भक्त गरुड १.२१९(भगवद्भक्त के लक्षण), ३.१.७२-७३(छिन्न भक्तों में रुद्र तथा अच्छिन्न भक्तों में वायु का उल्लेख), गर्ग ९.४(व्यास - उग्रसेन संवाद में भक्त की महिमा), नारद १.५.४९(विष्णु - मार्कण्डेय संवाद में भक्त के लक्षण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.४१(भक्त की महिमा का वर्णन), ४.८४.४१(कृष्ण - प्रोक्त ३ प्रकार के भक्तों के लक्षण), लिङ्ग २.४(भक्त के लक्षण), विष्णु ३.७(यम - प्रोक्त विष्णु - भक्त के लक्षण), शिव ७.२.१०(शिव भक्त का स्वरूप), स्कन्द १.२.४६.८०(भक्त के लक्षण), २.१.२१.३७(वेंकटेश - रामानुज संवाद में भक्त के लक्षण), २.२.१०.७७(नारद - इन्द्रद्युम्न संवाद में भक्त के लक्षण), २.७.२०(भगवद्भक्त के लक्षणों का निरूपण), ७.१.२४(सात्विक, राजस व तामस भक्तों का वर्णन, शिव - पार्वती संवाद), लक्ष्मीनारायण १.९.४८(ब्रह्मा द्वारा विष्णु के सुदर्शन चक्र से स्वयं की रक्षा के लिए विष्णु नाम भक्ति नामक कवच का धारण), २.११४(भक्त द्वारा अपने सारे व्यक्तित्व/अस्तित्व को श्रीहरि की सेवा में अर्पित कर देने का वर्णन), ३.३०.९५(हरिप्रथ भक्त के शाप से मृत वर्णिशाल मनु के उज्जीवनार्थ अनादि श्री भक्त नारायण के प्राकट्य का वृत्तान्त), ३.६०(भक्त की महिमा के संदर्भ में श्रीहरि द्वारा चिदम्बरा भक्ता को स्वप्न में स्वचिह्न प्रदान करने का कथन), ३.८४.९०(भक्त के लक्षणों का कथन ) bhakta


      भक्ति गणेश २.४९.२३(सात्त्विक, राजस, तामस भक्त द्वारा क्रमश: सायुज्य?, सारूप्य व सालोक्य भक्ति प्राप्त करने का उल्लेख), गरुड १.२२२(विष्णु भक्ति की महिमा), गर्ग ६.१६.३(सिद्धाश्रम तीर्थ के दर्शन, स्पर्शन, स्नान व निवास से सालोक्य आदि मुक्तियों की प्राप्ति का कथन), ९.३(व्यास - उग्रसेन संवाद में सकाम व निष्काम भक्ति योग का वर्णन), ९.५(व्यास - उग्रसेन संवाद में भक्ति की महिमा), देवीभागवत ७.३७(देवी द्वारा हिमालय को भक्ति योग का कथन), नारद १.४(भक्ति का साधक के जीवन में महत्त्व; भक्ति से कर्म की सिद्धि, कर्म से हरि प्राप्ति, हरि से ज्ञान प्राप्ति का उल्लेख), १.६.२१(अचञ्चला हरिभक्ति की दुर्लभता का उल्लेख), १.१५.१३९(भक्ति के सात्त्विक, राजसिक , उत्तम, मध्यम आदि १० भेद), १.१६.३३(विष्णु भक्ति का तात्पर्य), १.३४(हरि भक्ति के लक्षणों का निरूपण), पद्म १.१५.१६४(भक्ति के भेद : लौकिक, वैदिक, आध्यात्मिक, सांख्यज, योगज तथा उनकी विधि), ३.५०.४ (विष्णु भक्ति की प्रशंसा), ४.१(विष्णुभक्ति, वैष्णव के लक्षण), ५.८५.१०(भक्ति के लक्षण व भेदों का वर्णन), ६.१३०.१(भक्ति के प्रकार), ६.१३२.२२(विष्णु भक्ति की महिमा), ६.१९३+ (ज्ञान व वैराग्य की माता भक्ति द्वारा नारद से व्यथा का वर्णन, वृन्दावन में युवती बनना), ६१९८, ६.२०८.५२(द्वारका में स्नान से विष्णु भक्ति प्राप्ति का कथन), ६.२२४.२७(षोडशधा भक्ति के कीर्तन, श्रवण आदि लक्षण), ७.२(भगवद् भक्ति), ७.१६(हरि भक्ति), ब्रह्म १.१२१(विष्णुभक्ति के बहिर्मुखत्व का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.१५१(दुर्गा द्वारा सरस्वती को विष्णुभक्ति देने का उल्लेख), ३.४.६७(हरि भक्ति विवृद्धि के लिए पुष्पमाला दान का निर्देश), ४.११०+ (भक्ति के संदर्भ में राधा - यशोदा संवाद), ब्रह्माण्ड २.३.३४.३८(भक्ति के उत्तमा, मध्यमा व कनिष्ठा नामक तीन प्रकार, मध्यमा भक्ति के कारण परशुराम के कृष्ण कवच की असिद्धि, कृष्णप्रेमामृत स्तोत्र से उत्तमा भक्ति की प्राप्ति व कृष्ण कवच की सिद्धि), भविष्य ३.४.७.२६(मोक्ष के चार प्रकार, तप से सालोक्य, भक्ति से सामीप्य, ध्यान से सारूप्य तथा ज्ञान से सायुज्य का उद्भव), भागवत ०.१.४५(भक्ति की दक्षिण में उत्पत्ति, भक्ति का नारद से संवाद, कलियुग में भक्ति की दुर्दशा), १.२.६(भक्ति का माहात्म्य), ३.२५(देवहूति का प्रश्न, कपिल द्वारा भक्तियोग की महिमा), ३.२९(कपिल द्वारा देवहूति को भक्त व भक्ति के प्रकारों का वर्णन), ३.३२.२२(कपिल - देवहूति संवाद में भक्ति योग की उत्कृष्टता), ६.१.१५(केवल भक्ति द्वारा पाप नाश सम्बन्धी कथन), ७.१.२६ (वैरभाव और स्नेह भाव से भक्ति, शिशुपाल का दृष्टान्त), ७.१.२९(मन को ईश्वर में लगाने के लिए भक्ति के उपाय के अतिरिक्त काम, द्वेष, भय आदि उपायों तथा उनके उदाहरणों का कथन), ७.५.२३(प्रह्लाद - प्रोक्त नवधा भक्ति के लक्षण), ७.७.५५(भक्ति की परिभाषा), ११.११.२६(भक्ति की विधि, भक्त के लक्षण, उद्धव - कृष्ण संवाद), ११.१४.१८ (भक्ति योग की महिमा), ११.१९.१९(भक्ति की विधि), ११.२०.६(योगत्रयी के रूप में ज्ञान, कर्म व भक्ति का उल्लेख व उन को सिद्ध करने के उपायों का कथन - योगास्त्रयो मया प्रोक्ता नृणां श्रेयोविधित्सया ।
       ज्ञानं कर्म च भक्तिश्च नोपायोऽन्योऽस्ति कुत्रचित् ॥), ११.२०.८(भक्तियोग के अधिकारी की योग्यता), ११.२०.२८(भक्ति योग की महिमा), ११.२१.१(भक्ति(इच्छा), ज्ञान व क्रिया के त्रिक् का उल्लेख), मत्स्य १८३.४९(ज्ञान, योग आदि के अन्त में भक्ति की प्राप्ति के उपाय का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.५७+ (केशव भक्ति, केशव को तुष्ट करने वाले कर्मों का कथन), शिव १.३.२.४.५६(भक्ति के सदाचार में सर्वश्रेष्ठ होने का उल्लेख), २.१.१२.७३(ज्ञान व भक्ति में सम्बन्ध का कथन), २.२.२३.१५(शिव - सती संवाद में भक्ति के प्रकार व महिमा का कथन), ४४१, ५.५१.७(भक्ति, ज्ञान व क्रिया से भुक्ति व मुक्ति प्राप्ति का कथन ; आत्मा की एक्य भावना का नाम भक्ति), ७.२.२५.६२(पापार्णव से तरने हेतु भक्ति की नौका से उपमा), स्कन्द १.२.४१(करन्धम के पूछने पर महाकाल द्वारा ब्रह्मा, विष्णु व महेश की भक्ति विषयक संशय का निराकरण), १.३.२.५(शिव भक्ति), २.१.१८.२३(वेंकटेश्वर की भक्ति, भक्ति के ८ प्रकार), २.२.१०.६३(नारद द्वारा इन्द्रद्युम्न को भक्ति के भेदों का वर्णन), ५.१.७.४(रुद्र भक्ति के भेद), ५.१.६३.६१(विष्णु की परा भक्ति के संदर्भ में विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का वर्णन), ५.३.११.११(सात्विकी, राजसी व तामसी त्रिविधा भक्ति का उल्लेख), ६.२४०(दीपदानादि सायुज्य - चिन्तनान्तभक्ति निरूपण), ७.१.२४.१०७(पार्वती की पृच्छा पर शिव द्वारा तामस लोगों को वर देने में भक्ति को कारण बतलाना), लक्ष्मीनारायण १.९.४८(ब्रह्मा द्वारा विष्णु के सुदर्शन चक्र से स्वयं की रक्षा के लिए विष्णु नाम भक्ति नामक कवच का धारण), १.२५.२०(श्रीहरि द्वारा भक्ति देवी का रूप धारण करना, भक्ति को मुक्ति दासी तथा ज्ञान विराग पुत्र देने आदि का वर्णन), १.२६(पितृभक्ति, गुरु भक्ति, देशभक्ति आदि से हरिभक्ति की विशिष्टता का वर्णन), १.११४(षोडशविध विष्णु चिह्न धारण), १.१७३.१२१(श्रवण, कीर्तन आदि नवधा भक्ति का कथन, भक्ति के अन्य प्रकारों सगुणा, निर्गुणा, वैधी, स्वाभाविकी आदि का कथन), १.३०७(भक्ति व धर्म की पितृ सेवा परायण कन्या - द्वय प्रेयसी व श्रेयसी का वृत्तान्त), १.३६७.३७ (नवधा भक्ति के अतिरिक्त अन्य प्रकारों का कथन, भक्ति वर्धक साधनों का वर्णन), १.५१६(शिव - पार्वती के संदर्भ में भक्त द्वारा भोजन के नियमों का वर्णन), १.५४७.३९(सर्वमुक्तों के सालोक्य, सर्वतत्त्वों के सारूप्य, सर्व योगियों के सायुज्य का कथन), १.५६६.९०(विभिन्न प्रकार के कर्मों से भक्त द्वारा प्रापणीय लोकों का कथन), २.८३.५७(ज्ञान से कर्मों के व भक्ति से कर्मफलों के दाह का उल्लेख), २.११३+ (भक्त द्वारा जीवन में आचरणीय कर्मों का स्वरूप), २.२४५.६८(समाधि द्वारा ब्रह्मपथ का अन्वेषण कर भक्ति शकटी पर आरोहण करके अक्षर धाम जाने का निर्देश), २.२४५.८०(ध्यान से ब्रह्मतेज, भक्ति से ध्यान, स्नेह से भक्ति, माहात्म्य बोध से स्नेह, सत्संग से बोध, हरिकृपा से सन्त आदि के वर्धित होने का कथन), २.२५०.५७(भक्ति पाक से ब्रह्मता और ब्रह्मपाक के परम पद होने का कथन), २.२५१.५६(विज्ञान को सारथि, भक्ति को सहायिनी तथा धर्म को अग्रगति करके सनातन ब्रह्म को प्राप्त करने का निर्देश), २.२६८.५१(गृहस्थ व साधु की भक्तियों में अन्तरों का कथन), ३.७.१९(राजा चलवर्मा द्वारा तप करके अचला भक्ति की प्राप्ति का वृत्तान्त), ३.१२.९(धर्मव्रत व भक्तिव्रता के अल्पजीवी ११० पुत्रों के जन्म का वर्णन, संकर्षण की दीर्घजीवी पुत्र में प्राप्ति), ३.१८.१४, ३.२१.६४(तप व भक्ति की श्रेष्ठता का प्रश्न : भक्ति बिना आत्यन्तिक श्रेय न होने का कथन, सकाम या निष्काम भक्ति का प्रश्न), ३.४५.३५+ (वधू गीता के अन्तर्गत निर्गुण भक्ति योग का निरूपण), ३.६५ (वधू गीता के अन्तर्गत भक्ति के विभिन्न प्रकार तथा माहात्म्य), ३.६६.६१ (वधू गीता के अन्तर्गत वधू भक्ति के रहस्य का निरूपण), ४.२४.२७(भक्ति के अव्यय धन होने का उल्लेख ) bhakti


      भक्षण अग्नि २१४.१३(भक्षण में कृकर वायु के हेतु होने का उल्लेख), ३४८.८(थ एकाक्षर का भक्षण अर्थ में प्रयोग), नारद १.६६.१३६(भक्ष्यप्रिय गणेश की शक्ति भगिनी का उल्लेख), पद्म ३.५६(भक्ष्याभक्ष्य निर्णय), ४.१९(अभक्ष्य भक्षण प्रायश्चित्त का कथन), वायु ६९.३३७/२.८.३३७(दनायु के भक्षणरत होने का उल्लेख), ९९.३८७/२.३७.३८१(कनक राजा के भक्ष्यक राष्ट} का स्वामी होने का उल्लेख ), द्र. भोजन, शवभक्ष bhakshana


      भग कूर्म १.४३.२१(भाद्रपद मास में सूर्य का नाम, भग सूर्य की रश्मियों की संख्या), गणेश २.९९.४२(गुणेश द्वारा भगासुर का वध), २.१००.३७(गणेश द्वारा परशु से भगासुर का वध), गर्ग १.५.२७(भग सूर्य के धृतराष्ट्र रूप में अवतरण का उल्लेख - शलश्चैव दिवोदासो धृतराष्ट्रो भगो रविः ।), नारद १.६६.१३५(वृषकेतन गणेश की शक्ति भगा का उल्लेख, मुण्डी की सुभगा, खड्गी की दुर्भगा), ब्रह्म १.३४.३४(भग आदित्य द्वारा पार्वती के अङ्क में शिशु रूपी शिव पर प्रहार), भविष्य ३.४.८.५८(भगशर्मा : मेधावी व मञ्जुघोषा - पुत्र, सूर्य उपासना, सावित्री की भगशर्मा पर कृपा), ३.४.१८.१८(संज्ञा विवाह प्रसंग में भग के वत्सासुर से युद्ध का उल्लेख), भागवत ४.५.१७(दक्ष यज्ञ में नन्दीश्वर द्वारा भग को ग्रहण करने का उल्लेख), ४.५.२०(दक्ष यज्ञ में भग के नेत्र निकालने का कारण), ४.७.३(शिव द्वारा भग देवता के नेत्रों को भङ्ग करना, पुन: कृपा होने पर मित्र के नेत्रों से दर्शन), ६.६.३९(अदिति व कश्यप के पुत्रों में से एक), ६.१८.२(सिद्धि-पति, सन्तानों के नाम), ११.१९.४०(उद्धव के पूछने पर कृष्ण द्वारा भग का तात्पर्य- भगो म ऐश्वरो भावो), १२.११.४२(भाद्रपद(पुष्य) मास में भग सूर्य के रथ का कथन), मत्स्य ६.४(१२ आदित्यों में से एक), १७१.५६(अदिति व कश्यप के आदित्य संज्ञक १२ पुत्रों में से एक), १९७.४(भगपाद : अत्रि वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), २६८.१९(वास्तुमण्डल के देवताओं में एक भग हेतु शालि पिष्ट बलि देने का निर्देश), वराह २१.४४(रुद्र द्वारा भग देवता के नेत्रों का छेदन, देवों के स्तुति करने पर पुन: नेत्र प्राप्ति), वामन ५.१९(शिव द्वारा भग के चक्षुपात), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.४(१२ खण्डयुगेश्वरों में से एक), १.२३४.३(क्रुद्ध महादेव द्वारा भग के वाम नेत्र का भञ्जन, पश्चात् पूरण), शिव १.१६.१०१(भग शब्द की निरुक्ति - भं वृद्धिं गच्छतीत्यर्थाद्भगः प्रकृतिरुच्यते। प्राकृतैः शब्दमात्राद्यैः प्राकृतेंद्रियभोजनात्॥..), २.२.३७.५५(दक्ष यक्ष विध्वंस के समय नन्दी द्वारा भग के नेत्र भङ्ग करना), २.२.४२.७(भग देवता द्वारा मित्र के नेत्रों से देखने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१४.२१(विष्णु का नाम, निरुक्ति - भाति सर्वेषु लोकेषु गीयते भूर्भुवादिषु । प्रविष्टः सर्वभूतेषु तेन विष्णुर्भगः स्मृतः ॥), ६.२०७(गौतम द्वारा स्पर्श से सहस्रभग का सहस्र नेत्रों में रूपान्तरित होना, मेष के वृषण लगना, इन्द्र पञ्चरात्र पूजा विधान ), हरिवंश २.७२.६०(देह में भग लिङ्ग के उमा का प्रतीक होने का उल्लेख), ३.५३.११(भग का शम्बर से युद्ध), ३.५५.११७(देव - दानव युद्ध में शम्बरासुर द्वारा भग देवता की पराजय), महाभारत अनुशासन १४.२३४(सारी प्रजा के लिङ्ग व भग चिह्नों से युक्त होने के कारण माहेश्वरी होने का उल्लेख), वा.रामायण ७.५.३४(भग दैवते नक्षत्रे : उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र ), कथासरित् ८.५.९६(श्रुतशर्मा के महारथी आरोहण की भग देव के अंश से उत्पत्ति - महौघारोहणोत्पातवेत्रवत्संज्ञकैः क्रमात् । त्वष्टुर्भगस्य चार्यम्णः पूष्णश्चाप्यात्मसंभवैः ।।), अथर्व ५.२६.९(भग युनक्तु आशिषः), द्र. दुर्भगा, नभग, रथ सूर्य bhaga


      भगदत्त भविष्य ३.३.३२.५५(भगदत्त का जगन्नायक रूप में जन्म), ३.३.३२.१७१(भगदत्त का लक्षण से युद्ध, मृत्यु), भागवत १०.५९.३१(नरकासुर – पुत्र(?), पृथ्वी द्वारा कृष्ण को अर्पण), मार्कण्डेय २.३७(तार्क्षी द्वारा कुरुक्षेत्र में भगदत्त व अर्जुन के तुमुल युद्ध का दर्शन), वायु ४१.३०(किन्नरराजों में से एक ), महाभारत आदि ६७.९(बाष्कल असुर का अंश), द्रोण २९.४८(अर्जुन द्वारा भगदत्त का वध), bhagadatta


      भगमाला नारद १.८८.५२(भगमालिनी : राधा की नित्य कला भगमालिनी के स्वरूप का कथन), २.१४.२३(वशीकरण मन्त्र दात्री द्वारा भगमालिनी मन्त्र के जप का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९४(ललिता देवी - सहचरी भगमाला द्वारा दीर्घजिह्व का वध), ३.४.३७.३३(भगमालिनी : १५ नित्या देवियों में से एक), मत्स्य १७९.११(भगमालिनी : अन्धकासुरों के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ) bhagamaalaa/ bhagamala


      भगवत नारद १.४६.१३(भगवत शब्द की निरुक्ति - ज्ञेयं ज्ञातेति तथा भकारोऽर्थद्वयात्मकः ॥ तेनागमपिता स्रष्टा गकारोऽयं तथा मुने ॥), ब्रह्माण्ड ३.४.६.५३(भगवती माया द्वारा देवों, असुरों, पशुओं आदि के सृजन का कथन), ३.४.१२.४२(पराशक्ति का अपर नाम), विष्णु ६.५.६०(भगवत शब्द की निरुक्ति, भगवत प्राप्ति उपाय), स्कन्द २.६.३.११(श्रीमद्भागवत की महिमा का वर्णन ) bhagavata


      भगवान् ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०(स्वारोचिष मन्वन्तर में तुषित गण के १२ देवों में से एक), वायु ५.३४(भगवान् की निरुक्ति : भग का सद्भाव), ६८.५/२.७.५(दनु व कश्यप के प्रधान दानव पुत्रों में से एक ) bhagavaan/ bhagavan/ bhagvan


      भगानन्दा पद्म १.४६.८०(अन्धक के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक )


      भगिनी नारद १.६६.१३६(भक्ष्यप्रिय गणेश की शक्ति भगिनी का उल्लेख), भविष्य ३.४.१८.२४(सत्त्वभूता भगिनी, रजोभूता पत्नी तथा तमोभूता कन्या होने का उल्लेख), ३.४.१८.२७(शिव द्वारा भगिनी को पत्नी? रूप में स्वीकार करने से श्रेष्ठता प्राप्ति का उल्लेख - स्वकीयां च सुतां ब्रह्मा विष्णुदेवः स्वमातरम् ।। भगिनीं भगवाञ्छंभुर्गृहीत्वा श्रेष्ठतामगात् ।।), भागवत ६.७.३०(भगिनी के दया की मूर्ति रूप होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१५९.२६(भगिनी/सहोदरी गमन से षण्ढत्व प्राप्ति ) bhaginee/ bhagini

      भगीरथ नारद १.८.१३४(दिलीप - पुत्र, स्वर्ग से गङ्गा का अवतारण, पितरों का उद्धार), १.१२.२९+ (भगीरथ द्वारा धर्मराज से यमलोक प्रापक / अप्रापक कर्मों की पृच्छा, यम द्वारा तडाग निर्माण माहात्म्य, विभिन्न दान, मन्दिर सेवा माहात्म्य, विविध प्रायश्चित्तों का वर्णन), १.१६(भगीरथ का तप हेतु गमन, भृगु आश्रम पर भृगु से वार्तालाप, तप से गङ्गा को लाना), ब्रह्म २.८.४७(गङ्गा अवतरणार्थ भगीरथ द्वारा शिव की स्तुति, गंगा का विन्ध्य के उत्तर व दक्षिण में विभाजन), ब्रह्माण्ड २.३.५४.४८(अंशुमान् को कपिल से वर प्राप्ति, तदनुसार पौत्र भगीरथ द्वारा स्वर्ग से गङ्गा का अवतारण तथा जलस्पर्श से पितरों का उद्धार, गङ्गा द्वारा भागीरथी नाम धारण), भागवत ९.९(दिलीप - पुत्र, गङ्गावतरण हेतु तप), विष्णुधर्मोत्तर १.१८.२८(दिलीप - पुत्र, तप द्वारा गङ्गा का भूमि पर अवतारण, सगर - पुत्रों के उद्धार का वृत्तान्त), १.२३.१(भगीरथ वंश), स्कन्द ४.२.६१.१५७(भगीरथ तीर्थ का माहात्म्य), ४.२.८३.१०९(भगीरथ तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ८.१२८.४८(गङ्गा के प्राची, प्रतीची व मध्यम स्रोतों में से मध्यम गङ्गा की भागीरथी नाम से ख्याति), योगवासिष्ठ ६.१.७४+ (भगीरथ को त्रितल का उपदेश, निर्वाण प्राप्ति), वा.रामायण १.४२+ (अंशुमान् - पौत्र व दिलीप - पुत्र भगीरथ की तपस्या, ब्रह्मा से अभीष्ट वर प्राप्ति, भगीरथ की तपस्या से संतुष्ट शिव द्वारा गङ्गा का धारण, गङ्गा द्वारा भगीरथ के पितरों के उद्धार का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.२३०.११(भगीरथ की कथा का पाराक राजर्षि की कथा से साम्य), ३.७४.६७(भगीरथ द्वारा स्वपुत्री हंसी को कौत्स को प्रदान करने से स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख), कथासरित् १४.२.५१(भगीरथयशा : प्रसेनजित् - कन्या, नरवाहनदत्त को प्रदान )bhageeratha/ bhagiratha


      भङ्गकार ब्रह्माण्ड २.३.७१.५५(सत्राजित् के १०० पुत्रों में ज्येष्ठ, वीरमती - पति, ३ कन्याओं को कृष्ण को देने का उल्लेख), २.३.७१.८७(नरा पत्नी से उत्पन्न २ पुत्रों के नाम), मत्स्य ४५.१९(सत्राजित् के १०० पुत्रों में ज्येष्ठ, व्रतवती - पति भङ्गकार द्वारा सत्यभामा, व्रतिनी व पद्मावती नामक तीनों कन्याओं को पत्नी रूप में कृष्ण को प्रदान करना), १९१.५१(भङ्ग तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : ७ जन्मों के पापों का क्षय), २४५.३१(भङ्गकारी : बलि के अनुगामी असुरों में से एक), वायु ९६.५३/२.३४.५३(शत्रजित् के १०० पुत्रों में ज्येष्ठ, द्वारवती - पति, ३ कन्याओं को कृष्ण को पत्नी रूप में देना, शतधन्वा द्वारा वध ), द्र. शरभङ्ग bhangakaara/ bhangakara


      भङ्गास्वन लक्ष्मीनारायण ३.९२.३३(राजा भङ्गास्वन द्वारा सरोवर में स्नान से स्त्री बनने तथा स्त्री रूप में स्ववर्ह ऋषि की पत्नी बनने का वृत्तान्त )


      भजन भागवत १२.६.५९(भज्य : बाष्कलि के ३ शिष्यों में से एक, गुरु से वालखिल्य संहिता ग्रहण का उल्लेख), विष्णु ४.१३.१(सत्वत के ७ पुत्रों में से एक), शिव ७.२.१०.४७(वाक्, मन तथा काया भेद से भजन के ३ प्रकार, पुन: तप, कर्म, जप, ध्यान तथा ज्ञान भेद से भजन के ५ प्रकारों का निर्देश ) bhajana


      भजमान भागवत ९.२४.६(सात्वत वंश के ७ पुत्रों में से एक, २ पत्नियों से उत्पन्न पुत्रों के नाम), ९.२४.१९(अन्धक? के ४ पुत्रों में से एक), ९.२४.२६(शूर - पुत्र, शिनि - पिता, वृष्णि वंश), मत्स्य ४४.४७(सात्त्वत व कौशल्या के पुत्रों में से एक, सतञ्जया व बाह्यका पत्नियों से उत्पन्न पुत्रों के नाम), ४४.६१(कङ्क - दुहिता के ४ पुत्रों में से एक), ४४.७७(विदूरथ - पिता), वायु ९६.११५/ २.३४.११५ (सत्यक व काशि - दुहिता के ४ पुत्रों में से एक), ९६.१३५/ २.३४.१३५ (विदूरथ - पिता), हरिवंश १.३८(भजमान वंश का वर्णन), महाभारत शान्ति ८०.३(मित्र के ४ प्रकारों में से एक ) bhajamaana


      भञ्जन स्कन्द ७.४.१७.१६(कृष्ण पूजा के अन्तर्गत आग्नेय दिशा में स्थित परिचारकों में से एक), ७.४.१७.३०(कृष्ण पूजा के अन्तर्गत वायव्य दिशा में स्थित परिचारकों में से एक ), द्र. प्रभञ्जन, राजभञ्जन bhanjana


      भट्ट स्कन्द १.२.४३(महीसागर सङ्गम पर नारद द्वारा स्थापित भट्टादित्य सूर्य की मूर्ति का वृत्तान्त), ५.३.१५९.२७(दिवाकीर्ति को ग्रामभट्टत्व की प्राप्ति ? ), द्र. चन्द्रभट्ट bhatta


      भट्टारिक स्कन्द ३.२.२१(भट्टारिका : धर्मारण्य में स्थित कुलदेवताओं में से एक), ३.२.२२.१०(काजेश द्वारा विनिर्मित भट्टारी देवी ), द्र. राजभट्टारिक bhattaarika


      भट्टिका स्कन्द ६.११६(देवरात - कन्या, क्रव्य - भगिनी, रेवती नागिनी को शाप, रेवती दंश से अप्रभावित), ६.११७(भट्टिका तीर्थ का माहात्म्य, बाल विधवा भट्टिका का तक्षक द्वारा हरण, तक्षक को शाप व उत्शाप, अग्नि - परीक्षा, तीर्थ की स्थापना ) bhattikaa


      भट्टोजि भविष्य ३.४.८.८५(भट्टोजि दीक्षित : वेदशर्मा - पुत्र, सूर्य अंश , सिद्धान्त कौमुदी ग्रन्थ की रचना), ३.४.२०(कृष्णचैतन्य के शिष्य भट्टोजि द्विज द्वारा वेदों के तृतीयाङ्ग की व्याख्या ) bhattoji


      भण्ड ब्रह्माण्ड ३.४.११(शिव द्वारा दग्ध काम की भस्म से भण्डासुर की उत्पत्ति, अजेयत्व वर प्राप्ति), ३.४.२६.२९(भण्डासुर के पुत्रों के नाम , कुमारी देवी द्वारा वध), ३.४.२९(भण्डासुर का ललिता देवी से युद्ध व मृत्यु), लक्ष्मीनारायण ३.११५.१५(कामदेव की भस्म से भण्डासुर की उत्पत्ति, नाम निरुक्ति, शिव से वर प्राप्ति, ललिता देवी पर मोहित होने का वर्णन), ३.११६(भण्डासुर के सेनानियों का ललिता देवी की सेनानी देवियों से युद्ध), ३.११७(भण्ड का ललिता देवी से युद्ध, विभिन्न अस्त्रों का मोचन/प्रतिमोचन, परब्रह्मास्त्र से मृत्यु), ४.५९.५(भण्डशील भाण्ड व उसके परिवार जनों द्वारा कथा श्रवण से ब्रह्माण्ड भाण्ड का भेदन कर ब्रह्मभाण्ड को प्राप्त करने का वृत्तान्त ) bhanda


      भण्डार स्कन्द ५.३.१०७(भण्डारी तीर्थ का माहात्म्य : धन प्राप्ति हेतु )


      भद्र अग्नि १०५.२१(भद्र प्रासाद की निर्माण विधि का उल्लेख), गणेश १.३७.४३(कलियुग में पुष्पक नगर की भद्रक नाम से प्रसिद्धि - त्रेतायां मणिपूरं च भानकं द्वापरेऽपि च ।
      कलौ तु भद्रकं नाम ख्यातं लोके भविष्यति ।।), गर्ग ७.१८.४६ (भद्र देश के अधिपति बृहत्सेन द्वारा प्रद्युम्न की पूजा), १०.२१.१०(भद्रावती : भद्रावती पुरी के यौवनाश्व राजा का अनिरुद्ध से युद्ध, यज्ञीय अश्व का मोचन), नारद १.२३.३३(भद्रशील : गालव - पुत्र, पूर्व जन्म में दुष्ट राजा धर्मकीर्ति, एकादशी व्रत के प्रभाव से नरक से मुक्ति), २.६३.८३(भद्रक ब्राह्मण द्वारा प्रयाग में माघ स्नान से पापों से मुक्ति का कथन), पद्म १.७९.१ (मध्यदेशीय नृप भद्रेश्वर द्वारा कुष्ठत्व प्राप्ति, सूर्याराधन से मुक्ति की कथा), ६.१२८.१५६(भद्रक नामक मूर्ख ब्राह्मण, माघ स्नान से स्वर्ग प्राप्ति), ६.२२८.१३(भद्र - सुभद्र : अयोध्या के दक्षिण द्वार पर स्थिति), ७.१७.९(भ्रष्ट ब्राह्मण भद्रतनु को मार्कण्डेय द्वारा उपदेश, हरि दर्शन), ७.२१.३४(भद्रक्रिय ब्राह्मण के पादोदक से भषक/शुन: की मुक्ति), ब्रह्म २.९५(अभद्र का प्रशमन तथा भद्रता प्राप्ति से गौतमी तीर्थ की भद्र तीर्थ नाम से प्रसिद्धि, विष्टि का विश्वरूप से विवाह, विष्टि की भद्रा नाम से ख्याति), ब्रह्माण्ड १.२.१६.४२(मध्य देश के जनपदों में से एक), १.२.१६.४६(चक्षु नदी द्वारा प्लावित जनपदों में से एक), १.२.१६.४८(उत्तर के जनपदों में से एक), २.३.६.६(दनु व कश्यप के दानव संज्ञक प्रधान पुत्रों में से एक), २.३.७.३२८(बलि के वाहन षड्दन्त भद्र हस्ती की ४ सन्तानों के नाम), २.३.७.३३०(अभ्रमु हस्तिनी के ४ हस्ती पुत्रों में से एक, वरुण का वाहन, अपर नाम सुप्रतीक - भद्रो यः सुप्रतीकस्तु हस्तिः स ह्यपांपतेः ।), २.३.७१.१६१(भद्रवैशाखी : वसुदेव की १३ पत्नियों में से एक), २.३.७१.१६९ (शठ के पुत्रों के रूप में भद्राश्व, भद्रगुप्ति, भद्रविष्ट, भद्रवाहु, भद्ररथ, भद्रकल्प आदि का उल्लेख), २.३.७१.१७५(भद्रसेन व भद्रदेव : कंस द्वारा घातित वसुदेव व देवकी के ६ पुत्रों में से २), २.३.७१.२४९(कृष्ण व जाम्बवती की भद्र, भद्रगुप्त, भद्रचित्र, भद्रबाहु, भद्रवती सन्तानों का उल्लेख), भविष्य १.८३(भद्रा नामक तिथि में करणीय व्रत विधि व माहात्म्य), १.११८.५(नागशर्मा - पुत्र, भ्राताओं को सूर्य मन्दिर में दीपदान के माहात्म्य का वर्णन), ४.१३(भद्र व्रत : स्वर्णष्ठीवी द्वारा भद्र व्रत का पालन करने से पुन: संजीवन), ४.८२(सीरभद्र वैश्य द्वारा प्रेत योनि की प्राप्ति, पूर्वकृत सुकृत द्वादशी व्रत के पुण्य से प्रेत योनि से मुक्ति की कथा), भागवत ४.१.७(यज्ञ व दक्षिणा के १२ पुत्रों में से एक), ८.१.२४(उत्तम मनु के काल में देवों के ३ गणों में से एक), ९.२४.४७(वसुदेव व पौरवी के १२ पुत्रों में भद्रवाह व भद्र का उल्लेख), ९.२४.५४(वसुदेव व देवकी के ८ पुत्रों में से एक), १०.६१.१४(कृष्ण व कालिन्दी के पुत्रों में से एक), १०.६३.३(बाणासुर से युद्ध करने वाले कृष्ण व बलराम के सेनापतियों में से एक), मत्स्य ४६.१३(कंस द्वारा घातित वसुदेव व देवकी के ६ पुत्रों में भद्रसेन व भद्रविदेह का उल्लेख), ४७.१६(कृष्ण व रुक्मिणी के पुत्रों में से एक), ११३.४६(मेरु पर्वत पर स्थित ४ सरों में से एक), ११३.४७(गन्धमादन पर्वत पर भद्रकदम्ब वृक्ष की स्थिति का उल्लेख), वराह ८४.१२(भद्राकार द्वीप की स्थिति तथा प्रकृति का कथन), १५३.४०(मथुरा के १२ वनों में से एक भद्रवन का संक्षिप्त माहात्म्य : नागलोक की प्राप्ति), वायु ४१.८४(पद्म रूपी पृथिवी के ४ महाद्वीपों में से एक), ४५.६२(चन्द्र द्वीप के पश्चिम में वायु के भद्राकर द्वीप के महत्त्व का कथन), ९६.१६८/ २.३४.१६८(शठ के पुत्रों के रूप में भद्राश्व, भद्रगुप्ति, भद्रविष्ट, भद्रवाहु, भद्ररथ, भद्रकल्प आदि का उल्लेख), ९६.१७३/२.३४.१७३(कंस द्वारा घातित वसुदेव व देवकी के ६ पुत्रों में भद्रसेन व भद्रविदेक का उल्लेख), ९८.१०५/९९.१०९(हर्यङ्ग - पुत्र, बृहत्कर्मा - पिता), विष्णु ४.१५.२६(भद्रदेव : कंस द्वारा घातित वसुदेव व देवकी के ६ पुत्रों में से एक), शिव ३.४.४५(भद्रायुष : ऋषभ अवतारी शिव द्वारा भद्रायुष को जीवन प्रदान, पश्चात् शस्त्र तथा बल भी प्रदान, कीर्तिमालिनी से विवाह), स्कन्द १.१.७.३२(कलि में भद्रेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ३.१.३२.३४(कुबेर - सचिव भद्र यक्ष द्वारा गौतम के शाप से सिंहत्व प्राप्ति, ध्यानकाष्ठ मुनि के साथ वार्तालाप से शाप से मुक्ति, यक्षरूपत्व प्राप्ति), ४.२.९७.४५(भद्र ह्रद का माहात्म्य), ५.३.१९८.७३(भद्रसुन्दरी देवी की त्रिकूट में स्थिति), हरिवंश १.२९.६९(भद्रश्रेण्य : वाराणसी पुरी के अधिपति, दिवोदास द्वारा राज्य का अपहरण, भद्रश्रेण्य - पुत्र दुर्दम द्वारा राज्य की पुन: प्राप्ति), २.९१.२६(भद्रनामा नट द्वारा ऋषियों से वर प्राप्ति), वा.रामायण ३.१४.२१ (भद्रमदा : क्रोधवशा की १० कन्याओं में से एक, इरावती - माता, ऐरावत - मातामही), ७.४३(राम - सखा : सीता के विषय में प्रजा अपवाद का राम के समक्ष वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.४०२.५४(कुबेर के सचिव भद्र के शाप से सिंह बनने व शाप से मुक्ति का वृत्तान्त – ध्यानकाष्ठ, धर्मगुप्त की कथा), १.५५०.६१(गज नृप द्वारा भद्र मुनि से मोक्षार्थ ज्ञान की पृच्छा, भद्र द्वारा आत्मा रूपी तीर्थ के सेवन का उपदेश), २.२८.२२(भद्र जाति के नागों का पण्डित बनना - भद्रजातीयनागाश्च पण्डिता ब्राह्मणा इमे ।), २.२७०.४४(भद्रायन ग्राम के ब्रह्मस्तम्ब विप्र द्वारा तप से पुरुषोत्तम दर्शन का वृत्तान्त), ३.९.३९(शोणभद्र वैश्य की पत्नी भद्रेश्वरी द्वारा कृष्ण की पुत्र रूप में प्राप्ति), ३.६१.२(भद्रक द्वारा चिदम्बरा सती रानी को स्वपत्नी बनाने के प्रयास पर गदा द्वारा भद्रक राक्षस के विनाश का वृत्तान्त), ४.३०.८१(भद्रायन ऋषि द्वारा विषलाणी वञ्चयित्री को मन्त्र प्रदान से वञ्चयित्री के मोक्ष का वृत्तान्त), कथासरित् ८.४.८५(सूर्यप्रभ की सेना के महारथी भद्रङ्कर का कालकम्पन द्वारा वध), ८.५.६९(भद्रङ्कर विद्याधर की विश्वावसु की पत्नी से उत्पत्ति, प्रभास से युद्ध), १२.२.४७(मगध के राजा भद्रबाहु द्वारा मन्त्रगुप्त नामक मन्त्री की बुद्धिमत्ता से धर्मगोप - कन्या अनङ्गलीला की प्राप्ति, धर्मगोप के हस्ती भद्रदन्त का उल्लेख), १२.२.७७(भद्राक्ष : तक्षशिला का राजा, १०८ पद्म अर्पित करने से पुष्कराक्ष नामक पुत्र प्राप्ति की कथा), १८.१.५३(भद्रायुध : क्षत्ता वज्रायुध के पुत्र भद्रायुध का उल्लेख), १८.१.६८(भद्रायुध प्रतीहार द्वारा राजा को दूत के आगमन की सूचना), १८.४.९२(देवकुमार भद्र का कण्व शाप से शूकर बनना, विक्रमादित्य द्वारा शूकर वध करने पर शाप से मुक्ति व पुन: भद्र बनना ), द्र. गिरिभद्रा, ज्ञानभद्र, तुङ्गभद्र, नन्दभद्र, पूर्णभद्र, पुष्पभद्र, बलभद्र, मणिभद्र, मनोभद्र, वीरभद्र, शोणभद्र, श्वेतभद्र, सर्वतोभद्र, सीरभद्र, सुभद्र bhadra

      Comments on Bhadra

      Vedic contexts on Bhadra


      भद्रक ब्रह्माण्ड २.३.७४.१५२(वसुमित्र - पुत्र तथा पुलिन्द - पिता भद्र द्वारा २? वर्ष राज्य करने का उल्लेख), भागवत १२.१.१७(वसुमित्र - पुत्र, पुलिन्द - पिता, शुङ्ग वंश), मत्स्य ४८.१९(शिबि के ४ पुत्रों में से एक, अनु वंश), वायु ६९.१८९/२.८.१८३(खशा की पुत्रियों के वंश के दैत्यों के गण में से एक ) bhadraka


      भद्रकर्ण मत्स्य १३.३०(गोकर्ण पीठ में देवी की भद्रकर्णिका नाम से स्थिति का उल्लेख), वामन ९०.४(भद्रकर्ण तीर्थ में विष्णु का जयेश नाम से वास), स्कन्द ४.२.६९.१०३(भद्रकर्ण ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१९८.६८(भद्रकर्णिका देवी की गोकर्ण में स्थिति का उल्लेख), ७.३.८(भद्रकर्ण ह्रद व लिङ्ग का माहात्म्य, भद्रकर्ण गण द्वारा नमुचि का वध), लक्ष्मीनारायण १.५५३.३४(शिव के गण भद्रकर्ण द्वारा नमुचि के वध का कथन ) bhadrakarna


      भद्रकाली अग्नि २६८.१३(आश्विन शुक्ल अष्टमी को राजा द्वारा विजय हेतु भद्रकाली की पूजा), गर्ग ७.२.२७(भद्रकाली द्वारा प्रद्युम्न को माला भेंट), देवीभागवत ९.२२(भद्रकाली का शङ्खचूड से युद्ध), १२.६.११८(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.११५(दण्डीश की शक्ति भद्रकाली का उल्लेख), १.११७.९०(भद्रकाली अष्टमी पूजा), १.११८.६(भद्रकाली नवमी पूजा), ब्रह्मवैवर्त्त २.१९.६९(भद्रकाली का शङ्खचूड से युद्ध), ३.३०.१६(परशुराम द्वारा पृथिवी को क्षत्रियशून्य करने की प्रतिज्ञा, पार्वती तथा भद्रकाली द्वारा प्रतिज्ञा पूरण के प्रति असमर्थता प्रकाशन), ३.३६.३९(दुर्वासा द्वारा सुचन्द्र को भद्रकाली कवच प्रदान, ब्रह्मा के निर्देशानुसार भृगु द्वारा राजा से कवच की याचना, राजा द्वारा कवच प्रदान, भृगु द्वारा राजा का वध), ३.३७.१४(भद्रकाली से वक्ष की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड २.३.३९(परशुराम द्वारा भद्रकाली की स्तुति, भद्रकाली द्वारा परशुराम को सुचन्द्र की मृत्यु के उपाय का कथन), भविष्य ३.४.१६.९(आपव ब्राह्मण द्वारा भद्रकाली की स्तुति , वरुण बनना), भागवत ५.९(दस्युपति द्वारा पुत्र कामना से भद्रकाली को बलि देने का संकल्प, वध हेतु जड भरत का बन्धन, भद्रकाली का प्राकट्य, दस्युओं के विनाश का वृत्तान्त), ८.१०.३१(भद्रकाली का शुम्भ - निशुम्भ से युद्ध), १०.२.११(यशोदा के गर्भ से जन्म लेने वाली योगमाया के अनेक नामों में से एक), मत्स्य २२.७४(भद्रकालेश्वर : श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), मार्कण्डेय ८३.८/८१.८(भद्रकाली का महिषासुर की सेना से युद्ध), वामन ५७.९४(त्रिविष्टप द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), वायु ९.९४(भद्रकाली के पर्यायवाची नाम), ३०.१४०(भद्रकाली द्वारा वीरभद्र के साथ दक्ष यज्ञ के विध्वंस का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२३(ललाट में भद्रकाली की स्थिति का उल्लेख), १.२३५.४(पार्वती की देह से भद्रकाली की उत्पत्ति, दक्ष यज्ञ का विध्वंस, वर प्राप्ति), २.१५८(भद्रकाली देवी की पूजा विधि का कथन), ३.७१.८(भद्रकाली देवी की मूर्ति का रूप), ३.१७५(भद्रकाली देवी की संक्षिप्त पूजा विधि), शिव २.५.३५.८(भद्रकाली की शिव के वाम भाग में स्थिति), स्कन्द ४.२.५५.७ (वीरभद्र की भार्या), ४.२.७०.४४(भद्रकाली देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.६७.९ (कुटुम्ब तीर्थ में भद्रकाली की उपस्थिति का कथन), ५.२.८२.२१(क्रुद्ध पार्वती के नासाग्र मर्दन से भद्रकाली की उत्पत्ति, दक्ष यज्ञ विध्वंस), ७.१.२९१(भद्रकाली देवी का माहात्म्य, भद्रकाली द्वारा दक्ष यज्ञ का विध्वंस ) bhadrakaalee/ bhadrakali


      भद्रक्रिय पद्म ७.२१.३४(ब्राह्मण, पादोदक से भषक/शुन: की मुक्ति ) bhadrakriya


      भद्रङ्कर कथासरित् ८.४.८५(सूर्यप्रभ की सेना का एक महारथी, कालकम्पन द्वारा वध), ८.५.६९(विद्याधर, विश्वावसु की पत्नी से उत्पत्ति, प्रभास से युद्ध )


      भद्रचारु भागवत १०.६१.८(कृष्ण व रुक्मिणी के १० पुत्रों में से एक), मत्स्य ४७.१६(वही) bhadrachaaru


      भद्रतनु पद्म ७.१७.९(भ्रष्ट ब्राह्मण, दान्त द्वारा उपदेश, हरि दर्शन )


      भद्रनामा हरिवंश २.९१(नट, ऋषियों से वर प्राप्ति )


      भद्रबाहु ब्रह्माण्ड २.३.७१.१७०(शठ के पुत्रों में से एक), २.३.७१.२५०(कृष्ण व जाम्बवती के पुत्रों में से एक), विष्णु ४.१५.२२(रोहिणी के कुल के पुत्रों में से एक), कथासरित् १२.२.४७(मगध का राजा, मन्त्रगुप्त नामक अपने मन्त्री की बुद्धिमत्ता से धर्मगोप - कन्या अनङ्गलीला की प्राप्ति ) bhadrabaahu


      भद्रम ब्रह्माण्ड २.३.५९.११(कलि - पुत्र, एक हस्त, पूतना - पति, नैर्ऋत राक्षस - पिता )


      भद्रमति नारद १.११.१३९(सुघोष विप्र को भूमि दान से भद्रमति को सुकृत लोक की प्राप्ति), स्कन्द २.१.२०(कामिनी - पति भद्रमति द्वारा भू दान से विष्णु का साक्षात्कार), लक्ष्मीनारायण १.४०३.३२(कञ्चन - पति दरिद्र भद्रमति द्विज द्वारा भूमि दान से विष्णु के दर्शन व धनी होने का वृत्तान्त ) bhadramati


      भद्रमदा वा.रामायण ३.१४.२१(क्रोधवशा की १० कन्याओं में से एक, इरावती - माता, ऐरावत - मातामही ) bhadramadaa

      भद्ररथ ब्रह्माण्ड २.३.७१.१७०(शठ के पुत्रों में से एक), मत्स्य ४८.९९(हर्यङ्ग - पुत्र, बृहत्कर्मा - पिता), वायु ९६.१६८/२.३४.१६८(रोहिणी कुल के पुत्रों में से एक), ९९.१०९/२.३७.१०५(हर्यङ्ग - पुत्र, बृहत्कर्मा - पिता), विष्णु ४.१८.२२(हर्यङ्ग - पुत्र, बृहद्रथ - पिता, अङ्ग वंश ) bhadraratha


      भद्रवती ब्रह्माण्ड २.३.५६.५२(गङ्गा की ४ शाखाओं में से एक), २.३.७०.४७ (पुरुद्वान् - पत्नी, पुरूद्वह - माता), २.३.७१.२५०(कृष्ण व जाम्बवती - कन्या ) bhadravatee/ bhadravati


      भद्रविन्द विष्णु ५.३२.३(कृष्ण व नाग्नजिती के पुत्रों में से एक )


      भद्रश्रवा गर्ग ७.३२.५(धर्म - पुत्र, भद्राश्व देशाधिपति, प्रद्युम्न से शकुनि दैत्य को विजित करने की प्रार्थना), देवीभागवत ८.८.२१(भद्रश्रवा द्वारा भद्राश्व वर्ष में हयग्रीव की आराधना), पद्म ४.११.५(सुरति चन्द्रिका - पति, श्यामा - पिता, ब्राह्मणी रूप धारी लक्ष्मी द्वारा भद्रश्रवा को गुरुवार व्रत का उपदेश), भागवत ५.१८.१(भद्राश्व वर्ष में भद्रश्रवा द्वारा हयग्रीव की उपासना विधि ) bhadrashravaa


      भद्रश्रेण्य वायु ९२.६१/२.३०.६१(दिवोदास द्वारा भद्रश्रेण्य के राज्य का अपहरण व भद्रश्रेण्य - पुत्र दुर्दम द्वारा पुन: प्राप्ति का कथन), ९४.६/२.३२.६(महिष्मान् - पुत्र, दुर्मद - पिता, वाराणसी - अधिपति), विष्णु ४.८.१२(दिवोदास - पुत्र प्रतर्दन द्वारा भद्रश्रेण्य के वंश के विनाश का उल्लेख), ४.११.१०(महिष्मान् - पुत्र, दुर्दम - पिता), हरिवंश १.२९.३३(वाराणसी पुरी का अधिपति, दिवोदास द्वारा राज्य का अपहरण, भद्रश्रेण्य - पुत्र दुर्दम द्वारा राज्य की पुन: प्राप्ति ) bhadrashrenya


      भद्रसुन्दरी मत्स्य १३.३६(विकूट में देवी की भद्रसुन्दरी नाम से स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१९८.७३(भद्रसुन्दरी देवी की त्रिकूट में स्थिति ) bhadrasundaree/ bhadrasundari


      भद्रसेन ब्रह्माण्ड २.३.६७.६५(दिवोदास द्वारा भद्रसेन के दुर्मद पुत्र के अतिरिक्त अन्य १०० पुत्रों को मारकर वाराणसी पर अधिकार का उल्लेख), २.३.६९.६(महिष्मान् - पुत्र, दुर्मद - पिता), २.३.७१.१७५(कंस द्वारा घातित वसुदेव व देवकी के ६ पुत्रों में से एक), भागवत ९.२३.२२(महिष्मान् - पुत्र, दुर्मद - पिता, हैहय/यदु वंश), ९.२४.५४(वसुदेव व देवकी के ८ पुत्रों में से एक), १०.१८.२४(प्रलम्बासुर वध के संदर्भ में भद्रसेन गोप के वृषभ का वाहन बनने का उल्लेख), मत्स्य ४४.४५(भद्रसेनी : विदर्भ - कन्या, पुरुद्वान - पत्नी, जन्तु - माता), विष्णु ४.१५.२६(कंस द्वारा घातित वसुदेव व देवकी के ६ पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.३.२०.१६(भद्रसेन द्वारा पराशर से रुद्राक्ष माहात्म्य का श्रवण : रुद्राक्ष धारण से मर्कट व कुक्कुट का राजपुत्र व मन्त्री - पुत्र बनना), ३.३.२१(भद्रसेन द्वारा पराशर से रुद्राध्याय के माहात्म्य का श्रवण ) bhadrasena


      भद्रसोमा वायु ४२.६४(मेरु कूट से निर्गत भद्रसोमा नदी के अनेक पर्वत शिखरों से होते हुए पश्चिम समुद्र में विलीन होने का कथन ) bhadrasomaa


      भद्रा अग्नि ४१.२४(कश्यप - पुत्र, महिमा ; पृथ्वी का नाम), ६५.२०(कश्यप - पुत्री, महिमा, गृह में निवास हेतु प्रार्थना), १२३.१३(तिथि अनुसार भद्रा के नाम व दिशा विन्यास), १२५.३८(भद्रा तिथि संज्ञा का निरूपण), गरुड ३.२०.२(नल-पुत्री भद्रा द्वारा कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के प्रयासों का वृत्तान्त), ३.२०.८१(कैकेयी का भद्रा रूप में अवतरण), गर्ग १.३.३८(कृष्णावतार के समय लज्जा का भद्रा नाम से प्राकट्य), पद्म ५.७२.१२(सुभद्र - कन्या, कृष्ण - पत्नी , पूर्व जन्म में सत्यतपा मुनि), ६.१६९.१(भद्रा नदी के वार्त्रघ्नी नदी के साथ मिलकर समुद्र से सङ्गम का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०१(उदारधी - पत्नी, दिवञ्जय - माता), २.३.३.७४(रोहिणी गौ की ४ कन्याओं में से एक, अवि जाति की माता होने का उल्लेख), २.३.८.७५(भद्राश्व व घृताची की १० अप्सरा कन्याओं में से एक, तृतीय प्रजापति की पत्नियों में से एक), २.३.७१.१६१(भद्रवैशाखी : वसुदेव की १३ भार्याओं में से एक), २.३.७१.१७३(भद्रा व वसुदेव के ४ पुत्रों के नाम), ३.४.४४.५९(वर्ण शक्तियों में से एक), ३.४.४४.९०(भ वर्ण की शक्ति, ६ शक्तियों में से एक), भविष्य १.१०१(भद्रा सप्तमी व्रत का माहात्म्य), ४.११७(सूर्य व छाया - पुत्री, विष्टि उपनाम, कौलव आदि करणों के अन्त में वास, १२ उपनाम, विष्टि चक्र पूजा विधि), भागवत ५.२.२३(मेरु की ९ कन्याओं में से एक, आग्नीध्र - पुत्र भद्राश्व? की पत्नी), ५.१७.५(गङ्गा की ४ धाराओं में से एक), ५.१७.८(भद्रा नदी के मेरु शिखर के उत्तर से निकल कर उत्तर दिशा के समुद्र में मिलने का कथन), ९.२४.४५(वसुदेव की पत्नियों में से एक), १०.५८.५६ (श्रुतकीर्ति - पुत्री, सन्तर्दन - भगिनी, कृष्ण का पाणिग्रहण), १०.६१.१७(कृष्ण व भद्रा के पुत्रों के नाम), १०.८३(भद्रा द्वारा स्वयं के कृष्ण द्वारा पाणिग्रहण का द्रौपदी से वर्णन), मत्स्य १३.३१(भद्रेश्वर तीर्थ में देवी की भद्रा नाम से स्थिति), मार्कण्डेय ७६.३(अनमित्र - भार्या, जातिस्मर पुत्र की माता), वायु ४४.१८ (केतुमाल देश की नदियों में से एक), ६९.१५१/२.८.१४६(अनुह्राद - कन्या, रजतनाभ - भार्या, मणिवर व मणिभद्र - माता), ६९.३२८/२.८.३१९(गरुड की पत्नियों में से एक), ७०.६७/२.९.६८(भद्राश्व व घृताची - पुत्री, अत्रि - पत्नी, सोम - माता), ९६.१६०/२.३४.१६०(वसुदेव की १३ पत्नियों में से एक), ९६.१७१/२.३४.१७१(वसुदेव व भद्रा के ४ पुत्रों के नाम), विष्णु २.२.३४(उत्तरवर्ती गङ्गा का नाम, उत्तर के गिरियों का प्लावन करते हुए उत्तर समुद्र में विलीन होने का कथन), ४.१५.१८(वसुदेव की पत्नियों में से एक), स्कन्द ७.१.२०.४०(भद्राश्व व घृताची की १० अप्सरा संततियों में से एक, प्रभाकर - भार्या, सोम - माता), ७.१.३३३.१०(भद्रा सङ्गम का माहात्म्य), ७.४.४२? (भद्रा गोपी द्वारा कृष्ण विरह पर प्रतिक्रिया), लक्ष्मीनारायण १.१६१.७(भद्रा नदी के पिङ्गला नाडी का रूप होने का उल्लेख), १.५४३.७३, २.१७५.३३(देह के अङ्गों के अनुसार भद्रा तिथि का विभाजन एवं शुभाशुभ फल), २.२६५.३(भद्रा नदी तट के निवासी अजापाल पार्ष्णिरद शूद्र का वृत्तान्त), ३.९.८३ (तुङ्गभद्रासना योगिनी की याचना पर महालक्ष्मी का योगिनी - पुत्री सर्वभद्रा रूप में जन्म, सर्वभद्रा द्वारा अरण्य में राक्षसों का विनाश, तुङ्गभद्रा द्वारा सूर्य की गति का रोधन करना आदि), ४.२८.२(भद्रिका तट पर निगडभ्रम कैवर्त्त द्वारा मत्स्य से शाप प्राप्ति, पिपठायन ऋषि के सत्संग से कैवर्त्त की मुक्ति आदि), कथासरित् ३.४.२१५(विद्याधरी, विदूषक से विवाह ) bhadraa


      भद्रायु शिव ३.२७.४(द्विज रूप धारी शिव द्वारा राजा भद्रायु की परीक्षा, मायामय व्याघ्र| द्वारा द्विज पत्नी का वध, शिव का द्विजेश अवतार), स्कन्द ३.३.१०.९३ (वज्रबाहु - पुत्र, वैश्य गृह में पालन, ऋषभ योगी की कृपा से पुन: संजीवन, पूर्व जन्म में मन्दर ब्राह्मण, ऋषभ से शिव कवच प्राप्ति, राज्य प्राप्ति का उद्योग), ३.३.१३.६४+ (भद्रायु का कीर्तिमालिनी से विवाह, द्विज पत्नी की व्याघ्र| से रक्षा में असफलता, शिव का दर्शन व स्तुति ) bhadraayu/ bhadrayu


      भद्रावती गर्ग १०.२१.१०(भद्रावती पुरी का यौवनाश्व राजा), वायु ९६.२४१/ २.३५.२४१(जाम्बवती व कृष्ण की २ कन्याओं में से एक), कथासरित् २.५.६(वासवदत्ता के वाहन भद्रवती हस्तिनी की विशिष्टताओं का वर्णन ) bhadraavatee/ bhadravati


      भद्राश्व गर्ग ७.३२(भद्राश्व वर्ष में प्रद्युम्न का आगमन, भद्रश्रवा के अनुरोध पर शकुनि पर आक्रमण), पद्म ६.१८०.२२(देवता, हंस रूप धारण कर राजा ज्ञानश्रुति की नगरी में आगमन), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६९(शठ के पुत्रों में एक, रोहिणी - कुल), भागवत ५.२.१९(आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, भद्रा - पति), ५.१६.१०(केतुमाल व भद्राश्व वर्ष की सीमा निर्धारित करने वाले पर्वतों के नाम), ५.१७.६(सीता नदी द्वारा भद्राश्व वर्ष को प्लावित करने का उल्लेख), ५.१८.१(भद्राश्व वर्ष में धर्म - पुत्र भद्रश्रवा द्वारा हयग्रीव की उपासना का वृत्तान्त), ९.६.२४(धुन्धु असुर की मुखाग्नि से भस्म होने से बचे कुवलयाश्व के ३ पुत्रों में से एक), मत्स्य ४९.४(रहंवर्चा - पुत्र भद्राश्व के घृताची अप्सरा से दस पुत्रों की उत्पत्ति, पूरु वंश), ५०.२(पृथु - पुत्र, मुद्गल, जय आदि पांच पुत्रों के पिता), ८३.३१(मन्दर पर्वत पर भद्राश्व वर्ष की स्थिति का उल्लेख), ११३.४४(मेरु पर्वत की ४ दिशाओं में स्थित देशों में पूर्व में भद्राश्व देश की स्थिति का उल्लेख), ११३.५२(भद्राश्व देश की महिमा का कथन), वराह ४९.६(भद्राश्व के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, अगस्त्य से संवाद), ५१+ (भद्राश्व - अगस्त्य संवाद के रूप में अगस्त्य गीता का आरम्भ), वायु ३३.४०(आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक), ३३.४४(भद्राश्व द्वारा पिता से माल्यवान् वर्ष का आधिपत्य प्राप्त करने का उल्लेख), ३४.५७(मेरु की पूर्व दिशा में भद्राश्व देश की स्थिति का उल्लेख), ४२.२४(सीता नदी द्वारा भद्राश्व द्वीप को प्लावित कर पूर्व समुद्र में विलीन होने का उल्लेख),४३.६(भद्राश्व वर्ष के निवासी, पर्वत, नदी आदि की महिमा का वर्णन), ७०.६८/ २.९.६८(भद्राश्व व घृताची से १० सन्ततियों की उत्पत्ति), ८८.६१/ २.२६.६१ (धुन्धु असुर की मुखाग्नि से भस्म होने से बचे कुवलाश्व के ३ पुत्रों में से एक), ९६.१६७(रोहिणी कुल के पुत्रों में से एक), विष्णु २.२.५०(भद्राश्व में विष्णु की हयग्रीव रूप में स्थिति का उल्लेख), ४.१५.२२(रोहिणी कुल के पुत्रों में से एक), स्कन्द ५.२.३१(प्रियव्रत - पुत्र, कान्तिमती - पति, अगस्त्य द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, भद्राश्व द्वारा खण्डेश्वर लिङ्ग की आराधना), ७.१.२०.३९ (भद्राश्व द्वारा घृताची से १० कन्याओं की उत्पत्ति, कन्याओं का प्रभाकर - पत्नियां बनना), लक्ष्मीनारायण १.५४६.४०(हरि भक्ति से रहित राजा भद्राश्व व उसकी पत्नी कान्तिमती को अगस्त्य के उपदेश का वर्णन), १.५४७(अगस्त्य द्वारा भद्राश्व को गुरु की महिमा का वर्णन, मोक्षोपाय के रूप में मुक्तपाल राजा द्वारा अरण्य में बुद्धि नामक स्त्री से महान् नामक पुत्र और उसकी सन्ततियों को उत्पन्न करने के रूपक का वर्णन ) bhadraashva/ bhadrashva


      भद्रिका लक्ष्मीनारायण १.४९९.७(क्रथ विप्र - भगिनी भद्रिका द्वारा नागमाता रेवती को वंश नाश के शाप का वृत्तान्त, तक्षक द्वारा भद्रिका के हरण पर भद्रिका द्वारा तक्षक को मनुष्य बनने का शाप ), द्र. भट्टिका bhadrikaa


      भद्रेश्वर पद्म १.७९.१(भद्रेश्वर राजा द्वारा कुष्ठ से मुक्ति के लिए सूर्य की पूजा), मत्स्य १३.३१(भद्रेश्वर में देवी की भद्रा नाम से स्थिति का उल्लेख), २२.२५(पिण्ड प्रदान हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक )


      भनन्दन ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७.१३४(नृप, कलावती - पिता, कलावती का वृषभानु से विवाह )


      भय ब्रह्मवैवर्त्त २.११.६४(शान्ति गोपी की देह से उत्पन्न भय का विश्व में विभाजन), भागवत ४.८.४(कलि व दुरुक्ति - पुत्र, भय व मृत्यु से यातना व निरय की उत्पत्ति), ४.२७.२३(कालकन्या दुर्भगा द्वारा भय को पति बनाने की उत्सुकता, भय का कालकन्या को भगिनी बनाने का कथन), ४.२८.२२(भय द्वारा राजा पुरञ्जन को पकडने का कथन), ४.२९.२२(यवनराज भय का लाक्षणिक अर्थ : मृत्यु, आधि - व्याधियों के यवनराज के सैनिक होने का कथन), ६.६.११(द्रोण व अभिमति के पुत्रों में से एक), ७.१.३०(कंस द्वारा भय रूपी कृष्ण भक्ति से ईश्वर प्राप्ति का उल्लेख), ११.२.३३(भय के कारण व निवृत्ति के उपाय), मत्स्य १२२.२१(गतभय : उदय वर्ष का अपर नाम), वायु १०.३८(निकृति व अनृत के २ पुत्रों में से एक, भय व माया से मृत्यु की उत्पत्ति का उल्लेख), ४९.१३(शान्तभय : गोमेद वर्ष का दूसरा नाम), ६२.४३/२.१.४३(तामस मनु के पुत्रों में से एक), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.१२(भय से निवृत्ति हेतु नृसिंह की पूजा), स्कन्द ५.३.२०९.५४(भयत्राता : पिता के ५ प्रकारों में से एक), महाभारत अनुशासन ११५.२६(मांस भक्षण न करने से भय की प्राप्ति न होने का कथन), लक्ष्मीनारायण २.५.७९(हिरण्यकूर्च असुर द्वारा ब्रह्म के कमल का कम्पन करने पर ब्रह्मा के ह्रदय से उत्पन्न ८ पुत्रों में द्वितीय), कथासरित् २.२.७(विगतभय : यज्ञसेन द्विज - पुत्र, कालनेमि - भ्राता), २.२.१७४(विगतभय : मथुरा नरेश - मन्त्री, श्रीदत्त - पितृव्य/चाचा ) bhaya


      भयंकर देवीभागवत ९.२२.५(शङ्खचूड - सेनानी, मृत्यु से युद्ध), कथासरित् ८.२.३८२(पूर्व जन्म में उपसुन्द दानव, वर्तमान में सूर्यप्रभ का मन्त्री एवं मित्र )


      भया ब्रह्माण्ड ३.४.३५.९६(रुद्र की १० कलाओं में से एक), वामन ४७.६(काल व मृत्यु - कन्या , वेन की माता), वायु ९६.१७७/२.३४.१७७(भयासख : वसुदेव व सहदेवा - पुत्र), वा.रामायण ७.४.१६(काल - भगिनी, हेति - पत्नी, विद्युत्केश - माता ) bhayaa


      भर ब्रह्म २.५७.३( आर्ष्टिषेण व जया - पुत्र, सुप्रभा - पति, भर के पिता के मिथु दानव द्वारा हरण की कथा ), द्र. शम्बर, सम्भर bhara


      भरणी वायु ८२.१४/२.२०.१४(भरणी नक्षत्र में श्राद्ध करने से आयु प्राप्ति का उल्लेख ), द्र. नक्षत्र bharanee/ bharani


      भरत अग्नि १०७.१०(ऋषभ - पुत्र, भरत से भारतवर्ष नाम की प्रसिद्धि, सुमति - पिता, वंश नामावलि), ३८०(जड भरत द्वारा सौवीर नरेश को अद्वैत ब्रह्म का उपदेश), गरुड ३.२८.३०(काम का अवतार, भरत नाम का कारण - यो रामभ्राता भरतः काम एवाभवद्भुवि । रामाज्ञां भरते यस्मात्तस्माद्भरतनामकः ॥), ३.२८.४५(राम-भ्राता, बृहस्पति का अम्भः युक्त अंश - रामावतारे भरताख्यो बभूव ह्यंभोजजावेशयुतो बृहस्पतिः ॥), नारद १.४८+ (जड भरत चरित्र : मृग शावक में आसक्ति के कारण भरत का मृग बनना, पुन: ब्राह्मण जन्म होने पर सौवीर नरेश की शिबिका का वहन करना), पद्म १.३८(विभीषण से मिलने की जिज्ञासा से राम का भरत के साथ दक्षिणापथ गमन, भरत पुत्र के राष्ट्र का निरीक्षण, अनन्तर विभीषणादि से मिलन का वृत्तान्त), ५.२(रावण वध के पश्चात् राम का अयोध्या आगमन, राम व भरत का समागम), ५.६७.३७(माण्डवी – पति - सौमित्रिरप्यूर्मिलया मांडव्या भरतो नृपः । शत्रुघ्नः श्रुतकीर्त्या च कांतिमत्या च पुष्कलः ।), ६.१७८.४(मुनि, गीता के चतुर्थ अध्याय के कथन से बदरी वृक्ष द्वय का उद्धार), ६.२१८.३०(पुण्डरीक विप्र - भ्राता, दुष्ट चरित्र, पुष्कर तीर्थ के प्रभाव से स्वर्ग प्राप्ति), ६.२४२.९४(राम - भ्राता, पाञ्चजन्य शंख का अंश), ब्रह्म १.११.६०(भरत को भरद्वाज से वितथ नामक पुत्र की प्राप्ति?), ब्रह्माण्ड १.२.११.१८(भरत अग्नि : स्मृति व अंगिरस - पुत्र, सद्वती - पति, पर्जन्य – पिता - स्मृतस्त्वंगिरसः पत्नी जज्ञे सा ह्यात्मसंभवान् ।।पुत्रो कन्याश्चतस्रश्च पुण्यास्ता लोकविश्रुताः ।।), १.२.१२.८(ब्रह्मदत्ताग्नि / ब्रह्मोदन अग्नि का नाम, वैश्वानर – पिता - ब्रह्मो दत्ताग्निसत्पुत्रो भरतो नाम विश्रुतः । वैश्वानरः सुतस्तस्य वहन् हव्यं समाः शतम् ८ ।), १.२.१५.५०(मेरु के परित: स्थित ४ देशों में से एक), १.२.१६.६(प्रजा का भरण करने के कारण मनु के भरत होने का उल्लेख), २.३.६३.१९०(भरत - पुत्रों तक्ष व पुष्कर का संदर्भ), भविष्य ३.४.१५.६१(भरत के सुदर्शन चक्र व प्रद्युम्न का अंश होने का उल्लेख - सुदर्शनश्च भरतो हरेः शङ्खस्ततोऽनुजः । ।), भागवत ५.४.९(ऋषभ व जयन्ती के १०० पुत्रों में ज्येष्ठ, भरत के नाम से भारतवर्ष नाम का प्रथन), ५.५.२८(ऋषभ द्वारा भरत का राज्याभिषेक कर वन गमन का उल्लेख), ५.७+ (ऋषभ व जयन्ती - पुत्र, पञ्चजनी - पति, मृग मोह में फंसकर मृग योनि में जन्म, ब्राह्मण कुल में जन्म, यज्ञ - पशु बनना, रहूगण राजा को उपदेश), ५.९.२(भरत के ब्राह्मण कुल में जन्म का कथन), ५.१०+ (जड भरत द्वारा राजा रहूगण की शिबिका का वाहक बनना तथा रहूगण से संवाद), ५.१५.१(भरत वंश का वर्णन), ९.१०.३४(राम के वनवास से प्रत्यागमन पर भरत द्वारा राम के स्वागत का वर्णन, भरत के तप का कथन), ९.११.१२(तक्ष व पुष्कल - पिता भरत द्वारा गन्धर्वों पर विजय पाने का कथन), ९.२०.१८(दुष्यन्त व शकुन्तला से भरत की उत्पत्ति का वृत्तान्त, शरीर के लक्षण, यज्ञ कर्म का वर्णन, पुत्रों के मरण पर मरुतों द्वारा भरद्वाज को पुत्र रूप में देना), ११.२.१७(ऋषभ - पुत्र भरत द्वारा ३ जन्मों में तप द्वारा श्रेष्ठ पदवी प्राप्त करने का कथन), मत्स्य ३.१२(मुनि, ब्रह्मा के कर मध्य से उत्पत्ति - भरतः करमध्यात्तु ब्रह्मसूनुरभूत्ततः।), २४.२९(मुनि, उर्वशी की पुरूरवा पर आसक्ति के कारण उर्वशी को शाप), ४८.२(करन्धम – पुत्र), ४९.११(दुष्यन्त द्वारा शकुन्तला - पुत्र भरत को स्वीकार करने तथा भरत द्वारा ममता व बृहस्पति - पुत्र भरद्वाज को स्वीकार करने का वृत्तान्त), ४९.२६(राजा, भरद्वाज की पुत्र रूप में प्राप्ति), ५१.८(पावन अग्नि - पुत्र, ब्रह्मोदन उपनाम - पावनो लौकिको ह्यग्निः प्रथमो ब्रह्मणश्च यः । ब्रह्मौदनाग्निस्तत्पुत्रो भरतो नाम विश्रुतः ।), ११४.५(भरत शब्द की निरुक्ति के कारण मनु की भरत संज्ञा का कथन, भारत का वर्णन - भरणात्प्रजनाच्चैव मनुर्भरत उच्यते।। ), लिङ्ग २.५.१४७(भरत श्रीहरि की दक्षिण बाहु का अवतार, शत्रुघ्न सव्य बाहु का अवतार - तत्र मे दक्षिणोबाहुर्भरतो नाम वै भवेत्।। शत्रुघ्नो नाम सव्यश्च शेषोऽसौ लक्ष्मणः स्मृतः।।), वायु २८.१४(भरताग्नि : स्मृति व आङ्गिरस के २ पुत्रों में से एक - स्मृतिश्चाङ्गिरसः पत्नी जज्ञे तावात्मसम्भवौ।..तथैव भरताग्निञ्च कीर्त्तिमन्तञ्च तावुभौ ।।), २९.७(ब्रह्मोदन अग्नि का नाम - वैद्युतो लौकिकाग्निस्तु प्रथमो ब्रह्मणः सुतः।
      ब्रह्मौदनाग्निस्तत्पुत्रो भरतो नाम विश्रुतः ।। ), ३३.५२(ऋषभ द्वारा भरत को दक्षिण हिम वर्ष देने का उल्लेख, सुमति - पिता), ३४.५७(मेरु के परित: ४ देशों में से एक), ४१.८४(पद्म रूपा पृथिवी के ४ महाद्वीपों में से एक), ६९.१४/२.८.१४ (भरता : सुयशा गन्धर्वी की ४ दुहिताओं में से एक), ८८.१८८/२.२६.१८८(भरत के पुत्र - द्वय तक्ष व पुष्कर का कथन), ९९.१३४/२.३७.१३०(दुष्यन्त व शकुन्तला - पुत्र, भरत नाम प्राप्ति का कारण, भरत के पुत्रों के नष्ट होने व मरुतों द्वारा भरद्वाज पुत्र प्रदान करने की कथा), १०८.३३/२.४६.३३(गया में भरत द्वारा स्थापित राम तीर्थ में श्राद्ध आदि का माहात्म्य), विष्णु २.१.३२(भरत की उत्पत्ति, राज्याभिषेक, तप से विप्र कुल में जन्म, वंश वर्णन), २.१३+ (जड भरत चरित्र : मृग व ब्राह्मण योनि में जन्म, सौवीरराज को उपदेश आदि), ४.४.४६(राम - भ्राता भरत द्वारा गन्धर्वों पर विजय का कथन), ४.११.२४(तालजङ्घ के १०० पुत्रों में से एक, वृष - पिता), ४.१९(दुष्यन्त व शकुन्तला - पुत्र, भरद्वाज पुत्र प्राप्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.२०२.८(राम के आदेश पर भरत द्वारा शैलूष - पुत्रों का वध), १.२१२.२२(प्रद्युम्न का अंश होने का उल्लेख - प्रद्युम्नस्य तथांशेन भरतो धर्मवत्सलः ।। अनिरुद्धस्य चांशेन शत्रुघ्नः सुमहाबलः ।।), १.२५४(भरत वध हेतु शैलूष द्वारा विचारणा तथा गन्धर्वों को निर्देश), १.२६१+ (भरत का शैलूष से युद्ध व वध), ३.१२१.५(केकय देश में भरत की पूजा का निर्देश - शत्रुघ्नं मथुरायां च दण्डकेषु च लक्ष्मणम् ।। भरतं केकयेष्वेव यमुनायां तथा बलिम् ।। ), स्कन्द २.८.९.५०(भरत कुण्ड का माहात्म्य), ७.१.१७२(भरतेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, भरत द्वारा ८ पुत्र व १ कन्या की प्राप्ति, भरत द्वारा भारत के विभाग करना ), ७.१.१७२.२(भरत की आग्नीध्र नाम से प्रसिद्धि - भरतोनाम राजाऽभूदाग्नीध्रः प्रथितः क्षितौ ॥ यस्येदं भारतं वर्षं नाम्ना लोकेषु गीयते ॥ ), ७.१.२३४(भरत द्वारा प्रभास में दस अश्वमेध करके लिङ्ग स्थापन, दशाश्वमेध तीर्थ लिङ्ग का माहात्म्य), वा.रामायण २.७१(भरत की राजगृह से अयोध्या यात्रा में मार्ग के ग्रामों व नगरों के नाम), ६.१२५+ (हनुमान से राम वनवास के वृत्तान्त का श्रवण), ७.१००(गन्धर्व देश पर आक्रमण के लिए प्रस्थान), लक्ष्मीनारायण १.४२१.१३(भरत का कुम्भ पर्व हेतु प्रयाग गमन, भरद्वाज - पत्नी त्रिवेणी द्वारा भरत के स्वागतार्थ नवीन स्वर्ग की सृष्टि का वर्णन), ३.३२.९(ब्रह्मोदन अग्नि – पुत्र - अग्नेश्चतुर्थं पुत्रं ब्रह्मौदनाग्निमभक्षयत् । ब्रह्मौदनाग्निपुत्रं च भरतं चाप्यभक्षयत् ।। ), द्र. जड भरत bharata

      Comments on Bharata


      Esoteric aspect of Bharata


      भरद्वसु ब्रह्माण्ड १.२.३२.११५(७ ब्रह्मवादी वाशिष्ठों में से एक), मत्स्य १४५.११०(वही), वायु ५९.१०५(वसिष्ठ कुल के मन्त्रब्राह्मणकारों में से एक),


      भरद्वाज अग्नि २७८.८(भरद्वाज वंश का वर्णन), कूर्म १.१७.४८(भरद्वाज द्वारा प्रेरित करने पर विष्णु द्वारा वामन रूप धारण कर बलि के यज्ञ में जाने का उल्लेख), १.२०.४०(भरद्वाज द्वारा राजा वसुमना को मुक्ति के उपाय का कथन), देवीभागवत १.३.२९(१२वें द्वापर में व्यास), ३.१५.४९(राज्य से च्युत रानी मनोरमा व राजकुमार सुदर्शन को भरद्वाज द्वारा आश्रम में शरण), नारद १.४२+ (जीव की नानायोनियों में विचरण की भरद्वाज की शंका , भृगु द्वारा उत्तर), पद्म १.१९.२४९ (हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व मृणाल चोरी पर भरद्वाज की प्रतिक्रिया- तृष्णा वर्धन), १.३४.१८(ब्रह्मा के यज्ञ में भरद्वाज के त्रिसामाध्वर्यु/चमसाध्वर्यु होने का उल्लेख), ब्रह्म १.९.३८(धनु - पुत्र धन्वन्तरि द्वारा भरद्वाज से आयुर्वेद ज्ञान की प्राप्ति), २.५१.२(भरद्वाज की कुरूप भगिनी रेवती का शिष्य कठ से विवाह), २.६३.२(पैठीनसी - पति भरद्वाज के यज्ञ में पुरोडाश भक्षक हव्यघ्न की उत्पत्ति, गङ्गा जल प्रोक्षण से शुक्लता), ब्रह्मवैवर्त २.४.५७(भरद्वाज द्वारा शेष से सरस्वती मन्त्र प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५०(उत्तर के देशों/जातियों में से एक), १.२.३२.१०१(सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषिकों में से एक), १.२.३२.१११(३३ मन्त्रकृत आङ्गिरस ऋषियों में से एक), १.२.३३.७(सामग? आचार्यों में से एक), १.२.३५.१२१ (१९वें द्वापर में व्यास, १२वें द्वापर में सनद्वाज), १.२.३८.२७(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), भविष्य ३.४.२१.१३(कलियुग में भरद्वाज का कण्व - दौहित्र के रूप में जन्म), भागवत ९.२०.३५(उतथ्य - पत्नी ममता व बृहस्पति से भरद्वाज की उत्पत्ति, भरत - पुत्र बनना), मत्स्य ९.२७(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), ४९.१५( बृहस्पति व ममता से उत्पत्ति की कथा, भरत का पुत्र बनना, वितथ उपनाम), १२६.१३(इष - ऊर्ज मासों में सूर्य रथ पर भरद्वाज व गौतम ऋषियों की स्थिति का उल्लेख), १४५.९५(भरद्वाज द्वारा सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख), महाभारत अनुशासन ३४.१७( भृगवस्तालजङ्घांश्च नीपानाङ्गिरसोऽजयन्। भरद्वाजो वैतहव्यानैलांश्च भरतर्षभ।। ), लिङ्ग १.२४.९१(१९वें द्वापर में भरद्वाज व्यास के साथ जटामाली शिव का कथन), वामन २.९(अमाया - पति), ६.८९ (पाशुपत सम्प्रदाय के आचार्यों में से एक), ८९.४३(भरद्वाज द्वारा वामन का उपनयन व वामन से संवाद), ८९.४५(भरद्वाज द्वारा वामन को मेखला प्रदान का उल्लेख), वायु ५९.१०१(३३ मन्त्रकार अङ्गिरस ऋषियों में से एक), ९२.२२/२.३०.२२(भरद्वाज ऋषि द्वारा आयुर्वेद का प्रणयन, पश्चात् धन्वन्तरि द्वारा उसी का ८ भागों में विभाजन), ९९.१३९/२.३७.१३५(बृहस्पति व ममता से भरद्वाज की उत्पत्ति, भरत - पुत्र बनने की कथा), ९९.१५७/२.३७.१५३(भरत - पुत्र बनने पर दिव्य भरद्वाज के ब्राह्मण से क्षत्रिय बनने का कथन), ९९.२८६/२.३७.२८३(अमित्रजित् - पुत्र, धर्मी - पिता, भविष्य के इक्ष्वाकु वंशी राजाओं में से एक), १०३.६३/२.४१.६३(भरद्वाज द्वारा तृणञ्जय से ब्रह्माण्ड? पुराण का श्रवण कर गौतम को सुनाने का उल्लेख), विष्णु २.१०.१२(कार्तिक मास में विवस्वान् सूर्य के रथ पर भरद्वाज ऋषि की स्थिति का उल्लेख), ३.३.१४(१२वें व १९वें द्वापर में वेदव्यास के रूप में भरद्वाज का उल्लेख), ४.१९.१६(बृहस्पति व ममता से भरद्वाज की उत्पत्ति, भरत द्वारा प्राप्ति, वितथ उपनाम, नाम निर्वचन), विष्णुधर्मोत्तर १.२१९.४(देववर्णिनी - पिता भरद्वाज द्वारा कन्या विश्रवा को प्रदान), शिव ३.५.२३(१९वें द्वापर में व्यास), स्कन्द १.२.५२.२०( भरद्वाजेश्वर सर का माहात्म्य), २.१.२८.६६(भरद्वाज द्वारा पद्मनाभ द्विज को ब्रह्महत्या से मुक्ति के उपाय का कथन), २.१.३०.३९+(भरद्वाज द्वारा अर्जुन को सुवर्णमुखरी नदी की उत्पत्ति के प्रसंग का कथन), ३.२.२३.११(भरद्वाज के ब्रह्मा के सत्र में प्रत्यध्वर्यु होने का उल्लेख), ३.३.९(भरद्वाज मुनि के उपदेश से सामवत नामक द्विज पुत्र द्वारा पुंस्त्व प्राप्ति हेतु जगदम्बा की उपासना, जगदम्बा के निर्देशानुसार स्त्रीत्व प्राप्त सामवत का सुमेध से विवाह), ४.२.७४.२(पद्मकल्पीय दमन - पिता), ५.३.१६८.९(भरद्वाज मुनि द्वारा विश्रवा को स्वसुता प्रदान, वैश्रवण का जन्म), ६.३२.४३(हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर भरद्वाज की प्रतिक्रिया- तृष्णा निग्रह), ६.१८०.३५(ब्रह्मा के यज्ञ में भरद्वाज के आग्नीध्र बनने का उल्लेख), ७.१.२५५.२८(हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर भरद्वाज की प्रतिक्रिया – तृष्णा निग्रह), हरिवंश १.१९+(भरद्वाज के योगभ्रष्ट पुत्रों की कथा), १.३२.१५(भरद्वाज के भरत - पुत्र वितथ होने के संदर्भ में स्पष्टीकरण), महाभारत अनुशासन ३४.१७(भरद्वाज द्वारा वैतहव्यों/हैहयों व ऐलों पर विजय प्राप्त करने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.२.८(भरद्वाज द्वारा वाल्मीकि से वसिष्ठ - राम संवाद का श्रवण), वा.रामायण १.२.५(वाल्मीकि – शिष्य, गुरु को वल्कल देना, क्रौञ्चवध प्रसंग में गुरु के साथ होने का कथन), २.५४(राम का भरद्वाज आश्रम में आगमन, भरद्वाज द्वारा राम को चित्रकूट में वास का परामर्श), २.९०+ (भरद्वाज द्वारा देवों के आवाहन द्वारा भरत का दिव्य सत्कार, राम वन गमन प्रसंग), ६.१२४(रावण वध के पश्चात् राम का भरद्वाज के आश्रम में आगमन, भरद्वाज द्वारा राम को वर), लक्ष्मीनारायण १.४२१(भरत के प्रयाग आगमन पर भरद्वाज - पत्नी त्रिवेणी द्वारा आतिथ्य हेतु नवीन स्वर्ग की सृष्टि का वर्णन), १.५०४.७६ (कपिञ्जल योगी व भरद्वाजी से भारद्वाज तथा भारद्वाज से तैत्तिर पुत्र के जन्म का उल्लेख), कथासरित् १.७.१५(राजा सातवाहन का पूर्वजन्म में कृष्ण नामक ऋषि तथा भरद्वाज - शिष्य होने का उल्लेख ), द्र. भारद्वाज, व्यास bharadvaaja/ bharadvaja


      भरुक भागवत ९.८.२(विजय - पुत्र, वृक - पिता, हरिश्चन्द्र वंश )


      भरुकच्छ मत्स्य ११४.५०(भारुकच्छ : दक्षिणापथ के जनपदों में से एक), कथासरित् १.६.७६(नर्मदा के तट पर स्थित स्थान )


      भर्ग भविष्य २.२.५.१७(आजिघ्रस्य मन्त्र(वा.सं. ८.४२) के ऋषि – आजिघ्रस्य च मन्त्रस्य ऋषिर्भर्ग उदाहृतः ।। पंक्तिश्छन्दश्च उद्दिष्टो देवता विष्णुरव्ययः ।। ), भागवत ९.१७.९( वीतिहोत्र - पुत्र, भार्गभूमि - पिता, आयु वंश -  वीतिहोत्रोऽस्य भर्गोऽतो भार्गभूमिरभून्नृप ॥), ९.२३.१६(वह्नि - पुत्र, भानुमान् - पिता, तुर्वसु वंश - तुर्वसोश्च सुतो वह्निः वह्नेर्भर्गोऽथ भानुमान् ॥), शिव १.१६.९५(भर्ग व गर्भ में सम्बन्ध - भर्गः पुरुषरूपो हि भर्गा प्रकृतिरुच्यते॥ अव्यक्तांतरधिष्ठानं गर्भः पुरुष उच्यते। सुव्यक्तांतरधिष्ठानं गर्भः प्रकृतिरुच्यते॥), १.१६.१०३(भगस्वामी च भगवान्भर्ग इत्युच्यते बुधैः॥), स्कन्द ५.३.१५२ (भार्गलेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - ततो गच्छेद्धरापाल भार्गलेश्वरमुत्तमम् । शङ्करं जगतः प्राणं स्मृतमात्राघनाशनम् ॥), लक्ष्मीनारायण ३.१००.१४६(रमा के पद्मावती रूप में जन्म ग्रहण करने पर भगवत् पार्षदों भर्ग व हेमन्त के भगवान् व हेम रूप में जन्म का कथन - पार्षदौ मे धामसंस्थौ भर्गो हेमन्त इत्यमू ।..भर्गोऽभवद्धि भगवान् हेमन्तो हेमसंज्ञकः ।।), ४.५१.२८(शिष्य सुरप्रसाद द्वारा गुरु भर्गचात्वाल की हत्या का वृत्तान्त), ४.१०१.८३(कृष्ण - पत्नी भागवती के भर्ग पुत्र तथा भाग्येश्वरी पुत्री का उल्लेख - भागवत्याः सुतो भर्गो पुत्री भाग्येश्वरी शुभा ।), कथासरित् ८.५.९६(श्रुतशर्मा के महारथी आरोहण की भर्ग? देव के अंश से उत्पत्ति - महौघारोहणोत्पातवेत्रवत्संज्ञकैः क्रमात् । त्वष्टुर्भगस्य चार्यम्णः पूष्णश्चाप्यात्मसंभवैः ।।) bharga


      भर्ता ब्रह्मवैवर्त्त ३.७.३९(भर्ता के १०० पुत्रों के बराबर और धर्म से अवर होने का कथन), स्कन्द २.४.३०टीका(तपोनिष्ठ ब्राह्मण द्वारा बलाकी को क्रोध से भस्म करना, पतिव्रता द्वारा भर्ता सेवा के पश्चात् तपोनिष्ठ को भिक्षा प्रदान करने की कथा ) bhartaa


      भर्तृयज्ञ स्कन्द १.२.१३.१०२(याज्ञवल्क्य का जन्मान्तर में नाम, महीसागर सङ्गम पर स्थिति, शतरुद्रिय कथन), ६.१९९+ (भर्तृयज्ञ द्वारा नागर ब्राह्मणों में शुद्धि विधि व्यवस्था देना), ६.२१५.२६(आनर्त अधिपति को श्राद्ध काल, द्रव्य आदि का कथन), ६.२७१.४१२(भर्तृयज्ञ का इन्द्रद्युम्न सहित दीर्घजीवियों से संवाद, स्व - नाम से लिङ्ग स्थापना का परामर्श), ६.२७१.१११(बक व उलूक दीर्घजीवियों की भर्तृयज्ञ के दर्शन पर मुक्ति का पूर्व कथन), ६.२७१.१७४(उलूक दीर्घजीवी की भर्तृयज्ञ के उपदेश से मुक्ति का पूर्वकथन), लक्ष्मीनारायण १.५१३.६४(भर्तृयज्ञ द्वारा क्षत्राणी व ब्राह्मणी सखी - द्वय को तप की विधि का वर्णन ) bhartriyajna


      भर्म्याश्व भागवत ९.२१.३१(अर्क - पुत्र, मुद्गलादि पाञ्चाल संज्ञक ५ पुत्रों के पिता ) bharmyaashva


      भलन्दन गर्ग १.८.२७(कान्यकुब्ज देशीय नृप, कलावती का कीर्ति रूप में यज्ञकुण्ड से प्राकट्य), ब्रह्माण्ड १.२.३२.१२१(३ मन्त्रकार वैश्य ऋषियों में से एक), भागवत ९.२.२३(नाभाग वैश्य - पुत्र, वत्सप्रीति - पिता, दिष्ट वंश), मत्स्य १४५.११६(भलन्दक : ३ मन्त्रकार वैश्य ऋषियों में से एक), १९७.७(त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), मार्कण्डेय ११४.६/१११.६(नाभाग वैश्य - पुत्र, माता द्वारा गोपालन का आदेश, पृथिवी जय हेतु नीप से अस्त्रों की प्राप्ति ) bhalandana


      भल्ल गणेश २.६४.४(देवान्तक - सेनानी, महिमा आदि सिद्धियों से युद्ध), भविष्य ३.३.८.२२(भीष्मसिंह द्वारा भैरव नामक भल्ल से शत्रुदेह का ताडन, कालिय द्वारा भल्ल से भीष्मसिंह का वध), ३.३.२१.७९(मकरन्द द्वारा शत्रुओं पर शनि भल्ल का प्रयोग, ब्रह्मास्त्र से शनि भल्ल का निष्फल होना), ३.३.२१.९३(शनि भल्ल के प्रयोग से मूर्च्छा प्राप्ति), स्कन्द ४.२.५८.१६२(शिव के रथ में कालाग्नि रुद्र के भल्ल बनने का उल्लेख), ७.१.३५२(भल्ल तीर्थ का माहात्म्य : भिल्ल द्वारा कृष्ण के पद का शर से वेधन), लक्ष्मीनारायण १.५५०.५२(भल्ल वल्ल निषाद द्वारा मृग की भ्रान्ति में भल्ल द्वारा विष्णु का हनन, स्वर्ग गमन ) bhalla


      भल्लवी शिव ३.५.३२(२२वें द्वापर में लाङ्गली नामक शिव अवतार के पुत्रों में से एक )


      भल्लाट अग्नि ९३.१७(वास्तु मण्डल के देवताओं में से एक), मत्स्य २५३.२७(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक), २५५.९(उद्कसेन - पुत्र, जनमेजय - पिता), २६८.१८(भल्लाट हेतु मुद्ग ओदन बलि का निर्देश), वायु ९९.१८२/२.३७.१७७(उदक्सेन - पुत्र, जनमेजय - पिता), हरिवंश १.२०.३२(दण्डसेन - पुत्र, राधा - पुत्र कर्ण द्वारा वध), द्र. वास्तु (मण्डल ) bhallaata


      भल्लाद भागवत ९.२१.२६(उदक्स्वन - पुत्र, बृहदिषु वंश), मत्स्य ४९.५९(भल्लाट : उदक्सेन - पुत्र, जनमेजय - पिता), विष्णु ४.१९.४७(भल्लाभ : उदक्सेन - पुत्र ) bhallaada


      भल्लूक ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.४८(मिथ्या साक्षी से भल्लूक बनने का उल्लेख), ४.९६.३६(जाम्बवान् नामक भल्लूक की अतिचिरजीवियों में गणना ), स्कन्द ७.१.१०.२०(प्रभास क्षेत्र में भल्लुका तीर्थ का कथन)


      भव अग्नि १०७.१४(प्रतिहर्त्ता - पुत्र, उद्गीथ - पिता, भरत वंश - प्रतीहारात्प्रतीहर्ता प्रतिहर्तुर्भुवस्ततः ॥ उद्गीतोथ च प्रस्तारो विभुः प्रस्तारतः सुतः ।), पद्म १.४०.८७(साध्यगण में से एक - भवं च प्रभवं चैव कृशाश्वं सुवहं तथा
      अरुणं वरुणं चैव विश्वामित्र चल ध्रुवौ॥), ब्रह्म २.८३(भव/भाव तीर्थ का माहात्म्य, प्राचीनबर्हि राजा को तृतीय नेत्र से महिमा नामक पुत्र की प्राप्ति - पुत्रं देहीति राजा वै भवं प्राह स भार्यया।। भवः प्राह नृपं प्रीत्या पश्य नेत्रं तृतीयकम्।), ब्रह्माण्ड १.२.९.५४(दक्ष द्वारा सती कन्या को भव हेतु देने का उल्लेख - सतीं भवाय प्रायच्छत्ख्यातिं च भृगवे तथा ॥), १.२.१०.३१(नीललोहित कुमार द्वारा प्राप्त भव, शर्व आदि ८ नाम, भव का वास स्थान - यस्माद्भवंति भूतानि ताभ्यस्ता भावयंति च । भवनाद्भावनाच्चैव भूतानामुच्यते भवः ।। ), १.२.१०.७७(धात्री - पति, उशना – पिता - भवस्य या द्वितीया तु आपो नाम्ना तनुः स्मृता । तस्या धात्री स्मृता पत्नी पुत्रश्च उशना स्मृतः ।।), २.३.१.१५(स्वायम्भुव मन्वन्तर के सप्तर्षियों का भव के शाप से वैवस्वत आदि मन्वन्तरों में पुन: उत्पन्न होने का कथन - भवाभिशाप संविद्धा अप्राप्तास्ते तदा तपः । उपपन्ना जने लोके सकृदागमनास्तु ते ॥), २.३.७२.८०(जम्भ द्वारा भव से अवध्यता वर प्राप्ति का उल्लेख - भवादवध्यतां प्राप्य विशेषास्त्रादिभिस्तु यः॥ स जंभो निहतः षष्ठे शक्राविष्टेन विष्णुना।), ३.४.३४.२६(दशम आवृत्ति के रुद्र देवताओं में से एक), भविष्य ३.४.१४.४१(एकादश रुद्रों में कनिष्ठ, भव से उत्पन्न पुत्र से तारक की मृत्यु का वर, भव का रामानुज रूप में अवतरण - मृगव्याधादयो मुख्या दशज्योतिस्समुद्भवाः । अहं तेषामवरजो भवो नामैव योगराट् ।), भागवत ४.१.४८(दक्ष द्वारा भव को एक कन्या देने का उल्लेख), ५.१७.१५(भव शिव का इलावृत्त वर्ष में वास - इलावृते तु भगवान्भव एक एव पुमान्न ह्यन्यस्तत्रापरो निर्विशति भवान्याः शापनिमित्तज्ञो यत्प्रवेक्ष्यतः स्त्रीभावस्तत्पश्चाद्वक्ष्यामि ), ६.६.१७ (भूत व सरूपा के ११ मुख्य रुद्र पुत्रों में से एक - सरूपासूत भूतस्य भार्या रुद्राश्च कोटिशः।
      रैवतोऽजो भवो भीमो वाम उग्रो वृषाकपिः), मत्स्य ४६.२२(वसुदेव व रथराजी - पुत्र, वृष्णि वंश - जरा नाम निषादोऽभूत् प्रथमः स धनुर्धरः। सौभद्रश्च भवश्चैव महासत्वौ बभूवतुः।।), १७१.४३(धर्म व साध्या से उत्पन्न देवों में से एक - भवञ्च प्रभवञ्चैव हीशञ्चासुरहं तथा। अरुण्यं चारुणिञ्चैव विश्वावसु बलध्रुवौ ।।), १८४.४ (अविमुक्त में भव की अतुल प्रीति प्राप्त होने का उल्लेख - भवस्य प्रीतिरतुला ह्यविमुक्ते ह्यनुत्तमा।), १९९.५(भवनन्दि : कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), २५०.५१(भव द्वारा कालकूट विष पान का आश्वासन - तच्छ्रुत्वा भगवानाह भगनेत्रान्तकृद्भवः। भक्षयिष्याम्यहं घोरं कालकूटं महाविषम् ।। ), २६५.४१(रुद्रों में भव रुद्र द्वारा जल की रक्षा का उल्लेख - भवो जलं सदा पाति वायुमीशान एव च), वामन ९०.३(लिङ्गभेद तीर्थ में विष्णु का नाम - त्रिविक्रमं च कालिन्द्यां लिङ्गभेदे भवं विभुम्।), वायु २१.२८/ १.२१.२६(भव से सर्वत: रक्षा की प्रार्थना; प्रथम व चतुर्थ कल्पों का नाम - द्वितीयस्तु भुवः कल्पस्तृतीयस्तप उच्यते ।। भवश्चतुर्थो विज्ञेयः पंचमो रम्भ एव च।), २७.८(महादेव के पुत्र कुमार नीललोहित को ब्रह्मा द्वारा प्रदत्त नामों में से एक - किं रोदिषीति तं ब्रह्मा रुदन्तं पुनरब्रवीत् । नाम देहि द्वितीयं मे इत्युवाच स्वयम्भुवम् ।।), ६६.२०/२.५.२१(ध्रुव वसु के पुत्र भव के काल, लोकप्रकालक होने का उल्लेख - ध्रुवपुत्रो भवो नाम्ना कालो लोकप्रकालनः ।।), ६९.५७/२.८.५६(भवा : भूमि से उत्पन्न अप्सराओं की संज्ञा - वायूत्पन्ना मुदा नाम भूमिजाता भवास्तु वै ।), १००.४५/२.३८.४५(ब्रह्मा, दक्ष, धर्म व भव से ४ सावर्णि मनुओं की उत्पत्ति का वृत्तान्त), १००.१०८/२.३८.१०८(१३वें मन्वन्तर में रौच्य मनु के पुत्रों में से एक), विष्णु १.७.२६(भव द्वारा दक्ष की कन्या सती को पत्नी रूप में ग्रहण करने का उल्लेख), १.८.६(ब्रह्मा द्वारा रुद्र को प्रदत्त ८ नामों में से एक, भव के सूर्य स्थान तथा सुवर्चला पत्नी का उल्लेख - भवं शर्वमथेशानं तथा पशुपतिं द्विज । भीममुग्रं महादेवमुवाच स पितामहः ॥), २.१.३७(प्रतिहर्ता - पुत्र, उद्गीथ – पिता - प्रतिहर्त्तेति विख्यात उत्पन्नस्तस्य चात्मजः ।। भुवस्तस्मात् तथोद्गीथः प्रस्तारस्तत्सुतो विभुः ।), स्कन्द ५.१.२.१९(ब्रह्मा द्वारा वर रूप में भव की पुत्र रूप में याचना - यस्मान्मां मनसा पुत्रं चतुर्मुख समीहसे । कस्मिंश्चित्कारणे तस्मादहं छेत्स्यामि ते शिरः ।।), ५.१.४.५१(भव अग्नि का ब्रह्मा से भव्य स्थान पाना?, ब्रह्मा द्वारा भव अग्नि की स्तुति - स्थानं नैवास्ति ते भव्यं ततो ह्येवं भविष्यति।), ७.१.१०५.५०(२०वें कल्प का नाम), ७.२.२(वस्त्रापथ क्षेत्र में भव देव का माहात्म्य), ७.२.९.२०५(शिव का रूप, महत्त्व - यस्मात्स्वंयभूर्भवति भवंस्तस्मात्स्वयं हरः ॥), ७.२.१०.१२ (उज्जयंतगिरेर्मूर्ध्नि गौरीस्कन्दगणेश्वराः ॥ भावयंतो भवं सर्वे संस्थिता ब्रह्मवासरम् ॥), ७.२.१६.८५ (वस्त्रापथ क्षेत्र में जालिमध्य में भव लिङ्ग का उल्लेख- सहितैस्तत्र गंतव्यं पूजयिष्ये भवं स्वयम् ॥ जालिमध्ये तथा लिंगं दर्शयस्व च लुब्धक ॥), महाभारत उद्योग ३९.६८(भव के उत्थान आदि ७ मूलों के नाम - उत्थानं संयमो दाक्ष्यमप्रमादो धृतिः स्मृतिः । समीक्ष्य च समारम्भो विद्धि मूलं भवस्य तु ।।), लक्ष्मीनारायण ४.५९.५२(भण्ड द्वारा भवायन ऋषि व उनके शिष्यों के समक्ष दधीचि व क्षुप नृप की प्रतिस्पर्द्धा के नाटक का प्रदर्शन - आसन् समागतान्येव मूलतन्तुकपत्तनात् । भवायनोऽभवत्तेषामग्रेसरः कलाविदाम् ।। ), द्र. प्रभव bhava


      भवमालिनी मत्स्य १७९.६४(मातृका, नरसिंह रूप के गुह्य प्रदेश से उत्पत्ति),


      भवशर्मा कथासरित् ७.३.१४८(सोमस्वामी – मित्र - वारयन्भवशर्माख्यः सुहृन्मामेवमब्रवीत् ।। स्त्रियाः सखे वशं मा गाः स्त्रीचित्तं ह्यतिदुर्गमम् ।..), १०.७.५६(पूर्व जन्म में भवशर्मा द्वारा व्रत भङ्ग से जल - पुरुष रूप से उत्पत्ति),


      भवाटवी भागवत ५.१३(जड भरत द्वारा भवाटवी का वर्णन )


      भवानी देवीभागवत १२.६.११७(गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म १.२०.१२४(भवानी व्रत का माहात्म्य), बृ|व १.२.३८.१८), ४.९२.२१(यशोदा व रोहिणी द्वारा वृन्दावन की देवी भवानी का अर्चन संपादन), मत्स्य १३.३१(स्थानेश्वर में देवी की भवानी नाम से स्थिति), १०१.७७(भवानी व्रत की संक्षिप्त विधि), शिव ५.५१.५४(चैत्र शुक्ल तृतीया में करणीय भवानी व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य), स्कन्द ४.२.६१.१२३(भवानी तीर्थ का माहात्म्य), ४.२.८३.९४(भवानी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य),४.२.७२.५५(भवानी द्वारा याम्य दिशा की रक्षा), ५.३.१९८.६८(भवानी देवी की स्थानेश्वर में स्थिति ), द्र. ज्वालाभवानी bhavaanee/ bhavani/ bhawani


      भविष्य भागवत १२.१३.६(भविष्य पुराण में १४५०० श्लोक होने का उल्लेख), मत्स्य ५०.६८(भविष्य/कलियुग के नृपों की परम्परा का कथन), ५३.३२(पौष मास की पूर्णिमा को भविष्य पुराण दान से अग्निष्टोम फल प्राप्ति का कथन ), द्र. पुराण bhavishya


      भव्य अग्नि ११९.१९(शाक द्वीप के स्वामी भव्य के ७ पुत्रों के नाम ), गरुड १.५६१.१४(शाप द्वीप का स्वामी, ७ पुत्रों के नाम ) ब्रह्माण्ड १.२.३८.१८(भव्य की निरुक्ति व श्लोक), विष्णु ३.१.२७(चाक्षुष मन्वन्तर के देवों के ५ गणों में से एक), ३.२.२३(नवम मनु दक्षसावर्णि के काल के सप्तर्षियों में से एक ) bhavya


      भषक पद्म ७.२१.४१(शुन: भषक नामक शुन: : भद्रक्रिय ब्राह्मण के पादोदक से मुत्ति )


      भस्त्रा लक्ष्मीनारायण ३.२१२.५(लोहकार के लिए भस्त्रा का आध्यात्मिक प्रतीकार्थ )


      भस्म गरुड ३.२९.५४(भस्म धारण में जामदग्न्य के स्मरण का निर्देश), देवीभागवत ११.१०+ (भस्म के विविध प्रकार व माहात्म्य), नारद २.४७.५७(भस्मकूट : गया में प्रेत शिला के दक्षिण हस्त पर स्थिति, शिव, जनार्दन आदि का वास स्थान), पद्म ५.१०५.१२७(पाप नाश हेतु भस्म के माहात्म्य का वर्णन, करुण विप्र के जन्तु का भस्म प्रभाव से जीवित होना), ५.१०८.२८(भस्म निर्माण का विधान), ६.१६८.१२(शिव के गात्र से उत्पन्न भस्म से निर्मित भस्म गात्र लिङ्ग), ६.२३५.१२(शिव द्वारा कपाल अस्थि भस्म धारण करने के कारण का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.२७.१०५(भस्म स्नान विधि), १.२.२७.१०९(शिव वीर्य का रूप, महिमा), १.२.२७.१२१(भस्म स्नान), ३.४.११.३०(शिव द्वारा दग्ध काम की भस्म से भण्डासुर की उत्पत्ति), ३.४.३०.३५(मदन भस्म से भण्डासुर की उत्पत्ति), मत्स्य १५५.२२(क्रुद्ध पार्वती द्वारा शिव पर वाक् प्रहार करते हुए भस्म से प्रेमहीनता की प्राप्ति), लिङ्ग १.३४.५(भस्म की निरुक्ति व माहात्म्य), वराह ९८.१६(सत्यतपा की कटी अङ्गुलि से भस्म का निकलना), वायु १०८.५३/२.४६.५६(भस्म कूट/पर्वत की गया में शिला के दक्षिण हस्त पर स्थिति), शिव १.१८.५८(भस्म के प्रकार), १.२४(भस्म के प्रकार, माहात्म्य तथा धारण विधि), २.१.१२.३५(योगी द्वारा भस्म लिङ्ग की पूजा), ७.१.२८.१३(भस्म की महिमा), ७.१.३३.९०(भस्म की महिमा ; परम वीर्य रुद्राग्नि के भस्म होने का कथन), स्कन्द १.२.६३.७५ (विजय ब्राह्मण द्वारा बर्बरीक को नि:शल्यकारक होम भस्म प्रदान), १.२.६६.३९(बर्बरीक द्वारा छोडे गए शर के मुख से भस्म का उत्पन्न होकर वीरों के मर्मों पर पतन का कथन), ३.१.४९.५५( सोम द्वारा भस्मदिग्ध रामेश्वर की स्तुति), ३.३.१५.५०(भस्म का माहात्म्य, वामदेव- ब्रह्मराक्षस वृत्तान्त), ४.२.५४.६०(ब्राह्मण - प्रदत्त भस्म/विभूति रूप पाशुपतास्त्र को भाल पर लगाने से प्रेत योनि से उद्धार का वर्णन), ४.२.६९.१२१(भस्म गात्र लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.१८.२८(क्रुद्ध पार्वती द्वारा शिव को उपालम्भ के अन्तर्गत भस्म संसर्ग से शिव स्नेह रहितता आदि का कथन), हरिवंश २.१२२.७८(ज्वर द्वारा भस्म से बलराम व कृष्ण पर प्रहार ) bhasma


      भस्मासुर गणेश २.३८.४१(भस्मासुर - पुत्र दुरासद की कथा), २.३९.१६ (भस्मासुर के नगर मुकुन्दपुर का उल्लेख, भस्मासुर द्वारा मूर्द्धा के स्पर्श से मृत्यु होने का वर्णन ) bhasmaasura


      भाग मत्स्य १९५.३७(भागिल : भार्गव कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु ९१.११६/२.२९.११२(भागान्य : तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले क्षात्रोपेत ब्राह्मणों में से एक ) bhaaga


      भागवत गर्ग ५.२४.६०(माण्डूक देव द्वारा बलराम से भागवत संहिता की मांग), पद्म २.७४(ययाति के राज्य में प्रजाजनों द्वारा भागवत धर्म स्वीकरण), ६.१९३+ (भागवत पुराण के माहात्म्य का आरम्भ, भागवत से ज्ञान व वैराग्य को बल प्राप्ति), ६.१९६(भागवत माहात्म्य के अन्तर्गत गोकर्ण व धुन्धुकारी का वृत्तान्त), ६.१९८( भागवत सप्ताह श्रवण विधि), भागवत १.७.८(बादरायण व्यास द्वारा भागवती संहिता की रचना कर शुक को अध्ययन कराने का कथन), ३.४.१३(सृष्टि के प्रारम्भ में विष्णु द्वारा ब्रह्मा को भागवत ज्ञान देने का कथन), ३.८.२(संकर्ष - सनत्कुमारादि से आरम्भ करके भागवत पुराण की श्रवण परम्परा), ६.३.२१(भागवत धर्म के जानने वाले १२ वेत्ताओं के नाम), ११.२.७(वसुदेव द्वारा नारद से भागवत धर्मों के विषय में पृच्छा), ११.२.३१(निमि द्वारा ९ योगी ऋषभ - पुत्रों से भागवत धर्मों के विषय में पृच्छा, योगीश्वर कवि का उत्तर), ११.२.४४(निमि द्वारा भागवत/भगवद्भक्त के आचरण के विषय में पृच्छा, योगीश्वर हरि का उत्तर), ११.३.३३(योगीश्वर प्रबुद्ध द्वारा भागवत धर्मों की शिक्षा), ११.१६.२९(विभूति वर्णनान्तर्गत श्रीहरि के भागवतों में उद्धव होने का उल्लेख), १२.१.१८(वज्रमित्र - पुत्र, देवभूति - पिता, भविष्य के १० शुङ्ग राजाओं में से एक), १२.४.४१(नर - नारायण ऋषियों से आरम्भ करके भागवत पुराण की श्रवण परम्परा), वायु १०१.२२१/२.३९.२२१(ब्रह्मलोक से ऊपर भागवताण्ड की स्थिति का कथन), विष्णु ४.२४.३५(वज्रमित्र - पुत्र, देवभूति - पिता, शुङ्ग वंश), स्कन्द २.४.६.२०(कार्तिक में भागवत पाठ का निर्देश), २.५.१६(भागवत का माहात्म्य, फलश्रुति, ग्रन्थार्चनपूर्वक पठन का फल), २.६.३(उद्धव द्वारा परीक्षित को भागवत के माहात्म्य का वर्णन, श्रवणोत्सुक परीक्षित को शुक से भागवत श्रवण का निर्देश, वज्र को उद्धव - संकीर्तित भागवत श्रवण से मुक्ति की प्राप्ति), २.६.४(भागवत व भगवान् के एकस्वरूपत्व का कथन, श्रवण विधि तथा माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण ३.११४.७०(नग्रभङ्ग चोर द्वारा नृप दण्ड के भय से भागवतायन साधु बनने का वृत्तान्त), ३.११४.१११ (शुकायन/भागवतायन द्वारा वह्नि ज्वाला में जलते हुए वृक्षों को त्यागने की अस्वीकृति का वृत्तान्त), ४.१०१.८३(भागवती : कृष्ण की ११२ पत्नियों में से एक, भर्ग व भाग्येश्वरी की माता ) bhaagavata/ bhagavata


      भागवित्त मत्स्य १९५.३७(भागवित्ति : भार्गव कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), २००.८(भागवित्तायन : वसिष्ठ वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों के गणों में से एक), वायु ६१.३८(भागवित्ति : कुथुमि के ३ पुत्रों में से एक ) bhaagavitta


      भागीरथी गरुड ३.२९.९(भागीरथी का ४ रूपों में अवतरण), देवीभागवत १२.६.१२०(गायत्री सहस्रनामों में से एक), ब्रह्म २.६६.३(मुद्गल - पत्नी, पुत्र मौद्गल्य का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.१८.४२(गङ्गा की सातवीं धारा भागीरथी के भागीरथी नाम का कारण), २.३.५४.५१(भगीरथ द्वारा लायी गई भागीरथी गङ्गा द्वारा सगर के पुत्रों की अस्थि भस्म को पवित्र करने का कथन), २.३.६३.१६८(भगीरथ द्वारा गङ्गा लाने के कारण भागीरथी नाम की सार्थकता), विष्णु ५.३५.३०(बलराम का नाग/हस्तिनापुर को भागीरथी में फेंकने को उद्धत होना), स्कन्द ४.२.८३.८१(भागीरथी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ) bhaageerathee/ bhagirathi


      भागुरि वायु ३४.६२(भागुरि ऋषि द्वारा मेरु रूपी पद्म की कर्णिका को चतुरस्र मानने का उल्लेख), विष्णु ६.८.४४(भागुरि द्वारा प्रियव्रत से विष्णु पुराण का श्रवण कर स्तम्भमित्र को सुनाने का उल्लेख ) bhaaguri


      भाग्य नारद १.१२२.१८(दुर्भाग्य शमन त्रयोदशी व्रत), भविष्य ४.८८(दुर्भाग्य नाशक व्रत विधि),


      भाजर वायु १००.१११(१४वें भौत्य संज्ञक मन्वन्तर के ५ देवगण में से एक )


      भाण- लक्ष्मीनारायण २.२६२.४(राजा भाणवीर्य द्वारा स्वयं को ईश्वर का भृत्य बनकर शत्रु राजा से स्वयं के राज्य की रक्षा न करना, सिता व राम द्वारा भाणवीर्य के राज्य के उद्धार का वृत्तान्त), ४.४०(भाणवाणी नामक द्यूतकार स्त्री द्वारा राजा रायहरि को द्यूत क्रीडा में विजय दिलाना, अपर पक्ष के राजा की पतिव्रता भार्या द्वारा भाणवाणी को कुष्ठ प्राप्ति आदि का शाप), ४.४३.१८(कथा मण्डप में कृष्ण द्वारा भाणवाणी का स्पर्श करने से भाणवाणी के स्वस्थ होने का कथन ) bhaana


      भाण्ड योगवासिष्ठ १.१८.२४(देह गृह में मलाढ्य विषय व्यूह के भाण्ड होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.२००(भाण्डीर नगर के कालीन्दर भाण्ड भक्त द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त), ४.५९.१(कथा श्रवण से भण्डशील भाण्ड की सकुटुम्ब मुक्ति का वृत्तान्त ) bhaanda/ bhanda


      भाण्डीर गर्ग १.१६.१(भाण्डीर वन : राधा का कृष्ण से विवाह स्थल), ४.१.१२(भाण्डीर वन में दुर्वासा का आगमन, कृष्ण द्वारा सत्कार, गोपियों द्वारा भोजन की प्रस्तुति), ४.२०.५(भाण्डीर वन में प्रलम्ब दैत्य के वध की कथा), देवीभागवत ९.२०.७६(कृष्ण द्वारा भाण्डीर वन में दिए गए तत्त्वोपदेश का शङ्खचूड द्वारा स्वपत्नी तुलसी के प्रति कथन), भागवत १०.१८.२२(भाण्डीर वट के समीप बलराम द्वारा प्रलम्बासुर के वध का वृत्तान्त), १०.१९.१३(मुञ्ज अटवी में दावानल में फंसे गोपों को कृष्ण द्वारा भाण्डीर वन में पहुंचाने का उल्लेख), वराह १५३.४६(मथुरा के १२ वनों में से एक, संक्षिप्त माहात्म्य), विष्णु ५.९.२(भाण्डीर वट के समीप बलराम द्वारा प्रलम्बासुर के वध का वृत्तान्त), हरिवंश २.११.२३(भाण्डीर न्यग्रोध के परित: कृष्ण की क्रीडा का कथन), लक्ष्मीनारायण १.२४९.५१(भाण्डीर नगरी में धृतिसिंह नृप के श्रेष्ठी धनपाल के पुत्र धृष्टबुद्धि का कौण्डिन्य मुनि की कृपा से उद्धार ), कृष्णोपनिषद २४(गरुड भाण्डीर वट का रूप ) ‹ bhaandeera/ bhandira


      भात कथासरित् १४.४.८०(तापस - प्रदत्त भात के २ दाने खाने से स्वर्ण - सिद्धि प्राप्ति, भात वमन हो जाने पर सिद्धि की समाप्ति )


      भाद्रपद ब्रह्मवैवर्त्त २.१३.१२(भाद्रपद मास में महालक्ष्मी की पूजा का उल्लेख), भविष्य २.२.८.१२८(बदरी तीर्थ में महाभाद्री पूर्णिमा के विशेष फल का उल्लेख), ३.४.८.५०(भाद्रपद मास के सूर्य का माहात्म्य), मत्स्य १७.६(भाद्रपद तृतीया के मन्वन्तरादि तिथियों में से एक होने का उल्लेख), ५४.११(नक्षत्र पुरुष व्रत के संदर्भ में भाद्रपद - द्वय नक्षत्रों में केशिनिषूदन नाम से विष्णु के पार्श्व की अर्चना का निर्देश), वायु ६६.५२/२.५.५२(भाद्रपद - द्वय नक्षत्रों की वैश्वानरी वीथि में स्थिति का उल्लेख), महाभारत उद्योग ११४.३(प्रोष्ठपद में धन प्राप्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण २.५९.८५(भाद्रपद शुक्ल एकादशी को वणिक् द्वारा प्रेत हेतु पिण्डदान आदि से प्रेत की मुक्ति का वृत्तान्त ) bhaadrapada/ bhadrapada


      भानक गणेश १.३७.४३(द्वापर में पुष्पक नगर की भानक नाम से प्रसिद्धि )


      भानु गणेश १.२०.२०(कर्णाटक में भानु नगर में वल्लभ राजा का वृत्तान्त), गर्ग १.३७.१८(कृष्ण - पुत्र, शिव - गण भृङ्गी से युद्ध), ७.२०.२९(प्रद्युम्न - सेनानी , द्रोणाचार्य से युद्ध), ७.२६.३२(भानु, सुभानु, स्वर्भानु आदि सत्यभामा के दस पुत्रों द्वारा सर्प वध), ७.३२.२७(कृष्ण - पुत्र, हृष्ट दैत्य से युद्ध हेतु प्रद्युम्न - रचित गृध्रव्यूह के पुच्छ भाग पर स्थिति), ७.३७(कृष्ण - पुत्र, हरिश्मश्रु असुर का वध), १०.३७.१९(यादव वीर, शिव द्वारा भानु को जीतने हेतु भृङ्गी का प्रेषण), पद्म १.२०.११३(भानु व्रत का माहात्म्य व विधि), ५.७१.२१(नन्द - सखा भानु गोप का नारद से वार्तालाप, नारद द्वारा भानु - कन्या के दिव्यत्व का दर्शन), ब्रह्म २.६८.३९(भानु तीर्थ, अपर नाम मृतसञ्जीवन, शर्यात, माधुच्छन्द, संक्षिप्त माहात्म्य), २.९८(तीर्थ, राजा अभिष्टुत के अश्वमेध यज्ञ में यज्ञ भूमि देने हेतु स्वयं भानु के आगमन से भानु तीर्थ नाम धारण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.५(गोलोक दर्शन के अनन्तर परमात्म धाम में प्रवेश करते हुए देवों द्वारा प्रथम द्वार पर वीरभानु नामक द्वारपाल, द्वितीय द्वार पर चन्द्रभानु आदि आदि के दर्शन), ब्रह्माण्ड २.३.६.३९(क्रोधा व कश्यप के देवगन्धर्व संज्ञक १० पुत्रों में से एक), भागवत ९.१२.१०(प्रतिव्योम - पुत्र, दिवाक - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), १०.६१.१०(कृष्ण व सत्यभामा के भानु, सुभानु, स्वर्भानु, प्रभानु, भानुमान्, चन्द्रभानु, बृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु व प्रतिभानु संज्ञक १० पुत्रों का उल्लेख), १०.९०.३३(कृष्ण के १८ महारथी पुत्रों में भानु, बृहद्भानु व चित्रभानु का उल्लेख), मत्स्य ५.१५(दक्ष द्वारा धर्म को भार्या रूप में प्रदत्त कन्याओं में से एक, भानुगण की माता), ९.७(स्वारोचिष मनु के ४ पुत्रों में से एक), १२.५५(भानुचन्द्र : चन्द्रगिरि - पुत्र, श्रुतायु - पिता, कुश वंश), ४७.१७(कृष्ण व सत्यभामा के पुत्रों में से एक), १०१.६०(भानु व्रत), २८०.१०(हिरण्याश्व दान से भानु लोक प्राप्ति का उल्लेख), वायु ६६.२/२.५.२(दक्ष द्वारा धर्म को भार्या हेतु प्रदत्त १० कन्याओं में से एक), ६६.३३/२.५.३३(धर्म व भानु से भानुज पुत्रों की उत्पत्ति का उल्लेख), ९६.२३८/२.३४.२३८(सत्यभामा व कृष्ण के पुत्रों में से एक), ९६.२४०/ २.३५.२४०(सत्यभामा व कृष्ण की ४ कन्याओं में से एक), १००.१५/ २.३८.१५(सुतपा संज्ञक देवगण के २ देवों में से एक), विष्णु १.१५.१०५(दक्ष द्वारा प्रदत्त धर्म की १० भार्याओं में से एक, भानु गण की माता), ४.१६.३(भार्ग - पुत्र, त्रयीसानु - पिता, दुर्वसु वंश), स्कन्द १.१.८.२३(भानु द्वारा ताम्रमय लिङ्ग की अर्चना का उल्लेख), २.४.७टीका(चित्रभानु द्वारा आकाशदीप दान के पुण्य से स्वभ्राता मनोजव की पिशाच योनि से मुक्ति की कथा , ५.३.२२६.५(भानुमती - पिता, सुता के प्रति कामुकता दोष से कुष्ठत्व प्राप्ति, विमलेश्वर तीर्थ में तप से मुक्ति का कथन ), द्र. गिरिभानु, चन्द्रभानु, चित्रभानु, बृहद्भानु, रत्नभानु, रुषाभानु, वृषभानु, श्रीभानु, सूरभानु, सूर्यभानु bhaanu/ bhanu


      भानुमती पद्म १.८.१४५(सगर की २ भार्याओं में से एक, पुत्र कामना हेतु और्वाग्नि की आराधना, असमञ्जस पुत्र की प्राप्ति), भविष्य ३.४.९(परीक्षित -कन्या, नारद से विवाह की अनिच्छा , सूर्य अंश सविता से विवाह), ४.९२(भानुमती द्वारा नागपुर में रम्भा व्रत का अनुष्ठान), ४.२०४(धर्ममूर्ति - पत्नी, पूर्व जन्म का वृत्तान्त), मत्स्य १२.३९(सगर - पत्नी, और्वाग्नि के आराधन से असमञ्जस पुत्र की प्राप्ति), ९२.१९(राजा धर्ममूर्ति की पत्नी, वसिष्ठ द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, पूर्व जन्म में लीलावती वेश्या), स्कन्द ५.३.५६.२३(चेदिराज वीरसेन - पुत्री, विधवा होने पर तीर्थयात्रा), ५.३.५७(शूलभेद तीर्थ में भानुमती का शबर से वार्तालाप, भृगुतुङ्ग पात से मुक्ति),५.३.२२६(भानु - सुता, कामुकता दोष से पिता को कुष्ठत्व प्राप्ति), ६.७३(दुर्योधन - पत्नी, विवाह का वर्णन), हरिवंश २.९०.६७(भानुमती द्वारा दुर्वासा से हरण शाप की प्राप्ति, सहदेव से विवाह), २.९०.२(भानु - कन्या, निकुम्भ द्वारा हरण, प्रद्युम्न द्वारा रक्षा ) bhaanumatee/ bhanumati


      भानुमान् ब्रह्माण्ड २.३.६४.१८(सीरध्वज - पुत्र, प्रद्युम्न - पिता), भागवत ९.१२.११(बृहदश्व - पुत्र, प्रतीकाश्व - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), ९.१३.२१(केशिध्वज? - पुत्र, शतद्युम्न - पिता), ९.२३.१६(भर्ग - पुत्र, त्रिभानु - पिता, तुर्वसु वंश), १०.६१.१०(सत्यभामा व कृष्ण के पुत्रों में से एक), वायु ८९.१८/२.२७.१८(सीरध्वज - पुत्र, प्रद्युम्न - पिता), विष्णु ४.५.३०(सीरध्वज - पुत्र, शतद्युम्न - पिता, विदेह वंश ) bhaanumaan


      भानुरथ वायु ९९.२८४/२.३७.२८०(बृहदश्व - पुत्र, प्रतीताश्व - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), विष्णु ४.२२.४(वही) bhaanuratha


      भामन्तक लक्ष्मीनारायण ३.७.७९(श्रीहरि का भामन्तक खण्ड में द्विज रूप में जन्म तथा थुरानन्द - पुत्री ज्योत्स्नाकुमारी के भामन्तक खण्ड में स्वयंवर का वृत्तान्त), द्र. सत्यभामा


      भामिनी ब्रह्माण्ड २.३.७.४१२(दंष्ट्रा? की भामिनी संज्ञा, व्याघ्रों, सिंहों आदि की माता), मार्कण्डेय १२७.७/१२४.७(गन्धर्व - कन्या भामिनी का अगस्त्य के शाप से विशाल की पुत्री बनना, अवीक्षित - पत्नी बनने का वृत्तान्त), वायु ६९.२८९/२.८.२८३(दंष्ट्रा? की भामिनी संज्ञा, व्याघ्रों, सिंहों आदि की माता ) bhaaminee/ bhamini


      भार स्कन्द ५.३.२०९.११५(भारभूति तीर्थ का माहात्म्य, नाम हेतु का कथन), महाभारत वन ३१३.५९(यक्ष व युधिष्ठिर के संवाद में माता के पृथिवी से गुरुतर होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३०२.१६(पृथिवी पर भार रूप व्यक्तियों के लक्षण ) bhaara


      भारत अग्नि ११८(भारत वर्ष व भारत के द्वीपों का वर्णन), कूर्म १.४७(भारत के अन्तर्गत कुलपर्वतों, नदियों के नाम, देशों का विन्यास), देवीभागवत ८.११(भारत वर्ष में नारद द्वारा आदि पुरुष की आराधना, भारत के अन्तर्गत नदियों व पर्वतों के नाम), नारद १.३(भारत की महिमा), पद्म ३.६(भारत के अन्तर्वर्ती कुलपर्वत, नदियों व देशों का वर्णन), ७.१७.२६०(भक्ति फलार्थ भारतवर्ष की प्रशंसा), ब्रह्म १.१७(भारत के ९ भेद, भारत की नदियां, द्वीप, उनके निवासी आदि), १.२५(भारत के अन्तर्गत ९ द्वीप, पर्वत, नदियां, जनपद, महत्त्व), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६२(भरत के नाम पर भारत वर्ष का नामकरण), १.२.१६(भारत का वर्णन, भारत के अन्तर्गत पर्वत व नदियां), १.२.२१.६(भारतवर्ष के परिमाण से सूर्य के परिमाण का मापन), २.३.५३.१४(सगर - पुत्रों द्वारा यज्ञीय अश्व की खोज में भारत खण्ड के खनन का उल्लेख), २.३.५६.२(भारत खण्ड के विस्तार का कथन), भागवत ५.४.९(भरत के नाम पर भारतवर्ष के नामकरण का उल्लेख), ५.७.३(भारतवर्ष के पूर्व नाम अजनाभ वर्ष का उल्लेख), ५.१६.९(हिमालय द्वारा भारतवर्ष की सीमा निर्धारण का उल्लेख), ५.१७.११(वर्षों में केवल भारतवर्ष के ही कर्म क्षेत्र होने का उल्लेख), ५.१९(भारत के अन्तर्गत नदियां, माहात्म्य), मत्स्य ११.२८(भारत, किम्पुरुष आदि वर्षों की आपेक्षिक स्थिति का कथन), ११.४४(मेरु के दक्षिण में भारतवर्ष की स्थिति का उल्लेख), ११४.५(भारत वर्ष का वर्णन, भारत के अन्तर्गत द्वीपों, पर्वतों , निवासियों, नदियों व जनपदों के नाम), मार्कण्डेय ५७(भारतवर्ष के विभाग), लिङ्ग १.५२.२५(भारत वर्ष में निवासियों की स्थिति का वर्णन), वराह ८५(भारत के कुल पर्वतों व नदियों के नाम), वायु ४५.७२(भारत वर्ष का वर्णन), विष्णु २१, २.३.६(भारत के अन्तर्गत द्वीपों, नदियों व पर्वतों का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.८(भारतवर्ष का वर्णन), शिव ५.१८(भारतवर्ष की नदियां, पर्वत, विभाग, माहात्म्यादि का वर्णन), स्कन्द १.२.३९.११०(भरत खण्ड के अन्तर्गत ९ भागों के देश, देशों के अन्तर्गत ग्रामों की संख्या, कुमारी खण्ड आदि ९ भाग), ५.३.१९८.८३(भारताश्रम में देवी की तरङ्गा नाम से स्थिति), ७.१.११.७(भारत वर्ष का वर्णन, कूर्म रूपी भारत में नक्षत्रों व ग्रहों का विन्यास ), द्र. महाभारत bhaarata/ bharata


      भारत - आख्यान भागवत १.४.२५(व्यास द्वारा स्त्री, शूद्र, द्विजबन्धुओं के कल्याण हेतु भारत आख्यान की रचना का कथन), १.५.३(नारद द्वारा व्यासकृत भारत आख्यान की प्रशंसा), मत्स्य ५२.६९(व्यास द्वारा १८ पुराणों की रचना के पश्चात् भारत आख्यान की रचना का उल्लेख ) bhaarata aakhyaana/ bharat - akhyana


      भारत - युद्ध ब्रह्माण्ड २.३.७४.१०९(भारत सङ्ग्राम में सहदेव के मारे जाने का उल्लेख), मत्स्य १२.५५(भारत युद्ध में श्रुतायु के मारे जाने का उल्लेख), १०३.२(भारत युद्ध के पश्चात् पाण्डवों का भ्रातृशोक), २७१.१९(भारत युद्ध में सहदेव के मारे जाने का उल्लेख), वायु ९९.२९६/२.३७.२९१(भारत युद्ध में सहदेव के मारे जाने का उल्लेख), विष्णु ४.४.११२(भारत युद्ध में अभिमन्यु द्वारा बृहद्बल के वध का उल्लेख ) bhaarata – yuddha/ bharat - yuddha


      भारती गरुड ३.६.३०(भारती द्वारा हरि-स्तुति), ३.१६.८३(भारती के अवतार, वायु-भार्या), ३.१६.८५(ज्ञान रूपा वायु-पत्नी, गुण), ३.१६.९९(भारती का भीम-पत्नी काली से साम्य?), ३.१८.७७(सरस्वती से शतानन्द, भारती से एकानन्द), ३.२१.२६(वायु-पत्नी), ब्रह्मवैवर्त्त २.६.५३(गङ्गा के शाप से भारती का ब्रह्मा की पत्नी बनना), २.६.८५(गङ्गा के शाप से भारती/सरस्वती का अंश रूप में सरित् रूप होकर ब्रह्मसदन में जाने का वृत्तान्त), ४.६.१४१(बाण - पुत्री रूप में अवतरण का उल्लेख), ४.३५(ब्रह्मा द्वारा गोलोक में भारती की पत्नी रूप में प्राप्ति, त्याग, ब्रह्मलोक आने पर पुन: भारती की प्राप्ति?), भविष्य ४.३५(मधुर भारती/स्वर प्राप्ति हेतु सारस्वत व्रत का निरूपण), वायु ४४.२१(केतुमाल देश की नदियों में से एक), स्कन्द १.२.१३.१५८(शतरुद्रिय प्रसंग में भारती द्वारा तार लिङ्ग की पूजा का उल्लेख), २.४.२२.२४(देवों द्वारा देवी की स्तुति, व्योमचारिणी भारती का श्रवण ), ३.१.४८.१०८(भारती की नासिका छेदन का उल्लेख), bhaaratee/ bharati


      भारतीश भविष्य ३.४.१२(शिव का साद्यकर्मा - पुत्र रूप में जन्म लेकर शङ्कराचार्य का शिष्य बनने का कथन )


      भारद्वाज कूर्म २.११.१२८(भारद्वाज द्वारा अङ्गिरा से ज्ञान प्राप्ति), गणेश १.६०.२(अप्सराओं के दर्शन से भारद्वाज के वीर्य का पृथिवी पर गिरना तथा धरा - सुत भौम की उत्पत्ति आदि), नारद २.४६.३०(भारद्वाज द्वारा गया में कश्यप पद पर पिण्डदान करते समय शुक्ल व कृष्ण हस्तों का प्रकट होकर पिण्ड मांगना), पद्म ५.१०५.५७(राम का गौतमी तटवर्ती भरद्वाज आश्रम में आगमन, शम्भु द्विज से श्राद्ध विधि तथा भस्म के माहात्म्य का श्रवण), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.६६(भारद्वाज द्वारा सुयज्ञ नृप से कृतघ्नता दोष का निरूपण), मत्स्य १९६.२८(भारद्वाजि : आङ्गिरस वंश के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वामन ८८.४३(बृहस्पतिवंशोत्पन्न भारद्वाज द्वारा वामन की जातकर्मादि क्रियाओं को सम्पन्न कराना, वामन को मेखला प्रदान, वामन का आङ्गिरस भरद्वाज से सामवेद का अध्ययन), वायु ५९.९२(गर्भ से उत्पन्न व सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक), ६४.२६/२.४.२६(बृहस्पति - पुत्र?), ६५.१०७/ २.५.१०७(आङ्गिरस पक्ष के १५ गोत्रों में से एक), १११.५८/२.४९.६८(भारद्वाज द्वारा गया में कश्यप पद पर पिण्ड दान करते समय कृष्ण व शुक्ल हस्तों के प्रकट होने का आख्यान), स्कन्द २.१.२८.६७(भारद्वाजोक्त उपाय से केशव द्विज की ब्रह्महत्या से मुक्ति), २.१.३०+ (अर्जुन का भरद्वाज आश्रम में गमन, परस्पर आतिथ्य, अर्जुन के प्रश्न करने पर भरद्वाज द्वारा शंकर विवाह की प्रक्रिया का कथन), २.५.११.९(भारद्वाज द्वारा वीरबाहु राजा को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन , एकादशी व्रत विधि का कथन), ३.२.९.७०(भारद्वाज गोत्र के ऋषियों के ५ प्रवर व गुण), ४.२.६५.९(भारद्वाजेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), महाभारत शान्ति १४०(भारद्वाज कणिक? द्वारा राजा शत्रुञ्जय को शत्रुनाश के संदर्भ में नीति का उपदेश), योगवासिष्ठ ६.१.१२७(कचोपाख्यान के अन्तर्गत भरद्वाज का अनुशासन), लक्ष्मीनारायण १.४२८.६९(भारद्वाज देवशर्मा द्वारा शूद्र व शूद्री के पूर्व जन्मों का कथन), १.५६२.६५(ऋग्वेद द्वारा बभ्रु राजा को भरद्वाज को श्राद्ध में तृप्त करने का निर्देश, राजा द्वारा विप्रों को आमिष भोजन प्रस्तुत करने से राजा के व्याघ्र बनने तथा विप्रों के ब्रह्मराक्षस बनने तथा शापमुक्ति का वृत्तान्त ) bhaaradvaaja/ bharadvaja/ bharadwaja


      भारभूति कूर्म २.४२.२५(भारभूति तीर्थ का माहात्म्य), गणेश २.१०.२४(बृहस्पति द्वारा महोत्कट गणेश का भारभूति नामकरण), देवीभागवत ७.३८.२१(भारभूति क्षेत्र में भूति देवी के वास का उल्लेख), नारद १.६६.१०८(भारभूति की शक्ति दीर्घमुखी का उल्लेख), पद्म ३.२१.१८(भारभूत तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.४९(लिपि न्यास के प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता का नाम), मत्स्य १९४.१८(नर्मदा तटवर्ती भारभूति तीर्थ का माहात्म्य : विरूपाक्ष की अर्चना), स्कन्द ४.१.३३.१६८(भारभूतेश लिङ्ग : शिव की देह के कर्ण का रूप), ४.२.५५.१३(भारभूतेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.१७८(भारभूतेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.२०९.१(भारभूति तीर्थ का माहात्म्य : शिव का विद्यार्थी बनना, सहपाठियों को बांधकर नर्मदा जल में फेंकना, पुन: निकालना, विश्वासघाती सहदेव के उद्धार की कथा ), ७.१.१०.८(भारभूति तीर्थ का वर्गीकरण – तेज), bhaarabhooti/ bharbhuti


      भारुण्ड मत्स्य २६५.२८(देवालय निर्माण में पश्चिम में भारुण्ड सामगान का निर्देश - भारुण्डानि च सामानि च्छन्दोगः पश्चिमे जपेत्।अथर्वोऽङ्गिरसं तद्वन्नीलं रौद्रं तथैव च।।), महाभारत भीष्म ७.१२(उत्तरकुरु में भारुण्डों द्वारा मृतों को दरियों/कन्दराओं में फेंक देने का उल्लेख), शान्ति १६९.९(मनुष्य वदन भारुण्डों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१०२.९२(भारुण्ड नामक मांसाद पुष्कस के मृत्यु - पश्चात् यम लोक जाने तथा उसकी पत्नी द्वारा गोदान करने से प्रेत की मुक्ति का कथन ), वा.रामायण २.७१.५(भरत के भारुण्डवन में प्रवेश का उल्लेख), द्र. भेरुण्ड bhaarunda/ bharunda


      भार्ग ब्रह्माण्ड २.३.६६.८७(भार्गव्योम : तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले क्षत्रोपेत द्विजातियों में से एक), भागवत ९.१७.९(भार्गभूमि : भर्ग - पुत्र, क्षत्रवृद्ध वंश), मत्स्य १९६.७(भार्गवत : त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक गोत्रकार ऋषियों में से एक), विष्णु ४.८.२०(वीतिहोत्र - पुत्र, भार्गभूमि - पिता), ४.१६.३(वह्नि - पुत्र, भानु - पिता), स्कन्द ५३१५२, हरिवंश १.२९.७३(प्रतर्दन के २ पुत्रों में से एक, वत्स - भ्राता ) bhaarga/ bharga


      भार्गव देवीभागवत ६.१६(धनकामी हैहयों द्वारा भार्गवों के वध का वृत्तान्त - चखनुर्भूतलं तत्र द्रव्यार्थं हैहया भृशम् ॥ खनताधिगतं वित्तं केनचिद्‌भृगुवेश्मनि ।), ६.१७.१(ब्राह्मणी की ऊरु से उत्पन्न और्व भार्गव द्वारा हैहय क्षत्रियों को अन्धा करने का वृत्तान्त - साश्रुनेत्रां वेपमानां सङ्क्रुध्य बालकस्तदा ।भित्त्वोरुं निर्जगामाशु गर्भः सूर्य इवापरः ॥),पद्म ३.१९.१(भार्गवेश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - भार्गवेशं ततो गच्छेद्भक्त्या यत्र च विष्णुना। हुंकारितास्तु देवेन दानवाः प्रलयं गताः॥), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५४(भारतवर्ष के प्राच्य जनपदों में से एक), १.२.२३.८१(भार्गव?शुक्र ग्रह के रथ के १० अश्वों के श्वेत आदि वर्ण), १.२.२४.८९(शुक्र ग्रह के देव और भार्गव के असुरयाजक होने का उल्लेख? - शुक्रो देवस्तु विज्ञेयो भार्गवोऽसुरयाजकः ।। बृहत्तेजाः स्मृतो देवो देवाचार्योऽंगिरस्सुतः ।। ), १.२.२४.१०४(भार्गव ग्रह के मण्डल के आपेक्षिक विस्तार का कथन), १.२.३३.२(बह्-वृच श्रुतर्षियों में से एक), २.३.१.५०(महर्षियों द्वारा उत्पन्न देवपितरों के ७ गणों में से एक), ३.४.१.१०(जामदग्न्य भार्गव : सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक - कौशिको गालवश्चैव जामदग्न्यश्च भार्गवः ॥), मत्स्य १३.६२(देवी के १०८ नामों के जप से भार्गव को धन लाभ का उल्लेख), २४.५२(भार्गव की पुत्री देवयानी का वृत्तान्त), ७२.६(भार्गव द्वारा विरोचन को उसके रूप प्राप्ति का कारण बताना : अङ्गारक व्रत का दर्शन), १२७.७(भार्गव ग्रह के रथ के ८ अश्वों से युक्त होने का उल्लेख), १२८.४७(शुक्र ग्रह के भार्गव असुरयाजक होने का उल्लेख - शुक्रो दैत्यस्तु विज्ञेयो भार्गवो सुरयाजकः।। ), १२८.६३(शुक्र/भार्गव ग्रह के मण्डल का ग्रहों में आपेक्षिक विस्तार का कथन), १९२.१(भार्गवेश तीर्थ का माहात्म्य - भार्गवेशं ततो गच्छेत् भग्नो यत्र जनार्दनः।..हुङ्कारितास्तु देवेन दानवाः प्रलयङ्गताः।), वायु २३.१२३/१.२३.११५(तीसरे द्वापर में भार्गव के व्यास होने का उल्लेख), २३.१४४/१.२३.१३४(नवम द्वापर में ऋषभ अवतार के ४ पुत्रों में से एक), ४५.१२३(भारत के पूर्व के जनपदों में से एक), ५२.७४(भार्गव/शुक्र ग्रह के रथ का स्वरूप), ५३.६६(भार्गव/शुक्र ग्रह की ग्रहों में आपेक्षिक स्थिति का कथन), ५३.८६(शुक्र के १६ रश्मियों वाले आपोमय स्थान का उल्लेख), ५३.१११(ताराग्रहों में शुक्र के आदि होने का उल्लेख), ६२.१५/२.१.१५(स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में भार्गव द्रोण का उल्लेख- भार्गवश्च तदा द्रोणो ऋषभोऽङ्गिरसस्तथा ॥), ६२.४१/२.१.४१(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में ज्योतिर्धामा भार्गव का उल्लेख - आत्रेयश्चाग्निरित्येव ज्योतिर्धामा च भार्गवः ॥), ६२.५४/२.१.५४(रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में वेदश्री भार्गव का उल्लेख - हिरण्यरोमाङ्गिरसो वेदश्रीश्चैव भार्गवः ।), ६२.६५/२.१.६५(चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में उन्नत भार्गव का उल्लेख - उन्नतो भार्गवश्चैव हविष्मानङ्गिरःसुतः ॥), ६४.४/२.३.४(वैवस्वत मन्वन्तर के देवों में भृगु - पुत्र भार्गव देव का उल्लेख - भृगोस्तु भार्गवो देवो ह्यङ्गिरोऽङ्गिरसः सुतः ।), ६४.२५/२.३.२५(वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में भार्गव जमदग्नि का उल्लेख - भार्गवो जमदग्निश्च ऊरुपुत्रः प्रतापवान् ।।), ६५.९६/२.४.९६(ऋषियों से बाह्य ७ भार्गव गोत्रों के नाम - वत्सो विश्वोऽश्विषेणश्च पाण्डः पथ्यः सशौनकः। गोत्रेण सप्तमा ह्येते पक्षा ज्ञेयास्तु भार्गवाः ।।), ८६.४९/२.२४.४९(भार्गवप्रिय : गान्धार ग्रामिकों में से एक), १००.८२/२.३८.८२(११वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में वपुष्मान् भार्गव का उल्लेख - हविष्मान् काश्यपश्चापि वपुष्मान् यश्च भार्गवः।), १००.१०७/२.३८.१०७(१३वें मन्वन्तर में सप्तर्षियों में निरुत्सुक भार्गव का उल्लेख - पौलहस्तत्त्वदर्शी च भार्गवश्च निरुत्सकः।), १००.११६/२.३८.११६(१४वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में भार्गव अग्निबाहु का उल्लेख- भार्गवो ह्यग्निबाहुश्च शुचिराङ्गिरसस्तथा।), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.९(भार्गवी शक्ति के शुक्ल वर्ण का उल्लेख), ३.१८.१(भार्गवप्रिय : ४९ तानों के अन्तर्गत १५ गान्धार आश्रित तानों में से एक), ३.२२४(दिक् स्त्री से शिक्षा पाकर अष्टावक्र द्वारा भार्गव मुनि की कन्या को पत्नीरूप में स्वीकार करना - न चाप्येषा गतिः क्षेम्या न चान्या विद्यते गतिः ।। तस्मात्प्रयच्छ धर्मज्ञ पत्न्यर्थं स्वसुतां मम ।।), शिव ३.४.३६(नवम द्वापर में ऋषभ नामक शिव अवतार के ४ शिष्यों में से एक), स्कन्द ३.२.९.३५(भार्गव गोत्र के ऋषियों के ५ प्रवर व उनके गुण), ४.२.५८.५२(भार्गव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - भृगुकेशवपूर्वेण तीर्थं वै भार्गवं परम् ।। तत्र स्नातो नरः प्राज्ञो भवेद्भार्गववत्सुधीः ।।), ४.२.८४.१९(भार्गव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य - तदग्रे भार्गवं तीर्थं महाज्ञानसमर्पकम् ।। तत्र स्नानविधानेन भवेद्भार्गव लोकभाक् ।।), ५.१.४.९६(द्वैधा विभक्त अग्नि में से एक की संज्ञा- द्विधा संभज्य तेनाग्निं सृष्टेर्यज्ञो भविष्यति ।।…भार्गवांगिरसश्चैव द्विविधो दैव उच्यते ।।), ५.१.६१.१०(भार्गव राम द्वारा स्थापित रामेश्वर के माहात्म्य का कथन - तस्येशानतरे भागे रामो भार्गवसत्तमः।। तपस्तेपे सुधर्मात्मा आत्मकायविशुद्धये।।), ६.२७१.१४९(सुदर्शना - पिता, क्षणक द्वारा सुदर्शना से बलात्कार पर क्षणक को शाप से उलूक बनाना), ७.१.१७८.१(भार्गवेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य - यस्तं पूजयते देवि दिव्यपुष्पोपहारकैः ॥ स भवेत्कृतकृत्यस्तु सर्वकामैः समृद्धिमान् ॥), योगवासिष्ठ ४.५+ (भार्गवोपाख्यान के अन्तर्गत भार्गव स्खलन, मनोराज्य का वर्णन, संसार प्रवृत्ति, उत्पत्ति विस्तारादि का वर्णन), वा.रामायण ७.८०(राजा दण्ड का भार्गव - कन्या के साथ बलात्कार), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.८४(कृष्ण - पत्नी भार्गवी के बह्-वृच पुत्र व ब्रह्मरुचि पुत्री का उल्लेख ) bhaargava/ bhargava


      भार्या गरुड ३.२८.८३(बुद्धि के सुष्ठु बुद्धि व दुष्ट बुद्धि भार्या रूपी २ रूप), पद्म २.४१.१(भार्या तीर्थ के वर्णन के अन्तर्गत कृकल वैश्य की पत्नी सुकला का आख्यान), ब्रह्मवैवर्त्त २.५९.८(भार्या तारा के वियोग में बृहस्पति का विलाप, भार्या की महिमा), मार्कण्डेय ६९(दु:शीला भार्या की रक्षा), स्कन्द ५.३.५६.१२०(शबर व्याध का भार्या के साथ मृगयार्थ वन गमन, भार्या वचन से पद्म सरोवर से पद्म ग्रहण कर शिवार्चन, स्वर्ग गमन का वृत्तान्त), महाभारत वन ३१३.६४(गृह में भार्या ही मित्र होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), ३१३.७२(भार्या दैवकृत सखा होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ) bhaaryaa/ bharya


      भाल ब्रह्माण्ड २.३.४२.३६(गणेश द्वारा चतुर्थी के चन्द्र को धारण करने से भालचन्द्र नाम प्राप्ति का उल्लेख), वायु ६१.४३(भालुकि : लाङ्गलि के ६ शिष्यों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.२६२.९(भाल देश के नृप क्षमाभृत् द्वारा भक्त राजा भाणवीर्य पर आक्रमण का वृत्तान्त), ४.८०.१४(राजा नागविक्रम के यज्ञ में भालायन के प्रस्तोता बनने का उल्लेख ) bhaala


      भालचन्द्र गणेश १.९२.२६(ओषधि, वनस्पति, कृमि, कीट द्वारा भालचन्द्र नाम से गणेश की पूजा), २.८५.२०(भालचन्द्र गणेश से नयन की रक्षा की प्रार्थना), २.९६.३३(शिव द्वारा प्रयुक्त गणेश का नाम ) bhaalachandra


      भाव अग्नि ३३९.१२(रति आदि भावों का निरूपण - न भावहीनोऽस्ति रसो न भावो रसवर्ज्जितः । भावयन्ति रसानेभिर्भाव्यन्ते च रसा इति ।।), ब्रह्म २.८३(भाव तीर्थ का माहात्म्य – राजा द्वारा तृतीय नेत्र द्वारा पुत्र प्राप्ति - भवः प्राह नृपं प्रीत्या पश्य नेत्रं तृतीयकम्।...चक्षुर्दीप्त्याऽभवत्पुत्रो महिमा नाम विश्रुतः।), मत्स्य १९६.२७(भावास्यायनि : त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), वायु २१.६४/१.२१.५६(२७वें भाव संज्ञक कल्प में दर्श व पूर्णमास की व्याख्या - सर्व्वे योगाश्च मन्त्राश्च मण्डलेन सहोत्थिताः। यस्मात् कल्पो ह्ययं दृष्टस्तस्मात्तं दर्श मुच्यते ।।...), विष्णु ५.७.६९(भावपुष्प द्वारा अर्चना का उल्लेख, द्र. टीका में अहिंसा आदि भावपुष्पों के नाम - हृदि सङ्कल्प्य यद्रूपं ध्यानेनार्च्चन्ति योगिनः । भावपुष्पादिना नाथ!सोऽर्च्च्यते वा कथं मया ॥ ), विष्णु ६.८.७ (त्रिविधा भाव भावना का उल्लेख - ज्ञातश्च त्रिविधो राशिश्शक्तिश्च त्रिविधा गुरो। विज्ञाता सा च कार्त्स्न्येन त्रिविधा भावभावना ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३१(अभिनय में हास्यादि ४९ भावों का कथन - इष्टार्थविषयप्राप्तौ रतिरित्युपजायते ।।
      सौम्यत्वादभिनेया सा वाङ्माधुर्यादिभिस्तथा ।। ), ३.४३(चित्रसूत्र में शृङ्गारादि रसों का निरूपण), शिव २.२.३.२३(सन्ध्या के दर्शन से ब्रह्मा के शरीर में ४९ भावों की उत्पत्ति का उल्लेख - उदीरितेंद्रियो धाता वीक्ष्याहं स यदा च ताम् ।। तदैव चोनपंचाशद्भावा जाताश्शरीरतः ।। ), ५.२३.१८(भाव शुद्धि की महत्ता, दुष्ट भाव की अपवित्रता का कथन - गंगातोयेन सर्वेण मृद्भारैः पर्वतोपमैः ।। आमृत्योराचरेच्छौचं भावदुष्टो न शुध्यति ।। ... ज्ञानामलांभसा पुंसां सद्वैराग्यमृदा पुनः ।।), योगवासिष्ठ ३.१०(महाकल्पान्त अवशिष्ट परमभाव का वर्णन - महाभूतप्रकाशानामभावस्तम उच्यते ।), लक्ष्मीनारायण २.२५५.३३(सत्त्व के १०, रज के ९, तम के ८, बुद्धि तत्त्व के ७ भावों आदि के नाम- अत्र सत्त्वं दशभावं मे निबोध वदामि तान् ।। आनन्दः प्रीतिरुद्धर्षः प्रकाशः पुण्यकारिता । सन्तोषमार्जवं श्रद्धा त्याग ऐश्वर्यमित्यपि ।।), ३.१८४.३(नास्तिक राजा भावशूर का स्वभृत्य भक्त वृक्णदेव से भक्ति या कर्म की प्रधानता के विषय में विवाद, भावशूर के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त ) bhaava/ bhava


      भावन ब्रह्माण्ड २.३.१.८९(भृगु के १२ देव पुत्रों में से एक), मत्स्य ९.१३(उत्तम मन्वन्तर के देवों के गणों में से एक), वायु ६५.८६/२.४.८६(भृगु के १२ देवपुत्रों में से एक),


      भावना कूर्म १.१२.२१(ज्ञान, क्रिया व प्राण संज्ञक ३ शक्तियों का उल्लेख - ज्ञानशक्तिः क्रियाशक्तिः प्राणशक्तिरिति त्रयम् ॥), भागवत २.५.२३(ज्ञान, क्रिया, भावना की अपेक्षा द्रव्य, ज्ञान व क्रियात्मक तम का कथन - वैकारिकस्तैजसश्च तामसश्चेति यद्‌भिदा । द्रव्यशक्तिः क्रियाशक्तिः ज्ञानशक्तिरिति प्रभो ॥), विष्णु ६.७.४८(ब्रह्म, कर्म व उभयात्मक रूप से त्रिविध भावना का कथन - कर्मभावात्मिका ह्येका ब्रह्मभावात्मिका परा। उभयात्मिका तथैवान्या त्रिविधा भावभावना), ६.८.७(त्रिविधा भावभावना का उल्लेख - विज्ञाता सा च कार्त्स्न्येन त्रिविधा भावभावना।), शिव ५.५१.७ (कर्म, भक्ति व ज्ञान से मुक्ति प्राप्ति का कथन - ज्ञानयोगः क्रियायोगो भक्तियोगस्तथैव च ।।), योगवासिष्ठ ६.२.२९(भावना का प्रतिपादन), लक्ष्मीनारायण १.४२५.१२(भावना के ध्यान से श्रेष्ठ होने व स्नेह से हीन होने का उल्लेख - कर्मणो ज्ञानमुत्कृष्टं ज्ञानाद् ध्यानं तथोत्तमम् । ध्यानाच्च भावना श्रेष्ठा भावतः स्नेह उत्तमः ।।), कथासरित् २.२.१०२(मृगाङ्कवती – सखी - ततो भावनिका नाम राजपुत्र्याः प्रिया सखी । अङ्गुलीयार्पणव्याजात्तस्यान्तिकमुपाययौ ।। ), द्र. विश्वभावन bhaavanaa/ bhavana


      भावशर्मा पद्म ६.१८२(भ्रष्ट ब्राह्मण, मृत्यु के पश्चात् ताल वृक्ष बनना, गीता के अष्टम अध्याय के श्रवण से मुक्ति),


      भावी वायु ४३.२२(भाविमन्द्रा : भद्राश्व वर्ष के जनपदों में से एक), विष्णु २.४.१७(शूद्र, चतुर्वर्णों में से एक, प्लक्षादि द्वीपों में स्थिति )


      भाव्य ब्रह्माण्ड १.२.३६.६६(चाक्षुष मन्वन्तर में ८ देवगण में से एक), वायु ६२.६१/२.१.६१(भाव्य गण के ८ देवों के नाम ) bhaavya/ bhavya


      भाषा भविष्य ३.१.५.३१(म्लेच्छ भाषा के प्रमुख चार प्रकारों ब्रजभाषा, महाराष्ट्री, यावनी व गुरुण्डिका के कतिपय उदाहरण), वायु ९६.१४२/२.३४.१४४(भाषी : शूर - पत्नी, वसुदेव आदि १० पुत्रों की माता), विष्णुधर्मोत्तर ३.७(प्राकृत में अक्षरों आदि के रूप परिवर्तनों का कथन), कथासरित् १२.१६.२६(भाषाज्ञ वैश्य द्वारा वीरदेव की कन्या से विवाह हेतु निवेदन ) bhaashaa/ bhasha


      भाष्य मत्स्य १४४.१३(द्वापर में संहिताओं की भाष्य विद्या के प्रवर्तन का उल्लेख )


      भास ब्रह्माण्ड २.३.७.२४२(वाली के सेनानायक प्रधान वानरों में से एक), २.३.७.४५५(भासी व गरुड के पुत्रों की भास संज्ञा), वायु १००.१५/२.३८.१५ (भासकृत् : सुतपा गण के २० देवों में से एक), विष्णु १.२१.१६(भासी के भास पुत्रों का उल्लेख), योगवासिष्ठ ५.६५+ (विलास से संवाद), ६.२.१३१(भास संसार का वर्णन), ६.२.१३२(भास वर्णित स्वजन्म परम्परा), कथासरित् ८.२.३७९ (सूर्यप्रभ - मन्त्री, पूर्व जन्म में वृषपर्वा नामक दानव), ८.७.३३(भास का मर्दन से युद्ध), ८.७.४७(प्रभास - पिता, भास का पूर्व जन्मों में कालनेमि, हिरण्यकशिपु तथा कपिञ्जल नाम से अवतीर्ण होना ), द्र. गतिभास, नेत्रभास bhaasa/ bhasa


      भासकर्ण वा.रामायण ५.४६.३५(रावण - सेनानी, प्रमदावन में हनुमान से युद्ध में मृत्यु), ७.५.४१(सुमाली व केतुमती - पुत्र ) bhaasakarna


      भासी ब्रह्माण्ड २.३.७.१३(रिष्टा की ३ पुत्रियों में से एक), २.३.७.४४६(ताम्रा की ६ कन्याओं में एक), २.३.७.४४८(गरुत्मान् की पत्नियों में से एक), २.३.७.४५५(भासी - पुत्रों की भास संज्ञा), मत्स्य ६.३०(मारीच व ताम्रा की ६ कन्याओं में से एक, कुररों की माता), वायु ६९.४८/२.८.४८(अरिष्टा की ८ अप्सरा पुत्रियों में से एक), ६९.३२५/२.८.३१७(ताम्रा की पुत्रियों में से एक, गरुत्मान् की भार्याओं में से एक, भासों, उलूकों, काक, कुक्कुटों, मयूरों आदि की माता), विष्णु १.२१.१५(ताम्रा की ६ सुताओं में से एक, भासों की माता ), द्र वंश ताम्रा bhaasee/ bhasi


      भासुर ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०(तुषित संज्ञक १२ देवों में से एक, तुषिता व क्रतु - पुत्र )


      भास्कर कूर्म १.४३.२१(कार्तिक मास में भास्कर सूर्य की रश्मियों की संख्या), देवीभागवत ९.२२.३(शङ्खचूड - सेनानी विप्रचित्ति से युद्ध), पद्म १.४०.९४(विश्वेदेवों में से एक, धर्म व विश्वा - पुत्र), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१९.२५ (भास्कर से अधर की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१२६(भास्कर की निरुक्ति, भास्कर के दिवसों के प्रविभागों की योनि होने का कथन), १.२.२१.६(भास्कर के मण्डल के आपेक्षिक विस्तार का कथन), २.३.५.७९(मरुतों के द्वितीय स्कन्ध की भास्कर में स्थिति का उल्लेख), भविष्य १.५७.१२(भास्कर हेतु कोविदार बलि का उल्लेख), १.६१.२६(सोते समय भास्कर सूर्य के स्मरण का निर्देश), वायु ३१.३७(भास्कर शब्द की निरुक्ति), ५३.४१(भास्कर का वारितस्कर विशेषण), शिव २.५.३६.७(भास्कर का शंखचूड - सेनानी विप्रचित्ति से युद्ध), स्कन्द १.२.४९+ (भास्कर का कमठ नामक बालक से जीवगत्यादि, शरीर लक्षण तथा कर्मफल विषयक प्रश्न पूछना, कमठ द्वारा सम्यक् उत्तर प्रदान से भास्कर की प्रसन्नता, जयादित्य नाम से अवस्थिति, कमठ को वर प्रदान, जयादित्य माहात्म्य का वर्णन), ५.२.८२.३९(दक्ष यज्ञ विध्वंस के समय क्रुद्ध भद्रकाली द्वारा भास्कर के चरणों का ताडन), ५.३.१२५.४(रवि के अपर नाम भास्कर के कारण का प्रश्न, भास्कर तीर्थ का माहात्म्य), ६.७६(मुण्डीर, कालप्रिय तथा मूलस्थान नामक भास्करत्रितय तीर्थ का माहात्म्य, तीर्थ स्नान से कुष्ठ रोग से मुक्ति ), ६.२१२.१०(विश्वामित्र द्वारा स्वनिर्मित कुण्ड में भास्कर की स्थापना, भास्कर से वर प्राप्ति), ७.१.१३.९(द्वापर में सूर्य का नाम), लक्ष्मीनारायण १.३३७.३९ (भास्कर का शङ्खचूड - सेनानी विप्रचित्ति से युद्ध), ४.२.१०(राजा बदर के भास्कर नामक विमान का कथन ) bhaaskara/ bhaskara


      भिक्षा कूर्म १.३५.२५(व्यास द्वारा वाराणसी में भिक्षा की अप्राप्ति पर वाराणसी को शाप देने की कथा), २.२९(भिक्षा की विधि), भागवत ११.१८.१८(संन्यासी को भिक्षा विषयक निर्देश), ११.१८.२४(संन्यासी को भिक्षा विषयक निर्देश), वायु १६.१४(योगी हेतु भिक्षा का नियम), स्कन्द ४.१.३१.१०२(विष्णु द्वारा शिव को मनोरथवती नामक भिक्षा देना, वाराणसी में भिक्षादान का महत्त्व), ५.१.३.११(शिव का विष्णु के समीप गमन, भिक्षा याचना, विष्णु द्वारा दक्षिण भुजा का समर्पण), ५.१.५१.३(शिव का भिक्षार्थ नागलोक में गमन, भिक्षा अप्राप्ति पर सर्वामृत प्राशन, नागों की स्तुति से प्रसन्न होकर अमृतकुण्ड की स्थापना), ५.३.१२६.१५(अयोनिप्रभव तीर्थ में जल रूप भिक्षा दान का महत्त्व), महाभारत आदि १५६.६(भीम द्वारा भिक्षा के आधे भाग का उपभोग आदि का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.१७८(भिक्षायन भिक्षु द्वारा स्वपत्नी को कामना त्याग का उपदेश, कृष्ण द्वारा भिक्षा के विविध प्रकारों का वर्णन), कथासरित् १०.५.३१३(अजगर द्वारा ब्राह्मणी को दिव्य भिक्षा पात्र देने का वृत्तान्त ) bhikshaa


      भिक्षु अग्नि १६१(भिक्षु/यति/संन्यासी के धर्म का निरूपण), गरुड १.१०३(भिक्षु के कर्तव्य / धर्म), पद्म ६.१०६.१४(कलहा - पति, कलहा के जन्मान्तरों का कथन), भागवत ६.५.३६(नारद द्वारा स्वभ्राताओं को भिक्षु मार्ग का प्रदर्शन करने के कारण दक्ष द्वारा नारद को शाप—न भवेद् भ्रमतः पदम्), ११.१८.४२(शान्ति और अहिंसा का भिक्षु के मुख्य धर्म के रूप में उल्लेख), वामन ५१.५१(शिव का भिक्षु रूप में पार्वती के समीप आगमन, वार्तालाप), वायु १६.१७(भिक्षु के अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि धर्मों का कथन), १०५.२५/२.४३.२३(भिक्षु द्वारा गया में पिण्ड दान के बदले दण्ड प्रदर्शन का विधान), विष्णु ३.९.२४(भिक्षु के चतुर्थ/वानप्रस्थ आश्रम के स्वरूप का वर्णन), शिव ३.३१.२४(शिव - अवतार भिक्षु द्वारा अनाथ बालक की रक्षा हेतु विप्र स्त्री को प्रेरणा, बालक की उत्पत्ति के वृत्तान्त का कथन), स्कन्द २.४.२४.११(भिक्षु - भार्या कलहा को राक्षसी योनि प्राप्ति, धर्मदत्त द्वारा कार्तिक पुण्य दान से मुक्ति), ५.२.३७.११(शिव - प्रेषित गणेश नामक शिव गण का भिक्षु रूप धारण कर महाकालवन में आगमन, लोक कष्ट निवारण के पश्चात् लिङ्ग रूप होकर शिवेश्वर नाम धारण), ५.३.२१२.२(शिव द्वारा भिक्षु रूप धारण कर एकशाल ग्राम में गमन, डिण्डिम रूप धारण), योगवासिष्ठ ६.१.६२(भिक्षु संसार का उदाहरण), ६.१.६६(भिक्षु संसृति का कथन), कथासरित् ७.४.३९(प्रपञ्चबुद्धि नामक भिक्षुक का वृत्तान्त), १२.८.४०(शान्तिशील नामक भिक्षु द्वारा राजा त्रिविक्रमसेन को प्रतिदिन एक फल प्रदान, राजा से सहायतार्थ याचना), १२.३२.१(त्रिविक्रमसेन द्वारा भिक्षु के वध का वृत्तान्त ) bhikshu


      भिन्न स्कन्द ३.१.४९.३०(नील द्वारा देश-काल आदि द्वारा अभिन्न रामेश्वर की स्तुति)


      भिल्ल गणेश १.८३.३७(शिव से पुत्र प्राप्ति हेतु पार्वती द्वारा कामुक भिल्ली का वेश धारण), नारद १.५६.७४२(भिल्ल देश के कूर्म का पार्श्वमण्डल होने का उल्लेख), पद्म ५.१८.३(नील पर्वतस्थ चतुर्भुज रूप भिल्लों द्वारा ब्राह्मण को चतुर्भुजत्व प्राप्ति का कथन), ६.२००.८७(निगमोद्बोधक तीर्थ में स्नान से भिल्ल व सिंह की मुक्ति की कथा), ६.२२२.२८(कर्कट भिल्ल की भार्या जरा के चरित्र का कथन), ब्रह्म २.९९.१( भिल्ल तीर्थ का माहात्म्य : आदिकेश शिव द्वारा वेद ब्राह्मण की पूजा की अपेक्षा व्याध की भक्ति पर प्रसन्न होना), भविष्य ३.२.२७(काष्ठ विक्रेता, सत्यनारायण व्रत कथा का प्रसंग), वामन ९०.२४(भिल्ली वन में विष्णु का महायोग नाम), शिव ३.२८(शिव द्वारा यति रूप धारण कर आहुक भिल्ल की आतिथ्य सेवा की परीक्षा, जन्मान्तर में भिल्ल व भिल्ली का नल व दमयन्ती बनना), ३.३९.२६(मूक दैत्य वधार्थ तथा अर्जुन की परीक्षा हेतु शिव अवतार), लक्ष्मीनारायण ४.८१.८+ (नन्दिभिल्ल नृप का सर्वमेध यज्ञ में दीक्षित नागविक्रम भूपति से युद्ध का वृत्तान्त, नन्दिभिल्ल की सेना का नाश), ४.८५.४७(नन्दिभिल्ल द्वारा युद्ध में मृत्यु से पूर्व कृष्ण की स्तुति, नन्दिभिल्ल की सती भार्या द्वारा सतीत्व आदि), कथासरित् ९.१.१६८(राजा पृथ्वीरूप द्वारा भिल्ल सेनापति का वध), १०.५.१५१(ईर्ष्यालु व्यक्ति की दुष्टा स्त्री का भिल्ल के साथ पलायन, वास एवं व्यभिचार, ईर्ष्यालु द्वारा भिल्ल का वध), १८.३.४(राजा, विन्ध्यदेश निवासी), १८.४.३८(विक्रमादित्य के कार्पटिक का अजगर होना, राजा द्वारा भिल्ल सेनापति एकाकिकेसरी से सहायतार्थ याचना, भिल्ल द्वारा बूटियों का रस नाक में डालने पर पुन: मनुष्य रूप की प्राप्ति ), द्र. गोभिल, भील bhilla


      भिषक् ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.१०(भास्कर से आरम्भ करके चिकित्सा/आयुर्वेद शास्त्र के रचयिताओं के नाम व चिकित्सा शास्त्र का वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१४१(हृदिक के १० पुत्रों में से एक), वायु ९६.१३९/२.३४.१३९(हृदिक के १० पुत्रों में से एक), कथासरित् १०.८.१४(मूर्ख रोगी व भिषक् की कथा ), द्र. महाभिष, शतभिषक bhishak


      भीति द्र. कालभीति


      भीम अग्नि ९६.११(हेतुक, त्रिपुरघ्न आदि ८ क्षेत्रपालों में से एक), गणेश १.१९.५(चारुहासिनी - पति, पुत्र प्राप्ति हेतु तप, विश्वामित्र द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन), १.२७.१(राजा भीम द्वारा विश्वामित्र से गणेश के एकाक्षर महामन्त्र की प्राप्ति), १.४३.२(त्रिपुर व शिव के युद्ध में भीमकाय का पुष्पदन्त से युद्ध), २.२६.३(भीम व्याध द्वारा राक्षस के भय से वामन गणेश की शमी पत्रों द्वारा अनायास पूजा, मुक्त होना), २.२७.१(भीम के पूर्व जन्मों का वृत्तान्त : दुष्ट राजा साम्ब द्वारा गणेश पूजा का फल प्राप्त करना आदि), गरुड १.१२७(भीम द्वादशी व्रत की विधि, माघ शुक्ल एकादशी व्रत, वराह का शरीर में न्यास), ३.१६.६८(विरोचन वायु का अवतार), देवीभागवत २.७.७(भीम द्वारा वाग्बाणों से धृतराष्ट} का पीडन), पद्म १.६(महाभीम : हिरण्याक्ष - पुत्र), १.१३.११५(भीम/वृकोदर : वायु का अंश), १.२०.१००(भीम व्रत का माहात्म्य व संक्षिप्त विधि), १.२३.२१(भीम द्वादशी व्रत : भीम व कृष्ण का संवाद, कृष्ण का देह में न्यास), २.९७.११२(राजा सुबाहु के संदर्भ में क्षुधा व तृष्णा के भीम रूप भयानक होने का उल्लेख), ४.१४.१५(दुष्ट शूद्र भीम की ब्राह्मण सेवा से मुक्ति), ६.५१.१०(भीम द्वारा निर्जला एकादशी का चीर्णन, निर्जला एकादशी अनुष्ठान की विधि), ६.२२२.८३(भीम द्वारा निर्मित भीम कुण्ड का माहात्म्य), ६.२५२.२ (भीम का जरासंध से द्वन्द्व युद्ध, जरासंध का वध), ७.४.८७(भीमकेश नृप की भार्या केशिनी व बृहद्ध्वज राक्षस की मुक्ति की कथा), ब्रह्म १.११.११३(भीमसेन : द्वितीय ऋक्ष - पुत्र, प्रतीप - पिता), २.१०३.३४(भीमेश्वर शिव की उत्पत्ति के वर्णन के संदर्भ में विश्वरूप द्वारा भीम तनु का ध्यान करके अग्नि में आहुति, वृत्र की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१०.१४(कुमार नीललोहित द्वारा ब्रह्मा से प्राप्त ८ नामों में षष्ठम्), १.२.१०.५०(रुद्र का नाम, शरीर में आकाश का रूप, भीम स्थिति के कर्तव्य), १.२.१०.८१(दिशः - पति, स्वर्ग - पिता), १.२.२३.३(कंस व भीम की सूर्य रथ में मधु - माधव मास में स्थिति का उल्लेख), १.२.३६.५७(वैकुण्ठ संज्ञक देवों में से एक), २.३.५.९४(मरुतों के तृतीय गण में से एक), २.३.७.३( मौनेय संज्ञक १६ देवगन्धर्वों में से एक), २.३.७.१३३(खशा व कश्यप के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक), २.३.७.२३५(वाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), २.३.६६.२३ (अमावसु - पुत्र, काञ्चनप्रभ - पिता, पुरूरवा वंश), २.३.६८.२८(जरासन्ध के वध के पश्चात् भीम द्वारा जरासन्ध के दिव्य रथ को कृष्ण को देने का उल्लेख), ३.४.१२.५६(भीमकर्मा : भण्डासुर का मन्त्री), ३.४.३४.४१(१३वें आवरण में स्थित रुद्रों में से एक), भविष्य ३.३.१.२४(भीम का वीरण म्लेच्छ रूप में अवतरण), ३.३.१७.४२(षष्ठावर्त में बली का भीम से युद्ध), ३.३.२६.२० (कलियुग में भीम का तालन रूप में अवतरण), ३.३.३२.५३(भीम के तालन रूप में जन्म का उल्लेख), ४.७४(भीम द्वादशी व्रत की विधि व माहात्म्य : दमयन्ती - पिता भीम द्वारा पुलस्त्य से संसार से मुक्ति विषयक प्रश्न), भागवत ६.६.१७(भूत व सरूपा के ११ प्रधान रुद्र संज्ञक पुत्रों में से एक), ९.१५.३(विजय - पुत्र, काञ्चन - पिता, पुरूरवा वंश), ९.२२.२९(वृकोदर/भीम के श्रुतसेन - पिता होने का उल्लेख), १०.७९.२३(महाभारत युद्ध में बलराम द्वारा भीम व दुर्योधन के गदा युद्ध को रोकने का प्रयास, भीम में प्राणाधिक्य होने का उल्लेख), मत्स्य ६९.१२(भीम द्वादशी व्रत विधि, विष्णु व लक्ष्मी का न्यास, भीम द्वारा व्रत का चीर्णन), १०१.५१(भीम व्रत), लिङ्ग २.२७.१७९(भीम व्यूह का वर्णन), वामन ५७.७०(अंशुमान द्वारा कुमार को प्रदत्त गण का नाम), ५८.५८(कार्तिकेय - गण भीम द्वारा शिला से असुर संहार), ६४.७८(भीमरथी नदी द्वारा कुमार को प्रदत्त गण), ९०.३२(शालवन में विष्णु का भीम नाम), वायु २७.१४(ब्रह्मा द्वारा कुमार नीललोहित को प्रदत्त नामों में से एक, आकाश स्थान), २७.४५(शरीर में वायु संचरणार्थ सुषिर स्थानों के रुद्र के भीम तनु होने का उल्लेख), २७.५४(भीम रुद्र के आकाश तनु, दिशा पत्नियां व स्वर्ग सुत होने का उल्लेख), ६७.१२६/२.६.१२६ (तृतीय गण? के मरुतों में से एक), ६९.१६५/२.८.१५९(खशा व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक), ९९.१६२/२.३७.१५८(महावीर्य - पुत्र, उभक्षय - पिता, भरत/वितथ वंश), १०८.९१/२.४६.९४(भीम द्वारा वाम जानु का नमन कर गया में श्राद्ध करने का कथन), विष्णु ४.७.२(अमावसु - पुत्र, काञ्चन - पिता, पुरूरवा वंश), ४.१४.३५(पाण्डु - पत्नी कुन्ती का अनिल देवता से उत्पन्न पुत्र), ४.२०.४०(वही), ४.२०.४२(श्रुतसेन - पिता), शिव ३.५.३१(लाङ्गली भीम : २२वें द्वापर में शिव का अवतार), ३.४२.२७(डाकिनी क्षेत्र में भीमशंकर नामक ज्योतिर्लिङ्ग स्वरूप से शिवावतार), ४.२०(भीमेश्वर नामक षष्ठ ज्योतिर्लिङ्ग के माहात्म्य का निरूपण, भीमासुर को भस्मसात् करने से भीमेश्वर नाम धारण), ४.२०+ (कुम्भकर्ण व कर्कटी - पुत्र, ब्रह्मा से वर प्राप्ति, शिव द्वारा भस्म करना), स्कन्द १.२.२.१२(भीम द्वारा कुरूतापक राजा वीरवर्मा का वध), १.२.६४.७(भीम का स्वपौत्र सिद्धसेन या बर्बरीक से जल पान के संदर्भ में विवाद व युद्ध ; रुद्र द्वारा भीम की रक्षा), १.२.६६.९९(लङ्का के समीप के सर से मृदा आनयन उद्योग में भीम की असफलता की कथा, भीम के गर्व का खण्डन), २.१.१०.९०(भीम कुलाल या कुम्भकार द्वारा मृन्मय तुलसी पुष्प से शिव की पूजा, तोण्डमान नृप का आगमन, मुक्ति), ४.२.६९.११९(भीमेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७०.७२ (भीमचण्डी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२५.२(भीमेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.७७(भीमेश्वर तीर्थ के माहात्म्य का कथन), ५.३.१९८.८५ (हिमाद्रि पर देवी की भीमादेवी नाम से स्थिति), ५.३.२३१.१९(भीमेश्वर नाम से तीन तीर्थों का उल्लेख), ६.१०९.२०(बदरी तीर्थ में शिव की भीमेश्वर नाम से स्थिति का उल्लेख), ६.१०९.१८(सप्तगोदावर तीर्थ में शिव की भीम नाम से स्थिति का उल्लेख), ७.१.१०.१०(भीम तीर्थ का वर्गीकरण – वायु), ७.१.४०(श्वेतकेतु द्वारा स्थापित भीमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ; भीम द्वारा लिङ्ग की पूजा), ७.३.३९.५७(दमयन्ती - पिता, पूर्व जन्म में सारमेय, सक्तु भक्षण से राजा), हरिवंश ३.५३.३०(धनेश्वर, केशी से युद्ध), लक्ष्मीनारायण १.४०१.१२८(भीम नामक कुलाल द्वारा मृदा से निर्मित तुलसी पुष्प श्रीहरि को अर्पित करने का कथन), १.५५०.५१(भीमनाथ तीर्थ के भीति निवारक होने का उल्लेख), कथासरित् ९.६.३३८(दमयन्ती - पिता, नल - श्वसुर भीम द्वारा नल के अन्वेषण का वृत्तान्त), १२.२.१९(भीमपराक्रम : मृगाङ्कदत्त के १० मन्त्रियों में से एक), १२.७.३०(भीमभट : शीलधर द्वारा शिवाराधन, वर प्राप्ति, अगले जन्म में भीमभट रूप में जन्म, मुनि से शाप प्राप्ति, शाप मुक्ति हेतु उपाय का कथन ) bheema/bhima


      भीम-(१) कश्यप द्वारा मुनि के गर्भ से उत्पन्न एक देवगन्धर्व (आदि०६५ । ४३)।(२) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक ( आदि० ६७ । ९८ )। यह भीमसेन द्वारा मारा गया (भीष्म० ६४ । ३६-३७) । (३) ये महाराज ईलिन के द्वारा रथन्तरी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। इनके चार भाई और थे---दुष्यन्त, शूर, प्रवसु और वसु(आदि० ९४ । १७-१८) (४) ये विदर्भदेश के राजा थे ( वन० ५३ । ५)। दशार्णनरेश सुदामा की पुत्री इनकी पत्नी थी (वन० ६९ । १४-१५)। महर्षि दमन की कृपा से इन्हें दम, दान्त और दमन नामक तीन पुत्र तथा दमयन्ती नाम्नी कन्या की प्राप्ति (वन० ५३ । ६-९)। इनके द्वारा दमयन्ती के स्वयंवर का आयोजन (वन० ५४ । ८-९)। इनके द्वारा नल के साथ दमयन्ती का विवाह किया जाना (वन० ५७ । ४०-४१)। सारथि वार्ष्णेय के द्वारा लाये गये राजा नल के बच्चों को अपने आश्रय में रखना (वन० ६० । २३-२४ )। दमयन्ती द्वारा इनके गुणों का वर्णन (वन० ६४ । ४४-४७)। इनका नल-दमयन्ती की खोज के लिये ब्राह्मणों को पुरस्कार की घोषणा करके चारों ओर भेजना (वन० ६८ । २-५) । महारानीकी प्रेरणा से राजा नल की खोज के लिये ब्राह्मणों को आज्ञा देकर भेजना (वन० ६९ । ३४)। इनके द्वारा अपने यहाँ आये हुए अयोध्यानरेश ऋतुपर्ण का स्वागत (वन० ७३ । २०)। प्रकट हुए राजा नल को पुत्र की भाँति अपनाना और आदर-सत्कार के साथ आश्वासन देना (वन० ७७ । ३-५)। एक महीने के पश्चात् सेना, रथ आदि के साथ राजा नल को विदा करना (वन० ७८ । १-२)। इनके द्वारा आदर-सत्कार के साथ राजा नलसहित दमयन्ती की विदाई (वन० ७९ । १-२)। (५) ये देवताओं के यज्ञ का विनाश करनेवाले पाञ्चजन्य द्वारा उत्पन्न पाँच विनायकों में हैं (वन. २२१ । ११)। (६) अंश द्वारा स्कन्द को दिये गये पाँच अनुचरों में से एक । शेष चारों के नाम-परिघ, वट, दहति और दहन (शल्य० ४५ । ३४-३५)। (७) एक प्राचीन नरेश । ये यम की सभा में रहकर सूर्यपुत्र यम की उपासना करते हैं, इस सभा में भीम नाम के सौ राजा हैं (सभा० ८ । २४)। इन्होंने तपस्या द्वारा प्रजाओं का कष्ट से उद्धार किया था (वन०३।११)। ये प्राचीनकाल में पृथ्वी के शासक थे; किंतु काल से पीड़ित

      हो इसे छोड़कर चले गये (शान्ति० २२७ । ४९)।

      भीमजानु-एक प्राचीन नरेश, जो यमसभा में रहकर सूर्यपुत्र यम की उपासना करते हैं (सभा० ८।२१)।

      भीमबल (भूरिबल)-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक

      (आदि० ६७ । ९८; आदि. ११६ । ७)। भीमसेन द्वारा इसका वध (शल्य० २६ । १४-१५) । (२) ये देवताओं के यज्ञ का विनाश करने वाले पाञ्चजन्य द्वारा

      उत्पन्न पाँच विनायकों में हैं ( वन० २२१ । ११)।

      भीमरथ-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक (आदि. ६७। १०३, आदि० ११६ । १२) । भीमसेन द्वारा इसका वध (भीष्म० ६४ । ३६-३७ ) । (२) कौरवपक्षीय योद्धा, जो द्रोणनिर्मित गरुडव्यूह के हृदयस्थान में खड़ा हुआ था (द्रोण० २० । १२)। इसने पाण्डवपक्षीय म्लेच्छराज शाल्व का वध किया था (द्रोण. २५। २६)। पहले जब युधिष्ठिर राजा थे, उस समय यह उनके सभाभवन में बैठा करता था ( सभा० ४ । २६)।

      भीमरथी (भीमा)-दक्षिणभारत में स्थित एक नदी, जो समस्त पापभय का नाश करनेवाली है (वन०८८ । ३)। ( इसी के तट पर सुप्रसिद्ध तीर्थ पण्ढरपुर है।) यह भारतवर्ष की मुख्य नदियों में है। इसके जल को यहाँ के निवासी पीते हैं (भीष्म० ९ । २०)। इसी को भीमा' भी कहते हैं (भीष्म० ९ । २२)।

      भीमवेग-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक ( आदि० ६७ । ९८; आदि० ११६ । ७)। भीमशर-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक (आदि० ६७ ।९९)।

      भीमसेन-(१) ये महाराज परीक्षित् के पुत्र तथा जनमेजय के भाई थे । इन्होंने कुरुक्षेत्र के यज्ञ में देवताओं की कुतिया सरमा के बेटे को पीटा था (आदि० ३ । १-२)। (२) कश्यपपत्नी मुनि के गर्भ से उत्पन्न एक देवगन्धर्व (आदि. ६५ । ४२ ) । ये अर्जुन के जन्मोत्सव में पधारे थे (आदि० १२२ । ५५)। (३) ये सोमवंशीय महाराज अविक्षित् के पौत्र तथा परीक्षित् के पुत्र थे । इनकी माता का नाम सुयशा था। इनके द्वारा केकय देश की राजकुमारी 'कुमारी' के गर्भ से प्रतिश्रवा का जन्म हुआ (आदि० ९४ । ५२-५५; आदि० ९५ । ४२-४३)। (४) ये महाराज पाण्डु के क्षेत्रज पुत्र हैं । वायुदेवके द्वारा कुन्ती के गर्भ से इनका जन्म हुआ था। इनके जन्मकाल में आकाशवाणी हुई कि यह कुमार समस्त बलवानों में श्रेष्ठ है (आदि० १२२ । १४-१५)। जन्म के दसवें दिन ये माता की गोद से एक शिलाखण्ड पर गिर पड़े और इनके शरीर की चोट से वह शिला चूर-चूर हो गयी (आदि० १२२ । १५ के बाद दाक्षिणात्य पाठ से १८ तक)। इनके जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति (आदि. १२२ । १८ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। शतशृङ्गनिवासी ऋषियों द्वारा इनका नामकरण-संस्कार ( आदि० १२३ । १९-२०)। वसुदेव के पुरोहित काश्यप के द्वारा इनके उपनयनादि-संस्कार सम्पन्न हुए तथा इन्होंने राजर्षि शुक से गदायुद्ध की शिक्षा प्राप्त की (आदि० १२३।३१ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ३६९)। कृपाचार्य का इन (पाण्डवों) को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देना (आदि० १२९ । २३)। द्रोणाचार्य ने इन (पाण्डवों)को नाना प्रकार की मानव एवं दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा दी (आदि० १३१ । ४, ९)। इनके द्वारा द्रौपदी के गर्भ से सुतसोम का जन्म ( आदि० ९५ । ७५ ) । इनके द्वारा काशिराज की पुत्री बलन्धरा के गर्भसे सर्वग' की उत्पत्ति ( आदि० ९५ । ७७ )। इनके द्वारा बालक्रीडाओं में धृतराष्ट्रपुत्रों की पराजय (आदि० १२७ । १६-२४)। दुर्योधन का इन्हें विष मिला हुआ भोजन कराना और मूर्च्छित होने पर लताओं से बाँधकर गङ्गाजल में फेंकना (आदि० १२७ । ४५--५४)। मूर्च्छितावस्था में इनका नागलोक में पहुँचना और वहाँ सर्पों के डंसने से खाये हुए विष के दूर होने पर अपना पराक्रम प्रकट करना (आदि. १२७ । ५५-५९)। नागलोक में इनका आर्यक नाग द्वारा आलिङ्गन और आर्यक की प्रेरणा से प्रसन्न हुए नागराज वासुकि की आज्ञा से इनके द्वारा आठ कुण्डों का दिव्य रसपान, जिससे इन्हें एक हजार हाथियों के बल की प्राप्ति हुई ( आदि. १२७ । ६३-७१)। आठवें दिन रस के पच जाने पर इनका जागना और नागों द्वारा इनका मङ्गलाचारपूर्वक स्वागत-सत्कार तथा दस हजार हाथियों के समान बलशाली होने का वरदान देकर इन्हें पुनः ऊपर पहुँचा देना ( आदि० १२८ । २०-२८)। इनका नागलोक से लौटकर माता को प्रणाम करना तथा भाइयों से मिलना (आदि० १२८ । २९-३०)। गदायुद्ध में इनका प्रवीण होना ( आदि० १३१ । ६१)। हस्तिनापुर की रङ्गभूमि में परीक्षा के समय दुर्योधन के साथ गदायुद्ध एवं अश्वत्थामा द्वारा उस युद्ध का निवारण ( आदि० १३४ । १-५)। इनके द्वारा कर्ण का तिरस्कार ( आदि० १३६ । ६-७)। कर्ण का पक्ष लेकर दुर्योधन का इन पर आक्षेप करना ( आदि० १३६ । १०-१६) । इनके द्वारा द्रुपद की गजसेना का संहार ( आदि० १३७ । ३१-३५ )। बलरामजी से इनकी गदायुद्धविषयक शिक्षा ( आदि. १३८ । ४)। इनके द्वारा लाक्षागृह का जलाया जाना (आदि० १४७ । १०)। सुरंग से निकल भागते समय इनके द्वारा मार्ग में थके हुए भाइयों एवं माता का परिवहन (आदि. १४७ । २०-२१)। धरती पर सोये हुए भाइयों एवं माता को देखकर इनका विषाद करना (आदि. १५० । २१-४१)। हिडिम्बवन में इनका जागरण करना (आदि० १५० । ४४-४५)। हिडिम्बा के साथ वार्तालाप करना ( आदि० १५१ । २३-३६)। हिडिम्बासुर के साथ इनका युद्ध ( आदि० १५२ । ३८-४५)। इनके द्वारा हिडिम्ब का वध ( आदि० १५३ । ३२)। हिडिम्बा को मारने के लिये इनका उद्यत होना तथा युधिष्ठिर का इन्हें रोकना (आदि० १५४ । १-२ )। हिडिम्बा को पुत्र दान करने के लिये इन्हें माता का आदेश प्राप्त होना (आदि० १५४ । १८ के बाद दाक्षिणात्य पाठ ) । हिडिम्बा के साथ इनकी शर्त ( आदि० १५४ । २० )। हिडिम्बा के साथ इनका विहार ( आदि० १५४ । २१-३०)। इनके द्वारा हिडिम्बा के गर्भ से घटोत्कच का जन्म (आदि. १५४।३१)। एकचक्रा में निवास करते समय पूरी भिक्षा का आधा भाग इनके उपभोग में आता था ( आदि० १५६ । ६) । ब्राह्मण का उपकार करने के लिये इन्हें माता कुन्ती की आज्ञा (आदि० १६० । २०)। इनका भोजन-सामग्री लेकर बकासुर के पास जाना और स्वयं ही भोजन करते हुए उसे पुकारना (आदि० १६२ । ४-५) । बकासुर का आना और कुपित होकर इनके साथ युद्ध छेड़ना ( आदि० १६२ । ६-२८)। इनके द्वारा बकासुर का वध ( आदि० १६३ । १ )। इनके द्वारा मनुष्यों की हिंसा न करने की शर्तपर वक के परिवार को जीवनदान देना (आदि० १६३ । २-४ )। द्रौपदी के स्वयंवर में आये हुए राजाओं के साथ ब्राह्मणवेश में युद्ध करते समय इनका श्रीकृष्ण द्वारा बलरामजी को परिचय देना (आदि. १८८ । १४-२१) । स्वयंवर के अवसर पर शल्य के साथ इनका युद्ध और इनके द्वारा शल्य की पराजय (आदि. १८९ । २३-२९) । द्रौपदी के साथ इनका विधिपूर्वक विवाह (आदि० १९७ । १३)। मयासुर द्वारा इनको गदा की भेंट (सभा० ३ । १८२१)। जरासंधवध के विषय में इनकी युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण के साथ बातचीत ( सभा० १५ । ११-१३ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। जरासंधवध के लिये युधिष्ठिर और अर्जुन के साथ इनकी मगधयात्रा ( सभा० २० अध्याय)। जरासंध के साथ इनका मल्लयुद्ध एवं श्रीकृष्ण का जरासंध को चीरने के लिये इन्हें संकेत करना (सभा० २३ । १० से २४ । ६ तक) । इनका जरासंध को चीर डालना ( सभा० २४ । ७)। जरासंध के पुनः जीवित हो जाने पर श्रीकृष्ण द्वारा इन्हें पुनः संकेत की प्राप्ति और उस संकेत के अनुसार इनका जरासंध को चीरकर दो दिशाओं में फेंक देना (सभा० २४। ७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। इनका पूर्वदिशा के प्रदेशों को जीतने के लिये प्रस्थान और विभिन्न देशों पर विजय पाना ( सभा० २९ अध्याय )। भीम का पूर्व दिशा के अनेक देशों और राजाओं को जीतकर भारी धनसम्पत्ति के साथ इन्द्रप्रस्थ लौटना ( सभा० ३० अध्याय)। प्रथम पूजा के अवसर पर भीष्म तथा श्रीकृष्ण की निन्दा करने पर शिशुपाल को मारने के लिये इनका उद्यत होना और भीष्मजी का इन्हें शान्त करना (सभा० ४२ अध्याय)। राजसूय-यज्ञ की समाप्ति पर ये भीष्म तथा धृतराष्ट्र को पहुँचाने गये थे ( सभा० ४५ । ४८)। दुष्ट कौरवों द्वारा भरी सभा में द्रौपदी के अपमान किये जाने पर इनका कुपित होकर युधिष्ठिर की भुजाओं को जलाने के लिये कहना (आदि० ६८।६)। इनके द्वारा दुःशासन की छाती फाड़कर उसके रक्त पीने की भीषण प्रतिज्ञा ( सभा० ६८ । ५२-५३)। इनके रोषपूर्ण उद्गार (सभा० ७० । १२-१७)। दुर्योधनकी जाँघ तोड़ देने के लिये इनकी प्रतिज्ञा (सभा० ७१। १४ )। इनका द्यूतसभा में समस्त शत्रुओं को मारने के लिये उद्यत होना (सभा० ७२ । १०-११)। दुःशासन के उपहास करने पर उसे मारने के लिये इनकी प्रतिज्ञा (सभा० ७७ । १६-१८) । दुःशासन का रक्त पीने तथा धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों का वध करने के लिये इनकी प्रतिज्ञा ( सभा० ७७ । २०-२२)। दुर्योधन को मारने के लिये प्रतिज्ञा करना ( सभा० ७७ । २६-२८)। इनका अपनी भुजाओं की ओर देखते हुए वन-गमन करना (सभा० ८० । ४ ) । किर्मीर के साथ इनका युद्ध तथा इनके द्वारा उसका वध (वन० ११ । २४-६७) । इनका पुरुषार्थ की प्रशंसा करते हुए युधिष्ठिर से युद्ध छेड़ने के लिये अनुरोध (वन० ३३ अध्याय)। इनका युधिष्ठिर को युद्ध करने के लिये उत्साहित करना (वन० ३५ अध्याय)। इनकी अर्जुन के लिये चिन्ता (वन० ८० । १७-२१)। इनका गन्धमादन पर्वत पर चढ़ने का उत्साह प्रकट करना ( वन० १४०। ९-१७) । गन्धमादन की यात्रा में इनके द्वारा घटोत्कच का स्मरण किया जाना (वन० १४४ । २५)। इनका सौगन्धिक पुष्प के लाने के लिये प्रस्थान करना ( वन० १४६ । ९)। कदलीवन में इनकी हनुमान् जी से भेंट ( वन० १४६ । ८६)। इनका हनुमान् जी के साथ संवाद (वन० अध्याय १४७ से १५० तक)। इन्हें हनुमान् जी का आश्वासन (वन० १५१ । १६-१९)। भीमसेन का सौगन्धिक वन में पहुँचना (वन० १५२ अध्याय)। इनका सौगन्धिक सरोवर के पास पहुँचना (वन० १५३ । १०)। इनका क्रोधवश नामक राक्षसों के साथ युद्ध और उन्हें पराजित करके सौगन्धिक पुष्प तोड़ना (वन० १५४ । १८-२३)। जटासुर के साथ इनका युद्ध तथा इनके द्वारा उसका वध (वन० १५७ । ५६-७०)। हिमालयके शिखर पर यक्षों और राक्षसों के साथ इनका युद्ध तथा इनके द्वारा राक्षसराज मणिमान् का वध (वन० १६० । ४९-७७ ) । इनका गन्धमादन से प्रस्थान करने के लिये युधिष्ठिर से वार्तालाप (वन० १७६ । ७१६)। अजगर द्वारा इनका पकड़ा जाना ( वन० १७८ । २८)। अजगर द्वारा पकड़े जाने पर उससे संवाद रूप में इनका विलाप करना (वन० १७९ । २५-- ३८ )। अजगररूपधारी नहुष के चंगुल से इनका छुटकारा पाना (वन० १८१ । ४३)। चित्रसेन द्वारा दुर्योधन के पकड़े जाने पर इनकी कटु-उक्ति (वन०२४२ । १५-२१)। इनके द्वारा कोटिकास्य का वध ( वन० २७१ । २६)। जयद्रथ को पकड़ उसके बाल काटकर पाँच चोटियाँ रखना और महाराज युधिष्ठिर का दास घोषित करना ( वन० २७२ । ३-११)। द्वैतवन में जल लाने के लिये जाना और सरोवर पर मूञ्छित होना (वन० ३१२ । ३३--४०)। अज्ञातवास के लिये चिन्तित हुए युधिष्ठिर को उत्साहित करना (वन० ३१५ । २४-२६)। विराटनगर में बल्लव नाम से रहने की बात बताना (विराट० २।)। राजा विराट से अपने यहाँ रखने के लिये प्रार्थना करना (विराट० ८ । ७)। जीमूत नामक मल्ल के साथ कुश्ती लड़ना और उसका वध करना (विराट० १३ । २४-३६ )। द्रौपदी से रात में पाकशाला में आने का कारण पूछना (विराट ० १७ । १७-२१) । प्राचीन पतिव्रताओं के उदाहरण द्वारा द्रौपदी को समझाना (विराट० २१ । --१७ के बाद तक)। कीचक को मारने के लिये द्रौपदी को विश्वास दिलाकर नृत्यशाला में प्रवेश करना (विराट० २२ । ३८)। कीचक के साथ इनका युद्ध

      और उसका वध करना (विराट ० २२ । ५२--८२)। इनके द्वारा एक सौ पाँच उपकीचकों का वध और द्रौपदी को बन्धनमुक्त करना (विराट० २३ । २७-२८) । युधिष्ठिर के आदेश से सुशर्मा को जीते-जी पकड़ लेना (विराट० ३३ । ४८) । युधिष्ठिरके आदेश से सुशर्मा को छोड़ना और उसे विराट का दास घोषित करना (विराट ० ३३ । ५९ )। संजय द्वारा इनकी वीरता का वर्णन ( उद्योग० ५० । १९-.-२५ )। श्रीकृष्ण से इनका शान्तिविषयक प्रस्ताव करना ( उद्योग० ७४ अध्याय)। अपने बल का वर्णन करते हुए श्रीकृष्ण को उत्तर देना (उद्योग० ७६ अध्याय)। शिखण्डी को प्रधान सेनापति बनाने का प्रस्ताव करना (उद्योग० १५१ । २९-३२)। उलूक से दुर्योधन के संदेश का उत्तर देना ( उद्योग० १६२ । २०-२९)। उलूक से दुर्योधन के संदेश का उत्तर देना ( उद्योग० १६३ । ३२--३६ )। कवच उतारकर पैदल ही कौरव-सेना की ओर जाते हुए युधिष्ठिर से उसका कारण पूछना (भीष्म० ४३ । १७)। इनकी विकट गर्जना का भयंकर रूप (भीष्म० ४४ । ८-१३)। प्रथम दिन के युद्धारम्भ में दुर्योधन के साथ इनका द्वन्द्व युद्ध (भीष्म० ४५ । १९-२०) । कलिंगों के साथ युद्ध करते समय इनके द्वारा शक्रदेव का वध (भीष्म० ५४ । २५) । इनके द्वारा भानुमान् का वध ( भीष्म० ५४ । ३९)। कलिंगराज श्रुतायु के चक्ररक्षक सत्यदेव और सत्य का इनके द्वारा वध ( भीष्म० ५४ । ७६ )। इनके द्वारा केतुमान् का वध (भीष्म० ५४ । ७७)। गजसेना का संहार करके रक्तनदी का निर्माण करना (भीष्म० ५४ । १०३ ) । इनके द्वारा दुर्योधन की पराजय (भीष्म० ५८ । १६---१९)। इनके द्वारा दुर्योधन की गजसेना का संहार ( भीष्म० ६२ । ४९-६५)। इनका अद्भुत पराक्रम और भीष्म के साथ युद्ध (भीष्म० ६३ । १-२६) । धृतराष्ट्रपुत्रों के साथ इनका युद्ध और इनके द्वारा सेनापति, जलसंध, सुषेण, उग्र, वीरबाहु, भीम, भीमरथ और सुलोचन-इन आठ धृतराष्ट्र पुत्रों का वध (भीष्म० ६४ । ३२-३८) । इनका घमासान युद्ध (भीष्म० ७० अध्याय) । भीष्म के साथ इनका घोर युद्ध ( भीष्म० ७२ । २१-२५) । दुर्योधन के साथ इनका युद्ध (भीष्म० ७३ । १७--२३)। धृतराष्ट्र-पुत्रों पर आक्रमण करके घोर पराक्रम प्रकट करना (भीष्म० ७७ । ६--३६)। इनका दुर्योधन को पराजित करना (भीष्म० ७९ । ११-१६)। इनके द्वारा कृतवर्मा की पराजय (भीष्म० ८२ । ६०-६१)। इनका अद्भुत पुरुषार्थ ( भीष्म० ८५। ३२--४० )। भीष्म के सारथि को मारकर उन्हें युद्ध-मैदान से विलग कर देना ( भीष्म० ८८ । १२ )। इनके द्वारा धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध ( भीष्म० ८८ । १३-२९ )। इनके द्वारा गजसेना का संहार (भीष्म० ८९ । २६--३१) । इनके प्रहार से द्रोणाचार्य का मूर्च्छित होना (भीष्म० ९४ । १८-१९)। इनके द्वारा धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध ( भीष्म० ९६ । २३-२७)। इनके द्वारा गजसेना का संहार (भीष्म. १०२ । ३१-३९) । इनके द्वारा बाह्लीक की पराजय ( भीष्म० १०४ । १८-२७)। भूरिश्रवा के साथ द्वन्द्व युद्ध करना (भीष्म० ११० । १०-११; भीष्म० १११ । ४४--४९) । इनका दस प्रमुख महारथियों के साथ युद्ध करना और अद्भुत पराक्रम दिखाना (भीष्म० अध्याय ११३ से ११४ तक)। इनके द्वारा गजसेना का संहार ( भीष्म० ११६ । ३७-३९ )। धृतराष्ट्र द्वारा इनकी वीरता का वर्णन (द्रोण० १० । १३-१४)। विविंशति के साथ इनका युद्ध (द्रोण० १४ । २७-३०)। शल्य के साथ गदायुद्ध में उनको पराजित करना ( द्रोण० १५ । ८-३२)। इनके रथ के घोड़ों का वर्णन (द्रोण० २३ । ३)। दुर्मर्षणके साथ इनका युद्ध (द्रोण० २५ । ५-७)। इनके द्वारा म्लेच्छजातीय राजा अङ्ग का वध (द्रोण० २६ । १७ ।। भगदत्त और उनके गजराज के साथ युद्ध में पराजित होकर भागना ( द्रोण० २६ । १९-२९ ) । इनके द्वारा कर्ण पर धावा करना और उसके पंद्रह योद्धाओं का एक साथ वध कर देना (द्रोण० ३२ । ६३-६४ )। चक्रव्यूह में साथ चलने के लिये अभिमन्यु को आश्वासन (द्रोण० ३५ । २२-२३) । अर्जुन द्वारा की गयी जयद्रथ-वध की प्रतिज्ञा का अनुमोदन करना (द्रोण० ७३ । ५३ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। चित्रसेन, विविंशति और विकर्ण के साथ इनका युद्ध ( द्रोण० ९६ । ३१ )। अलम्बुष के साय इनका युद्ध (द्रोण० १०६ । १६१७ ) । इनके द्वारा अलम्बुष की पराजय (द्रोण. १०८ । ४२ ) । सात्यकि के साथ अर्जुन का समाचार लाने के लिये जाते समय सात्यकि के कहने से युधिष्ठिर की रक्षा के लिये लौट आना (द्रोण० ११२ । ७०७६)। कृतवर्मा के साथ इनका युद्ध (द्रोण० ११४ । ६७-८०) । घबराये हुए युधिष्ठिर को सान्त्वना देना (द्रोण० १२६ । ३२-३४) । धृष्टद्युम्न को युधिष्ठिर की रक्षा का भार सौंपना (द्रोण० १२७ । ४-९ )। युधिष्ठिर की आज्ञा से अर्जुन के पास जाने के लिये प्रस्थान करना (द्रोण. १२७ । २९)। इनके द्वारा द्रोणाचार्य की पराजय (द्रोण० १२७ । ४२-५४)। इनके द्वारा कुण्डभेदी, सुषेण, दीर्घलोचन, बृन्दारक, अभय, रौद्रकर्मा, दुर्विमोचन, विन्द, अनुविन्द, सुवर्मा और सुदर्शन का वध (द्रोण० १२७ । ६०-६७ )। इनके द्वारा रथसहित द्रोणाचार्य का आठ बार फेंका जाना (द्रोण० १२८ । १८-२१ ) । श्रीकृष्ण और अर्जुन के पास पहुँचकर युधिष्ठिर को सूचना देने के लिये सिंहनाद करना (द्रोण० १२८ । ३२ )। कर्ण के साथ इनका युद्ध और उसे पराजित करना ( द्रोण० १२९ अध्याय )। इनके द्वारा दुःशला का वध (द्रोण. १२९ । ३९ के बाद)। कर्णके साथ युद्ध और उसे परास्त करना ( द्रोण० १३१ अध्याय )। कर्णके साथ घोर युद्ध (द्रोण० अध्याय १३२ से १३३ तक)। इनके द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध ( द्रोण० १३३ । ४१-४२ )। कर्ण के साथ युद्ध और इनको परास्त करना (द्रोण० १३४ अध्याय)। इनके द्वारा धृतराष्ट्र-पुत्र दुर्मुख का वध (द्रोण० १३४ । २०-२९)। इनके द्वारा दुर्मर्षण, दुःसह, दुर्मद, दुर्धर ( दुराधार ) और जय का वध (द्रोण० १३५ । ३०-३६ )। इनके द्वारा कर्ण की पराजय (द्रोण० १३६ । १७) । इनके द्वारा चित्र, उपचित्र, चित्राक्ष, चारुचित्र, शरासन, चित्रायुध और चित्रवर्मा का वध ( द्रोण. १३६ । २०-२२) । कर्ण के साथ इनका घोर युद्ध (द्रोण० १३७ अध्याय) । इनके द्वारा शत्रुंजय, शत्रुसह, चित्र (चित्रबाण), चित्रायुध (अग्रायुध ), दृढ़ (दृढ़वर्मा ), चित्रसेन ( उग्रसेन ) और विकर्ण का वध ( द्रोण. । १३७ । २९-३०)। कर्ण के साथ इनका भयंकर युद्ध (द्रोण० १३८ अध्याय)। कर्णके साथ इनका भयंकर युद्ध और उसे परास्त करना (द्रोण० १३९ । ९)। इनके द्वारा कर्ण के बहुत-से धनुषों का काटा जाना (द्रोण. १३९ । १९-२२)। अस्त्रहीन होने पर कर्ण को पकड़ने के लिये इनका उसके रथ पर चढ़ जाना (द्रोण० १३९ । ७४-७५ )। कर्ण के प्रहार से इनका मूर्च्छित होना (द्रोण० १३९ । ९१)। अर्जुन से कर्ण को मारने के लिये कहना (द्रोण० १४८ ।३-६)। इनके द्वारा घूँसे और थप्पड़ से कलिंगराजकुमार का वध (द्रोण० १५५ । २४)। इनके द्वारा घूँसे और थप्पड़ से ध्रुव का वध (द्रोण० १५५ । २७)। इनके द्वारा घूँसे और थप्पड़ से जयरात का वध (द्रोण० १५५ । २८ )। इनके द्वारा घूँसे और थप्पड़ से दुर्मद (दुर्धर्ष) और दुष्कर्ण का वध ( द्रोण० १५५ । ४० )। इनके परिघ के प्रहार से सोमदत्त का मूर्च्छित होना ( द्रोण. १५७ । १०-११)। इनके द्वारा बाह्लीक का वध (द्रोण० १५७ । ११-१५)। इनके द्वारा नागदत्त, दृढरथ ( दृढाश्व ), महाबाहु, अयोभुज ( अयोबाहु), दृढ ( दृढक्षत्र ), सुहस्त, विरजा, प्रमाथी, उग्र (उग्रश्रवा ) और अनुयायी ( अग्रयायी ) का वध (द्रोण० १५७ । १६-१९)। इनके द्वारा शतचन्द्र का वध (द्रोण० १५७ । २३ )। इनके द्वारा शकुनि के भाई गवाक्ष, शरभ, विभु, सुभग और भानुदत्त का वध (द्रोण० १५७ । २३-२६) । इनका द्रोणाचार्य के साथ युद्ध करते समय कौरवसेना को खदेड़ना (द्रोण० १६१ अध्याय )। दुर्योधन के साथ इनका युद्ध और उसे पराजित करना (द्रोण १६६ । ४३-५८ )। अलायुधके साथ इनका घोर संग्राम ( द्रोण १७७ अध्याय )। इनके द्वारा अर्जुन को प्रोत्साहन-प्रदान (द्रोण० १८६ । ९-११)। धृष्टद्युम्न को उपालम्म देना (द्रोण. १८६ । ५१-५४)। कर्ण के साथ युद्ध में उससे पराजित होना (द्रोण० १८८ । १०-२२)। कर्ण के साथ इनका युद्ध (द्रोण. १८९। ५०-५५) । अश्वत्थामा नामक हाथी को मारकर द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा के मारे जाने की झूठी खबर सुनाना (द्रोण. १९० । १५-१६)। द्रोणाचार्य को उपालम्भ देते हुए अश्वत्थामा की मृत्यु बताना (द्रोण० १९२ ॥३७-४२)। अर्जुन से अपना वीरोचित उद्गार प्रकट करना ( द्रोण० १९७ । ३-२२)। धृष्टद्युम्न से वाग्बाणों द्वारा लड़ते हुए सात्यकि को पकड़कर शान्त करना ( द्रोण० १९८ । ५०-५२ )। इनका वीरोचित उद्गार और नारायणास्त्र के विरुद्ध संग्राम करना ( द्रोण० १९९ । ४५-६३)। अश्वत्थामा के साथ इनका घोर युद्ध और सारथि के मारे जाने पर युद्ध से हट जाना (द्रोण० २००। ८७१२८)। इनके द्वारा कुलूतनरेश क्षेमधूर्ति का वध (कर्ण० १२ । २५-४४) । अश्वत्थामा के साथ इनका घोर युद्ध और उसके प्रहार से मूर्च्छित होना ( कर्ण० १५ अध्याय ) । इनके द्वारा कर्ण-पुत्र भानुसेन का वध ( कर्ण० ४८ । २७ ) । कर्ण को पराजित करके उसकी जीभ काटने को उद्यत होना (कर्ण० ५० । ४७ के बाद तक)। कर्ण के साथ इनका घोर युद्ध और गजसेना, रथसेना तथा घुड़सवारों का वध ( कर्ण० ५१ अध्याय)। इनके द्वारा विवित्सु, विकट, सम, क्राथ (क्रथन), नन्द और उपनन्द का वध (कर्ण० ५१ । १२-१९)। इनके द्वारा कौरवसेना का महान् संहार (कर्ण० ५६ । ७०-८१)। इनके द्वारा दुर्योधन की पराजय और गजसेना का संहार ( कर्ण० ६१ । ५३, ६२-७४) । युद्ध का सारा भार अपने ऊपर लेकर अर्जुन को युधिष्ठिर के पास भेजना ( कर्ण. ६५ । १०)। अपने सारथि विशोक के साथ इनका वार्तालाप ( कर्ण० ७६ अध्याय)। इनके द्वारा कौरवसेना का भीषण संहार और शकुनि की पराजय ( कर्ण० ७७ । २४-७०; कर्ण० ८१।२४-३५)। दुःशासन के साथ इनका घोर युद्ध (कर्ण० ८२ । ३३ से कर्ण. ८३ । १० तक)। दुःशासन का वध करके उसका रक्त पान करना (कर्ण० ८३ । २८-२९) । इनके द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों ( निषङ्गी, कवची, पाशी, दण्डधार, धनुर्ग्रह, अलोलुप, शल, संध ( सत्यसंध ), वातवेग और सुवर्चा ) का वध ( कर्ण० ८४ । २-६)। कर्णवध के लिये अर्जुन को प्रोत्साहन देना (कर्ण० ८९ । ३७-४२)। इनके द्वारा पचीस हजार पैदल सेना का वध(कर्ण० ९३।२८)। इनके द्वारा कृतवर्मा की पराजय ( शल्य० ११ । ४५-४७)। इनका शल्य को पराजित करना ( शल्य० ११। ६१-६२ ) । शल्यके साथ इनका गदायुद्ध (शल्य० १२ । १२-२७)। शल्यके साथ इनका घोर युद्ध (शल्य० १३ अध्याय, शल्य० १५ । १६-२७)। इनके द्वारा दुर्योधन की पराजय (शल्य० १६ । ४२-४४)। इनके द्वारा शल्य के सारथि और घोड़ों का वध (शल्य. १७ । २७)। इनके द्वारा इक्कीस हजार पैदल सेना का वध (शल्य. १९ । ४९-५०)। इनके द्वारा गजसेना का संहार ( शल्य० २५ । ३०-३६ )। इनके द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों ( दुर्मर्षण, श्रुतान्त (चित्राङ्ग), जैत्र, भूरिबल ( भीमबल), रवि, जयत्सेन, सुजात, दुर्विषह (दुर्विषाह), दुर्विमोचन, दुष्प्रधर्ष (दुष्प्रधर्षण), श्रुतर्वा का वध(शल्य० २६ । ४-३२)। धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का इनके द्वारा वध (शल्य० २७ । ४९-५०)। गदायुद्ध के प्रारम्भ में दुर्योधन को चेतावनी देना (शल्य० ३३ । ४३-५१)। इनका युधिष्ठिर से अपना उत्साह प्रकट करना (शल्य० ५६ । १६-२७)। दुर्योधन को चेतावनी देना (शल्य० ५६ । २९-३६ ) । दुर्योधन के साथ भयंकर गदायुद्ध (शल्य० ५७ अध्याय)। गदाप्रहार से दुर्योधन की जाँघ तोड़ देना (शल्य० ५८ । ४७)। इनके द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार करके उसके मस्तक को पैर से ठुकराना (शल्य० ५९ । ४-१२) । युधिष्ठिर के साथ विजयसूचक वार्तालाप करना ( शल्य० ६०। ४३-४६)। दुर्योधन को गिराने के पश्चात् पाण्डवसैनिकों द्वारा इनकी प्रशंसा (शल्य० ६१ । ७--१६ ) । अश्वत्थामा को मारने के लिये इनका प्रस्थान करना (सौप्तिक० ११। २८-३८)। गङ्गातट पर व्यासजी के पास बैठे हुए अश्वत्थामा को ललकारना (सौप्तिक० १३ । १६-१७)। अश्वत्थामा की मणि द्रौपदी को देकर उसे शान्त करना ( सौप्तिक० १६ । २६-३३)। अपनी सफाई देते हुए गान्धारी से क्षमा माँगना (स्त्री० १५ । २-११, १५-२० ) । संन्यास का विरोध करके कर्तव्यपालन पर जोर देते हुए युधिष्ठिर को समझाना ( शान्ति० १० अध्याय)। भीमसेन का भुक्त दुःखों की स्मृति कराते हुए मोह छोड़कर मन को काबू में करके राज्यशासन और यज्ञ के लिये युधिष्ठिर को प्रेरित करना (शान्ति० १६ अध्याय)। युधिष्ठिर द्वारा युवराजपद पर इनकी नियुक्ति ( शान्ति० ४१ । ९)। युधिष्ठिर द्वारा इन्हें दुर्योधन का महल रहने के लिये दिया गया (शान्ति. ४४। ६-७)। युधिष्ठिर के पूछने पर भीमसेन का त्रिवर्ग में काम की प्रधानता बताना (शान्ति० १६७ । २९-४०)। युधिष्ठिर के पूछने पर शंकरजी की आराधना द्वारा मरुत्त के छोड़े हुए धन को लाने की ही सलाह देना ( आश्व० ६३ । ११-१५ के बाद दाक्षिणात्य पाठ) । व्यासजी की आज्ञा से राज्य और नगर की रक्षा के लिये नकुलसहित भीमसेन की नियुक्ति (आश्व० ७२ । १९) । युधिष्ठिर की आज्ञा से भीमसेन का ब्राह्मणों के साथ जाकर यज्ञभूमि को नपवाना और वहाँ यज्ञमण्डप, सैकड़ों निवासस्थान तथा ब्राह्मणों के ठहरने के लिये उत्तम भवनों का शिल्पशास्त्र के अनुसार निर्माण कराना, साथ ही राजाओं को निमन्त्रित करने के लिये दूत भेजना ( आश्व० ८५। ७-१७)। युधिष्ठिर का भीमसेन को समागत राजाओं की पूजा करने का आदेश (आश्व० ८६ । १-३)। बभ्रुवाहन का इनके चरणों में प्रणाम करना और भीमसेन का उसे सत्कारपूर्वक प्रचुर धन देना ( आश्व० ८८ । ६-११)। भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारका जाते समय भीमसेन का उनके रथ पर चढ़कर उनके ऊपर छत्र लगाना (आश्व० ९२ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ६३८२)। भीमसेन का राजा धृतराष्ट्र के प्रति अमर्ष और दुर्भाव, अपने कृतज्ञ पुरुषों द्वारा धृतराष्ट्र की आज्ञा को भंग कराना, उन्हें सुनाकर दुर्योधन और दुःशासन आदि का दमन करनेवाली अपनी चन्दनचर्चित भुजाओं के बल की प्रशंसा करना तथा धृतराष्ट्र और गान्धारी के मन में उद्वेग पैदा करना (आश्रम ३। ३-१३)। धृतराष्ट्र के द्वारा श्राद्ध के लिये धन माँगे जाने पर भीमसेन द्वारा विरोध (आश्रम० ११ । ७-२४)। अर्जुनका भीमसेन को समझाना ( आश्रम० १२ । १-२)। वन में जाते समय कुन्ती का युधिष्ठिर को भीमसेन आदि के साथ संतोषजनक बर्ताव करने का आदेश देना ( आश्रम १६ । १५)। भीमसेन का गजराजों की सेना के साथ गजारूढ़ हो धृतराष्ट्र और कुन्ती आदि से मिलने के लिये भाइयोंसहित वन को जाना ( आश्रम० २३ । ९)। भीमसेन आदि को आया देख कुन्ती का उतावली के साथ आगे बढ़ना ( आश्रम. २४ । ११)। संजय का ऋषियों से भीमसेन और उनकी पत्नी का परिचय देना (आश्रम० २५। ६,१२)। भीमसेन का अपने भाइयों से महाप्रस्थान का निश्चय करके जाने के लिये अपने आभूषण उतारना और उनके साथ महाप्रस्थान करना ( महाप्रस्थान० १ । २०-२५)। मार्ग में द्रौपदी, सहदेव, नकुल और अर्जुन के क्रमशः गिरने पर इनका युधिष्ठिर से कारण पूछनाः फिर इनका स्वयं भी गिरना और युधिष्ठिर से अपने पतन का कारण पूछना (महाप्रस्थान. २ अध्याय )। स्वर्ग में इनका मरुद्गणों से घिरकर वायुदेव के पास विराजमान दिखायी देना (स्वर्गा. ४ । ७-८)।



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      भीमनाद पद्म ७.६.३(गण्डक, वीरवर द्वारा हनन, पूर्व जन्म का वृत्तान्त), मत्स्य २.८(७ प्रलय कारक मेघों में से एक भीमनाद का उल्लेख ) bheemanaada


      भीमरथ गरुड १.८७.१६(शिबि नामक इन्द्र का शत्रु, कूर्म रूपी हरि द्वारा वध), गर्ग ४.२४(काशीराज, पुलस्त्य शाप से व्योमासुर बनना), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३८ (वाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), भागवत ९.१७.५(केतुमान् - पुत्र, दिवोदास - पिता, आयु वंश), ९.२४.४(विकृति - पुत्र, नवरथ - पिता, विदर्भ वंश), मत्स्य ४४.४१(विमल - पुत्र, नवरथ - पिता, विदर्भ वंश), वामन ५७.७८(भीमरथी नदी द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), वायु ९२.२३/२.३०.२३ (केतुमान - पुत्र, दिवोदास नाम, वाराणसी - अधिपति), ९५.४१/२.३३.४१ (विकृति - पुत्र, रथवर - पिता, विदर्भ वंश), विष्णुधर्मोत्तर १.७४.१८(त्रेता युग के अन्त में राजा, राक्षसों का नाशकर्त्ता, विष्णु का अवतार), १.१७९.७(शक्र पीडक , कूर्म रूपी विष्णु द्वारा वध की युक्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.१६४.२३ (चतुर्थ तामस मन्वन्तर में कूर्म रूप धारी श्रीहरि द्वारा भीमरथ असुर के निग्रह का कथन ) bheemaratha


      भीमरथी ब्रह्माण्ड १.२.१६.३४(सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिणप्रवहा नदियों में से एक), भागवत ५.१९.१८(भारतवर्ष की प्रधान नदियों में से एक), १०.७९.१२ (तीर्थ यात्रा के प्रसंग में बलराम द्वारा भीमरथी आदि नदियों को पार करने का उल्लेख), मत्स्य ११४.२९(सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिणापथ की नदियों में से एक), वायु ४५.१०४(सह्य पर्वत से नि:सृत दक्षिणापथ की नदियों में से एक),


      भीमवर्मा भविष्य ३.२.३४.१(व्यसनी, चण्डी पाठ के कारण जन्मान्तर में महानन्द बनना),


      भीमवेग मत्स्य १९६.३३(त्रिप्रवर ऋषियों में से एक )



      भीमसेन पद्म ५.६५.२६(कर्पूर अर्थ?), ब्रह्म १.११.११३(द्वितीय ऋक्ष - पुत्र, प्रतीप - पिता), ब्रह्माण्ड २.३.७.१( मौनेय संज्ञक १६ देवगन्धर्वों में से एक), २.३.६१.४२(भीमसेन द्वारा कथित गान्धार ग्रामिकों के नाम), भागवत ९.२२.३५(परीक्षित् के ४ पुत्रों में से एक), मत्स्य ५०.३८(दक्ष - पुत्र, दिलीप - पिता), वायु ८६.४८/२.२४.४८(भीमसेन - कथित गान्धार ग्रामिकों के नाम), ९९.२३३/२.३७.२२८(ऋक्ष - पुत्र, दिलीप - पिता, परिक्षित् - वंश ) bheemasena


      भीमा देवीभागवत ७.३०.७७(हिमाद्रि पर्वत पर देवी का भीमा नाम से वास), १२.६.१२२(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.११७.९२(भीमा देवी अष्टमी पूजा), पद्म ३.२४.३४(भीमा तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), मत्स्य १७९.२२(अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), मार्कण्डेय ९१.४८(हिमाचल में देवी का नाम), वायु ४४.१८(केतुमाल देश की नदियों में से एक), शिव ५.५०.४९(देवी का नाम), लक्ष्मीनारायण २.८०.७६ (राजा बलेशवर्मा की ३ कन्याओं में से एक, जङ्गली रूप धारी कृष्ण द्वारा भीमा के रक्त का पान), २.८१.४८(श्री, लक्ष्मी व राधा रूपी तीन कन्याओं भीमा, कृष्णा व तुङ्गभद्रा के नदी रूप होने का कथन ) bheemaa


      भीरु ब्रह्माण्ड २.३.७.२०(अप्सराओं के १४ गणों में से एक), २.३.७.१२३ (मणिभद्र व पुण्यजनी के २४ यक्ष पुत्रों में से एक), वायु ६९.१५५/२.८.१५० (मणिभद्र व पुण्यजनी के २४ यक्ष पुत्रों में से एक ) bheeru


      भील शिव ३.२८(आहुक नामक भील तथा आहुका नामक भील - पत्नी की शिव भक्ति, प्रसन्न शिव द्वारा वरदान प्रदान करने की कथा), ४.४०(शिव रात्रि में भील द्वारा अनजाने की गई शिव पूजा से मुक्ति प्राप्ति की कथा ), द्र. भिल्ल bheela


      भीषण गर्ग १०.१८+ (बक - पुत्र, अश्वमेधीय हय का बन्धन, अनिरुद्ध सेना से युद्ध व पराजय), ब्रह्माण्ड २.३.७.१५२(भीषक : विरूपक व विकचा के राक्षस पुत्रों के गणों में से एक), २.३.७.१७९(पुलह व शुभा/श्वेता? के वानर पुत्रों में से एक), मत्स्य ४४.८२(हृदीक के १० पुत्रों में से एक), १७९.७३(भीषणिका : शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं के नियन्त्रण हेतु नृसिंह द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), स्कन्द ४.२.६५.७(भीषणा भैरवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७४.५२(भीषण गण द्वारा काशी में अग्निकोण की रक्षा ) bheeshana


      भीष्म अग्नि २०५(भीष्म पञ्चक व्रत का निरूपण), २७८.३६(शन्तनु व गङ्गा से भीष्म की उत्पत्ति, पूरुवंश), गरुड १.७६(भीष्म मणि : बल असुर के वीर्य से उत्पत्ति व महिमा), १.१२३(भीष्म पञ्चक व्रत विधि, कार्तिक शुक्ल एकादशी से आरम्भ), गर्ग १.५.२६(द्रोण वसु का अंश), ७.२०.२९(प्रद्युम्न - सेनानी अनिरुद्ध से युद्ध), ७.२१.१०(प्रद्युम्न - सेनानी अनिरुद्ध से युद्ध), १०.४९.१७(भीष्म का साम्ब से युद्ध), १०.५०.३८(भीष्म द्वारा कृष्ण की स्तुति), देवीभागवत २.४.४२(शन्तनु व गङ्गा - पुत्र, द्यौ नामक अष्टम वसु का अवतार, गङ्गा से उत्पत्ति का वृत्तान्त), ४.२२.३६(वसु का अवतार), नारद १.११७.९१(भीष्म अष्टमी पूजा), २.४६.३७(भीष्म द्वारा गया में विष्णु पद पर श्राद्ध की कथा), पद्म १.२ (भीष्म द्वारा पुलस्त्य मुख से पद्म पुराण श्रवण), ६.१२४(भीष्म पञ्चक व्रत माहात्म्य व विधि , कार्तिक शुक्ल एकादशी से आरम्भ), भविष्य १.१९८(भीष्म का व्यास से सूर्य माहात्म्य सम्बन्धी संवाद ) ३.३.१.२७(सहदेव - अंश देवसिंह का पिता), ३.३.७.१(भीष्म द्वारा तप से इन्द्र से हरिणी नामक वडवा की प्राप्ति), ४.७२(भीष्म पञ्चक व्रत विधि व माहात्म्य), भागवत १.९(मृत्यु से पूर्व भीष्म द्वारा कृष्ण की स्तुति), ६.३.२१(भागवत धर्म के जानने वाले १२ जनों में से एक), ११.२३.४८(भयंकर अर्थ का वाचक), विष्णु ३.७.८(नकुल के पूछने पर भीष्म द्वारा कालिङ्ग द्विजोक्त विष्णु माहात्म्य), स्कन्द २.४.९.४२(आश्विन् कृष्ण चतुर्दशी को यम व भीष्म के तर्पण का निर्देश), २.४.३२(भीष्म पञ्चक व्रत विधि का वर्णन), ६.५७(भीष्म से युद्ध के पश्चात् अम्बा कन्या का आत्मदाह, स्त्री हत्या से मुक्ति हेतु भीष्म द्वारा तीर्थयात्रा, मूर्ति स्थापना), ६.२६५.३(भीष्म पञ्चक व्रत की विधि), हरिवंश १.१६.३५(युधिष्ठिर द्वारा भीष्म से पितरों सम्बन्धी प्रश्न, भीष्म द्वारा पितर बने स्वपिता शन्तनु से हुए संवाद का वर्णन),१.१७.१(भीष्म का मार्कण्डेय से पितरों सम्बन्धी प्रशन), १.२०.७१(भीष्म द्वारा उग्रायुध का वध), महाभारत उद्योग १६०.१२२(कौरव सैन्य रूपी महासमुद्र में भीष्म की असीम वेग से उपमा), लक्ष्मीनारायण ३.१६३.८७(भीष्म प्रकार की मणियों की उत्पत्ति व महत्त्व का कथन ) bheeshma / Bhishma

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      भीष्मक गर्ग ७.१२.८(कुण्डिनपुर के राजा भीष्मक द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), ब्रह्म १.९१(भीष्मक - कन्या रुक्मिणी के साथ कृष्ण का विवाह), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६(कृष्ण की आज्ञा से लक्ष्मी का भीष्मक के गृह में गमन, वैदर्भी के उदर से जन्म ग्रहण), ४.१०५.१(रुक्मिणी - पिता, कृष्ण - रुक्मिणी विवाह का वृत्तान्त), भागवत ३.३.३(कृष्ण की अद्भुत लीलाओं में भीष्मक - कन्या के हरण का कथन), १०.५२.१६+ (कृष्ण द्वारा भीष्मक - कन्या रुक्मिणी के हरण का वृत्तान्त), हरिवंश २.३६.२(भीष्मक का उग्रसेन से युद्ध), २.४९.४०(कुण्डिनपुर के राजा, रुक्मिणी - पिता, कृष्ण को प्रसन्न करना), २.५१.१(भीष्मक का कृष्ण से रुक्मी की कुचेष्टाओं सम्बन्धी संवाद व स्तुति ) bheeshmaka


      भुक्ति नारद १.६६.९४(सत्य विष्णु की शक्ति भुक्ति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३०७.१५(धर्म व भक्ति की कन्या द्वय प्रेयसी व श्रेयसी का भुक्ति व मुक्ति नामकरण, भुक्ति व मुक्ति द्वारा कृष्ण की प्राप्ति का वृत्तान्त ) bhukti


      भुज गणेश २.१.१८(युगों के अनुसार गणेश की १०, ६, ४ व २ भुजाओं का कथन), गरुड २.३०.५७/२.४०.५७(मृतक की भुजाओं में ऋद्धि - वृद्धि देने का उल्लेख), ३.१६.९०(भुजि : भारती का रूप, चित्र रूप वायु की भार्या), पद्म १.४७.९१(क्षुधार्त गरुड द्वारा श्रीहरि की बाहु पर स्थित होकर गज व कच्छप का भक्षण, क्षुधा शान्ति हेतु भुजा के मांस का भक्षण), ब्रह्मवैवर्त्त २.७.८५(कृष्ण के वैकुण्ठ में चतुर्भुज व गोलोक में द्विभुज होने का उल्लेख), भविष्य ३.४.२५.२५(ब्रह्मा की पूर्व भुजा से अग्नि व दक्षिण भुजा से धर्म की उत्पत्ति का उल्लेख, पश्चिम भुजा से यज्ञ, उत्तर भुजा से प्रचेताओं की उत्पत्ति), वामन ९०.३७(तल में विष्णु की सहस्रभुज आदि नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(भुजाओं में विजया की स्थिति का उल्लेख), स्कन्द ४.२.९५.४४(व्यास द्वारा काशी में भुजा उठाकर हरि सेव्यता का कथन, शैलादि कृत व्यास की भुजा व वाक् का स्तम्भन, विष्णु के उपदेश से स्तम्भन से निवृत्ति), योगवासिष्ठ ६.२.८०.२२(५ मुख वाले रुद्र की १० भुजाएं ५ कर्मेन्द्रिय व ५ विषय होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३८५.१०१(कृष्ण के गोलोक में द्विभुज व वैकुण्ठ, श्वेतद्वीप, क्षीरोद में चतुर्भुज होने का कथन), कथासरित् ७.५.३९(वीरभुज : राजा, गुणवरा - पति, शृङ्गभुज - पिता), ७.५.३९(निर्वासभुज : वीरभुज व अयशोलेखा - पुत्र ), द्र. गोभुजा, निर्वासभुज, वीरभुज, शृङ्गभुज bhuja


      भुजङ्ग नारद १.६६.११७(भुजङ्ग की शक्ति रेवती का उल्लेख), मत्स्य २.१८(मनु की नौका के मत्स्य के शृङ्ग से बांधने के लिए शेषनाग/भुजङ्ग के रज्जु बनने का उल्लेख), ४.६(भुजङ्गों द्वारा आकाश में विश्वपक्षियों के मार्ग को जानने का उल्लेख), १४६.६५(इन्द्र द्वारा भुजङ्ग रूप धारण कर वज्राङ्ग व वराङ्गी के तप में विघ्न का कथन), लक्ष्मीनारायण ४.४५.८५(कृष्ण का कच्छ में राजा माधवराय की नगरी भुजङ्ग में आगमन ), द्र. नाग, सर्प bhujanga


      भुव ब्रह्म २.८५(अङ्गिरसों द्वारा आदित्यों से दक्षिणा रूप में भुव: की प्राप्ति, भुव: के सिंहिका रूप होने पर कपिला गौ प्राप्त कर दुष्ट भूमि का विनिमय करना), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१५५(अण्ड के अन्त में भू, भुव: आदि ७ लोकों का उल्लेख), १.२.२१.२१(वही), १.२.३८.१६ (भुव: की निरुक्ति व भुव: लोक - भवनात्तु भुवर्ल्लोको निरुत्क्त्या हि निरुच्यते ।।), ३.४.१.१५६(कालाग्नि द्वारा दहनीय ४ लोकों में से एक), ३.४.२.२७(भुव लोक के निवासियों के रूप में मरुत, मातरिश्वा आदि के नाम - अनिकेतान्तरिक्षास्ते भुवर्लोका दिवौकसः । आदित्या ऋभवो विश्वे साध्याश्च पितरस्तथा ॥), भागवत २.५.३८(नाभि में भुवः लोक की स्थिति का उल्लेख - भूर्लोकः कल्पितः पद्‍भ्यां भुवर्लोकोऽस्य नाभितः ।), मत्स्य ५.६(हर्यश्वों द्वारा भुव के प्रमाण को जानने के प्रयास का कथन - भुवः प्रमाणं सर्वत्र ज्ञात्वोर्ध्वमध एव च। ततः सृष्टिं विशेषेण कुरुध्वमृषिसत्तमाः।।), १७१.१४(ब्रह्मा के मानसिक संकल्प से सृष्ट द्वितीय पुत्र, परम पद प्राप्ति), वामन ९०.३९(भुवर्लोक में विष्णु का गरुड नाम- भुवर्लोके च गरुडं स्वर्लोके विष्णुमव्ययम्।), वायु २१.२९/ १.२१.२७(द्वितीय कल्प का नाम), २१.३१(११वें कल्प का नाम), २९.२८(अवक्षु अच्छावाक् अग्नि के भुव स्थान का उल्लेख - अवक्षुरच्छावाकस्तु भुवः स्थाने विभाव्यते ।।), ३३.५६(उन्नेता - पुत्र, उद्गीथ - पिता), ६४.१४/२.३.१४ (भू, भुव आदि की निरुक्ति), ९६.१८१/२.३४.१८१(देवकी के ७वें पुत्र के रूप में भुव का उल्लेख, गवेषण संज्ञा?), ९९.३०३/२.३७.२९७(भुवत : भविष्य के राजाओं में से एक, ६४ वर्ष राज्य करने का उल्लेख), १००.१६०/२.३८.१६० (कालाग्नि द्वारा दहनीय ४ लोकों में से एक), १०१.११/२.३९.११(भू आदि ७ कृत लोकों में से एक, अन्तरिक्ष के भुव: रूप होने का कथन), १०१.२८/२.३९.२८ (भुव: लोक के निवासियों गन्धर्वों, यक्षों आदि के नाम), १०१.४३/२.३९.४३ (भुव: व स्व: लोक के निवासियों के सोमपा और आज्यपा होने का उल्लेख), शिव ५.१७.१(भुव विस्तार के अन्तर्गत जम्बू द्वीप वर्ष का निरूपण), लक्ष्मीनारायण ४.९६.११६(श्रीहरि के भुवर्लोक में भ्रमण के वृत्तान्त का कथन, आवह आदि वायुओं द्वारा श्रीहरि का स्वागत ) bhuva


      भुवन अग्नि ८४.११(१०८ भुवनों का ११ दिशाओं के सापेक्ष विन्यास, १०८ रुद्रों से साम्य), ८५.४(प्रतिष्ठा कला में ५६ भुवनों/तीर्थों के नाम), ८६.४(विद्या कला/सुषुप्ति में २५ भुवनों/रुद्रों के नाम), ८७.२(शान्ति कला में १४ रुद्रों/भुवनों के नाम), ब्रह्माण्ड २.३.१.८९(भृगु व दिव्या के १२ भृगु देव पुत्रों में से एक), २.३.३.२८(बृहस्पति - भगिनी भुवना के प्रभास वसु की भार्या होने का उल्लेख), २.३.३.७१(सुरभि व कश्यप के ११ रुद्र संज्ञक पुत्रों में से एक), भविष्य ४.१९१(रजि - पुलस्त्य संवाद में भुवन प्रतिष्ठा विधि व माहात्म्य), मत्स्य १९५.१२(भृगु व दिव्या के भृगु देव संज्ञक १२ पुत्रों में से एक), वामन ११.३४(भुवन के द्वीपादि का वर्णन, ऋषि - सुकेशि संवाद), वायु ३६+ (भुवन विन्यास), ६५.८७/२.४.८७(भृगु के भृगु देव संज्ञक १२ पुत्रों में से एक), ६६.७०/२.५.७०(सुरभि व कश्यप के रुद्र संज्ञक ११ पुत्रों में से एक ), द्र. भौवन bhuvana


      भुवनकोश अग्नि १०८+ (भुवनकोश वर्णन का आरम्भ), गरुड १५४, लिङ्ग १.४६+ (भुवनकोश का वर्णन), वायु ३६, विष्णु २.१+ (भुवनकोश का वर्णन ) bhuvanakosha


      भुवनेश लिङ्ग २.१, २.३.२४(राजा भुवनेश द्वारा हरिमित्र ब्राह्मण के धन का हरण करने से स्वर्ग में क्षुधाग्रस्त होना), लक्ष्मीनारायण ३.५९.२१(स्व कीर्ति श्रवण प्रिय राजा भुवनेश द्वारा हरिमित्र ब्राह्मण को दुःख देने से कर्दमी कीट बनना ) bhuvanesha


      भुवनेशी देवीभागवत ३.३.४४(ब्रह्मा आदि द्वारा भुवनेशी देवी का दर्शन - देवी षट्‌कोणमध्यस्था यन्त्रराजोपरि स्थिता ॥), ३.४.१४(ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा जगदम्बा के चरण नख में ब्रह्माण्ड का दर्शन - नखदर्पणमध्ये वै देव्याश्चरणपङ्कजे ॥
      ब्रह्माण्डमखिलं सर्वं तत्र स्थावरजङ्गमम् । ) bhuvaneshee


      भुवनेश्वरी देवीभागवत २.७.६५(व्यास द्वारा भुवनेश्वरी की स्तुति पर देवी द्वारा पाण्डवों को युद्ध में मृत परिजनों के दर्शन कराना - नाहं क्षमोऽस्मि मातस्त्वं दर्शयाशु जनान्मृतान् ॥), ३.१९.३९(भुवनेश्वरी से सर्वदेशों में रक्षा की प्रार्थना - सर्वदा सर्वदेशेषु पातु त्वां भुवनेश्‍वरी ।), ४.१५.१२(देवों द्वारा दैत्यों पर विजय हेतु भुवनेश्वरी की स्तुति), ७.३८.१४(भुवनेश्वरी देवी की मणि द्वीप में स्थिति का उल्लेख - श्रीमच्छ्रीभुवनेश्वर्या मणिद्वीपं मम स्मृतम् ॥), नारद १.८४.६(मधुकैटभ के संदर्भ में भुवनेश्वरी का योगनिद्रा से साम्य, भुवनेश्वरी मन्त्र विधान का कथन - गायत्री च भवेच्छन्दो देवता भुवनेश्वरी ।। ) bhuvaneshvaree/ bhuvaneshvari


      भुवमन्यु मत्स्य ४९.३५(वितथ/भरद्वाज - पुत्र, ४ पुत्रों के नाम), वायु ९९.१५४/२.३७.१५४(वितथ/भरद्वाज - पुत्र, ४ पुत्रों के नाम ) bhuvamanyu


      भुशुण्ड योगवासिष्ठ ६.१.१४(भुशुण्ड उपाख्यान के अन्तर्गत भुशुण्ड का स्वरूप, चिरजीविता हेतु आदि का वर्णन ) bhushunda


      भुशुण्डी गणेश १.४३.२(त्रिपुर व शिव के युद्ध में भुशुण्डी का कालकूट से युद्ध), १.५६.३१(गणेश की आराधना में रत भुशुण्डि मुनि के समक्ष इन्द्र का आगमन, भुशुण्डि द्वारा गणेश का स्वरूप प्राप्त करना), मत्स्य १५०.१०६(कुजम्भ द्वारा धनद/कुबेर के सैनिकों पर भुशुण्डी के प्रयोग का कथन), १५३.२०४(तारक द्वारा यम को भुशुण्डि से परास्त करने का उल्लेख), १७९.१६(अन्धकासुर के रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), स्कन्द ४.२.८९.१९, ४.२.८९.७७ (वीरभद्र का अस्त्र ), द्र. काकभुशुण्डि, भ्रूशुण्डि bhushundee/ bhushundi


      भू ब्रह्माण्ड १.२.३८.११(भू की निरुक्ति व भू लोक), भागवत ४.१५.१८(भू द्वारा पृथु को योगमयी पादुका प्रदान करने का उल्लेख), मत्स्य १७१.१७(भू, भुव: आदि की ब्रह्मा से उत्पत्ति, ब्रह्मत्व प्राप्ति), वायु ४.३३(भू की निरुक्ति, मन का नाम), ६४.१०/२.३.१०(भू, भव, भव्य व्याहृतियों का निरूपण), १०१.४२/ २.३९.४२ (भूलोक वासियों के अन्न भक्षक व रसात्मक होने का उल्लेख), शिव ५.१९.१(भूलोक/पृथिवी लोक में सूर्यादि ग्रहों की स्थिति का निरूपण), स्कन्द ४.२.६९.१४७(भूर्भुव: स्व: लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), द्र. हविर्भू bhoo/bhuu/ bhu


      भूगोल अग्नि १०७+ (भुवनकोश द्वीपादि का वर्णन), ११८+ (भुवनकोश के अन्तर्गत द्वीपादि का वर्णन), देवीभागवत ८.५(द्वीप, वर्ष भेद से भूमण्डल का विस्तार), नारद १.३(भूगोल के वर्णनान्तर्गत भरत खण्डोत्पत्ति), पद्म १.४०.२(पद्म के पृथिवीत्व वर्णन पूर्वक केसरों व पत्रों के पर्वत - देशादि होने का वर्णन), ३.३+ (द्वीप भू विभाग वर्णन), ब्रह्म १.१६.११(जम्बू, प्लक्ष आदि सप्त द्वीपों में जम्बू द्वीप के मध्य में स्थित मेरु के परित: पर्वतों आदि का वर्णन), १.१७(जम्बू द्वीप के अन्तर्गत भारत का वर्णन), १.१८(अन्य द्वीपों का वर्णन), ब्रह्माण्ड १.२.१५(पृथिवी पर द्वीप, समुद्र, पर्वतादि का विस्तार से वर्णन), भविष्य १.१२५+ (भुवनकोश का वर्णन), २.१.४(भूर्लोक के विस्तार का वर्णन), भागवत ५.१६(भुवनकोश का वर्णन), ५.१६.४(भूगोलक के नाम रूप लक्षणों का वर्णन), मत्स्य ११३(द्वीप, वर्ष, पर्वतादि का वर्णन), १२१+ (जम्बू, शाक, कुश, क्रौञ्च, शाल्मल, गोमेदक, पुष्करादि द्वीपों का वर्णन), लिङ्ग १.४६(भुवनकोश के अन्तर्गत द्वीपद्वीपेश्वर का कथन), वराह ७४+ (भुवनकोश का वर्णन), विष्णु २.२(पराशर कृत सप्त द्वीप, सागर, पर्वत, सरिताओं का वर्णन), शिव ५.१७(भूगोल वर्णनान्तर्गत जम्बू द्वीप के वर्षों का निरूपण), स्कन्द १.२.३८+ (खगोल संस्थिति के वर्णन पूर्वक ऊर्ध्व - अधोलोक व्यवस्थिति), योगवासिष्ठ ६.२.१२७(भूगोल निर्णय ) bhoogola/bhuugola


      भूत अग्नि ३३(भूत शुद्धि विधि), ७४.१६(भूत शुद्धि विधि व पञ्च महाभूतों का स्वरूप), गणेश २.११४.१५(गणेश व सिन्धु के युद्ध में भूतराज का महाकाय से युद्ध), देवीभागवत ११.८(भूतशुद्धि के प्रकार), नारद १.४४.२४(पञ्च महाभूतों से भूत सृष्टि का निरूपण, मन व बुद्धि का भूतों को योगदान), १.६६.११२(एकनेत्र की शक्ति भूतमात्रा का उल्लेख), पद्म ६.१६५.१(भूतालय तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.१.५.५३( भूतों, तन्मात्राओं आदि के सर्गों का कथन), १.१.५.६०(सब भूतों में सब प्रकार के सर्ग विद्यमान होने का कथन, भूतों में विपर्यय, शक्ति आदि ४ का समावेश), १.२.२१.१५६(४ लोकपालों के आभूतसंप्लवन तक स्थित रहने का कथन), १.२.२५.३९(भूतों के स्वरूप का वर्णन), १.२.३२.७६(अहंकार से भूतों व इन्द्रियों की सृष्टि का कथन), २.३.३.१२५(भूतवादियों व भूतानुवादियों सम्बन्धी कथन), २.३.७.३५९(भूता से रुद्र के अनुचर भूतों की उत्पत्ति, स्वरूप वर्णन), २.३.७.४४०(भूतों के योनिज व औत्पत्तिक प्रकारों का उल्लेख), २.३.८.७१(पुलह की प्रजाओं में से एक), २.३.७२.५४(गर्भ में प्राणवायुओं के प्रवेश पर देह में भूतावाप्ति के इन्द्रियगोचर होने का कथन), ३.४.१.१२८(सब भूतों की नैमित्तिक, प्राकृतिक व आत्यन्तिक प्रलय/प्रतिसंचर का कथन), ३.४.४४.५८(भूतमता : वर्णशक्तियों में से एक), भविष्य १.५७.८(भूतों के लिए उल्लेपिका बलि का उल्लेख), १.५७.१९(भूतों के लिए बिभीतक बलि का उल्लेख), ३.४.२३.१००(भूत प्रेत आदि की कायस्थ वर्ण द्वारा तृप्ति का उल्लेख), ४.१३६.१(पार्वती के मूत्र जल से भूतमाता की उत्पत्ति, भूतमात्रा उत्सव का वर्णन), भागवत १.२.२६(मुमुक्षुओं द्वारा भूतपतियों की अपेक्षा नारायण की शान्त कलाओं को भजने तथा श्री, ऐश्वर्य की इच्छा करने वालों द्वारा पितृ, भूत आदि की उपासना का कथन), २.६.१३(राक्षस, भूत आदि के पुरुष रूप होने का उल्लेख), २.६.१५(भूत व भव्य के पुरुष रूप होने का उल्लेख), ३.२०.४०(ब्रह्मा की तन्द्रा से भूतपिशाचों की उत्पत्ति), ६.६.२(भूत द्वारा दक्ष की २ कन्याओं को भार्या रूप में प्राप्त करने का उल्लेख), ६.६.१७(भूत - पत्नी सरूपा से रुद्रों की उत्पत्ति का कथन), ६.८.२४(विष्णु की गदा से भूतग्रहों को चूर्ण करने की प्रार्थना), ८.५.३(भूतरय : रैवत मन्वन्तर में देवों के प्रधान गणों में से एक), ९.२४.४७(पौरवी व वसुदेव के १२ पुत्रों में से एक), ११.१०.२८(पशुओं की अविधिपूर्वक बलि देकर भूत - प्रेतों का यजन करने से नरक प्राप्ति का कथन), ११.१६.३५(विभूति वर्णनान्तर्गत श्रीहरि के भूतों की उत्पत्ति , स्थिति, प्रलय होने का उल्लेख), मत्स्य ८.५(शूलपाणि के भूतों आदि के पति होने का उल्लेख), १२३.५०(वायु, आकाश, महत् आदि द्वारा भूतों को धारण करने का कथन, भूमि, आपः, अग्नि आदि के आपेक्षिक परिमाणों का कथन), १२३.५६(पृथिवी आदि के परिच्छिन्न होने का कथन, भूतों से परे अलोक होने का उल्लेख), १६६.६(शरीर में ५ भूतों के आश्रित गुणों का कथन), १७९.३१(भूतडामरी : अन्धकासुर के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), २५२.६(वास्तु भूत के उद्भव का वृत्तान्त), वायु ४.४६(तामस भूतादि के भूत तन्मात्र सर्ग होने का कथन), १२.१८(पृथिवी आदि भूतों की धारणा के परिणाम), ४९.१७३(सात भूतों में से पृथिवी आदि ३ भूतों के परिछिन्न होने आदि का कथन), ५४.४२(भूतों के स्वरूप का कथन), ६९.३९ (भूतगण के चरित्र का कथन), ६९.२४२/२.८.२३६(भूति - पुत्र, रुद्र - अनुचर, भूतों के विभिन्न गण व भूतों का चरित्र), ९७.५५/२.३५.५५(शरीर में प्राणवायुओं के प्रवेश पर देह में पृथिवी आदि भूतावाप्ति के इन्द्रियगोचर होने का कथन), १००.२३८/२.३८.२३८(आभूत संप्लव के संदर्भ में प्रजापति की भूत संज्ञा का कथन), १०१.२१/२.३९.२१(अग्नि के भूतपति होने का उल्लेख), १०१.२९३/२.३९.२९३(सिंहों के महाभूत होने का उल्लेख), १०१.३३३/ २.३९.३३३ (प्रलय काल में आदित्यों के सिंह व वैश्वानरों के व्याघ्र रूप भूतगण होने का कथन), विष्णु १.२२.७२(विष्णु द्वारा धारित पञ्चरूपा वैजयन्ती माला पञ्चभूत संघात का प्रतीक), ४.१५.२२(रोहिणी कुल में उत्पन्न सन्तानों में से एक), स्कन्द २.७.१९.१८(भूत, मनुष्य, देव, सप्तर्षि, अग्नि, सूर्य तथा प्राण की उत्तरोत्तर श्रेष्ठता का प्रतिपादन ; भूत के नरोत्तम से श्रेष्ठ व मनुष्य आदि से अवर होने का उल्लेख), ४.१.२०(भूतालि द्वारा ध्रुव के तप में विघ्न, भूतों के प्रकार व स्वरूप का वर्णन, सुदर्शन चक्र द्वारा रक्षा), ५.३.१७७(भूतीश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ६.३६.२१(भूतपीडा नाश के लिए बृहत् साम जप का निर्देश), ७.१.२३.३९(१४ भूतग्रामों के नाम), ७.१.८७.८(भूतेश : कलियुग के ११ रुद्रों में से प्रथम, माहात्म्य का वर्णन), ७.१.१६७(भूतमातृका का माहात्म्य, पार्वती से भूतमातृकाओं की उत्पत्ति, वासस्थान, पूजा विधि), हरिवंश ३.११.७(जल के स्वयं मथन से पञ्चभूतों की उत्पत्ति का कथन), महाभारत शान्ति २१४.२४(शुक्र गति के भूतसंकरकारिका होने का उल्लेख), २४७(आकाश आदि ५ महाभूत और उनके शब्दादि गुणों का वर्णन, बुद्धि द्वारा गुणों को इन्द्रियों से जोडने की कथा), २५२(देह में ५ भूतों के विशिष्ट कार्य), २५५.५(५ भूतों के गुण), ३११.१०(परमेष्ठी अहंकार से ५ भूतों की उत्पत्ति का कथन, भूतों के गुणों से भूतों में अन्योन्यक्रिया होने का कथन), ३३९.३०(मन के परम भूत होने तथा वासुदेव के सर्वभूतात्मभूत होने का कथन), ३४७(५ भूतों की आत्यन्तिक प्रलय व सृष्टि का वर्णन), अनुशासन ९८.३१(भूतों हेतु उपयुक्त पुष्प), आश्वमेधिक ११.७(वृत्र द्वारा ५ भूतों के गन्ध आदि विषयों को हरने का कथन), सौप्तिक ७.१५(अश्वत्थामा के समक्ष प्रकट हुए शिव के भूतगणों का स्वरूप), योगवासिष्ठ ६.१.८१.१०१(अग्नीषोम प्रकरण में चैतन्य व जड के मिश्रण से भूतों की उत्पत्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण १.५३९.५१(भूतमातृ तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन, शिव व पार्वती के स्नान से उत्पन्न जलकर्दम से भूतों व भूतिकाओं का आविर्भाव, भूतों व पिशाचों के निवास योग्य स्थान), २.११५.६(शिव द्वारा भैरव को भूतों का अधिपति बनाने का कथन), २.२२५.९५ (भूत प्रेत आदि के लिए कञ्चुक दान का उल्लेख), २.२५५.४१(आश्रय, बन्धन आदि चतुर्भाव भूततत्त्व का उल्लेख),२.२९३.१०९(भूतप्रेतों द्वारा बालकृष्ण व लक्ष्मी के विवाह में अम्बर भूषा देना), ३.४५.१८(भूतयज्ञ कर्ताओं के विविध भूतों को प्राप्त होने का उल्लेख), ३.१३२.५१(महाभूत कलश दान विधि व माहात्म्य ), द्र. महाभूत bhoota/bhuta


      भूतकेतु भागवत ८.१३.१८(नवम मनु दक्षसावर्णि के पुत्रों में से एक), कथासरित् १८.४.४०(भूतकेतु द्वारा वेताल राजा के आदेश से चोरों का भक्षण )


      भूतग्राम ब्रह्माण्ड २.३.१.३२(ब्रह्मा द्वारा स्व शुक्र से भूतग्राम की सृष्टि), मत्स्य ५३.३०(भविष्य पुराण में भूतग्राम के लक्षण होने का उल्लेख), ५८.२५ (देवायतन प्रतिष्ठा के संदर्भ में शान्त्यर्थ भूतग्राम के न्यास का निर्देश), वायु २३.८२/१.२३.७६(४ भूतग्राम होने का उल्लेख), ३०.१०१(जरायुज, अण्डज, स्वेदज व उद्भिद भूतग्रामों का उल्लेख), ३०.२२६(वही), ६५.१२२/२.४.१२२ (दक्ष द्वारा जरायुज आदि ४ प्रकार की सृष्टि करने का कथन ) bhootagraama/ bhutagrama


      भूतज्योति भागवत ९.२.१७(सुमति - पुत्र, वसु - पिता, वैवस्वत मनु वंश )


      भूतनन्द भागवत १२.१.३२(भविष्य के राजाओं में से एक, किलकिला नगरी का राजा, वङ्गिरि - पिता )


      भूतनाथ स्कन्द ७.१.११७(भूतनाथ लिङ्ग का माहात्म्य, कलियुग में भूतेश्वर व त्रेता में लिङ्ग का वीरभद्रेश्वर नाम )


      भूतभावन गरुड ३.२२.८१(शुनः व पिपीलिका में भूतभावन की स्थिति का उल्लेख)


      भूतरय ब्रह्माण्ड १.२.३६.५१(पञ्चम स्वारोचिष? मन्वन्तर के काल में देवों के गण में एक), १.२.३६.५६(आभूतरय गण के देवों के नाम), भागवत ८.५.३(रैवत मन्वन्तर में देवों के प्रधान गणों में से एक), विष्णु ३.१.२१(पञ्चम रैवत मन्वन्तर के देवों के गणों में से एक ) bhootaraya/ bhutaraya


      भूतशुद्धि अग्नि ३३(भूतशुद्धि विधि), गरुड १.२३(भूतशुद्धि विधि), देवीभागवत ११.८(भूतशुद्धि के प्रकार )


      भूतसन्तापन गर्ग ७.३२.१२(हिरण्याक्ष के ९ पुत्रों में से एक), ७.३३.३६(हिरण्याक्ष - पुत्र, कृष्ण व भद्रा - पुत्र संग्रामजित् द्वारा वध), ७.४२.१८(पूर्व जन्म में परावसु गन्धर्व - पुत्र), पद्म १.६.४७(हिरण्याक्ष के ३ पुत्रों में से एक), भागवत ७.२.१८(हिरण्याक्ष के पुत्रों में से एक), मत्स्य ६.१४(हिरण्याक्ष के ४ पुत्रों में से एक), विष्णु १.२१.३(हिरण्याक्ष के ५ पुत्रों में से एक ) bhootasantaapana/ bhutasantapana


      भूता ब्रह्माण्ड २.३.७.१७२(क्रोधा की १२ पुत्रियों में से एक, पुलह की भार्याओं में से एक), २.३.७.३५९(भूता द्वारा उत्पन्न रुद्र के अनुचर भूतों के स्वरूप का वर्णन), वायु ६९.२०५/२.८.१९९(क्रोधा व कश्यप की १२ कन्याओं में से एक, पुलह की भार्याओं में से एक),


      भूतादि वायु ४.४५(भूततन्मात्र सर्ग के तामस भूतादि होने का कथन), ४.४७(भूतादि द्वारा आकाश शब्दतन्मात्र से स्पर्श गुण की सृष्टि का कथन), १०१.११६/२.३९.११६(स्थूल, सूक्ष्म के संदर्भ में भूतादि शब्द का प्रयोग ) bhootaadi/ bhutadi


      भूतासन कथासरित् ८.१.३६(सूर्यप्रभ द्वारा मय - प्रदत्त विमान साधना के उपदेश के उपरान्त भूतासन विमान का निर्माण), ८.५.१०३(सूर्यप्रभ द्वारा भूतासन विमान से महारथियों के रथों का प्रेषण )


      भूति अग्नि २०.११(मरीचि व सम्भूति से पौर्णमास पुत्र के जन्म का उल्लेख), गरुड १.८७.५६(भौत्य मनु के पुत्र का नाम), देवीभागवत ७.३८.२१(भारभूति क्षेत्र में देवी की भूति नाम से स्थिति का उल्लेख), पद्म १.४०.८८(साध्यगण में से एक का नाम), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१०१(सात्यकि? - पुत्र, युगन्धर - पिता), २.३.७४.१८२ (भूतिनन्द : धनधर्मा का उत्तराधिकारी, विदिशा के भविष्य के राजाओं में से एक), ३.४.१.५१(भूति व कवि के पुत्र रूप में भौत्य मनु का उल्लेख), ३.४.१.५८(प्रभूति : मरीचि गण के १२ देवों में से एक), ३.४.४४.७४(वर्णों की शक्तियों में से एक), मत्स्य १७१.४४(धर्म व साध्या से भूति देवता का जन्म), मार्कण्डेय ९९.२/९६.२(अङ्गिरस - शिष्य भूति की पुत्र प्राप्ति में असफलता, भ्राता सुवर्चा के यज्ञ में गमन पर शिष्य शान्ति को अग्नि रक्षा का कार्य सौंपना, अग्नि के शान्त होने पर शान्ति द्वारा अग्नि की स्तुति आदि), वायु ६९.२४२(भूतों की माता), ९६.१००/२.३४.१००(सात्यकि? - पुत्र, युगन्धर - पिता), ९९.३६८/२.३७.३६२(भूतिनन्द : धनधर्मा का उत्तराधिकारी, विदिशा के भविष्य के राजाओं में से एक), विष्णु १.७.७(ब्रह्मा द्वारा पुलस्त्य को भूति पत्नी देने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.११८.९(भूतिकामी द्वारा वराह या नृवराह की पूजा का निर्देश), स्कन्द ४.२.९७.१७६(भूतीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१७७(भूतीश्वर तीर्थ में स्नानादि का माहात्म्य), ५.३.१८२.२५(श्रीदेवी द्वारा द्विजों को अस्थिर भूति युक्त होने का शाप), ७.१.३२३(क्षेम लिङ्ग के युगान्तर में भूतीश लिङ्ग नाम का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१५८.२(कठोर प्रकृति के भूति द्विज द्वारा शिष्य शान्तिधर्म को अग्नि की रक्षा का कार्य सौंपना, अग्नि के शान्त होने पर शान्ति द्वारा अग्नि की स्तुति, अग्नि द्वारा वरदान), कथासरित् १.७.३१(भूतिवर्मा : राक्षस, काणभूति - मित्र), १२.६.१०३(भूतिवसु : तपस्वी, यज्ञ नामक ब्राह्मण का पुत्र, पत्नी विरह से व्याकुल राजा भूनन्दन को धैर्य प्रदान), १४.४.३५(भूतिशिव : परम पाशुपत/शिवभक्त, नागस्वामी नामक द्विज की योगिनियों से रक्षा ), द्र. भारभूति, मरुभूति, वसुभूति, सम्भूति bhooti/bhuuti/ bhuti


      भूतेश भागवत ४.१८.२१(यक्षों, राक्षसों, भूतों आदि द्वारा भूतेश को वत्स बनाकर पृथिवी के दोहन का कथन), स्कन्द ७.१.८७.८(कलियुग के ११ रुद्रों में से प्रथम, माहात्म्य का वर्णन )


      भूदेव स्कन्द ४.१.७.१(भूदेव द्विज - पुत्र शिवशर्मा का वृत्तान्त),


      भूधर नारद १.६६.९५(भूधर की शक्ति क्लेदिनी का उल्लेख), वामन ९०.३०(देविका नदी में विष्णु का भूधर नाम), लक्ष्मीनारायण २.१४०.३२(भूधर प्रासाद के लक्षण ) bhoodhara/ bhudhara


      भूनन्दन कथासरित् १२.६.७९(कश्मीर मण्डल के राजा भूनन्दन द्वारा दैत्य - कन्या प्राप्ति हेतु प्रयत्न की कथा )


      भूपति भविष्य ३.४.२२.४०(कायस्थ, पूर्व जन्म में मान्धाता )


      भूफाल लक्ष्मीनारायण २.२८.२५(भूफाल जाति के नागों का समुद्यानकार होना),


      भूमण्डल देवीभागवत ८.५(भूमण्डल का विस्तार )


      भूमा गर्ग १.४.१९(श्रुतियों द्वारा श्वेत द्वीप में भूमा पुरुष का स्तवन, वर प्राप्ति), ५.१५.२३(उद्धव द्वारा श्रीकृष्ण व राधा के श्रीविग्रहों की परस्पर संयुक्तता बताते हुए कृष्ण का भूमा व राधा का इन्दिरा रूप में उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१४.६६(उन्नेता - पुत्र, प्रतिहर्ता - पौत्र, उद्गीथ - पिता, भरत वंश), भविष्य ३.४.२५.१४२(शेष के त्रिधा होकर भूमा, शेष व भौमनी बनने और विराट् के भूमा होने आदि का कथन), भागवत ५.१५.५(प्रतिहर्त्ता व स्तुति - पुत्र, ऋषिकुल्या - पति, उद्गीथ - पिता, भरत वंश), लक्ष्मीनारायण १.३०१.२(वासुदेव से भूमा व भूमा से विराट् की उत्पत्ति का उल्लेख), १.३१२.११५(वसुदान नृप के भूमा पुरुष का कोशाधिपति बनने का कथन), १.३८३.६५(भूमा द्वारा मन्त्रों से श्रीहरि के अधिवासन का उल्लेख), १.३८४.२५(भूमा द्वारा भृगु को मोक्षदान, ज्योति प्रवेदन आदि देने का उल्लेख), १.४०६.३(अव्याकृत धाम में भूमा संज्ञक कृष्ण की प्रतिष्ठा का उल्लेख), ३.१७०.८(श्रीहरि का छठें अमृत नामक धाम में भूमा नाम से वास का उल्लेख ), ४.१०१.१०१(कृष्ण व ज्योत्स्ना - पुत्र, विश्वज्योति - भ्राता), द्र. वंश भरत bhoomaa/bhuumaa/ bhuma


      भूमि अग्नि ९२(प्रासाद प्रतिष्ठा हेतु भूमि परीक्षा की विधि), गरुड २.३१(भूमि दान की महिमा), गर्ग ५.१७.३७(कृष्ण का स्मरण करके भूमिगोपियों के उद्गार), पद्म ४.२४.२(भूमि दान के फल का वर्णन), ६.३२.४(भूमि दान का फल), ब्रह्म २.८५(सूर्य द्वारा दक्षिणार्थ अङ्गिरा को भूमि दान), ब्रह्मवैवर्त्त २.९.२९(भूमि के वसुधा आदि नामों की निरुक्ति), २.२७.३६(भूमि दान का फल), २.३०.११६(भूमि हरण पर प्राप्त नरक यातनाओं का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.७.२३(भूमि से मृग नामक अप्सरा गण की उत्पत्ति), भविष्य ४.१६४(भूमि दान का माहात्म्य), ४.१६५(सुवर्ण रचित भूमि दान की विधि), लिङ्ग २.३२(सुवर्ण मेदिनी दान की विधि), वायु ६९.४०/२.८.४०(भूमिगोचरक : भूतों के गण का नाम, चरित्र का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.२५+ (भारपीडित भूमि का शक्र के समीप गमन, स्वदुःख का निवेदन), ३.६१(भूमि की मूर्ति का रूप), ३.९३.३१(देवगृह हेतु भूमि परीक्षा, शुभ - अशुभ लक्षण), ३.३०१.२८(भूमि प्रतिग्रह की संक्षिप्त विधि), ३.३०५(विभिन्न प्रकार की भूमियों के दान के फल, भूमि हरण का फल), स्कन्द १.२.४.७८(आठ उत्तम दानों में भूमिदान का उल्लेख), २.१.२०(भूमि दान का माहात्म्य, भद्रमति द्विज व कामिनी की कथा), ५.३.५६.११८(भूमि दान से स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख), ५.३.१३३.२८(भूमिदाता के ६० सहस्र वर्षों तक स्वर्ग में निवास का उल्लेख), ५.३.१४२.६६(भूमिहर्त्ता हारयिता की विश्व कृमि रूप से उत्पत्ति, भूमिदान से स्वर्ग में निवास का उल्लेख), महाभारत वन ३१३.५९(माता के भूमि से गुरुतर होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), अनुशासन ६२(भूमि दान की महिमा के विषय में इन्द्र - बृहस्पति संवाद), ६६.१८(यज्ञ हेतु भूमि स्वामी की स्वीकृति की आवश्यकता, भूमि दान की महिमा), ८४.४८(इडा, गौ, पय: व सोम के भूमि का अंश होने का उल्लेख), १५३.२(अङ्ग नृप से रुष्ट भूमि का कश्यप द्वारा स्तम्भन करने का श्लोक), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ.६३३१(भूमिदान के फल का वर्णन), योगवासिष्ठ ३.२५(लीला व सरस्वती द्वारा भू पद्म का वर्णन), ६.१.१२०(सप्त भूमि), महाभारत वन ३१३.५९(माता के भूमि से गुरुतर होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), लक्ष्मीनारायण २.५४.२(दैत्य नारियों का उडकर सप्तम भूमिका में एकत्र कृष्ण - मानसोन्मुख कन्याओं को भय दिखाना, कृत्या द्वारा दैत्य - नारियों का वध), कथासरित् ८.५.६४(धवल नामक विद्याधर से अधिष्ठित भूमितुण्डक पर्वत ), द्र. दक्षिणभूमि, रुद्रभूमिष्ठ वत्सभूमि, सार्वभौम, bhoomi/bhuumi/ bhumi


      भूमिमित्र ब्रह्माण्ड २.३.७४.१५८(कण्वायन - पुत्र, नारायण - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), भागवत १२.१.२०(भूमित्र : वसुदेव - पुत्र, नारायण - पिता, कण्व वंशी भविष्य के राजाओं में से एक), मत्स्य २७२.३३(कण्वायन - पुत्र, नारायण - पिता, भविष्य के राजाओं में से एक), विष्णु ४.२४.४०(भूमित्र : वसुदेव - पुत्र, नारायण - पिता, कण्व वंशी भविष्य के राजाओं में से एक ) bhoomimitra/ bhumimitra


      भूमिराक्षस ब्रह्माण्ड २.३.७.१५३(विकचा व विरूप के पुत्र भूमिराक्षसों की निम्न प्रकृति का कथन), वायु ६९.१८४/२.८.१७८(विकचा व विरूप के पुत्र भूमिराक्षसों की निम्न प्रकृति का कथन),


      भूय ब्रह्माण्ड १.२.३६.५९(भूयोमेधा : सुमेधा संज्ञक गण के देवों में से एक), मत्स्य १९६.२६(भूयसि : त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक),


      भूरि गर्ग १०.४९.१९(कौरव - सेनानी, कृतवर्मा से युद्ध), १०.५०.३५(भूरि द्वारा कृष्ण की स्तुति), देवीभागवत १.१८.५३(राजा शशबिन्दु के भूरि दक्षिणा वाले यज्ञों का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.७१.२५९(गवेषण के २ पुत्रों के रूप में भूरीन्द्रसेन व भूरि का उल्लेख), ३.४.१.६५(भूरिद्युम्न : प्रथम सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक), भागवत ९.२२.१८(सोमदत्त के ३ पुत्रों में से एक, कुरु वंश), १०.७५.६(बाह्लीक - पुत्रों भूरि आदि का उल्लेख), मत्स्य ४७.२२(गवेषण के २ पुत्रों के रूप में भूरीन्द्रसेन व भूरि का उल्लेख), ५०.८०(विवक्षु के ८ पुत्रों में से ज्येष्ठ, चित्ररथ - पिता, भविष्य के नृपों में से एक), वायु ९६.२५०/२.३४.२५० (गवेष के २ पुत्रों में से एक), ९९.२३५/२.३७.२३१(सोमदत्त के पुत्रों के रूप में भूरि, भूरिश्रवा व शल का उल्लेख), विष्णु ४.२०.३२(सोमदत्त के ३ पुत्रों में से एक), ५.३५.२७(साम्ब को मुक्त कराने के प्रसंग में बलराम द्वारा वध योग्य कौरव वीरों में से एक ) bhoori/ bhuri


      भूरिशृङ्ग लक्ष्मीनारायण १.३१०.२(अधिमास परपक्ष तृतीया व्रत के संदर्भ में राजा ब्रह्मसविता व उसकी पत्नी भूरिशृङ्गा के जन्मान्तर में सूर्य व संज्ञा बनने का वृत्तान्त ), १.३८५.४९(भूरिशृङ्गा का कार्य – भुजाओं में कटक देना)


      भूरिश्रवा गर्ग ७.२०.३४(भूरिश्रवा का प्रद्युम्न - सेनानी कृतवर्मा से युद्ध), ब्रह्माण्ड १.२.३३.१४(मध्यमाध्वर्युओं में से एक), २.३.८.९३(शुक व पीवरी के ६ पुत्रों में से एक), वायु ७०.८५/२.९.८५(शुक व पीवरी के ६ पुत्रों में से एक), ९९.२३५/२.३७.२३१(बलराम द्वारा साम्ब को मुक्त कराने के प्रसंग में बलराम द्वारा वध योग्य कौरव वीरों में से एक), महाभारत उद्योग १६०.१२३(कौरवों के सैन्य रूप महासमुद्र में सौमदत्ति के तिमिङ्गल होने का उल्लेख ) bhoorishravaa/ bhurishravaa


      भूरिश्रुत ब्रह्माण्ड २.३.१०.८१(शुक व पीवरी के ५ पुत्रों में से एक), वायु ७३.३०/२.११.७३(शुक व पीवरी के पुत्रों में से एक )



      भूरिषेण ब्रह्माण्ड ३.४.१.७१(भूरिसेन : द्वितीय सावर्णि मनु के १० पुत्रों में से एक), भागवत २.७.४५(भगवान् की माया को जानने वाले राजर्षियों में से एक), ८.१३.२१(दशम मनु ब्रह्मसावर्णि के पुत्रों में से एक), ९.३.२७(शर्याति के ३ पुत्रों में से एक), विष्णु ३.२.२८(ब्रह्मसावर्णि मनु के १० पुत्रों में से एक ) bhoorishena/ bhurishena


      भूषण भविष्य ४.४६.२०(अग्निमीळ द्विज की भार्या, ईश्वरी - सखी, कुक्कुट - मर्कटी व्रत के माहात्म्य का कथन), स्कन्द ७.४.१७.१९(कृष्ण पूजा विधान में याम्य दिशा के रक्षकों में से एक ) bhooshana/ bhushana


      भृकुटि नारद १.६६.१३२(षण्मुख गणेश की शक्ति भृकुटि का उल्लेख), स्कन्द ५.३.१२८(भृकुटीश तीर्थ का माहात्म्य, भृगु द्वारा पुत्रार्थ तप), ५.३.१९३.२४(विराट् पुरुष की भृकुटि में हर/शिव की स्थिति ) bhrikuti


      भृगु अग्नि २०.९(भृगु व ख्याति से धाता - विधाता तथा लक्ष्मी की उत्पत्ति - देवौ धाताविधातारौ भृगोः ख्यातिरसूयत।), कूर्म १.१३.१(भृगु व ख्याति से धाता - विधाता नामक देवों तथा नारायण - पत्नी लक्ष्मी की उत्पत्ति का उल्लेख - भृगोः ख्यात्यां समुत्पन्ना लक्ष्मीर्नारायणप्रिया । देवौ धाताविधातारौ मेरोर्जामातरौ शुभौ ।।), २.४२.१(भृगु तीर्थ का माहात्म्य), गणेश १.५.२८(भृगु के पुत्र च्यवन का प्रसंग - पिता भृगुर्भामिनि मे पुलोमा माता जलार्थी स्वगृहादिहागाम् ।। च्यवनः खलु नाम्नाहं पितुराज्ञाकरः शुभे ।), १.७.८(भृगु द्वारा राजा सोमकान्त को उसके पूर्व जन्म का वृत्तान्त बताना), १.५१.५१(भृगु द्वारा कर्दम राजा को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन), २.८.२९(भृगु द्वारा गन्धर्वराज को नक्र बनने का शाप व उत्शाप - ततो भृगुरुवाचेत्थं यदा कश्यपनन्दनः । गजाननः स्पृशेत् त्वां तु तदा स्वं वपुराप्स्यसि ॥), गरुड ३.७.३५(भृगु द्वारा हरि स्तुति - किमासनं ते गरुडासनाय किं भूषणं कौस्तुभभूषणाय । लक्ष्मीकलत्राय किमस्ति देयं वागीश किं ते वचनीयमस्ति ।), देवीभागवत २.८.४१(पुलोमा - पति, च्यवन – पिता - भृगोर्भार्या वरारोहा पुलोमा नाम सुन्दरी ॥ तस्यां तु च्यवनो नाम मुनिर्जातोऽतिविश्रुतः ।), ४.१२.१(विष्णु द्वारा पत्नी का शिर कर्तन करने पर भृगु द्वारा स्वपत्नी को पुन: जीवित करना - तं दृष्ट्वा तु वधं घोरं चुक्रोध भगवान्भृगुः । वेपमानोऽतिदुःखार्तः प्रोवाच मधुसूदनम् ॥), ६.१७.१(धन लोलुप हैहय क्षत्रियों द्वारा भृगुवंशी ब्राह्मणों के नाश की कथा), नारद १.१६(तप के संकल्प वाले भगीरथ को भृगु द्वारा उपदेश - सत्यं तु कीदृशं प्रोक्तं सर्वभूतहितं मुने ।। अनृतं कीदृशं प्रोक्तं दुर्जनाश्चापि कीदृशाः ।।), १.४२+ (शरीर में जीव की उपस्थिति पर भरद्वाज की शंकाओं का भृगु द्वारा निराकरण), १.६६.११८(भृगु की शक्ति सहजा का उल्लेख - श्वेतोरस्को विदारिण्या भृगुः सहजया युतः ॥), १.८४.५७(भृगु ऋषि द्वारा श्री देवी की आराधना - ऋषिर्भृगुर्निवृच्छंदो देवता श्रीः समीरिता ।।), पद्म १.४.९१( भृगु द्वारा विष्णु को लक्ष्मीपुर न देना, शाप – प्रतिशाप - भृगुं सानुनयं प्राह कन्यायै पुरमर्पय॥ कुञ्चिकातालिके चोभे दीयेतां च प्रसादतः।), १.१३.२४५(भृगु का विष्णु को शाप, पत्नी सञ्जीवन - एषा त्वं विष्णुना देवि हता संजीवयाम्यहं॥ यदि कृत्स्नो मया धर्मो ज्ञायते चरितोपि वा।), १.१६.९८(ब्रह्मा के यज्ञ में होता - भृगुर्होतावृतस्तत्र पुलस्त्योध्वर्य्युसत्तमः।), १.३४.१५(ब्रह्मा के यज्ञ में होता - तस्मिन्यज्ञे भृगुर्होता वसिष्ठो मैत्र एव च।), ३.२०.२६(तपोरत भृगु के तप में वृष द्वारा विघ्न, भृगु द्वारा शिव की स्तुति - धूमावर्तशिखा जाता ततोऽद्यापि न तुष्यसि। दुराराध्योऽसि तेन त्वं नात्र कार्या विचारणा॥), ६.१२५.१३२(भृगु द्वारा विद्याधर को व्याघ्र मुखत्व से मुक्ति के लिए माघ स्नान का उपदेश - उपोष्यैकादशीं माघे तैलाभ्यंगः कृतस्त्वया॥द्वादश्यां प्राग्भवे देहे तेन व्याघ्रमुखो भवान्), ६.२५५.२८(भृगु द्वारा त्रिदेवों में श्रेष्ठता की परीक्षा, शिव व ब्रह्मा को शाप, विष्णु पर पदाघात - तं दृष्ट्वा मुनिशार्दूलो भृगुः कोपसमन्वितः॥ सव्यं पादं प्रचिक्षेप विष्णोर्वक्षसि शोभने।), ब्रह्म २.२५(कवि - पिता भृगु द्वारा कवि को शिक्षा हेतु अङ्गिरा को समर्पण - अङ्गिराश्च भृगुश्चैव ऋषी परमधार्मिकौ। तयोः पुत्रौ महाप्राज्ञौ रूपबुद्धिविलासिनौ।।), ब्रह्मवैवर्त्त १.२२.९(ब्रह्मा - पुत्र, अतितेजस्वी अर्थ में भृगु शब्द का प्रयोग होने से भृगु नाम धारण - अतितेजस्विनि भृगुर्वर्त्तते नाग्नि शौनक । जातः सद्योऽतितेजस्वी भृगुस्तेन प्रकीर्त्तितः ।।), २.४.५४(भृगु द्वारा शुक्र को सरस्वती मन्त्र प्रदान का उल्लेख- श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा ।...भृगुर्ददौ च शुक्राय पुष्करे सूर्य्यपर्वणि ।), २.५१.७(भृगु द्वारा सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि तिरस्कार पर प्रतिक्रिया - अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात्प्रतिनिवर्त्तते । पितरस्तस्य देवाश्च वह्निश्चैव तथैव च ।।), ३.२७.५२(जमदग्नि की मृत्यु पर रेणुका व परशुराम का शोक, भृगु का आगमन और रेणुका व राम को यथोचित उपदेश), ३.२७.३७(परशुराम के अन्य नाम भृगु का उल्लेख - एहि वत्स भृगो राम राम रामेत्युवाच ह । आजगाम भृगुस्तूर्णं क्षणाद्वै पुष्करादहो ।।), ३.२८(भृगु व रेणुका का वार्तालाप, भृगु के निर्देशानुसार राम द्वारा पिता की और्ध्वदैहिक क्रिया सम्पन्न करना - अहो पुण्यवतो भर्तुरनुगच्छ महासति । चतुर्थदिवसं शुद्धं स्वामिनः सर्वकर्मसु ।।), ब्रह्माण्ड १.१.५.७४(भृगु का ब्रह्मा के ह्रदय से प्राकट्य - भृगुश्च हृदयाज्जज्ञे ऋषिः सलिलयोनिनः ॥ शिरसश्चाङ्गिराश्चैव श्रोत्रादत्रिस्तथैव च ।), १.२.११.१(भृगु व ख्याति से धाता, विधाता व श्री की उत्पत्ति का कथन), २.३.१.३६(ब्रह्मा के शुक्र की आहुति से भृगु की उत्पत्ति, महादेव - पुत्र बनना - हिरण्यगर्भस्तं दृष्ट्वा ज्वालां भित्त्वा विनिर्गतम् ॥ भृगुस्त्वमिति चोवाच यस्मात्तस्मात्स वै भृगुः ।), २.३.३०.५६(भृगु द्वारा जमदग्नि का पुन: सञ्जीवन, मृत्यु प्राप्ति के कारण का कथन), २.३.७२.६३(विष्णु द्वारा भृगु की भार्या के वध पर भृगु द्वारा विष्णु को शाप का कथन - भृगुस्त्रीवधदोषेण भृगुशापेन मानुषे॥ जायते च युगान्तेषु देवकार्यार्थसिद्धये।), ३.४.४४.९५(भृगुनगर : १५ पीठों में से एक), भविष्य ३.४.२१.१४(कलियुग में भृगु का कण्व - पौत्रों के रूप में जन्म), ४.३७(भृगु व ख्याति से लक्ष्मी की उत्पत्ति, भृगु द्वारा वासुदेव को लक्ष्मी प्रदान), ४.६३(विष्णु द्वारा भृगु – भार्या दिव्या के शिर का कर्तन, क्रुद्ध भृगु द्वारा विष्णु को दस बार मनुष्य लोक में जन्म लेने का शाप - यस्मात्त्वया हता दैत्या ब्रह्मणो मत्परिग्रहाः ।।
      तस्मात्त्वं मानुषे लोके दश वारान्गमिष्यसि ।। ), ४.६९, भागवत ३.१२.२३(भृगु की ब्रह्मा की त्वचा से उत्पत्ति का उल्लेख - प्राणाद्वसिष्ठः सञ्जातो भृगुस्त्वचि करात्क्रतुः ॥), ३.२४.२३(कर्दम - कन्या ख्याति के भृगु की भार्या बनने का उल्लेख), ४.१.४३(ख्याति - पति, धाता, विधाता व श्री - पिता), ४.२.२८(भृगु द्वारा शिव भक्तों को शाप - भवव्रतधरा ये च ये च तान् समनुव्रताः । पाषण्डिनस्ते भवन्तु सच्छास्त्रपरिपन्थिनः ॥), ४.४.३२(दक्ष के यज्ञ में अध्वर्यु, सती के प्राण त्याग पर दक्ष यज्ञ विध्वंसक शिव - पार्षदों से यज्ञ रक्षा हेतु दक्षिणाग्नि से ऋभु नामक देवताओं की उत्पत्ति, शिव - पार्षदों का पलायन - तेषां आपततां वेगं निशाम्य भगवान् भृगुः । यज्ञघ्नघ्नेन यजुषा दक्षिणाग्नौ जुहाव ह ॥ ), ४.६.५१(क्रुद्ध शिव द्वारा उखाडी गई भृगु की श्मश्रुओं के पुन: रोहण हेतु ब्रह्मा की प्रार्थना - जीवताद् यजमानोऽयं प्रपद्येताक्षिणी भगः । भृगोः श्मश्रूणि रोहन्तु पूष्णो दन्ताश्च पूर्ववत् ॥ ), ४.७.३०(दक्ष यज्ञ की पूर्ति के समय भृगु द्वारा शिव स्तुति - यन्मायया गहनयापहृतात्मबोधा     ब्रह्मादयस्तनुभृतस्तमसि स्वपन्तः । नात्मन्श्रितं तव विदन्त्यधुनापि तत्त्वं     सोऽयं प्रसीदतु भवान्प्रणतात्मबन्धुः ॥), ६.१८.४(वरुण व चर्षणी – पुत्र - चर्षणी वरुणस्यासीद्यस्यां जातो भृगुः पुनः॥), १०.८९.१(भृगु द्वारा त्रिदेवों में श्रेष्ठता की परीक्षा , विष्णु के वक्ष पर पदाघात - शयानं श्रिय उत्सङ्गे पदा वक्षस्यताडयत्॥), १२.११.३८(नभस्य/भाद्रपद मास के सूर्य रथ पर भृगु ऋषि की स्थिति का उल्लेख - विवस्वानुग्रसेनश्च व्याघ्र आसारणो भृगुः। अनुम्लोचा शङ्खपालो नभस्याख्यं नयन्त्यमी॥), मत्स्य ३.८(ब्रह्मा के १० मानस पुत्रों में से एक), ९.२२(षष्ठम चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक - भृगुः सुधामा विरजाः सहिष्णुर्नाद एव च।।), २३.२०(चन्द्रमा के राजसूय में अध्वर्यु - होतात्रिर्भृगुरध्वर्युरुद्गाताभूच्चतुर्मुखः।।), १४५.९०(ब्रह्मा के १० मानस पुत्रों में से एक), १४५.९८(१९ मन्त्रकृत् भार्गव ऋषियों में से एक - भृगुः काश्यपः प्राचेता दधीचो ह्यात्मवानपि।। ऊर्वोऽथ जमदग्निश्च वेदः सारस्वतस्तथा।...), १७१.२७(पितामह द्वारा सृष्ट प्रजापतियों/अद्भुत महर्षियों में से एक - त्रयोदशगुणं धर्ममालभन्त महर्षयः ।।), १९३.२८(भृगु तीर्थ का माहात्म्य, तपोरत भृगु के क्रोध की शिव द्वारा परीक्षा, वृष पर कोप, शिव की स्तुति - धूमवत्तच्छिखाजाता ततोऽद्यापि न तुष्यसे। दुराराध्योऽसि तेन त्वं नात्र कार्या विचारणा ।। ), १९५.८(ब्रह्मा के वीर्य की आहुति से भृगु की उत्पत्ति, भृगु गोत्र के नाम), १९५.११(भृगु द्वारा पुलोम - कन्या दिव्या को भार्या रूप में प्राप्त करने का उल्लेख - भृगुः पुलोम्नस्तु सुतां दिव्यां भार्यामविन्दत ।। यस्यामस्य सुता जाता देवा द्वादशयाज्ञिकाः।), १९५.१३(शुचिक्रतुश्च मूर्धा च त्याज्यश्च वसुदश्च ह। प्रभवश्चाव्ययश्चैव दक्षोऽथ द्वादशस्तथा ।।), १९५.१६(भृगु वंश के गोत्रकार ऋषियों तथा प्रवर प्रवर्तकों के नाम), १९९.१०(कश्यप कुल के त्र्यार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों के कुलों में से एक), महाभारत अनुशासन ३४.१७(भृगुओं द्वारा तालजङ्घों पर विजय प्राप्त करने का उल्लेख - भृगवस्तालजङ्घांश्च नीपानाङ्गिरसोऽजयन्। भरद्वाजो वैतहव्यानैलांश्च भरतर्षभ।। ), वराह १४८.१३ (द्वापर युग में कृष्ण के अवतार ग्रहण करने पर उनके ५ शिष्यों में से एक), वामन ९.२२(शुकों का भृगुओं/कवियों के वाहन रूप में उल्लेख - शुकारूढाश्च कवयो गन्धर्वाश्च पदातिनः।। ), ८९.४७(भृगु द्वारा वामन को उपानह प्रदान का उल्लेख - छत्रं ददौ द्युराजश्च उपानद्युगलं भृगुः। कमण्डलुं बृहत्तेजाः प्रादाद्विष्णोर्बृहस्पतिः।। ), ९०.९(भृगुतुङ्ग पर विष्णु का सुवर्णाक्ष नाम से वास - भृगुतुङ्गे सुवर्णाक्षं नैमिषे पीतवाससम्।), वायु १.९.६२(ब्रह्मा के ९ मानस पुत्रों में से एक - भृगुं पुलस्त्यं पुलहं क्रतुमाङ्गिरसन्तथा ।। मरीचिं दक्षमत्रिं च वसिष्ठं चैव मानसम्।), १.९.९३(भृगु की ब्रह्मा के ह्रदय से उत्पत्ति - भृगुस्तु हृदयाज्जज्ञे ऋषिः सलिलजन्मनः। शिरसोऽङ्गिरसञ्चैव श्रोत्रादत्रिन्तथैव च ।।...भृग्वादयस्तु ये सृष्टा ना चैते ब्रह्मवादिनः ।।), १०.२९(भृगु द्वारा दक्ष - कन्या ख्याति की पत्नी रूप में प्राप्ति का उल्लेख - सतीं भवाय प्रायच्छत् ख्यातिञ्च भृगवे तथा।), २९.९(लौकिकाग्नि अथर्वा के भृगु तथा आथर्वण सुत दध्यङ् के अङ्गिरा होने का उल्लेख - अथर्वा तु भृगुर्ज्ञेयोऽप्यङ्गिराऽथर्वणः सुतः। तस्मात् स लौकिकाग्निस्तु दध्यङ्चाथर्वणः सुतः ।।), ३४.६२(भृगु द्वारा मेरु पद्म की कर्णिका को सहस्राश्रि मानना - शताश्रिमेनं मेनेऽत्रिः सहस्राश्रिमृषिर्भृगुः। अष्टाश्रिमेनं सावर्णिश्चतुरस्रन्तु भागुरिः ।।), ५२.९(नभ - नभस्य/श्रावण - भाद्रपद मास में सूर्य रथ पर अङ्गिरा व भृगु ऋषियों की स्थिति का उल्लेख - इन्द्रश्चैव विवस्वांश्च अङ्गिरा भृगुरेव च ।। एलापर्णस्तथा सर्पः शङ्खपालश्च तावुभौ।), ६१.७१(भृगु व अथर्वा द्वारा रचित ऋचाओं व मन्त्रों की संख्या - सहस्रमेकं मन्त्राणामृचामुक्तं प्रमाणतः। एतावद्भृगुविस्तारमन्यच्चाथर्विकं बहु ।। ), ६५.३७/२.४.३७( ब्रह्मा द्वारा शुक्र की आहुति से भृगु की उत्पत्ति व महादेव द्वारा पुत्र रूप में कल्पन का कथन), ६५.७२/२.४.७२(भृगु वंशानुकीर्तन), ९७.१४०/२.३५.१४०(विष्णु द्वारा भार्या वध पर भृगु द्वारा विष्णु को ७ बार अवतार लेने का शाप - यस्मात्ते जानता धर्मानवध्या स्त्री निषूदिता। तस्मात्त्वं सप्तकृत्वो वै मानुषेषु प्रपत्स्यसि ।।), १०४.८१/२.४२.८१ (भृगु पीठ की कर्ण देश में स्थिति का उल्लेख - भृगुपीठं कर्णदेशे ह्ययोध्यां नासिकापुटे।), विष्णु १.७.५(ब्रह्मा द्वारा सृष्ट ९ मानस पुत्रों में से एक, पत्नी हेतु ब्रह्मा द्वारा ख्याति की सृष्टि - भृगुं पुलस्त्यं पुलहं क्रतुमङ्गिरसं तथा । मरीचिं दक्षमत्रिं च वसिष्ठं चैव मानसान् ॥), १.७.२६(भृगु द्वारा पत्नी रूप में दक्ष - कन्या ख्याति को प्राप्त करने का उल्लेख), १.८.१५(भृगु व ख्याति से धाता - विधाता देव - द्वय तथा नारायण - पत्नी श्री की उत्पत्ति का उल्लेख), २.१०.१०(भाद्रपद मास में सूर्य रथ में भृगु ऋषि की स्थिति का उल्लेख - विवस्वानुग्रसेनश्च भृगुरापूरणस्तथा। अनुम्लोचा शंखपालो व्याघ्रो भाद्र पदे तथा॥), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.११(विष्णु की विभूतियों के अन्तर्गत विष्णु के भृगुओं में क्रतु होने का उल्लेख - नारायणश्च साध्यानां भृगूणाञ्च तथा क्रतुः ।।), १.५६.२२(ऋषीणाञ्च भृगुर्देवो देवर्षीणां च नारदः ।।), १.१११(भृगु की उत्पत्ति, पुलोमा से परिणय, १२ पुत्र - स्कन्नं शुक्रं महाराज ब्रह्मणः परमेष्ठिनः ।। तज्जुहाव ततो ब्रह्मा ततो जातो हुताशनात् ।।..), १.१९९(पुलोमा - पति, च्यवन - पिता भृगु द्वारा वह्नि को शाप - पुलोम्नो दानवेन्द्रस्य द्वे कन्ये भुवि विश्रुते।। पुलोमा भृगवे दत्ता शची दत्ता च वासवे ।।), १.२४९.१५(वासुकिं सर्वनागानामृषीणां च तथा भृगुम् ।।), ३.७३.८(भृगु के रूप का निर्माण?), ३.१८०(भृगु व्रत - भृगवो नाम निर्दिष्टा देवा द्वादश याज्ञियाः ।। तेषां सम्पूजनं कुर्याद्द्वादश्यां नित्यमेव तु ।।), ३.२२१.२८(चतुर्थी तिथि को १२ भृगु देवताओं की पूजा का निर्देश - प्रोक्तास्तु भृगवो नाम देवा द्वादश ये पुरा ।। चतुर्थ्यां पूजनं तेषां कृत्वा दिवमवाप्नुयात् ।। ), शिव २.२.३७.५३(दक्ष यज्ञ विध्वंस के समय मणिभद्र द्वारा भृगु के श्मश्रुओं का लुञ्चन - व्यपोथयद्भृगुं यावन्मणिभद्रः प्रतापवान् । पदाक्रम्योरसि तदाऽकार्षीत्तच्छ्मश्रुलुंचनम् ।।), २.२.४२.९(विष्णु द्वारा शिव स्तुति में भृगु की श्मश्रु प्राप्ति की प्रार्थना - बस्तश्मश्रुर्भवेदेव भृगुर्मम विरोध कृत्।।), ७.२.४.४९(भगाक्षि नाशक शिव का रूप - भृगुर्भगाक्षिहा देवः ख्यातिस्त्रिनयनप्रिया ॥), स्कन्द १.२.३.१५(नारद का भृगु के आश्रम में आगमन, भृगु से दान योग्य पवित्र स्थान की पृच्छा, भृगु द्वारा महीसागर सङ्गमस्थ स्तम्भ तीर्थ का माहात्म्य), ३.१.४९.७१(भृगु द्वारा रामेश्वर की स्तुति - रामनाथ तव पादपंकजं द्वंद्वचिंतनविधूतकल्मषः । निर्भयं व्रजति सत्सुखाद्वयं  सुप्रभं त्वथ अमोघचिद्धनम् ।।),५.१.२८.७७(चन्द्रमा के राजसूय में अध्वर्यु - होता च भगवानत्रिरध्वर्युर्भगवान्भृगुः ।। हिरण्यगर्भश्चोद्गाता ब्रह्मा ब्रह्मत्वमेयिवान् ।।), ५.१.३८.२०(शिव स्तुति के अन्तर्गत शिव द्वारा भृगु को सञ्जीवनी प्रदान का उल्लेख - आराधितस्तु तपसा हिमवन्निकुंजे धूम्रव्रतेन तपसा च परैरगम्यः । संजीवनीं समददाद्भृगवे महात्मा तं शंकरं शरणदं शरणं व्रजामि ।।), ५.३.४९.८(अन्धक वध से शिव शूल को निर्मलत्व की अप्राप्ति, शूल निर्मलता हेतु शिव का देवगण सहित नर्मदा कूलस्थ भृगु पर्वत पर गमन, शूल से पर्वत का भेदन कर पश्चात् रसातल भेदन से निर्मलत्व प्राप्ति - उत्तरं दक्षिणं कूलमवागाहत्प्रियव्रतः । गतस्तु दक्षिणे कूले पर्वते भृगुसंज्ञितम् ॥), ५.३.५७.१६ (शूलभेद तीर्थ में स्थित भृगु पर्वत से शबर का भार्या सहित पतन, तीर्थ प्रभाव से स्वर्ग गमन - ऐशानीं स दिशं गत्वा पर्वते भृगुमूर्धनि । पतितुं च समारूढो भार्यया सह पार्थिव ॥ ), ५.३.८५.१४(ओङ्कार, भृगुक्षेत्र तथा और्वसङ्गम में रेवा की दुर्लभता का उल्लेख - सर्वत्र सुलभा रेवा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा । ओङ्कारेऽथ भृगुक्षेत्रे तथा चैवौर्वसंगमे ॥ ), ५.३.१२८.१(भृकुटेश्वर तीर्थ का माहात्म्य : भृगु द्वारा पुत्रार्थ तप, शिव से वर प्राप्ति - ततो गच्छेत्तु राजेन्द्र भृकुटेश्वरमुत्तमम् ।
      यत्र सिद्धो महाभागो भृगुः परमकोपनः ॥), ५.३.१८१.१(भृगु तीर्थ का माहात्म्य, शिव द्वारा भृगु के क्रोध की परीक्षा, तपोरत भृगु का वृष पर कोप, शिव द्वारा क्रोध का वारण, भृगु द्वारा स्तुति, भृगु कच्छ की उत्पत्ति), ५.३.१९८.९१(भृगु क्षेत्र में देवी की शूलेश्वरी नाम से स्थिति - शूलेश्वरी भृगुक्षेत्रे भृगौ सौभाग्यसुन्दरी ॥ ), ५.३.२३१.२१(भृगु नाम से तीर्थद्वय का उल्लेख - मन्मथेशद्वयं चैव भृगुतीर्थद्वयं तथा ।), ६.५.८(त्रिशङ्कु के यज्ञ में अच्छावाक् - नेष्टा चैव तथात्रिस्तु अच्छावाको भृगुः स्वयम्।), ६.१८०.३२(ब्रह्मा के यज्ञ में होता - भृगुर्हौत्रे ततस्तेन वृतो ब्राह्मणसत्तमाः ॥मैत्रावरुणसंज्ञस्तु तथैव च्यवनो मुनिः ॥ ), ६.१८८.४७(उद्गाता द्वारा औदुम्बरी को सदोमध्य में स्थान देने पर भृगु की आपत्ति), योगवासिष्ठ ४.५.९(भृगु द्वारा समाधिस्थ होने पर पुत्र शुक्र द्वारा उनकी सेवा करने, शुक्र द्वारा अप्सरा के दर्शन व मृत्यु को प्राप्त होने का वृत्तान्त), ४.१०.१+ (शुक्र की प्राणरहित देह को देख कर भृगु का काल पर कोप, काल से वार्तालाप), ४.१४.१५(भृगु द्वारा अन्य देह को प्राप्त शुक्र के दर्शन, शुक्र को पूर्व देह में लाना), वा.रामायण ७.५१.१५(विष्णु द्वारा भृगु - पत्नी के वध पर भृगु द्वारा विष्णु को पत्नी वियोग का शाप - यस्मादवध्यां मे पत्नीमवधीः क्रोधमूर्च्छितः । तस्मात्त्वं मानुषे लोके जनिष्यसि जनार्दन ।। ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.५०(भृगु द्वारा तप, शिव द्वारा धर्म रूपी वृष के माध्यम से भृगु की परीक्षा, भृगु द्वारा लक्ष्मी को पुत्री रूप में प्राप्त करने के वर की प्राप्ति, भार्गवी लक्ष्मी के विवाह का वृत्तान्त - धूमवत्तु शिखा जाता ततोऽद्यापि न तुष्यसि ।। दुराराध्योऽसि मे नाथ कथमेवं तु वर्तसे ।), १.४०७.३०(विष्णु द्वारा ख्याति के वध पर भृगु/शुक्र? द्वारा विष्णु को शिर कर्तन का शाप व ख्याति को पुनरुज्जीवित करने का वृत्तान्त- अथ भृगुणा त्वरितं काये शिरो नियोजितम् । एषा त्व विष्णुना देवि! हता तां सञ्जीवयाम्यहम् ।।), १.५१०.१०(ब्रह्मा के सोमयाग में सर्प द्वारा होता भृगु का वेष्टन - होतारं वेष्टयामास भृगुं तथापि वै भृगुः । न चचाल निजस्थानात् प्रायश्चित्तबिभीषया ।।  ), ३.१००.४७(विष्णु द्वारा ख्याति के शिर छेदन पर भृगु द्वारा विष्णु को मनुष्य योनि में जन्म लेने के शाप का वृत्तान्त, विष्णु के अवतारों का वृत्तान्त - स्वस्त्रीवधं समाकर्ण्य भृगुश्चुकोप सत्वरम् । शशाप स्त्रीविहन्ता त्वं मानुषेषु पुनः पुनः ।। ), द्र. भार्गव bhrigu

      भृगु-एक महर्षि, जो ब्रह्माजी के द्वारा वरुण के यज्ञ में अग्नि से उत्पन्न हुए थे ( आदि० ५। ८)। इनकी प्यारी पत्नी का नाम पुलोमा था (आदि० ५। १३)। पुलोमा राक्षस के हरण करते समय इनकी पत्नी पुलोमा का गर्भ चू पड़ा, जिससे च्यवन नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई (आदि० ६ । १-२४; आदि० ६६ । ४४-४५)। पत्नी पुलोमा द्वारा अपने हरण का रहस्य बतलाने पर इनका अग्निदेव को सर्वभक्षी होने का शाप देना (आदि० ६। १४)। इनके दूसरे पुत्र का नाम 'कवि' था - ब्रह्मणो हृदयं भित्त्वा निःसृतो भगवान्भृगुः।। भृगोः पुत्रः कविर्विद्वाञ्छुक्रः कविसुतो ग्रहः। ( आदि० ६६ । ४२)। च्यवन के अतिरिक्त इनके छः पुत्र और हुए, जो व्यापक तथा इन्हीं के समान गुणवान् थे, जिनके नाम इस प्रकार हैं-वज्रशीर्ष, शुचि, और्व, शुक्र, वरेण्य तथा सवन। सभी भृगुवंशी सामान्य रूप से वारुण कहलाते हैं ( अनु० ८५ । १२८-१२९)। ये युधिष्ठिर की सभा में विराजते थे (सभा० ४ । १६)। इन्द्र की सभा में रहकर उसकी शोभा बढ़ाते हैं (सभा० ७ । २९ )। ब्रह्मा की सभा में उपस्थित रहकर ब्रह्माजी की सेवा करते हैं (सभा० ११ । १९) । इनका अपनी पुत्रवधू को संतान के लिये वरदान देना ( वन० ११५ । ३५-३७ ) । शान्तिदूत बनकर हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्ण की इनके द्वारा दक्षिणावर्त परिक्रमा ( उद्योग० ८३ । २७) । इनका द्रोणाचार्य के पास आकर युद्ध बंद करने को कहना (द्रोण० १९० । ३४-४०)। इनका भरद्वाज के प्रति जगत की उत्पत्ति और विभिन्न तत्त्वों का वर्णन करना (शान्ति० १८२ अध्याय)। आकाश से अन्य चार स्थूल भूतों की उत्पत्ति का वर्णन - रसानां सर्वगन्धानां स्नेहानां प्राणिनां तथा। भूमिर्योनिरिह ज्ञेया यस्यां सर्वं प्रसूयते।। (शान्ति० १८३ अध्याय)। पञ्चमहाभूतों के गुणों का विस्तारपूर्वक वर्णन - त्वक्च मांसं तथाऽस्थीनि मज्जा स्नायुश्च पञ्चमम्। इत्येतदिह संघातं शरीरे पृथिवीमयम्।।- (शान्ति० १८४ अध्याय)। शरीर के भीतर जठरानल तथा प्राण-अपान आदि वायुओं की स्थिति आदि का वर्णन (शान्ति० १८५ अध्याय)। जीव की सत्ता तथा नित्यता को नाना प्रकार की युक्तियों से सिद्ध करना (शान्ति० १८७ अध्याय ) । वर्णविभागपूर्वक मनुष्य की तथा समस्त प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन (शान्ति १८८ अध्याय)। चारों वर्गों के अलग-अलग कर्मों का और सदाचार का वर्णन तथा वैराग्य से परब्रह्म की प्राप्ति का निरूपण (शान्ति० १८९ अध्याय)। सत्य की महिमा, असत्य के दोष तथा लोक और परलोक के सुखदुःख का विवेचन ( शान्ति० १९० अध्याय ) । ब्रह्मचर्य और गार्हस्थ्य आश्रम के धर्मों का वर्णन (शान्ति. १९१ अध्याय)। वानप्रस्थ और संन्यास धर्मों का वर्णन तथा हिमालय के उत्तरपार्श्व में स्थित उत्कृष्ट लोक की विलक्षणता एवं महत्ता का प्रतिपादन (शान्ति० १९२ अध्याय)। इनका हिमवान् को रत्नों का भण्डार न होने का शाप देना - भृगुरपि च महर्षिर्हिमवन्तमागम्याब्रवीत्कन्यामुमां मे देहीति (शान्ति० ३४२ । ६२ )। इनके द्वारा राजा वीतहव्य को शरण देकर ब्राह्मणत्व प्रदान करना (अनु० ३० । ५७-५८)। ये अग्नि की ज्वाला से उत्पन्न हुए थे; अतः इनका नाम 'भृगु' पड़ा ( अनु० ८५। १०५-१०६)। अगस्त्यजी के कमलों की चोरी होने पर इनका शपथ करना (अनु० ९४ । १६)। अगस्त्यजी से नहुष को गिराने का उपाय पूछना (अनु० ९९ । १५)। इनका अगस्त्यजी को नहुष के पतन का उपाय बताना - व्युत्क्रान्तधर्मं तमहं धर्षणामर्षितो भृशम्। अहिर्भवस्वेति रुषा शप्स्ये पापं द्विजद्रुहम्।। (अनु० ९९ । २२-२८)। इनके द्वारा नहुष को शाप - तस्मिञ्शिरस्यभिहते स जटान्तर्गतो भृगुः। शशाप बलवत्क्रुद्धो नहुषं पापचेतसम्।। ( अनु० १०० । २४-२५) । नहुष के प्रार्थना करने पर उनके शाप का उद्धार बताना - राजा युधिष्ठिरो नाम भविष्यति कुरूद्वहः। स त्वां मोक्षयिता शापादित्युक्त्वाऽन्तरधीयत।। ( अनु० १०० । ३०)।

      भृगुतीर्थ-महर्षियों द्वारा सेवित एक तीर्थ । यहाँ स्नान करके परशुरामजी ने श्रीरामजी द्वारा अपहृत अपने तेज को पुनः प्राप्त कर लिया था। राजा युधिष्ठिर ने भी अपने भाइयों सहित यहाँ स्नान-तर्पण किया, जिससे उनका रूप अत्यन्त तेजस्वी हो गया और वे शत्रुओं के लिये परम दुर्धर्ष हो गये (वन० ९९ । ३४-३८)।



      भृगु-अंगिरस वायु ५२.९(नभ - नभस्य/श्रावण - भाद्रपद मास में सूर्य रथ पर अङ्गिरा व भृगु ऋषियों की स्थिति का उल्लेख - इन्द्रश्चैव विवस्वांश्च अङ्गिरा भृगुरेव च ।। एलापर्णस्तथा सर्पः शङ्खपालश्च तावुभौ।), स्कन्द ५.१.४.९६(दैव के भृगु-अंगिरस प्रकार से द्विविध होने का उल्लेख - भार्गवांगिरसश्चैव द्विविधो दैव उच्यते ।। तस्मात्सुतहितः श्रेष्ठश्चतुर्थ इति कथ्यते ।। महाभारत अनुशासन ८५.१२६(१३२.३८) (आग्नेयस्त्वङ्गिराः श्रीमान्कविर्ब्राह्मो महायशाः। भार्गवाङ्गिरसौ लोके लोकसन्तानलक्षणौ।।)


      भृगुकच्छ भागवत ८.१८.२१(नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित बलि के अश्वमेध यज्ञ का स्थान), स्कन्द ५.३.१८२.१(भृगु तीर्थ का माहात्म्य, भृगु व श्री की कच्छप पीठ पर स्थिति, भृगु - रमा में विवाद पर रमा का विप्रों को शाप, रमा द्वारा स्थान त्याग कर जाना - त्रिपौरुषा भवेद्विद्या त्रिपुरुषं न भवेद्धनम् । )


      भृगुतुङ्ग ब्रह्माण्ड २.३.१३.८८(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), २.३.६८.१०४(ययाति द्वारा भृगुतुङ्ग पर तप करके स्वर्ग प्राप्त करने का उल्लेख), वामन ९०.९(भृगुतुङ्ग पर विष्णु का सुवर्ण नाम से वास - भृगुतुङ्गे सुवर्णाक्षं नैमिषे पीतवाससम्।), वराह १४६.५२(गण्डकी नदी के तट पर स्थित पर्वत भृगुतुङ्ग पर देवदत्त मुनि द्वारा तप), वायु २३.१४८/१.२३.१३७(दशम द्वापर में भगवान् के भृगुतुङ्ग पर भृगु नाम से अवतरित होने का कथन - नाम्ना भृगोस्तु शिखरन्तस्मात्तच्छिखरम्भृगुः ।।), ७७.८२/२.१५.८२(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थों में से एक), ९३.१०२/२.३१.१०१(ययाति द्वारा भृगुतुङ्ग पर तप करके स्वर्ग प्राप्त करने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.५५.२(चित्रसेन द्वारा भृगुतुङ्ग पर्वत पर तप, रुद्र केशव द्वारा वर प्रदान का वृत्तान्त ) bhrigutunga

      भृगुतुङ्ग-एक प्राचीन पर्वत, जहाँ राजा ययाति ने अपनी पत्नियों के साथ तपस्या की थी (आदि० ७५। ५७ )। तीर्थयात्रा के अवसर पर अर्जुन का यहाँ आगमन हुआ था (आदि० २१४ । २)। यहाँ शाकाहारी होकर एक मास निवास करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है ( वन० ८४ । ५०)। यहाँ उपवास करने से मनुष्य अपने आगे-पीछे की सात-सात पीढ़ियों का उद्धार कर देता है (वन०८५। ९१-९२)। इस महान् पर्वत की भृगुतुङ्ग आश्रम के नाम से भी प्रसिद्धि है । यहाँ भृगुजी ने तपस्या की थी (वन० ९० । २३)। भृगुतुङ्ग में एक 'महाह्रद' नामक तीर्थ या सरोवर है । जो लोभ का त्याग करके यहाँ स्नान करता और तीन रात तक निराहार रहता है, वह ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है (अनु० २५ । १८-१९)।



      भृङ्ग पद्म ६.१६(पार्वती के कमल कोश में प्रवेश करने पर सखियों का भृङ्ग रूप से कमल परिसर में भ्रमण), भविष्य ३.४.२४.६५(ऋषि, सौरभी - पति, कौलकल्प नामक मनुष्यों के पिता), ३.४.२५(ऋषि, सौरभी -पति, कौलकल्प नामक मनुष्यों के पिता), मत्स्य १५४.२५२(कामदहन के समय शिव द्वारा कामाग्नि का विभाजन कर आम्र, वसन्त, भृङ्ग तथा चन्द्र आदि में स्थापना), २५३.२५(वास्तु मण्डल में देवता), कथासरित् ३.३.१०३(गुहचन्द्र का भृङ्ग रूप धारण कर स्वपत्नी सोमप्रभा के दिव्य रूप का दर्शन), १२.३.८९(विमलबुद्धि द्वारा भृङ्ग युक्त चक्र घुमाने वाली स्त्री तथा भृङ्ग युक्त वृषभ व गर्दभ के दर्शन - तावत्स्थितान्तश्चक्रं स्त्री भ्रामयन्ती सभृङ्गकम् ।
      भृङ्गास्तेऽथाश्रिता भेदेनात्रस्थौ वृषगर्दभौ ।।  ), वा.मा.सं. २४.२९(श्रोत्राय भृङ्गाः), bhringa


      भृङ्गि अग्नि ५०.४०(भृङ्गी की प्रतिमा के कृश व नृत्य करती हुई होने का उल्लेख), गर्ग १०.३७.१९(शिव द्वारा भृङ्गी को भानु यादव से युद्ध का निर्देश), भागवत ११.७.३४(दत्तात्रेय के गुरु रूप में भृङ्गि कीट का कथन), वामन ७०.७२(शिव गण, अन्धक का रूपान्तरण), कथासरित् १७.१.८०(शिव द्वारा पार्वती के पूर्व समय के मानस पुत्र अन्धक का हनन, अन्धक का भृङ्गी होना ) bhringi


      भृङ्गिरिटि पद्म ६.१८४.१३(शिव - पार्षद, शिव द्वारा शङ्का का निवारण), वामन ४८.६(शिवगण, अन्धक का रूपान्तरण), स्कन्द ५.२.३९.४(भृङ्गिरिटि द्वारा पार्वती को माता न मानकर शिव को ही माता - पिता मानना, शरीर से माता के भागों का त्याग, क्रूर बुद्धि विनाश के लिए अक्रूरेश्वर लिङ्ग की स्थापना - त्वङ्मांसशोणितांत्रं च मातृकं तनयस्य तु ।।नखदंतास्थिसंघातः शिश्नं वाक्च शिरस्तथा ।।…), ६.१५१.४२(शिव द्वारा त्रिशूल से अन्धक हनन के पश्चात् अन्धक गण का नाम व निरुक्ति - भृंगवद्रटनं यस्मात्तस्य श्रोत्रसुखावहम् ॥ भृंगीरिटि इति प्रोक्तस्ततः स त्रिपुरारिणा ॥), ६.२२९(अन्धक के गतकल्मष होने पर शिव द्वारा गणत्व प्रदान, भृङ्गिरिटि नामकरण), लक्ष्मीनारायण १.५१८.७५(अन्धक दैत्य से शिवभक्त भृङ्गिरिटि गण बनने का वृत्तान्त ) bhringiriti


      भृङ्गी अग्नि ५०.४०(भृङ्गी की प्रतिमा के लक्षण - कृशो भृङ्गी च नृत्यन् वै कूष्माण्डस्थूलखर्ववान्।), गणेश २.११५.१९(सिन्धु द्वारा भृङ्गी के जठर के दारण का उल्लेख - जठरं दारयामास भृंगिणोऽसिप्रहारतः ।), गर्ग १०.३७.१८(शिव गण, कृष्ण - पुत्र भानु से युद्ध), वामन ७०.७२(अन्धक की स्तुति से प्रसन्न शिव द्वारा अन्धक को भृङ्गी नामक गणपतित्व प्रदान), शिव २.२.३७.१५(गणों व लोकपालों के युद्ध में भृङ्गी का वायु से युद्ध - वायुना च हतो भृंगी स्वास्त्रेण परमोजसा ।। भृंगिणा च हतो वायुस्त्रिशूलेन प्रतापिना ।। ), लक्ष्मीनारायण १.१७७.५२(दक्ष यज्ञ में भृङ्गी के वायु से युद्ध का उल्लेख), कथासरित् १७.१.८०(शिव द्वारा पार्वती के पूर्व समय के मानस पुत्र अन्धक का हनन, अन्धक का भृङ्गी होना ) bhringee/ bhringi


      भृङ्गीश पद्म ६.१२.५(भृङ्गीश का जालन्धर - सेनानी रोमकण्टक से युद्ध), स्कन्द ५.३.४८.९०(शूल से भेद होने पर अन्धक का शिवगण भृङ्गीश बनना), योगवासिष्ठ ६.१.११५.१०(भृङ्गीश द्वारा शिव से महाकर्त्ता, महाभोक्ता व महात्यागी के लक्षण विषयक प्रश्न ) bhringeesha/ bhringisha


      भृति मत्स्य १४५.११२(भृत्कील : १३ ब्रह्मिष्ठ कौशिकों में से एक), वायु १००.९०/२.३८.९०(रोहित संज्ञक गण के १० देवों में से एक ) bhriti


      भृत्य अग्नि २२०(राजा द्वारा भृत्यों की नियुक्ति के नियम), २२१(भृत्यों के राजा के प्रति कर्तव्य का वर्णन), २५७.३३(भृत्य धर्म का विवेचन), गरुड १.११२(भृत्य के लक्षण), ब्रह्मवैवर्त्त ३.८.४९(भृत्य, शिष्य, पोष्य, शरणागत और वीर्यज नामक पुत्र के ५ प्रकारों में प्रथम चार की धर्म पुत्र संज्ञा), विष्णुधर्मोत्तर ३.३३४(स्वामी व भृत्य के नियम ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१६४(कश्यप का लक्ष भृत्यों सहित पद्मा के विवाह में आगमन का उल्लेख), bhritya


      भृश अग्नि ९३.१०(वास्तुमण्डल में देवता), ब्रह्माण्ड २.३.६.५(भृशी : दनु व कश्यप के प्रधान पुत्रों में से एक), मत्स्य ४८.१६(भृशा : उशीनर की ५ पत्नियों में से एक, नृग - माता), २५३.२४(८१ पदीय वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक), २६८.१२(भृश हेतु मत्स्य बलि का निर्देश ) bhrisha


      भेक पद्म ७.९.९७(सत्य धर्म राजा, विजया राज्ञी द्वारा कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनि, गङ्गा नाम ग्रहण से मुक्ति), स्कन्द १.१.१८(महेश का रूप), ४.२.७४.६२(भेकी द्वारा शिव के निर्माल्य भक्षण से काशी से बाहर मरण, जन्मान्तर में पुष्पबटु - सुता माधवी होकर ओंकारेश्वर की पूजा), लक्ष्मीनारायण २.९७.५९(भेकदानेय ऋषि द्वारा भेकदान पर्वत पर वातादि से स्वयं की रक्षा होने का कथन), कथासरित् १०.६.१५३(भेक - वाहन सर्प की कथा ) bheka


      भेंट ब्रह्मवैवर्त्त ३.१७(कार्तिकेय के अभिषेक के अवसर पर विभिन्न देवों द्वारा कार्तिकेय को भेंट का वर्णन), भागवत ४.१५.१४(पृथु के राज्याभिषेक के अवसर पर देवों द्वारा पृथु को भेंट का वर्णन), ८.८.१५(समुद्र मन्थन से लक्ष्मी के प्राकट्य पर विभिन्न देवों द्वारा लक्ष्मी को भेंट का वर्णन), ८.१५.५(अग्निदेव द्वारा यज्ञकुण्ड से बलि को युद्ध सामग्री भेंट), ८.१८.१४(वामन के प्राकट्य पर विभिन्न देवों द्वारा वामन को भेंट का वर्णन), मार्कण्डेय ८२.१९(देवसमूह के एकत्रीभूत तेज से देवी की उत्पत्ति, देवों द्वारा स्वायुध भेंट स्वरूप प्रदान), शिव ५.४६(शिव व विष्णु के मुख से निर्गत तेज से निर्मित महिषमर्दिनी को देवों द्वारा आयुधादि भेंट), महाभारत शल्य ४६.४४(इन्द्र आदि द्वारा स्कन्द को शक्ति आदि भेंट करने का कथन ) bhenta


      भेद ब्रह्माण्ड १.२.३६.५७(भेत्ता : विकुण्ठ संज्ञक गण के देवों में से एक), मत्स्य ५७.२३(रोहिणी व चन्द्रमा के अभेद का उल्लेख), २२२.२(साम आदि ७ प्रयोगों में से एक), २२३.१(भेद उत्पन्न करने योग्य शत्रुओं का कथन), वायु ९९.१९५/२.३७.१९०(रिक्ष के पाञ्चाल संज्ञक ५ पुत्रों की भेद संज्ञा ), द्र. प्रभेदक bheda


      भेरी मत्स्य १३६.२७(त्रिपुर नाश के संदर्भ में भेरी के भयंकर नाद का कथन), वायु ३७.१२(बिल्व वन में भेरी मात्रसुगन्ध वाले श्रीफलों का उल्लेख), कथासरित् १०.४.५६(भेरी गोमायु की कथा ) bheree/ bheri


      भेरुण्ड गरुड १.१९.२३(भीरुण्डा : सर्प विष से मुक्ति हेतु भीरुण्डा देवी की पूजा), नारद १.८८.९७(भेरुण्डा : राधा की पञ्चम कला भेरुण्डा के स्वरूप का वर्णन), पद्म ६.१८९.८(सरभ भेरुण्ड : गौडदेशीय नृपति नरसिंह का सेनापति, मृत्यु पश्चात् हय बनना, गीता के पंचदश अध्याय श्रवण से मुक्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.२४.४९(विकर्ण दैत्य के वाहन भेरुण्ड का उल्लेख), ३.४.२५.९५(भेरुण्डा : ललिता देवी की सहचरी भेरुण्डा द्वारा हुलुमल्ल का वध), मत्स्य ६.३६(जटायु - पुत्र ), द्र. भारुण्ड bherunda


      भेषज महाभारत वन ३१३.६७(अग्नि के हिम की भैषज होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद), कथासरित् ७.६.१०३(भेषजचन्द्र : राजा अजर का मित्र ), चरक संहिता सूत्र १०.२(भेषज के चतुष्पाद, षोडशकल होने का उल्लेख), bheshaja


      भैरव अग्नि ५२.९(भैरव की प्रतिमा का रूप व पूजा विधि), ८०(देवों का दमन करने के कारण शिव के शाप से भैरव का दमन वृक्ष बनना), १३३.१२(भैरव मन्त्र जप का फल), ३१३.७(त्रिपुराभैरवी पूजन विधि में अष्ट भैरवों के पूजन का विधान), ३४८.५(ङ एकाक्षर के भैरव वाचक होने का उल्लेख), गरुड १.२४.७(अष्ट भैरवों के नाम), १.१९८.२(भैरवों के दिशाओं के सापेक्ष विन्यास), गर्ग १०.३७.४४(अनिरुद्ध द्वारा जृम्भणास्त्र से भैरव का मोहन), नारद १.८५.४(ऋषि, काली की आराधना), १.८७.३(मुनि, छिन्नमस्ता देवी की आराधना), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.७१(कृष्ण के दक्षिण नेत्र से भैरव की उत्पत्ति, भैरवों के रुरु आदि ८ नाम), ब्रह्माण्ड ३.४.९.७३(समुद्र मन्थन से उत्पन्न विजय ओषधि का भैरव द्वारा ग्रहण), ३.४.१९.७९(८ भैरवों के नाम), ३.४.३५.४५ (ललिता देवी के बालतपोद्गार में मार्तण्ड भैरव की स्थिति), ३.४.४०.५६(क्रुद्ध शिव से भैरव की उत्पत्ति, भैरव द्वारा ब्रह्मा के शिर का छेदन), भविष्य ३.३.८.२२(भीष्मसिंह द्वारा भैरव नामक भल्ल से शत्रु की देह का ताडन), ३.४.१३.७(सप्तवाहन भैरव द्वारा ब्रह्मा के पञ्चम शिर का छेदन, भैरव द्वारा कपाल ग्रहण करने से कपाली नाम प्राप्ति का कथन, यति वेदनिधि भैरव रूप में अवतार का कथन), मत्स्य १५०.२(ग्रसन दैत्य द्वारा भैरव धनुष के प्रयोग का उल्लेख), १८१.२९(महाभैरव : अविमुक्त क्षेत्र के ८ गुह्य स्थानों में से एक), २५२.१०(भैरव द्वारा वास्तु/भूत को वरदान), २५९.१४(भैरव की मूर्ति का आकार), वामन ६(शैव सम्प्रदाय के आचार्य), ७०.३१(शिव के रक्त से ८ दिशाओं में विभिन्न भैरवों की उत्पत्ति), वायु २६.१०(ब्रह्मा द्वारा भैरव तप का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.५९(भैरव की मूर्त्ति का रूप), शिव ३.९.२५(भैरव द्वारा ब्रह्मा का शिर छेदन, काशी में कपाल मोचन), ३.२१.३(भैरव द्वारपाल को गिरिजा शाप से वेतालत्व प्राप्ति), स्कन्द २.८.९.४१(भैरव कुण्ड का माहात्म्य), ३.१.४७.४९(राम द्वारा ब्रह्महत्या को बिल में रख कर ऊपर भैरव की स्थापना), ३.१.४८.११२(भैरव द्वारा ब्रह्महत्या का हनन), ४.२.६६.१३(कपाली भैरव का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७२.९२(काशी की रक्षा करने वाले ८ भैरवों के नाम), ४.२.८४.४६(भैरव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.१४१(भैरवेश कूप का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२७.३९(कृष्ण का यम सदन गमन, शङ्ख ध्वनि से रौरव नामक नरक को अभैरव तथा अरौरव को भैरव रूप विपरीतता प्राप्ति), ५.१.६४.२(योगिनी त्रासकारक, काली योगिनी द्वारा पालित, भैरवाष्टक स्तोत्र), ५.१.६७.१०(भद्रकाली का द्वारपाल, पाद खञ्जता), ५.१.७०.४८(आठ भैरवों के नाम), ६.१५१.५०(सुरथ द्वारा राज्य की पुन: प्राप्ति के लिए भैरव की आराधना), ७.१.७.१८(भैरवनाथ : षष्ठम कल्प में शिव - नाम), ७.१.१०.७(भैरव तीर्थ का वर्गीकरण – जल), ७.१.४१.२ (सरस्वती द्वारा वडवानल वहन प्रसंग में स्थापित भैरवेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.५८(अजापाल राजा द्वारा व्याधि विनाशार्थ भैरवी देवी की पूजा, पातकों से मुक्ति की प्राप्ति), ७.१.६३.१(भैरवेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.७४(शाकल्य राजा द्वारा प्रभास में स्थापित शिव लिङ्ग का कृतयुग में भैरवेश्वर नामकरण), ७.१.९४.१(भैरवेश्वर का माहात्म्य, चण्ड गण द्वारा पूजा), ७.१.१३७.१ (कङ्काल भैरव क्षेत्रपाल का माहात्म्य), ७.१.१४७.३१(भैरवेश लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.१४९.१(भैरवेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.१५१.१(सावित्री द्वारा स्थापित तृतीय भैरव का माहात्म्य), ७.१.१५२.१(चतुर्थ भैरव का माहात्म्य, वीणा वादन में सफलता पर नारद द्वारा स्थापना), ७.१.२२८.१(भैरवेश का माहात्म्य, मातृ स्थान पर स्थिति), ७.४.१७.३०(कृष्ण पूजन विधान के अन्तर्गत वायव्य दिशा के रक्षकों में से एक), ७.४.१७.३७(भैरवाराव : कृष्ण पूजन विधान के अन्तर्गत ईशान दिशा के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.५८.७५(अन्धक व शिव के युद्ध में शिव के ललाट से पतित रक्त बिन्दुओं से उत्पन्न ८ भैरवों के नाम), २.११५.६(शिव द्वारा भैरव को भूतों का अधिपति बनाने का कथन), कथासरित् ६.३.१३२(क्षुधित राक्षसी द्वारा भैरव से भोजन की याचना, भैरव द्वारा राजा वसुदत्त के मांस से तृप्ति लाभ का निर्देश), ९.६.१०१(चक्रेश्वर नामक भैरव द्वारा स्थूलशिरा यक्ष को शाप प्रदान, योगिनियों द्वारा चक्रेश्वर की पूजा ), द्र. आनन्दभैरव, कालभैरव, bhairava


      भैरवी अग्नि ५०.३६(भैरवी की प्रतिमा के लक्षण), ब्रह्माण्ड ३.४.७.७३(मधु द्वारा पूजन योग्य शक्तियों में से एक), ३.४.२८.४०(ललिता सहचरी, मलद से युद्ध), ३.४.४४.२२(लिपिमयी भैरवी), वायु ६९.५६(पुण्य अप्सराओं के १४ गणों में से एक, मृत्यु से उत्पत्ति), स्कन्द ७.१.५८.५(अजापाल द्वारा व्याधियों से मुक्ति हेतु भैरवी की पूजा, क्रिया शक्ति का रूप, अजापालेश्वरी नामकरण), ७.१.६१.५(भैरवी के विशालाक्षी रूप का कथन), लक्ष्मीनारायण २.९०.२७(शम्भू दूती महामारी भैरवी द्वारा राक्षसियों से अश्वपट्ट सर: क्षेत्र की रक्षा का वृत्तान्त ), तन्त्रसार(भैरवी मन्त्र परिच्छेद)(शब्दकल्पद्रुम) ( भैरवी के १४ प्रकार तथा उनके स्वरूप), bhairavee/ bhairavi


      भोग अग्नि ८४.३४(बुद्धि के भोग होने का उल्लेख), ८४.४६(भोग की कवच मन्त्र से प्राप्ति?), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.६६(स्वामी के भोग की वृद्धि के लिए पायस, पिष्ट आदि दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड २.३.७४.१८०(नाग वंश के नृपों में शेषनाग - पुत्र भोगी का उल्लेख), ३.४.१९.४८(भोगिनी : रहस्ययोगिनी संज्ञक ८ देवियों में से एक, स्वरूप), भविष्य ३.२.१८.१७(अष्टविध भोगों के नाम, भोगों का परिणाम, काम, क्रोध आदि की उत्पत्ति ), भागवत ७.९.२०(विषय भोग की नश्वरता), ११.१०(लौकिक व पारलौकिक भोगों की असारता), वायु ४५.१२७(दाक्षिणात्य देशों में भोगवर्धनों का उल्लेख), ९९.३६७/२.३७.३६१ (नाग वंश के नृपों में शेषनाग - पुत्र भोगी का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.६२.२(आसनादि भोगों की स्थिर व अन्यों की अस्थिर संज्ञा), ३.११२(विष्णु को धूप, दीप, छत्र आदि भोग दान, मन्त्र), ३.१२१.१३(ऐरावती में भोगमय देव की पूजा का निर्देश), ३.२१२(भोग प्राप्ति व्रत विधि का कथन), ३.३२५(भोगों के लक्षण), शिव १.१७.६८(कर्म व ज्ञान भोग सम्बन्धी कथन), स्कन्द १.१.७.३५(पाताल में भोगेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ४.२.८०.४९(मनोरथ तृतीया व्रत में कार्तिक व फाल्गुन मासों में देवों को निवेदनीय भोग द्रव्यों के नाम), महाभारत शान्ति ३१९.१८(भोग त्याग हेतु व्रतों का निर्देश), अनुशासन ९८.३५(पुष्पों के उपभोग से नागों के तुष्ट होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१२+ (राम द्वारा भोगों की निन्दा), ६.१.११५.२१(महाभोक्ता के लक्षण ) bhoga


      भोगवती देवीभागवत १२.६.१२०(गायत्री सहस्रनामों में से एक), ब्रह्म २.४१(विजय राजा की कन्या, शूरसेन - पुत्र नाग से विवाह, पूर्व जन्म में शेष - पुत्र की पत्नी भोगवती), भागवत १.११.११(विभिन्न यादव कुलों से सुरक्षित द्वारका की नागों की भोगवती से उपमा), १०.७०.४४(पाताल में गङ्गा के भोगवती नाम का उल्लेख), वा.रामायण ४. ४१.३६(दक्षिण दिशा में स्थित सर्पों की भोगवती पुरी का कथन), कथासरित् १२.१६.६(कलियुग में प्रसिद्ध उज्जयिनी नगरी का कृतयुग में पद्मावती, त्रेता में भोगवती तथा द्वापर में हिरण्यवती नाम ), द्र. प्रयाग bhogavatee


      भोगवर्मा कथासरित् १.५.६४(राजा, आदित्यवर्मा का मित्र), ९.४.१६५(वणिक्, भोगलक्ष्मी से युक्त )


      भोगसिंह भविष्य ३.४.२४.२२(कामशर्मा व देवहूति - पुत्र, वामन का अंश, वात्योद्भव भूपों पर दिग्विजय आदि), ३.३.२९.४५(बौद्धसिंह द्वारा भोगसिंह का वध ) bhogasimha


      भोज ब्रह्माण्ड १.२.१६.६४(विन्ध्यपृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), २.३.५.४३(बलि के १०० पुत्रों में से एक), २.३.७.३०३(ऋक्षराज जाम्बवन्त के पुत्रों में से एक), २.३.६१.२३(द्वारकापुरी के भोज कुल आदि से सुरक्षित होने का उल्लेख), २.३.६९.५२(तालजङ्घों/हैहयों के ५ कुलों में से एक), २.३.७१.१२६(पूर्व व उत्तर दिशा में भोज की नाग/हस्ती सेना का उल्लेख), २.३.७१.१९४(शमीक द्वारा भोजत्व से जुगुप्सा करते हुए राजर्षित्व प्राप्त करने का उल्लेख), भविष्य ३.३.३(राजा भोज द्वारा दिग्विजय यात्रा, स्थापित धर्म तथा काल का वर्णन), भागवत ५.१५.१५(भोजा : वीरव्रत - पत्नी, मन्थु व प्रमन्थु - माता, भरत वंश), ९.२४.११(धर्मात्मा महाभोज के कुल में भोजों के जन्म का उल्लेख), १०.१.३५(कंस का भोजवंश के कलंक रूप में उल्लेख), १०.१.३७ (वसुदेव द्वारा कंस का भोजयशस्कर रूप में सम्बोधन), १०.१.६९(उग्रसेन के यदु,भोज, अन्धकों के अधिपति होने का उल्लेख), ११.३०.१६(प्रभास में भोज का अक्रूर से युद्ध), मत्स्य ३४.३०(द्रुह्यु के पुत्रों की भोज संज्ञा का उल्लेख), ४३.४८(तालजङ्घों/हैहयों के ५ कुलों में से एक), ४४.६९(आहुक के संदर्भ में भोजों की प्रशंसा), ४४.८०(प्रतिक्षेत्र - पुत्र, हृदीक - पिता), ४६.२८(शमीक द्वारा भोजत्व से जुगुप्सा करते हुए राजर्षित्व प्राप्त करने का उल्लेख), ११४.५२ (विन्ध्यपृष्ठ निवासियों के जनपदों में से एक), वायु ९६.१९०/२.३४.१९०(श्याम द्वारा भोजत्व से घृणा करते हुए राजर्षित्व प्राप्त करने का उल्लेख), विष्णु ४.१३.७(महाभोज कुल में मृत्तिकापुरवासी भोजों के जन्म का उल्लेख), स्कन्द ७.२.६+ (कान्यकुब्ज का राजा, मृगानना से मिलन व संवाद), लक्ष्मीनारायण १.१४९(भोज राजा व पत्नी मृगानना का वृत्तान्त), १.१५१.१(सारस्वत द्वारा भोज की तीर्थ यात्रा, दान आदि के महत्त्व का वर्णन), कथासरित् १.३.९(भोजिक : चिञ्चिनी नगरस्थ ब्राह्मण ), द्र. कुन्तिभोज, महाभोजक, महाभोज bhoja


      भोजक भविष्य १.६६.८(भोजक - कुमार, शङ्ख से वेदादि का अध्ययन, सप्तमी के महत्त्व के सम्बन्ध में द्विज - शङ्ख संवाद), १.११७(भोजक की सूर्य तेज से उत्पत्ति, लक्षण), १.१४०(साम्ब द्वारा भोजकों को यादव कन्या प्रदान, महाभोजक ब्राह्मण के चरित्र का कथन), १.१४१(भोजक जाति का वर्णन), १.१४४(भोजक की उत्पत्ति, सूर्य कलाओं में प्रवेश), १.१४४.२६(सहस्रांशु/सूर्य को धूप, माल्य आदि द्वारा भोजन देने से भोजक नाम ख्याति का उल्लेख), १.१४५(भोजक के योग ज्ञान का वर्णन), १.१४६(भोजक के अभोज्यत्व का कारण, उत्तम व अधम भोजक के लक्षण), १.१७१(भोजक भोजन अनुष्ठान का वर्णन), १.१७२(भोजक को दान का माहात्म्य), १.१८८(भोजक सत्कार के प्रकारों का वर्णन), २.१.५.५७(द्विज के ४ भेद : भोजक, कथक, शिवविप्र तथा सूर्यविप्र ) bhojaka


      भोजकट गर्ग ६.७.४१(रुक्मी द्वारा स्वनिवास हेतु भोजकट नगर का निर्माण), भागवत १०.५४.५२(अपमानित होने के पश्चात् रुक्मी द्वारा निवास हेतु भोजकट नगरी के निर्माण का कथन), १०.६१.१९(भोजकट नगर में रुक्मी - पुत्री रुक्मवती के प्रद्युम्न से विवाह तथा बलराम द्वारा अक्षक्रीडा में रुक्मी के वध का वृत्तान्त), विष्णु ५.२८.९(भोजकट नगर में रुक्मी - पुत्री रुक्मवती के प्रद्युम्न से विवाह तथा बलराम द्वारा अक्षक्रीडा में रुक्मी के वध का वृत्तान्त ) bhojakata


      भोजन अग्नि ७७.१९(प्राणाग्नि होत्र विधि, उपयुक्त भोजन पात्र), १६८.२+ (अशुचि अन्न के प्रकार व अशुचि अन्न भक्षण पर प्रायश्चित्त का विधान), कूर्म २.१९(भोजन कर्म विधान), गरुड १.१०१(ग्रहों के अनुसार देय भोजन), २.१०.५(विभिन्न योनियों के भोजन का कथन), २.४६.१४(निर्मन्त्र भोजन से काक बनने का उल्लेख), ३.२९.५६(ग्रास-ग्रास में गोविन्द रूप विशुद्ध अन्न के स्मरण का निर्देश), देवीभागवत ११.२२.२५(प्राणाग्नि होत्र विधि), नारद २.४३.१०(नक्त भोजन का माहात्म्य व विधि), पद्म १.२२.१२०(मास अनुसार वर्ज्य भोजन द्रव्य), ३.५६(वर्जित भोजन, भक्ष्याभक्ष्य के नियम), ४.१९(अभक्ष्य भक्षण का प्रायश्चित्त), ६.६४.२०(चातुर्मास में त्याज्य भोजन), ६.९४.११(भक्ष्याभक्ष्य द्रव्यों का कथन, प्रतिपदादि में वर्जित शाक), ब्रह्म १.११२.८७(पितरों हेतु श्राद्ध कर्म में पिण्डीकरण के योग्य भोजन), ब्रह्मवैवर्त्त १.२७(भक्ष्याभक्ष्य वर्णन), ४.८५.३ (भक्ष्याभक्ष्य वर्णन), ब्रह्माण्ड २.३.१४.११(श्राद्ध में प्रशस्त व गर्हित भोजन), २.३.१४.५८(श्राद्ध में प्रशस्त व गर्हित भोजन), ३.४.८.४१(मद्य, कलञ्ज आदि द्रव्यों के आपेक्षिक पाप का कथन), ३.४.८.५५(अन्न दोष होने पर प्रायश्चित्त का कथन), ३.४.११(श्राद्ध में वर्ज्य - अवर्ज्य भोजन द्रव्य), भविष्य १.३(भोजन की प्रशंसा, धनवर्धन वैश्य का दृष्टान्त), १.१६.१८(भिन्न - भिन्न तिथियों में करणीय तथा वर्जनीय भोजन), १.६१.२६(भोजन करते समय मार्तण्ड के स्मरण का निर्देश), १.१४६(भोजकों के भोज्यत्व - अभोज्यत्व का कथन), १.१६४.८५(सूर्य षष्ठी व्रत के अन्तर्गत भिन्न - भिन्न मासों में ग्रहणीय भोजन का निर्देश), १.१७१(भोजक भोजन अनुष्ठान का वर्णन), १.१८६.२१(भोजन में निषिद्ध द्रव्य), ४.४५(त्रयोदश वर्ज्य सप्तमी व्रत), ४.९६.५(पूर्वाह्न में देवों, मध्याह्न में मुनियों, अपराह्न में पितरों व सायंकाल में गुह्यकादियों द्वारा भोजन का उल्लेख), भागवत ५.२०.२१(क्रौञ्च द्वीप के ७ वर्ष पर्वतों में से एक), मत्स्य ६३.१५(रस कल्याणी तृतीया व्रत के संदर्भ में विभिन्न मासों में वर्ज्य भोज्य द्रव्यों का कथन), २३९.२३(कोटिहोम में ऋत्विजों को मासानुसार देय भोजन द्रव्य), वराह ५८(सौभाग्य व्रत के अन्तर्गत विभिन्न मासों में भिन्न भोजन का निर्देश), ११९(वराह अवतार को प्रिय भोजन), १८९(श्राद्ध में संकल्पित अन्न सुपात्र ब्राह्मण को ही देने का निर्देश), वामन १४.६२(भोजन शुद्धि के उपाय का कथन), वायु २.१७(भक्ष्याभक्ष्य भोजन का निर्णय), ७८.७/२.१६.७(श्राद्ध कार्य में वर्ज्य - अवर्ज्य भोजन द्रव्य), विष्णु २.१५(भोजन के माध्यम से ऋभु द्वारा निदाघ को अद्वैत का उपदेश), ३.११.५०(भोजन कर्म विधि), विष्णुधर्मोत्तर २.६३(भोजन कल्पन द्रव्यों का कथन), २.९३(विभिन्न आहार द्रव्यों के भोजन के नियम), ३.२३०(भक्ष्य - अभक्ष्य नियम व द्रव्य), स्कन्द १.२.४९.३२(कमठ द्वारा अतिथि सूर्य को प्रोक्त २४ तत्त्वों का भोजन), २.४.६.४७(कार्तिक में भोज्य - अभोज्य द्रव्य), २.५.९(विष्णु को समर्पणीय भोजन के प्रकार), ४.१.४०.३७ (अविधि भोजन में दोष), ५.३.१५९.१५(बिना निमन्त्रण के भोजन से श्वान तथा अपरीक्षितभोजी के वानर होने का उल्लेख), ६.२३६.१(चातुर्मास में इष्ट वस्तु परित्याग का फल), लक्ष्मीनारायण १.३२२.७६(विभिन्न कालों में भोजन के फल का कथन), १.४२७.१८(रैवत पर्वत पर कृष्ण को प्रस्तुत भोज्य पदार्थों के नाम), २.१८०.६३(स्वात्म मात्र उदर भरण के घस/ पाप व अन्यों के तर्पण के विघस होने का कथन, गृही को विघसाशी होने का निर्देश), २.२२५.३५(सर्वहोम के अन्तर्गत ब्रह्माण्ड के प्राणियों हेतु भोजन मन्त्रों का वर्णन ) bhojana

      Remarks on Bhojana


      भोजा भागवत ५.१५.१५(वीरव्रत - पत्नी, मन्थु व प्रमन्थु - माता, भरत वंश), मत्स्य ४६.१(पौरुष शूर व भोजा के वसुदेव आदि १० पुत्रों के नाम ) bhojaa


      भौतिक नारद १.६६.१०९(भौतिक की शक्ति विकृतास्या का उल्लेख), १.६६.१३०(सुमुख गणेश की शक्ति भौतिकी का उल्लेख ) bhautika


      भौत्य ब्रह्माण्ड ३.४.१.५१(भूति व कवि - पुत्र भौत्य का उल्लेख), ३.४.१.१०५(भौत्य मन्वन्तर के अन्तर्गत ५ देवों के गण व उनके अन्तर्गत देवों के नाम), ३.४.१.११५(भौत्य मनु के पुत्रों के नाम), भविष्य ३.४.२५.४२ (ब्रह्माण्ड गुह्य से उत्पन्न केतु द्वारा भौत मन्वन्तर की सृष्टि का उल्लेख), १९९.३(भौतपायन : कश्यप कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), मार्कण्डेय १००.१३/९७.१३(अग्नि द्वारा भूति को मन्वन्तराधिप पुत्र भौत्य की प्राप्ति का वरदान), वायु ९६.१००/२.३४.१००(भौत्य संज्ञक कुल में युयुधान, सात्यकि, भूति, युगन्धर आदि के नाम ) bhautya


      भौम ब्रह्माण्ड २.३.६.२०(सिंहिका व विप्रचित्ति के १४ असुर पुत्रों में से एक), भविष्य ३.४.१७.४८(महाग्रह, ध्रुव व धरा से उत्पत्ति), ३.४.२५.४१ (ब्रह्माण्ड पद से उत्पन्न राहु द्वारा भौम मन्वन्तर? की सृष्टि का उल्लेख), मत्स्य ५०.३५(सार्वभौम : विदूरथ - पुत्र, जयसेन - पिता), ५०.३६(रुचिर - पुत्र, त्वरितायु - पिता), १२७.४(भौम/मङ्गल ग्रह के रथ का स्वरूप), २०१.३३(भौमतापन : ५ गौर पराशरों में से एक), वायु ४३.२२(भद्राश्व देश के जनपदों के रूप में कृष्ण भौम, सु भौम, महाभौम आदि का उल्लेख), ४३.२३(महाभौम : भद्राश्व देश के जनपदों में से एक), ६८.१९/२.७.१९ (सिंहिका व विप्रचित्ति के १४ महासुर पुत्रों में से एक), ९६.२३९/२.३४.२३९ (भौमरि व भौमरिका : सत्यभामा व कृष्ण के पुत्र - पुत्रियों में से २), विष्णु २.१२.१८(भौम ग्रह के रथ का स्वरूप - अष्टाश्वः काञ्चनः श्रीमान्भौमस्यापि रथो महान्। पद्मरागारुणैरश्वैः संयुक्तो वह्निसम्भवैः॥ ), ३.२.४२(भौम नामक १४वें मनु के काल के देवों, सप्तर्षियों व मनु - पुत्रों के नाम), महाभारत उद्योग ५६.७(भौमन : विश्वकर्मा का नाम?), कथासरित् ८.५.७०(जम्भक क्षेत्र में भौम से नियन्त्रक नामक विद्याधर की उत्पत्ति ), द्र. अङ्गारक, मङ्गल bhauma


      भौमासुर गर्ग ७.२५.५६(भौमासुर - पुत्र नील द्वारा प्रद्युम्न को भेंट प्रदान), भागवत १०.५९(पृथ्वी - पुत्र, नरकासुर उपनाम, वरुण के छत्र, अदिति के कुण्डलों व मणिपर्वत पर बलाधिकार, कृष्ण द्वारा वध, भगदत्त पुत्र ) bhaumaasura


      भौवन ब्रह्म २.१३.२(प्रमति - पुत्र, कश्यप पुरोहित के आचार्यत्व में १० हयमेधों के अनुष्ठान हेतु देश तथा आचार्य की खोज, गौतमी स्नान से हयमेध फल की प्राप्ति ) bhauvana


      भ्रम मत्स्य १८०.९९(उद्भ्रम व सम्भ्रम : हरिकेश यक्ष के दो गण) bhrama


      भ्रमण स्कन्द ४.१.४१.११८(भ्रामणी : वायु धारणा का नाम), योगवासिष्ठ ६.२.८५.२५(चिति द्वारा परमपुरुष के दर्शन करने तक भ्रमण करते रहने का उल्लेख),


      भ्रमर गणेश २.२१.२(भ्रमरी द्वारा अम्भासुर के सिर को देखकर विलाप, विनायक वध हेतु अदिति रूप धारण, विनायक को लड्डू देना, विनायक द्वारा वध), २.५०.४६(गणेश के मस्तक पर स्थित भ्रामिका शक्ति से भ्रमरों के आकर्षित होने का कथन), गरुड २.२.७८(मत्सरी के भ्रमर बनने का उल्लेख), गर्ग ५.१७.२९(भ्रमर की कमल में लगन के समान गोपी - नेत्रों की कृष्ण में लगन), पद्म ६.१८४.५७(, भागवत ५.२.९, १०.४७(गीत, गोपी - उद्धव संवाद), ११.१५.२३(योगी के परकाय प्रवेश की भ्रमर/अङ्घ्रि से उपमा), ११.२९.४९(भागवत रूप वेदसार निकालने वाले श्रीहरि की भ्रमर/भृङ्ग से उपमा),

      स्कन्द ४.१.३.६१(भ्रमर शब्द का निरूपण : शिव प्रसाद से भ्रान्ति की समाप्ति), ६.१८५(अतिथि द्वारा भ्रमर से विभिन्न स्थानों के सार ग्रहण की शिक्षा), योगवासिष्ठ १.१७.३१(ह्रदय कमल में तृष्णा रूपी भ्रमरी), १.२०.३१(मन रूपी भ्रमर), ६.१.८०.७६(इन्द्रिय पुष्प पर इच्छा भ्रमरी का कथन), ६.२.११७ (विपश्चित् उपाख्यानके अन्तर्गत पद्म भ्रमर हंस का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.७९.३१(बालकृष्ण के दक्षावर्त में श्रीनिवास नामक भ्रमर की स्थिति का उल्लेख ) bhramara


      भ्रमि गर्ग ५.२.१८ (छत्र भ्रमि का उल्लेख), भविष्य ३.४.२४.४ (विश्वकर्मा द्वारा निर्मित भ्रमि यन्त्र की महिमा), भागवत ४.१०.१(शिशुमार - पुत्री, ध्रुव - भार्या, कल्प व वत्सर - माता), ४.१३.११(वत्सर - माता ) bhrami


      भ्रष्टाचार भविष्य ३.४.२३.७७(कृष्ण चैतन्य के प्रति कलिकाल में व्याप्त भ्रष्टाचार ज्ञापन), लक्ष्मीनारायण १.३४९.१(दुष्ट भ्रष्टाचार द्विज के मृत्यु पश्चात् राक्षस बनने तथा द्विज द्वारा मथुरा स्नान के फल का अर्पण करने से मुक्ति का वृत्तान्त ) bhrashtaachaara/ bhrashtachara


      भ्राज ब्रह्माण्ड ३.४.१.१०६(भ्राजित : भौत्य मन्वन्तर के ५ देवगण में से एक - चाक्षुषाश्च पवित्राश्च कनिष्ठा भ्राजितास्तथा ॥ ; सप्त सिन्धुओं का रूप - सप्त लोकाः पवित्रास्ते भ्राजिताः सप्तसिंधवः ॥), वायु ४२.४६(मेरु के पश्चिम में गङ्गा द्वारा प्लावित देवभ्राज, महाभ्राज, वैभ्राज वनों का उल्लेख - देवभ्राजं महाभ्राजं सवैभ्राजं महावनम्।
      प्लावयन्ती महाभागा नानापुष्पफलोदका ।।), हरिवंश २.१२२.३२( स्वधाकार अग्नि के आश्रित ५ अग्नियों में से एक - पिठरः पतगः स्वर्णः श्वागाधो भ्राज एव च।
      स्वधाकाराश्रयाः पञ्च अयुध्यंस्तेऽपि चाग्नयः ।। ), द्र. मन्वन्तर, वैभ्राज bhraaja


      भ्राता पद्म १.१५.३१७(भ्राता के वसु लोक का स्वामी होने का उल्लेख), भविष्य २.१.६.२१(आत्मन मूर्ति का रूप), ३.२.२.३७(अस्थिदाता के भ्रातृतुल्य होने का उल्लेख), ४.१३६.१८(भ्रातृभाण्ड : पार्वती व शिव से उत्पन्न भूतों की संज्ञा), भागवत ६.७.२९(मरुत्पति की मूर्ति का रूप), मत्स्य ८५.७(गुडपर्वत के सौभाग्यदायिनी का भ्राता होने का उल्लेख), २११.२१(भ्राता के आत्म मूर्ति रूप होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.३७.५२ (भ्राता के आत्म मूर्ति होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२८३.३८(विवेक के भ्राताओं में अनन्यतम होने का उल्लेख), कथासरित् १०.५.२४४(भ्रातृमूर्ख की कथा ) bhraataa/ bhrata


      भ्रान्ति लक्ष्मीनारायण ४.२६.५८(बालयोगिनी स्वामी आदि की शरण से भ्रान्ति से मुक्ति का उल्लेख),


      भ्रामणी नारद १.९१.७९(वामदेव शिव की ११वीं कला )


      भ्रामरी देवीभागवत १०.१३.३३(भ्रामरी देवी : भ्रमरों के माध्यम से अरुण दैत्य का वध, वैवस्वत मनु के पुत्रों द्वारा भ्रामरी देवी की उपासना से मनु बनना), शिव ५.५०.४८(भ्रामरी देवी द्वारा भ्रामर रूप धारण कर अरुण के वध से भ्रामरी नाम धारण), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२०(कृष्ण व नलिनी - पुत्री, षडङ्ग वैद्युत - भगिनी ) bhraamaree/ bhramari


      भ्राष्ट्र मत्स्य १९५.२४(भ्राष्ट्रकायनि : भार्गव कुल के गोत्रकार ऋषियों में से एक), १९६.२१(भ्राष्ट्रकृत् : आङ्गिरस वंश के पञ्चार्षेय प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.९९.१८(मार्जारिका द्वारा श्रीहरि की स्तुति से कुम्भकार की भ्राष्ट्र में स्थित मार्जारिका - अपत्यों की रक्षा का वृत्तान्त ) bhraashtra/ bhrashtra


      भ्रुव भागवत ३.१२.२६(ब्रह्मा की भ्रुवों से क्रोध की उत्पत्ति का उल्लेख), ५.२.७, मत्स्य १७९.१९(भ्रुकुटी : अन्धकासुरों के रक्त पानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक), स्कन्द ३.१.६.४१(दोनों सन्ध्याओं से भ्रू बनने का उल्लेख), ४.१.४२.१४(विष्णु के ३ पद भ्रूमध्य में होने का उल्लेख), ७.४.१७.२३(भ्रूविकार : कृष्ण पूजन विधान के अन्तर्गत नैर्ऋत दिशा के रक्षकों में से एक), हरिवंश २.८०.११(भ्रुवों के सौन्दर्य हेतु द्वितीया तिथि में करणीय व्रत विधि), महाभारत शान्ति ३४७.५०(हयग्रीव की भ्रुवों के रूप में समुद्र - द्वय का उल्लेख ) bhruva


      भ्रूण स्कन्द १.२.५.१०९(ब्राह्मणों के ८ भेदों में से एक, लक्षण), ६.५३(भ्रूणगर्ता तीर्थ का माहात्म्य, कल्माषपाद की ब्रह्महत्या से मुक्ति ) bhruuna/ bhruna


      भ्रूणहत्या मत्स्य ८०.१२(शुभ सप्तमी व्रत से भ्रूणहत्या पाप नाश का उल्लेख), ९३.१३९(नवग्रह कोटि होम से भ्रूणहत्या पाप के नाश होने का उल्लेख), १९२.१६(शुक्ल तीर्थ में जगती दर्शन से भ्रूणहत्या पाप से मुक्ति का उल्लेख), वायु १०१.१५२/२.३९.१५२(भ्रूणहा द्वारा रोध नरक प्राप्त करने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.२०.६३(श्रीदेवी द्वारा मार्कण्डेय के प्रति भ्रूणहत्या रूप पाप की क्लिष्टता का कथन), ५.३.८५.९२(सोमनाथ तीर्थ के दर्शन से ब्रह्महत्या से मुक्ति), ५.३.१०३.१६३ (भ्रूणहत्या दोष से गोविन्द नामक कृषीवल को शरीर में कृमित्व प्राप्ति, एरण्डी सङ्गम तीर्थ में स्नानादि से कृमित्व से मुक्ति), ५.३.१५३.२० (जाबालि - भार्या का दु:खाविष्ट होकर अनशन पूर्वक मरण, जाबालि को भ्रूणहत्या रूप पाप की प्राप्ति ) bhruunahatyaa/ bhrunahatyaa


      भ्रूमध्य वामन ९२.२७(वामन विराट रूप में भ्रूमध्य में विशाखा की स्थिति का उल्लेख ) bhruumadhya/ bhrumadhya


      भ्रूशुण्ड गणेश १.५७.४३(वल्मीक से उत्पन्न कैवर्त्तक को मुद्गल द्वारा भ्रूशुण्डि नाम देना), १.५८.२३(नारद द्वारा भ्रूशुण्ड के पितरों को नरक की यातना भोगते देखकर भ्रूशुण्ड को कहना, संकष्ट चतुर्थी व्रत के पुण्यदान से पितरों का उद्धार), २.१६.१०(गणेश भक्त भ्रूशुण्ड के नाम का कारण, काशीराज द्वारा स्वपुत्र के विवाह में भ्रूशुण्ड को निमन्त्रित करने का वर्णन), २.३४.१९(भ्रूशुण्ड का मन्दार ऋषि के आश्रम में आगमन, मन्दार द्वारा अपमान पर शाप ) bhruushunda/ bhrooshunda/ bhrushunda