधिक ९२.२०(अगस्त्य के बीज यज्ञ का उल्लेख), ९२दाक्षिणात्य पृ.६३१९(बीज का ब्रह्मचर्य से सम्बन्ध), लक्ष्मीनारायण २.५८.१३(रक्त बिन्दुओं से सिक्त बीजों के वपन से आरबीज नामक प्रजा की उत्पत्ति का वृत्तान्त), २.११०.६६(बीजजङ्गी द्वारा फिलीप द्वीप का राज्य प्राप्त करने का उल्लेख), ३.११.७(कोशस्तेन राक्षस द्वारा ब्रह्मचारियों व देवों के बीजों का भक्षण, कोशस्तेन के निग्रह के लिए बीज नारायण का प्राकट्य), कथासरित् १.६.८४(देवी - प्रदत्त दिव्य बीज द्वारा उद्यान का निर्माण ), द्र. उशीरबीज, रक्तबीज beeja/ bija
बीरबल भविष्य ३.४.२२.२२(अकबर - सभासद, पूर्व जन्म में मुकुन्द - शिष्य देवापि )
बुदबुद ब्रह्माण्ड १.२.१६.२६(बुदबुदा : हिमालय से नि:सृत नदियों में से एक), वायु ४.६७(महत् से लेकर विशेष तक के तत्त्वों द्वारा जल बुद्बुदवत् अण्ड उत्पन्न करने का उल्लेख ), द्र. बुद्बुद budbuda
बुद्ध अग्नि १६(बुद्ध अवतार की कथा), ब्रह्माण्ड ३.४.१.११४(भौत्य मनु के पुत्रों में से एक), भविष्य ३.४.२१.२५(गौतम बुद्ध : मय का अंश, बुद्ध द्वारा तीर्थों में मायामय यन्त्र की स्थापना, बौद्ध धर्म का प्रचार), ३.४.२५.९१(प्रथम सावर्णिक मन्वन्तर में कुम्भ राशि में बुद्ध की उत्पत्ति), भागवत १.३.२४(कलियुग में कीकटों में अजन - पुत्र के रूप में विष्णु के बुद्ध अवतार का उल्लेख), ६.८.१९(बुद्ध से पाखण्डगण व प्रमाद से रक्षा की प्रार्थना), मत्स्य ४७.२४७(नवम विष्णु अवतार के रूप में बुद्ध का उल्लेख), ५४.१९(नक्षत्र पुरुष व्रत के अन्तर्गत चित्रा नक्षत्र में विष्णु के ललाट की बुद्ध रूप में पूजा का निर्देश), वराह ४७(श्रावण शुक्ल एकादशी में करणीय बुद्ध द्वादशी व्रत का वर्णन), वायु १०४.८२/२.४२.८२(बौद्ध पीठ : छाया में स्थिति), वा.रामायण ४.१२.१७(वालि व सुग्रीव के युद्ध की बुध व मङ्गल ग्रहों के युद्ध से तुलना), स्कन्द २.४.७.७(द्रविड देशीय ब्राह्मण बुद्ध की अनाचाररता पत्नी की दीपदान से मुक्ति की कथा), लक्ष्मीनारायण १.४९८.४१(बोद्ध : पाप से गति के अवरुद्ध न होने वाले ४ विप्रों में से एक), २.२६८.३(गुरु प्रबोध का शिष्य राजा अमोहाक्ष के राजभोगों को त्याग वन गमन का वृत्तान्त, राजा को उपदेश), कथासरित् २.३.१५(बुद्धदत्त : चण्डमहासेन का मन्त्री ), द्र. प्रबुद्ध buddha
बुद्धि अग्नि ८४.३४(बुद्धि के भोग होने का उल्लेख?), गणेश २.६४.३६ (देवान्तक से युद्ध में सिद्धियों की पराजय पर बुद्धि द्वारा युद्ध का वर्णन), २.८५.२८(बुद्धीश गणेश से प्राच्यत: रक्षा की प्रार्थना), २.१०९.१०(गणेश के सिद्धि - बुद्धि से विवाह का वृत्तान्त), गरुड १.२१.४(वामदेव शिव की १३ कलाओं में से एक), ३.२८.८३(सुष्ठु व दुष्ट बुद्धि रूपी भार्या-द्वय का कथन), ३.२८.८५(बुद्धि पत्नी के कनिष्ठा व ज्येष्ठा स्वरूपों का कथन), गर्ग ३.९.२१(कृष्ण की बुद्धि से यवस गुल्मों के प्राकट्य का उल्लेख), देवीभागवत ११.२२.३३(प्राणाग्नि होत्र में पत्नी का रूप), नारद १.४४.३२(पांच इन्द्रिय, छठां मन, सातवीं बुद्धि व आठवां क्षेत्रज्ञ होने का उल्लेख, बुद्धि के कार्य का कथन), १.६६.९४(कृष्ण की शक्ति बुद्धि का उल्लेख), पद्म ४.८६.९७(दुर्गा के मर्त्य स्तर पर बुद्धि होने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.१५२(धर्म द्वारा सरस्वती को धर्मबुद्धि देने का उल्लेख), ३.७.७४(बुद्धि के ईश्वरी/प्रकृति तथा मेधा आदि के उसकी कलाएं होने का कथन), ४.८६.९७(मनुष्य में बुद्धि के दुर्गा स्वरूप होने का उल्लेख), ४.९४.१०७(प्रकृति के बुद्धि रूपा होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.१.३.३८(अबुद्धिपूर्व प्रथम सर्ग का कथन), १.१.५.१००(ब्रह्मवृक्ष में बुद्धि स्कन्ध होने का उल्लेख), १.१.५.१०४(३ अबुद्धिपूर्वक प्राकृत सर्ग तथा ६ बुद्धिपूर्वक वैकृत सर्गों का कथन), ३.४.१९.१७(बुद्ध्याकर्षणी : चन्द्रमा की १६ शक्तियों में से एक), ३.४.३६.६९(चन्द्रमा की कला रूपी गुप्त योगिनी संज्ञक १६ शक्तियों में से एक), भविष्य १.२.१२९(प्राणियों में बुद्धिमान व बुद्धिमानों में नर की श्रेष्ठता का कथन), ३.२.१.५(बुद्धिदक्ष द्वारा पद्मावती कन्या के संकेतों को समझ कर स्वमित्र वज्रमुकुट का पद्मावती से मिलन कराने की कथा), ३.२.११.१२(बुद्धि प्रकाश : धर्मवल्लभ - मन्त्री, नृप हेतु कन्या का अन्वेषण, प्राप्ति, राज्यविनाश के भय से मरण), ३.४.७.२२(राजसी, सात्त्विकी व तामसी बुद्धि के पति रूप में क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु व महेश का उल्लेख), ३.४.८.८८(अव्यक्त में बुद्धि के विद्या और व्यक्त में अविद्या होने का कथन), भागवत ४.१.५१(दक्ष - कन्या, धर्म - पत्नी, अर्थ - माता), ६.५.७, १४(बुद्धि का बहुरूपा स्त्री, स्वैरिणी आदि रूप में कथन), मत्स्य ३.२७(पांच गुणों वाली गन्ध/भूमि के बुद्धि होने का उल्लेख), ४.२५(मनु व शतरूपा की ७ सन्तानों में से एक), २६०.५५(विनायक के ऋद्धि - बुद्धि से युक्त होने का उल्लेख), मार्कण्डेय १००.३६/९७.३६(रैवत मन्वन्तर को सुनने से बुद्धि प्राप्ति का उल्लेख), वायु ४.३३/१.४.३१(बुद्धि शब्द की निरुक्ति), ९.११४/१.९.१०६(ब्रह्मवृक्ष रूपी पुरुष में स्कन्ध के बुद्धि होने का उल्लेख), १०.२५(दक्ष की धर्म को प्रदत्त १३ कन्याओं में से एक), १०.३६(बोध व अप्रमाद - माता), ५९.७४(महान् शरीर में बुद्धि के चतुर्विध रूपों ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य व धर्म के रूप में प्रकट होने का उल्लेख), ६६.१८/२.५.१८(तुषित देवों में से एक), १०२.२०/२.४०.२०(प्रलय काल में बुद्धि लक्षण वाले महान् द्वारा भूतादि को ग्रसने का उल्लेख), १०३.१४/२.४१.१४(प्रधान के सर्व कार्य बुद्धि पूर्व होने तथा अबुद्धिपूर्व क्षेत्रज्ञ द्वारा इन गुणों को नियन्त्रित करने का कथन), विष्णु १.८.१८(विष्णु के बोध व लक्ष्मी के बुद्धि होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.२०६(बुद्धि प्राप्ति व्रत), शिव २.४.२०.२(विश्वरूप - कन्या, गणेश से विवाह, लाभ नामक पुत्र की प्राप्ति), स्कन्द १.२.५.९५(बुद्धि के बहुरूपा स्त्री से एकरूपा बनने का कथन), २.७.१९.२१(बुद्धि के शम्भु? से श्रेष्ठ व प्राण से अवर होने का उल्लेख), ४.२.८८.६०( पार्वती के रथ में सारथि), ५.२.६४.१३(बुद्धि स्त्री द्वारा राजा पशुपाल को दस्युओं से मुक्ति हेतु प्रबोधन), महाभारत वन १८१.२४(मन व बुद्धि में अन्तर), शान्ति १७.२१(बुद्धि की परिभाषा), २४७.१६(बुद्धि द्वारा महाभूतों के गुणों को इन्द्रियों से जोडने का कथन), २४८(इन्द्रियों द्वारा अर्थ के निर्णय में बुद्धि का महत्त्व), २५४.९(शरीर रूपी पुर में बुद्धि के स्वामिनी व मन के मन्त्री होने का कथन), २५५.१०(बुद्धि के ५ मुख्य गुणों के नाम तथा विस्तृत रूप में ६० गुण होने का कथन), २७४.१२(वाक् - मन को बुद्धि द्वारा व बुद्धि को ज्ञानचक्षु द्वारा वश में करने का निर्देश), ३०१.१४(बुद्धि के ७ गुणों का उल्लेख), आश्वमेधिक २५.१५(ब्रह्मात्मा/बुद्धि के उद्गाता होने का उल्लेख), ३४.१२(ब्राह्मण गीता के अन्तर्गत मन के ब्राह्मण व बुद्धि के ब्राह्मणी होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ४.४२.२३३(वासना ग्रस्त होने पर अहंकार के बुद्धि और बुद्धि के मन बनने का कथन), ६.१.१२८.११(बुद्धि का ब्रह्मा में न्यास), ६.२.८७.११(अहं भाव के घनीभूत होने पर बुद्धि तथा बुद्धि के घनीभूत होने पर मन संज्ञा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१०८.५(विश्वरूप प्रजापति द्वारा स्वकन्याओं सिद्धि व बुद्धि का गणेश से विवाह, बुद्धि से लाभ पुत्र की उत्पत्ति का कथन), १.२९९.३(विश्वकर्मा की पुत्रियों सिद्धि व बुद्धि द्वारा अधिक मास सप्तमी व्रत से गणेश रूप धारी कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त), १.३८५.४८(बुद्धि पत्नी का कार्य : गण्डबिन्दु), १.५४७.५५(त्रिगुणात्मिका बुद्धि दासी द्वारा राजा से महान् तथा अहंकार आदि पुत्रों की उत्पत्ति, पुत्रों व प्रपौत्रों द्वारा राजा के धर्षण आदि का वृत्तान्त), २.७८.३८(आत्मा पति तथा बुद्धि पत्नी का कथन), २.२५५.३८ (बुद्धि तत्त्व के अन्ता, ममता आदि ७ भावों के नाम), ४.२४.२६ (बुद्धि के प्रमोक्षिणी दारा होने का उल्लेख), कथासरित् ७.९.१४७(कर्पूरक - पत्नी, कर्पूरिका - माता), १०.१०.१३६(बुद्धिप्रभ नृप की दिव्य पुत्री हेमप्रभा का वृत्तान्त), १०.१०.१८१(बुद्धिप्रभ : नृप, रत्नाकार नगरवासी, रत्नरेखा - पति, हेमप्रभा - पिता), १२.८.६३(बुद्धिशरीर : प्रतापमुकुट राजा का मन्त्रि - पुत्र, वज्रमुकुट - मित्र ), द्र. गम्भीरबुद्धि, धृष्टबुद्धि, प्रपञ्चबुद्धि buddhi
बुद्धिसागर नारद १.१२.७२(वीरभद्र - मन्त्री, तडाग निर्माण के पुण्य से स्वर्ग प्राप्ति )
बुद्बुद पद्म १.४०.१४२(जल में ग्रह - नक्षत्रों के बुद्बुद रूप होने का उल्लेख ), द्र. बुदबुद
बुध अग्नि १८४.९(बुधाष्टमी व्रत की विधि एवं कथा), गणेश १.७६.११(दूर्व व शाकिनी - पुत्र, सावित्री - पति, वेश्याकर्म में रति, माता - पिता व पत्नी की हत्या), गरुड १.१३२(बुध अष्टमी व्रत का माहात्म्य : कौशिक द्विज को धन की प्राप्ति, विजया को पति की प्राप्ति), ३.२२.२८(बुध के ११ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), ३.२९.३०(अग्नि व स्वाहा-पुत्र, चन्द्र-पुत्र, अभिमन्यु रूप में अवतरण), देवीभागवत ०.३.२६(इला बने सुद्युम्न का सोम - पुत्र बुध के आश्रम में प्रवेश, पुरूरवा का जन्म), १.१०.८४(सोम व तारा से बुध की उत्पत्ति की कथा), ९.२२(बुध का शङ्खचूड- सेनानी घृतपृष्ठ से युद्ध), पद्म १.१२.४५(सोम व तारा - पुत्र, इला व बुध से पुरूरवा का जन्म), ६.२१५.४७(मुनि - पुत्र के आक्षेप पर बुध द्वारा मुनि - पुत्र को कुण्डत्व का शाप), ब्रह्म १.५.१६(चन्द्रमा - पुत्र, इला से रति की प्रार्थना, पुरूरवा पुत्र की उत्पत्ति), १.७.३२(सोम व तारा से बुद्ध की उत्पत्ति, पुरूरवा - पिता), १.१६.१३(रोगनाशक तन्त्र निर्माण में दक्ष सोलह व्यक्तियों में से एक बुध द्वारा सर्वसार नामक तन्त्र का निर्माण), २.३८.६३(बुध का इला से विवाह, पुरूरवा का जन्म), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२०(१६ आयुर्वेद शास्त्र प्रणेताओं में चन्द्रसुत द्वारा सर्वसार नामक चिकित्सा शास्त्र की रचना का उल्लेख), २.६१(बुध की चित्रा पत्नी से चैत्र का जन्म), ब्रह्माण्ड १.२.२४.९०(त्विषि - पुत्र), २.३.६५(बुध जन्म का निरूपण), भविष्य १.३४.२२(बुध ग्रह का कर्कोटक नाग से तादात्म्य), ३.४.२५.३७(बुध की ब्रह्माण्ड के घ्राण से उत्पत्ति, ब्रह्म सावर्णि मन्वन्तर की रचना), ४.५४(बुधाष्टमी व्रत का वर्णन), मत्स्य ११(इला से समागम हेतु बुध द्वारा द्विज रूप धारण), २४.३(सोम - पुत्र बुध के जन्म का वृत्तान्त, हस्ति शास्त्र प्रवर्तक आदि गुणों का कथन, भूतल के राज्य पर अभिषेक आदि), ९३.११(ग्रह शान्ति के अन्तर्गत बुध की पूर्वोत्तर दिशा में स्थिति, बुध हेतु देय वस्त्र, बलि, मन्त्र आदि), १२७.१(ग्रहों में बुध के रथ के स्वरूप का कथन), लिङ्ग २.१३.१६(रोहिणी : सोम रूपी शिव की पत्नी, बुध - माता), वायु १.२.८(रोहिणी व चन्द्रमा - पुत्र?), २७.५६ (महादेव की अष्टम मूर्ति चन्द्रमा व उसकी पत्नी रोहिणी से बुध पुत्र का उल्लेख), ५२.७२(ग्रहों में बुध ग्रह के रथ के स्वरूप का कथन), ५३.२१(नारायण के बुध ग्रह होने का उल्लेख), ५३.४७(सूर्य की दक्षिण रश्मि विश्वकर्मा द्वारा बुध ग्रह के वर्धन का उल्लेख), ५३.८१(त्विषि – पुत्र), ६६.२२/२.५.२२(सोम नामक वसु व उसकी पत्नी रोहिणी के २ पुत्रों में से एक), ८६.१५/२.२४.१५(वेगवान् - पुत्र, तृणबिन्दु - पिता, मरुत्त वंश), ९०.४३(तारा व चन्द्रमा से बुध के जन्म का वृत्तान्त), १००.१५/२.३८.१५(सुतपा गण के २० देवों में से एक), १०१.१३२/२.३९.१३२(तारा ग्रहों में बुध के सबसे नीचे विचरण का उल्लेख), विष्णु १.८.११(महादेव नामक अष्टम रुद्र व रोहिणी पत्नी से बुध के जन्म का उल्लेख), ४.१.४५(वेगवान् - पुत्र, तृणबिन्दु - पिता), ४.६(तारा व चन्द्रमा से बुध के जन्म की कथा), शिव २.५.३६.१०(बुध का शंखचूड - सेनानी घटपृष्ठ से युद्ध), स्कन्द १.२.१३.१६४(शतरुद्रिय प्रसंग में बुध द्वारा शङ्खेश्वर लिङ्ग की कनिष्ठ नाम से पूजा), ४.१.१५.४६(तार से बुध की उत्पत्ति की कथा , बुध द्वारा बुधेश्वर लिङ्ग की स्थापना व शिव स्तुति से ग्रह लोक की प्राप्ति), ६.२५२.३६(चातुर्मास में बुध की अपामार्ग में स्थिति का उल्लेख), ७.१.४६(बुधेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश १.२५(चन्द्रमा व तारा से बुध की उत्पत्ति), ३.३६.५८(सोम - पुत्र वर्चा से बुध की साम्यता), वा.रामायण ६.१०२.३२(राम - रावण युद्ध में राम रूपी चन्द्र को रावण रूपी राहु से ग्रस्त होता देख बुध ग्रह के अहितकारक होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.७९.२९(सोम व तारा से बुध के जन्म का वृत्तान्त, बुध व इला से पुरूरवा की उत्पत्ति), १.४४६.४९(छाया तारा से बुध के जन्म का कथन), १.४४६.८९(बुध व चित्रा के वंशजों का कथन ) budha
बुध्न ब्रह्माण्ड २.३.७.१३४(खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), वायु ६९.१६६/२.८.१६०(खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक),
बुभुक्षा लन १.४१२.८(वर्णसंकर की ४ पुत्रियों में से एक, दुःसह की ४ पत्नियों में से एक, इन्द्र द्वारा दुर्वासा से सम्पद्हीनता का शाप प्राप्त करने पर शची के बुभुक्षाग्रस्त होने का वृत्तान्त ) bubhukshaa
बृहच्छर लन २.१९२.१८(श्रीहरि द्वारा बृहच्छर नृप की नगरी धीवरा में आगमन आदि का कथन )
बृहच्छुक्र वायु ३१.९(त्विषिमान् गण के देवों में से एक )
बृहच्छ्लोक भागवत ६.१८.८(वामन व कीर्ति - पुत्र, सौभगादि - पिता, अदिति वंश ) brihachchhloka
बृहत् ब्रह्माण्ड १.२.१३.९६(दीप्तिमान्? गण के १२ देवों में से एक - श्रुतिर्गृणानोऽथ बृहच्छुक्रा द्वादश कीर्त्तिताः ।।), भागवत ३.१२.४२(ब्रह्मचारी की ४ वृत्तियों में से एक - सावित्रं प्राजापत्यं च ब्राह्मं चाथ बृहत्तथा । वार्ता सञ्चयशालीन शिलोञ्छ इति वै गृहे ॥, द्र. टीका), मत्स्य २९०.४(७वें कल्प की बृहत् संज्ञा), वायु १.२१.६८/२१.७४(२८वें कल्प का नाम), ५३.५९(बृहस्पति ग्रह के बृहद् स्थान का उल्लेख - बृहद्बृहस्पतिश्चैव लोहितश्चैव लौहितः ।), ५३.६४(स्वर्भानु के बृहत् तमोमय स्थान का कथन - स्वर्भानोस्तु बृहत् स्थानन्निर्मितं यत्तमोमयम्।), ६५.७८/२.४.७८(वरूत्री के ब्रह्मिष्ठ पुत्रों में से एक), ६६.६/२.५.६(ब्रह्मा के दक्षिण मुख से सृष्ट मन्त्र शरीर वाले जय संज्ञक देवों में से एक - दर्शश्च पौर्णमासश्च बृहद्यच्च रथन्तरम् ।), ६७.५/२.६.५(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट मन्त्रशरीरों? में से एक - दर्शश्च पौर्णमासश्च बृहद्यच्च रथन्तरम्।), स्कन्द ७.१.१०५.४६(सप्तम कल्प का नाम ) brihat
बृहत्- नारद १.५०.३७(बार्हती : पितरों की सात मूर्च्छनाओं में से एक), पद्म १.४०.९८(मरुत नाम), ब्रह्माण्ड १.२.३६.३५(बृहद्वपु : सत्य संज्ञक गण के १२ देवों में से एक), २.३.१.७९(बृहङ्गिरा : वरत्री के ब्रह्मिष्ठ दैत्य पुत्रों में से एक), २.३.७.१३४(बृहद्-जिह्वा : खशा व कश्यप के राक्षस पुत्रों में से एक), ३.४.१.६५ (बृहद्यश : प्रथम सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), ३.४.२१.८४ (बृहन्माय : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), ३.४.२६.४९(बृहन्माय : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक), भागवत ९.१२.९(बृहद्रण : बृहद्बल - पुत्र, उरुक्रिय - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), मत्स्य ४८.१००(बृहत्कर्मा : भद्ररथ - पुत्र, बृहद्भानु - पिता), ४८.१०७(बृहत्पुत्र : विजय - पुत्र, बृहद्रथ - पिता, अङ्ग वंश), ४९.४७(बृहदनु : अजमीढ व भूमिनी - पुत्र, बृहन्त - पिता), ४९.४७(अजमीढ वंश में बृहदनु, बृहन्त, बृहन्मना, बृहद्धनु, बृहदिषु का क्रमिक उल्लेख), १४५.९५(बृहद्वक्षा : सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक), १४५.१०५(बृहच्छुक्ल : ३३ आङ्गिरस ऋषियों में से एक), १७१.४५(धर्म - पत्नी साध्या का बृहत्कान्ति विशेषण), १७१.५४(बृहन्त व बृहद्रूप : मरुत्वती से उत्पन्न मरुद्गणों में से २), वायु २१.७६/१.२१.६८(२८वें कल्प का नाम), ९६.२४६/२.३४.२४६(बृहदुच्छ : बृहदुच्छ शौनेय की कन्या बृहती सम्बन्धी कथन), ९९.१७१/२.३७.१७१(बृहद्विष्णु : बृहद्वसु - पुत्र, बृहत्कर्मा? - पिता), ९९.२८१/२.३७.२७७( बृहत्क्षय : बृहद्रथ - पुत्र, क्षय - पिता, इक्ष्वाकु वंश), विष्णु ४.१८.२२(अङ्ग वंश में भद्ररथ के वंशजों के रूप में बृहद्रथ, बृहत्कर्मा, बृहद्भानु, बृहन्मना व जयद्रथ का क्रमिक उल्लेख), ४.२२.२ (बृहत्क्षण : बृहद्बल - पुत्र, उरुक्षय - पिता, इक्ष्वाकु वंश )स्दiज्ष्न्,
Brihat
बृहती नारद १.५०.३७, पद्म ४.२१.२४(बृहती से हरि स्मरण न करने का उल्लेख?), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०२(रिपु - पत्नी, चक्षुष - माता), २.३.७१.२५५ (बृहदुक्थ - कन्या, पुरु - भार्या, ३ पुत्रों व १ पुत्री के नाम), भविष्य १.१९३.८(बृहती दन्तकाष्ठ की महिमा), भागवत ८.१३.३२(देवहोत्र - पत्नी, योगेश्वर अवतार की माता), वायु ९६.२४६/२.३४.२४६(बृहदुच्छ - कन्या, ३ पुत्रों के नाम), स्कन्द ७.१.१७.९(बृहती वृक्ष के दन्तकाष्ठ का महत्त्व : दुर्जनों पर जय), ७.१.२४.४७(बृहती पुष्प के आपेक्षिक महत्त्व का कथन), हरिवंश २.१०३.१६(कृष्ण - भार्या, गद - माता), लक्ष्मीनारायण १.३११.४२(बृहती द्वारा कृष्ण को घृतदीप प्रस्तुत करने का उल्लेख ) brihatee/ brihati
बृहत्कर्मा भागवत ९.२३.११(पृथुलाक्ष के ३ पुत्रों में से एक, अङ्ग वंश), वायु ९९.१०५/२.३७.१०५(भद्ररथ - पुत्र, बृहन्मना - पिता), विष्णु ४.१८.२२ (बृहद्रथ - पुत्र, बृहद्भानु - पिता, अङ्ग वंश), ४.१९.३४(बृहद्धनु - पुत्र, जयद्रथ - पिता, अजमीढ वंश), ४.२३.४(सुनेत्र - पुत्र, सेनजित् - पिता, भविष्य के मागध राजाओं में से एक ) brihatkarmaa
बृहत्क्षत्र ब्रह्माण्ड २.३.७१.१५७(कैकय व श्रुतकीर्ति के पुत्रों में से एक), भागवत ९.२१.१(मन्यु के पुत्रों में से एक, वितथ वंश), ९.२१.२०(हस्ती - पिता, वंश वर्णन), मत्स्य ४९.३६(भुवमन्यु के ४ पुत्रों में से एक), ४९.४२(क्षिति? - पति, हस्ति - पिता), वायु ९६.१५६/२.३४.१५६(श्रुतकीर्ति व दन्तवक्त्र? के पुत्रों में से एक), ९९.१५९/२.३७.१५५(भुवमन्यु के महाभूत समान ४ पुत्रों में से एक, सुहोत्र - पिता), विष्णु ४.१९.२१(मन्यु के पुत्रों में से एक, सुहोत्र - पिता, वितथ वंश ) brihatkshatra
बृहत्साम ब्रह्माण्ड १.२.८.५१(रथन्तरसाम की पूर्वमुख, बृहत्साम की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से सृष्टि का उल्लेख - यजूंषि त्रैष्टुभं छन्दः स्तोमं पञ्चदशं तथा । बृहत्साम तथोक्तं च दक्षिणात्सोऽसृजन्मुखात् ॥ ), २.३.४.२(ब्रह्मा के मुख से सृष्ट मन्त्रशरीर वाले १२ जय देवों में से एक), २.३.७.३३७(बृहत्साम से उत्पन्न पुष्पदन्त गज तथा उसके वंशजों के स्वरूप का कथन - पुष्पदन्तो बृहत्साम्नः षड्दन्तः पद्मपुच्छवान् । ताम्र पर्णश्च तत्पुत्राः संघचारिविषाणिनः ॥), मत्स्य १७.३८(श्राद्ध के अवसर पर गाये जाने वाले सामों में से एक), ५८.३६(तडाग, आराम, कूप आदि की प्रतिष्ठा के अन्तर्गत गाये जाने वाले सामों में से एक - वामदेव्यं बृहत्साम रौरवं सरथन्तरम्।…गायेयु सामगा राजन्! पश्चिमं द्वारमाश्रिताः।।), २६५.२७(मूर्ति स्थापना के संदर्भ में पश्चिम दिशा में गाये जाने वाले सामों में से एक - वामदेवं बृहत्साम ज्येष्ठसाम रथन्तरम्।…भारुण्डानि च सामानि च्छन्दोगः पश्चिमे जपेत्।), वायु ९.५०/१.९.४५(ब्रह्मा के दक्षिण मुख से बृहत्साम आदि की उत्पत्ति का कथन - छन्दांसि त्रैष्टुभङ्कर्म स्तोमं पञ्चदशन्तथा। बृहत्साममथोक्थञ्च दक्षिणात्सोऽसृजन्मुखात् ।।), २१.७५/१.२१.६८(बृहत् कल्प में ब्रह्मा से उत्पन्न बृहत्साम व रथन्तर साम का कथन, द्विजों द्वारा बृहत्साम का भेदन करने का कथन - यत्सूर्य्यमण्डलञ्चापि बृहत्साम तु भिद्यते। भित्वा चैवं द्विजा यान्ति योगात्मानो दृढव्रताः), ६९.२२१/२.८.२१५(बृहत्साम से उत्पन्न पुष्पदन्त गज व उसके वंशजों के स्वरूप का कथन - पुष्पदन्तो बृहत्सामा षड्दन्तो दन्त पुष्पवान्। ताम्रवर्णश्च तत्पुत्रः सहचारिविषाणितः ॥), विष्णु १.५.५४(बृहत्साम आदि की ब्रह्मा के दक्षिण मुख से सृष्टि का उल्लेख), स्कन्द ६.३६.२१(भूतपीडा नाश के लिए बृहत् साम जप का निर्देश - भूतपीडार्दितो यश्च बृहत्साम जपेन्नरः ॥ पितृवज्जायते तस्य स भूतोऽप्यंतकोऽपि चेत् ॥ ) brihatsaama
बृहत्सेन गर्ग ७.१८.४५(भद्र देश के अधिपति बृहत्सेन द्वारा प्रद्युम्न की पूजा), भागवत ९.२२.४७(सुनक्षत्र - पुत्र, कर्मजित् - पिता, भविष्य के मगध राजाओं में से एक), १०.६१.१७(कृष्ण व भद्रा के पुत्रों में से एक), १०.८३.१८(कृष्ण - पत्नी लक्ष्मणा द्वारा स्व पिता बृहत्सेन द्वारा आयोजित स्वयंवर का वर्णन ) brihatsena
बृहदश्व देवीभागवत ७.९.३५(शावन्त - पुत्र, कुवलयाश्व - पिता), ब्रह्माण्ड २.३.६३.२८(श्रावस्त - पुत्र, कुवलाश्व - पिता, उत्तंक की प्रार्थना पर बृहदश्व द्वारा कुवलाश्व का धुन्धु वध हेतु प्रेषण), भागवत ९.१२.११(सहदेव - पुत्र, भानुमान् - पिता, भविष्य के नृपों में से एक), मत्स्य १२.३१(श्रावस्त - पुत्र, कुवलाश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश), वायु ८८.२७/२.२६.२७(श्रावस्त - पुत्र, कुबलाश्व - पिता, उत्तंक द्वारा धुन्धु दैत्य के निग्रह का अनुरोध), ९९.३३५/२.३७.३२९(शतधर - पुत्र बृहदश्व के ७ वंशजों के नृप होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.१६.१३(कुवलाश्व - पिता, उत्तंक मुनि के आदेश से कुवलाश्व का धुन्धु के वध हेतु प्रेषण), शिव ३.५.३४(२३वें द्वापर में श्वेत नामक शिव अवतार के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ६.१०५(शाल्व देश का नृप, राक्षसों द्वारा स्थापित लिङ्गों की भूमि पर प्रासाद निर्माण की चेष्टा, लिङ्ग दर्शन से मृत्यु), हरिवंश १.११.२२(श्रावस्त - पुत्र, कुवलाश्व - पिता ) brihadashva
बृहदिषु भागवत ९.२१.२२(अजमीढ - पुत्र, बृहद्धनु - पिता), ९.२१.३२(भर्म्याश्व के बृहदिषु आदि ५ पुत्रों की पाञ्चाल संज्ञा), मत्स्य ४९.४९(बृहद्धनु - पुत्र, जयद्रथ - पिता, अजमीढ वंश), ५०.३(भद्राश्व के ५ पुत्रों में से एक, पञ्चाल संज्ञा का कारण), वायु ९९.१९६/२.३७.१९१(भेद? के ५ पुत्रों में से एक, पाञ्चाल संज्ञा का कारण), विष्णु ४.१९.५९(हर्यश्व के मुद्गल, बृहदिषु आदि ५ पुत्रों की पाञ्चाल संज्ञा ) brihadishu
बृहदुक्थ ब्रह्माण्ड २.३.७१.२५५(शैनेय बृहदुक्थ की पुत्री बृहती का वृत्तान्त), मत्स्य १९६.३५(त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु २३.२०५/१.२३.१९३(२३वें द्वापर में श्वेत नामक अवतार के पुत्रों में से एक), ५९.९३(बृहदुत्थ : सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक), ६५.१०२/२.४.१०२(बृहदुत्थ : वामदेव - पुत्र ) brihaduktha
बृहद्दुर्ग हरिवंश २.५९.६०(शिशुपाल द्वारा बृहद्दुर्ग का वध )
बृहद्द्युम्न स्कन्द ३.१.३३(बृहद्द्युम्न राजा के सत्र में परावसु द्वारा अध्वर कर्म , परावसु द्वारा अनुज अर्वावसु पर ब्रह्महत्या दोष के मिथ्या आरोपण की कथा ) brihaddyumna
बृहद्धनु भागवत ९.२१.२२(बृहदिषु - पुत्र, बृहत्काय - पिता), मत्स्य ४९.४८(बृहन्मना - पुत्र, बृहदिषु - पिता), विष्णु ४.१९.३४(बृहदिषु - पुत्र, बृहत्कर्मा - पिता ) brihaddhanu
बृहद्धर्मा हरिवंश १.२०.१९(अपर नाम बृहद्धनु, बृहदिषु - पुत्र, सत्यजित् - पिता, पुरु वंश), लक्ष्मीनारायण ३.३५.५७(राजा बृहद्धर्म द्वारा चातुर्मास , सोमयाग आदि यज्ञों के अनुष्ठान का वर्णन, यज्ञों के अन्त में अनशन व्रत पर अनादिश्री महाचार्य नारायण के प्राकट्य का कथन ) brihaddharma
बृहद्ध्वज पद्म ७.४.८२(राक्षस, केशिनी पर आसक्ति , प्रयाग महिमा से स्वर्ग गमन )
बृहद्बल ब्रह्माण्ड २.३.३९.२(कार्त्तवीर्य - सेनानी, परशुराम से युद्ध, परशुराम द्वारा गदा से वध का उल्लेख), २.३.६३.२१३(विश्रुतवान् - पुत्र, इक्ष्वाकु वंश का अन्तिम राजा), २.३.७४.१०४(बृहद्बल के वंश में भविष्य के राजाओं का उल्लेख), भागवत ९.१२.८(तक्षक - पुत्र, बृहद्रण - पिता, अभिमन्यु द्वारा युद्ध में वध का उल्लेख), ९.२४.४(देवभाग व कंसा के २ पुत्रों में से एक), मत्स्य २७१.४(उरुक्षय - पिता, भविष्य के वंश का वर्णन), वायु ८८.२११/२.२६.२११(विश्रुतवान् - पुत्र, इक्ष्वाकु वंश का अन्तिम राजा), ९९.२९०/२.३७.२८७(कलियुग में इक्ष्वाकु वंश के बृहद्बल के अन्वय में उत्पन्न राजाओं का उल्लेख), विष्णु ४.४.११२(विश्वभव - पुत्र, अभिमन्यु द्वारा वध का उल्लेख, इक्ष्वाकु वंश), ४.२२.२(भविष्य के इक्ष्वाकु राजाओं का बृहद्बल से आरम्भ), स्कन्द ६.४५.४०(त्रिपुष्कर जल में पतन से बृहद्बल को कुष्ठ की प्राप्ति, विश्वामित्र के परामर्श से मुक्ति), ६.१२५.५१(आनर्त देश का नृप, ब्रह्मलोक से लौटे पूर्व राजा सत्यसन्ध से वार्त्तालाप, शत्रुओं द्वारा वध), ६.१९६.९(दशार्ण - अधिपति, आनर्त अधिपति की कन्या रत्नावली से विवाह हेतु आनर्त आगमन), महाभारत उद्योग १६०.१२१(कौरव सेना रूपी महासमुद्र में बृहद्बल के विशाल ज्वार रूप होने का उल्लेख ) brihadbala
बृहद्बाहु गर्ग ७.१५.३(उड्डीश - डामर देश के राजा बृहद्बाहु की प्रद्युम्न से पराजय )
बृहद्भानु गणेश १.२६.२७(दक्ष - पुत्र, वंश का वर्णन), गर्ग ७.२०.३०(प्रद्युम्न - सेनानी, शल्य से युद्ध), भागवत ८.१३.३५(अवतार, सत्रायण व विताना - पुत्र), १०.६१.१०(सत्यभामा व कृष्ण के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य ४८.१००(बृहत्कर्मा - पुत्र, जयद्रथ - पिता), वायु ९९.११४/२.३७.११०(बृहन्मना - पिता, अङ्ग वंश), विष्णु ४.१८.२२(बृहत्कर्मा - पुत्र, बृहन्मना - पिता, अङ्ग वंश ) brihadbhaanu/ brihadbhanu
बृहद्रथ
देवीभागवत
११.१८.४९(पूर्व
जन्म में
चक्रवाक्, देवी
मन्दिर
प्रदक्षिणा
से राजा
- बृहद्रथस्य
राजर्षेः प्रियं भक्तिप्रदायकम्
॥
चक्रवाकोऽभवत्पक्षी
क्वचिद्देशे हिमालये ।),
पद्म
६.१८६.५२(राजा,
यज्ञीय
अश्व की
इन्द्र द्वारा
चोरी व
मृत्यु, गीता
के १२वें
अध्याय के
प्रभाव से
जीवित होना
- शृणु
विप्र महीपाल पितासीन्मे
बृहद्रथः ।
प्रारब्ध
हयमेधोऽसौ दैवेन निधनं गतः ॥),
भागवत
९.१३.१५(देवरात
- पुत्र,
महावीर्य
- पिता,
निमि
वंश), ९.२२.५(उपरिचर
वसु के
पुत्रों में
ज्येष्ठ, कुशाग्र
- पिता,
अजमीढ
वंश), ९.२२.७(बृहद्रथ
की भार्या
से जरासन्ध
की उत्पत्ति
का कथन
- बृहद्रथात्कुशाग्रोऽभूत्
ऋषभस्तस्य तत्सुतः ॥ .. अन्यस्यामपि
भार्यायां शकले द्वे बृहद्रथात्
॥), ९.२२.४३(तिमि
- पुत्र,
सुदास
- पिता,
जनमेजय
वंश), ९.२३.११(पृथुलाक्ष
के ३
पुत्रों में
से एक,
बृहन्मना
- पिता,
अङ्ग
वंश), १२.१.१५(शतधन्वा
- पुत्र,
मौर्य
वंश, सेनापति
पुष्यमित्र
शुङ्ग द्वारा
हत्या का
उल्लेख), मत्स्य
४८.१०१(जयद्रथ
- पुत्र,
जनमेजय
- पिता,
अङ्ग
वंश), ४८.१०७(बृहत्पुत्र
- पुत्र,
सत्यकर्मा
- पिता,
अङ्ग
वंश), ५०.३१(सम्भव
- पुत्र,
जरासन्ध
- पिता,
अजमीढ
वंश), ५०.८५(तिग्मात्मा
- पुत्र,
वसुदामा
- पिता,
भविष्य
के नृपों
में से
एक), २७२.२२(शतधन्वा
- पुत्र
बृहद्रथ
द्वारा ७०
वर्ष राज्य
करने का
उल्लेख, मौर्य
वंश ;
बृहद्रथ
के वंशजों
की बृहद्रथ
संज्ञा, पुष्यमित्र
शुङ्ग द्वारा
मौर्य वंश
के अन्त
का उल्लेख),
वायु
९३.२७/२.३१.२७(बृहद्रथ
द्वारा शक्र
से दिव्य
रथ की
प्राप्ति
का कथन
- स
च दिव्यो रथस्तस्माद्वसोश्चेदिपतेस्तथा
।।
ततः
शक्रेण तुष्टेन लेभे
तस्माद्बृहद्रथः।
), ९९.११०(बृहत्कर्मा
- पुत्र,
बृहन्मन
- पिता,
अङ्ग
वंश), ९९.१७१/२.३७.१६६(बृहत्कर्मा
- पुत्र,
विश्वजित्
- पिता,
अजमीढ
वंश), विष्णु
४.१८.२२(भद्ररथ
- पुत्र,
बृहत्कर्मा
- पिता,
अङ्ग
वंश), ४.२३(बृहद्रथ
वंश का
वर्णन), स्कन्द
७.१.३७.३(बृहद्रथ
नृप व
कण्व का
धर्म विषयक
वार्तालाप, बृहद्रथ
- पत्नी
इन्दुमती
के पूछने
पर कण्व
द्वारा ऐश्वर्य
प्राप्ति
के कारण
का वर्णन
- आसीत्पुरा
महीपालो बृहद्रथ इति श्रुतः
॥
तस्य
भार्याऽभवत्साध्वी नाम्ना
चेंदुमती प्रिया ॥ ),
लक्ष्मीनारायण
२.१८८.१४(बृहद्रथ
द्वारा यज्ञों
में प्रदत्त
सहस्र दक्षिणाओं
का कथन
) brihadratha
बृहद्राज भागवत ९.१२.१३(बृहद्राज/बृहद्भुज : अमित्रजित् - पुत्र, बर्हि - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), मत्स्य २७१.१०(सुमित्र - पुत्र, कृतञ्जय - पिता), विष्णु ४.२२.६(बृहद्भाज : अमित्रजित् - पुत्र, धर्मी - पिता ) brihadraaja/ brihadraja
बृहद्वन भागवत १०.५.२६(गोपों के निवास बृहद्वन का उल्लेख), १०.७.३३(बृहद्वन में अद्भुत घटनाओं के घटने का उल्लेख), १०.११.२१(बृहद्वन में उत्पातों के कारण गोपों द्वारा बृहद्वन को त्यागने का उल्लेख ) brihadvana
बृहद्वर्चा लक्ष्मीनारायण २.७७.२(अनङ्गपुर के राजा बृहद्वर्चा द्वारा तपती नदी के तट पर प्रदत्त दक्षिणा से ब्राह्मणों का कृष्ण वर्ण होना, सुरतायन ऋषि द्वारा प्रदत्त ज्ञान से ब्राह्मणों का उद्धार ) brihadvarchaa
बृहद्वसु ब्रह्माण्ड १.२.३६.२९(वंशवर्ती संज्ञक गण के देवों में से एक), वायु ६२.२६/२.१.२६(वही), ९९.१७०/२.३७.१६६(अजमीढ व धूमिनी - पुत्र, बृहद्विष्णु - पिता ) brihadvasu
बृहन्त मत्स्य ४९.४८(बृहदनु - पुत्र, बृहन्मना - पिता), १७१.५४(मरुत्वती के मरुद्गण संज्ञक पुत्रों में से एक )
बृहन्मना भागवत ९.२३.११(बृहद्रथ? - पुत्र, जयद्रथ - पिता, अङ्ग वंश), मत्स्य ४८.१०५(बृहद्भानु - पुत्र बृहन्मना की २ पत्नियों से उत्पन्न सन्तानों का कथन), ४९.४८(बृहन्त - पुत्र, बृहद्धनु - पिता), वायु ९९.११०/२.३७.११०(बृहद्भानु - पुत्र, बृहन्मना की २ पत्नियों से उत्पन्न सन्तानों का कथन), विष्णु ४.१८.२२(बृहद्भानु - पुत्र, जयद्रथ - पिता ) brihanmanaa
बृहस्पति
गणेश
२.१०.२४(बृहस्पति
द्वारा महोत्कट
गणेश का
भारभूति
नामकरण), गरुड
३.७.१७(बृहस्पति
द्वारा हरि
स्तुति), ३.२८.४५(बृहस्पति
के
भरत, नल,
द्रोण
व
उद्धव
रूप
में
अवतारों का
कथन), देवीभागवत
३.१०.२१(देवदत्त
के पुत्रेष्टि
यज्ञ में
बृहस्पति
के होता
बनने का
उल्लेख), ४.१२.५१(देवगुरु
बृहस्पति
का काव्य
रूप धारण
कर दैत्यों
के समीप
गमन, अध्यापनादि
का वृत्तान्त),
४.१३(बृहस्पति
द्वारा शुक्र
वेश में
दैत्यों की
वंचना), पद्म
१.३४.१७(ब्रह्मा
के यज्ञ
में नेष्टा),
ब्रह्म
२.१०४.२४(बार्हस्पत्य
तीर्थ का
संक्षिप्त
माहात्म्य
: बृहस्पति
द्वारा यज्ञ
संपादन से
बार्हस्पत्य
नाम धारण),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.५१.३१(बृहस्पति
द्वारा सुयज्ञ
नृप से
ब्रह्महत्या
पाप के
प्रायश्चित्त
का कथन),
४.६०(बृहस्पति
द्वारा शची
को प्रबोध),
४.६२.४४(मिश्रकेशी
के शाप
से बृहस्पति
के हृतभार्य
होने का
उल्लेख), ब्रह्माण्ड
२.३.१५.३२(बार्हस्पत्य
शास्त्र में
पारंगत द्विज
के पंक्तिपावन
होने का
उल्लेख), ३.४.९.९(संसार
की अपेक्षा
तीर्थ यात्रा
की श्रेष्ठता
कथन पर
बृहस्पति
का पृथ्वी
पर पतन),
भविष्य
१.३४.२३(बृहस्पति
ग्रह का
पद्म नाग
से तादात्म्य
- पद्मं
बृहस्पतिं
विद्यान्महापद्मं
च
भार्गवम्
।),
३.४.१७.४९(बृहस्पति
ग्रह :
ध्रुव
व वह्निदेवा
- पुत्र),
३.४.२५.३८(ब्रह्माण्ड
वक्त्र से
जीव तथा
जीव से
दक्षसावर्णि
मन्वन्तर
की उत्पत्ति
का उल्लेख),
४.९९(सोम
द्वारा
देवाचार्य
बृहस्पति
की पत्नी
तारा के
हरण का
वृत्तान्त), ४.१२०.८(बृहस्पति
पूजा विधान),
भागवत
३.८.८(सांख्यायन
द्वारा
बृहस्पति
को भागवत
पुराण सुनाने
का उल्लेख),
४.१.३५(श्रद्धा
व अङ्गिरा
की सन्तानों
में से
एक), ४.३.३(वाजपेय
के पश्चात्
बृहस्पतिसव
का अनुष्ठान
कर रहे
दक्ष के
यज्ञ में
विघ्न),
६.७(इन्द्र
द्वारा
बृहस्पति
का अपमान
, बृहस्पति
द्वारा देवों
का त्याग),
९.१४.४(चन्द्रमा
द्वारा
बृहस्पति -
भार्या
तारा के
अपहरण, बृहस्पति
द्वारा तारा
की पुन:
प्राप्ति
और बुध
के जन्म
का वृत्तान्त),
९.२०.३६(बृहस्पति
व ममता
से भरद्वाज
के जन्म
का कथन),
१२.६.२३(बृहस्पति
द्वारा
सर्पसत्र
में तक्षक
के नाश
के विरुद्ध
जनमेजय को
सम्मति, जनमेजय
की स्वीकृति),
मत्स्य
२३.३०+
(चन्द्रमा
द्वारा
बृहस्पति -
भार्या
तारा के
अपहरण व
बुध के
जन्म का
वृत्तान्त), २६(बृहस्पति
- पुत्र
कच द्वारा
शुक्राचार्य
- पुत्री
देवयानी से
विवाह की
अस्वीकृति
का वृत्तान्त),
४७.१८२(बृहस्पति
द्वारा
शुक्राचार्य
का वेश
धारण कर
दैत्यों की
वंचना), ४८.३३(बृहस्पति
द्वारा ममता
के गर्भ
को दीर्घ
तम में
प्रवेश का
शाप), ७३.७(बृहस्पति
ग्रह पूजा
विधि), ९४.५(बृहस्पति
का स्वरूप
- देवदैत्यगुरू
तद्वत्पीतश्वेतो
चतुर्भुजौ।
दण्डिनौ
वरदौ
कार्यौ
साक्षसूत्रकमण्डलू।।),
१२७.५(बृहस्पति
ग्रह के
रथ का
स्वरूप
- सर्पतेऽसौ
कुमारो
वै
ऋजुवक्रानुवक्रगः।
अतश्चाङ्गिरसौ
विद्वान्
देवाचार्यो
बृहस्पतिः।। .....),
१२८.६४(ग्रहों
में बृहस्पति
गृह की
आपेक्षिक
स्थिति
- भार्गवात्पादहीनश्च
विज्ञेयो
वै
बृहस्पतिः।
बृहस्पतेः
पादहीनौ
केतुवक्रावुभौ
स्मृतौ।।),
१४८.६४(दैत्यों
को नियन्त्रित
करने के
लिए बृहस्पति
की इन्द्र
को सम्मति),
१९६.४(सुरूपा
व अङ्गिरा
के गोत्रकार
ऋषि पुत्रों
में से
एक), १९६.१९(परस्पर
अवैवाह्य ३
प्रवरों में
से एक),
२४५.८५(बृहस्पति
द्वारा वामन
को यज्ञोपवीत
देने का
उल्लेख), २५२.३(वास्तुशास्त्र
के १८
उपदेशकों
में से
एक), वराह
५(बृहस्पति
द्वारा रैभ्य
को कर्म
या ज्ञान
में श्रेष्ठता
का वर्णन),
वामन
५०(बृहस्पति
का मृगशिरा
में प्रवेश
- यदा
मृगशिरो
ऋक्षे
शशिसूर्यौ
बृहस्पतिः।
तिष्ठन्ति
सा
तिथिः
पुण्या
त्वक्षया
परिगीयते।।),
वायु
२३.१६२(१६वें
परिवर्त/द्वापर
में गोकर्ण
नामक अवतार
के पुत्रों
में से
एक, कश्यप,
उशना
व
च्यवन-भ्राता),
५२.७७(बृहस्पति
ग्रह के
रथ का
स्वरूप
- शोणैरश्वैः
काञ्चनेन
स्यन्दनेन
प्रसर्पति
।।
युक्तस्तु
वाजिभिर्दिव्यैरष्टाभिर्वातसम्मितैः।),
५३.३३(शुक्र
व बृहस्पति
के प्रजापति
- पुत्र
होने का
उल्लेख), ५३.८७(बृहस्पति
ग्रह द्वारा
सूर्य की
१२ रश्मियां/अंश
प्राप्त करने
का उल्लेख
- हरिश्चाप्यं
बृहच्चापि
द्वादशांशोर्बृहस्पतेः।),
५९.९०(ज्ञान
से ऋषिता
प्राप्त करने
वाले ऋषियों
में से
एक), ६५.१०४/२.४.१०४(सुरूपा
- पुत्र
बृहस्पति
के १०
अनुजों
की अङ्गिरस
संज्ञा व
नाम), ६६.४४/२.५.४४(बार्हस्पत्य
: रात्रि
के १५
मुहूर्तों
में से
एक), ७०.४/२.९.४(बृहस्पति
द्वारा
सब/विश्वेषां
अङ्गिरसों
का आधिपत्य
प्राप्त करने
का उल्लेख),
७९.५८/
२.१७.५८
(बार्हस्पत्य
शास्त्र में
पारंगत द्विज
के पंक्तिपावन
होने का
उल्लेख), ९८.१६/२.३६.१६(बृहस्पति
द्वारा दैत्यों
की वञ्चना
के लिए
काव्य रूप
धारण), ९९.३७/२.३७.३७(बृहस्पति
द्वारा ममता
के गर्भ
को दीर्घ
तम में
प्रवेश करने
का शाप),
१०१.१३३/२.३९.१३३(बृहस्पति
ग्रह की
ग्रहों के
मध्य आपेक्षिक
स्थिति
- ततो
बृहस्पतिश्चोर्द्ध्वं
तस्मादूर्द्ध्वं
शनैश्चरः।),
१०३.५९/२.४१.५९(बृहस्पति
द्वारा उशना
से ब्रह्माण्ड?
पुराण
का श्रवण
कर सविता
को सुनाने
का उल्लेख),
विष्णु
२.७.९(बृहस्पति
ग्रह की
ग्रहों के
मध्य आपेक्षिक
स्थिति
- लक्षद्वये
तु
भौमस्य
स्थितो
देवपुरोहितः
॥
सौरिर्बृहस्पतेश्चोर्ध्वं
द्विलक्षे
समवस्थितः),
२.१२.१९(बृहस्पति
ग्रह के
रथ का
स्वरूप
- अष्टाभिः
पांडुरैर्युक्तो
वाजिभिः
कांचनो
रथः।
तस्मिंस्तिष्ठति
वर्षान्ते
राशौराशौ
बृहस्पतिः ),
३.३.१२(चतुर्थ
द्वापर में
बृहस्पति
के व्यास
होने का
उल्लेख), ४.६.१०(तारा
हरण के
कारण देवासुर
संग्राम व
बुध की
उत्पत्ति
का कथन),
४.१९.१६(मरुतों
द्वारा
बृहस्पति
के वीर्य
से उत्पन्न
भरद्वाज को
पुत्र रूप
में भरत
को देने
का कथन),
विष्णुधर्मोत्तर
१.१८८.५(तेरहवें
इन्द्र का
नाम), शिव
३.५.१७
(१६वें
द्वापर में
गोकर्ण नामक
शिव अवतार
के ४
पुत्रों में
से एक),
स्कन्द
३.१.२३.२४(यज्ञ
में बृहस्पति
के होता
बनने का
उल्लेख), ३.१.४९.५८(बृहस्पति
द्वारा
रामेश्वर
की संक्षिप्त
स्तुति
- अहंतासाक्षिणे
नित्यं
प्रत्यगद्वयवस्तुने
।
रामनाथ
ममाज्ञानमाशु
नाशय
ते
नमः
।।
), ४.१.१५.२९(अत्रि
- पुत्र
सोम द्वारा
बृहस्पति -
भार्या
तारा का
अपहरण, ब्रह्मा
के कहने
पर पुन:
तारा
का समर्पण),
४.१.१७.२७(अङ्गिरस
- पुत्र
बृहस्पति
द्वारा
बृहस्पतीश्वर
लिङ्ग की
स्थापना व
स्तुति, बृहस्पति
नाम व
देवों के
आचार्य पद
की प्राप्ति
आदि), ५.३.८४.२९(शनि
के कन्यागत
और बृहस्पति
से युक्त
होने पर
कुम्भेश्वर
देवयात्रा
का विधान
- यदा
कन्यागतः
पङ्गुर्गुरुणा
सहितो
भवेत्
।
तदेव
देवयात्रेयमिति
देवा
जगुर्मुदा
॥),
५.३.११२.८(अङ्गिरा
द्वारा नर्मदा
तट पर
तप करके
बृहस्पति
पुत्र प्राप्त
करने का
संक्षिप्त
वृत्तान्त), ६.१७४.२२(उतथ्य
के शाप
से बृहस्पति
का पिप्पलाद
रूप में
अवतार
- एष
शापादुतथ्यस्य
ज्येष्ठभ्रातुर्बृहस्पतिः
।
अवतीर्णो
धरापृष्ठे
योग्यतां
समवाप्स्यति
॥),
७.१.२३.९२(चन्द्रमा
के यज्ञ
में होता),
७.१.४७(बृहस्पति
लिङ्ग की
माहात्म्य), हरिवंश
३.६२.२८(बृहस्पति
द्वारा दैत्यों
की जलवर्षा
से शान्त
अग्नि की
स्तुति, अग्नि
का पुन:
प्रज्वलित
होना), वा.रामायण
१.१७.१२(बृहस्पति
का तार
वानर के
रूप में
जन्म
- बृहस्पतिः
तु
अजनयत्
तारम्
नाम
महा
कपिम्
।
सर्व
वानर
मुख्यानाम्
बुद्धिमन्तम्
अनुत्तमम्
॥),
लक्ष्मीनारायण
१.२३१.१(बृहस्पति
के सिंह
राशि में
होने पर
सारे तीर्थों
का गोदावरी
में अपने
पापों का
प्रक्षालन
करने का
कथन), १.४४१.९०(प्लक्ष
वृक्ष रूप
धारी श्रीहरि
के दर्शन
हेतु बृहस्पति
के अश्वत्थ
वृक्ष बनने
का उल्लेख),
१.४४५.४५(अग्रज
उतथ्य की
भार्या का
हरण करने
के कारण
बृहस्पति -
भार्या
तारा का
चन्द्र द्वारा
हरण होने
का कथन),
२.३१.७८(बृहस्पति
द्वारा अग्रज
- भार्या
ममता में
गर्भ स्थापित
करने का
आख्यान), २.२७३.९८(बृहस्पति
द्वारा
शिवेश्वर -
पुत्री
लक्ष्मी व
कृष्ण के
विवाह का
उपयुक्त समय
बताना ),
द्र.
व्यास
brihaspati
बृहस्पति- महर्षि अङ्गिराके पुत्र । उतथ्य और संवर्त के भाई ( आदि० ६६ । ५)। बृहस्पतिजी की ब्रह्मवादिनी बहिन योगपरायण हो अनासक्त भाव से सम्पूर्ण जगत में विचरती है । वह प्रभास नामक वसु की पत्नी हुई (आदि. ६६ । २६-२७)। इनके अंश से द्रोणाचार्य की उत्पत्ति हुई थी ( आदि. ६७ । ६९) । देवताओं द्वारा इनका पुरोहित के पद पर वरण (आदि० ७६ । ६)। शुक्राचार्यके साथ इनकी स्पर्धा (आदि० ७६ । ७)। इनके पुत्र का नाम 'कच' था ( आदि० ७६ । ११) । इन्होंने भरद्वाज मुनि को आग्नेयास्त्र प्रदान किया था (आदि० १६९ । २९)। ये इन्द्र की सभा में विराजमान होते हैं (सभा० ७ । २८) । ब्रह्माजी की सभा में भी उपस्थित होते हैं (सभा० ११ । २९) । इनके द्वारा चान्द्रमसी (तारा) नामक पत्नी से छः अग्निस्वरूप पुत्र उत्पन्न हुए, जिनमें शंयु सबसे बड़ा था । इनके सिवा, एक कन्या भी हुई थी (वन० २१९ अध्याय)। नहुष के भय से भीत शची को इनका आश्वासन देना (उद्योग० ११ । २३-२५)। नहुष से अवधि माँगने के लिये शची को सलाह देना (उद्योग० १२ । २५)। अग्नि के साथ संवाद (उद्योग० १५। २८-३४ ) । इनके द्वारा आपः में प्रवेश करने और इन्द्र का अन्वेषण करने के लिए अग्नि का स्तवन, ( उद्योग० १६ । १-८)। इनका इन्द्र की स्तुति करना (उद्योग० १६ । १४-१८)। इन्द्र के प्रति नहुष के बल का वर्णन ( उद्योग० १६ । २३-२४ ) । पृथ्वीदोहन के समय ये दोग्धा बने थे (द्रोण० ६९ । २३)। इनके द्वारा स्कन्द को दण्ड का दान (शल्य०४६ । ५०)। कोसलनरेश वसुमना से राजा की आवश्यकता का प्रतिपादन (शान्ति० ६८ । ८-६०)। इन्द्र को सान्त्वनापूर्ण मधुर वचन बोलने का उपदेश (शान्ति० ८४ अध्याय)। इनका इन्द्र को विजय-प्राप्ति के उपाय और दुष्टों का लक्षण बताना (शान्ति० १०३ । ७--५२) । इन्द्र को शुक्राचार्य के पास श्रेयःप्राप्ति के लिये भेजना (शान्ति० १२४ । २४ )। मनु से ज्ञानविषयक विविध प्रश्न करना (शान्ति. २०१ अध्याय से २०६ अध्याय तक)। उपरिचर के यज्ञ में भगवान पर कुपित होना (शान्ति० ३३६ । १४)। मुनियों के समझाने से क्रोध शान्त करके यज्ञ को पूर्ण करना (शान्ति. ३३६ । ६०-६१)। इनके द्वारा जलाभिमानी देवता को शाप (शान्ति० ३४२ । २७) । इनके द्वारा इन्द्र से भूमिदान के महत्त्व का वर्णन ( अनु० ६२ । ५५--९२)। राजा मान्धाता के पूछने पर उनको गोदान के विषय में उपदेश (अनु० ७६ । ५--२३)। युधिष्ठिर के प्रति इनका प्राणियों के जन्म-मृत्यु का और नानाविध पापों के फलस्वरूप नाना योनियों में जन्म लेने का वर्णन ( अनु० १११ अध्याय)। युधिष्ठिर को अन्नदान की महिमा बताना (अनु० ११२ अध्याय)। युधिष्ठिर को अहिंसा एवं धर्म की महिमा का उपदेश देकर इनका स्वर्गगमन ( अनु० ११३ अध्याय)। इनके द्वारा इन्द्र को धर्मोपदेश (अनु० १२५ । ६०-६८) । इन्द्र के कहने से मनुष्य का यज्ञ न कराने की प्रतिज्ञा करना ( आश्व० ५ । २५-२७) । मरुत्त से उनका यज्ञ कराने से इनकार करना (आश्व० ६। ८-९)। मरुत्त को धन प्राप्त होने से इनका चिन्तित होना ( आश्व० ८ । ३६-३७) । इन्द्र के पूछने पर उनसे अपनी चिन्ता का कारण बताते हुए मरुत्त और संवर्त को कैद करनेके लिये कहना (आश्व० ९ । ७)। ये और सोम ब्राह्मणों के राजा बताये गये हैं ( आश्व० ९ । ८-१०)।
बेर शिव १.१०.३७, १.११.१९(शिव के लिङ्ग व बेर/मूर्ति में अपेक्षाकृत लिङ्ग पूजन की श्रेष्ठता, पञ्चाक्षर मन्त्र से बेर पूजन, लिङ्ग व बेर पूजन के शिवपद प्रदाता होने का कथन), ७.२.३४.५(शिव के बेर लिङ्ग की स्थापना का निर्देश ) bera
बोध ब्रह्माण्ड १.२.९.६०(धर्म व बुद्धि के २ पुत्रों में से एक), १.२.१६.४१(मध्य देश के जनपदों में से एक), १.२.३५.२८(बौधेय : याज्ञवल्क्य के वाजी संज्ञक शिष्यों में से एक), मत्स्य २००.३( बोधप : वसिष्ठ कुल के एकार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), मार्कण्डेय ५०.२७(बुद्धि - पुत्र), वायु १०.३५(धर्म व बुद्धि के २ पुत्रों में से एक), ५९.७७(पुरुष के बोधात्मक होने के कारण का कथन), स्कन्द ५.२.३३.२०(बोध ब्राह्मण - पुत्र का निशाचरी द्वारा भक्षण, बोध द्वारा विक्रान्त - पुत्र का चैत्र नाम से पालन व शिक्षण), लक्ष्मीनारायण २.१०९.६६(प्राचीनों के राजा बोधविहङ्गम आदि का यज्ञान्त में देवादि के साथ युद्ध व मृत्यु का वृत्तान्त), २.२४५.८१(भक्ति के स्नेह से, स्नेह के माहात्म्य बोध से तथा बोध के सन्त समागम से वर्धित होने आदि का कथन), ३.२०१.१२(बोधायन महर्षि द्वारा हारीतक शूद्र व उसकी पत्नी कस्तूरिका को गर्भस्थ बालक के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन तथा गर्भस्थ बालक द्वारा महर्षि की शिक्षाओं का अङ्गीकरण आदि ) bodha
बोधि वायु १११.२६/२.४९.३३(गया में महाबोधि तरु के महत्त्व का कथन), कथासरित् १०.९.२(बोधिसत्त्व के अंश से उत्पन्न वणिक् की कथा ) bodhi
बोध्य भागवत ६.१५.१४(पृथिवी पर विचरने वाले सिद्ध ऋषियों में से एक), १२.६.५५(संहिता प्राप्त करने वाले बाष्कल के ४ शिष्यों में से एक), विष्णु ३.४.१७(ऋग्वेद संहिता प्राप्त करने वाले बाष्कल के ४ शिष्यों में से एक ) bodhya
बोपदेव भविष्य ३.२.३२(बोपदेव द्विज द्वारा हरि कृपा से वर रूप में भागवत ज्ञान की प्राप्ति )
बौद्ध गणेश २.४७.३(विष्णु द्वारा बौद्ध रूप धारण कर दिवोदास - पालित काशी की प्रजा को मोह में डालना), भविष्य ३.१.६(शाक्यमुनि प्रभृति बौद्ध राजाओं का कथन), ३.३.२९.१६(बौद्धों के आर्यों के साथ युद्ध का वर्णन), स्कन्द ४.२.५८.७२(काशी से दिवोदास के उच्चाटन हेतु विष्णु व गरुड द्वारा बौद्ध आचार्य व शिष्य रूप धारण), लक्ष्मीनारायण १.४९८.४१, ३.१७०.१९(
३२वें धाम के रूप में बौद्ध धाम का उल्लेख ) bauddha
बौद्धसिंह भविष्य ३.३.२९.४३(बौद्धसिंह द्वारा योगसिंह व भोगसिंह का वध, इन्दुल से पराजय),
ब्रध्न ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२८(ब्रध्न सूर्य से करों की रक्षा की प्रार्थना ) bradhna
ब्रह्म अग्नि ८४.३२(८ देवयोनियों में अष्टम), ३८२.७(ब्रह्म के मत में परमशान्ति – अभिन्न में भेद आदि), गरुड २.२.६१(ब्रह्महा द्वारा मृग, अश्व, सूकर, उष्ट्र योनि प्राप्ति का उल्लेख), २.२.६३(ब्रह्महा के क्षयरोगी होने का उल्लेख), ३.२.३५(अनन्त गुण पूर्णता से हरि की ब्रह्म संज्ञा का कथन- विष्णावेव ब्रह्मशब्दो हि मुख्यो ह्यन्येष्वमुख्यो ब्रह्मरुद्रादिकेषु ।अनन्तगुणपूर्णत्वाद्ब्रह्मेति हरिरुच्यते ॥ ), देवीभागवत ७.३६(देवी द्वारा हिमालय को ब्रह्म के स्वरूप का कथन - प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते । अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत् ॥), ११.२०(ब्रह्म यज्ञ की विधि), पद्म १.२०.९८(ब्रह्म व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य), ४.१+ (पद्म पुराण का ब्रह्म खण्ड), ब्रह्माण्ड १.१.५.१००(ब्रह्म के वृक्ष रूप का वर्णन- बुद्धिस्कन्धमयश्चैव इन्द्रियान्तरकोटरः ॥ ..धर्माधर्मसुपुष्पस्तु सुखदुःखफलोदयः ॥ ), २.३.७.३६(ब्रह्मण : कद्रू व कश्यप के प्रधान नाग पुत्रों में से एक), भागवत ३.१२.३४(ब्राह्म कल्प में शब्द ब्रह्म रूपी ब्रह्मा का निरूपण - ऋग्यजुःसामाथर्वाख्यान् वेदान् पूर्वादिभिर्मुखैः ।), ५.२०.३२(पुष्कर द्वीप के निवासियों द्वारा ब्रह्म की सकर्मक कर्म द्वारा आराधना का कथन - यत्तत्कर्ममयं लिङ्गं ब्रह्मलिङ्गं जनोऽर्चयेत्। एकान्तमद्वयं शान्तं तस्मै भगवते नम॥ इति), ११.३(पिप्पलायन का निमि को ब्रह्म सम्बन्धी उपदेश), मत्स्य १३.५३(चित्त तीर्थ में सती की ब्रह्मकला नाम से स्थिति का उल्लेख), १४५.१००(ब्रह्मवान् : १९ मन्त्रकृत् ऋषियों में से एक), १९६.१५(ब्रह्मतन्वि : आङ्गिरस कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वामन ९०.४०(ब्रह्मलोक में विष्णु की ब्रह्मा नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ९.११३/१.९.१०५(ब्रह्मवन में ब्रह्मवृक्ष के रूप में पुरुष के रूपक का कथन - बुद्धिस्कन्धमयश्चैव इन्द्रियाङ्कुरकोटरः ॥ महाभूतप्रशाखश्च विशेषैः पत्रवांस्तथा। .. ), ५१.३४(ब्रह्म के नि:श्वास से निर्मित ब्रह्मज मेघों की प्रकृति का कथन), ६१.८१(ब्रह्मवादियों को उत्पन्न करने वाले वसिष्ठ आदि गोत्रों के नाम), ६१.१०७(ब्रह्म की निरुक्ति : बृहत्वात्, बृंहणत्वात्), ६१.१०९(सुब्रह्म के लक्षण), ६६.४४/२.५.४४(रात्रि के १५ मुहूर्त्तों में से एक), ६७.८०/२.६.८०(ब्रह्मजित् : कालनेमि के ४ पुत्रों में से एक), ८६.४३/२.२४.४३(ब्रह्मदान : गान्धार ग्रामिकों में से एक), विष्णु १.२२.४३(परब्रह्म के पद का वर्णन), २.८.१९(ब्रह्म सभा से सूर्य की मरीचियों के प्रतीप गमन का उल्लेख), ३.३.२२(ओम रूप एकाक्षर ब्रह्म की निरुक्ति व विवेचना, बृहत्व व बृंहण से ब्रह्म नाम धारण - ध्रुवमेकाक्षरं ब्रह्म ओमित्येव व्यवस्थितम्। .. प्रणवावस्थितं नित्यं भूर्भुवस्स्वरितीर्य्यते।), ६.५.६४(ब्रह्म के २ प्रकार, शब्द ब्रह्म में निष्णात होने पर परब्रह्म की प्राप्ति), शिव २.१.८(शब्द ब्रह्म के स्वरूप वर्णन में देह के विभिन्न अङ्गों में वर्ण मातृकाओं का न्यास, ज्ञान से ब्रह्मा व विष्णु के गर्व का परिहार), ५.१९.१५(सात महालोकों में से एक सत्यलोक की ब्रह्मलोक नाम से प्रसिद्धि, पवित्रात्माओं का स्थान - षड्गुणेन तपोलोकात्सत्यलोको व्यवस्थितः ।। ब्रह्मलोकः स विज्ञेयो वसंत्यमलचेतसः ।।), ७.२.५.३(परमतत्त्व के ब्रह्म, परब्रह्म, अपरब्रह्म आदि नामों का हेतु - अपरं ब्रह्मरूपं च परं ब्रह्मात्मकं तथा ॥..अपरं ब्रह्म निर्दिष्टं परं ब्रह्म चिदात्मकम् ॥), स्कन्द १.१.७.३२( ब्रह्म गिरि पर त्र्यम्बक लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), १.२.५६ (ब्रह्मसर के तट पर ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मेश लिङ्ग की स्थापना, लिङ्ग का माहात्म्य), ३.१.१४(, ३.१.२४(, ३.१.४०(, ४.२.८३.९७(ब्रह्म तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - ब्रह्मतीर्थं ततः पुण्यं वीरब्रह्मेश्वरात्पुरः ।। ब्रह्मविद्यामवाप्नोति तत्र स्नानेन मानवः ।। ), ५.१.२.२३(ब्रह्मा के नाम धारण के हेतु का कथन), ५.२.६५.३४(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य - यः पुष्करं नरो गत्वा तपो वर्षशतं चरेत् ।। अन्यो ब्रह्मेश्वरं पश्येत्तस्य पुण्यं ततोऽधिकम् ।।), ५.२.८३.१५(बिल्व व कपिल के परस्पर वाद में बिल्व द्वारा दान तथा तीर्थ के प्राधान्य और कपिल द्वारा ब्रह्म व तप के प्राधान्य के प्रतिपादन का वृत्तान्त - दानं प्रधानं तीर्थं तु बिल्वेनोक्तं पुनःपुनः ।। ब्रह्म श्रेष्ठं तपः श्रेष्ठमित्युक्तं कपिलेन तु।।), ५.३.१३.४२(२१ कल्पों में तीसरे कल्प का नाम), ५.३.५५.२२(शूलभेद तीर्थ में विष्णु की पिता रूप से, ब्रह्मा की पितामह रूप से तथा रुद्र की प्रपितामह रूप से स्थिति), ५.३.५६.१२१(दानों में ब्रह्मदान की श्रेष्ठता का कथन - सर्वेषामेव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते ।), ५.३.१२९(ब्रह्म तीर्थ का माहात्म्य, ब्रह्मा द्वारा सर्व प्रकार के पापों से मुक्ति हेतु प्रक्षालन), ६.९२(ब्रह्म कुण्ड का माहात्म्य, शूद्र को मोक्ष की प्राप्ति), ७.१.१४७(ब्रह्म कुण्ड का माहात्म्य, ब्रह्मा द्वारा तीर्थों का आह्वान), ७.१.१५०(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.२४५(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.२४८(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, स्व - दुहिता के दर्शन पर ब्रह्मा का काम के वशीभूत होना, पाप से मुक्ति के लिए लिङ्ग की स्थापना), ७.१.३१८(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.३.५३(ब्रह्मपद की उत्पत्ति व माहात्म्य ; सद्गति के लिए ब्रह्मा के पद का स्पर्श), हरिवंश ३.१७.४(शिर में निहित ब्रह्ममय तेज से चतुर्मुख ब्रह्मा के प्रादुर्भाव और ब्रह्मा द्वारा ब्रह्म प्राप्ति का वर्णन), महाभारत वन ३१३.४६(ब्रह्म द्वारा आदित्य के उन्नयन का कथन), शान्ति २१६.१९(परम ज्ञान के ब्रह्म होने का कथन), योगवासिष्ठ ३.१४.१८(जीव या जीवराशि की सत्ता का खण्डन करके एकमात्र अमल ब्रह्म की सत्ता का प्रतिपादन - न जीवोऽस्ति न जीवानां राशयः सन्ति राघव ।..शुद्धचिन्मात्रममलं ब्रह्मास्तीह हि सर्वगम् ।), ३.४४(जगत), ३.८५(ब्रह्म व आदित्य का संवाद), ४.४०(जगत एकता), ६.१.६७(ब्रह्म एक्य), ६.२.३५(पर ब्रह्म), ६.२.४३(ब्रह्म की एकतानता), ६.२.५२(ब्रह्म का स्वरूप), ६.२.१७२(जगत् के ब्रह्मत्व का प्रतिपादन), ६.२.१७३+ (ब्रह्मगीता में परमार्थ व निर्वाणोपदेश, ब्रह्माण्ड व तापसादि का उपाख्यान), ६.२.१७९(ब्रह्मगीता में ब्रह्ममयत्व का प्रतिपादन), ६.२.१८९(ब्रह्म एकता), ६.२.२०६(महाप्रश्न), महाभारत वन ३१३.४६(, लक्ष्मीनारायण १.२८३.३८(ब्रह्म के पात्रों में अनन्यतम होने का उल्लेख), २.१४०.१६(ब्राह्मक प्रासाद के लक्षण), २.२४६.१५(गुरु, व्रत, वेद तथा हरि रूप ब्रह्म की चतुष्पदी द्वारा ब्रह्मारोहण करने का निर्देश), २.२४६.२८(आचार्य के ब्रह्मलोकेश होने का उल्लेख), २.२५०.५७(भक्ति पाक के ब्रह्मता तथा ब्रह्मपाक के परम पद होने का उल्लेख ; दया, क्षमा आदि ब्रह्म के पन्थों के नाम - कर्मपाकः शरीरं वै ज्ञानपाको निरीहता । भक्तिपाको ब्रह्मता च ब्रह्मपाकः परं पदम् ।।), २.२५२.३०(भगवान् के ब्रह्मलोक मूर्द्धा, ईश्वरलोक हृदादि तथा जीवलोक चरण होने का उल्लेख ), २.२५२.४६(परब्रह्म, ब्रह्मप्रिया, अक्षर ब्रह्म, मुक्ता, मुक्तान्य नामक पंचविध ब्रह्मसृष्टि का उल्लेख), ३.३३.१७(लक्ष्मी का ब्रह्मचित्रधर नृप की कन्या सुधाक्षी रूप में जन्म का कथन), ३.३५.३६(अप्सराओं की इच्छा पूरणार्थ बृहद्ब्रह्मनारायण अवतार का वृत्तान्त), ३.४७(वधू गीता के अन्तर्गत साक्षात् परब्रह्म योग का निरूपण), ३.७५.८९(ब्रह्मदानों से सत्यलोक की प्राप्ति का उल्लेख), ४.२५(पर ब्रह्मस्वरूप योग निरूपण तथा विशिष्ट ब्रह्माऽद्वैतात्मक परब्रह्म का विवेचन ), द्र. चैत्यब्रह्म, प्रणद्ब्रह्म brahma
ब्रह्मकूर्च नारद १.१२३.५३(ब्रह्मकूर्च चतुर्दशी व्रत की विधि), लिङ्ग १.१५(ब्रह्मकूर्च निर्माण व पान की विधि), लक्ष्मीनारायण २.५.८२(ब्रह्म के ह्रदय से उत्पन्न पुत्रों द्वारा ब्रह्मकूर्च असुर का वध, असुर के देह मलों से विभिन्न प्रकार की उत्पत्तियों का कथन ) brahmakoorcha/ brahmakuurcha/ brahmakurcha
ब्रह्मगार्ग्य वायु ९८.९८/२.३६.९३(वसुदेव के पुरोहित के रूप में ब्रह्मगार्ग्य का उल्लेख )
ब्रह्मगुप्त कथासरित् ८.३.६१(ब्रह्मगुप्त के नाम हेतु का कथन), ८.७.१७(ब्रह्मगुप्त का प्रहस्त के साथ द्वन्द्व युद्ध),
ब्रह्मचर्य
अग्नि
१५३(ब्रह्मचर्याश्रमधर्म
का
निरूपण),
कूर्म
२.१२(ब्रह्मचारी
के नियम),
२.१४(ब्रह्मचारी
के धर्म
का कथन),
नारद
१.२.५(,
१.४३.१०६(ब्रह्मचारी
के धर्म
का निरूपण),
पद्म
२.१२.७३(दुर्वासा
के समक्ष
प्रकट ब्रह्मचर्य
का रूप
- दंडहस्तः
सुप्रसन्नः कमंडलुधरस्तथा।),
३.५३(शिष्य/ब्रह्मचारी
का धर्म),
भविष्य
१.१८२.३(ब्रह्मचर्याश्रम
का गायत्र
रूप में
उल्लेख
- गायत्रो
ब्रह्मचारी तु प्राजापत्यो
द्वितीयकः ।।
देवव्रतस्तृतीयस्तु
नैष्ठिकस्तु चतुर्थकः ।। ),
भागवत
११.१६.२५(विभूति
वर्णन के
अन्तर्गत
हरि के
ब्रह्मचारियों
में सनत्कुमार
होने का
उल्लेख
- नारायणो
मुनीनां च कुमारो ब्रह्मचारिणाम्।),
११.१७.१४(विराट्
पुरुष के
ह्रदय में
ब्रह्मचर्याश्रम
की उत्पत्ति
- गृहाश्रमो
जघनतो ब्रह्मचर्यं हृदो मम
।), वायु
५९.४१(तप
के ४
लक्षणों में
से एक
- ब्रह्मचर्यं
जपो मौनं निराहारत्वमेव च।
इत्येतत्
तपसो मूलं सुघोरं तद्दुरासदम्
।।), विष्णु
३.९.१(ब्रह्मचारी
के धर्म
का निरूपण),
विष्णुधर्मोत्तर
२.८६(ब्रह्मचर्य
का वर्णन),
३.२२८(शिष्य
द्वारा चर्य
ब्रह्मचारी
व्रत की
संक्षिप्त
विधि), ३.२५८(ब्रह्मचर्य
की प्रशंसा),
शिव
१.१७.९२(कारण
लोकों
से
परे
ब्रह्मचर्य
लोक
का
कथन),
६.१२.२६(ब्रह्मचर्य
से मुनियों
आदि
की तृप्ति
का उल्लेख
- ब्रह्मचर्येण
मुनयो देवा यज्ञक्रियाध्वना
।।
पितरः
प्रजया तृप्ता इति हि श्रुतिरब्रवीत्
।।), स्कन्द
१.२.१३.१७५(ब्रह्मचारी
द्वारा गुरु
लिङ्ग की
उष्णीषी नाम
से पूजा
, शतरुद्रिय
प्रसंग
- ब्रह्मचारि
गुरुर्लिंगं नाम चोष्णीषिणं
विदुः॥),
४.१.३६.१०(ब्रह्मचर्याश्रम
के नियम),
महाभारत
उद्योग
४४.४(ब्रह्मचर्य
से युक्त
बुद्धि से
प्राप्त होने
वाली विद्या
के संदर्भ
में ब्रह्मचर्य
की आचार्य
- शिष्य
सम्बन्धों
के रूप
में व्याख्या),
शान्ति
२१४(ब्रह्मचर्य
का निरूपण
व ब्रह्मचर्या
में स्थित
होने के
उपाय), २४२.२५(शिष्य
हेतु ब्रह्मचारी
के नियमों
के पालन
का निर्देश),
आश्वमेधिक
२६.१५(ब्रह्मचारी
की परिभाषा
व ब्रह्मचारी
के आचार
का निरूपण
- ब्रह्मचारी
सदैवैष य इन्द्रियजये रतः।।),
४६.१(ब्रह्मचारी
शिष्य हेतु
नियम), लक्ष्मीनारायण
१.१०९.४८(ब्रह्मचर्य
द्वारा
लिए
रसना
आदि
४ निरोधों
की
प्राप्ति
का
कथन), १.१०९.४८(ब्रह्मचारी
द्वारा
अपेक्षित ४
प्रकार के
निरोधों का
कथन), १.१११(पिता
धर्म द्वारा
नर -
नारायण
को ब्रह्मचर्य
के महत्त्व
का वर्णन),
२.२२७.२(ब्रह्मचर्य
व्रत की
विधि का
वर्णन), ३.१३.७(प्रज्ञात
नामक १६वें
वत्सर में
शीलव्रत
द्वारा
ब्रह्मचर्य
को सुरक्षित
रखने का
वर्णन, शुक्र
दैत्य द्वारा
शीलभङ्ग करने
के प्रयास
पर सुदर्शनी
सती द्वारा
शुक्र को
भस्म करने
व नरों
को नारी
बनाने का
वृत्तान्त), ३.२५.९१(लक्ष्मी
द्वारा काम,
रति
आदि को
भस्म कर
देने
पर अनादिश्री
ब्रह्मचारी
नारायण के
प्राकट्य
का वृत्तान्त
), ३.१५०.४१(ब्रह्मचर्य
का वास्तु से साम्य?
- ब्रह्मचर्यं
स्थापयेच्च वास्तुदेवं सदैवतम्
।),
कथासरित्
१०.५.२४८(ब्रह्मचारी
पुत्र की
कथा )
brahmacharya
ब्रह्मचारिणी हरिवंश १.३.४५(बृहस्पति - भगिनी, प्रभास नामक अष्टम वसु की भार्या, देवशिल्पी विश्वकर्मा की माता),
ब्रह्मचारी ब्रह्माण्ड १.२.७.१७५(विद्यार्थी ब्रह्मचारी हेतु नियम), १.२.३३.१०(९ होत्रवह ब्रह्मचारियों के नाम), २.३.६.३९(क्रोधा व कश्यप के १० देवगन्धर्व पुत्रों में से एक), भागवत ७.१२.१(ब्रह्मचारी के नियमों का वर्णन), मत्स्य ४०.२(विद्यार्थी ब्रह्मचारी की सिद्धि के लिए अपेक्षित लक्षण), वायु ५९.२३(ब्रह्मचारी के साधु कहलाने के लिए अपेक्षित लक्षणों का उल्लेख), ६८.३८/२.७.३८(प्रवाही व कश्यप के १० देवगन्धर्व पुत्रों में से एक), विष्णु ३.९.१(विद्यार्थी ब्रह्मचारी के कर्तव्य ) brahmachaaree/ brahmachari
ब्रह्मज्योति ब्रह्माण्ड १.२.१२.२५(शंस्य - पुत्र ८ उपस्थेय धिष्ण्य अग्नियों में से एक, अन्य नाम वसु, ब्रह्म स्थान में वास का उल्लेख), वायु २९.२१(शंस्य - पुत्र ८ उपस्थेय धिष्ण्य अग्नियों में से एक, अन्य नाम वसु, ब्रह्म स्थान में वास का उल्लेख ) brahmajyoti
ब्रह्मणस्पति गणेश २.१०.२४(वसिष्ठ द्वारा महोत्कट गणेश को दिया गया नाम), भागवत २.३.२(ब्रह्मवर्चस कामी हेतु ब्रह्मणस्पति की अर्चना का निर्देश ) brahmanaspati
ब्रह्मतार लक्ष्मीनारायण ३.९७.३२(विप्र ब्रह्मतार द्वारा पुत्र को संसार त्याग में प्रोत्साहित करना )
ब्रह्मतीर्थ ब्रह्माण्ड २.३.१३.५६(ब्रह्मतीर्थ में श्राद्ध के सर्वयज्ञ सम फल का उल्लेख), मत्स्य १९१.१०४(अमोहक अपर नाम वाले ब्रह्मतीर्थ में पितृ तर्पण के माहात्म्य का कथन), वायु ७७.५४/२.१५.५४(ब्रह्म तीर्थ में अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ) brahmateertha/ brahmatirtha
ब्रह्मतुण्ड ब्रह्माण्ड २.३.१३.७५(ब्रह्म ह्रद का माहात्म्य , तुला का स्थान, वसिष्ठ द्वारा स्थाणु रूप होकर तप का स्थान), वायु ७७.७१(ब्रह्मानुग ह्रद का माहात्म्य, वसिष्ठ द्वारा स्थाणुभूत होकर तप, तुला का स्थान आदि ) brahmatunda
ब्रह्मदण्ड ब्रह्माण्ड २.३.५३.४५(सगर - पुत्रों के ब्रह्मदण्ड से नष्ट होने का उल्लेख), २.३.५४.८(वही), २.३.५४.२५(वही), २.३.५६.३५(वही), कथासरित् १२.३.८६(त्रिकालज्ञ मुनि ब्रह्मदण्डी द्वारा मृगाङ्कदत्त द्वारा देखे गए आश्चर्यों के यथार्थ स्वरूप का वर्णन ) brahmadanda
ब्रह्मदत्त देवीभागवत १.१८.४३(शुक की कन्या व अणुह - पुत्र), पद्म १.१०.६८(सन्नति - पति, पूर्व जन्मों में कौशिक पुत्रों का वृत्तान्त, पिपीलिका का संवाद सुनने का प्रसंग), १.३७.२२०(गौतम के शाप से ब्रह्मदत्त का गृध्र बनना, राम के दर्शन से मुक्ति, गृध्र व उलूक के विवाद का प्रसंग), ब्रह्माण्ड २.३.८.९४(अणुह व कीर्तिमती - पुत्र), भागवत ९.२१.२५(नीप व कृत्वी - पुत्र, गौ - पति, विश्वक्सेन - पिता), मत्स्य १५.१०(पञ्चाल नरेश व कृत्वी - पुत्र), २०(राजा, सन्नति - पति, पूर्व जन्म में कौशिक - पुत्र पितृवर्ती), २१(ब्रह्मदत्त द्वारा पिपीलिका संवाद श्रवण की कथा), २१.१६(वैभ्राज द्वारा ब्रह्मदत्त पुत्र प्राप्त करने का कथन, ब्रह्मदत्त आदि के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त), वायु ७०.८६/२.९.८६ (कीर्तिमती व सत्त्वगुह - पुत्र), ७२.७४, ७३.२१(शुक - कन्या कीर्तिमती व अणुह - पुत्र), ९९.१८०/२.३७.१७५(अणुह - पुत्र, विश्वक्सेन - पिता), विष्णु ४.१९.४५(अणुह व कीर्ति - पुत्र, विश्वक्सेन - पिता), स्कन्द १.२.२.७६(पाञ्चाल ब्रह्मदत्त द्वारा द्विजों को शंख दान का उल्लेख), ५.१.६८.१७ (दुष्ट चरित्र वाले ब्रह्मदत्त की गौतमी तीर पर मरण से सद्गति, जन्मान्तर में ब्रह्मशर्मा), हरिवंश १.१८.५३(अणुह व कृत्वी - पुत्र), १.२०.३(अणुह व कृत्वी - पुत्र, पूर्व जन्म का वृत्तान्त , पूजनीया पक्षी प्रसंग), २.८३.१(ब्रह्मदत्त ब्राह्मण द्वारा षट्पुर में यज्ञ, असुरों का विघ्न, कृष्ण द्वारा रक्षा), २.८५.६९(ब्रह्मदत्त द्विज द्वारा षट्पुर की प्राप्ति), ३.१०४(शाल्र्वदेशीय नृप ब्रह्मदत्त द्वारा शिवाराधन से हंस व डिम्भक नामक पुत्रों की प्राप्ति), वा.रामायण १.३३(चूली व सोमदा - पुत्र, कुशनाभ की १०० कुब्जा कन्याओं से विवाह), लक्ष्मीनारायण १.५७३.६०(ब्रह्मदत्त के यज्ञ में प्रेतों की मुक्ति की कथा), २.२४४.८०(ब्रह्मदत्त द्वारा द्विज को शंख निधि दान का उल्लेख), कथासरित् १.३.२७(हंसद्वय द्वारा राजा ब्रह्मदत्त को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का निवेदन – पूर्वजन्म में काक), ३.५.५४(वत्सराज द्वारा विजयार्थ वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त पर आक्रमण), ६.७.३७(किसान द्वारा ब्रह्मदत्त, सोमदत्त व विष्णुदत्त नामक तीन भाइयों की कथा), १७.१.२०(वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त द्वारा हंस दर्शन हेतु सरोवर का निर्माण, हंसयुगल दर्शन, हंसयुगल द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का निवेदन ) brahmadatta
ब्रह्मदेव लक्ष्मीनारायण ४.८(ब्रह्मदेव विप्र द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु पत्नी सहित बदरिकाश्रम में तप, बदरिका देवी से बदर - द्वय की प्राप्ति व पुत्र प्राप्ति आदि),
ब्रह्मधना ब्रह्माण्ड २.३.७.८७(शण्ड पिशाच - पुत्री, राक्षस - पत्नी, ब्रह्मधान गण की माता), २.३.८.६१(ब्रह्मधान : दिवाचर राक्षसों की ३ जातियों में से एक, स्वरूप का कथन), वायु ६९.१२३/२.८.१२०(पिशाच - कन्या , अकर्णान्ता, अरोमा, सूर्य - अनुचर प्रजा की माता), ६९.१३२/२.८.१२८(ब्रह्मधान के १० पुत्रों के नाम ) brahmadhanaa
ब्रह्मधाता मत्स्य १२१.१८(राक्षस, प्रहेति - पुत्र, वैभ्राज वन में वास )
ब्रह्मनाल स्कन्द ४.२.६१.१५५(ब्रह्मनाल तीर्थ का माहात्म्य),
ब्रह्मपद वायु १०१.९१(ब्रह्मपद का निरूपण, ब्रह्मपद के परार्द्ध व पर भेदों का निरूपण), १११.४८/२.४९.५८(ब्रह्मपद तीर्थ में श्राद्ध का फल : पितरों का ब्रह्मलोक गमन ) brahmapada
ब्रह्मपात वायु ४७.१६(प्रहेतृ - पुत्र व कुबेर - अनुचर ब्रह्मपात राक्षस की प्रकृति का कथन )
ब्रह्मपार्श्व वायु ४१.५९(निषध पर्वत के उत्तर कूट पर स्थित ब्रह्मपार्श्व तीर्थ के महत्त्व का कथन )
ब्रह्मपुत्र लक्ष्मीनारायण २.१११.५९(पितृकन्याओं में से एक, नदी रूप होना, त्रिवित्त प्रदेश में ब्रह्म पुत्री की स्थिति का उल्लेख), २.११२.७(ब्रह्मपुत्र नदी के विभिन्न स्थानों पर सर्व देवों की स्थिति का कथन ) brahmaputra
ब्रह्मप्रकाश लक्ष्मीनारायण २.६०.७२(ब्रह्मप्रकाश ब्रह्मचारी द्वारा क्रूरसिंह राक्षस को मोक्ष के उपाय का कथन )
ब्रह्मप्रथ लक्ष्मीनारायण ३.७९.३४(कण्डायन ऋषि की पुत्री ब्रह्मप्रथा का हरिप्रथ मनु की पत्नी बनने तथा ब्रह्मप्रथा के अक्षर धाम प्राप्ति के कारण का वृत्तान्त )
ब्रह्मबल ब्रह्माण्ड १.२.३३.१०(९ होत्रवद् ब्रह्मचारियों में से एक), १.२.३५.५७ (अथर्व संहिताकार देवदर्श के ४ शिष्यों में से एक), भागवत १२.७.२(ब्रह्मबलि : अथर्व संहिताकार वेददर्श के ४ शिष्यों में से एक), मत्स्य २००.६(वसिष्ठ कुल के एकार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), २००.१२(ब्रह्मबली : वसिष्ठ कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६१.५१(अथर्व संहिताकार वेदस्पर्श के ४ शिष्यों में से एक), विष्णु ३.६.१०(ब्रह्मबलि : देवदर्श के ४ शिष्यों में से एक ) brahmabala
ब्रह्मभागा वायु ४३.२८(भद्राश्व देश की मुख्य नदियों में से एक )
ब्रह्ममित्र मार्कण्डेय ६३.३६/६०.३६(अथर्व आचार्य ब्रह्ममित्र द्वारा इन्दीवर विद्याधर को राक्षस होने का शाप )
ब्रह्मरन्ध्र वायु १०४.७८/२.४२.७८(ब्रह्मरन्ध्र में बदरी क्षेत्र का न्यास), लक्ष्मीनारायण १.२०४.२(ब्रह्मरन्ध्र में हरि के ध्यान का निर्देश ) brahmarandhra
ब्रह्मरसायन लक्ष्मीनारायण ४.१६.१७(ब्रह्मरसायन साधु द्वारा विनोदिनी विदूषिका को विनोद/रस द्वारा परब्रह्म प्राप्ति साधन की शिक्षा )
ब्रह्मराक्षस
नारद
१.९.७८(सोमदत्त
विप्र का
गुरु अवज्ञा
से ब्रह्मराक्षस
बनना, कल्माषपाद
/ सौदास
को गुरु
की महिमा
का वर्णन),
ब्रह्म
१.१२०.७७(पूर्व
जन्म में
सोमशर्मा
याज्ञिक, लोभ
से यज्ञ
कराने पर
ब्रह्मराक्षस
बनना ,
जागरण
पुण्य दान
से मुक्ति),
ब्रह्माण्ड
२.३.७.९५(स्फूर्ज
क्षेत्र में
निकुम्भ नामक
ब्रह्मराक्षस
की उत्पत्ति
का उल्लेख),
२.३.७.९७(ब्रह्मधना
राक्षस -
पुत्र
गण, नाम),
२.३.८.५९(ब्रह्मराक्षसों
के आगस्त्य
व वैश्वामित्र
भेदों का
उल्लेख -
आगस्त्यवैश्वामित्राणां
क्रूराणां ब्रह्मरक्षसाम्
।
वेदाध्ययनशीलानां
तपोव्रतनिषेविणाम् ॥ ),
मत्स्य
१२१.६२(सुरभि
वन में
आगस्त्य
ब्रह्मराक्षसों
के वास
का उल्लेख
- तत्रागस्त्यैः
परिवृता विद्वद्भिर्ब्रह्मराक्षसैः।। ),
वराह
१३९.८९(पूर्व
जन्म में
सोमशर्मा
याज्ञिक, चाण्डाल
द्वारा मन्दिर
गायन फल
समर्पण से
मुक्ति -
नाम्ना
वै सोमशर्माहं चरको ब्रह्मयोनिजः
।। सूत्रमन्त्रपरिभ्रष्टो
यज्ञकर्मसु निष्ठितः ।।
), १५५.१५(अग्निदत्त
नामक ब्रह्मराक्षस
की सुधन
वैश्य द्वारा
नृत्य के
पुण्य दान
से मुक्ति
- प्रतीक्षस्व
क्षणं मेऽद्य दास्यामि तव
पुष्कलम् ।।
भक्षयिष्यसि
मे गात्रं मिष्टान्नपरिपोषितम्
।।),
१६७(ब्रह्मराक्षस
का ब्राह्मण
से संवाद,
विश्रान्ति
तीर्थ में
स्नान के
पुण्य से
मुक्ति
- मथुरायां
च यत्स्नातं कृतं विश्रान्तिसंज्ञके
।।
तच्च
स्नानफलं देहि येन मुक्तिं
व्रजाम्यहम् ।।),
वायु
६९.१३३/२.८.१२९(ब्रह्मधान
के १०
पुत्रों की
ब्रह्मराक्षस
संज्ञा, श्लेष्मातक
तरु पर
वास का
उल्लेख), स्कन्द
३.३.१५.७(ब्रह्मराक्षस
द्वारा वामदेव
का पीडन,
भस्म
प्रभाव से
जाति ज्ञान),
५.२.५३.१४(ब्रह्महत्या
से विदूरथ
राजा को
सातवें जन्म
में ब्रह्मराक्षसत्व
की प्राप्ति,
निमि
राजा द्वारा
ब्रह्मास्त्र
से वध),
लक्ष्मीनारायण
३.८३.९३(ब्रह्मराक्षस
योनि की
प्राप्ति
कराने वाले
दुष्कर्मों
का वर्णन
- अजेयानपि
साधूँश्च तिरस्कारान् करोति
यः ।
मिथ्यादोषान्
प्राहिणोति स भवेद् ब्रह्मराक्षसः
।।), कथासरित्
२.४.४९(योगेश्वर
नामक ब्रह्मराक्षस
से यौगन्धरायण
की मित्रता,
ब्रह्मराक्षस
- प्रोक्त
युक्ति से
रूप परिवर्तन,
वत्सराज
की मुक्ति
हेतु उद्योग
का वृत्तान्त
- तत्रैनं
दर्शनप्रीतो मित्रभावाय
तत्क्षणम् । योगेश्वराख्यो
वृतवानभ्येत्य ब्रह्मराक्षसः
।। ), ६.६.२४(योगेश्वर
नामक ब्रह्मराक्षस
की सहायता
से मन्त्री
यौगन्धरायण
का कूटनीतिक
प्रपञ्च, राजा
की रक्षा),
१२.२७.७१(ज्वालामुख
नामक ब्रह्मराक्षस
का पीपल
वृक्ष पर
वास, राजा
चन्द्रावलोक
व ब्राह्मण
पुत्र की
कथा), १७.१.१०६(हरिसोम
व देवसोम
को मातुल
शाप से
ब्रह्मराक्षसत्व
की प्राप्ति),
१८.२.४०(ब्रह्मराक्षसों
द्वारा कन्याओं
का हरण,
राजा
विषमशील की
आज्ञा से
ब्रह्मराक्षसों
के कूप
में वास
का वृत्तान्त
) brahmaraakshasa/ brahmarakshasa
ब्रह्मरात भागवत १.९.८(भीष्म से मिलने आए ऋषियों में से एक), स्कन्द ४.२.९७.१६१(ब्रह्मरातेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) brahmaraata
ब्रह्मर्षि ब्रह्माण्ड १.२.३५.८९(ऋषियों के ३ प्रकारों में से एक, नाम निरुक्ति), १.२.३५.९७(ब्रह्मर्षियों की ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठा का उल्लेख), भागवत १२.११.४९(वालखिल्यों की ब्रह्मर्षि संज्ञा), वामन ९०.१३(ब्रह्मर्षि में विष्णु की पाञ्चालिक नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), ९०.२०(ब्रह्मर्षि तीर्थ में विष्णु का त्रिणाचिकेत नाम से वास), वायु ६१.८१(ब्रह्मर्षि की निरुक्ति, ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठा ) brahmarshi
ब्रह्मलोक भागवत ११.२३.३०(खट्वाङ्ग द्वारा मुहूर्त भर में ब्रह्मलोक प्राप्ति की साधना का उल्लेख), मत्स्य १५.२४(पितरों की मानसी कन्या व नहुष - पत्नी विरजा के ब्रह्मलोक में जाने पर एकाष्टका नाम से प्रथित होने का उल्लेख), २१.४१(ब्रह्मदत्त की कथा तथा पितृ माहात्म्य श्रवण से ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख), ५३.३४(ब्रह्मवैवर्त्त पुराण दान से ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख), १९१.१६(अगस्त्येश्वर तीर्थ में स्नान से ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख), १९१.२३(देवतीर्थ में स्नान से ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख), २७५.२६(हिरण्यगर्भ दान से ब्रह्मलोक प्राप्ति का उल्लेख), वायु ६१.८७(ब्रह्मर्षियों की ब्रह्मलोक में, देवर्षियों की देवलोक में तथा राजर्षियों की इन्द्रलोक में प्रतिष्ठा का उल्लेख), १०१.१४१/२.३९.१४१(तप व सत्य लोक के बीच ब्रह्मलोक की स्थिति व ब्रह्मलोक में अपुनर्मारकामानों के निवास का कथन), १०१.२२०(भूलोक से ब्रह्मलोक की दूरी का मान, ब्रह्मलोक से ऊपर भागवत अण्ड की दूरी), १११.४९/२.४९.५८(गया में विभिन्न पदों में श्राद्ध से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति का कथन ) brahmaloka
ब्रह्मवेद ब्रह्माण्ड २.३.१.२६(ब्रह्मवेद/अथर्ववेद के प्रत्यङ्गिरसों से युक्त तथा द्विशरीर शिर युक्त होने का उल्लेख), वायु ६५.२७/२.४.२७(ब्रह्मवेद के घोर कृत्याविधियों, प्रत्यङ्गिरस योगों तथा २ शरीरों से युक्त होने का कथन, कृष्ण द्वारा उत्तरा के गर्भ की रक्षा ) brahmaveda
ब्रह्मव्रत लक्ष्मीनारायण ३.१०७.८३(पत्नीव्रत व पतिव्रता - पुत्र ब्रह्मव्रत की पत्नी शीलव्रता का उल्लेख ; ब्रह्मव्रत के पुत्र कल्याण देवानीक का कथन )
ब्रह्मवल्ली पद्म ६.१४४(ब्रह्मवल्ली तीर्थ का माहात्म्य),
ब्रह्मवैवर्त्त भागवत १२.७.२४(१८ पुराणों में से एक), १२.१३.६(ब्रह्मवैवर्त्त पुराण में १८००० श्लोकों का उल्लेख), मत्स्य ५३.३४(ब्रह्मवैवर्त्त में ब्रह्मवराह का वर्णन होने का उल्लेख, माघ मास की पूर्णिमा को ब्रह्मवैवर्त्त पुराण दान का फल), वायु १०४.४/२.४२.४(ब्रह्मवैवर्त्त पुराण में १८००० श्लोक होने का उल्लेख ) brahmavaivarta
ब्रह्मशर लक्ष्मीनारायण ३.९५.११(ब्रह्मशर स्तोत्र की विधि व माहात्म्य का वर्णन )
ब्रह्मशिर ब्रह्माण्ड २.३.६५.३३(तारा के कारण देवासुर सङ्ग्राम में रुद्र द्वारा ब्रह्मशिर अस्त्र के प्रयोग का कथन), भागवत १.७.१९(अश्वत्थामा द्वारा अर्जुन पर ब्रह्मशिर अस्त्र का प्रयोग, अर्जुन द्वारा उपसंहरण), १.८.१५(ब्रह्मशिर अस्त्र के अमोघ होने व वैष्णव तेज से शान्त होने का उल्लेख), १.१२.१(कृष्ण द्वारा अश्वत्थामा के ब्रह्मशीर्ष अस्त्र से नष्ट उत्तरा के गर्भ को पुन: जीवित करने का उल्लेख , मत्स्य २३.४३(तारा के कारण देवासुर संग्राम में रुद्र द्वारा ब्रह्मशिर अस्त्र के प्रयोग का कथन), हरिवंश २.१२६.९३(बाणासुर द्वारा कृष्ण पर ब्रह्मशिर अस्त्र का प्रयोग, कृष्ण के चक्र द्वारा अस्त्र का विनाश ) brahmashira
ब्रह्मसती लक्ष्मीनारायण ३.११२.८४(ब्रह्मसती कुमारी का राक्षस द्वारा अपहरण, ब्रह्मसती के शोकरहित रहने पर राक्षस द्वारा ब्रह्मसती का मोचन, ब्रह्मसती का प्रायश्चित्त हेतु उपायों का वर्णन )
ब्रह्मसदन भागवत ५.१७.४(गङ्गा के ब्रह्मसदन में आगमन पर ४ भागों में विभाजन का कथन )
ब्रह्मसवितृ लक्ष्मीनारायण १.३१०(तृतीया व्रत के प्रभाव से राजा ब्रह्मसवितृ व उसकी पत्नी भूरिशृङ्गा द्वारा सविता व संज्ञा के साथ तादात्म्य प्राप्ति का वर्णन )
ब्रह्मसारस लक्ष्मीनारायण ३.३५.४१(ब्रह्मसारस वत्सर में विद्या के प्रसार हेतु अनादिश्री गुरुनारायण व सुविद्या श्री के प्राकट्य का वृत्तान्त )
ब्रह्मसावर्णि भविष्य ३.४.२५.३७(ब्रह्माण्ड घ्राण से उत्पन्न बुध द्वारा ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), भागवत ८.१३.२१(उपश्लोक - पुत्र ब्रह्मसावर्णि मनु के दशम मन्वन्तर का कथन), विष्णु ३.२.२५(दशम ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर के देवों, इन्द्र, सप्तर्षियों आदि के नाम), लक्ष्मीनारायण ३.१५६.२६(जड विप्र ब्रह्मसावर्णि द्वारा तप से ब्रह्मसावर्णि मनु बनने का वृत्तान्त ), द्र. मन्वन्तर brahmasaavarni
ब्रह्मसिद्धि कथासरित् १२.१.१६(शृगाली की कथा के अन्तर्गत ब्रह्मसिद्धि मुनि )
ब्रह्मसूत्र मत्स्य २६३.३(प्रासाद में लिङ्ग प्रतिष्ठा हेतु ब्रह्मस्थान के चयन के लिए ब्रह्मसूत्र के प्रयोग का कथन ) brahmasootra/ brahmasutra
ब्रह्मसोम कथासरित् १२.६.३६८(राजा अनङ्गोदय द्वारा सिद्धयोगी ब्रह्मसोम से परामर्श )
ब्रह्मस्तम्ब लक्ष्मीनारायण २.२७०.४४(ब्रह्मस्तम्ब विप्र द्वारा पुरुषोत्तम तीर्थ की स्थापना का वृत्तान्त )
ब्रह्मस्थल ब्रह्माण्ड १.२.१२.२४(ब्रह्मस्थान में विश्वव्यचा समुद्र अग्नि की स्थिति का उल्लेख), १.२.१२.२५(ब्रह्मस्थान में ब्रह्मज्योति वसुधामा उपस्थेय अग्नि की स्थिति का उल्लेख), मत्स्य २६३.७(प्रासाद में लिङ्ग स्थापना हेतु ब्रह्मस्थान के प्रकल्पन का कथन), कथासरित् १२.९.५(कालिन्दीकूलस्थ ब्रह्मस्थल ग्राम में मन्दारवती व तीन तरुण ब्राह्मणों की कथा), १२.८.११(उज्जयिनी नगरी का समीपस्थ ग्राम), १२.१३.७(ब्रह्मस्थल ग्राम में रजक व कन्या की कथा), १२.२९.४(ब्रह्मस्थल ग्राम में चार ब्राह्मण भ्राताओं की कथा ) brahmasthala
ब्रह्मस्व लक्ष्मीनारायण ३.३५.५०(विद्या के प्रसार हेतु कृष्ण का ब्रह्मस्व ऋषि के पुत्र गुरु नारायण रूप में अवतार का कथन )
ब्रह्महत्या कूर्म २.३०(ब्रह्महत्या के प्रायश्चित्त की विधि), २.३१.६९(कालभैरव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर के छेदन से ब्रह्महत्या की उत्पत्ति, वाराणसी में मुक्ति), नारद १.३०.७(ब्रह्महत्या के प्रायश्चित्त का विधान), पद्म ६.१६८.३१(वृत्र वध से ब्रह्महत्या की उत्पत्ति, ब्रह्महत्या का प्राणियों में वितरण), ब्रह्म २.२६(ब्रह्महत्या विनाशक इन्द्र तीर्थ का माहात्म्य : वृत्र वध से ब्रह्महत्या द्वारा इन्द्र का अनुसरण, इन्द्र का कमलनाल में प्रवेश, अभिषेक से मुक्ति), २.५३.१५३(मृगयावश दशरथ को तीन ब्रह्महत्याओं की प्राप्ति, मरण और नरक में वास, राम द्वारा गङ्गा में स्नान व पिण्डदान से पाप से मुक्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.१४६(सावित्री - यम संवाद के अन्तर्गत ब्रह्महत्या प्रापक कर्मों का कथन), ४.४७(इन्द्र का ब्रह्महत्या से डर कर कमल तन्तु में छिपना, कवच द्वारा ब्रह्महत्या का नाश), ब्रह्माण्ड १.२.३५.१६(ऋषियों के वचनों के अनादर से वैशम्पायन द्वारा ब्रह्महत्या की प्राप्ति, ब्रह्महत्या प्रायश्चित्त का भार स्वशिष्यों पर डालने का कथन आदि), २.३.६.३४(ब्रह्महा : अनायुषा व वृष के ४ पुत्रों में से एक), ३.४.९.२४ (ब्रह्म हत्या का प्रजा में विभाजन), भागवत ६.९.६(इन्द्र द्वारा विश्वरूप की हत्या, ब्रह्महत्या को चार भागों में विभाजित कर पृथिवी, जल, वृक्ष व स्त्रियों को प्रदान), ६.१३.१०(वृत्रासुर का वध करने पर ब्रह्महत्या का इन्द्र के पास आगमन, अश्वमेध से मुक्ति), १०.७८.३२+ (रोमहर्षण के वध से बलराम को ब्रह्महत्या की प्राप्ति, बलराम द्वारा प्रायश्चित्त का वर्णन), मत्स्य ३२.३३(ऋतुकामा स्त्री से गमन न करने पर ब्रह्महत्या दोष प्राप्ति का उल्लेख, ययाति - शर्मिष्ठा प्रसंग), ५४.३०(नक्षत्र पुरुष की उपासना से ब्रह्महत्या से मुक्ति), ९०.११(रत्नाचल दान से ब्रह्महत्या आदि से मुक्ति का उल्लेख), ९३.१३९(ग्रहों के कोटि होम से ब्रह्महत्या आदि से मुक्ति का कथन), १८२.१५(अविमुक्त क्षेत्र में जाने से ब्रह्महत्या से मुक्ति का उल्लेख), १८३.९८(ब्रह्महत्या से मुक्ति दिलाने वाले अविमुक्त क्षेत्र में जाने से शिव की ब्रह्मकपाल से मुक्ति का उल्लेख), १९२.१६(शुक्ल तीर्थ में पादपाग्र दर्शन से ब्रह्महत्या से मुक्ति का उल्लेख), २२७.२१५(ब्राह्मण की हत्या से ब्रह्महत्या प्राप्ति का कथन), वामन ३(ब्रह्मा के कपाल छेदन से शिव का ब्रह्महत्या से ग्रस्त होना, मुक्ति), वायु ५०.२२१(अश्वमेधों से ब्रह्महत्या के दूर होने का उल्लेख), ६१.१३(वैशम्पायन द्वारा ब्रह्मवध दोष की प्राप्ति, शिष्य याज्ञवल्क्य द्वारा अकेले ही ब्रह्मवध के प्रायश्चित्त करने का दावा), १०१.१५३/२.३९.१५३(ब्रह्महत्या पर ताल नामक नरक की प्राप्ति का उल्लेख), १०५.१३/२.४३.१२(गया श्राद्ध से ब्रह्महत्या दोष नष्ट होने का उल्लेख), १०८.५५/२.४६.५८(गया में अगस्त्येश्वर के दर्शन से ब्रह्महत्या पाप से मुक्ति का उल्लेख), स्कन्द १.१.१६.१७(इन्द्र द्वारा ब्रह्महत्या का पृथ्वी आदि में विभाजन), २.१.२८.३७(केशव द्विज द्वारा कटाहतीर्थ के जल के पान से ब्रह्महत्या से मुक्ति का वृत्तान्त), २.३.२(दुहिता में ब्रह्मा की कायासक्ति देखकर शिव द्वारा ब्रह्मा का शिर छेदन, शिव को ब्रह्महत्या की प्राप्ति, बदरी क्षेत्र में गमन से ब्रह्महत्या से मुक्ति), ३.१.११.४०(शक्र द्वारा कपालाभरण राक्षस के वध से उत्पन्न ब्रह्महत्या से सीता सर में स्नान से मुक्ति), ३.१.१९(सूत वध से बलभद्र को ब्रह्महत्या की प्राप्ति, लक्ष्मणेश्वर लिङ्ग दर्शन से मुक्ति), ३.१.२४(ब्रह्मा के पञ्चम शिर के छेदन से भैरव द्वारा ब्रह्महत्या प्राप्ति, वाराणसी तथा गन्धमादन पर स्नान से मुक्ति), ३.१.३४.५६(ब्रह्महत्या का सुमति द्विज के पीछे पडना, धनुषकोटि में स्नान से मुक्ति), ३.१.४७.४०(रावण वध से उत्पन्न ब्रह्महत्या : राम द्वारा बिल में रख कर ऊपर से भैरव की स्थापना), ३.१.४८.६१(शंकर नृप को शाकल्य की हत्या से ब्रह्महत्या की प्राप्ति, भैरव द्वारा हनन), ४.१.३१.५४(ब्रह्महत्या का रूप, कालभैरव द्वारा ब्रह्मा के शिर छेदन से ब्रह्महत्या की कन्या रूप में उत्पत्ति , काल भैरव का अनुगमन), ५.३.८५.५१(कण्व राजा को ब्रह्महत्या की प्राप्ति, ब्रह्महत्या के रूप का वर्णन, सोमनाथ में ब्रह्महत्या का प्रवेश वर्जित), ५.३.११८.२६(इन्द्र की ब्रह्महत्या का स्त्री आदि में विभाजन), ५.३.१५९.१२(ब्रह्महा के कुष्ठी होने का उल्लेख), ५.३.१८४.५(धौतपाप तीर्थ का माहात्म्य : ब्रह्महत्या विनाशक, शिव की ब्रह्मा के पञ्चम शिर छेदन से प्राप्त ब्रह्महत्या से मुक्ति), ५.३.२०९.१७७(भारभूति तीर्थ का माहात्म्य : ब्रह्महत्या प्रभृति महापापों से मुक्ति), ६.२६९.१०(वृत्र वध से इन्द्र का ब्रह्महत्या से लिप्त होना, विश्वामित्र ह्रद में स्नान से ब्रह्महत्या से मुक्ति), वा.रामायण ७.८६(अश्वमेध के अनुष्ठान से इन्द्र का ब्रह्महत्या से मुक्त होना, इन्द्र द्वारा प्राप्त ब्रह्महत्या का चार भागों में विभक्त होना), लक्ष्मीनारायण १.४८.६(इन्द्र की ब्रह्महत्या का नारी आदि में चतुर्धा विभक्त होना), १.५२६.७१(राजा वसु की देह से ब्रह्महत्या के निर्गमन तथा वसु के वर से धर्मव्याध बनने का वृत्तान्त ) brahmahatyaa
ब्रह्मा अग्नि ५९.८(अनिरुद्ध के रसात्मक व ब्रह्मा के गन्धात्मक होने का उल्लेख), ८४.३४(निवृत्ति कला/जाग्रत में ब्रह्मा के कारण होने का उल्लेख), ११४(ब्रह्मा द्वारा यज्ञभूमि हेतु गयासुर के शरीर की याचना, यज्ञ के पश्चात् ब्राह्मणों को प्रभूत दान, ब्राह्मणों के लोभाविष्ट होने पर शाप प्रदान का वर्णन), १७६(कार्तिक, आश्विन् व चैत्र कृष्ण की प्रतिपदा में करणीय ब्रह्मा व्रत की विधि व फल का कथन), २१४.३१(ब्रह्मा की ह्रदय में स्थिति), ३४८.३(आ एकाक्षर ब्रह्मा का बोधक), कूर्म १.७.४१(सृष्टियों के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा तनु त्याग), १.७.५४(ब्रह्मा के अङ्गों से यज्ञीय सृष्टि), २.३१(ब्रह्मा के पञ्चम गर्वित शिर का भैरव द्वारा छेदन, ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), गणेश २.१०४.२९(नयी सृष्टि की रचना द्वारा गुणेश द्वारा ब्रह्मा के गर्व का खण्डन), २.१२७.१६(ब्रह्मा की जृम्भा से सिन्दूर पुरुष की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा वरदान व शाप आदि), गरुड १.४(ब्रह्मा से सृष्टि का वर्णन), १.११६(प्रतिपदा तिथि को ब्रह्मा की पूजा), १.११६(चतुर्दशी को ब्रह्मा की पूजा , १.२०५.६६(गार्हपत्य अग्नि का रूप), ३.६.६(ब्रह्मा द्वारा हरि-स्तुति), ३.७.४(ब्रह्मा अहंकारिक द्वारा हरि स्तुति), ३.१२.२(ब्रह्मा द्वारा पद्मनाडी में प्रवेश, विष्णु की स्तुति), ३.१६.२०(ब्रह्मा के ४ रूपों का कथन), गर्ग १.१६(राधा व कृष्ण की स्तुति, विवाह सम्पन्न कराना), २.८+ (गायों , गोवत्सों व गोपों का हरण, कृष्ण के विश्वात्मा रूप का दर्शन, स्तुति), ७.२.२२(प्रद्युम्न को पद्मराग मणि भेंट करना), देवीभागवत ३.३(जगदम्बा प्रदत्त विमान से ब्रह्मा द्वारा इन्द्र, विष्णु व भुवनेश्वरी के लोकों का दर्शन), ७.१(विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा का निर्गम, प्रजा का वर्णन), ८.२(ब्रह्मा की नासिका से अङ्गुल मात्र वराह का प्रकट होना व विशाल रूप धारण करना, ब्रह्मा द्वारा स्तुति), ११.२२.३२(प्राणाग्नि होत्र में मन रूपी ब्रह्मा का उल्लेख), नारद १.४२.१९(पांच धातुओं के रूप में ब्रह्मा का निरूपण), पद्म १.२.४६(ब्रह्मा द्वारा पुलस्त्य को पद्म पुराण का उपदेश), १.७.१३(ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत के संदर्भ में ब्रह्मा का न्यास, शरीर अङ्ग अनुसार ब्रह्मा के नाम), १.१४.३(शिव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम ऊर्ध्वमुख शिर का छेदन, ब्रह्मा के स्वेद से नर की उत्पत्ति), १.१६+ (पुष्कर में यज्ञ का अनुष्ठान, सावित्री की अनुपस्थिति पर गायत्री का परिणय, शिव का भिक्षार्थ आगमन व उपहास, सावित्री का शाप, गायत्री द्वारा उत्शाप), १.२८.२६(पलाश वृक्ष के ब्रह्मा - प्रदायक होने का उल्लेख), १.३४.३५(विष्णु व शिव द्वारा ब्रह्मा की स्तुति, तीर्थों में ब्रह्मा के नाम), १.३८.१५३(ब्रह्मा के पुष्कर में राम के पुष्पक की गति का अवरुद्ध होना, राम द्वारा पुष्पक से उतर कर ब्रह्मा की स्तुति), १.४०.५५(भू, भुव:, सुव: पुत्रों की मानसी सृष्टि, स्वभार्या से विश्व सृष्टि), १.४३.८(तारक वध हेतु देवों द्वारा ब्रह्मा के विराट रूप की स्तुति), २.१(ऋषियों द्वारा सूत के प्रति प्रह्लाद चरित्र विषयक जिज्ञासा पर सूत द्वारा ब्रह्मा व व्यास के संवाद का वर्णन), ६.१११.२६(सावित्री शाप से ककुद्मिनी गङ्गा नदी बनने का उल्लेख), ७.२०+ (ब्रह्मा द्वारा हरिशर्मा ब्राह्मण को दान माहात्म्य व दान पात्र का कथन), ब्रह्म २.३(पार्वती के दर्शन से ब्रह्मा के वीर्य का स्खलन, बालखिल्यों की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा कमण्डलु प्राप्ति), २.३२(ब्रह्मा की स्वनिर्मित कन्या पर कामासक्ति, कन्या के मृगी रूप धारण करने पर ब्रह्मा द्वारा मृग रूप धारण, शिव का व्याध रूप धारण कर मृग रूप धारी ब्रह्मा का अनुसरण), २.८६(ब्रह्मा को खाने के लिए राक्षसों का उद्यत होना, विष्णु द्वारा चक्र से वध), २.४३(शिव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम गर्दभाकृति शिर का छेदन, पृथ्वी /इला द्वारा शिर के धारण में असमर्थता, अविमुक्त क्षेत्र में ब्रह्मा के शिर की स्थापना), २.६५(विष्णु से श्रेष्ठता की स्पर्धा में ब्रह्मा द्वारा लिङ्ग के अन्त का अन्वेषण, पञ्चम मुख से अनृत का कथन, वाणी का शाप से सरस्वती नदी बनना), २.९१(ब्रह्मा द्वारा यज्ञ से सृष्टि का उद्योग, पुरुष सूक्त का विनियोग), ब्रह्मवैवर्त्त १.२२(नारद, प्रचेता प्रभृति ब्रह्मा के पुत्रों के नामों की व्युत्पत्ति), २.१०.१४८(ब्रह्मा द्वारा सरस्वती को महारत्नाढ्य मालिका देने का उल्लेख), २.६१(तारा अन्वेषणार्थ ब्रह्मा का शुक्र के गृह में गमन), ४.२०(ब्रह्मा द्वारा कृष्ण के गोवत्सादि का हरण, कृष्ण रूप के दर्शन, कृष्ण की स्तुति), ४.३०.२६(विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा का निर्गम, पुत्रों का कथन), ४.३५.४७(ब्रह्मा का स्वपुत्री के पीछे भागना), ४.३३(ब्रह्मा का मोहिनी से संवाद, शाप प्राप्ति), ४.६९(कंस वध के लिए ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति), ४.८६.९७(मर्त्य स्तर पर मन के ब्रह्मा होने का उल्लेख), ४.९४.१०७(ब्रह्मा के मन रूप होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.१.३.२२(ब्रह्मा शब्द की निरुक्ति : भावों का बृंहण), १.१.५(ऋषियों आदि की सृष्टि, विभिन्न सर्गों का वर्णन), १.२.८(ब्रह्मा द्वारा सृष्टि पश्चात् तनु त्याग के क्रम का वर्णन), २.३.१(स्खलित वीर्य की आहुति से सप्तर्षियों का जन्म), ३.४.१५.१९(ललिता देवी को इक्षु चाप भेंट), भविष्य १.२(ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन), १.२.५६(ब्रह्मा के पञ्चम मुख से इतिहास सहित १८ पुराणों का निर्गम), १.२२.१४(मुक्त अट्टहास करने पर शिव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम हय शिर का छेदन), १.५७.१(ब्रह्मा हेतु क्षीर यवागू परमान्न बलि का उल्लेख), १.६३+ (ब्रह्मा द्वारा दिण्डि को भानु अर्चन के महत्त्व व विधि का वर्णन), ३.४.१२.७७ (ब्रह्मा की पञ्चवक्त्रा पार्वती से स्वयम्भू रूप में उत्पत्ति, गौराङ्ग व रक्ताङ्ग होना, रक्ताङ्ग का गणेश बनना), ३.४.१३.४(ब्रह्मा का शारदा से प्रणय निवेदन करने पर शारदा द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम मुख के अशुभत्व का कथन, भैरव द्वारा स्वनखों से ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन), ३.४.२०.१९(विधि के रवि नामक अपरा प्रकृति का स्वामी होने का कथन), ३.४.२५.४(ब्रह्मा द्वारा विष्णु स्तोत्र का कथन), ३.४.२५.८१(स्वायम्भुव मन्वन्तर में मेष राशि में ब्रह्मा की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.४.२५.१७८(ब्रह्मा द्वारा पद्मनाल के अन्त का अन्वेषण, अप्राप्ति), भागवत १.३.२(योगनिद्रा में रत पुरुष के नाभिकमल से ब्रह्मा के प्रकट होने का उल्लेख), २.९(ब्रह्मा द्वारा भगवान् के धाम का दर्शन), ३.८.१३(नाभि कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति का वर्णन), ३.९(ब्रह्मा द्वारा विष्णु की स्तुति), ३.१२.३४(ब्राह्म कल्प का निरूपण), ३.१२.३८(ब्रह्मा द्वारा चार मुखों से वेद आदि की सृष्टियां), ३.२०(ब्रह्मा द्वारा शरीरों से सृष्टि, शरीर त्याग), ४.८.२०(श्रीहरि की आराधना से अज द्वारा परमेष्ठी पद प्राप्त करने का उल्लेख), ९.१.९(पुरुष के नाभिकमल से चतुरानन स्वयंभू व स्वयंभू से मरीचि के प्रकट होने का कथन), १०.१३(ब्रह्मा द्वारा गोपों व वत्सों का हरण, कृष्ण द्वारा ब्रह्मा का मोह भङ्ग, ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति), ११.४.५(आदिपुरुष नारायण के रजो अंश से शतधृती/ब्रह्मा? की उत्पत्ति का उल्लेख), मत्स्य १.१२(मनु द्वारा पितामह से सर्वभूत ग्राम की रक्षा के वर की प्राप्ति), २.३६(नारायण के रजोगुण से पितामह की उत्पत्ति का कथन), ३.१(पितामह द्वारा तप से वेदों, ऋषियों आदि के प्राकट्य का कथन), ३.३०(ब्रह्मा द्वारा स्व शरीर से शतरूपा/सावित्री की उत्पत्ति, पुत्री रूप का अवलोकन करने से मुखों की उत्पत्ति), २३.२०(चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में उद्गाता), १११.१०(प्रयाग में ब्रह्मा की माहेश्वर वट रूप में स्थिति का उल्लेख), १६७.७(नारायण के मुख से ब्रह्मा आदि ऋत्विजों की सृष्टि का उल्लेख), १६९(नाभिकमल से ब्रह्मा का प्राकट्य), २५२.३(वास्तुशास्त्र के १८ उपदेशकों में से एक), २६०.४०(ब्रह्मा की मूर्ति का रूप), मार्कण्डेय ४८(सृष्टि उपरान्त ब्रह्मा द्वारा शरीरों का त्याग), ५० (ब्रह्मा द्वारा दुःसह के लिए निर्दिष्ट भोजन), १०२(चतुर्मुख ब्रह्मा के मुखों का महत्त्व), १०३(ब्रह्मा द्वारा आदित्य की स्तुति), लिङ्ग १.२०.३०(विष्णु के उदर से निर्गमन हेतु ब्रह्मा द्वारा नाभि द्वार का अन्वेषण), १.८१.३५(श्वेतार्क पुष्प पर प्रजापति की स्थिति का उल्लेख), वराह २९(ब्रह्मा द्वारा दस दिशाओं का निर्माण, दस लोकपालों के साथ विवाह), ७५.६९(मेरु पर्वत पर मनोवती नामक ब्रह्मा की सभा की स्थिति), ८१.४(एकशृङ्ग पर्वत पर चतुर्मुख ब्रह्मा का निवास), ९७(रुद्र द्वारा ब्रह्मा के शिर का छेदन), वामन २(ब्रह्मा का रुद्र से विवाद, शिर छेदन, नर की रचना), ४९(ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ५७.३३(ब्रह्मा द्वारा स्कन्द को स्थाणु नामक गण भेंट करने का उल्लेख), ६०+ (ब्रह्मा द्वारा सनत्कुमार को उपदेश, नरक का वर्णन, पुत्र - शिष्य विशेषता), वायु ४.३१/१.४.३३(ब्रह्मा शब्द की निरुक्ति), ४.३२(मन का नाम), ९(ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि), २४.३३(विष्णु के उदर में विचरण, नाभि से निर्गम), ५१.३४(ब्रह्मा / ब्रह्म के नि:श्वास से मेघों की उत्पत्ति), ६५.३१(ब्रह्मा द्वारा स्वशुक्र की आहुति से सप्तर्षियों को उत्पन्न करना), ६६.८८/२.५.८६(स्वयम्भू के राजसी, तामसी व सात्त्विकी तनुओं से ब्रह्मा, विष्णु व रुद्रों की उत्पत्ति का कथन), ६७.४(ब्रह्मा के मुख से जय देवगणों की उत्पत्ति, ब्रह्मा के शाप से जय देवगण द्वारा ७ मन्वन्तरों में जन्म लेना), १०४.८१(ब्राह्मी पीठ की ब्रह्मरन्ध्र में स्थिति), विष्णु १.५(पराक् और अर्वाक् नौ सर्गों की सृष्टि, तनु त्याग), १.५.५३(चार मुखों से यज्ञीय सृष्टि), १.७.४(ब्रह्मा द्वारा भृगु, पुलस्त्य आदि ९ ब्रह्माओं व उनकी पत्नियों की सृष्टि), १.७.६(ब्रह्मा के वसिष्ठ आदि ९ मानस पुत्रों के नाम), १.९.४०(ब्रह्मा सहित देवों का विष्णु की शरण में गमन, स्तुति), २.८.१९(ब्रह्म सभा से सूर्य की मरीचियों के प्रतीप गमन का उल्लेख), ४.१.६७(रैवत का रेवती के साथ ब्रह्मलोक गमन, ब्रह्मा से रेवती योग्य वर के विषय में परामर्श, तदनुसार बलदेव को रेवती प्रदान), ४.१.८३(विष्णु के विभिन्न रूपों का गुणगान करते हुए ब्रह्मा द्वारा राजा रैवत ककुद्मी को स्व कन्या बलराम को देने का परामर्श), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७(विभिन्न सर्गों की सृष्टियों के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा तनुओं के त्यागों का वर्णन), ३.४६(ब्रह्म के साकार रूप ब्रह्मा की मूर्ति का रूप), ३.६३(ब्रह्मा की मूर्ति का रूप), ३.७१.१२(ब्रह्मा की मूर्ति के रूप का संक्षिप्त उल्लेख), शिव १.६+ (ईश्वरत्व के लिए ब्रह्मा की विष्णु से स्पर्द्धा, शिव के स्तम्भ के अन्त का अन्वेषण, मिथ्या उक्ति , शिव का शाप), १.१७.१४३(नाभि के नीचे ब्रह्म भाग, आकण्ठ विष्णु व मुख शिव होने का उल्लेख), २.१.७(ब्रह्मा की कमल से उत्पत्ति, कमलनाल में भ्रमण, विष्णु से स्पर्द्धा, हंस रूप धारण करके लिङ्ग के ऊर्ध्व भाग का अन्वेषण), २.२.१(ब्रह्मा का पुत्री सन्ध्या के रूप पर मोहित होना, रुद्र मोहार्थ सती का जन्म), २.२.१९(सती - शिव विवाह में सती के दर्शन से ब्रह्मा की कामुकता व विरूपता), ३.८(काल भैरव द्वारा ब्रह्मा के गर्व का हरण, शिर छेदन), ७.१.६(ब्रह्मा की आयु का मान), ७.१.१३(कल्प भेद से विष्णु, शिव, ब्रह्मा का एक दूसरे से प्रादुर्भाव), ७.१.१४(ब्रह्मा से रुद्र की उत्पत्ति), ७.१.१७(ब्रह्मा के शरीर से शतरूपा, दक्ष आदि की उत्पत्ति), ७.२.५.३(, स्कन्द १.१.६.३३(ब्रह्मा द्वारा लिङ्ग शीर्ष की खोज), १.१.७.२(ब्रह्मा द्वारा लिङ्ग रूप शिव की स्तुति), १.१.८.२२(ब्रह्मा द्वारा मणिमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), १.१.२६.१६(शिव - पार्वती विवाह यज्ञ के समय ब्रह्मा द्वारा पार्वती के चरण व नखेन्दु दर्शन से वीर्य स्खलन, षष्टि सहस्र वालखिल्यों की उत्पत्ति, नारदोपदेश से वालखिल्यों के गन्धमादन पर्वत पर गमन का वृत्तान्त), १.३.१.१.४०(अग्नि स्तम्भ के अन्त का अन्वेषण करने में ब्रह्मा की विष्णु से स्पर्द्धा, हंस रूप धारण), १.३.२.८.१०(शिव के दक्षिणाङ्ग से ब्रह्मा की उत्पत्ति, सृष्टि करना, विष्णु से श्रेष्ठता का विवाद, ज्योति स्तम्भ के अन्त के अन्वेषण का प्रसंग), २.१.३२.३४(अगस्त्य कृत तप के प्रभाव से ब्रह्मा का आगमन, अगस्त्य द्वारा अभीष्ट निवेदन, ब्रह्मा द्वारा गङ्गा का प्रेरण, गङ्गा के स्वांश से नदी की उत्पत्ति का वृत्तान्त), २.२.२३(नारद व इन्द्रद्युम्न द्वारा जगन्नाथ मूर्ति प्रतिष्ठार्थ ब्रह्मा को भूलोक में आने का निमन्त्रण), २.२.२७.१५(ब्रह्मा द्वारा जगन्नाथ, सुभद्रा, सुदर्शन चक्र व बलभद्र की स्तुति), २.३.२(ब्रह्मा के शिर का छेदन), २.३.६.८(बदरी क्षेत्र में तीर्थ, हयग्रीव - स्तुति, वेद प्राप्ति), २.८.२(ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मकुण्ड की स्थापना, देवों की पृच्छा पर ब्रह्मकुण्ड के माहात्म्य का कथन), ३.१.१४(ब्रह्मकुण्ड के माहात्म्य व उत्पत्ति के संदर्भ में विष्णु से श्रेष्ठता की स्पर्द्धा, लिङ्ग अन्त का अन्वेषण, मिथ्या भाषण से शाप प्राप्ति), ३.१.२४(ब्रह्मा की विष्णु से श्रेष्ठता का विवाद, कालभैरव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन, ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ३.१.२४.३०(ब्रह्मा के तपोबल से उत्पन्न ऊर्ध्वमुखी पञ्चम मुख का कथन), ३.१.४०(ब्रह्मा की निज दुहिता में कामासक्ति, शिव द्वारा ब्रह्मा का हनन, गायत्री सरस्वती की प्रार्थना पर ब्रह्मा द्वारा पुन: संजीवन, ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ३.१.४९.४९(ब्रह्मा द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.२.१.१२(ब्रह्मा की सभा का वर्णन), ३.२.१५(ब्रह्मा द्वारा पञ्चम शार्दूल शिर से विष्णु को शीर्ष पतन का शाप, ब्रह्मा के शीर्ष का शिव द्वारा छेदन), ४.१.३१.४८(शिव निन्दा के कारण कालभैरव द्वारा ब्रह्मा के शिर का छेदन), ४.२.५२.३१(दिवोदास पालित काशी में ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण वेश में दस अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान), ४.२.७३.७७(ओङ्कार लिङ्ग की स्तुति), ५.१.२.२०(ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति, शिव को पुत्र रूप में मांगना, शिर छेदन के शाप की प्राप्ति), ५.१.२.६५(ब्रह्मा के पञ्चम शिर की महिमा, छेदन), ५.१.२८.६६(ब्रह्मा द्वारा पतित सोम को रथ पर स्थापित करने का कथन, चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में ब्रह्मा ऋत्विज बनना), ५.१.३.१(शिव हननार्थ ब्रह्मा द्वारा स्वेद से नर की उत्पत्ति), ५.१.४.१२(ब्रह्मा द्वारा तप से अग्नि की उत्पत्ति, क्षुधा शान्ति का उपाय करना, अग्नि को तीन भागों में विभक्त करना), ५.१.२६.४५(यज्ञ अनुष्ठान में ब्रह्मा द्वारा शिव को आमन्त्रित न करना, कपर्दी का कपाल लेकर आना), ५.१.२८.३५(ब्रह्मा द्वारा ब्रह्माणी की पूजा तथा ब्रह्मेश्वर शिव के माहात्म्य का कथन), ५.१.४६.२(ब्रह्मा की आज्ञा से कश्यप द्वारा प्रजार्थ तप का कथन), ५.२.६५(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : पुलोमा दैत्य विनाशार्थ ब्रह्मा द्वारा पूजा), ५.३.२८.१३(शिव के ओङ्कार रूपी रथ में ब्रह्मा के सारथि होने का उल्लेख), ५.३.५५.२२(शूलभेद तीर्थ में विष्णु की पिता रूप से, ब्रह्मा की पितामह रूप से तथा शिव की प्रपितामह रूप से स्थिति), ५.३.८३.१०५(गाय के शिरो भाग में ब्रह्मा के वास का उल्लेख), ५.३.१०३.६०(अनसूया द्वारा ब्रह्मा से व्यापार स्वरूप पृच्छा, ब्रह्मा का मेघ स्वरूप होकर पृथिवी पर वर्षण और बीजारोपण रूप व्यापार का निवेदन), ५.३.१४६.४३(ब्रह्मा की पितर रूप से, विष्णु की पितामह तथा शिव की प्रपितामह रूप से स्थिति), ५.३.१८१.१९(शिव द्वारा वृष रूप ब्रह्मा का ध्यान ?), ५.३.१८४.८(शिव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन, प्राप्त ब्रह्महत्या से पलायित शिव द्वारा धौतपाप तीर्थ की स्थापना), ५.३.१९४.४६(नारायण व श्री के विवाह यज्ञ में ब्रह्मा और सप्तर्षियों द्वारा स्रुक, स्रुव ग्रहण कर अग्नि का यजन), ५.३.१९४.५५(नारायण व श्री के विवाह यज्ञ में सनक मुनि के ब्रह्मा ऋत्विज बनने का उल्लेख), ५.३.२२१(हंसेश्वर तीर्थ के वर्णन के अन्तर्गत दाक्षायणी व कश्यप - पुत्र हंस का ब्रह्मा का वाहन बनना, ब्रह्मा के स्मरण करने पर भी हंस के न आने पर ब्रह्मा द्वारा हंस को शाप, हंस के प्रार्थना करने पर शाप मुक्ति के उपाय का कथन), ५.३.२३१.३०(ब्रह्मा सम्बन्धी सात तीर्थों का उल्लेख), ६.७७(शिव विवाह में पार्वती दर्शन से ब्रह्मा के रेतस् का स्खलन, प्रायश्चित्त स्वरूप स्वशिर स्पर्श करते हुए तप, रुद्र शिर नाम से ख्याति), ६.१७९+ (पुष्कर में ब्रह्मा द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान, सावित्री के यज्ञ में न आने पर गोपकन्या रूपी गायत्री द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान आदि), ६.२४२.१(ब्रह्मा की विष्णु से उत्पत्ति, सृष्टि में प्रवृत्त होना, नारद को २८ प्रकृतियों का कथन), ६.२७८.१८(सावित्री के शाप से चारायण - पुत्र याज्ञवल्क्य रूप में अवतार, याज्ञवल्क्य का वृत्तान्त), ७.१.७.१२(कल्प अनुसार ब्रह्मा के विरंचि आदि नाम), ७.१.१०.२(पृथिवी गुण वाले तीर्थों में ब्रह्मा की स्थिति का उल्लेख), ७.१.३८.६(सावित्री शाप से युगानुसार कपर्दी, हेरम्ब, लम्बोदर आदि रूपों में स्थिति का कथन), ७.१.१०५(प्रभास तीर्थ में ब्रह्मा की बाल रूप में स्थिति के कारण का कथन, कल्पों में नाम, ब्रह्मा का दिनमान, आहवनीय अग्नि, सन्ध्या, वर्षाकाल , ऋग्वेद आदि के रूप का वर्णन), ७.१.१०७(बाल रूपी ब्रह्मा का पूजा विधान, रथ यात्रा, तीर्थों में नाम), ७.१.१५२(ब्रह्मा के लोक में स्थित नारद द्वारा अज्ञानतापूर्वक कौतुकवश वीणा का वादन, वीणा वादन से सात स्वर रूप ब्राह्मणों का भूमि पर पतन, सप्त ब्राह्मण विध्वंस के पातक के शमन हेतु नारद द्वारा तप), ७.१.१६५(यज्ञ अनुष्ठान में सावित्री के न आने पर गायत्री को पत्नी बनाना, सावित्री का शाप, गायत्री द्वारा उत्शाप), ७.१.२४५(ब्रह्मा द्वारा स्थापित ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.२४८(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य, दुहिता में कामासक्ति से ब्रह्मा के पञ्चम शिर का पतन, शुद्धि हेतु लिङ्ग स्थापना, पाप से मुक्ति), ७.१.३१८(ब्राह्मणों द्वारा स्थापित ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.३२१(उन्नत स्थान में बाल रूप में स्थिति के कारण का कथन), ७.३.३४(ब्रह्मा व विष्णु में ज्येष्ठता के प्रश्न पर युद्ध, निर्णय हेतु लिङ्ग अन्त के दर्शन की कथा), ७.३.५३(ब्रह्मपद तीर्थ का माहात्म्य व विधि), हरिवंश ३.१४.१(तपोरत ब्रह्मा को कपिल व नारायण द्वारा निर्देश, ब्रह्मा द्वारा भू, भुव: आदि पुत्रों की सृष्टि और परवर्ती सृष्टि हेतु भार्याओं सुरभि व गायत्री की सृष्टि का वर्णन), ३.१७.४(शिर में निहित ब्रह्ममय तेज से चतुर्मुख ब्रह्मा के प्रादुर्भाव तथा ब्रह्मा द्वारा योग से परब्रह्म की प्राप्ति व सृष्टि का वर्णन), ३.२३+ (ब्रह्मा द्वारा महायज्ञ का अनुष्ठान), ३.७१.५०(वामन के विराट् स्वरूप में ह्रदय स्थान पर ब्रह्मा की स्थिति), महाभारत कर्ण ३४.६३(त्रिपुर वध के संदर्भ में ब्रह्मा का शिव के रथ का सारथी बनना), शान्ति २०८.४(स्वयम्भू ब्रह्मा के ७ पुत्रों की ब्रह्मा संज्ञा), योगवासिष्ठ ३.३.१(सत्य मन का रूप), ३.८६.३१(१० ब्राह्मण - पुत्रों द्वारा ब्रह्मा की धारणा करने का वृत्तान्त), ४.२७(ब्रह्मा द्वारा शरणागत देवों के वासना समूह रूप दैत्य वध का कथन), ६.१.१२८.११(बुद्धि का ब्रह्मा में न्यास), वा.रामायण ६.११७.१२(रावण वध के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा राम की स्तुति), लक्ष्मीनारायण १.६(नाभि कमलों से बहुमुखी ब्रह्माओं की उत्पत्ति), १.८.१८(ब्रह्मा द्वारा तप से शरीर के विराट् रूप का दर्शन), १.१०(विष्णु से लिङ्ग अन्त दर्शन की स्पर्द्धा की कथा), १.८४(दिवोदास के राज्य में छिद्रान्वेषण हेतु शिव द्वारा ब्रह्मा का प्रेषण, ब्रह्मा द्वारा विप्र रूप धारण व दशाश्वमेधेश आदि लिङ्ग की स्थापना कर काशी में ही निवास), १.२००(ब्रह्मा द्वारा सावित्री में मानसी सृष्टि करने का वर्णन, नारद द्वारा सृष्टि की अस्वीकृति पर ब्रह्मा द्वारा नारद को गन्धर्व बनने का शाप, नारद द्वारा ब्रह्मा को अपूज्य होने का शाप), १.४८३.५२(ब्रह्मा के प्रावृट् काल, जल, मेघ होने का उल्लेख), १.४८३.७७(ब्रह्मा का अनसूया के गर्भ से १६ कलाओं वाले सोम के रूप में जन्म लेना), १.५१५(ब्रह्मा की पुत्री मोहिनी की ब्रह्मा पर कामासक्ति, ब्रह्मा की अस्वीकृति पर मोहिनी द्वारा ब्रह्मा को षण्ढत्व का शाप, ब्रह्मा द्वारा तनु त्याग, ब्रह्मा द्वारा माया से विद्ध न होने की शर्त पर सृष्टि करने को राजी होना आदि), १.५३८.५३(कार्तिक पूर्णिमा को सोमनाथ यात्रा में सावित्री सहित ब्रह्मा की रथ में प्रतिष्ठा आदि का निर्देश, विभिन्न तीर्थों में ब्रह्मा के नाम), १.५४१.८ (मानसरोवर में अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष/ब्रह्मा से युक्त पद्मों की स्थिति का वर्णन), १.५४८.९०(ब्रह्मा के उन्नत तीर्थ में बाल रूप होने का उल्लेख), २.११०.७३(ब्रह्मा द्वारा इला देश का राज्य प्राप्त करना), २.११५.८९(मणिमय दोला में बहुमुखी ब्रह्माओं के दर्शन का कथन), २.२९३.९८(ब्रह्मा द्वारा बालकृष्ण को यौतक/दहेज में कल्पघट देने का उल्लेख), ३.३४.८०(अपत्यहीना पुण्यवती नामक पतिव्रता के शाप से ब्रह्मा के प्रजारहित होने तथा पुन: वरदान से प्रजायुक्त होने का वृत्तान्त), ३.६४.१६(पञ्चदशी तिथि को वेधा की पूजा से वंश वृद्धि होने का कथन ) brahmaa
ब्रह्मा, विष्णु, महेश वराह ७२.२(पृथक् कालों में तीनों देवों में एक की श्रेष्ठता का कथन ). स्कन्द ५.३.१०३.६०(अनसूया के समक्ष प्रकट ब्रह्मा, विष्णु व रुद्र का तीन ऋतुओं से सम्बन्ध)
ब्रह्माणी अग्नि १४६.१८(ब्रह्माणी देवी की आठ शक्तियों के नाम), गरुड ३.१६.८२(ब्रह्माणी का वाणी से तादात्म्य, ब्रह्मा-पत्नी), मत्स्य २६१.२४(मातृका, प्रतिमा का रूप), वराह २७(मातृका, मद का रूप), वामन ५६.३(असुरों से युद्ध हेतु चण्डिका देवी के मुख से ब्रह्माणी की उत्पत्ति), स्कन्द ४.२.७२.५६(ब्रह्माणी द्वारा मौलि देश की रक्षा), ५.१.२८.३३(हंसवाहिनी ब्रह्माणी व ब्रह्मेश्वर शिव के माहात्म्य का कथन), ५.१.३७.१९(मातृका, ब्रह्मा द्वारा उत्पत्ति ) brahmaanee/ brahmani
ब्रह्माण्ड गणेश १.१३.३३(ब्रह्मा द्वारा गणेश के उदर में अनेक ब्रह्माण्डों के दर्शन), गरुड ३.१०.५१(ब्रह्माण्ड के विकृत होने तथा विकृत सृष्टि उत्पन्न करने का कथन), पद्म ३.२(अव्याकृत ब्रह्म से ब्रह्माण्डोत्पत्ति का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.३.८(विश्व ब्रह्माण्ड वर्णन नामक अध्याय में पाताल से ब्रह्मलोक तक ब्रह्माण्ड की व्याप्ति का कथन, वैकुण्ठ के ब्रह्माण्ड से बाहर होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.२१(ब्रह्माण्ड का विस्तार), ४.२(ब्रह्माण्ड का विस्तार), भविष्य २.१.२(ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, विस्तार), ३.४.२५.३४(ब्रह्माण्ड शरीर से ग्रहादि की सृष्टि), ४.१७७(ब्रह्माण्ड दान विधि, सुद्युम्न द्वारा ब्रह्माण्ड दान से क्षुधा से मुक्ति), भागवत ५.१८+ (ब्रह्माण्ड के भिन्न - भिन्न वर्षों का वर्णन), १२.१३.८(ब्रह्माण्ड पुराण में १२ हजार श्लोक होने का उल्लेख), मत्स्य १५.२५(ब्रह्माण्ड के ऊपर मानस संज्ञक लोकों में सोमप पितरों की स्थिति का कथन), ५३.५६(ब्रह्माण्ड पुराण दान के फल का कथन), २६६.२८(अनन्त द्वारा ब्रह्माण्ड को मूर्द्धा पर पुष्पवत् धारण करने का उल्लेख), २७४.७(१६ महादानों में से एक), २७६(ब्रह्माण्ड दान विधि), वायु १०४.४१/२.४२.४१(माया द्वारा जीव में चित्र ब्रह्माण्ड को भित्तियों की भांति अर्पित करने का उल्लेख), १०७.४३/२.४५.४३(मरीचि - पत्नी धर्मव्रता का शाप से ब्रह्माण्ड में पावनी शिला होने का आख्यान), १०८.७/२.४६.७(ब्रह्माण्ड में मेरु की भांति गयासुर के शिर पर शिला होने का उल्लेख), शिव ०.१.१०(ब्रह्माण्ड की स्थिति व स्वरूप), ५.१५+ (पाताल, जम्बू द्वीप, भारत का वर्णन), स्कन्द १.२.३८-३९ (ब्रह्माण्ड के परिमाणान्तर्गत ऊर्ध्वलोक, अधोलोक की व्यवस्थिति का निरूपण), योगवासिष्ठ ३.३०(विचित्र ब्रह्माण्ड कोटि का वर्णन), ६.२.१७६ (ब्रह्मगीता में ब्रह्माण्ड उपाख्यान), लक्ष्मीनारायण १.३२२.१४६(सम्पुटाकार ब्रह्माण्ड दान से पति के पत्नी परायण होने का कथन), ३.११७.९५(भण्ड दैत्य द्वारा ब्रह्माण्डास्त्र व लक्ष्मी द्वारा व्यूहास्त्र के प्रयोग का उल्लेख), ३.१२६.५१(ब्रह्माण्ड दान की विधि व महत्त्व ) brahmaanda/ brahmanda
ब्रह्मानन्द भविष्य ३.३.१.२५(परिमल - पुत्र, अर्जुन का अंश), ३.३.९.३८(परिमल व मलना - पुत्र, जन्म काल का कथन), ३.३.१०.५१(ब्रह्मानन्द द्वारा पिता से हरिनागर अश्व की प्राप्ति), ३.३.१७.२१(पृथ्वीराज - पुत्री वेला से विवाह की कथा), ३.३.३१.५(ब्रह्मानन्द के जिष्णु का अंश होने तथा कृष्णांश - सखा होने का उल्लेख), ३.३.३१.१५८(ब्रह्मानन्द द्वारा धुन्धुकार की पराजय, चामुण्ड आदि द्वारा छल से ब्रह्मानन्द का घात, ब्रह्मानन्द का कुरुक्षेत्र में मृत्यु से पूर्व समाधिस्थ होना आदि ), ३.३.३२.१९८(ब्रह्मानन्द द्वारा वेला को ब्रह्मानन्द का रूप धारण करके युद्ध में तारक के वध का निर्देश) brahmaananda/ brahmananda
ब्रह्मायन लक्ष्मीनारायण ३.८१.९६(शतानन्द व विनोदिनी - पुत्र), ३.२१०.३७(ब्रह्मायन ऋषि के उपदेश से यज्ञराध पुष्कस द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त )
ब्रह्मावर्त्त भागवत १.१७.३३(परीक्षित् द्वारा ब्रह्मावर्त्त में कलियुग के निवास का निषेध), ३.२१.२५(प्रजापति - पुत्र मनु द्वारा ब्रह्मावर्त्त में निवास का उल्लेख), ४.१९.१(पृथु द्वारा प्राची सरस्वती वाले ब्रह्मावर्त में १०० अश्वमेध यज्ञ करने का उल्लेख), ५.४.१०(ऋषभ व जयन्ती के ९९ पुत्रों में से एक), ५.४.१९+ (ऋषभ देव द्वारा ब्रह्मावर्त्त में अपने पुत्रों को उपदेश), मत्स्य २२.६९(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), १९०.७(ब्रह्मावर्त्त में ब्रह्मा की नित्य स्थिति का उल्लेख), १९१.६९(ब्रह्मावर्त्त में आदित्य के कन्यागत होने पर श्राद्ध के महत्त्व का कथन), स्कन्द ४.२.६९.१२(ब्रह्मावर्त्त कूप का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.३१(ब्रह्मा के तप का स्थान, माहात्म्य ) brahmaavarta/ brahmavarta
ब्रह्मापेत ब्रह्माण्ड १.२.१८.१७(राक्षस, प्रहेति - पुत्र, कुबेर अनुचर, वैभ्राज वन में वास), १.२.२३.२२(राक्षस, सूर्य रथ में स्थिति), २.३.७.९८(ब्रह्मधाना के ९ पुत्रों में से एक), भागवत १२.११.४३(ब्रह्मापेत आदि की आश्विन् मास में सूर्य रथ पर स्थिति का उल्लेख), वायु ४७.१६(राक्षस, प्रहेत- - तनय, वैभ्राज वन में वास), ६२.१८४(ब्रह्मोपेत : पृथ्वी का दोग्धा), विष्णु २.१०.१६(ब्रह्मोपेत आदि की माघ मास के सूर्य के साथ स्थिति का उल्लेख ), द्र. रथ सूर्य brahmaapeta/brahmopeta
ब्रह्मायन लक्ष्मीनारायण ३.२१०.३७(ब्रह्मायन ऋषि के उपदेश से यज्ञराध पुष्कस द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त )
ब्रह्मास्त्र विष्णु ४.२०.५२(ब्रह्मास्त्र से अभिमन्यु व उत्तरा - पुत्र परीक्षित् की मृत्यु व पुनर्जीवन का कथन), महाभारत शान्ति २.१०(कर्ण द्वारा द्रोणाचार्य से ब्रह्मास्त्र प्राप्ति की इच्छा व्यक्त करना, द्रोण द्वारा ब्रह्मास्त्र न देने का कारण बताना, कर्ण का ब्रह्मास्त्र प्राप्ति हेतु परशुराम के पास जाना), ३.३०(परशुराम द्वारा कर्ण को अन्त समय में ब्रह्मास्त्र भूलने का शाप), लक्ष्मीनारायण ३.१८६.७८(साधु के विज्ञान में ब्रह्मास्त्र की स्थिति का उल्लेख ), द्र. ब्रह्मशिर brahmaastra/ brahmastra
ब्रह्मिष्ठ मत्स्य ५०.६(मुद्गल - पुत्र, इन्द्रसेन - पिता, अजमीढ वंश), वायु ७०.२७/२.९.२७(असित व एकपर्णा - पुत्र ) brahmishtha
ब्रह्मेश्वर स्कन्द ५.१.२८.३६(ब्रह्मेश्वर शिव का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.६५(ब्रह्मेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, पुलोमा दैत्य के विनाशार्थ ब्रह्मा द्वारा पूजा )
ब्रह्मेषु ब्रह्माण्ड २.३.३.३९(रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, राजा, अन्य नाम रुक्मेषु), वायु ९५.२९/२.३३.२९(रुक्मकवच के ५ पुत्रों में से एक, राजा, अन्य नाम रुक्मेषु),
ब्रह्मोदन द्र. ब्रह्मौदन
ब्रह्मोद्भेद वराह २१५.९४(ब्रह्मोद्भेद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य )
ब्रह्मौदन
ब्रह्माण्ड
१.२.१२.८(ब्रह्मोदत्त
: लौकिक
अग्नि -
पुत्र,
अपर
नाम भरत,
वैश्वानर
अग्नि -
पिता
- विश्रुतो
लौकिकोऽग्निस्तु प्रथमो
ब्रह्मणः सुतः।
ब्रह्मो
दत्ताग्निसत्पुत्रो भरतो
नाम विश्रुतः ।)
वायु
२९.७
(अग्नि
का नाम,
अन्य
नाम भरत
- वैद्युतो
लौकिकाग्निस्तु प्रथमो
ब्रह्मणः सुतः।
ब्रह्मौदनाग्निस्तत्पुत्रो
भरतो नाम विश्रुतः ।। ),
लक्ष्मीनारायण
३.३२.८(भरत
अग्नि – पिता
- अग्नेश्चतुर्थं
पुत्रं ब्रह्मौदनाग्निमभक्षयत्
।
ब्रह्मौदनाग्निपुत्रं
च भरतं चाप्यभक्षयत् ।।
) brahmaudana
ब्राह्म भागवत ३.११.३४(ब्राह्म कल्प का निरूपण तथा शब्दब्रह्म संज्ञा), ३.१२.४२ (ब्रह्मचारी की ४ वृत्तियों में से एक, द्र. टीका), १२.१३.४(ब्राह्म पुराण में १० हजार श्लोक होने का उल्लेख), मत्स्य ५३.१३(वैशाख पूर्णिमा को ब्राह्म पुराण दान का संक्षिप्त माहात्म्य : ब्रह्म लोक प्राप्ति), २००.४(ब्राह्मपुरेयक : वसिष्ठ वंश के एकार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ६६.४०/२.५.४०(मध्याह्न/दिन के मुहूर्तों में से एक), १०४.१६/२.४२.१६(६ दर्शनों में से एक), १०४.८१/ २.४२.८१ (ब्राह्म पीठ की ब्रह्मरन्ध्र में स्थिति का उल्लेख), विष्णु ३.११.५(ब्राह्म मुहूर्त में उठकर धर्म, अर्थ का चिन्तन करने का निर्देश), ३.११.२४(८ प्रकार के विवाहों में प्रथम ), द्र. पुराण braahma
ब्राह्मील लक्ष्मीनारायण २.२२४.५९+ (ब्राह्मील राष्ट} में आयोजित यज्ञ में कृष्ण का आगमन, यज्ञ का विस्तृत वर्णन), २.२९७.१००(ब्राह्मीली स्त्रियों के निवास में द्यौ द्वारा देवपूजा रत कृष्ण के दर्शन का उल्लेख ) braahmeela/ brahmila
ब्राह्मण कूर्म २.१२(ब्राह्मण के कर्त्तव्य / कर्म), २.१५.२७(ब्राह्मण के लक्षणों का कथन), देवीभागवत ३.१०.३१(मूर्ख ब्राह्मण की निन्दा, गोभिल द्वारा शाप का प्रसंग), १२.९(गौतम के आश्रम में ब्राह्मणों का पालन, ब्राह्मणों की कृतघ्नता पर गौतम द्वारा शाप), पद्म १.१५.६४(ब्राह्मण के लक्षण), १.४६.१००(ब्राह्मण की महिमा, ब्राह्मण हेतु संस्कार की विधि), १.४७.१(अधम ब्राह्मण के लक्षण, मुक्ति उपाय, गरुड द्वारा ब्राह्मण भक्षण से उत्पन्न व्यथा), २.१८(वसिष्ठ द्वारा पूर्वजन्म में शूद्र वंशोत्पन्न सोमशर्मा ब्राह्मण को वर्तमान में ब्राह्मण वंशोत्पत्ति के हेतु का कथन), ४.१४(ब्राह्मण का माहात्म्य, भीम शूद्र द्वारा ब्राह्मण सेवा से मुक्ति), ५.९६.३१(यज्ञदत्त नामक ब्राह्मण और यम का संवाद, यम द्वारा नरकवासियों के पाप तथा स्वर्गवासियों के पुण्य का वर्णन), ६.१७७(गीता के तृतीय अध्याय के माहात्म्य के वर्णनान्तर्गत जड नामक ब्राह्मण का वृत्तान्त : स्वधर्म परित्याग कर परधर्म निरत होने से जड को कर्म बन्धन की प्राप्ति, पुत्र द्वारा तृतीय अध्याय के पाठ से कर्म बन्धन से मुक्ति), ७.२१.१(ब्राह्मण की महिमा, भद्रक्रिय ब्राह्मण व भषक/श्व की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त १.११(ब्राह्मण का माहात्म्य), ४.२१(इन्द्रयाग की अपेक्षा ब्राह्मण का महत्त्व), ब्रह्माण्ड १.२.७.१६५(ब्राह्मण को प्रजापति के लोक में स्थान), १.२.३१.१२(द्वापर में वेदों का अर्थ करने के लिए ब्राह्मण ग्रन्थों के प्रवर्तन का कथन), १.२.३१.४०(कलियुग में अन्त्य योनि आदि के ब्राह्मणों से सम्बन्ध का कथन), १.२.३३.१(ब्राह्मणों के प्रवक्ता ऋषिपुत्रों के नाम), १.२.३५.७३(वेदों के ब्राह्मण ग्रन्थ सम्बन्धी कथन), २.३.१५.३२(पंक्ति पावन ब्राह्मण के लक्षण), २.३.१९.२५(पंक्तिपावन ब्राह्मण के लक्षण), भविष्य १.२.१२९(नरों में ब्राह्मण तथा ब्राह्मणों में विद्वान् की श्रेष्ठता का कथन), १.१८४(ब्राह्मण के लिए वर्जित कर्मों तथा उनके प्रायश्चित्तों का वर्णन), २.१.५(ब्राह्मण की प्रशंसा), २.१.१७.३(सहस्र याग में अग्नि का नाम), ३.४.२३.९८(ब्राह्मण वर्ण : पितरों के तृप्तिकर्त्ता), ४.१.४९(ब्राह्मण शुश्रूषा का माहात्म्य), भागवत २.१.३७(ब्राह्मण के विराट् पुरुष का मुख होने का उल्लेख), ४.७.४५(ब्राह्मणों द्वारा दक्ष यज्ञ के रक्षक भगवान् हृषीकेश की स्तुति ), ७.११.२१(ब्राह्मण के लक्षण), ८.५.४१(ब्राह्मण के विराट पुरुष का मुख होने का उल्लेख), १०.४.३९(कंस के परामर्शदाताओं द्वारा सनातन धर्म के मूलों में एक ब्राह्मणों के वध का परामर्श), १०.८.६(ब्राह्मण के जन्म से ही गुरु होने का उल्लेख), १०.२४.२०(विप्र को ब्रह्म वृत्ति करने का निर्देश), ११.१७.१६(ब्राह्मण की प्रकृति/लक्षणों का कथन), ११.१७.४०(ब्राह्मण धर्म का निरूपण), मत्स्य १४४.१२(द्वापर में वेदों का अर्थ करने के लिए ब्राह्मण ग्रन्थों के प्रवर्तन का कथन), वराह १६५.६३(मथुरावासी ब्राह्मण की प्रशंसा), ७१(गौतम द्वारा ब्राह्मणों को शाप का प्रसंग), वामन ९०.३४(कटाह में विष्णु का ब्राह्मणप्रिय नाम), वायु ५८.४१(कलियुग में शूद्रों के ब्राह्मणाचारी और ब्राह्मणों के शूद्राचारी होने का कथन), ५९.१३८/१.५९.११३(मन्त्रों के अर्थ करने में ब्राह्मण ग्रन्थों के योगदान का कथन), विष्णु १.६.६(ब्राह्मण आदि की ब्रह्मा के मुख आदि से सृष्टि का उल्लेख), १.६.३४(ब्राह्मण आदि वर्णों के प्राजापत्य आदि स्थानों का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.३२(ब्राह्मण की प्रशंसा), ३.२९०(ब्राह्मण की शुश्रूषा), स्कन्द १.२.५.१०९(नारद के प्रश्न करने पर सुतनु नामक बालक द्वारा ब्राह्मण के ८ भेदों का निरूपण), १.२.५.११०(ब्राह्मण के भेद), २.५.१५(ब्राह्मण को भोजन का माहात्म्य), ३.२.९.२५(ब्राह्मणों के गोत्र, प्रवर, रक्षक शक्ति), ३.२.३२+ (श्रीमाता देवी के वचनानुसार राम द्वारा धर्मारण्य क्षेत्र में ब्राह्मणों के निवास, भोजन, रक्षण आदि की व्यवस्था का निरूपण), ३.२.३९(ब्राह्मणों के गोत्र, प्रवर, कुलदेवी), ४.१.२.९५(उत्तम ब्राह्मण के लक्षण), ५.१.४३.१२(त्रिपुरासुर के त्रिपुर में रहने वाले ब्राह्मणों की सन्मार्ग विमुखता से जगत् के नष्टप्राय होने का कथन), ५.२.६०.१४(चाण्डाल योनि में उत्पन्न मतङ्ग द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्ति हेतु तप, इन्द्र द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्ति की दुर्लभता, पश्चात् उपाय का कथन, मतङ्ग को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति), ५.२.६८.१९(सभी जन्तुओं के प्रति मित्रभाव रखने वाले की ब्राह्मण संज्ञा का उल्लेख), ५.३.३८.१९(ब्राह्मणों के मन्युप्रहरण होने तथा मन्यु के चक्र से भी क्रूरतर होने का उल्लेख), ५.३.१३३.२७(राजा की वृक्ष से तथा ब्राह्मणों की मूल से उपमा, मूल की रक्षा से वृक्ष की रक्षा का कथन), ५.३.१३३.३६(क्रोध से ब्राह्मण को सतत् दरिद्र और मूर्ख होने का शाप प्रदान ?), ५.३.१७०.२४( ब्राह्मण की अवध्यता का उल्लेख), ५.३.१८२.२२(रमा - भृगु विवाद में अस्पष्टवादिता के कारण रमा द्वारा ब्राह्मणों को शाप), ६.१९५+ (ब्राह्मणी : छान्दोग्य ब्राह्मण - पत्नी, रत्नावती - सखी, तप, शूद्री - ब्राह्मणी तीर्थ का माहात्म्य), ७.१.२२.६४(शिव प्रोक्त ब्राह्मण महिमा), ७.१.२९.४०(समुद्र द्वारा मांस मिश्रित भोजन प्रस्तुत करने से ब्राह्मण द्वारा समुद्र को शाप), ७.१.१०६ (ब्राह्मण की महिमा का वर्णन), महाभारत वन १८०.२०(ब्राह्मण के लक्षण), ३१३.४९(ब्राह्मणों के देवत्व, धर्म, मानुष भाव आदि का कथन, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), ३१३.८६(श्राद्ध काल के ब्राह्मण होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), ३१३.१०७(आचार के कारण ही द्विजत्व होने का कथन, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), शान्ति ३(स्वयं को ब्राह्मण बताने के कारण कर्ण द्वारा परशुराम से शाप प्राप्ति), २५१(ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण के लक्षण), अनुशासन ३५(ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन), ३६(ब्राह्मण की प्रशंसा के विषय में इन्द्र व शम्बरासुर का संवाद), ७०(ब्राह्मण के धन का अपहरण करने की हानि के संदर्भ में राजा नृग के कूप में पतन का उपाख्यान), आश्वमेधिक २०(ब्राह्मण गीता का आरम्भ), ३२(ब्राह्मण रूप धारी धर्म व जनक का संवाद), ३४.१२(मन के ब्राह्मण व बुद्धि के ब्राह्मणी होने का उल्लेख, ब्राह्मण गीता का उपसंहार), लक्ष्मीनारायण १.५७३.३२(पार्वती के शाप से ब्राह्मणों द्वारा श्वान योनि की प्राप्ति, राजा रविचन्द्र द्वारा पुण्यदान से मुक्ति), ३.९१.११९(ब्रह्मयोग से ब्राह्मण बनने का उल्लेख), कथासरित् १०.८.३(ब्राह्मण व नकुल की कथा ) braahmana/ brahmana
ब्राह्मण - क्षत्रिय महाभारत आदि ३.१२३(ब्राह्मण व क्षत्रिय में अन्तर का कथन, ब्राह्मण ह्रदय का नवनीत सदृश होना आदि), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३४३(ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्णों के वृषलों के नाम ; वृषलों से मुक्त होने पर ही ब्राह्मण संज्ञा की सार्थकता )
ब्राह्मणाच्छंसी ब्रह्माण्ड १.२.१२.२९(८ विहरणीय धिष्ण्य अग्नियों में से एक, अपर नाम वैश्वदेव), मत्स्य ५१.२५(अग्नि, अपर नाम सुत?/सेतु?/विश्ववेदा), १६७.८(पुरुष के ब्रह्म से ब्राह्मणाच्छंसी ऋत्विज की उत्पत्ति का उल्लेख ), द्र. ऋत्विज braahmanaachchhansee/ brahmanachchhansi
ब्राह्मी देवीभागवत १२.६.१११(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म १.४६.७८(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), ब्रह्माण्ड ३.४.२.२१०(विभिन्न प्रकार के प्राणियों के संसार में संसरण काल का ब्राह्मी संख्या द्वारा निरूपण?), ३.४.३६.५८(८ देवियों में से एक), भविष्य ३.३.९.४(दलवाहन - कन्या, देवसिंह - भार्या), ३.३.२४.१००(बलखानि व सुखखानि - माता, शत्रुओं को पुत्र मरण उपाय का कथन), भागवत ८.२४.३७ (मत्स्य अवतार द्वारा ब्राह्मी निशा पर्यन्त राजा सत्यव्रत की नौका के कर्षण का उल्लेख), मत्स्य १७९.९(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), वराह ९०(देवी, उत्पत्ति), वायु ४४.२१(केतुमाल देश की नदियों में से एक), ७७.१२३/२.१५.१२३(श्राद्ध करने से ब्राह्मी सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख), १०४.८१(ब्राह्मी पीठ की ब्रह्मरन्ध्र में स्थिति), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.८(ब्राह्मी शान्ति का शङ्खप्रभ वर्ण), स्कन्द ४.१.२९.११६(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.७०.३२(ब्राह्मी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१९४.२५(ब्रह्मचर्य स्वरूपा होने से लक्ष्मी द्वारा ब्राह्मी नाम धारण, अन्य नाम मूलश्री), ७.१.६०(देवी, मङ्गला देवी का रूप, माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.२९७.१००(ब्राह्मील स्त्रियों के निवास में देवपूजा परायण कृष्ण के दर्शन का उल्लेख), ४.१०१.८२(कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, ब्रह्मरात व बृंहणिका - माता ) braahmee/ brahmi