सुपर्ण भागवत १२.११.१९(तीन वेदों का रूप), वामन ९०.१९(अर्बुद में विष्णु का त्रिसौपर्ण नाम से वास), वायु ३१७सुपक्ष, विष्णुधर्मोत्तर ३.३४६.२५(सुपर्ण नाम की निरुक्ति), स्कन्द ६.८२(सुपर्णेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, सुपर्ण द्वारा सुवर्ण पक्षों की प्राप्ति, वेणु नृप की कुष्ठ से मुक्ति ), वा.रामायण १.३८, १.४१.१६, लक्ष्मीनारायण १.४८४.३१, १.५६१.३८, suparna
सुपर्णा ब्रह्म २.३०(कश्यप - भार्या सुपर्णा द्वारा इन्द्रदर्पहर गर्भ धारण करना, अपमार्ग पर स्थित होने से ऋषियों द्वारा नदी होने का शाप, गङ्गा से सङ्गम पर पुन: कश्यप की भार्या बनना ), भागवत ४.१८, स्कन्द ६.८२, ७.१.३५१, लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०७ द्र. विनता, सौपर्णी suparnaa
सुपर्णाक्ष देवीभागवत ६.१८
सुपर्णी द्र. सुपर्णा, सौपर्णी
सुपर्णेला स्कन्द ७.१.३५१(सुपर्णेला भैरवी का माहात्म्य),
सुपर्व पद्म १.४०(सुपर्वा : साध्यों के गण में से एक), स्कन्द ५.३.८३.३५सुपर्वा
सुपार्श्व देवीभागवत ७.३०(सुपार्श्व पीठ में नारायणी देवी का वास), ८.६(सुपार्श्व पर्वत : सुमेरु पर्वत का पद, कदम्ब वृक्ष का स्थल), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६(गन्धवाह - पुत्र, कमल हरण से केशी रूप में जन्म), मत्स्य १३, ८३(सुपार्श्व पर्वत निर्माण व पूजा विधि), ९२.८(सुपार्श्व पर्वत, स्वर्णमयी गौ की दक्षिणाभिमुखी प्रतिष्ठा), वराह ७७, ९५, स्कन्द ३.१.६(सुपार्श्व मुनि की महिषी पर कृपा से महिषासुर पुत्र की उत्पत्ति), ५.३.१९८.७३, ७.४.१७.३१, वा.रामायण ४.५९.९(सम्पाती - पुत्र सुपार्श्व गृध्र द्वारा सीता हरण का दर्शन), ६.९२.६२(रावण के मन्त्री सुपार्श्व द्वारा रावण को सीता वध की चेष्टा से निवृत्त करना ), ७५, लक्ष्मीनारायण २.१४०.७०, supaarshva/ suparshva
सुप्तघ्न वा.रामायण ७.५,
सुप्रतिष्ठित अग्नि ९६, कथासरित् १६.२.८९
सुप्रतीक ब्रह्माण्ड २.३.७.३३१(हस्ती, वरुण का वाहन), २.३.७.३४१(हस्ती, वैरूप साम से उत्पत्ति - सुप्रतीकस्तु वैरूप्यात्साम्नः सारूप्यमागतः), भविष्य ३.४.१७(दिग्गज, ध्रुव व दिशा - पुत्र), वराह १०(विद्युत्प्रभा व कान्तिमती - पति सुप्रतीक के पुत्र दुर्जय का आख्यान), १२(सुप्रतीक द्वारा भगवत्स्तुति, विग्रह में लीन होना), वायु ६९.२०९(श्वेता – पुत्र, वरुण-वाहन-- भद्रो यः सुप्रतीकस्तु हरितः स ह्यपाम्पतेः ॥) स्कन्द ३.१.३८.५६(सुप्रतीक व भ्राता विभावसु द्वारा परस्पर शाप - प्रतिशाप, गज व कच्छप बनना - मुनिर्विभावसुर्नाम्ना पुरासीत्तस्य सानुजः । सुप्रतीक इति भ्राता तावुभौ वंशवैरिणौ ।।), ४.२.६६.२८(सुप्रतीकेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - दिग्गजेनार्चितं लिंगं सुप्रतीकेन तत्पुरः ।। सुप्रतीकेश्वरं नाम्ना यशोबलविवर्धनम् ।। ), कथासरित् १.१.५९, २.१.१४, suprateeka/ supratika
सुप्रभ वराह १६(सुप्रभ की मणि से उत्पत्ति, प्रजापाल नाम से जन्मान्तर में ख्याति), ३६२, वामन ५७.७२(धाता द्वारा कुमार को प्रदत्त गण), स्कन्द ६.१९९.११३(सुप्रभ ब्राह्मण द्वारा स्वपुत्री का विवाह ब्राह्मण वेश धारी चाण्डाल से करना), ७.३.२९(सुप्रभ द्वारा मृगी के वध से व्याघ्र| बनना, कपिला गौ से संवाद से मुक्ति ), कथासरित् ९.३.११८, suprabha
सुप्रभा अग्नि २९८.१८(अविधिपूर्वक ओषधि ग्रहण पर ओषधि प्रभाव ग्रहण करने वाली देवी), भविष्य ३.४.१५.२६(नलकूबर - पत्नी सुप्रभा द्वारा रावण को शाप), मार्कण्डेय ११४.२४, वामन ३७(ब्रह्मा के यज्ञ में आहूत सरस्वती का रूप), योव १.९.२१(दक्ष - कन्या सुप्रभा व कृशाश्व मुनि से ५० पुत्र रूप शस्त्रों की उत्पत्ति), वा.रामायण १.२१(दक्ष - कन्या, कृशाश्व - पत्नी, ५० शस्त्रों की माता ), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७१, कथासरित् ८.३.१८३, द्र. भूगोल suprabhaa
सुप्रभात गरुड ३.२५.४७(वेंकटेश के संदर्भ में सुप्रभातम् स्तुति), वामन १४.२१(सुप्रभातम् स्तोत्र का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.२६.६६सुप्रभातम् स्तोत्र
सुप्रहार कथासरित् १६.२.११४,
सुप्राज्ञा पद्म ७.३३(कोचरश राजा की भार्या सुप्राज्ञा द्वारा शौरि ब्राह्मण से एकादशी व्रत माहात्म्य व पूर्व जन्म के वृत्तान्त का वर्णन ) supraajnaa/ suprajnaa
सुप्रिय शिव ३.४२, ४.३०(सुप्रिय वैश्य द्वारा दारुक दैत्य की पीडा से मुक्ति हेतु शिव पूजन, दैत्य का नाश ), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७५सुप्रिया supriya
सुबन्धु कथासरित् १.५.११५ (योगनन्द राजा द्वारा श्राद्ध में चाणक्य के बदले सुबन्धु को धुरिनिर्वाह का आदेश, चाणक्य द्वारा योगनन्द का नाश)
सुबल गणेश १.१.२९(राजा सोमकान्त के ५ मन्त्रियों में से एक),
सुबालक मत्स्य २०(ब्रह्मदत्त के मन्त्री का पुत्र, पूर्व जन्म में कौशिक ऋषि - पुत्र )
सुबाहु कूर्म १.२४.६०(सुबाहु गन्धर्व द्वारा ह्रीमती से पुत्रों की प्राप्ति), गर्ग ७.२६.१८(रङ्गवल्लीपुर - राजा सुबाहु द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), देवीभागवत ३.१५+, ३.१८+ (काशिराज सुबाहु द्वारा शशिकला पुत्री का स्वयंवर में विवाह, विरोधियों पर विजय पर दुर्गा की स्तुति आदि), पद्म २.९४.३४(सुबाहु द्वारा शव भक्षण की कथा, श्वेत राजा से साम्य), २.९६(सुबाहु का स्व पुरोहित जैमिनी से स्वर्ग - नरक प्रापक कर्म व दान धर्म फल विषयक वार्तालाप, स्वर्ग में आकर स्व शव का भक्षण ; तुलनीय : श्वेत द्वारा शव भक्षण), ५.२३+ (चक्राङ्का नगरी का राजा, शत्रुघ्न का आगमन व युद्ध, हनुमान से युद्ध, समर्पण), ५.६५.६३(दमन - पिता, राम के हयमेध अश्व को पकडना व युद्ध आदि), ५.६७.३८(सत्यवती - पति), भविष्य ३.३.३२, मार्कण्डेय २६(मदालसा - पुत्र), ४४(सुबाहु का काशिराज के पास सहायता के लिए गमन), वामन ५७.७९(गण्डकी द्वारा कुमार को प्रदत्त गण), स्कन्द ४.२.६७.११२(सुबाहु दानव द्वारा गन्धर्व - कन्या रत्नावली का हरण, रत्नचूड/शङ्खचूड नागकुमार द्वारा सुबाहु का वध), ५.२.६६.४, ५.२.६९(कलिङ्ग के राजा सुबाहु द्वारा पत्नी से शिरोव्यथा के कारण रूप में पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, खङ्गमेश्वर लिङ्ग पूजा से मुक्ति), वा.रामायण १.३०(ताटका - पुत्र, राम द्वारा वध), ७.१०८.१०(शत्रुघ्न - पुत्र, मधुरा - अधिपति ), लक्ष्मीनारायण १.३९३, ३.५१.६३, कथासरित् ८.४.५६, १०.२.५, subaahu/ subahu
सुब्रह्मण्य वराह २१.१७(दक्ष यज्ञ में वसिष्ठ के सुब्रह्मण्य बनने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२४५ subrahmanya
सुभगा नारद १.६६.१३५(मुण्डी गणेश की शक्ति सुभगा का उल्लेख), १.६६.१३६(मेघनाद गणेश की शक्ति सुभगा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२६१.१४(उपेन्द्र की शक्ति सुभगा का उल्लेख ) subhagaa
सुभट कथासरित् ८.१.४३, १०.२.५,
सुभद्र भविष्य २.२.२.४७, भागवत २.४.१५-१७(सुभद्रश्रव, ११.३०(सुभद्र का सङ्ग्रामजित् से युद्ध), मत्स्य ४६.२२सौभद्र, स्कन्द १.२.३(सुभद्र द्वारा देवशर्मा से पुण्यदान प्राप्ति का वृत्तान्त), २.२.२८.४५(सुभद्र के यजुर्वेद की मूर्ति होने का उल्लेख ), महाभारत कर्ण ४४.८, वा.रामायण ३.३५.३६, लक्ष्मीनारायण १.३५०, subhadra
सुभद्रा गर्ग १.५.२८(शतरूपा का अंश), देवीभागवत ३.२६(१० वर्षीया कन्या का नाम), नारद २.५५.६७(सुभद्रा पूजा मन्त्र), पद्म ७.१८.४२(जगन्नाथ क्षेत्र में सुभद्रा की महिमा), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१८४(शतरूपा का अंशावतार), ४.१०९(रुक्मिणी - माता, वियोग में रोदन), भागवत १०.८६(अर्जुन द्वारा सुभद्रा हरण का प्रसंग), मत्स्य ४६.१५(वसुदेव व देवकी - पुत्री, कृष्ण - भगिनी), विष्णुधर्मोत्तर २.४४.१९(पूर्व भाग में दिग्धेनु), स्कन्द २.२.१९.२१, २.२.१९.४६, २.२.२०.२३(सुभद्रा का देवारणि के रूप में उल्लेख), २.२.२५.९(सुभद्रा के रथ के पद्मध्वज का उल्लेख), २.२.२७, २.२.२८(यजुर्वेद का स्वरूप), ५.३.१९८.८३, ६.८४(कृष्ण - भगिनी, लक्ष्मी द्वारा शापित माधवी का रूप), ७.१.३२(दधीचि - पत्नी, पिप्पलाद - माता, दधीचि को शाप ), ७.१.२४०, हरिवंश १.३५, लक्ष्मीनारायण १.४९३, कथासरित् ८.२.३३३ subhadraa
सुभीमा हरिवंश २.१०३.१२(कृष्ण - भार्या सुभीमा के पुत्रों के नाम )
सुभूति कथासरित् १२.६.२०८
सुमङ्गला कथासरित् १८.५.१७५
सुमति अग्नि १०७, गरुड ३.२८.५५(विकुक्षि-भार्या, शची का अंश), गर्ग ७.२६.३७(आर्ष्टिषेण - भ्राता सुमति गन्धर्व का हनुमान के शाप से सर्प बनना, कृष्ण - पुत्रों द्वारा उद्धार), नारद १८, १.२०(सत्यमति - पति राजा सुमति द्वारा द्वादशी को ध्वजारोपण कर्म, विभाण्डक मुनि का आगमन, पूर्व जन्म में मालिनी शूद्र, वृत्तान्त), पद्म १.४०(मरुतों में से एक), २.८.५८(ज्ञान से वर्धित, शरीर से वृद्ध, वृद्धा युवती का नाम), २.८.६२, ५.१४(राम के मन्त्री सुमति द्वारा शत्रुघ्न को च्यवन के वृत्तान्त का वर्णन), ५.२६, ब्रह्म २.८.५८, २.१०१(प्रमति - पुत्र, देवलोक में पिता के पाशबद्ध होने पर मुक्ति का उद्योग), ब्रह्माण्ड ३.५१(सगर - भार्या), भागवत ५.१५(भरत - पुत्र, वृद्धसेना - पति, देवताजित् - पिता), मार्कण्डेय १०, १३, ११६, लिङ्ग २.२७.१९८(सुमति व्यूह का वर्णन), विष्णु ४.४.१, स्कन्द २.१.१४(सुमति द्विज द्वारा किराती के संग से पातक प्राप्ति, दुर्वासा - कथित मुक्ति उपाय), २.१.१९(सुमति द्वारा दृढमति शूद्र को कर्मानुष्ठान सिखाने से दुर्गति), २.४.२टीका (गौतम - शिष्य, गुरु सेवा से अमरता), ३.१.१०(सुमति विप्र द्वारा शूद्र को वैदिक कर्मोपदेश से नरक प्राप्ति, अगस्त्य उपदेश से मुक्ति), ३.१.३४(यज्ञदेव द्विज के पुत्र सुमति के पीछे ब्रह्महत्या का लगना, दुर्वासा के परामर्श से मुक्ति), ५.१.२४, ५.२.६१, ५.२.६३.२, ७.३.२६(सुमति राजा द्वारा कनखल तीर्थ में सुवर्ण क्षेपण से धनद यक्ष बनना), वा.रामायण ०.३(सत्यवती - पति राजा सुमति के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में शूद्र, रामायण श्रवण से वैभव प्राप्ति), १.३८.१७(सगर - पत्नी, षष्टि सहस्र पुत्रों की माता), १.४७(काकुत्स्थ - पुत्र, विशाला पुरी के राजा सुमति द्वारा राम व विश्वामित्र का स्वागत), लक्ष्मीनारायण १.२८२, १.४०२, १.४०३, २.१४०.६८(सुमति प्रासाद के लक्षण ), २.१४०.८४(सुमति प्रासाद के लक्षण ) sumati
सुमद पद्म ५.१२(अहिच्छत्रा - राजा सुमद द्वारा तप, कामाक्षा देवी का दर्शन, शत्रुघ्न से संवाद), ५.६७.३८(सत्कीर्ति - पति )
सुमधु लक्ष्मीनारायण २.२८.२७
सुमन विष्णुधर्मोत्तर १.६३.४९, महाभारत अनुशासन ९८.२०(सुमन/पुष्प की निरुक्ति : मन को ह्लाद देने वाले ; देवों को सुमन दान का महत्त्व ) sumana
सुमना पद्म २.११+ (च्यवन - पुत्री, सोमशर्मा - भार्या, पति द्वारा पुत्र की कामना पर पुत्रों के प्रकार का कथन, ब्रह्मचर्य आदि का उपेदश), ५.८७(देवशर्मा - पत्नी, संसार स्वरूप व पुत्र रूप का वर्णन, पुत्र प्राप्ति हेतु वैशाख व्रत का अनुष्ठान ), मत्स्य १२२, मार्कण्डेय १३२, वराह ३६, हरिवंश १.२२, कथासरित् १०.३.२२, १०.३.१७२, १८.४.२३६, द्र. भूगोल, मन्वन्तर, वंश ध्रुव sumanaa
सुमन्तु गणेश १.१९.१३, ब्रह्माण्ड २.३४.१५(व्यास - शिष्य), भविष्य १.१+ (व्यास - शिष्य सुमन्तु का शतानीक राजा से संवाद, भविष्य पुराण का वर्णन), ४.९४, वराह १७५(सुमन्तु मुनि द्वारा पाञ्चाल की देह में कृमियों का दर्शन, परामर्श ), लक्ष्मीनारायण १.३७८, ३.१८८.३१, द्र. धर्मसुमन्तु sumantu
सुमन्त्र पद्म ५.१२, शिव ३.५, कथासरित् ९.२.२६४,
सुमन्यु लक्ष्मीनारायण ३.७४.६५,
सुमर लक्ष्मीनारायण ३.५५.२
सुमाय कथासरित् ८.२.२२४, ८.२.३३२, ८.२.३४०, ८.५.१२१,
सुमाली नारद १.३६(वेदमालि - पुत्र, यज्ञमालि - अनुज, दुष्चरित्र के कारण स्वधन का नाश, भ्राता द्वारा स्व पुण्य दान से नरक से उद्धार), ब्रह्मवैवर्त्त ३.१८+, ४.४८+, मत्स्य १०, वायु ६९.१५९, विष्णु ५.२०.९०(कंस - भ्राता, बलराम द्वारा वध), विष्णुधर्मोत्तर १.२१२, १.२१४+, स्कन्द ३.१.४७(सुमाली द्वारा स्वकन्या कैकसी को विश्रवा को अर्पित करना), ७.१.२१५(सुमाली द्वारा पितृ हत्या से मुक्ति से लिए कुमारेश्वर लिङ्ग की पूजा), हरिवंश १.६.३६(पृथ्वी दोहन में वत्स), वा.रामायण ७.५.६(सुकेश व देववती - पुत्र), ७.५.३८(केतुमती - पति, प्रहस्त, अकम्पन आदि पुत्रों के नाम), ७.७(सुमाली का विष्णु से युद्ध), ७.२७.४६(सावित्र वसु द्वारा सुमाली का वध ), लक्ष्मीनारायण १.५४३.७३(सुमालिका sumaalee/ sumali
सुमित्र/सुमित्रा गरुड ३.२०.४८(मित्रविन्दा-माता, वसुदेव-भगिनी), भागवत ११.३०(सुमित्र का सुरथ से युद्ध), स्कन्द ३.१.१२, ३.३.३.३२(कैकेय - पुत्री, शूद्र से रमण, गोवत्स का वध, जन्मान्तर में चाण्डाली, गोकर्ण में मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.४३७, कथासरित् १४.४.४८, sumitra/ sumitraa
सुमुख अग्नि ९६, गणेश १.९२.१४(स्थूल प्रासाद में गणेश मूर्ति का नाम, मुनियों व असुरों द्वारा पूजित?), नारद १.५०.३५, १.६६.११७(बलीश की शक्ति सुमुखेश्वरी का उल्लेख), १.६६.१३०(सुमुख गणेश की शक्ति भौतिकी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ४.२७.८१, विष्णुधर्मोत्तर ३.३४३(मातलि की कन्या का पति), शिव ३.४, स्कन्द ४.२.५५.२५(सुमुखेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) sumukha
सुमुण्डीक कथासरित् ८.२.४८, ८.२.२८२, ८.२.३७५, ८.७.४८,
सुमुद्रा गणेश १.६२.६(सुलभ क्षत्रिय की भार्या, विप्र को शाप तथा विप्र शाप से चाण्डाली होना),
सुमूल वराह ७७
सुमेध लिङ्ग १.५०.७(सुमेध पर्वत पर वसुओं का वास), वायु ३९.४८(सुमेध पर्वत पर देवों का वास स्थान ) sumedha
सुमेधा गणेश २.३४.७(औरव - पत्नी, शमीका - माता), देवीभागवत ५.३२+ (सुमेधा ऋषि द्वारा सुरथ राजा व समाधि वैश्य को परामर्श, देवी पूजा विधि का वर्णन), नारद १.६६.१२६(एकदन्त की शक्ति सुमेधा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३६.५८(स्वारोचिष मन्वन्तर में देवगण का नाम), वायु ६२.५०(सुमेधा देवगण के अन्तर्गत दीप्तिमेधा, यशोमेधा आदि देवों के नाम), स्कन्द २.४.८ (सुमेधा द्वारा हरिमेधा को तुलसी माहात्म्य का कथन, वट वृक्ष का उद्धार), ३.३.९(वेदमित्र - पुत्र, सामवान के स्त्री होने पर सामवती को पत्नी बनाना ), द्र. मन्वन्तर sumedhaa
सुमेरु गर्ग १०.१.१५(अश्वमेध चरित्र का नाम), देवीभागवत ८.७(सुमेरु पर्वत का विस्तार, सुमेरु के अन्तर्गत पर्वतों का वर्णन), भविष्य ३.४.१२.३४(सुमेरु के सार से शिव रथ के केतु के निर्माण का उल्लेख), ३.४.२०.१८(अपरा प्रकृति के देवताओं में से एक), स्कन्द ४.२.५८.१६१(सुमेरु का शिव के रथ में ध्वज - दण्ड बनना ), कथासरित् ८.२.८, ८.३.३३, ८.३.५९, ८.३.१३०, ८.३.१९४, ८.७.१२३, sumeru
सुम्न द्र. सुषुम्ना
सुयज्ञ ब्रह्मवैवर्त्त २.१, २.५०+ (यज्ञकर्ता, अनादृत विप्र का शाप), २.५४(सुयज्ञ द्वारा गोलोक के दर्शन), भागवत ७.२(उशीनर राजा, मृत्यु पर पत्नियों का विलाप, यम द्वारा उपदेश), ७.२.२८, वा.रामायण २.३२(वसिष्ठ - पुत्र, वन गमन से पूर्व राम द्वारा सुयज्ञ को दान), लक्ष्मीनारायण १.४४२+ (सुयज्ञ राजा द्वारा अतिथि सुतपा ऋषि की उपेक्षा पर शाप प्राप्ति, सुतपा द्वारा पत्नीव्रत धर्म का उपदेश ) suyajna/ suyagya
सुयशा लिङ्ग १.४४.३९(मरुतों की पुत्री, नन्दी के अभिषेक में छत्र धारण ), शिव ३.७.४१ suyashaa
सुयामुन हरिवंश २.२८(सुयामुन पर्वत पर उग्रसेन - पत्नी व द्रुमिल दैत्य के समागम की कथा),
सुर गरुड ३.१०.२९(सुरों के २४ से १६ तक लक्षण होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.९.६८, लक्ष्मीनारायण ४.५१,
सुरघु योगवासिष्ठ ५.५८+
सुरत पद्म ६.१५, वराह १४२(स्त्री सम्भोग की विधि व नियम), वामन ७२.६३(सुरति : रिपुजित् - कन्या, मरुतों की माता), विष्णुधर्मोत्तर १.२५७(राजगृह में सुरत), स्कन्द १.१.२७(शिव - पार्वती की सुरत से कुमार के जन्म का प्रसंग ), लक्ष्मीनारायण २.७७सुरतायन, कथासरित् १२.२.१६सुरतप्रभा, १६.०.०सुरतमञ्जरी, १६.२.९सुरतमञ्जरी, surata
सुरथ देवीभागवत ५.३२(सुरथ राजा द्वारा कष्टों से मुक्ति हेतु सुमेधा ऋषि से वार्तालाप), १०.१०(राजा, जन्मान्तर में सावर्णि मनु), पद्म ५.४९+ (कुण्डलपुर के राजा सुरथ द्वारा राम के यज्ञीय अश्व का बन्धन, शत्रुघ्न सेना से युद्ध, राम से मिलन), ५.६७.४१(सुमनोहरा - पति), ब्रह्मवैवर्त्त २.५७+ (सुरथ द्वारा दुर्गा पूजा, वंश), २.६२(समाधि वैश्य - सुरथ राजा - मेधा ऋषि का आख्यान), भागवत ११.३०.१६(सुरथ का सुमित्र से युद्ध), मार्कण्डेय ८१, ११५.११, २९५?, वामन ६३(सुरथ की चित्राङ्गदा पर आसक्ति), शिव ५.२८, ५.४५+ (सुरथ - समाधि वैश्य - मेधा ऋषि आख्यान), स्कन्द ६.१५१.४६(सुरथ द्वारा राज्य की पुन: प्राप्ति के लिए भैरव की उपासना ), वा.रामायण ७.७८.३(सुदेव-पुत्र, श्वेत-भ्राता), लक्ष्मीनारायण २.५०, ३.१५५.८८ suratha
सुरपुर कथासरित् ९.६.८०
सुरभानु ब्रह्मवैवर्त्त ४.१७(वृषभानु - पिता),
सुरभि गणेश २.११.१३(नन्दी के सुरभि - पुत्र होने का उल्लेख), २.१२७.३४(सिन्दूर दैत्य की देह में सुरभि होने का कथन), देवीभागवत ९.४९(सुरभि का कृष्ण से प्राकट्य, मनोरथ - माता, सुरभि के दुग्ध से क्षीरसागर की उत्पत्ति, दुग्ध प्राप्ति हेतु इन्द्र द्वारा स्तुति), नारद २.२२.७६(लवण त्यागी के लिए सुरभि दान का निर्देश), पद्म १.४६.८०, ब्रह्मवैवर्त्त २.४७(सुरभि की कृष्ण से उत्पत्ति, स्तोत्र), ब्रह्माण्ड ३.७.४६६(सुरभि की तप:शीला प्रकृति का उल्लेख), भविष्य ३.४.२४.६५, भागवत १०.२७(सुरभि द्वारा कृष्ण का दुग्ध से अभिषेक), मत्स्य ४८, ५१.३८(शुचि अग्नि - पुत्र), १२१.६१(सुरभि वन में हिरण्यशृङ्ग यक्ष का वास), १७१, मार्कण्डेय २१, वामन ३५.३०(सुरभि की ब्रह्मा से उत्पत्ति), वायु ६६, ६९.९४(सुरभि के तपोमय शील युक्त होने का उल्लेख), ९९.९१(सुरभि द्वारा आघ्राण मात्र से दीर्घतमा को पापमुक्त करना), शिव ३.१७, ७.२.३१, स्कन्द १.१.६(ब्रह्मा द्वारा लिङ्गान्त अन्वेषण के विषय में सुरभि द्वारा मिथ्या साक्षी, शाप प्राप्ति), १.१.१७(सुरभि द्वारा दधीचि का निर्मांसकरण), ३.१.३७(सुरभि द्वारा मुद्गल के कुण्ड का क्षीर द्वारा पूरण), ६.२५८(शिव द्वारा सुरभि की स्तुति, सुरभि के शरीर में देवों की स्थिति, सुरभि द्वारा शिव तेज से गर्भ धारण), ७.१.३२(सुरभि द्वारा दधीचि की देह का निर्मांसकरण, देवों द्वारा मुख के अतिरिक्त सुरभि के शरीर की शुद्धि, सुरभि द्वारा सरस्वती को शाप), हरिवंश १.३.४९(दक्ष - पुत्री, कश्यप - भार्या, अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य आदि की माता), ३.१४(धर्म - पत्नी, एकादश रुद्रों की माता, वसुओं की माता आदि), महाभारत अनुशासन १४.१२५, वा.रामायण २.७४(बलीवर्द पुत्रों की दुर्दशा पर सुरभि का रोदन ), ३.१४.२७, ७.२३, लक्ष्मीनारायण २.३२.३६, ३.८.२७सौरभेयी, कथासरित् ६.१.५९, ६.८.२२०, ९.२.७१, १२.२.१०९ surabhi
सुरश्मि वराह ३६
सुरसा देवीभागवत ४.२.४२(कश्यप - पत्नी, वरुण शाप से वसुदेव - पत्नी रोहिणी बनना), ब्रह्म ४.१९, ब्रह्मवैवर्त्त ४.१९(कालिय नाग - पत्नी, कृष्ण की स्तोत्र द्वारा स्तुति), ?(कालिय नाग - पत्नी, नाग के मूर्च्छित होने पर कृष्ण की स्तुति), मत्स्य ६, वायु ६९.३१५(, विष्णु १.२१.१९, स्कन्द २.८.१०(सुरसा की लङ्का से अयोध्या में स्थापना), ५.३.५.८(नर्मदा का नाम, कारण), ५.३.६.३२, वा.रामायण ५.१.१४५(दक्ष - कुमारी, नाग - माता, हनुमान द्वारा समुद्र लङ्घन के समय सुरसा का प्राकट्य, हनुमान द्वारा सुरसा का निग्रह), ५.५८(नाग - माता सुरसा द्वारा हनुमान के भक्षण का प्रयास, हनुमान द्वारा निग्रह), लक्ष्मीनारायण १.२०६.४६(मृगशृङ्ग मुनि की ४ पत्नियों में से एक ), १.४७०, ४.१०१.१०३, द्र. भूगोल surasaa
Remarks on Surasaa by Dr. Fatah Singh
सुरसेन कथासरित् ९.६.८०,
सुरा गरुड २.२२.६१चौखम्बा(सुरा समुद्र की श्लेष्मा में स्थिति), नारद १.८९.१२(सुरा सन्धान विधि), १.९०.१२(गौडी, पैष्टी, माधवी आदि सुरा/आसव निर्माण विधि), २.२३.७०(रवि सङ्क्रान्ति तिथि को सुरा का वर्जन), ब्रह्माण्ड ३.४.९.६८(समुद्र मन्थन से उत्पन्न सुरा को ग्रहण करने से सुर शब्द की तथा न ग्रहण करने से असुर शब्द की निरुक्ति), ३.४.२८.८५(दण्डनाथा देवी द्वारा सुरा समुद्र को वरदान), शिव २.५.२६.३४(सरस्वती? का सुरा नाम से तमोगुणी रूप में उल्लेख ), स्कन्द ६.२०८.७(ब्राह्मण द्वारा सुरापान पर मौञ्जी होम व तिङ्गिनी साधन द्वारा शुद्ध होने का उल्लेख), suraa
सुराप द्र. मन्वन्तर
सुराष्ट} वामन ९०.३०(सुराष्ट} में विष्णु का महावास नाम),
सुरि शिव ७.१.१७.२७
सुरुचि पद्म १.८(सुरुचि गन्धर्व द्वारा पृथ्वी से सुगन्ध रूपी दुग्ध का दोहन), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१३(सुरुचि गन्धर्व की सूर्य रथ में स्थिति), भागवत ४.८, स्कन्द १.१.१८(विरोचन - भार्या, बलि - माता), हरिवंश १.६.३९(पृथ्वी रूपी गौ का दोग्धा ) suruchi
सुरूपा गर्ग १०.१७(स्त्री राज्य की अधिपति, अनिरुद्ध से विवाह, पूर्व जन्म में मोहिनी अप्सरा का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.१६५.१५(अङ्गिरस - पत्नी, १० आङ्गिरस पुत्रों की माता ) suroopaa/suruupaa/ surupa
सुरेणु भविष्य १.७९.१७, वायु ८३.२१, स्कन्द ७.१.११, हरिवंश १.९(सूर्य - पत्नी संज्ञा का उपनाम ) surenu
सुरेश नारद १.६६.१२८(गणनायक की शक्ति सुरेशा का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ४.९
सुरोषण कथासरित् ८.५.२३, ८.७.३६,
सुरोह कथासरित् ८.१.४६, ८.५.११२,
सुलक्षणा स्कन्द ४.१.४७(प्रियव्रत द्विज - पुत्री सुलक्षणा द्वारा तप, पार्वती - सखी बनना), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१४(कृष्ण की शक्ति सुलक्षणा का उल्लेख ) sulakshanaa
सुलभ गणेश १.६२.४(सुमुद्रा -पति, विप्र का अपमान, विप्र शाप से वृषभ होना), १.७६.५२(सुलभा : कालभौ मुनि - भार्या, वेश्यारत बुध द्वारा रति पर बुध को कुष्ठ होने का शाप), भविष्य ४.१९७(मरुत्त - पत्नी सुलभा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, गुडाचल दान की महिमा का प्रसंग ) sulabha
सुलोचना पद्म ७.५+ (माधव द्वारा गुणाकरराज - पुत्री सुलोचना की प्राप्ति का यत्न, सुलोचना द्वारा वीरवर नामक पुरुष वेश धारण आदि ), कथासरित् ६.२.५०(राजा सुषेण व रम्भा अप्सरा – पुत्री), ८.१.४५(लावाणकराज पौरव- कन्या), ८.६.१७१(उत्तम यक्षिणियों में प्रथम, प्रश्न का उत्तर बताना), १४.३.१३९, sulochanaa
सुलोभ पद्म २.३०(सुलोभ लुब्धक द्वारा तीर्थ में स्नान से मुक्ति),
सुवर्चला ब्रह्माण्ड १.२.१०.७६(रुद्र - पत्नी, शनि - माता), भागवत ५.१५(प्रतीह - भार्या, प्रतिहर्त्ता आदि पुत्रों की माता), लिङ्ग २.१३.१४(शिव/सूर्य - पत्नी, शनि - माता ), वायु २७.५० suvarchalaa
सुवर्चा देवीभागवत ४.२२.३८(सोम - पुत्र सुवर्चा का सोमप्ररु रूप में अवतरण), मार्कण्डेय ९९(भूति - भ्राता), वामन ५७.६८(वरुण द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण), शिव ३.२१, स्कन्द १.१.१७(दधीचि - पत्नी सुवर्चा द्वारा देवों को शाप, पति के साथ सती होना), १.२.६६, ६.९३(अम्बरीष - पुत्र सुवर्चा द्वारा कुष्ठ प्राप्ति, पूर्व जन्म में मेघवाहन राजा, ब्राह्मण की हत्या, गोमुख में स्नान से मुक्ति), हरिवंश २.९६.५३(मातलि - पुत्र गद का सारथि ) suvarchaa
सुवर्ण देवीभागवत ७.३८(सुवर्णाक्ष क्षेत्र में उत्पलाक्षी देवी के वास का उल्लेख), नारद १.१५.३५(सुवर्ण चोरी का व्यापक अर्थ), १.३०.३४(सुवर्ण चोरी पर प्रायश्चित्त विधान), पद्म ३.२८.१९(सुवर्ण तीर्थ का माहात्म्य, कृष्ण द्वारा रुद्र की आराधना), ५.७२.६२(कुशध्वज ऋषि - पुत्र सुवर्ण द्वारा तप, जन्मान्तर में गोकुल में जन्म), ७.१०(वेश्यारत भूपाल सुवर्ण द्वारा विष्णु को चम्पक पुष्प भेंट से मुक्ति), ब्रह्म २.५८(शिव वीर्य से उत्पन्न अग्नि व स्वाहा - पुत्र, संकल्पा - पति, देवों के रूप में देव पत्नियों के साथ रमण करने से देवों का सुवर्ण को शाप, शिव द्वारा उत्शाप), ब्रह्मवैवर्त्त २.५८, भविष्य ३.२.२०(अनङ्गमञ्जरी - पति, पत्नी वियोग से मरण), ४.१५६(सुवर्ण धेनु दान विधि), मत्स्य ८६(सुवर्णाचल दान विधि), वामन ८२.४०(सुवर्णाक्ष : चक्र द्वारा कर्तित शिव के ३ रूपों में से एक), ९०.९(भृगुतुङ्ग पर विष्णु का सुवर्ण नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.२४८.२८सुवर्णचूड, ३.१८.१, ३.३१०(सुवर्ण दान), स्कन्द २.४.१५.२६(सुवर्णाद्रि), ५.३.२०७, ७.१.१२९.१९(सुवर्णकार के अन्न भक्षण से आयु क्षय का उल्लेख), ७.१.३५५(बहु सुवर्णेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), महाभारत अनुशासन ८४.४६(सुवर्ण के अग्नीषोमात्मक होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२६३, १.५७३, कथासरित् १.७.४१, suvarna
सुवर्णमाली लक्ष्मीनारायण ३.२७.२
सुवर्णमुखरी शिव १.१२.१६(९ मुखा सुवर्णमुखरी नदी का संक्षिप्त माहात्म्य), स्कन्द २.१.३०+ (अर्जुन का सुवर्णमुखरी नदी पर आगमन, अगस्त्य के तप से सुवर्णमुखरी की उत्पत्ति, आकाशगङ्गा का अंश ), लक्ष्मीनारायण १.४०५+, suvarnamukharee/ suvarnamukhari
सुवर्णवर्माक्ष देवीभागवत २.११.१२(काशिराज, वपुष्टमा - पिता),
सुवर्णशिला स्कन्द ५.३.१०४
सुवर्णष्ठीवी भविष्य ४.१३(सञ्जय - पुत्र, पूर्व जन्म में शुभोदय वैश्य, भद्र व्रत पालन से कल्याण), महाभारत शान्ति २८.१४९( ), ३०.१६( )
सुवर्णा ब्रह्म २.५८(शिव वीर्य से उत्पन्न अग्नि व स्वाहा - पुत्री, धर्म - भार्या, व्यभिचारिणी, देवों का शाप, शार्दूल दैत्य द्वारा हरण, विष्णु द्वारा रक्षा, कमला बनना ) suvarnaa
सुवह पद्म १.४०(साध्यगण का नाम ) suvaha
सुवासकुमार कथासरित् ८.२.४०९, ८.३.१३१,
सुविग्रह कथासरित् १२.२५.१४४
सुविचार भविष्य ३.२.१४
सुविद्युत वराह १६
सुवीरक महाभारत कर्ण ४०.३८(सुवीरक/कांजी मांगने पर मद्र देश की स्त्रियों की प्रतिक्रिया )
सुवृता लक्ष्मीनारायण १.२०६.४६(मृगशृङ्ग की ४ पत्नियों में से एक, मृकण्डु - माता )
सुवेल भविष्य ३.३.३१.१०२(सुवेला : नागवर्मा व नागवती - पुत्री, पृथ्वीराज - पुत्र मर्दन से विवाह का वृत्तान्त), स्कन्द ६.२७१.४३८(तिल - निर्मित सुवेल पर्वत दान से कच्छप की मुक्ति का कथन), वा.रामायण ६.३८(राम सेना का सुवेल पर्वत पर आरोहण व लङ्का का निरीक्षण ), ७.५, suvela
सुव्रत पद्म २.५(अदिति व कश्यप - पुत्र सुव्रत का इन्द्र पद पर अभिषेक), २.१२, २.२०, २.२१+ (सोमशर्मा व सुमना - पुत्र, धार्मिक वृत्ति, पूर्व जन्म में रुक्माङ्गद - पुत्र धर्माङ्गद, कृष्ण के दर्शन व स्तुति, इन्द्र पद प्राप्ति), ब्रह्माण्ड ३.४.१.३९(सुव्रता : दक्ष व वीरिणी - पुत्री, ४ मनु पुत्रों की जननी), मार्कण्डेय ११६, वामन ५७.७२(मित्र द्वारा कुमार को प्रदत्त गण का नाम ), स्कन्द ५.२.६३.५, suvrata
सुशङ्ख पद्म २.३०(तपोरत सुशङ्ख का सुनीथा द्वारा ताडन, शाप दान),
सुशर्मा पद्म ६.१७५(सुशर्मा नामक दुष्ट मनुष्य का मृत्यु - पश्चात् वृष बनना, अन्यों के पुण्य दान से मुक्ति, गीता के प्रथम अध्याय का माहात्म्य), वायु १००.६३(सुशर्मा देवगण के अन्तर्गत १२ देवों के नाम), स्कन्द २.४.२.४३टीका(गोदान माहात्म्य की कथा ), कथासरित् १.७.६०, susharmaa
सुशान्ति वराह ३६, द्र. मन्वन्तर,
सुशील कूर्म १.१४.२३(शिखण्डी - पुत्र, श्वेताश्वर मुनि से ज्ञान प्राप्ति), देवीभागवत ३.२७(सुशील वैश्य के चरित्र की प्रशंसा, नवरात्र व्रत से दरिद्रता से मुक्ति), ९.१.११३(शान्ति व लज्जा - पति), पद्म ६.१०९(विष्णु - पार्षद, पूर्व जन्म में चोल नृप), वराह ३६, १६५(सुशील वैश्य का प्रेत बनना, वैश्य से संवाद, पिण्डदान से मुक्ति), स्कन्द २.४.२५.९(विष्णु - पार्षद, पूर्व जन्म में चोल नृप), ६.३७(दुर्वासा को शिव मन्दिर हेतु भूमि देने पर विप्रों द्वारा सुशील का बहिष्करण, दु:शील नामकरण ), लक्ष्मीनारायण १.३४८, १.४२५, २.७८.५२, susheela/ sushila
सुशीला गणेश २.४४.२०(दिवोदास - पत्नी), देवीभागवत ९.४५.२(राधा - सखी सुशीला की राधा के शाप से गोलोक से च्युति, लक्ष्मी - विग्रह में लीन होना, कालान्तर में यज्ञ - पत्नी दक्षिणा बनना), पद्म ६.१२८+ (सुशील गन्धर्व - कन्या सुशीला का अग्निप मुनि के शाप से पिशाची बनना, माघ स्नान से मुक्ति, परस्पर विवाह), ब्रह्म १.१२१(नारद द्वारा माया के दर्शन हेतु सुशीला कन्या का रूप धारण), ब्रह्मवैवर्त्त २.४२, ४.६.१४५(स्वाहा का अंशावतार), ४.९४(सुशीला द्वारा राधा को सांत्वना), भविष्य ३.४.८, शिव ५.२९.४०, स्कन्द ३.१.११(त्रिवक्र राक्षस - भार्या, शुचि ब्राह्मण से कपालाभरण राक्षस पुत्र की प्राप्ति), ४.१.७, ४.१.३४.६६(हरिस्वामी व प्रियंवदा - पुत्री, विद्याधर द्वारा हरण, जन्मान्तर में माल्यकेतु - पत्नी कलावती बनना), ७.१.२४, लक्ष्मीनारायण १.२६५.१२(अनिरुद्ध की शक्ति सुशीला का उल्लेख), १.३९१, १.४६०, २.९४.७६(अनिरुद्ध - पत्नी ), ३.५४, susheelaa
सुश्यामा ब्रह्म २.३७
सुश्रवा स्कन्द १.२.२.२९(सुश्रवा द्वारा दान के संदर्भ में कात्यायन – सारस्वत संवाद का वर्णन),
सुश्रुत भविष्य ३.४.९, भागवत ९.१२.७(प्रसुश्रुत : मरु - पुत्र, सन्धि - पिता), वायु ८८.२१०/२.२६.२१०(प्रसुश्रुत : मनु - पुत्र, सुसन्धि - पिता, इक्ष्वाकु वंश), लक्ष्मीनारायण १.३८७ sushruta
सुषुप्ति योगवासिष्ठ ६.२.१३९.१६(सुषुप्ति के कारणों का कथन ; नाडियों का अन्नपूर्ण होना आदि आदि ), ६.२.१४६ sushupti
सुषुम्ना अग्नि ८५.१४(प्रतिष्ठा कला/स्वप्न की २ नाडियों में से एक), कूर्म १.४३.३५(सोम पोषक सूर्य रश्मि का नाम), २.३७.४७(हिमालय पर सुषुम्ना पुष्करिणी का माहात्म्य), ब्रह्माण्ड १.२.२८.२८, २.३.१३.१२३(सुषुम्ना पुष्करिणी का माहात्म्य), ३.४.३५.३५, मत्स्य १४१(सूर्य की सुषुम्ना किरण द्वारा चन्द्रमा की परिपूर्णता), लिङ्ग १.५६, २.४८, वायु १०८.६६/२.४६.६९(गया नाभि के सुषुम्ना होने का उल्लेख), विष्णु २.११.२२(सूर्य की सुषुम्ना रश्मि के चन्द्रमा द्वारा पान व तृप्ति का वर्णन), योगवासिष्ठ ३.७०.१२(सुषुम्ना की सूची से उपमा), लक्ष्मीनारायण १.१६१.७(स्वर्णरेखा नदी के सुषुम्ना का रूप होने का उल्लेख ), १.३११.४३, sushumnaa
सुषेण कूर्म २४?, गरुड ३.२९.१०(सुषेणा - सुषेण-भार्या, भागीरथी का अंश), :पद्म ७.५, ब्रह्माण्ड १.२.२३.१४(सुषेण ग्रामणी की सूर्य के रथ के साथ स्थिति का कथन), २.३.५.९३(मरुतों में से एक का नाम), वायु ९६.१७२(वसुदेव व देवकी - पुत्र, षड्गर्भों में से एक, कंस द्वारा वध), वा.रामायण १.१७.१५(वानर, वरुण का अंश), ४.४२(तारा - पिता सुषेण द्वारा पश्चिम दिशा में सीता अन्वेषण का उद्योग), ४.६५(सुषेण वानर की गमन शक्ति का वर्णन), ६.३०.२२(वानर, धर्म - पुत्र), ६.४२.२६(तारा - पिता सुषेण द्वारा लङ्का के पश्चिम द्वार पर युद्ध), ६.४३.१४(धर्म - पुत्र सुषेण का रावण - सेनानी विद्युन्माली से युद्ध), ६.९१.२१(सुषेण द्वारा लक्ष्मण आदि की चिकित्सा), ७.३४, महाभारत उद्योग १६०.१२३, लक्ष्मीनारायण २.२८.१८(सुषेण जाति के नागों का शाकादि कृषिकर्त्ता बनना ), कथासरित् ६.२५१, ८.७.१६३, १२.२६.१४५, १६.१.२५, द्र. रथ सूर्य sushena
सुस्वधा मत्स्य १५(पितर गण, अन्य नाम आज्यप, वैश्यों द्वारा पूजा, विरजा कन्या), हरिवंश १.१८.६५(सुस्वधा पितर गण के वंश का वर्णन ) suswadhaa
सुहय स्कन्द ६.६५(शत्रुओं के हाथों मृत्यु के पश्चात् कापालिक द्वारा कपाल का उपयोvग करने से सुहय राजा का प्रेत बनना, गङ्गा - यमुना मध्य में कपाल क्षेपण से मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.५००.४१ suhaya
सुहोत्र देवीभागवत ३.१०.२१(देवदत्त के पुत्रेष्टि यज्ञ में ब्रह्मा ऋत्विज बनना), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६(गन्धवाह - पुत्र, कमल हरण से बक बनना), लिङ्ग १.२४.२४(चतुर्थ द्वापर में मुनि ), शिव ३.४(लक्ष्मीनारायण ३.१८८.२० suhotra
सुह्रदय स्कन्द १.२.६१(घटोत्कच - पुत्र बर्बरीक का उपनाम), १.२.६३(सुह्रदय द्वारा विजय की साधना में बाधक महाजिह्वा राक्षसी, रेपलेन्द्र, द्रुहद्रुह, पलाशि दैत्यों का हनन, नागलोक गमन, सिद्धसेन नाम प्राप्ति ), महाभारत उद्योग ४५.१२(सौह्रद के ६ गुणों के नाम ) suhridaya
सूकर ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.११(युग्मी गामी के सूकर योनि प्राप्ति का उल्लेख), वामन ९०.१९(सूकराचल पर विष्णु का क्ष्माधर नाम से वास), लक्ष्मीनारायण २.११७.७७(श्रीशैल पर्वत पर सूकर का वास), कथासरित् ९.३.११८, १०.३.१५८, १२.१४.१२, १६.२.३८, १८.४.९६(सूकर के कण्ठ का स्पर्श करने से कृपाण में रूपान्तरित होना ) sookara/suukara/ sukara
सूक्त अग्नि ६२(श्री सूक्त की ऋचाओं का दिशाओं के सापेक्ष विन्यास), ९६.३८(प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु यज्ञ में ऋत्विजों द्वारा पठनीय सूक्त), २१५.३९(वैदिक सूक्तों के ऋषि, देवता, छन्दों का कथन), २१५.४१(अघमर्षण सूक्त ऋतं च इति के ऋषि, देवता, छन्द का कथन), पद्म १.४.११४(नारद द्वारा पुरुष सूक्त द्वारा ब्रह्मा की स्तुति), ६.२२७.६८(तद् विष्णोः परमं धाम इति), ६.२४५(पुरुष सूक्त), ब्रह्म २.७०.२२(यो जात एव प्रथमो मनस्वान्), २.९१(पुरुष सूक्त का ब्रह्मा के यज्ञ में विनियोग), २.१०४(, ब्रह्माण्ड १.२.८.४२(पुरुष सूक्त, ब्रह्मा के अङ्गों से पशुओं की सृष्टि), ३.४.८.५३(अन्न सूक्त), भविष्य ३.३.१२.८२(रात्रि सूक्त), ३.३.२८.३९(रात्रि सूक्त), मत्स्य ५८.३३(तडाग, आराम, कूप, मन्दिर आदि की प्रतिष्ठा में विनियोजनीय सूक्त), ९३.१३१(ग्रह शान्ति होम में प्रयुक्त सूक्त), १५४.७६(रात्रि सूक्त), २६५(प्रतिमा स्थापना में प्रयुक्त सूक्त), मार्कण्डेय ८१(रात्रि सूक्त की व्याख्या), लिङ्ग १.२७(रुद्र अर्चना हेतु सूक्त), विष्णुधर्मोत्तर २.७४(विभिन्न प्रायश्चित्तों के लिए वैदिक सूक्तों का विनियोग), २.१२८(श्रीसूक्त का माहात्म्य), २.१२९(पुरुष सूक्त का माहात्म्य), स्कन्द २.२.२९(पुरुष सूक्त), २.२.८९(देवी सूक्त), २.४.२६.१२(विष्णु सूक्त), २.४.३३.१७(पुरुष सूक्त), ५.३.१७.२९(, ६.९०.६५(अग्नि सूक्त? का महत्त्व), ६.१५४.१२(क्षुरिका सूक्त), ६.२०१(विदेश प्रवास के उपरान्त शुद्धि हेतु सूक्त), ६.२१४(जीव सूक्त, पार्वती द्वारा मल में प्राण संचार, गणपति का जन्म), ६.२३९(विष्णु की षोडशोपचार पूजा में पुरुष सूक्त का विनियोग), ६.२७८.१२८(मुख्य पठनीय सूक्त, याज्ञवल्क्य प्रोक्त), लक्ष्मीनारायण २.१५७.६५(विभिन्न सूक्तों के न्यास), ३.२१.४४(हरि सूक्त विषयक कथन ) sookta/suukta/suktaä
सूक्ष्म देवीभागवत ७.३८(आम्रकेश्वर क्षेत्र में सूक्ष्मा देवी के वास का उल्लेख), नारद १.६६.१०७(सूक्ष्मेश की शक्ति शाल्मलि का उल्लेख), लिङ्ग १.८८.२७(अणु से सूक्ष्मतर स्थितियों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर २.८.२८(पञ्च सूक्ष्म पुरुष के लक्षण ) suukshma/sookshma/ sukshma
सूची पद्म १.१९.२५१(संसार सूत्र, तृष्णा सूची), १.१९.१३(शर्याति - कन्या सुकन्या द्वारा दर्भ सूची से वल्मीकस्थ च्यवन के चक्षुओं को भेदने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ३.७०.१२(सुषुम्ना की सूची से उपमा), वायु ९९.२४/२.३७.२४(दर्भ सूची – जनपदों में से एक), महाभारत द्रोण ८७.२४(चक्रशकट नामक व्यूह के गर्भ में सूचीमुख व्यूह का कथन), शान्ति २१७.३६,(संसार सूत्र, तृष्णा सूची), लक्ष्मीनारायण २.११.१२(कृष्ण का कर्णवेधन करने वाली सूची का दिव्य कन्या बनना), २.११.१९ (सूची के तुन्नवाय - पुत्र दोरक की पत्नी होने का उल्लेख), २.२२७.७३(तृष्णा सूची, संसार सूत्र द्वारा वस्त्र निर्माण ) suuchee/ soochee/ suchi
सूचीमुख गरुड २.१२.३९/२.२२.३९(प्रेत के सूचीमुख नाम का कारण), देवीभागवत ८.२३.२६(नरक का नाम), पद्म १.३२(सूचीमुख प्रेत की पृथु ब्राह्मण से संवाद से मुक्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.१२७(नरक में सूचीमुख कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), ब्रह्माण्ड ३.४.२४.९, ३.४.२४.४४(भण्डासुर - सेनानी, काक वाहन, तिरस्करिणी देवी द्वारा वध), ३.४.२४.९६, वामन ५७.७४(यक्षों द्वारा कुमार को सूचीवक्त्र गण प्रदान का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.१५ (सूचक के वागुरि बनने का उल्लेख), स्कन्द ७.१.३३(बडवानल का सूचीमुख होकर समुद्र भक्षण की कथा ), योगवासिष्ठ ३.६९(कर्कटी का तप से अनायसी व आयसी जीवसूचिका बनना), ३.७०(सूची के विभिन्न रूप, ब्रह्माण्ड में भ्रमण), कथासरित् १०.४.२०७(वानरों द्वारा खद्योत को अग्नि मानकर उससे तृण जलाने का प्रयत्न, सूचीमुख पक्षी द्वारा प्रबोधन पर वानरों द्वारा सूचीमुख का नाश), भरतनाट्य ९.१८४(सूचीमुख हस्त मुद्रा का लक्षण), soocheemukha/ suchimukha
सूत पद्म १.१(लोमहर्षण - पुत्र उग्रश्रवा का उपनाम, सूत जाति की पृथु राज्य में उत्पत्ति), २.२८.६७(सूत सूत्यां समुत्पन्नः सौम्येहनि महात्मनि), ब्रह्माण्ड २.३६.१७२, वायु १.१.३०, ६२, विष्णुधर्मोत्तर १.१०९.१४(पृथु के अप्तोर्याम यज्ञ में सूत की उत्पत्ति का कथन), शिव ६.१०(सूत द्वारा काशी में ऋषियों को उपदेश, तीर्थयात्रा), स्कन्द ७१२०२, हरिवंश १.५(सूत की उत्पत्ति की कथा, सूत द्वारा पृथु की स्तुति), महाभारत अनुशासन ४८.१०(सूत जाति के स्तोमपरक होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.५, ४.७४, द्र. प्रसूति soota/suta/suuta
सूतक गरुड २.२९(सूतक विधि), लक्ष्मीनारायण २.५.८६, २.२६.८६(सूतिक की व्याख्या : व्यभिचारी ब्राह्मण - ब्राह्मणी ) suutaka/ sootaka
सूत्र
अग्नि
३३.५(पवित्र
निर्माण
हेतु
सूत्रों
के
प्रकार
-
सौवर्णं
राजतं
ताम्रं
नेत्रकार्प्पासकादिकम्
।।
ब्राह्मण्या
कर्त्तितं
सूत्रं
तदलाभे
तु
संस्कृतम्।),
गरुड
३.१६.२२(वायु
के
सूत्र
नाम
का
कारण
-
लोकचेष्टाप्रदत्वात्स
सूत्रनाम्नापि
कीर्तितः
।),
नारद
१.५०.१८०(स्वर
सूत्र
सम,
व्यञ्जन
मणि
सम
-
मणिवद्व्यंजनं
विद्यात्सूत्रवच्च
स्वरं
विदुः
।।),
पद्म
१.१९.२५१(संसार
सूत्र
के
तृष्णा
सूची
में
निबद्ध
होने
का
उल्लेख),
भविष्य
१.२१६.५४(पुस्तक
का
बन्धन
करने
वाले
सूत्र
के
वासुकि
होने
का
उल्लेख
;
पुस्तक
में
सूत्र
के
शंकर
होने
का
उल्लेख
आदि
-
त्रिविधं
पुस्तकं
विद्यात्सूत्रं
वासुकिरुच्यते
।।
पत्राणि
भगवान्ब्रह्मा
अक्षराणि
जनार्दनः
।।….),
२.१.७.५४(पुस्तक
के
सूत्र
के
वासुकि
का
प्रतीक
होने
का
उल्लेख
-
त्रिदेवं
पुस्तकं
विद्यात्सूत्रं
वासुकिरुच्यते
।।),
४.४६.१४(हस्त
में
स्वर्णसूत्रमय
दोरक
बांधने
के
माहात्म्य
के
संदर्भ
में
चन्द्रमुखी
व
मानमानिका
की
कथा),
भागवत
११.२२.१३(सत्त्व,
रज,
तम
अथवा
ज्ञान,
कर्म
व
अज्ञान
के
संदर्भ
में
स्वभाव
के
सूत्र
होने
का
कथन
-
गुणव्यतिकरः
कालः
स्वभावः
सूत्रमेव
च।),
११.२४.६(क्षुभित
तम,
रज
व
सत्त्व
से
महान्
सूत्र
से
संयुक्त
सूत्र
के
उत्पन्न
होने
का
कथन
-
मया
प्रक्षोभ्यमाणायाः
पुरुषानुमतेन
च
॥
तेभ्यः
समभवत्
सूत्रं
महान्
सूत्रेण
संयुतः
।),
स्कन्द
५.३.९७.१६६(व्यास
तीर्थ
के
संदर्भ
में
मन्दिर
आदि
के
सूत्र
से
वेष्टन
के
फल
का
कथन
-
सूत्रेण
वेष्टयेद्द्वीपमथवा
जगतीं
शुभम्
।
मन्दिरं
परया
भक्त्या
परमेशमथापि
वा
॥),
५.३.१७२.५९(शिव
मन्दिर
आदि
के
सूत्र
से
वेष्टन
के
फल
का
कथन
-
सूत्रेण
वेष्टयेत्क्षेत्रमथवा
शिवमन्दिरम्
।
अथवा
शिवलिङ्गं
च
तस्य
पुण्यफलं
शृणु
॥),
योगवासिष्ठ
३.७०.६४(सूची
के
पदार्थों
में
सूत्रित
होने
का
कथन
-
तीक्ष्णाप्यहृदयत्वेन
सरसेष्वरसेष्ववित्
।
सूत्रितापि
पदार्थेषु
विशत्यरसगामिनी
।। ),
लक्ष्मीनारायण
२.७७.५९
(विभिन्न
प्रकार
के
सूत्रों
के
दान
के
महत्त्व
का
कथन
-
कृष्णसूत्रप्रदानेन
राज्ये
रज्जूद्भवं
ह्यघम्
।।
ऊर्णाजन्यं
तथोर्णार्थं
कौशेयार्थं
च
यत्
कृतम्
।),
२.२२७.७३(तृष्णा
सूची
व
संसार
सूत्र
द्वारा
वस्त्र
का
निर्माण
-
सूच्या
सूत्रं
यथावस्त्रे
संसारयति
वायकः
।
तद्वत्
संसारसूत्रं
हि
तृष्णासूच्या
प्रसार्यते
।।),
३.२०३.१(तूलवायि
नामक
सूत्रवायक
की
भक्ति
से
भगवान्
द्वारा
उसके
कर्मचारियों
की
रक्षा
का
वृत्तान्त
),
द्र.
अक्षसूत्र
sootra/sutra/sutra
सूना स्कन्द ३.२.६.४३(कुण्डनी, पेषणी आदि की पंच सूना संज्ञा तथा उनके निराकरण हेतु ५ क्रतु)
सूनृता ब्रह्माण्ड १.२.३६.८७(धर्म व लक्ष्मी - कन्या, उत्तानपाद - पत्नी, ध्रुव - माता), भागवत ८.१.२५(धर्म - पत्नी, सत्यसेन अवतार की माता), ८.१३.२९(सत्यसहा - पत्नी, स्वधामा अवतार की माता), ११.१९.३८, मत्स्य ४.३६(उत्तानपाद - पत्नी, अपस्यति, ध्रुव आदि की माता), हरिवंश १.२.९(ध्रुव - माता, अन्य ३ पुत्रों के नाम ) soonritaa/ suunritaa / sunritaa
सूर नारद १.६६.९५(सूर विष्णु की शक्ति रमा का उल्लेख ) soora/suura/ sura
सूरदास भविष्य ३.४.२२(कवि, पूर्व जन्म में श्रीपति ) suuradaasa/ surdas
सूरि ब्रह्माण्ड २.३.३५.१३(शिवदत्त - पुत्र सूरि द्विज द्वारा मृगी का स्मरण करते हुए मृत्यु से मृग बनना ), द्र. वेदसूरि soori/suri
सूर्पाक्षी वामन ९०(घटोदर - पत्नी सूर्पाक्षी द्वारा कोशकार के पुत्र का हरण),
सूर्पारक वामन ९०.२५(सूर्पारक में विष्णु का चतुर्बाहु नाम), द्र. शूर्पारक
सूर्म्या भागवत ६.१८(अनुह्राद - पत्नी, बाष्कल व महिषासुर की माता),
सूर्य अग्नि २१.१२(सूर्य पूजा विधि), ७३(सूर्य पूजा विधि), ९१.१५(सूर्य के बीज मन्त्रों क्षौं कौं का उल्लेख), ९९(सूर्य प्रतिमा प्रतिष्ठा विधि), १२०.२१(सूर्य के रथ का वर्णन), १२५.३७(सूर्य चक्र से युद्ध फल विचार), १४८(संग्राम जय हेतु सूर्य पूजा का वर्णन), १४८(दिशाओं में सूर्य के नाम), २७३(सूर्य वंश का वर्णन), २७३(दिशाओं में सूर्य के नाम), ३०१.१२(सूर्यार्चन विधि), कूर्म १४२, १.४३(मास अनुसार सूर्य के नाम, वर्ण व पोषक रश्मियों की संख्या), १.४३.२(सूर्य की ७ रश्मियों के नाम व कार्य), २.१८.३४(प्रातःसन्ध्या पश्चात् सूर्यार्चन विधि), गरुड १.१७(सूर्य मण्डल पूजा), १.२३(सूर्य रूपी शिव अर्चना विधि), १.३९(सूर्य परिवार सहित सूर्य पूजा विधि), १.५८(सूर्य के रथ का वर्णन), १.१३८(सूर्य वंश का वर्णन), गर्ग ७.२.२२(सूर्य द्वारा प्रद्युम्न को गदा भेंट), देवीभागवत ८१४, ८.१५(सूर्य रथ के मार्ग व गति का वर्णन), ८.१५(सूर्य की गति का वर्णन), नारद १.५६.२५८(सूर्य संक्रान्ति में सूर्य की सुषुप्ति आदि अवस्था के अनुसार फल), १.६५.२६(सूर्य की १२ कलाओं के नाम), १.६७.१००(सूर्य - पार्षद चूडांशु), १.११६.४५(पौष शुक्ल षष्ठी को सूर्य के प्रादुर्भाव का उल्लेख), पद्म १.८.३६(संज्ञा - छाया आख्यान), १.२०.८१(सौर व्रत का माहात्म्य व विधि), १.४६(अन्धक से पराजय पर सूर्य द्वारा शिव की स्तुति), १.७७(सूर्य का माहात्म्य), १.८०(सूर्य पूजा की विधि), ५.१, ६.१९७, ब्रह्म १.२७, १.२८(द्वादश सूर्य मूर्तियों से जगत की उत्पत्ति), १.२९(ऋतुओं में सूर्य के वर्ण, द्वादश नाम), २.१९, २.६१, २.६८, २.८५, २.९६, ब्रह्मवैवर्त्त २.१३(सूर्य द्वारा वृषध्वज को हतश्री होने का शाप, शिव द्वारा सूर्य का ताडन), ३.१८, ३.१९.२७(सूर्य से नाभि की रक्षा की प्रार्थना), ४.१६, ४.४८(सूर्य द्वारा माली व सुमाली को शूल मारना, शिव द्वारा सूर्य का दर्प भङ्ग), ४.७९(जमदग्नि द्वारा सूर्य को राहु ग्रहण व शम्भु से पराजय का शाप, सूर्य द्वारा जमदग्नि को क्षत्रिय से मृत्यु का शाप), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१२२(संवत्सर रूप), १.२.२१(विभिन्न पुरियों में सूर्य के उदय व अस्त का वर्णन), १.२.२२.६१+ (सूर्य के रथ चक्र के प्रकार व रथ का वर्णन), १.२.२४.३३(मास अनुसार सूर्य के नाम), १.२.२४.३७(सूर्य की रश्मियों की संख्या), १.२.२४.४१(विभिन्न ऋतुओं में सूर्य का वर्ण), १.२.३५.२३(सूर्य द्वारा याज्ञवल्क्य को वेद प्रदान), २.३.१७.२१(सूर्य रश्मियों से युवती नामक अप्सरागण की उत्पत्ति), भविष्य १.४८+ (कृष्ण - साम्ब संवाद में सूर्य आराधना विधि), १.५०(मास अनुसार सूर्य के नाम), १.५३, १.५४.१३(ऋतुओं में सूर्य के वर्ण), १.५७.८(सूर्य हेतु जल रूप बलि का उल्लेख), १.६१(सूर्य द्वारा दिण्डी को क्रिया योग द्वारा उपासना का उपदेश), १.६८(सूर्य को प्रिय पुष्प, सिद्धार्थ सप्तमी व्रत), १.७१(सूर्य नाम स्तोत्र), १.७२(जम्बू द्वीप में सूर्य के तीन स्थान, साम्ब की आराधना), १.७४(सूर्य की १२ मूर्तियां), १.७६+ (सूर्य परिवार, सूर्य का विराट् रूप, प्रभाव), १.७८(सूर्य की रश्मियों का वर्णन), १.७९(सूर्य परिवार, संज्ञा - छाया आख्यान), १.९३(सूर्य आराधना, माहात्म्य), १.९४(सूर्य की वेद, पुराण श्रवण - प्रियता), १.९८(मास अनुसार सूर्य पूजा), १.१०३(सूर्य पूजा, माहात्म्य), १.११५(सूर्य को प्रिय पुष्प), १.१२१(सूर्य के तेज का कर्तन), १.१२३(सूर्य तेज का कर्तन, सूर्य के तेज से देवों के आयुधों का निर्माण), १.१२८(सूर्य के २१ नाम), १.१३३(सूर्य का सर्वदेव मय रूप, सूर्य के शरीर में देवों की स्थिति), १.१४३(सूर्य स्नान, धूप आदि विधि), १.१४४(सूर्य की कलाएं, भोजकों की कलाओं में प्रविष्टि), १.१५४(सूर्य की राजसिक, सात्विक आदि मूर्तियां), १.१५५(सूर्य का व्योम रूप, आराधना विधि), १.१५८(सूर्य का अदिति व कश्यप - पुत्र के रूप में अवतार), १.१६०(सूर्य का विराट् रूप), १.१६३(पुष्पों द्वारा सूर्य की पूजा), १.१६४.८८(विभिन्न मासों में सूर्य के नाम), १.१६९(सूर्य हेतु गृह व रथ दान का माहात्म्य), १.१९७(सूर्य पूजार्थ प्रिय पुष्प), २.१.१७.८(वृष उत्सर्ग में अग्नि का नाम), २.१.१७.१४(सूर्य अग्नि का विन्ध्य नाम), ३.३.१६.४७(सूर्यद्युति : गजसेन - पुत्र, आह्लाद द्वारा बन्धन), ३.३.१७(सूर्यकर्मा , ३.४.७+ (सूर्य का विभिन्न मासों में विभिन्न भक्तों के स्वरूप में तपना), ३.४.८.५०(प्रांशुशर्मा द्विज का तप से भाद्रपद मास का सूर्य बनना), ३.४.२५.३४(ब्रह्माण्ड देह से सूर्य तथा सूर्य से चाक्षुष मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.३८, ४.४०, ४.४७(मास - सप्तमी पूजा फल), ४.४८(कल्याण सप्तमी व्रत, दिशाओं में आदित्यों के नाम), ४.९३(अङ्गिरा द्वारा सूर्य के कार्य का प्रतिस्थापन), भागवत ५.२१(सूर्य के रथ की गति का वर्णन), ८.१०.३०(सूर्य का बाण आदि से युद्ध), ११.७.३३(दत्तात्रेय - गुरु), १२.११(विभिन्न मासों में सूर्य के रथ का वृत्तान्त), मत्स्य ११.२६(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज का भ्रमि पर कर्तन), ७४.८(दिशाओं में सूर्य के नाम), ७९(दिशाओं में सूर्य के नाम), ९७(दिशाओं में सूर्य के नाम), ९८(दिशाओं में सूर्य के नाम), १०१.३६(सौर व्रत), १०१.६३(सौर व्रत), १२४.२६(विभिन्न पुरियों में सूर्य के उदयास्त का वर्णन), १२५.३७(सूर्य के रथ का वर्णन), १२८(सूर्य रश्मियों के नाम व कार्यों का वर्णन), १५०.१५२(सूर्य का तारक - सेनानी कालनेमि से युद्ध), २६१.१(सूर्य की प्रतिमा का रूप), मार्कण्डेय ७८(विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के तेज का कर्तन, देवों द्वारा सूर्य की स्तुति आदि), १०३(ब्रह्मा द्वारा सूर्य की स्तुति), १०४(अदिति द्वारा सूर्य की स्तुति), १०६(संज्ञा - छाया आख्यान), १०६(विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के तेज का भ्रमि पर कर्तन), १०८(वडवा रूपी संज्ञा का आख्यान), लिङ्ग १.५४.६(विभिन्न पुरियों में सूर्य के उदयास्त का वर्णन), १.५५(सूर्य के रथ का वर्णन), १.६०(सूर्य रश्मियों के नाम व उनके द्वारा ग्रहों का पोषण), वराह ८४सूर्यकान्त, १५२.५१(सूर्य तीर्थ का माहात्म्य, भ्रष्ट राज्य वाले बलि द्वारा सूर्य आराधना से चिन्तामणि की प्राप्ति), १७७(साम्ब द्वारा प्रात:, मध्याह्न व सायंकालों में विशिष्ट नामों द्वारा सूर्य की उपासना), २०८(पतिव्रता के प्रभाव से सूर्य की प्रसन्नता का वृत्तान्त), वामन ५(शिव द्वारा सूर्य की भुजाओं को ह्रस्व करना), १५(सुकेशि के नगर का सूर्य द्वारा पातन, शिव द्वारा सूर्य का पातन, लोलार्क नाम), ६९.५४(सूर्य का शाल्व से युद्ध), वायु ५०.८६, ५०.९२(विभिन्न पुरियों में सूर्य का उदयास्त), ५०.९९अतिरिक्त(सूर्य की ग्रह पोषक रश्मियां), ५०.१२१(मुहूर्त, काष्ठा में सूर्य की गति), ५०.१२६(विषुवत व वीथियों में सूर्य की गति), ५१.२०(सूर्य से उष्ण व चन्द्रमा से शीतल जल का स्रवण), ५१.५४(सूर्य के रथ की गति का वर्णन), ५२.१(सूर्य रथ व्यूह का वर्णन), ५६.२०(परिवत्सर का रूप), ८४.३२(संज्ञा - छाया आख्यान), १०४.८२(सौर पीठ की चक्षु प्रदेश में स्थिति का उल्लेख), विष्णु २.८(सूर्य के रथ की गति का वर्णन), २.९(सूर्य द्वारा आकाशगङ्गा के जल का कर्षण करके वर्षण का कार्य), २.१०(सूर्य रथ व्यूह का वर्णन), २.११.१६(सूर्य रथ व्यूह में गणों के विशिष्ट कार्य), ३.२.९(भ्रमि पर सूर्य तेज के कर्तन से आयुध निर्माण), विष्णुधर्मोत्तर १.३०, १.३१(सूर्य द्वारा भोजनार्थ कार्तवीर्य से याचना, कार्तवीर्य के शरों में प्रवेश), १.३५(सूर्य द्वारा हनन के लिए तत्पर जमदग्नि को भेंट, पुत्रत्व), ३.६७(सूर्य व्यूह का मूर्ति रूप), ३.१६७(सूर्य व्रत), ३.१७१(सूर्य पूजा की प्रशंसा), स्कन्द १.२.१३.१४८(शतरुद्रिय प्रसंग में सूर्य द्वारा ताम्र लिङ्ग की पूजा), १.२.१८.८४(सूर्य द्वारा शम्बर अस्त्र के प्रयोग से देवों व दानवों के रूपों का विपर्यय), १.२.४३.१८(नारद - प्रोक्त सूर्य के १०८ नाम), १.२.४९(जयादित्य का माहात्म्य), २.४.३.५+ (कार्तिक माहात्म्य के संदर्भ में अरुण - सूर्य संवाद), २.७.१९.२०(सूर्य के अग्नि से श्रेष्ठ व गुरु से अवर होने का उल्लेख), ३.२.१३(संज्ञा - छाया - वडवा आख्यान), ४.१.९.३४(सूर्य पद प्राप्ति के उपाय, शिवशर्मा व गणद्वय के संवाद का प्रसंग), ४.१.९.७७(सूर्य के ७० नाम), ४.१.९(सूर्य लोक प्रापक कर्म, सूर्य के ७० नाम), ४.१.४६(काशी में दिवोदास के राज्य में छिद्र दर्शन में सूर्य की असफलता, १२ आदित्य नामों से काशी में निवास, लोलार्क उपनाम), ४.१.४९.१०(द्रौपदी द्वारा सूर्य की आराधना, सूर्य द्वारा स्थाली प्रदान), ४.१.४९(सूर्य द्वारा गभस्तीश्वर लिङ्ग की उपासना, शिव व पार्वती की स्तुति, मयूखादित्य नाम प्राप्ति), ५.१.१५, ५.१.३२+ (अर्जुन द्वारा नरादित्य मूर्ति की स्थापना, स्तुति, कृष्ण द्वारा सूर्य मूर्ति की स्थापना, १०८ नाम स्तोत्र पठन), ५.१.५६, ५.२.५६, ५.३.२०.९, ५.३.३४(ब्राह्मण के तप से सूर्य की नर्मदा तीर पर स्थिति, रवि तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.३९.२९, ५.३.१७२, ६.३३(विन्ध्य पर्वत की मेरु से स्पर्द्धा, सूर्य के मार्ग का अवरोधन, अगस्त्य द्वारा विन्ध्य का नमन), ६.१२९, ६.१३५, ६.१५७, ६.२७८, ७.१.११.७७(संज्ञा - छाया आख्यान), ७.१.११.१४०(विश्वकर्मा द्वारा भ्रमि पर सूर्य के तेज का कर्तन, देवों व ऋषियों द्वारा सूर्य की स्तुति), ७.१.१३.९(युगानुसार सूर्य के नाम), ७.१.२०.४४(सूर्य के प्रभाकर नाम का कारण), ७.१.१३९(तीर्थों में सूर्य के नाम), ७.१.२७४(प्राची सूर्य का संक्षिप्त माहात्म्य, स्नान), ७.१.२७९(सूर्य के १०८ नाम), ७.४.१७.१९(द्वारका के विभिन्न दिशाओं में द्वारों पर स्थित सूर्यों व उनके सहायकों के नाम), हरिवंश १.९(संज्ञा - छाया आख्यान), ३.७१.४९, महाभारत शान्ति ३१८.४१(अव्यक्त प्रकृति का नाम), अनुशासन १०२.३२, योगवासिष्ठ ३.८५, वा.रामायण ४४०, लक्ष्मीनारायण १.४२(सूर्य द्वारा हिरण्मय पुरुष की स्तुति), १.६१(संज्ञा - छाया आख्यान), १.८३, १.१०६.१(शिव द्वारा शूल से सूर्य को अष्टधा विभाजित करना, कश्यप द्वारा शिव को पुत्र के शिर कर्तन का शाप, माली - सुमाली द्वारा व्याधि नाश हेतु पठित सूर्य मन्त्र व स्तोत्र), १.१०६.१४(सूर्य कवच का वर्णन), १.२७२, १.३१०, १.३३४, १.३६२, १.४५५, १.४६४, १.५०२, १.५४४.४३(सौराष्ट} में सूर्य की १०८ नामों/रूपों से प्रतिष्ठा), १.५७३, २.१०९.२०(सूर्यकेतु, २.११०.६६(सूर्यकेतु , २.२६३, ३.३, ३.७५.८६, ३.१०१.६५, ३.१२२.१०८, ३.१४२.४७(सूर्य रथ व्यूह ), ३.२३३.४८सूर्यकान्त, कथासरित् ५.२.१४सूर्यतपा, ९.६.२८, द्र. आदित्य, भास्कर, व्यास soorya/suurya/surya
सूर्यकान्त पद्म ६.१३२.१३(सूर्यकान्त में रवि के योग से वह्नि उत्पन्न होने का उल्लेख),
सूर्यप्रभ कथासरित् ८.१.१३, ८.१.२०, ८.१.५८, ८.३.२२, ८.६.१, ८.७.४८, १२.२६.३,
सूर्यभानु ब्रह्मवैवर्त्त ४.५, वा.रामायण ७.१४,
सूर्यरथ लक्ष्मीनारायण ३.१४२
सूर्यवर्चा स्कन्द १.२.६६.५९(यक्षेन्द्र सूर्यवर्चा द्वारा भूभार हरण में अकेले सामर्थ्य की उक्ति, ब्रह्मा द्वारा शाप, घटोत्कच - पुत्र बर्बरीक बनना ), लक्ष्मीनारायण ३.२३.२, sooryavarchaa/suuryavarchaa/ suryavarchaa
सूर्यवर्ता वराह ८४
सूर्यवर्मा भविष्य ३.३.१२.७७(कालिय राजा का भ्राता, बलखानि द्वारा बन्धन), ३.३.१२.१२३(द्विविद वानर का अंश), ३.३.३१.१२५(पृथ्वीराज - पुत्र?, कान्तिमती से विवाह, कर्बुर राक्षस द्वारा पत्नी के हरण का वृत्तान्त ) suuryavarmaa/sooryavarmaa / suryavarmaa
सूर्या स्कन्द ५.१.५६.१४(संज्ञा का अनुसूर्या सावित्री नाम, छाया - सूर्य - संज्ञा की कथा), ७.४.१७.१९, ७.४.१७.२६, suryaa/sooryaa/suuryaa
सृंजय ब्रह्मवैवर्त्त १.२०.९(उपबर्हण गन्धर्व-पत्नी मालावती का मृत्यु-पश्चात् सृञ्जय-कन्या के रूप में जन्म का उल्लेख), १.२४.१८(ब्रह्मा द्वारा नारद को सृञ्जय-कन्या के रूप में उत्पन्न अपनी पूर्व जन्म की पत्नी मालावती से विवाह का निर्देश), मत्स्य ४६.२७(शमीक के ४ पुत्रों में से एक), स्कन्द ३.३.४.३४(राजा विमर्दन की पत्नी कुमुद्वती के द्वितीय भव में सृंजयेश-सुता बनकर राजा का वरण करने की भविष्यवाणी), हरिवंश १.३.९६(शची-पुत्र), लक्ष्मीनारायण १.२१०(नारद के सृञ्जय-पुत्री मालावती से विवाह का वृत्तान्त), srinjaya
सृष्टि अग्नि १७(तन्मात्राओं व हिरण्मय अण्ड से सृष्टि), १९, कूर्म १.७(विभिन्न प्रकार के तिर्यक्, ऊर्ध्व, अधो आदि सर्गों का वर्णन), १.८(स्वायम्भुव मनु व शतरूपा से उत्पत्ति), गरुड ३.१३.४(ब्रह्मा द्वारा वायु आदि की क्रमिक सृष्टि का कथन), देवीभागवत ७.१, नारद १.४२(जगत की सृष्टि), २.५८.४३(तन्मात्रात्मक सृष्टि की कृष्ण से उत्पत्ति), पद्म १.२(महाभूतों से सृष्टि रचना का प्रारम्भ, भीष्म - पुलस्त्य संवाद), १.३(ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि), १.६(दक्ष - कन्याओं से मैथुनी सृष्टि), २.२२, ६.२२९(नारायण के शरीर से सृष्टि), ब्रह्म १.१, ब्रह्मवैवर्त्त १.३(तन्मात्रा, महाभूत आदि की सृष्टि), १.५, १.७(ब्रह्मा द्वारा विश्व की सृष्टि), १.८(ब्रह्मा व सावित्री से वेदशास्त्रादि की सृष्टि), १.९(महर्षिकृत सृष्टि), २.२(राधा व कृष्ण की देह से सृष्टि), ब्रह्माण्ड १.१.४.३(गुणसाम्य होने पर लय तथा गुणाधिक्य पर सृष्टि होने का कथन), १.२.८.३९(ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि), १.२.९(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), १.२.३६.९६(ध्रुव व भूमि - पुत्र सृष्टि द्वारा छाया को पत्नी बनाना), १.५.७४(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), १.५.८४, २.३.१.५७(ब्रह्मा के शरीर के अङ्गों से सृष्टि), ३.१.१.५८(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), भविष्य १.२(भास्कर से सृष्टि), १.२(ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि), ४.२, ३.४.२५.३३(ब्रह्माण्ड शरीर से सृष्टि), भागवत २.५(तन्मात्राओं की सृष्टि), ३.५, ३.१०(दस प्रकार की सृष्टियां, प्राकृत व वैकृत सृष्टियां), ३.२०, ३.२६(तन्मात्राओं व तत्त्वों की सृष्टि), ६.६, ८.५.३६(विराट् शरीर से सृष्टि), ११.२४(तन्मात्रा आदि की सृष्टि), मत्स्य ३(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), ४.३३(मैथुनी सृष्टि), ५(दक्ष कन्याओं से सृष्टि), १७१(देवयोनि सृष्टि), मार्कण्डेय ४५(सृष्टि के सम्बन्ध में मार्कण्डेय व क्रौष्टुकि संवाद), ४८(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), ४९(मैथुन से जन्म), ५०(मानसी सृष्टि), लिङ्ग १.६३(दक्ष कन्याओं से सृष्टि), वराह ९, ९०(देवी, उत्पत्ति, वृद्धि), १८७, वायु ६.४०, ८.३७, ९(देव, पितर, असुर आदि की ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि, ब्रह्मा द्वारा शरीरों का त्याग), १०, ४१, ६६, १०२, १०३.९(सृष्टि प्रक्रिया का वर्णन), विष्णु १.२(२४तत्त्वों/तन्मात्राओं से जगत की सृष्टि का वर्णन), १.५(अविद्या आदि विविध ऊर्ध्व व अर्वाक् सर्गों का कथन), १.८(रुद्र सृष्टि), १.२१.२९(वैवस्वत मन्वन्तर में सृष्टि), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७(ब्रह्मा के शरीर से प्रजा की सृष्टि), १.२४८, शिव २.१.१५(कैलास, वैकुण्ठ, नवधा ब्रह्म सृष्टि, शिव सृष्टि), २.१.१६(महाभूतों की सृष्टि, मरीचि आदि की सृष्टि, मैथुन से प्रजा की सृष्टि, दक्ष द्वारा सृष्टि), ६.१५(शिव से उत्पत्ति व उपसंहार), ६.१५.२३(सृष्टि चक्र का कथन), ६.१६(सृष्टि शिव से या शक्ति से?, ओंकार से), ६.१७(स्कन्दकृत सृष्टि तत्त्व), ७.१.८+ (शिव क्रीडा निमित्त सृष्टि), ७.१.१५+ (मैथुन द्वारा सृष्टि), स्कन्द ३.२.१०(कामधेनु की हुंकार से वणिजों की सृष्टि), ४.२.५७.१०९(सृष्टि गणेश का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.२१(दक्ष कन्याओं से सृष्टि), हरिवंश १.१(ब्रह्मा से सृष्टि), १.३(दक्ष से सृष्टि), ३.११(महाभूतों की सृष्टि), ३.१४, ३.३६(ब्रह्मा व दक्ष से सृष्टि), महाभारत शान्ति ३४२, योगवासिष्ठ ३.२, ३.३.१५(प्रतिस्पन्द से स्पन्द सृष्टि का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५, १.१४(ब्रह्मा से अज्ञान व अधर्म की सृष्टि), १.१५(ब्रह्मा से धर्म की सृष्टि), १.३८(ब्रह्मा से ऋषि आदि की मानसी सृष्टि), १५१, १२१२, १.५७०.६२(भगवान् के प्रात: गर्भ रूप, सायं सृष्टि रूप व रात्रि में प्रलय रूप होने का उल्लेख), २.२५२.४६, ३.१७.१(सृष्टिमान , ४.१०१.५(संकल्प, दर्शन, स्पर्श, मैथुन आदि से सृष्टियों का कथन), कथासरित् १.२.१०(कल्पान्त में शिव के रक्त बिन्दु से सृष्टि की उत्पत्ति का कथन ), द्र. ब्रह्मपुरुष, सर्ग srishti
Comments on Srishti/creation
सृष्टि संहार स्कन्द ५.३.१४+
सेतु कालिका ५६.७६(शूद्र के सेतु के रूप में प्रणव के औं रूप का उल्लेख), गर्ग १०.२७(अनिरुद्ध द्वारा बल्वल दैत्य के वध हेतु समुद्र पर बाणमय सेतु का निर्माण), नारद २.७६(वसु - मोहिनी संवाद के अन्तर्गत रामेश्वर सेतु क्षेत्र का माहात्म्य), पद्म १.५९.१(सेतुबन्ध माहात्म्य के संदर्भ में चोर द्वारा कान्तार में गोशिर की स्थापना रूप सेतु के पुण्य से जन्मान्तर में राजा बनने की कथा), भागवत १०.३७.१४(भगवान् के सेतुओं का रक्षक होने का उल्लेख), मत्स्य ५१.२६(अग्नि का नाम, अपां योनि), स्कन्द ३.१.१+ (रामेश्वर सेतु का माहात्म्य), ३.१.७.५२(नल द्वारा सेतु निर्माण का आरम्भ), ३.१.७.५९(सेतु की पश्चिम कोटि दर्भशय्या तथा प्राक्कोटि देवीपुर होने का उल्लेख), ३.१.१०.१४(अर्णवों के सेतु रूप गन्धमादन पर्वत का माहात्म्य), ३.१.३०.१२१(धनुष्कोटि में अर्धोदय व महोदय सेतु-द्वय का उल्लेख), ३.१.५०(सेतु - माधव का माहात्म्य, पुण्यनिधि राजा का वृत्तान्त), हरिवंश १.३२.८६(द्रुह्यु-पुत्र, अङ्गारसेतु-पिता), वा.रामायण ६.२२(राम द्वारा वानरों की सहायता से समुद्र पर सेतु का निर्माण ), कालिका ५६.७२(प्रणव रूप सेतु के उदात्त, अनुदात्त, प्रचित व औ भेदों की ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र संज्ञा), लक्ष्मीनारायण १.४३८(सेतुबन्ध स्थान पर राजा पुण्यनिधि के यज्ञ के अवभृथ स्नान में लक्ष्मी द्वारा राजा की परीक्षा की कथा), कथासरित् ७.६.१३(तप से विद्या प्राप्ति के प्रयत्न के संदर्भ में शक्र द्वारा सिकता से गङ्गा पर सेतु निर्माण का द्रष्टान्त), द्र. धर्मसेतु setu
Comments on Setu
सेन गणेश २.११४.३९(सिन्धु - सेनानी, कार्तवीर्य का पाश से बन्धन, हिरण्यगर्भ द्वारा वध ), द्र. आदित्यसेन, इन्द्रसेन, उग्रसेन, कीर्तिसेन, गन्धर्वसेन, गुह्यसेन, गूढसेन, चन्द्रसेन, चित्रसेन, देवसेना, द्युमत्सेन, नन्दिसेन, पवनसेन, प्रसेन, बृहत्सेन, भद्रसेन, भीमसेन, महासेन, यज्ञसेन, याज्ञसेनी, रुद्रसेन, रूपसेन, वसुषेण, विष्वक्सेन, विहितसेन, वीरसेन, वृद्धसेना, शूरसेन, श्रुतसेन, सत्यसेन, समुद्रसेन, सर्वसेन, सिद्धसेन, सुषेण sena
सेनजित् द्र. रथ सूर्य
सेना अग्नि २४२(सेना के व्यूह भेदों का वर्णन),गर्ग ७.७.३४(सेना में सैनिकों आदि की संख्या के अनुसार सेना के नाम), शिव ७.१.८, स्कन्द १.१.२८, ५.३.१०९.१, योगवासिष्ठ ३.३२+, वा.रामायण ६.७.२०(देव सेना की सागर से उपमा ), हरिवंश ३.५४.१९(बलि की सेना की पत्नी से उपमा), senaa
सेनानी नारद १.६६.१३३(सेनानी गणेश की शक्ति रात्रि का उल्लेख - सेनानी रात्रिसंयुक्तः कामान्धो ग्रामणीयुतः), पद्म १.४०(सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक ) senaanee/ senani
सेनापति वराह ३६
सेवा अग्नि १३२.३(सेवा चक्र में अक्षर न्यास से सेवक - सेव्य फल का विचार ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१७.४६, स्कन्द ५.२.७७.४१, लक्ष्मीनारायण १.३१९.१३(, २.२११.४२, sevaa
सैन्धव वामन ९०.३१(सैन्धव अरण्य में विष्णु का सुनेत्र नाम),
सैरन्ध्री भविष्य ४.६४,
सोनायन लक्ष्मीनारायण २.४५.७३
सोपान गरुड ३.२४.३(सोपान देश में पुराण, गीता आदि पठन, श्रवण का निर्देश), ३.२४.९५(दिशाओं का सोपान रूप में कथन), पद्म ५.१०५.२१०(ह्रद में स्नान के लिए वेद के सोपान रूप होने का कथन), ब्रह्माण्ड ४.३७.५७, लक्ष्मीनारायण ३.८३.१३,
सोम अग्नि ८४.३२(सौम्य : ८ देवयोनियों में षष्ठम), २७४(सोम वंश का वर्णन, अत्रि से सोम का जन्म, सोम से वंश वृद्धि), कूर्म १.२०(सोम वंश का वर्णन), १.२२(सोम वंश का कीर्तन), गणेश २.७६.१४(सोम के मुण्ड से युद्ध का उल्लेख), गरुड १.९५.१८(सोम द्वारा व्यभिचारिणी को शौच दान का उल्लेख), १.१३९(सोम वंश का वर्णन), देवीभागवत ५.८.७१(सोम के तेज से देवी के स्तनों की उत्पत्ति का उल्लेख), नारद १.११९.४०(कुबेर का सोम से तादात्म्य - ऋक्षयक्षेश), पद्म १.२०.५९(सौम्य व्रत की संक्षिप्त विधि), ३.१८.९६(सोम तीर्थ का माहात्म्य), ६.१६१(कौषीतक द्वारा स्थापित सोम तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्म १.७(अत्रि के रेतः का ऊर्ध्वगति होकर सोम बनने, दिशाओं द्वारा ग्रहण, प्रजापति द्वारा रथ पर स्थापन आदि का वर्णन) , १.११०.९(चन्द्रमा की कला कोका का पितरों द्वारा वरण), २.३५(सोम पर गन्धर्वों का अधिकार होने पर देवों द्वारा सरस्वती के मूल्य पर सोम का क्रयण), २.४९(सोम तीर्थ का माहात्म्य, ओषधियों द्वारा सोम की पति रूप में प्राप्ति), २.१०४(सोमतीर्थ का सोमेश्वर शिव से तादात्म्य आदि), ब्रह्माण्ड १.१.५.२२(यज्ञवराह के सोमशोणित होने का उल्लेख), १.२.१३.१२९(इडवत्सर रूप), २.३.७.२२(सोम की गभस्तियों से कुरु नामक अप्सरा गण की उत्पत्ति),२.३.६५.८(अत्रि के तेज के नेत्रों से स्रवण से सोम की उत्पत्ति, सोम का रथारोपण, तारा हरण आख्यान), भविष्य १.१३८.३८(सोम की नर ध्वज का उल्लेख), ३.४.१७.८१(षष्टम् वसु, सुदेव - पुत्र पीपा रूप में अवतरण), ३.४.२०.१८(अपरा प्रकृति के देवों में से एक, रुद्र के सोम-पति होने का उल्लेख), ३.४.२२.३६(जन्मान्तर में निम्बादित्य मत में स्थित व्यास भक्त, रहःक्रीडा ग्रन्थ की रचना), ३.४.२५.३५(सोम की ब्रह्माण्ड के नेत्र से उत्पत्ति,सोम से वैवस्वत मन्वन्तर की रचना का उल्लेख), ४.५९(सोम अष्टमी व्रत), ४.९९.१(सोम की प्रिय तिथि पौर्णमासी में जय संग्राम आदि होने का कथन), भागवत ४.१.१५(अत्रि द्वारा तप से सोम, विष्णु व शिव को पुत्र रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त), मत्स्य १०१.१४(सौम्य व्रत), १०१.८१(सोम व्रत – लवणपात्र दान आदि ), मार्कण्डेय १७(सोम का अत्रि से जन्म), वराह १४.४९(पितृगण के सोमाधार तथा चन्द्रमा के योगाधार होने का उल्लेख, अतः श्राद्ध में योगी की नियुक्ति), ३२.१०(सोम द्वारा वृषभ रूप धारी धर्म को पीडित करने का कथन, धर्म की आकृति शशि समान होने का उल्लेख), ३५.१(अत्रि – पुत्र सोम द्वारा अपनी २७ पत्नियों में से रोहिणी के साथ रमण, शाप प्राप्ति, समुद्रमन्थन से पुनः उत्पत्ति), ३५.११(देह में क्षेत्रज्ञ संज्ञक परपुरुष का नाम, जीव का नाम), ३६.७(त्रेतायुग में सोम के राजा जनक होने का उल्लेख), ८१(सोमशिला पर सोम के अवतरण का उल्लेख), १३७.३०(सोम तीर्थ की महिमा, शृगाली व गृध्र का वृत्तान्त), १४०, १४१, १४४, १५४, वामन ९०.११(महेन्द्र तीर्थ में विष्णु का सोमपीथी नाम से वास), वायु २३.७४/१.२३.८२(शिव के मुख से च्युत सोम के जीवों का प्राणदायक पय: बनने का कथन), ५६.२०(इडवत्सर का रूप), ७०.७०(प्रभाकर व भद्रा से प्रभाकारक सोम के जन्म का कथन), ९०(अत्रि के तेज से सोम के जन्म की कथा, तारा हरण आख्यान, बुध का जन्म), ९१.५१(सोम वंश कीर्तन), विष्णु १.१५.५(प्रचेतस गण का कोप शान्त करने के लिए सोम द्वारा मारिषा कन्या प्रदान करना), १.१५.१०(दक्ष के सोम के अंश से युक्त होने का उल्लेख), १.१५.३१(सोम द्वारा मारिषा कन्या के जन्म का वृत्तान्त), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.५(सौम्या शान्ति के वर्ण व अधिदेवता का उल्लेख), शिव ४.८, ४.९.३(व्यभिचारिणी सौमिनी द्वारा अनायास शिव पूजा से उत्तम लोक प्राप्ति की कथा), ७.१.१७.३१(अत्रि व अनसूया के ५ पुत्रों में से एक), ७.२.८.१२(ब्रह्मा से यज्ञार्थ सोम की उत्पत्ति तथा सोम से द्यौ की उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द १.१.७.३३(सौराष्ट्र में सोमेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), २.३.७(बदरी क्षेत्र में सोमकुण्ड का माहात्म्य, अत्रि-पुत्र सोम द्वारा तप से ओषधिपति आदि बनना), ३.१.४९.५५(सोम द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ४.१.१४ + (अत्रि – पुत्र सोम द्वारा तप से वैभव प्राप्ति का वर्णन), ५.१.२८.५६(सोम की अत्रि के तेज से उत्पत्ति, भूमि पर पतन, ब्रह्मा द्वारा रथ में स्थापना, तारा - बुध आख्यान, कुष्ठ से मुक्ति हेतु सोम द्वारा लिङ्ग की स्थापना), ५.२.२६.७(सोमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, सोम को दक्ष द्वारा क्षय होने का शाप, सोम का अन्तर्हित होना, समुद्र मन्थन से पुन: उत्पत्ति, पुन: अन्तर्हित होना आदि), ५.२.६८(सोमक शूद्र, दुष्ट चरित्र से पिशाच, शाकटायन ब्राह्मण के परामर्श से पिशाचेश्वर लिङ्ग पूजा से मुक्ति), ५.३.१३.४२(सौम्य - १४ कल्पों में से एक), ५.३.८५(दक्षशाप से मुक्ति हेतु सोम द्वारा तप), ५.३.१०३.९६(सोम के वनस्पतिगत होने पर अकरणीय कृत्य), ५.३.१२१(सोम तीर्थ का माहात्म्य, दक्ष के क्षय रोग के शाप से मुक्ति हेतु सोम का चन्द्रहास तीर्थ में तप), ५.३.१३९(सोम तीर्थ का माहात्म्य, सोम द्वारा तप करके नक्षत्र पथ में स्थापित होना), ५.३.१९८.८१(सोमेश्वर में देवी का वरारोहा नाम से वास), ६.६३(सोमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, दक्ष शाप से मुक्ति पाने के लिए सोम द्वारा ६८ लिङ्गों की स्थापना), ६.८७(सोम प्रासाद का माहात्म्य), ७.१.६+ (सोमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.२०.४४(भद्रा व प्रभाकर - पुत्र, अत्रि से जन्म की कथा, ओषधिपति बनना), ७.१.२४.१४५(सोमवार व्रत का माहात्म्य, घनवाहन - पुत्री गन्धर्वसेना की कुष्ठ से मुक्ति की कथा), ७.१.३०(सोमेश्वर लिङ्ग की पूजा का माहात्म्य), ७.१.१०५.४९(३० में १९वें कल्प का नाम), ७.१.१३४(), ७.२.१४.८४(वस्त्रापथ क्षेत्र में वामन द्वारा सोमनाथ की आराधना), हरिवंश २.६७.५३(शिव के लिए सोम शब्द का प्रयोग), ३.५३.१२(सोम का शरभ व शलभ से युद्ध), महाभारत शल्य ३५, अनुशासन १०२.२९(इन्द्र व गौतम के संवाद के अन्तर्गत सोमलोक को प्राप्त होने वाले मनुष्य के लक्षण ), लक्ष्मीनारायण १.७९(सोम की अत्रि से उत्पत्ति, तारा हरण, बुध का जन्म), १.२०८, १.४८३, १.५८०, २.२२१, ३.३७.५६(सोमवत्सर में ब्रह्मा द्वारा पितरों को उपदेश), ३.१०१.६५, ४.४७, सुश्रुत संहिता चिकित्साध्याय २९.२०(सोमवल्ली की उत्पत्ति के स्थान, सोम के गायत्र, त्रैष्टुभ आदि प्रकार), शौ.अ. ५.२४.७(सोमो वीरुधामधिपतिः), द्र. शान्तिसोम soma
सोम-( १) चन्द्रमा । इनके सताईस स्त्रियाँ थीं ( आदि० ६६ ॥ १६ ) । सप्तर्षियों द्वारा पृथ्वी-दोहन के समय ये बछड़ा बने थे ( द्रोण० ६९ ॥ २३(४२) ) । (विशेष देखिये चन्द्रमा । ) (२) भानु नामक अग्नि की तीसरी पत्नी निशा के गर्भ से उत्पन्न दो पुत्रों में से एक। इनके दूसरे भाई का नाम अग्नि है। इनकी बहिन का नाम रोहिणी है । इनके वैश्वानर आदि पाँच भाई और हैं ( वन० २२१ । १५ ) ।
सोमक मत्स्य ५०.१६(सुदास - पुत्र, अजमीढ के पुनर्जन्म का रूप, जन्तु - पिता), १२२.१४(अस्त गिरि के सोमक नाम तथा महत्त्व का कथन ), हरिवंश १.३२, लक्ष्मीनारायण ४.४७सोमिका, कथासरित् ८.६.६८, द्र. भूगोल somaka
सोमक-( १) सोमकवंशी क्षत्रियों का समुदाय ( आदि० १२२ ॥ ४० ) || (२) एक प्राचीन राजा; जो यमसभा में रहकर सूर्यपुत्र यम की उपासना करते हैं (सभा० ८ । ८ ) । ये पाञ्चालदेश के प्रसिद्ध दानी राजा थे। इनके पिता का नाम सहदेव था ( वन० १२५ । २६ ) । सौ पुत्रों की प्राति के लिये, अपने इकलौते पुत्र की बलि देकर, इनके द्वारा यज्ञ का सम्पादन और पुत्रों की प्राप्ति ( वन० १२८ ॥ २-७ ) । इनका अपने पुरोहित के साथ समान रूप से नरक और पुण्य लोकों का भोग भोगकर छूटना ( वन० १२८ ॥ ११-१८ )। इन्होंने गोदान करके स्वर्ग प्राप्त किया था (अनु० ७६ ॥ २५-२७ ) । इन्होंने जीवन में कभी मांस नहीं खाया था ( अनु० ११५ । ६ ३ ) ।।
सोमकान्त गणेश १.१.२३(राजा सोमकान्त के कुष्ठग्रस्त होने की कथा), १.७.१०(सोमकान्त नृप के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में कामन्द नामक दुष्ट वृत्ति वैश्य पुत्र, कान्त प्रासाद निर्माण से सोमकान्त बनना), २.१५१.१(गणेश पुराण श्रवण से सोमकान्त का कुष्ठ से मुक्त होना ), somakaanta
सोमकीर्ति भविष्य ३.३.३२(राजा लहर के १६ पुत्रों में से एक, कौरवांश), आदि० ६७ ॥ ९९; आदि० ११६ । ८(धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक ) ।
सोमगिरि-एक पर्वतः, जो सायं-प्रातः स्मरण करने योग्य है (अनु० १६५ ॥ ३३ ) ।
सोमचन्द्र पद्म ६.१४१(विश्वमोहन राजा के पुत्र सोमचन्द्र द्वारा अश्व की चोरी होने पर माण्डव्य का शूली पर आरोपण ), लक्ष्मीनारायण ३.८९.७३ somachandra
सोमतीर्थ-(१) कुरुक्षेत्र की सीमा के अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ, जो जयन्ती में है । वहाँ स्नान करने से मनुष्य को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है ( वन० ८३ ॥ १९ )। (२) कुरुक्षेत्र की सीमा के अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ, जिसमें स्नान करने से सोमलोक की प्राप्ति होती है ( वन० ८३ ॥ ११४-११५, १८५ ) ||
सोमदत्त गर्ग ७.२०.३२(सोमदत्त का प्रद्युम्न - सेनानी चित्रभानु से युद्ध), नारद १.९.७७(सोमदत्त विप्र का गुरु गौतम की अवज्ञा से ब्रह्मराक्षस बनना, कल्माषपाद/सौदास को गुरु की महिमा का कथन, गङ्गा जल से उद्धार), भविष्य ३२४, ३.२.९(धर्मदत्त - पुत्र, कामालसा से रति की इच्छा), वराह ३६, १३७.६८(ब्रह्मदत्त - पुत्र, शृगाली व गृध्र के वध की कथा), वा.रामायण ०.२(गौतम - शिष्य सोमदत्त ब्राह्मण द्वारा गुरु के अनादर से राक्षसत्व प्राप्ति, गर्ग से रामायण कथा श्रवण से उद्धार, सुदास उपनाम ), कथासरित् १.२.३०, १.७.१०८, ३.६.८, ६.४.७९, ६.७.३७, somadatta
सोमदत-कुरुवंशी महाराज प्रतीप के पौत्र एवं वाहीक के पुत्र । इनके भूरि, भूरिश्रवा तथा शल नाम के तीन पुत्र थे । ये अपने तीनों पुत्रों के साथ द्रौपदी के स्वयंवर में पधारे थे ( आदि० १८५ ॥ १४-१५)। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भी इनका शुभागमन हुआ था ( सभा० ३४ । ८ ) । देवकी के स्वयंवर के समय शिनि के साथ इनका बाहुयुद्ध तथा शिनि का इन्हें पटककर लात मारना एवं इनकी चुटिया पकड़ना ( द्रोण० १४४ ॥ ११-१३ ) । शिनि के छोड़ देने पर इनकी तपस्या और बदला लेने के लिये वर एवं पुत्र की प्राप्ति ( द्रोण० १४४ ॥ १५-१९)। सात्यकि के साथ युद्ध में इनका पराजित होना ( द्रोण० १५६ ॥ २१-२९ ) । सात्यकि एवं भीमसेन के प्रहार से मूछिंत होना (द्रोण० १५७ ॥ १०-११ ) । सात्यकि द्वारा इनका वध ( द्रोण० १६२ ॥ ३३)। इनके शरीर का दाह-संस्कार ( स्त्री० २६ ॥ ३३ ) । धृतराष्ट्र द्वारा इनका श्राद्ध ( आश्रम० ११ । १७ ) । व्यासजी के आवाहन करने पर कुरुक्षेत्र में मरे हुए कौरव वीरों के साथ ये भी गङ्गाजल से प्रकट हुए थे (आश्रम० ३२ ॥ १२)।
महाभारत में आये हुए सोमदत्त के नाम-बाहीक, बाह्लीकात्मजः कौरवः, कौरवेयः कौरव्यः, कुरुपुङ्गव आदि।
सोमदा वा.रामायण १.३३(उर्मिला - पुत्री, चूली ब्रह्मचारी से ब्रह्मदत्त पुत्र की प्राप्ति),
सोमधेय–एक पूर्वभारतीय जनपद, जहाँ के निवासियों को भीमसेन ने पराजित किया था ( सभा० ३० ॥ १० ) ।
सोमन लक्ष्मीनारायण २.२२१.७४
सोमनाथ नारद १.६६.११३(सोमेश की शक्ति खेचरी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.५४(चन्द्रबिम्बमय शाला में सोमनाथ की स्थिति का कथन), भविष्य ३.४.२३.१०५(यज्ञांश सोमनाथ द्वारा सौराष्ट्र में राज्य करने का कथन), स्कन्द १.२.४८(सोमनाथ का माहात्म्य, ऊर्जयन्त व प्रालेय की चोरों से रक्षा), ५.३.८५ (सोमनाथेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, सोम की दक्ष के शाप से मुक्ति, कण्व की ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति), ७.१.७(सप्तम कल्प में शिव नाम), ७.१.२४(चन्द्रमा द्वारा तप से सोमनाथेश्वर की स्थापना ), लक्ष्मीनारायण १.५३६, somanaatha/ somanatha
सोमपद-एक तीर्थ, जहाँ माहेश्वर पद में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है ( वन० ८४ ॥ ११९)।
सोमपा गरुड १.८९.४१(सोमपा पितरों द्वारा उदीची दिशा की रक्षा, आज्यपा द्वारा प्रतीची आदि), भविष्य ३.४.२२(मुकुन्द - शिष्य, जन्मान्तर में मानसिंह), शिव २.२.३.५७(क्रतु ऋषि से सोमप पितरों की उत्पत्ति का कथन), हरिवंश १.१८.६७(सोमपा पितर गण के वंश का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.४१.८९, somapaa
सोमप-( १) स्कन्द का एक सैनिक (शल्य० ४५ ॥७०)। (२) एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ ॥ ३४ ) । सोमपा-सात पितरों में से एक । इनकी चार मूर्त पितरों में गणना है। इनके तृप्त होने से सोम देवता की तृप्ति होती है (सभा० ११ ॥ ४७-४८ ) । ये सभी पितर ब्रह्माजी की सभा में उपस्थित हो प्रसन्नतापूर्वक उनकी उपासना करते हैं (सभा० ११ ॥ ४९ ) ।
सोमप्रभा कथासरित् ३.३.७०, ६.२.१०१, ६.३.१६, ६.५.१, ६.५.५७, ६.८.१३१, ७.२.११२, १०.३.६१, १२.१२.७, १७.१.२२
सोमप्ररु देवीभागवत ४.२२
सोमयाग ब्रह्मवैवर्त्त ४.६०.५५(सोमयाग की संक्षिप्त विधि), महाभारत शान्ति १६५.५(सोमयाग के अधिकारी पुरुष के लक्षण), लक्ष्मीनारायण २.२४४+ (पञ्चदिवसीय सोमयाग की विधि का वर्णन ), २.२४८ somayaaga/ somayaga
सोमराज वराह ७०
सोमवर्चा-( १) एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ ॥ ३३)। (२)एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ ॥ ३६) |
सोमवान् लक्ष्मीनारायण १.४४९
सोमवार स्कन्द ३.३.८
सोमशर्मा पद्म २.१, २.४+ (शिवशर्मा - पुत्र, पिता द्वारा पितृभक्ति की परीक्षा, मृत्यु पर हिरण्यकशिपु- पुत्र प्रह्लाद बनना), २.११+ (सुमना - पति, पुत्र प्राप्ति की कामना पर पत्नी द्वारा पुत्रों के प्रकारों का कथन, ब्रह्मचर्य आदि का उपदेश), २.१७+ (वसिष्ठ द्वारा सोमशर्मा को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, सोमशर्मा द्वारा तप, विष्णु की स्तुति, सुव्रत नामक पुत्र की प्राप्ति), ६.६०(सोमशर्मा ब्राह्मण द्वारा चन्द्रभागा व शोभन का मिलन कराना), ब्रह्म १.१२०(देवशर्मा - पुत्र सोमशर्मा द्वारा लोभ व मोह से आग्नीध्र कर्म करने से ब्रह्मराक्षस बनना, जागरण फल दान से मुक्ति), लिङ्ग १.२४.१२१(२७वें द्वापर में मुनि), वराह १२५(सोमशर्मा द्वारा माया का रहस्य जानने की इच्छा, निषादी स्त्री बनना, पुन: ब्राह्मण बनना), १३९(सोमशर्मा द्वारा अविधि पूर्वक पाञ्चरात्र यज्ञ करने से ब्रह्मराक्षस बनना), वामन ७९, शिव ३.५, वायु २३.२१५(२७वें द्वापर में शिव - अवतार), स्कन्द ५.३.२०९.६५, लक्ष्मीनारायण १.२२२.१५(राजा नृग द्वारा गौ दान के संदर्भ में सोमशर्मा ब्राह्मण द्वारा दान की गई गौ को पुन: दान में प्राप्त करना ), १.२२९, १.५७०, कथासरित् १.६.८, १८.५.१०४, somasharmaa
सोमशूर कथासरित् १२.५.१९१, १२.५.३९०
सोमश्रवा वामन ७९
सोमश्रवा-एक तपस्यापरायण ऋषि, जो श्रुतश्रवा के पुत्र थे। इनको पुरोहित बनाने के लिये जनमेजय की इनके पिता से प्रार्थना ( आदि० ३ । १३-१५ ) । ये सर्पिणी के गर्भ से उत्पन्न, तपस्वी और स्वाध्यायशील थे । ब्राह्मण को अभीष्ट वस्तु देने का इनका गुप्त नियम था । जनमेजय इनके नियम को स्वीकार करके इन्हें अपने साथ ले गये ( आदि० ३ । १६-२० ) ।
सोमस्रोत वराह १४३
सोमस्वामी कथासरित् ७.३.९८,
सोमाभिषेक वराह १४१
सोमाश्रम-एक तीर्थ, जिसकी यात्रा करने से मनुष्य इस भूतल पर पूजित होता है ( वन० ८४ ॥ १५७ ) ।
सोमाश्रयायण-गङ्गातटवर्ती एक प्राचीन तीर्थ । एकचक्रा से पाञ्चाल जाते समय यहाँ पाण्डवों का आगमन हुआ था । यहाँ स्त्रियों के साथ चित्ररथ ( गन्धर्व ) जलक्रीड़ा करता था, जो अर्जुन से पराजित हुआ ( आदि० १६९ ॥ ३-३३ ) ।
सोमिका कथासरित् १२.१०.८
सोमिल कथासरित् ८.४.८०
सोमेश नारद १.६६.११३(सोमेश की शक्ति खेचरी का उल्लेख),
सौकरव वराह १३९
सौगन्धिकवन वामन ४७
सौत्रामणि पद्म २.३७.३६(सौत्रामणि में मेष हनन के विधान का उल्लेख), वायु १०४.८३(सौत्रामणि यज्ञ की कण्ठ देश में स्थिति), स्कन्द ५.३.३०.८(दारु तीर्थ में उपवास आदि से सौत्रामणि फल की प्राप्ति का उल्लेख), ६.२६३.१३(कल्पना विजय के सौत्रामणि होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३४(सौत्रामणि के हस्तों में न्यास का उल्लेख ) sautraamanee/sautramani
सौदामिनि मत्स्य ६.३४(विनता - कन्या), वामन २२(सुदामा - पुत्री, कुरु - पत्नी), लक्ष्मीनारायण १.५६४.२४(शाण्डिल्य - पत्नी सती सौदामिनी का वृत्तान्त ), कथासरित् ८.२.३५०, १२.६.३१, saudaamini/ saudamini
सौदास नारद १.९(सौदास द्वारा वसिष्ठ से शाप प्राप्ति की कथा, राक्षस बनकर शक्ति मुनि का भक्षण, ब्रह्मराक्षस से वार्तालाप), भागवत ९.९(सुदास - पुत्र, मदयन्ती - पति, मित्रसह उपनाम, वसिष्ठ शाप से कल्माषपाद नाम, शक्ति का भक्षण, शाप प्राप्ति, वसिष्ठ की कृपा से अश्मक पुत्र की प्राप्ति), विष्णु ४.४.४०(सौदास चरित्र, मित्रसह उपनाम, राक्षस बनना आदि), स्कन्द ६.५२(सौदास के राक्षस बनने व मुक्ति का प्रसंग, राक्षस - अनुज को मारने पर राक्षसत्व से मुक्ति), ७.३.२(मदयन्ती - पति, व्याघ्र| रूप, उत्तंक से संवाद होने पर शाप से मुक्ति), वा.रामायण ७.६५(वीरसह उपनाम, कल्माषपाद बनने की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३८७, १.५५१, २.३१, saudaasa/ saudasa
सौपर्णी गरुड ३.६.५३(सौपर्णी द्वारा हरि-स्तुति), ३.२८.८(बलभद्र-भार्या, वारुणी व रेवती से तादात्म्य)
सौन्दर्य ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३३(देह के विभिन्न अङ्गों के सौन्दर्य हेतु देय दानों का वर्णन )
सौभ भागवत १०.७६(मय - निर्मित सौभ विमान की शाल्व को प्राप्ति), वामन ९१,
सौभरि गणेश १.५१.६१(सौभरि ऋषि द्वारा क्षत्रिय को गणेश चतुर्थी व्रत का निर्देश), २.१३५.३(मनोमयी - पति, क्रौञ्च गन्धर्व को मूषक होने का शाप), गर्ग २.१४(सौभरि द्वारा गरुड के लिए यमुना जल में प्रवेश का वर्जन, कालिय नाग द्वारा यमुना में शरण की कथा), ४.१५+ (सौभरि द्वारा जामाता मान्धाता को यमुना पञ्चाङ्ग का कथन), पद्म ६.१९९+ (सौभरि द्वारा युधिष्ठिर को कालिन्दी माहात्म्य का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१९.१०८(कालिय व गरुड की कथा), भागवत ९.६.३८(सौभरि द्वारा मान्धाता - कन्याओं से विवाह की कथा), १०.१७.१०(यमुना में मत्स्य भक्षण के कारण सौभरि द्वारा गरुड को शाप), विष्णु ४.२.६९(बह्वृच संज्ञा, मत्स्य साम्मद को देखकर सौभरि की प्रजाजनन की इच्छा, मान्धाता - पुत्रियों से विवाह की कथा, भोगों से वैराग्य ), लक्ष्मीनारायण १.४७०.५८(सौभरि के शाप के कारण गरुड की यमुना में कालियह्रद में जाने में असमर्थता), saubhari
सौभाग्य अग्नि १७८.१४(सौभाग्य अष्टक द्रव्यों के नाम - स्थापयेद् घृतनिष्पावकुसुम्भक्षीरजीवकं ॥ तरुराजेक्षुलवणं कुस्तुम्बुरुमथाष्टमं ।), पद्म १.२०.६१(सौभाग्य व्रत की संक्षिप्त विधि ), १.२९.५(सौभाग्य शयन व्रत, विष्णु के वक्षःस्थल से सौभाग्य अष्टक की उत्पत्ति, गौरी - शङ्कर न्यास), भविष्य ४.२५(विष्णु के वक्ष पर स्थित सौभाग्य का दक्ष व प्राणियों, द्रव्यों में वितरण, सौभाग्य शयन व्रत), मत्स्य ६०(सौभाग्य शयन व्रत में सती व शिव की आराधना, विष्णु के वक्षस्थल के सौभाग्य का दक्ष द्वारा पान, पृथ्वी पर पतित द्रव्य से सौभाग्याष्टक की उत्पत्ति, सौभाग्य अष्टक द्रव्य - इक्षवोरसराजाश्च निष्पावाजाजिधान्यकम्।। विकारवच्च गोक्षीरं कुसुम्भं कुंकुमं तथा। लवणं चाष्टमन्तद्वत् सौभाग्याष्टकमुच्यते।।), १०१.१६(सौभाग्य व्रत - फाल्गुनादितृतीयायां लवणं यस्तु वर्जयेत्। समाप्ते शयनं दद्यात् गृहञ्चोपस्करान्वितम्।। संपूज्य विप्रमिथुनं भवानी प्रीयतामिति। गौरीलोके वसेत्कल्पं सौभाग्यव्रतमुच्यते।। ), वराह ५८(फाल्गुन शुक्ल तृतीया को सौभाग्य व्रत की विधि), विष्णुधर्मोत्तर ३.८२.८(देवी के मस्तक पर पद्म सौभाग्य का प्रतीक - देव्याश्च मस्तके पद्मं तथा कार्यं मनोहरम् । सौभाग्यं तद्विजानीहि शङ्खमृद्धिं तथा परम्।।), स्कन्द १.२.३४.८८(सौभाग्य अष्टक द्रव्य - कुंकुमं पुष्पश्रीखंडं तांबूलांजनमिक्षवः॥ सप्तमं लवणं प्रोक्तमष्टमं च सुजीरकम्॥), ४.२.६६.२ (अप्सरसकूप/सौभाग्योदक कूप का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.८.६९(अप्सरस तीर्थ में मधु दान से सौभाग्य प्राप्ति का उल्लेख), ५.२.६१(८४ लिङ्गों में ६१वें सौभाग्येश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, मदनमञ्जरी द्वारा सौभाग्येश्वर की पूजा से पति प्रेम की प्राप्ति ), ५.३.१०६.२ (तृतीया को सौभाग्यकरणतीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१९८.५० (दक्ष द्वारा विष्णु के वक्षस्थल से सौभाग्य का पान, दक्ष-सुता सती की उत्पत्ति), ५.३.१९८.९१ (शूलेश्वरी भृगुक्षेत्रे भृगौ सौभाग्यसुन्दरी ॥), ६.१४२.३१(सहस्राक्ष व कामदेव द्वारा गणेश को सौभाग्य दान का उल्लेख), ७.१.१२४(तृतीया को सौभाग्यदायिनी गौरी का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.१४१.६३ (त्रयस्त्रिंशदण्डकश्च षोडशतिलकान्वितः । द्वादशतलभागश्च सौभाग्यमेरुरेव सः ।), ३.१३६.६१(सौभाग्य शयन व्रत की विधि), saubhaagya/ saubhagya
सौमनस हरिवंश ३.३५.८, वा.रामायण ४.४०,
सौमिनी शिव ४.९(व्यभिचारिणी द्विज कन्या सौमिनी का जन्मान्तर में चण्डाल कन्या बनना, गोकर्ण में मुक्ति),
सौम्य मत्स्य २८६.१०(सौम्या देवी का स्वरूप), हरिवंश ३.३५.३९, कथासरित् १८.१.१३,
सौरभ लक्ष्मीनारायण ४.७५,
सौराष्ट्र गरुड १.६९.२३(शुक्ति आकर का स्थान), नारद १.५६.७४३(सौराष्ट्र देश के कूर्म के पुच्छ मण्डल होने का उल्लेख), पद्म ६.१९०, स्कन्द १.१.७.३३(सौराष्ट्र में सोमेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ३.३.४.३४, ७.१.२५७, लक्ष्मीनारायण १.१४४, १.२१७, १.३५०, १.३५२, ४.८०.१७(राजा नागविक्रम के यज्ञ में सौराष्ट्रीय द्विजों के पूजक होने का उल्लेख ) sauraashtra/ saurashtra
सौरी नारद १.६६.९५(सौरि विष्णु की शक्ति क्षमा का उल्लेख), पद्म १.४६.७९,
सौवीर अग्नि ३८०(सौवीर नरेश द्वारा जड भरत से अद्वैत ब्रह्म विषयक शिक्षा प्राप्ति), नारद १.४८+ (सौवीर राजा द्वारा जड भरत को शिबिका वाहक बनाने पर भरत से ज्ञान प्राप्ति की कथा ), १.५०.३८, भविष्य ४.१३०, भागवत ११.२१.८, विष्णु २.१४, विष्णुधर्मोत्तर १.१६७, १.१७०, लक्ष्मीनारायण १.४३३, sauveera
स्कन्द अग्नि ५०.२७(स्कन्द की प्रतिमा के लक्षण), गरुड ३.२८.३२(काम का रूप, निरुक्ति - यो रुद्रपुत्रः स्कन्दस्तु काम एव प्रकीर्तितः ॥ रिपूनास्कंदते नित्यमतः स्कन्द इति स्मृतः ।), ब्रह्म २.५, ब्रह्मवैवर्त्त ३.१(शिव वीर्य से स्कन्द की उत्पत्ति का आख्यान), ४.६, ब्रह्माण्ड १.२.१०.८०(पशुपति व स्वाहा - पुत्र), २.३.७.३८०(प्रस्कन्द : पिशाचों के १६ वर्गों में से एक), २.३.१०.३३(स्कन्द की उत्पत्ति की कथा, देवों द्वारा स्कन्द को भेंट), भविष्य १.१२४(सूर्य - अनुचर दण्डनायक का रूप), ३.४.२५.११३(स्कन्द की अव्यय पुरुष के स्कन्दन से उत्पत्ति - पुरुषाव्ययतः स्कन्नः स्कन्दस्तस्मान्महार्चिमान् ।), ४.४२, मत्स्य १५९+ ( स्कन्द का जन्म, देवों से भेंट प्राप्ति, तारक वध), वराह १७, वामन ५४.५०(हुताशन द्वारा स्कन्न शिव वीर्य का पान), ५८(क्रौञ्च पर्वत को मारने में स्कन्द की झिझक), ९०.२१(शरवण में विष्णु की स्कन्द नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु २७.५०, ७२.२६(स्कन्द की उत्पत्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.२३०(शक्र ग्रहों की शान्ति हेतु स्कन्द द्वारा अनेक ग्रहों की सृष्टि), ३.७१, शिव ६.१, स्कन्द १.१.७(लिङ्ग पूजक आचार्य), १.२.१३.१८३(शतरुद्रिय प्रसंग में स्कन्द द्वारा पाषाण लिङ्ग की पूजा - स्कंदः पाषाणलिंगं च नाम सेनान्य एव च॥), १.२.२९, २.७.९(पार्वती व शिव की रति से स्कन्द के जन्म की कथा), २.७.९(काम का रूप), ३.२.८, ४.१.२५+ (स्कन्द द्वारा अगस्त्य को काशी महिमा का कथन), ४.१.३३.१२५(स्कन्देश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६१.१२०(स्कन्द तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.२६(स्कन्देश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३४(स्कन्द के जन्म की कथा, शक्ति से तारक वध के पश्चात् शक्ति का शिप्रा में क्षेपण, भोगवती का प्रकट होना), ५.३.१११(स्कन्द तीर्थ का माहात्म्य, स्कन्द के जन्म की कथा, स्कन्द द्वारा तप से शिव व पार्वती की माता - पिता रूप में प्राप्ति), ५.३.२३१.२०, ६.७१(रक्त शृङ्ग के निश्चलीकरण हेतु स्कन्द द्वारा तारक वध के पश्चात् शक्ति को रक्त शृङ्ग पर स्थापित करना), हरिवंश १.१.४४(स्कन्द द्वारा स्वतेज का संक्षेप), लक्ष्मीनारायण १.३३७, २.३२.२९(स्कन्द द्वारा स्कन्दापस्मार ग्रह को उत्पन्न करके कृत्तिकाओं को देने का उल्लेख ), २.१५७.२४, कथासरित् ९.१.२०५, द्र. कुमार, षडानन skanda
स्कन्ध
स्कन्द
६.२४७.४१(अश्वत्थ
--
मूले
विष्णुः
स्थितो
नित्यं
स्कंधे
केशव
एव
च
॥
नारायणस्तु
शाखासु
पत्रेषु
भगवान्हरिः।।),
महाभारत
सभा
३८
दाक्षिणात्य
पृष्ठ
७८४(यज्ञवराह
के
वेदिस्कन्ध
होने
का
उल्लेख
)
स्तन गरुड २.३०.५३/२.४०.५३(मृतक के स्तनों में गुञ्जक देने का उल्लेख), २.३०.५५/२.४०.५५(मृतक के स्तनों में मौक्तिक देने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४९(स्तन सौन्दर्य हेतु श्रीफल दान का निर्देश), भागवत २.५.३९(स्तनों में तपोलोक की स्थिति का उल्लेख), ३.१२.२५(ब्रह्मा के दांये स्तन से धर्म के जन्म का उल्लेख), शिव ५.१०.४३, स्कन्द ५.३.८३.१०७(गौ के स्तनों में चार सागरों व क्षीरधारा की स्थिति का उल्लेख), ५.३.१९२.७(नारायण के स्तनों से धर्म के प्रादुर्भाव का उल्लेख), हरिवंश २.८०.३०(तृणराज फलों के समान स्तनों की प्राप्ति के लिए दशमी को करणीय व्रत का कथन), ३.७१.५५(वामन के विराट रूप में स्तनों व कक्षों में वेदों की स्थिति का उल्लेख), महाभारत कर्ण ३४.१०४(शिव द्वारा हय के स्तनों में काटने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.११०.१२(नारायण की मूर्ति में स्तन होने तथा नर की मूर्ति के स्तन रहित होने का कथन), १.१५५.५२(अलक्ष्मी के वल्मीक सदृश स्तनों का उल्लेख),२.१५.३०(धेनु के स्तनों में सागरों की स्थिति का उल्लेख), ३.११५.८२(ललिता देवी के स्तन स्वाहा - स्वधाकार रूप होने का उल्लेख ), ४.१०१.१३०, stana
स्तम्बजिह्व लक्ष्मीनारायण २.२५३.१९(स्तम्ब द्वारा पत्र प्रदान का उल्लेख), कथासरित् ५.२.१९६, द्र. ब्रह्मस्तम्ब, रणस्तम्ब
स्तम्भ गरुड ३.२८.१३६(विवाह काल में स्तम्भसूत्रस्थ देवी की पूजा की व्यर्थता), पद्म ३.१८, ब्रह्मवैवर्त्त २.५६.४७(राधा कवच द्वारा दुर्योधन द्वारा जल व वह्नि स्तम्भन), ३.४.५३(श्रोणी सौन्दर्य हेतु सुवर्णरम्भा स्तम्भ दान का निर्देश), भविष्य ४.१३३.३२(इष्टापूर्त्त रूपी स्तम्भ - द्वय का उल्लेख), मत्स्य २५५(भवन में स्तम्भ का मान), २७०(स्तम्भों की संख्या अनुसार मण्डप का नाम), स्कन्द १.२.३(दान के लिए स्तम्भ तीर्थ की पवित्रता, देवशर्मा द्वारा पुण्य दान का वृत्तान्त), १.२.६.२४, १२३५, १.२.४५.११०, १.२.४८(स्तम्भ तीर्थ माहात्म्य के अन्तर्गत सोमनाथ के वृत्तान्त का वर्णन), १.२.५८(महीसागर सङ्गम तीर्थ के स्तम्भ नाम का कारण), १.३.२(वह्नि, ब्रह्मा व विष्णु द्वारा स्तम्भ के अन्त के अन्वेषण में असफलता, स्तुति, स्तम्भ का अरुणाचल रूप में रूपान्तरण), २.७.१७(ब्राह्मण, कान्तिमती - पति, वेश्यासक्ति से व्याध जन्म की कथा), ४.२.९७.६४(महाश्मशान स्तम्भ में उमा सहित रुद्र का वास), लक्ष्मीनारायण २.१४८.५२(दिशाओं में १६ स्तम्भों के देवताओं के स्वरूप के ध्यान व पूजन मन्त्र), २.१५८.५३(प्रासाद के स्तम्भ की नर की बाहुओं से उपमा ), २.२७८.४९, २.२७९.८, ३.४६.३५, कथासरित् ५.१.७, ७.३.८, १४.२.१८१, १८.२.१४५, stambha
Remarks on Stambha
स्तुतस्वामी वराह १४८,
स्तुति अग्नि ११६.३४(गया श्राद्ध प्रसंग में गदाधर/विष्णु की स्तुति), कूर्म १.१.६९(इन्द्रद्युम्न द्वारा विष्णु की स्तुति), १.६(पृथ्वी के उद्धार पर ऋषियों द्वारा वराह की स्तुति), १.१०.४४(रुद्र द्वारा जरा रहिjत सृष्टि से विरत होने पर ब्रह्मा द्वारा रुद्र की स्तुति), १.१६.९४(शूलारोपित होने पर अन्धक द्वारा शिव की स्तुति), १.२६.७८(लिङ्गान्त अन्वेषण प्रकरण में ब्रह्मा व विष्णु द्वारा शिव की स्तुति), २.५(ऋषियों द्वारा शिव की स्तुति), २.१८.३४(शिव रूपी सूर्य की स्तुति), २.३१(पञ्चम शिर छेदन पर ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), २.३९(देवदारु वन में ऋषियों द्वारा शिव की स्तुति), २.४६.५४(कूर्म पुराण श्रवण के पश्चात् ऋषियों द्वारा कूर्म की स्तुति), गणेश २.११.३७(इन्द्र द्वारा महोत्कट गणेश की स्तुति), गरुड १.२२३(घोर मातृकाओं के शमन हेतु शिव द्वारा नृसिंह की स्तुति), गर्ग १.३.१५(गोलोक में कृष्ण के दर्शन पर देवों द्वारा कृष्ण की स्तुति), १.१०(बलराम के जन्म पर व्यास द्वारा बलराम की स्तुति), १.१६(राधा - कृष्ण के विवाह के अवसर पर ब्रह्मा द्वारा राधा व कृष्ण की स्तुति), १.२०(कृष्ण के मुख में ब्रह्माण्ड दर्शन पर दुर्वासा द्वारा कृष्ण की स्तुति), २.९(गौ व गोपों के हरण के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति), ३.४(गोवर्धन धारण के पश्चात् इन्द्र द्वारा कृष्ण की स्तुति), ५.५(कृष्ण के दिव्य रूप के दर्शन पर अक्रूर द्वारा कृष्ण की स्तुति), ५.२१(रागों के अङ्ग भङ्ग की चिकित्सा हेतु नारद द्वारा सरस्वती की स्तुति), ६.२.२६(कालयवन के भस्म होने पर मुचुकुन्द द्वारा कृष्ण की स्तुति), ६.३.९(स्वकन्या के विवाहार्थ ब्रह्मा से पृच्छा के प्रसंग में राजा रैवत द्वारा ब्रह्मा की स्तुति), ६.१२(शङ्ख रूप से उद्धार होने पर कक्षीवान् द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.३९(शिव द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.४५(गोपाङ्गनाओं द्वारा कृष्ण की स्तुति), देवीभागवत १.७(विष्णु के प्रबोधनर्थ ब्रह्मा द्वारा योगनिद्रा की स्तुति), १.१२(स्त्रीत्व से मुक्ति हेतु इला/सुद्युम्न द्वारा जगदम्बा की स्तुति), ३.४+ (त्रिदेवों द्वारा भुवनेश्वरी देवी की स्तुति), ५.२२(शुम्भ - निशुम्भ के वध हेतु देवों द्वारा देवी की स्तुति), ६.५(वृत्र से मुक्ति हेतु देवों द्वारा जगदम्बा की स्तुति), ८.१(स्वायम्भुव मनु द्वारा सृष्टि हेतु आद्या देवी की स्तुति), ८.२(ब्रह्मा द्वारा वराह की स्तुति), ९.४७(त्रिपुर दैत्य वध प्रसंग में शिव द्वारा मङ्गलचण्डी की स्तुति), ९.४९(दुग्ध प्राप्ति हेतु इन्द्र द्वारा सुरभि गौ की स्तुति), १०.१३(अरुण दैत्य के वध हेतु देवों द्वारा भ्रामरी देवी की स्तुति), १२.९(दुर्भिक्ष में ब्राह्मणों की रक्षा हेतु गौतम द्वारा गायत्री की स्तुति), नारद १.११.१९(तप के पश्चात् विष्णु के प्राकट्य पर अदिति द्वारा विष्णु की स्तुति), १.१६.६१(भगीरथ के तप से भय प्राप्ति पर देवों द्वारा महाविष्णु की स्तुति), १.१६.७८(गङ्गा की प्राप्ति हेतु भगीरथ द्वारा शिव की स्तुति), १.६२.५०(वैकुण्ठ में विष्णु के दर्शन पर शुकदेव द्वारा विष्णु की स्तुति), १.७६.११५(महाविष्णु के स्तुतिप्रिय होने का उल्लेख), २.३२.२३(विरोचन दैत्य के भय से मुक्ति हेतु देवों द्वारा विष्णु की स्तुति), २.५३+ (मोक्ष प्राप्ति हेतु इन्द्रद्युम्न द्वारा पुरुषोत्तम की स्तुति), २.६१.१(अभिषेक उत्सव पर देवों द्वारा जगन्नाथ आदि की स्तुति), २.७३(शिव की स्तुति), पद्म १.१७.३०२(इन्द्र द्वारा गायत्री की स्तुति), १.३८.३७(राम द्वारा शिव की स्तुति), १.३८.१५३(पुष्कर में राम के पुष्पक विमान की गति अवरुद्ध होने पर राम द्वारा ब्रह्मा की स्तुति), १.७५(हिरण्याक्ष के वध पर देवों द्वारा विष्णु की स्तुति), ६.२४५.३०८(जल में कृष्ण के दर्शन पर अक्रूर द्वारा कृष्ण की स्तुति), ब्रह्म १.३४(पार्वती स्वयंवर प्रसंग में ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), १.३५(पार्वती के विवाह के अवसर पर देवों द्वारा शिव की स्तुति), १.५६(राजा श्वेत द्वारा वासुदेव की स्तुति), १.६९(कण्डु मुनि द्वारा विष्णु की स्तुति), २.४०.१०१(पिप्पलाद द्वारा शिव की स्तुति),२.४४(सत्र की निर्विघ्न समाप्ति हेतु देवों द्वारा गणेश की स्तुति), २.४७(आत्मज्ञान प्राप्ति हेतु दत्तात्रेय द्वारा शिव की स्तुति), २.५२(इन्द्र व बृहस्पति द्वारा हरिहर की स्तुति), २.५२(इन्द्र पद प्राप्ति हेतु धन्वन्तरि नृप द्वारा विष्णु की स्तुति), २.५४(दिति के गर्भ की शान्ति व इन्द्र के दोष की निवृत्ति के लिए कश्यप द्वारा शिव की स्तुति), २.६०(आपस्तम्ब द्वारा शिव की स्तुति), ब्रह्मवैवर्त्त १.४(सावित्री द्वारा कृष्ण की स्तुति), १.११(सूर्य द्वारा सुतपा की स्तुति), १.३०(भगवद् स्तुति), २.५५(राधा की स्तुति), २.६३(समाधि वैश्य द्वारा मूल प्रकृति की स्तुति), ३.४५(परशुराम द्वारा गणेश की स्तुति), ४.७(ब्रह्मादि, वसुदेव द्वारा कृष्ण की स्तुति), ४.२१.१७६(इन्द्र द्वारा कृष्ण की स्तुति), ४.२१.१९९(नन्द द्वारा कृष्ण की स्तुति), ४.२५.९०(दुर्वासा द्वारा नारायण की स्तुति), ४.९२.६३(उद्धव द्वारा गोकुल यात्रा पर राधा की स्तुति), ४.११३(शिशुपाल द्वारा कृष्ण की स्तुति), ब्रह्माण्ड १.२.३.२५(परशुराम द्वारा शिव की स्तुति), १.२.२५.६३(विषपान हेतु ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), २.३.४२(पार्वती की स्तुति), २.३.७२(कवि द्वारा शिव की स्तुति), ३.४.१३(देवों द्वारा ललिता देवी की स्तुति), ३.४.३०(ललिता देवी की स्तुति), भविष्य ४.११४(नल द्वारा शनि की स्तुति), भागवत १.८(कुन्ती द्वारा कृष्ण की स्तुति), ३.९(ब्रह्मा द्वारा विष्णु की स्तुति), ३.१३(ऋषियों द्वारा यज्ञवराह की स्तुति), ३.३३(देवहूति द्वारा कपिल की स्तुति), ४.६(ऋषियों द्वारा शिव की स्तुति), ४.७(देवों व याज्ञिकों द्वारा विष्णु की स्तुति), ४.२०(पृथु द्वारा विष्णु की स्तुति), ४.३०(प्रचेतागण द्वारा विष्णु की स्तुति), ५.१५(प्रतिहर्ता - भार्या, अज व भूमा - माता), ५.१७(शंकर द्वारा संकर्षण की स्तुति), ५.१८(अर्यमा द्वारा कच्छप की स्तुति), ५.१८(लक्ष्मी द्वारा काम की स्तुति), ५.१८(मनु द्वारा मत्स्य अवतार की स्तुति), ५.१८(पृथ्वी द्वारा वराह की स्तुति), ५.१९(हनुमान द्वारा राम की स्तुति), ६.९(देवों द्वारा नारायण की स्तुति), ७.३(हिरण्यकशिपु द्वारा ब्रह्मा की स्तुति), ७.८(विभिन्न गणों द्वारा नृसिंह की स्तुति), ७.९(प्रह्लाद द्वारा नृसिंह की स्तुति), ८.३(गज द्वारा भगवान् की स्तुति), ८.५.२४(ब्रह्मा द्वारा अजित की स्तुति), ८.६(ब्रह्मा द्वारा भगवान् की स्तुति), ८.७.२०(प्रजापति द्वारा शिव की स्तुति), ८.१२(शिव द्वारा श्रीहरि की स्तुति), ८.१७(ब्रह्मा द्वारा वामन की स्तुति ), ८.२४(सत्यव्रत द्वारा मत्स्य की स्तुति), ९.५(अम्बरीष द्वारा सुदर्शन चक्र की स्तुति), ९.८(अंशुमान् द्वारा कपिल की स्तुति), १०.२(शिव व विष्णु द्वारा देवकी के गर्भ की स्तुति), १०.३(वसुदेव व देवकी द्वारा बाल कृष्ण की स्तुति), १०.१०(कुबेर - पुत्र व यमलार्जुन द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.१४(ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.१६(कालिय नाग की पत्नियों द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.२७(इन्द्र द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.३७(नारद द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.४०(अक्रूर द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.४८(अक्रूर द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.५१(कालयवन द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.५९(नरकासुर वध के प्रसंग में पृथ्वी द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.६३(बाणासुर से युद्ध के प्रसंग में ज्वर द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.६३(बाण से युद्ध के प्रसंग में शंकर द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.८४(कुरुक्षेत्र यात्रा प्रसंग में मुनिगण द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.८५(वसुदेव द्वारा कृष्ण व बलराम की स्तुति), १०.८६(कृष्ण के मिथिला गमन के प्रसंग में श्रुतदेव व बहुलाश्व द्वारा कृष्ण की स्तुति), १०.८७(श्रुतियों द्वारा अजित की स्तुति), ११.६(देवों द्वारा कृष्ण की स्तुति), १२.८(मार्कण्डेय द्वारा नर व नारायण की स्तुति), १२.१०(मार्कण्डेय द्वारा शिव की स्तुति), मत्स्य १५४.६(तारक वध हेतु देवों द्वारा ब्रह्मा की स्तुति), १५४.२६०(कामदहन प्रसंग में रति द्वारा शिव की स्तुति), १५८(वीरक द्वारा पार्वती की स्तुति), १५९.४०(देवों द्वारा स्कन्द की स्तुति), १९३.३४(भृगु के कोप की परीक्षा के प्रसंग में भृगु द्वारा शिव की स्तुति), २४४(इन्द्र की प्रतिष्ठा हेतु अदिति द्वारा विष्णु की स्तुति), २४५(ब्रह्मा व प्रह्लाद द्वारा वामन की स्तुति), मार्कण्डेय ८१(ब्रह्मा द्वारा योगनिद्रा की स्तुति), ८४(देवों द्वारा देवी की स्तुति), ८५(देवों द्वारा विष्णुमाया की स्तुति), ९१(देवों द्वारा नारायणी देवी की स्तुति), १०३(ब्रह्मा द्वारा आदित्य की स्तुति), लिङ्ग १.३२(ऋषियों द्वारा शिव की स्तुति), १.४१.२८(ब्रह्मा द्वारा शिव/नीललोहित की स्तुति), १.९५(हिरण्यकशिपु वध के पश्चात् देवों द्वारा नृसिंह की स्तुति), १.९५.३५(नृसिंह के घोर रूप की शान्ति हेतु ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), १.९६(नृसिंह के घोर रूप के निग्रह पर नृसिंह द्वारा वीरभद्र की स्तुति), १.१०४(देवों द्वारा शिव की स्तुति), वराह ७३(शिव द्वारा विष्णु की स्तुति), ९५(देवों द्वारा वैष्णवी देवी की स्तुति), ९६( रुद्र द्वारा चामुण्डा की स्तुति), ११३(पृथ्वी द्वारा केशव की स्तुति), १४४(चन्द्रमा द्वारा शिव की स्तुति), १४८स्तुतिस्वामि, १९८(नचिकेता द्वारा यम की स्तुति), २१३(नन्दी द्वारा शिव की स्तुति), वामन ३(शिव द्वारा नारायण की स्तुति), २७(अदिति द्वारा विष्णु की स्तुति), ३२(मार्कण्डेय द्वारा सरस्वती की स्तुति), ४०(वसिष्ठ द्वारा सरस्वती की स्तुति), ४४(ऋषियों द्वारा शिव की स्तुति), ४७(वेन द्वारा शिव की स्तुति), ४९(ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ५६(देवों द्वारा मातृकाओं की स्तुति), ६५.१२१(कन्याओं द्वारा शिव की स्तुति), ६९(शुक्र द्वारा शिव की स्तुति), ७०(अन्धक द्वारा पार्वती की स्तुति), ८५.५५(मुनि पुत्र द्वारा अग्नि की स्तुति), ९२(ब्रह्मा द्वारा वामन की स्तुति), ९३(बलि द्वारा सुदर्शन चक्र की स्तुति), वायु ५४.६५(कालकूट विष पान हेतु ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ५५.३०(लिङ्गान्त दर्शन में असफलता पर ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), विष्णु १.४.१२(जल से उद्धार हेतु पृथिवी द्वारा वराह की स्तुति), १.९.४०(समुद्र मन्थन से पूर्व असुरों से त्राण हेतु देवों द्वारा विष्णु की स्तुति), १.१२.५१(ध्रुव द्वारा विष्णु की स्तुति), १.१४.२२(प्रचेतागण द्वारा गोविन्द/विष्णु की स्तुति), १.१९.६३(समुद्र में पतन पर प्रह्लाद द्वारा अच्युत/विष्णु की स्तुति), १.२०.९(समुद्र से उद्धार होने पर प्रह्लाद द्वारा पुरुषोत्तम/विष्णु की स्तुति), ५.१.३४(पृथ्वी के भार हरण की प्रार्थना हेतु ब्रह्मा द्वारा विष्णु की स्तुति), ५.२(गर्भ में कृष्ण को धारण करने पर देवों द्वारा देवकी की स्तुति), ५.१८.४८(यमुना जल में कृष्ण के दर्शन पर अक्रूर द्वारा कृष्ण की स्तुति), ५.२३.२८(कालयवन के भस्म होने पर मुचुकुन्द द्वारा कृष्ण की स्तुति), ५.३०.५(नरकासुर वध पर कुण्डलों की प्राप्ति पर अदिति द्वारा कृष्ण की स्तुति), विष्णुधर्मोत्तर १.२७(शक्र आदि द्वारा ब्रह्मा की स्तुति), १.२८(शक्र द्वारा शिव की स्तुति), १.२९(शिव द्वारा चन्द्रमा की स्तुति), १.३०(शिव द्वारा सूर्य की स्तुति), १.७१(परशुराम द्वारा वरुण की स्तुति), १.१९४(गज द्वारा विष्णु की स्तुति), २.१५७(शक्र, शक्रध्वज स्तुति), ३.१२२(कामना अनुसार देव स्तुति), स्कन्द १.१.५(ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), १.१.२२(देवों द्वारा शिव की स्तुति), १.२.२९(विश्वामित्र द्वारा १०८ नामों से कुमार की स्तुति), १.२.५१(कमठ द्वारा जयादित्य की स्तुति), २.१.२०(भद्रमति द्वारा भगवान् की स्तुति), २.१.२३(चक्र तीर्थ में पद्मनाभ द्विज द्वारा श्रीनिवास व सुदर्शन चक्र की स्तुति), २.२.१(ब्रह्मा द्वारा विष्णु की स्तुति), २.२.५(पुण्डरीक व अम्बरीष द्वारा जगन्नाथ की स्तुति), २.२.१२(इन्द्रद्युम्न द्वारा कोटिलिङ्गेश की स्तुति), २.२.१२(इन्द्रद्युम्न द्वारा नीलमाधव की स्तुति), २.२.१२(शिव द्वारा विष्णु की स्तुति), २.२.१५(इन्द्रद्युम्न द्वारा पुरुषोत्तम की स्तुति), २.२.१६(इन्द्रद्युम्न द्वारा नृसिंह की स्तुति), २.२.१७(इन्द्रद्युम्न द्वारा नीलमाधव की स्तुति), २.२.२०(इन्द्रद्युम्न द्वारा जगन्नाथ की स्तुति), २.२.२७.१५(इन्द्रद्युम्न द्वारा प्रतिष्ठित मूर्ति के प्रसंग में ब्रह्मा द्वारा नारायण की स्तुति), २.२.२८(ब्रह्मा द्वारा नृसिंह की स्तुति), २.२.३५(पुरुषोत्तमादि की स्तुति), २.३.२(सर्वभक्षी दोष से मुक्ति हेतु अग्नि द्वारा नारायण की स्तुति), २.३.३(बदरी क्षेत्र में नारद द्वारा नारायण की स्तुति), २.३.४(बदरी क्षेत्र में गरुड द्वारा नारायण की स्तुति), २.३.५(बदरी क्षेत्र में ब्रह्मा द्वारा नारायण की स्तुति), २.३.६(ब्रह्मा द्वारा विष्णु की स्तुति), २.७.१६(वैशाख माहात्म्य में पुरुयशा द्वारा विष्णु की स्तुति), २.८.१(विष्णुशर्मा द्वारा विष्णु की स्तुति), २.८.४(धर्म द्वारा विष्णु की स्तुति), २.८.६(शिव द्वारा विष्णु की स्तुति), २.८.७(घोष द्वारा सूर्य की स्तुति), ३.१.२(सेतुबन्धन प्रसंग में समुद्र द्वारा राम की स्तुति), ३.१.३(गालव द्वारा विष्णु व सुदर्शन चक्र की स्तुति), ३.१.२४(पञ्चम शिर छेदन प्रसंग में ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ३.१.४४(रावण वध के पश्चात् अगस्त्य द्वारा राम की स्तुति), ३.१.४६(लिङ्ग स्थापना प्रसंग में हनुमान द्वारा राम व सीता की स्तुति), ३.१.४९(रामादि द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.२.४(धर्म द्वारा शिव की स्तुति), ३.३.१४(भद्रायु परीक्षा प्रसंग में भद्रायु द्वारा शिव की स्तुति),४.१.२.३०( विन्ध्य से त्रस्त होने पर देवों द्वारा ब्रह्मा की स्तुति), ४.१.५(अगस्त्य द्वारा महालक्ष्मी की स्तुति), ४.१.२१(ध्रुव द्वारा विष्णु की स्तुति), ४.१.२५(अगस्त्य द्वारा कार्तिकेय की स्तुति), ४.२.५७.१७(शिव द्वारा गणेश की स्तुति), ४.२.६०(पञ्चनद तीर्थ में अग्निबिन्दु मुनि द्वारा विष्णु की स्तुति), ४.२.६३(जैगीषव्य द्वारा शिव की स्तुति), ४.२.७२.३७(दुर्ग दैत्य के वध पर देवों द्वारा विन्ध्यवासिनी देवी की स्तुति), ४.२.७३.१०१(ब्रह्मा द्वारा ओङ्कारेश्वर लिङ्ग की स्तुति), ४.२.७४(दुर्ग दैत्य वध प्रसंग में देवों द्वारा दुर्गा की स्तुति), ४.२.९५(व्यास की भुजा व वाक् स्तम्भन के प्रसंग में व्यास द्वारा शिव की स्तुति), ५.१.२(तम विनाश हेतु ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ५.१.३२(अर्जुन द्वारा सूर्य की स्तुति), ५.१.३८(अन्धक द्वारा शिव की स्तुति), ५.१.५१.३४(शिव भिक्षा प्रसंग में अमृत की पुन: प्राप्ति हेतु नागों द्वारा शिव की स्तुति), ५.१.५५(अगस्त्य द्वारा विन्ध्यवासिनी की स्तुति), ५.२.६५.२०(, ५.३.१२(ऋषियों द्वारा नर्मदा की स्तुति), ५.३.१६(संहार काल में ब्रह्मा द्वारा शिव की स्तुति), ५.३.१९(संहार काल में मार्कण्डेय द्वारा नर्मदा की स्तुति), ५.३.२०.२५(संहार काल में मार्कण्डेय द्वारा विष्णु की स्तुति), ५.३.२६.१६, ५.३.२८(त्रिपुर दाह प्रसंग में बाण द्वारा शिव की स्तुति), ५.३.३९.१५, ५.३.४८.१५, ५.३.८५.१७, ५.३.१८१(शिव द्वारा भृगु के कोप की परीक्षा के प्रसंग में भृगु द्वारा शिव की स्तुति), ५.३.१८६(अजरता - अमरता प्राप्ति हेतु गरुड द्वारा चामुण्डा की स्तुति), ५.३.१९२.४६(काम व अप्सरा आदि द्वारा नर - नारायण की स्तुति), ६.५४(नल द्वारा चर्ममुण्डा की स्तुति), ६.१७८(दुर्वासा द्वारा पद्मावती को उमा - महेश्वर स्तुति का कथन), ६.२५४(शिव द्वारा ताण्डव नृत्य पर पार्वती द्वारा शिव की स्तुति), ७.१.११(देवों व बालखिल्यों द्वारा सूर्य की स्तुति), ७.१.४९(दशरथ द्वारा शनि की स्तुति), हरिवंश १.४६(इन्द्र द्वारा चन्द्रमा की स्तुति), २.३(योगनिद्रा या आर्या देवी की स्तुति), २.१४.३४(कृष्ण द्वारा बलराम की स्तुति), २.१९(इन्द्र द्वारा कृष्ण की स्तुति), २.५२.५६(भीष्मक द्वारा कृष्ण की स्तुति), २.७२(कश्यप द्वारा शिव की स्तुति), २.७४(कृष्ण द्वारा बिल्वकेश्वर शिव की स्तुति), २.१०७(प्रद्युम्न द्वारा पार्वती की स्तुति), २.१२१(कृष्ण द्वारा गरुड की स्तुति), २.१२७(वरुण द्वारा कृष्ण की स्तुति), ३.४७(ब्रह्मा द्वारा नृसिंह की स्तुति), ३.६२(बृहस्पति द्वारा अग्नि की स्तुति), ३.६८(कश्यप द्वारा विष्णु की स्तुति), ३.७६(देवों द्वारा कृष्ण की स्तुति), ३.८२(घण्टाकर्ण द्वारा विष्णु की स्तुति), ३.८७(कृष्ण द्वारा शिव की स्तुति), ३.८८(शिव द्वारा विष्णु की स्तुति), ३.१११(दुर्वासा द्वारा कृष्ण की स्तुति), योगवासिष्ठ ५.३६(आत्म स्तुति), वा.रामायण ६.११७(रावण वध के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा राम की स्तुति), लक्ष्मीनारायण १.५०.६(जल से पृथ्वी के उद्धार के लिए ब्रह्मा द्वारा नारायण की स्तुति), १.५०.२८(पृथ्वी के उद्धार पर देवों द्वारा यज्ञवराह की स्तुति), १.७८(ब्रह्मा द्वारा धन्वन्तरि की स्तुति), १.१४०.५२(हिरण्यकशिपु के वध पर देवों द्वारा नृसिंह की स्तुति), २.१६२.८८(शतोढु द्वारा कपिल की स्तुति), २.२१२.३७(यज्ञान्त में अग्नि की स्तुति), ३.४.२, ३.११५.६९(भण्डासुर के वध हेतु देवों द्वारा महालक्ष्मी की स्तुति), ३.११८.१७(भण्डासुर के वध पर देवों द्वारा महालक्ष्मी की स्तुति ), द्र. शिवनाम स्तुति stuti
स्तेय स्कन्द ५.३.२०९.१७७(, द्र . कोशस्तेन, चोरी
स्तोकहोम लक्ष्मीनारायण २.१६७.३९, २.१९६,
स्तोत्र अग्नि ३१(पाप आदि के मार्जन हेतु अपामार्जन स्तोत्र), ४८(केशवादि स्तोत्र), १७१(पाप प्रणाशन स्तोत्र), १७२(पाप नाशक विष्णु स्तोत्र), २३७(सङ्ग्राम में जय हेतु श्री स्तोत्र), २७०(विष्णु पञ्जर स्तोत्र), कूर्म १.१२.२०७(सौम्य रूप के दर्शन पर हिमालय - कृत पार्वती स्तोत्र), १.३३(शङ्कुकर्ण द्वारा शिव स्तुति हेतु ब्रह्मपार स्तोत्र), २.३४.११२(रावण द्वारा सीता हरण पर सीता द्वारा अग्नि स्तोत्र), गणेश १.१३.३(ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा गणेश की स्तुति), १.४०.४२(गणेश की प्रसन्नता हेतु देवों द्वारा संकष्टनाशन स्तोत्र का पठन), १.४६.१(गणपति सहस्रनाम स्तोत्र), २.२१.६०(भ्रमरी राक्षसी के वध पर ऋषियों आदि द्वारा पठित गणेश स्तोत्र), २.३५.४( शौनक व औरव द्वारा पठित गणेश का कुजन्म नाशक स्तोत्र), २.५३.२७(काशिराज द्वारा गणेशलोक में गणेश दर्शन पर पठित स्तोत्र), २.९५.५(विश्वकर्मा द्वारा पार्वती हेतु पठित स्तोत्र), २.१०४.२(ब्रह्मा द्वारा गणेश की स्तुति, कारागृह आदि से मुक्ति हेतु स्तोत्र का विनियोग), गरुड १.१३(विष्णु पञ्जर स्तोत्र), १.३३(सुदर्शन चक्र स्तोत्र), १.८९(पत्नी हेतु कन्या प्राप्ति हेतु रुचि प्रजापति द्वारा कृत पितर स्तोत्र), १.२२४(शिव द्वारा नारद को कथित कुलामृत स्तोत्र), १.२२५(मार्कण्डेय - प्रोक्त मृत्यु अष्टक स्तोत्र), १.२२६(ब्रह्मा द्वारा नारद को कथित वासुदेव स्तोत्र), ३.२५.४७(वेंकटेश की स्तुति में सुप्रभात स्तोत्र), गर्ग १.२०(कृष्ण के मुख में ब्रह्माण्ड दर्शन पर दुर्वासा - कृत नन्दनन्दन स्तोत्र), ४.१७(सौभरि द्वारा मान्धाता को यमुना स्तोत्र का कथन), ८.११(बलराम स्तोत्र), देवीभागवत ८.८(इलावृत वर्ष में रुद्र - कृत संकर्षण स्तोत्र), ८.८(भद्राश्व वर्ष में भद्रश्रवा - कृत हयग्रीव स्तोत्र), ८.९(केतुमाल वर्ष में लक्ष्मी - कृत कामदेव रूपी हरि हेतु स्तोत्र), ८.९(हरिवर्ष में प्रह्लाद - कृत नृसिंह स्तोत्र), ८.९(रम्यक वर्ष में मनु - कृत मत्स्य रूपी हरि हेतु स्तोत्र), ८.१०(अर्यमा - कृत कच्छप रूप हेतु स्तोत्र), ८.१०(किम्पुरुष वर्ष में हनुमान - कृत राम स्तोत्र), ८.१०(उत्तरकुरु वर्ष में पृथ्वी - कृत वराह स्तोत्र), ८.२४(देवी स्तोत्र), ९.५(याज्ञवल्क्य - कृत सरस्वती स्तोत्र), ९.९(नारायण - कृत पृथिवी स्तोत्र), ९.१२(गङ्गा स्तोत्र), ९.२५(नारायण - कृत तुलसी स्तोत्र), ९.४२(इन्द्र - कृत महालक्ष्मी स्तोत्र), ९.४४(स्वधा स्तोत्र), ९.४५(यज्ञ - कृत दक्षिणा स्तोत्र), ९.४६(षष्ठी स्तोत्र), ९.४८(तक्षक की सर्प सत्र से रक्षा प्रसंग में इन्द्र - कृत मनसा देवी स्तोत्र), ९.५०(नारायण - कृत राधा स्तोत्र), १०.११(मधु व कैटभ के निग्रहार्थ ब्रह्मा - कृत देवी स्तोत्र), १२.५(गायत्री स्तोत्र), नारद १.२(नारद - कृत विष्णु स्तोत्र), १.४.८२(मृकण्डु - कृत विष्णु स्तोत्र), १.५.३६(मार्कण्डेय - कृत विष्णु स्तोत्र), १.१९.२१(ध्वजारोपण व्रत में विष्णु स्तोत्र), १.३८(गुलिक व्याध की मुक्ति पर उत्तङ्क - कृत विष्णु स्तोत्र), १.८३.१२८(सावित्री पञ्जर स्तोत्र), १.८९.११(मातृका देवी स्तोत्र), १.९१.२१७(शिव स्तोत्र), २.२९.३८(ब्रह्महत्या से मुक्ति पाने के लिए शिव द्वारा कृत विष्णु स्तोत्र), २.४३.६६(वसु - मोहिनी संवाद में गङ्गा दशहरा स्तोत्र), २.७३(ताण्डव नृत्य के दर्शन पर जैमिनि - कृत शिव स्तोत्र), पद्म १.३३(राम कृत अजगन्ध शिव स्तोत्र), १.४३(तारक वध हेतु देवों द्वारा ब्रह्मा के लिए कृत स्तोत्र), १.४४.१०९(वीरक - कृत पार्वती स्तोत्र), १.४६(अन्धक द्वारा पराजय पर शिव द्वारा कृत सूर्य स्तोत्र), १.६१(शतानन्द कृत तुलसी स्तोत्र), १.६३(गणेश स्तोत्र), १.७५(विष्णु स्तोत्र), १.७८(सूर्य स्तोत्र), २.१९(विष्णु स्तोत्र), २.३२(वासुदेव स्तोत्र), २.८७(कृष्ण शतनाम स्तोत्र), २.९८(विज्वल द्वारा सुबाहु राजा की मुक्ति हेतु पठित वासुदेव स्तोत्र), ३.१५(शिव स्तोत्र), ३.१७(नर्मदा स्तोत्र), ३.२०(शिव स्तोत्र), ३.३५(शङ्कुकर्ण द्वारा शिव आराधना हेतु ब्रह्मपार स्तोत्र), ५.२१(पुरुषोत्तम स्तोत्र), ५.९४(मुनिशर्मा व पांच प्रेतों के संदर्भ में पापशमन स्तोत्र), ५.१००, ६.२२(गङ्गा, यमुना, प्रयाग, काशी, गया स्तोत्र), ६.३३(दशरथ कृत शनि स्तोत्र), ६.७३(रामरक्षा स्तोत्र), ६.७६(ब्रह्मा द्वारा राम के लिए पठित आभ्युदयिक व और्ध्वदेहिक स्तोत्र), ६.७८(अपामार्जन स्तोत्र), ६.९८(विष्णु स्तोत्र), ६.१०४(आदिमाया स्तोत्र), ६.१२८.२२२(देवद्युति कृत विष्णु स्तोत्र), ६.१५९(अनिरुद्ध - कृत कोटराक्षी देवी स्तोत्र), ६.२२१(हरिहर स्तोत्र), ६.२५४(राम स्तोत्र), ७.७(धर्मस्व द्वारा पठित गङ्गा स्तोत्र), ७.१७.१९३(भद्रतनु कृत विष्णु स्तोत्र), ७.१९(विष्णु स्तोत्र), ब्रह्म १.६९(कण्डु मुनि - कृत ब्रह्मपार स्तोत्र), २.६(गङ्गा अवतरण प्रसंग में गौतम - कृत शिव स्तोत्र), २.५३(राम द्वारा गौतमी गङ्गा में स्नान से दशरथ की नरक से मुक्ति पर राम - कृत शिव स्तोत्र), २.५९(महाशनि के वध हेतु इन्द्र - कृत शिव स्तोत्र), ब्रह्मवैवर्त्त १.३(धर्म - कृत कृष्ण स्तोत्र), १.३(सरस्वती आदि द्वारा पठित कृष्ण स्तोत्र), १.१८.९(पति उपबर्हण गन्धर्व के जीवित होने पर मालावती द्वारा महापुरुष स्तोत्र का पठन), १.२१(कृष्ण स्तोत्र), २.५(याज्ञवल्क्य - कृत सरस्वती स्तोत्र), २.८(पृथिवी स्तोत्र), २.१०.१३५(गङ्गा स्तोत्र), २.२८(सावित्री - कृत यम स्तोत्र), २.३९(लक्ष्मी स्तोत्र), २.४३(षष्ठी देवी स्तोत्र), २.४४(मङ्गलचण्डी स्तोत्र), २.४६(जरत्कारु की कथा के अन्तर्गत इन्द्र - कृत मनसा देवी स्तोत्र), २.४७(इन्द्र - कृत सुरभि स्तोत्र), २.६६(सुरथ - कृत दुर्गा स्तोत्र), ३.७.१०९(पार्वती - कृत कृष्ण स्तोत्र), ३.१३(विष्णु - कृत गणेश स्तोत्र), ३.१९(सूर्य स्तोत्र), ३.२१(लक्ष्मी स्तोत्र), ३.३२(शिव - कृत कृष्ण स्तोत्र), ३.४४(परशुराम - कृत विष्णु स्तोत्र), ३.४५(दुर्गा स्तोत्र), ४.५(ब्रह्मा द्वारा कृत कृष्ण स्तोत्र), ४.६(ब्रह्मादि द्वारा पठित लक्ष्मीनारायण स्तोत्र), ४.१७.२१७(राधा स्तोत्र), ४.१८.३६(विप्र - पत्नियों द्वारा पठित कृष्ण स्तोत्र), ४.१९(सुरसा - कृत कृष्ण स्तोत्र), ४.२०(ब्रह्मा - कृत कृष्ण स्तोत्र), ४.२१.१४७(नन्द - कृत इन्द्र हेतु स्तोत्र), ४.२२(धेनुकासुर - कृत कृष्ण स्तोत्र), ४.२७(जय दुर्गा स्तोत्र), ४.२७.१७३(जानकी - कृत गौरी स्तोत्र), ४.२९(अष्टावक्र - कृत कृष्ण स्तोत्र), ४.३०.४३(असित - कृत शिव स्तोत्र), ४.३१.६५(मोहिनी - कृत काम स्तोत्र), ४.३७.४०(शंकर - कृत पार्वती स्तोत्र), ४.३८.६५(हिमालय - कृत शिव स्तोत्र), ४.४३.७४(शिव - कृत प्रकृति स्तोत्र), ४.४४.६३(हिमालय - कृत शिव स्तोत्र), ४.४८(ब्रह्मा - कृत शिव स्तोत्र), ४.५१(धन्वन्तरि - कृत मनसा देवी स्तोत्र), ४.५६.७५(देवों द्वारा पठित लक्ष्मी स्तोत्र), ४.५९.१४३(शची - कृत गुरु स्तोत्र), ४.६९(ब्रह्मा - कृत कृष्ण स्तोत्र), ४.७०(अक्रूर - कृत कृष्ण स्तोत्र), ४.८८(शंकर - कृत दुर्गा स्तोत्र), ४.९२.६३(उद्धव - कृत राधा स्तोत्र),४.१०७(भीष्मक - कृत कृष्ण स्तोत्र), ४.११९(बलि - कृत कृष्ण स्तोत्र), ४.१२२(ब्रह्मा - कृत राधा स्तोत्र), ब्रह्माण्ड १.२.२७(शिव के लिङ्ग पतन के पश्चात् ऋषियों द्वारा शिव के लिए कृत स्तोत्र), १.२.३२.६४(स्तोत्रों के चार प्रकार), २.३.३५+ (श्रीकृष्णामृत स्तोत्र), २.३.३६(अगस्त्य द्वारा परशुराम को कृष्ण प्रेमामृत स्तोत्र का कथन), २.३.३७(परशुराम - कृत कृष्ण स्तोत्र), २.३.४३(गणेश के दन्त छेदन की कथा में परशुराम द्वारा पार्वती हेतु पठित स्तोत्र), २.३.७१(कृष्ण जन्म स्तोत्र), २.३.७२.१६२(शिव से विद्या प्राप्ति के पश्चात् शुक्र - कृत शिव स्तोत्र), ३.४.१३(देवों द्वारा ललिता हेतु कृत स्तोत्र), ३.४.३९(ब्रह्मा - कृत कामाक्षी देवी स्तोत्र), भविष्य १.१२३(सूर्य स्तोत्र), ३.४.२५(ब्रह्मा - कृत विष्णु स्तोत्र), भागवत ४.२४(शिव - कृत विष्णु स्तोत्र), ६.४(दक्ष - प्रोक्त हंस गुह्य स्तोत्र), मत्स्य ४७.१२८(धूमपान व्रत की पूर्णता पर शुक्र - कृत शिव स्तोत्र), १४५.५९(स्तोत्रों के चार प्रकार), १८८.६६(बाण द्वारा महादेव की तोटक छन्द में स्तुति), १९३.४५(भृगु द्वारा शिव की स्तुति हेतु करुणाभ्युदय नामक स्तोत्र), २५०(कालकूट विष पान हेतु देवों व दानवों द्वारा पठित शिव स्तोत्र), मार्कण्डेय २३(अश्वतर - कृत सरस्वती स्तोत्र), ७८(देवों द्वारा कृत सूर्य स्तोत्र), ९६(रुचि - कृत पितर स्तोत्र), ९९(शान्ति द्वारा पठित अग्नि स्तोत्र), १०४(सूर्य की पुत्र रूप में प्राप्ति हेतु अदिति - कृत दिवाकर स्तोत्र), १०६(सप्तर्षियों द्वारा कृत सूर्य स्तोत्र), १०७(विश्वकर्मा - कृत सूर्य स्तोत्र), १०९(ब्राह्मण - कृत भानु स्तोत्र), महाभारत आश्व. २५.१४(प्राण स्तोत्र, अपान शस्त्र), लिङ्ग १.१८(विष्णु - कृत शिव स्तोत्र), १.२१(ब्रह्मा व विष्णु - कृत शिव स्तोत्र), १.७२.१२२(त्रिपुर दहन के पश्चात् देवों द्वारा कृत शिव स्तोत्र), १.८२(पाप व्यपोहन स्तोत्र), वराह ३(ब्रह्मपार स्तोत्र), ६(पुण्डरीकाक्ष पार स्तोत्र), ७(गदाधर स्तोत्र), ८(विष्णु स्तोत्र),१५(दशावतार स्तोत्र), २०(ब्रह्मपार स्तोत्र), ९५.६९(देवी स्तोत्र), १९८.८(यम स्तोत्र), वामन १४(शिव - प्रोक्त सुप्रभातम् स्तोत्र), १७(विष्णु पञ्जर स्तोत्र), २६(कश्यप - कृत विष्णु स्तोत्र), ८४(गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र), ८५(सारस्वत स्तोत्र), ८५(विष्णु पञ्जर स्तोत्र), ८६(महेश्वर - कृत विष्णु स्तोत्र), ८७(अगस्त्य - कृत विष्णु स्तोत्र), वायु २४.९०(विष्णु व ब्रह्मा - कृत शिव स्तोत्र), ५९.५८(स्तोत्रों के ४ प्रकार), ९७.१६१(विद्या प्राप्ति के पश्चात् शुक्र - कृत शिव स्तोत्र), १०९.२६(गय असुर के निश्चल होने पर ब्रह्मादि - कृत गदाधर/विष्णु स्तोत्र), विष्णु १.४.३१(पृथ्वी के उद्धार पर सनकादि - कृत वराह स्तोत्र), १.९.११७(राज्य प्राप्ति के पश्चात् इन्द्र - कृत श्री स्तोत्र), १.१५.५४(केशव आराधना हेतु कण्डु मुनि - कृत ब्रह्मपार स्तोत्र), ३.१७(देवों द्वारा कृत विष्णु स्तोत्र, विष्णु के विभिन्न नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१२२(देवों द्वारा कृत अग्नि स्तोत्र), १.१२३(देवों द्वारा वायु के लिए पठित स्तोत्र), १.१९५(विष्णु पञ्जर स्तोत्र), १.२३३(शक्र द्वारा स्कन्द हेतु पठित स्तोत्र), १.२३५(शिव - कृत भद्रकाली स्तोत्र), ३.३४४(कश्यप - कृत विष्णु स्तोत्र), ३.३४६(उपरिचर वसु के लिए बृहस्पति - प्रोक्त रक्षा स्तोत्र), ३.३४७(उपरिचर वसु द्वारा वासुदेव के लिए पठित स्तोत्र), ३.३५०(नारद - कृत वासुदेव स्तोत्र), ३.३५५(विष्वक्सेन - कृत मधुसूदन स्तोत्र), ३.३४६(उपरिचर वसु - कृत गरुड स्तोत्र), शिव २.२.६(सन्ध्या - कृत शिव स्तोत्र), २.२.१५(ब्रह्मा व विष्णु - कृत शिव स्तोत्र), ६.११.२२(वामदेव - कृत स्कन्द स्तोत्र), ७.२.३१(पञ्चावरण शिव स्तोत्र), स्कन्द १.२.२२(देवों द्वारा पठित विष्णु स्तोत्र), १.२.६२(विजय विप्र - कृत अपराजिता विद्या स्तोत्र), १.२.६५.५१(भीम - कृत एकानंशा स्तोत्र), २.२.२७(बलभद्र स्तोत्र), २.२.२८(ब्रह्म - कृत नृसिंह स्तोत्र), २.२.२९(दारुदेह स्तोत्र), २.२.३१(पुरुषोत्तम स्तोत्र), २.२.४६(भगवद् स्तोत्र), २.४.५टीका (सुप्रभातम् स्तोत्र), २.४.१६.५(संकष्टनाश स्तोत्र), २.४.२२.२२(त्रिसन्ध्य स्तोत्र), २.५.१६(अधिकार, ४.१.१०.१४०(विश्वानर - प्रोक्त अभिलाषाष्टक स्तोत्र), ४.१.१६.१०१(धूमकण पान के पश्चात् शुक्र द्वारा कृत शिव स्तोत्र),४.१.१७.३४(अङ्गिरस/जीव द्वारा कृत अद: नामक शिव स्तोत्र), ४.१.२५.१०(अगस्त्य - कृत स्कन्द स्तोत्र), ४.१.२७(गङ्गा दशहरा स्तोत्र), ४.१.४९(सूर्य - कृत मङ्गला गौरी अष्टक स्तोत्र), ४.१.४९.५५(सूर्य - कृत शिव - पार्वती स्तोत्र), ४.१.४९.४६(सूर्य - कृत शिव स्तोत्र), ४.२.६३.३०(जैगीषव्य द्वारा शिव स्तोत्र), ४.२.९५.५६(व्यास द्वारा शिव हेतु कृत व्यासाष्टक स्तोत्र), ५.१.३३(कृष्ण कृत सूर्य स्तोत्र, सूर्य के १०८ नाम), ५.१.६४(भैरवाष्टक स्तोत्र), ५.२.२६(सोम द्वारा क्षय से मुक्ति हेतु सोमेश्वर स्तोत्र), ५.२.७२.२३, ५.३.१२.१६, ५.३.६०.२४(ऋषियों द्वारा कृत नर्मदा स्तोत्र), ५.३.९७.१०२(व्यास - कृत नर्मदा स्तोत्र), ५.३.१८१.४३, ५.३.१८६.१५, ७.१.२२(चन्द्रमा - कृत शिव स्तोत्र), ६.२५८(शिव - कृत सुरभि स्तोत्र), ७.१.३८(कपर्दी स्तोत्र), ७.१.१३१(ध्रुव - कृत शिव स्तोत्र), ७.१.२९०(कुबेर - कृत सोमनाथ स्तोत्र), हरिवंश २.१०९(बलराम द्वारा प्रद्युम्न को आह्निक स्तोत्र का कथन), २.१२०(अनिरुद्ध - कृत कोटवती देवी स्तोत्र), २.१२५(मार्कण्डेय - कृत हरिहर स्तोत्र), ३.७२.६३(नारद द्वारा बलि को प्रदत्त मोक्षविंशक स्तोत्र), ३.९०(शिव द्वारा कृष्ण हेतु पठित स्तोत्र), ५.४(सन्तान गोपाल स्तोत्र), महाभारत आश्वमेधिक २५.१४(प्राण स्तोत्र और अपान शस्त्र होने का उल्लेख), वा.रामायण ६.१०५(अगस्त्य द्वारा राम हेतु पठित आदित्य ह्रदय स्तोत्र), लक्ष्मीनारायण १.४१.१(पितृ स्तोत्र), १.४२(सूर्य - कृत मानस सूर्य/हरि स्तोत्र),१.३७०, १.४५६.२६(लोपामुद्रा द्वारा पठित महालक्ष्मी स्तोत्र), २.२६.६६(सुप्रभातम् स्तोत्र), २.६०.५३(उदय राजा द्वारा विराट् रूप के दर्शन पर कृष्ण स्तोत्र), २.६१.३६(लोमश - प्रोक्त कृष्ण रक्षा स्तोत्र), २.६२.३९(रोगी जन द्वारा स्वास्थ्य लाभ पर कृष्ण स्तोत्र), ३.५७, ३.१०९(ब्रह्मशर स्तोत्र), ३.१०९.१(विभिन्न प्रकार के तपों के पश्चात् स्तोत्र द्वारा प्राप्त फलों का कथन), ३.१६७(अक्षनाश हेतु स्तोत्र), ४.५५(कृष्ण स्तोत्र ), ४.८५, द्र. विष्णुस्तोत्र stotra
स्तोम महाभारत अनुशासन ४८.१०(सूत के स्तोमक्रियापरक होने का उल्लेख ) stoma
Remarks on Stoma
स्त्री अग्नि १६५.६(बलात्कार आदि के कारण स्त्री की अशुद्धि या शुद्धि का प्रश्न), २२४(अनुरागिणी व पति से विरक्त स्त्री के लक्षण), २४४(स्त्री के शुभाशुभ शरीर लक्षण), २५६, गरुड १.५५.१५(पश्चिम् में स्त्री राज्य), १.६४(स्त्री के शुभाशुभ शरीर लक्षण), १.६५(स्त्री के सामुद्रिक लक्षणों का कथन), १.१८५.६(स्त्री वशीकरण ओषधि योग), ३.२.२६(स्त्री के प्रतिबिम्ब में स्थित बिम्ब होने का उल्लेख), गर्ग १०.१७(स्त्री राज्य की अधिपति सुरूपा का अनिरुद्ध - प्रिया बनना), नारद १.५६.३१२(स्त्री के प्रथम रजोदर्शन काल का शुभ - अशुभ ज्योतिष विचार), पद्म ६.७७.४५(रजस्वला स्त्री के दोष), ब्रह्मवैवर्त्त १.२३(नारद द्वारा वर्णित स्त्री स्वभाव), २.५८(परस्त्री गमन दोष, चन्द्र पाप प्राप्ति), ४.५९(रजस्वला स्त्री से भोग निषेध), ४.८४(उत्तम, मध्यम आदि स्त्रियों के लक्षण), ब्रह्माण्ड १.२.७.७८(स्त्री में आर्तव उत्पत्ति), भविष्य १.५(स्त्री के शुभ - अशुभ लक्षण), १.८(स्त्री के दुष्टादुष्ट स्वभाव का परीक्षण), १.९(पतिव्रता स्त्री के करणीय कर्म), १.१०(स्त्री के दुjर्वृत्त का वर्णन), १.११+ (स्त्री हेतु गृहधर्म विधि), १.२८(स्त्री के शुभाशुभ शरीर लक्षण), १.१८४.२(वेद विक्रय से प्राप्त धन स्त्री के लिए ग्राह्य? होने का उल्लेख), ३.३.३१.२८, ४.५२(मृतवत्सा को जीववत्सा बनाने के लिए संस्कार), भागवत ५.२४(कामिनी स्त्री आदि की बल की जम्भाई से उत्पत्ति), ६.५.७(व्यभिचारिणी स्त्री), ६.९(स्त्री द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या का ग्रहण), ७.११(स्त्री के कर्तव्य), मार्कण्डेय ३५(मदालसा - कथित स्त्री धर्म), वराह ६८(अगम्या स्त्री), १४२, विष्णु ३.११.११४(स्त्री गमन हेतु काल व नियम), ६.२.२५(कलियुग में स्त्रियों की धन्यता), विष्णुधर्मोत्तर २.९(स्त्री के लक्षण), २.३३(पतिव्रता स्त्री के लक्षण), २.३४(स्त्री धर्म), २.३५(स्त्री द्वारा पूजनीय देवता), २.५२(स्त्री चिकित्सा का वर्णन), २.६२(रतिप्रिया स्त्री के लक्षण), ३.११९.८( ओषधि समारम्भ में कूर्म या स्त्रीरूप/ मोहिनी? की पूजा का निर्देश ), ३.३२२.४(अष्टावक्र द्वारा उत्तर दिशा से स्त्री स्वभाव का श्रवण), शिव ५.२४.२(पञ्चचूडा - प्रोक्त स्त्री स्वभाव), स्कन्द ४.१.३७(स्त्री के शुभाशुभ शरीर लक्षण), ६.१४४(जाबालि - फलवती संवाद में स्त्री की निन्दा - स्तुति), ६.१५८(मणिभद्र द्वारा स्त्री की गर्हणा), महाभारत अनुशासन १२.४९, ३९, योगवासिष्ठ १.२१(स्त्री के दोष/स्त्री निन्दा ; मनुष्य रूपी हाथी के लिए स्त्री रूप स्तम्भ), लक्ष्मीनारायण १.६९(स्त्री शरीर के चिह्नों/लक्षणों के अनुसार प्रकृति का ज्ञान), १.४६१, १.५४७, ३.१३.८४, ३.१४, ३.४०, ३.९२.३९ (राजा भङ्गास्वन द्वारा सरोवर में स्नान मात्र से स्त्री बनने तथा उसके पश्चात् का वृत्तान्त, स्त्री के गुण - दोषों का वर्णन), ३.१५४.२०, ४.४४.६१, कथासरित् ८.४.१०४(स्त्रियों के विभिन्न गुणों का कथन ), द्र. वरस्त्री stree/ stri
स्त्री - पुरुष भागवत ५.१७.१५(इलावृत वर्ष में केवल भगवान् भव के ही पुमान होने तथा अन्यों के स्त्री हो जाने का कथन), मार्कण्डेय १११.८/१०८.८(मनु - पुत्री इला के पुरुष व स्त्री बनने व सन्तान उत्पन्न करने का वृत्तान्त ) stree – purusha/ stri - purusha
स्थण्डिल भागवत ११.११.४५(स्थण्डिल/मिट्टी की वेदी में मन्त्रह्रदय द्वारा विष्णु की उपासना का निर्देश), लक्ष्मीनारायण ३.११२.८७(स्थण्डिलघोष द्वारा योगिनी ब्रह्मसती का अपहरण, ज्ञान प्राप्ति पर शिव का गण बनना ) ‹
स्थल वायु ४३.२०(महास्थल : भद्राश्व देश के जनपदों में से एक), स्कन्द ४.२.७८.६०(स्थलचरी देवी द्वारा वक्ष स्थल की रक्षा), ७.१.१०.५(स्थलेश्वर तीर्थ का वर्गीकरण – पृथिवी), लक्ष्मीनारायण २.२०६.३२(स्थल मातृका ), द्र. क्रतुस्थली, पुञ्जिकस्थला, यज्ञस्थल sthala
स्थविर स्कन्द ५.१.३१.८६(स्थविर विनायक का माहात्म्य ) sthavira
स्थविश्व ब्रह्म २.६८.२(शर्याति - भार्या ) ‹
स्थाणु ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.५१(स्थाणु शिव से स्वप्न व जागरण में रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.९.८९(रुद्र के स्थाणु नाम का कारण), ३.४.४४.४९(लिपि न्यास प्रसंग में एक व्यंजन के देवता), भविष्य ४.१७८(अपत्यहीन शिव का रूप), मत्स्य १३, वराह २१३,वामन ४३+ (लिङ्ग स्थापना से निर्मित स्थाणु तीर्थ व वट), ४५+ (स्थाणु तीर्थ व लिङ्ग का माहात्म्य), ४७(वेन व पृथु के प्रसंग में स्थाणु का माहात्म्य), ५७.६३(ब्रह्मा द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण), ९०.१७(कुरुजाङ्गल में विष्णु का स्थाणु नाम से वास), स्कन्द १.२.२.४१(स्थाणु दान), ३.३.१२.२१(स्थाणु शिव से बहि: स्थिति में रक्षा की प्रार्थना - अंतःस्थितं रक्षतु शंकरो मां स्थाणुः सदा पातु बहिःस्थितं माम् ।), ४.२.६९.७(स्थाणु लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) sthaanu
स्थान ब्रह्माण्ड १.१.५.६५(ब्रह्मा द्वारा सृष्ट स्थान - अभिमानी देवों का कथन, स्थानिकों की परिभाषा), विष्णुधर्मोत्तर ३.२३(अभिनय में स्थान ), स्कन्द ५.३.१९८.६८, द्र. जनस्थान sthaana
स्थाली अग्नि ८१.५८(स्थाली में चरु पाक विधि), ब्रह्म २.२३, भविष्य ४.१७०(स्थाली दान विधि, द्रौपदी द्वारा स्थाली दान), विष्णु ४.६.७७, स्कन्द ४.१.४९(सूर्य द्वारा द्रौपदी को स्थाली प्रदान ), योगवासिष्ठ ३.१०१, लक्ष्मीनारायण २.२२५.९४, sthaalee/ sthali
स्थाप स्कन्द ७.१.१०.११(स्थाप तीर्थ का वर्गीकरण – आकाश)
स्थावर अग्नि ८४.३२(६ मृग योनियों में पंचम), गणेश १.६३.८(स्थावर नगर में कौण्डिन्य मुनि की कथा), नारद १.६६.१०८(स्थावरेश की शक्ति दीर्घजिह्वा का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.१.५.६१(स्थावरों में ब्रह्मा के विपर्यय द्वारा स्थित होने का उल्लेख), वायु १.६.५७/६.६१(चतुर्थ मुख्य सर्ग के स्थावर नाम का उल्लेख), स्कन्द ५.२.५०.२४(शनि द्वारा पूजित स्थावरेश लिङ्ग का माहात्म्य), महाभारत आदि १२७.५७(जङ्गम विष द्वारा स्थावर विष के नाश का कथन), अनुशासन ५८.२३, आश्वमेधिक २१.१६(मन के स्थावर व जङ्गम प्रकारों का कथन), २१.२६(स्थावरत्व की दृष्टि से मन और जङ्गमत्व की दृष्टि से वाक् के श्रेष्ठ होने का कथन ) sthaavara/ sthavara
स्थिति गरुड १.२१.३, योगवासिष्ठ ४.१, लक्ष्मीनारायण ३.३०.४६(स्थिति के तीन साधनों मैत्री, मान व यश का उल्लेख ) sthiti
स्थिर वामन ५७.६६(वेधा द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण), कथासरित् ८.२.३८३स्थिरबुद्धि, ८.७.३२स्थिरबुद्धि,
स्थूण योगवासिष्ठ १.१८.२२(देह गृह में मिथ्या महामोह के स्थूण होने का उल्लेख ) sthoona/sthuuna/ sthuna
स्थूणाकर्ण अग्नि २४२.५१(दण्ड के प्रकारों में से एक), हरिवंश २.१२२.३८(कृष्ण द्वारा अंगिरा पर प्रयुक्त बाण का प्रकार), ३.५४.७(मन्त्रों/अस्त्रों के प्रकारों में एक)
स्थूलकर्ण स्कन्द ४.२.५३.१२३ (स्थूलकर्णेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७४.५५ (स्थूलकर्ण गण की काशी में असि पार स्थिति ) sthoolakarna/sthuulakarna/ sthulakarna
स्थूलकेश देवीभागवत २.८(स्थूलकेश मुनि द्वारा प्रमद्वरा कन्या का पालन), स्कन्द ४.१.४५.३९(स्थूलकेशी : ६४ योगिनियों में से एक ), कथासरित् २.६.७८, sthoolakesha / sthuulakesha/ sthulakesha
स्थूलजङ्घ स्कन्द ४.२.५७.१११(स्थूलजङ्घ गणपति का संक्षिप्त माहात्म्य),
स्थूलदत्त स्कन्द ४.२.५७.९८(स्थूलदन्त गणेश का संक्षिप्त माहात्म्य), कथासरित् ६.४/९४स्थूलदत्त,
स्थूलबाहु कथासरित् १२.२.१८, १२.२४.१४,
स्थूलभुज कथासरित् ९.२.७०
स्थूलशिरा वराह ५(अश्वशिरा - पुत्र), वा.रामायण ३.७१.३(स्थूलशिरा ऋषि के शाप से कबन्ध का कुरूप बनना ), कथासरित् १.२.१८, ९.६.९४, sthoolashiraa/ sthulashira
स्थूलाक्ष वा.रामायण ३.२३.३३, ३.२६.१७(खर - सेनानी, राम द्वारा वध),
स्नान अग्नि २२(अघमर्षण स्नान), ५८(देवता स्नान, वैदिक मन्त्रों द्वारा स्नान विधि), ६१.१(अवभृथ स्नान का वर्णन), ६८(तीर्थों में स्नान), ६९(तीर्थों में स्नान), ७२(स्नान के प्रकार व विधि), १५५(स्नान मन्त्र), १५५(षोढा स्नान), २२४(स्नान द्रव्य), २३६(विजय स्नान), २६५(काम्य स्नान विधि), २६५(दिक्पाल स्नान विधि), २६६(स्नान से अनपत्यनाश, दु:स्वप्न नाश), २६६(विनायक विघ्न शान्ति हेतु स्नान विधि), २६७.२(माहेश्वर स्नान विधि), २६७.७(कामना अनुसार स्नान विधान), २६७(विष्णु स्नान), २६७(विष्णुपादोदक स्नान), कूर्म २.१८.१०( स्नान के प्रकार), गणेश १.६९.२३(गणेश हेतु स्नान मन्त्र : यत्पुरुषेण इति), गरुड १.५०.८(स्नान के प्रकार), १.२०६(वैदिक मन्त्रों सहित स्नान विधि), २.१०.६२(स्नान वस्त्रों से भूमि पर गिरने वाले अम्बु से तरुता प्राप्त पितरों की तृप्ति का उल्लेख), २.३८.१२(स्नान का आध्यात्मिक स्वरूप : ज्ञान ह्रदे सत्य जले इति मन्त्र), ३.२९.४८(मृत्तिका स्नान काल में वराह हरि के स्मरण का निर्देश), देवीभागवत ११.१४(भस्म स्नान का माहात्म्य), नारद १.७९.२३९(भस्म स्नान), २.४०(गङ्गा स्नान), २.४९(काशी में स्नान), २.५१(गोदा व पञ्चनद में स्नान), २.५६(समुद्र में स्नान), २.५८(जगन्नाथ का स्नान), २.६०(पूर्णिमा स्नान), २.६२(प्रयाग स्नान), पद्म १.१८(सरस्वती स्नान), १.२०(पुष्कर स्नान), १.२०.१५०(मृत्तिका स्नान), १.३१(श्रावण पञ्चमी को नागतीर्थ में स्नान), १.४७(स्नान के प्रकार), १.४९(स्नान जल से प्राणी मात्र की तुष्टि), २.९२(रेवा - कुब्जा सङ्गम में स्नान), ३.२३(नर्मदा स्नान), ३.२७(तीर्थों में स्नान), ४.१०(ग्रहण काल में स्नान), ५.८७(वैशाख स्नान), ५.९३(रेवा में स्नान), ५.९७(वैशाख स्नान), ५.१००(वैशाख स्नान), ६.९३(कार्तिक स्नान विधि व नियम), ६.११७(कार्तिक स्नान, स्नान के प्रकार), ६.११९(माघ स्नान), ६.१२२(नरक चतुर्दशी स्नान), ६.१२५(माघ स्नान), ६.२०१(निगमोद्बोध तीर्थ में स्नान), ७.४(प्रयाग में स्नान), ब्रह्म १.५४(मार्कण्डेय ह्रद में स्नान), १.५९(समुद्र में स्नान), १.६२(कृष्ण स्नान), २.७(गोदावरी में स्नान), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.२८(मौसल स्नान आदि के महत्त्व का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.२७.१२१(भस्म स्नान), भविष्य १.११४(आदित्य स्नान), १.११७(सूर्य प्रतिमा का स्नान), १.१३५(भास्कर स्नान), १.१६३(सूर्य स्नान), १.१९९(सूर्य स्नान), ४.१२२(माघ स्नान), ४.१२३(नित्य स्नान), ४.१२४(रुद्र स्नान), ४.१२५(चन्द्रादित्य स्नान, ग्रहण स्नान), भागवत ४.२.१५(शिव के चिता भस्म कृत स्नान वाले होने का उल्लेख), मत्स्य ६७(ग्रहण काल में स्नान), १०२(स्नान विधि), लिङ्ग १.२५(वारुण स्नान, भस्म स्नान, मन्त्र स्नान आदि प्रकार व विधि), वराह १४०(विष्णुपद स्नान), १४७(गोनिष्क्रमण स्नान), १६३(वैकुण्ठ स्नान), विष्णुधर्मोत्तर १.८९(नक्षत्र पीडा अनुसार स्नान), १.९१(ग्रह, नक्षत्र स्नान), २.५३(पुत्रीय रोहिणी स्नान ), २.५७(शतभिषा स्नान), २.८४(वेतस मूल स्नान ?), २.९६(कृत्तिका स्नान), २.९८(साधारण स्नान), २.९९(नक्षत्र स्नान), २.१०२(जन्म नक्षत्र स्नान), २.१०३(बार्हस्पत्य स्नान), २.१०४(रोगी स्नान, दिक्पाल स्नान), २.१०५(विनायक विघ्न नाशार्थ स्नान), २.१०६(माहेश्वर स्नान), २.१०७(नानाविध स्नान), २.१०८(पुरुषोत्तम पादोदक स्नान), २.११०(भगवत् स्नान), ३.१११(बृहत् स्नान, स्नान मन्त्र), ३.२७७(स्नान की प्रशंसा), शिव ७.२.२१, स्कन्द १.२.१(पञ्चाप्सरस तीर्थ में स्नान), २.१.१२+ (स्वामिपुष्करिणी में स्नान), २.१.२१(आकाशगङ्गा में स्नान), २.१.२६(तुम्बुरु - प्रोक्त माघ स्नान का माहात्म्य), २.१.२६(घोण माधव स्नान), २.१.२७(षट्तीर्थ में स्नान का काल), २.१.३४(स्वर्णमुखरी में स्नान का काल), २.१.४०(आकाशगङ्गा में स्नान), २.२.३०(समुद्र में स्नान विधि), २.२.३०+ (ज्येष्ठ मास में स्नान), २.२.३०.१(श्रीपति के जन्म स्नान की विधि का प्रश्न), २.२.३१(ज्येष्ठ मास में भगवद् विग्रहों का स्नान), २.२.३१.२(नरसिंह आकृति हरि को स्नान कराने की विधि का वर्णन), २.२.३३, २.२.४१(पुष्य स्नान), २.४.४(कावेरी व पञ्चनदी में स्नान की विधि), २.४.४.७९(स्नान के ४ प्रकार : वायव्य, वारुण, दिव्य व ब्राह्म), २.५.२(प्रात: स्नान), २.५.५(पञ्चामृत स्नान, शङ्खोदक स्नान), २.५.१४(द्वादशी स्नान), २.७.४(गृह स्नान), २.७.१४(वैशाख स्नान), २.८.६(सरयू - घर्घरी सङ्गम में स्नान), २.८.१०(पांच मानस तीर्थों में स्नान), ३.१.२०(जटा तीर्थ में स्नान), ३.१.२९(सर्वतीर्थ में स्नान), ३.१.३०(धनुष्कोटि में स्नान), ३.२.५(नित्य स्नान), ४.१.३(मणिकर्णिका में स्नान), ४.१.३५.९६(मन्त्र सहित स्नान विधि), ५.३.३६(दारु तीर्थ में स्नान), ४.१.३५.८८(वैदिक कर्मों सहित स्नान की विधि), ५.३.१६८.४०, ५.३.१७७.७(स्नान के प्रकार), ५.३.२२०.२७, ६.१९०(ब्रह्मा के यज्ञ में अवभृथ स्नान का वर्णन), ६.२३३(चातुर्मास काल में स्नान का माहात्म्य), ६.२३९.२५(चातुर्मास में विष्णु को स्नान कराने का कथन ), ७.२.९.१८२(पापत्याग के स्नान होने का उल्लेख), हरिवंश २.७८.२२, snaana/ snana
स्नायु स्कन्द ३.१.४९.१७(लक्ष्मण द्वारा रामेश्वर की स्नायु-पति के रूप में स्तुति), कथासरित् ५.३.१७१
स्नेह गर्ग ७.४२.२५(सुतपा द्वारा स्नेह से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख), विष्णु २.४.३८, विष्णुधर्मोत्तर २.८.३१(सप्त स्निग्ध पुरुष के लक्षण), महाभारत वन २.२७(मन के दुःखमूल स्नेह का कथन), शान्ति ३०१.६५(स्नेह पङ्क का रूप ), लक्ष्मीनारायण १.४२५.१२, २.२४५.८१(, ३.१९२.२८(, sneha
स्पन्द अग्नि १२३.४(वर्णमाला के स्वरों का नाडी स्पन्दन के साथ उदय विचार, स्वरोदय चक्र का विचार), योगवासिष्ठ ३.३.१५(प्रतिस्पन्द से स्पन्द सृष्टि की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.४२(सर्वशक्ति में स्पन्दन का कथन), ५.१३.८८(मन द्वारा स्पन्द/प्राणशक्ति व चित्शक्ति के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का कथन), ६.१.३१.४०(देह के रथ रूप में स्पन्दन का उल्लेख), ६.१.१०१.४९(स्पन्दरहित चित्त होने का निर्देश), ६.२.८४.२(चिदाकाश रूप भैरव की मनोमयी स्पन्दशक्ति काली का वर्णन ) spanda
स्पर्श अग्नि ५९.७(संकर्षण के तन्मात्राओं में स्पर्शात्मक होने का उल्लेख), ८७.६(शान्ति कला/तुरीयावस्था में स्पर्श विषय तथा त्वक् इन्द्रिय होने का उल्लेख, स्पर्श के कृकर व कूर्म वायुओं के आधीन होने का कथन), ८८.४४(ब्रह्मरन्ध्र में दिव्य पिपीलिका स्पर्श का कथन), नारद १.४२.९३(स्पर्श वायु के ११ भेद), भविष्य १.३(शरीर पर्व स्पर्श), ३.४.१०.३(स्पर्श मणि), भागवत ३.१०.१९(वनस्पति आदि के अन्त:स्पर्श गुण का उल्लेख), ९.२२.१३(शन्तनु के स्पर्श से शान्ति प्राप्त होने का उल्लेख), वामन १२.४७(पुत्र के स्पर्शवतों में वरिष्ठ होने का उल्लेख), स्कन्द ५.३.६७.१०५, ५.३.२१८.४८(, ७.१.१९८(स्पर्श लिङ्ग : महाप्रभासेश्वर लिङ्ग का युगान्तर में नाम), महाभारत शान्ति १८४.३६(स्पर्श के १२ भेदों का कथन), २३३.११(प्रलय काल में आकाश द्वारा वायु के स्पर्श गुण को ग्रसने का उल्लेख), आश्वमेधिक ५०.४९(वायु के स्पर्श गुण के १२ गुणों का कथन), ९२.१९(अवर्षा के संदर्भ में अगस्त्य के स्पर्श यज्ञ का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४७.३२, १.४५०.२४(स्पर्शों में पुत्र संस्पर्श की श्रेष्ठता का उल्लेख), ३.८२.५३(वात्स्यायन ऋषि को स्पर्श करने से गणिकाओं के पाप नाश का वृत्तान्त), ३.१४३.४६(त्रेतान्त में स्पर्श से सृष्टि होने का उल्लेख), ४.१०१.६(तापसों व योगियों द्वारा स्पर्श द्वारा सृष्टि का उल्लेख, देवों द्वारा दर्शन आदि से सृष्टि ), द्र. तन्मात्रा sparsha
स्फटिक गरुड १.७९(स्फटिक रत्न की वल असुर के मेद से उत्पत्ति, परीक्षा), पद्म ६.६.२९(वल असुर के मेद से स्फटिक की उत्पत्ति का उल्लेख), शिव २.१.१२.३३(लक्ष्मी द्वारा स्फटिक लिङ्ग की पूजा), ७.२.२९.२७(शिव के पञ्चम मुख के स्फटिक सदृश होने का उल्लेख), स्कन्द ४.१.२१.३१(उपलों में स्फटिक की श्रेष्ठता का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१६३.१०४, कथासरित् १०.३.१०स्फटिक यश, १२.१९.११९, sphatika
स्फुरण लक्ष्मीनारायण ३.१४८.१(देह के अङ्गों में स्फुरणों के फल )
स्फुलिङ्ग स्कन्द १.२.६२.३०(स्फुलिङ्गास्य : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ) sphulinga
स्फूर्ज वायु ६९.१३०(यातुधान, सूर्य अनुचर, निकुम्भ - पिता ), लक्ष्मीनारायण २.५.३३, द्र. रथ सूर्य, विस्फूर्ज sphuurja/sphoorja/ sphurja
स्फूर्तिनारी लक्ष्मीनारायण २.२०३,
स्फोट स्कन्द ७.१.१४८.४५ (चोर के कपाल का स्फोटन करने पर हिरण्य की प्राप्ति की कथा), द्र. कपालस्फोट
स्मय गर्ग ७.४२.२६(श्रुतियों द्वारा स्मय से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख)
स्मर भागवत १०.८५(देवकी के षड्गर्भ संज्ञक पुत्रों में से एक ), शिव २.१.२ smara
स्मरण पद्म ६.१३२.१६(भ्रमरी व गोपियों के स्मरण की विशिष्टता का कथन), स्कन्द २.७.२२.२७(केशव के स्मरण से ही तुष्ट हो जाने का उल्लेख ) smarana
स्मित द्र. देवस्मिता, शुचिस्मिता
स्मृति गरुड १.५.२५(दक्ष - कन्या, अङ्गिरा - पत्नी), ३.१६.२६(वायु के स्मृति नाम का कारण), गर्ग ५.१५.२४(स्मृति के कौमार - सर्गियों/सनकादि की शक्ति होने का उल्लेख), नारद १.६६.९३(निन्दी विष्णु की शक्ति स्मृति का उल्लेख), पद्म ६.२३६.२२(स्मृति शास्त्र का सात्त्विक, तामस आदि भागों में विभाजन), ब्रह्माण्ड १.२.९.५५(दक्ष व प्रसूति - कन्या, अङ्गिरस - पत्नी),१.२.११.१७(अङ्गिरस - पत्नी, सिनीवाली, कुहू, राका आदि की माता), भविष्य १.१८१.२८(दृष्टार्थ व अदृष्टार्थ स्मृति का कथन), लिङ्ग १.७०.२३(स्मृति शब्द की निरुक्ति : वर्तमान, अतीत और अनागत कार्यों का स्मरण), वायु ४.३८/१.४.३६(स्मृति शब्द की निरुक्ति), शिव ७.१.१७.२४, स्कन्द २.१.८.४(श्रीनिवास व लक्ष्मी के विवाह में श्रुति द्वारा श्रीहरि को क्षौम तथा स्मृति द्वारा आभूषण प्रस्तुति का उल्लेख), ५.३.१.१५(श्रुति, स्मृति व पुराणों के लोचन - त्रय होने का उल्लेख), महाभारत वन ३६(व्यास द्वारा युधिष्ठिर को प्रतिस्मृति विद्या प्रदान करना ), योगवासिष्ठ ४.३, द्र. दक्ष कन्याएं, वंश अङ्गिरा smriti
स्यन्दिका वा.रामायण २.४९.१२
स्यमन्तक अग्नि २७५, देवीभागवत ०.२, नारद १.११३.३९, पद्म १.१३, ब्रह्म १.१४(स्यमन्तक मणि के संदर्भ में सत्राजित्, प्रसेन, जाम्बवान व कृष्ण की कथा), ब्रह्माण्ड २.३.७१(स्यमन्तक मणि की कथा), भागवत १०.५६(सत्राजित् द्वारा स्यमन्तक मणि प्राप्ति की कथा), १०.५७(स्यमन्तपञ्चक मणि की प्राप्ति हेतु शतधन्वा द्वारा सत्राजित् की हत्या), मत्स्य ४५(स्यमन्तक मणि के संदर्भ में ऋक्ष द्वारा प्रसेन का वध, कृष्ण द्वारा ऋक्ष का निग्रह), वायु ९६.२०(स्यमन्तक मणि की कथा), विष्णु ४.१३, स्कन्द ७.१.२३९, हरिवंश १.३८.१४(सत्राजित् द्वारा तप से सूर्य से स्यमन्तक मणि की प्राप्ति, स्यमन्तक मणि का हरण ) syamantaka
स्यमन्तपञ्चक ब्रह्माण्ड २.३.४७.९(परशुराम द्वारा स्यमन्तपञ्चक क्षेत्र के निर्माण की कथा, समन्तपञ्चक उपनाम), लक्ष्मीनारायण २.३०.८२(उत्तरवेदी के रूप में स्यमन्तपञ्चक का उल्लेख, कुरु द्वारा कर्षण - स्यमन्तपञ्चकं धर्मस्थानं चोत्तरवेदिका ।। आसमन्ताद् योजनानि पञ्च पञ्च च सर्वतः ।.... ) syamantapanchaka
समन्तपञ्चक वामन २२.१६(समन्तपञ्चक क्षेत्र का विस्तार, कुरु द्वारा कर्षण की कथा - समन्तपञ्चकं नाम धर्मस्थानमनुत्तमम्। आसमन्ताद् योजनानि पञ्च पञ्च च सर्वतः।।), स्कन्द ५.३.२१८.३८(समन्तपञ्चके पञ्च चकार रुधिरह्रदान् ॥ ), महाभारत शल्य ५३.२४ (तरन्तुकारन्तुकयोर्यदन्तरं रामह्रदानां च मचक्रुकस्य च। एतत्कुरुक्षेत्रसमन्तपञ्चकं प्रजापतेरुत्तरवेदिरुच्यते।।, samantapanchaka
स्रज स्कन्द ३.१.५.१३६(ललिता द्वारा उदयन को ताम्बूली स्रज देने का उल्लेख), द्र. माला
स्रवस वायु ३१.६, द्र. प्रस्रवण, प्लक्षस्रवण, विद्युत्स्राव
स्रुक-स्रुवा
अग्नि
२४.१४(स्रुक
व
स्रुवा
आदि
के
आकार
का
वर्णन),
४०.५(वास्तुपुरुष
के
संदर्भ
में
अर्धपद
में
वह्नि
को
स्रुक्
द्वारा
तृप्त
करने
का
उल्लेख
-
स्रुचा
चार्द्धपदे
वह्नि
पूषणं
लाजयैकतः),
७५.२५(अग्नि
में
प्रतापन
करते
समय
स्रुक्-स्रुवा
को
ऊर्ध्ववदन-अधोमुख
करने
का
निर्देश
-
गृहीत्वा
स्रुक्स्रुवावूर्ध्ववदनाधोमुखैः
क्रमात्
॥
प्रताप्याग्नौ
त्रिधा
दर्भमूलमध्याग्रकैः
स्पृशेत्
।
कुशस्पृष्टप्रदेशे
तु
आत्मविद्याशिवात्मकं
॥),
७५.२७(स्रुवा
व
स्रुक्
:
शिव
व
शक्ति
के
प्रतीक
-
स्रुचि
शक्तिं
स्रुवे
शम्भुं
विन्यस्य
हृदयाणुना
॥),
नारद
१.५१.३६(स्रुवा
में
६
देवों
का
वास
व
व्यवहार
का
फल
-
अग्निः
सूर्यश्च
सोमश्च
विरञ्चिरनिलो
यमः
।
स्रुवे
षडेते
दैवास्तु
प्रत्यङ्गुलमुपाश्रिताः।।
.....),
ब्रह्म
२.९.२०(
वराह
द्वारा
मुख
द्वारा
यज्ञ
को
देवों
को
प्रदान
करने
के
कारण
स्रुवा
के
यज्ञाङ्ग
होने
का
उल्लेख
-
मुखे
न्यस्तं
महायज्ञं
देवानां
पुरतो
हरिः।
दत्तवांस्त्रिदशश्रेष्ठो
मुखाद्यज्ञोऽभ्यजायत।।
ततः
प्रभृति
यज्ञाङ्गं
प्रधानं
स्रुव
उच्यते।),
ब्रह्माण्ड
१.१.५.२०(यज्ञवराह
के
स्रुवतुण्ड
होने
का
उल्लेख),
भविष्य
२.१.१९.१(स्रुवा
निर्माण
के
लिए
प्रशस्त
काष्ठ
वृक्ष
तथा
स्रुवा
का
परिमाण
आदि
-
श्रीपर्णी
शिंशपा
क्षीरी
बिल्वः
खदिर
एव
च
।।
स्रुवे
प्रशस्तास्तरवः
सिद्धिदा
यागकर्मणि
।।
.....),
भागवत
११.५.२४(त्रेता
युग
में
भगवान्
के
रक्तवर्ण
व
स्रुक्-स्रुवादि
उपलक्षणों
से
युक्त
होने
का
उल्लेख
-
त्रेतायां
रक्तवर्णोऽसौ
चतुर्बाहुस्त्रिमेखलः
। हिरण्यकेशः
त्रय्यात्मा
स्रुक्
स्रुवाद्युपलक्षणः
॥),
वायु
६.१७
(वराह
के
आज्यनासा
व
स्रुवतुण्ड
होने
का
उल्लेख
-
अहोरात्रेक्षणधरो
वेदाङ्गश्रुतिभूषणः।
आज्यनासः
स्रुवतुण्डः
सामघोषस्वनो
महान्
।।),
विष्णु
१.४.३४(यज्ञवराह
के
स्रुक्-तुण्ड
होने
का
उल्लेख
-
स्रुक्तुण्डसामस्वरधीरनादप्राग्वंशकायाखिलसत्रसन्धे),
शिव
७.२.३२.४३(मारणादि
कर्म
में
आयस
तथा
शान्ति
कर्म
में
सौवर्ण
स्रुक-स्रुवा
निर्माण
का
निर्देश
-
आयसौ
स्रुक्स्रुवौ
कार्यौ
मारणादिषु
कर्मसु
॥
तदन्यत्र
तु
सौवर्णौ
शांतिकाद्येषु
कृत्स्नशः
॥ ),
स्कन्द
५.३.१९४.४६(नारायण
व
श्री
के
विवाह
यज्ञ
में
ब्रह्मा
व
सप्तर्षियों
के
स्रुक-स्रुवा
ग्रहण
करने
में
रत
होने
का
उल्लेख
-
ब्रह्मा
सप्तर्षयस्तत्र
स्रुक्स्रुवग्रहणे
रताः
।
अग्नीञ्जुहुविरे
राजन्वेदिर्धात्री
ससागरा
॥),
महाभारत
सभा
३८दाक्षिणात्य
पृष्ठ७८४(यज्ञवराह
के
स्रुवतुण्ड
होने
का
उल्लेख),
शल्य
४८.२
(श्रुतावती[स्रुचावती
पाठभेद]
द्वारा
इन्द्र
की
प्राप्ति
के
लिए
बदरों
के
पाचन
की
कथा),
शान्ति
२४.२७(राजा
हयग्रीव
के
चातुर्होत्र
रूपी
युद्धयज्ञ
में
शर
के
स्रुक्,
खड्ग
के
स्रुव
और
रुधिर
के
आज्य
होने
का
उल्लेख
-
धनुर्यूपो
रशना
ज्या
शरः
स्रुक्स्रुवः
खड्गो
रुधिरं
यत्र
चाज्यम्।),
९८.१७(युद्ध
में
प्रास,
तोमरसमूह,
खड्ग,
शक्ति,
परशु
आदि
के
स्रुक
तथा
ऋजु
सायक
के
स्रुव
होने
का
कथन
-
प्रासतोमरसंघाताः
खङ्गशक्तिपरश्वथाः।
ज्वलन्तो
निशिताः
पीताः
स्रुचस्तस्याथ
सत्रिणः।।चापवेगायतस्तीक्ष्णः
परकायावभेदनः।
ऋजुः
सुनिशितः
पीतः
सायकश्च
स्रुवो
महान्।।),
अनुशासन
१७.४४(स्रुवहस्त
:
शिव
सहस्रनामों
में
एक[दसवें
हाथ
में
स्रुव
धारण
करने
वाले
– टीका
-
स्रुवहस्तः
सुरूपश्च
तेजस्तेजस्करो
निधिः।]),
८५.१०१(ब्रह्मा
द्वारा
स्वशुक्र
का
स्रुवा
द्वारा
अग्नि
में
होम
करने
से
तामस,
राजस
व
सात्त्विक
गुणों
वाले
भूतग्राम
की
उत्पत्ति
का
कथन
-
स्कन्नमात्रं
च
तच्छुक्रं
स्रुवेण
परिगृह्य
सः।
आज्यवन्मन्त्रतश्चापि
सोऽजुहोद्भृगुनन्दन।।),
आश्वमेधिक
२१.६(चित्त
के
स्रुवा
होने
का
उल्लेख
-
विषया
नाम
समिधो
हूयन्ते
तु
दशाग्निषु।
चित्तं
स्रुवश्च
वित्तं
च
पवित्रं
ज्ञानमुत्तमम्।
)
sruk-sruvaa
References on Sruk-Sruvaa
स्रोत पद्म ६१३७, मार्कण्डेय ४७(ऊर्ध्व, अर्वाक सर्ग ), स्कन्द २.३.७, द्र. चतु:स्रोता, त्रिस्रोता, पञ्चस्रोता, सोमस्रोत, ह्रदस्रोत srota
स्रौष भविष्य १.१२४.२३
स्वकन्धर पद्म ६.१८८(गीता के १४वें अध्याय के माहात्म्य के प्रसंग में वत्स मुनि के शिष्य स्वकन्धर द्वारा शश व शुनी को वत्स मुनि के पाद प्रक्षालन जल से दिव्य रूप की प्राप्ति होने की घटना का वर्णन ) svakandhara
स्वच्छन्दराज वामन ७०
स्वतन्त्राश्री लक्ष्मीनारायण ३.११.९८
स्वधा गरुड १.२१.३(सद्योजात शिव की ८ कलाओं में से एक), देवीभागवत ९.४४(पितरों की क्षुधा शान्ति हेतु स्वधा का प्राकट्य, स्वधा पूजा विधान), पद्म १.८.१९(पितरों द्वारा पृथिवी रूपी गौ के दोहन से स्वधा रूपी दुग्ध की प्राप्ति का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१०३(पितरों की पत्नी, मुनियों, मनुओं व नरों द्वारा पूजित), २.४१.९(स्वधा की ब्रह्मा से उत्पत्ति, पूजा, स्तोत्र), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१०(इष व ऊर्ज मासों की स्वधावन्त संज्ञा), २.३.११.९३(कव्यवाहन अग्नि व पितृमान् सोम के लिए स्वधा अङ्गिरसे नम: व वैवस्वत यम के लिए स्वधा नम: कहने का विधान), भागवत ४.१.६४(दक्ष - कन्या, पितरों की पत्नी, धारिणी व वयुना कन्याओं की माता), शिव २.३.२.५(दक्ष की ६० कन्याओं में से एक, पितरों की पत्नी, मेना, धन्या व कलावती पुत्रियों को शाप प्राप्ति का वृत्तान्त), हरिवंश १.१८.६४(पुलह से उत्पन्न सुस्वधा पितरों का कथन : वैश्यों द्वारा भावित, विरजा कन्या के पिता आदि), १.१८.६७(कवि व स्वधा से उत्पन्न सोमपा पितरगण का कथन), २.१२२.३२(स्वधाकार के आश्रित पांच अग्नियों पिठर, पतग, स्वर्ण, श्वागाध व भ्राज का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१२४.६१(दक्ष-पत्नियों असिक्नी, पलिक्नी, वीरिणी आदि के लिए स्वधा का निर्देश), २.१२४.६४(ऋतुओं, वत्सरों, युगों आदि के लिए स्वधा का निर्देश), २.१२४.७४(अग्निमण्डल, याम्य, श्रावण, प्रेत, भूत, पिशाच, कूष्माण्ड आदि के लिए स्वधा का निर्देश), २.१२४.७५(विनायकों व वेतालों के लिए स्वाहा व स्वधा का निर्देश), २.१२४.७६(डाकिनी, शाकिनी, पितृ-पत्नियों के लिए स्वधा का निर्देश), ३.१५.१४(वषट्कार विप्र की पत्नी), ३.१५.२७(वषट्कार द्वारा पुत्र रूप में हरि को प्राप्त करने तथा स्वधा द्वारा पुत्री रूप में लक्ष्मी को प्राप्त करने की इच्छा का कथन), ३.११५.८२(ललिता देवी के स्तन स्वाहा स्वधाकार रूप होने का उल्लेख ), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(यज्ञ की पचनात्मिका शक्ति स्वधा, दाहिका शक्ति स्वाहा), द्र दक्ष कन्याएं, वंश पितर, सुस्वधा svadhaa/swadhaa
Comments on Swadhaa
Comments on Swah by Dr. Tomar
स्वधामा भागवत ८.१३.२९(अवतार, सत्यसहा व सूनृता - पुत्र),
स्वन द्र. भङ्गस्वन, विपुलस्वन
स्वनय ब्रह्माण्ड ३.४.३४.२६(श्वनय : षोडशावरण चक्र के १०वें आवरण के रुद्रों में से एक), स्कन्द ३.१.१६(राजा स्वनय द्वारा स्वपुत्री मनोरमा का कक्षीवान् से विवाह),
स्वप्न अग्नि ४३.२३(स्वप्न मन्त्र व अधिपति), ८४.१(दीक्षा अवधि में शुभाशुभ स्वप्न), २२९(शुभाशुभ स्वप्न विचार), २६६.१(विनायक ग्रस्त पुरुष के स्वप्नों के लक्षण), २८०(स्वप्न से वात, पित्त, कफ प्रकृति का निर्णय), गरुड १.१५२.११(यक्ष्मा रोग में स्वप्न), १.१६८.३२(स्वप्न से वात पित्तादिक पुरुष की प्रकृति का निश्चय), २.११/२.२१.५(स्व वंशीय प्रेतों/पिशाचों द्वारा गृहीत होने पर स्वप्न), २.२३.२(प्रेत पीडा के कारण द्रष्ट स्वप्न), गर्ग ५.७.१(कंस द्वारा कृष्ण के मल्ल युद्ध के पूर्व द्रष्ट स्वप्न), देवीभागवत ५.११(महिषासुर - सेनानी ताम्र द्वारा द्रष्ट स्वप्न), नारद १.५१.५८(गणपति - गृहीत पुरुष के स्वप्नों के लक्षण), १.११४.१३ (आषाढ शुक्ल पञ्चमी को स्वप्न से शुभाशुभ ज्ञान), पद्म २.१०४, २.१२०.१०(स्वप्न के वातिक, पित्तज आदि प्रकारों का वर्णन), ५.२२, ५.२८, ६.१४(वृन्दा द्वारा द्रष्ट स्वप्न), ६.१०३, ७.१९, ७.२१, ब्रह्म १.४७(इन्द्रद्युम्न द्वारा विष्णु मूर्ति निर्माण सम्बन्धी स्वप्न), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३३(परशुराम द्वारा पुष्कर में द्रष्ट स्वप्न), ४.६३(कंस द्वारा वर्णित स्वप्न), ४.६६(राधा द्वारा कृष्ण से वियोग का स्वप्न), ४.७०(अक्रूर द्वारा स्वप्न में कृष्ण के दर्शन), ४.७२(कंस द्वारा मृत्यु सूचक स्वप्न देखना), ४.७७(नन्द - कृष्ण संवाद),४.८२(कृष्ण - नन्द संवाद), ब्रह्माण्ड ३.४.२८.४१(स्वप्नेशी : ललिता - सहचरी, मङ्गल दैत्य से युद्ध), भविष्य १.२३(कार्यारम्भ में गणेश पूजा के अभाव में स्वप्न), १.६९(सप्तमी व्रत में स्वप्न व शुभाशुभ फल), १.१४९.३५(सूर्य दीक्षा में स्वप्न), १.१९४(सूर्य सप्तमी में द्रष्ट स्वप्न), ४.३२, ४.१४४, भागवत ७.१५.६२(मुनि द्वारा भावाद्वैत, क्रियाद्वैत व द्रव्याद्वैत द्वारा ३ स्वप्नों को नष्ट करने का कथन), मत्स्य १३१.२०(मय द्वारा त्रिपुर के सम्बन्ध में द्रष्ट भयानक स्वप्न का कथन), २४२(शुभाशुभ स्वप्न लक्षण), मार्कण्डेय ८.१२७(हरिश्चन्द्र द्वारा द्रष्ट स्वप्न), वायु १९(मृत्युकालीन स्वप्न), विष्णुधर्मोत्तर १.३९(सिंहिका - पुत्र साल्व की नगरी में द्रष्ट स्वप्न), २.११५, स्कन्द १.२.५५(मृत्यु सूचक स्वप्न), ४.१.४२.३१(स्वप्न दर्शन से मृत्यु के ज्ञान का कथन), ४.२.५६.७(गणेश द्वारा दिवोदास - पालित काशी में नागरिकों के स्वप्नों का निर्वचन), ४.२.७०.९२(स्वप्नेश्वरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.८०(स्वप्नेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, शक्ति भक्षण के पश्चात् कल्माषपाद राक्षस द्वारा दु:स्वप्न का दर्शन, वसिष्ठ के परामर्श से स्वप्नेश्वर लिङ्ग की पूजा से मुक्ति), ५.३.२८.२७, योगवासिष्ठ ३.४२(स्वप्न पुरुष), ३.५७, ६.१.६१(स्वप्न जगत), ६.१.६२(स्वप्न शतरुद्रिय), ६.२.१०५, ६.२.१४७, वा.रामायण २.६९(भरत द्वारा दु:स्वप्न दर्शन), ५.२७(त्रिजटा राक्षसी द्वारा द्रष्ट स्वप्न के आधार पर सीता से राक्षसों के विनाश का कथन), महाभारत उद्योग १४३, द्रोण ८०, शान्ति २१५, लक्ष्मीनारायण १.५१(मृत्यु सूचक स्वप्न), १.७१(प्रेत के कारण जनित स्वप्नों का कथन), १.८५.३२(गणेश द्वारा काशी जनों द्वारा द्रष्ट स्वप्नों के फलों का कथन), १.८६, १.३२९, १.३३५, १.४५७, १.५१७(अन्धक व उसकी पत्नी द्वारा द्रष्ट दु:स्वप्न का वर्णन), १.५२८, ३.६०.४२(चिदम्बरा भक्ता द्वारा श्रीहरि से स्वप्न में भागवत चिह्नों की प्राप्ति का कथन), ३.१४८.१२(विभिन्न दु:स्वप्नों की शान्ति हेतु ग्रह यज्ञों का विधान), ३.१४९, ४.८१, कथासरित् १.६.१३८, ४ .३.३, ६.३.१६५(राजा द्वारा स्वरोग हरण के संदर्भ में द्रष्ट स्वप्न ), ८.३.१३७, swapna/svapna
स्वभाव स्कन्द १.२.४५.८५(प्रकृति के पिण्डों के स्वभावों का कथन), द्र. दु:स्वभाव
स्वमित्र पद्म ३.३०
स्वयंप्रभा स्कन्द ७.१.२४.१४३(निषध पर स्वयंप्रभा नगरी में घनवाहन गन्धर्व का वृत्तान्त), वा.रामायण ४.५१+ (हेमा के गुफा रूपी भवन की रक्षक मेरु सावर्णि - कन्या स्वयंप्रभा का हनुमान आदि वानरों से मिलन ), कथासरित् ६.३.१५, १७.५.१३० svayamprabhaa/swayamprabhaa
स्वयम्भू ब्रह्माण्ड १.१.४(स्वयम्भू की त्रिगुणों में स्थिति), भविष्य ३.४.१२(स्वयम्भू के जन्म का वृत्तान्त), वामन ९०.१४(मधुवन में विष्णु का स्वयम्भू नाम से वास), वायु ३३, शिव १.१८.३३(स्वयम्भू लिङ्ग की व्याख्या – उद्भिद की भांति), स्कन्द ४.२.६९.१२४(स्वयम्भू लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.७(तृतीय कल्प में ब्रह्मा का स्वयम्भू नाम), लक्ष्मीनारायण २.१४०.६६(स्वयम्भू प्रासाद के लक्षण ), कथासरित् ९.१.५, svayambhoo/ swayambhoo / svayambhu
स्वयंवर स्कन्द ७.१.१६६.२०(सावित्री द्वारा वर के वरण हेतु अमात्यों के साथ राजर्षियों के पास जाने का उल्लेख ) swayamvara/svayamvara
स्वर
अग्नि
१२३.४(वर्णमाला
के
स्वरों
का
नाडी
स्पन्दन
के
साथ
उदय
विचार,
स्वरोदय
चक्र
का
विचार
-
स्पन्दनं
नाड्याः
फलानि
सप्राणस्पन्दनं
पुनः
॥
अनेनैव
तु
मानेन
उदयन्ति
दिने
दिने
।),
१२४.७(स्वरों
की
ओंकार
से
उत्पत्ति,
शरीर
में
कार्य,
स्वरों
के
स्वामी
ग्रह
-
जातो
नाद
उकारस्तु
नदते
हृदि
संस्थितः
।
अर्धचन्द्र
इकारस्तु
मोक्षमार्गस्य
बोधकः
॥),
१३३.९(स्वरोदय
:
श्वास
अनुसार
फल
विचार
-
वामनाडीप्रवाहे
स्यान्नाम
चेद्विषमाक्षरं
॥
तदा
जयति
सङ्ग्रामे
शनिभौमससैंहिकाः।...),
२९३,
गरुड
१.६६.१५+
(स्वरोदय
शास्त्र
-
कालं
वक्ष्यामि
संसिद्ध्यै
रुद्र
पञ्चस्वरोदयात्
॥
राजा
सा(मा)
जा
उदासा
च
पीडा
मृत्युस्तथैव
च
॥),
नारद
१.५०.१५(षडज,
ऋषभ
आदि
७
स्वरों
के
सामवेद
में
प्रयोग
का
वर्णन,
संगीत
शिक्षा,
स्वरों
के
वर्ण,
स्थान
व
देवता),
१.५०.५९(वेणु
व
सामगान
के
स्वरों
में
साम्य
– वैषम्य
-
यः
सामगानां
प्रथमः
स
वेणोर्मध्यमः
स्वरः
।
यो
द्वितीयः
स
गांधारस्तृतीयस्त्वृषभः
स्मृतः
।। ...),
१.५०.१०१(स्वरों
का
शरीर
में
स्थान
-
क्रुष्टस्य
मूर्द्धनि
स्थानं
ललाटे
प्रथमस्य
तु
।
भ्रुवोर्मध्य
द्वितीयस्य
तृतीयस्य
तु
कर्णयोः
।।...),
१.५०.१८०(स्वर
सूत्र
सम,
व्यञ्जन
मणि
सम
-
मणिवद्व्यंजनं
विद्यात्सूत्रवच्च
स्वरं
विदुः
।।),
ब्रह्मवैवर्त्त
३.४.४०(स्वर
सौन्दर्य
हेतु
माध्वीक
कलश
दान
का
निर्देश
-
माध्वीककलशानां
च
लक्षं
रत्नविनिर्म्मितम्
।
देयं
विश्वेश्वरायैव
स्वरसौन्दर्य्यहेतवे
।।),
भविष्य
२.१.१७.१३(स्वर
की
अग्नि
का
सरीसृप
नाम
-
शिखायां
च
विभुर्ज्ञेयः
स्वरस्याग्निः
सरीसृपः
।।),
भागवत
३.१२.४७
(ऊष्माणमिन्द्रियाण्याहुः
अन्तःस्था
बलमात्मनः
।),
वराह
२१.३४(दक्ष
यज्ञ
विध्वंस
हेतु
गायत्री
के
धनुष,
ओंकार
के
गुण
,
सात
स्वरों
के
शर
बनने
का
उल्लेख
-
गायत्री
च
धनुस्तस्य
ओङ्कारो
गुण
एव
च
।
स्वराः
सप्त
शरास्तस्य
देवदेवस्य
सुव्रत
।। ),
५३.४
(ब्रह्मा
द्वारा
मन्थन?
- तस्य
पुत्रः
स्वरो
नाम
सप्तमूर्तिंरसौ
स्मृतः
।। ),
वायु
२१.३४(सङ्गीत
स्वरों
की
कल्पों
में
स्थिति
-
षड्जस्तु
षोडशः
कल्पः
षड्जना
यत्र
चर्षयः।
शिशिरश्च
वसन्तश्च
निदाघो
वर्ष
एव
च
।।... ),
२१.४३(पञ्चम
स्वर/पञ्चम
कल्प
का
निरूपण
:
पांच
वायुओं
द्वारा
गान
आदि
-
एकविंशतिमः
कल्पो
विज्ञेयः
पञ्चमो
द्विजाः।
प्राणोऽपानः
समानश्च
उदानो
व्यान
एव
च
।।),
२६.२९(अकाररूप
आदौ
तु
स्थितः
स
प्रथमः
स्वरः
।।
ततस्तेभ्यः
स्वरेभ्यस्तु
चतुर्द्दश
महामुखाः।),
२६.३१(स्वरों
की
ओंकार
रूपी
ब्रह्मा
के
१४
मुखों
से
उत्पत्ति
-
चतुर्द्दशमुखो
यश्च
अकारो
ब्रह्मसंज्ञितः।
ब्रह्मकल्पः
समाख्यातः
सर्ववर्णः
प्रजापतिः
।।),
६९.४६/२.८.४६(७
स्वरों
के
प्रतीक
७
गन्धर्वों?
के
नाम
-
हंसो
ज्येष्ठः
कनिष्ठोऽन्यो
मध्यमौ
च
हहा
हुहूः।
चतुर्थो
धिषणश्चैव
ततो
वासिरुचिस्तथा
॥
षष्ठस्तु
तुम्बुरुस्तेषां
ततो
विश्वावसुः
स्मृतः।),
विष्णु
३.२.३०(निस्स्वर
:
११वें
मन्वन्तर
के
सप्तर्षियों
में
से
एक),
विष्णुधर्मोत्तर
३.१८.१(संगीत
में
षडज,
मध्यम
आदि
स्वरों
के
साथ
वीर
आदि
रसों
का
सामञ्जस्य
-
वीररौद्राद्भुतेषु
षड्जपञ्चमौ
।
करुणे
निषादगान्धारौ
।
बीभत्सभयानकयोर्धैवतम्
।
शान्ते
मध्यमम्
।),
स्कन्द
३.२.६.१२(वेदमयी
धेनु
के
लिए
स्वर
वत्स
होने
का
उल्लेख
-
यस्त्वेनां
मानवो
धेनुं
स्वर्वत्सैरमरादिभिः
।
पूजयत्युचिते
काले
स
स्वर्गायोपपद्यते
।। ),
७.१.१८,
७.१.१९.५
(१६
स्वर
काल
के
अवयव
त्रुटि
आदि
-
षोडशैव
स्वरा
ये
तु
आद्याः
सृष्टयंतकाः
प्रिये
॥
कालस्यावयवास्ते
च
विज्ञेयाः
कालवेदिभिः
॥
)
svara/swara
स्वरा पद्म ६.१११(सावित्री का नाम, ब्रह्मा के यज्ञ में शाप की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.९० swaraa/svaraa
स्वराट् कूर्म १.४३.८(स्वर : सूर्य रश्मि, शनि ग्रह का पोषण), ब्रह्माण्ड १.२.१६.१७(द्युलोक की स्वराट् संज्ञा), लिङ्ग १.६०.२५(स्वराट् नामक सूर्य रश्मि द्वारा शनि के पोषण का उल्लेख ) swaraat/svaraat / swarat
स्वराष्ट} मार्कण्डेय ७४(राज्य से च्युत होने पर राजा स्वराष्ट} का वन में मृगी से संवाद),
स्वरोचिष मार्कण्डेय ६३(स्वरोचिष का मनोरमा से मिलन, राक्षस से विद्या प्राप्ति), ६४(स्वरोचिष द्वारा विभावरी व कलावती का परिणय ), द्र. स्वारोचिष swarochisha / svarochisha
स्वर्ग पद्म २.७२, २.९५, २.९६(स्वर्ग प्रापक कर्म), ३.१+ (पद्म पुराण का स्वर्ग खण्ड), ३.२१, भागवत ११.१९.४२, वामन ९०.३९(स्वर्ग लोक में विष्णु का विष्णु नाम), स्कन्द २.८.२(स्वर्ग द्वार तीर्थ का माहात्म्य), २.८.३, ५.१.१३(स्वर्ग स्नान का माहात्म्य), ५.२.९(स्वर्गेश लिङ्ग का माहात्म्य, शिव गणों द्वारा विष्णु गणों के लिए स्वर्ग द्वार के अवरोधन की कथा), ७.१.११.१९८(स्वर्ग की सूर्य के साममय तेज से उत्पत्ति - यजुर्मयेन देवेशि भाविता द्यौर्महाप्रभोः ॥ स्वर्गं साममयेनापि भूर्भुवःस्वरितिस्थितम् ॥), योगवासिष्ठ ६.२.१६०, महाभारत वन ३१३.६९ (सत्यमेकपदं स्वर्ग्यं शीलमेकपदंसुखम् ॥), शान्ति २५१.१२(सुख का उपनिषत् स्वर्ग व स्वर्ग का शम होने का उल्लेख ), ३१४, लक्ष्मीनारायण ३.३.२९, ३.१८.१५, ३.९०, swarga/svarga
स्वर्ण अग्नि १६७, १९१.७(सुवर्णवारि सम्प्राशक द्वारा आश्विन् में त्रिदशाधिप की पूजा का निर्देश), २११, गरुड २.२.६२(स्वर्णहारी द्वारा कृमिकीट पतङ्ग योनि प्राप्ति का उल्लेख), गर्ग ७.२९.२३(स्वर्णचर्चिका नगरी में मङ्गल का वास स्थान, महावीर देवसख राजा द्वारा प्रद्युम्न का पूजन), पद्म ६.४.४२(स्वर्णा अप्सरा द्वारा क्रौञ्च प्रसाद से वृन्दा सुता प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८५.१३८(स्वर्णकार की निन्दा), ४.१२९(स्वर्ण की अग्नि के वीर्य से उत्पत्ति), शिव ५.१४.१०, स्कन्द १.३.२.२२.२४(स्वर्णाद्रि पर विद्याधरों का आगमन, दुराचार के कारण दुर्वासा के शाप से हय व गन्धमृग बनना ), ५.१.३५.१(स्वर्णक्षुर, ५.३.१५९.१३, ५.३.१९५.११, ५.३.२३१.१९, हरिवंश २.१२२.३२, महाभारत अनुशासन ६५, ७४, ८४.४६, ८५, लक्ष्मीनारायण १.१९९, १.२३८(स्वर्णाङ्गद , २.२६७, ३.२७.७३(स्वर्ण नारायण), ३.७५.८६, ३.२२८स्वर्णधन्व, ४.४६.६४, ४.६७स्वर्णाञ्जन, ४.७६, कथासरित् ७.१.८२, ७.२.८०, १०.६.१८७स्वर्णमुग्ध, १०.९.४८स्वर्णचूड, द्र. सुवर्ण swarna/ svarna
स्वर्णजाल स्कन्द ५.१.२०(स्वर्णजाल तीर्थ का माहात्म्य), ५.२.६(स्वर्णजालेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, शिव वीर्य/अग्नि से स्वर्ण की उत्पत्ति, लिङ्ग स्थापना ) swarnajaala/svarnajaala
स्वर्णद्वीप कथासरित् ९.२.३१८, ९.४.८६, १२.१९.३८
स्वर्णरेखा स्कन्द ७.२.७(स्वर्णरेखा नदी का माहात्म्य, मृगानना द्वारा मृगी मुख त्याग कर मानुष रूप प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.१४९.७२(स्वर्णरेखा नदी का माहात्म्य : मृगानना का मनुष्य मुख धारण करना), १.१६१.७(स्वर्णरेखा नदी के सुषुम्ना का रूप होने का उल्लेख ), १.४०६, swarnarekhaa/ svarnarekhaa
स्वर्णवती भविष्य ३.३.१३.२३(नेत्रसिंह - कन्या, रेवती का अंश), ३.३.१३.११७(नेत्रसिंह - कन्या, आह्लाद - पत्नी, पति के बन्धनग्रस्त होने पर मुक्ति का उद्योग, शुकी बनना), ३.३.२३.११०(स्वर्णवती द्वारा श्येन रूप धारण कर कुतुक योगी की शाम्बरी माया को छिन्न करना, केसरिणी व कुतुक का वध), ३.३.२८.५७(स्वर्णवती द्वारा शुक रूपी कृष्णांश की रक्षा का उद्योग ) swarnavatee/svarnavatee/ swarnavati
स्वर्णशृङ्ग स्कन्द ५.१.३६(उज्जयिनी का नाम), ५.१.४०(स्वर्णशृङ्ग पुरी का वर्णन),
स्वर्णष्ठीवी द्र. सुवर्णष्ठीवी
स्वर्धूनी लक्ष्मीनारायण ३.३१.५६
स्वर्भानु ब्रह्माण्ड १.२.२४.१०३(स्वर्भानु की निरुक्ति ), मत्स्य ६, हरिवंश १.३.९१, द्र. वंश दनु swarbhaanu/ svarbhaanu / svarbhanu
स्वर्लतिका लक्ष्मीनारायण २.२१४,
स्वर्लीन स्कन्द ४.२.८४.३१(स्वर्लीन तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.३६(स्वर्लीनेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य),
स्वर्वह लक्ष्मीनारायण ३.९२.४५(राजा भङ्गास्वन द्वारा स्त्री रूप प्राप्त करने पर स्वर्वह ऋषि की पत्नी बनकर उनसे पुत्र प्राप्ति का कथन),
स्वर्वीथि भागवत ४.१३.१२(वत्सर - पत्नी, ६ पुत्रों के नाम),
स्वस्ति गरुड १.१००.४(स्वस्ति वाचन विधि), देवीभागवत ९.१.१००(वायु - पत्नी), नारद १.६६.१२५(विघ्नकृत् की शक्ति स्वस्ति का उल्लेख, विघ्नहर्त्ता की सरस्वती), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१०४(वायु-पत्नी, आदान-प्रदान हेतु फलदायक), वामन ५८.१४(ऋषियों द्वारा स्कन्द के लिए स्वस्ति पाठ), वा.रामायण २.२५(कौसल्या द्वारा राम के लिए स्वस्ति वाचन ), लक्ष्मीनारायण २.२८.४८(स्वस्तिक नाग द्वारा स्वकन्याएं मन्त्री को न देना, गरुड द्वारा स्वस्तिक की रक्षा), svasti/ swasti
स्वस्तिक अग्नि ३४१.१७(संयुत कर के १३ प्रकारों में एक), मत्स्य २५४.३(पूर्वद्वार - विहीन भवन का नाम ), ब्रह्मवैवर्त ४.११३.५५(स्वस्तिकों के लड्डू का उल्लेख - लड्डुकं स्वस्तिकानां च सप्तलक्षं सुधोपमम् ।।), ४.११३.५७(मिष्टान्नं पायसं रम्यं स्वादु स्वस्तिकपिष्टकम् ।), शिव ७.२.३७.२० (स्वस्तिकं पद्ममध्येंदुं वीरं योगं प्रसाधितम् ॥ पर्यंकं च यथेष्टं च प्रोक्तमासनमष्टधा ॥), स्कन्द १.२.३९.९८(स्वस्तिक कूप की उत्पत्ति का कथन), २.२.३०.७२(चतुःस्वस्तिक कोण वाले मण्डल का उल्लेख), ७.४.१७.२५(पश्चिम दिशा के द्वारपालों में एक), svastika/ swastika
स्वस्त्यात्रेय ब्रह्म १.११.१०( अत्रि द्वारा स्वस्ति ते अस्तु कहकर पतमान सूर्य का स्तम्भन), १.११.१५(अत्रि के १० पुत्रों में एक, त्रिधनवर्जित), वायु ७०.७५(प्रभाकर आत्रेय अत्रि के १० वंश प्रवर्तक पुत्रों की स्वस्त्यात्रेय संज्ञा), महाभारत शान्ति २०८.२८(दक्षिण दिशा में निवास करने वाले ऋषियों में से एक)
स्वाती मत्स्य २७३.५(मेघस्वाति : आपीतक - पुत्र, स्वाति - पिता), द्र. नक्षत्र
स्वाध्याय विष्णुधर्मोत्तर १.६१.६(अखण्डकारी बनने हेतु ५ कालों में से एक), १.६४(स्वाध्याय काल में करणीय कृत्यों का कथन ) swaadhyaaya/ svaadhyaaya/ swadhyaya
स्वामिपुष्करिणी गरुड ३.२६.१३२(स्वामिपुष्करिणी का माहात्म्य), स्कन्द २.१.१(स्वामिपुष्करिणी का माहात्म्य), २.१.११(स्वामिपुष्करिणी स्नान से पातक नाश, परीक्षित व तक्षक आख्यान में काश्यप ब्राह्मण के पाप का स्वामिपुष्करिणी में स्नान से नाश),
स्वामी कूर्म २.३७.१९(स्वामि तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त ३.७.४३(स्वामी शब्द की निरुक्ति : धन युक्त ), लक्ष्मीनारायण १.३१९.९४, ३.२७, ३.२८.३३, द्र. चन्द्रस्वामी, देवस्वामी, राजस्वामी, विष्णुस्वामी, सोमस्वामी, स्तुतस्वामी, हरिस्वामी swaamee/ svaamee/ swami
स्वायम्भुव अग्नि १८(स्वायम्भुव मनु के वंश का वर्णन), कूर्म १.१४(स्वायम्भुव मनु के वंश का वर्णन), गरुड ३.७.२७(स्वायम्भुव द्वारा हरि-स्तुति), देवीभागवत ७.३८(स्वयम्भुवी देवी की नाकुली क्षेत्र में स्थिति का उल्लेख), पद्म १.३, भविष्य ३.४.२५.३०(ब्रह्माण्ड के सद्गुणों से चित्त रूपी स्वायम्भुव मनु की उत्पत्ति का उल्लेख/मनुकारक चित्त द्वारा स्वायम्भुव को नमस्कार), भागवत ८.१, वराह ७४.६(सृष्टिक्रम में स्वायम्भुव मनु की सृष्टि, स्वायम्भुव मनु से आरम्भ करके भुवन विस्तार का वर्णन), वायु ३३(स्वायम्भुव मनु के वंश का वर्णन ) swaayambhuva/ svaayambhuva/ svayambhuva
स्वारोचिष देवीभागवत १०.८(प्रियव्रत - पुत्र स्वारोचिष मनु द्वारा तारिणी देवी की उपासना से राज्य प्राप्ति), भविष्य ३.४.२५.३१(ब्रह्माण्ड रज से वायु रूप स्वारोचिष मन्वन्तर का निर्माण/वायु द्वारा स्वारोचिष को नमस्कार ), भागवत ८.१, मार्कण्डेय ६१, ६६, स्कन्द ५.२.६५.३१(पुलोमा असुर का स्वारोचिष मन्वन्तर में मनु बनना?), लक्ष्मीनारायण ३.११५.४१, द्र. स्वरोचिष swaarochisha/ swarochisha/ svarochisha
स्वाहा
गरुड
३.२९.३०(अग्नि-भार्या,
बुध-माता
-
गङ्गादिभ्यो
ह्यवराह्यग्निजाया
स्वाहासंज्ञाधिगुणा
नैव
हीना
॥
स्वाहाकारो
मन्त्ररूपाभिमानी
स्वाहेति
संज्ञामाप
सदैव
वीन्द्र
।
अग्नेर्भार्यातो
बुद्धिमान्
संबभूव
ब्रह्माभिमानी
चन्द्रपुत्रो
बुधश्च
॥),
देवीभागवत
९.१९.२४
(स्वाहा
से
आहृत
मञ्जीर
-
द्वय
की
तुलसी
को
प्राप्ति
-
ददौ
मञ्जीरयुग्मं
च
स्वाहाया
आहृतं
च
यत्
।),
९.४३.३०(देवों
को
भोजन
हेतु
स्वाहा
का
प्राकट्य,
स्वाहा
द्वारा
कृष्ण
हेतु
तप,
जन्मान्तर
में
कृष्ण
-
पत्नी
नाग्नजिती
सत्या
बनना
-
वाराहे
वै
त्वमंशेन
मम
पत्नी
भविष्यसि
॥
नाम्ना
नाग्नजिती
कन्या
कान्ते
नग्नजितस्य
च
।
अधुनाग्नेर्दाहिका
त्वं
भव
पत्नी
च
भामिनी
॥ ),
९.४३.५०
(स्वाहा
का
अग्नि
से
विवाह,
१६
नाम
-
स्वाहा
वह्निप्रिया
वह्निजाया
सन्तोषकारिणी
॥
शक्तिः
क्रिया
कालदात्री
परिपाककरी
ध्रुवा
।
गतिः
सदा
नराणां
च
दाहिका
दहनक्षमा
॥),
नारद
१.६६.१२६
(गणनाथ
की
शक्ति
स्वाहा
का
उल्लेख
-
स्वाहया
गणनाथश्च
एकदन्तः
सुमेधया),
ब्रह्म
२.५८(
शिव
से
प्राप्त
वीर्य
के
अंश
को
अग्नि
द्वारा
स्व
-
पत्नी
स्वाहा
में
स्थापित
करना,
सुवर्ण
व
सुवर्णा
कन्या
का
जन्म,
सुवर्णा
कन्या
का
धर्म
से
विवाह
आदि
),
ब्रह्मवैवर्त्त
१.४.१९
(स्वाहा
की
उत्पत्ति
-
आविर्बभूव
कन्यैका
तद्वह्नेर्वामपार्श्वतः
।
सा
स्वाहा
वह्निपत्नी
तां
प्रवदन्ति
मनीषिणः
।।),
२.१.१०१
(स्वाहादेवी
वह्निपत्नी
त्रिषु
लोकेषु
पूजिता
।
यया
विना
हविर्दत्तं
न
ग्रहीतुं
सुराः
क्षमाः
।।),
२.४०.३१(स्वाहा
का
महत्व,
नाग्नजिती
रूप
में
कृष्ण
-
पत्नी
बनना
-
वाराहे
च
त्वमंशेन
मम
पत्नी
भविष्यसि
।
नाम्ना
नाग्नजिती
कन्या
कान्ते
नग्नजितस्य
च
।।),
२.५८,
४.६.१४५
(स्वाहा
का
सुशीला
रूप
में
अवतरण
-
स्वाहांशेन
सुशीला
च
रुक्मिण्याद्याः
स्त्रियो
नव
।। ),
४.४५.३६(स्वाहा
द्वारा
शिव
विवाह
में
हास्य
-
स्थिरो
भव
महादेव
स्त्रीणां
वचसि
सांप्रतम्
।
विवाहे
व्यवहारोऽस्ति
पुरस्त्रीणां
प्रगल्भता
।।),
ब्रह्माण्ड
१.२.१०.८०
(पशुपति
-
पत्नी,
स्कन्द
– माता
-
नाम्ना
पशुपतेर्या
तु
तनुरग्निर्द्विजैः
स्मृता
।
तस्याः
पत्नी
स्मृता
स्वाहा
स्कंदस्तस्याः
सुतः
स्मृतः
।।),
२.३.३.२५(अनल
-
- अष्ट
वसु
गणों
में
एक,
स्वाहा
-
पति,
कुमार,
शाख,
विशाख,
नैगमेय
पुत्र
-
अग्नेः
पुत्रं
कुमारं
तु
स्वाहा
जज्ञे
श्रिया
वृतम्
।
तस्य
शाखो
विशाखश्च
नैगमेयश्च
प्रष्टजाः
॥),
मत्स्य
१३.४२
(माण्डव्ये
माण्डवी
नाम
स्वाहा
माहेश्वरे
पुरे॥),
वायु
२७.५०(नाम्ना
पशुपतेर्या
तु
तनुरग्निर्द्विजैः
स्मृता।
तस्य
पत्नी
स्मृता
स्वाहा
स्कन्दश्चापि
सुतः
स्मृतः
।।),
विष्णुधर्मोत्तर
३.५६.३(अग्नि
का
स्वरूप
-
वामोत्सङ्गगता
स्वाहा
शक्रस्येव
शची
भवेत्
।
रत्नपात्रकरा
देवी
वह्नेर्दक्षिणहस्तयोः
।।) ,
स्कन्द
५.३.२२(
ब्रह्मा
के
मानस
-
पुत्र
तथा
स्वाहा
-
पति
अग्नि
द्वारा
नर्मदा
तथा
१६
नदियों
की
पत्नी
रूप
में
प्राप्ति,
नदियों
का
धिष्णि
नाम,
नर्मदा-पुत्र
की
धिष्णीन्द्र
संज्ञा
आदि
),
५.३.१९८.८०
(माहेश्वरपुर
में
देवी
की
स्वाहा
नाम
से
स्थिति
का
उल्लेख
-
माण्डव्ये
माण्डुकी
नाम
स्वाहा
माहेश्वरे
पुरे
।),
हरिवंश
२.१२२.३१
(स्वाहाकार
के
आश्रित
पांच
अग्नियों
कल्माष,
कुसुम,
दहन,
शोषण
व
तपन
का
उल्लेख
-
ते
जातवेदसः
सर्वे
कल्माषः
कुसुमस्तथा
।
दहनः
शोषणश्चैव
तपनश्च
महाबलः
।।
स्वाहाकारस्य
विषये
प्रख्याताः
पञ्च
वह्नयः
।),
लक्ष्मीनारायण
२.१२४.४५
(यज्ञ
में
स्वाहा,
वषट्,
वौषट्
आदि
व्याहृतियों
से
प्रयोज्य
वस्तुओं,
देवताओं
के
नाम),
३.११५.८२(ललिता
देवी
के
स्तन
स्वाहा
स्वधाकार
रूप
होने
का
उल्लेख
-
स्तनौ
स्वाहास्वधाकारौ
सर्वजीवनदुग्धदौ
।।
),
वास्तुसूत्रोपनिषद
६.२१टीका(यज्ञ
की
दाहिका
शक्ति
स्वाहा,
पचनात्मिका
शक्ति
स्वधा
-
यज्ञस्य
दाहिका
शक्तिः
स्वाहा
।
पचनात्मिका
स्वधा३२
।),
द्र.
दक्ष
कन्याएं
swaahaa/svaahaa/
swaha
स्वाहा-(१) अग्नि की पत्नी ( आदि० १९८ । ५)। ये ब्रह्माजी की सभा में उनकी सेवा के लिये उपस्थित होती हैं पृथिवी गां गता देवी ह्रीः स्वाहा कीर्तिरेव च। सुरा देवी शची चैव तथा पुष्टिररुन्धती।। (सभा० ११ । ४२ )। इनका मुनि-पत्नियों के रूप में अग्नि के साथ समागम (वन० २२५ । ७) । गरुडीरूप धारण करना (वन० २२५ । ९)। इनका छः बार समागम करके अग्नि के वीर्य को सरकंडों में गिराना ( वन० २२५ । १५)। इनका अग्निदेव के साथ सदा रहने के लिये स्कन्द के सम्मुख अपना अभिप्राय प्रकट करना - दक्षस्याहं प्रिया कन्या स्वाहा नाम महाभुज। बाल्यात्प्रभृति नित्यं च जातकामा हुताशने ।। ( वन० २३१ । ३-४ ) । स्कन्द के अभिषेक के समय स्वाहा देवी भी उपस्थित थीं (शल्य० ४५ । १३)। (२) बृहस्पति की पुत्री, जो अधिक क्रोधवाली है । यह सम्पूर्ण भूतों में निवास करती है । इसका पुत्र 'काम' नामक अग्नि है - क्रुद्धस्य तु रसो जज्ञे मन्युतीव्रा च पुत्रिका ।। स्वाहेति दारुणा क्रूरा सर्वभूतेषु तिष्ठति। (वन० २१९ । २२-२३)।
|
|
|
|
स्वाहिनी द्र. भूगोल
स्विष्टकृत नारद १.५१.४७(अग्नि के शरीर के संदर्भ में स्विष्टकृत का उल्लेख -- शीर्षं हस्तौ च पादौ च पञ्चवारुणमीरितम्। तथा स्विष्टकृतं विप्र श्रोत्रे पूर्णाहुतिस्तथा।।), महाभारत वन० २१९.२१(उदग्द्वारं हविर्यस्य गृहे नित्यं प्रदीयते। ततस्तुष्टो भवेद्ब्रह्मा स्विष्टकृत्परमः स्मृतः ।।)
प्रत्येक गृह्य कर्म में अग्नि के लिए सदा घी की ऐसी धारा दी जाती है, जिसका प्रवाह उत्तराभिमुख हो; इसीलिये वह अभीष्टसाधक होती है, अतएव इस उत्कृष्ट अग्नि का नाम स्विष्टकृत् है । इसे बृहस्पति का छठा पुत्र समझना चाहिये ( वन० २१९ । २१) । ( २) मनु के द्वितीय पुत्र विश्वपति नामक अग्नि, मनु की कन्या रोहिणी भी स्विष्टकृत् मानी गयी है । इन्हीं के प्रभाव से हविष्य की सुन्दरता से आहुति-क्रिया सम्पन्न होती है; अतः वे स्विष्टकृत् कहलाते हैं ( वन० २२१ । १७- १८) ।
स्वेद गरुड २.२.१९(तिल की स्वेद से उत्पत्ति का उल्लेख), पद्म १.१४, १.२४(शिव के ललाट के स्वेद से वीरभद्र की उत्पत्ति), ५.११७.२२३(चेकितान ब्राह्मण का स्वेदिल गण बनना), ब्रह्म १.६९.९९(प्रम्लोचा अप्सरा के स्वेद व कण्डु ऋषि के वीर्य से मारिषा कन्या के जन्म का वृत्तान्त), १.११०.४१(, ब्रह्माण्ड २.३.७.४२१(मनुष्य के स्वेद से उत्पन्न जन्तुओं के नाम), मत्स्य २५२(वास्तु की शिव के स्वेद से उत्पत्ति, वास्तु द्वारा अन्धकों का रक्त पान, देवों द्वारा वास्तु का स्तम्भन), वामन ५४.५६(उमा - सखी मालिनी का स्वेद से गणपति जन्म में सहायक होना), मत्स्य ७२.११, वायु ६९.२९९(स्वेदज सृष्टि का वर्णन), विष्णु १.१५.४७(वृक्षों द्वारा प्रम्लोचा अप्सरा के स्वेद को ग्रहण करने पर मारिषा कन्या के जन्म का वृत्तान्त), विष्णुधर्मोत्तर १.१५.९(ब्रह्मा के स्वेद बिन्दु से मधु व कैटभ की उत्पत्ति तथा जिष्णु व विष्णु द्वारा मधु व कैटभ के वध का उपाख्यान), शिव २.२.३.४६(शिव द्वारा प्रताडित होने पर ब्रह्मा का स्वेदयुक्त होना, स्वेद के पतन से अग्निष्वात्त व बर्हिषद् पितरों की उत्पत्ति), स्कन्द १.२.५.८३(जिह्वामूलीय वर्णों की स्वेदज संज्ञा), ३.२.२०.३३, ४.१.१७(शिव के स्वेदबिन्दु से लोहिताङ्ग की उत्पत्ति, लोकपाल पद प्राप्ति),५.१.३७.४०, ५.३.५.३०(उमा के हर्ष स्वेद से नर्मदा कन्या की उत्पत्ति का कथन), ५.३.९९.४(शिव का स्वेद गंगा जल मिश्रित होने का उल्लेख, वासुकि द्वारा पान), ७.१.२४२.७(देवों के स्वेद से देवी के उत्पन्न होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३२९.५९ (वृन्दा की चिता की भस्म से श्यामल तुलसी वन तथा स्वेद से हरित तुलसी वन की उत्पत्ति), २.५.७९, २.२२६.६४(स्वेद से उत्पन्न क्रिमि व धातु से उत्पन्न पुत्र में साम्य का उल्लेख ), वा. रामायण ३.७३.२४(तप से स्वेद बिन्दुओं के मालाओं में रूपान्तरित होने का उल्लेख), sweda/sveda
स्वः भागवत २.५.३८(हृदय में स्वः लोक की स्थिति का उल्लेख - भूर्लोकः कल्पितः पद्भ्यां भुवर्लोकोऽस्य नाभितः । हृदा स्वर्लोक उरसा महर्लोको महात्मनः ॥...), वामन ९०.३९(स्व: लोक में विष्णु की अव्यय नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख - भुवर्लोके च गरुडं स्वर्लोके विष्णुमव्ययम्। महर्ल्लोके तथाऽगस्त्यं कपिलं च जने स्थितम्।। )
हंस गरुड १.८७.२०(शान्त दानव के वध हेतु विष्णु का हंस अवतार), २.२.७०(कांस्यहारी के हंस बनने का उल्लेख), ३.१२.८६(हंस-हिडम्ब का मधु-कैटभ से तादात्म्य), गर्ग २.२२.१७(मत्स्य रूप धारी पौण्ड्र असुर द्वारा दधिमण्डोद समुद्र में हंस मुनि के निगरण पर कृष्ण द्वारा हंस मुनि की रक्षा), १०.१६.३(हंसकेतु – चम्पावती के राजा हेमांगद का पुत्र), देवीभागवत ४.२२.३६(अरिष्ट - पुत्र, धृतराष्ट्र रूप में अवतरण), नारद १.५१.५४(होम की ३ मुद्राओं में से एक), १.६६.९७(हंस विष्णु की शक्ति प्रभा का उल्लेख), पद्म २.८९(मानस सर में स्नान से कृष्ण हंसों के शुक्ल बनने का प्रश्न), २.९२(तीर्थों का पापों से लिप्त होने पर कृष्ण हंस बनना, रेवा-कुब्जा संगम पर मुक्ति), ३.२६.१८(एकहंस तीर्थ का माहात्म्य), ६.१८४.४०(ब्रह्मा के वाहन हंस का पृथ्वी पर पतन, सरोजवदना से गीता के दशम अध्याय के श्रवण से धीरधी ब्राह्मण बनना), ब्रह्मवैवर्त्त १.५.४७(कृष्ण के अंघ्रिनखरन्ध्र से हंसपंक्ति का आविर्भाव, एक हंस का ब्रह्मा का वाहन बनना), १.८.२८(हंस ऋषि की ब्रह्मा की वाम कुक्षि से उत्पत्ति, दक्ष कुक्षि से यति), १.१२.४(हंस, यति, आरुणि आदि ब्रह्मा-पुत्रों का उल्लेख), १.२२.११(हंसी की निरुक्ति – हंसा आत्मवशा), भविष्य १.१३८.३८(जलाधिप की हंस ध्वज का उल्लेख), ३.४.२६.३०(शतसूर्यसमप्रभ हरि हंस द्वारा शुक्र, प्रह्लाद आदि को ताप), भागवत ४.२८.६४(पुरञ्जनोपाख्यान में ब्राह्मण द्वारा स्व का हंस रूप में निरूपण, हंस द्वारा हंस का प्रतिबोधन), ६.४.२२(दक्ष द्वारा हंस गुह्य स्तोत्र द्वारा विष्णु की स्तुति), ६.४.२६(हंस स्थिति का निरूपण), ११.१३.१९(सनकादि की गुण व चित्त सम्बन्धी जिज्ञासा शान्ति हेतु कृष्ण द्वारा धारित रूप), ११.१७.१०(कृतयुग में नरों के हंस वर्ण का उल्लेख), १३.४.१३(हंस प्रकार के श्रोता का लक्षण – सार ग्रहण करने वाला), मत्स्य ६.३२(धर्म व शुचि - पुत्र), १४८.९३(वरुण की ध्वजा पर रजत हंस चिह्न), मार्कण्डेय ६६.३१/६३.३१(हंस का हंसी से वैराग्य विषयक संवाद), वराह १४४.१७३(हंस तीर्थ में काकों का हंस बनना, यक्ष-निर्मित), १४९.४६(मणिपूर गिरि पर हंसकुण्ड की महिमा), वामन ५४, ५७.८६(हंसास्य : कृत्तिकाओं द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), ९०.६(हंसपद तीर्थ में विष्णु का हंस नाम से वास), ९०.२३(सप्तगोदावर तीर्थ में विष्णु का हाटकेश्वर व महाहंस नाम), ९०.२७(महाकोशा में विष्णु का हंसयुक्त नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१२०.२०(कांस्य हरण से हंस योनि प्राप्ति का उल्लेख), १.१८०(हंस रूपी विष्णु द्वारा शम्भु असुर का वध), १.२२१.१२(मरुत्त के यज्ञ में वरुण द्वारा हंस को वरदान), ३.१८.१(संगीत में १४ षड्जग्रामिकों में से एक), ३.४६.१३(परमेष्ठी ब्रह्मा के रथ में सात लोक हंसों के रूप में जुते होने का उल्लेख), ३.१०५.३५(हंस आवाहन मन्त्र), ३.११९.९(हंस की तीर्थयात्रा समारम्भ काल में पूजा का निर्देश), ३.१५१.३(चतुरात्मा हरि के चार रूपों में से एक), ३.२२५(हंस व्रत), ३.२२६(कृतयुग में हंस रूप धारी विष्णु द्वारा ज्ञानोपदेश), ३.३४२.१८(हंस रूप धारी विष्णु द्वारा ऋषियों को विश्वरूप का दर्शन), शिव २.१.७+ (, २.१.१५(लिङ्ग के अन्वेषण हेतु ब्रह्मा द्वारा हंस रूप धारण करना), ३.२८.२८(यति, भिल्ल व भिल्ली के हंस, नल व दमयन्ती रूप में जन्म की कथा), ६.१६.३७(हंस शब्द के प्रतिलोम आदि से ओम की व्युत्पत्ति आदि का कथन), ७.२.२२.२२(५ प्रकार के प्रणव न्यासों में एक, हंस न्यास विधि), स्कन्द १.३.१, १.३.२.१२.७(ब्रह्मा द्वारा हंसारूढ होकर तेजःस्तम्भ के अन्त के दर्शन का प्रयत्न), ३.१.२६.४९(ऋषियों द्वारा हंस रूप में जानश्रुति राजा को बोध), ४.१.२९.१६७(हंसरूपा : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.८३.६८(हंस तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.२०(शिव - पार्वती रति में विघ्न हेतु अग्नि द्वारा धारित रूप), ५.३.१९६.१(हंस तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.२२१(हंसेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, हंस का ब्रह्मा का वाहन बनना, अनुपस्थित रहने पर पद से च्युति, तप से स्वस्थान प्राप्ति), ५.३.२३१.१७(नर्मदा तट पर तीन हंस कृत तीर्थ होने का उल्लेख), ६.३०(हंस नामक सिद्धाधिप द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु लिङ्ग स्थापना), हरिवंश १.२१.३३(कौशिक के ७ पुत्रों के हंसरूप में जन्म लेने पर नाम), १.२३(ब्रह्मदत्त के पूर्व जन्म में हंस होने का कथन), २.९१.३६+ (इन्द्र के आदेश से हंस का वज्रपुर में प्रभावती के पास जाना, प्रद्युम्न आदि की प्रशंसा), २.९२(शुचिमुखी नामक हंसी द्वारा प्रभावती से प्रद्युम्न की प्रशंसा), ३.१०३, ३.१०५(ब्रह्मदत्त - पुत्र, डिम्भक - भ्राता, तप, वर प्राप्ति, संन्यास की निन्दा, दुर्वासा द्वारा शाप, कृष्ण को दूत प्रेषण), ३.१२४(हंस का बलराम से युद्ध), ३.१२७+ (हंस का यादवों व कृष्ण से युद्ध, मरण), महाभारत कर्ण ४१(हंसकाकीयाख्यान), शान्ति २३९.३३(हंस की निरुक्ति : शरीर आदि के अक्षरत्व को प्राप्त करने वाला आदि), २९९(हंस द्वारा साध्यों को मोक्षधर्म का उपदेश), योगवासिष्ठ ६.२.११७.३३(......), वा.रामायण २.४५.२०(वाजपेय से उत्पन्न छत्रों की हंसों से उपमा), ७.१८.५(मरुत्त के यज्ञ में रावण के आगमन पर वरुण का हंस में प्रवेश), लक्ष्मीनारायण १.१७०.४५(कृष्ण के पादनखरंध्रों से राजहंसपङ्क्ति का आविर्भाव, एक हंस की ब्रह्मा के वाहन रूप में नियुक्ति), २.१४०.३९(राजहंस प्रासाद के लक्षण), २.२००.६६, २.२३९, ३.५१.३०(गुरु तीर्थ के प्रभाव से कृष्ण हंसों के तीर्थ व हंसियों के नदी बनने का कथन ), ३.१६४.३४(रैवत मन्वन्तर में हंसरूपधारी कृष्ण द्वारा शान्तशत्रु दैत्य के वध का कथन), ३.१७०.१६, कथासरित् १.३.२७(हंसयुगल द्वारा राजा ब्रह्मदत्त को स्ववृत्तान्त का कथन), १.६.१२४(राजहंस नामक राजचेटक का उल्लेख), ७.९.२५(यन्त्रहंसों द्वारा राजकोष चुराने की कथा), ७.९.१७७(हंस व हंसी के नरवाहनदत्त व कर्पूरिका रूप में जन्म लेने की कथा), १०.४.१६८(विकट-संकट हंसद्वय द्वारा कूर्म को अन्यत्र ले जाने की कथा), १२.२.१२७(मृतसंजीवनी से हंसी के जीवित होने तथा हंसी द्वारा हंस को लुब्धक जाल से मुक्त कराने की कथा), १७.१.२४(राजा ब्रह्मदत्त द्वारा हेमहंस-द्वय का दर्शन, हंसों के पूर्वजन्म की कथा- शिवगणद्वय द्वारा हास से शाप प्राप्ति), hansa/hamsa
हंस १) एक श्रेष्ठ पक्षी, कश्यपपत्नी ताम्रा देवी की पुत्री धृतराष्ट्री से हंस उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६६ । ५६-५८) । सुवर्णमय पंख से भूषित एक हंस ने नल और दमयन्ती के पास एक दूसरे के संदेश को पहुँचाकर उनमें अनुराग उत्पन्न किया था ( वन० ५३ । १९-३२) । सप्तर्षियों ने हंस- रूप धारण करके भीष्म के निकट आकर उन्हे दक्षिणायन में प्राणत्याग करने से रोका था ( भीष्म० ११९ । १०२) । एक हंस और काक का उपाख्यान ( कर्ण० ४१ । १४-७०) । ( २) जरासंध का एक मन्त्री, जो डिम्भक का भाई था । इसे किसी भी अस्त्रशस्त्र से मारे न जाने का देवताओं द्वारा वर प्राप्त था (सभा० १४ । ३७) । यह अपने भाई डिम्भक की मृत्यु का समाचार सुनकर यमुनाजी में कूद पडा और मर गया (सभा० १४ । ४२) । जरासंध को सलाह देने के लिये ये ही दोनो भाई नीति- निपुण मन्त्री थे ( सभा० १९ । २६) । भीमसेन के साथ युद्ध का निश्चय हो जाने पर इसने अपने इन दोनों स्वर्गीय मन्त्रियों - कौशिक और चित्रसेन का - हंस और डिम्भक का स्मरण किया था ( सभा० २२ । ३२) । (३) जरासंध की सेना का एक राजा, जो सत्रहवीं बार के युद्ध में बलरामजी द्वारा मारा गया था ( सभा० १४ । ४०) । हंसकायन-क्षत्रियों की एक जाति, इस जाति के उत्तम कुलोत्पन्त क्षत्रिय भेंट लेकर युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ में आये थे ( सभा० ५२ । १४) ।
हंसकूट-एक पर्वत, यहाँ पत्नियोंसहित पाण्डु का आगमन हुआ था । इसे लाँघकर वे शतशृङ्ग पर्वत पर पहुँचे थे ( आदि० ११८ । ५०) । इस पर्वत का शिखर श्रीकृष्ण ने द्वारकापुर में स्थापित किया था, जो साठ ताड के बराबर ऊँचा और आधा योजन चौइा था ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पा०, पृष्ठ ८१६) ।
हंसचूड-एक यक्ष, जो कुबेर की सेवा के लिये उनकी सभा में उपस्थित रहता है ( सभा० १० । १७) ।
हंसज-स्कन्द का एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ६८) ।
हंसद्वीप कथासरित् १२.६.३७२, १२.२४.६१,
हंसपथ-एक देश, जहाँ के निवासी सैनिक द्रोणनिर्मित गरुडव्यूह के ग्रीवाभाग में खडे थे ( द्रोण० २० । ७) ।
हंसप्रपतनतीर्थ- प्रयाग में स्थित एक त्रिलोकविख्यात तीर्थ, जो गङ्गा के तट पर अवस्थित है ( वन० ८५ । ८७) ।
हंसप्रतपन द्र. प्रयाग
हंसवक्त्र-स्कन्द का एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७५) ।
हंसावली कथासरित् १२.४.७४,
हंसास्य वामन ५८.६६(हंसास्य द्वारा पट्टिश द्वारा असुर संहार),
हंसिका-सुरभि की पुत्री, जो दक्षिण दिशा को धारण करने वाली है ( उद्योग- १०२ ।७ ८) ।
हंसी-राजर्षि भगीरथ की एक यशस्विनी कन्या, जिसका हाथ उन्होंने कौत्स ऋषि के हाथ में दिया था ( अनु० १३७ । २६) ।
हङ्कार लक्ष्मीनारायण २.१७९.७८
हञ्ज विष्णुधर्मोत्तर ३.१७.४६(नारी का सम्बोधन)
हठ स्कन्द १.२.६२.२९(हठकारी : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक), कथासरित् ९.२.३५हठशर्मा hatha
हड्डकायिनी लक्ष्मीनारायण २.४१.८३
हण्ड विष्णुधर्मोत्तर ३.१७.४६(परिजनों हेतु हण्ड सम्बोधन ), लक्ष्मीनारायण २.२१४.३३हाण्डेश्वर, handa
हतायु कथासरित् ८.५.१०९,
हत्या द्र. ब्रह्महत्या
हनु गणेश २.११५.१६(सिन्धु द्वारा चपल के हनु पर आघात का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०५, द्र. कुम्भहनु, महाहनु, वज्रहनु hanu
हनुमान अग्नि १२५.५४(हनुमान मन्त्र का कथन), गरुड ३.१.३५(हनुमान के गुरु/वायु रूप का कथन), ३.१६.६८(विरोचन वायु का अवतार, विरोचन के १४ चन्द्रों में द्वितीय होने का उल्लेख), गर्ग ७.२६.२५(आर्ष्टिषेण सहित हनुमान के रङ्गवल्लीपुर में नित्य आने का उल्लेख), देवीभागवत देवीभागवत ८.९, ८.१०.१३ ( किम्पुरुष वर्ष में हनुमान द्वारा राम की स्तुति का वर्णन ), नारद १.७४(हनुमान मन्त्रोपासना विधि), १.७५(हनुमान हेतु दीप निर्माण व दान विधि, हनुमान का स्वरूप), १.७८(हनुमत्कवच का निरूपण), १.७९(हनुमत्चरित्र का कीर्तन), १.७९.९१(गौतम - शिष्य शङकरात्मा के मरण पर शिव द्वारा स्वतेज से हनुमान रूप में जीवित करना), १.७९.२२९(हनुमान द्वारा शिव पूजा विधि का कथन), पद्म ५.२८.३०(हनुमान द्वारा युद्ध में चक्रांका नगरी के राजा सुबाहु को मूर्च्छित करना, राजा द्वारा स्वप्न दर्शन), ५.४४(हनुमान का शिव से युद्ध, पुष्कल के सञ्जीवनार्थ मृत सञ्जीवनी लाना), ५.११४.११५(शिव का गानरत हनुमान पर आरूढ होना), ६.२४३(राम को दीपक भेंट), ब्रह्म २.१४.१७(हनुमान की अञ्जना से उत्पत्ति, हनुमान द्वारा मार्जारी रूपी अद्रिका को गंगा में स्नान कराना तथा पिशाच द्वारा अञ्जना को स्नान कराना), २.८७.२५(शिवलिङ्ग के उत्पाटन में हनुमान की असमर्थता), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.३५(चिरञ्जीवियों में से एक), भविष्य ३.४.१३.३२(अञ्जना से हनुमान के जन्म का वृत्तान्त, मुष्टि से हनन के कारण हनुमान नाम प्राप्ति, सूर्य व रावण के दर्प का दलन, हनुमान द्वारा भाद्रप्रकाशक चन्द्रमा की प्राप्ति, बालशर्मा रूप में अवतरण), भागवत ११.१६.२९(किम्पुरुषों में हनुमान की सर्वश्रेष्ठता का उल्लेख), वामन ३७.३(पवन के पुत्रशोक से पीडित होने तथा शूलपाणि शिव, देवों, गन्धर्वों द्वारा हनुमान् को प्रकट करने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.२२३.२७(हनुमान चरित्र : सुग्रीव के ४ सचिवों में एक, राहु तथा इन्द्र के हस्ती के भक्षण का प्रयत्न, इन्द्र द्वारा वज्रपात से वाम हनु का भंजन), शिव ३.१९, ३.२०(अञ्जना के कर्ण में शिव वीर्य आधान से हनुमान की उत्पत्ति, सूर्य से अध्ययन, राम की सहायता), ४.१७.६२(हनुमान द्वारा शिव-भक्त गोप बालक का श्रीकर नामकरण आदि), स्कन्द १.१.८.१००(हनुमान के ११वें रुद्र होने का उल्लेख), २.८.८.७७(सीताकुण्ड के पूर्व में सुग्रीव-रचित तीर्थ तथा पश्चिम में हनुमत्कुण्ड की स्थिति का उल्लेख), ३.१.१५.३(हनुमत्कुण्ड तीर्थ का माहात्म्य – राज धर्मसख द्वारा १०० पुत्रों की प्राप्ति), ३.१.४४+ (हनुमान द्वारा कैलास पर लिङ्ग दर्शन के लिए तप, लिङ्ग स्थापना, सिकता लिङ्ग के उत्पाटन की चेष्टा, शोक, राम द्वारा शिव भक्ति का उपदेश), ३.१.४९.२६(हनुमान द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.२.३६+ (हनुमान द्वारा मोहेरक पुर वासी ब्राह्मणों की वृत्ति की रक्षा), ३.२.४०.२३(धर्मारण्य में रामदूत हनुमान के आगे वृत्तिभागविभाजन तथा न्यायविचारणा का निर्देश), ३.२.४०.५१(धर्मारण्य में अदृष्ट हनुमान द्वारा न्याय की रक्षा का कथन), ३.३.५.७०(हनुमान द्वारा शिवभक्त गोप बालक का श्रीकर नामकरण, वंश में कृष्ण के जन्म का वरदान), ५.१.२१(विभीषण से प्राप्त लिङ्ग की अवन्ती में स्थापना), ५.१.७०.४७(हनुमान के ४ नाम), ५.२.७९(हनुमानेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, विप्रों द्वारा हनुमान चरित्र की हीनताओं का वर्णन करने पर हनुमान द्वारा हनुमानेश्वर लिङ्ग की पूजा), ५.३.८३(हनुमानेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, राक्षस विनाश रूपी ब्रह्महत्या दोष से हनुमान की निवृत्ति, हनुमानेश्वर तीर्थ में अस्थि क्षेप के माहात्म्य के संदर्भ में शतबाहु व पिङ्गल द्विज का संवाद), वा.रामायण १.१७.१६(वायु का अंश), ४.६६(जाम्बवान द्वारा हनुमान की उत्पत्ति का कथन, समुद्र लङ्घन की प्रेरणा, लङ्घन हेतु महेन्द्र पर्वत पर चढना), ५.१(समुद्र लङ्घन हेतु हनुमान द्वारा महेन्द्र पर्वत से प्लवन का उद्योग), ५.४८+ (प्रमदा वन विध्वंस प्रसंग में हनुमान द्वारा राक्षसों का वध, इन्द्रजित् के पाश द्वारा हनुमान का बन्धन, रावण से मिलन), ५.५३(राक्षसों द्वारा हनुमान की पुच्छ में आग, सीता की प्रार्थना से अग्नि का शीतल होकर जलना, लङ्का दहन), ६.४.१८(हनुमान की ऐरावत से उपमा), ६.१७.५०(विभीषण शरणागति विषयक विचार व्यक्त करना), ६.२८.१०(सारण द्वारा रावण को हनुमान का परिचय), ६.३७.२८(लङ्का के पश्चिम द्वार पर हनुमान का इन्द्रजित् से युद्ध), ६.५६(राम अभिषेक हेतु हनुमान द्वारा उत्तर समुद्र से जल लाना), ६.७०(हनुमान द्वारा रावण - सेनानियों देवान्तक व त्रिशिरा का वध), ६.७४(राम व लक्ष्मण के सञ्जीवन हेतु दिव्य ओषधि लाना), ६.७७(निकुम्भ का वध), ७.३५(हनुमान के बाल्यावस्था के चरित्र का वर्णन), ७.३६(ऋषियों के कोप से हनुमान को शाप प्राप्ति, स्वबल की विस्मृति), लक्ष्मीनारायण १.१८४.१६८(शिव के वीर्य से अञ्जना - नन्दन हनुमान के जन्म का वृत्तान्त ), १.४०६.३८(मतङ्ग मुनि की कृपा से तपोरत अञ्जना को हनुमान पुत्र की प्राप्ति का वर्णन), १.५७९.५१(नर्मदा में भृगुक्षेत्र में हनुमान द्वारा तप, हनुमदीश्वर तीर्थ में अस्थिक्षेप की महिमा), , २.१०४.३०(हनुमदाश्रम में तप करने पर विघ्न न होने का कथन), २.१०६.४(भक्त हनुमान के संदर्भ में कपि शब्द की निरुक्ति – कं शाश्वतं सुखं, पि पिबामि), ३.१५०(हनुमन्मन्त्र व हनुमान मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा विधि), hanumaana / hanuman
हनुमान्-( केसरी की पत्नी अञ्जना देवी के गर्भ से वायु द्वारा उत्पन्न महावीर मारुति) इनका कदलीवन में भीमसेन- का मार्ग रोककर लेटना ( वन० १४६ । ६६-६७) । इनका भीमसेन के साथ संवाद ( वन० अध्याय १४७ से १५० तक) । इनका भीमसेन को संक्षिप्त में श्रीराम- चरित्र सुनाना ( वन० १४८ अध्याय) । इनके द्वारा चारों युगों के धर्मों का वर्णन ( वन० १४५ अध्याय) । इनका भीमसेन को अपना विशाल रूप दिखाना ( वन० १५० । ३-४) । इनके द्वारा चारों वर्णों के धर्म का प्रति पादन ( वन० १५० । ३०-३६) । इनके द्वारा राजधर्म- का वर्णन ( वन० १५० । ३७-४९) । इनका भीमसेन के सिंहनाद को अपनी गर्जना से बढाने तथा अर्जुन की ध्वजा पर स्थित होकर अपनी भीषण गर्जना द्वारा शत्रुओं को डराने की बात कहकर भीमसेन को आश्वासन दे अन्तर्धान होना ( वन० १५१ । १६-१९) । इनका लंका से लौटकर श्री- राम से सीता का समाचार बताना ( वन० २८२ । १७- ५७) । इनके द्वारा धूम्राक्ष का वध (वन० २८६। १४) । इनके द्वारा वज्रवेग का वध ( वन० २८७ । २६) । इनका दूत बनकर भरत के पास जाना और लौटकर श्री राम को इसकी सूचना देना ( वन० २९१ । ६१-६२) । हन्यमान-एक दक्षिणभारतीय जनपद (भीष्म० ९।६९) ।
Remarks on Hanumaana
हन्त शिव ५.१०.४३(हन्तकार : धेनु के ४ स्तनों में से एक, हन्तकार द्वारा मनुष्यों की तृप्ति का उल्लेख), स्कन्द ३.२.६.९(हन्तकार स्तन से मनुष्यों के तृप्त होने का उल्लेख)।
हय अग्नि २९२.४४(शालिहोत्र द्वारा सुश्रुत को हयायुर्वेद का कथन), गरुड १.२०१(हय आयुर्वेद के अन्तर्गत शुभाशुभ हय के लक्षण व हय चिकित्सा), पद्म ६.७.३१, ६.१२०.६४(हयग्रीव से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.६९.४(हैहय, हय, वेणुहय नामक तीन भ्राता), भविष्य १.१३८.३९(रैवत की हय ध्वज का उल्लेख), ३.३.१२.६४मनोरथ हय, भागवत ९.२३.२१(महाहय : शतजित् के ३ पुत्रों में से एक , यदु वंश), वामन ६९हयकन्धर, विष्णुधर्मोत्तर १.१८१(हय रूपी विष्णु द्वारा महामाल का वध), ३.१८.१हयक्रान्त, ३.१५१.३, स्कन्द १.२.४.७९, १.३.२.२२, ५.३.८५.७५(सोमनाथ तीर्थ में हय/अश्व दान विधि का कथन), महाभारत वन ९९.१७(इल्वल असुर द्वारा अगस्त्य को प्रदत्त हिरण्य रथ में विराव व सुराव नामक २ हयों का उल्लेख ), कथासरित् ६.४.१०१, ७.९.७९, १२.७.७९, द्र. शान्तहय, सुहय haya
हयज्ञान-अश्वसंचालन की एक विद्या, जिससे घोडों की गति बहुत अधिक बढ जाती हे तथा उनके गुणदोष भी जाने जाते हैं ( वन० ७७ । १७) ।
हयग्रीव गरुड १.३४(परिवार सहित हयग्रीव पूजा विधि), गर्ग २.५, देवीभागवत १.५(हयग्रीव दैत्य द्वारा तप से वर प्राप्ति, हयग्रीव रूप धारी विष्णु द्वारा हयग्रीव दैत्य का वध), ८.८(भद्राश्व वर्ष में भद्रश्रवा द्वारा आराध्य देव), नारद १.७२(हयग्रीव मन्त्रोपासना निरूपण), १.११४.४, २.६७, ब्रह्माण्ड ३.४.५(हयग्रीव द्वारा अगस्त्य को मुक्ति उपाय का कथन), भविष्य ३.४.१८(संज्ञा विवाह प्रकरण में हयग्रीव असुर के मित्र से युद्ध का उल्लेख), भागवत ५.१८(भद्राश्व वर्ष में भद्रश्रवा द्वारा हयग्रीव की उपासना), ५.१९, ६.८.१७(हयग्रीव से पथ में देवहेडन से रक्षा की प्रार्थना), ८.२४, १०.६.२२(हयग्रीव से जठर की रक्षा की प्रार्थना), मत्स्य १७३, वामन ९(हयग्रीव के गज वाहन का उल्लेख), ५७.८६(हयानन : कृत्तिकाओं द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), ९०.१४(महोदय तीर्थ में विष्णु का हयग्रीव नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर ३.८०(हयग्रीव की मूर्ति का रूप), स्कन्द २.३.६, ३.२.१५(हाथ में धनुष धारण करके विष्णु द्वारा तप, वम्रि द्वारा धनुष की ज्या के भञ्जन से विष्णु के शिर का छेदन, हय शीर्ष का संयोजन, देवों द्वारा स्तुति), ४.१.४५.३४(हयग्रीवा : ६४ योगिनियों में से एक), ४.२.७०.६८(हयकण्ठी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७०.८८(हयग्रीवेश्वर तीर्थ में महारुण्डा देवी की महिमा), ४.२.८३.६०(हयग्रीव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.५४, २.६३.८७(नरकासुर - सेनानी, कृष्ण द्वारा वध), ३.२६(हयग्रीव द्वारा मधु का वध), ३.५०.८(बलि - सेनानी, रथ का वर्णन), ३.५३.१०(हयग्रीव का पूषा से युद्ध), लक्ष्मीनारायण १.१११, १.१३१(कश्यप व दिति - पुत्र हयग्रीव का स्वरूप, वेद हरण, मत्स्य अवतार द्वारा वध ), १.२७०, ३.१६४.४०, ३.१७०.१८, कथासरित् ८.२३.८३?, hayagreeva/ hayagriva
हयग्रीव १) नरकासुर के राज्य की रक्षा करने वाले चार असुरों में से एक, श्रीकृष्ण द्वारा ही इसका वध होने वाला था (सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८०५) । श्रीकृष्ण द्वारा हयग्रीव के मारे जाने की चर्चा ( उद्योग० १३० । ५०) । ( २) विदेहवंश का एक कुलाङ्गार राजा ( उद्योग० ७४ । १५) । ( ३) एक प्राचीन राजर्षि, जो शत्रुओं पर विजय पा चुके थे, किंतु पीछे असहाय होनेके कारण मारे गये । इन्होने युद्ध से उत्तम कीर्ति पायी और अव स्वर्ग में आनन्द भोगते हैं । इनका विशेष वर्णन ( शान्ति० २४ । २३-३४) ।
हयन्ती स्कन्द ५.३.१९८.६६,
हयपति कथासरित् ७.४.४
हयशिरा अग्नि ३४८.१४, देवीभागवत १.४, ४.२२.४३(हयशिरा के केशी रूप में अवतरण का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.१३.४६(हयशिर : श्राद्ध हेतु तीर्थ), भागवत ६.६, ६.८.१७(हयशीर्ष से देवहेडना से रक्षा की प्रार्थना), वामन ९०.२(कृष्णा में विष्णु का हयशीर्ष नाम से वास), वा.रामायण १.२७.११(राम द्वारा हयशिरा अस्त्र की प्राप्ति ), द्र. वंश दनु, hayashiraa
हयशिरा ( हयग्रीव )-भगवान् का एक अवतार । इनका विशेष वर्णन ( शान्ति० ३४७ अध्याय) ।
हयारि वामन १७
हर ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.४९(हर से अधरोष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.३.१३.११३(हरानन्द : नेत्रसिंह - अनुज, शाबरी माया द्वारा भ्राता को बन्धन से मुक्त करना), स्कन्द ५.१.१९, वा.रामायण ६.२७.३(सारण द्वारा रावण को राम - सेनानी हर वानर का परिचय), ७.५.४५(माली व वसुदा - पुत्र, विभीषण - मन्त्री ), लक्ष्मीनारायण ३.२३४, ३.२३४.२६हरसती, कथासरित् ५.१.७०हरपुर, १०.९.६५हरघोष, hara
हर-, १) एक विख्यात दानव, जो दनु के गर्भ से कश्यप- द्वारा उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६५ । २५) । यह राजा सुबाहु के रूप में पृथ्वी पर पैदा हुआ था ( आदि० ६७ । २३-२४) । ( २) महादेवजी, ये स्कन्द के अभिषेक में पधारे थे ( शल्य० ४५ । १०) । हर ग्यारह रुद्रों में से एक हैं ( शान्ति० २०८ । १९) । हरणाहरणपर्व-आदिपर्व का एक अवान्तर पर्व ( अध्याय २२०) ।
हरण ब्रह्मवैवर्त्त २.९(भूमि हरण), मार्कण्डेय ५१(स्वयंहारी द्वारा सर्वसिद्धियों का हरण ), द्र. जातहारिणी harana
हरदत्त भविष्य ३.२.१८(मोहिनी - पुत्र, पितरों हेतु पिण्डदान से तीन हस्तों की उत्पत्ति), कथासरित् ५.३.१९५,
हरसिद्धि स्कन्द १.२.४७.६०(हरसिद्धि दुर्गा का माहात्म्य), ४.२.७०.४५ (हरसिद्धि देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.१९(चण्ड - प्रचण्ड दैत्यों का हनन करने पर पार्वती द्वारा प्राप्त नाम ) harasiddhi
हरस्वामी स्कन्द ५.२.७८.१७
हरि अग्नि १९६(नक्षत्र अनुसार हरि के अङ्गों की पूजा), ३४८.१३(क्ष एकाक्षर से नृसिंह व हरि आदि के बोध का उल्लेख), गरुड १.९१+ (हरि के ध्यान का स्वरूप), १.९२.१६(आत्मा के हरिर्हरि रूप में ध्यान का निर्देश), १.२१५.६/१.२२३.६(कृतयुग में हरि के धर्मपाता होने का उल्लेख), १.२१५.९/१.२२३.९(त्रेतायुग में हरि के रक्तवर्ण होने का उल्लेख), ३.२.३५(अनन्त गुण पूर्णता से हरि की ब्रह्म संज्ञा), ३.६(तत्त्वाभिमानी देवों द्वारा हरि की स्तुति), नारद १.२१(मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी से हरि पञ्चक व्रत), १.६६.९४(हरि की शक्ति शुद्धि का उल्लेख), पद्म ६.१२८.२०१(देवद्युति विप्र द्वारा हरि की स्तुति), ६.२२६.८७(हरि की निरुक्ति : मकडी की भांति सृजन करके हरण करने वाले), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.१८(श्रीहरि से वक्त्र की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड १.२.१९.५६(हरि पर्वत के प्रभाकर वर्ष का उल्लेख २.३.३.६६(जय देवों का तामस मन्वन्तर में हरि देव गण बनने का उल्लेख), २.३.४.३०(तुषित देवों का हरिणी से जन्म लेकर हरि देवगण बनना, हरियों का वैकुण्ठ देवगण बनना), २.३.७.३२३(हरियों/वानरों के वंश का वर्णन), भविष्य २.१.१७.३(अयुत याग में अग्नि का नाम), भागवत २.७.२(रुचि व आकूति के पुत्र सुयज्ञ की हरि नाम से ख्याति का कारण - आर्तिहरण), ८.१.२८(तामस मन्वन्तर में देवों के गण में एक), १०.६.२३(चक्री से अग्र व हरि से पश्चात् की रक्षा की प्रार्थना), ११.२.२१(ऋषभ के १०० पुत्रों में से एक), ११.२.४५(ऋषभ - पुत्र, निमि को भक्त के लक्षण सम्बन्धी उपदेश), मत्स्य २३.२१(चन्द्रमा के यज्ञ में उपद्रष्टा/ब्रह्मा), योगवासिष्ठ ५.५१.३४(सत्त्वावबोध का रूप, मातंग का वध), वामन ६.१(धर्म के चार पुत्रों में से एक), ९०.३८(पाताल में विष्णु की हरिशंकर नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु ६९.२०२(हरि व पुलह के हरयः पुत्रों की गोलाङ्गूल आदि संज्ञाएं), विष्णुधर्मोत्तर १.७३.२०(कृतयुग में हरि के श्वेत वर्ण तथा धर्म की अवस्था का कथन), १.२३७.३(कवच में हरि से शिर की रक्षा की प्रार्थना), ३.१५१.३(चतुरात्मा हरि के नर, नारायण, हय/हरि, हंस/कृष्ण रूपों का कथन), स्कन्द ३.१.४९.५७(वायु द्वारा हर - हरि रूप में रामेश्वर की स्तुति), ४.१.२०.५(हरि की भूतों में व्याप्ति का कथन), ४.२.६१.२३२(हरि/विष्णु मूर्ति के लक्षण), ५.३.३८.१९(विप्र के मन्युप्रहरण व हरि के चक्रप्रहरण होने का कथन), ५.३.१९२.१०(धर्म व साध्या के ४ पुत्रों नर, नारायण, हरि, कृष्ण का उल्लेख), हरिवंश ३.८०.७१(हरि से महाभूतों से रक्षा की प्रार्थना), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१४(हरि की शक्ति हिरण्या का उल्लेख), १.२८३.१(हरि पञ्चक व्रत), १.३०३(मूर्ति द्वारा अधिमास एकादशीव्रत से नर, नारायण, हरि, कृष्ण की पुत्र रूप में प्राप्ति), २.६.७(हरि की निरुक्ति - दुःखहरण), २.२५२.१०५(दिवस में कृष्ण व रात्रि में हरि के भजन का उल्लेख), २.२६१.२४(हरि की निरुक्ति - दुःखहरण), २.२७२.१७(हरि का श्रीवल्लभ रूप में अवतरण), ३.२१.४४(हरि सूक्त का कथन), ३.६०.२८(विष्णु भक्ति की अपेक्षा हरि भक्ति की श्रेष्ठता का उल्लेख ), ३.१६४.६६(दशम ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर में बलिशत्रु वध हेतु हरि अवतार का कथन), ३.१७०.१५(षोडशम् हारेयधाम का उल्लेख), ४.६०, द्र. धर्महरि, नरहरि, नृहरि, भूगोल, मन्वन्तर, hari
हरि-, १) रावण की सेवा में रहने वाले पिशाच तथा अधम राक्षसों का एक दल, जिसने वानरों की सेना पर धावा किया था ( वन० २८५ । १ -२) । ( २) गरुड के महाबली तथा यशस्वी वंशजों में से एक ( उद्योग० १०१ । १३) । ( ३) घोडों का एक भेद, जिसके गर्दन के बडे बडे बाल और शरीर के रोयें सुनहरे रंग के हों, जो रंग मे रेशमी पीताम्बर के समान जान पडता हो, वह घोडा हरि कहलाता हैं ( द्रोण० २३ । १३) । ( ४) राजा अकम्पन का पुत्र, जो बल में भगवान् नारायण के समान, अस्त्रविद्या में पारङ्गत, मेधावी, श्रीसम्पन्न तथा युद्ध में इन्द्र के तुल्य पराक्रमी था । यह युद्धक्षेत्र में शत्रुओं के हाथ मारा गया था ( द्रोण० ५२ । २७-२९) । इसकी मृत्यु का वर्णन ( शान्ति० २५६ । ८) । ( ५) एक असुर, जो तारकाक्ष का महाबली वीर पुत्र था । इसने तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके उनसे वरदान पाकर तीनों पुरों में मृतसंजीवनी बावली का निर्माण किया था ( कर्ण० ३३ । २७-३०) । ( ६) पाण्डवपक्ष का एक योद्धा, जो कर्ण द्वारा मारा गया था ( कर्ण० ५६ । ४९-५०) । ( ७) स्कन्द का एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ६१) । ( ८) श्रीकृष्ण का एक नाम तथा इस नाम की निरुक्ति ( शान्ति० ३४२ । ६८/३५२.३) ।
Vedic and puraanic views on Hari
हरिकर स्कन्द २.४.७.२२(दुष्ट चरित्र वाले हरिकर की कार्तिक में दीपदान से मुक्ति),
हरिकेश कूर्म १.४३.५(सूर्य की हरिकेश रश्मि द्वारा नक्षत्रों का पोषण), ब्रह्माण्ड १.२.२४.६८( सूर्य की पूर्वदिशा में हरिकेश रश्मि के ऋक्षयोनि होने का उल्लेख), मत्स्य १८०(पूर्णभद्र - पुत्र हरिकेश यक्ष द्वारा वाराणसी में तप, शिव भक्ति वर की प्राप्ति, उद्भ्रम-संभ्रम गणद्वय की प्राप्ति), स्कन्द ४.१.३२.४६ (पूर्णभद्र व कनककुण्डला - पुत्र हरिकेश यक्ष द्वारा काशी में तप से दण्डपाणि पद की प्राप्ति, संभ्रांति-उद्भ्रांति नाशक, अपरनाम पिङ्गल ), लक्ष्मीनारायण १.५५७.३८(देवानीक-पुत्र, कन्यापुर का राजा, यज्ञ में अग्नि द्वारा मण्डप के दग्ध होने पर प्रायश्चित्त आदि), १.५५९.३८(हरिकेश द्विज द्वारा राजा से प्रतिग्रह स्वीकार करने के कारण प्रेत बनना, कुब्जा-रेवासंगम में स्नान से उद्धार), harikesha
हरिजटा वा.रामायण ५.२३.९(हरिजटा राक्षसी द्वारा सीता को रावण का वरण करने का परामर्श),
हरिण गर्ग ७.४०, भागवत ११.७.३४(दत्तात्रेय द्वारा हरिण से शिक्षा), ११.८, स्कन्द ७.१.३३.५४(पञ्चस्रोता सरस्वती में से एक, हरिण ऋषि द्वारा हरिणी नामक सरस्वती का आह्वान), योगवासिष्ठ १.१६.८(हरिण की भोग रूपी दूर्वा के अभिलाषी मन से उपमा), ५.५१.३४(सत्त्वावबोध का रूप ), ६.२.११८, कथासरित् १०.५.१२२, harina
हरिण, १) ऐरावतकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र में दग्ध हो गया था ( आदि० ५७ । ११-१२) । ( २) बिडालोपाख्यान में आये हुरु नेवले का नाम ( शान्ति० १३८ । ३१) ।
हरिणाश्व-एक प्राचीन नरेश, जिन्हे महाराज रघु से खड्ग की प्राप्ति हुई थी और उन्होंने वह खड्ग शुनक को प्रदान किया था ( शान्ति० १६६ । ७८-७९) ।
हरिणी
देवीभागवत १२.६.१५४(गायत्री
सहस्रनामों में से एक),
भविष्य
३.३.७.३(भीष्म
द्वारा तप से इन्द्र से हरिणी
वडवा की प्राप्ति -
देहि
मे वडवां दिव्यां यदि तुष्टो
भवान्प्रभुः ।। इति श्रुत्वा
तदा तस्मै वडवां हरिणीं शुभाम्
।।),
भागवत
८.१.३०(हरिमेधा
-
पत्नी,
हरि
अवतार की माता -
तत्रापि
जज्ञे भगवान्हरिण्यां हरिमेधसः।
हरिरित्याहृतो
येन गजेन्द्रो मोचितो ग्रहात्॥ ),
स्कन्द
५.३.१४१.१(यत्र
सा हरिणी सिद्धा व्याधभीता
नरेश्वर ॥ जले प्रक्षिप्य
गात्राणि ह्यन्तरिक्षं गता
तु सा ।)
,
७.१.३५.६५
(हरि
द्वारा सरस्वती नदी की सखी
रूप में हरिणी नदी को उत्पन्न
करना -
ब्रह्मासृजत्सखीं
तस्याः कपिलां विपुलेक्षणाम्
॥ हरिणीं हरिरप्याशु वज्रिणीमपि
देवराट् ॥),
लक्ष्मीनारायण
१.३८०.८२(कन्या
प्राह तदा मां सा पुत्र्यहं
परमेष्ठिनः ।देवीनां ब्रह्मसरसां
मध्ये नाम्ना हरिण्यहम् ।।),,
१.५७४.८४(अथ
तीर्थं हारिणं च लुब्धकेन
मृगः पुरा ।
हतो
मध्यन्दिने श्रेष्ठः कुरंगो
नर्मदातटे ।।),
३.१३१.९(याम्यां
महिषीनिष्ठां च नैर्ऋतिं
गर्दभीस्थिताम् ।
वारुणीं
मकरस्थां च वायवीं हरिणीस्थिताम्
।।),
४.१०१.१०४(हरिण्यास्तु
सुता सम्पद्वती सुतोऽर्थवेदनः
।।),
harinee/ harini
हरित ब्रह्माण्ड १.२.१९.४४(द्रोण पर्वत के हरित वर्ष का उल्लेख), ३.४.१.८५(हरित देवगण के अन्तर्गत १० नाम), वायु १००.८९(हरित देवगण के अन्तर्गत १० नामों का उल्लेख), शिव ५.२०.२२, हरिवंश २.३८.२९(यदु व नागकन्या - पुत्र, पिता द्वारा सागर में राज्य का निर्देश ), द्र. भूगोल, मन्वन्तर harita
हरिताल गरुड २.३०.५१/२.४०.५१(मृतक की धातु में हरिताल? देने का उल्लेख ), वामन ७२.१५हरिताली, haritaala
हरिताश्व पद्म १.८, मत्स्य १२
हरिदास पद्म ५.७३.३६(हरिदास? राजा का कृष्ण की वेणु बनना), भविष्य ३.४.५, ३.४.२२.२१(पूर्व जन्म में मधु ), लक्ष्मीनारायण ३.२१४.७(रथकार, हृदय में रूप चिन्तन के पश्चात् देवमूर्तियों का सृजन) haridaasa/ haridasa
हरिदीक्षित पद्म ६.१८७
हरिद्रा पद्म ५.१०६.७८(नारद द्वारा पार्वती से हरिद्रा आदि मांगना )
हरिद्रक-कश्यपवंश में उत्पन्न एक प्रमुख नागराज ( आदि० ३५ । १२) ।
हरिद्वार नारद २.६६, पद्म ६.२०(हरिद्वार की प्रशंसा व माहात्म्य), ६.२१७(हरिद्वार का माहात्म्य, कालिङ्ग चाण्डाल का उद्धार ), लक्ष्मीनारायण १.५७१, द्र. गङ्गाद्वार, मायापुरी haridwaara/ haridwara
हरिधाम पद्म ५.७२.१३(हरिधाम मुनि का तप से कृष्ण - पत्नी रङ्गवेणी बनना),
हरिप्रथ लक्ष्मीनारायण ३.३०.११, ३.७९.३३,
हरिप्रिय ब्रह्मवैवर्त्त ३.२२.९(हरिप्रिया लक्ष्मी से कण्ठ की रक्षा की प्रार्थना), भविष्य ३.४.२२(पूर्व जन्म में शम्भु), लक्ष्मीनारायण ४.२६.६०(हरिप्रिया - पति की शरण आदि से तम से मुक्ति का उल्लेख ) haripriya
हरिबभ्रु-एक जितात्मा एवं जितेन्द्रिय मुनि, जो युधिष्ठिर की सभा में विराजते थे ( सभा० ४ । १६) ।
हरिभट कथासरित् ८.३.३६, ८.५.१०८,
हरिमित्र पद्म ३.३०, ६.६२, लिङ्ग २.३.२९(राजा भुवनेश द्वारा हरिमित्र ब्राह्मण का राज्य से निर्वासन ) harimitra
हरिमिश्र लक्ष्मीनारायण ३.५९.२६, ३.५९.४८,
हरिमेध भागवत ८.१, स्कन्द २.४.८(हरिमेध द्वारा सुमेधा से तुलसी माहात्म्य का श्रवण ) harimedha
हरिमेधा-एक प्राचीन राजर्षि, जिनके यज्ञ के समान जनमेजय का यज्ञ बताया गया है ( आदि० ५५ । ३) । इनकी कन्या का नाम ध्वजवन्ती था, जो पश्चिम दिशा में निवास करती थी ( उद्योग० ११० १३) ।
हरिवर कथासरित् ९.२.२१५
हरिवर्मा देवीभागवत ६.२०(तुर्वसु उपनाम वाले राजा हरिवर्मा द्वारा विष्णु से हैहय पुत्र की प्राप्ति),
हरिवर्ष देवीभागवत ८.९(हरिवर्ष में प्रह्लाद द्वारा नृसिंह की आराधना), ब्रह्माण्ड १.२.१७.७(हरिवर्ष का वर्णन), भागवत ५.२.१९(आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, उग्रदंष्ट्री - पति), वायु ४६.८(हरिवर्ष की महिमा का वर्णन ) harivarsha
हरिवर्ष-हेमकूट पर्वत के उत्तर में विद्यमान एक वर्ष, जहाँ उत्तरदिग्विजय के अवसर पर अर्जुन गये थे और उसे अपने अधीन करके बहुत सा रत्न प्राप्त किये थे ( सभा० २८ । ६ के बाद दा० पाठ) ।
हरिशर्मा पद्म ७.२०+ (हरिशर्मा ब्राह्मण द्वारा अन्नदान के अभाव में वैकुण्ठ में क्षुधा प्राप्ति, ब्रह्मा से दान माहात्म्य व दान पात्र श्रवण, स्वशरीर के मांस का भक्षण, पुत्र द्वारा अन्न जल दान से मुक्ति ), भविष्य ३.२.२, कथासरित् ६.४.९२, ८.५.१०७,, द्र. सुबाहु harisharmaa
हरिशिख कथासरित् ४.२.५६?, ६.८.११४, ७.६.३३, १०.२.६७, १४.२.५८, १४.४.८८
हरिश्चन्द्र देवीभागवत ६.१२(यज्ञ में वरुण हेतु पुत्र की बलि के अभाव में वरुण का हरिश्चन्द्र को शाप, शुन:शेप के यज्ञ पशु बनने की कथा), ७१०, ७.१४+ (हरिश्चन्द्र को वरुण की कृपा से पुत्र प्राप्ति, शुन:शेप की कथा), ७.१८+ (सत्यव्रत/त्रिशङ्कु - पुत्र, विश्वामित्र के कोप की कथा), ७.१८+ (विश्वामित्र का तप से निषेध करने पर हरिश्चन्द्र का विश्वामित्र से वैर भाव, राज्य ध्वंस, स्वयं का विक्रय आदि, कष्ट प्राप्ति की कथा), ७.१९+ (माधवी - पति, विश्वामित्र को दक्षिणा दान हेतु स्वयं का विक्रय आदि), ७.२४+ (हरिश्चन्द्र द्वारा चाण्डाल बनकर श्मशान की रक्षा, मृत पुत्र रोहित व पत्नी के प्रति नृशंस व्यवहार), ७.३८(हरिश्चन्द्र क्षेत्र में चन्द्रिका देवी की स्थिति का उल्लेख), पद्म ६.३१(हरिश्चन्द्र का सनत्कुमार से संवाद, पूर्व जन्म में इन्द्रद्युम्न, जन्माष्टमी व्रत की महिमा), ६.५६(हरिश्चन्द्र द्वारा सुख प्राप्ति हेतु अजा एकादशी व्रत का अनुष्ठान), ब्रह्म १.६(त्रिशङ्कु व सत्यरथा - पुत्र, रोहित - पिता), २.३४(स्वपुत्र रोहित की वरुणार्थ बलि देने में संकोच पर हरिश्चन्द्र द्वारा जलोदर रोग प्राप्ति, शुन:शेप की यज्ञ - पशु के रूप में कल्पना), भविष्य ३.२.५, भागवत ९.७(हरिश्चन्द्र द्वारा वरुण की कृपा से पुत्र प्राप्ति, इन्द्र द्वारा पुत्र रोहित को पिता से मिलन से रोकना, शुन:शेप यज्ञ पशु द्वारा यज्ञ), मत्स्य १२, १३, मार्कण्डेय ७(हरिश्चन्द्र का विश्वामित्र से संवाद), ८(शैब्या - चाण्डाल उपाख्यान), वायु ८८.११७(त्रिशङ्कु व सत्यरता - पुत्र), शिव ५.३८.१९(, स्कन्द ४.२.६१.७३ (हरिश्चन्द्र तीर्थ का माहात्म्य), ४.२.८४.७९(हरिश्चन्द्र तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१९८.७७(, ६.३(पिता त्रिशङ्कु के चाण्डाल बनने पर हरिश्चन्द्र का राज्याभिषेक), ६.४८(पुत्र प्राप्ति हेतु हरिश्चन्द्र द्वारा उमा - महेश्वर आराधना, शिव से वर प्राप्ति, उमा से शाप व उत्शाप प्राप्ति), ६.१०९(हरिश्चन्द्र तीर्थ में हर लिङ्ग की स्थिति), ७.१.१०.६(हरिश्चन्द्र तीर्थ का वर्गीकरण – जल), हरिवंश १.१३, लक्ष्मीनारायण १.२५६, १.५६९, १.५७३.७०(सूर्य ग्रहण पर हरिश्चन्द्र से प्रतिग्रह ग्रहण करने पर महर्षियों के प्रेत बनने का वृत्तान्त ) harishchandra
हरिश्चन्द्र-इक्ष्वाकुवंशी राजा त्रिशङ्कु के पुत्र । इनकी माता का नाम सत्यवती था ( सभा० १२ । १० के बाद दा० पाठ) । ये इन्द्रसभा में सम्मानपूर्वक विराजते हैं ( सभा० ७ । १३) । ये बडे बलवान् और समस्त भूपालों के सम्राट् थे । भूमण्डल के सभी नरेश इनकी आज्ञा का पालन करने के लिये सिर झुकाये खडे रहते थे । इन्होने अपने एकमात्र जैत्र नामक रथ पर चढकर अपने शस्त्रों के प्रताप से सातों द्वीपोंपर विजय प्राप्त कर ली श्री । इन्होंने राजसूय नामक यज्ञ का अनुष्ठान किया था । इन्होंने याचकों के माँगने पर उनकी माँग से पाँचगुना अधिक धन दान किया था । ब्राह्मणों को धनरत्न देकर संतुष्ट किया था । इसीलिये ये अन्य राजाओं की अपेक्षा अधिक तेजस्वी और यशस्वी हुए हैं तथा अधिक सम्मानपूर्वक इन्द्रसभा में विराजमान होते हैं ( सभा० १२ । ११-१८) । इनकी सम्पत्ति को देखकर चकित हो स्वर्गीय राजा पाण्डु ने नारदजी द्वारा युधिष्ठिर के पास राजसूययज्ञ करनेका संदेश भेजा था ( सभा० १२ । २३-२६) । इनके द्वारा मांसभक्षण का निषेध ( अनु० ११५ । ६१) । ये सायं प्रातःस्मरणीय नरेश हैं ( अनु० १६५ । ५२) ।
हरिश्मश्रु गर्ग ७.३२, ७.३७(हिरण्याक्ष - पुत्र, तिमिङ्गिल वाहन, श्मश्रु/दाढी में मृत्यु का निहित होना, कृष्ण - पुत्र भानु द्वारा वध), ७.४२.१८(पूर्व जन्म में परावसु गन्धर्व - पुत्र ), महाभारत शान्ति ३४२.२३ harishmashru
हरिसिंह कथासरित् ६.८.२११
हरिसोम कथासरित् १७.१.८४,
हरिस्वामी भविष्य ३.२.१२(चूडामणि व विशालाक्षी - पुत्र, रूपलावण्यिका - पति, पत्नी वियोग में संन्यास, विष से मरण ), स्कन्द ४.१.३३, कथासरित् १२.१२.५, १२.२०.४, hariswaamee/ hariswami
हरिहर अग्नि ४९.२४(हरिहर मूर्ति के लक्षण), वराह १४४हरिहरप्रभ, लक्ष्मीनारायण १.१५३.१(लुब्धक द्वारा हरिहर के दर्शन), १.५७४.१३(ययाति द्वारा हरि व हर की कृपा से यज्ञ में दैत्यों का नाश ) harihara
हरी-क्रोधवशा की पुत्री, जिसने वेगवान् घोडों एवं वानरों को जन्म दिया तथा गायके समान पूँछवाले लंगूर भी इसी- के पुत्र कहे गये हैं ( आदि० ६६ । ६०, ६४) ।
हरीतकी शिव १.१६.५०(हरीतकी दान से क्षय रोग का क्षय )
हर्यक्ष भागवत ४.२२.५४(पृथु व अर्चि - पुत्र), ४.२४.१
हर्यङ्ग मत्स्य ४८.९९(चम्प - पुत्र, यज्ञ से वारण/हस्ती का अवतारण), वायु ९८.१०५, हरिवंश १.३१.५०
हर्यवन ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२२(
हर्यश्व देवीभागवत ७.१, ७.८, पद्म १.६, ब्रह्म १.१(दक्ष व असिक्नी - पुत्र, वैराग्य), १.११, भागवत ४.२४.२(पूर्व दिशा के राजा), ६.५(दक्ष व असिक्नी - पुत्र, नारद द्वारा वैराग्य का उपदेश), मत्स्य ५(दक्ष व पाञ्चजनी - पुत्र, नारद द्वारा वैराग्य का उपदेश), १२, ५१.३८(शुचि अग्नि - पुत्र), वराह ४३(वामन द्वादशी के चारण से हर्यश्व द्वारा उग्राश्व पुत्र प्राप्ति), विष्णु १.१५.९६, शिव २.२.१३, हरिवंश १.३, २.३७(इक्ष्वाकु - पुत्र, मधुमती - पति, यदु - पिता), लक्ष्मीनारायण ४.४५.६४(श्रीहरि द्वारा शबलाश्वों व हर्यश्वों को मोक्ष प्रदान करना ) haryashva
हर्यश्व १) अयोध्या के राजा, जो महापराक्रमी, चतुर- ङ्गिणी सेना से सम्पन्न, कोष-धन धान्य तथा सैनिक शक्ति से समृद्ध थे । प्रजा इन्हें बहुत प्रिय धी । ब्राह्मणों पर इनका प्रेम था । ये प्रजावर्ग के हित एवं संतान की कामना रखते थे और शान्तभाव से तपस्या में सलग्न रहते थे ( उद्योग० ११५ । १८-१९) । इनके पास ययातिकन्यासहित गालव का आगमन ( उद्योग० ११५ । २०-२१) । गालव को शुल्करूप में दो सौ श्यामकर्णं घोडे देकर इनका ययातिकन्या माधवी को एक संतान पैदा करने के लिये पत्नी बनाना तथा माधवी के गर्भ से वसुमना नामक पुत्र की प्राप्ति ( उद्योग० ११६ । १६-१७) । पुत्रोत्पत्ति के बाद पुनः माधवी को गालव मुनि को वापस देना ( उद्योग० ११६ । २०) । इन्होंने जीवन में कभी मांस नहीं खाया था ( अनु० ११५ । ६७) । ( २) काशिराज सुदेव के पिता, जो वीतहव्यके पुत्रों द्वारा मारे गये थे ( अनु० ३० । १०-११) ।
हर्या द्र. मन्वन्तर
हर्यात्मा द्र. व्यास
हर्ष गर्ग २.२०(प्रहर्षिणी गोपी द्वारा राधा को वेणी भेंट का उल्लेख), नारद १.६६.८८(हृषीकेश की शक्ति हर्षा का उल्लेख), भविष्य ४.९४.६३(अनन्त व्रत में वृषभ का रूप), मार्कण्डेय ५०.२९(धर्म - पौत्र), विष्णुधर्मोत्तर ३.२४२(सम्पत्ति लाभ से हर्ष, फल), शिव ५.३८.५४हर्षकेतु, महाभारत आश्वमेधिक २४.७(मिथुन के बीच हर्ष के उदान का रूप होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१९५, ३.२२८हर्षधर्म , ४.६०, ४.७५हर्षनयन, कथासरित् ७.२.३७हर्षगुप्त, ८.४.६४, ९.४.९८हर्षवर्मा, द्र. रोमहर्षण, लोमहर्षण harsha
हर्ष- धर्म के तीन श्रेष्ठ पुत्रों में से एक, शेष दो के नाम शम और काम हैं । हर्ष की पत्नी का नाम नन्दा है ( आदि० ६६ । ३२-३३) ।
हर्षण ब्रह्म २.९५(विष्टि व विश्वरूप - पुत्र, शुद्ध मति, यम से संवाद, गौतमी तट पर तप, हरि से माता - पिता व भ्राताओं के लिए भद्रता प्राप्त करना ) harshana
हर्षवती कथासरित् १०.३.६०, १२.१०.४८,
हर्षुल लक्ष्मीनारायण २.१९५.२
हल नारद १.६६.९१(हली विष्णु की शक्ति वाणी का उल्लेख), भविष्य ४.१६६(हल पंक्ति दान विधि), विष्णुधर्मोत्तर ३.१७.४५(समाना स्त्री का सम्बोधन), लक्ष्मीनारायण ३.१२९, ४.१५.५४(हलमादन नगर में नागमुखी चारणी द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वृत्तान्त ), द्र. लाङ्गल hala
हलिक-कश्यपवंश में उत्पन्न एक प्रमुख नागराज ( आदि० ३५ । १५) ।
हलधर भागवत १०.६.२३(हलधर से क्षिति पर रक्षा की प्रार्थना),
हलवा लक्ष्मीनारायण ३.१८५.२
हल्लका लक्ष्मीनारायण ३.२६.३
हवाना लक्ष्मीनारायण २.२१४.१०७, २.२१५,
हवि भागवत ११.१६.३०(विष्णु के हवियों में आज्य होने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.१४१(श्राद्ध में वर्ज्य - अवर्ज्य हवियां), शिव २.२.३.५७(हविष्मन्त : अङ्गिरा से हविष्मन्त पितरों की उत्पत्ति का कथन, सोमपा, आज्यपा आदि पितरों की हविष्मन्त संज्ञा), महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ ७८४(यज्ञवराह के हविर्गन्ध होने का उल्लेख), आश्वमेधिक २१.३(दस इन्द्रियों की शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, वाक्य, क्रिया गति, रेत, मूत्र, पुरीष त्याग नामक १० हवियों का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४५१.७५(प्राणों के हवियां होने का उल्लेख ) havi
हविर्धान अग्नि १८.१९(अन्तर्धान व शिखण्डिनी - पुत्र, धिषणा - पति), कूर्म १.१४.५१(पृथु व अन्तर्धाना - पुत्र, आग्नेयी - पति, प्राचीनबर्हि - पिता), भागवत ४.२४.५(अन्तर्धान व नभस्वती – पुत्र, हविर्धानी – पति, ६ पुत्रों के नाम), ६.२४?(अन्तर्धान व नभस्वती - पुत्र, हविर्धानी - पति, ६ पुत्रों के नाम), ११.१६.१४(धेनुओं में हविर्धानी के श्रेष्ठतम होने का उल्लेख), मत्स्य ४.४४(पृथु/अन्तर्धान व शिखण्डिनी - पुत्र, धिषणा - पति, प्राचीनबर्हि आदि ६ पुत्र ), हरिवंश १.२.२९(शिखण्डिनी व अन्तर्धान – पुत्र, आग्नेयी धिषणा - पति, प्राचीनबर्हि आदि ६ पुत्र), द्र. वंश पृथु havirdhaana/ havirdhana
हविर्भुजा भविष्य २.१.१७.६(महादान में अग्नि का नाम),
हविर्भू भागवत ३.२४.२३(कर्दम - कन्या, पुलस्त्य - पत्नी), ४.१.३६(पुलस्त्य - पत्नी, अगस्त्य व विश्रवा - माता ) havirbhoo/ havirbhuu/ havirbhu
हविष्मान् पद्म १.४०(साध्यगण में से एक), मत्स्य १५(पितर गण, क्षत्रियों द्वारा पूजित, यशोदा - पिता ), २.३, द्र. मन्वन्तर havishmaan
हव्य कूर्म १.४०.१६(शाक द्वीप के स्वामी हव्य के पुत्रों व पौत्रों के नाम), ब्रह्म २.६३(भरद्वाज के यज्ञ में हव्यघ्न द्वारा पुरोडाश भक्षण, सन्ध्या व प्राचीनबर्हि - पुत्र, शाप से कृष्णता, गङ्गा जल प्रोक्षण से शुक्लता प्राप्ति), ब्रह्माण्ड १.२.११.२२(अत्रि व अनसूया - पुत्र ), भविष्य ३.१.४.१८हव्यवती, मत्स्य १२३हव्यपुत्र, शिव ७.१.१७.३१, द्र. वीतहव्य havya
हव्यवाह ब्रह्माण्ड १.२.१२.५(हव्यवाहन : शुचि - पुत्र, देवों की अग्नि), मत्स्य ५, ५१.५(हव्यवाहन : शुचि अग्नि - पुत्र, देवों के अग्नि), वायु २१.३१(हव्यवाहन : नवम कल्प का नाम), शिव ७.१.१७.३९(, लक्ष्मीनारायण ३.३२.७(शुचि अग्नि - पुत्र ), द्र. वंश वसुगण havyavaaha/ havyavaha
हसन स्कन्द ७.४.१७.२३(नैर्ऋत दिशा के रक्षकों में से एक)
हस्त कूर्म २.१३.१५(हस्त रेखाओं में तीर्थों की स्थिति), गरुड १.९.८(पद्म रूप हस्त), वायु ८४.११/२.२२.११(कलि व निकृति - पुत्र सद्रम के एक हस्त होने का उल्लेख), १११.६०/२.४९.६९(पिण्ड दान पर २ हस्तों के प्रकट होने का वृत्तान्त), स्कन्द ५.३.२९.४४, हरिवंश २.८०.३५, लक्ष्मीनारायण १.१५५.५२ (अलक्ष्मी के बर्बुर वृक्ष सदृश हस्त का उल्लेख), २.५.३५(अयुतहस्त राक्षस ), भरतनाट्य ९.८२(हस्त की मुद्राएं), द्र. पञ्चहस्त, प्रहस्त hasta
हस्तिजिह्वा अग्नि ८६.१०(विद्या कला/सुषुप्ति के अन्तर्गत २ नाडियों में से एक),
हस्तिनापुर अग्नि ३०५(हस्तिनापुर में विष्णु की जयन्त नाम से स्थिति का उल्लेख), पद्म ६.२०८.४४(हस्तिनापुर में विष्णुपाद से गङ्गा के उद्भव का उल्लेख?), ७.२०, ब्रह्म १.९९, भागवत १०.६८(बलराम द्वारा हल कर्षण से हस्तिनापुर का गङ्गा में पातन का उद्योग), मत्स्य १२, वामन ९०.२(हस्तिनापुर में विष्णु का गोविन्द नाम से वास), विष्णु ५.३५.३१(बलराम द्वारा हस्तिनापुर का हलाग्र से कर्षण), स्कन्द २.६.१, ५.३.१९८.६६, हरिवंश २.६२(बलराम द्वारा हस्तिनापुर को गङ्गा में गिराने का प्रयत्न ), कथासरित् ३.१.५, ३.४.६३, ९.४.१४५, १२.७.१५४, hastinaapura/ hastinapura
हस्तिप योगवासिष्ठ ६.१.८९, ६.१.९१.३(अज्ञान की हस्तिप/महावत से उपमा), लक्ष्मीनारायण ३.१८३.७७हस्तिपक, hastipa
हस्तिमती पद्म ६.१३७(नदी, साभ्रमती की धारा), ६.१४५(हस्तिमती नदी का कौण्डिन्य मुनि के शाप से शुष्क होना ) hastimatee/ hastimati
हस्ती अग्नि २६९.१४(कुमुद, ऐरावण आदि ८ देवयोनि हस्तियों के नाम, भद्र, मन्द आदि ५ पुत्र - पौत्रों के नाम), गरुड १.८७.८(पुरुकृत्सर दानव के वध हेतु विष्णु का अवतार), गर्ग १०.२९.२७(हाथियों के कुम्भ स्थल फटने से मोतियों के गिरने का उल्लेख), नारद २.२८.८८+(राक्षसी द्वारा करेणु का रूप धारण कर द्विज व राजकन्या को काशी पहुंचाने का कथन),२.४९.७(हस्तिपालेश्वर : कलियुग में कृत्तिवासेश्वर का नाम), पद्म ६.१८९, ६.१९०(गीता के १६वें अध्याय के प्रभाव से अरिमर्दन हस्ती का वश में होना), ६.२०५.२(अम्बु हस्ती : ग्राह का अपर नाम), ब्रह्मवैवर्त्त ३.२०.५८(इन्द्र द्वारा दुर्वासा से प्राप्त पारिजात पुष्प को गज मस्तक पर फेंकना, गज द्वारा इन्द्र का त्याग, गज के मस्तक का गणेश पर आरोपण), ४.२१.१०८(हस्ती कर द्वारा गृहीत समुद्र जल का मेघों के माध्यम से वृष्टि रूप में प्रकट होने का उल्लेख - हस्ती समुद्रादादाय करेण जलमीप्सितम् । दद्याद्घनाय तद्दद्याद्वातेन प्रेरितो घनः ।।), ब्रह्माण्ड २.३.७.२९०(ऐरावत आदि चार दिग्गजों की इरावती से उत्पत्ति की कथा - ऐरावणोऽथ कुमुदौ ह्यञ्जनो वामनस्तथा ।), २.३.७.३३०(देवों के वाहक हस्तियों के नाम), २.३.७.३३४(हस्तियों की सामों से उत्पत्ति का कथन), २.३.७.३५१(द्विरद, वारण, गज आदि शब्दों की निरुक्तियां), भविष्य ३.३.३२.१४८ (मण्डलीक राजा के दिव्य पञ्चशब्द हस्ती द्वारा आह्लाद से युद्ध में राजा की रक्षा), ४.९४.६४(कुञ्जर - धर्म दूषक ), ४.१३८.५६(हस्ती मन्त्र - युद्धे रक्षंतु नागास्त्वां दिशश्च सह दैवतैः ।।), ४.१८९(हेम हस्ति रथ दान विधि), भागवत ९.२१.२०(बृहत्क्षत्र - पुत्र, विष्णु ४.१९.२१ में सुहोत्र), मत्स्य ४९.४२(बृहत्क्षत्र - पुत्र, ३ पुत्रों के नाम, हस्तिनापुर की स्थापना), १०१.७२(करि व्रत), २८१(हेमहस्ती), २८२(हेम हस्ति रथ दान विधि), वराह २७.१५(नील नामक दैत्य का हस्ती रूप धारण करना, रुद्र द्वारा हस्ती के चर्म को अम्बर रूप में ग्रहण करना), वामन ४४.२३(शिव द्वारा धारित रूप), ६८.४९(अन्धक - सेनानी, युद्ध), वायु ६९.२०६/२.८.२१२(ऐरावत के ४ दन्त तथा भद्र के ६ दन्तों वाले होने का उल्लेख), ६९.२०९/२.८.२१५(विभिन्न हस्तियों के देवों के वाहन होने का कथन), ६९.२२७/२.८.२३३(हस्ती के पर्यायवाची शब्दों की निरुक्तियां), विष्णुधर्मोत्तर १.१३५.२८(पुरूरवा द्वारा हस्ती से उर्वशी के विषय में पृच्छा, हस्ती के दन्त - द्वय की उर्वशी के ऊरु - द्वय से उपमा), १.२५१.८(मृत अण्ड कपाल - द्वय से गजों की उत्पत्ति, ८ गजों के नाम, गजों की जातियां, गजों के निवास वनों के नाम), १.२५३(वानरों और कुञ्जरों के युद्ध का वर्णन, इन्द्र द्वारा नागों के पक्षों का छेदन), २.१०(हस्ती के लक्षण), २.४९(हस्ती चिकित्सा), २.१५९.१३(नीराजन कर्म में हस्तियों का विनियोग - कुमुदैरावणौ पद्मः पुष्पदन्तोऽथ वामनः । सुप्रतीकाञ्जनौ नील एतेऽष्टौ देवयोनयः ।।), ३.८२.१०(शङ्ख व पद्म निधियों के देवी के हस्तिद्वय होने का उल्लेख - हस्तिद्वयं विजानीहि शंखपद्मावुभौ निधी ।।), स्कन्द ४.२.९७.१३३ (हस्तिपालेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.५४.७३(रिष्ट दानव के कंस का कुञ्जर वाहन बनने का उल्लेख - रिष्टो नाम दितेः पुत्रो वरिष्ठो दानवेषु यः । स कुञ्जरत्वमापन्नो दैत्यः कंसस्य वाहनः ।। ), महाभारत द्रोण २६.१३(दुर्योधन की ध्वज पर मणिमय नाग चिह्न का उल्लेख), २६.२३(भीम द्वारा अञ्जलिकावेध द्वारा भगदत्त के हाथी/नाग को वश में करना आदि), ११२.१६, ३३(आञ्जन कुल के हस्तियों की रण हेतु प्रशंसा, म्लेच्छ योद्धाओं के वाहन), १२१.२४(युद्ध में अञ्जन, वामन, सुप्रतीक, महापद्म, ऐरावत कुल के हस्तियों के मारे जाने का उल्लेख), शल्य २०.३(शाल्व के महाभद्र कुल के हस्ती का पराक्रम तथा धृष्टद्युम्न द्वारा वध का वृत्तान्त), अनुशासन ८४.४७(कुञ्जरों व मृगों के नागों का अंश होने का उल्लेख), ८५.३४(द्विरद द्वारा अश्वत्थ में अग्नि का निवास बताना, अग्नि द्वारा शाप तथा देवों द्वारा उत्शाप), १०२(इन्द्र द्वारा धृतराष्ट्र का रूप धारण करके गौतम ब्राह्मण के हस्ती को चुराना, इन्द्र - गौतम संवाद), योगवासिष्ठ ३.१५, ३.३९.४(दिन रूपी हस्ती का अन्धकार रूपी असि से वध), ६.१.८९(हस्तिप द्वारा हस्ती को बन्धन में डालना, हस्ती द्वारा अवसर होते हुए भी हस्तिप का वध न करना), ६.१.९१(हस्ती - हस्तिप आख्यान का निर्वचन : अज्ञान हस्तिप), ६.१.१२६.७४(इच्छा रूपी करिणी के अंगों का कथन : मद वासना व्यूह, संसार दृष्टियां समरभूमियां, कर्म दन्तद्वय आदि), वा.रामायण ३.३१.४६(राम रूपी गन्ध हस्ती के मद की तेज से, शुण्ड की विशुद्ध वंश आदि से उपमा), ४.२४.१७(भ्रातृवध रूपी पाप हस्ती से सुग्रीव को आघात पहुंचने का श्लोक), ६.१०९.१०(रावण रूपी गन्ध हस्ती का राम द्वारा मर्दन - तेजोविषाणः कुलवंशवंशः कोपप्रसादापरगात्रहस्तः । इक्ष्वाकुसिंहावगृहीतदेहः सुप्तः क्षितौ रावणगन्धहस्ती ।। ), लक्ष्मीनारायण २.७७.३०(हस्ती दान से राजा के पापों की शुद्धि का कथन), २.२७०.९४(हस्ती व काष्ठहार के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, पूर्व जन्म में ब्राह्मण व राजा, परस्पर शाप से काष्ठहार व हस्ती होना), ४.१०१.१०६(कृष्ण - पत्नी वितस्ता के पुत्र हस्तीश्वर व सुता प्रमेश्वरी का उल्लेख), कथासरित् २.३.४२(चण्डमहासेन के हस्ती नडागिरि का उल्लेख), २.४.५(राजा वत्सराज का नडागिरि के भ्रम में यन्त्र हस्ती पर मोहित होना, बन्धनग्रस्त होना), २.४.१०८(ग्रीष्म ताप से संतप्त लोहजंघ द्वारा गज चर्म में शरण लेना, गरुड द्वारा गज चर्म का हरण आदि), २.४.११४(गरुड द्वारा लोहजङ्घ के गजचर्म आवरण का भेदन), २.५.६(कन्या वासवदत्ता के आरोहण हेतु विहित भद्रवती करेणुका का उल्लेख; महामात्र द्वारा करेणुका के शब्द का निर्वचन), ६.१.१६९(स्त्री द्वारा वारण से रक्षा करने वाले को अपना पति मानना), ७.२.१३(गन्धर्व का शाप से श्वेतरश्मि गज बनना, राजा द्वारा गज पर आरूढ होकर राजाओं को जीतना), ७.३.९८(सोमस्वामी के मदनव्याल गज का उल्लेख), ९.१.१९४(जयमङ्गल हस्तिनी व कल्याणगिरि हस्ती का उल्लेख), ९.२.३४८(अनङ्गप्रभा द्वारा हस्तिनी पर राजा के साथ आरूढ होने का उद्योग), ११.१.६(हस्तिनी या अश्वद्वय के जव में अधिक होने का प्रश्न), १२.७.३०७(मुनि द्वारा भीमभट राजा को वन्य हस्ती होने का शाप तथा शाप से मुक्ति का उपाय), १५.१.१२९(नरवाहनदत्त से युद्ध में मन्दरदेव द्वारा मातङ्ग रूप धारण का कथन), १८.३.६६, द्र. अम्बुहस्ती, कालहस्ती, गज hastee/hasti/elephant
Comments on Hasti/elephant
Hasti in Indus script
हां हूम् हौम् अग्नि ८८.४७(शान्त्यतीत कला शोधन के अन्तर्गत हां आदि के साथ ६ गुणों का योग, हं आदि बीजों के गुण )
हाटक अग्नि १०२, भविष्य २.१.१७.११(निष्क्रमण में अग्नि का नाम), भागवत ५.२४(वितल लोक में स्थित शिव का नाम), वामन ९०.२३(सप्तगोदावर तीर्थ में विष्णु का हाटक व हंस नाम), स्कन्द १.१.७.३५(पाताल में हाटकेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), १.२.४.७८(, १.२.४८, १.३.१.७.३, ४.१.२१.३१(हाटक की धातुओं में श्रेष्ठता), ४.२.६९.१४९(हाटकेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३७(शिव द्वारा अन्धक पर क्षिप्त त्रिशूल के पाताल में पहुंचने पर त्रिशूल व हाटक का संवाद), ६.१+ (हाटकेश्वर क्षेत्र के माहात्म्य का आरम्भ), ६४, ६८, ६.२८(हाटकेश्वर तीर्थ में सर्व तीर्थों का समाश्रय), ६.११०(हाटकेश्वर तीर्थ में सर्व तीर्थों का समाश्रय), ७.१.३४६(हाटकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, अगस्त्य द्वारा समुद्र शोषण पर देवों का अगस्त्य को वरदान, हाटकेश्वर की पूजा), लक्ष्मीनारायण १.५७+ (हाटकाङ्गद : बर्हिषाङ्गद राजा का उपनाम), १.३०१.१०१, २.२२.२१(पाताल में हाटकेश्वर तीर्थ की श्रेष्ठता का उल्लेख ) haataka/ hataka
हार ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.१४९(राधा द्वारा सरस्वती को हारसार देने का उल्लेख), ३.४.४८(वक्ष सौन्दर्य हेतु सद्रत्नसार हार दान का निर्देश), ४.९३.५७(वरुण द्वारा कृष्ण को हीरहार देने का उल्लेख), ४.१०४.८९(मालती देवी द्वारा उग्रसेन के राज्याभिषेक में हार भेंट करने का उल्लेख), भविष्य ३.३.८(राजपुत्र कालिय द्वारा ग्रैवेयक हार प्राप्त करने में असफलता), योगवासिष्ठ १.२९.२०(संसार रूपी हार का निरूपण), वा.रामायण ६.१२८.८०(सीता द्वारा हनुमान को प्रदत्त हार की महिमा ), कथासरित् ६.२.१२४(आकाशवाणी द्वारा राजपुत्र को प्रातःकाल हार ग्रहण न करने का निर्देश), १०.५.८७, १११(मूषक द्वारा अपहृत हार से ओज/बल प्राप्त होने का कथन), haara/ hara
हारव स्कन्द ५.२.४८(ब्रह्मा के वाम नयन के अश्रुकणों से हारव दानव की उत्पत्ति, अभयेश्वर द्वारा ब्रह्मा को अभय दान),
हारीत गरुड १.२१७.२७(काष्ठ हरण से हारीत योनि प्राप्ति का उल्लेख), १.२१७.३१(शाक हरण से हारीत योनि प्राप्ति का उल्लेख), पद्म ६.१२५, मार्कण्डेय १५.२६, १५.३२(चोरी के फलस्वरूप हारीत योनि प्राप्ति का उल्लेख), वामन ६८.१५(हारीत पक्षी के मौन होकर पराङ्मुख जाने के शुभ शकुन होने का उल्लेख), स्कन्द १.२.६.२२(हारीत द्वारा स्तम्भ तीर्थ की प्रशंसा, नारद को शाप - प्रतिशाप), १.२.६.६२, १.२.४२, १.२.४९, ४.२.५१.२८(वृद्ध हारीत द्वारा आदित्य की आराधना से तारुण्य प्राप्ति), ६.१२५(हारीत मुनि द्वारा दिलीप को माघ स्नान का परामर्श), ६.१३४(पूर्णकला - पति, पत्नी को शाप से खण्ड शिला बनाना, काम को कुष्ठग्रस्त होने का शाप), ६.१७४(लीलावती - पति, मूल स्थान में निवास, नृसिंह की पुत्र रूप में प्राप्ति), हरिवंश २.९०.२०, लक्ष्मीनारायण १५०२, २.२८.१९(हारीत जाति के नागों का वनवासी व अरण्य रक्षाकर बनना ), २.१९९.८८, २.२९७.९९(, ३.२०१.११(,haareeta/ harita
हालाहल देवीभागवत ७.२९(हालाहल दैत्यगण का देवों से युद्ध, शंकर व विष्णु द्वारा वध), वायु ६७, स्कन्द ३.१.४.३(हालास्य मन्दिर में दुर्दम राक्षस का उपद्रव), ५.१.९.७(कपाल मातृकाओं द्वारा महिष रूप हालाहल दैत्य का भक्षण ), ५.१.४४.१२, haalaahala/ halahala
हास पद्म ६.१२.३६(हास का जालन्धर - सेनानी पातालकेतु से युद्ध), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५८(हास्य सौन्दर्य हेतु मालती पुष्प दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड २.३.७.१३४(प्रहासक : खशा व कश्यप के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक), भागवत ६.८.१६(नर से हास से रक्षा की प्रार्थना), वायु ६९.१६६/२.८.१६०(खशा व कश्यप के प्रधान राक्षस पुत्रों में से एक), स्कन्द ६.१२४.६४ (सप्तर्षियों द्वारा वाल्मीकि को प्रदत्त हास्य मन्त्र), लक्ष्मीनारायण २.२८३.५८(हासा द्वारा बालकृष्ण को पुष्पगुच्छ देने का उल्लेख ), द्र. चन्द्रहास, मन्दहास, मेघहास haasa/ hasa
हाहा गणेश २.९.२(हाहा हूहू आदि का कश्यप के आश्रम में आगमन, महोत्कट गणेश द्वारा पञ्चमूर्ति को नष्ट करना व स्वयं को पञ्चमूर्ति रूप में प्रकट करना), गरुड ३.९.३(१५ अजान देवों में से एक), विष्णु ४.१.६८(ब्रह्मा व राजा रैवत के समक्ष हाहा-हूहू गन्धर्वों द्वारा दिव्य गान्धर्व गान का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.१९३(हाहा - हूहू गन्धर्वों के संदर्भ में गज - ग्राह का आख्यान ), स्कन्द ५.१.६३.१००(विष्णु सहस्रनामों में हाहा हूहू का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.५.८०हाहाकार, कथासरित् ८.२.३५०(हाहा गन्धर्व की कन्याओं सौदामनी व उज्ज्वला तथा हूहू गन्धर्व की कन्या पीवरा सम्बन्धी कथन), haahaa/ haha
हिंसा अग्नि २०, ब्रह्माण्ड ३.४.६.३६(न्यायोचित हिंसा का कथन), लिङ्ग १.७८(हिंसा के प्रकार व हिंसा निषेध), वायु ५७.९२(उपरिचर वसु द्वारा हिंसा युक्त यज्ञ का समर्थन), विष्णुधर्मोत्तर ३.२५२(हिंसा के दोष), ३.२६८(हिंसा के दोष ), महाभारत शान्ति २७२, लक्ष्मीनारायण १.५४३.७२, ३.९०.४२ himsaa/ hinsaa
हिक्का अग्नि २१४.१६(संवत्सर में ऊनरात्र के हिक्का होने का उल्लेख),
हिङ्गुल लक्ष्मीनारायण १.५१५.८९, १.५१५.९५,
हिडिम्ब गरुड ३.१२.८७(मधु – कैटभ का हंस व हिडंब से तादात्म्य), स्कन्द १.२.६०(हिडिम्बा-पुत्र घटोत्कच के मौर्वी से विवाह का वृत्तान्त), हरिवंश ३.१२१.१०(हंस व डिम्भक - सेनानी), ३.१२६(हिडिम्ब की देह का वर्णन, हिडिम्ब का वसुदेव व उग्रसेन से युद्ध, बलराम द्वारा हिडिम्ब का वध ) hidimba
हिता स्कन्द ५.३.१५९.४५(शरीर की ७२ सहस्र नाडियों का नाम ), लक्ष्मीनारायण ४.३६हिताञ्जलि, द्र. प्रहित hitaa
हिम नारद १.९०.७६(हिम तोय द्वारा नृप प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ४.२.६९.१३१(हिमस्येश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), महाभारत वन ३१३.६७, hima
हिमालय कूर्म १.१२.६२(हिमालय द्वारा पार्वती के विराट् रूप के दर्शन, सहस्रनामों द्वारा स्तुति), देवीभागवत ७.३०(हिमालय पर्वत पर भीमा देवी का वास), ७.३२+ (परमेश्वरी से तन्मात्राओं का क्रमश: प्रस्फुटन, हिमालय द्वारा माया के रहस्य का श्रवण, परमेश्वरी के विराट् रूप का दर्शन), पद्म १.६, ब्रह्मवैवर्त्त २.७.१०८(दुर्गा के तप का स्थान), ४.६.१७४(हिमालय का जाम्बवान् रूप में अवतरण), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३३(हिमवान् पर्वत पर राक्षस - पिशाच - यक्षों के वास का उल्लेख), २.३.२२(परशुराम द्वारा हिमालय की शोभा का वर्णन), मत्स्य १३, ११७+ (हिमालय की शोभा का वर्णन, पुरूरवा का आगमन), वराह २२, वामन ५७.६७(हिमालय द्वारा स्कन्द को २ गण भेंट), ९०.८(हिमाचल में विष्णु का शूलबाहु नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.१५०(पुरूरवा द्वारा हिमालय का दर्शन), शिव २.३.१(हिमालय का मेना से विवाह), २.३.२.२८(हिमालय के विष्णु का अंश होने का उल्लेख), २.५.९, स्कन्द ४.२.६६(हिमालय द्वारा काशी में वरणा तट पर शैलेश्वर लिङ्ग की स्थापना), ५.३.१९८.६८, ५.३.१९८.८५, ६.९, ६.२४५, ७.१.२४, हरिवंश १.६.४१(पृथ्वी रूपी गौ के दोहन में हिमालय के वत्स बनने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.२५.२३(नियति के कान में अस्थि मुद्रिका रूपी हिमालय), लक्ष्मीनारायण २.१४०.२६हिमवान्, ४.२.७८(बदर नृप द्वारा चन्द्रकान्त मणि का जल में प्रक्षेप करने से हिमगिरि की उत्पत्ति का वृत्तान्त), ४.२.९०(हिमालय पर ऋषियों मुनियों आदि के निवास के कारण का वर्णन ), कथासरित् ४.२.१६, himaalaya/ himalaya
हिरण्मय गर्ग ७.२९(हिरण्मय वर्ष में वानरों का वास, प्रद्युम्न की विजय), देवीभागवत ८.१०(हिरण्मय वर्ष में अर्यमा द्वारा कच्छप रूप की आराधना), भागवत ५.२.१९(आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, श्यामा - पति), वराह ८४, वायु ४५.६(हिरण्मय वर्ष का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.१४०.१०(हिरण्मय प्रासाद के लक्षण ), ४.१०१.१०७हिरण्मयी hiranmaya
हिरण्य अग्नि ३२.८ (४८ संस्कारों के संदर्भ में हिरण्याङ्घ्रि, हिरण्याक्ष, हिरण्यमित्रा आदि संस्कारों? के नाम), ब्रह्म २.५, २.५९.११(महाशनि दैत्य का पिता), शिव १.१५.४८(हिरण्य दान से जठराग्नि वृद्धि का कथन), स्कन्द ७.१.१५३(हिरण्येश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, ब्रह्मा द्वारा सरस्वती में उत्पन्न हिरण्य पद्मों पर लिङ्ग स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.३०१, १.३११.४५हिरण्यवर्णा, १.३१२.१०५(वसुदान नृप व राध्यासा राज्ञी द्वारा पुरुषोत्तम मास पञ्चमी व्रत से हिरण्याधिपति बनने का वर्णन ), २.२, ३.३३.५५, hiranya
हिरण्यक ब्रह्म २.३३(हिरण्यक दानव का प्रियव्रत के अश्वमेध यज्ञ में आगमन, देवों का शमी आदि वृक्षों में प्रवेश करना ), स्कन्द ७.१.१५३(हिरण्येश्वर का माहात्म्य, काञ्चन – प्रदात्री सरस्वती का प्राकट्य), ७.१.२३८, लक्ष्मीनारायण ३.३३.८५(, द्र. हिरण्या hiranyaka
हिरण्यकशिपु अग्नि १९.७(हिरण्यकशिपु के अनुह्राद आदि ४ पुत्रों तथा पौत्रों के नाम), कूर्म १.१६(हिरण्यकशिपु व नृसिंह की कथा का रूप भेद), गर्ग ७.४२, देवीभागवत ४.२२, पद्म १.४१(हिरण्यकशिपु द्वारा ऊर्व ऋषि से और्व माया की प्राप्ति), १.४५(हिरण्यकशिपु द्वारा तप से वर प्राप्ति, नृसिंह द्वारा वध की विस्तृत कथा), २.१०(कश्यप द्वारा हिरण्यकशिपु को देवों के जीतने का कारण सत्य और धर्म बताना, हिरण्यकशिपु द्वारा कश्यप के उपदेश की उपेक्षा कर देवों पर जय हेतु तप), २.२३.४(हिरण्यकशिपु का हिरण्यकश्यप रूप में उल्लेख, हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष की मृत्यु पर दिति द्वारा मेधावी/बल पुत्र की प्राप्ति), ६.२३८(प्रह्लाद की विष्णु भक्ति व हिरण्यकशिपु की महादेव भक्ति, सर्प, नाग, विष, अग्नि आदि द्वारा प्रह्लाद को नष्ट करने का प्रयास, स्तम्भ का ताडन, नृसिंह का प्राकट्य आदि, देवी का प्रकट होकर नृसिंह को शान्त करना), ६.२३८.९(हिरण्यकशिपु- भार्या कल्याणी से प्रह्लाद पुत्र का जन्म), ब्रह्म २.७९(हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात् नृसिंह द्वारा अम्बर्य दैत्य के वध का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.५.४(कश्यप के अश्वमेध में अतिरात्र में सौत्य अह में हिरण्यकशिपु की उत्पत्ति, चरित्र का वर्णन, निरुक्ति), भागवत ३.१७(हिरण्यकशिपु के जन्म समय में उत्पात), ७.१, ७.२, ७.३(हिरण्यकशिपु द्वारा तप, ब्रह्मा से वर प्राप्ति), ७.४(हिरण्यकशिपु के वैभव का वर्णन), ७.५(हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्लाद के वध का यत्न), ८.१९.१०(विष्णु का हिरण्यकशिपु के ह्रदय में छिपना), मत्स्य ६, १६१(हिरण्यकशिपु द्वारा तप, ब्रह्मा से वर प्राप्ति, नृसिंह का आगमन, हिरण्यकशिपु की सभा का वर्णन), १६३(नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध), १७५, लिङ्ग १.९५(भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध, शरभ रूप धारी शिव द्वारा नृसिंह का वध, सिंह का नर में रूपान्तरण), वराह २५, वायु ६५, ६७.४९(हिरण्यकशिपु की दिति से उत्पत्ति, हिरण्यकशिपु नाम प्राप्ति का कारण), ६७.७०(हिरण्यकशिपु वंश का वर्णन), विष्णु १.१७(हिरण्यकशिपु का प्रह्लाद से वार्तालाप, प्रह्लाद को नष्ट करने का उद्योग), विष्णुधर्मोत्तर १.५४(हिरण्यकशिपु द्वारा तप से वर प्राप्ति, नृसिंह द्वारा वध), १.२३८, शिव २.५.४३.४(हिरण्यकशिपु द्वारा तप से अवध्यता वर की प्राप्ति, नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु के वध का वृत्तान्त), स्कन्द ४.२.९७.२३ (हिरण्यकशिपु द्वारा स्थापित लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.५२(शिप्रा आविर्भाव के संदर्भ में जय - विजय द्वारा सनकादि के ताडन से हिरण्याक्ष - हिरण्यकशिपु, रावण - कुम्भकर्ण आदि बनने की कथा), ५.१.६३.१०३(विष्णु सहस्रनामों में से एक), ५.१.६६.१०(नृसिंह तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में एक कर तलाघात से हिरण्यकशिपु की मृत्यु होने का कथन), ५.२.१२.२(हिरण्यकशिपु के वक्ष:स्थल से उत्पन्न दैत्यों द्वारा देवों को त्रास, लिङ्ग से उत्पन्न वह्निज्वाला द्वारा दैत्यों को नष्ट करना), ६.८.३४(हिरण्यकशिपु- सुता के त्वष्टा की भार्या बनने और वृत्र पुत्र प्राप्त करने का वृत्तान्त), ६.१४९.१८(हिरण्यकशिपु के २ पुत्रों प्रह्लाद व अन्धक का कथन), ७.१.२०.३(अश्वमेध के अतिरात्र के सौत्य अह में उत्पन्न हिरण्यकशिपु द्वारा होता के हिरण्मय आसन पर बैठने का कथन), ७.१.२०.२८(हिरण्यकशिपु का रावण रूप में जन्म), हरिवंश १.३, १.४५(हिरण्यकशिपु द्वारा ऊर्व मुनि से और्व अग्नि को ग्रहण करना), ३.४१(हिरण्यकशिपु द्वारा तप, वर प्राप्ति, सभा का वर्णन, नरसिंह का आगमन), ३.४१.१६(एक पाणि प्रहार से नाश करने की शक्ति वाले से हिरण्यकशिपु के वध का प्रावधान), ३.४२(नृसिंह द्वारा वैभव दर्शन), ३.४४+ (हिरण्यकशिपु का नृसिंह से अस्त्र और माया युद्ध), ३.४६(हिरण्यकशिपु के पैरों की धमक से विश्व का कम्पित होना), ३.४७(नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध), महाभारत शान्ति ३४२.३१(हिरण्यकशिपु द्वारा विश्वरूप को यज्ञ का होता बनाने पर वसिष्ठ से शाप प्राप्ति का कथन), योगवासिष्ठ ५.३०, लक्ष्मीनारायण १.१३३, १.१३५+ (हिरण्यकशिपु का चरित्र : तप, प्रह्लाद को यातनाएं आदि ), कथासरित् ८.७.४८(हिरण्यकशिपु के कपिञ्जल रूप में अवतार का उल्लेख),
हिरण्यकूर्च लक्ष्मीनारायण २.५.७७ hiranyakashipu
Vedic and Esoteric aspect of Hiranyakashipu
हिरण्यकेश लक्ष्मीनारायण २.७५+
हिरण्यगर्भ ब्रह्माण्ड १.१.३.२६(हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति का वर्णन), भविष्य ४.६८.१५(ब्रह्मा के नामों में से एक), ४.६८.२४(हरिहर, हिरण्यगर्भ, प्रभाकर तीन क्रमिक लोकों का उल्लेख), ४.१७६(हिरण्यगर्भ दान विधि), मत्स्य २७५(हिरण्यगर्भ/कलश दान विधि), लिङ्ग २.२९(षड्विंश, पञ्चविंश व चतुर्विंश के माध्यम से हिरण्यगर्भ दान विधि का कथन), वायु ४.८०(हिरण्यगर्भ रूपी अण्ड का मेरु व पांच महाभूतों के संदर्भ में कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.२(पञ्चविंश पुरुष से हिरण्यगर्भ आदि की उत्पत्ति), स्कन्द ४.२.७७.२१(वसिष्ठ ब्राह्मण के गुरु हिरण्यगर्भ की केदार यात्राकाल में मृत्यु से मुक्ति), ४.२.८४.३७(हिरण्यगर्भ तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२८.७७(सोम के राजसूय में उद्गाता), ७.१.१३.९(कृतयुग में सूर्य का नाम), हरिवंश ३.३६.५( हिरण्यगर्भ प्रजापति द्वारा स्व के विभाजन से ओंकार, वषट्कार आदि को उत्पन्न करने का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.७१.२८(प्रधान पुरुष/महत्तत्व से उत्पन्न अहंकार की हिरण्यगर्भ/महाविष्णु संज्ञा ), ३.१२६(हिरण्यगर्भ दान विधि), hiranyagarbha
हिरण्यगुप्त कथासरित् १.४.२६, १.४.६६(वणिक्, उपकोशा पर आसक्ति, उपकोशा द्वारा चरित्र रक्षा की कथा), १.५.७९(योगनन्द - पुत्र, मित्रद्रोह से उन्मत्त होने की कथा ), ९.२.२९९, १०.१.१०, hiranyagupta
हिरण्यतेजा लक्ष्मीनारायण १.५५६.४१
हिरण्यदत्त भविष्य ३.२.९, कथासरित् ४.२.१५४,
हिरण्यनाभ भविष्य १.२११.११(हिरण्यनाभ द्वारा कौथुमि पुत्र को कुष्ठ निवारणार्थ सूर्य उपासना का आदेश), भागवत ९.१२(विधृति - पुत्र, जैमिनि - शिष्य, योगाचार्य, याज्ञवल्क्य - गुरु ) hiranyanaabha/ hiranyanabha
हिरण्यनामा शिव ३.५
हिरण्यबाहु लक्ष्मीनारायण १.५६१
हिरण्यरेता देवीभागवत ८.४(प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र, कुशद्वीप का स्वामी, रुक्म शुक्र उपनाम), ८.१२.३०(हिरण्यरेता के ७ पुत्रों के नाम), भागवत ५.१.२५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र ) hiranyaretaa
हिरण्यरोमा अग्नि १९, ब्रह्माण्ड १.२.११.१९(मरीचि - पुत्र, पर्जन्य नाम), मत्स्य ८(उत्तर दिशा के स्वामी), विष्णु १.२२.१४, २.८.८३, हरिवंश १.४.२१(पर्जन्य - पुत्र, उत्तर दिशा के दिक्पाल ) hiranyaromaa
हिरण्यवती वामन ६३, ६४.१६, कथासरित् १२.१६.६, १२.२६.१०,
हिरण्यवर्ष कथासरित् ९.५.१७२
हिरण्यशृङ्ग मत्स्य १२१.६१(कुबेर - अनुचर, सुरभि वन में वास),
हिरण्या पद्म ६.१४०(हिरण्या - साभ्रमती सङ्गम तीर्थ का माहात्म्य), स्कन्द ७.१.२३८(हिरण्या नदी का माहात्म्य), ७.१.३६३(हिरण्या तट पर तुण्डपुर का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१४(हरि की शक्ति हिरण्या का उल्लेख ) hiranyaa
हिरण्याक्ष अग्नि १९, कूर्म १.१६, गरुड १.६.४२(हिरण्याक्ष के पुत्रों के नाम), १.८७.३०(तेजस्वी नामक इन्द्र के शत्रु हिरण्याक्ष का वराह रूपी विष्णु द्वारा वध), गर्ग ७.३२, ७.४२, पद्म १.७५(हिरण्याक्ष का विष्णु से युद्ध, पाताल गमन, वराह रूपी विष्णु द्वारा वध), २.२३, ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३६(हिरण्याक्ष के अनपत्य मरण का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१३, भागवत ३.१४(दिति द्वारा गर्भ धारण की कथा), ३.१७(हिरण्याक्ष द्वारा स्वर्ग, समुद्र व पाताल में विजय), ३.१८+ (हिरण्याक्ष का वराह से युद्ध, मरण), ६.७.२, ७.२.१८(रुषाभानु - पति, शकुनि आदि पुत्रों के नाम), मत्स्य ६, १२२, लिङ्ग १.९४, वामन ४८, ८२.४०(चक्र द्वारा कर्तित शिव के ३ भागों में से एक), ९०.२१(हेमकूट पर विष्णु का हिरण्याक्ष नाम), विष्णु १.२१.२(हिरण्याक्ष के पुत्रों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.२(हिरण्याक्ष की महारत्न उपमा), १.५३(वराह रूपी विष्णु द्वारा हिरण्याक्ष का वध), १.१२१, १.१८२(शक्र - पीडक हिरण्याक्ष का नृवराह रूपी विष्णु द्वारा वध), ३.७९, शिव २.५.४२+, स्कन्द ४.२.९७.२९(हिरण्याक्षेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : महाबलप्रद), ५.१.५२, ५.१.६३.१०३(विष्णु सहस्रनामों में से एक), ५.३.१९८.७२(हिरण्याक्ष में देवी के महोत्पला नाम का उल्लेख),६.१२२(महिष रूप धारी शिव द्वारा हिरण्याक्ष का वध), ६.२०४, ६.२२२(हिरण्याक्ष द्वारा ब्रह्मा से प्रेतों की तृप्ति हेतु चतुर्दशी श्राद्ध की प्राप्ति), हरिवंश १.३.७९, ३.३७.१४(हिरण्याक्ष की दैत्यों के राजा पद पर नियुक्ति), ३.३८.१८(हिरण्याक्ष की देह का वर्णन, देवों से युद्ध), ३.३९(वराह द्वारा हिरण्याक्ष का वध), लक्ष्मीनारायण १.१३२, १.१३३, १.१३४(हिरण्याक्ष द्वारा पृथ्वी का हरण, वराह अवतार द्वारा वध ), ३.१६४.४२(वैवस्वत मन्वन्तर में वराह अवतार द्वारा हिरण्याक्ष के निग्रह का कथन), कथासरित् ८.२.१९२, ८.५.१०८, ८.७.४९, १०.९.२१६, १०.९.२३१, hiranyaaksha/ hiranyaksha
हिरण्वती वामन ९०.३२(हिरण्वती में विष्णु का रुद्र नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५(हिरण्वती नदी के सुपर्ण वाहन का उल्लेख),
हिर्बु भविष्य ३.४.१२(हिर्बु असुर द्वारा देवों को त्रास, रुद्र द्वारा हनन),
हीरक लक्ष्मीनारायण २.३७.५९, २.७७.४८(हीरक दान से विषजन्य पाप के नष्ट होने का कथन), २.२१४.७८हीरवती, ३.१६०, ३.१८३.६८हीरुका
हुङ्कार गणेश १.८.४०(राजा सोमकान्त के शरीर से नि:सृत पक्षी रूपी द्विजों द्वारा सोमकान्त के मांस का भक्षण करने पर भृगु द्वारा हुंकार से द्विजों को दूर करने का उल्लेख), पद्म ६.७.३७(जालंधर के प्रबोधन पर काव्य द्वारा हुंकार से देवों पर बाणप्रहार), वराह ६९.९(विप्र के हुंकार से राजा के समक्ष पांच कन्याओं के प्राकट्य आदि का वर्णन), स्कन्द १.२.६२.३३(सर्वलिंगेषु हुंकारः स्मशानेषु भयावहः), ५.१.४.२४(ब्रह्मा द्वारा हुङ्कार से रौद्र अग्नि को विभाजित करना, विभाजित अग्नियों के आहार व स्थानों का निर्धारण), ५.२.५४.१४(तापस द्वारा नृप के समक्ष हुंकारों से उत्पन्न चमत्कारों का प्रदर्शन), ५.२.५४.२४, ५.२.८०.४६(वसिष्ठ द्वारा राक्षस बने सौदास नृप का हुंकार से वारण का उल्लेख), ५.३.१४.३२(रुद्र द्वारा ओंहुंफट् उच्चारण से देवी के सौम्य स्वभाव को रौद्र बनाना), ५.३.८३.१०६(गौ के हुंकार में चारों वेदों की स्थिति का उल्लेख), ५.३.१५७.१५(हुङ्कार तीर्थ का माहात्म्य - रेवा नदी का क्रोश मात्र जाना, हुंकार तीर्थ में शुभ-अशुभ कृत्यों का नाश न होना आदि), ७.१.३३९(हुङ्कार कूप का माहात्म्य, तण्डि ऋषि द्वारा कूप में पतित मृग को हुङ्कार द्वारा मुक्त कराना ) humkaara/ hunkaara/ hunkara
हुण्ड पद्म २.१०३+ (विपुला - पति हुण्ड दैत्य द्वारा अशोकसुन्दरी का हरण, नहुष का हरण, नहुष द्वारा वध), २.११८, स्कन्द ४.१.३.४९टीका (हुण्ड शब्दार्थ निरूपण), ४.२.६६.३२(हुण्डन व मुण्डन शिव गणों द्वारा वरणा तट पर विघ्न निवारक लिङ्ग स्थापना ), ४.२.६६.१२८, लक्ष्मीनारायण ३.५२, द्र. विहुण्ड hunda
हुत द्र. वंश वसुगण, सर्वहुत
हुताशन भविष्य २.१.१७.३(कोटि होम में अग्नि का नाम), २.१.१७.४(प्रायश्चित्त में अग्नि का नाम), वामन ९०.१९(माहिष्मती में विष्णु का हुताशन नाम से वास ) hutaashana/ hutashana
हुबक ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२८
हुम्ब ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९५(भण्डासुर - सेनानी, नित्यक्लिन्ना द्वारा वध )
हुलुमल्ल ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९५(भण्डासुर - सेनानी, भेरुण्डा द्वारा वध )
हुहुक स्कन्द १.२.६२.३२(क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक )
हूण लक्ष्मीनारायण ३.२०९.२(
हूति द्र. देवहूति
हूहू गरुड ३.९.३(१५ अजान देवों में से एक), गर्ग ४.२१, वामन ८४.६४(देवल ऋषि के शाप से हूहू को ग्राह रूप प्राप्ति ), विष्णु ४.१.६८, स्कन्द ५.१.६३.१००(, कथासरित् ८.२.३५१, द्र. हाहा hoohoo/ huuhuu/ huhu
हृङ्डकायिनी लक्ष्मीनारायण २.४२
ह्रद पद्म १.५९, ६.१४४, ६.१६४, स्कन्द १.२.४२, ७.१.२१, ७.४.९, महाभारत द्रोण १०१.२६, शल्य १.११, २९.५१, ३०.५३, स्त्री २७.१५, शान्ति ३०१.६४, अनुशासन १२.९, १३दाक्षिणात्य पृ. ५४७६, ५८, लक्ष्मीनारायण १.२२६, १.५५३, ३.३५.५१, द्र. शतहृदा hrada
ह्रदय अग्नि २१४.३१(ब्रह्मणो हृदये स्थानं कण्ठे विष्णुः समाश्रितः । तालुमध्ये स्थितो रुद्रो ललाटे तु महेश्वरः ॥), गरुड २.३०.५६/२.४०.५६(मृतक के ह्रदय में रुक्म देने का उल्लेख - कर्पूरागुरुधूपैश्च शुभैर्माल्यैः सुगन्धिभिः । परिधानं पट्टसूत्रं हृदये रुक्मकं न्यसेत् ॥ ), देवीभागवत ७.३८.३०(ह्रदय क्षेत्र में हृल्लेखा देवी का वास - ज्ञानिनां हृदयाम्भोजे हृल्लेखा परमेश्वरी ॥), ब्रह्माण्ड १.१.५.७४(ब्रह्मा के ह्रदय से भृगु की सृष्टि का उल्लेख - भृगुश्च हृदयाज्जज्ञे ऋषिः सलिलयोनिनः ॥), भागवत २.१०.३०(ह्रदय से मन, चन्द्र, संकल्प, काम की उत्पत्ति का उल्लेख - निदिध्यासोः आत्ममायां हृदयं निरभिद्यत । ततो मनः ततश्चंद्रः सङ्कल्पः काम एव च ॥), ६.४.४६(तप के भगवान का ह्रदय होने का उल्लेख - तपो मे हृदयं ब्रह्मंस्तनुर्विद्या क्रियाकृतिः। अङ्गानि क्रतवो जाता धर्म आत्मासवः सुराः॥), ११.१७.१४(हृदय से ब्रह्मचर्य की उत्पत्ति का उल्लेख), ११.११.४४(ह्रदय आकाश में वायु में मुख्यधी रूपी तोय आदि का कथन), मत्स्य ३३.८ (वृद्धावस्था लेकर यौवन देने के ययाति के प्रस्ताव की पुत्रों द्वारा अस्वीकृति, ययाति का शाप - यस्त्वं मे हृदयाज्जातो वयः स्वं न प्रयच्छसि।), ५१.२८(अग्नि, मन्युमान्- पिता - हृदयस्य सुतो ह्यग्नेर्जठरेऽसौ नृणां पचन्। मन्युमाञ्जठरश्चाग्निर्विद्धाग्निः सततं स्मृतः ॥ ), २४८.७२(यज्ञवराह के दक्षिणा हृदय होने का उल्लेख - प्राग्वंशकायो द्युतिमान् नानादीक्षाभिरन्वितः। दक्षिणा हृदयो योगी महासत्रमयो महान् ।।), मार्कण्डेय ६३.२३/६०.२३(मनोरमा कन्या द्वारा स्वरोचि को अस्त्रग्राम का ह्रदय देने का कथन - हृदयं सकलास्त्राणामशेषरिपुनाशनम् । तदिदं गृह्यतां शीघ्रमशेषास्त्रपरायणम्॥), वायु ६.२१(वराह ह्रदय का दक्षिणा से साम्य - दक्षिणाहृदयो योगी महासत्रमयो विभुः।), स्कन्द ४.१.२.९७(पुराणों की हृदय से उपमा - श्रुतिस्मृती तु नेत्रे द्वे पुराणं हृदयं स्मृतम् ।।), ४.२.७२.६०(ह्रदय की धरित्री देवी द्वारा रक्षा - वक्षःस्थलं स्थलचरी हृदयं धरित्री कुशिद्वयं त्ववतु नः क्षणदाचरघ्नी ।।), ७.२.१२.३९(गगने दृश्यते सूर्यो हृदये दृश्यते हरः ॥), हरिवंश ३.७१.५०(वामन के विराट रूप की कल्पना - हदयं भगवान्ब्रह्मा पुंस्त्वं वै विश्वतोमुनिः ।।), महाभारत वन ३१३.६१(अश्म के हृदयरहित होने का उल्लेख, यक्ष-युधिष्ठिर संवाद - अश्मनो हृदयं नास्ति नदी वेगेन वर्धते ॥), योगवासिष्ठ ६.२.१४०(ह्रदय की कल्पना ), द्र. सुह्रदय hridaya
ह्रदया ब्रह्म १.१५(अश्वी, भोज का वाहन), हरिवंश १.३९
हृदीक गर्ग १.५.२४(हृदीक के कुबेर का अंश होने का उल्लेख ), मत्स्य ४४ hrideeka/ hridika
हृल्लेखा देवीभागवत ७.३८(हृल्लेखा देवी का ह्रदय कमल पर वास),
हृषीक शिव ३.४,
हृषीकेतु पद्म ६.२०.४०(सगर के अवशिष्ट ४ पुत्रों में से एक),
हृषीकेश नारद १.६६.८८(हृषीकेश की शक्ति हर्षा का उल्लेख), पद्म २.९८.६१(हृषीकों के बिना विषयों का भोक्ता), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२०(हृषीकेश से अधरोष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), भागवत ६.८.२१(हृषीकेश द्वारा दोष व अर्धरात्रि में रक्षा की प्रार्थना), १०.६.२४(हृषीकेश से इन्द्रियों की रक्षा की प्रार्थना), वराह १.२७(हृषीकेश से मुख की रक्षा की प्रार्थना), १४६(हृषीकेश की निरुक्ति), वामन ९०.२९(लोह दण्ड में विष्णु का हृषीकेश नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.४(हृषीकेश से मन की रक्षा की प्रार्थना), स्कन्द २.२.३०.७९(हृषीकेश से उत्तर दिशा की रक्षा की प्रार्थना), २.४.९टीका (एकाङ्गी - पिता, आभीर, कन्या के बहिष्कार व स्वीकार की कथा), ४.१.१९.११५(वसिष्ठ द्वारा ध्रुव को हृषीकेश की आराधना का निर्देश), ४.१.२०.९(हृषीकेश शब्द की निरुक्ति), ४.१.२९.१६७(हृषीकेशी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.६१.२२८(हृषीकेश की मूर्ति के लक्षण), ५.३.१४९.११(भाद्रपद में हृषीकेश की अर्चना का निर्देश), ६.२१३.९०(हृषीकेश से बाहु देश की रक्षा की प्रार्थना), ७.३.१३(हृषीकेश का माहात्म्य, अम्बरीष द्वारा हृषीकेश की आराधना, क्रिया योग उपदेश की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१०(हृषीकेश की पत्नी अपराजिता का उल्लेख), १.५५३, २.२६१.३४(हृषीकेश की निरुक्ति ),
दक्ष के शिर छेदन का प्रयत्न करने का उल्लेख ) hrisheekesha/ hrishikesha
हृष्ट गर्ग ७.३२.१०(हिरण्याक्ष - पुत्र, शकुनि आदि भ्राता, प्रद्युम्न - सेनानी वृक द्वारा वध),
हेति नारद २.४७.९(ब्रह्मा - पुत्र, विष्णु द्वारा गदा से शिर भञ्जन), ब्रह्म २.५५(कपोती, मृत्यु की दौहित्री, अनुह्राद -पत्नी, यम - उपासक, उलूक से युद्ध, अग्नि की शरण लेने पर शान्ति का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.२३.५(हेति - प्रहेति का सूर्य रथ में वास), भागवत ४.५.२२(वीरभद्र द्वारा हेति से दक्ष के सिर को काटने का प्रयत्न, असफलता), ८.१०.२८(हेति का वरुण से, प्रहेति का मित्र से युद्ध), वराह १०.६९(हेति - प्रहेति : स्वायम्भुव मनु - पुत्र, सुकेशि व मिश्रकेशी कन्याएं), वायु ६९.१२७(हेति व प्रहेति : ब्रह्मधना - पुत्र, सूर्य - अनुचर, पुत्रों के नाम), ६९.१२९(लङ्कु - पिता), १०९.११/२.४७.११(हरि द्वारा हेति असुर के वध हेतु गदा की प्राप्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८(हेति वंश), स्कन्द १.२.६.६६(सब कार्यों में हेति शब्द के विगर्हित होने का उल्लेख, कार्यों में शिलापात होने का उल्लेख), महाभारत आदि ??(अग्नि की हेतियों द्वारा सर्वप्राणियों के दहन का उल्लेख), २३१.१०(अग्नि की ७ हेतियां/ज्वालाएं होने का उल्लेख), वा.रामायण ७.४.१४(राक्षस, प्रहेति - भ्राता, भया - पति, विद्युत्केश - पिता), लक्ष्मीनारायण १.५३२.१३हेति - प्रहेति, १.५४५.३६(राजा नृग के शरीर से निर्गत एकादशी कन्या द्वारा हेति रूपी द्वादशी से दस्युओं का नाश करना ), वास्तुसूत्रोपनिषद ३.९(शिला द्रवणार्थ हेति विद्या), द्र. प्रहेति heti
हेतु वायु ५९.१३३/१.५९.१०८(हेतु शब्द की निरुक्ति), स्कन्द ४.२.९७.१७४(हेतुकेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) hetu
हेम गणेश २.१८.१०(हेम दैत्य का महोत्कट गणेश के वध हेतु काशी में गणक रूप में आगमन, गणेश द्वारा मुद्रिका से हेम का वध), २.१०८.८, २.१०९.२४(गणेश द्वारा व्याघ्र| रूप धारी हेम राक्षस के मुख को विकृत करना आदि), गरुड २.२.६३(हेमहारी के कुनखी होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१९.५४(हेम पर्वत के वेणु मण्डल वर्ष का उल्लेख), भविष्य ४.१९८(हेमाचल दान विधि), शिव ३.५हेमकञ्चुक, स्कन्द २.७.१०(हेमकान्त : कुशकेतु - पुत्र हेमकान्त द्वारा त्रित मुनि को छत्र दान से ब्रह्महत्या से मुक्ति), योगवासिष्ठ ३.११९(हेम ऊर्मि), लक्ष्मीनारायण २.१४०.१४(हैमक प्रासाद के लक्षण ), ३.३३.८७, कथासरित् ७.९.२०१हेमपुर, hema
हेमकण्ठ गणेश १.१.३६(राजा हेमकान्त व सुधर्मा - पुत्र, पिता के कुष्ठग्रस्त होने पर राज्य की प्राप्ति), २.१५२.३(विमानारूढ सोमकान्त नृप द्वारा विमान से उतर कर स्वपुत्र हेमकण्ठ के दर्शन ) hemakantha
हेमकुण्डल गर्ग ७.४०.३१(हेमकुण्डल विद्याधर का ककुत्स्थ के शाप से नक्र / मकर बनना ), पद्म ३.३०, hemakundala
हेमकूट कूर्म १.४८(हेमकूट का वर्णन), गर्ग ७.२६, देवीभागवत ७.३०(हेमकूट पर्वत पर मन्मथा देवी के वास का उल्लेख), पद्म ५.४७(राम के यज्ञीय अश्व का हेमकूट पर्वत पर आगमन, गात्र स्तम्भन व मुक्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३३(हेमकूट में गन्धर्वों - अप्सराओं के वास का उल्लेख), वामन ९०.२१(हेमकूट पर विष्णु का हिरण्याक्ष नाम), स्कन्द ५.३.१९८.८८, वा.रामायण ६.३०.३२(वानर, वरुण - पुत्र ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.२७, कथासरित् ८.३.८६, भरतनाट्य १३.२४(हेमकूट पर गन्धर्वों-अप्सराओं के वास का उल्लेख), hemakoota/ hemakuuta/ hemakuta
हेमगर्भ स्कन्द ७.१.२३(चन्द्रमा के मन्त्री हेमगर्भ द्वारा प्रभास क्षेत्र में यज्ञ अनुष्ठान के लिए उद्योग ) hemagarbha
हेमनक स्कन्द २.४.९.२१
हेमन्त विष्णुधर्मोत्तर १.२४५(राम द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन), स्कन्द ५.३.१०३.६२, वा.रामायण ३.१६(लक्ष्मण द्वारा पञ्चवटी में हेमन्त ऋतु का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४३२, ३.१००.१४६, hemanta
हेमपति भविष्य ३.२.४
हेमप्रभ कथासरित् ७.१.२२, १०.३.११, १०.१०.१३७, १२.५.२३७, १४.३.५८,
हेमप्रभा पद्म ४.१५(वल्लभ - पत्नी, राजासक्त, एकादशी व्रत से उद्धार),
हेममाली गर्ग ४९, ५.१०.१८(कुबेर वन में हेममाली माली का शिव के वरदान से कृष्ण काल में सुदामा माली बनना), ७.२४, पद्म ६.५२(यक्ष, विशालाक्षी - पति, पत्नी में आसक्ति से कुबेर का शाप ), वा.रामायण ७.४, लक्ष्मीनारायण १.२५२, १.३११.३८हेममालिनी hemamaalee/ hemamali
हेममुकुट गर्ग ७.२३
हेमरथ स्कन्द ३.३.१३(मगधराज हेमरथ द्वारा दशार्णराज वज्रबाहु का बन्धन, भद्रायु द्वारा मुक्ति, हेमरथ का बन्धन व मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण ३.३५.१४, hemaratha
हेमलता कथासरित् ९.१.१२०
हेमलम्ब स्कन्द २.४.३५.२०(मास )
हेमवालुका कथासरित् १४.४.१५४
हेमशालायन लक्ष्मीनारायण २.९७
हेमशैल द्र. भूगोल
हेमसुधा लक्ष्मीनारायण ४.३३
हेमा नारद १.५०.३६, वा.रामायण ४.५१(मय की हेमा अप्सरा में आसक्ति, हेमा द्वारा ब्रह्मा से गुफा रूपी भवन की प्राप्ति), ७.१२(हेमा अप्सरा द्वारा मय से मन्दोदरी, मायावी व दुन्दुभि सन्तान की उत्पत्ति ), लक्ष्मीनारायण ४.२, hemaa
हेमाङ्ग स्कन्द २.१.१६(हेमाङ्ग द्वारा श्रुतदेव के पादोदक सेवन से जाति स्मरण, पुण्य प्रदान से गोधिका योनि से उद्धार), २.७.६(जलदान के अभाव में हेमाङ्ग द्वारा गृहगोधा आदि योनियों की प्राप्ति, श्रुतदेव द्वारा उद्धार ) hemaanga/ hemanga
हेमाङ्गद गणेश १.५३.१९(कर्ण नगर में हेमाङ्गद - पुत्र चन्द्राङ्गद राजा का वृत्तान्त), गर्ग ७.१२.१(उशीनर देश के राजा हेमाङ्गद द्वारा प्रद्युम्न को समर्पण), १०.१६(चम्पावती - राजा, अनिरुद्ध सेना से युद्ध ), स्कन्द २.७.६, लक्ष्मीनारायण १.४०२, hemaangada/ hemangada
हेमाङ्गी पद्म ६.२२०(वीरवर्मा राजा की पत्नी, पूर्व जन्म में मोहिनी वेश्या, प्रयाग में उद्धार, हरि व ब्रह्मा की स्तुति ) hemaangee/ hemangi
हेमायतन लक्ष्मीनारायण २.२१५.५
हेरम्ब गणेश २.३७.१९(हेरम्ब मूर्ति का स्वरूप व माहात्म्य), २.८३.१७(सिन्धु वध हेतु उत्पन्न षड्भुज गुणेश को हिमवान् द्वारा प्रदत्त नाम), २.८५.२३(हेरम्ब गणेश से जठर की रक्षा की प्रार्थना), पद्म ६.२२२.४३(हेरम्ब ब्राह्मण द्वारा शिवकाञ्ची तीर्थ के प्रभाव से वैकुण्ठ प्राप्ति), स्कन्द १.१.१०.७(कालकूट अग्नि से जगत के भस्मीभूत होने पर हेरम्ब – शिव संवाद, गजारूढ हेरम्ब की शिव के त्रिशूल से मृत्यु, पुन: सञ्जीवन), १.३.२.२२.४० (पृथिवी की परिक्रमा स्पर्द्धा में हेरम्ब द्वारा शोणाद्रिरूप पिता की परिक्रमा - तद्दृष्ट्वा तस्य चातुर्यं हेरंबाय त्रियंबकः । फलं वितीर्णवानस्मै प्रणयाघ्रातमस्तकः ।।), ३.३.१२.१७(हेरम्ब - पिता शिव से नाभि की रक्षा की प्रार्थना - हेरंबतातो मम पातु नाभिं पायात्कटी धृर्जटिरीश्वरो मे ।।), ४.२.५७.८४(हेरम्ब विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य - हेरंबाख्यः सदाग्नेय्यां पूज्यो मुंडविनायकात्। अंबावत्पूरयेत्कामान्सर्वेषां काशिवासिनाम् ।।), ६.१४२.३८(हेरम्ब गणपति का माहात्म्य - स्वर्गं वाञ्छद्भिरेवान्यैः स्वर्गद्वारप्रदस्तथा ॥ हेरंबः स्थापितस्तत्र सत्यनामा यथोदितः ॥), ७.१.३८.६(कृतयुग में विघ्नेश का हेरम्ब रूप - कृते हेरंबनामा तु त्रेतायां विघ्नमर्द्दनः ॥ लंबोदरो द्वापरे तु कपर्द्दी तु कलौ स्मृतः ॥ ), कथासरित् ९.५.१५८ (हेरम्ब द्वारा कुमारधारा को विषाक्त करना, राजा कनकवर्ष द्वारा हेरम्ब की स्तुति), heramba
हेरुक अग्नि ९६
हेली भविष्य ३.४.९(हेली ब्राह्मण द्वारा सूर्य की आराधना का वृत्तान्त), स्कन्द २.४.७टीका (हेलिक द्विज के दुष्ट पुत्रों में से एक का पिशाच बनना ) helee/ heli
हैहय देवीभागवत ६.१७(हैहय वंशी क्षत्रियों द्वारा धन लोभ से भृगु वंशी ब्राह्मणों के नाश की कथा, और्व द्वारा हैहयों को अन्धा करना), ६.२०+ (हय रूपी विष्णु व वडवा रूपी लक्ष्मी का पुत्र, तुर्वसु/हरिवर्मा द्वारा पालन, एकवीर उपनाम, रैभ्य - कन्या एकावली की राक्षस से रक्षा व विवाह, कृतवीर्य - पिता), नारद १.१.७, १.७.३२(हैहय राजाओं द्वारा असूया वृत्ति वाले राजा बाहु को पराजित करना), पद्म १.११, ब्रह्म १.११, ब्रह्माण्ड २.३.२६, २.३.६९.४(शतजित - पुत्र, धर्मनेत्र - पिता), मत्स्य ४३, वायु ९३, विष्णु ४.११.७(शतजित - पुत्र, यदु वंश ), विष्णुधर्मोत्तर १.१७.९(हैहय आदियों द्वारा राजा बाहु के राज्य का हरण), स्कन्द २.१.३७.३(हैहयवंशी नृप शंख की कथा), ५.२.११.२२(हैहय कार्तवीर्य द्वारा सिद्धेश्वर के दर्शन से पादुकागमन सिद्धि की प्राप्ति का उल्लेख), हरिवंश १.२९.७०, महाभारत अनुशासन ३४.१७, वा.रामायण १.७०, लक्ष्मीनारायण ३.९२.२, haihaya
होता देवीभागवत ३.१०.२१(देवदत्त के पुत्रेष्टि यज्ञ में बृहस्पति के होता होने का उल्लेख), ११.२२.३१(प्राणाग्निहोत्र में वाक् होता, प्राण उद्गाता, चक्षु अध्वर्यु, मन ब्रह्मा आदि होने का उल्लेख), पद्म १.३४.१०(होता चतुष्टय में होता, मैत्रावरुण, अच्छावाक व ग्रावस्तुत का उल्लेख), १.३४.१५(स्वायम्भुव मनु/ब्रह्मा के यज्ञ में भृगु होता, वसिष्ठ मैत्रावरुण, क्रतु अच्छावाक तथा च्यवन के ग्रावस्तुत होने का उल्लेख), १.३४.२१(होता द्वारा दक्षिणा में प्राची दिशा प्राप्त करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.४७.४७(परशुराम के वाजिमेध में विश्वामित्र के होता होने का उल्लेख), मत्स्य ४५.३०(प्रतिहोतागण : अक्रूर व रत्न के पुत्र), १६७.७(यज्ञ पुरुष की बाहुओं से होता व अध्वर्यु की सृष्टि, अन्य अङ्गों से अन्य ऋत्विजों की सृष्टि), वराह २१.१६(दक्ष यज्ञ में पुलस्त्य के होता बनने का उल्लेख), ९९.८६(होता पुरोहित द्वारा स्वर्गवासी राजा विनीताश्व को क्षुधा मुक्ति का उपाय बताना), स्कन्द ३.१.२३.२९(देवों के यज्ञ में बृहस्पति के होता होने का उल्लेख), ५.१.२८.७७(चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में अत्रि के होता, भृगु के अध्वर्यु आदि होने का कथन), ५.१.६३.२४१(बलि के अश्वमेध में भृगु? के होता, ब्रह्मा के ब्रह्मा आदि होने का कथन), ५.३.१९४.५५(नारायण व श्री के विवाह में धर्म व वसिष्ठ द्वारा होत्र कर्म करने का उल्लेख), ६.५.५(त्रिशङ्कु के यज्ञ में शाण्डिल्य के होता होने का उल्लेख), ६.१८०.३२(ब्रह्मा के अग्निष्टोम याग में भृगु आदि का होतागण के रूप में उल्लेख), ६.१८०.३५(होता के रूप में भृगु / पाराशर का उल्लेख), ७.१.२३.९३(ब्रह्मा/चन्द्रमा? के यज्ञ में गुरु के होता होने का उल्लेख), ७.१.२३.९७(ब्रह्मा/चन्द्रमा के यज्ञ में शुक्र/ गुरु के होता होने का उल्लेख), हरिवंश ३.१०.६(श्री हरि की बाहुओं से होता व अध्वर्यु आदि की सृष्टि का कथन), महाभारत आश्वमेधिक २१.२(दश होताओं का कथन), २२(सप्त होताओं का वर्णन), २३(पञ्च होताओं का वर्णन), २५(चातुर्होत्र विधान का वर्णन), २५.१५(कर्ता के होता होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४०.९६(धर्म के यज्ञ में अत्रि व कश्यप के होता होने का उल्लेख), १.५०९.२६(ब्रह्मा के सोमयाग के ३ होताओं के नाम, भरद्वाज के होता होने का उल्लेख), २.१०६.४९(राजा दक्षजवंगर के वैष्णव याग में होमायन के होता होने का उल्लेख), २.१२४.१२(पत्नीव्रत द्विज के यज्ञ में होताओं व उपहोताओं के रूप में सनकादिकों, योगेश्वरों, सिद्धों, कपिलादि नारायणों का उल्लेख), ३.३५.११३(राजसूय में होता द्वारा वर्तुला दक्षिणा रूप में प्राप्त करने का उल्लेख), ३.१७४.१२(४ होताओं करण, कर्म, कर्ता व मुक्त का उल्लेख व इनकी व्याख्या), ४.८०.१५(राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ में धारायण के होता व अलवायन के प्रतिहोता होने का उल्लेख ) hotaa
Comments on Hotaa
होत्र द्र. आविर्होत्र, वीतिहोत्र, शालिहोत्र, सुहोत्र
होम अग्नि २१, २४(होम कार्य विधि), ३४, ६०, ७५(शिव पूजा के अङ्गभूत होम की विधि), ७९(शिवहोम, गुरु होम), ८१.४८(विभिन्न कामनाओं की पूर्ति हेतु होम द्रव्य), ८२(शिव होम), ९६(प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु याग विधि), १३४, १३८, १४९(होम प्रकार, भेद व फल, राज्य प्राप्ति हेतु लक्ष कोटि होम), १६४(नवग्रह होम विधि), १६६(अयुत लक्ष कोटि होम), १९६, २१५.२५(कामना अनुसार होम द्रव्य का होम), २६०.१(कामना अनुसार होम द्रव्य का कथन), २६२, २६४, २६५, २६६, २६७, ३०६.१९(होम द्रव्य अनुसार कामना सिद्धि), ३०७(विष्णु होम), ३०९.१५(कामना अनुसार होम द्रव्य), ३१८(गणपति होम), ३२१(उत्पात प्रकार अनुसार होम द्रव्य), ३४८, गरुड १.२०८(वैश्वदेव होम विधि), देवीभागवत ११.२२(प्राणाग्नि होत्र विधि), ११.२४(रोग शान्ति हेतु होम), नारद १.७१.८०(नृसिंह होम में विभिन्न समिधाओं के होम के फल), १.७४.५५(हनुमान मन्त्र अनुष्ठान में होम से कामना सिद्धि का वर्णन), १.७६.३१(कार्तवीर्य नृप हेतु होम में कामना अनुसार होम द्रव्य), १.८७, १.९०.१११(विभिन्न होम द्रव्यों से कामनाओं की सिद्धि), ब्रह्माण्ड २.३.११.९९(होम अग्नि का स्वरूप), भविष्य १.२१२(सूर्य होम), २.१.१४(अग्नि ज्वालाओं के अनुसार विभिन्न होम), २११६, २.१.१७.३(लक्ष होम व कोटि होम में अग्नि के नाम क्रमश: वह्नि व हुताशन), २.१.१८(होमार्थ अग्नि व विभिन्न द्रव्यों के नाम), २.१.१९(होम के पात्र), २१२०, ४.१४१(ग्रह शान्ति हेतु लक्ष होम विधि), ४.१४२(कोटि होम विधि, सनक - संवरण संवाद), ४.१४५(नक्षत्र होम विधि), मत्स्य ९३(नवग्रह शान्ति हेतु होम), लिङ्ग २.२५(शिव होम विधि), २.५०.३२(शत्रु नाशकर होम), वराह ५७, विष्णुधर्मोत्तर १.९२(होम की तन्त्र सम्मत विधि), १.१०१(ग्रह नक्षत्रों के लिए होम द्रव्य), २.१२७(होम से शान्ति, शत्रुनाश, लाभ आदि), ३.९८(प्रतिमा प्रतिष्ठा हेतु होम), ३.१०९(होम विधि), ३.२८७(होम विधि), शिव ६.३(विरजा होम), ६.१३(प्रणव जप अधिकारार्थ विरजा होम), ७.२.२७(होम में द्रव्य संख्या, कुण्ड), ७.२.३२.४२(कामना अनुसार होम), स्कन्द २.४.१२.१०१(रक्षा होम, धात्री होम), ५.३.१५७.१३(, ६.२५(सुरापान पाप से मुक्ति हेतु मौञ्जी होम), लक्ष्मीनारायण १.४१(पितरों से लिए होम विधि), १.२५३.१(वास्तुस्थ देवता इत्यादि होम विधि), २.१०६.४९होमायन, २.१५२.६८(नवग्रह, लोकपाल, दिक्पाल होम विधि), २.१५३, २.१५४, ३.१४८, द्र. स्तोकहोम homa
होरा लक्ष्मीनारायण २.१३.८ hora
होली नारद १.१२४.७६(होलिका पूजन पूर्णिमा व्रत विधि), भविष्य ४.१३२, लक्ष्मीनारायण १.२८१होलिका holi/holee
Comments on Holi / Holee
ह्रद गरुड १.८१.२३(ज्ञान ह्रद में ध्यान जल), नारद २.५५(मार्कण्डेय ह्रद), पद्म ३.२६, ब्रह्माण्ड २.३.११.५२(शिव ह्रद), २.३.१३.७३(ब्रह्मतुण्ड ह्रद), भविष्य २.३.५(ह्रद प्रतिष्ठा), वराह १४३(गुह्य ह्रद), १४५(देव ह्रद), १५७(भाण्ड ह्रद), वामन ३५(परशुराम द्वारा रक्त से पूरित राम ह्रद, पितर तर्पण), स्कन्द १.२.४२.१६२(सात आध्यात्मिक ह्रदों के नाम), २.३.१, ५.३.२१८.३८(, ७.३.३५(मामु ह्रद का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.२७२.४० (अश्वपाटल नृप के ब्रह्मह्रद का अवतार होने का उल्लेख), कथासरित् ९.६.१२१(अनन्त ह्रद में चन्द्रस्वामी ब्राह्मण द्वारा स्नान ) hrada
ह्रस्व लिङ्ग १.९०.५८(ओंकार की तीन मात्राओं के ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत होने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर २.८.२८(चतुर्ह्रस्व पुरुष के लक्षण )hrasva
ह्रांह्रींह्रूं अग्नि ८८.४७(शान्त्यतीत कला शोधन के अन्तर्गत हां आदि के साथ ६ गुणों का योग, हं आदि बीजों के गुण ), पद्म ५.७२.५६(मुनि-द्वय द्वारा ह्रींहंस इत्यादि के जप से व्रज में सुवीरगोप की कन्या-द्वय बनने का कथन), ६.७१.१२०(ह्रां ह्रीं आदि मन्त्र के पाठ के पश्चात् विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र का निर्देश), द्र. हां हीं हूं
References on Hraam, Hreem, Hruum
ह्राद ब्रह्माण्ड ३.५.३४, भागवत ६.१८(हिरण्यकशिपु व कयाधु - पुत्र, धमनि - पति, वातापि व इल्वल - पिता), वराह ८७(ह्रादिनी : द्रोण पर्वत की नदी ), वामन ६९, स्कन्द ७.१.२१, द्र. दुन्दुभिनिर्ह्राद, निर्ह्राद, संह्राद hraada
ह्री कूर्म १.२४.५५(ह्रीमती : आनकदुन्दुभि - कन्या, सुबाहु गन्धर्व से पुत्र प्राप्ति), नारद १.६६.१२४(विघ्नेश की शक्ति ह्री का उल्लेख), भागवत ४.१.४९(दक्ष - कन्या, धर्म - पत्नी, प्रश्रय - माता), महाभारत वन ३१३.८७ (ह्रीरकार्यनिवर्तनम्), लक्ष्मीनारायण १.३२३.५३(दक्ष व असिक्नी - कन्या, धर्म - पत्नी, नियम - माता ), २.२४५.४९(जीवरथ में ह्री के वरूथ होने का उल्लेख), hree
ह्रीं भविष्य ३.३.३०.१५(ह्रीं फट् घे घे मन्त्र जप से विघ्न नाश का कथन ) hreem
ह्लाद वामन ७४.१३(ह्लाद द्वारा अग्नि के कार्य का ग्रहण), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.२(ह्लाद शब्द की उपमा ), द्र. ह्राद hlaada
ह्लादिनी ब्रह्माण्ड १.२.१८.८०(प्राची गङ्गा का नाम, तटवर्ती जनपदों के नाम), मत्स्य १२२, विष्णुधर्मोत्तर १.२१५(ह्लादिनी नदी का सर/नर वाहन ) hlaadinee/ hladini