शंयु ब्रह्माण्ड २.३.९.३८(पितृसर्ग के विषय में शंयु का बृहस्पति से वार्तालाप), वायु ७१.३७(बृहस्पति - पुत्र, पिता से पितरों व श्राद्ध के बारे में पृच्छा ), महाभारत अनुशासन १४.३०९(४५.२९७)(शंयोरभिस्रवन्ताय शब्द का उल्लेख), shamyu
शंस्य ब्रह्माण्ड १.२.१२.१२(आहवनीय अग्नि, पवमान - पुत्र), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१२(गार्हपत्य अग्नि - पुत्र, आहवनीय आदि ३ पुत्रों के नाम), ३.३२.१३(शंस्य अग्नि के नदियों से उत्पन्न धिष्णि संज्ञक पुत्रों के नाम ? ) shamsya/shansya
शक वराह १२२शकाधिप
शकट गर्ग १.१४(कृष्ण द्वारा शकटासुर के उद्धार की कथा, शकटासुर के पूर्व जन्म में उत्कच होने का वृत्तान्त), ब्रह्म १.७५, १.१२०.११७(मूर्ख ब्राह्मण द्वारा उर्वशी से मिलन हेतु शकट भक्षण न करने का व्रत लेने की कथा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२(कृष्ण द्वारा शकटासुर का मोक्ष), भविष्य ३.४.१८.१७(संज्ञा विवाह प्रकरण में शकटासुर के प्रांशु से युद्ध का उल्लेख), ४.७(शकट व्रत के संदर्भ में मूलजालिक ब्राह्मण व रम्भा की कथा), भागवत १०.१.७(कृष्ण द्वारा शकट का भञ्जन), वराह २१.३५(शिव के रथ में सर्व विद्या का शकट बनना), वामन ५८.५९(शकटचक्राक्ष द्वारा मुद्गर से असुर संहार), विष्णु ५.६, स्कन्द ३.१.२६(पङ्गुता के कारण रैक्व ऋषि का वाहन, सयुग्वान उपनाम), ४.२.८७.६३(दक्ष यज्ञ में कल्प वृक्ष द्वारा शकट आदि का भरण), ५.२.६८.८(शाकटायन द्विज के शकट की ध्वनि को सुनकर पिशाच का बधिर होना आदि), ६.९६(शनि द्वारा रोहिणी शकट भञ्जन का दशरथ द्वारा वर्जन), ७.१.४९(शनि द्वारा रोहिणी शकट भञ्जन का दशरथ द्वारा वर्जन), हरिवंश २.६(कृष्ण द्वारा शकट का भञ्जन), लक्ष्मीनारायण १.४९६.५६(शनि-कृत रोहिणी शकट भेदन का दशरथ द्वारा निरोध), २.३८.१०(शकट असुर द्वारा कृष्ण को नष्ट करने की चेष्टा, कृष्ण द्वारा गुरु भार धारण कर शकट को नष्ट करना), २.२४५.६८(भक्ति रूपी शकट का कथन), २.२५३.३(देह यात्रा में शकट पर असंख्य वस्तुओं को लादकर ले जाने पर अरण्य में इन्द्रिय रूपी चोरों द्वारा हरण का कथन), ३.३५.११६(राजसूय में अच्छावाक् ऋत्विज को शकट की दक्षिणा का उल्लेख ), महाभारत द्रोण ७५.२७(जयद्रथ की रक्षा के लिए द्रोणाचार्य द्वारा शकट व्यूह के निर्माण का कथन), ८७.२२(द्रोणाचार्य द्वारा निर्मित शकट व्यूह की संरचना का वर्णन), अनुशासन ६६.४(उपानह दान से दम्य-युक्त शकट दान के फल की प्राप्ति का उल्लेख), कथासरित् १.४.१०४शकटाल, द्र. शाकटायन shakata
शकुन अग्नि २२८,२३०+ (शुभाशुभ शकुन विचार), नारद १.५६.६९८(यात्राकाल में शकुन - अपशकुन विचार), पद्म २.५६, ५.११, ५.१०४, ब्रह्मवैवर्त्त ३.३३?, ९२.३?, मत्स्य २४१(शकुन के अन्तर्गत अङ्ग स्फुरण), २४३(शुभ - अशुभ द्रव्य दर्शन), लिङ्ग २.२७.१९१(शाकुन व्यूह का वर्णन), वराह २००.३९(नरक की शकुनिका नदी का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.१६३(यात्रा में शकुन), २.१६४(सार्वत्रिक शकुन), स्कन्द २.४.९(पांच दीपों से शकुन का अवलोकन), ५.३.१९८.२०, ६.३६.२२(यात्रा सिद्धि हेतु शकुन सूक्त जप का निर्देश), महाभारत शान्ति १०२, वा.रामायण १७४, ३.२४(खर से युद्ध से पूर्व राम के समक्ष शकुन), ३.५७(सीता हरण पर राम द्वारा दृष्ट अपशकुन), ५.२९(अशोक वाटिका में हनुमान के आगमन पर सीता द्वारा दृष्ट शकुन), लक्ष्मीनारायण १.३५९.१०४(शकुनिका, १.४५७, १.५१७.७९(अन्धक के भावी निग्रह पर शिव द्वारा दृष्ट शकुन ), ३.१४९, ४.८१,
कथासरित् १८.५.१२४शकुनदेवी, द्र. अपशकुन shakuna
शकुनि गर्ग ७.२०.३२(शकुनि का प्रद्युम्न - सेनानी वेदबाहु से युद्ध), ७.३२.८(हिरण्याक्ष - पुत्र, प्रद्युम्न सेना द्वारा आक्रमण), ७.३३.३(शकुनि का वैजयन्त/जैत्र रथ वाहन), ७.३८+ (शकुनि का प्रद्युम्न से युद्ध, कृष्ण द्वारा रहस्योद्घाटन करने पर शकुनि के जीव रूप शुक का वध, कृष्ण द्वारा शकुनि का वध), ७.४१(कृष्ण से युद्ध में शकुनि का मरण, पुनर्जीवित होना, चक्र से वध), ७.४२.१८(मदालसा - पति, पूर्व जन्म में परावसु गन्धर्व - पुत्र), १०.२६, १०.४९.१८(कौरव - सेनानी, अनिरुद्ध - सेनानी युयुधान से युद्ध), देवीभागवत ४.२२.३७(द्वापर का अंश), पद्म १.६(हिरण्याक्ष - पुत्र), १.४६.८१, ३.३०, ३.३१.१८१(शाकुनि ऋषि व रेवती के नवग्रह समान ९ पुत्रों के नाम), ब्रह्माण्ड ३.५.४३, भविष्य ३.३.३२.४९(कलियुग में शकुनि का गजपति राजा रूप में अवतरण), मत्स्य ६, वराह २००.३९, वामन ६४.६५(इक्ष्वाकु - पुत्र, जाबालि की वृक्ष बन्धन से मुक्ति), वायु ८३.१३, हरिवंश १.११.१४, महाभारत उद्योग १६०.१२३, लक्ष्मीनारायण २.३२.३००(विनता के शकुनि ग्रह नाम से प्रथित होने का उल्लेख ), २.३२.३७, shakuni
शकुन्त स्कन्द ५.३.८३.६६, लक्ष्मीनारायण २.१६७.४३
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शकुन्तला गर्ग ४.१९.५८(यमुना सहस्रनामों में से एक), ब्रह्म १.११, भागवत ९.२०(मेनका व विश्वामित्र - कन्या, कण्व द्वारा पालन, दुष्यन्त से परिणय, भरत - माता, पति द्वारा शकुन्तला की विस्मृति ) shakuntalaa
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शकृत स्कन्द ३.२.६.७(वेदमयी गौ के शांतिपुष्टि शकृन्मूत्र होने का उल्लेख)
शक्त गर्ग ७.८.१८(शिशुपाल - सेनानी, कृतवर्मा से युद्ध )
शक्ति अग्नि ७५.२७(स्रुवा व स्रुक् : शिव व शक्ति के प्रतीक), १६७ , २१०.२६ ( धेनु के शक्ति का रूप होने का उल्लेख - चन्द्रार्कऋक्षशक्तिर्या), गणेश २.६९.६(देवान्तक द्वारा गणेश पर शक्ति का प्रहार, सिद्धियों द्वारा शक्ति को रोकना), देवीभागवत १.३.३३ (२६वें द्वापर में व्यास), १.४.४७(विष्णु - प्रोक्त त्रिशक्तियों का महत्त्व), ३.६.३२(शक्ति का महत्त्व, त्रिदेवों द्वारा महासरस्वती, महालक्ष्मी व महाकाली शक्तियों की प्राप्ति), ३.७.२५(ज्ञान, क्रिया व अर्थ शक्ति से तन्मात्राओं की सृष्टि), ५.२८, १२.११(३२ नाम), ९.२.१०(शक्ति शब्द की निरुक्ति), नारद १.८४.६(निद्रा देवी के एकाक्षरी बीजमन्त्र व शक्ति ऋषि का कथन), २.२७.११५ + (राक्षस द्वारा इन्द्र की शक्ति चुराने और शक्ति से स्वयं नष्ट होने की कथा), पद्म १.३.७३(अनुग्रहसर्ग के विपर्यय, सिद्धि, शक्ति, तुष्टि चतुर्धा व्यवस्थित होने का कथन) ब्रह्माण्ड १.१.५.६१(तिर्यक् योनियों में ब्रह्मा के शक्ति द्वारा स्थित होने का उल्लेख), २.३.३२.३७(शिव शक्ति के जेता होने का उल्लेख), २.३.३९.८(परशुराम द्वारा शक्ति से निषधराज का वध), ३.४.१९.३२(कामभस्म से उत्पन्न शक्तियों के नाम), ३.४.२९(नारायणी शक्ति), ३.४.३२.२९(अम्बा, दुला आदि शक्तियां), ३.४.३५(तारा शक्ति, शृङ्गार), ३.४.४४(मातृका शक्तियां), भविष्य ३.४.२०.५(शाक्त मार्ग में ब्रह्मा के मोक्ष प्रदायक होने का उल्लेख), भागवत १०.६१.१५(महाशक्ति : कृष्ण व माद्री लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक), मार्कण्डेय ८२.५४/८५.५४/दुर्गासप्तशती ५.९८(मृत्यु की उत्क्रान्तिदा शक्ति का उल्लेख), ८८(वैष्णवी, ब्रह्माणी आदि देवियों का आविर्भाव), १३३.७/१३०.७(शक्ति से वेद - वेदाङ्गों की शिक्षा ग्रहण का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.११५(२५वें द्वापर में व्यास), १.६४(रुधिर राक्षस द्वारा शक्ति के भक्षण के पश्चात् शक्ति – पत्नी के गर्भ से पराशर के जन्म की कथा), १.७०.१५८(अनुग्रह सर्ग के विपर्यय, शक्ति, सिद्धि, तुष्टि से व्यवस्थित होने का कथन), वराह ९०(त्रि शक्तियों का प्राकट्य), वायु १०४.८२(शाक्त पीठ की जिह्वाग्र में स्थिति), विष्णु २.११(सूर्य शक्ति, वैष्णवी शक्ति), शिव ३.५, ३.१७(महाकालआदि १० शिवों के साथ शक्तियां), ६.१७(शिव के शक्ति से मिलन का स्वरूप), ७.१.१६(शक्ति का निर्माण), ७.१.२९(कला, षड्अध्वा आदि), ७.२.१५.१०(शांभवी, शाक्ती व मांत्री दीक्षा का कथन), स्कन्द ४.२.७२(स्कन्द द्वारा अगस्त्य को पिण्डाण्ड व ब्रह्माण्ड में शक्तियों के नामों का कथन), ५.१.३४.७०(शिव द्वारा स्कन्द को शक्तिप्रदान का उल्लेख), ५.१.३४.८५(शक्ति भेद तीर्थ : शक्ति से तारक वध के पश्चात् स्कन्द द्वारा शिप्रा नदी में शक्ति का क्षेपण), ५.३.१९८.८६(अच्छोद तीर्थ में देवी का शक्तिधारिणी नाम), ५.३.१९८.९१(शरीरधारियों में देवी की शक्ति नाम से स्थिति का उल्लेख), ६.७१(रक्त शृङ्ग के निश्चलीकरण हेतु स्कन्द द्वारा तारक वध के पश्चात् शक्ति को रक्त शृङ्ग पर स्थापित करना), ७.१.५७.४(इच्छा आदि ३ शक्तियों का कथन), ७.१.५८.१(क्रियाशक्ति का कथन – अजापाल राजा द्वारा ज्वर की सृष्टि), ७.१.५९.१(तीन शक्तियों में अजासंज्ञक ज्ञान शक्ति का कथन), हरिवंश २.११९.१६०(वासुदेव द्वारा बाणासुर द्वारा मुक्त शक्ति को ग्रहण कर उससे बाणासुर पर प्रहार), महाभारत द्रोण १८.२१(कर्ण द्वारा इन्द्र से प्राप्त शक्ति का प्रयोग घटोत्कच वध के लिए करने का उल्लेख), शल्य १७.३९, ४६.७२, योगवासिष्ठ ३.६३.२(आत्मा द्वारा विभिन्न शक्तियों को प्रकट करना), ५.३४.८३(विभिन्न शक्तियों के नाम), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२७(विष्णु के अवष्टम्भ व लक्ष्मी के शक्ति होने का उल्लेख ), १.४१०, कथासरित् १.६.८९, २.५.१६३शक्तिमती, १८.३.३, द्र. त्रिशक्ति, वल्लभशक्ति, विष्णुशक्ति, शाक्त shakti
शक्तिदेव कथासरित् ५.१.५७, ५.२.१, ५.२.२९८
शक्तिमुनि विष्णुधर्मोत्तर १.११७
शक्तियशा कथासरित् १०.३.९
शक्तिरक्षित कथासरित् १२.३.१९, १२.२६.१६०, १२.३५.३४(शक्तिरक्षित के करभग्रीव नामक निवास का अन्वेषण)
शक्तिवर्धन मत्स्य १४५.९२(शक्तिवर्धन द्वारा तप से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख )
शक्तिवेग कथासरित् ५.१.११
शक्तु कथासरित् १.४.१२४
शक्त्यक्षि लक्ष्मीनारायण २.१२३.२३, २.१३०,
शक्र अग्नि ३४८.११(र वर्ण के शक्र के अर्थ में होने का उल्लेख), मत्स्य १५४.४३९(शिव-पार्वती विवाह में शक्र द्वारा शिव पर गजचर्म धारण कराने का उल्लेख), वामन ९०.३४(शक्र में विष्णु का कुन्दमाली नाम ?), स्कन्द ५.३.८३.१०४(गायों के शृंगाग्र में शक्र के वास का उल्लेख), हरिवंश २.४४.४५(शक्रदेव : शृगाल व पद्मावती - पुत्र, करवीरपुर का राजा), लक्ष्मीनारायण १.४९८.४१(शाक्रेय : पाप से गति के अवरुद्ध न होने वाले ४ विप्रों में से एक), ३.१०१.६६, ३.१६२.१७(पीतवर्ण मणियों में शक्र की स्थिति का उल्लेख ) shakra
शक्ररुद्र वराह १४०
शक्रशर्मा भविष्य ३.४.८.१(शक्रशर्मा द्विज द्वारा देवपूजा से सूर्य बनना, मथुरा में मध्वाचार्य रूप में जन्म)
शक्रसख गर्ग ७.४७.५(कुबेर के वन का अधिपति?, प्रद्युम्न सेनानियों सारण, साम्ब व गद से युद्ध, पराजय, प्रद्युम्न को भेंट )
शङ्कर देवीभागवत ५.८.६२(शङ्कर के तेज से देवी के मुख कमल का निर्माण), ७.३८(शाङ्करी देवी की श्रीशैल में स्थिति), पद्म ४२०, ६९, ब्रह्मवैवर्त्त १.३(शङ्कर की कृष्ण के पार्श्व से उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड २१३, ३.४.११(शङ्कर द्वारा काम को भस्म करना), भविष्य ३४१०, विष्णुधर्मोत्तर १.५२(शङ्कर द्वारा ध्येय देव),स्कन्द ३.१.४८(पाण्ड्य देश के नृप शङ्कर द्वारा शाकल्य मुनि व मुनि - पत्नी की हत्या से ब्रह्महत्या की प्राप्ति, रामेश्वर लिङ्ग के सेवन से मुक्ति), ३२२०, ३.३.१२.२१(शङ्कर से अन्त:स्थिति में रक्षा की प्रार्थना), ५.१.१५(शङ्कर वापी व शङ्करादित्य का माहात्म्य), ५३१९८८२, ६.१०९(पुरश्चन्द्र तीर्थ में शङ्कर लिङ्ग), ७.१.२५१(शङ्करादित्य का माहात्म्य), ७.१.२५२(शङ्करनाथेश्वर का माहात्म्य ), कथासरित् ४११०७शङ्करदत्त, ५१८६, द्र वंश दनु shankara/ shamkara
शङ्कराचार्य भविष्य ३.४.१०(भैरवदत्त - पुत्र, वीरभद्र का अंश )
शङ्करात्मा नारद १.७९.५०(वृषपर्वा द्वारा गौतम के उन्मत्त शिष्य शङ्करात्मा का वध, शिव द्वारा स्व तेज से हनुमान रूप में जीवित करना), पद्म ५.११४.१००(उन्मत्त वेश धारी गौतम - शिष्य शङ्करात्मा का वृषपर्वा द्वारा वध ) shankaraatmaa/ shankaratmaa
शङ्का गणेश २.१०१.१५(शङ्कासुर के भ्राता कमलासुर का वृत्तान्त),
शङ्कु गर्ग ५.८.३६(कंस - भ्राता, कृष्ण द्वारा वध - शंकुं सुहुं तुष्टिमंतं वामपादेन माधवः । राष्ट्रपालं दक्षिणेन पादेनाभिजघान ह ॥), ब्रह्माण्ड १.२.११.४२(ऊर्जा व वसिष्ठ – पुत्र - रक्षो गर्त्तोर्द्ध्वबाहुश्च सवनः पवनश्च यः ।। सुतपाः शंकुरित्येते सर्वे सप्तर्षयः समृताः ।।), मार्कण्डेय ७८.१८/७५.१८(सूर्य के कर्तित तेज से वसुओं के शङ्कुओं आदि के निर्माण का उल्लेख - चक्रं विष्णोर्वसूनाञ्च शङ्कवोऽथ सुदारुणाः । पावकस्य तथा शक्तिः शिबिका धनदस्य च॥), स्कन्द ५.३.२२.५(गार्हपत्य अग्नि का पुत्र - तथा वै गार्हपत्योऽग्निर्जज्ञे पुत्रद्वयं शुभम् । पद्मकः शङ्कुनामा च तावुभावग्निसत्तमौ ॥), ६.१४२.२०(७७ शंकुओं की विद्यमानता का उल्लेख - सरितां पतयस्त्रिंशच्छंकवः सप्तसप्ततिः ॥), ६.१८८(यज्ञ में शङ्कु प्रचार कर्म का माहात्म्य - यथायथा प्रवर्तंते शंकवः सामसूचिताः ॥ दक्षिणाग्नौ द्रुतं गत्वा कुरु होमं यथोदितम् ॥), हरिवंश २.३६.३(रुक्मी – कृष्ण युद्ध के संदर्भ में शङ्कु का दन्तवक्त्र से युद्ध - गदेन चेदिराजस्य दन्तवक्त्रस्य शङ्कुना । ), महाभारत आदि २२०.३१(प्रद्युम्नश्चैव साम्बश्च निशङ्कुः शङ्कुरेव च। चारुदेष्णश्च विक्रान्तो झिल्ली विपृथुरेव च।।), द्र. त्रिशङ्कु shanku/ shamku
शङ्कुकर्ण अग्नि ५६.१३(८ दिशाओं के ध्वज – देवताओँ में से एक - कुमुदः कुमुदाक्षश्च पुण्डरीकोथ वामनः। शङ्कुकर्णः सर्व्वनेत्रः सुमुखः सुप्रतिष्ठितः ।।), ९६.१०(..शङ्कुकर्णः सर्वनेत्रः सुमुख सुप्रतिष्ठितः ।। ध्वजाष्टदेवताः पूज्याः पूर्वादौ भूतकोटिभिः।), कूर्म १.३३.१५(शङ्कुकर्ण मुनि द्वारा पिशाच का दर्शन, पिशाच द्वारा स्नान से दिव्य रूप की प्राप्ति, ब्रह्मपार स्तोत्र पाठ - कपर्दिनं त्वां परतः परस्ताद् गोप्तारमेकं पुरुषं पुराणम् ।व्रजामि योगेश्वरमीशितारमादित्यमग्निं कपिलाधिरूढम् ।।), देवीभागवत ७.३८.३०(शङ्कुकर्ण पर्वत पर ध्वनि देवी के वास का उल्लेख - शङ्कुकर्णे ध्वनिः प्रोक्ता स्थूला स्यात्स्थूलकेश्वरे ।), नारद १.६६.१२७(शङ्कुकर्ण की शक्ति ज्वालिनी का उल्लेख - दीर्घजिह्वः पार्वतीयुग्ज्वालिन्या शङ्कुकर्णकः ।), २.४८.२०(काशी में शङ्कुकर्णेश्वर लिङ्ग : दक्षिणायन का रूप - अयनं तूत्तरं ज्ञेयं तिमिचंडेश्वरं ततः ।। दक्षिणं शंकुकर्णं तु ॐकारे तदनंतरम् ।।), पद्म ३.२४.२०( शंकुकर्णेश्वरं देवमर्चयित्वा युधिष्ठिर । अश्वमेधं दशगुणं प्रवदंति मनीषिणः ।।), ३.३५(शङ्कुकर्ण द्वारा पिशाचमोचन तीर्थ में तप, कपर्दीश्वर की आराधना, ब्रह्मपार स्तोत्र), ६.१८१(भ्रष्ट ब्राह्मण शङ्कुकर्ण का मृत्यु - पश्चात् सर्प बनना, गीता के सप्तम अध्याय श्रवण से मुक्ति), भविष्य ४.१०७.४७(शङ्कुकर्ण दैत्य द्वारा इन्द्र को पदच्युत करना, विष्णु का आलिङ्गन, विष्णु द्वारा निष्पीडन द्वारा हनन - ततः कृष्णस्तु सहसा गृह्य दोर्भ्यां शनैः शनैः ।। पीडयामास विहसन्नदंतं भैरवान्रवान् ।।), वामन ९.२९(शङ्कुकर्ण का अश्व वाहन - शङ्कुकर्णस्य तुरगो हयग्रीवस्य कुञ्जरः।), २२.४१(कुरुजाङ्गल क्षेत्र की रक्षा हेतु नियुक्त गणों के नाम - विद्याधरं शङ्कुकर्णं सुकेशिं राक्षसेश्वरम्। अजावनं च नृपतिं महादेवं च पावकम्।।), ५७.६९(अम्बिका द्वारा कुमार को प्रदत्त गण का नाम - उन्मादं शङ्कुकर्णं च पुष्पदन्तं तथाम्बिका), ५८.५४( शङ्कुकर्ण द्वारा हल से असुर संहार - शङ्कुकर्णश्च मुसली हलेनाकृष्य दानवान्। संचूर्णयति मंत्रीव राजानं प्रासभृद् वशी।।), ६९.४८(अन्धको नन्दिनं युद्धं शङ्कुकर्णं त्वयःशिराः। कुम्भध्वजं बलिर्धीमान् नन्दिषेणं विरोचनः।। ), ९०.३२(शङ्कुकर्ण में विष्णु का नीलाभ नाम), वायु ५०.१६(प्रथमे तु तले ख्यातमसुरेन्द्रस्य मन्दिरम्।.. पुरञ्च शङ्कुकर्णस्य कबन्धस्य च मन्दिरम्।), स्कन्द ४.२.५३.१५(शिव आज्ञा से शङ्कुकर्ण का दिवोदास के राज्य में विघ्न हेतु गमन - शंकुकर्णमहाकालौ कालस्यापि प्रकंपनौ ।। ज्ञातुं वाराणसीवार्तामायातं चत्वरान्वितौ ।।), ४.२.७४.५३(शङ्कुकर्ण गण द्वारा काशी में निर्ऋति कोण की रक्षा - रक्षः काष्ठां शंकुकर्णो दृमिचंडो मरुद्दिशम् ।।), ४.२.९७.८५(शङ्कुकर्णेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - शंकुकर्णेश्वरं लिंगं कौस्तुभेश्वरदक्षिणे ।। संसेव्य परमं ज्ञानं लभेदद्यापि साधकः ।।), ६.१०९.८(शङ्कुकर्ण तीर्थ में महातेज नामक लिङ्ग - शंकुकर्णे महातेजं गोकर्णे च महाबलम् ॥ ), ७.१.१०.५(शङ्कुकर्ण तीर्थ का वर्गीकरण – पृथिवी - कालिंजरं वनं चैव शंकुकर्णं स्थलेश्वरम् ॥ शूलेश्वरं च विख्यातं पृथ्वीतत्त्वे च संस्थितम् ॥ ),
महाभारत आदि ५७.१५(धृतराष्ट्रकुल के नाग - शङ्कुकर्णः पिठरकः कुठारमुखसेचकौ।। पूर्णाङ्गदः पूर्णमुखः प्रहासः शकुनिर्दरिः।), सभा १०.३४(कुबेर सभा - नन्दीश्वरश्च भगवान्महाकालस्तथैव च। शङ्कुकर्णमुखाः सर्वे दिव्याः पारिषदास्तथा।।), वन ८२.७०, शल्य ४५.५१(उन्मादं शङ्कुकर्णं च पुष्पदन्तं तथैव च।। प्रददावग्निपुत्राय पार्वती शुभदर्शना।), ४५.५६(शङ्कुकर्णो निकुम्भश्च पद्मः कुमुद एव च।।), shankukarna/shamkukarna
शङ्कुधर लक्ष्मीनारायण ३.१८८.१(आसीत् शंकुधराख्यो वै स्तेनो मालव्यपत्तने ।।...अपजापकनाम्ना वै कोषाध्यक्षेण सर्वथा ।।)
शङ्कुवर्ण स्कन्द ६.५.७(त्रिशङ्कु के यज्ञ में शङ्कुवर्ण के प्रस्तोता होने का उल्लेख - प्रस्तोता शंकुवर्णश्च तथोन्नेता च गालवः। ),
शङ्कुशिरा द्र. वंश दनु
शङ्ख गरुड १.५३.१३(शङ्ख निधि का स्वरूप), ३.२९.५५(शङ्खोदक उद्धरण काल में मुकुन्द के स्मरण का निर्देश - शङ्खोदकस्योद्धरणे चैव काले मुकुन्दरूपं संस्मरेत्सर्वदैव), गर्ग २.१.२०(मत्स्य रूप धारी श्री हरि द्वारा चक्र से शङ्खासुर का वध), २.६.१०(शङ्खासुर के पुत्र अघासुर का वृत्तान्त), ६.१२(कक्षीवान् का गुरु के शाप से शङ्ख बनना, कृष्ण द्वारा उद्धार), ७.२.२०(अक्रूर द्वारा प्रद्युम्न को विजय नामक शङ्ख भेंट), ७.३९.४४(प्रद्युम्न का मौलेन्द्र नामक शङ्ख), देवीभागवत ७.३०.७८(शङ्खोद्धार तीर्थ में धरा देवी का वास), नारद १.६६.९१(शङ्खी विष्णु की शक्ति चंडा का उल्लेख), पद्म १.६.५९(विप्रचित्ति व सिंहिका के पुत्रों में एक), २.११०.१८(वरुण/चन्द्रमा? द्वारा नहुष को शङ्ख देने का उल्लेख), ६.९०(शङ्ख असुर द्वारा वेदों का हरण, मत्स्य रूपी विष्णु द्वारा शङ्ख का वध), ब्रह्म १.८६.२७(पञ्चजन दैत्य की अस्थियों से उत्पन्न पाञ्चजन्य शङ्ख की महिमा), ब्रह्माण्ड २.३.१०.२१(शङ्ख व लिखित : जैगीषव्य व एकपाटला - पुत्र), ३.४.१२.१०(भण्डासुर द्वारा रिपुघाती शंख प्राप्त करने का उल्लेख), भविष्य १.६६(सूर्य उपासना के संदर्भ में शङ्ख द्वारा द्विज मुनि को उपदेश, साम्ब आख्यान का कथन), ३.४.१५.६१(शत्रुघ्न के शङ्ख का अवतार होने का उल्लेख), ४.१४१.५३(चन्द्रमा के लिए शङ्ख के दान का विधान), भागवत ४.९.४(विष्णु द्वारा कम्बु से ध्रुव के कपोल का स्पर्श करने पर ध्रुव से स्तुति का प्रस्फुटित होना), ६.८.२५(विष्णु के शङ्ख से यातुधान आदि को भगाने की प्रार्थना), मार्कण्डेय ६८.४३/६५.४३(आठ निधियों में से एक शङ्ख निधि के स्वरूप का कथन), वराह ३१.१५(अविद्या विजय के रूप में शंख का उल्लेख), ८०.९(शङ्खकूट व ऋषभ के मध्य पुरुषस्थली का उल्लेख), १४५.५२(शालग्राम में शङ्खप्रभ क्षेत्र में द्वादशी को शङ्ख ध्वनि श्रवण का उल्लेख), वामन ७५.३९(शङ्ख निधि के आश्रित पुरुषों के गुणों का कथन : नास्तिक, शौचरहित, कृपण, भोगवर्जित, स्तेय, अनृतकथा युक्त), ९०.३१(शङ्खोद्धार तीर्थ में विष्णु का शङ्खी नाम), वायु ४८.३१(शङ्ख द्वीप का कथन), ६९.२९४/२.८.२८८(वृत्ता से शङ्खों की उत्पत्ति, विभिन्न प्रकार/विकार, शङ्खों की ऋषा - पुत्रियों से उत्पत्ति), ७२.१९(जैगीषव्य व एकपाटला के पुत्र - द्वय शङ्ख व लिखित का उल्लेख), विष्णु १.२२.७०(भूतादि तामस अहंकार का प्रतीक - भूतादिमिन्द्रियादिञ्च द्विधाहंकारमीश्वरः । बिभर्ति शङ्खरूपेण शार्ङरूपेण च स्थितम् ।।), ५.२१.२८(कृष्ण द्वारा पञ्चजन की अस्थियों से शङ्ख का निर्माण व यम को जीतना), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.७(शङ्खी विष्णु से पाणि-पाद की रक्षा की प्रार्थना), ३.५२.१५(वरुण के हाथ में शंख अर्थ का प्रतीक), ३.८२.८(लक्ष्मी के संदर्भ में शङ्ख ऋद्धि का प्रतीक), ३.८२.१०(लक्ष्मी के संदर्भ में हस्ति - द्वय शङ्ख व पद्म निधियों के प्रतीक), शिव ५.२६.४०(९ प्रकार के नादों में अष्टम), ५.२६.५१(शङ्ख शब्द से काम रूप प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द १.१.२२.५(शिव द्वारा शंखक व पद्मक नागों को नूपुर रूप में धारण करने का उल्लेख), २.१.७.१७(श्वेत - पुत्र शङ्ख नृप द्वारा शङ्ख नाग बिल पर विष्णु दर्शन हेतु तप), २.१.३४.४२(शङ्ख तीर्थ का कथन), २.१.३७(श्रुत - पुत्र, वज्र - पिता, वेङ्काटचल पर अगस्त्य से साथ तप, विष्णु का दर्शन), २.२.४(पुरुषोत्तम क्षेत्र के शङ्ख रूप का वर्णन, अन्तर्गत तीर्थ), २.२.१९.२१(बल की दारु प्रतिमा के शङ्खेन्दु धवल वर्ण का उल्लेख), २.४.१३.२४(समुद्र - पुत्र शङ्ख असुर द्वारा वेदों का हरण, मत्स्य अवतार द्वारा शङ्खासुर का वध), २.५.५(मार्गशीर्ष मास में विष्णु को शङ्खोदक से स्नान कराने के महत्त्व का वर्णन), २.७.१७.८(शङ्ख ब्राह्मण द्वारा व्याध को पूर्व जन्म का कथन, विष्णु के स्वरूप का विवेचन), ३.१.२५(शङ्ख तीर्थ का माहात्म्य, वत्सनाभ द्विज की कृतघ्नता दोष से निवृत्ति), ३.१.३६.१००(विष्णु के शंख का कार्य – यातुधान आदि का नाश), ३.३.१२.३९(ऋषभ योगी द्वारा राजकुमार को प्रदत्त शङ्ख की महिमा का कथन – अस्य शंखस्य निह्रादं ये शृण्वंति तवाहिताः।। ते मूर्च्छिताः पतिष्यंति न्यस्तशस्त्रा विचेतनाः), ४.२.६१.२२(शङ्ख माधव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८४.८(शङ्ख तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८४.२७(शङ्ख माधव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.१७८(शङ्ख - लिखितेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - महाज्ञानप्रवर्तक), ५.१.२७.२३(कृष्ण द्वारा पञ्चजन को मारने से शङ्ख की प्राप्ति), ५.१.२७.११८(शङ्खी विष्णु के लिए गो दक्षिणा का निर्देश), ५.१.३२.४४, ५३(सूर्य प्रतिमा स्थापना के संदर्भ में स्तोत्र से पूर्व शङ्खनाद का उल्लेख), ५.१.४४.१२(पाञ्चजन्य : समुद्र से उत्पन्न १४ रत्नों में से एक, विष्णु के कर में स्थिति), ५.३.१७८.२४(गङ्गा द्वारा विष्णु के कर में स्थित शङ्ख का प्लावन करने पर पापों से शं प्राप्ति का कथन; शङ्खोद्धार तीर्थ का लक्षण व महत्त्व), ५.३.१९८.८६(शङ्खोद्धार तीर्थ में देवी की ध्वनि नाम से स्थिति का उल्लेख), ६.१०.२२(शङ्ख तीर्थ का माहात्म्य, चमत्कार नृप की कुष्ठ से मुक्ति), ६.११(शाण्डिल्य - पुत्र, अग्रज लिखित द्वारा हस्त कर्तन का प्रसंग, शिव कृपा से पुन: हस्त प्राप्ति, चमत्कार नृप की कुष्ठ से मुक्ति), ६.१११(आनर्त अधिपति का शङ्ख तीर्थ में कुष्ठ से मुक्त होना), ६.२०९(शङ्ख तीर्थ का माहात्म्य, कुष्ठ से मुक्ति, लिखित द्वारा शङ्ख अनुज के हाथ काटने पर शङ्ख का तप, शिव कृपा से हस्त प्राप्ति), ७.१.११६(शङ्खोदक कुण्ड का माहात्म्य, शङ्खावती/कुण्डेश्वरी देवी का वास, शङ्ख असुर की देह के प्रक्षालन से उत्पत्ति), ७.१.३३५(शङ्खावर्त तीर्थ का माहात्म्य, शङ्ख के वध का स्थान), हरिवंश १.१५.३२(वज्रनाभ - पुत्र, उपनाम व्युषिताश्व, पुष्प - पिता), २.५८.५९(निधिपति शङ्ख का कृष्ण के आदेश से द्वारका में आकर वास करना), ३.३५.३६(वराह द्वारा स्थापित पर्वतों में से एक), महाभारत भीष्म २५.१५(पाञ्चजन्यं हृषीकेशो इत्यादि), शल्य ६१.७१(अर्जुन आदि द्वारा देवदत्त आदि शंखों का ध्मापन, तु. भीष्म २५.१५ ), वा.रामायण ७.१५.१६(कुबेर के साथ शङ्ख व पद्म की स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२३०.१(द्वारका में शङ्खोद्धार तीर्थ का माहात्म्य), १.४०६.१५(हैहय वंशी राजा शङ्ख द्वारा कृष्ण के दर्शन हेतु तप का वृत्तान्त), २.१५७.४०(शङ्ख का लिङ्ग व वृषण में न्यास), २.१८५.६५(शङ्ख के आदेश से भ्राता लिखित के हाथों का राजा द्वारा कर्तन, हाथों का पूर्ववत् होना), २.२४४.८०(ब्रह्मदत्त द्वारा विप्र को शङ्ख निधि दान का उल्लेख), ३.१४२.१२(शङ्ख सर्प के शनि, राहु व कुलिक ग्रहों का कथन), ३.१५१.९४(शङ्ख व महाशङ्ख निधियों के स्वरूप), कथासरित् १२.७.७२(शङ्खदत्त), १२.७.७७(शंखध्वनि वाले अश्व का उल्लेख), १३.१.८४शङ्खपुर, गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद २.२.२५(पञ्चभूतात्मक शंख ), द्र. महाशङ्ख, सुशङ्ख shankha
शङ्खचूड गर्ग २.२३(शङ्खचूड यक्ष का कंस से युद्ध व मैत्री, स्वरूप, कृष्ण द्वारा गोपी रक्षा हेतु शङ्खचूड का वध, शङ्खचूड की ज्योति का श्रीदामा में लीन होना), २.२६.४३(सुधन - पुत्र, श्रीदामा का अंश), ५.१६.१८१, ७.४०.५१(शङ्खचूड सर्प द्वारा शकुनि के जीवन रूप शुक की रक्षा), देवीभागवत ९.५, ९.१८+ (दम्भ - पुत्र, तुलसी से विवाह की कथा, सुदामा गोप का अंश), ब्रह्मवैवर्त्त २.६.४६(लक्ष्मी का तुलसी रूप में जन्म लेकर शंखचूड की पत्नी बनना), २.१६(तुलसी - शङ्खचूड आख्यान), ४.२.५(राधा के शाप से श्रीदामा का शङ्खचूड असुर बनना), भविष्य ३.२.१५(गरुड का भक्ष्य नाग, जीमूतवाहन द्वारा शङ्खचूड के बदले स्वशरीर अर्पण, वर प्राप्ति), भागवत १०.३४(शङ्खचूड द्वारा गोपियों का हरण, कृष्ण द्वारा शङ्खचूड का वध करके चूडामणि ग्रहण करना), वायु ४८.३१(शङ्खद्वीप), शिव २.५.१३, २.५.२७(दम्भासुर - पुत्र, तुलसी विवाह का आख्यान), स्कन्द ४.२.६७.१०१ (नाग कुमार द्वारा गन्धर्व - कन्या रत्नावली की सुबाहु दानव से रक्षा व रत्नावली से विवाह, रत्नचूड उपनाम), ५.२.१०.५(माता के शाप के पश्चात् शङ्खचूड नाग के मणिपूर को जाने का उल्लेख), ५.३.७५(शङ्खचूड तीर्थ का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.३३५, कथासरित् ४.२.२०८, १२.२३.१२० shankhachooda/ shankhachuuda/ shankhachuda
शङ्खपति भविष्य ३.२.४, ३.२.२८.२३, ३.२.२९(कलावती - पति, राजा द्वारा कारागार में बन्धन व मुक्ति, गृह आगमन),
शङ्खपद पद्म २.२७(दक्षिण दिशा के द्वारपाल), ब्रह्माण्ड २.११.३३, मत्स्य ८, वायु २८.२८(कर्दम व श्रुति - पुत्र, दक्षिण दिशा के लोकपाल), विष्णु १.२२.१२, शिव ७.१.१७.३०(, हरिवंश १.४.१९(कर्दम - पुत्र, दक्षिण दिशा के दिक्पाल ) shankhapada
शङ्खपाद अग्नि १९,ब्रह्माण्ड १.२.११.२२(कर्दम व श्रुति - पुत्र, दक्षिण दिशा के दिक्पाल), मत्स्य ८, १४५.९५(शङ्खपाद द्वारा सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख ), विष्णु २.८.८३, shankhapaada
शङ्खपाल गरुड १.१९७.१२(शङ्खपाल सर्प की पार्थिव मण्डल में स्थिति), ब्रह्माण्ड १.२.२३.९(शङ्खपाल सर्प की सूर्य रथ में स्थिति), भविष्य १.३४.२३(शङ्खपाल नाग का शनि ग्रह से तादात्म्य ), कथासरित् १३.१.८५, द्र. रथ सूर्य shankhapaala
शङ्खमूर्द्धा स्कन्द ७.४.१७.२५
शङ्खप्रभ वराह १४५,
शङ्खासुर पद्म ६.९०, स्कन्द २.४.१३,
शङ्खिनी अग्नि ८८.४(शान्त्यतीत कला/तुर्यातीता की २ नाडियों में से एक), नारद १.६६.११५(मीनेश की शक्ति शङ्खिनी का उल्लेख), वामन ७२.३७(शङ्खिनी मत्स्या द्वारा वीर्यपान, मरुतों को जन्म ) shankhinee/ shankhini
शची गणेश २.८७.२८(व्योमासुर - भगिनी शतमाहिषी द्वारा शची रूप धारण, गणेश द्वारा वध), गरुड ३.७.७(शची द्वारा हरि-स्तुति), ३.२२.२५(शची के २१ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), ३.२८.५१(शची का तारा, पिशंगदा/चित्राङ्गदा आदि ७ रूपों में अवतरण), नारद १.५६.४१०(कन्या विवाह के समय शची से प्रार्थना), ब्रह्म २.५९.१००(वृषाकपि - इन्द्र सखा भाव को देखकर शची की चिन्ता), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४५.३२(शची द्वारा शिव विवाह में हास्य), ४.४७, ४.५६, ४.५९(शची - नहुषोपाख्यान), ४.६०(बृहस्पति द्वारा शची को प्रबोध), भागवत ६.१८.७(पौलोमी व इन्द्र से उत्पन्न जयन्त आदि ३ पुत्रों के नाम), मार्कण्डेय ४, विष्णुधर्मोत्तर १.२४.७(शची द्वारा नहुष से अपूर्व यान में आने की मांग आदि), १.४२.२३(नासिका में शची की स्थिति का उल्लेख), ३.५०(शक्र व शची के रूप निर्माण का कथन), स्कन्द १.१.१५.७८(शची द्वारा नहुष को अवाह्य वाहन द्वारा आने का निमन्त्रण), १.२.१३.१६७(शतरुद्रिय प्रसंग में शची द्वारा बभ्रुकेश नाम से लवण लिङ्ग की पूजा), २.१.८(शची देवी द्वारा श्रीनिवास पर छत्र लगाना), ४.२.८०.१२(शची द्वारा मनोरथ तृतीया व्रत का चीर्णन, वर प्राप्ति), ५.३.४६.३२(अन्धक द्वारा शची का बलात् हरण), हरिवंश २.७५(इन्द्र का पता लगाने के लिए शची द्वारा रात्रि/उपश्रुति देवी की स्तुति), लक्ष्मीनारायण १.३७४, १.४१२.२०(दुर्वासा के शाप से शची के गृह में दरिद्रता आदि का वास, शची द्वारा नहुष से द्रव्य की याचना, नहुष द्वारा शची को भोगने की कामना ), १.४७३, shachee/ shachi
Comments on Shachi
शण्ड देवीभागवत ७.३८(शाण्डकी देवी का मण्डलेश क्षेत्र में वास), ब्रह्माण्ड २.३.१.७८(शण्डामर्क : शुक्र व गौ - पुत्र), २.३.७.७५( अज व शण्ड द्वारा ब्रह्मधना व जन्तुधना कन्याओं की प्राप्ति), २.३.७.८४(कपि - पुत्र शण्ड पिशाच द्वारा स्वकन्या ब्रह्मधना का राक्षस से विवाह), मत्स्य ४७.२२९(शण्ड - अमर्क : दैत्य - पुरोहितों शण्ड व अमर्क को देवों द्वारा यज्ञ में आमन्त्रण पर असुरों की पराजय), वायु ९७.६३( , स्कन्द ७.१.२७३(शण्ड तीर्थ का माहात्म्य, ब्रह्मा के शिर छेदन से शिव व वृष को कृष्णता प्राप्ति, प्राची सरस्वती में स्नान से मुक्ति ), द्र. शाण्डिल्य shanda
शण्ड - अमर्क ब्रह्माण्ड ३.७३, भागवत ७.५(शुक्राचार्य - पुत्र, प्रह्लाद को शिक्षा), मत्स्य ४७, वायु ६५.७(शुक्र व गो - पुत्र), ९८.६३(देवों द्वारा यज्ञ में शण्ड व अमर्क को भाग देने पर शण्ड व अमर्क द्वारा असुरों का त्याग, देवों की विजय), विष्णु १.१८.३३(शण्ड - अमर्क द्वारा प्रह्लाद के वध हेतु कृत्या की उत्पत्ति, कृत्या से स्वयं नष्ट होना, प्रह्लाद द्वारा पुन: जीवित कराना ), स्कन्द ७.१.२७३, लक्ष्मीनारायण १.१३८, shanda - amarka
शतकला स्कन्द ७.१.१४,
शतक्रतु विष्णु ४.९.१८(रजि की सहायता से शतक्रतु की विजय, रजि-पुत्रों दवारा इन्द्र का पद ग्रहण, बृहस्पति द्वारा रजि – पुत्रों के नाश का उपाय), शिव ३.४.२७(सप्तम परिवर्त में शतक्रतु के व्यास बनने पर शिव के जैगीषव्य बनने का कथन),
शतघण्टा वामन ५७.९५(बदरिकाश्रम द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण )
शतचन्द्रानना गर्ग १.२.२३(गोलोक में कृष्ण - सखी), २.२३(शङ्खचूड यक्ष द्वारा शतचन्द्रानना गोपी के हरण पर कृष्ण द्वारा रक्षा ) shatachandraananaa
शततेजा शिव ३.५
शतद्युम्न लक्ष्मीनारायण २.२४४.८३(शतद्युम्न द्वारा मुद्गल को निज आलय दान का उल्लेख), ३.७४.६४, द्र. वंश ध्रुव , मन्वन्तर
शतद्रुति भागवत ४.२४.११(प्राचीनबर्हि - पत्नी, १० प्रचेताओं की माता),
शतद्रू विष्णुधर्मोत्तर १.२०७(शतद्रू की गौरी नदी से उत्पत्ति का प्रसंग), १.२१५(शतद्रू का ककुद्मी वाहन), द्र. भूगोल
शतधनु विष्णु ३.१८.५३(शैब्या - पति, जन्मान्तर में श्वान आदि योनियों में जन्म, शैब्या पत्नी द्वारा उद्धार),
शतधन्वा ब्रह्म १.१५(शतधन्वा द्वारा स्यमन्तक मणि के लिए सत्राजित् की हत्या), भागवत १०.५७(अक्रूर व कृतवर्मा की प्रेरणा से शतधन्वा द्वारा सत्राजित् का वध, स्यमन्तक मणि हरण, कृष्ण द्वारा शतधन्वा का वध), विष्णु ४.१३.६७(शतधनु द्वारा सत्राजित् की हत्या कर मणि की प्राप्ति, कृष्ण द्वारा शतधन्वा का वध), हरिवंश १.३९(स्यमन्तक मणि हेतु शतधन्वा द्वारा सत्राजित् की हत्या ) shatadhanvaa
शतपत्र नारद १.९०.७२(शतपत्र द्वारा देवी पूजा से जय प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द २.२.४४.४
शतपदी कथासरित् ६.३.१३६
शतबल देवीभागवत ८.६(कुमुद पर्वत पर स्थित शतबल नामक वट वृक्ष की महिमा )
शतबलि वा.रामायण ४.४३(सीता अन्वेषण हेतु शतबलि वानर का उत्तर दिशा में गमन), ६.२७.४४(राम - सेनानी, सारण द्वारा रावण को शतबलि का परिचय), ६.४२.२५(शतबलि द्वारा लङ्का के दक्षिण द्वार पर युद्ध ) shatabali
शतबाहु स्कन्द ५.३.८३.३६(दुष्ट चरित्र वाले सुपर्वा - पुत्र शतबाहु का पिङ्गल द्विज से संवाद, हनूमतेश्वर तीर्थ में अस्थि क्षेप का माहात्म्य ), ५.३.८३.८१(,shatabaahu
शतभिषक् विष्णुधर्मोत्तर २.५७
शतमख स्कन्द ७.१.२३५(शतमखेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य )
, लक्ष्मीनारायण १.३१६, १.३७६
शतमूर्द्धा लक्ष्मीनारायण ३.८.५२(सुतल का राजा, अपर नाम सारङ्गवाहन, विष्णु द्वारा शतमूर्द्धा के शिरों का छेदन),
शतरुद्रिय ब्रह्माण्ड ३.४.११.३३(काम की भस्म से उत्पन्न बालक द्वारा शतरुद्रिय जप से भण्ड असुर बनना), ३.४.३४(षोडशावरणचक्र में रुद्रों की स्थिति), शिव ३.१+, स्कन्द १.२.१३.१४३(यस्य रुद्रस्य माहात्म्यं शतरुद्रीयमुत्तमम्॥ श्रृणुध्वं यदि पापानामिच्छध्वं क्षालनं परम्॥), ३.३.२१(रुद्राध्याय पठन से सुधर्मा का पुन: संजीवन ), ५.१.४६.२४ (अमरावती माहात्म्य श्रवण से शतरुद्रिय जप फल की प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१२२.२१(कोहनस्व तीर्थ का माहात्म्य – शतरुद्रिय जप से विप्र की यमभय से मुक्ति), महाभारत द्रोण २०२.२९(शिव के नाम) २०२.१४८, अनुशासन १४.२८५(उपमन्यु द्वारा शिवनामों द्वारा स्तुति), योगवासिष्ठ ६.१.६२ (स्वप्नशतरुद्रीये भिक्षुसंसारोदाहरणं नाम), shatarudriya
शतरूपा गर्ग १.५.२८(शतरूपा का अर्जुन - पत्नी सुभद्रा के रूप में अवतरण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१८४(शतरूपा का सुभद्रा रूप में अवतरण), ४.४५(शतरूपा द्वारा शिव विवाह में हास्य), मत्स्य ४.२४(गायत्री का रूप, सन्तानों के नाम), विष्णु १.७, शिव ७.१.१७(शतरूपा की ब्रह्मा के शरीर से उत्पत्ति ) shataroopaa/shataruupaa/ shatarupa
शतर्चि स्कन्द २.७.८, २.७.१०(हेमकान्त द्वारा शतर्चि ऋषि का अपमान )
शतवल्शा भागवत ५.१६(कुमुद पर्वत पर वट वृक्ष )
शतशलाक ब्रह्माण्ड ३.१०.२०
शतशीर्ष वामन ५७.७८(बाहुदा नदी द्वारा कुमार को प्रदत्त गण का नाम), ५८.६६(शतशीर्ष द्वारा असि से असुरों का संहार )
शतशृङ्ग गर्ग ३.९.३२(गोवर्धन/शतशृङ्ग पर्वत का कृष्ण के तेज से प्राकट्य), ब्रह्मवैवर्त्त २.७.१०१(राधा द्वारा शतशृङ्ग पर्वत पर तप का कथन), लिङ्ग १.५०.१०(शतशृङ्ग पर्वत पर यक्षों का वास), वराह ९५(शतशृङ्ग पर्वत पर महिष का वध), स्कन्द १.२.३९(भरत - पुत्र, कुमारी आदि ९ सन्तानों का पिता ) shatashringa
शतहृदा वा.रामायण ३.३
शताक्षी देवीभागवत ७.२८(दुर्गम दैत्य के वध हेतु शताक्षी देवी का प्राकट्य, शाकम्भरी उपनाम ), मार्कण्डेय ९१.४४, शिव ५.५०.३४ shataakshee/ shatakshi
शतानन्द गरुड ३.१८.७७(गायत्री, शेष, ब्रह्म के शतानन्द तथा वेधा, भारती आदि के एकानन्द होने का कथन), पद्म १.४६.८०शतानन्दा, १.६१(शतानन्द द्वारा शिष्यों से तुलसी स्तोत्र का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०५(गौतम - पुत्र, भीष्मक द्वारा कुल पुरोहित शतानन्द से रुक्मिणी के विवाह के सम्बन्ध में परामर्श), भविष्य ३.२.२५(शतानन्द का सत्यनारायण वृद्ध से परिचय, सत्यनारायण व्रत कथा), स्कन्द ३.१.४९.७०(शतानन्द द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ६.२०८(गौतम व अहल्या - पुत्र, माता की शिला रूप से मुक्ति के लिए पिता से अनुराध, मुक्त होने पर अहल्या के साथ तप, लिङ्ग स्थापना), ७.१.७(सप्तम कल्प में ब्रह्मा का नाम), वा.रामायण १.५०, १.५१(अहल्या व गौतम - पुत्र, विश्वामित्र के चरित्र/तप का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.६३.१०, ३.८१.७८, shataananda/ shatananda
शतानीक भविष्य १.१(राजा शतानीक द्वारा सुमन्तु से भविष्य पुराण श्रवण), स्कन्द ३.१.५(कौशाम्बी के राजा व विष्णुमती - पति शतानीक द्वारा शाण्डिल्य की कृपा से सहस्रानीक पुत्र की प्राप्ति, दैत्य से युद्ध में मरण ), कथासरित् २.१.६, ६.४.४२, ८.५.११३, shataaneeka/ shatanika
शतायु कथासरित् ७.७.५८
शतोढु लक्ष्मीनारायण २.१६२.२
शत्रु अग्नि १२१, १२५.४७(शत्रु नाशक कर्म का वर्णन), १३३.१६(पुत्तलिका द्वारा शत्रु नाश), १३८, १६७.३७(शत्रु विनाश हेतु कोटि होमात्मक ग्रह यज्ञ का वर्णन), २३३(राजा के शत्रु के प्रकारों का वर्णन), ३०६, ३१२(शत्रु नाश हेतु त्वरिता विद्या का वर्णन), गरुड १.१७७+ ( शत्रु के विरुद्ध अभिचार कर्म), नारद १.९०.१०९(शत्रु नाश हेतु पुत्तलिका होम का विधान), लिङ्ग २.५०.३२(शत्रु नाशक होम विधि), विष्णुधर्मोत्तर २.९७(शत्रु नाश कर्म), २१४५, २.१७७(शत्रु से युद्ध की विधि), महाभारत वन ३१३.९१(कः शत्रुर्दुर्जयः पुंसां कश्चव्याधिरनन्तकः।..क्रोधः सुदुर्जयः शत्रुर्लोभोव्याधिरनन्तकः।), कर्ण ४२.३२(शत्रुः शदेः शासतेर्वा श्यतेर्वा शृणातेर्वा श्वसतेः सीदतेर्वा। श्रमेः शुचो बहुशः सूदतेश्च प्रायेण सर्वं त्वयि तच्च मह्यम्।।), शान्ति १०३(शत्रुजयोपायादिप्रतिपादकेन्द्रबृहस्पतिसंवादः), अनुशासन ९८.३०(शत्रुओं पर अभिचार हेतु उपयुक्त ओषधि - ओषध्यो रक्तपुष्पाश्च कटुकाः कण्टकान्विताः। शत्रूणामभिचारार्थमथर्वसु निदर्शिताः।। ) shatru
शत्रुघाती वा.रामायण ७.१०८.१०(शत्रुघ्न - पुत्र, विदिशा का राजा )
शत्रुघ्न गरुड ३.२८.३९(शत्रुघ्न का अनिरुद्ध से तादात्म्य - शत्रुघ्न इति विख्यातः शत्रून्सूदयते यतः । अनिरुद्धः कृष्णपुत्रो प्रद्युम्नाद्योऽजनिष्ट ह ॥ ), देवीभागवत ५.२०.२१(देवों द्वारा महिषासुर के राज्य पर राजा शत्रुघ्न की स्थापना - अयोध्याधिपतिं वीरं शत्रुघ्नं नाम पार्थिवम् । सर्वलक्षणसम्पन्नं महिषस्यासने शुभे ॥ ), नारद १.७३, पद्म १.३८, ५.१०+, ५.१३, ५.३८(शत्रुघ्न द्वारा नर्मदा जल में योगिनी का दर्शन, अश्व की प्राप्ति), ५.४५(शत्रुघ्न का शिव से युद्ध, शत्रुघ्न द्वारा राम का स्मरण), ५.६७.३७(श्रुतकीर्ति - पति), ६.२४२.९६(राम - भ्राता, सुदर्शन का अंश - अनंतांशेन संभूतो लक्ष्मणः परवीरहा । सुदर्शनांशाच्छत्रुघ्नः संजज्ञेऽमितविक्रमः ।), भविष्य ३.४.१५.६१(विष्णु के शङ्ख का अवतार - सुदर्शनश्च भरतो हरेः शङ्खस्ततोऽनुजः ।।), ४.११, लिङ्ग २.५.१४८(हरि की सव्य बाहु का अवतार - तत्र मे दक्षिणोबाहुर्भरतो नाम वै भवेत्।। ।। शत्रुघ्नो नाम सव्यश्च शेषोऽसौ लक्ष्मणः स्मृतः।।), वराह १६३, १७८, विष्णुधर्मोत्तर १.२००(लवण - पुत्र), १.२१२.२२(अनिरुद्ध का अंश), १.२४२(शत्रुघ्न द्वारा लवण का वध), ३.१२१.५(मथुरा में शत्रुघ्न की पूजा का निर्देश - शत्रुघ्नं मथुरायां च दण्डकेषु च लक्ष्मणम् ।।भरतं केकयेष्वेव यमुनायां तथा बलिम् ।।), हरिवंश १.३४.३२(एकलव्य का उपनाम), १५४, वा.रामायण ६.४३.८(रावण - सेनानी, विभीषण से युद्ध), ६.१२८.६८(राम के अभिषेक में शत्रुघ्न द्वारा छत्र धारण करने का उल्लेख - छत्रं तस्य च जग्राह शत्रुघ्नः पाण्डुरं शुभम्।), ७.६२+ (शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर के वध का उद्योग - स त्वं हत्वा मधुसुतं लवणं पापनिश्चयम् । राज्यं प्रशाधि धर्मेण वाक्यं मे यद्यवेक्षसे ।। ), कथासरित् ६.८.१८२, shatrughna
शत्रुजित् गणेश २.२७.७(राजमन्त्री शत्रुजित् का राजा के दुष्ट पुत्र साम्ब द्वारा बन्धन), देवीभागवत ३.१४(ध्रुवसन्धि व लीलावती - पुत्र, अग्रज सुदर्शन की राज्य से च्युति व वध की चेष्टा, अन्त में मृत्यु ), मार्कण्डेय २०, लक्ष्मीनारायण १.३९२, shatrujit
शत्रुञ्जय भविष्य ४.८, हरिवंश २.९७.३६(ऐरावत - पुत्र), वा.रामायण २.३२(राम द्वारा सुयज्ञ को शत्रुञ्जय हस्ती का दान), लक्ष्मीनारायण २.१६.५७(शत्रुञ्जय पर्वत पर कङ्कताल दैत्यों की स्थिति), ३.१८३.१(
शत्रुभट कथासरित् ८.५.१११
शत्रुमर्दन मार्कण्डेय २६(मदालसा - पुत्र )
शत्रुहन्ता हरिवंश २.१०५.७१(शम्बर - सेनानी, प्रद्युम्न द्वारा वध )
शनि अग्नि १२३.८(शनि चक्र से फल विचार), १४२.६(शुभ कार्य में त्याज्य शनि के काल), गरुड ३.२२.२८(शनि के १० लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), देवीभागवत ९.२२(शनि का शङ्खचूड - सेनानी रक्ताक्ष से युद्ध), पद्म १.८, ६.३३(शनि द्वारा रोहिणी शकट भेदन का दशरथ द्वारा वर्जन, शनि - स्तोत्र), ब्रह्म १४, २.४८(शनि द्वारा अश्वत्थ व पिप्पल दैत्यों का नाश करना), २.५९, ब्रह्मवैवर्त्त ३.११(शनि का गणेश दर्शन के लिए आगमन, दृष्टि मात्र से गणेश के मस्तक का पतन), ब्रह्माण्ड १.२.१०.७६(रुद्र व सुवर्चला - पुत्र), १.२.११.२२(अत्रि व अनसूया - पुत्र), २.३.५९.४९(सूर्य व छाया - पुत्र श्रुतकर्मा का रूप), भविष्य १.३४.२३(शनि ग्रह का कुलिक व शङ्खपाल नागों से तादात्म्य), १.७९.२९, ३.४.१२, ३.४.२५.४०(शनि/मन्द की ब्रह्माण्ड के पद से उत्पत्ति, मन्द से धर्मसावर्णि मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.११४(पिप्पलाद को जन्म अवस्था में शनि द्वारा पीडा, पिप्पलाद द्वारा शाप तथा शनि की स्तुति), भागवत ८.१०.३३(शनि का नरकासुर से युद्ध), मत्स्य १५४.४३८, वायु २७.५०, ८३.५१, शिव ३.२५(पिप्पलाद पर शनि की दृष्टि होने से कठिनाईयां), ७.१.१७.३१(, स्कन्द १.२.१३.१५८(शतरुद्रिय प्रसंग में शनि द्वारा जगन्नाथ नाम से लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), ४.१.१७(छाया व सूर्य से शनि की उत्पत्ति, तप से लोकपालत्व प्राप्ति), ५.१.२१.२४शनिवार, ५.१.५६.२, ५.१.५६.५४(शनि के पर्यायवाची नाम), ५.२.५०, ५.३.४२(पिप्पलाद द्वारा शनि का भूमि पर पात, वरदान), ५.३.८४.२९, ६.९६(शनि द्वारा रोहिणी शकट भेदन का दशरथ द्वारा वर्जन), ६.१७४, ६.२५२.३७(चातुर्मास में शनि की शमी में स्थिति का उल्लेख), ७.१.४९(शनीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, शनि द्वारा रोहिणी की शकट का भेदन जानकर दशरथ द्वारा शनि की वर्जना, स्तुति), हरिवंश १.९, लक्ष्मीनारायण १.१०६, १.१८४, १.३३७.४२(शनि का शङ्खचूड - सेनानी रक्ताक्ष से युद्ध ), १.४४१.९१, १.४९६, १.५०७, कथासरित् ८.५.७१, द्र. महाशनि shani
शन्तनु गर्ग १.५.२६(क्षीर सागर का अंश), देवीभागवत १.२०, २.३(प्रतीप - पुत्र, गङ्गा व सत्यवती - पति, महाभिष का अवतार), २.५(सत्यवती के शन्तनु से विवाह की कथा), ४.२२.३५(समुद्र का अंश), पद्म १.५५(अमोघा - पति, पत्नी को ब्रह्मा से समागम की अनुमति), भविष्य ३.४.८(शन्तनु के राज्य में अनावृष्टि पर मेघशर्मा विप्र द्वारा वृष्टि कराना), भागवत ९.२२(प्रतीप - पुत्र, जन्मान्तर में महाभिष नाम, अग्रज देवापि से संवाद, गङ्गा भार्या से भीष्म पुत्र की प्राप्ति, सत्यवती भार्या से २ पुत्रों की प्राप्ति), मत्स्य १४, ५०.४१(प्रतीप - पुत्र शन्तनु की महिमा व गङ्गा आदि पत्नियां), विष्णु ४.२०.१३(शन्तनु के चरित्र की महिमा, अनावृष्टि पर ज्येष्ठ भ्राता देवापि से मिलन), स्कन्द ५.२.७१, ६.९०, हरिवंश १.१६, १.५३.२६(समुद्र का अवतार ) shantanu
Esoteric aspect of Shantanu
शपथ स्कन्द १.२.४४(शपथ के आठ प्रकार), द्र. दिव्य
शफ स्कन्द ५.३.९०.१००(स्वर्णशृङ्गी, रूप्यशिफा गौ दान का निर्देश), महाभारत कर्ण ३४.१०४(रुद्र द्वारा वृषभ के शफ को बीच में से चीरना ) shafa
शबर पद्म ५.२०, ५.२१, ७.१६, वराह १७०, स्कन्द १.१.३५, २.२.७(विश्वावसु नामक शबर द्वारा विद्यापति को नीलमाधव क्षेत्र के दर्शन कराना), ३.१.५, ३.१.३८, ३.३.१७(शबर द्वारा चिता - भस्म से लिङ्ग की पूजा, चिता भस्म के अभाव में पत्नी की भस्म से पूजा, पत्नी का पुन: सञ्जीवन, मुक्ति), ५.३.५६+ (मृग की अप्राप्ति पर शबर द्वारा पद्म ग्रहण व शिव का अर्चन, भृगु तुङ्ग पात से मृत्यु व स्वर्गगमन ), लक्ष्मीनारायण १.४५१, १.४६३, ३.९८.७७, कथासरित् २.१.७५, ४.२.६६, ६.६.५७, ९.५.२२१, १०.३.४५, १२.४.४, १२.२५.६५, १२.३१.१८, १८.४.४९ shabara
शबरी देवीभागवत १२.६.१४७(गायत्री सहस्रनामों में से एक), स्कन्द १.१.३५(पार्वती द्वारा शबरी रूप धारण कर शिव के निकट गमन, शिव का मोहित होना), ४.१.२९.१५९(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), वा.रामायण ३.७४(शबरी का मतङ्ग आश्रम में वास, शबरी द्वारा राम का सत्कार, दिव्य धाम गमन ), लक्ष्मीनारायण १.४२२, shabaree/ shabari
शबरी का आध्यात्मिक स्वरूप
शबल पद्म १.१९.२०९, मत्स्य ५.९(दक्ष व वीरिणी - पुत्र, नारद द्वारा शबलों में वैराग्य की उत्पत्ति ), वायु ६९.३२३, शिव ५.९, स्कन्द ५.३.८५.८४, shabala
शबलाश्व ब्रह्म १.१(दक्ष व वीरिणी - पुत्र, वैराग्य), भागवत ६.५(दक्ष व असिक्नी - पुत्र, नारद द्वारा वैराग्य का उपदेश ), विष्णु १.१५.९७, शिव २.२.१३, लक्ष्मीनारायण ४.४५.६४, shabalaashva
शब्द अग्नि ५९.७(वासुदेव आदि चतुर्व्यूह की शब्द, स्पर्श आदि के रूप में विवेचना), ३४३(शब्दालङ्कार का विवरण), ३४८.३, ३६०(पर्यायवाची शब्दों का वर्णन), ३६१(अव्यय वर्ग का निरूपण), ३६२(नानार्थ धारी शब्द वर्ग), ३६३(भूमि, वनौषधि, पशु व पक्षियों के पर्यायवाची शब्द वर्ग), ३६४(मनुष्य शरीर सम्बन्धी पर्यायवाची शब्द वर्ग), ३६५(यज्ञ सम्बन्धी पर्यायवाची शब्द वर्ग), ३६६(राज्य, कृषि व शूद्र से सम्बन्धित शब्द वर्ग), नारद १.४२.९१(शब्द/आकाश के ७ भेद), ब्रह्मवैवर्त्त २.५.२७(महेन्द्र द्वारा बृहस्पति से शब्द शास्त्र की पृच्छा का उल्लेख), भविष्य ३.३.३२.१४८(मण्डलीक राजा के हस्ती पञ्चशब्द द्वारा युद्ध में आह्लाद से राजा की रक्षा), ३.४.८.९४(नन्दी वृषभ के रूढि व योगरूढि नामक शब्द - द्वय का उल्लेख), ३.४.१९.५८(शब्द तन्मात्रा के अधिपति के रूप में गणेश का उल्लेख), भागवत ११.२१.३६शब्द ब्रह्म, विष्णुधर्मोत्तर ३.२(गीत, छन्द व व्याकरण), ३.८+ (पर्यायवाची शब्द), ३.१७(पर्यायवाची शब्द), शिव ५२६२८शब्दब्रह्म, ७.१.२९.४(शब्दात्मिका विभूति के स्थूल, सूक्ष्म आदि भेदों का कथन), स्कन्द १.१.३१.६३(काम, लोभादि की स्थिति में शब्द मात्र ब्रह्म बोध के सिद्ध न होने का कथन), महाभारत शान्ति १८४.३८(शब्द के ७ भेदों षड्ज, ऋषभ आदि का कथन), २२०पृष्ठ ४९९२शब्दार्थ, २३३.१३(प्रलय काल में मन द्वारा आकाश के शब्द गुण को ग्रसने का उल्लेख ), भरतनाट्य १४.४१(वर्णों की संख्या के अनुसार शब्दों की संज्ञाएं), shabda
शब्द, स्पर्श, रूप,रस,गन्ध अग्नि ८.४+(निवृत्ति आदि कलाओं में गन्ध आदि का प्राधान्य), ८८.५(शान्त्यतीत कला का विषय नभ होने तथा शब्द गुण होने का उल्लेख), द्र. तन्मात्रा
शम पद्म ४.२२.३२(शमन : यम का नाम), ५.८४.५८(पुष्प रूप शम), भागवत ११.१९.३६(शम की परिभाषा : बुद्धि का मुझमें लग जाना), मत्स्य १४५.४८(शम के लक्षण), वायु ५९.४३(शम, दम आदि की परिभाषा), ६.२६३.२२(योगवासिष्ठ १.२१.१०(अज्ञान रूपी निद्रा से मनुष्य रूपी हाथी को जगाने के लिए अङ्कुश रूप), २.११.५९(मोक्ष के द्वार के चार द्वारपालों में से एक), २.१३.५१(शम की प्रशंसा), ४.३५(उपशम ), ४.३७उपशम, ५.१+उपशम, ५.५प्रशम, महाभारत वन ३१३.८९, लक्ष्मीनारायण २.२४.५५०, कृष्णोपनिषद १६(सुदामा शम का रूप ) shama
शमी गणेश २.२६.११(व्याध व राक्षस द्वारा शमीपत्रों से वामन गणेश की अनायास पूजा करने के कारण मुक्त होना, शमीपत्रों का गणेश पूजा में महत्त्व), २.३२.१०, २.३३.३(कीर्ति द्वारा शमीपत्र द्वारा गणेश की पूजा पर गणेश का तुष्ट होना), २.३३.४५(शमीपत्र पूजा के पुण्य से क्षिप्रप्रसादन का निर्विष होना), २.३४.१०(शमीका : औरव व सुमेधा - कन्या, मन्दार - पत्नी, भ्रूशुण्डि मुनि का अपमान करने पर शाप प्राप्ति), २.३५.२०(शमी में गणेश के स्थिर होने का कथन), २.३५.३२(औरव के शमीगर्भ नाम का कारण), २.३७.१२(शमीपत्री द्वारा पूजन से देवों के जडत्व/जलत्व का निवारण), गरुड १.१०७.३३(प्रवास में मृत की पुत्तली में शिश्न में शमी रखने का निर्देश, अन्य अंगों में अन्य द्रव्य), नारद १.५६.२०९(शमी वृक्ष की धनिष्ठा नक्षत्र से उत्पत्ति), ब्रह्म २.३३(प्रियव्रत के यज्ञ में दानव आगमन पर हव्यवाड् का शरण - स्थल ), भविष्य ४.३१.१९(शमी मन्त्र), वामन १७(शमी की कात्यायनी से उत्पत्ति), ७९.२९(आतपत्र या रक्षा रूप), स्कन्द ३.१.२८.६४(पुरूरवा द्वारा त्यक्त अग्निस्थाली के स्थान पर शमीगर्भ-अश्वत्थ का उत्पन्न होना), ५.१.६३.५३ (आश्विन् शुक्ल दशमी में अष्टसिद्धिशमी देश में गणेश्वर पूजा का माहात्म्य), ६.२५२.३७(चातुर्मास में शनि की शमी वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.२४(शमी पुष्प की पुष्पों में आपेक्षिक महिमा), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९१(वृक्ष रूप धारी श्रीहरि के दर्शन हेतु शनि के शमी में प्रवेश का उल्लेख), २.२७.१०५(शमी की कात्यायनी से उत्पत्ति ) shamee/ shami
शमीक पद्म १.३४(ब्रह्मा के यज्ञ में चमसाध्वर्यु), भागवत १.१८(परीक्षित् द्वारा सर्प से शमीक ऋषि का अपमान, शमीक - पुत्र शृङ्गी द्वारा परीक्षित् को शाप), मत्स्य ४६(शूर व भोजा - पुत्र, ४ पुत्रों के नाम, तप से राजर्षित्व प्राप्ति), मार्कण्डेय ३, वामन ६९.१३२(शीला - पति, मातलि पुत्र की प्राप्ति ), स्कन्द २.१.११, ३.१.४१, shameeka/ shamika
शम्बर गणेश २.७६.१४(विष्णु व सिन्धु के युद्ध में शम्बर का मदन से युद्ध), गर्ग ७.३२.१२(हिरण्याक्ष के ९ पुत्रों में से एक), ७.४२.१८(पूर्व जन्म में परावसु गन्धर्व – पुत्र, अपराध से हिरण्याक्ष – पुत्र बनने का कथन), देवीभागवत ५.६.७(महिषासुर द्वारा युद्ध में शम्बर माया का प्रयोग, सुदर्शन चक्र से माया का नष्ट होना), पद्म १.६.५०(दनु - पुत्र), ब्रह्म १.९१(शम्बर द्वारा प्रद्युम्न के हरण का प्रसंग), २.६४(शम्बर द्वारा ऋषियों के सत्र की रक्षक प्रमदा रूपी माया का भक्षण), २.९०.८(शम्बर व मय के अश्विनौ से युद्ध का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.२, ४.११२(शम्बर द्वारा प्रद्युम्न हरण की कथा), भविष्य ३.३.२३.१११(स्वर्णवती देवी द्वारा युद्ध में शाम्बरी माया के छेदन का कथन), ३.३.२५.२८(पद्माकर द्वारा शाम्बरी माया का प्रयोग, इन्दुल द्वारा कामास्त्र से माया को भस्म करना), भागवत ८.६, ८.१०.२९(सोम विषयक देवासुर संग्राम में शम्बर का त्वष्टा से युद्ध), १०.५५, वामन ९(शम्बर के विमान वाहन का उल्लेख), ६६.४२(शिव को प्रेषित अन्धक का दूत), ६९.५९(शम्बर का द्वादश आदित्यों से युद्ध), विष्णु १.१९.१६(प्रह्लाद को नष्ट करने के लिए शम्बर द्वारा मायाओं का प्रयोग), ५.२७(शम्बर द्वारा प्रद्युम्न का हरण, प्रद्युम्न द्वारा शम्बर का वध), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.१(शम्बर की आवर्त उपमा), शिव २३१९, स्कन्द १.१.२१.११२(शम्बर द्वारा रति का हरण, मायावती नामकरण), १.२.१८(सूर्य द्वारा शम्बर अस्त्र का प्रयोग करके देव - दानव रूपों का विपर्यय करना), ५.२.७२, ५.३.८५.२८(शम्बर – पौत्र व त्रिलोचन – पुत्र कण्व द्वारा ब्रह्महत्या से मुक्ति पाने की कथा), ५.३.१२०.४(बाण – पुत्र, कंबु – पिता, कंबु तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१६९.३३(शम्बर द्वारा श्येन रूप धारण करके कामप्रमोदिनी कन्या का अपहरण), ५.३.१७२.१४(कन्या हरण से उर्वशी द्वारा शम्बर को दिए गए शाप का क्षय होने का कथन), हरिवंश २.१०४(शम्बर द्वारा प्रद्युम्न हरण का प्रसंग, शम्बर - पुत्रों के नाम), २.१०५(शम्बर के रथ का वर्णन), ३.५०.२२(बलि - सेनानी, रथ का वर्णन), ३.५३.११(शम्बर का भग से युद्ध ), महाभारत कर्ण १३.२२(कर्ण के सिर के कटने की शम्बर के सिर के कटने से उपमा), योगवासिष्ठ ३.१०६+शाम्बरिक, ४.२५, ४.२७, ४.३०, लक्ष्मीनारायण १.१८५, कथासरित् ८.२.३७६, १८.३.७५, द्र. वंश दनु shambara
शम्बूक पद्म १.२९, १.३५.८५(राम द्वारा तपस्यारत शम्बूक शूद्र के वध की कथा), शिव ३.५, ३.१८, वा.रामायण ७.७६- (शम्बूक शूद्र द्वारा स्वर्ग प्राप्ति हेतु तप, राम राज्य में अनिष्ट पर राम द्वारा वध ), कथासरित् ३.६.७८(अग्नि के शम्बूक(घोंघा) रूप में पर्वत में छिपने का उल्लेख ) shambooka/shambuuka/ shambuka
शम्भल गरुड २.५.११६(शम्बल मल का कथन), २.१६.८(प्रेत के संदर्भ में शम्बल की भूमिका), गर्ग ९.७.१४(हरिमंदिर में शम्भलग्राम के ध्यान का निर्देश), लक्ष्मीनारायण १.६४.४३(शम्बल : प्रेतपुरी का अधिपति ), २.८३.९५, ३.१०६.५२शम्भलवार, shambhala
शम्भु पद्म ५.१०४(शिव द्वारा शम्भु ब्राह्मण का रूप धारण, अयोध्या में राम से पुराण, शकुन आदि का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.४९(शम्भु से मस्तक की रक्षा की प्रार्थना), ४.९४.१०८(शम्भु के ज्ञान स्वरूप होने का उल्लेख), भविष्य ३.२.२२शम्भुदत्त, ३.४.२२(शम्भु का हरिप्रिय रूप में जन्म), भागवत ९.६.१, मत्स्य १५३.४४(एकादश रुद्रों में से एक, तारक - सेनानी गज से युद्ध), वराह ३६, वामन ६९.५३(अन्धक - सेनानी, ब्रह्मा से युद्ध), ७०(, ९०.१७(ओजस तीर्थ में विष्णु का शम्भु नाम से वास), वायु ६७, ९०.७(मणिमति ह्रद में विष्णु का शम्भु नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.१८०(हंस रूपी विष्णु द्वारा शक्र - पीडक शम्भु का वध), स्कन्द २.७.१९.२१(शम्भु के गिरिजा देवी से श्रेष्ठ व बुद्धि से अवर होने का उल्लेख), ३.२.२३, वा.रामायण ७.१७.१४(शम्भु दैत्य द्वारा कुशध्वज की हत्या ) shambhu
शम्या ब्रह्म २.३३(शमीतीर्थ में प्रियव्रत के यज्ञ में हिरण्यक दानव का आगमन, देवों का वृक्षों में छिपना), शिव २.५.८.११(शिव रथ में कलाओं का शम्या बनना ), स्कन्द ५.३.२८.१७(शिव के रथ में शम्या में वरुण-नैर्ऋत की स्थिति का उल्लेख), shamyaa
शयन अग्नि १२१.५४(विष्णु के शयन व प्रबोधन हेतु तिथि विचार), ३४८.११, पद्म १.२५(आदित्य शयन व्रत), १.२६(रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत), १.२९, ६.५३(हरिशयनी एकादशी माहात्म्य), ६.१०८(अनन्त शयन तीर्थ में चोल राजा का आगमन, विष्णुदास से भक्ति की स्पर्द्धा), भविष्य ४.७०(देवशयन द्वादशी व्रत, चातुर्मास में वर्ज्य - अवर्ज्य), ४.२०६(रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत), मत्स्य ५५(आदित्य शयन व्रत विधि व माहात्म्य), ५७(रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत विधि, चन्द्रमा का न्यास), ६०(सौभाग्य शयन व्रत), ७१(अशून्य शयन द्वितीया व्रत, गोविन्द की पूजा, शय्या दान), वामन १६(देवशयन तिथियां), विष्णुधर्मोत्तर २.९४, स्कन्द २.२.३६, ३.३.१२.२२(शयन स्थिति में अव्यय शिव से रक्षा की प्रार्थना), ५.३.६७.४३, हरिवंश १.५०(विष्णु शयन), ३.९(नारायण का एकार्णव में शयन), लक्ष्मीनारायण २.२७, २.१०१, २.१२७.८६(देहेन्द्रियादि शयन की अपेक्षा वासना शयन की आवश्यकता का उल्लेख ), द्र. देवशयन shayana
शय्या अग्नि ३४२.२६(कविशक्ति को प्रस्फुटित करने वाली मुद्रा का नाम), गरुड २.२.७४(शय्याहर्ता के क्षपणक बनने का उल्लेख), ३.११.१(विष्णु के निद्रागत होने पर लक्ष्मी की शय्या रूप में स्थिति का कथन), ३.२९.६४(शय्या काल में संकर्षण के ध्यान का निर्देश), गर्ग ५.१७.५(शय्योपाकरिका गोपियों की कृष्णविरह पर प्रतिक्रिया), नारद २.२२.७९(त्रिरात्रोपवासी के लिए कांचन शय्या दान का निर्देश), भविष्य ४.१८४(शय्या दान विधि, जीवित व मृत - शय्या दान), शिव ५.२०.२३(पांच राजैश्वर्यविभूतियों में से एक), स्कन्द ५.३.५०.२०(शय्यादि दान का फल), ५.३.५६.१२०(यानशय्याप्रद द्वारा भार्या प्राप्त करने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१६.१३(चित्तवृत्तियों के लिए अनल्पकल्पनातल्प ), कथासरित् १२.१५.३८, shayyaa
शर पद्म १.४०.९६( शरवृष्टि - मरुतों में से एक), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.७६(नरक में शरकुण्ड प्रापक दुष्कर्म), २.३१.१५(दत्तापहारी के नरक में शरशय्या प्राप्त करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.६.५६(शर धातु का शीर्ण अर्थ), भागवत ११.७.३४(शरकृत : दत्तात्रेय - गुरु), मत्स्य ११शरवण , वराह २१.३५(सात स्वरों के शर बनने का उल्लेख), वामन १७ (शरस्तम्ब की शेषनाग से उत्पत्ति), विष्णु १.२२.७३(विष्णु के शर : ज्ञान व कर्म मयी इन्द्रियों के प्रतीक), विष्णुधर्मोत्तर ३.३७.१५(क्रुद्ध व वेदना की स्थिति में नेत्रों के शाराकृति होने का उल्लेख), स्कन्द ६.१८५(अतिथि द्वारा शरकार से एकचित्तता की शिक्षा), हरिवंश २.१२७.९(गरुड को देखकर शररूप महासर्पों का अनिरुद्ध की देह से निकलकर प्रकृति के शर बनना), वा.रामायण ७.१६.२(रावण द्वारा रौक्म शरवण के दर्शन), योगवासिष्ठ ४४८शरलोमा, लक्ष्मीनारायण १.३७०.९६(नरक में शरकुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), १.४९१.२(कुष्ठग्रस्त शर नामक विप्र द्वारा सूर्य आराधना से कुष्ठ से मुक्त होने की कथा), २.२७.१०५(शरस्तम्ब की नाग से उत्पत्ति ), कथासरित् ७.५.१६९शरवेग , १८.२.२७७शरवेग, द्र. कुष्ठिशर, पराशर, बृहच्छर shara
शरण वा.रामायण ६.१८(राम द्वारा शरणागत की रक्षा के महत्त्व का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.११६.३०(शरणागति के ६ भेदों का कथन ) sharana
शरद ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.८२(शारदीय पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य), भागवत १०.२०.३२(व्रज में शरद ऋतु का वर्णन), वामन २, विष्णु ५.१०(व्रज में शरद ऋतु का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.२४४(राम द्वारा शरद ऋतु का वर्णन), हरिवंश २.१६(व्रज में शरद ऋतु का वर्णन), २.१९.५१(इन्द्र द्वारा शरद ऋतु का वर्णन), वा.रामायण ४.३०(राम द्वारा शरद ऋतु का वर्णन ) sharada
शरदण्डा वा.रामायण २.६८.१५(शरदण्डा नदी )
शरद्वसु शिव ३.५,
शरद्वान मत्स्य ५०.८( अहल्या व शरद्वान से शतानन्द के जन्म का उल्लेख), १४५.९५(शरद्वान् द्वारा सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख), हरिवंश १.३२.३२(शरद्वान व अहल्या से शतानन्द ऋषि के जन्म का उल्लेख), १.३२.३५(शतानन्द, सत्यधृति व कृप-कृपी की शारद्वत संज्ञा)
शरभ गरुड ३.२९.१५ (पर्जन्य का शरभ नाम - एतावता शरभाख्यो महात्मा स चान्तरो स तु पर्जन्य एव ॥ शश्वत्केशा यस्य गात्रे खगेन्द्र प्रभास्यन्ते शरभाख्यो पयोतः ।), देवीभागवत १२.६.१४७(शरभा : गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म ६.१८९.८ (राजा के सेनानी सरभभेरुंड का हय बनना, गीता के १५वें अध्याय से मुक्ति), ६.२०१.१९+ (ललिता -पति, देवल से पुत्र प्राप्ति हेतु परामर्श, पार्वती की कृपा से शिवशर्मा पुत्र की प्राप्ति), ६.२०४.१ (शरभ वैश्य द्वारा अम्बिका की कृपा से पुत्र प्राप्ति), ब्रह्माण्ड २.३.७.२०७ (व्याघ्र वानर - पुत्र, शुक - पिता), लिङ्ग १.९६.६८ (नृसिंह के घोर रूप के निग्रह के लिए वीरभद्र द्वारा शरभ रूप धारण, विष्णु द्वारा भेरुण्ड रूप धारण(?) - कंठे कालो महाबाहुश्चतुष्पाद्वह्निसंभवः।।युगांतोद्यतजीमूत भीमगंभीरनिःस्वनः।।), वामन ३६.३१ (शरभ रूपी शिव द्वारा नृसिंह के गर्व का हरण - विष्णुश्चतुर्भुजो जज्ञे लिङ्गाकारः शिवः स्थितः।), शिव ७.१.१७.२४ (आङ्गिरस व स्मृति - पुत्र, आग्नीध्र – भ्राता - स्मृतिश्चांगिरसः पत्नी जनयामास वै सुतौ ॥आग्नीध्रं शरभञ्चैव तथा कन्याचतुष्टयम् ॥), स्कन्द ३.१.४९.३८ (शरभ द्वारा रामेश्वर की स्तुति - अंतःकरणमात्मेति यदज्ञानाद्विमोहितैः ।। भण्यते रामनाथं तमात्मानं प्रणमाम्यहम् ।।), ५.२.४४.१५(शरभ नामक मेघ की पश्चिम दिशा में नियुक्ति का उल्लेख - शरभः पश्चिमामाशां सहस्राधिपतिः कृतः ।।), हरिवंश ३.५३.१२ (शरभ व शलभ दैत्यों का सोम से युद्ध - शरभः शलभश्चैव दैत्यानां चन्द्रभास्करौ । प्रयुद्धौ सह सोमेन शैशिरास्त्रेण धीमता ।।), योगवासिष्ठ ५.१४.२४ (मत्त मेघों द्वारा शरभ के नाश का उल्लेख - सिंहोऽभिभवति व्याघ्रं शरभः सिंहमत्ति च । शरभो नाशमायाति मत्तमेघविलङ्घने ।।..), वा.रामायण १.१७.१५ (वानर, पर्जन्य का अंश - शरभं जनयामास पर्जन्यस्तु महाबलः ॥), ४.६५.४ (शरभ वानर की प्लवन शक्ति का कथन - शरभो वानरः तत्र वानरान् तान् उवाच ह । त्रिंशतं तु गमिष्यामि योजनानाम् प्लवंगमाः ॥), ६.१७.४३ (शरभ वानर द्वारा विभीषण शरणागति विषयक विचार व्यक्त करना - प्रणिधाय हि चारेण यथावत् सूक्ष्म बुद्धिना । परीक्ष्य च ततः कार्यो यथा न्यायम् परिग्रहः ॥), ६.२६.३५ (सारण द्वारा रावण को शरभ का परिचय देना - महाबलो वीतभयो रम्यम् साल्वेय पर्वतम् ॥ राजन् सततम् अध्यास्ते शरभो नाम यूथपः ।), ६.३०.२६(वानर, वैवस्वत यम के ५ पुत्रों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.३८०.४९ (पुष्कर में परशुराम द्वारा शरभ रूप धारी शिव का दर्शन), २.३३.६०(कृष्ण द्वारा शरभ रूप धारण कर व्याघ्र रूप धारी वल्लीदीन असुर का वध), २.११६.८१(राजा द्वारा गवय की हिंसा करने पर ऋषि द्वारा राजा को शरभ बनने का शाप, दत्तात्रेय व कृष्ण द्वारा शरभ की मुक्ति ), ३.८.८५वीरशरभ, कथासरित् ८.५.१२२(शरभानना योगिनी का कथन), द्र. सरभ sharabha
Comments on Sharabha
शरभङ्ग वराह १५१.५०(शरभङ्ग कुण्ड का माहात्म्य), वा.रामायण ३.४, ३.५(शरभङ्ग मुनि के समीप राम का आगमन, शरभङ्ग का ब्रह्मलोक गमन), लक्ष्मीनारायण १.३४२(शरभङ्ग कुण्ड तीर्थ व शरभङ्गा नदी का उल्लेख ) sharabhanga
शरमा लक्ष्मीनारायण १.५४३.७८(दक्ष द्वारा विश्वेदेवों को प्रदत्त ८ कन्याओं में से एक )
शरवण वामन ९०.२१(शरवन में विष्णु का स्कन्द नाम )
शरीर अग्नि २१४.३२(शरीर में पञ्च देवों की स्थिति), २४३(शरीर के शुभ लक्षणों का वर्णन), २४४(स्त्री शरीर के लक्षण), ३६४(शरीर के अङ्गों के पर्यायवाची शब्दों का वर्ग), ३६९.२८(शरीर में माता व पिता के अवयव, सत्त्वादि गुण, वात - पित्त आदि प्रकृति के अनुसार लक्षण), ३७०(शरीर के अवयवों का वर्णन), कूर्म १.७.४२(सृष्टि के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा शरीर त्याग से रात्रि, सन्ध्या आदि का निर्माण), गरुड १.६३(शरीर के प्रशस्त - अप्रशस्त लक्षण), १.६५(सामुद्रिक लक्षणों का कथन), १.६८+ (बल दैत्य के शरीर से रत्नों की उत्पत्ति), २.४.१४०(शरीर में अङ्गों में विभिन्न द्रव्यों का न्यास), २.५.६८/२.१५.६८(मृतक संस्कार के पश्चात् १० दिनों में शरीर निर्माण का वर्णन), २.२०.२६/२.३०.२६(त्रिदेवों की शरीर में स्थिति), २.२२(शरीर में द्वीप, सागर, ग्रहों की स्थिति), २.२२.५२/२.३२.५२(शरीर में १४ लोकों की स्थिति), २.३०.४५/२.४०.४५(प्रेत कार्य हेतु पुत्तली निर्माण), गर्ग ३.८(गोवर्धन पर्वत के अङ्गों में तीर्थों की स्थिति, गोवर्धन पर्वत का कृष्ण के वक्ष स्थल से प्राकट्य), देवीभागवत ५.८(देवों के तेज से देवी के शरीर की उत्पत्ति), ७.३३(हिमालय द्वारा परमेश्वरी के विराट् रूप का दर्शन), ८.१७(शिशुमार चक्र पर नक्षत्रों व ग्रहों की स्थिति), नारद १.४२(पञ्चभूतों व तन्मात्राओं का संघात मात्र?, शरीर में जीव की स्थिति), पद्म १.३(ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि), १.४८.१५७(गौ के शरीर में देवों की स्थिति), २.६५, ३.६२(पुराण रूपी अङ्गों से निर्मित शरीर), ६.६.२४(शरीर में रत्नों का न्यास), ब्रह्म १.५८(शरीर शोधन विधि, नारायण मन्त्र का न्यास), १.१०८, ब्रह्माण्ड २.३.१.५७(ब्रह्मा के शरीर के अङ्गों से सृष्टि), २.३.७२.४७, ३.४.४३.५३, भविष्य १.२४+ (कार्तिकेय - प्रोक्त शरीर के शुभाशुभ लक्षण), ३.४.२५.३४(ब्रह्माण्ड शरीर से ग्रहों की उत्पत्ति), भागवत २.२(शरीर का अतिक्रमण करके सूक्ष्म शरीर की यात्रा), ३.१२(ब्रह्मा के शरीर से छन्दों की सृष्टि), ४.२९(पुरञ्जन नगर रूपी शरीर में रथ का रूपक), ७.१२.२३(शरीर के अवयवों का तन्मात्राओं आदि में लय), ८.५.३६(विराट् शरीर से सृष्टि), ८.७.२६(शिव शरीर का रूप - अग्निर्मुखं तेऽखिलदेवतात्मा क्षितिं विदुर्लोकभवाङ्घ्रिपङ्कजम्), ८.२०.२१(वामन से विराट रूप), १०.४०.१३(कृष्ण का विराट् रूप), मत्स्य ३.१०(ब्रह्मा के शरीर से काम, क्रोध आदि की उत्पत्ति), मार्कण्डेय ३, ८२, लिङ्ग १.१७(शिव शरीर में ओङ्कार की स्थिति), १.८६.१३५(पञ्च भूतों के अनुसार शरीर का विभाजन), वराह १७, ३८.२(, ३९, २०६(गौ के शरीर में देवों की स्थिति), वामन ३१(वामन शरीर का विराट् रूप, शरीर में देवों की स्थिति), ९१(वामन शरीर का विराट् रूप), वायु ६.१५(वराह शरीर का यज्ञ रूप), ५७.७७(चक्रवर्ती पुरुष के शरीर के लक्षण), ५९.८(मनुष्यों व पशुओं के शरीरों का उत्सेध), १०४.७५(शरीर में व्यास - द्रष्ट तीर्थ स्थानों आदि की स्थिति), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९, २.८(शरीर के लक्षण), २.११५(शरीर के अवयवों का वर्णन), शिव ६.१५, स्कन्द १.१.१७(वृत्र के शरीर का भूमि पर पतन), १.२.४२, १.२.५०(भास्कर द्वारा कमठ से शरीर के लक्षण सम्बन्धी प्रश्न), २.१.४(पद्मावती के शरीर के लक्षण), ३.१.६(दुर्गा के शरीर का देवों के तेज से निर्माण), ३.२.६(धनु के शरीर में विश्व की प्रतिष्ठा), ४.१.११(नारद - प्रोक्त शरीर के लक्षण), ४.१.३३.१६८(लिङ्गों से निर्मित शिव शरीर), ४.१.३७(स्त्री शरीर के लक्षण), ५.३.३९.२८(कपिला गौ के शरीर में देवों की स्थिति - मुखे ह्यग्निः स्थितो देवो दन्तेषु च भुजङ्गमाः । धाता विधाता ह्योष्ठौ च जिह्वायां तु सरस्वती ॥), ५.३.८३.१०१(गौ के शरीर में देवों की स्थिति - शृङ्गाग्रेषु महीपाल शक्रो वसति नित्यशः ॥ उरः स्कन्दः शिरो ब्रह्मा ललाटे वृषभध्वजः ।), ५.३.१९३(नर - नारायण का विराट् रूप, अप्सराओं द्वारा स्तुति), ६.२५८.३७(सुरभि के शरीर में देवों की स्थिति - पादास्ते वेदाश्चत्वारः समुद्राः स्तनतां ययुः । चंद्रार्कौ लोचने यस्या रोमाग्रेषु च देवताः ॥), ६.२६२(विराट् विष्णु का शरीर), हरिवंश २.११(कृष्ण के शरीर की शोभा - काकपक्षधरः श्रीमाञ्छ्यामः पद्मदलेक्षणः । श्रीवत्सेनोरसा युक्तः शशाङ्क इव लक्ष्मणा ।।), २.२५.२२(अक्रूर द्वारा द्रष्ट कृष्ण शरीर - किरीटलाञ्छनेनापि शिरसा छत्रवर्चसा। कुण्डलोत्तमयोग्याभ्यां श्रवणाभ्यां विभूषितः ॥), ३.१०(हरि के शरीर से ऋत्विजों की उत्पत्ति), ३.२६.५०(हयग्रीव के शरीर में देवों का निवास - शिरोमध्ये महादेवो ब्रह्मा तु हृदये स्थितः ।।), महाभारत शान्ति ४७.६१, २५४, ३२०.११३, आश्वमेधिक ३५.२०, ४३.५१, ४५, ४७,योगवासिष्ठ १.१८.५(शरीर के अवयवों की वृक्ष के अवयवों से उपमा - भुजशाखो घनस्कन्धो द्विजस्तम्भशुभस्थितिः ।), १.२२.२८(शरीर रूपी लता के अङ्ग रूपी पत्र ; शरीर कदली, मृत्यु हस्ती), ३.७५(सूची का शरीर), ४.२३(नगर रूपी शरीर), ६.१.३२(शरीर पात), ६.२.९५(पांच तत्त्वों के अनुसार वसिष्ठ के शरीर), वा.रामायण ५.२५(हनुमान द्वारा सीता को राम के शरीर के लक्षणों का कथन), ६.४८.९(सीता के शरीर के लक्षण - केशाः सूक्ष्माः समा नीला भ्रुवौ चासङ्गते मम ।), लक्ष्मीनारायण १.४६.२८(शरीर के अवयवों में देवों की स्थापना - अशनापिपासे तालूं जिह्वां वाचं हुताशनम् ।), १.५८(शरीर में विभूति धारण की विधि), १.६८(शरीर के चिह्नों/लक्षणों के अनुसार प्रकृति का ज्ञान), १.७४.४२(शरीर में विराट् की स्थिति, ग्रह न्यास, वायु न्यास), १.७७(नारायण बलि हेतु शरीर के अङ्गों में पिण्ड दान), १.३९८, २.१०.२२, २.२०.७६(कृष्ण के शरीर के चिह्नों का वर्णन), २.६७.११५(शरीर में दिव्य चिह्न ), २.६८.७५,२.२९.२४, २.१४१.८९, २.१४३.९९, २.१५८.५२, २.२२२, २.२२८.१०, २.२९१.६०, २.२९२.३८, ३.४९.७१, ३.६९.७०, ३.११५.७७, ३.१४२.१३, ३.१६३, ३.१७१, ३.१८६.५५, ३.२१५.६२, ३.२३५.११८, shareera/ sharira
शर्करा नारद १.११६.२१(शर्करा सप्तमी व्रत की विधि), पद्म १.२१.८६, १९३(१० शैलों में से एक शर्करा शैल निर्माण व दान विधि), १.२१.२६१(शर्करा सप्तमी), ब्रह्म १.१२०.१२९(उर्वशी द्वारा तपोरत ब्राह्मण को शर्करावृत शकट दान का प्रस्ताव, ब्राह्मण द्वारा अस्वीकृति आदि), भविष्य ४.४९(शर्करा सप्तमी व्रत), ४.२०४(शर्कराचल दान विधि), मत्स्य ७७(शर्करा सप्तमी व्रत विधि), ९२(शर्करा शैल दान विधि), स्कन्द ४.२.६५.४(शर्करेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.८.६९(शर्करा दान से द्रव्य वृद्धि का उल्लेख), ५.३.२६.१४७(चैत्र शुक्ल तृतीया व्रत के संदर्भ में कार्तिक में शर्करा पात्र दान का निर्देश), लक्ष्मीनारायण ४.४१.१(शर्करा पत्तन में लक्ष्मीनारायण संहिता कथा का आरम्भ), ४.४२, ४.५७.१(शर्करापुर में कथा श्रवण से षण्ढों की मुक्ति का वृत्तान्त), ४.५८.६(शर्करा नगर में कथा श्रवण से यवसन्ध पापी की मुक्ति का वृत्तान्त), ४.७८.२(शर्करा नगर में कथा के समापन का वृत्तान्त), sharkaraa
शर्मवती लक्ष्मीनारायण १.४९०
शर्मा द्र. अग्निशर्मा, क्षेत्रशर्मा, गिरिशर्मा, चण्डशर्मा, चन्द्रशर्मा, चित्रशर्मा, जयशर्मा, दत्तशर्मा, देवशर्मा, धनशर्मा, धर्मशर्मा, धातृशर्मा, नागशर्मा, नाथशर्मा, न्यायशर्मा, पितृशर्मा, पुरीशर्मा, बालशर्मा, भगशर्मा, भवशर्मा, भावशर्मा, मित्रशर्मा, मुनिशर्मा, मेघशर्मा, यक्षशर्मा, यज्ञशर्मा, रुद्रशर्मा, वसुशर्मा, वनशर्मा, विश्वशर्मा, विष्णुशर्मा, वीरशर्मा, वेदशर्मा, शक्रशर्मा, शिवशर्मा, सुशर्मा, सोमशर्मा, हरिशर्मा
शर्मिष्ठा पद्म २.७९, भागवत ९.१८(वृषपर्वा - पुत्री, ययाति से विवाह, देवयानी से कलह, शर्मिष्ठा के पुत्र पूरु द्वारा राज्य), मत्स्य २७(वृषपर्वा - पुत्री, देवयानी से कलह, कूप में प्रक्षेप), २९(पिता के आदेश से शर्मिष्ठा का देवयानी की दासी बनना), ३०, ३१(शर्मिष्ठा का ययाति से समागम, पुत्र की प्राप्ति), स्कन्द ६.६१+ (शर्मिष्ठा तीर्थ का माहात्म्य, विष कन्या का पार्वती की आराधना से पार्वती - सखी शर्मिष्ठा? बनना ), द्र वंश दनु sharmishthaa
शर्याति गर्ग ६.९(शर्याति द्वारा स्वपुत्रों को राज्य का स्वामित्व देना, आनर्त्त नामक पुत्र को निर्वासित करना), देवीभागवत ७.२, ७.३+ (च्यवन व सुकन्या की कथा), १०.१३(वैवस्वत मनु - पुत्र, भ्रामरी देवी की उपासना से रुद्रसावर्णि मनु बनना), पद्म ५.१६, ब्रह्म १.१०(नहुष - पुत्र), २.६८(स्थविश्व - पति, पुरोहित मधुच्छन्दा से संवाद, राजा व पुरोहित के मरण के मिथ्या समाचार से पुरोहित - पत्नी का मरण, शर्याति का अग्नि में प्रवेश आदि), ब्रह्माण्ड २.६३?, भविष्य १.१९, भागवत ९.३.२७(शर्याति वंश), मत्स्य ११, १२.२१(वैवस्वत मनु - पुत्र, सुकन्या व आनर्त्त - पिता), स्कन्द २.४.७(दुष्ट चरित्र वाले शर्याति को गृध्र योनि की प्राप्ति ), ५.२.३०, ७.१.२८२, हरिवंश १.१०, लक्ष्मीनारायण १.२१७, १.३९०, द्र. मन्वन्तर sharyaati/ sharyati
शर्व देवीभागवत ७.३८.२३(शर्वाणी की मध्यम क्षेत्र में स्थिति), ब्रह्माण्ड १.२.१०.३८(रुद्र का नाम, शरीर में भूमि/अस्थि का रूप), १.२.१०.७८(रुद्र, विकेशी - पति, अङ्गारक - पिता), वामन ९०.२८(दक्षिण गोकर्ण में विष्णु का शर्व नाम ), शिव ३.५.७(१२वें द्वापर में शिव अवतार के ४ पुत्रों में एक), स्कन्द ५.२.३६.३२(शर्व द्वारा मृकण्ड को अयोनिज पुत्र का वरदान), कथासरित् १.६.१२३(शर्ववर्म द्वारा सातवाहन नृप को छह मास में ही विद्याओं की शिक्षा देने का कथन), sharva
शर्वरी भागवत ६.६.१४(दोष वसु की भार्या, शिशुमार-माता), sharvaree/ sharvari
शल गर्ग १.५.२७(दिवोदास का अंश), ५.१२.१(उतथ्य - पुत्र, पिता के शाप से मल्ल बनना), पद्म ७.३.६८(राजपुत्रों के पूर्व जन्म की योनि, गङ्गा में पतन से मुक्ति ), ब्रह्म १.९.३४, भविष्य ३.३.३२, महाभारत उद्योग १६०.१२३, द्र. दु:शला shala
शलभ गणेश २.८९.२२(गणेश द्वारा शलभ असुर का वध ), वामन ६९, लक्ष्मीनारायण १.२५०, २.१८३.४५, ४.१०१.१११शलभा, द्र. शरभ shalabha
शलाका लक्ष्मीनारायण १.३४०.२०,
शल्य अग्नि ९२(भूमि परीक्षा में शल्य ज्ञान की विधि), गर्ग ७.२०.३१(शल्य का प्रद्युम्न - सेनानी बृहद्भानु से युद्ध), देवीभागवत ४.२२.४२(प्रह्लाद का अंश), भविष्य ३.३.१३.९४(कलियुग में शल्य का नेत्रसिंह रूप में अवतार), ३.३.३२.४८(कलियुग में शल्य का नेत्रसिंह रूप में जन्म), विष्णुधर्मोत्तर ३.९५(वास्तु में शल्य का उद्धार ), स्कन्द ५.३.२२.३२, महाभारत उद्योग १६०.१२२, लक्ष्मीनारायण १.५६४, ३.२३१शतशल्या, द्र. कृतशल्य, वंश दनु, विशल्या shalya
शव
अग्नि १३७,
१५७+
(शव
दाह कर्म),
नारद
१.८५.२२
(शवस्य
हृदये
स्थित्वा
निर्वासाः
प्रेतभूमिगः
।।
अर्कपुष्पसहस्रेणाभ्यक्तेन
स्वीयरेतसा
।। ),
पद्म
२.९३(सुबाहु
सिद्ध द्वारा कर्म रूपी शव
का भक्षण),
२.९४.८(कर्म
एव
प्रधानं
यद्वर्षारूपेण
वर्त्तते),
२.९७.९४(वासुदेव
महास्तोत्रं
महापातकनाशनम्।
यदा
त्वं
श्रोष्यसे
पुण्यं
तदा
मोक्षं
प्रयास्यसि॥),
२.९८.४०
(वासुदेव
स्तोत्र),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.१८.७(
मालावती
द्वारा नारद गन्धर्व के शव
को जीवनदान का उद्योग -
वन्दे
तं
परमात्मानं
सर्वकारणकारणम्
।।
विना
येन
शवाः
सर्वे
प्राणिनो
जगतीतले
।। ),
वराह
१३२
(मृतकस्पर्शनप्रायश्चित्तं),
स्कन्द
३.१.११
(कपालाभरणोनाम
राक्षसोऽभूत्पुरा
द्विजाः
।।...शवभक्षणनामा
तु
तस्यासीन्मंत्रिसत्तमः
।।),
४.१.४५.३८(शवहस्ता
:
६४
योगिनियों में से एक ),
हरिवंश
३.८३.१(पिशाच
द्वारा भगवान् को नैवेद्य
रूप में ब्राह्मण शव का अर्पण),
योगवासिष्ठ
६.२.१३४(शवोपाख्याने
देवपरिदेवनवर्णनं
),
६.२.१३५(
शवोपशमो
नाम
अध्यायः),
६.२.१३६(
भगवन्सर्वयज्ञेश
स्वाहाधिप
हुताशन
।
किमिदं
नाम
संपन्नं
कथ्यतां
किमिदं
शवम्
।।),
६.२.१५८,
वा.रामायण
४.२५,
७.७७,
लक्ष्मीनारायण
१.७०,
२.५.८८
(कुक्षेस्तस्याऽभवद्रक्तनामा
पुत्रस्तदाऽशुभः
।
शवाख्यस्तु
च
मलिनः
पूयाख्यश्च
ततोऽभवत्
।।),
२.२९.१०(शवे
देहे
भवश्चात्मा
शावस्तत्रैव
दीनवत्
।
वर्तते
ज्ञानवृत्त्येति
शावदीनाऽभिधानवान्
।।)
,
३.२६.३
(ब्रह्मणः
पृष्ठनिम्नाऽधोभागान्मलिमसोऽसुरः
।।
हल्लकाऽऽख्यो
बभूवाऽपि
शवभक्षो
भयंकरः
।),
३.५१.११८
(सुबाहु
द्वारा स्वशवभक्षण की कथा -
यदि
ते
क्षुत्प्रतीकारो
ह्यभीष्टो
वर्तते
तदा
।
याहि
नन्दनसरसि
स्नात्वा
भुंक्ष्व
शवं
निजम्
।।),
कथासरित्
१२.६.२८६,
१८.२.२६,
१८.२.२१३,
shava
माश
७.३.१.२९,
९.४.४.३
शश
नारद १.९१.६३(शशिनी
:
ईशान
शिव की प्रथम कला),
पद्म
३.३.१६(सुदर्शन
द्वीप के २ अंश पिप्पल व २ अंश
शश होने का उल्लेख
-
यथा
हि
पुरुषः
पश्येदादर्शे
मुखमात्मनः
।एवं
सुदर्शनो
द्वीपो
दृश्यते
चक्रमंडलः।
द्विरंशे
पिप्पलस्तस्य
द्विरंशे
च
शशो
महान् ),
३.३.१९(भूगोल
के संदर्भ में भूमि के अवकाश
शश और पिप्पल का उल्लेख
-
यावान्भूम्यवकाशोयं
दृश्यते
शशलक्षणे।
तस्य
प्रमाणं
प्रब्रूहि
ततो
वक्ष्यसि
पिप्पलम् ),
३.३.७३(शशाकृति
के पार्श्व,
कर्ण
आदि में स्थित वर्ष व द्वीपों
का कथन -
पार्श्वे
शशस्य
द्वे
वर्षे
उक्ते
ये
दक्षिणोत्तरे।
कर्णे
तु
नागद्वीपश्च
काश्यपद्वीप
एव
च॥...),
३.२५.२०(शशपान
तीर्थ का माहात्म्य),
६.१८८(गीता
के १४वें अध्याय के माहात्म्य
के संदर्भ में पङ्क में गिरने
पर शश द्वारा दिव्य रूप की
प्राप्ति),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.५८.४३(शुक्र
के शाप से चन्द्रमा का कलङ्क
-
सतीसतीत्वध्वंसेन
पापिष्ठचन्द्रमण्डले
।
बभूव
शशरूपं
च
कलंकं
निर्मले
मलम्
।।),
ब्रह्माण्ड
१.२.१८.८०(चन्द्रमा
में दृष्टिगोचर शश :
भारत
के ९ भेदों का रूप -
यदेतद्दृश्यते
चंद्रे
श्वेते
कृष्णशशाकृति
।।
भारतस्य
तु
वर्षस्य
भेदास्ते
नव
कीर्त्तिताः
?
।।),
२.३.६३.१४(विकुक्षि
द्वारा श्राद्ध निमित्त शशक
मांस भक्षण करने से शशाद नाम
प्राप्ति का वृत्तान्त),
महाभारत
भीष्म ६.२
(यावान्भूम्यवकाशोऽयं
दृश्यते
शशलक्षणे।
तस्य
प्रमाणं
प्रब्रूहि
ततो
वक्ष्यसि
पिप्पलम्
।।),
६.५६(यां
तु
पृच्छसि
मां
राजन्दिव्यामेतां
शशाकृतिम्।
पार्श्वे
शशस्य
द्वे
वर्षे
उक्ते
ये
दक्षिणोत्तरे
।
कर्णौ
तु
शाकद्वीपश्च
काश्यपद्वीप
एव
च
।।…),
मार्कण्डेय
१५.३०(वास
हरण
के फलस्वरूप शश योनि की प्राप्ति),
वराह
३६.४(त्रेतायुग
में सुरश्मि के शशकर्ण रूप
में उत्पन्न होने का उल्लेख),
विष्णुधर्मोत्तर
३.३७.१२(नेत्रों?
की
शशाकृति तथा दश यवमान होने
का उल्लेख)
,
शिव
५.३२.५०
(सुरभि
द्वारा शशों व महिषों को जन्म
देने का उल्लेख -
शशांस्तु
जनयामास
सुरभिर्महिषांस्तथा।।),
स्कन्द
७.१.२५८(शशपान
कूप का माहात्म्य,
अमृतभक्षी
चन्द्रमा द्वारा शशक सहित
अमृत का पान),
हरिवंश
१.४६.५(चन्द्रमा
के अङ्क में शश चिह्न लोक छाया
रूप होने का उल्लेख-
लोकच्छायामयं
लक्ष्म
तवाङ्के
शशसंज्ञितम्
।
),
कथासरित्
१०.४.९५(शश
द्वारा सिंह को नष्ट करने की
कथा),
१०.६.२९(शश
द्वारा हस्तियों का नियन्त्रण
करने की कथा),
shasha
शशबिन्दु देवीभागवत १.१८.५२(शशबिन्दु द्वारा भूरि यज्ञों का अनुष्ठान, महिमा), ७.१०.३(मांधाता – भार्या बिन्दुमती के शशबिन्दु- पुत्री होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.१८?, भविष्य ४.२५.४३(शशबिन्दु द्वारा सौभाग्यशयन व्रत चीर्णन का उल्लेख ), भागवत ९.६.३८(शशबिन्दु – पुत्री बिन्दुमती के पति, पुत्रों आदि का कथन), वायु ८१.१/२.२०.१(विभिन्न नक्षत्रों में श्राद्ध से शशबिन्दु द्वारा सारी पृथिवी ग्रहण करना), स्कन्द ७.१.३९(शशबिन्दु द्वारा रेभ्य ऋषि को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, शूद्र द्वारा केदारेश्वर लिङ्ग पूजा से राजा बनना ), हरिवंश १.१२, वा.रामायण १.७०, ७.८९.१७(इल – पुत्र, बाह्लिक देश का राजा बनना), shashabindu
शशाङ्क स्कन्द ४.२.९७.१९३(शशाङ्केश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.१८.२८(सभी हृदयों के शशाङ्क के हृदयकालुष्य से ग्रस्त होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५६९.७८(राजा शशाङ्क के विमान के हरिश्चन्द्र के विमान से ऊपर रहने का कारण), कथासरित् १२.३.१(शशाङ्कवती), १२.७.३२३, १२.३६.१४, shashaanka/ shashanka
शशाद विष्णु ४.२.२०( विकुक्षि द्वारा श्राद्धहेतु नियत शशक भक्षण से शशाद नाम प्राप्ति), हरिवंश १.११.१५,
शशि- गरुड १.२१.७, वामन ९०.२०(प्रभास तीर्थ में विष्णु का शशिशेखर नाम से वास ?), ९०.३३(कामरूप में विष्णु का शशिप्रभ नाम ? ), कथासरित् ५.३.५३शशिधर, ५.३.२८३शशिखण्ड, १०.९.२२१शशितेज, shashi
शशिकला देवीभागवत ३.१७+ (सुबाहुराज - पुत्री, स्वयंवर में सुदर्शन का वरण करना), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९४(शशिकला द्वारा राधा को सांत्वना ), कथासरित् १२.६.२०१ shashikalaa
शशिप्रभा नारद १.६६.१३४(मत्त गणेश की शक्ति शशिप्रभा का उल्लेख), वामन ९०.३३(कामरूप में विष्णु की शशिप्रभ नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१५९.४५, कथासरित् ५.३.५५, ५.३.२७७, १२.१.३५, १२.२२.५,
शशिभूषण स्कन्द ४.२.६९.१७(शशिभूषण लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य),
शशिरेखा देवीभागवत १२.११.११, कथासरित् ५.३.५५, ५.३.२७६, १०.२.३
शशिलेखा स्कन्द ४.२.६७.४१(गन्धर्व - कन्या रत्नावली की सखी), ४.२.६७.८९ (शशिलेखा द्वारा अभिलाषा प्राप्ति का लेखन),
शशी भविष्य ३.२.१४(मूलदेव का मित्र, युवा रूप धारण करके राजा की कन्या चन्द्रावली से विवाह), कथासरित् १०.८.१३२, १२.२२.२३,
शष्कुलि भविष्य १.५७.९(निर्ऋति हेतु शष्कुलि बलि का उल्लेख )
शस्त्र महाभारत आश्वमेधिक २५.१४(प्राण स्तोत्र और अपान शस्त्र होने का उल्लेख, प्रशास्ता द्वारा ऋत के शंसन की शस्त्र संज्ञा), लक्ष्मीनारायण ३.२३४.३४
शांशपायन पद्म १.३४.१७(ब्रह्मा के यज्ञ में उन्नेता), ब्रह्माण्ड १.२.२८+ (शांशपायन ऋषि का सूत से प्रश्न),
शाक अग्नि ११९.१८(शाक द्वीप का वर्णन), कूर्म १.४०.१६(शाक द्वीप पर हव्य व हव्य - पुत्रों का आधिपत्य), १.४९.३३(शाक द्वीप का वर्णन), गरुड १.५६(शाक द्वीप पर भव्य व उसके ७ पुत्रों का आधिपत्य), २.३२.११३/२.२२.५९ (शाक द्वीप की मज्जा में स्थिति), ३.१४.३४(आषाढ में शाक के निःसार होने का उल्लेख), ३.२९.५७(शाक आदि भक्षण काल में धन्वन्तरि के स्मरण का निर्देश), देवीभागवत ८.४.२५(शाक द्वीप का मेधातिथि राजा), ८.१२, ८.१३.१६(शाक द्वीप की महिमा का वर्णन), नारद १.११६.४५(कार्तिक शुक्ल सप्तमी को शाक सप्तमी व्रत), पद्म ३.८(शाक द्वीप का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.१९.८०(शाक द्वीप का वर्णन), भविष्य १.४७(शाक सप्तमी : संज्ञा- छाया - सूर्य की कथा), १७९.५१, १.१३९.७१, मत्स्य १२२.१(शाक द्वीप का वर्णन), २०४.७(महाशाक : श्राद्ध हेतु प्रशस्त द्रव्यों में से एक), मार्कण्डेय १५.२९, १५.३२, लिङ्ग १.५३.१७(शाक द्वीप में पर्वतों के नाम), वराह ८६, वामन ९०.४३(शाक द्वीप में विष्णु का सहस्राक्ष/सहस्रांशु नाम), वायु ४९.७४(शाक द्वीप के अन्तर्गत पर्वतों व नदियों के नाम), विष्णु २.४.५९, स्कन्द ५.२.२, ७.१.११, ७.१.१३.५(शाक द्वीप : सूर्य का भ्रमि पर तेज कर्तन का स्थल ), ७.१.२७०, लक्ष्मीनारायण २.२४७.५५शाकविक्रय, कथासरित् १.५.१३४, shaaka/ shaka
शाकटायन ब्रह्मवैवर्त्त २.४.५७(शाकटायन द्वारा बलि सभा में शेष से सरस्वती कवच की प्राप्ति), स्कन्द ५.२.६८(शाकटायन ब्राह्मण द्वारा पिशाच को मुक्ति हेतु पिशाचेश्वर लिङ्ग की पूजा का परामर्श ), लक्ष्मीनारायण १.२६३, १.५६०, shaakataayana/ shakatayana
शाकम्भरी देवीभागवत ७.२८(दुर्गम दैत्य के वध हेतु शाकम्भरी का प्राकट्य, शताक्षी उपनाम), १२.६.१४५(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म ३.२८.१४(शाकम्भरी तीर्थ का माहात्म्य), मार्कण्डेय ९१.४६, वामन ५६.६९(इन्द्र के घर शाकम्भरी का प्राकट्य), शिव ५.५०.३५, स्कन्द ६.१६४(चण्डशर्मा - भार्या शाकम्भरी द्वारा दुर्गा की स्थापना), ६.२७५(दु:शील - भार्या द्वारा शाकम्भरीश्वर लिङ्ग की स्थापना ) shaakambharee/ shakambhari
शाकल नारद २.१४.१४(शाकल नगर में ब्राह्मणी का पतिद्रोह से गृहगोधा बनना), भविष्य ४.७५, वामन ६५, ७९, विष्णुधर्मोत्तर १.१५६(पुरूरवा द्वारा तप उपरान्त शाकलपुर में प्रवेश ), स्कन्द ५.२.७८.२, कथासरित् ८.१.१७ shaakala/ shakala
शाकल्य ब्रह्म २.९३(शाकल्य के कवच से रक्षित होने के कारण परशु राक्षस द्वारा शाकल्य के भक्षण में असफलता, राक्षस की मुक्ति), ब्रह्माण्ड १.२.३४(देवमित्र नाम, जनक सभा में याज्ञवल्क्य से वाद में मृत्यु), वायु ६०.३२(जनक के यज्ञ में शाकल्य का याज्ञवल्क्य से विवाद व मृत्यु ; शाकल्य के शिष्यों के नाम), स्कन्द २.१.११(शाकल्य द्वारा काश्यप ब्राह्मण को स्वामिपुष्करिणी में स्नान का आदेश, परीक्षित् की कथा का प्रसंग), ३.१.४१(शाकल्य द्वारा काश्यप को परीक्षित् की रक्षा न करने के दोष की निवृत्ति के लिए परामर्श), ३.१.४८(शङ्कर नृप द्वारा मृग रूप धारी शाकल्य की पत्नी सहित हत्या, पुत्र द्वारा श्राद्ध से मुक्ति), ६.१२९(याज्ञवल्क्य - गुरु, गुरु की आज्ञा भङ्ग करके याज्ञवल्क्य का निष्क्रमण), ६.२७८, ७.१.२३(चन्द्रमा के यज्ञ में अच्छावाक्), ७.१.७४(शाकल्येश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, युगान्तरों में लिङ्ग के भैरवेश्वर, गालवेश्वर आदि नाम ), लक्ष्मीनारायण १.५०१, १.५६२.९२, shaakalya/ shakalya
शाकिनी अग्नि ५०.३८(शाकिनी की प्रतिमा का लक्षण), गणेश १.७६.१(गौड देश में शाकिनी - पुत्र का वृत्तान्त), पद्म ३.२६, स्कन्द १.२.६३.३३(दुहद्रुहा नामक शाकिनियों की अधीशा का बर्बरीक द्वारा वध ), लक्ष्मीनारायण १.३४९, shaakinee
शाक्त ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५(शाक्त देवगण के नाम), वायु १०४.८२(शाक्त पीठ की जिह्वाग्र में स्थिति ) shaakta/ shakta
शाख वामन ६८, ६९, शिव ७.२.३१, कथासरित् ३.६.९२, ८.४.८५शाखिल, द्र. वंश वसुगण, विशाखा
शाटिका लक्ष्मीनारायण १.३८५.५१(अरुणा द्वारा शाटी प्रदान का उल्लेख), २.२२५.९१(मुक्तानियों आदि के लिए स्वर्ण शाटिका दान का उल्लेख ), ३.२०८.१ shaatikaa/ shatikaa
शाण हरिवंश २.७४.१५(शाणपाद : पारियात्र पर्वत का उपनाम), लक्ष्मीनारायण ३.१९७शाणधर,
शाण्डिली पद्म ३.५(शाण्डिली की हिरण्मय वर्ष में स्थिति, प्रभा देवी नाम), स्कन्द २.६.१, ३.३.६, ५.३.१७१.३९, ६.८१(गरुड द्वारा विष्णु के पार्श्व में स्थित शाण्डिली का उपहास करने पर गरुड के पक्षों का नाश), ६.१३०(शाण्डिल्य - पुत्री व जैमिनी - भार्या? शाण्डिली द्वारा सौभाग्य प्राप्ति हेतु याज्ञवल्क्य - पत्नी कात्यायनी को बोध), ६.१३५(तु. दीर्घिका), ७.१.१२६, हरिवंश २.८१.११, ३.६२(स्वयंप्रभा नामक शाण्डिली, अग्नि - माता), लक्ष्मीनारायण १.४९२, १.५०१.७०(शाण्डिली द्वारा जैमिनि को पति रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त ) shaandilee/ shandili
शाण्डिल्य कूर्म १.१८.५(असित देवल व समर्पणा - पुत्र), गर्ग ११.२(शाण्डिल्य द्वारा राजा प्रतिबाहु को गर्ग संहिता का वाचन), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०, ब्रह्माण्ड २.३.८.३२(असित - पुत्र देवल : शाण्डिल्यों में श्रेष्ठ, एक काश्यप गोत्र), ३.१०.९१, भविष्य ४.१०३, भागवत १३.१, वराह ७१.२०(गौतम - पुत्र, पिता का वचन मुनियों से कहना), वायु ७०.२८, ७२.८५, ७३.४२(दिलीप के यज्ञ में अग्नि की उत्पत्ति की गाथा), शिव ३.८, स्कन्द १.२.११.१, १.३.२.२२.२९(शाण्डिल्य मूल में स्थित? दुर्वासा द्वारा विद्याधरी को शाप का वृत्तान्त), २.२.३८(नैवेद्य ग्रहण न करने से शाण्डिल्य को पीडा की प्राप्ति, उद्धार), २.६.१(शाण्डिल्य द्वारा वज्र नृप से कृष्ण लीला का वर्णन), ३.१.५(शतानीक के पुत्रेष्टि यज्ञ में आचार्य), ३.२.९.९२(शाण्डिल्य गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवर व गुण), ३.३.६(शाण्डिल्य द्वारा विप्र - पत्नी उमा से नृप बालक के कुल का वर्णन), ५.३.१७१(शूलारोपित माण्डव्य का कम्पन करने पर माण्डव्य द्वारा शाण्डिल्य को शाप व प्रतिशाप, सूर्य का बन्धन व मोचन, शाण्डिल्य का पुन: सञ्जीवन), ६.५(त्रिशङ्कु के यज्ञ में होता), ६.११.२२, ६.१८०(ब्रह्मा के यज्ञ में प्रतिहर्त्ता), ६.२७१.२७१(दीर्घजीवी कूर्म का पूर्व जन्म में रूप), ७.१.१२६(ब्रह्मा के सारथि शाण्डिल्य ऋषि द्वारा स्थापित शाण्डिल्येश्वर का माहात्म्य), ७.१.३५८(शाण्डिल्य वापी का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.४३४.३०(सहस्रानीक राजा का अपर नाम), १.४९२.३१(मार्कण्डेय का शाण्डिल्य से तादात्म्य?), १.५०१, १.५०९.२७(ब्रह्मा के सोमयाग में प्रतिहर्त्ता),१.५५९, १.५६४.२४(शाण्डिल्य - पत्नी सती सौदामिनी का वृत्तान्त), १.५७३.१६(राजा रविचन्द्र के पुरोहित शाण्डिल्य का उल्लेख ), ३.७४.६५, कथासरित् २.१.९, द्र. शण्ड shaandilya/ shandilya
श्वःसुत्या गौतमस्य। - - अद्यसुत्या शांडिल्यस्य – लाट्यायन श्रौ.सू. १.४.१३-१५
शातातप स्कन्द १.२.६.११, ४.२.९७.१७३(शातातपेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.२४७.८९, shaataatapa/ shatatapa
शान्त गरुड १.८७.२०(विभु इन्द्र का शत्रु, हंस रूपी विष्णु द्वारा वध), ब्रह्माण्ड १.२.१२.२९(प्रशान्त : ८ विहरणीय अग्नियों में द्वितीय, अन्य नाम प्रचेता), वराह ३६, विष्णु २.४.३शान्तहय, स्कन्द ४.२.९७.४८(उपशान्त लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.१४०.७९(शान्त प्रासाद के लक्षण ), २.२१७.१००शान्ताराम, ३.२३३.५०, द्र. वंश वसुगण shaanta/ shanta
शान्तनु द्र. शन्तनु
शान्ता गरुड ३.१६.७(अनिरुद्ध-भार्या), देवीभागवत १२.६.१४५(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद २.४६.३३(भारद्वाज - माता, पुत्र को पिण्डदान के सम्बन्ध में प्रतिबोध), भविष्य १.३.१, स्कन्द ३.२.१७.१(शान्ता मातृका का रूप व माहात्म्य), वा.रामायण १.९+ (रोमपाद - पुत्री, ऋष्यशृङ्ग मुनि से विवाह ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.११५ shaantaa/ shantaa
शान्ति अग्नि ४३(प्रासाददेवतास्थापन के अन्तर्गत शिला में भूतादि की शान्ति), २९०(अश्व शान्ति विधि), २९१(गज शान्ति विधि), ३२१(अस्त्र शान्ति), ३२२(शान्ति हेतु पाशुपत मन्त्र जप का विधान), ३२४(कल्पाघोर रुद्र शान्ति का वर्णन), ३८२.७(ब्रह्मा के मत में परम शान्ति – अभिन्न में भेद की प्रतीति का निवारण - अभिन्नयोर्भेदकरः प्रत्ययो यः परात्मनः । तच्छान्तिपरमं श्रेयो ब्रह्मोद्गीतमुदाहृतं ।।), गरुड १.२१.६(तत्पुरुष शिव की कलाओं में एक - ॐ हैं तत्पुरुषायैव निवृत्तिश्च प्रतिष्ठा च विद्या शान्तिर्न केवला ।।), १.८७.१२(स्वशान्ति : औत्तम मन्वन्तर में इन्द्र - इन्द्रः स्वशान्तिस्तच्छुक्रः प्रलम्बो नाम दानवः ॥ मत्स्यरूपी हरिर्विष्णुस्तं जघान च दानवम् ॥), गर्ग १.१६.२४(नर - नारायण की शक्ति शान्ति का उल्लेख), ५.१५.२५(वही), देवीभागवत ९.१३.६३(शान्तिगोप्या युतस्त्वं च दृष्टोऽसि रासमण्डले ॥..ततस्तस्याः शरीरं च गुणश्रेष्ठं बभूव ह । संविभज्य त्वया दत्तं प्रेम्णा प्ररुदता पुरा ॥), ११.२४(उपद्रव शान्ति हेतु गायत्री जप - जलेन तर्पयेत्सूर्यं पाणिभ्यां शान्तिमाप्नुयात् । जानुदघ्ने जले जप्त्वा सर्वान्दोषाञ्छमं नयेत् ॥), नारद १.६६.८७(मधुसूदन की शक्ति - विष्णुस्तु धृतिसंयुक्तः शान्तियुङ्मधुसूदनः), १.६६.१२५(शिवोत्तम की शक्ति शान्ति का उल्लेख - विनायकस्तथा पुष्ट्या शान्तियुक्तः शिवोत्तमः। विघ्नकृत्स्वस्तिसंयुक्तो विघ्नहर्ता सरस्वती ॥), १.९१.६७(शिव के द्वितीय मुख की प्रथम कला – तत्पुरुषाय विद्महे), १.१२१.४८(राजा व राष्ट्र हेतु नीराजना शान्ति विधि), पद्म १.२०.९५(शान्ति व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), २.१२.८४(शान्ति की मूर्त्ति का संक्षिप्त स्वरूप - दिव्यरत्नकृता शोभा दिव्याभरणभूषिता । तव शांतिर्महाप्राज्ञ ज्ञानरूपा समागता), ब्रह्मवैवर्त्त २.११.६४(शान्ति गोपी के शरीर से उत्पन्न भय गुण का विश्व में विभाजन - शान्त्या गोप्या युतस्त्वं च दृष्टो वै रासमण्डले ।।..शान्तिर्देहं परित्यज्य भिया लीना त्वयि प्रभो ।। ततस्तस्याः शरीरं च गुणश्रेष्ठं बभूव ह ।।), भविष्य १.१७६+ (ग्रह, मातृका, गरुड, सर्व देव शान्ति), १.१७९(विविध शान्तियां), २.१.१७.४(शान्ति कर्म में अग्नि का नाम वरुण - वरुणः शांतिके ज्ञेयो मारणे ह्यरुणः स्मृतः ।।), २.३.२०(विभिन्न उत्पातों की शान्ति), ४.३४(शान्ति व्रत में नागों का अङ्गन्यास), ४.१४१(नवग्रह शान्ति), ४.१४३(विविध उत्पातों की महाशान्ति), ४.१४४(गणनाथ शान्ति), भागवत ३.२४.२४(कर्दम - कन्या, अथर्वा – पत्नी - अथर्वणेऽददाच्छान्तिं यया यज्ञो वितन्यते ।), ४.१.४९(धर्म की १३ पत्नियों में से एक, पुत्रों के नाम), मत्स्य ७३(शुक्र व बृहस्पति ग्रह की शान्ति), ९३(नवग्रह शान्ति), २२८(अद्भुतों/उत्पातों की शान्ति), २३२(वृक्ष उत्पात शान्ति), २३३(वृष्टि उत्पात की शान्ति), २३४(जलाशय विकृति की शान्ति), २३५(प्रसव विकार की शान्ति), २३६(उपस्कर विकृति की शान्ति), २३७(पशु - पक्षी उत्पात की शान्ति), २३८(राजा की मृत्यु, देश विनाश पर शान्ति), २६८(वास्तु शान्ति), मार्कण्डेय ५१.५१(कलहा की शान्ति - कलहा कलहं गेहे करोत्यविरतं नृणाम्॥ कुटुम्बनाशहेतुः सा तत्प्रशान्तिं निशामय ।), ९९.१६(ऋचस्तपन्ति पूर्वाह्णे मध्याह्ने च यजूंषि वै । सामानि चापराह्णे वै तपन्ति मुनिसत्तम ।..), ९६.२७(भूति - शिष्य, अग्नि के बुझने पर स्तुति द्वारा अग्नि को पुन: प्रज्वलित करना), १००, वराह ६०(शान्ति व्रत), १९२, विष्णुधर्मोत्तर १.१८५(दशम मन्वन्तर में इन्द्र), २.४४(गौ कर्म शान्ति), २.४७(अश्व शान्ति), २.५०(गज शान्ति), २.१२७(शान्ति के प्रकार व शान्ति विधि), २.१३२(शान्ति कर्म के आथर्वण प्रकार, वर्ण), २.१३३(अद्भुतों के प्रकारों में से एक), २.१३५(विकार शान्ति), २.१४४(उत्पातों की शान्ति), २.१५९(नीराजन शान्ति), २.१६१(घृतकम्बल नामक शान्ति), स्कन्द २.१.८.४(शान्ति देवी द्वारा श्रीनिवास को मृगमद प्रस्तुत करने का उल्लेख), २.२.२८(लक्ष्मी - नृसिंह शान्ति), योगवासिष्ठ ६.२.४९, लक्ष्मीनारायण १.३५६.१६(स स्वदेहस्य शुद्ध्यर्थं कुर्यादेकमुपोषणम् ।..तिलहोमं प्रकुर्वीत शान्तिमन्त्रान् पठन् द्विजः ।), १.३५६.१४२(श्राद्धादेः कर्मणश्चान्ते शान्तिपाठं प्रकारयेत् ।..), २.२४६.७८( ज्ञानस्योपनिषच्छान्तिः शान्तेश्चोपनिषत् सुखम् । सुखस्योपनिषत् तृप्तिस्तृप्तेश्चोपनिषत् त्यजिः ।।), ३.३०.४७(शान्ति के ३ साधनों तृप्ति, विराग, ऐश्वर्य का उल्लेख - तृप्तिर्विराग ऐश्वर्यं त्रेधा शान्तेः प्रसाधनम् । धर्मः क्षमा तितिक्षा च त्रेधा सुखस्य साधनम् ।। ), ३.१३३.५७ (मातस्त्वं पृथ्वीरूपा धेनुः कृष्णस्य वत्सला । पुण्या पापहरा मेऽस्तु नित्यां शान्तिं प्रयच्छ मे ।।,.. ग्रह शान्ति), ३.१५८.११(भूति – शिष्य - शान्तिधर्माभिधं चाह गच्छामि चाग्रजाऽध्वरम् । प्रति जागरणं वह्नेस्त्वया कार्यं ममाश्रमे ।।), कथासरित् ४.१.१०७शान्तिकर, ४.१.१३१शान्तिसोम, ६.८.११६शान्तिसोम, १२.८.३९शान्तिशील shaanti/ shanti
शामित्र मत्स्य ५१.२१(हव्यसूद असम्मृज्य अग्नि का नाम), वायु २.६(सत्र यज्ञ में मृत्यु के शामित्र बनने का उल्लेख ) shaamitra/ shamitra
शाम्बरायणि विष्णुधर्मोत्तर १.१७५+ (शाम्बरायणि द्वारा मन्वन्तरों में शक्र चरित का कथन),
शाम्भवी देवीभागवत ३.२६(आठ वर्षीया कन्या का नाम), स्कन्द ७.१.७(तृतीय कल्प में पार्वती का नाम ) shaambhavee/ shambhavi
शारद विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१
शारदा गणेश २.१.२४(रौद्रकेतु - पत्नी, देवान्तक व नरान्तक - माता), २.६२.१(रौद्रकेतु - भार्या, नरान्तक व देवान्तक - माता, नरान्तक का कटा शिर देखकर विलाप), देवीभागवत १२.६.१४५(गायत्री सहस्रनामों में से एक), भविष्य ३.३.१०.५५(शारदा देवी द्वारा मृगी का रूप धारण, कृष्णांश उदयसिंह द्वारा ताडन, वरदान), ३.३.२५.३(शारदानन्द : विश्वक्सेन - पुत्र, ब्रह्मचारी, पृथिवी पर कामपाल नामक राजा रूप में जन्म), ३.३.२७.६८, ३.४.१३.२, स्कन्द ३.३.१८(वेदरथ - पुत्री, पद्मनाभ - पत्नी, नैध्रुव ऋषि की प्रेरणा से वैधव्य समाप्ति हेतु उमा महेश्वर व्रत का अनुष्ठान), ३.३.१९(पूर्व जन्म में भामिनी नामक द्विज - भार्या, दुष्ट चरित्र से वैधव्य प्राप्ति), ३.३.१९(शारदा द्वारा स्वप्न में पुरुष से योग द्वारा पुत्र प्राप्ति, पति से मिलन, शिव लोक गमन), लक्ष्मीनारायण १.३८५.४१(शारदा का कार्य), २.१४.३३, २.२९७.८८, ३.६२.३०(सरस्वती द्वारा ब्रह्मा - पुत्री तथा स्वभगिनी मूक शारदा के मूकत्व के निराकरण का कथन ), ३.१३८.५६, shaaradaa/ sharadaa
शारिकाकूट कथासरित् १२.६.१११
शार्ङ्ग नारद १.६६.९२(शार्ङ्गी की शक्ति प्रभा का उल्लेख), विष्णु १.२२.७१(विष्णु द्वारा भूतादि व इन्द्रियादि अहंकार-द्वय को शंख व शार्ङ्ग धनुष रूप में धारण करने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.७(शार्ङ्गी से ऊरु की रक्षा की प्रार्थना), गोपालोत्तरतापिन्युपनिषद १७(आद्या माया के शार्ङ्ग होने का उल्लेख ) shaarnga/ sharnga
शार्ङ्गधर गणेश १.७४.९(सारङ्गधर - पुत्री सुन्दरी का वृत्तान्त ), लक्ष्मीनारायण २.२६४.४(शूद्र द्वारा शृङ्गमृग का वेधन, जन्मान्तर में मूक विप्र बालक रूप में जन्म लेकर तप द्वारा मूकता का निवारण तथा शार्ङ्गधर नामक ओषधि विज्ञान ज्ञाता बनना), ४.१०१.८४(कृष्ण-भार्या सरस्वती के पुत्र शार्ङ्गधर व सुता कौमुदी का उल्लेख), ४.१०१.१२८(कृष्ण-भार्या मोघवती के पुत्र शार्ङ्गधर व सुता तलायना का उल्लेख), shaarngadhara/ sharngadhara
शार्दूल गणेश २.११४.१६(सिन्धु व गणेश के युद्ध में चपल का शार्दूल से युद्ध), ब्रह्म २.५८(शार्दूल दैत्य द्वारा अग्नि - पुत्री व धर्म की पत्नी सुवर्णा का हरण, विष्णु द्वारा चक्र से वध), भविष्य ३.२.१६(शार्दूल द्वारा गौ को त्रास, चन्द्रशेखर राजा द्वारा शार्दूल का वध, शार्दूल का मुकुल दैत्य में रूपान्तरण), वा.रामायण ६.२०(रावण के गुप्तचर शार्दूल द्वारा राम सेना के बारे में रावण को परामर्श), ६.२९.२७(वानरों द्वारा शार्दूल का ताडन), ६.३०(शार्दूल द्वारा रावण को राम के वानर सेनानियों का परिचय), लक्ष्मीनारायण २.६६.७१(अर्कपुरी का राजा, धर्मसुमन्तु विप्र के शाप से मृत्यु - पश्चात् सर्प बनना, सर्प के उद्धार की कथा ), ३.८.९८, shaardoola/shaarduula/ shardula
शाल नारद २.२७.९३, २.२७.११७, मत्स्य १०, वामन ९०शालोदर, ९०.३२(शालवन में विष्णु का भीम नाम), स्कन्द ४.१.२९.१६०(शालिनी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.३.२१२, ७.४.१७.२१, योगवासिष्ठ ६.२.१६८शालभञ्जिका, लक्ष्मीनारायण १.३४०, १.४४१.९२(विष्णु के शाल वृक्ष में प्रवेश का उल्लेख), २.९७.६६शालवनायन, ४.५३, द्र. महाशाल, वर्णिशाल, विशाल shaala/ shala
शालकटङ्कटा वामन १५, स्कन्द ४.२.५७.७१(शालकटङ्कट गण का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.१६८(शालकटङ्कटा देवी का माहात्म्य ), द्र. सालकटङ्कटा shaalakatankataa/ shalakatankataa
शालग्राम भविष्य २.२.८.१२६(शालग्राम में महाचैत्री पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख), स्कन्द ६.२४३.६६(शालग्राम शिला के २४ रूप, संवत्सर व ग्रावा रूप का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.२२.३५(नृमेध में श्रीहरि के वृषणों का शालग्राम होने का कथन), ३.२२.९७(नृमेध में शालग्राम शिलाओं की शान्ति हेतु लक्ष्मी के पिप्पल पत्र रूपी पीठ बनने का वर्णन ), द्र. शालिग्राम shaalagraama/ shalagrama
शाला नारद १.५६.५८१(वास्तु नियमों के अनुसार शाला निर्माण विधि), ब्रह्माण्ड १.२.७.११९(शाला का वृक्ष की शाखाओं से साम्य), ३.४.३१.६६(कांस्य, ताम्र, आरकूट, लौह, रौप्य, हेम शालाएं), ३.४.३३(गोमेद शाला), ३.४.३३(सुवर्ण, पुष्पराग, पद्मराग, गोमेदक, वज्र आदि शालाएं), ३.४.३४(मरकत, मुक्ता, विद्रुम शालाएं),३.४.३५(अहंकार शाला), ३.४.३५(चन्द्र बिम्ब शाला), ३.४.३५(बुद्धि शाला), ३.४.३५(मन, बुद्धि, अहंकार, सूर्यबिम्ब, चन्द्रबिम्ब शालाएं), मार्कण्डेय ४९.५३(कल्पवृक्ष की शाखाओं के अनुसार शालाओं की कल्पना), वायु ८.१२६(वृक्ष की शाखाओं का रूप), स्कन्द १.२.५३(नारद द्वारा स्थापित त्रिपुरुष शाला का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.२०९.४७(देह रूपी शाला का नाश करने वाली के रूप में विशाला का कथन), २.११०.२शालावती, २.२१०.५९(पर्णशाला की अपेक्षा ज्ञानशाला के निर्माण का कथन), २.२९०, ३.१८७.६९(धर्मशालायन , द्र. हेमशाला shaalaa/ shala
शालि स्कन्द ५.३.२६.१४६
शालिग्राम
अग्नि ४६(शालिग्राम
शिला के लक्षण ;
लक्षणों
के अनुसार देव संज्ञा),
४७(शालिग्राम
विग्रह की पूजा का वर्णन),
गरुड
१.४५(शालिग्राम
शिला के लक्षणों का वर्णन),
१.६६(शालिग्राम
शिला के लक्षण),
देवीभागवत
९.२४.५६(शालिग्राम
शिला में चिह्न अनुसार देवताओं
के लक्षण),
पद्म
२.५.१३(सोमशर्मा
द्वारा शालग्राम क्षेत्र में
प्राणत्याग से प्रह्लाद रूप
में जन्म लेना -
मृत्युकाले
तु संप्राप्ते प्राणयात्रा
प्रवर्तिनः ।
शालिग्रामे
महाक्षेत्रे ऋषीणां मानवर्द्धने।),
३.३१.११८(शालिग्राम
शिला का माहात्म्य),
५.२०(शालिग्राम
शिला की गण्डकी में उपस्थिति,
पिशाच
का उद्धार),
५.७८(शालिग्राम
शिला के लक्षण,
रूप),
६.२३.४३(शालग्रामशिला
यत्र तत्र संनिहितो हरिः।
तत्र
स्नानं च दानं च वाराणस्यां
शताधिकम्॥),
६.८२.१२(शालग्रामशिला
यत्र यत्र द्वारवती शिला ।
उभयोः
संगमो यत्र मुक्तिस्तत्र न
संशयः॥),
६.१२०(शालिग्राम
शिला का माहात्म्य,
शिला
में देवों के लक्षण),
६.१३१(शालिग्राम
शिला का माहात्म्य),
ब्रह्मवैवर्त्त
२.२१.५९(वज्रकीटाश्च
कृमयो वज्रदंष्ट्राश्च तत्र
वै ।
तच्छिलाकुहरे
चक्रं करिष्यन्ति मदीयकम।।),
२.२७.९
(शालिग्राम
दान का फल
-
यो
ददाति ब्राह्मणाय शालिग्रामं
सवस्त्रकम् ।।
महीयते
स वैकुण्ठे यावच्चन्द्रदिवाकरौ
।।),
भविष्य
१.१५६(शालग्राम
में हरि द्वारा चक्राकार
महद्व्योम की पूजा,
सूर्य
द्वारा वरदान -
पूजयन्तं
महद्व्योम चक्राकारमनौपमम्।),
३.४.६.४७(तिमिरलिङ्ग
द्वारा शालग्रामशिलाओं से
सिंहासनारोहण का निर्माण),
मत्स्य
१३.३३(शालिग्राम
में देवी का महादेवी नाम से
वास),
वराह
१४४,
१४५.३१(साल
वृक्ष का माहात्म्य,
शालिग्राम
क्षेत्र का माहात्म्य,
शालिग्राम
के अन्तर्गत तीर्थ),
विष्णु
२.१.३५(भरत
द्वारा शालग्राम में प्राणत्याग
का उल्लेख -
योगाभ्यासरतः
प्राणान् शालग्रामेऽत्यजन्मुने
।
अजायत
च विप्रोऽसौ योगिनां प्रवरे
कुले ।।),
विष्णुधर्मोत्तर
३.१२१.३(शालिग्राम
क्षेत्र में त्रिविक्रम की
पूजा का निर्देश),
शिव
२.५.४१.४९(शालग्रामशिला
सा हि तद्भेदादतिपुण्यदा।
लक्ष्मीनारायणाख्यादिश्चक्रभेदाद्भविष्यति
।।),
स्कन्द
२.४.२.५२टीका(शालिग्राम
शिला दान का माहात्म्य,
धर्माचार
वैश्य की कथा,
शिला
के वर्ण अनुसार फल),
५.३.१८८(शालिग्राम
तीर्थ का माहात्म्य),
५.३.१९८.७१(शालग्राम
में
देवी के महादेवी नाम का उल्लेख),
,
६.२४३+
(शालिग्राम
शिला का पूजन,
गालव
द्वारा पैजवन शूद्र को परामर्श,
शालिग्राम
के भेदों का वर्णन ),
६.२५१(चतुर्विंशतिभेदेन
पुराणज्ञैर्निरीक्षितः ।
मुखे जांबूनदं चैव शालग्रामः
प्रकीर्तितः ॥)
,
लक्ष्मीनारायण
१.३३७.१०७(तुलसी
के शाप से विष्णु का शालग्राम
संज्ञक पाषाण बनना),
२.२७१.७२(चैत्यब्रह्मद्विज
कृत शालग्रामतीर्थ),
३.२२.९२(पूजनं
मे वृषणयोः शालग्रामस्वरूपयोः
।
कुर्वन्तु
तेन शान्तिर्वै भविष्यत्यनलस्य
ह ।।),
shaaligraama/ shaligrama
Comments on Shaligrama by Dr. Kalyanaramana
शालिवाहन भविष्य ३.३.२.१७(विक्रमादित्य-पौत्र शालिवाहन द्वारा शकों आदि को जीतकर आर्यदेश स्थापित करने का कथन)
शालिहोत्र अग्नि २९२.४४(शालिहोत्र द्वारा सुश्रुत को अश्व आयुर्वेद का उपदेश), पद्म ३.२६.१०२(शालिहोत्र तीर्थ का माहात्म्य ), भविष्य ३.४.१, शिव ३.५, shaalihotra/ shalihotra
शालीन भागवत ३.१२.४२(ब्रह्मा से उत्पन्न गृहस्थ वृत्तियों में से एक, द्र. टीका)shaaleena/ shalina
शालूकिनी वामन ६४.३
शाल्मलि अग्नि ११९.७(शाल्मलि द्वीप का वर्णन), कूर्म १.४९.१३(शाल्मलि द्वीप का वर्णन), गरुड १.५६(शाल्मलि द्वीप पर वपुष्मान् व उसके ७ पुत्रों का आधिपत्य), २.२२.६०(शाल्मलि द्वीप की त्वचा में स्थिति), देवीभागवत ८.४(शाल्मलि द्वीप का यज्ञबाहु राजा), ८.१२(शाल्मलि द्वीप का वर्णन, शाल्मलि द्वीप की महिमा), ८.२२.३७(नरक का नाम), नारद १.६६.१०७(सूक्ष्मेश की शक्ति शाल्मलि का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.११(महावेश्या गामी के शाल्मलि तरु बनने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१४.३१(शाल्मलि द्वीप के जनपदों व वर्षों के नाम), १.२.१९.३२(शाल्मलि द्वीप का वर्णन), भविष्य ३.४.२४.७८(द्वापर के द्वितीय चरण में शाल्मलि द्वीप में नरों की स्थिति), मत्स्य १२२.९१(शाल्मलि द्वीप का वर्णन), लिङ्ग १.५३.५(शाल्मलि द्वीप के पर्वत), वराह ८९, वामन ९०.४३(शाल्मलि द्वीप में विष्णु का वृषभध्वज नाम), वायु ४९.३०(शाल्मलि द्वीप के अन्तर्गत पर्वतों व नदियों के नाम), विष्णु २.४.२२(शाल्मलि द्वीप का वर्णन), स्कन्द ५.१.१४.५(शाल्मलि द्वीप में इक्षु समुद्र की स्थिति का उल्लेख), ५.३.८५.७२(षट्कर्मनिरत द्विज के शाल्मली नाव तुल्य होने का उल्लेख), ५.३.१५५.७५(नरक में अग्निपुञ्ज आकार वाले शाल्मली का उल्लेख), ५.३.१५५.१०३(परदाररतों के जलती हुई, आयसी, कण्टकों से घिरी शाल्मली में अवगूहन का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.१.१२०.२३(शाल्मलि की देह से उपमा),६.२.१६.८(दुःख रूपी शाल्मलि), महाभारत शान्ति १५४(नारद से वार्तालाप में शाल्मलि की गर्वोक्ति, वायु के प्रकोप से बचने के लिए स्वयं ही अपनी शाखाएं आदि गिराना आदि), १५५, लक्ष्मीनारायण २.२१६.५१(शाल्मलि वृक्ष द्वारा वायु की पराभव का वृत्तान्त ), कथासरित् १२.४.५९(मन्त्री भीमपराक्रम द्वारा शाल्मलि वृक्ष के मूल से उत्थित गणेश प्रतिमा के निकट स्थित होने का कथन), द्र. द्वीप shaalmali/ shalmali
Comments on Shalmali
शाल्व गर्ग ६.६.३०(कृष्ण व रुक्मिणी विवाह में शाल्व का बलराम - अनुज गद से युद्ध), ७.१३(राजपुर का राजा, प्रद्युम्न से पराजय), १०.२४(शाल्व - भ्राता अनुशाल्व द्वारा अनिरुद्ध सेना से युद्ध व पराजय), देवीभागवत १.२०.४५(काशिराज - कन्या अम्बा की शाल्व पर आसक्ति, भीष्म के कारण त्याग), नारद १.५६.७४२(शाल्व देश के कूर्म के पादमण्डल होने का उल्लेख), भागवत १०.७६+ (शाल्व द्वारा तप, सौभ विमान की प्राप्ति, द्वारका पर आक्रमण, माया से वसुदेव का निर्माण, कृष्ण द्वारा चक्र से शाल्व का वध), वामन ६९.५४(अन्धक - सेनानी, सूर्य से युद्ध), ९१, शिव ३.४शाल्वल, ३.३१, स्कन्द ३.३.६, हरिवंश २.४९(रुक्मिणी स्वयंवर प्रसंग में शाल्व द्वारा कृष्ण के प्रभाव का कथन), २.५२+ (शाल्व का कालयवन के पास जरासन्ध का दूत बनकर जाना), ३.१०४.१, महाभारत कर्ण ४५.३५(शाल्व निवासियों की कृत्स्नानुशासन विशेषता का उल्लेख ) shaalva/ shalva
शाव देवीभागवत ७.८शावन्त, मत्स्य १४५.९५(शाव द्वारा सत्य के प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२९+शावदीन shaava/ shava
शासन द्र. दु:शासन, पाकशासन
शास्ता द्र. महाशास्ता
शास्त्र पद्म ६.२३६, विष्णुधर्मोत्तर ३.७३(शास्त्र के अधिदेवता, शास्त्र की मूर्ति का रूप), स्कन्द ५.३.३८.६३, योगवासिष्ठ ३.८, ६.२.१९७(शास्त्रों की निरर्थकता या सार्थकता का प्रश्न : काष्ठदारकों द्वारा चिन्तामणि प्राप्ति का दृष्टान्त ), कथासरित् १०.३.२१शास्त्रगञ्ज, shaastra/ shastra
शास्त्री ब्रह्माण्ड ३.४.७.७२(महाशास्त्री : मधु अर्पण करने योग्य मातृकाओं में से एक ) shaastree/ shastri
शाहविलापन? लक्ष्मीनारायण ४.६५
शिंशपा पद्म १.२८(शिंशपा वृक्ष अप्सराओं को प्रिय होने का उल्लेख), ६.२२२.२(शिंशपा तरु की काशी के प्रभाव से मुक्ति, पूर्व जन्म में श्रवण - पत्नी कुण्डा), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७८(दक्ष द्वारा विश्वेदेवों को प्रदत्त ८ कन्याओं में से एक), ३.२३.६४(सूर्यवर्चा नृप हेतु कृष्ण द्वारा शिंशपा वृक्ष के स्तम्ब में स्वयं को प्रकट करने का वृत्तान्त ), कथासरित् १२.३.५८, १२.८.४७, १२.२८.१, shinshapaa/ shimshapaa
शिंशुमार द्र. शिशुमार
शिक्षा अग्नि ३३६(वर्णमाला के अक्षरों का निरूपण ) shikshaa
शिखण्ड-छत्रक ( भुइँफोड़), जो वृत्रासुरके रक्त से उत्पन्न हुआ है । यह ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों के लिये अभक्ष्य है (शान्ति० २८२। ६०)।
शिखण्डी कूर्म १.१४.२२(पृथु व अन्तर्धाना - पुत्र?, सुशील - पिता), देवीभागवत ४.२२.३८(राक्षस का अंश), भविष्य २.१.१७.९(अस्थिदाह में अग्नि का शिखण्डी नाम), ३.३.९.२१(शिखण्डी का रूपण रूप में अवतार), लिङ्ग १.२४.८७(१८वें द्वापर में मुनि, पुत्रों के नाम), वायु २३.१८१/१.२३.१७१(१८वें द्वापर में शिव अवतार, पुत्रों के नाम), शिव ३.१.३५(ईशान शिव द्वारा सृष्ट ४ बालकों (जटी, मुण्डी, शिखण्डी, अर्द्धमुण्ड) में से एक), ३.५.२०(१८वें द्वापर में शिव अवतार), स्कन्द ५.३.८३.४९(शिखण्डी नृप की कन्या द्वारा अपने पूर्व जन्म के पति की अस्थियों को हनूमन्तेश्वर तीर्थ में क्षेपण की कथा), ७.१.२४.१६० (शिखण्डी गन्धर्व गण द्वारा रूप गर्व युक्त गन्धर्व कन्या को कुष्ठ प्राप्ति का शाप), ७.१.५४.३(वही), ७.१.९१.२(शिखण्डीश : त्र्यम्बक लिङ्ग का त्रेतायुग में नाम ), महाभारत शान्ति ३३५.२७(मरीचि, अत्रि आदि ७ चित्र शिखण्डी ऋषियों द्वारा शास्त्र रूप प्रमाण रचना का कथन), shikhandee/ shikhandi
शिखण्डी-राजा द्रुपद का पुत्र, जो पहले शिखण्डिनी नामवाली कन्या के रूप में उत्पन्न होकर पीछे पुत्ररूप में परिणत हो गया था। स्थूणाकर्ण नामक यक्ष ने इसका प्रिय करने की इच्छा से इसे पुरुष बना दिया था (आदि० ६३। १२५/६४.१६७)। यह राक्षस के अंश से उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६७। १२६ )। उपप्लव्य नगर में अभिमन्यु के विवाहोत्सव में सम्मिलित हुआ था (विराट० ७२ । १७)। इसने उलूक को दुर्योधन के संदेश का उत्तर दिया था (उद्योग० १६३ । ४३-४५) ।
इसका द्रुपद के यहाँ उनकी मनस्विनी रानी के गर्भ से पुत्रीरूप में जन्म । माता-पिता द्वारा इसके पुत्रीभाव को छिपाकर पुत्र होने की घोषणा तथा इसके पुत्रोचित संस्कारों का सम्पादन ( उद्योग. १८८ । ९--१९)। इसे लेखन और शिल्पकला की शिक्षा का प्राप्त होना । माता-पिता का परस्पर सलाह करके इसका दशार्णराज की कन्या के साथ विवाह कर देना (उद्योग० १८९ । १-१३)। दशार्णराज की कन्या का शिखण्डी के स्त्रीत्व का पता लगने पर अपनी धायों और सखियों को इसकी सूचना देना और धायों का दशार्णराज तक यह समाचार पहुँचाना । दशार्णराज का कुपित होना । शिखण्डी का राजकुल में पुरुष की भाँति घूमना-फिरना तथा दशार्णराज का दूत भेजकर कन्या को पुत्र बताकर धोखा देने के अपराध में द्रुपद को जड़मूलसहित उखाड़ फेंकने की धमकी देना ( उद्योग० १८९ । १३-२३ )। हिरण्यवर्मा के भय से घबराये हुए द्रुपद का अपनी महारानी से संकट से बचने का उपाय पूछना । द्रुपदपत्नी का कन्या को पुत्र घोषित करने का उद्देश्य बताना। राजा के द्वारा नगर की रक्षा की व्यवस्था और देवाराधन । शिखण्डी का वन में प्राण त्याग देने की इच्छा से वन में जाना, स्थूणाकर्ण यक्ष के भवन में तपस्या करना, यक्ष का इसे वर माँगने के लिये प्रेरित करना तथा शिखण्डिनी का अपने माता-पिता पर आये हुए संकट के निवारण के लिये पुरुषरूप में परिणत हो जाने के लिये इच्छा प्रकट करना ( उद्योग. १९१ अध्याय)। स्थूणाकर्ण का पुनः लौटाने की शर्त पर कुछ काल के लिये इसे अपना पुरुषत्व प्रदान करना । शिखण्डी का नगर में आकर पिता तथा राजा हिरण्यवर्मा को अपने पुरुषत्व का विश्वास दिलाकर संतुष्ट करना (उद्योग १९२ । १-३२ )। शिखण्डी का पुरुषत्व लौटाने के लिये यक्ष के पास जाना और यक्ष का अपने को स्त्रीरूप में ही रहने का शाप प्राप्त हुआ बताकर इसे लौटा देना (उद्योग० १९२ । ५३-५७)। द्रोणाचार्य से अस्त्रशिक्षा की प्राप्ति ( उद्योग० १९२ । ६०-६१)। प्रथम दिन के संग्राम में अश्वत्थामा के साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म ४५। ४६-४८) । द्रोणाचार्य के भय से इसका युद्ध से हट जाना ( भीष्म० ६९ । ३१) । अश्वत्थामा के साथ युद्ध और उनसे पराजित होना (भीष्म० ८२ । २६-३८)। शल्य के अस्त्र को दिव्यास्त्र द्वारा विदीर्ण करना ( भीष्म ८५ । २९-३०)। भीष्म को उत्तर देना और उनको मारने के लिये प्रयत्न करना (भीष्म० १०८ । ४५-५०)। अर्जुन के प्रोत्साहन से इसका भीष्म पर आक्रमण (भीष्म ११०।१-३)। भीष्म पर धावा (भीष्म० ११४ । ४०)। अर्जुन के प्रोत्साहन से भीष्म पर आक्रमण (भीष्म ११७ ॥ १-७) । अर्जुन से सुरक्षित होकर भीष्म पर धावा करना (भीष्म० ११८ । ४३)। भीष्म पर प्रहार (भीष्म० ११९ । ४३-४४) । धृतराष्ट्र द्वारा इसके गुणों का कथन – स्त्री-पुरुष के गुणावगुणों को जानने वाला(द्रोण० १० । ४५-४६)। भूरिश्रवा के साथ इसका युद्ध (द्रोण० १४ । ४३-४५)। इसके रथ के घोड़ों का कथन - आमपात्रसदृश (द्रोण० २३। १९-२०)। विकर्ण के साथ युद्ध (द्रोण० २५ । ३६-३७ )। बाह्रीक के साथ युद्ध (द्रोण. ९६ । ७-१०)। कृतवर्मा के साथ युद्ध और उसके द्वारा इसकी पराजय (द्रोण० ११४ । ८२-९७)। कृपाचार्य द्वारा पराजय (द्रोण० १६९ । २२-३२)। कृतवर्मा के साथ युद्ध में इसका मूञ्छित होना ( कर्ण० २६ । २६-३७ )। कृपाचार्य से पराजित होकर भागना (कर्ण० ५४।१-२३)। कर्ण द्वारा इसकी पराजय (कर्ण० ६१।७-२३)। प्रभद्रकों की सेना साथ लेकर इसका कृतवर्मा और महारथी कृपाचार्य के साथ युद्ध (शल्य०१५।७)। द्रोणपुत्र अश्वत्थामा को आगे बढ़ने से रोकना (शल्य० १६ । ६)। अश्वत्थामा द्वारा इसको असि से द्वेधा विभाजित करने का उल्लेख (सौप्तिक० ८ । ६५)। .
Esoteric aspect of Shikhandi
शिखण्डिनी अग्नि १८.१९(अन्तर्धान - पत्नी, हविर्धान - माता), भागवत ४.२४.३(अन्तर्धान - पत्नी, पावन आदि अग्नियों की माता ), मत्स्य ४.४५(अन्तर्द्धान व शिखण्डिनी से मारीच के जन्म का उल्लेख), द्र. वंश पृथु shikhandinee/ shikhandini
शिखण्डिनी-राजा द्रुपदकी कन्या, जो आगे चलकर पुरुषरूप में परिणत हो गयी थी। पुरुषरूप में इसका नाम शिखण्डी था ( उद्योग० १८८ । ४-१४; उद्योग १९१ । १)।
शिखर स्कन्द १.१.७.३३(श्रीशैल में शिखरेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), कथासरित् ११.१.७५ shikhara
शिखा पद्म ६.१०९.३०(चोल नृप के गुरु मुद्गल द्वारा असफलता पर अपनी शिखा के उत्पाटन का कथन), भविष्य २.१.१७.१३(शिखा में विभु नामक अग्नि का वास ), लक्ष्मीनारायण ३.२०६.११(तिलकरंग वनपाल तथा पत्नी शिखादेवी द्वारा आगन्तुक भक्त की सेवा से मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त), द्र. अग्निशिखा, त्रिशिख, पञ्चशिख, रूपशिख, विद्युत्शिख, हरिशिख shikhaa
शिखि नारद १.६६.११६(शिखीश की शक्ति कुजनी का उल्लेख), स्कन्द ४.२.७०.७०(शिखी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), पद्म १.४६.८१शिखिपट्टिका, द्र. भूगोल, वंश ध्रुव,
शिखिध्वज योगवासिष्ठ ६.१.७७, ६.१.९३+, ६.१८४, ६.१.९३, ६.१.११०,
शितिपाद ५.२.३४.१८,
शिपिविष्ट भागवत ४.१३.३५ ( पुत्र हेतु शिपिविष्ट विष्णु को पुरोडाश अर्पित करने का उल्लेख - पुरोडाशं निरवपन् शिपिविष्टाय विष्णवे ॥ तस्मात्पुरुष उत्तस्थौ हेममाल्यमलाम्बरः ।), ८.१७.२६(नमस्ते पृश्निगर्भाय वेदगर्भाय वेधसे । त्रिनाभाय त्रिपृष्ठाय शिपिविष्टाय विष्णवे ॥ ) महाभारत शान्ति ३४२.७१( शिपिविष्ट शब्द की निरुक्ति – हीनरोमा, सबका आवेष्टन करने वाला - शिपिविष्टेति चाख्यायां हीनरोमा च यो भवेत्। तेनाविष्टं तु यत्किंचिच्छिपिविष्टेति च स्मृतः।।)
शिनि स्कन्द ५.२.७७(शिनि द्वारा पुत्रार्थ तप, वीरक शिवगण की पुत्र रूप में प्राप्ति),
शिप्रा स्कन्द ५.१.३.१६, ५.१.२०(शिप्रा में स्नान के पश्चात् ढुण्ढेश्वर के दर्शन का माहात्म्य), ५.१.२८.५७, ५.१.४९.१९(विष्णु की अङ्गुलि पर त्रिशूल प्रहार से उत्पन्न रस से शिप्रा की उत्पत्ति, शिप्रा का माहात्म्य), ५.१.५०.४३, ५.१.५१(अमृत की पुन: प्राप्ति के लिए नागों द्वारा शिप्रा में स्नान, अमृतोद्भवा नाम), ५.१.५२.५३(यज्ञ वराह के ह्रदय से शिप्रा के जन्म का कथन), ५.१.५२.६६(शिप्रा के साथ क्षिप्र शब्द का उल्लेख), ५.२.१४(शिप्रा में कालकूट विष को वहन करने की सामर्थ्य), ५.२.७१.६९(शिप्रा का प्राची/सरस्वती से तादात्म्य ), कथासरित् ५.१.१४२, shipraa
शिबि गरुड १.८७.१६(तामस मन्वन्तर में इन्द्र), पद्म १.६.४२(प्रह्लाद - पुत्र), १.३४(ब्रह्मा के यज्ञ में प्रतिस्थाता), ६.१९९, ६.२२२, ब्रह्म १.११, भागवत ४.१३.१५, मत्स्य ६, ४२(शिबि द्वारा ययाति को स्व पुण्यों के दान का प्रस्ताव, शिबि आदि में स्वर्ग गमन की प्रतिस्पर्द्धा), वायु ९९.२१(उशीनर शिबि : उशीनर व दृषद्वती - पुत्र, शिबि के पुत्रों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१७९(चतुर्थ मन्वन्तर में इन्द्र), स्कन्द ६.९०(उशीनर शिबि द्वारा वसुधारा से अग्नि की तृप्ति), महाभारत कर्ण ४५.३५(शिबि निवासियों की विषम विशेषता का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१२४, २.१२६.१९(थर्कूट राज्य के राजा शिबि द्वारा यज्ञ करने आदि का वर्णन ), २.१८८.१९, ३.७४.५४, कथासरित् १.७.८८, १६.३.१७, द्र. मन्वन्तर, वंश ध्रुव, वंश संह्राद, shibi
शिबिका नारद १.४८, २.२२.७९, पद्म ६.२०४(रुग्ण शरभ वैश्य का शिबिका पर आरूढ होना, विकट राक्षस द्वारा शिबिका वाहकों का भक्षण), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.१७(शिबिका दान से विष्णु लोक की प्राप्ति), मार्कण्डेय ७८.१८/७५.१८(सूर्य के कर्तित तेज से कुबेर की शिबिका आदि के निर्माण का उल्लेख), विष्णु २.१३.६५, वा.रामायण ४.२५(वाली के अन्तिम संस्कार हेतु निर्मित शिबिका ) shibikaa
शिम्बी पद्म ४.२१.२७(शिम्बी के पापकर होने का उल्लेख )
शिर गरुड २.२२.५९(शिर में क्रौञ्च द्वीप की स्थिति), नारद १.६६.१११(शिरोत्तम की शक्ति युक्ति का उल्लेख ), स्कन्द ५.३.८३.१०५, shira
शिरा ब्रह्माण्ड २.३.६.७(महाशिरा : दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक), वायु ६८.७/२.७.७(वही), द्र. त्रिशिरा, पञ्चशिरा, मृगशिरा, वेदशिरा, शङ्कुशिरा, स्थूलशिरा, हयशिरा shiraa
शिरीष भविष्य १.१९३.११(शिरीष की दन्तकाष्ठ की महिमा), विष्णुधर्मोत्तर १.१३५.४३, स्कन्द ७.१.१७(शिरीष की दन्तकाष्ठ का महत्त्व ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९६, shireesha/ shirisha
शिल पद्म ६.८१(शिलोच्छ वृत्तिधारी पुरुष द्वारा सिद्ध से गङ्गा माहात्म्य का श्रवण ), भागवत ११.१७.४१, महाभारत अनुशासन २६.१९शिलोच्छवृत्ति, योगवासिष्ठ ६.२.१६६ shila
शिला अग्नि ४१(शिला न्यास विधि), ४३.१२(प्रतिमा हेतु शिला के लक्षणों का कथन), ९२(शिलाओं के प्रकार, पूजा विधि, शिला में महाभूतों का न्यास), ९४(पांच प्रकार की शिलाओं की अर्चना), ११४.१० (मरीचि - पत्नी धर्मव्रता के शिला बनने की कथा), गरुड १.८६(गया माहात्म्य प्रसंग में प्रेत शिला की महिमा), ३.२६.९३(सीताराम शिला का माहात्म्य), ३.२६.१०८(पट्टाभिराम शिला का माहात्म्य), देवीभागवत ९.२४, ब्रह्म १.७९, ब्रह्माण्ड २.३.१३.४३(जातवेद शिला), नारद २.६७.१०(बदरी तीर्थ में स्थित नारद, गरुड आदि पांच शिलाओं का माहात्म्य), भविष्य ३.३.२१.२०(मकरन्द द्वारा धर्म से शिला अश्व की प्राप्ति), ३.४.६(शालिग्राम शिला), मत्स्य १३, १५७, वराह ८१६, १८२(शाल प्रतिमा प्रतिष्ठापन विधि), वायु १०६.२७, १०६.४६(गयासुर के शीर्ष पर धारित शिला का चलायमान होना, गदाधर की गदा से स्थिर होना), १०७+ (मरीचि - पत्नी धर्मव्रता का पति के शाप से शिला बनना, शिला की गयासुर के शीर्ष पर स्थिति, शिला की महिमा), १०८(शिला के हस्त, पादादि पर विभिन्न पर्वतों की स्थिति), विष्णुधर्मोत्तर ३.९०(शिला परीक्षा), ३.९४(शिला न्यास), शिव १.१८.४९(शिला लिङ्ग के शूद्रों द्वारा पूजित होने तथा शुद्धिकर होने का उल्लेख), स्कन्द २.३.३+ (बदरी क्षेत्र में नारदीय शिला, मार्कण्डेय शिला, वाराही शिला, गारुडी शिला, नारसिंही शिला), २.४.२, ३.१.३९(विश्वामित्र के शाप से शिला बनी रम्भा की मुक्ति की कथा), ४.२.५९.९६(धूतपापा कन्या का धर्म के शाप से चन्द्रकान्त शिला बनना), ५.३.१०४(सुवर्ण शिला तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१४६.६३, ६.४०(ब्रह्मा द्वारा पृथिवी पर त्रिकाल सन्ध्या के लिए चित्र शिला की स्थापना), ६.१११(दमयन्ती का ब्राह्मणों के शाप से शिला बनना), ६.१३४(हारीत - पत्नी पूर्णकला का शाप से खण्ड शिला बनना, खण्ड शिला की अर्चना से काम की कुष्ठ से मुक्ति ), योगवासिष्ठ ६.१.४६शिलाक, ६.२.६६, ६.२.७०, ६.२.९४.६८(, ६.२.१६६, लक्ष्मीनारायण १.२०६, १.३४०, १.४१०, १.४९८, १.५०२, १.५०३, २.१५८.७३, २.१८३, ३.२१५, ३.२१८शिलाङ्गारखानि, ४.१०१.१३१, द्र. तक्षशिला, दामशिलाद, मत्स्यशिला, सुवर्णशिला shilaa
शिलाद लिङ्ग १.४२(शिलाद द्वारा शिव को पुत्र नन्दी के रूप में प्राप्त करना), शिव ३.६(शिलाद द्वारा तप से नन्दी पुत्र की प्राप्ति ), स्कन्द १.२.२९, लक्ष्मीनारायण ३.२१५, shilaada/ shilada
शिलीमुख वायु ६९.१५९, कथासरित् १०.६.२९
शिल्प अग्नि ३३६.४३(शिल्प सम्बन्धी शब्दों का निरूपण), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०(शिल्पकार की उत्पत्ति व इतिहास), १.१०.४०(चन्द्रमा से शृङ्गार शिल्प प्राप्ति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.१०(शिल्प कर्म के आरम्भ में विश्वरूप की पूजा), स्कन्द ४.२.८६(विश्वकर्मा को गुरु दक्षिणा के लिए शिल्प विद्या प्राप्ति), हरिवंश ३.३०.४(पृथु के शिल्पों का प्रवर्तक होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१००.३३४, ३.२१६, कथासरित् ६.३.४२(मायायन्त्रमय चक्र शिल्पों का प्रदर्शन), वास्तुसूत्रोपनिषद ४.९(शिल्प व शुल्ब में साम्य), shilpa
Vedic contexts on Shilpa
शिव अग्नि ३, २१.९(शिव पूजा विधि), ७४(शिव पूजा विधि), ९१.१५(शिव के बीज मन्त्र आं हौं का उल्लेख), ९७(शिवलिङ्ग प्रतिष्ठा विधि), १०३(शिवलिङ्ग जीर्णोद्धार विधि), १२४.२१(शिव की नाभिमूल में स्थिति का वर्णन), १७८, १८४, १९३(शिवरात्रि व्रत विधि), २१७(वसिष्ठ द्वारा शिव की विभिन्न लिङ्ग नामों से स्तुति), ३०४(शिव पञ्चाक्षर मन्त्र दीक्षा विधान), ३१७.९(शिव की तत्पुरुष आदि मूर्तियों के बीज मन्त्र), ३२३.२८(७० अक्षरों का ईशान शिव आदि ह्रदय मन्त्र), ३२४(कल्पाघोर रुद्र शान्ति का वर्णन), ३२७.७(शिव पञ्चाक्षर मन्त्र व शिवलिङ्ग पूजा की महिमा), कूर्म २.३१(शिव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम गर्वित शिर का छेदन, ब्रह्मा द्वारा स्तुति, वेदों द्वारा गुणगान), गरुड १.२१(पञ्चवक्त्र शिव अर्चन विधि), १.२२(शिवार्चन विधि), १.२३.३३(पञ्चवक्त्र शिव का न्यास), १.४२(शिव हेतु पवित्रारोपण विधि), १.२०५.६६(दक्षिणाग्नि का रूप), गर्ग २.२५(कृष्ण के दर्शन हेतु शिव द्वारा गोपी रूप धारण करना), १०.३९(शिव द्वारा कृष्ण की स्तुति), देवीभागवत ९.२.८२(शिव की कृष्ण से उत्पत्ति), नारद १.१६.७८(भगीरथ द्वारा गङ्गा प्राप्ति हेतु शिव की स्तुति), १.६६.१०६(शिव नामों के साथ शैव मातृका न्यास), १.६६.११९(शिवेश की शक्ति व्यापिनी का उल्लेख), १.६६.१२५(शिवोत्तम की शक्ति शान्ति का उल्लेख), १.७६.११५(शिव के अभिषेक प्रिय होने का उल्लेख), १.७९.२३०(हनुमान द्वारा शिव की अर्चना), १.९१(शिव मन्त्र विधान), १.१२२.५०(कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को दीप अर्चन, शिव शत नाम), १.१२३.६०(शिव चतुर्दशी व्रत विधि), १.१२३.६९(शिवरात्रि चतुर्दशी व्रत विधि), २.४९.१६(१२ मासों की चतुर्दशियों में विभिन्न नामों से शिव की पूजा), २.७३(जैमिनि के समक्ष शिव द्वारा ताण्डव नृत्य, जैमिनि द्वारा स्तुति), पद्म १.१४(शिव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का चेदन, विष्णु से भिक्षा रूप में प्राप्त रक्त से रक्त नर की उत्पत्ति, ब्रह्महत्या निवृत्ति हेतु ब्रह्मा व विष्णु की स्तुति), १.२०(शिव व्रत की विधि व माहात्म्य), १.४६(अन्धक द्वारा पराजय पर शिव द्वारा सूर्य की स्तुति, अन्धक को गण बनाना), ३.२५, ५.१०४(शिव का शम्भु ब्राह्मण रूप में अयोध्या गमन, राम से पुराणादि का कथन), ५.११७(राम द्वारा किए गए श्राद्ध के अनुष्ठान में शिव का अतिथि रूप में आगमन तथा राम व सीता की परीक्षा), ६.१११(सावित्री के शाप से शिव का वेणा नदी बनना), ६.११७, ६.१८१(शङ्कुकर्ण ब्राह्मण - पुत्र, सर्प योनि ग्रस्त पिता के धन की प्राप्ति व पिता की मुक्ति का उद्योग), ६.२३५(शिव द्वारा तामस लक्षणों को धारण करना, तामस पुराणों की सृष्टि), ६.२५०(बाणासुर युद्ध प्रसंग में शिव की कृष्ण से पराजय, कृष्ण की स्तुति), ६.२५५(भृगु के शाप से शिव द्वारा लिङ्ग स्वरूप की प्राप्ति), ब्रह्म १.३३(बाल रूप धारी शिव का ग्राह से ग्रस्त होना, पार्वती द्वारा स्व - तप से मोचन), १.३४(पार्वती स्वयंवर में शिव का शिशु रूप में पार्वती के अङ्क में सोना, इन्द्र व भग द्वारा शिव पर प्रहार), १.३८(दक्ष - प्रोक्त शिव सहस्रनाम), २.३२, २.४३, २.७३, २.९२, २.९९, २.१०५, ब्रह्मवैवर्त्त ३.१८, ४.४३(सती के वियोग में शिव का विलाप, प्रकृति की स्तुति, पार्वती से परिणय), ब्रह्माण्ड १.२.२५(शिव द्वारा नीलकण्ठ नाम प्राप्ति का कारण, ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), १.२.२६(शिव के लिङ्गान्त के दर्शन न होने पर ब्रह्मा व विष्णु द्वारा शिव की स्तुति), १.२.२७(ऋषियों के शाप से शिव के लिङ्ग का पतन व पुन: लिङ्ग प्रतिष्ठा), २.३.२३(मृगव्याध रूपी शिव द्वारा परशुराम की परीक्षा), २.३.७२.१६२(शुक्र द्वारा विद्या प्राप्ति के पश्चात् शिव की स्तुति), ३.४.२.२३४(शिव लोक की स्थिति व निवासियों का वर्णन), ३.४.१०(मोहिनी रूप धारी विष्णु पर शिव की आसक्ति), ३.४.१४(ललिता प्राप्ति हेतु शिव द्वारा मदनकामेश्वर रूप धारण), ३.४.३७(कामेश्वर शिव), भविष्य ३.४.२५.२१(अव्यक्त के पश्चिम मुख से शिव की उत्पत्ति का उल्लेख), ३.४.२५.८५(उत्तम मन्वन्तर में रुद्र/शिव की वृष राशि में उत्पत्ति), ३.४.२५.१०१(शिव कल्प का वर्णन), ४.९३(शिव चतुर्दशी व्रत के संदर्भ में उतथ्य व अङ्गिरा मुनियों में श्रेष्ठता का विवाद, अङ्गिरा द्वारा सूर्य और अग्नि के कार्यों का सम्पादन), ४.९७(शिव चतुर्दशी व्रत), भागवत ४.२(दक्ष द्वारा शिव को यज्ञ से बहिष्कृत करना, नन्दी द्वारा दक्ष को शाप), ४.६(ऋषियों द्वारा शिव की स्तुति), ७.१०(शिव द्वारा त्रिपुर दाह की कथा), ८.७.२०(विषपान हेतु प्रजापतियों द्वारा शिव की स्तुति), ८.१२(शिव द्वारा हरि की स्तुति, मोहिनी रूप पर मोहन), १०.८८(शिव द्वारा वृक असुर को कर स्पर्श से मृत्यु का वरदान, ब्रह्मचारी वेश में वृक की वञ्चना), मत्स्य २३(तारा हरण के कारण शिव का चन्द्रमा से युद्ध), ४७.१२८(धूमपान व्रत की पूर्णता पर शुक्र द्वारा शिव स्तोत्र का पठन), ५६(कृष्ण अष्टमी व्रत में मास अनुसार शिव पूजा), १०१.१२(शिव व्रत), १०१.८२(शिव व्रत), १५४.४५२(पार्वती से विवाह हेतु शिव का गमन, यात्रा का वृत्तान्त), २५०.२८(देवों व दानवों द्वारा शिव की स्तुति, शिव द्वारा कालकूट विष का पान), २५९(शिव की मूर्तियों के आकार), २५९.११(शिव की त्रिपुरान्तक मूर्ति का आकार), २६०.१(शिव की अर्धनारीश्वर प्रतिमा का रूप), २६०.११(उमा - महेश्वर प्रतिमा का रूप), २६०.२१(शिव नारायण प्रतिमा का रूप), लिङ्ग १.११.८(सद्योजात शिव का माहात्म्य, ब्रह्म के पार्श्व से श्वेत मुनि आदि का प्राकट्य), १.१२(सद्योजात शिव का माहात्म्य), १.१३(तत्पुरुष शिव का माहात्म्य), १.१४(अघोर शिव का माहात्म्य), १.१८(विष्णु द्वारा शिव की स्तुति), १.२१(ब्रह्मा व शिव द्वारा स्तुति), १.२३(कल्पानुसार सद्योजातादि शिव का प्राकट्य), १.६५(शिव सहस्रनाम), १.७९(शिवार्चन विधि), १.८३(मासानुसार शिव व्रत की विधि), १.८५(शिव पञ्चाक्षर मन्त्र का माहात्म्य), १.९५(नृसिंह के भयंकर रूप की शान्ति हेतु देवों द्वारा शिव की स्तुति), १.९८(विष्णु - प्रोक्त शिव सहस्रनाम), १.१०२(पार्वती स्वयंवर में शिव का पार्वती के अङ्क में शयन, देवों के अस्त्रों को स्तम्भित करना), १.१०६(काली के प्रसन्नार्थ शिव द्वारा ताण्डव नृत्य), २.११(शिव की विभूतियों का वर्णन), २.१२(शिव की मूर्तियों के भेद), २.१६(शिव की विभूतियों का वर्णन), २.१९(शिव पूजा विधि, शिव के विभिन्न मुखों का वर्णन), २.२१.९(अष्टदल कमल पत्रों में शिव के नाम), २.२२+ (शिवार्चन विधि), २.२३.८(शिव के विभिन्न मुखों के वर्ण), २.२७(शिवाभिषेक विधि), वराह १५४, १६८(शिव द्वारा मथुरा में क्षेत्रपालत्व का ग्रहण), वामन १(शिव के आभूषणों का वर्णन), ४४(शिव के लिङ्ग का पतन, पुन: स्थापना, शिव द्वारा हस्ती रूप धारण), ५१(शिव का भिक्षु रूप में उमा के समीप गमन), ६०(शिव द्वारा तेज प्राप्ति के लिए तप), ६२(शिव का विष्णु से देह एक्य), ६७(शिव का विष्णु से एकत्व, गणों द्वारा दर्शन), ८२(शिव द्वारा विष्णु को सुदर्शन चक्र देना, विष्णु द्वारा सुदर्शन से शिव की देह का खण्डन), ९०.४१(शिव लोक में विष्णु का नाम सनातन), वायु २३.६३(विभिन्न कल्पों में शिव के सद्योजात आदि अवतार), २३.११६(द्वापरों में शिव अवतारों के नाम), २४.९०(विष्णु व ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ३०.१८१(यज्ञ विध्वंस के पश्चात् दक्ष द्वारा सहस्र नामों से शिव की स्तुति), ५४(शिव द्वारा नीलकण्ठ नाम प्राप्ति का कारण, देवों द्वारा शिव की स्तुति, शिव द्वारा कालकूट विष का पान), ५५(लिङ्गान्त दर्शन में असफल रहने पर ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), १०१.२३१(शिव पुर की शोभा का वर्णन), १०४.८१(शैव पीठ की सीमन्त में स्थिति), विष्णु २४४, विष्णुधर्मोत्तर १.२९(शिव का अङ्गुष्ठ मात्र होकर चन्द्र व सूर्य के पास जाना), १.६७(शिव की विष्णु से श्रेष्ठता की स्पर्द्धा), ३.४८(शिव की मूर्ति का रूप), विष्णुधर्मोत्तर ३.५५, शिव १.२३(शिव नाम का माहात्म्य), २.१.६(शिव के निर्गुण व सगुण रूप), २.१.८(पञ्चवक्त्र शिव), २.१.९(ब्रह्मा व विष्णु द्वारा पञ्चवक्त्र शिव से वेद ज्ञान की प्राप्ति), ३.१(शिव के सद्योजातादि नाम), ३.२(शिव की शर्व आदि ८ मूर्तियां), ३.२०(मोहिनी रूप के दर्शन से शिव वीर्य की च्युति, हनुमान का जन्म), ३.२८(शिव का नल के प्रीतिकर हंस रूप में अवतार), ३.३२(उपमन्यु की परीक्षा हेतु शिव का शक्र रूप में अवतार), ३.३३(शिव द्वारा तपोरत शिवा की ब्रह्मचारी रूप में परीक्षा), ३.३४(शिव द्वारा नर्तक रूप में हिमालय से पार्वती की याचना), ३.३९(मूक दैत्य के वध हेतु शिव द्वारा भिल्ल वेश धारण , अर्जुन से विवाद), ४.४२(शिव के सगुण व निर्गुण भेद), ५.३(शिव द्वारा कृष्ण व राम को वर प्रदान), ६.१७(शिव का शक्ति के साथ मिलन का स्वरूप), ७.१.२८(शिव का शक्ति से एक्य), ७.२.३१(पञ्चावरण शिव स्तोत्र का वर्णन), स्कन्द १.१.०+, १.१.६(ऋषियों के शाप से शिव के लिङ्ग का पतन), १.१.१०(शिव द्वारा कालकूट विष का भक्षण), १.१.२१(शिव का गौरी पर मोहित होना, काम को दग्ध करना), १.१.२२(शिव का ब्रह्मचारी रूप में गिरिजा के प्रति गमन), १.१.३१(शिव द्वारा यम को धर्मोपदेश), १.१.३२(शिव धर्म), १.२.२५(शिव का विप्र रूप में तपोरत पार्वती से संवाद), १.३.२.२(शिव के निवास क्षेत्रों के नाम), १.३.२.३(शिव पूजक ऋषियों के नाम), २.२.१२(शिव द्वारा काशिराज को वर, कृष्ण पर पाशुपत अस्त्र द्वारा प्रहार, विष्णु की स्तुति, पुरुषोत्तम क्षेत्र की स्थापना), ३.१.२४(शिव तीर्थ का माहात्म्य, कालभैरव की ब्रह्महत्या से मुक्ति), ३.२.८, ३.३.४, ३.३.१४(शिव द्वारा द्विज रूप में भद्रायु की परीक्षा), ३.३.२०(शिव द्वारा वैश्य रूप में महानन्दा वेश्या की परीक्षा), ४.१.१७(शिव के भाल से स्वेद बिन्दु पतन से मङ्गल ग्रह की उत्पत्ति), ४.१.३३.१६८(विभिन्न लिङ्गों की शिव के अङ्गों के रूप में कल्पना), ४.१.४४+ (दिवोदास के राज्य में शिव के काशी से वियोग का वर्णन, विघ्नार्थ ६४ योगिनियों, सूर्य, गणेश, विष्णु आदि का प्रेषण), ४.२.५२+ (काशी से दिवोदास के निष्कासन के लिए शिव द्वारा योगिनियों, सूर्य, ब्रह्मा, गण आदि का प्रेषण), ४.२.८७(दक्ष द्वारा शिव की विसंगतियों का चिन्तन), ५.१.३(शिव द्वारा भिक्षा रूप में विष्णु से भुजा के रक्त की प्राप्ति, रक्त नर की उत्पत्ति), ५.१.३६(शिवपद तीर्थ की उत्पत्ति की कथा), ५.१.५१(नाग लोक में भिक्षा प्राप्त न होने पर शिव द्वारा अमृत कुण्ड का पान, सर्पों द्वारा शिप्रा में स्नान, शिव की स्तुति), ५१५१३५, ५.२.३७(शिव लिङ्ग का माहात्म्य, गणेश का लिङ्ग में परिवर्तित होना, रिपुञ्जय की कथा), ५.२.३७.४७, ५.२.४०, ५.३.६(प्रलय काल में शिव द्वारा मयूर रूप धारण), ५.३.८(बक कल्प में शिव द्वारा बक पक्षी रूप धारण), ५.३.१६(संहार काल में ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ५.३.२६.१६, ५.३.२८(शिव द्वारा बाणासुर के त्रिपुर विनाश का उद्योग), ५.३.३८(शिव द्वारा सुन्दर रूप धारण कर ब्राह्मण - पत्नियों में विकार उत्पन्न करना, ब्राह्मणों के शाप से लिङ्ग पतन, तप से लिङ्ग का पूजित होना), ५.३.८५.१७, ५.३.१४५(शिव तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१८१.४४, ५.३.२०९, ६.१(ब्राह्मण - पत्नियों में कामुकता उत्पन्न करने से शिव के लिङ्ग का ब्राह्मणों के शाप से पतन, देवों के अनुरोध पर पुन: धारण), ६.१२२(हिरण्याक्ष - प्रमुख ५ दैत्यों के वधार्थ शिव द्वारा महिष रूप धारण), ६.१५३(तिलोत्तमा द्वारा प्रदक्षिणा करते समय शिव का क्षुब्ध होना, चतुर्मुख बनना, पार्वती द्वारा शिव के नेत्रों का रोधन), ६.२५८.४५(प्रणव ज्ञानार्थ तपोरत पार्वती के समीप शिव द्वारा काम क्रीडा, ऋषियों के शाप से लिङ्ग का पतन, ऋषियों द्वारा स्तुति, शिव द्वारा सुरभि की स्तुति, सुरभि शरीर में लय होना, सुरभि गौ से नील वृष रूप में जन्म लेना), ७.१.३(कैलास पर शिव की सभा का वर्णन, शिव द्वारा पार्वती को विभूति योग का वर्णन), ७.१.७(कल्पों के अनुसार शिव के नाम), ७.१.२२(कला अनुसार शिव के नाम), ७.१.१८७, ७.१.३०८(ऋषि - पत्नियों में क्षोभ उत्पन्न करने वाले डिण्डि रूप धारण, कुबेराश्रम में गज रूप धारण), योगवासिष्ठ ६.१.३०, ६.२.८२(शिव का स्वरूप), ६.२.८४(शिव व शक्ति), लक्ष्मीनारायण १.५४८.९०(हर के प्रभास में बाल रूप होने का उल्लेख), २.२७.७७(शिव का भाद्रपद अष्टमी को शयन, मास अनुसार शिव पूजा विधान ), ३.२०.४१, कथासरित् ५.१.८१, shiva
शिवगण शिव २.३.४०, २.५.९, २.५.३१,
शिवजय लक्ष्मीनारायण ३.२२१,
शिवदत्त ब्रह्माण्ड ३.३५.११, कथासरित् १२.७.१५४,
शिवदृष्टि भविष्य ३.१.७.१३
शिवदूती देवीभागवत ५.२८(शिवदूती मातृका की चण्डिका से उत्पत्ति, शिवदूती द्वारा शिव को दूत बनाकर शुम्भ के पास प्रेषण), पद्म १.३१(शिवदूती द्वारा रुरु दैत्य का वध, शिव द्वारा स्तुति), १.४६.७९, ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९६(ललिता - सहचरी शिवदूती द्वारा पुक्लस का वध), मार्कण्डेय ८८, विष्णुधर्मोत्तर ३.७३(शिवदूती देवी की मूर्ति का रूप), स्कन्द ४.२.७०.२७(शिवदूती देवी का संक्षिप्त माहात्म्य) shivadootee/shivaduutee/ shivaduti
शिवनामस्तुति नारद १.६६, पद्म १.२३, मत्स्य ६४, वामन ६५.१२१, ७०, वायु ९६.१६२, शिव २.५.४७, ४.३५, ७.१.८, ७.२.३, ७.२.३१, स्कन्द १.३.६,
शिवपुर कथासरित् १२.२२.३
शिवभूति कथासरित् १७.१.२३
शिवरात्रि गरुड १.१२४(शिवरात्रि व्रत : माघ/फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को सुन्दरसेन राजा की मुक्ति की कथा), शिव ४.३८, स्कन्द १.१.३३, ३.३.२, ५.३.२०९.१२६, ६.२६६(माघ कृष्ण चतुर्दशी को चोर द्वारा अनायास शिव पूजा से मुक्ति की कथा), ७.१.३९, ७.१.१४८, ७.२.१६.१०३(शिव रात्रि का माहात्म्य व व्रत विधि), ७.३.९(शिवरात्रि में केदारेश्वर की पूजा), लक्ष्मीनारायण १.१५३(शिवरात्रि व्रत की महिमा : लुब्धक को स्वर्ग लोक की प्राप्ति ) shivaraatri/ shivaratri
शिवराज्ञी लक्ष्मीनारायण ३.३८.२
शिववर्मा कथासरित् १.५.५९
शिवशर्मा पद्म २.१+ (शिवशर्मा ब्राह्मण द्वारा चार पुत्रों की पितृभक्ति की परीक्षा की कथा), २.४७, ६.६२, ६.२००+ (गुणवती - पति, विष्णुशर्मा व सुशर्मा - पिता, इन्द्रप्रस्थ में स्नान से पूर्व - जन्म का ज्ञान), ६.२०५, स्कन्द ४.१.७+ (भूदेव - पुत्र शिवशर्मा द्विज द्वारा तीर्थ यात्रा, मायापुरी में देहावसान व मुक्ति), ४.१.२३.१(शिवशर्मा का नन्दिवर्धन पुर के राजा के रूप में जन्म, अनङ्गलेखा - पति), ४.१.२४(शिवशर्मा का जन्मान्तर में वृद्धकाल नृप बनना ) shivasharmaa
शिवा ब्रह्मवैवर्त्त १.६, ब्रह्माण्ड १.२.१०.८०(ईशान - पत्नी, मनोजव व अविज्ञातगति - माता), भविष्य १.३१, लिङ्ग २.१३.१०(शिव - भार्या, मनोजव - माता), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.६(वायु की प्रकृति शिवा का उल्लेख), स्कन्द १.२.१३(शतरुद्रिय प्रसंग में शिवा देवी द्वारा पारद लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), १.२.२९.१००, ५.१.३८.३४(अन्धक के रक्त पान के पश्चात् चामुण्डा का शिवा नाम होना ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.११८, कथासरित् १८.२.१६०, द्र. वंश वसुगण, भूगोल shivaa
शिशिर नारद १.५९.५०(शुक द्वारा शैशिर गिरि पर आकर पिता व्यास के दर्शन का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२४.१४१(ऋतुओं में शिशिर के आदि होने का उल्लेख), वराह १२३(शिशिर ऋतु में करणीय अर्चना ), विष्णु २.४.३, विष्णुधर्मोत्तर १.२४६, हरिवंश ३.३५.१२, द्र. वंश वसुगण shishira
शिशु अग्नि २९९(शिशु पीडक ग्रही के लक्षण व चिकित्सा), स्कन्द ४.१.४५.३८(शिशुघ्नी : ६४ योगिनियों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.७३.११ (दन्त जनन तक शिशु होने का उल्लेख ) shishu
शिशुपाल
गर्ग ६.४.७(रुक्मी
द्वारा रुक्मिणी
का
विवाह शिशुपाल से
करने का निश्चय -
युवराजस्ततो
रुक्मी
तं
निवार्य्य
प्रयत्नतः
।
कृष्णशत्रुर्महावीरं
शिशुपालममन्यत
।।),
७.९.१४(दमघोष
व श्रुतिश्रवा -
पुत्र,
प्रद्युम्न
से युद्ध में
विभिन्न अस्त्रों का प्रयोग,
पराजय),
देवीभागवत
४.२२.४२
(हिरण्यकशिपु
का अंश-
हिरण्यकशिपोरंशः
शिशुपाल
उदाहृतः
।
),
पद्म
६.२५२.१५(तत्र
शिशुपालः
कृष्णं
बहून्याक्षेपवाक्यान्युक्तवान्
।
कृष्णोऽपि
सुदर्शनेन
तस्य
शिरश्चिच्छेद।।)
ब्रह्मवैवर्त्त
३.१७.१६(स्कन्द
से सम्बन्धित महाषष्ठी का
शिशुपालिका नाम -
ददौ
तस्मै
वेदमन्त्रैर्विवाहविधिना
स्वयम्
।।
यां
वदन्ति
महाषष्ठीं
पण्डिताः
शिशुपालिकाम्
।।),
४.११३.२९(शिशुपाल
द्वारा कृष्ण की स्तुति),
भागवत
७.१.४५(शिशुपाल
के पूर्व जन्म में जय -
विजय
होने का प्रसंग),
७.१.३२(शिशुपाल
द्वारा द्वेष से मुक्तिप्राप्ति
-
गोप्यः
कामाद्भयात्कंसो
द्वेषाच्चैद्यादयो
नृपाः।
सम्बन्धाद्वृष्णयः
स्नेहाद्यूयं
भक्त्या
वयं
विभो।।),
१०.५३(शिशुपाल
के रुक्मिणी से विवाह का आयोजन,
विवाह
में असफलता),
विष्णु
४.१५.१(शिशुपाल
के जन्मान्तरों का वर्णन),
स्कन्द
५.३.१४२.२०
(भीष्मक
द्वारा स्वकन्या चतुर्भुज
शिशुपाल को देने का निश्चय),
७.१.२०.३२
(योऽसौ
देवि
दशग्रीवः
संबभूवारिमर्द्दनः
॥
दमघोषस्य
राजर्षेः
पुत्रो
विख्यातपौरुषः
॥
श्रुतश्रवायां
चैद्यस्तु
शिशुपालो
बभूव
ह
॥,
हरिवंश
२.३६.३(शिशुपाल
का गद से युद्ध ),
२.४२.४२(कृष्ण-बलराम
के हनन हेतु चेदिपाल द्वारा
गोमन्तकपर्वत में आग लगाने
का परामर्श),
shishupaala/ shishupala
Comments on Shishupaala
शिशुमार देवीभागवत ८.१६, ८.१७(शिशुमार चक्र की महिमा, शिशुमार चक्र में नक्षत्रों, देवों आदि का न्यास), ब्रह्म १.२२(तारों से निर्मित शिशुमार चक्र की पुच्छ में ध्रुव, ह्रदय में नारायण), ब्रह्माण्ड १.२.२३.९९(शिशुमार के शरीर में देवों, तारकों का न्यास), भविष्य ३.४.५.६(प्रलय के उपरान्त विष्णु द्वारा शिशुमार चक्र की सृष्टि), भागवत ५.२३(शिशुमार चक्र का वर्णन, देह में नक्षत्रादि का न्यास - ज्योतिरनीकं शिशुमारसंस्थानेन भगवतो वासुदेवस्य योगधारणायामनुवर्णयन्ति ॥), मत्स्य १२५.५, वायु ५२.९१(शिशुमार के शरीर में देवगण का न्यास), विष्णु २.९(शिशुमार की महिमा का कथन, आकाशगङ्गाजल की महिमा), २.१२.२९(शिशुमार चक्र में देवतादि का न्यास), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६(शिशुमार शरीर में देवता आदि का न्यास), स्कन्द ४.१.१२, लक्ष्मीनारायण ३.१६.५२(वरुण के वाहन जलधि नामक शिशुमार की ब्रह्मा के कर्णमल से उत्पत्ति का उल्लेख - ब्रह्मकर्णमलोद्भूतं श्यामं जलधिनामकम् । शिशुमारमधिरुह्य वरुणस्तत्र चाययौ । ), कथासरित् १०.७.९८(वानर व शिशुमार में मैत्री के उदय व नाश की कथा), shishumaara/ shishumara
शिश्न पद्म ५.१०९.१०७(इक्ष्वाकु ब्राह्मण द्वारा शिवलिंग की निन्दा से शिश्नवक्त्र होने का कथन), विष्णु २.१२.३३(ध्रुव के शिश्न में संवत्सर का न्यास), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६.७(ध्रुव देह में संवत्सर के शिश्न होने का उल्लेख )
शिष्ट कूर्म १.१४.३(शिष्टि : ध्रुव - पुत्र, सुच्छाया - पति, ५ पुत्रों के नाम ), मत्स्य ४ shishta
शिष्टाचार ब्रह्माण्ड १.२.३२.४१(शिष्टाचार के लक्षण), वायु ५९.३३(शिष्टाचार की निरुक्ति),
शिष्य अग्नि २७(शिष्य की दीक्षा विधि), २९३.१६(गुरु से प्राप्त मन्त्र की सिद्धि में ही कल्याण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६०.४(तर्पण, पिण्डदान में शिष्य के पुत्र के समकक्ष होने का कथन), ४.१०४.३०(विभिन्न ऋषियों के शिष्यों की संख्या), ब्रह्माण्ड २.३४.१२(द्वैपायन व्यास के शिष्य), २.३४.२४(पैल के शिष्य), २.३४.३१(सत्यश्रिय के शिष्य), २.३५.२(शाकल्य के शिष्य, २.३५.५(बाष्कलि के शिष्य), २.३५.२८(व्यास के शिष्य), २.३५.३७(सुकर्मा के शिष्य), २.३५.४०(हिरण्यनाभ के शिष्य), २.३५.४२(कुशुम के शिष्य), २.३५.४९(हिरण्यनाभ व लाङ्गलि के शिष्य), २.३५.६०(शौनक के शिष्य), २.३५.६५(सूत के शिष्य), २.३५.८८(देवदर्श के शिष्य), भागवत ५.२.९(पूर्वचित्ति अप्सरा के संदर्भ में भ्रमरों की शिष्यों से उपमा), वामन ६१.२९(शिष्य व पुत्र में भेद, शिष्य की निरुक्ति : शेषों/पापों को तारने वाले), विष्णु ६.८(शिष्य परम्परा), विष्णुधर्मोत्तर २.८६(शिष्य के आचार की विधि), शिव ३.४+ (२८ द्वापरों के व्यासों के शिष्य), ६.१९(गुरु द्वारा शिष्य को दीक्षा की विधि), ७.२.१६(शिष्य का दीक्षा संस्कार), ७.२.२०(शिष्य अभिषेक विधि), स्कन्द २.५.१६(शिष्य के लक्षण), ४.२.५८.७२(काशी से दिवोदास के उच्चाटन हेतु विष्णु व गरुड द्वारा बौद्ध आचार्य व शिष्य रूप धारण), महाभारत आश्वमेधिक ५१.४६(मन के शिष्य होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१६३(विभिन्न ऋषियों के शिष्यों की संख्या), २.४७.२०(शिष्य की निरुक्ति : शेष पाप हर), २.४७.५७(शिष्य द्वारा विज्ञान से जोडने का उल्लेख, शिष्य की महिमा), २.४७.७९(शिष्यों के ३ प्रकार ), कथासरित् १०.७.१६३, shishya
शीघ्रग पद्म १.६(सम्पाति गृध्र का पुत्र), १.३२(शीघ्रग प्रेत का पृथु ब्राह्मण से संवाद व मुक्ति), मत्स्य ६, १२८.७०(शीघ्र गति करने वाले ग्रहों के नाम), वायु १३.१२(योग के द्वितीय पद के रूप में शीघ्रग का उल्लेख ), वा.रामायण १.७०.४१ sheeghraga/ shighraga
शीत वा.रामायण १.३०.१९(राम द्वारा मारीच पर शीतेषु नामक मानवास्त्र का प्रयोग ), कथासरित् ३.४.२३४शीतोदा sheeta/ shita
शीतल/शीतला नारद १.११७.९४(शीतला अष्टमी की पूजा व स्वरूप), स्कन्द ५.१.१२(मर्कट तीर्थ में शीतला का माहात्म्य), ७.१.१३५(शीतला गौरी का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.५३९, २.१४०.७३(शीतल प्रासाद के लक्षण ) sheetala/ shitala
शीर्ष ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८८(महाशीर्ष : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक ), द्र. मार्गशीर्ष, रुद्रशीर्ष, शतशीर्ष sheersha/ shirsha
शील पद्म १.१९.३२५, १.२०.८५(शील व्रत का माहात्म्य व विधि), ३.३१.१८३, ५.११, ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५९(शील सौन्दर्य हेतु रत्न दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड ३.७.४६९मातृकाएं, भविष्य ४.१०६(शीलधना : मैत्रेयी द्वारा कृतवीर्य - पत्नी शीलधना को अनन्त व्रत का उपदेश, शीलधना द्वारा कार्तवीर्य पुत्र की प्राप्ति), भागवत ९.२३.२(महाशील : जनमेजय - पुत्र, महामना - पिता, अनु वंश), मत्स्य १०१.३९(शील व्रत), मार्कण्डेय ७०/६७.३०, विष्णुधर्मोत्तर ३.२०८(शील प्राप्ति व्रत), ३.२६३(शील की प्रशंसा), शिव २.१.३शीलनिधि, २.५.४१, स्कन्द ४.१.२९.१५६(शीलवती : गायत्री सहस्रनामों में से एक), महाभारत वन ३१३.७०, शान्ति १२४, लक्ष्मीनारायण २.२०९.८९(प्रह्लाद द्वारा शील दान पर सारे गुणों के निष्क्रमण का वर्णन ), २.२२६.७२(शील के चिदम्बर होने का उल्लेख), ३.१५, ३.१०७.८४शीलव्रता, ३.१११, ३.१८४.४२शीलधर्मा, ४.६, ४.६३शीलयानी, कथासरित् ७.२.३८, १०.२.५८शीलहर, १२.५.२३७, १२.७.२५शीलधर, द्र. दीर्घशील, दु:शील, भद्रशील, वाशीला, विक्रमशील, श्रीशील, सत्वशील, सुशील sheela/ shila
शीला भविष्य ४.९४(सुमन्तु व दीक्षा - पुत्री, कौण्डिन्य - पत्नी शीला द्वारा अनन्त व्रत का पालन), वामन ६९.१३२(शमीक - पत्नी शीला द्वारा मातलि पुत्र की प्राप्ति ) sheelaa/ shilaa
शुक गणेश २.८.१(महोत्कट गणेश द्वारा शुक रूप धारी राक्षस - द्वय उद्धत व धुन्धु का वध), गर्ग ७.४०(शकुनि असुर की मृत्यु का शुक में निहित होना, गरुड द्वारा शुक का वध), देवीभागवत ११०, १.१४(व्यास व शुकी रूपी घृताची से शुक की उत्पत्ति, शुक हेतु अन्तरिक्ष से दण्ड, कृष्णाजिन आदि का पतन), १.१४+ (व्यास द्वारा शुक से गृहस्थाश्रम स्वीकार करने का आग्रह, शुक की अस्वीकृति), १.१७(जनक के वैराग्य का दर्शन करने हेतु शुक का मिथिला गमन, द्वारपाल से संवाद, राग - विराग का निरूपण), १.१८+ (जनक के उपदेश से शुक का पीवरी से विवाह, सन्तान उत्पत्ति, ऊर्ध्व लोक गमन), नारद १.५०(शुक की उत्पत्ति के संदर्भ में वाक्/संगीत के लक्षणों का निरूपण), १.५८(व्यास व घृताची से शुक की उत्पत्ति की कथा), १.५९(मोक्ष विषयक ज्ञान प्राप्ति हेतु शुक का जनक के निकट गमन), १.६०.३९+ (सनत्कुमार द्वारा शुक को विषयों से निवृत्ति का उपदेश), १.६२(शुक का तप से ऊर्ध्व गति होना, श्वेत दीप व वैकुण्ठ धाम में विष्णु के दर्शन, पुन: पृथिवी पर आकर व्यास से भागवत शास्त्र का पठन), १.९१.१३०(शुक द्वारा दक्षिणामूर्ति शिव की आराधना), पद्म २.८५(च्यवन द्वारा कुंजल शुक से संवाद, दिव्यादेवी के पतियों के मरण का वृत्तांत), २.१२२(धर्मशर्मा बालक का शुक के शोक में मृत्यु के पश्चात् कुञ्जल शुक बनना), २.१२३, ५.५७(सीता द्वारा शुक-शुकी का वार्तालाप श्रवण व बन्धन, शुकी व शुक द्वारा सीता को शापदान), ५.७२.६७(दीर्घतपा व्यास - पुत्र, जन्मान्तर में कृष्ण - पत्नी बनना), ६.१७५(वेश्या - पालित शुक की ऋषियों द्वारा शिक्षा, शुक के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, गीता के प्रथम अध्याय के माहात्म्य का प्रसंग), ६.१९८.६८(शुक द्वारा भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को भागवत कथारंभ का उल्लेख), ७.१५.२२(वेश्या द्वारा शुकशावक को रामनाम की शिक्षा, विष्णुलोक गमन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८५.११८(अञ्जन चोर के शुक बनने का उल्लेख - शुकोऽप्यञ्जनचोरश्च मिष्टचोरः कृमिर्भवेत् ।।), ब्रह्म २.५८/१२८(अग्नि का शुक रूप धारण कर शिव-पार्वती के रमण स्थान में प्रवेश), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१२(अग्नि, पवमान – पुत्र? - द्वितीयस्तु सुतः प्रोक्तः शुकोऽग्निर्यः प्रणीयते॥), २.३.८.९२(द्वैपायन व अरणी से शुक का जन्म, शुक व पीवरी के पुत्रों के नाम), भविष्य ३.२.४(चूडामणि नामक शुक द्वारा रूपवर्मा के विवाह में सहयोग), ३.३.१३.४१(पुंडरीक नाग द्वारा शापित शुक का वृत्तान्त), ३.३.२८.५६(वेश्या द्वारा कृष्णांश को पुनः शुक बनाने व भोजन न देने का उल्लेख), ३.३.२९.८(शुक मुनि द्वारा मञ्जुघोषा अप्सरा से मुनि नामक पुत्र उत्पन्न करना), भागवत १.१९(प्रायोपवेशन पर बैठे परीक्षित के पास शुक का आगमन), मत्स्य १५.८(शुक के पीवरी कन्या का पति बनने तथा कृत्वी कन्या को जन्म देने का कथन) , मार्कण्डेय १५.२८(चोरी के फलस्वरूप शुक योनि की प्राप्ति), वराह १७०.४८+ (शुकोदर : वामदेव - शिष्य, शुकदेव मुनि के शाप से शुक बनना, गोकर्ण से संवाद , मथुरा यात्रा), वामन ९०, वायु ६९.३२०(शुकी व गरुड की सन्तानों के नाम), ७०.८४(पीवरी व शुक की सन्तानों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.५६.९(अग्नि के स्वरूप के संदर्भ में शुकों के वेद होने का उल्लेख - श्मश्रु तस्य विनिर्दिष्टं दर्भाः परमपावनम् ।। ये वेदास्ते शुकास्तस्य रथयुक्ता महात्मनः ।।), स्कन्द २.१.७.६०(शुकावेदित पद्मावती परिणय वृत्तान्त), २.१.९.६३(तोण्डमान द्वारा पञ्चवर्णी शुक का पीछा, श्रीनिवास को शुक की प्रियता, श्री व भू देवियों द्वारा शुक का पालन), २.१.९(शुक मुनि द्वारा तोण्डमान को उपदेश), ३.१.२०(शुक द्वारा जटा तीर्थ में मन: शुद्धि), ३.१.२३(यज्ञ में उपद्रष्टा), ५.३.९७.३१(सत्यभामा द्वारा राजा वसु के पास शुक द्वारा संदेश प्रेषण), ६.६४.१२ (पूर्व जन्म में शुक चित्ररथ का चमत्कारी देवी की प्रदक्षिणा से राजा होना), ६.९०.३१(शुक द्वारा देवों को अग्नि का वास स्थान बताने पर अग्नि द्वारा शुक को शाप, देवों द्वारा उत्शाप), ६.१४७(व्यास व वटिका/पिङ्गला से शुक के जन्म की कथा, शुक का व्यास से संवाद, वन गमन), ७.१.७८(शुक द्वारा वैश्वानर लिङ्ग की प्रदक्षिणा से अगस्त्य व लोपामुद्रा बनना), ७.३.७(शुक द्वारा अचलेश्वर की प्रदक्षिणा से वेणु नृप बनना), हरिवंश १.१८, महाभारत शान्ति ३४१(शुक द्वारा दोषों का त्याग कर सिद्धि प्राप्ति का वर्णन), अनुशासन ५, योगवासिष्ठ २.१(शुक द्वारा जनक से शिक्षा प्राप्ति का वर्णन), वा.रामायण ४.४१.४३(ऋषभ पर्वत पर स्थित ५ गन्धर्वपतियों में से एक), ६.२०(रावण द्वारा सुग्रीव को शुक नामक दूत का प्रेषण, वानरों द्वारा शुक की दुर्दशा, राम कृपा से मुक्ति), ६.२५(रावण के मन्त्रीद्वय शुक व सारण द्वारा राम की वानर सेना का गुप्त रूप से निरीक्षण, वानरों द्वारा बन्धन व मोचन), ६.२९(रावण द्वारा शुक व सारण का सभा से निष्कासन), ६.३६.१९(लङ्का के उत्तर द्वार के रक्षकों के रूप में शुक व सारण का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३२१, १.३५०, १.४९५, १.५०४, २.२८.२५(शुक जाति के नागों का कथार्थी होना), ३.३२.११(गार्हपत्य अग्नि – पुत्र - गार्हपत्यसुतौ शंस्यं शुकं तथा ह्यभक्षयत् ।। ), ३.५२, ३.११४.७४शुकायन, कथासरित् ३.६.७९, १०.३.२५, १२.५.२३७, १२.१०.६, shuka
शुकी स्कन्द ४.१.४५.३७(६४ योगिनियों में से एक), द्र. वंश ताम्रा
शुक्तिमान् मत्स्य ११४.३२(शुक्तिमान् पर्वत से उद्भूत नदियां – काशिका सुकुमारी च मन्दगामन्दवाहिनी। कृपा च पाशिनीचैव शुक्तिमन्तात्मजास्तु ताः।। ), वराह ८५(शुक्तिमान् पर्वत से उद्भूत नदियां - ऋषिका लूसती मन्दगामिनी पलाशिनी इत्येताः शुक्तिमत्प्रभवाः। ), द्र. भूगोल shuktimaan
शुक्र गणेश २.३१.३७(शक्र द्वारा बलि के संकल्प पात्र का छिद्र खोलने पर शुक्र के नेत्र का भङ्ग होना), २.६३.३७(शुक्र द्वारा देवान्तक व गणेश के युद्ध में असुरों का उज्जीवन, ईशिता सिद्धि द्वारा शुक्र के बन्धन का उपाय), गरुड ३.२७.८(शुक्र के सुरापान दोष का उल्लेख), गर्ग ७.१३.२८(विभीषण द्वारा प्रद्युम्न से प्राप्त बाण के विषय में शुक्राचार्य से पृच्छा), देवीभागवत ४.१०, ४.११(शिव से मन्त्र प्राप्ति हेतु शुक्र द्वारा कणधूमपान, विष्णु द्वारा काव्य माता का चक्र से वध), ८.४.२७(उशनाकाव्य की पत्नी ऊर्जस्वती से देवयानी कन्या के जन्म का उल्लेख), नारद १.११.७६(शुक्र द्वारा बलि के संकल्प कुम्भ में प्रवेश कर धारा को अवरुद्ध करने पर वामन द्वारा शुक्र के नेत्र का भञ्जन), पद्म १.१३.१९९(विष्णु द्वारा शुक्र - माता का वध, भृगु द्वारा पत्नी का पुन: सञ्जीवन, कणधूमसेवनरत शुक्र की जयन्ती द्वारा सेवा, जयन्ती के साथ अदृश्य रूप में रमण, बृहस्पति द्वारा दानवों की वञ्चना आदि), १.३४, १.८१, २.११८, ६.१७, ब्रह्म १.७०.५१(गर्भ धारण के संदर्भ में शुक्र के सोमात्मक व आर्तव के पावकात्मक होने का उल्लेख), १.७०.५२(शुक्र के कफ वर्ग व शोणित के पित्तवर्ग में होने का उल्लेख), २.२५(शुक्र तीर्थ का माहात्म्य, गुरु अङ्गिरा का पक्षपात देखकर शुक्र द्वारा शिव को गुरु बनाना, मृत सञ्जीवनी विद्या की प्राप्ति), २.८२, ब्रह्मवैवर्त्त २.४.५४(शुक्र द्वारा भृगु से सरस्वती मन्त्र प्राप्ति का उल्लेख), २.५१.२९(शुक्र द्वारा सुयज्ञ नृप को स्त्री हत्या के पाप व प्रायश्चित्त का कथन), ४.८१(चन्द्रमा व तारा आख्यान में शुक्र द्वारा चन्द्रमा को शरण देना), ब्रह्माण्ड २.३.१.२०(अग्नि में शुक्र की आहुति से सप्तर्षियों की उत्पत्ति), २.३.७२.१६२(धूमपान व्रत के पश्चात् शुक्र द्वारा शिव से विद्या की प्राप्ति, शिव की स्तुति), २.३.७३(जयन्ती द्वारा शुक्र की सेवा, शुक्र की अनुपस्थिति में बृहस्पति का शुक्रवेश धारण करना), २.३.१.७५(भृगु व दिव्या - पुत्र, गौ - पति, उशना, कवि आदि नाम, त्वष्टा, वरूत्री आदि ४ पुत्र), ३.४.१२(शुक्र द्वारा भण्डासुर के अभिषेक का उल्लेख), ३.४.१२.४७(शुक्राचार्य द्वारा भण्डासुर को माया के प्रति सचेत करना), भविष्य १.३४.२३(महापद्म नाग का भार्गव ग्रह से तादात्म्य, पद्म बृहस्पति), ३.४.१७.४८(शुक्र ग्रह : ध्रुव व जलदेवी - पुत्र), ३.४.२५.३९(शुक्र की ब्रह्माण्ड के कर से उत्पत्ति, शुक्र से रुद्र सावर्णि मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), ४.१२०.१(प्रतिशुक्र प्रशान्ति हेतु पूजा विधि), ४.१३७(शुक्र द्वारा दानवों को रक्षाबन्धविषयक उपदेश), भागवत ५.१.३३(प्रियव्रत-कन्या ऊर्जस्वती के उशना की भार्या बनने का उल्लेख, देवयानी कन्या का जन्म), ७.५, ८.१५, मत्स्य ४७.८४(महादेव के आदेश से शुक्र द्वारा कुण्डधार यक्ष से धूमपान करना), ४७.१२७(धूमपान व्रत की पूर्णता पर शुक्र द्वारा शिव की स्तुति), ७३.१(शुक्र ग्रह की शान्ति विधि), वामन ६२.४२(शुक्र द्वारा शिव से सञ्जीवनी विद्या की प्राप्ति), ६९(शिव द्वारा शुक्र को उदरस्थ करना, शुक्र द्वारा शिव की स्तुति, विश्व के दर्शन), वायु ३१.४, ६५.३५/२.४.३५(ब्रह्मा द्वारा शुक्र की आहुति से सप्तर्षियों आदि की उत्पत्ति का वर्णन), ६५.७४(भृगु व दिव्या - पुत्र, अङ्गी- पति, ४ पुत्रों के त्वष्टा, वरूत्री, शण्डामर्क नाम), ७२.८०, ९६.११३, ९७.९९(बृहस्पति से श्रेष्ठता प्राप्ति हेतु शुक्र द्वारा तप, विष्णु द्वारा शुक्र - माता का वध, जयन्ती द्वारा शुक्र की सेवा आदि), ९७.१६१(शिव से विद्या प्राप्ति पर शुक्र द्वारा शिव की स्तुति), विष्णुधर्मोत्तर १.३८(शुक्र द्वारा साल्व असुर को परशुराम मानव से उत्पन्न भय से सचेत करना), शिव २.२.३८, २.५.३०, २.५.४७, ७.१.१७.३४(स्वायम्भुव मन्वन्तर के सप्तर्षियों में एक, वसिष्ठ व ऊर्जा – पुत्र), स्कन्द १.१.१४, १.१.१९.७(वामन के संदर्भ में अवज्ञा के कारण शुक्र द्वारा बलि को शाप), १.२.१३.१५०(शतरुद्रिय प्रसंग में शुक्र द्वारा पद्मरागमय लिङ्ग की विश्वकर्मा नाम से पूजा का उल्लेख), ३.१.४९.५९(शुक्र द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ४.१.१६(नन्दी द्वारा शुक्र का बन्धन, शिव द्वारा शुक्र का स्वमुख में निगरण, शुक्र का शिव के शुक्रमार्ग से बहिर्गमन, तप से लोकाधिपतित्व प्राप्ति), ४.२.८३.९३(शुक्र तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२५.१(शुक्रेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१९५.११(भार्गव के लिए मौक्तिकदान का निर्देश), ६.१४८, ६.२५२.३६(चातुर्मास में शुक्र की उदुम्बर में स्थिति का उल्लेख), ७.१.२३.९७(चन्द्रमा के यज्ञ में होता), ७.१.४८(शुक्रेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, शुक्राचार्य द्वारा अमृत विद्या की प्राप्ति), ७.१.२४७, हरिवंश ३.७१(शुक्र द्वारा बलि को वामन को दान देने से रोकना), महाभारत शान्ति २१४.२४(शुक्र गति के भूतसंकरकारिका होने का उल्लेख), अनुशासन ११६.९(मांस की सम्भूति शुक्र से होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ४.५+ (भृगु - पुत्र), ४.५.१०+ (शुक्र बालक द्वारा तपोरत पिता भृगु की सेवा व अप्सरा में रत होना, मृत्यु पश्चात् विभिन्न योनियों में जन्म, भृगु द्वारा शुक्र की पूर्व देह में प्राणों का संचार), ५.२८, वा.रामायण ७.१५, लक्ष्मीनारायण १.१४६(वामन-बलि की कथा), १.३२५.५(शुक्र द्वारा जालंधर को राहु के शिरोहीन होने का कारण बताना), १.३२७.४५(असुरसेना में अमंगल – काणे शुक्र के दर्शन), १.३७०.६१(नरक में शुक्र कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), १.४०७, १.४४१.९०( वृक्षरूपधारी श्रीहरि के दर्शनार्थ शुक्र द्वारा उदुम्बररूप धारण का उल्लेख), १.४४५.५८(शुक्र द्वारा चन्द्रमा को तारा-भोगजन्य पाप के प्रायश्चित्त के लिए प्रेरित करना), १.५५४.३(शुक्रेश्वर तीर्थ का माहात्म्य – शुक्र द्वारा सञ्जीवनी विद्या प्राप्ति), २.१४.२६(शुक्रजीवनी राक्षसी द्वारा युद्ध में धूम्र, मेघ, पांशु आदि अस्त्रों के मोचन तथा उनके प्रतिकार का कथन), २.५०.५० (शुक्र-पुत्री अरजा से रति करने पर दण्ड राजा के नष्ट होने की कथा), २.२२७.१३(देह में शुक्र के विभिन्न रूप ), कथासरित् ८.२.१७१( सूर्यप्रभ के संदर्भ में उशना द्वारा दैत्यों की शक्ति की इन्द्र की शक्ति से तुलना), द्र. मन्वन्तर, वंश पृथु, वंश वसिष्ठ shukra
शुक्ल कूर्म २.४१.६७(शुक्ल तीर्थ का माहात्म्य), गणेश २.२२.३४(विद्रुमा - पति), २.२३.२६(गणेश का शुक्ल के गृह में आगमन, दश भुजाओं से ओदन का भक्षण), गर्ग ७.४०, पद्म ३.१९(शुक्ल तीर्थ की उत्पत्ति व माहात्म्य), ५.७०.६०(पश्चिम द्वार पर स्थित शुक्ल विष्णु का कथन), ब्रह्म २.६३(शुक्ल तीर्थ में हव्यघ्न दैत्य का गङ्गाजल से प्रोक्षण होने पर दैत्य का कृष्ण से शुक्ल होना), भविष्य ३.४.३.१(काश्यप - पुत्र, विष्वक्सेन - पिता, बौद्ध - विजय, वंश वर्णन), मत्स्य १९२(शुक्ल तीर्थ का माहात्म्य), स्कन्द ५.३.१५५(शुक्ल तीर्थ का माहात्म्य, विष्णु के तप से महादेvव का प्राकट्य, चाणक्य राजा की वायसों द्वारा काल वञ्चना, चाणक्य द्वारा सिद्धि प्राप्ति), ५.३.२३१.२३, ६.१२३(शुक्ल तीर्थ का माहात्म्य : रजक द्वारा जलाशय में नीलित वस्त्रों को शुक्ल करने की कथा, श्वेत द्वीप का अंश), ७.३.२३(शुक्ल तीर्थ का माहात्म्य, नीली में प्रक्षिप्त वस्त्रों का शुक्ल होना ), लक्ष्मीनारायण १.५७४, ३.२२२.९शुक्लायन shukla
शुक्ल - कृष्ण वायु १११.५९/२.४९.६९(श्राद्ध करने पर शुक्ल - कृष्ण दो हस्तों के प्रकट होने का वृत्तान्त), ११२.१३/२.५०.१३(राजा विशाल के समक्ष सित, रक्त व कृष्ण रूप पितरों का प्राकट्य), ११२.३५/२.५०.४५(हर शाप से मरीचि का शुक्ल से कृष्ण होना, गया में तप से मुक्ति ) shukla - krishna
शुघ्नी भविष्य ४.६९
शुङ्ग स्कन्द ५.१.३१,
शुचि कूर्म १.१३.१६(अग्नि, सूर्य का रूप - निर्मथ्यः पवमानः स्याद् वैद्युतः पावकः स्मृतः ।। यश्चासौ तपते सूर्यः शुचिरग्निस्त्वसौ स्मृतः ।), गरुड १.८७.५९(१४वें मन्वन्तर में इन्द्र), नारद १.६६.९४(हरि की शक्ति शुद्धि का उल्लेख - समृद्धियुङ्नरकजिच्छुद्धियुक्च हरिः स्मृतः॥),पद्म १.१०, २.१३, ब्रह्म १.१२१.२२(आग्नीध्र - पुत्र, विवाह की अनिच्छा प्रकट करना, पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२३(११ रुद्रों में से एक), ब्रह्माण्ड १.२.१२.३(स्वाहा - पुत्र, सौर अग्नि, हव्यवाह - पिता), भविष्य २.१.१७.११(प्राशन में अग्नि का शुचि नाम), मत्स्य ६.३२(कश्यप - कन्या, धर्म - भार्या, हंस, सारस आदि की माता), १२शुच, ५१.४(अग्नि व स्वाहा - पुत्र, हव्यवाह - पिता, सौर अग्नि का रूप - निर्मथ्यः पवमानोऽग्निर्वैद्युतः पावकात्मजः ॥ शुचिरग्निः स्मृतः सौरः स्थावराश्चैव ते स्मृताः।), विष्णुधर्मोत्तर १.१८९(चतुर्दश मन्वन्तर में इन्द्र), शिव ७.१.१७.३९(निर्मंथ्यः पवमानस्स्याद्वैद्युतः पावकस्स्मृतः ॥ सूर्ये तपति यश्चासौ शुचिः सौर उदाहृतः ॥), स्कन्द ३.१.११(शुचि ब्राह्मण द्वारा सुशीला राक्षसी के संयोग से कपालाभरण राक्षस पुत्र की प्राप्ति), ३.३.७(शुचिव्रत : विप्र - पत्नी उमा का पुत्र, शाण्डिल्य द्वारा शुचिव्रत नामकरण, सुवर्ण कलश की प्राप्ति, प्रदोष व्रत की महिमा), ४.१.२९.१५८(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.५९(शुच अप्सरा के कारण वेदशिरा मुनि के वीर्य का स्खलन, धूतपापा कन्या का जन्म), हरिवंश २.९२.१२(शुचिमुखी हंसी द्वारा प्रभावती से प्रद्युम्न की प्रशंसा - हंसाः परिचितां चक्रुस्तां ततश्चारुहासिनीम् । सखीं शुचिमुखीं चक्रे हंसीं राजसुता तदा ।।), लक्ष्मीनारायण १.४६६, ३.३२.७(हव्यवाहन अग्नि - पिता ), ३.१६४.८९, द्र. मन्वन्तर, वंश अग्नि, वंश ताम्रा, वंश ध्रुव, shuchi
शुचिश्रवा पद्म ५.७२.५५(कुशध्वज ऋषि - पुत्र, तप, जन्मान्तर में गोकुल में जन्म - मुनिः शुचिश्रवा नाम सुवर्णो नाम चापरः। कुशध्वजस्य ब्रह्मर्षेः पुत्रौ तौ वेदपारगौ॥), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९३(अजित देवगण में से एक), वायु ३१.७
शुचिष्मती शिव ३८, स्कन्द ४.१.१०.६४(विश्वानर द्विज - भार्या, वैश्वानर पुत्र की उत्पत्ति), shuchishmati
शुचिष्मान् स्कन्द ४.१.१२(कर्दम प्रजापति - पुत्र, शिशुमार द्वारा हरण, शिवगण द्वारा रक्षा, लिङ्ग स्थापना, वरुण पद की प्राप्ति),
शुचिस्मिता पद्म ५.१०५+
शुद्ध अग्नि ३३(भूत शुद्धि विधान), ७४.१६(भूत शुद्धि विधि), १५६(यज्ञपात्र, गृहादि की शुद्धि), गरुड १.२३(भूत शुद्धि विधि), १.९७(द्रव्य शुद्धि विधि), देवीभागवत ७.३०(कपालमोचन तीर्थ में देवी का नाम), ११.८(भूत शुद्धि का वर्णन), पद्म १.२१(शुद्ध नामक स्वर्णकार द्वारा स्वर्णमयी देव प्रतिमा के निर्माण से जन्मान्तर में राजा बनना), ५.७८(वैष्णव की शुद्धि, भक्ति रूप), ५.११४.८२(शिव पूजा से पूर्व भूत शुद्धि विधि का कथन), ब्रह्म १.११३(द्रव्य व प्राणी शुद्धि), भविष्य १.१८६(द्रव्य शुद्धि), भागवत ११.२१.१४(द्रव्य व प्राणी शुद्धि), लिङ्ग १.८९.५६(पात्र व द्रव्य शुद्धि), वायु ७८.५०(विभिन्न द्रव्यों की शुद्धि का विधान), विष्णुधर्मोत्तर २.७९(द्रव्य, प्राणी आदि की शुद्धि), शिव ५.२३.१, स्कन्द ४.१.४०(द्रव्य व प्राणी शुद्धि), ५.३.१७३(शुद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, वाराणसी में रुद्र हस्त से ब्रह्मा के शिर/कपाल का मोचन, नर्मदा तट पर शुद्धेश्वर तीर्थ में ब्रह्महत्या से मुक्ति), ५.३.१९८.८५, ६.२०१(विदेश प्रवास के उपरान्त भर्तृयज्ञ - प्रोक्त शुद्धि), ६.१२३(शुद्धक रजक द्वारा ब्राह्मणों के वस्त्रों का नीली में प्रक्षेप, पुन: शुक्ल जलाशय में शुक्लीकरण), ६.२१३(कृष्ण द्वारा साम्ब को स्वमाता से रति पाप की शुद्धि हेतु तिङ्गिन्या नामक शुद्धि का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.४९.७८(द्रव्य शुद्धि विधान), ३.४७.७०, कथासरित् १२.१३.८शुद्धपा, द्र. द्रव्यशुद्धि, भूतशुद्धि shuddha
शुद्धोदन स्कन्द ५.३.१५५.२५,
शुनक नारद १.४६.४३(शुनक द्वारा केशिध्वज को खाण्डिक्य से धेनु मरण का प्रायश्चित्त जानने का निर्देश), ब्रह्म १.९.३४(गृत्समद - पुत्र, शौनक - पिता), स्कन्द ३.२.९.७७(शुनक गोत्र के ऋषियों के गुण), shunaka
शुनहोत्र ब्रह्म १.९.३२(सुनहोत्र : क्षत्रवृद्ध-पुत्र, काश्य, शल्ल व गृत्समद-पिता)
शुनादेवी वायु ८४.६(समुद्र - कन्या, वरुण - भार्या )
शुन: अग्नि २६४.२५(शुन: को पिण्ड प्रदान हेतु मन्त्र : विवस्वत: कुले जातौ इति), गरुड ३.२२.८१(शुनः में भूतभावन की स्थिति का उल्लेख), पद्म ५.१०६.९८(दीप के आज्य भक्षण से ब्राह्मण द्वारा श्व योनि प्राप्ति की कथा), ६.७७.४६(शुनी के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : रजस्वला स्थिति में श्राद्धादि करने पर शुनी बनना), ६.१८८(शुनी द्वारा शश का पीछा, पङ्क में गिरने पर दिव्य रूप की प्राप्ति, गीता के १४वें अध्याय का माहात्म्य), ७.२१.४१(विप्र पादोदक स्पर्श से भषक के मुक्त होने का कथन, भषक के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), भविष्य १.१८४.४८(शुन: दंशन पर प्रायश्चित्त का कथन), शिव ५.१०.३३(श्वानों व वायसों को अन्न दिए बिना खाने पर दोष का कथन; श्याम व शबल के यम मार्ग अवरोधक होने का उल्लेख), स्कन्द २.७.२४(शुनी का पूर्व जन्म में दुष्ट चरित्रा नारी होना, द्वादशी के पुण्य दान से शुनी की मुक्ति), ७.१.२५५, महाभारत शान्ति ११६+, ११६.१३(मुनि द्वारा भयभीत श्वान को द्वीपी, व्याघ्र, हस्ती, सिंह, शरभ बनाना, अन्त में शरभ को पुन: श्वान बनाना), १४१.४१(विश्वामित्र द्वारा श्व जाघनी हरण के संदर्भ में श्वपच - विश्वामित्र संवाद), लक्ष्मीनारायण १.४३३, १.५६०, १.५७३.३२(शिव को पूजने और पार्वती को न पूजने से विप्रों के शुन: होने का कथन ), कथासरित् २.५.१४२(सती द्वारा विषयलोलुप वणिक्पुत्रों को अयोमय शुन:पाद खं अंकित करने की कथा ), द्र. श्वान, श्वा shunah
शुन:मुख स्कन्द ६.३२(शुन:मुख रूपी शक्र द्वारा सप्तर्षियों के बिसों की चोरी, चोरी पर शुन:मुख आदि की प्रतिक्रिया), ७.१.२५५(शुन:मुख द्वारा सप्तर्षियों के बिस तन्तुओं की चोरी पर प्रतिक्रियाएं ), द्र. शुन:सख shunahmukha
शुन:शेप देवीभागवत ६.१३(हरिश्चन्द्र के यज्ञ में विश्वामित्र द्वारा शुन:शेप की रक्षा की कथा), ७.१६+ (विश्वामित्र द्वारा शुन:शेप की यज्ञपशुत्व से मुक्ति की कथा), ब्रह्म १.८.६६(शुन:शेप द्वारा देवरात नाम की प्राप्ति), २.३४(अजीगर्त - पुत्र शुन:शेप की हरिश्चन्द्र के यज्ञ के यज्ञ पशु के रूप में कल्पना, विश्वामित्र का पुत्र बनना), २.८०, भागवत ९.१६ स्कन्द ३.१.२३.२९(शुन:शेप के यज्ञ में आग्नीध्र ऋत्विज बनने का उल्लेख), ६.२७८, हरिवंश १.२७.५४(ऋचीक - पुत्र शुन:शेप का विश्वामित्र - पुत्र बनना, देवरात नाम प्राप्ति), वा.रामायण १.६१(ऋचीक - पुत्र, अम्बरीष के यज्ञ में यज्ञपशु बनना, विश्वामित्र द्वारा रक्षा), लक्ष्मीनारायण १.४९८.४१(पाप से गति के अवरुद्ध न होने वाले ४ पतिव्रताओं के पतियों में से एक ) shunahshepa
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शुन:सख पद्म १.१९(सप्तर्षियों की मृणाल चोरी पर शुन:सख की प्रतिक्रिया), द्र शुन:मुख
शुभ नारद १.११६.४१(आश्विन् शुक्ल सप्तमी को शुभ सप्तमी), पद्म १.२१.३०५(शुभ सप्तमी विधि), १.५०.६१(शुभा पतिव्रता द्वारा नरोत्तम ब्राह्मण को शिक्षा), भविष्य ४.१३(शुभोदय वैश्य द्वारा भद्र व्रत के पालन से स्वर्णष्ठीवी बनना), ४.१६७(शुभावती : हव्यवाहन नृप की भार्या, पिप्पलाद द्वारा शुभावती को आपाक?आंवां दान विधि का कथन), मत्स्य ८०(शुभ सप्तमी व्रत, आश्विन् शुक्ल सप्तमी), वराह ३६शुभदर्शन, ५५, स्कन्द ४.२.९७.७७(शुभेश्वर लिङ्ग पर कम्पिल द्वारा सिद्धि प्राप्ति), ७४१७२५शुभानन, लक्ष्मीनारायण २.१७६.४१ (ज्योतिष में योग), कथासरित् ८.२.३७८शुभङ्कर, १०.१.२५शुभदत्त, १२.५.२६०शुभनय, १८.४.९२(वराह द्वारा शुभ रूप धारण करने का वृत्तान्त ) shubha
शुभाङ्ग गर्ग ७.२७.८(शुभाङ्ग : निष्कौशाम्बी पुरी के अधिपति शुभाङ्ग द्वारा प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करना), हरिवंश २.६१(रुक्मी - पुत्री शुभाङ्गी द्वारा स्वयंवर में प्रद्युम्न का वरण ), २.१२१शुभाङ्गी, shubhaanga/ shubhanga
शुभ्र गर्ग ७.५.७(प्रद्युम्न द्वारा कच्छ देश के राजा शुभ्र पर विजय), ७.२७शुभ्राङ्ग, ब्रह्म २.९३, भागवत ८.५,
शुम्भ गणेश २.७६.१३(विष्णु व सिन्धु के युद्ध में शुम्भ का विष्णु से युद्ध), देवीभागवत ५.२१+ (शुम्भ द्वारा तप, ब्रह्मा से अवध्यता वर की प्राप्ति, देवों को त्रास), ५.३०, ५.३१(कालिका द्वारा शुम्भ का वध), पद्म ५.१०४, ६.६.९१(जालन्धर - सेनानी, वसुओं से युद्ध), ६.१२.२(जालन्धर - सेनानी, नन्दी से युद्ध), ६.१०१(जालन्धर - सेनानी, गणेश से युद्ध), भविष्य ३.४.१५, ४.५८, भागवत ८.१०.३१(शुम्भ व निशुम्भ का भद्रकाली से युद्ध), मत्स्य १४८.५५(शुम्भ असुर के कालशुक्लमहामेष वाहन का कथन), १५२.२५(तारक - सेनानी, विष्णु से युद्ध), मार्कण्डेय ८५, ८८(शुम्भ का वध), वामन ५५(शुम्भ - निशुम्भ का रक्तबीज से परिचय), ५६(शुम्भ - निशुम्भ का वध), शिव २.५.२४.१३(शिव द्वारा शुम्भ - निशुम्भ को गौरी के हाथों मरण का शाप), ५.४७(सरस्वती द्वारा शुम्भ का वध), ७११७, ७.१.२४(शुम्भ की उत्पत्ति), स्कन्द १.२.१६.२०(शुम्भ के महावृक केतु होने का उल्लेख), १.२.१६.२७(शुम्भ के कालमुञ्च महामेघ वाहन का उल्लेख), २.४.२२.७, ७.३.२४(कात्यायनी द्वारा शुम्भ का वध), लक्ष्मीनारायण १.१६५, १.३२८.७(शुम्भ के लम्बोदर से युद्ध का उल्लेख ), द्र. जलन्धर shumbha
शुल्ब वास्तुसूत्रोपनिषद ४.९(शुल्ब व शिल्प में साम्य - शुल्वं यज्ञस्य साधनं शिल्पं रूपस्य साधनम् ॥)
शुष्क नारद २.१.३(शुष्क व आर्द्र पापेन्धन की व्याख्या), ब्रह्माण्ड २.३.५७(शुष्क मुनि द्वारा परशुराम से गोकर्ण क्षेत्र के उद्धार की प्रार्थना), स्कन्द ४.२.६८.७२(शुष्कोदरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण ३.९४.१७, ३.९४.३०, shushka
शुष्करेवती मत्स्य १७९, वामन ५५(शुष्करेवती द्वारा चण्ड - मुण्ड के शिर से आभूषण का निर्माण ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२६, shushkarevatee/ shushkarevati
शुष्म ब्रह्माण्ड १.२.१३.९(शुचि व शुक्र मासों की शुष्मी संज्ञा), भागवत १०.४६.९, लिङ्ग १.२४.१०३(शुष्मायन : २२वें द्वापर में व्यास ), विष्णु २.४.३८शुष्मी, शिव ३.५shushma
शूकर गरुड १.२१७.१९(गुरु भार्या गमन से शूकर योनि की प्राप्ति का उल्लेख), गर्ग ७.३५.२(कालनाभ असुर का क्रोडारूढ होकर रण में आगमन, प्रद्युम्न द्वारा बाण से क्रोड का वध), देवीभागवत ३.११(बाणविद्ध शूकर को देखकर सत्यव्रत मुनि के मुख से सरस्वती बीज मन्त्र का प्रस्फुटन), ७.१८.१७(विश्वामित्र द्वारा हरिश्चन्द्र के राज्य में भयानक शूकर का प्रेषण, हरिश्चन्द्र द्वारा शूकर का पीछा), पद्म २.४२( ), २.४६(इक्ष्वाकु - पत्नी सुदेवा से शूकरी द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन – रंगविद्याधर गंधर्व द्वारा तपोरत पुलस्त्य के समक्ष गान करने पर शाप से वराह बनना), ६.११९(शूकर क्षेत्र का माहात्म्य), मार्कण्डेय १५.१२(दुष्कृत्य के फलस्वरूप शूकर योनि की प्राप्ति), वराह ९८(विष्णु रूपी शूकर का इन्द्र रूपी व्याध द्वारा पीछा, सत्यतपा द्वारा शूकर की रक्षा), १३७(सौकरव तीर्थ में शृगाली व गृध्र का वृत्तान्त ), शिव ३.३९(अर्जुन द्वारा शूकर रूप धारी मूक दैत्य के वध का वृत्तान्त), स्कन्द ५.३.१५९.१४(अयाज्ययाजक नृप के ग्रामसूकरता को प्राप्त होने का उल्लेख), हरिवंश ४.४.३३, कथासरित् ५.३.१७२, द्र. वराह, सूकर shuukara/shookara/ shukara
शूद्र गरुड ३.२२.७९(शूद्र में संकर्षण की स्थिति का उल्लेख), पद्म १.९, १.१०.३(शूद्र हेतु मासपर्यन्त अशौच का विधान), १.३५.५२(राम राज्य में शूद्र द्वारा तप के कारण बालक की मृत्यु का आख्यान), १.५३.२५(लोभरहित शूद्र का क्षपणक रूप धारी विष्णु से वार्तालाप), ४.१४(भीम नामक शूद्र द्वारा पापयुक्त मन से ब्राह्मण की सेवा करने पर भी स्वर्ग जाने की कथा), ६.५७(शूद्र द्वारा तप के कारण मान्धाता के राज्य में अनावृष्टि), ब्रह्म १.११५(शूद्र द्वारा सदाचार से द्विजत्व की प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१९(विश्वकर्मा व शूद्रा से उत्पन्न ९ शिल्पकार पुत्रों के नाम), १.१०.५८(विश्वकर्मा द्वारा घृताची को शूद्रा बनने का शाप), ब्रह्माण्ड १.२.७.१६७(सत्शूद्रों की गन्धर्व लोक में स्थिति), भविष्य ३.४.२३.९९(शूद्र वर्ण द्वारा दैत्यों व दानवों की तृप्ति का उल्लेख), भागवत ११.१७.१९(शूद्र की प्रकृति का कथन – सेवा से सन्तोष प्राप्ति), वराह १२८.२५, विष्णु ६.२.१९(कलियुग में शूद्र का महत्त्व), शिव ५.३६.५८(पृषध्र का गुरु के शाप से शूद्र बनने का कथन), स्कन्द २.५.१२.५(दशमीविद्धा द्वादशी व्रत से द्विज के शूद्र बनने का कथन), ३.१.१०.३१(दृढमति शूद्र द्वारा ब्राह्मणों से दीक्षा की प्रार्थना, अस्वीकृति, सुमति द्विज द्वारा दीक्षा), ३.२.६.७६(शूद्र विषयक धर्म – अधर्म), ३.२.३९.२९०(कलियुग में द्विजों के शूद्रों के जातिभेद से युक्त होने का उल्लेख), ५.३.१८१.१६(शूद्रान्न से द्विज के नष्ट होने का उल्लेख), ५.३.२००.६(शूद्र के लिए सावित्री ध्यान व मन्त्र का निषेध), ६.६५(शूद्रेश्वर का माहात्म्य, सुहय राजा के कपाल का चूर्ण करके गङ्गा - यमुना के मध्य में क्षेपण से प्रेतों की मुक्ति, लिङ्ग स्थापना), ६.९२(शूद्र द्वारा भीष्मपंचक व्रत से जन्मान्तर में द्विज बनने की कथा), ६.१३६.८(माण्डव्य द्वारा धर्मराज को शूद्र योनि में जन्म का शाप), ६.१९८.७८(शूद्री-ब्राह्मणी तीर्थद्वय का माहात्म्य- रत्नावती व उसकी ब्राह्मणी सखी के तप का स्थान), ६.२३९.३१(जन्म से शूद्र उत्पन्न होकर संस्कार से द्विज बनने का उल्लेख), ६.२४१(सत्शूद्र के लक्षण व धर्म), ६.२४२.२८(शूद्र द्वारा सभी कर्म मन्त्ररहित करने का निर्देश ; गृहस्थ के शूद्र होने का उल्लेख?), ६.२४२.३२(शूद्र की १८ प्रकृतियों का कथन), ७.१.१२९.१२(शूद्रान्न भक्षण के दोषों का वर्णन ), महाभारत शान्ति २९३, अनुशासन १०, आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३४३, लक्ष्मीनारायण १.२५७, १.३२१, shoodra/shuudra/ shudra
शूद्रक स्कन्द १.२.४०.२५०(कलियुग में शूद्रक राजा द्वारा चर्चिता की आराधना से सिद्धि प्राप्ति ), कथासरित् १२.११.५, shuudraka/shoodraka/ shudraka
शून्य अग्नि २१४.३९(मन्त्र रहस्य के संदर्भ में तीन शून्यों की महिमा का कथन), ३४८.७, ब्रह्माण्ड ३.४.२१.३(भण्डासुर के शून्यक पुर का कथन), ३.४.२२.२२(भण्डासुर के शून्यक पुर की रक्षा का उद्योग), ३.४.२९.२१(भण्डासुर का शून्यक नगर), शिव २.१.६.५२(विष्णु के अङ्गों से नि:सृत जलधारा द्वारा शून्य के अभिव्याप्त होने का उल्लेख), महाभारत अनुशासन ७५.२४, योगवासिष्ठ ६.२.१०५.३८(चिच्छून्य की प्राप्ति में कठिनाई का दृष्टान्तों सहित कथन ) shoonya/shuunya/ shunya
शूर गणेश २.५५.३०(नरान्तक के दूतों शूर व चपल का गणेश वध हेतु काशी में आगमन, गणेश द्वारा जीवन दान), नारद १.६६.१३१(शूर गणेश की शक्ति जम्भिनी का उल्लेख), पद्म ६.२०.४०(सगर के अवशिष्ट ४ पुत्रों में से एक), ७.२३(शौरि ब्राह्मण द्वारा सुप्राज्ञा से एकादशी व्रत के माहात्म्य का श्रवण), भविष्य ३.४.२२.१६, २४(शूर/सूर - मुकुन्द - शिष्य, जन्मान्तर में बिल्वमङ्गल, वेश्या-पारग), भागवत ११.१९.३७(स्वभाव विजय के शौर्य होने का उल्लेख), वामन ९०.३१(शूरपुर में विष्णु का शूर नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.२६७(शूर के गुणों का वर्णन), शिव ५.३८.५४(सगर के अवशिष्ट पुत्रों में से एक), हरिवंश २.९३.२१(शूर यादव द्वारा रावण का वेश धारण), योगवासिष्ठ १.२७.९(शूरता का निरूपण), ३.३०, ३.३१.२४(शूर की परिभाषा ), लक्ष्मीनारायण २.१२९शूरजार, कथासरित् ९.२.९२शूरपुर, १०.४.३शूरवर्मा, १२.१.३३शूरदत्त, १२.१६.१२शूरदेव, द्र. भावशूर shoora/shuura/ shura
शूरसेन कूर्म १.२२(कार्तवीर्य अर्जुन - पुत्र, जयध्वज - भ्राता, जयध्वज से आराध्य देव विषयक विवाद, विदेह दानव से युद्ध), गणेश १.५६.६, १.७५.१(शूरसेन द्वारा इन्द्र से संकष्ट चतुर्थी व्रत की महिमा का श्रवण कर स्वयं व्रत धारण, देवलोक गमन), गरुड १.५५.१०(मध्य देश का नाम), गर्ग ७.२.१८(शूरसेन द्वारा प्रद्युम्न को छत्र, चंवर आदि भेंट), १.७.२३(प्राण वसु का अंश), ब्रह्म २.४१(प्रतिष्ठानपुर के राजा शूरसेन से नाग पुत्र की उत्पत्ति, पुत्र के भोगवती से विवाह की कथा), ब्रह्माण्ड २.३.४५+ (कार्तवीर्य - पुत्र, जमदग्नि की हत्या पर परशुराम द्वारा शूरसेन का वध), भविष्य ३.२.१५(राजा शूरसेन द्वारा रामगाथा श्रवण से जन्मान्तर में जीमूतवाहन बनना), वराह ६३(कृष्ण अष्टमी व्रत से शूरसेन को वसुदेव पुत्र की प्राप्ति ), वा.रामायण ७.७०, कथासरित् २.२.१६२, ६.८.२०६, १०.१०.१७३, १६.१.२५, shuurasena/shoorasena/ shurasena
शूर्प अग्नि १५६.६( शूर्प आदि की शुद्धि सम्प्रोक्षण द्वारा होने का उल्लेख), गरुड १.११४.४४(शूर्पवात आदि द्वारा पुण्यों के नाश का उल्लेख), नारद १.६६.१२८(शूर्पकर्ण की शक्ति उमा का उल्लेख), १.११३.३२(शूर्पकर्ण के लिए तुलसी अर्पित करने का निर्देश), पद्म ३.५५.८६( शूर्प आदि से अग्नि के धमन का निषेध), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.३३(शूर्प नरक प्रापक पाप का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.४२.३७(गणेश के शूर्पकर्ण नाम का कारण – सप्तर्षियों द्वारा शाप के कारण क्षय को प्राप्त जातवेदा का दीपित होना), मत्स्य ८१.१५(विशोक द्वादशी व्रत में लक्ष्मी की बालुका निर्मित प्रतिमा शूर्प में स्थापित करने आदि का उल्लेख), स्कन्द ६.२२.२६(इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ छेदन के प्रसंग में इन्द्र के शूर्पानिल से ग्रस्त होने का उल्लेख ) shoorpa/shuurpa/shurpa
शूर्पणखा गर्ग ५.११.२(नाक - कान कटने पर शूर्पणखा का तप से कृष्ण के काल में कुब्जा बनना), पद्म ५.३६.२२(वनवास के १३वें वर्ष में शूर्पणखा के नाक –कान कटने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६२,४०(शूर्पणखा द्वारा राम को शाप, लक्ष्मण द्वारा नासिका काटने का कथन), ४.११५.९४(शूर्पणखा का कुब्जा के रूप में अवतरण), महाभारत वन २७५.८(राका व विश्रवा से खर व शूर्पणखा की उत्पत्ति का उल्लेख, शूर्पणखा के सिद्धविघ्नकरी होने का उल्लेख), २७७.३८(शूर्पणखा के निकृत्तनासोष्ठी बनने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२२०१६(विश्रवा व कैकसी – पुत्री, रावण व कुम्भकर्ण - भगिनी), वा.रामायण ३.१७(पञ्चवटी में शूर्पणखा का राम के निकट आगमन), ५.२४, ७.१२.२(रावण - भगिनी, विद्युज्जिह्व से विवाह ), लक्ष्मीनारायण १.३७६.९०(शूर्पणखा द्वारा राम को हृतभार्या होने का शाप, नरादित्य द्वारा शूर्पणखा की नासिका का छेदन, शूर्पणखा का तप से कुब्जा बनना आदि), shoorpanakhaa/ shuurpanakhaa/ shurpanakha
शूर्पारक ब्रह्माण्ड २.३.५८.२०(परशुराम के स्रुवा क्षेप से शूर्पारक क्षेत्र का निर्माण, पूर्वकाल में गोकर्ण क्षेत्र ), वराह १५०.४१(सूर्पारक क्षेत्र का माहात्म्य), वामन ९०.२५(शूर्पारक में विष्णु की चतुर्बाहु नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ) shoorpaaraka/ shuurpaaraka/ shurparaka
शूल अग्नि १०२(प्रासादध्वज में शूलारोपण विधान), २५२.९(शूल अस्त्र के ६ कर्म), पद्म ३.१८, ब्रह्म २.४५.११(रसातल से दैत्यों के निष्कासन हेतु शेष द्वारा शिव से शूल की प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.११४(नरक में शूल कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), २.३१.१६(शिवलिङ्ग की पूजा न करने पर शूलप्रोत नरक प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.४०.५७(दत्तात्रेय से प्राप्त शूल द्वारा कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा परशुराम पर प्रहार, परशुराम का मूर्च्छित होना), मत्स्य १९१.३(शूलभेद तीर्थ का माहात्म्य, शिव के त्रिशूल पतन का स्थान), मार्कण्डेय ७८.१७/७५.१७(त्वष्टा द्वारा सूर्य के कर्तित तेज से शिवादि के शूलादि अस्त्रों का निर्माण), वराह २००.५०(शूलवह पर्वत के गुण का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.२००.१(शिव द्वारा मधु असुर को स्वशूल से शूल निकाल कर देना, मधु-पुत्र लवण द्वारा शूल से मान्धाता के वध का उल्लेख), शिव ५.१.१९(उपमन्यु द्वारा द्रष्ट रुद्र के शूल के स्वरूप का कथन), स्कन्द ४.२.८२.९६(अमित्रजित् राजा द्वारा कंकालकेतु राक्षस के अंक से त्रिशूल का ग्रहण कर राक्षस के वध एवं मलयगन्धिनी कन्या के पाणिग्रहण का वृत्तांत), ४.२.९७.५३(शूलेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३४.७२(कृत्तिकाओं द्वारा स्कन्द को शूल प्रदान करने का उल्लेख), ५.१.३७.३(त्रिशूल द्वारा अन्धक को आहत करने के पश्चात् भोगवती में पापप्रक्षालन स्थल की शूलेश्वर नाम से ख्याति), ५.२.५१(अन्धक वध के पश्चात् शूल द्वारा स्थापित शूलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ५.३.६.२८(तपोरत शिव के शूलाग्र से पतित बिन्दुओं से नदी की उत्पत्ति का उल्लेख), ५.३.४४+ (शूलभेद तीर्थ का माहात्म्य, शिव द्वारा अन्धक का शूल से भेदन करने की कथा), ५.३.४९.११(शूलाघात से भृगुपर्वत का छिन्न होना, शूल का पापमुक्त होना), ५.३.५१(शूलभेद तीर्थ में दान धर्म की प्रशंसा), ५.३.५५ (शूलभेद तीर्थ की गयाशिरतीर्थ से तुलना), ५.३.५८(भानुमती द्वारा शूलभेद में तप करके नगशृंग से पात करना), ५.३.१६९.२४+(शम्बर असुर द्वारा कामप्रमोदिनी कन्या का हरण, माण्डव्य ऋषि के तप का स्थान), ५.३.१९८.४५(माण्डव्य के शूल के रुजारहित, अमृतस्रावि होने का कारण), ५.३.१९८.९१(शूलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : माण्डव्य ऋषि का शूल से अवरोहण, शूल मूल से शिव व अग्र से शूलेश्वरी देवी का प्राकट्य, तीर्थ अनुसार देवी के १०८ नाम), ६.१३६.१७(शूल स्पर्श का माहात्म्य, माण्डव्य के शूलारोपण की कथा, माण्डव्य द्वारा यम को शाप आदि), ७.१.१०.६(शूलेश्वर तीर्थ का वर्गीकरण – पृथिवी), वा.रामायण ७.६१.६(मधु असुर द्वारा शिव से शूल की प्राप्ति), ७.६७.२१(लवण द्वारा शूल से मान्धाता का वध), ७.६९.३४(शत्रुघ्न द्वारा दिव्य शर से लवण का वध, लवण के शूल की शिव को प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.३७०.११८(नरक में तप्तशूल कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.३९१.४९(कुष्ठी कौशिक द्वारा शूल्यारोपित माण्डव्य को कष्ट देना, माण्डव्य का सूर्योदय पर मृत्यु का शाप, सती द्वारा सूर्योदय का रोधन), कथासरित् ५.२.१३८(अशोकदत्त द्वारा शूलारोपित तृषित पुरुष को जल देने का प्रयास, स्त्री के नूपुर ग्रहण करना), १८.५.११६(स्त्री द्वारा शूलारोपित चोर का आलिङ्गन, चोर द्वारा दांतो से स्त्री की नासिका का छेदन), द्र. त्रिशूल shoola/shuula/ shula
शूलपाणि पद्म ३.२६, वामन ९०.८(हिमाचल में विष्णु का शूलबाहु नाम से वास), स्कन्द ७.४.१७.२५शूलहस्त
शूली नारद १.६६.९२(शूली विष्णु की शक्ति विजया का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.११२(२४वें द्वापर में मुनि), वायु २३.२०६(२४वें द्वापर में शिव अवतार), शिव ३.५, लक्ष्मीनारायण ३.२३१
शृगाल ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२१(वासुदेव नामक शृगाल राजा का कृष्ण द्वारा मोक्ष), भविष्य ३.३.१२.१२४(कलियुग में शृगाल का जम्बुक राजा के रूप में जन्म), वराह १३७(शृगाली का सौकरव तीर्थ में मृत्यु से राजपत्नी बनना, शिरोवेदना प्रसंग), विष्णु ३.१८.७२,(पाखण्डी के साथ वार्तालाप से राजा का श्वा, शृगाल आदि योनियों में जन्म, पत्नी द्वारा बोध), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.१४(आशाभङ्ग करने से शृगाल योनि में जन्म का उल्लेख), स्कन्द ३.१.३४(शृगाल द्वारा वानर से पूर्व जन्म के कर्मों के वृत्तान्त का कथन, सिन्धुद्वीप ऋषि द्वारा मुक्ति के उपाय का कथन, पूर्व जन्म में वेदशर्मा विद्वान), ६.८९.११(मातृपादुका पूजा न करने से शृगाली होने का उल्लेख), हरिवंश २.३९.५१(करवीरपुर के राजा शृगाल का चरित्र), २.४४(कृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शृगाल राजा का वध), २.४४.४५(पद्मावती का पति, शक्रदेव - पिता ), महाभारत शान्ति ४.७(स्त्रीराज्य अधिपति के रूप में राजा सृगाल का उल्लेख), १११(राजा व मन्त्री के सम्बन्धों के संदर्भ में व्याघ्र व गोमायु की कथा), ११२(जम्बुक द्वारा उष्ट्र की लम्बी ग्रीवा के भक्षण की कथा), १५३(मृतक के पुनर्जीवित होने के संदर्भ में श्मशान में गृध्र व जम्बुक के विचार), १८०.२२, लक्ष्मीनारायण १.३८६, १.५४८.९(शृगालेश्वर क्षेत्र में अकाल मृत्यु से मृतों के श्राद्ध का विधान), १.५७७(शृगाली व गृध्र की वराहतीर्थ में मृत्यु से राज गृह में जन्म), ४.६७, कथासरित् ६.३.१०६, १२.१.१७, shrigaala/ shrigala
शृङ्खली पद्म २.५३.९८(कर्णमूल में कृमि का नाम), लक्ष्मीनारायण २.२२५.९२(ईशानियों को शृङ्खला व रशना दान का उल्लेख ) shrinkhalaa
शृङ्ग पद्म १.१९.२५२(तृष्णा की वृद्धि की रुरु के शृङ्ग के वर्धन से उपमा), ३.२१.३२(शृङग तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड २.३.१०.८७(एकशृङ्गा : काव्य पितरों की कन्या, अन्य नाम योगोत्पत्ति, भृगु/शुक्र-पत्नी), ३.४.२५.२९, ९८ (तीक्ष्णशृङ्ग : ललिता देवी के बन्धन हेतु भण्डासुर द्वारा प्रेषित सेनानियों में से एक , सर्वमङ्गलिका नित्या देवी द्वारा तीक्ष्णशृङ्ग के वध का उल्लेख), भविष्य ३.४.८.९२(वृषभ के ४ शृङ्गों के रूप में सुबन्त आदि का उल्लेख), भागवत ५.२.११(पूर्वचित्ति अप्सरा के कुचों की शृङ्गों से उपमा, शृङ्गों के सुरभियुक्त होने का उल्लेख), मत्स्य १२१.६१(हिरण्यशृङ्ग- - कुबेर - अनुचर, सुरभि वन में वास), वराह ८१.४(एकशृङ्ग पर्वत पर चतुर्वक्त्र/प्रजापति के वास का उल्लेख), २१५.३६(मृग रूप धारी एकशृङ्ग शिव के शृङ्ग के तीन भाग होना), २१५+ (इन्द्र द्वारा मृग रूपी शिव के शृङ्ग का ग्रहण, श्लेष्मातक वन में स्थापना, रावण द्वारा शृङ्ग को उखाडना), वामन ५७.६७(अतिशृङ्ग : विन्ध्याचल द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण), शिव १.१७.८६(क्षमा शृङ्ग वाले वृषभ का कथन), ५.२६.४०(९ प्रकार के नादों में से एक), ५.२६.४६(शृङ्गनाद का उच्चाटन, मारण आदि अभिचारों में प्रयोग का निर्देश), स्कन्द ३.२.५.२२(शृङ्गवान् द्वारा वल्मीक को चिनने की उपमा), ३.२.६.६(वेद रूपी गौ के इष्टापूर्त विषाण होने का उल्लेख), ४.१.२.७८(गौ के शृङ्गाग्र में सर्व तीर्थों की स्थिति), ५.१.४० (कनकशृङ्गा- अवन्तिका नगरी के ४ नामों में से एक, श्री हरि द्वारा कनकशृङ्गा पुरी का निर्माण करके ब्रह्मा व शिव को वास हेतु प्रदान करना ), ५.३.३९.३०(कपिला गौ के शृङ्गों में नरनारायण-द्वय तथा शृङ्गमध्य में पितामह की स्थिति का उल्लेख), ५.३.५३ ( दीर्घतपा - पुत्र ऋक्षशृङ्ग की चित्रसेना द्वारा हत्या, दीर्घतपा परिवार के मरण आदि का वर्णन ), ५.३.८३.१०४(गौ के शृङ्गाग्र में शक्र के वास का उल्लेख), ५.३.९०.१०१(स्वर्णशृङ्गी गौ के दान का निर्देश), ५.३.२१५(शृङ्गी तीर्थ का माहात्म्य), ६.९(हिमालय – पुत्र रक्तशृङ्ग द्वारा इन्द्र के आदेश से हाटक क्षेत्र के बिल को पूरित करने के लिए जाना), ६.१२२.१२(इन्द्र द्वारा महिष रूप धारी केदारेश्वर शिव से त्रिशृङ्ग दैत्य को मारने की प्रार्थना), ७.१.१७.९८(अष्ट शृङ्ग मेरु पूजा विधि), ७.१.२४.१७१( शिखण्डिगण के शाप की निवृत्ति हेतु गन्धर्वसेना का पिता के साथ गोशृङ्ग मुनि के आश्रम में गमन, गोशृङ्ग - निर्दिष्ट सोमवार व्रत तथा शिवाराधना से शाप से मुक्ति का वर्णन ),, ७.१.५४.३ ( शिखण्डिगण के शाप की निवृत्ति हेतु गन्धर्वसेना का पिता के साथ गोशृङ्ग मुनि के आश्रम में गमन, गोशृङ्ग - निर्दिष्ट सोमवार व्रत तथा शिवाराधना से शाप से मुक्ति का वर्णन ), ७.१.३५६(शृङ्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, ऋष्यशृङ्ग की पापों से मुक्ति ), महाभारत शान्ति ३४२.९२/३५२.२६(एकशृङ्ग वराह द्वारा भूमि के उद्धार का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३१०(राजा ब्रह्मसविता व उसकी पत्नी भूरिशृङ्गा के जन्मान्तर में सूर्य व संज्ञा बनने की कथा), १.३८५.४९(भूरिशृङ्गा का कार्य – भुजाओं में कटक देना), २.१०९.९९शृङ्गशेक, २.२६४.८१शृङ्गधर,कथासरित् ७.३.५८(निश्चयदत्त द्वारा मन्त्र द्वारा शृङ्गोत्पादिनी यक्षिणी को वश में करने की कथा), द्र. ऋक्षशृङ्ग, ऋष्यशृङ्ग, एकशृङ्ग, कनकशृङ्ग, गोशृङ्ग, तीक्ष्णशृङ्ग, त्रिशृङ्ग, भूरिशृङ्ग, मृगशृङ्ग, रक्तशृङ्ग, शतशृङ्ग, हिरण्यशृङ्ग shringa
ऋष्यशृङ्ग ब्रह्मवैवर्त्त २.४.५५(विभाण्डक द्वारा मेरु पर ऋष्यशृङ्ग को सरस्वती मन्त्र प्रदान का उल्लेख), २.५१.३५ ( ऋष्यशृङ्ग ऋषि द्वारा सुयज्ञ नृप हेतु १६ कृतघ्नता दोषों का निरूपण ), भागवत ८.१३.१५ ( आठवें सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ९.२३.८ ( विभाण्डक मुनि व हरिणी - पुत्र, रोमपाद के राज्य में ऋष्यशृङ्ग के प्रवेश पर वर्षा होना व ऋष्यशृङ्ग का शान्ता से विवाह, ऋष्यशृङ्ग की नाट्य आदि में आसक्ति ), मत्स्य ४८.९६ ( ऋष्यशृङ्ग की कृपा से दशरथ को चतुरङ्ग पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), महाभारत द्रोण १०६.१६(भीमसेन के ऋष्यशृङ्गि राक्षस से युद्ध का उल्लेख), वायु १००.११ ( आठवें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), विष्णु ३.२.१७ ( वही), वा.रामायण १.९+ ( मुनि, विभाण्डक - पुत्र, ऋष्यशृङ्ग के अङ्ग देश में आगमन पर वृष्टि, शान्ता से विवाह, दशरथ के अश्वमेध में आगमन ), लक्ष्मीनारायण १.४८५ ( राजा चित्रसेन द्वारा मृग रूप धारी दीर्घतमा - पुत्र ऋष्यशृङ्ग की हत्या, ऋष्यशृङ्ग के शोक में पिता आदि परिवार जनों की मृत्यु , नर्मदा में अस्थि क्षेप से दिव्य रूप प्राप्ति ; तु. स्कन्द ५.३.५२+ में दीर्घतपा - पुत्र ऋक्षशृङ्ग की कथा )
एकशृङ्ग वराह ८१.४ ( मेरु के परित: स्थित एकशृङ्ग पर्वत पर चतुर्मुख ब्रह्मा के वास का कथन ), वायु ३६.२४ ( मेरु के दक्षिण में स्थिति एक पर्वत ), महाभारत शान्ति ३४२.९२(एकशृङ्ग वराह द्वारा भूमि के उद्धार का उल्लेख),
एकशृङ्गा ब्रह्माण्ड २.३.१०.८७ ( द्विजों द्वारा पूजित पितरों की मानसी कन्या योगोत्पत्ति का उपनाम, शुक्र - भार्या, भृगु वंश ), हरिवंश १.१८.५८ ( सुकाली नामक पितरों की मानसी कन्या, स्वर्ग में गौ नाम, शुक - भार्या, साध्य वंश )
त्रिशृङ्ग गर्ग ७.२९.१८ (प्रद्युम्न का सैन्य सहित त्रिशृङ्ग पर्वत के देशों में गमन, शृङ्गधारी मनुष्यों तथा त्रिशृङ्ग के पार्श्व में स्वर्ण चर्चिका नगरी के दर्शन), ब्रह्म १.१६.५०(मेरु के उत्तरी मर्यादा पर्वतों में से एक), भागवत ५.१६.२७(मेरु के उत्तर में स्थित २ पर्वतों में से एक), मत्स्य २००.१५(त्रैशृङ्गायण : त्र्यार्षेय प्रवर के संदर्भ में एक ऋषि का नाम), वायु ३६.२९(मानसरोवर/मेरु? के पश्चिम में स्थित पर्वतों में से एक), विष्णु २.२.४४(मेरु की उत्तर दिशा के २ वर्ष पर्वतों में से एक ) ।
शतशृङ्ग गर्ग ३.९.३२(गोवर्धन/शतशृङ्ग पर्वत का कृष्ण के तेज से प्राकट्य), ब्रह्मवैवर्त्त २.७.१०१(राधा द्वारा शतशृङ्ग पर्वत पर तप का कथन), लिङ्ग १.५०.१०(शतशृङ्ग पर्वत पर यक्षों का वास), वराह ९४.५०(शतशृङ्ग पर्वत पर महिष का वध), स्कन्द १.२.३९.६८(भरत - पुत्र, कुमारी आदि ९ सन्तानों का पिता )
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शृङ्गली पद्म २.५३.९९(नेत्र में शृङ्गली कृमि की स्थिति का उल्लेख),
शृङ्गभुज कथासरित् ७.५.१, ७.५.२०(शृङ्गमांसरस से उत्पन्न होने के कारण शृङ्गभुज नाम प्राप्ति की कथा), ७.५.१५७(शृङ्गभुज के राक्षसकुमारी रूपशिखा से विवाह आदि का वृत्तान्त)
शृङ्गवान् ब्रह्माण्ड १.२.१७.३६(शृङ्गवान् पर्वत पर पितरों के वास का उल्लेख), १.२.२१.१३८(शृङ्गवान् पर्वत के तीन शिखरों का कथन), मत्स्य १२१.२१(शृङ्गवान् पर्वत पर धूम्रलोचन शिव का वास, शैलोदा नदी का उद्गम स्थल), लिङ्ग १.५२.४७(शृङ्गवान् पर्वत : पितरों का वास स्थान), वायु ५०.१९०(शृङ्गवान् पर्वत की महिमा ), भरतनाट्य १३.२७(पितरों के शृङ्गवान् पर वास का उल्लेख), shringavaan/ shringavan
शृङ्गवेरपुर देवीभागवत ३.१८
शृङ्गार गर्ग ५.१७.४(शृङ्गारप्रकरा गोपियों द्वारा कृष्णविरह पर प्रतिक्रिया), ७.२६.५१(वसन्तलतिका के राजा शृङ्गारतिलक की प्रद्युम्न - सेनानी गद से पराजय), ब्रह्माण्ड ४.३५.५९, वराह २००.५२(नरक में शृङ्गारक वन में प्राप्त होने वाली यातनाओं का कथन), स्कन्द ७.१.३५९(शृङ्गारेश्वर का माहात्म्य, हरि द्वारा गोपियों सहित शृङ्गार का स्थान ), लक्ष्मीनारायण २.२९२.३८, कथासरित् १८.४.३१७(शृङ्गारवती - रूपवती की दो सखियों में एक), shringaara/ shringara
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शृङ्गी भविष्य ३.४.२१.१४(कलियुग में कण्व कुल में सरस्वती की कृपा से जन्मे १६ पुत्रों में से एक), भागवत १.१८(शमीक - पुत्र, परीक्षित् को शाप), मत्स्य २, १४५.९५(शृङ्गी द्वारा सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख), मार्कण्डेय २, स्कन्द १.२.१३, २.१.११.११(शमीक-पुत्र शृङ्गी द्वारा परीक्षित को शाप देने की कथा), ५.३.२१५(शृङ्गि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.२७१.४३३(लवण - निर्मित शृङ्गी पर्वत दान से गृध्र की मुक्ति का कथन), ७.१.३५६(शृङ्गेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.५७(पत्नीव्रत ऋषि के गले में मृतक सर्प की कथा का परीक्षित् की कथा से साम्य), २.८६.४२(विश्रवा व पुष्पोत्कटा - कन्या ) shringee/ shringi
शेखरज्योति कथासरित् १२.५.२६८,
शेप द्र. शुन:शेप
शेष गणेश १.८९.३३(शेष द्वारा गर्व करने पर शिव द्वारा शेष के मस्तक को दशधा भिन्न करना, शेष द्वारा गणेश की आराधना, पञ्चशिर होना, गणेश द्वारा शेष को स्वोदर में बांधना, शेष द्वारा धरणीधर नाम से गणेश की आराधना), २.१०.३१(सागर द्वारा महोत्कट गणेश को आसन हेतु शेष भेंट), २.१००.१५(वासुकि को मयूरेश्वर गणेश के बन्धन से मुक्त करने के लिए शेष का आगमन, स्वयं बन्धनग्रस्त होना), गरुड ३.६.४४(शेष द्वारा हरि-स्तुति), ३.२१.२६(वारुणी-पति), ३.२३.३३(शेषाचल पर श्रीनिवास की स्थिति, शेष के पृष्ठ को नमन का निषेध), ३.२४.६३(शेषाचल पर श्रीनिवास के वास का उल्लेख), ३.२६.२४(श्रीहरि द्वारा पृथिवी पर शेषाचल स्थापना का कथन, शेष के मुख, मध्य व पु्च्छ में श्रीनिवास आदि की स्थिति - गिरेः पुच्छे तु श्रीशैलं मध्यमेऽहोबलं स्मृतम् । मुखं च श्रीनिवासस्य क्षेत्रं च समुदाहृतम् ॥), ३.२८.२(शेष-पत्नी वारुणी का उल्लेख), ३.२९.६७(प्रणाम काल में शेषांतस्थ विष्णु के ध्यान का उल्लेख), देवीभागवत ९१, नारद १.११४.५(वैशाख शुक्ल पञ्चमी को शेष पूजा का निर्देश), पद्म ५.१+ (शेष द्वारा वात्स्यायन को राम कथा का उपदेश), ब्रह्म १.१९(रुद्र संकर्षण शेष की पातालमूल में स्थिति), २.४५(स्व स्थान रसातल से दैत्यों द्वारा निष्कासित होने पर शेष द्वारा शिव से शूल की प्राप्ति, दैत्यों का निष्कासन), भविष्य ३.४.१२.४०( पिनाक धनुष में शेष के गुण बनने का उल्लेख - पिनाकीति च तन्नामा प्रसिद्धोभून्महेश्वरः ।। गुणश्चापस्य वै शेषः शक्रो वाणस्तदाभवत् ।।), ३.४.२०.१८(अपरा प्रकृति के देवों में से एक ; शेष - पति हरि), ३.४.२५.१४२(शेष का भूमा आदि ३ भागों में विभक्त होना - त्रिधाऽभवत्स वै शेषो भूमा शेषश्च भौमनी । । भूमा स वै विराड् ज्ञेयः शेषोपरि स चास्थितः ।), ६८, ४.९४.३(अनन्त का पर्याय शेष, तक्षक), वामन ६१.२०(शेष पाप के लक्षणों का कथन ; ज्ञानाधिक अशेष द्वारा शेष पाप की जय का कथन - ज्ञानाधिकमशेषेण शेषपापं जयेत् ततः।…शेषात् तारयते शिष्यः सर्वतोऽपि हि पुत्रकः।।), वायु ५०.४५ (शेष के स्वरूप का वर्णन, शेष की पातालान्त में स्थिति - तस्य कुन्देन्दुवर्णस्य अक्षमाला विराजते । तरुणादित्यमालेव श्वेतपर्व्वतमूर्द्धनि ॥ ), विष्णुधर्मोत्तर १.६३.३९(अनिरुद्ध के शेष तत्त्व होने का उल्लेख - शेषतत्त्वं गतः सर्वमनिरुद्धो महायशाः ॥), १.२३७.१३(शेष से अज्ञान नाश की प्रार्थना - शेषो शेषामलज्ञानः करोत्वज्ञाननाशनम् ।।), शिव २.५.९.७(शेष द्वारा शिव के रथ का भार वहन करने में असमर्थता - चकंपे सहसा शेषोऽसोढा तद्भारमातुरः ।७।। अथाधः स रथस्यास्य भगवान्धरणीधरः ।।), स्कन्द १.२.१३.१९१(शतरुद्रिय प्रसंग में शेष द्वारा गोरोचन लिङ्ग की पशुपति नाम से पूजा - गोरोचनमयं शेषो नाम पशुपतिः स्मृतम्॥), २.१.१०, ४.२.६१.२१(शेष माधव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८४.२६(शेष तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - तद्दक्षिणायां काष्ठायां शेषतीर्थमनुत्तमम्।। महापापौघशेषोपि न तिष्ठेद्यन्निमज्जनात् ।। ), ५.२.१०.४ (हिमशैलं गतः शेषस्तपः कर्त्तुं ततः प्रिये ।।), ७.१.२४१(शेष लिङ्ग का माहात्म्य, बलराम द्वारा त्यक्त कलेवर का दर्शन - कलेवरं स्थितं देवि लिंगाकारं महाप्रभम् ॥ रेवत्या सहितं तत्र शेषनामेति विश्रुतम् ॥), लक्ष्मीनारायण १.५२०, २.२४१.६१(वैवस्वत मनु द्वारा मन्दिर में कुण्डलिनी प्रिया व योग पुत्र सहित शेष की स्थापना का कथन), ३.१६.५९(शेष के कच्छप वाहन का उल्लेख - पृथिवी शेषवाहा च शेषः कच्छपवाहनः । कच्छपा मेघवाहाश्च मेघाश्च वायुवाहनाः ।। ), ३.४९.८५(गुर्वी की सक्थियों में इन्द्र व शेष की स्थिति का उल्लेख), ३.१४२.११(सर्पदंशन के संदर्भ में शेष का अर्क ग्रह से साम्य), द्र. यज्ञशेष shesha
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शैब्य भविष्य ३.३.१०.४६(पपीहक व हरिणी - पुत्र शैब्य अश्व का मनोरथ रूप में अवतरण ), विष्णु ३.१८.५३ shaibya
शैब्या देवीभागवत ७.२६, ९.११, पद्म १.५१(शैब्या पतिव्रता के कुष्ठी पति द्वारा माण्डव्य को व्यथित करने पर शाप की प्राप्ति, शैब्या द्वारा सूर्योदय का निरोध), ५.७०.६(कृष्ण - पत्नी, अग्निकोण में स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.६(सगर-भार्या, असमञ्ज-माता, वैदर्भी-सपत्ना), ४.६.१४४(कृष्ण-पत्नी, सरस्वती का अंशावतार), मत्स्य ४४,मार्कण्डेय ८(शैब्या - हरिश्चन्द्र उपाख्यान),विष्णु ३.१८.५३(शतधनु - पत्नी, जन्मान्तर में पति का श्वान आदि योनियों से उद्धार), ४.१२.१३(पति ज्यामघ द्वारा अन्य कन्या को रथ में स्थान देने पर शैब्या का कोप, कन्या के शैब्या-पुत्र विदर्भ की पत्नी बनने का वृत्तान्त), स्कन्द ७.४.१२.३१ (शैब्या गोपी की कृष्ण से विरह पर प्रतिक्रिया), हरिवंश १.३६.१६(ज्यामघ - भार्या, विदर्भ - माता), २.१०३.१६(कृष्ण - भार्या शैब्या के पुत्रों के नाम ), लक्ष्मीनारायण १.३८६(शतधनु-पत्नी शैब्या द्वारा त्वरित काल गति से पति का श्वान आदि योनियों से उद्धार), shaibyaa
शैल गणेश २.९१.५०(गणेश द्वारा विराट रूप धारण कर श्वास से शैलासुर का वध), पद्म १.२१.८९(धान्य शैल आदि १० दान), भविष्य ४.१९५+ (धान्य, लवण, गुड, हेम, तिल, कार्पास, रत्न, रजत आदि शैलों के दान की विधि व माहात्म्य), वराह २१५, वामन ६८शैलादि, विष्णुधर्मोत्तर ३.१६१(शैल व्रत – महेन्द्र आदि ७ शैलों की क्रमिक पूजा), स्कन्द ४.२.६६.१४५(उमा - पिता हिमवान् द्वारा काशी में स्थापित शैलेश लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.७०.३७(शैलेश्वरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.३८.३९(शैल रूप धारी असुर द्वारा बालकृष्ण को मारने का उद्योग, गरुड व सुदर्शन चक्र की सहायता से कृष्ण द्वारा शैल को नष्ट करना), ४.८३.१०८(नन्दिभिल्ल राजा का सेनापति, कुबरस्थ रुद्र द्वारा युद्ध में वध का वर्णन ), कथासरित् ७.८.१२५शैलपुर, वास्तुसूत्रोपनिषद १.९(शैल के षड्धा होने का कथन), द्र. श्रीशैल shaila
शैलरोमा पद्म ६.७(जालन्धर - सेनानी, विष्णु से युद्ध व मृत्यु), ६.१२.३(जालन्धर - सेनानी, पुष्पदन्त से युद्ध ) shailaromaa
शैलूष विष्णुधर्मोत्तर १.२०१(शैलूष-पुत्रों को गन्धर्वराज चित्ररथ का शाप), १.२१०(शैलूष द्वारा गन्धर्व पुत्रों से युद्ध की मन्त्रणा), १.२५४, वा.रामायण ४.४१.४३(सूर्यसमप्रभा वाले पांच गन्धर्वपतियों में शैलूष का उल्लेख), ७.१२.२५(शैलूष गन्धर्व की कन्या सरमा का मानस तट पर जन्म, विभीषण-भार्या, सरमा नाम धारण के हेतु का कथन), ७.१००+ (भरत द्वारा शैलूष गन्धर्वराज की सन्तानों का संहार), लक्ष्मीनारायण २.२८.२४(शैलूष जाति के नागों का नृत्यकार होना ) shailoosha/ shailuusha/ shailusha
शैलोदा ब्रह्माण्ड १.२.१८.२२(शैलोद सर व नदी), वायु ४७.२१(शैलोदा नदी की अरुण पर्वत से उत्पत्ति ), वा.रामायण ४.४३ shailodaa
शैव वामन ९०.४१(शैव लोक में विष्णु की सनातन नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), शिव ७.२.२९.९(शैवों के ज्ञान यज्ञ में तथा माहेश्वरों के कर्मयज्ञ में रत होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१९०शैवल shaiva
शैशिरायण हरिवंश १.३५.१२(ब्रह्मचर्य व्रत के प्रसंग में शैशिरायण गार्ग्य की वृकदेवी पत्नी से कालयवन का जन्म ) shaishiraayana/ shaishirayana
शोक महाभारत वन३१३.९३, लक्ष्मीनारायण २.५.७९, २.२५३.४, ३.७.७९विशोक, द्र. विशोक shoka
शोचिष्केश गणेश २.९६.३४(श्रीहरि द्वारा प्रयुक्त गणेश का नाम),
शोण देवीभागवत ७.३०(शोण - सुभद्रा सङ्गम पर लोला देवी के वास का उल्लेख), १२.६.१४६(शोणा : गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म ५.११२(कला - पति शोण मुनि द्वारा पत्नी के पार्वती की दासी बनने पर शिव से सदृश भार्या की मांग), मत्स्य २(प्रलयकारक मेघ), वामन ९०.२४(शोण में विष्णु का रुक्मकवच नाम), शिव ५.५१.१६, स्कन्द १.३.२.२३.४७(फल की प्राप्ति हेतु गणेश द्वारा शोणादि रूपी पिता की प्रदक्षिणा व स्कन्द द्वारा पृथिवी की प्रदक्षिणा ), ५.३.५.८, ५.३.६.२८(नर्मदा के शोणा नाम का कारण), ५.३.१९८.८३, लक्ष्मीनारायण २.५.३४, shona
शोणभद्र पद्म ३.३९, शिव १.१२.११(दशमुखा शोणभद्रा का संक्षिप्त माहात्म्य), वा.रामायण १.३१(राम व विश्वामित्र का शोणभद्र नदी पर आगमन, शोणभद्र की तटवर्ती भूमि का वर्णन, मागधी उपनाम ), लक्ष्मीनारायण ३.९, shonabhadra
शोणाद्रि स्कन्द १.३.१.१+ (अरुणाचल का उपनाम), १.३.१.८, १.३.२.२२(शोणाद्रि का माहात्म्य, शोणाद्रि की प्रदक्षिणा का फल ) shonaadri/ shonadri
शोणित विष्णुधर्मोत्तर १.३.६(यज्ञवराह के सोम शोणित होने का उल्लेख), द्र. रक्त
शोणितपुर पद्म ६.१८, ब्रह्माण्ड ३.४.१२.४(भण्डासुर हेतु शोणितपुर का निर्माण ), शिव २.५.५१, हरिवंश २.१२१, वा.रामायण ७.७५?, ७.७९? shonitapura
शोणिताक्ष वा.रामायण ६.७६.३४(रावण - सेनानी, द्विविद द्वारा वध),
शोभन गर्ग १.४३.१०(मुचुकुन्द - जामाता, चन्द्रभागा - पति), ७.४३, पद्म ६.६०(चन्द्रसेन - पुत्र, चन्द्रभागा - पति, एकादशी व्रत से दिव्य भोगों की प्राप्ति ) shobhana
शोभा ब्रह्मवैवर्त्त २.११.५२(शोभा गोपी की देह के तेज में रूपान्तरित होने का कथन), भविष्य ३.३.२८.५(शोभा वेश्या की कृष्णांश पर आसक्ति, कृष्णांश की कृपा, वेश्या द्वारा छल का वर्णन), ३.३.३०.५५(शोभा द्वारा लक्षण की खोज में सहायता करना), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(वक्ष में शोभा की स्थिति का उल्लेख), शिव २.५.३६.१२(शोभाकर : शङ्खचूड - सेनानी, वैश्वानर से युद्ध ) shobhaa
शोभावती देवीभागवत १२.६.१४६(गायत्री सहस्रनामों में से एक), शिव १.२?, स्कन्द ४.१.२९.१५५(गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), कथासरित् १२.११.५, १२.१३.४, १२.३०.४ shobhaavatee/ shobhaavati
शोष अग्नि ९३.१६(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक), मत्स्य २५३.२६(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक ), द्र. वास्तुमण्डल shosha
शोषण स्कन्द ६.३६.३६(शोषण हेतु काली कराली इति जपने का निर्देश ), ६.६०.२, shoshana
शौच अग्नि १५७, गणेश १.३.१३(विश्व त्याग के समय व पश्चात् पालनीय नियमों का वर्णन), गरुड ३.२९.३९(विण्मूत्र उत्सर्ग काल में अपानात्मक केशव तथा शौचकाल में त्रिविक्रम के स्मरण का निर्देश), देवीभागवत ७.३०(कृतशौच तीर्थ में सिंहिका देवी का वास), नारद १.३३.१००(बाह्याभ्यन्तर शौच का निरूपण), पद्म २.१२.८०(शौच का रूप), ३.२६.१९(कृतशौच तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त १.२६, ब्रह्माण्ड २.३.१५.८९(नित्य कर्मों में शौच), भविष्य १.१८६.३०(विभिन्न सम्बन्धियों की मृत्यु पर शौच का विधान), भागवत ११.१९.३८, ११.२१.१३, मार्कण्डेय ३४(शौच के विषय में अलर्क को मदालसा का अनुशासन), लिङ्ग १.८९, वायु ७८.५९(अयुक्त कर्मों हेतु शौच का विधान), विष्णु ३.११.८, विष्णुधर्मोत्तर २.७५, ३.१००(२१ प्रकार की अर्चा शौच का वर्णन), ३.२४९, ३.२७२(शौच का वर्णन), ३.२७५(मन: शौच ), शिव ५.२३.७, स्कन्द ५.३.२८.१८, लक्ष्मीनारायण ३.८०.७३, द्र. शुचि shaucha
शौण्ड मत्स्य ९२(शौण्ड स्वर्णकार द्वारा स्वर्णमय देव प्रतिमा के निर्माण से धर्ममूर्ति राजा बनना ), लक्ष्मीनारायण २.१४.८६, shaunda
शौनक गणेश २.३४.३०(शिष्य मन्दार को वृक्षत्व से मुक्त कराने हेतु शौनक द्वारा गणेश की आराधना), २.७३.२५(शौनक द्वारा राजा चक्रपाणि को पुत्र प्राप्ति हेतु सौर व्रत का उपदेश), गरुड ३.१.११ (ऋषियों का शौनक से मुक्ति हेतु तीर्थादि, अव्यभिचारिणी भक्ति आदि के विषय में पृच्छा, शौनक आदि का रोमहर्षण – पुत्र सूत के पास गमन), नारद १.१.१४(ऋषियों का शौनक से मुक्ति हेतु तीर्थादि, अव्यभिचारिणी भक्ति आदि के विषय में पृच्छा, शौनक आदि का रोमहर्षण – पुत्र सूत के पास गमन), ब्रह्म १.९.३३(शुनक-पुत्र, गृत्समद-पौत्र, ब्राह्मण आदि चार वर्णों के प्रवर्तक), मत्स्य २५.३(शतानीक द्वारा शौनक से ययातिचरित्र श्रवण), महाभारत आदि १.१९(शौनक के द्वादशवार्षिक यज्ञ में उग्रश्रवा का आगमन तथा महाभारत की कथा सुनाना), वन २.१४(अर्थ के दोषों के संदर्भ में युधिष्ठिर-शौनक संवाद तथा शौनक द्वारा अर्थ प्राप्ति हेतु तप का निर्देश), शान्ति १५२.३८(इन्द्रोत शौनक द्वारा जनमेजय को अश्वमेध अनुष्ठान की प्रेरणा व यज्ञ सम्पन्न कराना), अनुशासन ३०.६५(भृगुवंशी शुनक – पुत्र), विष्णु ४.८.६(गृत्समद-पुत्र, चातुर्वर्ण्य प्रवर्तक), स्कन्द ३.२.९.७९(शौनक गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवर व गुण), ४.२.९७.१५७(शौनक ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य : मृत्यु को तरने वाले दिव्य ज्ञान की प्राप्ति), हरिवंश १.२९.७(शौनक वंश – गृत्समद – पौत्र, शुनक – पुत्र आदि), १.३०.१२(शौनक द्वारा लौहगन्धी राजा इन्द्रोत जनमेजय का अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न कराने का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.९२.१४(शौनक-पूर्व वंश का कथन, क्षत्रियत्व का त्याग करने वाला हैहय/वीतहव्य वंश), shaunaka
शौरि पद्म ७.२३(शौरि ब्राह्मण द्वारा सुप्राज्ञा से एकादशी व्रत के माहात्म्य का श्रवण), वामन ९०.३(केदार तीर्थ में विष्णु का शौरि नाम ) shauri
शौर्य भागवत ११.१९.३७(स्वभाव विजय के शौर्य होने का उल्लेख), वराह ६४,
श्नविष्कट शिव ३.५
श्मशान मार्कण्डेय ८(हरिश्चन्द्र का उपाख्यान), वराह १३६(श्मशान की अपवित्रता का वर्णन), स्कन्द ३.१.९(अशोकदत्त द्वारा श्मशान में महामांस का विक्रय, राक्षसी से नूपुर की प्राप्ति), ४.१.२९.१६०(श्मशान शोधनी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.१.३०.१०२(श्मशान की निरुक्ति : श्म – शव, शानं - शयनं), ५.२.१८.२९(श्मशानवास से शिव के भीरुत्व नाश का उल्लेख), ७.१.२०१(कालभैरव श्मशान का माहात्म्य ), ७.४.१७.१५(श्मशाननिलय : आग्नेयी दिशा की रक्षा करने वालों में से एक), महाभारत अनुशासन १४१.१९दाक्षिणात्य(शिव के श्मशान वास का कारण : भूतों से उत्पन्न भय से मुक्ति आदि), लक्ष्मीनारायण १.५७६.६६(श्मशान के समल होने का कथन, रुद्र द्वारा त्रिपुर की प्रजा के शाप के प्रायश्चित्त हेतु श्मशान में वास का कथन), कथासरित् २.४.४८(यौगन्धरायण का उज्जयिनी में महाकाल श्मशान में प्रवेश, ब्रह्मराक्षस द्वारा यौगन्धरायण के रूप का परिवर्तन करना, यौगन्धरायण का उज्जयिनी में प्रवेश आदि), ३.४.१०७, ८.५.१२१, १२.३०.२६, १२.३५.७, shmashaana/ shmashana
श्मश्रु गर्ग ७.३७.२३(हरिश्मश्रु असुर की श्मश्रु/दाढी में मृत्यु छिपी होना - भानुमाकाशवागाह कूर्चे मृत्युः किलास्य च ॥), पद्म ६.४९.६०(पितरों द्वारा श्मश्रु से जल पीने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.५६.९(अग्नि की मूर्ति में दर्भ के श्मश्रु होने का उल्लेख - श्मश्रु तस्य विनिर्दिष्टं दर्भाः परमपावनम् ।), लक्ष्मीनारायण १.३१.१९(श्रीहरि की हिरण्यश्मश्रु से पूजा द्रव्य केसर के प्रकट होने का उल्लेख - हिरण्यश्मश्रुभागाद्वै केसरं प्रकटीकृतम् ।), द्र. हरिश्मश्रु shmashru
श्याम मत्स्य ४६२७, १२२.१२(श्याम पर्वत के दुन्दुभि नाम का कारण ), लक्ष्मीनारायण २.१११.६०, ३.२३, ३.१८०.१२, द्र. सुश्याम shyaama/ shyama
श्यामला गरुड ३.५.५१(यम व अनिरुद्ध-भार्या, उषा से तादात्म्य), ३.२९.१६(यम-भार्या, कलि-भार्या, श्यामला-प्रिय द्रव्य), ३.२९.२४(श्यामला का देवकी, द्रौपदी, रोहिणी आदि रूपों में अवतरण), पद्म ५.७०.५(कृष्ण - पत्नी श्यामला की वायु कोण में स्थिति), ब्रह्माण्ड ३.४.१७.३२(देवी, ललिता - सहचरी, १६ नाम), ३.४.२६.३७ (श्यामला द्वारा चक्र रथ के दक्षिण की रक्षा), ४.२८.१०२, भविष्य ३.२.१६(चन्द्रशेखर राजा की पत्नी), ४.५४(निमि व उर्मिला - पुत्री, धर्मराज - पत्नी, व्रत के पुण्य दान से माता का नरक से उद्धार), स्कन्द ३.२.१८(श्यामला मातृका का कर्णाटक दैत्य से युद्ध व वध), ७.४.१२.२७(श्यामला गोपी की कृष्ण विरह पर प्रतिक्रिया ), ७.४.१७.३१(श्यामल : उत्तर दिशा के पालक गणाधिपों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.११०.८३, shyaamalaa/ shyamalaa
श्यामा पद्म ४.११.७(श्यामाबाला : भद्रश्रवा व सुरतिचन्द्रिका - पुत्री, ब्राह्मणी रूप धारी लक्ष्मी से गुरुवार व्रत के उपदेश का श्रवण, मालाधर से विवाह), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१८(श्यामा काली से वारुण दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), भागवत ५.२.२३(मेरु की ९ कन्याओं में से एक, हिरण्मय - पत्नी), लक्ष्मीनारायण ३.११८.७०, ४.१०१.१२५, shyaamaa/ shyamaa
श्यामाक ब्रह्माण्ड २.३.१४.६(श्यामाक की इन्द्र से उत्पत्ति का कथन), स्कन्द २.१.९(श्यामाक/सांवां वन का निषाद स्वामी, तोण्डमान नृप का आगमन), लक्ष्मीनारायण १.४०१.८(श्रीहरि द्वारा निषाद - पुत्र से श्यामाक नैवेद्य स्वीकार करने का वृत्तान्त ) shyaamaaka/ shyamaka
श्याव ब्रह्माण्ड २.३.७.३१२(सरमा के पुत्र-द्वय व यम के अनुचरों श्याव – शबल का उल्लेख ), शिव ३.५.२२(स्यावास्य/श्यावाश्व : १८वें द्वापर में व्यास के चार पुत्रों में एक) , ५.१०.३५(यममार्गानुरोधक श्याम व शबल के लिए बलि देने का निर्देश), shyaava/ shyava
श्येन देवीभागवत २.१, ब्रह्म २.२३(विश्वामित्र द्वारा अनावृष्टि काल में श्व मांस भक्षण की चेष्टा, श्येन रूप धारी इन्द्र द्वारा मांस का हरण), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१४(श्येनजित् सेनानी की सूर्य रथ में स्थिति का कथन), मार्कण्डेय १५.२२(दुष्कृत्य के फलस्वरूप श्येन योनि की प्राप्ति का उल्लेख), ५१.६८(मृत्यु द्वारा शकुनि - पुत्र श्येन का ग्रहण), वायु ६९.३२५(ताम्रा से श्येनों की सृष्टि का वर्णन ), स्कन्द ५.२.६९.३२, ५.३.१६९.३३, ५.३.१७०, महाभारत अनुशासन ३२.१०, लक्ष्मीनारायण ३.८५, ४.६८, कथासरित् १.७.८८, १०.४.२४४, shyena
श्येनी स्कन्द ४.१.४५.३७(६४ योगिनियों में से एक), वा.रामायण ३.१४.३३(अरुण - पत्नी, जटायु - माता ), द्र. वंश ताम्रा shyeni
श्रद्धा गरुड ३.१६.९१(रोचन इन्द्र की भार्या), देवीभागवत ३.८.५(श्रद्धा के सात्त्विक, राजसिक आदि भेदों का वर्णन), ६.१३.५२(श्रद्धा के सात्त्विक आदि प्रकार), नारद १.१६.३३(श्रद्धा के भक्ति से तादात्म्य का उल्लेख), १.६६.८९(पद्मनाभ विष्णु की शक्ति श्रद्धा का उल्लेख), पद्म २.१२.८९(श्रद्धा की मूर्त्ति का स्वरूप), २.९७.५१(आध्यात्मिक कृषि में श्रद्धा के शस्त्र होने का उल्लेख), ५.७३.४०(अश्रद्धा से पूजा फल ग्रहण करने से हरिदास राजा के दारुण वेणु बनने की कथा), भागवत ३.२४(कर्दम - कन्या, अङ्गिरा - पत्नी), ४.१.३४(अङ्गिरा – पत्नी श्रद्धा की ४ पुत्रियों के नाम), ४.१.४९(धर्म की पत्नियों में से एक, शुभ – माता), मत्स्य १९.११(श्राद्ध में श्रद्धा पुष्प का निरूपण : प्रदत्त अन्न का विभिन्न योनियों में वितरण), ४६.२०(वसुदेव - भार्या), विष्णु १.७.२८(धर्म की पत्नियों में से एक, काम – माता), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८१, ३.२७६(श्रद्धा के देवश्रद्धा, पापश्रद्धा आदि प्रकार व फल), शिव २.५.८.१५(शिव रथ में गति का रूप), २५९, स्कन्द ४.१.२९.१५८(गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), महाभारत शान्ति ६०.४०(श्रद्धायज्ञ के सब यज्ञों में अग्रिम होने का उल्लेख), २६४.८(श्रद्धा का सूर्य – दुहिता सावित्री से तादात्म्य, श्रद्धा की प्रशंसा), लक्ष्मीनारायण २.२४९.२(श्रद्धा की प्रशंसा), ३.५१.१२१, द्र. दक्ष कन्याएं shraddhaa
श्रम महाभारत आश्वमेधिक ३१.२(३ तामस गुणों में से एक), द्र. वंश वसुगण
श्रव मत्स्य ५०.२७(प्रत्यश्रवा : चैद्योपरिचर वसु व गिरिका के ७ पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.६०.५४जितश्रवा, द्र. उग्रश्रवा, उच्चैःश्रवा, पृथुश्रवा, प्रतिश्रव, भद्रश्रवा, वाच:श्रवा, विश्रवा, वेदश्रवा, श्रुतश्रवा, सुश्रवा, सोमश्रवा shrava
श्रवण गरुड २.५.१४६(यम के १३ प्रतीहार गण की संज्ञा), २.१६.४९+(श्रवण गण द्वारा प्रेतों के शुभाशुभ कर्मों का कथन, श्रवण गण की उत्पत्ति), २.२५(मृतक/प्रेत के कर्मों का दर्शन करने वाले द्वादश गण), ३.२०.२३(हरि प्राप्ति साधना के साधनों में श्रवण साधना की उत्कृष्टता का वर्णन), पद्म ६.२२२(कुण्डा - पति व कुरण्टक - भ्राता श्रवण ब्राह्मण का मृत्यु पर काक बनना, काशी प्रभाव से मुक्ति), भविष्य ३.४.२५.३३(ब्रह्माण्ड श्रवण से विश्वकर्मा/रैवत मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.७५(श्रवण द्वादशी व्रत, मरु प्रदेश में वणिक् को प्रेतों द्वारा भोजन, वणिक् द्वारा हिमालय में प्राप्त धन से श्राद्ध से प्रेतों की मुक्ति), ४.९५(शुभाशुभ कर्म का श्रवण ब्रह्मा को कराने वाली श्रावणी देवियां, नहुष -पत्नी जयश्री के कल्याणार्थ अरुन्धती द्वारा श्रावणिका व्रत का कथन), लक्ष्मीनारायण १.६५(दूर श्रवण, दूरदर्शन आदि विज्ञान से सम्पन्न यम के १२ अनुचर), १.२५४.४४(पितरों का नाम, श्रावण एकादशी व्रत से श्रवण सिद्धि की प्राप्ति ) shravana
श्रविष्ठा ब्रह्म १.११
श्राद्ध अग्नि ११७(कात्यायन - प्रोक्त श्राद्ध कल्प, गया में श्राद्ध), ११७.३४(एकोद्दिष्ट, सपिण्डीकरण, आभ्युदयिक, काम्य श्राद्ध की विधियों का वर्णन), ११७.४४(श्राद्ध में मांस द्वारा पितर तृप्ति का कथन), ११७.४८(तिथि अनुसार श्राद्ध का फल), १६३(श्राद्ध कल्प का वर्णन), १६५(गजच्छाया श्राद्ध), कूर्म २.२०.१७ ( नक्षत्र व तिथि अनुसार श्राद्ध के फल की प्राप्ति), २.२०.३७(श्राद्ध में भक्ष्याभक्ष्य भोजन द्रव्य विचार), २.२१(श्राद्ध हेतु प्रशस्त - अप्रशस्त ब्राह्मण), गरुड १.८३+ (गया में श्राद्ध का माहात्म्य), १.९९(श्राद्ध की विधि), १.२१८( पार्वणश्राद्ध विधि), १.२१९(नित्यश्राद्ध, वृद्धिश्राद्ध व एकोद्दिष्ट श्राद्ध विधि), १.२२०(सपिण्डीकरण श्राद्ध की विधि), १.२११(एकोद्दिष्ट/नित्य श्राद्ध की विधि), १.२१२(सपिण्डीकरण श्राद्ध की विधि), २.६(मासिक श्राद्ध से मृतक/प्रेत के कल्याण का वर्णन), २.८(जीवित रहते हुए आत्मश्राद्ध विधि), २.१०.२७(श्राद्ध में विप्र भोक्ता के उदर में पितर, वाम पार्श्व में पितामह तथा दक्षिण पार्श्व में प्रपितामह की स्थिति का कथन - उदरस्थः पिता तस्य वामपार्श्वे पितामहः ॥ प्रपितामहो दक्षिणतः पृष्ठतः पिण्डभक्षकः ।), २.१५.२९(पार्वण श्राद्ध : केवल औरस पुत्र द्वारा करणीय), २.१६(सपिण्डीकरण श्राद्ध का विधान), २.२५.३५(औरस पुत्र द्वारा पार्वण तथा अन्य पुत्रों द्वारा एकोद्दिष्ट श्राद्ध का विधान), २.२७.३०(१६ श्राद्धों का उल्लेख), २.३२(पार्वण, एकोद्दिष्ट व अन्य श्राद्ध), २.३३(नित्य श्राद्ध के नियम), २.३५.२९(प्रेत श्राद्ध में वर्जित १८ कर्म), २.४५.१(विभिन्न सम्बन्धियों के लिए एकोद्दिष्ट व पार्वण श्राद्ध विधि), २.४५.७(अपुत्रों हेतु एकोद्दिष्ट श्राद्ध का विधान), ३.२९.५०(श्राद्ध काल में अच्युतानन्त गोविन्द के स्मरण का निर्देश), नारद १.१४.८१(कन्या हेतु श्राद्ध का निर्णय, मृत्यु पर श्राद्ध विधान), १.२८(श्राद्ध विधि, श्राद्ध भोजन हेतु पात्र - अपात्र विचार), १.५१.१०१(श्राद्ध विधि), १.५१.१०३(श्राद्ध योग्य पात्र - अपात्र ब्राह्मण के लक्षण), १.१२३.३९(आश्विन् कृष्ण चतुर्दशी को एकोद्दिष्ट श्राद्ध विधि), २.४५+ (गया में श्राद्ध), २.५८(जगन्नाथ), पद्म १.९(श्राद्ध विधि, प्रकार, श्राद्ध योग्य देश व नदी), १.११.८६(श्राद्ध हेतु उपयुक्त काल), १.२७, १.३१, १.३३, १.५०.२७३(वसिष्ठ के सात शिष्यों द्वारा श्राद्धार्थ होम धेनु के वध की कथा), १.६०, २.७०, ५.१०५(श्राद्ध काल का निर्णय), ५.११७.६३(राम द्वारा कौसल्या का मासिक श्राद्ध), ६.२१४, ब्रह्म १.११०(पितर श्राद्ध की विधि), १.१११(विभिन्न मांसों से पितरों की तृप्ति, श्राद्धार्ह तिथियां), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०४.५२(पैतृक जन्म भूमि पर श्राद्ध कर्म की महिमा), ब्रह्माण्ड २.३.९, २.३.११(श्राद्ध विधि व माहात्म्य), २.३.१३(श्राद्ध हेतु निर्दिष्ट तीर्थ स्थान), २.३.१४.११(श्राद्ध हेतु वर्ज्य - अवर्ज्य द्रव्य), २.३.१७(तिथि अनुसार श्राद्ध कर्म का फल), २.३.१८(नक्षत्र अनुसार श्राद्ध के अनुष्ठान का फल), २.३.१९.३ (श्राद्ध में मांस दान का फल), भविष्य १.१८३+ (श्राद्ध के भेदों के नाम व वर्णन), १.१८५.३(मातृ श्राद्ध की विधि), ३.४.७.५८, मत्स्य १५(वर्जित - अवर्जित श्राद्ध द्रव्य), १६(श्राद्धों के भेद, विधि, श्राद्ध योग्य ब्राह्मण के लक्षण), १७(श्राद्ध विधि व काल), १८(एकोद्दिष्ट व सपिण्डीकरण श्राद्ध विधि), १९.८(श्राद्धान्न के सर्पों, यक्षों, राक्षसों आदि में रूपान्तरों का कथन), २२(श्राद्ध योग्य तीर्थ व नदियां), ४६.२४, १४१(पुरूरवा द्वारा अमावास्या में पितर श्राद्ध), २०४, मार्कण्डेय ३०(२७)+ (मदालसा द्वारा अलर्क को श्राद्ध विषयक अनुशासन), ३०/३३.१ (प्रतिपदा आदि तिथियों में श्राद्ध के फल का कथन), ३२(श्राद्ध में मांस से तृप्ति), ३३ (३०)(विभिन्न तिथियों व नक्षत्रों में श्राद्ध के अनुष्ठान का फल), ३४(अमावास्या को श्राद्ध), लिङ्ग २.४५(जीवित श्राद्ध की विधि), वराह १३(मार्कण्डेय द्वारा गौरमुख को श्राद्ध विषयक कथन), १८०, १८८, १९०.६६(अजीर्ण से निवृत्ति हेतु त्रिदेवों के साथ सोम का चतुर्थ पितर बनना, अग्नि का भी सम्मिलित होना), १९०(अपाङ्क्तेय विप्र का वर्णन), वायु ७१.६६(श्राद्ध भोजन हेतु उपयुक्त पात्र), ७५(श्राद्ध विधि व श्राद्ध योग्य द्रव्य), ७७(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थ), ८०(श्राद्ध में विभिन्न दानों का फल), ८१(विभिन्न तिथियों में श्राद्ध का फल), ८२(नक्षत्रों में श्राद्ध का फल), ८२.४(विभिन्न मांसों से विभिन्न कालिक पितर तृप्ति), ८२.१४(गया में श्राद्ध का माहात्म्य), ८२.६०(श्राद्ध में अपाङ्क्तेय पात्र), १०५+ (गया में श्राद्ध का माहात्म्य), ११०(गया में श्राद्ध की विधि), विष्णु ३.१३(एकोद्दिष्ट व सपिण्डीकरण श्राद्ध का विधान), ३.१५(श्राद्ध हेतु पात्र - अपात्र विचार, श्राद्ध विधि), ३.१६(श्राद्ध हेतु वर्जित व विहित द्रव्य), ४.१३.५०/४.१३.२७ (जाम्बवान् से युद्धरत कृष्ण द्वारा बान्धवों द्वारा श्राद्ध से बल प्राप्त करने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.४३(श्राद्ध हेतु पात्र - अपात्र विचार), १.१३७.३०(चन्द्रमा द्वारा उर्वशी व पुरूरवा को देखने पर श्राद्ध), १.१४०(श्राद्ध विधि), १.१४१.१(श्राद्ध हेतु वर्ज्य देश), १.१४२(श्राद्ध काल), १.१४४(श्राद्ध हेतु उपयुक्त देश), २.७७, ३.११९.१२(श्राद्ध कार्य में वराह की पूजा), शिव ५.४०(पितर श्राद्ध), ६.११.३६(श्राद्ध के प्रकार व उनके देवताओं का वर्णन), ६.१२.३६(प्रणव अर्थ के प्रसंग में नान्दी श्राद्ध विधि), ६.२२, स्कन्द २.१.२२.२९(पुण्यशील द्वारा श्राद्ध में वन्ध्यापति को निमन्त्रित करने से गर्दभमुख प्राप्ति), २.१.२५(जाबालि - प्रोक्त पार्वण श्राद्ध का माहात्म्य), २.४.९.७३ (कार्तिक अमावास्या को पार्वण श्राद्ध का निर्देश), ३.१.३६.३९(दत्तात्रेय - प्रोक्त महालय पक्ष में श्राद्ध की महिमा, तिथि अनुसार महालय श्राद्ध का फल), ३.२.७.१( धर्मवापी में पितृतर्पण/श्राद्ध का माहात्म्य), ४.१.३६.२९(महालय श्राद्ध का माहात्म्य), ५.१.५८(श्राद्ध का माहात्म्य, पितरों का सप्तधा विभाजन, दिशाओं के अनुदिश स्थिति), ५.१.५४.२५ (आश्विन् अमावास्या को महालयश्राद्ध का महत्त्व), ५.२.२८.८४(श्राद्धों में जटेश्वर की कथा पढने का निर्देश), ५.३.५१.९(श्राद्ध हेतु विभिन्न मासों की विशिष्ट तिथियों का कथन), ५.३.१४६(अस्माहक तीर्थ में पिण्डदान व वृषभदान का माहात्म्य), ५.३.१९५.४१(श्राद्ध में श्रीपति का माहात्म्य सुनाने का निर्देश), ६.१९, ६.२०४(युद्ध में हत योद्धाओं के प्रेतों की मुक्ति हेतु विष्णु व इन्द्र का श्राद्ध विषयक संवाद, चतुर्दशी श्राद्ध), ६.२०६(इन्द्र द्वारा एकोद्दिष्ट श्राद्ध, विश्वेदेवों को शाप), ६.२१५+ (भर्तृयज्ञ द्वारा आनर्त नृप को श्राद्ध के काल, विधि आदि का कथन), ६.२१९(विभिन्न तिथियों में श्राद्ध के अनुष्ठान का फल), ६.२२०(विभिन्न पशुओं के मांसों से श्राद्ध में तृप्ति का वर्णन), ६.२२२(शस्त्र द्वारा हत मृतकों के लिए एकोद्दिष्ट श्राद्ध), ७.१.२०५+ (श्राद्ध काल, एकोद्दिष्ट व पार्वण श्राद्ध, श्राद्ध योग्य ब्राह्मण, अन्न, वस्त्र आदि), ७.१.२०७(श्राद्ध हेतु पात्र - अपात्र विचार), हरिवंश १.१६(भीष्म द्वारा पितरों को हस्त पर पिण्ड न देना), १.२४(श्राद्ध के संदर्भ में राजा ब्रह्मदत्त का वृत्तान्त), महाभारत वन ३१३.८५ (श्राद्ध के मृत होने का प्रश्न व उत्तर - श्राद्धं मृतं कथं वा स्यात्कथं यज्ञा मृतो भवेत् ॥...मृतमश्रोत्रियं श्राद्धं मृतो यज्ञस्त्वदक्षिणः ॥), अनुशासन २२.८ (कव्यप्रदान में ब्राह्मण की परीक्षा का निर्देश आदि), २३ (श्राद्धकाल, श्राद्ध हेतु योग्य – अयोग्य पात्र), १२५ (पिण्डदान विधि), १४५दाक्षिणात्य पृ. ६००२, लक्ष्मीनारायण १.४०(श्राद्ध का माहात्म्य, श्राद्ध द्रव्य), १.१५८.१४(तिथि अनुसार श्राद्ध का फल, नक्षत्र अनुसार श्राद्ध से कामना पूर्ति), १.२८० (अमावास्या तिथियों में श्राद्धों के फल), १.३५४ (मथुरा में ध्रुवतीर्थ में श्राद्ध का माहात्म्य), १.५६४.४७(अमावास्या के दिन पितरों द्वारा पिण्डों को हाथ में स्वीकार करने का उल्लेख - श्रुत्वा तन्मुनयः प्राहुः प्रतीक्षाऽमादिनं मुने ।करे ग्रह्णन्ति पितरः पिण्डान् दर्शे प्रकल्पितान् || ), २.५.१०३(, २.१४५.६९नान्दी श्राद्ध, ३.१०१.२, ३.१६५, ४.६, द्र. महालय shraaddha/ shraddha
श्राद्धदेव भागवत ८.२४(सूर्य - पुत्र सत्यव्रत/श्राद्धदेव द्वारा कृतमाला नदी में तर्पण, मत्स्य की प्राप्ति, मत्स्यावतार का वर्णन), वायु ९६.१८६(अस्मकी - पुत्र, निषाद/निषध की स्थापना ), शिव ३.२९, shraaddhadeva/ shraddhadeva
श्रान्त विष्णुधर्मोत्तर ३.२९८.१७, द्र. विश्रान्ति
श्रावण अग्नि १६२.९(श्रावणीय पूर्णिमा पर स्वाध्याय उपाकर्म का निर्देश), पद्म ६.८६(श्रावण में पवित्रारोपण), भविष्य ३.४.८.२०(श्रावण मास के सूर्य का माहात्म्य), ३.४.८.१२७(केदार तीर्थ में महाश्रावणी पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.५.११५(यम के श्रावण नामक दूत का संदर्भ), २.२६(श्रावणी उत्सव, यज्ञोपवीत संस्कार ), shraavana/ shravana
श्रावस्ती कूर्म १.२०.१९(युवनाश्व - पुत्र व नगरी), वा.रामायण ७.१०८.५(लव द्वारा शासित नगरी ), कथासरित् ३.१.६३, ६.४.२३, ६.५.४०, ६.७.१३३, १६.१.२४ shraavastee/ shravasti
श्रिया लक्ष्मीनारायण १.३०६
श्री अग्नि २५.१३(श्री की आराधना हेतु बीज मन्त्र), ६२(श्रीसूक्त), ११३.४(गौरी द्वारा श्री का रूप धारण करके तप, हरि से वर प्राप्ति), ३०८.१(श्री मन्त्र के न्यास का वर्णन), ३१३.१७(श्री मन्त्र का कथन), कूर्म १.१(श्री/माया के रहस्य ज्ञान हेतु इन्द्रद्युम्न द्वारा कूर्म से कूर्म पुराण का श्रवण), २.३७.१३(श्रीपर्वत तीर्थ का माहात्म्य), गरुड ३.६.४(श्री द्वारा हरि-स्तुति), गर्ग ५.१७.३०, नारद १.४३.७२(नित्य क्रोध से श्री की रक्षा का निर्देश), १.५६.२०७(श्रीवृक्ष की चित्रा नक्षत्र से उत्पत्ति), १.६६.१२४(विघ्नराज की शक्ति श्री का उल्लेख), १.८४.५४(महिषासुर मर्दन हेतु श्री की उत्पत्ति, मन्त्र विधान), १.११४.३श्रीपञ्चमी, पद्म ३.२६, ६.२२६.२३(ओंकार में उकार द्वारा श्री के निरूपण का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२२.११(श्री से कङ्काल की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड ४.३२.३४(इष, ऊर्ज), भविष्य १.५७.१५(श्री हेतु पद्म बलि का उल्लेख), ४.३७(श्री पञ्चमी व्रत में अङ्गन्यास, देवों व असुरों से श्री का तिरोभवन, समुद्र मन्थन से श्री की प्राप्ति), भागवत ४.१.४३, ११.१९.४१, मत्स्य २६१.४०(श्री देवी की प्रतिमा का स्वरूप), लिङ्ग २.५, वराह ७९(श्रीवन का वर्णन), विष्णु १.९.११७(राज्य प्राप्ति के पश्चात् इन्द्र द्वारा श्री की स्तुति), विष्णुधर्मोत्तर २.१२८(श्रीसूक्त का माहात्म्य), ३.२११(श्री लब्धि व्रत), स्कन्द ४.१.५(अगस्त्य द्वारा श्री की स्तुति), ४.२.७२.५८(श्रीदेवी द्वारा दंशनावली की रक्षा), ५.३.१८१.६०, ५.३.१९४.२५, हरिवंश २.४१.२८(श्री देवी , बलराम को समर्पण), महाभारत ११, ८२, शान्ति ३२९.११(श्री की मत्सर से रक्षा का निर्देश), योगवासिष्ठ १.१३(राम द्वारा भोग लक्ष्मी की निन्दा), लक्ष्मीनारायण १.३८५.४२(श्री का कार्य), १.४११.९२(मार्कण्डेय - कन्या श्री द्वारा तप से अम्बरीष - कन्या श्रीमती बनकर विष्णु को पति रूप में प्राप्त करने का वृत्तान्त), २.८१.४७(भीमा नदी के श्री रूप का उल्लेख), २.२९७.८५, ३.२१, ३.१०२.१३, ३.१०२.२४(गायों द्वारा चञ्चला लक्ष्मी को शकृत में स्थान देने का वृत्तान्त ), ३.१०७.२श्रीचिह्न, ३.१६४.७१, ४.१०१.६५, कथासरित् १.७.६०, ४.३.४९, द्र. उद्यमश्री, जयश्री, नरश्री, वेदश्री shree/ shri
श्रीकण्ठ नारद १.६६.१०६(श्रीकण्ठ की शक्ति पूर्णोदर्या का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.४९(लिपि न्यास के प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता), लिङ्ग १.५०.१७(श्रीकण्ठ का मर्यादा पर्वत पर वास), वामन ६३.६७, ९०.२६(यमुना तट पर विष्णु का श्रीकण्ठ नाम),स्कन्द ४.२.९७.१०८(श्रीकण्ठ कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य ), कथासरित् ३.६.३८, ७.६.४२, ८.१.४७, १२.७.११६, shreekantha/ shrikantha
श्रीकपाल स्कन्द ५.३.२१४
श्रीकर शिव ४.१७(श्रीकर गोप बालक का महाकालपूजा से कल्याण), स्कन्द ३.३.५(श्रीकर गोप बालक को शिव पूजा से ऐश्वर्य प्राप्ति ) shreekara/ shrikara
श्रीकुण्डल पद्म ३.३०(हेमकुण्डल - पुत्र, विकुण्डल भ्राता द्वारा पुण्य दान से नरक से मुक्ति )
श्रीखण्ड स्कन्द ५.३.९०.९९
श्रीगर्भ कथासरित् ७.३.९९
श्रीचक्र लक्ष्मीनारायण ३.१०४.३६
श्रीतार भविष्य ३.३.३२.१८२(पृथ्वीराज - सेनानी, सूर्यधर से युद्ध),
श्रीदण्डी अग्नि २९९
श्रीदत्त भविष्य ३.२.४.४२(सिन्धुगुप्त व प्रभावती - पुत्र, जयलक्ष्मी - पति, जारासक्त पत्नी द्वारा पति पर नासाकर्तन के मिथ्या दोष का आरोपण), कथासरित् २.२.१४,
श्रीदर्शन कथासरित् १२.६.२१, १२.६.६७, १२.६.१७९(क्षुधाग्रस्त श्रीदर्शन द्वारा भोजन ग्रहण, स्व माता – पिता के दर्शन, धन प्राप्ति), १२.६.२१७(चोर से रक्षा हेतु श्रीदर्शन द्वारा रुग्णता का प्रदर्शन), १२.६.२७६(वेताल साधन हेतु श्रीदर्शन का मन्त्रवादी का सहायक बनना, वेताल को स्वमांस प्रस्तुत करना)।
श्रीदामा गर्ग २.२३(कृष्ण द्वारा वध पर शङ्खचूड की ज्योति का श्रीदामा में लीन होना), २.२६.४३(श्रीदामा द्वारा राधा को शाप - प्रतिशाप, सुधन - पुत्र शङ्खचूड बनना), ३.९.१९(श्रीदामा आदि पार्षदों का कृष्ण की भुजा द्वय से प्राकट्य), ब्रह्मवैवर्त्त ४१, ४.२(श्रीदामा की राधा से कलह), ४५, वामन ८२(श्रीदामा द्वारा वासुदेव के श्रीवत्स की कामना, सुदर्शन चक्र द्वारा वध ) shreedaamaa/ shridamaa
श्रीधर नारद १.६६.८८(श्रीधर की शक्ति मेधा का उल्लेख), पद्म ४.५(हेमप्रभावती - पति, व्यास से पुत्रहीनता के कारण की पृच्छा, पूर्व जन्म का वृत्तान्त), ६.१२०.६६(श्रीधर से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन), भविष्य ३.४.८(वेदशर्मा - पुत्र, सूर्य का अंश), ३.४.१९(चोरों द्वारा शिव पूजक ब्राह्मण श्रीधर की हत्या, राम द्वारा पुन: सञ्जीवन), वराह १.२७(श्रीधर से कण्ठ की रक्षा की प्रार्थना), स्कन्द २.२.३०.८०(श्रीधर से वायव्य दिशा की रक्षा की प्रार्थना), ४.२.६१.२२७(श्रीधर मूर्ति के लक्षण), ५.३.१४९.१०, लक्ष्मीनारायण १.२५५.७(श्रावण शुक्ल एकादशी को श्रीधर की पूजा), १.२६५.१०(श्रीधर की पत्नी कान्तिमती का उल्लेख ), कथासरित् १०.२.४६, १०.७.६, shreedhara/ shridhara
श्रीनिवास गरुड ३.२३.३३(जाम्बवती द्वारा शेषाचल पर श्रीनिवास का स्मरण, श्रीनिवास के विभिन्न अंगों में जल, सत्य आदि लोकों की भावना), ३.२४.८(श्रीनिवास के संसार में दृश्यमान विभिन्न रूप), ३.२९.५९(दुग्धान्न भोगकाल में श्रीनिवास हरि के ध्यान का निर्देश), वामन ९०.२५(प्लक्षावतरण में विष्णु का श्रीनिवास नाम?), स्कन्द २.१.४, लक्ष्मीनारायण १.३९९, २.७९.३१(बालकृष्ण के दक्षावर्त में श्रीनिवास नामक भ्रमर विराजित होने का उल्लेख ) shreenivaasa/ shrinivasa
श्रीपति भविष्य ३.३.३२.१८२(पृथ्वीराज - सेनानी, प्रवीर से युद्ध), ३.४.२२(श्रीपति का कवि सूरदास रूप में जन्म), भागवत १०.६.२६(श्रीपति से आसीन स्थिति में रक्षा की प्रार्थना), वामन ९०.१८(नर्मदा में विष्णु का श्रीपति नाम से वास), स्कन्द ५.३.१९२(श्रीपति की उत्पत्ति, माहात्म्य, नर - नारायण तप में विघ्न हेतु काम व अप्सराओं का आगमन, श्रीपति द्वारा नर - नारायण की स्तुति, विराट् रूप का दर्शन ) shreepati/ shripati
श्रीपर्वत कथासरित् १२.१.६६
श्रीपुर पद्म २.४७, ब्रह्माण्ड ३.४.३१.१(मय द्वारा ललिता देवी हेतु श्रीपुर का निर्माण, विस्तृत वर्णन ) shreepura/ shripura
श्रीफल ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४९(स्तन सौन्दर्य हेतु श्रीफल दान का निर्देश ), ३.४.६३, स्कन्द २.२.४४.७, द्र. बिल्व shreephala/shreefala / shrifala
श्रीबिम्ब कथासरित् २.२.८८
श्रीभानु गर्ग ७.४२
श्रीमघ लक्ष्मीनारायण २.७२.३९
श्रीमती लिङ्ग २.५(अम्बरीष - कन्या श्रीमती द्वारा स्वयंवर में श्रीहरि का वरण, वानरमुख नारद व पर्वत का तिरस्कार), शिव २.१.३(श्रीमती द्वारा स्वयंवर में नारद का अपमान, विष्णु का वरण ), योगवासिष्ठ ६.१.७९.२१, लक्ष्मीनारायण १.४११ shreematee/ shrimati
श्रीमाता स्कन्द ३.२.१६+ (श्रीमाता मातृका का माहात्म्य), ३.२.३२(श्रीमाता द्वारा राम से लोहासुर - प्रदत्त दुःख का निवेदन), ७.३.२२(श्रीमाता का माहात्म्य, देवों द्वारा कलिङ्ग दानव पर विजय हेतु देवी की आराधना ) shreemaataa/ shrimataa
श्रीमान् लक्ष्मीनारायण १.३५५, ३.१७०.५०श्रीमानस
श्रीमुख स्कन्द ७.१.१६(धूम्र राक्षस के पाताल में विवर का मुख, मातृकाओं द्वारा रक्षा),
श्रीमूलदेव कथासरित् १२.२२.२१
श्रीरङ्ग पद्म ५.१०४
श्रीवत्स अग्नि २५.१४(श्रीवत्स पूजा हेतु बीज मन्त्र - जं खं वं सुदर्शनाय श्रीवत्साय सं वं दं चं लं ।), भागवत ६.८.२२(श्रीवत्स धारी विष्णु से अपर रात्र में रक्षा की प्रार्थना), वामन ८२.१८(श्रीदामा असुर की विष्णु के श्रीवत्स हरण की इच्छा), ९०.१८(उदाराङ्ग तीर्थ में विष्णु का श्रीवत्साङ्क नाम से वास), विष्णु १.२२.६९(श्रीवत्स का प्रतीकार्थ - अनन्त का रूप), महाभारत शान्ति ३४२.१३४/३५२.६७ (अद्यप्रभृति श्रीवत्सः शूलाङ्को मे भवत्वयम्), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९३(श्रीवत्स के कल्पवृक्ष बनने का उल्लेख), २.१४०.२४(श्रीवत्स प्रासाद के लक्षण - चतुर्दशतलभागो नवविंशतिकाण्डकः । चतुर्विंशतितिलकः श्रीवत्साख्यः स उच्यते ।), २.१७६.१७(ज्योतिष में योग ), ३.१०७(श्रीचिह्न योगी द्वारा देवानीक राजा पर कृपा), सीतोपनिषद ३५ (योगशक्तिरूप श्रीवत्स के मूलतः इच्छा शक्ति होने का कथन) shreevatsa/ shrivatsa
श्रीवर्धन स्कन्द ६.२९(सुप्रभ - शिष्य, गुरु पर सर्प डालने वाले विप्र को शाप),
श्रीविद्या शिव ३.१६
श्रीवृक्ष पद्म १.२८(श्रीवृक्ष के शंकर को तुष्टिप्रद होने का उल्लेख), भविष्य ४.६०
श्रीशील लक्ष्मीनारायण ४.६
श्रीशैल पद्म ६.१९(श्रीपर्वत का माहात्म्य), मत्स्य १३, १८८, स्कन्द १.१.७.३३(श्रीशैल में शिखरेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ५.३.१९८.६९, ६.१०९(श्रीपर्वत तीर्थ में त्रिपुरान्तक लिङ्ग की स्थिति), ७.१.१०.६(श्रीशैल तीर्थ का वर्गीकरण – जल), लक्ष्मीनारायण २.११७.७७(श्रीशैल पर्वत पर सूकर/यज्ञवराह का वास ) shreeshaila/ shrishaila
श्रीसूक्त अग्नि ६२.४(लक्ष्मी प्रतिष्ठा विधि के अन्तर्गत श्रीसूक्त का न्यास), २६३.१(श्रीसूक्त का महत्त्व, चारों वेदों के श्रीसू्क्तों का उल्लेख), पद्म ६.२२७.२९(श्रीसूक्त की आरम्भिक ऋचाओं के रूपान्तर), विष्णुधर्मोत्तर २.१२८(श्रीसूक्त का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.११७.४०(श्रीसूक्त की कुछेक ऋचाओं का रूपान्तर ) shreesuukta/ shreesukta/ shreesookta/ shrisukta/ sri sukta
श्रीसेन कथासरित् १२.६.२५४
श्रुत मार्कण्डेय ५०.२६(मेधा – पुत्र -- मेधा श्रुतं क्रिया दण्डं नयं विनयमेव च॥), विष्णु १.७.२९(धर्म व मेधा – पुत्र -- मेधा श्रुतं क्रिया दण्डं नयं विनयमेव च ॥), स्कन्द २.१.३७.२(श्रुत नृप के पुत्र शंख का वृत्तान्त), महाभारत वन ३१३.७४(धनों में श्रुत के उत्तम होने का उल्लेख - धन्यानामुत्तमं दाक्ष्यं धनानामुत्तमं श्रुतम्। ), द्र. प्रतिश्रुत shruta
श्रुतकर्मा ब्रह्माण्ड २.३.५९.४९(सूर्य व छाया - पुत्र, शनि ग्रह बनना), भविष्य १.७९.२८(छाया व सूर्य - पुत्र, शनि का उपनाम ), वायु ८३.५०, shrutakarmaa
श्रुतकीर्ति अग्नि ५, पद्म ५.६७.३७(शत्रुघ्न - पत्नी), वराह १७, वा.रामायण १७३
श्रुतदेव गर्ग ७.१६.६(बहुलाश्वं राजपुत्रं श्रुतदेवं द्विजं तथा ॥ स्मरत्यलं द्वारकायां श्रीकृष्णो भगवान् हरिः ॥), ७.२०.३२(प्रद्युम्न - सेनानी, दु:शासन से युद्ध -- दुःशासनेन समरे श्रुतदेवो हरेः सुतः ॥), भागवत १०.८६.२४(मिथिलावासी ब्राह्मण श्रुतदेव द्वारा कृष्ण के आगमन पर स्तुति, कृष्ण द्वारा उपदेश -- मैथिलः श्रुतदेवश्च पादयोः पेततुः प्रभोः ॥ न्यमन्त्रयेतां दाशार्हं आतिथ्येन सह द्विजैः ।), स्कन्द २.१.१६.१६(श्रुतदेव द्वारा हेमाङ्ग को जातिस्मरण कराना, पुण्य दान से हेमाङ्ग की गोधिका योनि से मुक्ति), २.७.६+ (श्रुतदेव के जनक गृह आगमन पर गृहगोधा की मुक्ति की कथा, छत्र दान आदि के माहात्म्य का कथन), २.७.७.२७(श्रुतदेव द्वारा पिता मैत्र का पिशाच योनि से उद्धार - रेवातीरे मत्पिताऽभूत्पिशाचः स्वमांसाशी क्षुत्तृषाश्रांतगात्रः । छायाहीने शाल्मलीवृक्षमूले ह्यन्नाभावान्नष्टचैतन्य एषः ।। २७ ।। ), ५.१.६३.१९७(विष्णुसहस्रनामों में एक - श्रुतदेवः श्रुतः श्रावी श्रुतबोधः श्रुतश्रवाः ।।), shrutadeva
श्रुतधर कथासरित् १२.७.२४
श्रुतधि कथासरित् १२.३.३१, १२.३३.२७
श्रुतवती पद्म ५.६७.३९(वीरमणि - पत्नी )
श्रुतवर्ण वामन ५७.८१(पर्णासा नदी द्वारा कुमार को प्रदत्त गण )
श्रुतवर्धन कथासरित् ७.५.६,
श्रुतवर्मा ब्रह्माण्ड ३.४.१२.५३(भण्डासुर का मन्त्री),
श्रुतशर्मा कथासरित् ८.१.१२, ८.१.३१, ८.२.८, ८.२.८०, ८.५.१३
श्रुतश्रवा गर्ग ७.७.२३(श्रुतिश्रवा : वसुदेव - भगिनी, दमघोष - पत्नी, शिशुपाल - माता), ब्रह्माण्ड २.३.५९.४८(सूर्य व छाया - पुत्र, सावर्णि मनु बनना), भविष्य १.७९.२८(छाया व सूर्य - पुत्र, सावर्णि मनु का उपनाम ), वायु ८३५०, shrutashravaa
श्रुतसेन कथासरित् ६.७.२५
श्रुता कथासरित् १५.२.३४
श्रुतायुध वामन ५८.६७(श्रुतायुध द्वारा गदा से असुर संहार),
श्रुतार्थ कथासरित् १.६.९
श्रुति
गरुड ३.११.५(निद्रागत
विष्णु के संदर्भ में श्रुतिस्वरूपा
प्रकृति दवारा हरि की स्तुति-
लक्ष्मीधराभ्यां
रूपाभ्यां
प्रकृतिर्हरिणा
तथा
॥
शेत
श्रुतिस्वरूपेण
स्तौति
गर्भोदके
हरिम्
।),
गर्ग
१.४.३४(श्रुतियों
द्वारा हरि से वर प्राप्ति,
व्रज
में गोपियां बनना
-
आनन्दमात्रमिति
यद्वदंतीह
पुराविदः
॥
तद्रूपं
दर्शयास्माकं
यदि
देयो
वरो
हि
नः
।),
५.१७.२१(श्रुति
रूपा गोपियों द्वारा कृष्ण
विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया
-
यज्जागरादिषु
भवेषु
परं
ह्यतेर्हेतुस्विदस्य
विचरंति
गुणाश्च
येन
।नैतद्विशंति
महदिंद्रियदेवसंघा स्तस्मै
नमोऽग्निमिव
विस्तृतविस्फुलिंगाः
॥),
७.४२.२६(श्रुतियों
द्वारा स्मय से मोक्ष प्राप्ति
का उल्लेख
-
स्मयाच्च
श्रुतयः
प्रापुर्योगिनां
दुर्लभं
परम्
॥),
पद्म
५.७३.३२(गोपियों
के श्रुति व गोपकन्याओं के
ऋचा होने का उल्लेख
-
गोप्यस्तु
श्रुतयो
ज्ञेया
ऋचो
वै
गोपकन्यकाः।),
भागवत
१०.८७.१४(श्रुतियों
द्वारा अजित भगवान की स्तुति
द्वारा प्रबोधन
-
जय
जय
जह्यजामजित
दोषगृभीतगुणां
त्वमसि
यदात्मना
समवरुद्धसमस्तभगः
।),
वायु
६९.३३७/२.८.३३७(क्रौञ्ची
के श्रुतिशालिनी होने का
उल्लेख
-
क्रूरशीला
तथा
कद्रुः
क्रौञ्च्यथ
श्रुतिशालिनी
।),
विष्णु
२.११.९(ऋक्
आदि वेदत्रयी श्रुति की महिमा
-
ऋचः
स्तुवन्ति
पूर्वाह्ने
मध्याह्नेथ
यजूंषि
वै
।
बृहद्रथन्तरादीनि
सामान्यह्नः
क्षये
रविम्
॥),
शिव
७.१.१७.३०(अत्रेर्भार्यानुसूया
च
पञ्चात्रेयानसूयत
॥
कन्यकां
च
श्रुतिं
नाम
माता
शंखपदस्य
च
॥ ,
स्कन्द
२.१.८.३(श्रुति
देवी द्वारा रेशमी वस्त्र
लेकर श्रीनिवास से समीप उपस्थित
होना -
श्रुतिः
क्षौमं
समादाय
तस्थौ
देवस्य
सन्निधौ
।।
भूषणानि
समादाय
स्मृतिरप्याययौ
मुदा
।।),
४.१.२.९७(श्रुति-स्मृति
की चक्षुओं से उपमा -
श्रुतिस्मृती
तु
नेत्रे
द्वे
पुराणं
हृदयं
स्मृतम्
।।),
४.१.३१.२२(ऋक्,
यजु
आदि श्रुति,
परम
तत्त्व शिव का निरूपण
-
यदंतःस्थानि
भूतानि
यतः
सर्वं
प्रवर्तते
।।
यदाहुस्तत्परं
तत्त्वं
स
रुद्रस्त्वेक
एव
हि
।।...
),
५.३.१.१६(श्रुतिः
स्मृतिश्च
विप्राणां
चक्षुषी
परिकीर्तिते
।
काणस्तत्रैकया
हीनो
द्वाभ्यामन्धः
प्रकीर्तितः
॥...),
द्र.
कुम्भश्रुति,
जानश्रुति,
ज्ञानश्रुति,
देवश्रुत,
भूरिश्रुत,
वेदश्रुत,
सुश्रुत
shruti
श्रुतिफल लक्ष्मीनारायण ३.१७३
श्रुतिशृणा वायु ३१.९
श्रेणिमती लक्ष्मीनारायण ३.३०.१२, द्र. भद्रश्रेण्य
श्रेय मत्स्य १०१.७०(श्रेय व्रत), विष्णु २.१४.७
श्रेयसी लक्ष्मीनारायण १.३०७, १.३८५.४८(श्रेयसी का कार्य – कटि में स्वर्णनिर्मित रशना)
श्रेष्ठ अग्नि ३४८.१२, नारद १.१२५.४३(विभिन्न द्रव्यों की श्रेष्ठता), पद्म ७.२२.६३(एकादशी व्रत के संदर्भ में ब्रह्माण्ड की विभिन्न वस्तुओं की श्रेष्ठता का कथन), स्कन्द ४.१.३५.४८(ब्रह्माण्ड की विभिन्न वस्तुओं में मुख्यता का कथन), लक्ष्मीनारायण १.९४.३२(संसार में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं व प्राणियों में श्रेष्ठता का वर्णन ), ३.६३.४५(साधुओं की श्रेष्ठता का कथन), shreshtha
श्रोणी ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५३(श्रोणी सौन्दर्य हेतु रम्भा स्तम्भ दान का निर्देश), स्कन्द ५.३.९०.१००, हरिवंश २.८०.३७, महाभारत शान्ति ३४७.५०(हयग्रीव की श्रोणी के रूप में गङ्गा - सरस्वती का उल्लेख ) shronee/ shroni
श्रोत्र गरुड ३.५.२०(श्रोत्राभिमानी के रूप में चन्द्र का उल्लेख - चन्द्रः श्रोत्राभिमानीति तथा ज्ञेयः खगेश्वर ।), पद्म ६.६.२५(बल असुर के श्रोत्रों से माणिक्य की उत्पत्ति का उल्लेख - अक्षिभ्यामिन्द्रनीला वै माणिक्यं श्रुतिसंभवम् ), वा.सं. २४.२९(श्रोत्राय भृङ्गाः), द्र. देह, शरीर
श्रोत्रिय स्कन्द १.२.५.१०९(ब्राह्मणों के ८ भेदों में से एक, लक्षण - मात्रश्च ब्राह्मणश्चैव श्रोत्रियश्च ततः परम्॥ अनूचानस्तथा भ्रूण ऋषिकल्प ऋषिर्मुनिः॥…..एकां शाखां सकल्पां च षड्भिरंगैरधीत्य च॥ षट्कर्मनिरतो विप्रः श्रोत्रियोनाम धर्मवित्॥ ), महाभारत वन ३१३.४७(केन स्विच्छ्रोत्रियो भवति केन स्विद्विन्दते महत्।…..श्रुतेन श्रोत्रियो भवति तपसा विन्दते महत्।) shrotriya
श्रौत - स्मार्त्त ब्रह्माण्ड २.३२.३३, २.३२.४३, विष्णुधर्मोत्तर २.९५.१(स्मार्त कर्म वैवाहिक अग्नि पर तथा पिता मरण आदि काल में श्रौत कर्म वैतानिक अग्नियों में करने का निर्देश ) shrauta - smaarta
श्रौषट्
लक्ष्मीनारायण २.१२४.८१(यज्ञ
में श्रौषट्,
स्वाहा,
वषट्
आदि व्याहृतियों से प्रयोज्य
वस्तुओं के नाम
-
मात्राद्यायै
स्वधा
चापि
श्रौषट्
विश्वाधिवासिने
।
गन्धर्वेभ्यः
किन्नरेभ्यः
श्रौषट्
किंपुरुषाय
च
।।.....साध्वीभ्यश्च
तथा
श्रौषट्
त्यागिनीभ्यश्च
सर्वथा
।।
)
shraushat
श्लक्ष्ण नारद १.५०.४४,
श्लिष्टि ब्रह्म १.१
श्लेष्मा वराह २१४+ (श्लेष्मातक सर्प तथा वन, इन्द्र द्वारा मृग रूपी शिव के श्रृङ्ग का ग्रहण), लक्ष्मीनारायण १.३७०.५३(नरक में श्लेष्मा कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) shleshmaa
श्लोक द्र. बृहच्छ्लोक
श्व पद्म ५.१०६.९८(शिवदीप के आज्य भक्षण से ब्राह्मण द्वारा श्व योनि प्राप्ति, शिव भस्म से मुक्ति की कथा), भागवत ११.१७.४८(राजन्य हेतु आपदा में भी श्ववृत्ति का निषेध), योगवासिष्ठ ६.२.११६.५७(श्वः के दोष-गुण का विवेचन), द्र. शुनः, श्वान
श्वपच पद्म ६.२१७, ७.४, योगवासिष्ठ ५.४५, लक्ष्मीनारायण ३.९८.२४,
श्वपाक शिव ५.३७.५१
श्वफल्क विष्णु ४.१३.११५, हरिवंश १.३४.३(वृष्णि - पुत्र, गान्दिनी - पति, चरित्र),
श्वभ्र स्कन्द ७.३.१, द्र. गर्त
श्वश्रू स्कन्द १.२.६.१०५(श्वश्रू शब्द का निरूपण : शिशु की शुश्रूषा करने वाली),
श्वागाध हरिवंश २.१२२.३२
श्वान अग्नि २३२.१४(श्वान द्वारा शुभाशुभ शकुन का ज्ञान), गरुड १.२१७.१३(उपाध्याय व्यलीक के कारण प्राप्त योनि), मार्कण्डेय १५(दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनि), वामन ४७(पूर्व जन्म में कौलपति, स्थाणु तीर्थ के जल से मुक्ति), विष्णु ३.१८.६५, विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०(रस हरण से श्वान योनि प्राप्ति का उल्लेख), शिव ५.१०.३५(यममार्गरोधक श्याम व शबल को बलि देने का निर्देश), स्कन्द १.२.६२.१८(शिव द्वारा क्षेत्रपालों के लिए श्मशान के श्व: की वाहन रूप में नियुक्ति), ३.३.४.१४(सारमेय द्वारा शिवमंदिर की परिक्रमा से त्रिकालज्ञ राजा बनने की कथा), ५.३.१५९.१४(अनिमन्त्रित भोजन से श्वा बनने का उल्लेख), ५.३.१५९.२३(मृतक के एकादशाह में भोजन से श्वा बनने का उल्लेख), वा.रामायण ७.५९प्रक्षिप्त (सर्वार्थ सिद्धि भिक्षु द्वारा ताडन पर श्वान की राम से न्याय की याचना, श्वान के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.५१६.५९(पार्वती द्वारा शिव के नैवेद्य भक्षण पर सारमेय होने के शाप का वृत्तान्त), १.५७३.३२(केवल शिवपूजा करने से पार्वती के शाप से ब्राह्मणों द्वारा श्वान योनि की प्राप्ति, राजा रविचन्द्र द्वारा पुण्यदान से मुक्ति ), कथासरित् १७.१.१२४(शिव के गणद्वय पिङ्गेश्वर व गुहेश्वर द्वारा क्रमिक रूप से श्व, वायस, भास आदि योनियां प्राप्त करने की कथा), shwaana/shvaana/ shwana
श्वास शिव ५.२५.४१, स्कन्द ५.१.२३.२४,
श्वेत कूर्म १.४९.४०(श्वेत द्वीप का वर्णन), २.३६(कालञ्जर तीर्थ में काल द्वारा शिव भक्त श्वेत के पाश बन्धन पर शिव द्वारा काल का वध), गणेश १.७७.३(श्वेत द्वीप में जमदग्नि व कार्तवीर्य की कथा), नारद १.६६.११८(श्वेतोरस्क की शक्ति विदारी का उल्लेख), पद्म १.३४.३५०(श्वेत द्वारा क्षुधा से पीडित होकर स्वयं के शव का भक्षण करने की कथा), १.३६(वसुदेव - पुत्र, सुरथ -अग्रज, क्षुधा पीडा से शव भक्षण, अगस्त्य को कङ्कण दान से मुक्ति), २.९४.३४(शव भक्षण के प्रसंग में श्वेत की कथा का सुबाहु राजा की कथा से साम्य), ब्रह्म १.५६(श्वेत द्वारा कपाल गौतम के मृत पुत्र के पुन: सञ्जीवन का उद्योग, वासुदेव की स्तुति), २.२४(शिव गण द्वारा श्वेत विप्र की मृत्यु से रक्षा), २.९४, ब्रह्माण्ड १.२.१७.३१(श्वेत पर्वत पर दैत्य - दानवों के वास का उल्लेख), १.२.१९.४४(कुमुद पर्वत के श्वेत वर्ष का उल्लेख), भविष्य ४.११८, मत्स्य १७३, लिङ्ग १.११.८(श्वेत मुनि का ब्रह्मा के पार्श्व से प्राकट्य), १.२३(श्वेत कल्प में शिव के नामों का वर्णन), १.२४(प्रथम द्वापर काल में श्वेत मुनि के शिष्य गण का नाम), १.२४.१०८(२३वें द्वापर में मुनि, कालञ्जर पर्वत पर वास), १.३०(श्वेत मुनि द्वारा शिव भक्ति से काल पर जय), १.५०.११(श्वेतोदर पर्वत पर महात्मा सुपर्ण का वास), १.५२.४७(श्वेत पर्वत पर दैत्यों आदि का वास), वराह ७७, ८४, ९०, ९९(श्वेत राजा द्वारा अन्न दान न करने के कारण शव भक्षण), वामन २५, ५७.१०१(श्वेत तीर्थ द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), वायु २२.९(श्वेत लोहित कल्प का नाम व वर्णन), २२.२०, २३.६३(श्वेत कल्प का वर्णन), २३.२०३(२३वें द्वापर में शिव अवतार, कालञ्जर पर्वत पर तप), विष्णुधर्मोत्तर १.२३६(शिव द्वारा श्वेत ऋषि की काल से मुक्ति), शिव ३.४, ७.१.५, स्कन्द १.१.३२(शिव - भक्त श्वेत की काल से रक्षा), १.२.२९.८९ (गङ्गा द्वारा उत्सर्जित शिव वीर्य से श्वेत पर्वत की उत्पत्ति का उल्लेख), २.१.७, २.२.३७.२७(श्वेत राजा द्वारा भगवत्कृपा प्राप्ति), २.४.२.३२टीका, ३.१.३९(श्वेत मुनि द्वारा राक्षसी पर शिला क्षेपण, शिला व राक्षसी की मुक्ति), ६.१०३(श्वेत राजा द्वारा स्वर्ग से आकर स्वदेह का भक्षण, अगस्त्य से संवाद, आनर्त तीर्थ की महिमा), ७.१.१०५.४५(प्रथम कल्प का नाम), वा.रामायण ६.२६.२४(सारण द्वारा राम को श्वेत वानर का परिचय), ६.३०.३२(वानर, सूर्य - पुत्र), ७.७७(राजा श्वेत द्वारा शव भक्षण की कथा, श्वेत द्वारा अगस्त्य को आभूषण का दान ), ७.७८, लक्ष्मीनारायण १.३८५.१०३(श्वेत द्वीप में कृष्ण के चतुर्भुज होने का उल्लेख), १.४०५, भरतनाट्य १३.२६(श्वेत पर्वत पर दैत्य-दानवों के वास का उल्लेख), shweta/shveta
श्वेतार्क लिङ्ग १.८१.३५(श्वेतार्क पुष्प पर प्रजापति ब्रह्मा की स्थिति का उल्लेख )
श्वेतकर्ण ब्रह्म १.११
श्वेतकेतु शिव ३.५, स्कन्द ४.२.९७.२१४(श्वेतकेतु द्वारा लाङ्गलीश लिङ्ग की आराधना से मोक्ष प्राप्ति), ७.१.४०(श्वेतकेतु लिङ्ग का माहात्म्य, भीमसेन द्वारा पूजा ), लक्ष्मीनारायण २.३१, shwetaketu/shvetaketu
श्वेतगङ्गा वराह १४५
श्वेतद्वीप गर्ग ५.१७.२६(श्वेतद्वीप वासी गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), नारद १.६२.३८(शुकदेव द्वारा बाधाओं को पार कर श्वेत द्वीप के दर्शन ), भविष्य ४.६६, वराह ६६, लक्ष्मीनारायण १.१२८, १.१७९, १.५२२, १.५६८, २.१४०.१३, ३.४५.२०, कथासरित् ९.४.२१ shwetadweepa/shvetadweepa/ shwetadwipa
श्वेतभद्र वा.रामायण १.४०,
श्वेतमाली स्कन्द ७.४.१७.९,
श्वेतमूर्द्धा स्कन्द ७.४.१७.९
श्वेतमुनि कथासरित् १२.५.३३६
श्वेतरश्मि कथासरित् ७.२.१३, ७.२.११२
श्वेतलोहित वायु २२.९,
श्वेतशिख शिव ३.४
श्वेता पद्म ६.१३७(साभ्रमती की धारा श्वेता का माहात्म्य), वा.रामायण ३.१४.२६, लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२८,
श्वेतानन वामन ५७.८०(वेणा नदी द्वारा कुमार को श्वेतानन गण प्रदान का उल्लेख),
श्वेताश्व कूर्म १.१४.३२(श्वेताश्वतर मुनि द्वारा सुशील को ज्ञान दान), शिव ३.४, लक्ष्मीनारायण २.७८.५१(श्वेताश्वतर ब्रह्मर्षि द्वारा शिष्य सुशील को प्रदत्त वैष्णव संन्यास विषयक उपदेश का वर्णन ) shwetaashva/ shwetashva
षट् लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३(षडश्वों की अशुभता का उल्लेख), वास्तुसूत्रोपनिषद २.१७(आकर्षणी विद्या के षट्कोणिक होने का उल्लेख)
षट्पदी गरुड २.२.२४(विष्णु, एकादशी, गीता, तुलसी, विप्र, धेनु का षट्पदी रूप में कथन), योगवासिष्ठ ४.४७.७८(इन्द्र रूपी षट्पद द्वारा स्वर्ग पंकज का भोग करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.७३.३६(विष्णु, एकादशी, गंगा आदि षट्पदी के नाम )
षट्पुर हरिवंश २.८२(असुरों के निवास स्थान षट्पुर का परिचय, ब्रह्मा से वर), २.८३+ (षट्पुर में ब्रह्मदत्त के यज्ञ में असुरों का विघ्न, कृष्ण का आगमन आदि ) shatpura
षडज वायु २१.३५/१.२१.३२(षड्ज : १६वें कल्प का नाम, षड्ज कल्प में ६ ऋतुओं की उत्पत्ति के कारण षड्ज संज्ञा ?) shadaja
षडानन गणेश २.११३.४६(षडानन द्वारा सिन्धु - मन्त्रियों मैत्र व कौस्तुभ से युद्ध), २.११४.१३(सिन्धु व गणेश के युद्ध में गन्धासुर का षडानन से युद्ध), पद्म १.६९, ६.११७, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१३१(षडानन का साम्ब रूप में अवतरण), भविष्य २.१.१७.१२(चूडा में अग्नि का नाम), वामन ५७(विभिन्न माताओं के विभिन्न नामों से पुत्र की षडानन संज्ञा), विष्णुधर्मोत्तर १.२२८+, लक्ष्मीनारायण १.३२८.६(षडानन के निशुम्भ से युद्ध का उल्लेख ), कथासरित् ९.५.१८०, द्र. कुमार, कार्तिकेय, स्कन्द, shadaanana/ shadanana
षड्गर्भ अग्नि २७५.५०(षड्गर्भ संज्ञक पुत्रों के नाम), देवीभागवत ४.२२(मरीचि व ऊर्णा - पुत्र, ब्रह्मा के शाप से कालनेमि व हिरण्यकशिपु के पुत्र बनना, हिरण्यकशिपु के शाप से देवकी - पुत्र बनना, कंस द्वारा वध), भागवत १०.८५.४७(मरीचि व ऊर्णा - पुत्र, ब्रह्मा के शाप से हिरण्यकशिपु- पुत्र बनना, जन्मान्तर में देवकी - पुत्र, कंस द्वारा वध, कृष्ण द्वारा सुतल लोक से लाना), मत्स्य ४६.१३(वसुदेव व देवकी के षड्गर्भ संज्ञक पुत्रों के नाम), वायु ९६.१७३(षड्गर्भ संज्ञक पुत्रों के नाम), विष्णु ४.१५.२६, हरिवंश २.२(कालनेमि - पुत्र, हिरण्यकशिपु- पौत्र, देवकी गर्भ में स्थापित करना ) shadgarbha
Comments on Shadgarbha
षण्ड ब्रह्माण्ड २.७३? लक्ष्मीनारायण २.२६.८७(षण्ड की व्याख्या : न जुहोति, न स्नाति, न ददाति इत्यादि ), ३.१००.२३, shanda
षण्मुख गणेश १.४३.१(त्रिपुर व शिव के युद्ध में षण्मुख के प्रचण्ड से युद्ध का उल्लेख), १.८५.३८(६ कृत्तिकाओं द्वारा गङ्गा में त्यागे वीर्य से षण्मुख की उत्पत्ति), नारद १.६६.१३२(षण्मुख गणेश की शक्ति भृकुटी का उल्लेख ) shanmukha
षण्ढ गरुड १.२१७.३०(कलाप हरण से षण्ढ योनि की प्राप्ति का उल्लेख), २.४६.२५(उदक्या गमन से षण्ड बनने का उल्लेख), मार्कण्डेय १५.३४, १५.३९, विष्णुधर्मोत्तर १.१९८, स्कन्द ५.३.१५९.२६, लक्ष्मीनारायण १.५१५, २.१४.३०(षण्ढिका राक्षसी द्वारा नागास्त्र का मोचन ), ४.५७, shandha
षष्टि शिव १.१८.४६(षाष्टिक अन्न के प्राकृत होने तथा गोधूम आदि के पौरुष होने का उल्लेख ) shashti
षष्ठ महाभारत वन १७९.१६(षष्ठ काल में सर्प रूप नहुष के बल का उल्लेख ), उद्योग १४०.१४(षष्ठे त्वां च तथा काले द्रौपद्युपगमिष्यति - कृष्ण – कर्ण संवाद), अनुशासन १६३.४२(एक, चतुर्थ, षट्, अष्ट कालों में भक्षण के फल), आश्वमेधिक ५७(उत्तंक द्वारा षष्ठ काल में सौदास से मणिकुण्डल की याचना), ९२(रन्तिदेव द्वारा षष्ठ काल में सक्तु भोजन, अतिथि का आगमन, नकुल का स्वर्णिम बनना), वामन ८६(राक्षस द्वारा पापनिवृत्ति हेतु षष्ठ काल में भोजन आरम्भ करना, विप्र के उपदेश से मुक्ति), वायु २.३९.३८(योग, तप आदि के द्वारा षष्ठ काल में - -- षष्ठे काले निवर्त्तन्ते तत्तदाहर्विपर्यये ) shashtha
षष्ठी अग्नि १८१( भाद्रपद षष्ठी आदि में कार्तिकेय की पूजा का निर्देश), देवीभागवत ९.१.७८(षष्ठी का देवसेना से तादात्म्य, महत्त्व), ९.३८(शुक्ल पक्ष की षष्ठी को देवसेना की उपासना), ९.४६(षष्ठी देवी द्वारा प्रियव्रत व मालिनी के मृत पुत्र को जीवित करना, स्तोत्र व पूजा विधान, देवसेना नाम), नारद १.११५(षष्ठी तिथि के व्रत : कार्तिकेय पूजा, ललिता पूजा, कपिला - पूजा, कात्यायनी देवी की पूजा, देवसेना पूजा, वरुण व पशुपति पूजा आदि), २.२३.६९(षष्ठी को तैल का वर्जन), ब्रह्मवैवर्त्त २१, २.४३(षष्ठी का देवसेना नाम, बालकों की धात्री, प्रियव्रत उपाख्यान), भविष्य १.४६(भाद्रपद षष्ठी को गाङ्गेय के दर्शन, कार्तिकेय षष्ठी), वराह २५(षष्ठी तिथि(?) को अहंकार से कार्तिकेय के जन्म की कथा ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.५०(षष्ठी तिथि को पूजनीय कार्तिकेय आदि देवों के नाम व फल), स्कन्द ५.३.२६.११०(षष्ठी तिथि को मधूक फल दान से कार्तिकेय समान पुत्र प्राप्ति का कथन), ६.५५.२(माघ शुक्ल षष्ठी को नलेश्वर लिङ्ग की पूजा), ६.७१.४२(चैत्र शुक्ल षष्ठी को स्कन्द शक्ति की पूजा), ७.१.१२८.८(माघ शुक्ल षष्ठी को सागरादित्य की पूजा), ७.१.२५९(भाद्रपद षष्ठी को पर्णादित्य की पूजा), ७.१.३४३.७(प्रौष्ठपदी/भाद्रपदी कृष्ण षष्ठी को कपिला षष्ठी व्रत, कूर्म व कपिला गौ की पूजा), हरिवंश २.८०.४३(गूढ गुल्फ, शिर आदि के लिए षष्ठी को सलिलौदन भक्षण का निर्देश - गूढगुल्फशिरौ पादाविच्छन्त्या सोमनन्दिनि । षष्ठ्यां षष्ठयां वरारोहे भोक्तव्यं सलिलौदनम् ।। ), लक्ष्मीनारायण १.२०५.५५(प्रकृति के ६ रूपों में अन्तिम षष्ठी के वंशदा गुण का उल्लेख - मूलप्रकृतिरूपैषा षष्ठी बोध्या च वंशदा । ), १.२७१(विभिन्न मासों की शुक्ल पक्ष षष्ठियों में करणीय व्रतों का वर्णन), १.३१३(अधिकमास द्वितीयपक्ष षष्ठी व्रत के माहात्म्य का वर्णन), २.५.१(षष्ठी/मनसा देवी द्वारा रात्रिकाल में बालकृष्ण की असुरों से रक्षा का वृत्तान्त), २.१८६(षष्ठ्यां फेरुनसर्षिदेशान् परीशानराजराज्यं हरिर्जगाम), २.२०२(भाद्रशुक्लषष्ठ्यां प्रातः कर्मचारयोजनं), २.२२७(यज्ञभूमौ षष्ठ्यां सायं चोपदेशादि भोजनं शयनं), २.२४३.६(मार्गशीर्ष कृष्ण , २.२९७(षष्ठ्याः प्रातः कृताह्निकाः कान्ता मन्त्रान् जगृहुः), ३.१०३.५(शुक्ल षष्ठी को दान से सद्यः बल प्राप्ति का उल्लेख - षष्ठ्यां तु च तथा दत्वा लभते सद्यशो बलम् ।), ४.१०१.९८, shashthee/ shashthi
षोडश गरुड ३.१५.५(षोडश कलाओं के रूप में ५ भूत, ५ कर्मेन्द्रिय, ५ ज्ञानेन्द्रिय व मन का उल्लेख), गर्ग ५.१७.१९, पद्म २.९०.४५(१६ महापापों के नाम), भविष्य ३.४.८.८९(अविद्या के षोडश-अङ्ग स्वरूपिणी होने का उल्लेख), मत्स्य १४१.५५(पूर्ण चन्द्र में षोडशी कला के अभाव का कथन), मार्कण्डेय ७८.२०(विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के तेज के १५ भागों से देवों के आयुधों के निर्माण का उल्लेख ; षोडश भाग का सूर्य द्वारा धारण), १०८.१/१०५.१(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज के षोडश भाग को मण्डल में रखने का कथन), वामन ५८षोडशाक्ष, स्कन्द १.२.६.१४(महीसागर सङ्गम पर चोरों द्वारा षोडश व एकविंश धन की चोरी का उल्लेख), ७.१.२०८.३(१६ महादानों का कथन), ७.१.२०८.३(१६ वृथा दानों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२००.१०३(नारद द्वारा इडा आदि १६ नाडियों का भेदन कर ब्रह्मरन्ध्र में प्रवेश करने का कथन ), चरक संहिता सूत्राध्याय १०.२(भेषज के चतुष्पात्, षोडशकल होने का उल्लेख), shodasha
षोडशी नारद १.८८.२३(राधा व ललिता के षोडशीत्व को प्राप्त होने का उल्लेख; १६ कलाओं का वर्णन), १.८८.२१९(राधा की १६ कलाओं में षोडशी का स्वरूप), देवीभागवत १२.११.६७(इन्द्रनील शाला में षोडशार पद्म में स्थित कराली आदि १६ शक्तियों के नाम), मत्स्य १४१.५५(पूर्णिमा के सोम में षोडशी कला का अभाव होने के कारण चन्द्रमा का क्षय होने का कथन), स्कन्द ७.१.११८.१५(कृष्ण की षोडशी कला के रूप में मालिनी का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११५(सूर्य द्वारा षोडशी कला को ग्रस कर मुख से बाहर निकालने का उल्लेख ) shodashee / shodashi
Comments on Shodashee
षोडशोपचार गणेश १.६९.४४(गणेश की षोडशोपचार सहित पूजा विधि व मन्त्र), गर्ग ९.९(कृष्ण हेतु षोडशोपचार विधि), नारद १.६७(षोडशोपचार सहित देव पूजा विधि), २.५७(नारायण की षोडशोपचार पूजा विधि), स्कन्द ७.१.१७(सूर्य के षोडशोपचार हेतु विधि व मन्त्र ), लक्ष्मीनारायण २.१५६ shodashopachaara/ shodashopachara
ष्ठीवन पद्म ६.४५.१०(परम ब्रह्म के ष्ठीवन से धात्री/आमलकी वृक्ष की उत्पत्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण २.५३३, कथासरित् १४.४.७८,