इ अग्नि १२४.९( ओंकार में इकार के अर्धचन्द्र होने का उल्लेख - अर्धचन्द्र इकारस्तु मोक्षमार्गस्य बोधकः ॥ ), १२४.११(इकारश्च प्रतिष्ठाख्यो रसो पालश्च पिङ्गला ॥) ३४८.२( इ अक्षर का काम हेतु प्रयोग ), स्कन्द ५.१.४.३३( ब्रह्मा से उत्पन्न इकार अग्नि का भुक्त अन्न रूपी भोजन पाकर संतुष्ट होना, देह में कार्य), ५.१.४.४७( इकार अग्नि का सौम्य तेज/चन्द्रमा में स्थान पाना )I
इक्षु ब्रह्माण्ड १.२.१७.७( किम्पुरुष/हरिवर्ष का एक वृक्ष, महिमा ), १.२.१९.९६( शाक द्वीप की एक नदी ), २.३.१४.७( इक्षु की इन्द्र की नासिका से उत्पत्ति का उल्लेख ), ३.४.१५.१९(ब्रह्मा द्वारा इक्षुचाप देने का उल्लेख), ३.४.३१.१८( इक्षुसार : सात महासमुद्रों में से एक ), मत्स्य ११४.३१( इक्षुला : महेन्द्र पर्वत से उद्भूत एक नदी ), १२२.३२( शाक द्वीप की एक नदी, कुहू उपनाम ), १९१.४९( इक्षु - नर्मदा सङ्गम का संक्षिप्त माहात्म्य : गाणपत्य प्राप्ति ), वराह ८०.१( इक्षुक्षेप पर्वत शिखर पर उदुम्बर वन की महिमा का कथन ), वायु ४५.९६( हिमालय से उद्भूत एक नदी ), शिव ५.१८.५५( शाक द्वीप की नदी इक्षु का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.१४.५(शाल्मलि द्वीप में इक्षु समुद्र की स्थिति का उल्लेख), ५.३.२६.११९( दशमी को लोकपालों के हेतु इक्षुरस दान के माहात्म्य का कथन ) Ikshu
इक्षुमती भागवत ५.१०.१( इक्षुमती नदी के तट पर कपिल ऋषि के आश्रम में आने के लिए सौवीरराज का उद्योग, जड भरत का प्रसंग ), मत्स्य २२.१७( नदी, पितरों को प्रिय ), विष्णु २.१३.५३( इक्षुमती नदी के तट पर कपिल ऋषि के आश्रम में आने के लिए सौवीरराज का उद्योग, जड भरत का प्रसंग ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४८( इक्षुमती नदी के चक्र वाहन का उल्लेख ), वा.रामायण १.७०.३( इक्षुमती नदी तट पर कुशध्वज की सांकाश्या नगरी की स्थिति ), कथासरित् ६.२.१२०( इक्षुमती नदी तट पर सुप्त राजपुत्र को देवियों द्वारा शाप की कथा ) Ikshumatee
इक्ष्वाकु देवीभागवत ७.२.१७( वैवस्वत मनु - पुत्र, वंश का वर्णन ), ७.८.५१( मनु की छींक/क्षुव से इक्ष्वाकु की उत्पत्ति, विकुक्षि आदि १०० पुत्रों की प्राप्ति, पुत्रों को विभिन्न दिशाओं में नियुक्त करना, विकुक्षि पुत्र को निर्वासित करना ), पद्म १.८.११६( स्त्री रूप में परिणत सुद्युम्न को पुरुष रूप में लाने के लिए इक्ष्वाकु द्वारा अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान ), २.४२+ ( मनु - पुत्र, सुदेवा - पति, वन में शूकरराज का वध, सूकर का मृत्यु पर दिव्य गन्धर्व रूप धारण करना ), ५.१०९.२( ब्राह्मण, मृत्यु के पश्चात् यम से संवाद, यम द्वारा पुराण श्रवण का परामर्श, पुन: सञ्जीवन पर जाबालि ऋषि द्वारा शिव भक्ति का उपदेश ), ६.२४१.७४( इक्ष्वाकु कुल की परशुराम के क्षत्रिय संहार से अप्रभाविता ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.८( इक्ष्वाकु द्वारा १०० पुत्रों को दिशाओं में नियुक्त करना, इक्ष्वाकु - पुत्र विकुक्षि का वृत्तान्त ), भविष्य ३.४.२६.३२( वैवस्वत मनु - पुत्र इक्ष्वाकु का देवों द्वारा भूमि पर राज्याभिषेक ), भागवत ९.६.४( इक्ष्वाकु वंश का वर्णन ), मत्स्य ११.४०( वैवस्वत मनु के १० पुत्रों में से एक, इल - अनुज ), १२.१०( इक्ष्वाकु द्वारा इल अग्रज को पुरुष रूप में लाने के लिए अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान ), १२.२६( इक्ष्वाकु वंश का वर्णन ), वामन ६४.६२( इक्ष्वाकु - पुत्र शकुनि द्वारा जाबालि ऋषि के बन्धन काटने का उद्योग ), वायु ८८.८( इक्ष्वाकु वंश का वर्णन ), विष्णु ४.२.११( इक्ष्वाकु वंश का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१४( इक्ष्वाकु के चरित्र की महिमा ), स्कन्द ४.२.८४.७०( ऐक्ष्वाकव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : अघ नाशक ), ७.१.९०.१३( इक्ष्वाकु द्वारा वृषभेश्वर लिङ्ग की आराधना से राज्य व पुत्र आदि की प्राप्ति ), योगवासिष्ठ ६.१.११७+ ( इक्ष्वाकु द्वारा मनु से सांसारिक जंजाल से ऊपर उठने के उपाय की पृच्छा, मनु द्वारा देह भावना से ऊपर उठने का उपदेश, योग की सात भूमिकाओं का वर्णन, अहं भावना के त्याग का उपदेश ), वा.रामायण १.४७.११( इक्ष्वाकु वंश का वर्णन ), ७.७९.५( इक्ष्वाकु के अवरज पुत्र दण्ड के राज्य के नाश की कथा ), महाभारत शान्ति १९९+ ( राजा इक्ष्वाकु का जापक ब्राह्मण से पुण्य दान सम्बन्धी विवाद, जापक ब्राह्मण के पुण्यों से जापक व इक्ष्वाकु, दोनों का ब्रह्म से मिलन ), कथासरित् ८.२.९७( इक्ष्वाकु राजा द्वारा काल नामक जापक ब्राह्मण से जप के अर्ध फल की प्राप्ति, राजा चन्द्रप्रभ? बनना ) Ikshvaaku
इच्छा नारद १.६३.२८( शिव में इच्छा शक्तियों के लय होने पर सावयव शक्ति का उदय, सावयव शक्ति में ज्ञान व क्रिया शक्तियों के उत्कर्ष - अपकर्ष का कथन ), भागवत ११.२१.१( इच्छा, ज्ञान, क्रिया के बदले भक्ति, ज्ञान व क्रिया योगों का उल्लेख ), लिङ्ग १.३४.२१( पाशुपत योग से अणिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, इच्छा, काम आदि की प्राप्ति ), १.८८.२२( वही), २.२७.१६( नन्दा व्यूह के प्रथम आवरण में स्थित ८ शक्तियों में से एक ), विष्णु १.८.२०( इच्छा श्री का रूप, काम भगवान् का रूप ), शिव ६.१६.४९( इच्छा, ज्ञान व क्रिया रूपी शिव की दृष्टि त्रय का जीव में इन्द्रिय ज्ञान बनना, आनन्द शक्ति से नाद व बिन्दु, मकार से इच्छा की क्रमिक उत्पत्ति का वर्णन ), स्कन्द ४.१.१३.१६( ज्ञान शक्ति शिव, इच्छा शक्ति पार्वती ; ज्ञान व इच्छा के मिलन से क्रिया शक्ति का उदय ), ७.१.५७+ ( इच्छा, क्रिया, ज्ञान देवियों के प्रतीक रूप में उमा, भैरवी व अजा देवियां ), महाभारत आदि १००.१०२( भीष्म द्वारा पिता से स्वच्छन्द मृत्यु का वरदान प्राप्त करना ), वन २.३४( रागाभिभू पुरुष से काम, काम से इच्छा, इच्छा से तृष्णा आदि की उत्पत्ति का उल्लेख ), भीष्म ३१.२७( इच्छा व द्वेष के द्वन्द्व में सब भूतों के मोहित होने का उल्लेख ), शान्ति १५९.७( इच्छा, द्वेष, ताप आदि की अज्ञान के अन्तर्गत परिगणना ), २७४.६( धैर्य द्वारा इच्छा, द्वेष व काम के निवारण का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.८०.७६( आकाशवृक्ष व इन्द्रिय पुष्प पर इच्छा भ्रमरी का कथन ), ६.१.१२६.७८( इच्छा रूपी करिणी का वर्णन ), ६.२.१( इच्छा चिकित्सा योग का वर्णन ), कथासरित् ९.४.१९३( इच्छाभरण : भोगवर्मा वणिक् का मित्र ), सीतोपनिषद (विष्णु में श्रीवत्स का रूप ), द्र. कामना, अनिच्छासेन Ichchhaa
इज्या विष्णुधर्मोत्तर १.६१.६( अखण्डकारी बनने हेतु ५ कालों में से एक ), १.६३( इज्या काल में करणीय कृत्यों का वर्णन ), Ijyaa
इडविडा द्र. इलविला
इडस्पति भविष्य ३.४.१८.४५( अश्विनौ में से एक का नाम व महिमा ), भागवत ४.१.७( यज्ञपुरुष व दक्षिणा - पुत्र, १२ तुषित देवों में से एक ), ४.८.१८( उत्तानपाद राजा का नाम ) Idaspati
इडस्पद पद्म ३.२६.७३( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत इडास्पद तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वामन ३६.२४( वही) Idaspada
इडा नारद २.४८.२२( नाडी, काशी में वरणा नदी का रूप ), वायु १.२.६(ब्रह्मा के सत्र यज्ञ में इळा के पत्नी बनने का उल्लेख ), ८५/२.२३.७( वैवस्वत मनु की इष्टि से इडा की उत्पत्ति की कथा ), स्कन्द १.२.६२.२६( इडाचार : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ४.१.५.२५( नाडी, काशी में असी? नदी का रूप ), महाभारत अनुशासन ८४.४८( इडा के गौ रूप होने का उल्लेख? ), लक्ष्मीनारायण १.१६१.७( ओजस्वती नदी के इडा का रूप होने का उल्लेख, भद्रा पिङ्गला ), १.३११.४२( समित्पीयूष नृप की २७ पत्नियों में से एक, कृष्ण पर छत्र धारण करना ), १.५३७.५( समुद्र की इडा देह, अग्नि योनि होने का उल्लेख ), द्र. इला Idaa
इडा-पिङ्गला अग्नि ८४.२८( निवृत्ति कला/जाग्रत की २ नाडियों इडा व पिङ्गला का उल्लेख ),२१४.५( शरीर की १० मुख्य नाडियों में से दो नाडियां ), भविष्य ३.४.१८.४४( इडा - पिङ्गला का अश्विनौ की पत्नियां बनना, महिमा ), लक्ष्मीनारायण २.४८.८१( इडा - पिङ्गला - सुषुम्ना नामक ब्रह्मा की पुत्रियों द्वारा कृष्ण का पति रूप में वरण ), द्र. पिङ्गला Idaa - Pingalaa
इतरा स्कन्द १.२.४२.३०, १.२.४२.१८२( ऐतरेय द्वारा माता इतरा को धर्म के स्वरूप का वर्णन )
इतिहास स्कन्द ५.१.२.३९( ब्रह्मा द्वारा पञ्चम मुख से इतिहास आदि के कथन का उल्लेख )itihaasa
इत्यक कथासरित् ४.३.५७( वत्सराज उदयन का प्रतीहार/द्वारपाल, नित्योदित उपनाम, गोमुख - पिता ), १५.२.७२( कलिङ्गसेना व मदनवेग - पुत्र ), १६.२.१, १६.२.७( इत्यक द्वारा सुरतमञ्जरी का हरण ), १६.२.२१२( इत्यक द्वारा सुरतमञ्जरी के हरण पर राजा नरवाहनदत्त द्वारा कठोर दण्ड का आदेश व क्षमादान ) Ityaka
इध्म वराह १८.२५( अग्नि का एक नाम, निरुक्ति – ध्मा प्रपूरण, इ आगति ), विष्णु १.८.२१( इध्मा श्री का रूप, भगवान् कुश का रूप ), महाभारत आदि ३१.५( कश्यप के पुत्रेष्टि यज्ञ में इन्द्र और वालखिल्य ऋषियों द्वारा इध्म आहरण का कार्य, इन्द्र द्वारा वालखिल्यों का अपमान ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२२( विष्णु के कुश व लक्ष्मी के इध्मा होने का उल्लेख ) Idhma
Comments on Idhma
इध्मजिह्व देवीभागवत ८.४.२१( प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र, प्लक्ष द्वीप का स्वामी ), भागवत ५.१.२५( प्रियव्रत व बर्हिष्मती – पुत्रों में से एक, अग्नि-नाम )
इध्मवाह भागवत ४.२८.३२( दृढच्युत - पुत्र, अगस्त्य - पौत्र ), मत्स्य २०२.८( अगस्त्य - पुत्र इध्मवाह का क्रतु का दत्तक पुत्र बनना ), स्कन्द ३.१.३५.१( पाण्ड्य देश का ब्राह्मण, रुचि - पति, दुर्विनीत - पिता, पुत्र द्वारा अगम्यागमन अपराध व प्रायश्चित्त का वर्णन ) Idhmavaaha
इन: ब्रह्माण्ड ३.४.१.१८( अमिताभ देवगण में एक का नाम ), भागवत १०.६.२२( इन: विष्णु से कण्ठ की रक्षा की प्रार्थना ) Inah
इन्दिरा गर्ग ५.१५.२३( भूमा की शक्ति इन्दिरा का उल्लेख ), देवीभागवत १२.६.१९( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), नारद १.१२०.४१( इन्दिरा एकादशी व्रत की विधि ), पद्म ६.५८( इन्दिरा एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य, राजा इन्द्रसेन के पितरों का उद्धार ), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९८( महापद्माटवी में क्रीडा करने वाली ललिता की एक सहचरी ), भागवत १०.३१.१( लक्ष्मी का नाम? ), वायु १०८.७९/२.४६.८२( एक नदी का नाम ), लक्ष्मीनारायण २.१८९.७१( श्रीहरि द्वारा इन्दिरा नदी में स्नान पर वेतालों का प्राकट्य, कृष्ण द्वारा मोक्ष प्रदान ) Indiraa
इन्दीवर मार्कण्डेय ६३.१३/६०.१३( इन्दीवराक्ष विद्याधर - कन्या मनोरमा के स्वरोचिष से मिलन की कथा ), कथासरित् ७.८.७२( इन्दीवरसेन : राजा परित्यागसेन व अधिकसङ्गमा - पुत्र, विमाता के कारण नगर से निर्वासन, दिव्य खड्ग की प्राप्ति, यमदंष्ट्र राक्षस का वध, पूर्व जन्म का वृत्तान्त आदि ), १२.२७.३३( इन्दीवरप्रभा : कण्व मुनि की पुत्री इन्दीवरप्रभा का राजा चन्द्रावलोक की पत्नी बनना, पति द्वारा ब्रह्मराक्षस को संतुष्ट करने की कथा ), १६.३.८( चक्रवर्ती विश्वान्तर के पुत्र इन्दीवराक्ष द्वारा राजा वसन्ततिलक की पत्नी का सतीत्व नष्ट करने पर मरण ) Indeevara/ indivara
इन्दु ब्रह्माण्ड १.२.१९.१३४( चन्द्रमा का नाम, दक्ष द्वारा इन्दु को २७ कन्याएं देना ), २.३.६५.२१( वही), मत्स्य १२.२९( विश्वग - पुत्र, युवनाश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), महाभारत द्रोण २३.२९(इन्द्रप्रस्थ का अपर नाम उदयेन्दु - सहस्रसोमप्रतिमो बभूव पुरे कुरूणामुदयेन्दुनाम्नि।), योगवासिष्ठ ३.८६.३( इन्दु नामक ब्राह्मण का शिव की कृपा से १० ब्रह्मा रूपी १० पुत्र प्राप्त करना ), ६.१.८१.१०६( इन्दु द्वारा अर्क से उत्पन्न देहस्थ रूप को प्रकट करने का उल्लेख - सोमं प्रकटयत्यग्निश्चिद्देहस्य चिरं प्रभाम् । स्वसंविन्मयमिन्दुश्चिद्देहस्थं रूपमर्कजम् ।। ), ६.२.१९.३१(यदिन्दुमण्डलं नाम स सम्राड् जीव उच्यते । शरीरकर्ममनसां बीजं मूलं च कारणम् ।। ), ६.२.१७८.२८(ब्रह्मगीतास्वैन्दवोपाख्यानं ), लक्ष्मीनारायण २.१८८.१००(इन्दुरायो नृपस्तस्याऽऽग्रहं चाति चकार ह ), २.१८९.३८( वायूना नगरी के राजा इन्दुराय द्वारा बालकृष्ण के स्वागत का वर्णन ), कथासरित् ८.५.५१( इन्दुमाली : विद्याधर - राजा, लीला पर्वत पर वास, सूर्यप्रभ - सेनानी प्रभास द्वारा वध ), १२.५.२१९( इन्दुप्रभ : मलयप्रभ राजा का पुत्र, दान पारमिता से सिद्धि प्राप्ति - न्त्रिभिर्वारितं लोभाज्जगादेन्दुप्रभः सुतः ।। उपेक्षसे प्रजास्तात कथं दुर्मषिणा गिरा । ), १२.५.१६२, १२.५.३६९( इन्दुकलश : राजपुत्र, भ्राता कनककलश द्वारा राज्य से निष्कासन पर विनीतमति बोधिसत्व से प्राप्त खड्ग व अश्व की सहायता से राज्य प्राप्ति ), १२.५.२८६( इन्दुयशा : राजा इन्दुकेसरी की पुत्री, वणिक् - पुत्र मलयमाली द्वारा चित्रपट में इन्दुयशा का साक्षात्कार, ध्यान पारमिता का दृष्टान्त - राज्ञस्तस्य युवापश्यदिन्दुकेसरिणा सुताम् ।।सा तस्येन्दुयशा नाम मारवल्लीव मोहिनी । ), १२.१८.४( इन्दुलेखा : धर्मध्वज राजा की भार्या, कर्ण उत्पल के आघात से घायल होना ), द्र. चन्द्रमा, सोम Indu
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Vedic view of Indu by Dr. Tomar/Dr. Fatah Singh
इन्दुमती देवीभागवत ५.१८.१( चन्द्रसेन व गुणवती - पुत्री, मन्दोदरी - भगिनी ), पद्म २.१०४.१२( आयु राज - भार्या, नहुष - माता, हुण्ड दैत्य द्वारा नवजात पुत्र नहुष के हरण पर शोक, नारद द्वारा सांत्वना ), भविष्य ४.५३.७( इन्दुमती वेश्या द्वारा संसार की नश्वरता का चिन्तन, वसिष्ठ से अचला सप्तमी व्रत की प्राप्ति ), वराह ९५.१८( दैत्य कन्या इन्दुमती के दर्शन पर सिन्धुद्वीप मुनि के वीर्य का स्खलन व महिषासुर की उत्पत्ति की कथा ), स्कन्द २.४.७.४०टीका( वेश्या, मूषिका द्वारा इन्दुमती के दीप का प्रबोधन ), ७.१.३७.३( बृहद्रथ - भार्या, पूर्व जन्म में शूद्री, सोम तीर्थ में कङ्कण क्षेपण से रानी बनना ), ७.३.४८.११( दुष्ट राजा अप्रस्तुत की भार्या, पितरों के उद्धार हेतु पति को सत्परामर्श देना ), लक्ष्मीनारायण २.५२.३७( आयु - भार्या, हुण्ड दैत्य द्वारा नहुष पुत्र के हरण का प्रसंग ), कथासरित् १७.५.१४०( इन्दुमती वृद्धा दासी द्वारा स्वयंप्रभा रानी का संदेश दैत्यराज त्रैलोक्यमाली को देना ) Indumatee/ indumati
Comments on Indumatee
इन्दुल भविष्य ३.३.१४.१( आह्लाद व स्वर्णवती - पुत्र, जयन्त - अंश, महिमा ), ३.३.१६.५३( इन्द्र से शिक्षा प्राप्त करके पृथ्वी पर प्रत्यागमन, वडवामृत हय की सहायता से मृत बन्धुओं को जीवित करना ), ३.३.२३.८( चित्ररेखा द्वारा माया से इन्दुल के हरण का वृत्तान्त ), ३.३.२९.५६( इन्द्र द्वारा इन्दुल के वडवामृत हय का हरण ), ३.३.३२.१३८( इन्दुल द्वारा मङ्कण राजा का बन्धन, मङ्कण से युद्ध में इन्दुल व मङ्कण दोनों की मृत्यु ) Indula
इन्द्र अग्नि ८४.३२( ८ देवयोनियों में पंचम ), २३७( राज्यलक्ष्मी की स्थिरता के लिए इन्द्र द्वारा श्री की स्तुति ), २६८.५( इन्द्रयष्टि के संदर्भ में इन्द्र व शची पूजा विधान ), कूर्म १.४३.२०( ज्येष्ठ मास में इन्द्र नामक आदित्य का तपना, इन्द्र आदित्य की रश्मि संख्या का कथन ), गरुड १.८७( १४ मन्वन्तरों में विश्वभुक्, विपश्चित् आदि इन्द्रों के नाम, इन्द्र - शत्रु व शत्रु - हन्ता विष्णु के रूप ), ३.७.१(इन्द्र द्वारा हरि-स्तुति), ३.२८.२८(इन्द्रद्युम्न, पुरंदर, वाली आदि ७ की इन्द्र संज्ञा की विवेचना), गर्ग ३.३( कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण पर इन्द्र के गर्व का खण्डन, इन्द्र द्वारा कृष्ण की स्तुति ), देवीभागवत ५.८.७१( इन्द्र के तेज से देवी के मध्य भाग की उत्पत्ति ), ६.७( फेन से सन्ध्या समय में वृत्र का वध, ब्रह्महत्या के भय से कमल नाल में छिपना, नहुष द्वारा इन्द्र पद की प्राप्ति ), नारद १.४०.१३( इन्द्र द्वारा सुधर्मा से अतीत के मन्वन्तरों के इन्द्रों आदि के विषय में पृच्छा, शचीपति, विपश्चित् आदि नाम ), १.११६.२६( ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी को इन्द्र नामक आदित्य के जन्म का उल्लेख ), १.१२४.४३( भाद्रपद शक्र पूर्णिमा व्रत की विधि ), पद्म १.४.११( दुर्वासा द्वारा प्रदत्त माला की उपेक्षा से इन्द्र द्वारा शाप प्राप्ति ), १.२२.९( इन्द्र द्वारा वायु व अग्नि को समुद्र शोषण की आज्ञा, आज्ञा उल्लंघन पर वायु व अग्नि को अगस्त्य व वसिष्ठ ऋषि बनने का शाप ), २.३.३४( शिवशर्मा - पुत्र विष्णुशर्मा द्वारा इन्द्र से अमृत कलश व पितृभक्ति रूप वर प्राप्ति ), २.५.७४( विष्णु लोक निवासी सुव्रत ब्राह्मण का अदिति के गर्भ से जन्म लेकर वसुदत्त नामक इन्द्र बनना, देवों आदि द्वारा इन्द्र का अभिषेक ), २.५३+ ( इन्द्र द्वारा काम की सहायता से कृकल - पत्नी सुकला के पातिव्रत्य को भङ्ग करने की चेष्टा, धर्म द्वारा सुकला की रक्षा ), ५.१६.१४( शर्याति के सोम याग में अश्विनौ को भाग दान पर इन्द्र द्वारा वज्र ग्रहण, च्यवन द्वारा बाहु स्तम्भन ), ६.६.१५( इन्द्र का जालन्धर - सेनानी बल से युद्ध, इन्द्र द्वारा बल का रत्न रूपी शरीर प्राप्त करना ), ६.९६( इन्द्र द्वारा शिव की खोज, शिव पर वज्र प्रहार, जालन्धर की उत्पत्ति का प्रसंग ), ६.१५१.१( इन्द्रग्राम तीर्थ का माहात्म्य : धवलेश्वर शिव की स्थिति, युगान्तरों में नाम, नन्दी - किरात वृत्तान्त ), ६.१९२( नवीन इन्द्र के कारण इन्द्र का राज्य से च्युत होना, गीता के १८वें अध्याय के पाठ से वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति ), ६.२००.४( स्वराज्य प्राप्ति पर इन्द्र द्वारा खाण्डव वन में यज्ञ, इन्द्रप्रस्थ की स्थापना, शिवशर्मा - पुत्र विष्णुशर्मा बनना ), ब्रह्म १.७९.३४( कृष्ण द्वारा इन्द्र याग के स्थान पर गोवर्धन पूजा की कथा ), २.२३.१४( विश्वामित्र द्वारा श्व मांस भक्षण की चेष्टा पर इन्द्र द्वारा मांस युक्त स्थाली का हरण, मधुस्थाली प्रस्तुत करना, विश्वामित्र के कोप से मुक्ति के लिए मधुवर्षण करना ), २.२६( इन्द्र तीर्थ का माहात्म्य : ब्रह्महत्या से निवृत्ति के लिए देवों द्वारा इन्द्र का अभिषेक ), २.३०( इन्द्र द्वारा बालखिल्यों के अपमान पर बालखिल्यों द्वारा कश्यप को इन्द्र दर्पहर पुत्र सुपर्ण व सर्प उत्पन्न करने की प्रेरणा देना ), २.५२( धन्वन्तरि नृप द्वारा तप से इन्द्र पद की प्राप्ति, इन्द्र द्वारा राज्य से अच्युति के लिए हरि व हर की स्तुति ), २.५४.४०( ब्राह्मण रूप धारण करके मय से मैत्री रूप वर की प्राप्ति, दिति के गर्भ का छेदन ), २.५४.७८( दिति के गर्भ के छेदन पर अगस्त्य व दिति द्वारा इन्द्र को शाप ), २.५९.१३( महाशनि द्वारा इन्द्र का बन्धन, अपमान व मुक्ति, इन्द्र द्वारा शिव व विष्णु की स्तुति, शिव - विष्णु रूप धारी पुरुष द्वारा महाशनि का वध ), २.७०( इन्द्र से स्पर्द्धा में आत्रेय द्वारा कृत्रिम इन्द्रपुरी का निर्माण, असुरों द्वारा इन्द्र के भ्रम में आत्रेय का बन्धन, आत्रेय द्वारा इन्द्र की स्तुति व पूर्वावस्था में आगमन, द्र. ऋग्वेद २.१२.१ ), २.१०१( राजा प्रमति से अक्ष क्रीडा में इन्द्र द्वारा उर्वशी व वज्र आदि को दांव पर हारना, चित्रसेन गन्धर्व द्वारा प्रमति को हराना ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३६.२३( पारिजात पुष्प के निरादर करने पर दुर्वासा के शाप से भ्रष्ट - श्री होना ), ३.२०.९( महेन्द्र का रम्भा से समागम, पारिजात पुष्प के निरादर से दुर्वासा द्वारा भ्रष्ट - श्री होने का शाप ), ४.१४.४९( इन्द्र द्वारा रम्भा के अंश से उत्पन्न जनमेजय - भार्या से सम्भोग की कथा ), ४.२१( व्रज में इन्द्रध्वज उत्सव का वर्णन, कृष्ण द्वारा इन्द्र उत्सव के स्थान पर गोवर्धन पूजा कराने पर इन्द्र का कोप, नन्द द्वारा इन्द्र की स्तुति, कृष्ण द्वारा वृष्टि निवारण हेतु गोवर्धन धारण, इन्द्र द्वारा पराजित होने पर कृष्ण की स्तुति ), ४.४७.१०( इन्द्र द्वारा गुरु के अपमान पर शाप प्राप्ति, अहल्या गमन की कथा, कृत्या भय से कमल तन्तु में प्रवेश, नहुष को राज्य प्राप्ति, इन्द्र द्वारा कवच प्राप्ति, लोमश का आगमन ), ४.५९( इन्द्र के दर्प भङ्ग के प्रसंग में नहुषोपाख्यान ), ४.६१( कल्पान्तर में इन्द्र के दर्प भङ्ग के प्रसंग में इन्द्र द्वारा अहल्या धर्षण की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.७.१६६( क्षत्रियों को ऐन्द्र स्थान व वैश्यों को मारुत स्थान प्राप्ति का उल्लेख ), ३.४.६( इन्द्र द्वारा दुर्वासा - प्रदत्त माला के तिरस्कार से लक्ष्मी द्वारा इन्द्र का त्याग, बृहस्पति द्वारा पशु यज्ञ का निरूपण ), ३.४.७( बृहस्पति द्वारा इन्द्र हेतु स्तेय/धन हरण व अन्न के गुण - दोषों का निरूपण ), ३.४.८( बृहस्पति द्वारा अगम्यागमन दोष का वर्णन ), ३.४.९( इन्द्र द्वारा विश्वरूप का वध व ब्रह्महत्या के विभाजन की कथा, श्री प्राप्ति हेतु समुद्र मन्थन ), ३.४.१२.६४( भण्डासुर पर विजय प्राप्ति हेतु इन्द्र द्वारा ललिता देवी की आराधना ), ३.४.१५.२२( सुराधिप इन्द्र द्वारा ललिता को मधु पात्र भेंट करने का उल्लेख ), भविष्य १.५७.१३( इन्द्र हेतु राजवृक्ष बलि का उल्लेख ), १.१२५.२४ ( १४ मन्वन्तरों में १४ इन्द्रों के नाम ), २.१.१७.१०( पुंसवन कर्म में अग्नि का इन्द्र नाम ), ३.४.१८.१७( संज्ञा स्वयंवर में इन्द्र द्वारा बल असुर से युद्ध ), भागवत ४.१९.११( इन्द्र द्वारा पृथु के अश्वमेध यज्ञ का अश्व चुराना ), ६.९.४( इन्द्र द्वारा विश्वरूप का वध, ब्रह्महत्या की प्राप्ति, ब्रह्महत्या का प्राणियों में वितरण ), ६.११+ ( इन्द्र का वृत्र से युद्ध व वज्र द्वारा वध ), ६.१३( इन्द्र पर ब्रह्महत्या का आक्रमण, इन्द्र का कमलनाल में प्रवेश, अश्वमेध द्वारा मुक्ति ), ६.१८.५६( इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ का छेदन, मरुतों की उत्पत्ति ), ८.५.३( पांचवे रैवत मन्वन्तर में विभु नामक इन्द्र ), ८.५.८( छठें चाक्षुष मन्वन्तर में मन्त्रद्रुम नामक इन्द्र ), ८.१०.२८( देवासुर सङ्ग्राम में इन्द्र का बलि से युद्ध ), १०.२४( कृष्ण द्वारा इन्द्र याग का निवारण व गोवर्धन पूजा ), मत्स्य ४७.९६( शुक्र - पत्नी द्वारा इन्द्र को स्तम्भित करना, इन्द्र का विष्णु में प्रवेश करना ), १०१.६९( इन्द्र व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), १०१.८०( इन्द्र व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य ), १४८.९६( इन्द्र ध्वज पर हेम मातङ्ग चिह्न ), १७४.४( तारकासुर सङ्ग्राम में इन्द्र के रथ का वर्णन ), मार्कण्डेय ५.११( वृत्र हत्या पर इन्द्र के बल का मरुत में अवगमन ), ५.१२( अहल्या के धर्षण पर इन्द्र के रूप का नासत्यौ में अवगमन ), लिङ्ग १.१०७.२६( उपमन्यु बालक की परीक्षार्थ शिव का शक्र रूप धारण करके उपमन्यु के समीप गमन व शिव की निन्दा ), वराह १२६.८५( कुब्जाम्रक तीर्थ के अन्तर्वर्ती शक्र तीर्थ का माहात्म्य ), १४६.८( देवदत्त ऋषि के तप में विघ्न हेतु इन्द्र द्वारा प्रम्लोचा अप्सरा का प्रेषण ), वायु ६८.८/२.७.८( दनु के १०० पुत्रों में से एक ), विष्णु १.९( दुर्वासा - प्रदत्त माला के तिरस्कार से इन्द्र की असुरों से पराजय की कथा ), ३.१( १४ मन्वन्तरों में ..., विपश्चित्, सुशान्ति आदि इन्द्र, देवता व सप्तर्षियों का वर्णन ), ४.२.२९( पुरञ्जय राजा का वृषभ रूप धारी इन्द्र पर आरूढ होकर असुरों से युद्ध करना ), ४.२.६०( इन्द्र की अमृत स्राविणी अङ्गुलि से मान्धाता बालक का पालन ), ५.११( गोपों द्वारा इन्द्र पूजा की उपेक्षा पर इन्द्र का कोप, कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४.२४( इन्द्र के बिस तन्तु में निवास का प्रसंग ), १.१७६+ ( मन्वन्तरों में इन्द्र के विश्वभुक्, विपश्चित् आदि नाम ), १.१७६+ ( इन्द्र का शाम्बरायणि से मन्वन्तर विषयक संवाद ), १.२२२.३१( मेघनाद द्वारा इन्द्र का बन्धन, कारण ), १.२३०.३( स्कन्द वधार्थ इन्द्र द्वारा ग्रहों की सृष्टि, स्कन्द द्वारा प्रतिग्रहों की सृष्टि ), २.१५७( इन्द्र ध्वज उत्सव काल में पठनीय मन्त्र व इन्द्र की स्तुति ), ३.५०( इन्द्र की प्रतिमा का स्वरूप , शक्र के त्रिनेत्र होने का कथन), ३.१९६( शक्र व्रत विधि व संक्षिप्त माहात्म्य ), शिव ३.३०( इन्द्र द्वारा शिव अन्वेषण प्रसंग में भीषण पुरुष के दर्शन, इन्द्र द्वारा वज्र प्रहार, इन्द्र की मृत्यु व पुन: सञ्जीवन, जालन्धर की उत्पत्ति का प्रसंग ), ५.३४.१२( १४ मन्वन्तरों में इन्द्रों के यज्ञ, रोचन आदि नाम ), ७.१.३५( उपमन्यु बालक की परीक्षार्थ शिव का शक्र रूप धारण करके उपमन्यु के समीप गमन व शिव की निन्दा ), स्कन्द १.१.८.२२( इन्द्र द्वारा रत्नमय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख ), १.१.१५.४( असुरों का पक्ष लेने वाले त्रिशिरा विश्वरूप की इन्द्र द्वारा हत्या पर ब्रह्महत्या द्वारा इन्द्र का अनुगमन, इन्द्र का सरोवर में छिपना, नहुष का इन्द्र पद पर आसीन होना व इन्द्र पद से पतन का वृत्तान्त ), १.१.१६.१९( इन्द्र द्वारा त्रिशिरा की हत्या के कारण प्राप्त ब्रह्महत्या को पृथिवी, वृक्ष आदि में विभाजित करना ), १.१.१७.१६९( इन्द्र का वृत्र से युद्ध, वृत्र द्वारा इन्द्र का निगरण, इन्द्र का वृत्र की कुक्षि का भेदन करके बहिर्गमन ), १.१.१८.६४( बलि द्वारा ३ घडी के लिए इन्द्र पद प्राप्ति का वृत्तान्त ), १.१.१८.१२१( इन्द्र द्वारा ब्राह्मण वेश में प्रह्लाद - पुत्र विरोचन से शिर की याचना ), १.२.६२.२६( इन्द्रमूर्ति : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), २.४.१४.५( इन्द्र द्वारा कैलास पर शिव का अन्वेषण, शिव पर वज्र क्षेपण, मृत्यु व पुन: सञ्जीवन ), २.७.१९.२०( इन्द्र के प्राण से महाबल व गिरिजा से अवर होने का उल्लेख ), २.७.१९.४०( हस्तों से इन्द्र के विनिष्क्रान्त होने पर भी देहपात न होने का कथन ), २.७.२३.९( इन्द्र द्वारा उतथ्य - पत्नी से बलात्कार, दीर्घतपा की उत्पत्ति, वैशाख मास धर्माचार से पाप से मुक्ति ), ३.१.४.५३( इन्द्र द्वारा पर्वतों के पक्ष छेदन का वृत्तान्त ), ३.१.११.५( इन्द्र द्वारा कपालाभरण राक्षस के वध के कारण ब्रह्महत्या की प्राप्ति, सीता सरोवर में स्नान से मुक्ति ), ३.२.३+ ( धर्मराज/यम के तप से इन्द्र का भयभीत होना, वर्धिनी अप्सरा का धर्म के तपोभङ्ग हेतु गमन ), ३.२.१९.१०( इन्द्र द्वारा शिव से ब्रह्महत्या से मुक्ति का उपाय पूछना ), ४.२.८१.३( वृत्रहत्या के कारण प्राप्त ब्रह्महत्या के निवारण के लिए इन्द्र द्वारा धर्मेश लिङ्ग के निकट तप ), ५.२.३५( वृत्र वध से उत्पन्न ब्रह्महत्या दोष की निवृत्ति के लिए इन्द्र द्वारा इन्द्रेश्वर लिङ्ग की स्थापना, लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.२.४४.३३ (केतु ग्रह द्वारा वासव को राज्यभ्रष्ट करने का उल्लेख, अन्य ग्रहों द्वारा अन्यों को), ५.३.२८.११( बाणासुर वधार्थ निर्मित शिव के रथ में सुरेश्वर का अक्ष बनना ), ५.३.३२( इन्द्र द्वारा चित्रसेन गन्धर्व - पुत्र पत्र को मृत्यु लोक में जाने का शाप ), ५.३.६१( शक्र तीर्थ का माहात्म्य : इन्द्र द्वारा शिव की आराधना ), ५.३.८३.१०४( गौ के शृङ्गाग्र में इन्द्र की स्थिति का उल्लेख ), ५.३.११८( इन्द्र तीर्थ का माहात्म्य : इन्द्र द्वारा ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु तप ), ५.३.१३८( शक्रेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : शक्र द्वारा गौतम के शाप से निवृत्ति हेतु स्थापना ), ५.३.१९१.१३( इन्द्र नामक आदित्य के पूर्व दिशा में तपने का उल्लेख ), ५.३.२३१.१४( रेवा - सागर सङ्गम पर ५-५ इन्द्रेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.८.७३( इन्द्र द्वारा दधीचि की अस्थियों से निर्मित वज्र से वृत्र का वध, ब्रह्महत्या दोष की निवृत्ति हेतु हाटक लिङ्ग की पूजा ), ६.७९.१( दक्ष यज्ञ हेतु समिधा वहन करते हुए बालखिल्यों का इन्द्र द्वारा उपहास, बालखिल्यों द्वारा मन्त्रों से इन्द्र - दर्प हन्ता गरुड को उत्पन्न करने का वृत्तान्त ), ६.१८१.५३( यज्ञ में ब्रह्मा की पत्नी की व्यवस्था हेतु इन्द्र द्वारा गोप कन्या को गौ शरीर द्वारा पवित्र करके गायत्री में रूपान्तरित करने की कथा ), ६.१९२.६५( ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री द्वारा इन्द्र को शत्रुओं द्वारा बन्धन का शाप ), ६.२०६.४४( इन्द्र द्वारा गया में श्राद्ध करना, विश्वेदेवों का आह्वान होने पर भी न आने पर शाप दान ), ६.२०७(गौतम द्वारा स्पर्श से सहस्रभग का सहस्र नेत्रों में रूपान्तरित होना, मेष के वृषण लगना, इन्द्र पञ्चरात्र पूजा विधान ), ७.१.२२४( इन्द्र द्वारा स्थापित लिङ्ग का माहात्म्य : ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति ), ७.१.२५५.६१( ऋषियों की बिसों की चोरी पर शुनोमुख नामक इन्द्र द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया ), ७.१.२९५( इन्द्रेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ७.४.१४.२१( इन्द्रेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, लिङ्ग का वृद्धि लिङ्ग उपनाम ), ७.४.१७.३३( इन्द्रेश : द्वारका के उत्तर द्वार पर स्थित महेश्वर का नाम ), हरिवंश १.२७.१३( इन्द्र द्वारा कुशिक - पुत्र गाधि रूप में जन्म लेना ), २.६३.३२( नरकासुर को मारने के लिए इन्द्र का कृष्ण से अनुरोध ), २.६७.६८+ ( पारिजात वृक्ष न देने पर कृष्ण द्वारा गदा प्रहार की धमकी, इन्द्र द्वारा युद्ध ), ३.५.१३( इन्द्र की जनमेजय की पत्नी में आसक्ति, जनमेजय द्वारा अश्वमेध में इन्द्र का यजन न होने का शाप ), ३.५२.१०( देवासुर सङ्ग्राम में इन्द्र के रथ का वर्णन ), योगवासिष्ठ ३.८९( राजा इन्द्रद्युम्न की पत्नी अहल्या की इन्द्र नामक ब्राह्मण पर कामासक्ति पर इन्द्रद्युम्न द्वारा अहल्या व इन्द्र को यातनाएं देना, प्रेमियों का यातनाओं से अप्रभावित रहना, भरत ऋषि द्वारा प्रेमी युगल को शाप से नष्ट करना ), ६.१.१२८.९( पाणि का इन्द्र में न्यास ), ६.२.१३.१८( शत्रुओं से युद्ध करते हुए थक जाने पर इन्द्र का किसी छिद्र में अन्त:प्रवेश करके सूर्य की किसी किरण/त्रसरेणु में विश्राम पाना व अन्तस्थ लोकों के दर्शन करना ), वा.रामायण १.२४.१८( वृत्र हत्या वध जनित दोष से युक्त इन्द्र का देवों द्वारा अभिषेक, अभिषेक से उत्पन्न मल की मलद व कारूष प्रदेशों में व्याप्ति, इन्द्र द्वारा देशों को वरदान ), १.४८( इन्द्र का अहल्या से समागम, गौतम शाप से विफल होना, मेष के वृषण से युक्त होना ), ३.५६प्रक्षिप्त( लङ्का में सीता को दिव्य हवि प्रदान करना, देवत्व का प्रमाण देना ), ७.२७( रावण से भय, विष्णु से सहायता की प्रार्थना ), ७.२८+ ( रावण से युद्ध, मेघनाद द्वारा बन्धन, ब्रह्मा द्वारा मोचन का उद्योग ), ७.८५( वृत्र वध पर ब्रह्महत्या की प्राप्ति, अश्वमेध अनुष्ठान से मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.८९( उर्वशी नर्तन उत्सव में इन्द्र द्वारा बृहस्पति की अवमानना, दुर्वासा द्वारा प्रदत्त माला का तिरस्कार, दुर्वासा द्वारा इन्द्र की राज्य श्री नष्ट होने का शाप ), १.९०( बृहस्पति द्वारा उत्पन्न कृत्या व दुर्वासा के शाप पुरुष द्वारा स्वर्ग के रत्नों को सागर में फेंकना, बलि व इन्द्र द्वारा समुद्र मन्थन के उद्योग का निश्चय ), १.३२०.१६( राजा - पुत्री सुदुघा का पयस से इन्द्र की वृद्धि करना ), १.३२०.९०( मेधावी - पुत्री मेधावती द्वारा पांच इन्द्रों की पति रूप में प्राप्ति, पांच इन्द्रों का द्वापर में पांच पाण्डव बनना ), १.३७४( इन्द्र के राज्य से च्युत होने पर नहुष का इन्द्र पद पर आसीन होना ), १.३७५( वर्षा के कारण विनाश रोकने के लिए अहल्या द्वारा इन्द्र का आह्वान, इन्द्र की अहल्या पर आसक्ति, अहल्या को स्पर्श करने से गौतम शाप से भगाङ्गता प्राप्ति ), १.४४१.९६( इन्द्र का शिरीष वृक्ष के रूप में अवतरण ), १.४५९.८४( विश्वानर - पुत्र गृहपति द्वारा इन्द्र का तिरस्कार करने पर इन्द्र द्वारा वज्र प्रहार, शिव द्वारा रक्षा ), १.४८६( विप्र बालक रूप धारी नारायण द्वारा इन्द्र से ब्रह्माण्ड के असंख्य इन्द्रों का कथन, इन्द्र के गर्व का खण्डन, लोमश द्वारा इन्द्र को आयु की अल्पता का कथन ), १.५१७.७९( शिव द्वारा अन्धकासुर के भावी निग्रह पर इन्द्र द्वारा द्रष्ट शुभ स्वप्न का वर्णन ), २.१४६.१२८( वास्तुमण्डल के मेढ} में इन्द्र देवता का आह्वान ), २.२४६.२९( अतिथि के इन्द्रलोकेश होने का उल्लेख ), ३.२५.४( भविष्य के ५ इन्द्रों के नाम ), ३.२५.६१( देवसख, कीर्ति, कदम्ब आदि ५ भ्राताओं का भावी इन्द्र होना ), ३.६०.५०( पुरुषोत्तम विष्णु द्वारा इन्द्र रूप धारण करके चिदम्बरा भक्ता की परीक्षा लेना ), ३.९३( देवशर्मा -पत्नी रुचि से समागम के लिए इन्द्र द्वारा नानाविध रूप धारण करने का उल्लेख ), ४.८१.३८( इन्द्रवज्र : नन्दिभिल्ल राजा का सेनापति, युद्ध के लिए प्रस्थान करने पर अपशकुनों का कथन ), ४.८३.६२( कुवर द्वारा युद्ध में इन्द्रवज्र के वध का वर्णन ), कथासरित् ७.७.१४( पुत्र की मृत्यु पर नागार्जुन द्वारा अमृत निर्माण का उद्योग, इन्द्र के आदेश से निर्माण से निवृत्त होना ), ८.६.१९२( सुलोचना - पति आदित्यशर्मा द्वारा इन्द्र का तिरस्कार, इन्द्र द्वारा मृत्यु लोक में जाने का शाप ), १८.२.१२८( कलावती द्वारा ठिण्ठाकराल को कर्ण उत्पल में छिपाकर इन्द्र सभा में रम्भा नृत्य में ले जाना, ज्ञात होने पर इन्द्र द्वारा कलावती को देवागार में सालभञ्जिका होने का शाप ), अथर्व ५.२६.११(इन्द्रो युनक्तु बहुधा वीर्याणि), द्र. पुरन्दर, महेन्द्र, मौलेन्द्र Indra
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Esoteric aspect of Indra
इन्द्रकील भागवत ५.९.१६( भारतवर्ष का एक पर्वत ), मत्स्य २२.५३( श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक ), शिव ३.३७( शैवास्त्र प्राप्ति के लिए अर्जुन के तप का स्थान ), महाभारत वन ३७( अर्जुन द्वारा प्रतिस्मृति विद्या द्वारा इन्द्रकील पर्वत पर तप, मूक दैत्य का वध, किरात वेश धारी शिव से युद्ध आदि ) Indrakeela
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इन्द्रजाल अग्नि २३४.१४( युद्ध में राजा द्वारा इन्द्रजाल माया का प्रदर्शन ), गरुड २.३२.४(देह की इन्द्रजाल से उपमा), योगवासिष्ठ ३.१०४+ ( शाम्बरिक द्वारा उत्पन्न इन्द्रजाल के वशीभूत होकर राजा लवण का चाण्डाल कन्या के साथ वास करने का वृत्तान्त ) Indrajaala
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इन्द्रजित् मत्स्य ६.१९( दनु व कश्यप के पुत्रों में से एक ), १९०.३( नर्मदा के तट पर गर्जन तीर्थ में मेघनाद? द्वारा इन्द्रजित् नाम प्राप्ति ), वायु ६८.६/२.७.६( दनु - पुत्र ), वा.रामायण ५.४८( प्रमदावन में हनुमान से युद्ध, हनुमान का बन्धन ), ६.१५( रावण के समक्ष इन्द्रजित् की आत्मश्लाघा, ऐरावत के निग्रह का कथन, विभीषण द्वारा इन्द्रजित् की भर्त्सना ), ६.३६.१८( इन्द्रजित् द्वारा लङ्का के पश्चिम द्वार की रक्षा ), ६.४४( नाग पाश द्वारा राम - लक्ष्मण का बन्धन ), ६.५९.१५( रावण - सेनानी, स्वरूप ), ६.७३( ब्रह्मास्त्र से वानर सेना सहित राम - लक्ष्मण को मूर्च्छित करना ), ६.८०+ ( इन्द्रजित् द्वारा आभिचारिक होम से शक्ति की प्राप्ति, मायामयी सीता का वध ), कथासरित् १८.२.२४०( रावण - पुत्र इन्द्रजित् द्वारा जयन्त के क्रीडा मृग को स्वर्ग से लङ्का में लाना ) Indrajit
इन्द्रदत्त भविष्य ३.२.७.७( शास्त्रों में निपुण द्विज, त्रिलोकसुन्दरी कन्या की प्राप्ति के इच्छुक चार जनों में से एक ), वायु ६९.३५/२.८.३५( नर मुख वाले एक किन्नर का नाम ), कथासरित् १.२.४२( देवस्वामी ब्राह्मण का पुत्र, व्याडि - भ्राता ), १.४.२( इन्द्रदत्त द्वारा पाटलिपुत्र में वर्ष उपाध्याय से शिक्षा ग्रहण ), १.४.९९( नन्द राजा के शरीर में प्रवेश, पूर्व शरीर का नष्ट होना ), ६.८.१०( चेदि देश का राजा, पर स्त्री पर आसक्ति, पतिव्रता स्त्री व राजा की मृत्यु ) Indradatta
इन्द्रद्युम्न अग्नि १०७.१३( सुमति - पुत्र, परमेष्ठी - पिता, नाभि वंश ), कूर्म १.१( इन्द्रद्युम्न द्विज द्वारा कूर्म रूप धारी विष्णु से दिव्य ज्ञान की प्राप्ति, मोक्ष ), पद्म ६.३१( वैश्य, चन्द्रावती - पति, जन्माष्टमी व्रत के प्रभाव से जन्मान्तर में हरिश्चन्द्र बनना ), ब्रह्म १.४१+ ( अवन्ती - नरेश इन्द्रद्युम्न द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र की यात्रा, अश्वमेध का अनुष्ठान, स्तुति, मूर्ति निर्माण सम्बन्धी स्वप्न ), भागवत ८.४.७( द्रविड देश का राजा, अगस्त्य के शाप से गज बनना, गज - ग्राह की कथा ), वामन ६५.५८( मनु - पुत्र, इक्ष्वाकु - भ्राता, ऋतध्वज मुनि की खोयी गई कन्या के अन्वेषण में सहायता करना ), ६५.१६०( इन्द्रद्युम्न द्वारा पर्जन्य व घृताची की पुत्री वेदवती से विवाह ), वायु ३३.५४( तैजस - पुत्र, परमेष्ठी - पिता, नाभि वंश ), ४७.५४( इन्द्रद्युम्न सरोवर का गङ्गा की प्राची दिशा की धारा नलिनी द्वारा प्लावन ), विष्णु २.१.३६( सुमति - पुत्र, परमेष्ठी - पिता, नाभि वंश ), शिव ५.१८.४( भारत के ९ खण्डों में से एक का नाम? ), स्कन्द १.२.७+ ( ब्रह्मलोक से पतन पर राजा इन्द्रद्युम्न का चिरञ्जीवियों मार्कण्डेय, नाडीजङ्घ बक, प्राकारकर्ण उलूक, गृध्र, कूर्म व लोमश ऋषि से संवाद व उनकी चिरञ्जीविता के कारण जानना ), २.२.४.५८( इन्द्रद्युम्न द्वारा स्थापित पुरुषोत्तम की दारुमय प्रतिमा की महिमा ), २.२.७+ ( इन्द्रद्युम्न का चरित्र : विप्र के मुख से नीलमाधव की महिमा सुनकर विद्यापति नामक पुरोहित को पुरुषोत्तम क्षेत्र के अन्वेषण के लिए भेजना ), २.२.१०.१( इन्द्रद्युम्न द्वारा विद्यापति के मुख से जगन्नाथ का स्वरूप श्रवण व नारद से वार्तालाप ), २.२.११.११( इन्द्रद्युम्न द्वारा नारद के साथ पुरुषोत्तम क्षेत्र की यात्रा का उद्योग, चर्चिका देवी की स्तुति, ओढ्र नरेश से मिलन ), २.२.१२.९४( इन्द्रद्युम्न द्वारा एकाम्र क्षेत्र में स्थित कोटिलिङ्गेश शिव की अर्चना ), २.२.१२.१३०( इन्द्रद्युम्न द्वारा बिल्वेश व कपोतेश शिव की अर्चना ), २.२.१४.३( पुरुषोत्तम क्षेत्र यात्रा में अपशकुन होने पर इन्द्रद्युम्न की चिन्ता, नारद द्वारा चिन्ता का निवारण ), २.२.१५.८( इन्द्रद्युम्न द्वारा नृसिंह वपु व न्यग्रोध के दर्शन, आकाशवाणी सुनकर अश्वमेध का निश्चय ), २.२.१५( इन्द्रद्युम्न के अनुरोध पर विश्वकर्मा द्वारा नृसिंह प्रासाद का निर्माण, इन्द्रद्युम्न द्वारा नृसिंह की अर्चना ), २.२.१७( इन्द्रद्युम्न द्वारा सहस्र अश्वमेध यज्ञों के अनुष्ठान पर स्वप्न में विष्णु के दर्शन व स्तुति ), २.२.१८.२१( इन्द्रद्युम्न द्वारा चार शाखाओं वाले दिव्य वृक्ष का दर्शन, विश्वकर्मा द्वारा वृक्ष से मूर्ति चतुष्टय का निर्माण ), २.२.२१.६८+ ( मूर्ति प्रतिष्ठा हेतु ब्रह्मा को आमन्त्रित करने के लिए इन्द्रद्युम्न का ब्रह्मलोक गमन ), २.२.२४.४१+ ( इन्द्रद्युम्न द्वारा ब्रह्मा के पुत्र पद्मनिधि को व्यूह चतुष्टय के रथों का निर्माण करने का आदेश ), २.२.२६.५( इन्द्रद्युम्न की गाल राजा से भेंट ), २.२.२८.१( इन्द्रद्युम्न द्वारा ब्रह्मा से प्राप्त मन्त्रराज द्वारा नृसिंह वपु की आराधना ), ४.२.७७.७०( इन्द्रद्युम्नेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : तेजोमय यान द्वारा स्वर्ग का भोग ), ४.२.८४.६८( इन्द्रद्युम्न तीर्थ में पिण्डदान का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.१५.१( राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा मार्कण्डेय के परामर्श पर स्थापित इन्द्रद्युम्नेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ६.२७१.१५( स्कन्द १.२.७ के सदृश इन्द्रद्युम्न राजा का मार्कण्डेय, नाडीजङ्घ बक आदि चिरजीवियों से संवाद आदि ), ७.४.२५( इन्द्रद्युम्न का मार्कण्डेय से द्वारका पुरी के माहात्म्य का श्रवण ), योगवासिष्ठ ३.८९.७( राजा इन्द्रद्युम्न की पत्नी अहल्या पर विप्र - पुत्र इन्द्र के मोहित होने का आख्यान ), लक्ष्मीनारायण १.५१९( उज्जयिनी - राजा, ब्रह्मलोक से प्रत्यागमन पर मार्कण्डेय ऋषि, बक, उलूक, गृध्र व कच्छप चिरञ्जीवियों से वार्तालाप, कच्छप द्वारा इन्द्रद्युम्न की महिमा का कथन ), १.५२०.५२( इन्द्रद्युम्न - कृत यज्ञ से कच्छप पृष्ठ का दग्ध होना ), १.५२१( लोमश से भगवान् के स्वरूप, विभूति व महिमा का श्रवण ), १.५२२( लोमश द्वारा इन्द्रद्युम्न को नारद चरित्र का कथन : नारद द्वारा सावित्री के दर्शन, वेदों की विस्मृति व सावित्री कृपा से पुन: स्मृति, नारद के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, नारद का नारदी स्त्री बनना आदि ), १.५२३( लोमश द्वारा इन्द्रद्युम्न को ब्राह्मी पराविद्या का उपदेश ), १.५६१.६७( इन्द्रद्युम्न राजा द्वारा नर्मदा तट पर ओङ्कार लिङ्ग के निकट अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान, राजा द्वारा शिव व विष्णु से वर प्राप्ति ), १.५८४+ ( इन्द्रद्युम्न द्वारा जगन्नाथ क्षेत्र यात्रा व पुरुषोत्तम आदि की प्रतिमाओं की स्थापना का विस्तृत वर्णन ), २.७.१०८( इन्द्रद्युति विप्र द्वारा विष्णु के दर्शन ), Indradyumna
इन्द्रद्वीप मत्स्य ११४.८( भारतवर्ष के ९ भेदों में से एक ), १२१.५७( गङ्गा की प्राची दिशा की धारा नलिनी का इन्द्रद्वीप के निकट लवण उदधि में प्रवेश ), वायु ४५.७९( भारतवर्ष के ९ खण्डों में से एक ), ४७.५५( गङ्गा की प्राची दिशा की धारा पावनी का इन्द्रद्वीप के निकट लवण समुद्र में प्रवेश ) Indradweepa
इन्द्रधनुष लिङ्ग १.७२.९१( त्रिपुर दाह हेतु शिव के धनुष का आकाश में इन्द्रधनुष/हिरण्य धनुष की भांति सुशोभित होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२३८.१४( जल में शक्रचाप न होते हुए भी दिखाई देने पर तृतीय मास में मृत्यु होने का उल्लेख ), हरिवंश ३.२२.३०( शिव द्वारा मृग रूप धारी दक्ष के यज्ञ को बाण से विद्ध करना, यज्ञ से नि:सृत रुधिर का इन्द्रधनुष बनना ), वा.रामायण ६.५९.१५( इन्द्रजित् के धनुष की इन्द्रधनुष से तुलना ), महाभारत भीष्म १०८.३६( सङ्ग्राम में भीष्म के धनुष के शक्रचाप की भांति दिखाई देने का उल्लेख ), कर्ण २४.४७( कर्ण द्वारा नकुल के कण्ठ में डाले गए धनुष की इन्द्रधनुष से उपमा ), ५६.१२( नकुल व सहदेव द्वारा शक्रचापों के समान धनुष ग्रहण करने का उल्लेख ), शल्य ४.१६( अर्जुन के वानरध्वज की इन्द्रकार्मुक के तुल्य आभा का उल्लेख ) Indradhanusha
इन्द्रध्वज ब्रह्मवैवर्त्त ४.२१( व्रज में इन्द्रध्वज उत्सव का वर्णन, कृष्ण द्वारा इन्द्र उत्सव के स्थान पर गोवर्धन पूजा कराने पर इन्द्र का कोप व नन्द द्वारा इन्द्र की स्तुति, कृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण का वर्णन ), भविष्य ४.१३८.४९( ध्वज मन्त्र में ध्वज की शक्रकेतु संज्ञा का उल्लेख ), ४.१३९.१( श्रावण मास में महेन्द्र ध्वज यष्टि प्रतिष्ठा विधि व महत्त्व का वर्णन : मेरु पर्वत पर प्रतिष्ठा से असुरों का नाश आदि ; इन्द्रध्वज प्रतिष्ठा में विभिन्न विघ्नों का फल तथा उनके शमन का उपाय ), भागवत १०.४४.२३( श्रीहरि द्वारा चाणूर मल्ल को भूमि पर पटकने के पश्चात् चाणूर का इन्द्रध्वज के समान भूमि पर गिरने का उल्लेख ), मत्स्य २४२.९( गमन के समय दृष्ट दु:स्वप्नों के अन्तर्गत स्वप्न में शक्र ध्वज पतन देखने का उल्लेख ), २४२.२४( शुभ स्वप्न दर्शन के अन्तर्गत शक्रध्वज आलिङ्गन व उसके आरोहण का उल्लेख ), वराह १६४.३९( गोवर्धन तीर्थ के अन्तर्वर्ती इन्द्रध्वज तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ),१६४.४०( मथुरा में गोवर्धन क्षेत्र में इन्द्रध्वज तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : स्नान से स्वर्ग प्राप्ति ), विष्णुधर्मोत्तर २.१५४.१३( विष्णु द्वारा असुरों पर विजय प्राप्ति हेतु देवों को शक्र ध्वज प्रदान करने का वर्णन ), २.१५५.५( वन से शक्र यष्टि को नगर में लाने तथा उसकी स्थापना व विसर्जन उत्सव का वर्णन ), २.१५६.१( इन्द्रध्वज के भङ्ग होने पर शमन उपायों का कथन ), २.१५७.१( इन्द्रध्वज फहराने के समय पठनीय मन्त्रों का कथन ), २.१६०.१०( ध्वजारोहण मन्त्र में ध्वज की शक्रकेतु संज्ञा का उल्लेख ), हरिवंश २.१५.४( गोप द्वारा कृष्ण को इन्द्रध्वज उत्सव के कारण का कथन : इन्द्र द्वारा भूमि पर पर्जन्य वर्षण कराना ), २.१६.१+ ( कृष्ण द्वारा इन्द्रध्वज के स्थान पर गिरियज्ञ, गो पूजन तथा शरद ऋतु के यजन का निर्देश आदि ), ३.२६.१५( विष्णु से युद्ध में पृथिवी पर गिरे हुए मधु दैत्य का पृथिवी तल से इन्द्रध्वज की भांति उठ कर खडे होने का उल्लेख ), वा.रामायण ४.१६.३७( आश्विन् पूर्णिमा को इन्द्रध्वज उत्सव का उल्लेख ), ४.१७.२( राम के बाण से आहत बाली का इन्द्रध्वज के समान भूमि पर गिरने का उल्लेख ), ५.४८.२४( इन्द्रजित् के रथ पर इन्द्रध्वज का उल्लेख ), महाभारत आदि १७२.३( तपती कन्या के दर्शन पर राजा संवरण का मूर्च्छित होकर शक्रध्वज की भांति भूमि पर गिरने का उल्लेख ), वन ४२.८( अर्जुन द्वारा मातलि सारथि वाले इन्द्र के रथ पर वैजयन्त नामक ध्वज का दर्शन ; वैजयन्त ध्वज का वर्णन ), १४६.७०( कदली वन में भीमसेन का मार्ग अवरुद्ध करने वाले हनुमान की पुच्छ की शक्रध्वज से तुलना ), उद्योग ५९.१५( कृष्ण के इन्द्रकेतु की भांति उठ बैठने का उल्लेख ), भीष्म ११९.९१( अर्जुन के बाणों से विद्ध होकर भीष्ण के इन्द्रध्वज की भांति भूमि पर गिरने का उल्लेख ), द्रोण १०५.११( अश्वत्थामा के सिंह लाङ्गूल से युक्त ध्वज की शक्रध्वज से तुलना ), शल्य ४.१६( अर्जुन की वानरध्वज के इन्द्रकेतु के समान ऊंची होने का उल्लेख ), १७.५३( युधिष्ठिर की शक्ति से आहत होकर राजा शल्य का इन्द्रध्वज की भांति भूमि पर गिरने का उल्लेख ), सौप्तिक ६.१६( अश्वत्थामा द्वारा पाण्डव - शिविर के द्वार पर स्थित भूत पर इन्द्रकेतु के समान गदा से प्रहार करने का उल्लेख ) Indradhwaja
इन्द्रनील गरुड १.७२( मणि : बल असुर के नेत्रों से उत्पत्ति, महिमा ), गर्ग ७.६.३०( माहिष्मती - राजा, प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करना ), १०.१४( इन्द्रनील का अनिरुद्ध - सेना से युद्ध व पराजय ), पद्म ६.६.२५( बल असुर की अक्षियों से इन्द्रनील मणि की उत्पत्ति का उल्लेख ) Indraneela
इन्द्रपद लक्ष्मीनारायण ४.२.९( राजा बदर के इन्द्रपद नामक विमान का कथन )
इन्द्रप्रतिम वायु ७०.८८/२.९.८८( वसिष्ठ व कपिञ्जली /घृताची - पुत्र, कुशीति उपनाम, वसु - पिता )
इन्द्रप्रस्थ पद्म ६.१९९ ( इन्द्र द्वारा खाण्डव वन में याग के पश्चात् याग स्थल का इन्द्रप्रस्थ नाम होना ), ६.२००( इन्द्रप्रस्थ क्षेत्र का माहात्म्य, शिवशर्मा व इन्द्र के अंश विष्णुशर्मा द्वारा स्नान ), ६.२०१( शिवशर्मा द्वारा निगमोद्बोध तीर्थ में स्नान से पुत्र प्राप्ति, निगमोद्बोध तीर्थ जल के पान से राक्षस को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का स्मरण, इन्द्रप्रस्थ तीर्थ में मरण से शरभ वैश्य को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति ), ६.२०५( इन्द्रप्रस्थ तीर्थ में अम्बुहस्ती राक्षस द्वारा पङ्क में फंसी गौ के उद्धार के प्रयास में जल में डूबने से मृत्यु पर मुक्ति, शरभ वैश्य का शिवशर्मा रूप में जन्म, शिवशर्मा द्वारा निगमोद्बोध तीर्थ में देह त्याग से मुक्ति ), ६.२०६( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्वर्ती द्वारका तीर्थ का माहात्म्य ), ६.२०७( विमल विप्र द्वारा निगमोद्बोध तीर्थ में स्नान से पुत्र वर की प्राप्ति ), ६.२०८( विमल विप्र द्वारा इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत द्वारका में स्नान से विष्णु भक्ति की प्राप्ति, द्वारका के जल से राक्षसियों का उद्धार ), ६.२०९+ ( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत कोशला तीर्थ का माहात्म्य : कोशला तीर्थ में अस्थि पतन से मुकुन्द द्विज व सर्प योनि प्राप्त नापित की मुक्ति इत्यादि ), ६.२१३+ ( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत मधुवन तीर्थ का माहात्म्य : विश्रान्ति तीर्थ का माहात्म्य ), ६.२१६( मधुवनस्थ बदरिकाश्रम का माहात्म्य ), ६.२१७( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत हरिद्वार का माहात्म्य ), ६.२१८+ ( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत पुष्कर का माहात्म्य : पुष्कर सेवन से भरत को विमान की प्राप्ति, पुण्डरीक की मुक्ति ), ६.२२०+ ( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्वर्ती प्रयाग तीर्थ का माहात्म्य : मोहिनी वेश्या का द्रविड देश के राजा की पत्नी बनना ), ६.२२२( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत काशी का माहात्म्य ; गोकर्ण तीर्थ का माहात्म्य; शिव काञ्ची का माहात्म्य; युधिष्ठिर द्वारा इन्द्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ करना ), ब्रह्माण्ड ३.४.१२.४४( भण्डासुर के भय से मुक्ति हेतु इन्द्र द्वारा पराशक्ति की आराधना का स्थान ), महाभारत द्रोण २३.२९(अपर नाम उदयेन्दु), Indraprastha
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इन्द्रलोक वराह १४१.१०( बदरी तीर्थ के अन्तर्गत इन्द्रलोक तीर्थ का माहात्म्य )
इन्द्रवाह देवीभागवत ७.९.२८( इन्द्र के ककुद पर आरूढ होकरअसुरों से युद्ध के कारण ककुत्स्थ राजा का नाम ), लक्ष्मीनारायण ३.१५८.१( भूति द्वारा इन्द्रवाह मनु पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त ), द्र. ककुत्स्थ
इन्द्रसावर्णि ब्रह्मवैवर्त्त ४.४१.१११( चौदहवें मन्वन्तर में मनु, वंशानुकीर्तन ), भागवत ८.१३.३३( इन्द्रसावर्णि मनु के समय में सप्तर्षियों व अवतारों का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.१५८.१( भूति द्वारा इन्द्रसावर्णि मनु पुत्र की प्राप्ति का वृत्तान्त ), द्र. मन्वन्तर Indrasaavarni
इन्द्रसेन पद्म ६.५८.५( माहिष्मती पुरी का राजा, इन्दिरा एकादशी व्रत से स्वर्ग प्राप्ति ), भागवत ५.२०.४( प्लक्ष द्वीप में सात मर्यादा पर्वतों में से एक ), ६.६.५( देवऋषभ - पुत्र, धर्म - पौत्र ), ८.२२.३३( राजा बलि का एक नाम ), ९.२.१९( कूर्च - पुत्र, वीतिहोत्र - पिता, वैवस्वत मनु/नरिष्यन्त वंश ), मत्स्य ५०.६( ब्रह्मिष्ठ - पुत्र, विन्ध्याश्व - पिता, मुद्गल/भद्राश्व वंश ), स्कन्द १.१.५.६४( अज्ञान में हर नाम उच्चटरण से इन्द्रसेन नृप का चण्ड नामक शिव गण बनना ), ३.१.३६.१८६(नल के पुत्र रूप में इन्द्रसेन का उल्लेख), ३.३.८.४०( नल व दमयन्ती - पुत्र, चित्राङ्गद - पिता, पुत्र की मृत्यु हो जाने की कल्पना में शत्रुओं द्वारा इन्द्रसेन का राज्य छीनना ), ६.३१.४४( सर्प दंश से मृत्यु पर इन्द्रसेन को प्रेत योनि की प्राप्ति, नाग तीर्थ में श्राद्ध से मुक्ति ), ७.३.३१( सुनन्दा - पति, पति की मृत्यु के मिथ्या समाचार से पत्नी का मरण, इन्द्रसेन द्वारा पत्नी विनाश पाप का प्रायश्चित्त ), लक्ष्मीनारायण १.२५८.४८( चन्द्रावती पुरी का राजा, इन्दिरा एकादशी व्रत के पुण्य दान से पिता चन्द्रसेन का उद्धार ), १.२६०.७८( चन्द्रसेन - पुत्र शशिसेन का उपनाम, रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से स्वर्ग लोक की प्राप्ति ) Indrasena
इन्द्रसेना गरुड ३.१६.९५(दमयन्ती का अपर नाम), मार्कण्डेय १३३.२/१३०.२( बभ्रु - पुत्री, नरिष्यन्त - पत्नी, दम - माता ), १३४.३७/१३१.३७( पति नरिष्यन्त की मृत्यु पर इन्द्रसेना द्वारा अग्नि में प्रवेश ), वायु ९९.२००/२.३७.१९५( ब्रह्मिष्ठ - पत्नी, बध्यश्व - माता ), हरिवंश २.६१.७( नारायण - पुत्री ), महाभारत विराट २१.११( नारायण - पुत्री, वृद्ध मुद्गल ऋषि की पत्नी ), कथासरित् ९.६.२८६( नल व दमयन्ती - पुत्री, चन्द्रसेन - भगिनी ) Indrasenaa
इन्द्राग्नि नारद १.८९.१४३( ललिता देवी के सहस्र नामों में से एक ), मत्स्य १७.३८( पितरों के श्राद्ध में पठित सूक्तों में इन्द्राग्नि सूक्त का उल्लेख ), वामन ८७.२९( केशव के वदन से इन्द्राग्नि की उत्पत्ति का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.४( १२ खण्डयुगेश्वरों में से एक ), १.८३.१७( विशाखा नक्षत्र के इन्द्राग्नि देवता का उल्लेख ), १.१०२.१७( विशाखा नक्षत्र के लिए इन्द्राग्नी रोचना दिवं इति होम मन्त्र ( ऋ. ३.१२.९) का उल्लेख ), स्कन्द ४.१.१०( इन्द्राग्नि लोक वर्णन के अन्तर्गत चन्द्रमा की ज्योतिष्मती पुरी, इन्द्र की अमरावती पुरी तथा अग्नि की अर्चिष्मती पुरी प्राप्ति के उपायों का वर्णन; विश्वानर द्विज द्वारा वीरेश्वर शिव की आराधना से वैश्वानर पुत्र प्राप्ति की कथा ), महाभारत उद्योग १५.३१( अग्नि द्वारा जल में छिपे हुए इन्द्र का पता लगाना ), १६.३२( इन्द्र द्वारा अग्नि को यज्ञ में इन्द्राग्नि नामक भाग प्रदान करने का उल्लेख ), द्रोण १०१.२४( रण में द्रोण व कृतवर्मा की अस्त्र वर्षा से मुक्त हुए कृष्ण व अर्जुन की इन्द्राग्नि सदृश शोभा का उल्लेख ) Indraagni/Indragni
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इन्द्राणी अग्नि १४६.१९( इन्द्राणी देवी की ८ शक्तियों के नाम ), देवीभागवत ५.२८.२३(युद्ध में इन्द्राणी शक्ति का स्वरूप), ५.२८.५३( शुम्भ असुर से युद्ध में इन्द्राणी मातृशक्ति का ऐरावत गज पर आरूढ होकर आगमन तथा असुरों का संहार ), नारद १.५६.४१०( कन्या विवाह के समय शची से भाग्य, पुत्र आदि देने की प्रार्थना ), ब्रह्म २.५९.४४( महाशनि असुर द्वारा इन्द्र का बन्धन व विमोचन, इन्द्र व इन्द्राणी द्वारा गौतमी तट पर शिव की आराधना से वृषाकपि का प्राकट्य, वृषाकपि द्वारा महाशनि का वध, इन्द्र की वृषाकपि से प्रगाढ मैत्री पर शची को आपत्ति, इन्द्र द्वारा शची को आश्वासन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४५.३२( शिव - पार्वती विवाह में शची द्वारा शिव से हास्य ), ४.५९+ ( नहुष की शची पर आसक्ति, शची द्वारा प्रबोधन, शची द्वारा बृहस्पति की सहायता से नहुष का स्वर्ग से पतन कराना आदि ), भविष्य ३.४.३.५६( इन्द्राणी मातृका का वेणु व कन्यावती की पुत्री सिन्दूरा के रूप में जन्म ), भागवत ६.१८.७( पौलोमी शची के तीन पुत्रों जयन्त, ऋषभ व मीढुष का उल्लेख ), मत्स्य ६९.६०( कल्याणी व्रत के प्रभाव से वैश्य कुलोत्पन्न पौलोमी के इन्द्र - पत्नी होने का उल्लेख ), २६१.३१( इन्द्राणी मातृका की प्रतिमा के स्वरूप का कथन ), २८६.७( इन्द्राणी देवी का स्वरूप ), मार्कण्डेय ५.२५( शची का पाण्डव - पत्नी द्रौपदी के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), वराह २७.३४( इन्द्राणी मातृका : मत्सर का रूप ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४.६( संक्षिप्त नहुषोपाख्यान ), २.१३२.८( ऐन्द्री शान्ति के रुक्म वर्ण का उल्लेख ), ३.५०.२( शक्र व शची के स्वरूप का कथन ), स्कन्द १.१.१५.७५( नहुष की इन्द्राणी/शची पर आसक्ति, नहुष का सप्तर्षियों द्वारा वाहित शिबिका पर आरूढ होकर शची से मिलन हेतु गमन आदि ), १.२.१३.१६७( शतरुद्रिय प्रसंग में शची द्वारा बभ्रुकेश नाम से लवण लिङ्ग की आराधना का उल्लेख ), २.१.८.६( श्रीनिवास व कमला के विवाह में इन्द्राणी द्वारा श्रीहरि पर छत्र धारण करना ), ५.३.४६.३३( अन्धकासुर द्वारा शक्र से शची को छीन कर ले जाना, विष्णु द्वारा अन्धक वध का उद्योग ), ५.३.१९८.८९( देवलोक में उमा की इन्द्राणी नाम से स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश १.२०.१३३( शची के पुलोमा दानव की पुत्री होने का संकेत ), २.७५.४२( पारिजात हरण प्रसंग में पौलोमी शची द्वारा कृष्ण - पत्नियों के लिए दिव्य उपहार देना ), लक्ष्मीनारायण १.३७४.१(शची का जन्मान्तरों में १४ इन्द्रों की पत्नी होने का उल्लेख, नहुषोपाख्यान ), १.४७३.५२( पौलोमी शची द्वारा मनोरथ तृतीया व्रत से इन्द्र की पति रूप में प्राप्ति ), द्र. ऐन्द्री Indraanee/ indrani
इन्द्रिय कूर्म २.११.३८( विषयों में विचरण करती हुई इन्द्रियों के निग्रह का प्रत्याहार नाम ), २.४६.१७( प्रलय के क्रमिक वर्णन में इन्द्रियों के तैजस अहंकार में क्षय होने का कथन ), नारद १.४२.६५( वृक्ष आदि में पांच इन्द्रियों के होने के प्रमाणों का कथन ), पद्म २.७+ ( आत्मा द्वारा ज्ञान, ध्यान का संग त्याग पञ्चेन्द्रियों से मैत्री करने पर दु: की प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८६.९७( मर्त्य स्तर पर इन्द्रियों के सुरगण होने का उल्लेख ), भविष्य १.१४५.९( प्राण निग्रह से इन्द्रिय कृत दोषों के दहन का उल्लेख ), ३.४.६.३२( इन्द्रिय, मन व बुद्धि का अव्यक्त प्रकृति के १२ अङ्गों के रूप में उल्लेख; समाधि द्वारा अव्यक्त से परे सूक्ष्म ब्रह्म की प्राप्ति तथा अव्यक्त को व्यक्त करने का निर्देश ), ३.४.२५.१६१( १० इन्द्रिय ग्रामों के प्रतीकों के रूप में गोकुल आदि १० ग्रामों का उल्लेख आदि ), भागवत २.२.२२( स्वर्ग लोक में विहार की इच्छा होने पर मन व इन्द्रियों सहित शरीर से निष्क्रमण का निर्देश ), २.५.२४( ईश्वर द्वारा स्वयं को व्यक्त करने के प्रक्रम में वैकारिक अहंकार से मन व इन्द्रियों के १० अधिष्ठातृ देवों, तैजस अहंकार से ५ ज्ञानेन्द्रियों व ५ कर्मेन्द्रियों तथा तामस अहंकार से पांच महाभूतों की उत्पत्ति का वर्णन ), २.१०.१७( वही), ३.२६.१३( काल पुरुष के २५ तत्त्वोंके अन्तर्गत १० इन्द्रियों की गणना ), ४.१८.१४( ऋषियों द्वारा बृहस्पति को वत्स बनाकर पृथिवी रूपी गौ से इन्द्रियों रूपी पात्र में छन्दोमय दुग्ध का दोहन ), ४.२२.३०( इन्द्रियों द्वारा विषयों की ओर आकृष्ट होने के दोषों का वर्णन ), ४.२३.१७( पृथु द्वारा शरीर त्याग के संदर्भ में मन को इन्द्रियों में तथा इन्द्रियों को उनके कारण रूप तन्मात्राओं आदि में लीन करने का वर्णन ), ५.१४.१( ६ इन्द्रियों की दस्यु संज्ञा ), ७.१०.८( कामना के उदय होने से इन्द्रियों, मन, प्राण आदि के नष्ट होने का उल्लेख ), ९.१८.१( देह में इन्द्रियों की भांति नहुष के ६ पुत्रों यति, ययाति आदि का उल्लेख ), १०.६.२४( हृषीकेश से इन्द्रियों की रक्षा की प्रार्थना ), ११.३.१५( प्रलय के क्रम वर्णन में महाभूतों का तामस अहंकार में, इन्द्रियों व बुद्धि का राजस अहंकार में तथा मन का सात्त्विक अहंकार में लीन होने का वर्णन ), ११.८.२०( निराहार द्वारा इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेने पर भी रसनेन्द्रिय के अविजित रहने का कथन ), ११.१४.४२( मन द्वारा इन्द्रियों का उनके अर्थों से कर्षण करके बुद्धि को सारथी आदि बनाने का कथन ), ११.२४.२४( प्रलय के क्रम में इन्द्रियों का अपनी योनियों में लीन होने का कथन ), १२.११.१६( विष्णु के आयुधों के वर्णन के संदर्भ में इन्द्रियों का बाणों के रूप में, कर्म का तरकस व काल रूप धनुष का उल्लेख ), मत्स्य ३.१८( मन सहित एकादश इन्द्रियों का कथन ), वायु ६२.३९( चतुर्थ तामस मन्वन्तर में देव गण ), विष्णु १.२२.७३( विष्णु के आयुध शर के इन्द्रियों का प्रतीक होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४०.१६( पुरुष के आधारभूत २६ तत्त्वोंके अन्तर्गत श्रोत्र, चक्षु आदि ५ बुद्धीन्द्रियों व शब्द, रूप आदि ५ कर्मेन्द्रियों की गणना ), स्कन्द ३.१.४९.७७(यक्षों को इन्द्रिय अराति बाधा), ५.२.६४.१७( राजा पशुपाल द्वारा ५ बुद्धीन्द्रियों व ५ कर्मेन्द्रियों के हनन का प्रयत्न करने का वृत्तान्त ), ५.३.५१.३४( इन्द्रिय निग्रह के आठ पुष्पों में से एक होने का उल्लेख ), ५.३.१३९.१०( इन्द्रिय ग्राम के निरोध से कुरुक्षेत्र आदि तीर्थों की उत्पत्ति का उल्लेख ), ५.३.१५८.१७( इन्द्रिय ग्राम के संदर्भ में सार्वत्रिक श्लोक ), ६.२६३.१४(पांच इन्द्रियों वाले पशुओं को मारने का निर्देश ), योगवासिष्ठ ५.८२+ ( वीतहव्य मुनि द्वारा इन्द्रियों को प्रबोधन/अनुशासन ), ५.८६( वीतहव्य मुनि द्वारा समाधि प्राप्त करने से पूर्व इन्द्रिय वर्ग के निराकरण का वर्णन ), ६.१.५१( इन्द्रियों के अर्थों के मिथ्यात्व का विचार ), ६.२.६( विद्याधर द्वारा इन्द्रियों की निन्दा ), ६.२.१६३( इन्द्रिय जय का उपाय ), महाभारत वन २११.१२( इन्द्रियों के संदर्भ में पृथिवी, उदक आदि पांच महाभूतों के शब्द, स्पर्श आदि गुणों का वर्णन तथा इन्द्रियों द्वारा इन गुणों को सम्यक् प्रकार से धारण करने का निर्देश), उद्योग ३४.५९( इन्द्रिय रूपी अश्वों को आत्मा द्वारा नियन्त्रित करने का निर्देश आदि ), ६९.१८( इन्द्रियों की भोग कामनाओं के त्याग का निर्देश आदि ), १२९.२६( इन्द्रियों को नियन्त्रित करने की प्रशंसा ), भीष्म २७.४१( इन्द्रियों पर नियन्त्रण करके इन्द्रियों को मोहने वाले काम का नाश करने का निर्देश ), ३४.२२( कृष्ण का स्वयं को इन्द्रियों में मन कहना ), शल्य २२.३६( कृपाचार्य के पांच द्रौपदी - पुत्रों से युद्ध की देहधारी जीवात्मा के पांच इन्द्रियों से युद्ध से तुलना करना ), शान्ति २१३.२०( रजोगुण/राग से इन्द्रियों की उत्पत्ति व लय का कथन ), २१४.२३( इन्द्रिय शब्द की निरुक्ति का कथन ), २१६.६( इन्द्रियों के थक जाने पर तथा मन के लीन न होने के कारण स्वप्न आने का कथन ), २१९.१०( श्रवण, स्पर्शन, जिह्वा आदि ५ ज्ञानेन्द्रियों व हस्त, पाद आदि ५ कर्मेन्द्रियों से विषयों का विसर्जन करने का निर्देश ), २३९.१०( कर्ण, त्वचा आदि पांच ज्ञानेन्द्रियों के अर्थों/विषयों शब्द, स्पर्श आदि का कथन ), २४६.६( मन सहित इन्द्रियों को अन्तरात्मा में लीन करने पर अमृत पद प्राप्ति का उल्लेख ), २४७.९( इन्द्रियों व उनके अर्थों के मूल महाभूतों/पृथिवी आदि का कथन; सतोगुण आदि का विवेचन ), २४८.२( इन्द्रियों से परे अर्थ, अर्थ से परे मन, मन से परे बुद्धि और बुद्धि से परे आत्मा के होने का उल्लेख ; इन्द्रियों के साथ मन और बुद्धि का संयोग होने पर ही इन्द्रियों द्वारा विषयों का ग्रहण होने का वर्णन ), २७५.११( प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय के पृथक् - पृथक् कार्यों का वर्णन ), ३०१.८६( स्वप्न में आत्मा द्वारा इन्द्रियों की सहायता से सूक्ष्म विषयों के भोग का वर्णन ), ३११.१६( इन्द्रियों में मन की प्रधानता का वर्णन : मन के सहयोग न देने पर इन्द्रियों का निरर्थक होना ), ३१६.१३( समाधि प्राप्ति के प्रक्रम में इन्द्रियों को मन में तथा मन को अहंकार में विलीन करने आदि का वर्णन ), ३२९.४९( इन्द्रियों से ग्रहण होने वाले विषयों की व्यक्त तथा न होने वालों की अव्यक्त संज्ञा का उल्लेख ; इन्द्रियों के नियन्त्रण से तृप्ति प्राप्त होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक २२.२( घ्राण, चक्षु आदि ५ इन्द्रियों, मन व बुद्धि सहित ७ होताओं का परस्पर संवाद : प्रत्येक होता की प्रधानता का वर्णन ), २७.१३( ५ इन्द्रियों के समिधा होने का उल्लेख ), ३०.७( अलर्क द्वारा मन, घ्राण, जिह्वा आदि इन्द्रियों रूपी शत्रुओं पर बाणों का प्रहार, इन्द्रियों का बाणों से अप्रभावित रहना, ध्यान योग के एक बाण द्वारा इन्द्रियों का विद्ध होना ), ४२.१८( इन्द्रियों का आकाश आदि महाभूतों के अध्यात्म के रूप में वर्णन ; इन्द्रिय निरोध से महानात्मा के प्रकाशित होने का उल्लेख आदि ), योगवासिष्ठ ६.१.८०.७६( आकाशवृक्ष पर इन्द्रिय पुष्प का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.५०( जीवरथ में इन्द्रिय वाहन बनाने का निर्देश ), २.२५५.४०( , ३.१७५.४२( अलर्क द्वारा प्रयुक्त बाणों से इन्द्रियों का अप्रभावित रहना, श्रीहरि द्वारा प्रदत्त बाणों से इन्द्रियों का निग्रह ) Indriya
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इन्द्रोत ब्रह्माण्ड २.३.६८.२५( इन्द्रोत शौनक द्वारा जनमेजय राजा के अश्वमेध का अनुष्ठान, जनमेजय की ब्रह्महत्या से मुक्ति ), वायु ९३.२५/२.३१.२५( वही), हरिवंश १.३०.१०( परीक्षित - पुत्र इन्द्रोत जनमेजय द्वारा गार्ग्य के पुत्र का वध, ब्रह्महत्या प्राप्ति, शौनक द्वारा अश्वमेध अनुष्ठान से शान्ति ) Indrota
इन्धन स्कन्द ५.३.२६.३( प्रतिपदा तिथि को ब्राह्मण को इन्धन दान के माहात्म्य का कथन ), महाभारत वन ३१३.११८( रात्रि - दिवस का इन्धन के रूप में कथन ) Indhana
इरा ब्रह्माण्ड २.३.७.४५९( लताओं आदि की माता ), २.३.७.४६८( इरा की अनुग्रहशीला प्रकृति ), वायु ६९.३३९/२.८.३३०( इरा की तीन पुत्रियों से वनस्पतियों की सृष्टि का वर्णन ), विष्णु १.१५.१२५( कश्यप - भार्या ), १.२१.२४( इरा से वृक्ष, लता, वल्ली, तृण आदि की उत्पत्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.२५१.९( पुलह - पत्नी इरा द्वारा २ अण्डकपालों से ८ गजों को उत्पन्न करना ), द्र. एरका Iraa
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इरावती देवीभागवत १२.६.१९( गायत्री सहस्रनामों में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२८९( इरावती द्वारा २ अण्डकपालों से चार दिग्गजों को उत्पन्न करना ), २.३.७.३२३( ब्रह्मा द्वारा इरावती को रथन्तर साम से प्रबलीकृत अण्डकपाल प्रदान करना, अण्डकपालों से चार दिग्गजों की उत्पत्ति ), भागवत १.१६.२( उत्तर - पुत्री, परीक्षित - भार्या, जनमेजय आदि की माता ), ३.१२.१३( एकादश रुद्रों में से नवम काल नामक रुद्र की पत्नी ), मत्स्य २२.१९( नदी, पितृतीर्थ अधिवासिनी ), ५१.१३( आहवनीय अग्नि की १६ नदी रूपी पत्नियों में से एक ), ११६( ऐरावती : पुरूरवा द्वारा ऐरावती नदी का दर्शन, शोभा का वर्णन ), १३३.२३( त्रिपुरारि के रथ में वेणु स्थान पर नियुक्त १२ नदियों में से एक ), वामन ५७.७७( इरावती द्वारा स्कन्द को चतुर्दंष्ट्र गण प्रदान का उल्लेख ), ९०.५( इरावती में विष्णु का रूपधार नाम से वास ), वायु २९.१३( आहवनीय अग्नि की १६ नदी रूपी भार्याओं में से एक ), ४५.९६( हिमाचल के पाद से नि:सृत नदी ), ६९.२०५/२.८.१९९( क्रोधा की १२ कन्याओं में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.१४९( पुरूरवा द्वारा इरावती नदी का दर्शन, माहात्म्य ), १.२१५.४६( इरावती नदी का दन्ती वाहन ), ३.१२१.१३( ऐरावती में भोगमय देव की पूजा का निर्देश ), स्कन्द ४.१.२९.२६( गङ्गा के सहस्र नामों में से एक ), वा.रामायण ३.१४.२४( भद्रमदा - कन्या, ऐरावत - माता ), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७१( दक्ष द्वारा कश्यप को प्रदत्त १३ कन्याओं में से एक ), १.५४३.७५( दक्ष द्वारा रुद्र को प्रदत्त १० कन्याओं में से एक ), २.१११.५९( इरावती की ब्रह्मदेश में स्थिति का उल्लेख ), कथासरित् ७.८.५३( इरावती नगरी के राजा परित्यागसेन के २ पुत्रों इन्दीवरसेन व अनिच्छासेन का वृत्तान्त ) Iraavatee/ iravati
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इल पद्म १.८.७५( वैवस्वत मनु - पुत्र, इला - बुध आख्यान ), ब्रह्म २.३८( इल का यक्षों से युद्ध, मृगी रूपी यक्षी के कारण उमावन में प्रवेश, इला बनना आदि ), भविष्य ३.४.१७( इल द्विज की इल नृप की पत्नी मदवती पर आसक्ति, अनिल नाम प्राप्ति, तप से ४९ मरुत बनना ), ४.५४( बुध अष्टमी व्रत के संदर्भ में इल के इला बनने का वृत्तान्त ), मत्स्य ११.४०+ ( वैवस्वत मनु - पुत्र, शरवण में प्रवेश से इला स्त्री बनना, बुध से समागम, इल - भ्राता इक्ष्वाकु द्वारा अश्वमेध के अनुष्ठान से पुरुषत्व प्राप्ति, पुत्रों को राज्य देना ), मार्कण्डेय १११.११/१०८.११( मनु द्वारा मित्रावरुण की इष्टि से उत्पन्न कन्या इला का इल/सुद्युम्न बनना, पुन: इला बनने पर पुरूरवा पुत्र को उत्पन्न करना ), वा.रामायण ७.८७+ ( कर्दम - पुत्र, स्त्री बनना, इला - बुध के समागम से पुरूरवा का जन्म ) Ila
इलविला भविष्य ३.३.१२.१०१( ऐलविली : योग सिद्धि युक्त कामी राक्षस, चित्र राक्षस का अवतार, कृष्णांश आदि द्वारा वध ), ३.४.१५.१( इल्वला : विश्रवा मुनि की तामसी शक्ति, यक्षशर्मा द्वारा आराधना, जन्मान्तर में यक्षशर्मा का कर्णाटक - राजा व इल्वला - पुत्र कुबेर बनना ), भागवत ४.१.३७( इडविडा : विश्रवा - पत्नी, कुबेर - माता ), ९.२.३१( इडविडा : तृणबिन्दु व अलम्बुषा की कन्या, विश्रवा - भार्या, कुबेर - माता ), वायु ७०.३१/२.९.३१( इडिविला : तृणबिन्दु - कन्या, विश्रवा - भार्या, कुबेर - माता ), ८६.१६/२.२४.१६(द्रविडा : तृणबिन्दु - पुत्री, विश्रवा - माता, विशाल - भगिनी ; तुलनीय : इडविडा), विष्णु ४.१.४७( तृणबिन्दु व अलम्बुषा की कन्या ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०४.५९( मृगशिरा नक्षत्र का नाम, आवाहन मन्त्र ), लक्ष्मीनारायण २.८४+( पुलस्त्य - पत्नी ऐलविला द्वारा पति मुख से चारी युगों के धर्म सुनकर पौत्रों के रूप में चारी युगों को देखने की कामना, तप, कृष्ण से अक्षर क्षेत्र माहात्म्य श्रवण व अक्षर क्षेत्र में गमन, रावण आदि राक्षस पौत्रों के रूप में कामना की पूर्ति होना ) Ilavilaa
इला देवीभागवत ०.३( श्रद्धा द्वारा पुत्री की कामना, इष्टि से इला का प्राकट्य, देवी के वरदान से पुंस्त्व प्राप्ति ), १.१२( शिव वन में प्रवेश से सुद्युम्न का इला बनना, फिर मास - मास रूपान्तरण ), पद्म १.८.७५ ( सुद्युम्न का इला बनना, अश्वमेध से इला का किम्पुरुष में रूपान्तरण, इला व बुध से पुरूरवा का जन्म ), ब्रह्म १.५( मैत्रावरुण के प्रसाद से इला की उत्पत्ति, बुध से समागम, पुरूरवा का जन्म, इला द्वारा पुरुषत्व की प्राप्ति ), २.३.११( शिव विवाह में इला द्वारा भुवः कर्म करने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.३६.२९( इलापति : कृष्ण के १०८ नामों में से एक ), भविष्य ३.२.४.२०( इलापुर निवासी दुष्ट चरित्र वाले मदपाल वैश्य द्वारा पत्नी की हत्या की कथा ), ३.३.१७.१०( इला का पृथ्वीराज की कन्या वेला के रूप में अवतरण, विवाह का वृत्तान्त ), भागवत २.३.५( पुष्टि कामना हेतु इला देवी की आराधना ), ४.१०.२( वायु - पुत्री, ध्रुव - पत्नी, उत्कल - माता ), ९.१.१६( वैवस्वत मनु की मैत्रावरुण इष्टि में होता के मन्त्रविपर्यय से इला का प्राकट्य आदि ), ९.२४.४५( वसुदेव/आनकदुन्दुभि की पत्नियों में से एक ), मत्स्य ११.४८( इल का इला बनना, बुध से समागम ), १२( इक्ष्वाकु द्वारा अश्वमेध से इला का किम्पुरुष रूप में रूपान्तरण ),महाभारत अनुशासन ३४.१७, मार्कण्डेय १०४.९/१०१.९( दक्ष - पुत्री व कश्यप - भार्या इला से पादपों की उत्पत्ति का उल्लेख ), १११/१०८( मित्रावरुण इष्टि से इला के प्राकट्य का आख्यान ), वायु २.६( विश्वसृजन यज्ञ में तप नामक गृहपति की पत्नी ), ८५.७/२.२३.५( मनु की इष्टि से प्राकट्य ), विष्णु ४.१( मैत्रावरुण की इष्टि का आख्यान ), शिव ५.३६( मैत्रावरुण की इष्टि से इला की उत्पत्ति, बुध से समागम, पुरूरवा के जन्म का प्रसंग ), स्कन्द ४.२९.२८( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ५.३.१३.३९( नर्मदा नदी के शम्भु की इला नामक कला होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.५७.७४( अद्रिमालय नामक यमदूत द्वारा इलाक दैत्य का वध ), २.१०९.९७( शिव द्वारा इला देश के राजा मण्डलाक्षि का वध ), २.११०.७३( ब्रह्मा द्वारा इला देश का राज्य प्राप्त करना ), ३.३२.४७( इलोदर : राहु - पुत्र इलोदर द्वारा अमरता प्राप्ति हेतु तप, रस पान, श्री रस नारायण द्वारा वध की युक्ति ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(सोम की धारिका शक्ति), द्र. इडा, एला, सुपर्णेला Ilaa
Esoteric aspect of Ilaa
Vedic view of Ilaa
इलावर्त/इलावृत्त गर्ग १.४३.४( इलावृत वर्ष में नदियों व वनों का वर्णन ), देवीभागवत ८.५.५( इलावृत वर्ष का वर्णन ), ८.८.८( इलावृत वर्ष में रुद्र द्वारा संकर्षण की आराधना ), भविष्य ३.४.१७( इलावृत का महात्म्य, शिव द्वारा इलावृत को अगम्य बनाना ), भागवत ५.२.१९( आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, लता - पति), ५.४.१०( ऋषभ व जयन्ती के १०० पुत्रों में से एक, भरत - भ्राता ), ५.१७.१५( इलावृत वर्ष में केवल भगवान भव के ही पुरुष होने तथा अन्यों के स्त्री हो जाने का कथन, इलावृत वर्ष में संकर्षण देव की आराधना ), मत्स्य ११३.१९( इलावृत वर्ष का वर्णन ), ११४.७०( इलावृत वर्ष की महिमा ), १३५.२( इलावृत वर्ष की महिमा ), वराह ६९( अगस्त्य द्वारा इलावृत वर्ष में द्रष्ट आश्चर्यों का वर्णन : तापस द्वारा अगस्त्य का सत्कार ), वायु ३३.३९( इलावृत : आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, प्रियव्रत वंश ), ४६.११( इलावृत वर्ष की महिमा ), विष्णु २.२.१५( इलावृत वर्ष का वर्णन ) Ilaavarta/ ilavarta
इलिना मत्स्य ४९.९( यम - कन्या, त्रिवन - पत्नी, ऐलिन - माता )
इल्वल गरुड ३.१२.९३(इल्वल की नमुचि से उपमा), गर्ग ८.८.१६( इल्वल के पुत्र बल्वल का चरित्र ), पद्म १.६.५९( विप्रचित्ति व सिंहिका के ९ पुत्रों में से एक ), भविष्य ४.११८.८( इल्वल - वातापि - अगस्त्य की कथा ), भागवत ६.१८.१५( ह्राद व धमनि - पुत्र ), ८.१०.३२( बलि - सेनानी, ब्रह्मा के पुत्रों से युद्ध ), १०.७८.३८( बल्वल दानव का पिता ), मत्स्य ६.२६( विप्रचित्ति व सिंहिका - पुत्र ), वामन ६९.५६( अन्धक - सेनानी, अष्ट वसुओं से युद्ध ), विष्णुधर्मोत्तर १.९४.२३, १.९५.९६( इल्वला : मृगशिरा नक्षत्र का नाम? ), स्कन्द ७.१.२८५( इल्वल - वातापि - अगस्त्य की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.५४५.४( मणिमति नगरी में वास, अगस्त्य से महेन्द्र सदृश पुत्र प्राप्ति की याचना, आतापी - वातापी - इल्वल के नष्ट होने की कथा ) Ilvala
इष अग्नि १८५.१( आश्विन् शुक्ल नवमी को गौरी नवमी व्रत, दुर्गा, नवदुर्गा आदि की पूजा ), २०४( आश्विन् शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक विष्णु जागरण होने तक ३० दिनों का मास उपवास व्रत करने का निर्देश ), २६८.१३( आश्विन् शुक्ल अष्टमी को भद्रकाली देवी की पूजा ), २९०.३( आश्विन् पूर्णिमा को अश्व शान्ति विधि का वर्णन ), गरुड १.१२२( आश्विन् शुक्ल एकादशी को मास उपवास व्रत का वर्णन ), नारद १.२२.२( आश्विन् शुक्ल एकादशी से मास उपवास व्रत का निर्देश ), १.११३.४०( आश्विन् मास का नाम ), पद्म ४.१६.१२( आश्विन् पूर्णिमा को श्रीहरि हेतु घृत, लाजा व वराटिका दान का माहात्म्य : काल नामक द्विज की नाग योनि से मुक्ति ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१५( आश्विन् व कार्तिक मास में सूर्य रथ में पर्जन्य व पूषा आदित्यों, भारद्वाज व गौतम ऋषियों आदि के वास का कथन ), १.२.३६.२८( तीसरे उत्तम मन्वन्तर में सुधामा नामक देवगण में से एक ), ३.४.३२.३४( इषश्री : मन्दार वाटिका के रक्षक की एक पत्नी, ललिता देवी की सेविका ), भविष्य १.५२.४०( इष व ऊर्ज मासों में सूर्य रथ में पर्जन्य व पूषा आदित्यों, भरद्वाज व गौतम ऋषियों, चित्रसेन व वसुरुचि गन्धवों आदि के निवास का कथन ), २.२.८.१३२( कौमुदी नामक आश्विन् पूर्णिमा को लक्ष्मी पूजा का निर्देश ), ३.४.८.६१( आश्विन् मास के सूर्य का माहात्म्य : मेधावी व मञ्जुघोषा - पुत्र भगशर्मा द्वारा सूर्य लोक की प्राप्ति, पुन: सत्यदेव - पुत्र वाणीभूषण बनकर मत्स्यखादक विप्रों का उद्धार करना ), भागवत ४.१३.१२( वत्सर व स्वर्वीथि के ६ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश ), मत्स्य ९.१२( तीसरे मन्वन्तर में उत्तम मनु के मास नाम वाले १० पुत्रों में से एक ), ५३.२४( आश्विन् पूर्णिमा को नारद पुराण दान का निर्देश ), ८०.२( आश्विन् शुक्ल सप्तमी को शुभ सप्तमी व्रत की विधि : कपिला गौ का दान आदि ), लिङ्ग १.५९.३४( आश्विन् मास में सूर्य का पर्जन्य नाम ), विष्णु २.१०.११( आश्विन् मास में सूर्य के रथ में पूषा नामक आदित्य, वसुरुचि गन्धर्व, वात राक्षस आदि के निवास का कथन ), शिव ५.३४.२१( उत्तम मनु के १० पुत्रों में से एक ), स्कन्द १.२.६५.१११( आश्विन् शुक्ल अष्टमी को वत्सेश्वरी देवी की पूजा ), ६.८६.१५( आश्विन् शुक्ल नवमी को चन्द्रमा की नक्षत्र रूपी पत्नियों द्वारा सौभाग्य प्राप्ति के लिए चण्डी देवी की पूजा ), ६.१०३.१३( आश्विन् शुक्ल चर्तुदशी को आनर्त्त कूप पर देवों व पितरों का तर्पण ; आनर्त्त कूप महिमा के अन्तर्गत राजा श्वेत की कथा ), ६.११६.५७( आश्विन् शुक्ल नवमी को अम्बा रेवती देवी की पूजा : शेष - पत्नी रेवती द्वारा शाप से मुक्ति पाने के लिए अम्बा देवी की पूजा का वृत्तान्त ), ६.१५४.१०( आश्विन् कृष्ण चर्तुदशी को वीर व्रत से युक्त होकर २७ लिङ्गों की पूजा करने का विधान व माहात्म्य ), ६.१५५.१६( आश्विन् पूर्णिमा को अश्विनी - द्वय की पूजा का निर्देश ), ६.१६४.४५( आश्विन् शुक्ल नवमी को चण्डशर्मा – पत्नी शाकम्भरी द्वारा दुर्गा देवी की पूजा ), ६.१९९.५१( आश्विन् कृष्ण चर्तुदशी व अमावास्या को कूपिका तीर्थ में स्नान व श्राद्ध का माहात्म्य ), ७.१.२२५.४६( आश्विन् कृष्ण चर्तुदशी को प्रभास क्षेत्र में अनरकेश्वर लिङ्ग के दर्शन का माहात्म्य : यम द्वारा देवशर्मा द्विज को नरक प्रापक कर्मों का वर्णन ), ७.१.२७३.१०( आश्विन् कृष्ण चर्तुदशी को प्रभास क्षेत्र में कपालमोचन तीर्थ में श्राद्ध का माहात्म्य ), ७.१.२८३.१३( आश्विन् पूर्णिमा के संदर्भ में च्यवन - सुकन्या आख्यान, अश्विनौ को सोम की प्राप्ति ), ७.१.३०१.९( आश्विन् कृष्ण चर्तुदशी को सिद्धेश्वर लिङ्ग की पूजा का माहात्म्य ), ७.३.३६.१६८( आश्विन् कृष्ण चर्तुदशी को चण्डिका आश्रम में पिण्डदान का माहात्म्य : चण्डिका द्वारा महिषासुर के वध की कथा ), ७.३.४५( आश्विन् अमावास्या को देवखात तीर्थ में श्राद्ध का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण १.२५८.४( इन्दिरा नामक आश्विन् कृष्ण एकादशी का माहात्म्य : इन्द्रसेन नृप के पिता चन्द्रसेन आदि की यमलोक से मुक्ति ), १.२५९.७( इष शुक्ल पाशाङ्कुशा एकादशी का माहात्म्य : वामदेव ऋषि के शिष्य वेदशिरा द्वारा धर्म कर्म वर्जन से यमलोक की प्राप्ति, व्रत के प्रभाव से मुक्ति ), १.२६६.४१( आश्विन् शुक्ल प्रतिपदा को अशोक वृक्ष की पूजा का निर्देश, नवरात्र का आरम्भ ), १.२६८.७१( इष शुक्ल तृतीया को बृहद्गौरी व्रत की विधि ), १.२७०.५०( आश्विन् शुक्ल पञ्चमी को उपाङ्गललिता व्रत की विधि ), १.२७१.३४( इष शुक्ल षष्ठी को कात्यायनी देवी की पूजा का महत्त्व ), १.२७२.४०( आश्विन् शुक्ल सप्तमी को पञ्चगव्य व्रत का निर्देश ), १.२७३.८६( आश्विन् शुक्ल अष्टमी को दुर्गा व्रत का निर्देश ), १.२७४.२२( आश्विन् शुक्ल नवमी को नवरात्र व्रतान्त में देवियों की पूजा व विसर्जन का निर्देश ), १.२७५.१४( आश्विन् शुक्ल दशमी/विजयदशमी व्रत की विधि ), १.२७७.२८( आश्विन् शुक्ल द्वादशी को पद्मनाभ की अर्चना का निर्देश ), १.२७८.३९( इष शुक्ल त्रयोदशी को त्रिरात्र अशोक व्रत की विधि ), १.२७९.७१( इष कृष्ण चर्तुदशी को विष, शस्त्र आदि से मृत पुरुषों के श्राद्ध का निर्देश ), १.२७९.७५( इष शुक्ल चर्तुदशी को धर्मराज की अर्चना का निर्देश ), १.२८०.८२( आश्विन् अमावास्या को महाश्राद्ध करने का निर्देश ), १.२८०.८८( आश्विन् पूर्णिमा को राधा - कृष्ण की रासलीला रचाने का वर्णन तथा कोजागर व्रत की विधि ) Isha
Comments on Isha
Vedic contexts on Isha
इषीका देवीभागवत ५.२६.५१( चण्डिका देवी द्वारा मुण्ड असुर के शरों को ईषिकास्त्रों से नष्ट करने का उल्लेख ), ब्रह्म १.७.२७( तारा द्वारा ईषिका स्तम्ब पर सोम के वीर्य से प्राप्त गर्भ को त्यागना? ), १.१२९.८९( आत्मा व इन्द्रियों के पृथकत्व - अपृथकत्व की इषीका और मुञ्ज की पृथकता - अपृथकता से तुलना ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१४.२९( अग्नि द्वारा शिव के वीर्य को शरकानन में त्यागना, शरों से कुमार कार्तिकेय की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), भागवत १०.१९.२( गोपों की गायों का गर्मी से व्याकुल होकर इषीका/मुञ्ज वन में प्रवेश, मुञ्जवन में आग लगना, कृष्ण द्वारा गोपों आदि की दावानल से रक्षा का वृत्तान्त ), मत्स्य १५३.९६( तारकासुर सङ्ग्राम के संदर्भ में जम्भ असुर द्वारा ऐषीकास्त्र से इन्द्र के वज्रास्त्र को नष्ट करना, इन्द्र द्वारा आग्नेयास्त्र से ऐष्टीकास्त्र को शान्त करना ), वायु ९०.३८/२.२८.३८( तारा द्वारा ईषिका स्तम्ब पर सोम के वीर्य से प्राप्त गर्भ को त्यागना? ), स्कन्द १.२.२१.९२( तारकासुर सङ्ग्राम में इन्द्र द्वारा वज्रास्त्र से असुरों पर शिला वर्षण करने पर जम्भ असुर द्वारा इषीकास्त्र से वज्रास्त्र का नाश करना, इषीकास्त्र के तेज से देवों की सेना के जलने पर इन्द्र द्वारा आग्नेयास्त्र से इषीकास्त्र का नाश करना ), ४.१.१५.४२( बृहस्पति - पत्नी तारा द्वारा चन्द्रमा से धारित गर्भ को इषीका स्तम्ब पर त्यागना तथा बुध के जन्म का वृत्तान्त ), ५.१.२८.९०( तारा द्वारा इषीकास्त्र से स्व गर्भ को च्युत करने का उल्लेख ), ६.१७१.६( वसिष्ठ द्वारा विश्वामित्र को द्विज न कहने पर विश्वामित्र द्वारा ब्रह्मास्त्र से वसिष्ठ पर प्रहार, वसिष्ठ द्वारा इषीका पर ब्रह्मास्त्र को अभिमन्त्रित करके विश्वामित्र के ब्रह्मास्त्र को नष्ट करना ), महाभारत आदि ६३.९४( पूर्व जन्म में पक्षी को इषीका द्वारा विद्ध करने के कारण अणी माण्डव्य ऋषि द्वारा इस जन्म में शूली पर चढना ), १३०.२७( आचार्य द्रोण द्वारा इषीका मुष्टि की सहायता से पाण्डवों की कूप में पडी वीटा/गुल्ली को बाहर निकालने का वृत्तान्त ), उद्योग ९६.२९( नर व नारायण द्वारा इषीकास्त्र से ही दम्भोद्भव राजा के गर्व का खण्डन करना ), सौप्तिक १३.१९, १५.३१( अश्वत्थामा द्वारा इषीका पर ब्रह्मास्त्र का अभिमन्त्रण करके उसे पाण्डवों के गर्भ पर छोडना ), शान्ति २४८.२४( आत्मा व बुद्धि में सम्बन्ध प्रदर्शन के लिए इषीका व मुञ्ज के सम्बन्ध वाले सार्वत्रिक श्लोक ), ३४२.११५( नर द्वारा रुद्र के विघातार्थ इषीका को मन्त्रों से योजित करने पर इषीका का परशु बनना, रुद्र द्वारा परशु को खण्डित करने का उल्लेख ), आश्वमेधिक १९.२२( शरीर की मुञ्ज व आत्मा की इषीका से तुलना; इषीका को मुञ्ज से निकाल कर देखने का निर्देश ), ६६.१७+ ( इषीकास्त्र से मृत उत्तरा के गर्भ का कृष्ण की कृपा से जीवित होने का वृत्तान्त ) Isheekaa/ ishika
इषु गर्ग ७.६.१६( कृष्ण - पुत्र दीप्तिमान् द्वारा राजा मय के सारथी को १, ध्वजा को २, रथ को २०, कवच को ५ तथा धनुष को १०० बाणों द्वारा नष्ट करना ), ७.९.१६( शिशुपाल द्वारा दत्तात्रेय से प्राप्त ब्रह्मास्त्र, परशुराम से प्राप्त अङ्गारास्त्र तथा अगस्त्य से प्राप्त गजास्त्र का प्रद्युम्न पर प्रयोग, प्रद्युम्न द्वारा क्रमश: ब्रह्मास्त्र, पर्जन्यास्त्र व नृसिंहास्त्रों द्वारा उपरोक्त अस्त्रों को शान्त करना ), ७.१८.१७( राजा दीर्घबाहु की कन्या के स्वयंवर में कृष्ण के प्रद्युम्न, साम्ब, अनिरुद्ध आदि १८ पुत्रों व पौत्रों द्वारा कांच के जलपूर्ण पात्र के बाणों से भेदन का वृत्तान्त ), ७.२१.२५( कौरव - यादव युद्ध में कृष्ण - पुत्र भानु द्वारा वायव्यास्त्र से द्रोणाचार्य के पर्वतास्त्र को शान्त करना ), ७.२१.२७( कौरव - यादव युद्ध में कृष्ण - पुत्र साम्ब द्वारा पर्जन्यास्त्र से बाह्लीक के आग्नेयास्त्र को शान्त करना; पर्जन्यास्त्र की ज्ञान से व आग्नेयास्त्र की अहंकार से उपमा ), ७.२१.३२( साम्ब द्वारा कौरव - वीर अश्वत्थामा पर १०, धौम्य पर १६, लक्ष्मण पर १०, शकुनि पर ५, दु:शासन पर २०, सञ्जय पर २०, भूरिश्रवा पर १०० तथा यज्ञकेतु पर १०० बाणों द्वारा प्रहार करना ), ७.२४.१४( नलकूबर यक्ष द्वारा कृतवर्मा पर ५, अर्जुन पर १० तथा दीप्तिमान् पर २० बाणों से प्रहार ), ७.२४.४७( साम्ब द्वारा कार्तिकेय पर प्रहार करने वाले बाण के एक से १०, १००, सहस्र व कोटि रूप धारण करने का उल्लेख ), ७.२९.१४( प्रद्युम्न द्वारा वायव्यास्त्र के प्रयोग से मधुमक्खियों से मुक्ति पाना ), ७.३८.२३( असुर शकुनि द्वारा अर्जुन पर १०, गद पर २०, अनिरुद्ध पर ४० तथा साम्ब पर १०० बाणों द्वारा प्रहार, प्रद्युम्न द्वारा शकुनि के धनुष की प्रत्यञ्चा को १०, अश्वों को सहस्र, रथ को सौ विशिखों तथा सारथी को २० बाणों द्वारा नष्ट करना ), ७.३९.१३( शकुनि द्वारा प्रद्युम्न - सेना पर मयासुर से प्राप्त रौरवास्त्र का प्रयोग, प्रद्युम्न द्वारा गरुडास्त्र से शान्ति ), ७.३९.१९( प्रद्युम्न द्वारा शकुनि द्वारा प्रयुक्त पैशाची माया की सत्वास्त्र द्वारा, गुह्यकी माया की शूकरास्त्र द्वारा, गान्धर्वी माया की ज्ञानास्त्र द्वारा, राक्षसी माया की नृसिंहास्त्र द्वारा शान्ति का वर्णन ), ७.४१.३७( शकुनि के मृत शरीर के भूमि पर गिरने पर पुन: जीवित होने की विचित्रता के कारण दीप्तिमान्, साम्ब आदि यादव वीरों द्वारा उसके शिर को बाणों से आकाश में उछालने का वर्णन ), ७.४७.३४( शक्रसख द्वारा अर्जुन पर १०, साम्ब व अनिरुद्ध पर १००-१००, गद पर २०० व सारण पर १००० बाणों द्वारा प्रहार ), १०.१५.१२( नीलध्वज द्वारा साम्ब के धनुष को १०, चारों अश्वों को ४, रथध्वज को २, रथ को १०० और सारथि को १ बाण से नष्ट करना ), १०.२०.११( साम्ब द्वारा बक असुर पर ५ नाराचों द्वारा प्रहार ), १०.२४.२९( अनुशाल्व द्वारा साम्ब के ४ अश्वों को ४, ध्वज को २, सारथि को ३, धनुष को ५ तथा रथ को ३० बाणों से नष्ट करना; साम्ब द्वारा १०० बाणों से अनुशाल्व पर प्रहार, अनिरुद्ध द्वारा अनुशाल्व के मयासुर से प्राप्त ब्रह्मास्त्र को ब्रह्मास्त्र से शान्त करना, आग्नेयास्त्र को वारुणास्त्र तथा वायव्यास्त्र को पर्वतास्त्र से शान्त करना ), १०.२७.९( यादव वीरों द्वारा पाञ्चजन्य द्वीप पर पहुंचने के लिए समुद्र पर बाणों का सेतु बनाने के संदर्भ में केवल अनिरुद्ध, साम्ब और दीप्तिमान् के बाणों का समुद्र के पार तक पहुंचने का वर्णन ), १०.३१.३०( साम्ब द्वारा दिव्य बाण से असुर कुशाम्ब को रथ सहित सूर्यमण्डल में पंहुचा देने का वर्णन ), १०.३४.१९( बल्वल असुर द्वारा यादव - सेनानियों में से इन्द्रनील पर ३, हेमाङ्गद पर ६, अनुशाल्व पर १०, अक्रूर पर १०, गद पर १२, युयुधान पर ५, कृतवर्मा पर ५, उद्धव पर १० तथा प्रद्युम्न पर १०० बाणों द्वारा प्रहार ), १०.३४.३३( कुनन्दन असुर कुमार द्वारा साम्ब पर १०, मधु पर ५, बृहद्बाहु पर ३, चित्रभानु पर ५, वृक पर १०, अरुण पर ७, सङ्ग्रामजित् पर ५, सुमित्र पर ३, दीप्तिमान् पर ३, भानु पर ५, वेदबाहु पर ५, पुष्कर पर ७, श्रुतदेव पर ८, सुनन्दन पर २०, विरूप पर १०, चित्रभानु पर ९, न्यग्रोध पर १० तथा कवि पर ९ बाणों द्वारा प्रहार ), १०.३५.२८( बल्वल असुर द्वारा यादव सेना पर मयासुर की माया का प्रयोग, अनिरुद्ध द्वारा मोहनास्त्र से माया की शान्ति, बल्वल द्वारा प्रयुक्त गान्धर्वी माया के प्रभाव का वर्णन ), १०.३६.२३( कृष्ण - पुत्र सुनन्दन द्वारा कुनन्दन असुर कुमार पर १० बाणों द्वारा प्रहार, बाणों द्वारा असुर कुमार का रक्त पीकर भूमि पर गिरना, बाणों के भूमि पर गिरने की तुलना मिथ्या साक्षी देने वाले पुरुष के पितरों के गिरने से करना ), १०.३६.३८( सुनन्दन द्वारा कुनन्दन पर प्रयुक्त बाण के आधे अग्र भाग द्वारा ही कुनन्दन के सिर के कटने का वर्णन ), देवीभागवत ५.९.१४( महिषासुर वधार्थ देवों के तेज से उत्पन्न देवी को मारुत/वायु द्वारा बाणों से पूर्ण इषुधि भेंट करने का उल्लेख ), १२.७.१९( दीक्षा कर्म में शरमन्त्र? के उच्चारण का निर्देश ), पद्म ५.२३.६३( रामाश्वमेध प्रसंग में राजा सुबाहु के पुत्र विक्रान्त तथा शत्रुघ्न - सेनानी राजा प्रतापाग्र्य द्वारा एक दूसरे पर बाणों द्वारा प्रहार; विक्रान्त द्वारा छोडे गए बाणों की भक्ति से विमुख होने की संज्ञा ), ६.२०६.५( पुष्पेषु : काम्पिल्य नगरी में पुष्पेषु ब्रह्मचारी के रूप पर स्त्रियों की आसक्ति का वर्णन ), ब्रह्म १.१०३.२३( दस्युओं से कृष्ण के स्त्रीधन की रक्षा करने में अर्जुन के शरों का असफल होना ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२९.१४( शरकुण्ड :- यम की संयमिनी पुरी में स्थित ८६ कुण्डों में से एक ), ४.१.३५.४२( ब्रह्मा द्वारा स्वपुत्र काम को सम्मोहन, समुद्वेग आदि बाण प्रदान करना, कामदेव द्वारा ब्रह्मा पर बाणों की परीक्षा का वृत्तान्त ), भविष्य २.२.७.२७( बाण - विद्ध षष्ठी तिथि के त्याग का निर्देश ), ३.३.२४.९२( सुखखानि द्वारा हव्यदेव की आराधना द्वारा पावकीय शर की प्राप्ति तथा उसके द्वारा रक्तबीज के अवतारों के नाश का कथन ), ३.४.१२.४०( त्रिपुर नाश हेतु शिव के पिनाक धनुष में शेष का गुण बनना, शुक्र का बाण होना, वह्नि व वायु का शर के पक्ष बनना तथा विष्णु का शल्य बनना ), भागवत १.८.१०( अश्वत्थामा द्वारा अभिमन्यु - पत्नी उत्तरा के गर्भ पर छोडे गए तप्तायस शर के संदर्भ में उत्तरा द्वारा कृष्ण से गर्भ की रक्षा तथा शर से स्व - काम के दहन की प्रार्थना ), ४.११.३( ध्रुव व यक्षों के युद्ध के संदर्भ में ध्रुव द्वारा नारायण अस्त्र के प्रयोग से सुवर्ण पुंख व कलहंस वास वाले बाणों का निकलना ), ६.९.१३( वृत्रासुर का उत्पन्न होने के पश्चात् प्रतिदिन इषुमात्र वर्धन करने का उल्लेख ), ७.१०.६६( शिव द्वारा त्रिपुर दहन के संदर्भ में तप के धनुष व क्रिया के शर का उल्लेख ), ७.१५.४२( ओंकार रूपी धनुष पर जीव रूपी शर व परम के लक्ष्य का उल्लेख ), ८.११.२३( नमुचि द्वारा इन्द्र पर स्वर्ण पुंख वाले १५ महा इषुओं द्वारा प्रहार का उल्लेख ), १०.७६.१८( प्रद्युम्न द्वारा शाल्व को १००, शाल्व - सेनापति को २५, शाल्व - सैनिकों को १-१, सारथियों को १०-१० तथा वाहनों को ३-३ शरों से पीडित करने का उल्लेख ), ११.९.१३( दत्तात्रेय द्वारा मन को वश में करने के लिए इषुकार से प्राप्त शिक्षा का वर्णन ), ११.३०.३३( जरा व्याध द्वारा मुसल खण्ड से युक्त इषु द्वारा चतुर्भुज कृष्ण के पाद का वेधन करना ), मत्स्य १३३.४१( शिव द्वारा त्रिपुर दहन हेतु संवत्सर रूपी धनुष, उमा रूपी ज्या तथा विष्णु, सोम व अग्नि देवों से इषु की रचना; वासुकि नाग द्वारा इषु में विष का संचार ), १३६.५८, १३६.६५( विष्णु द्वारा शिव रथ को संभालने के लिए व त्रिपुर में अमृत वापी पान के लिए शर से बाहर निकलने और पुन: शर में प्रवेश करने का उल्लेख ), १४०.५३( शिव के इषु द्वारा त्रिपुर को अग्नि, सोम व नारायण रूप में तीन प्रकार से जलाने का उल्लेख ), १५०.१( तारकासुर सङ्ग्राम में यम व ग्रसन असुर के बीच शर युद्ध का सार्वत्रिक वर्णन ), १५३.१८७( तारकासुर द्वारा शक्र पर १००, नारायण पर ७०, अग्नि पर ९०, वायु पर १०, यम पर १०, कुबेर पर ७०, वरुण पर ८, निर्ऋति पर २० तथा ८, मातलि पर ३ तथा गरुड पर १० बाणों द्वारा प्रहार ), १८८.३( बाणासुर के त्रिपुर को नष्ट करने के लिए शिव द्वारा गाण्डीव धनुष में विष्णु को शर बनाकर शल्य में अग्नि तथा मुख में वायु की प्रतिष्ठा करना ), लिङ्ग १.७२.२३( त्रिपुर विनाश हेतु शिव द्वारा मेरु पर्वत से निर्मित धनुष पर संधान किए गए इषु का वर्णन : विष्णु इषु, सोम शल्य, कालाग्नि अनीक/मुख, वायुएं वाजक/पुच्छ ), विष्णु ४.१९.२( रौद्राश्व के ऋतेषु आदि इषु प्रत्यय वाले १० पुत्रों के नाम ), ५.३८.२३( कृष्ण के स्वर्गधाम गमन के पश्चात् कृष्ण - पत्नियों की म्लेच्छों से रक्षा करने में अर्जुन के अग्नि - प्रदत्त शरों का असफल होना ), विष्णुधर्मोत्तर १.२१३.९( विन्ध्याचल पर्वत द्वारा तप करके ब्रह्मा से प्रतिदिन इषुपात् के बराबर वर्धन करने का वर प्राप्त करना ), २.१६.२०( शरत्काल में शरों के संग्रह करने का निर्देश तथा उनको संस्कारित करने की विधि ), ३.३२८.५८( जल द्वारा पुरुष की शुद्धि की परीक्षा? के अन्तर्गत इषुमोक्षण तथा प्रतिग्रहण तक के समय तक पुरुष के जल में निमग्न रहने का कथन ), शिव २.५.२१.३( जलन्धर वध प्रसंग में निशुम्भ द्वारा कार्तिकेय के वाहन मयूर पर पांच बाणों द्वारा प्रहार, कार्तिकेय द्वारा पांच बाणों द्वारा निशुम्भ के सारथी पर प्रहार आदि ), ५.४६.२२( मारुत द्वारा महिषासुर वधार्थ उत्पन्न देवी को चाप तथा बाणों से पूर्ण इषुधि प्रदान करना ), ७.१.२१.३४( वीरभद्र द्वारा बाण से दक्ष के मृग रूप धारी यज्ञ का शिर काटना ), स्कन्द १.१.२१.५९( कामदेव द्वारा तपोरत शिव को मोहित करने के लिए पांच बाणों का सन्धान करना, मोहन नामक शर से विद्ध करना, दक्षिiण दिशा में स्थित काम का दग्ध होना आदि ), १.२.२१.७४( तारकासुर सङ्ग्राम में जम्भ असुर द्वारा शक्र के जत्रु, हृदय व स्कन्ध में क्रमश: १०, ३ व २ शरों द्वारा आघात करने का उल्लेख ), १.२.२१.१४८( इन्द्र द्वारा अघोर मन्त्र से अभिमन्त्रित बाण द्वारा जम्भ का वध करना ), ६.१८५.६६( अतिथि द्वारा इषुकार से चित्त निरोध की शिक्षा प्राप्त करने का वर्णन ), हरिवंश १.४१.१३२( रामचन्द्र द्वारा विराध व कबन्ध राक्षसों पर प्रयोग किए गए शरों के स्वरूप का कथन ), १.४४.३३( तारकासुर सङ्ग्राम में सर्पों के देवों के शर बनने का उल्लेख ), २.५९.५६( कृष्ण द्वारा रुक्मिणी हरण प्रसंग में कृष्ण व रुक्मी के महारथियों द्वारा एक दूसरे पर प्रयुक्त किए गए शरों की संख्याओं का कथन ), २.६०.८( रुक्मी व कृष्ण आदि द्वारा एक दूसरे पर प्रयुक्त शरों की संख्याओं का कथन ), २.९६.४६( प्रद्युम्न द्वारा वज्रनाभ असुर के सैनिकों पर प्रयुक्त शरों के स्वरूप का कथन ), २.१२७.९( अनिरुद्ध - बाणासुर - उषा प्रसंग में गरुड को देखकर अनिरुद्ध के शरीर में स्थित शर रूप महासर्पों का प्राकृत शरों में रूपान्तरित होने का कथन ), ३.३२.२३( दक्ष यज्ञ विध्वंस प्रसंग में शिव द्वारा क्रतु/यज्ञ को शर से विद्ध करना, क्रतु का आकाश में मृगशिरा नक्षत्र के रूप में स्थित होना, शर के कारण आघात से नि:सृत रुधिर का इन्द्रधनुष रूप में रूपान्तरण ), ३.५७.३४( देवासुर सङ्ग्राम में असिलोमा दानव व हरि नामक देवता द्वारा एक दूसरे पर प्रयुक्त शरों के स्वरूपों का कथन ), ३.९४.२९( पौण्ड्रक - सेनानी एकलव्य द्वारा यादव वीरों पर प्रयुक्त शरों की संख्याओं का कथन ), ३.९६.२५( सात्यकि द्वारा पौण्ड्रक वासुदेव पर १० तथा शलभाकार ७० बाणों द्वारा प्रहार करने का कथन ), ३.१३३.७६( त्रिपुर दहन हेतु शर द्वारा बाण को सत्य, ब्रह्मयोग तथा तप नामक तीन वीर्यों से सन्धान करने का कथन ), महाभारत आदि ६१.४८( खाण्डव वन के दाह से संतुष्ट अग्नि द्वारा अर्जुन को गाण्डीव धनुष व बाणों से पूर्ण इषुधि आदि प्रदान करने का उल्लेख ), १३०.३१( पाण्डव कुमारों की कूप में पतित मुद्रिका को द्रोण द्वारा शर की सहायता से बाहर निकालने का वर्णन - वेत्स्यामीषिकया वीटां तामिषीकां तथाऽन्यया।। तामन्यया समायोगे वीटाया ग्रहणं मम। ), १३१.४०( एकलव्य द्वारा ७ बाणों से श्वान के मुख को भरना तथा द्रोणाचार्य को अङ्गुष्ठ दक्षिणा में देना आदि ), १३२.४( लक्ष्य भेदन प्रतियोगिता में अर्जुन का गृध्र के भेदन में सफल होना; बाणों द्वारा जल में द्रोणाचार्य को ग्राह के बन्धन से मुक्त करने पर ब्रह्मशिर अस्त्र प्राप्त करना ), १८४.१०, १८७.२०( द्रौपदी के स्वयंवर में अर्जुन द्वारा लक्ष्य वेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना ), २२६.१३( खाण्डव वन दाह के समय इन्द्र द्वारा अर्जुन पर ऐन्द्रास्त्र के प्रयोग से जल धारा आदि की सृष्टि करना, अर्जुन द्वारा वायव्यास्त्र की सहायता से ऐन्द्रास्त्र का निवारण; अर्जुन द्वारा बाणों से समस्त देवताओं के आयुधों का निवारण ), सभा ८०.१६( द्यूत क्रीडा के पश्चात् व गमन के समय अर्जुन द्वारा मार्ग में सिकता/बालू के वपन का रहस्यार्थ शत्रुओं पर शर वर्षा करना होने का उल्लेख ), वन ३९.३६( वराह रूप धारी मूक दानव वध प्रसंग में किरात रूप धारी शिव द्वारा अर्जुन के समस्त शरों को आत्मसात् करना ), ४०.१५( अर्जुन को शिव से पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति ), ४१.२५( अर्जुन द्वारा यम से दण्डास्त्र, वरुण से वरुण पाश तथा कुबेर से अन्तर्धान अस्त्र प्राप्त करना ), ४४.४( अर्जुन द्वारा इन्द्र से वज्रास्त्र व अशनि अस्त्रों की प्राप्ति ), विराट ५४.२०( कौरवों द्वारा अपहृत राजा विराट की गायों की रक्षा के संदर्भ में कर्ण द्वारा अर्जुन पर १२ बाणों से प्रहार आदि ), ५५.३६( अर्जुन द्वारा द्रोण पर ७३/त्रिसप्तति, दुःसह पर १०, अश्वत्थामा पर ८, दु:शासन पर १२, कृपाचार्य पर ३, भीष्म पर ६० तथा दुर्योधन पर १०० बाणों आदि से प्रहार ), ६१.२६( अर्जुन द्वारा दृढ मुष्टि का ज्ञान इन्द्र से तथा कृतहस्तता का ज्ञान ब्रह्मा से प्राप्त करने का उल्लेख ), ६६.८( अर्जुन द्वारा कौरव सेना के विरुद्ध सम्मोहन अस्त्र का प्रयोग ), उद्योग ३३.४३टिप्पणी ( विदुर - धृतराष्ट्र संवाद के अन्तर्गत विदुर द्वारा १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १० संख्याओं का रहस्यार्थ प्रकट करना ), ९६.४२टिप्पणी ( काम, क्रोध आदि ८ दोषों के निवारणार्थ काकुदीक प्रस्वापन, शुक/मोहन , नाक/उन्मादन आदि अर्जुन के ८ अस्त्रों का उल्लेख ), १४१.३८( रण रूपी यज्ञ में कर्णि, नालीक, नाराच तथा वत्सदन्त आदि बाणों के प्रकारों की उपबर्हण से तुलना; अर्जुन, द्रोणाचार्य आदि द्वारा छोडे गए इषुओं की परिस्तोमों से तुलना ), १८०.११( अम्बा कन्या के कारण हुए भीष्ण - परशुराम युद्ध में भीष्म द्वारा प्रयुक्त वायव्यास्त्र को परशुराम द्वारा गुह्यकास्त्र द्वारा तथा आग्नेय अस्त्र को वारुणास्त्र द्वारा शान्त करने का उल्लेख ), १८३.१२( भीष्म द्वारा परशुराम पर प्रहार के लिए अष्ट वसुओं से प्रस्वाप व सम्बोधनास्त्र प्राप्त करना ), भीष्म ११८.५०( शिखण्डी के स्त्रीत्व के कारण भीष्म द्वारा उस पर बाणों से प्रहार न करना ), ११९.६१( शिखण्डी को ओट में अर्जुन द्वारा भीष्म पर प्रहार करने पर भीष्म द्वारा पुन: पुन: उन बाणों के शिखण्डी के बाण न होना कहना ), १२०.४५( शर शय्या पर पडे भीष्म के लिए अर्जुन द्वारा तीन शरों से उपधान/तकिये का निर्माण करना ), १२१.२३( शर शय्या पर पडे भीष्म द्वारा जल मांगने पर अर्जुन द्वारा पर्जन्यास्त्र से प्राप्त दिव्य जल से भीष्म को तृप्त करना ), द्रोण २९.४५( अर्जुन द्वारा बाण मारकर राजा भगदत्त द्वारा नेत्रों को खुला रखने के लिए बांधी गई पट्टी को छिन्न करना, राजा भगदत्त के नेत्र रुद्ध होना व अर्जुन द्वारा अर्धचन्द्र बाण से भगदत्त का वध ), ४३.७( अभिमन्यु द्वारा व्यूह भङ्ग प्रसंग में जयद्रथ द्वारा पाण्डव वीरों पर चलाए गए बाणों की संख्याएं : सात्यकि - ३, भीम - ८, धृष्टद्युम्न - ६०, विराट - १० आदि आदि ), ९७.२९( द्रोणाचार्य द्वारा द्रुपद - पुत्र धृष्टद्युम्न के आयुधों आदि को नष्ट करने के लिए प्रयुक्त बाणों की संख्याएं : १०० से शतचन्द्र ढाल?, १० से खड्ग, ६४ से हय आदि ), १४६.५( जयद्रथ वध प्रसंग में अर्जुन द्वारा कौरव सेना पर ऐन्द्रास्त्र के प्रयोग से हजारों अग्निमुख बाण निकलना ), १४६.१०१( जयद्रथ वध के लिए अर्जुन द्वारा शर को इन्द्र के वज्रास्त्र से अभिमन्त्रित करना, बाण द्वारा जयद्रथ के कटे सिर को ढोने का वर्णन ), १८९.११टिप्पणी( धृष्टद्युम्न - द्रोण युद्ध में कर्णी, नालीक, लिप्त, बस्तिक, सूची आदि इषुओं का प्रयोग निषिद्ध होना ), कर्ण २०.२२टिप्पणी ( बाणों की १० गतियों और उनके द्वारा शरीर के विभिन्न अङ्गो पर आघात का वर्णन ), ३४.४९( त्रिपुर दाह प्रसंग में शिव के संवत्सर रूपी धनुष के लिए विष्णु, अग्नि व सोम का इषु बनना ), ८९.१७( कर्ण द्वारा अर्जुन के आग्नेयास्त्र की वारुणास्त्र द्वारा शान्ति, वारुणास्त्र की वायव्यास्त्र से शान्ति, अर्जुन द्वारा प्रयुक्त इन्द्र के वज्रास्त्र को कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से शान्त करना ), ८९.८९( कर्ण द्वारा सारथि कृष्ण पर पांच सर्पों रूपी पांच बाण मारना, अर्जुन द्वारा भल्लों से उन्हें त्रेधा विभक्त करना आदि ), ९०.२०( कर्ण द्वारा अश्वसेन सर्प को शर बनाकर अर्जुन पर छोडना, कृष्ण की युक्ति के कारण अर्जुन के केवल किरीट भङ्ग होने का वर्णन, अश्वसेन द्वारा पुन: कर्ण का बाण बनने में असफलता तथा स्वयं ही अर्जुन पर आक्रमण करना, अर्जुन द्वारा बाण से उसे नष्ट करना ), ९०.८२( कर्ण की मृत्यु के समय भार्गवास्त्र का शाप के कारण विस्मृत होना ), ९०.१०४( अर्जुन द्वारा कर्ण के वध के लिए रौद्रास्त्र का प्रयोग तथा कर्ण के रथ चक्र का पृथिवी में धंसना ), ९१.४०( अर्जुन द्वारा कर्ण वध के लिए प्रयुक्त अञ्जलिक नामक बाण के स्वरूप का वर्णन ), शल्य ११.३२( पाण्डवों द्वारा राजा शल्य पर प्रयुक्त बाणों की संख्या : भीम द्वारा ७, सहदेव द्वारा ५, नकुल द्वारा १० आदि ), सौप्तिक १३.१९+ ( अश्वत्थामा द्वारा पाण्डवों के वध के लिए इषीकास्त्र का तथा अर्जुन द्वारा प्रतिकारार्थ ब्रह्मास्त्र का प्रयोग, वेदव्यास के निर्देश पर अर्जुन द्वारा ब्रह्मास्त्र को लौटाने में सफल होना व अश्वत्थामा का असफल होना, ब्रह्मास्त्र के लौटाने के लिए ब्रह्मचर्य की आवश्यकता का उल्लेख ), १५.७(ब्रह्मतेजोद्भवं तद्धि विसृष्टमकृतात्मना। न शक्यमावर्तयितुं ब्रह्मचर्यव्रतादृते।।), शान्ति २९५.३२( रसना, दर्शन, घ्राण आदि इन्द्रियों से इषुप्रपात मात्र रति सुख मिलने का उल्लेख ), अनुशासन १४.२५८( शिव के पिनाक धनुष के लिए पाशुपत शर के स्वरूप का वर्णन : सपादकार, एकपाद, सहस्रशिर, भुजाएं, जिह्वाएं, नेत्र आदि; त्रिपुर दाह के लिए शिव द्वारा पाशुपत अस्त्र का प्रयोग इत्यादि ), योगवासिष्ठ ३.४८.२८+ ( राजा सिन्धु व राजा विदूरथ द्वारा एक दूसरे पर प्रयुक्त नागास्त्र - सुपर्णास्त्र, तमोस्त्र - सूर्यास्त्र, राक्षसास्त्र - नारायणास्त्र, आग्नेयास्त्र - वारुणास्त्र, शोषणास्त्र - पर्जन्यास्त्र, वायव्यास्त्र - पर्वतास्त्र, वज्रास्त्र - ब्रह्मास्त्र, पिशाचास्त्र - पूतनास्त्र, वेतालास्त्र - राक्षसास्त्र, वैष्णावस्त्र - वैष्णवास्त्र द्वारा सृष्ट उपद्रवों व शान्तियों का वर्णन ), वा.रामायण १.३०.२०( विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के प्रसंग में राम द्वारा मारीच राक्षस पर मानवास्त्र/शीतेषु का प्रयोग करके उसे लङ्का में फेंकने का उल्लेख ), १.७६.८( मिथिला में धनुष भङ्ग व सीता से विवाह के पश्चात् राम द्वारा वैष्णव धनुष पर शर का सन्धान करके परशुराम के तप से अर्जित तेज व वीर्य का नाश करना ), ३.२७.१३( राम द्वारा त्रिशिरा राक्षस पर १४ शरों द्वारा प्रहार का उल्लेख ), ३.२८.३१( राम द्वारा खर राक्षस पर १३ शरों द्वारा प्रहार करके उसके रथ आदि को नष्ट करना ), ३.३०.२५( राम द्वारा इन्द्र - प्रदत्त शर द्वारा खर के वध का उल्लेख ), ४.१२.३( बाली वध से पूर्व राम द्वारा एक बाण से ७ साल वृक्षों व ७ भूमियों का भेदन ), ५.४७.१४( अक्षकुमार द्वारा हनुमान के सिर में तीन बाणों द्वारा प्रहार ), ५.४८.३४( अशोकवाटिका में इन्द्रजित् के शरों के व्यर्थ होने पर इन्द्रजित् द्वारा ब्रह्मास्त्र से हनुमान को बांधना ), ६.२२.३६( राम द्वारा समुद्र पर प्रयुक्त ब्रह्मास्त्र से अभिमन्त्रित बाण का द्रुमकुल्य देश में गिर कर पृथिवी पर मरुभूमि की सृष्टि करना ), ६.४५.१२( इन्द्रजित् द्वारा राम व लक्ष्मण को कङ्क पत्र युक्त इषु जाल में बद्ध करना ), ६.४५.२३( इन्द्रजित् द्वारा राम का बन्धन करने के पश्चात् उन्हें नाराच, भल्ल, अञ्जलिक, वत्सदन्त आदि बाणों से विद्ध करना ), ६.४६.१८( इन्द्रजित् द्वारा नील पर ९, मैन्द व द्विविद पर ३-३, जाम्बवान् पर १, हनुमान पर १० तथा गवाक्ष व शरभ पर २-२ बाणों द्वारा प्रहार का उल्लेख ), ६.५०.३७( सुपर्ण गरुड के आगमन पर शर रूपी नागों द्वारा राम व लक्ष्मण का बन्धन त्याग कर पलायन, शर रूपी नागों का कद्रू- पुत्र होने का उल्लेख ), १०.६७.१५५( राम द्वारा वायव्य अस्त्र से कुम्भकर्ण की दक्षिण बाहु, ऐन्द्रास्त्र से अभिमन्त्रित बाण से सव्य बाहु, अर्धचन्द्र बाणों से पादों तथा इन्द्रास्त्र से अभिमन्त्रित बाण द्वारा सिर काटना ), ६.७१.९१( अतिकाय व लक्ष्मण द्वारा एक दूसरे पर ऐषीकास्त्र, ऐन्द्रास्त्र, याम्यास्त्र, वायव्यास्त्र से अभिमन्त्रित बाण छोडना, लक्ष्मण द्वारा ब्रह्मास्त्र से अतिकाय का वध ), ६.७३.४६( इन्द्रजित् द्वारा गन्धमादन पर १८, नल पर ९, मैन्द पर ७, गज पर ५, जाम्बवान् पर १०, नील पर ३० बाणों द्वारा प्रहार ), ६.७६.६( रावण - सेनानी शोणिताक्ष द्वारा अङ्गद पर क्षुर, क्षुरप्र, नाराच, वत्सदन्त आदि शरों द्वारा प्रहार ), ६.७९.३८( राम द्वारा पावकास्त्र से अभिमन्त्रित शर से मकराक्ष का वध ), ६.९०.४६( इन्द्रजित् व लक्ष्मण द्वारा एक दूसरे पर याम्यास्त्र व कुबेरास्त्र, रौद्रास्त्र व वारुणास्त्र, आग्नेयास्त्र व सौर्यास्त्र, आसुरास्त्र व माहेश्वरास्त्र से अभिमन्त्रित बाणों का प्रयोग, लक्ष्मण द्वारा ऐन्द्रास्त्र से इन्द्रजित् का वध, ऐन्द्रास्त्र की प्रशंसा ), ६.९९.४१( रावण द्वारा राम पर आसुरास्त्र के प्रयोग से सिंह, व्याघ्र, कङ्क, कोक आदि आदि मुखों वाले शरों का प्रकट होना, राम के आग्नेयास्त्र से आसुरास्त्र की शान्ति ), ६.१०२.२०( रावण द्वारा राम पर प्रयुक्त राक्षसास्त्र से सर्प रूप धारी शरों की सृष्टि, गरुडास्त्र से राक्षसास्त्र की शान्ति ), ६.१०२.६२( रावण के शील द्वारा राम के बाणों को व्यर्थ करना ), ६.१०८.६( राम द्वारा रावण वध हेतु प्रयुक्त ब्रह्मास्त्र से निर्मित शर के स्वरूप का वर्णन : आकाशमय शरीर, फल में अग्नि व सूर्य की स्थिति आदि आदि ), ७.६९.१८( शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर के वध के लिए प्रयुक्त विष्णु - निर्मित शर के स्वरूप का वर्णन व प्रशंसा ), द्र. इष, इषीका, धनुष, बाण, शर, पुष्पेषु Ishu
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इष्टका अग्नि ४१.१६( गृह प्रतिष्ठा में नीव में इष्टका स्थापना मन्त्र ), ६५.२२( वही), ६६.२९( इष्टका का संक्षिप्त माहात्म्य : सेतुकारी ), वराह १५५.६३( अग्निदत्त ब्राह्मण का इष्टका हरण से ब्रह्मराक्षस बनना, सुधन द्वारा पुण्य दान से मुक्ति ), विष्णुधर्मोत्तर ३.९१( पक्व इष्टका निर्माण विधि ) Ishtakaa
इष्टलव लक्ष्मीनारायण २.१६६.३२( गङ्गा व कृष्ण के २० पुत्रों में से एक ), २.१६७.२६( जिनवर्द्धि नृप का इष्टलव ऋषि के साथ यज्ञ में आगमन ), २.१८१.८८( इष्टलव ऋषि का जिनवर्द्धि राजा द्वारा शासित इष्टालि राष्ट्र में वास, श्रीहरि का आगमन व स्वागत )
इष्टापूर्त अग्नि २०९(विभिन्न दानों का इष्ट व पूर्त में वर्गीकरण), २५५.५०( संशय की स्थिति में इष्टापूर्त की शपथ का विधान ), नारद १४.६४( इष्ट से स्वर्ग और पूर्त से मोक्ष प्राप्त होने का उल्लेख ; वित्तक्षेप इष्ट तथा तडाग आदि पूर्त होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१७५( इष्टापूर्त व्रत के लोप से संदंश नामक नरक प्राप्त होने का उल्लेख ), भविष्य १.१३०.९( सलिल आगमन के स्थान पर देव आयतन निर्माण से इष्टापूर्त फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ४.१२७( जलाशय आदि निर्माण का माहात्म्य ), भागवत ३.२४.३२( दिव्य पूर्त के रूप में ऐश्वर्य, वैराग्य, यश आदि का उल्लेख ), ४.१३३.३२( इष्टापूर्त रूपी स्तम्भ - द्वय का उल्लेख ), ७.१५.४९( अग्निहोत्र, दर्शपूर्णमास आदि की इष्ट तथा देवालय, आराम, कूप आदि निर्माण की पूर्त संज्ञा होने का वर्णन ), १०.६४.१५( राजा नृग द्वारा यज्ञों द्वारा इष्ट व पूर्त करने का उल्लेख ), ११.११.४७( इष्टापूर्त द्वारा कृष्ण का यजन करने पर कृष्ण की भक्ति प्राप्त करने का उल्लेख ), मार्कण्डेय १८.८/१६.१२५( अग्निहोत्र, तप, सत्य आदि की इष्ट व वापी, कूप, तडाग आदि की पूर्त संज्ञा का कथन ), ३४.६२/३१.६३( पर दारा सेवन से इष्टापूर्त आदि के नष्ट होने का उल्लेख ), वराह १७२.३६( इष्ट से स्वर्ग व पूर्त से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख ; वापी, कूप, तडाग आदि के उद्धार से पूर्त फल की प्राप्ति का वर्णन ), वामन ९२.२१( वामन - बलि प्रसंग में विराट विष्णु के जठर में इष्टापूर्त आदि की स्थिति का उल्लेख ), वायु २०.१८( ओंकार की मात्राओं से इष्टापूर्त आदि के फल की प्राप्ति ), स्कन्द २.७.२.८( माधव/वैशाख मास में जल, छत्र, पादुका आदि दान न करने से इष्टापूर्त व्यर्थ होने का वर्णन ), ३.३.६.६(वेद रूपी गौ के इष्टापूर्त विषाण होने का उल्लेख), ४.२.५९.३८( ऊर्ज/कार्तिक मास में धर्म नदी में स्नान के फल का जन्म भर इष्टापूर्त करने के फल से अधिक होने का उल्लेख ), ४.२.७३.५७( काशी में १४ महालिङ्गों के दर्शन से इष्टापूर्त के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), महाभारत सभा ६८.८०( धर्म विषयक असत्य बोलने से इष्टापूर्त के नष्ट होने का उल्लेख ), वन ३२.३०( पुरुषार्थ के अस्तित्व के कारण ही इष्टापूर्त के फल की प्राप्ति होने का उल्लेख ), शान्ति २६३.९( असाधु पुरुषों के इष्टापूर्त से प्रजा के विगुण होने का उल्लेख ), महाप्रस्थान ३.१०( स्वर्ग में श्वान के सहित जाने पर क्रोधवश राक्षसों द्वारा इष्टापूर्त हरण का उल्लेख ) Ishtaapoorta/ ishtapurta
इष्टि अग्नि १६१.२( संन्यास ग्रहण से पूर्व अपेक्षित प्राजापत्य इष्टि ), भविष्य ३.४.१९.२( इष्टिका नगरी में गुरुदत्त - पुत्र रोपण का वास ), ४.१७३( अग्नीष्टिका/अंगीठी दान विधि ), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३४( पशु इष्टि का अङ्गुलियों में न्यास ), २.२४५.३५( सोम याग में उपसद इष्टि विधि ), तैत्तिरीय ब्राह्मण ३.१२.२टीका(यूपसहित यज्ञ क्रतु, यूपरहित इष्टि ) द्र. यज्ञ, होम Ishti
ई अग्नि १२४.१२( ई बीज के क्रूरा शक्ति होने का उल्लेख - क्रूरा शक्तिरीबीजः स्याद्धरबीजोऽग्निरूपवान् । ), ३४८.२ ( रति व लक्ष्मी के अर्थ में ई का प्रयोग ), वायु २६.३५ ( रक्तवर्णीय ईकार से क्षत्र कुल के प्रवर्तन का उल्लेख - ईकारः स मनुर्ज्ञेयो रक्तवर्णः प्रतापवान्। ततः क्षत्रं प्रवर्त्तन्त तस्माद्रक्तस्तु क्षत्रियः ।। )
ईक्षा भागवत ११.१८.४२ ( तप व ईक्षा वानप्रस्थ के धर्म होने का उल्लेख ) , ११.२२.१७ ( अव्यक्त पुरुष द्वारा कार्य - कारण रूपिणी प्रकृति के ईक्षण का कथन - सर्गादौ प्रकृतिर्ह्यस्य कार्यकारणरूपिणी। सत्त्वादिभिर्गुणैर्धत्ते पुरुषोऽव्यक्त ईक्षते ), ११.२२.१८( पुरुष के ईक्षण से धातुओं द्वारा वीर्य प्राप्त करके ब्रह्माण्ड की सृष्टि करने का कथन - व्यक्तादयो विकुर्वाणा धातवः पुरुषेक्षया। लब्धवीर्याः सृजन्त्यण्डं संहताः प्रकृतेर्बलात्), द्र. अन्तरिक्ष Eekshaa
ईति वराह २१५.७२ ( वाग्मती में स्नान से ईतियों / उपद्रवों की शान्ति ) , स्कन्द ५.२.४६.१० टीका (अतिवृष्टि आदि ६ ईतियों के नाम ), हरिवंश २.६९.६८( कर्म से उत्पन्न होने वाली ईतियों का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.७७.५४( आयस पुत्तली दान से ६ ईतियों से निवृत्ति का उल्लेख, ६ ईतियों के नाम ) Eeti
ईर्ष्या लक्ष्मीनारायण १.५४३.७२( दक्ष द्वारा कश्यप को प्रदत्त १३ कन्याओं में से एक )
ईश अग्नि १७८.५ ( चैत्र शुक्ल तृतीया को गौरी - शंकर अंगन्यास में ईशा का देवी की कटि में न्यास ), २१६.१४( ईशावास्यमिदं सर्वं का उल्लेख - ईशावास्यमिदं सर्वं महदादिजगद्धरिः ॥ ) , गरुड १.१५.६८ ( ईशात्मा : विष्णु के सहस्रनामों में से एक ), १.४६.४ ( वास्तुमण्डल के ८१ पदों में से एक पद के देवता का नाम ), नारद १.५६.१२२ ( १२ युगों के ईशों के विष्णु आदि नाम - तेषामीशाः क्रमाज्ज्ञेया विष्णुर्देवपुरोहितः ॥) , १.६३.३५ ( आठ विद्येश्वर गणों का ईश तत्त्व के आधीन होने का उल्लेख - विद्येशाः पुनरैशं तु मंत्रा विद्याभिधं पुनः ।। ), ब्रह्म २.२.३२ ( गौरी / पार्वती के ईशा नाम का उल्लेख - न विद्धस्त्रिनेत्रोऽपि ईशायां बुद्धिमादधेत्। परिणेष्यत्यसौ नूनं तदा तां गिरिजां हरः।। ), २.३६.३८( ईशायुधधरा देवी द्वारा राहु की शिर रहित देह के भक्षण का वर्णन - ईशायुधधरा देवी ईशशक्तिसमन्विता।। महीगतं यत्र देहं तत्रागाद्भक्ष्यकाङ्क्षिणी।। ) ,भविष्य २.२.१९.१७७ ( ईश इत्यादि सूक्त की कूष्माण्ड संज्ञा आदि - ईशावेत्यादि स्वांगं च कौष्मांडं दशमं स्मृतम् । ), २.२.२०.५२ ( देवों के वाद्यों आदि के नामों में ईश के नन्दिघोष वाद्य तथा कामद राग का उल्लेख - ईशस्य नंदिघोषाख्यं वाद्यं रागोथ कामदः ।। ) , ३.३.६.२५ ( संयोगिता हरण प्रसंग में जयचन्द्र व पृथिवीराज की सेनाओं का ईश नदी के तटों पर डेरा डालने का उल्लेख - ईशनद्याः परे कूले तद्दोला स्थपिता तदा ।।), ४.१४३.२२ ( महाशान्ति प्रयोग वर्णन के अन्तर्गत चतुर्थ कुम्भ का ईशावास्यादि द्वारा अभिमन्त्रण का उल्लेख - ईशावास्यं चतुर्थस्य कुम्भस्य चाभिमंत्रणम् ।। ) , भागवत १.१२.१ ( ईश / कृष्ण द्वारा उत्तरा के मृत गर्भ को पुनर्जीवित करने का उल्लेख - उत्तराया हतो गर्भ ईशेनाजीवितः पुनः ॥ ) , ६.१२.१० ( दारुमयी नारी व यन्त्रमय मृग के समान सब भूतों के ईशतन्त्र होने का उल्लेख - यथा दारुमयी नारी यथा यंत्रमयो मृगः । एवं भूतानि मघवन्नीशतन्त्राणि विद्धि भोः ॥ ) , १०.६.२२ ( ईश से वक्ष:स्थल की रक्षा की प्रार्थना - हृत्केशवस्त्वदुर ईश इनस्तु कण्ठं विष्णुर्भुजं मुखमुरुक्रम ईश्वरः कम् ॥) , १०.७४.३१( शिशुपाल द्वारा श्रीकृष्ण के बदले काल को ईश कहना - ईशो दुरत्ययः काल इति सत्यवती श्रुतिः । ) , ११.१५.१५ ( ईशित्व प्राप्ति का उपाय कथन : विष्णु के कालविग्रह में चित्त की धारणा - विष्णौ त्र्यधीश्वरे चित्तं धारयेत्कालविग्रहे। स ईशित्वमवाप्नोति क्षेत्रज्ञक्षेत्रचोदनाम् ) , ११.१९.४४ ( गुणों में असक्त धी की ईश संज्ञा का उल्लेख - गुणेष्वसक्तधीरीशो गुणसङ्गो विपर्ययः । ) , मत्स्य ६०.२० ( शिव व पार्वती के नामों के अंगन्यास के संदर्भ में ईशा का कटि में न्यास - ईशायै च कटिं देव्याः शङ्करायेति शङ्करम्।) , लिङ्ग २.४५.५० ( ईश नामक शिव से रज: तथा द्रव्य में तृष्णा की रक्षा करने की प्रार्थना ; ईश के साथ तपोलोक का उल्लेख - ईश रजो मे गोपाय द्रव्ये तृष्णामीशस्य पत्न्यै तपः स्वाहा॥) , वायु १३.१५ ( अणिमा आदि सिद्धियों के लक्षण वर्णन के अन्तर्गत ईशित्व व वशित्व के लक्षण : सब भूतों के सुखदुःख का प्रवर्तक होना - ईशो भवति सर्वत्र प्रविभागेन योगवित्। वश्यानि चैव भूतानि त्रैलोक्ये सचराचरे। ) , १०४.९६ ( धी/ बुद्धि तथा कर्मों को ईश को अर्पित करके चित्तशुद्धि आदि करने का निर्देश - ईशार्पितधियां पुंसां कृतस्यापि च कर्मणः। चित्तशुद्धिस्ततो ज्ञानं मोक्षश्च तदनन्तरम् ।। ) , विष्णु ५.२०.३७ ( कुवलयपीड हस्ती वध प्रसंग में बालकृष्ण के लिए ईश विशेषण का प्रयोग - ईशोपि सर्वजगतां बाललीलानुसारतः। क्रीडित्वा सुचिरं कृष्णः करिदंतपदांतरे।। ) , शिव १.९.३० ( ब्रह्मत्व के निष्कल तथा ईशत्व के सकल होने का वर्णन - ब्रह्मत्वं निष्कलं प्रोक्तमीशत्वं सकलं तथा। ) , १.२४.११५ ( त्रिपुण्ड्र धारण के अन्तर्गत त्रिपुण्ड्र पार्श्व के धारण के लिए ईशाभ्यां नम: मन्त्र का प्रयोग - ईशाभ्यां नम इत्युक्त्वापार्श्वयोश्च त्रिपुण्ड्रकम् । ) , ६.१५.४ ( ईश्वर के ईश, विश्वेश्वर , परमेश्वर व सर्वेश्वर नामक चार रूपों का कथन - ईशो विश्वेश्वरः पश्चात्परमेशस्ततः परम् । सर्वेश्वर इतीदन्तु तिरोधाचक्रमुत्तमम् ।। ), ७.१.१२.४२ ( भव , शर्व आदि रुद्रों के विशिष्ट गुणों के कथन के संदर्भ में ईश के साथ वसु विशेषण का प्रयोग तथा ईश के स्पर्शमयात्मक होने का उल्लेख - ईशाय वसवे तुभ्यं नमस्स्पर्शमयात्मने ॥ ) , स्कन्द १.३.१.२.३९ ( अरुणाचल का आश्रय लेने से ईशित्व व वशित्व प्राप्ति का उल्लेख - ईशत्वं च वशित्वं च सौभाग्यं कालवंचनम् । त्वामाश्रित्य नरास्सर्वे लभंतामरुणाचल ।। ) , २.२.३१.२२ ( नृसिंह की आराधना से ईशित्व , वशित्व आदि प्राप्त होने का कथन - ईशित्वं च वशित्वं च सार्वभौमत्वमेव वा । यद्यत्कामयते चित्ते तत्तदाप्नोत्यसंशयम् ।।) , लक्ष्मीनारायण २.२५२.४८ ( १० प्रकार की ईश सृष्टियों का कथन ) , २.२५५.३९ ( मन की ईशता के ६ भावों- चाञ्चल्य आदि का कथन - ईशतेति मनश्चापि षड्भावं तान् वदामि ते । चाञ्चल्यं वेगवत्त्वं च संशयश्च स्वतन्त्रता ।। स्निग्धत्वं चाप्यविश्वास्यं मानसे ते मताः सदा ।) , २.२५५.६७ ( रश्मियों के क्रम में ईश रश्मि आदि का उल्लेख - सत्यरश्मिं ततश्चापि सत्त्वरश्मिं ततः परम् ।। ईशरश्मिं ततश्चापि ब्रह्मरश्मिं ततः परम् । ) Eesha
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ईशान गरुड १.२१.६ (शान्त्यतीत कला का नाम ) , देवीभागवत ९.१.१०३ ( सम्पत्ति - पति ) , नारद १.९१.६३ ( ईशान शिव की ५ कलाओं का कथन ) , ब्रह्म २.६९.११( कवष - पुत्र पैलूष द्वारा ज्ञान प्राप्ति के लिए ईशान की आराधना ) , ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१०७ ( ईशान - पत्नी सम्पत्ति का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.१०.४३ ( ईशान रुद्र : शरीरस्थ वायु / प्राण का रूप ) , ३.४.४४.८४ ( ईशानी : स्वरों की १६ शक्तियों में से चतुर्थ ), भागवत ५.२०.२६ ( शाक द्वीप का एक पर्वत ) ,१०.२.१२ ( ईशानी : देवकी के गर्भ का कर्षण करने वाली योगमाया का एक नाम ) , मत्स्य २६१.२३ ( ईश की प्रतिमा का रूप कथन ) , २९०.५ ( दशम कल्प का नाम ) , लिङ्ग १.१६.६ ( ईशान माहात्म्य ) , २.१३.९ ( शर्व , भव आदि शिव की ८ मूर्तियों में ईशान के पवनात्मक होने का उल्लेख ; शिवा - पति व मनोजव - पिता ), २.१४.११( शिव , श्रोत्रेन्द्रिय रूप ) , २.१४.१६ ( वागिन्द्रियात्मक ), २.१४.२१ (आकाशजनक, शब्दतन्मात्रात्मक ), वायु २७.५२ ( ईशान शिव की शिवा पत्नी व मनोजव पुत्र का उल्लेख ), विष्णु धर्मोत्तर ३.५५ ( ईशान मूर्ति रूप कथन ) , शिव २.४.८.३६? ( तारकासुर संग्राम में ईशान के शम्भु असुर से युद्ध का उल्लेख ) , ३.१.३१( विश्वरूप कल्प में शिव का ईशान नामक अवतार व महिमा ; ईशान द्वरा जटी , मुण्डी , शिखण्डी व अर्धमुण्ड नामक ४ बालकों का सृजन ) , ३.२.४ ( भव , शर्व आदि शिव की ८ मूर्तियों में से ईशान के अर्क /सूर्य तथा महादेव के चन्द्रमा से सम्बद्ध होने का उल्लेख ) , ४.४२.२३ ( ईशान: सर्वविद्यानां के सनातनी श्रुति होने का उल्लेख ) , ६.३.२९ ( ईशान शिव की ५ कलाओं की ओंकार के नाद में स्थिति ) , ६.६.७० ( शिर , मुख , हृदय आदि में ईशान की ५ कलाओं का न्यास ) , ६.१२.१७( ईशान : शिव का मुकुट रूप ) , ६.१४.४० ( ईशान शिव में श्रोत्र , वाक् , शब्द व आकाश की स्थिति ) , ६.१६.५९ ( ईशान शिव से शान्त्यतीत कला की उत्पत्ति ) , ७.२.३.६ ( ईशान शिव की मूर्ति की महिमा : प्रकृति के भोक्ता , ईशान शिव में श्रोत्र , वाक् , शब्द आदि की स्थिति ) , ७.२.२२.३२( ईशान की ५ कलाओं का शिव के पांच वक्त्रों में न्यास का कथन ) , स्कन्द १.२.१२.३८ ( लोमश का पूर्व जन्म का नाम ; ईशान शिव की अर्चना से लोमश को दीर्घायु की प्राप्ति ) , ३.३.१२.१३ ( ईशान से ऊर्ध्व दिशा में रक्षा की प्रार्थना, स्वरूप ), ४.१.१४.१( ईशानपुरी के निवासी एकादश रुद्रों द्वारा काशी में ईशानेश्वर लिङ्ग की आराधना , ईशानेश्वर लिङ्ग महिमा ), ४.१.३३.१० ( ईशान शिव द्वारा परमेष्ठी लिङ्ग का अभिषेक, तीर्थ का ज्ञानवापी नाम होना ) , ५.१.२६.१३ ( पञ्चेशानी यात्रा विधि व माहात्म्य ) , ५.२.१६ ( तुहुण्ड दैत्य द्वारा विजित देवों द्वारा ईशानेश्वर लिङ्ग की स्थापना ) , ५.३.१५५.११६ ( ज्ञान प्राप्ति की कामना पूर्ति के लिए ईशान की आराधना ) , ६.१३१.२२( दुष्ट भार्या अथवा पति के सौम्यत्व हेतु ईशान-ईशानी की पूजा ) , ६.२७१.३४५ ( ईशान :लोमश का पूर्व जन्म का नाम ; ईशान शिव की अर्चना से लोमश को दीर्घायु प्राप्ति ) , ७.१.१०५.४७ ( दशम कल्प का नाम ), ७.३.५२ ( ईशानी शिखर माहात्म्य : देवों द्वारा शिव - पार्वती रति भङ्ग के पश्चात् गौरी द्वारा पुत्रार्थ तप का स्थान ), लक्ष्मीनारायण १.४६०.२ ( ईशान नामक दिशापाल द्वारा ज्ञानवापी का निर्माण , विष्णु के लिङ्ग का वापी जल से अभिषेक, ज्ञान वापी महिमा ) Eeshaana
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ईशावास्यम् भागवत ८.१.१०( स्वायम्भुव मनु द्वारा व्याहृत मन्त्रोपनिषद - आत्मावास्यमिदं विश्वं यत्किञ्चिज्जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम्।।)
ईशिता गणेश २.६३.३८( ईशिता सिद्धि से निर्गत कृत्या द्वारा शुक्र के बन्धन व मोचन का वृत्तान्त )
ईश्वर अग्नि १३९.४ (६० अब्दों में से ईश्वर नामक अब्द के फल का उल्लेख : क्षेम , आरोग्य , बहुधान्य आदि ) , कूर्म २.१.१+ ( ईश्वर गीता का आरम्भ ) , देवीभागवत ७.३३.८ ( जीव - ईश्वर विभाजन तथा ईश्वर बहुत्व के पीछे माया कारण होने का कथन ) , ८.२.३२ ( ईशान के सब रुद्रों में ईश्वर होने का उल्लेख ) , नारद १.५६.११६ ( ६० अब्दों / वत्सरों के नामों में से एक ) , १.६३.३३ ( दृक् /ज्ञान शक्ति के तिरोभाव और क्रिया शक्ति की विशेषता वाले तत्त्व का ईश्वर नाम होने का कथन- दृक्शक्तिर्यत्र न्यग्भूता क्रियाशक्तिर्विशिष्यते । ईश्वराख्यं तु तत्तत्त्वं प्रोक्तं सर्वार्थकर्तृकम् ।।) , पद्म ४.११.३७ ( ईश्वरी : लक्ष्मी के लिए सम्बोधन ) , ६.८०.९४ ( विष्णु के लिए ईश्वर सम्बोधन ) , ६.२२३.१६ ( लक्ष्मी देवी के लिए ईश्वरी सम्बोधन ), ६.२२६.५९ , ६.२२६.७० (विष्णु के लिए ईश्वर सम्बोधन के औचित्य का वर्णन ), ६.२३२.४६ ( महालक्ष्मी के सर्वभूतों की ईश्वरी होने का उल्लेख ) , ७.११.३२ (कृष्ण के लिए ईश्वर सम्बोधन ) , ब्रह्म २.६९.११ (ईश्वर /ईशान की आराधना से ज्ञान प्राप्त करने का निर्देश ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३९.१६ ( ईश्वरी दुर्गा द्वारा ईशान दिशा की रक्षा ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.९७ ( ब्रह्मा के मानस व औरस पुत्रों भृगु , मरीचि , अत्रि आदि सप्तर्षियों की ईश्वर संज्ञा ; ईश्वरी से ऋषियों की उत्पत्ति का उल्लेख ) , ३.४.२.२१७ ( ईश्वर में ज्ञान , वैराग्य , ऐश्वर्य आदि १० गुणों का अधिष्ठान ) , ३.४.२.२३० ( ईश्वर से बृहत् स्वर्णिम अण्ड की उत्पत्ति तथा ईश्वर से प्राप्त बीज के प्रकृति रूपी योनि में विकसित होने का उल्लेख ) , ३.४.२.२३४ ( ब्रह्मलोक तथा ब्रह्मा के अण्ड के बीच दिव्य मनोमय पुर में ईश्वर का स्थान होने का उल्लेख ) , ३.४.३५.९७ ( ईश्वर नामक शिव की ४ कलाओं के नाम ) , ३.४.३९.१२० ( ब्रह्मादि त्रिदेवों के अधिपति ) , भविष्य १.१२२.१५ ( ईश्वर से परे विद्या , विद्या से परे शिव और शिव से परे परमेश्वर के होने का उल्लेख ) , १.१३८.४३ ( ईश्वर / शिव के ध्वज का दण्ड रजतमय तथा पताका शुक्ल होने का उल्लेख ) , ३.४.७.३४ ( धातृशर्मा द्विज का सूर्य आराधना से मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् ईश्वर नाम से जन्म ) , ४.४६.१९ ( ईश्वरी : राजा पृथ्वीनाथ की पत्नी , ईश्वरी द्वारा ईर्ष्या से भूषणा सखी के पुत्रों का वध, पूर्व जन्म वृत्तान्त , सप्तमी व्रत फल प्राप्ति से पुत्रवान होना ) , भागवत १.७.२३ ( प्रकृति से परे स्थित ईश्वर का चित्शक्ति द्वारा माया को दूर करके कैवल्य में स्थित होने आदि का उल्लेख ) , १.८.१८ ( प्रकृति से परे ईश्वर का सब भूतों के अन्दर व बाहर स्थित होते हुए भी अलक्षित रहने का उल्लेख ) , ३.१०.१२ ( काल रूपी ईश्वर द्वारा ब्रह्मतन्मात्र विश्व को परिच्छिन्न करके ९ प्रकार की प्राकृत और वैकृत सृष्टियां करने का वर्णन ) , ३.२९.३४ ( सर्वभूतों में ईश्वर का जीवकला के द्वारा प्रवेश होने का उल्लेख ) , ९.१९.४४(गुणों में आसक्त धी के ईश्वर होने का प्रश्न-उत्तर), १०.८५.२९ ( देवकी द्वारा कृष्ण व बलराम को ईश्वर - द्वय कहना ) , १२.१०.८ ( शिव के सब विद्याओं में ईशान और सब देहधारियों में ईश्वर होने का उल्लेख ) , मत्स्य ९३.१३ ( सूर्य के अधिदेवता ) , १११.५ ( सब भूतों में ईश्वर का दर्शन करने वाले ही वास्तविक दर्शक होने का उल्लेख ) , १४५.९० ( भृगु , मरीचि, अत्रि आदि ब्रह्मा के १० मानस पुत्रों की ईश्वर संज्ञा ; ईश्वर शब्द के परत्व से ऋषि शब्द की निरुक्ति ? ), २१८.२७ ( ईश्वरी : महा ओषधियों में से एक का नाम ) , महाभारत शान्ति ३०६.४१(अव्यक्त क्षेत्र का नाम), वायु ४.४० ( ईश्वर निरुक्ति : लोकों का सर्वेशत्व ) , ५.१८ ( ब्रह्मा , विष्णु व महेश के रज , सत्त्व व तमोगुणों से सम्बन्धित होने के संदर्भ में ईश्वर के पर:देव तथा विष्णु के महत: पर: देव होने का कथन ) , ५९.८१ ( ब्रह्मा के मानस पुत्रों / ऋषियों की ईश्वर संज्ञा ) , ५९.८९ ( ईश्वरों के ऋषि पुत्रों काव्य , बृहस्पति, कश्यप आदि के नाम ) , १०१.२१६ ( ईश्वर में १० गुणों की स्थिति ) , शिव १.१७.१०७ ( पांच चक्रों वाले कालचक्र के वर्णन के अन्तर्गत ईश्वर चक्र की भ्रमण प्रकृति का उल्लेख ) , ६.१५.४ ( ईश्वर के ईश , विश्वेश्वर , परमेश व सर्वेश्वर नामक चार रूप कथन ) , ७.३०.५२ ( कर्म के पीछे कारण के ईश्वरकारित होने का कथन ), ७.२.५.१५( ईश्वर के जाति - व्यक्ति स्वरूप का कथन ), स्कन्द १.१.३.८१ ( दक्ष यज्ञ प्रसंग में विष्णु के यज्ञ कर्मों के पालक होने तथा ईश्वर / शिव द्वारा कर्मों में सामर्थ्य प्रदान करने का कथन ; ईश्वर रहित कर्म से नरक प्राप्त होने का कथन ) ,१.२.२५.११९ ( ईश्वर के सब भूतों के पति होने का उल्लेख ) , ४.२.८७.८९ ( दक्ष यज्ञ में दधीचि ऋषि द्वारा दक्ष को ईश्वर महिमा का कथन : कर्म की सिद्धि में ईश्वर अनुग्रह की अनिवार्यता ) , ५.१.७०.३१ ,५.१.७०.५३ ( महाकालवन में प्रतिष्ठित अगस्त्येश्वर आदि ८४ ईश्वरों के नाम ) , ५.३.४१.१० ( ईश्वरी : कुबेर - भार्या ईश्वरी का उल्लेख ) , ६.२४८.११ ( पलाश वृक्ष के विभिन्न अंगों में शिव की विभिन्न नामों से प्रतिष्ठा : प्रशाखाओं में ईश्वर नामक शिव की प्रतिष्ठा ) , ७.१.३.११६++ ( ईश्वर द्वारा पार्वती को प्रभास क्षेत्र माहात्म्य का वर्णन ) , ७.१.१०.२( वायु गुण वाले तीर्थों में ईश्वर की स्थिति का उल्लेख), ७.२.९.८१ ( दधीचि ऋषि द्वारा दक्ष यज्ञ में दक्ष को ईश्वर महिमा का कथन ) , ७.४.१७.११( द्वारका के पूर्व आदि विभिन्न द्वारों पर स्थित ईश्वरों के नाम : दुर्वासा , भूषण आदि ) , लक्ष्मीनारायण २.२५२.३० ( ब्रह्मलोक मूर्द्धा , ईश्वर लोक हृदयादि, जीवलोक चरणद्वय ), कथासरित् १०.१.५५ ( ईश्वरवर्मा : रत्नवर्मा - पुत्र , वेश्या कर्म में धन नष्ट होने पर आल नामक वानर की सहायता से धन की पुन: प्राप्ति कथा ) Eeshwara/ ishwara
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ईषादण्ड स्कन्द ४.२.८८.६० ( पार्वती रथ में नर्मदा व अलकनन्दा का ईषादण्ड बनना )