अरजा पद्म १.३७.३०( राजा दण्ड की अरजा पर आसक्ति, राजा को शुक्र का शाप ), वामन ६३( शुक्राचार्य - पुत्री अरजा का दण्डक से संवाद ), वा.रामायण ७.८०( राजा दण्ड द्वारा शुक्र - पुत्री अरजा से बलात्कार ), लक्ष्मीनारायण २.५०( अरजा - दण्डक की कथा ) Arajaa
अरणि गरुड १.१०७.३२( मृत पुरुष की देह में अरणि को वृषण में रखने का विधान ), देवीभागवत १.१०.२५ ( व्यास द्वारा मन्थारणि द्वारा पुत्र प्राप्ति का प्रयास, घृताची रूप में पुत्रारणि की प्राप्ति ), ६.१५.२४( राजा निमि की देह के अरणि मन्थन से मिथि पुत्र की उत्पत्ति ), ११.२२.२६( हृदय कमल अरणि, मन मथानी, वायु रज्जु ), पद्म १.४१.९६( ऊर्व ऋषि द्वारा दर्भ से पुत्र प्रसव अरणि का मन्थन, और्व नामक अग्नि की उत्पत्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२५( ब्रह्मा के नासिकारन्ध्र से अरणि की उत्पत्ति का उल्लेख), १.१२.४( ब्रह्मा के पुत्रों में से एक ), ब्रह्माण्ड १.१.२.४४( वाक् के अरणि होने तथा आकाश के योनि होने का कथन ), भागवत ९.१४.४४( शमीगर्भ अश्वत्थ अरणि : पुरूरवा, उर्वशी व पुत्र रूप ), ११.१०.१२( गुरु - शिष्य रूप ), वायु १.२.४४( वात रूपी अरणि का उल्लेख ), ७३.२९/२.११.७२( अणुह – पीवरी द्वारा सन्तान उत्पत्ति की तुलना व्यास – अरणी से उत्पन्न शुक से), विष्णु ४.६.८७( पुरूरवा द्वारा अग्निस्थाली रूप पिप्पल की अरणि बनाना ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३६.२८( वही), स्कन्द २.२.१९.४६(सुभद्रा का देवारणि के रूप में उल्लेख), २.२.२०.२३(तां भद्ररूपां जगदाश्रयां ते देवारणिं पादयुगे नतोऽस्मि ), २.२.३०.९९( अग्नि की स्तुति में अग्नि के अमृत की अरणि होने का उल्लेख --अमृतस्यारणिस्त्वं हि देवयोनिरपांपते), ५.२.७६.२०( माता के देहारणि होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.२०( आरणेय : शुचि अग्नि - पुत्र, आयु आदि ३ पुत्रों के नाम ), द्र. दण्डारणि Arani / aranee
अरण्य अग्नि २६३.२७( आरण्यक मृग व पक्षियों के ग्राम में प्रवेश करने अथवा ग्राम्य पशु - पक्षियों के अरण्य में प्रवेश करने पर राज भय का कथन - प्रविशन्ति यदा ग्राममारण्या मृगपक्षिणः ।। अरण्यं यान्ति वा ग्राम्याः जलं यान्ति स्थलोद्भवाः । ), नारद १.९०.३७(अरण्ये वटमूले वा कुंजे वा धरणीभृताम् ।। कदम्बगजातिपुष्पाभ्यां सिद्धद्रव्यैः शिवां यजेत् ।।), १.९०.१६५( अरण्य अथवा वटमूल आदि में यक्षिणी साधना करने का निर्देश - अरण्यवटमूले च पर्वताग्रगुहासु च ।। उद्यानमध्यकांतारे मातृपादपमूलतः ।। ), २.४५.४४( अरण्य में क्षुधा व तृषा से मरने वालों के लिए पिण्ड दान का निर्देश - अरण्ये वर्त्मनि वने क्षुधया तृषया हताः ॥ भूतप्रेतपिशाचैश्च तेभ्यः पिण्डं ददाम्यहम् ॥ ), २.५५.८९( पुरुषोत्तमक्षेत्र माहात्म्य - नृसिंह की उपासना अरण्य आदि में करने का निर्देश - अरण्ये विजने देशे नदीसंगमपर्वते ॥सिद्धक्षेत्रे चोषरे च नरसिंहाश्रमे तथा ॥ ), पद्म १.१५.१५३( ब्रह्मा द्वारा ज्येष्ठ, मध्यम व कनिष्ठ पुष्करों नामक अरण्य को यज्ञ की वेदी बनाना - अरण्यं पुष्कराख्यं तु ब्रह्मा सन्निहितः प्रभुः। ), १.१५.२२२( पुष्कर अरण्य में वास करने वालों की गति : ब्रह्मादि लोकों में वास - अरण्यौषधिभोक्ता च सर्वभूताभयप्रदः।), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०४( उदक/वरुण व वारुणी - पिता ), भविष्य ४.६६( अरण्य द्वादशी व्रत ), भागवत ९.७.१६( हरिश्चन्द्र - पुत्र रोहित का प्राणभय से अरण्य को पलायन, इन्द्र द्वारा ६ बार रोहित को अरण्य से ग्राम में लौटने से रोकना ), मत्स्य ४०.९( अरण्य में वास करते हुए ग्राम को पृष्ठ पर रखने वाले की मुनि संज्ञा : ययाति - अष्टक संवाद - अरण्ये वसतो यस्य ग्रामो भवति पृष्ठतः। ग्रामे वा वसतोऽरण्यं स मुनिः स्याज्जनाधिप।। ), विष्णुधर्मोत्तर १.१६८( अरण्य से लाए गए पुष्पों द्वारा केशव की अर्चना के महत्त्व का वर्णन - सन्ति पुष्पाण्यरण्येषु मूलानि च फलानि च ।। स्वयं ग्राह्याणि राजेन्द्र यैस्तुष्यति जनार्दनः ।। ), २.७४.१४, ३.१८.१( २० मध्यम ग्रामों में से एक ), ३.२३५.१२( अरण्य में तीन वर्षों(?) तक वास करके वेद अध्ययन करने पर पापों के नाश का उल्लेख - अरण्ये वा त्रिरभ्यस्य प्रयतो वेदसंहिताम् ।। मुच्यते पातकैः सर्वैः पराकैः शोधितस्त्रिभिः ।। ), स्कन्द ५.३.५६.१०३( आरण्य पुष्पों के सर्व उत्तम होने का कथन - आरामोपहृतं पुष्पमारण्यं पुष्पमेव च । क्रीतं प्रतिग्रहे लब्धं पुष्पमेवं चतुर्विधम् ॥ ), महाभारत आश्वमेधिक २७.२३( विद्या रूपी अरण्य का कथन - शममप्यत्र शंसन्ति विद्यारण्यविदो जनाः। तदरण्यमभिप्रेत्य यथातत्वमजायत।। ), लक्ष्मीनारायण १.५१४.४ (३ महत्त्वपूर्ण अरण्यों के नाम - प्रथमं पुष्करारण्यं नैमिषारण्यमित्यपि । धर्मारण्यं तृतीयं च सर्वेष्टफलदायकम् ।।), १.५४७.४७( मुक्तपटल राजा के नगर के पावन तथा अरण्य के अपावन होने का उल्लेख - अपावनान्यरण्यानि वर्तन्ते परितस्ततः । स चात्मपालको राजाऽऽरण्यं विहर्तुमाययौ ।। ), २.५.३४( अरण्यरोमा : एक राक्षस का नाम ), २.२२.२२( अरण्य में नरसिंह तीर्थ की श्रेष्ठता का उल्लेख - पर्वते बदरीतीर्थं चारण्ये नारसिंहकम् । ), द्र. अनरण्य, आरण्यक, दण्डकारण्य, धर्मारण्य Aranya
अरण्यानी
स्कन्द
२.४.११.६५(
यम
द्वितीया
को भगिनी
के अभाव
में अरण्यानी
को भी
भगिनी मान
लेने का
निर्देश
- तदभावेप्यरण्यानीं
कल्पयित्वा सहोदराम् ।।
अस्यां
निजगृहे देवि न भोक्तव्यं
कदाचन ।।
) Aranyaanee
अरन्तुक द्र. तरन्तुक - अरन्तुक
अररु ब्रह्माण्ड २.३.६.३१( अनायुषा - पुत्र, धुन्धु - पिता ), वायु ६८.३१(अरूरु – दनायुषा के ५ पुत्रों में से एक, धुन्धु - पिता )
Comments on Aruru
अरव लक्ष्मीनारायण २.५७.१०३( यम - दूत, बकदान ऋषि के आश्रम की रक्षा )
अरिघ्न ब्रह्माण्ड ३.४.२७.८२( विघ्न - नायक, हेरम्बों के अधीश्वर, महागणपति के अग्ररक्षक ),
अरिन्दम शिव २.१.१८.५२( कलिङ्ग - राजा, दम - पिता ), स्कन्द ४.१.१३.१२१( कलिङ्ग - राजा , दम - पिता ),
अरिमर्दन पद्म ६.१९०( उन्मत्त हस्ती अरिमर्दन का गीता के १६वें अध्याय के प्रभाव से वश में होना ), ब्रह्माण्ड २ .३.७१.१११( श्वफल्क व गान्दिनी - पुत्र, अक्रूर - भ्राता ), भागवत ९.२४.१६( श्वफल्क व गान्दिनी - पुत्र, अक्रूर - भ्राता ), मार्कण्डेय ६.६( शत्रुमर्दन : ऋतध्वज व मदालसा का तृतीय पुत्र, अलर्क - भ्राता ), वायु ६२.१२/२.१.१२( पारावत देव गण में से एक, स्वारोचिष मन्वन्तर में देवता ), ९९.२१८/२.३७.२१३( कुरु - पुत्र ), विष्णु ४.१४.९( श्वफल्क व गान्दिनी - पुत्र, अक्रूर - भ्राता ), Arimardana
अरिष्ट गर्ग १.६.४८( कंस द्वारा अरिष्ट दैत्य का पराभव ), ४.२४( कृष्ण द्वारा वृषभ रूप धारी अरिष्ट असुर का उद्धार, पूर्व जन्म में बृहस्पति - शिष्य वरतन्तु ), देवीभागवत ४.२२.४३( बलि - पुत्र अरिष्टासुर : ककुद्मी का अंश ), ४.२२.४६( दिति - पुत्र, कुवलयपीड हस्ती रूप में अवतरण ), नारद १.५६.२०७( अरिष्ट वृक्ष की हस्त नक्षत्र से उत्पत्ति ), पद्म ६.१६८( वृत्र को इन्द्र द्वारा वध के समय अरिष्ट ), ब्रह्म १.८१.४४( अरिष्ट असुर के स्वरूप का कथन, कृष्ण द्वारा वध ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३४.१०( कार्तवीर्य द्वारा दृष्ट अरिष्ट ), भागवत ६.१८.६( मित्र व रेवती - पुत्र ), १०.३६( कृष्ण द्वारा वृषभ रूप धारी अरिष्ट असुर का उद्धार ), मत्स्य ११.४१( मनु के १० पुत्रों में से एक, इक्ष्वाकु - भ्राता ), १७३.२०( बलि - पुत्र, तारक - सेनानी, शिला आयुध ), मार्कण्डेय ४२/३९( दत्तात्रेय - कथित मृत्यु ज्ञानकारी अरिष्ट ), लिङ्ग १.९१( मृत्युकालीन अरिष्ट ), वराह १६४.३२( गोवर्धन क्षेत्र में अरिष्ट असुर के वध स्थल पर अरिष्ट कुण्ड का माहात्म्य ), वायु १९( मृत्युकालीन अरिष्ट ), विष्णु ५.१४( अरिष्ट असुर द्वारा वृषभ रूप धारण, कृष्ण द्वारा वध ), विष्णुधर्मोत्तर १.४६( साल्व की सेना द्वारा दृष्ट अरिष्ट ), शिव २.३.१५( तारकासुर जन्म के समय अपशकुन ), ५.३३.१७( ७ मरुद्गणों में से एक? ), स्कन्द ४.१.४२.२( आसन्न मृत्यु काल में अरिष्टों का कथन ), ७.१.२३७( द्वारका में यादव नाश से पूर्व अरिष्ट ), ७.२.१७.२२३( बलि के राज्य में अरिष्ट ), हरिवंश १.४३.१९( बलि - पुत्र, तारक - सेनानी ), १.५४.७२( बलि - पुत्र अरिष्ट का वृषभ रूप में अवतार ), २.२१( अरिष्ट असुर के स्वरूप का कथन, कृष्ण द्वारा वध ), महाभारत शान्ति ३१७.८( मृत्यु सूचक लक्षणों का कथन ), वा.रामायाण ५.५६.२६( लङ्का से प्रत्यागमन के लिए हनुमान द्वारा पीडन पर अरिष्ट पर्वत का धंसना ), लक्ष्मीनारायण १.५१( मृत्युकालीन अरिष्ट ), ३.११६.४१( भण्डासुर की सेना के समक्ष अरिष्ट ), द्र. अपशकुन, उत्पात Arishta
अरिष्टनेमि ब्रह्माण्ड १.२.२३.१८( अरिष्टनेमि ग्रामणी की सूर्य रथ में स्थिति का कथन ), १.२.३७.४५( दक्ष की ४ कन्याओं के पति ), २.३.१.११७( मरीचि के तप से अरिष्टनेमि प्रजापति की उत्पत्ति का वर्णन ), भागवत ८.६.३१( अरिष्टनेमि असुर द्वारा बलि से समुद्र मन्थन के प्रस्ताव का अनुमोदन ), ८.१०.२२( समुद्र मन्थन के पश्चात् देवासुर सङ्ग्राम में बलि - सेनानी ), ९.१३.२३( पुरुजित् - पुत्र, श्रुतायु - पिता, जनक वंश ), मार्कण्डेय २.१( गरुड - पिता, वंश वर्णन ), वामन २.१३( अरिष्टनेमि द्वारा दक्ष यज्ञ में इध्म आहरण का कार्य करने का उल्लेख ), वायु ५२.१८( अरिष्टनेमि ग्रामणी की तार्क्ष्य सेनानी के साथ सूर्य रथ पर स्थिति ), ६५.११२/२.४.११२( मरीचि के तप से अरिष्टनेमि प्रजापति की उत्पत्ति का वर्णन ), ८८.१५६/२.२६.१५५( सगर - पत्नी सुमति के पिता ), विष्णु १.१५.१३४( १६ पुत्रों के पिता ), ४.५.३१( कुरुजित् - पुत्र, श्रुतायु - पिता, जनक वंश ), हरिवंश १.३.६४( विद्युत नाम वाली ४ कन्याओं के पति, १६ पुत्र ), योगवासिष्ठ १.१.२३( अरिष्टनेमि राजा द्वारा तप, देवदूत से स्वर्ग के गुण - अवगुण का श्रवण, वाल्मीकि से मोक्षोपाय रूप में वसिष्ठ - राम संवाद का श्रवण ), Arishtanemi
अरिष्टा ब्रह्माण्ड २.३.७.१२( रिष्टा के ९ गन्धर्व पुत्रों के नाम ), २.३.७.२१( रिष्टा से वेगवती अप्सरागण की उत्पत्ति ), २.३.७.४७६( अरिष्टा की गतिशीला प्रकृति का उल्लेख ), मत्स्य ६.४५( कश्यप - भार्या, किन्नर व गन्धर्व - माता ), वायु ६९.४८/२.८.४८( अनवद्या, अनवशा आदि ८ अप्सराओं की माता ), ६९.९३( कश्यप - भार्या, गतिशीला प्रकृति ), विष्णु १.२१.२५( महासत्त्वशील गन्धवों की माता ), शिव ५.३२.५१( अरिष्टा के सर्प पुत्रों का उल्लेख ) Arishtaa
अरुण
गर्ग ७.२०.३१(
प्रद्युम्न
- सेनानी,
धौम्य
से युद्ध
), देवीभागवत
५.८.६९(
अरुण
के तेज
से देवी
के अधरोष्ठ
की उत्पत्ति,
उत्तरोष्ठ
की
कार्तिकेय
के
तेज
से
), ७.१०.६+
( त्रिधन्वा
- पुत्र,
सत्यव्रत
- पिता,
मान्धाता
वंशज, पुत्र
की दुष्टता
पर राज्य
से निष्कासन,
त्रिशङ्कु
रूपी सत्यव्रत
पुत्र का
राज्याभिषेक, पुत्र
को उपदेश,
वन
गमन, स्वर्ग
प्राप्ति
), १०.१३.३७(
अरुण
दैत्य द्वारा
ब्रह्मा से
अवध्यता वर
की प्राप्ति,
गायत्री
जप से
विरत होने
पर भ्रामरी
देवी द्वारा
वध ),
११.२.५(
अरुणोदय
काल का
निर्धारण
- पञ्चपञ्च
उषःकालः सप्तपञ्चारुणोदयः
।
अष्टपञ्चभवेत्प्रातः
शेषः सूर्योदयः स्मृतः ॥
), पद्म
१.४०.८७(
साध्यदेव
गण में
से एक
का नाम
- भवं
च
प्रभवं
चैव
कृशाश्वं
सुवहं
तथा।
अरुणं
वरुणं
चैव
विश्वामित्र
चल
ध्रुवौ॥
), भविष्य
१.१७३+
( अरुण
द्वारा गरुड
को सौर
धर्म का
उपदेश ),
२.१.१७.४
( मारण
कर्म में
अग्नि का
अरुण नाम
-वरुणः
शांतिके
ज्ञेयो
मारणे
ह्यरुणः
स्मृतः
।।
), ३.४.७.७४(
जयन्ती
- पति,
सुदर्शन
चक्र के
अंश रूप
निम्बार्क
पुत्र की
प्राप्ति
), भागवत
९.७.४(
हर्यश्व
- पुत्र,
त्रिबन्धन
- पिता
), १०.५९.१२(
मुर
असुर -
पुत्र,
कृष्ण
से युद्ध
व मृत्यु
), १०.९०.३३(
कृष्ण
- पुत्र
), मत्स्य
६.३४(
विनता
- पुत्र,
गरुड
- भ्राता,
सम्पाती
- पिता,
वंश
वर्णन
- गरुडः
पततां नाथो अरुणश्च पतत्त्रिणाम्।
सौदामिनी
तथा कन्या येयं नभसि विश्रुता।।
), ९.२१(
पांचवें
मन्वन्तर
में रैवत
मनु -
पुत्र
), १७१.४३(
साध्या
व धर्म
के पुत्रों
में से
एक ),
वामन
५७.१०२(
कार्तिकेय
के अभिषेक
पर अरुण
द्वारा
स्वपुत्र
ताम्रचूड
को भेंट
करना
- ददौ
मयूरं स्वसुतं महाजवं
तथारुणस्ताम्रचूडं च पुत्रम्।
), वायु
४७.१७(
अरुण
पर्वत की
महिमा का
वर्णन
– धूम्रलोहित
शिव
का
स्थान
), ६९.३२६/२.८.३१७(
श्येनी
- पति,
सम्पाति
व जटायु
– पिता
- अरुणस्य
भार्या श्येनी तु वीर्यवन्तौ
महाबलौ।
सम्पातिञ्च
जटायुञ्च प्रसूता पक्षिसत्तमौ
॥ ),
स्कन्द
२.४.१+
( अरुण
का सूर्य
से संवाद,
कार्तिक
माहात्म्य
), ४.२.५१(
अरुण
की विनता
से उत्पत्ति,
माता
को शाप,
सूर्य
उपासना से
सूर्य के
सारथित्व
पद की
प्राप्ति
- अनूरुत्वादनूरुर्योरुणः
क्रोधारुणो यतः ।।
वाराणस्यां
तपस्तप्त्वा तेनाराधि दिवाकरः
।।
), ४.२.६५.१०(
अरुणेश्वर
लिङ्ग का
संक्षिप्त
माहात्म्य
: ऋद्धि
प्राप्ति
- अरुणि
स्थापितं
लिंगं
तत्रैव
कलशोद्भव
।।
तस्य
लिंगस्य
सेवातः
सर्वामृद्धिमवाप्नुयात्।।
), ५.१.७०.५१(
१२
आदित्यों
में से
एक ),
५.२.११.२३(
सिद्धेश्वर
लिङ्ग आराधना
से अनूरु
द्वारा
अदृश्यकरण
प्राप्ति
का उल्लेख
), ५.२.७६(
अरुणेश्वर
लिङ्ग का
माहात्म्य, विनता
- पुत्र
अरुण द्वारा
अरुणेश्वर
लिङ्ग पूजन
से सूर्य
सारथित्व
की प्राप्ति
), ७.१.१५(
अरुण
द्वारा पापनाशन
लिङ्ग की
स्थापना ),
लक्ष्मीनारायण
१.१५४.३६(
अरुणाद्रि
पर ब्रह्मा
व दत्तात्रेय
के निवास
का वृत्तान्त
), १.४६३.१२(
उलूक
- अनुज,
गरुड
- अग्रज,
माता
द्वारा अण्ड
प्रस्फोटन
से उत्पत्ति,
अनूरु
नाम, सूर्य
सारथित्व
की प्राप्ति
), २.१०७.४६(
अर्यमा
सूर्य पितर
के अरुण
नामक दूतों
द्वारा कन्याओं
की राक्षसों
से रक्षा
का उद्योग
), ३.३३.८८(
अरुण
पर्वत का
मेरु के
उत्तर में
स्थित होना
), द्र.
त्र्यरुण
Aruna
अरुण-(१) विनता के पुत्र, पिता का नाम कश्यप । सूर्य के सारथि । इनकी उत्पत्ति का प्रसंग, इनका अपनी माता को शाप देना और उस शाप से छूटने का उपाय भी बताना (आदि. १६ । १६-२३)। इनका सूर्य के क्रोधजनित तीव्र तेज की शान्ति के लिये उनके रथ पर स्थित होना ( आदि० २४ । १५-२० ) । इनके द्वारा कुपित हुए सूर्य का सारथ्य - स्वतेजसा प्रज्वलन्तमात्मनः समतेजसम्। सारथ्ये कल्पयामास प्रीयमाणस्तमोनुदः।। ( आदि० १६ । २२-२३)। इनका श्येनी के गर्भ से सम्पाती और जटायु को जन्म देना ( आदि० ६६ । ७० ) - अरुणस्य भार्या श्येनी तु वीर्यवन्तौ महाबलौ।। संपातिं जनयामास वीर्यवन्तं जटायुषम्। । इनके द्वारा स्कन्द को अपने पुत्र ताम्रचूड का दान (शल्य० ४६। ५१ - अरुणस्ताम्रचूडं च प्रददौ चरणायुधम्।। तथा अनु० ८६ । २२ - कुक्कुटं चाग्निसङ्काशं प्रददावरुणः स्वयम्।)। (२) प्राचीन ऋषियों का एक समुदाय, जिन्हें स्वाध्याय द्वारा स्वर्ग की प्राप्ति हुई - अजाश्च पृश्नयश्चैव सिकताश्चैव भारत। अरुणाः केतवश्चैव स्वाध्यायेन दिवं गताः।। (शान्ति० २६ । ७)। (३) अरुण नामक एक नाग, जो परमधाम पधारने के समय बलरामजी के स्वागत में आया था ( मौसल. ४ । १५)।
अरुणा पद्म ३.२७.४१( अरुणा - सरस्वती सङ्गम का माहात्म्य ), ६.१७९.७( पिङ्गल द्विज - भार्या, कुलटा, पति की हत्या पर जन्मान्तर में शुकी बनना, गीता के पञ्चम अध्याय के प्रभाव से नरक से मुक्ति ), ६.१८०.६१( गौतमालय में अरुणा व वरुणा के बीच गोदावरी नदी का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.५( २४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), ३.४.१९.४८( ललिता के रथेन्द्र चक्र पर स्थित एक देवी ), भागवत ५.२०.४( प्लक्ष द्वीप की एक नदी ), वामन ४०.३०( विश्वामित्र के शाप से ग्रस्त रक्त - तोया सरस्वती की शुद्धि के लिए ऋषियों द्वारा अरुणा नदी को लाना ), लक्ष्मीनारायण १.३१४.११४( सन्ध्या का शुद्ध होकर कृष्ण - दासी अरुणा बनना - एका मेधातिथेः पुत्री वशिष्ठस्य प्रिया भव । द्वितीया मम दासी च अरुणाख्या प्रिया भव ॥ ), १.३८५.५१(अरुणा का कार्य- सूर्यवर्णा शाटीप्रदान), Arunaa
अरुणाक्ष वामन ५६.७१( देवी के महालि/भ्रमर अवतार द्वारा अरुणाक्ष असुर का वध )
अरुणाचल स्कन्द १.३.१++ ( अरुणाचल का माहात्म्य ), १.३.१.६( अरुणाचल के अन्तर्गत तीर्थ, माहात्म्य ), १.३.२.४( अरुणाचल का वैभव, माहात्म्य ), १.३.२.७( वार, तिथि, नक्षत्र, राशि, मास आदि में अरुणाचल की पूजा ), १.३.४.३८( अरुणाचलेश्वर लिङ्ग की निरुक्ति, पार्वती के तप की कथा ), लक्ष्मीनारायण ३.२८.२( स्वामीनारायण अवतार द्वारा अरुणाचल की दाहकता को शान्त करना ), ३.३१४.११४( सन्ध्या/वसिष्ठ - भार्या के तप का स्थान ; मेधातिथि ऋषि के तप का स्थान ) Arunaachala/ arunachala
अरुणोद मत्स्य ११३.४६( मन्दराचल पर सरोवर ), वराह ७८.९( मन्दराचल पर सरोवर, अरुणोद के पूर्व में स्थित शैलों के नाम ), वायु ३६.१६( मेरु के पूर्व में स्थित अरुणोद सरोवर के पूर्व में स्थित पर्वतों के नाम )
अरुणोदा गर्ग ७.४३.४( इलावतृ वर्ष में जम्बू रस से उत्पन्न नदी ), भागवत ५.१६.१७( मन्दराचल पर स्थित आम्र वृक्ष के फलों के रस से उत्पन्न अरुणोदा नदी की महिमा )
अरुन्तुद ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.१२( चन्द्र - सूर्य ग्रहण में भोजन से अरुन्तुद नरक प्राप्ति का उल्लेख )
अरुन्धती पद्म १.१९.२६५( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर अरुन्धती द्वारा प्रतिक्रिया : तृष्णा त्याग ), ५.१०५.१६३( अरुन्धती द्वारा भस्म के प्रभाव से शुचिस्मिता - पति करुण को जीवित करना ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४५( शिव विवाह में अरुन्धती द्वारा हास्योक्ति ), भविष्य ४.९२.१२( अरुन्धती द्वारा दारु वन में रम्भा व्रत का चीर्णन/अनुष्ठान ), ४.९५_ ( अरुन्धती द्वारा नहुष - पत्नी जयश्री को श्रावणिका व्रत का उपदेश ), ४.१०८+ ( अरुन्धती द्वारा वसिष्ठ से रूप प्राप्ति के उपाय की पृच्छा, वसिष्ठ द्वारा नक्षत्र रूपी पुरुषोत्तम पूजा का कथन ), मत्स्य ५.१५( धर्म - भार्या, पृथ्वी तल सम्भूत प्राणियों की माता ), २०१.३०( नारद - भगिनी, वसिष्ठ - भार्या ), २०३.२( धर्म - पत्नी, पर्वतादि महादुर्ग शरीरों की माता ), वामन ६.६२( शिव के रूप से अरुन्धती की अप्रभाविता ), वायु १९.२( अरुन्धती तारे के दर्शन न होने पर जीव की एक वर्ष में मृत्यु ), ६९.६५( नारद पर्वत पर प्रजापति के स्सलित वीर्य से अरुन्धती की उत्पत्ति ), विष्णु १.१५.१०८( धर्म - भार्या, सर्व पृथिवी विषयों की माता ), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२२(विष्णु की चिबुक में अरुन्धती की स्थिति का उल्लेख ), १.११८.२९( नारद - भगिनी, वसिष्ठ - भार्या, शक्ति - माता ), १.११९.२( धर्म - भार्या, मही दुर्ग शरीरों की माता? ), शिव २.२.७( सन्ध्या का वसिष्ठ - भार्या अरुन्धती रूप में परिवर्तन ), स्कन्द ४.१.१८( अरुन्धती द्वारा पातिव्रत्य महिमा का कथन ), ४.१.४२.१४( अरुन्धती का जिह्वा में स्थान ), ४.२.६१.१६८( अरुन्धती तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : सौभाग्य वर्धन ), ५.३.१९८.९०( सतियों में उमा की अरुन्धती नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ), ६.३२.५७( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति पर अरुन्धती द्वारा प्रतिक्रिया ), ७.१.१२४( सौभाग्य प्राप्ति हेतु अरुन्धती द्वारा गौरी पूजा ), ७.१.१२९( वसिष्ठ द्वारा अन्त्यज कन्या अक्षमाला से विवाह करके अरुन्धती में रूपान्तरित करना ), ७.१.२५५( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर अरुन्धती की प्रतिक्रिया ), हरिवंश २.७८+ ( उमा द्वारा अरुन्धती को पुण्यक व्रत विधि व माहात्म्य का वर्णन ), योगवासिष्ठ ३.१९.४( वसिष्ठ नामक ब्राह्मण की पत्नी ), ३.२०.१( जन्मान्तर में राजा पद्म की पत्नी लीला बनना ), लक्ष्मीनारायण १.१९८.६२( ब्रह्मा - पुत्री सन्ध्या का तप से मेधातिथि - पुत्री होकर वसिष्ठ - पत्नी अरुन्धती बनना ), १.३१४.४१( सन्ध्या का चाण्डाली रूप में जन्म लेकर वसिष्ठ - पत्नी बनना, वसिष्ठ द्वारा अरुन्धती का शोधन, पुन: मेधातिथि की पुत्री बनकर वसिष्ठ - पत्नी बनना ), १.३८५.५१(अरुन्धती का कार्य), १.५३९.५( अन्त्यज - कन्या अक्षमाला का वसिष्ठ - पत्नी अरुन्धती बनना ), Arundhatee/ arundhati
अरूरु वायु ६८.३१( बलि के ५ पुत्रों में से एक, धुन्धु - पिता )
अर्क नारद १.५६.२०९( अर्क वृक्ष की श्रवण नक्षत्र से उत्पत्ति ), १.६७.६०( अर्क पुष्प को विष्णु व शक्ति को अर्पण का निषेध ), १.११६.६९( फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को अर्कपुट व्रत की विधि ), पद्म ६.१५२( बालार्क/बालाप तीर्थ का माहात्म्य, बाला द्वारा स्थापना, महिष का जन्मान्तर में राजा बनना ), ब्रह्म २.३३.५( प्रियव्रत के यज्ञ में दानव के आगमन पर सूर्य का शरण स्थल ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.४२( विविध नामक अग्नि - पुत्र, अनीकवान् आदि के पिता ), २.३.७.२( अर्कपर्ण : १६ मौनेय गन्धवों में से एक ), २.३.७.३८२( अर्कमर्क : पिशाचों के १६ गणों में से एक, प्रकृति व स्वरूप का वर्णन ), २.३.११.३८( अर्क वृक्ष : पराद्युति दायक ), भागवत ६.६.१३( धर्म व वसु - पुत्र, वासना - पति, तृष्णा आदि के पिता, ८ वसुओं में से एक ), ९.२१.३१( पुरुज - पुत्र, भर्म्याश्व - पिता, नीप वंश ), वामन ६९.९४( अन्धक के भय से पार्वती के श्वेतार्क में छिपने का उल्लेख ), वायु २९.४०( विविचि नामक अग्नि - पुत्र, अनीकवान् आदि अग्नियों के पिता ), स्कन्द ४.२.८३.९८( वृद्धार्क तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : रवि लोक की प्राप्ति ), ६.२५२.३५(सूर्य के अर्क में प्रवेश का उल्लेख), ७.१.१३( अर्क स्थल : कलियुग में सूर्य का नाम ), ७.१.१६.१३( अर्क स्थल, धूम्र राक्षस का पाताल में पतन ), ७.१.१७( अर्क स्थल पूजा की विधि ), ७.१.१७.११५( अर्क पुष्प की महिमा ), ७.१.२४.४४( अर्क पुष्प की आपेक्षिक महिमा ), ७.१.१७५( अर्क स्थल का माहात्म्य ), ७.१.३१३( उत्तरार्क का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८९( अर्क वृक्ष : सूर्य का रूप ), २.५७.४५( अर्कहनु नामक यमदूत द्वारा मर्क दैत्य का वध ), २.२६६.७( अर्कपुरी के राजा शार्दूलचन्द्र का धर्मसुमन्तु विप्र के शाप से मरण, मृत्यु - पश्चात् सर्प बनने व सर्प के उद्धार की कथा ), ३.३२.२२( विविधि अग्नि - पुत्र अर्क के पुत्रों के नाम ), द्र. दिनमानार्क, नवार्क, पिचुमन्दार्क, लोलार्क Arka
अर्गल शिव ५.२२.४१( गर्भस्थ जीव की जिह्वा की अर्गला से तुलना ), द्र. लोगर्गल
अर्घ अग्नि १२९( अर्घ काण्ड : वस्तुओं की मासानुसार महंगाई - सस्ती का विचार ), २५८.४०( अर्घ के ह्रास या वृद्धि पर देय दण्ड का कथन ), नारद १.६७.५( देव पूजा में अर्घ विधि का कथन ), पद्म २.९२.१२( अर्घ तीर्थ : पापों से कलुषित होकर अर्घ का कृष्ण हंस बनना, स्नान से शुक्लत्व प्राप्ति ), स्कन्द १.२.५८( ब्रह्मा द्वारा श्रेष्ठतम तीर्थ को अर्घ प्रदान करने का प्रश्न, महीसागर सङ्गम द्वारा सर्वश्रेष्ठता की घोषणा पर महीसागर के गर्व का स्तम्भन ), ५.३.२०९.१२९( शिव को मन्त्र सुवर्ण रूपी अर्घ प्रदान के मन्त्र का कथन ), ५.३.२१८.५०( समुद्र को अर्घ प्रदान करने के यन्त्र का कथन ), ५.३.२२०.३०( लवण सागर हेतु अर्घ मन्त्र का कथन ) Argha
अर्घ्य अग्नि ३४.२०( अर्घ्य के अङ्गभूत ८ द्रव्यों का कथन ), ७४.३४( अर्घ्य विधि ), ९२.१९( वास्तु प्रतिष्ठा के संदर्भ में अर्घ्य दान विधि का कथन ), १८३.१४( चन्द्रमा हेतु अर्घ्य मन्त्र ), २०६( अगस्त्य हेतु अर्घ्य ), गरुड १.११९( अगस्त्य अर्घ्य व्रत ), गरुड २.४०.२६(नारायण बलि में अर्घ्य हेतु मन्त्र), ३.११.२६(वृत्ति रूप परम ज्ञान के पाद्य-अर्घ्य होने का उल्लेख), देवीभागवत ११.१६.५३( उदक क्षेपण से मन्देहा राक्षसों का दहन ), नारद २.४१.२३( सूर्य हेतु देय अर्घ्य के ८ अङ्ग ), पद्म १.२२.४९( अगस्त्य को अर्घ्य प्रदान विधि ), ६.१२४.४५( भीष्म के लिए अर्घ्य मन्त्र ), ब्रह्म २.४.६३ ( विष्णु के चरण कमलों में अर्घ्यस्वरूप प्रदत्त जल का चार धाराओं में विभक्त होकर मेरु पर गिरना, दक्षिण धारा के महेश्वर की जटाओं में आगमन का निरूपण ), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.८०( महापद्माटवी कक्षा के पूर्व भाग में ललिता देवी हेतु अर्घ्यपात्र महाधार के स्वरूप का कथन ; सूर्य का रूप? ), ३.४.३५.१०१( अर्घ्य अमृत के संशोधनार्थ शक्तियों के नाम ), भविष्य ४.१३.७८( चन्द्रमा को अर्घ्य दान की विधि ), ४.११८( अगस्त्य हेतु अर्घ्य विधि ), ४.११९+ ( चन्द्र, गुरु, शुक्र हेतु अर्घ्य विधि ), मत्स्य ६१.५०( अगस्त्य को अर्घ्य दान विधि ), मार्कण्डेय xx/६६.५९( पत्नी त्याग के कारण राजा के अर्घ्य ग्रहण के अयोग्य होने का वर्णन ), वराह १४.१५ (देवों को अर्घ्य यवाम्बु द्वारा एवं पितरों को तिलाम्बु द्वारा देने का निर्देश), स्कन्द ३.१.५१.२२(अर्घ्य मन्त्र), ४.१.९( सूर्य हेतु अर्घ्य विधि ), ५.३.२६.१४०( शिव को अर्घ्य दान मन्त्र का कथन ), ७.१.६६( वडवानल द्वारा स्थापित अर्घ्य लिङ्ग का माहात्म्य ), ७.४.७.८( चक्र तीर्थ में अर्घ्य मन्त्र ), ७.४.१२.७५( मय तीर्थ में कृष्ण? हेतु अर्घ्य मन्त्र का कथन ), ७.४.१३.३२( कृष्ण के लिए अर्घ्य मन्त्र ), ७.४.१४.५१( पांच नदियों के लिए अर्घ्य मन्त्र ), महाभारत सभा ३६( अर्घाभिहरण पर्व ), ३६.२३( अर्घ्य अर्पण योग्य आचार्य, ऋत्विज आदि ६ अधिकारियों के नाम ), ३७.२१(राजसूय में कृष्ण को अर्घ्य अर्पित करने का विरोध), Arghya
अर्चना अग्नि २०१( नवव्यूह अर्चन विधि ), ३०१( सूर्य अर्चना विधान ), ३४८१५( नव दुर्गा अर्चना का कथन ), गरुड १.१६.९( सूर्य अर्चना मन्त्र ), १.२१+ ( शिव अर्चना की विधि ), भविष्य १.६६( सूर्य अर्चना का माहात्म्य ), १.६७.१( सूर्य अर्चना की विधि ), १.२००+ ( सूर्य अर्चना की विधि ), १.२१२+ ( सूर्य अर्चना की विधि ), भागवत ६.८.१७( नारद द्वारा अर्चना - अपराधों से रक्षा का उल्लेख ), वामन १६.३०( अष्टमी/नवमी को शिव पूजा विधान का कथन ), विष्णु ३.८( विष्णु अर्चना की विधि व फल ), विष्णुधर्मोत्तर १.६३( अर्चना विधि ), २.९०( देवकर्म में प्रयुक्त मन्त्रों का कथन ), २.९१( अर्चना में निषिद्ध द्रव्य ), ३.१( चित्रसूत्र अर्चन विधि ), ३.११२( विष्णु अर्चना हेतु मन्त्र ), ३.३१३( मधुपर्क द्वारा विष्णु की अर्चना ), ३.११४( विष्णु अर्चना, इज्या ), शिव २.१.११( शिव अर्चना का माहात्म्य ), स्कन्द ३.२.९.३५( अर्चनाना : आत्रेय गोत्र का एक प्रवर, ऋग्वेद में ऋषि ), योगवासिष्ठ ६.१.३९( स्व देह रूपी देह अर्चन का विधान ), द्र. आराधना, पूजा Archanaa
अर्चि भागवत ४.१५.५( वेन की बाहुओं के मन्थन से अर्चि की उत्पत्ति, लक्ष्मी का अंश, पृथु - भार्या ), ४.२२.५३( पृथु - भार्या, विजिताश्व आदि ५ पुत्रों की माता ), ४.२३.१९( पति की मृत्यु पर अर्चि के पति शरीर के साथ चिता में भस्म होने का वर्णन ), ६.६.२०( कृशाश्व - पत्नी, धूम्रकेश - माता ), स्कन्द १.२.५.१३५( अर्चि व धूम मार्ग का निरूपण - अर्चिर्धूमश्च मार्गौ द्वावाहुर्वेदांतवादिनः॥ अर्चिषा याति मोक्षं च धूमेनावर्तते पुनः॥ ), ७.१.१५०.५०( २३वें कल्प का नाम ), वा.रामायण ४.४२.४( अर्चिमाल्य : वानरगण का नाम, मरीचि - पुत्र, पश्चिम दिशा में सीता के अन्वेषण हेतु गमन ), लक्ष्मीनारायण ३.३६.१( अर्चिमार्ग वत्सर में विद्युन्नारायण अवतार द्वारा विद्युत्स्राव राक्षस का नाश ), द्र शतर्चि Archi
अर्चिष्मती ब्रह्माण्ड २.३.७१.१६८( सारण - पुत्री ), स्कन्द ४.१.१०.२८( अग्नि की अर्चिष्मती पुरी प्राप्ति के उपाय का वर्णन )
अर्चिष्मान् वायु १००.१५( वैवस्वत मन्वन्तर में सुतपा नामक देवगण में से एक ), वा.रामायण ४.४२.४( वानर, मरीचि - पुत्र, पश्चिम दिशा में सीता का अन्वेषण )
अजदन्त लक्ष्मीनारायण २.८.३३( राक्षस का नाम, कृष्ण को मारने की चेष्टा, पूर्व जन्म का वृत्तान्त )
अर्जुन कूर्म १.२९+ ( द्वैपायन व्यास द्वारा अर्जुन को चतुर्युगों में धर्म की स्थिति व शिव भक्ति का उपदेश ), गरुड ३.२८.१८(मन्त्रद्युम्न नामक षष्ठम इन्द्र का अवतार - मन्त्रद्युम्नावतारोभूत्कुन्तीपुत्रोर्जुनो भुवि ।), नारद १.५६.२०७( अर्जुन वृक्ष की स्वाती नक्षत्र से उत्पत्ति- स्वात्यृक्षजोऽजुनो वृक्षो द्विदैवत्याद्विकंकतः। ), पद्म १.१४( विष्णु के रक्त से अर्जुन की उत्पत्ति की कथा - मथ्यमाने ततो रक्ते कलिलं बुद्बुदं क्रमात्। बभूव च ततः पश्चात्किरीटी सशरासनः। ), ब्रह्म १.१०३( कृष्ण - पत्नियों की आभीरी से रक्षा में अर्जुन की असफलता ), भविष्य ३.३.१.२५( कलियुग में परिमल - पुत्र ब्रह्मानन्द के रूप में अवतरण ), ४.५८.४१( पर्जन्य वृष्टि से योगी कार्तवीर्य का अर्जुन बनना - स एव वृष्ट्यां पर्जन्यो योगित्वादर्जुनोऽभवत् ।। ), भागवत १.७( अश्वत्थामा द्वारा द्रौपदी - पुत्रों की हत्या के पश्चात् अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के निग्रह व मणि आहरण की कथा ), ८.५.२( पांचवें मन्वन्तर में रैवत मनु - पुत्र ), १०.९.१५+( यमलार्जुन : कृष्ण द्वारा उखल से उद्धार, पूर्व जन्म का चरित्र - तद्दाम बध्यमानस्य स्वार्भकस्य कृतागसः । द्व्यङ्गुलोनमभूत्तेन सन्दधेऽन्यच्च गोपिका ॥ ), १०.८६( अर्जुन द्वारा सुभद्रा हरण का प्रसंग ), १०.८९( अर्जुन का द्वारका में ब्राह्मण बालक की प्राण रक्षा का उद्योग, असफलता, कृष्ण द्वारा रक्षा ), ११.१६.३५( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के वीरों में अर्जुन होने का उल्लेख - ब्रह्मण्यानां बलिरहं वीराणामहमर्जुनः। ), मार्कण्डेय २.३७( अर्जुन व भगदत्त के युद्ध में अर्जुन के बाण से तार्क्षी की मृत्यु, तार्क्षी के चार पुत्रों की भगदत्त के घण्टे से रक्षा ), वराह ८(धर्मव्याध - पुत्री अर्जुनका के मतङ्ग - पुत्र से विवाह का वर्णन), विष्णु ५.३८( द्वारका वासियों की दस्युओं से रक्षा करने में अर्जुन की असफलता ), शिव ३.३७.५३+ ( व्यास द्वारा अर्जुन को शिव आराधना हेतु इन्द्रकील पर्वत पर जाने की प्रेरणा व शक्र विद्या का दान ), ३.३९( अर्जुन व शिव द्वारा शूकर रूपी मूक दैत्य को एक साथ बाण मारना ), ३.४०+ ( अर्जुन का किरात वेश धारी शिव से युद्ध, शिव का अभिज्ञान होने पर शिव - स्तुति, वर प्राप्ति, प्रत्यागमन ), ५.३४.३१( दया व तामस? के पुत्रों में से एक? ), स्कन्द १.२.१( ग्राह योनि से ग्रस्त पांच अप्सराओं का अर्जुन द्वारा उद्धार ), २.१.२९+ ( अर्जुन द्वारा प्रतिज्ञा भङ्ग के कारण तीर्थ यात्रा, सुवर्णमुखरी तट पर भरद्वाज से वार्तालाप ), ५.१.३.२५( नीललोहित रुद्र द्वारा विष्णु की भुजा से स्रवित रक्त से कपाल को भरना, कपाल से अर्जुन रूपी नर का प्राकट्य ), ५.१.३२( अर्जुन द्वारा उज्जयिनी में नरादित्य मूर्ति की स्थापना, इन्द्र से मूर्ति द्वय प्राप्ति की कथा, सूर्य का स्तवन ), ६.१५२( अर्जुन द्वारा ब्राह्मणों की गायों की रक्षा, चक्रपाणि प्रासाद की स्थापना ), हरिवंश २.७.१६( कृष्ण द्वारा अर्जुन वृक्ष के उद्धार का प्रसंग - यमलाभ्यां प्रवृद्धाभ्यामर्जुनाभ्यां चरन् वने । मध्यान्निश्चक्राम तयोः कर्षमाण उलूखलम् ।। ), २.१११( पाण्डव अर्जुन की ब्राह्मण बालक की काल से रक्षा में असफलता ), योगवासिष्ठ ६.१.५३+ ( कृष्ण द्वारा अर्जुन को वासना त्याग आदि के उपदेश का वर्णन ), द्र. मलयार्जुन, मल्लिकार्जुन, यमलार्जुन, सहस्रार्जुन, हैहयराज अर्जुन Arjuna
अर्णव वायु १०१.१३/२.३९.१३( पृथिवी, अन्तरिक्ष, दिव व मह की ४ अर्णव संज्ञा का उल्लेख )
अर्थ अग्नि ३४४( अर्थालङ्कार का निरूपण ), गरुड १.२०५.८३/१.२१३.८३( अर्थ का महत्त्व व अर्थ योग्य द्रव्य ), ३.२२.२५(अर्थ के २४ लक्षणों से युक्त होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.७१( चन्द्रमा की १६ कलाओं के अन्तर्गत अर्थ आकर्षणिका कला ), भविष्य ३.४.१५.५४( शब्दमात्र समूहों के स्वामी राम, अर्थ मात्र समूहों के स्वामी क्लीब लक्ष्मण ), भागवत ४.१.५१( धर्म व बुद्धि - पुत्र ), ६.६.७( अर्थसिद्धि : साध्यगण - पुत्र ), ११.२२.१६( अर्थ की जातियां : शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध ), ११.२३.१९( स्तेय, हिंसा आदि १५ अनर्थों के अर्थमूल होने का उल्लेख ), मत्स्य ७.६३( इन्द्र द्वारा अर्थशास्त्र का आश्रय लेकर दिति के गर्भ का छेदन ), २४.२( बुध : सर्व अर्थशास्त्र के ज्ञाता ), २२०.११( अर्थ सम्बन्धी दोषों का वर्णन ), वराह १७.७३( इन्द्रिय - अर्थों का पितरगण बनना ), वायु ६१.७८( अर्थशास्त्र : १८ विद्याओं में से एक ), विष्णु १.८.१८( वाणी - पति ), विष्णुधर्मोत्तर ३.५०.१२( इन्द्र के ऐरावण/ऐरावत का अर्थ रूप में निरूपण ), ३.५२.१५( रति के हाथ में शंख के अर्थ का प्रतीक होने का उल्लेख ), शिव ७.२.११.४६( ज्ञान, ज्ञेय, अनुष्ठेय आदि ६ अर्थों के संग्रह का संग्रह नाम ), स्कन्द १.२.४.५७( अर्थ दान का निरूपण ), ६.३२.४०( हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति के प्रसंग में कश्यप ऋषि द्वारा अर्थ परिग्रह की निन्दा ), महाभारत वन ३१३.७७( काम के त्याग से अर्थवान् होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), ३१३.१०१( धर्म, अर्थ, काम का परस्पर विरोध होते हुए भी सङ्गम का कथन ), शान्ति १७०.१२( चार प्रकार की अर्थगतियों के नाम – मित्र, विद्या, हिरण्य, बुद्धि ), योगवासिष्ठ ६.२.४३.३७( मन की अर्थ से एकरूपता का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५३३.७१( शब्दादि इन्द्रियार्थों के पितर रूप होने का उल्लेख ), १.५३३.१२४( इन्द्रियार्थों के दिव्य रूप में पितर बनने का उल्लेख ), २.१८१.१९( अर्थ की नगरी में अर्थेष्ट राक्षस द्वारा श्रीहरि की परीक्षा, हरि द्वारा उद्धार पर राक्षस का तुषित देव बनना ), ४.१०१.१०४( अर्थवेदन : कृष्ण व हरिणी - पुत्र ), कथासरित् ७.९.६८( अर्थलोभ : वैश्य, मानपारा - पति, अर्थ के लोभ में पत्नी का रात्रि में विक्रय करने के कारण पत्नी द्वारा त्याग की कथा ), ९.४.१६३( अर्थश्री व भोगश्री में चुनाव का प्रश्न : यशोवर्मा द्वारा परीक्षा - उपरान्त भोगश्री का वरण ), १०.१.८९( अर्थदत्त : ईश्वरदत्त का मित्र, ईश्वरदत्त की वेश्या के मिथ्या प्रेम जाल से रक्षा करने की कथा ), १२.२८.५( अर्थदत्त : वैश्य, अनङ्गमञ्जरी कन्या का पिता ), द्र. धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष, परमार्थ, श्रुतार्थ Artha
अर्धनारीश्वर नारद १.६६.११४( अर्धनारीश की शक्ति वारुणी का उल्लेख ), १.९१.१६०( अर्धनारीश्वर शिव मन्त्र विधान ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५२( लिपि न्यास प्रसंग में एक वर्ण के देवता ), मत्स्य ६०.२५( अर्धनारीश्वर शिव की शक्ति असिताङ्गी ), १९२.२८( शुक्ल तीर्थ में अर्धनारीश्वर शिव की आराधना ), २६०.१( अर्धनारीश्वर शिव के स्वरूप का वर्णन ), वामन ९०.१०( चक्र तीर्थ में विष्णु का अर्धनारीश्वर नाम से वास ), शिव ३.३( अर्धनारीश्वर की शिव से उत्पत्ति ), ७.१.१५( अर्धनारीश्वर का प्रादुर्भाव, मैथुनी सृष्टि ), लक्ष्मीनारायण २.३५.७(, २.३५.९९( कृष्ण द्वारा अर्धनारीश्वर नट के गर्व का खण्डन, केसरी द्वारा अर्धनारीश्वर के शिर का भक्षण, पुन: सञ्जीवन ), ३.२१.१४( आर्ष वत्सर में श्रीहरि के अर्धनारी तनु रूप में प्राकट्य का वर्णन ) Ardhanaareeshwara/ ardhanarishwara
अर्बुद पद्म ३.२४.४( अर्बुद का संक्षिप्त माहात्म्य - ततो गच्छेत धर्मज्ञ हिमवत्सुतमर्बुदम् ॥ पृथिव्या यत्र वै छिद्रं पूर्वमासीद्युधिष्ठिर। ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.६२( अपरान्त का एक देश ), वामन ९०.१९( अर्बुद में विष्णु का त्रिसौपर्ण नाम से वास - अर्बुदे च त्रिसौपर्णं क्ष्माधरं सूकराचले।। ), स्कन्द ७.३.१+ ( अर्बुद पर्वत का माहात्म्य ), ७.३.३( हिमवान् - पुत्र, नन्दिवर्धन का मित्र, नन्दिवर्धन सहित उत्तङ्क निर्मित गर्त का पूरण ), ७.३.३६.५१( अर्बुद की शोभा का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.५५१+ ( अर्बुदाचल व अन्तर्वर्ती तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन ), ४.८०.१६( नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ में अर्बुदी विप्रों के जापक होने का उल्लेख - जापकाश्चार्बुदा विप्राः पौष्करा हवनार्थिनः । ) Arbuda
अर्यमा अग्नि ९३.२९( वास्तुमण्डल में देवता, बलि का स्वरूप कथन - अर्य्यम्णे दक्षिणाशायां पूपान् कृसरया युतान्। ), गरुड ३.२४.८६(अर्यमाओं के अधिपति नैर्ऋत का उल्लेख - पीठस्य पूर्वे प्रणमेन्नैरृतिं च अर्याम्णानामधिपं चात्र देवि ॥), देवीभागवत ८.१०( हिरण्मय वर्ष में अर्यमा द्वारा विष्णु के कच्छप रूप की आराधना - ॐ नमो भगवते अकूपाराय सर्वसत्त्वगुणविशेषणाय नोपलक्षितस्थानाय …. ), ब्रह्माण्ड १.२.२४.४०( अर्यमा सूर्य का दश सहस्र रश्मियों द्वारा तापन - अर्यमा दशभिर्याति पर्जन्यो नवभिस्तपेत् ।। ), भविष्य ३.४.७.५७( विप्र, पितृमती - पति, धन प्राप्ति हेतु सूर्य की उपासना, सूर्य लोक प्राप्ति ), ३.४.१४.३१( अर्यमा पितर द्वारा स्वकन्या मेना को हिमवान् को प्रदान करना - अर्यमा तु तदा तुष्टो ददौ तस्मै सुता निजाम् । मेनां मनोहरां शुद्धां स दृष्ट्वा हर्षितोऽभवत् । । ), ३.४.१८.१७( संज्ञा के स्वयंवर में अर्यमा आदित्य का अघासुर से युद्ध - अघासुरोऽर्यमा चैव बलः शक्रस्तथैव च । ), भागवत १.१३.१५( शाप वश यमराज के विदुर शूद्र बनने पर अर्यमा द्वारा यमलोक का संचालन ), ४.१८.१८( पितरों द्वारा धेनु रूपी पृथ्वीदोहन में अर्यमा का वत्स बनना - वत्सेन पितरोऽर्यम्णा कव्यं क्षीरमधुक्षत । ), ५.१८.२९( अर्यमा द्वारा हिरण्मय वर्ष में कूर्म रूप की आराधना, आराधना - मन्त्र का कथन - यद्रूपमेतन्निजमाययार्पितमर्थस्वरूपं बहुरूपरूपितम्। सङ्ख्या न यस्यास्त्ययथोपलम्भनात्तस्मै नमस्तेऽव्यपदेशरूपिणे॥), ६.६.३९( अदिति - पुत्र, द्वादश आदित्यों में से एक, मातृका - पति, चर्षणी - पिता - अर्यम्णो मातृका पत्नी तयोश्चर्षणयः सुताः।।), १२.११.३४( माधव/वैशाख मास के सूर्य का नाम - अर्यमा पुलहोऽथौजाः प्रहेतिः पुञ्जिकस्थली। नारदः कच्छनीरश्च नयन्त्येते स्म माधवम्॥ ), मत्स्य १२७.२५( अर्यमा की शिशुमार चक्र की पश्चिम सक्थि में स्थिति ), २२५.१२( अदण्डी देव होने के कारण मनुष्यों द्वारा अर्यमा की अपूज्यता - पूज्यन्ते दण्डिनो देवैर्न पूज्यन्ते त्वदण्डिनः। न ब्रह्माणं विधातारं न पूषार्यमणावपि ।। ), शिव ५.१०.३९( अर्यमा के लिए प्राची दिशा में बलि का विधान - पितृभ्यस्तु विनिक्षिप्य प्राच्यामर्यमणे ततः ।। धातुश्चैव विधातुश्च द्वारदेशे विनिःक्षिपेत् ।। ), स्कन्द ३.२.५.१०१(अर्यमा के त्रयी रूप होने का उल्लेख - रविर्हिरण्यरूपोऽसौ त्रयीरूपोऽयमर्यमा ।। ), ४.२.८९.४६( दक्ष यज्ञ में अर्यमा की बाहुओं का छेदन - अर्यम्णो बाहुयुगलं तथोत्पाटितवान्परः। ), लक्ष्मीनारायण १.४०.११(पितरों के राजा - द्वय सोम व अर्यमा का कथन - पितॄणां तु भवेद्राजा सोमश्चाऽप्यर्यमा तथा । अर्यमा किरणैः सोममुत्तेजयति चाऽन्वहम् ।।), २.१०७.३९( अर्यमा पितर व अर्यमा के अरुण नामक दूतों द्वारा कन्याओं की राक्षसों से रक्षा का उद्योग - अर्यम्णा सूर्यमन्त्रैश्चोत्पाद्यन्तेऽरुणकोटयः ।।), २.१०९.१८( अर्यमा द्वारा मकरकेतु राजा का वध ), २.१११.१६( अर्यमा पितर द्वारा बालकृष्ण को कन्याएं अर्पित करना, कृष्ण द्वारा अर्यमा के वास हेतु कारुकराद्रि/कश्मेरा पर्वत की भूमि देना - कश्मेरा पर्वतभूमिः कारुपर्वतशोभना ।। ), ४.२.९( राजा बदर के अर्यमा नामक विमान का कथन - द्वितीयं चार्यमसंज्ञं पितृलोकादिसञ्चरम् । ), ४.९४.१७( पितृ लोक के स्वामी, आर्या - पति, अर्यमा द्वारा कृष्ण का स्वागत - आरार्त्रिकं चकारापि पपौ पादजलामृतम् । ), कथासरित् ८.५.९६( अर्यमा का श्रुतशर्मा विद्याधर के सहयोगी उत्पात के रूप में अवतार -महौघारोहणोत्पातवेत्रवत्संज्ञकैः क्रमात् । त्वष्टुर्भगस्य चार्यम्णः पूष्णश्चाप्यात्मसंभवैः ।। ), Aryamaa
अर्वाचीन - पराचीन पद्म २.६२.४५( पिप्पल - सुकर्मा संवाद में अर्वाचीन - पराचीन का दर्शन )
अर्वावसु कूर्म १.४.३.७( सूर्य रश्मि, बृहस्पति ग्रह पोषक ), भविष्य १.८०.२९( अर्वावसु द्विज द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए सूर्य अर्चना, अरुण द्वारा सम्यक् फल प्राप्ति के लिए अर्वावसु को सप्तमी कल्प के विधान का कथन ), स्कन्द ३.१.३३( रैभ्य - पुत्र व परावसु - अनुज , परावसु के ब्रह्महत्या दोष की निवृत्ति के लिए तप ), Arvaavasu
अर्हत् भागवत ५.६.९( कर्णाटक देश में राजा, ऋषभ मुनि के परमहंस आचरण का अनुसरण करके पथभ्रष्ट होना )
अलकनन्दा गर्ग ७.२३.१२( अलकनन्दा की अलकापुरी के परित: स्थिति का उल्लेख ), वायु ४२.२७( अलकनन्दा गङ्गा का विभिन्न पर्वतों पर अवतरण ), स्कन्द ४.२.८८.६०( सती के रथ में ईषादण्ड का रूप ) Alakanandaa
अलका गर्ग ७.२३.१२( दिग्विजय के संदर्भ में प्रद्युम्न का अलकापुरी आगमन और यक्षों से युद्ध ), भविष्य ३.४.१५.२४( शिव द्वारा विश्वकर्मा - निर्मित अलकापुरी कुबेर को प्रदान करने का उल्लेख ), भागवत ४.६.२३( कुबेर की पुरी, शोभा वर्णन ), वराह ८१.११( विशोक द्वादशी व्रत के संदर्भ में अलकों में माधव का न्यास ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३१२.५( उष्ट्र या गर्दभ दान से अलका पुरी की प्राप्ति ), ३.३४१.८४( रक्त पताका युक्त ऋष्य दान से अलका पुरी की प्राप्ति ), स्कन्द ४.१.१३( द्यूतकर्म रत गुणनिधि विप्र का राजा दम व अगले जन्म में अलकाधिपति बनने की कथा ), ७.१.५६( धनदेश्वर लिङ्ग की पूजा से अलका अधिपतित्व की प्राप्ति ), हरिवंश २.६३( नरकासुर द्वारा सोलह हजार अप्सराओं को कैद करने का स्थान, अलकापुरी पर मुर का आधिपत्य ), कथासरित् ८.६.१८५( यक्षिणी द्वारा आदित्यशर्मा को अलकापुरी में लाना ), Alakaa
अलक्तक लक्ष्मीनारायण २.२८३.५६( रमा व माणिकी द्वारा बालकृष्ण के करों व पदों में अलक्तक देने का उल्लेख )
अलक्ष्मी गरुड ३.१२.८४(कलि-भार्या अलक्ष्मी का मन्थरा से तादात्म्य), पद्म ४.९.९( समुद्र मन्थन पर कालकूट विष के पश्चात् और लक्ष्मी से पूर्व अलक्ष्मी का प्राकट्य, स्वरूप, देवों द्वारा अलक्ष्मी के वास स्थान का निर्धारण ), ६.११६( अलक्ष्मी का उद्दालक - पत्नी बनना, स्वरूप, अलक्ष्मी के वास योग्य स्थान का कथन, अलक्ष्मी का अश्वत्थ मूल में स्थित होना ), मार्कण्डेय ५०.३२/४७.३२( मृत्यु - भार्या, १४ पुत्रों की माता, निर्ऋति उपनाम ), लक्ष्मीनारायण १.१५५.४२( अलक्ष्मी की समुद्र मन्थन से उत्पत्ति, स्वरूप, योग्य वास स्थान ), द्र. निर्ऋति Alakshmee/ alakshmi
अलङ्कार अग्नि ३४२( अलङ्कार भेद निरूपण ), ३४३+ ( शब्द अलङ्कार, अर्थ अलङ्कार का विवरण ), नारद १.५०.४४( गान विद्या में अलंकृत की परिभाषा का कथन ), ब्रह्म २.४१.४३( क्षत्रियों में अलङ्कारों से विवाह प्रथा के प्रचलन का कथन ), वायु ८७/२.२५( गीत अलङ्कार का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१४( काव्य अलङ्कार का वर्णन ), कथासरित् १०.५.२४( मूर्ख द्वारा स्वर्ण अलङ्कारों की अकस्मात् प्राप्ति पर उनके सम्यक् उपयोग न करने का द्रष्टान्त ), ७.१.२३( अलङ्कार प्रभा : विद्याधर हेमप्रभ की भार्या, तप से वज्रप्रभ व रत्नप्रभा कन्या की प्राप्ति ), ९.१.१५( अलङ्कारवती : विद्याधरराज अलङ्कारशील व काञ्चनप्रभा की पुत्री, नरवाहनदत्त से विवाह ) Alankaara/ alankara
अलम्बुषा अग्नि ८७.६( शान्ति कला/तुर्यावस्था के अन्तर्गत अलम्बुषा नाडी में कृकर वायु की स्थिति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.७.६( २४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), २.३.८.३७( अलम्बुषा व तृणबिन्दु से इलविला कन्या का जन्म ), २.३.६१.३९, २.३.६१.४१( गान्धार ग्राम में अलम्बुस प्रिय तान का उल्लेख ), भागवत ९.२.३१( तृणबिन्दु व अलम्बुषा से इडविडा कन्या की उत्पत्ति ), वायु ६९.५( ३४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), विष्णु ४.१.४८( अलम्बुषा अप्सरा व राजा तृणबिन्दु से विशाल नामक पुत्र का जन्म ), स्कन्द ३.१.५( विधूम वसु पर आसक्ति के कारण अलम्बुषा अप्सरा द्वारा मनुष्य योनि में जन्म लेकर कृतवर्मा - पुत्री बनना ), योगवासिष्ठ ६.१.१८( अलम्बुषा देवी के वाहन चण्ड नामक काक से काकभुशुण्डि के जन्म का वृत्तान्त ), वा.रामायण १.४७.१२( राजा विशाल की माता ), लक्ष्मीनारायण १.४.३४( ब्रह्मा की सभा में नृत्य में त्रुटि पर अलम्बुषा का पृथ्वी पर मृगावती रूप में जन्म लेकर सहस्रानीक की पत्नी बनना आदि ), १.४३४.३०( अलम्बुषा अप्सरा की विधूम वसु पर आसक्ति, शापवश सहस्रानीक - भार्या मृगावती बनना ), ३.८५.११७( वृषायन ऋषि द्वारा मादा चटक पक्षी की श्येन से रक्षा, कालान्तर में चटका का अलम्बुषा अप्सरा बनना ), कथासरित् २.१.२५( ब्रह्मा की सभा में नृत्य में त्रुटि पर अलम्बुषा का पृथ्वी पर मृगावती रूप में जन्म लेकर राजा सहस्रानीक की पत्नी बनना आदि ), १८.२.१४६( अलम्बुषा द्वारा स्वपुत्री कलावती को प्राप्त हुए शाप का अन्त करने के लिए इन्द्र से प्रार्थना ) Alambushaa
अलर्क गरुड १.१४७.३( कुक्कुरों में ज्वर का अलर्क नाम ), ३.१५.१३(अलर्क द्वारा कपिल से आन्वीक्षिकी विद्या का ग्रहण), ब्रह्म १.९.५१( काशीराज ऋतध्वज का पुत्र, सन्नति - पिता, काशी को नष्ट करने वाले क्षेमक राक्षस का वध, दीर्घ काल तक राज्य ), ब्रह्माण्ड २.३.६७.६९( वही), भागवत १.३.११( दत्तात्रेय अवतार द्वारा अलर्क को आन्वीक्षिकी/ब्रह्मज्ञान का उपदेश मात्र), मार्कण्डेय २६.५४/२३.५४( ऋतध्वज व मदालसा - पुत्र, माता द्वारा प्रवृत्ति मार्ग का अनुशासन ), २७( माता द्वारा अलर्क को नृप नीति का उपदेश ), २८( माता द्वारा वर्णाश्रम धर्म का अनुशासन ), २९( माता द्वारा गृहस्थ धर्म का उपदेश ), ३०( माता द्वारा नैमित्तिकादि श्राद्ध का उपदेश ), ३१+ ( माता द्वारा पार्वण श्राद्ध का उपदेश ), ३३( काम्य श्राद्ध फल का कथन ), ३४( सदाचार का वर्णन ), ३५( वर्ज्य - अवर्ज्य का वर्णन ), ३७( अलर्क का शत्रुभय से पीडित होकर दत्तात्रेय से शिक्षा प्राप्ति हेतु गमन, दत्तात्रेय द्वारा आत्मविवेक का वर्णन ), ३८( अलर्क द्वारा परमार्थ चिन्तना विषयक प्रश्न ), ३९+ ( दत्तात्रेय द्वारा अष्टाङ्ग योग की शिक्षा ), वायु ९२.६६/२.३०.६६( वत्स - पुत्र, सन्नति - पिता, काशी को नष्ट करने वाले क्षेमक राक्षस का वध, दीर्घ काल तक राज्य ), विष्णु ४.८.१६( वही), हरिवंश १.२९.७७( वही), लक्ष्मीनारायण १.३९४.१०३+ ( अलर्क की निरुक्ति, शेष मार्कण्डेय पुराण की भांति ), ३.१७५.४२( अलर्क द्वारा स्व इन्द्रियों को नियन्त्रित करने के लिए बाणों का प्रयोग करने पर इन्द्रियों का अप्रभावित रहना, श्रीहरि द्वारा प्रदत्त बाणों से इन्द्रियों का निग्रह ), महाभारत सभा ८.१८( अलर्क राजर्षि द्वारा यम की सभा को सुशोभित करने का उल्लेख ), वन ३.२५.१३( काशी व करूष देश के राजा अलर्क का उल्लेख ), शान्ति ३.१३( ८ पाद वाले अलर्क नामक कृमि द्वारा कर्ण की ऊरु का छेदन, परशुराम के दृष्टिपात से अलर्क कृमि का उद्धार, अलर्क के पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), आश्वमेधिक ३०.७( अलर्क द्वारा इन्द्रिय रूपी शत्रुओं पर बाण चलाना, इन्द्रियों का अप्रभावित रहना, ध्यान योग रूपी बाण से इन्द्रियों का विद्ध होना ) Alarka
अलाबु
ब्रह्माण्ड
१.२.३६.२१३(
नागों
द्वारा पृथ्वी
से दुग्ध
दोहन हेतु
अलाबु
पात्र का
उल्लेख
- नागैस्तु
श्रूयते
दुग्धा
वत्सं
कृत्वा
तु
तक्षकम्
।।
अलाबुपात्रमादाय
विषं
क्षीरं
तदा
मही
।।
), विष्णु
३.१६.८(
अलाबु
का श्राद्ध
कर्म में
निषेध
- अलाबुं
गृञ्जनं चैव पलाण्डुं पिण्डमूलकम्
।
गान्धारककरंवादिलवणान्यौषराणि
च ॥
), हरिवंश
२.७९.५९(
स्त्री
के लिए
अलाबु आदि
भक्षण का
निषेध
- अलाबुं
वर्जयेन्नारी तथैवोत्पादिकामपि
।
कलम्बीं
काञ्चनं नाद्याद्या भर्तुः
सुखमिच्छति।।
) Alaaboo/ alabu/alaabuu
अलिका स्कन्द ५.३.२२५( अलिकेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, कुशला गान्धर्वी - कन्या अलिका द्वारा पति विद्यानन्द ऋषि की हत्या, पाप से मुक्ति हेतु अलिकेश्वर की स्थापना )
अल्पकेतु लक्ष्मीनारायण २.१६७.२७( अल्पकेतु राजा का आप्यायन ऋषि के साथ यज्ञ में आने का उल्लेख ), २.१८२.७७( आल्प पर्वत का राजा ), २.१८३.१३( अल्पकेतु राजा द्वारा अन्य राजा के साथ राक्षसों से युद्ध ), २.१८४( जीवनी नगरी/केतुमाल देश का राजा, नगरी में श्रीहरि का भ्रमण, शंख - लिखित दृष्टान्त द्वारा उपदेश ) Alpaketu
अल्वीनर लक्ष्मीनारायण २.१८१( अर्थश्री नगरी के राजा अल्वीनर द्वारा श्रीहरि का स्वागत , श्रीहरि द्वारा अर्थेष्ट दानव का उद्धार आदि ),
अवकीर्ण वामन ३९.२५( कुरुक्षेत्र के अन्तर्वर्ती तीर्थ अवकीर्ण का माहात्म्य, दाल्भ्य बक ऋषि द्वारा धृतराष्ट्र के राष्ट्र का होम करने का स्थान )
अवगाह मत्स्य ४६.१८( वसुदेव व वृकदेवी - पुत्र )
अवट वा.रामायण ३.४.२२( राम द्वारा विराध राक्षस को अवट/गर्त में दबाना, मरे हुए राक्षसों को अवट में गाडने का नियम), ५.३.१८७.५( कालाग्नि रुद्र से उत्पन्न धूम तथा धूम से उत्पन्न ज्वाला/लिङ्ग द्वारा सात पातालों को भेदकर अवट निर्माण करने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.२.६.५४( इन्द्रियों की अवट से उपमा ), लक्ष्मीनारायण १.५२८( आवट्य ऋषि द्वारा स्वप्न में कृष्ण के अनेक धामों में विचरण, कृष्ण द्वारा आवट्य को शुभाशुभ स्वप्न फल का वर्णन, आवट्य की मुक्ति ) Avata
अवतार अग्नि २+ ( विष्णु के १२ अवतारों की कथाएं ), १६( कल्कि व विष्णु अवतारों का वर्णन ), ४९( विष्णु के १० अवतारों की प्रतिमाओं के लक्षण ), गरुड १.१.२१( २१ अवतारों का कथन ), १.८७( १४ मन्वन्तरों में इन्द्र - शत्रु के वध के लिए विष्णु के १४ अवतार ), १.१९६( २४ अवतारों का विशिष्ट कार्य ), गर्ग १.४.१( कृष्ण - व्यूह के अंश अवतारों का कथन ), १.५.१( वही), देवीभागवत ४.१६( २४ अवतारों का वर्णन ), ४.२२.२७( कृष्ण - व्यूह के अंश अवतारों का कथन ), नारद १.११९.१४( दशावतार दशमी व्रत ), पद्म १.४.९१( भृगु शाप से विष्णु के १० अवतार ), ब्रह्म १.७१.२७( विष्णु - अवतारों के कृत्यों का संक्षिप्त कथन ), १.१०४( दस अवतार ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१३६( कृष्ण - व्यूह के अंश अवतारों का कथन ), ४.९( वही), भविष्य ३.३.१( कौरवों व पाण्डवों का कलियुग में अवतार ), ३.४.५.१५( विष्णु का युग अनुसार अवतार लेकर आयु वार्धक्य को प्राप्त होना, वामन के अर्धभाग से नारायण के तीन युगों में अवतारों का कथन ), ३.४.२५.८०( विभिन्न मन्वन्तरों में राशि विशेष में अवतारों का प्रादुर्भाव ), ४.६३( दशावतार व्रत : विष्णु द्वारा भृगु - पत्नी दिव्या के वध से शाप प्राप्ति के कारण अवतरण ), ४.८३( द्वादश अवतारों के मासानुसार नाम ), भागवत १.३( २४ अवतारों का वर्णन ), २.७( २४ अवतारों का वर्णन ), ११.४( द्रुमिल द्वारा निमि को अवतारों का वर्णन ), मत्स्य २४८.६२( वराह अवतार का वर्णन ),महाभारत शान्ति ३३९, वायु ६६.१२९/२.५.१२६( विष्णु के विभिन्न मन्वन्तरों में अवतरण का क्रम ), ९८.६९/२.३६.६९( विष्णु के अवतारों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.७४.२२( विष्णु का द्वैपायन व्यास रूप में अवतार ), १.७४.१२( विष्णु का प्रमिति रूप में अवतार ), १.७४.१८( विष्णु का भीमरथ रूप में अवतार ), १.७५( मत्स्य अवतार ), ३.१०६.८३( विष्णु के अवतारों के आवाहन मन्त्रों का कथन ), ३.२२६( विष्णु का हंस रूप में अवतार ), शिव ३.१९( ब्रह्मा, विष्णु व महेश का क्रमश: चन्द्र, दत्तात्रेय व दुर्वासा बनना ), ३.४( द्वापरों में शिव का श्वेत मुनि रूप में अवतार आदि ), ३.१२( शिव का शरभ रूप में अवतार ), ३.१३( शिव का गृहपति रूप में अवतार ), ३.१६( शिव का यक्षेश रूप में अवतार ), ३.१७( शिव का महाकाल आदि १० रूपों में अवतार ), ३.१८( शिव का ११ रुद्रों के रूप में अवतार ), ३.२४( शिव का पिप्पलाद रूप में अवतार ), ३.२७( शिव का द्विजेश रूप में अवतार ), ३.२८( शिव का हंस रूप में अवतार ), ३.३१( शिव का भिक्षु रूप में अवतार ), ३.३३( शिव का ब्रह्मचारी रूप में अवतार ), ३.३६( शिव का अश्वत्थामा रूप में अवतार ), ३.३९( शिव का भिल्ल रूप में अवतार ), ३.४२( शिव का द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग रूप में अवतार ), स्कन्द ३.१.५( विधूम वसु का सहस्रानीक राजा रूप में अवतार ), मरुत्त के यज्ञ में देवों के क्षुद्र योनियों में अवतारों का वर्णन ), ५.३.१५१.४( मत्स्य, कूर्म आदि १० अवतारों के विशिष्ट कृत्यों का कथन ), ७.१.१९.७३( दश अवतारों का वर्णन ), ७.१.८१.१८( ७ कल्पों में विष्णु के अवतारों के नाम ), ७.२.१८( नारद द्वारा वामन को बलि निग्रह हेतु प्रेरणा, पूर्व अवतारों का वर्णन ), हरिवंश १.४०( जनमेजय द्वारा वराह आदि अवतारों के रहस्य विषयक प्रश्न ), १.४१( दश अवतारों का विस्तृत वर्णन ), १.५४+ ( कृष्ण व्यूह के दैत्यों के अवतारों का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.७९( कृष्ण व अन्य देवों का वृक्षों के रूप में अवतार ), २.१५७.२४( अङ्गन्यास में १२ अवतारों के न्यास के स्थान ), २.२२५.९१ ( श्रीहरि द्वारा सर्व अवतारों हेतु किरीट दान का उल्लेख ), ३.१६४( विष्णु के १४ अवतार व उनके विशिष्ट कार्य ) Avataara
अवधूत भागवत ४.२५.४८( पुरञ्जन राजा के मित्र अवधूत का उल्लेख ), ४.२९.११( घ्राण इन्द्रिय की अवधूत नाम से प्रतीकात्मकता ), ११.७.३१( यदु व दत्तात्रेय उपाख्यान की टीका में दत्तात्रेय की अवधूत संज्ञा ), स्कन्द ४.२.९७.१८०( अवधूतेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : कल्मष नाशक ) Avadhoota/ avadhuta
अवनीवान् शिव ५.३४.३८( अष्टम मन्वन्तर में सावर्णि मनु के १० पुत्रों में से एक )
अवन्तिका
नारद २.७८(
अवन्ती/महाकालवन
के तीर्थों
की महिमा
: अवन्तिका
के कल्पान्तरों
में नाम
), ब्रह्म
१.४१(
अवन्तिका
की शोभा
का वर्णन,
इन्द्रद्युम्न
राजा ),
भविष्य
४.२८.४५(
अवन्तिसुन्दरी
: विदर्भ
नगरी की
वेश्या का
चैत्र तृतीया
व्रत के
प्रभाव से
राजकन्या
अवन्तिसुन्दरी
रूप में
जन्म लेना
), भागवत
११.२३.६(
अवन्तिका
निवासी धनाढ्य
तितिक्षु
ब्राह्मण
का वृत्तान्त
), वामन
९०.१३(
अवन्ति
देश में
विष्णु का
धिष्ण्य नाम
से वास
), वायु
१०४.७६/२.४२.७६(
अवन्ती
की नाभि
मण्डल में
स्थिति का
उल्लेख
- लिङ्गदेशे
ततः काञ्चीमवन्तीं नाभिमण्डले
। ),
विष्णुधर्मोत्तर
२.२२.१७४(
अवन्ती
: राज्याभिषेक
के समय
आहूत नदियों
में से
एक ),
स्कन्द
२.२.७.१४(
मालवा
स्थित अवन्ती
के राजा
इन्द्रद्युम्न
द्वारा
पुरुषोत्तम
क्षेत्र की
यात्रा का
उद्योग ),
५.१.१+
( स्कन्द
पुराण के
अवन्तिका
खण्ड का
आरम्भ ),
५.१.२६(
अवन्तिका
देवी ),
५.१.३६.६(
सात
कल्पों
में
नाम
- प्राक्कल्पे
स्वर्णशृंगाख्या द्वितीये
तु कुशस्थली ।।
तृतीयेऽवंतिका
प्रोक्ता चतुर्थेत्वमरावती
।।..
),५.१.४२.४२(
अवन्तिका
नाम का
हेतु
-- कल्प
- कल्प
में देव
तीर्थ ओषधि
बीज भूतों
का पालन
- देवतीर्थोषधीबीजभूतानां
चैव पालनम् ।। कल्पेकल्पे च
यस्यां वै तेनावंती पुरी
स्मृता ।।
), ५.१.६३(वामन
कुण्ड की
महिमा, वामन
कुण्ड की
कुमुद्वती/अवन्ती
में स्थिति,
वामन
- बलि
की कथा),
लक्ष्मीनारायण
१.४८०.१(
राम
के वनवास
काल में
अवन्तिका
क्षेत्र में
लक्ष्मण के
मन का
परिवर्तन, घोरखनक
राक्षस के
निवास के
कारण शापित
भूमि का
फल ),
कथासरित्
३.२.२१(
वत्सराज
उदयन की
रानी वासवदत्ता
द्वारा धारित
छद्म नाम
), १२.१६.५(
अवन्ती
क्षेत्र में
उज्जयिनी
नगरी की
स्थिति ),
१६.२.१४(
अवन्तिवर्धन
: उज्जयिनी
के पालक
नामक राजा
का पुत्र,
सुरतमञ्जरी
विद्याधरी
से विवाह
की कथा
), Avantikaa
अवभृथ
अग्नि ६९.१(
अवभृथ
स्नान का
वर्णन ),
ब्रह्माण्ड
१.२.१२.३३(
अवभृथ
में पावक
नामक अग्नि
की उपस्थिति,
हृच्छय
- पिता
), भागवत
१२.१.२,
मत्स्य
५१.२७(
पावक/योग
अग्नि का
नाम ),
मत्स्य
५१.२७(पावक/अवभृथ
अग्नि का
योग नाम),
वायु
२९.३१(
अग्नि,
पावक/अपांगर्भ
नाम -
तयोर्यः
पावको नाम स चापां गर्भ उच्यते
।।
अग्निः
सोऽवभृथो ज्ञेयः सम्यक्
प्राप्याप्सु हूयते।),
स्कन्द
४.१.३५.१०३(
अवभृथ
इति मन्त्र
के अप्
देवता का
उल्लेख ),
५.२.५९.३(
अश्वशिरा
राजा द्वारा
अवभृथ स्नान
काल में
कपिल व
जैगीषव्य
ऋषियों के
दर्शन का
वृत्तान्त
), ५.३.१९४.७१(
नारायण
व श्री
के विवाह
यज्ञ के
पश्चात्
अवभृथ स्नान
हेतु नारायण
के पादपङ्कज
से गङ्गा
के स्रवण
का कथन
), ६.१९०.४०(
ब्रह्मा
के यज्ञ
में अवभृथ
स्नान का
वर्णन ),
लक्ष्मीनारायण
२.१३०.२८(
अवभृथ
स्नान का
माहात्म्य
), २.१७१.४९(
अवभृथ
स्नान की
विधि व
माहात्म्य, अवभृथ
नामक कुमार
का प्राकट्य
व तृप्ति
कन्या से
विवाह ),
२.२१३.२०(
अवभृथ
स्नान विधि
), २.२४८.९८(
अवभृथ
इष्टि विधि
) Avabhritha
अवर पद्म ६.१३३.७( अवर पर्वत पर विश्वकाय तीर्थ की स्थिति )
अवस्फूर्ज ब्रह्माण्ड १.२.१२.३१( अग्नि, अन्य नाम विवस्वान् व आस्थान )
अवि कूर्म १.७.५४( अवि का ब्रह्मा के वक्ष से प्राकट्य - रजस्तमोभ्यामाविष्टांस्ततोऽन्यानसृजत् प्रभुः ।। वयांसि वयसः सृष्ट्वा अवीन्वै वक्षसोऽसृजत् । ), नारद १.५०.६१( अवि द्वारा गान्धार स्वर के वादन का उल्लेख - अजाविके तु गांधारं क्रौंचो वदति मध्यमम् ।।), पद्म १.३.१०५( अवि की ब्रह्मा के वक्ष से सृष्टि - अवयो वक्षसश्चक्रे मुखतोजांश्च सृष्टवान्। सृष्टवानुदराद्गाश्च महिषांश्च प्रजापतिः ।। ), भविष्य ४.१६३( अवि दान विधि ), स्कन्द ५.३.१५६.२३( अवि क्षीर भक्षण के पाप का चान्द्रायण व्रत आदि से नष्ट होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.२०४.६५( वैराग्य से अवि बन्धन का उल्लेख - ज्ञानेन कर्मणा नाशो वैराग्येणाऽविबन्धनम् ।। ), द्र. मेष Avi
अविज्ञात अग्नि १८.३८(अनल वसु - पुत्र), ब्रह्माण्ड १.२.१०.७९( अविज्ञात गति : ईशान/अनिल व शिवा - पुत्र, वसुगण वंश ), भागवत ४.२८( पुरञ्जन - मित्र, ब्राह्मण रूप में स्त्री योनि धारी पुरञ्जन को बोध ), ५.२०.९( शाल्मलि द्वीप के ७ खण्डों में से एक ), वायु ६६.२५/२.५.२५( अविज्ञात गति : ईशान/अनिल व शिवा - पुत्र, वसुगण वंश )Avijnaata
अविद्या नारद १.४६.८६( केशिध्वज नृप द्वारा खाण्डिक्य को अविद्या तरु के स्वरूप का कथन ), पद्म ६.३०.३७( अविद्या तम से व्याप्त संसार में दीप द्वारा ज्ञान व मोक्ष प्रदान करने का मन्त्र ), ६.१३२.८३( अविद्या के कारण लोक में कर्म के स्वरूप का ज्ञान न होने का उल्लेख ; विष्णु दैवत्य कर्म होने पर गर्भ से मुक्ति ), ६.२२७.५२( सर्ग, स्थिति और लय रूप से अविद्या प्रकृति माया के तीन गुणों का उल्लेख ; तुलनीय : शाण्डिल्योपनिषद ३.१ में अविद्या के लोहित, शुक्ल व कृष्ण रूपों का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.१.५.३२( पञ्चपर्वा अविद्या का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.८९( अव्यक्त से व्यक्त स्थिति में आने /अहंकार उत्पन्न होने पर १६ अङ्गों वाली बुद्धि का नाम, अन्य नाम अजा ), भागवत ३.२०.१८( ब्रह्मा द्वारा स्व छाया से पञ्चपर्वा अविद्या की सृष्टि ), वराह ३१.१५( अविद्या विजय के रूप में शङ्ख प्रतीक का उल्लेख ), विष्णु १.५.५( पञ्चपर्वा अविद्या की सृष्टि ), १.२२.७४( विष्णु की दिव्य विद्यात्मक असि का कोश अविद्या का प्रतीक ), ६.७.६१( विष्णु की परा, अपरा व अविद्या नामक ३ शक्तियों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर ३.४७.५( अज्ञान और विद्या के मध्य स्थित अविद्या के उत्तम होने का कथन ), शिव ७.१.६.४३( क्षर के अविद्या व अमृत के विद्या होने का उल्लेख ), स्कन्द १.१.२२.१०४( अविद्या रूपी देह से परे विदेह होने का निर्देश ), १.१.२४.६२(काम द्वारा अविद्या से आवृत करके मोहित किए जाने पर शिव द्वारा विवाह को अविद्या का मूल कहना ), १.२.१३.५९( संवर्त ऋषि द्वारा अविद्या के अन्तर्गत होने वाले हिंसात्मक यज्ञ से अपना प्रयोजन न होने का कथन ), १.२.४२.१५१( अविद्या के घोर वन और विद्या महावन का वर्णन ), २.३.२.३५( विद्याश्रित होकर सकल ईश और अविद्या द्वारा जीव की उपासना का उल्लेख ), २.३.५.१९( अविद्या के प्रतिबिम्ब से जीव भाव प्राप्त होने का उल्लेख ), ३.१.४३.११( दीप आरोपण से अविद्या पटल नाश का उल्लेख ), ३.१.४९.३१(नल द्वारा अविद्या – विहीन रामेश्वर की स्तुति), ३.१.४९.३३(जाग्रत, स्वप्न आदि की अविद्या में गणना), ५.३.१५९.१६( अविद्या दान से बृलीवर्द योनि प्राप्त होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.११३+ ( अविद्या की निन्दा व अविद्या निग्रह के उपाय का वर्णन ), ४.४१+ ( वही), ६.१.८( संसार वन में अविद्या की लता रूप में कल्पना ), ६.१.९( अविद्या के संक्षय से विद्या के उदय का कथन ), ६.१.१०( वासना त्याग व सतत् अवलोकन से अविद्या नाश का कथन ), ६.२.१०८+ ( अविद्या के संदर्भ में राजा विपश्चित् की विस्तृत कथा ), महाभारत शान्ति २१८.३३( अविद्या रूपी क्षेत्र में कर्म बीज तथा तृष्णा रूपी स्नेह का उल्लेख ), ३०७.४( अविद्या के अव्यक्त प्रकृति, २४ तत्वों की परमेश्वरी, सर्ग व प्रलय धर्मी होने तथा २५वें तत्व के सर्ग व प्रलय से मुक्त विद्या होने का उल्लेख ), ३१८.४१अतिरिक्त(अविद्या के प्रकृति और विद्या के पुरुष होने का उल्लेख), आश्वमेधिक ५१.२८( अव्यक्त से १६ विशेषान्त तक अविद्या लक्षण होने का उल्लेख ), ५१.३१( जन्तु के कर्म से षोडशात्मक होने तथा पुरुष के अविद्या से ग्रसे जाने आदि का उल्लेख )Avidyaa
अविन्ध्य हरिवंश २.७४.४२( अविन्ध्या : बिल्वोदकेश्वर क्षेत्र में गङ्गा का अविन्ध्या नाम होने का उल्लेख ), वा.रामायण ५.३७.१२( रावण का सम्मान प्राप्त एक मेधावी राक्षस, रावण को भावी विनाश का पूर्वकथन, सीता को लौटा देने का परामर्श )Avindhya
अविमुक्त देवीभागवत ७.३८.२७( अविमुक्त क्षेत्र में विशालाक्षी देवी का वास - अविमुक्ते विशालाक्षी महाभागा महालये । ), ब्रह्माण्ड २.३.६७.६२( वाराणसी का नाम, शब्दार्थ ), मत्स्य १८१+ ( अविमुक्त क्षेत्र का माहात्म्य ), १८४.३३(अविमुक्त के सिवाय भूमि के मेद से लिप्त होने का उल्लेख - मेदसा विप्लुता भूमिरविमुक्ते तु वर्जिता। पूता समभवत् सर्वा महादेवेन रक्षिता।। ), लिङ्ग १.९२.१४२( अविमुक्त शब्द की निरुक्ति - अविशब्देन पापस्तु वेदोक्तः कथ्यते द्विजैः।। तेन मुक्तं मया जुष्टमविमुक्तमतोच्यते।। ), स्कन्द २.२.१२( अविमुक्त क्षेत्र : शिव द्वारा स्थापना, कृष्ण द्वारा काशिराज का वध ), ४.१.२६( अविमुक्त क्षेत्र का माहात्म्य, निरुक्ति, अन्तर्वर्ती तीर्थों का माहात्म्य - मुने प्रलयकालेपि न तत्क्षेत्रं कदाचन।। विमुक्तं हि शिवाभ्यां यदविमुक्तं ततो विदुः ।। ), ४.१.३३.१६९( शिव के शरीर में दक्षिण कर का रूप ), ४.१.३९.७४+ ( अविमुक्तेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, अविमुक्त क्षेत्र प्राप्ति का उपाय ), ५.२.७८.५२( अविमुक्तेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, मनोरमा द्वारा पिता सहित पूजा, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), द्र. काशी, वाराणसी Avimukta
अवियुक्त स्कन्द ७.३.५७( अवियुक्त क्षेत्र का माहात्म्य, शक्र द्वारा पुन: राज्य से युक्त होना )
अवीक्षित मार्कण्डेय १२२+/११९+ ( करन्धम व वीरा - पुत्र, ग्रहों की विशेष स्थिति से नाम की सार्थकता, विशाला कन्या के स्वयंवर में विशाला का हरण, अन्य राजाओं द्वारा बन्धन व मोचन, विशाला का त्याग, वन में तपोरत विशाला की राक्षस से रक्षा व विवाह, मरुत्त पुत्र प्राप्ति आदि ), लक्ष्मीनारायण १.४०९( वही)aveekshita/ avikshita
अव्यक्त नारद १.४२.१४( अव्यक्त देव से जीवों की सृष्टि आदि का कथन, अव्यक्त से आकाश की सृष्टि ), १.६३.६५( ३ गुणों के आधार की अव्यक्त संज्ञा? ),पद्म १.४०.१४५(अव्यक्तानन्द सलिल वालेv समुद्र में ११ रुद्रों की ११ पत्तनों? से उपमा), ब्रह्माण्ड १.१.३.३७( अव्यक्त के क्षेत्र तथा ब्रह्म के क्षेत्रज्ञ होने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.८८( अव्यक्त और व्यक्त स्थितियों में बुद्धि व अहंकार के प्रकारों का कथन ), ३.४.२५.२१( अव्यक्त/अज के विभिन्न अङ्गों से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का वर्णन ), वराह २५.२( पुर पुरुष से अव्यक्त की उत्पत्ति, उमा या श्री के अव्यक्त होने का कथन, पुरुष व अव्यक्त से अहंकार की उत्पत्ति ), वायु १०३.३६/२.४३.३६(अव्यक्त कारण से प्रधान व पुरुष से महेश्वर के जन्म का कथन), विष्णु १.२.१८( व्यक्त के विष्णु तथा अव्यक्त के कालपुरुष होने का उल्लेख ), हरिवंश ३.१७.४७(अव्यक्त की मूर्द्धा से अथर्ववेद की उत्पत्ति का उल्लेख), महाभारत शान्ति २१७.६( अव्यक्त व पुरुष से परे विशेष का कथन ), ३१८.४१(अव्यक्त प्रकृति का सूर्य नाम), ३२९.४९( इन्द्रियों से ग्रहण होने वाले विषयों की व्यक्त तथा न होने वालों की अव्यक्त संज्ञा का उल्लेख ), ३३९.३१( मन के अव्यक्त पुरुष में व अव्यक्त पुरुष के निष्क्रिय पुरुष में लीन होने का कथन ), ३४७.१५( मन के व्यक्त में लीन होने, व्यक्त के अव्यक्त में, अव्यक्त के पुरुष में लीन होने का कथन )avyakta
अव्यङ्ग नारद १.११६.२९( श्रावण शुक्ल सप्तमी को अव्यङ्ग व्रत की संक्षिप्त विधि ), भविष्य १.१४२.१२( अव्यङ्ग की वासुकि नाग से उत्पत्ति, सूर्य आराधना में अव्यङ्ग धारण का माहात्म्य )avyanga
अव्यय पद्म ५.१०६.६४( अव्यया ब्राह्मणी : नारद से पति की मृत्यु का ज्ञान होने पर चिता में भस्म होना, पति द्वारा मृत्यु - पश्चात् श्वान योनि प्राप्ति, श्वान का मृत्यु - पश्चात् शिव गण बनना ), ब्रह्माण्ड २.३.१.९०( भृगु व पुलोमा के १२ पुत्रों में से एक ), ३.४.१.१०२( १३वें मन्वन्तर के एक ऋषि ), भविष्य ३.४.२५.११३( अव्यय पुरुष से स्कन्दन से स्कन्द की उत्पत्ति का उल्लेख ), मत्स्य १९५.१३( भृगु व पुलोमा के १२ पुत्रों में से एक ), वायु ६७.३४/२.६.३४( स्वायम्भुव मन्वन्तर में अजित देवगण में से एक ), विष्णु ३.२.४०( १३वें मन्वन्तर में एक ऋषि ), स्कन्द ३.३.१२.२२( अव्यय शिव से शयन स्थिति में रक्षा की प्रार्थना )avyaya
अव्याकृत गरुड ३.१०.१६(अव्याकृत आकाश में अव्यय हरि के वास का कथन), लक्ष्मीनारायण २.१४०.९( अव्याकृत प्रासाद के लक्षण )
अशना भागवत ६.१८.१७( बलि - पत्नी, बाण आदि १०० पुत्र ), लक्ष्मीनारायण १.३१९.६( जोष्ट्री - पुत्री अशना द्वारा देवों की सेवा ), १.३१९.१०४( जोष्ट्री - पुत्री, श्रीहरि - पत्नी अशना की उच्च दृष्टिकोण से निरुक्ति ), २.२९७.९०( अशनादि ३३० पत्नियों के गृह में कृष्ण द्वारा शय्या रमण के कृत्य का उल्लेख )ashanaa
अशनिप्रभ वा.रामायण ६.४३.१२( रावण - सेनानी, द्विविद से युद्ध )
अशून्यशयन अग्नि १७०( अशून्यशयन व्रत : श्रावण कृष्ण द्वितीया ), नारद २.११( अशून्यशयन व्रत : श्रावण द्वितीया को व्रत अनुष्ठान से शूद्र का राजा रुक्माङ्गद बनना ), पद्म २.८८( अशून्यशयन व्रत : दिव्या देवी की पति मरण दोष से मुक्ति ), भविष्य ४.१५( अशून्यशयन व्रत विधि व माहात्म्य ), मत्स्य ७१( अशून्यशयन द्वितीया व्रत : श्रावण कृष्ण द्वितीया को गोविन्द की पूजा, शय्या दान ), विष्णुधर्मोत्तर १.१४५( अशून्यशयन द्वितीया व्रत विधि व माहात्म्य ), स्कन्द २.७.१०३( अशून्यशयन व्रत विधि व माहात्म्य ), ६.४१( चातुर्मास में शान्ति हेतु अशून्यशयन व्रत का माहात्म्य : इन्द्र द्वारा बाष्कलि का वध ), ६.२३१( इन्द्र द्वारा वृत्र के भय से मुक्ति हेतु अशून्यशयन व्रत का चीर्णन : सांकृति मुनि व वृक असुर की कथा ), ६.२६५.२३( अशून्यशयन व्रत का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण २.२७.६५( अशून्यशयन द्वितीया व्रत विधि : लक्ष्मी व कृष्ण की पूजा, चातुर्मास्य व्रत )ashunyashayana
अशोक अग्नि १७८.९( चैत्र शुक्ल तृतीया को ललिता देवी का अशोक मधुवासिनी नाम से ओष्ठ में न्यास ), १९४.१( अशोक पूर्णिमा व्रत की संक्षिप्त विधि ), २४७.३०( अशोक वृक्ष के पल्लवन के लिए कामिनी पाद ताडन का उल्लेख ), गरुड १.१३३.२( अशोक अष्टमी व्रत ), नारद १.७०.५९( अशोक फलक में तार्क्ष्य के लेखन व पूजन आदि से तार्क्ष्य/गरुड के प्रकट होने का कथन ), १.७४.७८( हनुमान द्वारा अशोक वाटिका में अक्षकुमार के वध का उल्लेख ), १.८२.११९, १४४( अशोक वन सन्नद्ध : कृष्ण व राधा के सहस्र नामों में से एक ), १.८९.१२९( अशोका : ललिता देवी के सहस्रनामों में से एक ), १.११०.२७( अशोक व्रत : आश्विन् शुक्ल प्रतिपदा ), १.११७.२( चैत्र शुक्ल अष्टमी को अशोक कलिका प्राशन का विधान ), १.११७.७४( अशोक अष्टमी व्रत विधि ), १.१२२.४१( अशोक त्रयोदशी व्रत की विधि ), पद्म १.२८.२४( अशोक वृक्ष : नाशकारी ), १.२९.२६( ललिता देवी की आराधना के संदर्भ में ओष्ठ में ललिता का अशोकवनवासिनी नाम से न्यास ), २.१०२+ ( अशोकसुन्दरी : पार्वती के चिन्तन से उत्पत्ति, नहुष - पत्नी, हुण्ड दैत्य द्वारा हरण, नहुष द्वारा रक्षा करना ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२.१०३.५२( नगर में आरोपण योग्य शुभ वृक्षों में से एक ), भविष्य ४.९( अशोक व्रत की विधि व माहात्म्य : अशोक वृक्ष की पूजा ), ४.१०५( अशोक पूर्णिमा व्रत ), स्कन्द २.२.४४.४( चैत्र मास में श्रीहरि की मूर्ति की अशोक पुष्प से पूजा तथा अन्य मासों में अन्य पुष्पों से पूजा का निर्देश ), २.५.७.२३( पुष्पों की आपेक्षिक महिमा कथन के संदर्भ में अशोक पुष्प के चम्पक पुष्प से श्रेष्ठ होने व शेवन्ती पुष्प से हीन होने का उल्लेख ), ४.२.८०.३७( चैत्र शुक्ल तृतीया को मनोरथ व्रत में नैवेद्य के रूप में अशोक वर्ति का उल्लेख ), ४.२.८३.९२( अशोक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : शोक से मुक्ति ), ५.३.१९८.७( अशोक आश्रम में तपोरत माण्डव्य मुनि के शूल से पीडित होने तथा शिव कृपा से शूल के अमृतस्रावी होने का वृत्तान्त ), ५.३.२३१.२४( रेवा - सागर सङ्गम पर २ अशोकेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ६.२५२.३३( चातुर्मास में अशोक वृक्ष में विद्युत की स्थिति का उल्लेख ), वा.रामायण ५.१४( अशोक वाटिका : हनुमान द्वारा लङ्का में शोभा दर्शन ), ५.२२.२८( कल्पवृक्ष रूपी रावण के कुण्डलों की २ अशोक वृक्षों से उपमा ), ५.४१.२०( अशोकवाटिका : प्रमदा वन का नाम, हनुमान द्वारा विध्वंस ), ६.२५२.३३(विद्युत के अशोक में प्रवेश का उल्लेख), ७.४२( अशोकवनिका : शोभा वर्णन, राम व सीता का विहार ), महाभारत आदि ६७.१४( अश्व नामक असुर के द्वापर में अशोक राजा के रूप में जन्म लेने का उल्लेख ), ८२.२( देवयानी की दासी शर्मिष्ठा का महल अशोक वनिका के निकट होने का कथन ), वन ६४.१०१( नल के विरह से पीडित दमयन्ती द्वारा अशोक वृक्ष से पति मिलन कराने की प्रार्थना ), २८०.४२( अशोक वाटिका में राक्षसियों द्वारा सीता को भय प्रदर्शन आदि ), २८९.२७( अशोक वाटिका में सीता के वध को उद्धत रावण को मन्त्री अविन्ध्य द्वारा शान्त करना ), शान्ति १९८.८( परमात्मा के अशोक/शोकरहित होने आदि का उल्लेख ), ३२९.२०( नारद द्वारा शुकदेव को शोक त्याग कर अशोक स्थान में स्थित होने का निर्देश ), ३३०.१( शास्त्रों द्वारा अशोक होने का उल्लेख ), अनुशासन १९.२९( अष्टावक्र द्वारा बाहुदा नदी तट पर अशोक तीर्थ में विश्राम का उल्लेख ), १४९.५०( विष्णु सहस्रनामों में से एक ) लक्ष्मीनारायण १.४४१.८०( वृक्ष, विद्युत का रूप ), १.५७३.२०( राजा रविचन्द्र द्वारा अशोक वनिका में यज्ञ का अनुष्ठान, यज्ञ की महिमा ), कथासरित् ८.६.६( अशोकवती : राजा महासेन की पत्नी, गुणशर्मा मन्त्री पर आसक्ति, मन्त्री द्वारा उपेक्षा पर मन्त्री के विरुद्ध षडयन्त्र ), ९.२.३४( अशोकमाला : बलसेन क्षत्रिय की पुत्री, हठशर्मा से बलपूर्वक विवाह, पूर्व जन्म में अशोककर विद्याधर की पुत्री ),१२.४.१५४( अशोककरी : हंसावली की सखी, अन्य सखी कनकमञ्जरी द्वारा अशोककरी की बलि देने की चेष्टा ),ashoka
अशोकदत्त स्कन्द ३.१.८+ ( गोविन्दस्वामी के पुत्र अशोकदत्त द्वारा मल्ल का हनन, राक्षसी से नण्पुर प्राप्ति, मदनलेखा से विवाह, विद्युत्प्रभा से विवाह, सुवर्णकमल की प्राप्ति, मुक्ति, पूर्व जन्म में विद्याधर ), कथासरित् ५.२.७५( वही)
अशौच अग्नि १५७( मृत्यु पर अशौच का वर्णन ), गरुड १.१०६( मृत्यु पर अशौच ), १.२१४( विभिन्न पातकों के लिए अशौच काल का निर्धारण ), २.१४( बाल मृत्यु पर अशौच काल ), भविष्य १.१८६( विभिन्न संस्कारी में अशौच ), मत्स्य १८.१( मृत्यु पर अशौच काल ), विष्णु ३.१३.१२( मृत्यु पर अशौच का विधान ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२.३१+ ( विभिन्न परिस्थितियों में द्रव्यों व स्वयं की शुद्धि की विधि )ashoucha/ ashaucha
अश्म विष्णु ४.२०.२१( अश्मसारी : शन्तनु - मन्त्री, शन्तनु - अग्रज देवापि को वेद मार्ग से विरुद्ध करने का उद्योग ), विष्णुधर्मोत्तर १.६८( परशुराम का वरुण के अश्म नगर में प्रवेश, नगर की शोभा का वर्णन, दैत्यों का नाश ), स्कन्द ५.३.१३६.१७( अहल्या द्वारा अश्ममय शरीर त्याग की कथा ), महाभारत वन ३१३.६२( अश्म के हृदय रहित होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), वा.रामायण ७.२३.१७( अश्म नगर में कालकेयों का वास, रावण द्वारा अश्म नगर में विद्युज्जिह्व का वध )ashma
अश्मक गरुड १.५५.१३( दक्षिण का एक देश ), ब्रह्माण्ड १.२.१६.५८( दक्षिण का एक देश ),भागवत ९.९.३९( राजा सौदास की रानी मदयन्ती के गर्भ से उत्पन्न क्षेत्रज पुत्र, मूलक - पिता ), मत्स्य २७२.१६( कलियुग में २५ अश्मक राजाओं के राज्य का कथन ), विष्णु ४.४.७१( राजा सौदास की रानी मदयन्ती के गर्भ से उत्पन्न क्षेत्रज पुत्र, मूलक - पिता ), महाभारत उद्योग १५.३४(अश्मा से लौह की उत्पत्ति का उल्लेख), ashmaka
अश्रु गर्ग ५.१६.४( गोपियों के विरह अश्रुओं से कह्लार पुष्पों से युक्त सरोवर प्रकट होने का उल्लेख ), पद्म २.७७.६६( रति के काम से वियोग होने पर उत्पन्न अश्रुओं से शोक, जरा, कामज्वर आदि की सृष्टि व काम से संयोग के समाचार पर उत्पन्न अश्रुओं से प्रीति, शान्ति, कमल आदि की उत्पत्ति ), २.१०१.३८( स्त्री के अश्रुओं से कमलों की उत्पत्ति की कथा ), २.१२१.१०( कामोदा के अश्रुओं से कमलों की उत्पत्ति व विहुण्ड दैत्य के नष्ट होने की कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.२५( नरक में अश्रुकुण्ड प्रापक दुष्कर्मों का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६.९९( ब्रह्मा की कन्या मृत्यु के अश्रुबिन्दुओं से व्याधियों की उत्पत्ति का उल्लेख ), शिव ५.५०.१८( शताक्षी देवी के करुणापूर्ण अश्रुओं से लोक में ओषधि आदि उत्पन्न होने का कथन ), ७.१.१२.२४( ब्रह्मा के दुःख से उत्पन्न अश्रु बिन्दुओं से भूत - प्रेतों की उत्पत्ति का उल्लेख ), स्कन्द २.४.१२.१३( ब्रह्मा के प्रेमाश्रुओं से धात्री वृक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख ), ४.२.९३.८( ब्रह्मा का वैभव देखकर रुद्र का आनन्द अश्रुओं से पूर्ण होना ), ५.२.४८.३( ब्रह्मा के अश्रुकणों से हारव दानव की उत्पत्ति का उल्लेख ), ६.२०६(इन्द्र के प्रेत श्राद्ध में न आने पर इन्द्र द्वारा विश्वेदेवों को शाप, विश्वेदेवों के अश्रुओं से कूष्माण्ड की उत्पत्ति, ब्रह्मा द्वारा विश्वेदेवों को उत्शाप), लक्ष्मीनारायण १.३०१.६३( अग्नि के अश्रुओं से रजत की उत्पत्ति का उल्लेख ), १.३७०.६४( नरक में अश्रुकुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.५३८.२३(शिव द्वारा त्रिपुर विनाशार्थ स्वनेत्र के अश्रु से भौम/मङ्गल को उत्पन्न करना )ashru
अश्रुता कथासरित् १४.१.२४( अष्टावक्र - भ्राता की कन्या, अङ्गिरा की पत्नी बनना, अङ्गिरा की सावित्री पर आसक्ति जानकर आत्महत्या की चेष्टा )
अश्रुबिन्दुमती पद्म २.७७.७८( रति के आनन्द के अश्रुओं से अश्रुबिन्दुमती की उत्पत्ति, ययाति की अश्रुबिन्दुमती पर आसक्ति, अश्रुबिन्दुमती को प्राप्त करने के लिए ययाति द्वारा जरा त्याग का उद्योग ), २.८१.३१( अश्रुबिन्दुमती को भोगने के पश्चात् ययाति में वैराग्य की उत्पत्ति, अश्रुबिन्दुमती को त्याग कर पूरु पुत्र से जरा का ग्रहण )ashrubindumati
अश्व अग्नि २३२.२५( अश्व द्वारा शुभाशुभ शकुन ज्ञान ), २६९.४( अश्व प्रार्थना मन्त्र ), २८८( अश्व वाहन सार : वाहन - वाहक लक्षण आदि, अश्व – मन्त्र, अश्व के अंगों में देवों का न्यास ), २८९( अश्वों के शुभ-अशुभ लक्षण, अश्व चिकित्सा), २९०( अश्व शान्ति कर्म ), कूर्म १.७.५५( ब्रह्मा के पदों से अश्व की सृष्टि ), गरुड १.८७.२५( महाकाल दानव वध हेतु विष्णु का अश्व रूप में अवतार ), ३.२२.७९(अश्व में वामन की स्थिति का उल्लेख), गर्ग ५.२.१८( इन्द्र - अनुचर कुमुद का इन्द्र के शाप से केशी अश्व बनना ), ७.३.१७( प्रद्युम्न सेना के अश्वों की विविधता का वर्णन ), १०.८( अश्वमेध यज्ञ हेतु उपयुक्त अश्व का अवलोकन ), १०.१३.४३( कृष्ण की अश्वशाला में अश्वों के प्रकार ), १०.१६.३२( पंख वाले अश्वों का उल्लेख ), १०.५६.४१( उग्रसेन के अश्वमेधीय यज्ञ पशु का कर्पूर द्रव्य में रूपान्तरण ), देवीभागवत २.१२.११( सूर्य रथ के अश्व के वर्ण के सम्बन्ध में कद्रू- विनता के विवाद की कथा ), ६.१७.५१+ ( लक्ष्मी का रेवन्त के वाहन उच्चैःश्रवा को देखकर मोहित होना, विष्णु शाप से वडवा बनना, वडवा का हय रूप धारी विष्णु से समागम, हैहय पुत्र की उत्पत्ति ), नारद १.५०.६२( अश्व द्वारा धैवत स्वर के वादन का उल्लेख ), १.९०.७०( रक्तोत्पल द्वारा देवी पूजा से अश्वसिद्धि का उल्लेख ), पद्म १.३.१०६( ब्रह्मा के पद से अश्व आदि की सृष्टि का कथन, वक्ष से अवि ), १.२०.१३२( अश्व व्रत का संक्षिप्त माहात्म्य एवं विधि ), १.४०.९७( अश्वग : मरुत नाम ), ५.९( अश्वमेध योग्य अश्व, अगस्त्य - राम संवाद ), ५.४७.८+( हेमकूट पर्वत पर राक्षस द्वारा राम के यज्ञीय अश्व का गात्र स्तम्भन, मुक्ति ), ५.६७.४९( राम के अश्वमेध में अश्व द्वारा दिव्य रूप प्राप्ति, पूर्व जन्म में द्विज, दुर्वासा के शाप से अश्व ), ६.१८६( राजा बृहद्रथ के यज्ञीय अश्व की इन्द्र द्वारा चोरी, गीता के १२वें अध्याय के प्रभाव से पुन: प्राप्ति ), ६.१८९.८( पूर्व जन्म में सरभ - भेरुण्ड नामक सेनापति, गीता के १५वें अध्याय के श्रवण से मुक्ति ), ब्रह्म १.११.४( रौद्राश्व : सुबाहु - पुत्र, दशार्णेयु - पिता, पूरु वंश ), १.११.९४( बाह्याश्व : पुरुजाति - पुत्र, कृमिलाश्व आदि के पिता, अजमीढ वंश ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.५६( चन्द्रमा के रथ में १० अश्वों के नाम ), १.२.३६.३५( तृतीय मन्वन्तर में सत्य नामक देवगण में अश्व व सदश्व देव नाम ), २.३.७.१३६( खशा का एक पुत्र ), २.३.११.७६( अश्व प्रजापति के बालों से काश की उत्पत्ति ), ३.४.१६.१४( ललिता देवी की सहचरी अश्वारूढा के अश्वों की विशेषताएं ), भविष्य २.१.१७.१४( अश्वाग्नि का मन्थर नाम ), ३.३.१०.४०( देशराज द्वारा हय प्राप्ति के लिए सूर्य की आराधना, पपीहक हय की प्राप्ति, अश्वों के अन्य अंशावतारों का वर्णन ), ३.३.१६.४( राजा गजसेन द्वारा पावक की आराधना से पावकीय हय की प्राप्ति, युद्ध में हय द्वारा शत्रु सेना को जलाना ), ३.३.१६.५४( इन्दुल का वडवामृत हय : हय से उत्पन्न मेघों द्वारा अग्नि के हय से उत्पन्न पावक का शमन, वीरों का पुन: सञ्जीवन ), ३.३.२१.२०( मकरन्द द्वारा धर्म से शिलाश्व की प्राप्ति ), ३.३.२५.५१( बलखानि द्वारा कपोत हय पर आरूढ होकर १२ गर्त पार करने का प्रयास ), ३.३.३१.१०७( आह्लाद, बलखानि आदि वीरों के अश्वों के नाम व दिव्य अंशों का कथन ), ३.३.३२.१९५( तारक द्वारा मनोरथ नामक हय का वध ), ४.१३८.४८( अश्व मन्त्र ), ४.१४१.६२( अश्वरूपधारी कपिल से शांति की प्रार्थना), ४.१८०.३६( अश्व रथ दान की विधि, वेद रूप अश्व ), ४.१८६( हिरण्य अश्व दान की विधि ), भागवत ७.१०.६६( धर्म रथ में ऋद्धि रूपी अश्वों का उल्लेख ), मत्स्य २२.७१( अश्व तीर्थ में श्राद्ध व दान का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४९.४९( अश्वजित् : जयद्रथ - पुत्र, सेनजित् - पिता, अजमीढ वंशज ), ९३.६८( विष्णु रूप अश्व से शान्ति की कामना ), १०१.७१( अश्व व्रत ), १७१.५३( अश्वमित्र : मरुत नाम ), २८०( हिरण्याश्व दान विधि ), मार्कण्डेय २०.४८/१८.४८( समाधिस्थ गालव के समक्ष आकाश से अश्व का प्रकट होना, ऋतध्वज द्वारा अश्वारूढ होकर शूकर रूपी दानव का अनुगमन ), लिङ्ग २.३९( हिरण्य अश्व दान विधि ), वराह १५१.२२( लोहार्गल क्षेत्र में आकाश से पृथ्वी पर आते हुए अश्व की कल्पना ), वामन ९.२६( अन्धकासुर व उसके सेनानियों के रथों के अश्वों का कथन ), ५९.३( राजा ऋतध्वज द्वारा विश्वावसु गन्धर्व से प्राप्त अश्व पर आरूढ होकर पातालकेतु राक्षस के वध की कथा ), वायु ५२.४५( सूर्य व अन्य ग्रहों के रथों में अश्वों के नाम, वर्ण ), ६१.२२( याज्ञवल्क्य - शिष्यों का अश्व बनकर सूर्य से यजुर्वेद की शिक्षा प्राप्त करना ), ९६.११४/२.३४.११४( चित्रक - पुत्र, अनमित्र - वंश ), विष्णु ४.७.१४( ऋचीक द्वारा सत्यवती से विवाह हेतु गाधि को शुल्क रूप में एक सहस्र श्याम कर्ण अश्व देना ), विष्णुधर्मोत्तर २.११( निकृष्ट व उत्कृष्ट अश्वों के शरीर लक्षणों का वर्णन ), २.४५( अश्व प्रशंसा, देवों के वाहक अश्व सपक्ष, मनुष्यों के अपक्ष ), २.४६( अश्व चिकित्सा का वर्णन ), २.४७( अश्व शान्ति कर्म का कथन ), २.१६०.४( अश्व मन्त्र का कथन ), ३.३०१.३०( अश्व आदि प्रतिग्रह की विधि ), स्कन्द १.३.२.२२( शोणाचल/अरुणाचल में गिरने से अश्व को खेचरत्व प्राप्ति ), ३.२.६.९८(हय दान से दिव्य देह होने का उल्लेख), ३.२.१५( वम्रियों के कारण शिर छेदन होने पर विष्णु का अश्व शिर से युक्त होकर हयग्रीव बनना ), ५.१.३६.६७( नरदीप तीर्थ में दक्षिण द्वार पर अश्व दान का उल्लेख, पूर्वद्वार पर गौ, पश्चिम पर गज, उत्तरद्वार पर रथ ), ५.१.४४.२५( समुद्र मन्थन से उत्पन्न सप्तास्य वाले अश्व के सूर्य को प्राप्त होने का उल्लेख ), ५.३.५०.२०( शूलभेद तीर्थ में अश्व आदि दान फल का उल्लेख : विमान में आरूढ होकर स्वर्ग गमन ), ५.३.५६.११९( अश्व दान से अर्क सायुज्य प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.९८.१८( प्रभासेश तीर्थ में अश्व स्पर्श से इन्द्रत्व प्राप्ति आदि का कथन ), ६.१६५.३२( ऋचीक द्वारा गाधि - कन्या प्राप्ति के लिए मन्त्र जप द्वारा श्याम कर्ण अश्वों की प्राप्ति ), ७.१.१६६.३१( सावित्री के भावी पति सत्यवाक् की अश्वप्रियता का उल्लेख ), ७.१.२०७.४५(अश्व के चक्षु होने का उल्लेख), हरिवंश ३.५.१३( जनमेजय की पत्नी वपुष्टमा से समागम के लिए इन्द्र द्वारा अश्वमेधीय यज्ञ के मृत अश्व में प्रवेश करके वपुष्टमा को प्राप्त करना ), ३.७१.६( अश्वमेध के वाजी के वैश्वानर होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.१०४.३३+ (राजा लवण के समक्ष ऐन्द्रजालिक अश्व का प्रकट होना, राजा द्वारा अश्व पर आरूढ होकर पृथ्वी का भ्रमण करना व आपत्ति ग्रस्त होना, अश्व का अदृश्य होना ), महाभारत वन ७७.१७( राजा नल द्वारा राजा ऋतुपर्ण को अश्वविद्या सिखाना तथा अक्षविद्या सीखना ), १९२.४२( राजा शल द्वारा मुनि वामदेव से प्राप्त वाम्य अश्वों को न लौटाने पर राक्षस द्वारा शल का वध ), विराट ३.४( नकुल द्वारा विराट को ग्रन्थिक नामक अश्व विशेषज्ञ के रूप में अपना परिचय देना ), १२.१( नकुल का विराट के अश्वों के रक्षक के रूप में नियुक्त होना ), उद्योग ५६.१३( गन्धर्वराज चित्ररथ द्वारा प्रदत्त अर्जुन के रथ के १०० अश्वों की विशेषता ), ५६.१४ ( भीम, सहदेव, नकुल आदि के रथों के अश्वों की विशेषताएं ), ९४.१२दाक्षिणात्य ( श्रीकृष्ण के रथ के शैब्य, सुग्रीव आदि ४ अश्वों के वर्ण ), ११४( गालव द्वारा गुरुदक्षिणा हेतु ययाति से श्यामकर्ण अश्वों की याचना ), ११६( राजा हर्यश्व द्वारा २०० श्यामकर्ण अश्व देकर ययाति - कन्या से वसुमना नामक पुत्र उत्पन्न करना ), ११८( राजा उशीनर द्वारा २०० श्यामकर्ण अश्व देकर माधवी से शिबि नामक पुत्र उत्पन्न करना ), १७९.३( परशुराम के पृथ्वी रूपी रथ में वेद रूपी अश्व ), द्रोण २३( पाण्डव सेना के महारथियों के रथ, अश्वों आदि का वर्णन ), ९७.२२( धृष्टद्युम्न व द्रोणाचार्य के अश्वों के वर्णों का उल्लेख ), १०४.७( कौरवों के कौलूतक हयों व पाण्डवों के आजानेय हयों का उल्लेख ), ११५.२०( सात्यकि के कुन्द इन्दु रजतप्रभ अश्वों का उल्लेख ), १७५.१३( घटोत्कच के अश्वों की विशेषताएं ), १७६.१६( राक्षसराज अलायुध के अश्वों की विशेषता : हस्तिकाय, खरस्वन आदि ), १९६.३०( अश्वत्थामा द्वारा जन्म समय पर उच्चैःश्रवा अश्व के समान शब्द करने का उल्लेख ), कर्ण ३१.६२( कृष्ण द्वारा अश्वहृदय जानने तथा शल्य को अश्वज्ञान होने का कथन ), ३२.६२( शल्य के अश्व विद्या में श्रीकृष्ण से २ गुना श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), ३४.१०५( रुद्र द्वारा अश्वों के स्तन काटने का उल्लेख ), ३८.८( कर्ण द्वारा अर्जुन का पता बताने वाले को रथ सहित अश्वों आदि को पुरस्कार रूप में देने की घोषणा ), ४६.३८( अग्नि द्वारा अर्जुन के रथ के सप्ति/अश्व रूप में कार्य करने का उल्लेख ), ६३.११( कर्ण द्वारा युधिष्ठिर के कालवाल वाले अश्वों को मार डालने का उल्लेख ), शान्ति १२४.१०( दुर्योधन के आजानेय अश्वों का उल्लेख ), १४२.२६(अज, अश्व व क्षत्र में सादृश्य होने का उल्लेख), ३१८.३८ (पाठभेद)( अश्व और अश्वा के मिथुन का उल्लेख ), अनुशासन ४.१६( ऋचीक ऋषि द्वारा वरुण से श्यामकर्ण अश्व उत्पन्न करने का वरदान प्राप्त करना ), ८४.४७( अग्नि के अज, वरुण के मेष व सूर्य के अश्व होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक ५८.४२( नागलोक में उत्तङ्क मुनि के समक्ष अश्व रूप धारी अग्नि का प्रकट होना, अश्व के अपान में धमन करने से उत्पन्न धूम्र से नागों का व्याकुल होना ), ७२+ ( अर्जुन द्वारा अश्वमेधीय अश्व की रक्षा के लिए अश्व के अनुगमन का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.६३.१८( सूर्य का अश्व रूप धारण करके वडवा रूपी संज्ञा से समागम, अश्विनौ व रेवन्त की उत्पत्ति ), १.१७०.४७( कृष्ण के वाम कर्ण से श्वेत तुरगों का आविर्भाव ), १.४६४.१२( उच्चैःश्रवा के रंग के सम्बन्ध में कद्रू व विनता के बीच शर्त ), १.५०६.१९( ऋचीक द्वारा ऋग्वेद सूक्त के जप से वरुण से श्याम कर्ण अश्वों की प्राप्ति ), १.५६४.९३( राजा धुन्धुमार के अश्व द्वारा नर्मदा में स्नान से दिव्य रूप धारण करना, अश्व के पूर्व जन्म में गालव होने का वर्णन ), १.५३९.७३( षडश्व के अशुभत्व का उल्लेख ), २.२३६.४०( बर्बुरि नृप द्वारा अश्व रूप धारी आश्वलायन मुनि का बन्धन, शाप से बर्बुरी वृक्ष बनना, पुत्र द्वारा अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान से अश्वत्व से मुक्ति ), ३.१६.३७( श्री वारिधि नारायण हेतु मिष्टोदक द्वारा प्रदत्त जल तुरंग के स्वरूप का कथन ), ३.१२८.३६( हिरण्य अश्व दान विधि ), कथासरित् ३.४.८८( आदित्यसेन के श्रीवृक्षक नामक अश्व की महिमा ), ४.२.१८२ ( सूर्य के अश्वों के रंग के सम्बन्ध में कद्रू व विनता का विवाद ), ५.३.८५ ( शक्तिदेव द्वारा हयारूढ होने का प्रयास करने पर अश्व द्वारा वापी में क्षेपण ), १०.३.६५ ( सोमप्रभ को उच्चैःश्रवा - पुत्र आशुश्रवा नामक अश्व की प्राप्ति ), ११.१.६( हस्तिनी व अश्वों की जव परीक्षा में हस्तिनी की विजय की कथा ), १८.२.२७७ ( पवन जव, समुद्र कल्लोल, शरवेग, गरुड वेग आदि अश्वों की राजाओं द्वारा प्राप्ति ), द्र. आश्वलायन, उग्राश्व, उच्चैःश्रवा, कपिलाश्व, कुवलाश्व, कुशाश्व, कृशाश्व, दृढाश्व, धूम्राश्व, पृषदश्व, बृर्हणाश्व, बलाश्व, बहुलाश्व, बृहदश्व, भद्राश्व, युवनाश्व, यौवनाश्व, रक्षाश्व, वडवा, वध्र्यश्व, वाजी, विजिताश्व, विनीताश्व, विन्ध्याश्व, व्युषिताश्व, शबलाश्व, श्यावाश्व, श्वेताश्व, सप्ताश्व, हय, हरिताश्व, हर्यश्व ashva/ ashwa
अश्वक्रान्ता नारद १.५०.३८( गान्धार स्वर में मूर्च्छा का नाम )
अश्वग्रीव ब्रह्माण्ड २.३.७१.११४( चित्रक - पुत्र, वृष्णि वंश ), वामन ६९.४९( अन्धक - सेनानी, विशाख से युद्ध ), वा.रामायण ३.१४.१६( दनु व कश्यप - पुत्र )
अश्वतर अग्नि १११.५( प्रयाग में कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), कूर्म १.१२.१८९( कम्बलाश्वतरप्रिया : गायत्री सहस्रनामों में से एक ), पद्म ३.४३.२८( प्रयाग में यमुना के दक्षिणी तट पर कम्बल व अश्वतर नागों की स्थिति ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२३( द्वितीय सुतल लोक में अश्वतर नाग का पुर ), २.३.७.३३( कद्रू- पुत्र ), भागवत १२.११.४४( कार्तिक मास में अश्वतर की सूर्य रथ में स्थिति ), मत्स्य १३३.२०( त्रिपुर दाह हेतु निर्मित शिव के रथ में पक्ष - यन्त्र का रूप ), मार्कण्डेय २३/२१( अश्वतर नाग द्वारा सरस्वती की आराधना से संगीत विद्या की प्राप्ति, शिव आराधना से ऋतध्वज राजा की मृत पत्नी मदालसा को पुत्री रूप में प्राप्त कर पुन: ऋतध्वज को प्रदान करना ), विष्णु २.१०.१८( फाल्गुन मास में सूर्य रथ पर अश्वतर नाग की स्थिति ), ६.८.४६( विष्णु पुराण श्रवणानुपरम्परा में वत्स से सुनकर कम्बल को सुनाना ), स्कन्द १.२.१३.१८३( शतरुद्रिय प्रसंग में अश्वतर नाग द्वारा शिव की मध्यम नाम से धान्य रूपी लिङ्ग की पूजा ), ७.४.१७.२०( अश्वतर नाग की द्वारका के दक्षिण द्वार पर स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३९२( ऋतध्वज को मदालसा पुत्री प्रदान करने की कथा ) ashvatara/ ashwatara
अश्वत्थ गरुड ३.१२.७४(शून्य अश्वत्थ को नमन का निर्देश), देवीभागवत ७.३०.८१( अश्वत्थ तीर्थ में वन्दनीया देवी का वास ), पद्म १.२८.२३( धनदायक, पुत्ररूप), १.५८.५( अश्वत्थ की महिमा ), ६.११५.२१( अश्वत्थ व वट में विष्णु व शिव के स्थित होने का कारण), ६.११६.१८(उद्दालक द्वारा अश्वत्थ मूल में ज्येष्ठा को स्थिर करना ), ७.१२.३८( अश्वत्थ का माहात्म्य, धनञ्जय ब्राह्मण का वृत्तान्त ), ब्रह्म २.३३.५( प्रियव्रत के यज्ञ में दानव के आगमन पर विष्णु का शरण स्थल ), २.४८.१२( कैटभ - पुत्र, पिप्पल-भ्राता, विप्रों को पीडा, शनि द्वारा भस्म करना ), २.४८.३०(शनिवार को अश्वत्थ आलभन हेतु मन्त्र), ब्रह्माण्ड २.३.११.३५( अश्वत्थ के बलि पात्र में वसु भावना? ), भविष्य १.१९३.१०( अश्वत्थ दन्तकाष्ठ की महिमा – जातिप्रधानता व यश ), २.३.४.१( अश्वत्थ वृक्ष प्रतिष्ठा की विधि ), २.३.८( अश्वत्थ वृक्ष प्रतिष्ठा की विधि ), ४.३१.२०( अश्वत्थ मन्त्र ), भागवत ११.१६.२१( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के वनस्पतियों में अश्वत्थ होने का उल्लेख ), मत्स्य १३.५१( अश्वत्थ तीर्थ में वन्दनीया देवी का वास ), ९६.६( कालधौत/सुवर्णमय १६ फलों में से एक ), महाभारत उद्योग ४६.९(अपक्ष पक्षियों द्वारा हिरण्यपर्ण अश्वत्थ के सेवन का कथन), लिङ्ग १.४९.३२( विपुल पर्वत के पश्चिमदिशा के केतु रूप अश्वत्थ का उल्लेख ), वामन १७.८( अश्वत्थ वृक्ष की रवि से व शमी की कात्यायनी से उत्पत्ति का उल्लेख ), विष्णु ४.६.८५( पुरूरवा की अग्निस्थाली का शमीगर्भ अश्वत्थ बनना, अश्वत्थ का अरणि रूप में उपयोग ), स्कन्द २.४.३टीका( विष्णु रूप, पार्वती के शाप की कथा ), २.४.३टीका( शनिवार को अश्वत्थ स्पर्श द्वारा पूजा, ज्येष्ठा - उद्दालक की कथा ), ५.१.४.९६( शमीगर्भ में उत्पन्न अश्वत्थ में भार्गव व आङ्गिरस अग्नियों के संयोग का उल्लेख ), ६.५९.१२( विदुर द्वारा अश्वत्थ की पुत्र रूप में प्रतिष्ठा ), ६.९०.३१( अग्नि के शमीगर्भ में स्थित अश्वत्थ में छिप जाने पर शुक द्वारा देवों को बताना ), ६.१६६.१५( ब्राह्मण पुत्र प्राप्ति के लिए चरु प्राशन के पश्चात् अश्वत्थ के आलिङ्गन व क्षत्र पुत्र के लिए न्यग्रोध आलिङ्गन का उल्लेख ), ६.२४७.२५( चातुर्मास में अश्वत्थ का माहात्म्य ), ६.२४७.४१(अश्वत्थ के विभिन्न अंगों में विष्णु का विभिन्न नामों से वास), ६.२५२.३६( चातुर्मास में गुरु की अश्वत्थ में व शनि की शमी में स्थिति आदि का उल्लेख ), ७.१.१७.११( अश्वत्थ दन्तकाष्ठ का महत्व - यशप्राप्ति ), ७.४.१७.२८( द्वारका के पश्चिम द्वार पर अश्वत्थ की स्थिति ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९०( बृहस्पति का रूप ), १.४४१.९५( विष्णु का रूप ), २.२७.१०४( अश्वत्थ की रवि से उत्पत्ति का उल्लेख ), कथासरित् ३.६.२४( सोमदत्त द्वारा अश्वत्थ वृक्ष का आश्रय लेना, अश्वत्थ - देवता द्वारा सोम को भावी कार्य का निर्देश ), १२.२७.७१( अश्वत्थ में वास करने वाले ज्वालामुख नामक ब्रह्मराक्षस का वृत्तान्त ) द्र. पिप्पल ashwattha/ ashvattha
अश्वत्थामा गर्ग ७.२०.३२( प्रद्युम्न - सेनानी वृक से युद्ध ), देवीभागवत ४.२२.३४( शिव का अंश ), ४.२२.४७( काम, क्रोध, यम, रुद्र का अवतार ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.३५( चिरजीवियों में से एक अश्वत्थामा का उल्लेख ), भागवत १.७( अश्वत्थामा द्वारा द्रौपदी - पुत्रों की हत्या, अर्जुन द्वारा मानमर्दन ), ८.१३.१५( आठवें मन्वन्तर में ऋषि ), मत्स्य ४५.३२( अक्रूर व अश्विनी - पुत्र, अनमित्र वंश ), शिव ३.३६( शिवांश, उत्तरा गर्भ पर अस्त्र प्रहार ), स्कन्द ३.१.१८.६२(अश्वत्थामा के स्थान पर अश्वत्थात्मा शब्द का प्रयोग), ३.१.३१( द्रौपदी - पुत्रों के सुप्तमारण दोष की निवृत्ति के लिए अश्वत्थामा द्वारा धनुष्कोटि तीर्थ में स्नान ), ४.२.७५.८०( अश्वत्थामेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : भय से मुक्ति )ashwatthaamaa/ ashvatthama
अश्वपट्ट लक्ष्मीनारायण १.५६( अश्वपट्ट सरोवर तट पर राजा खट्वाङ्ग द्वारा तप ), १.२८७( अश्वपट्ट सरोवर तट पर पत्नीव्रत ऋषि का वास, पत्नीव्रत द्वारा राजा रुक्माङ्गद के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ), १.५२०.३७( अश्वपट्ट सरोवर की सौराष्ट्र में स्थिति, पत्नीव्रत ऋषि का वास, अश्वपट्ट सरोवर तट पर कच्छप पीठ पर राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा यज्ञ ), २.८८( सनत्कुमार - प्रोक्त अश्वपट्ट सरोवर का माहात्म्य ), २.२४४+ ( अश्वपट्ट सरोवर तट पर अश्वपाटल नृप द्वारा सोमयाग का अनुष्ठान )ashvapatta
अश्वपति देवीभागवत ९.२६+ ( अश्वपति द्वारा पराशर से सावित्री पूजा विधान का श्रवण, सावित्री कन्या की प्राप्ति, सत्यवान् - सावित्री कथा ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२३+ ( मद्र देश का राजा, मालती - पति, पराशर द्वारा गायत्री व सावित्री जप विधान का कथन, सावित्री - सत्यवान् की कथा ), भविष्य ४.१०२( अश्वपति द्वारा सावित्री कन्या की प्राप्ति, सावित्री - सत्यवान् की कथा ), मत्स्य २०८+ ( वही), स्कन्द ७.१.१६६( अश्वपति राजा द्वारा सावित्री व्रत चीर्णन से सावित्री कन्या की प्राप्ति, सावित्री - सत्यवान् कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३६६( अश्वपति द्वारा पराशर से गायत्री व सावित्री जप विधान का श्रवण, सावित्री - सत्यवान् की कथा )ashvapati
अश्वपाटल लक्ष्मीनारायण २.२४४+ ( अश्वपाटल नृप द्वारा अश्वपट्ट सरोवर तट पर सोमयाग का अनुष्ठान ), २.२४९+ ( अश्वपाटल का लोमश से लोमश गीता रूपी संवाद ), २.२७२.४१( अश्वपाटल नृप के ब्रह्मह्रद का अवतार होने का उल्लेख )ashvapaatala
अश्वमुख मत्स्य २६१.५३( कामदेव की मूर्ति के पार्श्व में अश्वमुख प्रतिमा की स्थिति ), वायु ६९.३१/२.८.३१( अश्वमुख किन्नर गण : विशाल व अश्वमुखी - पुत्र ), स्कन्द ५.३.१८४.८( ब्रह्मा के पञ्चम मुख के अश्वमुख सदृश होने व रुद्र द्वारा उसके कर्तन का कथन ), ५.३.१९८.८८( अश्वत्थ तीर्थ में उमा की वंदनीका नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.८१.१३( ब्राह्मण - कन्या माधवी का लक्ष्मी के शाप से अश्वमुखी होना, जन्मान्तर में कृष्ण - भगिनी सुभद्रा रूप में उत्पन्न होना )ashvamukha
अश्वमेध गर्ग १०.१++ ( उग्रसेन के अश्वमेध का आरम्भ ), १०.८( अनिरुद्ध द्वारा उग्रसेन के अश्वमेधीय अश्व का अनुगमन ), नारद १.११.१३३( विप्र को द्रोणिका मात्र पृथिवी दान से गङ्गा तीर्थ में शत अश्वमेधों के फल की प्राप्ति ), १.१३.१२३( पूजा रहित लिङ्ग की अल्प उदक अथवा कुसुम से अर्चना करने पर लक्ष अश्वमेध फल की प्राप्ति ), १.१२२.४०( गो त्रिरात्र व्रत से सहस्र अश्वमेध फल की प्राप्ति ), १.१२३.४( चैत्र शुक्ल चर्तुदशी को शिव अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), २.१.१३( एकादशी उपवास की तुलना में अश्वमेध फल की तुच्छता का उल्लेख ), २.३९.३२( गङ्गा में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), २.४५.३४( फल्गु तीर्थ में आगमन से सहस्र अश्वमेध से अधिक फल की प्राप्ति ), २.६०.१( यज्ञाङ्ग से उत्पन्न तीर्थ में जाकर अश्वमेधाङ्ग संभूतं इत्यादि मन्त्र का पाठ ), २.६३.९६( प्रयाग में हंस प्रतपन तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), २.७०.३४( प्रभास तीर्थ में दुर्वासादित्य के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), पद्म २.१२३.५७( वेन का सदेह विष्णु शरीर में लीन होने के लिए पृथु पुत्र की सहायता से अश्वमेध का अनुष्ठान ), ३.१२.२( जम्बू मार्ग में आने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१२.८( ययातिपतन में आने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१२.१०( कोटि तीर्थ में आने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१३.४६( विशल्या नदी में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१३.४८( नर्मदा में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१८.७३( नर्मदेश्वर तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२४.२०( शङ्कुकर्णेश्वर की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२५.७( रुद्रास्पद तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२५.२५( रुद्र कोटि तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२६.८( विष्णु के सतत् तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२७.३४( पृथूदक तीर्थ में अभिषेक आदि करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२८.१९( सुवर्ण तीर्थ में वृषभध्वज की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२८.३०( कनखल में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.३( गङ्गा - सरस्वती सङ्गम में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.७( ब्रह्मावर्त्त में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.८( यमुना प्रभव में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.९( दर्वीसंक्रमण तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.११( देवी तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.१४( भृगुतुङ्ग तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३२.२१( वेतसिका में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.२( गया में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.१८( फल्गु तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.१९( धर्मपृष्ठ तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.२०( ब्रह्मा के तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.२७( श्रिय तीर्थ में उदपान तीर्थ में अभिषेक से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.२९( विनाशन तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.३४( माहेश्वरी धारा में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.३६( माहेश्वर पद में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.४२( शालग्राम तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.५६( निष्ठावास तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.५९( देवकूट तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.६०( कौशिक ह्रद पर निवास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३८.६३( कुमार तीर्थ में आगमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.३( करतोया नदी पर निवास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.४( गङ्गा - सागर सङ्गम पर वास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.१४( राम तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.१७( श्रीपर्वत पर देवह्रद में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.२२( गोकर्ण तीर्थ में ईशान की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.५६( मन्दाकिनी पर आकर अभिषेक आदि करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.३९.८२( वासुकि नाग के भोगवती तीर्थ में अभिषेक से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.४३.३१( प्रयाग में प्रतिष्ठान कूप पर वास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.४३.३३( प्रयाग में हंस प्रपतन तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.८.३०+ ( राम द्वारा रावण वध जनित ब्रह्महत्या दोष से निवृत्ति के लिए अश्वमेध का अनुष्ठान, अश्व का चयन, अश्व के पृथिवी पर संचरण आदि का विस्तृत वर्णन ), ६.५६.२३( भाद्रपद कृष्ण अजा एकादशी के श्रवण से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.१८६.३४( अश्वमेध काल में राजा की मृत्यु पर व देवों द्वारा यज्ञीय अश्व के हरण पर राजपुत्र द्वारा लक्ष्मी की स्तुति, लक्ष्मी के आदेश से समाधि विप्र द्वारा देवों से यज्ञीय अश्व प्राप्त करना व राजा को पुन: जीवित करना, गीता के १२वें अध्याय का माहात्म्य ), ब्रह्म १.३७.१( दक्ष के हयमेध विनाश का वर्णन ), १.४५( राजा इन्द्रद्युम्न के हयमेध का वर्णन ), २.१३( प्रमति - पुत्र भौवन के एक साथ दश अश्वमेधों के अनुष्ठान में विघ्न, गौतमी तीर पर अनुष्ठान से दस अश्वमेधों का फल प्राप्त करना ), २.३३( राजा प्रियव्रत द्वारा गौतमी के दक्षिण तट पर अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान, यज्ञ में हिरण्यक दानव के आगमन पर देवों का वृक्षों, पशुओं, पक्षियों आदि के रूप में अदृश्य होना ), २.५७( राजा आर्ष्टिषेण के सरस्वती तट पर आयोजित अश्वमेध यज्ञ में मिथु दानव द्वारा यज्ञ का विध्वंस, नृप व पुरोहित का अपहरण, पुरोहित - पुत्र द्वारा रक्षा का वर्णन ), २.९८( अभिष्टुत राजा के अश्वमेध में सविता देव का आगमन, त्वष्टा व यम द्वारा दैत्यों का हनन इत्यादि ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.५.७( पुत्री द्वारा पुत्र का मुख देखने/जन्म देने से १०० अश्वमेध फलों की प्राप्ति का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.५.७( कश्यप के अश्वमेध में दिति के गर्भ/हिरण्यकशिपु द्वारा होता का आसन ग्रहण करना ), २.३.५२.३६+ ( सगर के अश्वमेध का वर्णन ), भविष्य ३.२.२३( विक्रमादित्य द्वारा अश्वमेध का अनुष्ठान, अश्व का दिशा भ्रमण, राजा का चन्द्रलोक गमन ), ४.२९.७( मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया व्रत से अश्वमेधफल प्राप्ति का उल्लेख), ४.२९.११( तृतीया व्रत के संदर्भ में मार्गशीर्ष व पौष कृष्ण तृतीया व्रतों से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.५७.११( चैत्र कृष्ण अष्टमी को स्थाणु शिव की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.९७.२८( चर्तुदशी तिथियों को उमा - महेश्वर की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.१२१.१४३( माघ मास की एकादशी, अष्टमी व चर्तुदशी को अजिन/वस्त्र, उपानह, कम्बल आदि दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.१५१.३४( गौ दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), भागवत ४.१९( पृथु द्वारा अत्रि ऋषि के आचार्यत्व में अश्वमेध का अनुष्ठान, इन्द्र द्वारा पुन: - पुन: अश्व का हरण, पृथु - पुत्र विजिताश्व द्वारा अश्व की रक्षा, पृथु द्वारा अश्वमेध के संकल्प का त्याग ), ६.१३.१८( इन्द्र द्वारा अश्वमेध के अनुष्ठान से वृत्र हत्या जनित पाप से मुक्ति ), मत्स्य ५८.५४( तडाग में वसन्त ऋतु में जल की उपलब्धि कराने से अश्वमेध फल की प्राप्ति, अन्य ऋतुओं में अन्य यज्ञों के फलों की प्राप्ति ), ९३.१३८( कोटि होम से सहस्र अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), १०६.३०( प्रयाग में प्रतिष्ठान कूप पर वास से अश्वमेध के फल की प्राप्ति ), १०८.९( प्रयाग में प्रवेश मात्र से पद-पद पर अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), १८८.८२( चन्द्र व सूर्य ग्रहण के समय अमरकण्टक तीर्थ में गमन पर अश्वमेध से दस गुने फल की प्राप्ति का उल्लेख ),महाभारत अनुशासन १०६.४४( उपवास/षष्ठकालिक द्वारा अश्वमेध फल प्राप्ति का कथन ), आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृष्ठ ६३४६, मार्कण्डेय १११.१४/१०८.१४( सुद्युम्न द्वारा अश्वमेध के अनुष्ठान से पुरुषत्व की प्राप्ति ), वराह ४.१३( राजा अश्वशिरा द्वारा अश्वमेध के अवभृथ स्नान के पश्चात् कपिल व जैगीषव्य मुनियों का प्राकट्य व विभिन्न रूप धारण करना ), वामन ७८.३२( धुन्धु दानव द्वारा देविका तट पर अश्वमेध का अनुष्ठान, यज्ञ में वामन का आगमन व धुन्धु के निग्रह का वर्णन ), वायु ६७.५३/२.६.५३( कश्यप के अश्वमेध में दिति के गर्भ/हिरण्यकशिपु द्वारा होता का आसन ग्रहण करना ), १०४.८४/२.४२.८४( अश्वमेध की कटि प्रदेश में स्थिति ), विष्णु ४.४.१६( सगर के यज्ञीय अश्व के हरण व सगर - पुत्रों के नष्ट होने आदि का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर १.२०७.१९( सन्नीति तीर्थ में सूर्य ग्रहण के समय श्राद्ध करने से अश्वमेध शत फल की प्राप्ति का उल्लेख ), २.९२.४९( भूमि दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१८.१( आश्वमेधिक : ४९ तानों में से एक ), ३.२१८.१७( चातुर्मास काल में असिधारा व्रत से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ३.२६५.७( सत्य की सहस्र अश्वमेधों से श्रेष्ठता का उल्लेख ), ३.२९६.१५( ग्रीष्म ऋतु में तडाग में जल उपलब्ध कराने पर अश्वमेध फल की प्राप्ति, अन्य ऋतुओं में अन्य यज्ञों के फलों की प्राप्ति ), ३.३४१.१८३( कौशेय वस्त्रों आदि के दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का कथन ), ३.३४१.१९८( कर्णाभरण दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द २.२.१६.८+ ( राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा जगन्नाथ क्षेत्र में चन्दन वृक्ष के निकट सहस्र वाजिमेधों का अनुष्ठान, अन्त में भगवान के दिव्य रूप का दर्शन ), ४.१.२१.३८( अश्वमेध की क्रतुओं में श्रेष्ठता का उल्लेख ), ५.१.१०.५( पौष शुक्ल अष्टमी को कुटुम्बेश्वर तीर्थ में उपवास से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.२२.६( कोटेश्वर शिव के दर्शन से १० अश्वमेधों के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.२६.७०( मन्दाकिनी कुण्ड पर श्राद्ध से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.१.२७.९९( अवन्ती में अङ्कपाद तीर्थ में महाकाल आदि के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.१.४४.३९( उज्जयिनी के पद्मावती नाम के कारण की कथा श्रवण से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.१.५२.१( शिप्रा माहात्म्य श्रवण से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.५३.६०( पिशाचमोचन कथा श्रवण या पठन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.५४.२८( आश्विन् अमावास्या को महालय श्राद्ध से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.६३.२३९( बलि के अश्वमेध यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), ५.२.२९.१५( परशुराम द्वारा ब्रह्महत्या से मुक्ति हेतु अश्वमेध के अनुष्ठान का कथन ), ५.२.४०.४१( कुण्डेश्वर लिङ्ग पूजा से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.५८.४३( प्रयागेश्वर लिङ्ग दर्शन से शत अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.५९.२ ( अश्वशिरा राजा द्वारा अश्वमेध के अवभृथ स्नान काल में कपिल व जैगीषव्य ऋषियों का दर्शन ), ५.२.६८.५१( पिशाचेश्वर शिव के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.७७.६५( पुष्पदन्तेश्वर के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.८१.९५( पिङ्गलेश्वर के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.२.४९( रुद्र - प्रोक्त पुराण श्रवण से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.३५.२७( गर्जन तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.३८.६९( नर्मदेश्वर शिव की अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.९८.३५( प्रभास तीर्थ में जाने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.११५.९( अङ्गारक तीर्थ में गमन से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.११८.४०( नर्मदा तट पर इन्द्र तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१३२.११( कृष्ण को प्रणाम से १० अश्वमेधों के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१४०.६( नन्दा ह्रद में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१४६.१८( अस्माहक तीर्थ में अभिषेक आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.१४६.५९( अमावास्या को ब्रह्मशिला पर श्राद्ध करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति का कथन ), ५.३.१४६.१०५( अस्माहक तीर्थ में केशव अर्चना से अश्वमेध फल की प्राप्ति का कथन ), ५.३.१४६.११२( मन्वादि तिथियों आदि में पितरों को तिलोदक दान से अश्वमेध फल की प्राप्ति का कथन ), ५.३.१५२.२( भार्गलेश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१६८.३२( अङ्कूरेश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१७६.३३( देवखात में स्नान, पितृ तर्पण आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.१७७.१८( भूतीश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.१७९.७( गौतमेश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२०९.१( पुष्कली तीर्थ में स्नान से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२०९.१४२( शिव रात्रि को जागरण से अश्वमेध फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.२०९.१७८( कार्तिक शुक्ल चर्तुदशी को शिव लिङ्ग का चतुर्धा पूरण करने से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२१०.६( पुङ्खल तीर्थ में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२१४.४( कन्थेश्वर शिव के दर्शन से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ५.३.२२०.१७( रेवा - सागर सङ्गम में स्नान आदि से अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ६.२६३.१३( योगी द्वारा मन पर जय की अश्वमेध संज्ञा ), ७.१.२३४( दशाश्वमेध तीर्थ का माहात्म्य : भरत द्वारा १० अश्वमेधों द्वारा यजन का स्थान ), हरिवंश ३.५.१२( जनमेजय के अश्वमेध में इन्द्र का मृत अश्व में प्रवेश ), ३.७१.४( वामन द्वारा बलि के दिव्य अश्वमेध के स्वरूप का कथन ), वा.रामायण १.८( राजा दशरथ द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए अश्वमेध का अनुष्ठान, वर्णन ), १.१४.४०( अश्वमेध के तीन सवनीय दिनों की संज्ञाओं का कथन : चतुष्टोम, उक्थ्य, अतिरात्र ), ७.९०( इल द्वारा अश्वमेध के अनुष्ठान से पुरुषत्व प्राप्ति का वर्णन ), ७.९१+ ( राम के अश्वमेध अनुष्ठान का वर्णन, लव - कुश द्वारा रामायण का गान, सीता द्वारा शुद्धि प्रमाण हेतु शपथ ग्रहण व रसातल में प्रवेश ), लक्ष्मीनारायण १.८४.४४( काशी में ब्रह्मा द्वारा दशाश्वमेध लिङ्ग की स्थापना व माहात्म्य ), २.१५७.३०( अङ्ग न्यास में अश्वमेध का मूर्धा में न्यास ), ३.२२.८८( अश्वमेध में अश्व के स्थान पर अग्नि में कूष्माण्ड फल की हवि देने का निर्देश ), ३.३१( पिता की अश्व योनि से मुक्ति के लिए धर्मधर द्वारा अश्वमेध का अनुष्ठान, अश्वमेध विधि का वर्णन ), कथासरित् ८.२.१८ ( , द्र. दशाश्वमेध, यज्ञ ashvamedha
अश्वयुज स्कन्द ५.३.१७९.१०( गौतमेश्वर तीर्थ में अश्वयुज में दान आदि के माहात्म्य का कथन )
अश्वरथ कूर्म १.४०.२२( कुश द्वीप के स्वामी ज्योतिष्मान का एक पुत्र )
अश्ववाहन स्कन्द ५.२.६१.२( प्राग्ज्योतिषपुर के राजा अश्ववाहन द्वारा दुर्भगा पत्नी मदनमञ्जरी का त्याग, पत्नी द्वारा महाकाल वन में सौभाग्येश्वर लिङ्ग की आराधना से सुभगा बनना ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१०५( कृष्ण व विश्वा - पुत्र )ashvavaahana
अश्वशिरा गर्ग २.१३( अश्वशिरा मुनि का वेदशिरा मुनि के शाप से काकभुशुण्डि बनना ), भागवत ४.१.४२( अथर्वा व चित्ति - पुत्र दध्यङ्ग का उपनाम ), ६.९.५२( वही), मत्स्य २४५.३१( बलि दैत्य के एक सेनानी का नाम ), वराह ४.१३( अश्वशिरा राजा द्वारा अश्वमेध के अन्त में कपिल व जैगीषव्य मुनियों का दर्शन, हरि आराधना विषयक प्रश्न के उत्तर में मुनियों का नारायण व गरुड रूप के दर्शन ), ५.४( अश्वशिरा राजा की कपिल मुनि से मोक्ष के लिए कर्म या ज्ञान मार्ग विषयक पृच्छा, आत्रेय - लुब्धक दृष्टान्त, स्थूलशिरा पुत्र को राज्य सौंपना ), विष्णुधर्मोत्तर ३.११९.३( विद्यारम्भ में अश्वशिरा देवता? की पूजा ), ३.१२१.४( कर्णाटक में अश्वशिरा की पूजा का निर्देश ), स्कन्द ५.२.५९( अश्वशिरा राजा द्वारा जैगीषव्य व कपिल मुनियों का दर्शन, मुनियों का सिद्धि प्रभाव से विष्णु, गरुड आदि बनना, सिद्ध लिङ्ग की पूजा ), लक्ष्मीनारायण १.५२५( कपिल से कर्म या ज्ञान से मोक्ष विषयक पृच्छा, लुब्धक - ब्राह्मण दृष्टान्त आदि )ashvashiraa
अश्वसर लक्ष्मीनारायण ४.२६.५५( कृष्ण का एक नाम, अश्वसर द्वारा कर्म दोषों से रक्षा )
अश्वसेन महाभारत आदि २२७.४७(तस्मिन्वने दह्यमाने षडग्निर्न ददाह च। अश्वसेनं मयं चैव चतुरः शार्ङ्गकांस्तथा।।)
अश्वारूढा ब्रह्माण्ड ३.४.१६.२८( देवी, ललिता - सहचरी, भण्डासुर से युद्ध हेतु प्रस्थान ), ३.४.२२.१०३( अश्वारूढा द्वारा कुरण्ड का वध ), ३.४.२६.३८( अश्वारूढा द्वारा राज चक्र रथ के पूर्व दिशा की रक्षा ), ३.४.२८.३८( अश्वारूढा देवी का उलूकजित् से युद्ध )
अश्विनौ अग्नि १७७.१( द्वितीया तिथि को अश्विनौ पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य), गरुड १.११६.३( प्रतिपदा को अश्विनौ की पूजा ), ३.५.५५(उषा – पति), गर्ग १.५.२९( अश्विनौ का नकुल व सहदेव रूप में अवतरण ), देवीभागवत ७.४+ ( च्यवन - पत्नी सुकन्या के पातिव्रत्य की परीक्षा, च्यवन द्वारा सरोवर में स्नान से अश्विनौ के तुल्य रूप होना, च्यवन द्वारा अश्विनौ को सोमपायी बनाना ), ७.७( अश्विनौ द्वारा सोमपान करने पर इन्द्र द्वारा च्यवन पर वज्र प्रहार की कथा ), ७.३६.२८( अश्विनौ द्वारा दध्यङ्ग आथर्वण से विद्या प्राप्ति हेतु दध्यङ्ग को अश्व शिर से युक्त करना ), ९.२२.७( शङ्खचूड - सेनानी दीप्तिमान् से युद्ध ), पद्म ५.१५.११( यज्ञ में भाग मिलने पर च्यवन ऋषि को चक्षु प्रदान की कथा ), ६.५.९० ( जालन्धर - सेनानी अङ्गारपर्ण से युद्ध ), ब्रह्म १.४.४३( अश्व रूपी सूर्य व वडवा रूपी संज्ञा से उत्पत्ति की कथा ), २.१९.३४( वही), २.९०.८( अश्विनौ के शम्बर व मय से युद्ध का उल्लेख? ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१२३( अश्विनौ के ब्राह्मणी से समागम पर गणक/ज्योतिषी पुत्र की उत्पत्ति की कथा ), १.११.२( सुतपा ब्राह्मण द्वारा अश्विनौ को व्याधिग्रस्त होने व यज्ञ भाग रहित होने का शाप, पुन: तप से नीरोगी करना ), १.१६.१७( अश्विनौ, नकुल व सहदेव द्वारा चिकित्सा ग्रन्थों की रचना का कथन ), ४.६२.४२(उर्वशी के शाप से स्वर्वैद्य के यज्ञभाग रहित होने का उल्लेख), भविष्य १.५७.४( अश्विनौ हेतु अपूप बलि का उल्लेख ), १.५७.१५( अश्विनौ हेतु कर्णिकार देने का उल्लेख ), ३.३.३१.१२१( मद्र देश के अधिपति मद्रकेश द्वारा अश्विनौ की आराधना से १० पुत्र व १ कन्या की प्राप्ति ), ३.४.१८.४१( अश्विनौ द्वारा छाया - पुत्रों का बन्धन, सूर्य से वर प्राप्ति, इडा व पिङ्गला को पत्नियों के रूप में प्राप्त करना, जन्मकुण्डली में विशिष्ट कार्य का कथन, कलियुग में इडा - पति का सधना शूद्र व पिङ्गला - पति का रैदास चर्मकार रूप में अवतार ), मत्स्य १४८.९६( अश्विनौ की ध्वज पर कुम्भ चिह्न का उल्लेख ), १५०.१९२( तारक - सेनानी कालनेमि से युद्ध ), २४१.१०( रथ के चक्रों के रक्षक ), महाभारत शान्ति ३१७.६(भ्रुवों से प्राण के उत्क्रमण पर अश्विनौ लोक की प्राप्ति का उल्लेख), मार्कण्डेय ५.१३( इन्द्र द्वारा गौतम रूप धारण कर अहल्या धर्षण के समय इन्द्र के रूप का नासत्यौ में अवगमन ), ७८.२३/७५.२३( अश्विनौ की उत्पत्ति का कथन ), १०८.९/१०५.९( वही), वराह १७.६७( शरीरपात आख्यान में अश्विनौ के प्राणापानौ बनने का उल्लेख ), २०.१६( प्राण - अपान की सूर्य व संज्ञा से अश्विनौ रूप में उत्पत्ति, अश्विनौ द्वारा कर्तव्य ज्ञान के लिए ब्रह्मपाद स्तोत्र द्वारा ब्रह्मा की आराधना, देवभाग प्राप्ति, द्वितीया तिथि निर्धारण), ५७.१७( कार्तिक शुक्ल द्वितीया को अश्विनौ के शेष व विष्णु रूप होने का उल्लेख ), वामन ५७.६४( अश्विनौ द्वारा स्कन्द को वत्स-नन्दी गणद्वय प्रदान करने का उल्लेख ), ६९.५९( अन्धक - सेनानी नरकासुर से युद्ध ), वायु ८४.२३/२.२२.२३( अश्व रूपी सूर्य व वडवा रूपी संज्ञा से अश्विनौ की उत्पत्ति का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.८२.४ (१२ खण्डयुगेश्वरों में से एक), ३.४९ (नासत्य की मूर्ति का रूप), ३.१३० (नासत्य की पूजा), शिव २.१.१२.३२( अश्विनौ द्वारा पार्थिव लिङ्ग की पूजा का उल्लेख ), २.५.३६.१२( शङ्खचूड - सेनानी दीप्तिमान्-द्वय से युद्ध ), स्कन्द १.२.५.८२( वर्णमाला में सौ, ह वर्णों के देवता ), १.२.१३.१६५( शतरुद्रिय प्रसंग में अश्विनौ द्वारा सुवेधा नाम से मृन्मय लिङ्ग की पूजा का उल्लेख ), २.७.१९.४३(घ्राण में नासत्यौ की स्थिति का कथन, नासत्य के निष्क्रमण पर भी देहपात न होना), ३.१.११.२५(अग्नि व वायु रूप अश्विनौ के मिथ राक्षस से युद्ध का उल्लेख), ३.१.११.२८( अग्नि व वायु रूपी अश्विनौ द्वारा कपालाभरण के अनुजों का वध ), ३.१.३३.१०(अर्वावसु – परावसु के रूप की अश्विनौ से तुलना), ३.१.४९.६०( अश्विनौ द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ३.२.१३.४९( अश्विनौ की उत्पत्ति का कथन ), ५.३.२८.११( बाण के त्रिपुर वध हेतु शिव के रथ में अश्विनौ के धुरि बनने का उल्लेख ), ५.३.३९.३०( अश्विनौ की कपिला गौ के कर्णों में स्थिति ), ५.३.१९९( अश्विनौ तीर्थ का माहात्म्य : अश्विनौ की उत्पत्ति की संक्षिप्त कथा ), ६.२५२.३४( चातुर्मास में अश्विनौ की मदन वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), ७.१.११.२०५( अश्व रूप धारी सूर्य व संज्ञा से नासत्य व दस्र की उत्पत्ति, रेवन्त की उत्पत्ति का प्रसंग ), ७.१.१६४( अश्विनौ लिङ्ग का माहात्म्य ), ७.१.२८२+( च्यवन द्वारा अश्विनौ को सोम प्रदान करने पर इन्द्र द्वारा च्यवन की भुजा का स्तम्भन, च्यवन द्वारा मद असुर की उत्पत्ति आदि ), ७.१.२८४.१( अश्विनौ का च्यवन के साथ स्नान करने से च्यवन का अश्विनौ रूप होना ), ७.३.३६.१८२( महिषासुर वध के पश्चात् अश्विनौ द्वारा चण्डिका को वरदान ), हरिवंश १.९.५४( अश्व रूपी सूर्य व वडवा रूपी संज्ञा से अश्विनौ की उत्पत्ति का कथन ), ३.५७.४४( बलि - सेनानी वृत्रासुर से युद्ध व पराजय ), वा.रामायण १.१७.१४( मैन्द व द्विविद वानरों के रूप में जन्म ), लक्ष्मीनारायण १.६३.४०( सूर्य व वडवा संज्ञा से अश्विनौ की उत्पत्ति का कथन ), १.२६७.११( चैत्र शुक्ल द्वितीया को अश्विनौ की उत्पत्ति, अश्विनौ व्रत की विधि ), १.३९०.६८( अश्विनौ द्वारा च्यवन को नवयौवन प्रदान करना, सुकन्या के पातिव्रत्य की परीक्षा, यज्ञ में भाग ग्रहण करना ), १.४४१.८८( अश्विनौ का मदन वृक्ष रूप में अवतरण ), १.५४३.७९( दक्ष द्वारा अश्विनौ को अर्पित २ कन्याओं के नाम – सुवेषा व भूषणा ), २.११.७( अश्विनौ द्वारा बाल कृष्ण का कर्ण वेध संस्कार कर्म करना ), २.७८.८८( अश्विनौ द्वारा पापों से कृष्णता को प्राप्त हुए विप्रों को रूपवान् बनाना ), २.११२.९( अश्विनौ की ब्रह्मपुत्र नदी में वक्र गति में स्थिति का उल्लेख ), २.२४५.२३( यज्ञ के महावीर कर्म में घर्म के देवता ), २.२४५.३२( अश्विनौ द्वारा विष्णु की यज्ञ मूर्ति का छिन्न शीर्ष जोडने पर सोमयाग में भाग प्राप्ति ), कथासरित् ७.७.१५( अश्विनौ द्वारा नागार्जुन को अमृत निर्माण से रोकना ), ८.५.७६( केतुमालेश्वर क्षेत्र में अश्विनौ के अंश से दम व नियम नामक विद्याधरों की उत्पत्ति ), ८.७.३१( , अथर्ववेद ५.२६.१२(अश्विनौ वषट्कारेण), द्र. दस्र, नासत्य, प्रतिपदा आदि तिथियां, तिथि, मास
Ashvinau/ ashwinau
अष्ट गर्ग ५.१७.१८( कृष्ण विरह पर अष्ट सखियों के उद्गार का कथन ), स्कन्द ७.१.१६२.१( अष्टकुलेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य )
अष्टक अग्नि १४६( अष्टाष्टक देवियों का वर्णन ), नारद १.११७.८८( पौष शुक्ल अष्टमी को अष्टक संज्ञक श्राद्ध ), पद्म १.२९.१०( सौभाग्य अष्टक द्रव्य की उत्पत्ति व महिमा ), भविष्य ३.२.२२.२९( दुर्गा अष्टक/स्तोत्र की महिमा : क्षत्रसिंह राजा का वेताल बनना ), मत्स्य ३८+ ( अष्टक का स्वर्ग से पतनशील ययाति से संवाद ), ४१+ ( अष्टक द्वारा ययाति को अपने पुण्यों के दान का प्रस्ताव, स्वर्ग गमन की प्रतिस्पर्द्धा ), वायु ९१.१०३( दृषद्वती व विश्वामित्र - पुत्र ), विष्णु ४.१४.३०( आनकदुन्दुभि - पुत्र ), स्कन्द ५.१.६४.१६-२४( भैरवाष्टक स्तोत्र का वर्णन ), ७.१.१०.६(महाभूत अनुसार तीर्थों का अष्टकों में वर्गीकरण), ashtaka
अष्टका देवीभागवत ७.९.१( विकुक्षि द्वारा अष्टका श्राद्ध हेतु मांस लाने के लिए वन में जाने व मांस भक्षण की कथा ), पद्म १.९.२८( शापित अच्छोदा का पितरलोक में अष्टका नाम ), ३.५३.७६( अष्टका तिथियों का कथन ), मत्स्य १४.१८( पितरों की कन्या अच्छोदा का शापवश पितरलोक में अष्टका व मनुष्य लोक में सत्यवती नाम से जन्म लेना ), १४१.१७( अष्टकापति : काव्य पितरों का नाम ), स्कन्द ५.१.५९.१६( अष्टका को मातृकाओं के श्राद्ध का उल्लेख ), द्र. अच्छोदा, एकाष्टका Ashtakaa
अष्टमी अग्नि १८३( भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि ), १८४.९( बुधाष्टमी व्रत विधि व माहात्म्य : कौशिक ब्राह्मण का व्रत के प्रभाव से अयोध्यापति बनना ), १८४.१( चैत्र शुक्ल अष्टमी : ब्रह्मा व मातृकाओं का पूजन ), १८४.२( मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी : कालाष्टमी व्रत, मास अनुसार शिव पूजा विधि ), १८४.२१( चैत्र शुक्ल अष्टमी : अशोक वृक्ष की पूजा - अशोककलिकाश्चाष्टौ ये पिबन्ति पुनर्वसौ ॥ चैत्रे मासि सिताष्टम्यां न ते शोकमवाप्नुयुः । ), २६८.१३( आश्विन् शुक्ल अष्टमी : भद्रकाली की पूजा - भद्रकालीं पटे लिख्य पूजयेदाश्विने जये ।। शुक्लपक्षे तथाष्टम्यामायुधं कार्म्मुकं ध्वजम् ।छत्रञ्च राजलिङ्गानि शस्त्राद्यं कुसुमादिभिः ।।), गरुड १.१३१.२( भाद्रपद शुक्ल अष्टमी : दूर्वाष्टमी ), १.१३१( मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी : रोहिणी अष्टमी व्रत की विधि ), १.१३२( पौष शुक्ल अष्टमी : बुध पूजा का माहात्म्य, कौशिक द्विज की कथा ), १.१३३( अश्वयुज शुक्ल अष्टमी : महानवमी नाम, दुर्गा पूजा ), १.१३३.२( चैत्र शुक्ल अष्टमी : अशोक अष्टमी व्रत ), देवीभागवत ९.३८.८३( भाद्रपद शुक्ल अष्टमी : महालक्ष्मीव्रत ), नारद १.११७( अष्टमी तिथि के व्रत : दुर्गा आदि की पूजा, कृष्ण व राधा जन्माष्टमी, गोपाष्टमी, अष्टक श्राद्ध आदि ), पद्म ४.७( भाद्रपद शुक्ल अष्टमी : राधा जन्माष्टमी का माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.८६( भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को महालक्ष्मी की पूजा का माहात्म्य - भाद्रशुक्लाष्टमीं प्राप्य महालक्ष्मीं च योऽर्चयेत् ।), भविष्य ३.३.२५.३६( माघ कृष्ण अष्टमी : लक्षण का गृह आगमन - आगतो लक्षणो गेहं माघकृष्णाष्टमीदिने । जयचंद्रस्तु तं दृष्ट्वा लक्षणं प्रेमविह्वलः ।। ), ३.४.२५.१५( मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी : कल्कि अवतार ), ४.५४( बुध अष्टमी व्रत की विधि व माहात्म्य : व्रत के पुण्य की प्राप्ति से श्यामला - माता उर्मिला का नरक से उद्धार ), ४.५५( भाद्रपद कृष्ण अष्टमी : कृष्ण जन्माष्टमी व्रत की विधि व माहात्म्य ), ४.५६( भाद्रपद शुक्ल अष्टमी : दूर्वाष्टमी व्रत की विधि व माहात्म्य ), ४.५७( कृष्ण अष्टमी व्रत : मास अनुसार विशिष्ट नामों से शिव लिङ्ग की पूजा ), ४.५८( मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी : अनघाष्टमी व्रत की विधि व माहात्म्य, अनघ/दत्तात्रेय के प्रसाद से कार्तवीर्य का गुण सम्पन्न होना ), ४.५९( सोमाष्टमी व्रत की विधि व माहात्म्य : शिव या सूर्य की आराधना ), मत्स्य ५६( कृष्ण अष्टमी व्रत : मास अनुसार शिव की पूजा ), वराह ६३.२ ( कृष्ण अष्टमी व्रत का माहात्म्य : पुत्र प्राप्ति हेतु - मासे भाद्रपदे या तु कृष्णपक्षे नरेश्वर । अष्टम्यामुपवासेन पुत्रप्राप्तिव्रतं हि तत् ।। ), वामन १६.३०( भाद्रपद कृष्ण अष्टमी : कालाष्टमी को शिव पूजा विधान - नभस्ये मासि च तथा या स्यात्कृष्णाष्टमी शुभा। युक्ता मृगशिरेणैव सा तु कालाष्टमी स्मृता।। ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१७२( चैत्र शुक्ल अष्टमी से आठ वसुरूप अष्टात्मा वासुदेव की अर्चना का माहात्म्य - अष्टात्मा वासुदेवोऽयं प्रभवेनाप्ययेन च । ), ३.१७३( शुक्ल पक्ष में सोमवार अष्टमी को त्रिलोचन शिव की अर्चना का महत्त्व ), ३.२१७( सन्तान अष्टमी व्रत : चैत्र कृष्ण अष्टमी से कृष्ण की पूजा ), ३.२२१.६६( अष्टमी तिथि को पूजनीय देवी - देवताओं के नाम - अष्टम्यां पूजनं कृत्वा वसूनां धर्मसत्तम । नाकलोकमवाप्नोति गतिमग्र्यां च विन्दति ।। ), स्कन्द १.२.३६.३६( वैशाख कृष्ण अष्टमी : रुद्र के सिद्ध लिङ्ग की पूजा का माहात्म्य - वैशाखमासस्याष्टम्यां कृष्णायां सिद्धकूपके॥ स्नात्वा पिंडान्वटे कृत्वा पूजयन्मां च सिद्धभाक्॥ ), १.२.६५.१११( आश्विन् शुक्ल अष्टमी : वत्सेश्वरी देवी की पूजा ), २.२.२७.१०२( वैशाख शुक्ल अष्टमी को विष्णु की अर्चना - शुक्लाष्टमी या वैशाखे गुरुपुष्ययुता यदा ।। तस्यामभ्यर्चनं विष्णोः कोटिजन्माघनाशनम् ।। ), २.२.२९.३१( चैत्र शुक्ल अष्टमी को गुण्डिचा यात्रा - माघमासस्य पंचम्यामष्टम्यां चैत्रशुक्लके ।।एते कालाः प्रशस्ता हि गुंडिचाख्यमहोत्सवे ।। ), ४.२.६१.१२६( चैत्र अष्टमी को भवानी तीर्थ की यात्रा - चैत्राष्टम्यां महायात्रां भवान्याः कारयेत्सुधीः ।। अष्टाधिकाः प्रकर्तव्याः शतकृत्वः प्रदक्षिणाः ।। ), ४.२.६३.१४( ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को काशी में ज्येष्ठ तीर्थ में ज्येष्ठा गौरी की आराधना ), ४.२.९७.१५०( अशोक नामक चैत्र अष्टमी को मध्यमेश लिङ्ग की पूजा ), ५.१.८.२१( आश्विन् शुक्ल अष्टमी को कलहनाशन कुण्ड में स्नान के फल का कथन - आश्विनस्य सिताष्टम्यामर्धरात्रिगते नरः ।। यः स्नाति पुरतो देव्याः स सिद्धि लभते पराम् ।। ), ५.१.१०.४( पौष शुक्ल अष्टमी को कुटुम्बेश्वर तीर्थ में उपवास के फल से अश्वमेध फल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.७०.२( भाद्रपद शुक्ल अष्टमी : रम्य सर में स्नान का माहात्म्य ), ५.३.२६.११५ ( विभिन्न तिथियों में दान के संदर्भ में अष्टमी को कृष्णा धेनु दान के महत्त्व का कथन - कृष्णां धेनुं तथाष्टम्यां या प्रयच्छति भामिनी ॥ ब्राह्मणे वृत्तसम्पन्ने प्रीयतां मे महेश्वरः । तस्या जन्मार्जितं पापं नश्यते विभवान्विता ॥ ), ५.३.५१.५( श्रावण कृष्ण अष्टमी - मन्वन्तरादि तिथियों में एक ), ६.११६.२( चैत्र शुक्ल अष्टमी : रेवती देवी की पूजा ), ६.१६८.५३( चैत्र शुक्ल अष्टमी : विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ वधार्थ उत्पन्न धारा नामक कृत्या की पूजा ), ६.१९९.५७( भाद्रपद शुक्ल अष्टमी : विश्वामित्रेश्वर तीर्थ में स्नान ), ६.११६.५०( आश्विन् शुक्ल अष्टमी : रेवती द्वारा अम्बा देवी की पूजा - तथाऽहं नागलोकाच्च चतुर्दश्यष्टमीषु च ॥ सदा त्वां पूजयिष्यामि विशेषान्नवमीदिने ॥ ), ६.१९९.५८( आश्विन् शुक्ल अष्टमी : शक्र तीर्थ में स्नान का माहात्म्य ), ६.२०९.४४( वैशाख शुक्ल अष्टमी : शंख तीर्थ में स्नान से कुष्ठ से मुक्ति ), ७.१.४.११९( चैत्र शुक्ल अष्टमी : गौरी पूजा ), ७.३.१५.१०( कार्तिक शुक्ल अष्टमी : अमृत विद्या प्राप्ति हेतु शुक्र लिङ्ग की पूजा ), ७.३.२८.१०( बुध अष्टमी : मनुष्य तीर्थ में स्नान ), हरिवंश २.८०.२४( दांतों की सुन्दरता के लिए शुक्ल अष्टमी को भोजन त्याग का निर्देश ), लक्ष्मीनारायण १.२७३ ( वर्ष की २४ अष्टमी तिथियों में करणीय व्रतों का वर्णन ), १.३००.२८( पुरुषोत्तम मास की अष्टमी का माहात्म्य : ब्रह्मा के दुन्दुभि आदि ९ पुत्रों का कृष्ण - पार्षद बनना ), १.३१५.८५( पुरुषोत्तम मास की अष्टमी तिथि का माहात्म्य व विधि ), १.४७२.१०५( कार्तिक कृष्ण अष्टमी का माहात्म्य : परिमलालय विद्याधर की तीन पत्नियों द्वारा गोलोक प्राप्त करना ), २.१९( कार्तिक कृष्ण अष्टमी को कृष्ण के द्वितीय जन्मोत्सव की विधि का वर्णन ), २.२७.७७( कालाष्टमी नामक भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को शिव का शयन ), २.३३.५( आश्विन् अष्टमी : गौरी व्रत, गौरी विसर्जन काल में व्याघ्र का प्रकट होना ), २.१९०( भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को कृष्ण की दिनचर्या का वर्णन ), २.२०९( भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को कृष्ण कृत यज्ञनारायण की पूजा व दिनचर्या का वर्णन ), २.२२८.८०( आश्विन् कृष्ण अष्टमी को कृष्ण की दिनचर्या का वर्णन ), २.२३४( कार्तिक कृष्ण अष्टमी को कृष्ण के १५वें जयन्ती उत्सव का वर्णन ), २.२४४( मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को अश्वपाटल नृप द्वारा सोमयाग के आरम्भ का वर्णन ), ३.१३६.११( अष्टमी को अच्छोदा/सत्यवती की अर्चना का निर्देश ), ३.४७.८९( अष्टाङ्ग योग में अष्टमी तिथि का कथन ), कथासरित् ८.३.५२( फाल्गुन कृष्ण अष्टमी को वल्मीक स्थान पर चक्रवर्तियों के लक्षण प्रकट होने का उल्लेख ), द्र. जन्माष्टमी Ashtamee/ashtami
अष्टसखी पद्म ५.७०.५(राधा की ८ सखियों द्वारा कृष्ण से विरह पर प्रतिक्रियाएं), स्कन्द ७.४.१२.१६(राधा के कृष्ण से विरह पर ८ सखियों द्वारा व्यक्त प्रतिक्रियाएं), ७.४.२२.३३(अष्टसखी का कथन)।
अष्टावक्र गर्ग २.६.११( अष्टावक्र द्वारा अघासुर को शाप देकर सर्प बनाना ), ४.२३.६( सुदर्शन विद्याधर द्वारा उपहास करने पर अष्टावक्र द्वारा विद्याधर को शाप से अजगर बनाना ), १०.१७.२५( नारीपाल द्वारा उपहास होने पर अष्टावक्र द्वारा शाप ), ब्रह्म १.१०३.७२( अष्टावक्र द्वारा अप्सराओं को कृष्ण पति प्राप्ति का वर व दस्यु हरण का शाप ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२९.३३+ ( अष्टावक्र का कृष्ण के समीप आगमन, कृष्ण की स्तुति, प्राण त्याग, पूर्व काल में असित - पुत्र देवल का रम्भा शाप से विकृत - देह होना ), विष्णु ५.३८.७१( अष्टावक्र द्वारा अप्सराओं को कृष्ण - पत्नियां बनने का वरदान व रुष्ट होने पर शाप ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२२+ ( अष्टावक्र का कुबेर से धर्म फल सम्बन्धी संवाद ), ३.२२३(अष्टावक्र द्वारा कुबेर से रोचव्रत विधि का श्रवण), ३.२२४( अष्टावक्र का उत्तर दिशा से स्त्री सम्बन्धी संवाद, पत्नी की प्राप्ति ), स्कन्द ३.१.२३.२६( देवों के माहेश्वर यज्ञ में अध्वर्यु ऋत्विज ), ४.१.४५.३५( अष्टावक्त्रा : ६४ योगिनियों में से एक ), कथासरित् १४.१.२२( अङ्गिरा द्वारा अष्टावक्र - पुत्री सावित्री से विवाह की याचना, अस्वीकृत होने पर अष्टावक्र - भ्राता की पुत्री अश्रुता से विवाह ) Ashtaavakra/ ashtavakra
असम गर्ग ७.१५.१८( असम देश के अधिपति बिम्ब द्वारा प्रद्युम्न को भेंट ), लक्ष्मीनारायण २.११५.१७( आसाम देश में कामाक्षी देवी का वास, निरुक्ति )
असमञ्जस
देवीभागवत
९.११.५(
सगर
व शैब्या
- पुत्र,
गङ्गा
अवतारण हेतु
तप
- तत्पत्न्यामेकपुत्रश्च
बभूव सुमनोहरः ।।
असमंज
इति ख्यातः शैब्यायां कुलवर्धनः
।। ),
ब्रह्माण्ड
२.३.५१.५४(
सगर
- पुत्र,
पूर्व
जन्म में
वैश्य, पिशाच
को प्रतिश्रुत
न देने
पर पिशाच
द्वारा असमञ्जस
का आवेष्टन,
नृशंस
कार्यों के
कारण पिता
द्वारा
निष्कासन -
एतस्मिन्नन्तरे
राज्ञस्तस्य पुत्रोऽसमञ्जसः
।
आविष्टो
नष्टचेष्टोऽभूत्स पिशाचेन
केन चित् ॥ ),
भागवत
९.८.१५(
असमञ्ज
: सगर
- पुत्र,
अंशुमान
- पिता,
दुष्ट
व विचित्र
कर्मों के
कारण पिता
द्वारा त्याग
- असमञ्जस
आत्मानं दर्शयन् असमञ्जसम्
।
जातिस्मरः
पुरा संगाद् योगी योगाद्
विचालितः ॥
), वायु
८८.१६५/२.२६.१६४(
बर्हिकेतु
उपनाम ),
विष्णु
४.४.५(
असमञ्ज
: सगर
- पुत्र,
अंशुमान
- पिता,
दुष्ट
व विचित्र
कर्मों के
कारण पिता
द्वारा त्याग
), हरिवंश
१.१५.६(
सगर
व केशिनी
- पुत्र,
पञ्चजन
उपनाम
- केशिन्यसूत
सगरादसमञ्जसमात्मजम् ।।
राजा
पञ्चजनो नाम बभूव सुमहाबलः
। ),
Asamanja
असि अग्नि ८१.१९( दीक्षा कर्म में कुश से बोधमय खड्ग का निर्माण ), २४५.१४( ब्रह्मा के यज्ञ में अग्नि से खड्ग का प्राकट्य, विष्णु द्वारा नन्दक खड्ग रूप में ग्रहण करके लोह दैत्य का वध, देश अनुसार खड्ग की विशिष्टता का वर्णन ), २५२.४( खड्ग द्वारा युद्ध की ३२ विधियां ), २६९.२९( खड्ग स्तुति मन्त्र ), गर्ग १०.७.५३( अश्वमेध के संदर्भ में असिपत्र व्रत की महिमा ), नारद २.४८.२१( असी : काशी में शुष्क नदी, पिङ्गला नाडी का स्वरूप ), पद्म ४.२२.३०( असिमर्दन व्याध द्वारा आदित्यवर्चस के वध का कथन ), ६.१३५.११६( साभ्रमती तट पर राजखड्ग तीर्थ का माहात्म्य : स्नान से राजा वैकर्तन की कुष्ठ रोग से मुक्ति ), ६.१४७( खड्ग तीर्थ में विश्वेश्वर शिव के दर्शन का माहात्म्य ), ६.१५४.१( खड्ग धारा तीर्थ का माहात्म्य : चण्ड किरात द्वारा अनायास शिव की अर्चना का वृत्तान्त ), ६.१९०( खड्गबाहु राजा द्वारा गीता के १६वें अध्याय का महत्त्व जानकर अरिमर्दन नामक उन्मत्त हाथी को वश में करना ), ६.१९१( खड्गबाहु राजा के दु:शासन नामक रोगग्रस्त हाथी का गीता के १७वें अध्याय के श्रवण से मुक्त होने का वृत्तान्त ), ७.६.३( वीरवर पुरुष/स्त्री द्वारा भीमनाद खड्ग/गण्डक का वध और खड्ग के पूर्व जन्म का वृत्तान्त ), ब्रह्म २.६९( पैलूष द्वारा ज्ञान खड्ग से क्रोध, तृष्णा, संग, संशय, आशा आदि शत्रुओं का छेदन ), २.७३.१५( रावण को शिव से चन्द्रहास खड्ग की प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.११९( नरक में असिपत्र वन प्रापक दुष्कर्मों का कथन ), भविष्य ४.१३८.६७( खड्ग मन्त्र : खड्ग के ८ पर्यायवाची नाम आदि ), भागवत ६.८.२६( विष्णु की तलवार से शत्रुओं को छिन्न - भिन्न करने की प्रार्थना ), १२.११.१५( विष्णु के आयुध असि का नभस्तत्त्व का प्रतीक होने का उल्लेख ), मार्कण्डेय ८२.२४( महिषासुर वध के संदर्भ में काल द्वारा चण्डिका देवी को खड्ग व चर्म भेंट करना ), वराह १६६( मथुरा में वराह द्वारा दिव्य असि से विमति राजा के शिर का छेदन करने के पश्चात् असि कुण्ड का निर्माण, असि कुण्ड का माहात्म्य ), विष्णु १.२२.७४( विष्णु के आयुध असि के संदर्भ में विद्यामय असि के अविद्यामय कोश में स्थित होने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१७( लोहासुर के उपद्रव की शान्ति हेतु ब्रह्मा द्वारा नन्दक नामक खड्ग को उत्पन्न करके केशव को प्रदान करना, उत्तम खड्ग के लक्षण आदि ), २.१६०.२६( असि के खड्ग आदि ८ नामों, कृत्तिका नक्षत्र और रोहिणी शरीर का उल्लेख ), ३.१०.६( वही), स्कन्द १.३.१.११.४+ ( गौरी देवी द्वारा महिषासुर पर खड्ग, चक्र, असियों द्वारा प्रहार, खड्ग द्वारा महिष का सिर कर्तन, शीर्ष के कण्ठ में स्थित लिङ्ग का गौरी के पाणितल से चिपकना, देवी द्वारा अरुणाचल पर खड्ग तीर्थ में लिङ्ग की स्थापना और शिव के वास्तविक लिङ्ग का दर्शन करना आदि ), ३.३.१२.३४( ऋषभ योगी द्वारा सीमन्तिनी - पुत्र भद्रायु को शत्रु नाश हेतु दिव्य खड्ग व शंख प्रदान करना ), ४.१.५.२५( वरणा व असि नदियों में असि इडा नाडी का प्रतीक ), ४.१.३०.१५( वाराणसी में असि व वरणा नदियों का माहात्म्य ), ४.२.७४.५५( असि तट पर स्थित गणों के नाम ), ७.१.८३.३९( आश्विन् शुक्ल पञ्चमी को खड्ग पूजा विधान का वर्णन ), हरिवंश ३.१२५.१४( खड्ग युद्ध के ज्ञाताओं के रूप में डिम्भक, सात्यकि आदि ६ वीरों तथा खड्ग युद्ध के ३२ प्रकारों के नाम ), महाभारत भीष्म १४.१०( भीष्म की जिह्वा की असि से उपमा ), योगवासिष्ठ ३.३९.४( अन्धकार रूपी असि से दिन रूपी हस्ती का वध होने पर गजमुक्ताओं रूपी तारों का प्रकट होना ), वा.रामायण १.२७.१३( विश्वामित्र द्वारा राम को विद्याधर - अस्त्र नन्दन नामक असि प्रदान करने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३४८.७२( असि कुण्ड का माहात्म्य : मथुरा तीर्थ को दूषित करने वाले राजा विमति का वराह भगवान् द्वारा असि से वध ), कथासरित् २.२.४५( कालनेमि ब्राह्मण - कुमार श्रीदत्त द्वारा सिंह रूप धारी यक्ष को परास्त करके मृगाङ्क नामक खड्ग प्राप्त करना ), २.३.३८( राजा महासेन द्वारा चण्डिका देवी से दिव्य खड्ग प्राप्त करना ), ५.३.२५९( ब्राह्मण - पुत्र शक्तिदेव द्वारा स्व पत्नी के उदर को फाडकर गर्भ के कण्ठ को मुष्टि द्वारा ग्रहण करने पर गर्भ का खड्ग में रूपान्तरित होना ), ७.८.११८( इन्दीवरसेन राजकुमार द्वारा विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना से प्राप्त खड्ग की सहायता से राक्षसों का विनाश, माया को नष्ट करने हेतु खड्ग द्वारा राक्षस की मूर्द्धा के २ टुकडे करना और खड्गदंष्ट्रा सुन्दरी को प्राप्त करने आदि का वृत्तान्त ), ९.६.१५०( खड्ग नामक वैश्य - पुत्र का सिर पर रखे तप्त चक्र से पीडित होने और चक्र नामक वैश्य - पुत्र द्वारा उसे तप्त चक्र से मुक्त करने का वृत्तान्त ), ९.६.२१४( त्रिभुवन राजा द्वारा पाशुपत की सहायता से बिल में दिव्य खड्ग प्राप्त करने का वृत्तान्त ), १२.१.६६( ब्राह्मण - पुत्र वामदत्त द्वारा काल संकर्षिणी विद्या की साधना से उत्तम खड्ग प्राप्त करना ), १२.५.१६६, १२.५.३६९( राजकुमार इन्दुकलश द्वारा राजा विनीतमति से अश्व व खड्ग प्राप्त करना व खड्ग की सहायता से कनककलश को अहिच्छत्रा राज्य से च्युत करना ), १२.१४.१०८( राजा चण्डसिंह द्वारा कालनेमि असुर - कन्या से अपराजित नामक खड्ग प्राप्त करने का उल्लेख ), १५.१.२०( कामदेव के अवतार राजा नरवाहनदत्त द्वारा अहीन्द्र आभा वाली खड्ग को लक्ष्मी के केशपाश की भांति पकडना और खड्ग का सिद्ध होकर जैत्र खड्गरत्न बनना ), १७.२.१४३( शिव द्वारा विद्याधर राजपुत्र मुक्ताफलकेतु को अपराजित नामक खड्ग प्रदान करना ), महाभारत कर्ण २५.३१( भीम - पुत्र सुतसोम द्वारा शकुनि से युद्ध में असि के १४ मण्डलों का प्रदर्शन करने का उल्लेख ), सौप्तिक ७.६६( अश्वत्थामा द्वारा शिव से दिव्य असि की प्राप्ति व उसके द्वारा रात्रि में सोए हुए पाञ्चालों का संहार ), शान्ति १६६.१( नकुल के खड्ग युद्ध विशारद होने का उल्लेख ), १६६.४३( ब्रह्मा द्वारा असुरों के विनाश हेतु यज्ञ से असि नामक भयंकर भूत को प्रकट करना, रुद्र द्वारा असि से असुरों का वध, असि का विष्णु, मरीचि, इन्द्र आदि को क्रमश: हस्तान्तरण आदि ), आश्वमेधिक ४७.१४( तत्त्वज्ञान रूपी असि से अज्ञान के वृक्ष को छिन्न - भिन्न करने का निर्देश ) Asi
असिक्नी देवीभागवत ७.१( दक्ष - पत्नी, नारद - माता, ब्रह्मा के वाम हस्त के अङ्गुष्ठ से प्राकट्य, वीरिणी उपनाम ), भागवत ५.१९.१८( भारत की एक नदी ), ६.४.५१( पञ्चजन प्रजापति की पुत्री, दक्ष - पत्नी, हर्यश्वों, शबलाश्वों व ६० कन्याओं की क्रमश: उत्पत्ति ), विष्णु १.१५.९०( वीरण प्रजापति की पुत्री, दक्ष - पत्नी, पांच सहस्र हर्यश्वों, एक सहस्र शबलाश्वों व ६० कन्याओं की माता ), शिव २.२.१३( पञ्चजन - कन्या, दक्ष से विवाह, मैथुनी प्रजा की सृष्टि ) Asiknee/ asikni
असित पद्म ५.१०( राम के अश्वमेध में असित की पूर्व द्वार पर स्थिति ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.३०( प्रचेतस - पुत्र, शिव की स्तुति, देवल पुत्र प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.७.७( असिता : २४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), २.३.८.२७( कश्यप - पुत्र, ब्रह्मा का अंश, एकपर्णा - पति, देवल - पिता ), ३.४.१९.७७( असिताङ्ग : ललिता के गीति रथ चक्र के षष्ठम पर्व में स्थित भैरवों में से एक ), भागवत ११.१६.२८( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के धीरों में असित देवल होने का उल्लेख ), मत्स्य १२२.२४( सोमक वर्ष के असित अपर नाम का उल्लेख ), वराह ७८.९( असितोद : मेरु के पश्चिम में सरोवर का नाम ), वायु ७२.१७/२.११.१७( एकपर्णी - पति, देवल - पिता ), विष्णु ४.२४.१२७( असित द्वारा जनक को पृथ्वी - प्रोक्त श्लोक का कथन ), स्कन्द ४.२.६८.७१( असिताङ्ग भैरव का संक्षिप्त माहात्म्य : यम दर्शन से मुक्ति ), हरिवंश १.१८.२३( असित - देवल : एकपर्णा - पति ), १.२३.२५( असित - देवल की पुत्री सन्नति का ब्रह्मदत्त राजा की भार्या बनना ), वा.रामायण १.७०.२७( भरत - पुत्र, इक्ष्वाकु वंश, कालिन्दी - पति, सगर - पिता, हैहय आदि राजाओं द्वारा राज्य से च्युति, तु. - बाहु राजा ), कथासरित् १८.१.३( असित गिरि पर कश्यप के आश्रम में नरवाहनदत्त द्वारा स्व वृत्तान्त का कथन ) Asita
असिधार पद्म ६.१५४.१( खड्गधारा तीर्थ का माहात्म्य : चण्ड नामक किरात द्वारा अनायास शिव की अर्चना का वृत्तान्त ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२१८.१५( असिधारा व्रत की महिमा का वर्णन ), स्कन्द ४.२.७७.२१( केदार तीर्थ में एक पर्वत, गुरु हिरण्यगर्भ की मुक्ति का स्थान ) Asidhaara
असिपत्र ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.११९( नरक में असिपत्र वन प्रापक दुष्कर्म ), शिव ५.१६.१८( वृथा वृक्ष छेदन पर असिपत्र नरक प्राप्ति का उल्लेख )
असिलोमा देवीभागवत ५.१५.२( महिषासुर - सेनानी, देवी द्वारा वध ), पद्म १.६.५२( दनु - पुत्र ), मार्कण्डेय ८२.४१/७९.४१( महिषासुर - सेनानी, देवी से युद्ध ), हरिवंश ३.५१.१९( बलि - सेनानी असिलोमा का स्वरूप ), ३.५३.१५( असिलोमा का मारुत से युद्ध ), ३.५७.१३( असिलोमा द्वारा देवों की सेना को पीडित करना, हरि देवता से युद्ध व उन्हें पराजित करना ), Asilomaa
असी नारद २.४८.२१( काशी में शुष्क नदी, पिङ्गला नाडी का स्वरूप ), द्र. असि
असु भागवत ६.४.४६( असुओं के सुर होने का उल्लेख )
असुर गरुड ३.१२.९९(असुरों की आपेक्षिक श्रेष्ठता का कथन), ३.१४.३६(असुर का असार से साम्य?), ब्रह्माण्ड ३.४.९.६८( असुर शब्द की निरुक्ति : समुद्र मन्थन से उत्पन्न सुरा को दैत्यों द्वारा ग्रहण न करने के कारण दैत्यों का असुर नाम होना ), भागवत ७.१.८( रजोगुण से असुरों की वृद्धि का उल्लेख ), ११.२५.१९( सत्त्व, रज, तमोगुणों में असुरों के रजोगुण से सम्बन्ध का उल्लेख ), शिव ५.२९.२२( असुरों की प्रधान पुरुष के जघन से उत्पत्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१५७.२२( अङ्गन्यास में असुरों का वाम पाद में न्यास ), द्र. दानव, दैत्य, राक्षस Asura
असूया नारद १.७.१०( प्रजा में असूया वृत्ति के कारण राजा बाहु की राज्य से च्युति ), भागवत १०.६०.२९( रुक्मिणी का कृष्ण वचन से रुष्ट होना ), वराह २७( वाराही मातृका का रूप ), द्र. अनसूया Asuuyaa/ asuya
असृक लक्ष्मीनारायण १.३७०.६२( नरक में असृक कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख )
अस्त पद्म १.४०.६( सिद्धों के आश्रयभूत पर्वतों में से एक ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.८९( शाक द्वीप का एक पर्वत ), भागवत ८.११.४६( अस्त गिरि पर शुक्राचार्य द्वारा असुरों का पुन: सञ्जीवन ), मत्स्य १२२.१४( शाक द्वीप का रजतमय पर्वत, अपर नाम सोमक, गरुड द्वारा देवों से अमृत हरण का स्थान ), वायु ४९.८३( शाक द्वीप का एक पर्वत ), ५०.९९( सूर्य के विभिन्न पुरियों में उदय - अस्त का वर्णन ), ५०.११२( अस्त होने पर सूर्य का अग्नि में प्रवेश ), विष्णु २.४.६२( शाक द्वीप का एक पर्वत ), स्कन्द ४.१.१.५६( अस्त पर्वत के अमितप्रभ होने का उल्लेख ), हरिवंश ३.३५.२८( यज्ञवराह द्वारा निर्मित अस्ताचल के स्वरूप का वर्णन ) Asta
अस्ति गर्ग १.६.१५( जरासन्ध - कन्या, कंस - भार्या ), हरिवंश २.३४.५( जरासन्ध - कन्या, कंस - भार्या )
अस्तेय पद्म २.१३.२५( अस्तेय का निरूपण ), स्कन्द १.२.५५.१७( वही), द्र. चोरी
अस्त्र अग्नि ३२१( अघोर अस्त्र शान्ति कल्प का वर्णन ), ३२२( पाशुपत अस्त्र शान्ति का वर्णन ), ३२३( षडङ्ग अघोर अस्त्र का वर्णन ), देवीभागवत ५.९.१०( देवों द्वारा तेज से प्रकट देवी को स्व आयुध प्रदान करना ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३८.२३( राजा सुचन्द्र के वध हेतु परशुराम द्वारा पाशुपत अस्त्र का सन्धान करने पर नारायण द्वारा निवारण ), ३.४०.७२( परशुराम द्वारा ब्रह्मास्त्र से कार्तवीर्य का वध ), ब्रह्माण्ड २.३.३९.३२( परशुराम द्वारा सुचन्द्र पर प्रक्षिप्त शिव शूल का पुष्प माला बनना, आग्नेयास्त्र से सुचन्द्र की मृत्यु ), ३.४.२४.८०( तिरस्करिणी देवी द्वारा बलाहक असुर पर प्रयुक्त अन्ध बाण ), ३.४.२८.४५( विशुक्र दैत्य द्वारा मुक्त तृषा अस्त्र से देवी सेना का पीडित होना, अमृत अस्त्र से शान्ति ), ३.४.२९.६२( भण्डासुर व ललिता द्वारा प्रयुक्त अन्धतामिस्र, पाखण्ड, गायत्र, चाक्षुष्मत, विश्वावसु, अन्तक, बलीन्द्र, हैरण्याक्ष, हैहय, द्विविद, गजासुर, शाम्भव, नारायण, कलि, महाकामेश्वर, पाशुपत, महामोह आदि अस्त्र ), भविष्य १.१२३.७६( सूर्य तेज से अस्त्र निर्माण का वर्णन ), ३.३.२१.१०२( जयन्त द्वारा वैष्णव अस्त्र द्वारा शिलाश्व को भस्म करना, ब्रह्मास्त्र से शनि - प्रदत्त भल्ल को निष्प्रभावी बनाना ), भागवत ६.८.२३( विष्णु के आयुधों चक्र, गदा, शङ्ख आदि की महिमा ), १२.११.१४( विष्णु के आयुधों के प्रतीकार्थ ), मत्स्य १६२.१९( हिरण्यकशिपु द्वारा नृसिंह पर छोड गए अस्त्रों के नाम ), मार्कण्डेय २१.८५( राजा ऋतध्वज द्वारा त्वाष्ट्र अस्त्र से पातालकेतु आदि दानवों को दग्ध करना ), ६३.२७/६०.२७( इन्दीवर विद्याधर - कन्या मनोरमा द्वारा स्वारोचिष को सम्पूर्ण अस्त्रों का हृदय प्रदान करना ), ७८.१७/७५.१७( सूर्य के तेज से देवास्त्रों का सृजन ), ८२.१९/७९.१९( देवों द्वारा देवी को अस्त्र प्रदान ), १३०.६/१२७.६( राजा मरुत्त द्वारा नागों के नाशार्थ संवर्तक अस्त्र को ग्रहण करना ), १३३.६/१३०.६( दुन्दुभि से अस्त्र ग्राम ग्रहण करने का उल्लेख ), वराह २१.५४( दक्ष यज्ञ में विष्णु व शिव के बीच नारायण व रौद्र अस्त्रों से युद्ध ), शिव ५.३८.३८( राजा सगर द्वारा आग्नेयास्त्र द्वारा हैहयों को नष्ट करने का वर्णन ), स्कन्द ५.१.४९.२८( शिव द्वारा कृष्ण के वैष्णव अस्त्र के निवारण हेतु पाशुपत अस्त्र का संधान, कृष्ण द्वारा मोहनास्त्र का सन्धान ), ५.३.४८.४९(अन्धक - शिव युद्ध में प्रयुक्त आग्नेय, वारुण आदि अस्त्रों का उल्लेख ), ५.३.९०.५७( तालमेघ दैत्य व श्रीकृष्ण द्वारा प्रयुक्त आग्नेय आदि अस्त्रों का कथन ), हरिवंश २.१२५.४( कृष्ण द्वारा शिव के विरुद्ध प्रयुक्त जृम्भण अस्त्र ), ३.४४.६( हिरण्यकशिपु द्वारा नृसिंह पर प्रयुक्त अस्त्रों के नाम ), योगवासिष्ठ १.९.१७( कृशाश्व व जया के अस्त्र रूपी ५० पुत्रों की विश्वामित्र द्वारा प्राप्ति ), ३.४८.२४+ ( विदूरथ व सिन्धुराज के युद्ध में प्रयुक्त मोहन, प्रबोध, नाग, सौपर्ण, तमो, राक्षस, नारायण,आग्नेय, वारुण, शोषण, पर्जन्य, वायव्य, पर्वत, वज्र, ब्रह्म, पिशाच आदि अस्त्रों का वर्णन ), ३.५०( विदूरथ से युद्ध में सिन्धुराज द्वारा वैष्णव अस्त्र का प्रयोग ), वा.रामायण १.२१.१४( अस्त्र - शस्त्र : महर्षि कृशाश्व के पुत्र ), १.२७( राम द्वारा विश्वामित्र से प्राप्त अस्त्रों के नाम ), १.२८.४( राम द्वारा प्राप्त अस्त्रों के नाम ), १.३०.१५( राम द्वारा मारीच पर मानवास्त्र का प्रयोग ), १.५६.५( विश्वामित्र द्वारा वसिष्ठ पर प्रयुक्त अस्त्रों के नाम ), ३.१२.३२( अगस्त्य द्वारा राम को दिव्य धनुष, बाण, तूणी व असि भेंट ), ६.९०.६८( इन्द्रास्त्र की महिमा : लक्ष्मण द्वारा इन्द्रास्त्र से इन्द्रजित् का वध ), महाभारत उद्योग ९६.४२( काकुदीक, शुक, नाक आदि ८ अस्त्रों के नाम व काम - क्रोध आदि से उनका साम्य ), १८३.१२( भीष्म को अष्ट वसुओं से प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति व भीष्म द्वारा परशुराम के विरुद्ध उसका प्रयोग ), भीष्म ७७.५३( द्रोणाचार्य द्वारा प्रज्ञास्त्र से धृष्टद्युम्न के मोहनास्त्र के नाश का उल्लेख ), ८२.४२( सात्यकि द्वारा ऐन्द्रास्त्र से अलम्बुष की माया का नाश करना ), १०२.१९( अर्जुन द्वारा त्रिगर्तों के विरुद्ध वायव्य अस्त्र का प्रयोग, द्रोणाचार्य द्वारा शैल अस्त्र से वायव्य अस्त्र का नाश ), १२१.२२( अर्जुन द्वारा पर्जन्यास्त्र से जल उत्पन्न करके शरशय्या पर भीष्म को तृप्त करना ), द्रोण २९.१७( भगदत्त द्वारा अर्जुन के विरुद्ध अंकुश रूपी वैष्णवास्त्र का प्रयोग, कृष्ण द्वारा रक्षा ), ८१.११( अर्जुन द्वारा स्वप्न में शिव से पाशुपत अस्त्र की प्राप्ति का वर्णन ), १०३.२१( अश्वत्थामा द्वारा पाण्डव सेना के विरुद्ध नारायणास्त्र का प्रयोग ), २००.१( कृष्ण द्वारा नारायणास्त्र से भीमसेन की रक्षा का वृत्तान्त, नारायणास्त्र मोक्ष पर्व ), २०१.३१( अश्वत्थामा द्वारा प्रयुक्त आग्नेयास्त्र से कृष्ण व अर्जुन का अप्रभावित रहना ), कर्ण ५३.२४( अर्जुन द्वारा पादबन्ध/नाग अस्त्र का प्रयोग ), ५३.३८( अर्जुन द्वारा संशप्तकगणों व गोपालों की सेना के विरुद्ध ऐन्द्रास्त्र का प्रयोग ), ६४.४७( कर्ण द्वारा पाञ्चालों के विरुद्ध भार्गवास्त्र का प्रयोग ), सौप्तिक १२.४+ ( अश्वत्थामा द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिर अस्त्र की महिमा, अश्वत्थामा द्वारा पाण्डवों के विरुद्ध उसका प्रयोग, अर्जुन के ब्रह्मास्त्र द्वारा निवारण आदि ), लक्ष्मीनाराय १.४३७( पराशर मुनि की कृपा से मनोजव - पत्नी सुमित्रा के केश होम से उत्पन्न अस्त्रों आदि द्वारा शत्रुओं के नाश का वर्णन )२.१४.२४( विभिन्न देवियों के अस्त्रों का कथन ), २.१५७.३९( अस्त्र न्यास का कथन ), ३.९४.३९( परशुराम द्वारा समुद्र व वरुण पर भार्गवास्त्र का प्रयोग, समुद्र का शुष्क होना ), ३.११७.७८( ललिता देवी से युद्ध में भण्डासुर द्वारा प्रयुक्त अस्त्रों के नाम ), ३.१८६.७८( साधु की आत्मा में नारायण अस्त्र के वास का उल्लेख ), कथासरित् १४.३.१०४( रक्त रूपी युद्ध की नदी में अस्त्र शस्त्रों की सर्प से उपमा ) Astra
अस्थि अग्नि १५९( गङ्गा में अस्थि पात का माहात्म्य -अस्थ्नाङ्गङ्गाम्भसि क्षेपात्प्रेतस्याभ्युदयो भवेत् ॥ गङ्गातोये नरस्यास्थि यावत्तावद्दिवि स्थितिः । ), गरुड २.३२.११३( अस्थियों में जम्बू द्वीप की स्थिति - अस्थिस्थाने स्थितो जम्बूः शाको मज्जासु संस्थितः । ), २.४०.४५(पलाश वृन्तों द्वारा देह में अस्थि विन्यास - कृष्णाजिनं समास्तीर्य कुशैश्च पुरुषाकृतिम् । शतत्रयेण षष्ट्या च वृन्तैः प्रोक्तोऽस्थिसञ्चयः ॥), देवीभागवत ८.६ (जम्बू वृक्ष के फलों के अनस्थिक होने का कथन - एवं जम्बूफलानां च तुङ्गदेशनिपातनात् ॥विशीर्यतामनस्थीनां कुञ्जराङ्गप्रमाणिनाम् । रसेन च नदी जम्बूनाम्नी मेर्वाख्यमन्दरात् ॥),पद्म ३.२०.२( नरक तीर्थ में अस्थि क्षेप का माहात्म्य - तस्मिंस्तीर्थे तु राजेंद्र यान्यस्थीनि विनिक्षिपेत् । विलयं यांति सर्वाणि रूपवान्जायते नरः ), ३.२७.६४( अस्थि पुर तीर्थ का माहात्म्य - ततस्त्वस्थिपुरं गच्छेत्तीर्थसेवी नराधिप॥ पावनं तीर्थमासाद्य तर्पयेत्पितृदेवताः ), ६.६.२५( बल असुर के अस्थिकणों से षट्कोणीय मणियों की उत्पत्ति का उल्लेख - वज्रादस्थिकणाः कीर्णाः षट्कोणा मणयोऽभवन् ), ६.२१०.१३( इन्द्रप्रस्थ के अन्तर्गत कोशला तीर्थ में अस्थि क्षेपण से मुकुन्द ब्राह्मण को स्वर्ग प्राप्ति - विदार्यास्थीनि तत्स्थानि निर्मांसान्यवलोक्य सः। एतस्याः कोशलायास्तु जलमध्ये समाक्षिपत् ), ६.२११.४०( कोशला तीर्थ में अस्थि क्षेप से सर्प को स्वर्ग प्राप्ति - तीर्थेऽत्रजातविश्रद्धः पित्रोरस्थीनि सोऽक्षिपत् । ), ६.२३५( भस्म, अस्थि आदि अवैदिक चिह्नों के धारण से असुरों के विनाश का कथन ), ७.८.५८( गङ्गा में अस्थिपात का माहात्म्य : क्रौञ्ची का इन्द्रप्रिया पद्मगन्धा बनना - यावदस्थीनि गङ्गायां तावत्तिष्ठंति तानि च ॥ तावत्त्वं स्वामिसुभगा भविष्यसि सदैव हि ), ब्रह्म २.३०.४२( नरक में अस्थि कुण्ड प्रापक दुष्कर्मों का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.४२( नरक में अस्थिकुण्ड प्रापक दुष्कर्म ), ब्रह्माण्ड १.२.१०.३८( शर्व रुद्र का रूप - इत्युक्ते यत्स्थिरं तस्य शरीरे ह्यस्थिसंज्ञितम् ।। विवेश तत्तदा भूमिं यस्मात्सा शर्व उच्यते ।। ), भविष्य २.१.१७.९( अस्थि दाह में अग्नि का शिखण्डी नाम - पर्णदाहे यमो नाम ह्यस्थिदाहे शिखंडिकः ।। ), ४.६९.३७( गौ की अस्थियों में शैलों के स्थित होने का कथन - अस्थिव्यवस्थिताः शैला मज्जासु क्रतवः स्थिताः ।। ), भागवत २.६.९( गोत्रों/पर्वतों की अस्थियों में स्थिति का उल्लेख - नाड्यो नदनदीनां च गोत्राणां अस्थिसंहतिः ॥), मत्स्य २४८.७१(यज्ञवराह के यज्ञ अस्थि होने का उल्लेख - वाय्वन्तरात्मा यज्ञास्थि विकृतिः सोमशोणितः।), योगवासिष्ठ १.२५.२३(नियति के कान में अस्थि मुद्रिका रूपी हिमालय - एकस्मिञ्छ्रवणे दीप्ता हिमवानस्थिमुद्रिका । अपरे च महामेरुः कान्ता काञ्चनकर्णिका ।।), वराह ९९.७२( स्वर्गवासी राजा श्वेत द्वारा क्षुधाविष्ट होने पर स्व अस्थियों को चाटने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर १.३.६( यज्ञवराह के मन्त्रास्थि होने का उल्लेख - वाय्वन्तरात्मा मन्त्रास्थिर्विकृतः सोमशोणितः ।।), शिव २.२.३९.२३( दधीचि द्वारा कुशमुष्टि का वज्रास्थि से संयोग करके त्रिशूल बनाना - ससर्ज सर्वदेवेभ्यो वज्रास्थि सर्वतो वशी ।। शंकरस्य प्रभावात्तु कुशमुष्टिर्मुनेर्हि सा ।। दिव्यं त्रिशूलमभवत् कालाग्निसदृशं मुने ।। ), स्कन्द २.१.१०.७१( अस्थि सरोवर का माहात्म्य : मृत ब्राह्मणी द्वारा स्नान से पुन: सञ्जीवन - त्वगस्थिरूपा सा चापि ताभिः क्षिप्ता सरोवरे ।। प्राप्तजीवा यथापूर्वं सुव्यंजितशरीरजा ।। ), ४.१.३०.४३( गङ्गा में प्रक्षेप के लिए अस्थि बन्धन की विधि - पंचगव्येन संस्नाप्य ततः पंचामृतेन वै ।। यक्षकर्दमलेपेन लिप्त्वा पुष्पैः प्रपूज्य च ।। ), ५.१.५३.५३( पिशाच की अस्थि के क्षिप्रा जल में गिरने से पिशाच के पापों के मोचन का उल्लेख ), ५.३.५४.३२( शूलभेद तीर्थ में अस्थि क्षेप का माहात्म्य : चित्रसेन नृप द्वारा दीर्घतपा ऋषि की अस्थियों के क्षेपण का वृत्तान्त ), ५.३.८३.६३( नर्मदा में हनुमान तीर्थ में अस्थि क्षेप का माहात्म्य : शिखण्डी राज - कन्या का पूर्व जन्म का वृत्तान्त आदि ), हरिवंश ३.५४.१५(अस्थि की कपालों से उपमा - अस्थीन्यत्र कपालानि पुरोडाशाः शिरांसि च ।), वा.रामायण ४.११.७२( राम द्वारा पादाङ्गुष्ठ से दुन्दुभि असुर की अस्थियों को फेंकने का उल्लेख -हतस्य महिषस्य अस्थि पादेन एकेन लक्ष्मण । उद्यम्य प्रक्षिपेत् च अपि तरसा द्वे धनुः शते ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.३८८( राजा नन्दसावर्णि द्वारा वराह की दन्तास्थि के प्रभाव से धन का संग्रह, पत्नी द्वारा अस्थि को भस्म करने पर मरण की कथा ), कथासरित् १०.५.१९३( अस्थि मूर्ख की कथा : अन्य स्त्री की अस्थियों को पत्नी की अस्थियां मानना ), १२.२९.३१( अस्थि आदि से विद्या द्वारा सिंह उत्पन्न होने पर सिंह द्वारा ब्राह्मण भ्राताओं की हत्या की कथा ), अभिधान राजेन्द्र कोश लक्षण शब्द, पृ.५९४( अस्थिष्वर्था: सुखं मांसे त्वचि भोगास्त्रियो ऽक्षिषु गतौ याने स्वरे चाज्ञा सर्वं सत्त्वे प्रतिष्ठिता: ), द्र. दधीचि Asthi
अस्मकी वायु ९६.१४३( शूर - भार्या, देवमीढुष - माता ), ९६.१८६( देवश्रव - भार्या, अनादृष्टि - माता )
अस्माहक स्कन्द ५.३.१४६( अस्माहक तीर्थ का माहात्म्य : पितर तीर्थ, पिण्ड व श्राद्ध आदि कर्म )
अह कूर्म १.७.४४( ब्रह्मा के त्यक्त तनु से उत्पत्ति ), पद्म ३.२६.९५( अह व सुदिन तीर्थों का संक्षिप्त माहात्म्य : सूर्य लोक की प्राप्ति, द्र. ऋग्वेद में सुदिनत्वे अह्नाम् शब्द ), भागवत ६.८.२०( अह के विभिन्न कालों में विष्णु की विभिन्न नामों से अर्चना ), मत्स्य १९५.४३( प्रत्यह : भार्गव कुल के प्रवर प्रवर्तक ऋषियों में से एक ), लिङ्ग १.४०.४७( त्रेता में वार्षिक, द्वापर में मासिक, कलि में आह्निक धर्म का उल्लेख ), शिव ३.२९.१८( अङ्गिरसों द्वारा सत्र में षष्ठम अह के कर्म में त्रुटि, नभग द्वारा शोधन ), योगवासिष्ठ ६.२.४.४२( अहंकार के लीन होने पर अह के प्रकट होने का कथन ), द्र. द्वादशाह Aha
अहंकार गरुड ३.७.४(ब्रह्मा अहंकारिक द्वारा हरि स्तुति), ३.१०.१०(७ आवरणों में पञ्चम), देवीभागवत ३.७.२२( अहंकार के सात्त्विक, राजस आदि भेद, तन्मात्राओं से सृष्टि ), ११.२२.३२( प्राणाग्नि होत्र में पशु का रूप ), पद्म १.४०.१४२( अव्यक्तानन्द सलिल वाले समुद्र में अहंकार की फेन से उपमा ), भविष्य ३.४.८.९०( १८ अङ्गों वाले व्यक्त अहंकार का नन्दी वृषभ के रूप में चित्रण ), भागवत २.५.२४( तम: से अहंकार की उत्पत्ति और अहंकार के ३ अवयवों का कथन ), विष्णु १.२२.७०( विष्णु द्वारा भूतादि व इन्द्रियादि द्विधा अहंकार को शंख व शार्ङ्ग धनुष रूप में धारण करने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२४८( अहंकार के दोष ), शिव २.५.८.१४( शिव रथ में कोणों का रूप ), २.५.९.३८( अहंकारकारक : शिव का एक गण ), महाभारत शान्ति ३४०.३१( अव्यक्त से उत्पन्न व्यक्त/ब्रह्मा की अहंकार संज्ञा ), योगवासिष्ठ १.१५.१४( अहंकार के दोषों का कथन, विन्ध्याचल व सिंह से उपमा ), १.१८.१६( अहंकार की गृध्र से उपमा ), ४.३३.२४( ज्ञान प्राप्ति से अहंकार का नाश, अहंकार की वृक्ष के अंकुर व पिशाच से उपमा, सात्त्विक आदि अहंकार के तीन प्रकारों का कथन ), ४.४२.२३( क्षेत्रज्ञ के वासना ग्रस्त होने पर अहंकार बनने का कथन, अहंकार के वासनाग्रस्त होने पर बुद्धि बनने का कथन ), ५.३५.४३( अहंकार की पिशाच, यक्ष आदि संज्ञाएं ), ६.१.२९.३९( अहंकार की वेताल संज्ञा ), ६.१.७८.२२( अहंकार की खात से उपमा का कारण ), ६.१.९४.१५( अहंकार के चित्त वृक्ष के बीज होने का उल्लेख ), ६.२.४( अहंभावना के क्षीण होने पर घटित चमत्कारों का कथन ), ६.२.४.५२( अहंकार के लीन हेने पर अह के प्राकट्य का कथन ), ६.२.५७( विचार द्वारा व चिदाकाश के स्वच्छ परमाकाश में स्थित होने पर अहंकार का लोप; अहंकार की स्वप्न सर्ग से तुलना ), लक्ष्मीनारायण ३.१६९.५६( अहंकार नाश के उपाय का कथन, साधुभावायन ऋषि का द्रष्टान्त ) Ahamkaara/ ahamkara
अहल्या कूर्म २.४१.४४( अहल्या तीर्थ : चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को अहल्या की पूजा ), पद्म १.५४( अहल्या व इन्द्र की कथा ), ३.१८.८९( अहल्या तीर्थ का माहात्म्य – चैत्र त्रयोदशी को पूजा ), ब्रह्म २.१६( अहल्या सङ्गम तीर्थ : अहल्या व इन्द्र की कथा, अहल्या का शाप से शुष्क नदी बनना, गौतमी से सङ्गम द्वारा मुक्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.४५.३४( अहल्या द्वारा शिव विवाह में हास्योक्ति ), ४.४७( इन्द्र द्वारा अहल्या के धर्षण की कथा ), ४.६१( इन्द्र द्वारा अहल्या का धर्षण, राम द्वारा मोक्ष ), भविष्य ४.१०३.१५( शाण्डिल्य - भार्या योगलक्ष्मी की माता ), भागवत ९.२१.३४( मुद्गल - कन्या, गौतम - पत्नी ), मत्स्य ५०.७( विन्ध्याश्व व मेनका - पुत्री ), विष्णुधर्मोत्तर १.१२८.३०( ब्रह्मा द्वारा अहल्या के सृजन, गौतम द्वारा पालन की कथा ), स्कन्द १.२.५२.२३( अहल्या सरोवर : गौतम के तप का स्थान ), ५.३.१३६( अहल्येश्वर तीर्थ का माहात्म्य : राम द्वारा शिला की मुक्ति के पश्चात् अहल्या द्वारा तप, शतानन्द व गौतम सहित लिङ्ग की स्थापना ), हरिवंश १.३२.३१( वध्र्यश्व व मेनका - कन्या, दिवोदास - भगिनी, गौतम - भार्या ), योगवासिष्ठ ३.८९.५( कृत्रिम अहल्या व कृत्रिम इन्द्र का आख्यान, अहल्या का स्वपति इन्द्रद्युम्न को त्याग इन्द्र नामक विप्र से अनुराग ), वा.रामायण १.४९( राम द्वारा अहल्या का उद्धार ), ७.३०.२४( ब्रह्मा द्वारा अहल्या का निर्माण, निरुक्ति, इन्द्र द्वारा बलात्कार की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३७५( अहल्या द्वारा अतिवृष्टि रोकने के लिए देवों का क्रमश: आह्वान, इन्द्र द्वारा चन्द्रमा की सहायता से अहल्या का धर्षण, अहल्या का उपल/शिला बनना ), कथासरित् ३.३.१३७( इन्द्र द्वारा अहल्या का धर्षण, इन्द्र द्वारा मार्जार रूप धारण ) Ahalyaa
अहिंसा पद्म १.२०.८०( अहिंसा व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), २.१२.८७(अहिंसा की मूर्ति का स्वरूप), २.१३.३२( अहिंसा का संक्षिप्त निरूपण ), ५.८४.५७( पुष्प रूप अहिंसा ), मत्स्य १०१.३५( अहिंसा व्रत की विधि व माहात्म्य ), वराह २०७.४०(अहिंसा से परम रूप प्राप्ति का उल्लेख), वामन ६०.६९( धर्म - भार्या, सनकादि की माता ), शिव १.१७.६३(अहिंसा लोक में ज्ञान कैलासपुर में कार्येश्वर की स्थिति का कथन), स्कन्द ५.३.५१.३४( आठ पुष्पों में से प्रथम पुष्प अहिंसा का उल्लेख ), महाभारत शान्ति २६५( राजा विचख्नु द्वारा यज्ञ में अहिंसा धर्म की प्रशंसा ), २७२( सत्य नामक ब्राह्मण द्वारा यज्ञ में मृग की हिंसा का विचार करने पर तप का नष्ट होना ) Ahimsaa
अहि ब्रह्म २.९०.८(अग्नि का अहि से युद्ध), भागवत ३.२०.४८( ब्रह्मा के त्यक्त शरीर के केशों से अहि की उत्पत्ति, सर्पों व नागों में अन्तर का कथन ), ११.१९.१०( काल रूपी अहि द्वारा मनुष्यों के दंशन का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.३७.५८( अहिफेन : वराटक दैत्य का सेनानी, विष रूप होना ), ऋग्वेद ३.३२.११सायण भाष्य ( आसमन्ताद्हन्ति अपहरत्युदकमित्यहिर्मेघ: ), द्र. अजगर, नाग, सर्प Ahi
Vedic view of Ahi by Dr. Tomar
अहिच्छत्रा पद्म ५.१२( सुमद राजा द्वारा पालित अहिच्छत्रा पुरी में कामाक्षा देवी की स्थिति, शत्रुघ्न का आगमन ), हरिवंश १.२०.७४( द्रुपद - पिता पृषत् का राज्य, नीप राजाओं, उग्रायुध व अर्जुन द्वारा अधिकार ), कथासरित् ६.२.११९( विवाह हेतु अहिच्छत्रा को प्रस्थान करने वाले राजपुत्र का वृत्तान्त ), १२.५.२३( अहिच्छत्रा नगरी पर उदयतुङ्ग राजा का शासन, राज - प्रतीहार विनीतमति द्वारा कालजिह्व यक्ष को हराना, राजकन्या उदयवती से विवाह करके अहिच्छत्रा नगरी पर राज्य करना ) Ahichchhatraa
अहिदंष्ट्र स्कन्द ३.१.५( अहिदंष्ट्र दैत्य से युद्ध में शतानीक राजा की मृत्यु )
अहिर्बुध्न्य अग्नि १८.४२( एकादश रुद्रों में से एक ), पद्म १.४०.८४( सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक ), ब्रह्माण्ड २.३.३.७१( एकादश रुद्रों में से एक ), मत्स्य ५.२९( सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक ), ५१.२३( अग्नि का नाम, स्थान ), वायु २९.२४( गृहपति अग्नि का नाम, १६ धिष्ण्य अग्नियों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.११( एकादश रुद्रों में अहिर्बुध्न्य की श्रेष्ठता ), १.८२.४( द्वादश खण्डयुगेश्वरों में से एक ), शिव ३.१८.२६( एकादश रुद्रों में से एक ), स्कन्द १.१.८.१००(हनुमान के ११वें रुद्र होने का उल्लेख), ३.१.२३.१( गन्धमादन पर्वत पर तपोरत अहिर्बुध्न्य ऋषि की सुदर्शन चक्र द्वारा राक्षसों से रक्षा ), Ahirbudhnya
अहीनगु मत्स्य १२.५३( देवानीक - पुत्र ), विष्णु ४४१०६( अहीनक देवानीक - पुत्र ), शिव ५.३९.२१( देवानीक - पुत्र, सहस्वान् - पिता )
अहोबल गरुड ३.२६.२६(शेषाचल के मध्य में अहोबल की स्थिति का उल्लेख, संक्षिप्त माहात्म्य)।
अहोई महाभारत अनुशासन १३२.७(अहोई अष्टमी का बहुलाष्टमी से साम्य?)
अहोरात्र अग्नि २१४.१९( ऊर्ध्व प्राण अह तथा अपान रात्रि होने का कथन ), महाभारत अनुशासन ४३.४( विपुल द्विज द्वारा स्त्री - पुरुष रूप धारी अहोरात्र के दर्शन का कथन ), हरिवंश ३.३४.३५(यज्ञवराह के अहोरात्रेक्षणधर होने का उल्लेख), ahoraatra/ ahoratra
Comments on Ahoratra by Dr. Awasthi
आ अग्नि ३४८.१( आ अक्षर का पितामह वाक्य तथा संक्रोध पीडा में प्रयोग का उल्लेख )
आकथ पद्म ५.११७( मङ्कणक - पुत्र, सुशोभना -पति, शिव का उन्मत्त रूप मे आकथ के निकट आगन )
आकर्षण गणेश १.३८.३७(गृत्समद – पुत्र त्रिपुर द्वारा गणेश की आराधना से त्रिलोकी के आकर्षण की शक्ति प्राप्त करना), ब्रह्माण्ड ३.४.३६.६९( चन्द्रमा की कामाकर्षणिका, बुद्धि आकर्षणिका आदि १६ कलाओं के नाम ), कथासरित् १.३.५३( आकर्षिका : पुत्रक राजा द्वारा आकर्षिका नगरी में राजकन्या पाटली से विवाह की कथा ), वास्तुसूत्रोपनिषद २.१७(आकर्षण विद्या के षट्कोणिक होने का उल्लेख), ६.२१टीका(रुद्र की २ आकर्षण शक्तियों के रूप में सुन्दरी व मोहिनी का उल्लेख), Aakarshana
आकाश नारद १.४२.१६( अव्यक्त से आकाश की सृष्टि का उल्लेख, आकाश से जल आदि की सृष्टि ), १.४२.९१( आकाश के ७ भेद ), १.६३.८८( सब नाडियों में वियत के गर्भ रूप में विद्यमान होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१०.५२( भीम नामक रुद्र का तनु ), भागवत ११.७.४३( दत्तात्रेय द्वारा आकाश से शिक्षा ), मत्स्य २५३.२४( वास्तुमण्डल के ८१ देवताओं में से एक ), २६५.६२( भीम नामक शिव द्वारा आकाश तत्त्व की रक्षा ), वराह २३.११( शिव द्वारा आकाश तत्त्व में स्वमूर्ति की स्थापना के लिए गणेश की सृष्टि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.६२( आकाश की प्रतिमा का स्वरूप ), स्कन्द २.१.३( आकाशराज : मित्रवर्मा व मनोरमा - पुत्र, धरणी - पति, वसुदान व पद्मिनी - पिता, पद्मिनी के श्रीनिवास से विवाह की कथा ), महाभारत आश्वमेधिक ५०.५२( आकाशजनित शब्द के षड~ज आदि १० भेदों के नाम ), योगवासिष्ठ १.१७.१( आकाश की चेतना से उपमा ), ३.२( आकाशराज ब्राह्मण के ऊपर मृत्यु द्वारा आक्रमण में असफलता ), ३.२४( सरस्वती देवी व लीला द्वारा आकाशमण्डप में विचरण व संसार की विचित्रता का दर्शन ), ३.२९.४५( लीला व सरस्वती देवी द्वारा सूर्य आदि से भी परे परमाकाश व चिदाकाश का दर्शन ), ३.३१( लीला द्वारा युद्ध प्रेक्षण के लिए भूतों, विद्याधरों आदि से पूर्ण आकाश का दर्शन ), ३.७९.३( आकाश व अनाकाश के सम्बन्ध में कर्कटी का राजा से प्रश्न ), ३.९७.१४( आकाश के तीन रूपों चित्ताकाश, चिदाकाश व भूताकाश का निरूपण ), ६.१.८०.७५( संकल्प बीज से उत्पन्न आकाश वृक्ष का वर्णन ), ६.१.११२( आकाश मूर्ख द्वारा आकाश को गृह, कूप, कुम्भ, कुण्ड, शाला आदि में सीमित करके आकाश की रक्षा का यत्न ), ६.२.५६( निर्विकल्प समाधि के संदर्भ में वसिष्ठ द्वारा आकाश में कुटी का निर्माण, आकाश में सिद्ध आदियों के गमनागमन का विघ्न देखकर अत्यन्त शून्य स्थान में स्थित होना ), ६.२.५९+ ( परमाकाश में स्थित होकर जगत जाल का दर्शन ), ६.२.१२८( भूगोल वर्णन के प्रसंग में विपश्चित् द्वारा सर्गों के उत्पत्ति स्थान ब्रह्माकाश का दर्शन व वर्णन ), वा.रामायण ४.५८.२६( आकाश में पक्षियों के गमन के विभिन्न स्तर : सम्पाती द्वारा वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२४( विष्णु के आकाश तथा लक्ष्मी के द्यौ होने का उल्लेख ), Aakaasha/ akasha
आकाशगङ्गा भागवत ८.१५.१४( देवों की अमरावती पुरी के परित: आकाशगङ्गा की परिखा/खाई के रूप में स्थिति ), स्कन्द २.१.२१( आकाशगङ्गा तीर्थ का माहात्म्य : रामानुज भक्त द्वारा विष्णु के दर्शन ), २.१.२२.२३( आकाशगङ्गा का माहात्म्य : आकाशगङ्गा में स्नान से पुण्यशील की गर्दभ मुख विकृति से मुक्ति ), २.१.३९.३२+ ( अञ्जना द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु आकाशगङ्गा तीर्थ में तप, आकाशगङ्गा स्नान काल का निर्णय ) Aakaashagangaa/ akashaganga
आकाशशयन वराह १३१.९( दन्तकाष्ठ से मुख शुद्धि न करने पर आकाशशयन रूप प्रायश्चित्त विधान ), १३२.२४( रजस्वली नारी के स्पर्श पर आकाशशयन ), १३३.१२( आराधना काल में पुरीष उत्सर्ग पर आकाशशयन ), १३४.३( पूजा कर्म काल में वार्तालाप करने पर आकाशशयन ), १३६.६( दीप का स्पर्श करके अर्चन कार्य करने पर आकाशशयन ), १३६.५३( श्मशान से प्रत्यागमन पर शुद्धि किए बिना अर्चन करने पर आकाशशयन ), १३६.५८( पिण्याक भक्षण करके विष्णु के समीप गमन पर आकाशशयन ), १३६.११०( भेरी शब्द के बिना विष्णु का प्रबोधन करने पर आकाशशयन ), १३६.११७( अधिक अन्न का भक्षण करके विष्णु पूजा पर आकाशशयन प्रायश्चित्त विधान ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३२१.११( आकाशशयन से भृगुओं के लोक की प्राप्ति ) Aakaashashayana/ akashashayana
आकूति
देवीभागवत
८.३.११(
स्वायम्भुव
मनु -
पुत्री,
रुचि
- पत्नी,
यज्ञपुरुष
– माता
- आकूतिः
प्रथमा कन्या द्वितीया देवहूतिका
।
तृतीया
च प्रसूतिर्हि विख्याता
लोकपावनी ॥
), ब्रह्माण्ड
१.२.९.४४(
यज्ञ
व दक्षिणा
- माता
), भागवत
२.२.२९(
योगी
द्वारा प्राण
द्वारा आकूति
को प्राप्त
करने का
उल्लेख -
घ्राणेन
गन्धं रसनेन वै रसं रूपं
च दृष्ट्या श्वसनं त्वचैव ।
श्रोत्रेण चोपेत्य
नभोगुणत्वं प्राणेन
चाकूतिमुपैति योगी ॥
), २.७.२(
रुचि
प्रजापति
की भार्या,
सुयज्ञ
अवतार की
माता -
जातो
रुचेरजनयत् सुयमान् सुयज्ञ
।
आकूतिसूनुः
अमरान् अथ दक्षिणायाम् ।),
४.१.३(
मनु
व शतरूपा
की तीन
कन्याओं में
एक, रुचि
– भार्या -
आकूतिं
रुचये प्रादाद् अपि भ्रातृमतीं
नृपः ।
पुत्रिकाधर्ममाश्रित्य
शतरूपानुमोदितः ॥
), ४.१३.१५(
सर्वतेजा
- पत्नी,
चक्षु
मनु की
माता -
स
चक्षुः सुतमाकूत्यां पत्न्यां
मनुं अवाप ह ।),
५.१५.६(
पृथुषेण
- पत्नी,
नक्त
– माता -
आकूत्यां
जज्ञे नक्ताद्द्रुतिपुत्रो
गयो राजर्षिप्रवर उदारश्रवा
। ),
१२.११.१६(
विष्णु
के आयुधों
का प्रतीकार्थ
: आकूति
स्यन्दन/रथ
का रूप
- इन्द्रियाणि
शरानाहुराकूतीरस्य स्यन्दनम्।
तन्मात्राण्यस्याभिव्यक्तिं
मुद्रयार्थक्रियात्मताम् ॥
), मार्कण्डेय
५०.१६(
स्वायम्भुव
मनु व
शतरूपा
- पुत्री
ऋद्धि,
रुचि
– पत्नी
- ददौ
प्रसूतिं
दक्षाय
तथा
ऋद्धिं
रुचेः
पुरा॥
), लिङ्ग
१.७०.२७८
( रुचि
- पत्नी,
यज्ञ
व दक्षिणा
– माता -
आकूत्यां
मिथुनं जज्ञे मानसस्य रुचेः
शुभम्। यज्ञश्च दक्षिणा चैव
यमलौ संबभूवतुः।।
), वायु
१०.१७(
स्वायम्भुव
मनु -
पुत्री,
रुचि
- पत्नी,
यज्ञपुरुष
– माता -
रुचेः
प्रजापतेश्चैव आकूतिं
प्रत्यपादयत् ।।
), २१.५५(
२४वें
कल्प का
नाम ),
६६.१२९(
विष्णु
के अवतार
क्रम में
प्रथम माता
), लक्ष्मीनारायण
३.५३.९१(
पांच
आकूतियों
का उल्लेख
- आकूतयः
पञ्च पञ्च चितयो मन इत्यपि
।।
अहंकारस्तथा
बुद्धिः प्रेरिता वै प्रजेप्सया
।), वास्तुसूत्रोपनिषद
६.२१टीका(यम
की
पालिका
शक्ति
आकूति,
अवनाशिका
शक्ति
मृत्यु
- यमस्य
द्वौ गुणौ,
पालिकाऽवनाशिकेति
। तस्य पालिका शक्तिः आकूतिः,
अवनाशिका
मृत्युरिति),
द्र.
आकृति
Aakooti/ akuti/ aakuuti/aakuti
आकृति देवीभागवत ८.३.११( आकृति/आकूति : स्वायम्भुव मनु की तीन पुत्रियों में से एक, रुचि - पत्नी, यज्ञ - माता ), ब्रह्माण्ड १.२.९.१( रुद्र द्वारा सृष्ट ५ मातृकाओं में से एक ), २.३.३.११३( स्वायम्भुव मनु - पुत्री, प्रथम अवतार विभु की माता ), २.३.७०.३८( बभ्रु - पुत्र, क्रोष्टा/ज्यामघ वंश), भागवत ६.४.४६( क्रिया के आकृति होने का उल्लेख ), Aakriti/ akriti
आखण्डल पद्म २.५.१०१( इन्द्र का नाम )
आखु विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०( धान्य हरण से आखु योनि प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२६.८९( आखु की व्याख्या : विभव होने पर भी न अत्ति, न ददाति, न जुहोति आदि ), द्र. मूषक
आगम पद्म ६.८०.७३( नारद - प्रोक्त आगम का निरूपण व महिमा ), मत्स्य १४३.१३( यज्ञ में पशु बलि के लिए उद्धत विश्वभुक् नामक इन्द्र से आगम के अनुसार यज्ञ करने का ऋषियों का आग्रह ), शिव ७.१.३२.१०( श्रौत व अश्रौत २ प्रकार के शैवागमों का कथन ) Aagama/ agama
आग्नायी मत्स्य २८६.७( आग्नायी देवी का स्वरूप ), द्र. अग्नि
आग्नीध्र कूर्म १.४०.२८( जम्बू द्वीप का स्वामी, पुत्र/वर्ष नाम ), देवीभागवत ८.४.४( प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र, जम्बू द्वीप का स्वामी ), ११.२२.३२( प्राणाग्नि होत्र में आग्नीध्र ऋत्विज की श्रोत्र में स्थिति ), पद्म १.३४.१४ (ब्रह्मा के यज्ञ में देवल के आग्नीध्र बनने का उल्लेख), ब्रह्म १.१२०.८०(देवशर्मा - पुत्र सोमशर्मा द्वारा लोभ व मोह से आग्नीध्र कर्म करने से ब्रह्मराक्षस बनना, जागरण फल दान से मुक्ति), १.१२१.२२( कामदमन नगर का राजा, शुचि - पिता, आग्नीध्र द्वारा पुत्र से विवाह का आग्रह करने पर पुत्र द्वारा पूर्व जन्म में विष्णु माया दर्शन के वृत्तान्त का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.२०( आग्नीध्र की विभु प्रवाहण संज्ञा ), भागवत ५.१.२५( प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र ), ५.२( आग्नीध्र चरित्र : पूर्वचित्ति अप्सरा से वर्ष नामक प्रत्यय वाले नाभि आदि ९ पुत्रों की प्राप्ति ), ८.१३.२८( १२वें मन्वन्तर में एक ऋषि ), मार्कण्डेय १००.३१/९७.३१( भौत्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), वराह २१.१४( दक्ष यज्ञ में अङ्गिरा के आग्नीध्र बनने का उल्लेख ),वायु ६३.१३/२.२.१३( आग्नीध्र/ग्रीष्म : पृथिवी रूपी गौ का दोग्धा ), शिव ५.३४.६३( १४वें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ७.१.१७.२४( आङ्गिरस व स्मृति - पुत्र, शरभ - भ्राता ), स्कन्द ३.१.२३.२९(शुनःशेप के आग्नीध्र बनने का उल्लेख), ६.५.६ (त्रिशंकु के यज्ञ में च्यवन के आग्नीध्र बनने का उल्लेख), ६.१८०.३५(ब्रह्मा के यज्ञ में भरद्वाज के आग्नीध्र बनने का उल्लेख), ७.१.२३.९९(चन्द्रमा के यज्ञ में मनु के आग्नीध्र बनने का उल्लेख), ७.१.१७२.२( भारतवर्ष की स्थापना करने वाले भरत का उपनाम ), लक्ष्मीनारायण १.५०९.२३(पराशर? के आग्नीध्र होने का उल्लेख), Aagneedhra/ agnidhra
आग्नेयी भागवत १०.८९.४४( अग्नि कोण की दिशा का नाम ), मत्स्य ४.४३( ऊरु - पत्नी, ६ पुत्रों की माता ), ४.५५( अग्नि - कन्या धिषणा का उपनाम ), विष्णु १.१३.६( कुरु - पत्नी, ६ पुत्रों के नाम, ध्रुव वंश ), Aagneyee
आघार नारद १.५१.४६( अग्नि के शरीर में नासिका - द्वय के आघार - द्वय होने का उल्लेख ) aaghaara/aghara
आङ्गिरस नारद १.५१.२( पांच कल्पों में से एक, आङ्गिरस कल्प में अभिचार विधान का उल्लेख ), पद्म ६.५७.२२( आङ्गिरस ऋषि द्वारा मान्धाता को वर्षा हेतु पद्मा एकादशी व्रत का निर्देश ), ब्रह्म २.८८( अङ्गिरस के आङ्गिरस पुत्रों द्वारा माता के शाप से तप में सिद्धि न मिलने पर गङ्गा तट पर तप, भावी व्यास बनना ), भविष्य ४.३७.२०( आङ्गिरस/बृहस्पति द्वारा इन्द्र को श्री की पुन: प्राप्ति हेतु श्री पञ्चमी व्रत विधान का कथन ), भागवत ६.६.१५(आङ्गिरसी : वसु नामक वसु की भार्या, विश्वकर्मा – माता), विष्णु ४.२.१०( ब्राह्मण, रथीतर क्षत्रिय वंशज ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.११( आङ्गिरसी शान्ति के रोचनाभ वर्ण का उल्लेख ), शिव ३.२९.१८( आङ्गिरसों द्वारा सत्र में षष्ठम अह के कर्म में त्रुटि, नभग द्वारा शोधन ), ७.१.१७.२४( स्मृति - पति, आग्नीध्र आदि पुत्रों के पिता ), स्कन्द ३.२.९.८९( आङ्गिरस गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवरों व गुणों का कथन ), ४.१.१७.२६( अङ्गिरा - पुत्र द्वारा शिव की आराधना व शिव लिङ्ग स्थापना, लिङ्ग का माहात्म्य, जीव/बृहस्पति नाम प्राप्ति ), ५.१.४.९६( द्वैधा विभक्त अग्नि में से एक की संज्ञा ), ५.३.११२( आङ्गिरस तीर्थ का माहात्म्य : अङ्गिरा द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु शिव की आराधना ), लक्ष्मीनारायण १.१६५.१५( अङ्गिरस व सुरूपा के आयु, दनु, दक्ष आदि १० पुत्रों की आङ्गिरस संज्ञा ) Aangirasa/ angirasa
आचमन अग्नि ३४(आचमन हेतु जल की अन्तर्भूत ओषधियां), कूर्म २.१३.५( आचमन समय/परिस्थिति व विधि का कथन ), देवीभागवत ११.३.१( आचमन प्रकार ), ११.१६.३७( पौराणिक व श्रौत आचमन विधियों का वर्णन ), नारद १.६६.४९( वैष्णव व शैव आचमन विधि, विष्णु का न्यास ), भविष्य १.३.७०( आचमन विधि, प्रशंसा ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४१.१२३( आचमन दान से पृथिवी पर श्रीमान् होने आदि का कथन ), स्कन्द ३.२.५.५०( ब्राह्मण आदि वर्णों द्वारा आचमन जल के उपयोग की विधि ), ४.१.३५.६७( आचमन जल से शरीर के विभिन्न अङ्गों की शुद्धि का कथन ) Aachamana
आचार अग्नि १५५( दैनिक जीवन में आचरणीय आचार ), नारद १.४.२२( आचार की महिमा ), पद्म ६.२५३( वैष्णवोचित आचार ), ब्रह्म १.१०७( नरक दुःख निवारक आचार ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७५( कृष्ण - प्रोक्त आह्निक आचार ), ब्रह्माण्ड २.३.७.११( रिष्टा/अरिष्टा के ९ गन्धर्व पुत्रों में से एक का नाम ), भविष्य १.१९३( दन्तकाष्ठ आदि नित्यकर्म ), विष्णुधर्मोत्तर २.८९, २.९४, ३.२३३( दैनिक आचार ), ३.२५०( आचारहीनता दोष ), ३.२७१( आचार का वर्णन ), ३.३२१.१४( स्वाचार से वैश्वदेव लोक की प्राप्ति ), शिव ६.४( आह्निक आचार ), ६.२०( यति हेतु आचार ), स्कन्द १.२.४१.११७( सदाचार का वर्णन ), ४.१.४०.९( काशी गमन हेतु निषिद्ध आचार का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२४५.५०( जीव रथ में आचार को नेमि बनाने का निर्देश ), द्र. आह्निक, नित्यकर्म, सदाचार Aachaara/ achara
आचार्य अग्नि २८( आचार्य अभिषेक का विधान ), २१४.४१( पञ्च मन्त्र और ३८ कलाओं वाले प्रासाद को न जानने वाले आचार्य कहलाने योग्य न होने का कथन ), ब्रह्माण्ड ३.४.७.५( आचार्य की परिभाषा : वेदों के केवल एक अङ्ग की शिक्षा देने वाले ), भविष्य ३.४.१४.८७( आचार्यशर्मा : रामानुज के पिता ), भागवत ११.१७.२७( आचार्य के कृष्ण रूप होने का कथन; आचार्य की सेवा करने का निर्देश ), विष्णुधर्मोत्तर २.३७.५१( ब्रह्म मूर्ति रूप ), शिव ५.४३.१( कथान्त में आचार्य पूजन विधि का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण २.२४६.२८( आचार्य के ब्रह्मलोकेश होने का उल्लेख ), ३.३५.१३०( नारायण का महाचार्य रूप में प्रकट होकर बृहद्धर्म नृप को यज्ञ की दीक्षा देना ), द्र. गुरु Aachaarya
आजगव ब्रह्माण्ड २.३.६५.३२( शिव के धनुष का नाम ), भविष्य ३.४.१२.३६(आजगव धनुष के निर्माण व भग्न होने का कथन - लोकालोकगिरेः सारो धनुश्चासीन्महात्मनः ।। घोरं चाजगवं नाम प्रसिद्ध मभवद्धनुः ।।), मत्स्य २३.३७(शिव द्वारा आजगव धनुष लेकर सोम से युद्ध के लिए प्रस्थान का उल्लेख), विष्णु १.१३.४०( राजा पृथु के लिए आजगव धनुष का आकाश से पतन ), १.१३.६९( पृथु द्वारा आजगव धनुष से पृथिवी का पीछा ), महाभारत द्रोण १४६.१०७ (प्रदीप्तोल्कमभवच्चान्तरिक्षं मृतेषु देहेष्वपतन्वयांसि। यत्पिङ्गलज्येन किरीटमाली क्रुद्धो रिपूनाजगवेन हन्ति।।), Aajagava/ ajagava
आज्ञा स्कन्द ३.१.५१.२०(अनुज्ञापन मन्त्र)
आज्य गरुड १.१०७.३४( मृत पुरुष की देह में आज्य स्थाली को चक्षुओं में रखने का विधान - उरे निःक्षिप्य दृषदं तण्डुलाज्यतिलान्मुखे । श्रोत्रे च प्रोक्षणीं दद्यादाज्यस्थालीं च चक्षुषोः ॥ ), नारद १.५१.२६( आज्यस्थाली का प्रमाण त्र्यङ्गुल होने का उल्लेख ), २.२३.७०( पूर्णिमा तिथि को आज्य का वर्जन ), ब्रह्माण्ड १.१.५.२०( यज्ञवराह के आज्यगन्ध होने का उल्लेख - आज्यगन्धः स्रुवस्तुण्डः सामघोषस्वनो महान् ॥), २.३.१.३३( ब्रह्मा द्वारा आज्यस्थाली में स्वशुक्र होम से महर्षियों की सृष्टि - आज्यस्थाल्यामुपादाय स्वशुक्रं हुतवांश्च ह ॥ शुक्रे हुतेऽथ तस्मिंस्तु प्रादुर्भूता महर्षयः । ), भविष्य १.५७.११( ब्रह्मा के लिए आज्य बलि का उल्लेख - आज्यं च ब्रह्मणे दद्यात्त्र्यम्बकाय तिलांस्तथा ।। ), भागवत ११.१६.३०( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण का हवियों में गव्य आज्य होने का उल्लेख - कुशोऽस्मि दर्भजातीनां गव्यमाज्यं हविःष्वहम् ), मत्स्य २४८.६९(यज्ञवराह के आज्यनासा होने का उल्लेख - आज्यनासः स्रुवतुण्डः सामघोषस्वनो महान्।), वायु ६.१७( आज्य का यज्ञ वराह की नासिका से साम्य - आज्यनासः स्रुवतुण्डः सामघोषस्वनो महान् ।।१७।। ), १००.२२( सावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ), विष्णु १.८.२०( आज्याहुति : पुरोडाश - पत्नी, लक्ष्मी का रूप - इच्छा श्रीर्भगवान्कामो यज्ञोऽसौ दक्षिणा त्वियम् । आज्याहुतिरसौ देवी पुरोडाशो जनार्दनः ॥ ), विष्णुधर्मोत्तर १.३.४( यज्ञवराह के आज्यनासा होने का उल्लेख - आज्यनासः स्रुवतुण्डः सामघोषस्वनो महान् ।। ), शिव १.१५.४८( आज्य दान से पुष्टि प्राप्ति का कथन - आज्यं पुष्टिकरं विद्याद्वस्त्रमायुष्करं विदुः॥ ), १.१८.१२६( व्याधि नाश हेतु आज्य अवेक्षण का निर्देश - आज्यावेक्षणदानं च कुर्याद्व्याधिनिवृत्तये), स्कन्द ३.२.१०.४६(गान्धर्व विवाह में आज्यभाग का विधान - यमाय मृत्यवे चैव आज्यभागं तदा ददुः ।। दत्त्वाज्यभागान्विधिवद्वव्रिरे ते शुभव्रताः ।।), ५.३.२६.१४५( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को ललिता देवी हेतु आज्य दान का उल्लेख - वैशाखे लवणं देयं ज्येष्ठे चाज्यं प्रदीयते ॥ आषाढे मासि निष्पावाः पयो देयं तु श्रावणे । ), ७.१.३५३.२१( यज्ञवराह के संदर्भ में आज्य के नासा होने का उल्लेख - आज्यनासः स्रुवतुडः सामघोषस्वनो महान् ॥), हरिवंश ३.५४.१५(आज्य की रौद्र रुधिर से उपमा), महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृ ७८४( यज्ञवराह के आज्यनासा होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक २४.१२( प्राणापानौ के आज्यभागौ होने का उल्लेख - हविः समानो व्यानश्च इति यज्ञविदो विदुः। प्राणापानावाज्यभागौ तयोर्मध्ये हुताशनः।।), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२१( विष्णु के पुरोडाश व लक्ष्मी के आज्याहुति होने का उल्लेख - आज्याहुतिस्त्वमेवासि पुरोडाशोऽस्मि वै तदा ।। ), द्र. घृत Aajya/ ajya
आज्यप गरुड १.८९.४१( आज्यप पितरों द्वारा प्रतीची दिशा की रक्षा ), ब्रह्माण्ड २.३.१०.९३( आज्यप पितरों का वृत्तान्त, आज्यप पितरों की कन्या विरजा का कथन), मत्स्य १५.२०( सुस्वधा नामक पितरों का नाम, कर्दम प्रजापति - पुत्र, वैश्यों द्वारा पूजित ), वायु ७३.४५( आज्यप पितर : कर्दम प्रजापति - पुत्र, वैश्यों द्वारा पूजित, विरजा कन्या के पिता ), शिव २.२.३.५७( पुलस्त्य से आज्यप पितरों की उत्पत्ति का कथन ), स्कन्द ४.२.९७.१६२( आज्यपेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : प्रपितामहों की तुष्टि ) Aajyapa/ ajyapa
आटरूष भविष्य १.१९३.९( आटरूष दन्तकाष्ठ का महत्त्व ), स्कन्द ७.१.१७( आटरूष दन्तकाष्ठ का महत्त्व )
आडि पद्म १.४४.५०( बक - भ्राता, पार्वती रूप धारण करके शिव के निकट गमन, शिव द्वारा वध ), ब्रह्माण्ड २.३.७२.७४( छठां आडि - बक नामक देवासुर संग्राम ), मत्स्य १५६( अन्धक - पुत्र, बक - भ्राता, तप से वर प्राप्ति, पार्वती रूप धारण, शिव द्वारा वध ), मार्कण्डेय ९.१०( परस्पर शाप - प्रतिशाप के कारण वसिष्ठ का आडि व विश्वामित्र का बक बनना, आडि - बक युद्ध का वर्णन ), वायु ८८.२५/२.२६.२५( आडि - बक नामक देवासुर संग्राम में इन्द्र का ककुत्स्थ राजा का वाहन बनना ), स्कन्द १.२.२९.१०( आडि दैत्य द्वारा पार्वती का रूप धारण, शिव द्वारा वध ), लक्ष्मीनारायण ३.१००.२०( आडी - बक नामक देवासुर संग्राम में शक्र/विष्णु द्वारा जम्भ के वध का उल्लेख ) Aadi/ adi
आतप भागवत ६.६.१६( विभावसु व उषा - पुत्र, पञ्चयाम - पिता ), ११.१९.९( आतपत्र : उद्धव द्वारा कृष्ण के चरणयुगल की आतपत्र से उपमा ), द्र. शातातप Aatapa
आतापी लक्ष्मीनारायण १.५४५.८( इल्वल व वातापी - भ्राता, अगस्त्य के समक्ष आतापी का पर्णशाला व वातापी का फल बनना, अगस्त्य द्वारा भस्म करना ) Aataapee/ atapi
आत्म
देवीभागवत
७.३६.६(
प्रणव
धनुष, शर
आत्मा, ब्रह्म
लक्ष्य -
प्रणवो
धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म
तल्लक्ष्यमुच्यते ।),
पद्म
१.१९.३०२(
आत्मा
के यमन
से यम
की प्राप्ति
का कथन
- न
यमं यममित्याहुरात्मा वै यम
उच्यते।
आत्मा
वै यमितो येन स यमस्तु विशिष्यते
), २.७+
( ज्ञान
का संग
त्याग
पञ्चेन्द्रियों
से मैत्री
पर आत्मा
को दुःख
प्राप्ति, वीतराग
के उपदेश
से विवेक,
ज्ञान
प्राप्ति-एतेषां
संगतिं ज्ञान कस्माद्वारयते
भवान्।
तन्मे
त्वं कारणं ब्रूहि याथातथ्येन
पंडित॥
), २.१२०.३०(
आत्मा
के शुद्धात्मा
व अन्तरात्मा
भेदों का
कथन
- अंतरात्मा
प्रबद्धस्तु प्रकृतेश्च
महागुणैः।
अन्नाहारेण
संपुष्टैरंतरात्मा सुखं
व्रजेत्
॥), ६.२२६.२७(
मकार
रूपी पञ्चविंश
आत्मा का
कथन
- बकारेण
भकारेण महान्प्रकृतिरुच्यते।
आत्मा
तु स मकारः स्यात्पंचविंशः
प्रकीर्तितः
॥), ब्रह्म
२.४७(
आत्म
ज्ञान प्राप्ति
हेतु आत्म
तीर्थ का
कथन, दत्तात्रेय
द्वारा शिव
की स्तुति
- आत्मतीर्थमिति
ख्यातं भुक्तिमुक्तिप्रदं
नृणाम्।),
ब्रह्मवैवर्त्त
३.७.७४(
नारायण
आत्मा, मन
ब्रह्मा, ज्ञान
रूपी महेश्वर,
पांच
प्राण विष्णु,
बुद्धि
ईश्वरी आदि
का उल्लेख
- अहमात्मा
मनो ब्रह्मा ज्ञानरूपो महेश्वरः
।।
पञ्च
प्राणाः स्वयं विष्णुर्बुद्धिः
प्रकृतिरीश्वरी ।।
), ब्रह्माण्ड
१.२.३२.१०४(
आत्मवान्
: २१
मन्त्रकर्ता
भार्गव ऋषियों
में से
एक ),
भविष्य
४.१८५(
आत्म
प्रतिकृति
दान विधि
- आत्मनः
प्रतिमा चेयं सर्वोपकरणैर्युता
।। सर्वरत्नसमायुक्ता तव
विप्र निवेदिता ।।
), भागवत
६.४.४६(
धर्म
के आत्मा
होने का
उल्लेख -
अङ्गानि
क्रतवो जाता धर्म आत्मासवः
सुराः॥),
११.२३.४५(
आत्मा
के जीव
का सनातन
सखा होने
का उल्लेख,
आत्मा
= सुपर्ण
; आत्मा
द्वारा मन
रूप सखा
पर आश्रित
होने पर
गुणों से
निबद्ध होने
का कथन
- अनीह
आत्मा मनसा समीहता हिरण्मयो
मत्सख उद्विचष्टे
), ११.२८.११(
आत्मा,
माया
से परे
की स्थिति
- आत्माव्ययोऽगुणः
शुद्धः स्वयंज्योतिरनावृतः
। ),
मत्स्य
१४५.९८(
आत्मवान्
: १९
मन्त्रकर्ता
भार्गव ऋषियों
में से
एक -
भृगुः
काश्यपः प्राचेता दधीचो
ह्यात्मवानपि।।
), वायु
५९.९६(
आत्मवान्
: २१
मन्त्रकर्ता
भार्गव ऋषियों
में से
एक -
भृगुः
काव्यः प्रचेतास्तु दधीचो
ह्यात्मवानपि ।
), ६५.९०/२.४.९०(
आत्मवान्
: च्यवन
व सुकन्या
- पुत्र,
दधीचि
– भ्राता -
जनयामास
पुत्रौ द्वौ सुकन्यायाञ्च
भार्गवः। आत्मवानं दधीचञ्च
तावुभौ साधुसंमतौ ।।
), स्कन्द
१.१.२०.९(
परा
आत्मा के
त्रिगुणों
के लीन
हो जाने
से आत्मा
की लिङ्ग
संज्ञा का
कथन -
एक
एव परो ह्यात्मा लिंगरूपी
निरंजनः॥
प्रकृत्या
सह ते सर्वे त्रिगुणा विलयं
गताः॥), २.६.२.११(
राधा
के आत्माराम
कृष्ण की
ध्रुव आत्मा
होने का
उल्लेख -
आत्मारामस्य
कृष्णस्य ध्रुवमात्मास्ति
राधिका ।। तस्या दास्यप्रभावेण
विरहोऽस्मान्न संस्पृशेत्
।। ), ५.२.६२.२२(
आत्मा
का आत्मा
बन्धु इत्यादि
श्लोक
- आत्मनो
बंधुरात्मैव गतिरात्मैव
चात्मनः ।
आत्मनैवात्मनो
दानं कर्तुमर्हसि धर्मतः ।।
), ५.३.१५९.८(
गुरु
के आत्मवानों
का शास्ता
होने का
उल्लेख -
गुरुरात्मवतां
शास्ता राजा शास्ता दुरात्मनाम्
। ),
महाभारत
आश्वमेधिक
२५.१५
( ब्रह्मात्मा/बुद्धि
के उद्गाता
होने का
उल्लेख? - कर्ताऽनुमन्ता
ब्रह्मात्मा होताऽध्वर्युः
कृतस्तुतिः
), योगवासिष्ठ
३.१.१२(
आत्मा
के ऋत
व परब्रह्म
के सत्य
होने का
उल्लेख ;
मन
की भूतात्मा
संज्ञा
- ऋतमात्मा
परं ब्रह्म सत्यमित्यादिका
बुधैः ।
), ३.६३.२(
आत्मा
की सर्वशक्तिता
के कारण
आत्मा द्वारा
विभिन्न
शक्तियों
को आंशिक
रूप में
प्रकट करना
- एष
त्वात्मा सर्वशक्तित्वाच्च
क्वचिच्चिच्छक्तिं प्रकटयति
क्वचिच्छान्तिं क्वचिज्जडशक्तिं
क्वचिदुल्लासं
क्वचित्किंचिन्न
किंचित्प्रकटयति ।।
), ४.२२(
विशुद्ध
ज्ञान प्राप्त
होने पर
आत्मा की
प्रसन्नता
का वर्णन
), ६.१.५९(
आत्म
अवबोध हेतु
चित्त स्पन्दन
- अस्पन्दन
ज्ञान का
कथन
- योऽयमन्तश्चितेरात्मा
सर्वानुभवरूपकः ।
), ६.२.४०(
आत्मा
की विश्रान्ति
पर जगत
का स्वप्नवत्
भासित होना
), ६.२.७३(
विराट
आत्मा की
स्थिति का
वर्णन ),
महाभारत
वन ३१३.७१(
पुत्र
के आत्मा
होने का
उल्लेख :
यक्ष
- युधिष्ठिर
संवाद
- पुत्र
आत्मा मनुष्यस्य भार्या
दैवकृतः सखा।
), शान्ति
७३.१९/७३.५७(
मनुष्य
की देह
में आत्मा
के रुद्र
होने का
कथन -
आत्मा
रुद्रो हृदये मानवानां
स्वं
स्वं देहं परदेहं च हन्ति।
वातोत्पातैः सदृशं रुद्रमाहुर्देवं
जीमूतैः सदृशं रूपमस्य।।
),२०३,
२१८.७(आत्माऽसौ
वर्तते भिन्नस्तत्रतत्र
समन्वितः।परमात्मा तथैवैको
देवेऽस्मिन्निति वै श्रुतिः।।),
२१८.१९(आत्मा
च परमः शुद्धः प्रोक्तोऽसौ
परमः पुमान्।।,
लक्ष्मीनारायण
२.३९.९(
आत्मा
नदी, शील
तीर्थ, सत्य
जल
- आत्मा
नदी शीलतीर्था सत्यजला शमान्विता
।
तत्स्नातः
शुद्ध्यति पुण्यो वारिणाऽऽत्मा
न शुद्ध्यति ।।
), २.२५७.२(
देह
के विभिन्न
अङ्गों से
आत्मा के
विनिष्क्रमण
पर विभिन्न
लोकों की
प्राप्ति
का वर्णन
- पद्भ्यां
निर्गत्य चेद्याति विष्णुस्थानं
प्रयाति वै ।।
जंघाभ्यां
चेत्प्रयात्येषो वसूनां याति
मन्दिरम् ।
), ३.१०६.७(
आत्मा
: औरस
पुत्र का
रूप
- आत्मा
पुत्र औरसः स्वः पिता स्वयं
स कथ्यते ।
), ४.१०१.१०९(
आत्मबोधिनी
: कृष्ण
व पिङ्गला
- पुत्री
- पिंगलायाः
सुतः पिताम्बरः सुताऽऽत्मबोधिनी
।।) Aatma/ aatmaa/atma
आत्मदेव पद्म ६.१९६.१९( धुन्धली - पति, धुन्धुकारी व गोकर्ण - पिता, भागवत माहात्म्य प्रसंग )
आत्रेय ब्रह्म २.७०( इन्द्र के वैभव की स्पर्द्धा में आत्रेय द्वारा कृत्रिम इन्द्रपुरी का निर्माण, असुरों द्वारा इन्द्र के भ्रम में आत्रेय का बन्धन, आत्रेय द्वारा इन्द्र की स्तुति व पूर्व स्थिति में लौटना ), ब्रह्माण्ड १.२.११.२२( अनसूया से पांच आत्रेय पुत्रों का जन्म ), महाभारत शान्ति २३४.२२, अनुशासन १५०.३४, वराह १०.२०( आत्रेय द्वारा राजा सुप्रतीक को पुत्र प्राप्ति का वरदान, इन्द्र को शाप ), १८७.२८( निमि - पुत्र, आत्रेय की मृत्यु पर निमि का शोक, श्राद्ध करना ), वायु ६२.१७( स्वारोचिष मन्वन्तर में ऋषि ), ६२.४१/२.१.४१( तामस मन्वन्तर में ऋषि ), ६२.५४/२.१.५४( रैवत मन्वन्तर में ऋषि ), १००.११/२.३८.११( भविष्य के मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), १००.६७/२.३८.६७( नवम मन्वन्तर में ऋषि ), १००.८२( ११वें मन्वन्तर में ऋषि ), १००.९६( १२वें मन्वन्तर में ऋषि ), १००.१०७( १३वें मन्वन्तर में ऋषि ), शिव ५.३४.४१( दशम मन्वन्तर में ऋषियों में से एक? ), ५.३४.४६( दशम मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक ), स्कन्द ३.२.९.९५( आत्रेय गोत्र के ऋषियों के ५ प्रवरों व गुणों का कथन ), ७.१.२५७( सौराष्ट्र देश में विप्र, एकत, द्वित व त्रित का पिता, त्रित के कूप में पतन की कथा ), द्र. स्वस्त्यात्रेय Aatreya/ atreya
आत्रेयी ब्रह्म २.७४( अत्रि - पुत्री, अङ्गिरस - पत्नी, पति के परुष वचनों की शान्ति के लिए परुष्णी नदी बनना ), वामन ८२.४( वीतमन्यु - भार्या, उपमन्यु - माता, पुत्र को क्षीर प्राप्ति हेतु विरूपाक्ष शिव की आराधना करने का आदेश ), द्र. अपाला Aatreyee
आदम भविष्य ३.१.४.१८( हव्यवती - पति, विष्णु कर्दम से उत्पत्ति, आत्म ध्यान परायण, पाप वृक्ष के नीचे फल भक्षण, म्लेच्छ पुत्रों की उत्पत्ति )
आदिकेश ब्रह्म २.९९.३( वेद व व्याध द्वारा आदिकेश शिव की भक्ति, व्याध की भक्ति से आदिकेश शिव का प्रसन्न होना )
आदित्य
अग्नि ५१.५(
मास
अनुसार द्वादश
आदित्यों के स्वरूप,
वर्ण
व शक्तियां -
वरुणः
सूर्यनामा च सहस्रांशुस्तथापरः।।
धाता
तपनसञ्ज्ञश्च सविताथ गभस्तिकः
।। ),
गरुड
३.५.३२(६
आदित्यों के
नाम -
दश
रुद्रा इति प्रोक्ताः
षडादित्याञ्छृणु द्विज ।
उरुक्रमस्तथा
शक्रो विवस्वान्वरुणस्तथा
॥ ),
नारद
१.७०.२०(
द्वादश
आदित्यों का महाविष्णु की १२
मूर्तियों के साथ न्यास -
अयं
तत्त्वाभिधो न्यासः
सर्वन्यासोत्तमोत्तमः ।
मूर्तीर्न्यसेद्द्वादश वै
द्वादशादित्यसंयुताः ।।),
१.१२१.५४(
आदित्य
द्वादशी व्रत :
१२
आदित्यों के नाम -
एतस्यामेव
विदितं द्वादशादित्यसंज्ञितम्
।। व्रतं तत्रार्चयेद्धीमानादित्यान्द्वादशापि
च ।। ),
पद्म
१.६.३५(
चाक्षुष
मन्वन्तर के तुषित देवों का
वैवस्वत मन्वन्तर में १२
आदित्य बनना,
आदित्यों
के नाम
- तुषिता
नाम ये देवाश्चाक्षुषस्यांतरे
मनोः॥
वैवस्वतेंतरे
चैव आदित्या द्वादश स्मृताः
), १.२५(
आदित्य
शयन व्रत,
नक्षत्रों
में सूर्य नाम व न्यास ),
१.४०.१४५(
अव्यक्त
आनन्द सलिल वाले समुद्र में
१२ आदित्यों की महाद्वीपों
से उपमा
-
द्वादशार्कमहाद्वीपं
रुद्रैकादशपत्तनम्॥
), ४.२२.२९(
आदित्यवर्चस
: व्याध
द्वारा आदित्यवर्चस के वध की
संक्षिप्त कथा ),
ब्रह्म
१.२८.२८(
१२
आदित्य मूर्तियों की विश्व
में स्थिति का वर्णन
- तस्य
या प्रथमा मूर्तिरादित्यस्येन्द्रसंज्ञिता।
स्थिता
सा देवराजत्वे देवानां
रिपुनाशिनी॥
), ब्रह्माण्ड
१.२.२३.१(
आदित्य
रथ व्यूह का वर्णन
-
सरथोऽधिष्ठितो
देवैरादित्यैर्मुनिभिस्तथा
।।
गंधर्वैरप्सरोभिश्च
ग्रामणीसर्पराक्षसैः ।।
), भविष्य
१.४८+
( साम्बादित्य
का माहात्म्य :
साम्ब
व वासुदेव का संवाद -
प्रत्यक्षं
देवता सूर्यो जगच्चक्षुर्दिवाकरः
।
तस्मादभ्यधिका
काचिद्देवता नास्ति शाश्वती
। ।),
१.५०.११(
मास
अनुसार आदित्यों के नाम
- एवं
वै फाल्गुने सूर्यं चैत्रे
वैशाख एव च । वैशाखे मासि
धातारमिन्द्रं ज्येष्ठे
यजेद्रविम् । ।
), ३.४.६.५५+
( ब्राह्मण
रूप धारी इन्द्र,
धाता
आदित्यों के विशिष्ट कार्यों
का वर्णन ),
३.४.७.५(धातृशर्मा
द्विज का चैत्रमास के आदित्य
रूप में जन्म),
३.४.७.८५(
निम्बादित्य
: अरुण
व जयन्ती -
पुत्र,
सुदर्शन
चक्र के तेज का अवतार,
निम्ब
में तेज स्थापना से कृत्रिम
सूर्य का निर्माण ),
३.४.१८.१६(
संज्ञा
के स्वयंवर में आदित्यों का
असुरों से युद्ध
-
पांचजन्यस्तथा
धाता हयग्रीवश्च मित्रकः
।।अघासुरोऽर्यमा चैव बलः
शक्रस्तथैव च ।।
), ४.४४(
आदित्य
मण्डल दान विधि
-
आदित्यतेजसोत्पन्नं
राजतं विधिनिर्मितम् ।।
श्रेयसे
मम विप्र त्वं प्रतिगृह्णेदमुत्तमम्
।। ),
भागवत
६.६.३९(
१२
अदिति -
पुत्रों
के नाम
-
विवस्वानर्यमा
पूषा त्वष्टाथ सविता भगः।
धाता
विधाता वरुणो मित्रः शत्रु
उरुक्रमः
), ६.१८.१(
सविता,
भग,
धाता,
वरुण,
मित्र,
विष्णु
नामक आदित्यों की भार्याएं
व पुत्र
- पृश्निस्तु
पत्नी सवितुः सावित्रीं
व्याहृतिं त्रयीम्।
अग्निहोत्रं
पशुं सोमं चातुर्मास्यं
महामखान्
), मत्स्य
१९.३(
प्रपितामह
का रूप ),
५५(
आदित्य
शयन व्रत की विधि व माहात्म्य,
नक्षत्र
अनुसार आदित्य न्यास -
आदित्यशयनं
नाम यथावच्छंकरार्चनम्।
येषु
नक्षत्रयोगेषु पुराणज्ञाः
प्रचक्षते॥
), ९७(
आदित्य
वार कल्प विधान,
द्वादश
दल कमल पर दिशा अनुसार आदित्य
पूजा -
यत्तद्विश्वात्मनो
धाम परं ब्रह्मसनातनम्।
सूर्य्याग्निचन्द्ररूपेण
तत्त्रिधा जगति स्थितम्।।
), १७२.३३(
आदित्य
नारायण :
सागर
में महाद्वीप का रूप
-
द्वादशार्कमहाद्वीपं
रुद्रैकादश पत्तनम् ।।
वस्वष्ट
पर्वतोपेतं त्रैलोक्याम्भो
महोदधिम्।
), लिङ्ग
१.५९(
मास
अनुसार आदित्यों के नाम,
रश्मि
संख्या व वर्ण -
उत्तिष्ठति
पुनः सूर्यः पुनर्वै प्रविशत्यपः।।
तस्मात्ताम्रा
भवंत्यापो दिवारात्रिप्रवेशनात्।। ),
वराह
६२(
सार्वभौम
राजा द्वारा पद्म ग्रहण के
प्रयास से कुष्ठ प्राप्ति,
आदित्य
आराधना से मुक्ति-
तत्रापश्यद्
बृहद् पद्मं सरोमध्यगतं सितम्
।। तत्र चाङ्गुष्ठमात्रं तु
स्थितं पुरुषसत्तमम् ।
), ९४.६(
आदित्यों
का १२ महिषासुर -
सेनानियों
से युद्ध
- यथासंख्येन
तद्वच्च दैत्या द्वादश चापरे
।
आदित्यान्
दैत्यवर्यास्तु तेषां
प्राधान्यतः श्रृणु ।।
), १३८(
आदित्य
तीर्थ माहात्म्य के अन्तर्गत
खञ्जरीट का मनुष्य बालक बनना
- एवं
स खञ्जरीटो हि गङ्गातोयात्ततस्तदा
।।
आदित्यतीर्थसंक्लिन्नशरीरः
स वसुन्धरे ।।),
१५६.१४(
कृष्ण
द्वारा यमुना में कालिय दमन
के पश्चात् द्वादश आदित्यों
की स्थापना
-
सूर्यतीर्थेषु
वसुधे द्वादशादित्यसंज्ञिके
।।
कालियो
रमते तत्र कालिंद्याः सलिले
शुभे।। ),
१७७(
साम्ब
द्वारा प्रात:
आदि
तीन कालों में तीन आदित्यों
की आराधना
- यथोदयाचले
देवमाराध्य लभते फलम् ।।
मथुरायां
तथा गत्वा षट्सूर्ये लभते
फलम् ।।
), वायु
६६.४४(
रात्रि
के १५ मुहूर्त्तों में से एक
-
ब्रह्मसौम्यस्तथादित्यो
बार्हस्पत्योऽथ
वैष्णवः।…एकरात्रिमुहूर्त्ताः
स्युः क्रमोक्ता दश पञ्च च।
), १०१.३०/२.३९.३०(
आदित्यों
की भुव:लोक
में स्थिति का उल्लेख -
आदित्या
ऋभवो विश्वे साध्याश्च
पितरस्तथा।
ऋषयोऽङ्गिरसश्चैव
भुवर्ल्लोकं समाश्रिताः ।।
), विष्णु
१.१५.१३२(
चाक्षुष
मन्वन्तर के तुषित देवों का
वैवस्वत मन्वन्तर में आदित्य
बनना -
पूर्वमन्वन्तरे
श्रेष्ठा द्वादशासन्सुरोत्तमाः
। तुषिता नाम तेऽन्योन्यमूचुर्वैवस्वतेन्तरे
॥ ),
विष्णुधर्मोत्तर
१.१२०.३(
विष्णु
के अंश साध्यगण का अदिति के
गर्भ से जन्म लेकर १२ आदित्य
बनना -
त्वष्टा
विवस्वान्वरुणो विष्णुर्द्वादशमस्तथा
।।
विष्णोरंशेन
संभूताः साध्या देवगणा नृप
।। ),
३.१८२(
द्वादश
आदित्य व्रत विधि
- धाता
मित्रोर्यमा पूषा शक्रेशो
वरुणो भगः ।।
त्वष्टा
विवस्वान्सविता विष्णुर्द्वादशकस्तथा।।
), ३.३२१.१४(
दया
से आदित्य लोक की प्राप्ति
- आदित्यैः
सह मोदंते दयावन्तस्तु ये
नराः ।।
), शिव
२.१.१२.३३(
आदित्यों
द्वारा ताम्रमय लिङ्ग की पूजा
- लक्ष्मीश्च
स्फाटिकं देवी ह्यादित्यास्ताम्रनिर्मितम्
।। ),
२.५.३६.१४(
आदित्य
गण का शङ्खचूड -
सेनानियों
से युद्ध -
धूम्रेण
संहलेनापि विश्वेन च प्रतापिना
।। पलाशेन द्वादशाऽर्का
युयुधुर्धर्मतः परे ।।
), ५.३.२८(
घोर
संवर्तक आदित्य का शाप से
कृष्ण -
पुत्र
साम्ब बनने का उल्लेख -
घोरसंवर्तकादित्यश्शप्तो
मुनिभिरेव च ।। मानुषो भवितासीति
स ते पुत्रो भविष्यति ।।),
स्कन्द
१.२.४३.१६(
भट्ट/नारद
द्वारा स्थापित भट्टादित्य
का माहात्म्य ),
१.२.४९.१(
जयादित्य
की उत्पत्ति का वर्णन ),
१.२.५१.५४(
कमठ
द्विज बालक द्वारा स्थापित
जयादित्य का माहात्म्य ),
३.१.४९.५४(
आदित्य
- कृत
रामेश्वर शिव की संक्षिप्त
स्तुति -
नमस्तेऽस्तु
महादेव रामनाथ त्रियंबक ।
दक्षाध्वरविनाशाय नमस्ते
पाहि मां शिव ।।),
४.१.४६.४५(
काशी
में १२ आदित्यों के नाम -
इति
काशीप्रभावज्ञो जगच्चक्षुस्तमोनुदः
।।
कृत्वा
द्वादशधात्मानं काशीपुर्यां
व्यवस्थितः ।।),
४.२.५१.२८(
वृद्ध
आदित्य का माहात्म्य :
वृद्ध
हारीत द्वारा आराधना से तारुण्य
प्राप्ति -
पुरात्र
वृद्धहारीतो वाराणस्यां
महातपाः ।।…पुनस्तारुण्यमाप्तोहं
चरिष्याम्युत्तमं तपः ।।
), ४.२.५१.४४(
आदित्यों
द्वारा केशव/हरि
के निर्देश पर केशवादित्य
नामक शिवलिङ्ग की आराधना -
अतः
परं शृणु मुने केशवादित्यमुत्तमम्
।। यथा तु केशवं प्राप्य सविता
ज्ञानमाप्तवान् ।।
), ४.२.५१.८३(
विमल
क्षत्रिय द्वारा कुष्ठ से
मुक्ति हेतु विमलादित्य की
स्थापना -अतः
परं शृणु मुने विमलादित्यमुत्तमम्
।। हरिकेशवने रम्ये वाराणस्यां
व्यवस्थितम्।।),
४.२.५१.१०१(
आदित्यों
द्वारा गङ्गा की आराधना -
यदा
गंगा समायाता भगीरथपुरस्कृता
।। तदा गंगां परिष्टोतुं
रविस्तत्रैव संस्थितः ।।
), ४.२.८४.१७(
आदित्य
केशव तीर्थ का संक्षिप्त
माहात्म्य -
आदित्यकेशवं
नाम तदग्रे तीर्थमुत्तमम्
।।
कृताभिषेकस्तत्रापि
लभेत्स्वर्गाभिषेचनम् ।।
), ५.१.७०.५१(
१२
आदित्यों के नाम -
अरुणः
सूर्यो वेदांगो भानुरिन्द्रो
रविरंशुमान् ।। सुवर्णरेताऽहःकर्ता
मित्रो विष्णुः सनातनः ।।
), ५.३.१७.१३(
सृष्टि
संहरण काल में १२ आदित्यों
का रुद्र मुख से उत्पन्न होकर
भूमण्डल को जलाना -
ददहुर्वै
जगत्सर्वमादित्या रुद्रसम्भवाः
॥ आदित्यानां रश्मयश्च
संस्पृष्टा वै परस्परम् ।
), ५.३.२८.१२(
बाण
के त्रिपुर नाश हेतु शिव के
रथ में आदित्य व चन्द्र के
रथचक्र में स्थित होने का
उल्लेख -
आदित्यचन्द्रौ
चक्रे तु गन्धर्वानारकादिषु
॥ ),
५.३.५९(
आदित्य
तीर्थ का माहात्म्य -
यस्त्र्यक्षरं
जपेन्मन्त्रं ध्यायमानो
दिवाकरम् । आदित्यहृदयं
जप्त्वा मुच्यते सर्वपातकैः
॥ ),
५.३.६०(
आदित्य
तीर्थ का माहात्म्य,
तीर्थ
में स्नान से ब्रह्महत्या
आदि पापों का कुरूपा स्त्रियों
के रूप में अलग होना -
चित्रभानुः
स्मृतस्तैस्तु विचिन्त्य
हृदये हरिम् । स्नात्वा रेवाजले
पुण्ये तर्पिताः पितृदेवताः
॥ ),
५.३.१५३(
आदित्येश्वर
तीर्थ का माहात्म्य,
जाबालि
द्वारा कुष्ठ निवारण हेतु तप
- कुतस्तद्भास्करं
तीर्थं भो द्विजाः कथ्यतां
मम ॥ तपस्तप्याम्यहं गत्वा
तस्मिंस्तीर्थे सुभावितः
॥ ),
५.३.१९१(
द्वादश
आदित्य तीर्थ माहात्म्य,
द्वादश
आदित्यों की प्रलय काल में
दिशाओं के सापेक्ष स्थिति -
यथैव
ते महाराज दहन्ति सकलं जगत्
॥ तथैव द्वादशादित्या भक्तानां
भावसाधनाः ।),
५.३.२३१.११(
रेवा
- सागर
संगम पर १० आदित्य तीर्थों
की स्थिति का उल्लेख -
दशादित्यभवान्यत्र
नवैव कपिलेश्वराः ॥
), ६.५६(
साम्बादित्य
का माहात्म्य :
गालव
द्वारा पुत्र प्राप्ति के
लिए आराधना -
येयं
त्वया कृता मेऽर्चा सांबसूर्यस्य
संनिधौ ॥ सांबसूर्याभिधानोऽयं
भविष्यति धरातले॥।
), ६.६०.९(
नरादित्य
का माहात्म्य :
अर्जुन
द्वारा स्थापित सूर्य आदित्य
), ६.१५५.१९+
( पुष्पादित्य
का माहात्म्य,
याज्ञवल्क्य
द्वारा स्थापना,
पुष्प
षण्ढ
द्वारा आराधना का वृत्तान्त
), ६.२५२.३४(
चातुर्मास
में आदित्यों की जपा वृक्ष
में स्थिति का उल्लेख -
आदित्यैस्तु
जपावृक्षो ह्यश्विभ्यां
मदनस्तथा ॥
), ६.२७८.९६(
याज्ञवल्क्य
द्वारा पुन:
वेद
प्राप्ति के लिए १२ आदित्यों
की स्थापना -
यानि
सूक्तानि ऋग्वेदे मदीयानि
द्विजोत्तम ॥ सावनानि यजुर्वेदे
सामानि च तृतीयके ॥ ),
७.१.१७
( आदित्य
की निरुक्ति,
माहात्म्य
- सर्वेषामेव
देवानामादिरादित्य उच्यते
॥ आदिकर्त्ता त्वसौ यस्मादादित्यस्तेन
चोच्यते॥),
७.१.४३(
आदित्येश्वर
लिङ्ग का माहात्म्य :
समुद्र
द्वारा रत्नों से पूजा -
सोमेशात्पश्चिमे
भागे धनुषां सप्तके स्थितम्॥
आदित्येश्वरनामानं सर्वपातकनाशनम्
॥ ),
७.१.१००+
( साम्बादित्य
का माहात्म्य ),
७.१.१०१.५८(
आदित्य
के १२ अतिरिक्त नाम,
मास
अनुसार आदित्यों के नाम,
रश्मि
संख्या -
विष्णुस्तपति
वै चैत्रे वैशाखे चार्यमा
सदा ॥
विवस्वाञ्ज्येष्ठमासे
तु आषाढे चांशुमांस्तथा ॥),
७.१.११८(
गोप्यादित्येश्वर
का माहात्म्य :
कृष्ण
की १६ सहस्र गोपियों/१६
कलाओं द्वारा स्थापना
- चन्द्ररूपी
ततः कृष्णः कलारूपास्तु ताः
स्मृताः ॥ १३ ॥
संपूर्णमण्डला
तासां मालिनी षोडशी कला ॥
), ७.१.१२८.२१(
२१
आदित्यों के नाम
- विकर्तनो
विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो
रविः ॥
लोकप्रकाशकः
श्रीमाँल्लोकचक्षुर्ग्रहेश्वरः
॥...
), ७.१.१३९.११(
तीर्थों
में आदित्यों के नाम
-
मुंडीरस्वामिनं
प्रातर्गंगासागरसंगमे ॥
कालप्रियं
तु मध्याह्ने यमुनातीरमाश्रितम्
॥..
), ७.१.२५६(
नन्दादित्य
का माहात्म्य,
नन्द
राजा द्वारा पद्म ग्रहण के
प्रयास से कुष्ठ रोग प्राप्ति,
आदित्य
आराधना से कुष्ठ से मुक्ति
), ७.१.३०५(
नारदादित्य
का माहात्म्य :
नारद
द्वारा जरा से मुक्ति हेतु
नारदादित्य
की आराधना -
आराध्य
नारदो देवि भास्करं वारितस्करम्
॥
जरा
निर्मुक्तदेहस्तु तत्क्षणात्समपद्यत
॥ ),
हरिवंश
१.३.६२(
चाक्षुष
मन्वन्तर के तुषित देवों का
वैवस्वत मन्वन्तर में आदित्य
बनना -
चाक्षुषस्यान्तरे
पूर्वमासन् ये तुषिताः सुराः
।
वैवस्वतेऽन्तरे
ते वै आदित्या द्वादश स्मृताः
।। ),महाभारत
आदि २२६.३४
(धाता,
जय
आदि आदित्यों का खाण्डव दाह
प्रसंग में कृष्ण व अर्जुन
से युद्ध
-जगृहे
च धनुर्धाता मुसलं तु जयस्तथा।
पर्वतं
चापि जग्राह क्रुद्धस्त्वष्टा
महाबलः।।),
वन
३१३.४५(
आदित्य
के उदित व अस्त होने में ब्रह्म
व धर्म के कारण होने का कथन :
यक्ष
- युधिष्ठिर
संवाद
-
ब्रह्मादित्यमुन्नयति
देवास्तस्याभितश्चराः।
धर्मश्चास्तं
नयति च सत्ये च प्रतितिष्ठति
॥ ),
अनुशासन
१०२.३२
(आदित्य
लोक को प्राप्त होने वाले
मनुष्य के लक्षण :
इन्द्र
– गौतम संवाद
- आदित्यदेवस्य
पदं महात्मनस्तत्र त्वाऽहं
हस्तिनं यातयिष्ये।।
), योगवासिष्ठ
४.३६(
चिदादित्य
के स्वरूप का वर्णन ),
वा.रामायण
६.१०५(
आदित्य
हृदय स्तोत्र,
रावण
पर विजय हेतु अगस्त्य द्वारा
राम को कथन ),
लक्ष्मीनारायण
१.८३.५६(
काशी
में दिवोदास के राज्य में
स्थित आदित्य के १२ रूपों के
नाम -
लोकार्क
उत्तरार्कश्च साम्बादित्यः
खखोलकः ।।
द्रुपदादित्यो
मयूखाऽऽदित्यस्तथाऽरुणाऽऽह्वयः
।..
), १.२०८.२२(
आदित्य
तीर्थ :
आदित्यों
द्वारा तप करके सूर्यता प्राप्ति
), १.३११.३७(
आदित्यवर्णा
: समित्पीयूष
नृप की २७
पत्नियों में से एक,
कृष्ण
को कटक व भुजबन्ध अर्पित करना
- आदित्यवर्णा
प्रददौ कटके भुजबन्धकौ ।
), १.३५३.२८(
साम्ब
द्वारा कुष्ठ से मुक्ति हेतु
मथुरा में ६ सूर्यों की आराधना
- ब्राह्मं
तथोदयन्त च ह्यूर्ध्वं यान्तं
च मध्यगम् ।।
नमन्तं
चाप्यस्तगतं नित्यं साम्बः
समार्चयत् ।
), १.४४१.८८(
आदित्यों
का जपा वृक्ष रूप में अवतरण
- प्रियाला
वसवो जाता आदित्यास्तु
जपाद्रुमाः ।),
१.५३८.४६(
१२
आदित्यों द्वारा मास अनुसार
प्रभास क्षेत्र में स्नान -
विष्णुः
संस्नाति वै चैत्रे वैशाखे
त्वर्यमा तथा ।
विवस्वान्
ज्येष्ठमासेऽथ चाषाढे
त्वंशुमाँस्तथा ।।..),
१.५४३.७६(
दक्ष
द्वारा आदित्य को अर्पित १२
कन्याओं के नाम
- आदित्येभ्यो
ददौ दक्षो द्वादश कन्यकाश्च
ताः ।
प्रभावती
सुभद्रा च विमला निर्मला वृता
।।७६।।..
), २.१७८.६१(
आरण्यक
मुनि व उनके २५ सहयोगी ऋषियों
का १४ मनु व १२ आदित्य बनना,
पुन:
१२
आदित्यों का राजाओं के रूप
में जन्म -
अथाऽऽसन्
द्वादश सूर्या मुद्राण्डः
प्रथमोऽभवत् ।
लीनोर्णोऽर्को
द्वितीयोऽभूद् वृहच्छरस्तृतीयकः
।।..),
३.४५.२७(
पञ्चाग्नि
तप से आदित्य मण्डल की प्राप्ति
का उल्लेख
-
पञ्चाग्नितापसा
यान्ति चादित्यमण्डलं जनाः
।
कामिनश्चान्द्रलोकं
च शीतदानपरायणाः ।।
), ३.५३.१००(
ब्रह्मा
द्वारा स्वपुत्रों को कर्म
में प्रवृत्त होने का आदेश,
पुत्रों
का आदित्य नाम
- त
एव तुषिता बोध्याः सत्यास्त
एव सन्ति च ।
हरयश्चापि
वैकुण्ठाः साध्या आदित्यका
अपि ।।
), कथासरित्
१.५.५९(
आदित्यवर्मा
: राजा,मन्त्री
शिववर्मा के वध की युक्ति ),
३.४.६९(
आदित्यसेन
: उज्जयिनी
का राजा,
श्रीवृक्षक
नामक अश्व की सहायता से कठिनाइयों
पर विजय का वर्णन,
विदूषक
ब्राह्मण द्वारा पुत्री की
रक्षा ),
७.८.२००(
आदित्यप्रभा
: विद्याधर
- कन्या,
पद्मसेन
- भार्या,
श्वसुर
के शाप से यमदंष्ट्रा रूप में
जन्म लेना ),
८.६.१५९(
आदित्यशर्मा
: सुलोचना
नामक यक्षिणी को सिद्ध करके
उससे पुत्र प्राप्त करना ),
द्र.
कोणादित्य,
चन्द्रादित्य,
जयादित्य,
नरादित्य,
बालादित्य,
भट्टादित्य,
मधुरादित्य,
यमादित्य,
रामादित्य,
विक्रमादित्य,
सूर्य
Aaditya/ aditya
आद्य ब्रह्माण्ड १.२.३६.६६( चाक्षुष मन्वन्तर में देवगण का नाम )
आनकदुन्दुभि ब्रह्मवैवर्त्त ४.७.५( देवमीढ व मारिषा - पुत्र, वसुदेव का नाम, जन्म पर देवों द्वारा दुन्दुभि वादन ), विष्णु ४.१४.१३( अनु - पुत्र, अभिजित् - पिता ), ४.१४.२९( शूरसेन व मारिषा - पुत्र, जन्म पर देवों द्वारा दुन्दुभि वादन ), हरिवंश १.३४.१८( शूर व भोज्या - पुत्र ) Aanakadundubhi
आनन्द गरुड ३.१८.७३(एकानन्द व शतानन्द का विवेचन), नारद १.११८.३२( आनन्द नवमी व्रत ), पद्म १.२०.७६( आनन्द व्रत का माहात्म्य व विधि ),२.९३( मेरु पर्वत पर आनन्द वन में सुबाहु राजा द्वारा क्षुधा तृप्ति हेतु शव भक्षण की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१६( दुन्दुभि पर्वत के आनन्द वर्ष का उल्लेख ), १.२.३६.३५( उत्तम मन्वन्तर में सत्य देवगण में से एक देव ), ३.४.३७.४७( ललिता देवी की बिन्दु नाद महापीठ का एक नाम ), भविष्य ३.२.११.४( लोक में आनन्द के प्रकार : ब्रह्मानन्द, विषयानन्द आदि ), मत्स्य १०१.३२( आनन्द व्रत की विधि व माहात्म्य ), मार्कण्डेय ७६/७३( अनमित्र व गिरिभद्रा - पुत्र, मार्जारी द्वारा हरण, अन्त में चाक्षुष मनु बनना ), वायु २१.२८( भव नामक प्रथम कल्प में आनन्द भगवान की उपस्थिति ), ४१.७२( जातुधि देव पर्वत पर स्थित आनन्द जल नामक सरोवर की महिमा, चण्ड नामक नागपति का वास स्थान ), ४९.१४( प्लक्ष द्वीप में एक वर्ष का नाम ), विष्णु २.४.४( प्लक्ष द्वीप के अधिपति मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक ), स्कन्द २.१.३.३( भगवान् श्रीनिवास का आनन्द नामक विमान में विराजमान होकर अगस्त्य के समक्ष प्रकट होना, विमान के अदृश्य रूप का कथन ), ३.१.४९.२९(जाम्बवान द्वारा आनन्द रूप रामेश्वर की स्तुति), ३.२.१६.२०( आनन्दा मातृका का स्वरूप व माहात्म्य ), ४.१.३२.८१( आनन्दवन : काशी में शिव के वन का नाम, हरिकेश यक्ष के तप का स्थान, वन की शोभा का वर्णन ), ४.२.७४.५७( आनन्द नामक शिव के गण की वरणा तट पर स्थिति ), ४.२.८५( दुर्वासा का काशी/आनन्दकानन में आकर तप करना, सिद्धि प्राप्त न होने पर क्रोध, शिव के प्रहसन से आनन्दात्मक लिङ्ग का प्रादुर्भाव ), ४.२.९४.४२( आनन्दकानन की महिमा ), ५.१.६८.५( महाकालवन में आनन्द भैरव का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.२.३३( अनमित्र व गिरिभद्रा - पुत्र, जातहारिणी द्वारा हरण पर विक्रान्त व हेमिनी - पुत्र बनना, आनन्देश्वर लिङ्ग की स्थापना, मनु बनना ), ५.३.६५( आनन्द तीर्थ का माहात्म्य : दानवों का वध करके रुद्र का आनन्दित होना ), लक्ष्मीनारायण १.४६०.४( ईशान नामक दिक्पाल का आनन्दवन की ऊषर भूमि में प्रवेश करके विश्वेश लिङ्ग की स्थापना, आनन्दवन में ज्ञान वापी का माहात्म्य ), २.१७६.३( ज्योतिष के २८ योगों में से एक ), ३.१५६.४८( आनन्दवर्णी वैश्य का भगवद्भक्ति से देवानीक विप्र व धर्मसावर्णि मनु बनना ), कथासरित् ६.३.२४( आनन्द नामक वैद्य द्वारा कलिङ्गसेना के क्षुधा नाश का कारण बताना ), द्र. आर्द्रानन्द, धर्मानन्द, ब्रह्मानन्द, योगानन्द, शतानन्द, शारदानन्द, सच्चिदानन्द, सदानन्द Aananda
आनर्त गर्ग ६.९.५( शर्याति - पुत्र, पिता द्वारा निष्कासन पर तप, द्वारका का निर्माण ), भागवत १.११.१( आनर्त/द्वारका में अधिपति श्रीकृष्ण के आगमन पर प्रजा द्वारा स्वागत ), ९.३.२८( आनर्त - अधिपति रैवत ककुद्मी का कन्या रेवती सहित ब्रह्मलोक गमन व प्रत्यागमन की कथा ), १०.६७.४( द्विविद वानर का आनर्त देश में उपद्रव, बलराम द्वारा द्विविद का वध ), मत्स्य १२.२१( शर्याति - पुत्र, रोचमान - पिता, आनर्त देश का अधिपति ), ४३.४९( वीतिहोत्र - पुत्र, दुर्जेय - पिता, हैहय वंश ), विष्णु ४.१.६३( शर्याति - पुत्र, रेवत - पिता ), स्कन्द ६.६५( राजा सुहय द्वारा स्थापित आनर्तेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ६.१०३.११( आनर्त तीर्थ का माहात्म्य : आगस्त्य व राम का संवाद, राजा श्वेत द्वारा स्वर्ग से आकर स्वदेह का भक्षण, दान से मुक्ति, दीपदान से चक्षु प्राप्ति ), ६.१११, ६.११३.३०( आनर्त - अधिपति व दमयन्ती - पति द्वारा शंख तीर्थ में स्नान से कुष्ठ से मुक्ति, पूर्व जन्म में प्रभञ्जन राजा ), ६.१२५( आनर्त देश के अधिपति सत्यसन्ध का कर्णोत्पला कन्या के साथ ब्रह्मलोक जाना, प्रत्यागमन पर बृहद्बल राजा से मिलन, युद्ध में बृहद्बल की मृत्यु के पश्चात् आनर्त देश का राजा - विहीन होना ), ६.१२८.३९( आनर्त के अधिपति अट की उत्पत्ति व अट नाम प्राप्ति का वर्णन ), ६.१८४.२३( आनर्त - अधिपति सुतपा की रानी पिङ्गला का आशा त्याग कर सुख से सोना ), ६.१९५.१०+ ( आनर्त - अधिपति व मृगावती - पति द्वारा रत्नावती पुत्री के विवाह का प्रसङ्ग ), ६.२०९( आनर्त अधिपति सिद्धसेन की शत्रुओं द्वारा राज्य से च्युति, कुष्ठ प्राप्ति, नारद के उपदेश से शङ्ख तीर्थ में स्नान व पूर्व वैभव प्राप्ति ), ६.२१०( आनर्त अधिपति का विश्वामित्र से वार्तालाप, विश्वामित्र द्वारा नागवल्ली/ताम्बूल की उत्पत्ति व भक्षण दोष का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१५७.११६( शर्याति - पुत्र, तप से कृष्ण से गोलोक खण्ड की प्राप्ति व स्थापना, गोलोक खण्ड का आनर्त - पुत्र रैवत बनना ), १.२१७( वही), १.३१५.४०( वही), १.३९०.९६( राजा रैवत ककुद्मी व रेवती की कथा ), २.२५७.३४+ ( आनर्त नृप का कुशला योगिनी से मोक्ष या गृहस्थ धर्म की श्रेष्ठता विषयक विवाद, कुशला का योग विद्या से राजा के शरीर में प्रविष्ट होना ) Aanarta
आनृशंस्य द्र. नृशंस
आन्त्र गरुड १.८०.१( बल असुर की आन्त्रों से केरल देश में विद्रुम रत्नों की उत्पत्ति - आदाय शेषस्तस्यान्त्रं बलस्य केरलादिषु ॥ चिक्षेप तत्र जायन्ते विद्रुमाः सुमहागुणाः ॥ ), २.३०.५०/२.४०.५०( मृतक की आन्त्र में बालुका देने का उल्लेख - अन्त्रेषु नालकं दद्याद्बालकं प्राण एव च । ), ब्रह्माण्ड १.१.५.२२( यज्ञवराह के उद्गातान्त्र होने का उल्लेख - उद्गातांत्रो होमलिङ्गः फलबीजमहोषधीः । वाद्यन्तरात्मसत्रस्य नास्मिकासोमशोणितः ॥ ), भागवत ३.३१.८( गर्भ का बाहर से अन्त्रों से आवृत रहने का उल्लेख - उल्बेन संवृतस्तस्मिन् अन्त्रैश्च बहिरावृतः । आस्ते कृत्वा शिरः कुक्षौ भुग्नपृष्ठशिरोधरः ॥ ), ७.९.१५( प्रह्लाद द्वारा नृसिंह की स्तुति के संदर्भ में नृसिंह को आन्त्रों की माला से विभूषित कहना – आन्त्रस्रजः क्षतजकेशरशङ्कुकर्णान् ), वायु ६.१९( वराह अन्त्र का उद्गाता से साम्य - उद्गात्रन्त्रो होमलिङ्गः स्थानबीजो महौषधिः।), स्कन्द २.२.४५.१३(दमन दैत्य के वध से उत्पन्न तृण, हिरण्यकशिपु की अन्त्रमाला का रूप - हिरण्यकशिपुं हत्वा ह्यन्त्रमालां तदंगजाम् ।। कृत्वा कण्ठे यथाऽप्रीणास्तथेदं दमनं तृणम् ।।), ४.१.४५.३८( आन्त्रमालिनी : ६४ योगिनियों में से एक - वसाधया गर्भभक्षा शवहस्तांत्रमालिनी ।। ), योगवासिष्ठ ३.३९.२४( युद्ध में वीणा का रूप - प्रसृतान्त्रमहातन्त्रीप्रायसंपन्नवादनम् । पिशाचवासनोत्क्रान्तपिशाचीभूतमानवम् ।। ), ६.१.८०.३६( आन्त्र वेष्टनिका नाडी की प्रकृति का वर्णन ; आन्त्र वेष्टनिका नाडी में कुण्डलिनी शक्ति की स्थिति - आन्त्रवेष्टनिका नाम नाडी नाडीशताश्रिता ।। वीणाग्रावर्तसदृशी सलिलावर्तसंनिभा । ), महाभारत उद्योग १४३.३२( कर्ण द्वारा स्वप्न में पृथिवी को आन्त्र से लिपटी हुई देखने का उल्लेख - आन्त्रेण पृथिवी दृष्टा परिक्षिप्ता जनार्दन ।। अस्थिसञ्चयमारूढश्चामितौजा युधिष्ठिरः । ), लक्ष्मीनारायण ३.१६३.१०७( बलासुर की आन्त्रों से विद्रुम मणि की उत्पत्ति का उल्लेख - अथ शेषो बलाऽऽन्त्रान् वै समिद्बीजस्वरूपिणः ।। केरलादौ प्रचिक्षेप विद्रुमास्ते ततोऽभवन् । ) Aantra
आन्ध्र नारद १.५६.७४२( आन्ध्र देश के कूर्म के पादमण्डल होने का उल्लेख ), भविष्य ३.४.२३.५५( आन्ध्र देश के राजा सुगद का उल्लेख ; राक्षसारि नृप द्वारा आन्ध्र देश से धन का हरण करने वाले राक्षसों को जीतकर धन का वितरण करना ) Aandhra
आन्वीक्षिकी गरुड ३.१५.१३(कपिल द्वारा अलर्क को आन्वीक्षिकी विद्या का उपदेश), भागवत ३.१२.४४( ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न विद्याओं में से एक, द्र. टीका ), ७.१५.२३(आन्वीक्षिकी द्वारा शोक-मोह पर जय प्राप्ति का निर्देश), ११.१६.२४( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के कौशलों में आन्वीक्षिकी होने का उल्लेख ), ११.१८.२२( अपने बन्धन व मोक्ष का अन्वीक्षण करने का निर्देश ), महाभारत शान्ति ३१८.४७( आन्वीक्षिकी विद्या का वर्णन ) Aanveekshikee/ anvikshiki
आप ब्रह्माण्ड १.२.२३.१५( यातुधान, सूर्य - अनुचर, जम्बुक - पिता ), वायु ६९.१३०/२.८.१२५( वही) Aapa
आपगा पद्म ३.२६.६४( आपगा नदी का माहात्म्य ), ब्रह्म २.३०.१३( सुपर्णा व कद्रू का अपमार्ग पर स्थित होने पर आपगा/नदी बनना ), वामन ३६.१( आपगा नदी का माहात्म्य : श्राद्ध हेतु प्राशस्त्य ) Aapagaa
आपव ब्रह्म १.११.१९४( वसिष्ठ ऋषि का उपनाम ), भविष्य ३.४.१६.८( आपव द्विज द्वारा भद्रकाली की आराधना, जन्मान्तर में वरुण बनना ), मत्स्य ४४.१२( कार्तवीर्य अर्जुन द्वारा सूर्य की तृप्ति हेतु आपव के आश्रम सहित वृक्षों को जला देने पर आपव द्वारा कार्तवीर्य को छिन्नबाहु होने का शाप ), वायु ९४.४३/२.३२.४३( वही), ९५.११/२.३३.११( वही), शिव ५.२९.२३, ५.३०.१( आदि प्रजापति का उपनाम? ), ५.३०.१( आपव प्रजापति द्वारा पत्नी शतरूपा को प्राप्त करके स्वायम्भुव मनु को जन्म देना ) Aapava
आपवत्स मत्स्य २५३.३१( वास्तुमण्डल में एक देवता का नाम ), २६८.२०( आपवत्स हेतु देय दधि बलि द्रव्य ), स्कन्द ३.२.९.७४( आपवत्सार : काश्यप गोत्र के ऋषियों का एक प्रवर; गुणों का कथन ), मनुष्यचन्द्रिका २.२९ (आपवत्स की गलतल में स्थिति का उल्लेख), Aapavatsa
आपस्तम्ब पद्म १.७.३३( कश्यप द्वारा आपस्तम्बी पुत्रेष्टि सम्पादन का उल्लेख ), ब्रह्म २.६०( अक्षसूत्रा - पति, कर्कि - पिता, अगस्त्य से शिव की श्रेष्ठता जानकर शिव की स्तुति ), भागवत ४.२२.३०( इन्द्रियों के विषयों में आकृष्ट मन द्वारा बुद्धि से चेतना हरण की जलाशय के निकट स्थित स्तम्ब/तृण द्वारा जलाशय के जल के अपहरण से उपमा ), ७.८.१५( हिरण्यकशिपु द्वारा सभा में स्तम्भ का मुष्टि से ताडन करने पर नृसिंह देव का प्राकट्य ), ११.१.४( यादवों के परस्पर लडकर नष्ट होने की वंश स्तम्बों में परस्पर घर्षण से उत्पन्न अग्नि द्वारा नष्ट होने से उपमा ), मत्स्य ७.३३( आपस्तम्ब द्वारा दिति हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ करना ), वामन ६.९०( कालमुख सम्प्रदाय के आचार्य का नाम ), स्कन्द ४.२.९७.१५७( आपस्तम्बेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : ज्ञान दायक ), ७.१.३३८( जल मध्य में तपोरत आपस्तम्ब ऋषि का धीवर के जाल में बंधकर बाहर निकलना, नाभाग राजा द्वारा गौ रूपी मूल्य देकर मुक्त कराना ), महाभारत शल्य २९.५४( दुर्योधन का युद्ध से पलायन करके द्वैपायन ह्रद के जल को स्तम्भित करके जल में विश्राम करना ), लक्ष्मीनारायण १.५४९.५५( नाभाग द्वारा गौ मूल्य देकर आपस्तम्ब को धीवर के जाल से मुक्त कराने की कथा ), २.३८.१०१( वालखिल्यों द्वारा शिव का अपमान करने पर शाप से जल के ऊपर स्तम्ब/तृण बनना ), २.२४२.२५( आपस्तम्बी आदि ५ सतियों द्वारा पङ्किल मुनि के दर्शन ), २.२४३.१५( पङ्किल भ्राता द्वारा आपस्तम्बी का कृष्ण से विवाह करना ) Aapastamba
आपाक भविष्य ४.१६७( आंवां/आपाक दान विधि, शुभावती व पिप्पलाद संवाद )
आपूरण विष्णु २.१०.१०( यक्ष, भाद्रपद मास में सूर्य रथ पर स्थिति ), द्र. रथ - सूर्य
आपोनप्त्रीयम् द्र. अपांनपात्
आप: अग्नि ६४.११(८ प्रकार के आपः से अभिषेक हेतु वेद मन्त्र), गरुड ३.५.४४(अपां नाथ के रूप में ४ मरुतों का उल्लेख), नारद १.४२.७८( देह में आप: के ५ रूप श्लेष्मा, पित्त, स्वेद, वसा, शोणित ), पद्म ६.१६८.६१( आप: द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या अंश की प्राप्ति ), ब्रह्म २.५६ ( अग्नि और आप: में ज्येष्ठता के निर्णय के लिए ऋषियों का तप, सरस्वती वाक् द्वारा आप: की ज्येष्ठता का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.१२.३३( प्रज्ञा, यश आदि की प्राप्ति हेतु आप: में पिण्डदान का निर्देश ), भागवत ५.२०.२२( क्रौञ्च द्वीपवासियों द्वारा आप: देवता की पूजा का कथन ), मत्स्य ९.९( वसिष्ठ के सात पुत्रों में से एक, स्वारोचिष मन्वन्तर में प्रजापति ), वामन ५१.१३( मेना - पुत्री कुटिला का ब्रह्मा के शाप से आपोमयी होना ), वायु ९४.४३/२.३२.४३(कार्तवीर्य अर्जुन द्वारा वरुण - पुत्र वसिष्ठ/आप: के आश्रम को जलाने पर शाप प्राप्ति का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.४६.९ ( स्थावर व जङ्गम जगत की आप: संज्ञा ; ब्रह्मा द्वारा आप: का कमण्डलु में धारण ), शिव ७.१.१७.३१( आपोमूर्ति : अत्रि व अनसूया के ५ पुत्रों में से एक ), ७.२.३८.२३( आप्य ऐश्वर्य के अन्तर्गत १६ सिद्धियों के नाम ), हरिवंश २.७९.९ ( स्त्री द्वारा स्नान के समय आपो देव्य इत्यादि पठनीय मन्त्र ), महाभारत शान्ति ३४२.२७( बृहस्पति के आचमन के समय आप: के स्वच्छ न होने पर बृहस्पति द्वारा आप: में झष, मकर आदि उत्पन्न होने के शाप का कथन ), वास्तुसूत्रोपनिषद ५.७(शृङ्गाररूप हेतु अप् रेखा के ग्रहण का निर्देश), द्र. अभिषेक, अम्भ, उदक, जल, जालन्धर आदि Aapah
Vedic hymn on Aapah(by Dr. Tomar)
Vedic concept of Aapah(by Dr. Tomar)
Vedic concept of polluted waters(by Dr. Tomar)
आप्तोर्याम लक्ष्मीनारायण २.१५७.३२( आप्तोर्याम यज्ञ का ऊरु में न्यास ) Aaptoryaama
आप्यायन कूर्म १.४३.३५( सूर्य की सुषुम्ना किरण द्वारा सोम के आप्यायन का कथन ), नारद १.५०.३६( आप्यायनी : पितरों की ७ मूर्च्छाओं में से एक ), लिङ्ग १.५४.५६( अग्नि के धूम व ब्रह्मा के श्वास आदि से उत्पन्न मेघों का नाम ), लक्ष्मीनारायण २.१८२.७८(आप्यायन महर्षि का उल्लेख), २.१८४.३५( ऋषि, गङ्गा व कृष्ण - पुत्र ), २.१६६.३१, २.१८५.२( अल्पकेतु राजा के गुरु आप्यायन का उल्लेख ) Aapyaayana
आभरण विष्णुधर्मोत्तर ३.३४१.१९२( आभरणों के दान से राजसूय यज्ञ फल की प्राप्ति का कथन )
आभिल ब्रह्माण्ड ३.४.२९.२१( भण्डासुर - सेनानी, रथ में सहस्र सिंह वाहक, घातक नामक खड्ग )
आभूतरयस ब्रह्माण्ड १.२.३६.५६( पञ्चम स्वारोचिष मन्वन्तर में १४ देवों का एक गण, अन्य नाम भूतरय ), मत्स्य ९.२०( अमूर्तरजस : पांचवें रैवत मन्वन्तर में देवों का एक गण )
आभूतसम्प्लव वायु १००.२३९/२.३८.२३९( आभूतसंप्लव शब्द की निरुक्ति )
आभूषण नारद १.११६.३२( भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को आभरण व्रत का उल्लेख ), पद्म ५.९०.२८( वसिष्ठ द्वारा देवशर्मा को स्त्री के १२ आध्यात्मिक आभूषणों का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.१३०( माला, अङ्गुलीयक, कङ्कण आदि आभूषण दान विधि व माहात्म्य ), द्र. अलङ्कार, कङ्कण, कुण्डल आदि, कालिका पुराण अध्याय ६८ Aabhooshana/ abhushana
आम ब्रह्माण्ड १.२.३६.२१५( यक्षों द्वारा पृथ्वी दोहन हेतु आम पात्र ), भागवत ५.२०.२१( क्रौञ्च द्वीप के अधिपति घृतपृष्ठ के ७ पुत्रों में से एक ), १०.६१.१३( कृष्ण व नाग्नजिती सत्या - पुत्र ), वायु १८.२०( यति के लिए आम श्राद्ध का निषेध ), स्कन्द ३.२.३६.३४( कान्यकुब्ज - अधिपति आम द्वारा बौद्ध धर्म का अङ्गीकरण, आम - कन्या रत्नगङ्गा का जैन धर्म में दीक्षित होना ), Aama
टिप्पणी के लिए द्रष्टव्य – आम्र
आमर्दक पद्म ६.१८२.१( आमर्दकपुर वासी भावशर्मा ब्राह्मण की कथा : गीता के अष्टम अध्याय का माहात्म्य ), स्कन्द २.४.१२.२( आमलकी वृक्ष का माहात्म्य : कार्तिक मास में पूजा, दुराचार द्विज की मूषक योनि से मुक्ति - आमर्दकीमहावृक्षः सर्वपापप्रणाशनः ।। वैकुण्ठाख्यचतुर्दश्यां धात्रीछायां गतो नरः ।।.. ), ४.१.३१.४४( कालभैरव का विशेषण - आमर्दयिष्यति भवांस्तुष्टो दुष्टात्मनो यतः ।। आमर्दक इति ख्याति ततः सर्वत्र यास्यति ।। ), द्र. आमलक, धात्री Aamardaka
आमलक नारद १.१२०.७७( आमलकी एकादशी व्रत की विधि ), पद्म ६.४५( ब्रह्मा के ष्ठीवन/थूक से आमलक वृक्ष की उत्पत्ति, आमलक वृक्ष में देवों के वास का वर्णन, आमलकी व्रत की विधि व माहात्म्य ), मत्स्य ९६.७( रजतमय १६ फलों में से एक आमलक का उल्लेख ), वामन ९०.४९( कूप में पतित बालक निशाकर का कूप में आमलकी वृक्ष के फलों द्वारा पालन ), स्कन्द २.२.४४.६( आश्विन् मास में प्राचीन आमलक द्वारा श्रीहरि की अर्चना का निर्देश ), ५.२.२८.४५( आमलकी एकादशी को आमलक वृक्ष के नीचे जागरण का माहात्म्य ), ५.३.२१३( आमलकेश्वर का माहात्म्य : शिव द्वारा आमलकों से क्रीडा का स्थान ), ७.२.१७.१९५( आमलक वृक्ष का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.२४५( फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी व्रत के माहात्म्य का वर्णन : लक्ष्मी के ललाट आभूषण के पृथिवी पर पतन से आमलकी का प्राविर्भाव ), कथासरित् १०.५.२९५( मूर्ख भृत्य द्वारा आमलकी फलों के आस्वादन के पश्चात् स्वामी को प्रस्तुत करना ), द्र. आमर्दक, धात्री Aamalaka
आमिष पद्म ६.९४.८( आमिष भोजन की परिभाषा : आत्मार्थ पाचित अन्न आदि ), महाभारत शान्ति १७.१७( आमिष व निरामिष की व्याख्या ) Aamisha
आमुष्मिक शिव ७.२.३३(आमुष्मिक कर्म सिद्धि का वर्णन )
आमुष्यायण वराह १४४.९१( सालङ्कायन ऋषि - शिष्य, गुरु - पुत्र नन्दी से मिलन, नन्दी को गोधन प्रदान करना आदि ), स्कन्द ४.२.७६.१३९( आमुष्यायण - पुत्र नारायण का वृत्तान्त ) Aamushyaayana
आमोद नारद १.६६.१३०( आमोद गणेश की शक्ति मदजिह्वा का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.२७.८१( छह विघ्न नायकों में से एक ), ३.४.४४.६८( ५१ गणेशों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०६.१४४( आमोद - प्रमोद : अनिरुद्ध के प्रतीहारों आमोद व प्रमोद के आवाहन मन्त्रों का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.७३( आमोद नगर के सुधना भक्त की श्रीहरि द्वारा चोरी से रक्षा ) Aamoda
आम्नाय ब्रह्माण्ड ३.४.३६.४१( चिन्तामणि गृह के चार द्वार पूर्वाम्नाय आदि चार आम्नायों के प्रतीक )
आम्र अग्नि ८१.५१( ज्वर से मुक्ति हेतु आम्रपत्र का होम ), ११५.४०( गया क्षेत्र में स्थित आम्र सिञ्चन से पितर तर्पण का फल ), २४७.३०( आम्र वृक्ष का मत्स्य उदक से सिञ्चन करने का निर्देश ), देवीभागवत ७.३८( आम्रकेश्वर क्षेत्र में सूक्ष्मा देवी का वास ), ८.५( मन्दर पर्वत पर आम्र वृक्ष की स्थिति, दिव्यता का वर्णन ), नारद १.५६.२१०( आम्र वृक्ष की पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र से उत्पत्ति ), भविष्य ४.९४( विद्या दान के अभाव से विद्वान ब्राह्मण का जन्मान्तर में आम्र वृक्ष बनना ), भागवत ५.१६.१६( मन्दराचल पर आम्र वृक्ष की महिमा ), मत्स्य ९६.५( कालधौत/सुवर्णमय १६फलों में से एक ), ९६.११( ताम्रमय १६ फलों में से एक ), वराह ५५.५१(ब्राह्मण रूप धारी हरि के आगमन से आम्र का कुब्ज बनना), वायु १११.३६/२.४९.४४( गया में आम्र वृक्ष का माहात्म्य ), स्कन्द २.२.४४.६( ज्येष्ठ मास में आम्र फल द्वारा श्रीहरि की अर्चना का निर्देश ), २.४.३.३८टीका ( शक्र का रूप ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८२( प्रजेश्वर देवों का रूप ), १.५५९.३२( बिल्वाम्रक लिङ्ग/तीर्थ का माहात्म्य : हरिकेश विप्र का ब्रह्मराक्षस योनि से उद्धार, गन्धर्व कन्याओं की कुब्जत्व से मुक्ति ), २.२३०( आम्रजनी : नारायण से उत्पन्न अप्सरा, नदी बनकर सात रूप धारण करना, माहात्म्य, आम्रजनी का गङ्गा से साम्य ), ३.११४.७५( आम्र वृक्ष के नीचे स्थित शुकायन साधु का दावानल में आम्र वृक्ष को न त्यागना, आम्र वृक्ष का सरस बनना ), कथासरित् ६.२.१२६( आम्र वृक्ष के फल तोडने पर राजपुत्र की मृत्यु का विधान ), १८.५.१४१( कन्या द्वारा उष्ण व शीत आम्र देने का हास्य ), द्र. एकाम्र, कालाम्र, कुब्जाम्रक Aamra
आम्र पर टिप्पणी
आयति ब्रह्माण्ड १.२.११.५( मेरु - कन्या, विधातृ - पत्नी, प्राण - माता? ), भागवत ४.१.४४( मेरु - कन्या, धाता - भार्या, मृकण्ड/प्राण की माता ), ९.१८.१( नहुष के ६ पुत्रों में से एक, ययाति - अनुज ), वायु २८.४( मेरु - कन्या, धाता - भार्या, प्राण/मृकण्डु - माता ), विष्णु १.१०.३( वही), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.१९(आयति का विष्णु की जघन में वास), शिव ७.१.१७.५३( मेरु व धरणी की ३० कन्याओं में से एक, भृगु - पुत्र की पत्नी ) Aayati
आयु देवीभागवत २.९.३२( रुरु पति द्वारा आयु प्रदान से मृत पत्नी प्रमद्वरा का जीवित होना ), पद्म २.१०३.१०५( पुरूरवा - पुत्र, इन्दुमती - पति, दत्तात्रेय के प्रसाद से नहुष पुत्र की प्राप्ति ), ब्रह्म १.९.१( प्रभा - पति, नहुष आदि के पिता, वंश वर्णन ), १.११६.५२( दीर्घायु प्रापक कर्मों का कथन ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.३८( शुचि अग्नि का अन्य नाम, महिष - पिता, वंश वर्णन ), १.२.३३.१३( चरकाध्वर्युओं में से एक ), १.२.३६.१४( स्वारोचिष मन्वन्तर के पारावत देवगण में से एक ), २.३.३.२१( अष्ट वसुओं में से एक, वैतण्ड आदि तीन पुत्रों के पिता ), २.३.१२.३३( दीर्घायु प्राप्ति हेतु वायसों को पिण्ड दान का निर्देश ), २.३.६७.१( आयु वंश का वर्णन ), भविष्य ३.४.२५.५६( विभिन्न मन्वन्तरों के चार - चार युगों में मनुष्यों की आयु का मान ), भागवत ५.२०.२६( शाक द्वीप की एक नदी ), ६.६.१२( प्राण व ऊर्जस्वती - पुत्र, वसु गण वंश ), ९.१५.१( पुरूरवा व उर्वशी के ६ पुत्रों में से एक, वंश वर्णन), ९.१७.१( आयु के वंश का वर्णन ), १२.११.४२( पौष मास में सूर्य रथ पर स्थित एक ऋषि ), मत्स्य २४.३३( उर्वशी व पुरूरवा के ८ पुत्रों में से एक ), ५१.३३( पशु प्रीतिकारक अग्नि का नाम, महिमान - पिता ), १०१.२२( आयु व्रत की विधि व संक्षिप्त माहात्म्य ), वायु २९.३७( शुचि अग्नि का नाम, वंश वर्णन ), ६५.१०७/२.४.१०५( १० आङ्गिरस गणों में से एक ), ७३.५/xx ( अमावसु पितर - पिता, अच्छोदा कन्या का प्रसंग ), ९१.५१/२.२९.४८( अमावसु - भ्राता, पुरूरवा - पुत्र ), ९२.१/२.३०.१( प्रभा - पति, वंश वर्णन ), विष्णु ४.८.१( आयु वंश का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.१२( अङ्गिरसों में आयु नामक अङ्गिरस की श्रेष्ठता ), शिव ५.३४.४६( दशम मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक ), स्कन्द ३.१.२८.५२( उर्वशी द्वारा पुरूरवा के साथ रमण के पश्चात् पुरूरवा को आयु पुत्र देना ), ५.२.८४.४६( राजा, गालव के शाप से दर्दुरत्व/मण्डूकत्व प्राप्ति, परीक्षित को कन्या दान व उत्तरेश्वर लिङ्ग पूजा से मुक्ति ), योगवासिष्ठ १.१४( मूर्ख पुरुष की आयु की निन्दा ), लक्ष्मीनारायण १.१६५.१५( अङ्गिरस व सुरूपा के १० आङ्गिरस पुत्रों में से एक ), १.५२०.३३( लोमश ऋषि का आयु की अल्पता का विचार कर गृह निर्माण न करना ), ३.३२.२०( आरणेय - पुत्र ), ३.८०( आयु नाशक व आयु प्रापक कर्मों का कथन ), ३.१७१.२( वही), द्र. चिरञ्जीवी, भद्रायु, विश्वायु Aayu
आयुध अग्नि २७०.३( ४ दिशाओं में आयुध सहित विष्णु के नाम ), गरुड १.२०.१( आयुधों के बीज मन्त्र ), नारद १.७०.४८( विष्णु के शङ्ख चक्र आदि आयुधों के वर्ण ), ब्रह्माण्ड ३.४.१३.१३( अधर्म का ललिता देवी के आयुधों के रूप में उल्लेख ),भागवत १२.११.१४( विष्णु के आयुध : तत्त्व रूप ), विष्णु १.२२.६८( विष्णु के आयुधों के तात्त्विक अर्थ ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.२६( आयुधों में वज्र की श्रेष्ठता का उल्लेख ), १.२३७.५( विष्णु के आयुधों से रक्षा की प्रार्थना ), ३.१४८( आयुध व्रत : विष्णु के ४ आयुधों से सम्बन्धित चतुर्व्यूह के नाम ), ३.३०१.३५( आयुध प्रतिग्रह की संविधि ), स्कन्द १.१.१७( दधीचि की अस्थियों से आयुधों का निर्माण ), द्र. अस्त्र, उग्रायुध, कुलिशायुध, कुसुमायुध, श्रुतायुध, सर्वायुध Aayudha
आयुर्वेद अग्नि २८०.१७( वात, पित्त, कफ के लक्षण ), २८२( वृक्ष आयुर्वेद विज्ञान ), २८७( हस्ति आयुर्वेद ), २८९( अश्व आयुर्वेद ), २९२( गौ आयुर्वेद का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६( ब्राह्मण रूपी विष्णु द्वारा मालावती को आयुर्वेद का वर्णन ), भागवत ३.१२.३८( आयुर्वेद की ब्रह्मा के पूर्व मुख से सृष्टि ), मार्कण्डेय ६३.४०( इन्दीवर विद्याधर द्वारा अदृश्य रूप धारण कर ब्रह्ममित्र से आयुर्वेद विद्या चुराना, शाप से राक्षस बनना ), विष्णुधर्मोत्तर २.३०( वृक्ष चिकित्सा ), २.४३( गौ आयुर्वेद ), २.४६( अश्व आयुर्वेद ), २.४९( हस्ती आयुर्वेद ), २.५२( नर, नारी आयुर्वेद), २.५६( पुरुष आयुर्वेद ), लक्ष्मीनारायण १.३६७.३८( आयुर्वेद के अङ्गों क्वाथ, विरेचन आदि की धर्म, वैराग्य आदि से उपमा ), २.१५७.१४( आयुर्वेद का दक्षिण भुजा में न्यास ), २.२६४( शार्ङ्गधर संहिता के निर्माता शार्ङ्गधर के जीवन चरित्र का वर्णन ), द्र. आरोग्य, ओषधि, चिकित्सा, शरीर Aayurveda
आयुष्मान् पद्म १.६.४२( प्रह्लाद - पुत्र ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.८९( उत्तानपाद व सूनृता के चार पुत्रों में से एक ), भागवत ८.१३.२०( अम्बुधारा - पति, ऋषभ अवतार - पिता ), विष्णु १.२१.१( संह्लाद - पुत्र, शिबि व बाष्कल - भ्राता ), Aayushmaan
आर लक्ष्मीनारायण २.११०.८८( आरकर्ण ऋषि का आर देश का गुरु बनना )
आरक्त लक्ष्मीनारायण २.२९.१०( आरक्त देश के राजा शावदीन द्वारा बालक की बलि देने का वृत्तान्त ), २.३३.२८( आरक्त देश में वल्लीदीन नामक व्याघ्र असुर का निवास )
आरग्वध भविष्य १.५७.१८( गन्धवों‰ हेतु आरग्वध बलि का उल्लेख )
आरट्ट महाभारत कर्ण ४४.४०
आरण्यक पद्म ५.३५.२०+ ( आरण्यक ऋषि का शत्रुघ्न से मिलन, लोमश से राम चरित्र श्रवण), ५.३७.६४ (अयोध्या में राम के अश्वमेध में आगमन, ब्रह्म - स्फोट से मुक्ति - एवं प्रवदतस्तस्य ब्रह्मस्फोटोऽभवत्तदा । निर्गतं तद्भवं तेजो विवेश रघुनायके । ), विष्णु १.६.२३( १४ ग्राम्यारण्य ओषधियों के नाम ), लक्ष्मीनारायण २.१७८.२३( आरण्यक ऋषि व उनके २५ सहयोगी ऋषियों का जन्मान्तर में १४ मनु व १२ आदित्य बनना, आरण्यक ऋषि का क्रमश: तृतीय मनु व जरस्थली - राजा पृथु बनना ), द्र. अरण्य Aaranyaka
आरबीज लक्ष्मीनारायण २.५५.९२, २.५७.३७( आरबीज दैत्य की यमदूत से युद्ध में मृत्यु ), २.५८.१८( रक्तबीज द्वारा बीजों के भक्षण पर उत्पन्न देव विरोधी राजा, यम द्वारा वध )
आराधना कूर्म २.४६.४१( निर्गुण, सगुण, सबीज, निर्बीज आराधना ), ब्रह्माण्ड ३.४.३४( ललिता आराधना ), भागवत २.३.२( कामना अनुसार देव आराधना ), ११.३.४७( वैदिक, तान्त्रिक आराधना : आविर्होत्र द्वारा निमि को उपदेश ), Aaraadhanaa
आराम भविष्य २.३.१+ ( आराम/बाग प्रतिष्ठा विधि का वर्णन ), २.३.१४( पुष्पाराम प्रतिष्ठा विधि ), स्कन्द १.२.४.७९( आराम दान का मध्यम कोटि के दानों में वर्गीकरण ), ५.३.५६.१०४( आराम के पुष्पों के मध्यम कोटि के होने का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.२३५.१( आराम नगर में जीर्णायन कृषक का चैतन्यायन साधु के दर्शन से मोक्ष ) Aaraama
आरार्त्रिक लक्ष्मीनारायण ४.३२( दीप वर्तियों की संख्या के अनुसार आरार्त्रिक/आरती फल का कथन )
आरुणि ब्रह्मवैवर्त्त १.२२.१०( ऋषि, निरुक्ति - बालोऽप्यरुणवर्णश्च जातः सद्योऽतितेजसा ।। प्रज्वलन्नूर्ध्वतपसा चारुणिस्तेन कीर्त्तितः।। ), ब्रह्माण्ड ३.४.१.७९( ११वें धर्मसावर्णि मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक ), मत्स्य १७१.४३( साध्य देवों में से एक, साध्या व धर्म - पुत्र ), वराह ३७.७( उग्रतपा/आरुणि के समक्ष व्याध की हिंसा वृत्ति का नष्ट होना, व्याध का आरुणि - शिष्य सत्यतपा बनना ), ९८.३२( तप से शुद्ध हुए सत्यतपा शिष्य के साथ आरुणि का नारायण देह में लीन होना - द्रष्टुं चक्षुर्नास्ति जिह्वेह वक्तुं जिह्वायाः स्यात्तत्त्वतोऽस्तीह चक्षुः ।।), वायु २३.१६६( १५वें द्वापर में व्यास ), ६१.९( वैशम्पायन - शिष्य आरुणि द्वारा मध्य देश में यजुर्वेद की प्रतिष्ठा - मध्य देशप्रतिष्ठानामारुणिः प्रथमः स्तुतः। ), विष्णु ३.२.३१( ११वें धर्मसावर्णि मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.५४२( आरुणि द्वारा व्याध के वशीकरण का प्रसंग ), १.५६०( आरुणि का शिष्य सत्यतपा सहित स्वर्ग गमन ) Aaruni
आरुणि-(१) आयोदधौम्य ऋषि के शिष्य - उपमन्युरारुणिर्बैदश्चेति स एकं शिष्यंमारुणिं पाञ्चाल्यं प्रेषयामास गच्छ केदारखण्डं बधानेति।।) । पाञ्चालदेशनिवासी । इनकी गुरुभक्ति, इनको गुरु का आशीर्वाद तथा इनका उद्दालक नाम से प्रसिद्ध होना ( आदि० ३ । २२-३२) । (२) धृतराष्ट्र नाग के कुल में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र में जल मरा था ( आदि० ५७ । १९) । (३) कश्यप और विनता के पुत्र (आदि. ६५ । ४०)। (४) एक कौरवपक्षीय महारथी वीर, जिसने शकुनि के साथ होकर अर्जुन पर हमला किया था (द्रोण० १५६ । १२२ )।
आरोग्य अग्नि ३८२.१४(आरोग्य के परम धान्य होने का उल्लेख), गरुड ३.२४.८६/३.२४.८७(आरोग्य के अधिपति काम का उल्लेख), देवीभागवत ७.३०.७१( आरोग्या : वैद्यनाथ तीर्थ में स्थित देवी का नाम ), नारद १.११९.४७( मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को आरोग्य व्रत की विधि व संक्षिप्त माहात्म्य ), मार्कण्डेय १००.३७/९७.३७( चाक्षुष मन्वन्तर के श्रवण से आरोग्य प्राप्ति का उल्लेख ), वराह ६२( आरोग्य व्रत का माहात्म्य : मानसरोवर पर पद्म ग्रहण चेष्टा पर कुष्ठ से ग्रस्त अनरण्य राजा को आरोग्य प्राप्ति ), विष्णुधर्मोत्तर २.५८( आरोग्य व्रत विधि व माहात्म्य : सूर्य पूजा ), २.५९( आरोग्य व्रत विधि व माहात्म्य : विष्णु - पूजा ), ३.२०५( आरोग्य व्रत विधि व माहात्म्य : आश्विन् में अनिरुद्ध पूजा ), स्कन्द ५.३.१५५.११३( भास्कर से आरोग्य प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१९८.७९( वैद्यनाथ तीर्थ में उमा की आरोग्या नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.१८.१२( आरोग्य दान के क्षेत्र दान से श्रेष्ठ तथा सवृत्ति गृह दान से अवर होने का उल्लेख ) Aarogya
आरोहण गरुड ३.२४.१(सोपान देश में आरोहण के समय गीता, पुराण आदि पाठ-श्रवण का निर्देश), कथासरित् ३.६.१४०( सुन्दरक द्वारा कालरात्रि से उत्पतन मन्त्र सीखने व उपयोग करने का कथन ), ८.५.२७( श्रुतशर्मा - सेनानी आरोहण का सूर्यप्रभ - सेनानी कुञ्जरकुमार से युद्ध ), ८.५.९६( श्रुतशर्मा - सेनानी, भग देवता का अंश ) Aarohana
आर्जव भागवत ११.१७.१६( आर्जव का ब्राह्मण वर्ण के गुणों में वर्गीकरण ), महाभारत वन ३१३.८९( समचित्त होना आर्जव : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद )
आर्तव ब्रह्म १.७०.५१( गर्भ धारण के संदर्भ में आर्तव के पावकात्मक होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१९( ऋतु - पुत्र, स्थावर व जङ्गम प्राणियों के पिता ), १.२.२८.१६( अर्धमास रूप, पितर रूप ), मत्स्य १४१.१४( पितरों का रूप ), वायु ३०.२३( पितरों का रूप ) Aartava
आर्तिक्य गरुड ३.२९.५३(आर्तिक्य? काल में परशुराम के स्मरण का निर्देश)
आर्द्र नारद २.१.३( शुष्क व आर्द्र पापेन्धन की व्याख्या ), पद्म १.८.१३५( विश्व - पुत्र, युवनाश्व - पिता, इक्ष्वाकु वंश ), ६.११४.२२( पाप के आर्द्र व शुष्क प्रकार ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१२४( धृति - पिता, सत्वत वंश ), मत्स्य ६४( आर्द्रानन्दकरी तृतीया व्रत की विधि : शिव - पार्वती का न्यास ), लक्ष्मीनारायण १.३१३( आर्द्रद्युति/अद्रिद्युति : देवयव व देवजुष्टा - भृत्या, मन्दिर से देवद्रव्य का अपहरण करने से सर्वस्व नाश, षष्ठी व्रत के प्रभाव से इन्द्र - पत्नी पुलोमा बनना ), २.१०९.२८( वैष्णवों द्वारा आर्द्रमान द्वीप के राजा कल्माषकेसरी का चक्र से वध ), ३.१३८.२२( आर्द्रानन्द लक्ष्मीनारायण व्रत : लक्ष्मी व नारायण का न्यास, व्रत विधि व माहात्म्य ), द्र. अद्रि, नक्षत्र Aardra
आर्य ब्रह्माण्ड २.३.७.३३( आर्यक : प्रधान काद्रवेय नागों में से एक ), भागवत ८.१३.२६( आर्यक : वैधृता - पति, ११वें मन्वन्तर में धर्मसेतु अवतार के पिता ), लक्ष्मीनारायण २.६०.७( आर्यायन ऋषि द्वारा उदय राजा को कृष्ण मन्त्र की दीक्षा ), कथासरित् ३.४.३१९( आर्यवर्मा : कर्कोटक नगर का राजा, राजकन्या से विवाह हेतु विदूषक के आगमन की कथा ), द्र. अर्यमा Aarya
आर्या भविष्य ३.४.१३.१२( आर्यावती : कलियुग में आर्यावती देवशक्ति द्वारा काश्यप से १० पुत्र उत्पन्न करना ), ३.४.२१.४( आर्यावती : देवकन्या, कण्व - भार्या, १० पुत्रों के नाम ), भागवत ५.२०.२१( आर्यका : क्रौञ्च द्वीप की एक नदी ), १०.७९.२०( बलराम द्वारा तीर्थ यात्रा काल में द्वैपायनी आर्या देवी का दर्शन ), हरिवंश २.३.१( आर्या/रात्रि देवी स्तोत्र का वर्णन ), २.१२०.४( अनिरुद्ध द्वारा बाणासुर के नागपाश से मुक्ति हेतु आर्या/कोटवती देवी की स्तुति ), लक्ष्मीनारायण ४.९४.१९( अर्यमा पितर - पत्नी ), कथासरित् ८.५.१३२( आर्या योगिनी द्वारा श्रुतशर्मा व सूर्यप्रभ के युद्ध में सिंहबल की मृत्यु का पूर्वकथन ), ९.२.५९( जीवदत्त द्वारा राजपुत्री को जीवनदान हेतु पठित आर्या ) Aaryaa
आर्यावर्त भागवत ९.६.५( इक्ष्वाकु के १०० पुत्रों का आर्यावर्त के विभिन्न प्रदेशों का अधिपति बनना ), ९.१६.२२( परशुराम द्वारा यज्ञ में आर्यावर्त को उपद्रष्टा ऋत्विज को दक्षिणा स्वरूप दान करना ) Aaryaavarta
आर्ष नारद १.२६.१६( विवाह के ८ प्रकारों में से एक ), पद्म ५.९.४८( आर्ष विवाह में शुल्क रूप में गोमिथुन का ग्रहण ), मत्स्य १४५.६७( आर्ष कर्म का निरूपण ), लक्ष्मीनारायण २.२२२.७९( आर्षजतनु राष्ट्र के अधिपति रायपति द्वारा श्रीहरि से स्वराष्ट्र में आगमन हेतु प्रार्थना ), २.२५२.५६( श्राद्ध, दान आदि से आर्षी गति प्राप्ति का कथन ), ३.७.२६( परमेश्वर का आर्षदेव नाम से चलदेव का पुत्र बनना ), ३.७.२९( आर्ष ऋषि की कन्या आर्षपद्मा का आर्ष देव से विवाह ), ३.१३.५( ब्रह्मकुमार - शिष्य आर्षकुमार द्वारा ब्रह्मचर्य व्रत का उपदेश ), ३.२१.१( आर्ष नामक वत्सर में अर्धनारीश्वर रूपी नारायण के प्राकट्य का वृत्तान्त ), ३.४५.२४( संयम से आर्ष लोकों की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१७०.१६( आर्षभ : २२वें कृष्ण धाम का नाम ), ४.१०१.१०२( आर्षी : कृष्ण - पत्नी, गायत्री व प्रणव युगल की माता ) Aarsha
आर्ष्टिषेण गर्ग ७.२६.३७( आर्ष्टिषेण - भ्राता सुमति द्वारा हनुमान से रामायण की शिक्षा प्राप्ति ), ब्रह्म १.९.३४( शल - पुत्र, काश्यप - पिता, आयु वंश ), २.३७.१९( ऋतध्वज - पिता ), २.५७( जया - पति, भर - पिता, मिथु दानव द्वारा यज्ञ से आर्ष्टिषेण का पुरोहित उपमन्यु सहित हरण, पुरोहित - पुत्र देवापि द्वारा रक्षा का उद्योग ), भागवत ५.१९.२( आर्ष्टिषेण गन्धर्व द्वारा किम्पुरुष वर्ष में राम की उपासना ), मत्स्य १४५.९९( २१ मन्त्रकर्ता भार्गव ऋषियों में से एक ), १९५.३४( आर्ष्टिषेण गोत्र से अवैवाह्य अन्य गोत्रों का कथन ), मार्कण्डेय १३३.७/१३०.७( आर्ष्टिषेण से योग की शिक्षा प्राप्ति का उल्लेख ), वायु ९१.११६/२.२९.११४( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले राजर्षियों में से एक ), महाभारत वन १५९ (युधिष्ठिर को उपदेश), शल्य ३९.३६ (पृथूदक तीर्थ में तप करके ब्राह्मणत्व प्राप्ति - यत्रार्ष्टिषेणः कौरव्य ब्राह्मण्यं संशितव्रतः। तपसा महता राजन्प्राप्तवानृषिसत्तमः।।), ४०.३ (तप का वर्णन), ४०.७(सरस्वती हेतु आशीर्वाद, पृथूदक तीर्थ की ब्राह्मणत्वप्राप्ति हेतु प्रसिद्धि), पाण्डवों का द्रौपदी को आर्ष्टिषेण को सौंपना, अनु २५.५५((तीर्थ) , Aarshtishena
आल ब्रह्मवैवर्त्त ४.७५.७५( आलवाल से उत्पन्न मिट्टी के शौच हेतु परित्याग का निर्देश ), भविष्य ४.१२८.२१( पादप रोपण हेतु आलवाल बनाने का उल्लेख ), स्कन्द ६.२४९.१६( तुलसी के आलवाल/थांवले में जल देने से सकल कुल के तरने का उल्लेख ), कथासरित् १०.१.१३६( मुख से स्वर्ण मुद्राएं वमन करने वाले एक वानर का नाम; ईश्वरवर्मा द्वारा आल वानर की सहायता से नष्ट धन की प्राप्ति ) Aala
आलम्ब ब्रह्माण्ड १.२.३३.६( आलम्बि : यजुर्वेद के चरक उपनाम वाले श्रुतर्षियों में से एक ), २.३.७.१३८( आलम्बा : खशा - पुत्री, आलम्बेय गण राक्षसों की माता ), लक्ष्मीनारायण ३.९७.१२( ब्रह्मतार विप्र - पुत्र आलम्बायन द्वारा माता - पिता से मोक्ष प्राप्ति की शिक्षा ग्रहण करना ), ३.९७.९६( आलम्बायन पार्षद का गोकर्ण तीर्थ में अवतरण, ऋषियों द्वारा नाम जप/कीर्तन के आलम्बन द्वारा मुक्ति प्राप्ति ) Aalamba
आलाप विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१( उत्तर षड~ ग्रामों में से एक? )
आलायस लक्ष्मीनारायण २.२०७.८०( आलायस मुनि का रणजित् नृप के साथ मीनार्ककृष्ण नगर में कृष्ण के साथ आगमन का स्वागत )
आलीस्मर लक्ष्मीनारायण २.२१०.२७( आलीस्मर नगरी में कृष्ण का आगमन, आशा त्याग का उपदेश, तनु ऋषि का द्रष्टान्त )
आल्हाद द्र. आह्लाद
आवपन महाभारत वन ३१३.६८( भूमि के महत् आवपन होने का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद )
आवरण अग्नि ३३.३४( विष्णु की आवरणों सहित पूजा विधि ), गरुड ३.९.७(७ आवरणों के नाम), ३.१०.६(ब्रह्माण्ड के ७ आवरणों का कथन), पद्म ५.११४.२९( सदाशिव के १० क्रमिक आवरणों के नाम ), ब्रह्माण्ड ३.४.२.२९४( प्रत्याहार द्वारा उदक, तेज, वायव्य आदि आवरणों का परस्पर लीन होना ), ३.४.१९( ललिता के रथ चक्र में पवों‰ में स्थित आवरण देवियां ), भागवत ५.७.३( भरत व पञ्चजनी के पांच पुत्रों में से एक ), लिङ्ग २.२७( शिव अभिषेक में आवरण शक्तियां ), शिव १.१७.११०( शिवलोक में सद्योजात, वामदेव आदि शिवों के पांच आवरणों का वर्णन ), ७.२.२५.२( शिव पूजा से पूर्व आवरण देवताओं की पूजा का विधान ), ७.२.३०+ ( शिव की आवरण देवताओं सहित पूजा का विस्तृत वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.६३.२२( श्रीहरि से तादात्म्य में आवरण भेद का वर्णन ), द्र. मण्डल Aavarana
आवर्त गर्ग ७.४०.४२( गरुड द्वारा आवर्तक द्वीप में सुधाकुण्ड में सुधा पान ), पद्म १.१६.६१( यज्ञ वराह के संदर्भ में प्रवर्ग्य आवर्त्त भूषण का उल्लेख ), भागवत ५.१९.३०( आवर्तन : सगर - पुत्रों द्वारा भूमि खनन से निर्मित ८ उपद्वीपों में से एक ), स्कन्द ५.३.२३१.१३( रेवा - सागर सङ्गम पर ७ आवर्त तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश २.८३.३( आवर्ता : आवर्ता नदी तट पर ब्रह्मदत्त विप्र के यज्ञ में निकुम्भ आदि दैत्यों का विघ्न, प्रद्युम्न द्वारा रक्षा ), योगवासिष्ठ १.२५.२१( आवर्त मेघ : नियति के हाथ में डमरु का रूप ), वा.रामायण ७.८८.२०( इला व बुध प्रसंग में बुध द्वारा आवर्तनी विद्या से स्त्रियों को किम्पुरुषी बनाना ), द्र. तृणावर्त Aavarta
आवसथ्य कूर्म २.३४.११२( रावण द्वारा हरण पर सीता द्वारा आवसथ्य अग्नि की स्तुति, अयोध्या लौटने तक आवसथ्य अग्नि में वास, आवसथ्य अग्नि द्वारा सीता के स्थान पर छाया सीता की स्थापना - विज्ञाय सा च तद्भावं स्मृत्वा दाशरथिं पतिम् । जगाम शरणं वह्निमावसथ्यं शुचिस्मितः ॥ ), देवीभागवत ३.१२.४९ ( आवसथ्य अग्नि का समान नामक वायु/प्राण से तादात्म्य - दक्षिणाग्निस्तथा व्यानः समानश्चावसथ्यकः ॥सभ्योदानः स्मृता ह्येते पावकाः परमोत्कटाः । ), ११.२२.३१( प्राणाग्नि होत्र में सभ्य व आवसथ्य अग्नियों की नाभि से नीचे स्थिति - नाभौ च दक्षिणाग्निः स्यादधः सभ्यावसथ्यकौ । ), मत्स्य ५१.१२( संशति अग्नि - पुत्र, सभ्य - भ्राता ), वायु २९.१२( शंस्य/आहवनीय अग्नि – पुत्र - तथा सभ्यावसथ्यौ वै शंस्यस्याग्नेः सुतावुभौ। ), १०४.८४/२.४२.८४( आवसथ्य अग्नि की अधरोष्ठ में स्थिति - राजसूयं शिरोदेशे आवसथ्यं तथाऽधरे । ऊर्द्ध्वोष्ठे दक्षिणाग्निञ्च गार्हपत्यं मुखान्तरे। ), १११.५२/२.४९.६१( आवसथ्यपद तीर्थ में श्राद्ध का फल : पितरों का ब्रह्मलोक गमन - श्राद्धं कृत्वा सभ्यपदे ज्योतिष्टोमफलं लभेत् । आवसथ्यपदे श्राद्धी पितॄन्ब्रह्मपुरं नयेत् ।। ), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१२( शंस्य अग्नि – पुत्र -- शंस्यसुतानावसथ्यं सभ्यं चाहवनीयकम् । अभक्षयन्महारिष्टानलादो नाम चासुरः ।। ), शतपथ २.३.२.३ Aavasathya
आवह अग्नि २१९( आवह आदि सात स्कन्धों में स्थित ४९ मरुतों के नाम ), ब्रह्माण्ड १.२.२२.३४( आवह आदि वायुओं के वशीभूत मेघों की प्रकृति का कथन ), २.३.५.८२( आवह आदि वायुओं की ब्रह्माण्ड में व्याप्ति सीमा तथा प्रत्येक में उपस्थित मरुत गणों के नाम ), मत्स्य १६३.३२( सात वायुओं में से एक ), वायु ५१.३२( आवह, प्रवह आदि वायुओं के वशीभूत आवह वायु का हिमाचल से उत्पन्न होकर हेमकूट पर्वत पर वर्षा करना ), ६७.१११/२.६.१११( आवह आदि वायुओं की ब्रह्माण्ड में व्याप्ति का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१२७( आवह आदि सात स्कन्धों में स्थित ४९ मरुतों के नाम ), शुक्ल यजुर्वेद १७.८०( वही), तैत्तिरीय संहिता ४.६.५.५( वही) Aavaha
आवाहन ब्रह्माण्ड ३.४.४२.२( आवाहनी महामुद्रा की विधि ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०२( जीवरूपी प्रभु के आवाहन की विधि ), ३.१०३+ ( देवसंघ आवाहन विधान ), लक्ष्मीनारायण २.१५१( मन्दिर प्रतिष्ठा में प्रत्यधिदेवता आवाहन मन्त्रों का वर्णन ) Aavaahana
आविर्होत्र भागवत ११.३( ऋषभ व जयन्ती - पुत्र, निमि को वैदिक आराधना पद्धति का उपदेश ) Aavirhotra
आशा भविष्य ४.६४( आशा दशमी व्रत : दमयन्ती द्वारा पुन: पति की प्राप्ति ), वायु ६९.५/२.८.५( आशी/शाची : ३४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), स्कन्द ३.२.२२.६( आशापुरी : काजेश द्वारा विनिर्मित मातृकाओं में से एक ), ४.१.५.३९( काशी में आशा व गज नामक विनायकों की स्थिति का कथन ), ४.२.५७.१०८( आशा विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य ), ७.१.३४१( आशापूर विघ्नराज का संक्षिप्त माहात्म्य : चन्द्रमा की कुष्ठ से मुक्ति ), महाभारत १२६.१५+ ( राजा सुमित्र द्वारा ऋषियों से आशा व अन्तरिक्ष में तुलना का प्रश्न, ऋषियों के उत्तर ), १२७( आशा के सम्बन्ध में राजा वीरद्युम्न व तनु मुनि का संवाद ), योगवासिष्ठ ५.५०( आशा को त्याग कर स्व में स्थित होने का उपदेश ), लक्ष्मीनारायण २.२१०.४४( कृष्ण द्वारा आलीस्मर नगरी में आशा त्याग का उपदेश, पिङ्गला नारी का आशा त्याग कर सुख से सोना ), २.२२३.८३( आशासना : पारावत राष्ट्र में आशासना नगरी में पराङ्व्रत राजा द्वारा श्रीहरि का सत्कार ), द्र. दिशा Aashaa
आशिष भागवत ६.१८.२( भग व सिद्धि - पुत्री ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०४( शान्ति कर्म के अन्त में याजक द्वारा यजमान को आशीर्वाद वचन का वर्णन ), अथर्व ५.२६.९(भगो युनक्तु आशिषः), Aashish
आशुतोष लक्ष्मीनारायण ३.३४.७१( आशुतोषिणी : निरञ्जन विप्र की पत्नी, श्री निरञ्जन नारायण अवतार की माता ), द्र. आषुतोष
आशुश्रवा कथासरित् १०.३.६६( उच्चैःश्रवा अश्व - पुत्र, सोमप्रभ राजकुमार द्वारा आशुश्रवा की सहायता से दिग्विजय )
आश्चर्य पद्म २.८५( कुञ्जल शुक के चार पुत्रों द्वारा दृष्ट आश्चर्यों का वर्णन ), भविष्य ३.२.१८.१८( मरणधर्मा भूतों में ममत्व होने का आश्चर्य ), स्कन्द ५.२.५८.५( नारद द्वारा राजा प्रियव्रत को आश्चर्य का वर्णन : सावित्री कन्या के शरीर में वेदों की स्थिति ), हरिवंश २.११०.२२( नारद द्वारा कृष्ण को देवों में आश्चर्य कहना व उसकी व्याख्या ), महाभारत वन ३१३.११४( युधिष्ठिर द्वारा यक्ष के प्रश्न का उत्तर : मृत्यु को प्राप्त होते हुए प्राणियों को देखते हुए भी जीवन की इच्छा होना आश्चर्य ) Aashcharya
आश्रम अग्नि १६०( वानप्रस्थ धर्म का निरूपण ), १६१( संन्यास आश्रम धर्म का निरूपण ), नारद १.४३.१०४( ब्रह्मचर्यादि आश्रमों के आचार का निरूपण ), पद्म १.१५( ब्रह्मचर्य आदि आश्रमों के धर्म व कर्तव्य ), भविष्य १.१८२( चतुराश्रम - धर्म का निरूपण ), भागवत ७.२०( ब्रह्मचर्य आदि आश्रमों के धर्म व कर्तव्य ), वायु ८.१७७( चतुराश्रम धर्म व्यवस्था ), विष्णु ३.९( ब्रह्मचर्यादि आश्रम धर्म का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३०( वानप्रस्थ आश्रम आचार का निरूपण ), २.१३१( संन्यास आश्रम आचार का निरूपण ),महाभारत शान्ति ६१, ३२६, , द्र. ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास, सिद्धाश्रम Aashrama
आश्रय ब्रह्मवैवर्त्त ४.७५.२७( पापी जनों का आश्रय लेने के दोष ), भागवत २.१०.१(भागवत पुराण के अन्तर्गत १० लक्षणों में अन्तिम आश्रय की व्याख्या), लक्ष्मीनारायण ३.१७९( नित्याश्रया नामक विधवा : केशी - माता, भगवद्भक्ति से मोक्ष प्राप्ति )
आश्वलायन मत्स्य १९६.१३( आश्वलायनि : गोत्रकार ऋषि ), वायु २३.२१३( २६वें द्वापर में सहिष्णु अवतार - पुत्र ), शिव ३.५.४०( २६वें द्वापर में सहिष्णु अवतार - पुत्र ), लक्ष्मीनारायण २.२३६.६०( अश्व रूप धारी आश्वलायन मुनि का बर्बुर नृप द्वारा बन्धन, नृप का शाप से बर्बुर वृक्ष बनना ) Aashvalaayana
आश्विन् भविष्य ३.४.८.६१( आश्विन् मास के सूर्य का माहात्म्य : मेधावी व मञ्जुघोषा - पुत्र भगशर्मा द्वारा सूर्य लोक की प्राप्ति, पुन: सत्यदेव - पुत्र वाणीभूषण बनकर मत्स्यखादक विप्रों का उद्धार करना ), स्कन्द ५.३.१४९.११( आश्विन् द्वादशी को पद्मनाभ की अर्चना का निर्देश ), ५.३.१८०.५४( आश्विन् शुक्ल दशमी को सरस्वती का दशाश्वमेध तीर्थ में आने का उल्लेख ), ५.३.१८४.१८( आश्विन् शुक्ल नवमी को नर्मदा तट पर विधूतपाप तीर्थ में निवास का माहात्म्य ), ५.३.१८५.२( आश्विन् शुक्ल चर्तुदशी को ऐरण्डी तीर्थ में स्नान आदि के माहात्म्य का कथन ), द्र. इष, मास Aashwin/aashvin
आषाढ देवीभागवत ७.३८.२०( आषाढ क्षेत्र में रति देवी का वास ), नारद १.६६.११४( आषाढी की शक्ति पूतना का उल्लेख ), भविष्य ३.४.८.७( आषाढ मास के सूर्य का माहात्म्य : शक्रशर्मा द्विज का सूर्य बनना, कालान्तर में वृन्दावन में माधव द्विज का पुत्र मधु/मध्वाचार्य बनना ), मत्स्य १९४.३०( आषाढी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : इन्द्रासन की प्राप्ति ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१०६.१३६( संकर्षण – प्रतीहार - द्वय, आवाहन मन्त्र का कथन ), स्कन्द १.३.१.६.१२२( आषाढ मास में विश्वेदेवों द्वारा अरुणाचल की पूजा ), ४.२.५५.२७( काशी में आषाढेश्वर लिङ्ग की स्थापना व माहात्म्य ), ४.२.९७.१७७( आषाढीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : अघनाशक ), ५.३.१४९.१०( आषाढ द्वादशी को वामन अर्चना का निर्देश ), ५.३.२१४.४( तपोरत शिव द्वारा आषाढी नाम प्राप्ति ), ५.३.२१६( आषाढी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : कामिक रूप धारी शिव की स्थिति, रुद्र लोक प्राप्ति ), ७.१.१०.८(आषाढि तीर्थ का वर्गीकरण – तेज), कथासरित् २.५.८( आषाढक : भद्रवती हस्तिनी का महावत, उदयन द्वारा वासवदत्ता के हरण का प्रसंग ), ८.१.१३९( आषाढेश्वर : दामोदर विद्याधर के पिता, विद्याधर व सूर्यप्रभ के युद्ध का प्रसंग ), १४.१.६५( आषाढपुर : पर्वत, विद्याधरों के अधिपति मानसवेग का निवास स्थान, वेगवती-नरवाहनदत्त की कथा), द्र. प्रतिपदा आदि तिथियां, तिथि, मास Aashaadha
आषुतोष लक्ष्मीनारायण ४.१०१.९३( कृष्ण व नन्दिनी - पुत्र ), द्र. आशुतोष
आसन अग्नि ७४.४४( शिव के सिंहासन का स्वरूप व पूजा विधि ), २४५.३( भद्रासन की संरचना ), गरुड xxx/२.४.९( प्रेत के ८ पदों के रूप में छत्र, उपानह, आसन आदि का उल्लेख ), पद्म ५.११४.३१०( आसन के उपयुक्त द्रव्यों का कथन ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२३.५१( स्त्री की ऊरुओं की आसन के रूप में कल्पना ), भविष्य ४.१३८.८०( सिंहासन मन्त्र का कथन ), ?.२५( आसन पूजा मन्त्र ), विष्णुधर्मोत्तर १.६२.२( आसनादि योगों की स्थिर तथा अन्यों की अस्थिर संज्ञा ), ३.२१+ ( अभिनय में शय्या आदि आसनों के संकेत चिह्न ), स्कन्द १.२.४.८०( आसन दान का कनीयस् कोटि के दानों में वर्गीकरण ), २.१.२७.५३( पुराणज्ञ को आसनार्थ कम्बल, वस्त्र आदि प्रदान करने का फल ), २.४.३६.३४( वही), ३.३.२२.४५( वही), ४.१.४१.५९( अष्टाङ्ग योग के अन्तर्गत पद्मासन का संक्षिप्त वर्णन ), ५.३.४९.४६( ब्राह्मण को देय दान द्रव्यों में से एक ), हरिवंश ३.३४.४०(यज्ञवराह हेतु गुह्य उपनिषदों के आसन होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१८.१२( ब्रह्मसर की कन्याओं द्वारा कृष्ण को समर्पित आसन के स्वरूप का कथन ), २.२४५.४९( जीव रथ में यज्ञ को आसन बनाने का निर्देश ), ३.७.२( आसन नामक नवम वत्सर में चलवर्मा राजा द्वारा चल संसार में अचला भक्ति की प्राप्ति ), भरत नाट्यशास्त्र १२.१५६(विभिन्न स्थितियों में आसनों का स्वरूप), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.१८(६ मुख्य आसनों का कथन), Aasana
आसन्दिव ब्रह्म २.९७.३( आसन्दिव विप्र का कङ्कालिनी राक्षसी द्वारा हरण व विवाह, गौतमी तट पर तप से नारायण द्वारा राक्षसी का वध )
आसाम लक्ष्मीनारायण २.११५.१७( नग्न पर्वतों के बीच साम देश के योद्धाओं का बसना, आसाम देश के नृप द्वारा शिवलिङ्ग की स्थापना, शिव लिङ्ग से कामाक्षी देवी का प्रादुर्भाव )
आसुरि गर्ग २.२४( आसुरि मुनि की विष्णु दर्शन की लालसा, गोपी रूप धारण करके कृष्ण दर्शन ), नारद १.४५.१२( मुनि, पञ्चशिख - गुरु, सांख्यशास्त्र वेत्ता ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.९६.३३( चिरञ्जीवियों में से एक आसुरि मुनि का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२( वैशम्पायन - शिष्य, मध्य देश में यजुर्वेद के प्रवर्तक ), भागवत १.३.१०( आसुरि द्वारा विष्णु के पञ्चम अवतार कपिल ऋषि से सांख्य शिक्षा की प्राप्ति ), ४.२५.५२( राजा पुरञ्जन के नगर के पश्चिम द्वार का नाम ), ४.२९.१४( शरीर में मेढ}/लिङ्ग की आसुरी द्वार रूप में प्रतीकात्मकता ), ५.१५.३( देवताजित् - भार्या, देवद्युम्न - माता ), शिव ३.४.३३( अष्टम द्वापर में दधिवाहन अवतार - पुत्र ) Aasuri
आस्तिक्य भागवत ११.१७.१८( आस्तिक्य का वैश्य के गुणों के अन्तर्गत वर्गीकरण )
आस्तीक देवीभागवत २.११( जरत्कारु पिता व जरत्कारु माता से आस्तीक की उत्पत्ति, जनमेजय के सर्प सत्र में सर्पों की रक्षा ), ब्रह्मवैवर्त्त २.४६( परीक्षित् - तक्षक आख्यान ), २.५२.२३( आस्तीक द्वारा सुयज्ञ नृप से कृतघ्नता दोष का निरूपण ), स्कन्द २.४.८.४६( आस्तीक गन्धर्व का लोमश ऋषि के शाप से वट वृक्ष बनना, तुलसी माहात्म्य श्रवण से मुक्ति ), ५.१.६५( आस्तीक द्वारा जनमेजय के सर्प सत्र में नागों की रक्षा के पश्चात् नागों को महाकालवन में निवास का आदेश ), लक्ष्मीनारायण १.४३६( जरत्कारु पिता व जरत्कारु माता से आस्तीक की उत्पत्ति की कथा ), महाभारत आदि ४७.२१( सूर्यास्त समय में पत्नी द्वारा प्रबोधित किए जाने पर जरत्कारु ऋषि द्वारा पत्नी का त्याग ), ४८.२०( जरत्कारु ऋषि द्वारा अस्ति कहकर गर्भ में बालक की पुष्टि करने से बालक द्वारा आस्तीक नाम प्राप्ति ), ५५.१( आस्तीक का जनमेजय के सर्प सत्र में आकर स्वस्ति गायन तथा सर्पों की रक्षा करना ) Aasteeka
आस्य द्र. हंसास्य
आहव लक्ष्मीनारायण २.११०.६९( आहवमङ्गल द्वारा मङ्गू भूमि के राजा पद की प्राप्ति )
आहवनीय
गरुड १.२१३.६६(
सन्ध्या
होम के
संदर्भ में
विष्णु आहवनीय
अग्नि, ब्रह्मा
गार्हपत्य
अग्नि आदि-
ब्रह्मा
वै गार्हपत्याग्निर्दक्षिणाग्निस्त्रिलोचनः
।
विष्णुराहवनीयाग्निः
कुमारः सत्य उच्यते ॥
), १.२१३.१५३(
मुख
में आहवनीय,
उदर
में गार्हपत्य
अग्नि के
स्थान आदि
- उदरे
गार्हपत्याग्निः पृष्ठदेशे
तु दक्षिणः ॥
आस्ये
चाहवनीयोऽग्निः सत्यः पर्व
च मूर्धनि ।
), देवीभागवत
३.१२.४८(
आहवनीय
अग्नि अपान
का रूप,
गार्हपत्य
प्राण का
रूप आदि
- गार्हपत्यस्तदा
प्राणोऽपानश्चाहवनीयकः।
दक्षिणाग्निस्तथा
व्यानः समानश्चावसथ्यकः ॥
), ११.२२.३०(
प्राणाग्नि
होत्र के
संदर्भ में
आहवनीय अग्नि
का मुख
में निवास,
गार्हपत्य
अग्नि का
हृदय में
निवास इत्यादि
- मुखे
चाहवनीयस्तु हृदये गार्हपत्यकः
॥
नाभौ
च दक्षिणाग्निः स्यादधः
सभ्यावसथ्यकौ ।
), पद्म
१.१४.८०(
आहवनीय
अग्नि में
ऋक्, यजु
व साम
नामों द्वारा
हर की
अर्चना करने
का उल्लेख-
एकोहि
गार्हपत्योग्निर्दक्षिणाग्निर्द्वितीयकः।
आहवनीयस्तृतीयस्तु
त्रिकुंडेषु प्रकल्पय।।
वर्तुले
त्वर्चयात्मानम्मामथो
धनुराकृतौ।
चतुःकोणे
हरं देवं ऋग्यजुःसामनामभिः
), ब्रह्माण्ड
१.२.१२.१२(
शंस्य
अग्नि का
रूप, हव्यवाहन
नाम
- आथर्वः
पवमानस्तु निर्मथ्यः कविभिः
स्मृतः।
स
ज्ञेयो गार्हपत्योऽग्निस्तस्य
पुत्रद्वयं स्मृतम्।
शंस्यस्त्वाहवनीयोऽग्नेः
स्मृतो यो हव्यवाहनः।
द्वितीयस्तु
सुतः प्रोक्तः शुकोऽग्निर्यः
प्रणीयते ।
तथा
सव्यापसव्यौ च शंस्यस्याग्नेः
सुतावुभौ।।
), भविष्य
४.६९.३६(
गौ
के कण्ठ
में आहवनीय
अग्नि, हृदय
में दक्षिणाग्नि
व जठर
में गार्हपत्य
अग्नि होने
का कथन
), मत्स्य
५१.४(
हव्यवाह
: पवमान
अग्नि -
पुत्र,
१६
नदियों से
धिष्ण्य
पुत्रों को
उत्पन्न करना
- पवमानात्मजो
ह्यग्निर्हव्यवाहः स उच्यते
।
पावकः
सहरक्षस्तु हव्यवाहमुखः
शुचिः।
देवानां
हव्यवाहोऽग्निः प्रथमो
ब्रह्मणः सुतः।।
), वायु
२९.११(
अग्नि,
शंस्य/हव्यवाहन
नाम, सभ्य
व आवसथ्य
पुत्र, १६
नदियों से
१६ धिष्ण्य
अग्नियों
को जन्म
देना -
शंस्यस्त्वाहवनीयोऽग्निर्यः
स्मृतो हव्यवाहनः। द्वितीयस्तु
सुतः प्रोक्तः शुक्रोऽग्निर्यः
प्रणीयते ।।तथा सभ्यावसथ्यौ
वै शंस्यस्याग्नेः सुतावुभौ।
), १११.५१/२.४९.६०(
आहवनीयपद
पर श्राद्ध
से अश्वमेध
फल प्राप्ति
का उल्लेख
- गार्हपत्यपदे
श्राद्धी वाजपेयफलं लभेत्।
श्राद्धं
कृत्वाहवनीये अश्वमेधफलं
लभेत् ।।
), विष्णुधर्मोत्तर
१.१३६.३१(
आहवनीय,
दक्षिणाग्नि,
गार्हपत्य
व उपसद
की क्रमश:
वासुदेव
आदि चतुर्व्यूह
से समानता
- अग्निराहवनीयस्तु
वासुदेवो नराधिप ।
दक्षिणाग्निस्तथा
ज्ञेयो नित्यं संकर्षणो बुधैः
।
तथा
च गार्हपत्योऽग्निः प्रद्युम्नः
परिपठ्यते ।
तथैवौपसदो
राजन्ननिरुद्धः प्रकीर्तितः
।। ),
२.३७.५७(
गुरु
के आहवनीय
अग्नि होने
का उल्लेख,
पिता
गार्हपत्य,
माता
दक्षिणाग्नि),
स्कन्द
५.१.३.५९(
चतुष्कोणीय
आहवनीय अग्नि
में हर
की पूजा
का निर्देश
), ५.३.२२.४(
मुख्य
अग्नि व
स्वाहा के
तीन पुत्रों
आहवनीय आदि
का कथन
), हरिवंश
१.२६.४१(
पुरूरवा
द्वारा अरणि
मन्थन से
अग्नि को
त्रेधा विभाजित
करना ),
२.१२२.१४
( शोणितपुर
में कृष्ण
व बाणासुर
युद्ध के
प्रसंग में
गरुड द्वारा
आकाशगङ्गाजल
से आहवनीय
अग्नि को
शान्त करना
), महाभारत
शान्ति १०८.७(
गुरु
के आहवनीय
अग्नि होने
का उल्लेख,
पिता
गार्हपत्य,
माता
दक्षिणाग्नि
), आश्वमेधिक
२१.८(
मन
के आहवनीय
होने का
उल्लेख
- शरीरभृद्गार्हपत्यस्तस्मादग्निः
प्रणीयते।
मनश्चाहवनीयस्तु
तस्मिन्प्रक्षिप्यते हविः।।),
लक्ष्मीनारायण
२.१५७.३६(
मुख
में आहवनीय,
उदर
में गार्हपत्य
अग्नि के
स्थान आदि
), ३.३२.१२(
शंस्य
अग्नि – पुत्र
-- शंस्यसुतानावसथ्यं
सभ्यं चाहवनीयकम्
।
अभक्षयन्महारिष्टानलादो
नाम चासुरः
) Aahavaneeya
आहिताग्नि स्कन्द ५.३.५०.४३( आहिताग्नि द्विज द्वारा शूद्र से प्रतिग्रह प्राप्त करने के दोष का कथन )
आहुक ब्रह्म १.१३.४८( अभिजित् - पुत्र, पुनर्वसु - पौत्र, काश्या - पति, उग्रसेन - पिता, चरित्र महिमा ), ब्रह्माण्ड २.३.७१.१२१( पुनर्वसु - पुत्र, चरित्र की महिमा ), भागवत ९.२४.२१( पुनर्वसु से आहुक पुत्र व आहुकी कन्या की उत्पत्ति ), मत्स्य ४४.६६( पुनर्वसु - पुत्र, चरित्र की प्रशंसा ), वायु ९६.१२०/२.३४.१२०( पुनर्वसु - पुत्र, चरित्र की महिमा ), शिव ३.२८( आहुक भिल्ल की यति रूपी शिव द्वारा परीक्षा, आहुक का राजा नल के रूप में जन्म ), हरिवंश १.३७.२०( अभिजित् - पुत्र, पुनर्वसु - पौत्र ), Aahuka
आहुकी वायु ९६.१२१/२.३४.१२१( पुनर्वसु - पुत्री, आहुक - भगिनी, आहुकान्ध - पत्नी, देवक व उग्रसेन - माता )
आहुति देवीभागवत ११.२२.२७( अङ्गुलियों द्वारा प्राण, उदान आदि की आहुति का विधान ), नारद १.५१.४६( यज्ञ में आघार आदि आहुतियों से अग्नि शरीर के अङ्गों का कल्पन ), १.७२.१५( हयग्रीव हेतु होम में विभिन्न द्रव्य आहुतियों का फल ), वायु १५.५( आत्म हितार्थ आहुतियां ), स्कन्द ४.२.९७.१०३( आहुतीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : होम फल प्रद ), ५.१.५२.४३( यज्ञ वराह के संदर्भ में जिह्वा अग्नि, तालुक आहुति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१५८.१( यज्ञान्त में पूर्णाहुति विधि ), २.१७१.९( वही), २.२१२.२२( वही), २.२२९.५८( वही), द्र. होम Aahuti
आह्निक गरुड १.९४( याज्ञवल्क्य प्रोक्त आह्निक ), १.२०५.३०/१.२१३.३०( नित्य आह्निक ), देवीभागवत ११.२( आह्निक का वर्णन ), नारद १.२७( आह्निक कर्म ), १.५०.२०८( सामवेदी हेतु आह्निक कर्म ), १.६६( दीक्षा कर्म हेतु आह्निक ), २.५६.५५( नित्य स्नान ), ब्रह्मवैवर्त्त १.२६( नित्य आह्निक ), ४.७५( आह्निक कर्म ), विष्णुधर्मोत्तर २.१५१( राजा के लिए आह्निक का कथन ), शिव ६.४( आह्निक आचार ), स्कन्द २.४.५( कार्तिक मास व्रत धारियों के लिए आह्निक/नित्य कर्मों का कथन ), ३.२.५.३१( नित्य आह्निक ), ४.१.३५.४४( नित्य आह्निक ), द्र. आचार, नित्यकर्म, सदाचार Aahnika
आह्लाद भविष्य ३.३.१.३३( कृष्ण के वैकुण्ठ धाम का अंश? ), ३.३.९.१६( देशराज व देवकी - पुत्र आह्लाद के जन्म पर देवों का उत्सव, बलराम का अंश ), ३.३.१०.५०( आह्लाद द्वारा मृगया हेतु महीपति से कराल नामक दिव्य अश्व की प्राप्ति ), ३.३.११.५( पार्वती से वरदान रूप में सुरत्व की प्राप्ति ), ३.३.१२.२८( भ्राता कृष्णांश की सेना में गजों का आधिपत्य ), ३.३.१२.३१( माता को प्रसन्न करने के लिए डमरु धारण करना ), ३.३.१३.२३( नेत्रसिंह - कन्या स्वर्णवती पर आसक्ति, बन्धन प्राप्ति ), ३.३.१३.१०५( नेत्रसिंह से युद्ध के लिए देव से पपीहक हय की प्राप्ति ), ३.३.१३.१२०( नेत्रसिंह - भ्राता हरानन्द से बन्धनग्रस्त होने पर स्वर्णवती पत्नी द्वारा मुक्ति का उद्योग ), ३.३.१४.१( स्वर्णवती से जयन्त - अंश इन्दुल पुत्र की प्राप्ति ), ३.३.१५.११( देवी द्वारा आह्लाद की कुण्ड भरण रूपी परीक्षा, वरदान ), ३.३.२४.६४( आह्लाद द्वारा गुरु गोरखनाथ से सञ्जीवनी विद्या की प्राप्ति ), ३.३.२५.१८( बलभद्र/राम का अंश, पंचशब्द हय पर आरूढ, तोमरायुध ), ३.३.३२.२०५( युद्ध में रक्तबीज - अंश चामुण्ड का वध ), ३.३.३२.२२३( आह्लाद द्वारा कलि का कार्य पूर्ण करने पर कलि द्वारा आह्लाद की स्तुति, आह्लाद द्वारा पृथ्वीराज की आंखों को नीला करना, गन्धमादन पर्वत पर योग हेतु गमन ) Aahlaada
मेघों की प्रकृति ), ५१.४९(