ऋ अग्नि ३४८.३ ( ऋ अक्षर का शब्द व अदिति हेतु प्रयोग ), स्कन्द १.२.६२.२९( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक )


      ऋक्ष ब्रह्म १.११.१०५ ( अजमीढ - पत्नी धूमिनी से ऋक्ष के जन्म का वृत्तान्त, दिवोदास वंश ), १.११.१११ ( विदूरथ - पुत्र, परीक्षित / दिवोदास वंश ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१७४ ( पुलह - पत्नी मृगमन्दा से ऋक्षों का जन्म ), २.३.७.२१० ( शुक व व्याघ्री - पुत्र, विरजा - पति, वाली व सुग्रीव पुत्रों के जन्म का वृत्तान्त ), २.३.७.३१९ ( वानरों की ११ जातियों में से एक ), भागवत ४.१.१७ ( ऋक्ष नामक कुलपर्वत पर अत्रि ऋषि के तप का वर्णन ), ९.२२.३ ( अजमीढ - पुत्र, संवरण - पिता, दिवोदास वंश ), मत्स्य ५०.१९ ( अजमीढ व धूमिनी - पुत्र, संवरण - पिता, जन्म वृत्तान्त का कथन ), १७३.७ ( तारकासुर - सेनानी मय के रथ के वाहक सहस्र ऋक्षों / रीछों का उल्लेख ), मार्कण्डेय १५.२८ ( ऊनी वस्त्र हरण पर ऋक्ष योनि प्राप्ति का कथन ), लिङ्ग १.२४.१११ ( २४वें द्वापर में व्यास ), वराह ८५.२ ( भारतवर्ष के कुलपर्वतों में से एक ), वायु २३.२०६ ( वही), ९९.२१४ ( अजमीढ - पत्नी धूमिनी से ऋक्ष पुत्र के जन्म का वर्णन ), ९९.२३३ ( देवातिथि - पुत्र, भीमसेन - पिता, परीक्षित वंश ), विष्णु ३.३.१८ ( २४वें द्वापर में व्यास, वाल्मीकि उपनाम ), ४.१९.५७ ९ (पुरञ्जय - पुत्र, हर्यश्व - पिता, पुरु /भरत वंश ), ४.२०.६ ( देवातिथि - पुत्र, भीमसेन - पिता, परीक्षित वंश ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४९.५ ( धूम्र का ऋक्षों आदि के अधिपति होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१३.१७१( शतरुद्रिय प्रसंग में ऋक्षों द्वारा तेजोमय लिङ्ग की भग नाम से अर्चना का उल्लेख ), २.१.१३ (धर्मगुप्त राजपुत्र द्वारा ऋक्ष रूप धारी ध्यानकाष्ठ ऋषि को वृक्ष से नीचे गिराने के प्रयत्न की कथा ), ३.१.३२ ( वही), ४.१.४५.३६ (ऋक्षाक्षी : ६४ योगिनियों में से एक ), हरिवंश १.३२.४७ (धूमिनी से ऋक्ष के जन्म का वृत्तान्त ), योगवासिष्ठ १.१८.३५ ( इन्द्रियों / अक्षों की ऋक्ष से उपमा ), लक्ष्मीनारायण १.४०२.२२ ( धर्मगुप्त राजपुत्र द्वारा ऋक्ष से विश्वासघात की कथा ), १.५५६.१७ ( ऋक्ष पर्वत से निकलने वाली नदियों के नाम ), १.५५६.७७ ( राजा पुरूरवा द्वारा पितरों के उद्धार हेतु नर्मदा नदी का ऋक्ष पर्वत पर अवतरण कराने का वृत्तान्त ), १.५५७.७ ( अयोध्यापति मनु द्वारा ऋक्ष पर्वत पर अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान का वर्णन ), कथासरित् १.५.८० ( हिरण्यगुप्त द्वारा वृक्ष पर ऋक्ष से विश्वासघात की कथा ), ४.३.४६ ( सिद्धविक्रम द्वारा पात्र में पत्नी के पूर्वजन्म के ऋक्षी रूप के दर्शन करना ) द्र. नक्षत्र Riksha


      ऋक्ष- लक्ष्मीनारायण १.८३.२८( ऋक्षाक्षी : ६४ योगिनियों में से एक ), १.८३.३०( ऋक्षकेशी : ६४ योगिनियों में से एक )


      ऋक्षरजा ब्रह्माण्ड २.३.१.५८ ( ब्रह्मा के नेत्र संचार से ऋक्षरजा की उत्पत्ति का कथन ), वा.रामायण ५.६३.५ ( वाली व सुग्रीव के पिता का नाम )


      ऋक्षराज ब्रह्माण्ड २.३.७१.३५ ( जाम्बवान ऋक्ष की उपाधि, स्यमन्तक मणि का प्रसंग )


      ऋक्षवान ब्रह्माण्ड १.२.१६.३२ ( भारतवर्ष के ७ कुल पर्वतों में से एक, ऋक्षवान पर्वत से उद्भूत नदियों के नाम ), २.३.७०.३२ ( राजा ज्यामघ की ऋक्षवान पर्वत पर स्थिति का कथन ), २.३.७१.३९ ( कृष्ण द्वारा ऋक्षवान पर्वत पर प्रसेनजित् का अन्वेषण, स्यमन्तक मणि प्रसंग ), मत्स्य ४४.३२ ( राजा ज्यामघ का भिक्षुक रूप में ऋक्षवान पर्वत पर वास का कथन ), ११४.१७, ११४.२६ ( भारतवर्ष के ७ कुल पर्वतों में से एक, ऋक्षवान पर्वत से उद्भूत नदियों के नाम ),महाभारत शान्ति ४९.७५, वायु ४५.१०१ ( ऋक्ष पर्वत से उद्भूत नदियों के नाम ), विष्णु २.३.३ ( वही), स्कन्द ५.३.४.४८ ( ऋक्ष पाद से प्रसूत शोण आदि नदियों के नाम ) Rikshavaan


      ऋक्षशृङ्ग स्कन्द ५.३.५३ ( दीर्घतपा - पुत्र ऋक्षशृङ्ग की चित्रसेना द्वारा हत्या, दीर्घतपा परिवार के मरण आदि का वर्णन )


      ऋग्जिह्व भविष्य १.१३९.४६ ( सुजिह्वा ऋषि की पुत्री निक्षुभा व सूर्य से ऋग्जिह्व ऋषि के जन्म की कथा, अग्नि द्वारा ऋग्जिह्व को पतित होने का शाप, सूर्य द्वारा वरदान )


      ऋग्वेद अग्नि १४६.१६( ऋग्वेदा : वैष्णवी कुल में उत्पन्न देवियों में से एक ), भविष्य ३.२.३३.२३( व्याधकर्मा द्वारा अन्नपूर्णा देवी से ऋग्विद्या प्राप्ति का वृत्तान्त ), शिव ५.४२.११( भारद्वाज के ७ पुत्रों के जन्मान्तर में द्विज बनने पर पाञ्चाल नामक पुत्र के ऋग्वेदी/बह्-वृच बनने का उल्लेख), स्कन्द ३.२.६.६(वेदमयी गौ के ऋग्वेद पृष्ठ होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२९०.२ ( बालकृष्ण व लक्ष्मी के विवाह में ऋग्वेद द्वारा आने वाले महीमानों का पूर्व कथन करना ) द्र. वेद Rigveda

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      ऋचा पद्म ५.७३.३२( गोपियों के श्रुति व गोप - कन्याओं के ऋचा होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३३.३६( ऋचा के लक्षण ), मार्कण्डेय १०२.७/९९.७( ऋचाओं के रजोगुणी, यजुओं के सतोगुणी आदि होने का कथन ), वायु ६६.७८ ( ऋचाओं की प्रत्यङ्गिरस से उत्पत्ति ? ) , विष्णु १.५.५३ ( ब्रह्मा के प्रथम मुख से ऋचा की उत्पत्ति का कथन ), १.१५.१३६ ( ऋचाओं की प्रत्यङ्गिरस से उत्पत्ति ? ), शिव ५.१३.१ ( एक ऋचा के पठन का फल वन में तप के बराबर होने का कथन ), स्कन्द ४.१.३१.२४( ऋचा द्वारा शिव स्तुति का कथन ), ५.३.५०.५ ( ऋचा से रहित हवि देने पर फल प्राप्ति न होने का उल्लेख ), हरिवंश १.३.६५ ( वही), महाभारत वन ३१३.५४ ( ऋचा द्वारा एकमात्र यज्ञ के वरण का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ) Richaa

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      ऋची ब्रह्माण्ड २.३.१.९४( नहुष - पुत्री, अप्रवान - पत्नी, और्व - माता ), वायु ९९.१७९/२.३७.१७४( अणुह - पत्नी, शुक - पुत्री, ब्रह्मदत्त - माता )


      ऋचीक ब्रह्म १.८.२९ ( काव्य - पुत्र, सत्यवती से विवाह, सत्यवती को पुत्रार्थ चरु प्रदान करने की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५ ( स्वायम्भुव मन्वन्तर में देवों के सोमपायी दीप्तिमान गण में से एक ), २.३.१.९५ ( और्व के १०० पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र, जमदग्नि - पिता ), २.३.२१.२१ ( परशुराम द्वारा स्व - पितामह ऋचीक व सत्यवती के दर्शन करना ), २.३.६६.३७ ( ऋचीक द्वारा गाधि से सत्यवती की प्राप्ति, सत्यवती को पुत्रार्थ प्रदत्त चरु के विपर्यास की कथा, पुत्र शुन:शेप का विश्वामित्र - पुत्र बनना ), भागवत ९.१५.५ ( गाधि - कन्या सत्यवती की प्राप्ति हेतु ऋचीक द्वारा गाधि को १००० श्याम कर्ण अश्वों को शुल्क रूप में देना, चरु विपर्यास से जमदग्नि व विश्वामित्र के जन्म की कथा ), लिङ्ग १.२४.१९ ( द्वितीय द्वापर में सुतार मुनि के शिष्य ), वायु २३.१८३ ( १८ वें द्वापर में शिखण्डी नामक हरि अवतार के ३ पुत्रों में से एक ), ६५.९३( और्व - पुत्र, सत्यवती - पति, जमदग्नि - पिता ), ९१.६६ ( चरु विपर्यास का प्रसंग ), विष्णु ४.७.१३ ( अश्व शुल्क के बदले सत्यवती से विवाह व चरु विपर्यास की कथा ), विष्णुधर्मोत्तर १.३३ ( और्व /ऋचीक द्वारा सत्यवती को पुत्रार्थ चरु देना, चरु का विपर्यय होने से जमदग्नि व विश्वामित्र का जन्म ), शिव ५.३४.४४ ( दशम मन्वन्तर में दक्षसावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ), स्कन्द ६.१६५+ ( गाधि - कन्या सत्यवती की प्राप्ति हेतु ऋचीक द्वारा गाधि को १००० श्याम कर्ण अश्वों को शुल्क रूप में देना, चरु विपर्यास से जमदग्नि व विश्वामित्र के जन्म की कथा ), हरिवंश १.२७.१७ ( और्व / ऋचीक द्वारा सत्यवती को पुत्रार्थ चरु देना, चरु का विपर्यय होने से जमदग्नि व विश्वामित्र का जन्म ), वा.रामायण १.६१.११ ( ऋचीक द्वारा अम्बरीष से गौ शुल्क के बदले मध्यम पुत्र शुन:शेप का यज्ञ में पशुबलि हेतु विक्रय ), १.६२ ( विश्वामित्र द्वारा अम्बरीष के यज्ञ में ऋचीक - पुत्र शुन:शेप की रक्षा ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८० ( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.५०६ ( ऋचीक द्वारा गाधि - कन्या सत्यवती को प्राप्त करने व सत्यवती को चरु प्रदान का उद्योग ) Richeeka

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      ऋचेयु ब्रह्म १.११.६, १.११.५१ ( रौद्राश्व - पुत्र, ज्वलना - पति, मतिनार - पिता, वंश वर्णन ), हरिवंश १.३२.१ ( वही)


      ऋजीष ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२१ ( १८वें द्वापर में व्यास का नाम )


      ऋजु गरुड ३.१६.३४(योग में ऋजुता व वक्रता का कथन)


      ऋण अग्नि २११.११(४ प्रकार के ऋणों दैवत्य, भौत्य?, पैत्र व मानुष का उल्लेख), २१४.१६( संवत्सर? में कास के ऋण व नि:श्वास के धन होने का उल्लेख ), २५३.१३, २५४.१ ( ऋण सम्बन्धी व्यवहार का विचार ), गरुड १.४९.१०( तीन ऋणों का अपाकरण करके मोक्ष की ओर उन्मुख होने का निर्देश ), १.११५.४६( ऋण शेष आदि के वर्धित होते रहने का कथन ), पद्म २.१२.१ ९ ऋण दाता का पुत्र, भ्राता, मित्र आदि के रूप में जन्म लेकर धन प्राप्ति का वर्णन ), ३.४४.२१( प्रयाग में ऋणप्रमोचन तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त २.६.९९ ( ऋणग्रस्त मनुष्य का विष्णु भक्त के दर्शन करके पवित्र होने का कथन ), भविष्य १.१८४.४३ ( ऋण की परिभाषा : प्रतिज्ञा को क्रियान्वित न करना ), भागवत १०.८४.३९( २ ऋणों से उऋण वसुदेव द्वारा देवऋण से उऋण होने के लिए यज्ञ का अनुष्ठान ), मत्स्य १९८.१९ (ऋणवान् :विश्वामित्र वंश के एक ऋषि ), विष्णुधर्मोत्तर २.९५.२( तीन ऋणों तथा उनसे उऋण होने के उपाय का कथन ), २.१३१.३( बिना ऋणत्रय से उऋण हुए मोक्ष की इच्छा का निषेध ), ३.३३१ ( ऋण सम्बन्धी व्यवहार का विचार ), शिव २.२.१३.३५( तीन ऋणों का अपाकरण किए बिना पुत्रों को मोक्ष की ओर प्रवृत्त करने पर दक्ष द्वारा नारद को शाप ), स्कन्द ३.१.३०.१३०(ऋण मोक्ष के रूप में सेतुमूल, धनुषकोटि व गन्धमादन का उल्लेख), ४.१.४०.१२१ ( ऋण की परिभाषा ;प्रतिज्ञा को क्रियान्वित न करना ), महाभारत आदि ११९.१६( पाण्डु द्वारा अपत्यहीन होने के संदर्भ में ४ ऋणों का कथन ), २२८.११( मन्दपाल ऋषि के आख्यान के संदर्भ में मन्दपाल द्वारा पुत्रोत्पत्ति न किए जाने से तीसरे ऋण से उऋण न होने का कथन ), वन ८३.९८( कुरुक्षेत्र में किंदत्त कूप पर तिलप्रस्थ दान से ऋणों से मुक्त होने का उल्लेख ), उद्योग ५९.२२( द्रौपदी द्वारा कृष्ण को आर्तभाव से पुकारने को कृष्ण द्वारा स्वयं के ऊपर ऋण की संज्ञा ), शान्ति १४०.५८( ऋणशेष या वर्धमान ऋण को समाप्त करने का निर्देश ), १९९.८५( काम व क्रोध रूपी विकृत व विरूप ब्राह्मणों में ऋण पर विवाद का वर्णन ), २९२.९( ५ प्रकार के ऋणों के नाम व उनसे उदृण होने के उपायों का कथन ), अनुशासन ३७.१७( देवादि ५ ऋणों के नाम ) द्र. दशार्ण Rina

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      ऋणमोचन पद्म ३.२६.९३ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ऋणान्त कूप का माहात्म्य ), ब्रह्म २.२९ ( ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य : कक्षीवान - पुत्र पृथुश्रवा का गौतमी में स्नान से पितृऋण से मुक्त होना ), मत्स्य १०७.२० ( प्रयाग स्थित ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य ), १९१.२७ ( नर्मदा तटवर्ती ऋणमोचन तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वामन ४१.६ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य ), वायु ७७.१०६ ( गया क्षेत्र के अन्तर्गत कनकनन्दी तीर्थ में स्नान से ऋणत्रय से मुक्ति ), १०८.८९ ( पितृरूपी जनार्दन के दर्शन से ऋणत्रय से मुक्ति का कथन ), १११.२९ ( गया में अश्वत्थ दर्शन व ब्रह्मसर में स्नान से ऋणत्रय से मुक्ति का कथन ), स्कन्द २.८.२.२२ ( अयोध्या में स्थित ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य : लोमश की ऋण से मुक्ति ), ३.१.४२.२ ( सेतु माहात्म्य के अन्तर्गत ऋणत्रय मोचन तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.८७.२ ( रेवा तट पर स्थित ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.२०८ ( ऋणमोचन तीर्थ का माहात्म्य : ऋणत्रय से मुक्ति ), ५.३.२३१.२० ( रेवा - सागर सङ्गम पर २ ऋणमोचन तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), ७.१.२२१ ( ऋणमोचनेश्वर तीर्थ का माहात्म्य ) Rinamochana


      ऋत अग्नि १५२.५ (ग्रहस्थ वृत्ति के संदर्भ में ऋतामृताभ्यां इत्यादि श्लोक का उल्लेख ), नारद १.२७.३९ ( सन्ध्या कर्म में ऋतमिति मन्त्र का उल्लेख ), भविष्य १.१८६.१० ( विप्रों की वृत्तियों में ऋतामृत, ऋत, प्रमृत, प्रतिग्रह, वाणिज्य वृत्तियों का उल्लेख ), १.२१६.१७७ ( लोकों के नामों में क्रमश: अर्क लोक, गोलोक, ऋत लोक, अमृत / ब्रह्म लोक का उल्लेख ),४.१४३.३८ (महाशान्ति विधि के अन्तर्गत ऋतमस्तु इति द्वारा स्नान का निर्देश ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.२३ ( अग्नि का नाम ; संवत्सर - पुत्र, ऋतुओं के पिता ), १.२.३६.१२ (स्वारोचिष मन्वन्तर में १२ तुषित देवगण में से एक ), ३.४.१.१८ ( प्रथम सावर्णि मनु के काल में २० सुख नामक देवगण में से एक ), भागवत २.९.३३ ( ऋत में प्रतीत होने वाले अर्थ के आत्मा में प्रतीत होने पर उसे आत्मा की माया जानने का निर्देश ), ४.१३.१६ ( चक्षु मनु व नड्वला के १२ पुत्रों में से एक, ध्रुव वंश ), ७.११.१८ ( ऋत, अमृत, मृत, प्रमृत, सत्य आदि वृत्तियों की परिभाषा : उच्छ शिल वृत्ति के ऋत तथा वाणिज्य के सत्यानृत वृत्ति होने का उल्लेख ), ८.२०.२५ ( बलि द्वारा वामन के स्तनों में ऋत और सत्य के दर्शन का उल्लेख ), ९.१३.२५ ( विजय - पुत्र, शुनक - पिता, निमि वंश ), ९.१९.३८(ऋत की परिभाषा : सूनृता वाणी) ११.१९.३८ ( समदर्शन के सत्य तथा सूनृता वाणी के ऋत होने का उल्लेख ), मत्स्य ९.३६ ( १२ वें मनु का नाम ), १९६.२ ( अङ्गिरा व सुरूपा के १० पुत्रों में से एक ), लिङ्ग २.५४.२९ ( पुष्टिवर्धन देव का घृत, पय:, मधु आदि से भक्तिपूर्वक यजन करने की ऋत संज्ञा ? ; ऋत द्वारा पाशबन्धन , कर्मयोग तथा मृत्युबन्धन से मुक्त होने की प्रार्थना ), वायु ६२.४३ ( तामस मनु के पुत्रों में से एक ), ६७.१२६ ( मरुतों के तृतीय गण में से एक ), ८९.२२ ( विजय - पुत्र, सुनय - पिता, नेमि / जनक वंश ), विष्णु ४.५.३१ ( विजय - पुत्र, सुनय - पिता, निमि वंश ), स्कन्द ७.१.२०७.५३ ( श्ववृत्ति की अपेक्षा ऋतामृत द्वारा जीने का निर्देश : नित्य भक्षण ऋत, अयाचित के अमृत, वृद्धि जीवित्व के मृत, कर्षण के प्रमृत आदि होने का उल्लेख ), हरिवंश ३.३४.७ ( जगत रूपी अण्ड में स्थित ऋत नामक द्रव से जातरूप / सुवर्ण की उत्पत्ति का वर्णन ) , महाभारत आदि १.२२ ( ऋतम् : परमात्मा का सूचक ), ३.६२ ( १२ अरों, ६ नाभियों व एक अक्ष वाले चक्र के ऋत /कर्मफल को धारण करने का उल्लेख ), ७६.६४ ( गुरु के ऋत का दाता होने का उल्लेख ), उद्योग ४४.९ ( गुरु द्वारा ऋत करते हुए अमृत प्रदान करने का उल्लेख ),भीष्म ६२.१४(ऋतायन :शल्य का पिता), शान्ति ४७.५० ( अमृत - योनि परमात्मा द्वारा ऋत द्वारा साधु जनों के लिए सेतु बनाने का उल्लेख ), २७०.४६ ( ब्रह्म के ऋत, सत्य आदि होने का उल्लेख ), अनुशासन १०४.५७ ( उत्तराभिमुख होकर भोजन करने पर ऋत प्राप्त होने का उल्लेख, अन्य दिशाओं से अन्य प्राप्तियां ), आश्वमेधिक २५.१५( ऋत के प्रशास्ता ऋत्विज का शस्त्र होने का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ३.१.१२( आत्मा के ऋत और परब्रह्म के सत्य होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३९.१२( संवत्सर अग्नि की ऋत संज्ञा : ऋत से ऋतुओं की उत्पत्ति का उल्लेख ) Rita

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      ऋतजित् ब्रह्माण्ड १.२.२३.२३ ( शिशिर ऋतु में सूर्य रथ व्यूह में स्थित एक गन्धर्व ), २.३.५.९३ ( मरुतों के द्वितीय गण में से एक ), वायु ५२.२२ ( शिशिर ऋतु में सूर्य रथ व्यूह में स्थित एक ग्रामणी ), विष्णु २.१०.१६ ( माघ मास में सूर्य रथ में स्थित एक यक्ष ) Ritajit




      ऋतञ्जय लिङ्ग १.२४.८६ ( १८वें द्वापर में व्यास ), वायु २३.१८१ ( वही), शिव ३.५.२० ( वही)


      ऋतधामा गरुड १.८७.५० ( १२ वें मन्वन्तर में इन्द्र ), भागवत ८.१३.२७ ( १२वें रुद्र सावर्णि मन्वन्तर में इन्द्र का नाम ), ९.२४.४४ ( ऋतधाम : कङ्क व कर्णिका - पुत्र, विदर्भ वंश ), मत्स्य ९.३६ ( १३वें मनु का नाम ? ), विष्णुधर्मोत्तर १.१८७.५ ( १२वें मन्वन्तर में इन्द्र ), शिव ५.३४.५८ ( चतुर्थ सावर्णि मनु के काल में इन्द्र ), महाभारत शान्ति ३४२.६९ ( परमात्मा के ऋतधामा नाम की निरुक्ति : भूतों का सार धाम तथा विचारित ऋत होने का उल्लेख ), वा.रामायण ६.११७.७( ऋतधामा के वसुओं के प्रजापति तथा वसुओं में सर्वश्रेष्ठ होने का उल्लेख ) Ritadhaamaa

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      ऋतध्वज ब्रह्म २.३७.१९ ( आर्ष्टिषेण - पुत्र ऋतध्वज का सुश्यामा अप्सरा से समागम, वृद्धा नामक कन्या की उत्पत्ति, कालान्तर में वृद्धा का गौतम से विवाह ), भागवत ९.१७.६ ( दिवोदास -पुत्र द्युमान के शत्रुजित् , वत्स, कुवलयाश्व आदि नामों में से एक, अलर्क - पिता ), ३.१२.१२ ( एकादश रुद्रों में से एक ; एकादश रुद्रों की पत्नियों के नाम ), मार्कण्डेय २०+ ( शत्रुजित् - पुत्र ऋतध्वज द्वारा कुवलय अश्व पर आरूढ होकरपातालकेतु दानव का अनुगमन, पाताल में प्रवेश व मदालसा से विवाह, पातालकेतु आदि दानवों का वध, कुवलाश्व नाम प्राप्ति ), २२ ( पातालकेतु - अनुज तालकेतु द्वारा मदालसा को ऋतध्वज की मृत्यु का मिथ्या समाचार देना, मदालसा की पति वियोग से मृत्यु ), २३+ ( अश्वतर नाग द्वारा सरस्वती व महादेव की आराधना से मदालसा को पुत्री रूप में उत्पन्न करना, ऋतध्वज द्वारा नाग -पुत्री मदालसा को पुन: प्राप्त करना ), २५+ ( मदालसा से विक्रान्त आदि ४ पुत्रों की प्राप्ति, मदालसा द्वारा पुत्रों को निवृत्ति मार्ग की शिक्षा पर राजा द्वारा आपत्ति, मदालसा द्वारा चतुर्थ पुत्र अलर्क को प्रवृत्ति मार्ग की शिक्षा ), वामन ५९.२ ( रिपुजित् - पुत्र ऋतध्वज द्वारा पातालकेतु के वध व मदालसा प्राप्ति का संक्षिप्त वर्णन, ६४.२२ ( बंधन ग्रस्त जाबालि द्वारा अपने जन्म पर पिता ऋतध्वज द्वारा की गई भविष्यवाणी का कथन ), ६४.६२ ( जाबालि की मुक्ति के लिए ऋतध्वज द्वारा इक्ष्वाकु व इक्ष्वाकु - पुत्र शकुनि से अनुरोध ), ७२.२४ ( स्वारोचिष मनु - पुत्र ऋतध्वज के ७ पुत्रों का वृत्तान्त ), ७२.५७ ( तामस मनु - पुत्र ऋतध्वज / दन्तध्वज द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु स्वमांस का अग्नि में होम, सात मरुतों की पुत्र रूप में उत्पत्ति ), विष्णु ४.८.१४ ( प्रर्तदन का दूसरा नाम ), स्कन्द ७.१.२९४ ( निषाद द्वारा अपने जाल को सुखाने के लिए शिव मन्दिर के ध्वज दण्ड से बांधना, मृत्यु पश्चात् निषाद का राजा ऋतध्वज बनना, पूर्व आराधित अजोगन्ध शिव की पुन: प्रतिष्ठा करना ), लक्ष्मीनारायण १.३९२+ ( मदालसा प्राप्ति की कथा, तु. : मार्कण्डेय पुराण ), १.५४५.५६ ( क्रतुध्वज : निषाद द्वारा शिवमन्दिर की ध्वजा पर जाल फैलाने से क्रतुध्वज राजा बनना ), ४.१०१.९९ ( ऋतध्वजा : कृष्ण - पत्नी, शान्ता व सत्यव्रत युगल की माता ), द्र. : क्रतुध्वज Ritadhwaja

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      ऋतम्भर पद्म ५.३०+ ( तेज:पुर के राजा सत्यवान् के पिता, ऋतम्भर द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु जाबालि ऋषि से परामर्श, जाबालि से गौ माहात्म्य सुनकर गौ की सेवा करना, सिंह द्वारा गौ के वध पर अयोध्यापति ऋतुपर्ण से राम नाम माहात्म्य श्रवण, सुरभि से पुत्रता वर की प्राप्ति ), भागवत ६.१३.१७ ( ऋतम्भर/परमात्मा का ध्यान करने से इन्द्र के पाप नष्ट होने का उल्लेख ) Ritambhara

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      ऋतम्भरा भागवत ५.२०.४ ( प्लक्ष द्वीप की एक नदी ), स्कन्द ४.१.२९.३४ ( गंगा सहस्रनामों में से एक ), लक्ष्मीनारायण १.३०९.३१( सर्वहुत राजा की पत्नी गोऋतम्भरा का द्वितीया व्रत के प्रभाव से जन्मान्तर में आभीरी - कन्या व ब्रह्मा की पत्नी गायत्री बनना ), १.३८५.४८(ऋतम्भरा का कार्य – प्रकोष्ठ शृंखला देना), ४.१०१.९१ ( कृष्ण व सत्या - पुत्री ) Ritambharaa

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      ऋतवाक् देवीभागवत ०.४.६ ( अशील पुत्र के जन्म के सम्बन्ध में गर्ग मुनि से पृच्छा, पुत्र जन्म के कारणभूत रेवती नक्षत्र को शाप देकर गिराना , रेवती कन्या के जन्म की कथा ), मार्कण्डेय ७५.२ ( वही), स्कन्द ७.२.१७ ( ऋतवाक् द्वारा दुष्ट पुत्र की उत्पत्ति के कारण रेवती नक्षत्र का पातन ), महाभारत वन २६.२४ ( कृतवाक् / ऋतवाक् आदि ब्रह्मर्षियों द्वारा युधिष्ठिर का आदर करने का उल्लेख ), कर्ण ३२.५६ ( पूर्वजों द्वारा ऋतवादन के कारण शल्य की आर्तायनि संज्ञा का उल्लेख ), शान्ति २३५.१६ ( काल रूपी उदक / नदी में ऋतवाक् व मोक्ष के तीर होने का उल्लेख ), ३४२.७५ ( ऋता / सत्या / सरस्वती के परमात्मा की वाणी होने का उल्लेख ), अनुशासन ९३.११ ( दानशील पुरुष के सदैव ऋतवादी होने का उल्लेख ), १४३.३० ( ऋतवाक् आदि गुणों से युक्त वैश्य के क्षत्रियकुल में जन्म लेने का उल्लेख ), १४४.२३ ( ऋत व मैत्रीयुक्त वचन बोलने से स्वर्गगामी होने का उल्लेख ) Ritavaak

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      ऋता महाभारत शान्ति ३४१.१४ ( १८ गुणों वाले सत्त्व / रोदसी के परमात्मा की ऋता, सत्या आदि होने का उल्लेख ), ३४२.७५ ( ऋता / सत्या के परमात्मा की वाणी होने का उल्लेख ), Ritaa

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      ऋतु अग्नि १९९ ( ऋतुव्रतों का कथन ), २८०.२२ ( ऋतु अनुसार शरीर में वात, पित्त व कफ के चय, प्रकोप व शम का वर्णन ), २८०.२६ (चन्द्रमा द्वारा वर्षा आदि ऋतुओं में अम्ल, लवण व मधुर रसों की उत्पत्ति का उल्लेख), ३८०.४५ ( ऋतु / ऋभु : ब्रह्मा - पुत्र, स्व -शिष्य निदाघ को शिक्षा ), ३८३.२६ ( विभिन्न ऋतुओं में अग्नि पुराण श्रवण से यज्ञों के फलों की प्राप्ति का कथन ), देवीभागवत ३.२६.४ ( यमदंष्ट्र संज्ञक दो ऋतुओं शरद व वसंत में चण्डिका पूजन का विधान ), १२.४.९( रक्त व मांस में ऋतुओं का न्यास ), १२.१०.३८ ( ऋतु स्वरूप , वास स्थान, भार्याएं व शक्तियां ), १२.१०.५२( वर्षा ऋतु की १२ शक्तियों नभश्री आदि के नामों का कथन ; अन्य ऋतुओं की भार्याओं के नाम आदि ), पद्म १.२७.५६( वर्षा आदि विभिन्न ऋतुओं के जलों का अग्निष्टोम आदि विभिन्न यज्ञों के फलों से साम्य ), ब्रह्म १.३४.७० ( पार्वती - शिव विवाह के अवसर पर ऋतुओं का आगमन ), ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.८२( शारदीय पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.१८ ( ६ ऋतुएं : निमि व ऋत अग्नि - पुत्र, आर्तव – पिता, कार्य-कारण युक्त आदि ), १.२.१३.२० ( आर्तव - पिता, स्थावर व जङ्गम प्राणियों के पितामह ), १.२.१३.२६ ( पितरों का रूप, कार्य – कारण युक्त ), १.२.२१.१२५( २ पक्षों से मास, २ मासों से ऋतु, ३ ऋतुओं से अयन के निर्माण का उल्लेख ), १.२.२४.१४१( ऋतुओं में शिशिर के आदि होने का उल्लेख ), १.२.२८.१४ ( आर्त्तवों की पितर, ऋतुओं की पितामह व अब्दों की प्रपितामह संज्ञा ), ३.४.१.१४ ( २० सुतप नामक देवगण में मे एक ), ३.४.१.१६ ( २० अमिताभ नामक देवगण में से एक ), भागवत ८.२.९ ( गज - ग्राह कथा के संदर्भ में ऋतुमान् उद्यान में स्थित सरोवर का वर्णन ; उद्यान की शोभा का वर्णन, निदाघ काल में ग्राह द्वारा गज का ग्रहण ), १०.१५.४८ (निदाघ आतप से पीडित गायों द्वारा कालियह्रद का जलपान, मृत्यु, कृष्ण द्वारा पुनर्जीवन आदि), १०.१७ (व्रज में ग्रीष्म ऋतु का वर्णन, प्रलम्ब दैत्य का वध), १०.२० (व्रज में वर्षा व शरद ऋतु का वर्णन, अध्यात्म से तुलना ; शरद ऋतु में कृष्ण के वेणु गीत का वर्णन ), १०.२२( हेमन्त ऋतु में गोपियों द्वारा कात्यायनी व्रत व कृष्ण द्वारा चीर हरण ), वराह १२४.४० (वसन्तादि ऋतु - अनुसार विष्णु की पूजा का विधान ), वामन २.१ ( शरद ऋतु की शोभा का वर्णन ), वायु २१.३० ( छठे कल्प का नाम ; सप्तम कल्प का क्रतु नाम ), २१.३५/१.२१.३२( १६वें षड्ज नामक कल्प में ब्रह्मा के शिशिर, हेमन्त, निदाघ आदि पुत्रों का उल्लेख ), २९.१८(ऋतु का विभु से साम्य?), ३०.७ ( ऋतवों की पितर व देव संज्ञा का उल्लेख ; मधु माधव आदि मास युगलों की क्रम से रस, शुष्मी, जीव, सुधावन्त, मन्युमन्त व घोर संज्ञा ), ३०.२२( ऋतु की निरुक्ति : ऋत् से उत्पत्ति ; ऋतुओं के आर्तव रूप ५ पुत्रों के विषय में कथन ), १००.१५ ( २० सुतप नामक देवगण में से एक ), विष्णु ५.९.१४( वर्षा ऋतु में राम द्वारा प्रलम्ब असुर के वध की कथा ), ५.१०.१२( व्रज में शरद ऋतु का वर्णन; शरद ऋतु की योगी के प्राणायाम आदि से तुलना ), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९.१० ( विराट् पुरुष के दन्तों के मास - ऋतु होने का उल्लेख ), १.२४३+ ( राम द्वारा शत्रुघ्न को प्रावृट् , शरद, हेमन्त व शिशिर ऋतुओं की शोभा का वर्णन ), १.२४५( राम द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन ), ३.४२.७४ ( वसन्त आदि ऋतुओं के रूप निर्माण का कथन ), ३.१५६ ( षण्मूर्ति व्रत : ऋतु अनुसार फल, पुष्प व मधुर आदि रसों से मूर्ति पूजा के विधान का कथन ), ३.३१७.४ ( ऋतु अनुसार दान द्रव्य का कथन ), शिव ५.१२.१२ ( विभिन्न ऋतुओं में तडाग में जल एकत्र करने के यज्ञरूप फल का कथन ), ७.१.१७.४५( ऋतुओं के पितर होने का कथन ; ऋतु रूप पितरों का कथन ), स्कन्द १.२.१३.१७३ (ऋतुओं द्वारा दूर्वांकुर लिंग पूजा, शतरुद्रिय प्रसंग ), १.२.६२.२६( ऋतुंसन : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ५.३.७८.२९ ( ऋतुओं द्वारा तरुओं को पुन: - पुन: युवा करने का उल्लेख ), ५.३.१०३.६२( ब्रह्मा के वर्षा, विष्णु के हेमन्त, रुद्र के ग्रीष्म रूप होने का कथन ), हरिवंश २.१६.१४( व्रज में शरद ऋतु का वर्णन ), २.१९.५१( इन्द्र द्वारा शरद ऋतु का वर्णन ), महाभारत उद्योग ८३.६( कौरवों को समझाने के लिए कृष्ण द्वारा शरदन्त में रेवती नक्षत्र में मैत्र मुहूर्त में प्रस्थान का कथन ), अनुशासन ४३.५(विपुल द्विज द्वारा अक्षों से खेल रहे ६ पुरुषों रूपी ६ ऋतुओं का दर्शन ), योगवासिष्ठ ६.२.७.१८ ( संसार रूपी वृक्ष की शाखाओं का रूप ), वा.रामायण ३.१६ ( लक्ष्मण द्वारा पंचवटी में हेमन्त ऋतु का वर्णन ), ४.२८ ( राम द्वारा किष्किन्धा में वर्षा ऋतु का वर्णन ), ४.३० ( राम द्वारा शरद ऋतु का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.३६.३२( ऋतुदान काल में पिता की मन:स्थिति का गर्भ की प्रकृति पर प्रभाव का वर्णन ; ऋतुदान हेतु काल विचार आदि ), १.३९.२( ६ ऋतुओं की पितर संज्ञा का कथन ), १.३९.९( संवत्सर रूप काल के पुत्रों के रूप में ऋतुओं तथा ऋतुओं के पुत्रों के रूप में आर्तवों/मासों का कथन ), १.३७४.८९ ( ऋतुदान द्वारा कन्या या पुत्र प्राप्त होने के विकल्प का कथन ), १.४८४.४२ ( पर्वकालों में ऋतुदान के निषेध के संदर्भ में जाबालि व पुरुहूता का वृत्तान्त ), १.५५०.१०१? ( ऋतुकाल पर परमात्मा के साथ संगम व्यर्थ न होने देने का निर्देश ) Ritu

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      ऋतुकुल्या वायु ४५.१०६ ( महेन्द्र पर्वत से निर्गत नदियों में से एक )


      ऋतुदान लक्ष्मीनारायण १.४८४.३२( सुपर्ण ऋषि की पत्नी पुरुहूता द्वारा पर्वकाल में पति से ऋतुदान की मांग, पर्वकाल में ऋतुदान की मांग पर विप्र व विप्रपत्नी के शाप से चाण्डाली होने का वृत्तान्त )


      ऋतुध्वज ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२३ ( एकादश रुद्रों में से एक ), द्र. ऋतध्वज


      ऋतुपर्ण पद्म ५.३१ ( ऋतुपर्ण द्वारा ऋतम्भर राजा को राम नाम के माहात्म्य का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१७३ ( अयुतायु - पुत्र, सर्वकाम - पिता, भगीरथ / इक्ष्वाकु वंश, राजा नल को अक्ष विद्या देकर अश्व विद्या सीखना ), भागवत ९.९.१७ (वही), मत्स्य १२.४६ (अयुतायु - पुत्र, कल्माषपाद - पिता, सर्वकर्मा - पितामह, इक्ष्वाकु वंश ), वायु ८८.१७३ ( अयुतायु - पुत्र , सर्वकाम - पिता, भगीरथ / इक्ष्वाकु वंश, राजा नल को अक्ष विद्या देकर अश्वविद्या सीखना ), विष्णु ४.४.३७ ( वही), कथासरित् ९.६.३७७ ९ (नल - दमयन्ती की कथा : ऋतुपर्ण द्वारा नल को अक्ष विद्या सिखाना ) Rituparna


      ऋत्विज गर्ग १०.११ ( उग्रसेन के अश्वमेध यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), देवीभागवत ३.१०.२१ (देवदत्त द्विज के पुत्रेष्टि यज्ञ में कल्पित ऋत्विजों के नाम ), ११.२२.३१ ( प्राणाग्नि होत्र में इन्द्रिय रूपी ऋत्विजों का कथन ), पद्म १.३४.१३ ( ब्रह्मा के यज्ञ में ऋत्विजों के नाम ), १.३९.७७(पुरुष द्वारा सृष्टि रूपी यज्ञ हेतु ब्रह्मा, उद्गाता, सामग प्रभृति १६ ऋत्विजों की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड २.३.४७.४७ ( परशुराम के वाजिमेध में ऋत्विजों के नाम ), मत्स्य १६७.७ ( ऋत्विजों की विष्णु देह से उत्पत्ति का कथन ), महाभारत उद्योग १४१.३२(महाभारत रूपी यज्ञ में अभिमन्यु के उद्गाता, भीम के प्रस्तोता, युधिष्ठिर के ब्रह्मा तथा नकुल-सहदेव के शामित्र होने का कथन), शान्ति ७९(ऋत्विज होने के लिए अपेक्षित गुण), २८०.२७( ), अनुशासन १५०.२९(प्राची, दक्षिण, प्रतीची व उत्तर दिशाओं में ७-७ ऋत्विज ऋषियों के नाम), आश्वमेधिक २०.२१(घ्राता, भक्षयिता, द्रष्टा, स्प्रष्टा, श्रोता, मन्ता व बोद्धा के सात परम ऋत्विज होने का श्लोक), विष्णुधर्मोत्तर ३.९७.१ ( देव मूर्ति प्रतिष्ठा में यज्ञ के तुल्य १६ पौराणिक ऋत्विजों का कथन ), स्कन्द ३.१.२३.२४(माहेश्वर यज्ञ के ऋत्विजों के नाम), ५.१.२८.७७ ( चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), ५.१.६३.२४० ( बलि राजा के यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), ५.३.१९४.५४( श्री व विष्णु के विवाह रूपी यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), ६.५.५ ( त्रिशंकु के यज्ञ के ऋत्विज ), ६.१८०.३२ ( ब्रह्मा के पुष्कर स्थित यज्ञ में ऋत्विजों के नाम ), ७.१.२३.९२ (ब्रह्मा के प्रभास क्षेत्र में स्थित यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), हरिवंश ३.१०.५ ( ऋत्विजों की हरि के शरीर से उत्पत्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४४०.९६ ( धर्मारण्य में धर्म के यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), १.५०९.२३ ( ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ) २.१०६.४७ ( उष्णालय देश के राजा दक्षजवंगर के वैष्णव होम के ऋत्विज ), २.१२४.८ ( बालकृष्ण के यज्ञ के ऋत्विज ), २.२४६.२९ ( ऋत्विज के देवलोकेश होने का उल्लेख ), २.२४८.२२ ( सोमयाग में ऋत्विजों के कर्मों का वर्णन ), ३.३५.११२ ( बृहद्धर्म नृप के चातुर्मास यज्ञ में ऋत्विजों द्वारा प्राप्त दक्षिणाओं का वर्णन ), ३.१४८.९३( सांवत्सरी दीक्षा में प्रतिमास ऋत्विजों हेतु भोजन द्रव्यों का विधान ), ४.८०.१२ ( राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ) Ritvija/ritwij/ritwiz/ritviza

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      ऋद्धि गरुड १.२१.३( सद्योजात शिव की ८ कलाओं में से एक - ॐ हां सद्योजातायैव कला ह्यष्टौ प्रकीर्त्तिताः ।। सिद्धिर्ऋद्धिर्धृतिर्लक्ष्मीर्मेधा कान्तिः स्वधा स्थितिः ।। ), २.३०.५७/२.४०.५७( मृतक की भुजाओं में ऋद्धि - वृद्धि देने का उल्लेख - ऋद्धिवृद्धी भुजौ द्वौ च चक्षुषोश्च कपर्दकौ । ), ब्रह्माण्ड २.३.८.४६ ( कुबेर - पत्नी, नलकूबर - माता -ऋद्ध्यां कुबेरोऽजनयद्विश्रुतं नलकूबरम् ॥ ), ३.४.३५.९४ ( ब्रह्मा की १० कलाओं में से एक - पुष्टिर्ऋद्धिः स्थितिर्मेधा कान्तिर्लक्ष्मीर्द्युतिर्धृतिः । जरा सिद्धिरिति प्रोक्ताः क्रीडन्ति ब्रह्मणः कलाः ॥ ), भागवत ४.२९.१९( मनोरश्मिर्बुद्धिसूतो हृन्नीडो द्वन्द्वकूबरः । पञ्चेन्द्रियार्थप्रक्षेपः सप्तधातुवरूथकः ॥), ९.२१.१२( न कामयेऽहं गतिमीश्वरात्परां      अष्टर्द्धियुक्तामपुनर्भवं वा ।), महाभारत वन १७५.५ (गिरिकूबरपादाक्षं शुभवेणु त्रिवेणुमत्। पार्थिवं रथमास्थाय शोभमानो धनंजयः ।।), विराट ६३.४८(स पीडितो महाबाहुर्गृहीत्वा रथकूबरम् । गोङ्गेयो युधि दुर्धर्षस्तस्थौ दीप इवातुरः ।।), द्रोण १८८.१४ (गदया भीमसेनस्तु कर्णस्य रथकूबरम्।बिभेद शतधा राजंस्तदद्भुतमिवाभवत्।।), कर्ण ३४.६ (अस्तंगिरिमधिष्ठानं नानाद्विजगणायुतम्। चकार भगवांस्त्वष्टा उदयं रथकूबरम्।।), ५१.४३ (गदया च महाराज कर्णस्य रथकूबरम्।
      पोथयामास सङ्क्रुद्धः समरे शत्रुतापनः।।), वायु ७०.४१ ( कुबेर - पत्नी, नलकूबर – माता - ऋद्ध्यां कुबेरोऽजनयद्विश्रुतं नलकूबरम्। ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३५.४६ ( उर्वशी की ऋद्धि से न्यग्रोध वृक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख - रात्रिमेनां विवत्स्यामि न्यग्रोधेऽस्मिन्महाद्रुमे । उर्वश्या ऋद्धिरचिते वरवेश्मनि पार्थिवः ।। ), ३.५३.४ ( ऋद्धि की गणेश के वाम पार्श्व में स्थिति, स्वरूप - वामोत्संगगता कार्या ऋद्धिर्देवी वरप्रदा । देवपृष्ठगतं पाणिं द्विभुजायास्तु दक्षिणम् ।। ), ३.८२.८ ( लक्ष्मी के हाथ में शङ्ख के ऋद्धि का प्रतीक होने का उल्लेख - देव्याश्च मस्तके पद्मं तथा कार्यं मनोहरम् । सौभाग्यं तद्विजानीहि शङ्खमृद्धिं तथा परम्।। ), शिव ७.२.४.४५( यक्ष - पत्नी के रूप में ऋद्धि का उल्लेख - यक्षो यज्ञशिरोहर्ता ऋद्धिर्हिमगिरीन्द्रजा ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२६( कुबेर के विष्णु व ऋद्धि के लक्ष्मी होने का उल्लेख - ऋद्धिस्त्वं च कुबेरोऽहं गौरी त्वं वरुणोऽस्म्यहम् । ), २.२१०.२७ ( श्री हरि का आलीस्मर राष्ट्र की ऋद्धीशा नगरी में आगमन व प्रजा को आशा त्याग का उपदेश - आलीस्मरं हरिः प्राप विमानं भूतलेऽनयन् । ऋद्धीशाया महोद्याने नृपालयस्य सन्निधौ ।।), ३.१११.२४ ( ऋद्धि दान से प्राकृत स्थल की प्राप्ति - गृहदः सत्यलोकं च ऋद्धिदः प्राकृतं स्थलम् ।) Riddhi


      ऋभु अग्नि ३८०.४५ ( ऋभु का ऋतु से साम्य ), गरुड ३.५.३८(ऋभुगण का तीन पितरों से साम्य?), गर्ग ५.२०.३७ ( रोहिताचल पर समाधिस्थ ऋभु द्वारा कृष्ण दर्शन पर प्राण त्याग, कृष्ण चरणों से पुन: प्राकट्य, पूर्व शरीर का नदी रूप में परिणत होना ), नारद १.४९.३५ ( ब्रह्मा - पुत्र, शिष्य निदाघ को भोजन व वाहन के माध्यम से अद्वैत की शिक्षा ), पद्म १.६.२७( प्रत्यूष वसु - पुत्र, देवल - भ्राता ), लिङ्ग १.३८.१४ ( ऋभु व सनत्कुमार का ब्रह्मा से प्राकट्य ), १.७०.१७०(ऋभु व सनत्कुमार के ऊर्ध्वरेतस होने का उल्लेख, ऋभु का क्रतु से तादात्म्य?, तुलनीय : ब्रह्माण्ड १.१.५.७९), वायु १.९.९८/९.१०६( ऋभु व सनत्कुमार के ऊर्ध्वरेतस व सबके पूर्वज होने का उल्लेख ), २४.७८( ऋभु व सनत्कुमार का ब्रह्मा से प्राकट्य, ऋभु व सनत्कुमार के ऊर्ध्वरेतस होने तथा शेष तीन सनकादि द्वारा प्रथम २ के त्याग का कथन ), २४.८३(सनत्कुमार का ऋभु से तादात्म्य?),१०१.३०/२.३९.३०( ऋभुओं इत्यादि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख ), विष्णु २.१५.२ ( ब्रह्मा - पुत्र, शिष्य निदाघ को भोजन व वाहन के माध्यम से अद्वैत की शिक्षा ), ६.८.४३ ( ब्रह्मा द्वारा विष्णु पुराण का सर्वप्रथम ऋभु को वर्णन, ऋभु द्वारा प्रियव्रत को वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१७६.१५( दक्ष यज्ञ में भृगु द्वारा दक्षिणाग्नि में आहुति से ऋभवों की उत्पत्ति, ऋभवों द्वारा रुद्र गणों से युद्ध ) Ribhu

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      ऋभुगण ब्रह्माण्ड २.३.१.१०७ ( सुधना - पुत्र ), भागवत ४.४.३३ ( दक्ष के यज्ञ की शिव के प्रमथ गणों से रक्षा के लिए भृगु द्वारा अग्नि में आहुति से ऋभवों की सृष्टि ), ६.७.२, ६.१०.१७ ( ऋभुगणों की इन्द्र की सभा में स्थिति , इन्द्र के साथ वृत्र से युद्ध ), ८.१३.४ ( वैवस्वत मन्वन्तर में एक देवगण ), मत्स्य ९.२४ ( चाक्षुष मन्वन्तर में एक देवगण ), वायु ६५.१०२ ( ऋषभ : सुधन्वा - पुत्र, रथकार , देव व ऋषि दोनों वर्गों में व्याप्ति ), १०१.३० ( ऋभुगण का भुव: लोक में वास ), शिव २.२.३०.२४ ( दक्ष के यज्ञ की शिव के प्रमथ गणों से रक्षा के लिए भृगु द्वारा अग्नि में आहुति से ऋभवों की सृष्टि )


      ऋषङ्गु वामन ३९.१७ ( ऋषङ्गु ऋषि द्वारा पृथूदक तीर्थ की महिमा का कथन )


      ऋषभ देवीभागवत ८.१४.१० ( लोकालोक पर्वत पर ४ दिग्गजों में से एक ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१७.४० ( शङ्कर के कृष्ण की कलाओं का ऋषभ होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१७ ( अङ्गिरा - पुत्र ऋषभ : स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), भागवत १.१४.३१ ( कृष्ण का एक पुत्र ), २.७.१० ( नाभि व सुदेवी - पुत्र, ऋषभ द्वारा जड योगचर्या का आश्रय ), ५.४+ ( नाभि व मेरुदेवी - पुत्र, विष्णु के अवतार, जयन्ती - पति , ऋषभ द्वारा अजनाभ खण्ड का शासन, भरत आदि १०० पुत्रों की प्राप्ति, पुत्रों को उपदेश, अवधूत वृत्ति का ग्रहण, देह त्याग, चरित्र महिमा ), ५.५.१९( ऋषभ की निरुक्ति : अधर्म को पृष्ठ करने वाले ), ५.१६.२६ ( मेरु के मूल में एक पर्वत का नाम ), ५.१९.१६ ( भारतवर्ष का एक पर्वत ), ५.२०.२२ ( क्रौंच द्वीप के निवासियों का एक वर्ण ), ६.८.१८ ( ऋषभ से द्वन्द्व व भय से रक्षा की प्रार्थना ), ६.१०.१९ ( वृत्रासुर का एक सेनानी, इन्द्र से युद्ध ), ६.१८.७ ( इन्द्र व शची के तीन पुत्रों में से एक, जयन्त - भ्राता ), ८.१३.२० ( आयुष्मान् व अम्बुधारा - पुत्र, भगवान का कलावतार ), ९.२२.६ ( कुशाग्र - पुत्र, सत्यहित - पिता, दिवोदास वंश ), १०.२२.३१ ( कृष्ण का एक गोप सखा, कृष्ण द्वारा वृक्ष महिमा का कथन ), ११.२.१५+ ( ऋषभ राजा के कवि, हरि आदि ९ योगीश्वर पुत्रों का वृत्तान्त ), वराह ८०.९ ( मेरु की पश्चिम दिशा में शङ्खकूट व ऋषभ पर्वतों के बीच स्थित पुरुष स्थली की महिमा ), वामन ६.८९ (भरद्वाज - शिष्य, पाशुपत सम्प्रदाय के प्रचारक ), वायु २१.३३ ( १५ वें ऋषभ नामक कल्प में ऋषभ स्वर की उत्पत्ति का कथन ), २३.१४३ ( नवम द्वापर में शिव का अवतार , पराशर आदि तीन पुत्रों के नाम ), ३३.५० ( नाभि व मरुदेवी - पुत्र, भरत आदि १०० पुत्रों के पिता, वंश वर्णन ), ४४.१९ ( ऋषभा : केतुमाल वर्ष की एक नदी ), ४९.११ ( प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों में से एक, सुमना उपनाम, ऋषभ पर्वत पर वराह द्वारा हिरण्याक्ष का निग्रह ), ४९.१४( ऋषभ वर्ष के दूसरे नाम क्षेमक का उल्लेख ), ५९.१०० ( १३ मन्त्रकर्त्ता अङ्गिरस ऋषियों में से एक ), ६५.१०२ ( सुधन्वा - पुत्र, रथकार, देव व ऋषि दोनों वर्गों में व्याप्ति ), ६८.१५ ( दनु के मनुष्यधर्मा पुत्रों में से एक ), ८७.३३ ( भद्राश्व वर्ष के निवासियों द्वारा ऋषभ स्वर में गायन ? ), ९९.२२३ ( कुशाग्र - पुत्र, पुष्पवान - पिता, कुरु वंश ), विष्णु २.१.२७ ( नाभि व मरुदेवी - पुत्र ऋषभ के संक्षिप्त चरित्र का वर्णन ), शिव ३.४.३५( नवम द्वापर में शिव - अवतार ऋषभ का चरित्र : मृत भद्रायु नृपपुत्र को जीवन दान आदि ), ५.३४.२२ ( तृतीय उत्तम मन्वन्तर में देवों के गण का नाम ? ), स्कन्द ३.३.१०+ ( पिङ्गला वेश्या व मन्दर ब्राह्मण द्वारा ऋषभ योगी की सेवा से जन्मान्तर में सत्कुल प्राप्ति की कथा ), ५.१.७०.१ ( ऋषभ पर्वत की स्थिति का कथन : मेरु के दक्षिण में स्थिति आदि ), ५.२.७३.२८ ( ऋषभ ऋषि द्वारा राजा वीरकेतु को करभ / उष्ट्र के पूर्व जन्म का वृत्तान्त बताना ), हरिवंश ३.३५.२० ( यज्ञवराह द्वारा निर्मित ऋषभ पर्वत के स्वरूप का कथन ), वा.रामायण ४.४०.४४ ( सुग्रीव - प्रोक्त ऋषभ पर्वत महिमा : पूर्व दिशा में क्षीरसागर में स्थिति , सुदर्शन सरोवर का स्थान ), ४.४१.३९ ( सीता अन्वेषण प्रसंग में सुग्रीव द्वारा वानरों को दक्षिण दिशा में स्थित ऋषभ पर्वत की महिमा का वर्णन ), ४.६५.५(ऋषभ वानर की गमन शक्ति का कथन ), ६.२४.१५ ( ऋषभ की वानर सेना के दक्षिण पार्श्व में स्थिति ), ६.४१.४० ( ऋषभ द्वारा लङ्का के दक्षिण द्वार पर अङ्गद की सहायता ), ६.७०.५५ ( ऋषभ द्वारा रावण - सेनानी महापार्श्व का वध ), ६.१२८.५४ ( ऋषभ द्वारा राम अभिषेक हेतु दक्षिण समुद्र से जल लाना ), लक्ष्मीनारायण १.३८९ ( नाभि व मरुदेवी की विष्णु भक्ति से ऋषभ अवतार का जन्म, ऋषभ के चरित्र का वर्णन ), २.१४०.६४ ( ऋषभ संज्ञक प्रासाद के लक्षण ), २.२१०.५० ( ऋषभ भक्त द्वारा बदरीवन में पर्णकुटी बनाने की इच्छा, तनु ऋषि के उपदेश से आशा का त्याग करके मोक्ष प्राप्ति ), २.२४० ( योगी वीतिहोत्र द्वारा गुरु ऋषभ व सहस्र रूपधारी कृष्ण की आराधना का हठ, कृष्ण द्वारा गुरु ऋषभ व सहस्र रूप धारण करके दर्शन देना ), कथासरित् ५.३.६५ ( ऋषभ पर्वत पर चर्तुदशी को शिव पूजा के लिए विद्याधरों के आगमन का कथन ), ८.७.१६५, ८.७.२०० ( ऋषभ पर्वत पर सूर्यप्रभ के अभिषेक का वर्णन ), १५.१.६२ ( ऋषभ नामक देव द्वारा तप से कैलास के दक्षिण व उत्तर पार्श्वों का चक्रवर्तित्व प्राप्त करना ), १५.२.४३ ( ऋषभ पर्वत पर नरवाहनदत्त राजा के अभिषेक का वर्णन ) Rishabha

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      ऋषा ब्रह्माण्ड २.३.७.१७२ ( क्रोधवशा - कन्या, पुलह - पत्नी ), २.३.७.४१३ ( मीना, अमीना आदि ५ कन्याओं की माता, मकर आदि प्रजाओं की उत्पत्ति ), वायु ६९.२९० ( मीना, माता आदि ५ कन्याओं की माता , मकर, ग्राह, शङ्ख आदि प्रजा की उत्पत्ति ) Rishaa


      ऋषि कूर्म १.२२.४५ ( ऋषियों के आराध्य देव ब्रह्मा व रुद्र ), गरुड १.५.२५ ( सप्तर्षियों द्वारा दक्ष - पुत्रियों का पत्नी रूप में ग्रहण, पत्नियों के नाम ), १.११६.६ ( एकादशी तिथि को ऋषियों की पूजा ), ३.१०.३०(ऋषि के ८ लक्षण होने का उल्लेख), गर्ग ५.१७.२२ ( कृष्ण विरह पर ऋषि रूपा गोपियों के उद्गार ), नारद १.४३.११४( विद्याभ्यास श्रवण धारण से ऋषियों की तृप्ति का उल्लेख ), १.११४.३४ ( भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी को ऋषि पूजा की विधि ), पद्म १.१५.३१७( पुरोधा के ऋषि लोक का स्वामी होने का उल्लेख ), ३.२०.१३ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य : तृणबिन्दु ऋषि की शाप से मुक्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२४ ( पुलस्त्य आदि ऋषियों की ब्रह्मा की देह के अङ्गों से उत्पत्ति ), २.५०.३३ ( सुयज्ञ राजा द्वारा ब्राह्मण अतिथि के तिरस्कार पर ऋषियों द्वारा स्व प्रतिक्रिया व्यक्त करना ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.७० ( ऋषियों के पांच प्रकारों का वर्णन ), १.२.३२.८६ ( ऋषि शब्द की निरुक्ति ), १.२.३२.९९ ( तप व सत्य से ऋषिता प्राप्ति करने वाले ऋषियों के नाम ), १.२.३५.८९ ( देवर्षि, ब्रह्मर्षि आदि ऋषियों के लक्षण ), २.३.१ ( ऋषि सर्ग का वर्णन ), भविष्य १.५७.१०( ऋषि के लिए क्षीरौदन बलि का उल्लेख ), १.५७.२०( ऋषियों हेतु ब्रह्मवृक्ष की बलि का उल्लेख ), ३.४.२१.१३ ( कलियुग में कश्यप आदि १६ ऋषियों का कण्व व आर्यावती के पौत्रों के रूप में उत्पन्न होना ), भागवत १२.६.४८ ( वेद संहिता की शाखाओं के प्रवर्तक आचार्यों / ऋषियों के नाम ), मत्स्य ३.५ ( ब्रह्मा के मन से सृष्ट १० ऋषियों मरीचि आदि के नाम ), १४५.८१ ( ऋषि शब्द की निरुक्ति, सत्य, तप आदि से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों के ५ गणों का वर्णन ), १४५.८९( ऋषियों के अव्यक्तात्मा, महात्मा आदि ५ भेद ), १४५.९८ ( मन्त्रकर्त्ता ऋषियों के नाम ), १९३.१३ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य : शापग्रस्त तृणबिन्दु की मुक्ति ), १९५.६( ब्रह्मा के शुक्र से ऋषियों की पुन: उत्पत्ति का कथन ), मार्कण्डेय ५०.२२ ( भृगु आदि ऋषियों द्वारा दक्ष की ख्याति आदि कन्याओं को पत्नी रूप में ग्रहण करना ), वराह १५२.६२ ( ऋषि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वामन २.९ ( वसिष्ठ आदि ऋषियों की भार्याओं के नाम ), ७२.१५ ( सात ऋषि - पत्नियों समाना, नलिनी आदि के नाम ), वायु ७.६८( महर्षि शब्द की निरुक्ति ), ९.१०० ( ब्रह्मा की देह के विभिन्न अङ्गों से ऋषियों की सृष्टि का कथन ), २८.१ ( भृगु आदि ऋषियों के वंश का अनुकीर्तन ), ५९.७९ ( निरुक्ति ), ५९.९१ ( ज्ञान व सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले मन्त्रकर्ता ऋषियों के नाम ), ६१.८१ ( ब्रह्मर्षि, देवर्षि आदि शब्दों का निरूपण ), १०१.३०/२.३९.३०( ऋषि आदि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख ), विष्णु १.१०.१ ( भृगु आदि ऋषियों की सन्तानों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१११+ ( ब्रह्मा के वीर्य के होम से ऋषियों की उत्पत्ति, ऋषियों के गोत्रों व प्रवरों का अनुकीर्तन ), ३.४२.३ ( ऋषियों के रूप के निर्माण के संदर्भ में ऋषियों को कृष्णाजिन आदि से युक्त करने का कथन ), स्कन्द १.२.५.१०९( ऋषिकल्प : ब्राह्मणों के ८ भेदों में से एक, लक्षण ), ३.२.९.२५ ( यम के अनुरोध पर ऋषियों व ब्राह्मणों के २४ गोत्रों का धर्मारण्य में स्थित होना, २४ गोत्रों, उनके प्रवरों व गुणों का वर्णन ), ५.३.८३.१०६ ( गौ के रोम कूपों में ऋषियों की स्थिति का उल्लेख ), ७.१.२५५ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य : हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर ऋषियों द्वारा प्रतिक्रिया ), ७.१.३१४ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य : ऋषियों की पाषाण प्रतिमाओं के रूप में स्थिति ), ७.४.१५.१२ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य ), महाभारत अनुशासन ९३,९४, १४१.९५( उञ्छ वृत्ति से जीवन निर्वाह करने वाले ऋषियों के धर्म का निरूपण ),१५५, लक्ष्मीनारायण १.३८.५ ( ऋषि आदि शब्दों की निरुक्ति, ब्रह्मा के अङ्गों से ऋषियों की सृष्टि का वर्णन ), १.३८२.१६३(ऋषियों के शिष्यों की संख्या), २.२२५.९३( ऋषियों हेतु स्वर्णकलश दान का उल्लेख ), ३.४५.११०( ऋषियों द्वारा सौहार्द से भगवान् को प्राप्त करने का उल्लेख ), ३.५४.५ ( ऋषि धर्म साधु द्वारा लीलावती खश कन्या को मुक्ति के उपाय का कथन ), द्र. सप्तर्षि Rishi

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      Vedic contexts on Rishi


      ऋषिक ब्रह्माण्ड १.२.१८.५३ ( ह्लादिनी नदी से सींचा जाने वाला एक देश ), मत्स्य १२१.५३ ( वही)


      ऋषिका नारद १.५०.३८ ( पञ्चम स्वर में मूर्च्छा का नाम ), मत्स्य ११४.३२ ( ऋषीका : शुक्तिमान पर्वत से उद्भूत नदी ), वायु ४५.१०७ ( ऋषीका : शुक्तिमान पर्वत से उद्भूत एक नदी ), शिव ४.७ ( द्विज - पत्नी ऋषिका के तप में मूढ दैत्य द्वारा विघ्न, शिव द्वारा मूढ का निग्रह, ऋषिका का गङ्गा से मिलन, ऋषिका तीर्थ का माहात्म्य ) Rishikaa


      ऋषिकुल्या ब्रह्माण्ड १.२.१६.३७ ( शुक्तिमान पर्वत से निःसृत एक नदी ), भागवत ५.१५.६ ( भूमा - पत्नी, उद्गीथ - माता, भरत वंश ), ५.१९.१८ ( भारतवर्ष की एक नदी ), मत्स्य ११४.३१ ( महेन्द्र पर्वत से उद्भूत एक नदी ), विष्णु २.३.१३ ( शुक्तिमान पर्वत से निःसृत एक नदी ), स्कन्द २.२.६.२७ ( ऋषिकुल्या नदी व स्वर्णरेखा नदी के मध्य उत्कल देश की स्थिति का कथन ) Rishikulyaa


      ऋषिकेश लक्ष्मीनारायण १.२५७.६ ( भाद्रपद शुक्ल एकादशी को ऋषिकेश की पूजा ) द्र. कुब्जाम्रक, हृषीकेश


      ऋषितोया स्कन्द ७.१.२९६+ ( ऋषितोया नदी का माहात्म्य : पितर तृप्ति हेतु ब्रह्मा के कमण्डलु से उत्पत्ति, काल अनुसार विभिन्न नदियों के जलों का ऋषितोया में प्रवाह ), ७.१.३१७+ ( ऋषितोया नदी तट पर स्थित ब्रह्मेश्वर, उन्नत विनायक, क्षेमेश्वर आदि लिङ्गों के माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५४५.६५ ( ऋषितोया नदी की ब्रह्मा के कमण्डलु से उत्पत्ति का वर्णन ) Rishitoyaa


      ऋष्य गर्ग ७.७.३ ( गुर्जर देश - अधिपति, ऋष्य द्वारा प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करना ), भागवत ९.२२.११ ( देवातिथि - पुत्र, दिलीप - पिता, कुरु / दिवोदास वंश ), मत्स्य ४९.१० ( ऋष्यन्त : ऐलिन व उपदानवी - पुत्र, पूरु वंश ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१ ( ऋष्यका : ७ मध्यमग्रामिकों में से एक ), ३.१४६.२ ( अनिरुद्ध के केतु के रूप में ऋष्य का उल्लेख ) Rishya


      ऋष्यमूक गर्ग १.६.३० ( ऋष्यमूक वन में केशी दैत्य का वास ), वा.रामायण ३.७३.३१ ( कबन्ध राक्षस द्वारा राम से ऋष्यमूक पर्वत के माहात्म्य का वर्णन : ऋष्यमूक के निकट पम्पा सरोवर व मतङ्ग वन की स्थिति ), ४.१०.२८ ( वाली से त्रस्त सुग्रीव का ऋष्यमूक पर्वत पर शरण लेना ), कथासरित् १४.३.३ ( ऋष्यमूक पर्वत पर राजा नरवाहन दत्त का निवास करना व राम की कथा सुनना ) Rishyamuuka/ rishyamuka


      ऋष्यशृङ्ग ब्रह्मवैवर्त्त २.४.५५(विभाण्डक द्वारा ऋष्यशृङ्ग को सरस्वती मन्त्र प्रदान का उल्लेख), २.५१.३५ ( ऋष्यशृङ्ग ऋषि द्वारा सुयज्ञ नृप हेतु कृतघ्नता दोष का निरूपण करना ), भागवत ८.१३.१५ ( आठवें सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ९.२३.८ ( विभाण्डक मुनि व हरिणी - पुत्र, रोमपाद के राज्य में ऋष्यशृङ्ग के प्रवेश पर वर्षा होना व ऋष्यशृङ्ग का शान्ता से विवाह ), मत्स्य ४८.९६ ( ऋष्यशृङ्ग की कृपा से चतुरङ्ग को पृथुलाक्ष पुत्र की प्राप्ति का कथन ), महाभारत द्रोण १०६.१६, वायु १००.११ ( आठवें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), विष्णु ३.२.१७ ( वही), वा.रामायण १.९+ ( मुनि, विभाण्डक - पुत्र, ऋष्यशृङ्ग के अङ्ग देश में आगमन पर वृष्टि, शान्ता से विवाह, दशरथ के अश्वमेध में आगमन ), लक्ष्मीनारायण १.४८५ ( राजा चित्रसेन द्वारा मृग रूप धारी दीर्घतमा - पुत्र ऋष्यशृङ्ग की हत्या, ऋष्यशृङ्ग के शोक में पिता आदि परिवार जनों की मृत्यु , नर्मदा में अस्थि क्षेप से दिव्य रूप प्राप्ति ; तु. स्कन्द ५.३.५२ में दीर्घतपा - पुत्र ऋक्षशृङ्ग की कथा ) Rishyashringa


      लृ अग्नि ३४८.३ ( दिति हेतु लृ का प्रयोग )

      ए अग्नि १२४.८ ( ओंकार में बिन्दु की एकार रूप में स्थिति का उल्लेख ), ३४८.३ ( देवी हेतु ए का प्रयोग )


      एक- गरुड ३.१८.७७(सरस्वती से शतानन्द, भारती से एकानन्द), लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३( एक छाग की अशुभता का उल्लेख ), २.२१७.१०१( एकद्वार : श्रीहरि का कोटीश्वर नृप द्वारा पालित एकद्वार राष्ट्र को गमन, प्रजा को उपदेश आदि )


      एकचक्र भागवत ३.१.२० ( युधिष्ठिर द्वारा एकचक्रा नामक क्षिति का राज्य करने का उल्लेख ), ६.६.३१ ( दनु के प्रधान पुत्रों में से एक ), मत्स्य ६.१९ ( वही), विष्णु १.२१.५ ( वही), स्कन्द ३.३.६ ( एकचक्रा नामक ग्राम में विप्र - पत्नी उमा द्वारा निराश्रित पुत्र के पालन की कथा ), हरिवंश ३.५१.३० ( बलि - सेनानी, प्रकृति का कथन ), ३.५३.१७ ( एकचक्र का साध्य देवगण से युद्ध ) Ekachakra


      एकजटा वा.रामायण ५.२३.५ ( रावण की सहायिका राक्षसी एकजटा द्वारा सीता को रावण का वरण करने का परामर्श )


      एकज्योति विष्णुधर्मोत्तर १.५६(१० ( प्रधान मरुत का नाम, विष्णु का विशेषण )


      एकत पद्म ५.१०.३९ ( एकत व द्वित की राम के अश्वमेध यज्ञ में उत्तर द्वार पर स्थिति ), भागवत १०.८४.५ ( स्यमन्तपञ्चक क्षेत्र में कृष्ण से मिलने आए ऋषियों में से एक ), स्कन्द ७.१.२५७ ( आत्रेयवंशी एकत व द्वित द्वारा कनिष्ठ भ्राता त्रित का कूप में क्षेपण ) Ekata



      एकदन्त गणेश १.९२.१६ ( मुनियों द्वारा एकदन्त नाम से गणेश की पूजा ), २.८५.२५ ( एकदन्त गणेश से पाद, गुल्फ की रक्षा की प्रार्थना), नारद १.६६.१२६( एकदन्त की शक्ति सुमेधा का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४३.४४ ( परशुराम द्वारा गणेश के एकदन्त का छेदन करने पर गणेश द्वारा अर्जित नाम ), ३.४४.८८ ( एकदन्त शब्द की निरुक्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.४२.८ ( परशुराम द्वारा गणेश के एकदन्त के छेदन पर गणेश द्वारा अर्जित नाम ), ३.४.४४.६६ ( ५१गणेशों में से एक, गणेश की शक्ति का नामोल्लेख ), स्कन्द २.४.३०.२०टीका ( कर्मदत्त द्विज - पुत्र, वेश्यादि कर्म में आसक्ति, कार्तिक मास के पुण्य से मृत्यु के पश्चात् स्वर्गलोक की प्राप्ति ), ४.२.५७.८१ ( एकदन्त विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य ) Ekadanta


      एकनेत्र नारद १.६६.११२( एकनेत्र की शक्ति भूतमात्रा का उल्लेख )


      एकपर्णा ब्रह्माण्ड २.३.८.३२ ( हिमवान व मेना की तीन पुत्रियों में से एक, असित मुनि - भार्या, देवल - माता ), मत्स्य १३.८ ( वही), वायु ७२.७ ( वही), हरिवंश १.१८.२३ ( वही) Ekaparnaa


      एकपाटला ब्रह्माण्ड २.३.१०.८ ( मेना - पुत्री, जैगीषव्य - भार्या, शङ्ख व लिखित -माता ), वायु ७२.७ ( वही), ७२.१८ ( वही), हरिवंश १.१८.२४ ( वही) Ekapaatalaa


      एकपाद नारद १.६६.१३१( एकपाद गणेश की शक्ति रमा का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.२०.८२ ( किरिचक्र रथ पर स्थित १० भैरव श्रेष्ठों में से एक ), ३.४.४४.६८ ( गणेश के ५१ नामों में से एक ), स्कन्द ७.२.१५.२५ ( रैवतक पर्वत पर पांच क्षेत्रपालों में से एक, स्वरूप व प्रकृति का वर्णन ), हरिवंश ३.१७.१८( दिष्ट के ब्रह्मा का एक पाद होने का कथन ) Ekapaada


      एकरुद्र नारद १.६६.१११( एकरुद्र की शक्ति त्रैलोक्यविद्या का उल्लेख )


      एकलव्य ब्रह्माण्ड २.३.७१.१९० ( देवश्रवा - पुत्र श्राद्धदेव / शत्रुघ्न का जरा निषाद द्वारा पालन, एकलव्य नाम ), वायु ९६.१८७ ( वही), हरिवंश १.३४.३२ ( देवश्रवा के पुत्र शत्रुघ्न का नाम, पिता द्वारा त्याग होने पर निषाद द्वारा पालन ), ३.९४.२६ ( पौण्ड्रक - सेनानी, यादवों से युद्ध ), ३.९८+ ( एकलव्य का बलराम से युद्ध ), ३.१०२.१ (एकलव्य का बलराम से युद्ध व पलायन कर समुद्र में प्रवेश ), कथासरित् १२.२.१६३ ( लावण्यमञ्जरी नामक ब्राह्मण कन्या का आसक्ति के कारण एकलव्या नगरी में रूपवती नामक वेश्या रूप में जन्म ), १२.७.२४ ( एकलव्या नगरी में श्रुतधर राजा के पुत्र सत्यधर द्वारा स्व - अग्रज शीलधर के राज्य से निष्कासन की कथा ) Ekalavya


      एकल्लवीरा स्कन्द ७.१.१७१ (एकल्लवीरा देवी का माहात्म्य :दशरथ द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए एकल्लवीरा के समीप शिव लिङ्ग की आराधना )


      एकविंशति गणेश १.८०.२२ ( कार्त्तवीर्य द्वारा एकविंशति बाणों से जमदग्नि की हत्या के कारण रेणुका द्वारा एकविंशति बार पृथिवी को क्षत्रिय हीन करने का निर्देश ), ब्रह्माण्ड २.३.३०.२८( पति की मृत्यु पर रेणुका द्वारा त्रि:सप्त बार हस्त से उदर के ताडन का उल्लेख ), स्कन्द १.२.६.१४( महीसागर सङ्गम पर चोरों द्वारा षोडश व एकविंश धन की चोरी का उल्लेख ) Ekavimshati


      एकवीर देवीभागवत ६.२०+ ( हय रूपी विष्णु व वडवा रूपी लक्ष्मी - पुत्र, तुर्वसु / हरिवर्मा द्वारा पालन, हैहय उपनाम, एकावली की कालकेतु दानव से रक्षा व विवाह, कृतवीर्य - पिता )


      एकवीरा देवीभागवत ७.३० ( सह्याद्रि पर विराजमान देवी का नाम ), मत्स्य १३.४० ( वही), १७९.१७ ( अन्धकों के रक्तपानार्थ शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), स्कन्द ५.३.१९८.७७ ( सह्याद्रि पर उमा की एकवीरा नाम से स्थिति का उल्लेख ) Ekaveeraa


      एकशाला स्कन्द ५.३.२१२.२ ( शिव द्वारा भिक्षु रूप धारण करके एकशाला ग्राम में जाने का वृत्तान्त )


      एकश्रुत कथासरित् १.२.४०, ८०( सोमदत्त व वसुदत्ता - पुत्र के एकश्रुत होने का कथन ; एकश्रुत द्वारा वर्ष नामक विप्र से विद्या की प्राप्ति )


      एकशृङ्ग वराह ८१.४ ( मेरु के परित: स्थित एकशृङ्ग पर्वत पर चतुर्मुख ब्रह्मा के वास का कथन ), वायु ३६.२४ ( मेरु के दक्षिण में स्थिति एक पर्वत ), महाभारत शान्ति ३४२.९२(एकशृङ्ग वराह द्वारा भूमि के उद्धार का उल्लेख),


      एकशृङ्गा ब्रह्माण्ड २.३.१०.८७ ( द्विजों द्वारा पूजित पितरों की मानसी कन्या योगोत्पत्ति का उपनाम, शुक्र - भार्या, भृगु वंश ), हरिवंश १.१८.५८ ( सुकाली नामक पितरों की मानसी कन्या, स्वर्ग में गौ नाम, शुक - भार्या, साध्य वंश )


      एकाकिकेसरी कथासरित् १८.४.४१ ( भिल्ल - सेनापति एकाकिकेसरी द्वारा विक्रमादित्य का सत्कार, एकाकिकेसरी द्वारा वानर की सहायता करने पर युवावस्था प्राप्ति की कथा, स्वकन्या मदनसुन्दरी को विक्रमादित्य को भेंट करना )


      एकाङ्गी स्कन्द २.४.९.१४टीका ( हृषीकेश आभीर - कन्या, पिता द्वारा मिथ्या अपवाद सुनकर एकाङ्गी का त्याग, सत्यता ज्ञात होने पर पुन: स्वीकार करने की कथा )


      एकाङ्घ्रि अग्नि ९६.११ ( आठ दिशाओं में स्थित क्षेत्रपालों में से सातवें क्षेत्रपाल )


      एकाक्ष ब्रह्माण्ड २.३.६.१५ ( दनु के मनुष्यों से अवध्य पुत्रों में से एक ), वामन ५७.७३ ( यक्षों द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण का नाम ), ६८.१५ ( दनु के मनुष्यधर्मा राक्षस पुत्रों में से एक ), स्कन्द १.२.१३.१९२ ( शतरुद्रिय प्रसङ्ग में कर्कोटक नाग द्वारा हालाहल लिङ्ग की एकाक्ष नाम से आराधना ) Ekaaksha


      एकाक्षा मत्स्य १७९.२५ ( एकाक्षी : अन्धकों के रक्तपान के लिए शिव द्वारा सृष्ट मातृकाओं में से एक ), वायु ४४.२० ( केतुमाल वर्ष की एक नदी )


      एकाक्षरकोश अग्नि ३४८


      एकादश अग्नि ३२१.३( ग्रहों के पूजन से सब ग्रहों के एकादशस्थ होने की प्रार्थना ), स्कन्द ५.३.१५९.२३ ( मृतक के एकादशाह में भोजन करने से श्वान योनि प्राप्ति का उल्लेख )


      एकादशी अग्नि १८७ ( एकादशी व्रत का महत्त्व ), गर्ग २.२० ( एकादशी नामक गोपी द्वारा राधा को कङ्कण भेंट ), ४.८ ( २६ एकादशियों के नाम, एकादशी व्रत विधि, यज्ञ सीता रूपा गोपियों द्वारा एकादशी व्रत अनुष्ठान से कृष्ण की पति रूप में प्राप्ति ), १०.६१.४५ ( एकादशी व्रत विधि व माहात्म्य ), गरुड १.११६.६ ( एकादशी तिथि को ऋषियों की पूजा का निर्देश), १.१२३ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी : भीष्म पञ्चक व्रत का निर्देश ; एकादशी, द्वादशी व त्रयोदशी का योग शुभ तथा एकादशी व दशमी का योग आसुरी होने का कथन ), १.१२५ ( एकादशी तिथि का माहात्म्य ; दशमी मिश्रित एकादशी के आसुरी और द्वादशी व त्रयोदशी मिश्रित एकादशी के दैव होने का कथन ), १.१२७ ( माघ शुक्ल एकादशी : भीम द्वादशी नाम, वराह न्यास ), १.१३५.४ ( चैत्र शुक्ल एकादशी को ऋषि पूजा का निर्देश ; ९ ऋषियों के नाम ), ३.१४.२९(एकादशी को हरि का अन्न निःसार होने का कथन), नारद १.१९ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी : ध्वजारोपण व्रत ), १.२१ ( मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी : हरिपञ्चक व्रत ), १.२३ ( एकादशी व्रत विधि व महिमा : गालव - पुत्र भद्रशील की कथा ), १.८८.१६९(एकादशी तथा अन्य तिथियों के स्वरूप), १.१२० ( मास अनुसार एकादशी नाम व विष्णु पूजा ), २.१ ( एकादशी माहात्म्य : मान्धाता - वसिष्ठ संवाद ), २.२ ( दशमी या द्वादशी से विद्ध एकादशी का निर्णय ), २.३ ( एकादशी माहात्म्य : रुक्माङ्गद राजा की कथा का आरम्भ ), २.३१.५२ ( एकादशी / द्वादशी पुण्य दान से काष्ठीला की मुक्ति की विस्तृत कथा ), २.३७ ( मोहिनी को दशमी विद्धा एकादशी के व्रत फल की प्राप्ति ), २.६१.४६ ( ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी : जगन्नाथ क्षेत्र में पुरुषोत्तम की पूजा ), पद्म ४.१५ ( एकादशी व्रत का माहात्म्य : वल्लभ की कलहप्रिया भार्या हेमप्रभा को स्वर्ग की प्राप्ति ), ५.९६.९९ ( यम द्वारा यज्ञदत्त ब्राह्मण हेतु प्रोक्त एकादशी माहात्म्य ), ६.३०.९१( कार्तिक शुक्ल एकादशी : संवत्सर दीप व्रत, पुष्कर में देवतालय में राजा व रानी को पूर्वजन्म की स्मृति ), ६.३४ ( माधव द्वारा जाह्नवी को प्रोक्त त्रिस्पृशा एकादशी व्रत विधान : माधव का न्यास ), ६.३५ ( उन्मीलिनी एकादशी व्रत विधि व माहात्म्य : विष्णु न्यास ), ६.३६ ( पक्षवर्धिनी एकादशी का माहात्म्य ), ६.३८ ( एकादशी के जया, विजया आदि भेद, नक्त भोजन का माहात्म्य, एकादशी की विष्णु से उत्पत्ति व एकादशी द्वारा मुर दैत्य का वध ), ६.३९ ( मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी : मोक्षा नामक एकादशी का माहात्म्य :- वैखानस राजा द्वारा पितरों का उद्धार ), ६.४० ( पौष कृष्ण एकादशी : सफला नाम, लुम्भक राजकुमार की मुक्ति की कथा ), ६.४१ ( पौष शुक्ल एकादशी : पुत्रहा नाम, सुकेतुमान द्वारा पुत्र प्राप्ति ), ६.४२ ( माघ कृष्ण एकादशी : षट्-तिला नाम, विधि ), ६.४३ ( माघ शुक्ल एकादशी : जया नाम, माल्यवान व पुष्पदन्ती का पिशाच योनि से उद्धार ), ६.४४ ( फाल्गुन कृष्ण एकादशी : विजया नाम, राम द्वारा लङ्का पर विजय ), ६.४५ (फाल्गुन शुक्ल एकादशी :आमलकी नाम, परशुराम - पूजा ), ६.४६ (चैत्र कृष्ण एकादशी : पापमोचनी नाम, मञ्जुघोषा व मेधावी ऋषि की कथा ), ६.४७ ( चैत्र शुक्ल एकादशी : कामदा नाम, ललित गन्धर्व व ललिता अप्सरा का उद्धार ), ६.४८ ( वैशाख कृष्ण एकादशी : वरूथिनी नाम ), ६.४९ ( वैशाख शुक्ल एकादशी : मोहिनी नाम, धृष्टबुद्धि का उद्धार ), ६.५० ( ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी : अपरा नाम, माहात्म्य ), ६.५१( ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी : निर्जला नाम, भीम द्वारा चीर्णन ), ६.५२ ( आषाढ कृष्ण एकादशी : योगिनी नाम, हेममाली यक्ष का उद्धार ), ६.५३ ( आषाढ शुक्ल एकादशी : हरिशयनी नाम, वामन - पूजा ), ६.५४ ( श्रावण कृष्ण एकादशी : कामिका नाम, तुलसी पूजा ), ६.५५ ( श्रावण शुक्ल एकादशी : पुत्रदा नाम, महीजित् राजा को पुत्र प्राप्ति ), ६.५६ ( भाद्रपद एकादशी : अजा नाम, हरिश्चन्द्र को सुख प्राप्ति ), ६.५७ ( भाद्रपद शुक्ल एकादशी : पद्मा नाम, मान्धाता के राज्य में वर्षा ), ६.५८ ( आश्विन कृष्ण एकादशी : इन्दिरा नाम, इन्द्रसेन को पितरों सहित स्वर्ग प्राप्ति ), ६.५९ ( आश्विन् शुक्ल एकादशी : पापाङ्कुशा नाम, माहात्म्य ), ६.६० ( कार्तिक कृष्ण एकादशी : रमा नाम, शोभन व चन्द्रभागा को दिव्य रूप व भोग प्राप्ति ), ६.६१ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी : प्रबोधिनी नामक एकादशी का माहात्म्य ), ६.६२ ( पुरुषोत्तम मास, कृष्ण पक्ष एकादशी : कमला नाम, जयशर्मा दुष्ट ब्राह्मण का उद्धार ), ६.६३ ( पुरुषोत्तम मास, शुक्ल पक्ष एकादशी : कामदा नामक एकादशी का माहात्म्य ), ६.९०.१९ ( आश्विन शुक्ल एकादशी : वेदों व विष्णु का जल में शयन ), ६.९०.१९ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी : समुद्र में सुप्त वेदों व विष्णु का प्रबोधन ), ६.११९ ( आश्विन शुक्ल एकादशी : मासोपमास व्रत ), ६.१२४ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी : प्रबोधिनी नाम, माहात्म्य, भीष्म पञ्चक व्रत का आरम्भ ), ६.२३३ ( एकादशी माहात्म्य : देवों द्वारा लक्ष्मी के दर्शन ), ७.२२ ( एकादशी माहात्म्य : सर्व व्रतों में श्रेष्ठता, पाप पुरुष को एकादशी - अन्न में स्थान, व्रत विधि ), ब्रह्म १.१२० ( एकादशी को जनार्दन पूजा, गान, जागरण आदि कर्म, चाण्डाल - राक्षस प्रसंग ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२६ ( एकादशी व्रत विधान का कथन ), भविष्य ३.४.१६.३८ ( मुर दैत्य के वधार्थ एकादशी देवी की उत्पत्ति का वर्णन ), वराह ३०.६ ( वायु के मूर्तिमान रूप धनद को ब्रह्मा से एकादशी तिथि की प्राप्ति, एकादशी को अनग्निपक्व भोजन का महत्त्व ), १६४ ( भाद्रपद शुक्ल एकादशी को गोवर्धन परिक्रमा ), २११.४२ ( एकादशी माहात्म्य : शुक्ला एकादशी भक्तिप्रदा व कृष्ण एकादशी से मोक्ष प्राप्ति ), स्कन्द २.२.३६.१८ ( आषाढ शुक्ल एकादशी को पुरुषोत्तम शयन उत्सव का वर्णन ), २.४.३३ ( कार्तिक में प्रबोधिनी एकादशी का माहात्म्य ), २.५.१२ ( अखण्ड एकादशी व्रत विधि व एकादशी व्रत उद्यापन विधि ), ५.२.२८.४६ ( फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी का माहात्म्य : व्याध का अगले जन्म में राजा बनना ), ५.३.२६.१२१ ( , ५.३.५१.६ ( पौष शुक्ल एकादशी के मन्वन्तरादि तिथि होने का उल्लेख ), ५.३.५६.६५ ( चैत्र शुक्ल मदन एकादशी माहात्म्य के अन्तर्गत शबर द्वारा पद्म दान आदि से मुक्ति का वृत्तान्त ), ५.३.१८८.६ ( मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को नर्मदा तट पर शालग्राम तीर्थ में स्नान आदि का माहात्म्य ), ५.३.१८९.३६ ( ज्येष्ठ एकादशी को विष्णु के वराह रूप द्वारा पृथिवी के उद्धार का उल्लेख ), ६.९३ ( वैशाख शुक्ल एकादशी : गोमुख तीर्थ का आविर्भाव ), ६.१९० ( कार्तिक शुक्ल एकादशी : पंचरात्र का आरम्भ, अन्त में अवभृथस्नानादि ), ६.२३१ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी : विष्णु का वृक के ऊपर से उठकर क्षीरसागर को जाना, अशून्यशयन व्रत ), ७.१.२०८.३६ ( त्रयोदशी में एकादशी उपवास का पारण करने पर पातक का कथन ), ७.१.३०७ ( फाल्गुन शुक्ल एकादशी : अपर नारायण पूजा ), ७.२.१७.१९४ ( फाल्गुन शुक्ल एकादशी : आमलकी वृक्ष की प्रदक्षिणा ), ७.३.१३ ( कार्तिक शुक्ल एकादशी : अम्बरीष द्वारा हृषीकेश की आराधना, ज्ञानयोग व क्रियायोग विषयक उपदेश की प्राप्ति ), ७.३.१९ ( माघ शुक्ल एकादशी : वराह तीर्थ में श्राद्ध ), हरिवंश २.३.९ ( आर्या / रात्रि देवी के कृष्ण पक्ष की नवमी व शुक्ल पक्ष की एकादशी होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.२४ ( एकादश इन्द्रियों से एकादशी की उत्पत्ति, महिमा ), १.२३०.३४ ( एकादशी व्रत, जागरण आदि की प्रशंसा ), १.२३३ ( तीन तिथियों में व्याप्त त्रिस्पृशा एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य ), १.२३४.७८ ( मुर दानव के वध हेतु एकादशेन्द्रिय रूपी एकादशी के प्राकट्य व विष्णु से विवाह का वर्णन ), १.२३५ ( उन्मीलिनी एकादशी व्रत विधि व माहात्म्य ), १.२३६ ( पक्षवर्धिनी एकादशी व्रत विधि व माहात्म्य ), १.२३७ ( एकादशी व्रत जागरण आदि की महिमा ), १.२३८.४७ ( मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी का माहात्म्य ), १.२३९ ( मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का माहात्म्य : वैश्वानर नृप द्वारा देववृत्ति हारक पितरों का उद्धार ), १.२४० ( पौष कृष्ण एकादशी का माहात्म्य : लुम्भक राजपुत्र को राज्य प्राप्ति की कथा ), १.२४१ ( पौष शुक्ल एकादशी का माहात्म्य : केतुमान राजर्षि को पुत्रलाभ ), १.२४२ ( माघ कृष्ण षट्-तिला एकादशी व्रत का माहात्म्य : कपिला नारी को देवीत्व व रमा पद की प्राप्ति ), १.२४३ ( माघ शुक्ल जया एकादशी व्रत का माहात्म्य : माल्यवान व पुष्पवती नामक गन्धर्व युगल की पिशाचत्व शाप से मुक्ति ), १.२४४ ( फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी व्रत का माहात्म्य : सहस्रार्जुन नाशार्थ तपोरत परशुराम की विजय ), १.२४५ (फाल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी व्रत का माहात्म्य : लक्ष्मी के ललाट के आभूषण रूप में आमलकी का प्राविर्भाव, पृथ्वी पर आमलकी पतन से वृक्ष की उत्पत्ति ), १.२४६ ( चैत्र कृष्ण पापमोचनी एकादशी व्रत का माहात्म्य : मञ्जुघोषा अप्सरा का मेधावी मुनि के शाप से पिशाची बनना, एकादशी व्रत से मुक्ति ), १.२४७ ( चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी व्रत का माहात्म्य : पौण्ड्र के शाप से पिशाच बने ललित व ललिता गन्धर्व युगल की मुक्ति ), १.२४८ ( वैशाख कृष्ण वरूथिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य : मरीचि - पत्नी कला के संग दोष से शिष्य वरूथ का उद्धार ), १.२४९ ( वैशाख शुक्ल मोहिनी एकादशी का माहात्म्य : धृष्ट बुद्धि वैश्य के उद्धार की कथा ), १.२५० ( ज्येष्ठ कृष्ण अपरा एकादशी व्रत माहात्म्य : अधोक्षज कृष्ण की पूजा, शलभा यतिनी की वानर गमन दोष से मुक्ति ), १.२५१ ( ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी व्रत का माहात्म्य : क्रतु ऋषि की क्षुधा शान्ति का वर्णन ), १.२५२ ( आषाढ कृष्ण योगिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य : हेममाली यक्ष की कुष्ठ से मुक्ति ), १.२५३ ( आषाढ शुक्ल शयनी एकादशी व्रत माहात्म्य : वामन का अवतार व शयन, चातुर्मास के यम - नियम आदि व्रतों का पालन ), १.२५४ ( श्रावण कृष्ण कामिका एकादशी व्रत माहात्म्य : अच्युत - पूजा, श्रवण नामक पितरों को श्रवण सिद्धि की प्राप्ति, रति को काम की प्राप्ति ), १.२५५ ( श्रावण शुक्ल पुत्रदा एकादशी व्रत का माहात्म्य : श्रीधर पूजा, पुरूरवा के पूर्वजन्म का वृत्तान्त, एकादशी व्रत से पुत्र प्राप्ति ), १.२५६ ( भाद्रपद कृष्ण एकादशी व्रत का माहात्म्य : विश्वामित्र द्वारा हरिश्चन्द्र के सत्यव्रत की परीक्षा , अजा एकादशी व्रत से हरिश्चन्द्र के दुःखों की निवृत्ति ), १.२५७ ( भाद्रपद शुक्ल पद्मा एकादशी व्रत का माहात्म्य : शूद्र के तप के कारण वृष्टि से वंचित मान्धाता के राज्य में एकादशी व्रत से वृष्टि होना ), १.२५८ ( आश्विन कृष्ण इन्दिरा एकादशी व्रत का माहात्म्य : इन्द्रसेन राजा को पितरों सहित स्वर्ग की प्राप्ति ), १.२५९ ( आश्विन शुक्ल पाशाङ्कुशा एकादशी व्रत का माहात्म्य : वेधशिरा मुनि की यम पाश से मुक्ति ), १.२६० ( कार्तिक कृष्ण रमा एकादशी व्रत का माहात्म्य : चन्द्रभागा द्वारा पति शशिसेन सहित स्वर्गलोक की प्राप्ति ), १.२६१ ( कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी एकादशी व्रत का माहात्म्य : कर्मचाण्डाल विप्र व राक्षस की मुक्ति ), १.२६३ ( पुरुषोत्तम मास कृष्ण पक्ष कमला एकादशी व्रत का माहात्म्य : शाकाटयन विप्र को मणि की प्राप्ति ), १.२६४ ( पुरुषोत्तम मास शुक्ल धामदा एकादशी व्रत का माहात्म्य : कुमुद्वती द्वारा अक्षर धाम की प्राप्ति ), १.२६५ ( सर्व एकादशी व्रतों के उद्यापन की विधि ), १.२७६ ( एकादशी को पालनीय नियमों का वर्णन ), १.२८५+ ( दशमी विद्धा एकादशी के वर्जन का कारण : रुक्माङ्गद के एकादशी व्रत से यमलोक का शून्य होना, मोहिनी द्वारा रुक्माङ्गद के व्रत में विघ्न, मोहिनी को दशमी विद्धा एकादशी का फल प्राप्त होना ), १.३०३ ( अधिमास एकादशी व्रत का माहात्म्य : मूर्ति द्वारा दक्ष - पुत्री रूप में उत्पन्न होकर धर्म पति की प्राप्ति ), १.३१८ ( अधिमास एकादशी व्रत का माहात्म्य : वम्री का कृष्ण - पत्नी व १० प्रचेताओं की पत्नी बनना ), १.५४५.३६ ( राजा नृग के शरीर से एकादशी कन्या के निर्गत होकर दस्युओं का नाश करने का वृत्तान्त ), २.१५ ( ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी माहात्म्य : ९ कन्याओं द्वारा कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करना ), २.५९.६६ ( विप्र द्वारा भाद्रपद एकादशी को दान से जन्मान्तर में प्रेत बनने पर दिव्य भोजन स्थाली आदि की प्राप्ति ), २.१२३.२८ ( मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी : शिबि राज्य में क्रतु का आरम्भ ), २.१२३.३१ ( पौष कृष्ण एकादशी : शक्त्यक्षि राजा के क्रतु का आरम्भ ), २.१९२ ( श्रावण कृष्ण एकादशी : श्री हरि का बललीन राजा की नगरी में आगमन ), २.२१२ ( एकादशी तिथि को श्री हरि द्वारा साधु द्वीप में राजा सहित यज्ञ की पूर्णाहुति देना ), २.२३९ ( पुण्डरीक राजा द्वारा कार्तिक एकादशी व्रत से हंस रूपी कृष्ण का दर्शन ), २.२४७ ( सोमयाग के चतुर्थ दिन एकादशी को करणीय कृत्यों का वर्णन ), ३.१०३.७ ( एकादशी को स्वर्ण गौ दान से रूप प्राप्ति ), ४.१०.९ ( श्रावण शुक्ल एकादशी : राजा नागविक्रम का सर्वमेध यज्ञ करना ), ४.४१.३ ( आषाढ एकादशी को रायहरि नृप द्वारा कथा आयोजन का वर्णन ), ४.४६.४२ ( ऊर्ज एकादशी को कुलालों के मोक्ष का वृत्तान्त ), ४.५८.५६ ( चैत्र कृष्ण एकादशी : षण्ढों की एकादशी जागरण से मुक्ति ), ४.७१.४३ ( वैशाख शुक्ल एकादशी : कीरतार भाट की मुक्ति की कथा ), ४.१०१.८९ ( कृष्ण - पत्नी, पुण्यव्रत व पतिव्रता युगल की माता ), महाभारत वन १३४.१८ ( ११ पशुओं के ११ विषय, ११ यूप, ११ विकार, ११ रुद्र होने का उल्लेख ), उद्योग २०.१८ ( कौरवों की एकादश अक्षौहिणी सेना तथा अकेले धनञ्जय की तुलना ), भीष्म ७.३६ ( गन्धमादन के पार्श्ववर्ती पर्वतों पर एकादश सहस्र आयु होने का उल्लेख ), १६.१५ ( कौरवों की ११ अक्षौहिणी सेना के शकुनि, शल्य, जयद्रथ आदि अधिनायकों के नाम ), १६.२५ (कौरवों की एकादश तथा पाण्डवों की सात अक्षौहिणी सेनाओं का उल्लेख ), शान्ति २३३.१७ ( एकादश विकारात्मा पुरुष के कलाओं से युक्त होने का कथन ), २५२.११ ( पांच महाभूत, भावना, अज्ञान, कर्म या अविद्या, काम, कर्म, नवम मन, दशमी बुद्धि तथा एकादशी अनन्तात्मा होने का कथन ), २८०.२० ( एकादश विकारात्मा के विराट रूप का वर्णन ),अनुशासन १०९, आश्वमेधिक ३६.२ ( बुद्धि स्वामी वाले एकादश परिक्षेप के मन व्याकरणात्मक होने का कथन ), ४२.१४ ( अहंकार से प्रसूत ११ इन्द्रियों श्रोत्र, त्वक् आदि का वर्णन ; पांच कर्मेन्द्रिय, पांच ज्ञानेन्द्रिय, मन उभयत्र व बुद्धि द्वादशी ; इन्द्रिय ग्राम को जीतने पर ब्रह्म के प्रकाशन का उल्लेख ) Ekaadashee/ ekaadashi/ ekadashi

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      एकानंशा पद्म १.४४.८८ ( पार्वती द्वारा तप के पश्चात् त्यक्त कालिमा से एकानंशा देवी की उत्पत्ति, देवी का विन्ध्याचल पर गमन व पञ्चाल नामक गण की प्राप्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७.१०५ ( वसुदेव द्वारा यशोदा - कन्या को कंस को प्रस्तुत करना, कंस द्वारा कन्या के वध के विचार का त्याग ; पार्वती का अंश, दुर्वासा की पत्नी बनना ), भागवत १०.४( कंस द्वारा यशोदा - कन्या के पोथन का वृत्तान्त ), मत्स्य १५४.७४ ( ब्रह्मा के अनुरोध पर विभावरी देवी द्वारा हिमवान - पत्नी मेना के गर्भ में प्रवेश करके उदर को रञ्जित करना, मेना से काली / पार्वती का जन्म ), १५७.१५ (तप के पश्चात् त्यक्त पार्वती की कृष्ण देह से एकानंशा देवी की उत्पत्ति आदि ), वायु २५.४९ ( मधु - कैटभ प्रसंग में ब्रह्मा के समक्ष एकानंशा से अनेकांशा कन्या के प्राकट्य का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.८५.७१ ( एकानंशा की मूर्ति का रूप ), स्कन्द १.२.६२.५६ ( यशोदा - पुत्री, अपराजिता, सौदामिनी आदि अन्य नाम व माहात्म्य ), १.२.६५.१ ( एकानंशा देवी के तिरस्कार पर भीम का अन्धा होना, देवी की स्तुति से चक्षु प्राप्ति, देवी का भीम - भगिनी बनकर भीम की सहायता का वचन, देवी के वत्सेश्वरी, केलीश्वरी आदि अन्य रूपों का कथन ), ५.१.१८ ( तारक असुर से पीडित ब्रह्मा द्वारा निशा देवी से पार्वती के शरीर का रंग काला करने का अनुरोध, पार्वती द्वारा कृष्ण शरीर के त्याग पर एकानंशा देवी का प्रादुर्भाव ), हरिवंश २.२.२६( विष्णु द्वारा निद्रा को षड~गर्भों को देवकी के गर्भ में रखने तथा यशोदा के गर्भ से जन्म लेने का निर्देश, आर्या रूपी एकानंशा देवी की स्तुति ), २.३.९ (एकानंशा/आर्या देवी के कृष्ण पक्ष की नवमी व शुक्ल पक्ष की एकादशी होने का उल्लेख), २.४.४७ ( यशोदा - कन्या, कंस द्वारा वसुदेव - पुत्री समझकर वध का प्रयत्न, कन्या का आकाश में स्थित होकर कंस को सचेत करना ), २.२२.५२ ( यशोदा - कन्या, शुम्भ - निशुम्भ असुरों का वध करके विन्ध्याचल पर स्थित होना ), २.१०१.१२ ( द्वारका में यादव सभा में एकानंशा का कृष्ण व बलराम से मिलन ), लक्ष्मीनारायण १.४७६.१२४ ( दुर्वासा द्वारा स्व - पत्नी कन्दली को भस्म करने के पश्चात् तप करके वसुदेव - पुत्री एकानंशा को पत्नी रूप में प्राप्त करना ) Ekaanamshaa/ ekanansha


      एकान्त रामनाथ स्कन्द ३.१.१३ ( शिव के निर्देश पर अगस्त्य - अनुज द्वारा सेतु तीर्थ के समीप एकान्तरामनाथ क्षेत्र में तप व देह त्याग, राम द्वारा समुद्र को एकान्त करने के कारण क्षेत्र की एकान्तरामनाथ नाम से प्रसिद्धि ) Ekaanta


      एकाम्र देवीभागवत ७.३०.५९ ( विष्णु के अनुरोध पर शिव द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र में स्थित एकाम्र क्षेत्र में कोटि लिङ्गेश्वर रूप में वास, राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा शिव की आराधना ), ब्रह्म १.३९ ( एकाम्र क्षेत्र के माहात्म्य का वर्णन ), ब्रह्माण्ड ३.४.५.७ ( अगस्त्य द्वारा काञ्ची में एकाम्रवासी शिव व कामाक्षी देवी की पूजा ), ३.४.४०.३७ ( सती विरह से पीडित शिव द्वारा एकाम्र मूल में स्थित होकर कामाक्षी देवी की आराधना, गौरी को ग्रहण करना ), मत्स्य १३.२९ ( एकाम्रक क्षेत्र में सती की कीर्तिमती देवी के नाम से स्थिति ), स्कन्द २.२.१२.८ ( विष्णु के अनुरोध पर शिव द्वारा पुरुषोत्तम क्षेत्र में स्थित एकाम्र क्षेत्र में कोटि लिङ्गेश्वर रूप में वास, राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा शिव की आराधना ), ५.३.१९८.६७ ( एकाम्र तीर्थ में उमा की कीर्तिमती नाम से स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.५८५.११६ ( पुरुषोत्तम क्षेत्र में स्थित एकाम्र क्षेत्र में कोटिलिङ्गेश्वर शिव का स्थित होना ) Ekaamra


      एकार्णव ब्रह्माण्ड ३.४.१.१७९ ( निरुक्ति ), मत्स्य १६६.१७ ( प्रलयकाल में पृथ्वी का एकार्णव के जल से अभिभूत होना ), १६७.४८ ( मार्कण्डेय द्वारा एकार्णव के जल में शायी बालमुकुन्द के दर्शन ), स्कन्द ५.३.१८.९ ( प्रलयकाल में सूर्य ताप द्वारा जगत के भस्म होने के पश्चात् मेघों के जल से जगत के एकार्णव बनने का वर्णन ) Ekaarnava/ ekarnava


      एकावली देवीभागवत ६.२१+ ( रैभ्य व रुक्मरेखा - कन्या, कालकेतु द्वरा हरण, हैहय / एकवीर द्वारा रक्षा व पाणिग्रहण )


      एकाष्टका पद्म १.९.५१ ( आज्यप पितरों की कन्या विरजा का ब्रह्मलोक में जाने पर एकाष्टका नाम होना ), मत्स्य १५.२४ ( वही) ekaashtakaa/ekashtaka

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      Vedic contexts on Ekaashtakaa


      एकाह स्कन्द ६.२१६.११०( पितरों द्वारा ब्रह्मा से एकाहिक श्राद्ध द्वारा तृप्ति होने की मांग, ब्रह्मा द्वारा गयाशिर में श्राद्ध से तृप्ति का वरदान )


      एकोद्दिष्ट स्कन्द ६.२०६.६१( इन्द्र द्वारा चमत्कारपुर में विश्वेदेवों के बिना ही एकोद्दिष्ट श्राद्ध को सम्पन्न करने का उल्लेख ), द्र. श्राद्ध


      एक्य वराह ७०.२६ ( त्रिदेवों में एकता का प्रतिपादन ), स्कन्द ६.२४७.१० ( विष्णु से एक्य प्रदर्शित करने के लिए शिव द्वारा हरिहर रूप धारण ), हरिवंश २.१२५.२३ ( शिव व विष्णु की एकता का प्रतिपादन )


      एधिति ब्रह्माण्ड १.२.१२.९ ( अथर्वा द्वारा सम्भृत अग्नि )


      एरका ब्रह्म १.१०१ ( यादवों के परस्पर युद्ध में साम्ब से उत्पन्न मूखल के अंशभूत एरका तृण का मुखल में परिवर्तित होना, एरका द्वारा यादवों का विनाश होना ), भागवत ११.१.२२ ( वही), ११.३०.२० ( वही), स्कन्द ७.१.२३७.८४ ( वही) Erakaa


      एरण्डी पद्म ३.१८.४४ ( एरण्डी तीर्थ का माहात्म्य ), ३.२१.३३ (एरण्डी - नर्मदा सङ्गम का संक्षिप्त माहात्म्य ), मत्स्य १९१.४२ ( एरण्डी - नर्मदा सङ्गम के माहात्म्य का वर्णन ), १९३.६५ ( वही), स्कन्द ५.३.१०३ ( एरण्डी सङ्गम का माहात्म्य : अनसूया द्वरा त्रिदेव रूप तीन पुत्रों की प्राप्ति, गोविन्द कृषक की कृमि उपद्रव से मुक्ति ), ५.३.१०३.६८ ( एरण्डी नामक वैष्णवी माया के माहात्म्य का वर्णन ), ५.३.१८५ ( एरण्डी तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.२१७ ( एरण्डी तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य : ब्रह्महत्या पाप से मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण १.५६४.५० ( गया में पितरों का साक्षात्कार न होने पर दुर्वासा द्वारा एरण्ड मुनि के साथ अमरकण्टक तीर्थ में वास, ब्रह्मा का प्रकट होकर पिण्ड स्वीकार करना, ब्रह्मा के कमण्डलु से पतित जल का एरण्ड के मस्तक पर पतन, जल प्रवाह का नर्मदा से सङ्गम ) Erandee


      एला मत्स्य २२.५० ( एलापुर : श्राद्ध हेतु प्रसिद्ध तीर्थों में से एक ), १६३.५६ ( एलामुख : पाताल निवासी एक सर्प, हिरण्यकशिपु के क्रोध से कांपना ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८७ ( इलायची का वृक्ष : देवों का रूप ) Elaa


      एलापत्र ब्रह्माण्ड १.२.२३.९ ( नभ / श्रावण मास में सूर्य रथ व्यूह में उपस्थित एक सर्प ), २.३.७.३४ (कद्रू के प्रधान पुत्रों में से एक ), मत्स्य ६.४० ( वही), १२६.१० ( सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), वायु ५२.१० ( एलापर्ण : सर्प, नभ मास में सूर्य रथ व्यूह में स्थिति ), स्कन्द १.२.६३.६० ( एलापत्र नाग द्वारा पाताल में स्थित शिवलिङ्ग के पूर्व में श्रीपर्वत को जाने वाले मार्ग का निर्माण ), ५.२.१०.८ ( माता कद्रू द्वारा नागों को नष्ट होने का शाप देने पर एलापत्र सर्प का ब्रह्मलोक गमन व ब्रह्मा से नागों की रक्षा का उपाय पूछना, कर्कोटक से साम्य ) Elaapatra


      एषणा लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४ ( तृष्णा यक्षिणी, एषणा राक्षसी, चिन्ता पिशाची )


      ऐ अग्नि ३४८.३ ( योगिनी हेतु ऐ का प्रयोग ), देवीभागवत ३.११.२६ ( ऐं : सारस्वत बीज मन्त्र, उतथ्य मुख से दया भाव से प्रस्फुúटन, उतथ्य का विद्वान् बनना )


      ऐक्ष्वाकी मत्स्य ४४.४५ ( जन्तु - भार्या, सात्वत - माता, क्रोष्टु / यदु वंश ), ४६.१ ( शूर / मीढुष - माता ), ४६.२४ ( अनाधृष्टि - भार्या, शत्रुघ्न / निधूतसत्व - माता ), वायु ९५.४७ पुरूद्वह - भार्या, सत्त्व - माता , क्रोष्टा वंश ) Eikshwaakee, Aikshwaakee


      ऐडूक विष्णुधर्मोत्तर ३.८४ ( ऐडूक की मूर्ति के रूप का कथन )


      ऐतरेय लिङ्ग २.७.२१ ( द्विज के मूक पुत्र ऐतरेय द्वारा वासुदेव मन्त्र के जप से सरस्वती का साक्षात्कार करना ), स्कन्द १.२.४२.२६ ( माण्डूकि व इतरा - पुत्र, स्व अज्ञान से खिन्न होकर विष्णु की आराधना, विष्णु के निर्देश पर हरिमेधा के यज्ञ में गमन, हरिमेधा - पुत्री से विवाह, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ) Aitareya


      ऐनस लक्ष्मीनारायण २.२१६.९२ ( श्री हरि का गतैनस राष्ट्र की कायनी नगरी में आगमन, राजा द्वारा स्वागत - सत्कार, श्री हरि द्वरा लोभ, मोह आदि पापों से मुक्ति का उपदेश ) द्र. पाप


      ऐन्द्र शिव ७.२.३८.३२( ऐन्द्र ऐश्वर्य के अन्तर्गत ४० सिद्धियों के नाम )


      ऐन्द्री अग्नि १४६.१८( ऐन्द्री कुलोत्पन्न देवियों के नाम ), देवीभागवत ५.२८.२३, ५.२८.५३ ( शुम्भ असुर से युद्ध में इन्द्राणी / ऐन्द्री मातृशक्ति का ऐरावत गज पर आरूढ होकर आगमन, असुरों का संहार ), भागवत ९.६.२६ ( युवनाश्व द्वारा पुत्री प्राप्ति हेतु ऐन्द्री इष्टि का आयोजन, अभिमन्त्रित जलपान से मान्धाता के जन्म की कथा ), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.८ ( ऐन्द्री शक्ति के रुक्म वर्ण का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.७२.५९ ( ऐन्द्री देवी द्वारा शरीर में कौर्म प्रदेश की रक्षा ) द्र. इन्द्राणी Eindree/ Aindree


      ऐरक लक्ष्मीनारायण २.३७.४९ ( वराटक दैत्य का सेनानी, कृष्ण प्राप्ति वर की प्राप्ति )


      ऐरण्डी द्र. एरण्डी


      ऐरावण विष्णुधर्मोत्तर १.२५३.९( नागों/हाथियों का अधिपति )


      ऐरावत अग्नि २९१.१९ (ऐरावणसुतः श्रीमानरिष्टो नाम वारणः ।), देवीभागवत ८.१५.२ ( ग्रहों के चारण की वीथि का नाम ), ८.१५.४ ( नक्षत्र वीथि का नाम ), पद्म ४.१०.१ ( समुद्र मन्थन से ऐरावत गज के प्राकट्य का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.२३.३ ( ऐरावत व वासुकि की मधु - माधव मास में सूर्य रथ में स्थिति का उल्लेख ), २.३.७.३२६ ( इरावती से ऐरावत की उत्पत्ति ), भविष्य ३.३.७.२६ ( नकुल - अवतार लक्षण द्वारा शिव से ऐरावती वाहन की प्राप्ति का वर्णन ), ३.४.१७.५१ ( ध्रुव व पूर्व दिशा - पुत्र ),महाभारत भीष्म ६.३७(सुदर्शन द्वीप पर ऐरावत वर्ष के धनुष की कोटि होने का उल्लेख - नीलात्परतरं श्वेतं श्वेताद्धैरण्यकं परम्। वर्षमैरावतं राजन्नानाजनपदावृतम् ।।), ६.५५ ( ऐरावत व भारतवर्षों के शश के पार्श्वद्वय होने का उल्लेख), ८.१०( ऐरावत वर्ष का वर्णन - न तत्र सूर्यस्तपति न जीर्यन्ते च मानवाः । चन्द्रमाश्च सनक्षत्रो ज्योतिर्भूत इवावृतः ।।), अनुशासन १४.२४०(तपोरत उपमन्यु के समक्ष इन्द्र के ऐरावत का शिव के वृषभ में रूपान्तरित होना ), विष्णु १.९.७ ( ऐरावत गज द्वारा इन्द्र को दुर्वासा से प्राप्त दिव्य माला का तिरस्कार, दुर्वासा से शाप प्राप्ति ), १.२२.५ ( ऐरावत के गजों का अधिपति बनने का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर ३.५०.१२ ( ऐरावण : अर्थ का प्रतीक, ऐरावत के दन्त मन्त्र शक्तियों के प्रतीक - अर्थस्त्वैरावणो ज्ञेयो दन्तास्तस्य तु कीर्तिताः । दैवमन्त्रप्रभूत्साहशक्तयस्तु महाबलाः ।। ), स्कन्द १.१.१८.७७ ( इन्द्र पद पर अधिष्ठित बलि द्वारा अगस्त्य को ऐरावत का दान करने का उल्लेख ), १.२.६३.६२ ( पाताल में स्थित शिवलिङ्ग के पश्चिम से प्रभास में जाने हेतु ऐरावत नाग द्वारा मार्ग का निर्धारण), ४.२.६७.१७९ ( ऐरावतेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य - इष्टसिद्धिकृत्), ४.२.९७.१३४ (ऐरावतेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य – धनधान्यसमृद्धि - तत्रैरावतकुंडं च लिंगमैरावतेश्वरम् ।। तल्लिंगमर्चयन्मर्त्यो धनधान्यसमृद्धिभाक् ।।), ५.१.४४.२५ (नारद द्वारा समुद्र मन्थन से उत्पन्न ऐरावत को वासव / इन्द्र को प्रदान करने का उल्लेख ), हरिवंश १.३१.५० ( चम्प - पुत्र हर्यङ्ग के वाहन के लिए ऋष्यशृङ्ग द्वारा ऐरावत का पृथ्वी पर अवतारण ), ( नाग, पृथ्वी का दोग्धा ), २.७३.८८ ( पारिजात हरण प्रसंग में गरुड से युद्ध ), २.९६.५३ ( वज्रनाभ असुरराज की सेना से युद्ध हेतु इन्द्र द्वारा कृष्ण - पुत्र साम्ब को संचालक प्रवर ब्राह्मण सहित ऐरावत प्रदान करना ), वा.रामायण ३.१४.२४ ( इरावती - पुत्र, गज ), ६.४.१५(हनुमान की ऐरावत से उपमा - यास्यामि बलमध्येऽहं बलौघमभिहर्षयन् ।
      अधिरुह्य हनूमन्तमैरावतमिवेश्वरः), लक्ष्मीनारायण १.१०६.४० (इन्द्र व ऐरावत द्वारा दुर्वासा प्रदत्त पारिजात माला का तिरस्कार, विष्णु द्वारा गज के सिर को काटकर गणेश से जोडना ), १.१५३.५०( ऐरावत के कारण ऊर्जयन्त पर्वत से जल स्राव का कथन - तेनाऽऽक्रान्तो गिरिवरस्तोयं सुस्राव निर्मलम् ॥ गजपादोद्भवं वारि जातं तद्वै सदा स्थिरम् ।), २.१४०.३८ ( ऐरावत प्रासाद के लक्षण- अष्टादश तिलभागाश्चतुर्विंशतिसत्तिलः । पञ्चाशीत्यण्डकश्चायमैरावताख्य उच्यते । ), ३.१६.४९ ( ऐरावत की विष्णु के हस्त तल से उत्पत्ति का उल्लेख - विष्णुहस्ततलोत्पन्नं श्वेतवर्णं महागजम् ।। चाऽधिरुह्य देवराजस्तत्र लक्ष्मि! समाययौ । ), कथासरित् १.३.५ ( कनखल तीर्थ में देवदन्ती द्वारा उशीनर पर्वत का भेदन करके गङ्गा का अवतारण कराने का उल्लेख ), १७.२.१४८ ( विद्युद्ध्वज दैत्य द्वारा सेना को नन्दी व ऐरावत/ऐरावण के बन्धन का आदेश, वृष व ऐरावण द्वारा सेना को नष्ट करना) Eiraavata, Airaavata/ airavata

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      ऐरावती मत्स्य ११५.१८+ ( मद्र देश के अधिपति कुरूप पुरूरवा द्वारा मद्र देश की सीमा पर ऐरावती / रावी नदी के दर्शन, नदी की शोभा का वर्णन ), कथासरित् ७.८.५३ (ऐरावती नगरी के राजा परित्यागसेन के पुत्रों इन्दीवरसेन व अनिच्छासेन की कथा ), द्र. इरावती Airaavatee


      ऐल मत्स्य ९६.७ ( रजतमय १६ फलों में मे एक ऐला का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.८३.१०७ ( ऐल शैल तीर्थ का राजा ज्यध्वज से पाप नाश का उपाय पूछना ) Aila


      ऐलविल ब्रह्माण्ड २.३.७.३३१ ( कुबेर का नाम, पद्म नामक गज वाहन ), भविष्य १.१९.२६( ऐलविल द्वारा वित्त देने का उल्लेख ), ३.३.१२.१०१ ( ऐलविली : जम्बुक राजा की कन्या का गुरु, पूर्वजन्म में चित्र नामक दैत्य ) Ailvila


      ऐलविला द्र. इलविला


      ऐश्वर्य गरुड ३.२४.८६(ऐश्वर्य के अधिपति इन्द्र का उल्लेख), ३.२४.८८(अनैश्वर्य के अधिपति रुद्र का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३५.७५ ( क्षत्रिय का लक्ष्य ऐश्वर्य प्राप्ति / क्षत्रिय का धन ऐश्वर्य ), ब्रह्माण्ड १.२.२७.१२५ ( दक्षिण मार्ग से चलने वालों के लिए अणिमा आदि ८ ऐश्वर्य प्राप्ति करके मद, मोह आदि रागों से मुक्त होने का कथन ), ३.४.४४.८५ ( ऐश्वर्यकारिणी : पद्म के दलों में स्थित १६ शक्तियों में से एक ), लिङ्ग १.९ ( योग में प्राप्त आप्य, तैजस, वायव्य आदि ऐश्वर्यों का वर्णन ), वायु १३ ( योग द्वारा प्राप्त अणिमा, लघिमा आदि ऐश्वर्यों के लक्षणों का वर्णन ), १००.६१ ( ऐश्वर्य संग्रह : पार नामक १२ देवों में से एक ), १०२.९७ ( ८ ऐश्वर्यों का ब्रह्मा से लेकर पिशाच तक आठ स्थानिक देवों से तादात्म्य - ब्रह्मादीनि पिशाचान्तान्यष्टौ स्थानानि देवता। ऐश्वर्य्यमणिमाद्यं हि कारणं ह्यष्टलक्षणम् ।।  ), शिव १.१८.४६( ऐश्वर्य के पौरुष तथा अणिमादि सिद्धिदायक होने तथा विषयों के प्राकृत होने का उल्लेख ), ७.२.३८.१९( पार्थिव, आप्य, तैजस, मारुत, ऐन्द्र, चान्द्र, प्राजापत्य, ब्राह्म ऐश्वर्यों के अन्तर्गत सिद्धियों के नाम ), स्कन्द १.२.४५.३५ ( नन्दभद्र वैश्य द्वारा ऐश्वर्य के दोष दर्शन व वास्तविक ऐश्वर्य की परिभाषा करना ), ५.२.३८.२२ ( पार्वती द्वारा शिव से वीरक पुत्र के लिए ऐश्वर्य की मांग करना ), ५.३.५६.१२० ( अभय दान से ऐश्वर्य प्राप्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.९२.७३ ( अनिरुद्ध में सर्जन ऐश्वर्य, प्रद्युम्न में पोषण ऐश्वर्य, संकर्षण में संहार ऐश्वर्य तथा वासुदेव में वसति व दीव्यति ऐश्वर्य होने का उल्लेख) Aishwarya


      ऐषणा लक्ष्मीनारायण २.२२३.४४ ( नरक की ओर ले जाने वाली राक्षसी ऐषणा का उल्लेख )


      ऐहिक शिव ७.२.३२( ऐहिक सिद्धि कर्म का वर्णन )


      ओ अग्नि ३४८.३ ( ब्रह्मा हेतु ओ का प्रयोग )


      ओघवती भागवत ९.२.१८ ( ओघवान - पुत्री, सुदर्शन - भार्या, वैवस्वत मनु वंश ), मत्स्य २२.७१ ( नदी, श्राद्ध कार्य हेतु प्रशस्त स्थानों में से एक ),महाभारत शल्य ६२.३९, वामन ४६.४७ ( ओघवती नदी के परित: शिवलिङ्गों की स्थिति का कथन ), ५७.८३ ( ओघवती द्वारा स्कन्द को गण प्रदान करना ), ६२.४० ( ओघवती तट पर उशना का संजीवनी विद्या प्राप्ति हेतु तप ) Oghavatee


      ओङ्कार अग्नि १२४.८ ( ओङ्कार की अ, उ, म आदि मात्राओं की महिमा, मात्राओं का स्वरों से तादात्म्य ), ३७२.१९ ( ओङ्कार की मात्राओं अ, उ आदि का वर्णन, प्रणव रूपी एकाक्षर मन्त्र के ऋषि, देवता, छन्द आदि का कथन ), कूर्म २.३१.२० ( प्रणव द्वारा शिव का गुणानुकीर्तन ), देवीभागवत ७.३६.६ ( प्रणव रूपी धनुष का माहात्म्य ), नारद १.१२३.१४ ( ओङ्कारेश्वर यात्रा का संक्षिप्त माहात्म्य ), पद्म २.८५.२७ (तीर्थयात्रा प्रसंग में च्यवन ऋषि का ओङ्कारेश्वर तीर्थ में आगमन, कुञ्जल शुक व उसके चार पुत्रों द्वारा वर्णित आश्चर्यों का श्रवण ), ६.२२६.१६ ( ओङ्कार में अ विष्णु, उ श्री तथा म २५ तत्त्वात्मक जीव का रूप ), भविष्य १.४.१४ ( ओङ्कार के अ, उ तथा म रूपी लक्षणों की वेदत्रयी से उत्पत्ति ), १.१७.७७ (ओङ्कार का गायत्री मन्त्र के साथ शरीर में न्यास का कथन ), भागवत १२.६.३७ ( परमेष्ठी ब्रह्मा के नाद से ओङ्कार की उत्पत्ति, माहात्म्य का वर्णन, ओङ्कार की तीन मात्राओं अ, उ आदि द्वारा तीन भावों, तीन गुणों, अर्थों व वृत्तियों को धारण करना ), मत्स्य १३३.३६ ( त्रिपुर ध्वंस हेतु निर्मित शिव के रथ में ओङ्कार प्रतोद / चाबुक का रूप ), मार्कण्डेय ४२ ( ओङ्कार माहात्म्य : अ, उ, म मात्राओं का भू, भुव:, स्व: लोकों से तादात्म्य, प्रणव धनुष, आत्मा शर, ब्रह्म लक्ष्य ), लिङ्ग १.१७.५१ ( अ,उ,म के विभिन्न प्रतीकों त्रिदेव, त्रिवेद, बीज - बीजी आदि का वर्णन ), १.८५.३३ ( ओम नम: शिवाय मन्त्र की व्याख्या ), १.८५.४५ ( शिव के ओङ्कार में अकार, उकार, मकार तथा उमा के प्रणव में क्रमश: उकार, मकार तथा अकार की स्थिति ; ओङ्कार के छन्द, देवता आदि का कथन ), १.९१.४५ ( ओङ्कार माहात्म्य : चार मात्राओं की विद्युती, तामसी, निर्गुणा व गान्धारी संज्ञा, ओङ्कार प्राप्ति के लक्षण का कथन ), वायु ५.३४( ओम् की निरुक्ति : अवनात् ), २०.१ ( ओङ्कार माहात्म्य : वैद्युती, तामसी आदि मात्राओं का वर्णन ), २६.१५ ( सृष्टि के लिए उन्मुख ब्रह्मा के कण्ठ से एक मात्रा, द्विमात्रा व त्रिमात्रा वाले ओंकारों का प्रादुर्भाव ), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.९(ओंकार पुरुष, सावित्री प्रकृति), शिव १.१०.१५ ( शिव द्वारा ब्रह्मा व विष्णु को ओङ्कार के स्वरूप व संक्षिप्त महिमा का कथन ), १.१७ ( प्रणव महिमा का वर्णन, प्रणव के स्थूल व सूक्ष्म भेदों का वर्णन ), २.१.८ ( वर्णमाला रूपी ओङ्कार की शिव की देह में स्थिति का वर्णन ), २.१.११.४५ ( प्रणव की पद्म रूप में कल्पना ), ४.१८.२२ ( ओङ्कारेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग का माहात्म्य : ओङ्कार शिव का विन्ध्याचल पर स्थित होना ), ६.२.२१+ ( पार्वती द्वारा शिव से प्रणव स्वरूप विषयक प्रश्न : प्रणव की उत्पत्ति, उच्चारण, मात्रा, देवता, पांच ब्रह्मों की स्थिति, कला आदि ), ६.३.११ ( प्रणव उद्धार हेतु निवृत्ति आदि कलाओं का उद्धार, प्रणव शब्द की निरुक्ति, अ,उ तथा म का बीज, योनि व बीजी से सम्बन्ध, अकारादि का सद्योजात आदि पांच ब्रह्म रूपी शिव रूपों से तादात्म्य ), ६.११.२२ ( स्कन्द के प्रणव अर्थ, प्रणवाक्षर बीज आदि विशेषण ), ६.१४.४० ( प्रणव की पांच ब्रह्मों में स्थिति का कथन ), ६.१६.५९ ( प्रणव की ५ कलाओं की ईशान आदि शिव से उत्पत्ति का कथन ), ६.१७.१९ ( आत्मतत्त्व अकार, विद्या उकार तथा शिव तत्त्व मकार होने का कथन ; देवताओं का कथन ), ७.२.६.२८ ( ओङ्कार में अ, उ, म का तत्त्वार्थ ), ७.२.३५.१ ( ओङ्कार में अ, उ, म व नाद का क्रमश: ऋक्, यजु, साम व अथर्व से तादात्म्य का कथन ), स्कन्द १.१.७.३१( नर्मदा में ओङ्कारेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख ), १.२.५.६८ ( ओङ्कार की अ, उ आदि मात्राओं के देवता : कौथुम के जड पुत्र द्वारा वर्णित ओङ्कार का माहात्म्य ), ४.१.३१.३१ ( प्रणव द्वारा ब्रह्मा व क्रतु के समक्ष शिव महिमा का कथन ), ४.१.३३.१६८ ( ओङ्कारेश : शिव शरीर में शिखा का रूप ), ४.२.७३.७६ (ब्रह्मा द्वारा समाधि से व्युत्थान पर ओङ्कारेश्वर लिङ्ग के दर्शन व स्तुति ), ४.२.७४.७४ ( ओङ्कारेश्वर माहात्म्य : माधवी द्वारा ओङ्कारेश्वर लिङ्ग की पूजा व लिङ्ग में लीन होना ), ४.२.७९.९४ ( ओङ्कारेश्वर शिव की प्रात: सन्ध्या का स्थान ), ४.२.८८.६२ ( दक्ष यज्ञ में गमन हेतु सती के रथ में प्रणव का सारथी ), ५.१.३७.१ ( अन्धक का त्रिशूल से भेदन होने पर ओङ्कार ध्वनि / ओङ्कार शिव का उत्पन्न होना ), ५.२.५२ ( ओङ्कारेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : शिव से निर्गत ओङ्कार द्वारा देव आदि की सृष्टि, ओङ्कार द्वारा परम स्थान प्राप्ति हेतु ओङ्कारेश्वर लिङ्ग की आराधना ), ५.३.२८.१४ ( बाण के त्रिपुर नाश हेतु शिव रथ में ओंकार का वेद रूपी हयों के लिए प्रतोद / चाबुक बनने का उल्लेख ), ५.३.८५.१४ ( ओंकार क्षेत्र में रेवा की दुर्लभता का उल्लेख ), महाभारत शान्ति ३४७.५१(हयग्रीव के संस्कार के रूप में ओंकार का उल्लेख), आश्वमेधिक २६.८( ओङ्कार अक्षर से सर्पों में दंशन भाव, असुरों में दम्भ भाव, देवों में दान भाव, महर्षियों में दम भाव का प्रादुर्भाव), लक्ष्मीनारायण १.५६१.१२३ ( इन्द्रद्युम्न राजा के अनुरोध पर कृष्ण का ओङ्कार नाथ की सन्निधि में स्थित होना ), २.१७४.१ ( क्रथक राजा की राजधानी ओङ्कारेष्टि में बालकृष्ण का आगमन ), ३.७०.२७( ओङ्कार के अ, उ, म की विभिन्न रूपों में व्याख्या ), ४.१०१.१०२ ( कृष्ण व आर्षी - पुत्र ), कथासरित् १८.५.६२ ( ओङ्कार पीठ का उल्लेख ) द्र. उकार , प्रणव Omkaara/ onkara

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      ओज अग्नि ३४६.१० ( काव्य गुणों के अन्तर्गत ओज के ही सारे जगत में पौरुष होने का उल्लेख ), ३४९.४१ ( ओज के शुक्र - वीर्य कर होने का उल्लेख ; ओज के शुक्र से सारतर होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.७३ ( ओजिष्ठ : पृथुक नामक देवगण में से एक ), भविष्य १.१२५.२५ ( ओजस्वी : १४ इन्द्रों में से वर्तमान सातवें इन्द्र का नाम ), भागवत २.३.८ ( ओजस्कामी के लिए मरुतों की आराधना का निर्देश ), २.६.४४ ( लोक में महस्वत्, ओज, सहस्वत्, बलवत्, क्षमावत् आदि परं तत्त्व के रूप होने का उल्लेख ), २.१०.१५ ( विराट् पुरुष के शरीर के आकाश से ओज, सह, बल, प्राण के उत्पन्न होने का उल्लेख ), ३.१५.१० ( काश्यप के ओज से दिति के गर्भ की वृद्धि होने का उल्लेख ), ३.२८.२४ ( सुपर्ण पर आरूढ भगवान की ऊरुओं के ओज निधि होने का उल्लेख ), ६.१२.९ ( ओज, सह, बल, प्राण आदि में काल के ही कारण होने का कथन ), ७.८.९ ( काल के ही ओज, सह, सत्त्व, बल आदि होने का उल्लेख ), ८.६.३३ ( देवों व असुरों द्वारा समुद्र मन्थन के लिए मन्दर गिरि को ओज द्वारा उखाडने का उल्लेख ), ८.१५.२७ ( इन्द्र द्वारा बलि में ओज, सह, बल, तेज के उद्भव का कारण पूछना ), १०.८५.८ ( ओज, सह, बल आदि ईश्वर के स्वरूप होने का उल्लेख ), ११.८.४ ( देह में ओज, सह, बल होते हुए भी अजगर की भांति निश्चेष्ट रहने का निर्देश ), ११.१६.३२ ( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के बलवानों में ओज व सह होने का उल्लेख ), १२.११.१४ ( भगवान की गदा के ओज, सह, बल युक्त मुख्य तत्त्व प्राण? होने का उल्लेख ), मत्स्य ३२.७ ( ओजसा तेजसा - - - -), योगवासिष्ठ ६.२.१३७.२५ ( ओज व तेज में जीव की विशेष रूप से स्थिति का कथन ; जन्तु के हृदय में प्रवेश करके तेज व ओज धातुओं में प्रवेश व उन धातुओं की विशिष्टता ), ६.२.१३८.२ ( ओज धातु को त्यागने पर समस्त इन्द्रिय संविद का बहिर्मुखी होने का उल्लेख ), ६.२.१४५.२३ ( पित्त रस द्वारा जीव की अन्त:पूर्ति होने पर अणुमात्रात्मक ओज को जानने का उल्लेख ), ६.२.१४५.३४ ( देह के रसों से रिक्त होने व जीव के वायु से पूर्ण होने पर अणुमात्रात्मक ओज को जानने का उल्लेख ), वामन ४१.६ ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत ओजस तीर्थ का माहात्म्य : कार्तिकेय के अभिषेक का स्थान, ओजस तीर्थ में श्राद्ध का महत्व ), ९०.१७ ( ओजस तीर्थ में विष्णु का शम्भु व अनघ नाम से वास ), विष्णु ४.१४.९( ओजवाह : श्वफल्क के पुत्रों में से एक ), स्कन्द ७.३.५९ ( महौजस तीर्थ का माहात्म्य : इन्द्र को तेज की प्राप्ति ), महाभारत वन ४१.३८ ( कुबेर द्वारा अर्जुन को प्रदत्त अन्तर्धान अस्त्र के ओज, तेज व द्युतिकर / द्युतिहर होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.१६१.७ ( ओजस्वती नदी के इडा का रूप होने का उल्लेख ), ३.१६.५० ( रुद्र ओज से उत्पन्न पौण्ड्रक महिष के यम का वाहन होने का उल्लेख ), ३.३५.५८ ( ओजस्वती तट पर बृहद्धर्म नृप के राजसूय यज्ञ का वृत्तान्त ), ४.३१.१ ( ओजस्वती तट पर कालञ्जर ग्राम में गङ्गाञ्जनी कटकर्त्री द्वारा हरि भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति ) Oja

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      ओढ्र स्कन्द २.२.११.११८ ( उत्कल देश का नाम ; इन्द्रद्युम्न राजा के ओढ्र नरेश से मिलन का वर्णन )


      ओण्ड ब्रह्म १.२६.१ ( ओण्ड देश का माहात्म्य : कोणादित्य का स्थान )


      ओदन गरुड १.१३०.६ ( अनोदन सप्तमी व्रत - भक्ष्यं चोष्यं तथा लेह्यं ओदनं चेति कीर्तितम् ॥

      धनपुत्रादिकामस्तु त्यजेदेतदनोदनः ), भविष्य १.५७.२०( विश्वेदेवों हेतु ओदन बलि का उल्लेख ), मत्स्य ५१.८ ( ब्रह्मोदन अग्नि : भरत अग्नि का नाम ), ९३.१९ ( नवग्रहों के लिए विशिष्ट ओदन ), स्कन्द १.२.१३.१६६ ( शतरुद्रिय प्रसंग में तार्क्ष्य द्वारा ओदन लिङ्ग की हर्यक्ष नाम से आराधना ), लक्ष्मीनारायण २.१६०.७१ ( वरुण के लिए नवनीत ओदन व वायु के लिए यवौदन की बलि ), द्र. शुद्धोदन Odana



      ओषधि अग्नि १०० ( द्वार प्रतिष्ठा हेतु प्रयोज्य ओषधि ), १२३.२६ ( तिलक हेतु प्रशस्त औषधियां ), १२५.४३ ( ओषधि धारण से रक्षा का कथन ), १४० ( वशीकरण आदि के हेतु १६ औषधियों के योगों का वर्णन ), १४१( छत्तीस कोष्ठों में विभाजन और गुण ), १४२ ( मन्त्रौषध चक्र का वर्णन ), १४९.१३ ( कोटि होम में प्रयुक्त औषधि योग का कथन ), २२२.७ ( विषहारक ओषधि वर्ग का कथन ), २६५.५ ( स्नान कर्म में प्रयुक्त उद्वर्तन / उबटन निर्माण हेतु ओषधि योग का कथन ), २६५.१४ ( कुम्भ में निक्षेप हेतु ओषधि योग का कथन ), २७९+ ( रोग निवारण हेतु ओषधि वर्णन ), २८३ ( रोग नाश हेतु ओषधि योग का वर्णन ), २८४ ( मन्त्र रूप ओषधि का कथन ), २८५ ( मृत संजीवन कारक सिद्ध ओषधि योग ), २८६ ( मृत्युञ्जय योगों का वर्णन ), २९७ ( सर्प विष हारक मन्त्र ओषधि योग का वर्णन ), ३०२ ( स्त्री वशीकरण, पुत्र प्राप्ति, केश क्षरण रोध आदि के लिए ओषधि योग ), ३६३.१४ ( फलपाकान्त ओषधि, फल व पुष्प सहित वानस्पत्य तथा बिना पुष्प फलने वाली वनस्पति होने का उल्लेख ), ३६३.१५ ( पर्यायवाची शब्द वर्ग का कथन ), गरुड १.१६९ ( आयुर्वेदानुसार गुण ), १.२०२ ( स्त्रीरोगों में विभिन्न ओषधियों का उपयोग ), गर्ग १.५.९ ( श्री हरि से वर प्राप्ति, वृन्दावन में लता रूपी गोपियां बनना ), देवीभागवत ७.३०.८० ( उत्तर कुरु प्रदेश में स्थित देवी का नाम ), ११.२४.२७ ( ओषधि होम से रोग शान्ति का वर्णन ), नारद १.७४.२२ ( हनुमन्मन्त्र से अभिमन्त्रित ओषध या जल के सेवन से रोग से मुक्ति का उल्लेख ), पद्म १.३.१०७ ( ब्रह्मा के रोमों से फल- मूलिनी ओषधियों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), १.३.१४५ ( १७ ग्राम्य व १४ आरण्यक औषधियों के नाम ), १.८.२६ ( गिरियों द्वारा मेरु को दोग्धा व हिमवान को वत्स बनाकर पृथिवी रूपी गौ से रत्न व दिव्य औषधियों के दोहन का उल्लेख ), १.४०.८६ ( सुरभि गौ से प्रवर ओषधियों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), ६.७.४२ ( जालन्धर - देव युद्ध में बृहस्पति द्वारा द्रोण गिरि से ओषधियां लाकर देवों को जीवित करना , जालन्धर द्वारा द्रोणगिरि को क्षीरसागर में डुबाना ),ब्रह्म १.६६.४२ ( धान्य के समस्त ओषधियों में उत्तम होने का उल्लेख ), २.३.११ ( शिव - पार्वती विवाह में ओषधियों द्वारा अन्न कर्म सम्पन्न करना ), २.४९.२ ( औषधियों द्वारा गङ्गा की स्तुति, सोम की पति रूप में प्राप्ति ), २.५०.१ ( धान्य तीर्थ के माहात्म्य के अन्तर्गत ओषधियों व सोम के वार्तालाप का वर्णन ; ओषधियों को गङ्गा में व विप्रों को देने के फल का कथन ), २.७१.१३ ( कपिला सङ्गम तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में पृथु द्वारा मही / पृथिवी को ओषधी देने के लिए बाध्य करना ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२.७३.८३ ( नारायण के ओषधियों में दूर्वा व तृणों में कुश होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.७.१९ ( ब्रह्मा द्वारा ओषधियों से स्वयं / आत्मन को तथा आत्मन से वृक्ष - वीरुधों को उत्पन्न ? करने का उल्लेख ), १.२.७.१२२ ( त्रेतायुग के आरम्भ में उत्पन्न कल्पवृक्षों के नष्ट होने पर वृष्टि बिन्दुओं के पृथिवी से मिलने पर अकृष्टपच्या १४ ग्राम्य व आरण्यक ओषधियों के उत्पन्न होने का वर्णन ), १.२.७.१३८ ( त्रेतायुग के आरम्भ में १४ ग्राम्य व आरण्यक ओषधियों के नष्ट होने पर ब्रह्मा द्वारा सुमेरु को वत्स बनाकर पृथिवी रूपी गो का दोहन करके १७ ग्राम्य व १४ आरण्यक ओषधियों के बीज प्राप्त करना ), १.२.७.१४२ (ग्राम्य व आरण्यक ओषधियों के नाम ), १.२.७.१५२ ( ओषधियों का पुन: वर्धन न होने पर स्वयंभू ब्रह्मा द्वारा कृष्टपच्या ओषधियों को हस्तसिद्धि द्वारा उत्पन्न करना ), १.२.९.२ ( त्र्यम्बक रुद्र की निरुक्ति के संदर्भ में ओषधि क्षय होने पर त्र्यम्बक द्वारा तीन कपालों द्वारा ओषधि फल प्राप्त करने ? का उल्लेख ), १.२.१०.६५ ( अमावास्या को ओषधि में सूर्य व चन्द्र के एक साथ आने का उल्लेख ), १.२.१३.१४३ (त्र्यम्बक रुद्र की निरुक्ति के संदर्भ में ओषधि क्षय होने पर त्र्यम्बक द्वारा तीन कपालों द्वारा ओषधि फल प्राप्त करने ? का उल्लेख), १.२.२४.४३ ( सूर्य द्वारा ओषधियों में बल व पितरों/वनस्पतियों में स्वधा प्रदान करने का उल्लेख ), ३.४.९.५० ( विष्णु द्वारा देवों को ओषधि - प्रवरों को क्षीरसागर में डालकर मन्थन करने का निर्देश ), ३.४.३०.९६ ( शिव द्वारा पार्वती से विवाह के पश्चात् ओषधिप्रस्थ नगर में श्वसुर के गृह में वास ), भविष्य १.५६.२२ ( नवग्रह होम हेतु विशिष्ट औषधियों की समिधाएं ), ४.१६४.१४ ( वसुधा दान से क्षीर संपन्न ओषधियों आदि की प्राप्ति ), भागवत ३.२६.६५ ( ओषधियों द्वारा विराट पुरुष के रोमों द्वारा त्वचा में प्रवेश करने पर भी विराट पुरुष का उत्थान न होने का कथन ), ११.१६.२१ ( विभूति योग के अन्तर्गत कृष्ण के ओषधियों में यव तथा वनस्पतियों में अश्वत्थ होने का उल्लेख ), मत्स्य १०.२६ ( गिरियों द्वारा वसुधा दोहन के संदर्भ में ओषधि आदि के दोहन में मेरु दोग्धा, हिमवान वत्स आदि का उल्लेख ), १३.५० ( पार्वती देवी का उत्तरकुरु में ओषधि नाम से वास का उल्लेख ), १७१.४२ ( सुरभि गौ व ब्रह्मा से प्रवर ओषधियों के समुत्थान का उल्लेख ), २१७.३८+ ( दुर्ग में संग्रहणीय औषधियों के नाम ), २४३.२ ( राजा के गमन पर अयुक्त ओषधियों के दर्शन के अशुभ होने का उल्लेख ), २४३.१८ ( राजा के गमन पर ओषधियों, यवों, सिद्धार्थ आदि के शुभ होने का उल्लेख ), मार्कण्डेय ४९.५८ ( कल्पवृक्षों के नष्ट होने पर वृष्टि से बिना बोए हुए औषधियों का उत्पन्न होना, पृथ्वी द्वारा सर्व औषधियों को ग्रास बना लेने पर पृथ्वी के दोहन से औषधियों की सृष्टि, परवर्ती काल में कृषि द्वारा औषधियों की उत्पत्ति ), लिङ्ग १.५९.४१ ( सूर्य द्वारा ओषधियों में बल रखने का उल्लेख ), १.७०.२३९ ( ब्रह्मा के रोमों से फल मूलिनी ओषधियों की सृष्टि का उल्लेख ), वामन ७५.३४( ओषधियों आदि में महानील निधि की स्थिति का उल्लेख ), ९०.८ ( ओषध पर्वत पर विष्णु का विष्णु नाम से वास ), वायु ८.१४८ ( ग्राम्य व आरण्यक औषधि नाम, पृथ्वी / गौ दोहन से उत्पत्ति ), ९.४५ /१.९.४१ ( ब्रह्मा के रोम से फलमूलिनी ओषधियों की उत्पत्ति का उल्लेख ), विष्णु १.५.५० ( वही), १.६.२१ ( १७ग्राम्य व १४ ग्राम्यारण्यक औषधियों के नाम ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७.४७ ( फलपाकान्त तथा बहुपुष्प व फल वाली का ओषधि नाम, अपुष्प फलवान का वनस्पति तथा पुष्प व फलों से युक्त वृक्षों का उभयगुणी होना ), १.१०९.४३ ( शैलों द्वारा शिलामय पात्र में हिमवान को वत्स बनाकर वसुधा से ओषधियों के दोहन का कथन, वृक्षों द्वारा पलाशपात्र में ), १.२४९.४ ( पितामह द्वारा सोम को ओषधियों, द्विजातियों आदि के राज्य पर अभिषिक्त करने का उल्लेख ), २.२७ ( विष निवारक औषधियों के नाम ), २.४२.२१ ( गौ को ओषध देने से विरोगी होने, विपत्ति, पातक, बन्धन आदि से मुक्ति का उल्लेख ), २.५६ ( रोग निवारक ओषधि - योगों का वर्णन ), २.१२५.७४ ( कृषि कर्मों में ओषधी: प्रतिमोदध्वं इत्यादि मन्त्र के जपने से सिद्धि प्राप्त होने का कथन ), २.१२५.७६ ( ओषधी इति मातरः मन्त्र जप के साथ अपामार्ग, यव, धान्य होम से गोकाम, अश्व काम होने का उल्लेख ), २.१२५.७७ ( ओषधीः समजन्तेति मन्त्र से आज्य होम करने से यातुधान भय से मुक्ति का उल्लेख, अन्य मन्त्र भी ), ३.११९.८ ( ओषधि कर्मारम्भ में कूर्म अथवा स्त्रीरूप की पूजा का उल्लेख ), ३.२५२.२७ ( ओषधियों, पशुओं आदि के यज्ञार्थ निधन को प्राप्त होने पर उनके पुन: प्ररोहण का उल्लेख ), ३.२६२.२ ( पशुओं, ओषधियों, पुरुषों की स्वयंभू द्वारा यज्ञार्थ सृष्टि करने का उल्लेख ), ३.३२१.१३ ( ओषधि दान से नासत्य लोक की प्राप्ति ), स्कन्द २.९.१०.३७ (( विष्णु द्वारा देवों को सभी ओषधियां समुद्र में डालकर समुद्र मन्थन करने का निर्देश ), ३.१.३६.८४ ( भाद्रपद कृष्ण दशमी को महालय श्राद्ध कर ओषधि - पति चन्द्रमा को व्रीहि आदि ओषधि देने का निर्देश ; ऐसा न करने पर उसकी ओषधियां तथा कृषि निष्फल होने का उल्लेख ), ४.१.१४.२३(सोम के पतित तेज से ओषधियों की उत्पत्ति), ४.१.२४.१५ ( काशी में ओषधि में ही कुष्ठ के विद्यमान होने तथा मनुष्यों के कुष्ठरहित होने का उल्लेख , ५.१.२८.७२ ( सोम के पतित तेज से ओषधियों के जन्म का कथन ), ५.१.५२.४३ ( वराह विष्णु के तनु के बीज - ओषधि वाले होने का उल्लेख ), ५.३.१५५.१२ ( सब ओषधियों में अनशन? की प्रधानता का उल्लेख ), ५.३.१९८.८७ ( उत्तरकुरु देश में उमा की ओषधी नाम से स्थिति का उल्लेख ), ६.१.४६ ( सस्य के ओषधियों का अधिपति होने का उल्लेख ), ६.६३.५ ( ओषधियों के पति चन्द्रमा के भी क्षय रोग से पीडित होने के कारण का वर्णन करते हुए दक्ष - कन्याओं की कथा ), ७.१.२०.६० ( सोम के पृथ्वी पर पतित तेज से औषधियों की उत्पत्ति की कथा ; ओषधियों के फलपाक से उत्पन्न १७ कणों के नाम; ७ ग्राम्य व ७ आरण्यक ओषधियों के नाम ), हरिवंश १.६.४०( शैलों द्वारा पृथिवी से शैलपात्र में ओषधि व रत्न रूपी दुग्ध का दोहन, वीरुधों द्वारा पलाशपात्र में ), १.२५.१६ ( ब्रह्मा द्वारा पृथिवी पर पतित सोम को रथ में धारण कर पृथिवी की २१ परिक्रमाएं करना , परिक्रमा के कारण सोम के पतित तेज से ओषधियों की उत्पत्ति ), वा.रामायण २.२५.३८ ( राम के वन गमन के समय कौसल्या द्वारा विशल्यकरणी ओषधि को राम की रक्षा के लिए हाथ पर बांधना ), २.९४.२१ ( राम द्वारा सीता को चित्रकूट पर्वत पर उत्पन्न स्वप्रभालक्ष्मी वाली भ्राजमान ओषधियों को दिखाना ), ४.३७.३१ ( वानरों द्वारा पूर्वकाल में शिव के यज्ञस्थल पर उत्पन्न दिव्य ओषधियों को ग्रहण करके सुग्रीव को भेंट करना ), ६.५०.३० ( मूर्च्छित लक्ष्मण के लिए द्रोण व चन्द्र पर्वत से विशल्यकरणी आदि ओषधियां लाने का उद्योग, गरुड के आगमन से पाश रूपी नागों का पलायन तथा राम - लक्ष्मण के व्रणों का भरना आदि ), ६.१०१.३१ ( मूर्च्छित लक्ष्मण के लिए महोदय पर्वत से विशल्यकरणी व संजीवकरणी ओषधि लाने का उद्योग, हनुमान द्वारा पर्वत शिखर को ही ले आना ), लक्ष्मीनारायण १.४५.२४ ( विभिन्न अमृतकलाओं वाली औषधियों की प्रार्थना पर ब्रह्मा द्वारा चन्द्रमा को १६ कलाओं वाला बनाना ), १.४७.६४ ( पृथ्वी से कल्पवृक्ष के नष्ट होने पर पृथ्वी पर अकृष्टपच्या ओषधियों के प्रकट होने, उसके पश्चात् दोहन व कृषि द्वारा औषधियां प्राप्त करने का वृत्तान्त ), कथासरित् ८.३.१८८(प्रभास द्वारा सूर्यप्रभ हेतु चन्द्रपाद गिरि से ओषधियां ग्रहण करने का वृत्तान्त), १०.८.१४ ( ओषध मूर्ख की कथा : बस्ति कर्म में प्रयोज्य ओषधि का मुख से सेवन करना ) महाभारत आदि २२६.३३ ( खाण्डव दाह के संदर्भ में अर्जुन व देवताओं के युद्ध में अश्विनौ द्वारा दीप्यमान ओषधियों को शस्त्र के रूप में ग्रहण करने का उल्लेख ), वन ३.८ ( स्वयोनि में स्थित सूर्य के चन्द्रमा के तेज से अभिषिक्त होने पर ६ रसों से युक्त ओषधियों के उत्पन्न होने का उल्लेख ), ६१.२९ ( नल - दमयन्ती आख्यान के संदर्भ में सब दुःखों में भार्या के अप्रतिम ओषध होने का उल्लेख ), भीष्म ८१.११ ( भीष्म द्वारा प्रदत्त विशल्यकरणी ओषधि से दुर्योधन के शल्यरहित होने का उल्लेख ), कर्ण ३४.२६ ( शिव के रथ में ओषधियों व वीरुधों के घण्टा बनने का उल्लेख ), शल्य ३५.६४(२१) ( दक्ष के शाप से चन्द्रमा के यक्ष्मा - ग्रस्त हो जाने पर ओषधि, वीरुध आदि का भी क्षय हो जाने का कथन ), सौप्तिक १७.२५ ( शिव द्वारा तप से प्राप्त अन्न का ओषधियों द्वारा परिवर्तन करने का उल्लेख ), शान्ति ११३.११( वायु और जल के वेग से नमित हो जाने वाली ओषधियों आदि का पराभव न होने का कथन ), १२२.४५(७३) ( ब्रह्म - पुत्र व्यवसाय, व्यवसाय - पुत्र तेज, तेज से ओषधियों , ओषधियों से पर्वत आदि आदि द्वारा उत्पन्न होकर लोकरक्षा हेतु जाग्रत रहने का कथन ), २०६.५(१७) ( एकरसा भूमि में बीज अनुसार ओषधि रस उत्पन्न होने के समान अन्तरात्मा में कर्मानुगा बुद्धि की स्थिति का कथन - यथा ह्येकरसा भूमिरोषध्यर्थानुसारिणी।तथा कर्मानुगा बुद्धिरन्तरात्माऽनुदर्शिनी।। ), २६३.३३ ( जाजलि - तुलाधार आख्यान में योग द्वारा गौ /पृथ्वी को स्वाभाविक रूप में प्राप्त कर लेने पर ही ओषधियों से यज्ञ होना संभव होने का उल्लेख ), २६८.२५ ( यज्ञ के १२ अङ्गों की गणना में ओषधि अङ्ग का उल्लेख ), अनुशासन ९८.२३( ओषधियों के उग्रा, सौम्या आदि प्रकार ), ९८.३० ( अथर्ववेद के अनुसार शत्रु अभिचार, भूत - प्रिय, मनुष्य - प्रिय आदि ओषधियों के लक्षणों का कथन ), आश्वमेधिक ४४.९ ( ओषधियों में यव के श्रेष्ठ होने का उल्लेख ), सुश्रुत संहिता चिकित्सा ३०.९(विभिन्न दिव्य ओषधियों का स्वरूप), Oshadhi

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      ओष्ठ देवीभागवत ५.८.६९( देवी के अधर व उत्तरोष्ठों की क्रमश: अरुण व कार्तिकेय के तेजों से उत्पत्ति का उल्लेख ), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३५ ( सौम्य ओष्ठ - द्वय प्राप्ति के लिए लक्ष बन्धूक पुष्प दान का निर्देश ), ३.४.३८( ओष्ठ रूप हेतु रत्नपाश दान का निर्देश ), भागवत ३.१२.२६( ब्रह्मा के अधरोष्ठ से लोभ की उत्पत्ति का उल्लेख ),महाभारत शान्ति ३४७.५२(हयग्रीव के ओष्ठों के रूप में गोलोक व ब्रह्मलोक का उल्लेख), मत्स्य २४८.७३(यज्ञवराह के उपाकर्मोष्ठ रुचक होने का उल्लेख), स्कन्द १.२.६२.३२( लम्बोष्ठ : क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ), ५.३.३९.२८ ( कपिला गौ के ओष्ठों में धाता - विधाता की स्थिति का उल्लेख ), ५.३.१९३.२७ (अप्सराओं द्वारा नारायण के ओष्ठों में समस्त क्रतुओं के दर्शन करने का उल्लेख ), हरिवंश २.८०.२१ (ओष्ठों को सुन्दर करने की विधि का कथन ), ३.७१.५५ ( वामन के विराट रूप में ओष्ठों में मखों के स्थित होने का उल्लेख ) Oshtha



      औ अग्नि ३४८.३ ( महेश्वर हेतु औ का प्रयोग ), कालिका ५६.७६(शूद्र के सेतु के रूप में प्रणव के औं रूप का उल्लेख)


      औदुम्बरी स्कन्द २.४.९.३९ ( औदुम्बर : यम के १४ नामों में से एक ), ६.१८८.८ (औदुम्बरी : छन्दोग ब्राह्मण देवशर्मा व सत्यभामा - पुत्री, ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन, उद्गाता से संवाद, मोक्ष, पूर्व जन्म में पर्वत ऋषि की पुत्री ), द्र. उदुम्बर Audumbaree, Oudumbaree



      और्व गरुड ३.१८.२९(और्व शब्द की निरुक्ति : सद को उर्वरित करने वाला - उरू रुद्रो ह्यतः प्रोक्तस्तत्पुत्रश्चौर्वसंज्ञकः । रुदमुर्वरितं कर्तुमौर्वोभूद्रुद्र एव सः ॥), ३.१८.५६(अतस्तूरुर्नाम संप्राप्य रुद्रस्तत्पुत्रोभूद्दौर्वसंज्ञः स एव ॥ यस्माद्रुदं चोर्वरितं वै चकार तस्मात्स रुद्रस्त्वौर्वसंज्ञो बभूव ।), ३.१८.७०(सती के हिमाद्रि व मेनका-पुत्री बनने पर रुद्र द्वारा और्व संज्ञा प्राप्ति का कथन - जज्ञे पुनर्मेनकायां हिमाद्रेस्तदा रुद्रस्त्वौर्वसंज्ञामवाप । ऊर्ध्वरेता भवेत्युक्त्वा ऊर्ध्वरेता बभूव ह ॥), नारद १.७+ ( और्व द्वारा बाहु राजा की गर्भवती पत्नी की रक्षा व सगर के पालन की कथा ), पद्म १.८.१४५ ( सगर की भार्याओं प्रभा व भानुमती द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु और्व अग्नि की उपासना, षष्टि सहस्र व एक पुत्र प्राप्ति का वर प्राप्त करना ), १.४१.६६ ( देवासुर सङ्ग्राम में मय द्वारा शक्र के विरुद्ध और्वी माया का प्रयोग, ऊर्व ऋषि द्वारा वंश वृद्धि हेतु और्व पुत्र उत्पन करने व और्व के बडवानल मुख में स्थित होने का वृत्तान्त ; हिरण्यकशिपु द्वारा और्वी माया की प्राप्ति - तथाऽसृजन्महामायां मयस्तां तामसीं दहन्
      युगांतोद्योतजननीं सृष्टा मौर्वेण वह्निना॥), ६.२०.११ ( सुबाहु राजा का शत्रुओं से पराजित होकर भार्गव आश्रम में शरण लेना, और्व / भार्गव द्वारा सुबाहु - पुत्र सगर का पालन आदि ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२४.४+ ( और्व मुनि की जानु से कन्दली कन्या की उत्पत्ति, और्व द्वारा कन्या का दुर्वासा से विवाह, दुर्वासा द्वारा कटुभाषिणी कन्दली को भस्म करने पर और्व द्वारा दुर्वासा को पराभव का शाप ), ब्रह्माण्ड २.३.१.९५( अप्रवान व ऋची - पुत्र, माता की ऊरु का भेदन करके उत्पन्न होने का उल्लेख - ऋची पत्नी महाभागा अप्रवानस्य नाहुषी ॥ तस्यामौर्व ऋषिर्जज्ञे ऊरुं भित्त्वा महायशाः ।), २.३.४७.८३ ( और्व द्वारा बाहु राजा की गर्भवती पत्नी की रक्षा व सगर के पालन का प्रसंग ), २.३.५०.२९+ ( सगर द्वारा और्व की कृपा से पुत्रों की प्राप्ति का वृत्तान्त ), २.३.६३.१२२ ( सगर द्वारा भार्गव/और्व से आग्नेयास्त्र की प्राप्ति - भृगोराश्रममासाद्य ह्यौर्वैण परिरक्षितः । अग्नेयमस्त्रं लब्ध्वा तु भार्गवात्सगरो नृपः ॥  ), भविष्य ३.४.१२.५९ ( ब्राह्मणी की ऊरु से उत्पन्न तेज का नाम, तेज का क्षत्रशर्मा रूप में अवतरण ), भागवत ९.८.३ ( और्व द्वारा बाहु राजा की पत्नियों की रक्षा, सगर का पालन ), ९.८.३१ ( सगर द्वारा और्व के उपदिष्ट मार्ग से उत्तम गति प्राप्त करना - राज्यं अंशुमते न्यस्य निःस्पृहो मुक्तबन्धनः ।  और्वोपदिष्टमार्गेण लेभे गतिमनुत्तमाम् ॥ ), मत्स्य १७५.५० ( ऊर्व ऋषि द्वारा वंश वृद्धि हेतु और्व पुत्र को उत्पन्न करने का वर्णन, और्व द्वारा भोजन हेतु समुद्र में बडवा अग्नि के मुख में स्थित होना, और्व द्वारा सृष्ट और्वी माया की हिरण्यकशिपु द्वारा प्राप्ति ), मार्कण्डेय १२६.२०+ ( और्वाश्रम में सर्पों के उपद्रव पर मरुत्त राजा द्वारा संवर्तक अस्त्र से नागों को त्रस्त करना, मरुत्त - माता द्वारा सर्पों की रक्षा का उद्योग ), वराह १४७.५( शिव द्वारा और्व आश्रम को जलाना, शाप प्राप्ति, सुरभि दुग्ध से शान्ति ), वायु ६५.९२/ २.४.९२( आत्मवान् - पत्नी रुचि की ऊरु से और्व की उत्पत्ति, ऋचीक - पिता - रुची पत्नी महाभागा आत्मवानस्य नाहुषी ।।तस्य ऊर्वोऋषिर्जज्ञे ऊरू भित्त्वा महायशाः ।), विष्णु ३.८.३( और्व द्वारा सगर को विष्णु आराधना विधि का वर्णन ), ४.३.२९( और्व द्वारा मृत राजा बाहु की भार्याओं की रक्षा व सगर के पालन का वर्णन ), शिव ४.२९.१२ ( पृथिवी पर प्राणियों की रक्षा हेतु और्व द्वारा राक्षसों को पृथिवी पर शाप का कथन, राक्षसों का जल में जाना - पृथिव्यां यदि रक्षांसि हिंस्युर्वै प्राणिनस्तदा । स्वयं प्राणैर्वियुज्येयू राक्षसा बलवत्तराः ।। ), स्कन्द ५.३.८५.१४ ( और्व सङ्गम पर रेवा की दुर्लभता का उल्लेख - सर्वत्र सुलभा रेवा त्रिषु स्थानेषु दुर्लभा । ओङ्कारेऽथ भृगुक्षेत्रे तथा चैवौर्वसंगमे ॥), हरिवंश १.१३.३२+ ( और्व ऋषि द्वारा बाहु - पुत्र सगर के पालन की कथा ), १.२७.४१ ( ऋचीक का दूसरा नाम - और्वस्यैवमृचीकस्य सत्यवत्यां महायशाः । जमदग्निस्तपोवीर्याज्जज्ञे ब्रह्मविदां वरः ।। ), १.४५ ( अग्नि, ऊर्व मुनि के तप से उत्पत्ति, हिरण्यकशिपु द्वारा प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.४७५+ ( और्व - कन्या कन्दली को भस्म करने पर और्व द्वारा दुर्वासा को अम्बरीष राजा से पराभव प्राप्त करने का शाप ), १.४७५.९( और्व की निरुक्ति : ऊर्ध्वरेता - ऊरूद्भवो ब्रह्मणस्तु पुरा कल्पे तपस्यतः । ऊर्ध्वरेता हि योगीन्द्र और्वस्तेनेति स स्मृतः ।। ) Aurva, Ourva


      अं अग्नि ३४८.४ ( काम हेतु अं का प्रयोग )


      अ: अग्नि ३४८.४ ( प्रशस्तता हेतु अ: का प्रयोग )