भक्त गरुड १.२१९(भगवद्भक्त के लक्षण), ३.१.७२-७३(छिन्न भक्तों में रुद्र तथा अच्छिन्न भक्तों में वायु का उल्लेख), गर्ग ९.४(व्यास - उग्रसेन संवाद में भक्त की महिमा), नारद १.५.४९(विष्णु - मार्कण्डेय संवाद में भक्त के लक्षण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.४१(भक्त की महिमा का वर्णन), ४.८४.४१(कृष्ण - प्रोक्त ३ प्रकार के भक्तों के लक्षण), लिङ्ग २.४(भक्त के लक्षण), विष्णु ३.७(यम - प्रोक्त विष्णु - भक्त के लक्षण), शिव ७.२.१०(शिव भक्त का स्वरूप), स्कन्द १.२.४६.८०(भक्त के लक्षण), २.१.२१.३७(वेंकटेश - रामानुज संवाद में भक्त के लक्षण), २.२.१०.७७(नारद - इन्द्रद्युम्न संवाद में भक्त के लक्षण), २.७.२०(भगवद्भक्त के लक्षणों का निरूपण), ७.१.२४(सात्विक, राजस व तामस भक्तों का वर्णन, शिव - पार्वती संवाद), लक्ष्मीनारायण १.९.४८(ब्रह्मा द्वारा विष्णु के सुदर्शन चक्र से स्वयं की रक्षा के लिए विष्णु नाम भक्ति नामक कवच का धारण), २.११४(भक्त द्वारा अपने सारे व्यक्तित्व/अस्तित्व को श्रीहरि की सेवा में अर्पित कर देने का वर्णन), ३.३०.९५(हरिप्रथ भक्त के शाप से मृत वर्णिशाल मनु के उज्जीवनार्थ अनादि श्री भक्त नारायण के प्राकट्य का वृत्तान्त), ३.६०(भक्त की महिमा के संदर्भ में श्रीहरि द्वारा चिदम्बरा भक्ता को स्वप्न में स्वचिह्न प्रदान करने का कथन), ३.८४.९०(भक्त के लक्षणों का कथन ) bhakta
भक्ति गणेश २.४९.२३(सात्त्विक, राजस, तामस भक्त द्वारा क्रमश: सायुज्य?, सारूप्य व सालोक्य भक्ति प्राप्त करने का उल्लेख), गरुड १.२२२(विष्णु भक्ति की महिमा), गर्ग ६.१६.३(सिद्धाश्रम तीर्थ के दर्शन, स्पर्शन, स्नान व निवास से सालोक्य आदि मुक्तियों की प्राप्ति का कथन), ९.३(व्यास - उग्रसेन संवाद में सकाम व निष्काम भक्ति योग का वर्णन), ९.५(व्यास - उग्रसेन संवाद में भक्ति की महिमा), देवीभागवत ७.३७(देवी द्वारा हिमालय को भक्ति योग का कथन), नारद १.४(भक्ति का साधक के जीवन में महत्त्व; भक्ति से कर्म की सिद्धि, कर्म से हरि प्राप्ति, हरि से ज्ञान प्राप्ति का उल्लेख), १.६.२१(अचञ्चला हरिभक्ति की दुर्लभता का उल्लेख), १.१५.१३९(भक्ति के सात्त्विक, राजसिक , उत्तम, मध्यम आदि १० भेद), १.१६.३३(विष्णु भक्ति का तात्पर्य), १.३४(हरि भक्ति के लक्षणों का निरूपण), पद्म १.१५.१६४(भक्ति के भेद : लौकिक, वैदिक, आध्यात्मिक, सांख्यज, योगज तथा उनकी विधि), ३.५०.४ (विष्णु भक्ति की प्रशंसा), ४.१(विष्णुभक्ति, वैष्णव के लक्षण), ५.८५.१०(भक्ति के लक्षण व भेदों का वर्णन), ६.१३०.१(भक्ति के प्रकार), ६.१३२.२२(विष्णु भक्ति की महिमा), ६.१९३+ (ज्ञान व वैराग्य की माता भक्ति द्वारा नारद से व्यथा का वर्णन, वृन्दावन में युवती बनना), ६१९८, ६.२०८.५२(द्वारका में स्नान से विष्णु भक्ति प्राप्ति का कथन), ६.२२४.२७(षोडशधा भक्ति के कीर्तन, श्रवण आदि लक्षण), ७.२(भगवद् भक्ति), ७.१६(हरि भक्ति), ब्रह्म १.१२१(विष्णुभक्ति के बहिर्मुखत्व का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.